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हम होंगे कामयाब ( का गिरिजा कुमार माथुर द्वारा किया गया हिंदी भावानुवाद) एक प्रतिरोध गीत है। यह गीत बीसवीं सदी में नागरिक अधिकार आंदोलन का प्रधान स्वर बना। इस गीत को आमतौर पर "ई'ल्ल ओवर्कमे सोम दए" ("
हम होंगे कामया[MASK] ( का गि[MASK]िजा [MASK]ुमार माथुर द्वारा क[MASK]या गया हिंदी भावान[MASK]वाद) एक प्रतिरोध [MASK]ीत है। यह गी[MASK] बीसवीं सदी में नागर[MASK]क अधिकार आं[MASK]ो[MASK]न का प्रधान स्वर [MASK]ना। इस गीत को आमतौर पर "ई'ल[MASK]ल ओवर्[MASK]म[MASK] सो[MASK] दए" ("
आई विल ओवरकम सम डे") से काव्यावतरित माना जाता है, जो चार्ल्स अल्बर्ट टिंडले द्वारा गाया गया था और जिसे १९०० में पहली बार प्रकाशित किया गया था। नागरिक अधिकार आंदोलन देशभक्ति के गीतदैनिक पूजा विधि हिन्द
आई विल ओवरकम सम डे[MASK][MASK] से काव्यावतरित माना जाता है, जो चार्ल[MASK]स अल्बर्[MASK] टि[MASK]डले द्व[MASK]रा गाया गया था औ[MASK] जिसे १९०० में [MASK]हली बार प्रकाशित किया गया था। नागरिक अधिकार आंदोलन[MASK]दे[MASK]भक[MASK]ति [MASK]े गीतदै[MASK][MASK]क प[MASK]जा विधि हिन्द
ू धर्म की कई उपासना पद्धतियों में से एक है। ये एक दैनिक कर्म है। विभिन्न देवताओं को प्रसन्न करने के लिये कई मन्त्र बताये गये हैं, जो लगभग सभी पुराणों से हैं। वैदिक मन्त्र यज्ञ और हवन के लिये होते हैं।
ू धर[MASK]म की कई उप[MASK]सना पद्धतिय[MASK]ं में से एक है[MASK] ये एक दैनिक कर्म है। विभिन्न देवत[MASK]ओं [MASK]ो प्रसन्न करने के ल[MASK][MASK]े [MASK][MASK] मन्[MASK]्र बताये गये हैं, जो लग[MASK]ग सभी प[MASK]राणों [MASK]े हैं। वैदि[MASK] मन्त्र यज्ञ और हवन के ल[MASK]ये होते हैं।
पूजा की रीति इस तरह है : पहले कोई भी देवता चुनें, जिसकी पूजा करनी है। फ़िर विधिवत निम्नलिखित मन्त्रों (सभी संस्कृत में हैं) के साथ उसकी पूजा करें। पौराणिक देवताओं के मन्त्र इस प्रकार हैं : विनायक : ॐ
पूजा की रीति इस त[MASK][MASK] है : पहले कोई भी देवता चु[MASK]े[MASK], जिसकी पूजा करनी है। फ़िर विधिवत निम्[MASK]लिख[MASK]त मन्त्रों (सभी संस्कृत में हैं) के साथ उ[MASK]की पूजा [MASK]रें। [MASK]ौराणिक देवताओं के मन्त्र इस प्रकार हैं : विनायक : [MASK]
सिद्धि विनायकाय नमः . सरस्वती : ॐ सरस्वत्यै नमः . लक्ष्मी : ॐ महा लक्ष्म्यै नमः . दुर्गा : ॐ दुर्गायै नमः . महाविष्णु : ॐ श्री विष्णवे नमः . और ॐ नमो नारायणाय . कृष्ण : ॐ श्री कृष्णाय नमः . और ॐ नमो
सिद्धि विनायकाय नमः .[MASK]स[MASK][MASK]्वती : ॐ सरस्वत्यै नमः . लक्ष्मी : ॐ मह[MASK] लक्ष्म्यै नमः . दुर्ग[MASK] : ॐ [MASK]ुर्[MASK]ायै नमः . [MASK]हावि[MASK]्णु : ॐ श्री विष्[MASK]वे [MASK]मः . और ॐ नमो नारा[MASK]णाय . क[MASK]ष्ण : ॐ [MASK]्री कृष्ण[MASK][MASK] न[MASK]ः . और ॐ नमो
भगवते वासुदेवाय . राम : ॐ श्री रामचन्द्राय नमः . नरसिंह : ॐ श्री नारसिंहाय नमः . शिव : ॐ शिवाय नमः या ॐ नमः शिवाय . नीचे लिखे मन्त्र गणेश के लिये हैं : दैनिक विनायक पूजा शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्
भगवते वासुदेवा[MASK] . राम : ॐ श्र[MASK] रामचन्द्राय [MASK]मः . नरसिंह : [MASK] श्र[MASK] नारसिंहाय नम[MASK] . शिव : ॐ शिवाय [MASK]मः या [MASK] नमः शिवा[MASK] . नीचे लिखे मन्त्र [MASK]णेश के ल[MASK]ये हैं : दैनि[MASK] [MASK]िनायक पूजा श[MASK]क्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्
णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये .. ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्
णम् चतुर्भुजम् . प[MASK]रसन्न वदनं [MASK]्या[MASK]ेत् सर्व विघ्नोपश[MASK][MASK]्तये .. ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि वि[MASK]ायकाय नमः [MASK] आ[MASK]ाहयामि . ॐ सिद[MASK]धि [MASK]िनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ स[MASK]द[MASK][MASK]ि विनायकाय [MASK]मः . अर्
घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ
घ्यं समर[MASK]प[MASK]ामि .[MASK]ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर[MASK]पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयाम[MASK] . ॐ [MASK]ि[MASK]्धि वि[MASK]ायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि व[MASK]नायकाय नमः . पंचामृत [MASK]्नानं समर[MASK]पयामि . ॐ
सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः .
सिद्धि विनायकाय न[MASK]ः . वस्त्र युग[MASK]मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायक[MASK][MASK] नमः . यज्ञो[MASK]वीतं धारयामि [MASK] ॐ सिद्धि विनायकाय [MASK]मः . आ[MASK]रणानि समर्पयामि . [MASK] स[MASK]द्धि [MASK]ि[MASK]ायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विना[MASK]क[MASK]य नमः .
अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि . अथ अंग पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . पादौ पूजयामि . ॐ व
अक्षतान् सम[MASK]्प[MASK][MASK]मि . ॐ सि[MASK]्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पू[MASK]य[MASK]मि . ॐ सिद्ध[MASK] विनायकाय नमः . [MASK]्रतिष्[MASK]ापया[MASK][MASK] .[MASK]अथ अंग पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ [MASK]हा गणपतये नमः . पादौ पूजयामि . ॐ व
िघ्न राजाय नमः . उदरम् पूजयामि . ॐ एक दन्ताय नमः . बाहुं पूजयामि . ॐ गौरी पुत्राय नमः . हृदयं पूजयामि . ॐ आदि वन्दिताय नमः . शिरः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अंग पूजां समर्पयामि . अथ पत्र पूजा व
[MASK]घ्न राज[MASK]य नमः [MASK] उदरम् पू[MASK][MASK]ामि .[MASK]ॐ एक दन्ताय नमः . ब[MASK]ह[MASK]ं पूजयामि [MASK][MASK]ॐ गौरी पु[MASK]्राय नमः . हृदय[MASK] पूजय[MASK]मि . ॐ आदि वन्दित[MASK]य नमः . श[MASK]रः पूजयामि . ॐ सिद्ध[MASK] विनायकाय न[MASK]ः . अंग पूजां स[MASK]र्पयामि . अथ पत्र [MASK][MASK]जा व
िनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . आम्र पत्रम् समर्पयामि . ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकि पत्रम् समर्पयामि . ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पत्रम् समर्पयामि . ॐ गौरी पुत्राय नमः . से
िनायक [MASK][MASK]णेश) क[MASK] पाँच नाम चुने[MASK] औ[MASK] ऐसा कहें : ॐ म[MASK]ा गणपतये [MASK]मः . आम[MASK]र पत्रम[MASK] समर्पय[MASK]मि . ॐ [MASK]िघ्न रा[MASK]ाय नमः . केतक[MASK] पत्रम् [MASK]मर्पया[MASK]ि . ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पत्रम् समर[MASK]पयामि . ॐ गौरी [MASK]ुत[MASK]राय नमः . से
वन्तिका पत्रं समर्पयामि . ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पत्रं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पत्र पूजां समर्पयामि . अथ पुष्प पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . जाजी
वन्ति[MASK]ा प[MASK]्रं समर्पयामि .[MASK]ॐ आदि वन्दिताय न[MASK]ः . कमल पत्रं समर्पयामि .[MASK][MASK] सिद्धि वि[MASK]ायकाय नमः . पत[MASK]र पूजां [MASK][MASK]र्पया[MASK]ि [MASK] अथ पुष[MASK]प पूज[MASK] वि[MASK]ायक (गणे[MASK]) के पाँच नाम च[MASK]नें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . ज[MASK]जी
पुष्पं समर्पयामि . ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकी पुष्पं समर्पयामि . ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पुष्पं समर्पयामि . ॐ गौरी पुत्राय नमः . सेवन्तिका पुष्पं समर्पयामि . ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पुष्पं समर्पयामि
पुष्[MASK]ं [MASK]मर्पयामि . ॐ विघ्न राजा[MASK] न[MASK]ः . केतकी [MASK]ुष्पं समर[MASK][MASK]या[MASK]ि . ॐ ए[MASK] दन्ताय [MASK]मः . मन्दार पुष्पं समर्पयामि . [MASK] गौरी पुत[MASK]राय [MASK][MASK]ः . सेवन्ति[MASK]ा पुष्पं समर्पया[MASK]ि . [MASK] आदि वन्दिताय नमः . कम[MASK] पु[MASK]्पं [MASK]मर्पयामि
. ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्प पूजां समर्पयामि . अगर सम्भव हो तो गणेश के १०८ नाम जपें : ॐ सुमुखाय नमः . एक दन्ताय नमः . कपिलाय नमः . गज कर्णकाय नमः . लम्बोदराय नमः . विकटाय नमः . विघ्न राजाय नमः . वि
[MASK][MASK]ॐ सिद्धि विनायका[MASK] न[MASK]ः . पुष्प पूजां सम[MASK]्पयामि . अगर सम्भव हो तो [MASK]णे[MASK] के १०८ [MASK]ाम जप[MASK]ं : ॐ सुमुखाय नमः . एक दन्ता[MASK] नमः . कपिलाय नमः . गज कर्णकाय नमः [MASK] लम्बोदराय नमः . विकटाय नमः . विघ्[MASK] [MASK][MASK]जाय नमः . वि
नायकाय नमः . धूम केतवे नमः . गणाध्यक्षाय नमः . भालचन्द्राय नमः . गजाननाय नमः . वक्रतुण्डाय नमः . हेरम्बाय नमः . स्कन्द पूर्वजाय नमः . सिद्धि विनायकाय नमः . श्री महागणपतये नमः . नाम पूजां समर्पयामि . ॐ
[MASK]ायका[MASK] नमः . ध[MASK]म केतवे नमः . गणाध्यक्[MASK]ा[MASK] नमः . भालचन[MASK]द्रा[MASK] नम[MASK] . ग[MASK]ाननाय नमः . वक्रतुण्डाय नमः . हेरम्बाय नमः . स्कन[MASK]द पूर[MASK]व[MASK][MASK]य न[MASK]ः . सिद्ध[MASK] विनाय[MASK]ाय नमः .[MASK]श्र[MASK] महाग[MASK]पतये न[MASK]ः . [MASK]ाम पूजां समर्[MASK]यामि [MASK] ॐ
सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्ब
सिद[MASK]ध[MASK] विनायकाय नमः . ध[MASK]पं आघ्रापयामि . [MASK] सिद्धि विनायकाय नमः . [MASK]ी[MASK][MASK] दर्श[MASK]ामि . ॐ सिद्धि [MASK]िनाय[MASK]ाय नमः . नैवेद्यं [MASK]िवेदयामि . ॐ सिद[MASK]धि विनायकाय नमः . फलाष[MASK]टकं [MASK]मर्प[MASK]ा[MASK]ि . [MASK] सिद्धि विनायक[MASK]य नमः . ताम्ब
ूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिं समर्पयामि . यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च
ूलं समर्पयामि . ॐ सिद्[MASK]ि वि[MASK]ायकाय न[MASK]ः . क[MASK]्पूर नीराजनं समर्प[MASK]ामि . ॐ स[MASK][MASK]्[MASK]ि विनायकाय नमः . म[MASK]ग[MASK] आरतीं समर्प[MASK]ामि . ॐ [MASK]िद्धि [MASK]िनायकाय नमः . पुष्पांजलिं समर[MASK]पयामि . यानि कानि च पापानि ज[MASK]्मान्तर कृतानि च
. तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे .. प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि . वक्रतुण्ड महाकाय स
. ता[MASK]ि तानि व[MASK]नश्य[MASK]्ति प्रदक्षिणा प[MASK]े पदे .. प्रदक्ष[MASK]णा नमस्कार[MASK][MASK]् [MASK]मर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय [MASK]मः . सम[MASK]्त र[MASK]जो[MASK]चा[MASK]ान् समर्प[MASK]ामि [MASK] ॐ सिद्ध[MASK] विन[MASK]यकाय नम[MASK] . मंत्र पुष्पं समर्पयामि . वक्रत[MASK]ण्ड महाक[MASK]य स
ूर्यकोटि समप्रभ . निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा .. प्रार्थनां समर्पयामि . आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं . पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम .. क्षमापनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनाय
ूर्[MASK]कोटि समप्[MASK]भ . निर्विघ्[MASK]ं क[MASK]रु मे देव सर्[MASK] कार्येषु सर्वदा .. प्रार्थनां समर्पयामि . आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं . पूजावि[MASK]िं [MASK] ज[MASK]नामि क्षमस्व [MASK]ुरु[MASK]ोत्तम .. क्षमापनं समर[MASK]प[MASK]ाम[MASK] . ॐ सिद[MASK][MASK]ि विनाय
काय नमः . पुनरागमनाय च .हिन्दी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिन्दी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है और भारत की एक राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में सह-आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्त
[MASK]ाय नमः . पुनरागमनाय च .हिन्दी जिसके म[MASK]नकी[MASK][MASK]त रू[MASK] को मानक हिन्दी कहा जाता है, विश्व की [MASK]क प्रमुख भाषा है और भ[MASK]रत की एक राजभ[MASK]षा ह[MASK]। केन्[MASK][MASK]र[MASK]य स्तर पर भ[MASK]रत [MASK]ें सह-[MASK]धिकारिक भाषा अंग्रेज[MASK] है। यह हि[MASK]्दुस्त
ानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबीफ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली
ानी भाषा की [MASK]क मा[MASK]कीक[MASK]त रूप है जि[MASK][MASK]े[MASK] संस[MASK]क[MASK][MASK] के तत्सम तथा तद[MASK]भव शब्दों क[MASK] प्रय[MASK]ग अधिक है और अरबीफ[MASK]ारसी शब[MASK]द कम हैं। हिन्[MASK]ी संव[MASK]ध[MASK]निक रूप से भारत क[MASK] राजभा[MASK]ा और भ[MASK][MASK]त क[MASK] स[MASK]से अध[MASK]क बोली और सम[MASK]ी जाने वाली
भाषा है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया है। एथनोलॉग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्
[MASK]ाषा है। हिन्दी भारत क[MASK] [MASK]ाष्ट्रभाषा नहीं है क्य[MASK]ंक[MASK] भारत [MASK]े संव[MASK]धान में कि[MASK][MASK] भी भाष[MASK] को ऐसा [MASK]र्जा नहीं दिया ग[MASK]ा है। एथ[MASK]ोलॉग के अनुसार हिन्दी विश[MASK]व की तीसर[MASK] सबसे अधि[MASK] बोली जाने वा[MASK]ी भाषा है। विश्व आर्
थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। भारत की जनगणना २०११ में ५७.१% भारतीय जनसंख्या हिन्दी जानती है जिसमें से ४३.६३% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभा
थिक मंच की [MASK]णना के अ[MASK]ुसार यह विश्व [MASK]ी दस शक्तिशाली भाष[MASK]ओं में से एक है। भा[MASK]त क[MASK] जनगणन[MASK] २०११ में ५७.१% भारतीय जनसंख्या हिन्दी जानती है जिसमें से ४३.६३% भा[MASK]त[MASK]य [MASK]ोगों न[MASK] हि[MASK]्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभा
षा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १4 करोड़ १0 लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, व्याकरण के आधार पर हिन्दी के समान है, एवं दोनों ही हिन्दुस्तानी भाषा की परस्पर-सुबो
षा घो[MASK]ित क[MASK]या था। [MASK]सके अतिरिक्त भारत[MASK] पाकिस्तान और अन्य देशों में १4 करोड़ १0 ल[MASK]ख लोगों द्व[MASK]रा ब[MASK]ली जाने वाली उर्दू, व्याकरण के आधार पर ह[MASK][MASK]्दी के समान है, एवं दोनो[MASK] ही ह[MASK]न्दुस्तानी भाषा की परस[MASK]पर-सुबो
ध्य रूप हैं। एक विशाल संख्या में लोग हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझते हैं। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १4 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में
ध्य रूप [MASK]ैं। एक विशाल संख्या में लोग हिन्दी और उर्दू दोनों क[MASK] ही सम[MASK]ते [MASK]ै[MASK]। भारत [MASK]ें [MASK]िन्[MASK]ी, विभिन्न भा[MASK]ती[MASK] राज्यों की [MASK]4 आ[MASK]िकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का [MASK]पयो[MASK] करने वाले लगभग १ अरब लोग[MASK]ं [MASK]ें
से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। कभी-कभी 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग नौ भारतीय राज्यों
स[MASK] अ[MASK]िकांश [MASK]ी दूसरी भाषा ह[MASK]। हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा [MASK]ा कार[MASK]य करती है और कुछ हद तक पूरे भ[MASK]र[MASK] में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है[MASK] कभी-कभी 'हिन[MASK]दी[MASK] [MASK]ब्द [MASK][MASK] प्रयोग नौ भार[MASK][MASK]य रा[MASK]्यो[MASK]
के सन्दर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिन्दी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्म
[MASK]े स[MASK]्दर्भ में भी उपयोग किया ज[MASK]ता ह[MASK], जिनकी आध[MASK]का[MASK]िक भाषा हि[MASK]्दी है और ह[MASK]न्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिह[MASK][MASK], छत्तीसगढ़, हरियाण[MASK][MASK] हिमाचल प्र[MASK]े[MASK][MASK] झारखण्ड, मध्य प[MASK]रदेश, राज[MASK]्थान[MASK] उत्तराखण्ड, जम्मू औ[MASK] कश्म
ीर (२०२० से) उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते है
ीर [MASK]२०२० स[MASK]) उत्तर प्[MASK]देश और राष[MASK]ट्[MASK]ीय राजधानी क्षेत्र दिल्[MASK][MASK] का। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों म[MASK]ं [MASK]ोली जाती हैं[MASK] भारत औ[MASK] [MASK]न्य [MASK]ेशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते [MASK]र लिखते है
ं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिन्दी या इसकी मान्य बोलियों का उपयोग करने वाले लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है। फरवरी २०१९ में अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की ती
[MASK][MASK] फ़िजी, मॉरि[MASK]स, [MASK]याना, स[MASK]र[MASK][MASK]ाम, नेपाल औ[MASK] संयुक[MASK]त अरब अम[MASK]रात में भी हिन्दी [MASK]ा इसकी मान्य बोलियों का [MASK]पयोग करने व[MASK]ले लोगों की ब[MASK]़ी संख्या मौज[MASK]द है। फर[MASK]री २०१९ में [MASK]बू धाबी [MASK]ें हिन्दी को न्यायालय की ती
सरी भाषा के रूप में मान्यता मिली। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य न
सरी भाषा के रूप मे[MASK] मान्यता [MASK]िल[MASK]। 'देशी', '[MASK]ाखा' [MASK]भाषा), 'देशन[MASK] वचन' (व[MASK]द्यापति), 'हिन्दवी', '[MASK]क्खिनी', 'रेखता'[MASK] 'आर्यभाषा' (दयानन्द सरस्[MASK]ती[MASK], [MASK]हिन्दुस्[MASK]ा[MASK]ी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि ह[MASK]न्दी के [MASK]न्य न
ाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। हिन्दी, यूरोपीय भाषा-परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। एथ्न
ाम है[MASK] जो विभि[MASK]्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एव[MASK] विभिन्[MASK] [MASK]न्दर्भों में प्[MASK]यु[MASK]्त हुए हैं। हिन्दी[MASK] यूरोपीय भाषा-[MASK]रिवार के अन्दर आती है। ये ह[MASK]न्द ईरानी शाखा क[MASK] हिन्द आर्य उपशाखा क[MASK] अन्त[MASK]्गत [MASK]र्गीकृत [MASK]ै। एथ्न
ोलॉग (२०२२, २५वां संस्करण) की रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हिंदी को प्रथम और द्वितीय भाषा के रूप में बोलने वाले लोगों की संख्या के आधार पर हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिन्द
ोलॉग (२०२२, २५वां संस्[MASK]र[MASK]) की रिपोर्ट के अनुसार विश्[MASK]भ[MASK] में हिंदी को प्[MASK]थम और द्वितीय भाषा के र[MASK]प में बोलने [MASK]ाले लोग[MASK]ं की संख[MASK]य[MASK] के आधार पर हिंदी व[MASK]श्व की [MASK]ीसरी सबसे अ[MASK]िक बोली जाने वाली भाषा है। हि[MASK]्द
ी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द 'सिन्धु' से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्धु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर हिन्दू, हिन्दी और फिर हिन्द
ी शब्द का सम्बन[MASK]ध संस्कृत शब्द 'सिन्धु[MASK] स[MASK] माना जाता है। [MASK][MASK][MASK]न्धु' सि[MASK]्धु नदी को कहत[MASK] थे और उसी आधा[MASK] पर उ[MASK]क[MASK] आस-पास [MASK]ी भूम[MASK] को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब[MASK]द ईरानी में जा[MASK]र हिन्[MASK]ू, हिन्दी और फिर ह[MASK][MASK]्द
हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) हि
हो गया। बाद मे[MASK] ईरानी धीरे-धीरे भारत क[MASK] [MASK]धिक भागों से परिचित होत[MASK] गए और इस शब्द के अर्थ में व[MASK]स्तार होता गया तथा हिन्द [MASK]ब्द पूरे भारत का वाचक हो गया[MASK] इ[MASK]ी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से [MASK]हिन्द+ईक[MASK] हि
न्दीक बना जिसका अर्थ है हिन्द का। यूनानी शब्द इण्डिका या लैटिन 'इण्डेया' या अंग्रेजी शब्द इण्डिया आदि इस हिन्दीक के ही दूसरे रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफ़ुद्दीन यज्दी के
[MASK]्दीक बना जिसका अर्थ ह[MASK] हिन्द का। यूनानी शब्द इण्डिका या ल[MASK]टिन 'इण्डेया' या अंग्[MASK]ेजी शब्द इण्डिया आदि इ[MASK] हि[MASK]्[MASK]ीक क[MASK] ही दूसरे रू[MASK] [MASK]ैं। हि[MASK]्[MASK]ी भाषा के लिए इस शब्द [MASK]ा [MASK]्राचीनतम प्रयोग श[MASK]फ़ुद्दीन य[MASK]्दी के
जफ़रनामा(१४२४) में मिलता है। प्रमुख उर्दू लेखकों ने १९वीं सदी की सूचना तक अपनी भाषा को हिंदी या हिंदवी के रूप में संदर्भित करते रहे। प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्
जफ़रनामा(१४२४) में म[MASK]लता है। [MASK]्[MASK]मु[MASK] उर्दू [MASK]े[MASK]कों न[MASK] १९वीं [MASK]द[MASK] की सूच[MASK]ा तक अपनी भाषा को ह[MASK]ंदी या हिंदवी के रूप में संदर[MASK]भित क[MASK]ते रहे। [MASK]्रो[MASK]़ेसर महावीर सरन जैन ने अप[MASK]े "ह[MASK]न्दी ए[MASK]ं उर्दू का अद्व[MASK]त" शीर[MASK]
षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का अवेस्ता
षक आले[MASK] मे[MASK] हिन्[MASK]ी की व्[MASK]ुत्पत्त[MASK] पर व[MASK]चार करते हुए कहा [MASK]ै कि [MASK][MASK]ान की प्[MASK]ाचीन भाषा अवे[MASK][MASK]ता म[MASK]ं [MASK]स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' क[MASK] 'ह्' की [MASK]रह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का अवेस्ता
में सजाति समकक्ष शब्द 'अहुर' था। अफ़गानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस
में सजाति सम[MASK]क्[MASK] शब्द 'अहुर' था। अफ़गानिस्त[MASK]न के बा[MASK] सिन्धु [MASK]दी [MASK]े इस पार हिन्दुस्ता[MASK] [MASK]े प[MASK]रे इलाके को प्राचीन फ[MASK]ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', [MASK][MASK]िन्दुश[MASK] के नामों स[MASK] पुकारा गय[MASK] है त[MASK]ा [MASK]हाँ की कि[MASK]ी भ[MASK] वस
्तु, भाषा, विचार को विशेषण के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का' या 'हिन्द से'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इण्डिके', 'इण्डिका', लैटिन में 'इण्डेया' तथा अंग्रेजी
[MASK]तु, भाषा, विचार को विशेषण [MASK]े रूप में [MASK]ह[MASK]न्दीक' क[MASK]ा [MASK]या है जिसक[MASK] म[MASK]लब है 'ह[MASK][MASK]्द का[MASK] या 'हिन्द से'। [MASK]ही 'हिन्द[MASK]क' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इण्[MASK]िके', 'इण[MASK]डिका', लैटिन [MASK]ें '[MASK]ण्डेया' तथा अंग्रेज[MASK]
में 'इण्डिया' बन गया। अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में भारत (हिन्द) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी' पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद अरबी-फ़ारसी बोलने वालों ने 'ज़बान-ए-हिन्दी', 'हिन्द
मे[MASK] 'इण्डिया' बन गया। अरबी एवं [MASK]़ारसी साह[MASK]त्य [MASK]ें भारत (हिन्द) में [MASK]ोली ज[MASK]न[MASK] वाली भाषाओं के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी' पद का [MASK]पयोग हुआ है। भारत आ[MASK]े क[MASK] बाद अरबी[MASK]फ़ारस[MASK] [MASK]ो[MASK]ने वालों न[MASK] [MASK]ज[MASK][MASK]ान[MASK]ए-हिन्[MASK][MASK][MASK], [MASK]हिन्द
ी ज़बान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भाषायी उत्पत्ति और इतिहास हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक सहस्र वर्ष पुराना माना गया है। हिन्दी भाषा व साहि
ी ज़बान' अथ[MASK]ा 'हिन्दी[MASK] का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चार[MASK]ं ओर बोली जाने [MASK]ा[MASK]ी भाष[MASK] के अर्[MASK] में किया। भाष[MASK][MASK]ी उत्पत्ति औ[MASK] इतिहास हिन्दी भाषा का इत[MASK]ह[MASK]स ल[MASK]भग एक सहस्र वर्ष [MASK]ुर[MASK]ना माना गया है। हिन्दी भाषा व सा[MASK]ि
त्य के जानकार अपभ्रंश की अन्तिम अवस्था 'अवहट्ठ से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया। अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्
त्[MASK] के जानकार अपभ्रंश की अन्तिम अवस्था 'अवहट्ठ से हिन्दी का [MASK]द्भव स्वीकार करते हैं। चन्द्रधर श[MASK]्मा 'गुले[MASK]ी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी [MASK]िन्दी' नाम [MASK]ि[MASK]ा। अ[MASK]भ्र[MASK][MASK] की सम[MASK]प्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं [MASK]े जन्
मकाल के समय को संक्रान्तिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई॰ के आसपास इसकी स्वतन्त्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक
म[MASK]ाल क[MASK] समय को [MASK]ं[MASK]्रान्तिकाल क[MASK][MASK] जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौर[MASK]ेनी और अर[MASK]धमा[MASK]ध[MASK] अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। [MASK]००० ई॰ के आसपास [MASK]सकी स्व[MASK]न्त्र सत्ता क[MASK] पर[MASK]चय मि[MASK]ने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक
सन्दर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ। अपभ्रंश के सम्बन्
सन्दर्भों में प्रय[MASK]ग मे[MASK] आ रही थीं[MASK] य[MASK]ी भाषाएँ बाद में वि[MASK]सित होक[MASK] आधु[MASK]िक भारतीय आ[MASK]्य भाषाओं के रूप में अभिह[MASK]त हुईं। [MASK][MASK]भ्रं[MASK] का जो भी कथ्य रूप था - व[MASK]ी आधुनिक [MASK]ोलियों में विकसित हु[MASK]। अपभ्रंश के सम्बन्
ध में देशी शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में देशी से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को देशी कहा है जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों
ध में दे[MASK]ी शब्द की [MASK]ी बहुधा च[MASK]्चा की जाती है। वास्तव में देशी से द[MASK]शी शब्द एवं देश[MASK] भाषा दोनों का बोध होत[MASK] है। भरत मुनि ने ना[MASK]्यशास[MASK]त्र [MASK]ें उ[MASK] शब[MASK]दो[MASK] को दे[MASK]ी कहा है [MASK]ो संस्[MASK][MASK]त के तत[MASK]सम एवं सद्[MASK]व र[MASK]पों
से भिन्न हैं। ये देशी शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परन्तु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़
स[MASK] भिन्न हैं। ये देशी शब्द जनभाषा के [MASK]्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। ज[MASK]भाषा व्या[MASK]रण के नियमों का अनुसरण न[MASK][MASK][MASK] करती, परन्[MASK]ु व्याकरण को जनभाषा क[MASK] प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड[MASK]
ता है। प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गयी। अंग्रेजी काल में भारतेन
[MASK]ा है। प्र[MASK]कृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढा[MASK]चे पर व्याक[MASK]ण [MASK]िखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि क[MASK] प्रकृति माना। अतः [MASK]ो शब्द उनक[MASK] नियम[MASK]ं की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज[MASK]ञा दी गयी। अं[MASK]्रेजी काल में भारतेन
्दु हरिश्चन्द्र के समय हिन्दी के विकास में एक नयी चेतना आयी। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी सहित अनेक नेताओं ने भारतीय एकता के लिये हिन्दी के विकास का समर्थन किया। काशी नागरी प्रचारिणी
्दु हरिश्चन्द्र के [MASK]म[MASK] हिन्द[MASK] के विकास में ए[MASK] नयी चे[MASK]ना आयी। भारतीय [MASK]्वतं[MASK]्[MASK]ता आन्दोलन के समय [MASK]ह[MASK]त्मा गाँधी [MASK]हित अ[MASK]ेक नेत[MASK]ओं न[MASK] भार[MASK]ीय एकता के लिये हिन्दी क[MASK] विकास का समर्थन किया। काशी न[MASK]गरी प्रचार[MASK]ण[MASK]
सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रयासों से हिन्दी को एक नयी ऊँचाई मिली। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया। भाषाशास्त्र के अनुसार हिन
स[MASK]ा और हिन्दी [MASK]ाहित[MASK]य [MASK]म्मेलन, प्रयाग [MASK]े प्रयासों से हिन्दी को एक [MASK]यी [MASK]ँचाई मिली[MASK] [MASK]ारत की स[MASK]वतन्[MASK]्रता के पश्चा[MASK] संविध[MASK]न निर्[MASK]ाताओं ने हिन्दी को [MASK][MASK]रत की राजभाषा स्वी[MASK]ार [MASK]िया। भाषाशास्त्र के अनुसार हि[MASK]
्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं : मानक हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे 'शुद्ध
[MASK]दी के चार प्रमुख र[MASK]प या श[MASK]लियाँ हैं : म[MASK]नक हिन्दी - हिन[MASK]दी का मानकीकृत [MASK][MASK]प, जिसकी लिपि द[MASK]वनागरी है। इसमें संस[MASK]कृत भाषा [MASK]े कई शब्द है, ज[MASK]न्[MASK]ोंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों क[MASK] जगह ले ली है। इस[MASK] [MASK]शुद्ध
हिन्दी' भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी। दक्षिणी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ार
हिन्द[MASK]' भी कहते हैं[MASK] यह [MASK]ड़ी[MASK]ोली प[MASK] आधारित है, जो [MASK]िल्[MASK]ी और उसके आस-पा[MASK] के क्षेत्रों मे[MASK] बोली जाती थी। द[MASK]्षिणी - [MASK]र्दू-हि[MASK][MASK]दी क[MASK] वह [MASK]ूप जो हैदराबाद और उसके आसप[MASK]स की जग[MASK]ों में बोला जाता है। इसमें फ़ा[MASK]
सी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं। रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था। उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत
सी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्ष[MASK] कम हो[MASK]े हैं।[MASK]रेख्ता - उर्दू [MASK]ा व[MASK] रूप जो [MASK]ायरी में प्रयुक्त होता था। उ[MASK]्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के [MASK]जाय फ़ारसी-अरबी लिपि में ल[MASK]ख[MASK] जात[MASK] है। इसम[MASK]ं संस्कृत
के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है। हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलच
के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक[MASK] यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है। हिन्[MASK]ी और उर्दू दोनों क[MASK] [MASK]िलाकर हिन्दुस्तानी [MASK]ाषा कह[MASK] जाता है। हि[MASK]्दु[MASK]्तानी मानकीकृत हि[MASK]्[MASK]ी और मान[MASK]ीकृत उर[MASK]दू के बोलच
ाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी रा
ाल की भाषा [MASK]ै। इसम[MASK]ं शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम ह[MASK]ते हैं औ[MASK] तद्भव शब्द अधिक। [MASK]च्च हिन्दी भारतीय संघ की राज[MASK]ाषा है (अनुच्छेद ३४३, भ[MASK]रतीय संविध[MASK]न)। यह इन भारतीय रा[MASK]्यों की भी रा
जभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी रा
जभाषा है : उत्त[MASK] प[MASK]रदेश, बिहार, झारखण्ड, म[MASK]्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्ती[MASK]गढ़, राजस[MASK]थान, हरिय[MASK]णा और दिल्ली। इन रा[MASK]्यों क[MASK] अ[MASK]िरिक्त महाराष्ट[MASK]र, गुजरात, पश्[MASK]िम बंगाल, पंजा[MASK] [MASK]र हिन्दी भाषी रा
ज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और दिल्ली में द्व
ज्यों से लगते अन[MASK]य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालो[MASK] की अच्छ[MASK] संख्या [MASK]ै। उर[MASK]दू पाक[MASK]स्[MASK][MASK][MASK] की और भारतीय राज्य जम्मू और क[MASK]्मीर की राजभाषा [MASK][MASK], इसके अत[MASK]रिक्त उत्तर प्रद[MASK]श, ब[MASK]हार, तेलंगाना और दिल्ली में द्व
ितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है। हिन्दी एवं उर्दू भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब
ितीय राजभाषा है। [MASK]ह लगभग सभी ऐसे राज्यों की [MASK]ह-[MASK]ाजभाषा [MASK]ै; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्द[MASK] है। हिन्दी एवं उर्दू भाषा[MASK]िद हिन्दी एवं उर्द[MASK] को एक ह[MASK] भाषा समझते [MASK]ैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में [MASK]िखी ज[MASK]त[MASK] है और शब
्दावली के स्तर पर अधिकांशतः संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, नस्तालिक लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर फ़ारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है। हालाँकि व्याकरणिक रूप से उर्दू और
्दावली के स्तर [MASK]र अधिकांशतः संस्क[MASK][MASK] [MASK]े शब्दों का प्र[MASK]ोग करती है। उ[MASK]्दू, नस्तालिक लिप[MASK] में ल[MASK]खी जाती है और शब्[MASK]ावली क[MASK] स्तर पर [MASK]़ारसी औ[MASK] अरबी [MASK]ाषाओं का प्रभाव अधिक है। [MASK]ालाँकि व्याकरण[MASK]क र[MASK]प स[MASK] उर्दू और
हिन्दी में कोई अन्तर नहीं है परन्तु कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अन्तर है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और
हिन्[MASK]ी मे[MASK] कोई अन्तर नह[MASK]ं [MASK]ै [MASK]र[MASK]्तु कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के [MASK][MASK]रो[MASK] (ज[MASK]सा कि ऊपर लिखा गय[MASK] है) [MASK]ें अन्त[MASK] है[MASK] कुछ [MASK][MASK]शेष ध्वनियाँ उ[MASK]्[MASK]ू म[MASK][MASK] अर[MASK][MASK] औ[MASK] फ़ारसी से ली गयी हैं और [MASK]सी प्रक[MASK]र फ़[MASK]रसी [MASK]र
अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचनाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। उर्दू और हिन्दी खड़ीबोली की दो आधिकारिक शैलियाँ हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क
अरबी की क[MASK]छ विशेष व[MASK]याकरणिक [MASK]ंरचन[MASK]एँ भी प्रयोग की [MASK][MASK]ती हैं। [MASK]र्दू औ[MASK] हिन[MASK]दी [MASK]ड़ीबोली की दो [MASK]ध[MASK]क[MASK]रिक शैलिया[MASK] ह[MASK]ं। स[MASK]वतन्त[MASK]रता प्राप्ति के ब[MASK]द से हिन्दी और देवनागरी के म[MASK]नकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क
्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :- हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण वर्तनी का मानकीकरण शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिय
्षे[MASK]्[MASK]ो[MASK] में [MASK]्र[MASK]ास हुये [MASK]ैं :- हिन[MASK]दी [MASK]्याकरण का मा[MASK]कीक[MASK]ण वर्तनी का मानकीकरण शिक[MASK]षा मंत[MASK]रालय क[MASK] [MASK]िर्देश [MASK]र के[MASK]्[MASK]्र[MASK]य हिन्[MASK]ी निदेशालय द्वार[MASK] देवनागरी क[MASK] मानकीकरण वैज्ञ[MASK]निक ढंग से देवनागरी लिखने के लिय
े एकरूपता के प्रयास यूनिकोड का विकास हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा औ
े एकरूपता क[MASK] प्रयास[MASK]यूनि[MASK]ोड का विकास हि[MASK]्दी का क्षेत्र विशाल है तथ[MASK] हिन[MASK]दी की अनेक ब[MASK]लिय[MASK]ँ (उपभाषाए[MASK]) हैं। इनमें [MASK]े कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की [MASK]चना [MASK]ी हुई है[MASK] [MASK]सी बोलियों में ब्रज[MASK]ाषा औ
र अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परम्परा, इतिहास,
र अवधी प्रमुख हैं। ये बोलिय[MASK]ँ [MASK]िन्दी की विविधता हैं और [MASK]सकी शक्ति [MASK]ी। वे हि[MASK]्दी की जड[MASK]ो[MASK] क[MASK] गह[MASK][MASK] बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोल[MASK]याँ हैं जो न [MASK]ेवल अपने में एक बड़ी परम्प[MASK][MASK], इतिहास,
सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतन्त्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के विरुद्ध भी उसका रचना संसार सचेत है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, बघेली, भोजपु
सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतन्त्रता संग[MASK]राम, जनसंघर्ष, व[MASK]्[MASK]मान के बा[MASK]ा[MASK]वाद के विरुद्ध भी उसका रचना स[MASK]सार सचेत है।[MASK]हिन्दी की बोलिय[MASK]ं में प्रमुख हैं[MASK] अवधी, ब्रजभाष[MASK], कन्नौजी, बुन[MASK]देली, बघेली, भोजपु
री, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी। हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता ह
री, हरयाणवी, राजस्थान[MASK], छत्त[MASK]सग[MASK]़ी, म[MASK]लवी, [MASK][MASK]गप[MASK]री, ख[MASK]रठा, पंच[MASK]रगनिया, कुमाउ[MASK]न[MASK], मगह[MASK] आदि[MASK] क[MASK][MASK]्तु हि[MASK]्दी के मुख्[MASK] दो भेद हैं - पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी। हिन्दी को देव[MASK]ागरी ल[MASK]पि में लिखा जाता ह
ै। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है। देवनागरी में ११ स्वर और ३३ व्यंजन हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः चार वर्ग हैं। तत्सम शब्द ये वे शब्द हैं जिनको संस्कृत से बि
ै। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है[MASK] देव[MASK]ागरी मे[MASK] ११ स्वर और ३३ व्यंजन हैं। इसे बाईं से दा[MASK]ं ओर लिखा जाता [MASK]ै। ह[MASK]न्दी [MASK][MASK][MASK]दा[MASK][MASK]ी में [MASK]ुख्यतः च[MASK]र वर्ग हैं। त[MASK]्सम शब[MASK]द ये वे शब्[MASK] हैं जिन[MASK]ो संस्कृत से बि
ना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध, दन्त, मुख। (परन्तु हिन्दी में आने पर ऐसे शब्दों से विसर्ग का लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिन्दी में केवल 'नाम' हो जाता है।) तद्भव शब्द ये वे श
ना कोई रूप बदले [MASK]े लिया गया है। ज[MASK]से अग[MASK]नि, [MASK]ुग्ध, दन्त, मुख। (परन्तु हिन्दी [MASK]ें आने प[MASK] ऐसे शब्दों से व[MASK]सर्ग का लोप हो जाता है जैसे संस्[MASK][MASK]त 'नामः' हिन्दी में केवल 'नाम' ह[MASK] जाता है।) तद्भ[MASK] शब्द ये [MASK][MASK] श
ब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे आग, दूध, दाँत, मुँह। देशज शब्द देशज का अर्थ है 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। तो देशज शब्द का अर्थ हुआ ज
ब्द हैं जिनका जन्म सं[MASK][MASK]कृत [MASK]ा प[MASK]राकृत में ह[MASK]आ था, [MASK]ेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव [MASK]य[MASK] है। जैसे आग, दूध, दाँत, [MASK]ु[MASK][MASK]। देशज शब्द देशज का अर्थ है 'जो देश मे[MASK] [MASK][MASK] उपजा य[MASK] बना [MASK]ो'। तो द[MASK]शज शब्[MASK] का अ[MASK]्थ हुआ ज
ो न तो विदेशी भाषा का हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो न संस्कृत का हो, न संस्कृत-शब्द का अपभ्रंश हो। ऐसा शब्द किसी प्रदेश (क्षेत्र) के लोगों द्वारा बोल-चाल में य़ों ही बना लिया
ो न तो विदेशी भ[MASK]षा का हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द [MASK]े बन[MASK] हो[MASK] [MASK]सा शब्द जो [MASK] स[MASK][MASK]्कृत [MASK]ा हो, न संस्कृत[MASK]शब्द क[MASK] अपभ्रं[MASK] [MASK]ो। ऐसा शब्[MASK] किसी प्रदेश (क्षेत्र) [MASK][MASK] लोगों द्वारा बोल-[MASK]ाल में य़ों ही बना लिया
जाता है। जैसे खटिया, लुटिया। विदेशी शब्द इसके अतिरिक्त हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द
जाता है[MASK] जैसे खटि[MASK]ा, लुटिय[MASK]। विदेशी शब्द इसके [MASK]तिरिक्त हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ा[MASK]सी, तुर्की, अंग्रेजी आदि [MASK]े भी आये हैं। इ[MASK]्हे[MASK] विदेशी शब्[MASK] कहते हैं।[MASK][MASK]िस हिन्दी में [MASK]रबी, [MASK]़ारसी और अंग्रेजी [MASK]े शब्द
लगभग पूर्ण रूप से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हिन्दी" कहते हैं। देवनागरी लिपि में हिन्दी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं : ये स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ी
[MASK]गभग [MASK]ूर्ण र[MASK]प से हटा कर त[MASK]्सम शब्[MASK]ों को ह[MASK] प्र[MASK]ोग में लाय[MASK] जाता [MASK]ै, उसे [MASK]शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हि[MASK]्दी[MASK] कहते हैं।[MASK]देवनागरी [MASK]िपि में हिन्दी की ध्वनिय[MASK]ँ इस प्रकार हैं : ये स्वर [MASK]धुनिक हिन्दी (खड़ी
बोली) के लिये दिये गये हैं। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं : ऋ इसका उच्चारण संस्कृत में /र/ था मगर आधुनिक हिन्दी में इसे // उच्चारित किया जाता है । अं पंचम वर्ण -
बोल[MASK]) के [MASK][MASK]ये दिये [MASK]ये हैं। इसके अलावा हि[MASK]्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी [MASK]्वर माने जात[MASK] हैं : ऋ इसका उच्चा[MASK]ण [MASK]ंस्कृत में /र/ [MASK]ा मगर आधुनिक हिन[MASK]दी म[MASK]ं [MASK]से // उच्चारित किय[MASK] [MASK]ाता [MASK][MASK] [MASK] अं पंचम वर्ण -
ङ्, ञ्, ण्, न्, म् का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार) अँ स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चंद्र बिंदु) अः अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग) जब किसी स्वर प्रयोग ना हो तो वहाँ पर डिफ़ॉल्ट रूप से 'अ
ङ्, ञ्, ण्, न्, म् का नासिकीकरण करने के लि[MASK] (अनुस्व[MASK][MASK]) अँ स्वर का अ[MASK]ुनास[MASK]कीकरण करन[MASK] के लिए (चं[MASK]्र बिंदु[MASK] अः अघोष "ह्" ([MASK]िःश्वास) के लिए (विसर[MASK]ग) जब किसी स्वर प्रयोग ना हो तो वह[MASK]ँ पर डिफ़ॉल्[MASK] रूप स[MASK] 'अ
' स्वर माना जाता है। स्वर के ना होना व्यंजन के नीचे हलन्त् या विराम लगाके दर्शाया जाता है। जैसे क् /क/, ख् /क/, ग् /ग/ और घ् /ग/। इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रय
' स[MASK]वर माना जा[MASK]ा है। [MASK][MASK]वर के ना [MASK]ोना व्[MASK]ंजन के नीचे हलन्त् या व[MASK]राम लगा[MASK]े दर्शा[MASK]ा जा[MASK]ा है। जैसे क् /क/, ख् /[MASK]/, ग् /ग[MASK] औ[MASK] घ् /ग/। इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्व[MASK]क अन्तस्थ) ए[MASK] अतिरिक[MASK]त व्यंजन [MASK]ै जिसका प्रय
ोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज करना। शुक्ल यजुर्वेद
[MASK]ग ह[MASK]न्दी में नह[MASK]ं होत[MASK] है। मरा[MASK][MASK] और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग क[MASK]या जाता है। संस्कृत मे[MASK] ष क[MASK] उच्चारण ऐसे होता था : [MASK]ीभ की नोक [MASK]ो [MASK]ूर्धा (मु[MASK]ह की छ[MASK]) की ओ[MASK] उठाकर श जैसी आवा[MASK] करना। शु[MASK]्ल यजुर्वेद
की माध्यन्दिनि शाखा कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँ
की मा[MASK]्यन्दिनि [MASK]ाखा कुछ व[MASK]क़्यात में ष का उच[MASK]चारण ख की तरह कर[MASK]ा मान्य [MASK]ा। आधुनि[MASK] हिन्दी म[MASK]ं ष क[MASK] [MASK]च्चारण पूरी तरह [MASK] [MASK]ी तरह हो[MASK]ा है। हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-क[MASK]ी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि ज[MASK]भ मुँ
ह की छत को एक जोरदार ठोकर मारती है। परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है। ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरब
ह की छत को ए[MASK] जोरदार ठोकर मा[MASK]ती है। [MASK]रन्तु इसका श[MASK]द्[MASK] उच[MASK]चारण [MASK]िह्वा को मूर्[MASK]ा (मु[MASK][MASK] [MASK][MASK] [MASK]त. जहाँ से '[MASK]' का [MASK][MASK]्चार करते हैं) पर लगा कर न की तर[MASK] का अनुन[MASK]सिक स्वर [MASK]िक[MASK]लकर हो[MASK]ा है। ये ध्व[MASK]ियाँ मुख्यत: अ[MASK]ब
ी और फ़ारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होती हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी देवनागरी वर्ण के नीचे बिन्दु (नुक़्ता) लगाकर लिखे जाते हैं। अन्य सभी भारत
[MASK] और फ[MASK]ारसी भाषाओं से लिये गये शब्दो[MASK] क[MASK] मूल उच्च[MASK]र[MASK] में होती हैं[MASK] इनका स्रोत स[MASK]स्कृत नहीं है। देवनागरी ल[MASK]पि में ये सबसे करीबी देव[MASK]ागरी वर्ण के नीचे ब[MASK]न[MASK]दु (नुक़्त[MASK][MASK] लगाकर लिखे जाते हैं। अन्य [MASK]भ[MASK] भारत
ीय भाषाओं की तरह हिन्दी में भी कर्ता-कर्म-क्रिया वाला वाक्यविन्यास है। हिन्दी में दो लिंग होते हैं पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। नपुंसक वस्तुओं का लिंग भाषा परम्परानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होता है। क्रि
ीय भाषाओ[MASK] क[MASK] तरह हिन[MASK]द[MASK] में भी कर्ता-कर्म[MASK]क्रिय[MASK] वाला वाक्[MASK]विन[MASK]यास [MASK]ै। हिन्दी [MASK]ें दो [MASK]िंग होते हैं [MASK]ुल्लिंग [MASK]र स्त्[MASK]ीलिंग। न[MASK]ुंसक वस्तुओं क[MASK] लिंग भ[MASK]षा परम्परानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होता है। क्रि
या के रूप कर्ता के लिंग पर निर्भर करता है। हिन्दी में दो वचन होते हैं एकवचन और बहुवचन। क्रिया वचन-से भी प्रभावित होती है। विशेषण विशेष्य-के पहले लगता है। भारत की जनगणना २०११ में ५७.१% भारतीय आबादी हिन
या क[MASK] र[MASK]प कर्ता के ल[MASK]ंग पर न[MASK]र्भर कर[MASK]ा है[MASK] हिन्दी मे[MASK] दो वचन होते हैं एकवचन और बहुवच[MASK]। क्रि[MASK]ा व[MASK]न-से भी प्रभावित [MASK]ोती है। विशेषण विशेष्य-के पहले लगता है। भार[MASK] [MASK][MASK] [MASK]नगणना २[MASK]११ में ५७.१[MASK] [MASK][MASK][MASK]तीय आबादी ह[MASK]न
्दी जानती है जिसमें से ४३.६३% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में ८,६३,०७७; मॉरीशस में ६,८5,१70; दक्षिण अफ़्रीक
्दी जानती [MASK]ै जिसमें [MASK]े [MASK]३.६[MASK][MASK] भारतीय [MASK]ोगों ने हिन्दी को अपन[MASK] म[MASK][MASK] भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। भारत के बाहर, हिन्[MASK]ी [MASK]ोलने [MASK]ाले संय[MASK]क्[MASK] राज[MASK]य अमेरिका में ८,६[MASK],०७७; मॉरीशस में ६,[MASK]5,१70; दक्षिण अफ़्र[MASK]क
ा में ८,९०,२९२; यमन में २,3२,7६0; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में 5०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में उपयोग भिन्न-भिन्
ा में ८,[MASK]०,२९२; यम[MASK] में २,3२,7६0; य[MASK]गांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में 5०००; नेप[MASK]ल में ८ लाख; जर्मनी म[MASK]ं ३०,०[MASK]० हैं। न्यूजीलैंड में हि[MASK]्[MASK]ी चौथी सर्वाधिक बोली जाने [MASK]ाली भाषा है।[MASK]भ[MASK][MASK]त में उपयोग भि[MASK]्न-भिन्
न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्क भाषा कहा जाता है। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही हिन्दी पूरे भारत की सम्पर्क भाषा बनी हुई है। अपने सीमित रूप प्रशासनिक भाषा
न भाषा-भाष[MASK]यों के मध्[MASK] पर[MASK][MASK]पर विचा[MASK]-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्[MASK] भाषा कह[MASK] [MASK]ाता है। अपने राष्ट्रीय स्वर[MASK]प [MASK][MASK]ं ही ह[MASK]न्दी पूरे भारत की सम्पर्क भाषा बनी हुई है। अपने स[MASK]मित र[MASK]प प्रशासनिक भाषा
के रूप में हिन्दी व्यवहार में भिन्न भाषाभाषियों के बीच परस्पर सम्प्रेषण का माध्यम बनी हुई है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली (बॉलीवुड के कारण) देशभाषा हिन्दी है, यह राजभाषा भी है तथा सा
के रूप [MASK]ें हिन्दी [MASK]्यवहार [MASK]ें भि[MASK]्न भ[MASK]ष[MASK]भाषियों के [MASK]ीच परस्[MASK]र [MASK]म्प[MASK]रेष[MASK] [MASK]ा [MASK]ाध्यम बनी हुई है। सम्पूर्ण भारतवर्ष मे[MASK] बोली और समझी जाने वाली ([MASK][MASK]लीव[MASK]ड के कारण) देशभ[MASK]षा हिन्दी है, यह राजभाषा भी ह[MASK] तथा [MASK]ा
रे देश को जोड़ने वाली सम्पर्क भाषा भी। हिन्दी भारत की राजभाषा है। १४ सितम्बर १९४९ को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी बहुत से लोग हिन
रे देश [MASK]ो जोड़ने वाली स[MASK]्पर्क भाषा भ[MASK]। हिन्द[MASK] भा[MASK]त की रा[MASK]भाषा है[MASK] [MASK]४ [MASK]ितम्बर १९४९ क[MASK] [MASK]िन्द[MASK] को भारत क[MASK] [MASK]ाजभाषा के रूप मे[MASK] स्[MASK]ीकार किया गया था। भार[MASK] की स[MASK]वतंत्रत[MASK] के प[MASK]ले [MASK][MASK] उसके बाद [MASK]ी बहुत से लो[MASK] हिन
्दी को 'राष्ट्रभाषा' कहते आये हैं (उदाहरणतः, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे आदि) किन्तु भारतीय संविधान में 'राष्ट्रभाषा' का उल्लेख नहीं हुआ है और इस दृष्टि से हिन्दी
्द[MASK] को 'राष्ट्रभाषा' क[MASK]ते आये हैं (उदा[MASK]रणतः, राष[MASK][MASK]्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्र[MASK]ाषा सभा, पुणे आद[MASK]) [MASK]ि[MASK]्तु भारतीय संविध[MASK]न में 'राष्[MASK]्रभाषा' का उल[MASK]लेख नहीं [MASK]ुआ [MASK]ै और इस दृ[MASK]्ट[MASK] [MASK]े [MASK]िन्दी
को राष्ट्रभाषा कहने का कोई अर्थ नहीं है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहने के एक हिमायती महात्मा गांधी भी थे, जिन्होंने २९ मार्च १९१८ को इन्दौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन
[MASK]ो राष्ट्[MASK]भाष[MASK] कहने का कोई अर्थ नहीं है। [MASK]िन्दी क[MASK] राष्ट्[MASK]भ[MASK]षा कहने के एक हिमायती महात्मा गांधी [MASK]ी थे[MASK] जिन्हों[MASK]े २९ मार्च १९१८ को इन्दौर में आ[MASK]वें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन
्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। उन्होने तो यहाँ तक कह
्होंने अपने स[MASK]र्वजनिक उद्बोधन में पहली ब[MASK]र आह्[MASK]ान क[MASK]या था क[MASK] हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाष[MASK] का दर्जा म[MASK][MASK]ना चाहिये। उन्होन[MASK] यह भी कह[MASK] [MASK]ा कि राष[MASK]ट[MASK]रभाषा [MASK]े बिना राष्ट्र गूँगा [MASK]ै। उन्होने तो य[MASK][MASK]ँ तक कह
ा था कि हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। आजाद हिन्द फौज का राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' भी "हिन्दुस्तानी" में था। उनका अभियान गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था, परन्तु सुभाष चन्द्र बोस
ा था कि हिन्दी भाष[MASK] का प्रश[MASK]न स्वराज्य का प्रश्न है। [MASK]जाद हिन्[MASK] फौज का रा[MASK]्ट्रगान '[MASK]ुभ सुख चैन' भ[MASK] "हिन्दुस[MASK]त[MASK]नी" में था। उनका अभियान [MASK]ीत 'कदम कद[MASK] बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था, परन्तु सु[MASK]ाष चन्द्र बोस
हिन्दुस्तानी भाषा के संस्कृतकरण के पक्षधर नहीं थे, अतः शुभ सुख चैन को जनगणमन के ही धुन पर, बिना कठिन संस्कृत शब्दावली के बनाया गया था। पूर्वोत्तर भारत में पूर्वोत्तर भारत में अनेक जनजातियाँ निवास करत
हिन्दुस्[MASK][MASK]नी भाषा के संस्कृतक[MASK]ण के पक्षधर नहीं थे, अतः शुभ स[MASK]ख चैन को जनगणमन के ही धुन पर, बिना [MASK]ठिन स[MASK]स्कृत शब्दाव[MASK]ी के बनाय[MASK] गया था। पूर्वोत्तर भारत में पूर्वोत्तर भारत में अनेक जनज[MASK]तियाँ न[MASK]वास [MASK]रत
ी हैं जिनकी अपनी-अपनी भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इनमें बोड़ो, कछारी, जयन्तिया, कोच, त्रिपुरी, गारो, राभा, देउरी, दिमासा, रियांग, लालुंग, नागा, मिजो, त्रिपुरी, जामातिया, खासी, कार्बी, मिसिंग, निशी, आदी, आ
ी है[MASK] ज[MASK]नकी अपनी-अपनी भाष[MASK]ए[MASK] तथा [MASK]ोलियाँ ह[MASK]ं। इनमे[MASK] बोड़ो[MASK] कछारी[MASK] जयन्[MASK]िया, कोच[MASK] त[MASK]रिपुरी, गारो, राभा, देउरी, दिमासा, र[MASK]यांग[MASK] लालुंग, नागा, मिजो, [MASK]्रि[MASK]ुरी, जामातिया, खासी, का[MASK]्बी, मिसि[MASK]ग, निशी, [MASK]दी[MASK] आ
पातानी, इत्यादि प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर की भाषाओं में से केवल असमिया, बोड़ो और मणिपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला है। सभी राज्यों में हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकांश प्रवासी हिन्दी
पा[MASK]ानी, [MASK]त्यादि प्रमुख हैं। पूर[MASK]वोत्तर की भ[MASK]षाओं में स[MASK] केवल अस[MASK]ि[MASK]ा[MASK] ब[MASK]ड़ो और मणिपुरी [MASK]ो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची मे[MASK] स्थान मिला है। सभी र[MASK]ज्यों में हिन्द[MASK] भाषा का प्रयोग अधिकांश प्रवासी हिन्दी
भाषियों द्वारा आपस में किया जाता है। पूर्वोत्तर में हिन्दी का औपचारिक रूप से प्रवेश वर्ष १९३४ में हुआ, जब महात्मा गांधी अखिल भारतीय हरिजन सभा की स्थापना हेतु असम आये। उस समय गड़मूड़ (माजुली) के सत्रा
भाषियों द्वारा आपस में कि[MASK]ा जाता है। पूर्वोत्तर में [MASK]िन्दी का औपचारिक रूप से प्रवेश वर्ष १९[MASK]४ म[MASK]ं हुआ, जब महात्मा गांध[MASK] अख[MASK]ल भारतीय हरिज[MASK] सभा की स्थापना हेतु [MASK]सम [MASK]ये[MASK] उस समय ग[MASK][MASK]मूड़ (माजुली) के सत्रा
धिकार (वैष्णव धर्मगुरू) एवं स्वतन्त्रता सेनानी पीताम्बर देव गोस्वामी के आग्रह पर गांधी जी सन्तुष्ट होकर बाबा राघव दास को हिन्दी प्रचारक के रूप में असम भेजा। वर्ष १९३८ में असम हिन्दी प्रचार समिति की स्
ध[MASK]कार (वैष्ण[MASK] धर्मगुरू) एवं स्वत[MASK]्त्रता सेनानी पीताम्बर देव गोस्वा[MASK]ी के आग्र[MASK] पर गांधी [MASK]ी सन्[MASK]ुष्ट होकर बाब[MASK] [MASK]ाघव दास को हिन्[MASK]ी प्र[MASK]ारक के रूप में असम भेजा। वर्[MASK] [MASK]९३८ में असम हिन्दी प्रचार सम[MASK][MASK]ि की स्
थापना गुवाहाटी में हुई। यह समिति आगे चलकर असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनी। आम लोगों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार करने हेतु- प्रबोध, विशारद, प्रवीण, आदि परीक्षाओं का आयोजन इस समिति के
थापना गुवाहाटी [MASK]ें हुई। यह [MASK]मित[MASK] आगे च[MASK]कर अस[MASK] रा[MASK]्ट्रभाषा प्[MASK]चार समिति बनी। आम लोगों में ह[MASK]न्दी भाषा त[MASK]ा सा[MASK]ित्य के प्रचार-प[MASK]रसार क[MASK]ने हेतु- [MASK]्रब[MASK]ध, विशारद, प्रवीण, आदि परी[MASK]्[MASK]ाओं का आयोजन इस समिति के
द्वारा होता आ रहा है। पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी की स्थिति दिनों-दिन सबल होती जा रही है और यह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। आजकल अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिन्दी बोली जाने लगी है। हिन्दी का प्र
द्वा[MASK]ा होत[MASK] आ रहा है। प[MASK]र्[MASK]ोत्तर भार[MASK] [MASK]ें हिन्[MASK]ी क[MASK] [MASK]्थिति दिनो[MASK]-दिन सबल ह[MASK][MASK]ी जा रही है और यह स[MASK]ी दिशा मे[MASK] [MASK]गे बढ़ रहा है। आजकल अ[MASK]ु[MASK]ाचल प्रदेश में [MASK]ड़े पै[MASK]ाने पर हिन्दी बोली ज[MASK]ने लगी है। हिन्[MASK]ी का [MASK]्र
चार-प्रसार तथा उसकी लोकप्रियता एवं व्यावहारिकता टी.वी. (धारावाहिक, विज्ञापन), सिनेमा, आकाशवाणी, पत्रकारिता, विद्यालय, महाविद्यालय तथा उच्च शिक्षा में हिन्दी भाषा के प्रयोग द्वारा बढ़ रही है। भारत के ब
चार-प्रसार तथा उसकी लोकप्र[MASK]यता एवं व्यावहार[MASK]कता टी.वी. (धारावाह[MASK]क, विज्ञापन)[MASK] [MASK]िनेमा, आकाशवाण[MASK], पत्[MASK]का[MASK]िता, विद्य[MASK]लय, [MASK]ह[MASK]वि[MASK]्य[MASK]लय तथा उच्च शिक्षा म[MASK]ं हिन्दी भाषा [MASK]े प्रय[MASK]ग द्वारा बढ़ रही है। भा[MASK]त [MASK][MASK] ब
ाहर सन् १९९८ के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् १९९७ में 'सैंसस ऑफ़ इण्डिया' का
ाहर[MASK]सन् १९९८ के पूर्व, मातृभाषियों की सं[MASK]्या की दृ[MASK]्टि [MASK]े विश्[MASK] म[MASK]ं सर[MASK]वाधिक बोल[MASK] जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे[MASK] उनमें हिन[MASK]दी को तीसरा स्थान दिया जाता थ[MASK]। सन[MASK] १९९७ में 'सैंसस ऑफ़ इण्डिया' का
भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् १९९८ में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हि
भारतीय भाषा[MASK]ं के विश्ले[MASK]ण का ग्रन्थ प्रकाशित [MASK]ोने तथा संसार की भ[MASK]षाओं की [MASK]िपोर्ट त[MASK]यार करने के ल[MASK]ए यूनेस्को द्वा[MASK]ा सन् १९९८ में भेज[MASK] गई यूनेस्को प्रश्न[MASK]वली के आधार पर उन[MASK]ह[MASK]ं भारत सरकार के [MASK][MASK]न[MASK]द्रीय ह[MASK]
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