text
stringlengths 60
141k
|
---|
नीम खेड़ा खैर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
अलीगढ़ जिला के गाँव |
हेगडे (हेगड़े) भारत के कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ ज़िले में स्थित एक ग्राम है।
इन्हें भी देखें
उत्तर कन्नड़ ज़िला
उत्तर कन्नड़ ज़िला
कर्नाटक के गाँव
उत्तर कन्नड़ ज़िले के गाँव |
ऐल्विन टॉफ़्लर(४ अक्टूबर, १९२८ - २७ जून २०१६), एक अमेरिकी लेखक एवं भविष्यवादी थे। उनके द्वारा लिखित पुस्तक फ्यूचर शॉक (फुत्रे शॉक) बेस्टसेलर रही, जिसकी विश्व भर में ६ मिलियन से अधिक प्रतियां बिकीं। उनके लेखन में विशेष रूप से डिजिटल क्रांति एवं संचार क्रांति का विश्व समुदाय पर प्रभाव शामिल है। वे अपनी पुस्तकों में आधुनिक तकनीकी के बारे में चर्चा किये जाने के कारण प्रसिद्ध थे। उनकी अन्य प्रसिद्ध पुस्तकें द थर्ड वेव (थे थर्ड वेव) व पॉवरशिफ्ट (पावरशिफ्ट) हैं। २७ जून २०१६ को ८७ वर्ष की आयु में लास एंजेल्स में उनका निधन हो गया।
वाशिंगटन, डीसी के वर्ल्ड अफेयर्स काउंसिल द्वारा एल्विन टौफ्लर के साथ साक्षात्कार|वर्ल्ड अफेयर्स काउंसिल
अन्य पाठकों के साथ एल्विन टौफ्लर की 'फ्यूचर शॉक' 'पर चर्चा, बुक्तल्क.ऑर्ग
अमेरिका के लोग
१९२८ में जन्मे लोग
२०१६ में निधन |
बिक्कन्गूड, दंडेपल्लि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
नीचे की दक्षिण एशिया के व्यंजनों में प्रयोग किए जाने वाले पादप या उनके अंगों के नाम हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में दिए गए हैं- |
पातपत्नम (पाथापत्तनम) भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य के श्रीकाकुलम ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
आन्ध्र प्रदेश के नगर
श्रीकाकुलम ज़िले के नगर |
डॉ॰ बालशौरि रेड्डी हिन्दी और तेलुगू के यशस्वी साहित्यकार, 'चंदामामा' के पूर्व सम्पादक, प्रसिद्ध बालसाहित्य सर्जक, अनन्य हिन्दी साहित्य साधक हैं। बालशौरि रेड्डी की मातृभाषा तेलुगु है लेकिन उनका जीवन हिंदी लेखन के प्रति समर्पित रहा. बालशौरि ने १४ उपन्यास, करीब दर्जनभर नाटक, कहानी, संस्मरण, संस्कृति और साहित्य से संबंधित कई अन्य पुस्तके लिखी.
डॉ॰ बालशौरि रेड्डी का जन्म आन्ध्र प्रदेश में हुआ। मातृभाषा तेलुगू है। १९४६ में हिंदी प्रचारिणी सभा की रजत जयंती के मौके पर इनकी मुलाकात गांधी जी से हुई. गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन के १४ सूत्रीय रचनात्मक कार्यक्रमों में हरिजन उद्धार, नारी शिक्षा, कुटीर उद्योग के साथ हिंदी सीखना भी शामिल था। गांधीजी के कहने पर बालशौरि ने हिंदी सीखना शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने विशारद, साहित्यरत्न और साहित्यालंकार की परीक्षाएं उत्तीर्ण की. हिंदी सीखने के लिए काशी और प्रयाग गए जहां उनका परिचय निराला, महादेवी वर्मा, बच्चन जैसे बड़े साहित्यकारों से परिचय हुआ।
बालशौरि रेड्डी और उनका साहित्य
अहिंदी शब्द से मुझे घृणा है (श्री रेड्डी से साक्षात्कार; दैनिक जागरण)
तेलुगु और हिंदी : मेरे लेखन के दो नयन (साक्षात्कार)
चंदामामा (हिन्दी बालपत्रिका) |
यह भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर में दिए गए बजट के साथ सबसे महंगी भारतीय फिल्मों की सूची है ।
सबसे महंगी भारतीय फिल्में
भाषा के हिसाब से सबसे महंगी फिल्में
असमिया सिनेमा , जिसे जौलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, असमिया भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
पश्चिम बंगाल का सिनेमा बंगाली भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
भोजपुरी सिनेमा , जिसे बोलचाल की भाषा में भोजूद के नाम से जाना जाता है, भोजपुरी भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
गुजराती सिनेमा , गुजराती भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
हिंदी सिनेमा , जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है , कई सबसे महंगी भारतीय फिल्मों का निर्माण करता है, जिनमें से कई दुनिया भर में रिलीज़ होती हैं।
कन्नड़ सिनेमा , जिसे चंदन के नाम से भी जाना जाता है, कन्नड़ भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
मलयालम सिनेमा , जिसे मॉलीवुड भी कहा जाता है, मलयालम भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
मराठी सिनेमा मराठी भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
पंजाबी सिनेमा पंजाबी भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
तमिल सिनेमा , अपने मुख्यालय कोडंबक्कम के संदर्भ में बोलचाल की भाषा में कॉलीवुड के रूप में जाना जाता है, तमिल भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
तेलुगु सिनेमा , जिसे टॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, तेलुगु भाषा में फिल्मों का निर्माण करता है ।
यह सभी देखें
सबसे महंगी फिल्मों की सूची
सबसे महंगी गैर-अंग्रेजी भाषा की फिल्मों की सूची
सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों की सूची
भारतीय फिल्मों की सूची
भारतीय फ़िल्मों से संबंधित सूचियाँ |
सरवनखेड़ा (सरवन खेरा) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
कानपुर देहात ज़िला
कानपुर देहात ज़िला
उत्तर प्रदेश के गाँव
कानपुर देहात ज़िले के गाँव |
वेधा २०२२ की भारतीय कन्नड़-भाषा की एक्शन ड्रामा फिल्म है, जिसे हर्ष द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया है। यह फिल्म ज़ी स्टूडियो के सहयोग से गीता पिक्चर्स के बैनर तले गीता शिवराजकुमार द्वारा निर्मित है। इस फिल्म से शिव राजकुमार ने अपनी १२५वीं फिल्म पूरी की। जिसमें गणवी लक्ष्मण, उमाश्री, अदिति सागर, श्वेता चेंगप्पा और कुरी प्रताप के साथ अभिनय किया है।
वेधा फिल्म को २३ दिसंबर २०२२ को क्रिसमस के ठीक पहले रिलीज़ किया गया था, जहाँ इसे समीक्षकों और दर्शकों से सकारात्मक समीक्षा मिली और यह बॉक्स ऑफिस पर से सफल रही साबित हुई।
कलाकारों में शामिल हैं
शिव राजकुमार वेद के रूप में
भरत सागर रुद्र के रूप में
गणवी लक्ष्मण पुष्पा, वेधा की पत्नी के रूप में
श्वेता चेंगप्पा एक सेक्स वर्कर पारी के रूप में
शंकरी के रूप में उमाश्री, वेधा की सबसे अच्छी दोस्त
अदिति सागर, वेधा की बेटी कनक के रूप में
वीना पोनप्पा इंस्पेक्टर रमा के रूप में
दया के रूप में रघु शिवमोग्गा, वेधा के मित्र
जग्गपा चिनय्या के रूप में
बीरा के रूप में चेलुवराज
प्रसन्ना नंजप्पा के रूप में
विनय बिदप्पा गिरी के रूप में
कुरी प्रताप एक बस कंडक्टर के रूप में
इस फिल्म का संगीत अर्जुन ज्ञान द्वारा रचित है। संगीत का पहला शीर्षक "गिलको शिवा" २७ नवंबर २०२२ को रिलीज किया गया था। और दूसरा संगीत का शीर्षक "पुष्पा पुष्पा" ११ दिसंबर २०२२ को रिलीज किया गया। और तीसरा शीर्षक "जुंजप्पा" १५ दिसंबर २०२२ को जारी किया गया था। चौथा शीर्षक "चिन्नुमरी" २६ दिसंबर २०२२ को जारी किया गया था। यह सभी गीत वी. नागेंद्र प्रसाद द्वारा लिखे गए हैं। |
कलंक विश्वविख्यात अमरीकी उपन्यासकार नैथेनियल हाथार्न के प्रसिद्ध उपन्यास 'दि स्कार्लेट लेटर' का हिंदी अनुवाद है। |
१९९५ यूईएफए चैंपियंस लीग फाइनल ४० वें संस्करण था और एएफसी अजाक्स और एसी मिलान के बीच वियना में हुई. यह तीन साल में मिलान के तीसरे फाइनल था और वे यूरोपीय कप में छह बार जीत चुके हैं की रियल मैड्रिड का रिकॉर्ड टाई करने के लिए लक्ष्य थे. पैट्रिक क्लुइवेर्त् विजेता गोल किया जब ८५ मिनट के बाद गतिरोध टूट गया.
यह निजी प्रसारकों द्वारा प्रसारित पहला फाइनल था और प्रायोजन के साथ कमीज यूईएफए चैंपियंस लीग फाइनल में पहने थे कि पहले साल.
फाइनल के लिए मार्ग
* मिलान मैच दिन दो पर कैसीनो साल्जबर्ग के खिलाफ भीड़ मुसीबत के लिए दो अंक काट रहे थे. |
कुस्मौल में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
चलिवेंद्रपालॆं (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
अग्निसह ईंट (फ़ायर ब्रिक अथवा रिफ्रैक्टरी ब्रिक) ऐसी ईंट को कहते हैं जो तेज आँच में न तो पिघलती है, न चटकती या विकृत होती है। ऐसी ईंटें अग्निसह मिट्टियों से बनाई जाती हैं।
अग्निसह ईंट उसी प्रकार साँचे में डालकर बनाई जाती है जैसे साधारण ईंट। अग्निसह मिट्टी खोदकर बेलनों (रोलरों) द्वारा खूब बारीक पीस ली जाती है, फिर पानी में सानकर साँचे द्वारा उचित रूप में लाकर सुखाने के बाद, भट्ठी में पका ली जाती है। अग्निसह ईंट चिमनी, अँगीठी, भट्ठी इत्यादि के निर्माण में काम आती है।
अच्छी अग्निसह ईंट करीब २,५०० से ३,००० डिगरी सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अतः कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चुनाई कर दी जाती है। उदाहरण के लिए लोहा बनाने की धमन भट्ठी (ब्लास्ट फर्नेस) की भीतरी सतह इत्यादि पर इसका प्रयोग किया जाता है।
मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अतः अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है।
इन्हें भी देखें |
मध्यनूतन युग (मिओसीने एपोच) पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास का एक भूवैज्ञानिक युग है जो आज से लगभग २.३०३ करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और ५३.३३ लाख वर्ष पहले तक चला। यह नियोजीन कल्प (नियोजीन) का आरम्भिक युग था। इस से पहले पेलियोजीन कल्प (पलियोजीन) का ओलिगोसीन युग (ओलिगोसेने) था और इसके बाद अतिनूतन युग (प्लिओसिने), शुरु हुआ। मध्यनूतन युग के शैलसमूह पृथ्वी पर बिखरे हुए पाए जाते हैं, जिनसे यह विदित होता है कि ये किसी बड़े जलसमूह या समुद्र में नहीं बने हैं, अपितु छोटी छोटी झीलों में इनका निक्षेपण हुआ है। इसका मुख्य कारण पृथ्वी के धरातल का शनै: शनै: ऊँचा होना है। यूरोप में ऐल्पस् और एशिया में हिमालय के प्रकट हो जाने से, वहाँ का जलसमूह या तो सूख गया था, या छोटी छोटी झीलों में परिवर्तित हो गया, जिसके फलस्वरूप इस कल्प के शैलसमूहों का समस्तरक्रम (होमोटक्सीज) केवल उनमें पाए जानेवाले जीवाश्मों के द्वारा हो सकता है।
मध्यनूतन कल्प के जीव एवं वनस्पतियाँ
यद्यपि इस समय का जलवायु शीतोष्ण था, फिर भी कुछ पौधों, जैसे सीनामोमम (सिन्नामोमम), के कहीं कहीं पर मिलने से यह मालूम होता है कि जलवायु समशीतोष्ण भी था। इस कल्प की वनस्पति में बाँज़, एल्म (एल्म), भुर्ज (वर्च), बीच (बीच), ऐल्डर (एल्डर), होली (हॉली), आइवी (आइवी) आदि मुख्य थे। अकेशरुकी में प्रवाल और एकाइनॉड विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मध्यनूतन कल्प के फॉसिलों में स्तनधारियों की संख्या अत्यधिक थी। इनमें सूँड़वाले जीव, जैसे मैस्टोडॉन तथा डाइनोथेरियम भी थे। घोड़ों का विकास चरम सीमा पर पहुँच चुका था।
विस्तार एवं कालविभाजन
मध्यनूतन कल्प के शैलसमूह यूरोप, एशिया, ऑस्टे्रलिया, न्यूज़ीलैंड, उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका, मेक्सिको और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं। समय के अनुसार इनका वर्गीकरण पाँच अवधियों में किया जाता है। भारत में कल्प अक्षारजलीय निक्षेप से, जो शिवालिक प्रणाली के अंतर्गत हैं, निरूपित होता है। इस युग की शिलाएँ सिंध, बलुचिस्तान, कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, प्रदेश एवं असम में स्थित हैं। सिंध में गजशैल समूह, बलूचिस्तान में बुग्ती शैलस्तर, कश्मीर और पंजाब में मरी श्रेणी, शिमला में दगशाई और कसौली श्रेणी तथा असम में सूर्मा श्रेणी इसी कल्प के शैलस्तर हैं। इस युग के आरंभ में आग्नेय उद्भेदन भी हुए, जिनके उदाहरण भारत के उत्तरपश्चिमी भागों में मिलते हैं।
इन्हें भी देखें |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील कांठ, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१८
कांठ तहसील के गाँव |
हेंडपंप, कुँआ, बोरवेल या दैनिक उपयोग मे अनावश्यक बहने वाले जल को संचय करने हेतु सोक पीट या सोखता गड्ढा का निर्माण करके उस गंदे पानी का जमीन मे सोखकर भूगर्भ मे पानी जाकर पानी की मात्रा बढ़ाने मे मदद करती है। यह बहुत ही आसानी से बनाया जाता है।पर्यावरण को बनाए रखने मे सोखपिट कारगार साबित होता है।
सोखपीट यह तकनीक भूमिगत स्थित है और इस प्रकार, मनुष्यों और जानवरों का अपशिष्ट के साथ कोई संपर्क नहीं होना चाहिए। सोख गड्ढे गंधहीन और दृश्यमान नहीं होते हैं, इसके उपयोग से गंदंगी,बदबू, एवं गंदे पानी से कीड़ों ,मच्छर आदि का ठहराव से झुटकरा मिल रहा है और पानी का संचय करके से पर्यावरण को बचाने का कार्य किया जा सकता है ।
सोक पीट बनाने का विधी:जहां व्यर्थ पानी बहता है उस स्थान पर लंबाई-१ मी.क्स चौड़ाई-१ मी.क्स गहराई-१ मी.का गड्ढा खोदें |आप आवश्यकता के अनुसार गहराई बड़ा सकते है ।ध्यान रहे ही जितनी गहराई होगी उतनी सामाग्री ।इस गड्ढे मे सबसे पहले गड्ढे के अंदर २० से.मी रेत डालें ।रेत की परत के बाद २० से.मी तक ईट के टुकड़े डाले|फिर से रेत २० से.मी डाले एवं पुन: २० से.मी रेत,२० से.मी ईट के टुकड़े,एवं २० से.मी रेत डालें ।और व्यर्थ बहने वाले पानी की नाली को गड्ढे से जोड़ दें ।भूजल तालिका के ऊपर २ मीटर से कम कभी नहीं होना चाहिए। यह पीने के पानी के स्रोत (आदर्श रूप से ३० मीटर से अधिक) से सुरक्षित दूरी पर स्थित होना चाहिए। भिगोने वाले गड्ढे को उच्च-यातायात क्षेत्रों से दूर रखा जाना चाहिए ताकि ऊपर और उसके आसपास की मिट्टी जमा न हो।
एक अच्छी तरह से आकार के सोख गड्ढे रखरखाव के बिना ३ और ५ साल के बीच रहना चाहिए। सोख गड्ढे के जीवन का विस्तार करने के लिए, यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि ठोस के अत्यधिक निर्माण को रोकने के लिए प्रवाह को स्पष्ट या फ़िल्टर किया गया है। कण और बायोमास अंततः गड्ढे को बंद कर देंगे और इसे साफ करने या स्थानांतरित करने की आवश्यकता होगी। जब सोख गड्ढे का प्रदर्शन बिगड़ जाता है, आवश्यकता अनुसार सोख गड्ढे के अंदर की सामग्री को खुदाई और फिर से भरा जा सकता है। |
पवन कुमार विश्वकर्मा कि मौत की खबर
पवन का मौत दिनाक २२/०५/२०१७ को हो गया है|
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
धनपुरी, हल्द्वानी तहसील
धनपुरी, हल्द्वानी तहसील |
गामा जॅमिनोरम ( जेम, जेमिनोरम), जिसका बायर नाम में भी यही है, मिथुन तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है (पुनर्वसु-पॅलक्स तारे के बाद)। यह पृथ्वी से दिखने वाले सभी तारों में से ४१वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे १०५ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.९ है। वास्तव में यह एक द्वितारा है।
अन्य भाषाओं में
गामा जॅमिनोरम को अंग्रेज़ी में "ऐल्हेना" (एल्हना) भी कहा जाता है। यह अरबी भाषा के "अल-हना'आह" () से लिया गया है जिसका अर्थ "ऊँट की गर्दन पर लगाया गया पहचान चिह्न" है।
गामा जॅमिनोरम द्वितारे का मुख्य तारा एक आ० इव श्रेणी का उपदानव तारा है। इसकी निहित चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) सूरज की १६० गुना है। इसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान का लगभग २.८ गुना और व्यास हमारे सूरज के व्यास का ४.४ गुना है। इसकी सतह का तापमान लगभग ९,७५० कैल्विन है। इसका साथी तारा एक ग श्रेणी का धुंधला-सा तारा है।
इन्हें भी देखें
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना |
गोवा, दमन और दीव मुक्ति दिवस, भारत में हर साल १९ दिसंबर को मनाया जाता है। गोवा मुक्ति दिवस गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने वाले भारतीय सशस्त्र बलों की स्मृति में मनाया जाता है।
साथ ही इस दिन भारत यूरोपीय शासन से पूर्ण रूप से मुक्त हुआ था। |
नीलम कुमार लेंगे भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य की रामबन सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। २०१४ के चुनावों में वे जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के उम्मीदवार चमन लाल को ५३६४ वोटों के अंतर से हराकर निर्वाचित हुए।
जम्मू और कश्मीर विधानसभा के सदस्य |
खालिद हमीद को सन २००९ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये प्रवासी भारतीय हैं।
२००९ पद्म भूषण |
चांदी का वरक़ जिसे आम बोलचाल की भाषा में बरक के नाम से जाना जाता है। भारतीय समाज में ख़ासकर राजस्थानी समाज में काफ़ी लोकप्रिय है। |
होती लाल दास,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के एटा जिले के १०४ - एटा (दक्षिण) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य
१०४ - एटा (दक्षिण) के विधायक
एटा के विधायक
कांग्रेस के विधायक |
अलनावर (अलनवर) भारत के कर्नाटक राज्य के धारवाड़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यहाँ एक रेलवे स्टेशन है।
इन्हें भी देखें
कर्नाटक के शहर
धारवाड़ ज़िले के नगर |
पूर्वा एक्सप्रेस भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (न्डल्स) से ०५:३५प्म बजे छूटती है और हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन (हह) पर ०४:४५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है २४ घंटे २५ मिनट।
पूर्वा एक्सप्रेस भारतीय रेलवे की एक प्रतिदिन चलने वाली सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन है, जो हावड़ा (पश्चिम बंगाल) और नई दिल्ली भारत की राजधानी के बीच चल रही है।
पूर्वा नाम भारत के पूर्वी भाग का प्रतीक है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के यात्रियों के लिए यह राजधानी के बाद सबसे सुविधाजनक ट्रेन है।
ट्रेन को एलएचबी कोच के २२ कोच रैक आवंटित किये गए हैं, जो कि ३० अप्रैल २०१३ से आवंटन के आधार पर चलाना शुरू किया गया था। वर्तमान में यह ट्रेन 1३०.०० किमी प्रति घंटा की अधिकतम रफ़्तार से जा सकती है।
ट्रेन का विवरण
२००० के दशक के शुरूआती दिनों में इस ट्रेन के परिचारकों के पोशाक में परिवर्तन क्रीमयुक्त भूरे रंग से आधिकारिक नीले रंग में बदलाव किया। इस ट्रेन में पहले एक प्रथम एसी कोच भी था। जब इस ट्रेन की शुरुआत हुई थी तब इस रेन को लोगों के द्वारा काफी उच्च प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन जबसे राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत की गयी तब से इस ट्रेन को बहुत ज्यादा प्राथमिकता मिलती कम हो गयी।
दुर्घटनाएं और घटनाएं
१४ दिसंबर 20१४ को १२३८१ हावड़ा - नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस सुबह सुबह .१५ मिनट में रवाना होने के तुरंत बाद ८.२७ बजे पटरी से उतर गई। हावड़ा स्टेशन को छोड़ने के कुछ समय बाद ही लिलुआ नामक जगह में नई दिल्ली जाने इस ट्रेन पूर्वा एक्सप्रेस के ११ स्लीपर कोच और एक पेंट्री कार (एसी हॉट बुफे कार) पटरी से उतर गईं। रेलवे के अधिकारियों ने कहा कि इस दुर्घटना में किसी भी यात्री को चोट नहीं पहुंची। उन्होंने कहा की दुर्घटना के समय यह ट्रेन धीमी गति से आगे बढ़ रही थी इस लिए कोई बड़ी घटना नहीं घटी। एक अधिकारी ने कहा, "दुर्घटना के दौरान पूर्वा एक्सप्रेस १० से १५ किलोमीटर की गति से चल रही थी। ट्रेन की औसत गति ६३ किमी प्रति है, हालांकि यह १२० किमी मील की रफ़्तार से यात्रा कर सकती है।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील मुरादाबाद, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१९
उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा)
मुरादाबाद तहसील के गाँव |
देवनागरी लिपि में गिनती के लिए दस अंकों वाली दशमलव आधारित गणना पद्धति का प्रयोग किया जाता है। ये दस अंक भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के समानांतर प्रचलित हैं। देवनागरी लिपि का प्रयोग करने वाली विभिन्न भाषाओं में ये अंक आम तौर पर प्रयुक्त होते हैं। प्राचीन काल से ही प्रयुक्त इन अंकों को १९वीं सदी के उत्तरार्ध में आधिकारीक दर्जा दिलाने की कोशिश शुरु हुई। भारतीय संविधान ने अनुच्छेद ३५१ में देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को तो संघ की राजभाषा घोषित कर दिया किंतु अंक अंतर्राष्ट्रीय ही रखा। १९54 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अपने संविधान प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए देवनागरी अंक के प्रयोग का अध्यादेश जारी किया। तब से देवनागरी लिपि अंतर्राष्ट्रीय एवं देवनागरी अंकों के साथ भी लिखी जाने लगी।
भारत की आधुनिक लिपियों/भाषाओं के अंक
इन्हें भी देखें
संस्कृत की गिनती
हिन्दी की गिनती
भारतीय अंक प्रणाली |
हॉकआई (मूल नाम: क्लिंटन फ्रांसिस बार्टन) () मार्वल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अमेरिकी कॉमिक पुस्तकों में दिखने वाला एक काल्पनिक सुपरहीरो है। लेखक स्टेन ली और कलाकार डॉन हेक द्वारा बनाया गया यह चरित्र पहली बार टेल्स ऑफ़ सस्पेंस #५७ (१९६४) में एक खलनायक के रूप में दिखाई दिया, और बाद में द अवेंजर्स #१६ (मई १९६५) में सुपरहीरो टीम अवेंजर्स में शामिल हो गया। तब से वह इस टीम का एक प्रमुख सदस्य रहा है। हॉकआई को आईजीएन की शीर्ष १०० कॉमिक बुक नायकों की सूची में ४४वां स्थान दिया गया था।
अभिनेता जेरेमी रेनर मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स की फिल्मों में हॉकआई (क्लिंट बार्टन) की भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म थॉर (२०११) में कैमियो उपस्थिति में नजर आने के बाद, रेनर द अवेंजर्स (२०१२), अवेंजर्स: एज ऑफ़ अल्ट्रॉन (२०१५), और कैप्टन अमेरिका: सिविल वॉर (२०१६) में हॉकआई का अभिनय कर चुके हैं, और वह ही एमसीयू की आगामी अवेंजर्स: इन्फिनिटी वॉर और उसके सीक्वल में भी हॉकआई की भूमिका का निर्वहन करेंगे।
कॉमिक्स के पात्र |
गुरदेह भारतीय राज्य राजस्थान के करौली जिले की मंडरायल तहसील में एक माध्यम आकार का गाँव और ग्राम पंचायत है। गुरदेह की कुल जनसंख्या १,२४५ है। यह गाँव भांकरी से कुछ दूरी पर धोलपुर सीमा की ओर स्थित है।
२०११ के जनगणना आँकड़ों के अनुसार, गुरदेह की कुल जनसंख्या १,२४५ है जिसमें ६७९ पुरुष एवं ५६६ स्त्रियाँ शामिल हैं।
गाँव में ०-६ वर्ष आयु वर्ग की जनसंख्या २१७ है जो कुल जनसंख्या का १७.४३% है। औसत लिंगानुपात ८३४ जो राजस्थान के औसत लिंगानुपात ९२८ की तुलना में कम है जबकि शिशु लिंगानुपात 73६ है और यह भी राज्य के औसत ८८८ से कम ही है।
गुरदेह में साक्षरता की स्थिति राजस्थान के औसत से बेहतर है, वर्ष २०११ में यह ६६.५४% थी जबकि राजस्थान का औसत ६६.११% था। इसमें पुरुषों में साक्षरता दर ८६.४६% एवं स्त्री साक्षरता ४३.२५% दर्ज की गयी।
राजस्थान के गाँव |
विसायज़ (विसायास) या विसाया द्वीप दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश में एक द्वीपसमूह है। यह उस देश के तीन प्रमुख द्वीप दलों में से एक है। यह लूज़ोन द्वीप से दक्षिण में स्थित हैं और यहाँ के विसाई (विसायन) लोगों की अपनी सांस्कृति व भाषाएँ हैं। पनाय, नेग्रोस, सिबू, बोहोल, लेयते और सामार विसायों के प्रमुख द्वीप हैं। यह द्वीपसमूह अधिकतर विसाया सागर को घेरे हुए है।
इतिहासकारों का मानना है कि इस क्षेत्र का नाम पास के इण्डोनेशिया देश के मध्यकालीन हिन्दु-बौद्ध श्रीविजय साम्राज्य पर पड़ा और "विसाया" शब्द संस्कृत के "विजय" शब्द का ही परिवर्तित रूप है। १२वीं शताब्दी में सूलू द्वीपसमूह और विसायाज़ के बड़े भूभाग इसी साम्राज्य के अधीन थे।
इन्हें भी देखें
फ़िलिपीन्ज़ के द्वीप दल
फ़िलिपीन्ज़ के द्वीप
फ़िलिपीन्ज़ के द्वीप दल
फ़िलिपीन्ज़ के द्वीपसमूह
प्रशांत महासागर के द्वीपसमूह |
बिस्तोली एटा जिले के पटियाली प्रखण्ड का एक गाँव है।
एटा ज़िले के गाँव |
आतमजीत पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक तत्ती तवी दा सच्च के लिये उन्हें सन् २००९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत पंजाबी भाषा के साहित्यकार |
भर्रा बेगूसराय, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
ओसवाल्डो () एक ब्राज़ीलियाई-भारतीय एनिमेटेड एडवेंचर-कॉमेडी टेलीविज़न श्रृंखला है। कार्टून नेटवर्क के लिए पेड्रो इबोली द्वारा निर्मित। श्रृंखला बर्डो स्टूडियो और सिम्बायोसिस एंटरटेनमेंट द्वारा सह-निर्मित है। इसने पहली बार ११ अक्टूबर, २०१७ को ब्राजील में कार्टून नेटवर्क पर और २९ अक्टूबर, २०१७ को टीवी कल्टुरा पर प्रीमियर किया।
श्रृंखला बर्डो स्टूडियो द्वारा निर्मित है, जिसे मुख्य रूप से ब्राजीलियाई एनीमेशन स्टूडियो में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है और २०१६ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक और ग्रीष्मकालीन पैरालिम्पिक्स के शुभंकर बनाकर और विकसित करके दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की। स्टूडियो ने खेल से पहले की अवधि के दौरान कार्टून नेटवर्क ब्राजील पर दिखाए गए दो शुभंकरों को शामिल करने वाली लघु फिल्मों को भी विकसित किया।
यह शो २०१४ में वापस ब्राजील में एक विचार पिचिंग परियोजना के लिए एक उपविजेता था, जिसमें 'कार्टून.जॉब' समग्र विजेता था, हालांकि अंततः इसे पूरी श्रृंखला के लिए चुना गया था।
२३ सितंबर, २०१७ को यह घोषणा की गई थी कि इस श्रृंखला के पास किड ग्लव द्वारा अपने अंतर्राष्ट्रीय वितरण अधिकार सुरक्षित हैं। ७ फरवरी, २०१८ को, यह घोषित किया गया था कि शो को ३ जून, २०१९ से शुरू होने वाले दूसरे एपिसोड के दूसरे सीजन के लिए नवीनीकृत किया गया था।
ओसवाल्डो एक १३ वर्षीय पेंगुइन के दैनिक जीवन को दर्शाता है जो ६ वीं कक्षा में है। अपने दोस्तों टोबीस और लीया के साथ, वह जीवित स्कूल की चुनौती का सामना करता है। चुस्त हास्य और ब्राजील की पॉप संस्कृति से बहुत सारे काटने के साथ, श्रृंखला शीर्षक चरित्र और जीवन की सबसे सरल परिस्थितियों को महाकाव्य यात्रा में बदलने की उनकी अपार क्षमता का अनुसरण करती है। ओसवाल्डो की विषमताएं उनके परिवार और दोस्तों के दैनिक जीवन का हिस्सा हैं जो समझते हैं कि यह हमारी विलक्षणताएं हैं जो हम में से प्रत्येक को विशेष बनाती हैं।
ओसवाल्डो - एक १३ वर्षीय पेंगुइन जो समुद्र तट पर पाया गया था जब वह एक बच्चा पेंगुइन है और उसे मानव माता-पिता द्वारा अपनाया गया था। वह पिज्जा, वीडियो गेम और इंटरनेट का आदी है।
टोबियास - वह ओसवाल्डो का सबसे अच्छा दोस्त है।
लेआ - ओसवाल्डो की सबसे अच्छी दोस्त। |
दौलतपुर मरकु , भारतीय जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील बिलारी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
राज्य कोड : ०९ जिला कोड : १३५ तहसील कोड : ००७२०
बिलारी तहसील के गाँव |
नौली कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
लांगटांग लिरुंग (लंगतांग लीरुंग) हिमालय के लांगटांग हिमाल नामक खण्ड का सर्वोच्च पर्वत है। यह नेपाल में स्थित है और सीमा से पार तिब्बत में स्थित शिशापांगमा पर्वत से दक्षिणपश्चिम में है। यह विश्व का ९९वाँ सर्वोच्च पर्वत भी है।
इन्हें भी देखें
हिमालय के पर्वत
नेपाल के पर्वत |
गजोई में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
कमलेश शिवजी विकमसे एक भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया (आई० सी० ए० आई०) के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे एशियाई और प्रशांत लेखाकारो का परिसंघ (सी० ए० पी० ए०) के भी पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं।
बचपन और शिक्षा
कमलेश का जन्म दिसंबर १९६० में मुंबई में एक शिक्षित परिवार में हुआ। उनके पिता, श्री शिवजी के० विकमसे भी एक चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान के केंद्रीय परिषद के पूर्व सदस्य रह चुके हैं।
उन्होंनेपोदार कॉलेज में में अध्ययन करने के बाद, मुंबई विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ कॉमर्स की डिग्री प्राप्त की और १९८२ में चार्टर्ड एकाउंटेंट बने।
१९६० में जन्मे लोग
मुंबई के लोग |
पेट्रीसिया ली जेंकिन्स (जन्म: २४ जुलाई १९७१) एक अमेरिकी फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखिका हैं। उन्हें मॉन्स्टर (२००३) और वंडर वूमन (२०१७) जैसी फिल्मों को निर्देशित करने के लिए जाना जाता है।
१९७१ में जन्मे लोग |
सासनी (सस्नी) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस ज़िले में स्थित एक नगर है। यह इसी नाम की तहसील में स्थित है।
इन्हें भी देखें
हाथरस ज़िला राम सरण शर्म के अनुसार इस अभिलेख मे हिन्दूस्तान शब्द का प्रयोग
उत्तर प्रदेश के नगर
हाथरस ज़िले के नगर |
भारत में पाकिस्तानी मुख्य रूप से पाकिस्तानी हिंदू और सिख शामिल हैं जो भारतीय नागरिकता चाहते हैं और वे पाकिस्तानी मुस्लिम दुल्हनें जो भारतीयों से शादी करने के बाद यहाँ बस गई हैं। बाक़ी वे लोग हैं जिन्होंने भारत में काम करने के लिए भारतीय राष्ट्रीयता की मांग की है। दिसंबर २०१५ में, पाकिस्तानी गायक, अदनान सामी ने भारतीय नागरिकता प्राप्त की। महाराष्ट्र में दिसंबर २०१ में अप्रवासन नियमों में छूट और सरलीकरण के बाद से पाकिस्तानी नागरिकों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन में छह गुना वृद्धि हुई है। लाभार्थियों में मुंबई में सीमा पार से आने वाली दुल्हनें शामिल हैं, जिन्होंने एक दशक के करीब नागरिकता के लिए इंतजार किया है। ।
इसके अलावा, आधिकारिक तौर पर अनुमानित ७६१ पाकिस्तानी नागरिक वे भी हैं, जो भारतीय जेलों में बंद हैं। इनमें से ज्यादातर जासूसी और आतंक संबंधी अपराधों के आरोप में सज़ा काट रहे हैं।
नेपाल और बांग्लादेश की पूर्वी सीमाओं से घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की रिपोर्ट अक्सर सामने आती रहती है। २०१७ में, अवैध रूप से भारत में रह रहे २५० पाकिस्तानी नागरिकों को निर्वासित किया गया था। भारत द्वारा अब तक भारत में अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों की वास्तविक संख्या की कोई रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। काफ़ी बड़ी तादाद में पाकिस्तानी नागरिक भारत में अस्थायी रूप से अंतरराष्ट्रीय छात्रों और चिकित्सा पर्यटकों के रूप में रह रहे हैं।
राम सिंह सोढो, सिंध की प्रांतीय विधानसभा के पूर्व सदस्य।
अदनान सामी, पाकिस्तान में जन्मे संगीतकार
यह सभी देखें
पाकिस्तान में भारतीय
भारत को अप्रवास
भारत की मानव जातियाँ |
नावेगाव, रेब्बेन मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
अरेंज (ओरेंज) एक डाटा-दर्शन, मशीन अधिगम (मशीन ल्र्निंग) तथा आँकड़ा खनन (डेटा माइनिंग) का मुक्तस्रोत सॉफ्टवेयर है। टेक्स्टेबुल (टेक्स्टेबल) नामक ऐड-आन का उपयोग करके इसकी सहायता से उन्नत टेक्स्ट विश्लेषण भी किया जा सकता है। |
नीना ऐल (लुडविगशाफेन, राइनलैंड-पैलेटिनेट क्षेत्र; २८ अप्रैल १९८०) एक जर्मन अश्लील अभिनेत्री हेैं।
नीना एले का जन्म लुडविग्सफेन में हुआ था, जो एक अमेरिकी सैन्य व्यक्ति और जर्मन मां की बेटी थी। अपने बचपन के दौरान, अपने पिता के काम के कारण, वह कई बार जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न सैन्य ठिकानों के बीच चले गए। २७ साल की उम्र में, वह उत्तरी कैलिफोर्निया चले गए, जहां उन्होंने एक गैस स्टेशन पर और दंत चिकित्सक के रूप में काम किया।
एक रात, टेलीविजन पर ओपरा शो में ट्यूनिंग, उन्होंने वेबकैम लड़कियों की दुनिया के बारे में सीखा, और अच्छे परिणामों के साथ उस दुनिया की जांच करना शुरू किया। यह बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गया, कुछ ही महीनों में हजारों अनुयायियों के साथ। उस स्थिति में, कई लोगों ने उनसे अश्लील फिल्म उद्योग में अपनी किस्मत आजमाने का आग्रह किया।
२०१३ में, उसने आत्मला एजेंसी के साथ अनुबंध किया और लॉस एंजिल्स चली गई, जहां उसने ३३ साल की उम्र में एक पोर्न अभिनेत्री के रूप में अपना करियर शुरू किया। कई अन्य अभिनेत्रियों की तरह, जिन्होंने अपनी काया, उम्र और विशेषताओं के कारण उद्योग में तीस से अधिक वर्षों से शुरुआत की, उन्हें एक ममी अभिनेत्री के रूप में लेबल किया गया था।
एक अभिनेत्री के रूप में, उन्होंने जूल्स जॉर्डन वीडियो, एविल एंजेल, दुष्ट, घातक कट्टर, वास्तविकता जोड़ियाँ, डार्क एक्स, फ़िल्ली फिल्म्स, स्वीटहार्ट वीडियो, एलिगेंट एंजेल, हार्ड एक्स, ब्रेज़र, गर्लफ्रेंड फिल्म्स, माइल हाई या ३ डी डिग्री जैसे स्टूडियो के लिए काम किया है।
२०१५ में, उसने अपने सहपाठियों मर्सिडीज कैरेरा और नादिया स्टाइल्स के साथ मूवी फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे की आलोचना करते हुए फनी या डाई वेबसाइट पर एक वीडियो में भाग लिया, जिसमें उन्होंने गलत व्यवहार करने, गलत तरीके से सेक्स करने और बिना सेक्स के सेक्स दिखाने का आरोप लगाया था। "
वह दो बच्चों की मां भी हैं।
उनकी कुछ फ़िल्मोग्राफी में बिग टेट फैंटेसीज़ ६, कूगर क्रैव यंग कॉक ४, डर्टी रॉटेन मदर फकर्स ८, गर्लफ्रेंड टीचिंग गर्लफ्रेंड ५, लेट मी क्रोक यू, मदर मए १ २, प्रीटी किटीज़ २, सक बॉल्स ५ या व्होर्स इंक २ ।
२०१६ में उन्हें एक्सबीआईजेड अवार्ड्स में ममी आर्टिस्ट ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया गया था, एक श्रेणी जिसके लिए उन्हें एवीएन अवार्ड्स में भी नामांकित किया गया था, जहाँ उन्हें फिल्म नीना एले के लिए बेस्ट एचएमएच ट्रायो सीन के लिए एक और नामांकन मिला है।
उन्होंने एक अभिनेत्री के रूप में ५४० से अधिक फिल्मों की शूटिंग की है।
पुरस्कार एवं नामांकन
महिला व्यस्क फ़िल्म अभिनेता
१९८० में जन्मे लोग |
प्रिंसटन गिबसन काउंटी, इंडियाना, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक शहर है। सन २००० की जनगढ़ना के मुताबिक इसकी जनसंख्या ८,१७५ है।
इंडियाना के शहर |
डोवा-सीला५, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डोवा-सीला५, यमकेश्वर तहसील
डोवा-सीला५, यमकेश्वर तहसील |
प्राकृतिक पुल एक प्रमुख भूमिगत जल कृत अपरदनात्मक स्थलरुप हैं।
भूमिगत जल कृत स्थलाकृति
भूमिगत जल कृत अपरदनात्मक स्थलरुप |
वाराणसी संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे बनारस और काशी भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध की संस्कृति का गंगा नदी, श्री कशी विश्वनाथ मन्दिर एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है।
शेखतकी सभी मुसलमानों का प्रमुख था अर्थात वह मुख्य पीर था जो पहले से ही कबीर जी से ईर्ष्या करता था। सभी ब्राह्मणों, मुल्लाओं और काजियों और शेखतकी ने एक बैठक की और साजिश रची कि कबीर एक गरीब आदमी है। उनके नाम से पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी के बड़े व्यापारी हैं। उनका पूरा पता कबीर पुत्र नूर अली अंसारी, बुनकरों की बस्ती, काशी सिटी है। कबीर जी तीन दिवसीय धार्मिक सामूहिक भोज का आयोजन करेंगे। सभी साधु-संतों को आमंत्रित किया जाता है। वह प्रतिदिन एक दोहर (उस समय का सबसे महंगा कंबल) और एक मोहर (सोने से बना एक गोलाकार १० ग्राम मोहर) का उपहार हर उस व्यक्ति को देगा जो भोजन करेगा। एक व्यक्ति एक दिन में चाहे कितनी ही बार भोजन करे, कबीर उस व्यक्ति को हर बार एक दोहर और एक मोहर प्रतिदिन देगा। लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूड़े, खाने में रसगुल्ले आदि सभी मिठाइयां मिलेंगी। यहां तक कि सूखी सामग्री (आटा, चावल, दाल आदि कच्चा सूखा पदार्थ, घी और शक्कर) भी दिया जाएगा। शेखतकी ने एक पत्र अपने और बादशाह सिकंदर लोधी के नाम भी भिजवा दिया। निर्धारित दिन से पूर्व की रात साधु-संत जुटने लगे। सांप्रदायिक भोजन अगले दिन होना था।संत रविदासपरमेश्वर कबीर जी को बताया कि - 'करीब १८ लाख साधु, संत और भक्त आपके नाम का पत्र लेकर काशी पहुंचे हैं। उन सभी को सामूहिक भोजन करने के लिए आमंत्रित किया गया है। कबीर जी, अब हमें काशी छोड़ कर कहीं और जाना होगा।' कबीर जी सब कुछ जानते थे, फिर भी अभिनय कर रहे थे। उन्होंने कहा, "रविदास जी, झोंपड़ी के अंदर बैठिए और डोर-चेन लगाइए और दरवाज़ा बंद कर लीजिए। वे खुद ही अपना समय बर्बाद कर लौट आएंगे। हम बाहर बिल्कुल नहीं जाएंगे। परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सत्यलोक पहुंचे। नौ लाख बैलों पर गधों की भाँति थैलियाँ लादकर, सभी पकाई हुई सामग्री और सूखी सामग्री (चावल, आटा, शक्कर, खांड = अपरिष्कृत चीनी, दाल, घी आदि) को लादकर वह वहाँ से पृथ्वी पर उतरा। परिचारक भी सत्यलोक से ही आए थे। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं 'बंजारा' का रूप धारण किया और अपना नाम केशव बताया।दिल्ली के सिकंदर बादशाह और उनके धार्मिक पीर शेख तकी भी आए। काशी में सामूहिक भोज चल रहा था। सभी को एक दोहर और एक सोना मोहर (१० ग्राम) दान के रूप में दिया जा रहा था। कुछ बेईमान संत दिन में चार बार भोजन करके चारों समय दोहर और मोहर ले रहे थे। कुछ कच्चा सूखा पदार्थ (चावल, शक्कर, घी, दाल, आटा आदि) भी ले रहे थे।
भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा करीब २५२५ किलोमीटर की दूरी तय कर गोमुख से गंगासागर तक जाती है। इस पूरे रास्ते में गंगा उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। केवल वाराणसी में ही गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। यहां लगभग ८४ घाट हैं। ये घाट लगभग ४ मील लम्बे तट पर बने हुए हैं। इन ८४ घाटों में पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थी' कहा जाता है। ये हैं अस्सीघाट, दश्वमेद्यघाट, आदिकेशवघाट, पंचगंगाघाट तथा मणिकर्णिकघाट। अस्सीघाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशवघाट सबसे उत्तर में स्थित हैं।
हर घाट की अपनी अलग-अलग कहानी है। तुलसीघाट प्रसिद्ध कवि तुलसीदास से संबंधित है। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपना आखिरी समय यहीं व्यतीत किया था। इसी के समीप बच्चाराजा घाट है। यहीं पर जैनों के सातवें तीर्थंकर सुपर्श्वनाथ का जन्म हुआ था। अब यह जैनघाट के नाम से जाना जाता है। चेत सिंह घाट एक किला की तरह लगता है। चेत सिंह बनारस के एक साहसी राजा थे जिन्होंने १७८१ ई. में वॉरेन हेस्टिंगस की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। महानिर्वाणी घाट में महात्मा बुद्ध ने स्नान किया था। हरिश्चंद्र घाट का संबंध राजा हरिश्चंद्र से है। मणिकर्णिघाट पर स्थित भवनों का निर्माण पेशवा बाजीराव तथा अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। 'दूध का कर्ज' मंदिर को जरुर देखना चाहिए। लोक कथाओं के अनुसार एक अमीर घमण्डी पुत्र ने इस मंदिर को बनवाया और इसे अपनी मां को समर्पित कर दिया। उसने अपनी मां से कहा मैंने तेरे लिए मंदिर बनवाकर तेरा कर्ज चुका दिया। तब उसकी मां ने कहा कि दूध का कर्ज कभी चुकाया नहीं जा सकता। तभी से इस मंदिर का नाम दूध का कर्ज मंदिर पड़ गया। पंचगंगा घाट भी काशी के ऐतिहासिक गंगा घाटों में एक है। ये विष्णु काशी क्षेत्र में आता है। यहां कार्तिक माह में स्नान का बड़ा पुण्य माना गया है। कार्तिक में आकाशी द्वीप जलाने की सदियों पुरानी परम्परा है। यहीं पर ऐतिहासिक विन्दु माधव भगवान का मंदिर, रामानंदाचार्य पीठ के नाम से विख्यात श्रीमठ और तैलंग स्वामी का समाधी स्थल भी है। पंचगंगा घाट की सीढियों पर हीं कभी कबीर दास को स्वामी रामानंद ने तारक राममंत्र की दीक्षा दी थी और उन्हें अपना शिष्य बनाया था। देव दीपावली के दिन यहां मेला सजता है। श्रीमठ के पास हीं रानी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित हजारा द्वीप स्तम्भ भी दर्शनीय है। गांगा घाटों की सैर करने वाले हजारो तीर्थयात्री प्रतिदिन वहां रूके वगैर आगे नहीं बढ़ते.
यूं तो गंगा नदी बनारस के लोगों की जीवनरेखा है। यहां सुबह से ही घाट पर लोगों का आनाजाना शुरु हो जाता है। दश्वमेद्यघाट पर होने वाली आरती को जरुर देखना चाहिए। यह आरती सुबह और शाम ६:३० बजे होती है। वाराणसी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित एक शहर है यह एक पर्यटक स्थल भी है। यहां आने वाला कोई भी इंसान इस जगह पर आकर बहुत ही हल्का महसूस करता है वाराणसी अपने कई विशाल मंदिरों के अलावा घाटों और अन्य कई लोकप्रिय स्थानों से हर साल यहां आने वाले लाखों पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। यह स्थल केवल भारतीय यात्रियों के लिए ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों द्वारा भी काफी पसंद किया जाता है।
एक महत्वपूर्ण धार्मिक शहर होने के साथ-साथ, वाराणसी शिक्षा और संस्कृति का भी मुख्य केंद्र है। शहर का बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी(बी.एच.यू) एशिया का सबसे बड़ा यूनिवर्सिटी है।
काशी विश्वनाथ मंदिर
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। १८वीं शताब्दी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे भव्य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने १८35 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्य नाम गोल्डेन टेम्पल भी पड़ा।
यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे ११९४ ई. में ध्वस्त किया था। रजिया सुल्तान (१२३६-१२४०) ने इसके ध्वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्तेश्वर मंदिर के नजदीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। १४९० ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्वंस करवाया था। १५८५ ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। १६६९ ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी ज्ञानवापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक ज्ञानवापी कुंआ भी है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्तेश्वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। १६६९ ई. में जब काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्थापित विश्वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्णु, अभिमुक्ता विनायक, दण्डपाणिश्वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है।
इस मंदिर से संबद्ध अन्य सांस्कृतिक उत्सव: फागुन (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि के उत्सव के दौरान यहां जरुर आना चाहिए। इस दौरान मंदिर के देवता का श्रृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी भी यहां बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शिवभक्त भगवान शिव की मूर्त्ति को लाल रंग के चूर्ण से रंग देते है। पंचकरोशी यात्रा प्रत्येक साल अप्रैल के महीने में होती है। दुर्गा पूजा (सितम्बर-अक्टूबर) के दौरान मनाया जाता है। भरत मिलाप उत्सव विजयादशमी को मनाया जाता है। इस दिन संस्कृत विश्वविद्यालय के समीप मेला लगता है। दीपावली के समय का यहां का गंगा स्नान भी काफी प्रसिद्ध है। दीपावली के अगले दिन यहां अन्नाकूता उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां सभी घाटों को मृत्यु के देवता यमराज के सम्मान में दीयों से सजाया जाता है।
बदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी में कहा है-
मुक्तिखेत को छाड़ि चले है, तज काशी अस्थाना हो।
कबीर जी कहते थे कि जैसी काशी है वैसा ही मगहर है, केवल हृदय में सच्चा राम होना चाहिए, यदि आप सतभक्ति करते हो तो आप कहीं भी प्राण त्यागो, आप मोक्ष के अधिकारी हो।
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बसे मोरा।
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा।।
अर्थ- जिसके हृदय में भगवान का वास है, उसके लिए काशी और मगहर दोनों एक ही समान हैं। यदि काशी में रहकर कोई प्राण का त्याग करें तो इसमें भगवान का कौन सा उपकार होगा? भाव है की भले ही काशी हो या फिर मगहर यदि हृदय में भगवान का वास है तो कहीं भी प्राणों का त्याग किया जाये तो भगवान सदा उसके साथ हैं।
इसके आसपास के अन्य मंदिर
अन्नपूर्णा मंदिर, वाराणसी
काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है। इन्हें तीनों लोकों की माता माना जाता है। कहा जाता है कि इन्होंने स्वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवाल पर चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं।
साक्षी गणेश मंदिर, बनारस
पंचकरोशी यात्रा को पूरा कर तीर्थयात्री साक्षी गणेश मंदिर को देखने जरुर आते हैं। इस मंदिर के दर्शन के बाद ही वे अपनी यात्रा को पूर्ण मानते हैं।
विशालाक्षी मंदिर, बनारस
विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है। यह पवित्र ५१ शक्ितपीठों में से एक है। कहा जाता है कि यहां शिव की पत्नी सती का आंख गिरा था।
इस शहर में अनगिनत मंदिर हैं। जगन्नाथ मंदिर अस्सीघाट के निकट स्थित है। इस मंदिर का निर्माण १७वीं शताब्दी में पुरी के प्रसिद्ध मंदिर के अनुकृति के रूप में किया गया था। आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) में यहां भी रथ यात्रा आयोजित की जाती है। लक्ष्मीनारायण पंचरत्न मंदिर भी अस्सीघाट के निकट है। अस्सी संगमेश्वर मंदिर भी यहीं पर है।
तुलसीघाट से पैदल दूरी पर पवित्र लोलारक कुंड है। महाभारत में भी इस कुण्ड का उल्लेख मिलता है। रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस कुण्ड के चारों तरफ कीमती पत्थर से सजावट करवाई थी। यहां पर लोलाकेश्वर का मंदिर है। भादो महीने (अगस्त-सितम्बर) में यहां मेला लगता है।
दुर्गा कुंड, वाराणसी
अस्सी रोड से कुछ ही दूरी पर आनन्द बाग के पास दुर्गा कुण्ड है। यहां संत भास्करानंद की समाधि है। यहां पर एक दुर्गा मंदिर भी है। मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्थान काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिर के बाद आता है।
केदारेश्वर मंदिर, वाराणसी
केदार घाट के पास केदारेश्वर मंदिर है। यह मंदिर १७वीं श्ाताब्दी में औरंगजेब के कहर से बच गया था। इसी के समीप गौरी कुण्ड है। इसी को आदि मणिकार्णिका या मूल मणिकार्णिका कहा जाता है।
मणिकार्णिका घाट के समीप विष्णु चरणपादुका है। इसे मार्बल से चिन्हित किया गया है। इसे काशी का पवित्रतम स्थान कहा जाता है। अनुश्रुति है कि भगवान विष्णु ने यहां ध्यान लगाया था। इसी के समीप मणिकार्णिका कुण्ड है। माना जाता है कि भगवान शिव का मणि तथा देवी पार्वती का कर्णफूल इस कुण्ड में गिरा था। चक्रपुष्करर्णी एक चौकोर कुण्ड है। इसके चारो ओर लोहे की रेलिंग बनी हूई है। इसे विश्व को पहला कुण्ड माना जाता है।
यहां का काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर गोदौलिया चौक से २ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है। इसमें भगवान शिव की रौद्र मूर्त्ति स्थापित है। इसी के नजदीक बिंदू महावीर मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।
कबीर जी १२० वर्ष तक इस पृथ्वीलोक में रहे और तत्वज्ञान का प्रचार किया। उस समय दिल्ली का बादशाह बहलोल लोदी का पुत्र सिकन्दर लोदी था जिसका पीर गुरु शेखतकी था। कबीर जी के तत्वज्ञान एवं चमत्कार के कारण अन्य ब्राह्मण जिनकी नकली दुकानें भोली जनता को गुमराह करके ठगने की बंद हो रही थीं वे कबीर जी से ईर्ष्या करने लगे। शेखतकी भी कबीर जी से ईर्ष्या करता था। इस कारण अनेकों बार कबीर जी को नीचा दिखाने व मार डालने की असफल योजनाएं बनाई गईं
काशी हिंदू विश्वविद्यालय
यह विश्वविद्यालय गोदौलिया चौक से ३.८ किलोमीटर दक्षिण में है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी। यहां का भारत कला भवन संग्रहालय (समय: १०:३0 बजे सुबह से शाम ४:३0 बजे तक, जुलाई से अप्रैल महीने तक, ७:३0 बजे सुबह से १२:३0 दोपहर तक शनिवर, रविवार तथा विश्वविद्यालय में छुट्टी के दिन बंद रहता है) काफी समृद्ध है। इस संग्रहालय में लगभग १,००,००0 वस्तुएं हैं जो नौ गैलरियों में रखी गई हैं। इसी परिसर में प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर भी है। मानसिंह वेधशाला भी इसी परिसर में स्थित है। पत्थरों की बनी यह वेधशाला के अब ध्वंशावशेष ही शेष बचे हैं। यह वेधशाला पर्यटकों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुली रहती है। शुक्रवार तथा सार्वजनिक अवकाश के दिन यह बंद रहता है। मन मंदिर घाट के पास एक स्मारक भी है। नदी के दूसरी ओर रामनगर किला तथा संग्रहालय (समय: सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक) है।
यहां देवी सीता का दोमंजिला मंदिर है। यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं। इस मंदिर में देवी सीता की एक मूर्त्ति स्थापित है।
यह इलाहाबाद से १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्रसिद्ध शक्ितपीठ है। यहां विंध्यवासिनी देवी तथा अष्टभुजी देवी का मंदिर है। यहां सीता कुण्ड तथा कालीखोह मंदिर है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। |
गोल्डफिंगर () १९६४ में बनी जेम्स बॉन्ड फ़िल्म श्रंखला की तिसरी फ़िल्म है जिसमें शॉन कॉनरी ने तिसरी बार जेम्स बॉन्ड कि भुमिका साकारी है।
शॉन कॉनरी - जेम्स बॉन्ड।
शिर्ले एटोन - जिल मास्टर्सन।
गर्ट फ्रोब - औरीक गोल्डफिंगर।
हॉनर ब्लैकमैन - पुसी गैलोर।
हैरोल्ड सकाता - ओडजॉब।
बर्नार्ड ली - एम।
तानिआ मैलेट - टिलि मास्टर्सन।
लोइस मैक्सवेल - मिस मोनिपेनी।
जेम्स बॉन्ड फ़िल्में |
एक वीडियो गेम कंसोल एक इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटर डिवाइस है जो एक वीडियो गेम या दृश्य छवि को एक वीडियो गेम प्रदर्शित करने के लिए आउटपुट करता है जो एक या अधिक लोग किसी प्रकार के गेम नियंत्रक के माध्यम से खेल सकते हैं। ये घरेलू कंसोल हो सकते हैं जो आम तौर पर एक टेलीविजन या अन्य डिस्प्ले डिवाइस से जुड़े स्थायी स्थान में रखे जाते हैं और एक अलग गेम नियंत्रक के साथ नियंत्रित होते हैं, या हैंडहेल्ड कंसोल जिसमें यूनिट में निर्मित अपनी खुद की डिस्प्ले यूनिट और नियंत्रक कार्य शामिल होते हैं और कहीं भी खेला जा सकता है । हाइब्रिड कंसोल घर और हैंडहेल्ड कंसोल दोनों के तत्वों को गठबंधन करते हैं।
वीडियो गेम कंसोल वीडियो गेम खेलने के लिए तैयार एक घरेलू कंप्यूटर का एक विशेष रूप है, जो आम जनता को सामान्य जनता के लिए उपलब्धता और पहुंच के साथ डिजाइन किया गया है, लेकिन कच्चे कंप्यूटिंग शक्ति और अनुकूलन में कमी है। गेम कारतूस या वितरण के अन्य सरलीकृत तरीकों के उपयोग के माध्यम से सादगी हासिल की जाती है, जो गेम लॉन्च करने के प्रयास को आसान बनाता है। हालांकि, यह सर्वव्यापी स्वामित्व प्रारूपों की ओर जाता है जो बाजार हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा बनाते हैं। हाल के कंसोल ने घरेलू कंप्यूटरों के साथ और संगम दिखाए हैं, जिससे डेवलपर्स के लिए कई प्लेटफार्मों पर गेम जारी करना आसान हो गया है। इसके अलावा, आधुनिक कंसोल ऑप्टिकल मीडिया या स्ट्रीमिंग मीडिया सेवाओं से प्लेबैक फिल्मों और संगीत के लिए क्षमताओं वाले मीडिया प्लेयर के लिए प्रतिस्थापन के रूप में कार्य कर सकते हैं।
वीडियो गेम कंसोल आमतौर पर पांच साल के चक्र पर विपणन और बेचा जाता है, जिसमें पीढ़ियों में समूहित एक ही तकनीकी क्षमताओं के कंसोल होते हैं। उद्योग ने उपभोक्ताओं को अगले कंसोल पीढ़ी में आकर्षित करने के लिए योजनाबद्ध अशुभता के साथ, प्रत्येक गेम के लिए लाइसेंसिंग शुल्क पर राजस्व बेचने के लिए कंसोल बेचने के लिए एक रेजरब्लैड मॉडल विकसित किया है। जबकि कई निर्माता कंसोल बाजार के इतिहास में आ गए हैं और चले गए हैं, बाजार में हमेशा दो या तीन प्रमुख नेता रहे हैं, सोनी (उनके प्लेस्टेशन ब्रांड के साथ), माइक्रोसॉफ्ट (उनके एक्सबॉक्स ब्रांड के साथ) के नेतृत्व में मौजूदा बाजार के साथ, और निंटेंडो (वर्तमान में स्विच कंसोल और इसके हल्के व्युत्पन्न का उत्पादन)।
पहला वीडियो गेम कंसोल १ ९ ७० के दशक की शुरुआत में उभरा। राल्फ एच। बायर ने १ ९ ६६ में एक टेलीविजन स्क्रीन पर सरल स्पॉट-आधारित गेम खेलने की अवधारणा तैयार की, जो बाद में १ ९ ७२ में मैनेवोक्स ओडिसी का आधार बन गया। ओडिसी, नोलन बुशनेल, टेड डबनी पर टेबल टेनिस गेम से प्रेरित, और अटारी, इंक में एलन अल्कोर्न ने पहला सफल आर्केड गेम, पोंग विकसित किया, और इसे एक होम संस्करण में विकसित करने के लिए देखा, जिसे १ ९ ७५ में रिलीज़ किया गया था। पहला कंसोल हार्डवेयर में निर्मित खेलों के एक समूह समूह को समर्पित किया गया था। १ ९ ७६ में फेयरचिल्ड चैनल एफ के साथ स्वाइप करने योग्य रॉम कारतूस का उपयोग करके प्रोग्राम करने योग्य कंसोल हालांकि १ ९ ७७ में जारी अटारी २६०० के साथ लोकप्रिय था।
हैंडहेल्ड कंसोल हैंडहेल्ड इलेक्ट्रॉनिक गेम में प्रौद्योगिकी सुधार से उभरे क्योंकि ये यांत्रिक से इलेक्ट्रॉनिक / डिजिटल तर्क से स्थानांतरित हो गए, और लाइट-उत्सर्जक डायोड (एलईडी) संकेतकों से दूर तरल-क्रिस्टल डिस्प्ले (एलसीडी) से दूर, माइक्रोविजन के साथ वीडियो स्क्रीन को और अधिक बारीकी से मिलते हैं १ ९ ७ ९ में और १ ९ ८० में गेम एंड वॉच शुरुआती उदाहरण थे, और १ ९ ८ ९ में गेम बॉय द्वारा पूरी तरह से महसूस किया गया।
१ ९ ७० के दशक से, प्रौद्योगिकी में वैश्विक परिवर्तनों के बाद घर और हैंडहेल्ड कंसोल दोनों उन्नत बन गए, जिसमें कम लागत और आकार में कम्प्यूटेशनल पावर बढ़ाने के लिए बेहतर इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर चिप निर्माण, वास्तविक समय के लिए ३ डी ग्राफिक्स और हार्डवेयर-आधारित ग्राफिक प्रोसेसर की शुरूआत शामिल है रेंडरिंग, डिजिटल संचार जैसे इंटरनेट, वायरलेस नेटवर्किंग और ब्लूटूथ, और बड़े और डेंसर मीडिया प्रारूपों के साथ-साथ डिजिटल वितरण। एक ही प्रकार के मूर के कानून प्रगति के बाद, घरेलू कंसोल को पीढ़ियों में समूहित किया गया था, प्रत्येक लगभग पांच साल तक, प्रत्येक तकनीकी विनिर्देशों और प्रोसेसर शब्द आकार जैसे समान साझा करने के लिए कंसोल के साथ। जबकि पीढ़ी द्वारा घरेलू कंसोल का कोई मानक परिभाषा या ब्रेकडाउन नहीं है,
मुख्य रूप से तीन प्रकार के वीडियो गेम कंसोल हैं: होम कंसोल, हैंडहेल्ड, और हाइब्रिड कंसोल।
होम वीडियो गेम कंसोल वे डिवाइस हैं जो आम तौर पर एक टेलीविजन या अन्य प्रकार की मॉनीटर से जुड़े होते हैं, और आउटलेट के माध्यम से आपूर्ति की जाने वाली शक्ति के साथ, इस प्रकार इकाई को निश्चित स्थानों में उपयोग करने की आवश्यकता होती है, आमतौर पर किसी के रहने वाले कमरे में घर पर। वायर्ड या वायरलेस कनेक्शन के माध्यम से जुड़े अलग-अलग गेम नियंत्रक, खेल को इनपुट प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। शुरुआती उदाहरणों में अटारी २६००, निंटेंडो मनोरंजन प्रणाली, और सेगा उत्पत्ति शामिल है, जबकि नए उदाहरणों में वाईआई यू, प्लेस्टेशन ४, और एक्सबॉक्स वन शामिल हैं। विशिष्ट प्रकार के घरेलू कंसोल में शामिल हैं:
माइक्रोक्रोनोल, घरेलू कंसोल जिसमें एक ही अवधि में जारी घरेलू कंसोल की तुलनात्मक कंप्यूटिंग शक्ति की कमी है, और इस प्रकार आमतौर पर कम महंगा होता है। माइक्रोकॉन्सोल का एक सामान्य रूप एंड्रॉइड या आईओएस मोबाइल सॉफ्टवेयर पर आधारित होता है, जिससे कंसोल उन प्लेटफार्मों के लिए गेम की संबंधित लाइब्रेरी तक पहुंचने के साथ-साथ क्लाउड गेमिंग जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं। इन कंसोल में आमतौर पर अंतर्निहित ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए उपलब्ध अन्य ऐप्स के लिए समर्थन शामिल होता है, जिसमें नेटफ्लिक्स और हूलू जैसी वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाओं का समर्थन किया जाता है, जिससे माइक्रो कंसोल भी एक ही स्थान पर "ओवर-द-टॉप" मीडिया प्रदाताओं के रूप में प्रतिस्पर्धा करते हैं जिसका उद्देश्य है सीधे रहने वाले कमरे के टेलीविजन को सामग्री परोसें। इस तरह के कंसोल में ओय्य, एनवीआईडीआईए शील्ड और ऐप्पल टीवी शामिल हैं।
प्लग और प्ले कंसोल, माइक्रोकॉनोल्स के विशेष संस्करण जो सिस्टम पर गेम के एक निश्चित चयन के साथ आते हैं और उपभोक्ता को और अधिक गेम जोड़ने की क्षमता नहीं देते हैं। इन्हें इस कारण से समर्पित कंसोल माना जाता है, हालांकि तकनीक-समझदार उपभोक्ताओं ने अक्सर निर्माताओं की वारंटी को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त कार्यक्षमता स्थापित करने के लिए कंसोल को हैक करने के तरीकों को पाया है। इकाइयां आमतौर पर कंसोल इकाई, एक या अधिक नियंत्रकों, और बिजली और वीडियो हुकअप के लिए आवश्यक घटकों के साथ आती हैं। हालिया रिलीज में से कई एक विशिष्ट कंसोल प्लेटफॉर्म के लिए कई रेट्रो गेम वितरित करने के लिए रहे हैं। इनमें से उदाहरणों में अटारी फ्लैशबैक श्रृंखला, एनईएस क्लासिक संस्करण, और सेगा उत्पत्ति मिनी शामिल हैं।
हैंडहेल्ड टीवी गेम्स, विशेष प्लग-एंड-प्ले कंसोल जहां कंसोल यूनिट स्वयं अपने स्वयं के नियंत्रक के रूप में कार्य करता है ताकि उपभोक्ता बस डिवाइस को अपने टेलीविजन और बिजली स्रोत से जोड़ सके, या कुछ मामलों में, बैटरी संचालित हो। वीडियो गेम इतिहासकार फ्रैंक सिफाल्डी के अनुसार, इन प्रणालियों ने २००३ के आसपास लोकप्रियता हासिल की क्योंकि वे निर्माण के लिए सस्ते थे और जैक्स प्रशांत जैसे निर्माताओं द्वारा २०-३० अमेरिकी डॉलर की अपेक्षाकृत सस्ती थे। हालांकि, उन्होंने उन मॉडलों की बढ़ोतरी का नेतृत्व किया जो चीन में निर्मित नकली निंटेंडो चिप्स का उपयोग करते थे, जो बहुत से क्लोन बनाते थे जिन्हें आसानी से ट्रैक किया जा सकता था।
हैंडहेल्ड वीडियो गेम कंसोल वे डिवाइस हैं जो आम तौर पर एक अंतर्निहित स्क्रीन और गेम नियंत्रक सुविधाओं को उनके मामले में शामिल करते हैं और एक रिचार्जेबल बैटरी या बैटरी डिब्बे शामिल होते हैं। यह इकाई को चारों ओर ले जाने की अनुमति देता है और कहीं भी खेला जा सकता है। इस तरह के उदाहरणों में गेम बॉय, प्लेस्टेशन पोर्टेबल और निंटेंडो ३ डीएस शामिल हैं।
हाइब्रिड कंसोल इकाइयों को उन लोगों को माना जाता है जिन्हें या तो हैंडहेल्ड या होम कंसोल के रूप में उपयोग किया जा सकता है, या तो वायर्ड कनेक्शन या डॉकिंग स्टेशन के साथ जो कंसोल इकाई को टेलीविजन स्क्रीन और निश्चित पावर स्रोत और एक अलग नियंत्रक का उपयोग करने की क्षमता से जोड़ता है। जब सेगा नोमाड और प्लेस्टेशन पोर्टेबल की तरह पहले हैंडहेल्ड्स में ये सुविधाएं थीं, तो कुछ निंटेंडो स्विच को पहला सच्चा हाइब्रिड कंसोल माना जाता है। |
कम्प्यूटर जगत में, एक स्कैनर एक ऐसा उपकरण है, जो चित्रों, मुद्रित पाठ्य-सामग्री, हस्तलेखन या किसी वस्तु को प्रकाशीय रूप से स्कैन करता है और इसे एक डिजिटल चित्र में रूपांतरित करता है। कार्यालयों में पाये जाने वाले आम उदाहरणों में विभिन्न प्रकार के डेस्कटॉप (या फ्लैटबेड) स्कैनर शामिल हैं, जिनमें दस्तावेज को स्कैनिंग के लिये कांच की एक सतह पर रखा जाता है। हैण्ड-हेल्ड स्कैनर्स (हैंड-हेल्ड स्केनर्स), जिनमें उपकरण को हाथ से हिलाया जाता है, का विकास पाठ्य-सामाग्री को स्कैन करनेवाली "छड़ियों" से लेकर औद्योगिक डिज़ाइन, रिवर्स इंजीनियरिंग, परीक्षण और मापन, ऑर्थोटिक्स (ऑर्थोटिक्स), खेलों और अन्य अनुप्रयोगों के लिये प्रयुक्त ३ड स्कैनर्स तक हुआ है। यांत्रिक रूप से संचालित होने वाले स्कैनर्स, जो दस्तावेज को घुमाते हैं, का प्रयोग सामान्यतः बड़े-प्रारूप वाले दस्तावेजों के लिये किया जाता है, जहां फ्लैट-बेड का प्रयोग अव्यावहारिक होगा।
आधुनिक स्कैनर्स में चित्र संवेदक के रूप में विशिष्ट तौर पर एक चार्ज-कपल्ड डिवाइस (चार्ज-कोपल्ड देविस) (कैड) या एक कॉन्टैक्ट इमेज सेंसर (कॉन्टक्ट इमेज सेंसर) (सिस) का प्रयोग किया जाता है, जबकि पुराने ड्रम स्कैनर चित्र संवेदक के रूप में एक फोटोमल्टीप्लायर ट्यूब (फोटोमल्टीप्लिएर ट्यूब) का प्रयोग करते हैं। एक रोटरी स्कैनर, जिसका प्रयोग उच्च-गति से दस्तावेज की स्कैनिंग करने के लिये किया जाता है, ड्रम स्कैनर का एक अन्य प्रकार है, जिसमें फोटोमल्टिप्लायर के स्थान पर एक कैड की एक शृंखला का प्रयोग होता है। प्लैनेटरी स्कैनर, जो पुस्तकों और दस्तावेजों के चित्र लेते हैं, तथा ३ड स्कैनर, जिनका प्रयोग वस्तुओं के त्रि-आयामी मॉडल बनाने के लिये किया जाता है, स्कैनर्स के अन्य प्रकार हैं।
स्कैनर की एक अन्य श्रेणी में डिजिटल कैमरा स्कैनर शामिल हैं, जो रेप्रोग्राफिक (रेप्रग्राफिक) कैमरा की संकल्पना पर आधारित होते हैं। लगातार बढ़ते रेज़ॉल्युशन और कम्पन-प्रतिरोध जैसी नई विशेषताओं के कारण, डिजिटल कैमरे सामान्य स्कैनर्स के एक आकर्षक विकल्प बन गये हैं। यद्यपि पारंपरिक स्कैनर्स की तुलना में अभी भी इनमें कुछ कमियां (जैसे विरूपण, परावर्तन, छाया, निम्न कॉन्ट्रास्ट) उपस्थित हैं, तथापि, डिजिटल कैमरे कुछ लाभ भी प्रदान करते हैं, जैसे गति, सुवाह्यता और किसी पुस्तक के जोड़ (स्पाइन) को हानि पहुंचाए बिना मोटे दस्तावेजों का सौम्य अंकीकरण करना। नई प्रौद्योगिकियां ३ड स्कैनर्स को डिजिटल कैमरों के साथ संयोजित करके वस्तुओं के पूर्ण-रंगीन, प्रकाश-यथार्थवादी ३ड प्रतिमान निर्मित करती हैं।
जैव-चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में, एना सूक्ष्म-श्रृंखलाओं की पहचान के लिये प्रयुक्त उपकरणों को भी स्कैनर कहा जाता है। ये स्कैनर सूक्ष्मदर्शियों के समान उच्च-रेज़ॉल्युशन (१ १ म/पिक्सेल तक) वाले सिस्टम होते हैं। पहचान का कार्य कैड या एक फोटोमल्टिप्लायर ट्यूब (पम्त) के माध्यम से किया जाता है।
स्कैनर्स को प्रारंभिक टेलीफोटोग्राफी इनपुट उपकरणों, जिनमें एक एकल फोटोडिटेक्टर के साथ ६० या १२० रम (बाद वाले मॉडलों में २४० रम तक) की मानक गति घूमता हुआ ड्रम होता था, के परवर्ती माना जा सकता है। वे मानक टेलीफोन ध्वनि को ले जाने वाली तारों के माध्यम से एक रेखीय एनालॉग आम सिग्नल भेजते हैं, जो आनुपातिक तीव्रता को तुल्यकालिक रूप से एक विशेष कागज़ पर मुद्रित करते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग प्रेस में १९२० के दशक से लेकर १९९० के दशक के मध्य तक किया जाता रहा। रंगीन चित्रों को क्रमागत रूप से छने हुए तीन पृथक र्गब चित्रों के रूप में भेजा जाता था, लेकिन संचारण लागत अधिक होने के कारण इनका प्रयोग केवल विशेष अवसरों पर ही किया जाता था।
फ्लैटबेड स्कैनर्स और सस्ते फिल्म स्कैनर्स में पाई जाने वाली चार्ज-कपल्ड-डिवाइस (कैड) श्रृंखलाओं के विपरीत ड्रम स्कैनर्स फोटोमल्टिप्लायर ट्यूब (पम्त) की सहायता से चित्रात्मक जानकारी एकत्र करते हैं। परावर्तनशील और संचरणशील मूल कलाकृति एक एक्रिलिक सिलिण्डर, स्कैनर ड्रम, पर रखे जाते हैं, जो उस समय बहुत तेज़ गति से घूमता है, जब स्कैन किया जा रहा पदार्थ पम्ट्स तक चित्र की सूचना पहुंचाने वाले शुद्धता ऑप्टिक्स के सामने से गुज़र रहा हो। सबसे आधुनिक रंगीन ड्रम स्कैनर्स तीन सुमेलित पम्ट्स का प्रयोग करते हैं, जिनमें क्रमशः लाल, नीला और हरा प्रकाश होता है। मूल कलाकृति से उत्पन्न प्रकाश को स्कैनर के ऑप्टिकल बेंच पर लाल, नीले और हरे रंग वाले तीन पृथक किरण पुंजों में विभाजित किया जाता है।
ड्रम स्कैनर का नाम स्पष्ट एक्रिलिक सिलिण्डर, ड्रम, के नाम पर रखा गया है, जिस पर मूल कलाकृति को स्कैनिंग के लिये रखा जाता है। इनके आकार के आधार पर, ११क्स१७" तक आकार वाली मूल कलाकृतियों को इस पर रख पाना संभव है, लेकिन अधिकतम आकार उत्पादक पर निर्भर होता है। ड्रम स्कैनर्स की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि इनमें सैम्पल क्षेत्र और छिद्र के आकार को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। सैम्पल आकार वह क्षेत्र होता है, जिसे पढ़कर स्कैनर एन्कोडर एकल पिक्सेल का निर्माण करता है। छिद्र (अपर्चर) वह वास्तविक खुला स्थान होता है, जो प्रकाश को स्कैनर के ऑप्टिकल बेंच में प्रवेश करने की अनुमति देता है। छिद्र और सैम्पल आकार को पृथक रूप से नियंत्रित करने की यह क्षमता श्वेत-श्याम और रंगीन मूल कलाकृतियों के निगेटिव को स्कैन करते समय फिल्म के कणों को चिकना करने के लिये विशिष्ट रूप से उपयोगी होती है।
ड्रम स्कैनर्स जहां परावर्तनशील और संचरणशील दोनों प्रकार की कलाकृतियों को स्कैन कर पाने में सक्षम होते हैं, वहीं एक अच्छी गुणवत्ता वाला फ्लैट-बेड स्कैनर परावर्तनशील कलाकृति से अच्छा स्कैन उत्पन्न कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप, स्कैन मुद्रणों के लिये ड्रम स्कैनर्स का प्रयोग बहुत कम ही किया जाता है, क्योंकि अब उच्च-गुणवत्ता वाले, सस्ते फ्लैटबेड स्कैनर्स सरलता से उपलब्ध हैं। हालांकि, फिल्म में ड्रम स्कैनर्स अभी भी उच्च-श्रेणी वाले अनुप्रयोगों के पसंदीदा उपकरण बने हुए हैं। चूंकि, गीली फिल्म को भी स्कैनर पर रखा जा सकता है और पम्ट्स की संवेदनशीलता असाधारण होती है, अतः ड्रम स्कैनर्स फिल्म की मूल कलाकृति में से बहुत सूक्ष्म विवरणों को पकड़ पाने में सक्षम होते हैं।
केवल कुछ ही कम्पनियों ने ड्रम स्कैनर्स का उत्पादन जारी रखा है। हालांकि, पिछले एक दशक में नई और उपयोग की जा चुकी दोनों प्रकार की ईकाइयों के दाम कम हुए हैं, लेकिन अभी भी इनमें कैड फ्लैटबेड या फिल्म स्कैनर्स की तुलना भी उल्लेखनीय मौद्रिक निवेश की आवश्यकता होती है। हालांकि ड्रम स्कैनर्स की मांग अभी भी बनी हुई है क्योंकि उनमें उच्च रेज़ोल्युशन, रंग श्रेणीकरण और मूल्य संरचना वाले स्कैन उत्पन्न कर पाने की क्षमता होती है। इसके अतिरिक्त, चूंकि ड्रम स्कैनर्स १२,००० प्पी तक रेज़ॉल्युशन में सक्षम होते हैं, अतः उनका प्रयोग करने की अनुशंसा सामान्यतः तब की जाती है, जब स्कैन किये जाने वाले चित्र का आकार बढ़ाना हो।
अधिकांश चित्र-कला कार्यों में, अत्यधिक-उच्च-गुणवत्ता वाले फ्लैटबेड स्कैनर्स ने ड्रम स्कैनर्स का स्थान ले लिया है क्योंकि वे कम महंगे और अधिक तेज़ होते हैं। हालांकि, अभी भी ड्रम स्कैनर्स का प्रयोग किसी संग्रहालय जैसी गुणवत्ता में चित्रों के पुरालेखन और पुस्तकों व पत्रिकाओं में उच्च-गुणवत्ता वाले विज्ञापनों के प्रकाशन आदि जैसे उच्च-श्रेणी वाले अनुप्रयोगों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, पूर्व में उपयोग की जा चुकी ईकाइयों की उच्च उपलब्धता के कारण, अनेक फाइन-आर्ट फोटोग्राफर्स ड्रम स्कैनर ले रहे हैं, जिससे इन मशीनों के लिये एक नये प्रकार का बाज़ार निर्मित हुआ है।
सबसे पहला स्कैनर एक ड्रम स्कैनर था। इसका नि्र्माण रसेल कर्श (रसेल किरच) के नेतृत्व में उस नैशनल ब्यूरो ऑफ स्टैण्डर्ड्स (उस नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैंडर्ड) में कार्यरत एक समूह द्वारा १९५७ में किया गया था। इस मशीन पर स्कैन किया गया सबसे पहला चित्र कर्श के पुत्र वाल्डेन, जिनकी आयु उस समय तीन माह थी, का एक ५ वर्ग सेमी का चित्र था। इस श्वेत-श्याम चित्र के एक ओर का रेज़ॉल्युशन १७६ पिक्सेल था।
एक फ्लैटबेड स्कैनर सामान्यतः कांच के एक चौकोर टुकड़े (या प्लैटेन), जिसके नीचे एक चमकीला प्रकाश (अक्सर ज़ेनोन या शीतल कैथोड फ्लुरेसेंट) होता है, जो इस टुकड़े को प्रकाशित करता है और कैड स्कैनिंग में घूमती एक ऑप्टिकल शृंखला से मिलकर बना होता है। कैड-प्रकार के स्कैनर्स में विशिष्ट रूप से लाल, हरे और नीले फिल्टर्स के साथ संवेदकों की तीन पंक्तियां (श्रृंखलाएं) होती हैं। सिस स्कैनिंग प्रकाशन के लिये झिलमिलाहटपूर्ण बनाए गए लाल, हरे और नीले लेड्स तथा प्रकाश के संग्रहण के लिये इससे जुड़े एक एकल रंग वाले फोटोडायोड के घूमते समुच्चय से मिलकर बनी होती है। जिन चित्रों को स्कैन किया जाना हो, उन्हें नीचे की ओर मुंह करके कांच पर रखा जाता है, परिवेशी प्रकाश को बाहर रखने के लिये इसे एक अपारदर्शी कवर से ढंक दिया जाता है और संवेदक शृंखला व प्रकाश स्रोत पूरे क्षेत्र को पढ़ते हुए कांच के चौकोर टुकड़े से गुज़रते हैं। अतः इसके द्वारा परावर्तित प्रकाश के कारण चित्र केवल संसूचक (डिटेक्टर) के लिये ही दृश्यमान होता है। पारदर्शी छवियां इस प्रकार कार्य नहीं करतीं और उनके लिये विशेष सहायक साधनों की आवश्यकता होती है, जो उन्हें ऊपरी भाग से प्रकाशित करते हैं। अनेक स्कैनर्स एक विकल्प के रूप में यह सुविधा प्रदान करते हैं।
"स्लाइड" (पॉज़िटिव) या निगेटिव फिल्म को एक उपकरण में स्कैन किया जा सकता है, जिसे विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिये निर्मित किया जाता है। सामान्यतः छः फ्रेमों तक की असंपादित फिल्म पट्टिकाएं या चार आरूढ़ स्लाइड्स एक वाहक में प्रविष्ट की जाती हैं, जिसे चरणबद्ध रूप से चलनेवाली एक मोटर द्वारा स्कैनर के भीतर एक लेंस तथा कैड संवेदक के आर-पार आगे बढ़ाया जाता है। कुछ मॉडल मुख्यतः समान-आकार के स्कैन्स का प्रयोग करते हैं।
हैण्ड स्कैनर्स दो प्रकार के होते हैं: दस्तावेज और ३ड स्कैनर्स. हैण्ड-हेल्ड दस्तावेज स्कैनर्स ऐसे मानवीय उपकरण होते हैं, जिन्हें स्कैन किये जाने वाले चित्र की सतह पर घसीटा जाता है। इस प्रकार से दस्तावेजों की स्कैनिंग करने के लिये हाथ को स्थिर रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि एक असमान स्कैनिंग दर होने पर एक विरूपित चित्र उत्पन्न होगा- स्कैनर से निकलने वाला थोड़ा-सा प्रकाश यह सूचित करेगा कि क्या गति बहुत अधिक तेज़ थी। उनमें विशिष्ट रूप से एक "स्टार्ट" बटन होती है, जिसे प्रयोक्ता द्वारा स्कैन के दौरान पकड़ा जाता है; प्रकाशीय रेज़ॉल्युशन को निर्धारित करने के लिये कुछ स्विच होते हैं; और एक रोलर होता है, जो कम्प्यूटर के साथ तुल्यकालन के लिये एक क्लॉक-पल्स (क्लॉक पल्स) उत्पन्न करता है। अधिकांश हैण्ड हेल्ड स्कैनर्स एक रंग वाले होते थे और चित्र को प्रकाशित करने के लिये हरे लेड्स की एक शृंखला से प्रकाश उत्पन्न करते थे। एक विशिष्ट हैण्ड स्कैनर में एक छोटी खिड़की भी होती थी, जिसके माध्यम से स्कैन किये जा रहे दस्तावेज को देखा जा सकता था। वे १९९० के दशक के प्रारंभ में लोकप्रिय थे और सामान्यतः उनमें एक विशिष्ट प्रकार के कम्प्यूटर के लिये विशिष्ट स्वामित्व वाला एक इन्टरफेस मॉड्यूल, सामान्यतः एक अटारी स्त (अतारी स्त) या कमोडोर एमिगा (कॉमोडोर अमीगा), होता था।
हालांकि दस्तावेज स्कैनिंग की लोकप्रियता घट गई है, लेकिन हैण्ड-हेल्ड ३ड स्कैनर्स का प्रयोग अनेक अनुप्रयोगों के लिये लोकप्रिय बना हुआ है, जिनमें औद्योगिक डिज़ाइन, रेवर्स इंजीनियरिंग, निरीक्षण एवं विश्लेषण, डिजिटल उत्पादन और चिकित्सीय अनुप्रयोग शामिल हैं। मानवीय हाथों की असमान गति की क्षतिपूर्ति करने के लिये, अधिकांश ३ड स्कैनिंग सिस्टम संदर्भ चिन्हों की स्थापना पर आश्रित होते हैं- विशिष्टतः आसंजक परावर्तनशील टैब्स, जिनका प्रयोग स्कैनर द्वारा तत्वों को पंक्तिबद्ध करने और स्थितियों का स्थान चिह्नित करने के लिये किया जाता है।
विशिष्ट रूप से स्कैनर्स शृंखला से लाल-हरे-नीले रंग (र्गब) के डेटा को पढ़ते हैं। इसके बाद किसी मालिकाना एल्गोरिथ्म के द्वारा इस डेटा पर प्रक्रिया करके विभिन्न प्रदर्शन स्थितियों के अनुसार इसमें सुधार किया जाता है और इसे उपकरण के इनपुट/आउटपुट इन्टरफेस (सामान्यतः स्कसी या उसब मानक से पहले वाली मशीनों में द्विदिशात्मक समानान्तर पोर्ट) के माध्यम से कम्प्यूटर तक भेज दिया जाता है।
स्कैनिंग शृंखला की विशेषताओं के आधार पर रंग के गाढ़ेपन में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्यतः यह कम से कम २४ बिट होती है। उच्च गुणवत्ता वाले मॉडलों में रंग गहराई ४८ बिट या इससे अधिक होती है।
स्कैनर के लिये एक अन्य अर्हता मापदण्ड पिक्सेल प्रति इंच (पिक्सेल्स पर इंच) (प्पी) में मापा जाने वाला इसका रेज़ॉल्युशन होता है, जिसका उल्लेख अधिक शुद्ध रूप में अक्सर सैम्पल्स प्रति इंच (सैंपल्स पर इंच) (स्पी) के रूप में किया जाता है। स्कैनर के वास्तविक प्रकाशीय रेज़ॉल्युशन, एकमात्र अर्थपूर्ण मापदण्ड, का प्रयोग करने के बजाय उत्पादक अंतर्वेशित रेज़ॉल्युशन का उल्लेख करना पसंद करते हैं, जो कि सॉफ्टवेयर अंतर्वेशन के कारण बहुत उच्च होता है। , एक उच्च श्रेणी वाला फ्लैटबेड स्कैनर ५४०० प्पी तक स्कैन कर सकता है और एक अच्छे ड्रम स्कैनर का ऑप्टिकल रेज़ॉल्युशन १२,००० प्पी होता है।
अक्सर उत्पादक १९,२०० प्पी तक उच्च अंतर्वेशित रेज़ॉल्युशन का दावा करते हैं; लेकिन ऐसे आंकड़ों की सार्थकता बहुत कम है क्योंकि संभावित अंतर्वेशित पिक्सलों की संख्या असीमित होती है।
निर्मित की गई फाइल का आकार रेज़ॉल्युशन के वर्ग के साथ बढ़ता जाता है; रेज़ॉल्युशन का मान दोगुना करने पर फाइल का आकार चार गुना बढ़ जाता है। अनिवार्य रूप से एक ऐसा रेज़ॉल्युशन चुना जाना चाहिए, जो उपकरण की क्षमताओं की सीमा के भीतर हो, पर्याप्त विवरण बचाकर रखता हो और बहुत बड़े आकार की फाइल निर्मित न करता हो। किसी दिये गये रेज़ॉल्युशन के लिये जपेग जैसी "क्षतिपूर्ण (लॉस्सी)" सम्पीड़न विधियों का प्रयोग करके गुणवत्ता की कुछ हानि उठाकर फाइल का आकार कम किया जा सकता है। यदि सर्वोत्तम संभव गुणवत्ता आवश्यक हो, तो क्षतिरहित (लॉसलेस) सम्पीड़न का प्रयोग करना चाहिए; आवश्यकता होने पर इस प्रकार के किसी चित्र से कम गुणवत्ता वाली छोटे आकार की फाइल बनाई जा सकती है (उदाहरणार्थ, एक पूरे पृष्ठ पर मुद्रण के लिये निर्मित एक चित्र और तीव्र गति से खुलनेवाले किसी वेब-पृष्ठ के एक भाग के रूप में प्रदर्शित बहुत छोटी फाइल)।
घनत्व सीमा स्कैनर का तीसरा महत्वपूर्ण मापदण्ड होता है। एक उच्च घनत्व सीमा का अर्थ यह है कि स्कैनर एक ही स्कैन में छाया के विवरणों और दीप्ति के विवरणों को पुनरुत्पादित कर सकता है।
पूर्ण-रंगीन को ३ड मॉडलों के साथ संयोजित करके, आधुनिक हैण्ड हेल्ड स्कैनर पूरे पदार्थ को इलेक्ट्रॉनिक रूप से पुनरुत्पन्न कर सकते हैं। रंगीन ३ड प्रिंटरों की उपस्थिति अनेक उद्योगों और व्यवसायों में प्रयुक्त अनुप्रयोगों में इन पदार्थों के अचूक लघुरूपण की क्षमता प्रदान करती है।
दस्तावेज की स्कैनिंग इस प्रक्रिया का केवल भाग है। स्कैन किया गया चित्र तभी उपयोगी होता है, जब इसे स्कैनर से कम्प्यूटर पर चल रहे किसी अनुप्रयोग तक स्थानांतरित किया जाए. इसमें दो बुनियादी मुद्दे हैं: (१) भौतिक रूप से स्कैनर को कम्प्यूटर से किस प्रकार जोड़ा गया है और (२) अनुप्रयोग स्कैनर से सूचना किस प्रकार ग्रहण करता है।
कम्प्यूटर से एक प्रत्यक्ष भौतिक संबंध
एक स्कैनर द्वारा उत्पन्न डेटा की मात्रा बहुत अधिक हो सकती है: ६०० दपी वाले ९"क्स११" (आ४ आकार के कागज़ से थोड़ा बड़ा) के एक 2४-बिट वाले असम्पीड़ित चित्र में १०० मेगाबाइट डेटा होता है, जिसे अनिवार्य रूप से स्थानांतरित और भण्डारित किया जाना चाहिए। हालिया स्कैनर डेटा की इतनी मात्रा कुछ ही सेकंडों के समय में उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके कारण एक तीव्र संयोजन वांछित होता है।
स्कैनर्स अपने होस्ट कम्यूटर से निम्नलिखित में से किसी एक भौतिक इन्टरफेस का प्रयोग करके संवाद करते हैं, जिन्हें धीमे से तीव्र के क्रम में रखा गया है:
समानान्तर - किसी समानान्तर पोर्ट के माध्यम से संयोजन करना सबसे धीमी गति वाली एक आम विधि है। प्रारंभिक स्कैनर्स में समानान्तर पोर्ट वाले संयोजन होते थे, जो डेटा को ७० किलोबाइट्स/सेकण्ड से अधिक गति से स्थानांतरित नहीं कर सकते थे। समानांतर पोर्ट संयोजन का मुख्य लाभ यह है कि यह सस्ता था: इसके लिये कम्प्यूटर में एक इन्टरफेस कार्ड जोड़ने की आवश्यकता नहीं थी।
ग्पीब - जनरल पर्पस इन्टरफेस बस (जनरल पूर्पोस इतेरफेस बस)। कुछ विशिष्ट ड्रम स्कैनर्स, जैसे हॉटेक ड४००० (हाठ्टेक ड४०००) में स्कसी और ग्पीब दोनों इन्टरफेस उपलब्ध थे। इनमें से बाद वाला इन्टरफेस १९७० के दशक के मध्य में प्रस्तुत ईई-४८८ मानक का पालन करता है। ग्पीब-इन्टरफेस का प्रयोग केवल कुछ ही स्कैनर उत्पादकों द्वारा किया गया है, जिनमें से अधिकांश उत्पादक डोस/विंडोज वातावरण के लिये सेवाएं प्रदान करते हैं। ऐपल मैकिन्टोश (आपोल मसिंतोष) प्रणालियों के लिये नैशनल इन्स्ट्रुमेंट्स (नेशनल इंस्ट्रूमेंट) ने एक नुबस ग्पीब इन्टरफेस कार्ड प्रदान किया।
स्मॉल कम्प्यूटर सिस्टम इन्टरफेस (स्मॉल कंप्यूटर सिस्टम इतेरफेस) (स्कसी), जिसका अधिकांश कम्प्यूटरों द्वारा एक अतिरिक्त स्कसी इन्टरफेस कार्ड के माध्यम से समर्थन किया जाता है। कुछ स्कसी स्कैनर्स प्क के लिये एक समर्पित स्कसी कार्ड के साथ प्रदान किये जाते हैं, हालांकि किसी भी स्कसी नियंत्रक का प्रयोग किया जा सकता है। स्कसी मानक के विकास के दौरान, पार्श्व संगतता के साथ गति में वृद्धि हुई; एक स्कसी संयोजन उतनी उच्चतम गति के साथ डेटा का स्थानांतरण कर सकता है, जितनी गति का समर्थन नियंत्रक और उपकरण दोनों करते हों. स्कसी को बड़े पैमाने पर उसब और फायरवायर (फिर्वायर) द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है, जिनमें से एक या दोनों का समर्थन अधिकांश कम्प्यूटरों द्वारा किया जाता है और जिन्हें लगाना स्कसी की तुलना में सरल है।
यूनिवर्सल सीरियल बस (यूनिवर्सल सीरियल बस) (उसब) स्कैनर्स डेटा को शीघ्रतापूर्वक स्थानांतरित कर सकते हैं और उनका प्रयोग करना अधिक सरल होता है तथा वे स्कसी उपकरणों की तुलना में सस्ते होते हैं। प्रारंभिक उसब १.१ मानक केवल १.५ मेगाबाइट्स प्रति सेकण्ड (स्कसी से कम) की गति से डेटा का स्थानांतरण कर सकते थे, लेकिन बाद वाला उसब २.० मानक सैद्धांतिक रूप से 6० मेगाबाइट्स प्रति सेकण्ड तक की गति से डेटा का स्थानांतरण कर सकता है (हालांकि, दैनिक दरें बहुत कम हैं), जिसके परिणामस्वरूप कार्य अधिक तीव्रता से किया जा सकता है।
फायरवायर (फिर्वायर) एक इन्टरफेस है, जो उसब १.१ से बहुत अधिक तेज़ है और उसब २.० के साथ तुलना किये जाने योग्य है। फायरवायर की गतियां २5, 5० और १००, 4०० तथा 8०० मेगाबिट्स प्रति सेकण्ड हैं (लेकिन संभव है कि कोई उपकरण सभी गतियों का समर्थन न करता हो)। इसे ईई-१394 नाम से भी जाना जाता है।
कुछ प्रारंभिक स्कैनर्स एक मानक इन्टरफेस के बजाय एक मालिकाना इन्टरफेस कार्ड का प्रयोग करते थे।
किसी कम्प्यूटर के साथ अप्रत्यक्ष (नेटवर्क) संयोजन
नब्बे के दशक के प्रारंभ में, व्यावसायिक फ्लैटबेड स्कैनर्स व्यावसायिक प्रयोक्ताओं पर लक्ष्यित थे। कुछ विक्रेता (जैसे यूमैक्स (उमैक्स)) एक होस्ट कम्प्यूटर से जुड़े स्कैनर को किसी स्थानीय कम्प्यूटर नेटवर्क के सभी प्रयोक्ताओं द्वारा अभिगम्य स्कैनर के रूप में कार्य करने की अनुमति देते थे। यह, उदाहरणार्थ, प्रकाशकों, मुद्रण स्थलों आदि के लिये, बहुत उपयोगी साबित हुआ। नब्बे के दशक के मध्य के बाद यह कार्यात्मकता धीरे-धीरे समाप्त हो गई क्योंकि प्रत्येक वर्ष बीतके के साथ ही फ्लैटबेड स्कैनर्स अधिक वहन करने योग्य होते गए।
हालांकि २००० और उसके बाद, (छोटे) कार्यालयों और उपभोक्ताओं दोनों को सेवा देने पर लक्ष्यित ऑल-इन-वन बहु-उद्देशीय उपकरणों में सामान्यतः एक साथ संयोजित प्रिंटर, स्कैनर, कॉपियर और फैक्स पूरे कार्यदल के लिये एक ही उपकरण में उपलब्ध होते हैं और प्रत्येक प्रयोक्ता को फैक्स, स्कैन, कॉपी और प्रिंट कार्यात्मकता प्रदान करते हैं।
एडोब फोटोशॉप (एडोबे फोटोशॉप) जैसे किसी अनुप्रयोग के लिये स्कैनर के साथ संपर्क करना अनिवार्य है। अनेक स्कैनर्स उपलब्ध हैं और उनमें से अनेक स्कैनर्स विभिन्न प्रोटोकॉल्स का प्रयोग करते हैं। अनुप्रयोग प्रोग्रामिंग को सरल बनाने के उद्देश्य से, कुछ एप्लीकेशन्स प्रोग्रामिंग इन्टरफेस (आप्लिकेशन्स प्रोग्रामिंग इतेरफेसेस) ("अपी") विकसित किये गये थे। अपी स्कैनर के लिये एक समान इन्टरफेस प्रस्तुत करता है। इसका अर्थ यह है कि स्कैनर तक प्रत्यक्ष अभिगम्यता के लिये अनुप्रयोग को स्कैनर के विशिष्ट विवरणों को जानने की आवश्यकता नहीं होती. उदाहरणार्थ, एडोब फोटोशॉप (एडोबे फोटोशॉप) ट्वेन मानक का समर्थन करता है; इसीलिये सैद्धांतिक रूप से फोटोशॉप ट्वेन का समर्थन करनेवाले किसी भी स्कैनर से एक चित्र प्राप्त कर सकता है।
व्यावहारिक रूप से, जब एक अनुप्रयोग किसी स्कैनर से साथ संपर्क करता है, तो अक्सर उस समय अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अनुप्रयोग या स्कैनर के उत्पादक (या दोनों) के द्वारा किये गए अपी क्रियान्वयन में कोई त्रुटि हो सकती है।
विशिष्टतः, अपी को एक गतिज रूप से जुड़नेवाली लाइब्रेरी (डाइनामिक्ली लिन्केड लाइब्रेरी) के रूप में क्रियान्वित किया जाता है। प्रत्येक स्कैनर उत्पादक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रदान करता है, जो अपी प्रोसीजर कॉल को एक हार्डवेयर नियंत्रक (जैसे स्कसी, उसब या फायरवायर (फिर्वायर) नियंत्रक) को दिये जाने वाले सामन्य आदेशों में अनुवादित करता है। अपी का उत्पादक वाला भाग आमतौर पर डिवाइस ड्राइवर कहलाता है, लेकिन यह नाम पूरी तरह अचूक नहीं है: अपी कर्नेल मोड में कार्य नहीं करता और उपकरण को सीधे अभिगम नहीं करता.
कुछ स्कैनर उत्पादक एक से अधिक अपी प्रदान करेंगे।
अधिकांश स्कैनर्स ट्वेन अपी का प्रयोग करते हैं। ट्वेन अपी, जिसे मूलतः निम्न-स्तरीय और घरों में प्रयुक्त उपकरणों में प्रयोग किया जाता था, अब बड़े-स्तर पर की जाने वाली स्कैनिंग में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
अन्य स्कैनर अपी'स निम्नलिखित हैं
पिक्सेल ट्रांसलेशन्स (पिक्सेल ट्रांसलेशन्स) द्वारा निर्मित इसीस, जो प्रदर्शन कारणों से अभी भी स्कसी-ई का प्रयोग करता है, को बड़ी, विभागीय-स्तर की मशीनों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
सने (स्केन्र एक्सेस नो ईसी) स्कैनर्स का अभिगमन करने के लिये एक मुक्त/खुले स्रोत वाला अपी है। मूलतः यूनिक्स (यूनिक्स) और लिनक्स (लीनूक्स) ऑपरेटिंग सिस्टमों के लिये विकसित, इसे अपी ओस/२, मैक ओस क्स (मैक ओस क्स) और माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज़ (माइक्रोसॉफ्ट विंडोज) तक ले जाया गया है। ट्वेन के विपरीत सने प्रयोक्ता इन्टरफेस को नहीं संभालता. यह डिवाइस ड्राइवर से किसी विशेष समर्थन के बिना ही बैच स्कैन और पारदर्शी नेटवर्क अभिगम की अनुमति देता है।
हालांकि स्कैनिंग उपयोगिता के अतिरिक्त कोई भी अन्य सॉफ्टवेयर किसी भी स्कैनर की विशेषता नहीं है, लेकिन फिर भी अनेक स्कैनर्स सॉफ्टवेयर के साथ एकत्र रूप में मिलते हैं। विशिष्टतः, स्कैनिंग उपयोगिता के अतिरिक्त, किसी प्रकार के चित्र-संपादन अनुप्रयोग (जैसे फोटोशॉप) और ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकग्निशन (ऑप्टिका चरैक्टर रिकॉग्नीशन) (ऑक्र) सॉफ्टवेयर प्रदान किये जाते हैं। ऑक्र सॉफ्टवेयर पाठ्य सामग्री की चित्रात्मक छवियों को एक मानक पाठ्य सामग्री में रूपांतरित करता है, जिसे आम शब्द-प्रक्रिया (वर्ड-प्रोसेसिंग) और पाठ्य-सामग्री संपादन (टेक्स्ट-एड़िटिंग) सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके संपादित किया जा सकता है; हालांकि अचूकता कभी-कभी ही सटीक होती है।
स्कैन किये जाने के बाद प्राप्त परिणाम एक गैर-संपीड़ित र्गब चित्र होता है, जिसे एक कम्प्यूटर की मेमोरी में स्थानांतरित किया जा सकता है। कुछ स्कैनर्स अंतःस्थापित फर्मवेयर (फिर्म्वारे) का प्रयोग करके चित्र को संपीड़ित और साफ करते हैं। एक बार कम्प्यूटर पर आ जाने पर, एक तीव्र रास्टर ग्राफिक्स प्रोग्राम (जैसे फोटोशॉप और जिम्प) के द्वारा चित्र पर प्रक्रिया की जा सकती है और इसे किसी भण्डारण उपकरण (जैसे एक हार्ड-डिस्क) पर भण्डारित किया जा सकता है।
चित्रों को सामान्यतः एक हार्ड डिस्क पर भण्डारित किया जाता है। चित्रों को सामान्यतः असंपीड़ित बिटमैप, "गैर-क्षतिपूर्ण" (क्षतिरहित) संपीड़ित टिफ और पंग, तथा "क्षतिपूर्ण" संपीड़ित जपेग जैसे चित्र प्रारूपों में भण्डारित किया जाता है। दस्तावेजों को टिफ या पफ प्रारूप में भण्डारित करना सर्वश्रेष्ठ होता है; जपेग पाठ्य-सामग्री के लिये विशेष रूप से अनुपयुक्त होता है। यदि पाठ्य सामग्री स्पष्ट रूप से मुद्रित हों और एक ऐसी अक्षराकृति व आकार में हों कि उन्हें ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकग्निशन (ऑप्टिकल चरैक्टर रिकॉग्नीशन) (ऑक्र) सॉफ्टवेयर द्वारा पढ़ा जा सके, तो यह सॉफ्टवेयर पाठ्य-सामग्री के एक स्कैन किये गये चित्र को सहनीय अचूकता के साथ एक संपादित किये जाने योग्य प्रारूप में रूपांतरित करने की अनुमति देता है। ऑक्र क्षमता को स्कैनिंग सॉफ्टवेयर के साथ एकीकृत किया जा सकता है, या स्कैन की गई चित्र फाइलों पर किसी पृथक ऑक्र प्रोग्राम की सहायता से प्रक्रिया की जा सकती है।
केवल चित्रों के पुनरुत्पादन की तुलना में भण्डारण के लिये कागज़ी दस्तावेजों की स्कैनिंग या अंकीकरण (डिजिटिझशन) के कार्य में स्कैनिंग उपकरण की विभिन्न आवश्यकताओं का प्रयोग किया जाता है। हालांकि दस्तावेजों को सामान्य-उद्देशीय स्कैनर्स पर स्कैन किया जा सकता है, लेकिन यह कार्य एटिज़ इनोवेशन (अतिज़ इनोवेशन), बोव बेल एण्ड हॉवेल (ब्वे बेल & हॉवेल), कैनन (केनोन), एप्सन (एप्सन), फुजित्सु (फुजित्सु), हप, कोडैक (कोडेक) और अन्य कम्पनियों द्वारा बनाये गये समर्पित दस्तावेज स्कैनर्स पर अधिक दक्षतापूर्वक किया जा सकता है।
दस्तावेजों की बड़ी मात्रा को स्कैन करते समय गति और कागज़-प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन स्कैन का रेज़ॉल्युशन चित्रों के अच्छे पुनरुत्पादन की तुलना में बहुत कम होगा।
दस्तावेज स्कैनर्स में दस्तावेज फीडर्स होते हैं, जिनका आकार सामान्यतः कॉपियर्स या सर्व-उद्देशीय (एल-पूर्पोस) स्कैनर्स पर पाये जाने वाले फीडर्स से बड़ा होता है। स्कैनिंग की प्रक्रिया उच्च गति, संभवतः २० से १५० पृष्ठ प्रति मिनट, पर, अक्सर ग्रे-स्केल में पूर्ण की जाती है, हालांकि अनेक स्कैनर्स रंगों का समर्थन भी करते हैं। अनेक स्कैनर्स दोनों ओर मुद्रित मूल दस्तावेजों के दोनों भागों को स्कैन कर सकते हैं (दोहरा कार्य [डुप्ले ओपरेशन])। परिष्कृत दस्तावेज स्कैनर्स में ऐसा फर्मवेयर या सॉफ्टवेयर होता है, जो पाठ्य-सामग्री के उत्पादन के साथ ही उसके स्कैन को साफ करता जाता है और गलती से लगे दाग़ों को मिटाकर अक्षराकृति को तीक्ष्ण बनाता है; चित्रात्मक कार्य के लिये यह अस्वीकार्य होगा क्योंकि उसमें दाग़ों को वांछित सूक्ष्म विवरण से विश्वासपूर्वक अलग नहीं पहचाना जा सकता. निर्मित की जा रही फाइलों को निर्माण के साथ ही संपीड़ित भी किया जाता है।
प्रयुक्त रेज़ॉल्युशन सामान्यतः १५० से ३०० दपी के बीच होता है, हालांकि हार्डवेयर कुछ उच्च रेज़ॉल्युशन दे पाने में सक्षम हो सकता है; यह उच्च-रेज़ोल्युशन वाले चित्रों के लिये आवश्यक उच्च भण्डारण स्थान की मांग किये बिना पाठ्य-सामग्री के ऐसे चित्र उत्पन्न करता है, जिन्हें ऑप्टिकल कैरेक्टर रेकग्निशन (ऑक्र) द्वारा अच्छी तरह पढ़ा जा सके।
संपादन-योग्य तथा खोजी जा सकने योग्य फाइलों का निर्माण करने के लिये दस्तावेज स्कैन अक्सर ऑक्र प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उत्पन्न किये जाते हैं। अधिकांश स्कैनर्स इसीस या ट्वेन का प्रयोग करके दस्तावेजों को टिफ प्रारूप में स्कैन करते हैं, ताकि उन्हें एक दस्तावेज प्रबंधन तंत्र में भेजा जा सके, जो स्कैन किये गये पृष्ठों के पुरालेख्नन और पुनः प्राप्ति को संभालेगा. क्षतिपूर्ण जपेग संपीड़न, जो कि चित्रों के लिये बहुत दक्ष होता है, पाठ्य-सामाग्री के लिये अवांछित है क्योंकि तिरछे किये गये सीधे किनारे नुकीले दिखाई देने लगते हैं और एक हल्की पृष्ठभूमि पर गहरी काली (या रंगीन) पाठ्य-सामग्री क्षतिरहित संपीड़न प्रारूपों के साथ अच्छी तरह संपीड़ित हो जाती है।
हालांकि कागज़ भरने और स्कैनिंग का कार्य स्वचालित रूप से और शीघ्रता से किया जा सकता है, लेकिन इसकी तैयारी और अनुक्रमण आवश्यक होते हैं और इन कार्यों में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ती है। तैयारी के कार्य में स्कैन किये जाने वाले कागज़ों का मानवीय रूप से निरीक्षण करना और इस बात को सुनिश्चित करना शामिल है कि वे क्रम में हैं, मुड़े हुए नहीं है और उनमें कोई स्टेपल या कुछ भी ऐसा नहीं है, जो स्कैनर को फंसा दे। इसके अतिरिक्त, कुछ उद्योगों, जैसे न्यायिक और चिकित्सीय, के लिये दस्तावेजों में बेट्स अंकन (बेटेंस नंबरिंग) या कोई अन्य चिह्न होना आवश्यक हो सकता है, जो दस्तावेज पहचान संख्या और दस्तावेज स्कैन की तिथि/समय बताता हो।
अनुक्रमण में फाइलों का साथ मुख्य-शब्द (केय्वॉर्ड्स) जोड़ना शामिल होता है, ताकि उन्हें सामग्री के द्वारा पुनःप्राप्त किया जा सके। कभी-कभी यह प्रक्रिया कुछ हद तक स्वचालित हो सकती है, लेकिन इसमें मानवीय श्रम की आवश्यकता होना संभावित है। बारकोड-पहचान प्रौद्योगिकी (बार्कोड-रिकॉग्नीशन टेक्नोलॉजी) का प्रयोग करना एक सामान्य पद्धति है: तैयारी के दौरान, फोल्डर नामों से युक्त बारकोड शीट्स दस्तावेज फाइलों, फोल्डर्स और दस्तावेज समूहों में प्रविष्ट की जाती हैं। स्वचालित बैच स्कैनिंग का प्रयोग करके, ये दस्तावेज उपयुक्त फोल्डरों में संचित किये जाते हैं और दस्तावेज-प्रबंधन सॉफ्टवेयर तंत्र में एकीकरण के लिये एक अनुक्रमणिका बनाई जाती है।
पुस्तकों की स्कैनिंग दस्तावेज स्कैनिंग का एक विशेषीकृत प्रकार है। चूंकि पुस्तकें बंधी हुई होती हैं और कभी-कभी नाज़ुक और दुर्लभ भी होती हैं, अतः इसके कारण कुछ तकनीकी समस्याएं उत्पन्न हो सकतीं हैं, लेकिन कुछ निर्माताओं ने इस समस्या से निपटने के लिये विशेषीकृत मशीनें विकसित की हैं। उदाहरण के लिये एटिज़ दी स्कैनर (अतिज़ दी स्केन्र) नाज़ुक पुस्तकों को संभालने के लिये व-आकार की सतह और व-आकार की पारदर्शी प्लैटेन का प्रयोग करता है। पृष्ठों को पलटने और स्कैनिंग की प्रक्रिया को स्वचालित बनाने के लिये अक्सर विशेष रोबोटिक कार्यविधि का प्रयोग किया जाता है।
इन्फ्रारेड सफाई (इन्फ्रारड क्लिनिंग) एक तकनीक है, जिसका प्रयोग फिल्म से धूल और खरोंच हटाने के लिये किया जाता है और यह विशेषता अधिकांश आधुनिक स्कैनर्स में होती है। यह इन्फ्रारेड प्रकाश के द्वारा फिल्म की स्कैनिंग करती है। ऐसा करने से धूल और खरोंच को पहचान पाना संभव हो जाता है क्योंकि वे इन्फ्रारेड प्रकाश को रोक देते हैं; और इसके बाद उनकी स्थिति, आकार, बनावट और परिवेश के आधार पर उन्हें स्वचालित रूप से हटाया जा सकता है।
स्कैनर उत्पादक सामान्यतः इन तकनीकों के साथ स्वयं का नाम जोड़ते हैं। उदाहरण के लिये, एप्सन (एप्सन), निकॉन (निकों), माइक्रोटेक (माइक्रोटेक) और अन्य कम्पनियां डिजिटल आइस (डिजिटल आइस) का प्रयोग करती हैं, जबकि कैनन (केनोन) अपने स्वयं के तंत्र, फ़रे (फिल्म ऑटोमैटिक रीटचिंग एण्ड एन्हैन्समेंट सिस्टम) (फिल्म आटोमेटिक रिटुचिंग एंड एनएंसमेंट सिस्टम) का प्रयोग करती है। कुछ स्वतंत्र सॉफ्टवेयर विकासकर्ता अपने स्वयं के इन्फ्रारेड सफाई उपकरणों की रचना कर रहे हैं।
फ्लैटबेड स्कैनर्स अपनी स्टेपर मोटर की बदलती गतियों (और ध्वनि) के कारण सामान्य संगीत धुनों को संश्लेषित कर पाने में सक्षम होते हैं। इस विशेषता का को हार्डवेयर की पहचान के लिये लागू किया जा सकता है: उदाहरणार्थ यदि स्कैन (स्कन) बटन दबाए रखते हुए और स्कसी ईद को शून्य पर सेट करके हप स्कैनजेट ५ (हप स्कंजेट ५) को शुरु किया जाए, तो यह ओड टू जॉय (ओड़े तो जॉय) की धुन बजाता है। फ्लैटबेड स्कैनर्स के विभिन्न ब्राण्डों और प्रकारों के लिये मनोरंजन के उद्देश्य से मिडी फाइलें बजाने हेतु विण्डोज़ (विंडोज)- और लिनक्स (लीनूक्स)- आधारित सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं।
किसी फ्लैटबेड स्कैनर पर कोई वस्तु रखकर और उसे स्कैन करके बनाई गई कलाकृति स्कैनिंग कला कहलाती है। यह बात बहस का विषय रही है कि क्या स्कैनर कला डिजिटल फोटोग्राफी का ही एक प्रकार है। किसी स्कैनर की सहायता से बनाए गए चित्र किसी कैमरा द्वारा खींचे गए चित्रों से भिन्न होते हैं क्योंकि स्कैनर में क्षेत्र की गहराई बहुत कम होती है और इसकी सतह पर लगातार प्रकाश पड़ता रहता है।
इन्हें भी देखें
"क्या ड्रम स्कैनिंग सचमुच कारगर और बेहतर है?" जिम रिच द्वारा डिजिटल आउटपुट से उद्धृत
"क्या एक फाइन-आर्ट लार्ज-फॉर्मेट फोटोग्राफर को एक $३०,००० स्कैनर से ख़ुशी मिल सकती है?" बिल ग्लिकमैन द्वारा
कंप्यूटिंग इनपुट डिवाइस |
हडोली, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
हडोली, रानीखेत तहसील
हडोली, रानीखेत तहसील
हडोली, रानीखेत तहसील |
नीदरलैंड महिला क्रिकेट टीम, लायनेसिस का उपनाम, अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट में नीदरलैंड का प्रतिनिधित्व करती है। टीम का आयोजन कोनिंकलीकेके नेलैंडलैंड्स क्रिकेट बॉन्ड (केएनसीबी) द्वारा किया गया है, जो १९६६ से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) का सहयोगी सदस्य है।
एक डच महिला टीम ने पहली बार १९३७ में एक अंतरराष्ट्रीय मैच खेला, जब ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड में एक श्रृंखला खेलने के लिए अपने दौरे पर गया था। टीम ने नियमित रूप से अगले दशकों में इंग्लिश क्लब पक्षों के खिलाफ जुड़नार खेला, लेकिन यह १९८० के दशक की शुरुआत तक नियमित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता शुरू नहीं हुई थी। नीदरलैंड ने न्यूजीलैंड के खिलाफ १९८४ में अपना एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (मवनडे) डेब्यू किया, और टूर्नामेंट के १९८८ संस्करण में ऑस्ट्रेलिया में विश्व कप की शुरुआत की। १९८० के दशक के उत्तरार्ध से लेकर २००० के दशक के प्रारंभ तक एक शीर्ष-स्तरीय टीम पर विचार करते हुए, नीदरलैंड ने १९८८ और २००० के बीच लगातार चार विश्व कपों में भाग लिया और १९९७ के क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। २००० के बाद से, डच पक्ष ने विश्व कप या विश्व ट्वेंटी-२० के लिए अर्हता प्राप्त नहीं की है, हालांकि इसने २०11 विश्व कप क्वालीफायर तक वनडे का दर्जा बरकरार रखा। २०07 में, टीम ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एकतरफा टेस्ट मैच खेला, जिसमें आयरलैंड को उस स्तर पर खेलने वाले आईसीसी के एकमात्र सहयोगी सदस्य के रूप में शामिल किया गया।
अप्रैल २०१८ में, आईसीसी ने अपने सभी सदस्यों को महिला ट्वेंटी-२० अंतर्राष्ट्रीय (मटी२०ई) का दर्जा दिया। इसलिए, १ जुलाई २०१८ के बाद नीदरलैंड की महिलाओं और एक अन्य अंतर्राष्ट्रीय पक्ष के बीच खेले गए सभी ट्वेंटी-२० मैच पूर्ण मटी२०ई होंगे। |
आम पन्ना एक भारतीय पेय है। यह कच्चे आमों को आग में पकाकर फिर आमों को पानी में अच्छे से घोलकर काला लवण और भुना हुआ जीरा, थोड़ी शक्कर/गुड़ और हरे-भरे पुदीने के रस के साथ मिलाकर बनाया जाता है। घर्मियों में इस पेय का सेवन 'लू' से बचाव में सहायक होता है। इसकी प्रकृति ठण्डी होती है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील बिलारी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२०
इन्हें भी देखें
बिलारी तहसील के गाँव |
इस्लामी साहित्य इस्लाम के दृष्टिकोण से अथवा इस्लामी परिप्रेक्ष्यों के बारे में लिखा गया साहित्य है। यह किसी भी भाषा में लिखा गया हो सकता है। सुरुआती अध्ययनों में अरबी और फ़ारसी में इस्लाम के बारे में लिखा गया साहित्य ही इस्लामी साहित्य माना जाता था, बाद में इसे विस्तृत अवधारणा के रूप में देखा गया और गैर-मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखा गया साहित्य भी इसमें शामिल किया जाता है। इसके लिए एक शब्द "अदब" भी है, हालाँकि अब इस शब्द का प्रयोग "साहित्य" के लिए होने लगा है। हाल में इस्लामी साहित्य के उपन्यासीकरण (अन्य माध्यमों में उपलब्ध सामग्री का उपन्यासों द्वारा प्रस्तुतीकरण) पर भी अध्ययन हुए हैं। और राष्ट्रवाद जैसी राजनीतिक अवधारणाओं के साथ संगतता के बिन्दुओं पर भी अध्ययन हुआ है।
और पढ़ने हेतु:
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित इस्लामी साहित्य (कैटलॉग श्रेणी)
ब्रिटैनिका एनसाइक्लोपीडिया पर इस्लामी साहित श्रेणी |
स्पेस लांच सिस्टम (स्पेस लॉन्च सिस्टम और स्ल्स) एक अमेरिकी विकासाधीन प्रक्षेपण यान है। इसका प्रयोग अंतरिक्ष यात्रियों को चांद तथा मंगल की सतह पर उतारने में किया जायेगा।
नासा के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट |
१९८६ आईसीसी ट्रॉफी एक सीमित ओवरों के क्रिकेट में ११ जून और ७ जुलाई १९८६ के बीच इंग्लैंड में आयोजित टूर्नामेंट था। यह तीसरी आईसीसी ट्रॉफी टूर्नामेंट का मंचन किया जा रहा था, और पिछले दो टूर्नामेंट के साथ के रूप में, १६ भाग लेने वाली टीमों के बीच ६० ओवर के खेल में एक पक्ष पर और सफेद कपड़े और लाल गेंदों के साथ खेला। अंतिम छोड़कर सभी मैचों मिडलैंड्स में खेले थे, लेकिन अंतिम लॉर्ड्स, लंदन, जहां जिम्बाब्वे एक पंक्ति में उनके २ आईसीसी ट्रॉफी जीतने के लिए और 198७ के विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने के लिए नीदरलैंड पराजित पर आयोजित किया गया था। मौसम पहले प्रतियोगिताओं की तुलना में बहुत बेहतर था, और सभी मैचों में एक परिणाम के लिए खेले थे। |
कुप्ति , नेरडिगोंड मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
मानकी-मुंडा शासन व्यवस्था झारखण्ड के हो समूह की जनजातियों की एक पारम्परिक शासन प्रणाली है, जिससे परम्परागत रूप से हो लोग शासित होते थे। इस व्यवस्था में कुछ प्रमुख पदाधिकारी होते थे:- मानकी, मुंडा (मुड़ा), डाकुआ/डाकुवा, पाहान/लाया, दिउरी/देउरी, तहसीलदार, आदि। मानकी-मुंडा प्रथा का अनुसरण करने वालों में हो, जनजाति प्रमुख हैं।
१८३४ के कोल विद्रोह में हो को अधीन करने में अंग्रेजों की विफलता के बाद, आदिवासियों को ब्रिटिश शासन के अधीन रखा गया और इस बात पर सहमत हुए कि उनके शासन की पारंपरिक प्रणाली को जारी रखा जाना चाहिए। विल्किंसन के शासन में १८३७ को ब्रिटिश शासन ने मानकी-मुंडा प्रणाली को दोबारा लागू किया। मानकी-मुंडा शासन मुंडा शासन व्यवस्था से अलग है|
यह छोटानागपुर (खासकर कोल्हान) में हो जनजातियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था थी। यह प्रणाली दो स्तरों पर कार्य करती है ग्राम और पीड़।
१. मानकी:- १5-२० गांव के मुंडाओं के ऊपर एक मानकी होता है। वह गांवों के समूह का प्रमुख होता है। यह मुण्डाओं से लगान भी वसूलता था। मुंडाओं के द्वारा विवादों को नहीं सुलझा पाने की स्थिति में विवाद को मानकी के पास भेजा जाता था।
२. मुंडा:- यह गांव का प्रधान होता है। इसे प्रशासन लेने का अधिकार है, परती भूमि का भी वह बंदोबस्ती कर सकता है। कुछ क्षेत्रों में इन्हें मुड़ा भी कहा जाता था।
३. डाकुआ:- यह मुंडा का सहायक होता है। मुंडा गांवों में डाकुआ द्वारा बैठकों, समारोहों, उत्सवों, पर्व-त्योहारों और अन्य अवसरों के लिए ग्रामीणों को सूचित करता है।
४. तहसीलदार:- यह मानकी का सहायक होता था, तहसीलदार के माध्यम से ही मुंडाओं सेे मालगुजारी वसूलता था।
५. दिउरी:- यह गांवों का धार्मिक प्रधान होता है और सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान और समारोह का संचालन करता है। यह धार्मिक अपराध जैसे मामलों को भी सुलझाता है।
६. पाहान/लाया:- यह गांवों का मुख्य पुजारी होता है जो गांवों के समुदायिक धार्मिक अनुष्ठानों में पूजा करता है।
जनजातियों का प्रमुख
मानकी-मुंडा प्रणाली में ग्राम स्तर पर गांवों का प्रमुख मुंडा (मुड़ा) होता है तथा पीड़ स्तर पर गांवों का प्रमुख मानकी होता है।
कोल विद्रोह के परिणाम स्वरूप, कोल्हान को दक्षिण-पश्चिम फ्रंटियर एजेंसी घोषित कर दिया गया। कैप्टन विल्किंस को इस क्षेत्र का एजेंट बनाया गया। विल्किंस ने इस क्षेत्र की पारंपरिक नागरिक और न्यायिक स्वशासन व्यवस्था का अध्ययन किया और १८३७ में इस प्रणाली को ब्रिटिश शासन ने समझौते के तहत लागू किया।
१९४७ में भारत की आज़ादी के बाद भी इस आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को रद्द या संशोधन नहीं किया गया। हालांकि, इस प्रणाली की लोकप्रियता कम होने लगी। २०१८ में, तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने मानकी-मुंडा प्रणाली को आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बताया है। फरवरी २०२१ में, झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मानकी-मुंडा प्रणाली को दोबारा क्रियाशील बनाने की घोषणा की। झारखण्ड सरकार ने मानकी-मुंडा शासन व्यवस्था की अपेक्षा मांझी-परगना शासन व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया, जिस कारण मानकी और मुंडाओं का सम्मान और विकास नहीं हुआ।
मदरा मुंडा : सुतियाम्बे के मुंडा
फणि मुकुट राय : सुतियाम्बे का मानकी
बिरसा मुंडा : उलिहातु का मुंडा
गंगा नारायण सिंह : बांधडीह का मानकी/सरदार
जगन्नाथ सिंह : दामपाड़ा का मानकी/सरदार
रघुनाथ सिंह : दामपाड़ा का मानकी/सरदार
जगन्नाथ धल : घाटशिला का मानकी
बिंदराय मानकी : बंदगांव का मानकी
सिंदराय मानकी : बंदगांव का मानकी
इन्हें भी देखें
मांझी परगना शासन व्यवस्था
झारखंड की संस्कृति |
बी॰ एस॰ चंद्रशेखर जिनका पूरा नाम भागवत सुब्रमणय चंद्रशेखर है। ये एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जिन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ५८ टेस्ट और एक वनडे मैच खेला था। इनका जन्म १७ मई १९४५ को मैसूर, ब्रितानी भारत में हुआ था और पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ २१ जनवरी १९६४ में खेला था।
बी॰ एस॰ चंद्रशेखर अपने समय में मुख्य रूप से अपनी गेंदबाजी के लिए जाने जाते थे जो दाहिने हाथ से लेग ब्रेक करते थे। अपने पूरे कैरियर में इन्होंने ५८ टेस्ट क्रिकेट मैचों में कुल २४२ विकेट लिए थे जिसमें १६ बार किसी पारी में ५ या इससे ज्यादा विकेट चटकाए थे। साथ ही इन्होंने दो बार मैच में १० विकेट भी लिए, तो एकमात्र वनडे मैच में इन्होंने ३ विकेट चटके थे। इन्होंने अपना आखिरी मुकाबला साल १२ जुलाई १९७९ को इंग्लैंड के ही खिलाफ खेला था।
भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी
दाहिने हाथ के गेंदबाज
१९७३ में जन्मे लोग
मैसूर के लोग
अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ता |
एरिच मारिया रिमार्के (वास्तव में एरिच पॉल रिमार्क; * २२। जून १८९८ में ओस्नाब्रुक में; २५ सितंबर १९७० में लोकार्नो, स्विट्जरलैंड में) एक जर्मन-अमेरिकी लेखक थे। उनके उपन्यास, जिन्हें मुख्य रूप से शांतिवादी के रूप में वर्गीकृत किया गया है और जिसमें वे युद्ध की क्रूरता को संबोधित करते हैं, आज भी व्यापक रूप से परिचालित हैं। उनका मुख्य काम, युद्ध-विरोधी उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट, पहली बार १९२८ में प्रकाशित हुआ और १९३० में हॉलीवुड में फिल्माया गया, जिसने उन्हें विश्व प्रसिद्ध बना दिया। नाजी शासन की शुरुआत में वह स्विटजरलैंड चले गए।
उनके काम को राष्ट्रीय समाजवादी युग के दौरान "हानिकारक और अवांछित लेखन" के रूप में प्रतिबंधित कर दिया गया था और १९३३ में सार्वजनिक रूप से जला दिया गया था । १९३८ में उनकी जर्मन नागरिकता छीन ली गई। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वीकृति प्राप्त की, एक लेखक के रूप में अमेरिकी नागरिकता और मान्यता प्राप्त की।
जीवन और काम
एरीच मेरिया रेमार्क्यू का जन्म बुकबाइंडर पीटर फ्रांज रिमार्क (१८६७-१९५४) और उनकी पत्नी अन्ना मारिया रिमार्क, नी के चार बच्चों में से दूसरे के रूप में हुआ था। स्टेबलहैंड (१८७१-१९१७), २२ को। जून १८९८ ओस्नाब्रुक में "रेमेकल" परिवार के वंशज के रूप में जन्मे, जो फ्रांस से आकर बस गए थे। बचपन के दोस्त हंस-गर्ड राबे के शोध के अनुसार, एरिक मारिया रिमार्के के परदादा, जोहान एडम रिमार्के, १७८९ में पैदा हुए, आचेन में एक फ्रांसीसी परिवार से आए थे। उनकी नानी का मायके का नाम बाउमर है (रेमारक के उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट में नायक के उपनाम की तरह)। जोहानिस प्राथमिक विद्यालय (आज ओस्नाब्रुक कैथेड्रल स्कूल ) को पूरा करने के बाद, जिसमें उन्होंने १९०४ से १९१२ तक भाग लिया था, रिमार्क ने कैथोलिक तैयारी संस्थान (१९१२ से १९१५) में भाग लिया। यहां से वह १९१५ में ओस्नाब्रुक में रॉयल एलीमेंट्री स्कूल टीचर्स सेमिनार में चले गए।
प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के लिए उन्हें नवंबर १९१६ में आरक्षित भर्ती के रूप में एक नोटेक्सामेन के बाद तैयार किया गया था और जून १९१७ में पश्चिमी मोर्चे पर फ़्लैंडर्स (हौथुलस्टर फ़ॉर्स्ट) के एक सैनिक के रूप में आया था। एक युद्ध स्वयंसेवक के रूप में, वह २ के थे। कंपनी फील्ड रिक्रूट डिपो २. गार्ड रिजर्व डिवीजन। ३१ तारीख को जुलाई वह हाथ और पैर में कई छर्रे लगने और गर्दन में गोली लगने से घायल हो गया था। उन्हें डुइसबर्ग के एक सेना अस्पताल में भेजा गया, जहां उन्होंने बेहतर होने के बाद एक क्लर्क के कार्यालय में काम किया और १ अक्टूबर १9१8 को ठीक होने के बाद वापस आ गए। रिप्लेसमेंट बटालियन ओस्नाब्रुक वापस। नवंबर १9१8 में उन्हें आयरन क्रॉस, प्रथम श्रेणी से सम्मानित किया गया, लेकिन जनवरी १9१9 तक उन्हें सेना से छुट्टी नहीं मिली। नवंबर १९१७ में, जब वे अस्पताल में थे, तब उन्होंने युद्ध के बारे में अपना पहला उपन्यास लिखना शुरू किया - जैसा कि उन्होंने उस समय परिणामी ग्रंथों को कहा था। अपने युद्ध के अनुभवों से अपने पूरे जीवन को आकार दिया, तब से उन्होंने एक दृष्टिकोण विकसित किया कि उनके कार्यों के अधिकांश जीवनीकारों और व्याख्याकारों ने शांतिवादी - सैन्य-विरोधी के रूप में मूल्यांकन किया। वास्तव में, अपनी डायरी में, जिसे उन्होंने डुइसबर्ग में अपने अस्पताल में रहने के दौरान रखा था, रिमार्के ने २4 पर मांग की थी अगस्त १9१8 युद्ध की समाप्ति के बाद के समय के लिए "युवाओं के खतरनाक सैन्यीकरण के खिलाफ लड़ाई, हर तरह की ज्यादतियों में सैन्यवाद के खिलाफ। रिमार्के ने बाद में विभिन्न साक्षात्कारों में इस बात पर जोर दिया कि वह एक "अराजनीतिक व्यक्ति" थे।
हालांकि रेमारक ने अपने सबसे प्रसिद्ध काम, उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट में अपने स्वयं के युद्ध के अनुभवों को आंशिक रूप से संसाधित किया, काल्पनिक मुख्य पात्र पॉल बाउमर, जो पहले व्यक्ति में कहानी कहता है, को रेमारक के " अहं को बदलने " के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। बॉमर के विपरीत, जो उपन्यास में एक युद्ध स्वयंसेवक के रूप में जर्मन सेना में शामिल होता है, रिमार्के ने सैन्य सेवा के लिए स्वेच्छा से काम नहीं किया। उपन्यास के नायक में एक और अंतर यह है कि वह युद्ध से नहीं बचता। भले ही रिमार्के, फ्रंट-लाइन सैनिकों के भाग्य के बारे में बाउमर के पूर्वानुमान के विपरीत, युद्ध के बाद नागरिक जीवन में पैर जमाने और एक लेखक के रूप में एक सफल कैरियर शुरू करने में सक्षम थे, वे भी " खोई हुई पीढ़ी " के सदस्य थे। .
एक शिक्षक के रूप में गतिविधि
युद्ध के बाद उन्होंने अपना शिक्षक प्रशिक्षण जारी रखा और जून १९१९ में शिक्षण परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की। पहली से अगस्त १९१९ से उन्होंने लोहेन में एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में काम किया, उस समय लिंगन जिले में, आज बेंटहेम काउंटी में, मई १९२० से क्लेन बेरेन में, जो उस समय हम्लिंग का जिला था, आज एम्सलैंड जिला है । और अगस्त १९२० से नाहने में, जो १९७२ से ओस्नाब्रुक के अंतर्गत बंद कर दिया गया था। उसके स्कूल से छुट्टी के आवेदन के साथ यह प्रकरण २० अप्रैल को समाप्त हो गया। नवम्बर १९२०।
एक लेखक के रूप में करियर
अप्रैल १९१८ की शुरुआत में, जब वे अभी भी अस्पताल में थे, रिमार्के ने इच अंड डू का पाठ प्रकाशित किया। उनके पहले उपन्यास, कलाकार उपन्यास डाई ट्रैम्बुडे की तरह, यह १९२० में डाई शॉनहाइट में प्रकाशित हुआ था, जो स्पष्ट रूप से "नस्लीय कायाकल्प", "नस्लीय स्वच्छता", "आर्यन रक्त के महान नस्लीय लोगों की कायाकल्प दौड़ और आर्य प्रवृत्ति के साथ" के लिए खड़ा है। और आम तौर पर "आर्य मानव जाति के विशेषाधिकार के लिए उनकी प्रजनन शक्ति के बढ़ते प्रभाव" के लिए हुआ। १९७७ में, रिमार्के पर "अपनी विश्व सफलता से पहले राजनीतिक अधिकार के शिविर में" होने का आरोप लगाया गया था। ड्रीम बूथ असफल रहा। रिमार्के ने वीमर गणराज्य के शुरुआती दिनों में अजीबोगरीब काम करके संघर्ष किया, जिसमें "मैडहाउस" ( द ब्लैक ओबिलिस्क से अनुकूलित, पहली बार १९५६ में प्रकाशित) में मकबरे के लिए एक एजेंट और ऑर्गेनिस्ट के रूप में शामिल था। आखिरकार वह एक अखबार के संपादक थे, जिसमें ओस्नाब्रुकर टेजब्लैट भी शामिल था, जिसके लिए उन्होंने मार्च १९२१ से काम किया। उस दिन से स्टीफन ज़्विग को लिखे एक पत्र में, उन्होंने अपनी लेखन गतिविधियों के भविष्य के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से संदेह व्यक्त किया।
१९२१ के मध्य से, रेमारक ने टायर निर्माता कॉन्टिनेंटल एजी के कंपनी अखबार के लिए एक फ्रीलांसर के रूप में काम किया, जो हनोवर में प्रकाशित हुआ था: उन्होंने अप्रैल १९२२ से इको कॉन्टिनेंटल अखबार के लिए एक स्थायी कर्मचारी के रूप में काम किया और पहले से ही जिम्मेदार संपादक थे। -चीफ जून १९२३ में। गीतात्मक विज्ञापन ग्रंथों के अलावा, उन्होंने अपने द्वारा आविष्कार किए गए कॉमिक पात्रों की कहानियां लिखीं, डाई कॉन्टिबुबेन, जिस पर उन्होंने "ईएमआर" पर हस्ताक्षर किए और जिसके लिए हरमन शुट्ज़ ने चित्र बनाने में योगदान दिया। १९२५ की शुरुआत में शेर्ल-वर्लाग में जाने के बाद भी, रिमार्के ने श्रृंखला लिखना जारी रखा, जब तक कि दिसंबर १९२६ में इसे बंद नहीं कर दिया गया।
हनोवर में अपने समय के दौरान, रिमार्के द्वारा लगभग १०० लघु गद्य ग्रंथ विभिन्न दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में प्रकाशित किए गए थे। १९२३ में वे पैटागोनिया में एक तह नाव यात्रा पर गए और इसके बारे में कानू-स्पोर्ट पत्रिका में लिखा। वह एक उपन्यास पर काम कर रहे थे जिसका नाम उन्होंने गम रखा और १९२४ में गाइड टू डिकेडेंस नामक एक निबंध लिखा। कीमती स्चनाप्स को मिलाने के बारे में ।
मंच नाम "रिमार्के" का सामयिक उपयोग १९२१ की शुरुआत में प्रलेखित है। नवंबर १९२२ से उन्होंने रेनर मारिया रिल्के के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त करने के लिए मध्य नाम "मारिया" का इस्तेमाल किया। साथ ही उन्होंने अपनी मां अन्ना मारिया की स्मृति को सम्मानित किया। १९२४ से उन्होंने केवल फ्रांस में अपने परिवार की उत्पत्ति पर जोर देने के लिए खुद को "रिमार्के" कहा। १९२६ में, इल्से जट्टा ज़ाम्बोन से अपनी शादी के तुरंत बाद, उन्होंने कथित रूप से ५०० रीचमार्क्स के लिए गोद लेने के माध्यम से कुलीन शीर्षक "बैरन वॉन बुचवाल्ड" खरीदा।
१ से जनवरी १925 से १5. १ नवंबर, १928 को, रेमारक ने समाचार पत्र स्पोर्ट इम बिल्ड के लिए काम किया, जिसे ह्यूगेनबर्ग समूह द्वारा प्रकाशित किया गया था। १927 में उन्होंने एक और प्रकाशन जारी किया , स्टेशन ऑन द होराइजन, शुरुआत नथिंग न्यू ऑन द वेस्ट । तीसरे से अगस्त १928 में वे स्पोर्ट इम बिल्ड में संपादकीय सामग्री के लिए जिम्मेदार थे। १952 में, डेर स्पीगेल ने बताया कि रेमारक ने अपने उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट के प्रकाशन से कुछ महीने पहले अर्नस्ट जिंजर के काम इन स्टाहल्गेविटर्न की एक उदार समीक्षा लिखी थी। १928 में, रेमारक ने अपने उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट को प्रकाशक एस।<स्पैन टिपिऑफ="मू:एंटिटी" ईद="मुम्क़">&नब्स्प;</स्पैन>फिशर और उल्स्टीन, दोनों ने वाम-उदारवादी प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व किया। मार्च १928 में, एस फिशर वर्लग ने प्रस्तुत ड्राफ्ट को अस्वीकार कर दिया, और अगस्त में उल्स्टीन ने उपन्यास को स्वीकार कर लिया। १0 तारीख को १5 नवंबर को वोसिशे ज़ितुंग में अग्रिम छपाई शुरू हुई, और १ नवंबर, १928 को, रिमार्के ने ह्यूजेनबर्ग समूह से नोटिस के बिना अपनी बर्खास्तगी प्राप्त की।
उपन्यास नथिंग न्यू इन द वेस्ट में, उन्होंने मुख्य रूप से अपने स्वयं के अनुभवों के अलावा अस्पताल में मिले घायल सैनिकों की कहानियों को संसाधित किया, लेकिन काल्पनिक एपिसोड भी जोड़े। पुस्तक (१९२९) के रूप में प्रकाशित होने के तुरंत बाद और लुईस माइलस्टोन (१९३०) के हॉलीवुड फिल्म रूपांतरण के माध्यम से उपन्यास ने एरिच मारिया रिमार्के को विश्व प्रसिद्ध बना दिया। विज्ञापन कारणों से, प्रकाशक और लेखक ने उस गलतफहमी का गंभीरता से मुकाबला नहीं किया, जो उस समय पहले से ही व्यापक थी, कि उपन्यास अनिवार्य रूप से लेखक के अपने अनुभवों पर आधारित था। इस दौरान रिमार्के की मुलाकात पटकथा लेखक और नाटककार कार्ल गुस्ताव वोल्मोलेर से हुई। १९३३ के बाद रिमार्के के निर्वासन की अवधि के दौरान उनका परिचय गहरा हुआ। वोल्मोएलर ने अपनी सहानुभूति की अभिव्यक्ति के रूप में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिखी गई अपनी कविता इप्र को उन्हें समर्पित किया। नवंबर १९३० के मध्य में, रिमार्के ने ओस्नाब्रुक में उनके लिए विशेष रूप से आयोजित एक विशेष स्क्रीनिंग में अपनी पुस्तक के बारे में फिल्म देखी। ४ पर। १२ दिसंबर को बर्लिन में पश्चिम में कुछ भी नया नहीं था।
१९३१ में रिमार्के को उनके काम नथिंग न्यू इन द वेस्ट के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पोलिश प्रोफेसर ज़िग्मुंड साइबिचोव्स्की (१८७९-१९४४) और अमेरिकी निकोलस मरे बटलर (१८६२-१९४७) द्वारा नामित किया गया था - जो नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी हैं। जर्मन ऑफिसर्स एसोसिएशन (डीओबी) ने इस नामांकन के खिलाफ इस आधार पर विरोध किया कि उपन्यास ने जर्मन सेना और उसके सैनिकों को बदनाम किया।
स्विट्जरलैंड के लिए उत्प्रवास
अगस्त १९३१ में, रिमार्के ने टिसिनो के स्विस कैंटन में मैगीगोर झील के पश्चिमी किनारे पर रोंको सोप्रा असकोना के एक जिले पोर्टो रोंको में एक विला खरीदा। अगले वर्ष अप्रैल में वह अपने मुख्य निवास स्विट्ज़रलैंड चले गए। नवंबर १९३२ से वे व्यावसायिक मामलों की देखभाल के लिए बर्लिन में रहे, जहाँ वे होटल मैजेस्टिक में रुके थे। फिल्म नथिंग न्यू इन द वेस्ट के खिलाफ शत्रुता, आपराधिक मुकदमों और न्सडप के उकसावे के कारण, विशेष रूप से जोसेफ गोएबल्स द्वारा, उन्होंने ३१ को शहर छोड़ दिया। १ जनवरी, १933 को, हिटलर के चांसलर नियुक्त होने के एक दिन बाद, वह अंततः जर्मनी चले गए और शुरू में पोर्टो रोंको में रहने लगे। यहां उन्होंने थॉमस मान, कार्ल ज़ुकमेयर, अर्न्स्ट टोलर, एल्स लास्कर-शुलर, लुडविग रेन सहित अन्य प्रवासी लेखकों के साथ संपर्क बनाया और जर्मनी के अन्य, कम प्रसिद्ध प्रवासियों को आश्रय दिया।
राष्ट्रीय समाजवादियों द्वारा प्रतिबंधित
गौलेटर जोसेफ गोएबल्स की ओर से राष्ट्रीय समाजवादी ठगों ने ४ अप्रैल को ऑस्कर विजेता हॉलीवुड युद्ध-विरोधी फिल्म नथिंग न्यू इन द वेस्ट के जर्मन प्रीमियर को पहले ही रोक दिया था। दिसंबर १९३० को बर्लिन में रोका गया। पूरे रीच से विघटनकारी कार्रवाइयों की सूचना मिली, जिससे अंततः फिल्म ११ नवंबर को रिलीज़ हुई। दिसंबर को जर्मन फिल्म समीक्षा बोर्ड ने प्रतिबंधित कर दिया था। १९३१ की गर्मियों की शुरुआत से, फिल्म को "लोगों के कुछ समूहों के लिए और बंद कार्यक्रमों में" एक संक्षिप्त रूप में फिर से दिखाने की अनुमति दी गई थी। प्रोडक्शन कंपनी को "भविष्य में केवल विदेशों में जर्मन सेंसरशिप अधिकारियों द्वारा अनुमोदित इस संस्करण को दिखाने के लिए" भी करना पड़ा। चांसलर के रूप में हिटलर की नियुक्ति के बाद , जर्मनी में नथिंग न्यू इन द वेस्ट को अंततः प्रतिबंधित कर दिया गया।
१९३३ में जर्मनी में "फायर स्पेल" "विश्व युद्ध के सैनिकों के साहित्यिक विश्वासघात के खिलाफ, रक्षा की भावना में लोगों की शिक्षा के लिए!"
इसके अलावा, राष्ट्रीय समाजवादियों ने यह अफवाह फैला दी कि वह यहूदी थे, कि उनका असली नाम "क्रेमर" (रिमार्क के जन्म के नाम "रिमार्क" के लिए गुमनाम ) था और उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था। इस अफवाह का परिणाम एक गलत धारणा है, जो आज भी व्यापक है, कि रिमार्के का मूल नाम "क्रेमर" था।
१९३८ में रिमार्के से उनकी जर्मन नागरिकता छीन ली गई थी।
उनकी बहन एल्फ़्रेड स्कोल्ज़, जो ड्रेसडेन में एक ड्रेसमेकर के रूप में रहती थीं, को नाजी शासन के खिलाफ दिए गए बयानों के लिए निंदा की गई थी, जिसके अनुसार युद्ध पहले ही हार गया था, और १९४३ में " पीपुल्स कोर्ट " के अध्यक्ष रोलैंड फ्रीस्लर द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी।, " सैन्य शक्ति को कम आंकने " के लिए। गिलोटिन को मार दिया गया। फ़्रीस्लर ने इस प्रक्रिया में कहा: "तुम्हारा भाई हमसे बच गया, तुम हमसे नहीं बचोगे। रिमार्के को युद्ध की समाप्ति के बाद ही अपनी बहन की मृत्यु के बारे में पता चला और फिर उन्होंने अपना उपन्यास द स्पार्क ऑफ लाइफ (१९५२) उन्हें समर्पित किया।
१९७० में निधन
१८९८ में जन्मे लोग
अमेरिका के लोग
२०वीं सदी का साहित्य |
मृत्युदाता १९९७ की मेहुल कुमार द्वारा निर्देशित हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फिल्म को अमिताभ बच्चन के लिए वापसी माना जाता है, जिन्होंने १९९२ में अस्थायी रूप से फिल्म उद्योग छोड़ दिया था। इस फिल्म का निर्माण अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एबीसीएल) नामक उनकी उत्पादन कंपनी ने किया था। इससे अमिताभ बच्चन की पांच साल बाद वापसी हुई, लेकिन यह बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही थी।
डॉ राम प्रसाद घायल (अमिताभ बच्चन) एक प्रसिद्ध डॉक्टर हैं जो अपने करियर में सभी ऑपरेशन में सफल रहे हैं और उन्होंने कुशलतापूर्वक कई नाजुक सर्जरी का संचालन किया है। वह अपनी पत्नी जानकी (डिंपल कपाड़िया) और भाई भारत (अरबाज अली ख़ान) के साथ रहता है। भारत उमेशेचन जैन (टीकू तलसानिया) की बेटी रेणु (करिश्मा कपूर) से प्यार करता है। साथ ही, राणा तुंगा (मुकेश ऋषि) के भाई राजा तुंगा (दीपक तिजोरी) को रेणु की लालसा की है। जब भारत रेणु की ओर बढ़ रहे राजा को रोकता है तो राजा भीड़ के साथ उसको गंभीर रूप से घायल कर देता है।
एक भ्रष्ट मंत्री मोहनलाल (आशीष विद्यार्थी) परियोजना स्थल पर रहने वाले जनजातियों के जीवन और संपत्ति के नुकसान पर "पवनघाट पावर प्रोजेक्ट" नामक एक विनाशकारी योजना को निष्पादित करना चाहता है। भारत जो कि इंजीनियर है इस तरह की योजना का समर्थन करने से इनकार कर देता है। दूसरी तरफ राणा ने भारत के खिलाफ साजिश तैयार की है। जिसके बाद अंततः उसका भाई राजा रेणु को जीत लेगा। भारत को एक महिला के कत्ल में फसाया जाता है और और इंस्पेक्टर दानपानी (मुश्ताक खान) उसे गिरफ्तार करते हैं।
अमिताभ बच्चन - डा. राम प्रसाद घायल
डिम्पल कपाड़िया - जानकी घायल
करिश्मा कपूर - रेणुका जैन
परेश रावल - त्रिलोचन त्रिपाठी
मुकेश ऋषि - राणा तुंगा
आशीष विद्यार्थी - मोहनलाल
टीकू तलसानिया - उमेशचन जैन
मुशताक ख़ान -
अवतार गिल -
दिनेश हिंगू -
विकास आनन्द - पुलिस कमिश्नर
नामांकन और पुरस्कार
१९९७ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
विक्टोरिया जलप्रपात जिसे स्थानिय भाषा मे मोसी-ओआ-तुन्या (मोसी-ओआ-तुन्य) कहॉ जाता है अफ़्रीका की जेम्बेजी नदी पर स्थित एक जल प्रपात है। इस जलप्रपात को विश्व के सात प्राकृतिक आश्चर्यो मे से एक माना जाता है।
शानदार जलप्रपातों में से यह
प्रपात दूसरे नम्बर पर
रखा जाता है।
का अफ़्रीकी नाम 'मोसी-
ओआ-तुन्या' है, अर्थात 'धुआँ
जो गरजे'।विक्टोरिया फॉल्स को इस धरती पर गिरते पानी का सबसे
चौड़ा प्रपात (सबसे चौड़ा पानी का परदा) कहा जाता है।
इसकी चौड़ाई सत्रह सौ मीटर है। दुनियाभर से लोगों के
यहां सालभर आने के बाद भी इस जगह के जादू में कोई
कमी नहीं आई है।
वाटरफॉल्स से बनने
वाला कुहासा बीस
किलोमीटर दूर से
भी देखा जा सकता है।
उसकी गर्जना भी बहुत
सुनी जा सकती है।
सौ मीटर नीचे
पानी के गिरने से
काफी हद तक उस इलाके में मौजूद रेनफॉरेस्ट को बनाए रखने के
लिए जिम्मेदार हैं। नजारा तब और खूबसूरत हो उठता है जब अलग-
अलग कोण से इंद्रधनुष पानी के ऊपर देखने को मिलते हैं। यह
दक्षिणी अफ्रीका के सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थलों में से एक है।
नवंबर १८५५ में यहां पहुंचने वाले पहले विदेशी डेविड लिंगस्टोन थे।
उन्होंने ब्रिटेन की महारानी के नाम पर इस फॉल्स का नाम रखा।
चार साल पहले गरजने वाले धुंए के बारे में सुनकर उन्होंने इसकी खोज
शुरू की थी।
हनीमून के लिए लोकप्रिय
दुनियाभर में हनीमून के लिए भी यह सबसे लोकप्रिय जगहों में से है।
जाम्बेजी नदी में क्रूज, गेम रिजर्व व सफारी यहां के अन्य आकर्षण
हैं। नवंबर से अप्रैल का समय यहां काफी गरम, उमस भरा व
भीगा होता है। मार्च व अप्रैल की बाढ़ में यह अपने पूरे प्रवाह पर
होता है लेकिन इसकी बौछारें इतनी तेज होती हैं कि आपको दूर-
दूर तक गीला कर देती हैं और उसे देख पाना तक मुश्किल
हो जाता है।
कब व कैसे
के लिए अफ्रीका में
सभी प्रमुख स्थानों से
पहुंचा जा सकता है।
के ही नाम से शहर इस
थोड़ा ही दूर है,
जहां रेलवे स्टेशन और
हवाई अड्डा, दोनों हैं। दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, जांबिया,
बोत्सवाना आदि जगहों से सीधे संपर्क में है। वैसे तो यहां पूरे
सालभर जाया जा सकता है लेकिन जून से मध्य अगस्त तक
यहां हल्का ठंडा मौसम होता है जो भारत में गरमियों से सुकून देने
वाला हो सकता है। यह समय न केवल फॉल्स का बेहतर आनंद देता है
बल्कि इन दिनों राफ्टिंग, बंजी जंपिंग, तार से बंधकर प्रपात के
ऊपर उड़ने और अन्य कई हवाई करतबों जैसी बाकी रोमांचक
गतिविधियां भी हो सकती हैं। दिसंबर से जनवरी में फॉल्स अपने
सबसे निचले और अप्रैल में अपने सबसे उफानी स्तर पर होता है।
दक्षिण अफ्रीका में प्रीटोरिया से एक विशेष लक्जरी ट्रेन
भी चलती है जो तीन दिन में पीटर्सबर्ग पहुंचाती हैं जहां से
विक्टोरिया फॉल्स के नजारे को देखने के लिए दो घंटे की विशेष
उड़ान होती है। इसके अलावा भी कई टूर पैकेज हैं जिनमें
विक्टोरिया फॉल्स के अलावा आस-पास के गेम रिजर्व व
सफारी भी शामिल है।
प्रपात से पहले जेम्बेजी नदी में
'लुआम्पा' और 'कुआन्डो' नाम
की दो बड़ी नदियां भी आकर
विश्व का सबसे बड़ा एकल
प्रपात है, जो बेसाल्ट
घाटियों में मीलो तक शोर
इस जलप्रपात में जल के गिरने
की आवाज़ किसी के
भी रौंगटे खड़े कर सकती है।
ऐसा लगता है कि मानो पूरी
जेम्बेजी नदी ही यहाँ से कूद
मुख्य जलप्रपात सबसे लंबा है,
इसे 'मेन फ़ाल्स' कहते हैं।
विक्टोरिया जलप्रपात में
जल इतने जोरों से गहराई में
गिरता है कि आस-पास २०
किलोमीटर तक धुंध दिखाई
देती है। उससे होने
वाली बौछार उँचे जाकर
वर्षा की तरह गिरती है।
इसी की वजह से यहां रेन
फॉरेस्ट बना हुआ है।
१.दैनिक जागरण हिंदी अख़बार |
रत्नाचल एक्स्प्रेस २७१७ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन विशाखापट्टनम रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:वस्क्प) से १२:३०प्म बजे छूटती है और विजयवाडा जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:ब्ज़ा) पर ०६:२०प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ५ घंटे ५0 मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
योगेन्द्र शुक्ल (१८९६ १९ नवम्बर १९60) भारत के एक राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी थे। वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संस्थापकों में से एक थे। इनको कालापानी की सजा (सेलुलर जेल) भी हुई थी। बसवों सिंह के साथ मिलकर उन्होने बिहार में कांग्रेस समाजवादी पार्टी बनायी थी। इनके भतीजे बैकुण्ठ शुक्ल भी क्रान्तिकारी थे जिन्हें फांसी की सजा हुई थी। |
श्रीनिवास बी. वैद्य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हळ्ळा बन्तु हळ्ळा के लिये उन्हें सन् २००८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा के साहित्यकार |
२८ अक्षांश दक्षिण (२८त परलेल साउथ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के दक्षिण में २८ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर के दक्षिणी भाग और दक्षिण अमेरिका, ओशिआनिया (ऑस्ट्रेलिया) व अफ़्रीका के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है।
इन्हें भी देखें
२९ अक्षांश दक्षिण
२७ अक्षांश दक्षिण |
अकलाड (अकलाद) भारत के महाराष्ट्र राज्य के धुले ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र के गाँव
धुले ज़िले के गाँव |
यह युगांडा राज्य के प्रमुखों की सूची है, १९६२ में युगांडा की स्वतंत्रता से लेकर आज तक। १९६२ से १९६३ तक, युगांडा स्वतंत्रता अधिनियम १९६२ के तहत राज्य का प्रमुख युगांडा की महारानी थी, एलिजाबेथ द्वितीय, जो अन्य राष्ट्रमंडल क्षेत्रों के सम्राट भी थे। गवर्नर-जनरल द्वारा रानी का प्रतिनिधित्व युगांडा में किया गया था। युगांडा १९६३ के संविधान के तहत एक गणतंत्र बन गया, जब एक कार्यकारी राष्ट्रपति द्वारा सम्राट और गवर्नर-जनरल को बदल दिया गया।
सिंहासन का उत्तराधिकार ब्रिटिश सिंहासन के उत्तराधिकार के समान था ।
गवर्नर-जनरल युगांडा में सम्राट का प्रतिनिधि था और सम्राट की अधिकांश शक्तियों का उपयोग करता था। गवर्नर-जनरल को अनिश्चित काल के लिए नियुक्त किया गया था, जो सम्राट की खुशी में सेवारत था। गवर्नर-जनरल को केवल ब्रिटिश सरकार की भागीदारी के बिना युगांडा के मंत्रिमंडल की सलाह पर नियुक्त किया गया था। रिक्ति की स्थिति में, मुख्य न्यायाधीश ने सरकार का संचालन करने वाले अधिकारी के रूप में कार्य किया।
युगांडा गणराज्य के १९६३ के संविधान के तहत, राष्ट्रपति ने सम्राट को राज्य के प्रमुख के रूप में बदल दिया। राष्ट्रपति को संसद द्वारा ४ साल के कार्यकाल के लिए चुना गया था। रिक्ति की स्थिति में प्रधानमंत्री ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया ।
१९६६ में, कार्यकारी राष्ट्रपति की स्थापना के साथ राष्ट्रपति की शक्तियों में वृद्धि की गई थी, लेकिन राष्ट्रपति की रिक्ति के संबंध में समान नियम लागू किए गए थे।यह १९६७ और १९९५ के संविधान में भी लागू हुआ।
यह भी देखें
युगांडा के उपराष्ट्रपति
युगांडा के प्रधान मंत्री
युगांडा की राजनीति
युगांडा का इतिहास
युगांडा में राजनीतिक दलों की सूची
युगांडा के राज्यपालों की सूची
विभिन्न देशों के राष्ट्रपति |
हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में सप्तमात्रिरिका का उल्लेख महाशक्ति की सककारी सात देवियों के लिये हुआ है। ये देवियाँ ये हैं- ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, वाराही और चामुण्डा अथवा नारसिंही। इन्हें 'मातृका' या 'मातर' भी कहते हैं।
किसी-किसी सम्प्रदाय में मातृकाओं की संख्या आठ (अष्टमातृका) बतायी गयी है। नेपाल में अष्टमातृकाओं की पूजा होती है। दक्षिण भारत में सप्तमातृकाएँ ही पूजित हैं। कुछ विद्वान उन्हें शैव देवी मानते हैं।
दिसम्बर २०१९ में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की पुरालेख शाखा ने दक्षिण भारत में अब तक के सबसे पुराने संस्कृत शिलालेख की खोज की है। इस शिलालेख से सप्तमातृका के बारे में जानकारी मिलती है। सप्तमातृका की जानकारी कदम्ब ताम्र प्लेट, प्रारंभिक चालुक्य तथा पूर्वी चालुक्य ताम्र प्लेट से मिलती है।
यह सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के चेब्रोलू गाँव में पाया गया है। स्थानीय भीमेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार और मरम्मत के दौरान यह शिलालेख प्राप्त हुआ था। इस शिलालेख में संस्कृत और ब्राह्मी वर्ण हैं, इसे सातवाहन वंश के राजा विजय द्वारा २०७ ईसवी में जारी किया गया था। मत्स्य पुराण के अनुसार, राजा विजय सातवाहन वंश के २८वें राजा थे, इन्होंने ६ वर्षों तक शासन किया था।
इस शिलालेख में एक मंदिर तथा मंडप के निर्माण के बारे में वर्णन किया गया है। इस अभिलेख में कार्तिक नामक व्यक्ति को ताम्ब्रापे नामक गाँव में, जो कि चेब्रोलू गाँव का प्राचीन नाम था, सप्तमातृका मंदिर के पास प्रासाद (मंदिर) व मंडप बनाने का आदेश दिया गया है।
इस संस्कृत शिलालेख से पहले इक्ष्वाकु राजा एहवाल चंतामुला द्वारा चौथी सदी में जारी नागार्जुनकोंडा शिलालेख को दक्षिण भारत में सबसे पुराना संस्कृत शिलालेख माना जाता था।
इसी स्थान पर एक अन्य शिलालेख भी मिला है जो प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में है जिसे पहली सदी का बताया जा रहा है। |
चेपौक तमिल नाडु की राजधानी चेन्नई का एक क्षेत्र है। यहां चेन्नई उपनगरीय रेलवे का एक स्टेशन है।
चेन्नई के क्षेत्र
चेन्नई के रेलवे स्टेशन
तमिल नाडु में रेलवे स्टेशन |
अब्दुल मालिक वजीर एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में | वह ना-४१ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है संघीय शासित कबायली इलाका के लिएपाकिस्तानी फाटा के प्रतिनिधियों - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा |
पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य |
नौबाड़ी आगरा प्रखंड, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
सैद्धान्तिक भौतिकी भौतिकशास्त्र की उस शाखा को कहते हैं जिसमें किसी प्राकृतिक परिघटना को युक्तिसंगत करने, समझाने और प्रागुक्त करने के लिए भौतिक वस्तुओं और निकायों के सारग्रहण और गणितीय मॉडल को काम में लिया जाता है।
सैद्धान्तिक भौतिकी की समयरेखा |
श्रीराम लागू हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं।श्रीराम लगू हिंदी और मराठी में एक भारतीय फिल्म और थियेट्रक्टर है और एक ईएनटी सर्जन भी है। उन्हें फिल्मों में उनकी चरित्र भूमिकाओं के लिए जाना जाता है। उन्होंने १०० से अधिक हिंदी और मराठी फिल्मों में, ४० से अधिक मराठी, हिंदी और गुजराती नाटकों में अभिनय किया है, और २० से अधिक मराठी नाटकों का निर्देशन किया है। उन्हें बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान मराठी मंच के सबसे महान अभिनेताओं में से एक माना जाता है। प्रगतिशील और तर्कसंगत सामाजिक कारणों को आगे बढ़ाने में भी वह बहुत मुखर और सक्रिय रहे हैं, उदाहरण के लिए १९९९ में, उन्होंने और सामाजिक कार्यकर्ता जी। पी। प्रधान ने भ्रष्टाचार-विरोधी अन्ना हजारे के समर्थन में उपवास किया। [१] उन्होंने हिंदी फ़िल्म घरौंदा के लिए १978 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार जीता। उनकी आत्मकथा का शीर्षक है लमन (लामा), जिसका अर्थ है "माल का वाहक"। [२] [३]
नामांकन और पुरस्कार
१९७८ - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - घरौंदा
डॉ। श्रीराम लागू ने मेडिकल कॉलेज में भाग लेने के दौरान नाटकों में अभिनय करना शुरू किया। एक बार थिएटर बग द्वारा काटे जाने के बाद, उन्होंने "प्रोग्रेसिव ड्रामेटिक एसोसिएशन" समूह के माध्यम से अपनी नाटकीय गतिविधि जारी रखी, जिसे उन्होंने भाला केलकर जैसे दिमाग वाले वरिष्ठ दोस्तों के साथ शुरू किया। [५] इस बीच, उन्होंने शुरुआती पचास के दशक में मुंबई विश्वविद्यालय से ईएनटी सर्जरी में डिग्री प्राप्त की और अतिरिक्त प्रशिक्षण के लिए कनाडा और इंग्लैंड जाने से पहले छह साल के लिए पुणे में अभ्यास किया। [६]
उन्होंने साठ के दशक में पुणे, भारत और ताबोरा, तंजानिया में दवा और सर्जरी का अभ्यास किया, लेकिन पुणे में प्रोग्रेसिव ड्रामेटिक एसोसिएशन और मुंबई में "रंगायन" के माध्यम से उनकी थिएटर गतिविधि तब जारी रही जब वे भारत में थे। अंत में, १९६९ में वह मराठी मंच पर एक पूर्णकालिक अभिनेता बन गए, जो वसंत कानेटकर द्वारा लिखे गए नाटक इठे ओशलाला मृितु में अभिनय कर रहे थे।
वह प्रसिद्ध मराठी नाटक नटसम्राट के पहले नायक थे, जिन्हें कुसुमाग्रज (विष्णु वामन शिरवाडकर) द्वारा लिखा गया था और उस भूमिका के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है। उन्हें मराठी सिनेमा में एक महान दर्जा मिला है [उद्धरण वांछित], जहां उन्होंने कई यादगार फिल्में की हैं जिनमें सिंहासन, पिंजरा और मुक्ता जैसी सफलताएं शामिल हैं।
उनकी पत्नी, दीपा लगू भी एक प्रसिद्ध थिएटर, टीवी और फिल्म अभिनेत्री हैं। [लग] उनके दो बेटे और एक बेटी है। डॉ। लगू ने अपने दिवंगत बेटे तनवीर लागू की याद में भारत के रंगमंच उद्योग में सबसे होनहार स्टालवार्ट को दिए गए प्रतिष्ठित तनवीर सम्मान की स्थापना की थी।
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता |
पहला यूथ वनडे
दूसरा यूथ वनडे
तीसरा यूथ वनडे
चौथा यूथ वनडे
पांचवा यूथ वनडे
छठा यूथ वनडे
सातवा यूथ वनडे
आठवा यूथ वनडे
नौवा यूथ वनडे
फाइनल यूथ वनडे |
भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर। यह चन्द्र महल के पूर्व में बने जय निवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मुर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।
भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र एवं मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया इनमें से पहला विग्रह है गोविंद देव जी का है दूसरा विग्रह जयपुर के ही श्री गोपीनाथ जी का है तथा तीसरा विग्रह है श्री मदन मोहन जी करौली का है वजरनाभ के माता के अनुसार श्री गोविंद देव का मुख, श्री गोपीनाथ का वक्ष, श्री मदन मोहन के चरण श्री कृष्ण के स्वरूप से मेल खाते हैं पहले यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित थे किंतु ११वीं शताब्दी ईस्वी के प्रारंभ में मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हें जंगल में छिपा दिया गया १६ वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके शिष्यों ने इन विग्रहों को खोज निकाला और मथुरा वृंदावन में स्थापित कर दिया
सन १६६९ में जब औरंगजेब ने मथुरा के समस्त मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया तो गौड़ीय संप्रदाय के पुजारी इन विग्रहों को उठाकर जयपुर भाग आए इन तीनों विग्रहों को जयपुर में ही स्थापित कर दिया गया गोविंद देव जी को जयपुर का शासक माना गया और वहां शासकीय मर्यादा लागू हुई |
स्क्रीन हिन्दी की एक फिल्मी पत्रिका है। यह कोलकाता से प्रकाशित होती है। |
आईना १९९३ की दीपक सरीन द्वारा निर्देशित हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्माण यश चोपड़ा और उनकी पत्नी पमेला चोपड़ा ने किया। मुख्य भूमिका में जूही चावला, जैकी श्रॉफ और अमृता सिंह हैं जबकि दीपक तिजोरी सहायक भूमिका में है। यह फिल्म भारत में एक ब्लॉकबस्टर हिट थी और इसने १९९० के दशक में जूही चावला को अग्रणी नायिका के रूप में मजबूत किया था।
रोमा (अमृता सिंह) और रीमा माथुर (जूही चावला) श्री माथुर (सईद जाफ़री) की बेटियाँ हैं, जो एक अमीर व्यापारी हैं। बड़ी रोमा, हमेशा दुलारी रही है, वह जो कुछ भी चाहती है उसे प्राप्त हुआ और वो बहुत प्रतिस्पर्धी है। रीमा काफी अलग-थलग रहती है और आम तौर पर अपनी बहन को सुर्खियाँ लेने देती है। दोनों पूरी तरह से अलग व्यवहार के साथ बड़े हो जाते हैं। एकमात्र समानता यह है कि बहनें एक ही आदमी, रवि सक्सेना (जैकी श्रॉफ) से प्यार करती हैं।
हमेशा ध्यान का केंद्र, रोमा उसकी नज़रों में पहले आती है। रीमा का दिल टूट जाता है, लेकिन वो उसे भाग्य समझ स्वीकार करती है। रवि और रोमा शादी करने का फैसला करते हैं। दुर्भाग्य से, रोमा एक फिल्म में हिरोइन बनने के लिए महत्त्वाकांक्षा रखती है और उसे शादी के दिन एक प्रस्ताव मिलता है। वह अपनी शादी से चंद मिनट पहले रवि का त्याग करती और उस प्रस्ताव स्वीकार करती है। रवि क्रोधित होता है और बदले में, रीमा से उसके परिवार के सम्मान को बचाने के लिए शादी करता है।
शुरुआत में, रवि और रीमा का रिश्ता काफी असहज है। लेकिन, जैसे ही समय बीतता है, रवि रीमा से प्यार करने लगता है। दुर्भाग्यवश, रोमा क्रोध में घर वापस आती है और उन्हें बताती है कि वे कभी खुश नहीं होंगे क्योंकि उसे धोखा दिया गया है। रवि को वापस पाने के लिए दृढ़, रोमा अपनी बहन के जीवन को बर्बाद करने सहित कुछ भी करने को तैयार है। वह आत्महत्या करने का नाटक करने जैसी बहुत परेशानी पैदा करती है। अंत में, रीमा हार मान लेती है और घर छोड़ देती है। इसलिए रवि उग्रतापूर्वक रोमा को समझाता है कि उसके और रीमा के बीच क्या अंतर है। रोमा अपनी गलती को समझती है और रवि और रीमा को दोबारा मिलाती है।
जैकी श्रॉफ - रवि सक्सेना
जूही चावला - रीमा माथुर
अमृता सिंह - रोमा माथुर
दीपक तिजोरी - विनय सक्सेना
सईद जाफ़री - श्री माथुर
दीना पाठक - दादी
माया अलग - श्रीमती माथुर
राजेश खट्टर - सुनील
नामांकन और पुरस्कार
| अमृता सिंह
| फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार
दिलीप सेनसमीर सेन द्वारा संगीतबद्ध फिल्में |
भारतीय क्रिकेट टीम ने २४ मई से ८ जुलाई 19८6 को इंग्लैंड का दौरा तीन टेस्ट मैचों की टेस्ट सीरीज़ और टेक्सको ट्रॉफी के लिए दो एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) मैचों में किया था।
भारत ने टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड को २-० से हराया और टेक्सको ट्रॉफी जीता और तेज रन-दर के आधार पर इंग्लैंड ने पहली गेम हारने के बाद सीरीज़ को चुकाना पड़ा। भारत के दिलीप वेंगसरकर ने टेस्ट सीरीज में कुल 36० रन बनाए और इंग्लैंड की माइक गैटिंग के साथ श्रृंखला के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का नाम दिया गया। एकदिवसीय श्रृंखला में, इंग्लैंड के डेविड गॉवर ८१ रनों के साथ शीर्ष स्कोरर के रूप में उभरा और उन्हें भारत के रवि शास्त्री के साथ श्रृंखला का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया।
इसके अलावा इंग्लैंड दौरे के हिस्से के रूप में, भारत ने आठ अन्य प्रथम श्रेणी और सात सीमित ओवरों के खेल खेले।
टेक्सको ट्रॉफी के १९८६ संस्करण इंग्लैंड में इंग्लैंड और भारत के बीच आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) क्रिकेट टूर्नामेंट था। भारत ने पहला गेम जीता और इंग्लैंड ने १-१ से सीरीज में दूसरा स्थान जीता। लेकिन, रन रेट के आधार पर भारत के दो मैचेस, यह जीत लिया है ट्रॉफी।
भारतीय क्रिकेट टीम का इंग्लैंड दौरा |
मनकट्ठा लखीसराय, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
मनकट्ठा रेलवे स्टेशन के अंतर्गत कई सारे गाँव आते है ,यहाँ यातायात के लिए सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय रेलसेवा है।
यहाँ की जनसंख्या में ज्यादा कुछ विविधता नही है।
लखीसराय जिला के गाँव |
बहुवा (बहुवा) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के फतेहपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३३५ यहाँ से गुज़रता है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के नगर
फतेहपुर ज़िले के नगर |
अरिसॆपल्लि (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
दो भिन्न प्रकार के कणों या सतहों के एक दूसरे से चिपकने की प्रवृत्ति को आसंजन (अधेशन) कहते हैं। (दो समान कणों या सतहों का आपस में चिपकने की प्रवृत्ति संसंजन (कोहेशन) कहलाती है।) आसंजन तथा संसंजन बल भी कई प्रकार के होते हैं। विभिन्न प्रकार के चिपकाने वाले टेप आदि रासायनिक आसंजन (केमिकल अधेशन), डिस्पर्सिव अधेशन या डिफ्युसिव अधेशन की श्रेणी में आते हैं।
इन्हें भी देखें
पदार्थ के गुण |
कनेहरा बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
बलेथा बेलदौर, खगड़िया, बिहार स्थित एक गाँव है।
खगड़िया जिला के गाँव |
मिनट्स टू मिडनाइट () अमरिकी रॉक बैंड लिंकिन पार्क का तिसरा स्टुडियो अल्बम है। इसे १४ मई २००७ को रिलिज़ किया गया था। |
डाबरबाडी न.ज़.आ., कालाढूगी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
न.ज़.आ., डाबरबाडी, कालाढूगी तहसील
न.ज़.आ., डाबरबाडी, कालाढूगी तहसील |
लशुन (तद्भव: लहसुन) प्याज कुल (एलिएसी) की एक प्रजाति है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियम सैटिवुम एल है। इसके निकटवर्ती सम्बन्ध में प्याज, शैलट, लीक, चाइव, वेल्श प्याज और चीनी प्याज शामिल हैं। लशुन पुरातन काल से दोनों, पाकावौषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इसकी एक विशेष गन्ध होती है, तथा स्वाद तीक्ष्ण होता है जो पकाने से काफी हद तक बदल कर मृदुल हो जाता है। लहसुन की एक गाँठ (बल्ब), जिसे आगे कई मांसल पुथी (लौंग या फाँक) में विभाजित किया जा सकता इसके पौधे का सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला भाग है। पुथी को बीज, उपभोग (कच्चे या पकाया) और औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियाँ, तना और फूलों का भी उपभोग किया जाता है आमतौर पर जब वो अपरिपक्व और नर्म होते हैं। इसका काग़ज़ी सुरक्षात्मक परत (छिलका) जो इसके विभिन्न भागों और गाँठ से जुडी़ जड़ों से जुडा़ रहता है, ही एकमात्र अखाद्य हिस्सा है। इसका प्रयोग गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गन्ध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलिसिन, ऐजोइन इत्यादि। लशुन सर्वाधिक चीन में उत्पादित होता है उसके बाद भारत में।
लशुन में रासायनिक तौर पर गन्धक की आधिक्य होती है। इसे पीसने पर ऐलिसिन नामक यौगिक प्राप्त होता है जो प्रतिजैविक विशेषताओं से भरा होता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, एन्ज़ाइम तथा विटामिन बी, सैपोनिन, फ्लैवोनॉइड आदि पदार्थ पाए जाते हैं।
आयुर्वेद और रसोई दोनों के दृष्टिकोण से लहसुन एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। भारत का चीन के बाद विश्व में क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से दूसरा स्थान है जो क्रमशः १.६६ लाख हेक्टेयर और ८.३४ लाख टन है। लहसुन में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व पाये जाते है जिसमें प्रोटीन ६.३ प्रतिशत , वसा ०.१ प्रतिशत, कार्बोज 2१ प्रतिशत, खनिज पदार्थ १ प्रतिशत, चूना ०.३ प्रतिशत लोहा १.३ मिलीग्राम प्रति १०० ग्राम होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी एवं सल्फ्यूरिक एसिड विशेष मात्रा में पाई जाती है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसमें पाए जाने वाले तत्वों में एक ऐलीसिन भी है जिसे एक अच्छे बैक्टीरिया-रोधक, फफूंद-रोधक एवं एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में जाना जाता है।
लहसुन एक बारहमासी फसल है जो मूल रूप से मध्य एशिया से आया है तथा जिसकी खेती अब दुनिया भर में होती है। घरेलू जरूरतों को पूरा करने के अलावा, भारत १७,८५२ मीट्रिक टन (जिसका मूल्य ३८७७ लाख रुपये हैं) का निर्यात करता है। पिछले २५ वर्षों में भारत में लहसुन का उत्पादन २.१६ से बढ़कर ८. ३४ लाख टन हो गया है।
लहसुन की खेती
लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध फसल है। भारत में लहसुन की खेती को ज्यादातर राज्यों में की जाती है लेकिन इसकी मुख्य रूप से खेती गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में की जाती है। इसका ५० प्रतिशत से भी ज्यादा उत्पादन गुजरात और मध्यप्रदेश राज्यों में किया जाता है।
लहसुन के लिए दोमट मिट्टी काफी उपयुक्त मानी गयी है। इसकी खेती रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है। जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा होने के साथ-साथ जल निकास की अच्छे से व्यवस्था हो, वे इस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गयी हैं। रेतीली या ढीली भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है, जिस वजह से कम उपज हो पाती है।
एग्रीफाउंड वाइट (जी. ४१ ), यमुना वाइट (जी.१ ), यमुना वाइट (जी.५०), जी.5१ , जी.२८२ ,एग्रीफाउंड पार्वती (जी.3१3 ) और एच.जी.१ आदि।
खाद एवं उर्वरक
लहसुन को खाद एवं उर्वरकों की अधिक मात्रा में जरूरत होती है। इसलिए इसके लिए मिट्टी की अच्छे से जांच करवा कर किसी भी खाद व उर्वरक का उपयोग करना उचित माना गया है।
बुवाई का सही समय
इसकी बुवाई का सही समय उसके क्षेत्र, जगह व मिट्टी पर निर्भर करता है। इसकी पैदावार अच्छी करने के लिए उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर माह सही है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च व अप्रैल के माह में करना उचित है।
लहसुन की बुवाई के तुरन्त बाद ही पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद करीब १० से १५ दिनों के बाद सिंचाई करें। गर्मी के माह में हर सप्ताह इसकी सिंचाई करें। जब इसके शल्ककन्दों का निर्माण हो रहा हो उस समय फसल की सिंचाई सही से करें।
लहसुन की फसल की उपज कई चीजों पर निर्भर करती है जिनमें मुख्य रूप से इसकी किस्म, भूमि की उर्वरा-शक्ति एवं फसल की देखरेख है। इसके साथ ही लम्बे दिनों वाली किस्में ज्यादा उपज देती हैं, जिसमें करीब प्रति हेक्टेयर से १०० से २०० क्विंटल तक उपज प्राप्त हो जाता है।
भाव सही समय पर लहसुन की बिक्री के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह किसानों की आय को प्रभावित करता है। लहसुन के भाव को निम्नलिखित कारकों पर आधारित किया जा सकता है:
मौसम: मौसम का प्रभाव लहसुन के भाव पर होता है। बारिश, बर्फबारी, और बाढ़ के कारण उत्पादन में कमी हो सकती है, जिससे भाव बढ़ सकता है।
बाजार की मांग: लोकप्रियता और मांग के आधार पर भाव परिवर्तित हो सकता है। बाजार में अच्छी मांग के साथ लहसुन के भाव अधिक होते हैं।
विपणी निर्धारण: स्थानीय बाजार और उपभोक्ताओं की विपणी नीतियों के आधार पर भाव निर्धारित हो सकता है।
विशेष योग्यता: लहसुन की गुणवत्ता, आकार, और उपज की विशेष योग्यता भी भाव पर प्रभाव डाल सकती है।
सामान्यत: लहसुन का मूल्य ८००० से १६००० रुपये प्रति क्विंटल तक होता है। |
जजीरा-डुमरा मोकामा, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
सत्यवती कॉलेज नई दिल्ली, भारत में दिल्ली विश्वविद्यालय का एक घटक कॉलेज है।
इस कॉलेज की स्थापना सन १९७२ ईं में दिल्ली की सरकार द्वारा की गई थी,जबकि "इवनिंग कॉलेज" की स्थापना १९७३ में हुई थी।यह तीसरे चरण, अशोक विहार, दिल्ली में उत्तरी परिसर में दिल्ली विश्वविद्यालय के घटक कॉलेजों में से एक है।
उल्लेखनीय पूर्व छात्र
अनिल जाट वत्स
जान्हवी पंवार (भारत की वंडर गर्ल)
दिल्ली में विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय
दिल्ली के कॉलेज
दिल्ली के विश्वविद्यालय |
९४२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
हिंदी के प्रसार में सहायक मुफ्त सॉफ्टवेअर
विज्ञान ने आज सभी जगह प्रगति दर्ज की है। कंप्यूटर के आगमन से कार्यालयीन कामकाज में बड़ी सहायता प्राप्त हुई हैं। भारत में कंप्यूटर के आगमन के साथ हिंदी भाषा भी तेजी से बढ़ने लगी। सी॰ डैक पुणे ने कुछ बेहतरीन साँफ्टवेअर विकसित किए जिससे कंप्यूटर पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग होने लगा। लेकिन हिंदी के साँफ्टवेअर काफ़ी मँहगे थे। हर कार्यालय की अपनी वित्तिय सीमा होती है। शुरुआती के दौर में कंप्यूटर की कीमत में सॉफ्टवेअर खरीदने पडते थे। भारतीय भाषाओं का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेअर अब सस्ते में प्राप्त हो रहे है।
विश्वस्तर पर भाषाओं के विकास में कंप्यूटर ने अहम भूमिका निभाई है। अंग्रेजी भाषा के फॉन्ट यूनिकोड में परिवर्तित हुए है। अनेक सॉफ्टवेअर मुफ्त में वितरित हो रहे है। कंप्यूटर की दुनिया में शेअर-वेअर, फ्रि-वेअर सॉफ्टवेयरों का बोलबोला है। इस बदलते परिवेश में हम कितने दिनों तक विदेशों का मुँह ताकते रहेंगे? भारत सरकार ने भारतीय भाषाओं के लिए प्रौधोगिकी का विकास किया है। सूचना प्रौधोगिकी एवं संचार मंत्रालय ने वॉ.इल्डक.गोव.इन वेब साईट जारी की है। इस साईट पर भारतीय भाषाओं के विकास कार्यक्रमों की जानकरी दी गई है। कार्यक्रम के अंतर्गत अनेक भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेअर इंटरनेट के माध्यम से मुफ्त डाऊनलोड किए जा सकते है। मुफ्त सॉफ्टवेअर डाऊनलोड करने से पहले आपका नाम पंजीकृत किया जाता है। पंजीकरण के बाद आपको यूज़रनेम (प्रयोगकर्ता नाम) और पासवर्ड (कूट संकेत) दिया जाता है। इसके बाद आपकी कंप्यूटर की आवयकताओं के अनुसार आप संबंधित सॉफ्टवेअर डाऊनलोड कर सकते हैं।
कृपया ध्यान रखें कि डाऊनलोड करने से पहले आपके कंप्यूटर पर डी॰ए॰पी॰ (डाऊनलोड एक्सलेंटर प्रोटोकॉल) अथवा फ्लैगेट सॉफ्टवेअर अवय स्थापित किया गया है। किसी सॉफ्टवेअर को इंटरनेट पर डाऊनलोड करने में यह सॉफ्टवेअर मदद करता है। इससे कम समय में डाऊनलोड प्रकिया तेजी से संपन्न होती है। वॉ.त्दिल.मिट.गोव.इन पर निम्नलिखित सॉफ्टवेअर मुफ्त डाऊनलोड हेतु उपलब्ध हैं।
देसिका (भाषा आकलन की सहज प्रणाली)
यह ६९३ के॰बी॰ साईज का विंडो ९५ प्लैटफॉर्म पर चलनेवाला सॉफ्टवेअर सी॰ डैक बेंगलुर ने विकसित किया है।
धर्मग्रंथ गीता पढने के लिए यह सॉफ्टवेअर सी॰ डैक बेंगलुर ने बनाया है। यह विंडो-९५ प्लैटफॉर्म पर चलता है। इसका आकारमान ३.२९ एमबी है।
ए एल पी पर्सनल (भाषा संसाधन प्रणाली) -
सी॰ डैक पुणे द्वारा विकसित सॉफ्टवेअर ३.५ एमबी आकारमान का है जो डॉस ३.० अथवा उससे उन्नत डॉस प्लैटफार्म पर चलाया जा सकता है।
कॉरपोरा (भारतीय भाषाओं का ाब्द संसार) -
सी॰ डैंक पुणे द्वारा विकसित इस सॉफ्टवेअर का आकारमान १७६ एमबी है। इसमें हिंदी के सभी अपरिष्कृत शब्दों को पी॰सी॰आई॰एस॰सी॰आई॰आई॰ में संग्रहित किया गया है।
शब्दबोध (वाक्य विलेषण) -
संस्कृत शब्दों का अर्थगत व वाक्यगत विलेषण कंप्यूटर की सहायता से पारस्परिक अनुप्रयोग द्वारा किया जा सकता है।
श्री लिपि भारती -
यह एक देवनागरी की बोर्ड ड्रायवर और ट्रू टाईप फॉन्ट्स है। इसका प्रयोग पेजमेकर, कोरलड्रा, व्हेंचुरा, अडोब इल्यूट्रेटर, एम॰एस॰ ऑफिस ९७/९८/२००० एक्स॰पी॰ आदि प्लॅटफॉर्म पर किया जा सकता है। यह फॉन्ट्स मुफ्त डाऊनलोड करके कहीं भी प्रयोग में लाए जा सकते है। इसका आकार १.२८ एम॰बी॰ है तथा एम॰सी॰आई॰टी॰ भारत सरकार ने प्रदान किया है। माड्यूलर कंपनी द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर एक उपयोगी की बोर्ड ड्रायवर है।
बहुभाषिक ई मेल क्लाएंट -
सी॰ डैक पूणे निर्मित यह सॉफ्टवेअर २.1२ एम॰बी॰ आकारमान का विंडो ९५/९८ प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें आप दस भारतीय भाषाओं में ई मेल भेज सकते है।
आई लिप -
सी डैक पुणे द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर ४.०० एम बी आकारमान का विंडो ९५/९८ एन टी पर चलाया जा सकता है। इससे वर्तनी सुधार, ई मेल भेजना, पर्दे पर की बोर्ड सुविधा, क्ष्च्क्क्ष्क्ष् डेटा आयात करना, बहुभाषिक एच टी एम एल, बनाना, शब्द संशोधक आदी कार्य किया जा सकता है। इस पुरस्कृत सॉफ्टवेअर द्वारा भारतीय भाषाओं में फाईल मेनू से एच ए टी एम एल रूप में भेजा जा सकता है।
अँग्रेजी हिदी में काम करने में सहायक सॉफ्टवेअर सॉफ्टटेक लि.नई दिल्ली ने बनाया है। विंडो ९५ प्लॅटफॉर्म पर चलनेवाला यह सॉफ्टवेअर ३.५ एम बी आकारमान का है। यह सॉफ्टवर्ड तथा वर्डस्टार की तरह कार्य करता है। इसमें वर्तनी संशोधक, शब्दकोष, मेलमर्ज .टाइपराइटर, की बोर्ड आदी सुविधा उपलब्ध है।
सुरभी प्रोफेशनल -
अपल सॉफ्ट बेंगलुर द्वारा निर्मित यह की बोर्ड इंटरफेस सॉफ्टवेअर विंडो आधारित सभी प्लॅटफॉर्म जैसे एम एस वर्ड, एम एस एक्सेल, पेजमेकर आदी में कार्य करता है। इसमें अटो फाँट सिलेक्न, फाइंड अँड रिपलेस, अटोकरेक्ट तथा इंटेलिजेंट की बोर्ड मॅनेजर सुविधा उपलब्ध है।
श्व् बुध्दीमान कुंजीपटल प्रबंधक (इटेलिजंट की बोर्ड मॅनेजर) -
अपल सॉफ्ट बैंगलुर द्वारा निर्मित यह सॉफटवेअर विंडो ९५/९८ प्लॅटफॉर्म पर काम करता है। फाईल नाम, फॉट नाम हिंदी में टाइप करते समय प्राय हिंदी अक्षरों की जगह मशीनी अपाठ भाषा दिखायी देती है। इस समस्या का हल इस सॉफ्टवेअर द्वारा निकाला जा सकता है।
श्व् शब्दिका -
यह एक लेखा परीक्षा, लेखा बँकिंग प्राासन, सूचना प्रौद्योगिकी संबंधित शब्द संग्रह है। सी डैक नोएडा व वैज्ञानिक तथा तकनिकी शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर विंडो की सभी प्रणाली में कार्य करता है। यह एक मानक, प्रामाणिक द्विभाषी शब्द संग्रह है। कार्यालय में हिंदी पत्राचार करते समय आप बँकिग प्रशासकिय, लेखा तथा लेखा परीक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी के कठिन शब्दों का अर्थ आसानी से देख सकते है।
एच वर्ड -
विंडो आधारित प्लैटफॉर्म पर कार्य करने वाला यह हिंदी का शब्दसंसाधक सी डैक नोएडा ने निर्माण किया है। हिंदी भाषा पर केंद्रित इस सॉफ्टवेअर में इन्स्क्रीपट, टाइपरायटर तथा रोमन की बोर्ड की खुबीयाँ मौजुद है। रोमन की बोर्ड भारतीय लिपि को रोमन लिप्यतंरण तालिका पर (क्ष्ग़्च्ङग्र्च्र्) मौजुद सहज सुलभ बनाया है। फाईल बनाते समय पत्र में तिथि व समय डालना, पर्दे पर दिखायी देनेवाला की बोर्ड, फाँट परिवर्तन
(डी वी टी टी फाँट से लेखिका फाँट में परिवर्तन) आदि सुविधाओं का लाभ ले सकते है।
भारतीय भाषाओं के लिए लाईनेक्स प्रणाली पर आधारित यह सॉफ्टवेअर एन सी एस टी ने प्रदान किया है। बहुभाषिक आधार, वेब ब्राऊजर, मेन्यू लेबल, मेसेज आदि जी यू आई (ग्राफिकल यूजर इंटरफेस) स्थानिक भाषा में प्रदर्शित होते है। यूनिकोड प्रणाली, ओपन टाईप फाँट विंडाज प्रणाली में सहायक, क्लायंट लाईब्रोरी से भारतीय भाषाओं में विकास, इनस्क्रीप्ट की बोर्ड, इस्की से यूनिकोड परिवर्तन, उच्च गुणता की छपवाई आदि सुविधाएँ हैं।
उपर्युक्त मुफ्त सॉफ्टवेअरों को संकलित करके कुछ अन्य फाँट की बोर्ड ड्राईवर, हिंदी ओ॰सी॰आर॰, फाँट परिवर्तन, शब्दसंसाधक आदि सुविधाओं को भारत सरकार ने स्वतंत्र वेबसाईट पर वॉ.त्दिल.मिट.गोव.इन पर भी रखा है। हिंदी सॉफ्टवेअर उपकरण की॰सी॰डी॰ सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने नि:शुल्क सॉफ्टवेअर वैबसाईट वॉ.इल्डक.इन पर उपलब्ध कर दिए है। इस सॉफ्टवेअर का विमोचन मा॰ श्रीमती सोनियाजी गांधी के कर कमलों द्वारा तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री दयनिधि मारन जी की उपस्थिति में नई दिल्ली में दिनांक २०.०६.२०05 को विज्ञान भवन में किया गया। इस योजना के अंतर्गत सभी भारतीय भाषाओं को क्रम बध्द रिति से विकसित किया जा रहा है। अब तक तमिल व हिंदी भाषा की स्वयंपूर्ण सीडी का मुफ्त वितरण किया गया है। इस मुफ्त सीडी के सहारे अब कोई भी व्यक्ति, संस्था, कार्यालय में अपने कंप्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रयोग आसानी से कर सकता है।
इस मुफ्त सॉफ्टवेयर में उपर्युक्त शब्दसंसाधक (वर्ड प्रोसेसर) विभिन्न प्रकार के पाँच सौ फाँट, शब्दकोष, वर्तनी संशोधक, अक्षर से ध्वनी (टेक्स्ट टू स्पीच) प्रकाशकीय अक्षर पहचान तंत्र (ओ.सी.आर) मशीनी अनुवाद आदि सुविधाएँ उपलब्ध है।
इस मुफ्त सॉफ्टवेअर में कुछ कमियाँ भी पायी गई है। लेकिन कंप्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रसार करने की दिशा में भारत सरकार का यह महत्वपूर्ण कदम है। इस सॉफ्टवेअर को उन्नत करने की काफी गुंजाईश है। सॉफ्टवेअर के पंडितों ने अपने सूझाव सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार को भेजने चाहिए। हम आशा कर सकते है कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं का अस्तित्व निरंतर बढता रहेगा। कंप्यूटर के बिना भाषा पीछे रहना खतरे की निशानी है। |
क्लेरेंस () एक अमेरिकी एनिमेटेड टेलीविजन श्रृंखला है। कार्टून नेटवर्क के लिए स्काईलर पेज द्वारा बनाया गया।
स्काईलर पेज - क्लेरेंस
सीन गिआम्ब्रोन - जेफ
टॉम केनी - सूमो
एरिक एडेलस्टीन - चाडो
केटी क्राउन - मां
रोजर क्रेग स्मिथ - बेल्सन
इसाबेला नीम्सो - किम्बी
अवा एकर्स - एमी |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील चंदौसी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२२
चंदौसी तहसील के गाँव |
पेस्ट विश्लेषण (पेस्ट अनालेसिस) रणनीतिक प्रबंधन में पर्यावरणीय स्कैनिंग के लिए प्रयुक्त होने वाले समष्टिगत-पर्यावरणीय कारकों के फ्रेमवर्क का विश्लेषण और विवरण है। अंग्रेजी लघुरूप पेस्ट (पेस्ट) इसमें शामिल चार घटकों के ऊपर आधारित है: राजनीतिक (पॉलिटिकल), आर्थिक (ए कनॉमिक), सामाजिक/सांस्कृतिक (स ओशियल / कल्चरल), और तकनीकी (टेक्नोलॉजिकल)।
ये चार श्रेणियां व्यापार, जहां आमतौर पर राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर स्थित हैं, की बड़ी तस्वीर का वर्णन करती हैं। पेस्ट विश्लेषण में दीर्घकालिक रुझानों पर विचार करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि विशेष उद्योगों पर उनके प्रभावों को महसूस करने से पहले वे दुनिया में अधिक स्पष्ट हो सकते हैं।
भविष्य की तैयारी करते समय, कंपनियां रणनीतिक योजना में संलग्न होती हैं। यह प्रक्रिया कंपनी के अंदर और बाहर दोनों कारकों को देखती है, और उत्पन्न सूचनाओं को व्यवस्थित करने के लिए अक्सर एक स्वोट (स्वोट) विश्लेषण, या समान ढांचे को नियुक्त करती है। रणनीतिक योजना जो बाहरी कारकों की जांच करती है, पर्यावरणीय स्कैनिंग कहलाती है ।
पेस्ट विश्लेषण पर्यावरणीय स्कैनिंग की आधारशिला है। पोर्टर के पांच बलों की तरह, एक पेस्ट विश्लेषण संगठन के बाहर आसपास के वातावरण को देखता है। हालांकि, पांच बलों के विपरीत, जो उद्योग पर ध्यान केंद्रित करता है जो एक कंपनी को घेरता है, एक पेस्ट विश्लेषण उद्योग के बाहर बड़े पैमाने पर (मैक्रो) वातावरण को देखता है। फाइव फोर्सेज की तरह, पेस्ट ओ प्पोर्टूनीटीज से मेल खाती है और स्वोट में त ह्रीट्स है। |