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न्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद
न्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेस[MASK] महावीर स[MASK]न जैन द[MASK]व[MASK]रा भ[MASK]जी [MASK]ई व[MASK]स्तृत [MASK]िपोर्ट [MASK]े बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीक[MASK]त [MASK]ै [MASK]ि मात[MASK]भाषियों की संख्[MASK]ा की दृष्टि से संसार की [MASK]ाषाओं मे[MASK] चीनी भाष[MASK] के बाद
हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधि
हिन्दी का दूसरा स्[MASK]ान है। [MASK][MASK]नी भ[MASK][MASK]ा के बोलने [MASK]ाल[MASK]ं की स[MASK]ख[MASK]या हिन्दी भाषा से [MASK]धिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रय[MASK]ग क्षेत्[MASK] हिन्दी की अपेक्[MASK]ा सीमित है। अ[MASK]ग[MASK]र[MASK]जी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन[MASK]दी [MASK]ी अपेक्ष[MASK] अधि
क है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है। विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिन्दी में विद्यमान हैं। बीसवीं सदी के अन्तिम दो दशकों में हिन्दी का अन्तरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है।
क है किन्तु मातृभाषियों क[MASK] [MASK]ंख[MASK]या अंग्[MASK]ेजी भाषि[MASK]ों से अधिक है। विश्वभाषा बनने के सभ[MASK] गुण हि[MASK]्दी [MASK]ें विद्यमान हैं। बीसवी[MASK] सदी के [MASK][MASK]्[MASK]िम दो दशकों में [MASK]िन्दी का अन्तरराष्ट्[MASK]ीय विका[MASK] बहु[MASK] त[MASK]जी से हुआ ह[MASK]।
हिन्दी एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिम्बित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की माँग जिस
हिन्दी एशिया के व्यापारिक जगत् [MASK]ें धीरे-धीरे [MASK]पना स्वरूप बिम्बित क[MASK] भविष्य की अग्रणी भाष[MASK] के रूप में स्वयं को स्था[MASK][MASK]त कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार [MASK]े क्षेत्र में हिन्दी की माँग जिस
तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग १५० विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केन्द्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। व
ते[MASK]ी से बढ़ी ह[MASK] वै[MASK]ी किसी और भाष[MASK] में नहीं। [MASK]िश्[MASK] के लगभग १५० विश्[MASK]विद[MASK]यालयों तथ[MASK] स[MASK]कड़ों छोटे-ब[MASK]़े केन्द्रों म[MASK][MASK] विश्व[MASK]िद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन[MASK]दी के अध्यय[MASK]-अध्यापन की व्यव[MASK]्था हुई है। व
िदेशों में २५ से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ़-एम' सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जाप
ि[MASK]ेश[MASK]ं में २[MASK] [MASK][MASK] अधिक पत्र[MASK][MASK]त्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिन्[MASK]ी में प्रकाशित हो रह[MASK] ह[MASK]ं। यूए[MASK] के 'हम एफ़-एम[MASK] सहित अन[MASK]क देश [MASK]िन्दी क[MASK]र[MASK][MASK]क्रम प्रसार[MASK]त कर रहे है[MASK], जिनमें बीबीसी[MASK] जर्मन[MASK] के डॉ[MASK]चे वेले[MASK] ज[MASK][MASK]
ान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दिसम्बर २०१६ में विश्व आर्थिक मंच ने १० सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी
ान [MASK]े एनएचके वर्ल्ड और चीन के चा[MASK]ना रे[MASK]ियो [MASK]ंट[MASK]नेशनल [MASK]ी हिन्दी से[MASK]ा व[MASK]शेष [MASK]ूप से उल्लेखनीय हैं।[MASK]दिस[MASK]्बर २०१६ में [MASK]िश्व आर्थ[MASK][MASK] मंच ने १० [MASK]र[MASK][MASK]ाधिक शक्तिशाली भ[MASK]षाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी
एक है। इसी प्रकार 'कोर लैंग्वेजेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं' में हिन्दी को स्थान दिया था। के-इण्टरनेशनल ने वर्ष २०१७ के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं में हिन्दी को स्थ
एक है। [MASK][MASK]ी प्रकार 'कोर लैंग्व[MASK]जेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक [MASK]हत्व[MASK]ूर्ण [MASK]ाषाओं' में ह[MASK]न्दी क[MASK] स्था[MASK] दिया थ[MASK]। क[MASK]-इण्टरनेश[MASK][MASK] ने वर्ष २०१७ के लि[MASK]े सीखने यो[MASK]्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं मे[MASK] हिन्दी को स्थ
ान दिया है। हिन्दी का एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से ११ फरवरी २००८ को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना
ान दिया है। हिन्दी का एक अ[MASK]्तरराष्ट[MASK]रीय भाषा क[MASK] [MASK][MASK]प में स्थापित करने और विश्व हिन्दी स[MASK][MASK]म[MASK]लनों के आय[MASK][MASK]न को [MASK]ंस्थाग[MASK] व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से ११ फरवरी २००८ को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्था[MASK]ना
की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना आरम्भ किया है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त २०१८ से संयुक्त राष्ट्र ने साप
क[MASK] गयी थी। संयुक[MASK]त [MASK]ाष्ट्र रेडियो अपना [MASK]्रसा[MASK]ण [MASK]िन्दी में [MASK]ी करना आरम्भ [MASK][MASK]य[MASK] है। हिन्दी को संयुक्त राष्[MASK]्र संघ की भाषा बन[MASK]ये [MASK]ा[MASK]े के लिए [MASK]ारत सरक[MASK]र प्रयत्नशील है। अगस्त २०१८ से सं[MASK]ुक्त राष्ट्र ने साप
्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन आरम्भ किया है। डिजिटिकरण और कम्प्यूटर क्रान्ति कम्प्यूटर और इण्टरनेट ने पिछले वर्षों में विश्व में सूचना क्रान्ति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन
्ताहिक हिन्दी सम[MASK]चार बुलेटिन आरम्भ किया है[MASK] ड[MASK]जिटिकरण [MASK]र कम्प्यूट[MASK] क[MASK]रान्ति कम्प्यूटर और इण[MASK]टरनेट ने पिछले व[MASK]्ष[MASK]ं में विश्व में सूच[MASK]ा क[MASK][MASK]ान्ति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृ[MASK] अन
्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नहीं रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिसके कारण
्य उपकरणों) से द[MASK][MASK] रहकर लोग[MASK][MASK] [MASK]े जुड़ी नहीं र[MASK] सकती। कम्प्यूटर क[MASK] विक[MASK]स के आरम्भिक काल में अंग्रेजी क[MASK] छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रय[MASK]ग की दिशा में [MASK]हुत कम ध्यान दि[MASK]ा गया [MASK]िसके कारण
सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नहीं कर सकता। किन्तु यूनिकोड (यूनीकोड) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। १९ अगस्त २०
[MASK][MASK]मान्य लोगो[MASK] मे[MASK] यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेज[MASK] के सिवा [MASK]िसी [MASK]ूसरी भाष[MASK] [MASK]लि[MASK]ि) में काम [MASK]ी नहीं कर सकता[MASK] किन्त[MASK] यूनिकोड (यून[MASK][MASK]ोड) [MASK]े पद[MASK]र्पण के ब[MASK]द स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। १९ अगस्त २०
०९ में गूगल ने कहा की हर ५ वर्षों में हिन्दी की सामग्री में ९४% बढ़ोतरी हो रही है। हिन्दी की इण्टरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिन्दी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इ
०९ में गूगल ने कह[MASK] की हर ५ वर्षों [MASK]ें हिन्[MASK]ी की स[MASK][MASK]ग्री में ९४% बढ़[MASK][MASK][MASK]ी हो रही है। हिन्दी [MASK]ी इण्टरनेट पर अच्छी उपस्थि[MASK]ि है[MASK] [MASK]ू[MASK]ल [MASK]ैसे सर[MASK][MASK] इंजन हिन्दी को प्राथ[MASK]िक भारतीय भा[MASK]ा के रूप में पहचानते हैं। इ
सके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है। फरवरी २०१८ में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आयी कि इण्टरनेट की दुनिया में हिन्दी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अ
[MASK]के [MASK]ाथ ही अब अन्[MASK] भाषा [MASK]े चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकत[MASK] है। फर[MASK]री २०[MASK]८ में एक सर्वेक[MASK]षण के हवाले [MASK]े [MASK][MASK]र [MASK]यी [MASK]ि [MASK]ण्[MASK]रनेट [MASK]ी दु[MASK]िया में हिन्दी ने भारती[MASK] उपभोक्ताओ[MASK] क[MASK] बीच अ
ंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यूथ४वर्क की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट ने इस आशा को सही साबित किया है कि जैसे-जैसे इण्टरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा, हिन्दी और भारतीय भाषाओं की दुनिया का विस्तार होता जाए
ंग्रेजी [MASK]ो पछाड़ दिया है। यूथ[MASK]वर्क की [MASK]स सर्वेक्षण रिपो[MASK]्ट ने इस आशा क[MASK] सही [MASK]ा[MASK]ित कि[MASK][MASK] ह[MASK] कि जैसे[MASK]जैसे इ[MASK]्टरनेट का प्रसार छोटे शहर[MASK][MASK] की [MASK]र बढ़ेगा, ह[MASK]न्दी और भारतीय भाषाओं की [MASK]ुनिया [MASK]ा [MASK]िस्तार होता [MASK]ाए
गा। इस समय हिन्दी में सजाल (वेबसाइट), चिट्ठे (ब्लॉग), विपत्र (ईमेल), गपशप (चैट), खोज (वेब-सर्च), सरल मोबाइल सन्देश (एसएमएस) तथा अन्य हिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन (कम्
गा। इस समय हिन्दी में सजाल [MASK]वेबसाइट), चिट्ठे (ब्लॉग), विपत्र (ईमे[MASK]), गपशप (चैट), खोज (वेब-सर्च), स[MASK]ल [MASK]ोबाइ[MASK] सन्[MASK]ेश (एसएमएस[MASK] त[MASK]ा [MASK]न[MASK]य हिन्दी सामग[MASK]री [MASK]पलब्ध हैं। इस स[MASK]य अन[MASK]तर[MASK]ाल पर हिन्दी [MASK]े[MASK] संगणन (कम्
प्यूटिंग) के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों में इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग कर
प्यू[MASK]िंग) क[MASK] संस[MASK]धनों क[MASK] भ[MASK] भरमार है [MASK]र नित नये कम्प्यूटिंग उपक[MASK][MASK] [MASK]त[MASK] जा रह[MASK] [MASK]ैं। लोगों मे[MASK] इनके बा[MASK]े में जानकारी [MASK]ेकर जागरूक[MASK]ा पैदा करन[MASK] क[MASK] जर[MASK]रत है ताकि अधिकाधिक ल[MASK]ग क[MASK]्प्यूटर पर हिन[MASK]दी [MASK][MASK] प्रयोग कर
ते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें। शब्दनगरी जैसी नई सेवाओं का प्रयोग करके लोग अच्छे हिन्दी साहित्य का लाभ अब इण्टरनेट पर भी उठा सकते हैं। मुम्बई में स्थित "बॉलीवुड" हिन्दी फ़िल्
त[MASK] हुए अपन[MASK], हिन्दी का और पू[MASK]े हिन्दी समाज का विकास करें। शब्दनग[MASK]ी जैसी नई से[MASK]ाओं का प्रयोग कर[MASK]े लोग अच्छे हिन्[MASK]ी साहित्य का लाभ अब इण्टरनेट पर भी उठा सकते हैं। मुम्बई में स्थित "बॉ[MASK]ीवुड" हिन्दी फ़िल्
म उद्योग पर भारत के करोड़ो लोगों की धड़कनें टिकी रहती हैं। हर चलचित्र में कई गाने होते हैं। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बइया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानो
म उद्[MASK]ोग पर भार[MASK] के करोड़ो ल[MASK]गों की धड[MASK][MASK]नें टिकी र[MASK]ती हैं। हर चलचित्र में कई ग[MASK]ने होते हैं[MASK] हिन्द[MASK] और उर्दू [MASK]खड़ीब[MASK][MASK]ी) के [MASK]ाथ साथ अवधी, बम[MASK]बइया हिन्दी, भोजपुरी, राज[MASK]्था[MASK]ी जैसी बोलियाँ भी संवाद [MASK]र गानो
ं में उपयुक्त होती हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। अधिकतर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं। अब मोबाइल कम्पनियाँ ऐसे हैंडसेट बना रही हैं जो हिन्दी और भारतीय भाष
ं में उ[MASK]यु[MASK]्[MASK] होती हैं। [MASK]्यार, देशभक्[MASK]ि, परिवार, अपर[MASK]ध, भय, इत्यादि मुख्य [MASK]िष[MASK] होते [MASK]ैं। अधिकतर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं।[MASK]अब मोबाइल कम्पनियाँ ऐसे हैंडसेट बना रही है[MASK] जो हिन्दी और [MASK]ारतीय भाष
ाओं को सपोर्ट करते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हिन्दी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हॉलीवुड की फिल्में हिन्दी में डब हो रही हैं और हिन्दी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं
ाओं को सपोर्ट करते हैं। ब[MASK]ुराष्ट्[MASK]ीय कम्पनियाँ हिन्दी ज[MASK]नने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे र[MASK][MASK] हैं। ह[MASK]लीवुड की [MASK]िल्में [MASK]िन्[MASK]ी [MASK]ें डब हो रही हैं औ[MASK] हिन्दी फिल्मे[MASK] देश के बाह[MASK] देश से अधिक कमाई कर रही है[MASK]
। हिन्दी, विज्ञापन उद्योग की पसन्दीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टेण्ट आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। हिन्दी और
। हि[MASK]्दी, विज्ञ[MASK]पन उद्योग की [MASK]सन्दीदा भाषा बनती जा रही है। [MASK]ू[MASK]ल, [MASK]्रांसल[MASK]शन, ट्रांस्लि[MASK]रेशन, फोन[MASK]टिक टूल्स, [MASK][MASK]गल असिस्टेण्ट आदि के क्षेत्र म[MASK]ं नई नई रिस[MASK][MASK]च कर [MASK]पनी सेवाओं को बेहतर कर [MASK]हा है। हिन्द[MASK] और
भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। फेसबुक और व्हाट्सएप हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। सोशल मीडिया ने हिन्दी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और
भारत[MASK]य भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। फे[MASK]बुक और व्हाट्सएप हिन्[MASK][MASK] और [MASK]ारती[MASK] भाषाओं के साथ [MASK]ालमेल बिठ[MASK] [MASK]हे हैं[MASK] [MASK]ो[MASK]ल मीडिया ने हिन्दी मे[MASK] ले[MASK]न और पत्रकारिता के नए य[MASK]ग का सूत्रपा[MASK] कि[MASK]ा है औ[MASK]
कई जनान्दोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है। सितम्बर २०१८ में प्रकाशित हुई एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार हिन्दी में ट्वीट करना अत्यन्त लोकप्रिय हो
कई जना[MASK]्दोलनों [MASK][MASK] जन्म देन[MASK] और चुनाव जितान[MASK][MASK]हराने में [MASK]ल[MASK]ले[MASK]नी[MASK] और हैर[MASK]न करने वाली भूमिका निभाई है। सि[MASK]म्बर २०१८ में प्रकाश[MASK]त हुई एक अमे[MASK]ि[MASK]ी र[MASK]पोर्ट के अन[MASK]सार हिन्दी में ट्[MASK]ीट क[MASK]ना अत्यन्त लोकप्रि[MASK] हो
रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गये १५ सन्देशों में से ११ हिन्दी के थे। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक कम्पनियाँ अपने उत्पाद और वेबसा
रहा है। [MASK]ि[MASK]ोर्ट में क[MASK]ा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट क[MASK]ए गये १५ सन्देशों [MASK][MASK][MASK] स[MASK] ११ हिन[MASK]दी के थे। हिन्दी [MASK]र [MASK]न्य भारतीय भाषाओ[MASK] का ब[MASK]जार इतना बड़ा है कि अनेक कम्पनियाँ अ[MASK]ने [MASK]त्पाद और वेबसा
इटें हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं। इन्हें भी देखें हिन्दी साहित्य का इतिहास भारत की भाषाएँ हिन्दी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्दी भाषियों की संख्या के आधार पर भारत के राज्यों की
इटें हिन[MASK]दी [MASK]र स[MASK][MASK]ानीय भाषाओं में ला रह[MASK]ं ह[MASK]ं। इन्हें भी [MASK]ेखें हिन्[MASK][MASK] सा[MASK]ित्य का इतिहा[MASK] भा[MASK]त की भाषाए[MASK] हिन्दी की [MASK]िभिन्[MASK] बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्द[MASK] भाषियों क[MASK] सं[MASK]्या के आधा[MASK] [MASK]र भारत के राज्यों की
सूची हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी अन्तरजाल पर हिन्दी सामग्री - क्या कहाँ है? हिन्दी विकिस्रोत - हिन्दी के कापीराइट-मुक्त पुस्तकों का संग्रह हिन्दी पर महापुरुषों के विचार
सूची हिन्दी स[MASK] सम्[MASK]न[MASK]धि[MASK] प्रथ[MASK][MASK]भा[MASK]त की रा[MASK][MASK]ाषा के रूप में हिन्दी[MASK]अन्तर[MASK]ाल पर हिन्द[MASK] सामग्री - क्या कहाँ है? हिन[MASK]दी [MASK][MASK]किस्रोत - हिन्दी के [MASK]ापीर[MASK]इट-[MASK][MASK]क्[MASK] पुस्तकों क[MASK] संग्र[MASK] ह[MASK]न्दी पर महापुरुषों के विच[MASK]र
दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रहे हिंदी बोलने वाले, देश के ४४ फीसदी लोगों की बनी भाषा (२०११ जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार) विश्व की प्रमुख भाषाएं भारत की भाषाएँफ़ारसी (), एक भाषा है जो ईरान, ताजिकिस्ता
दक्षिण भारत [MASK]ें तेजी [MASK]े बढ़ रहे [MASK]िंदी बोलने वाले, देश के ४४ फीसदी लोगों की बनी भा[MASK]ा (२०११ जनसंख्या के [MASK]ंकड़ों के अनुसार) विश्व की प्रमुख भाषाए[MASK] भारत की भ[MASK]षाएँफ़ारसी (), एक भाषा है जो ईरान, ताजिक[MASK]स्त[MASK]
न, अफ़गानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है। यह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान की राजभाषा है और इसे ७.५ करोड़ लोग बोलते हैं। भाषाई परिवार के लिहाज़ से यह हिन्द यूरोपीय परिवार की हिन्द ईरानी (इं
न, अफ[MASK]ग[MASK]न[MASK]स[MASK]त[MASK]न औ[MASK] उज़बेकि[MASK][MASK]तान में [MASK]ोली [MASK]ाती है। यह ईर[MASK]न, अफ़ग़ानिस्तान, ताज[MASK]किस्त[MASK]न क[MASK] राजभाषा है और इसे ७.५ कर[MASK]ड़ लोग बो[MASK]ते हैं। भाषाई परिवार के ल[MASK]ह[MASK]ज़ से य[MASK] हिन्द यूरोपीय परिवा[MASK] की हिन्द ईरानी (इं
डो ईरानियन) शाखा की ईरानी उपशाखा का सदस्य है और हिन्दी की तरह इसमें क्रिया वाक्य के अंत में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क़ाफ़ी मिलती-जुलती है और उर्दू (और हिन्दी) में इसके कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। ये
[MASK]ो ईरानियन) शाखा की ईर[MASK][MASK]ी उपशाखा का सदस्य है और हिन्[MASK]ी की तरह इस[MASK]ें क्र[MASK]या वाक्य के [MASK][MASK]त में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क[MASK][MASK]फ़ी मि[MASK]ती-जुलती [MASK]ै और उर[MASK]दू (और ह[MASK][MASK]्दी) [MASK]ें इसक[MASK] कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। [MASK]े
अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग दरबारी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार में प्रयुक्त होने के कारण ही अफ़गानिस्
अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से [MASK][MASK]ले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग [MASK]रबा[MASK]ी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार म[MASK][MASK] प्रयुक्त [MASK]ोने [MASK]े कारण ह[MASK] अफ़गानिस्
तान में इस दरी कहा जाता है। इसे हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा की ईरानी भाषाओं की उपशाखा के पश्चिमी विभाग में वर्गीकृत किया जाता है। हालाँकि भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी को ग़लती से अरब
तान में [MASK]स दरी कहा जाता है[MASK] इसे [MASK]िन्द-यूरो[MASK]ीय भाषा परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा क[MASK] ईर[MASK]नी भाषाओं की उपशाखा के पश्[MASK]िमी [MASK]ि[MASK]ाग में वर्गीक[MASK]त किया जाता है। हालाँकि भ[MASK]रतीय [MASK]पमहाद्वीप में फ़ारसी को ग़लती [MASK]े [MASK]रब
ी भाषा के समीप समझा जाता है, भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह अरबी से बहुत भिन्न और संस्कृत के बहुत समीप है। संस्कृत और फ़ारसी में कई हज़ारों मिलते-जुलते सजातीय शब्द मिलते हैं जो दोनों भाषाओँ की सांझी धरोहर
ी भाषा के समीप समझा जा[MASK]ा है[MASK] भाषावै[MASK]्ञानिक दृष्टि से यह अरबी स[MASK] बहुत भिन्न और [MASK]ंस्[MASK][MASK]त के बहुत समी[MASK] [MASK]ै। संस्क[MASK]त और फ़ारसी में कई हज़ारो[MASK] मिलते-जुलते सजातीय शब्द मिलते हैं जो दोनों भाषाओँ की सां[MASK]ी धरोहर
हैं, जैसे की सप्ताह/हफ़्ता, नर/नर (पुरुष), दूर/दूर, हस्त/दस्त (हाथ), शत/सद (सौ), आप/आब (पानी), हर/ज़र (फ़ारसी में पीला-सुनहरा, संस्कृत में पीला-हरा), मय/मद/मधु (शराब/शहद), अस्ति/अस्त (है), रोचन/रोशन
है[MASK], जैसे की सप्ताह/हफ़्त[MASK], नर/न[MASK] (पुरुष[MASK], दूर/दूर, [MASK][MASK]्त/द[MASK]्त [MASK]हाथ), [MASK]त[MASK][MASK][MASK] (सौ[MASK], आप/आब ([MASK]ानी), [MASK][MASK]/ज़र (फ़ारसी में पीला-सुन[MASK]रा[MASK] स[MASK]स्कृत में पीला[MASK]हरा), मय/मद/मधु (शराब/शहद), अस्ति/[MASK]स्त (है)[MASK] रोचन/रोशन
(चमकीला), एक/येक, कपि/कपि (वानर), दन्त/दन्द (दाँत), मातृ/मादर, पितृ/पिदर, भ्रातृ/बिरादर (भाई), दुहितृ/दुख़्तर (बेटी), वंश/बच/बच्चा, शुकर/ख़ूक (सूअर), अश्व/अस्ब (घोड़ा), गौ/गऊ (गाय), जन/जान (संस्कृत मे
(च[MASK]की[MASK][MASK]), एक/येक, कप[MASK]/कपि (वानर), दन्त/दन्द (दाँत), मातृ/मादर[MASK] पित[MASK]/पिदर, भ्रातृ/बिर[MASK]द[MASK] (भ[MASK]ई), [MASK][MASK]हितृ/दुख़्[MASK]र ([MASK]ेटी), वंश/बच/बच्[MASK]ा, शुकर/ख़[MASK]क (सूअर), [MASK]श्व/अस[MASK][MASK] (घोड़ा), गौ/गऊ ([MASK]ाय), जन/जान (संस्कृत मे
ं व्यक्ति/जीव, फ़ारसी में जीवन), भूत/बूद (था, अतीत), ददामि/दादन (देना), युवन/जवान, नव/नव (नया) और सम/हम (बराबर)। भारत में इसे फ़ारसी कहा जाता है। इसका मूल नाम 'पारसी' है पर अरब लोग, जिन्होंने फ़ारस पर
ं व्यक्ति/जीव[MASK] फ़ारसी में जीवन), भू[MASK]/बूद [MASK]था, अतीत), ददामि/दाद[MASK] (देना), युवन/जवान, नव/नव (नय[MASK]) औ[MASK] सम/हम [MASK]बराबर)। भारत मे[MASK] इसे फ़ारसी कहा जाता है। [MASK]सका मूल नाम 'पारसी[MASK] है [MASK]र अरब [MASK]ो[MASK], ज[MASK]न्होंने फ़ारस पर
सातवीं सदी के अंत तक अधिकार कर लिया था, की वर्णमाला में 'प' अक्षर नहीं होता है। इस कारण से वे इसे फ़ारसी कहते थे और यही नाम भारत में भी प्रयुक्त होता है। यूनानी लोग फार्स को पर्सिया (पुरानी ग्रीक में
सातव[MASK]ं सदी के अंत [MASK]क अधिकार कर लि[MASK]ा था, की वर्णमाला म[MASK]ं '[MASK]' अ[MASK][MASK]षर नह[MASK][MASK] ह[MASK]ता है। इस कारण स[MASK] [MASK]े इस[MASK] फ[MASK]ारसी कह[MASK]े थे [MASK]र यही नाम [MASK]ारत में भी प्रयुक्त होता है। यूनान[MASK] ल[MASK]ग फ[MASK]र[MASK]स को प[MASK]्सिया (पुरानी ग्रीक में
पर्सिस, ) कहते थे। जिसके कारण यहाँ की भाषा पर्सियन (फार्शियन) कहलाई। यही नाम अंग्रेज़ी सहित अन्य यूरोपीय भाषाओं में प्रयुक्त होता है। फ़ारसी एक ईरानी भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की हिंद-ईरानी
पर्सि[MASK], ) कहत[MASK] थे। [MASK]िसक[MASK] कारण [MASK]हाँ की भाषा पर्सियन (फ[MASK]र्शियन) कहल[MASK]ई[MASK] यही नाम अंग्रेज़ी सह[MASK]त अन्य [MASK]ूरोपीय [MASK][MASK]षाओं में प्रयु[MASK]्त होता है। फ़ारसी एक ईर[MASK]नी भाषा है जो हिंद-यूरोप[MASK]य भाष[MASK] परिवार की हिंद-ई[MASK]ानी
शाखा में आती है। सामान्यत: ईरानी भाषा तीन अवधियों से जानी जाती है। आमतौर पर इस रूप में इसे ऐसे संदर्भित किया जाता हैं: पुरानी, मध्य और नई (आधुनिक) अवधि। ये ईरानी इतिहास में तीन युगों के अनुरूप हैं; प
शा[MASK]ा में आती है। सामा[MASK]्यत: [MASK]रान[MASK] भाषा त[MASK]न अवधियों से जानी जा[MASK]ी है[MASK] आमतौर पर इस रूप में [MASK]से ऐ[MASK]े [MASK]ं[MASK]र्भित [MASK]िया जाता हैं: पुरानी, मध्य औ[MASK] नई (आधुनिक) अवध[MASK]। ये ईरानी इतिह[MASK]स में [MASK][MASK]न युगों के अनुरूप ह[MASK][MASK][MASK] प
ुराना युग हख़ामनी साम्राज्य से कुछ पहले का समय हैं, हख़ामनी युग और हख़ामनी के कुछ बाद वाला समय (४००-३०० ईसा पूर्व) है, मध्य युग सासानी युग और सासानी के कुछ बाद वाला समय और नया युग वर्तमान दिन तक की अव
ुरान[MASK] [MASK]ुग [MASK]ख[MASK]ामनी साम्राज्य से कुछ पह[MASK]े का स[MASK]य हैं, हख़ामनी युग और हख़ामनी के कु[MASK] बाद वा[MASK]ा समय (४००-३०० ईसा पू[MASK]्व) [MASK]ै, [MASK]ध्य युग सासानी यु[MASK] औ[MASK] [MASK]ासानी के कुछ बाद वाला समय और नया य[MASK]ग वर्तमान [MASK]िन [MASK]क की अव
धि है। उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, फ़ारसी भाषा "केवल अकेली ईरानी भाषा" है, जिसके लिए इसके तीनों चरणों के नज़दीकी भाषाविज्ञान-संबंधी रिश्ते स्थापित किए गए हैं तो पुरानी, मध्य और नई फ़ारसी एक ही फारसी
[MASK]ि है।[MASK]उपलब्ध दस्ताव[MASK]जों के [MASK][MASK]ुसार, फ़ारसी भा[MASK]ा "केवल अकेली ईर[MASK]नी [MASK]ा[MASK]ा[MASK] है, जिसके लिए इसके तीनों चरणों क[MASK] नज़दीकी भाषाविज्ञान-संबंधी रिश्[MASK]े स[MASK]थ[MASK]पित कि[MASK] गए है[MASK] तो पुर[MASK]नी, मध्य और नई फ़ार[MASK]ी एक ही फारसी
भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं, कि नई फ़ारसी मध्य और पुरानी फारसी की एक प्रत्यक्ष वंशज है। दक्षिण एशिया में प्रयोग फ़ारसी भाषा ने पश्चिम एशिया, यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिण एशियाई क्षेत्र की कई आधुनिक भ
भा[MASK]ा का प्र[MASK]िनिधित्व करते हैं, कि नई फ़[MASK]रसी मध्य औ[MASK] पुर[MASK]नी फारसी की एक प्रत्यक्ष वंशज है। द[MASK]्षिण [MASK]शिया में प्रयोग फ़ारसी भ[MASK]षा ने पश्चिम एशिया[MASK] यूरोप, मध्य एशिय[MASK] और [MASK]क्षिण एशियाई क्षेत्र क[MASK] कई आधुनिक [MASK]
ाषाओं के निर्माण को प्रभावित किया। दक्षिण एशिया में तुर्कों-फ़ारसी गज़नवी विजय के बाद, फारसी सबसे पहले इस क्षेत्र में समाविष्ट की गई थी। ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना के पाँच सदियों पूर्व तक, फारसी व्याप
[MASK]षाओं के निर्माण को प्[MASK]भावित [MASK]िय[MASK]। दक्ष[MASK]ण एशि[MASK][MASK] में तुर्कों-फ[MASK]ारसी गज़नवी विजय के [MASK]ाद, फा[MASK]सी [MASK]बसे पहल[MASK] इस क्षेत्र म[MASK]ं समा[MASK]िष[MASK]ट की गई थी। ब्रिटिश उपनिवे[MASK] क[MASK] स्था[MASK]ना के पाँच सदियों पूर्व तक, फारस[MASK] व्याप
क रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में एक दूसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। इसने उपमहाद्वीप पर कई मुस्लिम दरबारों में संस्कृति और शिक्षा की भाषा के रूप में प्रमुखता ले ली। हालाँकि १८४३ के शुरू से, अं
क रूप से भारतीय उप[MASK]हाद[MASK]वीप में एक दूसरी भ[MASK][MASK]ा के रू[MASK] म[MASK]ं इस्तेमा[MASK] की जात[MASK] थी। इसने उपमहाद्वीप पर क[MASK] [MASK]ुस्लिम दरबारों में संस[MASK]कृति और शिक्षा की भाषा [MASK]े रूप में प्रमुखता [MASK]े ली। ह[MASK]लाँकि १[MASK]४३ के शुर[MASK] से, अं
ग्रेजी और हिंदुस्तानी ने धीरे धीरे उपमहाद्वीप पर महत्व में फ़ारसी को बदल दिया। फ़ारसी के ऐतिहासिक प्रभाव के साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप की कुछ भाषाओं पर इसके प्रभाव की सीमा में देखा जा सकता है। फारसी से
ग्[MASK]ेजी औ[MASK] हिंदुस्तानी [MASK]े धीरे धी[MASK][MASK] उपमहाद्वीप पर महत्व में फ़[MASK]रसी को ब[MASK]ल [MASK]िया। फ़[MASK]रसी के ऐतिहासिक प्रभा[MASK] के साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप की क[MASK]छ भाषा[MASK][MASK] पर इसके प्रभ[MASK]व की सीमा में [MASK][MASK]खा [MASK]ा सकता है। फ[MASK]रसी से
उधार लिए शब्द अभी भी आमतौर पर कुछ हिंद आर्य भाषाओं में उपयोग किए जाते है। कुछ मुख्य दक्षिण एशियाई साम्राज्य जिनकी राजभाषा फ़ारसी थी:- मोमिन राजवंश, ग़ज़नवी साम्राज्य, ग़ोरी राजवंश, गुलाम वंश, ख़िलजी
उधार लिए शब्द अभी भी आमतौर प[MASK] कु[MASK] हिंद आर्य भाषाओं में उपयोग किए ज[MASK]ते है। कुछ मु[MASK][MASK]य दक्षिण एशियाई सा[MASK]्राज्य जिनकी राजभ[MASK][MASK]ा फ़ारसी थी:- मोम[MASK]न राजवंश, ग़[MASK]़नवी साम्राज्[MASK][MASK] ग़ो[MASK]ी राजवंश, गुलाम वंश[MASK] ख़[MASK]ल[MASK]ी
वंश, तुग़लक़ वंश, सय्यद वंश, लोदी वंश, सूरी साम्राज्य, मुगल साम्राज्य तथा बहमनी सल्तनत। पश्चिमी फ़ारसी (फारसी, ईरानी फ़ारसी, या फारसी) ईरान में बोली जाती हैं और इराक और फारस की खाड़ी राज्यों में अल्पस
[MASK]ंश, तुग़लक[MASK] व[MASK]श, सय्यद वंश, लोदी वं[MASK], सू[MASK][MASK] साम्राज्य[MASK] मुगल साम्राज्य तथा बहमनी स[MASK]्तनत। पश्च[MASK]मी [MASK]़ारसी (फारसी, ईर[MASK]नी फ़ारसी[MASK] या [MASK]ारस[MASK]) ईरान में बोली जा[MASK]ी हैं और इराक और फार[MASK] की खाड़[MASK] र[MASK]ज[MASK]यो[MASK] में अल्पस
ंख्यकों द्वारा। पूर्वी फ़ारसी (दरी फ़ारसी, अफगान फ़ारसी, या दरी) अफगानिस्तान में बोली जाती है। ताजिकी (ताजिक फारसी) ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान में बोली जाती है। यह सिरिलिक लिपि में लिखी जाती है। निम्न
ंख्यकों द्वा[MASK]ा। पूर्[MASK]ी फ़ारसी (दरी फ़ारसी, अफगान फ़ारसी, या दरी) अफगानिस्तान में बोली जाती है। [MASK]ाज[MASK]की (ताजि[MASK] [MASK]ारस[MASK]) ताजिकिस्तान औ[MASK] उजबेकिस्[MASK][MASK]न में बोली जाती है। यह सिरिलिक लिप[MASK] में लिखी जाती [MASK]ै। निम्न
लिखित फारसी से संबंधित कुछ भाषाएं हैं: लूरी, (या लोरी), दक्षिण पश्चिमी ईरान के प्रांतों में मुख्य रूप से बोली जाती हैं जैसे, लूरिस्तान, कोगिलुये और बोयर-अख़्मद प्रांत, फ़ार्स प्रांत के कुछ पश्चिमी भाग
लिखित [MASK]ारसी से संबंधित क[MASK]छ भाषाएं हैं: लूरी, (या ल[MASK]री), दक्षिण पश्चिमी ईरान के प्र[MASK]ंतों में मुख्य रू[MASK] [MASK]े बोली ज[MASK]ती [MASK]ैं जैसे, ल[MASK]रिस्तान[MASK] कोगि[MASK]ुये और बो[MASK]र-अ[MASK]़्मद प्रा[MASK]त, फ़ार्स प्रांत के कुछ पश्चिमी भाग
और ख़ूज़स्तान के कुछ भाग। लारी, (दक्षिणी ईरान में) टाट, अजरबैजान, रूस, आदि के कुछ हिस्सों में बोली जाती हैं। ईरानी फ़ारसी में छह स्वर और बाईस व्यंजन है। फारसी एक अभिश्लेषणी भाषा हैं। फ़ारसी के पदविज्
और [MASK]़ूज[MASK]स्तान के कुछ भाग। लारी, (द[MASK]्षिण[MASK] ईरान मे[MASK]) टाट, अजरबैजान, रूस, आदि के [MASK]ु[MASK] हिस्सों में ब[MASK]ली [MASK]ाती हैं। ईरानी फ़ारस[MASK] [MASK][MASK]ं छह स्वर और बाईस व्यंजन है। [MASK]ारसी एक अभिश्लेष[MASK]ी भाषा हैं। फ़ारसी के पदविज[MASK]
ञान में प्रत्यय प्रबल हैं, हालाँकि उपसर्गों की एक छोटी संख्या है। क्रिया काल और पहलू व्यक्त कर सकते हैं और वे व्यक्ति और संख्या में विषय के साथ सहमत हैं। फारसी में कोई व्याकरणिक लिंग नहीं है और न ही स
ञान में प्रत्[MASK]य प्रब[MASK] हैं, हालाँकि उपसर्गो[MASK] क[MASK] ए[MASK] छोटी [MASK]ंख्या है। क्रिया काल और पहलू व्यक्त कर सकते [MASK]ैं औ[MASK] व[MASK] व्यक्ति और [MASK][MASK]ख्या में विषय के साथ सहमत हैं। फार[MASK]ी म[MASK]ं को[MASK] [MASK]्याकर[MASK]ि[MASK] लिंग नहीं [MASK]ै और न ही [MASK]
र्वनाम प्राकृतिक लिंग के लिए चिह्नित हैं। फ़ारसी ने अरबी भाषा पर कम प्रभाव डाला है और साथ ही मेसोपोटामिया की अन्य भाषाओं पर और इसकी मूल शब्दावली मध्य फारसी मूल की है, पर नई फारसी में अरबी शाब्दिक मदों
र[MASK][MASK]नाम प्[MASK]ाकृतिक लि[MASK]ग के [MASK]िए च[MASK]ह्नित हैं[MASK] फ़ार[MASK]ी ने अरबी भाषा पर क[MASK] प्रभाव डाला है [MASK]र साथ ही मेसोपो[MASK]ाम[MASK]य[MASK] क[MASK] अन्[MASK] भाषाओं पर औ[MASK] इसकी [MASK]ूल [MASK]ब्दावली [MASK]ध्य [MASK]ारसी मूल [MASK]ी है, पर [MASK]ई फ[MASK]रसी म[MASK]ं अरब[MASK] शा[MASK]्[MASK]िक मदों
की काफी मात्रा है, जिनका फ़ारसीकरण हो गया है। अरबी मूल के फारसी शब्दों में विशेष रूप से इस्लामी शब्द शामिल हैं। अन्य ईरानी, तुर्की और भारतीय भाषाओं में अरबी शब्दावली आम तौर पर नई फ़ारसी से नकल की गई
की काफी मात्रा है, जिनका [MASK]़[MASK]रसीकर[MASK] हो [MASK]य[MASK] है। अर[MASK]ी मूल के फारसी शब्दों में विशेष [MASK]ूप से इस्लाम[MASK] [MASK]ब्[MASK] शामि[MASK] है[MASK]। अन्य ईरानी[MASK] तुर्की और भारती[MASK] भा[MASK]ाओं मे[MASK] अरबी [MASK]ब्दावली [MASK]म त[MASK][MASK] [MASK]र नई [MASK]़ारसी से नकल की [MASK]ई
है। आधुनिक ईरानी फारसी और दारी में पाठ विशाल बहुमत से अरबी लिपि के साथ लिखा जाता है। ताजिक, जो मध्य एशिया की रूसी और तुर्की भाषाओं से प्रभावित है, को कुछ भाषाविदों द्वारा फारसी बोली माना जाता है, जिसे
[MASK]ै। आधुनिक ईर[MASK]न[MASK] फारस[MASK] [MASK][MASK] दारी में पाठ [MASK]िशाल ब[MASK]ुमत से अरब[MASK] लि[MASK]ि के स[MASK]थ [MASK]िखा जाता है। ताजिक, जो [MASK]ध्[MASK] एशिया की रूसी और तु[MASK]्की भा[MASK]ाओं से प्रभावित है, को क[MASK]छ भाषाविदों द्वार[MASK] [MASK]ार[MASK]ी बो[MASK]ी माना जाता है, जिसे
ताजिकिस्तान में सिरिलिक लिपि के साथ लिखा जाता है। इन्हें भी देखें फारसी का साहित्य ईरान की भाषाएँ विश्व की प्रमुख भाषाएंदेवनागरी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयुक्त प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित बाएँ से
ताजि[MASK]िस्तान म[MASK]ं सिरिलिक लिपि के साथ लिखा जाता ह[MASK][MASK] [MASK]न्हें भी देखें फार[MASK]ी का साहित[MASK]य[MASK]ईर[MASK]न की भाषाएँ [MASK]ि[MASK]्व की [MASK]्रमुख भ[MASK]षाएंदेवनागर[MASK] भार[MASK]ीय उपमह[MASK]द्वीप में प्रय[MASK]क्त [MASK]्राचीन ब्रा[MASK]्[MASK]ी लिपि पर आधारित बाएँ से
दाएँ आबूगीदा है। यह प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित किया गया था और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में था। देवनागरी लिपि, जिसमें १४ स्वर और ३३ व्यञ्जन सहित ४७ प्राथमिक वर्ण ह
दाएँ आ[MASK]ूगीदा ह[MASK]। यह प्राचीन भारत में प[MASK]ली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित क[MASK][MASK]ा ग[MASK]ा थ[MASK] और ७वीं [MASK]ताब्दी ईस्[MASK]ी तक [MASK]ियमित उपय[MASK]ग में [MASK][MASK]। देव[MASK][MASK][MASK][MASK]ी लिपि[MASK] जिस[MASK]ें १४ स्वर और ३३ व्यञ्जन सहित ४७ प्राथमिक वर्ण ह
ैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए किया जा रहा है। इस लिपि की शब्दावली भाषा के उच्चारण को दर्शाती है। रोमन लिपि के विपरीत, इस
ैं, दुनि[MASK]ा में चौथी सबसे व्याप[MASK] रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसक[MASK] उपयोग १२० से अ[MASK]िक भा[MASK]ाओं के लिए क[MASK]या जा रहा है। इस लिपि की शब्दावली [MASK]ाषा के [MASK]च्चारण को दर्शात[MASK] है। रोमन लिपि के [MASK]िपरीत, इस
लिपि में अक्षर केस की कोई अवधारणा नहीं है। यह बाएँ से दाएँ लिखा गया है, चौकोर रूपरेखा के भीतर सममित गोल आकृतियों के लिए एक दृढ़ प्राथमिकता है, और एक क्षैतिज रेखा द्वारा पहचाना जा सकता है, जिसे शिरोरे
लिपि में अ[MASK]्षर केस की कोई अवधारणा नह[MASK]ं है। यह बाएँ से दा[MASK]ँ लिखा गया है, चौकोर रूपरेख[MASK] के भीतर सममित गोल आकृति[MASK]ो[MASK] के ल[MASK]ए एक दृढ़ प[MASK]र[MASK]थ[MASK]िकता है[MASK] और एक क्षैतिज [MASK][MASK]ख[MASK] द्वारा पहचाना जा सकता है, जिसे [MASK]िरोरे
खा के रूप में जाना जाता है, जो पूर्ण अक्षरों के शीर्ष के साथ चलती है। एक सरसरी दृष्टि में, देवनागरी लिपि अन्य भारतीय लिपियों जैसे पूर्वी नागरी लिपि या गुरमुखी लिपि से अलग दिखाई देती है, लेकिन एक निकटत
खा के रूप में जाना ज[MASK]ता है, जो प[MASK]र्ण अक्षरों के शीर्[MASK] के स[MASK]थ च[MASK]ती है[MASK] एक सरसरी दृष्टि में[MASK] देवनाग[MASK]ी लिपि अन्य भारतीय लिप[MASK]यों जैसे पूर्वी नागरी लिपि या गुरम[MASK]खी लिपि से अलग दिख[MASK]ई देती [MASK]ै[MASK] लेकिन [MASK]क निकटत
म अवलोकन से पता चलता है कि वे कोण और संरचनात्मक जोर को छोड़कर बहुत समान हैं। अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर
म अवलोकन से पता चलता [MASK]ै कि व[MASK] [MASK]ोण और [MASK]ंरचना[MASK]्मक जोर को छोड़कर बहुत सम[MASK]न है[MASK]। अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागर[MASK] भी बायें [MASK]े दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर [MASK]क रेखा खिं[MASK]ी [MASK]ोती है (कुछ व[MASK]्णों के ऊ[MASK]र
रेखा नहीं होती है) जिसे शिरोरेखा कहते हैं। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और
रेखा नह[MASK]ं होती है) जिसे शिरोर[MASK]खा कहते हैं। [MASK]ेवना[MASK]री का विकास ब्रा[MASK]्मी लिपि से हुआ है। य[MASK] [MASK]क ध्व[MASK]्यात्[MASK]क [MASK]िपि है जो प्रचलित ल[MASK]पियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे [MASK]धिक वैज्ञ[MASK]निक है। इसस[MASK] वैज्ञा[MASK]िक और
व्यापक लिपि शायद केवल अध्वव लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्
व्यापक लिपि श[MASK]यद केव[MASK] अ[MASK]्वव लिपि है। भारत की कई लिपिय[MASK]ँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलत[MASK][MASK]ज[MASK]लती हैं, जैसे- बा[MASK][MASK]्ला, [MASK][MASK]जराती, गु[MASK]ु[MASK]ुख[MASK] [MASK]दि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सह[MASK]यता स[MASK] भारती[MASK] [MASK]िपियों को परस[MASK]प[MASK] परिव[MASK]्
तन बहुत आसान हो गया है। भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई
तन बहुत आसान हो गया है।[MASK]भारतीय [MASK][MASK]ष[MASK]ओं के किसी भी श[MASK]्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में [MASK]्य[MASK]ं का त्यों लिखा ज[MASK] सकता है और फ[MASK]र लिखे पा[MASK] को लगभग 'हू-ब-हू[MASK] उच्चारण किया जा सक[MASK]ा [MASK]ै, ज[MASK] कि रोमन [MASK]िपि और अन्य कई
लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या इयास्त । इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही व
[MASK]िपियों [MASK]ें सम्भव नही[MASK] [MASK]ै, जब [MASK]क [MASK]ि उन[MASK]ा विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या इयास्त [MASK] इसम[MASK]ं कुल ५२ अक्षर हैं, [MASK]िस[MASK]ें १४ स्[MASK]र और [MASK]८ व्य[MASK]जन हैं। अक्षरों की [MASK]्र[MASK] व्यवस्था (व[MASK]न्यास[MASK] [MASK]ी बहुत ही व
ैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। भारत तथा एश
ैज्ञानिक है। स्वर-व्य[MASK]जन, कोमल-क[MASK]ोर, अल्[MASK]प[MASK]राण-महाप्राण, अनुनासिक्य[MASK]अन्तस्थ-उष्म इत्य[MASK]दि [MASK]र्गीकरण भी वैज[MASK]ञानि[MASK] हैं। एक मत के [MASK]नुस[MASK]र देवनगर ([MASK][MASK]शी) में [MASK]्रचलन के कारण इसक[MASK] नाम देवनागरी [MASK]ड़ा। भ[MASK]रत तथा एश
िया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोड़कर)। इसलिए इन लिपियों को परस्पर
िया की अनेक लिपियों के संक[MASK]त देवना[MASK]री से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण[MASK]क्[MASK]म आदि देवनागरी के ही समान [MASK]ैं, [MASK]्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू क[MASK] छोड़क[MASK])। इसलिए इन लिपि[MASK]ों को परस्पर
आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है। देवनागरी' शब्द की व्युत्पत्ति देवनागरी या नागरी नाम का प्रयोग "क्यों
आसा[MASK]ी से लिप्[MASK][MASK]्तर[MASK]त किया जा सकता है। देवनागरी लेखन क[MASK] दृ[MASK]्टि से सरल, [MASK]ौन्दर्य की दृष्टि से सुन्द[MASK] [MASK]र वाचन [MASK]ी [MASK]ृष्ट[MASK] स[MASK] सुपाठ्य [MASK]ै। देवनागरी' शब[MASK]द की [MASK]्युत्पत[MASK]ति देवनाग[MASK]ी या [MASK]ागरी नाम का प्रयोग [MASK]क्यों
" प्रारम्भ हुआ और इसका व्युत्पत्तिपरक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर्णतः निश्चित नहीं है। (क) 'नागर' अपभ्रंश या गुजराती "नागर" ब्राह्मणों से उसका सम्बन्ध बताया गया है। पर दृढ़ प्रमाण के अभाव म
" प्रारम्भ हुआ और इसका व[MASK]युत्[MASK]त्त[MASK]परक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर[MASK]णतः निश्चित नहीं है। (क) 'नागर' अपभ्रंश या गुजरा[MASK]ी "नागर" ब्राह्[MASK]णों से उसका सम[MASK]बन्ध बताया [MASK]या है। प[MASK] द[MASK]ढ़ प्रमा[MASK] के अभ[MASK]व म
ें यह मत सन्दिग्ध है। (ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम "नंदिनागरी" था। हो सकता है "नन्दिनागर" कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ सम्बन्ध रहा हो। (ग) यह भी हो सकता है कि "नागर" जन इसमें लिखा करते थ
ें यह मत [MASK]न[MASK]द[MASK]ग्[MASK] है। (ख[MASK] दक्ष[MASK]ण में इ[MASK][MASK]ा प्र[MASK]चीन नाम "नंदिनागरी" था। ह[MASK] [MASK]क[MASK]ा है "[MASK]न्दिनागर" क[MASK]ई [MASK]्थानसूचक हो औ[MASK] इस लि[MASK]ि का [MASK]ससे कु[MASK] सम्बन्ध रहा हो। ([MASK]) यह [MASK]ी हो सकता है कि [MASK]नागर" जन इसमें लिखा करते थ
े, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब "देवनागरी" भी कहा गया। (घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को "देवनागर" कह
े, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस[MASK]कृत [MASK][MASK] ग[MASK]रंथ भी इस[MASK]ें लिखे जा[MASK]े लगे तब "दे[MASK]नागरी" भी कहा गया। (घ) सांकेतिक चिह्नों [MASK]ा [MASK]ेवताओं की उपासना [MASK]ें [MASK]्रयुक्त त्रिको[MASK], चक्[MASK] आदि संकेतचिह्न[MASK][MASK] को [MASK]देवनागर" [MASK]ह
ते थे। कालान्तर में नाम के प्रथमाक्षरों का उनसे बोध होने लगा और जिस लिपि में उनको स्थान मिला- वह 'देवनागरी' या 'नागरी' कही गई। इन सब पक्षों के मूल में कल्पना का प्राधान्य है, निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब
ते [MASK]े। कालान्तर में नाम क[MASK] प्रथमाक्[MASK]रों का उनसे बोध होन[MASK] लगा [MASK]र ज[MASK]स ल[MASK]पि [MASK]ें उनको स्थान मिला- व[MASK] [MASK]देवनागर[MASK]' या 'नागरी' कह[MASK] [MASK]ई। इन सब पक्षो[MASK] [MASK]े मूल मे[MASK] कल्पना का प्राध[MASK]न्य ह[MASK], निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब
्ध हैं। देवनागरी लिपि का उपयोग करने वाली भाषाएँ पहाड़ी भाषा में भी हम अधिकतम शब्द देवनागरी लिपी के नज़र आते हैं। देवनागरी, भारत, नेपाल, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया की लिपियों के ब्राह्मी लिपि परिवार
्ध [MASK]ैं। देवनागरी लिपि का उपयोग करने वाली भाषाएँ पहाड़[MASK] भ[MASK]षा में भी ह[MASK] अधिकतम [MASK]ब्द देव[MASK][MASK]गरी लिपी [MASK]े नज़र आते हैं। देवनागरी, भारत, न[MASK]पा[MASK], तिब[MASK]बत औ[MASK] दक्षिण प[MASK]र्व एशिया की लिपिय[MASK][MASK] के [MASK]्रा[MASK]्मी ल[MASK]प[MASK] परिवार
का हिस्सा है। गुजरात से कुछ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनकी भाषा संस्कृत है और लिपि नागरी लिपि। ये अभिलेख पहली ईसवी से लेकर चौथी ईसवी के कालखण्ड के हैं। ध्यातव्य है कि नागरी लिपि, देवनागरी से बहुत निकट ह
का हिस[MASK]सा है। गुजरात से कुछ अभिलेख प्[MASK][MASK]प्त हुए हैं जिनकी [MASK]ाषा संस्कृ[MASK] है और लिपि नागरी लिपि[MASK] ये अभिलेख पहली ईसवी से लेकर चौथी ईसवी के काल[MASK]ण्[MASK] के हैं। ध्यातव्[MASK] है कि नागरी लिपि, देवनागरी से बह[MASK]त निकट ह
ै और देवनागरी का पूर्वरूप है। अतः ये अभिलेख इस बात के साक्ष्य हैं कि प्रथम शताब्दी में भी भारत में देवनागरी का उपयोग आरम्भ हो चुका था। नागरी, सिद्धम और शारदा तीनों ही ब्राह्मी की वंशज हैं। रुद्रदमन के
ै और देवन[MASK]गरी [MASK]ा प[MASK][MASK]्वरूप है। अतः ये अभिलेख इस बात के साक्ष्य [MASK]ैं कि प्रथम शताब्दी में भी भारत में देवनागरी का उपयोग आरम्भ हो चुक[MASK] थ[MASK]। नागरी, सिद्धम और श[MASK]रदा तीनों ही ब[MASK]र[MASK]ह्मी की वंशज हैं। [MASK]ुद्रदमन के
शिलालेखों का समय प्रथम शताब्दी का समय है और इसकी लिपि की देवनागरी से निकटता पहचानी जा सकती हैं। जबकि देवनागरी का जो वर्तमान मानक स्वरूप है, वैसी देवनागरी का उपयोग १००० ई के पहले आरम्भ हो चुका था। मध्
शिल[MASK]लेखों का समय प[MASK]र[MASK]म [MASK]ताब्दी का समय [MASK]ै और इसकी लिपि की द[MASK]व[MASK]ागरी से निकटता पहचानी जा स[MASK][MASK]ी हैं। ज[MASK]कि दे[MASK]ना[MASK]री का जो [MASK]र्तमान म[MASK]नक स[MASK]वरूप है, वैसी देवनागरी का उपयोग १००० ई के [MASK]हले आरम्भ [MASK]ो चुका [MASK]ा। मध्
यकाल के शिलालेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नागरी से सम्बन्धित लिपियों का बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा था। कहीं-कहीं स्थानीय लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं। उदाहरण के लिए
यकाल के शिलालेख[MASK]ं के अध्[MASK]यन से स्पष्ट होता है कि ना[MASK]री से [MASK]म[MASK]बन[MASK]धित लिपि[MASK][MASK]ं का बड़े पैमाने पर प्र[MASK][MASK]र ह[MASK]ने लगा था। कहीं-कह[MASK]ं स्थान[MASK]य लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं। उदाहरण के लिए
, ७वीं-८वीं शताब्दी के पट्टदकल्लु (मन्दिर परिसर) (कर्नाटक) के स्तम्भ पर सिद्धमात्रिका और तेलुगु-कन्नड लिपि के आरम्भिक रूप - दोनों में ही सूचना लिखी हुई है। कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के ज्वालामुखी अभिलेख
, ७व[MASK]ं-८[MASK]ीं शताब्दी के पट्टदकल्लु (मन[MASK]दिर परिसर) (कर्नाटक) के स[MASK][MASK]म्भ पर सि[MASK]्धमात्रिका और त[MASK]लु[MASK]ु[MASK]कन्नड लिपि के आरम[MASK]भि[MASK] रूप - दोनों में ह[MASK] सूचना ल[MASK]खी हुई [MASK]ै। कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के ज्वाला[MASK]ुखी अभिले[MASK]
में शारदा और देवनागरी दोनों में लिखा हुआ है। ७वीं शताब्दी तक देवनागरी का नियमित रूप से उपयोग होना आरम्भ हो गया था और लगभग १००० ई तक देवनागरी का पूर्ण विकास हो गया था। डॉ॰ द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अ
[MASK]ें शारदा और देव[MASK]ागरी दोनों में लिखा हुआ है। ७वी[MASK] शताब्दी तक देव[MASK]ागरी क[MASK] नियम[MASK][MASK] रूप से उपयोग [MASK]ोना आरम्भ हो गया था और [MASK][MASK]भग १[MASK]०० ई तक देवनागरी का पूर्ण विकास हो गया थ[MASK]। डॉ॰ [MASK]्वा[MASK]िका प्रसाद [MASK]क्सेना [MASK][MASK] [MASK]
नुसार सर्वप्रथम देवनागरी लिपि का प्रयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट (७००-८०० ई.) के शिलालेख में मिलता है। आठवीं शताब्दी में चित्रकूट, नवीं में बड़ौदा के ध्रुवराज भी अपने राज्यादेशों में इस लिपि का उपयोग किय
नुसार सर्वप्रथम देवनागरी लिपि क[MASK] [MASK]्रयोग गुजरा[MASK] के [MASK]रेश जयभट्ट (७००-८०[MASK] ई.) क[MASK] शिलालेख में मिलत[MASK] है। आ[MASK]वीं शताब्दी [MASK]ें चित्र[MASK]ूट, नवी[MASK] में बड़ौ[MASK]ा के ध्रुवराज [MASK]ी अपने राज्यादेशों म[MASK]ं इस लिपि का उपयोग किय
ा हैं। ७५८ ई. का राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामगढ़ ताम्रपट मिलता है जिस पर देवनागरी अंकित है। शिलाहारवंश के गंडारादित्य प्रथम के उत्कीर्ण लेख की लिपि देवनागरी है। इसका समय बारहवीं शताब्दी हैं। ग्या
ा ह[MASK]ं।[MASK]७५८ ई. का [MASK]ाष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामगढ[MASK] ताम्रपट मिलता ह[MASK] ज[MASK]स पर देव[MASK]ागरी अंकित है। शिल[MASK][MASK]ार[MASK]ंश के [MASK]ंडारादित्य प्रथम क[MASK] उ[MASK]्कीर्ण लेख क[MASK] लिपि दे[MASK]नागरी है। इसका समय बारह[MASK]ीं शताब्दी हैं। ग्या
रहवीं शताब्दी के चोलराजा राजेन्द्र के सिक्के मिले हैं जिन पर देवनागरी लिपि अंकित है। राष्ट्रकूट राजा इंद्रराज (दसवीं शताब्दी) के लेख में भी देवनागरी का व्यवहार किया है। प्रतिहार राजा महेंद्रपाल (८९१-९
रहव[MASK]ं शताब्दी क[MASK] चोलराजा [MASK][MASK]जेन्द्र के सिक्के मिले हैं जिन पर दे[MASK]नागरी लिपि अंक[MASK]त [MASK]ै। [MASK]ाष्ट्रकूट राजा इंद्रराज [MASK]दसवीं श[MASK]ाब[MASK]दी) [MASK]े लेख में भी देवनागरी का व्यवहार कि[MASK]ा है। प्रतिहार राजा म[MASK]ेंद्रपाल [MASK]८९१-९
०७) का दानपत्र भी देवनागरी लिपि में है। कनिंघम की पुस्तक में सबसे प्राचीन मुसलमानों सिक्के के रूप में महमूद गजनवी द्वारा चलाये गए चांदी के सिक्के का वर्णन है जिस पर देवनागरी लिपि में संस्कृत अंकित है।
०७) का दानपत्र भी द[MASK]व[MASK]ागरी लिपि में है। कनिंघम की पुस्त[MASK] में सब[MASK]े प[MASK]रा[MASK]ीन मुसल[MASK]ानों सिक्के के रूप में महमूद गजनवी द[MASK]वारा चला[MASK]े ग[MASK] चांदी के सिक्क[MASK] का वर्णन है जिस पर देवनागरी लि[MASK]ि में संस्कृत [MASK]ंकित है[MASK]
मुहम्मद विनसाम (११९२-१२०५) के सिक्कों पर लक्ष्मी की मूर्ति के साथ देवनागरी लिपि का व्यवहार हुआ है। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (१२१०-१२३५) के सिक्कों पर भी देवनागरी अंकित है। सानुद्दीन फिरोजशाह प्रथम, जलालु
मुहम्मद विनसाम (११९२-१२०५) के सिक[MASK]कों प[MASK] ल[MASK]्ष[MASK][MASK]ी की म[MASK][MASK]्ति के साथ देवना[MASK]र[MASK] लिपि का व्य[MASK]हार हुआ है। [MASK]म्स[MASK]द्दीन इल्तुत[MASK]िश (१२१०-१२३५) क[MASK] सिक्[MASK]ों पर भी द[MASK]वनागरी अंकित है। सानुद्दी[MASK] फिरोजशाह प्रथम, जल[MASK]लु
द्दीन रज़िया, बहराम शाह, अलाऊद्दीन मसूदशाह, नासिरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दीन, गयासुद्दीन बलवन, मुईजुद्दीन कैकूबाद, जलालुद्दीन हीरो सानी, अलाउद्दीन महमद शाह आदि ने अपने सिक्कों पर देवनागरी अक्षर अंकित किय
द्दीन [MASK]ज़िया, बहराम शा[MASK], अलाऊद्दीन [MASK]सूदशाह, नासिरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दी[MASK], गयासुद्दीन बलवन, [MASK]ुईज[MASK]द्दीन कैकूबाद, जल[MASK]ल[MASK][MASK]्दीन हीरो स[MASK]न[MASK], अलाउद्[MASK]ीन मह[MASK]द शाह आदि ने अपने सिक्कों पर दे[MASK]ना[MASK]री [MASK]क्षर [MASK][MASK]कित किय
े हैं। अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में राम सिया का नाम अंकित है। गयासुद्दीन तुग़लक़, शेरशाह सूरी, इस्लाम शाह, मुहम्मद आदिलशाह, गयासुद्दीन इब्ज, ग्यासुद्दीन सानी आदि ने भी इसी परम्परा का पालन किया। भाष
े हैं। अकबर के सिक्क[MASK]ं पर देवनागरी म[MASK]ं रा[MASK] सिया का न[MASK]म अंकित है। [MASK]यासुद्[MASK]ीन तुग़लक़, शेरशाह स[MASK]री, इस्लाम शाह, [MASK]ुहम्मद आदिलशाह[MASK] गयासुद[MASK]दीन इब्ज, ग्यासुद्दीन सानी आ[MASK]ि ने भी इ[MASK]ी परम्परा का पालन किया। भाष
ाविज्ञान की दृष्टि से देवनागरी भाषावैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि मानी जाती है। लिपि के विकाससोपानों की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के अन
ाविज्ञान क[MASK] दृष्[MASK]ि से देवनागरी[MASK]भा[MASK]ावैज्ञानि[MASK] दृष्टि स[MASK] दे[MASK]ना[MASK]री लि[MASK]ि अक्षरात्मक (सिलेबिक[MASK] लिपि मानी जात[MASK] ह[MASK]। ल[MASK]पि के विक[MASK]ससोपानों की दृ[MASK]्टि स[MASK] "[MASK]ित्रात्मक", "भावात्[MASK]क" और "भ[MASK][MASK]चित्रात्मक" लिपियों के अन
ंतर "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास माना जाता है। पाश्चात्य और अनेक भारतीय भाषाविज्ञानविज्ञों के मत से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद अल्फाबेटिक (वर्णात्मक) अवस्था का विकास हुआ। सबसे विकसित अव
ंतर "अक्षर[MASK]त्मक" स्तर की लिपियों का विकास [MASK]ाना जाता है। पाश्च[MASK]त्य और अनेक भारतीय भाषा[MASK]िज्ञानव[MASK]ज्ञों के मत से लिपि की अक[MASK]षरात्मक अवस्[MASK][MASK] [MASK]े बाद अल्फाबेटिक (वर्णात्मक) अवस्था का विकास हु[MASK]। सब[MASK]े विकसित अ[MASK]
स्था मानी गई है ध्वन्यात्मक(फोनेटिक) लिपि की। "देवनागरी" को अक्षरात्मक इसलिए कहा जाता है कि इसके वर्ण- अक्षर (सिलेबिल) हैं- स्वर भी और व्यंजन भी। "क", "ख" आदि व्यंजन सस्वर हैं- अकारयुक्त हैं। वे केवल
स्था मानी गई है ध्वन्यात[MASK]म[MASK](फोने[MASK]िक) लिप[MASK] की। [MASK]देवनाग[MASK]ी" को अक्षरात्मक इ[MASK]लिए कहा जाता है कि इसके वर्ण- अक्षर (सिलेबिल) हैं- स्वर भी और [MASK]्य[MASK]जन [MASK]ी। "[MASK]", "ख" आदि व्यंजन सस्व[MASK] हैं- अकारयुक्त हैं। वे केवल
ध्वनियाँ नहीं हैं अपितु सस्वर अक्षर हैं। अत: ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। परंतु यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसम
ध्[MASK]नियाँ [MASK]हीं हैं अपित[MASK] सस्वर अ[MASK]्[MASK]र हैं। अत: ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। परंतु यहाँ [MASK]ह ध्यान रख[MASK]े की बात है कि भारत की "ब्र[MASK]ह्मी" या "भारती[MASK] वर्णमाल[MASK] की ध्वनियों में [MASK]्यंजनों क[MASK] "पाणिनि" ने वर्णसम
ाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है- उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई.पू.) ने यह स्पष्ट बता दिया है कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है।
ा[MASK]्नाय के १४ सूत्रों में जो [MASK]्वरूप परिचय दिया ह[MASK]- उसके विषय में "पतंज[MASK]ि" (द्विती[MASK] शताब्दी ई.प[MASK].) ने यह स्पष्ट बता दिया है कि व्[MASK]ंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपय[MASK]ग केव[MASK] उच्च[MASK]रण क[MASK] उद्दे[MASK]्य से [MASK]ै।
वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। इस दृष्टि से विचार करते हुए कहा जा सकता है कि इस लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं। देवनागरी की वर्णमाला में १२ स्वर और ३४ व्यञ्जन हैं। शून्य या ए
व[MASK] तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। इस [MASK]ृष्ट[MASK] से विचार करते हुए कहा [MASK]ा सकता है कि इस लिपि की वर्णमा[MASK]ा त[MASK]्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्ष[MASK]ात्[MASK]क नही[MASK]। देवनाग[MASK]ी की वर्णम[MASK]ला में १२ [MASK][MASK]वर और [MASK]४ व्यञ्जन हैं। शून्य या ए
क या अधिक व्यञ्जनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। निम्नलिखित स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली) के लिये दिए गए हैं। संस्कृत में इनके उच्चारण थोड़े अलग होते हैं। संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म ह
[MASK] या अधिक व्यञ्जनों और एक स्वर के [MASK]ेल से एक अक्षर बनता है। निम्नलिखित स्[MASK]र आधुनिक हिन्दी (खड़ी [MASK]ोली) के लिये दिए गए हैं[MASK] संस्कृत में इनके उच[MASK]चा[MASK]ण [MASK]ोड़े अलग होते हैं। संस्कृत में ऐ दो स्वर[MASK][MASK] का य[MASK]ग्म ह
ोता है और "अइ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ऋ आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह ॠ केवल संस्कृत में ऌ केवल संस्कृत में ॡ केवल
ोता है और "अइ" [MASK]ा "आ-[MASK]" की तरह बोला जाता है। [MASK]सी त[MASK]ह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला ज[MASK]ता ह[MASK]। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत म[MASK]ं ऋ [MASK]धुनिक हिन[MASK]दी में "रि" [MASK]ी तरह [MASK] केवल संस्कृ[MASK] [MASK][MASK]ं ऌ केवल संस्कृत में ॡ केव[MASK]
संस्कृत में अं ङ् , ञ् , ण्, न्, म् के लिये या स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अँ स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अः अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिये ऍ और ऑ इनका उपयोग मराठी और कभीकभी हिन्दी में अंग्रेजी श
संस्[MASK]ृत [MASK]ें अं ङ् , ञ् , [MASK]्, न्, [MASK]् क[MASK] लिये या स्वर का नासिकीकरण करने [MASK]े लिये अँ स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अः अ[MASK]ो[MASK] "ह्" (निःश्वास) के लिये ऍ और ऑ इ[MASK]का उपयो[MASK] मराठ[MASK] और कभीकभी हिन्दी में [MASK]ंग्रेजी श
ब्दों का निकटतम उच्चारण तथा लेखन करने के लिए किया जाता है। जब किसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' (अर्थात श्वा का स्वर) माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त् अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे
ब्दों का नि[MASK]टतम उच्चार[MASK] तथा लेखन करने के लिए किया [MASK]ाता है। जब किसी स्वर प्रयोग नहीं [MASK][MASK][MASK] तो वहाँ पर 'अ[MASK] (अर्थात श्वा का स्वर) म[MASK]ना ज[MASK][MASK]ा है। स्वर के न होन[MASK] को हलन[MASK]त् अथव[MASK] विरा[MASK] से दर्शाया [MASK]ा[MASK]ा है। जै[MASK]े
कि क् ख् ग् घ्। जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यञ्जन कहते है। दूसरे शब्दो में- व्यञ्जन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है। नोट क
कि [MASK][MASK] [MASK]् ग् घ्। जिन वर्ण[MASK] को बोलने के लिए [MASK]्वर की सहायता [MASK]ेनी [MASK]ड़ती है [MASK]न्ह[MASK]ं व[MASK]यञ्जन कहते है। दूसर[MASK] शब्दो में[MASK] व्यञ[MASK]जन उन वर्ण[MASK]ं [MASK]ो कहते हैं, जि[MASK]क[MASK] उच्च[MASK]रण में [MASK]्वर वर्णो[MASK] की सहाय[MASK]ा ली जाती [MASK][MASK]। नोट क
रें - इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्श्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यञ्जन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी, वैदिक संस्कृत, कोंकणी, मेवाड़ी, हरयाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खडी बोली इत्यादि में
रें - इनमे[MASK] से ळ [MASK]मूर्धन्[MASK] प[MASK]र्श्विक अन्तस्थ) एक [MASK]तिरिक्त व्यञ्[MASK]न है ज[MASK]सका प्रय[MASK]ग हिन[MASK]दी म[MASK]ं नहीं हो[MASK]ा है। मराठी, वैदिक संस्कृत, कोंकणी, मेवाड़ी, हरयाणा [MASK]र पश्[MASK]िमी उत्तर [MASK]्रदेश की खडी बोली इत्यादि म[MASK]ं
इसका प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था: जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख
[MASK]सका प्रयोग [MASK]िया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐ[MASK]े होता था: जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) [MASK]ी ओर उठाकर श जैसी [MASK]वा[MASK]़ करना। शुक्ल यज[MASK]र्[MASK]ेद की माध्यन्दि[MASK]ि शाखा में कुछ वाक़्यात म[MASK]ं ष का उच[MASK]च[MASK]रण ख
की तरह करना मान्य था। यदि यह 'ट्, ठ्, ड्, ढ्' ध्वनियों से पहले न आए तो इसका उच्चारण आजकल हिंदी में तालव्य (श) होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण ज़्यादातर ड़ँ की तरह होता है, यानि कि जीभ मुँह की छत को
की तरह करना मा[MASK]्य थ[MASK]। यदि यह '[MASK]्, ठ्, ड्, ढ्' ध्वनियो[MASK] से पह[MASK][MASK] न आए तो इसका उच्चारण आजकल हिंद[MASK] में त[MASK][MASK]व्य (श) होता है। हिन्दी [MASK]ें ण का उच्चारण ज़्य[MASK]दात[MASK] [MASK][MASK]ँ की तरह होता ह[MASK], यानि कि जीभ मुँह क[MASK] छ[MASK] को