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गणित में फूर्ये श्रेणी (फोरियर सिरीज) एक ऐसी अनन्त श्रेणी है जो फ आवृत्ति वाले किसी आवर्ती फलन (पीरियडिक फंक्शन) को फ, २फ, ३फ, आदि आवृत्तियों वाले ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रस्तुत करती है। इसका प्रयोगे सबसे पहले जोसेफ फ़ूर्ये (१७६८ - १८३०) ने धातु की प्लेटों में उष्मा प्रवाह एवं तापमान की गणना के लिये किया था। किन्तु बाद में इसका उपयोग अनेकानेक क्षेत्रों में हुआ और यह विश्लेषण का एक क्रान्तिकारी औजार साबित हुआ। इसकी सहायता से कठिन से कठिन फलन भी ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रकट किये जाते हैं जिससे इनसे सम्बन्धित गणितीय विश्लेषण अत्यन्त सरल हो जाते हैं। फुरिअर श्रेणी के उपयोग वैद्युत प्रौद्योगिकी में - विद्युत परिपथ में बहने वाली धारा और वोल्टता आदि की गणना में कम्पन के विश्लेषण में (यांत्रिक, ध्वनि या विद्युतचुम्बकीय कम्पन) ध्वनि, प्रकाश के अध्ययन एवं विश्लेषण में २ आवर्तकाल वाले आवर्ती फलनों के लिये फुरिअर श्रेणी माना फ(क्स), वास्तविक चर क्स का एक आवर्ती फलन है जिसका आवर्त काल २ है अर्थात फ(क्स+२) = फ(क्स) तो, इस श्रेणी को फुरिअर श्रेणी कहते हैं। और को फुरिअर गुणांक कहा जाता है। ये गुणांक वास्तविक संख्या या समिश्र संख्या हो सकते हैं। फुरिअर श्रेणी का एक सरल उदाहरण माना कि दिया हुआ फलन आरीदाँत फलन (सव्टूथ फंक्शन) है जिसे निम्नवत गणितीय रूप से प्रकट कर सकते हैं: इस फलन के लिये फुरिअर गुणांक इस प्रकार होंगे: इन्हें भी देखें
गहीरमथा समुद्री अभयारण्य (गहिर्मांथा मरीन सेंक्चुअरी) भारत के ओड़िशा राज्य में स्थित एक समुद्री अभयारण्य है। यह उत्तर में धामरा नदी के नदीमुख से दक्षिण में ब्राह्मणी नदी के नदीमुख तक विस्तारित है और इसमें बंगाल की खाड़ी का कुछ भाग भी सम्मिलित है। गहीरमथा बालूतट भी इसमें शामिल है, जहाँ भारी मात्रा में ओलिव रिडली कछुए आकर रेत में अण्डे देते हैं। इन्हें भी देखें भीतरकनिका मैन्ग्रोव पारिक्षेत्र ओड़िशा के वन्य अभयारण्य
साम्यावस्था में अर्ध सेलों (हाफ सेल) के एलेक्ट्रोड विभव को मानक इलेक्ट्रोड विभव (स्टैंडर्ड इलेक्ट्रोड पॉटेंटियाल) कहते हैं। जब तत्वो को उनके मानक अपचयन विभव के आरोही क्रम मे व्यवस्थित करते हैं तो इस प्रकार प्राप्त हुइ श्रेणी विद्युत रासायनिक श्रेणी कहलाती है। इनका उपयोग विद्युतरासायनिक सेल (इलेक्ट्रॉकेमिकल सेल) (गैल्वानिक सेल) का विभव ज्ञात करने के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा इनका उपयोग किसी विद्युतरासायनिक रिडॉक्स (रेडॉक्स) अभिक्रिया के साम्य की स्थिति का पता करने के लिये किया जा सकता है। अर्थात् इसकी सहायता से यह पता कर सकते हैं कि ऊष्मागतिकी की दृष्टि से किसी विद्युतरासायनिक अभिक्रिया की गति की दिशा क्या होगी। नीचे की सूची में मानक एलेक्ट्रोड विभव वोल्ट में दिये हुए हैं। ये विभव मानक हाइड्रोजन एलेक्ट्रोड (स्टैंडर्ड हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड) के सापेक्ष दिये हुए हैं। सारणी में दर्शाये गये विभव के मान निम्नलिखित स्थितियों में सत्य होंगे- तापमान : २९८.१५ क (२५च); इन्हें भी देखें
कोलसैता डुमरिया, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
गालिब संग्रहालय दिल्ली में मुगल कालीन शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का संग्रहालय है। यह संग्रहालय, गालिब अकेडमी में है, जो नई दिल्ली के पश्चिम निज़ामुद्दीन इलाक़े में दर्गाह हज़रत निज़ामुद्दीन के करीब है। मिर्ज़ा गालिब की स्म्रुती में भारत एवं पाकिस्तान सर्कार के डाक विभागों ने डाक टिकेट जारी किये। दिल्ली के संग्रहालय
रोहेनापाली, सांरगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
फ्लिनट हार्ट ग्लोमगोल्ड- ये स्काटिश मूल का अमेरिकी अरब पति है जो बहुत ज्यादा कंजूस है पैसा कमाना कोई इस पात्र से सीखेँ इसका लक्ष्य किसी भी तरह स्क्रूज मैकडक को बरबाद करना है यह उसका नंबर एक का औध्योगिक तथा अमीरी मे प्रतिदव्न्दी है उसे गरीब करने हेतु किसी भी सीमा तक जा सकता है
अदाली, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा अदाली, पिथौरागढ (सदर) तहसील अदाली, पिथौरागढ (सदर) तहसील अदाली, पिथौरागढ (सदर) तहसील
ज्वालामुखी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा के ६८ निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। काँगड़ा जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। २०१२ में इस क्षेत्र में कुल ६५,४७४ मतदाता थे। २०१२ के विधानसभा चुनाव में संजय रत्न इस क्षेत्र के विधायक चुने गए। इन्हें भी देखें कांगड़ा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची हिमाचल प्रदेश मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट एक प्रकार का कोशिकांग है जो सुकेन्द्रिक पादप कोशिकाओं में और शैवालीय कोशिकाओं में पाया जाता है। हरितलवक प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करतें हैं। इन का हरा रंग इन में पर्णहरित (क्लोरोफ़िल) रसायन के होने के कारण है जो प्रकाश-संश्लेषण में अत्यावश्यक है। माना जाता है कि नील हरित शैवाल नाम के जीवाणुओं से हरितलवकों का विकास हुआ। हरित लवक को कोशिका का रसोईघर भी कहते हैं।
सूलीस्वरणपट्टी (सुलीस्वारणपत्ति) भारत के तमिल नाडु राज्य के कोयम्बतूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह पोल्लाची के समीप स्थित है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के शहर कोयम्बतूर ज़िले के नगर
क्रेग फेडरिघी एप्पल इंक॰ में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। फेडरिघी ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और कंप्यूटर विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि विज्ञान अर्जित की। एप्पल इंक॰ के अधिकारी
सोन्पल्लि , इच्चोड मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
पृथ्वी के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव के मिलाने वाली और उत्तर-दक्षिण दिशा में खींची गयी काल्पनिक रेखाओं को याम्योत्तर , देशान्तर , मध्यान्तर रेखाएं कहते हैं। लन्दन के निकट स्थित ग्रीनिच से जाने वाली यामोत्तर को 'प्रधान यामोत्तर' माना गया है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के निकट से जाने वाली डिग्री यामोत्तर रेखा के समय को भारतीय मानक समय माना गया है। प्रधान यामोत्तर रेखा पृथ्वी के ० देशांश (लतीट्यूड) पर खींची गई यामोत्तर रेखा प्रधान यामोत्तर रेखा या ग्रीनीच रेखा''' कहलाती है। दुनिया का मानक समय इसी रेखा के सापेक्ष निर्धारित किया जाता हैं (कोरडिनेटिड युनिवर्सल टाइम -उत्क)। लन्दन के निकटस्थ ग्रीनीच इसी रेखा पर स्थित हैं, इसलिए इसे ग्रीनीच रेखा भी कहते है। प्रधान यामोत्तर रेखा के पूर्व ने स्थित 18० तक के यामोत्तर, 'पूर्वी यामोत्तर' तथा पश्चिम की ओर स्थित यामोत्तर, 'पश्चिमी यामोत्तर' कहलाते हैं।
मालवा एक्स्प्रेस १२९२० भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल सुपरफास्ट एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन जम्मू तवी रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:जाट) से ०९:००आम बजे छूटती है और इंदौर जंक्शन बीजी रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:इंडब) पर १२:५०प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है २७ घंटे ५० मिनट। श्रेणी : मेल सुपरफास्ट एक्स्प्रेस ट्रेन वर्तमान में यह ट्रेन इंदौर के डॉ. अम्बेडकर नगर (महू) से श्री माता वैष्णोदेवी कटड़ा के लिए चलती है इस ट्रेन का नंबर १२९१९ और १२९२० है
बडियार रैत, भनोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा रैत, बडियार, भनोली तहसील रैत, बडियार, भनोली तहसील
तेजपुर गभाना, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
संबंध १९६९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। उल्हास - लाला हीरालाल जानकी दास - सरदार संगीत ओ पी नैैैयर नामांकन और पुरस्कार १९६९ में बनी हिन्दी फ़िल्म
जैरोली, पाटी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा जैरोली, पाटी तहसील जैरोली, पाटी तहसील
संचिका स्थानांतरण प्रोटोकॉल (, लघु:एफटीपी) एक नेटवर्क प्रोटोकॉल होता है जिसके द्वारा इंटरनेट आधारित टीसीपी/आईपी नेटवर्क पर संचिकाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इसे उपयोक्ता आधारित कूट (यूजर बेस्ड पासवर्ड) या अनॉनिमस यूजर एक्सेस के द्वारा काम में लाया जाता है। अब लगभग हर संस्थान में एफटीपी सर्वर होने से, यह व्यवस्था काम में नहीं आती है। अनेक हाल के वेब ब्राउजर और फाइल प्रबंधक एफटीपी सर्वरों से जुड़ सकते हैं। इससे दूर-दराज (रिमोट) से आने वाली संचिकाओं पर लोकल फाइलों जैसा ही कार्य हो सकता है। इसमें एफटीपी यूआरएल प्रयोग में लाया जाता है। संचिका भेजने के अन्य तरीके जैसे एसएफटीपी और एससीपी एफटीपी से नहीं जुड़े होते। इनकी पूरी प्रक्रिया में एसएसएच का प्रयोग होता है। फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल या एफटीपी अपने वर्तमान रूप में विभिन्न चरणों से होता हुआ पहुंचा है। सर्वप्रथम १६ अप्रैल, १९७१ में इसे आरएफसी ११४ के नाम से तैयार किया गया था जिसे बाद में जून, १९८० में आरएफसी ७६५ से बदला गया जिसे सन अक्तूबर १९८५ में आरएफसी ९५९ से परिवर्तित किया गया। उसके बाद अनेक सुरक्षा संबंधी बदलाव इसमें आए। ये सुरक्षा संबंधी बदलाव इसलिए लाए गए थे क्योंकि आरंभ में संचिकाएं भेजने का यह तरीका बहुत असुरक्षित था। इस असुरक्षा का प्रमुख कारण था कि संचिका भेजने की प्रक्रिया में कोई भी उसी नेटवर्क पर उस फाइल को चुरा या नकल कर सकता था। एचटीटीपी, एसएमटीपी और टेलनेट से पूर्व यह इंटरनेट प्रोटोकॉल के कार्यक्षेत्र में आने वाली एक आम समस्या बनी हुई थी। इस समस्या का निवारण एसएफटीपी (सिक्योर फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) के द्वारा ही संभव हुआ। आरएफसी द्वारा प्रस्तुत रूपरेखा के अनुसार, एफटीपी का प्रयोग निम्न के लिए किया जाता है: फ़ाइलों की साझेदारी को बढ़ावा देना (कंप्यूटर प्रोग्राम और/या डाटा), दूरवर्ती कंप्यूटरों के परोक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोग को प्रोत्साहन देने में, विभिन्न होस्ट के बीच फ़ाइल संग्रहण प्रणालियों में परिवर्तनों से प्रयोक्ता का परिरक्षण विश्वसनीय तरीक़े से, तथा दक्षता के साथ डाटा अंतरण करना। एफटीपी को सक्रिय मोड, निष्क्रिय मोड और विस्तृत निष्क्रिय मोड में संचालित किया जा सकता है। आरएफसी २४२८ द्वारा सितंबर १९९८ में, विस्तृत निष्क्रिय मोड जोड़ा गया था। नेटवर्क पर डाटा अंतरित करते समय, कई डाटा प्रतिनिधित्व किए जा सकते हैं। दो सर्वाधिक सामान्य अंतरण मोड हैं: अस्सी मोड: केवल सादे पाठ के लिए। (डाटा का कोई अन्य रूप, विकृत हो जाएगा) द्वयाधारी कूट मोड: प्रेषक मशीन प्रत्येक संचिका बाइट के लिए बाइट भेजती है और इस तरह प्रापक उस बाइटस्ट्रीम को प्राप्त रूप में संग्रहित करता है। (एफ़टीपी मानक इसे "इमेज" या "ई" मोड कहते हैं) फ्त्प सर्वर वापसी कोड, अपने भीतर के अंकों द्वारा अपनी स्थिति सूचित करते हैं। मूल एफ़टीपी विनिर्देशन, संचिकाओं के अंतरण की स्वाभाविक असुरक्षित पद्धति है, क्योंकि एन्क्रिप्टेड ढंग से डाटा अंतरित करने की कोई निर्दिष्ट विधि नहीं है। इसका अर्थ यह है कि अधिकांश नेटवर्क विन्यासों के अंतर्गत, प्रयोक्ता नाम, पासवर्ड, एफ़टीपी कमांड और अंतरित संचिकाएं, एक पैकेट संसूचक के उपयोग द्वारा उसी नेटवर्क पर अवस्थित कोई भी अंतरित संचिकाओं को हथिया सकता है। यह एचटीटीपी, एसएमटीपी और टेलनेट जैसे एसएसएल के निर्माण से पहले लिखे गए कई इंटरनेट प्रोटोकॉल विनिर्देशों के लिए आम समस्या रही है। इस समस्या के लिए आम समाधान है एसएफटीपी (एसएसएच फ़ाइल अंतरण प्रोटोकॉल), या एफटीपीएस (एसएसएल की अपेक्षा एफ़टीपी), जो आरएफ़सी ४२१७ में विनिर्दिष्ट तरीक़े से एफ़टीपी में एसएसएल या टीएलएस एन्क्रिप्शन जोड़ते हैं। एफ़टीपी सेवा प्रदान करने वाला एक होस्ट, अतिरिक्त रूप से अनाम एफ़टीपी पहुंच उपलब्ध कराने में सक्षम होता है। प्रयोक्ता नाम के लिए पूछे जाने पर, प्रयोक्ता सामान्य तौर पर 'अनाम' खाते की सेवा में लॉग-इन करते हैं। यद्यपि आम तौर पर प्रयोक्ताओं को पासवर्ड के एवज में अपना ई-मेल पता भेजने के लिए कहा जाता है, तो आपूरित जानकारी का सत्यापन थोड़ा-बहुत या बिल्कुल नहीं किया जाता है। चूंकि आधुनिक एफ़टीपी क्लाइंट आम तौर पर प्रयोक्ता से अनाम प्रवेश प्रक्रिया को छुपाते हैं, एफ़टीपी क्लाइंट, पासवर्ड के रूप में नकली डाटा की आपूर्ति कर सकते हैं क्योंकि अनुप्रयोग को प्रयोक्ता का ई-मेल पता ज्ञात नहीं हो सकता है। गोफ़र प्रोटोकॉल को और साथ ही साधारण फ़ाइल अंतरण प्रोटोकॉल और फ़ाइल सेवा प्रोटोकॉल को भी, अनाम एफ़टीपी के लिए एक विकल्प के रूप में सुझाया गया है। जहां एफटीपी एक्सेस प्रयोग में नहीं आता, वहां दूरवर्ती या रिमोट एफटीपी या एफटीपी मेल प्रयोग में लाया जाता है। इसमें एक ईमेल दूसरे एफटीपी सर्वर पर भेजा जाता है जो एफटीपी कमांड पूरी करता है और डाउनलोड संचिका वाली अनुलग्नक वापस भेजता है। यह खासकर वहां प्रयोग में लाया जाता है, जहां फ्त्प पहुंच प्रतिबंधित हो। दूरवर्ती एफ़टीपी सर्वर को निष्पादित किए जाने वाले एफ़टीपी कमांड युक्त ई-मेल भेजा जाता है। यह एक मेल सर्वर होता है जो आवक ई-मेल को पार्स करता है, एफ़टीपी कमांडों को कार्यान्वित करता है और अटैचमेंट के रूप में डाउनलोड किए गए किसी संचिका के साथ ई-मेल वापस भेजता है। यह स्पष्ट रूप से एक एफ़टीपी क्लाइंट से कम लचीला है, क्योंकि निर्देशिकाओं को पारस्परिक क्रिया करते या आदेशों को संशोधित करते हुए नहीं देखा जा सकता है और उत्तर में बड़े संचिका अनुलग्नकों को मेल सर्वर के माध्यम से निकलने में भी समस्या हो सकती है। आजकल अधिकांश इंटरनेट प्रयोक्ताओं के पास एफ़टीपी का पहुंच सुलभ है, अतः यह प्रक्रिया दैनंदिन उपयोग में प्रचलित नहीं है। एफ़टीपी और वेब ब्राउज़र वर्तमान में आधुनिक और हाल ही के वेब ब्राउज़र और फाइल प्रबंधक, एफ़टीपी सर्वरों से जुड़ सकते हैं, हालांकि उनमें एफटीपीएस जैसे प्रोटोकॉल विस्तार (एक्सटेंशन) के लिए समर्थन की कमी हो सकती है। यह एफ़टीपी पर दूरवर्ती संचिकाओं की अदला-बदली में स्थानीय संचिकाओं के लिए प्रयुक्त इंटरफ़ेस जैसे माध्यम को अनुमत करता है। यह एक एफ़टीपी यूआरएल के द्वारा किया जाता है। यह इस रूप में होता है: वैकल्पिक रूप से यूआरएल में पासवर्ड दिया जा सकता है, उदा.: अधिकांश वेब ब्राउज़रों को निष्क्रिय मोड एफ़टीपी की आवश्यकता होती है, जिससे पूरा करने हेतु सभी एफ़टीपी सर्वर सक्षम नहीं हैं। कुछ ब्राउज़र केवल संचिकाओं को डाउनलोड करने की अनुमति देते हैं, पर सर्वर में संचिकाओं को अपलोड करने का कोई साधन उपलब्ध नहीं कराते हैं। एफ़टीपी और एनएटी उपकरण आईपी पते और पोर्ट कमांड पर पोर्ट संख्याओं का प्रतिनिधित्व और पीएएसवी उत्तर, नेटवर्क पता अनुवाद (नट) उपकरणों के लिए फ्त्प से निपटने में एक और चुनौती है। एनएटी उपकरण द्वारा इन मानों को बदलना पड़ता है, ताकि वे नट-एड क्लाइंट के आई-पी पते और डाटा कनेक्शन के लिए नट उपकरण द्वारा चुने गए पोर्ट को शामिल करें। नया पता और पोर्ट संभवतः उनके दशमलव प्रतिनिधित्व की लंबाई में अपने मूल पते और पोर्ट से अलग हों। इसका अर्थ यह है कि नट उपकरण द्वारा सभी परवर्ती पैकेटों के लिए टीसीपी अनुक्रम और पावती फ़ील्डों को बदलते हुए, नियंत्रण कनेक्शन पर मान को सावधानी से बदला जाना चाहिए। अधिकांश नट उपकरणों में आम तौर पर इस तरह के अनुवाद नहीं किए जाते हैं, बल्कि इस उद्देश्य के लिए विशेष अनुप्रयोग स्तरीय गेट-वे उपलब्ध रहते हैं। एसएसएच की अपेक्षा एफ़टीपी स्श की अपेक्षा एफ़टीपी (ना कि एसएफ़टीपी) एक एसएसएच कनेक्शन की अपेक्षा सामान्य एफ़टीपी सत्र केटनल बनाने के प्रयोग को संदर्भित करता है।एफ़टीपी एक से अधिक टीसीपी कनेक्शनों का उपयोग करता है (टैप/इप प्रोटोकॉल के लिए असामान्य, जो अभी भी प्रचलन में है), अतएव एसएसएच पर टनल बनाना विशेष रूप से कठिन होता है। कई एसएसएच क्लाइंटों के साथ, नियंत्रण चैनल के लिए टनल तैयार करने का प्रयास (पोर्ट २१ पर प्रारंभिक क्लाइंट-टु-सर्वर कनेक्शन) केवल चैनल की रक्षा करेगा; जब डाटा स्थानांतरित होता है, दोनों छोर पर एफ़टीपी सॉफ्टवेयर टीसीपी कनेक्शनों (डाटा चैनल'') को स्थापित करेंगे, जो एसएसएच कनेक्शन से बाहर उपमार्ग पर गुज़रेंगे और इस तरह गोपनीयता, अखंडता संरक्षण, आदि नहीं रहेगी। अन्यथा, एसएसएच क्लाइंट सॉफ़्टवेयर के लिए एफ़टीपी प्रोटोकॉल का विशिष्ट ज्ञान और एफ़टीपी नियंत्रण संदेशों की निगरानी और पुनर्लेखन तथा स्वायत्त रूप से एफ़टीपी डाटा चैनलों के लिए नए अग्रेषण खोलना आवश्यक होता ज़रूरी है। एसएसएच संचार सुरक्षा के सॉफ्टवेयर परिकर का संस्करण ३ और जीपीएल द्वारा लाइसेंसकृत एफ़ओएनसी, ऐसे दो सॉफ्टवेयर पैकेज हैं, जो इस विधा का समर्थन करते हैं। स्श की अपेक्षा फ्त्प को कभी-कभी सुरक्षित फ्त्प के रूप में भी संदर्भित किया जाता है; इसे फ्त्प सुरक्षित करने की स्ल/त्ल्स (फ्टप्स) जैसी अन्य पद्धति नहीं समझना चाहिए। स्श का उपयोग करते हुए संचिकाओं को स्थानांतरित करने के अन्य तरीक़ों में शामिल हैं एसएफ़टीपी और एससीपी, जो एफ़टीपी से संबंधित नहीं हैं; इनमें से प्रत्येक में, पूरा वार्तालाप (क्रिडेंशियल और डाटा) हमेशा स्श प्रोटोकॉल द्वारा सुरक्षित है। रैक ९५९ - (मानक) फ़ाइल अंतरण प्रोटोकॉल (फ्त्प). जे. पोस्टेल, जे. रेनॉल्ड्स. अक्तूबर-१९८५. रैक २५७९ - (सूचनात्मक) फ़ायरवॉल-अनुकूल फ्त्प. रैक २२२८ - (प्रस्तावित मानक) फ्त्प सुरक्षा विस्तार. रैक २४२८ - (प्रस्तावित मानक) इप्व६, नट के लिए विस्तार और विस्तृत निष्क्रिय मोड. सितंबर-१९९८ रैक २३४० - (प्रस्तावित मानक) फ़ाइल अंतरण प्रोटोकॉल का अंतर्राष्ट्रीयकरण. रैक ३६५९ - (प्रस्तावित मानक) फ्त्प के लिए विस्तार. पी. हेथमॉन. मार्च-२००७ रॉ एफ़टीपी कमांड सूची एफ़टीपी सीक्वेंस आरेख (पीडीएफ प्रारूप में) एफ़टीपी सर्वर कनेक्टिविटी टेस्ट स्पष्ट पाठ प्रोटोकॉल नेटवर्क फ़ाइल अंतरण प्रोटोकॉल इंटरनेट का इतिहास अनुप्रयोग स्तरीय प्रोटोकॉल यूनिक्स नेटवर्क-संबंधित सॉफ़्टवेयर हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
त्यागी १९९२ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। भाग्यश्री - आरती शक्ति दयाल जयाप्रदा - पार्वती शंकर दयाल नामांकन और पुरस्कार १९९२ में बनी हिन्दी फ़िल्म
डुआन जेनसेन (जन्म १ मई २०००) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर हैं। उन्होंने २०१8-१9 सीएसए ३-दिवसीय प्रांतीय कप में उत्तर पश्चिम के लिए १0 जनवरी २०१9 को प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उन्होंने २० जनवरी २०१9 को सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज २०१8 में उत्तर पश्चिम के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। सितंबर २०१९ में, उन्हें २०१९-२० सीएसए प्रांतीय टी-२० कप के लिए फ्री स्टेट की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने १३ सितंबर २०१९ को सीएसए प्रांतीय टी-२० कप २०१९ में फ्री स्टेट के लिए अपना ट्वेंटी-२० डेब्यू किया। डुआन के जुड़वां भाई, मार्को, उत्तर पश्चिम के लिए भी क्रिकेट खेलते हैं।
अगर आप झूठ से सम्बन्धित अवधारणा के बारे में जानकारी ढूंढ रहें हैं तो झांसा का लेखे देखें झांसा (झाँसा) भारत के हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें हरियाणा के शहर कुरुक्षेत्र ज़िले के नगर
मिलिंग कटर काटने वाले औजार हैं जो प्रायः मिलिंग मशीनों में तथा कुछ अन्य मशीनी औजारों में प्रयुक्त होते हैं। अपनी गति के द्वारा वे पदार्थ को काटकर हटाते हैं। आधुनिक मिलिंग कटर गोल चक्राकार आरी का ही परिष्कृत रूप है, जो स्वयं घूमकर धीरे-धीरे थोड़ी थोड़ी धातु को खुरचकर काटता है। विचित्र आकृतिवाली वस्तुओं को चीरने का काम, जो अन्य आरियों से नहीं किया जा सकता, उसे मिलिंग कटर से करते हैं। मिलिंग कटर आज अनेक प्रकार के बनाए गए हैं जिनके दाँतों की रचना भिन्न भिन्न प्रकार की होती है। इन्हें भी देखें काटने के औजार
वइटिला (विट्टिला) भारत के केरल राज्य के एर्नाकुलम ज़िले के कोच्चि शहर में एक मुहल्ला है। यह वहाँ एक चौराहे का भी नाम है। इन्हें भी देखें केरल के शहर एर्नाकुलम ज़िले के नगर कोच्चि में मुहल्ले
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१७ गाँव कोड: ११४६८७ इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव
मेघा गुप्ता भारतीय हिन्दी अभिनेत्री हैं। यह काव्यांजली, कुमकुम, सीआईडी, मैं तेरी परछाई हूँ आदि में कार्य कर चुकी हैं। यह नच बलिए ४ नामक एक नृत्य प्रतियोगिता में नमन शॉ के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। १९८५ में जन्मे लोग भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री
७३५ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
काल समीकरण (इक्वेशन ऑफ टाइम) दो प्रकार के सौर कालों के अन्तर को पारिभाषित करता है। यहाँ 'समीकरण' का अर्थ 'समयान्तर को समाप्त करने' के अर्थ में है जो मध्ययुग में किया जाता था। इन्हें भी देखें गति के समीकरण
एमीना जाहोवीक, (जन्म: १५ जनवरी १९८२) एक सर्बियाई-तुर्की गायक-गीतकार, मॉडल और अभिनेत्री है। नोवी पज़ार में जन्मी और पली-बढ़ी, वह संगीत समारोहों के माध्यम से प्रमुखता से उभरी। जाहोवीक ने २००२ में अपना पहला एल्बम जारी किया,. लेकिन २००८ में अपने तीसरे रिकॉर्ड विला के साथ व्यावसायिक सफलता हासिल की। संभवतः सबसे लोकप्रिय क्षेत्रीय पॉप कलाकारों में से एक, उन्हें 'पॉप प्रिंसेज़' (पॉप राजकुमारी) के रूप में संदर्भित किया गया है। उन्होंने अपना टेलीविज़न डेब्यू २०१० में लाले देवरी में लाले त्सकिरान इल्गज़ के रूप में किया। २०१३ में वह एक्स फैक्टर एड्रिया पर जज थीं। जाहोवीक ने २०१४ में क्लोज़र नाम से अपना खुद का इत्र भी जारी किया है और उसका अपना कॉस्मेटिक ब्रांड यामीना है। १९८२ में जन्मे लोग
चॉकजोन (मूल अंग्रेजी: छलक्ज़ोन) एक अमेरिकी एनिमेटेड टेलीविज़न श्रृंखला है जो बिल बर्नेट और लैरी ह्यूबर द्वारा निकलोडियन के लिए बनाई गई थी जो संयुक्त राज्य अमेरिका में २००२ से २००८ तक चली थी। यह मूल रूप से फ्रेड सीबर्ट की ओह यस के लिए शॉर्ट्स की एक श्रृंखला के रूप में प्रसारित किया ओह येअह! कार्टून्स १७ जुलाई, १९९८ को कार्टून और उत्तरी अमेरिका में ४ दिसंबर, १९९९ तक चला। इसका निर्माण फ्रेडरेटर स्टूडियो और निकलोडियन एनिमेशन स्टूडियो द्वारा किया गया था। यह उत्तरी अमेरिका में वायाकॉम नेटवर्क द्वारा और अंतर्राष्ट्रीय रिलीज के लिए एक कनाडाई एनीमेशन स्टूडियो नेलवाना द्वारा वितरित किया गया था। १९९९ के अंत में, चल्कोज़न पहले ओह येअह! कार्टून्स सीरीज़ को एक वास्तविक एनिमेटेड सीरीज़ में बदल दिया गया, जो नेटवर्क द्वारा ग्रीनलाइट की गई और पूर्ण निर्मित श्रृंखला के लिए चुनी गई। लेकिन यह अज्ञात कारणों से २२ मार्च, २००२ तक हवा में नहीं आया। यह श्रृंखला उस दिन से २३ अगस्त २००८ तक निकेलोडियन पर चली, जिसमें कुल ४० सीज़न थे, जिनमें चार सीज़न थे। भारत में, श्रृंखला अंग्रेजी और हिंदी में निकलोडियन भारत पर प्रसारित हुई। श्रृंखला रूडी टैबूटी का अनुसरण करती है, एक प्राथमिक विद्यालय की छात्रा जिसका जादू चाक उसे चॉकजोन में रखने की अनुमति देता है, एक वैकल्पिक आयाम जहां एक ब्लैकबोर्ड पर खींचा और मिटाया गया सब कुछ वास्तविक हो जाता है। [२] यह शो चालज़ोन के भीतर रूडी, उनके साइडकिक स्नैप और सहपाठी पेनी सांचेज़ के कारनामों पर केंद्रित है। हिंदी डबिंग क्रेडिट एयर की तारीख: ???? डबिंग स्टूडियो: ???? चैनल: टेलीविजन निकलोडियन भारत इन्हें भी देखें चाकज़ोने पर फ्रेडरेटर स्टूडियोज
थार मरुस्थल (थार डेजर्ट), जो महान भारतीय मरुस्थल (ग्रेट इंडियन डेजर्ट) भी कहलाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी भाग में विस्तारित एक शुष्क व मरुस्थल क्षेत्र है। यह भारत और पाकिस्तान में २००,००० किमी२ (७७,००० वर्ग मील) पर विस्तारित है। यह विश्व का १७वाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है और ९वाँ सबसे बड़ा गरम उपोष्णकटिबन्धीय मरुस्थल है। थार का ८५% भाग भारत और १५% भाग पाकिस्तान में है। थार का ८५% भाग भारत में आता है। भारत के अनुसार थार के मरुस्थल का राजस्थान मे विस्तार ६२% है और राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का ६१.११% भाग मरुस्थल से घिरा हुआ है। जिनमे राजस्थान के चुरू,हनुमानगढ़,बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर,बाड़मेर , हालांकि यह मरुस्थल गुजरात, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में भी फैला हुआ है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में थार चोलिस्तान में विस्तारित है। थार का पश्चिमी भाग मरुस्थली कहलाता है और बहुत शुष्क है, जबकि पूर्वी भाग में कभी-कभी हलकी वर्षा हो जाती है और कम रेत के टीले पाए जाते हैं। अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार मरुस्थल स्थित है। यह मरुस्थल बालू के टिब्बों से ढँका हुआ एक तरंगित मैदान है। थार मरुस्थल अद्भुत है। गर्मियों में यहां की रेत उबलती है। इस मरुभूमि में ५२ डिग्री सेल्शियस तक तापमान रिकार्ड किया गया है। जबकि सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ की बालू रेत जो जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है। गरमियों में मरुस्थल की तेज गर्म हवाएं चलती है जिन्हें "लू" कहते हैं तथा रेत के टीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं और टीलों को नई आकृतियां प्रदान करती हैं। गर्मी ऋतु में यहां पर तेज आंधियां चलती है जो रेत के बड़े-बड़े टीलों को दूसरे स्थानों पर धकेल देती है जिससे यहां मरुस्थलीकरण की समस्या बढ़ती जाती है। जन-जीवन के नाम पर मरुस्थल में मीलों दूर कोई-कोई गांव मिलता है। थार के मरुस्थल में अगर कोई शहर विकसित हुआ है तो वह शहर जोधपुर शहर है यहां हिंदू एवम मुसलमान धर्म के लोग ही निवास करते हैं प्रकृति की मार को सहन करते हुए भी यहां पर कुछ जातियां समृद्धि के चरम को छू रही है उदाहरण के लिए गुर्जर समाज इस समाज के लोगों ने यहां पर खूब तरक्की की है यहां बिश्नोई समाज के लोग वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करते हुए पाए जाते हैं । थार के मरुस्थल में रहने वाले लोग वीर एवं साहसी होते हैं लोगों में देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी होती है पशुपालन यहां का मुख्य व्यवसाय है पशुओं में गाय बैल भैंस बकरी भेड़ घोड़े गधे इत्यादि जानवरों को पाला जाता है मुख्य रूप से यहाँ ऊंट पाले जाते है राजस्थान में मरू समारोह (फरवरी में) - फरवरी में पूर्णमासी के दिन पड़ने वाला एक मनोहर समारोह है। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है। प्रसिद्ध गैर व अग्नि नर्तक इस समारोह का मुख्य आकर्षण होते है। पगड़ी बांधने व मरू श्री की प्रतियोगिताएं समारोह के उत्साह को दुगना कर देती है। सम बालु के टीलों की यात्रा पर समापन होता है, वहां ऊंट की सवारी का आनंद उठा सकते हैं और पूर्णमासी की चांदनी रात में टीलों की सुरम्य पृष्ठभूमि में लोक कलाकारों का उत्कृष्ट कार्यक्रम होता है। वर्तमान में थार क्र राजा महाराजा महारावल चैतन्यराज सिंह जी है जो की प्रजा प्रेमी है। इन्हें भी देखें कच्छ का रण थार का मरुस्थल जागरण - पधारो म्हारै देश थार की कसीदाकारी भारत के मरुस्थल भारतीय उपमहाद्वीप के रेगिस्तान मरुस्थल और शुष्क क्षुपभूमियाँ राजस्थान का पर्यावरण
सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमेटिक्स (सी-डॉट) भारत सरकार का दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास केंद्र है। इसकी स्थापना एक स्वायत्त संस्था के रूप में अगस्त १९८४ में की गयी थी। इसे भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक दूर संचार प्रौद्योगिकी विकसित करने का संपूर्ण अधिकार तथा पूर्ण स्वतंत्रता दी गयी। इसका मुख्य उद्देश्य दूर संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना करना है। १९८४ में सी-डॉट का काम प्रारंभ में मुख्य रूप से डिजिटल एक्सचेंजों की डिजाइनिंग और विकास करना तथा भारतीय उद्योग द्वारा इसके व्यापक स्तरीय विनिर्माण को सुकर बनाना था। बाद में, १९८९ में संचार उपकरणों का विकास भी इसके कार्य क्षेत्र में जोड़ दिया गया। दूरसंचार प्रौद्योगिकी उत्पादों और सेवाओं के संबंध में काम करना दूरसंचार की वर्तमान तथा भावी आवश्यकताओं तथा ग्रामीण अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक कनवर्ज़ड नेटवर्कों के लिए समाधान उपलब्ध कराना अनुसंधान और विकास कार्यकलापों का बाजार अभिमुखीकरण करना तथा सी-डॉट को उत्कृष्ट केंद्र के रूप में बनाए रखना उद्योग, समाधान प्रदाताओं, दूरसंचार कंपनियों तथा अन्य विकास संगठनों के साथ भागीदारी और संयुक्त गठबंधन के जरिये लागत प्रभावी समाधान देना संस्थापित नेटवर्कों के अधिकतम उपयोग द्वारा नई प्रौद्योगिकियों, विशिष्टताओं और सेवाओं की शुरूआत में दूरसंचार कंपनियों और सेवाप्रदाताओं का समर्थन करना| नीति संबंधी दिशा निर्देश देती है तथा केंद्र के वार्षिक बजट का अनुमोदन करती है। इसकी भूमिका केंद्र के निष्पदन की समीक्षा और निगरानी करना है। यह सी-डॉट की परियोजनाओं के कार्यान्वयन तथा केंद्र के रोजमर्रा के कामकाज के लिए जिम्मेदार है। नई दिल्ली कैम्पस नया अनुसंधान और विकास भवन अपने इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाया गया है। शहर के शोरगुल से दूर यह परिसर प्रसिद्ध छत्तरपुर मंदिर परिसर के पास मांडी रोड, महरौली में खूबसूरत फार्म हाउसिस के बीच स्थित है। सी-डॉट की प्रयोगशालाएं पहले दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में भीड़-भाड़ वाले इलाकों में स्थित किराए के भवनों में थी। वर्तमान सुविधा सी-डॉट के सभी कार्यकलाप, अनुसंधान और विकास, कम्पयूटर समर्थित डिजाइन प्रणालियाँ, वैधकरण केंद्र तथा कैप्टिव पाइलट तथा क्षेत्र परीक्षण सुविधाएं एक ही स्थल पर उपलब्ध करायेगी। विकास टीमों को समर्थन देने वाले तकनीकी और प्रशासनिक सेवा समूह भी साथ ही स्थित हैं। भवन की मुख्य विशेषताओं में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकास प्रयोगशालाएं, अत्याधुनिक भवन प्रबंधन प्रणाली, भौमजल के कुएं, निर्बाध विद्युत आपूर्ति तथा अनुसंधान और विकास कार्य के लिए आवश्यक वातानुकूलित वातावरण आदि शामिल हैं। महरौली, नई दिल्ली-११००३० इलैक्ट्रॉनिक्स सिटी, फेज-१, बंगलूर ५६० १०० छठी मंजिल, सीटीएस बिल्डिंग, एफ-९४, ट्रांसपोर्ट डिपो रोड. अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास ढांचा हार्डवेयर तथा एसआईसी डिजाइन के लिए इलैक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन टूल सॉफ्ट्वेयर के विकास तथा परीक्षण के लिए केस टूल पॉयलट प्रोडक्शन प्लांट प्रयोगशालाएं (हार्डवेयर तथा सॉफ्ट्वेयर टूल) केंद्र में आरआईएससी वर्क स्टेशनों के क्लाइंट सर्वर नेटवर्क, नवीनतम सॉफ्ट्वेयर विकास उपकरण तथा अत्यन्त परिपक्व और प्रभावी विकास तथा समर्थन क्रिया-विधि युक्त अत्याधुनिक विकास पर्यावरण है। केस टूल, वस्तु-अभिमुख क्रियाविधियां, सॉफ्टवेयर इत्यादि का व्यापक प्रयोग किया जाता है। सी-डॉट में सुसज्जित हार्डवेयर सुविधा है। यहां स्थित कैड सुविधाएं देश में सर्वोत्तम सुविधाओं में से है, जो मल्टिलेयर, हाईफ्रिक्वैन्सी (६२एमबीपीएस) बोर्डों के विकास को संभव बनाती है। केंद्र में आधुनिकतम हार्डवेयर प्लेटफार्म तथा सॉफ्ट्वेयर टूल सहित एएसआईसी डिजाइन सुविधाएं भी हैं। ०.३५ एम में कॉम्पलैक्स एएसआईसी, 1०० केबी रैम तथा 45० के से अधिक गेट काउंट सहित ३.३वी सीएमओएस भी डिजाइन किए गए हैं। प्रयोगशालाओं में आधुनिक परीक्षण एवं मापक उपकरण, माइक्रोप्रोसेसर विकास प्रणालियां तथा प्रोटोटाईप सुविधाएं उपलब्ध हैं। भारत में सी डॉट एक्सचेंजों की स्थापना इस प्रकार से है:- सी-डॉट प्रौद्योगिकी पर आधारित एक्सचेंज दुनियाभर के विभिन्न देशों में स्थापित हैं।. वर्तमान महत्व और भावी योजनाएं सी-डॉट की वर्तमान उत्पाद सूची में विश्व स्तरीय डिजिटल स्विचिंग प्रणालियां, इंटेलीजेंट नेटवर्क समाधान, एक्सेस नेटवर्क उत्पाद, वॉयस ओवर आई पी समाधान, एसडीएच तथा डब्ल्यूडीम प्रौद्योगिकियां, उपग्रह संचार प्रणालियां, नेटवर्क प्रबंधन प्रणालियां तथा प्रचालन समर्थन प्रणालियां शामिल हैं। सी-डॉट की डिजिटल स्विचिंग प्रणालियां, इंटेलीजेंट नेटवर्क प्रणालियां और ग्रामीण दूरसंचार उत्पाद विशाल भारतीय दूर संचार नेटवर्क पर छाए हुए हैं। सी-डॉट को यह लाभ उसके उत्पादों की लागत प्रभाविकता और मजबूती, व्यापक प्रौद्योगिकी अंतरण तथा फील्ड समर्थन क्रियाविधी के कारण मिला है जिसमें प्रौद्योगिकी प्रप्तकर्ताओं, नेटवर्क प्रचालकों और सेवा प्रदाताओं के साथ दीर्घावधिक संबंधों पर जोर दिया जाता है। महत्व के क्षेत्र परंपरागत प्रणालियों के लिए व्यावसायिक समर्थन एडवांस्ड इंटैलिजेंट नेटवर्क सेवाएं प्रचालन समर्थन प्रणालियां नेटवर्क प्रबंधन प्रणालियां फिक्सड तथा मोबाइल ग्रामीण वायरलैस प्रणालियां इंटरस्टी ट्रंक एक्सचेंजों के लिए नेक्स्ट जनरेशन नेटवर्क प्रणालियां नीतिपरक सेक्टर विकास परियोजनाएं सी-डॉट की उपलब्धियां इस प्रकार से हैं:- सी-डॉट प्रौद्योगिकी पर आधारित प्रणालियां २०० लाइनों से ४०००० लाइनों तक की क्षमता में प्रचालन में है। लगभग २.५ करोड़ टेलीफोन लाइनों की क्षमता के साथ ३०,००० से ज्यादा सी डॉट एक्सचेंज फील्ड में स्थापित और प्रचलित हैं। संस्थापित दूर संचार उपकरणों का मूल्य ७५०० करोड़ रूपये है। प्रौद्यौगिकी अंतरण और रॉयल्टी से पर्याप्त आय। कम पूंजीगत निवेश से प्रौद्योगिकी विकास। व्यापक स्तरीय प्रौद्योगिकियां, उत्पाद और समाधान। दूर संचार के क्षेत्र में तकनीकी जनशक्ति का विशाल भंडार निर्मित किया। बहुनिर्माताओं द्वारा उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी अंतरण प्रक्रिया स्थापित की। समाधान और उत्पाद (ब्रॉडबैंड एकीकृत सेवाएं डिजिटल नेटवर्क स्विचिंग प्लेटफॉर्म) सी-डॉट बी आइ एस डी एन स्विचिंग प्रणाली पब्लिक नेटवर्कों में बहुतायत में होने वाली जटिल समस्याओं का एकीकृत हल है। इस श्रेणी में छोटे विस्तृत क्षेत्र के नेटवर्क से लेकर ध्वनि, वीडियो, डाटा और मल्टीमीडिया ले जाने वाले बड़े पब्लिक नेटवर्कों तक के लिए व्यापक उत्पाद शामिल हैं। मल्टी सर्विस एक्सेस नेटवर्क यूनिट से उत्पाद, सीरीज रेंज में आते हैं जिन्हें बहुविध नेटवर्कों द्वारा विस्तृत क्षेत्र के बैकबोन नेटवर्कों के स्थायित्व के लिए कोर स्विच वाहक श्रेणी के लिए स्थापित किया जाता है। भारतीय बाजार में ५०% फिक्सड लाइनें सी-डॉट द्वारा विकसित स्विचों पर आधारित हैं। सी-डॉट ने क्रमशः स्टैंड-अलोन तथा मल्टिमोडयूल, दोनों किस्मों में २०० से १,००,००0 उपभोक्ताओं तक की विभिन्न क्षमताओं के अत्याधुनिक ग्रामीण तथा शहरी डिजिटल स्विच विकसित किए हैं। ये सभी स्विच आधुनिक सुविधाओं से युक्त हैं एवं इनका निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि ये सेवा की जरूरतों एवं नई तकनीकों के मुताबिक कार्य कर सकें। ग्रामीण स्वचालित एक्सचेंज (रैक्स) सी-डॉट रैक्स २५६ टर्मिनेशन अथवा पोर्ट तक की क्षमता सहित एक डिजिटल स्टोर्ड प्रोग्राम नियंत्रण प्रणाली है। इसमें एक नॉन-ब्लॉकिंग ४-वायर पीसीएम स्विचिंग नेटवर्क कार्य करता है। सी-डॉट रैक्स २५६ टर्मिनेशन अथवा पोर्ट तक की क्षमता सहित एक डिजिटल स्टोर्ड प्रोग्राम नियंत्रण प्रणाली है। इसमें एक नॉन-ब्लॉकिंग ४-वायर पीसीएम स्विचिंग नेटवर्क कार्य करता है। यह ग्रामीण प्रयोगों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, क्योंकि यह बिना किसी बुनियादी ढांचे के तत्काल टेलीफोन कनैक्शन उपलब्ध करता है। दुनिया के अधिकांश गांवों में जनसंख्या २००० से कम है और ये दूर-दराज के इलाकों में बसे है जहां संचार हमेशा से ही एक बड़ीसमस्या रहा है। मुख्य स्वचालित एक्सचेंज (मैक्स) सी-डॉट अंकीय स्विचिंग प्रणाली मेन ऑटोमैटिक एक्सचेंज, अंकीय स्विचिंग प्रणालियों का एक समूह है जो राष्ट्रीय दूरसंचार नेटवर्क के लिए संपूर्ण स्विचिंग सुविधा उपलब्ध कराता है। सी-डॉट डीएसएस मैक्स उत्पादों ने स्थानीय, टोल, परागमन और एकीकृत स्थानीय और एवं परागमन स्विचों के रूप में अपनी क्षमता साबित कर चुके हैं। ग्रामीण अनुप्रयोगों के लिए कुछ सौ लाइनों को आधार प्रदान करने वाले स्विचों से लेकर केंद्रीय कार्यालय के एप्लीकेशन के लिए मुख्य स्विचों की ४०,००० लाइनों की सी-डॉट डीएसएस मैक्स की मॉडयूलर संरचना, सभी स्तर के ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हैं। एक्सेस नेटवर्क ग्रामीण स्वचालित एक्सचेंज सी-डॉट २५६ पोर्ट एएन रैक्स एक एक्सेस नेटवर्क उत्पाद है जिसका विकास ग्रामीण इलाकों के लिए विश्व स्तरीय, लागत प्रभावी संचार समाधान के लिए किया गया है। इसके विकास का एकमात्र उद्देश्य गांवों को बदलना था। जमाव बिंदू से कम तापमान वाले पहाड़ी इलाकों, घने वनों, विशाल मरूस्थलों और तटवर्ती क्षेत्रों में-हर तरह के पर्यावरण में प्राकृतिक बाधाओं से परे काम करता है। इंटेलीजेंट नेटवर्क समाधान कन्वर्जड नेटवर्कों के लिए नेटवर्क समाधान सी-डॉट लागतप्रभावी तथा गतिशील एकीकृत वायरलाइन तथा वायरलैस इंटेलीजेंट नेटवर्क समाधान प्रदान करता है जिसमें सेवा नियंत्रण बिन्दु (एससीपी), सेवा प्रबंधन बिन्दु (एसएमपी), विशेषीकृत संसाधन बिन्दु (एसआरपी), सेवा निर्माण पर्यावरण बिन्दु (एससीईपी), तथा सेवा स्विचन बिन्दु (एसएसपी) शामिल हैं। इनका प्रयोग वायरलाइन, जीएसएम तथा सीडीएमए वायरलैस की विशिष्टतापूर्ण मूल्यवर्द्धित दूरसंचार सेवाएं तथा इंटरनेट प्रोटोकॉल नेटवर्क तत्काल लगाने के लिए किया जा सकता है। प्रत्येक नोड लागतप्रभावी तरीके से सेवाओं के लिए बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अलग-अलग काम में लाया जा सकता है। यह समाधान आईटीयू-टी, ईटीएसआई तथा आईईटीएफ मानकों के अनुरूप है और बहुविक्रेता, बहुसेवा नेटवर्क के लिए तैयार है। फिक्स्ड लाइन एसएमएस समाधान फिक्सड लाइन एसएमएस प्रौद्योगिकी लैंड लाइन उपभोक्ताओं के लिए मैसेजिंग सेवा के सभी लाभ उपलब्ध कराती है जो अब तक सिर्फ सेल्यूलर मोबाइल उपभोक्ताओं को ही प्राप्त थी। फिक्सड लाइन उपभोक्ता पीओटीएस, सीडीएमए, डब्ल्यूएलएल तथा जीएसएम और सीडीएमए उपभोक्ताओं को/ द्वारा शॉर्ट मैसेज भेज/ प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी से थर्ड पार्टी कंटेन्ट प्रदाताओं और विक्रेताओं के लिए बहुत से अवसर खुल गए हैं। यह ई-गवर्नेन्स जैसी सरकारी पहल के लिए भी एक महत्वपूर्ण साधन है। आने वाले समय में दूरसंचार प्रचालक और सेवा प्रदाता इन सेवाओं से पर्याप्त आय की अपेक्षा कर सकते हैं। नेटवर्क प्रबंधन समाधान सी-डॉट नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली (सीएनएमएस) नेटवर्क प्रबंधन समाधानों की श्रेणी सीएनएमएस का एक हिस्सा है। सीएनएमएस एक अथवा अधिक नेटवर्क नियंत्रण केंद्रों से वास्तविक समय में नेटवर्क एलीमेंट के निष्पादन को ऑनलाइन प्रबंधित, मॉनिटर, नियंत्रित और अनुरक्षित करने के लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर समाधान प्रदान करता है। प्रत्येक नेटवर्क नियंत्रण केंद्र इससे जुड़े विभिन्न नेटवर्क एलीमेंटस की निगरानी और नियंत्रण रख सकता है। सीएनएमएस विभिन्न अनुप्रयोगों युक्त नेटवर्क में अत्यंत उपयोगी है और पूरे नेटवर्क निष्पादन और उत्पादकता के प्रभावी सुधार और नेटवर्क संसाधनों के अधिकतम उपयोगी के लिए निर्वाद सेवा और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है। प्रचलन समर्थन प्रणाली सी-डॉट की बिलिंग तथा प्रचालन समर्थन प्रणाली (सी-बॉस) एक कन्वर्जेंट कस्टमर केयर, बिलिंग तथा लेखांकन प्रणाली है जो प्रतिस्पर्द्धात्मक बहु-सेवा, बहु-प्रौद्योगिकी तथा बहु विक्रेता दूरसंचार नेटवर्क के लिए उपयोगी है। यह फिक्सड लाइन (पीएसटीएन, आईएसडीएन, लीज्ड लाइन), मोबाइल (डब्लयूएलएल,२जी, जीपीआरएस तथा ३जी), एटीएम तथा इंटरनेट प्रोटोकॉल नेटवर्कों पर बुनियादी तथा मूल्यवर्द्धित सेवाएं प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण समाधान है। प्रचलन समर्थन प्रणाली सी-डॉट की बिलिंग तथा प्रचालन समर्थन प्रणाली (सी-बॉस) एक कन्वर्जेंट कस्टमर केयर, बिलिंग तथा लेखांकन प्रणाली है जो प्रतिस्पर्द्धात्मक बहु-सेवा, बहु-प्रौद्योगिकी तथा बहु विक्रेता दूरसंचार नेटवर्क के लिए उपयोगी है। यह फिक्सड लाइन (पीएसटीएन, आईएसडीएन, लीज्ड लाइन), मोबाइल (डब्लयूएलएल,२जी, जीपीआरएस तथा ३जी), एटीएम तथा इंटरनेट प्रोटोकॉल नेटवर्कों पर बुनियादी तथा मूल्यवर्द्धित सेवाएं प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण समाधान है। ऑप्टिकल क्षेत्र में सी-डॉट एसडीएच हैरारकी की कॉम्पेक्ट और लागत प्रभावी एसटीएम-१ तथा ब्रॉडबैंड ऑप्टिकल फाइबर बैकबोन नेटवर्कों के लिए ऑप्टिकल बूस्टर एम्पलीफायर उपलब्ध कराता है। डैन्स तथा कोर्स वेवलैंथ मल्टिप्लैक्सिंग प्रणालियां का विकास कार्य शीघ्र ही पूरा होने वाला है।. ग्रामीण वायरलैस एक्सेस तथा ब्रॉडबैंड समाधान सी-डॉट ग्रामीण वायरलैस एक्सेस तथा ब्रॉडबैंड समाधान एकीकृत वॉइस, मल्टिमीडियम और ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए मूल्यवद्धित विशिष्टताएं उपलब्ध कराता है। यह सेवाओं के त्वरित रोल आउट को भी आसान बनाता है। यह समाधान दूर-दराज तितर-बितर, कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने के लिए लागत-प्रभावी वाइमैक्स तथा वाय-फाय प्रौद्योगिकियों के मिश्रण पर आधारित है। स्थलीय तथा उपग्रह सी-बैंड में आईडीआर उपकरण वेरियेबल रेट मॉडेम केयू बैंड अप तथा डाउन कन्वर्टर आरएफ स्विच ओवर यूनिट मॉडेम स्विच ओवर यूनिट अधिक जानकारी हेतु देखें सी-डॉट की सबसे बड़ी संपत्ति इसका व्यापक ज्ञान भंडार है जो इसने लागतप्रभावी संचार प्रौद्योगिकियां विकसित करने के दौरान अर्जित किया है। इसकी बदौलत पूंजीगत व्यय में बचत होती है और ग्राहकों को सेवासंतुष्टि मिलती है। हमारी परामर्श सेवाओं का लक्ष्य ग्राहकों के लिए लागतप्रभावी नेटवर्क डिजाइन करने में निर्बाध प्रचलन सुनिश्चित करते हुए सहायता देना शामिल हैः बिना अतिरिक्त संसाधन निवेश के उच्च स्तरीय विशेषज्ञता तक पहुँच उन्नत परिसंपत्ति उत्पादकता तथा विपणन करने के लिए कम समय लागतप्रभावी नेटवर्क योजना रचनात्मकता और प्रभावोत्पादकता के साथ बाजार के बारे में हमारी जानकारी तथा हमारे लक्ष्यों से गुणवव्ता और नवीनता में नए आयाम स्थापित किये गए जो हमारे ग्राहक हमसे अपेक्षा रखते हैं। सी-डॉट की परामर्श सेवा के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमसे संपर्क करें। सी-डॉट विनिर्माण, परीक्षण, स्थापना और रख-रखाव के लिए अपने ग्राहकों के इंजीनियरों को हार्डवेयर और सॉफ्ट्वेयर का उपयुक्त प्रशिक्षण देता है। उत्पादों और विनिर्माण प्रौद्योगिकी को आसानी से समझने के लिए प्रशिक्षण में व्यावहारिक जानकारी देने के साथ-साथ क्लासरूम लैक्चर भी शामिल हैं। उत्पादन अवसंरचना की स्थापना, प्रोटोटाइप तैयार करने, परीक्षण प्रणाली एकीकरण तथा वैधीकरण के चरणों के दौरान सी-डॉट उत्पादन सुविधा के साथ-साथ सी-डॉट विशेषज्ञों से तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है। सी-डॉट की हस्तांतरण (टीओटी) नीति हस्तांतरण प्रक्रिया में काफी सफल रही है। इसका उद्देश्य प्राप्तकर्ता को केवल बुनियादी ढांचे और उत्पादन की पर्याप्त जानकारी देने तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह लाइसेंसप्राप्त विनिर्माताओं को पूंजीगत उपकरणों और कल पुर्जों के स्त्रोतों के बारे में भी महत्वपूर्ण ब्यौरा उपलब्ध कराता है। विनिर्माताओं को पूंजीगत उपकरणों और कल-पुर्जों की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है ताकि उन्हें प्रापण प्रक्रिया में आसानी हो। बैच स्वीकार्यता प्रक्रिया तथा गुणवत्ता के स्वीकार्य मापदंड भी सहायता में शामिल किए जाते हैं। सी-डॉट हस्तांतरण पैकेज के अंतर्गत प्रलेखन, प्रशिक्षण तथा प्रोटोटाइप विकसित करने और अनुवर्ती सेवाएं भी उपलब्ध कराता है। हस्तांतरण के सहमत तरीके के आधार पर टीओटी प्रक्रिया दो अलग-अलग प्रकार की हो सकती है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पैकेज में निम्नलिखित शामिल हैं: परीक्षण और वैधीकरण दस्तावेज उत्पादन तथा गुणवत्ता नियंत्रण दस्तावेज विदेशों में प्रौद्योगिकी प्राप्तकर्ता के लिए उत्पादन शुरू करने के विकल्प तैयार प्रणालियों का समेकन और परीक्षण सेमी नॉकडाउन (एसकेडी) को एसेम्बल करना कम्पलीटली नॉक डाउन (सीकेडी) किट सी-डाट के भआगीदार हैं:- सी-डॉट ने मार्च २००५ में भारतीय और विश्व बाजारों के लिए वायरलैस प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान, विकास और विपणन के लिए एल्काटेल के साथ समझौता ज्ञापन और विपणन के लिए एल्काटेल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसने वाईमैक्स प्रौद्योगिकियों (आईईईई ८०२.१६ई स्टेन्डर्ड) पर आधारित पहली परियोजना के साथ वायरलैस प्रौद्योगिकियों पर वैश्विक अनुसंधान केंद्र स्थापित करना शामिल है। सी-डॉट तथा वानुइंक सॉफ्टवेयर रेडियो समाधान के अग्रणी विकासकर्ता ने भारतीय ग्रामीण संचार बाजार के लिए वायरलैस अभिगम्यता और ब्रॉडबैंड समाधान में महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में वानु एनीवेव टीएम सॉफ्टवेयर रेडियो जीएसएम बेस स्टेशन प्रौद्योगिकी का परीक्षण के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।. सी-डॉट ने फिक्स्ड वायरलैस ब्रॉडबैंड अभिगम्यती प्रणालियों को संयुक्त विकास के लिए कम्यूनिकेशन्स रिसर्च सेंटर (सीआरसी), कनाडा के साथ समझौता ज्ञापन किया। कार्य़ संस्कृति और माहौल सी-डॉट की स्थापना भारतीय परिवेश में उच्च उत्पादकता, दक्षता और बेहतर जीवनशैली के लिए जनप्रबंधन के मॉडल के रूप में की गई। सी-डॉट में लगभग १००० इंजीनियर कार्यरत हैं। मानव संसाधन विकास ने इसकी स्थापना से ही एक बेहतर तादात्म्य स्थापित करने के लिए एक उत्प्रेरक का काम किया है ताकि अलग-अलग प्रतिभाओं और सीमा के कर्मचारी सर्वोत्तम परिणाम के लिए एक-दूसरे के पूरक बन सकें। सी-डॉट में मानव संसाधन का उद्देश्य लोगों और व्यावसायिकता के प्रति वचनबद्धता पर आधारित उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए अनुकूल माहौल और संस्कृति का निर्माण करना रहा है। सी-डॉट में माहौल सभी के प्रति सम्मान और अपनेपन की भावना विकसित करने का है। सी-डॉट में कर्मचरियों और उनके परिवार के सदस्यों के कल्याण पर जोर दिया जाता है। कैंटीन, वाहन और कार्यलय अवसंरचना जैसी सुविधाएं चौबीसों घंटे उपलब्ध रहती हैं। मानव संसाधन प्रबंधन में कर्मचारियों के विकास और सीखने के माहौल के माध्यम से उनकी प्रतिभा में निखार लाने को अत्यंत महत्व दिया जाता है। सी-डॉट के कार्यकलाप और कार्यपद्धति को इस तरह से विकसित किया गया है कि सभी सदस्यों में गौरव तथा संतोष की भावना विकसित हो, सर्वश्रेष्ठ योगदान देने की इच्छा हो, व्यक्तिगत प्रभाव बढ़ाने, कार्य की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा कैरियर विकास के साथ -साथ कर्मचारियों को बेहतर व्यक्ति बनाने के लिए तैयारी करना शामिल है। सी-डॉट में मानव संसाधान की विभिन्न नीतियां और प्रक्रियाएं विश्वास, देखभाल और सशक्तिकरण के सिद्धांतों पर आधारित है। कर्मचारियों में अत्याधिक विश्वास, प्रचालन, कार्य घंटों में लचीलेपन तथा स्वघोषणा पर विभिन्न व्ययों की प्रतिपूर्ति जैसी सुविधाओं से परिलक्षित होता है। सी-डॉट का कर्मचारी सशक्तिकरण का सिद्धांत विभिन्न योजनाओं, समीक्षा और निगरानी समितियों में कर्मचारी को शामिल करने खुली तथा पारदर्शी प्रणाली द्वारा परिलक्षित होता है, जहां अधिकांश निर्णय (अर्थात पदोन्नति पुरस्कार) आदि अलग-अलग टीमों द्वारा दिये जाते हैं। वित्तीय तथा प्रशासनिक अधिकारों को प्रचालन स्तर पर प्रत्यायोजित किया गया है। सी-डॉट का संगठन समतावादी सिद्धांतों पर आधारित है जो व्यावसायिकता, खुलेपन, कर्मचारी के लिए सम्मान, रचनात्मकता, नवीनता, प्रतिस्पर्द्धा और चुनौती को बढ़ावा देता है तथा जनअभिमुखीकरण और आत्मविकास को महत्व देता है। विभिन्न प्रणालियां, नीतियां तथा व्यवसाय योजनाएं, उत्पाद योजनाएं पूरी तरह निर्धारित हैं तथा लैन के जरिये इन तक सबकी पहुँच है। सी-डॉट तथा जॉल्टिड इंफरमेशन सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड ने फाइबर पर ब्रॉडबैंड सेवाएं देने के लिए जी-पॉन आधारित समाधान विकसित करने के लिए साझेदारी की। महत्वपूर्ण व्यक्तियों के संपर्क यहां देखें भारत सरकार की कार्यकारी शाखा
अजलपुर-मिलिक सनहौला, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य (२० सितम्बर १९११ - ०२ जून १९९०) भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होंने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था। ४ वेद,१०८ उपनिषद, ६ दर्शन,२० स्मृतिया और १८ पुराणों के भाष्यकार । पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् १९६७ (२० सितम्बर १९११) को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के आँवलखेड़ा ग्राम में (जो जलेसर मार्ग पर आगरा से पन्द्रह मील की दूरी पर स्थित है) हुआ था। उनका बाल्यकाल व कैशोर्य काल ग्रामीण परिसर में ही बीता। वे जन्मे तो थे एक जमींदार घराने में, जहाँ उनके पिता श्री पं. रूपकिशोर जी शर्मा आस-पास के, दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित, उद्भट विद्वान, भगवत् कथाकार थे, किन्तु उनका अंतःकरण मानव मात्र की पीड़ा से सतत् विचलित रहता था। साधना के प्रति उनका झुकाव बचपन में ही दिखाई देने लगा, जब वे अपने सहपाठियों को, छोटे बच्चों को अमराइयों में बिठाकर स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सुसंस्कारिता अपनाने वाली आत्मविद्या का शिक्षण दिया करते थे। जाति-पाँति का कोई भेद नहीं। जातिगत मूढ़ता भरी मान्यता से ग्रसित तत्कालीन भारत के ग्रामीण परिसर में अछूत वृद्ध महिला की जिसे कुष्ठ रोग हो गया था, उसी के टोले में जाकर सेवा कर उनने घरवालों का विरोध तो मोल ले लिया पर अपना व्रत नहीं छोड़ा। उन्होंने किशोरावस्था में ही समाज सुधार की रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चलाना आरंभ कर दी थीं। औपचारिक शिक्षा स्वल्प ही पायी थी। किन्तु, उन्हें इसके बाद आवश्यकता भी नहीं थी क्योंकि, जो जन्मजात प्रतिभा सम्पन्न हो वह औपचारिक पाठ्यक्रम तक सीमित कैसे रह सकता है। हाट-बाजारों में जाकर स्वास्थ्य-शिक्षा प्रधान परिपत्र बाँटना, पशुधन को कैसे सुरक्षित रखें तथा स्वावलम्बी कैसे बनें, इसके छोटे-छोटे पैम्पलेट्स लिखने, हाथ की प्रेस से छपवाने के लिए उन्हें किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं थी। वे चाहते थे, जनमानस आत्मावलम्बी बने, राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान उसका जागे, इसलिए गाँव में जन्मे। इस लाल ने नारी शक्ति व बेरोजगार युवाओं के लिए गाँव में ही एक बुनताघर स्थापित किया व उसके द्वारा हाथ से कैसे कपड़ा बुना जाय, अपने पैरों पर कैसे खड़ा हुआ जाय-यह सिखाया। महामना मदनमोहन मालवीय ने उन्हें काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा दी थी। इसके बाद वे अपने घर की पूजास्थली में नियमित उपासना करते रहते थे। कहते हैं कि पंद्रह वर्ष की आयु में वसन्त पंचमी की वेला में सन् १९२६ में उनकी गुरुसत्ता का आगमन हुआ। उन्होने युग निर्माण के मिशन को गायत्री परिवार, प्रज्ञा अभियान के माध्यम से आगे बढ़ाया। वह कहते थे कि अपने को अधिक पवित्र और प्रखर बनाने की तपश्चर्या में जुट जाना- जौ की रोटी व छाछ पर निर्वाह कर आत्मानुशासन सीखना। इसी से वह सार्मथ्य विकसित होगी जो विशुद्धतः परमार्थ प्रयोजनों में नियोजित होगी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता भारत के परावलम्बी होने की पीड़ा भी उन्हे उतनी ही सताती थी जितनी कि गुरुसत्ता के आदेशानुसार तपकर सिद्धियों के उपार्जन की ललक उनके मन में थी। उनके इस असमंजस को गुरुसत्ता ने ताड़कर परावाणी से उनका मार्गदर्शन किया कि युगधर्म की महत्ता व समय की पुकार देख-सुनकर तुम्हें अन्य आवश्यक कार्यों को छोड़कर अग्निकाण्ड में पानी लेकर दौड़ पड़ने की तरह आवश्यक कार्य भी करने पड़ सकते हैं। इसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाते संघर्ष करने का भी संकेत था। १९२७ से १९३३ तक का उनका समय एक सक्रिय स्वयंसेवक- स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बीता, जिसमें घरवालों के विरोध के बावजूद पैदल लम्बा रास्ता पार कर वे आगरा के उस शिविर में पहुँचे, जहाँ शिक्षण दिया जा रहा था, अनेकानेक मित्रों-सखाओं-मार्गदर्शकों के साथ भूमिगत हो कार्य करते रहे तथा समय आने पर जेल भी गये। छह-छह माह की उन्हें कई बार जेल हुई। जेल में भी जेल के निरक्षर साथियों को शिक्षण देकर व स्वयं अँग्रेजी सीखकर लौटै। आसनसोल जेल में वे पं. जवाहरलाल नेहरू की माता श्रीमती स्वरूपरानी नेहरू, श्री रफी अहमद किदवई, महामना मदनमोहन मालवीय जी, देवदास गाँधी जैसी हस्तियों के साथ रहे व वहाँ से एक मूलमंत्र सीखा जो मालवीय जी ने दिया था कि जन-जन की साझेदारी बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति के अंशदान से, मुट्ठी फण्ड से रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चलाना। यही मंत्र आगे चलकर एक घंटा समयदान, बीस पैसा नित्य या एक दिन की आय एक माह में तथा एक मुट्ठी अन्न रोज डालने के माध्यम से धर्म घट की स्थापना का स्वरूप लेकर लाखों-करोड़ों की भागीदारी वाला गायत्री परिवार बनता चला गया, जिसका आधार था - प्रत्येक व्यक्ति की यज्ञीय भावना का उसमें समावेश। स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान कुछ उग्र दौर भी आये, जिनमें शहीद भगत सिंह को फाँसी दिये जाने पर फैले जनआक्रोश के समय श्री अरविन्द के किशोर काल की क्रान्तिकारी स्थिति की तरह उनने भी वे कार्य किये, जिनसे आक्रान्ता शासकों प्रति असहयोग जाहिर होता था। नमक आन्दोलन के दौरान वे आततायी शासकों के समक्ष झुके नहीं, वे मारते रहे परन्तु, समाधि स्थिति को प्राप्त राष्ट्र देवता के पुजारी को बेहोश होना स्वीकृत था पर आन्दोलन के दौरान उनने झण्डा छोड़ा नहीं जबकि, फिरंगी उन्हें पीटते रहे, झण्डा छीनने का प्रयास करते रहे। उन्होंने मुँह से झण्डा पकड़ लिया, गिर पड़े, बेहोश हो गये पर झण्डे का टुकड़ा चिकित्सकों द्वारा दाँतों में भींचे गये टुकड़े के रूप में जब निकाला गया तक सब उनकी सहनशक्ति देखकर आश्चर्यचकित रह गये। उन्हें तब से ही आजादी के मतवाले उन्मत्त श्रीराम मत्त नाम मिला। अभी भी भी आगरा में उनके साथ रहे या उनसे कुछ सीख लिए अगणित व्यक्ति उन्हें मत्त जी नाम से ही जानते हैं। लगानबन्दी के आकड़े एकत्र करने के लिए उन्होंने पूरे आगरा जिले का दौरा किया व उनके द्वारा प्रस्तुत वे आँकड़े तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत द्वारा गाँधी जी के समक्ष पेश किये गये। बापू ने अपनी प्रशस्ति के साथ वे प्रामाणिक आँकड़े ब्रिटिश पार्लियामेन्ट भेजे, इसी आधार पर पूरे संयुक्त प्रान्त के लगान माफी के आदेश प्रसारित हुए। कभी जिनने अपनी इस लड़ाई के बदले कुछ न चाहा, उन्हें सरकार ने अपने प्रतिनिधि के साथ सारी सुविधाएँ व पेंशन दिया, जिसे उनने प्रधानमंत्री राहत फण्ड के नाम समपित कर दी। वैरागी जीवन का, सच्चे राष्ट्र संत होने का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? १९३५ के बाद उनके जीवन का नया दौर शुरू हुआ जब गुरुसत्ता की प्रेरणा से वे श्री अरविन्द से मिलने पाण्डिचेरी, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर से मिलने शांति निकेतन तथा बापू से मिलने साबरमती आश्रम, अहमदाबाद गये। सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मंर्चों पर राष्ट्र को कैसे परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त किया जाय, यह र्निदेश लेकर अपना अनुष्ठान यथावत् चलाते हुए उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया, जब आगरा में 'सैनिक' समाचार पत्र के कार्यवाहक संपादक के रूप में श्रीकृष्णदत्त पालीवाल जी ने उन्हें अपना सहायक बनाया। बाबू गुलाब राय व पालीवाल जी से सीख लेते हुए सतत स्वाध्यायरत रहकर उनने 'अखण्ड ज्योति' नामक पत्रिका का पहला अंक १९३८ की वसंत पंचमी पर प्रकाशित किया। प्रयास पहला था, जानकारियाँ कम थीं अतः पुनः सारी तैयारी के साथ विधिवत् १९४० की जनवरी से उनने परिजनों के नाम पाती के साथ अपने हाथ से बने कागज पर पैर से चलने वाली मशीन से छापकर अखण्ड ज्योति पत्रिका का शुभारम्भ किया। पहले तो दो सौ पचास पत्रिका के रूप में निकली, किन्तु क्रमशः उनके अध्यवसाय, घर-घर पहुँचाने, मित्रों तक पहुँचाने वाले उनके हृदयस्पर्शी पत्रों द्वारा बढ़ती-बढ़ती नवयुग के मत्स्यावतार की तरह आज दस लाख से भी अधिक संख्या में विभिन्न भाषाओं में छपती व करोड़ से अधिक व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती है। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के प्रभाव से राजनीति में प्रवेश करने के बाद शर्माजी धीरे-धीरे महात्मा गांधी के अत्यन्त निकट हो गए थे। १९४२ से पूर्व के आठ-दस वर्षों तक वे प्रति वर्ष दो मास सेवाग्राम में गांधीजी के पास रहा करते थे। बापू का उन पर अटूट विश्वास था। आचार्य कृपलानी, श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पं. गोविंदवल्लभ पंत, डॉ. कैलासनाथ काटजू आदि नेताओं के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय शर्माजी को उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) तथा मध्य प्रदेश का प्रभारी नेता नियुक्त किया गया था। इसके पूर्व मैनपुरी षड्यंत्र केस में उनका सहयोग रहा था। विचारों तथा कर्मों से क्रांतिकारी शर्माजी १९४२ के आगरा षड्यंत्र केस के प्रमुख अभियुक्त थे। इस मुकदमे में १४ अभियुक्त थे। शर्माजी के बड़े पुत्र रमेशकुमार शर्मा, उनकी बेटी कमला शर्मा के साथ उनके बड़े भाई पं. बालाप्रसाद शर्मा पकड़े गए थे। अंत में १९४५ में सब लोग जेल से रिहा हुए। गिरफ्तारी और जेल-प्रवास के दौरान शर्माजी के तीन पुत्रों की मृत्यु हो गई और पुलिस की मारपीट के कारण उनका एक कान भी फट गया था। जेल से छूटने के बाद वे सीधे गांधीजी के पास गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद वे लेखन कार्य में ही अधिक रत रहे। भारत की आजादी के बाद उन्होंने गांधी के विचारों को धरातल पर उतारने की कोशिश की। १९७१ में आगरा-मथुरा की जगह उन्होंने हरिद्वार अपनी कर्मभूमि के रूप में को चुना। शांतिकुंज के रूप में आज यह संस्था वटवृक्ष के रूप में खड़ी है। आध्यात्मिक साधना के साथ मानव को शिक्षित, संस्कारवान, स्वावलंबी और सजग नागरिक बनाने का कार्य इस संस्था में किया जा रहा है। यहां वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ, स्वच्छता अभियान, दहेज विरोधी अभियान, आदर्श विवाह, युवा जागृति अभियान, निर्मल गंगा जन अभियान, कृषि संवर्धन अभियान, कुटीर उद्योग संरक्षण-संवर्धन अभियान जैसे कई सामाजिक अभियान चलाए जा रहे हैं। भारतीय संस्कृति में आई कुरीतियों के खिलाफ शांतिकुंज ने पूरे देश में अभियान छेड़ा। जाति-प्रथा को तोड़ने और नारी जागरण के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किए। नारी जागरण की शुरुआत श्रीराम शर्मा ने अपने घर से की। उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को गायत्री मंत्र से दीक्षित किया और उनका यज्ञोपवित संस्कार करवाया। उस वक्त महिलाओं के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना और यज्ञोपवित धारण करना सनातन धर्म में वर्जित था। आचार्य ने सनातन धर्म में कर्मकांड कराने वाले पुरोहितों की परिभाषा बदल डाली। हिंदू धर्म में धार्मिक कर्मकांड कराने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही है। लेकिन आचार्यश्री ने इस प्रथा को जाति-उन्मूलन अभियान चलाकर तोड़ा। आदिवासियों, पिछड़ों, दलितों और समाज के अन्य उपेक्षित वर्गों को वैदिक कर्मकांड की शिक्षा-दीक्षा देकर उन्हें पुरोहित के रूप में स्थापित किया। आज शांतिकुंज में विभिन्न जातियों से जुड़े लोग वैदिक कर्मकांड कराने वाले पुरोहित के रूप में देखे जा सकते हैं। युवकों में छात्र जीवन से ही भारतीय वैदिक संस्कृति का बीजारोपण करने के लिए शांतिकुंज भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन हर वर्ष देश के सभी स्कूल-कॉलेजों में करवाता है। इसके अतिरिक्त शांतिकुंज में अध्यापक शिक्षण सत्र, परिवार निर्माण सत्र, संगीत साधना शिविर, तीर्थ सेवन सत्र, योग और साधना सत्र निरंतर चलते रहते हैं। सामूहिक विवाह, सामूहिक यज्ञोपवित और सामूहिक मुंडन समारोह शांतिकुंज में कराए जाते हैं। १९९४ में श्रीराम शर्मा के उत्तराधिकारी के रूप में उनके दामाद डाक्टर प्रणव पंड्या ने संस्था की कमान संभाली और २००२ में डॉक्टर पंड्या ने शांतिकुंज को नई दिशा देने के लिए देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय में वैदिक संस्कृति से जुड़े ऋषियों के साथ-साथ आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाते हैं। डॉक्टर पंड्या मूलत: गुजरात के रहने वाले हैं। उनकी शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश में हुई। वे बीएचईएल भोपाल और हरिद्वार में एमबीबीएस मेडिसिन चिकित्सक रहे। आज शांतिकुंज सामाजिक परिर्वतन को लेकर आचार्यश्री के आदर्श वाक्यों मानव मात्र एक समान, नर और नारी एक समान, जाति वंश एक समान, हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा, अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है, को लेकर पूरे संसार को बदलने के अभियान में जुटा है। गायत्री साधना और यज्ञ साधना का वैज्ञानिक महत्त्व लोगों को समझाने के लिए ब्रह्मवर्चस्व शोध संस्थान की स्थापना की गई। आज शांतिकुंज भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी आस्था रखने वाले लोगों के लिए श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। २ जून १९९० को आपका देहावसान हो गया। सन १९९१ में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया। इक्कीसवीं सदी, उज्ज्वल भविष्य! अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है! हम बदलेंगे, युग बदलेगा, हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा! सावधान! नया युग आ रहा है! इक्कीसवीं सदी, नारी सदी! इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। जब हम ऐसा सोचते हैं की अपने स्वार्थ की पूर्ति में कोई आँच न आने दी जाय और दूसरों से अनुचित लाभ उठा लें तो वैसी ही आकांक्षा दूसरे भी हम से क्यों न करेंगे। जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है । विचार आदमी को गिरा सकतें है और विचार ही आदमी को उठा सकतें है । आदमी कुछ नहीं हैं । लक्ष्य के अनुरूप भाव उदय होता है तथा उसी स्तर का प्रभाव क्रिया में पैदा होता है। लोभी मनुष्य की कामना कभी पूर्ण नहीं होती। मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। अव्यवस्थित मस्तिष्क वाला कोई भी व्यक्ति संसार में सफल नहीं हो सकता। जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मा विश्वास उतना ही ज़रूरी है ,जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्मविश्वास के मिलना असंभव है। पण्डित श्रीराम शर्मा ने लगभग ३२०० ग्रथों की रचना की जिसमें चारों वेदों का सरल भाष्य, उपनिषद सहित अनेक सद्ग्रन्थ शामिल हैं। अध्यात्म एवं संस्कृति गायत्री और यज्ञ वेद पुराण एवम् दर्शन स्वास्थ्य और आयुर्वेद आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य) भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान युग परिवर्तन कब और कैसे स्वयं में देवत्व का जागरण यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है? निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र जीवेम शरदः शतम् विवाहोन्माद : समस्या और समाधान शिक्षा ही नहीं विद्या भी भाव संवेदनाओं की गंगोत्री संजीवनी विद्या का विस्तार आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र नवयुग का मत्स्यावतार इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण महिला जागृति अभियान इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २ युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १ युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २ सतयुग की वापसी परिवर्तन के महान् क्षण महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी समस्याएँ आज की समाधान कल के मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा जीवन देवता की साधना-आराधना समयदान ही युग धर्म युग की माँग प्रतिभा परिष्कार व्हेट आम ई? (मूल हिन्दी संस्करण मैं क्या हूँ? शीर्षक से १९४० में प्रकाशित) इन्हें भी देखें अखिल विश्व गायत्री परिवार युग निर्माण योजना बाहरी सम्पर्क सूत्र अखिल भारतीय गायत्री परिवार का जालघर पण्डित श्रीराम शर्मा द्वारा रचित हिन्दी पुस्तकें, पी डी एफ़ प्रारूप में जन मानस परिष्कार मंच आचार्य श्रीराम शर्मा की विचारक्रान्ति से ही परिवर्तन संभव है जस्टिस लाहोटी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य: हम बदलेंगे-युग बदलेगा का किया था उद्घोष, संतों ने दी आधुनिक युग के विश्वामित्र की उपाधि पं. श्रीराम शर्मा के अनमोल विचार १९११ में जन्मे लोग १९९० में निधन भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
मुडिया धुरेकी (मुंडिया धुरेकी) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश के नगर बदायूँ ज़िले के नगर
वीणा देवी एक भारतीय राजनीतिज्ञ और वैशाली की वर्तमान सांसद हैं। वह गायघाट निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा की पूर्व सदस्य हैं। २०१९ के भारतीय आम चुनाव में, उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी के साथ वैशाली से चुनाव लड़ा और रघुवंश प्रसाद सिंह को हराया। भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी १६वीं लोक सभा के सदस्य बिहार के सांसद लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद
दानीलोवा (अंग्रेज़ी: दनिलोवा, रूसी: ) शुक्र ग्रह (वीनस) पर स्थित एक प्रहार क्रेटर है। इसका व्यास ४९ किमी है। यह एक तीन क्रेटरों के समुह में से एक है। शुक्र पर घने बादल हमेशा उस ग्रह को ढके रहते हैं इसलिए दानीलोवा क्रेटर के बारे में जानकारी केवल मेघ-भेदी रेडार द्वारा ही मिल पाई है। शुक्र ग्रह के क्रेटरों के नाम विख्यात महिलाओं पर रखे गये है। दानीलोवा क्रेटर का नाम रूसी नर्तकी मारिया दानीलोवा पर रखा गया है। इन्हें भी देखें शुक्र ग्रह पर प्रहार क्रेटर
फुटबॉल हैलमेट अमरीकी फुटबॉल एवं कनाडियन फुटबॉल में सुरक्षा के लिये सिर पर पहने जाने वाला यंत्र है। यह आधुनिक कठोर प्लास्टिक का बना होता है एवं इसे पहली बार पॉल ब्राउन ने बनाया था। अमरीकी फुटबॉल का सामान खेल के उपकरण
सौन खैरागढ़, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। आगरा जिले के गाँव
टॉम बीच ऑल्टर (जन्म: २२ जून १९५०,मृत्यु २९ सितंबर २०१७) हिन्दी फ़िल्मों और रंग-मंच के अभिनेता थे। वे मूल रूप से अमरीकी थे। २००८ में अन्हें पद्म श्री सम्मान भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। मसूरी, उत्तराखंड, के मूल निवासी, टॉम अल्टर इंग्लिश और स्कॉटिश पूर्वजों के अमेरिकी ईसाई मिशनरियों के पुत्र थे और मुंबई में और लन्दूर के हिमालयी हिल स्टेशन में रहते थे। उनके दादा दादी नवंबर १९१६ में ओहियो से भारत आए, जब वे मद्रास (अब चेन्नई) पहुंचे। वहां से, वे ट्रेन से लाहौर गए, जहां वे बस गए। उनके पिता का जन्म सियालकोट में हुआ,जो अब पाकिस्तान में है। भारत के विभाजन के बाद, उनके दादा दादी पाकिस्तान में रहते थे, जबकि उनके माता-पिता भारत में चले गए इलाहाबाद, जबलपुर और सहारनपुर में रहने के बाद, वे अंततः राजपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित होकर, १९५४ में देहरादून और मसूरी (वर्तमान समय में उत्तराखंड) के बीच स्थित एक छोटा शहर। उनकी बड़ी बहन, मार्था चेन, दक्षिण एशियाई अध्ययन में पीएचडी पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सिखाता है। उनके भाई जॉन एक कवि और एक शिक्षक हैं। एक बच्चे के रूप में, मसूरी में अन्य विषयों से हिंदी का अध्ययन किया, परिणामस्वरूप, उन्हें कभी-कभी निर्दोष हिंदी के साथ "ब्लू-आंखों वाला साहेब" कहा जाता है। [१०] वह मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल में शिक्षित थे। उनके पिता ईसाई कॉलेज (ई.सी.सी.) इलाहाबाद में इतिहास और अंग्रेजी पढ़ाते थे, और उसके बाद सहारनपुर में एक विद्यालय में पढ़ाते थे। १ ९ ५४ में, उनके माता-पिता ने राजपुर में आश्रम शुरू किया, जिसे "विशाल ध्यान केन्द्र" कहा जाता था और वे वहां बस गए। सभी धर्मों के लोग अध्ययन और चर्चा के लिए वहां आए। वे शुरू में बाइबिल अध्ययन उर्दू में और बाद में हिंदी में पढ़ते थे (जब १९62 में हिंदी को अपनाया गया था) १८ साल की उम्र में, एल्टर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के लिए चले गये और एक वर्ष के लिए येल में अध्ययन किया। हालांकि, उन्हें येल में पढ़ाई की कठोरता पसंद नहीं आई और एक साल बाद लौट आया। १ ९ वर्ष की आयु में, अल्टर ने शिक्षक के रूप में काम किया, सेंट थॉमस स्कूल, जगधरी, हरियाणा में। उन्होंने यहां छह महीने के लिए काम किया, साथ ही साथ अपने छात्रों को क्रिकेट में प्रशिक्षण दिया। अगले साढ़े से सालों में, अल्टर ने कई नौकरियां की, वुडस्टॉक स्कूल, मसूरी में कुछ समय के लिए पढ़ाई की, और अमेरिका में एक अस्पताल में काम कर रहे थे, और जगधरी में काम करने से पहले भारत लौट रहे थे। जगधरी में, उन्होंने हिंदी फ़िल्मों को देखना शुरू किया। यह इस समय के दौरान हुआ था कि उन्होंने हिंदी फ़िल्म आराधना को देखा जो एक फ़िल्म थी जिसे उन्होंने और उसके दोस्तों को इतना पसंद किया था कि उन्होंने एक हफ्ते में इसे तीन बार देखा था। इस देखने के दौरान एल्टर के जीवन में एक मोड़ लग गया और राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की अभिनय ने युवाओं के लिए अल्टर को फ़िल्मों में आकर्षित किया। उन्होंने एक अभिनय करियर का पीछा करने का विचार किया और दो साल के लिए इस विचार पर विचार किया, जिसके बाद वह पुणे में फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के अध्यक्ष बने, जहां उन्होंने रोशन तनेजा के तहत १ ९ ७२ से १ ९ ७४ तक अभिनय का अध्ययन किया। उन्होंने एफटीआईआई में रोशन तनेजा के शिक्षण में इन दोनों वर्षों में अभिनय में अपनी उपलब्धियों का श्रेय दिया और नसीरुद्दीन शाह, बेंजामिन गिलानी और शबाना आज़मी सहित अन्य छात्रों के साथ बातचीत। प्रमुख फिल्में,धारावाहिक एवं नाटक नामांकन और पुरस्कार इन्हें भी देखें १९५० में जन्मे लोग २०१७ में निधन
श्रमिक एक्स्प्रेस ९०५१ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन वलसाड रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:ब्ल) से ०७:४०प्म बजे छूटती है और सोनपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:सी) पर ०५:३५आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३३ घंटे ५५ मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
साल्हेर महाराष्ट्र, भारत की नासिक जिला तहसील में सताना तहसील में वाघंबा के निकट स्थित एक स्थान है। यह सह्याद्रि पहाड़ों में सबसे ऊंचे किले का स्थल है और महाराष्ट्र में कलसुबाई के बाद १५६७ मी पर दूसरी सबसे ऊंची चोटी और ३२वीं सबसे ऊंची चोटी है। पश्चिमी घाट में चोटी। यह मराठा साम्राज्य के प्रसिद्ध किलों में से एक था। सूरत पर छापा मारने के बाद अर्जित धन को पहले मराठा राजधानी किलों के रास्ते में इस किले में लाया गया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने अपना तपस्या साल्हेर किले में किया था। पृथ्वी को जीतकर और दान के रूप में देने के बाद, उसने अपने बाणों से समुद्र को पीछे धकेलते हुए, अपने रहने के लिए इस स्थान से भूमि बनाई। जुड़वां किला सलोटा (४९८६ फीट) साल्हेर के बहुत करीब है। यह किला साल्हेर की लड़ाई के लिए प्रसिद्ध है जिसमें शिवाजी की सेना ने मुगल सेना को व्यापक रूप से हराया था।
अनास (आनस) जलपक्षियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है, जो अनैटिडाए (अनतिदाए) कुल के सतही बत्तख उपकुल के अंतर्गत आता है। इसकी ३१ ज्ञात जातियाँ हैं। इन्हें भी देखें सतही बत्तख (अनैटिडाए)
किसी जनसंख्या के कुछ या सभी अवयवो से सम्बन्धित आंकड़े एकत्र करना सांख्यिकीय सर्वेक्षण (स्टेटिस्टिकल सर्वेस) कहलाता है।
मानसी जोशी (जन्म १८ अगस्त १९९३) एक भारतीय महिला क्रिकेट टीम की अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जिन्होंने नवंबर २०१६ में भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए पदार्पण किया था। वह दाएं हाथ से मध्यम-तेज गेंदबाज की भूमिका निभाती हैं। जबकि दाहिने हाथ से ही बल्लेबाजी करती है। जोशी का जन्म उत्तराखंड के रुड़की नामक एक छोटे शहर में हुआ था। जबकि उन्होंने घरेलू क्रिकेट हरियाणा के लिए खेलना शुरू किया और अभी भी इसी टीम से खेलती है। वह हमेशा भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के पूर्व बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर से प्रेरित रही हैं। उन्होंने हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन में ट्रायल में भाग लिया और फिर सीनियर महिला राज्य टीम में अंडर-१९ में चयनित हुई। उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ नवंबर २०१६ की श्रृंखला के लिए ट्वेंटी-२० इंटरनेशनल (टी-२०) के लिए भारतीय महिला क्रिकेट टीम में शामिल किया गया था। उस श्रृंखला में उन्हें किसी भी मैच में नहीं चुना गया था, लेकिन उस महीने के अंत में उन्होंने टी-२० में पदार्पण किया। मानसी जोशी ने थाईलैंड में महिला ट्वेंटी-२० एशिया कप में बांग्लादेश महिला क्रिकेट टीम के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टी-२० मैच खेला। उन्होंने डेब्यू मैच में तीन ओवर में ८ रन देकर १ विकेट लिया था और अगले मैच में थाईलैंड के खिलाफ ८ रन देकर २ विकेट लिए। उस मैच में उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया। (हालाँकि उस खेल को टी-२० इंटरनेशनल का दर्जा नहीं दिया गया था)। उन्होंने २०१७ के महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर में आयरलैंड के खिलाफ १० फरवरी २०१७ को महिला एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट (वनडे) की शुरूआत की थी। उन्हें हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा २६ मई, २०१७ को एचटी यूथ फ़ोरम में उनके शीर्ष ३० में सम्मानित किया गया था। जोशी २०१७ महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में पहुंचने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रही थी, जहां टीम को इंग्लैंड टीम से नौ रनों से हार मिली थी। भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी हरियाणा महिला क्रिकेटर्स भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट खिलाड़ी १९९३ में जन्मे लोग उत्तराखण्ड के लोग
सिंगापुर के इतिहास का विवरण ११वीं सदी से उपलब्ध है। १४वीं सदी के दौरान श्रीविजयन राजकुमार परमेश्वर के शासनकाल में इस द्वीप का महत्त्व बढ़ना शुरु हुआ और यह एक महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया, लेकिन दुर्भाग्यवश १६१३ में पुर्तगाली हमलावरों द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया। आधुनिक सिंगापुर के इतिहास की शुरुआत १८१९ में हुई, जब एक अंग्रेज सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा इस द्वीप पर एक ब्रिटिश बंदरगाह की स्थापना की गयी। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत-चीन व्यापार और भंडारगृह (एंट्रीपोट) व्यापार, दोनों के एक केंद्र के रूप में इसका महत्त्व काफी बढ़ गया और यह बड़ी तेजी से एक प्रमुख बंदरगाह शहर में तब्दील हो गया। द्वितीय विश्व युद्घ के समय जापानी साम्राज्य ने सिंगापुर को अपने अधीन कर लिया और १९४२ से १९४५ तक इसे अपने अधीन रखा। युद्ध समाप्त होने के बाद सिंगापुर वापस अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया और स्व-शासन के अधिकार के स्तर को वढ़ाया गया और अंततः १९६३ में फेडरेशन ऑफ मलाया के साथ सिंगापुर का विलय कर मलेशिया का निर्माण किया गया। हालांकि, सामाजिक अशांति और सिंगापुर की सत्तारूढ़ पीपुल्स एक्शन पार्टी तथा मलेशिया की एलायंस पार्टी के बीच विवादों के परिणाम स्वरूप सिंगापुर को मलेशिया से अलग कर दिया गया। ९ अगस्त 1९65 को सिंगापुर एक स्वतंत्र गणतंत्र बन गया। गंभीर बेरोजगारी और आवासीय संकट का सामना करने के कारण, सिंगापुर ने एक आधुनिकीकरण कार्यक्रम पर काम करना शुरू कर दिया जिसमें विनिर्माण उद्योग की स्थापना, बड़े सार्वजनिक आवासीय एस्टेट के विकास और सार्वजनिक शिक्षा पर भारी निवेश करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। आजादी के बाद से सिंगापुर की अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष औसतन नौ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। १९९० के दशक तक यह एक अत्यंत विकसित मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, सुदृढ़ अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक संबंध और जापान के बाहर एशिया में सर्वोच्च प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में से एक बन गया था। सिंगापुर का सबसे प्रारंभिक लिखित रिकॉर्ड तीसरी सदी के एक चीनी विवरण में मौजूद है जिसमें पु लुओ चुंग () द्वीप का वर्णन किया गया है। यह स्वयं भी मलय नाम "पुलाऊ उजोंग" या (मलय प्रायद्वीप का) "अंतिम द्वीप" का एक लिप्यंतरण (ट्रांसलिटरेशन) था। अर्ध-पौराणिक सेजारा मेलायु (मलय इतिहास) में श्रीविजय के एक राजकुमार, श्री त्रिभुवन (जिसे सांग नील उत्तम के रूप में भी जाना जाता है) की एक कहानी है जो १३वीं सदी के दौरान द्वीप पर आया था। जब राजकुमार ने एक सिंह को देखा तो उन्होंने इसे एक शुभ संकेत माना और वहां पर सिंगपुरा नामक एक बस्ती का निर्माण कर दिया, जिसका संस्कृत में अर्थ होता है "सिंह का शहर". हालांकि, सिंगापुर में सिंहों की मौजूदगी की संभावना काफी कम है, २०वीं सदी की शुरुआत तक कई बाघ द्वीप में विचरते रहते थे। १३२० में, मंगोल साम्राज्य ने लांग या मेन (या ड्रैगन्स टूथ स्ट्रेट) नामक एक स्थान के लिए एक व्यापार अभियान को रवाना किया था जिसके बारे में माना जाता है कि यह द्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित केप्पल बंदरगाह था। १३३० के आसपास द्वीप की यात्रा करने वाले चीनी यात्री वांग दायुआन ने दान मा क्सी (मलय तामासिक से, ) नामक मलय और चीनी निवासियों वाली एक छोटी सी बस्ती का उल्लेख किया था। १३६५ में रचित एक जावानीस महाकाव्य, नगरक्रेतागम में भी टेमासेक समुद्री शहर नामक द्वीप पर एक बस्ती के बारे में संदर्भित किया गया है। फोर्ट कैनिंग में हाल की खुदाई में यह संकेत देने वाले सबूत मिले हैं कि १४वीं सदी में सिंगापुर एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। १३९० के दशक में, एक पालेमबंग राजकुमार, परमेश्वर मजापहित साम्राज्य द्वारा अपदस्थ कर दिए जाने के बाद भाग कर टेमासेक पहुंच गया था। १४वीं सदी के दौरान, सिंगापुर में सियाम (अब थाईलैंड) और जावा-आधारित मजापहित साम्राज्य के बीच मलय प्रायद्वीप पर नियंत्रण के लिए संघर्ष छिड़ गया था। सेजारा मेलायु के मुताबिक सिंगापुर को एक ही मजापहित हमले में हरा दिया गया था। मलाका जाने के लिए मजबूर किये जाने से पहले उन्होंने इस द्वीप पर कई वर्षों तक शासन किया था, मलाका में ही उन्होंने मलाका सल्तनत की स्थापना की थी। सिंगापुर मलक्का सल्तनत का एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक बंदरगाह और बाद में जोहोर सल्तनत बन गया था। १५वीं सदी की शुरुआत में, सिंगापुर एक थाई मातहत का राज्य था लेकिन मलक्का सल्तनत जिसकी स्थापना इस्कंदर ने की थी, उन्होंने शीघ्र ही पूरे द्वीप पर अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार कर लिया। १५11 में पुर्तगालियों द्वारा मलक्का पर कब्जा किये जाने के बाद मलय के एडमिरल सिंगापुर भाग गए और जोहोर लामा में एक नई राजधानी की स्थापना की और सिंगापुर में एक बंदरगाह अधिकारी को नियुक्त रखा. पुर्तगालियों ने १५87 में जोहोर लामा को नष्ट कर दिया. १६१३ में पुर्तगाली हमलावरों ने सिंगापुर नदी के मुहाने पर बनी बस्तियों को जला दिया और तब यह द्वीप गुमनामी के अंधकार में डूब गया. आधुनिक सिंगापुर की स्थापना (१८१९) १६वीं और १९वीं सदियों के बीच मलय द्वीपसमूह पर धीरे-धीरे यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने नियंत्रण कर लिया जिसकी शुरुआत १५०९ में मलक्का में पुर्तगालियों के आगमन के साथ हुई. पुर्तगालियों के प्रारंभिक प्रभुत्व को १७वीं सदी के दौरान डच लोगों द्वारा चुनौती दी गयी जिन्होंने इस क्षेत्र के ज्यादातर द्वीपों पर नियंत्रण कर लिया था। डच लोगों ने द्वीपसमूह के भीतर व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया, विशेष रूप से मसालों के मामले में जो उस समय इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण उत्पाद था। अंग्रेजों के साथ-साथ अन्य औपनिवेशिक शक्तियों को अपेक्षाकृत एक मामूली उपस्थिति तक सीमित कर दिया गया था। १८१८ में सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स को बेनकूलेन पर ब्रिटिश कॉलोनी के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया. वे इस बात के लिए प्रतिबद्ध थे कि ग्रेट ब्रिटेन को द्वीपसमूह में प्रभुत्वशाली शक्ति के रूप में नीदरलैंड की जगह लेनी चाहिए, क्योंकि चीन और ब्रिटिश भारत के बीच वह व्यापार मार्ग द्वीपसमूह से होकर गुजरता था, जो चीन के साथ अफीम के व्यापार की शुरुआत की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया था। डच लोग डच-नियंत्रित बंदरगाहों में अंग्रेजों की गतिविधियों पर रोक लगाकर या उन्हें भारी टैरिफ देने के लिए मजबूर कर इस क्षेत्र में ब्रिटिश व्यापार का गला घोंट रहे थे। रैफल्स ने मलक्का के जलडमरूमध्य के साथ एक नए बंदरगाह की स्थापना कर डच लोगों को चुनौती देने की आशा व्यक्त की थी, जो भारत-चीन व्यापार के लिए जहाज़ों के गुजरने का प्रमुख मार्ग था। उन्होंने भारत के गवर्नर-जनरल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में अपने वरिष्ठ अधिकारी लॉर्ड हेस्टिंग्स को क्षेत्र में एक नया ब्रिटिश आधार बनाने के एक अभियान को वित्तपोषित करने के लिए राजी कर लिया। रैफल्स २९ जनवरी १८१९ को सिंगापुर आये और शीघ्र ही इस द्वीप को नए बंदरगाह के लिए एक स्वाभाविक पसंद के रूप में मान्यता दे दी. यह मलक्का जलडमरूमध्य के निकट मलय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित है और यहां एक प्राकृतिक गहरा बंदरगाह, ताजे पानी की आपूर्ति और जहाजों की मरम्मत के लिए लकड़ियां उपलब्ध हैं। रैफल्स को एक छोटी सी मलय बस्ती मिली जिसकी आबादी कुछ सैकड़ों में थी, यह सिंगापुर नदी के मुहाने पर स्थित थी जिसका मुखिया तेमेंगोंग अब्दुर रहमान था। द्वीप पर जोहोर के सुल्तान तेंग्कू रहमान का नाम मात्र का शासन था जिस पर डच और बुगिस लोगों द्वारा नियंत्रण कर लिया गया था। हालांकि, सल्तनत को गुटीय विभाजन से कमजोर कर दिया गया था और तेमेंगोंग अब्दुर रहमान तथा उसके अधिकारी तेंग्कू रहमान के बड़े भाई तेंग्कू हुसैन (या तेंग्कू लांग) के प्रति वफादार थे जो निर्वासित होकर रियाऊ में रह रहे थे। तेमेंगोंग की मदद से रैफल्स हुसैन को तस्करी के जरिये सिंगापुर वापस लाने में कामयाब रहे. उन्होंने हुसैन को जोहोर के असली सुलतान के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव रखा और उनके लिए वार्षिक भुगतान की व्यवस्था की; बदले में हुसैन ने अंग्रेजों को सिंगापुर में एक वाणिज्यिक बंदरगाह की स्थापना करने का अधिकार दिया. ६ फ़रवरी १८१९ को एक औपचारिक संधि पर हस्ताक्षर किया गया और इस तरह आधुनिक सिंगापुर का जन्म हुआ। प्रारंभिक प्रगति (१८१९-१८२६) रैफल्स संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के फ़ौरन बाद बेनकूलेन लौट आये और मेजर विलियम फरकुहर को कुछ तोपों और भारतीय सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ नयी बस्ती का प्रभारी बनाकर वहां छोड़ दिया. एक बिखरे ढांचे (स्क्रैच) से वाणिज्यिक बंदरगाह की स्थापना करना एक चुनौतीपूर्ण प्रयास था। फरकुहर प्रशासन को उचित रूप से वित्त पोषित किया गया और राजस्व जुटाने के लिए बंदरगाह शुल्क जमा करने से रोक दिया गया क्योंकि रैफल्स ने यह तय किया था कि सिंगापुर एक निःशुल्क बंदरगाह होगा. इन कठिनाइयों के बावजूद नई कॉलोनी तेजी से विकसित हुई. जैसे ही निःशुल्क बंदरगाह की खबर पूरे द्वीपसमूह में फैली, बुगिस, पेरानाकन चीनी और अरब व्यापारी द्वीप की ओर उन्मुख हुए जो डच लोगों के व्यापारिक प्रतिबंधों को दरकिनार करना चाहते थे। संचालन के प्रारंभिक वर्ष के दौरान ४००,००० डॉलर (स्पेनिश डॉलर) के मूल्य का व्यापार सिंगापुर से होकर गुजरा. १८२१ तक इस द्वीप की आबादी ५,००० के आस-पास पहुंच गयी थी और व्यापार की मात्रा ८ मिलियन डॉलर थी। 1८2५ में आबादी १०,००० के आंकड़े तक पहुंच गयी और २२ मिलियन डॉलर की व्यापार मात्रा के साथ सिंगापुर लंबे समय से स्थापित पेनांग बंदरगाह से आगे निकल गया. रैफल्स १८२२ में सिंगापुर में लौट आए और फरकुहर के कई फैसलों के आलोचक बन गए, इसके बावजूद कि फरकुहर ने बस्ती के शुरुआती मुश्किल वर्षों में इसका नेतृत्व करने में कामयाबी हासिल की थी। फरकुहर ने लोगों को सिंगापुर में बसने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने गुजरने वाले जहाजों को सिंगापुर में रुकने के लिए आमंत्रित करने के उद्देश्य से सेंट जोन्स द्वीप पर एक अंग्रेज अधिकारी को भी तैनात किया। इसके अलावा उन्होंने प्रत्येक चूहे और सेंटीपीड को मारने के लिए धनराशि की पेशकश की क्योंकि ये विनाशकारी जीव प्रारंभिक निवासियों के लिए मुश्किल पैदा कर रहे थे। अत्यावश्यक राजस्व जुटाने के क्रम में फरकुहर ने जुआ और अफीम की बिक्री के लिए लाइसेंस बेचना शुरू कर दिया जिसे रैफल्स सामाजिक बुराइयों के रूप में देखते थे। कॉलोनी की अव्यवस्था पर हैरान रैफल्स ने बस्ती के लिए नई नीतियों के एक सेट के आलेखन का निश्चय किया। उन्होंने रैफल्स प्लान ऑफ सिंगापुर के तहत सिंगापुर को कार्यात्मक और जातीय सबडिविजनों में संगठित किया। इस संगठन के अवशेष आज भी जातीय पड़ोसी क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं। ७ जून १८२३ को रैफल्स ने सुल्तान और तेमेंगोंग के साथ एक दूसरी संधि पर हस्ताक्षर किया जिसने इस द्वीप के ज्यादातर हिस्सों में अंग्रेजी अधिपत्य का विस्तार कर दिया. सुल्तान और तेमेंगोंग ने द्वीप के अपने अधिकाँश प्रशासनिक अधिकारों का व्यापार किया जिसमें क्रमशः १५०० डॉलर और ८०० डॉलर के आजीवन मासिक भुगतान पर बंदरगाह करों का संग्रह भी शामिल था। इस समझौते ने द्वीप को ब्रिटिश कानून के अधीन कर दिया जिसमें प्रावधान था कि यह मलय रिवाजों, परंपराओं और धर्म को ध्यान में रखेगा. रैफल्स ने फरकुहर की जगह जॉन क्रॉफर्ड को नए गवर्नर के रूप में नियुक्त किया जो एक कुशल और मितव्ययी प्रशासक था। अक्टूबर १८२३ में रैफल्स ब्रिटेन चले गए और कभी सिंगापुर वापस नहीं लौटे क्योंकि ४४ वर्ष की उम्र में १८२६ में उनका निधन हो गया था। १८२४ में सुल्तान ने सिंगापुर की सत्ता सदा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी. जलडमरूमध्य की बस्तियां (१८२६-१८६७) सिंगापुर में एक ब्रिटिश चौकी की स्थापना पर शुरुआत में संदेह व्यक्त किया गया था क्योंकि डच सरकार ने शीघ्र ही अपने प्रभाव क्षेत्र का उल्लंघन करने के लिए ब्रिटेन का विरोध किया था। लेकिन जिस तरह सिंगापुर तेजी से एक महत्वपूर्ण व्यापारिक पोस्ट के रूप में उभरा, ब्रिटेन ने द्वीप पर अपना दावा मजबूत कर लिया। एक ब्रिटिश अधिकार क्षेत्र के रूप में सिंगापुर की स्थिति को १८२४ की एंग्लो-डच संधि द्वारा मजबूती दी गयी जिसने मलय द्वीप समूह को दो औपनिवेशिक शक्तियों के बीच बाँट दिया जिसमें सिंगापुर सहित मलक्का जलडमरूमध्य का उत्तरी क्षेत्र ब्रिटेन के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आ गया. १८२६ में सिंगापुर को पेनांग और मलक्का के साथ समूहीकृत कर जलडमरूमध्य की बस्तियों का निर्माण किया गया जिन पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण हो गया. १८३० में जलडमरूमध्य की बस्तियां ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसीडेन्सी की एक रेजीडेंसी या सबडिविजन बन गयीं. बाद के दशकों के दौरान सिंगापुर इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया. इसकी सफलता के कई कारण थे जिसमें चीन में बाजार का खुलना, समुद्रगामी भाप के जहाज़ों (स्टीमशिप) का आगमन और मलय में रबड़ एवं टिन का उत्पादन शामिल था। एक निःशुल्क बंदरगाह के रूप में इसकी स्थिति ने बाताविया (जकार्ता) और मनीला में अन्य औपनिवेशिक बंदरगाह शहरों पर इसे महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान किया जहां टैरिफ लगाए जाते थे, इसने दक्षिण-पूर्व एशिया में काम करने वाले कई चीनी, मलय, भारतीय और अरब व्यापारियों को सिंगापुर की ओर आकर्षित किया। बाद में १८६९ में स्वेज नहर के खुल जाने से सिंगापुर में व्यापार को और अधिक बढ़ावा मिला. १८८० तक १.५ मिलियन टन से अधिक सामग्रियां प्रतिवर्ष सिंगापुर से होकर गुजराती थीं जिनमें से लगभग ८०% कार्गो का परिवहन स्टीमशिप द्वारा होता था। मुख्य व्यावसायिक गतिविधि एंट्रीपोर्ट (एंट्रप्ट) व्यापार के रूप में थी जो कराधान रहित और न्यूनतम प्रतिबंध के अंतर्गत काफी तेजी से निखरा. कई व्यापारी घरानों की स्थापना सिंगापुर में हुई जो मुख्यतः यूरोपीय व्यापार कंपनियों द्वारा की गयी थी लेकिन इसमें यहूदी, चीनी, अरब, अर्मेनियाई, अमेरिकी और भारतीय व्यापारी भी शामिल थे। कई चीनी बिचौलिये भी थे जिन्होंने यूरोपीय और एशियाई व्यापारियों के बीच अधिकांश व्यापार का संचालन किया। १८२७ तक चीनी सिंगापुर में सबसे बड़े जातीय समूह बन गए थे। इनमें पेरानाकन शामिल थे जो पहले के चीनी निवासियों के वंशज थे और चीनी कूली जो अफीम युद्धों के कारण दक्षिणी चीन में आर्थिक संकट से बचकर सिंगापुर भाग आये थे। कई लोग गरीब अनुबंधित मजदूरों के रूप में सिंगापुर पहुंचे थे और वे मुख्य रूप से पुरुष थे। १८६० के दशक तक मलायी दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह बन गए थे और उन्होंने मछुआरों, कारीगरों या मजदूरों के रूप में ज्यादातर कम्पुंग में निरंतर रहकर काम करते थे। १८६० तक भारतीय दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह बन गए। उनमें अकुशल मजदूर, व्यापारी और ऐसे अपराधी शामिल थे जिन्हें जंगलों की सफाई और सड़कें बिछाने जैसे सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भेजा गया था। इसमें भारतीय सिपाही दल भी शामिल थे जिन्हें अंग्रेजों द्वारा सिंगापुर में मोर्चाबंदी के रूप में तैनात किया गया था। सिंगापुर के बढ़ते महत्व के बावजूद द्वीप पर शासन करने वाला प्रशासन अपर्याप्त कर्मचारी से ग्रस्त, निष्प्रभावी और जनता के कल्याण के प्रति उदासीन था। प्रशासकों को आम तौर पर भारत से तैनात किया जाता था और ये स्थानीय संस्कृति एवं भाषाओं से अपरिचित थे। हालांकि १८३० से १८६७ के दौरान आबादी चार गुना बढ़ गयी थी, सिंगापुर में सिविल सेवा का आकार अपरिवर्तित रहा था। अधिकांश लोगों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं थीं और विशेष रूप से भीड़-भाद वाले कामकाजी-वर्ग के क्षेत्रों में हैजा (कॉलेरा) और चेचक (स्मॉल पॉक्स) जैसी बीमारियां गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनी थीं। प्रशासन के निष्प्रभावी और मुख्य रूप से पुरुष, क्षणिक और अशिक्षित प्रकृति की आबादी होने के परिणाम स्वरूप समाज क़ानून की अवमानना करने वाला और अराजक हो गया था। १८५० में लगभग ६०,००० लोगों के शहर में केवल बारह पुलिस अधिकारी मौजूद थे। वेश्यावृत्ति, जुआ और मादक पदार्थों का सेवन (विशेष रूप से अफीम का) बड़े पैमाने पर हो रहा था। चीनी आपराधिक गुप्त समाज (आधुनिक समय के ट्रायड्स की तरह) अत्यंत शक्तिशाली थी और इनमें से कुछ के पास दसियों हज़ार सदस्य मौजूद थे। प्रतिद्वंद्वी समाजों के बीच संघर्ष के युद्धों के कारण कभी-कभी सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती थी और उन्हें दबाने के प्रयासों को सीमित सफलता ही हाथ लगती थी। क्राउन कॉलोनी (१८६७-१९४२) सिंगापुर की निरंतर प्रगति के साथ-साथ जलडमरूमध्य की बस्तियों में प्रशासन की नाकामी गंभीर होती गयी और सिंगापुर के व्यापारी समुदाय ने ब्रिटिश भारत के शासन के खिलाफ आन्दोलन करना शुरू कर दिया. १ अप्रैल १867 को ब्रिटिश सरकार जलडमरूमध्य की बस्तियों की स्थापना एक अलग क्राउन कॉलोनी के रूप में करने पर सहमत हुई. इस नई कॉलोनी को लंदन में स्थित एक औपनिवेशिक कार्यालय के पर्यवेक्षण के तहत एक गवर्नर द्वारा शासित किया गया. गवर्नर को एक कार्यकारी परिषद और एक विधायी परिषद का सहयोग मिला था। हालांकि परिषद के सदस्य चुने नहीं जाते थे, स्थानीय आबादी के और अधिक प्रतिनिधियों को धीरे-धीरे कई वर्षों में शामिल किया गया था। औपनिवेशिक सरकार द्वारा उन गंभीर सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए कई उपाय शुरू किये गए जिनका सामना सिंगापुर को करना पड़ रहा था। चीनी समुदाय की जरूरतों को पूरा करने, विशेष रूप से कूली व्यापार की बुरी गालियों पर नियंत्रण करने और चीनी महिलाओं को जबरन वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करने से रोकने के लिए १८७७ में पिकरिंग के तहत एक चीनी संरक्षित राज्य की स्थापना की गयी। १८८९ में गवर्नर सर सेसिल क्लेमेंटी स्मिथ ने गुप्त समाजों को प्रतिबंधित कर दिया जिससे उन्हें भूमिगत हो जाना पडॉ॰ फिर भी, युद्धोपरांत काल में कई सामाजिक समस्याएं बनी रहीं जिसमें एक गंभीर आवासीय कमी और खराब स्वास्थ्य और जीवन स्तर भी शामिल था। १९०६ में एक क्रांतिकारी चीनी संगठन तोंग्मेंघुई ने किंग राजवंश को उखाड़ फेंकने में प्रतिबद्धता दिखाई और सन यात-सेन के नेतृत्व में सिंगापुर में अपनी नान्यांग शाखा की स्थापना की, जिसने दक्षिण पूर्व-एशिया में संगठन के मुख्यालय के रूप में काम किया। सिंगापुर में आप्रवासी चीनी आबादी ने तोंग्मेंघुई को उदारता से दान दिया जिसने १९११ की जिनहाई क्रांति को संगठित किया जो चीनी गणराज्य की स्थापना का कारण बना. सिंगापुर प्रथम विश्व युद्ध (१९१४-१९१८) से अधिक प्रभावित नहीं हुआ था क्योंकि यह संघर्ष दक्षिण-पूर्व एशिया तक नहीं फैला था। युद्ध के दौरान एक मात्र महत्वपूर्ण घटना सिंगापुर में रक्षा-सैनिकों के रूप में तैनात ब्रिटिश मुस्लिम भारतीय सिपाहियों द्वारा १९१५ के विद्रोह के रूप में थी। इस तरह की अफवाहें सुनने के बाद कि उन्हें तुर्क साम्राज्य से लड़ने के लिए भेजा जाना था, सैनिकों ने विद्रोह कर दिया, जोहोर और बर्मा से आये सैनिकों द्वारा विद्रोह को दबाये जाने से पहले उन्होंने अपने अधिकारियों और कई ब्रिटिश नागरिकों को मार दिया. युद्ध के बाद, ब्रिटिश सरकार ने तेजी से महत्वाकांक्षी हो रहे जापानी साम्राज्य के निवारक के रूप में सिंगापुर में एक नौसेना बेस बनाने के लिए काफी मात्रा में महत्वपूर्ण संसाधनों को वहां पर भेजा. ५०० मिलियन डॉलर की एक आश्चर्यजनक लागत से पूरा किये गए इस नौसेना बेस ने उस समय दुनिया के सबसे बड़े ड्राई डॉक को काफी हद तक बढ़ावा दिया, यह तीसरा सबसे बड़ा फ्लोटिंग डॉक था और यहां पूरी ब्रिटिश नौसेना को छः महीनों तक सहायता देने वाले पर्याप्त ईंधन के टैंक मौजूद थे। यह १५-इंच के नौसेना बंदूकों और तेनगाह एयर बेस पर तैनात रॉयल एयर फोर्स स्क्वाड्रनों द्वारा सुरक्षित था। विंस्टन चर्चिल ने "पूरब के जिब्राल्टर" का नाम दिया था। दुर्भाग्य से यह एक जहाजी बेड़ा रहित बेस था। ब्रिटेन होम फ्लीट यूरोप में तैनात था और जरूरत पड़ने पर इसे तुरंत सिंगापुर भेजने की योजना बनायी गयी थी। हालांकि, १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने के बाद फ्लीट पर प्रतिरक्षी ब्रिटेन द्वारा पूरी तरह कब्जा कर लिया गया. सिंगापुर के लिए लड़ाई और जापानी अधिकार (१९४२-१९४५) ७ दिसम्बर १९४१ को जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया और प्रशांत युद्ध की वास्तविक शुरुआत हो गयी। जापान के उद्देश्यों में से एक दक्षिण-पूर्व एशिया पर कब्जा करना और अपनी सैन्य एवं औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति सुरक्षित करना था। सिंगापुर, जो इस क्षेत्र में मित्र देशों का मुख्य आधार था, यह एक प्रत्यक्ष सैन्य लक्ष्य था। सिंगापुर में ब्रिटिश सेना के कमांडरों का मानना था कि जापानी आक्रमण दक्षिण से समुद्र मार्ग से होगा, क्योंकि उत्तर में घने मलायी जंगल आक्रमण के खिलाफ एक प्राकृतिक बाधा का काम करेंगे. हालांकि अंग्रेजों ने उत्तरी मलाया पर हमले से निपटने के लिए एक योजना का खाका तैयार कर लिया था लेकिन इसकी तैयारी कभी पूरी नहीं हुई. सेना को पूरा विश्वास था कि "सिंगापुर किला" किसी भी जापानी हमले से सुरक्षित रहेगा और यह विश्वास सिंगापुर की रक्षा के लिए भेजे गए ब्रिटिश युद्धपोतों के एक स्क्वाड्रन, फ़ोर्स जेड के साथ-साथ एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स और क्रूजर एचएमएस रीपल्स आने से और सुदृढ़ हो गया. स्क्वाड्रन को एक तीसरी कैपिटल शिप, विमान वाहक एचएमएस इनडोमिटेबल के साथ इस्तेमाल किया जाना था, लेकिन यह स्क्वाड्रन को हवाई कवर के बिना छोड़कर अपने मार्ग में ही धरती पर फंस गया. ८ दिसम्बर १९४१ को जापानी सेना उत्तरी मलाया में कोटा भारु में उतरी. मलाया पर आक्रमण की शुरुआत के सिर्फ दो दिन बाद जापानी सेना के बमवर्षकों और टारपीडो हमलावर विमानों के हमले से पहांग में कुआंटान के तट से ५० मील की दूरी पर प्रिंस ऑफ वेल्स और रीपल्स समुद्र में डूब गया, जो द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश नौसेना की सबसे बुरी हार थी। दोनों कैपिटल जहाज़ों की सुरक्षा के लिए मित्र देशों की हवाई सहायता समय पर नहीं पहुंच पाई थी। इस घटना के बाद सिंगापुर और मलाया को हर दिन हवाई हमलों का सामना करना पड़ा जिसमें अस्पतालों या व्यावसायिक परिसरों जैसे नागरिक संरचनाओं को निशाना बनाया जाना शामिल था जिसके कारण प्रत्येक बार दसियों से लेकर सैकड़ों लोगों की जानें जाती थीं। जापानी सेना मित्र देशों के प्रतिरोध को कुचलते और दरकिनार करते हुए मलय प्रायद्वीप से होकर तेजी से दक्षिण की ओर बढ़ी. मित्र देशों की सेनाओं के पास टैंक नहीं थे जिसे वे उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में अनुपयुक्त मानते थे और उनकी पैदल सेना जापानी लाइट टैंकों के विरुद्ध शक्तिहीन साबित हो रही थी। चूंकि उनका प्रतिरोध जापानी बढ़त के खिलाफ विफल रहा था, मित्र देशों की सेनाओं को सिंगापुर की ओर दक्षिण दिशा में वापसी के लिए मजबूर होना पडॉ॰ ३१ जनवरी १९४२ तक आक्रमण के आरंभ होने के सिर्फ ५५ दिनों के बाद जापानियों ने पूरे मलय प्रायद्वीप पर विजय प्राप्त कर लिया था और सिंगापुर पर हमले के लिए तैयार थे। जोहोर और सिंगापुर को जोड़ने वाली पक्की सड़क को मित्र देशों की सेनाओं ने जापानी सेना को रोकने के एक प्रयास में उड़ा दिया था। हालांकि जापानी कई दिनों के बाद हवा वाली नावों में बैठकर जोहोर के जलडमरू को पार करने में कामयाब रहे. आगे बढ़ रहे जापानियों के खिलाफ मित्र देशों की सेनाओं और सिंगापुर की आबादी के स्वयंसेवकों द्वारा वीरतापूर्ण लड़ाइयां जैसे कि पसिर पंजांग की लड़ाई इसी अवधि के दौरान हुई थीं। हालांकि, ज्यादातर रक्षा पंक्ति बिखर गयी थी और आपूर्ति व्यवस्था चरमरा गयी थी, लेफ्टिनेंट-जनरल आर्थर पर्सिवल ने मित्र देशों की सेनाओं के लिए इम्पीरियल जापानी सेना के जनरल तोमोयुकी यामाशिता के सामने चीनी नववर्ष के दिन १५ फ़रवरी १९४२ को सिंगापुर में आत्मसमर्पण कर दिया. लगभग १३०००० भारतीय, ऑस्ट्रेलियाई और ब्रिटिश सैनिक युद्धबंदी बन गए, जिनमें से कई लोगों को बाद में दास मजदूरों के रूप में "हेल शिप्स" कहे जाने वाले कैदी परिवहन वाहनों के माध्यम से बर्मा, जापान, कोरिया या मंचूरिया ले जाया गया. सिंगापुर का पतन इतिहास में अंग्रेजी-नेतृत्व वाली सेनाओं का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। सिंगापुर का नया नाम स्योनान-तो ( शोनान-तो (शनान-त) जापानी में "लाइट ऑफ द साउथ आइलैंड (दक्षिणी द्वीप का प्रकाश)" दिया गया जिस पर १९४२ से १९४५ तक जापानियों का कब्जा बना रहा. जापानी सेना ने स्थानीय आबादी के खिलाफ कड़े उपाय किये जिसमें सैनिकों, विशेष रूप से केम्पीताई या जापानी सैन्य पुलिस चीनी आबादी के साथ ख़ास तौर पर क्रूरता से पेश आ रहे थे। सबसे उल्लेखनीय क्रूरता चीनी नागरिकों के सूक चिंग नरसंहार के रूप में थी जो चीन में युद्ध के प्रयास में समर्थन के खिलाफ एक जवाबी कार्रवाई थी। सामूहिक मौत (फांसी) में मलाया और सिंगापुर में २५,००० और ५०,००० के बीच लोगों की जीवन लीला समाप्त कर दी गयी। बचे हुई आबादी को जापानी कब्जे के पूरे साढ़े तीन वर्षों में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. युद्धोपरांत की अवधि (१९४५-१९५५) १५ अगस्त १९४५ को मित्र राष्ट्रों के सामने जापानियों के आत्मसमर्पण के बाद सिंगापुर अराजकता की स्थिति में आ गया; लूटपाट और प्रति-हिंसा बड़े पैमाने पर फ़ैल गयी थी। दक्षिण-पूर्व एशिया कमान के मित्र देशों के सुप्रीम कमांडर लॉर्ड लुईस माउंटबेटन के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिक जनरल हिसाइची तेराउची की ओर से जनरल इतागाकी शिशिरो से इस क्षेत्र में जापानी सेना से औपचारिक आत्मसमर्पण प्राप्त करने के लिए १२ सितंबर १९४५ को सिंगापुर वापस लौटे और मार्च १९४६ तक द्वीप पर शासन के लिए एक ब्रिटिश सैन्य प्रशासन का गठन किया। युद्ध के दौरान बिजली और पानी की आपूर्ति प्रणालियों, टेलीफोन सेवाओं के साथ-साथ सिंगापुर बंदरगाह पर बंदरगाह सुविधाओं सहित अधिकांश बुनियादी सुविधाओं को नष्ट कर दिया गया. वहां भोजन की भी कमी हो गयी जो कुपोषण, बीमारी और अनियंत्रित अपराध एवं हिंसा के बढ़ने का कारण बन गया. खाद्य-सामग्रियों की अत्यधिक कीमतें, बेरोजगारी और मजदूरों के असंतोष की पराकाष्ठा १९४७ में हमलों की एक श्रृंखला के रूप में देखी गयी जिसके कारण सार्वजनिक परिवहन और अन्य सेवाओं में बड़े पैमाने पर अवरोध उत्पन्न हुआ। १९४७ के उत्तरार्द्ध तक अर्थव्यवस्था में सुधार होना शुरू हो गया जिसमें दुनिया भर से टिन और रबड़ की बढ़ती मांग ने काफी योगदान दिया लेकिन अर्थव्यवस्था के युद्ध से पूर्व की स्थिति में वापस लौटने में कई और साल लग गए। सिंगापुर की रक्षा करने में ब्रिटेन की विफलता ने सिंगापुर वासियों की नजर में एक अजेय शासक के रूप में इसकी विश्वसनीयता को नष्ट कर दिया था। युद्ध के बाद के दशकों में स्थानीय जनता के बीच एक राजनैतिक जागृति देखी गयी और मर्डेका या मलय भाषा में "आजादी" के नारों के प्रतीक से उपनिवेश-विरोधी और राष्ट्रवादी भावनाओं का उभार हुआ। ब्रिटिश अपनी ओर से सिंगापुर और मलय के लिए धीरे-धीरे स्व-शासन को बढ़ावा देने के लिए तैयार थे। १ अप्रैल १946 को जलडमरू की बस्तियों को भंग कर दिया गया और सिंगापुर एक अलग क्राउन कॉलोनी बन गया जहां एक गवर्नर के नेतृत्व में नागरिक प्रशासन कायम हो गया. जुलाई १947 में अलग कार्यकारी और विधान परिषदों की स्थापना की गयी और अगले वर्ष विधान परिषद के छह सदस्यों के चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गयी। पहला विधान परिषद (१९४८-१९५१) मार्च १९४८ में आयोजित सिंगापुर का पहला चुनाव सीमित था क्योंकि इसमें विधान परिषद के पच्चीस सीटों में से केवल छः सीटों को निर्वाचित किया जाना था। केवल ब्रिटिश लोगों को वोट करने का अधिकार था और योग्य लोगों में से केवल २३,००० या लगभग १०% ही वोट देने के लिए पंजीकृत थे। परिषद के अन्य सदस्यों को या तो राज्यपाल द्वारा या व्यापार मंडल द्वारा चुना गया था। निर्वाचित सीटों में से तीन सीटों पर नव-गठित सिंगापुर प्रोग्रेसिव पार्टी (एसपीपी) ने जीत हासिल की थी जो एक रूढ़िवादी पार्टी थी जिनके नेता व्यापारी और पेशेवर लोग थे और तत्काल स्व-शासन के लिए दबाव डालने के प्रति अनिच्छुक थे। अन्य तीन सीटों को निर्दलीय ने जीता था। चुनावों के तीन महीने के बाद मलय में साम्यवादी समूहों द्वारा एक सशस्त्र विद्रोह - मलायी आपातकाल - छिड़ गया. अंग्रेजों ने सिंगापुर और मलय दोनों जगह वाम-पंथी समूहों को नियंत्रित करने के कड़े उपाय किये और विवादास्पद आतंरिक सुरक्षा क़ानून लागू किया जिसने "सुरक्षा के लिए खतरा" बनने वाले संदिग्ध व्यक्तियों के लिए सुनवाई के बिना अनिश्चितकालीन कारावास की अनुमति दे दी. चूंकि वामपंथी समूह औपनिवेशिक प्रणाली के सबसे मजबूत आलोचक थे, स्व-शासन की प्रगति कई सालों के लिए ठप पड़ गयी। दूसरा विधान परिषद (१९५१-१९५५) विधान परिषद का दूसरा चुनाव १९५१ में आयोजित किया गया जब निर्वाचित सीटों की संख्या बढ़ाकर नौ कर दी गयी। इस चुनाव में भी एक बार फिर एसपीपी का वर्चस्व रहा जिसने छह सीटें जीती. हालांकि इसने एक विशिष्ट स्थानीय सिंगापुर की सरकार के गठन में योगदान दिया, औपनिवेशिक प्रशासन अभी भी प्रभावी था। १९५३ में मलाया में साम्यवादियों (कम्युनिस्टों) को दबा दिए जाने और आपातकाल की सबसे बुरी स्थिति के समाप्त होने के साथ सर जॉर्ज रेंडेल के नेतृत्व में एक ब्रिटिश आयोग ने सिंगापुर के लिए एक सीमित स्वरूप के स्व-शासन का प्रस्ताव रखा. बत्तीस सीटों में से लोकप्रिय चुनाव द्वारा चुने गए पच्चीस सीटों की एक नयी विधान सभा ने विधान परिषद की जगह ली जिससे एक संसदीय प्रणाली के तहत सरकार के मुखिया के रूप में एक मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के रूप में मंत्री परिषद का चयन किया गया. अंग्रेजों ने आंतरिक सुरक्षा और विदेशी मामलों जैसे क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण और कानून पर अपने वीटो को अधिकार को बनाए रखा. विधान सभा के लिए चुनाव २ अप्रैल १९५५ को आयोजित किये गए जो एक नजदीकी-मुकाबले का मामला था जिसमें कई नयी राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव में हिस्सा लिया। पिछले चुनावों के विपरीत मतदाताओं को स्वचालित रूप से पंजीकृत किया गया जिससे मतदाताओं की संख्या बढ़कर ३००,००० के आसपास हो गयी। चुनाव में एसपीपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा जो केवल चार सीटें ही जीत पायी. नवगठित, वाम-धारा की लेफ्ट फ्रंट पार्टी सबसे बड़े विजेता के रूप में उभरी जिसने दस सीटें जीती और तीन सीटों पर जीत हासिल करने वाले यूएमएनओ-एमसीए गठबंधन के साथ मिलकर गठबंधन-सरकार का गठन किया। एक अन्य नई पार्टी, वामपंथी पीपुल्स एक्शन पार्टी (पीएपी) ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। आंशिक आंतरिक स्व-शासन (१९५५-१९५९) लेफ्ट फ्रंट के नेता दाऊद मार्शल सिंगापुर के पहले मुख्यमंत्री बने. उन्होंने एक अस्थिर सरकार का संचालन किया जिसमें उन्हें औपनिवेशिक सरकार या अन्य स्थानीय पार्टियों से कोई ख़ास सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। सामाजिक अशांति बढ़ रही थी और मई १९५५ में हॉक ली बस दंगे भड़क उठे जिसमें चार लोगों की हत्या कर दी गयी और मार्शल की सरकार को गंभीर रूप से अविश्वसनीय बना दिया गया. १९५६ में चीनी हाई स्कूल और अन्य स्कूलों में चीनी मिडिल स्कूल के दंगे भड़क गए जिससे स्थानीय सरकार और चीनी छात्रों एवं संघवादियों के बीच तनाव और अधिक बढ़ गया, संघवादियों को साम्यवादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाला माना जाता था। अप्रैल १९५६ में मार्शल ने मर्डेका वार्ता में पूर्ण स्व-शासन की बातचीत करने के लिए लंदन जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, लेकिन जब अंग्रेज सिंगापुर की आंतरिक सुरक्षा पर नियंत्रण छोड़ने के खिलाफ हो गए तो यह वार्ता विफल हो गयी। अंग्रेज कम्युनिस्ट प्रभाव और मजदूरों के हड़तालों को लेकर चिंतित थे जो सिंगापुर की आर्थिक स्थिरता को खोखला कर रहे थे, उन्होंने यह महसूस किया कि स्थानीय सरकार इससे पहले के दंगों से निपटने में अप्रभावी रही थी। वार्ता की विफलता के बाद मार्शल ने इस्तीफा दे दिया. नए मुख्यमंत्री लिम एव हॉक ने कम्युनिस्ट और वामपंथी समूहों के खिलाफ एक कानूनी कार्रवाई शुरू की जिसमें आंतरिक सुरक्षा क़ानून के तहत कई ट्रेड यूनियन नेताओं और पीएपी के कई कम्युनिस्ट समर्थक सदस्यों को कैद कर लिया गया. ब्रिटिश सरकार ने साम्यवादी आंदोलनकारियों के खिलाफ सख्त रुख को मान्यता दी और मार्च १९५७ में जब वार्ता का एक नया दौर आयोजित किया गया तो वह पूर्ण स्व-शासन प्रदान करने पर सहमत हो गयी। इसके अनुसार, एक सिंगापुर प्रदेश का निर्माण अपनी स्वयं की नागरिकता के साथ किया जाएगा. विधान सभा के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर इक्यावन कर दी जाएगी जिन्हें लोकप्रिय चुनाव द्वारा चुना जाएगा और रक्षा एवं विदेशी मामलों को छोड़कर सरकार के सभी पहलुओं पर प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल का नियंत्रण होगा. गवर्नर के प्रशासन की जगह एक यांग डी-पर्तुआन नेगारा या राज्य के प्रमुख की व्यवस्था की गयी। अगस्त १९५८ में सिंगापुर प्रदेश (स्टेट ऑफ सिंगापुर) की स्थापना की व्यवस्था के लिए यूनाइटेड किंगडम की संसद में सिंगापुर प्रदेश अधिनियम (स्टेट ऑफ सिंगापुर एक्ट) पारित किया गया. पूर्ण आंतरिक स्व-शासन (१९५९-१९६३) नयी विधान सभा के लिए चुनाव मई १९५९ में आयोजित किये गए। पीपुल्स एक्शन पार्टी (पीएपी) ने इक्यावन सीटों में से तैंतालीस सीटें जीतकर चुनावों में एक बड़ी जीत हासिल की. उन्होंने यह कामयाबी चीनी-भाषी बहुमत, विशेष रूप से मजदूर संघों और कट्टरपंथी छात्र संगठनों को मना कर हासिल की. उनके नेता ली कुआन यू, जो एक युवा कैम्ब्रिज-शिक्षित वकील था, सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री बने. पीएपी की जीत को विदेशी और स्थानीय व्यापार जगत के नेताओं द्वारा निराशा के साथ देखा गया था क्योंकि पार्टी के कुछ सदस्य कम्युनिस्ट समर्थक थे। कई व्यवसायों ने तुरंत अपने मुख्यालयों को सिंगापुर से कुआलालम्पुर स्थानांतरित कर लिया। इन अशुभ संकेतों के बावजूद पीएपी सरकार ने सिंगापुर के विभिन्न आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए एक प्रभावशाली कार्यक्रम शुरू कर दिया. आर्थिक विकास की देखरेख की जिम्मेदारी नए वित्त मंत्री गोह केंग स्वी ने संभाली जिनकी रणनीति करों में छूट से लेकर जुरोंग में एक बड़े औद्योगिक एस्टेट की स्थापना तक के उपायों के जरिये विदेशी और स्थानीय निवेश को प्रोत्साहित करने की थी। एक कुशल कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिए शिक्षा प्रणाली का पुनरुद्धार किया गया और चीनी भाषा की जगह अंग्रेजी भाषा को शिक्षण की भाषा के रूप में प्रयोग करने को बढ़ावा दिया गया. सरकार की ओर से एक मजबूत निरीक्षण के साथ मजदूरों की अशांति को समाप्त करने के लिए मौजूदा मज़दूर संघों को, कई बार बल पूर्वक, एक एकल छाता संगठन के रूप में सुदृढ़ किया गया जिसे नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एनटीयूसी) का नाम दिया गया. सामाजिक मोर्चे पर लंबे समय से मौजूद आवास की समस्या का समाधान करने के लिए एक आक्रामक और बेहतर-वित्तपोषित सार्वजनिक आवासीय कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। कार्यक्रम के पहले दो वर्षों के दौरान २५,००० से अधिक गगनचुंबी, कम लागत वाली इमारतों का निर्माण किया गया. विलय के लिए अभियान सिंगापुर पर शासन करने में अपनी सफलताओं के बावजूद ली और गोह सहित पीएपी नेताओं का मानना था कि सिंगापुर का भविष्य मलाया के साथ जुड़ा हुआ हैं। उन्होंने महसूस किया कि सिंगापुर और मलाया के बीच ऐतिहासिक और आर्थिक संबंध इतने मजबूत थे कि उन्हें अलग राष्ट्रों के रूप में बनाए रखना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने दोनों के विलय के लिए एक जोरदार अभियान चलाया। दूसरी ओर पीएपी की बड़ी कम्युनिस्ट समर्थक शाखा ने विलय का जोरदार विरोध किया जिसने मलाया की सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में युनाइटेड मलायाज नेशनल ऑर्गेनाइजेशन का प्रभाव कम होने का डर पैदा कर दिया था जो निष्ठापूर्ण ढंग से कम्युनिस्ट-विरोधी थी और उनके खिलाफ पीएपी के गैर-कम्युनिस्ट गुट का समर्थन मिल जाता. यूएमएनओ नेता भी पीएपी सरकार के प्रति अपने अविश्वास और उन चिंताओं के कारण विलय के विचार को लेकर आशंकित थे कि सिंगापुर की बड़ी चीनी आबादी जातीय संतुलन को बिगाड़ सकती थी जिस पर उनकी राजनीतिक शक्ति का आधार निर्भर करता था। १९६१ में यह मुद्दा प्रमुख बन गया जब कम्युनिस्ट समर्थक पीएपी मंत्री ओंग एंग गुआन ने पार्टी से दलबदल कर लिया और बाद के उप-चुनाव में एक पीएपी उम्मीदवार को हरा दिया, यह एक ऐसा कदम था जिसने ली की सरकार के गिरने का खतरा पैदा कर दिया. कम्युनिस्टों समर्थक द्वारा अधिग्रहण की संभावना के मद्देनजर यूएमएनओ विलय पर अपने रुख से पलट गयी। २७ मई को मलाया के प्रधानमंत्री टुंकु अब्दुल रहमान ने मौजूदा मलय फेडरेशन, सिंगापुर, ब्रुनेई और सबा एवं सरवाक के ब्रिटिश बोर्नियो क्षेत्रों को मिलाकर मलेशिया के फेडरेशन का एक विचार प्रस्तुत किया। यूएमएनओ के नेताओं का मानना था कि बोर्नियो के प्रदेशों में अतिरिक्त मलय आबादी सिंगापुर की चीनी आबादी को संतुलित कर देगी. मलेशिया के प्रस्ताव ने पीएपी के भीतर नरमपंथियों और कम्युनिस्ट समर्थकों के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष को प्रज्वलित कर दिया. लिम चिन सियोंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट समर्थकों ने पीएपी की योजना के तहत मलेशिया में प्रवेश के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए पीएपी को छोड़ कर एक नयी विपक्षी पार्टी बारिसन सोशियलिस (सोशलिस्ट फ्रंट) का गठन कर लिया। जवाब में ली ने विलय पर एक जनमत संग्रह का आहवान किया और अपने प्रस्ताव के लिए जोरदार अभियान चलाया जिसमें मीडिया पर सरकार के मजबूत प्रभाव का सहयोग भी प्राप्त हुआ। बारिसन सोशियलिस ने जनमत संग्रह के प्रपत्र को खाली छोड़ने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि इनकी गिनती नहीं की जाएगी. १ सितंबर १962 को आयोजित जनमत संग्रह में ७०% मतों ने विलय के लिए पीएपी प्रस्ताव का समर्थन किया। इसमें खाली मत भी शामिल थे क्योंकि पीएपी ने खाली मतों की गिनती विकल्प ए (सिंगापुर राष्ट्रीय जनमत संग्रह, १962) के रूप में की थी। इससे बारिसन सोशियलिस के सदस्य नाराज हो गए। २ फ़रवरी १९६३ को संयुक्त आंतरिक सुरक्षा परिषद (इंटरनल सिक्योरिटी काउंसिल) द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक, मलेशियन फेडरल और सिंगापुर की सरकारों के प्रतिनिधियों को मिलाकर ऑपरेशन कोल्डस्टोर के कूट नाम से एक व्यापार सुरक्षा विस्तार शुरू किया गया, जिसमें लिम चिन सियोंग जैसे प्रमुख बारिसन सोशियालिस नेताओं सहित सौ से ज्यादा कम्युनिस्ट-समर्थक कार्यकर्ताओं को सिंगापुर में हिरासत में लिया गया. ९ जुलाई 1९63 को सिंगापुर, मलय, सबा एवं सरवाक के नेताओं ने मलेशिया फेडरेशन की स्थापना के लिए मलेशिया समझौते पर हस्ताक्षर किया। मलेशिया में सिंगापुर (१९६३-१९६५) १६ सितंबर १९६३ को मलाया, सिंगापुर, सबा एवं सरवाक का औपचारिक रूप से विलय कर दिया गया और मलेशिया का गठन हुआ। पीएपी सरकार ने महसूस किया कि एक राष्ट्र के रूप में सिंगापुर का अस्तित्व मुश्किल होगा. उनके पास प्राकृतिक संसाधनों का अभाव था और उन्हें एक गिरते पुनर्निर्यात व्यापार और एक बढ़ती हुई जनसंख्या का सामना करना पड़ रहा था जिसके लिए रोजगार की आवश्यकता थी। इसलिए सिंगापुर ने महसूस किया कि यह विलय एक आम मुक्त बाजार बनाकर, व्यापार शुल्कों को हटाकर, बेरोजगारी संकट का संधान कर और नए उद्योगों का समर्थन कर अर्थव्यवस्था को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किया गया था। ब्रिटिश सरकार सिंगापुर को पूर्ण स्वतंत्रता देने के प्रति अनिच्छुक थी क्योंकि उनका मानना था कि यह साम्यवाद के लिए एक स्वर्ग बन जाएगा. संघ शुरू से ही कठोर था। १९६३ में सिंगापुर के प्रदेश चुनावों के दौरान यूएमएनओ की एक स्थानीय शाखा ने मलेशिया के रचनात्मक वर्षों के दौरान प्रदेश की राजनीति में हिस्सा नहीं लेने के पीएपी के साथ यूएमएनओ के एक पूर्व समझौते के बावजूद चुनावों में हिस्सा लिया। हालांकि यूएमएनओ अपनी सभी बोलियां हार गयी, यूएमएनओ और पीएपी के बीच संबंध बिगड़ गए क्योंकि पीएपी ने जैसे-को-तैसा के तर्ज पर १९६४ के संघीय चुनाओं में मलेशियन सोलिडेरिटी कन्वेंशन के एक हिस्से के रूप में यूएमएनओ के उम्मीदवारों को चुनौती दी और मलेशियाई संसद में एक सीट पर जीत हासिल की. जातीय तनाव बढ़ गए क्योंकि सिंगापुर के चीनियों में उस सकारात्मक कार्रवाई की संघीय नीतियों द्वारा भेदभाव किये जाने के खिलाफ घृणा फ़ैल गयी, जिसने मलेशिया के संविधान के अनुच्छेद १५३ के तहत मलयों को विशेष विशेषाधिकार की गारंटी प्रदान की थी। इसके अलावा मलयों को प्राथमिकता के आधार पर अन्य वित्तीय और आर्थिक लाभ भी दिए गए थे। ली कुआन यू और अन्य राजनीतिक नेताओं ने "मलेशियन मलेशिया!" के प्रदर्शनकारी नारे के साथ मलेशिया में सभी जातियों के साथ उचित और एक समान व्यवहार की वकालत करना शुरू कर दिया. इस बीच सिंगापुर में मलायी लोगों को संघीय सरकार के इन आरोपों के जरिये तेजी से उकसाया जा रहा था कि पीएपी मलायी लोगों के साथ बुरा बर्ताव कर रही थी। बाहरी राजनीतिक परिस्थिति भी तनावपूर्ण थी जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने मलेशिया के विरुद्ध एक कोंफ्रोंटासी (टकराव) की स्थिति की घोषणा की और नए देश के खिलाफ सैन्य एवं अन्य कार्रवाइयां शुरू कर दी जिसमें १० मार्च १९६५ को इंडोनेशियाई कमांडो द्वारा सिंगापुर में मैकडोनाल्ड हाउस पर बमबारी की की घटना शामिल थी जहां तीन लोग मारे गए थे। इंडोनेशिया ने मलाई लोगों को चीनियों के खिलाफ भड़काने के लिए विद्रोही गतिविधियों का भी सहारा लिया। इसके परिणाम स्वरूप कई जातीय दंगे हुए और व्यवस्था को बहाल करने के लिए लगातार कर्फ्यू लगाए गए। सबसे कुख्यात दंगे १९६४ के जातीय दंगे थे जो पहली बार २१ जुलाई को पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन पर हुए थे जिसमें तेईस लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। अशांति के दौरान खाद्य-सामग्रियों की कीमतें आसमान छूने लगी जब परिवहन व्यवस्था को बाधित कर दिया गया जिसके कारण लोगों के लिए और अधिक कठिनाई पैदा हो गयी। राज्य और संघीय सरकारों ने भी आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष किया था। यूएमएनओ नेताओं को यह डर था कि सिंगापुर का आर्थिक प्रभुत्व राजनीतिक सत्ता को अनिवार्य रूप से कुआलालम्पुर से दूर ले जाएगा. एक साझा बाजार की स्थापना के पहले के समझौते के बावजूद सिंगापुर को शेष मलेशिया के साथ व्यापार करने में निरंतर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. जवाबी कार्रवाई में सिंगापुर ने सबा और सरवाक को दोनों पूर्वी प्रदेशों के आर्थिक विकास के लिए पहले से सहमत ऋण की पूरी सीमा प्रदान करने से इनकार कर दिया. सिंगापुर के बैंक ऑफ चाइना की शाखा को कुआला लम्पुर की केन्द्र सरकार द्वारा बंद कर दिया गया क्योंकि इस पर चीन में कम्युनिस्टों को वित्तपोषित करने का संदेह था। परिस्थिति इस कदर तीव्र हुई कि वार्ता शीघ्र ही समाप्त हो गयी और दोनों ओर से अपमानजनक बातों और लेखनों का दौर शुरू हो गया. यूएमएनओ के चरमपंथियों ने ली कुआन यू की गिरफ्तारी की मांग कर दी. और अधिक रक्तपात से बचने का कोई अन्य विकल्प नहीं देखकर मलेशिया के प्रधानमंत्री टुंकु अब्दुल रहमान ने सिंगापुर को महासंघ (फेडरेशन) से निष्कासित करने का निर्णय लिया। ९ अगस्त 1९65 को मलेशिया की संसद ने निष्कासन के पक्ष में १२६-० से मतदान किया। उस दिन शोकाकुल ली कुआन यू ने एक टेलीविजन पत्रकार सम्मेलन में घोषणा की कि सिंगापुर एक संप्रभु, स्वतंत्र राष्ट्र था। एक व्यापक रूप से संस्मरणीय वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि: "मेरे लिए, यह एक वेदना का पल है। मेरी पूरी जिंदगी, मेरी पूरी युवावस्था में, मैंने दोनों प्रदेशों के विलय और एकता में विश्वास किया था।" नया देश सिंगापुर गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ सिंगापुर) बन गया और यूसुफ़ बिन इशाक पहले राष्ट्रपति नियुक्त किये गए। सिंगापुर गणराज्य (१९६५-वर्त्तमान) १९६५ से १९७९ अचानक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सिंगापुर को एक अनिश्चितताओं से भरे भविष्य का सामना करना पड़ा. कोंफ्रोंटासी जारी था और रूढ़िवादी यूएमएनओ गुट ने अलगाव का दृढ़तापूर्वक विरोध किया; सिंगापुर को इन्डोनेशियाई सेना द्वारा हमले के खतरों और प्रतिकूल शर्तों पर जबरन मलेशिया फेडरेशन में एकीकरण का सामना करना पड़ा. सिंगापुर ने तुरंत अपनी संप्रभुता की अंतरराष्ट्रीय मान्यता की मांग की. नया राष्ट्र २१ सितंबर १९६५ को संयुक्त राष्ट्र में शामिल हो गया और इसका ११७वां सदस्य बन गया; और उसी वर्ष अक्टूबर में यह राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) में शामिल हो गया. विदेश मंत्री सिन्नाथाम्बी राजरत्नम ने एक नई विदेश सेवा का नेतृत्व किया जिसने सिंगापुर की स्वतंत्रता और अन्य देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने पर जोर देने में मदद की. २२ दिसम्बर १९६५ को संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया जिसके तहत राष्ट्र के प्रमुख राष्ट्रपति बन गए और सिंगापुर राष्ट्र सिंगापुर गणराज्य बन गया. सिंगापुर ने बाद में ८ अगस्त १९६७ को दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ की सह-स्थापना की और १९७० में यह गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल हो गया. एक छोटा सा द्वीप राष्ट्र होने के कारण सिंगापुर को एक व्यावहारिक देश होने के लिए अनुपयुक्त के रूप में देखा गया और अधिकांश अंतरराष्ट्रीय मीडिया सिंगापुर के अस्तित्व की संभावनाओं को लेकर उलझन में था। संप्रभुता के मुद्दे के अलावा बेरोजगारी, आवास, शिक्षा और प्राकृतिक संसाधन एवं जमीन की कमी दबाव डालने वाली समस्याएं थीं। बेरोजगारी १०-१२% के बीच थी जो नागरिक अशांति बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो गया था। सिंगापुर के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्रीय आर्थिक रणनीतियां तैयार करने और इन्हें लागू करने के लिए १९६१ में आर्थिक विकास बोर्ड का गठन किया गया था। विशेष रूप से जुरोंग में औद्योगिक एस्टेटों की स्थापना की गयी थी और करों में छूट से देश में विदेशी निवेश को आकर्षित किया गया था। औद्योगीकरण ने विनिर्माण क्षेत्र को उच्च मूल्य-वर्धित वस्तुओं का उत्पादन करने और अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने वाले क्षेत्र में बदल दिया था। इस दौरान बंदरगाह पर उपलब्ध जहाज़ों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की मांग में वृद्धि और व्यापार बढ़ने से सेवा उद्योग में भी अच्छी प्रगति हुई. इन प्रगतियों ने बेरोजगारी के संकट को कम करने में मदद की. सिंगापुर ने शेल और एस्सो जैसी बड़ी तेल कंपनियों को भी सिंगापुर में तेल रिफाइनरियों की स्थापना के लिए आकर्षित किया जो १९७० के दशक के मध्य तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल शोधन केंद्र बन गया. सरकार ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर भारी निवेश किया जिसने अंग्रेजी को शिक्षण की भाषा के रूप में अपनाया और उद्योग के लिए अनुकूल सक्षम कार्यबल के विकास के लिए प्रशिक्षण पर जोर दिया था। बेहतर सार्वजनिक आवास की कमी, खराब स्वच्छता और उच्च बेरोजगारी के कारण अपराध से लेकर स्वास्थ्य समस्याओं तक कई सामाजिक समस्याएं पैदा हो गयी थीं। अवैध बस्तियों के प्रसार के परिणाम स्वरूप सुरक्षा संबंधी खतरे पैदा हो गए और १९६१ में यह बुकित हो स्वी स्क्वैटर अग्निकांड का कारण बना जिसमें चार लोग मारे गए और १६,००० अन्य लोग बेघर हो गए थे। स्वतंत्रता से पहले गठित आवास विकास बोर्ड को आगे भी काफी हद तक सफलता मिलाती रही और अवैध बस्तियों के पुनर्वास के लिए किफायती सार्वजनिक आवास प्रदान करने वाली विशाल भवन निर्माण परियोजनाएं काफी तेजी से आगे बढीं. एक दशक के भीतर अधिकांश आबादी को इन अपार्टमेंटों में आवास की व्यवस्था कर दी गयी। १९६८ में केंद्रीय भविष्य निधि (सेन्ट्रल प्रोविडेंट फंड) (सीपीएफ) आवासीय योजना शुरू की गयी जिसने यहाँ के निवासियों को अपने अनिवार्य बचत खाते का उपयोग एचडीबी फ्लैटों की खरीद के लिए करने की अनुमति दी और इस तरह सिंगापुर में गृह स्वामित्व धीरे-धीरे बढ़ता गया. ब्रिटिश सैनिक सिंगापुर की स्वतंत्रता के बाद भी वहीं बने रहे लेकिन १९६८ में लंदन ने १९७१ तक सैनिकों की वापसी के फैसले की घोषणा कर दी. सिंगापुर अपनी सेना का गठन करने के लिए तैयार हो गया जिसे सिंगापुर आर्म्ड फोर्सेस कहा गया और १९६७ में एक राष्ट्रीय सेवा कार्यक्रम की शुरुआत हुई. १९८० और १९९० के दशक इसके अलावा आर्थिक सफलता १९८० के दशक तक निरंतर जारी रही जब बेरोजगारी की दर ३% तक गिर गयी और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में १९९९ तक लगभग ८% की औसत दर से वृद्धि होती रही. १९८० के दशक के दौरान सिंगापुर ने उन अपने पड़ोसियों से मुकाबला करने के लिए जिनके पास अब सस्ते मजदूर उपलब्ध थे, अपने आप को उच्च-तकनीकी उद्योगों जैसे कि वेफर फैब्रिकेशन क्षेत्र के स्तर तक उन्नत करना शुरू कर दिया. सिंगापुर चांगी हवाई अड्डा 19८1 में खोला गया था और सिंगापुर एयरलाइंस को विकसित कर एक प्रमुख एयरलाइन बना दिया गया था। सिंगापुर का बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक बन गया और इस अवधि के दौरान सेवा एवं पर्यटन उद्योग में भी काफी तेजी से वृद्धि हुई. सिंगापुर एक महत्वपूर्ण परिवहन हब और एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में उभरा. आवास विकास बोर्ड निरंतर सार्वजनिक हाउसिंग को बढ़ावा देता रहा और आंग मो किओ जैसे नए शहरों का डिजाइन और निर्माण किया गया. इन नए आवासीय एस्टेटों में बड़े और उच्च-स्तरीय अपार्टमेन्ट बनाए गए थे और इनमें बेहतर सुविधाएं मौजूद थीं। आज ८०-९०% आबादी एचडीबी अपार्टमेंटों में रहती है। १९८७ में इनमें से ज्यादातर आवासीय एस्टेटों और सिटी सेंटरों को जोड़ने वाले प्रथम मास रैपिड ट्रांजिट (एमआरटी) लाइन का संचालन शुरू हुआ। सिंगापुर में राजनीतिक स्थिति स्थिर थी और इस पर पीपुल्स एक्शन पार्टी का प्रभुत्व था जिसके पास १९६६ से १९८१ तक के दौरान संसद में १५ वर्षों का एकाधिकार रहा था, जिसने इस अवधि के दौरान चुनावों में सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। कुछ कार्यकर्ताओं और विपक्षी राजनेताओं द्वारा पीएपी के शासन को सत्तावादी करार दिया जाता है जो सरकार द्वारा राजनीतिक एवं मीडिया गतिविधियों के सख्त विनियमन को राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखते हैं। अवैध प्रदर्शनों के लिए विपक्षी राजनेता ची सून जुआन को सजा देने और जे.बी. जयरत्नम के खिलाफ मानहानि के मुकदमों को विपक्षी दलों द्वारा ऐसे अधिनायकवाद के उदाहरणों के रूप में उद्धृत किया गया है। अदालत प्रणाली और सरकार के बीच शक्तियों के विभाजन की कमी ने विपक्षी पार्टियों द्वारा न्याय की निष्फलता के आरोपों को और अधिक बढ़ावा दिया. सिंगापुर की सरकार में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. संसद के गैर-संसदीय सदस्यों की शुरुआत १९८४ में विपक्षी पार्टियों के तीन पराजित उम्मीदवारों तक को सांसद के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देने के लिए की गयी। संसद में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के इरादे से कई सीटों वाले मतदाता विभाजन के लिए १९८८ में सामूहिक प्रतिनिधित्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों (जीआरसी) की शुरुआत की गयी। संसद के मनोनीत सदस्य की शुरुआत १९९० में गैर-निर्वाचित गैर-दलीय सांसदों की अनुमति देने के लिए की गयी। एक ऐसे निर्वाचित राष्ट्रपति का प्रावधान करने के लिए जिनके पास राष्ट्रीय राजस्व के उपयोग और सार्वजनिक कार्यालय की नियुक्तियों में वीटो का अधिकार हो, १९९१ में संविधान में संशोधन किया गया. विपक्षी दलों ने शिकायत की थी कि जीआरसी प्रणाली ने सिंगापुर के संसदीय चुनावों में उनके लिए पांव ज़माना मुश्किल बना दिया था और अनेकता मतदान प्रणाली अल्पसंख्यक दलों को बाहर कर देती थी। १९९० में ली कुआन यू ने नेतृत्व की बागडोर गोह चोक टोंग को सौंप दी जो सिंगापुर के दूसरे प्रधानमंत्री बने. देश को आधुनिकता की राह पर ले जाते हुए गोह ने नेतृत्व की एक अधिक खुली और परामर्शी शैली प्रस्तुत की. १९९७ में सिंगापुर ने एशियाई वित्तीय संकट और कड़े उपायों के प्रभाव का अनुभव किया, जैसे कि सीपीएफ़ योगदान में कटौती को लागू किया गया. २००० - वर्तमान २००० के दशक की शुरुआत २००० के दशक की शुरुआत में सिंगापुर स्वतंत्रता-उपरांत के कुछ संकटों का सामना करना पड़ा जिनमे २००३ का सार्स (एसएआरएस) प्रकोप तथा आतंकवाद का खतरा शामिल है। दिसंबर २००१ में सिंगापुर में दूतावासों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को बम से उड़ाने की एक योजना का खुलासा हुआ और जेमाह इस्लामिया समूह के तकरीबन ३६ सदस्यों को आंतरिक सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ्तार किया गया. संभावित आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और उनका पता लगाने और उनके द्वारा किये जाने वाले नुकसानों को कम से कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण आतंकवाद विरोधी उपाय किये गए। २००४ में ली कुआन यू के ज्येष्ठ पुत्र ली सिएन लूंग सिंगापुर के तीसरे प्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने राष्ट्रीय सेवा की अवधि को ढाई साल से घटा कर दो साल करने और कैसीनो जुआ को वैध करने सहित कई नीतिगत बदलाव किये. २००६ का आम चुनाव एक मील का पत्थर था क्योंकि इसमें चुनाव को कवर करने और इस पर टिपण्णी करने के लिए सरकारी मीडिया की बजाय इंटरनेट और ब्लॉगिंग का प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया था। ६६% मतों के साथ ८४ संसदीय सीटों में से ८२ पर जीत हासिल कर पीएपी सत्ता में लौटी. २००५ में दो पूर्व राष्ट्रपतियों, वी किम वी और देवन नायर का निधन हो गया. युवा ओलंपिक खेल (मुख्य लेख - २०१० समर यूथ ओलंपिक्स) नवंबर २००७ की शुरुआत में आईओसी ने एथेंस, बैंकाक, सिंगापुर, मास्को और ट्यूरिन को प्रथम युवा ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए पांच उम्मीदवार शहरों के रूप में चुना. जनवरी २००८ में उम्मीदवारों की संख्या को और कम कर सिर्फ मॉस्को और सिंगापुर तक सीमित कर दिया गया. अंत में २१ फ़रवरी २००८ को सिंगापुर को स्विट्जरलैंड के लॉज़ेन से किये जाने वाले लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से २०१० के प्रथम युवा ओलंपिक खेलों का मेजबान घोषित किया गया, सिंगापुर को मास्को के ४४ मतों के मुकाबले ५३ मत प्राप्त हुए थे। सिंगापुर सभी २६ खेलों में प्रतिस्पर्धा कर रहा है। इन्हें भी देखें सिंगापुर इतिहास का घटनाक्रम सिंगापुर में वर्षों की सूची सिंगापुर का सैन्य इतिहास सिंगापुर इतिहास एक संक्षिप्त इतिहास, सिंगापुर सरकार द्वारा आयोजित किया गया. सिंगापुर लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस की कंट्री स्टडीज़ हैंडबुक में सिंगापुर के लिए एंट्री, जिसमें इतिहास का सविस्तृत वर्णन किया गया है। क्नॉलेजेनेट.कॉम.स्ग जीवनी और भौगोलिक इतिहास, विशेष रूप से रुचिकर हैं। सिंगापुर का राष्ट्रीय पुरालेख बड़ी संख्या में ऐतिहासिक दस्तावेज़ और तस्वीरों को पेश किया गया है। मलाया और सिंगापुर का पतन सिंगापुर युद्ध का एक विस्तृत इतिहास. ए ड्रीम शैटर्ड टुंकु अब्दुल रहमान द्वारा विभाजन की घोषणा करते हुए मलेशिया की सांसद में दिया गया पूर्ण भाषण. येस्टरड्य.स्ग एक रूचि आधारित ब्लॉग जिसमे लोग सिंगापुर विरासत तथा संग्रहालय की कहानियों, विचारों, घटनाओं आदि को साझा कर सकते हैं। इरमेंबर.स्ग सिंगापुर की स्मृतियों का दृश्य चित्रण; जो छवियों तथा कहानियों के रूप में है और जिन्हें सिंगापुर के भौगोलिक नक़्शे पर चिन्हित किया गया है। इन छवियों को उनके काल के हिसाब से भी चिन्हित किया गया है ताकि आप सिंगापुर में समय के साथ होने वाले बदलाव को देख सकें. सिंगापुर का इतिहास
सनई (सुन या सुन हेंप; वैज्ञानिक नाम : क्रोटलेरिया जंसिया) एक पौधा है जिसका उपयोग हरी खाद बनाने में किया जाता है। इसके फूलों की शब्जी बनती है। इसके तने को पानी में सड़ाने के बाद इसके ऊपर लगा रेशा से रस्सी बनायी जाती है।और यह रस्सी बहुत ही टिकाऊ होती है। इस पौधे की एक झलक के लिए यह तस्वीर देखें सनई की खेती भारत के सभी भागों में इसे उगाया जाता है लेकिन, उ०प्र० एवं मध्य प्रदेश में इसे प्रमुखता से उगाते हैं उत्तरी राज्यों में इसे खरीफ में उगाते हैं जबकि दक्षिणी राज्यों में इसे रबी में भी उगाते हैं इसकी खेती के लिए कम से कम ४० सेमी. वार्षिक वर्षा पर्याप्त रहती है, जिसका वितरण ठीक हो, जो लगभग ५० दिन में गिरे। उचित जल- निकास वाली अल्यूवियल मृदा उचित रहती है, जो बलुई दोमट से दोमट हो चूँकि यह दलहनी (लेगमे) फसल है, लेकिन इसकी जङों में गाँठो (नॉड्यूल्स) का निर्माण भूमि में उपस्थित कैल्शियम (का) एवं फास्फोरस (प) की मात्रा पर निर्भर करता है अत: कम पी-एच (फ) वाली मृदायें उचित नहीं होती है, लेकिन अम्लीय मृदाओं में चूना प्रयोग करके उन्हें सुधारा जा सकता है रेशा तथा हरी खाद दोनों के लिये खेत की फसल के लिये, सुविधाओं के अनुसार, एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व २-३ जुताई देशी हल से करते हैं अन्तिम जुताई के बाद खेत को समतल एवं भुरभुरा बनाने के लिए पाटा चलाया जाता है। सनई की संस्तुत किस्में एवं उनकी विशेषतायें- कानपुर-१२ (क-१२)- अधिक उपज, रेशा अच्छी गुणवत्ता का, उकठा प्रतिरोधी, उपज १४ कुं०प्रति है० म-१८- शीघ्र परिपक्वता, हल्की भूमि हेतु उपयुक्त, कम वर्षा चाहिए म-३५- तना छेदक प्रतिरोधी, शेष म-१८ की तरह बे-१(नालन्दा सनई)- अच्छी उपज एवं रेशों का गुण भी अच्छा बैल्लारी- अधिक उपज ड-इक्स - उकठा प्रतिरोधी स्त-५५- क-१२ से अधिक उपज बुवाई- सनई को खरीफ फसल के रूप में रबी में गेहूँ अथवा तिलहनों - सरसों आदि से पूर्व उगाते हैं इसे प्राय: छिटकवाँ विधि से बोते हैं यदि इसे लाइन में बोया जाय तो उचित होगा छिटकवाँ विधि में बीजदर लगभग २५-३० किग्रा०/ हेक्टेयर पर्याप्त रहती है जबकि लाइनों में बुवाई करने पर मात्र ५ किग्रा०/ हेक्टेयर बीज चाहिए कतार से कतार कतार ३० सेमी तथा पौधा से पौधा ५ से ७ सेमी की दूरी पर हो खाद हेतु इसके बीज की मात्रा ५०-६० किग्रा०/ हेक्टेयर छिटकवाँ विधि में रखते हैं बुवाई का समय- वर्षा से पूर्व जुलाई में प्राय: इसे बोते हैं एक वर्ष से पुराना बीज न हो, क्योकि बीजों की अंकुरण क्षमता ९० प्रतिशत होती है। चूँकि यह एक दलहनी फसल है और स्वयं जड़ें (ग्रथियों में जीवाणु होने के कारण) वायुमण्डल से नत्रजन एकत्रित कर लेती हैं, अत: नत्रजन देने की जरूरत नहीं पङती है फाँस्फोरस एवं पोटाश तत्वों की मत्रायें लगभग २०-२० क्रिग्रा० (प व क) प्रति हेक्टेयर दी जाय सूक्ष्म-तत्व बोरोन (बोरोन) एवं माँलिब्डेनम (मो) लाभदायक है, लेकिन इन्हें प्राय: नहीं दिया जाता है क्योंकि इन तत्वों की मात्रा भूमि में पाई जाती है कैल्सियम की अधिक मात्रा में जरूरत पङती है उ० प्र० के प्रचलित क्षेत्रों - बनारस, प्रतापगढ, सुल्तानपुर, आजमगढ, देवरिया में चूना नहीं दिया जाता खेत में खाद डालने के बाद इसकी बुवाई कर दी जाती है भूमि में रेक चला कर बीजों को मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। अप्रैल - मई में बोई गई फसल में वर्षा आरम्भ होने से पहले १-२ सिंचाई करते हैं दाने व रेशे वाली फसलों के लिये वर्षा अगर शीघ्र समाप्त हो जाय या बीच में सूखा पङ जाये तो आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देते हैं। प्राय: निकाई नहीं की जाती है चूँकि सनई में आइपोमिया स्पीशीज (इपोमिया स्प.) के बीज मिल जाते हैं अत: एक निकाई आवश्यक है। १.सनई का मोथ-यह पत्तियों को खाता है इसके ऊसर लाल, काले और सफेद निशान होते हैं यह कैप्सूल में छेद करके अन्दर घुस जाता है मौथ के पंखों पर सफेद, लाल व काले चिन्ह मिलते हैं पत्तियों और तनों पर अपने अण्डे देता है इसकी सूँडी फसल को क्षति पहुँचाती है इससे बचने के लिये अण्डों और सूँडियों को चुनकर बाहर डाल कर नष्ट कर देना चाहिये या ५ प्रतिशत बी० एच० सी० धूल १२-२० किग्रा० प्रति हैक्टर की दर से बुरकनी चाहिये या ०.१५ प्रतिशत इन्डोसल्फान (३५ ई० सी०) के घोल का छिङकाव करें २. तना छेदक-यह कीट पौधे के उपरोक्त भाग में छेद करके पौधे को क्षति पहुंचाता है इसकी रोकथाम के लिये ५ प्रतिशत बी० एच० सी० की धूल लाभप्रद रहती है या ०.०४ प्रतिशत डायजिनान के घोल का छिङकाव करें ३. लाल रोयेंदार सूँडी- यह लाल बालों वाली सूँडी पत्तियों को खाती है यह सूँडी अंकुरित होते हुये बीजांकुरों को भी खा जाती है और भूमि के अन्दर ही इसकी प्यूपा अवस्था पूरी होती है इसके मौथ के पंखो पर काले धब्बे होते हैं इसके अण्डे भी भूमि में ही पाये जाते हैं इसके रोकथाम के लिये मौथ को रोशनी द्वारा आकर्षित करके, पकङ कर नष्ट कर देना चाहिये, १० प्रतिशत बी० एच० सी० की धूल २५-३० किग्रा० प्रति है० की दर से बुरकना चाहिये या ०.१५ प्रतिशत इन्डोसल्फान के घोल का छिङकाव करें। (१) चूर्णिल आसिता - यह फफूँद से लगने वाला रोग है इसके द्वारा बहुत हानि होती है; रोगी पौधों को उखाङकर जला दें, घुलनशील गन्धक जैसे इलोसाल या सल्फैक्स की ३ कि.ग्रा. मात्रा को १००० ली० पानी में घोलकर प्रति हे० की दर से छिङकाव करें या फसल पर ०.०६ प्रतिशत कैराथेन (६० ग्राम दवा १०० ग्राम ली० पानी में) नामक दवा का छिङकाव करें (२) गेरूई या रतुआ-यह फफूँद से लगता है पौधे के सभी वायुवीय भागों पर फफोले दिखाई देते हैं इनका रंग कुछ पीला - भूरा होता है धब्बे बिखरे रहते हैं व बाद में काले - भूरे हो जाते हैं इसकी रोकथाम के लिये ०.२ प्रतिशत डाइथेन एम-४५ के घोल का छिङकाव करें (३) मोजेक- यह विषाणु द्वारा लगने वाली बीमारी है पत्तियाँ इससे प्रभावित होती हैं और इनमें मोङ आ जाते हैं तथा कुरूप हो जाती हैं शारीरिक क्रिया कम हो जाती है फसल की पैदावार घट जाती है इसकी रोकथाम भी अभी तक अज्ञात है वैसे फसलों के हरे-फेर कर बोने से रोग को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है (४) मुरझान या उकठा- यह फफूँद द्वारा लगता है पत्तियाँ पीली पङ जाती हैं यह रोग अक्टूबर में दिखाई देता है और पूरा पौधा मुरझा जाता है तथा बाद में नष्ट हो जाता है इसे रोकने के लिये प्रतिरोधी किस्मों (के १२ व के १२ पीली) को उगाना चाहिये, फसल -चक्र अपनाने चाहियें और खेत की स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिये बीज को बोने से पहले एग्रोसन जी० एन० से उपचारित कर लेना चाहिये (५) जीवाणु पत्ती या पर्ण दाग- यह बीमारी जीवाणु से लगती है इसके द्वारा पत्तियो पर चकत्ते बने जाते हैं यह बहुत कम प्रभाव दिखाती है और कम ही क्षति इसके द्वारा होती है खेत से उचित जल निकास का प्रबन्ध करें व उचित फसल - चक्र अपनायें। (अ) हरी खाद के लिये कटाई-फसल बोने के ५० - ६० दिन बाद फसल खेत में पलट दी जाती है अप्रैल -मई में बोई गई फसल जून- जौलाई में खेत में पलट देते हैं व जून -जौलाई में बोई गई फसल अगस्त - सितम्बर में खेत में पलट देते है (ब) रेशे वाली फसल-बोने के १० -१२ सप्ताह बाद रेशे के लिये फसल की कटाई करते हैं पहले कटाई करने पर रेशा कच्चा प्राप्त होता है तथा उपज में भारी कमी होती है व बाद में कटाई करने पर रेशा अच्छे गुणों वाला प्राप्त नहीं होता सितम्बर में इस फसल की कटाई हो जाती है (स) बीज या दाने वाली फसल - फलियों में बीज जब कठोर व काला हो जाये तभी फसल की कटाई करने पर रेशा दाने के लिये करते हैं इस अवस्था पर फलियाँ सूख जाती हैं व बीज अपने वृन्त से अलग हो जाता है हंसिया से कटाई करके, फसल से सूखे डन्डों की सहायता से बीज अलग कर लेते हैं सूखे तने को पानी में गला कर निम्न गुणों का रेशा भी प्राप्त हो जाता है। हरी खाद की फसल से २००-३०० कुन्तल प्रति है० तक जीवांश प्राप्त हो जाता है रेशे वाली फसलों से ८-१२ कु० तक रेशे प्रति है० दाने वाली फसल से ८-१० कुन्तल दाना प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाता है। सड़ाना एवं रेशा निकालना जूट की भाँति इसके सङाने की विधि है प्राय: पोखर, तालाबों, जहाँ वर्षा का पानी कुछ दिनों तक भर जाय, ऐसी जगह इसके तनों का बंडल बाँधकर पानी में गाढ देते हैं, पहले खङा करके पानी में १-२ दिन छोङ देते हैं फिर उन्हें पानी में डालकर मिट्टी से ढक देते हैं लगभग ५-७ दिन में सङाव क्रिया पूर्ण हो जाती है जूट की तुलना में सनई से रेशा निकालना कठिन कार्य है पीटना एवं झटक विधि उपयुक्त नहीं रहती क्योंकि टूटे तने पर रेशा चिपका रहता है अत: इसके प्रत्येक तने से अलग - अलग रेशा निकालते हैं, जो हाथ से निकाला जाता है रेशा को बाद में पानी में धोकर धूप में सूखा देते हैं यदि सङाव अच्छा नहीं हुआ है, तो रेशा मोटा (भद्दा) एवं हरा तो होगा लेकिन उसकी ताकत में कमी नहीं आवेगी पानी में कम धुलाई से गोंद सा रेशे पर चिपका रहेगा प्राय: १०० दानों का वजन ३.४ से ६ ग्राम होता है जो किस्म से किस्म भिन्न होता है इसके बीज में प्रोटीन अधिक होती है अत: चिपकाने के काम में आती है वैसे बीज उत्पादन अभी कोई संगठित रूप नहीं हो रहा हैं, लेकिन कृषक पुराने तरीकों से ही बाजरा, ज्वार, रागी, धान की फसलों के चारों ओर कूंड लगाकर बीज हेतु सनई उगाते हैं बीज की उपज २० कुं० प्रति है० तक पहुँच जाती है हरी खाद हेतु सनई: सनई को हरी खाद हेतु उगाने के लिए बीज लगभग ६० किग्रा० प्रति हैक्टर प्रयोग होता है, जो जुलाई में बोते हैं और अगस्त तक लगभग ४५ दिन की फसल को खेत में पलट देते हैं, ताकि एक माह में फसल वर्षा के पानी से सङ जाय प्राय: ६०-८० किग्रा० नत्रजन प्रति हेक्टेयर भूमि में (प व क के अलावा) प्राप्त हो जाती है जो हरे तने लगभग २० टन प्रति हेक्टेयर भूमि में पलटने से मिल जाती है ऊसर भूमियों को सुधारने के लिए हरी खाद प्रयोग करते हैं। वरदान है गेहूं के बाद सनई की खेती
शेरगढ़ (शेरगढ़) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बरेली ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश के नगर बरेली ज़िले के नगर
रातिरकेठी, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा रातिरकेठी, कपकोट तहसील रातिरकेठी, कपकोट तहसील
मायका - साथ जिंदगी भर का एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो १५ जनवरी २००७ से १३ अगस्त २००९ तक ज़ी टीवी पर प्रसारित हुई थी। . श्रृंखला का निर्माण मूल रूप से अंजना सूद के प्रोडक्शन हाउस, क्लासिक प्रोडक्शंस द्वारा किया गया था, लेकिन उच्च ओवरहेड लागत और देरी के कारण धीरज कुमार की क्रिएटिव आई लिमिटेड ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। एक बार कार्यभार संभालने के बाद, क्रिएटिव आई ने बम विस्फोट के साथ उनके दृश्य को समाप्त करके मायका के लगभग पूरे कलाकारों को बदल दिया; कलाकारों ने उन्हें ब्लैकलिस्ट करने के लिए सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन में चैनल के खिलाफ मामला दायर किया। कहानी मल्होत्रा परिवार की तीन बेटियों - राजी, सोनी और माही और उनके छोटे भाई प्रिंस से संबंधित है। प्रारंभ में, शो सबसे बड़ी बेटी, राजी पर केंद्रित है, जो एक पुलिस अधिकारी वीर से शादी करती है और अपने परिवार की जीवनशैली के साथ तालमेल बिठाने के लिए कड़ी मेहनत करती है। माही को वीर के भाई जीत से प्यार हो जाता है लेकिन वह वास्तव में सोनी से प्यार करता है, हालांकि वह दोनों बहनों को भ्रमित करता है। माही का दिल इतना टूट गया है कि वह आत्महत्या करने की कोशिश करती है। राजी मल्होत्रा खुराना के रूप में उर्मीला कोठरे - मोहिनी और बृज की सबसे बड़ी बेटी; सोनी, माही और प्रिंस की बहन; वीर की पहली पत्नी (२००७) (मृत) माही मल्होत्रा सरीन के रूप में नेहा बम्ब - मोहिनी और बृज की सबसे छोटी बेटी; राजी, सोनी और प्रिंस की बहन; शब्द की पत्नी; इप्शिता और ईशानी की माँ (२००७-२००९) आरती सिंह / शिल्पा शिंदे / कांची कौल सोनी मल्होत्रा खुराना के रूप में - मोहिनी और बृज की दूसरी बेटी; राजी, माही और प्रिंस की बहन; वीर की विधवा; जीनत की दूसरी पत्नी; इप्शिता की दत्तक मां (२००७) / (२००७-२००९) / (२००९) वीर खुराना के रूप में विनीत रैना - दुर्गा और श्री खुराना के बड़े बेटे; जीत, ज्योति और वीना का भाई; राजी का विधुर; सोनी का पहला पति (२००७-२००८) (मृत) शब्द सरीन के रूप में विवान भटेना - यशवंत के बेटे; काम्या का भाई; माही के पति; इप्शिता और ईशानी के पिता (२००७-२००९) विक्रांत राय / रोमित राज जीत खुराना के रूप में - दुर्गा और श्री खुराना के छोटे बेटे; वीर, ज्योति और वीना का भाई; चेरी के पूर्व पति; सोनी का दूसरा पति; इप्शिता के दत्तक पिता (२००७) / (२००७-२००९) बृज मल्होत्रा के रूप में सुधीर पांडे - मोहिनी के पति; राजी, सोनी, माही और प्रिंस के पिता (२००७) मोहिनी मल्होत्रा के रूप में नंदिता पुरी / जरीना वहाब - बृज की पत्नी; राजी, सोनी, माही और प्रिंस की माँ (२००७) / (२००७-२००९) मिस्टर खुराना के रूप में पंकज बेरी / नरेश सूरी - लवली के भाई; दुर्गा के पति; वीर, जीत, ज्योति और वीना के पिता (२००७) / (२००७-२००९) अरुणा ईरानी / शोमा आनंद दुर्गा खुराना के रूप में - श्री खुराना की पत्नी; वीर, जीत, ज्योति और वीना की माँ (२००७-२००९) काम्या सरीन के रूप में निशा सरीन - यशवन्त की बेटी; शब्द की बहन (२००७-२००९) पवन चोपड़ा - यशवंत सरीन - शब्द और काम्या के पिता (२००७) चरणजीत उर्फ चेरी के रूप में दामिनी आनंद - हैरी की भतीजी; जीनत की पूर्व पत्नी (२००७-२००९) वीना खुराना के रूप में जूही सिंह - दुर्गा और श्री खुराना की बड़ी बेटी; वीर, जीत और ज्योति की बहन; सिमरन की माँ (२००७) (मृत) ज्योति खुराना के रूप में करुणा वर्मा - दुर्गा और श्री खुराना की छोटी बेटी; वीर, जीत और वीना की बहन; परमीत की पत्नी (२००७-२००९) परमीत के रूप में गुरप्रीत सिंह - ज्योति के पति (२००८) श्री सरीन के रूप में सुशील पाराशर - यशवन्त के भाई; बिल्लो के पति (२००७-२००९) जयति भाटिया बिल्लो सरीन के रूप में - श्री सरीन की पत्नी (२००७-२००९) उपासना सिंह लवली खुराना के रूप में - मिस्टर खुराना की बहन (२००७-२००९) हैरी के रूप में राजू खेर - चेरी के चाचा (२००७-२००८) जसवीर कौर सुहानी के रूप में - शब्द की पूर्व प्रेमिका (२००७-२००८) टीना के रूप में आम्रपाली दुबे (२००९) प्रेम के रूप में परमीत सेठी (२००७) सपना के रूप में श्रिया बिष्ट (२००८-२००९) अंगद के रूप में इंद्रनील सेनगुप्ता (२००८-२००९) कुणाल करण कपूर - सुखी (२००९) दारजी के रूप में अरुण बाली (२००९) आदित्य धनराज के रूप में मिकी दुदानी (२००९) बुआ के रूप में सविता बजाज (२००८-२००९) सिमरन के रूप में जानवी छेड़ा (२००९) ज़ी टीवी के कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
हिमांशु राणा (जन्म; ०१ अक्टूबर १९९८) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जो घरेलू क्रिकेट में हरियाणा के लिए खेलते हैं। ये एक दाएं हाथ के बल्लेबाज और वैकल्पिक दाएं हाथ के मध्यम गति के गेंदबाज भी हैं। राणा ने जनवरी २०१५ में दिल्ली के खिलाफ १६ वर्ष की उम्र में अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट की शुरुआत की और उस मैच में ८० के साथ हरियाणा के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए। सीजन के अपने तीसरे मैच में, उन्होंने राजस्थान के खिलाफ १४९ के साथ अपना पहला शतक बनाया और टीम को एक पारी से जीत दिलाई। इस प्रकार इन्होंने २०१५-१६ की रणजी ट्रॉफी के पहले मैच में महाराष्ट्र के खिलाफ अक्टूबर २०१५ में उन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर की सर्वश्रेष्ठ १५७ रनों जबरदस्त पारी खेली थी। इन्होंने २५ फरवरी २०१७ को २०१६-१७ की विजय हजारे ट्रॉफी में हरियाणा की तरफ से खेलते हुए अपने लिस्ट ए क्रिकेट की शुरुआत की। इसके बाद दिसंबर २०१७ में इन्हें भी २०१८ आईसीसी अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप के लिए भारतीय अंडर-१९ क्रिकेट टीम में जगह दे दी। भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी १९९८ में जन्मे लोग दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ हरियाणा के खिलाड़ी
कुवारसी कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
कोत्तगिरि (कोटागिरी) भारत के तमिल नाडु राज्य के नीलगिरि ज़िले में स्थित एक नगर है। कोत्तगिरि समुद्र तल से लगभग १७९३ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और नीलगिरी में स्थित तीन लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है। यह खूबसूरत हिल स्टेशन हरे-भरे चाय बागानों से घिरा है और ट्रैकिंग के कई विकल्प प्रदान करता है। यह पुराना हिल स्टेशन असंख्य छोटी-छोटी पहाड़ियों और घाटियों के चारो ओर विकसित है। डोडा बेल्ट रेंज २२ किमी दूर है। कैथरीन फॉल्स, एल्क फॉल्स, रंगास्वामी पिलर इस स्थान के निकट प्रमुख आकर्षण हैं और आप इन स्थानों के लिए पैदल यात्रा कर सकते हैं। कोडानाड व्यू प्वाइंट सौम्य ढलवां पहाड़ियों और नीली पहाड़ियों का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। जंगल से होकर पैदल यात्रा का एक अन्य मार्ग भी है जो आपको एक छोटी जलधारा तक ले जाता है। पैदल यात्रा के तीन लोकप्रिय मार्ग हैं कोटागिरी - कोडानाड; कोटागिरी - सैंट कैथरीन फॉल्स और कोटागिरी - लांगवुड शोला. कोटागिरी - कोडानाड मार्ग आपको हरे-भरे सघन चाय बागानों और मनमोहक मोयर नदी के आकर्षक नजारों से होकर ले जाता है। कोडानाड पहुंचने के लिए सुंदर घास के मैदानों से होकर गुजरना पड़ता है। कोटागिरी में स्थित है। इसकी औसत ऊंचाई १७९३ मीटर (५८८२ फीट) है। कोटागिरी की जलवायु ऊटी की तुलना में अधिक धनी है क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिम मानसून के आक्रमण से डोड्डाबेट्टा पर्वत श्रृंखला द्वारा संरक्षित है। भारत की जनगणना के अनुसार कोटागिरी की आबादी २९,१८४ थी। जनसंख्या में पुरुषों की भागीदारी ४९% और महिलाओं की ५१% है। कोटागिरी की औसत साक्षरता दर ७७% है जो कि राष्ट्रीय औसत दर ५९.५% से कहीं अधिक है: पुरुष साक्षरता ८४% है और महिला साक्षरता ७०% है। कोटागिरी में जनसंख्या का ९% भाग ६ वर्ष से कम की आयु का है। एक समय यहाँ का मौसम दुनिया का दूसरा सबसे अच्छा मौसम माना जाता था। इस शहर के ज्यादातर लोग तमिल और कन्नड़ भाषा बोलते हैं। हालांकि, कोत्तगिरि का ब्रिटिश काल से पूर्व की अवधि का कोई लिखित इतिहास नहीं है, जो संभवतः युगों से अस्तित्व में रहा है। कुन्नूर के ठीक नीचे का क्षेत्र और नीलगिरी पहाड़ियों की ढलानें कोटा जनजातियों के लिए परंपरागत निवास स्थान रही हैं। अपने आप में 'कोटा-गिरी' नाम का मतलब ही 'कोटा का पहाड़' है। जहाँ टोडा जाति के लोग नीलगिरी के पारंपरिक किसान रहे हैं, कोटा जाति परंपरागत शिल्पकारों की है जो मिट्टी के बर्तन बनाने और टेराकोटा बेकिंग की कला में निपुण हैं। 'कोटा' जनजाति को उनके एकांतवासी स्वभाव और किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने या उनके साथ घुलने-मिलने की अनिच्छा के लिए जाना जाता है। वर्तमान में उनकी संख्या केवल १००० सदस्यों के आसपास है और इसमें तेजी से गिरावट आ रही है। कोटागिरी को अतीत में "कोटा-केरी" या "कोटा-घेरी", कोटा जाति की सड़क के रूप में जाना जाता था। वास्तव में, वहाँ पर कोटा नामक एक बस्ती थी और जब १९११ में सरकार द्वारा स्वच्छता सुधार उद्देश्यों के लिए इस बस्ती की जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था और कोटा बस्ती को कोटागिरी से २ किलोमीटर दूर "अग्गल" ग्राम में स्थानांतरित हो जाना पड़ा था। कोटा के मंदिर 'कामताराया' देवता को समर्पित हैं जो अभी भी वहाँ रहते हैं और उनका पुनर्निर्माण किया गया है। कोटा जनजाति के लोग हर महीने और वार्षिक उत्सव के दिन इस मंदिर में पूजा करते हैं, वार्षिक उत्सव "अरुद्र दर्शन" के दिन होता है जो जिले के सभी कोटा समुदाय के व्यक्तियों के लिए बहुत महत्त्व रखता है। कीज और मैकमोहन द्वारा नीलगिरी पहाड़ियों के विस्मृत अभियान के बाद, मद्रास सरकार के दो सिविल सर्वेंट, जे.सी. व्हिश और एन. डब्ल्यू किंडर्सले ने १८१९ में इन पहाड़ियों की यात्रा की थी। उनकी यात्रा का सटीक कारण अज्ञात बना हुआ है, लेकिन यह संभवतः तस्करों का पीछा करने के लिए किया गया हो सकता था। वे दर्रे से होकर पहाड़ियों (अब किल कोटागिरी का डेनाड गांव) में गए थे और जैसा कि अपने वरिष्ठों को वापस आकर बताया था, उन्होंने "एक यूरोपीय जलवायु वाले पठार की खोज की थी". उन्होंने इस पठार को 'कोटरचेरी' कहा था। इसके तुरंत बाद, कोयंबटूर के कलेक्टर, जॉन सुलेवान ने स्वयं इन पहाड़ियों की यात्रा की और कोटागिरी में अपना एक घर बना लिया। वे नीलगिरी पहाड़ियों के पहले यूरोपीय निवासी थे। उनके सुझाव पर, मद्रास सरकार ने ऊटी में एक 'अस्पताल' खोला और गर्मियों के दौरान पूरी सरकार को पहाड़ियों में स्थानांतरित करने का प्रचलन शुरू किया। इस शहर को अपना निजी स्वास्थ्य रिसॉर्ट बना लेने के साथ कई अंग्रेजों ने उनका अनुसरण किया और यहाँ आकर बस गए। उनके लिए यह वातावरण पुराने इंग्लैंड की घाटियों और दर्रों की याद ताजा करने वाला रहा हो सकता है जिसे वे राजा/रानी की सेवा के लिए पीछे छोड़ आये थे। फिर भी, घर की याद करने वाले अंग्रेजों के लिए कोटागिरी पहली पसंद बन गया था जो इन पहाड़ियों में बसना चाहते थे। इस क्षेत्र की आबोहवा सुखद थी जहां ऊटी या कुन्नूर के विपरीत कोई भी चरम स्थिति नहीं थी जो नम और ठंढे रहते थे। यह आबोहवा उनके लिए 'घर की तरह" थी। इस पठार में सालों भर वर्षा की तुलना में कहीं अधिक गर्म हवाएं चलती थीं। जॉन सुलेवान के बाद अन्य लोगों ने उनका अनुसरण किया जिनमें कई संभ्रांत हस्तियाँ जैसे कि डलहौजी के मार्कस शामिल थे और १८३० के दशक तक इस स्थान के आसपास तकरीबन बीस बंगले बन गए थे। उनके पास दोनों ही दुनिया में रहने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प था, सर्दियों के दौरान मद्रास (अब चेन्नई) में रहना और भीषण गर्मियों के दौरान कोटागिरी में स्थानांतरित हो जाना. कोटागिरी ने उस समय अपना महत्त्व खो दिया जब कुन्नूर की तलहटी में मुत्तुपलायम से नए घाट रोड का निर्माण हो गया। उस समय तक ऊटी जाने का एक मात्र रास्ता घुड़सवारी के जरिये था जो कोटागिरी से होकर गुजरता था। इस मार्ग को इवान मैकफर्सन द्वारा १८२१ में बनाया गया था और १८७० के आसपास जब एक अच्छी सड़क का निर्माण किया गया, उस समय तक यह एकमात्र रास्ता था। आज कोटागिरी नीलगिरी पहाड़ियों के सबसे छोटे शहरों में से एक है और बाहरी लोगों के लिए यह अपेक्षाकृत अज्ञात है। हालांकि कोटागिरी के नाम के साथ पहली बार की कई बातें जुडी हुई हैं। इसे नीलगिरी में खोजा गया और ब्रिटिश सरकार द्वारा व्यवस्थित पहला क्षेत्र होने का गौरव हासिल है और यह मद्रास सरकार के कई कर्मचारियों के लिए इसके गुमनाम होने से पहले गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए पहली पसंद का गंतव्य था जबकि अन्य दो शहर ऊटी और कुन्नूर ने लोकप्रियता के मामले में बाजी मार ली। यह नीलगिरी आदिवासी वेलफेयर एसोसिएशन (एनएडब्ल्यूए) (नवा) का मुख्यालय भी है। (एनएडब्ल्यूए) (नवा) इस क्षेत्र में उन स्थानीय ट्राइबल लोगों की मदद के लिए कुछ प्रशंसनीय कार्य कर रहा है, जिन्हें अन्यथा आदिवासियों रूप में जाना जाता है। यही वह पहली जगह है जहां चाय, कॉफी और अन्य मसाले जैसी नकदी फसलें लगाई गयीं और उन्हें बाजार में उपलब्ध कराया गया। यह कोडानाड व्यू प्वाइंट, सैंट कैथरीन वाटर फॉल्स, भगवान रंगास्वामी चोटी, थेंगुमाराहाडा, भगवान रंगास्वामी स्तंभ और कूटाडा जैसे कई दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए पर्यटकों का पसंदीदा स्थान भी है। बागवानी की कहानी पहले कॉफी एस्टेट की स्थापना १८४३ में एम.डी. कॉकबर्न द्वारा कानहट्टी में की गयी थी। इसके तुरंत बाद नियमित पौधारोपण शुरू हो गया और कई बागान खोले गए। लेकिन ऐसा लगता है कि वहां इससे कई सालों पहले से पौधारोपण हो रहा था। इस तरह के कई छोटे-छोटे प्रयास इस क्षेत्र के आसपास किये गए जिनमें पोप और मैग्राथ ने कोटागिरी में खोला, एम.डी. कॉकबर्न ने कोतागुरी घाट में, उनके बेटे जॉर्ज कॉकबर्न ने कोटागिरी में और बैनरमैन एवं हाल्ड्वेल ने टोटापोलियम में किया। हालांकि पहले चाय बागान को अस्तित्व में लाने का श्रेय एक महिला, एम.डी. कॉकबर्न की बेटी को जाता है जिन्होंने कोडानाड के बाद यहाँ १८६३ में एक एस्टेट खोला था। चाय जल्दी ही लोकप्रिय हो गया और कॉफी उगाना छोड़ दिया गया। चाय के पौधारोपण में वहां एक सतत विकास देखा गया। १९वीं सदी के अंत तक यह लगभग ३०० एकड़ (१२ वर्गमीटर) में फ़ैल गयी थी और आज लगभग ३०,००० एकड़ (१२0 वर्गमीटर) में इसकी खेती होती है। कोटागिरी में पिछले तीन सालों में कई हाई टेक कट फ्लावर फार्मों का विकास हुआ है। कई उद्यमी किसानों ने जलवायु को नियंत्रित करने वाले ग्रीनहाउसों की स्थापना की है जहां बहुमूल्य फूलों को उगाया जाता है, कारनेशन, लिलिमस और जरबेरा इस वातावरण में बहुत अच्छी तरह से फलते-फूलते हैं। कोडानाड व्यू प्वाइंट तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, जो कोटागिरी से १६ किलोमीटर (१० मील) या वाहन से लगभग ३० मिनट की दूरी पर है। यह एक ओर से विशाल मैसूर के पठार का शानदार नजारा प्रस्तुत करता है और सुरम्य फार्मिंग को-ऑपरेटिव जिसे थेंगुमारहाडा कहा जाता है जो एक झाड़ीदार जमीन पर एक हरे मोजाइक की तरह लगता है, इस छोटे से गाँव के घुमावदार मार्ग पर मंद-मंद मोयर नदी बहती है। जॉन सुलेवान का बंगला, जिसे पेथाकल बंगले के रूप में भी जाना जाता है, जिसे उन्होंने यहाँ रहते हुए बनाया था, हाल ही में इसका जीर्णोद्धार किया गया है और यह आम जनता के लिए खुला है। नीलगिरी डॉक्यूमेंटेशन सेंटर और नीलगिरी संग्रहालय इस बंगले में ही स्थित है। गांव के सैर, स्थानीय व्यंजन का स्वाद और लोक जीवन की मिठास आदि ऐसी गतिविधियों हैं जिसकी व्यवस्था यहाँ की जाती है। यह शहर से लगभग २ किमी दूर, कन्नेरीमुक्कू में स्थित है। नारागिरी इसी स्थान के पास एक छोटा सा गाँव है जहां चाय बागानों की भरमार है और यहाँ घाटियों एवं पहाड़ियों का आकर्षक नजारा भी दर्शनीय है। इसी पठार में कन्नेरीमुक्कू से लगभग ६ किमी की दूरी पर कूकलथोराई गांव है जहां का दृश्य अत्यंत मनमोहक है। कोटागिरी शहर के भीतर स्थित लांगवुड वन एक प्राचीन उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन है जो शान्ति और एकांत की चाह रखने वालों के लिए एक निर्जन शरण स्थली है, यही वह जगह है जहां उड़ने वाली फ़्लाइंग फॉक्स (एक बड़ी वृक्षवासी गिलहरी) का ठिकाना है जो कभी-कभार दिखाई देती है, यहाँ लगभग २० बाइसनों का एक स्थानीय निवासी परिवार रहता है जिसे मिलिधेन रोड पर वन के ठीक बाहर शाम को चरते हुए देखा जा सकता है। शहर में नेहरू पार्क एक ऐसा कॉम्प्लेक्स है जहां कोटा जनजाति का एक मंदिर स्थित है, गांधी मैदानम जो एक सार्वजनिक खेल का मैदान है, एक धार्मिक सभा का केंद्र और बाढ़ से बचने का आश्रय बना हुआ है जिसे सामान्य अवसरों में इनडोर खेलों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कुनूर रोड पर शहर से लगभग ३ किमी की दूरी पर एक निजी पार्क है जो गुलाबों के लिए विशेष है, यह मार्च से लेकर जून तक के बीच अवश्य देखने की चीज है। अन्य दर्शनीय स्थल हैं अरावेनु के निकट सेंट. कैथरीन झरना, उइलाट्टी झरना (जिसे एल्क फॉल्स के नाम से भी जाना जाता है) जो कोटागिरी शहर से ८ किलोमीटर दूर है और (१,7८५ मीटर (५,८५6 फुट) ऊंची रंगास्वामी पर्वत शिखर . यह एक द्विशंक्वाकार चोटी है और नीलगिरी के लोगों के पवित्र देवता होने के कारण, यह पठार की सबसे पवित्र पहाड़ी है। कोंगु क्षेत्र और अन्य स्थानों से हजारों तीर्थयात्री हर साल इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान रंगास्वामी मैदानी क्षेत्र में कोयंबटूर जिले के करमादाई में रहते थे, लेकिन अपनी पत्नी के साथ झगड़ा कर यहाँ अकेले रहने लगे। माना जाता है कि अराकाडु गाँव से थोड़ी ही दूर चोटी के नीचे चट्टान पर दो पद चिह्न इसके प्रमाण हैं। सेंट कैथरीन फॉल्स (गेद्देहाडा हल्ला) ८ किमी की पैदल यात्रा पर स्थित है। सेंट कैथरीन फॉल्स एक दो चरणों का झरना है जो ऊंचाई से नीचे गिरता है। लांगवुड शोला वन कोटागिरी से ३ किमी दूर है और यह जंगली इलाका ट्रैकिंग का एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है। शोला वन तक जाने वाले मिलिधेन का उपयोग करने लिए पैदल यात्रा मार्ग को चुनने से पहले पर्यटकों को जिला वन अधिकारी (डीएफओ) से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है। "देनाड गाँव" से दूर रंगास्वामी शिखर के उत्तर पश्चिम की ओर रंगास्वामी स्तंभ है जो लगभग की ऊंचाई पर एकांतवासी भव्यता के साथ खड़ा एक असाधारण अकेला चट्टानी स्तंभ है और इसके किनारे बिलकुल खड़े हैं जिन पर आसानी से नहीं चढ़ा जा सकता है। किल-कोटागिरी, शोलरमत्तम, कारागोदुमत्तम, कडाशोलाई रंगास्वामी शिखर के मार्ग पर पड़ने वाले दर्शनीय स्थल हैं। कोटागिरी में अंग्रेजों द्वारा निर्मित यूरोपीय शैली के अनेकों विशाल बंगले हैं और उनमें से ज्यादातर ने अपनी अंग्रेजियत को कायम रखा है, ये आज भी रहने योग्य हैं और इन्हें आधुनिकतम आवासों में तब्दील कर दिया गया है। नए निर्माण भी काफी संख्या में हैं लेकिन इन्हें सौंदर्य की कीमत पर तैयार किया गया है। मशहूर नीलगिरी चाय का उत्पादन करने वाली कई चाय की फैक्ट्रियां यहाँ मौजूद हैं। सुप्रसिद्ध नीलगिरी तैलम (युक्लिप्टस का तेल) छोटी-छोटी झोपड़ियों में मौलिक ढंग से डिस्टिल्ड किये जाते हैं। कोटागिरी में कुछ सोने की खदानें भी हैं जिनका खनन ब्रिटिश के जमाने में संभव स्तर तक किया गया था। वर्तमान में यह निर्धारित करने के लिए अनुसंधान जारी है कि क्या इन खदानों से और अधिक सोना निकालना संभव हो सकता है। इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण बॉक्साइट भी मौजूद है। नेहरू पार्क कोटागिरी शहर में स्थित है। कोडानाड व्यू प्वाइंट आसपास की घाटियों और मैदानों के चित्ताकर्षक दृश्यों के लिए एक अवश्य देखने वाला स्थान है। मोयर नदी के पास सुरम्य थेंगुमराहाडा गांव, भवानी सागर जलाशय और दक्कन के पठार यहाँ से दिखाई देते हैं। कोडानाड व्यू प्वाइंट : यह व्यू प्वाइंट दूर के पठारों, चाय बागानों, थेंगुमराहाडा गांव, किल-कोटागिरी क्षेत्र की चोटियों, मोयर नदी और कई अन्य दर्शनीय स्थलों का चित्ताकर्षक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। कोडानाड व्यू प्वाइंट कोटागिरी से १८ किमी की दूरी पर स्थित है। यह कोटागिरी के पूर्वोत्तर में स्थित एक छोटा सा शहर है। देनाड, थुनेरी और बकाडा किल-कोटागिरी के आसपास के गांव हैं। महालिंगास्वामी मंदिर, जेदायास्वामी मंदिर (जो हर साल फरवरी के महीने में आग पर चलने के समारोह के लिए प्रसिद्ध है) और कन्निमरियम्मन मंदिर किल-कोटागिरी के निकट स्थित है। रंगास्वामी शिखर : किल-कोटागिरी से १२ किमी की दूरी पर स्थित अत्यंत मनोरम रंगास्वामी शिखर की पूजा इरुला जनजातियों द्वारा की जाती है और यह एमएसएल से १८०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित पोरांगाडु सीमाई (कोटागिरी क्षेत्र) में और इसके आसपास रहने वाले हजारों परिवारों के लिए एक पवित्र स्थल है। यह पठार पर सबसे पवित्र पहाड़ी है। गर्मियों के महीने में भक्तगण यहाँ आते हैं और भगवान रंगास्वामी की आराधना करते हैं। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान रंगास्वामी मैदानी क्षेत्र में कोयंबटूर जिले के करमादाई में रहते थे, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झगड़ा किया और यहाँ आकर अकेले रहने लगे। माना जाता है कि अराकाडु गाँव से थोड़ी ही दूर चोटी के नीचे चट्टान पर दो पद चिह्न इसके प्रमाण हैं। रंगास्वामी स्तंभ : यह किल-कोटागिरी से ४ किमी दूर स्थित एक अन्य पवित्र स्तंभ है जिसकी पूजा की जाती है। यह लगभग की ऊंचाई पर एकांतवासी भव्यता के साथ खड़ा एक असाधारण अकेला चट्टानी स्तंभ है और इसके किनारे बिलकुल खड़े और संकीर्ण हैं जिन पर आसानी से नहीं चढ़ा जा सकता है। "नीलगिरी का धान का कटोरा" कहा जाने वाला यह स्थान मैदानी क्षेत्र में कोटागिरी तालुक में स्थित है, यहाँ भवानी सागर जलाशय से होकर पहुँचा जा सकता है। ऊटी को पूरब का स्कॉटलैंड कहा जाता है और यह दक्षिणी भारत का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह सुरम्य शहर उत्तम बॉटनिकल गार्डन का केंद्र है जिसकी स्थापना १८४७ में की गयी थी। पहाड़ी के ऊपर एक सुंदर रोज गार्डन है और सौम्य ऊटी झील इस पहाड़ी शहर का एक अन्य प्रमुख आकर्षण है। ऊटी डोड्डाबेट्टा शिखर सहित कई ट्रैकिंग अभियानों के लिए भी एक आधारीय शहर है। नीलगिरी पहाड़ियों में यह दूसरा सबसे बड़ा हिल स्टेशन है जो १८३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह चाय बागानों से घिरा हुआ है। यहाँ की लोकप्रिय गतिविधि पक्षी विहार है और पक्षियों की खोज करने वालों के लिए एक प्राकृतिक सौंदर्य का स्थान है। सिम्स पार्क के नाम से जाना जाने वाला वनस्पति उद्यान यहाँ का मुख्य आकर्षण है। यह पार्क वृक्षों, पौधों और फूलों की एक हजार किस्मों के लिए पोषक की भूमिका निभाता है, यहाँ एक छोटी झील भी है। डॉल्फ़िन नोज इस स्थान के निकट एक दर्शनीय स्थल है। सुप्रसिद्ध पाश्चर संस्थान भी कुनूर में ही स्थित है। द्रूग फोर्ट : द्रूग फोर्ट या किला कुन्नूर के पास ही स्थित है। इस किले को देखने के लिए पर्यटकों को कुछ शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है, क्योंकि इसका रास्ता एक बेहतर पैदल मार्ग है लेकिन परिश्रम का फल मिलता है। यह किला सतह से ऊपर लगभग की ऊंचाई पर स्थित है। कहा जाता है कि इस किले का इस्तेमाल महान योद्धा टीपू सुल्तान द्वारा अपनी चौकी के लिए किया गया था। एल्क फॉल्स : कोटागिरी की यात्रा के लिए यह एक पर्यटक आकर्षण है। यह स्थान अद्भुत झरनों और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दिनों के दौरान निर्मित खूबसूरत यूरोपीय आवासों के लिए बहुत ही सुप्रसिद्ध है। कोटागिरी को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने वाले कई आवासीय और गैर-आवासीय स्कूलों के होने का गौरव हासिल है। विक्ट्री पार्क - अंतरराष्ट्रीय सामुदायिक स्कूल और जूनियर कॉलेज सेंट जूड्स पब्लिक स्कूल और जूनियर कॉलेज कोटागिरी पब्लिक स्कूल (सीबीएसई) (क्बसे) विश्व शांति विद्यालय मैट्रिक स्कूल रिवरसाइड पब्लिक स्कूल सेंट मैरीज होम स्कूल पांडियाराज मैट्रिक हायर सेकेंडरी स्कूल ग्रीन वैली मैट्रिक स्कूल सेंट एंटनीज मिडिल स्कूल सी.एस.आई. हायर सेकेंडरी स्कूल सेंट मैरीज गर्ल्ज़ हायर सेकेंडरी स्कूल गवर्नमेंट (ब्वायज) हायर सेकंडरी स्कूल स्कूलों के अलावा कोटागिरी में एक आर्ट्स और साइंस कॉलेज भी है। केपीएस (कईपियेस) कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस (भारतीयर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर से संबद्ध) परिवहन के लिंक्स कोटागिरी का संपर्क सड़क मार्ग से मेट्टूपलायम से जुड़ा हुआ है। ऊटी की ओर जाने वाली सड़क (कोटागिरी से ऊटी तक २७ किलोमीटर) नीलगिरी घात की सडकों में से एक है और अब यह संपूर्ण जिले के लिए पाँच पहुंच मार्गों में से एक है। कुनूर कोटागिरी से २३ किमी दूर है और यह एक सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जिसकी शाखाएं ऊटी मार्ग पर निकलती हैं। कोटागिरी के लिए बसें मेट्टूपलायम की तलहटी से उपलब्ध हैं, साथ ही ऊटी और अन्य स्थानों से भी यहाँ के लिए बसें हैं। कोटागिरी तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों के साथ सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऊटी, मेट्टूपलायम और कुन्नूर से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कुन्नूर है। नजदीकी हवाई अड्डा कोयंबटूर (१०५ किमी) है जो चेन्नई, बेंगलूर और कोचीन जैसे शहरों से अच्छी तरह जुडा हुआ है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के शहर नीलगिरि ज़िले के नगर तमिल नाडु में हिल स्टेशन
स्नेपडीलहेलप्लाइन ७००१७२७६२४ एक भारतीय ई-बाजार कंपनी है। जिसके संस्थापक कुणाल बहल हैं। यह फरवरी २०१० में शुरू हुई। यह कंपनी एक प्रति दिन के खरीदी के प्रस्ताव देने वाली एक जालस्थल के रूप में फरवरी २०१० को शुरू हुई। यह सितम्बर २०११ को एक ई-बाजार वाली कंपनी के रूप में विकसित हुई। इसके बाद यह भारत का सबसे अधिक सामान बेचने वाला कंपनी बन गया। स्नैपडील की स्थापना ४ फरवरी २०१० को दैनिक मामलों के मंच के रूप में की गई थी, लेकिन सितंबर २०११ में एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस में विस्तार किया गया। स्नैपडील भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन बाजारों में से एक है जो ३००,००० से अधिक विक्रेताओं में ३०,०००,००० से अधिक उत्पादों की पेशकश करता है। स्नैपडील को कई दौर की फंडिंग मिली है। इसने जनवरी २०११ में नेक्सस वेंचर पार्टनर्स और इंडो-यूएस वेंचर पार्टनर्स से १२ मिलियन अमेरिकी डॉलर की पहली फंडिंग प्राप्त की। जुलाई २०११ में एक अन्य दौर में, इसने बेसेमर वेंचर पार्टनर्स और मौजूदा निवेशकों से ४५ मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड प्राप्त किया। तीसरे दौर का वित्तपोषण यूएस $ ५० मिलियन का है और यह ईबे और अन्य मौजूदा निवेशकों से आता है। जून २०११ में स्नैपडील नामक भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा १५ हैंडपंप लगवा देने पर उत्तर प्रदेश, भारत के मुजफ्फरनगर जिले में स्थित शिवनगर गांव के लोगों द्वारा वोट कर अपने गांव का नाम स्नैपडील डॉट कॉम नगर रख दिया गया।
पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग, इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान के भीतर भारत गणराज्य का एकमात्र राजनयिक मिशन है। वर्तमान समय में, उप-उच्चायुक्त सुरेश कुमार कार्य कर रहे हैं। भारत की ओर से अंतिम प्रमुक उच्चायुक्त अजय बिसारिया थे, जिन्हे पाकिस्तानी सरकार ने भारत द्वारा कश्मीर से धारा ३७० निष्क्रिय की जाने के प्रतिक्रिया में देश से निष्कासित कर दिया गया था। भारत का कराची में एक पूर्वभूत महावाणिज्य दूतावास भी था, जिसे १९८० के लगभग बेनीज़र भुट्टो द्वारा बंद कर दिया गया था। सबसे पहले १९४७ में देश की पूर्व राजधानी कराची में स्थित, पाकिस्तान में भारत का उच्चायोग १९६० से इस्लामाबाद के राजनयिक एन्क्लेव में स्थित है। उच्चायुक्त पाकिस्तान में भारत के राष्ट्रपति का पूर्ण प्रतिनिधि होता है, उसकी सहायता उप उच्चायुक्त द्वारा की जाती है। भारत के वर्तमान प्रतिनिधि श्री अजय बिसारिया हैं जिन्हें १ नवंबर, 20१7 को नियुक्त किया गया और १2 दिसंबर, 20१7 को पदभार ग्रहण किया गया। उनकी सहायता उनके डिप्टी जे.पी. सिंह करते हैं। उच्चायोग का मिशन अपने पड़ोसी के साथ एक स्थिर राजनयिक संबंध बनाए रखना है, हालांकि कश्मीर के विषय पर अभी भी असहमति है। पाकिस्तान में भारतीय राजनयिक मिशन दोनों देशों की आजादी के बाद से अस्तित्व में है, लेकिन १९६६, १९७१ में व २००१ से २००३ तक पहले दो देशों के लिए खुले युद्ध की स्थिति और दूसरे देशों पर हमले जैसी बड़ी घटनाओं के कारण कई बार बाधित हुआ है। अंतिम उदाहरण. यहां पाकिस्तान में सेवारत पूर्व उच्चायुक्तों की सूची दी गई है: १९४७-१९४९: श्री प्रकाश १९४९-१९५१: सीता राम १९५८-१९६२: राजवश्वर दयाल १९६२-१९६५: जी पार्थसारथी १९६५-१९६६: केवल सिंह १९७६-१९८०: के.एस. बाजपेयी १९८२-१९८५: के.डी. शर्मा १९८५-१९८९: एस.के. सिंह अप्रैल १९८९-नवंबर १९९१: जे.एन. दीक्षित जनवरी १९९२-जुलाई १९९५: सतिंदर कुमार लांबा अगस्त १९९५-दिसंबर १९९८: सतीश चंद्रा फरवरी १९९९-मई २०००: जी.पार्थसारथी अगस्त २००० - दिसंबर २००१: विजय के. नांबियार जुलाई २००३-सितंबर २००६: शिवशंकर मेनन नवंबर २००६-फरवरी २००९: सत्यब्रत पाल अप्रैल २००९-जून २०१३: शरत सभरवाल जुलाई २०१३-दिसंबर २०१५: डॉ. टी.सी.ए. राघवन जनवरी २०१६-नवंबर २०१७: गौतम बंबावले अगस्त २०१९-२०२०: अजय बिसारिया यह भी देखें भारत का महावाणिज्य दूतावास, कराची पाकिस्तान का उच्चायोग, नई दिल्ली भारत के राजनयिक मिशन पाकिस्तान में राजनयिक मिशन
१३५० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ ३ जुलाई - नामदेव, मराठी निर्गुण संत कवि
आहार योजना(आहार, जिसका अर्थ ओडियामें "खाना"है।) ओडिशा सरकार के द्वारा पांच रुपए में शहरी गरीबों या मजदुरों के लिएसस्ते मेंदोपहर का भोजन उपलब्ध कराने का एकराजसहायतायोजनाहै। यह १ अप्रैल, २०१५ में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायककेद्वाराउत्कल दिवसकेउपलक्ष्यमेंउद्घाटन किया गया था। भोजनकी वास्तविक लागत के २० है,लेकिन सब्सिडी से यह ५ मेंदियाजाताहै। यह प्रति दिन ६०,००० से ज्यादा शहरी मजदुरों को खाना उपलब्ध कराता है। योजना के बारे में इसमिशन की मुळयोजना बड़े शहरों में काम की तलाश में आये हुए मजदूरों को सस्ते दाम में दोपहर का भोजन प्रदान करना है।ओडिशासरकार के आदेश में यह योजना राज्य के पांच प्रमुख शहरों आरम्भ किया गया था। आहार स्टालों मुख्य रूप से अस्पतालों, बस स्टेंड या रेलवे स्टेशन जैसे भीड़ भरे स्थानों में पाया जाता है।यहभोजनशिर्फपान्चरूपयेमेंउपलब्धकियाजाताहै।भोजन की गुणता विभिन्न नगर निगम के अस्पतालों केद्वारा जाँच की जाती है। खाना और कीमतों इस योजना के तहत भात(पके हुए चावल) और डालमा ५ में खाद्य प्रदान की जाती है।आहार केंद्रों में ११ बजे से३ बजे तक निर्दिष्ट स्थानों पर हर रोजभोजन उपलब्ध कराई जाती है। कटक : बादामबाडी बस स्टैंड, शिशु भवन, एससीबी मेडिकल भुवनेश्वर : मास्टर कैंटीन, बर्मुण्डा, बीएमसी कार्यालय है। बरहमपुर : नया बस स्टैंड, पुराना बस स्टैंड, म्क्ग मेडिकल कॉलेज और रेलवे स्टेशन है। ओडिशा में कुल १०० आहार केंद्र है। इन्हें भी देखें अम्मा उनबगम, तमिलनाडु एक इसी तरह काकार्यक्रमहै।
एन एस्त्रोलाजरस डे ऑंड अदर स्टोरीज आर के नारायण द्वारा रचित एक लघु कहानियो का एक संकलन है। आर के नारायण की कृतियाँ
द रेस्क्यूअर्स डाउन अंडर () १९९० की एक अमेरिकी एनीमेटेड फिल्म है जिसका निर्माण वॉल्ट डिज्नी फिचर एनिमेशन द्वारा किया गया था। नवंबर १६, १९९० को जारी की गई यह फिल्म वॉल्ट डिज़्नी की एनिमेटेड क्लासिक्स श्रृंखलाओं की २९वीं एनिमेटेड फिल्म है और १९७७ की फ़िल्म द रेस्क्यूअर्स के लिए अगली कड़ी है।
भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। भारत सरकार के जिस प्रस्ताव में अकादमी का यह विधान निरूपित किया गया था, उसमें अकादमी की यह परिभाषा दी गई है- भारतीय साहित्य के सक्रिय विकास के लिए कार्य करनेवाली एक राष्ट्रीय संस्था, जिसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं में साहित्यिक गतिविधियों को समन्वित करना एवं उनका पोषण करना तथा उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता का उन्नयन करना होगा। हालाँकि अकादेमी की स्थापना सरकार द्वारा की गई है, फिर भी यह एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में कार्य करती है। संस्था पंजीकरण अधिनियम १८६० के अंतर्गत इस संस्था का पंजीकरण ७ जनवरी १९५६ को किया गया। भारत की स्वतंत्रता के भी काफ़ी पहले से देश की ब्रिटिश सरकार के पास भारत में साहित्य की राष्ट्रीय संस्था की स्थापना का प्रस्ताव विचाराधीन था। १९४४ में, भारत सरकार ने रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल का यह प्रस्ताव सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था कि सभी क्षेत्रों में सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय सांस्कृतिक ट्रस्ट का गठन किया जाना चाहिए। ट्रस्ट के अंतर्गत साहित्य अकादेमी सहित तीन अकादेमियाँ थीं। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की स्वतंत्र सरकार द्वारा प्रस्ताव का अनुसरण करते हुए विस्तृत रूपरेखा तैयार करने के लिए श्रृंखलाबद्ध बैठकें बुलाई गईं। सर्वसम्मति से तीन राष्ट्रीय अकादमियों के गठन का निर्णय हुआ, एक साहित्य के लिए दूसरी दृश्यकला तथा तीसरी नृत्य, नाटक एवं संगीत के लिए। अकादेमी प्रत्येक वर्ष अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त चौबीस भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के लिए पुरस्कार प्रदान करती है, साथ ही इन्हीं भाषाओं में परस्पर साहित्यिक अनुवाद के लिए भी पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। ये पुरस्कार साल भर चली संवीक्षा, परिचर्चा और चयन के बाद घोषित किए जाते हैं। अकादेमी उन भाषाओं के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वालों को 'भाषा सम्मान' से विभूषित करती है, जिन्हें औपचारिक रूप से साहित्य अकादेमी की मान्यता प्राप्त नहीं है। इन्हें भी देखें साहित्य अकादमी पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी साहित्य अकादमी का जालघर साहित्य अकादमी के बारे में
शूह बाइबिल के चार छोटे पात्रों में से एक का नाम है। इसे कभी-कभी पांचवें के नाम के रूप में प्रयोग किया जाता है। उनके नाम हिब्रू में भिन्न हैं, लेकिन वे सभी राजा जेम्स संस्करण में "शूहह" के रूप में लिप्यंतरित थे। शूहह (इब्रानी: , उच्चारण शूहख, खाई; तैरना; अपमान या नीचे डूब जाता है) इब्राहीम (इस्राएलियों के कुलपति) और केतुराह का छठा पुत्र था, जिसे इब्राहीम ने विवाह किया था सारा की मौत के बाद वह कतूरा के पुत्रों में सबसे छोटा था; दूसरे थे जिम्रान, योक्षान, मेदान, मिद्यान और यिशबाक । यूनानी में शूहह , लिप्यंतरित सोई है। जोसेफस ने अपना नाम ( व्हिस्टन के अनुवाद में सूस) दिया। जोसेफस ने भाइयों के बारे में लिखा है कि "इब्राहीम ने उन्हें उपनिवेशों में बसाने का प्रयास किया; और उन्होंने ट्रोग्लोडाइटिस, और अरब फेलिक्स के देश को अपने कब्जे में ले लिया, जहां तक यह लाल सागर तक पहुंचता है।" लेकिन अपने भाइयों के विपरीत, शूह उत्तर की ओर मुड़ गया और उत्तरी मेसोपोटामिया में चला गया, जो अब आधुनिक सीरिया का उत्तरी क्षेत्र है। जैसा कि कीलाकार ग्रंथों से पता चलता है, लगता है कि भूमि का नाम उनके नाम पर रखा गया है, जिसे सुचु की भूमि के रूप में जाना जाता है, जो यूफ्रेट्स नदी पर कारकेमिश की प्राचीन हित्ती राजधानी के दक्षिण में स्थित है। बाइबल यह भी दर्ज करती है कि अय्यूब का मित्र बिलदद शूही था। शूह या शूह (हिब्रू: , उच्चारण "शूह'", जिसके अंत में ऐयन ग्लोटल स्टॉप होता है, "ऐश्वर्य" या "मदद के लिए रोना" ) एक निश्चित कनानी था, जिसकी अनाम बेटी यहूदा से शादी करती है। इस प्रकार वह एर, ओनान, शेला का दादा भी था। तारगम "कनानी आदमी" को "व्यापारी" के रूप में अनुवादित करता है, और राशी इसका उल्लेख करता है। तल्मूड, पेसाचिम ५०ए में, इस अनुवाद की व्याख्या करने वाली चर्चा है। किंग जेम्स संस्करण में, उत्पत्ति ३८:२ में लिखा है, "और यहूदा ने शूआ नाम एक कनानी पुरूष की बेटी को देखा। . " यह अस्पष्ट है कि किसका नाम शूआ, कनानी या उसकी बेटी रखा गया है। इससे कुछ लोग कहने लगे हैं कि शूह यहूदा की पत्नी थी। यूनानी में शूहह है, लिप्यंतरित सावा। सेप्टुआजेंट स्पष्ट है कि सावा कनानी आदमी की बेटी और यहूदा की पत्नी है। उत्पत्ति ३८:१२ में यहूदा की पत्नी का संदर्भ उसे "शूआ की बेटी", या हिब्रू में "बैट-शूह" के रूप में संदर्भित करता है। इसने कुछ लोगों को उसके वास्तविक नाम के रूप में बैट-शूह (और वेरिएंट) लेने का नेतृत्व किया है। एक मिड्रैशिक परंपरा कहती है कि उसका नाम अलीयाथ था। बाट-शूह यहूदा के वंशज राजा डेविड की पत्नी बतशेबा का भी एक वैकल्पिक नाम है। १ इतिहास ४ शूह या शुहा (हिब्रू: , उच्चारण "सुखा") यहूदा का वंशज है। कोई लिंग या पिता का नाम नहीं है, बस एक भाई चेलूब और उसके वंशज हैं। रालबाग ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि शुहा वही है जो हुशा () वंशावली में पहले सूचीबद्ध है। नवे कहते हैं कि शुहा हुशा के समान "शायद वही" है। यूनानी में शूहह , लिप्यंतरित असचा है। सेप्टुआजेंट में कहा गया है कि चालेब आशा के पिता हैं। १ इतिहास ७ शूह या शूह (हिब्रू: , उच्चारण "शूह", बीच में एक अयिन ग्लोटल स्टॉप के साथ, "धन" ) आशेर की परपोती थी। वह हेबेर की बेटी थी, जो बरीआ का, और आशेर का पुत्र था। उसके भाई यपलेत, शोमेर और होताम थे। यूनानी में शूहह , लिप्यंतरित सोला है।
चाँफी, नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा चाँफी, नैनीताल तहसील चाँफी, नैनीताल तहसील
सिस्टोसोमियासिस (जिसे बिलहर्ज़िया, स्नेल फीवर और कत्यामा फीवरभी कहते हैं) एक रोग है जो सिस्टोसोमा प्रकार के परजीवी कीड़ों के कारण होता है। यह मूत्र मार्ग या आंतोंको संक्रमित कर सकता है। लक्षणों में पेट दर्द, डायरिया, खूनी पेचिश या मूत्रमें रक्त जाना शामिल है। वे लोग जो लंबे समय से संक्रमित है उनमें लीवर की क्षति, किडनी की विफलता, बांझपन या ब्लैडर का कैंसर हो सकता है। बच्चों में इसके कारण वृद्धि व सीखने की क्षमता का हास हो सकता है। यह रोग उस पानी के साथ संपर्क से फैलता है जिसमें परजीवी होतें हैं। ये परजीवी संक्रमित ताजे पानी के घोंघों से फैलते हैं। यह रोग विकासशील देशो के बच्चों में विशेष रूप से आम है, क्योंकि उनके संक्रमित पानी में खेलने की संभावना अधिक है। अन्य उच्च जोखिम समूहों में किसान, मछुआरे तथा दैनिक कार्यो में संक्रमित पानी का उपयोग करने वाले लोग शामिल हैं। यह कृमि संक्रमणसमूह से संबंधित है। व्यक्ति के मूत्र या मल में परजीवी के अंडों की तलाश करके इसका निदान किया जाता है। इसकी पुष्टि रक्त में रोग के विरूद्ध पैदा हुई ऐंटीबॉडीज़ की खोज करके भी की जा सकती है। रोकथाम व उपचार इस रोग की रोकथाम की विधियों में स्वच्छ पानी की उपलब्धता बेहतर करना तथा घोंघों की संख्या को कम करना शामिल है। वे क्षेत्र जहां पर रोग आम हो वहां पर सारे समूहों का प्राज़िक्वांटिल दवा से एक साथ तथा वार्षिक रूप से उपचार किया जाता है। यह संक्रमित लोगों की संख्या को कम करने के लिए किया जाता है और इसीलिए रोग के विस्तार को कम करता है। संक्रमित लोगों के उपचार के लिए प्राज़िक्वांटिल उपचार की अनुशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी की गयी है। सिस्टोसोमियासिस से पूरी दुनिया में २१० मिलियन लोग प्रभावित हैं और हर वर्ष लगभग १२,००० से २००,००० लोग मर जाते हैं। यह रोग सबसे आम तौर पर अफ्रीका के साथ-साथ एशिया और दक्षिण अमरीकामें पाया जाता है। ७० देशों में ७०0 मिलियन से अधिक लोग, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां पर यह रोग आम है। परजीवी रोग के रूप में सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव डालने वाला सिस्टोसोमियासिस, मलेरिया के बाद दूसरे नंबर का रोग है। प्राचीन काल से २० वीं सदी के आरंभ तक, मिस्र में सिस्टोसोमियासिस के मूत्र में रक्त को मासिक धर्म का पुरुष संस्करण माना जाता था और लड़कों के लिए इसे यादगार घटना कहा जाता था। इसे उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगके रूप में वर्गीकृत किया गया है। दबे पांव गांवों से शहर आ रहा है एक कहर
शेषाद्रिभट्र हल्लि (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
खसरे का टीका एक ऐसाटीकाहै जोखसरेकी रोकथाम में बहुत प्रभावी है। पहली खुराक के बाद नौ माह से अधिक की उम्र के ८५% बच्चे तथा १२ माह से अधिक की उम्र वाले ९५% बच्चे प्रतिरक्षित (सुरक्षित) हो जाते हैं। पहली खुराक के बाद जिन बच्चों में प्रतिरक्षा विकसित नहीं होती है, उनमें से लगभग सभी दूसरी खुराक के बाद सुरक्षित हो जाते हैं।जब किसी जनसंख्या में टीकाकरण की दर ९३% से अधिक हो जाती है तो आम तौर पर खसरे का प्रकोप नहीं उभरता है; हालांकि टीकाकरण की दर घटने पर खसरा फिर से हो सकता है। इस टीकाकरण की प्रभावशीलता कई वर्षों तक प्रभावी रहती है। समय के साथ इसका कम प्रभावी होना अस्पष्ट है। यह वैक्सीन उस रोग के विरुद्ध रोकथाम कर सकता है यदि इसे रोग होने के कुछ-एक दिनों के अंदर दे दिया जाए। यह टीका एचआईवी संक्रमणसे पीड़ित लोगों सहित, लगभग सभी के लिए आमतौर पर सुरक्षित है। इसके पश्च प्रभाव सामान्य रूप से हल्के व बहुत कम समय के लिए होते हैं।पश्च प्रभावों में सुई लगने वाली जगह पर दर्द तथा हल्काबुखारहो सकता है। लगभग एक लाख लोगों में से एक व्यक्ति कोतीव्रग्राहिता (तेज प्रतिक्रिया)से पीड़ित होता दर्ज किया गया है।गिलेन-बार-सिंड्रोम, स्वालीनतातथाप्रदाहक आंत्र रोगकी दरें बढ़ती नहीं देखी गयी हैं। यह टीका स्वतंत्र तथारूबेला टीके, कंठमाला टीकेतथा छोटी माता (छोटी चेचक) टीके(एमएमआर टीकातथाएमएमआरवी टीका) जैसे टीकों में संयोजन में मिलता है। यह टीका सभी प्रारूपों में समान रूप से काम करता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन, दुनिया के उन क्षेत्रों में इसे नौ माह की उम्र देने की अनुशंसा करता है जहां पर यह रोग आम है।जिन क्षेत्रों में यह रोग आम नहीं है वहां इनको बारह माह की उम्र तक दिया दिया जाना भी ठीक है।यह एकजीवित टीकाहै।यह सूखे पाउडर के रूप में आता है तथा इसे त्वचा के नीचे या मांसपेशी में दिए जाने से पहले मिश्रित करने की जरूरत होती है।टीके के प्रभावी होने का निर्धारण रक्त की जांच से किया जा सकता है। २०१३ तक वैश्विक रूप से लगभग ८५% बच्चों को इसे लगाया गया था। २००८ में कम से कम १९२ देशों ने दो खुराकें दी हैं। इसे सबसे पहले १९६३ में देना शुरु किया गया था। खसरा-कंठमाला-रूबेला (एमएमआर) का संयुक्त टीका पहली बार १९७१ में देना शुरु किया गया था।छोटी माता (छोटी चेचक) का टीकाइसमें २००५ में जोड़ा गया जिसेएमएमआरवी टीकाकहा जाता है। यहविश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूचीमें शामिल है, जो कि मूलस्वास्थ्य प्रणालीमें जरूरी सबसे महत्वपूर्ण दवाओं की सूची है। यह टीका बहुत महंगा नहीं है।
राष्ट्रीय राजमार्ग ३९ (नेशनल हाइवे ३९) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह उत्तर प्रदेश में झाँसी से मध्य प्रदेश से झारखण्ड में राँची तक जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३९ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखण्ड से गुज़रता है और इसके कुछ महत्वपूर्ण पड़ाव इस प्रकार हैं: झाँसी, छतरपुर, पन्ना, सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, रेणुकूट, शक्तिनगर, गढ़वा, डाल्टेनगंज, लातेहार, चंदवा, राँची। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ३९ (भारत, पुराना संख्यांक)
६ फ़रवरी २०२३ को सीरिया और तुर्की की सीमा पर ७.८ की तीव्रता के भूकम्प के झटके अनुभव किए गए। इसका केन्द्र अपेक्षाकृत उथला, निकटतम 1८ किलोमीटर नीचे था, जिसके कारण से भूमि पर खड़ी इमारतों को गम्भीर क्षति पहुंचा। इस क्षेत्र में अरेबियन प्लेट उत्तर की ओर खिसक रही है और एनातोलियन प्लेट से इसका घर्षण हो रहा है। इससे पहले १३ अगस्त 1८22 को ७.४ तीव्रता का भूकम्प आया था। ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत ने तुर्की और सीरिया की मदद के लिए हिंडन एयरबेस, गाजियाबाद से ४ टीमें भेजी हैं। इसमें एनडीआरएफ बचाव दल की २ और मेडिकल सहायता के लिए २ टीमें हैं। वहां एक क्षेत्र अस्पताल भी खोला जा चुका है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि सरकार साझा मानवता और इस्लामी भाईचारे के आधार पर तुर्की और सीरिया को क्रमशः १० मिलियन अफगानी ($१११,०२४) और ५ मिलियन अफगानी ($५५,५12) का राहत पैकेज भेजेगी। बांग्लादेश ने बचाव उपकरण, दवा, टेंट और भोजन के साथ तुर्की में ४६-सदस्यीय चिकित्सा और बचाव दल भेजा। इन्हें भी देखें गुजरात भूकम्प २००१ (भुज) २०२३ तुर्की-सीरिया भूकंप के लिए मानवीय प्रतिक्रिया तुर्की का भूगोल
लैक्रोस एक टीम स्पोर्ट है जिसे लैक्रोस स्टिक और लैक्रोस बॉल के साथ खेला जाता है । यह उत्तरी अमेरिका का सबसे पुराना संगठित खेल है , जिसकी उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका के स्वदेशी लोगों के साथ १२वीं शताब्दी में हुई थी। इस खेल को यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसा को कम करने के लिए, इसके वर्तमान कॉलेजिएट और पेशेवर रूप को बनाने के लिए संशोधित किया गया था। खिलाड़ी गेंद को गोल में ले जाने, पास करने, पकड़ने और शूट करने के लिए लैक्रोस स्टिक के सिर का उपयोग करते हैं। खेल के चार संस्करण हैं जिनमें अलग-अलग छड़ें, फ़ील्ड, नियम और उपकरण हैं: फील्ड लैक्रोस , महिला लैक्रोस , बॉक्स लैक्रोस और इंटरक्रॉस । पुरुषों के खेल, फील्ड लैक्रोस (आउटडोर) और बॉक्स लैक्रोस (इनडोर), संपर्क खेल हैं और सभी खिलाड़ी सुरक्षात्मक गियर पहनते हैं: हेलमेट , दस्ताने , कंधे पैड और कोहनी पैड। महिलाओं का खेल बाहर खेला जाता है और शरीर के संपर्क की अनुमति नहीं देता है लेकिन छड़ी को संपर्क करने की अनुमति देता है। महिला खिलाड़ियों के लिए आवश्यक एकमात्र सुरक्षात्मक गियर आईगियर है, जबकि गोलकीपर हेलमेट और सुरक्षात्मक पैड पहनते हैं। पुरुषों और महिलाओं दोनों के फील्ड लैक्रोस के ६व६ संस्करण छोटे क्षेत्रों में खेले जाते हैं, जो बहु-खेल आयोजनों में स्वीकार्यता प्राप्त करते हैं। इंटरक्रॉस एक मिश्रित-लिंग गैर-संपर्क खेल है जो घर के अंदर खेला जाता है जो पूरी तरह से प्लास्टिक की छड़ी और नरम गेंद का उपयोग करता है। आधुनिक खेल विश्व लैक्रोस द्वारा शासित है और प्रथम राष्ट्र बैंड और मूल अमेरिकी जनजातियों को संप्रभु राष्ट्रों के रूप में मान्यता देने वाला एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खेल संगठन है । संगठन पुरुषों के लिए वर्ल्ड लैक्रोस चैंपियनशिप , महिला लैक्रोस वर्ल्ड कप , बॉक्स लैक्रोस के लिए वर्ल्ड इंडोर लैक्रोस चैंपियनशिप और पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अंडर-१९ वर्ल्ड लैक्रोस चैंपियनशिप की मेजबानी करता है। प्रत्येक हर चार साल में आयोजित किया जाता है। ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में लैक्रोस को ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के दो संस्करणों में चुनौती दी गई है ,१९04 और १९08 । यह १९28 , १९32 और १९48 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में एक प्रदर्शन कार्यक्रम के रूप में भी आयोजित किया गया था।
२०१७-१८ सनफॉइल सीरीज एक प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता है जो १९ सितंबर २०१७ से ११ मार्च २०१८ तक दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने वाली है। टी-२० ग्लोबल लीग के पहले सीज़न के लिए अक्टूबर और फरवरी के बीच प्रतियोगिता में एक ब्रेक होगा। नाइट्स डिफेंडिंग चैंपियन हैं।
नेटवर्क टोपोलॉजी एक नेटवर्क के लेआउट को संदर्भित करता है। किसी नेटवर्क में अलग-अलग नोड्स एक-दूसरे से कैसे जुड़े होते हैं और वे कैसे संवाद करते हैं यह नेटवर्क के टोपोलॉजी द्वारा निर्धारित किया जाता है। नेटवर्क टोपोलॉजी एक नेटवर्क के लेआउट को संदर्भित करता है और एक नेटवर्क में विभिन्न नोड एक दूसरे से कैसे जुड़े हैं और वे कैसे संवाद करते हैं। नेटवर्क टोपोलोजी की विशेषतए यह विभिन्न नोड्स के बीच भौतिक संरचना को दर्शाता है । कम्प्यूटरों का आपस में जुड़ने का ढंग ही नेटवर्क टोपोलॉजी कहलाता है । कंप्यूटर्स को आपस में जोडने एवं उसमें डाटा फ्लो की विधि टोपोलोजी कहलाती है। टोपोलॉजी किसी नेटवर्क में कम्प्यूटर के ज्यामिति व्यवस्था (ज्यामित्रिक अरेंजमेंट) को कहते है | टोपोलॉजी नेटवर्क की संरचना को परिभाषित करती है कि सभी घटक एक दूसरे से कैसे जुड़े हैं। एक ऐसी व्यवस्था जिसमे कंप्यूटर सिस्टम या नेटवर्क डिवाइस एक दूसरे से जुड़े होते हैं ।उसे हम नेटवर्क टोपोलोजी कहते है | किसी भी नेटवर्क के भौतिक और तार्किक दोनों पहलुओं को टोपोलोजी के माध्यम से परिभाषित किया जाता है। नेटवर्क टोपोलॉजी की दो बुनियादी श्रेणियां मौजूद हैं, भौतिक टोपोलॉजी और तार्किक टोपोलॉजी। कंप्यूटर नेटवर्क बनाने के लिए उपकरणों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रांसमिशन मीडिया (अक्सर भौतिक मीडिया के रूप में संदर्भित) में विद्युत केबल (ईथरनेट, होमपीएनए, पावर लाइन संचार, जी.एचएन), ऑप्टिकल फाइबर (फाइबर-ऑप्टिक संचार) शामिल हैं। और रेडियो तरंगें (वायरलेस नेटवर्किंग)। ओसी मॉडल में, इन्हें परत १ और २ - भौतिक परत और डेटा लिंक परत पर परिभाषित किया गया है। लोकल एरिया नेटवर्क (लान) तकनीक में इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रांसमिशन मीडिया का एक व्यापक रूप से अपनाया गया परिवार सामूहिक रूप से ईथरनेट के रूप में जाना जाता है। ईथरनेट पर नेटवर्क उपकरणों के बीच संचार को सक्षम करने वाले मीडिया और प्रोटोकॉल मानकों को ईई ८०२.३ द्वारा परिभाषित किया गया है। ईथरनेट तांबे और फाइबर केबल दोनों पर डेटा प्रसारित करता है। वायरलेस लैन मानक (जैसे आईईईई ८०२.११ द्वारा परिभाषित) रेडियो तरंगों का उपयोग करते हैं, या अन्य एक संचरण माध्यम के रूप में अवरक्त संकेतों का उपयोग करते हैं। पावर लाइन संचार डेटा संचारित करने के लिए भवन की पावर केबलिंग का उपयोग करता है। निम्नलिखित वायर्ड प्रौद्योगिकियों के आदेश, मोटे तौर पर, सबसे धीमी गति से सबसे तेज संचरण गति तक हैं। नेटवर्क नोड्स ट्रांसमिशन माध्यम के ट्रांसमीटरों और माध्यम में किए गए विद्युत, ऑप्टिकल, या रेडियो सिग्नल के रिसीवर के कनेक्शन के बिंदु हैं। नोड्स एक कंप्यूटर से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन कुछ प्रकारों में नोड पर केवल एक माइक्रोकंट्रोलर हो सकता है या संभवतः कोई प्रोग्राम योग्य डिवाइस नहीं हो सकता है। सीरियल व्यवस्था के सरलतम में, एक र्स-२३२ ट्रांसमीटर को तारों की एक जोड़ी द्वारा एक रिसीवर से जोड़ा जा सकता है, जिससे एक लिंक पर दो नोड्स या एक पॉइंट-टू-पॉइंट टोपोलॉजी बनती है। कुछ प्रोटोकॉल एकल नोड को केवल या तो संचारित या प्राप्त करने की अनुमति देते हैं (जैसे, अरिनक ४२९)। अन्य प्रोटोकॉल में नोड्स होते हैं जो एक ही चैनल में संचारित और प्राप्त कर सकते हैं (उदाहरण के लिए, एक बस से जुड़े कई ट्रांसीवर हो सकते हैं)। जबकि एक कंप्यूटर नेटवर्क के पारंपरिक सिस्टम बिल्डिंग ब्लॉक्स में नेटवर्क इंटरफेस कंट्रोलर (एनआईसी), रिपीटर्स, हब, ब्रिज, स्विच, राउटर, मोडेम, गेटवे और फायरवॉल शामिल हैं, भौतिक नेटवर्क टोपोलॉजी से परे अधिकांश नेटवर्क चिंताओं को संबोधित करते हैं और इन्हें सिंगल के रूप में दर्शाया जा सकता है। एक विशेष भौतिक नेटवर्क टोपोलॉजी पर नोड्स। रिपीटर्स और हब नेटवर्क टोपोलॉजी का अध्ययन आठ बुनियादी टोपोलॉजी को पहचानता है: पॉइंट-टू-पॉइंट, बस, स्टार, रिंग या सर्कुलर, मेश, ट्री, हाइब्रिड या डेज़ी चेन। विस्तारित स्टार नेटवर्क वितरित स्टार नेटवर्क पूरी तरह से जुड़ा नेटवर्क आंशिक रूप से जुड़ा नेटवर्क यह भी देखें प्रसारण संचार नेटवर्क कंप्यूटर नेटवर्क आरेख स्विच किया गया संचार नेटवर्क स्विच किया हुआ जाल
शिरीषकुमार मेहता (२८ दिसम्बर, १९२६ ९ सितम्बर, 1९42) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। शिरीष कुमार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने पांच साथियों के साथ अपने प्राणों को न्योछावर किया था। शिरीषकुमार का जन्म नंदूरबार गाँव में हुआ था जो महाराष्ट्र- गुजरात सीमा पर बसा एक छोटा सा गाँव है। नंदुरबार की पहचान एक व्यापारी नगर के तौर पर की जाती है। इसी गांव में एक गुजराती व्यापारी के घर में सन १९२६ में शिरीष कुमार का जन्म हुआ था। वे अपने माता-पिता की अकेली संतान थे। बचपन से शिरीष कुमार अपनी माता से स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां सुनते थे। ऐसा माना जाता है कि शिरीष कुमार पर आजाद हिंद फौज के संस्थापक के सुभाष चंद्र बोस का अच्छा खासा प्रभाव था। शिरीष कुमार जब १२ साल के थे तभी से वह अपने दादाजी के साथ तिरंगा उठाकर आजादी के आंदोलन में शामिल हो जाते थे। सन १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ। उसके बाद हर गांव में तिरंगा लेकर लोग 'वंदे मातरम', 'भारत माता की जय' का जय घोष लेकर निकल पड़े। ९ मार्च १९४२ को नंदुरबार में एक बड़ी रैली निकाली गई। उस रैली में शिरीष कुमार तिरंगा लेकर रैली का नेतृत्व करने लगे। उस समय उनकी उम्र मात्र १६ वर्ष थी। अपनी मातृभाषा गुजराती में घोषणा देने लगे। 'नहीं शमसे' 'नहीं शमसे' निशान भूमि भारतभूनी', भारत माता की जय, वंदे मातरम , उनके अंदर उनके अंदर पूरी तरह से मातृभूमि के लिए एक अलग ही जोश था। जब रैली शहर के बीचो बीच पहुंची तब अंग्रेज पुलिस अफसर ने रैली पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया। लेकिन शिरीष कुमार अपने साथियों के साथ रैली में डटे रहे और भारत माता की जय वंदे मातरम का जयघोष करना जारी रखा। इस बात से अंग्रेज अफसर काफी गुस्से में आ गया, और उसने प्रदर्शन करने वाले लोगों के ऊपर बंदूक तान दी। शिरीष कुमार उन प्रदर्शन करने वालों के आगे खड़े हो गए और अंग्रेज अफसर को बड़े गुस्से में सुनाया। 'अगर तुम्हें गोली मारनी है तो पहले मुझे मारो' और तिरंगा हाथ में लहराते हुए अंग्रेज अफसर के सामने नारा लगाने लगे 'वंदे मातरम -वंदे मातरम' । इससे अंग्रेज अफसर को और गुस्सा आया और उसने शिरीष कुमार के सीने में चार गोलियां मार दी। और उनके साथ में उनके साथी लाल-लाल धनसुख लालवानी, शशिधर केतकर, घनश्याम दास शाह इन इन लोगों को गोली मार कर शहीद कर दिया गया। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी १९२६ में जन्मे लोग १९४२ में निधन
इतिहास का भौगोलिक धुराग्र (थे जियोग्राफिकल पीवोत ऑफ हिस्ट्री) एक लेख था जो हेल्फोर्ड जॉन मैकिण्डर द्वारा १९०४ में दी रॉयल ज्यॉग्रॉफिकल सोसायटी, ब्रिटेन द्वारा प्रकाशित पत्रिका दी ज्यॉग्रॉफिकल ज़र्नल (अंक २३, क्रमांक संख्या ४ (अप्रेल १९०४), ४२१-४३७) के लिए लिखा गया था। इन्हें भी देखें इतिहास का भौगोलिक धुराग्र, थे जियोग्राफिकल जर्नल, अप्रैल,१९०४ में प्रकाशित (अंग्रेजी) डॉ॰ अम्बरीष ढाका द्वारा लेख का हिन्दी अनुवाद हेल्फोर्ड जॉन मैकिण्डर
अन्तरराष्ट्रीय इस्लामी विश्वविद्यालय (ईउई), इस्लामाबाद, पाकिस्तान में स्थित एक सार्वजनिक शोध विश्वविद्यालय है। यह १९८० में स्थापित किया गया था और १९८५ में पुनर्गठित किया गया था, और पाकिस्तान में उच्च शिक्षा के लिये एक मूल्यवान स्रोत बना रहा। विश्वविद्यालय नियमित रूप से पाकिस्तान के उच्च शिक्षा आयोग द्वारा पाकिस्तान के सबसे मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों और प्रतिष्ठित डिग्री प्रदान करने वाले संस्थानों में सूचीबद्ध है। विश्वविद्यालय पाकिस्तान में टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की २०२२ की शीर्ष विश्वविद्यालय रैंकिंग में संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर है। यह पाकिस्तान के उच्च शिक्षा आयोग द्वारा सामान्य श्रेणी के लिए लगातार देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में सम्मिलित है। आईआईयूआई आधिकारिक वेबसाइट टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग अरबी भाषा पाठ वाले लेख
रामजन्मभूमि न्यास, रामजन्मभूमि पर मन्दिर के निर्माण से सम्बन्धित योजनाएँ बनाने तथा मन्दिर के निर्माण का निरीक्षण करने के उद्देश्य से निर्मित न्यास है। ९ नवंबर २01९ को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा न्यास द्वारा न्यास द्वारा पूरे २.७७ एकड़ भूमि पर एक मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट का गठन करने का फैसला किया। ५ फरवरी २0२0 को, केंद्र सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र नामक ट्रस्ट का गठन किया, जिसके अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास थे। राम जन्मभूमि के स्थान की कमान संभालने और प्रस्तावित राम मंदिर के निर्माण की देखरेख करने के लिए २५ जनवरी, १९९३ को विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों द्वारा एक स्वतंत्र ट्रस्ट के रूप में राम जन्मभूमि न्यास (र्जन) की स्थापना की गई थी। रामचंद्र दास परमहंस (१९१३-२००३) राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख थे, नृत्य गोपाल दास द्वारा उनकी मृत्यु पर सफल हुए। इसके सदस्यों ने तर्क दिया कि न्यास इसलिए बनाया गया था ताकि भारत सरकार इस साइट पर नियंत्रण न रखे और मंदिर के निर्माण में खुद को शामिल कर ले। [१] आरजेएन, अयोध्या के बाहर कारसेवकपुरम (स्वयंसेवकों का शहर) में स्वयंसेवकों (कारसेवकों को बुलाया जाता है) के एक बड़े परिसर में कार्यशालाओं का संचालन करता है।
चमन लाल (जन्म : अगस्त २७, १९४७) भारत के शिक्षाविद व लेखक हैं। भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादन, २००४) भगत सिंह और उनके साथीयों के दस्तावेज (१९८६/८७) १९४७ में जन्मे लोग
भूत अंकल २००६ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। जय किशन श्राफ देव के काँतावाल - श्याम इस फिल्म की शूटिंग के दौरान जंगल का वह सीन, जहाँ बच्चे भूत अंकल से पहली बार मिलते हैं और उसके बाद स्कूल में सभी बच्चों के सामने भूत अंकल (जैकी श्रॉफ) पहली बार दिखाई देते हैं, वह खास सीन स्पेशल इफेक्ट के द्वारा बनाया गया था, जिसमें जैकी श्रॉफ अचानक प्रकट होते हैं। यह जानकारी मेघराज रोहलण 'मुंशी' द्वारा कॉपीराइट की गई है। इसका उपयोग करने के लिए मेघराज रोहलण 'मुंशी' से लिखित अनुमति लेना अनिवार्य है। यदि आप मेघराज रोहलण 'मुंशी' की लिखित अनुमति के बिना उक्त जानकारी का इस्तेमाल करते हैं तो यह कॉपीराइट नियमों का सरासर उल्लंघन होगा, जिसके लिए आपको भारतीय दंड संहिता में वर्णित धाराओं के अनुसार सजा हो सकती है। नामांकन और पुरस्कार २००६ में बनी हिन्दी फ़िल्म
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन (; उच्चारण : इंटर्नैशनल् सोसाईटी फ़ॉर क्रिश्ना कॉनशियस्नेस् -इस्कॉन), को "हरे कृष्ण आन्दोलन" के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने प्रारम्भ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है। स्थापना एवं प्रसार कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपादजी ने सन् १९६६ में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने ५९ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे। अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायीयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में १०८ मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के लगभग ४०० से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है। नियम एवं सिद्धान्त पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शांति है। इसी शांति की तलाश में पूरब की गीता पश्चिम के लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी। यहाँ के मतावलंबियों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है- धर्म के चार स्तम्भ - तप, शौच, दया तथा सत्य हैं। इसी का व्यावहारिक पालन करने हेतु इस्कॉन के कुछ मूलभूत नियम हैं। तप : किसी भी प्रकार का नशा नहीं। चाय, कॉफ़ी भी नहीं। शौच : अवैध स्त्री/पुरुष गमन नहीं। दया : माँसाहार/ अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन, प्याज़ भी नहीं) सत्य : जुआ नहीं। (शेयर बाज़ारी भी नहीं) उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा) अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना वर्जित है) एक घंटा शास्त्राध्ययन (इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है) 'हरे कृष्णा-हरे कृष्णा' नाम की १६ बार माला करना होती है। भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। वे लगातार हरे राम-हरे कृष्ण का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर व विद्यालय बनवाये हैं। इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता एवं हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं। इन्हें भी देखें इस्कॉन मंदिर, दिल्ली कृष्ण बलराम मंदिर, वृन्दावन
यह विश्व की एक प्रमुख भाषा है। बोलने वाले व्यक्तियों की संख्या यह् भाषा मोर्डाबियन में बोली जाती है। विश्व की प्रमुख भाषाएं
जगत नाम से विकिपीडिया पर निम्न लेख हैं: जगत का अर्थ है, ब्रह्मांड जगत प्रकाश नड्डा जगत सिंह प्रथम
रुपालहेड़ी (रूपलहेरी) भारत के पंजाब राज्य के फतेहगढ़ साहिब ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें फतेहगढ़ साहिब ज़िला पंजाब के गाँव फतेहगढ़ साहिब ज़िला फतेहगढ़ साहिब ज़िले के गाँव
दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव पुलिस भारत में केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसी है। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव पुलिस २६ जनवरी २०२० को उसी समय बनाई गई थी जब दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेशों को दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव पुलिस के नए केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए विलय कर दिया गया था। . नया बल पहले दादरा और नगर हवेली पुलिस और दमन और दीव पुलिस बलों की जगह लेता है। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव पुलिस गृह मंत्रालय, भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में आती है। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव पुलिस का नेतृत्व पुलिस उप महानिरीक्षक (डिग) करते हैं।
लैंगिक व्यसन या यौन आसक्ति (सेक्सुअल एड्डिक्शन या सेक्स एड्डिक्शन) किसी व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जब यौन क्रिया (विशेषकर, यौन संभोग) के बुरे प्रभावों के बारे में जानते हुए भी वह यौनक्रियाओं को करने के लिए व्यग्र रहता है। इन्हें भी देखें सेक्स एडिक्शन: कभी न खत्म होने वाली बीमारी
उर्गम, जोशीमठ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उर्गम, जोशीमठ तहसील उर्गम, जोशीमठ तहसील
द्विवेदी पदक साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वालों को दिया जाता था। इस पदक को प्राप्त करने वाले महत्वपूर्ण लोगों के नाम इस प्रकार हैं सुमित्रानंदन पंत (१९३०) महादेवी वर्मा (१९४२)
भभुआ (भाबुआ) भारत के बिहार राज्य के कैमूर ज़िले में स्थित एक शहर है। भभुआ सुवरा (स्वर्णा) नदी के किनारे बसा है। यह जी टी रोड से १४ किलोमीटर दक्षिण सड़क मार्ग से जुड़ा है। इसका नजदीकी रेल्वे स्टेशन भभुआ रोड है। भभुआ २५.०५०न ८३.६२०ए पर स्थित है। यह ७६ मीटर की औसत ऊचाई पर स्थित है। भभुआ को "भबुआ" नाम से भी जाना जाता है। यह २६ वार्ड में विभक्त है। इन्हें भी देखें बिहार के शहर कैमूर ज़िले के नगर
अमेरिका में अश्वेतों के इतिहास की प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं - १६१९ : पहला अफ्रीकी दास वजीर्निया पहुंचा। १७९३ : रूई ओटने की मशीन के अविष्कार से दासों की मांग बढ़ी। भगोड़े दास कानून में स्वतंत्र प्रांतों को दासों को वापस भेजने का प्रावधान किया गया, लेकिन उत्तर में इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया। १८०८ : अश्वेतों को लाने पर रोक लगाई गई। १८६१ : अमेरिका से दक्षिण के अलग होने के बाद से कांफेडेरेसी की स्थापना। गृह युद्ध शुरू। १८६३ : राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसके तहत कांफेडरेट प्रांतों के सभी दासों को आजाद घोषित किया गया। १८६५ : गृहयुद्ध की समाप्ति। लिंकन की हत्या। १८६८ : संविधान में १४वां संशोधन कर सभी अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों पूर्ण नागरिकता को देने का प्रावधान किया गया। १८७० : अश्वेत पुरुषों को मताधिकार दिया गया। १८९६ : सुप्रीमकोर्ट ने नस्लीय आधार पर पृथक्कीकरण को संविधान सम्मत बताया, जिससे दक्षिण में अलगाव शुरू हुआ। १९४७ : जैकी राबिन्सन मेजर लीग बेसबाल में खेलने वाले पहले अश्वेत खिलाड़ी बने। १९४८ : राष्ट्रपति हैरी एस ट्रमन ने अमेरिकी सशस्त्र सेनाओं में अलगाव खत्म करने केलिए आदेश जारी किया १९५४' : सुप्रीम कोर्ट ने ब्राउन बनाम बोर्ड ऑफ एजुकेशन मामले में स्कूलों में अलगाव को अंसवैधानिक करार दिया। १९५५ : अलाबामा के मोंटगोमरी में रोसा पार्क नाम की महिला ने अलग बस में सीट छोड़ने से इनकार करदिया। उनकी गिरफ्तारी से शहरों में अश्वेतों के लिए अलग बस की व्यवस्था समाप्त करने के लिए मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में एक वर्ष तक बहिष्कार अभियान चला। १९६३ : मार्टिन लूथर किंग को अलाबामा के बर्किंघम में नागरिक अधिकार विरोध के दौरान जेल भेजा गया। उन्होंने वाशिंगटन में प्रसिद्ध आई हैव ए ड्रीम भाषण दिया। १९६५ : नागरिक अधिकारों के नेता माल्कम एक्स की हत्या। कांग्रेस ने मताधिकार कानून पारित किया। १९६६ : मसाच्टूसेट्स के ऐडवर्ड ब्रूक गृह युद्ध के बाद शुरू हुए पुनर्निर्माण दौर के बाद से पहले अमेरिकी सीनेटर निर्वाचित हुए। १९६७ : थर्गूद मार्शल सुप्रीम कोर्ट के पहले अश्वेत न्यायाधीश बने। १९६८ : मार्टिन लूथर किंग की टेनेसी के मेम्फिस में हत्या। १९९० : डगलस वाइल्डर सीनेट की अगुवाई करने वाले पहले अश्वेत बने। वह वजीर्निया के गर्वनर बने गए। जून २००८ : इलिनाय से सीनेटर बराक ओबामा ने डेमोक्रेटिक प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी जीती और ह्वाइट हाउस की दौड़ में शामिल हुए। ४ नवम्बर २००८ : ओबामा ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में जान मैक्केन को परास्त किया। अमेरिका में वर्ष २००८ के राष्ट्रपति चुनाव के घटनाक्रम की कुछ मुख्य तिथियाँ इस प्रकार हैं:- २० जनवरी: न्यूयार्क की डेमोक्रेट और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने ह्वाइट हाउस की दौड़ के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की। २० फरवरी: सीनेटर बराक ओबामा ने आधिकारिक तौर पर इलिनोइस के स्पर्न्गफील्ड से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की। २८ फरवरी: एरिजोना के रिपब्लिकन सीनेटर जान मैक्केन ने एक टीवी शो में घोषणा की कि वह राष्ट्रपति चुनाव लड़ेंगे। ३ जनवरी: लोवा में पहली प्राइमरी। बराक ओबामा ने हिलेरी को निराश करते हुए डेमोक्रेटिक काकस जीता। रिपब्लिकन की तरफ से माइक हुकाबी ने रिपब्लिकन काकस पर जीत हासिल की। क्रिस डाड और जो बिडेन डेमोक्रेटिक दौड़ से बाहर। ८ जनवरी: हिलेरी ने न्यू हैंपशायर में डेमोक्रेटिक प्राइमरी जीतकर वापसी की। रिपब्लिकन प्राइमरी में मैक्केन जीते। १५ जनवरी: मिशीगन प्राइमरी में डेमोक्रेटिक प्राइमरी हिलेरी के खाते में रिपब्लिकन प्राइमरी मिट रोमनी ने जीती। १९ जनवरी: नेवेदा काकस डेमोक्रेटिक काकस हिलेरी ने जीता। रिपब्लिकन काकस मिट रोमनी ने जीता। दक्षिण कैरिलोना पर रिपब्लिकन प्राइमरी में मैक्केन की जीत। २६ जनवरी: दक्षिण कैरिलोना डेमोक्रेटिक प्राइमरी पर ओबामा की जीत। फ्लोरिडा प्राइमरी में रिपब्लिकन प्राइमरी मैक्केन के पक्ष में। डेमोक्रेटिक प्राइमरी हिलेरी के खाते में। ३० जनवरी: न्यूयार्क के पूर्व मेयर रुडी गिउलियानी ने रिपब्लिकन दौड़ से बाहर होकर ओबामा का समर्थन किया। जान एडवर्ड डेमोक्रेट दौड़ से बाहर। ५ फरवरी: हिलेरी क्लिंटन और ओबामा के बीच २२ राज्यों की प्राइमरी में जंग। ओबामा को ज्यादा राज्यों में जीत लेकिन हिलेरी के खाते में बड़े डेलीगेट संपन्न राज्य। मैक्केन की स्थिति मजबूत लेकिन हुकाबी भी दौड़ में। ९ फरवरी: लुसियाना डेमोक्रेटिक प्राइमरी पर ओबामा की जीत। लुसियाना रिपब्लिकन प्राइमरी में हुकाबी मैक्केन से थोड़ी आगे। कंसास में रिपब्लिकन काकस पर हुकाबी की जीत। १२ फरवरी: पोटोमाक प्राइमरी- कोलंबिया डेमोक्रेटिक प्राइमरी, मैरीलैंड डेमोक्रेटिक प्राइमरी और वर्जीनिया डेमोक्रेटिक प्राइमरी के डिस्ट्रिक्ट पर ओबामा की जीत। कोलंबिया रिपब्लिकन प्राइमरी, मैरीलैंड रिपब्लिकन प्राइमरी और वर्जीनिया रिपब्लिकन प्राइमरी के डिस्ट्रिक्ट पर मैक्केन की जीत। ४ मार्च: हिलैरी राड, आइलैंड, ओहायो और टैक्सास प्राइमरी में जीती। ओबामा वरमांट और टैक्सास काकस में जीते। हुकाबी दौड़ से बाहर, मैक्केन रिपब्लिकन उम्मीदवार बने। ५ मार्च: राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने मैक्केन का समर्थन किया। ३ जून: अंतिम डेमोक्रेटिक प्राइमरी- आधिकारिक तौर पर डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बनने के लिए ओबामा ने पर्याप्त डेलिगेट्स हासिल किए। ७ जून: हिलेरी ने ओबामा का समर्थन किया और ह्वाइट हाउस के लिए अपनी पेशकश वापस ली। २३ अगस्त: ओबामा ने अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सीनेटर जो बिडेन के नाम की घोषणा की। २८ अगस्त: ओबामा ने डेनवर कोलोराडो में दिए गए भाषण में राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी स्वीकारी। २९ अगस्त: मैक्केन ने अलास्का की गवर्नर सारा पालिन को उपराष्ट्रपति पद की रिपब्लिकन उम्मीदवार चुना। ४ सितंबर: मैक्केन ने सेंट पाल में एक भाषण में रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी स्वीकार की। ४ नवंबर: अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव। ओबामा अमेरिका के ४४वें राष्ट्रपति चुने गए। अमेरिका के लोग संयुक्त राज्य अमेरिका का इतिहास
ताराचन्द माहेश्वरी,भारत के उत्तर प्रदेश की दूसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ३३१ - सिधौली विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की दूसरी विधान सभा के सदस्य ३३१ - सिधौली के विधायक सीतापुर के विधायक कांग्रेस के विधायक
अनर्पल्लि, केरमेरि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
चिनाब घाटी चिनाब नदी द्वारा निर्मित एक नदी घाटी है। यह शब्द सामूहिक रूप से जम्मू और कश्मीर, भारत में जम्मू संभाग के डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों के लिए भी उपयोग किया जाता है। ये जिले पहले डोडा नामक एक जिले का हिस्सा थे। यह नाम चिनाब नदी से निकला है, जो बहती है और घाटी बनाती है। हिमालय में चिनाब नदी द्वारा बनाई गई घाटी को संदर्भित करने के लिए "चिनाब घाटी" शब्द का प्रयोग १९२६ के जर्नल लेख "द रिलीफ क्रोनोलॉजी ऑफ चिनाब वैली" में एरिक नोरिन द्वारा किया गया था। हाल ही में, इस शब्द का प्रयोग विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं द्वारा भी किया जाने लगा है, जो १९४८ में गठित पूर्व डोडा जिले [लोअर-अल्फा १] के क्षेत्रों का उल्लेख करते हैं। इस शब्द का उपयोग डोडा, रामबन, किश्तवाड़ जिलों के कई निवासियों द्वारा बड़े जम्मू संभाग के भीतर एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का दावा करने के लिए किया जाता है। चिनाब घाटी भारत के जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में मध्य और महान हिमालय श्रृंखला के बीच स्थित है। यह जम्मू और कश्मीर के डोडा, रामबन और किश्तवाड़ जिलों के कुछ हिस्सों का गठन करता है। यह क्षेत्र एक सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र है । डोडा जिले की जनसांख्यिकी इसकी बहुत विविध आबादी के कारण पड़ोसी जिलों की तुलना में जटिल है। अतीत में, कश्मीर और अन्य आस-पास के क्षेत्रों से लोगों के यहां बसने से पहले डोडा में बड़े पैमाने पर सराज़ी आबादी बसी हुई थी। अफीम के पौधे के कारण इसे डोडा नाम मिला, जिसे स्थानीय भाषा में डोडी के नाम से जाना जाता है। १७वीं और १८वीं शताब्दी में कश्मीरी आबादी यहां बस गई थी। सुमन्त्र बोस कहते हैं कि कहीं और सामंती वर्गों द्वारा दमन ने लोगों को डोडा, रामबन और किश्तवाड़ जिलों में आकर्षित किया। डोडा जिले में किश्तवाड़ और भद्रवाह की प्राचीन रियासतों से लिए गए क्षेत्र शामिल हैं, जो दोनों जम्मू और कश्मीर की रियासत में 'उधमपुर' के नाम से एक जिले का हिस्सा बन गए। जम्मू और कश्मीर में डोडा जिले का एक लंबा इतिहास है जो विभिन्न शासकों और राजवंशों की किंवदंतियों और कहानियों से जुड़ा हुआ है। राज्य के राजस्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, जिले को अपना नाम डोडा में अपने मुख्यालय से मिला, जिसका नाम बर्तन बनाने वाले मुल्तान के एक प्रवासी के नाम पर रखा गया था। उन्हें किश्तवाड़ के प्राचीन शासकों में से एक ने क्षेत्र में बसने और एक बर्तन कारखाने की स्थापना के लिए राजी किया था। समय के साथ, डीडा नाम विकृत होकर डोडा हो गया। डोडा का प्रारंभिक इतिहास अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं है, किश्तवाड़ के शासकों के बारे में कुछ इतिहास उपलब्ध हैं। बंदोबस्त की रिपोर्ट से पता चलता है कि इस क्षेत्र पर राणाओं, राजाओं और स्वतंत्र प्रमुखों जैसे कि जराल रामस, कटोच राजाओं, भाऊस मन्हासेस, चिब, ठक्कर, वानिस और गक्कर सहित विभिन्न समूहों का शासन था। १८२२ ई. में, महाराजा गुलाब सिंह ने डोडा पर विजय प्राप्त की और किश्तवाड़ राज्य की शीतकालीन राजधानी बन गई। लेखक ठाकुर कहन सिंह बलोरिया के अनुसार, डोडा का किला जिले के इतिहास में महत्वपूर्ण था और जम्मू प्रांत के सत्तर किलों में से एक था। किले ने थानेदार के कार्यालय के रूप में कार्य किया और आयुध और खाद्यान्न के लिए भंडारण स्थान प्रदान किया। किले को भद्रवाह राजाओं के संभावित हमलों से बचाने के लिए भी बनाया गया था। किला कच्ची ईंटों से बना था और इसकी दीवारें चार फीट चौड़ी और चालीस से पचास फीट ऊंची थीं, जिसके कोनों पर गुंबद जैसी मीनारें थीं। १९५२ में किले को ध्वस्त कर दिया गया था और २०२३ तक, गवर्नमेंट बॉयज़ हायर सेकेंडरी स्कूल ने अपनी साइट पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजी यात्री जी.टी. विग्ने ने १८२९ में डोडा का दौरा किया और जिले के माध्यम से अपनी यात्रा का वर्णन किया। वह एक गहरे और पथरीले नाले से यात्रा करने का उल्लेख करता है जहां चिनाब नदी मिलती है, [स्पष्टीकरण की आवश्यकता] फिर हिमालय में एक खतरनाक पुल पर नदी को पार करना। विग्ने डोडा में पुल के बारे में लिखते हैं, एक मजबूत रस्सी जो एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैली हुई है, चट्टानों से बंधी हुई है। रस्सी के ऊपर एक लकड़ी का ढांचा रखा गया था और अतिरिक्त रस्सियों को उससे बांध दिया गया था, जिससे संरचना आगे-पीछे हो सके। उन्होंने एक अन्य प्रकार के पुल का भी सामना किया, जिसे पैदल पार किया गया था, छाल के टुकड़ों से बँधी छोटी रस्सियों से बना था और एक मोटी रस्सी में बुना गया था। सहारे के लिए फांसी की रस्सियाँ प्रदान की गईं। जिस क्षेत्र में भद्रवाह की तहसील शामिल है, उसका १०वीं शताब्दी का एक लंबा इतिहास है। १८४६ में, ब्रिटिश सरकार, लाहौर दरबार और जम्मू के राजा गुलाब सिंह के बीच अमृतसर संधि के बाद डोडा और किश्तवाड़ नव निर्मित जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा बन गए। भद्रवाह कभी १५ प्रशासनिक इकाइयों के साथ एक रियासत थी और इसका इतिहास कल्हण की राजतरंगिणी तक दर्ज है। भद्रवाह राज्य की स्थापना १५वीं शताब्दी में बिलावर के बलोरिया परिवार के एक सिकॉन ने की थी। १६वीं शताब्दी में राजा नागपाल के शासक बनने तक इस पर बाद में चंब के राजा का शासन था। भद्रवाह पर तब तक नागपाल के वंशजों का शासन था जब तक कि किश्तवार राजा ने उस पर कब्जा नहीं कर लिया था। यह १८२१ में चंबा का हिस्सा बन गया और १८४६ में इसे जम्मू दरबार में स्थानांतरित कर दिया गया। इस समय के दौरान, भद्रवाह सैन्य-प्रशासित लेबल को कारदार के रूप में नियुक्त किया गया था। भद्रवाह जागीर बाद में जम्मू के राजा अमर सिंह और उसके बाद उनके बेटे राजा हरि सिंह को दी गई। १९२५ में जब राजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर के महाराजा बने, तो उन्होंने अपनी जागीरें भंग कर दीं और भद्रवाह को १९३१ में उधमपुर की एक तहसील में बदल दिया। १९४८ में, तत्कालीन उधमपुर जिले को वर्तमान उधमपुर जिले में विभाजित किया गया था, जिसमें उधमपुर और रामनगर तहसीलें थीं, और 'डोडा' जिले में रामबन, भद्रवाह, थथरी और किश्तवाड़ तहसीलें थीं। चिनाब घाटी को बनाने वाले तीन जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं। २०११ की जनगणना के अनुसार लगभग ६०% आबादी मुस्लिम थी, और बाकी ४०% ज्यादातर हिंदू हैं। संभागीय दर्जा दिलाने की मांग लंबे समय से विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा चिनाब घाटी के लिए अलग प्रशासनिक विभाजन की मांग को लेकर आंदोलन किया जाता रहा है। २०१४ में अलग प्रशासनिक प्रभाग की मांग को लेकर डोडा में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया गया था। २०१८ और २०१९ में फिर से मांग उठी जब लद्दाख को मंडल का दर्जा मिला और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के राजनीतिक एजेंडे में "चिनाब घाटी और पीर पंजाल क्षेत्र के लिए दो अलग-अलग मंडल का दर्जा" जोड़ा। २०२१ तक, जम्मू-कश्मीर के दूसरे विभाजन की अफवाहों और जम्मू के एक अलग राज्य की मांग के बाद संभागीय स्थिति के लिए आंदोलन फिर से बढ़ गया। इस मांग का एक सामान्य कारण है। चिनाब घाटी के जम्मू संभाग से जुड़े रहने पर लोग सरकार द्वारा विकासात्मक मुद्दों के मामले में लापरवाही का आरोप लगाते हैं। प्रस्तावित चिनाब घाटी के जिलों में छह विधानसभा सीटें हैं। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि "कोई चिनाब घाटी नहीं है और यह क्षेत्र के प्रतिनिधित्व के लिए केवल जम्मू संभाग है", जबकि जेकेएनसी का कहना है कि मांग विकासात्मक लापरवाही पर आधारित है और चिनाब के लिए जम्मू संभाग से अलग संभाग चाहती है। घाटी और पीर पंजाल। तीन जिलों के क्षेत्रों को पुलिस और सैन्य अधिकारियों द्वारा डीकेआर रेंज (डोडा-किश्तवाड़-रामबन रेंज) कहा जाता है, जबकि जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा इस रेंज के लिए एक अलग उप महानिरीक्षक तैनात किया जाता है। पहाड़ी विकास परिषद १९९६ में, मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने चिनाब को प्रशासनिक स्वायत्तता देने का वादा किया। बाद में २००० में, शेख अब्दुल रहमान (तत्कालीन भद्रवाह के विधायक) द्वारा विधानसभा में चिनाब घाटी के लिए एक पहाड़ी विकास परिषद की मांग करते हुए एक विधेयक पेश किया गया था। जम्मू और कश्मीर की घाटियाँ
जी. एस. शिवरुद्रप्पा कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना काव्यार्थ चिन्तन के लिये उन्हें सन् १९८४ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मेरा दीया और अन्य कविताएँ (२०२२, राजमंगल प्रकाशन) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा के साहित्यकार
श्री एमएस गिल को भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में खेल एवं युवा मंत्रालय में मंत्री बनाया गया है। भारत सरकार के मंत्री भारत सरकार के मंत्री
बयाला खालसा, सोमेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा खालसा, बयाला, सोमेश्वर तहसील खालसा, बयाला, सोमेश्वर तहसील
सारसमाल रायगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
जुआन "रस्टी" थेरॉन (जन्म २४ जुलाई १९८५) एक अमेरिकी क्रिकेटर हैं। वह शेवरले वॉरियर्स (पूर्व में पूर्वी प्रांत के रूप में जाना जाता है), इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में राजस्थान रॉयल्स और दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय टीम के लिए खेले। वह दाएं हाथ के तेज गेंदबाज हैं और दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। घुटने की चोट के कारण ८ अक्टूबर २०१५ को उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी घरेलू क्रिकेट से संन्यास ले लिया। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के तीन साल के रेजीडेंसी नियम को पूरा करने के बाद, २०१९ में, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मैचों में संयुक्त राज्य अमेरिका क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए अर्हता प्राप्त की। उन्होंने सितंबर २०१९ में एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच में संयुक्त राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
मैथिली ठाकुर एक भारतीय गायिका हैं। वह मैथिली और भोजपुरी गाने गाती है जिसमें छठ गीत और कजरी शामिल हैं। वह अन्य राज्यों से कई तरह के बॉलीवुड कवर और अन्य पारंपरिक लोक संगीत भी गाती हैं। मैथिली का जन्म २५ जुलाई २००० को बिहार के मधुबनी जिले में स्थित बेनीपट्टी नामक एक छोटे से शहर में हुआ था। उनके पिता रमेश ठाकुर, जो खुद अपने क्षेत्र के लोकप्रिय संगीतकार थे, और माता भारती ठाकुर, एक गृहिणी। उसका नाम उसकी मां के नाम पर रखा गया था। उसके दो छोटे भाई हैं, जिनका नाम रिशव और अयाची है, जो उनकी बड़ी बहन की संगीत यात्रा का अनुसरण करते हैं, जो तबला बजाकर और गायन में उनका साथ देते हैं। उसने अपने पिता से संगीत सीखा। अपनी बेटी की क्षमता को महसूस करते हुए और अधिक अवसर प्राप्त करने के लिए, रमेश ठाकुर ने खुद को और अपने परिवार को द्वारकानियर नई दिल्ली में स्थित किया। मैथिली और उनके दो भाइयों की शिक्षा वहाँ के बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल में हुई थी। यहां तक कि उनकी पढ़ाई के दौरान, तीन भाई-बहनों को उनके पिता ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, हारमोनियम और तबला (रिशव के मामले में) में प्रशिक्षित किया था। मैथिली की संगीत यात्रा २०११ में शुरू हुई, जब वह ज़ी टीवी में प्रसारित होने वाले लिटिल चैंप्स नामक एक रियलिटी शो में दिखाई दी। हालाँकि वह पहले भी कई स्थानीय कार्यक्रमों में दिखाई दी थीं, लेकिन इस रियलिटी शो के माध्यम से उन्हें पहचान मिली। चार साल बाद, उन्होंने एक और रियलिटी शो, इंडियन आइडल जूनियर, सोनी टीवी में प्रसारित किया। लेकिन वह रियलिटी शो राइजिंग स्टार के माध्यम से एक राष्ट्रीय सनसनी बन गई, जिसमें वह रनर-अप के रूप में समाप्त हुई। शो के शुरुआती दौर से ही, मैथिली में अधिक लोकप्रियता थी, जिसने आसानी से चुनौतीपूर्ण गाने भी गाए थे। २०१७ में उनकी प्रसिद्धि बढ़ी जब उन्होंने राइजिंग स्टार के सीज़न १ में भाग लिया। मैथिली शो की पहली फाइनलिस्ट थी, उन्होंने 'ओम नमः शिवाय' गाया, जिसने फाइनल में उनकी सीधे प्रवेश किया। वह दो वोटों से हारकर दूसरे स्थान पर रही। शो के बाद, उनकी इंटरनेट लोकप्रियता बढ़ गई। यू-ट्यूब और फेसबुक पर उनके वीडियो अब ७०,००० से ७ मिलियन के बीच मिलते हैं। वह अपने दो छोटे भाइयों ऋषभ और अयाची के साथ देखी जाती हैं। ऋषभ तबले पर हैं और अयाची एक गायक हैं। २०१९ में मैथिली और उनके दो भाइयों को चुनाव आयोग द्वारा मधुबनी का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया। उन्होंने २०१५ में एक भारतीय संगीत शो "आई जीनियस यंग सिंगिंग स्टार" जीता और उन्होंने एक एल्बम हां रब्बा (यूनिवर्सल म्यूजिक) भी लॉन्च किया। उनके फेसबुक चैनल के ९ मिलियन से अधिक फॉलोअर और यूट्यूब पे २.५मिलियन से अधिक सक्रिबेर हैं और इंस्टाग्राम पर उनके २मिलियन से अधिक अनुयायी हैं। २००० में जन्मे लोग बिहार के लोग भारतीय यूट्यूब प्रयोगकर्ता
हिण्डोली विधानसभा क्षेत्र राजस्थान का एक विधानसभा क्षेत्र है।
रामपुर-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा रामपुर-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील रामपुर-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील
जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। गांधी जी के विचार महात्मा गांधी जी ने मैकाले की इस धूर्ततापूर्ण योजना का अपने लेखों में वर्णन किया है (मैकालेज ड्रीम्स, यंग इंडिया, १९ मार्च १९28, पृ. १०३, देखें ) तथा इस घोषणा को "शरारतपूर्ण" कहा है। यह सत्य है कि गांधी जी स्वयं अंग्रेजी के प्रभावी ज्ञाता तथा वक्ता थे। एक बार एक अंग्रेज विद्वान ने कहा था कि भारत में केवल डेढ़ व्यक्ति ही अंग्रेजी जानते हैं- एक गांधी जी और आधे मि. जिन्ना। अत: भाषा के सम्बंध में गांधी जी के विचार राजनीतिक अथवा भावुक न होकर अत्यन्त संतुलित तथा गंभीर हैं। शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में ९० प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1९०9 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि- यदि मुझे कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरन्त बन्द कर दूंगा। गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।" मातृभाषा का महत्त्व गांधीजी देश की एकता के लिए यह आवश्यक मानते थे कि अंग्रेजी का प्रभुत्व शीघ्र समाप्त होना चाहिए। वे अंग्रेजी के प्रयोग से देश की एकता के तर्क को बेहूदा मानते थे। सच्ची बात तो यही है कि भारत विभाजन का कार्य अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों की ही देन है। गांधी जी ने कहा था- "यह समस्या १९३८ ई. में हल हो जानी चाहिए थी, अथवा १९४७ ई. में तो अवश्य ही हो जानी चाहिए थी।" गांधी जी ने न केवल माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा का मुखर विरोध किया बल्कि राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर भी राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता को प्रकट करने वाले विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा था, यदि स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है। घर पर मातृभाषा बोलने वाले बच्चे मेधावी होते हैं विदेश में रहने वाले बच्चे जो अपने घर में परिवार वालों के साथ मातृभाषा में बात करते हैं और बाहर दूसरी भाषा बोलते हैं, वह ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। एक नए अध्ययन से यह जानकारी मिली है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि जो बच्चे स्कूल में अलग भाषा बोलते हैं और परिवार वालों के साथ घर में अलग भाषा का उपयोग करते हैं, वे बुद्धिमत्ता जांच में उन बच्चों की तुलनामें अच्छे अंक लाए जो केवल मातृभाषा जानते हैं। इस अध्ययन में ब्रिटेन में रहने वाले तुर्की के सात से ११ वर्ष के १९९९ बच्चों को शामिल किया गया। इस आईक्यू जांच में दो भाषा बोलने वाले बच्चों का मुकाबला ऐसे बच्चों के साथ किया गया जो केवल अंग्रेजी बोलते हैं। बहुत से अध्ययनों में यह बात उभरकर सामने आयी है कि आरम्भिक कक्षाओं में बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने से बेहतर परिणाम मिलते हैं। ऐसे कुछ अध्ययन युनेस्को द्वारा भी किये गये हैं। विश्व में मौलिकता का ही महत्व है मौलिक लेखन, चिंतन या रचनात्मकता को संसारभर में नोट किया जाता है। विश्व में आज भी भारत की पहचान यहां की भाषा में लिखित उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि से है जो मौलिक रचनाएँ हैं। नीरद चौधरी, राजा राव, खुशवन्त सिंह जैसे लेखकों से नहीं। समाज की रचनात्मकता और मौलिकता अनिवार्यत: उसकी अपनी भाषा से जुड़ी होती है। विश्व में मौलिकता का महत्व है, माध्यम का नहीं। इसलिए यदि स्वतंत्र भारत में मौलिक चिन्तन, लेखन का ह्रास होता गया तो उसका कारण 'अंग्रेजी का बोझ' है। मौलिक लेखन, चिन्तन विदेशी भाषा में प्रायः असंभव है। कम से कम तब तक, जब तक ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका की मूल सभ्यता की भांति भारत सांस्कृतिक रूप से पूर्णत: नष्ट नहीं हो जाता और अंग्रेजी यहां सबकी एक मात्र भाषा नहीं बन जाती। तब तक भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजी में कुछ भी क्यों न बोलते रहें, वह वैसी ही यूरोपीय जूठन की जुगाली होगी, जिसकी बाहर पूछ नहीं हो सकती। इन्हें भी देखें अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मातृभाषा (अतुल कोठारी) शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को कानून द्वारा भी थोपा नहीं जा सकता (राजस्थान उच्च न्यायालय) शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए मातृभाषा आधारिक शिक्षा की महत्ता भाषाई अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा मातृभाषा और बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा में भारतीय भाषाओं का महत्व (रहुल देव) अंग्रेजी और चोगा, दोनों हटें ( डॉ. वेदप्रताप वैदिक ; अक्टोबर २२, २०१६) पहला सबक मातृभाषा में मिले मातृ भाषा में पढ़ें, अंग्रेजी होगी चौथी भाषा (नई शिक्षानीति का ड्राफ्ट ; मई-जून २०१९) नई शिक्षा नीति से मातृभाषा को मिलेगी संजीवनी (जुलाई २०२०) मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा की दिशा में सार्थक पहल अब मातृभाषा में भी कर सकेंगे उच्च शिक्षा की पढ़ाई
प्रदूषण की रोकथाम (प२) में वो गतिविधियां शामिल हैंं जो कि एक प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की मात्रा को कम करने में सहयोग करते हैंं। जैसे प्लास्टिक- उपभोक्ता को कम खपत करना, ड्राइविंग या औद्योगिक उत्पादन को कम इस्तेमाल करना, इत्यादि से प्रदूषण की रोकथाम का प्रयास किया जा सकता है। प्रदूषण नियंत्रण रणनीति भी बनाए गए है, जो प्रदूषक प्रबंधन और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की गई हैं। प्रदूषण की रोकथाम दृष्टिकोण जिससे इसके स्रोत से उत्पन्न प्रदूषण की राशि को कम करने की कोशिश की गई हैं।प्रदूषण के स्रोतों को कम करना प्रदूषण के रोकथाम की सबसे कारगर रणनीति है। कुछ पेशेवरों को भी प्रदूषण की रोकथाम के लिए रीसाइक्लिंग या पुन:उपयोग करने की सलाह दी गई है। एक पर्यावरण प्रबंधन रणनीति के रूप में प्रदूषण की रोकथाम के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं जैसे:- प्रदूषण की रोकथाम हरी रसायन शास्त्र जैसे ही चीज़ों से की जा सकती हैं। अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के द्वारा प२ एक प्रोग्राम है जो कि व्यक्तियों और संगठनों की सहायता इसे लागू करने की कोशिश करती हैं।