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महाराणा स्वरूप सिंहजी (या सरूप सिंहजी) (१५ जनवरी 18१५ - १७ नवंबर १८६१) उदयपुर-मेवाड़ रियासत के महाराणा थे। वह मेवाड़ राजवंश के राज परिवार की बागोर शाखा के महाराज शिवदान सिंहजी के जैविक पुत्र थे, लेकिन महाराणा सरदार सिंहजी ने उन्हें गोद लिया था। उनके शासनकाल में १८५७ के भारतीय विद्रोह को दबा दिया गया था, हालांकि वह ब्रिटिशों के साथ १८१८ संधि के पक्ष में महाराणा भीम सिंहजी द्वारा हस्ताक्षरित होने के कारण किनारे पर रहे। भारतीय विद्रोह के चार साल बाद १८६१ में उनकी मृत्यु हो गई। महाराणा के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उन्होंने अपने भाई के पौत्र कुंवर शम्भू सिंहजी को गोद लिया था और उसे अपना उतराधिकारी नियुक्त किया था। महाराणा स्वरूप सिंहजी ने पूर्व महाराणा सरदार सिंहजी की शेष दो पुत्रियों के विवाह अपनी पैतृक बहने होने के नाते संपन्न करवाया। प्रथम पुत्री बाईजी लाल मेहताब कँवरजी का विवाह महाराणा सरदार सिंहजी ने अपने जीवनकाल में ही बीकानेर के युवराज सरदार सिंहजी के साथ करवाया दिया था। जब वे अपने पिता महाराजा रतन सिंहजी के बाद बीकानेर के नय नरेश नियुक्त हुए तो उदयपुरी रानी उनकी प्रमुख महारानी बनी एवं उन्हें पटरानीयों में से एक का स्थान प्राप्त हुआ। दूसरी पुत्री बाईजी लाल फूल कँवरजी का विवाह महाराणा स्वरूप सिंहजी ने कोटा के महाराव राजा राम सिंहजी द्वितीय के साथ संपन्न करवाया तथा तीसरी पुत्री बाईजी लाल सौभाग कँवरजी का शुभ लगन महाराजा बांधवेश रघुराज सिंह जूदेव जी रीवा के साथ हुआ। १८१५ में जन्मे लोग १८६१ में निधन
श्याम चरण गुप्ता (जन्म:९ फ़रवरी १९४५) मृत्यु:९ अप्रैल २०२१ एक प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं उद्योगपति है। श्याम चरण उत्तर प्रदेश के बाँदा लोकसभा क्षेत्र से २००४ में सांसद निर्वाचित हुए तथा १६ मई २०१४ से इलाहबाद के वर्तमान सांसद है। वे श्याम ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज के संस्थापक एवं सी.एम.डी. है। वर्ष १९८९ में वह भाजपा से ही चुनाव लड़कर मेयर बने। वर्ष १९९१ में कमल निशान पर ही इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े। वर्ष १९९५ में उनकी पत्नी जमुनोत्री गुप्ता भी भाजपा के टिकट पर मेयर का चुनाव लड़ चुकी हैं। श्याम चरण ने विधानसभा का चुनाव भी भाजपा से ही लड़ा है। लोकसभा टिकट को लेकर ही उनका पार्टी नेताओं से मनमुटाव हुआ और उन्होंने सपा की राह पकड़ी। सपा के टिकट पर वर्ष २००४ में बांदा से सांसद चुने गए। २००९ लोकसभा चुनाव फूलपुर क्षेत्र से वह हार गए। १४ अप्रैल २०१४ को वे भाजपा के टिकट पर इलाहबाद संसदीय क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के रेवती रमन सिंह को मात देते हुए भरी विजयी होकर सांसद निर्वाचित हुए। श्याम चरण गुप्ता ने सन १९७३ श्याम समूह की स्थापना थी। वर्तमान में यह जानी मानी बिज़नेस कम्पनी है। बीड़ी के बड़े व्यापारी होने के कारण गुप्ता को बीड़ी किंग भी कहा जाता है। जमुनोत्री गुप्ता इनकी पत्नी हैं। इनके दो पुत्र, विदुप अग्रहरि, विभव अग्रहरि और एक पुत्री वेणु अग्रहरि धींगरा हैं। श्याम चरण गुप्ता अग्रहरि वैश्य समुदाय से आते हैं। श्याम चरण गुप्ता- बीजेपी लोकसभा सदस्य १९४५ में जन्मे लोग १६वीं लोक सभा के सदस्य भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ उत्तर प्रदेश के लोग १४वीं लोक सभा के सदस्य
लाभांश नीति (दीविडेंड पॉलिसी) से आशय लाभांश वितरित करने के सिद्धान्तों व योजनाओं से होता है। लाभांश नीति का अर्थ संचालकों के उस निर्णय से है जिसके द्वारा वे यह तय करते हैं कि लाभ का कितना भाग लाभांश के रूप में वितरित किया जाय और कितना प्रतिधारित किया जाय। एक व्यावसायिक संस्था का उद्देश्य लाभ कमाना है। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय है कि अर्जित लाभ का प्रयोग किस प्रकार किया जाय। मुख्य प्रश्न यह उठता है कि लाभ का पूर्ण उपभोग स्वामियों द्वारा किया जाए या उसे व्यवसाय में ही प्रतिधारित करके पुनर्विनियोग किया जाये। एकल व्यापारी की दशा में इस प्रकार के निर्णय लेने में कोई भी समस्या खड़ी नहीं होती है। इसी प्रकार साझेदारी संस्था की दशा में साझेदारी संलेख में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि लाभ को साझेदारी/स्वामियों में किस प्रकार वितरित किया जाएगा। हाँ, कम्पनी संगठन स्वरूप की दशा में यह निर्णय कुछ जटिल अवश्य प्रतीत होता है। कम्पनी अधिनियम मे स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि एक कम्पनी को अपने लाभ का कितना प्रतिशत अंशधारियों के बीच में वितरित करना एवं कितने प्रतिशत प्रतिधारित करना है जिससे कम्पनी अपनी भविष्य की योजना निर्धारित कर सके। कम्पनी एक 'कृत्रिम व्यक्ति' है और व्यवसाय के अंशधारी अधिक फैले हुए होते हैं। लाभ के प्रयोग सम्बन्धी निर्णय का भार कुछ व्यक्तियों के समूह पर ही होता है जिन्हें संचालक मण्डल कहते हैं। अन्य संगठन स्वरूपों की भॉंति कम्पनी के शुद्ध लाभ के बंटवारे की समस्या भी या तो लाभ को व्यवसाय में ही प्रतिधारित करने की या अंशधारियों को लाभांश के रूप में बांटने की होती है। अंशधारियों में विभाज्य लाभ के वितरण सम्बन्धी निर्णय महत्वपूर्ण होता है। इस सम्बन्ध में लिए गये निर्णय का मतलब अंशधारियों को अधिक आय, कम आय अथवा कुछ आय नहीं हो सकता है। विद्यमान अंशधारियों के रूख को प्रभावित करने के साथ-साथ लाभांश देने के निर्णय का प्रभाव भावी अंशधारियों, स्कन्ध विनिमय व वित्तीय संस्थाओं के रूख व व्यवहार (मूड एंड बेहेवियर) पर भी पड़ सकता है, क्योंकि लाभांश का सम्बन्ध कम्पनी के मूल्य से होता है जो कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य को प्रभावित करता है। लाभांश के रूप में लाभ का वितरण विवाद का विषय बन सकता है क्योंकि विभिन्न पक्षों जैसे संचालक, कर्मचारी, अंशधारी, ऋणपत्रधारी, ऋण प्रदान करने वाली संस्था आदि का हित टकराव का होता है। जहाँ कोई पक्ष नियमित आय (लाभांश) के पक्ष में होता है, तो कोई पूंजी वृद्धि या पूंजीगत लाभ में रूचि रखता है इस प्रकार लाभांश नीति का निर्माण करना एक जटिल निर्णय है। अनेक बातों का सावधानीपूर्वक मनन करना पड़ता है परन्तु यह बात तय है कि कोई तदर्थ कदम उठाने के बजाय लाभांश के सम्बन्ध में एक यथोचित दीर्घकालीन नीति का पालन करना चाहिए। वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य संस्था के बाजार मूल्य का अधिकीकरण होता है। संस्था के सम अंशों का बाजार मूल्य इस नीति से प्रभावित होता है कि शुद्ध लाभ अथवा आधिक्य को लाभांश भुगतान(पाय्त) और पुनर्विनियोजन (प्लॉ बऐक) के बीच किस प्रकार आवंटित किया जाता है। प्रबन्धकों के सामने यह विकल्प नहीं होता है कि लाभांश बांटे या न बांटे। हाँ, यह प्रश्न अवश्य होता है कि कितना लाभांश बांटे? इसका उत्तर लाभांश नीति से मिलता है। लाभांश नीति का अर्थ लाभांश वितरित करने के सिद्धान्तों व योजना से होता है। वेस्टन एवं ब्राइगम ने लिखा है, लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान एवं प्रतिधारित अर्जनों में विभाजन निश्चित करती है। अंशधारियों में लाभांश के रूप में अर्जन के वितरण के सम्बन्ध में प्रबन्ध द्वारा निर्मित नीति को ही लाभांश नीति कहते हैं। केवल एक विशेष सत्र में देय लाभांश से ही इसका सम्बन्ध नहीं होता है बल्कि कई वर्षों तक अपनाए जाने वाले कदमों से भी यह सम्बन्ध रखता है। लाभांश नीति निर्माण करने से पूर्व निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे - १. क्या संचालन के प्रारम्भिक वर्षों से ही लाभांश का भुगतान किया जाय? २. क्या निश्चित प्रतिशत प्रत्येक वर्ष लाभांश दिया जाए, चाहे लाभ की मात्रा कुछ भी क्यों न हो? ३. क्या लाभ का एक निश्चित प्रतिशत लाभांश के रूप में दिया जाए जिसका आशय प्रति अंश परिवर्तनशील लाभांश होगा? ४. क्या लाभांश नकद दिया जाए? ५. क्या लाभांश बोनस अंशों के रूप में दिया जाय? ६. क्या लाभांश की सम्पूर्ण राशि प्रारम्भिक वर्षों में पुनर्विनियोजित की जाए? लाभांश का अर्थ लाभ का वह भाग, जिसे विभाज्य लाभ कहते हैं, जो कम्पनी के सदस्यों को प्राप्त होता है, लाभांश कहलाता है। विभाज्य लाभ से आशय कम्पनी के उन लाभों से है जो वैधानिक तौर पर कम्पनी के अंशधारियों के बीच बांटे जा सकते हैं। कम्पनी (लाभांश पर अस्थाई प्रतिबन्ध) अधिनियम, १९७४ संशोधित १९७५ के अनुसार विभाज्य लाभ का अभिप्राय कम्पनी के शुद्ध लाभ का १/३ भाग या कम्पनी के सम अंशों के अंकित मूल्य पर भुगतान योग्य १2 प्रतिशत लाभांश की राशि व पूर्वाधिकार अंशों पर देय लाभांश की राशि (मे से जो भी कम हो) से होता है। इस आशय के लिए शुद्ध लाभ वह लाभ होता है, जो कम्पनी अधिनियम, १956 की धारा ३94 के प्रावधानों के अनुसार हो और उसमें से आयकर की राशि घटा दी गयी हो तथा कम्पनी अधिनियम की धारा २०५ के अनुसार ह्रास घटा दिया गया हो। लाभांश वस्तुतः कुल अर्जित आय में से समस्त व्ययों को घटाने के बाद व विशेष प्रकार के कोषों व करों के लिए प्रावधान करने के बाद बचे आधिक्य का ही एक भाग होता है। इस आधिक्य पर सम अंशधारियों का ही अधिकार होता है। हाँ पूर्वाधिकार अंशों की दशा में उन्हें इस आधिक्य पर सम अंशधारियों की तुलना में प्राथमिकता प्राप्त होती है। यद्यपि सम अंशधारियों का इस आधिक्य पर पूरा अधिकार होता है फिर भी कानूनी तौर पर अंशधारी इसके पूर्ण वितरण के लिए या तत्काल वितरण के लिए कम्पनी को बाध्य नहीं कर सकते हैं। लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व लाभांश नीति को निर्धारित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं :- लाभ का स्तर लाभांश का वितरण कम्पनी के वर्तमान व गत वर्ष के लाभों में से ही किया जा सकता है इसलिए लाभांश नीति को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व कम्पनी का लाभ होता है। कम्पनी का लाभ, लाभांश की उच्चतम सीमा निर्धारित करने में सहायक होता है। इसी प्रकार स्थायी रूप से लाभ अर्जित करने वाली कम्पनियाँ उन कम्पनियों की अपेक्षा जिनके लाभ में उच्चावचन होता रहता है लाभ का अधिक भाग लाभांश के रूप में वितरित करती हैं। नकदी की स्थिति यदि कम्पनी के पास लाभांश की घोषणा के समय पर्याप्त नकद उपलब्ध हो तो नकद लाभांश का भुगतान उचित रहेगा। उधार शर्तों पर विक्रय करने वाली सस्थाओं में तरलता स्थिति कमजोर होने पर नकद लाभांश न देकर बोनस अंशों का निगर्मन किया जाता है इसलिए कम्पनी की तरलता स्थिति भी लाभांश निर्णय को प्रभावित करती है। पिछली लाभांश दरें विगत वर्ष की तुलना में अचानक लाभांश दर एकदम बढ़ा दी जाए तो बाजार में सट्टे की प्रवृत्ति पनपेगी। यथासम्भव लाभांश दर स्थिर रखने का प्रयास कम्पनी प्रबन्ध द्वारा किया जाता है। इसलिए लाभांश घोषित करते समय संचालकों को विगत वर्षों की लाभांश दरों को आधार बनाना चाहिये। अंशधारियों की अपेक्षाएॅं अंशधारी जब अंश क्रय करते हैं तो वे लाभांश के बारे में कुछ अपेक्षाएं बना लेते हैं, उनका आदर संचालकों को करना चाहिए। वैधानिक दृष्टि से भी संचालक कम्पनी की आय को विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाने के लिए स्वतंत्र होते हैं पर अंशधारियों के विचारों व आशाओं को वे भुला नहीं सकते, वरना भविष्य में अतिरिक्त पूंजी एकत्र करने में भारी कठिनाई आ सकती है। पुरानी कम्पनियां उदार लाभांश नीति अपना सकती हैं जबकि नव स्थापित कम्पनियों को अपनी आय का अधिकांश भाग विकास कार्यों में लगाना आवश्यक होता है। अतः वे अंशधारियों को कम दर से लाभांश देकर शेष आय का प्रतिधारण कर लिया करती है। उच्चावचनों अर्थात तेजी-मन्दी के साथ-साथ लाभांश नीति भी परिवर्तित हो जाती है। मन्दी के समय लाभ की मात्रा घट जाती है फलतः लाभांश दर में कमी करने के लिए कम्पनी बाध्य हो जाती है। अगर कम्पनी ने लाभांश समानीकरण कोष पर्याप्त मात्रा में रखा हो तो येन-केन प्रकारेण लाभांश की उचित दर बनाए रखने में सफल हो जाती हैं। तेजी के समय तो लाभ बढ़ने से कम्पनी जगत में लाभांश दर बढ़ाने की होड़ सी लग जाती है। सरकार की नीतियों में समय समय पर परिवर्तन होते रहते हैं जिससे कम्पनी के लाभों में कमी व वृद्धि होना अवश्यम्भावी हो जाता है। सरकार की औद्योगिक श्रम एवं प्रशुल्क नीतियों का लाभांश नीति पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए उदारीकरण के वर्तमान दौर में कम्पनी क्षेत्र के नियंत्रण व शुल्कों में कमी हो रही है। फलतः लाभ व लाभांश पर धनात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कभी-कभी सरकार पूंजी निर्माण की गति तीव्र करने के उद्देश्य से लाभों को अधिकांश भाग को पुनर्विनियोजित करने वाली कम्पनियों को आय कर में सुविधाएं देती है। इसी प्रकार अधिक लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं पर अतिरिक्त कर लगाकर लाभों के पुनर्विनियोग को प्रोत्साहित किया जाता है। इसलिए लाभांश नीति पर कर नीति का प्रभाव पड़ता है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनमत तथा सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं का व्यापक प्रभाव लाभांश नीति पर पड़ता है। अधिक लाभांश देने वाली कम्पनियाँ की जनता द्वारा आलोचना की जाती है। श्रमिक अपने वेतन और बोनस वृद्धि की और उपभोक्ता वस्तु मूल्य में कमी की मांग करने लगते हैं जिससे कम्पनी को कठोर लाभांश नीति अपनानी पड़ती है। लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य तत्व अग्रलिखित हैं- (क) व्यवसाय की प्रकृति-लाभांश नीति पर व्यवसाय की संरचना का असर होता है। (ख) स्वामित्व संरचना-पूंजी संरचना में अंशपूंजी की मात्रा का लाभांश पर प्रभाव पड़ता है। (ग) अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता-बाजार से पूंजी पुनः एकत्र करना पिछली लाभांश नीति की अहम भूमिका होती है। (घ) पूंजी बाजार में पहुँच, एवं (ङ) प्रबन्धकीय दृष्टिकोण, आदि।
कोतवाल रामचंद्र १९७० और १९८० के दशक में बैंगलोर में एक गैंगस्टर थे। उन्होंने बेंगलुरु उत्तर को कवर किया और वहां कोदंडरामपुरा और श्रीरामपुरा में काम किया। वह प्रतिद्वंद्वी एमपी जयराज के समकालीन थे। क्राइम बॉस ऑयल कुमार के नेतृत्व में बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड पर कौन शासन करेगा, इस को लेकर दोनों के बीच सत्ता संघर्ष था। जयराज अग्नि श्रीधर, बच्चन और वरदराज नायक की मदद से रामचंद्र को टक्कर देने में सफल रहे। रामचंद्र शिमोगा से थे और उन्होंने थोड़े समय के लिए भारतीय नौसेना में काम किया था। वह छह फीट से अधिक लंबा था, और अपने हथियारों के रूप में चाकू और दरांती का इस्तेमाल करता था। उन्हें अपने उत्कर्ष के दिनों में कुछ राजनेताओं का समर्थन प्राप्त था। रामचंद्र को सार्वजनिक रूप से निर्दोषों के यादृच्छिक हमलों को अंजाम देने के लिए जाना जाता था ताकि डर पैदा किया जा सके, जिससे उन्हें अधिक अवांछित दुश्मन विकसित हुए, लेकिन स्थितियों को कम करने के लिए प्रेरित किया गया, लेकिन उनके बाजार मूल्य को कम नहीं किया गया जैसा कि उन्होंने माना था। रामचंद्र ने राजनीतिक हलकों में तब पहुंच बनाई जब उन्होंने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री डी देवराज उर्स के ड्राइवर और बॉडी गार्ड के रूप में काम करना शुरू किया। लोकप्रिय संस्कृति में कन्नड़ में एक मोशन पिक्चर, आ दिनागालु, जिसे के. एम. चैतन्य द्वारा निर्देशित किया गया है, में रामचंद्र के उदय और हत्या को प्रमुखता से दर्शाया गया है। अग्नि श्रीधर ने एक आत्मकथा माई डेज इन द अंडरवर्ल्ड-राइज ऑफ बेंगलुरु माफिया (वेस्टलैंड, २०१३) लिखी है, जिसमें कोतवाल रामचंद्र की हत्या को उजागर किया गया है। हत्या के परीक्षण जयराज ने रामचंद्र की हत्या करने वाले चार हत्यारों की मदद की और उसकी हड्डियों को बंगाल की खाड़ी में ठिकाने लगा दिया। उन्होंने जांच को गुमराह करने और हत्यारों को दोषमुक्त करने के इरादे से कुत्ते की हड्डियों को दफनाने की व्यवस्था की। जयराज के समर्थन वाली चार सदस्यीय टीम ने २२ मार्च १९८६ को उनकी हत्या कर दी थी। उसकी हत्या तुमकुर के अल्लालासंद्रा के पास एक फार्म हाउस में की गई थी। उनकी मृत्यु के बारे में बाहरी दुनिया को एक महीने से अधिक समय तक पता नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद उनके कुछ सहयोगियों ने आपराधिक गतिविधि जारी रखी। १९८६ में निधन
यह दक्षिण दिल्ली का एक गाँव है, जो कि अब लाल डोरा क्षेत्र में आता है। मुनिरका दक्षिण पश्चिम दिल्ली में एक शहरी क्षेत्र है, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू)और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली(आईआईटी दिल्ली)परिसरों के पास स्थित है। मुनीरका का इतिहास १५वीं शताब्दी तक है। मुनिर्क नाम मुनिर खान से लिया गया है, जो इस क्षेत्र का एक मन्सबदार था। इसके पड़ोस में दक्षिण में जेएनयू कैंपस, उत्तर-पश्चिम में वसंत विहार, उत्तरी दिशा में आरके पुरम और दक्षिण-पूर्वी मोर्चे पर आईआईटी कैंपस और बर सरई शामिल हैं। बाहरी रिंग रोड उपनगर के पूर्व की ओर उत्तर की ओर स्थित है। यह एक छत के नीचे बहुत से धर्मों को आश्रय प्रदान करता है। मुनिरका सड़कों के अंदर बहुत संकीर्ण है, आमतौर पर २।२-२।५ मीटर चौड़ा। मेट्रो के शुरूवाती दौर में नजदीक का मेट्रो स्टेशन हौज खास था लेकिन अब मुनिरका मेट्रो स्टेशन बनने के पश्चात तैयार होकर सेवा में है। दिल्ली के आवासीय क्षेत्र]] दिल्ली के प्रमुख मार्ग
पण्डित हीरालाल शास्त्री (२४ नवम्बर १८९९ - २८ दिसम्बर १९७४)) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी तथा राजनेता तथा वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक थे। वे राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री (३० मार्च १९४८ से ५ जनवरी 19५1 तक) बने। आत्मकथा:- प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र प्रसिद्ध गीत :- प्रलय प्रतीक्षा नमो नमो (१९३०) हीरालाल शास्त्री का जन्म २४ नवम्बर १८९९ को जयपुर जिले में जोबनेर के एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा जोबनेर में हुई। १९२० में उन्होंने साहित्य-शास्त्री की डिग्री प्राप्त की। १९२१ में जयपुर के महाराज कालेज से बी.ए. किया और वे इस परीक्षा में सर्वप्रथम आए। हीरालाल की बचपन से ही यह उत्कट अभिलाषा थी कि वे किसी गाँव में जाकर दीन-दलितों की सेवा सेवा में अपना सारा जीवन लगा दें। हालाँकि १९२१ में वे जयपुर राज राज्य सेवा में आ गए थे और बड़ी तेजी से उन्नति करते हुए गृह और विदेश विभागों में सचिव बने थे, फिर भी १९२७ में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। प्रशासनिक सेवा के दौरान उन्हेंने बड़ी मेहनत, कार्यकुशलता और निर्भीकता से काम किया था। हीरालाल शास्त्री राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री थे। ७ अप्रेल १९४९ को इन्होंने राजस्थान का प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया। इनका जन्म जोबनेर(जयपुर) मे हुआ। २६ जनवरी १९५० तक इनका पदनाम प्रधानमंत्री था, फिर संविधान लागु होने पर इनका पदनाम मुख्यमंत्री हो गया। सवतंत्रता से पूर्व हीरालाल शास्त्री जयपुर प्रजामंडल मे सक्रिय थे। इन्हें भी देखें राजस्थान के मुख्यमंत्री भारत के मुख्यमंत्रियों की सूची पण्डित हीरालाल शास्त्री राजस्थान के मुख्यमंत्री
अबू सईद गर्देजी: गार्ज़ी या गुरदेज़ी (१०६१ ईस्वी में मृत्यु हो गई थी) (फारसी: ) एक फारसी भूगोलवेत्ता और ११ वीं शताब्दी की शुरुआत में गार्डेज़ (आधुनिक अफगानिस्तान) से इतिहासकार थे।. इन्होंने जैन अल-अखबार को गजनाविद साम्राज्य के सुल्तान अब्दुल-रशीद की अदालत में लिखा था।. फारसी में लिखे गए गार्ज़ी का कार्य मध्य एशिया और पूर्वी फारस और हंगरी का इस्लामी इतिहास है।
तृप्ति तोरड़मल एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से मराठी, तमिल और हिंदी फिल्मों में काम करती हैं। वह प्रसिद्ध मराठी अभिनेता मधुकर तोरदमल की बेटी हैं। उन्होंने २०१८ की मराठी फिल्म सविता दामोदर परांजपे से फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने, रामायण पर आधारित २०२३ की हिंदी फिल्म आदिपुरुष में प्रमुख भूमिका निभाई। सबिता दामोदर परांजपे (२०१८) रोजर एबर्ट तृप्ती तोरड़मल
दिल्ली के कनॉट प्लेस क्षेत्र का एक सड़क मार्ग है। दिल्ली में सड़कें
पापुआ न्यू गिनी क्रिकेट टीम ने सितंबर २०२१ में नेपाल के खिलाफ दो एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच और संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ दो वनडे मैच खेलने के लिए ओमान का दौरा किया। मैचों का उपयोग क्रिकेट विश्व कप लीग २ श्रृंखला से पहले तीनों टीमों के लिए तैयारी के रूप में किया गया था, वह भी ओमान में, जो क्रमशः १३ सितंबर २०२१ और २5 सितंबर २०२१ को शुरू हुआ था। पहले दौर के मैचों में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पापुआ न्यू गिनी को सात विकेट से हराया, जबकि नेपाल ने दूसरे मैच में पापुआ न्यू गिनी को दो विकेट से हराया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पापुआ न्यू गिनी के खिलाफ अपना दूसरा मैच १३४ रनों से जीता, जिसमें जसकरण मल्होत्रा ने एकदिवसीय मैच में संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए पहला शतक बनाया। फाइनल मैच में नेपाल ने पापुआ न्यू गिनी को १५१ रनों से हराया, जिससे पापुआ न्यू गिनी को सभी चार मैचों में जीत नहीं मिली। संयुक्त राज्य अमेरिका ने काइल फिलिप को दौरे के लिए एक यात्रा आरक्षित खिलाड़ी के रूप में भी नामित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका बनाम पापुआ न्यू गिनी नेपाल बनाम पापुआ न्यू गिनी सीरीज होम (यूएसए मैच) ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम (नेपाल मैच) ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर २०२१ में नेपाल क्रिकेट २०२१ में पापुआ न्यू गिनी क्रिकेट २०२१ में अमेरिका क्रिकेट २०२१-२२ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं नेपाली क्रिकेट का विदेश दौरा
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) भारत में उन लोगों की एक उपश्रेणी है जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय से कम है और जो ऐसी किसी श्रेणी से संबंधित नहीं हैं भारत भर में एससी/एसटी/ओबीसी के रूप में, न ही एमबीसी के लिए तमिलनाडु में। एक उम्मीदवार जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत नहीं आता है और ईडब्ल्यूएस आर्थिक मानदंडों को पूरा करता है, उसे ईडब्ल्यूएस श्रेणी का हिस्सा होना चाहिए। ८ जनवरी २०१९ को, संविधान (एक सौ तीसरा संशोधन) बिल, २०१९ को पेश किया गया था। लोकसभा, भारत की संसद का निचला सदन और इसे उसी दिन पारित किया गया था। विधेयक को ९ जनवरी को उच्च सदन राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने १२ जनवरी २०१९ को बिल को स्वीकृति दी और बिल पर एक राजपत्र जारी किया गया, जिसने इसे कानून में बदल दिया। १४ जनवरी २०१९ को लागू होने पर, भारत के संविधान का एक सौ तीसरा संशोधन ने भारत के संविधान के अनुच्छेद १५(६) और 1६(६) में संशोधन किया ताकि १०% आरक्षण की अनुमति दी जा सके। ईडब्ल्यूएस श्रेणी। कई राज्य मंत्रिमंडलों ने कानून को मंजूरी दी और १०% ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने के अपने इरादे की घोषणा की। भारत की केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद १५ (६) और १६ (६) में संशोधन करके संविधान (एक सौ तीसरा, १०३वां सीएए) बिल, २०१९ पेश किया, जिसमें ईडब्ल्यूएस छात्रों के लिए १०% अतिरिक्त कोटा प्रदान किया गया था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (यूज) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एब्क) शब्द भारत में एक दूसरे के साथ भ्रमित होने के लिए नहीं हैं। ईडब्ल्यूएस की परिभाषा भारत सरकार ने परिभाषित की है, जबकि ईबीसी और मोस्ट इकोनॉमिकली बैकवर्ड क्लास (एमईबीसी) की परिभाषा अलग-अलग राज्यों और संस्थानों में अलग-अलग है। ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र प्राप्त करने की पात्रता न केवल विशुद्ध रूप से वार्षिक पारिवारिक आय पर आधारित है बल्कि धारित संपत्ति पर भी आधारित है। केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले कॉलेजों और केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नौकरियों में प्रवेश के लिए केंद्र सरकार द्वारा आय सीमा निर्धारित की गई है। राज्य सरकारों को योग्यता मानदंड बदलने और ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत आरक्षण चाहने वाले उम्मीदवारों के लिए आय सीमा को आगे बढ़ाने का अधिकार दिया गया है, जो केवल राज्य के स्वामित्व वाले कॉलेजों और राज्य सरकार की नौकरियों में मान्य होगा, जैसा कि संबंधित राज्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। १ फरवरी २०१९ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंधित लोगों को अब ओबीसी, एससी, एसटी के समान भारत की शिक्षा और सरकारी नौकरियों में १०% आरक्षण (ऊर्ध्वाधर आरक्षण) मिलता है। राज्यों में पात्रता मानदंड जबकि केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में ईडब्ल्यूएस पात्रता मानदंड पूरे देश में समान हैं, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग लागू होते हैं। केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ने ईडब्ल्यूएस कोटा अपनाया है।
आचार्य रविषेण (सातवीं शती) प्रसिद्ध जैन ग्रंथ 'पद्मपुराण' के रचयिता हैं। यह ग्रंथ विमलसूरि रचित प्राकृत भाषा के 'पउम चरियं' का पल्लवित अनुवाद माना जाता है। समय एवं रचना रविषेणाचार्य का समय निःसंदिग्ध रूप से सातवीं शताब्दी है। उन्होंने स्वयं अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ पद्मपुराण अथवा पद्म चरित के अंत में ग्रंथ के संपन्न होने के समय का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जिनसूर्य श्री वर्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष के बाद एक हजार दो सौ तीन वर्ष छह माह बीत जाने पर श्री पद्ममुनि का यह चरित्र लिखा गया है। इस प्रकार इस ग्रंथ की पूर्णता विक्रम संवत् ७३४ अर्थात् ६७७ ई० में सिद्ध होती है। इन्हें भी देखें
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (), जो कि आईआईटी कानपुर अथवा आईआईटीके के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना सन् १९५९ में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में हुई। आईआईटी कानपुर मुख्य रूप से विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी में शोध तथा स्नातक शिक्षा पर केंद्रित एक प्रमुख भारतीय तकनीकी संस्थान बनकर उभरा है। संस्थान की स्थापना १९५९ में कानपुर-भारत-अमेरिका कार्यकर्म के तत्वाधान में अमेरिका के ९ विश्वविद्यालयों के सहयोग से हुई। सन १९६३ में संस्थान का स्थानांतरण वर्तमान स्थान पर हुआ। संगणक विज्ञान में शिक्षा प्रदान करने वाला यह पूरे भारत वर्ष में सर्वप्रथम संस्थान था। अपने अस्तित्व के पहले दस वर्षों के दौरान, नौ अमेरिकी विश्वविद्यालयों (अर्थात् एमआईटी, यूसीबी, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, कार्नेगी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मिशिगन विश्वविद्यालय, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, केस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और पर्ड्यू यूनिवर्सिटी ) का एक संघ। कानपुर इंडो-अमेरिकन प्रोग्राम (किआप) के तहत ईत कानपुर की अनुसंधान प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक कार्यक्रमों की स्थापना में मदद की। संस्थान के पहले निदेशक पीके केलकर थे (जिनके बाद २००२ में केंद्रीय पुस्तकालय का नाम बदल दिया गया) अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गैलब्रेथ के मार्गदर्शन में, ईत कानपुर कंप्यूटर विज्ञान की शिक्षा प्रदान करने वाला भारत का पहला संस्थान था। संस्थान में सबसे पहला कंप्यूटर पाठ्यक्रम अगस्त १९६३ में आईबीएम १६२० प्रणाली पर शुरू किया गया था। कंप्यूटर शिक्षा की पहल इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग से हुई, तब प्रो. एच के केसवन, जो समवर्ती रूप से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के अध्यक्ष और कंप्यूटर केंद्र के प्रमुख थे। प्रो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के हैरी हस्की, जो केसवन से पहले थे, ने आईआईटी-कानपुर में कंप्यूटर गतिविधि में मदद की। १९७१ में, संस्थान ने कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में एक स्वतंत्र शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू किया, जिससे एमटेक और पीएचडी डिग्री प्राप्त हुई। १९७२ में भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव के कारण किआप कार्यक्रम समाप्त हो गया (जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया)। सरकारी फंडिंग को भी इस भावना की प्रतिक्रिया के रूप में कम कर दिया गया था कि आईआईटी ब्रेन ड्रेन में योगदान दे रहे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में निम्नलिखित शैक्षणिक विभाग है - औद्योगिकी एवं प्रबन्ध अभियान्त्रिकी जीव विज्ञान एवं जैविक अभियान्त्रिकी पदार्थ विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी संगणक विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी मानविकी एवं समाज विज्ञान गणित एवं सांख्यिकी प्रयोगशालाएँ एवं अन्य सुविधाएँ अंतराग्नि : अंतराग्नि एक गैर-लाभकारी संगठन है जो आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा संचालित है। इसे पूरी तरह से विश्वविद्यालय के छात्र जिमखाना द्वारा वित्त पोषित किया गया था। आज बजट लगभग १ करोड़ रुपये है , प्रायोजन के माध्यम से उठाया गया। यह १96४ में एक अंतर-कॉलेजिएट सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में शुरू हुआ, और अब १,००,००0 से अधिक हो गया है भारत में 3०० कॉलेजों के आगंतुक अक्टूबर में ४ दिनों तक आयोजित वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव । त्योहार में संगीत, नाटक, साहित्यिक खेल, फैशन शो और प्रश्नोत्तरी शामिल हैं। १,००0+ ग्राहकों के साथ त्योहार को समर्पित एक युतुबे चैनल है। टेककृति : यह १९९५ में छात्रों के बीच प्रौद्योगिकी में रुचि और नवाचार को प्रोत्साहित करने और उद्योग और शिक्षाविदों को बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। मेगाबक्स (एक व्यवसाय और उद्यमिता उत्सव) स्वतंत्र रूप से आयोजित किया जाता था लेकिन २०१० में टेककृति के साथ विलय कर दिया गया था। टेककृति में उल्लेखनीय वक्ताओं में एपीजे अब्दुल कलाम, व्लादिमीर वोवोडस्की, डगलस ओशेरॉफ, ओलिवर स्मिथीज, राकेश शर्मा, डेविड ग्रिफिथ्स और रिचर्ड स्टॉलमैन शामिल हैं। उदघोष: उदघोष आईआईटी कानपुर का वार्षिक खेल उत्सव है जो आमतौर पर सितंबर में आयोजित किया जाता है। इसकी शुरुआत २००४ में संस्थान द्वारा आयोजित इंटर कॉलेज स्पोर्ट्स मीट के रूप में हुई थी। उद्घोश में विश्वविद्यालय की खेल सुविधाओं में प्रतिस्पर्धा करने वाले पूरे भारत के छात्र शामिल होते हैं। उत्सव में विभिन्न खेल आयोजनों के लिए प्रेरक वार्ता, मिनी मैराथन, जिम्नास्टिक शो और खेल प्रश्नोत्तरी शामिल हैं। विवेकानंद युवा नेतृत्व सम्मेलन: आईआईटी कानपुर की ओर से छात्र जिमखाना के तहत विवेकानंद समिति ने २०११ से २०१५ तक स्वामी विवेकानंद की १५० वीं जयंती मनाने का आयोजन किया है। सम्मेलन में किरण बेदी, बाना सिंह, योगेंद्र सिंह यादव, राजू नारायण स्वामी, अरुणिमा सिन्हा, राजेंद्र सिंह और पिछले वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों के अन्य व्यक्तित्व शामिल हैं। ई-शिखर सम्मेलन: इसकी शुरुआत २०१३ में हुई थी। पहला ई-शिखर सम्मेलन १६-१८ अगस्त २०१३ के लिए निर्धारित किया गया था। एमर्ज ऑन द रडार थीम पर उद्यमिता प्रकोष्ठ, आईआईटी कानपुर द्वारा तीन दिवसीय इस उत्सव में प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा वार्ता, कार्यशालाएं और प्रतियोगिताएं शामिल थीं। अभय भूषण - संचिका स्थानांतरण प्रोटोकॉल के रचयिता। एन. आर. नारायणमूर्ति - सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनी इन्फोसिस के संस्थापक। डी सुब्बाराव - भारतीय रिज़र्व बैंक के २२वें गवर्नर। नीरज कयाल (संगणक वैज्ञानिक) - मणीन्द्र अग्रवाल और नितिन सक्सेना के साथ मिलकर ऐकेएस पराएमीलिटी टेस्ट प्रस्तावित किया, गोडेल पुरस्कार विजेता (२००६)। राजीव मोटवानी (संगणक वैज्ञानिक) - स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में संगणक विज्ञान के भूतपूर्व प्रोफेसर, गोडेल पुरस्कार विजेता (२००१)। गूगल के शुरूआती निवेशकों एवं सलाहकारों में से एक। सत्येन्द्र दूबे - स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। श्री राजीव दीक्षित भारतीय स्वाभिमान के प्रखर प्रवक्ता। पुरस्कार एवं सम्मान संस्थान का आधिकारिक जालस्थल संस्थान के पूर्व-छात्रों का जालस्थल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालय और कॉलेज
ईसापूर्व ६०० ई से अब तक पटना को अनेकों नामों से जाना गया है। इस लेख में पटना के विभिन्न ऐतिहासिक नामों और उससे सम्बन्धित अन्य जानकारियाँ दी गयीं हैं।
एनिमल चैनल () एक २००९ स्पेनिश एनिमेटेड फिल्म है। माइटे रुइज़ डी ऑस्ट्री द्वारा निर्देशित। टेलीविजन का युग आ गया है और यह पुराने सिनेमा को हटाने में कामयाब रहा है जिसमें स्टॉर्क कैथी, माउस निकोलस और उनका परिवार काम करता है। नए टेलीविजन शो से मोहित होकर पड़ोसी घर में रहना पसंद करते हैं। इस कारण हमारे दोस्त खुद को नवीनीकृत करने के लिए मजबूर हैं। डैडी माउस एक नया चैनल, एनिमल चैनल बनाता है, जबकि कैथी और निको, कैमरा और माइक्रोफोन के साथ, निडर पत्रकार बन जाते हैं, लेकिन यह आसान नहीं होगा। आपका मिशन लापता यात्री कबूतर को ढूंढना और घटना को लाइव कवर करना है। नायक पांच महाद्वीपों की यात्रा करेंगे और दुनिया भर के पड़ोसियों से मिलेंगे। उन्हें जल्द ही पता चल जाएगा कि वे इस अविश्वसनीय साहसिक कार्य में अकेले नहीं हैं। यह बास्क देश और एक्स्ट्रीमादुरा के बीच एक सह-उत्पादन है। एनीमेशन को फ्लैश तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है, जिसने संसाधनों को बचाने के अलावा, बच्चों के लिए एक बहुत ही आकर्षक दृश्य परिणाम प्राप्त करना संभव बना दिया है। अपने कम बजट (१.३ मिलियन यूरो) के कारण, इसका उद्देश्य कभी भी शैली की अन्य प्रस्तुतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना नहीं रहा है, बल्कि बच्चों को दोस्ती या उत्कृष्टता की क्षमता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को प्रसारित करना है। फिल्म ने एल टेसोरो डेल रे मिदास नामक एक दूसरे भाग का आनंद लिया। २००९ की फ़िल्में स्पेनी (भाषा) फ़िल्में
विठ्ठल उद्योगनगर (विठ्ठल उद्योग्नगर) या विठ्ठल उद्योगनगर अधिसूचित औद्योगिक क्षेत्र (विठ्ठल उद्योग्नगर इंडस्ट्रियल नोटिफिड एरिया) भारत के गुजरात राज्य के आणंद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह आणंद का एक दक्षिणपश्चिमी उपनगर है। इन्हें भी देखें गुजरात के शहर आणंद ज़िले के नगर
लैमिन सिधिम (जन्म १९४४) एक गिनी राजनीतिक व्यक्ति है जो १९९९ से २००४ तक गिनी के प्रधान मंत्री थे । १९४४ में मामू में जन्मे , सिदीम ने १९९२ से सर्वोच्च न्यायालय के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, और उन्हें मार्च १९९९ में राष्ट्रपति लांसाना कोटे द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया , जिन्होंने सिदया टूर की जगह ली । पाँच साल तक पद पर रहने के बाद, उन्होंने २३ फरवरी, २००४ को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने फिर सुप्रीम कोर्ट के प्रेसीडेंसी को फिर से शुरू किया। १९४४ में जन्मे लोग
यह राजस्थान की प्रमुख नहर हैं। लम्बाई (मीटर में) राजस्थान में नहरें
हैन्स ब्लिक्स अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण महासचिव रहे हैं। इनका कार्यकाल १९८१ - १९९७ रहा।
बहूबाज़ार (या बहू बाज़ार), केन्द्रीय कोलकाता में एक इलाका है। लालबाजार से तत्कालीन मराठा घाट (बाद में सर्कुलर रोड और अब आचार्य जगदीश चंद्र बोस रोड ) तक के क्षेत्र को १८४ में लेफ्टिनेंट कर्नल मार्क वुड द्वारा एक नक्शे पर "बॉयटाकोना स्ट्रीट" नाम दिया गया था। नाम हिन्दी शब्द "बैठक खाना" से आया है। पुराने दिनों में, व्यापारी इस क्षेत्र में एक प्राचीन बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर अपने सामान के साथ आराम करते थे। कहा जाता है कि जॉब चार्नोक ने जब कलकत्ता को वाणिज्य के केंद्र के रूप में चुना तो वह भी यहां आया करते थे। तब से इस जगह को बैठक खाना कहा जाता है। वुड के नक्शे में बैठक खाना के पास एक बरगद के पेड़ का भी जिक्र है। इसके पूर्व का क्षेत्र आर्द्रभूमि था। १८९४ में आरोन अपजान के नक्शे में भी बैठक खाना का उल्लेख है। हालाँकि, मानचित्र पर दिखाया गया स्थान पर वर्तमान में सियालदह स्टेशन स्थित है। लालबाजार और बॉयटाकोना स्ट्रीट को बाद में, "एवेन्यू टू द ईस्टवर्ड" कहा जाने लगा। सड़क पुराने डलहौजी स्क्वायर (अब बिनॉय-बादल-दिनेश बाग) से सियालदह तक जाती है। बाद में इस गली का नाम बहूबाजार स्ट्रीट रखा गया। 'बहूबाजार' शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में दो मत हैं। एक मत के अनुसार मारवाड़ी व्यापारी बिश्वनाथ मोतीलाल ने अपनी बंगाली पुत्रवधु के नाम कर दिया था (हिंदी में 'बहू' शब्द का अर्थ है 'पुत्रवधु')। हालांकि, इतिहासकार इस व्यापारी की पहचान निर्धारित करने में असमर्थ रहे हैं। तो दूसरे के अनुसार, इस क्षेत्र में कई बाजार थे और उन बाजारों में कई सामान बेचे जाते थे। हिन्दी में बहु का अर्थ बहुत से या बहुत सारे भी होता है तो कई बाज़ारों की एकसाथ उपस्थिति के कारण भी इसे बहुबाज़ार कहा गया। पहले मत के अनुसार, बाजार ६४ए क्षेत्र में अब निर्मलचंद्र स्ट्रीट के कोने पर था जबकि, दूसरे मत के अनुसार, उल्लिखित बाजार १५५-५६ क्षेत्रों में स्थित थे। बहूबाजार स्ट्रीट का नाम बदलकर बिपिन बिहारी गांगुली स्ट्रीट, क्रांतिकारी नेता (बिपिन बिहारी गांगुली (१८८७-१९५४) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने ब्रिटिश भारतीय जेलों में लगभग २४ साल बिताए थे और बाद में कांग्रेस आंदोलन में शामिल हुए। हालांकि, इलाके को अभी भी बहूबाजार ही कहा जाता है। इलाके के शुरुआती नाम को ध्यान में रखते हुए, बीबी गांगुली स्ट्रीट से एमजी रोड तक जाने वाली एक सड़क को बैठकखाना रोड कहा जाता है, साथ ही साथ बीबी गांगुली स्ट्रीट के पूर्वी हिस्से में सड़क के साथ बाजार को बैठकखाना बाजार कहा जाता है। चौराहे पर जहां लाल बाजार, बहूबाजार, चितपुर रोड और बेंटिंक स्ट्रीट मिलते है, वहाँ पहले लोगों को फांसी दी जाती थी। १८८८ में, २५ नवगठित पुलिस अनुभाग गृह में से एक बहूबाजार में स्थित था। बहूबाजार पुलिस स्टेशन कोलकाता पुलिस के सेंट्रल डिवीजन का हिस्सा है। यह १३, कपालीटोला लेन, कोलकाता-७०००१२ में स्थित है। तालतला महिला पुलिस स्टेशन सेंट्रल डिवीजन के अधिकार क्षेत्र में सभी पुलिस जिलों को कवर करता है, यानी बहूबाजार, बड़ाबाजार, गिरीश पार्क, हरे स्ट्रीट, जोड़ासांको, मोचीपाड़ा, न्यू मार्केट, तालतला और पोस्ता। [८] बहूबाजार में एक रेड-लाइट जिला है जहां लगभग १२,००० वेश्याएं काम करती हैं।
कॅप्लर-६९ (केप्लर-६९) पृथ्वी से २,७०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर आकाश में हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक हमारे सूरज के जैसा ग-श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। १८ अप्रैल २०१३ को वैज्ञानिकों ने इसके इर्द-गिर्द दो ग्रहों की मौजूदगी ज्ञात होने की घोषणा करी। शुरु में उनका अनुमान था कि इनमें से एक 'कॅप्लर-६९सी' द्वारा नामांकित ग्रह इस ग्रहीय मंडल के वासयोग्य क्षेत्र में स्थित है लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि यह वास-योग्य क्षेत्र से अन्दर है। इसका अर्थ था कि यह हमारे सौर मंडल के शुक्र जैसी परिस्थितियाँ रखता होगा और यहाँ जीवन का पनप पाना बहुत कठिन है। कॅप्लर-६९ ग-श्रेणी का तारा है। इसका द्रव्यमान (मास) हमारे सूरज का ८१% और व्यास हमारे सूरज के व्यास का ९३% है। इसका सतही तापमान ५६३८ कैल्विन है जो हमारे सूरज के ५७७८ कैल्विन के सतही तापमान के आसपास ही है। पृथ्वी से इसकी चमक (सापेक्ष कांतिमान) लगभग +१३.७ मैग्नीट्यूड मापी गई है जो इतनी धुंधली है कि बिना दूरबीन के नहीं देखी जा सकती। इन्हें भी देखें जी-प्रकार मुख्य अनुक्रम तारे
मुनस्यारी तहसील भारत के उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ जनपद में एक तहसील है। पिथौरागढ़ जनपद के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय मुनस्यारी नगर में स्थित हैं। इसके पूर्व में धारचूला तहसील, पश्चिम में बागेश्वर जनपद की कपकोट तहसील तथा चमोली जनपद की जोशीमठ तहसील, उत्तर में चीन तथा दक्षिण में डीडीहाट और बेरीनाग तहसील है। तहसील के अधिकार क्षेत्र में कुल २१९ गाँव आते हैं, और २०११ की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या ४६५२३ है। मुनस्यारी के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल पिथौरागढ़ की तहसीलें
स्वास्तिक वक्र (स्वस्तिका कर्वे) एक क्वार्टिक समतल वक्र है जिसे मार्टिन कुंडी और एपी रोलेट ने अपनी पुस्तक गणितीय मॉडल में स्वास्तिक वक्र नाम दिया है क्योंकि इसका स्वरूप अस्तिक से मिलता है। इस वक्र का कार्तीय समीकरण निम्नलिखित है- इस वक्र का ध्रुवीय समीकरण निम्नलिखित है- यह वक्र दक्षिणावर्त स्वस्तिक के समान दिखता है। निम्नलिखित समीकरण वामावर्त स्वस्तिक का कार्तीय समीकरण है,
पदक तालिका अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर आधारित है और आईओसी के अपने प्रकाशित पदक तालिका में सम्मेलन के अनुरूप है। डिफ़ॉल्ट रूप से, टेबल को राष्ट्र के एथलीटों से मिली स्वर्ण पदकों की संख्या के अनुसार आदेश दिया जाता है, जहां राष्ट्र एक राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (एनओसी) द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया एक इकाई है। रजत पदक की संख्या को ध्यान में रखा जाता है और उसके बाद कांस्य पदक की संख्या। वर्ष अनुसार शीतकालीन ओलम्पिक पदक तालिका
२०१८-१९ रणजी ट्रॉफी, रणजी ट्रॉफी का ८५ वां सीजन था, जो नवंबर २०१८ और फरवरी 20१९ के बीच भारत में होने वाला प्रमुख प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट था। विदर्भ गत विजेता थे। फाइनल ३ फरवरी 20१९ को शुरू होने वाले विदर्भ और सौराष्ट्र के बीच हुआ। विदर्भ ने फाइनल में सौराष्ट्र को ७८ रन से हराकर टूर्नामेंट का इतिहास में छठी टीम बनने के लिए अपना खिताब बरकरार रखा। विदर्भ के कप्तान फैज फजल ने कहा कि "रणजी ट्रॉफी जीतना आसान नहीं है। ग्यारह मैच जीतने के लिए, यह एक अस्थायी नहीं है। अगर किसी ने सोचा कि पिछले साल एक फ्लॉक था, हमने खुद को फिर से साबित किया है । सौराष्ट्र के लिए, रणजी ट्रॉफी के फाइनल में यह उनकी तीसरी हार थी, उनके कप्तान जयदेव उनादकट ने कहा कि उन्हें वास्तव में गर्व है कि टूर्नामेंट के दौरान उनकी टीम ने कैसा प्रदर्शन किया। टीमों को निम्नलिखित समूहों में खींचा गया था:
देवीपुर बाँसटीला, रामनगर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बाँसटीला, देवीपुर, रामनगर तहसील बाँसटीला, देवीपुर, रामनगर तहसील
बाजार पूंजीकरण, जिसे आमतौर पर मार्केट कैप कहा जाता है, सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी के बकाया शेयरों का बाजार मूल्य है। बाजार पूंजीकरण बकाया शेयरों की संख्या का एक शेयर की कीमत से गुणनफल के बराबर होता है।चूंकि बकाया स्टॉक सार्वजनिक बाजारों में खरीदा और बेचा जाता है, इसलिए पूंजीकरण का उपयोग किसी कंपनी के निवल मूल्य पर सार्वजनिक राय के संकेतक के रूप में किया जा सकता है और स्टॉक मूल्यांकन के कुछ रूपों में एक निर्धारित कारक है। मार्केट कैप केवल एक कंपनी के इक्विटी मूल्य को दर्शाता है। एक फर्म की पूंजी संरचना चयन इस बात पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है कि उस कंपनी का कुल मूल्य इक्विटी और ऋण के बीच कैसे आवंटित होगा। एक अधिक व्यापक उपाय उद्यम मूल्य (एन्टरप्राइज वेल्यू (एव)) है, जो बकाया ऋण, पसंदीदा स्टॉक और अन्य कारकों को प्रभाव देता है।। बीमा फर्मों के लिए, एम्बेडेड मूल्य (एम्बेडएड वेल्यू (एव)) नामक मूल्य का उपयोग किया गया है।
दूणी-जैतोलस्यूं-२, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा दूणी-जैतोलस्यूं-२, चौबटाखाल तहसील दूणी-जैतोलस्यूं-२, चौबटाखाल तहसील
सर्वार्थसिद्धि एक प्रख्यात जैन ग्रन्थ हैं। यह आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी टीका हैं।इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है। ग्रन्थ के लेखक आचार्य पूज्यपाद, एक दिगम्बर साधु थे। पूज्यपाद एक कवी, दार्शनिक और आयुर्वेद के गहन ज्ञाता थे। सर्वप्रथम ग्रन्थ में तत्त्वार्थसूत्र के मंगलाचरण का अर्थ समझाया गया है। सर्वार्थसिद्धि के दस अध्याय हैं : दर्शन और ज्ञान जीव के भेद उर्ध लोक और मध्य लोक अजीव के भेद सर्वार्थसिद्धि का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद प्रोफ़ेसर स.अ. जैन ने किया था।
डॉन ओमर () जो एल रे () (जन्म विलियम ओमर लंद्रों रिवेरा (); १० फ़रवरी १९७८) एक पुएर्टो रिकन गायक-रैपर व अभिनेता है। १९७८ में जन्मे लोग
देवांशी एक हिंदू/संस्कृत भारतीय स्त्री नाम हेैं, जिसका अर्थ है "वह जो सभी सुंदरता, शांति और भगवान के प्रेम से संपन्न है"। देवांशी स्त्री शब्द के लिए अंत में जोड़े गए "इ" के साथ दो शब्द "देव" और "अंश" का संयोजन है। "देव" का अर्थ है भगवान और "अंश" का अर्थ है "इसलिए" देवांशी का अर्थ है एक महिला/लड़की जो स्वयं भगवान का हिस्सा है।
वानस्पतिक नाम () वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड ( (इकन)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। कुछ वनस्पतियों के वैज्ञनिक नाम आईयूपीएसी नामकरण रसायनों के नाम की वैज्ञानिक पद्धति भारतीय पेड़ों पौधों तथा फूलों के नामों की बहुभाषी सूची
रामदेवरा (रामदेवरा) भारत के राजस्थान राज्य के जैसलमेर ज़िले में स्थित एक गाँव है जो पंचायत में आता है रामदेवरा रेलवे स्टेशन से बाबा रामदेव जी [समाधि] मंदिर की दुरी मात्र ७०० मीटर है रेलवे स्टेशन से पैदल मात्र ७ मिनट का रास्ता है रेलवे स्टेशन के मैन गेट के सामने सीधा रास्ता पर है रेलवे से सफर सुविधाजनक , सस्ता सुगम है पोखरण से लगभग १२ किमी उत्तर में स्थित है। गाँव का नाम पहले [रूणिचा] [रणुजा] था अब रामदेव जी पर रामदेवरा पड़ा है, जिन्होंने सन् १३८४ में समाधी ली थी जो तंवर वंश राजपूत समाज में द्वारकाधीश भगवान के अवतारी थे आज भी बाबा रामदेव वंशज [तंवर]राजपूत गांव के पास में ही ढ़ाणीयो में उतर में निवास करते हैं बाबा रामदेव जी समाधि के पास ही पर्चा बावड़ी ,व मंदिर के पीछे की तरफ रामसरोवर तालाब है वर्तमान में मंदिर गादीपति राव भोंम सिंह जी [तंवर]है वर्तमान में सरपंच समन्दर सिंह तंवर है मंदिर का संचालन देखरेख बाबा रामदेव सेवा समिति द्वारा किया जाता है भादवा मेला में सारी सुविधाएं,खर्चा पंचायत समिति द्वारा किया जाता है मेंले के अंदर जेबकतरों से सावधान रहें मंदिर में गोद ली हुई डालीबाई की समाधि भी है यहां बारह महीने ही [रेल]बस कार यात्री , जत्था, संघ जय बाबा री के जयकारे लगाते हुए आते हैं यात्रीऔ के ठहरने (रुकने)के लिए -गेस्ट हाउस, धर्मशाला, होटल आदि है इन्हें भी देखें राजस्थान के शहर
चक कजियौलिया उर्फ खोजापुर फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
शॉन केली, (जन्म २६ अप्रैल १९८४) अमेरिका के प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी है। दिसंबर २०१४ की स्थिति के अनुसार वह न्यूयॉर्क यांकीज़ की टीम के लिए खेल रहे है। शॉन केली कैरियर
गुरदा खरसीया मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
आडम्बर एक हिन्दी शब्द है। जो कुच नहि है उस को दिखना' अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द
पाटी तहसील भारत के उत्तराखंड राज्य में चम्पावत जनपद की एक तहसील है। चम्पावत जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय पाटी गांव में स्थित हैं। १७ जनवरी २००४ को उत्तरांचल सरकार के शाशनादेश से चम्पावत तहसील के १४६ ग्रामों के साथ इसका गठन किया गया। इसके पूर्व में लोहाघाट और चम्पावत तहसील, पश्चिम में नैनीताल जनपद की धारी तहसील, उत्तर में अल्मोड़ा जनपद की भनोली तहसील, तथा दक्षिण में नैनीताल जनपद की हल्द्वानी तहसील है। तहसील के अधिकार क्षेत्र में कुल १४६ गाँव आते हैं, और २०११ की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या ४५,५०४ है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड की तहसीलें चम्पावत की तहसीलें
प्यार की ये एक कहानी स्टार वन पर आने वाला भारत का एक अत्यंत विशेष लोकप्रिय धारावाहिक था। यह १८ अक्टुबर २०१० से १५ दिसम्बर २०११ तक चला। यह कहानी २०० साल पहले पिसाच बने अभ्येंद्र कि है जो २०० सालों के पश्चात पियाली जयसवाल से मिलता है। जिसका चेहरा गायत्रीसिंघी शिवरंजनी मैथिली गौरिमा पंढेर से मिलता है। पियाली/पिया को शिष्यवृत्तीद्वारा माउंट नामक एक महाविद्यालय में पढ़ने का मौका मिलता है। वह देहरादून चली जाती हैं। यहाँ उसकी मुलाकात मिशा डोबरियाल (प्रिया वल) से होती है। और दोनों मे दोस्ती हो जाती हैं। मिशा उसे अपने दोस्तों (कबीर,रूही और अंगद) से मिलवाती है |घर एक दिन ले जाती है। तब पिया को पता चलता है कि मिशा अरनब डोबरियाल की बेटी है। साथ ही उसे अपनी सौतेली माँ और दो बहनों का पता चलता है। पहले वह इस बात को किसी को नहीं बताती है। उसे एक अभय नाम का लड़का भी मिलता है जो एक पिसाच है। लेकिन पिया को इस बारे में नहीं पता होता। पिया अभय के बारे में जानने के लिए उससे कई प्रश्न पूछते रहती है। जिस कारण अभय उससे दूर भागते रहता है। पिया को अभय में पिसाच के गुण पता चलने लगते हैं और तभी अभय पिया को अपने दिल की बात बता देता है। पिया महाविद्यालय छोड़ के जाने लगती है कि तभी उसे सड़क के पास यह अहसास होता है कि वह भी अभय को प्यार करने लगी है। इसी बीच एक और पिसाच अभय से बदला लेने के लिए आता है। और उससे पिया को बचाने के लिए अभय पिया को अपने से दूर कर देता है। लेकिन सिद्धार्थ उसे खोज निकालता है। इसके बाद वह पिया को भी पिसाच बनाने की कोशिश करता है। कुछ समय के बाद सिद्धार्थ और अभय में लड़ाई होती है। कुछ समय के लिए सिद्धार्थ चले जाता है। मेथिली नामक एक और पिसाच, जो अभय से प्यार करती है और बिलकुल पिया के जैसे दिखती है, वह भी आ जाती है। अभय को लगता था की मेथिली जल कर मर चुकी है लेकिन सिद्धार्थ उसे पिसाच बना चुका था। वह अभय को वापस पाने के लिए पिया को मारने की कोशिश करती है। लेकिन अभय उसे बचा लेता है। अंत में अभय और उसके कई दोस्त मिल कर सिद्धार्थ और मेथिली को मार देते हैं। इसके बाद अभय पिसाच से मनुष्य बन जाता है और पिया और अभय की शादी हो जाती है। सुकृति कांडपाल पियाली जयसवाल / मेथिली पनधर विवियन डीसेना अभय रायचन्द्र / अभयेन्द्र गौतम गुलाटी सौर्य खन्ना किश्वर मर्चेंट - हसीना रायचंद वाहबिज दोराबजी - पांचबी अर्नब डोबरियाल, पिया की सौतेली बहन और मीशा की बड़ी बहन, सबसे बड़ी डोब्रियाल बहन। प्रिया वल मिशा डोबरियाल मधुरा नायक तनुश्री अम्बोलकर स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक बालाजी टेलीफिल्म्स के धारावाहिक
खोजकर्ताओं में से एक और यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों का कमांडर था, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुँचा। इन्हों ने केवल यूरोप से भारत तक आने वाले जलीय मार्ग की खोज की,न कि भारत की,क्योंकि भारत तो यूरोप से भी पुरानी सभ्यता है जहाँ पर मोहनजोदडो और हडप्पा जेसी बड़ी-बड़ी सभ्यता विकसित हो चुकी थीं ! अत: भारत पहले से ही मौजूद था वास्को द गामा जहाज़ द्वारा तीन बार भारत आया। उसकी जन्म की सही तिथि तो अज्ञात है लेकिन यह माना जाता है कि वह १४९० के दशक में साइन, पुर्तगाल में एक योद्धा था वास्को को भारत का (समुद्री रास्तों द्वारा) अन्वेषक के अलावे अरब सागर का महत्वपूर्ण नौसेनानी और ईसाई धर्म के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है। उसकी प्रथम और बाद की यात्राओं के दौरान लिखे गए घटना क्रम को सोलहवीं सदी के अफ्रीका और केरल के जनजीवन का महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है। वास्को द गामा का जन्म अनुमानतः १४६० में या १४६९ में साइन्स, पुर्तगाल के दक्षिण-पश्चिमी तट के निकट हुआ था। इनका घर नोस्सा सेन्होरा दास सलास के गिरिजाघर के निकट स्थित था। तत्कालीन साइन्स जो अब अलेन्तेजो तट के कुछ बंदरगाहों में से एक है, तब कुछ सफ़ेद पुती, लाल छत वाली मछुआरों की झोंपड़ियों का समूह भर था। वास्को द गामा के पिता एस्तेवाओ द गामा, १४६० में ड्यूक ऑफ विसेयु, डॉम फर्नैन्डो के यहां एक नाइट थे। डॉम फर्नैन्डो ने साइन्स का नागर-राज्यपाल नियुक्त किया हुआ था। वे तब साइन्स के कुछ साबुन कारखानों से कर वसूलते थे। एस्तेवाओ द गामा का विवाह डोना इसाबेल सॉद्रे से हुआ था। वास्को द गामा के परिवार की आरंभिक जानकारी अधिक ज्ञात नहीं है। पुर्तगाली इतिहासकार टेक्सियेरा द अरागाओ बताते हैं, कि एवोरा शहर में वास्को द गामा की शिक्षा हुई, जहां उन्होंने शायद गणित एवं नौवहन का ज्ञान अर्जित किया होगा। यह भी ज्ञात है कि गामा को खगोलशास्त्र का भी ज्ञान था, जो उन्होंने संभवतः खगोलज्ञ अब्राहम ज़क्यूतो से लिया होगा।१४९२ में पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय ने गामा को सेतुबल बंदरगाह, लिस्बन के दक्षिण में भेजा। उन्हें वहां से फ्रांसीसी जहाजों को पकड़ कर लाना था। यह कार्य वास्को ने कौशल एवं तत्परता के साथ पूर्ण किया। पंद्रहवीं सदी की शुरुआत में पश्चिम स्पेनी राज्य पुर्तगाल के राजा जॉन के बेटे बड़े हो रहे थे और उस समय तक जेरुशलम समेत समूचे मध्य-पूर्व पर मुस्लिम शासकों का कब्ज़ा हो गया था। पूर्व (चीन, भारत और पूर्वी अफ़्रीक़ा) से आने वाले रेशम, मसालों और आभूषणों पर अरब और अन्य मुस्लिम व्यापारियों का कब्जा था - जो मनचाहे दामों पर इसे यूरोप में बेचते थे। सन् १४१२ की गर्मियों में जॉन के तीन बेटों - एडवर्ड (उम्र २० वर्ष), पीटर तथा हेनरी (१८ वर्ष) ने विचार किया कि उन्हें राजकुमार और नाइट (यानि सामंत) के उबाते काम से अधिक कुछ रोमांचक तथा चुनौती भरा काम सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने अपने पिता से ये कहा। जॉन का एक सेवक अभी स्युटा (उत्तरी अफ्रीकी तट) से मुस्लिम क़ैदियों के बदले धन लेकर लौटा था। पिछले सात सौ सालों में इस्लाम के शासन में आने के बाद अगर स्युटा को पुर्तगाली आक्रमण से परास्त किया जाय तो यह निश्चित रूप से एक चुनैती भरा काम होता। स्युटा ना सिर्फ एक व्यस्त पत्तन बाज़ार था, बल्कि उस समय मोरक्को, पिछले ३० सालों से अराजकता में फंसा था। काफी ना-नुकुर करने और रानी फिलिपा के आग्रह के बाद जॉन ने आक्रमण की एक योजना तैयार की। हॉलेंड पर आक्रमण की तैयारी के मुखौटे लगाकर स्युटा पर आक्रमण कर दिया। जुलाई १४१५ में स्युटा को फतह कर लिया गया। हेनरी, एडवर्ड और पीटर तीनों ने इस युद्ध में सेनानी का काम किया। लेकिन आर्थिक रूप से कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ - मुसलमानों ने स्युटा के बदले टांजयर से व्यापार करना चालू किया और स्युटा के पत्तन खाली रहे। उस समय यूरोप में कई भ्रांतियाँ प्रचलित थी। उनमें से एक ये थी कि अफ्रीक़ा में, कहीं अंदर दक्षिण में, एक सोने की नदी बहती है। पर वहाँ पहुँचने का मतलब था - सहारा मरुस्थल में मौजूद मुस्लिम अरब और बर्बर सेना को हराना। हेनरी के विचार में ये करना संभव और जरूरी था - आख़िरकर सात सौ साल पहले उत्तरी अफ्रीका पर ईसाईयों (स्पेन, रोमन या ग्रीक) का कब्जा था। उसने अपने पिता से टैंजियर पर आक्रमण की योजना का अनुरोध किया लेकिन जॉन को ऐसा संभव नहीं लगा। टैंजियर दूर था और अधिक सुरक्षित था । जान की मृत्यु के बाद हेनरी का भाई एडवर्ड (सबसे बड़े) का राज्याभिषेक १४३३ में हुआ। काफी अनुरोध के बाद हेनरी को टैंजयर पर आक्रमण की अनुमति मिल गई। लेकिन नौसेनिकों के समय पर ना पहुँचने के बावजूद हेनरी, बची-खुची ७००० की सेना लेकर टैंजियर १४३७ में पहुँच गया। जैसा कि प्रत्याशित था - उसे हार का मुँह देखना पड़ा। उसके सेनापतियों ने वापस निकलने की कीमत स्युटा को मोरक्कन हाथों में सौंपने की बात की। हेनरी को ये मंजूर नहीं था - वो अपने भाई फर्डिनांड को बंधक के रूप में रख आया। फर्डिनांड जेल में मर गया। इसी बीच इस्तांबुल पर उस्मानी तुर्कों का अधिकार मई १४५३ में हो गया। तुर्क सुन्नी मुस्लिम थे और इस तरह यूरोपियों के पूर्व के व्यापार का रास्ता संपूर्ण रूप से मुस्लिम हाथों में चला गया। वेनिस और इस्तांबुल के बाज़ारों में चीज़ों के भाव बढ़ने लगे। इसके बाद स्पेनी और पुर्तागली (और इतालवी) शासकों को पूर्व के रास्तों की सामुद्रिक जानकारी की इच्छा और जाग उठी। पूर्व के रास्ते - प्रथम प्रयास तेरहवीं सदी में मार्को पोलो मंगोलों के साम्राज्य होते हुए चीन तक पहुँच गया था। उसने लौटने के बाद अपने जेल के साथी को बताया कि हिन्दुस्तान पूर्व में है। सन् १४१९ में वेनिस के निकोलो द कोंटी ने अरबी और फारसी सीखी और अपने को मुस्लिम व्यापारी भेष में छिपा कर भारत की खोज में निकल पड़ा। उसने २५ सालों तक पूर्व की यात्रा की, भारत पहुँचा और कई महत्वपूर्ण जानाकारियाँ दी - जिनमें भारत के पत्तनों पर चीन से बड़े जहाजों के आने की घटना एकदम अप्रत्याशित थी। सन् १४७१ में अंततः टैंजियर पर पुर्तगाली अधिकार हो गया लेकिन हेनरी सन् १४७४ में मर गया। पुर्तगाल के अब राजा जॉन ने डिएगो केओ को अफ्रीकी तटों पर यात्रा करने के लिए भेजा। केओ ने १४८२ में कांगो की सफल यात्रा की और वहाँ एक शिला स्थापित की। सन् १४८४ में जब वो लौटा तो उसका बहुत स्वागत हुआ और उसे नोबल (सामंत) की पदवी दी गई। एक बार पुनः अपने लक्ष्य की खोज में निकले डिएगो ने सन् १४८६ में नामीबिया तक की यात्रा की - यह अफ्रीका के दक्षिणी बिन्दु से सिर्फ ८०० किलोमीटर उत्तर में था। लेकिन, लौटते समय वो कांगो में प्रेस्टर जॉन को ढूंढने निकला और फिर उसका कोई पता नहीं चला। यूरोप में प्रचलित भ्रांतियों में से एक ये भी थी कि पूर्व में कहीं एक प्रेस्टर जॉन नाम का राजा रहता है जो ईसाई है और अपार सपत्ति का मालिक है। पुर्तागालियों को भरोसा था कि ये राजा भारत (या पूर्वी अफ्रीका) का राजा है। इसका पता लगाने के लिए पुर्तगालियों के राजा जॉन ने दो गुप्तचरों को पूर्व की जमीनी यात्रा पर भेजा। लेकिन जेरुशलम पहुँचने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि अरबी सीखे बिना यहां से आगे बढ़ना संभव नहीं है - वे लौट गए। इसके बाद मई १४८७ में पेरो दा कोविल्हा और अफ़ोन्सो द पेवा को गुप्त यात्रा पर भेजा। वे मिस्र में सिकंदरिया और काहिरा पहुँच गए। उनमें से पेरो अदन, लाल सागर होते हुए कालीकट (भारत) पहुँच गया। व्यापार और मार्गों को उसने निरीक्षण किया और काहिरा लौट गया। वहाँ उसकी दो पुर्तगाली यहूदियों से मुलाकात हुई जिनको राजा जॉन ने भेजा था। जानकारियों का आदान प्रदान हुआ और कोविल्हा दक्षिण की ओर इथियोपिया चला गया। वहाँ से वो लौटना चाहता था लेकिन उसके विश्व-ज्ञान को देखकर राजा सिकंदर ने उसे अपना सलाहकार नियुक्त किया और बाद में पुर्तगाल भेजने का वादा किया। लेकिन वो जल्दी मर गया और उसके बेटे ने उसकी ये कामना पूरी नहीं की। कोविल्हा वहीं पर बस गया। सन् १५२६ के किसी पुर्तगाली मिशन ने बाद में पाया कि कोविल्हा इथियोपिया में तंदुरुस्त, सफल और स्वस्थ अवस्था में था - उसने वहीं शादी कर ली और ७४ वर्ष की आयु में मरा। सन् १४८७ के अगस्त महीने में ही पुर्तगाली राजा ने बर्तोलोमेयो डियास (या डियाज़) नाम के नाविक को अफ्रीका का चक्कर लगाने के लिए भेजा। वो पहला यूरोपियन नाविक था जो दक्षिणतम अफ्रीका के तट - उत्तमाशा अंतरीप - के पार पहुंचा। लेकिन भयंकर समुद्री तूफान से परास्त होकर वापस लौट गया। लेकिन उसके पश्चिम से पूरब की तरफ जा सकने से यह साबित हो गया कि अफ्रीका का दक्षिणी कोना है और दुनिया यहीं ख़त्म नहीं हो जाती - जैसाकि पहले डर था। इसी बीच राजा मैनुएल ने भारत के लिए एक चार नौकाओं वाले दल का विचार रखा। इस दल का कप्तान गामा को चुना गया। कई लोग इससे चकित थे - क्योंकि आसपास की लड़ाईयों के अलावे गामा को किसी बड़े सामुद्रिक चुनौती का अनुभव नहीं था। लेकिन अनुशासित और राजा के विश्वस्त होने के कारण उसे नियुक्त कर लिया गया। ८ जुलाई, १४९७ के दिन चार जहाज़ लिस्बन से चल पड़े और उसकी पहली भारत यात्रा आरंभ हुई। साओ गैब्रिएल - इसके नाविकों में से प्रमुख थे: मुख्य चालक पेरो द अलेंकर, जो बर्तोलोमेउ डियास के साथ उत्तमाशा अंतरीप तक और फिर कांगो तक गया था। उसके अलावे गोंज़ालो अलवारेस जो डिएगो केओ की दीसरी यात्रा पर साथ था और डिएगो डियास जो बर्तेलोमेओ डियास का भाई था किरानी की भूमिका में था। ये रफ़एल से थोड़ा बड़ा था और वास्को द गामा इसी जहाज पर था। साओ रफ़एल - चालक था जोआओ दे कोएंब्रा। इसके अलावे जोआओ दे सा किरानी की भूमिका में। इस जहाज का कप्तान गामा का भाई पाओलो द गामा था। बेरियो - संचालक था पेरो दे एस्कोबार जो डिएगो केओ के साथ कांगो गया था और अज्ञात नाम का एक भंडारण जहाज़ जिसका संचालन अफ़ोन्सो गोंज़ाल्वेस कर रहा था। लगभग १७० लोगों के इस बेड़े के अन्य महत्वपूर्ण नामों में मार्तिम अफ़ोन्सो और फ़र्नाओ मार्टिन्स का नाम था। अफ़ोन्सो कांगो में रहा था और अफ्रीकी बोलियों को जानता था जबकि फ़र्नाओ मोरक्को के कारावास में रहने के कारण अरबी समझता था। दस से बारह अभियुक्त भी इस जहाजी बेड़े में राजा द्वारा रखे गए थे (पुर्तगाली में डिग्रेडैडोस, यानि निष्कासित) जिनको ख़तरनाक स्थलों पर जानकारी और खोजी कामों को पूरा करने का काम दिया गया था। प्रत्याशित रूप से जहाज पर कोई महिला सवार नहीं थी। चलने के एक सप्ताह बाद, १५ जुलाई को वो केनेरी द्वीपों तक पहुँचे और उसके बाद छाए धुंध की वजह से जहाज अलग हो गए। केप वर्डे में उनकी मुलाकात होनी तय थी लेकिन पाओलो द गामा को कोई और जहाज वहाँ नजर नहीं आया। हांलांकि बेरिओ और भंडारण जहाज कुछ घंटो के भीतर आ गए। गामा का जहाज अगले चार दिनों तक नहीं मिला। मिलने के बाद वो वहाँ एक सप्ताह तक रुके और फिर ३ अगस्त को रवाना हुए। अभी तक के सभी पुर्तगाली यात्राओं में नाविकों के जहाज अफ्रीका के तट के निकट से गुजरते थे - बार्तेलोमेयो डियास के भी। लेकिन एक तूफानी हवा, जो तट से दूर खुले अटलांटिक में बहती है नाविकों को उत्तमाशा अंतरीप तक तेजी से धकेल देती है -ऐसा वास्को द गामा ने सुन रखा था। उसने अपने नाविकों को पूर्व की ओर मुड़ कर अफ्रीका के तीरे चलने की बजाय खुले समुद्र में दक्षिण की ओर चलने को कहा। कई दिनों तक खुले समुद्र में चलने और कोई जमीन या आशा न देखने के बाद १ नवम्बर वो जमीन के निकट आए। ये उत्तमाशा से कोई १५0 किलोमीटर पहले रहा होगा। लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। जहाज की मरम्मती और अपने नक्शे देखने के बाद लोगों ने विश्राम किया। जहाज पर मौजूद वृत्तांतकार ने लिखा कि लोगों की चमड़ी का रंग भूरा है, वे सील, व्हेल या हिरण का मांस और वनस्पति की जड़ी खाते है। वे चमड़े के वस्त्र पहनते हैं और उनके साथ कुत्ते हमेशा चलते हैं। वहाँ से वो १6 नवम्बर को चले। बर्तेलेमेओ डियास के दिए नक्शे से तट रेखा बुल्कुल मेल नहीं खा रही थी, लेकिन वे चलते रहे और २२ नवम्बर को उत्तमाशा अंतरीप पहुँचे। वहाँ पर डियास द्वारा स्थानीय लोगों के साथ हुए झड़पों की ख़बर उन्हें मिल चुकी थी, लेकिन उनके साथ भी वहाँ पर झड़प हो गई। जहाजों का मरम्मत के बाद ७ दिसम्बर को वो वहाँ से चले। १६ दिसम्बर को वो उस नदी के मुहाने पर पहुँचे जहाँ से बर्तेलोमेउ डियास के नाविकों ने उसे वापस जाने पर मजबूर किया था। उनको वहाँ डियास द्वारा स्थापित क्रॉस दिखा। इसके बाद के रास्तों पर आज तक कोई नहीं पहुँचा था - इसलिए पहले से बने मानचित्र बेकार हो गए और उन्हें नया मानचित्र बनाना पड़ा। तट के सहारे वे उत्तर चले। चूंकि वह क्रिसमस के आसपास का समय था, द गामा के कर्मीदल ने एक तट का नाम, जिससे होकर वे गुजर रहे थे, "नैटाल" रखा। इसका पुर्तगाली में अर्थ है "क्रिसमस" और उस स्थान का यह नाम आज तक इस्तेमाल में है (क्वाज़ुलु-नटाल)। जनवरी तक वे लोग आज के मोज़ाम्बीक तक पहुँच गए थे, जो पूर्वी अफ़्रीका का एक तटीय क्षेत्र है जिसपर अरब लोगों ने हिन्द महासागर के व्यापार नेटवर्क के एक भाग के रूप में नियंत्रण कर रखा था। उनका पीछा एक क्रोधित भीड़ ने किया जिन्हें ये पता चल गया कि वास्को और उसके लोग मुसलमान नहीं हैं और वे वहाँ से कीनिया की ओर चल पड़े। कीनिया के मोम्बासा में भी उसका विरोध हुआ। पहुँचने के बाद उसे बताया गया कि मोम्बासा शहर में कई ईसाई रहते हैं। जहाज को तट से दूर रखने के बाद कुछ नाविक शहर के दौरे पर गए जहाँ उन्हें गोरे (पीले) ईसाईयों से मुलाकात हुई। बाद में पता चला कि मोज़ाम्बिक से खबर मिलने के बाद वहाँ के सुल्तान ने उन्हें फंसाने के लिए एक योजना तैयार कर रखी थी। गामा वहाँ से भाग निकला - पर उसे भारत पहुँचने के लिए दिशाओं के जानकार नाविकों या निदेशकों की जरुरत थी। उसने एक छोटी नाव पर आ रहे चार लोगों को पकड़ लिया। एक बूढ़े मुसलमान व्यापारी ने बताया कि पास के तट मालिंदी में भारतीय नाविक रहते हैं। कोई चारा न देख वास्को मालिंदी पहुँचा। भारतीयों को देशकर उसे लगा कि ये ईसाई है - कृष्णा के उच्चारण को वो क्राइस्ट समझ रहे थे। मालिंडि () में, द गामा ने एक भारतीय मार्गदर्शक को काम पर रखा, जिसने आगे के मार्ग पर पुर्तगालियों की अगुवाई की और उन्हें २० मई, १४९८ के दिन कालीकट (इसका मलयाली नाम कोळीकोड है), केरल ले आया, जो भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित है। वहाँ के राजा (समुदिरी, पुर्तगाली इसे ज़ामोरिन कहने लगे) ने उन्हें कालीकट के पत्तन पर आने का न्यौता दिया लेकिन गामा के राह में इतनी बाधाएँ आईं थीं कि उसे लगा कि ये भी दुश्मन ही होंगे। लेकिन वो मिलने के लिए वली (अरबी में शासक) से मिला और फिर संगीत के साथ कालीकट में ज़ामोरिन (सामुदिरी) ने गामा का स्वागत किया। वहाँ पर राज-दरबार में आने से पहले उसे एक मंदिर मिला जहाँ अंदर में उसे एक देवी की मूर्ति दिखी । पुर्तागलियों को लगा कि ये मरियम की मूर्ति है और उसे भरोसा हो गया कि ज़मोरिन एक ईसाई शासक है। वो मूर्ति शायद मरियम्मा देवी की थी जिसे वो ईसामसीह की माँ मरियम समझ रहे थे। वृत्तकार जो गामा के साथ उस दल में शामुल था जिनको जामोरिन ने स्वागत किया था, लिखा - "इस देश के लोग भूरे हैं, छोटे कद के और पहले देखने से ईर्ष्यालु और मतलबी लगते हैं। मर्द कमर के उपर कुछ नहीं पहनते (शायद धोती, या वेष्टी)। कुछ बाल बड़े रखते हैं जबकि कई सर मुंडवा लेते हैं। महिलाएँ सामान्यतया सुन्दर नहीं दिखती हैं। " फर्नाओ मार्टिन्स ने ज़ामोरिन से मुलाकात में गामा का अरबी अनुवाद किया। दरबार में मुस्लिम सलाहकारों ने उसे व्यापार की बात करने में कई अड़चने पैदा की। उन्होंने गामा के लाए उपहार की खिल्ली उड़ाई और उसे राजा से मिलाने में देरी की। इसके अलावे उसके पास राजा (सामुदिरी) के लिए उचित कोई उपहार भी नहीं था। ऐसे कारणों से उसे ज़मोरिन से लड़ाई हो गई। सामुदिरी यानि ज़ामोरिन के मुस्लिम मंत्रियों ने उससे (अलग में) व्यापार का कर मांगा। ज़ामोरिन ने उसके द्वारा आग्रह किए गए स्तंभ (संभवतः क्रॉस या मरियम की मूर्ति) को भी खड़ा करवाने से मना कर दिया। सुलह और फिर लड़ाई चलती रही। राजा के मुस्लिम मंत्रियों ने उसके दल से कई लोगों को अगवा कर लिया। लेकिन समुद्र में उनके जहाज पर आए ग्राहकों को गामा ने बंदी बना लिया। अंत में उसे जाने की अनुमति मिली और अगस्त के अंत में वो रवाना हुआ - राजा ने उसको मलयालम में लिखा प्रशस्ति पत्र भी दिया जिसमें पुर्तगाल के राजा जॉन के नाम संदेश था कि वॉस्को यहाँ आया था। लेकिन अगले ही दिन कोई ७० अरबी जहाज वहाँ आक्रमण के लिए आते दिखे। इसके जवाब में उसने गोली-बारी की। कुछ भारतीय बंधकों के साथ सितंबर १४९८ में वापस पुर्तगाल के लिए लौट गया। जनवरी में वो स्वाहिली तट पर दुबारा पहुँचा। जहाज पर कोई ५०० दिन गुज़र गए थे - लोग थक और बीमार हो चले थे। पश्चिम अफ्रीकी तट पर घर से कोई २ सप्ताह की दूरी पर रहने के समय उसका भाई -और दल के तीन जहाजों में से एक का कप्तान, पॉलो द गामा - बीमार पड़ गया और मारा गया। उसने बाक़ी जहाजों को लिस्बन लौट जाने का आदेश दिया और भाई को दफ़नाने के बाद अपने दल से पीछे लिस्बन पहुँचा। वहाँ उसका भयंकर स्वागत हुआ। गामा ने वापस आकर अपना वृत्तांत राजा मैनुएल को सुनाया। अपने पूर्वाग्रहों के विपरीत उसे भारत के ईसाई अलग लगे और वे पुर्तगाल को पहचान न सके - जिससे उसे अचरज हुआ। भारत में (मालाबार तट पर) मुस्लिमों की उपस्थिति से भी उसे दुविधा हुई। अफ्रीका में हर जगह मुस्लिम शासन और अरब सागर में मुस्लिम (मूर और अरब) व्यापारियों की तादाद को देखकर उसको अपने "ईसाई कर्तव्य" की याद आई और उसने दो सालों के अन्दर दो और मिशन भेजे। जनवरी १५०० इस्वी का समय बहुत ही शुभंकर लगा, पर मिशन भेजने में २ महीनों की देरी हो गई। मार्च १५०० में पेद्रो आल्वारेज़ काब्राल की अगुआई में १३ जहाज लिस्बन से चले। उनका लक्ष्य अफ्रीका और भारत में व्यापार के आधार (फैक्टरी और उपनिवेश) लगाने के अलावे जामोरिन को मुस्लिम व्यापारियों को भगा देने का आग्रह भी था। लेकिन कई जहाज उत्तमाशा अंतरीप पर पहुँचने के गामा के बताए दक्षिण-पश्चिम और फिर पूर्व जाने के छोटो रास्ते पर जाने के क्रम में खो गए। काब्राल कालीकट पहुँचा - नए जामोरिन ने यूरोपीय जहाजों का व्यापार स्वीकार किया और सुरक्षा का आश्वासन दिया। लेकिन उस साल के लिए अरब व्यापारी पत्तन में पहुँच चुके थे। केब्राल ने अरब जहाज को पकड़ लिया - ये कहकर कि ये जामोरिन के साथ हुई व्यापार संधि का उल्लंघन है। इसके जवाब में उन्होंने पुर्तगाली फैक्ट्री के सभी ७० लोगों को मार दिया। लेकिन काब्राल की यात्रा पूर्ण असफलता नहीं थी - उसने आते वक़्त सोफाला और किल्वा के राजाओं से संपर्क स्थापित किया। वो भारत में कुन्नूर भी गया और कुछ जहाज जो 'खो गए थे" - दक्षिण अमेरिका पहुँच गए थे। इससे पहले के कब्राल लौट पाता, मैनुएल प्रथम ने होआओ द नोवा के नेतृत्व में ४ जहाजों के साथ निकला। काब्रल के छोड़े एक संदेश को अफ्रीका के तट पर एक पुराने जूते में टंगा पाया और कालीकट पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने कई मुस्लिम जहाजों पर आक्रमण किया। कुन्नूर में एक फैक्टरी लगार वापस पुर्तगाल लौट गया। इस प्रकार पुर्तगाल के जहाजों ने अगले २० सालों के लिए उसने कालीकट के शासकों से दुश्मनी मोल ले ली। सन् १५०२ में वास्को को दुबारा भेजा गया। उसकी अगली यात्रा १५०२ में हुई, जब उसे ये ज्ञात हुआ की कालीकट के लोगों ने पीछे छूट गए सभी पुर्तगालियों को मार डाला है। अपनी यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी भारतीय और अरब जहाज़ो को उसने ध्वस्त कर दिया और कालीकट पर नियंत्रण करने के लिए आगे बढ़ चला और उसने बहुत सी दौलत पर अधिकार कर लिया। इससे पुर्तगाल का राजा उससे बहुत प्रसन्न हुआ। वो कोचीन, कुन्नुर और गोवा भी गया। कोचीन के दक्षिण में उसे सदियों से रह रहे ईसाईयों (संत थॉमस, सन् ५४ से) का पता चला। गामा ने कुछ पुर्तगालियों को वहीं छोड़ दिया और उस नगर के शासक ने उसे भी अपना सब कुछ वहीं छोड़ कर चले जाने के लिए कहा, पर वह वहाँ से बच निकला। उसकी दूसरी यात्रा पुर्तगाली राजा के मिशन के हिसाब से बहुत सफल रहा क्योंकि उसने अरब व्यापारियों के कड़ी लड़ाई की - जामोरिन को व्यापार के लिए मजबूर किया और भारत में रह रहे ईसाईयों का पता लगाया। बाद की यात्रा सन् १५२४ में वह अपनी अंतिम भारत यात्रा पर निकला। उस समय पुर्तगाल की भारत में उपनिवेश बस्ती के वाइसरॉय (राज्यपाल) के रूप में आया, पर वहाँ पहुँचने के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। दिसंबर १५२४ में इनकी मृत्यु मलेरिया के कारण हो गई। मरने के बाद इसे कोच्चि (भारत) में दफना दिया गया। लेकिन१५३९ में इसको सोने चांदी से बने ताबूत में ले जाकर पुर्तगाल के लिसवन के बेलेम (राजशाही कब्रिस्तान) मे दफना दिया गया। पुर्तगाली राजकुमार और अन्वेषक हेनरी के बाद वास्तो द गामा सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक खोजकर्ताओं में था। तीन महादेशों और दो महासागरों को पार करने के बाद भी अरब सागर में अरब व्यापारियों और अफ्रीकी साम्राज्यों से लड़ने और फिर भारत आकर अपने साथ लाए पुर्तगाली राज-संदेश तथा उसकी हिफाजत के लिए राजा (ज़ामोरिन) से युद्ध और सफलता उसके दृढ़-निश्चय को दिखाती है। वास्को को वापस पहुँचने के बाद पुर्तगाल में एक सफल सैनिक की तरह नवाजा गया। अपने समकालीन कोलम्बस के मुकाबले उसकी लम्बी यात्रा में भी बग़ावत नहीं हुई और थकने के बाद भी अपने लक्ष्य पर जमे रहा। वास्को द गामा के भारत पहुँचने पर अरब और मूर व्यापारियों के मसाले के व्यापार को बहुत धक्का लगा। इस व्यापार को हथियाने के लिए वास्को द गामा ने न सिर्फ खतरनाक और परिश्रमी यात्रा की, बल्कि कई युद्ध भी लड़ा। अपने बेहतर बंदूकों (या छोटे तोपों) की मदद से वो अधिकांश लड़ाईयों में सफल रहा। इससे अदन (अरब)-होरमुज (ईरान)-कालीकट जल-व्यापार मार्ग टूट या कमज़ोर पड़ गया। उसकी सफलता को देखते हुए पुर्तगाल के राजा मैनुएल ने भारत और पूर्व के कई मिशन चलाए। अल्बुकर्क, जो उसकी तासरी यात्रा से पहले पुर्तगाल से भेजा गया था, ने अरब सागर में अरबों के व्यापार और सामुद्रिक सेना और संपत्ति को तहस-नहस कर दिया और खोजी मलेशिया (मलाका) और फिर चीन (गुआंगजाउ, पुर्तगालियों का रखा नाम - कैंटन) तक पहुँच गए। सोलहवीं सदी के अत तक अरबी भाषा की जगह टूटी-फूटी पुर्तगाली व्यापार की भाषा बन गई। इस समय पुर्तगाल एक सामुद्रिक शक्ति बन गया। भारत में जहाँ वो एक बार पहुँचा था उसका नाम उसके सम्मान में वास्को-डि-गामा (गोवा में) रखा गया है। चाँद के एक गढ्ढे का और पुर्तगाल में कई सडकों का नाम वास्को के नाम पर रखा गया है। २०११ में बनी मूलतः मलयालम फिल्म उरुमि में उसको एक खलनायक की तरह दिखाया गया है, निर्देशक - संतोष शिवन। पुर्तगाली भारत के वाइसरॉय खोज का युग हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
मणिकर्णिका निम्नलिखित में से किसी के लिए प्रयुक्त हो सकता है: मणिकर्णिका घाट भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित श्मसान घाट है। मणिकर्णिका ताम्बे झांसी नामक मराठा राज्य की भारतीय रानी। मणिकर्णिका: झाँसी की रानी मणिकर्णिका ताम्बे के जीवन पर बनी २०१९ की भारतीय फ़िल्म। मणिकर्णिका एक्सप्रेस सिकन्दराबाद-धनपुर की एक भारतीय ट्रेन का पूर्व नाम। मणिकर्णिका टैंक भारतीय राज्य ओड़िशा में स्थित एक जलाशय
विश्वेश्वरैया औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय बंगलुरू स्थित भारत का औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय है। इन्हें भी देखें बिड़ला औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय
मनमोहन झा मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानीसंग्रह गंगापुत्र के लिये उन्हें सन् २००९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मैथिली भाषा के साहित्यकार
राजा गुहादित्य गुहिल वंश के राजा थे , राजा गूहिल को मेवाड़ का वास्तविक संस्थापक माना गया है । इनके पिता शिलादित्य वल्लभी के शासक थे , , वल्लभी पर मल्लेच्छो ने आक्रमण कर वल्लभी साम्राज्य को जीत लिया। शिलादित्य की रानी पुष्पवती ने मल्हियाँ गुफा के भीतर गुहिल को जन्म दिया , गुहिल का जन्म गुफा के भीतर हुआ इसलिए माता पुष्पावती ने बालक का नाम गोह रखा , गुहिल को कमलावती ने ईडर के राजा मांडलिक के पास संरक्षण के लिए रख दिया । ईडर के राजा मांडलिक भील ने गुहिल का लालन-पालन किया और कुछ जंगल दान में दिया । राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार कर्नल जेम्सटॉड के अनुसार , राजा गुहादित्य ने इडर के भील राजा मांडलिक की हत्या कर , ईडर के शासक बने और फिर राजस्थान के कई इलाकों पर अपना अधिकार कर लिया ।५६६ ई में गुहादीत्य ने गुहिल वंश की नींव रखी और नागदा को अपनी राजधानी बनाया।
पोंडर कनाली (पॉन्डर कनाली) भारत के झारखंड राज्य के धनबाद ज़िले में स्थित एक शहर है। इन्हें भी देखें झारखंड के शहर धनबाद ज़िले के नगर
शिक्षा अर्थशास्त्र या शिक्षा का अर्थशास्त्र (एडउकेशन इकनॉमिक्स या इकनॉमिक्स ऑफ एडउकेशन) से आशय शिक्षा से सम्बन्धित आर्थिक विषयों (मुद्दों) के अध्ययन से है। शिक्षा से जुड़े आर्थि कुछ मुद्दे ये हैं- शिक्षा की मांग, शिक्षा के लिए वित्त की व्यवस्था, विभिन्न शिक्षण कार्यक्रमों और नीतियों की दक्षता का तुलनात्मक अध्ययन, आदि। स्कूली-शिक्षा और श्रम बाजार के सम्बन्ध से शुरू होकर शिक्षा अर्थशास्त्र अब एक व्यापक अध्ययन-क्षेत्र बन चुका है।
अटसीनानाना के वर्षा वन माडागास्कर में स्थित एक विश्व धरोहर स्थल है। इस स्थल को यह दर्जा सन २००७ में मिला। मेडागस्कर में विश्व धरोहर स्थल
रेथ ज़ी टीवी के लोकप्रिय धारावाहिकों में से एक था जो १२ जुलाई २००४ और ३ फरवरी २००६ के बीच प्रसारित हुआ था, जो एक युवा बहू जिया की कहानी पर आधारित था, जिसका उसके साथ झगड़ा होता है। नया परिवार. एक बलात्कार पीड़िता सामूहिक बलात्कार के बाद अपना सम्मान वापस पाने की कोशिश करती है। जिया एक सामान्य मध्यवर्गीय बहू थी, जब तक कि एक घटना ने उसके लिए सब कुछ नहीं बदल दिया। अपनी अविवाहित भाभी को बलात्कार से बचाने के लिए वह खुद को बलात्कारियों के सामने फेंक देती है। हालाँकि उसका वैवाहिक परिवार उसके बलिदान की सराहना करता है, लेकिन वे उसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं करते हैं। बहिष्कृत होने के बावजूद वह कलंक से लड़ती है। जिया शेखर पांडे के रूप में तेजल शाह / दीपा परब क्षोम के रूप में दिवाकर पुंडीर शेखर पांडे के रूप में अंकुर नैय्यर / सचिन वर्मा आरुषि (आरू) पांडे के रूप में आम्रपाली गुप्ता देवयानी समर पांडे के रूप में नूपुर अलंकार नेत्र शेखर पांडे के रूप में काम्या पंजाबी डॉ. दाक्षी के रूप में किश्वर मर्चेंट छवि के रूप में कनिका माहेश्वरी अनंग देसाई ज्ञान पांडे के रूप में रुक्मिणी ज्ञान पांडे के रूप में अनीता वाही / उत्कर्षा नाइक तनु के रूप में साई देवधर मानस के रूप में हर्ष वशिष्ठ देवयानी की माँ के रूप में अमरदीप झा जिया की मां के रूप में सुहिता थट्टे समर पांडे के रूप में राजीव कुमार क्षोम और छवि की मां के रूप में शिल्पा तुलस्कर हर्ष के रूप में राजीव भारद्वाज: आरुषि के पति हर्ष के रूप में गिरीश जैन : आरुषि का प्रेमी ज़ी टीवी के कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
उत्सर्जन व्यापार (कैप एंड ट्रेड के रूप में भी ज्ञात) एक प्रशासनिक दृष्टिकोण है जिसका प्रयोग प्रदूषकों के उत्सर्जन में कटौती को प्राप्त करने पर आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करके प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। एक केन्द्रीय प्राधिकरण (आमतौर पर एक सरकारी निकाय), उत्सर्जित किए जा सकने वाले प्रदूषक की मात्रा पर एक सीमा या कैप निर्धारित करता है। कंपनियों या अन्य समूहों को उत्सर्जन परमिट जारी किए जाते हैं और उन्हें एक बराबर संख्या में छूटें (या क्रेडिट) रखने की आवश्यकता होती है जो उत्सर्जन करने की एक विशिष्ट मात्रा के अधिकार को दर्शाता है। छूट और क्रेडिट की कुल मात्रा, सीमा से अधिक नहीं हो सकती, जो कुल उत्सर्जन को उस स्तर तक के लिए सीमित कर देती है। वे कंपनियां जिन्हें अपने उत्सर्जन छूट को बढ़ाने की जरूरत है, उनके लिए यह आवश्यक है कि वे उन लोगों से क्रेडिट खरीदें जो कम प्रदूषण करते हैं। इन छूटों का स्थानांतरण व्यापार कहलाता है। जवाब में, खरीददार, प्रदूषण के लिए एक शुल्क दे रहा है, जबकि विक्रेता को, उत्सर्जन को आवश्यकता से अधिक कम करने के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है। इस प्रकार, सिद्धांत रूप में, जो लोग उत्सर्जन को सबसे सस्ते तरीके से कम कर सकते हैं वे ऐसा करेंगे, समाज पर न्यूनतम असर के साथ प्रदूषण में कमी को प्राप्त करना। विभिन्न वायु प्रदूषकों में सक्रिय व्यापार कार्यक्रम मौजूद हैं। ग्रीनहाउस गैसों के लिए सबसे बड़ी यूरोपियन यूनियन एमिशन ट्रेडिंग स्कीम है। संयुक्त राज्य अमेरिका में अम्ल वर्षा को कम करने के लिए एक राष्ट्रीय बाज़ार है और नाइट्रोजन आक्साइड में कई क्षेत्रीय बाज़ार हैं। अन्य प्रदूषकों के लिए बाज़ार अपेक्षाकृत छोटे और अधिक स्थानीयकृत हुआ करते हैं। एक उत्सर्जन व्यापार योजना का समग्र लक्ष्य, निर्धारित उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की लागत को न्यूनतम करना है। कैप, उत्सर्जन पर प्रवर्तनीय सीमा है जिसे आमतौर पर समय के साथ कम किया जाता है - जिसकी दिशा एक राष्ट्रीय उत्सर्जन लक्ष्य की ओर होती है। अन्य प्रणालियों में कारोबार किए गए सभी क्रेडिट के एक हिस्से को लौटाना आवश्यक होता है, जिससे प्रत्येक व्यापार के समय उत्सर्जन में एक शुद्ध कमी होती है। कई कैप एंड ट्रेड प्रणाली में, जो संगठन प्रदूषण नहीं फैलाते हैं वे भी भाग ले सकते हैं, इस प्रकार पर्यावरण समूह छूट या क्रेडिट को खरीद सकते हैं और निवृत्त कर सकते हैं और इस प्रकार मांग के नियम के अनुसार बचे हुए की कीमत को बढ़ा सकते हैं। निगम, छूटों को किसी गैर-लाभ संस्था को दान करके समय से पहले भी उन्हें लौटा सकते हैं और फिर एक कर कटौती के लिए पात्र हो सकते हैं। अर्थशास्त्रियों ने, पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए निदेशात्मक "आदेश और नियंत्रण" विनियमन के बजाय, "बाज़ार-आधारित" उपकरणों के प्रयोग का आग्रह किया है जैसे कि उत्सर्जन व्यापार. आदेश और नियंत्रण विनियमन के अत्यधिक कठोर, प्रौद्योगिकीय और भौगोलिक भिन्नताओं के प्रति असंवेदनशील और अप्रभावकारी होने के कारण आलोचना की गई है। हालांकि, उत्सर्जन में प्रभावी ढंग से कटौती करने के लिए, उत्सर्जन व्यापार को एक कैप (सीमा) की आवश्यकता होती है और कैप एक सरकारी नियामक तंत्र है। एक सरकारी राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा एक सीमा को निर्धारित किए जाने के बाद, व्यक्तिगत कंपनियां यह चुनाव करने के लिए मुक्त हैं कि क्या और कितना वे अपने उत्सर्जन को कम करेंगी। उत्सर्जन को कम करने में विफलता को अक्सर एक अन्य सरकारी विनियामक तंत्र द्वारा दण्डित किया जाता है, एक जुर्माना जो उत्पादन की लागत को बढ़ा देता है। प्रदूषण विनियमन का पालन करने के लिए कंपनियां सबसे कम लागत वाले तरीके को चुनेंगी, जो कटौती को प्रेरित करेगा जहां सबसे कम महंगे समाधान हों, जबकि उन उत्सर्जन की अनुमति देगा जिन्हें कम करना अधिक महंगा है। आगे चलकर "कैप-एंड-ट्रेड" कहे जाने वाले इस वायु प्रदूषण नियंत्रण दृष्टिकोण की प्रभावकारिता को सूक्ष्म-आर्थिक कंप्यूटर छद्म अध्ययन की शृंखला में प्रदर्शित किया गया। इसे १९६७ और १९७० के बीच नैशनल एयर पौल्युशन कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए (यूनाईटेड स्टेट्स इन्वायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के वायु और विकिरण कार्यालय का पूर्ववर्ती) के लिए एलिसन बर्टन और विलियम संजोर्न द्वारा किया गया। इन अध्ययनों ने विभिन्न शहरों उनके उत्सर्जन स्रोतों के गणितीय मॉडल का इस्तेमाल किया ताकि विभिन्न नियंत्रण रणनीतियों की लागत और प्रभावकारिता की तुलना की जा सके। कटौती की प्रत्येक रणनीति का, एक कंप्यूटर अनुकूलन प्रोग्राम द्वारा निर्मित "न्यूनतम लागत समाधान" से मिलान किया जाता है ताकि दिए गए घटाव लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए न्यूनतम लागत वाले स्रोत कटौती के संयोजन की पहचान की जा सके। प्रत्येक मामले में यह पाया गया कि न्यूनतम लागत समाधान नाटकीय रूप से, कटौती की किसी भी पारंपरिक रणनीति से फलित प्रदूषण की समान मात्रा में कमी से सस्ता था। इसने "कैप एंड ट्रेड" की अवधारणा को, कटौती के दिए गए स्तर के लिए "न्यूनतम लागत समाधान" प्राप्त करने के एक उपाय के रूप में प्रेरित किया। इतिहास के क्रम में उत्सर्जन व्यापार के विकास को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है: गर्भ काल: उपकरण की सैद्धांतिक अभिव्यक्ति (कोस, क्रॉकर, डेल्स, मांटगोमेरी आदि द्वारा) और उस इन्वायरमेंटल एजेंसी में "लचीले विनियमन" के साथ पूर्व की फेर-बदल से मुक्त. सिद्धांत का सबूत: उत्सर्जन प्रमाणपत्र के व्यापार की दिशा में पहला विकास, स्वच्छ वायु अधिनियम में १९७७ में लिए गए "ऑफसेट-तंत्र" पर आधारित है। प्रोटोटाइप: १९९० क्लीन एयर एक्ट के शीर्षक इव में उस एसिड रेन प्रोग्राम के हिस्से के रूप में प्रथम "कैप-एंड-ट्रेड" प्रणाली का शुभारंभ, आधिकारिक तौर पर इसे पर्यावरण नीति में एक बदलाव के रूप में घोषित किया गया, जैसा कि "प्रोजेक्ट ८८" द्वारा तैयार किया गया था, अमेरिका में पर्यावरणीय और औद्योगिक हितों को साथ लाने के प्रयास में एक नेटवर्क-निर्माण पहल. शासन गठन: अमेरिकी स्वच्छ वायु नीति से फैलते हुए वैश्विक जलवायु नीति का रूप लेना और वहां से यूरोपीय संघ, जिसके साथ थी उभरते वैश्विक कार्बन बाज़ार की आशा और "कार्बन उद्योग" का गठन. कैप एंड ट्रेड बनाम एक आधाररेखा और क्रेडिट दृष्टिकोण के माध्यम से निर्मित ऑफसेट टेक्स्टबुक उत्सर्जन व्यापार कार्यक्रम को एक "कैप एंड ट्रेड" दृष्टिकोण कहा जा सकता है जिसमें सभी स्रोतों पर एक समग्र कैप स्थापित किया जाता है और फिर इन स्रोतों को आपस में व्यापार करने की अनुमति दी जाती है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन से स्रोत वास्तव में कुल प्रदूषण भार फैलाते हैं। महत्वपूर्ण अंतरों वाला एक वैकल्पिक दृष्टिकोण एक आधार-रेखा और क्रेडिट कार्यक्रम है। एक आधार-रेखा और क्रेडिट कार्यक्रम प्रदूषक में जो एक समग्र कैप के तहत नहीं हैं, अपने उत्सर्जन को उत्सर्जन के एक आधार-रेखा स्तर से नीचे पहुंचाते हुए क्रेडिट बना सकते हैं, आमतौर पर जिसे ऑफसेट कहा जाता है। इस तरह के क्रेडिट को प्रदूषकों द्वारा खरीदा जा सकता है जिनके पास एक नियामक सीमा है। अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार का अर्थशास्त्र यह संभव है कि कोई देश आदेश और नियंत्रण दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए उत्सर्जन को कम कर ले, जैसे विनियमन, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर. विभिन्न देशों में इस दृष्टिकोण की लागत अलग-अलग है क्योंकि मार्जिनल अबेटमेंट कॉस्ट कर्व (मैक) - प्रदूषण की एक अतिरिक्त इकाई को समाप्त करने की लागत - देशों के अनुसार भिन्न. एक टन को२ को समाप्त करने में चीन को $२ लग सकता है जबकि स्वीडन या अमेरिका को शायद इससे ज्यादा लगे। अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार बाज़ार, भिन्न मैक का लाभ उठाने के लिए निर्मित किए गए। एक सरल उत्सर्जन कैपिंग स्कीम की तुलना में, गेन्स फ्रॉम ट्रेड के माध्यम से व्यापार उत्सर्जन, विक्रेता और खरीददार, दोनों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकता है। दो यूरोपीय देशों पर विचार कीजिए, जैसे स्वीडन और जर्मनी. दोनों देश चाहें तो उत्सर्जन की पूरी आवश्यक मात्रा को स्वयं कम कर सकते हैं या फिर वे इसे बाज़ार में खरीदने या बेचने का चुनाव कर सकते हैं। इस उदाहरण के लिए हम यह मान लेते हैं कि स्वीडन की तुलना में जर्मनी काफी कम लागत से अपने को२ में कटौती कर सकता है, उदाहरण, मैक > मैकग जहां स्वीडन का मैक वक्र जर्मनी की तुलना में अधिक गहरा है (उच्च ढाल) और र्रेक उत्सर्जन की कुल मात्रा है जिसे एक देश द्वारा कम किए जाने की जरूरत है। ग्राफ के बाईं ओर जर्मनी के लिए मैक वक्र है। र्रेक, जर्मनी के लिए आवश्यक कटौती की मात्रा है, लेकिन र्रेक पर मैकग वक्र, को२ की बाज़ार छूट कीमत से प्रतिच्छेद नहीं करता है (बाज़ार छूट मूल्य = प = ). इस प्रकार, को२ छूट के बाज़ार मूल्य के आधार पर, जर्मनी के पास अधिक लाभान्वित होने की संभावना है यदि वह उत्सर्जन में आवश्यकता से अधिक कटौती करता है। दाईं तरफ स्वीडन के लिए मैक वक्र है। र्रेक, स्वीडन के लिए कटौती की आवश्यक मात्रा है, लेकिन मैक वक्र, र्रेक तक पहुंचने से पहले ही को२ छूट के बाज़ार मूल्य को प्रतिच्छेद करता है। इस प्रकार, को२ की बाज़ार छूट कीमत को देखते हुए, स्वीडन के पास लागत बचत की क्षमता है अगर वह उत्सर्जन में, आतंरिक रूप से आवश्यक कटौती से कम कटौती करता है और बल्कि उन्हें कहीं और कटौती करता है। इस उदाहरण में, स्वीडन उत्सर्जन में तब तक कटौती करेगा जब तक इसका मैक प के साथ (र* पर) प्रतिच्छेद न करे, लेकिन इससे स्वीडन की कुल आवश्यक कटौती से केवल थोड़ा ही अंश कम होगा। उसके बाद वह जर्मनी से प (प्रति यूनिट) मूल्य पर उत्सर्जन क्रेडिट खरीद सकता है। बाज़ार में जर्मनी से ख़रीदे गए क्रेडिट की कीमत के साथ संयुक्त, स्वीडन की अपनी कटौती की आंतरिक लागत, स्वीडन के लिए आवश्यक कुल कटौती (र्रेक) तक पहुंचती है। इस प्रकार स्वीडन, बाज़ार ( ड-ए-फ) में क्रेडिट खरीद कर बचत कर सकता है। यह "गेन्स फ्रॉम ट्रेड" को दर्शाता है, अतिरिक्त खर्च की राशि जिसे स्वीडन को अन्यथा खर्च करना पड़ता अगर उसने बिना व्यापार किये अपने कुल आवश्यक उत्सर्जन को खुद कम किया होता। जर्मनी ने अपने अतिरिक्त उत्सर्जन कटौती पर लाभ कमाया, जितनी आवश्यकता थी उससे ऊपर पर: उसने, जितना उससे अपेक्षित था (र्रेक), उस सारे उत्सर्जन में कटौती करके नियमों को पूरा किया। इसके अलावा, जर्मनी ने अपने अधिशेष को क्रेडिट के रूप में स्वीडन को बेच दिया और उसे कटौती की गई प्रति इकाई के लिए प का भुगतान प्राप्त हुआ, जबकि उसने प से कम खर्च किया। उसका कुल राजस्व, ग्राफ का क्षेत्रफल है (र्रेक १ २ र*), उसकी कुल कटौती लागत क्षेत्रफल है (र्रेक ३ २ र*) और इसलिए उत्सर्जन क्रेडिट बेचने से उसका शुद्ध लाभ है क्षेत्रफल ( १-२ -३) अर्थात् गेन्स फ्रॉम ट्रेड (व्यापार से लाभ) दो र* (दोनों ग्राफ पर) व्यापार से उत्पन्न होने वाले कुशल आवंटन को दर्शाते हैं। जर्मनी: ने (र* -र्रेक) उत्सर्जन क्रेडिट को इकाई कीमत प पर स्वीडन को बेचा। स्वीडन ने इकाई कीमत प पर जर्मनी से उत्सर्जन क्रेडिट खरीदा. अगर कमांड कंट्रोल परिदृश्य में उत्सर्जन की विशिष्ट मात्रा की कटौती की कुल लागत क्स है, तो जर्मनी और स्वीडन में संयुक्त प्रदूषण की समान मात्रा की कटौती करने में, कुल कटती लागत उत्सर्जन व्यापार परिदृश्य में कम होगी अर्थात् (क्स - १२३ - डेफ). उपर्युक्त उदाहरण न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर लागू होता है: बल्कि यह भिन्न देशों में स्थित दो कंपनियों पर, या फिर एक ही कंपनी के भीतर दो सहायक कंपनियों पर भी लागू होता है। आर्थिक सिद्धांत को लागू करना प्रदूषक की प्रकृति उस वक्त एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जब नीति निर्माता इस बात का निर्णय लेते हैं कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कौन सा ढांचा इस्तेमाल किया जाना चाहिए। को२ विश्व स्तर पर कार्य करता है, इस प्रकार धरती पर चाहे जहां कहीं भी इसे छोड़ा जाए, पर्यावरण पर इसका प्रभाव समान है। पर्यावरणीय दृष्टि से, उत्सर्जन की उत्पत्ति के स्थान से वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ता. नीतिगत ढांचे, क्षेत्रीय प्रदूषकों के लिए अलग-अलग होना चाहिए (जैसे सो२ और नॉक्स और पारा भी), क्योंकि हो सकता है इन प्रदूषकों का प्रभाव सभी स्थानों में एक जैसा ना हो। समान मात्रा का एक क्षेत्रीय प्रदूषक, कुछ स्थानों में बहुत उच्च प्रभाव डाल सकता है और अन्य स्थानों में कम प्रभाव, इसलिए यह वास्तव में मायने रखता है कि प्रदूषक को कहां छोड़ा जा रहा है। इसे हॉट स्पॉट समस्या के रूप में जाना जाता है। एक लैगरेंज ढांचे का आम तौर पर इस्तेमाल, एक उद्देश्य को प्राप्त करने की न्यूनतम लागत को निर्धारित करने के लिए होता है, इस मामले में एक वर्ष में आवश्यक उत्सर्जन में कुल कमी है। कुछ मामलों में, प्रत्येक देश के लिए (उनके मैक पर आधारित) आवश्यक कटौती का निर्धारण करने के लिए लैगरेंज अनुकूलन ढांचे का उपयोग करना संभव है, ताकि कटौती की कुल लागत को न्यूनतम किया जा सके। ऐसे परिदृश्य में एक, लैगरेंज गुणक, प्रदूषक के बाज़ार छूट मूल्य (प) को दर्शाता है, जैसे यूरोप और अमरीका में उत्सर्जन की मौजूदा बाज़ार छूट कीमत. सभी देशों को उस बाज़ार छूट कीमत का सामना करना पड़ता है जो उस दिन बाज़ार में मौजूद है, ताकि वे ऐसे व्यक्तिगत निर्णय लेने में सक्षम रहे जो उनकी लागत को न्यूनतम करे, जबकि नियामक अनुपालन को भी साथ-साथ प्राप्त करे. यह सम-सीमांत-सिद्धांत का एक अन्य संस्करण है, जिसे आम तौर पर आर्थिक रूप से सर्वाधिक कुशल निर्णय के चुनाव के लिए अर्थशास्त्र में प्रयोग किया जाता है। मूल्य बनाम मात्रा और सुरक्षा वाल्व उत्सर्जन में कटौती हासिल करने के लिए मूल्य बनाम मात्रा युक्तियों की तुलनात्मक खूबियों पर काफी पुरानी बहस चली आ रही है। एक उत्सर्जन कैप और परमिट व्यापार प्रणाली एक मात्रा साधन है, क्योंकि यह समग्र उत्सर्जन स्तर (मात्रा) को ठीक करती है और कीमत के भिन्न होने की अनुमति देती है। भविष्य में मांग और आपूर्ति की स्थितियों में अनिश्चितता (बाज़ार की अस्थिरता), प्रदूषण क्रेडिट की एक निश्चित संख्या के साथ युग्मित होकर, प्रदूषण क्रेडिट की भविष्य की कीमत में अनिश्चितता लाता है और उद्योग को तदनुसार बाज़ार की इन अस्थिर स्थितियों के अनुरूप ढलने के खर्च को वहन करना होगा। इस प्रकार, एक अस्थिर बाज़ार का बोझ उद्योग के साथ निहित होता है, न कि नियंत्रण एजेंसी के साथ, जो आम तौर पर अधिक कुशल होती है। हालांकि, अस्थिर बाज़ार स्थितियों के तहत, नियंत्रण एजेंसी की कैप को बदलने की क्षमता "विजेताओं और पराजितों" को चुनने की क्षमता में परिवर्तित हो जाएगी और इस प्रकार भ्रष्टाचार के लिए एक अवसर प्रस्तुत करेगी। इसके विपरीत, एक उत्सर्जन कर एक मूल्य साधन है क्योंकि यह कीमत को निश्चित कर देता है जबकि उत्सर्जन स्तर को आर्थिक गतिविधियों के अनुसार बदलने की अनुमति है। एक उत्सर्जन कर का एक प्रमुख दोष यह है कि पर्यावरणीय परिणाम (जैसे, उत्सर्जन की मात्रा पर सीमा) की गारंटी नहीं होती है। एक तरफ एक कर, संभवतः किसी उपयोगी आर्थिक गतिविधि को दबा कर उद्योग से पूंजी को निकाल देगा, लेकिन इसके विपरीत, प्रदूषक को भविष्य की अनिश्चितता के खिलाफ बहुत अधिक हिचकिचाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कर की राशि लाभ के साथ चलेगी. एक अस्थिर बाज़ार के बोझ को, स्वयं उद्योग के बजाय नियंत्रण (कर लगाने वाली) एजेंसी वहन करेगी, जो आम तौर पर कम कुशल होती है। एक फायदा यह है कि, एक समान कर की दर और एक अस्थिर बाज़ार में, कर लगाने वाली संस्था "विजेताओं और अपराजितों" को चुनने की स्थिति में नहीं होगी और भ्रष्टाचार के लिए अवसर कम होंगे। यह मानते हुए कि कोई भ्रष्टाचार नहीं है और यह मानते हुए कि नियंत्रण एजेंसी और उद्योग बाज़ार की अस्थिर स्थितियों के अनुरूप ढलने में समान रूप से कुशल हैं, सबसे अच्छा विकल्प लाभ की संवेदनशीलता की तुलना में, उत्सर्जन में कमी की लागत की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है (यानी, कटौती द्वारा बचाया गया जलवायु नुकसान) जब उत्सर्जन नियंत्रण का स्तर भिन्न है। चूंकि कंपनियों की अनुपालन लागत में उच्च अनिश्चितता है, कुछ लोगों का तर्क है कि मूल्य तंत्र इष्टतम पसंद है। हालांकि, अनिश्चितता का बोझ, समाप्त नहीं किया जा सकता है और इस मामले में यह टैक्स एजेंसी में ही स्थानांतरित हो गया है। कुछ वैज्ञानिकों ने कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता में एक सीमा की चेतावनी दी है, जिसके परे अत्यंत ताप प्रभाव पैदा हो सकता है, जिससे अपूरणीय क्षति होने की काफी संभावना है। यदि यह एक बोधगम्य जोखिम है तो एक मात्रात्मक साधन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि उत्सर्जन की मात्रा को निश्चितता के एक उच्च स्तर के साथ रोका जा सकता है। बहरहाल, यदि यह जोखिम मौजूद रहता है तो यह सच नहीं हो सकता है, लेकिन इसे घ्ग संकेन्द्रण के ज्ञात स्तर अथवा ज्ञात उत्सर्जन पथ के साथ जोड़ा नहीं जा सकता. सुरक्षा वाल्व के रूप में ज्ञात, एक तीसरा विकल्प, मूल्य और मात्रा साधनों का एक संकर है। यह प्रणाली मूलतः एक उत्सर्जन सीमा और परमिट व्यापार प्रणाली है लेकिन अधिकतम (या न्यूनतम) स्वीकार्य कीमत को सीमित किया गया है। प्रदूषण फैलाने वालों के पास यह विकल्प है कि वे चाहे तो बाज़ार से परमिट हासिल कर लें या फिर सरकार से एक निर्दिष्ट ट्रिगर मूल्य पर खरीदें (जिसे वक्त के साथ समायोजित किया जा सकता है). नई जानकारी के प्रकाश में आने पर सरकार को इस प्रणाली को समायोजित करने का लचीलापन देकर, दोनों प्रणालियों की मौलिक खराबियों पर काबू पाने के एक तरीके के रूप में कभी-कभी इस प्रणाली की सिफारिश की जाती है। यह दर्शाया जा सकता है कि ट्रिगर कीमत को पर्याप्त ऊंचा रखकर या परमिट की संख्या को पर्याप्त नीचे रखकर, सुरक्षा वाल्व को शुद्ध मात्रात्मक या शुद्ध मूल्य तंत्र की नक़ल करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। सभी तीन तरीकों को, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत साधन के रूप में उपयोग किया जाता है: यू-एट्स एक मात्रात्मक योजना है जो नेशनल ऐलोकेशन प्लान्स द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कैप और व्यापार प्रणाली का उपयोग करती; डेनमार्क में एक मूल्य प्रणाली है जो कार्बन टैक्स का उपयोग करती है (वर्ल्ड बैंक, २०१०, प.२१८), जबकि चीन अपनी क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए को२ बाज़ार मूल्य का उपयोग करता है, लेकिन को२ के प्रति टन पर न्यूनतम मूल्य का एक सुरक्षा वाल्व लगाता है। कार्बन रिसाव वह प्रभाव है जो एक देश/सेक्टर का उत्सर्जन विनियमन अन्य देशों/सेक्टरों के उत्सर्जन पर डालता है जो समान विनियमन के अंतर्गत नहीं आते हैं (बार्कर व अन्य, २००७). लम्बी अवधि के कार्बन रिसाव के परिमाण पर कोई आम सहमति नहीं है (गोल्डमबर्ग व अन्य, १९९६, प.३१). क्योटो प्रोटोकॉल में, अनुलग्नक ई देश उत्सर्जन की सीमा के अधीन हैं, लेकिन गैर-अनुलग्नक ई देश नहीं हैं। बार्कर एट अल. (२००७) ने रिसाव पर साहित्य का मूल्यांकन किया। रिसाव दर को इस रूप में परिभाषित किया गया है कि यह देशों के बाहर घरेलू शमन कार्यवाही करने वाले को२ के उत्सर्जन में वृद्धि को घरेलू शमन कार्यवाही करने वाले देशों के उत्सर्जन में कमी से भाग देना है। तदनुसार, १००% से अधिक के एक रिसाव दर का मतलब होगा कि उत्सर्जन को कम करने के लिए की गई घरेलू कार्रवाइयों के प्रभावस्वरूप अन्य देशों में काफी हद तक उत्सर्जन बढ़ा है, अर्थात्, घरेलू शमन कार्यवाही ने वास्तव में वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि को प्रेरित किया है। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत कार्यवाही किए जाने वाले रिसाव दर का अनुमान, मूल्य प्रतिस्पर्धा में हानि के परिणामस्वरूप ५ से २०% के बीच है, लेकिन इन रिसाव दरों को बहुत अनिश्चित होने के रूप में देखा गया। ऊर्जा-गहन उद्योगों के लिए, प्रौद्योगिकीय विकास के माध्यम से अनुलग्नक ई की कार्यवाही के लाभदायक प्रभाव को संभावित रूप से ठोस रूप में देखा जा सकता है। इस लाभकारी प्रभाव को, हालांकि भरोसेमंद तरीके से परिमाणित नहीं किया गया है। अनुभवजन्य साक्ष्य से उन्होंने मूल्यांकन किया, बार्कर तथा अन्य. (२०07) ने निष्कर्ष निकाला कि तब-वर्तमान शमन क्रिया के प्रतिस्पर्धात्मक नुकसान, जैसे, यू एट्स, महत्वपूर्ण नहीं थे। इस प्रकार कार्बन शमन नीति के बारे में विवादों में से एक है कि कैसे सीमा समायोजन के साथ "खेल के मैदान को समतल" किया जाए. उदाहरण के लिए, अमेरिकन क्लीन एनर्जी एंड सिक्योरिटी एक्ट का एक घटक, बिना कैप-एंड-ट्रेड कार्यक्रम वाले देशों से आयातित माल पर कार्बन अधिभार की मांग करता है। यहां तक कि शुल्क और व्यापार के सामान्य समझौते के अनुपालन के अलावा, इस तरह के सीमा समायोजन, यह अनुमान करते हैं कि कार्बन उत्सर्जन के लिए उत्पादक देश जिम्मेदारी वहन करें। विकासशील देशों के बीच एक सामान्य धारणा यह है कि में व्यापारिक वार्ताओं में जलवायु परिवर्तन की चर्चा, उच्च आय वाले देशों द्वारा "हरित संरक्षणवाद" को प्रेरित कर सकती है (वर्ल्ड बैंक, २०१०, प.२५१). $५० तों/को२ के कार्बन मूल्य के साथ संगत, आयात पर शुल्क ("आभासी कार्बन") विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। विश्व बैंक (२०१०) ने टिप्पणी की है कि सीमा शुल्क शुरू करने से, व्यापार उपायों का प्रसार हो सकता है जहां प्रतिस्पर्धात्मक खेल मैदान को असमान होने के रूप में देखा जा रहा है। ये शुल्क, कम आय वाले देशों के लिए एक बोझ भी हो सकता है जिन्होंने जलवायु परिवर्तन की समस्या में बहुत कम योगदान दिया है। क्योटो प्रोटोकॉल १९९७ की एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो २००५ में अस्तित्व में आई. संधि में, अधिकांश विकसित देश, छह प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन के लिए कानूनी तौर पर बाध्यकारी लक्ष्यों के लिए सहमत हो गए। उत्सर्जन कोटा ("नियत मात्रा" के रूप में ज्ञात) पर, शामिल प्रत्येक 'अनुलग्न १' देश राजी हो गया, जिसके तहत समग्र उत्सर्जन को १99० के स्तर से कम करके २०१२ के अंत तक ५.२% करने का इरादा था। अनुलग्न ई के अंतर्गत, संयुक्त राज्य अमेरिका ही ऐसा एकमात्र औद्योगिक देश है जिसने इस संधि की पुष्टि नहीं की है और इसलिए वह इसके द्वारा बाध्य नहीं है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल का अनुमान है कि क्योटो प्रतिबद्धता अवधि के भीतर, व्यापार के माध्यम से अनुपालन के वित्तीय प्रभाव को व्यापार करने वाले देशों के मध्य गप के ०.१-१.१% के बीच सीमित किया जाएगा. यह प्रोटोकॉल विभिन्न तंत्रों को परिभाषित करता है ("लचीले तंत्र") जिन्हें अनुलग्नक ई देशों को, उत्सर्जन में अपनी कटौती प्रतिबद्धताओं (कैप्स) के लक्ष्य को घटित आर्थिक प्रभाव के साथ हासिल करने की अनुमति देने के लिए डिज़ाइन किया गया है (इप्स्क, २००७). क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद ३.३ के तहत, अनुलग्नक १ पार्टियां, उत्सर्जन में कमी की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए घ्ग रीमुवल का उपयोग कर सकती हैं, वनीकरण से और पुनः वनीकरण (वन सिंक) और वनों की कटाई (सूत्रों) १990 के बाद से. अनुलग्न १ पार्टियां अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार (इत) का भी उपयोग कर सकती हैं। संधि के तहत, २००८ से 20१2 तक की ५ साल की अनुपालन अवधि तक जो देश अपने कोटा से कम उत्सर्जन करते हैं, वे निर्धारित राशि को उन देशों को बेचने में सक्षम होंगे जो अपने कोटा की सीमा को पार कर जाते हैं। अनुलग्न १ देशों के लिए ऐसी कार्बन परियोजनाएं प्रायोजित करना संभव होगा जो अन्य देशों में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करती हैं। ये परियोजनाएं व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करती हैं जिसका इस्तेमाल अनुलग्न १ देशों द्वारा अपनी सीमा को प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। परियोजना-आधारित क्योटो तंत्र, स्वच्छ विकास तंत्र (कम) और संयुक्त कार्यान्वयन (जी) हैं। कम उन परियोजनाओं को आवृत्त करता है जो गैर-अनुलग्न १ देशों में कार्यान्वित होती हैं, जबकि जी, अनुलग्न १ देशों में होने वाली परियोजनाओं को शामिल करता है। कम परियोजनाओं से आशा है कि वे विकासशील देशों में सततपोषणीय विकास में योगदान करेंगे और "असली" और "अतिरिक्त" उत्सर्जन बचत भी उत्पन्न करेंगे, अर्थात्, ऐसी बचत जो केवल घटित होती है, प्रश्न में कम परियोजना के लिए धन्यवाद (कार्बन ट्रस्ट, २००९, प.१4) ये उत्सर्जन बचत असली है या नहीं, साबित करना हालांकि मुश्किल है (विश्व बैंक, 20१0, प्प २६५२६७.) गार्नौट ड्राफ्ट रिपोर्ट २००३ में न्यू साउथ वेल्स (नस्व) राज्य सरकार ने उत्सर्जन को कम करने के लिए नस्व ग्रीनहाउस गैस कटौती योजना की एकतरफा स्थापना की जिसके लिए विद्युत् जनरेटर और नस्व ग्रीनहाउस गैस कटौती प्रमाण पत्र खरीदने के लिए बड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं की आवश्यकता थी। इसने, क्रेडिट द्वारा वित्त पोषित मुफ्त ऊर्जा-कुशल कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट प्रकाश-बल्बों को और अन्य ऊर्जा-दक्ष उपायों को प्रेरित किया। उनस्व के सेंटर फॉर एनर्जी एंड इन्वायरमेंट मार्केट्स (सीम) ने, उत्सर्जन में कटौती करने में इसकी अकुशलता, पारदर्शिता की कमी और इसके उत्सर्जन में कटौती की अतिरिक्तता के सत्यापन की कमी की वजह से, इस योजना की आलोचना की है। ४ जून २००७ को पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड ने २०१२ तक शुरू होने वाली एक ऑस्ट्रेलियाई कार्बन ट्रेडिंग योजना की घोषणा की, लेकिन विपक्षी दलों ने इस योजना को "बहुत तुच्छ, बहुत देरी से" उल्लिखित किया है। 2४ नवम्बर २००७ को हावर्ड की गठबंधन सरकार चुनाव हार गई और उसकी जगह लेबर पार्टी ने शासन सम्भाला और केविन रुड प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। प्रधानमंत्री रूड ने घोषणा की कि एक कैप-एंड-ट्रेड उत्सर्जन व्यापार योजना २०१० में शुरू की जाएगी, हालांकि इस योजना को एक साल के लिए, मध्य २०११ तक विलंबित कर दिया गया। ऑस्ट्रेलिया का कॉमनवेल्थ, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों ने गार्नौट जलवायु परिवर्तन समीक्षा को गठित किया, एक क्षमतावान उत्सर्जन व्यापार प्रणाली के तंत्र पर प्रो॰ रॉस गार्नौट द्वारा एक अध्ययन. इसकी अंतरिम रिपोर्ट २१ फ़रवरी २००८ में जारी की गई। इसने एक उत्सर्जन व्यापार योजना की सिफारिश की जिसमें परिवहन शामिल है लेकिन कृषि नहीं और कहा कि कार्बन प्रदूषकों के लिए उत्सर्जन परमिट को प्रतिस्पर्धी रूप से बेचा जाना चाहिए और मुफ्त आवंटित नहीं किया जाना चाहिए। इसने पाया कि ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि होगी और कहा कि कम आय वाले परिवारों को मुआवजा की आवश्यकता होगी। इसने, निम्न उत्सर्जन प्रौद्योगिकी में अनुसंधान के लिए और अधिक समर्थन की सिफारिश की और इस तरह के अनुसंधान की देखरेख करने के लिए एक निकाय होने की बात कही. इसने कोयला खनन क्षेत्रों के लिए संक्रमण सहायता की जरूरत की भी पहचान की। गार्नौट ड्राफ्ट रिपोर्ट की प्रतिक्रिया में, रुड की लेबर सरकार ने १६ जुलाई को एक ग्रीन पेपर जारी किया जिसमें वास्तविक व्यापार योजना के सोचे गए स्वरूप का वर्णन था। यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार योजना (या यू एट्स) विश्व की सबसे बड़ी बहु राष्ट्रीय, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन व्यापार प्रणाली है। क्योटो प्रोटोकॉल में निर्धारित अपनी सीमा को प्राप्त करने के लिए, यह यूरोपीय संघ की केन्द्रीय नीति का उपाय है (जोन्स, व अन्य, २००७, पी. ६४). ब्रिटेन और डेनमार्क में स्वैच्छिक परीक्षणों के बाद, जनवरी २००५ में प्रथम चरण शुरू हुआ जिसमें यूरोपीय संघ के सभी १५ सदस्य राज्यों (अब २७ में से २५) ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम, २० मू के शुद्ध ताप आपूर्ति के साथ, बड़े प्रतिष्ठानों से उत्सर्जित किए जाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पर सीमा तय करता है, ऊर्जा संयंत्र और कार्बन गहन कारखाने और यूरोपीय संघ के लगभग आधे (४६%) कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को समाविष्ट करता है। पहला चरण, प्रतिभागियों को आपस में और क्योटो के स्वच्छ विकास तंत्र के माध्यम से विकासशील देशों से मान्य क्रेडिट में व्यापार करने की अनुमति देता है। पहले और दूसरे चरण के दौरान, उत्सर्जन के लिए छूटों को कंपनियों को आमतौर पर मुफ्त में दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अप्रत्याशित लाभ हुआ (क्क, २००८, प.१४९). एलरमन और बुखनर (२००८) (ग्रब व अन्य द्वारा सन्दर्भित, २००९, प. ११) ने सुझाव दिया कि अपने संचालन के आरंभिक दो वर्षों के दौरान, यू एट्स ने प्रति वर्ष उत्सर्जन में १-२ प्रतिशत की अपेक्षित वृद्धि को एक लघु निरपेक्ष गिरावट में बदला. ग्रब व अन्य (२००९, प.११) का सुझाव है कि इसके पहले दो वर्षों के संचालन के दौरान उत्सर्जन में कटौती का एक उचित अनुमान था ५०-१00 मैको२ प्रति वर्ष या २.५-५ प्रतिशत. डिज़ाइन में व्याप्त कई दोषों ने के इस योजना की प्रभावशीलता को सीमित किया है (जोन्स व अन्य, २००७, प.६४). प्रारंभिक २००५-०७ की अवधि में, उत्सर्जन सीमाएं इंतनी कठोर नहीं थीं कि वे उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी को दर्शाएं (क्क, २००८, प.१४९). छूट का कुल आवंटन, वास्तविक उत्सर्जन से अधिक निकला। इससे कार्बन का मूल्य २००७ में शून्य हो गया। यह अति-आपूर्ति, भविष्य के उत्सर्जन की भविष्यवाणी करने में कठिनाई को दर्शाता है जो एक सीमा की स्थापना के लिए आवश्यक है। द्वितीय चरण में कुछ कठोरता देखी गई, लेकिन जी और कम ऑफ़सेट का उपयोग करने की अनुमति थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि द्वितीय चरण की सीमा को प्राप्त करने के लिए यू में किसी कटौती की आवश्यकता नहीं होगी (क्क, २००८, प्प.१४५, १४९.) किसी सीमा के अभाव में अपेक्षित उत्सर्जन की तुलना में, द्वितीय चरण के लिए आशा की जाती है कि यह सीमा २०१० में २.४% के उत्सर्जन कटौती को फलित करेगी (बिज़नेस-ऐज़-यूज़ुअल एमिशन) (जोन्स व अन्य, २007, प.6४). तीसरे चरण के लिए (२013-२0), यूरोपीय आयोग ने कई परिवर्तनों का प्रस्ताव किया है, जैसे: एक समग्र यू सीमा का निर्धारण, जिसके बाद यूरोपीय संघ के सदस्यों को छूट आवंटित की जाएगी; ऑफ़सेट के उपयोग करने पर सख्त सीमा; द्वितीय और तृतीय चरण के बीच छूट की बैंकिंग को असीमित करना और छूट से नीलामी की ओर कदम. न्यूजीलैंड उत्सर्जन व्यापार योजना (न्ज़ एट्स), एक राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार योजना है, जिसे न्यूजीलैंड की पांचवीं लेबर सरकार द्वारा सितंबर २००८ में निर्मित किया गया और न्यूजीलैंड की पांचवीं राष्ट्रीय सरकार द्वारा नवंबर २००९ में संशोधित किया गया। न्ज़ एट्स, सभी-क्षेत्रों की सभी-गैसों की तीव्रता आधारित उत्सर्जन व्यापार योजना होगी। . एक तीव्रता आधारित एट्स, ऐसा एट्स है जिसमें आवंटन, ऐतिहासिक उत्सर्जन के बजाय कंपनियों के वर्तमान उत्पादन दर पर आधारित है। हालांकि यह योजना 'सभी-क्षेत्रों' की है, अपशिष्ट निपटान और कृषि प्रक्रियाओं से उत्सर्जित मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का इस योजना में शामिल होना क्रमशः २०१३ और २०१५ में निर्धारित है। जीवाश्म उत्सर्जन पर १ जुलाई 20१0 से दायित्व होगा, जबकि वानिकी पर १ जनवरी २००८ से कटौती और उत्सर्जन के लिए दायित्व होगा। १ जुलाई 20१0 से लेकर 3१ दिसम्बर 20१2 तक एक संक्रमण काल काम करेगा। . इस अवधि के दौरान, न्यूजीलैंड उत्सर्जन इकाइयों (न्ज़ूस) की कीमत को न्ज़$२५ पर सीमित किया जाएगा. इसके अलावा, कार्बन डाइऑक्साइड के दो टन के बराबर उत्सर्जन के लिए एक ही इकाई को जमा करने की आवश्यकता होगी, जो प्रभावी रूप से उत्सर्जन की लागत को प्रति टन न्ज़$१2.५० कर देगा। जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया अधिनियम २००२ (अधिनियम) की धारा ३ के अनुसार इस अधिनियम का उद्देश्य उत्सर्जन को बिज़नेस-ऐज़-युज़ुअल स्तर से कम करना है ओर (यूनाईटेड नेशंस फ्रेम वर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यून्फ़्क्क) और क्योटो प्रोटोकॉल के तहत न्यूजीलैंड के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना है। कुछ हितधारकों ने, पूर्ण कटौती को लक्ष्य बनाने की बजाय, उत्सर्जन को बिज़नेस-ऐज़-युज़ुअल स्तर की तुलना में कम करने के प्रयास की आलोचना की है। अधिनियम के खिलाफ कटौती को निशाना बनाने के लिए, बिज़नेस-ऐज़-युज़ुअल स्तर को मानदंड के रूप में प्रयोग करने से, उत्सर्जन को समय के साथ बढ़ने की अनुमति देता है। उत्सर्जन व्यापार प्रणाली का एक आरंभिक उदाहरण है, अमेरिका में १९९० के स्वच्छ वायु अधिनियम के अम्ल वर्षा कार्यक्रम के ढांचे के तहत सो२ व्यापार प्रणाली तो व्यापार उत्सर्जन व्यापार प्रणाली. इस कार्यक्रम के तहत, जो अनिवार्य रूप से कैप-एंड-ट्रेड उत्सर्जन व्यापार प्रणाली है, उत्सर्जन को १९८० के स्तर से २007 में ५०% तक कम किया गया। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि सो२ उत्सर्जन कटौती की कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली ने अम्ल वर्षा को नियंत्रित करने की लागत में सोर्स-बाई-सोर्स कटौती की तुलना में ८०% की कमी की है। १९९७ में, इलिनॉय राज्य ने शिकागो के अधिकांश क्षेत्र में विस्फोटक कार्बनिक यौगिक के लिए एक व्यापार कार्यक्रम अपनाया है, जिसे एमिशन्स रिडक्शन मार्केट सिस्टम कहा जाता है। २००० में शुरु करते हुए, इलिनोइस के आठ काउंटियों में प्रदूषण के १०० से अधिक प्रमुख स्रोतों ने प्रदूषण क्रेडिट का व्यापार शुरू किया। २००३ में, उर्जा उत्पादकों के लिए एक कैप-एंड-ट्रेड कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कार्यक्रम का गठन करने के लिए, न्यूयॉर्क राज्य ने प्रस्ताव पेश किया और नौ पूर्वोत्तर राज्यों से प्रतिबद्धताएं प्राप्त की, जिसे रीजनल ग्रीनहाउस गैस इनिशिएटिव (र्ग्गी) के नाम से जाना गया। १ जनवरी २००९ को शुरू हुए इस कार्यक्रम का उद्देश्य था प्रत्येक राज्य के विद्युत् उत्पादन सेक्टर के कार्बन "बजट" को, 20१8 तक, २००९ की उनकी छूट से १0% नीचे तक लाना था। २००३ में इसके अलावा, अमेरिका के निगम, एक स्वैच्छिक योजना के तहत शिकागो क्लाइमेट एक्सचेंज पर को२ उत्सर्जन छूट का व्यापार करने में सक्षम थे। अगस्त २007 में, एक्सचेंज ने संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्दर परियोजनाओं के लिए उत्सर्जन ऑफ़सेट बनाने के लिए एक तंत्र की घोषणा की जो ओजोन को नष्ट करने वाले पदार्थों को सफाई से नष्ट करता है। २००७ में, कैलिफोर्निया विधानमंडल ने कैलिफोर्निया ग्लोबल वार्मिंग समाधान अधिनियम, अब-३२ पारित किया, जिसे अर्नोल्ड श्वार्जनेगर अपने हस्ताक्षर द्वारा क़ानून का रूप दिया। इस प्रकार, परियोजना आधारित ऑफ़सेट के रूप में, पांच मुख्य परियोजना प्रकार के लिए काफी लचीले तंत्र का सुझाव दिया गया है। एक कार्बन परियोजना यह दिखाने के द्वारा कि इसने कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य समकक्ष गैसों में कटौती की है, ऑफसेट निर्मित करेगी। परियोजना के प्रकार में शामिल हैं: खाद प्रबंधन, वानिकी, निर्माण ऊर्जा, स्फ६ और लैंडफिल गैस कैप्चर. फरवरी २००७ के बाद से, सात अमेरिकी राज्यों और कनाडा के चार प्रांतों ने वेस्टर्न क्लाइमेट इनिशिएटिव (व्सी) के गठन के लिए हाथ मिलाया है, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन व्यापार की एक क्षेत्रीय प्रणाली. १७ नवम्बर २००८ को राष्ट्रपति के लिए चुने गए बराक ओबामा ने यूट्यूब के लिए रिकॉर्ड की गई एक वार्ता में स्पष्ट किया कि, ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अमेरिका एक कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली में प्रवेश करेगा। २०१० के संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय बजट ने स्वच्छ ऊर्जा विकास के समर्थन का प्रस्ताव पेश किया है जिसमें प्रति वर्ष उस$१५ बीलियन का निवेश होगा, जिसके लिए वह ग्रीनहाउस गैस (घ्ग) उत्सर्जन क्रेडिट की बिक्री से धन जुटाएगा. प्रस्तावित कैप-एंड-ट्रेड कार्यक्रम के तहत, सभी घ्ग उत्सर्जन क्रेडिट को नीलाम किया जाएगा, जिससे, वित्त-वर्ष २०१२ के लिए अनुमानित रूप से अतिरिक्त $७८.७ बीलियन का राजस्व प्राप्त होगा, जो लगातार बढ़ते हुए २०१९ के वित्त-वर्ष तक $८३ बीलियन हो जाएगा. अमेरिकी स्वच्छ ऊर्जा और सुरक्षा अधिनियम (एच.आर. २४५४) एक कैप-एंड-ट्रेड बिल, को २६ जून २००९ को २१९-२१२ के एक वोट से प्रतिनिधि सभा में पारित किया गया। यह बिल हाउस एनेर्जी एंड कॉमर्स कमिटी में उत्पन्न हुआ और इसे रेप. हेनरी ए. वैक्समन और रेप. एडवर्ड जे. मार्के द्वारा पेश किया गया। अक्षय ऊर्जा प्रमाण पत्र अक्षय ऊर्जा प्रमाण पत्र, या "ग्रीन टैग", कुछ अमेरिकी राज्यों के भीतर अक्षय ऊर्जा के लिए हस्तांतरणीय अधिकार हैं। एक अक्षय ऊर्जा प्रदाता के लिए, प्रत्येक १,००० कह के उसके ऊर्जा उत्पादन के लिए एक हरित टैग जारी किया जाता है। इस ऊर्जा को विद्युत ग्रिड में बेच दिया जाता है और प्रमाणपत्र को लाभ के लिए खुले बाज़ार में बेचा जा सकता है। उन्हें, कंपनियों या व्यक्तियों द्वारा यह दर्शाने के लिए खरीद लिया जाता है कि उनकी ऊर्जा का एक हिस्सा अक्षय स्रोतों के साथ है और यह स्वैच्छिक होता है। इन्हें आम तौर पर एक ऑफ़सेट योजना की तरह इस्तेमाल किया जाता है या कॉर्पोरेट दायित्व दिखाने के लिए, हालांकि उनका जारी किया जाना अविनियमित है, जिसके तहत ऐसी कोई राष्ट्रीय रजिस्ट्री नहीं है जो यह सुनिश्चित करे कि वहां कोई दोहरी-गिनती नहीं है। हालांकि, यह एक तरीका है जिसके माध्यम से एक संगठन, जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले एक स्थानीय प्रदाता से अपनी ऊर्जा खरीद सकता है, लेकिन उसके समर्थन में एक प्रमाणपत्र रखता है जो एक विशिष्ट वायु या पनबिजली परियोजना का समर्थन करता है। कार्बन उत्सर्जन व्यापार, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष टन या त्को२ए में गणना) के लिए उत्सर्जन व्यापार है और वर्तमान के उत्सर्जन बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा इस पर आधारित है। यह भी एक तरीका है जिससे विभिन्न देश क्योटो प्रोटोकॉल के तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने के अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकते हैं और इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग को कम कर सकते हैं। बाज़ार का रुझान कार्बन उत्सर्जन व्यापार, हाल के वर्षों में लगातार बढ़ा है। विश्व बैंक के कार्बन वित्त इकाई के अनुसार, ३७४ मीलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष (त्को२ए) को परियोजनाओं के माध्यम से २005 में आदान-प्रदान किया गया, २004 (११० मैको२ए) की तुलना में यह २40% अधिक था जो स्वयं २003 (७८ मैको२ए) की अपेक्षा ४१% ज़्यादा था। डॉलर के सन्दर्भ में, फेलिप दे जीसस गर्दओ वजक्वेज़ विश्व बैंक का अनुमान है कि कार्बन बाज़ार का आकार २००५ में ११ बीलियन उसड था, २००६ में ३० बीलियन, और २००७ में ६४ बीलियन था। क्योटो प्रोटोकॉल के माराकेश अकौर्ड्स ने देशों के बीच व्यापार का समर्थन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था और आवश्यक रजिस्ट्रियों को परिभाषित किया, जहां छूट व्यापार अब यूरोपीय देशों और एशियाई देशों के बीच हो रहा है। जबकि एक राष्ट्र के रूप में, अमेरिका ने प्रोटोकॉल की पुष्टि नहीं की, उसके कई राज्य अब कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली को विकसित कर रहे हैं और अपने उत्सर्जन व्यापार प्रणाली को आपस में जोड़ने के तरीके की खोज कर रहे हैं, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सबसे कम लागत की तलाश और बाज़ार की तरलता में सुधार. हालांकि, ये राज्य, अपनी व्यक्तिगत निष्ठा और अनूठी विशेषताओं को भी संरक्षित करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, क्योटो-संगत अन्य प्रणालियों के विपरीत, कुछ राज्य ग्रीनहाउस गैस के अन्य प्रकार के स्रोतों, अलग-अलग माप तरीकों, छूटों की कीमतों पर अधिकतम का निर्धारण करने, या कम परियोजनाओं के अभिगम को सीमित करने का प्रस्ताव करते हैं। ऐसे उपकरणों का निर्माण करने से जो पूर्ण अर्थ में प्रतिमोच्य नहीं हैं, अस्थिरता की शुरुआत और मूल्य निर्धारण मुश्किल हो जाएगा. यह देखने के लिए विभिन्न प्रस्तावों की जांच की जा रही है कि कैसे एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार में इन प्रणालियों को जोड़ा जा सकता है, जिसके लिए इंटरनैशनल कार्बन एक्शन पार्टनरशिप (इकप) इस कार्य में एक अंतरराष्ट्रीय निकाय के रूप में मदद कर रहा है। क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के अनिवार्य व्यापार के लिए एक बाज़ार के निर्माण के साथ, लंदन के वित्तीय बाज़ार ने खुद को कार्बन वित्त बाज़ार के केन्द्र के रूप में स्थापित किया है और उम्मीद है कि २००७ में यह एक $६० बीलियन मूल्य के बाज़ार में विकसित हो गया है। तुलनात्मक रूप से, स्वैच्छिक ऑफसेट बाज़ार को २०१० तक करीब $४ बीलियन तक विकास करते हुए दर्शाया गया है। २३ बहुराष्ट्रीय निगम, ग८ जलवायु परिवर्तन गोलमेज पर एक साथ आए, यह एक व्यापार समूह है जिसका गठन विश्व आर्थिक फोरम में जनवरी २००५ को हुआ। इस समूह में फोर्ड, टोयोटा, ब्रिटिश एयरवेज़, ब्प और यूनीलिवर शामिल हैं। ९ जून २००५ को इस समूह ने यह बताते हुए एक बयान प्रकाशित किया कि जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही करने की आवश्यकता है और बाज़ार आधारित समाधानों के महत्त्व पर बल दिया। इसने सरकारों से "लंबी अवधि के निति ढांचे के सृजन" के माध्यम से "स्पष्ट, पारदर्शी और स्थाई मूल्य संकेत" की स्थापना करने की मांग की, जिसमें ग्रीन हाउस गैसों के प्रमुख उत्सर्जक शामिल होंगे। दिसंबर २००७ तक, विकास करते हुए इसमें १५० वैश्विक कारोबार शामिल हो गए। ब्रिटेन का व्यापार जगत, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उत्सर्जन व्यापार के समर्थन में ज़ोरदार तरीके से सामने आया है, जिसका समर्थन गैर सरकारी संगठनों ने भी किया है। हालांकि, सभी कारोबारों ने एक व्यापारिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया है। ११ दिसम्बर २००८ को रेक्स टिलर्सन, इक्सोनमोबिल के सियो ने कहा है कि एक कार्बन टैक्स, कैप-एंड-ट्रेड कार्यक्रम की तुलना में "एक अधिक प्रत्यक्ष, अधिक पारदर्शी और एक अधिक प्रभावी दृष्टिकोण है" जो उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से अनावश्यक खर्च और जटिलता उत्पन्न करता है". उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें आशा है कि कार्बन टैक्स से प्राप्त राजस्व का इस्तेमाल अन्य करों को कम करने के लिए किया जाएगा ताकि वह राजस्व तटस्थ बना रहे। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन का रुख, जिसकी २३० सदस्य एयरलाइनें सम्पूर्ण अंतरराष्ट्रीय यातायात का ९३% का निर्माण करती हैं, यह है कि व्यापार को "मानदंडों" पर आधारित होना चाहिए, जो उद्योग के औसत के आधार पर उत्सर्जन स्तर को निर्धारित करेगा, न कि "ग्रैंडफादरिंग" के आधार पर जो व्यक्तिगत कंपनियों के पिछले उत्सर्जन स्तर का प्रयोग, उनके भविष्य की छूटों के निर्धारण के लिए करता है। उनका तर्क है कि ग्रैंडफादरिंग "उन एयरलाइनों को दंडित करेगा जो अपने जहाज़ों को आधुनिक बनाने के लिए शीघ्र कार्यवाही करेंगे, जबकि एक मानदंड दृष्टिकोण, अगर ठीक से तैयार किया जाए तो अधिक कुशल संचालनों को पुरस्कृत करेगा". मापन, रिपोर्टिंग, सत्यापन (म्र्व) एक उत्सर्जन व्यापार प्रणाली में ऑपरेटर या स्थापना के स्तर पर मापन की आवश्यकता होती है। इन मापन को इसके बाद एक नियामक को सूचित किया जाता है। ग्रीनहाउस गैसों के लिए, सभी व्यापारिक देश, राष्ट्रीय और स्थापना स्तर पर उत्सर्जन की एक सूची बनाए रखते हैं; इसके अलावा, उत्तरी अमेरिका के अन्दर के व्यापारिक समूह क्लाइमेट रजिस्ट्री के माध्यम से राज्य स्तर पर सूची बनाए रखते हैं। क्षेत्रों के बीच व्यापार के लिए, समकक्ष इकाइयों और माप तकनीकों के साथ संगत होनी चाहिए। कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्सर्जन को भौतिक रूप से सेंसर और फ्लोमीटर को चिमनी और स्टैक में डाल कर मापा जा सकता है, लेकिन कई प्रकार की गतिविधि मापन के लिए सैद्धांतिक गणना पर निर्भर करती है। स्थानीय कानून के आधार पर, इन मापन को सरकार द्वारा अतिरिक्त जांच और सत्यापन या स्थानीय नियामक के पास जमा करने से पहले या बाद में तृतीय पक्ष के लेखा परीक्षक की आवश्यकता हो सकती है। एक अन्य महत्वपूर्ण, फिर भी मुश्किल भरा पहलू है प्रवर्तन. बिना प्रभावी म्र्व और प्रवर्तन के छूटों का मूल्य घट जाता है। प्रवर्तन को कई तरीकों से किया जा सकता है, जिसमें शामिल है जुर्माना या जिन्होंने अपनी छूट की सीमा को लांघा है उन्हें पुरस्कृत करके. चिंताओं में शामिल है म्र्व और प्रवर्तन की लागत और यह खतरा कि सुविधाओं का प्रयोग वास्तविक कटौती करने के बजाय गुमराह करने के लिए किया जा सकता है या अपनी कमी को पूरा करने के लिए किसी अन्य संस्था से छूट या ऑफ़सेट खरीदने के लिए किया जा सकता है। एक भ्रष्ट रिपोर्टिंग प्रणाली या खराब प्रबंधित या वित्त-पोषित नियामक का असली प्रभाव, उत्सर्जन की कीमत पर छूट और वास्तविक उत्सर्जन में एक (गुप्त) वृद्धि के रूप में हो सकता है। नोर्डहॉउस के अनुसार (२००७, प.२७), क्योटो प्रोटोकॉल का सख्त प्रवर्तन, उन देशों और उद्योगों में देखे जाने की संभावना है, जो यू एट्स द्वारा आवृत हैं। एलर्मन और बुखनर (२००७, प.७१) ने यू एट्स के भीतर परमिट की कमी के प्रवर्तन पर यूरोपीय आयोग (एक) की भूमिका पर टिप्पणी की है। आयोग ने ऐसा, परमिट की कुल संख्या की समीक्षा द्वारा किया, जो सदस्य राज्यों ने अपने उद्योगों के आवंटन के लिए प्रस्तावित किया था। संस्थागत और प्रवर्तन विवेचना के आधार पर, क्रूगर व अन्य ने (२००७, प्प.१३०१३१) सुझाव दिया कि विकासशील देशों में उत्सर्जन व्यापार हो सकता है कि निकट अवधि में एक यथार्थवादी लक्ष्य न हो। बुर्निऔक्स व अन्य ने (२००८, प.५६) तर्क दिया कि संप्रभु राज्यों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय नियमों को लागू करने में कठिनाई की वजह से, कार्बन बाज़ार के विकास के लिए वार्ता और आम सहमति की आवश्यकता होगी। उत्सर्जन व्यापार पर विचार उत्सर्जन व्यापार के आलोचकों में शामिल हैं पर्यावरण संगठन, अर्थशास्त्री, श्रम संगठन और वे लोग जो ऊर्जा की आपूर्ति और अत्यधिक कराधान के बारे में चिंतित हैं। लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका न्यू साइंटिस्ट में, लोमन (२००६) ने तर्क दिया है कि प्रदूषण छूटों के व्यापार से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि वे लेखांकन में विफलताओं, संदिग्ध विज्ञान को फलित करते हैं और स्थानीय लोगों और वातावरण पर परियोजनाओं के विनाशकारी प्रभावों को दर्शाते हैं। लोमन (२००६ब) ने उन पारंपरिक विनियमन, हरित कर और ऊर्जा नीतियों का समर्थन किया है जो "न्याय-आधारित" और "समुदाय चालित" हैं। ट्रांसनैशनल इंस्टीटयूट (एन.डी.) के अनुसार, कार्बन ट्रेडिंग का एक "विनाशकारी इतिहास रहा है।" यू एट्स की प्रभावशीलता की आलोचना की गई और यह तर्क दिया गया कि कम ने नियमित रूप से "पर्यावरणीय दृष्टि से अप्रभावी और सामाजिक रूप से अन्यायपूर्ण परियोजनाओं" का समर्थन किया है। यूरोपीय पर्यावरण समूह, फर्न के वन प्रचारक जुट्टा किल (२००६) का तर्क है कि उत्सर्जन कटौती के लिए ऑफ़सेट, उत्सर्जन में वास्तविक कटौती का विकल्प नहीं हैं। किल ने कहा कि "पेड़ों में [कार्बन] अस्थायी है: आग, रोग, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक क्षय और लकड़ी कटाई के माध्यम से पेड़ आसानी से वातावरण में कार्बन छोड़ सकते हैं". परमिट की आपूर्ति नियामक एजेंसियों द्वारा ढेर सारे उत्सर्जन क्रेडिट जारी करने का खतरा बना रहता है, जो उत्सर्जन परमिट पर न्यून कीमत को फलित कर सकता है (क्क, २००८, प.१४०). यह उस प्रोत्साहन को कम कर देता है जो परमिट-ऋणी कंपनियों को अपने उत्सर्जन में कटौती करनी होती है। दूसरी ओर, बहुत कम परमिट जारी करने से परमिट की कीमत में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है (हेपबर्न, २००६, प.२३९). संकर उपकरण के पक्ष में यह एक तर्क है, जिसकी एक मूल्य-सतह है, यानी एक न्यूनतम परमिट मूल्य और एक मूल्य-सीमा, यानी, परमिट कीमत पर एक सीमा. एक मूल्य-सीमा (सुरक्षा मान), तथापि, उत्सर्जन की एक विशेष मात्रा की सीमा की निश्चितता को हटा देती है (बाशमकोव व अन्य. २००१). उत्सर्जन व्यापार विकृत प्रोत्साहन में में फलित हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को, उत्सर्जन परमिट मुफ्त ("ग्रैंडफादरिंग") में दिए जाते हैं तो यह उनके लिए एक कारण होगा कि वे अपने उत्सर्जन में कटौती नहीं करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्सर्जन में बड़ी कटौती करने वाली कंपनी को संभावित रूप से भविष्य में कम उत्सर्जन परमिट प्रदान किया जाएगा (इम्फ, २००८, २५-२६). इस विकृत प्रोत्साहन को कम किया जा सकता है अगर परमिट की नीलाम की जाए, यानी, परमिट को मुफ्त में देने के बजाय, प्रदूषकों को उसे बेचा जाए (हेपबर्न, २००६. २३६-२३७). दूसरी ओर, परमिट के आवंटन को, घरेलू फर्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा से रक्षा के उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता (प.२३७). यह तब होता है जब घरेलू फर्म, अन्य ऐसे फर्मों के खिलाफ मुकाबला करती हैं जो समान नियमोम के अधीन नहीं हैं। परमिट के आवंटन के पक्ष में दिए जाने वाले इस तर्क को यू एट्स में प्रयोग किया गया है, जहां उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुला पाया गया, उदाहरण के लिए, सीमेंट और इस्पात उत्पादन को मुफ्त में परमिट दिया गया है (४कम्र, २००८). नीलामी से प्राप्त राजस्व सरकार के पास जाता है। इन राजस्व का उपयोग, उदाहरण के लिए, संपोषणीय प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, राजस्व का इस्तेमाल विकृत करों में कटौती के लिए किया जा सकता है, इस प्रकार समग्र कैप नीति की दक्षता में सुधार किया जा सकता है (फिशर व अन्य १९९६, प.४१७). कांग्रेशनल बजट ऑफिस (क्बो, २००९) ने अमेरिका के परिवारों पर अमेरिकी स्वच्छ ऊर्जा और सुरक्षा अधिनियम के संभावित प्रभावों की जांच की। यह अधिनियम, परमिट के मुफ्त आवंटन पर काफी निर्भर करता है। देखा गया कि यह विधेयक, कम आय वाले उपभोक्ताओं की सुरक्षा करता था, लेकिन यह सिफारिश की गई इस विधेयक को अधिक कुशल बनाने के लिए बदला जाए. यह सुझाव दिया गया कि विधेयक को बदला जाए ताकि निगमों के लिए कल्याणकारी प्रावधानों को कम किया जा सके और उपभोक्ता राहत के लिए अधिक संसाधनों को उपलब्ध कराया जाए. इन्हें भी देखें अम्ल वर्षा वापसी कोष एशिया-प्रशांत उत्सर्जन व्यापार फोरम अप ४२ वायु प्रदूषक उत्सर्जन कारकों का संकलन कार्बन उत्सर्जन रिपोर्टिंग मांग उत्तरदायी ट्रांजिट एक्सचेंज हरित निवेश योजना जलवायु परिवर्तन पर व्यक्तिगत और राजनीतिक कार्रवाई निम्न कार्बन ऊर्जा उत्पादन / अक्षय ऊर्जा ग्लोबल वार्मिंग का शमन मोबाइल उत्सर्जन न्यूनीकरण क्रेडिट (मर्क) ओपन कार्बन वर्ल्ड व्यापार योग्य धूम्रपान प्रदूषण परमिट "थे मकिंग ऑफ आ मार्केट-मिंदेड एन्वायरोनमेंटलिस्ट" स्ट्रैटेजी+बिज़नेस (रजिस्ट्रेशन रेक़्ड) दैट आरटीक्यूलेट्स सम ऑफ़ दी रीस्निंग एंड हिस्ट्री बिहाइंड एमिशन ट्रेडिंग इन केलिफोर्निया, में फ्रेड कृप द्वारा लिखा लेख अर्थशास्त्र और जलवायु परिवर्तन जलवायु परिवर्तन नीति
बांग्लादेश के संविधान, बांग्लादेश की सर्वोच्च न्यायि संहिता है। इसे ४ नवंबर १९७२ को पारित किया गया था। इसमें कुल ११ भाग, १५३ अनुच्छेद और २७ अनुसूचियां हैं। इस संविधान में संशोधन का भी प्रावधान भी दिया गया है। संविधान का भाग १०- अनुच्छेद 1४2, संविधान में संशोधनों से संबंधित विषय को विस्तृत रूप से अंकित करता है। संविधान के प्रावधानों के अनुसार संविधान में संशोधन के लिए राष्ट्रीय संसद के सदस्यसमूह के दो तिहाई संख्या के सकारात्मक मत की आवश्यक बताई गई है। अर्थात्, संविधान में संशोधन तभी लाया जा सकता है जब राष्ट्रीय संसद की दो तिहाई बहुमत इसके पक्ष में अपना मत दे। २०१६ की स्थिति अनुसार बांग्लादेश के संविधान में कुल १६ बार संशोधन किए गए हैं। १५ जुलाई १९७३ को पारित, संविधान के अनुच्छेद ४७ में पहला संशोधन किया गया था। संशोधन में एक अतिरिक्त खंड जोड़ा गया, अनुच्छेद ४७(३), जिसमें कहा गया है कि युद्ध अपराधों के अभियोजन या दंड से संबंधित किसी भी कानून को असंवैधानिकता के आधार पर शून्य या गैर-कानूनी घोषित नहीं किया जा सकता है। एक नया अनुच्छेद ४७आ भी जोड़ा गया, जो निर्दिष्ट करता है कि कुछ मौलिक अधिकार उन मामलों में लागू नहीं होंगे। संविधान का दूसरा संशोधन २२ सितंबर १९७३ को पारित किया गया था। इसने आपातकाल की स्थिति के दौरान नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया था। अधिनियम ने संविधान में निम्नलिखित परिवर्तन किए: संशोधित अनुच्छेद २६, ६३, ७२ और १४२। प्रतिस्थापित अनुच्छेद ३३। संविधान में एक नया भाग इक्सा सम्मिलित किया गया। तीसरा संशोधन २८ नवंबर १९७४ को पारित किया गया था जो संविधान के अनुच्छेद २ में बदलाव लाया। कुछ परिक्षेत्रों के आदान-प्रदान और देशों के बीच सीमा रेखा के निर्धारण के संबंध में बांग्लादेश और भारत के बीच एक समझौता किया गया था। संशोधन २५ जनवरी १९७५ को पारित किया गया था। संविधान के संशोधित अनुच्छेद ११, ६६, ६७, ७२, ७४, ७६, ८०, ८८, ९५, ९८, १०९, ११6, ११7, ११9, १२२, १२३, १४१क, १४७ और १४८। संविधान के अनुच्छेद ४४, ७०, १०२, ११५ और १२४ को प्रतिस्थापित किया। संविधान का संशोधित भाग ई अस्तित्व से बाहर है। तीसरी और चौथी अनुसूची में बदलाव किया। प्रथम जातीय संसद का कार्यकाल बढ़ाया। संविधान में एक नया भाग, विया सम्मिलित किया गया और। संविधान में नए अनुच्छेद ७३आ और ११६आ डाले गए। महत्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं: संसदीय प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार शुरू की गई। बहुदलीय व्यवस्था के स्थान पर एकदलीय व्यवस्था लागू की गई; जातीय संसद की शक्तियों को कम कर दिया गया; न्यायपालिका ने अपनी अधिकांश स्वतंत्रता खो दी; सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के संरक्षण और प्रवर्तन पर अपने अधिकार क्षेत्र से वंचित था। पांचवां संशोधन अधिनियम जातिया संसद द्वारा ६ अप्रैल १९७९ को पारित किया गया था। इस अधिनियम ने संविधान की चौथी अनुसूची में एक नया अनुच्छेद १८ जोड़कर संशोधन किया, जिसमें प्रावधान किया गया कि संविधान में किए गए सभी संशोधन, परिवर्धन, संशोधन, प्रतिस्थापन और चूक १५ अगस्त १९७५ और ९ अप्रैल १९७९ (दोनों दिन सम्मिलित) के बीच की अवधि मार्शल लॉ प्राधिकारियों के किसी भी उद्घोषणा या उद्घोषणा आदेश द्वारा वैध रूप से की गई थी और किसी भी आधार पर किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण या प्राधिकरण के समक्ष या उससे पहले प्रश्न में नहीं बुलाया जाएगा। यह संशोधन अधिनियम १० जुलाई १९८१ को पारित किया गया था। १९८१ के संविधान के अनुच्छेद ५१ और ६६ में संशोधन करने की दृष्टि से जातीय संसद द्वारा छठा संशोधन अधिनियम बनाया गया था। सातवां संशोधन अधिनियम ११ नवंबर १९८६ को पारित किया गया था। इसने संविधान के अनुच्छेद ९६ में संशोधन किया; इसने एक नया अनुच्छेद १९ जोड़कर संविधान की चौथी अनुसूची में भी संशोधन किया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह प्रावधान किया गया है कि सभी उद्घोषणाएं, उद्घोषणा आदेश, मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक के आदेश, मार्शल लॉ विनियम, मार्शल लॉ आदेश, मार्शल लॉ निर्देश, अध्यादेश और अन्य कानून बनाए गए हैं। २४ मार्च १९82 और ११ नवंबर १९८६ (दोनों दिन शामिल) के बीच की अवधि के दौरान वैध रूप से किया गया था, और किसी भी आधार पर किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल या प्राधिकरण के सामने या उसके समक्ष सवाल नहीं उठाया जाएगा। संक्षेप में, संशोधन ने हुसैन मुहम्मद इरशाद और उनके शासन को १९82 के तख्तापलट के बाद १९८६ के राष्ट्रपति चुनाव तक सैन्य शासन के वर्षों के तहत की गई कार्रवाई के लिए अभियोजन से सुरक्षित किया। यह संशोधन अधिनियम ९ जून 1९८८ को पारित किया गया था। संविधान (आठवां संशोधन) अधिनियम, 1९८८, अन्य बातों के साथ-साथ घोषित किया गया था कि इस्लाम राज्य धर्म होगा (अनुच्छेद २ए) और न्यायपालिका को उच्च न्यायालय डिवीजन के बाहर छह स्थायी पीठों की स्थापना करके विकेंद्रीकृत किया। ढाका (अनुच्छेद १००)। अनवर हुसैन. बनाम बांग्लादेश[९] व्यापक रूप से ८वें संशोधन मामले के रूप में जाना जाता है, स्वतंत्रता बांग्लादेश के संवैधानिक रिकॉर्ड में एक प्रसिद्ध निर्णय है। यह सबसे पहला निर्णय है जिसके द्वारा बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने संसद द्वारा तैयार संविधान में संशोधन को मुख्य रूप से कम किया है। यह संशोधन अधिनियम ११ जुलाई १९८९ को पारित किया गया था। संवैधानिक जनमत संग्रह के बाद, १८ सितंबर १९९१ को बारहवां संशोधन अधिनियम पारित किया गया था। इसने अनुच्छेद ४८, ५५, ५६, ५७, ५८, ५९, ६०, ७०, ७२, १०९, ११९, १२४, १४१आ और १४२ में संशोधन किया, 19७२ के मूल संविधान के अनुसार प्रधान मंत्री कार्यालय को कार्यकारी शक्तियां बहाल कीं, लेकिन जो १९७४ से राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा आयोजित किया गया। इसके बजाय, राष्ट्रपति राज्य का संवैधानिक प्रमुख बन गया; प्रधान मंत्री कार्यकारी प्रमुख बने; प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट जातीय संसद के लिए जिम्मेदार हो गई; उपराष्ट्रपति का पद समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति को जातीय संसद के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाना आवश्यक था। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद ५९ के माध्यम से, इस अधिनियम ने स्थानीय सरकारी निकायों में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की। संविधान (तेरहवां संशोधन) अधिनियम, १९९६ (२८ मार्च) ने एक गैर-दलीय कार्यवाहक सरकार (सीटीजी) प्रणाली की शुरुआत की, जो एक अंतरिम सरकार के रूप में कार्य करते हुए, आम चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को हर संभव सहायता और सहायता प्रदान करेगी। सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय डिवीजन द्वारा १० मई २०११ को इसे अवैध घोषित कर दिया गया था। हालांकि उच्च न्यायालय ने पहले ४ अगस्त 200४ को इसे कानूनी घोषित कर दिया था। चौदहवां संशोधन १७ मई २००४ को पारित किया गया था। इस संशोधन का मुख्य प्रावधान संसद में महिलाओं के बारे में चिंतित है। पंद्रहवां संशोधन ३० जून २०११ को पारित किया गया था जिसने संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए। संशोधन ने संविधान में निम्नलिखित परिवर्तन किए: महिला आरक्षित सीटों की संख्या मौजूदा ४५ से बढ़ाकर ५० की गई। अनुच्छेद ७ के बाद इसमें अनुच्छेद ७(ए) और ७(बी) को शामिल किया गया ताकि गैर-संवैधानिक साधनों के माध्यम से सत्ता पर कब्जा समाप्त किया जा सके। धर्मनिरपेक्षता और धर्म की स्वतंत्रता को बहाल किया। राष्ट्रवाद, समाजवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को राज्य की नीति के मूलभूत सिद्धांतों के रूप में शामिल किया। शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किया। संविधान का १६वां संशोधन २२ सितंबर २०१४ को संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसने जातीय संसद को जजों के खिलाफ अक्षमता या कदाचार के आरोप साबित होने पर उन्हें हटाने की शक्ति दी थी। ५ मई 20१६ को, बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने १६वें संशोधन को अवैध और संविधान के विरोधाभासी घोषित किया। ८ जुलाई 201८ को जातीय संसद द्वारा संविधान के १७वें संशोधन को सर्वसम्मति से पारित किया गया। संशोधन ने महिलाओं के लिए आरक्षित ५० सीटों का कार्यकाल अगले २५ वर्षों के लिए बढ़ा दिया। बांग्लादेश का संविधान बांग्लादेशी संविधान के संशोधन
रॉबर्ट ब्राउनिंग (७ मई १८१२- १८८९) एक अंग्रेजी कवि एवं नाटककार थे। नाटकीय कविता, विशेषकर नाटकीय एकालापों में अतुल्य दक्षता के कारण उन्हें विक्टोरियन कवियों में अग्रणी स्थान प्राप्त है। ब्राउनिंग अपने माता पिता, रॉबर्ट और सारा एना ब्राउनिंग की पहली संतान थे और उनका जन्म लन्दन, इंग्लैंड के एक उपनगर कैम्बरवैल में हुआ। उनके पिता बैंक ऑफ इंग्लैंड में एक लिपिक थे तथा उन्हें अच्छा वेतन मिलता था। उनकी वार्षिक आय लगभग १५० पाउंड थी। ब्राउनिंग के दादा सेंट किट्स, वेस्ट इंडीज़ में एक धनाढ्य दास स्वामी थे, परन्तु उनके पिता एक उन्मूलनवादी थे। ब्राउनिंग के पिता को एक चीनी के बागान में काम करने के लिए वेस्ट इंडीज भेजा गया था। ब्राउनिंग की माँ एक संगीतकार थीं। उनकी एक बहन थी, जिसका नाम सेरीऐना था। ऐसी चर्चा आम थी की ब्राउनिंग की दादी जमैका में जन्मी एक मुलातू महिला थीं, जिन्हें विरासत में सेंट किट्स में एक बागान मिला था। (मुलातू उन लोगों को बुलाया जाता था जिनके माता-पिता में से एक ब्रिटिश और एक अफ़्रीकी मूल के हों). रॉबर्ट के पिता ने एक पुस्तकालय का गठन किया, जिसमे लगभग ६००० किताबों का संग्रह था। इनमें से कई किताबें दुर्लभ थीं। इस प्रकार रॉबर्ट का पालन पोषण एक साहित्यिक संसाधनों से भरे घर में हुआ। उनकी माँ, जिनके वे बहुत निकट थे, बड़े विद्रोही स्वभाव की थीं। साथ ही वे एक प्रतिभा संपन्न संगीतकार भी थीं। उनकी छोटी बहन सारिऐना भी बहुत प्रतिभाशाली थी। बाद के वर्षों में वही ब्राउनिंग की सहयोगी बनी. उनके पिता ने साहित्य और ललित कलाओं में उनकी रूचि बढ़ाई. बारह वर्ष की आयु होने तक ब्राउनिंग ने कविताओं की एक पुस्तक लिख डाली थी, परन्तु कोई प्रकाशक ना मिलने के कारण उसे स्वयं ही नष्ट कर दिया. ब्राउनिंग ने कई प्राइवेट विद्यालयों में दाखिला लिया परन्तु उन्हें संस्थागत शिक्षा से अरुचि होती गयी। तत्पश्चात उन्होंने घर पर ही एक अध्यापक से अध्ययन करना उचित समझा. ब्राउनिंग एक मेधावी छात्र थे और चौदह वर्ष की आयु में वे धाराप्रवाह फ्रेंच, ग्रीक, इटालियन और लैटिन बोलने लगे थे। वे रोमांटिक कवियों, खासकर शेली के विशेष प्रशंसक थे। शेली का ही अनुसरण करते हुए वे नास्तिक और शाकाहारी बने, परन्तु बाद में दोनों को त्याग दिया. सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन पहले वर्ष के बाद ही छोड़ गए। उनकी माँ एक प्रखर एवंजेलिकल निष्ठा वाली महिला थीं, जिसके कारण वे कैम्ब्रिज या ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करने नहीं जा सके. उस समय ये दोनों संस्थान इंग्लैंड के चर्च के सदस्यों के लिए ही खुले थे। उनमें संगीत का भी अच्छा कौशल था, तथा उन्होंने कई गीतों की संगीत संरचना की. मध्य के वर्ष १८४५ में ब्राउनिंग की भेंट एलिज़ाबेथ बैरेट से हुयी, जो विम्पोल स्ट्रीट में अपने पिता के घर में एक अर्ध-मान्य संतान की तरह रहती थीं। समय के साथ दोनों के बीच गहन प्रेम हो गया। १२ सितम्बर १८४६ को उन्होंने गुप्त विवाह किया और घर से भाग गए। प्रारम्भ में उन्होंने अपना विवाह गुप्त रखा क्योंकि एलिज़ाबेथ के पिता अपने किसी बच्चे के विवाह की स्वीकृति नहीं देते थे। विवाह के बाद से ही युवा ब्राउनिंग दंपत्ति इटली में रहे, पहले पीसा में और फिर उसी वर्ष कासा गिड्डी (कसा गुईडी), फ्लोरेंस अपने नए अपार्टमेन्ट में. (यह स्थान उनकी याद में अब एक संग्राहलय है). उनका इकलौता पुत्र, रॉबर्ट विएडमन बैरेट ब्राउनिंग १८४९ में पैदा हुआ। उसका उपनाम उन्होंने "पैनिनी" या "पैन" रखा. इन वर्षों में ही ब्राउनिंग पर इटली की कला और सभ्यता का गहन प्रभाव हुआ तथा उन्होंने यहाँ बहुत कुछ सीखा. बाद के वर्षों में वे कहते नहीं थकते थे कि "इटली ही मेरा विश्वविद्यालय था". ब्राउनिंग ने वेनिस के निकट वेनेटो क्षेत्र के असोलो गाँव में भी एक घर खरीदा था परन्तु विडम्बना यह रही की जिस दिन उनको इस खरीद की नगर कौंसिल से अनुमति मिली, उसी दिन उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी पत्नी का देहावसान १८६१ में हुआ। ब्राउनिंग की कविताओं को साहित्य के पारखी तो प्रारम्भ से ही जानते थे परन्तु जन साधारण में एक कवि के रूप में वे केवल अपने मध्य वर्षों में जा कर ही प्रसिद्ध हो पाए. (उस सदी के मध्य में कवि टेनीसन अधिक ख्यातिप्राप्त थे) फ्लोरेंस में ब्राउनिंग ने जो कवितायें लिखीं वो अंततः मैन एंड वूमन नाम से दो खण्डों वाले संग्रह के रूप में प्रकाशित हुयीं. इन किताबों के लेखक के रूप में आज ब्राउनिंग जाने जाते हैं, परन्तु १८६५ में जब ये छपी थी तब इनका नाम मात्र भी प्रभाव नहीं हुआ था। १८६१ में अपनी पत्नी की मृत्यु के उपरांत जब वे लन्दन लौट आये और साहित्य सभाओं में सम्मिलित होने लगे, तब उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होने लगी. १८६८ में, पांच साल के कार्य के बाद, उन्होंने एक लम्बी ब्लैंक वर्स कविता द रिंग एंड द बुक प्रकाशित की, जिसके बाद उन्हें उचित सम्मान और स्थान प्राप्त हुआ। यह कविता १६९० में रोम में हुई एक जटिल ह्त्या के मामले पर आधारित है। बारह पुस्तकों के रूप लिखी गयी इस कविता में से दस में कहानी के विभिन्न पात्रों द्वारा घटनाओं का अपने-अपने दृष्टिकोण से वर्णन किया गया है। शेष दो में परिचय और निष्कर्ष वर्णित हैं। यह कविता ब्राउनिंग के स्वयं के मानदंडों के अनुसार भी अत्यधिक लम्बी है (२०,००० पंक्तियों से अधिक), द रिंग एंड द बुक उनकी सर्वाधिक महत्वाकांक्षी परियोजना थी। नाटकीय कविताओं में इसे टूर द फ़ोर्स (अद्वितीय सृजनात्मक एंड प्रभावशाली कार्य) का दर्जा दिया गया है। नवम्बर १८६८ से फरवरी १८६९ के बीच यह संग्रह अलग-अलग चार खण्डों में प्रकाशित हुआ, तथा व्यावसायिक और समीक्षात्मक दोनों पक्षों में अत्यधिक सफल रहा. अंततः इस संग्रह ने ब्राउनिंग को वह ख्याति दिलाई जिसकी तलाश उन्हें पिछले चालीस वर्षों से थी और जिसके वे योग्य थे। एलिज़ाबेथ बैरेट ब्राउनिंग रॉबर्ट ब्राउनिंग और एलिजाबेथ ने अपना प्रेम और विवाह गुप्त रखा. ब्राउनिंग से छह वर्ष बड़ी और दुर्बल एलिज़ाबेथ के लिए यह विश्वास करना कठिन था की खूबसूरत और उत्साही ब्राउनिंग उनसे वास्तव में उतना प्रेम करते हैं जितना वे कहते हैं। उन्होंने अपनी कविता सोंनेट्स फ्रॉम दा पॉर्चुगीज़ में अपना यही संदेह व्यक्त किया है। यह कविता उन्होंने अगले दो साल में पूरी की. अंततः प्रेम ने सब संदेहों और मुसीबतों पर विजय हासिल की तथा ब्राउनिंग एवं एलिज़ाबेथ ने सेन्ट मैरिलबोन पैरिश चर्च में गुप्त विवाह कर लिया। ठीक अपने हीरो शेली के पदचिन्हों पर चलते हुए, १८४६ में ब्राउनिंग एलिजाबेथ को इटली ले आये, जो जीवनपर्यंत उनका घर बना. एलिजाबेथ की वफादार नर्स, विल्सन, जो चर्च में शादी की साक्षी बनी, उनके साथ इटली आ गयी और उनकी सेवा करती रहीं.' एलिज़ाबेथ के पिता श्री बैरेट ने एलिज़ाबेथ को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया. ऐसा उन्होंने अपने उन सभी बच्चों के साथ किया जिन्होंने विवाह करने का दुस्साहस किया। "लोकप्रिय कल्पना में श्रीमती ब्राउनिंग एक मृदु स्वभाव, अबोध नवयुवती थी जिन्हें एक अत्याचारी पिता के हाथों में अंतहीन क्रूरताओं का सामना करना पड़ा, परन्तु भाग्य से जिन्हें सुन्दर और तेज रॉबर्ट ब्राउनिंग नामक कवि का प्रेम और सान्निध्य प्राप्त हुआ। अंततः वे विम्पोल स्ट्रीट के अँधेरे जीवन से भाग कर इटली पहुँच गयीं और वहाँ जीवनपर्यंत हर्ष और उल्लास के साथ रहीं." एलिजाबेथ को कुछ पैसा विरासत में मिला था, इसलिए वे दोनों इटली में आराम से रहते थे। पति-पत्नी के रूप में उनका रिश्ता संतोषजनक था। ब्राउनिंग दंपत्ति की इटली में बड़ी ख्याति थी और इसी कारण से लोग उन्हें राह चलते रोक लेते थे या उनसे ऑटोग्राफ़ माँगा करते थे। एलिजाबेथ ने स्वास्थ्य लाभ किया और १८४९ में, ४३ वर्ष की आयु में, उन्होंने एक बेटे, रॉबर्ट वीदमैन बैरेट ब्राउनिंग को जन्म दिया, जिसे वे पैन कहते थे। उनके बेटे ने बाद में विवाह किया पर उसकी किसी वैध संतान का कोई ज्ञान किसी को नहीं है। सुनने में ऐसा भी आता है कि फ्लोरेंस के आसपास के क्षेत्र उनके वंशजों से भरे हुए हैं। ब्राउनिंग के कई आलोचकों का मानना है कि उन्होंने यह निश्चय किया था की वे एक 'निष्पक्ष (ऑब्जेक्टिव) कवि' हैं और फिर वे एक 'व्यक्ति-निष्ठ (सब्जेक्टिव) कवि' की खोज करने लगे ताकि उसके साथ विचार-विमर्श कर के वे अधिक सफल बन पायें. अपने पति के आग्रह पर एलिजाबेथ ने अपनी कविताओं के दूसरे संस्करण में लव सौनेट्स को भी शामिल कर दिया. इन सौनेट्स ने एलिज़ाबेथ को प्रसिद्धी और समीक्षकों की प्रशंसा दिलाई. तत्पश्चात वे एक प्रमुख विक्टोरिन कवयित्री के रूप पर उभरीं. १८५० में विलियम वर्डस्वर्थ की मृत्यु के बाद वे पोएट लौरिएट की प्रमुख दावेदार थीं परन्तु यह सम्मान एल्फ्रेड टेनिसन को मिला.' जीवन के अंतिम वर्ष अपने जीवन के शेष वर्षों में ब्राउनिंग ने काफी यात्रा की. पिछले कुछ समय में ब्राउनिंग के बाद के वर्षों में किये गए कार्य की पुनः समीक्षा की जा रही है। अपनी काव्यात्मक गुणवत्ता और मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि के लिए ये कार्य पाठकों में अत्यंत लोकप्रिय हैं। १८७० के प्रारम्भ में लम्बी कविताओं की एक श्रृंखला छपने के बाद, जिसमें फीफाइन एट द फेयर और रेड कॉटन नाईट-कैप कंट्री को सर्वाधिक प्रशंसा मिली, ब्राउनिंग फिर से छोटी कवितायें लिखने लगे. पेचिअरोत्तो एंड हाउ ही वर्क्ड इन डिसटैम्पर में ब्राउनिंग ने अपने आलोचकों के खिलाफ द्वेषपूर्ण वार किया, विशेषकर पोएट लौरीएट अल्फ्रेड ऑस्टिन के विरुद्ध. कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ब्राउनिंग का लेडी एशबर्टन के साथ रोमांस चला, परन्तु उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। १८७८ में वह एलिजाबेथ के निधन के बाद सत्रह साल में पहली बार इटली लौटे और उसके बाद कई अवसरों पर इटली आये. उनके काम की सराहना के लिए १८८१ में ब्राउनिंग सोसाइटी की स्थापना की गयी। १८८७ में, ब्राउनिंग ने अपने बाद के वर्षो का एक महत्त्वपूर्ण कार्य, पार्लेइंग्स विद सर्टेन पीपल ऑफ इम्पौरटैंस इन देयर डे प्रस्तुत किया। इस कार्य में अंततः ब्राउनिंग खुद अपनी आवाज़ में कुछ भुलाए जा चुके कवियों, दार्शनिक इतिहासकारों और कलाकारों से संवाद करते हैं। एक बार फिर से, विक्टोरियन जनता वह पढ़ कर उनकी कायल हो गयी। इसके बाद ब्राउनिंग फिर से छोटी कवितायें लिखने लगें जो उनके अंतिम वोल्यूम असोलैंडो (१८८९) में प्रकाशित हुई. उनका निधन १२ दिसम्बर १८८९ को वेनिस में उनके पुत्र के घर का'रेजोनिको (का'रीज़्ज़ॉनीको) में हुआ। उसी दिन असोलान्दो प्रकाशित हो कर आई थी। उन्हें वेस्टमिन्स्टर एब्बी में पोएट्स कॉर्नर में दफनाया गया, जहाँ अल्फ्रेड टेनिसन की मज़ार भी उनके निकट ही है। ब्राउनिंग की काव्यात्मक शैली आज ब्राउनिंग की ख्याति मुख्यतः उनके नाटकीय एकालापों की वजह से है, जिसमें शब्द न केवल परिदृश्य का वर्णन करते हैं, बल्कि वक्ता के चरित्र को भी प्रकट करते हैं। ब्राउनिंग के ये नाटकीय एकालाप स्वभाषणों से भिन्न हैं। इनमें वक्ता प्रत्यक्ष रूप से अपना पक्ष नहीं रखता अपितु परोक्ष रूप में बिना इस प्रति प्रयास किये जो वह प्रकट कर जाता है, वही उसका वास्तविक ध्येय होता है। इस माध्यम से वह अपने क्रिया कलापों को कविता में निहित उस प्रछन्न परीक्षक के सम्मुख न्यायसंगत सिद्ध कर जाता है। अपने पक्ष को प्रत्यक्ष शब्दों में कहे बिना वह पाठक को अपना पक्ष समझन को बाध्य कर देता है। ब्राउनिंग अपने काव्य में सर्वाधिक अधम और मनोरोगी अपराधियों को पेश करते हैं, जिसका मकसद होता है पाठक के मन में उन पात्रों के प्रति सहानुभूति पैदा करना. हालाँकि वे चरित्र इसके योग्य नहीं होते, परन्तु ऐसा पाठक को उकसाने के लिए लिखा जाता है ताकि वह एक हत्यारे व मनोरोगी को न चाहते हुए भी निर्दोष मानने को बाध्य हो जाएँ. उन का एक अधिक सनसनीखेज एकालाप था पोर्फायिरिआज़ लवर . माय लास्ट डचेस ' ब्राउनिंग के बहुचर्चित एकालापों में से एक है। इसमें प्रत्यक्ष रूप में तो मुख्य पात्र ड्यूक सभ्य व कुलीन है, तथा उसके संवाद भी एक संभ्रांत व्यक्ति के अनुकूल ही हैं। परन्तु एक प्रबुद्ध व सचेत पाठक को यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि इस ऊपरी सभ्यता व संभ्रांत शब्दों के परोक्ष में एक विक्षिप्त दिमाग काम कर रहा है। शीघ्र ही पाठक को यह ज्ञात हो जाता है की डचेस की हत्या बेवफाई के कारण नहीं की गयी, न ही इस कारण कि वह छोटी घटनाओं से प्रसन्नता प्राप्त कर लेती थीं और अंत में न ही इस लिए की गयी की वह ओहदे के लिए उचित कृतज्ञता नहीं प्रकट कर पायीं. ड्यूक का घमंडी और अमानवीय मन यह तक स्वीकार नहीं कर पाता था कि उसे अपनी पत्नी को एक डचेस की तरह व्यवहार करने के लिए कहना पड़ता था। उसे यह भी अपनी झूठी शान के विपरीत लगता था। इस घमंड के कारण डचेस ड्यूक की पेंटिंग व पुतलों के संग्रह का एक कलात्मक हिस्सा मात्र बन कर रह गयीं. एक अन्य एकालाप फ्रा लिप्पो लिप्पी में ब्राउनिंग एक अरुचिकर और अनैतिक चरित्र का प्रयोग करते हैं और पाठकों को चुनौती देते हैं कि वे उस चरित्र की वह खूबियाँ ढूंढ कर बताएं, जिन्हें ढूँढने में उस समय के न्यायधीशों को भी पसीना आ जाए. रिंग एंड द बुक ब्राउनिंग का एक महाकाव्य है। इसमें एक हत्या के केस के चरित्रों द्वारा बोले गए १२ रिक्त वर्स एकालापों के माध्यम से वे इश्वर के मानव के प्रति प्रेम की विवेचना करते हैं। इन एकालापों ने बाद के कई कवियों को काफी प्रभावित किया जिनमें से टी. एस. इलीअट और एजरा पाउंड प्रमुख हैं। एजरा पाउंड तो ब्राउनिंग की सोर्देलो नामक कविता, जो तेहरवीं शताब्दी के एक असफल व निराश कवि की विकृत मानसिकता का वर्णन है, के विषय में अपनी कविता कैन्तोस में यहाँ तक कह डाला कि ब्राउनिंग के इस संग्रह से इतने प्रभावित हैं कि इससे दूर रहना कठिन हो रहा है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ब्राउनिंग की जिस शैली को विक्टोरियन पाठकों ने आधुनिक और प्रयोगात्मक माना, वह वास्तव में सत्रहवी शताब्दी के कवि जॉन डन की शैली से प्रभावित है। डन कविता के आकस्मिक प्रारम्भ, आम बोल चाल के शब्दों के प्रयोग और अनियमित लय ताल के लिए प्रसिद्ध थे। ब्राउनिंग परसी शेली के अवरोही प्रशंसक रहे और इसलिए वे सत्रहवी शताब्दी के आत्म केन्द्रित कवियों के द्वारा प्रयोग किये गए मिथ्या दंभ, कटाक्ष और अनुचित शब्द-वाक् युद्ध से दूर रहे. उनमें आधुनिक संवेदनशीलता है और वे अपने एक चरित्र के उस मासूम कथन 'इश्वर स्वर्ग में है; धरती पर सब ठीक है।" के विरुद्ध उठने वाले प्रश्नों से भली भांति अवगत हैं। ब्राउनिंग इस कथन का समर्थन करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि वह सर्वशक्तिमान इश्वर उस उत्कृष्ट स्वर्ग में रहने के बावजूद सांसारिक प्रक्रियाओं से दूर नहीं है और जीवन में आनंद के प्रचुर अवसर व कारण हैं। ध्वनि रिकॉर्डिंग का इतिहास ७ अप्रैल १८८९ को ब्राउनिंग के एक मित्र कलाकार रूडोल्फ लेहमैन के घर पर आयोजित एक रात्रिभोज के समय, एडिसन के ब्रिटिश प्रतिनिधि जॉर्ज गूराड ने व्हाईट वैक्स सिलेंडर पर एक एडिसन सिलेंडर फोनोग्राफ रेकॉर्डिंग की. इस रेकॉर्डिंग में, जो आज भी सुरक्षित है, ब्राउनिंग ने अपनी कविता "हाउ दे ब्रौट दा गुड न्यूज़ फ्रॉम घेंट टू एक्स" के कुछ हिस्से पढ़ कर सुनाये हैं (कविता के कुछ अंश भूलने पर उन्हें क्षमा मांगते हुए भी सुना जा सकता है) जब १८९० में उनकी मृत्यु की वर्षगाँठ पर यह रिकॉर्डिंग उनके प्रशंसकों के मध्य बजाई गयी, तो लोगों ने ऐसा कहा कि "पहली बार किसी की आवाज़ उसकी कब्र के परे से भी सुनाई दी". सम्पूर्ण कार्यों की सूची पौलीन: ए फ्रैगमेंट ऑफ ए कन्फेशन (१८३३) स्ट्राफोर्ड (खेल) (१८३७) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर ई: पिप्पा पासेस (नाटक) (१८४१) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर ई: किंग विक्टर और किंग चार्ल्स (नाटक) (१८४२) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर ई: ड्रामैटिक लिरिक्स (१८४२) "सौलीलोकुई ऑफ़ दा स्पैनिश क्लोइसटर" "माई लास्ट डचेस" दा पाइड पाइपर ऑफ़ हम्लिन "जोहानिस अग्रीकोला इन मेडिटेशन" बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर इव: दा रिटर्न ऑफ़ दा ड्रूसेस (नाटक)(१८४३) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर व: ए ब्लोट इन दा स्कूचन (नाटक) (१८४३) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर वि: कोलोम्बेज़ बर्थडे (नाटक) (१८४४) बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर वी: नाटकीय रोमांस और गीत (१८४५) "हाउ दे ब्रौट दा गुड न्यूज़ फ्रॉम घेंट तो एक्स" दा बिशप ओर्डेर्स हिस टूम्ब अत सेंत प्रेक्स्द'स चर्च बैल्स एंड पामिग्रेनेट्स नंबर वी: लुरिया एंड ए सोल्स ट्रेजडी (नाटक) (८४६) क्रिसमस ईव एंड ईस्टर डे (१८५०) मैन एंड वूमन (१८५५) "लव अमोंग दा रूएंस" "दा लास्ट राइड टूगैदर" "ए टोक्कता ऑफ़ गलुप्पिज़" "चाइल्ड रोलैंड टू दा डार्क टॉवर केम" "फ्रा लिप्पो लिप्पी" "एंड्रिया डेल सार्तो" "दा पैट्रियट/ एन ओल्ड स्टोरी" "ए ग्राम्मारियन्स फ़ूनेरल" "एन एपिस्तल कंटेनिंग दा स्ट्रेंज मेडिकल क्स्पीरिंस ऑफ़ कर्शीश, दा अरब फिसिशियन" ड्रेमेटिज़ पर्सोने (१८६४) "कैलिबेन अपोन सेतेबोस" "रब्बी बेन अजरा" दा रिंग एंड दा बुक (१८६८-९) ब्लौस्टिन्स ऐडवैनचर (१८७१) प्रिंस हॉनेस्टियल-स्चवान्गु, सेवियर ऑफ सोसाइटी (१८७१) फिफाइन एट दा फेयर (१८७२) रेड कॉटन नाईट कैप कंट्री और, टर्फ एंड टावर्स (१८७३) एरिस्टोफेंस अपोलौजी (१८७५) दा इन एल्बम (१८७५) पच्चिअरोत्तो, एंड हाउ ही वर्क्ड इन डिस्टेम्पर (१८७६) दी आगामेमनन ऑफ़ एचीलस (१८७७) ला सैसिअज़ एंड दी टू पोयट्स ऑफ क्रोइसिक (१८७८) ड्रामेटिक इडील्स (१८७९) ड्रामेटिक इडील्स: दूसरी सीरीज (१८८०) फेरिशताज़ फैन्सीस (१८८४) पारलेइंग विद सर्टेन पीपल ऑफ इंपोर्टेंस इन देयर डे (१८८७) ब्राउनिंग और उनकी पत्नी एलिज़ाबेथ की कहानी पर आधारित एक नाटक बनाया गया था जिसका नाम था, "द बैरेट्स ऑफ विम्पोल स्ट्रीट." नाटक कैथेरिन कॉर्नेल नामक अभिनेत्री ने खोजा और निर्मित किया। उन्होंने स्वयं ही एलिज़ाबेथ की भूमिका अदा की और वे इसी भूमिका के लिए प्रसिद्ध हुयीं. यह नाटक काफी सफल रहा और अमेरिका में इसने ब्राउनिंग दंपत्ति को बहुत सफलता दिलाई और फिर अंततः इस नाटक पर आधारित दो फ़िल्में भी बनी. इसके अतिरिक्त, द विंग्स ऑफ फायर ऑर्केस्ट्रा का दूसरा एल्बम, प्रोस्पाईस, रॉबर्ट ब्राउनिंग की इसी नाम की कविता पर आधारित है। स्टीफन किंग की द डार्क टॉवर नामक उपन्यासों की सीरीज ब्राउनिंग की कविता चाइल्ड रोलैंड टू दा डार्क टावर केम पर आधारित है। रॉक बैंड क्वीन के द्वारा "माय फेयरी किंग (१९७३) नामक गीत में कही गयी ये पंक्तियाँ" और उनके कुत्तों ने हमारे हिरणों को पछाड़ दिया और मधुमखियों ने अपने डंक खो दिए और घोड़ों का जन्म चील के पंखों के साथ हुआ" सीधे ही ब्राउनिंग की किताब द पाईड पाइपर ऑफ हैमलिन से ली गयी हैं। रॉबर्ट ऍफ़ यंग की १९५७ की साइंस फिक्शन लघु कथा योर घोस्ट विल वॉक... के दो मुख्य रोबोट पात्र व्यक्तित्व रॉबर्ट ब्राउनिंग और एलिजाबेथ बैर्रेट ब्राउनिंग पर आधारित हैं। 'नियोन जेनेसिस एवंजेलियन फ्रेंचाइज' में नर्व की संस्था के लोगो के एक चौथाई वृत्त के आकार में नीति वाक्य "इश्वर स्वर्ग में है; धरती पर सब कुशल है" लिखा हुआ है, शेष लोगो में संस्था का नाम एक अंजीर की पत्ती से ढका है। यह आदर्श वाक्य रॉबर्ट ब्राउनिंग की कविता पिप्पा पासेस से लिया गया है। टेरेंस रैटेगन के नाटक द ब्राउनिंग वर्शन की पटकथा एक संवेदनशील स्कूली लड़के की कहानी है जो अपनी अध्यापिका को द एगेमेनोन ऑफ इचीलस नामक कृति का ब्राउनिंग द्वारा १८७७ में किया गया अनुवाद भेंट करता है। (इस नाटक पर १९९४ में एक फिल्म भी बनी जिसमें अलबर्ट फिन्नी ने मुख्य भूमिका निभाई) जान लेनन का गाना "ग्रो ओल्ड विथ मी", जो उनके मरणोपरांत मिल्क एंड हनी नामक एल्बम में शामिल किया गया, वह भी ब्राउनिंग के "ग्रो ओल्ड विथ मी, दा बेस्ट इस येट टू बी" पर आधारित है। डाक विभाग ने भी इसे बाद में प्रयोग किया और उनकी एल्बम इंस्टेंट कर्मा: थे अमनेस्टी इंटरनेशनल कैंपेन तो सवे दरऊर का हिस्सा बना. अमेरिकन टीवी धारावाहिक फ्रेज़िअर के छठे सीजन "गुड ग्रीफ" में धारावाहिक का मुख्य पात्र फ्रेजिअर रॉबर्ट ब्राउनिंग और एलिजाबेथ ब्राउनिंग के जीवन पर एक छोटा ओपेरा बनाते हुए दिखाया गया है। अमेरिकन टीवी धारावाहिक द एक्स फाइल्स के चौथे सीज़न में एजेंट फ़ॉक्स मलडर को धारावाहिक के प्रारम्भ और अंत में "वह खेत जहां मैं मारा गया था", कहते हुए दिखाया गया है जो पंक्ति ब्राउनिंग की रचना पैरासेल्सस से ली गयी है। डीवेन, विलियम क्लाईड. ए ब्राउनिंग हैन्डबुक दूसरा संस्करण.(एप्पलटन-सेंचुरी-क्रौफ्ट्स, १९५५) ड्रयू फिलिप. दी पोएट्री ऑफ रॉबर्ट ब्राउनिंग: ए क्रिटिकल इंट्रोडकशन. (मेथुएँ, १९७०) फिनलेसन, इआन ब्राउनिंग: ए प्राइवेट लाइफ. (हार्परकोल्लिंस, २००४) हडसन, गरत्रुड़ रीज़. रॉबर्ट ब्राउनिंगस लिटररी लाइफ फ्रॉम फर्स्ट वर्क टू मास्टरपीस. (टेक्सास, १९९२) कार्लिन, डैनियल. दी कोर्टशिप ऑफ रॉबर्ट ब्राउनिंग एंड एलिजाबेथ बैरेट. (ऑक्सफोर्ड, १९८५) केल्ली, फिलिप एट ऑल. (एड्स) दा ब्राउनिंगस करेस्पांडेंट . १५ वोल्स.टू डेट. (वेजस्टोन, १९८४-) (कम्प्लीट लैटर्स ऑफ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग एंड रॉबर्ट ब्राउनिंग, सो फार टू १८४९.) मेनार्ड, जॉन. ब्राउनिंगस यूथ. (हार्वर्ड यूनिवर्सिटी. प्रेस, १९७७) चेस्टअरटन, जी.के. रॉबर्ट ब्राउनिंग (मैकमिलन, १९०३) रियालस, क्लाईड डे एल. दी लाइफ ऑफ रॉबर्ट ब्राउनिंग: ए क्रिटिकल बायोग्राफी. (ब्लैकवेल, १९९३) मार्कस, जूलिया। डेयर्ड एंड डन: दा मैरिज ऑफ एलिजाबेथ बैर्रेट एंड रॉबर्ट ब्राउनिंग (ब्लूम्स्बर्री, १९९५) जॉन वूल्फौर्द एंड डेनिअल कार्लिन.रॉबर्ट ब्राउनिंग (लौंगमैन, १९९६) मार्टिन गर्रेट, आदि, एलिजाबेथ ब्राउनिंग बैरेट ब्राउनिंग एंड रॉबर्ट: इंटरव्यू एंड रिकलैकशनस (मैकमिलन, २०००) मार्टिन गर्रेट,एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग ब्राउनिंग एंड रॉबर्ट ब्राउनिंग . (ब्रिटिश लाइब्रेरी राइटर्स लाइव) ब्रिटिश लाइब्रेरी, २००१) बोय्ड लिटजींगर एंड डोनाल्ड स्माल्ले, एड्स. रॉबर्ट ब्राउनिंग: दा क्रिटिकल हैरीटेज . (रूटलेज, १९९५) ग्रेव ऑफ रॉबर्ट ब्राउनिंग पोयम्स बाय रॉबर्ट ब्राउनिंग पोयम्स बाय रॉबर्ट ब्राउनिंग एट पोएट्री फाउनडेशन.ऑर्ग रॉबर्ट ब्राउनिंग बायोग्राफी एंड सेलेक्ट बिबलिओग्राफी दी ब्राउनिंग्स: ए रिसर्च गाइड (बेयलर विश्वविद्यालय) दी ब्राउनिंग सोसायटी शॉर्ट बायोग्राफी एंड पोयम्स पोएट्री आर्काइव: १३५ पोयम्स ऑफ रॉबर्ट ब्राउनिंग ए रिकॉर्डिंग ऑफ ब्राउनिंग रिसाइटिंग फाइव लाइंस फ्रॉम "हाउ दे ब्रौट दा गुड न्यूज़ फ्रॉम घेंट टू एक्स" वर्क्स बाय रॉबर्ट ब्राउनिंग इन ई-बुक एन अनालीसिस ऑफ होम थॉट्स, फ्रॉम अब्रौड ब्राउनिंग फैमिली कलेक्शन एट दा हैर्री रैनसम सेंटर एट दा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास एट ऑस्टिन बल्लिओल कॉलेज के अध्येता, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के पूर्व छात्र केम्बरवेल के लोग वेस्टमिंस्टर एबे में गाड़े गए लोग १८१२ में जन्मे लोग १८८९ में हुई मौतें
यह साऊदी अरब में स्थित प्रमुख मैदान हैं। विश्व के प्रमुख मैदान
सूरा अल-इन्शिराह ( , सान्त्वना या आराम) कुरान का ९४वां सूरा है। इसमें ८ आयतें हैं, तथा इसे मक्का में प्रकट किया गया था।
जैतहरी (जैथरी) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अनूपपुर ज़िले में स्थित एक नगर व तहसील है। इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के शहर अनूपपुर ज़िले के नगर
बरवाडीह २ डुमरिया, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
द बीटल्स १९६० का एक अन्ग्रेज़ी रॉक बैन्ड था जिसका निर्माण लिवरपूल में किया गया था। जॉन लेनन, पॉल मेकारटनि, जोर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार के साथ वे व्यापक प्रभावशाली कलाकार के रूप मे माने जाते है। १९५० के दशक के रॉक एन्ड ऱोल के शैलि मे शुरु किया था और उस्के बाद बीटल्स ने कई सारे शैलियों के साथ प्रयोग किया। पॉप गाथगीत से साइकेडेलिक् रॉक को लेकर वह अक्सर शास्त्रीय ततवो को अपनाकर, अभिनव तारीके से इन ततवो को अपने संगीत मे शामिल करते। १९६० के काल मे बीटल्स को बहुत लोकप्रियता मिलि। जब वह "बीटलमेनिया" के रूप मे उभरे। लेकिन जैसे उन्के गीत लेखन कि व्रिधि हुइ वे सामाजिक और सांस्कृतिक क्रितियो के द्वारा अपने आदर्शें के अवतार के रूप से माना जाने लगे। १९६० मे सथापित हुए बीटल्स ने अप्नि ख्याति लिवरपूल और हैम्बर्ग मे कल्ब खोल्कर तीन साल कि अवधि मे लोकप्रियताअर्जित कि। प्रबन्धक बरायन एप्स्तटाईण एक पेशवर अधिनियम मे डाला और निर्माता जार्ज मार्टीन उन्के संगीत की क्शम्ता बडाई। १९६२ मे "लव मी डू: उन्का पहला हिट होने के बाद ब्रिटेन मे प्रसिधि हासिल की। वे "बीटल्मैनिया" के नाम से माने जाने लगे। वह उप्नाम "फैब फोर" के रूप से माने जाने लगे। जल्दि १९६४ मे प्रमुख अन्तरासश्ट्ऱीय सितारे बन गए जो अमेरिका पॉप बाज़ार के "ब्रिटीश आक्रमण" के संयुक्त बने। पर १प६५ से बीटल्स कई प्रभावशालि एल्बम बनाए जैसे रबर सोल (१९६५), रिवाल्वर (१९६६), सार्जिट पेपर्स लोनली हार्टस कल्ब बैन्ड (१९६७), द बीटल्स (सफेद एल्बम) (१९६८) और अभय रोड (१९६९)। १९७० मे उन्के टूट्ने के बाद वे एकल वयवसाय का आनन्द लिया। लेनन को दिसम्बर १९८० मे गोलि मार दिया गया और हैरिसन को नवम्बर २०११ मे फेफड़ों के कैनसर के कारण म्र्त्यु हो गई। मेकारटनि और स्टार, बाकी सदस्य अपने संगीत को जारि रखा। रिया के अनुसार बीटल्स प्रमाणीत इकाइयो के साथ, सयुन्क्त रज्य अमेरिका मे सब्से ज़्यादा बिक्ने वाला बैन्ड था। वे ब्रिटिश चार्ट पर अधिक सन्ख्या मे सबसे अवल एलब्म था। २००८ मे समुह के सबसे सफल "हाट १००" कलाकारो मे बिलबोर्ड पत्रिका की सूची मे सबसे उपर रहे। २०१४ के रूप मे वे सबसे अधिक सन्ख्या मे एक २० के साथ हाट १०० चार्ट पर रेकार्ड पकडा रखा। वे दस ग्रैमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ मूल स्कोर के लिए एक अकादमि पुरस्कार और १५ इवोर नोवेलो पुरस्कार प्राप्त किए है। सामुस्टोनहिक रूप से २०वी सदि के १०० सबसे प्रभाव्शालि लोगो की टाइम पत्रिका के सन्कलन मे शामिल है। वे एमी रिकार्ड्स मे अरसे से ज़्यादा इकाइयों की बिक्री के आकलन के साथ मे इतिहास मे अधिक बिकने वाला बैन्ड है। २००४ मे रोलिंग स्टोन सभी समय के महान्तम कलाकार के रूप मे बीटल्स स्थान पर रहे। संगीत शैली और विकास् बीटल्स के सबसे पहले प्रभाव है एल्विस प्रैसलि, कार्ल पार्किन्स, लिटिल रिचर्ड और चक बैरी है। १९६२ मे जब् बीटल्स लिटिल रिचर्ड के साथ स्टार कल्ब, हैमबर्ग, अप्रैल से मई मे उन्होने सलाह दी कि वह अपने गीत के लिये उचित प्रविधि का प्रदर्शन करे। प्रेस्ली के लिये लेनन ने कहा "मैने जब तक एल्विस को सुना, तब तक मुझे वास्तव मे कुछ भि प्रभावित न हिआ, अगर एलिस न होता तो बीटल्स भी न होता।" अन्य प्रारम्भिक प्रभाव थे जैसे कि बडि होली, एडी कोकरान, रॉय और्बिसन और एवर्लि ब्रदर्स थे। वह अक्सर बॉब डिलन और फ्रैन्क ज़ैपा के गीत सहित को सुन्ने के द्वरा नए संगीत गाते और गीतात्मक रास्ते खोजने लगते। हैरिसन ने १९६६, भारत मे ६ सप्ताह के समय के लिये रवि शनकर के साथ अध्ययन किया था। बैन्ड के बाद के वर्षों के दौरान उनके संगीत मे रवि शनकर के विकास का महत्व्पूर्ण प्रभाव था। "ऱोल्लिङ स्टोनेस" नामक पत्रिक के पूर्व एसोसिएट एडीटर ने बीटल्स की तुलना पिकास्सो से की, जो "कलाकार अपने समय के दबाव तोड्कर कुछ नयी कला को प्राप्त किया जो अद्वितीय और मूल था। लोकप्रिय संगीत के प्रपत्र में कोई भी इत्ना क्रान्तिकारी, इत्ना रच्नात्मक, इत्ना विशिष्ट नही हो सक्ता।" अमेरिका के खिलाफ अन्ग्ग्रेज़ी आक्रमण रचाने के साथ साथ वे विश्व स्तर पर प्रभावशाली घटना बन गये थे। उन्के संगीत नवाचारों और व्यावसायिक सफलता ने दुनिया के कई संगीतकारों को प्रेरणा दी। कई कलाकारों ने बीटल्स के प्रभाव को स्वीकार किया है और बीटल्स से लिये गये उन्के संगीत को सफल्ता मिली है। रडियो पर उन्के आगमन ने एक नया युग स्थापित किया; १९८६ में न्यू योर्क के "वाब्क" रेडियो स्टेशन के प्रोग्रामिंग निदेशक ने अपने रडियो को कोई भी बीटल्स के पेहले का संगीत बजाने से मना कर दिया था। वे आधूनिक संगीत के प्राथमिक नवीन आविष्कारों कहलाये जाते थे। "द शिया स्टेडिअम शो" में लगभग ५५६०० लोग आये, जिस्से उन्होने अप्ना १९६५ का नोर्थ अमेरिका संगीत यात्रा को शुरु किया, जो उस समय का सब्से बडा संगीत कार्यक्रम माना गया; स्पिट्ज़ इस घटना को इस तरह से वर्णन करते हैं - "यह बडी सफलता है। इसे संगीत कार्यक्रम के व्यापार में एक बडा कदम है।" उनके वस्त्र और ज़्यादातर उन्के केश्विन्यास का अनुकरण, जो विद्रोह का एक निशान बन गया, ने वैश्विक फैशन को प्रभावित किया, ऐसा गोल्ड ने कहा। गोल्ड के अनुसार, बीटल्स ने लोगों के संगीत का मज़ा लेने क तरीका बदल दिया था और इन लोगों ने अपने जीवन में बीटाल्स की भूमिका का अनुभाव किया। जो "बीटलमेनिया" से शुरु हुअ था, इस समुह की लोकप्रीयता धीरे धीरे दशक की सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनों का अवतार बन गयी। १९६० के जवाबी संस्कृति के आइकॉन होने की वजह से वे बोहेमियनिस्म और सक्रियता जैसे अनेक सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में उत्प्रेरक माने जाते थे और महिला मुक्ति, समलैंगिक मुक्ति और पर्यावरणवाद के मामलो में उन्होने अप्न हाथ बढाया। पीटर लवेज़्ज़ोलि के अनुसार, १९६६ के "यीशु से ज़्यादा लोकप्रीय" विवाद के बाद, बीटल्स को यह सहि लगा कि उन्हे सही चीज़े कहिनी चाहिये और वे ज्ञान का संदेश और उच्च चेतना फैलाने का प्रयोग करने लगे। पुरस्कार और उपलब्धियां १९६५ में, रानी एलिज़बेथ २ ने लेनन, मेकारटनि, हैरिसन और स्टार को "मेम्बर्स ऑफ़ द ऑर्डेर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पाइर" में नियुक्त किया। "लेट इट बी" (१९७०) नामक चलचित्र को १९७१ अकादमी पुरस्कार "बेस्ट ओरिजिनल सांग स्कोर" से सम्मनित किया गया था। ७ ग्राम्मी पुरस्कार और १५ ईवोर नोवेल्लो पुरस्कार के विजेता, बीटल्स को ६ डाइमन्ड एलबम, २४ मल्टि प्मेटिनम एलबम, ३९ प्मेटिनम एलबम और ४५ गोल्ड एलबम से अमेरिका में सम्मानित किया गया है। इंग्लैंड में, बीटल्स के नाम ४ मल्टि प्मेटिनम एलबम, ४ प्मेटिनम एलबम, ८ गोल्ड एलबम और १ सिल्वर एलबम हैं। १९८८ में उन्हे "रॉक एंड रोल हॉल ऑफ फेम" में शामिल किया गया था। इतिहास के सबसे सर्वश्रेष्ठ विक्रय बैन्ड, बीटल्स ने ६० करोड और १०० करोड से अधिक इकाइयों को बेचा है। उन्के पास दुनिया के दूसरे बैन्ड से ज़्यादा नुम्बर एक एलबम ब्रिटिश चार्ट्स पर हैं और इंग्लैंड में २ करोड से ज़्यादा गानो को बेचा है। २००४ में, "रोल्लिन्ग स्टोन" नामक पत्रिका ने बीटल्स को दुनिया के सबसे सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पद सौंपा। "टाइम" पत्रिका के "२० सदी के १०० प्रमुख प्रभावशाली लोग" के भाग में बीटल्स को सामुहिक रूप मे शामिल किया गया था। २०१४ में उन्हें "ग्राम्मी लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार" से सम्मनित किया गया था। रॉक संगीत गुट
बडगलभट्ट, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बडगलभट्ट, अल्मोडा तहसील बडगलभट्ट, अल्मोडा तहसील
अहमद शेर खान (१५ दिसंबर, १९१४ - सितंबर, १९८२) एक भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी थे, जिन्होंने १९३६ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया था। वह भारतीय फील्ड हॉकी टीम के सदस्य थे, जिसने मी गोल्ड जीता था उनके बेटे असलम शेर खान भी एक हॉकी खिलाड़ी हैं, जो १९७५ के विश्व कप में स्वर्ण जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा थे। १९१४ में जन्मे लोग १९८२ में निधन भारत के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता
अकबरपुर मजरा कुसुमखोर अंश कन्नौज, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। कन्नौज जिला के गाँव
यदि किसी प्रणाली (सिस्टम) में बहुत सारी घटनाएँ हैं तो उन घटनाओं को को सही समय पर और सही क्रम में करने के लिए आवश्यक प्रयत्न तुल्यकालन (सिंक्रोनिज़ेशन) कहलाता है। उदाहरण के लिए, किसी आर्केस्ट्रा का संचालक आर्केस्ट्रा को तुल्यकालित रखता है। जिस प्रणाली के सभी घटनाएँ तुल्यकालित रूप में घटित होतीं हैं उसे तुल्यकालिक तंत्र कहते हैं। इसके विपरीत तंत्र को अतुल्यकालिक तंत्र कहते हैं। आजकल, यदि किसी विशाल प्रणाली के विभिन्न घटक विश्व के विभिन्न भागों (देशों) में भी फैले हों तो उपग्रह नौवहन प्रणाली की सहायता से उसे भी तुल्यकालित रखना सम्भव है। तुल्यकालन (प्रत्यावर्ती धारा)
महदहा पुरातात्विक स्थल महादहा पुरातात्विक संबंधी स्थल है उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील में स्थित है। यहां सराय नाहर, चोपन ,माण्डो दमदम नाम के पाषाण युगीन संस्कृति के महत्वपूर्ण स्थल है। माना जाता है कि वहां खुदाई में ११ से १२ फीट लंबे नर कंकाल मिले जो कि करीब १०००० वर्ष पुराने हैं लोक कथाओं के अनुसार महदाह नहर की खुदाई के दौरान एक मजदूर का फावड़ा किसी कठोर वस्तु से टकराया तो वह हैरान रह गया। उसने बारीकी से खुदाई की तो वहां पर एक सामान्य से बहुत ज्यादा बड़े आकार की खोपड़ी निकली जिसको उसने वही फावड़े से उठाकर फेंक दिया। और वहां से गुजर रहे एक चरवाहे ने उस खोपड़ी को खेल-खेल में अपनी लाठी में फंसा लिया और घर ले आया। जब गांव में इसकी चर्चा हुई तो गांव के ही चौकीदार ने पुलिस को सूचना दे दी ।बाद में पुलिस बल जिलाधिकारी और पुरातत्व विभाग आया और मशीन से जांच के बाद वहां उत्खनन शुरू हुआ। खुदाई में अधिकतम ११ से १२ फुट के नर कंकाल, उनके मुकुट,आभूषण व हीरे जड़ित मुकुट बंद तलवारे आदि मिले। बताते हैं कि खुदाई में निकले नर कंकालों की उंगलियां किसी युवा बच्चे की कलाई की मोटाई बराबर थी। महदहा पुरातत्व स्थल की खुदाई वर्ष १९७७-७८ और 19७८-७९ में उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर जी आर शर्मा और उनके साथी आर के वर्मा और बीडी मिश्रा के निर्देशन में किया गया स्थान-पट्टी प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश खोजकर्ता-जीआर शर्मा, आरके वर्मा ,बी डी मिश्र इस स्थल की खुदाई से लघु उपकरण तो प्राप्त हुए ही साथ ही साथ आवास के साक्ष्य भी मिलते हैं। इस स्थल से २८ कंकाल मिले हैं। यहां से हड्डी के उपकरण और आभूषण मिले हैं ।उपकरण में मृग श्रृंग के छल्ले मिले हैं ।इसके अलावा स्तंभ गर्त और गर्त चूल्हे मिलते हैं। शवाधान प्रक्रिया में किसी किसी समाधि में स्त्री और पुरुष दोनों को एक साथ दफनाए जाने का साक्ष्य मिलता है। समाधियों के पास से ही पत्थर और हड्डी के उपकरण मिलते हैं। यहीं से ही एकल शवाधान,युगल शवाधान और सामूहिक शवाधान के साक्ष्य मिलते हैं। कब्रो में मिले अस्थि पंजर पूर्व पश्चिम दिशा में दफनाए गए थे अर्थात सिर पश्चिम में था। इसका संबंध मध्य पाषाण काल से है और यहां से संबंधित कुछ विशेष अवशेष प्राप्त होते हैं
जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम ने अगस्त और सितंबर २०२१ में तीन एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) और पाँच ट्वेंटी-२० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०आई) मैच खेलने के लिए आयरलैंड का दौरा किया। वनडे श्रृंखला उद्घाटन २०२०-२०23 आईसीसी क्रिकेट विश्व कप सुपर लीग का हिस्सा बनी। क्रिकेट आयरलैंड ने फरवरी २०२१ में जुड़नार की पुष्टि की। मूल रूप से, तीन टी२०आई मैच खेले जाने थे, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ नियोजित मैचों को रद्द करने के बाद, अप्रैल २०२१ में दो और टी२०आई मैच जोड़े गए। हालांकि, २२ जुलाई २०२१ को, क्रिकेट आयरलैंड ने घोषणा की कि मेहमान टीम के लिए आवश्यक संगरोध आवश्यकताओं के कारण श्रृंखला को पुनर्निर्धारित करने की आवश्यकता होगी। इसका उद्देश्य अगस्त-सितंबर २०२१ के मैचों को पुनर्निर्धारित करना था। जिम्बाब्वे क्रिकेट ने आयरलैंड की यात्रा के लिए सरकार की मंजूरी का अनुरोध किया, १९ अगस्त २०२१ को दौरे के लिए प्रस्थान की तारीख के रूप में प्रस्तावित किया गया। ५ अगस्त २०२१ को, क्रिकेट आयरलैंड ने २७ अगस्त २०२१ से शुरू होने वाली श्रृंखला के साथ, दौरे के लिए नई यात्रा कार्यक्रम की पुष्टि की। जिम्बाब्वे ने पहला टी२०आई मैच तीन रन से जीता। हालांकि, आयरलैंड ने अगले तीन मैच जीते, एक मैच शेष रहते हुए श्रृंखला जीत ली। जिम्बाब्वे ने पाँच रनों से पाँचवाँ टी२०आई मैच जीता, जिसमें आयरलैंड ने ३-२ से श्रृंखला जीती। जिम्बाब्वे ने पहला वनडे ३८ रन से जीता। दूसरे एकदिवसीय मैच में, आयरलैंड ने मैच धुलने से पहले २८२/८ का स्कोर बनाया, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। श्रृंखला के तीसरे एकदिवसीय मैच से एक दिन पहले, जिम्बाब्वे के ब्रेंडन टेलर ने घोषणा की कि वह मैच के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लेंगे। आयरलैंड ने यह मैच सात विकेट से जीत लिया और श्रृंखला १-१ से बराबरी पर रही। ज़िम्बाब्वे ने एकदिवसीय और टी२०आई मैचों के लिए अलग-अलग दस्तों का नाम नहीं दिया, इसके बजाय दौरे के लिए १८ खिलाड़ियों की एक संयुक्त टीम का चयन किया। कर्टिस कैंपर पहले टी२०आई मैच में चोटिल होने के बाद आयरलैंड की एकदिवसीय टीम से बाहर हो गए थे। शेन गेटके को आयरलैंड के एकदिवसीय मैचों के लिए कैंपर के प्रतिस्थापन के रूप में नामित किया गया था। ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम २०२१ में आयरलैंड क्रिकेट २०२१ में ज़िम्बाब्वे क्रिकेट २०२१ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम का आयरलैंड का दौरा कोविड-१९ महामारी के कारण स्थगित क्रिकेट प्रतियोगिताएँ
सत्यपाल सिंह भारत की सोलहवीं लोकसभा के सांसद हैं। २०१४ के चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की बागपत सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए। सत्यपाल सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले मुम्बई के पुलिस कमिश्नर थे लेकिन लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे कर बीजेपी जॉइन कर ली और लोकसभा चुनाव में अजित सिंह को हरा कर विजय श्री प्राप्त की ओर तीन साल बाद केंद्रीय मंत्री मंडल में विस्तार होने पर डॉ सहाब को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सिंह का जन्म २९ नवंबर, १९५५ को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बसौली में श्री रामकिशन और श्रीमती हुक्मवती के घर हुआ था। उन्होंने दिगंबर जैन कॉलेज, बड़ौत से रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है और दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में एम फिल भी किया है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से एमबीए किया है और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए और पीएचडी भी की है। नागपुर विश्वविद्यालय से नक्सलवाद में। ई.प.स में शामिल होने से पहले, सिंह एक वैज्ञानिक बनना चाहते थे। सत्य पाल सिंह महाराष्ट्र कैडर और १९८० बैच के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं। श्री सिंह की पहली पोस्टिंग नासिक के सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में हुई थी। इसके बाद वह बुलढाणा के पुलिस अधीक्षक बने। मुंबई पुलिस प्रमुख नियुक्त किए जाने से पहले, श्री सिंह महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक थे। उन्होंने मुंबई में संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) के रूप में भी काम किया है। मुंबई के अपराध प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, उन्हें संगठित अपराध सिंडिकेट्स की रीढ़ तोड़ने का श्रेय दिया जाता है, जिन्होंने १९९० में मुंबई को आतंकित किया था, जिसमें छोटा राजन, छोटा शकील और अरुण गवली गिरोह शामिल थे। [६] ९० के दशक के उत्तरार्ध में एक ही समय के दौरान, जब मुंबई में गैंगलैंड की गतिविधि अपने चरम पर थी और मुंबई में माफिया कई हाई-प्रोफाइल हत्याओं से घबरा गए, सिंह ने विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया और कई अंडरवर्ल्ड के आंकड़ों पर टूट पड़े। उस कार्यकाल में मुंबई में दया नायक, प्रदीप शर्मा और विजय सालस्कर जैसे विशेषज्ञों के साथ कई मुठभेड़ हत्याएं हुईं, उन्होंने अंडरवर्ल्ड को लेने का लाइसेंस दिया। इस कार्यकाल के दौरान २५ अगस्त २००३ को मुंबई गेटवे ऑफ़ इंडिया और ज़वेरी बाज़ार में बम विस्फोट हुए; जब उन्हें इस मामले का पता चला तो वह पतवार पर अधिकारी होने का श्रेय दिया गया। १९ जनवरी २०१८ को, सत्य पाल सिंह ने सार्वजनिक रूप से चार्ल्स डार्विन की क्रम-विकास (थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन) को ललकारा और उन्होंने दावा किया कि "डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है। ... हमारे पूर्वजों सहित किसी ने भी लिखित या मौखिक रूप से नहीं कहा है कि उन्होंने एक आदमी को एक आदमी में बदलते देखा है। "। उन्होंने जोर देकर कहा कि डार्विन क्रम-विकास के बारे में गलत थे और विकास के विचार को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम से हटा दिया जाना चाहिए। कई वैज्ञानिकों ने बाद में सत्य पाल सिंह की उनके अवैज्ञानिक बयान के लिए आलोचना की। भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी १६वीं लोक सभा के सदस्य उत्तर प्रदेश के सांसद भारतीय जनता पार्टी के सांसद १९५५ में जन्मे लोग
आफताब अहमद खान (२७ फरवरी १९४० - २१ जनवरी २०२२) एक भारतीय राजनेता थे जो पुलिस अधिकारी (आई.पी.एस.) से राजनेता बने थे। उन्हें मुंबई संगठित अपराध सिंडिकेट के गैंगस्टरों की मुठभेड़ में हत्या के लिए जाना जाता था। खान ने १९९० में आतंकवाद विरोधी दस्ते की स्थापना की थी। प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि उनके पिता ए.एस. खान अविभाजित हैदराबाद राज्य में एक लोक अभियोजक थे और फिर बाद में बॉम्बे राज्य के औरंगाबाद सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय में भी एक प्रसिद्ध लोक अभियोजक रहे। खान १९८० के दशक में भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी के रूप में महाराष्ट्र राज्य में पुलिस उप महानिरीक्षक रहे। उन्होंने १९९१ में अंधेरी के लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स में शूटआउट के साथ प्रसिद्धि हासिल की, जिसमें माया डोलस और दिलीप बुवा सहित सात गैंगस्टर मारे गए थें। खान को १९६३ में महाराष्ट्र कैडर में एक आई.पी.एस. अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने मिराज (१९६५-१९६७) और बारामती (१९६७-१९६८) में अड्डल के सिपो (डिस्प) के रूप में कार्य किया। उन्होंने अहमदनगर जिले के एसपी (मुख्यालय) (१९६८-१९६९), एसपी (टाउन) नासिक (१९६९-१९७१), एडीएल के पद पर कार्यवाहक कमांडेंट, पुणे में एसआरपीएफ ग्रुप के एसपी (१९७१-१९७३), सतारा जिले के एसपी (१९७३-१९७५), मुंबई पुलिस डिटेक्शन यूनिट के डीसीपी (१९७५-१९७७), मुंबई में ग्रुप वी के कमांडेंट (१९७७-१९७८), अमरावती के एसपी (१९७८-१९८०) व ठाणे जिले के एसएसपी के रूप में कार्य किया। वह १९९७ में महाराष्ट्र पुलिस के एडीजी (प्रशिक्षण) के रूप में समयावधि से २ साल पहले सेवानिवृत्त हुए। खान ने १९९० के दशक के मध्य में समाजवादी पार्टी में शामिल होने में रुचि व्यक्त करते हुए राजनीति में प्रवेश करके मीडिया में अपनी छवि बनाने की कोशिश की। बाद में वह जनता दल के साथ चले गए, जिसके साथ वह १९९८ में मुंबई उत्तर-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव के लिए खड़े हुए। हालाँकि, इस चुनाव में उनकी हार हो गई थीं। बाद का जीवन और मृत्यु खान ने चुनाव हारने के बाद में एक निजी सुरक्षा एजेंसी चलाने में मदद की, जिसे उन्होंने अपने बेटे के साथ १९९६ में स्थापित किया था। २१ जनवरी २०२२ को ८१ वर्ष की आयु में मुंबई में निमोनिया से उनकी मृत्यु हो गई। लोकप्रिय संस्कृति में आफताब अहमद खान ने २००७ में निर्माता अपूर्व लखिया की बॉलीवुड अपराध फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला का निर्देशन किया, जो १९९१ के लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स शूटआउट पर आधारित थी। उस फिल्म में खान को अतिरिक्त पुलिस आयुक्त शमशेर खान के रूप में भी चित्रित किया गया था, जिसे संजय दत्त ने निभाया था। फिल्म में वे खुद कमिश्नर कृष्णमूर्ति के रूप में भी नजर आए थे। १९४० में जन्मे लोग २०२२ में निधन भारतीय पुलिस अधिकारी महाराष्ट्र के राजनीतिज्ञ
जी.जंबुलदिन्नॆ (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
खेड़ा बुजुर्ग कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
जिस किसी प्रक्रिया में विद्युत ऊर्जा, ऊष्मा में बदली जाती है उसे विद्युत्-तापन (इलेक्ट्रिक हीटिंग) कहते हैं। कमरे का तापन, खाना बनाना, पानी गरम करना तथा अनेकों औद्योगिक प्रक्रम आदि कार्य विद्युत तापन द्वारा किये जा सकते हैं। विद्युत तापक (इलेक्ट्रिक हीटर) वह युक्ति है जिससे विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में बदला जाता है। सभी प्रकार के वैद्युत तापकों में ऊष्मा पैदा करने का कार्य विद्युत प्रतिरोध द्वारा किया जाता है जो जूल तापन द्वारा ऊष्मा प्रदान करता है। किसी प्रतिरोध र से होकर ई धारा प्रवाहित होती है तो उसमें प्रति सेकेण्ड ई२र जूल ऊष्मा उत्पन्न होती है। आधुनिक विद्युत तापन की अधिकांश युक्तियों में तापक के रूप में नाइक्रोम तार का उपयोग किया जाता है।
कंट्रेरियन शेयर () इस श्रेणी में उन शेयरों को सम्मिलित किया जाता है जो बाजार के रुख से अलग दिशा में चलते हैं अर्थात बाजार में शेयरों के भाव में वृद्धि हो रही है तो इन शेयरों के भाव कम हो जाते और यदि बाजार का रुख गिरावट का है तो इन शेयरों का मूल्य बढ़ जाता है।
नईगांव मुंबई में वसई-विरार का एक क्षेत्र है। मुंबई के क्षेत्र
इस्माइल पाशा (अरबी: इसल ब्श, तुर्की भाषा: स्मेल पा ; १८३० - १८९५) सन १८६३ से १८७९ तक मिस्र तथा सूडान का ख़ेदिव (शासक की उपाधि) था। १८७९ में उसे ग्रेट ब्रिटेन के दबाव में पदच्युत होना पड़ा। अपने शासन काल में उसने अपने दादा मेहमत अली की भांति मिस्र और सूडान का आधुनीकीकरण किया, औद्योगिक तथा आर्थिक विकास में जमकर निवेश किया। इसके शासन काल में देश की सीमाओं का विस्तार भी किया। इस्माइल पाशा का जन्म काहिरा में हुआ था। वह इब्राहीम पाशा का द्वितीय पुत्र तथा प्रख्यात मेहमत अली का पौत्र था। उसकी शिक्षा सेंट साइर (स्त. सायर) में हुई। सईद के पश्चात् १८६३ ई. में यह वाइसराय बना और १८६७ ई. में ख़ेदिव की वंशानुगत उपाधि धारण की। सुलतान ने १८७२ ई. में इसे संधि करने तथा निजी सेना रखने का अधिकार दे दिया। इस्माइल पाशा ने अपने शासन क्षेत्र में अनेक आंतरिक सुधार किए। १८७४ ई. में इसने दक्षिण की ओर अपने राज्य की सीमाएँ बढ़ानी शुरू कीं और दार फुर पर अधिकार कर लिया। पश्चात् सर सैमुएल बेकर तथा जनरल गॉरडन नामक सूडान के गवर्नरों के माध्यम से दास व्यापार को समाप्त करने की कोशिश की। अपनी विशाल प्रतिश्रुतियों के लिए पैसा जुटाने के वास्ते इसने १८७५ ई. में ४०,००,००० पौंड के बदले ब्रिटेन को स्वेज नहर के १,७७,००० शेयर बेच दिए। लेकिन मिस्र की मुद्रास्थिति इससे सुधरी नहीं। दिनों दिन वह बदतर ही होती गई। तब कई असफलताओं के बाद मिस्र की पूँजी पर ब्रिटेन तथा फ्रांस का सम्मिलित नियंत्रण स्थापित किया गया और इस्माइल पाशा ने वचन दिया कि वह १८७९ ई. तक देश के संवैधानिक सरकार की स्थापना कर देगा। लेकिन वचन पूरा न किया जा सका और कई यूरोपीय राष्ट्रों के हस्तक्षेप के बाद १८७९ ई. में सुल्तान ने इस्माइल पाशा को पदच्युत करके अपने बड़े पुत्र राजकुमार तौहीफ को ख़ेदिव बनाया। इस्माइल पाशा कांस्टेंटिनोपल चला गया और वहीं १८९५ में उसकी मृत्यु हो गई। मिस्र का इतिहास १८९५ में निधन
क्रिस गफ्फनी एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलों में अंपायर है जो विभिन्न प्रारूपों में अम्पायरिंग करते हैं। १९७५ में जन्मे लोग न्यूजीलैंड के टेस्ट क्रिकेट अंपायर न्यूजीलैंड के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट अंपायर
बहुविकल्पी शब्द ऐसे शब्द हैं जिनके एक से अधिक अर्थ होतो हैं और उनका सटीक अर्थ प्रयोग के अनुसार तय किया जाता है। उदाहरण के लिए हिन्दी का शब्द "कल" गुज़रे हुए और आनेवाले, दोनों ही सन्दर्भों में प्रयोग किया जाता है: कल मैं कमज़ोर था (गुज़रे हुए काल के बारे में बयान है। कभी यह चौबीस घण्टे से पहले की स्थिति को बयान करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।) कल ही यह काम कर दिया जाएगा (आनेवाला कल - कभी यह भविष्य के लिए भी कहा जाता है।) नामों में बहुविकल्पी रूप कभी कभी व्यक्तियों या जगहों के नाम एक जैसे होते हैं। ऐसे में उनमें अन्तर करने के लिए सन्दर्भ का देखा जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए इन व्यक्तियों के एक ही नाम हैं: ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ) ज़ाकिर हुसैन (संगीतकार) ज़ाकिर हुसैन (हिन्दी फ़िल्म कलाकार) उसी प्रकार से जगहों के नाम एक जैसे हैं: औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र औरंगाबाद जिला, बिहार
पीटर अलेक्सेविच क्रोपोत्किन (१८४२-१९२१ ई.) रूस के भूगोलवेत्ता, अर्थशास्त्री, वाड़मीमांसक (फिलोलॉजिस्ट), जन्तुविज्ञानी, क्रमविकास सिद्धान्ती, दार्शनिक, लेखक एवं प्रमुख अराजकतावादी थे। क्रोपोत्किन का जन्म मास्कों में ९ दिसम्बर १८४२ ई. को राजकुमार अलेक्ज़ी पेट्रोविच क्रोपोत्किन के घर हुआ था। पंद्रह वर्ष की अवस्था में १८५७ ई. में वह जार अलेक्जेंडर द्वितीय के यहाँ पेज बन गया। वहाँ उसे सैनिक चरित्र के साथ साथ राजदरबार की मर्यादा का परिचय प्राप्त हुआ। किंतु आरंभ से ही रूस के किसानों के जीवन के प्रति सहानुभूति के भाव उसके मन में जाग रहे थे। विद्यार्थी जीवन के अंतिम दिनों में उदार क्रांतिकारी साहित्य से उसका परिचय हुआ और उसमें उसे अपने भाव प्रतिबिंबित होते दिखाई पड़े जो आगे चलकर उसके क्रांतिकारी बनने में सहायक हुए। १८६२ ई. में वह साइबेरियन कजाक रेजिमेंट के सैनिक के रूप में नवविजित अमूर जिले में भेजा गया। कुछ दिनों वह चिता में ट्रांसबैकालिया के प्रशासक का सचिव रहा, बाद में वह ईकुटस्क में पूर्वी साइबिरिया के गवर्नर जनरल का कज्जाकी मामले का सचिव नियुक्त हुआ। १८६४ ई. में उसने एक भौगोलिक सर्वेक्षण अभियान का संचालन किया और उत्तरी मंचूरिया को पारकर ट्रांसबैकालिका से आमूर तक गया। उसके बाद उसने एक दूसरे अभियान में भाग लिया जो मंचूरिया के भीतर सुंगरी नदी तक गया। इन दोनों अभियानों से महत्वपूर्ण भौगोलिक जानकारी प्राप्त हुई। १८३७ में सैनिक सेवा से विलग होकर विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ और रूसी भौगोलिक सोसाइटी के प्राकृतिक भूगोल विभाग का मंत्री बना। १८७३ ई. में उसने एक शोध निबंध तथा नक्शा प्रस्तुत किया जिसमें उसने यह सिद्ध किया कि एशिया के जो नक्शे हैं उनमें देश के प्राकृतिक स्वरूप का गलत अंकन हुआ है। उसने प्रचलित धारणा के विपरीत प्रतिपादित किया कि मुख्य संरचना की रेखा दक्षिणपश्चिम से उत्तरपूर्व है उत्तरदक्षिण नहीं। उसने ज्योग्राफ़िकल सोसाइटी की ओर से १८७१ ई. में फिनलैंड और स्वीडन के ग्लेशियल डिपाजिट्स की खोज की। इसी समय उससे सोसाइटी के मंत्री का भार सँभालने को कहा गया किंतु उसने आगे कोई नई खोज न कर ज्ञात ज्ञान का ही जनप्रसार करने का निश्चय किया और मंत्री पद अस्वीकार कर दिया। सेंट पीटर्सवर्ग लौटकर क्रांतिकारी दल में सम्मिलित हो गया। १८७२ ई. में स्वीटज़रलैंड गया और वहाँ जिनेवा में वह अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ का सदस्य बन गया। कुछ दिनों वहाँ नेताओं के संपर्क में रहकर उनके कार्यक्रम का अध्ययन किया और पूरी तरह क्रांतिकारी बन गया। रूस लौटकर उसने निहलिस्ट प्रचार में सक्रिय भाग लेना आरंभ किया। १८७४ ई. में वह गिरफ्तार जेल भेज दिया गया। १८७६ ई. में वह जेल से भाग निकला और पहले इंग्लैंड फिर स्वीजरलैंड चला गया और जूरा फेडरेशन में सम्मिलित हो गया। १८७७ ई. में वह पेरिस गया जहाँ उसने समाजवादी आंदोलन में भाग लिया। १८७८ ई. में स्वीजरलैंड लौटकर वह ले रिवोल्ते नामक क्रांतिकारी पत्रिका का संपादक हो गया। और अनेक क्रांतिकारी पुस्तिकाएं प्रकाशित की। जार अलेक्जेंडर (द्वितीय) की हत्या के कुछ ही दिन बाद स्विस सरकार ने उसे अपन देश से निर्वासित कर दिया। तब वह कुछ दिनों फ्रांस में रहकर लंदन चला गया और १८८२ ई. के अंत में वह पुन: फ्रांस लौट आया। वहाँ फ्रांस सरकार ने उस पर लियान में मुकदमा चलाया और अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ के सदस्य होने के अपराध में उस पाँच वर्ष की सजा हुई। १८८६ ई. में, जब फ्रेंच चैंबर (संसद्) में उसकी ओर से निरंतर आंदोलन हुए तब वह १८८६ ई. में रिहा किया गया और वह लंदन जाकर बस गया और साहित्यिक कार्य करने तथा अपने प्रास्परिक सहायता के सिद्धांत को विकसित करने लगा। कार्य एवं दर्शन क्रोपोत्किन भूगोल और कृषि का एक आधिकारिक विद्वान था। उसने उनके विकास के लिये अनेक व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत किए। उसकी ऑटोग्राफी ऑव एशिया भूगोल संबंधी प्रसिद्ध पुस्तक है। क्रोपोत्किन का समाज संबंधी अपना एक दर्शन था। इस विषय पर उसकी कुछ पुस्तकें हैं- (१) रोटी पर विजय, (२) अराजकतावाद और उसका दर्शन, (३) राज्य, उसका इतिहास में स्थान, (४) सहकारिता विकास का तत्व, (५) आधुनिक विज्ञान और अराजकतावाद। रूस के अराजकतावादी लेखकों में उसे सबसे अधिक ख्याति प्राप्त है। उसको अराजकतावादी साम्यवाद का अग्रदूत कहा जाता है। उसने उत्तर क्रांतिकालीन समाज की जिस धारणा का प्रतिपादन किया है, उससे आधुनिक साम्यवाद अत्यधिक प्रभावित है। क्रोपोत्किन ने जीवन तथा आचरण का जो सिद्धांत बताया है उसके अंतर्गत समाज शासनविहीन होगा। उस समाज में सामंजस्य उत्पन्न करने के लिये किसी कानून अथवा सत्ता के आदेशों और उनके पालन की आवश्यकता नहीं होगी। यह सामंजस्य उत्पादन तथा उपभोक्ताओं और अन्य सभ्य व्यक्तियों की विभिन्न एवं अनंत आवश्यकताओं और इच्छाओं की संतुष्टि के लिये स्वतंत्र आत्मप्रेरणा तथा स्वेच्छा से संगठित प्रादेशिक, स्थानीय, राष्ट्रीय और व्यावसायिक व्यापारिक समुदायों के ऐच्छिक तथा स्वतंत्र समझौते से उत्पन्न होगा। अत: क्रोपोत्किन के अनुसार व्यवस्था एवं संगठन में अनिवार्यता नहीं होगी, कोई कानून नहीं होगा और कोई शासन नहीं होगा। अराजकतावादी समाज का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है जो राज्य एवं वर्गरहित हो। इस समाज में व्यक्तिगत संपत्ति अथवा उत्पादन के व्यक्तिगत साधन जैसे कोई मूल्य नहीं होंगे। कोपोत्किन के विचारानुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का अधिकार होगा। ऐसे समाज में प्रति योगिता और संघर्ष का अंत होगा और नए समाज में नए मूल्यों का सृजन होगा, समाज में व्यक्ति व्यक्ति के संबंध में पारस्परिक सहायता, सहयोग एवं सौहार्द्र ही जीवन का आधार होगा। क्रोपोत्किन के दर्शन का मूल तत्व यह था कि हर एक की सत्ता या अनिवार्यता व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम कर देती है। सत्ता या बल अनुचित एवं अन्यायपूर्ण होता है। वह राज्य, व्यक्तिगत संपत्ति एवं धर्म का निंदक एवं परम विरोधी था। उसका विश्वास था कि राजनीतिक संगठन की कोई आवश्यकता नहीं है; फलत: राज्य का अस्तित्व अनावश्यक ही नहीं वरन् मनुष्य के विकास एवं स्वतंत्रता की दृष्टि से हानिकारक भी है। राज्य के न सहने से संगठित सेनाएँ नहीं रहेगी, इस प्रकार संसार से युद्ध का अंत हो जायगा। राज्य की असंतुलित आर्थिक व्यवस्था मनुष्य को अपराध की ओर प्रवृत करती है। राज्य तथा कानून निर्बलों के शोषण के निमित्त बनाई हुई व्यवस्था है। राज्य के कानून इस प्रकार बनाए गए हैं जिससे विशेषाधिकारसंपन्न वर्ग के व्यक्ति अधिकारों का अनुचित उपयोग करके अपनी सत्ता बनाए रखें। वर्तमान कानून का उद्देश्य उत्पादक से उत्पादन का अधिक से अधिक भाग छीन लेना है। बाह्य क्षेत्र में स्वार्थपरता एवं महत्वाकांक्षाएँ युद्ध, संघर्ष एवं विनाश को जन्म देती है। आंतरिक क्षेत्र में राज्य, कानून या संपत्ति द्वारा प्राप्त शक्तिसंपन्न सत्ता नागरिकों में उत्तम प्रवृतियों को कुचल देती है। मानव का उत्साह निर्वाह कर उसे आज्ञापालन का एक यंत्र सा बना देती है। क्रोपोत्किन अराजकतावादी समाज को कोरी आदर्श कल्पना नहीं मानता था। उसका विश्वास था कि अराजकतावादी समाज तर्कयुक्त, न्यायोचित और व्यावहारिक है। अराजकतावादी समाज का आर्थिक संगठन पूर्णतया साम्यवादी प्रणाली पर आधारित है। भूमि तथा उत्पादन के समस्त साधनों पर समाज का स्वामित्व होगा। क्रोपोत्किन के अनुसार प्रत्येक वस्तु पर प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार होगा। प्रत्येक व्यक्ति उत्पादन क्रिया में अपना उचित योग देगा और प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन में से उचित हिस्सा पाने का अधिकार होगा। अर्थात् अराजकतावादी समाज में प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपनी आंतरिक प्रेरणा, प्रवृति एवं क्षमता के अनुसार काम करेगा और अपनी आवश्यकता के अनुसार पुरस्कृत होगा। अराजकतावादी समाज में सभी व्यक्तियों को जीवन की आवश्यकताएँ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगी। प्रत्येक व्यक्ति को उचित अवकाश मिलेगा, जिस अवकाश को वह विज्ञान, कला तथा जीवन की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये तथा अपने विकास के लिये प्रयुक्त करेगा। जब रूस में क्रांति आरंभ हुई तब उसने स्वदेश लौटने का निश्चय किया और जून, १९१७ ई. में रूस लौटकर मास्को के निकट बस गया। उसने क्रांति में किसी प्रकार का कोई भाग नहीं लिया। उसने मेमायार्स ऑव ए रिवोल्यूशनिस्ट शीर्षक अपने संस्मरण और फ्रांस की राज्यक्रांति पर एक पुस्तक लिखी। ८ फ़रवरी १९२१ ई. को उसकी मृत्यु हुई। १८४२ में जन्मे लोग १९२१ में निधन
गोगो, बिहार में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
समूह सिद्धांत (अंग्रेज़ी: ग्रुप थ्योरी) अमूर्त बीजगणित का एक शाखा है। कभी-कभी गणित में ऐसी क्रियाएँ भी दृष्टिगोचर होती है जब उनमें से एक एक करके दो क्रियाएँ की जाएँ तो फल वही निकलता है, जो उसी प्रकार की एक ही क्रिया से निकल आता है। तनिक इन चार संख्याओं पर विचार करें : जिन्हें इस प्रकार भी लिख सकते हैं : यदि किसी राशि को इनमें से दूसरी और तीसरी संख्याओं से गुणा करें, तो वही फल निकलेगा तो जो अकेल चौथी संख्या से गुणा करने से निकलता है। इसी प्रकार, यदि उपर्युक्त संख्याओं में से किन्हीं दो से किसी राशि को गुणा करें, तो वही फल निकलता है जो उक्त संख्याओं में से एक ही संख्या से गुणा करने से निकल सकता है। इस प्रकार की क्रियाओं के समुच्चय को बंद समुच्चय कहते हैं और क्रियाओं के इस गुण को समूह गुण कहते हैं। समूह सिद्धान्त का इतिहास
धर्मराज निषाद,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। २००७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले के कटेहरी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश १५वीं विधान सभा के सदस्य कटेहरी के विधायक
चुकिसाका बोलिविया का एक प्रशासनिक विभाग (देपार्तामेन्त) है जो उस देश के दक्षिण-मध्य भाग में स्थित है। इसकी राजधानी सूक्रे शहर है जो बोलिविया की राष्ट्रीय संवैधानिक राजधानी भी है। विभाग के कुछ दृश्य इन्हें भी देखें बोलिविया के विभाग बोलिविया के विभाग
रायलसीमा एक्स्प्रेस ७४३० भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन तिरुपति रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:त्प्टी) से ०७:१५प्म बजे छूटती है और हैदराबाद डेकन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:हाइब) पर १०:३०आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है १५ घंटे १५ मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
पाणीया () भारत देश में गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र विस्तार में अमरेली जिले के ११ तहसील में से एक अमरेली तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है।पाणीया गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहा पे गेहूँ, मूँगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादी की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ है। गाँव से सबसे नजदीकी शहर अमरेली है। अमरेली तहसील की माहिती अमरेली जिला पंचायत का जालस्थल गुजरात सरकार के पोर्टल पर अमरेली अमरेली पोलीस जालस्थल इन्हें भी देखें गुजराती विकिपीडिया पर लेख
डीना, कोश्याँकुटोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा डीना, कोश्याँकुटोली तहसील डीना, कोश्याँकुटोली तहसील
नारसिंगी (नरसिंगी) भारत के तेलंगाना राज्य के रंगारेड्डी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह एक गाँव हुआ करता था लेकिन भारत की २०११ जनगणना में इसे नगर का दर्जा दे दिया गया। यह हैदराबाद का एक उपनगर है। इन्हें भी देखें तेलंगाना के नगर रंगारेड्डी ज़िले के नगर हैदराबाद में मुहल्ले
मदनूर (मदनूर) भारत के तेलंगाना राज्य के निज़ामाबाद ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें तेलंगाना के गाँव निज़ामाबाद ज़िले के गाँव
चमगादड़ गण या काइरॉप्टेरा (चिरॉप्तेरा) स्तनधारी (मम्मालिया) वर्ग का एक गण है, जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के चमगादड़ निहित हैं। इस वर्ग के जंतु अन्य स्तनियों से बिल्कुल भिन्न मालूम पड़ते हैं और इसके सभी सदस्यों में उड़ने की शक्ति पाई जाती है। उड्डयन के लिये इनकी अग्रभुजाएँ पंखों में परिवर्तित हो गई हैं। यद्यपि ये जंतु हवा में बहुत ऊपर तक उड़ते हैं, पर चिड़ियों से भिन्न हैं। देखने में इनकी मुखाकृति चूहे जैसी मालूम होती है। इनके कान होते हैं। चिड़ियों की भाँति ये अंडे नहीं वरन् बच्चे देते हैं और बच्चों को दूध पिलाते हैं। चमगादड़ के हाथ और अँगुलियाँ उसके पर के कंकाल हैं। अन्य रीढ़धारियों की अग्र शाखाओं के आधार पर इनका भी निर्माण हुआ है। उत्तर बाहु कोहिनी तक समाप्त होती है। अग्र बाहु में युग्म अस्थियाँ होती हैं और हाथ में अँगूठे के अतिरिक्त चार अँगुलियाँ होती हैं। अँगूठा छोटा और स्वतंत्र होता है, किंतु अन्य अँगुलियाँ बहुत बड़ी और त्वचीय पंखझिल्ली में गड़ी होती हैं। उनके छोर पर नख होते हैं और वे छाते की कमानी की भाँति खूलती और सिकुड़ती हैं। पर से लगी त्वचा पैर तक चली जाती है और दोनों पैरों के बीच तक लगी होती है इसे अंतर-ऊरु-झिल्ली (इहेर्फेमोरल मेम्ब्रान) कहते हैं। यह इनको भी लपेट लेती है। अंतर-ऊरु-झिल्ली के अतिरिक्त सहायक उड़नझिल्ली (एक्सेसरी फ्लाइंग मेम्ब्रान) होती है, जिसे पूर्वाबाहु झिल्ली (एंटी-ब्रचियल मेम्ब्रान) कहते हैं, जो गर्दन के भाग से प्रारंभ होकर प्रगंडिका (हमेरूस) तथा अग्रबाहु तक जुड़ी होती है। इस प्रकार चमगादड़ के शरीर पर एक पैराशूट जैसी त्वचा होती है। हवा में उड़ने के लिये इन रचनाओं के अतिरिक्त चमगादड़ का वक्षीय कोष्ठ बड़ा होता है, जिसमें एक बड़ा हृदय और फुफ्फुस स्थित होते हैं। वक्ष से लगी मांसपेशियाँ भली भाँति विकसित होती हैं। ये तीनों रचनाएँ, पैराशूट जैसी त्वचा, बृहदवक्षीय कोष्ठ तथा विकसित मांसपेशियाँ, चमगादड़ के आकाश में अधिक देर तक उड़ते रहने में सहायक होती हैं। चमगादड़ की अग्र शाखाएँ यद्यपि पंख में परिवर्तित हो गई हैं, तथापि अन्य अस्तनियों की भाँति वह इनका उपयोग चलने और पेड़ों पर चढ़ने के लिये करता है। इनसे वह शिकार को पकड़ने और उन्हें मारने का भी काम लेता है। अँगूठे रेंगने तथा चलने और विश्राम करने के काम आते हैं। फलभक्षी चमगादड़ में ये अँगूठे दो, किंतु कीटभक्षी में एक होता है। अग्र भुजाओं और अग्र शरीर की अपेक्षा पश्च शाखाएँ और पश्च शरीर कमजोर होते हैं। शरीर की सारी रचना इस प्रकार हुई है कि वह उड्डयन के लिये अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो। कुछ चमगादड़ पृथ्वी पर नहीं चल पाते हैं और कुछ अग्र और पश्च शाखाओं की सहायता से केकड़े की तरह थोड़ी तेजी से चल सकते हैं। दाँत और भोजन चमगादड़ निशिचर होता है। दिन में यह पक्षियों तथा पशुओं के भय से बाहर नहीं निकलता, वरन् किसी पेड़ की डाल अथवा पुराने खंडहरों में लटका रहता है। गोधूलि के समय बाहर निकल कर आखेट करता है। चमगादड़ प्राय: कीट-पंतग और फल-फूल खाते हैं। कीटभक्षी चमगादड़ उड़ते ही उड़ते छोटे छोटे कीटों को झपाटा मारकर पकड़ लेता है और उसी समय अथवा नीचे उतर कर उन्हें खाता है। फलाहारी चमगादड़ पेड़ों पर ही अथवा अपने अड्डे पर फल लाकर खाता है। चमगादड़ बड़े पेटू होते हैं। सभी फलाहारी चमगादड़ मकरंद, मधुरस या फल के रस का ही पान करते हैं। उसके ठोस पदार्थ का नहीं। फलाहारी चमगादड़ के दाँत कीटाहारी चमगादड़ से भिन्न होते हैं। कीटाहारी चमगादड़ के दाँत नुकीले और तीक्ष्ण होते हैं, जिनमें वह गुबरैले या घुन के कवच (शेल) का वेधन कर सके। वह कीट का कड़ा भाग काटकर अलग फेंक देता है और उसके मुलायम भाग को ही खाता है। कुछ चमगादड़, जैसे वैंपायर्स (वांपिर्स), रुधिर चूसने वाले होते हैं और उनके अग्रदंत प्राणियों की त्वचा छेदने के उपयुक्त होते हैं। चमगादड़ों के दाँत भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। ये उनके वर्गीकरण में सहायक होते हैं भोजन के आधार पर चमगादड़ दो उपगणां में बँटे हैं : बृहद् चमगादड़ फलाहारी और आकार में बड़े होते हैं। कुछ तो इतने बड़े होते हैं कि परों को दोनों ओर फैलाकर नापने से वे लगभग १.३६ मीटर ठहरते हैं। लघु चमगादड़ कीटाहारी और छोटे होते हैं। कुछ चमगादड़ रक्तचूषक होते हैं और मेढक, मछली तथा स्तनियों का रक्त चूसकर जीवन निर्वाह करते हैं। कुल मिलाकर चमगादड़ों के सात परिवार हैं, जिनके अंतर्गत करीब १०० वंश (जीनस) और अनेकों जात (स्पेश) हैं। भिन्न भिन्न जात के चमगादड़ों में पूँछ भिन्न भिन्न प्रकार की होती है। किसी में बड़ी, किसी में छोटी और किसी में लेश मात्र ही होती है। फलाहारी चमगादड़ों की पूँछ स्पष्ट होती है और अंतरऊरु झिल्ली के नीच स्थित होती है। इस झिल्ली से पूँछ का कोई संबंध नहीं होता। रीनोलोफिडी (राइनोलोफिडे) परिवार के अश्वनाल (हॉर्स शोए) चमगादड़ में पूँछ स्पष्ट होती है, किंतु मेगाडरमिडो (मेगाडर्मिडाई) परिवार के भारतीय वैंपायर मेंकेवल उसका चिन्ह मात्र होता है। दुम अंतरऊरु झिल्ली के लिय सहारे का कार्य करती है और आगे या पीछे मुड़कर इस झिल्ली की गतिविधि का भी नियंत्रण करती है। इसके अतिरिक्त दुम और इसको ढकनेवाली झिल्ली उदर की ओर मुड़कर उड़ते समय गतिरोधक का काम करती है। यह शिकार को पकड़ने के लिये धानी (पौछ) का काम भी करती है। उड़ते समय पंख के थपेड़े से कीड़े जब मूर्छित होकर आकाश से नीचे गिरने लगते हैं, उस समय चमगादड़ कीड़े को बड़ी चतुराई से इसी धानी में ऊपर ही ऊपर रोक लेता है और उसमें सिर घुसेड़कर कीड़े को मार डालता है। कुछ चमगादड़ इस थैली से अपने नवजात शिशु के लिये पालने (क्रेडले) का कार्य लेते हैं। चमगादड़ रात्रि में भोजन करते हैं। वे अँधेरे में भी सुगमता और तेजी से उड़ते रहते हैं। बहुतों में इस प्रकार की आश्चर्यजनक शक्ति होती है कि वे अँधेरे में किसी अवरोध से टकरा नहीं पाते। गोधूली या प्रात:बेला में निकलनेवाले चमगादड़ों में दृष्टि अवश्य काम करती है, किंतु चमगादड़ की कुछ जातियाँ ऐसी हैं जो पथप्रदर्शन के लिये दृष्टिशक्ति पर बहुत कम निर्भर रहती हैं। चमगादड़ की आँखों पर पट्टी बाँध देने पर भी उसके उड़ने या अन्य क्रियाओं में अंतर नहीं पड़ता। हाल के शोधों से पता चला है कि चमगादड़ प्रतिध्वनि यंत्र (इको अप्परत्स) का प्रयोग करते हैं। उनकी अपनी एक प्रकार की 'राडार' (राडार) प्रणाली होती है। कान इस यंत्ररचना का प्रमुख अंग है। चमगादड़ उड़ने के पूर्व और उड़ते समय अपनेमुख या नासाद्वार से एक प्रकार की चीखतनी तीव्र गति से करता है कि वह मनुष्य की साधारण श्रवण शक्ति के बाहर होती है। यह चीख हवा में ध्वनितरंगें उत्पन्न करती है। जब ये ध्वनितरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तब वे परावर्तित होकर चमगादड़ तक पहुँच जाती हैं और इन्हें वह तत्काल ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार की प्रतिध्वनि से चमगादड़ किसी अवरोध की दूरी तथा स्थिति का सही सही पता लगा लेता है। चमगादड़ को प्रतिध्वनि का बोध किसी एक ज्ञानेंद्रिय द्वारा नहीं, बल्कि कई ज्ञानेंद्रियों की मिली जुली सहायता से होता है। इन इंद्रियों में श्रवण ज्ञानेंद्रिय अधिक प्रमुख है। कीटभक्षी चमगादड़ अधिक संवेदी और तीक्ष्ण होते हैं। अन्य किसी स्तनी में बाह्म कर्ण (पिन्ना) के विकास और आकार में इतनी विविधता नहीं है जितनी चमगादड़ में। कीटभक्षी चमगादड़ के कान का किनारा कान की जड़ के पास नहीं मिला होता, किंतु फलाहारी चमगादड़ में यह किनारा जड़ के पास मिलकर वलयी कीपनुमा छिद्र बनाता है। कीटभक्षी जाति के चमगादड़ों में इसके अतिरिक्त प्रवर्धन भी वर्तमान होता है, जिसे ट्रेगस (त्रगस) कहते हैं। यह कान के भीतरी किनारे से लगा होता है। बाहरी किनारे के आधार के पास एक एक पिंड होता है, जिसे ऐंटिट्रेगस (एंटी-त्रगस) कहतें हैं। यह किसी किसी चमगादड़ में बहुत बड़ा होता है। फलाहारी चमगादड़ में न तो ट्रेगस और न ऐंटिट्रेगस होते हैं। कीटाहारी चमगादड़ों में नाक के चारों तरफ फैली हुई त्वचा एक प्रकार की संवेदनग्राही इंद्रिय होती है, जिसे नासापत्र (नोज लीफ) कहते हैं। वैंपायर चमगादड़ में यह नासापत्र छोटा और साधारण किंतु अश्वनाल रिनोलोफस (राइनोलोफस) और पत्रनासाधारी (लीफ-नोस्ड) हिप्पोसिडिरस (हिप्पॉसिडिर्स) में बड़ी तथा जटिल होती है। इसके चुन्नटों में बारीक सवेदनशील लोम होते हैं, जो एक प्रकार की ज्ञानेंद्रिय हैं। निशिचर चमगादड़ों के लिये, जो पेड़ों तथा झाड़ियों में अपना शिकार ढूँढ़ते हैं, यह एक विशिष्ट साधन है। छोटे चमगादड़ कुछ रात बीतने पर शिकार की टोह में निकलते हैं, लेकिन 'उड़न लोमड़ियाँ' संध्या होते ही निकल पड़ती हैं। इनमें दृष्टि पथप्रदर्शक होती है, किंतु अँधेरे में ये अनपेक्षित अवरोधें से बच निकलने में असमर्थ होते हैं। इसलिये प्राय: टेलिफोन या टेलीग्राफ के तार से टकराकर उससे लटके पाए जाते हैं। अधिकांश चमगादड़ों में किसी विशेष प्राकृतिक वातावरण में रहने की प्रवृत्ति पाई जाती है। उदाहरणार्थ, उड़न लोमड़ियाँ अफ्रीका की मुख्य भूमि से ६० किमी दूर स्थित द्वीपों में पाई जाती हैं, किंतु वे अफ्रीका महाद्वीप में नहीं बस पाई हैं। ये हिंद महासागर में फैली द्वीपशृंखलाओं में भी पाई जाती हैं। प्रत्येक जाति किसी द्वीपविशेष में ही पाई जाती है। भारत में चमगादड़ हिमालय के समशीतोष्णकटिबंध में नहीं पाए जाते। फल की ऋतुओं में, अथवा रात्रि में, वे भले ही वहाँ चले जाते हों। उष्ण कटिबंध में उनका प्रधान क्षेत्र प्रायद्वीप के उन स्थानों में है जहाँ हरियाली, आर्द्र पर्णपाती और शुष्क पर्णपाती भूकटिबंध हैं। कुछ जातियाँ रेगिस्तान या कँटीले वनक्षेत्र में जहाँ मनुष्य ने फलवृक्ष लगा रखे हैं, बस गई हैं। यही बात कीटभक्षी चमगादड़ों की भी है। पंखधारी और प्राकृतिक अवरोधें को पार करने की क्षमता होते हुए भी चमगादड़ का विस्तार वातावरण की जलवायु, ताप तथा अन्य प्राकृतिक स्थितियों पर निर्भर करता है। चमगादड़ को हम अँधेरे में वास करनेवाला समझते हैं, किंतु अनेक फलाहारी और कीटाहारी चमगादड़ संध्या के चमकीले प्रकाश में शिकार करते हैं और अन्य निशिचर जानवरों की भाँति बदली और कुहरे के मौसम में दिन में ही शिकार करने के लिये निकल पड़ते हैं। कुछ चमगादड़ों का बसेरा तो ऐसे स्थान में होता है, जहाँ प्रकाश बहुत होता है; किंतु यह अपवाद है। उत्तरी ध्रुवीय देशों में अधिकांश चमगादड़ शीतकाल में खंडहरों, घंटाघरों, कंदराओं और जंगलें में निष्क्रिय पड़े रहते हैं, क्योंकि वातावरण के ताप के गिरने से इसकी शारीरिक क्रिया बिलकुल मंद हो जाती है और ये निद्रावस्था में हो जाते हैं। ऐसे उष्ण स्थान में जहाँ भोजन की अधिकता होती है ये प्रवास करते हैं। भारतीय चमगादड़ों की शीतनिष्क्रियता और प्रवसन के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, किंतु यूरोपीय जातें, जो हिमालय के शीतोष्ण भाग में बस गई हैं, शीतनिष्क्रिय रहती हैं। भारतीय पिपिस्ट्रेल (इंडियन पिपस्ट्रीले), जो शिमला में प्राय: अन्य ऋतुओं में पाए जाते हैं, जाड़े में बिल्कुल ही अदृश्य हो जाते हैं। गर्मी की भीषणता वस्तव में चमगादड़ों को व्याकुल कर देती है और वैसी अवस्था में ये अपने दाएँ या बाएँ पंख से हवा झलते पाए गए हैं। चमगादड़ के दैनिक जीवन पर कम वर्षा का प्रभाव नहीं पड़ता। चमगादड़ और वनस्पति जिस ऋतु और क्षेत्र में फलफूल की अधिकता रहती है, वहाँ चमगादड़ों का बाहुल्य रहता है। जननकाल और फलफूल लगने की ऋतु में भी एक समन्वय होता है। लघुनासिकाधारी, फलभक्षी चमगादड़ को ताड़ का पेड़, उड़नलोमड़ियों की विस्तृत बरगद, गूलर अथवा इमली के पेड़ तथा घनी बँसवारी भी पंसद होती है। उड़नलोमड़ियाँ किसी पेड़ या पेड़ों पर साल भर अड्डा बनाए रहती हैं। आर्थिक दृष्टि से चमगादड़ मनुष्य के लिये हानिकारक और उपयोगी दोनों है। कुछ जाति के लोग चमगादड़ का, विशेषत: उड़नलोमड़ी का, मांस खाते हैं। चमगादड़ के शत्रु नेवला, उल्लू और बाज चमगादड़ के प्रमुख शत्रु हैं, किंतु चमगादड़ के वास्तविक शत्रु अनेक प्रकार की परोपजीवी मक्खियाँ हैं और कुछ सीमा तक पिस्सू तथा किलनियाँ हैं, जो उनके परों और त्वचा के खून को चूसते हैं अतएव परोपजीवियों से त्राण पाने के लिये चमगादड़ अपने पैर के नखर से बराबर अपने पर के बालों में कंघी करते रहते हैं। कभी कभी इसके लिये वे दाँत की भी सहायता लेते हैं। रक्षा के साधन तेज उड्डान की शक्ति ही इनकी रक्षा का प्रमुख साधन है। झुंड में रहने की आदत भी सदस्यों की परस्पर रक्षा की दृष्टि से लाभदायक होती है। कुछ जातियों के चमगादड़ों में गंधग्रंथियाँ और थैलियाँ होती हैं, जो त्वचा की सतह पर खुलती हैं और उनसे एक प्रकार की तीव्र गंध निकलती है। यह शत्रुओं और मनुष्यों को विकर्षित करती है। ग्रंथियाँ मादा की अपेक्षा नर में प्राय: अधिक विकसित होती हैं। चमगादड़ के शरीर का रंग भी रक्षा का एक अन्य साधन है। उड़नलोमड़ियों अथवा फलाहारी चर्मचटकों में भोजनक्षेत्र का बँटवारा होता है या नहीं, यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं; किंतु कीटारी चर्मचटकों में इस प्रकार की व्यवस्था है। कुछ हवा में ऊँचे पर, कुछ नीचे और कुछ मध्य में शिकार करते हैं। अधिकांश चमगादड़ झुंड में रहनेवाले होते हैं, किंतु यह नियम अपरिवर्तनीय नहीं है, क्योंकि कई भारतीय जातियों के चमगादड़ प्राय: अकेले अथवा युग्मों में रहते पाए जाते हैं। झुंड में न तो किसी प्रकार की सामाजिक व्यवस्था होती है और न किसी प्रकार का नेतृत्व ही। प्रत्येक सदस्य स्वतंत्र होता है और उसका अपने से ही मतलब होता है। इनका पारिवारिक जीवन भी अल्पकालिक होता है। माँ बाप और संतान में अधिक दिनों तक संबंध नहीं रहता। उड़नलोमड़ियाँ बसेरे के वृक्ष से एक ही एमय भिन्न भिन्न दिशाओं में उड़ती हैं, किंतु प्रत्येक अपने मनमाने रास्ते पर ही चलती हैं। चमगादड़ के बच्चे भी अन्य प्राणियों के बच्चों के सदृश लगातार चिल्लाकर अपनी माँ को बुलाते हैं। चर्मचटकों का प्रजनन काल जलवायु तथा प्राकृतिक स्थितियों पर निर्भर करता है। साधरणत: शरद ऋतु के अंत में मैथुन ऋतु होती है। अधिकांश मादाएँ इसी समय शुक्राणु ग्रहण करती हैं, यद्यपि इस समय गर्भाधान नहीं होता और शुक्राणु गर्भाशय में संचित रहते हैं। वसंत ऋतु के अंत में जब सुप्तकाल समाप्त हो जाता है और क्रियाशीलता पुन: प्रारंभ हो जाती है, तब अंड का शुक्र से संयोग और निषेचन होता है। अनावश्यक शुक्राणु बाहर निकाल दिए जाते हैं। अधिकांश चर्मचटक फूल तथा फल लगने की मृत्यु ऋतु के ठीक कुछ समय पूर्व बच्चे जनते हैं। पश्चिमी किनारे में बंबई के समीप उड़नलोड़ियाँ प्राय: सितंबर और अक्टूबर में मैथुन करती हैं और मार्च या अप्रैल के मध्य तक बच्चे जनती हैं। चमगादड़ का विकास चर्मचटक में पर का विकास कैसे हुआ, यह ज्ञात नहीं है। किंतु जीवाश्मों (फ़ॉसिल्) से पता चलता है कि जिस समय पाँच अँगुलीवाले घोड़े और टापीर (तापीर) जैसे हाथी इस पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे उन दिनों भी चमगादड़ आज के ही चमगादड़ जैसे थे और उनमें उड़ने की क्षमता थी। मध्य इओसिन (मिडिल एओसेने) युग की चट्टानों से प्राप्त अमरीकी जीवाश्म के चमगादड़ भी आधुनिक कीटभक्षी चमगादड़ के सदृश ही थे। दुर्भाग्य है कि जीवाश्म से चर्मचटकों में उड़ान भरने की शक्ति की उत्पत्ति और विकास की कड़ी पर प्रकाश् नहीं पड़ता और न उनके पूर्वजों का पता लगता है। एस.एच. प्रैटर : दि बुक ऑव इंडियन ऐनिमल्स, प्रकाशक, दि बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, बॉम्बे इन्हें भी देखें
मुत्चॆर्ल (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इस कथानक का आकर्षण भारत के साथ साथ विदेशी जनमानस में भी सदा से रहा है और रहेगा। अपनी लेखनी चातुर्य से कवि ने राम के पत्नी परित्याग रूपी चरित्र के दोष को सदा के लिये दूर करदिया। साथ ही सीता को वनवास देने वाले राम का रुदन दिखाकर कवि ने सीता के अपमानित तथा दुःख भरे हृदय को बहुत शान्त किया हैं। साहित्य शास्त्र में जहाँ नाटकों में शृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वही भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक लिखकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्ति ला दी। भवभूति तो यहाँ तक कहते हैं कि करुण ही एकमात्र रस है। वही करुण निमित्त भेद से अन्य रूपों में व्यक्त हुआ है। विवाह से पूर्व नायक नायिका का शृंगार वर्णन तो प्रायः सभी कवियों ने सफलता के साथ किया है परन्तु भवभूति ने दाम्पत्य प्रेम का जैसा उज्ज्वल एवं विशद चित्र खींचा है वैसा अन्यत्र दुलर्भ है। सात अंकों में निबद्ध उत्तररामचरितम भवभूति की सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति है। इसमें रामराज्यमिषेक के पश्चात् जीवन का लोकोत्तर चरित वर्णित है जो महावीरचरित का ही उत्तर भाग माना जाता है।। संस्कृत नाट्यसाहित्य में मर्यादापुरषोत्तम श्री रामचन्द्र के पावन चरित्र से सम्बद्ध अनेक नाटक है किन्तु उनमें भवभूति का उत्तरराम चरितम् अपना एक अलग ही वैशिष्ट्य रखता है। काव्य शास्त्र में जहाँ नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वहीं भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक रचकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्तिला दी है। उत्तररामचरितम् में प्रेम का जैसा शुद्ध रूप देखने को मिलता है वैसा अन्य कवियों की कृत्तियों में दुर्लभ है। कवि ने इस नाटक के माध्यम से राजा का वह आदर्श रूप प्रस्तुत किया है जो स्वार्थ और त्याग की मूर्ति है तथा प्रजारंजन ही जिसका प्रधान धर्म है। प्रजा सुख के लिये प्राणप्रिया पत्नी का भी त्याग करने में जिसे कोई हिचक नहीं है। इस नाटक में प्रकृति के कोमल तथा मधुर रूप के वर्णन की अपेक्षा उसके गम्भीर तथा विकट रूप का अधिक वर्णन हुआ है जो अद्वितीय एवं श्लाघनीय हैं। वास्तव में यह नाटक अन्य नाटकों की तुलना में निराला ही है। इसी कारण संस्कृत नाट्य जगत में इसका विशेष स्थान है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि विश्वास की महिमा में, प्रेम की पवित्रता में, भावनाओं की तरंगक्रीड़ा में, भाषा के गम्भीर्य में और हृदय के माहात्म्य में उत्तररामचरितम् श्रेष्ठ एवं अतुलनीय नाटक है। जनापवाद के कारण राम न चाहते हुए भी सीता का परित्याग कर देते हैं। सीतात्याग के बाद विरही राम की दशा का तृतीय अंक में करुण चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो काव्य की दृष्टि से इस नाटक की जान है। भवभूति ने इस दृश्यकाव्य में दांपत्य प्रणय के आदर्श रूप को अंकित किया है। कोमल एवं कठोर भावों की रुचिर व्यंजना, रमणीय और भयावह प्रकृति चित्रों का कुशल अंकन इस नाटक की विशेषताएँ हैं। उत्तररामचरित में नाटकीय व्यापार की गतिमत्ता अवश्य शिथिल है और यह कृति नाटकत्व की अपेक्षा काव्यतत्व और गीति नाट्यत्व की अधिक परिचायक है। भवभूति की भावुकता और पांडित्यपूर्ण शैली का चरम परिपाक इस कृति में पूर्णत: लक्षित होता है। उत्तररामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित निर्णयसागर संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् १८९९ में मुंबई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं। इनमें प्रसिद्ध संस्करण ये हैं : सी.एच्. टॉनी द्वारा अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित (कलकत्ता, १८७१), फ्रेंच अनुवाद सहित फ़ेलीनेव (क़ड्ढ"थ्त्न् ग़्ड्ढ"ध्ड्ढ) द्वारा ब्रूसेल्स तथा पॉरिस से १८८० में प्रकाशित, डॉ॰ बेलवलकर द्वारा केवल अंग्रेजी अनुवाद तथा भूमिका के रूप में हॉर्वर्ड ओरिएंटल् सीरीज़ में संपादित (१९१५ ई.)। उत्तररामचरितम् में शम्बूक-कथा के मिथक का पुनर्निर्माण
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस भारत में प्रकाशित होने वाला अंग्रेजी भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। यह चेन्नई, कोयंबटूर, हैदराबाद, बैंगलोर, कोच्ची व भुवनेश्वर में प्रकाशित होता है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र
मछलियाँ पकड़ने वाले समुदाय या व्यक्तियों को मछुआरा कहा जाता है। मांझी मल्लाह साहनी कोली निषाद जाति जो एक 'जल-केंद्रित' जल क्षत्रिय समुदाय है जिसका प्राथमिक व्यवसाय नौकायन और मछली पकड़ना है।
मुरैठी कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
राजकुमार मखोसिनी दल्मिनी (१९१४ - २८ अप्रैल १९७८) प्रधानमंत्री की स्वाजीलैंड १६ से मई १९६७ ३१ मार्च १९७६। १९६८ से १९७० तक दल्मिनी देश के विदेश मंत्री भी रहे। १९१४ में जन्मे लोग १९७८ में निधन
राष्ट्रीय कम्पनी विधि अपील अधिकरण(नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (न्क्लात)) एक अधिकरण है, जो भारत के केंद्र सरकार द्वारा कम्पनी अधिनियम, २०१३ की धारा ४१० के तहत बनाया गया था। यह अधिकरण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (नॉल्ट) के आदेशों पर अपील की सुनवाई के लिए जिम्मेदार है , यह १ जून, 20१6 से शुरू हुआ है।वर्तमान में इसमें कुल १6 बेंच है। अधिकरण इब्क की धारा धारा २०२ और २११ के तहत इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा जारी आदेशों पर अपील भी सुनी। यह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (क्सी) द्वारा जारी किए गए किसी भी निर्देश, निर्णय, या आदेश पर की गयी अपील को भी सुनता है। २०१९ तक, अपीलीय अधिकरण की अध्यक्षता अध्यक्ष एस. जे. मुखोपाध्याय ने की, जो पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुके है। एनसीएलएटी(न्क्लात) की संरचना न्क्लात में एक अध्यक्ष, एक न्यायिक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य शामिल हैं। इसमें कुल सदस्य सन्ख्या ग्यारह से ज्यादा नहीं होती।
कल की आवाज़ १९९२ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसमें धर्मेन्द्र, राज बब्बर, अमृता सिंह और प्रतिभा सिन्हा मुख्य भूमिकाओं में हैं। इसे बलदेव राज चोपड़ा और रवि चोपड़ा की पिता-पुत्र जोड़ी ने निर्मित और निर्देशित किया। पुलिस आयुक्त हमजा शेख की सेवानिवृत्ति के बाद, डीएसपी अली हैदर जाफरी ने कार्यभार सँभाला। इसके तुरंत बाद, वह अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करता है जब वह यद्यपि बैंक के ग्राहकों के जीवन को खतरे में डालकर बैंक लुटेरों के गिरोह को सफलतापूर्वक पकड़ता है। तब कॉन्टिनेंटल बैंक के अध्यक्ष श्रीवास्तव के बेटे का अपहरण कर लिया गया और फिरौती की माँग रखी गई। अली इस बारे में जान पाता है अउर हस्तक्षेप करता है, लेकिन बच्चे को बचाने में असमर्थ होता है। इसके परिणामस्वरूप इस घटना को गलत तरीके से निपटारे की काफी आलोचना होती है। तब अली की अपनी ही दुनिया उलटी हो गई जब उसकी बेटी शगुफ्ता, जो गृह मंत्री सैयद नूरुद्दीन अहमद के बेटे नसीरुद्दीन से शादी करने वाली है, का नसीरुद्दीन के साथ अपहरण कर लिया जाता है। धर्मेन्द्र - पुलिस आयुक्त अली हैदर जाफरी राजबब्बर - गृह मंत्री सैयद नूरुद्दीन अहमद अमृता सिंह - प्रिंसिपल नाहिम बिल्ग्रामि प्रतिभा सिन्हा - शगुफ्ता 'शगुफी' हैदर जाफरी रोहित भाटिया - नसीरुद्दीन 'नसीर' अहमद नीना गुप्ता - श्रीमती फाहिमिदा नूरुद्दीन अहमद फरीदा ज़लाल - अकबरी पुनीत इस्सर - भाई खान गुफी पेंटल - कॉन्टिनेंटल बैंक के अध्यक्ष श्रीवास्तव अर्जुन - डीएसपी सिंह संगीत नदीम श्रवण की जोड़ी ने दिया है और गीतकार समीर है। "किसी मेहरबाँ ने आके", "सबसे हम दूर हुए" और "आज रात चाँदनी है" इस एल्बम के सबसे लोकप्रिय गीत हैं। १९९२ में बनी हिन्दी फ़िल्म नदीमश्रवण द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (मिगा) एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो राजनीतिक जोखिम बीमा और ऋण वृद्धि गारंटी प्रदान करती है। ये गारंटी निवेशकों को विकासशील देशों में राजनीतिक और गैर-वाणिज्यिक जोखिमों के खिलाफ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की रक्षा करने में मदद करती है। मिगा विश्व बैंक समूह का एक सदस्य है और इसका मुख्यालय वाशिंगटन ओर ड.च. संयुक्त राज्य अमेरिका में है । विश्व बैंक समूह द्वारा कमीशन की गई सैकड़ों सक्रिय ऊर्जा परियोजनाओं पर एक बड़े पैमाने पर अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि शरीर वर्तमान में नवीकरणीय क्षेत्र में $ ७ब्न की तुलना में $ २१ब्न का जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रहा है। अध्ययन ने 6७5 वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाओं का विश्लेषण किया, जो समूह द्वारा वित्त पोषित की गई हैं और अभी भी संचालन में हैं और शरीर के सार्वजनिक डेटाबेस में सूचीबद्ध हैं। यह पाया गया कि बैंक के पास वर्तमान में स्वच्छ बिजली क्षेत्र में प्रत्येक डॉलर के लिए कोयला, तेल और गैस तीन हैं। अध्ययन के लेखक, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के सदस्य और अमेरिका स्थित वित्त विश्लेषक हाइक मैनहार्ट ने कहा, निष्कर्षों ने इस तथ्य का प्रमाण दिया है कि विश्व बैंक "२०१३ के आसपास" अपनी कोयला नीति नहीं बना रहा है। मिगा की स्थापना १९८८ में विकासशील देशों में आश्वस्त निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक निवेश बीमा सुविधा के रूप में की गई थी। मिगा का स्वामित्व और संचालन उसके सदस्य राज्यों द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका अपना कार्यकारी नेतृत्व और कर्मचारी हैं जो अपने दैनिक कार्यों को पूरा करते हैं। इसके शेयरधारक सदस्य सरकारें हैं जो भुगतान की गई पूंजी प्रदान करती हैं और इसके मामलों में मतदान का अधिकार रखती हैं। यह लंबी अवधि के ऋण और इक्विटी निवेश के साथ-साथ अन्य परिसंपत्तियों और लंबी अवधि के साथ अनुबंध करता है। एजेंसी का आकलन प्रत्येक वर्ष विश्व बैंक के स्वतंत्र मूल्यांकन समूह द्वारा किया जाता है। सितंबर १९८५ में, विश्व बैंक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी की स्थापना करने वाले कन्वेंशन का समर्थन किया। मिगा की स्थापना हुई और १२ अप्रैल १९८८ को तत्कालीन कार्यकारी उपाध्यक्ष योशियो तेरसावा के नेतृत्व में विश्व बैंक समूह की पांचवीं सदस्य संस्था बन गई। मिगा के पास शुरू में पूंजी और २९ सदस्य राज्यों में १ बिलियन डॉलर (20१२ डॉलर में १.९४ बिलियन डॉलर) था। इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (इबर्ड) के सभी सदस्य एजेंसी के सदस्य बनने के योग्य थे। मिगा को विकासशील देशों में निवेश के लिए गैर-वाणिज्यिक जोखिम बीमा के मौजूदा स्रोतों के पूरक के प्रयास के रूप में स्थापित किया गया था। एक बहुपक्षीय गारंटीकर्ता के रूप में सेवा करके, एजेंसी निवेशक देश और मेजबान देश के बीच टकराव की संभावना को कम करती है। मिगा की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने २०१० में राजनीतिक जोखिम बीमा के लिए योग्य निवेशों की सीमा का विस्तार करके संगठन की प्रभावशीलता में सुधार करने के प्रयास में एजेंसी के सम्मेलन में संशोधन किया। मिगा का संचालन इसकी काउंसिल ऑफ गवर्नर्स द्वारा किया जाता है जो इसके सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है। काउंसिल ऑफ गवर्नर्स कॉर्पोरेट अधिकार रखता है, लेकिन मुख्य रूप से मिगा के निदेशक मंडल को ऐसी शक्तियाँ सौंपता है। निदेशक मंडल में मिगा के सामने लाए गए मामलों में २५ निदेशक और वोट होते हैं। प्रत्येक निर्देशक का वोट सदस्य राष्ट्रों की कुल शेयर पूंजी के अनुसार होता है, जिसका निर्देशक प्रतिनिधित्व करता है। मिगा का बोर्ड अपने वाशिंगटन, ड.च मुख्यालय में तैनात है, जहाँ वह नियमित रूप से बैठक करता है और एजेंसी की गतिविधियों की देखरेख करता है। एजेंसी के कार्यकारी उपाध्यक्ष अपनी समग्र रणनीति का निर्देशन करते हैं और अपने दैनिक कार्यों का प्रबंधन करते हैं। १५ जुलाई २०१३ तक, कीको होंडा मिगा के कार्यकारी उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। मिगा का स्वामित्व इसकी १८१ सदस्यीय सरकारों के पास है, जिसमें १५६ विकासशील और २५ औद्योगिक देश शामिल हैं। सदस्य १८० संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों और कोसोवो से बने हैं। मिगा में सदस्यता केवल उन देशों के लिए उपलब्ध है जो विश्व बैंक के सदस्य हैं, विशेष रूप से पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक। २०१५ तक, विश्व बैंक के सात सदस्य जो कि मिगा सदस्य नहीं हैं, ब्रुनेई, किरिबाती, मार्शल आइलैंड्स, सैन मैरिनो, सोमालिया, टोंगा और तुवालु हैं। (संयुक्त राष्ट्र बताता है कि विश्व बैंक के गैर-सदस्य हैं, और इस प्रकार मिगा, अंडोरा, क्यूबा, लिकटेंस्टीन, मोनाको, नाउरू और उत्तर कोरिया हैं।) होली सी और फिलिस्तीन भी गैर-एमआईजी सदस्य हैं। भूटान मिगा में शामिल होने वाला सबसे हालिया देश है, जिसने दिसंबर २०१४ में ऐसा किया है। मिगा संयुक्त राज्य अमेरिका गाप के अनुसार समेकित वित्तीय विवरण तैयार करता है जो क्पग द्वारा ऑडिट किए जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
नरेला (नारेला) दिल्ली के उत्तर पश्चिम दिल्ली जिला का एक उप मंडल है, और हरियाणा के साथ दिल्ली राज्य की सीमा बनाती है। ग्रैंड ट्रंक रोड से कुछ ही दूरी पर स्थित, यह १९वीं शताब्दी के दौरान, आसपास के क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार शहर के रूप में बना था, जो स्थिति अभी भी बरकरार है। रोहिणी सब सिटी और द्वारका सब सिटी के बाद दिल्ली के शहरी विस्तार परियोजना में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की तीसरी मेगा उप-शहर परियोजना के रूप में इसे विकसित किया गया था। और ९८६६ हेक्टेयर के क्षेत्र को कवर करता है। 'नरेला इंडस्ट्रियल एरिया', १९80 के दशक की शुरुआत में विकसित होना शुरू हुआ था और आज दिल्ली में इस तरह के महत्वपूर्ण परिसरों में से एक है। यह दिल्ली नगर निगम (मैड) के १२ ज़ोन में से एक है और सरस्वती विहार और मॉडल टाउन के साथ उत्तर पश्चिम दिल्ली जिले के तीन प्रशासनिक प्रभागों या उप-जिलों में से एक है। नरेला उप-मंडल के क्षेत्र बख़्तावर पुर, अकबरपुर माजरा, अलीपुर, बखोली, बांकनेर, भोरगढ़, लामपुर, बूढ़ापुर बीजापुर, फतेहपुर जाट, गढ़ी खासरो, गोगा, हामिद पुर, हिरणी, होलाबी कलां, होलाबी खुर्द, इरादत नगर (नया बंस), सनोत, जोथ पुर, खामपुर, खत्री अंटी वाला। दिल्ली के उपमंडल पश्चिमोत्तर दिल्ली ज़िले के नगर
डॉ० प्रभाकिरण जैन (जन्म १९६३) एक कवि और लेखक हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान मे पीएचडी की है और राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों के योगदान के बारे में जागरूकता पैदा करने में बड़े पैमाने पर काम किया है। बच्चों की कविताएँ रंग बिरंगे बलून (१९९५) गीत खिलोन (२००२) चाक भि जोरोड़ी महक भी जरुरी (२००४) (डॉ। शेरजुंग गर्ग के साथ) गोबर बानम गोबरधन इब्बतूत कौ जूटा (२०१५) चल मेरी ढोलकी (२०१५) कहानी की पुस्तकें जामलो का चुरा कथा सरिता कथा सागर (२००७) सम्राट अशोक (२०१७) सर्वपल्ली राधाकृष्णन (२०१७) महात्मा गांधी (२०१७) वैशाली के महावीर (२००३, हिंदी और अंग्रेजी में) (अमरेंद्र खटुआ द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित) श्री राम (२०१७) गोम्मतेश्वर बाहुबली (२०१८; हिंदी और अंग्रेजी में) (साहू अखिलेश जैन द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित) नागफनी सदाबहार है (१९९७) मानोनयन : राज्यसभा के मनोनीत सदस्या (२०१३) वैशालिक की छमा में (२००५) (राजेश जैन के साथ) वीर (पत्रिका) (१९८९-२०१७) पुरस्कार और सम्मान वह विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता हैं। सबसे विशेष रूप से वह दिल्ली के एनसीटी सरकार द्वारा हिंदी अकादमी की कई पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता हैं। पंडुलिपि सम्मान ( गीत खिलोन के लिए) (२००२) बाल इवाम किशोर साहित्य सम्मान ( कथा सरिता कथा सागर के लिए ) (२००७) हिंदी अकादमी बाल साहित्य सम्मान (२०१६) टेलीविजन और रेडियो उन्हें दूरदर्शन नेटवर्क, नत्व , स्टार प्लस , सब टीवी , सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन , इंडिया टीवी , सुदर्शन टीवी, सहारा टीवी, फोकस टीवी, महुआ टीवी, टोटल टीवी के साथ-साथ विभिन्न देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित रेडियो नेटवर्क सहित टीवी चैनलों पर दिखाई गई । उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद , भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया और संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका आदि में साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लिया। गैर लाभकारी कार्य प्रभाकिरण साहित्यिक रिलीज को बढ़ावा देने के लिए प्रेम शांति साहित्य संस्थान नामक एक गैर-लाभकारी संगठन चलाती हैं। वह अखिल भारतीय सेवा दिगम्बर जैन परिषद की संयुक्त सचिव हैं। आईसीसीआर की आधिकारिक वेबसाइट नई दिल्ली में हुआ लंदन में भारतीय उच्चायोग की आधिकारिक वेबसाइट बच्चों के लिए प्रकाशित हिंदी पुस्तकों की सूची १९६३ में जन्मे लोग
सुवर्णभूमि विमानक्षेत्र (, उच्चारण ) (जिसे (न्यू) बैंग्कॉक इण्टरनेशनल एयरपोर्ट भी कहा जाता है), थाईलैण्ड की राजधानी बैंग्कॉक को सेवाएं देने वाला एक विमानक्षेत्र है। समुत प्रकण प्रांत थाईलैंड के विमानक्षेत्र बैंग्कॉक की इमारतें बैंग्कॉक में यातायात
बेहङगांव, काफलीगैर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बेहङगांव, काफलीगैर तहसील
हातकणंगले लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। महाराष्ट्र के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल में स्थित एक विश्वविद्यालय है। ६ जून २०१३ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने इसकी की आधारशिला रखी। यह विश्वविद्यालय तकनीकी, चिकित्सा, कला और वाणिज्य से जुड़े विषयों की शिक्षा प्रदान करेगा। मध्यप्रदेश और भारतवासियों के स्वभाषा और सुभाषा के माध्यम से ज्ञान की परम्परागत और आधुनिक विधाओं में शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था और हिन्दी को गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिये मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इसकी स्थापना १९ दिसम्बर २०११ को की गयी। भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर रहे हैं। इसीलिये इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया। भोपाल चूँकि भारतवर्ष के केन्द्र में स्थित है अत: इस विश्वविद्यालय को वहाँ स्थापित किया गया। इस विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा को अध्यापन, प्रशिक्षण, ज्ञान की वृद्धि और प्रसार के लिये तथा विज्ञान, साहित्य, कला और अन्य विधाओं में उच्चस्तरीय गवेषणा हेतु शिक्षण का माध्यम बनाना है। यह विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश में हिन्दी माध्यम से ज्ञान के सभी अनुशासनों में अध्ययन, अध्यापन एवं शोध कराने वाला प्रथम विश्वविद्यालय है। यहाँ विद्यार्थियों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाण-पत्र, पत्रोपाधि, स्नातक, स्नातकोत्तर,जैसे अनेक उपाधि कार्यक्रम संचालित हैं। ३० जून २०१२ को प्रो॰ मोहनलाल छीपा इस विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति नियुक्त किये गये। इससे पूर्व वे महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के कुलपति थे। भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ६ जून २०१३ को भोपाल के ग्राम मुगालिया कोट में विश्वविद्यालय भवन का शिलान्यास किया। विश्वविद्यालय का भवन ५० एकड़ में बनेगा। अगस्त २०१३ से विश्वविद्यालय ने शिक्षण कार्य प्रारम्भ भी कर दिया है। वर्तमान में प्रो.रामदेव भारद्वाज इस विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति हैं दिनांक ८/०३/२०१७ को अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस के मौके पर विकिपीडिया की टीम के द्वारा कार्य शाला का आयोजन किया गया। प्रथम दीक्षान्त समारोह विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षांत समारोह दिनांक १८ अप्रैल २०१७ ,विक्रम संवत २०७४,वैशाख कृष्ण ,सप्तमी को सम्पन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता श्री ओम प्रकाश कोहली जी महामहीम राज्यपाल मध्यप्रदेश ने की।सारस्वत अतिथि श्री सीताशरण शर्मा जी,मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष थे। मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे।श्री जयभान सिंह पवैया ,उच्च शिक्षा मंत्री मध्यप्रदेश ने दीक्षांत भाषण दिया। उद्देश्य एवं दृष्टि विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य हिन्दी भाषा को अध्ययन, प्रशिक्षण, ज्ञान की वृद्धि और प्रसार के लिये तथा विज्ञान साहित्य, कला व अन्य विधाओं में उच्चस्तरीय गवेषणा हेतु शिक्षण का माध्यम बनाना है। उपर्युक्त उद्देश्य की व्यापकता को प्रभावित किये बिना विश्वविद्यालय के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे:- विज्ञान, साहित्य, संस्कृति, कला, दर्शन और अन्य विधाओं के अध्ययन और गवेषणा को प्रोन्नत करना, संकलित करना और संरक्षित करना। हिन्दी भाषा में शिक्षा और ज्ञान को प्रोन्नत करना और उसका प्रसार करना और इस प्रयोजन के लिए अन्य भाषाओं से अनुवाद करना, प्रकाशन, उद्देश्य , सूचना प्रौद्योगिकी और रोजगारकौशल का उपयोग संचालित करना। हिन्दी भाषा के ज्ञान को प्रोन्नत करने के लिए अभिभाषणों, सेमीनारों, परिसंवादों, अधिवेशनों का आयोजन करना। विभिन्न विधाओं में शिक्षण तथा प्रशिक्षण को प्रोन्नत करना, जैसा कि विश्वविद्यालय ठीक समझे और गवेषणा कार्य किए जाने का इंतजाम करना। सभी धर्मों और मुख्य प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों के अध्ययन तथा गवेषणा कार्य को प्रोत्साहित करना। परीक्षा संचालित करना और मानद उपाधियाँ और अन्य विशिष्टियाँ प्रदान करना। ऐसे समस्त कार्य करना, जो विश्वविद्यालय के समस्त या किन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने में अनुषांगिक, आवश्यक या सहायक हों। विश्वविद्यालय का उद्देश्य ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना है जो समग्र व्यक्तित्व विकास के साथ रोजगार, कौशल व चारित्रिक दृष्टि से विश्वस्तरीय हो। विश्वविद्यालय ऐसी शैक्षिक व्यवस्था का सृजन करना चाहता है जो भारतीय ज्ञान परम्परा तथा आधुनिक ज्ञान में समन्वय करते हुए छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में ऐसी सोच विकसित कर सके जो भारत केन्द्रित होकर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण को प्राथमिकता दे। भारत में उच्चशिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन अनुपात १६ प्रतिशत के लगभग होने के कारण इस विश्वविद्यालय का ध्येय उच्च शिक्षा का लोकान्तरण एवं लोक का रूपान्तरण करना। विश्वविद्यालय में निजता, अनन्यता, कुशलता एवं धन्यता जैसे शिखा सूत्रों की स्थापना करना। विद्यार्थी के समग्र विकास की दृष्टि से उच्च शिक्षा में पंचकोशीय शिक्षा व्यवस्था के प्रारूप को विकसित करना। ऐसे पाठ्यक्रमों की रचना करना जो कि विद्यार्थियों को स्वरोजगार एवं मूल्य आधारित व्यावसायिकता की ओर प्रेरित कर सके। सभी प्रकार के पाठ्यक्रमों में भारतीय योगदान को रेखांकित करना। विभिन्न ज्ञान अनुशासनों से सम्बन्धित विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध श्रेष्ठ पाठ्यपुस्तकों का हिन्दी भाषा में अनुवाद एवं मौलिक लेखन को प्रोत्साहित करना। भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आधुनिक ज्ञान में समन्वय स्थापित करने की दृष्टि से विभिन्न अध्ययन केन्द्रों की स्थापना करना। विश्वविद्यालय ने अपने आपको एक ऐसे भारत राष्ट्र के लिए समर्पित किया हैं जो समय से पहले सोचते हुए पूर्ण आत्म-सम्मान के साथ विश्व के राष्ट्रों की बिरादरी में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सके। सम्भावनाओं की तलाश और नवीन सम्भावनाओं के निर्माण का भागीरथ प्रयत्न करते हुए अपनी क्षमता से पूरा करने का विश्वास ही उसका सम्बल होगा। इसके अतिरिक्त एक ऐसे शिक्षातन्त्र की रचना भी की जायेगी जो जनता-जनार्दन की आवश्यकताओं के अनुकूल तकनीक का निर्माण करे न कि ऐसी पद्धति जो विश्व की महाशक्तियों के लिये केवल तकनीकी-कुली ही तैयार करे। इस विश्वविद्यालय का नाम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पर रखा गया है। श्री वाजपेयी एक वरिष्ठ राष्ट्रीय राजनेता, उत्कृष्ट सांसद, प्रखर विद्वान तथा प्रभावशाली चिंतक थे। उन्होंने बहुत सी उत्कृष्ट तथा स्मरणीय कविताएं लिखी हैं। उनकी रचनाओं ने हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उल्लेखनीय है कि श्री वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिन्दी में भाषण देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को नई ऊंचाईयों पर स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं। संगणक विज्ञान एवं अनुप्रयोग विभाग एक माह प्रशिक्षण प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम (१) संगणक हार्डवेयर एवं संजाल (१०वीं उत्तीर्ण ) (२) कार्यालयीन संगणक अनुप्रयोग (१०वीं उत्तीर्ण) छ माह प्रशिक्षण प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम (१) वेब डिज़ाइनिग (१२वीं उत्तीर्ण) (२) ३डी एनिमेशन (१२वीं उत्तीर्ण) (३) इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (१२वीं उत्तीर्ण) (४) ग्राफिक्स डिज़ाइनिग (१२वीं उत्तीर्ण) एक वर्षीय पत्रोपाधि पाठ्यक्रम (१) संगणक अनुप्रयोग में पत्रोपाधि (डी. सी. ए.) (१२वीं उत्तीर्ण) (२) संगणक अनुप्रयोग में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि (पी. जी. डी. सी. ए.) (स्नातक, किसी भी विषय के साथ) (१) संगणक अनुप्रयोग में स्नातक (बी. सी. ए.) (वाणिज्य/भौतिकी/गणित विषय के साथ १२वीं उत्तीर्ण ) (२) स्नातकोत्तर संगणक विज्ञान (एम एस सी (सी एस)) (संगणक में स्नातक) वाणिज्य एवं प्रबंधन वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग में निम्न पाठ्यक्रम संचालित हैं- एम. काम. (वाणिज्य) एम. बी.ए. ( व्यावसायिक अर्थशास्त्र) एम. बी.ए. ( संभार तंत्र एवं आपूर्ती श्रंखला प्रबंधन) बी बी ए अर्थशास्त्र विभाग में निम्न पाठ्यक्रम संचालित हैं। पुस्तकालय विज्ञान विभाग में संचालित पत्रोपाधि पुस्तकालय एवं सुचना विज्ञान पर एक वर्षीय पाठ्यक्रम है। इस पाठ्यक्रम में दो सेमेस्टर होंगे, प्रत्येक सेमेस्टर में चार (४) प्रश्नपत्र होंगे यानि दो सेमेस्टरमें छात्र को आठ (८) प्रश्नपत्र देने होंगे। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को पुस्तकालय विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों से और सूत्रों से अवगत कराना है। वर्तमान ज्ञान समाज में निरंतर बदलते हुए शैक्षणिक,आर्थिक,तकनिकी, और सामाजिक वातावरण के अनुरूप पुस्तकालय के कार्य और उद्धेश्यों को समझने में छात्रों को सक्षम करना है। छात्रों को पुस्तकालयोंके प्रबंधन तकनिकी और प्रौधोगिकी के उपयोग में दक्ष करना है। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, न्यू मीडिया के स्नातकोत्तर, स्नातक, स्नातक उपाधि के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। हमारे कई छात्र न्यूज चैनल और अखबारों में कार्य कर रहे हैं। आगामी योजना सांध्य कालीन पाठ्यक्रम शुरु करने की है। पत्रकारिता एवं जनसंचार क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूर्ण करने की दृष्टि से ०१ जुलाई 2०१3 को इस विभाग की स्थापना की गई। सत्र 2०१4- १५ में छात्रों की संख्या १६ है। विभागीय पुस्तकालय में ०८ पुस्तकें पत्रकारिता से संबंधित उपलब्ध हैै।इस विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेखा रॉय है। बी.एड. (दो बर्षीय पाठ्यक्रम ) इन्हें भी देखें अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी पुस्तकालय, भोपाल महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय का आधिकारिक जालघर मध्य प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय जो हिन्दी में इंजीनियरिंग की शिक्षा देगा (अगस्त २०१६) अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विवि का शिलान्यास (प्रभासाक्षी) मेडिकल की पढाई अब हिन्दी में भी (खास खबर) भारत के विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालय अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय परियोजना के अंतर्गत बनाए गए लेख
गगालीपुर्ल, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा गगालीपुर्ल, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा गगालीपुर्ल, बाराकोट तहसील गगालीपुर्ल, बाराकोट तहसील गगालीपुर्ल, बाराकोट तहसील
यूरोप से अजय एरवाल ने की आर्थिक स्थिति एवं पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने पुनर्निर्माण हेतु अमेरिका ने अप्रैल १९४८ में मार्शल योजना शुरु की तथा यह १९५२ तक जारी रही। मार्शल प्लान (आधिकारिक तौर पर यूरोपीय रिकवरी प्रोग्राम, ईआरपी) पश्चिमी यूरोप की सहायता के लिए १९४८ में पारित एक अमेरिकी पहल थी, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ने १२ बिलियन डॉलर [१] (२0१8 अमेरिकी डॉलर में लगभग $ १00 बिलियन) [२] आर्थिक दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद पश्चिमी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए सहायता। मोर्गेंथु योजना के पहले के प्रस्ताव को प्रतिस्थापित करते हुए, इसने ३ अप्रैल, १९४८ से शुरू होने वाले चार वर्षों के लिए संचालित किया। [३] संयुक्त राज्य अमेरिका के लक्ष्य युद्धग्रस्त क्षेत्रों का पुनर्निर्माण, व्यापार बाधाओं को दूर करना, उद्योग को आधुनिक बनाना, यूरोपीय समृद्धि में सुधार करना और साम्यवाद के प्रसार को रोकना थे। [४] मार्शल प्लान में अंतरराज्यीय बाधाओं को कम करने, कई नियमों को छोड़ने और उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ आधुनिक व्यावसायिक प्रक्रियाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता थी। [५] मार्शल प्लान सहायता को प्रतिभागी राज्यों के बीच लगभग प्रति व्यक्ति के आधार पर विभाजित किया गया था। प्रमुख औद्योगिक शक्तियों को एक बड़ी राशि दी गई थी, क्योंकि प्रचलित मत यह था कि उनका पुनरुत्थान सामान्य यूरोपीय पुनरुत्थान के लिए आवश्यक था। प्रति व्यक्ति कुछ हद तक सहायता भी मित्र देशों की ओर निर्देशित की गई थी, उन लोगों के लिए जो एक्सिस का हिस्सा थे या तटस्थ बने हुए थे। मार्शल प्लान मनी का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता यूनाइटेड किंगडम था (कुल का लगभग २६% प्राप्त), इसके बाद फ्रांस (१८%) और पश्चिम जर्मनी (११%) था। कुछ अठारह यूरोपीय देशों को योजना का लाभ मिला। [६] हालाँकि, भागीदारी की पेशकश की, सोवियत संघ ने योजना लाभ से इनकार कर दिया, और पूर्वी ब्लॉक देशों जैसे कि हंगरी और पोलैंड को भी लाभ अवरुद्ध कर दिया। [सोवियत] संयुक्त राज्य अमेरिका ने एशिया में इसी तरह के सहायता कार्यक्रम प्रदान किए, लेकिन वे मार्शल योजना का हिस्सा नहीं थे। तेजी से रिकवरी में इसकी भूमिका पर बहस हुई है। मार्शल प्लान का लेखा-जोखा १९४८ और १९५१ के बीच प्राप्तकर्ता देशों की संयुक्त राष्ट्रीय आय का लगभग ३% था, जो कि सहायता का अर्थ है, जिसका अर्थ है कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर आधे प्रतिशत से भी कम होना। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, १९४७ में, उद्योगपति लुईस एच। ब्राउन ने जनरल लुसियस डी। क्ले के अनुरोध पर लिखा, जर्मनी पर एक रिपोर्ट, जिसने युद्ध के बाद के जर्मनी के पुनर्निर्माण के लिए एक विस्तृत सिफारिश के रूप में कार्य किया, और एक आधार के रूप में कार्य किया। मार्शल योजना। इस पहल का नाम यूनाइटेड स्टेट्स सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉर्ज मार्शल रखा गया। योजना को वाशिंगटन में द्विदलीय समर्थन मिला, जहां रिपब्लिकन ने कांग्रेस को नियंत्रित किया और डेमोक्रेट ने राष्ट्रपति के रूप में हैरी एस। ट्रूमैन के साथ व्हाइट हाउस को नियंत्रित किया। योजना मुख्यतः विदेश विभाग के अधिकारियों, विशेष रूप से विलियम एल। क्लेटन और जॉर्ज एफ। केनन की रचना थी, जिसमें सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष सीनेटर आर्थर एच। वैंडेनबर्ग द्वारा अनुरोध के अनुसार ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन से मदद ली गई थी। [११] मार्शल ने जून १९४७ में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अपने पते पर यूरोपीय वसूली में मदद करने की तत्काल आवश्यकता की बात कही। [४] मार्शल योजना का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रों की आर्थिक सुधार में सहायता करना और टी को कम करना था