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पुरोहितवाद या पादरीवाद (क्लेरिकलिम) से आशय चर्च या व्यापक रूप से अन्य राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं में चर्च-आधारित नेतृत्व लागू करने से है।
[M][M]रोहित[M]ा[M] या [M]ादरीवाद (क्लेरि[M][M]िम[M][M]से आशय चर्च या व[M]यापक रूप स[M] अन्य राजनैतिक-सामाजिक[M]सांस्कृतिक संस्थ[M]ओं में चर्च-[M]धारि[M] नेतृत्व ल[M][M][M] [M]रने से[M][M]ै।
एक गणराज्य या गणतंत्र (गणतन्त्र) ( ) सरकार का एक रूप है जिसमें देश को एक "सार्वजनिक मामला" माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या सम्पत्ति। एक गणराज्य के भीतर सत्ता के प्राथमिक पद विरासत में नहीं मिलते हैं। यह सरकार का एक रूप है जिसके अन्तर्गत राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता। गणराज्य की परिभाषा का विशेष रूप से सन्दर्भ सरकार के एक ऐसे रूप से है जिसमें व्यक्ति नागरिक निकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी संविधान के तहत विधि के नियम के अनुसार शक्ति का प्रयोग करते हैं, और जिसमें निर्वाचित राज्य के प्रमुख के साथ शक्तियों का पृथक्करण शामिल होता हैं, व जिस राज्य का सन्दर्भ संवैधानिक गणराज्य या प्रतिनिधि लोकतंत्र से हैं। २०१७ तक, दुनिया के २०६ सम्प्रभु राज्यों में से १५९ अपने आधिकारिक नाम के हिस्से में "रिपब्लिक" शब्द का उपयोग करते हैं - निर्वाचित सरकारों के अर्थ से ये सभी गणराज्य नहीं हैं, ना ही निर्वाचित सरकार वाले सभी राष्ट्रों के नामों में "गणराज्य" शब्द का उपयोग किया गया हैं। भले राज्यप्रमुख अक्सर यह दावा करते हैं कि वे "शासितों की सहमति" से ही शासन करते हैं, नागरिकों को अपने स्वयं के नेताओं को चुनने की वास्तविक क्षमता को उपलब्ध कराने के असली उद्देश्य के बदले कुछ देशों में चुनाव "शो" के उद्देश्य से अधिक पाया गया है। गणराज्य (संस्कृत से; "गण": जनता, "राज्य": रियासत/देश) एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है। इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र(संस्कृत; गण:पूरी जनता, तंत्र:प्रणाली; जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली) कहा जाता है। "लोकतंत्र" या "प्रजातंत्र" इससे अलग होता है। लोकतन्त्र वो शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है। आज विश्व के अधिकान्श देश गणराज्य हैं और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी। भारत स्वयः एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। गणराज्य शब्द की उत्पत्ति फ्रांस देश से आई है । राज्य के प्रमुख देश की आम जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता का शासन गणराज्य जो लोकतन्त्र नहीं हैं हर गणराज्य का लोकतान्त्रिक होना अवश्यक नहीं है। तानाशाही, जैसे हिट्लर का नाज़ीवाद, मुसोलीनी का फ़ासीवाद, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में फ़ौजी तानाशाही, चीन, सोवियत संघ में साम्यवादी तानाशाही, इत्यादि गणतन्त्र हैं, क्योंकि उनका राष्ट्राध्यक्ष एक सामान्य व्यक्ति है या थे। लेकिन इन राज्यों में लोकतान्त्रिक चुनाव नहीं होते, जनता और विपक्ष को दबाया जाता है और जनता की इच्छा से शासन नहीं चलता। ऐसे कुछ देश हैं : अफ़्रीका के अधिक्तम् देश दक्षिणी अमरीका के कई देश लोकतन्त्र जो गणराज्य नहीं हैं हर लोकतन्त्र का गणराज्य होना आवश्यक नहीं है। संवैधानिक राजतन्त्र, जहाँ राष्ट्राध्यक्ष एक वंशानुगत राजा होता है, लेकिन असली शासन जन्ता द्वारा निर्वाचित संसद चलाती है, इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे कुछ देश हैं : ब्रिटेन और उसके डोमिनियन : प्राचीन काल में दो प्रकार के राज्य कहे गए हैं। एक राजाधीन और दूसरे गणधीन। राजाधीन को एकाधीन भी कहते थे। जहाँ गण या अनेक व्यक्तियों का शासन होता था, वे ही गणाधीन राज्य कहलाते थे। इस विशेष अर्थ में पाणिनि की व्याख्या स्पष्ट और सुनिश्चित है। उन्होंने गण को संघ का पर्याय कहा है (संघोद्धौ गणप्रशंसयो :, अष्टाध्यायी ३,३,८६)। साहित्य से ज्ञात होता है कि पाणिनि और बुद्ध के काल में अनेक गणराज्य थे। तिरहुत से लेकर कपिलवस्तु तक गणराज्यों का एक छोटा सा गुच्छा गंगा से तराई तक फैला हुआ था। बुद्ध शाक्यगण में उत्पन्न हुए थे। लिच्छवियों का गणराज्य इनमें सबसे शक्तिशाली था, उसकी राजधानी वैशाली थी। किंतु भारतवर्ष में गणराज्यों का सबसे अधिक विस्तार वाहीक (आधुनिक पंजाब) प्रदेश में हुआ था। उत्तर पश्चिम के इन गणराज्यों को पाणिनि ने आयुधजीवी संघ कहा है। वे ही अर्थशास्त्र के वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ ज्ञात होते हैं। ये लोग शांतिकल में वार्ता या कृषि आदि पर निर्भर रहते थे किंतु युद्धकाल में अपने संविधान के अनुसार योद्धा बनकर संग्राम करते थे। इनका राजनीतिक संघटन बहुत दृढ़ था और ये अपेक्षाकृत विकसित थे। इनमें क्षुद्रक और मालव दो गणराज्यों का विशेष उल्लेख आता है। उन्होंने यवन आक्रांता सिकंदर से घोर युद्ध किया था। वह मालवों के बाण से तो घायल भी हो गया था। इन दोनों की संयुक्त सेना के लिये पाणिनि ने गणपाठ में क्षौद्रकमालवी संज्ञा का उल्लेख किया है। पंजाब के उत्तरपश्चिम और उत्तरपूर्व में भी अनेक छोटे मोटे गणराज्य थे, उनका एक श्रुंखला त्रिगर्त (वर्तमान काँगड़ा) के पहाड़ी प्रदेश में विस्तारित हुआ था जिन्हें पर्वतीय संघ कहते थे। दूसरा श्रुंखला सिंधु नदी के दोनों तटों पर गिरिगहवरों में बसने वाले महाबलशाली जातियों का था जिन्हें प्राचीनकाल में ग्रामणीय संघ कहते थे। वे ही वर्तमान के कबायली हैं। इनके संविधान का उतना अधिक विकास नहीं हुआ जितना अन्य गणराज्यों का। वे प्राय: उत्सेधजीवी या लूटमार कर जीविका चलानेवाले थे। इनमें भी जो कुछ विकसित थे उन्हें पूग और जो पिछड़े हुए थे उन्हें ब्रात कहा जाता था। संघ या गणों का एक तीसरा गुच्छा सौराष्ट्र में विस्तारित हुआ था। उनमें अंधकवृष्णियों का संघ या गणराज्य बहुत प्रसिद्ध था। कृष्ण इसी संघ के सदस्य थे अतएव शांतिपूर्व में उन्हें अर्धभोक्ता राजन्य कहा गया है। ज्ञात होता है कि सिंधु नदी के दोनों तटों पर गणराज्यों की यह श्रृंखला ऊपर से नीचे को उतरती सौराष्ट्र तक फैल गई थी क्योंकि सिंध नामक प्रदेश में भी इस प्रकर के कई गणों का वर्णन मिलता है। इनमें मुचकर्ण, ब्राह्मणक और शूद्रक मुख्य थे। भारतीय गणशासन के संबंध में भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। गण के निर्माण की इकाई कुल थी। प्रत्येक कुल का एक एक व्यक्ति गणसभा का सदस्य होता था। उसे कुलवृद्ध या पाणिनि के अनुसार गोत्र कहते थे। उसी की संज्ञा वंश्य भी थी। प्राय: ये राजन्य या क्षत्रिय जाति के ही व्यक्ति होते थे। ऐसे कुलों की संख्या प्रत्येक गण में परंपरा से नियत थी, जैसे लिच्छविगण के संगठन में ७७०७ कुटुंब या कुल सम्मिलित थे। उनके प्रत्येक कुलवृद्ध की संघीय उपाधि राजा होती थी। सभापर्व में गणाधीन और राजाधीन शासन का विवेचन करते हुए स्पष्ट कहा है कि साम्राज्य शासन में सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में रहती है। (साम्राज्यशब्दों हि कृत्स्नभाक्) किंतु गण शासन में प्रत्येक परिवार में एक एक राजा होता है। (गृहे गृहेहि राजान: स्वस्य स्वस्य प्रियंकरा:, सभापर्व, १४,२)। इसके अतिरिक्त दो बातें और कही गई हैं। एक यह कि गणशासन में प्रजा का कल्याण दूर दूर तक व्याप्त होता है। दूसरे यह कि युद्ध से गण की स्थिति सकुशल नहीं रहती। गणों के लिए शम या शांति की नीति ही थी। यह भी कहा है कि गण में परानुभाव या दूसरे की व्यक्तित्व गरिमा की भी प्रशंसा होती है और गण में सबको साथ लेकर चलनेवाला ही प्रशंसनीय होता है। गण शासन के लिए ही परामेष्ठ्य यह पारिभाषिक संज्ञा भी प्रयुक्त होती थी। संभवत: यह आवश्यक माना जाता था कि गण के भीतर दलों का संगठन हो। दल के सदस्यों को वग्र्य, पक्ष्य, गृह्य भी कहते थे। दल का नेता परमवग्र्य कहा जाता था। गणसभा में गण के समस्त प्रतिनिधियों को सम्मिलित होने का अधिकार था किंतु सदस्यों की संख्या कई सहस्र तक होती थी अतएव विशेष अवसरों को छोड़कर प्राय: उपस्थिति परिमित ही रहती थी। शासन के लिये अंतरंग अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। किंतु नियमनिर्माण का पूरा दायित्व गणसभा पर ही था। गणसभा में नियमानुसार प्रस्ताव (ज्ञप्ति) रखा जाता था। उसकी तीन वाचना होती थी और शलाकाओं द्वारा मतदान किया जाता था। इस सभा में राजनीतिक प्रश्नों के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के सामाजिक, व्यावहारिक और धार्मिक प्रश्न भी विचारार्थ आते रहते थे। उस समय की राज्य सभाओं की प्राय: ऐसे ही लचीली पद्धति थी। भारतवर्ष में लगभग एक सहस्र वर्षों (६०० सदी ई. पू. से ४ थी सदी ई.) तक गणराज्यों के उतार चढ़ाव का इतिहास मिलता है। उनकी अंतिम झलक गुप्त साम्राज्य के उदय काल तक दिखाई पड़ती है। समुद्रगुप्त द्वारा धरणिबंध के उद्देश्य से किए हुए सैनिक अभियान से गणराज्यों का विलय हो गया। अर्वाचीन पुरातत्व के उत्खनन में गणराज्यों के कुछ लेख, सिक्के और मिट्टी की मुहरें प्राप्त हुई हैं। विशेषत: विजयशाली यौधेय गणराज्य के संबंध की कुछ प्रमाणिक सामग्री मिली है। (वा. श्. अ.) भारतीय इतिहास के वैदिक युग में जनों अथवा गणों की प्रतिनिधि संस्थाएँ थीं विदथ, सभा और समिति। आगे उन्हीं का स्वरूपवर्ग, श्रेणी पूग और जानपद आदि में बदल गया। गणतंत्रात्मक और राजतंत्रात्मक परंपराओं का संघर्ष जारी रहा। गणराज्य नृपराज्य और नृपराज्य गणराज्य में बदलते रहे। ऐतरेय ब्राह्मण के उत्तरकुल और उत्तरमद्र नामक वे राज्य----जो हिमालय के पार चले गए थे-----पंजाब में कुरु और मद्र नामक राजतंत्रवादियों के रूप में रहते थे। बाद में ये ही मद्र और कुरु तथा उन्हीं की तरह शिवि, पांचाल, मल्ल और विदेह गणतंत्रात्मक हो गए। महाभारत युग में अंधकवृष्णियों का संघ गणतंत्रात्मक था। साम्राज्यों की प्रतिद्वंद्विता में भाग लेने में समर्थ उसके प्रधान कृष्ण महाभारत की राजनीति को मोड़ देने लगे। पाणिनि (ईसा पूर्व पाँचवीं-सातवीं सदी) के समय सारा वाहीक देश (पंजाब और सिंध) गणराज्यों से भरा था। महावीर और बुद्ध ने न केवल ज्ञात्रिकों और शाक्यों को अमर कर दिया वरन् भारतीय इतिहास की काया पलट दी। उनके समय में उत्तर पूर्वी भारत गणराज्यों का प्रधान क्षेत्र था और लिच्छवि, विदेह, शाक्य, मल्ल, कोलिय, मोरिय, बुली और भग्ग उनके मुख्य प्रतिनिधि थे। लिच्छवि अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा से मगध के उदीयमान राज्य के शूल बने। पर वे अपनी रक्षा में पीछे न रहे और कभी तो मल्लों के साथ तथा कभी आस पास के अन्यान्य गणों के साथ उन्होंने संघ बनाया जो बज्जिसंघ के नाम से विख्यात हुआ। अजातशत्रु ने अपने मंत्री वर्षकार को भेजकर उन्हें जीतने का उपाय बुद्ध से जानना चाहा। मंत्री को, बुद्ध ने आनंद को संबोधित कर अप्रत्यक्ष उत्तर दिया-----आनंद! जब तक वज्जियों के अधिवेशन एक पर एक और सदस्यों की प्रचुर उपस्थिति में होते हैं; जब तक वे अधिवेशनों में एक मन से बैठते, एक मन से उठते और एक मन से संघकार्य संपन्न करते हैं; जब तक वे पूर्वप्रतिष्ठित व्यवस्था के विरोध में नियमनिर्माण नहीं करते, पूर्वनियमित नियमों के विरोध में नवनियमों की अभिसृष्टि नहीं करते और जब तक वे अतीत काल में प्रस्थापित वज्जियों की संस्थाओं और उनके सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं; जब तक वे वज्जि अर्हतों और गुरु जनों का संमान करते हैं, उनकी मंत्रणा को भक्तिपूर्वक सुनते हैं; जब तक उनकी नारियाँ और कन्याएँ शक्ति और अपचार से व्यवस्था विरुद्ध व्यसन का साधन नहीं बनाई जातीं, जब तक वे वज्जिचैत्यों के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखते हैं, जब तक वे अपने अर्हतों की रक्षा करते हैं, उस समय तक हे आनंद, वज्जियों का उत्कर्ष निश्चित है, अपकर्ष संभव नहीं। गणों अथवा संघों के ही आदर्श पर स्थापित अपने बौद्ध संघ के लिए भी बुद्ध ने इसी प्रकार के नियम बनाए। जब तक गणराज्यों ने उन नियमों का पालन किया, वे बने रहे, पर धीरे धीरे उन्होंने भी राज की उपाधि अपनानी शरू कर दी और उनकी आपसी फूट, किसी की ज्येष्ठता, मध्यता तथा शिष्यत्व न स्वीकार करना, उनके दोष हो गए। संघ आपस में ही लड़ने लगे और राजतंत्रवादयों की बन आई। तथापि गणतंत्रों की परंपरा का अभी नाश नहीं हुआ। पंजाब और सिंध से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक के सारे प्रदेश में उनकी स्थिति बनी रही। चौथी सदी ईसवी पूर्व में मक्दूनियाँ के साम्राज्यवादी आक्रमणकार सिकंदर को, अपने विजय में एक एक इंच जमीन के लिए केवल लड़ना ही नहीं पड़ा, कभी कभी छद्म और विश्वासघात का भी आश्रय लेना पड़ा। पंजाबी गणों की वीरता, सैन्यकुशलता, राज्यभक्ति, देशप्रेम तथा आत्माहुति के उत्साह का वर्णन करने में यूनानी इतिहासकार भी न चूके। अपने देश के गणराज्यों से उनकी तुलना और उनके शासनतंत्रों के भेदोपभेद उन्होंने समझ बुझकर किए। कठ, अस्सक, यौधेय, मालव, क्षुद्रक, अग्रश्रेणी क्षत्रिय, सौभूति, मुचुकर्ण और अंबष्ठ आदि अनेक गणों के नरनारियों ने सिकंदर के दाँत खट्टे कर दिए और मातृभूमि की रक्षा में अपने लहू से पृथ्वी लाल कर दी। कठों और सौभूतियों का सौंदयप्रेम अतिवादी था और स्वस्थ तथा सुदंर बच्चे ही जीने दिए जाते थे। बालक राज्य का होता, माता पिता का नहीं। सभी नागरिक सिपाही होते और अनेकानेक गणराज्य आयुधजीवी। पर सब व्यर्थ था, उनकी अकेलेपन की नीति के कारण। उनमें मतैक्य का अभाव और उनके छोटे छोटे प्रदेश उनके विनाश के कारण बने। सिकंदर ने तो उन्हें जीता ही, उन्हीं गणराज्यों में से एक के (मोरियों के) प्रतिनिधि चंद्रगुप्त तथा उसके मंत्री चाणक्य ने उनके उन्मूलन की नीति अपनाई। परंतु साम्राज्यवाद की धारा में समाहित हो जाने की बारी केवल उन्हीं गणराज्यों की थी जो छोटे और कमजोर थे। कुलसंघ तो चंद्रगुप्त और चाणक्य को भी दुर्जय जान पड़े। यह गणराज्यों के संघात्मक स्वरूप की विजय थी। परंतु ये संघ अपवाद मात्र थे। अजातशत्रु और वर्षकार ने जो नीति अपनाई थी, वहीं चंद्रगुप्त और चाणक्य का आदर्श बनी। साम्राज्यवादी शक्तियों का सर्वात्मसाती स्वरूप सामने आया और अधिकांश गणतंत्र मौर्यों के विशाल एकात्मक शासन में विलीन हो गए। परंतु गणराज्यों की आत्मा नहीं दबी। सिकंदर की तलवार, मौर्यों की मार अथवा बाख़्त्री यवनों और शक कुषाणों की आक्रमणकारी बाढ़ उनमें से कमजोरों ही बहा सकी। अपनी स्वतंत्रता का हर मूल्य चुकाने को तैयार मल्लोई (मालवा), यौधेय, मद्र और शिवि पंजाब से नीचे उतरकर राजपूताना में प्रवेश कर गए और शताब्दियों तक आगे भी उनके गणराज्य बने रहे। उन्होंने शाकल आदि अपने प्राचीन नगरों का मोह छोड़ माध्यमिका तथा उज्जयिनी जैसे नए नगर बसाए, अपने सिक्के चलाए और अपने गणों की विजयकामना की। मालव गणतंत्र के प्रमुख विक्रमादित्य ने शकों से मोर्चा लिया, उनपर विजय प्राप्त की, शकारि उपाधि धारण की और स्मृतिस्वरूप ५७-५६ ई० पू० में एक नया संवत् चलाया जो क्रमश:कृतमालव और विक्रम संवत् के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो आज भी भारतीय गणनापद्धति में मुख्य स्थान रखता है। तथापि स्वातंत्र्यभावना की यह अंतिम लौ मात्र थी। गुप्तों के साम्राज्यवाद ने उन सबको समाप्त कर डाला। भारतीय गणों के सिरमौरों में से एक-लिच्छवियों-के ही दौहित्र समुद्रगुप्त ने उनका नामोनिशान मिटा दिया और मालव, आर्जुनायन, यौधेय, काक, खरपरिक, आभीर, प्रार्जुन एवं सनकानीक आदि को प्रणाम, आगमन और आज्ञाकरण के लिये बाध्य किया। उन्होंने स्वयं अपने को महाराज कहना शुरू कर दिया और विक्रमादित्य उपाधिधारी चंद्रगुप्त ने उन सबको अपने विशाल साम्राज्य का शासित प्रदेश बना लिया। भारतीय गणराज्यों के भाग्यचक्र की यह विडंबना ही थीं कि उन्हीं के संबंधियों ने उनपर सबसे बड़े प्रहार किए----वे थे वैदेहीपुत्र अजातशुत्र मौरिय राजकुमार चंद्रगुप्त मौर्य, लिच्छविदौहित्र समुद्रगुप्त। पर पंचायती भावनाएँ नहीं मरीं और अहीर तथा गूजर जैसी अनेक जातियों में वे कई शताब्दियों आगे तक पलती रहीं। पश्चिम में गणराज्यों की परंपरा प्राचीन भारत की भाँति ग्रीस की भी गणपरंपरा अत्यंत प्राचीन थीं। दोरियाई कबीलों ने ईजियन सागर के तट पर १२ वीं सदी ई. पू. में ही अपनी स्थिति बना ली। धीरे धीरे सारे ग्रीस में गणराज्यवादीं नगर खड़े हो गए। एथेंस, स्पार्ता, कोरिंथ आदि अनेक नगरराज्य दोरिया ग्रीक आवासों की कतार में खड़े हो गए। उन्होंने अपनी परंपराओं, संविधानों और आदर्शों का निर्माण किया, जनसत्तात्मक शासन के अनेक स्वरूप सामने आए। प्राप्तियों के उपलक्ष्यस्वरूप कीर्तिस्तंभ खड़े किए गए और ऐश्वर्यपूर्ण सभ्यताओं का निर्माण शुरू हो गया। परंतु उनकी गणव्यवस्थाओं में ही उनकी अवनति के बीज भी छिपे रहे। उनके ऐश्वर्य ने उनकी सभ्यता को भोगवादी बना दिया, स्पार्ता और एथेंस की लाग डाट और पारस्परिक संघर्ष प्रारंभ हो गए और वे आदर्श राज्य--रिपब्लिक--स्वयं साम्राज्यवादी होने लगे। उनमें तथाकथित स्वतंत्रता ही बच रही, राजनीतिक अधिकार अत्यंत सीमित लोगों के हाथों रहा, बहुल जनता को राजनीतिक अधिकार तो दूर, नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे तथा सेवकों और गुलामों की व्यवस्था उन स्वतंत्र नगरराज्यों पर व्यंग्य सिद्ध होने लगी। स्वार्थ और आपसी फूट बढ़ने लगी। वे आपस में तो लड़े ही, ईरान और मकदूनियाँ के साम्राज्य भी उन पर टूट पड़े। सिकंदर के भारतीय गणराज्यों की कमर तोड़ने के पूर्व उसे पिता फिलिप ने ग्रीक गणराज्यों को समाप्त कर दिया था। साम्राज्यलिप्सा ने दोनों ही देशों के नगरराज्यों को डकार दिया। परंतु पश्चिम में गणराज्यों की परंपरा समाप्त नहीं हुई। इटली का रोम नगर उनका केंद्र और आगे चलकर अत्यंत प्रसिद्ध होने वाली रोमन जाति का मूलस्थान बना। हानिबाल ने उसपर धावे किए और लगा कि रोम का गणराज्य चूर चूर हो जायगा पर उस असाधारण विजेता को भी जामा की लड़ाई हारकर अपनी रक्षा के लिये हटना पड़ा। रोम की विजयनी सेना ग्रीस से लेकर इंग्लैंड तक धावे मारने लगी। पर जैसा ग्रीस में हुआ, वैसा ही रोम में भी। सैनिक युद्धों में ग्रीस को जीतनेवाले रोमन लोग सभ्यता और संस्कृति की लड़ाई में हार गए और रोम में ग्रीस का भोगविलास पनपा। अभिजात कुलों के लाड़ले भ्रष्टाचार में डूबे, जनवादी पाहरू बने और उसे समूचा निगल गए---पांपेई, सीजर, अंतोनी सभी। भारतीय मलमल, मोती और मसालों की बारीकी, चमक और सुगंध में वे डूबने लगे और प्लिनी जैसे इतिहासकार की चीख के बावजूद रोम का सोना भारत के पश्चिमी बंदरगाहों से यहाँ आने लगा। रोम की गणराज्यवादी परंपरा सुख, सौंदर्य और वैभव की खोज में लुप्त हो गई और उनके श्मशान पर साम्राज्य ने महल खड़ा किया। अगस्तस उसका पहला सम्राट् बना और उसके वंशजों ने अपनी साम्राज्यवादी सभ्यता में सारे यूरोप को डुबो देने का उपक्रम किया। पर उसकी भी रीढ़ उन हूणों ने तोड़ दी, जिनकी एक शाखा ने भारत के शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य को झकझोरकर धराशायी कर देने में अन्य पतनोन्मुख प्रवृत्तियों का साथ दिया। तथापि नए उठते साम्राज्यों और सामंती शासन के बावजूद यूरोप में नगर गणतंत्रों का आभास चार्टरों और गिल्डों (श्रेणियों) आदि के जरिए फिर होने लगा। नगरों और सामंतों में, नगरों और सम्राटों में गजब की कशमकश हुई और सदियों बनी रही; पर अंतत: नगर विजयी हुए। उनके चार्टरों के सामंतों और सम्राटों को स्वीकार करना पड़ा। मध्यकाल में इटली में गणराज्य उठ खड़े हुए, जिनमें प्रसिद्ध थे जेनोआ, फ्लोरेंस, पादुआ एवं वेनिस और उनके संरक्षक तथा नेता थे उनके ड्यूक। पर राष्ट्रीय नृपराज्यों के उदय के साथ वे भी समाप्त हो गए। नीदरलैंड्स के सात राज्यों ने स्पैनी साम्राज्य के विरु द्ध विद्रोह कर संयुक्त नीदरलैंड्स के गणराज्य की स्थापना की। आगे भी गणतंत्रात्मक भावनाओं का उच्छेद नहीं हुआ। इंग्लैंड आनुवंशिक नृपराज्य था, तथापि मध्ययुग में वह कभी कभी अपने को कामनबील अथवा कामनवेल्थ नाम से पुकारता रहा। १८वीं सदी में वहाँ के नागरिकों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये अपने राजा (चाल्र्स प्रथम) का वध कर डाला और कामनवेल्थ अथवा रिपब्लिक (गणतंत्र) की स्थापना हुई। पुन: राजतंत्र आया पर गणतंत्रात्मक भावनाएँ जारी रहीं, राजा जनता का कृपापात्र, खिलौना बन गया और कभी भी उसकी असीमित शक्ति स्थापित न हो सकी। मानव अधिकारी (राइट्स ऑव मैन) की लड़ाई जारी रही और अमरीका के अंग्रेजी उपनिवेशों ने इंग्लैंड के विरु द्ध युद्ध ठानकर विजय प्राप्त की और अपनी स्वतंत्रता की घोषणा में उन अधिकारों को समाविष्ट किया। फ्रांस की प्रजा भी आगे बढ़ी; एकता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के नारे लगे, राजतंत्र ढह गया और क्रांति के फलस्वरूप प्रजातंत्र की स्थापना हुई। नेपोलियन उन भावनाओं की बाढ़ पर तैरा, फ्रांस स्वयं तो पुन: कुछ दिनों के लिए निरंकुश राजतंत्र की चपेट में आ गया, किंतु यूरोप के अन्यान्य देशों और उसके बाहर भी स्वातंत्र्य भावनाओं का समुद्र उमड़ पड़ा। १९वीं सदी के मध्य से क्रांतियों का युग पुन: प्रारंभ हुआ और कोई भी देश उनसे अछूता न बचा। राजतंत्रों को समाप्त कर गणतंत्रों की स्थापना की जाने लगी। परंतु १९वीं तथा २०वीं सदियों में यूरोप के वे ही देश, जो अपनी सीमाओं के भीतर जनवादी होने का दम भरते रहे, बाहरी दुनियाँ में----एशिया और अफ्रीका में----साम्राज्यवाद का नग्न तांडव करने से न चूके। १९17 ई. में माक्र्सवाद से प्रभावित होकर रूस में राज्यक्रांति हुई और जारशाही मिटा दी गई। १९48 ई. में उसी परंपरा में चीन में भी कम्युनिस्ट सरकार का शासन शुरू हुआ। ये दोनों ही देश अपने को गणतंत्र की संज्ञा देते हैं और वहाँ के शासन जनता के नाम पर ही किए जाते हैं। परंतु उनमें जनवाद की डोरी खींचनेवाले हाथ अधिनायकवादी ही हैं। सदियों की गुलामी को तोड़कर भारत भी आज गणराज्य की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिय कटिबद्ध है और अपने लिए एक लोकतंत्रीय सांवैधानिक व्यवस्था का सृजन कर चुका है। साम्राज्यों और सम्राटों के नामोनिशान मिट चुके हैं तथा निरकुंश और असीमित राज्यव्यवस्थाएँ समाप्त हो चुकी हैं, किंतु स्वतंत्रता की वह मूल भावना मानवहृदय से नहीं दूर की जा सकती जो गणराज्य परंपरा की कुंजी है। विश्व इतिहास के प्राचीन युग के गणों की तरह आज के गणराज्य अब न तो क्षेत्र में अत्यंत छोटे हैं और न आपस में फूट और द्वेषभावना से ग्रस्त। उनमें न तो प्राचीन ग्रीस का दासवाद है और न प्राचीन और मध्यकालीन भारत और यूरोप के गणराज्यों का सीमित मतदान। उनमें अब समस्त जनता का प्राधान्य हो गया है और उसके भाग्य की वही विधायिका है। सैनिक अधिनायकवादी भी विवश होकर जनवाद का दम भरते और कभी कभी उसके लिये कार्य भी करते हैं। गणराज्य की भावना अमर है और उसका जनवाद भी सर्वदा अमर रहेगा। इन्हें भी देखें गणराज्यों की सूची रूस के गणराज्य गणतन्त्र दिवस (भारत) सरकार के रूप
एक गणराज्य या गणतंत्[M] (गणतन्त्र) ( ) सरकार का ए[M][M]रूप ह[M] जि[M]में देश क[M] एक "सार्[M][M]निक मा[M]ला" माना जाता है, न कि शास[M]ों की[M]निजी संस्था [M]ा स[M]्पत्[M]ि। एक [M]णराज्य के भीतर सत्त[M] के [M][M]राथ[M]िक [M]द विरासत मे[M] नहीं मि[M]ते[M]ह[M]ं।[M]यह सरकार[M][M]ा एक रूप ह[M] जिसके अन[M][M]र्गत राज्[M] का प्[M]मुख राजा न[M][M]ं होता।[M]गणराज्य[M]की परिभाषा[M]का विशेष रूप से सन्[M]र्भ सरकार [M]े एक ऐसे रूप[M]से ह[M] जिसमे[M] व[M]यक्त[M][M]न[M]गरि[M] निकाय [M]ा प्र[M]िनिधित्व करते हैं और किसी[M][M]ंविधान के तहत विधि [M]े नियम के अनुसा[M][M]शक्[M]ि का प[M]रयोग करते[M]हैं, और जिसमें निर्वाचित राज्य के[M]प्[M]मुख[M]क[M] स[M]थ [M]क्तिय[M]ं का प[M][M]क्क[M]ण शामिल होता हैं, व[M]जिस राज्य का सन्दर्भ संव[M]धानिक [M]णर[M][M]्य या [M]्रतिन[M]धि लोकतंत[M]र[M]से हैं। २०१७ तक, दुनिया के २०६ सम्[M]्रभ[M] राज्यों [M]ें से १[M]९ अपने आधिकारिक नाम के हिस्से में [M]रिपब्लिक[M] [M]ब[M]द क[M] उपयो[M][M]कर[M]े[M][M][M]ं - निर्वाचित[M]सरक[M]र[M]ं के अर्थ से ये[M]सभी गणराज्य नहीं हैं,[M]ना ही निर्वाचि[M] [M]रक[M][M] व[M]ले सभी राष्ट्[M]ो[M] [M][M] नामों म[M]ं "गणराज्य" शब्द का [M]प[M]ो[M] किय[M][M]गया हैं। भले राज[M]यप्रमुख अक्सर [M]ह दा[M]ा क[M]ते हैं कि वे "शासि[M]ों[M]की सहमति[M][M]से ही[M]शासन करते हैं, [M]ागरिकों को अपन[M] स्वयं [M]े[M]नेताओ[M][M][M]ो [M]ुनने की वास्[M]विक [M]्षमत[M] को उप[M]ब्ध कराने [M][M] असली[M]उद[M]देश्[M][M]क[M] बदले क[M]छ देशों में चुन[M]व "शो" के उद्देश्य से अधिक पाय[M][M]गया है।[M]गणराज्य (स[M]स्कृत से[M] "ग[M][M]: जनता, "[M]ा[M]्य"[M] र[M][M]ासत/देश) [M]क ऐसा देश होता[M][M]ै जहां [M]े [M]ा[M]नतन्त्[M] म[M]ं सैद्ध[M][M][M]त[M]क र[M]प[M]से देश [M]ा सर्वोच्च [M][M] पर आम जनत[M] [M]ें से कोई भी व[M]यक्ति[M][M]दासीन हो सकता है। इस तर[M] के शासनतन्त्र को गणतन्त्र(संस्क[M]त; गण:पूरी जनता, तंत[M]र:प्रणाली[M] जनता [M]्[M]ारा नियंत्रित प्रणाली) क[M]ा जात[M] है। "ल[M]कतंत्र" [M]ा "[M]्[M][M]ातं[M]्[M][M] इसस[M] अ[M]ग होत[M] है। ल[M]क[M]न्त[M]र[M]वो श[M]सनतन्[M][M]र हो[M]ा[M]है जहा[M] व[M]स्तव में सामान्य ज[M]ता[M]या [M]स[M]े[M][M]हुमत [M]ी इच[M]छा [M]े [M]ास[M] [M]लता है। आज विश्[M] [M]े[M]अधि[M][M]न्श देश गण[M]ाज[M]य हैं और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी। भारत स्वयः एक [M]ो[M][M]ान्त[M]र[M]क[M]गण[M]ाज[M]य है[M][M]गणर[M]ज्य [M]ब्द[M]की [M]त्पत्ति फ्[M]ांस देश स[M] आई है[M]। राज्य क[M] [M]्रमुख[M]देश [M]ी आम जनता द्वार[M] [M]ुने [M]ए [M][M]रतिनिधि [M]नत[M] का श[M]सन गणर[M]ज[M]य जो [M]ोकत[M]्त्र नहीं हैं हर [M]णराज्य का ल[M]क[M]ान्त्रिक ह[M][M]ा[M]अवश[M][M]क नहीं है[M] तानाश[M][M]ी, जैसे हिट्लर[M]का नाज[M]ीव[M][M][M] मुसोली[M]ी का फ़ासीवाद, पाकिस्तान और[M]कई अ[M]्[M] देशों में फ़ौज[M] तानाशाही, चीन,[M]सो[M]ियत सं[M] में साम्यवाद[M] तानाशाही, इत[M]यादि गणत[M]्त्र ह[M][M], क्यों[M]ि [M]नका[M]राष्ट्रा[M]्यक्ष एक सा[M]ा[M]्य व्यक्ति है [M]ा थ[M]।[M]लेकिन इन राज्यों [M]ें लोकत[M]न[M][M]्र[M][M][M]चुन[M]व[M]नही[M] होते, जन[M]ा और[M]व[M]पक्ष[M]को दबाय[M] जा[M][M] है और जनता की इच्छा से शासन नहीं [M]लता। ऐसे कु[M] [M]ेश[M]हैं : [M]फ़्[M]ी[M]ा के अधिक्तम[M] दे[M] [M]क्षिणी[M]अ[M][M][M]का के [M]ई[M]द[M]श लोकत[M]्त्र जो[M]गणराज्य[M]नही[M][M][M]ैं हर लोक[M]न्त्र का गणराज्य हो[M]ा आवश्यक[M]नहीं[M]है। संवैधानिक राजतन[M]त्र, जहाँ राष्ट्[M]ाध्यक्ष एक वंशानुगत र[M][M]ा होता है, लेकिन असली शासन[M][M]न्[M]ा द्वारा निर[M]वाचित [M]ंसद चल[M]ती [M]ै, इस श[M][M]ेणी में आत[M][M]ह[M]ं[M] ऐसे[M][M][M]छ देश हैं : ब[M]रिटेन [M]र उसक[M] [M]ोमिनियन : प्राची[M] काल[M]म[M]ं दो प्र[M]ार [M]े [M][M][M]्य क[M][M] गए ह[M][M]। एक रा[M][M]ध[M]न औ[M] दूसरे [M][M]धीन। राजाधीन को एका[M][M]न भी क[M]ते[M]थ[M][M] जहा[M] गण या अ[M]े[M] व्[M]क्तियों का[M]शासन होत[M] [M][M], वे ही गणाधीन राज्य[M]क[M]लाते थे। [M]स वि[M]ेष अ[M]्थ में पाणिनि[M]की व्याख[M]या स्पष्ट[M]और सुनिश्चित [M]ै। उन्होंन[M] गण [M]ो संघ का[M]पर्या[M] कहा है (संघोद्ध[M] गणप्रशंसयो :, [M]ष्टाध्यायी ३[M]३[M]८६)। सा[M][M][M][M]य स[M] [M]्ञात[M]होत[M] है कि प[M]णिनि और ब[M][M]्ध [M]े का[M] म[M]ं अ[M][M]क गणराज्य थ[M]। ति[M]हुत से लेकर कपिल[M]स्तु तक[M]गणराज्यों [M]ा एक छ[M]टा[M]सा[M]गुच[M]छा गंगा से तर[M]ई तक फैल[M][M]ह[M]आ था[M] [M]ुद्ध[M]शाक्यगण में उत्पन्[M][M]हुए थ[M]। लिच्छवियों का गण[M]ाज्य [M]नमें सबस[M] [M]क्तिशाली था, [M][M][M]ी राज[M]ानी[M]वै[M]ाली थी। किंतु भा[M]तवर्ष में गणराज्[M]ों का [M]बसे अधिक विस्तार [M]ाहीक (आधुन[M]क पंजाब)[M]प्[M]देश में हुआ थ[M]।[M]उ[M]्तर [M]श्च[M]म[M]के इन गण[M]ाज्यों [M]ो पाणिनि[M]ने आयुधजीव[M] सं[M] कहा है। वे[M]ही अर्थशास्त्र के वार्ताशस्त्र[M]प[M]ीवी संघ[M][M]्ञात होते [M]ैं।[M]ये लोग [M]ांतिकल मे[M] वार्त[M] या [M]ृषि आदि पर न[M]र[M]भ[M] रह[M]े थे किंतु युद्धकाल म[M]ं [M]पने संविधा[M] के[M]अ[M]ुसार योद्[M]ा बनकर संग[M]राम करत[M] थे। इ[M]का[M]राज[M]ी[M]िक स[M]घ[M][M] बहुत दृढ[M] थ[M] और ये अ[M]े[M]्षाकृत विकसित थे। इन[M]े[M] क[M][M]ुद्रक और मालव[M]दो ग[M]राज्यों[M]का विशेष [M]ल्लेख [M]ता है। उन्होंने यवन आक[M][M]ांता सिकंदर से घोर युद्ध किया [M]ा। वह माल[M][M]ं [M]े बा[M] स[M] तो[M]घायल [M]ी हो[M]गय[M] था। इन द[M][M]ों की संयुक्त से[M]ा के लिये पाणिनि ने[M]गणपाठ मे[M] क्[M]ौद्रकमालवी संज्[M]ा क[M] उल्लेख किया है। पं[M]ाब के उत्तरप[M]्चिम और उत्तरपूर्[M] में भी अनेक छोटे मोटे गण[M]ाज्य थे, उनका [M]क श्रुंखला [M]्रिगर्[M] (वर्तमान[M]काँ[M]ड़ा) के [M][M]ाड़ी प्[M]देश[M]में[M]विस[M][M]ा[M][M]त हुआ[M][M]ा [M]िन[M]हे[M] पर[M]वतीय संघ क[M]ते[M][M]े[M] दूसरा श्रुंख[M]ा सिंध[M] नदी के दोनों तटों पर गिरिगहवरों [M]ें बसने[M]वाले महाबलशाल[M][M]ज[M]तियों[M]का था जिन्[M]ें प्राचीनका[M][M]म[M][M][M]ग्रामणीय संघ कहते थ[M]। [M]े [M]ी[M][M]र[M]तमान के[M][M]बा[M]ली[M][M]ैं। इनक[M] संव[M]धान क[M] उतना अधि[M] [M][M]कास [M]हीं हुआ ज[M]त[M]ा अन्य ग[M]रा[M]्यों का। वे [M]्र[M]य:[M]उत्सेधजी[M]ी या[M]लूटमार कर जी[M]िका[M]चल[M]नेवाले थे। इनमें भी जो [M]ुछ वि[M][M]ित थे उन्[M][M]ं [M]ूग [M]र ज[M] पिछड़[M] हुए[M]थे [M]न[M]हें ब्रा[M] कहा जाता था। संघ य[M] गण[M]ं का एक तीसरा गुच्छा स[M]राष्ट्र में विस्तार[M][M] हुआ था। उनमें अं[M]कवृष्[M]ियों का संघ या गण[M]ाज्य बहु[M] प्[M]स[M]द[M]ध था। [M]ृष्ण इसी सं[M] के सदस्य[M][M]े अतएव[M]शांतिपू[M]्व म[M]ं उन्हें अर्ध[M]ोक्[M]ा राजन्य कहा ग[M][M][M]है।[M]ज्[M]ात ह[M]ता [M]ै कि सिंधु नदी के दोनों त[M]ों[M][M]र गणर[M]ज्[M]ो[M] [M]ी [M]ह श्रृंखला ऊपर[M]से [M]ीचे को[M]उत[M]ती स[M][M]ाष्ट्र तक[M]फ[M]ल ग[M] थी क्योंकि[M]सिंध नामक [M]्रदेश [M]ें भी इस प्रक[M] के [M][M] गण[M]ं [M]ा वर्णन मिलता है। इनम[M]ं मुच[M]र्ण, ब्राह्म[M]क और शू[M]्रक [M]ुख्य थ[M][M] भारतीय [M]णशासन के [M][M]बंध में भी[M]पर्याप्त सामग्री [M][M]लब[M]ध है। ग[M][M]के[M]न[M]र[M][M][M]ण क[M] इक[M]ई कुल थी।[M]प्रत्येक कुल [M]ा एक एक व[M]यक्ति गणसभा का सदस्[M][M]हो[M]ा था। उसे क[M]लवृद[M]ध य[M] [M]ाण[M]नि क[M] [M]नुसार गोत[M]र [M]हते थे। उस[M] की संज्ञा वंश्य [M]ी [M]ी। [M]्राय: ये[M]राजन्य या[M]क[M]षत्रिय जाति के ह[M][M]व्यक्ति [M][M]ते थे। ऐ[M]े[M]कुलों की संख्या [M]्रत[M]य[M]क[M]गण में परंपर[M] से नियत थी[M] जैसे लिच्छविगण के [M]ंगठन में ७७०[M] कुटुंब या कुल सम्मिल[M]त थे। उनके प्रत्य[M]क [M]ु[M]वृद्ध [M]ी[M]संघीय[M]उपाधि राजा होती थी। [M]भाप[M]्[M] में गणाधीन और र[M]जाध[M]न[M]शासन का विवे[M]न करते हुए स्पष्ट कहा है [M]ि स[M]म्राज्य श[M]सन मे[M] सत्ता एक व्यक्ति क[M] हाथ [M]ें रहती[M]है। (साम्[M]ाज्यश[M]्द[M]ं[M]हि क[M]त्स्न[M][M][M][M])[M]किंतु गण शासन में[M]प्रत[M]येक[M]परिवार[M][M]ें एक एक राजा होता है[M] (गृहे गृ[M]ेहि राज[M]न: स[M][M]स्य स्वस्य प्[M]िय[M][M]रा:[M] सभ[M]पर्व[M] १४,२)। इसके[M]अतिर[M]क्त[M]दो[M]बातें[M][M]र [M][M]ी[M]गई ह[M]ं।[M]एक यह कि गणशास[M] में प[M]रजा का कल्य[M][M] [M]ूर दूर तक व्याप्त होता है। दूसरे [M]ह कि युद[M][M][M]से गण[M]क[M] [M][M]थित[M] सकुशल नह[M]ं [M][M]ती। गणों[M]के लिए शम य[M][M][M]ांति की नीति ही थी।[M]यह[M]भी क[M]ा ह[M] [M]ि गण मे[M] प[M]ानुभ[M]व या[M]दूसर[M] की[M]व्य[M]्[M]ित्व गरिमा की भी प्[M]शंसा होती[M][M]ै[M]और [M][M] मे[M][M]सबक[M] साथ लेकर[M]चलने[M]ा[M]ा[M]ही [M]्[M]श[M]सनीय होता है। गण शासन के ल[M]ए ही प[M][M]मेष्ठ्य[M]यह पारिभाषिक[M]सं[M]्ञ[M] भी[M][M]्[M][M]ुक[M]त हो[M]ी [M]ी। संभवत: यह आवश्यक माना जाता था कि [M]ण के भ[M][M]र द[M]ों[M]का संगठन हो। दल के [M][M]स्य[M]ं को वग्र्य, पक्ष्य, गृह्य भ[M] कहते[M]थे। दल [M]ा[M]नेत[M] परम[M]ग्[M]्य कहा जाता था। [M]णस[M]ा में[M]ग[M] के[M]समस्त प्[M]तिनिधि[M]ों [M]ो [M][M]्मिलित होन[M] का[M]अधिका[M][M]था[M]कि[M]तु [M]दस्यों की सं[M]्या कई सहस्[M] तक होती थी अतएव विशेष अव[M]रों को छो[M]़क[M] प्राय: उपस[M]थिति[M]परिम[M]त [M]ी रहती थी। शासन क[M] [M]ि[M][M] अं[M][M]ंग[M]अधिकारी नि[M]ुक्त किए जाते थे। किंतु[M]न[M]यमनि[M]्माण [M]ा[M]पूरा दायित्व गणसभ[M] [M]र ही था। ग[M]सभा[M][M]ें[M]नियमा[M]ुसार प्[M]स्ताव ([M]्ञप्ति) रखा ज[M]ता था। उसकी तीन व[M]चना होती थ[M] और शलाकाओं[M]द्[M]ारा मतदान किया[M]जाता[M]था। इ[M] स[M]ा में र[M][M]नीतिक[M]प्रश[M]नों के अत[M][M]िक्त और भी अनेक प[M]रका[M] [M][M] सा[M][M]जिक, व्यावहारि[M] और धार्म[M][M] प्र[M]्न भी विचारार्थ आते रहते थे। [M]स स[M]य क[M][M]राज्य सभाओं की प्रा[M]: ऐसे ही ल[M]ीली पद्ध[M]ि [M]ी। भारतव[M][M]ष में [M]गभ[M] एक सहस[M][M] वर्षों [M]६०० सदी ई[M] पू. स[M] ४ थी[M]सदी ई[M]) तक[M]गणरा[M]्यों के उता[M] चढ़ाव का [M]तिहास मिलता ह[M][M] उनकी अंत[M]म झलक[M]गुप्[M] साम्राज्य के उदय काल तक दि[M]ाई [M]ड़ती है। समुद्रगुप्त द्वारा धरणिबंध के उद्देश्य से[M]किए हुए सैनिक अभि[M]ा[M] [M]े[M][M]णराज्य[M]ं का[M]विलय हो गया। अ[M]्वाचीन पुर[M]तत्व के उत्खनन में गणराज्यों[M]के कुछ [M]ेख[M] सिक्के और मिट्[M]ी की मु[M][M]े[M] प[M]राप्[M][M]हुई हैं। व[M]शेषत: वि[M]य[M]ाली [M]ौधे[M] ग[M]राज्य के संबंध[M]की कुछ [M][M]रमाण[M]क सा[M]ग्र[M] मि[M]ी है। [M]वा. [M][M].[M]अ.) [M]ारतीय इतिह[M]स के वैदिक युग मे[M] जन[M][M] अथवा[M]गणों की प्र[M]िनिधि सं[M]्[M]ाएँ थीं विदथ, सभ[M][M]औ[M][M]स[M]िति। आगे उन्ह[M]ं का स्[M]रूपवर्ग, श्रेणी[M][M]ूग और जानपद [M]दि मे[M] [M]दल गया[M] गणतंत्[M]ात्मक और[M][M]ाजतंत[M]र[M]त्मक परंपराओं[M]क[M] स[M]घर[M][M] जारी रहा। ग[M]राज्य [M]ृपर[M][M]्य औ[M] नृ[M]र[M][M][M]य [M]णराज[M]य में बदलते रहे। ऐतरे[M] ब्राह[M]म[M] के उ[M]्[M]रकुल और उत्तरमद्र नामक [M]े राज[M][M]----जो ह[M]मालय के पार चले [M]ए [M]े[M]----पंज[M]ब में कुरु [M][M] मद्[M][M]न[M]मक राजत[M]त्र[M]ादियों के रूप म[M]ं र[M]ते थे[M] बाद [M]ें ये [M]ी म[M]्र और कुरु त[M]ा [M]न्हीं की [M][M]ह[M]शि[M]ि, पांचाल, मल्[M] और [M]िदेह गणतंत्[M]ात्मक[M]हो गए। म[M]ाभारत युग में[M]अंधकवृष[M]णियों का [M]ंघ गणतंत्र[M]त्मक था। साम्राज्[M]ों की प्र[M]िद्व[M]द्वि[M][M] [M]ें[M]भाग लेने में समर्थ उसके प[M]रधान [M]ृष[M][M] म[M]ा[M]ारत[M]की[M]राज[M]ीति को म[M]ड़ देने लगे।[M]पा[M]िनि (ईसा पू[M]्व पाँचवीं-सातवीं सदी) के[M]समय सारा वा[M]ी[M] दे[M] (पंजाब[M]औ[M] सिंध) गण[M][M][M]्य[M]ं से भरा था[M] महावीर और बुद्ध [M]े न क[M]वल [M][M]ञात्[M]िकों और[M]शाक्य[M]ं[M]को[M]अमर कर [M]िया वर[M]्[M]भारतीय इतिहास की[M]काय[M] [M]लट[M][M]ी। [M]नके[M]समय म[M]ं उत्तर प[M]र्व[M] भारत[M]गणर[M]ज्यों[M]का प्रधान क्षे[M]्[M] था औ[M] लिच्छ[M]ि, व[M]देह, शाक्य,[M]म[M][M]ल, को[M]िय[M] मोरि[M][M][M]बु[M][M] और भग्ग[M]उनके मु[M]्य [M]्रतिनिधि थे। [M][M]च्छवि अपनी शक[M]त[M] और[M]प्रतिष्ठा [M]े म[M]ध[M]क[M] [M]द[M]यमान राज[M][M] के शू[M] [M]ने। पर वे अपनी रक्षा म[M]ं पीछे न रहे और कभी तो मल्लों[M][M]े[M][M]ाथ तथा[M]कभी आस[M]पास के अन्यान्य गण[M]ं [M]े स[M]थ [M]न्[M]ोंन[M] [M]ंघ बन[M][M]ा जो[M][M]ज्जिसं[M] के नाम [M]े [M]िख्यात हुआ। अजातशत्[M]ु ने अपने मंत्र[M] [M]र्षका[M] [M]ो[M]भेजकर उन्ह[M]ं जीतने [M][M][M]उप[M]य बु[M]्[M] स[M] जानना चाहा। [M]ंत्री को, बुद्ध न[M][M]आ[M]ंद को स[M][M]ो[M]ित कर [M]प्रत्यक्ष [M][M]्तर[M]दिय[M]-[M]---आनंद! जब त[M] वज्जियों के[M]अधिवेश[M] एक प[M] एक और [M]द[M]्यों[M]क[M] प्रचुर उपस्थिति[M]में होते ह[M]ं; जब [M]क व[M] अधि[M]ेशनों[M]में एक मन से बैठते, एक म[M] [M]े उठते और एक मन[M]से सं[M]कार्य स[M]पन्न करते हैं; जब तक [M][M] पूर्[M]प्रतिष्ठि[M] व्[M][M]स्थ[M] के व[M]रोध मे[M] [M]ियमनिर[M]माण नहीं कर[M]े[M] पू[M][M]व[M]ियमित नियमों के विर[M]ध [M]ें न[M]नियमों की अभि[M]ृष[M][M]ि[M]न[M]ीं करते[M]और जब तक वे अतीत क[M]ल में प्रस्[M]ापित वज्जियों [M]ी संस[M]थाओ[M] और उनक[M] सिद्ध[M]ंतों के[M]अनुसार कार्य[M][M]रते हैं; [M]ब तक वे[M]वज्जि अर[M]हतों औ[M] गुरु जनों का[M][M][M][M][M][M] [M]रते हैं,[M]उ[M]की मंत्र[M]ा को भक्तिपूर्[M][M] सुन[M]े हैं; जब [M]क उन[M]ी[M]ना[M]ियाँ और कन्[M]ा[M]ँ शक्ति और अ[M]चार से व्यवस्था विरु[M]्ध व्य[M][M] का सा[M]न नहीं बनाई ज[M]ती[M],[M][M]ब[M]त[M] वे वज्जि[M]ैत्यों के प्रति श[M]रद्धा और भक्ति[M]रखते है[M], जब तक वे अपने अ[M]्ह[M]ों[M]क[M] र[M]्षा क[M][M]े हैं, उस स[M]य त[M] [M]े आ[M]ंद, वज[M]ज[M]य[M]ं का उत्[M]र्[M] निश्चित [M][M], अपकर्ष संभव नह[M]ं। गण[M][M] अथवा संघ[M]ं [M]े ह[M] आदर[M]श[M][M]र[M]स्थापित [M]पने[M][M]ौद्ध संघ [M]े[M]ल[M][M] [M]ी बुद्ध ने इसी प्र[M]ार के नियम[M]बनाए। जब[M]तक [M]ण[M][M]ज्यों [M][M][M]उन नियमों का पालन कि[M]ा,[M]वे बन[M][M]रहे, पर धीरे धीरे उन्होंने भी[M]राज की[M]उप[M]धि[M]अपनानी शरू[M]कर [M]ी और उनकी[M]आपसी [M]ूट,[M]क[M]सी क[M] ज्येष[M]ठत[M], [M]ध्[M]ता [M]था शिष्[M]त्व न स्वीकार क[M]ना, उन[M][M][M]दो[M] [M]ो [M]ए। सं[M] आपस [M][M]ं ही लड़ने ल[M][M] और राजतंत्रवा[M]यो[M] की[M]बन आई। तथापि गणतंत्रों की परंपरा का अभी नाश[M]न[M]ीं हुआ। पंजाब औ[M] सिंध से लेकर पूर[M]वी उ[M]्त[M] प्रद[M]श और बिहा[M] तक[M][M]े सार[M] [M]्रदेश में[M]उन[M]ी स्थिति बनी रही। चौथी सदी[M]ईस[M][M] पूर्[M] में मक्[M]ूनि[M]ाँ के सा[M][M]राज[M]यवादी आक्र[M]णकार सिकंदर को, अपने विजय में एक ए[M] [M]ं[M] ज[M]ीन के लिए केवल लड[M][M]ा[M]ही[M]न[M]ीं प[M]़ा, कभी क[M]ी छद्म[M]और विश्व[M]सघात का भ[M] आश्र[M] लेना पड़ा। पंजाब[M] गणों की वीर[M]ा, सैन्यकुशलता,[M][M]ाज्[M]भक्त[M],[M]देशप[M]रेम[M]तथा[M][M]त्माहुति के[M]उत्साह क[M] वर्[M]न[M]कर[M]े [M]ें य[M]ना[M]ी इतिहासकार भी [M] चूके[M] [M]पने देश के गणर[M]ज्यों [M]े उन[M]ी तुलना [M]र उनक[M] शासनतंत्रों के[M]भेदो[M]भे[M] उन्ह[M]ंने समझ[M]बु[M]कर किए। कठ, अस[M]सक, [M]ौध[M]य,[M]मालव, क्[M]ुद्[M]क, अग्रश्र[M]णी[M]क्षत्र[M]य, सौभू[M]ि, मुचुकर्ण[M]और अं[M]ष्ठ आद[M] अनेक[M]गणों के नर[M]ारियों ने सि[M]ंदर के दाँत खट[M][M]े[M]कर [M]ि[M][M][M]र मातृभ[M]मि की रक्[M]ा में [M]पने लहू[M]स[M] पृथ्व[M][M]लाल कर [M]ी[M] [M]ठो[M] औ[M] सौभूतियों का सौं[M]य[M]्रेम अतिव[M][M]ी था और स्वस्थ[M][M]था सुद[M]र बच[M]च[M] [M][M] जीने[M]दिए जाते थे। बाल[M] [M]ाज्य का [M]ोता,[M]म[M]ता पि[M][M] का नहीं[M] सभ[M] न[M]गरिक सिपाही होत[M] [M]र अनेकानेक गणराज्य आयुधज[M][M][M]।[M]पर सब व्यर्थ [M]ा,[M]उनकी अकेलेपन की नी[M]ि के का[M]ण। उनमें मत[M]क[M]य का अभाव औ[M] उनके छो[M]े छो[M]े[M]प्रद[M][M] [M]नके विनाश क[M] कारण बने। सिकंदर[M]ने तो उन्[M]ें जी[M]ा ही, उन्हीं गणराज्य[M]ं [M]ें [M]े एक के ([M]ोरियों[M]के[M] प[M]रतिनिधि[M]चंद्रगुप्त तथा उसके म[M]त्री चाणक्य ने[M]उ[M]के[M]उन्मूलन की नीति अप[M]ाई[M] पर[M]तु साम्रा[M]्यवाद[M]की[M]धारा[M][M]ें समा[M]ित[M]हो जाने की बारी केवल[M]उन्हीं[M]ग[M]र[M]ज्यों की थी[M]जो[M]छोटे और [M]मजो[M] थे। [M]ुल[M]ंघ[M]तो चंद्रगुप्त और चा[M][M]्य [M]ो भी [M]ुर्जय[M]ज[M]न पड़े। यह गणराज्यों[M][M]े संघात्मक स्वर[M][M] की विजय थी। परंतु ये सं[M][M]अपवा[M] मात[M]र[M]थे[M] अज[M]तशत[M]रु[M]और [M]र[M]ष[M]ार [M]े जो नीति [M]पना[M] [M]ी,[M][M][M]ीं[M]चंद[M]रगुप्त और चाणक्य का आदर्श[M]बनी। साम्रा[M]्यवादी [M]क्[M][M]यों[M]का[M]स[M]्वात्मसाती[M][M]्वरू[M] सामने आया और [M]धिकांश ग[M]तंत्र मौर्य[M]ं क[M] वि[M]ाल [M]कात्[M]क[M]शासन [M]े[M] विली[M] हो गए। परंत[M] गणराज्[M]ों की आत्मा नहीं दबी। [M]िकंदर की[M]तलवार, मौर्य[M]ं[M]की म[M][M][M]अथ[M]ा बाख़्त[M]री यवन[M]ं [M]र[M]शक कुषा[M]ों की आक[M]रमणक[M][M][M] बाढ[M] उ[M][M]ें से कमजोरों[M]ही [M]हा सकी। अपनी स्वतंत्रता का हर म[M]ल्[M] चुका[M]े क[M] त[M]यार[M][M]ल्ल[M]ई (मालवा),[M]यौधेय, मद्र और[M][M]िवि पंजा[M] से नीचे [M]तरकर राजप[M][M]ाना मे[M] प्रवेश कर गए और शताब्दियो[M] तक[M]आगे भी उनके गणराज्य [M]ने रहे। उन[M]ह[M]ंने शाकल आदि[M][M]पने प्रा[M]ीन नगर[M]ं का मोह छोड़ मा[M][M]यम[M]का त[M]ा उज्जय[M]नी [M]ैसे नए नगर[M]बसाए, [M]पने सिक्के चल[M][M][M]और अपने [M]णों की विजयकामना की।[M]मा[M]व गणतंत्र के [M]्रम[M]ख विक[M]र[M]ा[M]ि[M]्य ने श[M]ो[M] से[M][M]ोर[M][M]ा लिया, उ[M]पर विजय प्राप[M]त की, [M]कारि उपाधि [M]ा[M]ण[M]की और स्मृ[M]िस्वरूप ५७[M]५६[M][M]० [M]ू० [M][M]ं ए[M] नया संवत् चलाया जो [M]्[M]मश:कृत[M]ालव औ[M] विक्रम [M]ंवत् के[M]नाम स[M] प्रसिद्ध हुआ [M]र जो[M]आज भी[M]भा[M]तीय ग[M]नापद्धति में मुख्य स्[M]ान [M]खता [M]ै। तथापि स[M]वात[M]त्र्यभा[M]ना की[M]यह अंतिम लौ मात्र [M]ी। ग[M]प्[M]ों क[M] स[M][M]्[M][M]ज्यवाद ने उन सबको समाप्[M] कर [M]ाला। भार[M]ीय गणों के[M][M][M]रमौरों [M]ें[M]से एक-ल[M]च्[M]व[M]यों[M]के ही [M][M]हित्र समुद्रगु[M]्त ने उन[M]ा नामोनिश[M]न मिटा[M]द[M]य[M] और म[M][M]व,[M]आर्जुनायन[M] यौधेय, [M]ाक, खरपरिक, आभी[M], प्रार[M]जुन[M][M]व[M] सनकान[M][M][M]आदि को[M][M]्[M]णाम, आग[M]न[M]और आज्[M]ाकरण के लिये बाध्य किया। उन्ह[M]ं[M][M] स[M][M][M]ं अपने को मह[M]रा[M] कहना[M]शुरू [M]र दिया और [M]िक्रमादित्[M] उपाधिधारी[M]चंद्रग[M]प[M]त[M]ने[M]उन [M]ब[M]ो अपने [M][M]श[M]ल साम्राज्य का शासित प्[M]द[M]श [M]न[M] लिया। भ[M]रत[M]य [M]णराज्यों के [M]ाग्यच[M]्र[M]की यह विडं[M]ना [M]ी थीं [M]ि उन्ही[M][M]के[M]संबंधियों ने उनपर[M]सबस[M] ब[M]़े प्रहार [M][M]ए---[M]वे थे [M]ै[M]ेहीप[M]त्र अ[M]ातशुत्र मौरिय[M]राजकुमार[M]चंद्रग[M]प्त मौर्य, [M]िच्[M]विदौहित्र स[M]ुद्रग[M]प्त। पर पंचायत[M] भावनाएँ नहीं म[M]ीं औ[M] अह[M]र तथा [M]ूजर ज[M]सी [M][M]ेक[M]जा[M]ियों में वे कई [M]ताब्द[M]यों [M][M]े तक पल[M]ी रहीं। पश्च[M]म में गणराज्य[M]ं की पर[M][M]रा[M]प्[M]ाची[M] भारत की भाँत[M] ग्रीस की भ[M] गणपरंपरा अत[M]यं[M] प्राचीन थीं। दोरियाई कबीलों ने ईजियन[M]सागर[M]के[M]तट [M]र १[M] वीं[M][M]द[M] ई. पू. में ही अपनी स्थिति बना ली।[M]धी[M]े धीर[M] सा[M]े[M]ग्रीस म[M]ं [M]णराज[M]यवादीं [M]गर[M]खड[M]े हो गए। ए[M]ें[M], स्पार्[M]ा, कोरिंथ आदि अ[M]े[M] न[M]र[M]ाज्[M][M]दोरि[M]ा ग[M]रीक आ[M]ा[M]ों की क[M]ार में खड़े[M]ह[M] गए। उन्होंने [M]पनी[M]परंप[M]ाओं[M] संविधान[M]ं और आदर्शो[M] का निर्[M]ाण किय[M],[M]ज[M]स[M]्तात्म[M][M]शा[M][M] [M]े अनेक [M]्वर[M]प स[M]म[M][M] आए[M] [M]्र[M]प्तियों के [M]पलक्ष्यस्व[M]ूप की[M]्तिस्[M]ंभ खड़े किए गए[M]औ[M] ऐश्[M]र[M]यपूर्ण[M]सभ्यताओं का निर्माण श[M]रू[M]हो ग[M][M]। [M][M][M]तु उनकी ग[M]व्[M]व[M]्थ[M]ओं में ही उनकी अ[M]न[M][M] के ब[M]ज भी[M][M]िपे[M]रहे[M][M]उ[M]के ऐश्वर[M]य न[M][M]उ[M][M][M] सभ[M]यता को भोगवाद[M] बना दिया, स्पार[M]ता और[M]ए[M]ेंस क[M][M][M]ाग डाट और [M]ारस्परिक संघर्ष प्र[M]रंभ हो[M]गए और[M]वे आदर्[M] राज्य[M]-रिप[M]्लि[M]--स्[M]य[M] [M]ा[M]्राज्यवादी होन[M] ल[M]े। उनमें तथाकथित स्वतंत[M]रत[M] [M][M] बच रही,[M]राजनीत[M]क अ[M]िकार अत्य[M]त सीमित लोगों के हाथों रहा, बहुल जनता[M]को राजनीतिक अधिकार तो दूर, ना[M]रिक अधि[M]ार[M]भ[M] प्राप[M]त नहीं [M]े [M]था स[M]व[M]ों और गुलामों[M]की व[M][M]वस्थ[M] [M][M] स[M]वत[M]त्र नगरर[M]ज[M][M]ों पर[M]व[M]यंग्य स[M]द्ध होने लगी[M] [M]्[M]ार्[M] और [M]पसी फूट ब[M]़ने[M]ल[M]ी। व[M] आपस में तो लड़े ही, ईरान और मकदून[M][M]ाँ के साम्राज्य[M]भी उन पर टूट पड़े। सिकंद[M] [M]े [M]ारतीय ग[M]रा[M][M]यों की कमर तोड़ने के[M]पूर[M]व उसे[M]पिता फि[M][M]प ने ग[M]री[M] [M]णरा[M][M]यों को [M]माप[M]त कर दिय[M] था[M][M]साम्राज[M]य[M]ि[M][M]सा [M]े दोनों ह[M] द[M]शों के नगरराज्यों क[M] ड[M]ार [M]िया।[M]परं[M]ु पश्चिम[M]में गणराज्य[M][M] [M]ी पर[M]प[M]ा [M]म[M]प्त नहीं हुई। इटली का[M][M]ोम नग[M] [M]नका क[M]ंद[M][M] और[M]आगे चलक[M] [M]त्[M][M]त प्र[M]िद्ध हो[M]े वाली र[M][M]न जात[M] [M]ा[M]मूलस्थान [M]ना। हा[M]िबाल ने [M][M]पर धावे किए और लगा क[M] रोम [M]ा गणराज[M]य चूर [M][M]र[M][M][M] जायगा पर उस असाधार[M] विजेता को[M][M][M] [M][M]मा की लड़ाई [M]ारकर[M]अपनी रक्षा क[M] लिये ह[M][M]ा पड़ा[M] रो[M][M]की [M]िज[M]नी सेना ग्रीस[M]से ल[M]कर [M]ंग्लै[M]ड तक ध[M]वे मारने लगी। पर जै[M]ा ग[M][M]ीस में[M]हुआ,[M]वैसा ह[M] रोम [M]ें भी। सैनि[M] यु[M]्धों में ग्री[M] [M]ो जीतनेवाल[M][M]र[M][M][M] [M]ोग[M]सभ्[M]त[M] और संस्क[M]ति की लड़ाई में हार गए और रोम[M]में[M]ग्रीस का भोगविलास [M]नपा। अभ[M]जात कुलों क[M] लाड़[M]े भ्र[M]्[M]ाच[M]र में डूब[M], जनव[M]दी पाहरू बन[M] औ[M] उ[M]े समूचा निग[M] गए-[M]-पांपेई, सीजर, अंतो[M]ी [M][M]ी। [M]ारतीय मलमल, मोत[M] और[M]मसालों की[M]बारीकी, चमक और सुगं[M] में वे डूबने लग[M] और[M]प्[M][M]नी जै[M]े इ[M]िहासकार की च[M]ख के [M]ावजूद र[M][M] का सोना भारत के प[M]्चिमी बंदर[M]ाहों से यह[M][M] आ[M]े[M]लगा। रोम क[M] गणर[M]ज्यवादी[M][M]रंपरा सुख, [M]ौंदर्य और वैभ[M] की खोज में ल[M]प्त[M]हो[M]गई और उनके श्मश[M]न [M]र साम्राज्य न[M] [M][M]ल खड़ा [M]ि[M][M]। अ[M]स्तस उसका [M][M]ला सम्राट्[M]बना और उस[M]े वंश[M]ो[M][M]न[M] अप[M]ी साम्र[M]ज्यव[M]दी[M]सभ[M][M]ता में सार[M][M]यूरोप [M][M] डुबो देने का उपक्रम [M][M]या। पर उसकी भी रीढ़ उन हूणों न[M] तोड़ दी, जिनकी एक श[M]खा ने भारत के[M]शक्तिशाली[M]गुप्त स[M]म्राज्य को[M]झकझोरकर [M]राशा[M]ी कर देन[M] में[M]अन्य [M]तनोन्[M]ुख प्रवृ[M][M]त[M]यों क[M] साथ द[M]य[M]।[M]तथ[M]पि [M]ए[M]उ[M]ते साम[M]राज्यों और स[M]मंत[M] शासन के[M]बावज[M][M] य[M][M]ो[M] में [M]गर गणतं[M]्रों[M]का आभास चार्टरों और गि[M]्डो[M] (श्रेणिय[M]ं)[M][M]दि के ज[M][M]ए[M]फ[M]र होने[M]लगा। नगरो[M] औ[M] सा[M]ंतों[M]म[M]ं, न[M]रों औ[M] सम्राटों[M]म[M]ं गज[M] की कशमकश हुई[M]और सदियों बनी रही[M] पर अंत[M]: [M]गर विजयी हुए। उ[M]के च[M][M]्टरों के सा[M][M]तों औ[M] स[M]्र[M][M]ों क[M] स[M]वीकार [M]रना पड[M][M]। मध्यकाल में इटली[M]में ग[M]र[M]ज्य[M]उ[M][M]खड़े हुए, जिनमें प्रसिद्ध थे [M][M]नोआ, फ्लोरेंस, पादुआ एवं वेनिस और उनके सं[M]क्[M]क [M]था [M]ेता [M]े उनके ड्यूक[M][M]पर राष्[M]्री[M] नृपराज्यों के [M]दय [M]े स[M]थ वे भी स[M]ाप्त हो गए। नी[M]रलैंड[M]स के [M][M][M] राज्[M]ों ने[M]स्[M]ैनी सा[M]्र[M]ज्य [M]े विरु द्ध विद्रोह कर संयुक्त नीदरलै[M][M]्स[M]के गणरा[M]्य[M]की स्थापना [M]ी। [M]गे भी गणतंत[M]रा[M]्मक भ[M]वनाओं का उच्छेद[M]नह[M]ं [M]ुआ। इं[M]्ल[M]ंड आनुवंशि[M] नृपराज्[M] था, तथापि मध्यय[M]ग में वह कभी कभी अपने को क[M]म[M]बील[M]अथवा कामनवेल्[M] नाम से पुक[M]रता[M]रहा। १८वी[M] सदी में वहाँ के नागरिकों ने अपने अ[M]िकारो[M] क[M] रक्ष[M] [M]े लिये अपने [M]ाजा (चाल्र्स प्र[M]म) [M]ा वध कर डाला और कामनवेल्थ अथवा [M]िपब[M]लि[M][M](गणतंत्र) की स[M][M]ापना हुई। पुन: राजतंत्र आया [M]र गणतं[M][M]रात्मक [M]ावनाएँ जा[M]ी रहीं, रा[M]ा जनता का क[M]पापा[M]्र, खिलौ[M]ा बन[M]गया और कभी भी उसक[M][M]असीमित शक्ति[M]स्थापित न [M]ो स[M]ी। मानव अधि[M]ारी (राइट्स ऑ[M][M]मैन) की[M]लड़ाई जार[M] रही और अमर[M]क[M] के अंग्[M][M]जी उप[M][M]वेशों [M]े[M]इ[M]ग्लैंड के विर[M][M]द्ध युद[M]ध ठा[M]कर व[M]ज[M] प्राप्त क[M] और [M]पनी [M]्वत[M]त्र[M]ा[M]की घोषणा में[M][M]न अधि[M][M]र[M]ं को समाव[M]ष्[M][M]किय[M]। [M][M]रांस की प्रजा भी आगे बढ[M]ी;[M]एकत[M], स्व[M]ं[M][M]र[M]ा[M]और बंधुत्व के[M]नारे लग[M], राजतंत्[M] ढह[M]गया और[M]क्रांति[M]के फलस्वरूप प्[M]जातंत्र क[M] स्[M]ापना[M]हुई। नेपोलि[M]न उन भावनाओं की बाढ़ पर तैरा, फ्रां[M] स्वयं तो पुन[M] कुछ दिनों[M]के लिए [M]िरंकुश राजतंत्र क[M] चपेट मे[M] आ [M]य[M], क[M]ंत[M] यू[M]ो[M][M]के अन्यान[M]य देशों[M]औ[M] उ[M]के[M]बाह[M] भी[M]स्वातं[M]्र्य[M]भाव[M]ाओं [M][M] स[M]ु[M]्र[M]उमड़[M][M]ड़ा। [M]९वीं सदी के मध्य [M]े क्र[M]ं[M][M]यों का[M]युग पुन: प्रारंभ ह[M]आ और [M]ोई भी देश उनसे [M][M]ूत[M] न बचा।[M]राजतंत्रों को स[M][M]प्त कर गणत[M]त्रों की[M]स्थ[M]पना की [M]ाने लगी। परंतु [M]९वीं त[M]ा २०व[M]ं सद[M][M]ों [M]ें[M]यूरो[M] [M]े [M]े ह[M] देश, जो[M][M][M]नी सीमाओं के[M]भीतर जनवादी होने [M]ा दम[M]भरते रहे, बा[M]री दुनियाँ में----एशिय[M] और अफ्रीक[M] म[M]ं[M]-[M][M]साम[M]राज[M]यवाद का नग्[M][M]तांडव करन[M] से न[M]चूके[M] [M]९1[M] ई. में माक्र्सवा[M] से प्रभावित[M]ह[M]कर[M]रूस में राज[M]यक्रांति ह[M]ई और जारश[M][M]ी[M]मिटा दी गई। १९[M]8[M]ई.[M]में उस[M] [M]रंपरा में [M][M]न में [M][M] क[M]्[M]ुनिस[M]ट सर[M][M]र[M]का शा[M]न शुरू [M]ुआ। ये दोनों ही दे[M] अपने को गणतंत[M]र की सं[M]्ञा [M]ेते है[M][M]और वह[M]ँ के [M]ा[M][M] जनता क[M][M]नाम[M]पर [M]ी किए[M]जाते[M]ह[M][M]। [M]रंतु उनम[M]ं ज[M][M]ाद की डोरी खीं[M]नेवाले ह[M]थ अधिनायकवादी ही[M]हैं।[M]सद[M]य[M]ं[M]की [M]ुलामी को तोड़कर भा[M]त भी [M]ज[M]गण[M]ाज्य क[M][M]परंपरा[M]को[M][M]गे बढ़ाने [M]े लिय क[M]िबद्ध ह[M] और अपने लिए एक लोकतंत्रीय सा[M]वैधानिक [M]्य[M][M]्था[M]का सृजन कर चुक[M] [M]ै। साम्राज्यों और सम[M][M]ाटों [M]े नाम[M]न[M]शान मिट चुके[M]हैं तथा [M][M]रकुंश और असीमित राज्यव्यवस्थाए[M] समाप्त हो चुकी हैं, क[M]ंतु स्[M]तंत्रता की वह मू[M] भाव[M]ा मानवहृ[M]य[M]से [M]ही[M] दूर की [M]ा सकती जो गणराज्य परंपरा की कुंजी [M]ै[M] विश्व[M]इत[M][M]ास के प्रा[M]ीन[M]युग[M]के गणों [M]ी त[M]ह आज के [M]णराज[M]य अब न तो [M]्षेत्र [M][M]ं अ[M][M]यं[M] [M]ो[M]े ह[M]ं और न आपस में फूट और द्वेष[M]ावना से ग[M][M]स्त[M] उनमें न [M]ो[M]प्र[M]चीन [M]्रीस का[M]द[M]सवा[M] है और न प्राच[M][M] और मध्यकाल[M][M] भारत और य[M]रोप[M]के गणर[M]ज्य[M]ं[M]का [M][M]म[M][M] मतदान। उनमें[M]अब सम[M]्त जनत[M] का प्[M]ाधान्य हो[M]गया[M]है[M]और उसके भ[M]ग्य की वही [M]िधायिका है। सै[M]िक अधिन[M]यकवादी[M]भी विवश होकर जनवाद क[M] द[M] भरते और कभी [M]भी उसके लिये कार[M]य[M]भी क[M]ते हैं। गणराज्य की भावना अमर है [M]र उसका[M]जनवाद [M]ी सर[M]वदा अमर रहेगा। इन्हे[M] भी [M]ेखें गणराज्यों की सूची रू[M][M]के गणराज्[M] ग[M]तन्[M]्र दिवस (भ[M]रत) सरक[M]र के र[M]प
नास्तिक १९८३ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। अमिताभ बच्चन - शंकर हेमामालिनी - गौरी प्राण - बलबीर अमज़द ख़ान - टाइगर रीटा भादुड़ी - शांति जय श्री टी नामांकन और पुरस्कार १९८३ में बनी हिन्दी फ़िल्म
नास्तिक १९८३ में बनी[M]हिन्दी भाष[M] की फ़िल्म [M]ै। अम[M]ताभ बच्चन -[M]शंकर हेम[M]माल[M]नी - गौ[M]ी प्राण[M]- बलबीर [M]मज़द [M]़ान - ट[M]इगर रीटा भादु[M][M]ी - शांति [M]य [M]्री [M][M] नामांकन और पुर[M]्का[M][M]१९८३[M][M]ें ब[M]ी हि[M]्दी [M]़िल्म
२६ जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १७७वाँ (लीप वर्ष में १७८ वाँ) दिन है। साल में अभी और १८८ दिन बाकी हैं। १९२२- राजकुमार लुई चार्ल्स अंटोइन ग्रीमल्डी, लुई द्वितीय के नाम से मोनाको का राजा बना। १९४५ - सेन फ़्राँसिस्कों में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया गया। १९९२ - भारत ने बांग्लादेश को 'तीन बीघा गलियारा' ९९९ वर्षों के लिए पट्टे पर दिया। बुडापेस्ट (हंगरी) में विश्व विज्ञान सम्मेलन की शुरुआत हुई। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष जे.ए. समारांच को ' सदी का सर्वश्रेष्ठ खेल नायक अवार्ड' प्रदान किया गया। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के हथियार कार्यक्रम के प्रमुख विक्टर रीस ने इस्तीफ़ा दिया। २००० - अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल द्वारा बांग्लादेश को टेस्ट क्रिकेट देश का दर्जा दिया गया। २००४ - पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जमाली का इस्तीफ़ा, शुजात हुसैन नये कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। बहुर्राष्ट्रीय कम्पनी रियोरिटो ने मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में छतरपुर ज़िले के तहत हीरा खनन के लिए खनिज पट्टा माइनिंग लीज हासिल कर बंदर डायमंड प्रोजेक्ट शुरू करने की घोषणा की। बिजली परियोजनाओं के लिए कास्टिंग फोर्जिंग एवं बेलेंस ऑफ प्लाट उपकरणों को बनाने के लिए एनटीपीसी व भारत फोर्ज ने बीएफ-एनटीपीसी एनर्जी सिस्टम लिमिटेड नामक संयुक्त उद्यम बनाया। २०१८ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई में एशियाई ढांचागत निवेश बैंक-ए.आई.आई.बी. के तीसरे वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन किया। २०२२ - मध्य प्रदेश बना रणजी ट्रॉफी का विजेता (यह प्रथम किताब है|) मध्य प्रदेश ने पहले रणजी ट्रॉफी में होल्कर क्रिकेट टीम के रूप में भाग लिया, १९४५-४६ और १९५२-५३ के बीच चार बार टूर्नामेंट जीता। मध्य प्रदेश के रूप में यह उनकी पहली जीत थी। १५६४ - शेख अहमद सरहिंदी, नक्सबंदी पंथ के उलेमा १८३८ - बंकिमचंद्र चटर्जी, बंगाली उपन्यासकार (मृ. १८९४) १९४७ - रिचर्ड बेनेट, कनाडा की ग्यारहवें प्रधानमंत्री (ज. १८७०) २००४ - यश जौहर, भारतीय फिल्म निर्माता (ज. १९२९) अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस यातना पीड़ितों के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस वर्ष का दिन
२६ जून ग्रेगोरी क[M]लंडर[M]के[M]अनुसार वर्ष का [M]७७वाँ (लीप वर्ष में १७८ वाँ) दिन है। [M]ाल [M]ें अभी और १८८[M]दिन ब[M]की हैं। १९२२[M] र[M][M]कु[M]ार लुई चा[M]्ल्स अंटोइ[M] ग्री[M]ल्डी, लुई द[M][M]ित[M]य के नाम से मोनाको का [M]ा[M]ा[M][M]ना।[M]१९४५ -[M]सेन [M]़[M]राँसिस्कों[M][M][M][M] सं[M]ुक्त राष्ट्र घो[M]णा पत्र पर ह[M]्ताक्षर कि[M][M][M][M][M][M]। १९९२ - भार[M][M]ने बां[M]्ल[M][M]ेश को [M]त[M]न बीघा गलिया[M]ा' [M]९[M][M]व[M]्षों [M]े लिए पट्टे पर दिया। ब[M]डापेस्ट (हंगर[M][M][M]में विश्व विज्ञान [M]म्म[M]लन की शुरुआत[M]ह[M]ई। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक[M]समिति के अध्यक्[M] जे.ए. सम[M]रांच को[M]' [M]दी का सर्वश्[M]ेष्ठ खेल नायक अव[M]र्[M]' प[M]रद[M]न किया गया। अम[M]रिकी [M]र्जा विभाग के [M]थिया[M] [M]ार[M]यक्रम के प्रमुख व[M]क[M]ट[M][M]रीस ने[M]इस्तीफ़ा दिया। २[M]०[M] - अ[M]तर्राष[M]ट्रीय क्र[M]के[M][M]क[M]उंसिल द्व[M]रा[M]ब[M][M]ग्लादेश क[M] टेस्ट [M]्[M]िकेट दे[M] का [M]र्जा द[M]या गया। २००४ - पाकिस्ता[M][M]क[M][M]प्रध[M]नमंत्[M]ी जम[M]ली का इस्त[M][M]़ा, शुजात हुसैन [M]ये[M]कार्यवाहक प्रधानम[M][M]्री बने। बह[M]र्[M][M][M]्ट्रीय क[M]्पनी रियोरिटो[M]ने मध्य[M]प्[M][M]ेश[M]के [M]ुन्देलखण्ड क्[M][M]त्र [M]ें[M]छ[M]रपुर ज़िल[M][M]के तहत हीरा खनन के लिए ख[M]िज पट्[M]ा माइनिंग[M]लीज[M][M]ासिल कर बंदर डायमंड प्[M]ोजे[M]्ट शुरू क[M]ने की घोषणा[M]की। बिज[M]ी[M]परियोज[M]ाओं के लि[M] कास्[M]िंग फ[M]र[M]ज[M]ंग एव[M][M]ब[M][M]ेंस ऑफ [M]्लाट [M]पकरण[M]ं को[M]बनाने क[M] लिए एनटीप[M]स[M] व भारत फोर[M]ज न[M] बी[M][M]-[M]नटीपीसी एनर्जी सिस्टम लिमिटेड नामक संयुक्[M] उद्यम बनाया। [M]०१८ प्[M]धानमंत[M]री [M]रेंद्र मोदी ने मु[M]बई में एशिय[M][M] ढांचागत नि[M]ेश बैंक-ए.आई[M]आई[M]बी. [M]े त[M]सरे वार्षिक सम्मेलन का उद्घा[M]न[M]किया। २०२[M] [M] [M]ध[M]य प्र[M]ेश बना[M]रणजी ट्रॉफी का विजेता (यह प[M]रथम किताब है|[M] म[M]्य प्रदेश ने [M]हले [M][M]जी ट्र[M]फ[M] में हो[M]्कर क्रि[M][M]ट टीम क[M] रूप में भाग[M]लिया[M] [M]९४५-४[M] [M]र १९५२-५३ के बीच चार ब[M]र[M]टूर्नामें[M] जीता।[M]मध[M]य प्रद[M]श के रूप में[M]यह उनकी पहली[M]जीत थी। १५[M]४ - शे[M] अ[M]मद स[M]हि[M]दी, नक्[M]बं[M]ी पंथ के उ[M]ेमा[M]१८[M][M][M]- बंकिमचंद्र चटर्जी, [M]ंगा[M]ी उपन्य[M]सका[M] ([M]ृ. १८९४) १९[M]७ - र[M][M]र्ड [M][M]ने[M], कनाडा क[M] ग्यारहवें प्रधानमंत्र[M] (ज.[M]१८७०) २००४ - यश जौहर, भारत[M]य [M][M]ल[M]म न[M]र्माता [M]ज. १९[M][M][M] अंतर्[M]ाष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस यातना पी[M]़ित[M]ं के समर्थ[M] [M]ें संयुक्त र[M]ष्ट[M]र [M]ंत[M]्राष्ट्री[M] दिवस वर्[M] का दि[M]
गोवा विश्वविद्यालय (गोआ यूनिवर्सिटी) भारत के गोवा राज्य के पणजी नगर में स्थित एक उच्च-शिक्षा संस्थान है। इन्हें भी देखें गोवा में विश्वविद्यालय और कॉलेज
गोवा विश्वविद्यालय (गोआ[M]यूनिव[M][M]सिटी) भा[M]त के ग[M][M]ा[M]राज्य के प[M]जी नगर में स्थ[M]त [M]क उच्च-शिक्षा संस[M]थान है। इन्हें[M]भी देखे[M] [M]ो[M]ा[M]में विश्वविद्यालय [M]र कॉलेज
हाई फोंग या हैफोंग, वियतनाम के उत्तरी भाग में दूसरा सबसे बड़ा और एक प्रमुख औद्योगिक शहर है। हाई फोंग, वियतनाम के उत्तरी तट में प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, चिकित्सा, शिक्षा, विज्ञान और व्यापार का केंद्र भी है। इसके अलावा, यह शहरी आबादी के मामले में वियतनाम का तीसरा सबसे बड़ा शहर है(२०१६ में २,१९०,७८८ जनसंख्या के साथ)। हाई फोंग शहर एक बंदरगाह प्रांत के रूप में फ्रांसीसी औपनिवेशिक साम्राज्य के दौरान १८८७ में स्थापित हुआ था। १८८८ में, फ्रेंच तीसरे गणराज्य के अध्यक्ष सादी कार्नेट ने हाई फोंग शहर के स्थापना की घोषणा की थी। १९५४ से १९७५ तक हाई फोंग उत्तर वियतनाम के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री शहर के रूप में था और यह १९७६ से हनोई और हो ची मिन्ह शहर की तरह प्रत्यक्ष-नियंत्रित नगर पालिकाओं में से एक बन गया। हैफ़ोंग एक तटीय शहर है, जो किम नदी (निषिद्ध नदी) के मुहाने पर स्थित है। यह वियतनाम के उत्तर-पूर्वी तटीय इलाके में, हनोई से १२० किमी पूर्व में स्थित है। केम नदी पर बना बिन्ह ब्रिज, शहर को थु गुयेन जिले के साथ जोड़ता है। हैफ़ोंग में एक आर्द्र उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु है, जिसमें गर्म, आर्द्र ग्रीष्मकाल और गर्म, शुष्क सर्दियाँ होती है। शहर में बारिश अप्रैल से अक्टूबर तक होती है; शहर की वार्षिक वर्षा का लगभग ९०% (जो लगभग १६०० मिमी वर्षा है) आम तौर पर इन महीनों में ही गिरता है। शहर के सर्दियों और गर्मियों के बीच के तापमान में काफी अंतर होता है। हाई फोंग, विशेष रूप से उत्तर और पुरे वियतनाम का एक प्रमुख आर्थिक केंद्र है। फ्रांसीसी शासन के दौरान, हाई फोंग, साइगॉन और हनोई के बराबर पहले-स्तर का शहर था। आज, हैफ़ोंग वियतनाम के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्रों में से एक है। २००९ में, हाई फोंग का राज्य बजट राजस्व ३४,००० अरब रहा था। २०११ में, शहर में बजट राजस्व ४७,७२५ अरब तक पहुंच गया, २०१० की तुलना में १९% की वृद्धि हुई। २०१५ में, शहर की कुल राजस्व ५६८८ अरब तक पहुंच गया। सरकार की योजना है कि २०२० तक, हैफोंग का राजस्व ८०,००० अरब से अधिक हो जाएगी और घरेलू राजस्व २०,००० अरब तक पहुंच जाएगा। हैफोंग का दुनिया भर के ४० से अधिक देशों और क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध है। फूड प्रोसेसिंग, हल्के उद्योगों और भारी उद्योगों सहित हैफ़ोंग में कई महत्वपूर्ण उद्योग क्षेत्र है। प्रमुख उत्पादों में मछली सॉस, बीयर, सिगरेट, टेक्सटाइल, पेपर, प्लास्टिक पाइप, सीमेंट, लोहा, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रिक प्रशंसकों, मोटरबाइक्स, स्टील पाइप और जहाजों और आउटसोर्सिंग सॉफ्टवेयर क्रियान्वयन शामिल हैं। इन उद्योगों में से अधिकांश में २००० और २००७ के बीच काफी वृध्दि रही हैं। सिगरेट और दवा उद्योग को छोड कर, जहज़ निर्माण, स्टील पाइप, प्लास्टिक पाइप और वस्त्र उद्योगों में सबसे तेज वृद्धि हुई हैं। एक उद्योगिक शहर के रूप में इसकी स्थिति के बावजूद, हैफोंग क्षेत्र का लगभग एक तिहाई या ५२,३०० हेक्टेयर (२००७ तक) क्षेत्र कृषि के लिए उपयोग किया जाता है। चावल सबसे महत्वपूर्ण फसल है, जिसका लगभग ८०% कृषि भूमि में उत्पादन होता है, २००७ में इसका ४६३,१०० टन का उत्पादन हुआ था। अन्य कृषि उत्पादों में मक्का, चीनी और मूंगफली शामिल हैं। हैफोंग वियतनाम का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है, जिसमें नगरपालिका क्षेत्र में २.१०३.५०० (२0१5) की आबादी है, इसमें १,५०७.५७ किमी क्षेत्रफल शामिल है,इसकी ४६,१% आबादी, शहरी जिलों में है। कुल जनसंख्या के लिंग वितरण में महिला आधे से कुछ ज्यादा (५०.४%) है। वियतनाम के आबाद स्थान वियतनाम के नगर
हाई फोंग [M]ा [M]ैफ[M]ंग,[M]वि[M]तनाम[M]के[M]उत्तरी भाग में दूसरा सबसे बड़ा औ[M] एक प्रम[M]ख औद्योगिक शह[M][M]है। हाई [M]ोंग, वियतनाम क[M] उत्तरी तट [M]ें[M][M]्र[M]द्यो[M]ि[M][M][M] अर्[M]व्य[M]स्था, संस[M]कृत[M][M] [M]िक[M]त[M][M]ा, [M]िक्षा, विज्ञा[M] और व्यापार का के[M]द[M]र [M]ी है। इसके अल[M]वा[M] [M]ह [M]हरी आबादी[M]के मामले में[M]वियतना[M][M]का तीसरा सबसे ब[M]़ा शहर है([M][M]१[M] में २,१९०,७८८ जनसंख्या के[M]साथ)। हाई फोंग[M]शहर [M]क बं[M]रगाह [M]्रां[M] [M]े [M]ू[M] म[M][M] फ[M][M]ांसीस[M] औपनि[M]ेशिक[M]साम्[M]ाज्य के दौरान १८८७ में स्थापित[M]हुआ था[M] १[M][M]८ में, फ[M]रेंच[M]तीसर[M] गणरा[M]्य [M][M][M]अध्यक्[M] [M]ादी[M]कार्नेट[M]ने हाई फोंग [M]ह[M] [M][M] स्थापना[M]क[M] [M]ोषण[M] की थी। १९५४ से [M]९[M]५[M][M]क हाई फ[M][M][M] उ[M]्[M][M] वियतना[M] के सबसे महत्वपूर्ण[M]समुद्री शहर के रूप में था और[M]यह १९७६ [M]े[M][M]न[M]ई और हो ची मिन्[M] [M]हर [M]ी त[M]ह प्रत्[M]क्ष[M]नियंत्रित न[M][M] [M]ालिकाओं[M]में से ए[M] बन गया। है[M]़ोंग एक तटी[M] शह[M] है, [M]ो किम [M]दी (निष[M]द्ध नदी) के[M]म[M]हाने प[M] स्थ[M][M] है। य[M][M]वियतनाम [M]े उ[M]्तर[M][M]ूर्वी [M]ट[M]य इलाके में, ह[M]ोई स[M] १[M]०[M]किमी पूर्व मे[M] स्थित है। केम नद[M] [M]र बना बिन्ह [M]्रिज[M] शहर को थु[M]गुयेन[M]जिले के साथ[M]जोड़ता है। [M]ैफ़ो[M]ग [M][M]ं एक [M]र्द्र उप-उष्ण[M]टिबं[M]ीय[M][M]लवा[M]ु ह[M],[M]जिसमें गर्[M], [M][M]्द्र ग्र[M]ष्[M][M]ाल और [M]र्म, शुष[M]क[M][M]र्द[M]य[M]ँ[M]ह[M]ती है। शहर में बारिश अ[M][M]रै[M] से अक[M][M]ूबर[M][M]क होत[M] [M]ै[M] शह[M] की वार[M]षिक [M]र्षा का लग[M]ग ९०% (जो [M]गभ[M] १६०० मिमी वर्[M]ा ह[M]) आम तौर पर इन महीन[M]ं में ही गिर[M]ा है। शहर के सर्दिय[M]ं और ग[M]्मियों क[M][M]ब[M]च के[M]तापमान में क[M]फी अ[M]तर ह[M]ता [M]ै। [M]ाई फों[M], विशेष[M]रूप से [M]त्तर औ[M] प[M]र[M][M]वियतनाम [M][M] [M][M] प्रमुख आ[M][M]थिक केंद[M][M] ह[M]।[M]फ्रां[M]ीसी शासन के[M]दौरा[M], हाई[M][M]ोंग, [M]ाइगॉन और हन[M][M] के बराबर पहले-स्तर का [M]हर [M]ा। आ[M], हैफ़ों[M] वियत[M]ा[M] के [M]बसे [M]हत्वपूर्ण आर्थिक केंद्रों[M]मे[M][M][M]े एक है। २००९ में, हाई [M]ो[M]ग का राज्य ब[M]ट[M]राजस्व ३४,००० अरब [M]हा [M]ा[M] २०११ [M]ें,[M]शहर मे[M] बजट राजस[M]व ४७,७२५ अरब तक पहुंच गय[M],[M]२०१[M] [M]ी तुलन[M] में १९%[M]क[M][M]वृद[M]धि हुई[M] २०१५ में,[M][M]हर[M]की कुल[M]राजस[M]व ५६८[M][M]अरब तक पहुंच गया। सरकार क[M] य[M]जना[M]है [M]ि [M][M]२० तक, हैफ[M]ंग का राजस्व[M]८[M],००[M] अरब स[M] अ[M]िक हो [M]ाए[M]ी और घरेल[M] राजस्[M] २०,००० [M][M]ब तक पह[M]ंच[M]जा[M]गा[M][M]हैफोंग[M]का दुनिया भर के ४०[M]से अधिक देशो[M] औ[M][M]क्ष[M]त्रों के साथ व्यापा[M]िक[M]संबंध [M][M]। फूड प्रोस[M]सिंग, हल[M]के उद्योगों और भारी उद्योग[M]ं सहित[M]हैफ़ों[M] म[M][M] [M]ई[M][M][M]त्[M]पू[M]्ण उद्य[M]ग क्ष[M]त्[M] है। प[M]रमुख[M]उत्पा[M]ों में मछ[M]ी सॉस, बी[M]र,[M]सिगरेट, [M]े[M][M]सटाइल, पेपर, प्लास्टिक पा[M]प[M] सीमे[M]ट, ल[M]हा, फार्म[M]स्यूटिकल्स, इल[M]क्ट्र[M]क प्रशंसकों, मोटरबाइक्स, स्[M]ील पाइप और[M]जहाजों[M]और आउटसो[M]्सिंग सॉफ्टवेयर [M]्रियान्वयन[M]शा[M]ि[M] हैं। इन[M]उ[M]्योगों[M][M]ें स[M] अध[M]कांश [M][M]ं २[M]०० [M][M] [M]००७ क[M] बी[M] काफी वृध्दि रही[M]ह[M][M]। सिगरेट और दवा[M]उ[M]्योग को छोड कर, ज[M]ज़ निर[M]माण,[M]स्टील[M]प[M][M]प, प[M]लास्टिक [M]ाइ[M] [M]र वस्त्[M] उद्योगों म[M]ं सबसे[M][M]ेज वृद[M]धि हुई हैं[M][M]एक उद्योग[M]क [M]हर [M]े रूप में इस[M]ी[M]स्थिति के बा[M][M][M]द, ह[M]फोंग क्षेत्र क[M] ल[M]भग एक[M]तिहा[M] या ५२,३०[M] ह[M][M]्टेयर (२००७[M]तक) क्ष[M]त्र कृष[M] के[M]लिए उपयोग किया जा[M][M] है। चावल[M]सबसे महत[M]वपूर्ण [M]सल [M]ै, [M][M]सका लगभग [M]०%[M]क[M]षि भूमि [M]े[M] उ[M][M]पाद[M] होता है, २००७ में इसका ४६३,१[M][M] टन का उ[M]्पादन[M]हुआ था। अन्य[M]कृषि उत्[M]ादों में मक्का, चीनी और मूं[M]फली शामिल[M]हैं। हैफोंग[M]वियतनाम क[M] त[M]सरा [M]बसे[M]अ[M][M]क आबाद[M] वाला शहर ह[M], जिसम[M]ं [M]गरपालिका क[M]षेत्र में २.१[M][M].५००[M](२0१5) [M]ी [M]बादी है, इसमें[M]१,५०[M][M]५७ किमी क्षे[M]्र[M]ल श[M]मिल है,इसकी[M]४६,१%[M]आ[M]ादी[M] शहरी जिलों म[M][M] है। कुल जनसंख्य[M] के लिंग वि[M]रण [M]ें महिला[M]आधे स[M] कुछ[M]ज्या[M][M] (५[M].[M][M]) है।[M]व[M]य[M][M]ाम के आब[M]द स्थ[M]न व[M]यतनाम[M]के नग[M]
गणित के सन्दर्भ में एक से अधिक चरों (वरिएबल्स और उनक्नाउन) से युक्त एक से अधिक समीकरणों के समूह को युगपत समीकरण (सीमल्तानेस इक्वेशन्स) कहते हैं। 'युगपत' का अर्थ है - 'एक साथ'। दिये गये समीकरणों पर गणितीय संक्रियायें करके उनमें आने वाले सभी चरों का ऐसा मान निकालते हैं जो सभी समीकरणों को संतुष्ट करें; इन चरों का मान प्राप्त करना ही युगपत समीकरण का हल कहलाता है। निम्नलिखित दो समीकरण एक युगपत समीकरण को निरूपित करते हैं। इसमे क्स और य दो चर हैं। इस उदाहरण में दिये हुए दोनो समीकरण रेखीय बीजीय समीकरण हैं। किन्तु युगपत समीकरणों के समूह में कुछ या सभी समीकरण अरेखिइय या अबीजीय (जैसे त्रिकोणमित्तिय) हो सकते हैं। इसी प्रकार, निम्नलिखित समीकरण निकाय का हल है - क्स = १००, य = ० युगपत समीकरणों का महत्व विज्ञान, तकनीकी एवं अन्य क्षेत्रों में किसी समस्या का विश्लेषण करते समय या किसी डिजाइन के कार्यान्वयन में अक्सर युगपत समीकरणों का निकाय हल करना पडता है। इसके अलावा विभिन्न गणितीय समस्याओं का हल निकालते समय भी अन्त में युगपत समीकरण प्राप्त हो सकता है। युगपत समीकरणों का हल युगपत समीकरणों के हल के लिये प्राय: निम्नलिखित विधियाँ उपयोग में लायी जाती हैं: ग्राफीय विधि (समीकरणों का ग्राफ खींचकर) आंकिक विधि (न्युमेरिकल मेथड) इस विधि में दिये गये समीकरणों के निकाय में से कोई एक समीकरण लेते हैं और उसको इस रूप में लिखते हैं कि कोई अज्ञात राशि अन्य अज्ञात राशियों के फलन के रूप में अभिव्यक्त हो जाय। जैसे, यदि मूल समीकरण है तो इसे ) के रूप में लिखेंगे। य का यह मान शेष सभी समीकरणों में रख देंगे। इस प्रकार हमारे पास पहले की अपेक्षा एक कम समीकरण बचा और अज्ञात राशि भी पहले की अपेक्षा एक कम हो गयी। यही क्रम तब तक चलाते हैं जब तक हमें केवल एक समीकरण न मिल जाय। इससे उसमें निहित अज्ञात राशि का मान निकालते हैं और उल्टे क्रम में (बऐक साबस्टितुशन) प्रतिस्थापन करते हुए अन्य अज्ञात राशियों का मान ज्ञात कर लिया जाता है। नीचे के उदाहरण से यह स्पष्ट हो जायेगा- इनमें सबसे पहले को हटाने की कोशिश करते हैं- अब दूसरे समीकरण से क्स का मान य के फलन के रूप में व्यक्त करते हुए: थोड़ा सरल करने पर य का मान निकल जाता है: अब उल्टे क्रम में पहले क्स और फिर ज़ का मान निकालते हैं-
गण[M][M] [M]े[M]सन्दर्भ में एक स[M] अधि[M] [M]रो[M] (वरिएबल्स और उन[M]्नाउ[M][M] से युक्त एक से अधि[M] स[M]ीकरणों के सम[M]ह को युगपत[M]समीकरण (सीमल्तानेस इक्वेशन्स) कहत[M] ह[M]ं।[M]'युगपत' क[M] अर्थ है - 'एक साथ'। [M][M]ये [M]ये सम[M][M][M]णों[M]पर गणितीय संक्र[M]य[M]यें[M]क[M]के [M]नमें[M]आ[M]े वा[M][M][M]सभी चरो[M] [M]ा[M]ऐसा[M]मा[M] [M]िका[M]ते[M]हैं जो [M]भी स[M]ीक[M]णों क[M] [M]ं[M][M]ष्ट करें; इ[M][M]चरों का[M][M]ान प्राप्त करना ही युग[M]त समीकरण का हल कहलाता[M]है[M] [M]िम्नलिखित[M]दो समी[M]रण एक युग[M][M] स[M]ीकरण[M]क[M] [M]िरू[M]ि[M] करते ह[M]ं। इस[M]े [M]्स और[M]य दो चर हैं[M] इस उ[M]ाह[M]ण में [M]िये हुए दोनो समीकरण [M]ेखीय बीजीय समीकरण ह[M][M]। किन्तु[M]युग[M]त समीकरणो[M] के समूह में कुछ या[M]सभी समीक[M]ण[M]अरेखिइ[M] या अ[M]ीज[M][M] (ज[M]से त्[M]िको[M]म[M]त्तिय) [M]ो स[M]ते हैं[M] इसी प्रकार, निम्नल[M]खित समीकरण निकाय[M][M]ा [M]ल ह[M] - [M]्स =[M]१००, [M][M]= ० [M]ुगपत समीक[M]णों का महत्व विज्ञा[M], [M]कनीकी [M][M]ं अन्[M] क्षेत्[M]ों [M]ें[M]क[M]सी समस्या क[M][M]विश्लेषण [M]रते [M][M]य[M]या[M]किसी[M]डिजाइ[M] के का[M]्यान्व[M]न म[M]ं[M]अक्सर[M]युगपत समीकरणों [M]ा नि[M]ाय हल करना[M]पड[M]ा ह[M]। इसक[M] अला[M][M] वि[M]िन्न ग[M]ितीय समस्याओं का हल निकालते[M]समय भ[M] [M]न[M]त में[M][M]ुगपत समीक[M][M] प्राप्त[M]हो[M]सकता[M]है। युगपत स[M]ीकरणों का हल[M]युगपत समीकरणों के [M][M] के ल[M]ये प्राय: निम्नलिख[M]त विधि[M]ाँ[M]उपयोग में लायी जाती हैं: ग्[M]ाफीय व[M]धि (समीकरणों का ग्राफ खींचक[M][M] आ[M][M][M]क [M]िधि[M](न्युमेरिकल मेथड) इस विधि[M]में[M]दि[M]े[M]गये[M]समीकरणो[M] [M]े निका[M] में[M]स[M] को[M] एक स[M]ीकरण लेते ह[M]ं और उसक[M][M]इस [M][M]प मे[M] लिखते ह[M][M] कि क[M]ई अज्ञात राशि[M]अ[M][M]य अज्ञात राशियों क[M][M]फलन [M]े रूप में अभिव्यक्त ह[M] जाय[M] जैसे, यदि मूल स[M][M]क[M]ण है त[M][M][M]से[M]) के रूप में [M]ि[M][M][M]गे। य का यह[M]मान शे[M] सभी समीकरण[M][M][M]में रख [M]ेंगे। इस प्रका[M] हमारे पास पहले की अपेक[M]षा [M]क [M]म सम[M]कर[M] ब[M]ा और अज्ञ[M]त र[M]शि भी प[M]ले की अप[M][M][M]षा एक क[M] हो गयी। [M]ही क्[M]म तब [M]क चलाते हैं[M]जब तक[M]ह[M]े[M][M]के[M][M] एक समीकर[M] न[M]मिल जाय। इ[M]से उसमें[M][M]िहित अ[M]्ञ[M]त [M][M]शि[M]क[M] मान निकालत[M] हैं और उल्टे क्रम में (बऐक साबस्टि[M]ुशन) प्[M]त[M]स्थापन करते हुए [M]न[M][M][M]अज्ञात राशियो[M] [M]ा[M]म[M]न ज्ञात क[M] लिया जात[M] है। नी[M]े के[M]उदाहरण [M]े यह स्पष[M]ट हो [M]ाय[M]गा[M][M]इनमें [M]बसे[M]पहले को हटा[M]े क[M][M]क[M][M]िश [M]रते ह[M]ं- अ[M] दू[M]रे सम[M]कर[M] से [M]्स का मान य के फलन के रूप [M]ें[M]व[M]यक्त करते हु[M]: थोड[M]ा[M]सरल करने[M]पर य का मान नि[M]ल जाता है: अब उल्टे[M]क्रम में[M]प[M]ल[M] [M]्स [M]र[M]फ[M]र ज़ का मान निकालत[M][M]हैं-
भगवतपुर तिआय ३ भगवानपुर, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। बेगूसराय जिला के गाँव
[M]गव[M]पु[M] तिआय ३ भगवान[M][M]र, बेगू[M][M]ाय, बिहार [M]्[M]ित एक ग[M]ँव है। बे[M]ूसराय [M]िल[M] क[M] गाँ[M]
१९१६ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। १५ जुलाई - हवाईजहाज कंपनी बोइंग की स्थापना हुई। १९ जुलाई- प्रथम विश्व युद्ध फ्रोमेल्स के युद्ध में ब्रिटिश और आस्ट्रेलियाई सेना ने जर्मन सेना पर हमला किया। १ अगस्त - महिला अधिकारों की समर्थक तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने होम रूल लीग की शुरुआत की। २८ अगस्त- प्रथम विश्वेयुद्ध में इटली ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की १६ नवंबर- सोवियत संघ के ला सेतेन्नाया में बारूद के एक कारखाने में हुए भयंकर विस्फोट में १,००० लोगों की मौत। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ अर्मेनियाई नरसंहार (१९१५ - १९२३) असिरियाई नरसंहार (१९१४ -१९२२) ग्रीक नरसंहार (१९१४ - १९२३) ४ जुलाई - नसीम बानो, हिन्दी चलचित्र अभिनेत्री २३ जुलाई- हेल सलासी-१, इथोपियाई सम्राट। १६ सितंबर- एम.एस.सुब्बालक्ष्मी, प्रसिद्ध भारतीय गायिका और अभिनेत्री २२ नवंबर- शांति घोष, वरिष्ठ भारतीय स्वतंत्रता सेनानी == जुलाई-सितंबर । के का शास्त्री २९ जुलाई
१९[M]६ ग[M]रेगो[M]ी कैलंडर [M]ा [M]क अधिवर्ष [M]ै। १५ जुलाई - हवाईजहा[M] क[M]पनी बो[M][M][M] की स्थापना हुई। १९ जु[M][M]ई- प्रथम विश्व युद्ध फ्रो[M][M]ल्स[M]के युद्ध में ब[M]रिटि[M] और [M]स्ट[M]रेलियाई[M]सेना न[M] जर्मन [M]ेना [M]र[M]हमला [M]िया। १[M]अग[M]्[M] [M] [M]हिला अधिका[M]ों क[M] समर्थक तथा भारतीय [M][M]ष्ट्रीय[M]कांग्[M]ेस क[M] पू[M]्व अध्[M][M]्[M] एनी बेसेंट न[M][M]होम रूल [M]ीग की शुर[M]आत क[M]। २८ अग[M]्त- प्रथम विश्वेयुद्ध [M]ें इटली ने ज[M]्मनी के खिलाफ युद्[M] की घोषणा की १६ नवंबर- सोवियत[M]स[M]घ के ल[M][M]सेतेन्नाया में[M]बारूद के एक कारख[M]ने [M]ें ह[M]ए भयं[M]र व[M]स्फ[M]ट[M]में १,००० लोग[M][M] की मौत[M][M]अज्ञात ता[M][M]ख़ की घ[M]ना[M]ँ अ[M][M]मेनियाई नरसंहार (१[M]१५ - १९२३)[M][M]सिरियाई [M]रसं[M]ार (१९१४ -१९२२) ग्रीक नरसंहार ([M]९१४[M]- [M][M]२३) ४ जुला[M] - नसीम[M][M]ानो, हिन[M]दी [M]लचि[M]्र अभि[M]ेत्री[M]२३ जुलाई-[M]हेल [M]लासी-१[M] इथोपियाई सम्राट। [M]६ सि[M]ंब[M][M][M]एम.[M]स.सुब्बाल[M]्[M]्[M]ी, प्रसिद्ध भ[M]रतीय गायिका और अभि[M]ेत्री २२ नवंबर- शांति[M]घोष, वरि[M]्ठ भारत[M]य[M]स्वतंत[M]रता सेनान[M] == ज[M]ल[M]ई-सितंबर । क[M] का शास्त्[M]ी[M]२९[M]ज[M][M]ाई
थेवा १७वीं शताब्दी में मुग़ल काल में राजस्थान के राजघरानों के संरक्षण में पनपी एक बेजो़ड हस्तकला है। थेवा की हस्तकला कला स्त्रियों के लिए सोने मीनाकारी और पारदर्शी कांच के मेल से निर्मित आभूषण के निर्माण से सम्बद्ध है। इसके इने गिने शिल्पी-परिवार राजस्थान के केवल प्रतापगढ़ जिले में ही रहते हैं। थेवा-आभूषणों के निर्माण में विभिन्न रंगों के शीशों (कांच) को चांदी के महीन तारों से बने फ्रेम में डाल कर उस पर सोने की बारीक कलाकृतियां उकेरी जाती है, जिन्हें कुशल और दक्ष हाथ छोटे-छोटे औजारों की मदद से बनाते हैं। यह आभूषण-निर्माण कला अपनी मौलिकता और कलात्मकता के कारण विश्व की उन इनी गिनी हस्तकलाओं में से एक है - जो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार और विपणन के अभाव में जल्दी विलुप्त हो सकती हैं| नाम का अभिप्राय "थेवा" नाम की उत्पत्ति इस कला के निर्माण की दो मुख्य प्रक्रियाओं 'थारना' और 'वाड़ा' से मिल कर हुई है। इस कला में पहले कांच पर सोने की बहुत पतली वर्क या शीट लगाकर उस पर बारीक जाली बनाई जाती है, जिसे थारणा कहा जाता है। दूसरे चरण में कांच को कसने के लिए चांदी के बारीक तार से फ्रेम बनाया जाता है, जिसे "वाडा" कहा जाता है। तत्पश्चात इसे तेज आग में तपाया जाता है। फलस्वरूप शीशे पर सोने की कलाकृति और खूबसूरत डिजाइन उभर कर एक नायाब और लाजवाब कृति का आभूषण बन जाती है। काँच पर कंचन का करिश्मा कहे जाने वाली यह शिल्प काँच पर सुनहरी पेंटिंग की तरह है, जो चित्रकारी की नींव पर जन्म लेती है। इस शिल्प की रचना जटिल, कठिन तथा श्रमसाध्य तो है ही, परन्तु सोने पर चित्रांकित शिल्प को काँच में समाहित कर देने का कमाल इन मुट्ठी भर कारीगरों के ही बस की बात है। शिल्प चित्रण को २३ केरेट सोने के पत्तर पर टांकल नामक एक विशेष कलम से उकेरा जाता है और कुशलतापूर्वक बहुरंगी कांच पर मढ़़ दिया जाता है। जब दोनों पदार्थ सोना और काँच परस्पर जुड़ कर एकमेक एक जीव हो जाते हैं तो सोने में काँच और काँच में सोना दिखलाई पड़ता है। इसी को थेवा कला कहते हैं। काँच की झगमग को और अधिक प्रभावशाली तथा उम्दा बनाये रखने के लिए इसे एक खास प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिससे कि काँच में समाहित सोने का कार्य उभार देने लगे और देखने वाले के मन को छू ले। इस प्रकार शिल्प का प्रत्येक नमूना पारदर्शी काँच का हो जाता है और उस पर माणिक, पन्ना तथा नीलम जैसी प्रभा दिखलाई पड़ती है। इस कला को उकेरने में बेल्जियम से विशेष प्रकार के काँच इस्तेमाल होते थे, पर ऐसे काँचों की अनुपलब्धता से अब अलग उम्दा काँच का इस्तेमाल होता हैं। प्रारम्भ में थेवा का काम लाल, नीले और हरे रंगों के मूल्यवान पत्थरों हीरा, पन्ना आदि पर ही होता था, लेकिन अब यह काम पीले, गुलाबी और काले रंग के कांच के रत्नों पर भी होने लगा है। पहले इस कला से बनाए जाने वाले बाक्स, प्लेट्स, डिश आदि पर धार्मिक अनुकृतियाँ और लोकप्रिय लोककथाएं उकेरी जाती थीं, लेकिन अब यह कला आभूषण के साथ-साथ पेंडेंट्स, इयर-रिंग, टाई और साडियों की पिन, कफलिंक्स, फोटोफ्रेम आदि में भी प्रचलित हो चली है। इस कला को कई निजी उपक्रमों द्वारा आधुनिक फैशन की विविध डिजाइनों में ढालकर लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस कला को जानने वाले देश में अब गिने चुने परिवार ही बचे हैं। ये परिवार राजस्थान के नवगठित प्रतापगढ़ जिले में रहने वाले राजसोनी घराने के हैं, जिन्हें इस अनूठी कला के लिए कई अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं। एन्साइकलोपीडिया ब्रिटेनिका के "पी" उपखंड में प्रतापगढ़ की इस विशिष्ट आभूषण परंपरा का उल्लेख किया गया है। राजस्थान की इस बेजोड़ आभूषण परंपरा के सरकारी संरक्षण के प्रयास आज भी अपर्याप्त हैं | हालांकि भारत सरकार द्वारा, थेवा कला की प्रतिनिधि-संस्था राजस्थान थेवा कला संस्थान प्रतापगढ़ को इस अनूठी कला के संरक्षण में विशेषीेकरण के लिए वस्तुओं का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण तथा संरक्षण) अधिनियम, १९९९ के तहत् ज्योग्राफिकल इंडिकेशन संख्या का प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया है। उल्लेखनीय है कि ज्योग्राफिकल इंडीकेशन किसी उत्पाद को उसकी स्थान विशेष में उत्पत्ति एवं प्रचलन के साथ विशेष भौगोलिक गुणवत्ता एवं पहचान के लिए दिया जाता है। थेवा कला के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित और थेवा कला संस्थान के एक हस्तशिल्पी सदस्य महेश राज सोनी को विश्वास है कि अब भौगोलिक उपदर्शन संख्या मिलने के बाद यह कला अपनी भौगोलिक पहचान को अच्छी तरह से कायम रखने में कामयाब हो पायेगी। इस शिल्प कला पर नवम्बर २००२ में पांच रुपये का डाक टिकिट भी जारी हुआ है। राज सोनी परिवार नाथू जी सोनी के परिवार को सुमंत/सामंत सिंह (प्रतापगढ़) ने "राज सोनी" परिवार की उपाधि प्रदान की। एन्साइकलोपीडिया ब्रिटेनिका का "पी" खंड राजस्थान की कलाएँ
थे[M][M][M]१७वीं [M]ताब्दी[M]में[M]मुग़ल काल म[M]ं र[M]जस्थ[M][M] के राजघरानों के स[M][M]क्षण[M]में [M]नपी एक बे[M][M][M]ड [M]स्तकला है। थेवा [M]ी हस्[M]क[M]ा[M]कला स्[M][M]रियों[M]के लिए[M]सोन[M] मीन[M]क[M]री और पारदर्शी कां[M][M]के मेल से निर्म[M][M] आभूषण के निर[M]माण से सम्ब[M]्ध है[M][M]इसके [M]ने गिन[M] शिल्[M]ी-परिवा[M] [M]ाजस्थान के केवल प्रतापग[M]़ जि[M]े [M][M]ं[M][M]ी रहते है[M]। थ[M]वा-आभूषण[M]ं के न[M][M]्माण में व[M][M]िन्न रंग[M]ं के शीशों (कांच[M] [M]ो चा[M]दी के म[M]ीन तार[M]ं से[M]बने फ्रेम मे[M] डाल कर [M]स पर[M]सोने की बारीक[M]कला[M]ृतिय[M][M] उकेरी जा[M]ी ह[M],[M]ज[M]न्[M][M]ं कुशल और [M]क्ष हा[M] छोटे-छोटे औ[M]ारों की मदद से ब[M][M]ते [M]ैं। यह आ[M]ूष[M][M]नि[M]्माण कला[M]अपनी [M][M]लिकता और क[M]ात्[M]कता के[M][M][M]रण विश्व[M]क[M] उन इनी[M]गिनी हस्त[M]लाओ[M] में[M]से एक [M]ै - जो अंतर्राष्ट्रीय ब[M]ज़ा[M] और विपणन [M]े अभाव में जल्दी विलुप[M][M][M][M]ो सकती [M]ैं| नाम का अ[M]िप्राय "थेवा" नाम की उत्पत्ति इस[M]कला के नि[M][M]म[M]ण की द[M] म[M]ख्[M] प[M]रक[M]र[M]याओं 'थारना[M] और 'वा[M]़ा' स[M] म[M][M][M]कर हुई [M]ै।[M]इस कला[M]मे[M] पहले का[M]च पर सोने क[M] बहुत पतली वर्क[M]या शी[M] लग[M]कर उस पर ब[M]रीक जा[M]ी बनाई जाती है, ज[M]स[M][M][M]ा[M]णा कहा जाता है। दूसरे चरण[M]में क[M]ंच [M]ो [M]सने[M]के लि[M] चांदी के बारीक ता[M] से फ्रेम [M][M]ाया[M]जात[M][M]है, जिसे [M]वाडा[M][M][M]हा ज[M]ता है। तत[M][M]श[M]चात इस[M] तेज [M]ग[M]में त[M]ाया जात[M] है[M] फ[M]स्वरूप [M]ीश[M] पर सोन[M] की कलाकृति [M]र [M]ूबस[M]रत डिजाइन उ[M]र कर एक न[M]या[M] और लाजवा[M] कृति [M]ा [M]भूषण बन जाती है।[M]काँच पर कं[M]न का करिश्[M]ा क[M]े जाने वाली यह [M]िल[M][M] काँच[M]प[M] सु[M][M]री पेंटि[M]ग[M]की तर[M] [M][M], जो चित्रकारी की[M]नी[M]व पर[M]जन[M]म लेती है।[M]इस शिल्प की रचना[M]जटिल, कठिन त[M]ा श्रमसाध्य त[M] है ह[M], परन[M]तु [M]ोने[M]पर[M]चित्रां[M]ित [M]ि[M]्प क[M] काँच [M]ें[M]समाहित कर देने का कमा[M] इन मुट्ठी भर कार[M][M]रों के ह[M] ब[M] की बात [M]ै। श[M]ल्प चित्र[M] [M]ो २३[M][M]ेरेट सोने [M]े[M]पत्त[M] [M]र टा[M]कल नामक एक वि[M]ेष कलम से उक[M]रा जाता[M]है और कुशलत[M]पूर्[M]क ब[M]ुरंगी कां[M] पर मढ़़ दिया[M][M][M]त[M] है। जब दो[M]ों[M]पदार्[M][M]सोना और काँच [M]र[M]्[M][M] [M]ुड़[M]कर एकमेक एक[M]जीव[M][M]ो जा[M]े ह[M]ं तो सोने मे[M] काँच[M]औ[M] काँच में सोना[M][M]िखलाई प[M]़[M]ा[M]ह[M]। [M][M][M][M]को थेव[M] [M]ल[M] क[M]ते हैं। काँच [M]ी झग[M]ग को [M]र अधिक प्[M]भा[M]शाली तथ[M] उम्[M]ा बनाये रखने के[M]लि[M][M]इसे एक खास प्र[M]्रिया[M]से ग[M]जर[M]ा प[M]़ता है जिससे[M]कि क[M]ँच में समाहित सोने [M]ा क[M][M]्य उ[M]ार दे[M]े लगे और देख[M]े वाले क[M] [M]न को [M]ू ले। इस प्रकार शिल्प का प्रत्येक न[M]ू[M]ा पारद[M]्शी काँच [M]ा [M]ो जाता है और उस[M]पर माणि[M], पन[M]ना[M]तथा[M]नील[M][M]जैसी [M]्रभा दिख[M]ाई प[M]़ती है।[M]इस [M]ला[M]क[M] उकेर[M]े मे[M] बेल्[M]ियम से विशेष प्रका[M] के[M]काँच इस्तेमाल होते थे, पर ऐसे क[M]ँचों [M]ी अनुपलब्ध[M]ा से[M]अब अलग उम्दा [M]ाँ[M] का[M]इस्तेमाल होता हैं। प्र[M]र[M]्भ मे[M] थेवा का क[M]म ल[M][M], नीले और हर[M] रं[M]ों क[M] मूल्यवा[M][M]पत्[M]रों [M]ी[M]ा, पन्न[M][M]आदि पर ही हो[M]ा[M]था[M] लेक[M][M] अब[M]यह क[M]म[M]पीले, [M][M]लाबी औ[M] काल[M] रंग के क[M]ंच क[M] रत्नों [M][M] भी होने लगा[M]है। पह[M]े [M]स कला से[M]बनाए जा[M]े वाले[M]बाक्स, प्ल[M]ट्स,[M][M]िश आदि [M]र धार्मि[M] अनुकृतियाँ और लोक[M]्र[M]य लोककथाएं उकेर[M] जाती [M]ी[M][M] लेकि[M][M]अ[M] [M]ह कला [M][M]ू[M]ण के[M]साथ-स[M]थ पेंडें[M]्स, इयर[M]रि[M]ग, टाई [M]र सा[M]िय[M][M] [M]ी [M]िन, क[M]लि[M]क्स,[M]फोटोफ[M]रेम आदि में भी[M]प्रच[M]ि[M][M]हो च[M]ी है। इस कला को कई[M]निजी[M]उ[M]क्रमों द्वारा [M]धुनि[M] फैशन की विविध डि[M]ाइनों में ढालकर लोकप्रिय[M]बनाने के प[M]र[M]ास कि[M] [M]ा रहे[M]हैं। इ[M] [M][M]ा को जानने [M]ाले देश में [M][M] गिने चुने पर[M]वार ही[M]बचे [M]ैं। [M]े परिवार राजस्था[M] के नव[M]ठ[M]त[M]प[M][M]ता[M]गढ[M] जिले में रहने वाले[M]र[M]ज[M][M]नी घ[M]ान[M][M]के हैं, [M]िन्हें इस अनूठी कला के [M]िए कई अंतरराष[M]ट्र[M]य,[M][M]ाष्ट्[M]ीय[M]और[M]रा[M]्[M]स्[M]रीय पुरस्[M]ार [M]िल चुके हैं। एन[M]साइकलोपी[M]िया ब्[M]िटेनिका के "पी" [M]पखं[M][M]में प्र[M][M]पग[M]़ की[M]इस[M]विशिष[M]ट आभू[M]ण परंपरा[M]क[M] उल[M]लेख किया [M]या है।[M]राजस्थ[M]न[M]की [M]स बेजोड़[M]आभूषण परंपरा के[M][M]रकारी [M]ं[M]क्[M]ण के प्रय[M]स आज भी[M]अपर्[M]ाप्त हैं[M]| ह[M]लांकि[M]भा[M]त सरका[M] द्वा[M]ा, थे[M][M] कला की प्रत[M]निधि-[M]ं[M]्था [M]ा[M]स्था[M] थेवा कला संस्थ[M]न प्रतापगढ़[M]को इस[M]अनूठी क[M]ा[M]के संर[M]्षण में विशेष[M]ेकर[M] के लिए [M]स्[M]ुओं का भौगोलि[M] उपद[M]्शन (र[M]ि[M][M]ट्री[M]रण तथा सं[M]क्[M]ण[M][M]अधिनियम, १९[M][M][M]के तहत् ज्[M]ोग्राफिकल[M]इंडि[M]ेशन सं[M]्या का प्रमा[M]-[M]त्र प्रदान किया गया [M]ै। उल्[M]ेखनीय है कि ज्योग[M]रा[M]िकल[M]इंडीकेशन[M]किसी उ[M]्प[M]द को उसकी स्[M]ान विश[M]ष म[M]ं उत्पत्[M]ि एवं[M][M]्रचलन क[M] साथ व[M]शेष भौगोलिक[M][M]ुणवत्त[M] ए[M]ं प[M]चान के लिए[M]दिया ज[M]ता है। थे[M]ा [M]ला के ल[M]ए राष[M]ट्रपति पुरस[M][M]ार से स[M][M]मान[M]त[M][M]र थेवा[M][M]ला सं[M][M][M]ान[M]क[M][M]एक हस्त[M][M]ल्पी सद[M]्य महेश राज सोनी[M]को विश्वास है [M]ि अब भौगो[M]िक उपदर्[M]न संख्य[M] मिल[M]े क[M] [M][M]द य[M] कला[M]अपनी भ[M]गोलिक पहचान क[M] अच्[M]ी तरह स[M] कायम र[M][M]े[M]में[M]कामया[M] हो पाये[M]ी। इस [M][M][M]्[M] क[M]ा पर नवम्बर २००२[M]में पांच [M][M]पये[M]का [M]ाक टिकिट भी जारी[M]हुआ है।[M]रा[M] सोनी [M]रिवार नाथू जी सोनी के परि[M][M]र[M]को स[M]म[M]त/सामंत सिंह (प[M]रतापग[M][M])[M]ने[M]"राज सो[M]ी" परिवार की उपाधि प्रदान क[M][M] [M]न्साइकलोपीडि[M][M] ब्रिट[M]निका क[M] "[M]ी" खंड र[M]जस्[M][M]न की [M]ल[M]एँ
रुआन डी स्वार्ड्ट (जन्म २१ जनवरी १९९८) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर है। उन्होंने ४ मार्च २०१८ को २०१७-१८ सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज में उत्तरी के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। सितंबर २०१८ में, उन्हें २०१८ अफ्रीका टी २० कप के लिए उत्तरी 'दस्ते' में नामित किया गया था। उन्होंने १ नवंबर २०१८ को २०१८-१9 सीएसए ३-दिवसीय प्रांतीय कप में उत्तरी के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उन्होंने १३ सितंबर २०१9 को २०१9-२० सीएसए प्रांतीय टी २० कप में उत्तरी के लिए अपना ट्वेंटी २० डेब्यू किया। वह २०१९२० सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज में अग्रणी रन-स्कोरर थे, जिसमें सात मैचों में ४२६ रन थे। जुलाई २०२० में, डी स्वार्ड को सीएसए स्टूडेंट क्रिकेटर ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया गया था।
रुआन डी स[M]वार्ड्[M] [M]जन[M][M] २१ [M]न[M]री[M]१९९८[M] ए[M] [M]क्षिण अफ्रीकी[M]क्रिके[M]र है। उन्हों[M]े ४ [M]ार्[M][M][M]०१८ को[M]२०[M][M][M][M]८ स[M]एसए प[M]र[M]ंतीय वन-ड[M] चैलें[M] [M]ें उत[M]तरी क[M] लिए[M][M]पनी [M][M]स्ट ए क[M] शुरुआत की। सितंबर २०१[M] में, [M]न्हें २०१८ अफ्रीका टी[M][M]० कप के लिए उत्तरी 'द[M]्त[M]' में [M]ामित किया गया था।[M]उन्[M]ोंने १[M]नवं[M]र २०१८ को २०१८[M]१9 सीएसए[M]३-[M]िवसी[M] प्रां[M]ी[M] क[M] म[M]ं[M]उत[M][M]री [M][M] लिए[M]प[M]रथम[M]श्रेणी में पदा[M]्पण कि[M]ा[M] [M]न्होंने १३ सि[M]ं[M]र[M]२[M]१[M][M]को २०१[M]-२०[M]सी[M]सए प्[M]ांती[M] ट[M] २० कप [M]े[M] उत्तर[M] [M]े लिए अपना ट्व[M]ंट[M] २० डेब्यू[M]किया।[M]वह २०१९२० सीएसए प्रां[M]ीय वन-डे च[M]लेंज[M]म[M]ं अग्र[M]ी रन-स्कोर[M] थे, जिस[M]ें सात मैचों में[M][M]२६ रन[M]थ[M]। जुल[M]ई २०२० में, डी [M][M]वार[M]ड को सी[M]सए स्टू[M][M]ंट [M][M]रिक[M]टर ऑ[M] द ईयर[M]के[M][M]ूप मे[M][M]नामित किया [M]य[M] थ[M]।
मधेपुरा जिला, बिहार में स्थित एक प्रशासनिक ईकाई। आलमनगर से कई प्रसिद्ध समाज सेवक, जैसे श्री काली सिंह। बिहार के प्रखण्ड
मध[M]पुरा[M]जिला, [M][M]हार में [M]्थित [M]क[M][M][M]रश[M]सनिक ईकाई। आल[M]न[M]र से [M][M] [M]्रस[M]द्ध समाज [M]ेवक, जै[M]े श्री काली[M]सिं[M]। बिहार के प्रख[M]्ड
पटना गरीब रथ एक्स्प्रेस २३५३ (ट्रेन सं.: २३५३) भारतीय रेल द्वारा संचालित एक गरीब रथ रेल है। यह राजेंद्र नगर बिहार रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: र्जप्ब) से ०६:४५प्म बजे छूटती है व ह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: न्ज़्म) पर ०८:४०आम बजे पहुंचती है। यह गाड़ी सप्ताह में सोमवार, गुरुवार, शनिवार को चलती है। इसकी यात्रा की अवधि है १३ घंटे ५५ मिनट।
पट[M][M] गरीब रथ ए[M][M]स्[M]्रे[M] २३[M]३ (ट्रेन[M][M]ं.: २३५३) भारतीय र[M]ल द्वारा संचालित एक गरीब रथ [M]ेल ह[M]।[M][M]ह[M]राज[M]ंद्र न[M]र बिहार रेलवे स्टेशन (स्टेश[M] [M]ोड: र्[M]प्[M]) से ०६:४५प्म[M][M]जे छूटती है व[M]ह निजा[M][M]द्द[M]न र[M]ल[M]े स्टेशन[M]([M]्[M]ेशन कोड: न्ज़्म) पर [M]८[M]४०आम बजे पहुं[M]ती है[M] यह गाड़ी सप्ताह[M]में सोमवा[M][M][M]गुरु[M]ार, शनिवार को[M]चलती है। इ[M]क[M][M]यात्[M]ा[M]की अवधि है १३ घंटे ५५ [M][M]नट।
सिमतोली-खात०३, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सिमतोली-खात०३, पौडी तहसील सिमतोली-खात०३, पौडी तहसील
सिमतोली-[M]ात०३,[M]पौडी त[M]स[M]ल[M]में भा[M]त के[M]उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ[M]वाल[M]मण्ड[M] के प[M]ड़ी[M]जि[M]े का[M][M][M] [M]ाँव ह[M]। इन्हे[M] भी देखें [M][M][M]तराखण्ड के जिले[M]उत्तराखण्[M] [M]े न[M]र उत्तराखण्ड - भ[M][M]त सरकार के आधिक[M]रिक पोर[M][M]ल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिक[M]रिक जा[M]पृष्[M] उत्तरा[M]ण[M]ड (उत[M]त[M]ाखण्ड [M]े बार[M] में विस्तृ[M] एवं [M]्रा[M]ाण[M]क जा[M]कारी) उ[M][M]तरा कृषि [M]्रभा स[M]मतोली-खात०३, [M]ौडी [M][M]सील[M]सिमतोली[M]खात०३[M] पौडी तहसील
अरबी भाषा में नबी पैग़म्बर का नाम है हज़रत ज़करिया के पुत्र थे । इस्लाम धर्म की महत्वपूर्ण पुस्तकक़िसासुल अंबियाऔर ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार "हज़रत यहया का ज़िक्र उन्हीं आयतों में आया है जिन में पिता हज़रत ज़करिया का आया है। क़ुरआन में वर्णन ऐ यहया किताब (तौरेत) मज़बूती के साथ लो और हमने उन्हें बचपन ही में अपनी बारगाह से नुबूवत और रहमदिली और पाक़ीज़गी अता फरमाई और वह (ख़ुद भी) परहेज़गार और अपने माँ बाप के हक़ में सआदतमन्द थे और सरकश नाफरमान न थे और (हमारी तरफ से) उन पर (बराबर) सलाम है जिस दिन पैदा हुए और जिस दिन मरेंगे और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा खड़े किए जाएँगे । (क़ुरआन १९:१२-१५) इन्हें भी देखें इस्लाम के पैग़म्बर इस्लाम के पैग़म्बर
अरबी [M]ाषा[M]में नबी पैग़[M]्ब[M] का नाम[M]है हज़[M]त ज़[M]रिया[M]क[M] पुत्र थे । इ[M][M]लाम धर्म की[M][M]ह[M][M]वप[M]र्ण प[M]स्त[M]क[M]िसा[M]ु[M] अंबियाऔ[M] [M]तिहासिक पु[M]्तकों के अनुसार "हज़रत यहया का ज़िक्र उन्हीं[M][M]यतों मे[M] आ[M]ा है जिन [M]ें[M][M]िता हज़र[M] ज़[M]रिया का आया[M]है। क़ुरआन [M]ें वर्णन ऐ [M]ह[M]ा क[M][M]ाब (तौरेत[M] [M][M]़बूती के साथ लो और[M]हमने उन्हें [M]चपन ही [M]ें अप[M]ी [M]ारगा[M][M]स[M] न[M]बूवत और रहमदिली[M]और पाक[M]ीज़गी [M][M]ा फरमाई और वह (ख़ुद [M]ी) [M]रह[M][M]़गा[M] और अपने [M][M][M][M]बाप क[M] हक[M] में सआदत[M]न्द थे और सरकश नाफरमान न थ[M] और (हमा[M]ी तरफ [M]े)[M]उन पर (बर[M][M]र) [M]लाम है जि[M] द[M]न पैदा हुए और जिस[M]दिन मरेंग[M] [M]र[M]जिस दिन (दोबारा) ज़िन्द[M] [M]ठा [M][M]़े किए जाएँगे । (क़ु[M]आन १९:१२-१५[M] इन्ह[M]ं [M]ी[M][M][M]खें इस्ल[M]म के पैग़म्बर इ[M][M]ल[M]म के पै[M]़म्बर
गौर एक्स्प्रेस एक्स्प्रेस ३१५३ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन सियाल्दा रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:स्दाह) से १०:१५प्म बजे छूटती है और मालदा टाउन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:म्ल्डट) पर ०६:१५आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ८ घंटे ० मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
गौर[M]एक्स्प्र[M]स ए[M]्[M]्प्रे[M] ३१[M]३ भारतीय रे[M] द[M]व[M]रा संचालित [M]क मेल एक्स्प्र[M][M] ट्र[M]न [M]ै। यह ट्रेन[M][M]ियाल्दा रे[M]वे[M]स्टेशन (स्टेशन [M][M]ड:स्द[M]ह) [M]े[M]१०:१५[M]्म बजे छू[M]ती है और[M]माल[M]ा टाउन र[M]लवे स्ट[M]शन[M][M]स्टेशन क[M]ड:म्ल्डट) पर ०[M][M]१५[M]म[M]बजे [M]हुंचत[M] है। इस[M]ी यात्र[M][M]अवधि है[M]८ घंटे[M]० मिनट।[M]म[M][M][M]एक्स्प्रे[M] ट[M]रेन
तल्ली पाली न.ज़.आ., कालाढूगी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा न.ज़.आ., तल्ली पाली, कालाढूगी तहसील न.ज़.आ., तल्ली पाली, कालाढूगी तहसील
तल्ली पाली न.[M]़.आ[M], कालाढूगी त[M]सील में भारत क[M] उत्तर[M][M][M]्ड र[M]ज्य [M]े[M]अन[M]तर्गत कुमाऊँ मण[M]डल के न[M]नीताल जिले क[M] [M]क[M]गाँव है। इन्हें भी देखे[M] [M]त्त[M]ाखण्ड के जिल[M] उत्तराखण[M]ड के नगर उत्तराखण्[M] - भारत सरकार [M]े आधिकारिक प[M]र्ट[M] [M]र [M]त्तरा[M]ण्ड [M]रक[M]र[M]का आधिक[M]र[M]क [M]ालपृष[M]ठ उ[M]्[M]र[M][M]ण[M][M] [M]उत्त[M]ाखण्ड[M]के बारे में वि[M]्तृत एवं प्[M]ामाणिक जानकारी) [M]त्तरा कृषि प्र[M]ा न.ज़.आ[M], तल्ली पाली, कालाढू[M]ी तहसील न.ज़.आ., [M]ल्ली पाल[M], कालाढूगी तह[M]ील
रामा बीघा गुरुआ, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव भारत के गाँव आधार
राम[M] [M]ीघा गुरुआ, गय[M], ब[M]हार स्थित एक गाँव है[M] गया [M]िल[M] के गाँव भार[M] के गाँव आधार
मुहीउद्दीननगर अमृतपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
मुहीउद्दी[M]नगर अम[M]तपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर[M]प्रदे[M] स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
पहाड़ गढ़ी अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
पहाड़[M]गढ़ी[M]अतरौली[M] अलीगढ़[M][M]उत्तर प्रदेश स्थित ए[M] गाँव है।[M]अल[M]गढ़ जिला के ग[M][M]व
लक्कारम (लक्करम) भारत के तेलंगाना राज्य के यदाद्री भुवनगरी ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें यदाद्री भुवनगरी ज़िला तेलंगाना के गाँव यदाद्री भुवनगरी ज़िला यदाद्री भुवनगरी ज़िले के गाँव
लक[M]कारम (ल[M]्करम) भारत[M]के ते[M][M]ग[M]ना र[M]ज्[M] [M]े[M][M]दाद्री भु[M]नगरी [M]़िले [M][M]ं स्थित एक गाँव है। इ[M]्हे[M] भी देखें यद[M][M]्र[M] भ[M]वनगरी ज़िला [M]ेलंगाना के ग[M]ँव[M]यदाद्री भुवनगरी ज़िल[M] यदा[M]्री भुवन[M]री ज़िले [M]े गाँव
चाकिसैंण तहसील भारत के उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक तहसील (प्रशासनिक प्रभाग) है। चाकिसैंण तहसील को २०१३ में थलीसैंण से अलग कर बनाया गया था और इसमें ११५ गांव हैं। तहसील मुख्य रूप से ग्रामीण है और इस क्षेत्र में मुख्य आर्थिक गतिविधियों में कृषि, वानिकी और पर्यटन शामिल हैं। इसमें कई स्कूल और एक अटल उत्कृष्ट विद्यालय है। पौड़ी के राठ क्षेत्र में स्थित, यह श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है और आर्थिक अवसरों की कमी के कारण लोगों के प्रवासन से नकारात्मक रूप से प्रभावित है। पौड़ी गढ़वाल ज़िला पौड़ी गढ़वाल ज़िले के नगर
चाकिसैं[M] तहसील भ[M]रत[M]के [M]त्तराखंड [M]े प[M]ड़[M][M]गढ़[M]ा[M] जिल[M] में [M]क तहसील ([M][M]र[M]ासन[M]क प्रभाग) है। च[M]किसैंण त[M]सील को २०१३ में थलीसैंण[M]स[M] अल[M] [M]र बना[M]ा[M]गया[M]था और इस[M][M]ं[M]११५ गांव [M]ैं। तहसील मु[M]्य रूप[M][M]े ग्रामीण[M]है[M]और इस क्षेत्[M] मे[M] मुख्य[M]आर्थिक [M]ति[M]ि[M]ि[M]ों[M]में[M]कृषि, वान[M]की और पर्य[M]न शामिल[M]हैं। इस[M][M]ं कई [M]्कू[M] [M]र एक[M][M]टल [M]त्कृष्ट विद[M]य[M]लय है। प[M]ड[M]ी[M]के राठ[M]क[M]षेत्र[M]में स्थित, य[M][M]श्रीनग[M] [M]िधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है औ[M] आर्[M]िक अवसरों की[M]कमी के [M]ारण लोगों के [M]्रवासन[M]से न[M]ारात्[M][M] रूप से प्रभावित है। पौड़ी गढ़वाल[M]ज़[M]ला[M]पौड़ी [M]ढ़[M]ाल ज़[M]ले के नगर
उपचारात्मक देखभाल या उपचारात्मक दवा चिकित्सा स्थितियों के लिए दी जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल है जिसमें एक इलाज को प्राप्त करने योग्य या संभव माना जाता है, और उसे खत्म करने के उद्देश्य से निर्देशित किया जाता है। उपचारात्मक देखभाल रोगनिरोधन से अलग होती है, क्योंकि उद्देश्य औषधि और टीकाकरण, व्यायाम, उचित खाने की आदतें और अन्य जीवन शैली के मुद्दों के माध्यम से बीमारियों की उपस्थिति को रोकना होता है, और उपशामक देखभाल, जो दर्द जैसे लक्षणों की गंभीरता को कम करने पर केंद्रित है, से किया जाता है।
उपचारात[M][M]क द[M][M]भाल या[M]उपचा[M]ात[M]मक दवा चिकित्सा स्थितियो[M] के [M]िए दी ज[M]ने वा[M]ी स्वास[M]थ्य देख[M]ाल है ज[M]समें एक इलाज [M]ो [M]्रा[M]्[M] क[M]ने [M]ोग्य[M]या संभव म[M]ना जाता है, और उसे ख[M]्म[M]कर[M]े क[M] उ[M][M]द[M]श्य[M]से[M]निर्देश[M][M] किया [M]ाता[M]है। उप[M]ा[M]ात्[M]क देखभाल[M]रोगनिर[M]धन से[M]अलग होती है, क्य[M][M]कि उ[M]्[M]ेश्[M] औषधि और टीक[M]करण, व्यायाम, [M]चित खा[M]े की आदतें और अन्य जीव[M][M]शै[M]ी के मुद्दों के [M]ाध्यम स[M][M]बीमारियो[M] की उ[M]स्थिति को रो[M]ना होता है, और [M]पशामक देख[M][M]ल, जो द[M]्द जैसे लक्ष[M]ों की गंभीरता[M][M]ो[M]कम करने पर [M]ेंद्[M]ित[M]है, [M][M] किया जाता है।
अलेक्सान्द्र कबकोव (रूसी: , ) - रूसी लेखक और पत्रकार हैं। उनका जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान १९४३ में नोवोसिबीर्स्क में हुआ, जहाँ सरकार ने उनकी माँ को युद्ध से बचाकर प्रसूति के लिए भेज दिया था। कबाकोव ने उक्राइना के द्नेप्रोपेत्रोव्स्क विश्वविद्यालय की मैकेनिकल-मैथमैटिक्स फ़ैकल्टी से एम.एससी. किया। उसके बाद वे इंजीनियर रहे और फिर पत्रकारिता करने लगे। उन्होंने समाचार पत्र 'गुदोक' (भोंपू), साप्ताहिक पत्र 'मास्को न्यूज़' और पत्रिका 'नए गवाह' में काम किया। आजकल वे 'कोमेरसान्त' (व्यवसायी) नामक प्रकाशन गृह में काम करते हैं। अब तक वे समीक्षक, विशेष संवाददाता और सहायक संवाददाता के पद पर रह चुके हैं। अलेक्सान्द्र कबकोव १९७५ से लिख रहे हैं लेकिन १९८९ में वे अपने एंटीयूटोपियाई उपन्यास 'अनागत' (नेवोज़्व्रशेनेत्स) से चर्चा में आए। इनकी प्रमुख रचनाओं में 'अनागत', 'किस्सागो', 'असली आदमी की मास्को और अन्य अकल्पनीय जगहों की यात्रा', 'अंतिम नायक', 'बहुरूपिया', 'एक्स्ट्रापोलेटर की यात्रा' (वैज्ञानिक पैगंबर की यात्रा), 'पलायन', 'सब ठीक कर दिया जाएगा' तथा 'मास्को की कथाएँ' आदि शामिल हैं। 'अनागत' उपन्यास का सभी यूरोपीय भाषाओं और जापानी व चीनी भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन हो चुका है। यह उपन्यास अमरीका में भी प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा 'चोट पर चोट' उपन्यास जर्मनी में तथा 'किस्सागो' उपन्यास जापान में प्रकाशित हुए हैं। अलेक्सान्द्र कबकोव के उपन्यासों के आधार पर 'अनागत' और 'दस वर्ष की सज़ा' के नाम से फ़िल्मों का निर्माण हो चुका है। इन्हें २००६ में रूस का राष्ट्रीय स्तर का 'बोलशाया क्नीगा' (बड़ी किताब) नामक प्रतिष्ठित पुरस्कार और अन्य कई साहित्यिक पुरस्कार मिल चुके हैं। कबकोव, अलेक्सान्द्र अब्रामोविच
[M]ले[M]्[M]ान्[M]्र कबक[M]व[M](रूसी:[M], ) - रूसी [M]ेखक और पत्रकार है[M]। उनका जन्म द्[M][M]ती[M][M]विश्वय[M][M]्ध[M][M]े दौरा[M][M][M]९४३ म[M]ं नोव[M]सिब[M]र्स्क में हुआ, जहाँ सरका[M] न[M] [M]नकी मा[M] को युद्ध स[M][M]ब[M]ाकर प्रसूति[M]के लिए भेज दिया[M]था। कब[M][M]ो[M] ने उक्राइना के द्नेप[M]रोप[M]त्रोव्स्क विश्व[M][M][M]्याल[M] [M]ी मैक[M]न[M]कल-मैथमै[M]ि[M]्स[M]फ़ैकल्टी से एम.एसस[M]. कि[M]ा। उसके बाद [M]े[M]इंजीन[M]यर रहे और फिर पत्र[M]ार[M]ता करने लगे। उन्होंने सम[M][M][M]र पत्र 'गुद[M][M]' (भोंपू), साप्ता[M][M][M] पत्[M] 'म[M][M][M][M]ो न्य[M][M]़' और प[M]्रि[M]ा '[M]ए[M]गवाह' में काम कि[M]ा[M] आजकल [M]े 'कोमेरसान्त' (व्यवसायी) [M]ाम[M] प्[M][M]ाश[M] गृ[M] में [M]ाम कर[M]े हैं। अब[M]तक वे समीक्ष[M], व[M]शेष स[M]वाददाता और सहायक स[M]वाददाता क[M] पद प[M] रह चुके हैं। अलेक्स[M]न्द्र कबकोव १९[M]५[M][M]े [M]िख रहे [M]ै[M] लेकि[M] १९८९ मे[M] व[M][M]अपने [M][M]टीय[M]टोपिय[M]ई उपन्या[M] 'अनागत' (न[M]वोज़्व्रश[M]न[M]त्स[M] से [M]र्चा[M]में आए। इनकी[M]प्रमुख र[M]नाओं म[M]ं[M][M]अ[M][M][M]त[M], 'किस्सा[M]ो[M], 'असल[M] आदमी [M]ी [M]ा[M]्[M][M] और अ[M]्य अकल्पनीय जग[M]ों[M]क[M] य[M]त्रा[M], 'अंतिम[M][M]ा[M]क[M], '[M]हु[M]ूपिय[M]', 'ए[M]्स्ट्रापोल[M]टर की यात्रा' (वैज[M]ञानिक पैगंबर क[M] यात्रा), 'पल[M]यन', 'सब [M]ीक [M]र द[M][M]ा ज[M]एगा'[M][M]थ[M][M]'म[M]स्को की कथ[M]एँ' आदि शा[M]िल[M]है[M][M] 'अन[M]गत' उपन्यास क[M] सभी[M][M][M]रोपीय [M]ाष[M]ओं औ[M] जापा[M]ी व च[M]नी भाषाओं म[M][M] अनुवाद[M]और प[M]रकाश[M][M][M]ो[M]चुका है[M] य[M] उ[M]न्य[M]स अमरीका म[M]ं [M]ी प्रका[M]ि[M] हुआ ह[M]। इ[M]के अलावा 'च[M]ट पर[M][M][M]ट' उपन्यास जर्म[M]ी मे[M] तथा 'किस्सागो' उपन्यास[M][M]ा[M][M]न [M]ें प्[M]काश[M]त हुए ह[M]ं। अलेक[M]सान्[M]्र [M]बकोव [M][M] उ[M]न्यासों के आधार[M]पर 'अनागत' और 'दस वर्ष की सज़ा[M] के ना[M] स[M] फ़ि[M]्मों का न[M]र्माण हो च[M][M]ा [M][M]। इन्[M]ें २००६[M][M]ें रूस का रा[M]्ट्रीय स्तर क[M][M]'बोलशाया क्न[M]गा' ([M]ड़[M] किताब) ना[M]क प्रतिष्ठित पुर[M]्क[M]र औ[M] अन[M]य कई साहि[M]्यिक [M]ुरस्क[M]र मि[M] [M]ुके हैं। क[M]कोव, [M][M]ेक्सा[M]्द्र अब[M]रामोविच
सेबुआनो विकिपीडिया विकिपीडिया का सेबुआनो भाषा का संकरण है। इस पर लेखों की कुल संख्या २५ मई, २००९ तक ३७,०००+ है। यह विकिपीडिया का सैंतालीसवां सबसे बड़ा संकरण है।
सेब[M]आनो विकिपीडिया[M]विक[M]पीडि[M]ा का सेब[M]आनो भाषा का संकरण[M][M][M]। इस प[M] ल[M][M]ों[M]की[M]कुल संख्या[M]२५[M]मई, २०[M]९ [M]क [M]७,०००+ है। यह [M]िकिपीड[M]य[M] का सैंत[M]ल[M]सव[M]ं सबसे बड़ा संकरण [M]ै[M]
टिकर टेप सबसे शुरुआती विद्युत आधारित वित्तीय संचार माध्यम था, जिसे लगभग १८७० से १९७० के दौरान टेलीग्राफ लाइनों पर स्टॉक मूल्य की जानकारी प्रेषित करने के काम लाया गया था। इसमें एक पेपर की पट्टी(स्ट्रिप या तपे) होती थी जो एक मशीन के अन्दर से होकर गुजरती थी। इस मशीन को स्टॉक टिकर कहा जाता था, जो कंपनी के संक्षिप्त नाम को अल्फ़ाबेटिक रूप में मुद्रित करता था और उसके आगे सांख्यिक स्टॉक लेनदेन मूल्य और मात्रा की जानकारी मुद्रित करता था। "टिकर" शब्द मशीन द्वारा मुद्रण के दौरान निकलने वाली "टिक-टिक" की ध्वनि से लिया गया था। १९६० के दशक में पेपर टिकर टेप अप्रचलित हो गया क्योंकि वित्तीय जानकारी प्रसारित करने के लिए टेलीविजन और कंप्यूटर का तेजी से उपयोग किया जाने लगा था। फिर भी स्टॉक टिकर की अवधारणा ब्रोकरेज दीवारों पर और समाचार तथा वित्तीय टेलीविजन चैनलों पर दिखने वाली स्क्रॉलिंग इलेक्ट्रॉनिक टिकर के माध्यम से अभी भी जीवित है। टिकर टेप स्टॉक मूल्य के टेलीग्राफ का आविष्कार १८६७ में एडवर्ड ए. कैलहन द्वारा किया गया था, जो कि अमेरिकन टेलीग्राफ कंपनी के एक कर्मचारी थे। दूरसंचार का इतिहास
टि[M]र[M]टेप सबसे शुरु[M]ती विद्य[M]त [M]धा[M]ित वित्[M][M]य संचार[M][M]ाध्[M][M] था,[M]जिसे लगभग [M]८७०[M]से १[M]७० के दौरान टेलीग्राफ लाइनों [M]र स्टॉक मूल्य की जान[M]ारी प्[M]ेषित करने[M][M]े काम लाया गया[M]था[M] इसमें[M]एक पे[M]र की पट्टी[M][M]्[M]्रिप या तपे) ह[M][M]ी थी[M]जो[M]एक मशीन के अ[M][M]दर स[M] होकर गुजर[M]ी थी। इस मशीन को [M]्टॉक[M]टि[M]र कहा[M]जाता था, [M]ो क[M]पनी क[M] सं[M]्ष[M]प[M]त[M][M]ाम क[M] अल्फ़[M]बेटिक रूप में मुद्रित क[M]ता था और उस[M]े आगे सांख्यिक [M]्[M][M]क[M][M]े[M]देन मूल्य और मात्रा की जानकारी मुद्र[M]त क[M]ता था। "टि[M]र" शब्द [M]शीन द्वारा म[M]द्रण के [M]ौरान नि[M][M]ने वाली "ट[M][M]-टिक" [M][M] ध्वनि से लिया ग[M]ा था।[M]१९६[M] [M]े [M]शक[M][M]ें पे[M]र[M]टिक[M] टे[M] अप्रचलि[M] हो गया क्यों[M]ि वि[M]्त[M]य [M]ानका[M]ी प्रसारित [M]र[M]े [M]े[M]लिए टेलीविजन और कंप्यूटर का तेजी से[M]उपयो[M] [M][M]या जाने लगा था[M] [M]िर [M]ी[M]स्टॉक टिकर की [M]वधारणा[M]ब्रोकर[M]ज दीवारों पर औ[M] [M]माचा[M] [M]था वित्[M]ीय टेलीविजन चैनलों [M]र दिखने वाली स्क्रॉलिंग इलेक्ट्रॉनि[M] टिक[M] के[M]माध्यम से अभी[M]भी[M]जीवित है। टिकर[M][M]े[M] स्[M][M]क[M]मूल्[M] के टेलीग्राफ का आविष्क[M]र १८६७ म[M]ं एडवर्ड ए. कैलह[M] द्वारा किय[M] गया[M]था, जो कि अ[M]ेरिकन[M]ट[M]लीग्[M]ाफ [M]ंपन[M][M][M]े ए[M] कर्मचा[M]ी [M]े। दूरसंचार का[M]इतिह[M]स
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