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मुर्सिली न.ज़.आ., नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा न.ज़.आ., मुर्सिली, नैनीताल तहसील न.ज़.आ., मुर्सिली, नैनीताल तहसील
ऊना भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश का एक जिला है। ऊना जिला में पाँच तहसीले हैं-हरोली, घनारी , उना, अम्ब, बंगाणा हैं। हिमाचल प्रदेश के जिले
व्यापम घोटाला भारतीय राज्य मध्य प्रदेश से जुड़ा प्रवेश एवं भर्ती घोटाला है जिस के पीछे कई नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यवसायियों का हाथ है। मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल अथवा व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मण्डल) राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार द्वारा गठित एक स्व-वित्तपोषित और स्वायत्त निकाय है। ये प्रवेश परीक्षाएँ, राज्य के शैक्षिक संस्थानों में तथा सरकारी नौकरियों में दाखिले और भर्ती के लिए आयोजित की जाती हैं। इन प्रवेश परीक्षाओं में तथा नौकरियों में अपात्र परीक्षार्थियों और उम्मीदवारों को बिचौलियों, उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं राजनेताओं की मिलीभगत से रिश्वत के लेनदेन और भ्रष्टाचार के माध्यम से प्रवेश दिया गया एवं बड़े पैमाने पर अयोग्य लोगों की भर्तियाँ की गयी। इन प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितताओं के मामलों को १९९० के मध्य के बाद से सूचित किया गया था और पहली एफआईआर २००९ में दर्ज हुई। इसके लिए राज्य सरकार ने मामले की जाँच के लिए एक समिति कि स्थापना की।समिति ने २०११ में अपनी रिपोर्ट जारी की, और एक सौ से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था तथा कई अब भी फरार हैं।। व्यापम घोटाले की व्यापकता सन २०१३ में तब सामने आई जब इंदौर पुलिस ने २००९ की पीएमटी प्रवेश से जुड़े मामलों में २० नकली अभ्यर्थियों को गिरफ़्तार किया जो असली अभ्यर्थियों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। इन लोगों से पूछताछ के दौरान जगदीश सागर का नाम घोटाले के मुखिया के रूप में सामने आया जो एक संगठित रैकेट के माध्यम से इस घोटाले को अंजाम दे रहा था। जगदीश सागर की गिरफ़्तारी के बाद राज्य सरकार ने २६ अगस्त २०१३ को एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की स्थापना की और बाद की जाँच और गिरफ्तारियों से घोटाले में कई नेताओं, नौकरशाहों, व्यापम अधिकारियों, बिचौलियों, उम्मीदवारों और उनके माता-पिता की घोटाले में भागीदारी का पर्दाफाश हुआ। जून २०१५ तक २००० से अधिक लोगों को इस घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया जा चुका है जिस में राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और एक सौ से अधिक अन्य राजनेताओं को भी शामिल हैं। जुलाई २०१५ में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के प्रमुख जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले की जाँच स्थानांतरित करने के लिए एक आदेश जारी किया। अगर कांग्रेस पार्टी के बिचारों को प्राथमिकता दी जाए तो व्यापम घोटाले के दोषी लक्ष्मीकांत शर्मा और मुख्य रूप से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह हैं जिनमे से स्वसत्ता के चलते मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने व्यापम घोटाले को दवाने के लिए भोपाल में ही एक फर्जी एनकाउंटर करवा दिया व्यावसायिक परीक्षा मण्डल पर विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए और सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए प्रवेश के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धी परीक्षण के संचालन की जिम्मेदारी थी। व्यापम घोटाले में परीक्षा के उम्मीदवारों, सरकारी अधिकारियों, नेताओं और बिचौलियों के बीच मिलीभगत से अयोग्य उम्मीदवारों को रिश्वत के बदले परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करवाने में निम्नलिखित तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया: अयोग्य परीक्षार्थियों के स्थान पर मोटी रकम के बदले अन्य योग्य छात्रो/ डॉक्टर्स को (पूर्व चयनित शीर्ष उम्मीदवारों सहित) परीक्षा में उम्मीदवार के तौर पर परीक्षाएँ दिलवाई गयी जिस के लिए परीक्षा प्रवेश कार्ड पर असली परीक्षार्थी की तस्वीर नकली परीक्षार्थी की तस्वीर से बदल दी गयी तथा परीक्षा के बाद जिसे पुन: मूल रूप में में ले आया गया। यह कारनामा व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलीभगत में किया गया। अयोग्य उम्मीदवारों को नकली परीक्षार्थियों के साथ पूर्व निर्धारित स्थान पर इस तरह बैठाया जाता था कि नक़ल और कॉपियों / आंसर शीट्स की अदलाबदली आसानी से और बे-रोकटोक की जा सके. इस के लिए बिचौलियों के माध्यम से व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों मिलीभगत से नकली परीक्षार्थियों, अधिकारियों और बिचौलियों आदि को मोटी रकमों का भुगतान किया जाता। रिकॉर्ड और उत्तर पुस्तिकाओं में हेराफेरी अयोग्य उम्मीदवारों अपनी ओएमआर उत्तर पुस्तिका ख़ाली छोड़ देते थे अथवा सिर्फ वही उत्तर देते थे जिन के सही उत्तर बारे में वो निश्चित थे। किसी को शक न हो इसलिए व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से परीक्षा के बाद इन उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच लिए रती दर्ज़ की जाती थी और जाँच के नाम पर ख़ाली उत्तर पुस्तिकाओं सही उत्तर भर कर इन अयोग्य उम्मीदवारों को उच्च अंक दे दिए जाते थे। उत्तर कुंजी लीक करना व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों और बिचौलियों की मिलीभगत से अयोग्य उम्मीदवारों को परीक्षा से पहले ही उत्तर कुंजी उपलब्ध करवा दी जाती थी। घोटाले का ख़ुलासा व्यापम घोटाले में कदाचार के पहले मामले को १९९५ में सूचित किया गया था, और पहली एफआईआर छतरपुर जिले में २००० में दर्ज़ की गयी थी। २००४ में खंडवा जिले में सात और मामले दर्ज किए गए। हालांकि, कदाचार की ऐसी रिपोर्टों को संगठित घोटाला न मानकर स्वतंत्र एवं एकाकी मामलों के रूप में देखा गया। २००९ - ११: समिति द्वारा प्रारंभिक जांच मध्य प्रदेश के स्थानीय निधि लेखा परीक्षक कार्यालय द्वारा वर्ष २००७-०८ के लिए एक रिपोर्ट में कई वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं पाया गया जिस में आवेदन फॉर्मों का अनधिकृत निपटान शामिल था। ऐसा संदेह व्यक्त किया गया कि आवेदन प्रपत्रों को इसलिए नष्ट कर दिया जा रहा था ताकि परीक्षा के लिए कार्ड और अन्य अभिलेखों का आपस में मिलान न किया जा सके जिन के माध्यम से घोटाले को अंजाम दिया जा रहा था। वर्ष २००९ में प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में ताज़ा अनियमितताओं की नई शिकायतें सामने आयी। इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय घोटाले में जांच का अनुरोध करते हुए एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की। वर्ष २००९ में, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरोपों की जांच के लिए मेडिकल शिक्षा के संयुक्त निदेशक की अध्यक्षता में एक जाँच समिति का गठन किया। जुलाई २०११ में, प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) के दौरान १४५ संदिग्धों पर नजर रखी गयी। संदिग्धों में से अधिकांश उपस्थित नहीं हुए लेकिन ८ संदिग्ध अन्य लोगों के नाम से परीक्षा देते हुए पकड़े गए। इन में इंदौर में आशीष यादव के स्थान पर परीक्षा देने आया हुआ, कानपूर (उत्तर प्रदेश) निवासी सत्येन्द्र वर्मा भी शामिल था जिसे इस काम के लिए ४ लाख रु का भुगतान किया गया था। पूर्ववर्ती वर्षों में चयनित तथा अव्वलता सूची में शामिल १५ अभ्यर्थियों ने भी पुन: परीक्षा देने हेतु नामांकन करवाया था और ऐसा सन्देह है कि ये अयोग्य परीक्षार्थियों के साथ पूर्व निर्धारित स्थानों पर बैठ कर नकल कराने, उत्तर पुस्तिकाओं की अदला बदली करने अथवा नकली परीक्षार्थी बन कर अयोग्य उम्मीदवारों के स्थान पर परीक्षा देने में शामिल थे। इसी संदेह के आधार पर व्यापम द्वारा इन संदिग्धों से परीक्षा में पुन: शामिल होने का कारण बताने के लिए कहा गया। व्यापम द्वारा ढांचागत सुधार के अंतर्गत आगामी परीक्षाओं हेतु भी बायोमेट्रिक प्रौद्योगिकी का उपयोग शुरू किया गया है। परीक्षा में शामिल होने के लिए बायोमेट्रिक तकनीक से सभी परीक्षार्थियों की अंगूठे की छाप एवं फोटोग्राफ लिए जाते हैं तथा इनका मिलान परीक्षा के पश्चात परामर्श/ भर्ती हेतु आए छात्रों से किया जाने लगा है। चौहान द्वारा २००९ में गठित कमेटी ने नवंबर २०११ में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस में ये उल्लेख किया गया कि ११४ उम्मीदवार प्रतिरूपण कर के पीएमटी में चयनित हुए जिन में से अधिकतर अमीर परिवारों से थे। असली के स्थान पर शामिल नकली परीक्षार्थी उम्मीदवारों में कई उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पड़ोसी राज्यों से आए थे, जिनमें से कुछ डॉक्टर और प्रतिभाशाली मेडिकल छात्र थे। रिपोर्ट में बिचौलियों पर प्रत्येक चयनित उम्मीदवार से १०,०००,०० से ४०,०००,०० तक वसूलने के अनुमान लगाया गया। निष्कर्षों में यह चिंता भी जताई गयी कि घोटाले के माध्यम से पूर्व वर्षों में कई नकली डॉक्टरों स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और चिकित्सक के रूप में कई अयोग्य लोग कार्यरत हैं। निष्कर्षों में उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों के घोटाले में शामिल होने की की संभावना भी उल्लेख किया गया। २०१२ में इंदौर पुलिस ने पीएमटी परीक्षा में असली उम्मीदवारों के स्थान पर परीक्षा में शामिल होने आए चार लोगों को गिरफ्तार किया जिन में से प्रत्येक को रु २५,००० से ५०,००० तक की रकम देने का वादा किया गया था २०१३ मध्य प्रदेश पीएमटी परीक्षा व्यापम घोटाले की व्यापकता तब सामने आई जब ६-७ जुलाई २०१३ की दरमियानी रात को इंदौर पुलिस शहर के विभिन्न होटलों में से २० लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें १७ उत्तर प्रदेश से थे और जो ७ जुलाई २०१३ को निर्धारित पीएमटी परीक्षा में असली परीक्षार्थियों के बदले परीक्षा देने आए थे। इस काम के बदले इन्हें रु ५०,००० से रु १०,०००,०० तक की रकम के भुगतान का वादा किया गया था। इन २० नकली परीक्षार्थियों से पूछताछ के दौरान इस बात का ख़ुलासा हुआ कि इस पूरे घोटाले को संगठित रैकेट के रूप में चलाने वाले गिरोह का सरगना जगदीश सागर है। इन गिरफ्तारियों और रहस्योद्घाटनों के बाद डॉ आनंद राय ने स्थानीय पुलिस अधीक्षक (आर्थिक अपराध विंग) से विस्तृत जांच की मांग को लेकर एक शिकायत प्रस्तुत की जिस में उन्होंने व्यापम के अध्यक्ष, परीक्षा नियंत्रक, सहायक नियंत्रक और उप-नियंत्रक की भूमिका की जांच की मांग की। १३ जुलाई २०१३ को, जगदीश सागर को मुंबई में गिरफ्तार किया गया और उसके पास से ३१७ छात्रों के नामों की सूची जब्त की गयी। व्यापम का परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी जो उस समय तक घोटाले में संदिग्ध नहीं था, ने इन छात्रों को बचाने की कोशिश की। उसने विभिन्न सरकारी विभागों और मेडिकल कॉलेजों के डीन को एक पत्र भेजा जिस में उस ने आग्रह किया कि इन छात्रों को एक शपथपत्र के आधार पर प्रवेश की अनुमति दिए जाने का आगर किया। शपथपत्र में यह घोषणा थी कि छात्रों ने किन्ही भी भी अनुचित साधनों का उपयोग नहीं किया है और यदि वे पुलिस जांच में दोषी पाए गए तो उनके दाखिले रद्द कर दिया जाएगा। २८ सितंबर २०१३ को त्रिवेदी को भी जगदीश सागर की पूछताछ के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। ५ अक्टूबर को पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने जगदीश सागर सहित २८ लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया। दिसंबर २०१३ में एसटीएफ ने इंदौर जिला अदालत में ३४ आरोपियों के खिलाफ एक २३,००० पृष्ठ का पूरक आरोप पत्र प्रस्तुत किया। इन ३४ में से ३० छात्र और उनके अभिभावकों थे। चार अन्य लोगों के पंकज त्रिवेदी, डॉ संजीव शिल्पकार, डॉ जगदीश सागर और उस का साथी गंगाराम पिपलिया शामिल थे। अन्य परीक्षाओं की जांच नवंबर २०१३ में, एसटीएफ ने पाया कि घोटालेबाजों ने ५ अन्य परीक्षाओं और नौकरियों की चयन प्रक्रियाओं में धाँधली की जिस में राज्य सरकार के लिए २०१२ में आयोजित प्री-पीजी प्रवेश परीक्षा, खाद्य निरीक्षक चयन टेस्ट, मिल्क फेडरेशन परीक्षा, सूबेदार-उप निरीक्षक व प्लाटून कमांडर चयन टेस्ट और पुलिस कांस्टेबल भर्ती टेस्ट आदि शामिल थे। २०१२ की प्री-पीजी परीक्षा के लिए व्यापम के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ पंकज त्रिवेदी और इसकी प्रणाली विश्लेषक नितिन महिंद्रा फोटोकॉपी के माध्यम से अयोग्य उम्मीदवारों को मॉडल उत्तर कुंजी उपलब्ध कराई गई। अन्य चार परीक्षाओं के लिए व्यापम के भ्रष्ट अधिकारियों ने नियम विरुद्ध जाकर ओएमआर उत्तर पत्रको को स्ट्रांग रूम बाहर निकाला गया और उन में हेरफेर किया गया। इन प्रकरणों में सुधीर शर्मा सहित १५३ लोगों के खिलाफ अलग-अलग प्राथमिकी दायर की गयी। सुधीर शर्मा से पूर्व में भी मध्यप्रदेश के खनन घोटाले के सम्बन्ध में सीबीआई द्वारा पूछताछ की गई थी। मार्च २०१४ में सरकार ने एसटीएफ द्वारा नौ परीक्षाओं की हेराफेरी की जांच की घोषणा की और १२७ लोगों को गिरफ्तार किया गया। एसटीएफ द्वारा पूर्ववर्ती वर्षों में भी पीएमटी परीक्षा की जांच की गई और ये पाया की २८६ उम्मीदवारों ने धोखाधड़ी से पीएमटी २०१२ में प्रवेश प्राप्त किया। २९ अप्रैल २०१४ को इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के २७ छात्रों को पीएमटी-२०१२ में धोखाधड़ी से प्रवेश लेने के कारण निष्कासित कर दिया गया। जून २०१४ में उच्च न्यायालय ने पुलिस से पूछा कि इस मामले के कई आरोपी अब तक गिरफ्तार क्यूँ नहीं किये गए हैं? न्यायपालिका के दबाव के बाद एसटीएफ द्वारा कई गिरफ्तारियां की गयी। १५ जून २०१४ को एसटीएफ ने निविदा शिक्षकों की भर्ती घोटाले में कथित संलिप्तता के चलते राज्य के पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री और भाजपा नेता लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर लिया। १८ और १९ जून २०१४ को पुलिस ने पीएमटी घोटाले में भागीदारी के आरोप में राज्य के विभिन्न स्थानों से १०० से अधिक मेडिकल छात्रों को गिरफ्तार किया। सितम्बर २०१४ में एसटीएफ ने ख़ुलासा किया कि जगदीश सागर का रैकेट भारतीय स्टेट बैंक में भर्ती और अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए प्रवेश परीक्षा की धांधली में भी शामिल है। इन प्रवेश परीक्षाओं में बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान परीक्षा और भारतीय स्टेट बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर परीक्षा भी शामिल है। अनियमितताओं की प्रारंभिक जांच राज्य पुलिस की विभिन्न शहर इकाइयों द्वारा की गई। २००९-११ के दौरान राज्य सरकार द्वारा मेडिकल शिक्षा के संयुक्त निदेशक के नेतृत्व में स्थापित समिति ने पीएमटी परीक्षा में अनियमितताओं की जांच की। घोटाले में संगठित अपराध रैकेट और नेताओं की भूमिका प्रकाश में आने के बाद राज्य सरकार ने इस घोटाले की जांच के लिए २६ अगस्त २०१३ को पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्यों सहित कई कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भारत के उच्चतम न्यायालय की देखरेख में घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सुझाव पर विचार नहीं किया और सीबीआई जांच से इनकार कर दिया। ५ नवंबर २०१४ को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच के लिए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की याचिका को खारिज कर दिया। और प्रहरी के रूप में कार्य करने के लिए रिटायर्ड हाई कोर्ट जज चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया। घोटाला की जाँच एसटीएफ द्वारा एसआईटी की देखरेख में की गई। ७ जुलाई २०१५ को घोटाले से जुड़े संदिग्धों की लगातार होती मौतों पर विवाद के बाद मुख्यमंत्री श्री चौहान ने मीडिया को सूचित किया कि उन्होंने व्यापम घोटाले की जाँच सीबीआई को सौपें जाने के सम्बन्ध में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को अनुरोध पत्र प्रेषित किया है। उसी दिन विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने घोटाले में निष्पक्ष जांच हेतु चौहान के इस्तीफे की माँग की। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सीबीआई जाँच सम्बन्धी आवेदन को उच्चतम न्यायालय में इसी विषय पर लंबित याचिकाओं पर निर्णय के इंतजार में लंबित रखा। ९ जुलाई २०१५ को भारत सर्वोच्च न्यायालय में व्यापम घोटाले की जाँच सीबीआई को सौंपे जाने से सम्बंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार को जाँच सीबीआई को सौंपे जाने पर किसी भी प्रकार की आपति नहीं है जिस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने घोटाले से संबंधित आपराधिक मामलों तथा अन्य सभी मामलों जिन में घोटाले के संदिग्धों की मौतों का मामला भी शामिल है, को सीबीआई को स्थानांतरित करने का आदेश दिया हालांकि जांच की निगरानी प्रक्रिया की घोषणा नहीं की गई। जून २०१५ तक २००० से अधिक लोगों को इस घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया जा चुका था। राजनेताओं और नौकरशाहों पर आरोप लक्ष्मीकांत शर्मा, पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री (म.प्र.) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता लक्ष्मीकांत शर्मा राज्य के तकनीकी शिक्षा मंत्री और व्यापमं के प्रभारी थे। उनकी गिरफ्तारी नितिन महेन्द्रा से बरामाद एक्सेल शीट में उपलब्ध जानकारी के आधार पर निविदा शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोपी के रूप में हुई थी लेकिन बाद में उन्हें कांस्टेबल भर्ती परीक्षाओं में धाँधली का भी आरोपी बनाया गया। एसटीएफ के अनुसार शर्मा ने कांस्टेबल पद पर भर्ती के लिए कम से कम १५ उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश की।<रेफ></रेफ> चार दिनों के पुलिस रिमांड पर भेजे जाने के बाद जून २०१४ में शर्मा ने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया। शर्मा ने हालाँकि स्वयं को बेगुनाह बताते हुए घोटाले का दोष अपने अधीनस्थ अधिकारी ओपी शुक्ला पर मढ़ते हुए कहा कि उनकी अपनी बेटी दो बार पीएमटी देने के बाद विफल रही. ओ पी शुक्ला ओ पी शुक्ला, तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के साथ विशेष ड्यूटी अधिकारी (ओएसडी) के रूप में तैनात था लेकिन घोटाले के ख़ुलासे और जांच के रफ्तार पकड़ते ही वह भूमिगत हो गया. जांच टीम द्वारा उस की तलाश के लिए एक विशेष तलाश नोटिस जारी होने के दो महीने बाद उस ने आत्मसमर्पण कर दिया। उस पर कथित तौर से मेडिकल प्रवेश परीक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए उम्मीदवारों से ८५ लाख रुपए लेने का आरोप है. खनन व्यवसायी सुधीर शर्मा भी कभी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का स्पेशल ड्यूटी अधिकारी (ओएसडी) था। उस पर २०१२ के पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा घोटाले में लिप्तता का आरोप है। ख़ुलासे के शुरूआती दिनों में फरार रहने के बाद उस ने दिसंबर २०१३ में एसटीएफ के समक्ष आत्मसमर्पण किया। एसटीएफ ने उससे दो बार पूछताछ की लेकिन उसे समय पर उसे गिरफ्तार नहीं किया। जब एसटीएफ को उसके खिलाफ अभियोज्य प्रमाण मिले तो वाह फिर फरार हो गया। एसटीएफ ने उस की जानकारी के लिए ५००० का नकद इनाम की घोषणा की। उस ने २०१४ में अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और उसे एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। २०१०-१३ के दौरान शर्मा ने मध्य प्रदेश के पूर्व भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और उनके बेटों, कांग्रेस विधायक वीर सिंह भूरिया, बीजेपी की छात्र इकाई अभाविप (अब्व्प) के कई नेताओं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी सुरेश सोनी और कई नौकरशाहों सहित कई राजनेताओं को घोटाले से प्राप्त राशि वितरित की। लक्ष्मीकांत शर्मा इस रिश्वत के सबसे बड़े लाभार्थी था। उसे विभिन्न शिक्षण संस्थाओं से भी नियमित रूप से बड़ी धनराशि प्राप्त होती थी। आर.के. शिवहरे, निलंबित आईपीएस अधिकारी शिवहरे को व्यापम द्वारा आयोजित २०१२ की उपनिरीक्षक और प्लाटून कमांडर परीक्षा की भर्ती घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए दोषी माना जाता है। उस पर अपनी बेटी और दामाद को धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के माध्यम से मेडिकल परीक्षा में प्रवेश दिलाने का भी आरोप है। जांच एजेंसी ने जब उस के खिलाफ मामला दर्ज किया तब वह निलंबित था और गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गया। उस पर ३००० रु का ईनाम रखे जाने के बाद उसने २१ अप्रैल, २०१४ को आत्मसमर्पण कर दिया। रविकांत द्विवेदी, निलंबित संयुक्त आयुक्त (राजस्व) द्विवेदी को अनुचित साधनों के माध्यम से अपने बेटे का प्रवेश राज्य के एक नामचीन मेडिकल कॉलेज में करवाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और बाद में राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी शाखा ने उसके घर पर छापा मार कर ६०-७० करोड़ रु की आय से अधिक संपत्ति, गहने और नगदी जब्त की। रैकेट के मुख्य सूत्रधार व्यापम घोटाले में कई संगठित रैकेट शामिल हैं जिन्हें पीएमटी घोटाले के सूत्रधार के रूप में वर्णित किया गया है। ये गिरोह डॉ जगदीश सागर, डॉ संजीव शिल्पकार और संजय गुप्ता आदि के नेतृत्व में काम करते थे। पीएमटी-२०१३ के लिए डा सागर ने ३१७, शिल्पकार ने ९२ और संजय गुप्ता ने ४८ अयोग्य उम्मीदवारों के नाम प्रवेश हेतु दिए थे। नितिन महेन्द्रा ने अपने कंप्यूटर में इन उम्मीदवारों का विवरण दर्ज किया गया और बाद में इस सूची में नष्ट कर दिया था। इन उम्मीदवारों को रोल नंबर आवंटित करते समय, उन के आस पास के स्लॉट्स ख़ाली छोड़ दिए गए। ये रोल नंबर बाद में नकली उम्मीदवारों को आवंटित कर दिए गए। इन रोल नंबर्स का निर्धारण महेन्द्रा के घर पर किया जाता था और पेन ड्राइव के माध्यम से दफ्तर के कंप्यूटर में फीड कर दिया जाता था। इसके बाद महेन्द्रा, बिचौलियों को टेलीफोन के माध्यम से रोल नम्बर्स के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाता था। डॉ जगदीश सागर इंदौर निवासी जगदीश सागर ने अकेले १४० के करीब छात्रों को २००९-१२ के दौरान अवैध रूप से चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश दिलवाया। उस ने काफी हद तक उत्तर प्रदेश से नकली उम्मीदवारों की व्यवस्था की। वो कथित तौर पर १९९० के दशक रैकेट में शामिल रहा और इस माध्यम से उस ने काफी चल-अचल संपत्ति और धनराशि एकत्रित की। उसे २००३ में भी इसी प्रकार के आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था लेकिन रिहाई के बाद पुलिस ने उस पर कोई निगरानी नहीं रखी। डॉ संजीव शिल्पकार भोपाल निवासी शिल्पकार मेडिकल कॉलेज में जगदीश सागर के जूनियर था और उस ने जगदीश सागर से प्रभावित हो कर अपना ही रैकेट शुरू किया। पीएमटी २०१३ में उस ने ९२ अयोग्य उम्मीदवारों के चयन की सूची बनाई थी जिन में से ४५ उम्मीदवारों से उस ने रु ३ करोड़ की राशि प्राप्त की। इस राशि के माध्यम से शिल्पकार ने नितिन महिंद्रा, नकली उम्मीदवारों, बिचौलियों, दलालों सहित व्यापम के अधिकारियों को रिश्वत दी। जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद वो फरार हो गया जिसे बाद में एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किया गया। सुधीर राय, संतोष गुप्ता, तरंग शर्मा यह गिरोह कथित रूप से सागर के गिरोह की तुलना में बहुत बड़ा और अधिक संगठित था जो प्रति उम्मीदवार चयन के लिए २५ लाख से अधिक वसूलता था। इस गिरोह के तार कर्नाटक और महाराष्ट्र में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश से जुड़े होने के भी आरोप हैं। राय-गुप्ता रैकेट की शाखाएँ उज्जैन, शहडोल, सागर और रतलाम आदि कई शहरों में थी। राय उम्मीदवारों की व्यवस्था करता था और गुप्ता बिहार से उनके लिए नकली उम्मीदवार बुलवाता था। ऐसी संभावना है कि इस गिरोह ने ५०० से अधिक अयोग्य उम्मीदवारों को अवैध रूप से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिलवाया है। व्यापम के कर्मचारी पंकज त्रिवेदी, व्यापम परीक्षा नियंत्रक त्रिवेदी को सितंबर २०१३ में गिरफ्तार किया गया और में वर्तमान में वाह न्यायिक हिरासत में है। राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक पुलिस ने उसके कब्जे से करीब २.५ करोड़ रुपए और अज्ञात स्त्रोतों से जमा की कई बेनामी सम्पति जब्त की है जो उसकी आय से कई गुना अधिक है। इंदौर स्थित एक मेडिकल कॉलेज में भी उस की भागीदारी होने के साक्ष्य भी पाए गए हैं। जगदीश सागर के रैकेट का पर्दाफाश होने के बाद भी त्रिवेदी, सागर के ३१७ उम्मीदवारों को शपथ पत्र प्रस्तुत करने पर मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए अनुमति देने सम्बन्धी आदेश प्राप्त करने में कामयाब रहा. सीके मिश्रा, अधिकारी, व्यापम सीके मिश्रा ने स्वीकार किया कि वह डा सागर, संतोष गुप्ता और संजीव शिल्पकार के लिए २००९ से काम कर रहा था। २००९ में डा सागर ने उसे २० उम्मीदवारों के रोल नंबर इस प्रकार देने के लिए कहा ताकि वो एक निश्चित क्रम में ठीक एक दूसरे के पीछे आएं। इस कार्य के लिए डॉ सागर ने मिश्रा को प्रति छात्र ५०,००० रु यानी कुल १० लाख रु दिए। २०१० में डॉ सागर में ४० अभ्यर्थियों की सूची दी है और इस बार रुपये २० लाख का भुगतान किया गया। २०१२ में डॉ सागर ६० छात्रों के और शिल्पकार ने २० छात्रों के रोल नंबर निश्चित क्रम में निर्धारित करने को कहा और मिश्रा को दोनों से क्रमश: रु ३० लाख एवं १० लाख प्राप्त हुए। नितिन महेन्द्रा (प्रधान सिस्टम विश्लेषक) और अजय सेन (वरिष्ठ सिस्टम विश्लेषक) व्यापम प्रोग्रामर यशवंत पर्नेकर और क्लर्क युवराज हिंगवे ने अपने बयान में कहा कि महिंद्रा और सेन के कंप्यूटर व्यापम के मुख्य सर्वर के साथ जुड़े हुए नहीं थे। इन दोनों अधिकारियों की पहुँच व्यापम के डेटा संग्रहित करने वाले २५ अन्य कंप्यूटरों तक थी लेकिन इनके कंप्यूटर में डेटा किसी अन्य द्वारा नहीं देखा जा सकता था। इस का लाभ उठाकर ये दोनों अपनी मर्ज़ी से रोल नंबर और परीक्षा केन्द्र आवंटित करते थे। डॉ जी एस खनूजा १३ सितंबर २०१४ को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के इंदौर में स्थित अरबिंदो अस्पताल के सीओओ गिरफ्तार कर लिया। उनके पुत्र ने अनुचित साधनों के माध्यम से २०१२ की चिकित्सा परीक्षा में १२ वीं रैंक हासिल किया। मोहित चौधरी उत्तर प्रदेश का मूल निवासी है और व्यापम घोटाले में नाम आने से पूर्व वह एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर का छात्र था. इस के नाम का ख़ुलासा पीएमटी २०१३ में चयनित कुछ आरोपी छात्रों द्वारा किया गया था। इससे पहले २०१२ में इसे दिल्ली पुलिस द्वारा कुछ छात्रों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा में अवैध तरीके से प्रवेश में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। आरोप है कि इस ने प्रत्येक उम्मीदवार से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक सीट के लिए १५-१८ लाख रु लिए। परीक्षा के दौरान धोखाधड़ी के लिए वह उम्मीदवारों को शर्ट में सिले हुए ब्लू टूथ यंत्र, छोटे इयरफ़ोन और सिम कार्ड देता था। नरेन्द्र देव आजाद (जाटव) १९ फ़रवरी २०१५ को विशेष जांच दल (एसआईटी) ने इसे एमजीएम कॉलेज, इंदौर में २००९ में अमर सिंह मेधा को अवैध रूप से प्रवेश दिलाने में एक बिचौलिए के रूप में कार्य करने के आरोप में गिरफ्तार किया। डा विनोद भंडारी यह व्यापम घोटाले का मुख्य आरोपी है और इसे अवैध रूप से व्यापम अधिकारियों की मिलीभगत से मेडिकल प्रवेश पाने के लिए अयोग्य छात्रों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। घोटाले में नाम आने के बाद वाह मारीशस भाग गया और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत प्रदान किये जाने के बाद ही लौटा। अनिमेष आकाश सिंह इस पर दलाल के रूप में काम करते हुए पीएमटी में चार उम्मीदवारों की अवैध भर्ती करने का आरोप है। इस पर डॉ संजीव शिल्पकार के माध्यम से पीएमटी २०१३ में एक उम्मीदवार को अवैध रूप से भर्ती कराने का आरोप है. घोटाले में नाम आने के समय यह इंदौर के एमजीएम कॉलेज में एमबीबीएस के तीसरे वर्ष के छात्र था। सचेतक और सामजिक कार्यकर्ताओं को धमकियाँ इंदौर निवासी डॉ आनंद राय ने घोटाले की जाँच कराने के लिए एक जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने जान ने मारने और धमकाने के कॉल्स आने की रिपोर्ट दर्ज़ की है। उनके आरोप के अनुसार उन की हत्या के लिए कॉन्ट्रैक्ट किलर्स को काम दिया गया है। २०१३ में उन्होंने सुरक्षा दिए जाने को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया। उन्हें अपनी पुलिस सुरक्षा हेतु प्रतिमाह रु ५०,००० का भुगतान करने को कहा गया जब की उन का मासिक वेतन केवल ३८,००० था। २०१५ में उन्हें एक सुरक्षा गार्ड उपलब्ध करवाया गया। भाजपा के एक प्रवक्ता द्वारा डॉ राय को विपक्षी दल कांग्रेस का एक एजेंट निरुपित किया गया जिस का राय ने खंडन करते हुए बताया कि वो स्वयं सत्ताधारी बीजेपी के कार्यकर्त्ता रहे हैं और २००५ से २०१३ के बीच आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) जो भाजपा का मुख्य सांस्कृतिक संगठन है, के सक्रीय सदस्य भी रहे हैं। उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय में दमत घोटाले और एक निजी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के घोटाले की जांच के लिए याचिका भी दायर की है। जुलाई २०१५ में डॉ राय को इंदौर से धार जिले में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा उन्हें प्रताड़ित करने की मंशा से किया गया है क्यूँ की उन्होंने पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बीजेपी नेता विक्रम वर्मा के विरुद्ध सीबीआई में शिकायत दर्ज़ करवाई है। शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया है कि वर्मा ने अपनी बेटी का स्थानान्तरण ग़ाज़ियाबाद से गाँधी मेडिकल कॉलेज भोपाल करवाने में अपने प्रभाव का अनुचित इस्तेमाल किया है। ग्वालियर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी ने ८ लोगों के विरुद्ध शिकायत दर्ज़ करवाई थी जिन में से एक गुलाब सिंह किरार का बेटा शक्ति सिंह भी था। गौरतलब है कि किरार, मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का रिश्तेदार है। चतुर्वेदी ने राज्य के सभी कॉलेजों में एमबीबीएस में ५००० डॉक्टरों की प्रवेश और २००३-१३ के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की जांच के लिए सीबीआई के समक्ष याचिका दायर की थी। उन पर अपहरण के प्रयास समेत तीन हमले हो चुके हैं। उन का आरोप है कि शिकायत किये जाने के बाद भी राज्य की पुलिस उन्हें समुचित संरक्षण नहीं दे रही है। उनका यह भी आरोप है कि राज्य की पुलिस ने उन्हें सुरक्षा में बदले ५०,००० रु का भुगतान करने अथवा घर ही में रहने को कहा है। स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के साथ काम कर चुके पूर्व आईटी सलाहकार, प्रशांत पांडेय भी एक व्हिसलब्लोअर होने का दावा करते हैं। उन्हें २०१४ में एक व्यापम अभियुक्त को ब्लैकमेल करने के लिए टीम की जानकारी का उपयोग करने की कोशिश करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्होंने दावा किया कि जांचकर्ताओं सबूतो में छेड़छाड़ कर मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को बचाने का प्रयास कर रहे थे जिस का ख़ुलासा करने पर उन्हें प्रताड़ित करने के लिए गिरफ्तारी की कार्यवाही की गयी। पांडे ने दावा किया कि उनके पास बिना छेड़छाड़ की हुई एक एक्सेल शीट है जिस में कथित तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के घोटाले में शामिल होने के प्रमाण हैं। इसे उच्च न्यायालय द्वारा खारिज़ कर दिया गया था। मध्य प्रदेश पुलिस के इस एक्सेल शीट के एक भाग के रूप में जानकारी लीक करने के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। पांडे ने दिल्ली उच्च न्यायालय को याचिका दायर की जिस के तहत उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। पांडे के अनुसार अबतक घोटाले का केवल पांच प्रतिशत ही सामने आ पाया है। राज्यपाल और राजभवन के खिलाफ आरोप एसटीएफ को राज्य के राज्यपाल राम नरेश यादव के खिलाफ भी सबूत मिला है। २४ फ़रवरी २०१५ को यादव पर व्यापम वन रक्षक भर्ती परीक्षा में धांधली करने में आपराधिक षड्यंत्र रचने के लिए आरोप लगाया गया था। उनके पुत्र शैलेश पर निविदा शिक्षक भर्ती घोटाले में एक आरोप था। मार्च २०१५ में उसे रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया। राज्यपाल का अधिकारी विशेष कर्तव्य (ओस्ड) धनराज यादव घोटाले के सिलसिले में २०१३ में एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किया गया था। राज्यपाल ने उच्च न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया कि भारतीय संविधान प्रदत्त विशेषाधिकार के चलते राज्यपाल रहते हुए उन के विरुद्ध किसी अपराधिक प्रकरण की विवेचना नहीं की जा सकती। उच्च न्यायालय ने सहमति व्यक्त की और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी लेकिन उनके खिलाफ जांच जारी रखने का आदेश दिया। एसआईटी प्रमुख जांचकर्ताओं ने घोषित किया कि सितम्बर २०१६ में राज्यपाल यादव की सेवानिवृत्ति के बाद ही उन के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। तीन अधिवक्ताओं ने यादव को राज्यपाल के पद से हटाने की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की जिसे भारत के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू, न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की एक त्रिसदस्यीय पीठ ने सुनवाई योग्य मानते हुए स्वीकार करते हुए सुनवाई हेतु ९ जुलाई २०१५ की तारीख तय की। सुप्रीम कोर्ट ने ९ जुलाई २०१५ को सीबीआई को व्यापम घोटाले से जुड़े सभी मामलों एवं इस से जुड़े ३० से अधिक संदिग्धों की मौत की जाँच करने का आदेश दिया। मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप २०१४ में प्रशांत पांडे (उर्फ "श्री एक्स") जिन्हें एसटीएफ द्वारा एक आईटी सलाहकार के रूप में काम पर रखा गया था, को व्यापम अभियुक्त को ब्लैकमेल करने के लिए टीम की जानकारी का उपयोग करने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में पांडे ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से संपर्क किया और स्वयं को व्हिसलब्लोवर बताते हुए दावा किया कि इस घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संदिग्ध भूमिका को उजागर करने के कारण उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने जांच एजेंसियों पर आरोप लगाया कि नितिन महिंद्रा के कंप्यूटर से बरामाद घोटाले की हार्ड डिस्क से प्राप्त एक्सेल शीट की सामग्री के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ की थी। महिंद्रा ने इस एक्सेल शीट में उम्मीदवारों के नाम, उनके रोल नंबर आदि की जानकारी दर्ज़ कर रखी थी और इसी शीट की जानकारी के आधार पर सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पांडे ने आरोप लगाया कि जांचकर्ताओं ने इस एक्सेल शीट से मुख्यमंत्री चौहान सहित भाजपा और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं के नामों को हटाने का प्रयास किया गया एवं इस में कई बदलाव किये गए और नाम हटाए / संशोधित किये गए। पांडे ने यह भी दावा किया कि इस एक्सेल शीट की मूल प्रति (बिना छेडछाड की हुई) अब भी उनके पास है। इस के बाद दिग्विजय सिंह ने १५ पन्नो के शपथपत्र के माध्यम से जांचकर्ताओं पर मुख्यमंत्री को बचाने का आरोप लगाया। एसआईटी ने सिंह की शिकायत का संज्ञान लिया और फोरेंसिक विश्लेषण के लिए एक्सेल शीट के दोनों संस्करणों को फोरेंसिक प्रयोगशाला भेज दिया। फोरेंसिक प्रयोगशाला की रिपोर्ट के आधार पर सिंह द्वारा प्रस्तुत वाद को उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति खानवलकर द्वारा खारिज कर दिया गया। पांडे ने एक्सेल शीट के अपने संस्करण को सही बताते दावा किया कि उनका संस्करण असली और वास्तविक है जिसे देश की एक निजी और सम्माननीय फोरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा प्रामाणीकृत किया गया है। पांडे ने मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा उत्पीड़न का दावा करते हुए व्हिसलब्लोवर की रक्षा हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उन्होंने यह भी कहा कि इन दस्तावजों को वो पहले भाजपा के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित कर चुके हैं लेकिन किसी भी प्रतिक्रिया के आभाव में उन्होंने कांग्रेस नेताओं से इस विषय पर संपर्क किया। पांडे ने यह भी कहा की उन्हें भी जान का खतरा है और रसूखदार लोगों से उन्हें लगातार धमकियाँ मिल रही हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें फ़रवरी २०१५ में पुलिस सुरक्षा देये जाने सम्बन्धी आदेश पर सुरक्षा उपलब्ध करवाई गयी हालाँकि जून २०१५ में सुरक्षा हटा ली गयी। घोटाले से जुड़े कई संदिग्धों की जांच के दौरान कथित तौर पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। विपक्षी दलों और कार्यकर्ताओं को इन मौतों में कई मौतों को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु निरुपित किया। २०१५ में विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने घोटाले से जुड़े लोगों की मृत्यु को "अप्राकृतिक मानते हुए २३ मृतकों की सूची उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की और बताया कि अधिकाँश की मृत्यु जुलाई २०१३ कार्यबल के गठन से पूर्व हो गयी थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि घोटाले से जुड़े ४० से अधिक लोगों को रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई है। राज्य सरकार के मंत्री बाबूलाल गौर ने लगातार हो रही इन मौतों पर विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि रोज़ कई लोग मरते रहते हैं। व्हिसलब्लोवर्स आनंद राय के अनुसार, इन मौतों में से १० संदेहास्पद मौते हैं जब की अन्य को उन्होंने संयोग माना। उसके द्वारा संदिग्ध के रूप में होने वाली मौतों में अक्षय सिंह, नम्रता डामोर, नरेंद्र तोमर, डीके साकल्ले, अरुण शर्मा, राजेंद्र आर्य की मौत और चार बिचौलियों सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतें शामिल हैं। उच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल (एसआईटी) के अनुसार घोटाले में शामिल, २५-३० वर्ष आयुवर्ग के ३२ लोगों की २०१२ से अबतक संदिग्धों परिस्थितियों में मृत्यु हो चुकी थी। अरुण यादव ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि व्यापमं घोटाले की आवाज़ उठाने वालों पर फिर करवा रही शिवराज सरकार. सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं व्यापम घोटाले से जुड़े लोगों की रहस्यमय मौतों ने भारत भर में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गहरे कटाक्ष शुरू हो गए। लोगों ने इन मौतों की तुलना काल्पनिक सीरियल किलर डेक्सटर के शिकारों से की और इसे सत्ता का ख़ूनी खेल निरुपित किया। एक मृत अभियुक्त के परिवार के सदस्यों का साक्षात्कार लेने के तुरंत बाद एक पत्रकार अक्षय सिंह की असामयिक मौत ने इस घोटाले को रहस्यमयी अशुभ पनौती करार दिया और ये धारणा बनी कि इस घोटाले से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रहस्यमय असामयिक मृत्यु का कारण बन सकता है। भारत में घोटाले
माइकल वॉरेन यंग (जन्म २८ मार्च, १९४९) एक अमेरिकी जीवविज्ञानी और आनुवंशिकीविद है। १९४९ में जन्मे लोग
भारतीय जनता पार्टी (संक्षिप्त में, भा॰ज॰पा॰) भारत में एक राजनीतिक दल है, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ दो प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों में से एक है। २०१४ के बाद से, यह १४वें एवं वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तहत भारत में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल रहा है। भाजपा दक्षिणपन्थी राजनीति से जुड़ी हुई है, और इसकी नीतियों ने ऐतिहासिक रूप से एक पारंपरिक हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को प्रतिबिंबित किया है; इसके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ घनिष्ठ वैचारिक और संगठनात्मक संबंध हैं। १७ फरवरी २०२२ तक, यह भारतीय संसद के साथ-साथ विभिन्न राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामले में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। भाजपा का दावा है कि अक्टूबर २०२२ तक उसके १७0 मिलियन (१७ करोड़) से अधिक सदस्य हैं, और सदस्यों के संदर्भ में इसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी माना जाता है। भारतीय जनता पार्टी का मूल श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१(१९५१) में निर्मित भारतीय जनसंघ है। १९७७(१९७७) में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ अन्य दलों के साथ विलय हो गया। इससे १९७७ में पदस्थ कांग्रेस पार्टी को १९७७ के आम चुनावों में हराना सम्भव हुआ। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद १९८०(१९८०) में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और १९८४ के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।( इसका बड़ा कारण १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उनके बेटे राजीव गांधी को सहानुभूति की लहर थी) इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली। १९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार बनायी। इसके अलावा दिसम्बर २०१७ के अनुसार भारतीय जनता पार्टी भारत के २९ राज्यों में से १९ राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। भाजपा की कथित विचारधारा "एकात्म मानववाद" सर्वप्रथम १९६५ में दीनदयाल उपाध्याय ने दी थी। पार्टी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं। हालाँकि १९९८-२००४ की राजग सरकार ने किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही। कमल सन्देश भारतीय जनता पार्टी का मुखपत्र है। प्रभात झा इसके सम्पादक हैं और संजीव कुमार सिन्हा सहायक सम्पादक। जनसंघ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने प्रबल कांग्रेस के पार्टी के धर्मनिरपेक्ष राजनीति के प्रत्युत्तर में राष्ट्रवाद के समर्थन में १९५१ में की थी। इसे व्यापक रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर॰एस॰एस॰) की राजनीतिक शाखा के रूप में जाना जाता था, जो स्वैच्छिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवादी संघटन है और जिसका उद्देश्य भारतीय की "हिन्दू" सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना और कांग्रेस तथा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मुस्लिम और पाकिस्तान को लेकर तुष्टीकरण को रोकना था। जनसंघ का प्रथम अभियान जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय के लिए आंदोलन था। मुखर्जी को कश्मीर में प्रतिवाद का नेतृत्व नहीं करने के आदेश मिले थे। आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जिनका कुछ माह बाद दिल का दौरा पड़ने से जेल में ही निधन हो गया। संघटन का नेतृत्व दीनदयाल उपाध्याय को मिला और अंततः अगली पीढ़ी के नेताओं जैसे अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को मिला। हालाँकि, उपाध्याय सहित बड़े पैमाने पर पार्टी कार्यकर्ता आर॰एस॰एस॰ के समर्थक थे। कश्मीर आंदोलन के विरोध के बावजूद १९५२ में पहले लोकसभा चुनावों में जनसंघ को लोकसभा में तीन सीटें प्राप्त हुई। वो १९६७ तक संसद में अल्पमत में रहे। इस समय तक पार्टी कार्यसूची के मुख्य विषय सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाना और जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना थे। १९६७ में देशभर के विधानसभा चुनावों में पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और समाजवादियों सहित अन्य पार्टियों के साथ मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न हिन्दी भाषी राज्यों में गठबंधन सरकार बनाने में सफल रही। इससे बाद जनसंघ ने पहली बार राजनीतिक कार्यालय चिह्नित किया, यद्यपि यह गठबंधन में था। राजनीतिक गठबंधन के गुणधर्मों के कारण संघ के अधिक कट्टरपंथी कार्यसूची को ठण्डे बस्ते में डालना पड़ा। जनता पार्टी (१९७७-८०) १९७५ में प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। जनसंघ ने इसके विरूद्ध व्यापक विरोध आरम्भ कर दिया जिससे देशभर में इसके हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। १९७७ में आपातकाल ख़त्म हुआ और इसके बाद आम चुनाव हुये। इस चुनाव में जनसंघ का भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी के साथ विलय करके जनता पार्टी का निर्माण किया गया और इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी को हराना था। १९७७ के आम चुनाव में जनता पार्टी को विशाल सफलता मिली और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। उपाध्याय के १९७९ में निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेयी बने थे अतः उन्हें इस सरकार में विदेश मंत्रालय कार्यभार मिला। हालाँकि, विभिन्न दलों में शक्ति साझा करने को लेकर विवाद बढ़ने लगे और ढ़ाई वर्ष बाद देसाई को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। गठबंधन के एक कार्यकाल के बाद १९८० में आम चुनाव करवाये गये। भाजपा (१९८० से अबतक) स्थापना और आरम्भिक काल भारतीय जनता पार्टी १९८० में जनता पार्टी के विघटन के बाद नवनिर्मित पार्टियों में से एक थी। यद्यपि तकनीकी रूप से यह जनसंघ का ही दूसरा रूप था, इसके अधिकतर कार्यकर्ता इसके पूर्ववर्ती थे और वाजपेयी को इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि जनता सरकार के भीतर गुटीय युद्धों के बावजूद, इसके कार्यकाल में आर॰एस॰एस॰ के प्रभाव को बढ़ते हुये देखा गया जिसे १९८० के पूर्वार्द्ध की सांप्रदायिक हिंसा की एक लहर द्वारा चिह्नित किया जाता है। इस समर्थन के बावजूद, भाजपा ने शुरूआत में अपने पूर्ववर्ती हिन्दू राष्ट्रवाद का रुख किया इसका व्यापक प्रसार किया। उनकी यह रणनीति असफल रही और १९८४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटों से संतोष करना पड़ा। चुनावों से कुछ समय पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद भी काफी सुधार नहीं देखा गया और कांग्रेस रिकार्ड सीटों के साथ जीत गई। बाबरी ढाँचा विध्वंस और हिन्दुत्व आन्दोलन वाजपेयी के नेतृत्व वाली उदारवादी रणनीति अभियान के असफल होने के बाद पार्टी ने हिन्दुत्व और हिन्दू कट्टरवाद का पूर्ण कट्टरता के साथ पालन करने का निर्णय लिया। १९८४ में आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उनके नेतृत्व में भाजपा राम जन्मभूमि आंदोलन की राजनीतिक आवाज़ बनी। १९८० के दशक के पूर्वार्द्ध में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने अयोध्या में बाबरी ढांचा के स्थान पर हिन्दू देवता राम का मन्दिर निर्माण के उद्देश्य से एक अभियान की शुरूआत की थी। यहाँ मस्जिद का निर्माण मुग़ल बादशाह बाबर ने करवाया था और इसपर विवाद है कि पहले यहाँ मन्दिर था। आंदोलन का आधार यह था कि यह क्षेत्र रामजन्मभूमि है और यहाँ पर मस्जिद निर्माण के उद्देश्य से बाबर ने मन्दिर को ध्वस्त करवाया। भाजपा ने इस अभियान का समर्थन आरम्भ कर दिया और इसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाया। आंदोलन की ताकत के साथ भाजपा ने १९८९ के लोक सभा चुनावों ८६ सीटें प्राप्त की और समान विचारधारा वाली नेशनल फ़्रॉण्ट की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का महत्वपूर्ण समर्थन किया। सितम्बर १९९० में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए "रथ यात्रा" आरम्भ की। यात्रा के कारण होने वाले दंगो के कारण बिहार सरकार ने आडवाणी को गिरफ़तार कर लिया लेकिन कारसेवक और संघ परिवार कार्यकर्ता फिर भी अयोध्या पहुँच गये और बाबरी ढाँचे के विध्वंस के लिए हमला कर दिया। इसके परिणामस्वरूप अर्द्धसैनिक बलों के साथ घमासान लड़ाई हुई जिसमें कई कर सेवक मारे गये। भाजपा ने विश्वनाथ प्रतापसिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और एक नये चुनाव के लिए तैयार हो गई। इन चुनावों में भाजपा ने अपनी शक्ति को और बढ़ाया और १२० सीटों पर विजय प्राप्त की तथा उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। ६ दिसम्बर १९९२ को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इससे जुड़े संगठनों की रैली ने, जिसमें हजारों भाजपा और विहिप कार्यकर्ता भी शामिल थे ने मस्जिद क्षेत्र पर हमला कर दिया। पूर्णतः अस्पष्ट हालात में यह रैली एक उन्मादी हमले के रूप में विकसित हुई और बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ इसका अंत हुआ। इसके कई सप्ताह बाद देशभर में हिन्दू एवं मुस्लिमों में हिंसा भड़क उठी जिसमें २,००० से अधिक लोग मारे गये। विहिप को कुछ समय के लिए सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया और लालकृष्ण आडवाणी सहित विभिन्न भाजपा नेताओं को विध्वंस उत्तेजक भड़काऊ भाषण देने के कारण गिरफ़्तार किया गया। कई प्रमुख इतिहासकारों के अनुसार विध्वंस संघ परिवार के षडयंत्र का परिणाम था और यह महज एक स्फूर्त घटना नहीं थी। न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान द्वारा लिखित २००९ की एक रपट के अनुसार बाबरी मस्जिद विध्वंस में मुख्यतः भाजपा नेताओं सहित ६८ लोग जिम्मेदार पाये गये। इनमें वाजपेयी, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भी शामिल हैं। मस्जिद विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की रपट में कठोर आलोचना की गई है। उनपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ऐसे नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को अयोध्या में नियुक्त किया जो मस्जिद विध्वंस के समय चुप रहें। भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी और विध्वंस के दिन आडवाणी की तत्कालीन सचिव अंजु गुप्ता आयोग के सामने प्रमुख गवाह के रूप में आयी। उनके अनुसार आडवाणी और जोशी ने उत्तेजक भाषण दिये जिससे भीड़ के व्यवहार पर प्रबल प्रभाव पड़ा। १९९६ के संसदीय चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर केन्द्रित रही जिससे लोकसभा में १६१ सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलाई गई लेकिन वो लोकसभा में बहुमत पाने में असफल रहे और केवल १३ दिन बाद ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। राजग सरकार (१९९८-२००४) १९९६ में कुछ क्षेत्रिय दलों ने मिलकर सरकार गठित की लेकिन यह सामूहीकरण लघुकालिक रहा और अर्धकाल में ही १९९८ में चुनाव करवाने पड़े। भाजपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) नामक गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी जिसमें इसके पूर्ववरीत सहायक जैसे समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिव सेना शामिल थे और इसके साथ ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और बीजू जनता दल भी इसमें शामिल थी। इन क्षेत्रिय दलों में शिव सेना को छोड़कर भाजपा की विचारधारा किसी भी दल से नहीं मिलती थी; उदाहरण के लिए अमर्त्य सेन ने इसे "अनौपचारिक" (एड-हॉक) सामूहिकरण कहा था। बहरहाल, तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के बाहर से समर्थन के साथ राजग ने बहुमत प्राप्त किया और वाजपेयी पुनः प्रधानमन्त्री बने। हालाँकि, गठबंधन १९९९ में उस समय टूट गया जब अन्ना द्रमुक नेता जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया और इसके परिणामस्वरूप पुनः आम चुनाव हुये। १३ अक्टूबर १९९९ को भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बिना अन्ना द्रमुक के पूर्ण समर्थन मिला और संसद में ३०३ सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। भाजपा ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुये १८३ सीटों पर विजय प्राप्त की। वाजपेयी तीसरी बर प्रधानमन्त्री बने और आडवाणी उप-प्रधानमन्त्री तथा गृहमंत्री बने। इस भाजपा सरकार ने अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। यह सरकार वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही। २००१ में बंगारू लक्ष्मण भाजपा अध्यक्ष बने जिन्हें की घूस स्वीकार करते हुये दिखाया गया जिसमें उन्हें रक्षा मंत्रालय से सम्बंधित कुछ खरीददारी समझौतों की तहलका पत्रकार ने चित्रित किया। भाजपा ने उन्हें पद छोड़ने को मजबूर किया और उसके बाद उनपर मुकदमा भी चला। अप्रैल २०१२ में उन्हें चार वर्ष जेल की सजा सुनाई गई जिनका १ मार्च २०१४ को निधन हो गया। २००२ के गुजरात दंगे २७ फ़रवरी २००२ को हिन्दू तीर्थयात्रियों [कारसेवकों] को ले जा रही एक रेलगाडी को गोधरा कस्बे के बाहर मुस्लिमों द्वारा [[,आग लगा दी गयी। यह रेलगाड़ी अयोध्या से आ रही थी और इस बीभत्स कृत्य में ५९ लोग मारे गये। इस घटना को हिन्दुओं पर हमले के रूप में देखा गया और इसने गुजरात राज्य में भारी मात्रा में मुस्लिम-विरोधी हिंसा को जन्म दिया जो कई सप्ताह तक चली। कुछ अनुमानों के अनुसार इसमें मरने वालों की संख्या २००० तक पहुँच गई जबकि १५०,००० लोग विस्थापित हो गये। बलात्कार, अंगभंग और यातना के घटनायें बड़े पैमाने पर हुई। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य सरकार के उच्च-पदस्थ अधिकारियों पर हिंसा आरम्भ करने और इसे जारी रखने के आरोप लगे क्योंकि कुछ अधिकारियों ने कथित तौर पर दंगाइयों का निर्देशन किया और उन्हें मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची दी। अप्रैल २००९ में सर्वोच्य न्यायालय ने गुजरात दंगे मामले की जाँच करने और उसमें तेजी लाने के लिए एक विशेष जाँच दल (एस॰आई॰टी॰) घटित किया। सन् २०१२ में मोदी एस॰आई॰टी॰ ने मोदी को दंगों में लिप्त नहीं पाया लेकिन भाजपा विधायक माया कोडनानी दोषी पाया जो मोदी मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। कोडनानी को इसके लिए २८ वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई। पॉल ब्रास, मरथा नुस्सबौम और दीपांकर गुप्ता जैसे शोधार्थियों के अनुसार इन घटनाओं में राज्य सरकार की उच्च स्तर की मिलीभगत थी। २००४, २००९ के आम चुनावों में हार वाजपेयी ने २००४ में चुनाव समय से छः माह पहले ही करवाये। राजग का अभियान "इंडिया शाइनिंग" (उदय भारत) के नारे के साथ शुरू हुआ जिसमें राजग सरकार को देश में तेजी से आर्थिक बदलाव का श्रेय दिया गया। हालाँकि, राजग को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और लोकसभा में कांग्रेस के गठबंधन के २२२ सीटों के सामने केवल १८६ सीटों पर ही जीत मिली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के मुखिया के रूप में मनमोहन सिंह ने वाजपेयी का स्थान ग्रहण किया। राजग की असफलता का कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने में असफल होना और विभाजनकारी रणनीति को बताया गया। मई २००८ में भाजपा ने कर्नाटक राज्य चुनावों में जीत दर्ज की। यह प्रथम समय था जब पार्टी ने किसी दक्षिण भारतीय राज्य में चुनावी जीत दर्ज की हो। हालाँकि, इसने २०१३ में अगले विधानसभा चुनावों में इसे खो दिया। २००९ के आम चुनावों में इसकी लोकसभा में क्षमता घटते हुये ११६ सीटों तक सीमित रह गई। २०१४ के आम चुनावों में जीत २०१४ के आम चुनावों में भाजपा ने २८२ सीटों पर जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को ५४३ लोकसभा सीटों में से ३३६ सीटों पर जीत प्राप्त हुई। यह १९८४ के बाद पहली बार था कि भारतीय संसद में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला। भाजपा संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी को २६ मई २०१४ को भारत के १५वें प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलाई गयी। २०१९ के आम चुनावों में प्रचण्ड जीत २०१९ के आम चुनावों में भाजपा ने ३०३ सीटों पर प्रचण्द जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को ५४३ लोकसभा सीटों में से ३५२ सीटों पर जीत प्राप्त हुई। आम चुनावों में भारतीय जनाता पार्टी का निर्माण आधिकारिक रूप से १९८० में हुआ और इसके बाद प्रथम आम चुनाव १९८४ में हुये जिसमें पार्टी केवल दो लोकसभा सीटे जीत सकी। इसके बाद १९९६ के चुनावों तक आते-आते पार्टी पहली बार लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन इसके द्वारा बनायी गई सरकार कुछ ही समय तक चली। १९९८ और १९९९ के चुनावों में यह सबसे बड़े दल के रूप में रही और दोनो बार गठबंधन सरकार बनाई। २०१४ के चुनावों में संसद में अकेले पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। १९९१ के बाद भाजपा के बाद जब भी भाजपा सरकार में नहीं थी तब प्रमुख विपक्ष की भूमिका निभाई। विचारधारा और नीतियां भाजपा की आधिकारिक विचारधारा एकात्म मानववाद है। इसके अतिरिक्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी, और पार्टी के कई अन्य नेताओं ने गांधीवादी समाजवाद को पार्टी के लिए एक अवधारणा के रूप में स्वीकार किया था। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के अनुसार भगवा मतलब भाजपा नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के सूत्र पर काम करते हैं। स्थापना के बाद से भाजपा की आर्थिक नीतियाँ बहुत सीमा तक बदलती रहीं है। इस दल के अन्दर विभिन्न प्रकार की आर्थिक विचार देखने को मिलते हैं। १९८० के दशक में, अपने पितृ दल (भारतीय जनसंघ) की तरह इस दल के आर्थिक सोच में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों की आर्थिक सोच का प्रभाव था। भाजपा स्वदेशी तथा देशी उद्योगों को बचाने वाली व्यापार नीति की समर्थक थी। किन्तु भाजपा ने आन्तरिक उदारीकरण का समर्थन किया और राज्य द्वारा समर्थिक औद्योगीकरण का विरोध किया, जिसका कांग्रेस समर्थन करती थी। सुरक्षा एवं आतंकवाद-विरोधी नीतियाँ सुरक्षा एवं आतंकवाद के विरोध से सम्बन्धित भाजपा की नीतियाँ कांग्रेस की नीतियों से अधिक आक्रामक और राष्ट्रवादी हैं। ऐतिहासिक रूप से भाजपा की विदेश नीति, जनसंघ की ही भांति, अखंड हिन्दू राष्ट्रवाद पर आधारित रही है जिसमें आर्थिक संरक्षणवाद का मिश्रण है। भाजपा संगठन ठीक रूप से श्रेणीबद्ध है जिसमें अध्यक्ष पार्टी सर्वाधिकार रखता है। वर्ष २०१२ तक भाजपा संविधान में यह अनिवार्य किया गया कि कोई भी योग्य सदस्य तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तरीय अध्यक्ष बन सकता है। वर्ष २०१२ में यह संशोधन भी किया गया कि तीन वर्ष के लगातार अधिकतम दो कार्यकाल पूर्ण किये जा सकते हैं। अध्यक्ष के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी होगी जिसमें परिवर्तनीय मात्रा में कुछ देशभर से वरिष्ठ नेता होते हैं और यह कार्यकारिणी पार्टी की उच्च स्तर के निर्णय लेने की क्षमता रखती है। इसके सदस्यों में से कुछ उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष और सचिव होते हैं जो सीधे अध्यक्ष के साथ काम करते हैं। इसी के अनुरूप सरंचना अध्यक्ष के नेतृत्व वाली कार्यकारिणी राज्य, क्षेत्रिय, जिला और स्थानीय स्तर पर भी होगी। भाजपा विशाल ढांचे वाला दल है। इसके समान विचारधारा वाले अन्य संगठनों के साथ सम्बंध रहते हैं जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद। इसका समूहों का ढ़ाँचा भाजपा का पूरक हो सकता है और इसके सामान्य कार्यकर्ता आर॰एस॰एस॰ अथवा इससे जुड़े संगठनों से व्युत्पन्न अथवा शिथिलतः कहा जाये तो संघ परिवार से सम्बंध हो सकते हैं। भाजपा के अन्य सहयोगियों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) शामिल है जिसमें आरएसएस की छात्रा इकाई, भारतीय किसान संघ, उनकी किसान शाखा, भारतीय मजदूर संघ और आरएसएस से सम्बद्ध मज़दूर संघ भी शामिल हैं। भाजपा के अन्य सहायक संघठन भी हैं जैसे भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा इसका अल्पसंख्यक भाग है। अटल बिहारी वाजपेई- १९९९-२००४ प्रधानमन्त्रियों की सूची विभिन्न राज्यों में उपस्थिति दिसंबर २०१८ तक, १२ राज्यों में भाजपा के मुख्य मंत्री हैं: असम (असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ) गोवा (गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के साथ) हरियाणा ( जननायक जनता पार्टी के साथ ) झारखंड (ऑल् झारखंड स्टुडेन्ट युनियन् (आजसू) के साथ) महाराष्ट्र (शिवसेना के साथ) मणिपुर (नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपल्स पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ) चार अन्य राज्यों में, यह अन्य राजनीतिक दलों के साथ सत्ता में भागीदारी करता है इन सभी राज्यों में, बीजेपी सत्तारूढ़ गठबंधन में जूनियर सहयोगी है। राज्य हैं: बिहार (जनता दल (यूनाइटेड)(जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ) नागालैंड (नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ) मेघालय (नेशनल पीपल्स पार्टी के साथ) मिज़ोरम (मिज़ो नेशनल फ्रंट के साथ) पूर्व में, बीजेपी निम्नलिखित राज्यों में सत्ता में एकमात्र पार्टी रही है- यह निम्नलिखित राज्यों में सरकार का एक हिस्सा रहा है जैसा कि एक जूनियर सहयोगी पिछले गठबंधन सरकारों का हिस्सा है: ओडिशा (बीजू जनता दल के साथ) पुडुचेरी (अखिल भारतीय एन.आर। कांग्रेस के साथ) पंजाब (शिरोमणि अकाली दल के साथ) जम्मू और कश्मीर (जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ) निम्नलिखित राज्यों में भाजपा सरकार का हिस्सा कभी नहीं रही है: तेलंगाना (हालांकि, बीजेपी ने तेलंगाना क्षेत्र को आंध्र प्रदेश के रूप में शासन किया था और इसके सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी को राज्य के विभाजन के पहले) उत्तर-पूर्व में पूर्व-पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन नामक एक क्षेत्रीय राजनीतिक गठबंधन भी है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष दल के चुने हुए प्रमुख होते है। अध्यक्ष पद पर नियुक्ति दो सालों के लिए हुआ करती थी और लगातार दो सत्रों तक हो सकती थी। इस नियम को बदल कर अब ये तीन साल और लगातार दो सत्रोंतक हो चुकी है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में २०१४ में देश में प्रचंड विजय हासिल की और सरकार बनाने में सफल हुई। और दोबारा २०१९ में अमित शाह के नेतृत्व में सफलता पाई। इन्हें भी देखें भारत की राजनीति अखिल भारतीय जनसंघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सन्दर्भ एवं स्रोत भाजपा का आधिकारिक जालस्थल चुनाव आयोग की वैबसाईट पर पार्टी का आंतरिक संविधान भाजपा मित्र नामक संगठन का जालस्थल ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी हिन्दू विवेक केन्द्र भारत के राष्ट्रीय राजनीतिक दल
क्रिस्टोफर स्टीवर्ट मार्टिन (जन्म १० दिसंबर १९७४) न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी हैं। ये अपने समय में दाएं हाथ के तेज-मध्यम गेंदबाज तथा दाहिने हाथ से बल्लेबाजी किया करते थे जिन्होंने घरेलु क्रिकेट ऑकलैंड के लिए खेला है। ये ऐसे गेंदबाज है जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में रनों से ज्यादा विकेट लिए है। इन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर में ७१ टेस्ट मैच खेले जिसमें कुल २३३ विकेट लिए। जबकि २० वनडे मैचों में १८ सफलताएं अर्जित की। क्रिस मार्टिन ने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण १७ नवम्बर २००० को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ किया था और अंतिम मैच भी इसी टीम के खिलाफ २ जनवरी २०१३ को खेला था। वहीं वनडे कैरियर का आगाज २ जनवरी २००१ को ज़िम्बाब्वे के खिलाफ तथा अंतिम मैच २३ फरवरी २००८ को इंग्लैंड के खिलाफ खेला था। मार्टिन ने ६ ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय भी खेले जिसमें ७ विकेट लिए। न्यूज़ीलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी १९७४ में जन्मे लोग क्राइस्टचर्च के लोग दाहिने हाथ के गेंदबाज
९९एकर्त.कॉम २००५ में लाया गया था एक भारतीय रियल एस्टेट डेटाबेस वेबसाइट है।इसकी स्थापनासंजीव भिखचंदानी के द्वारा की गई है।इसका मुख्यालयनोएडा, उत्तर प्रदेश और बंगलौर, मुंबई, चेन्नई आदि जैसे शहरों में क्षेत्रीय कार्यालयोंमें है। वेबसाइट सभी भारतीय शहरों से बिल्डरों, व्यापारियों और संपत्ति मालिकों से संपत्ति लिस्टिंग की सुविधा देती है। इसवेबसाइट के कई वर्गों है। २०११ में, ९९एकर्त मोबाइल पर जमीन खोज का शुभारंभ किया। उपयोगकर्ताओं को जमीन के खोज के लिए सीधे मोबाइल के माध्यम से विज्ञापनदाताओं के साथ जुड़ सकते हैं। वेबसाइट की दिसंबर २०१३ और क्रमश: फ़रवरी २०१४ में एंड्रॉयड और आईओएस यूजर्स के लिए मोबाइल एप्प है।
ताइवानी आदिवासी (अंग्रेज़ी: ताइवानी अबोरिजीनेस, ताइवानीज़ अबोरिजीन्ज़; चीनी: , ताइवान युआनझूमिन) ताइवान के मूल निवासी हैं। वे एक ऑस्ट्रोनीशियाई समुदाय हैं और फ़िलिपीन्ज़, मलेशिया, इण्डोनेशिया, माडागास्कर तथा ओशिआनिया के अन्य ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ बोलने वाले समुदायों से अनुवांशिक (जेनेटिक) व भाषीय सम्बन्ध रखते हैं। ताइवानी आदिवासी चीन के हान चीनी लोगों से बिलकुल भिन्न हैं और इतिहासकारों का अनुमान है कि वे ताइवान पर पिछ्ले ८,००० वर्षों से बसे हुए हैं। इनकी मूल बोलियाँ फ़ोर्मोसी भाषाएँ कहलाती हैं। सन् २०१४ में ताइवान की सरकार ने इनकी कुल आबादी ५,३३,६०० अनुमानित की गई थी जो ताइवान की पूरी जनसंख्या का २.३% था। इन्हें भी देखें एशिया की मानव जातियाँ एशिया की प्राचीन जातियाँ ताइवान की मानव जातियाँ
निवाड़ी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, भारत में मध्यप्रदेश राज्य के २३० विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह नवगठित निवाड़ी ज़िला में आता है। २०२३ विधानसभा चुनाव २०१८ विधानसभा चुनाव २०१३ विधानसभा चुनाव २००८ विधानसभा चुनाव इन्हें भी देखें
अफगानिस्तान का ध्वज अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज ध्वज, अफगानिस्तान का ध्वज, अफगानिस्तान का
मोमल रानो या मूमल रानो (सिंधी: ) सिंधी तथा राजस्थानी लोककथाओं में मोमल और रानो की एक प्रेम-कथा है। अमरकोट के राजा हमीर सूमोरो अपने मंत्रियों:रानो महेंद्र, सेन्हारो धमाचन्नी और दौनरो भट्यान्नी के साथ अमरकोट के दूर-दराज के इलाकों में शिकार के लिए जाते थे और कभी-कभी साहसिक कार्य के लिए अपने छोटे से देश की सीमाओं को भी पार कर लेते थे। एक बार शिकार के दौरान इन चारों लोगों का सामना एक व्यक्ति से हुआ। उन्होंने उस साथी को यह नहीं बताया कि वे कौन थे और उन्होंने क्या किया। लेकिन साथी ने उन्हें उस कहानी में उलझा दिया जो पिछले दिनों उसके साथ हुई थी। वह कश्मीर के पास के एक क्षेत्र का राजकुमार था। उसने मोमल की सुंदरता और आकर्षण की कथा सुनी थी और उससे प्रेरित हुआ था। जब वह उस क्षेत्र में पहुँचा जहाँ मोमल रहती थी, तो वह न केवल उसकी मोहक सुंदरता से बल्कि उसकी दासियों/बहनों द्वारा चली गई चाल और योजनाओं से भी अभिभूत हुआ, जिन्होंने न केवल उस राजकुमार की संपत्ति और सामग्री को लूटा अपितु उसे भ्रमित भी किया। इतना ही नहीं उन्होंने उसे कई पहेलियों में इतना उलझा दिया कि वह अपनी जान बचाने और वहाँ से भागने के अलावा और कुछ नहीं कर सका। राजकुमार द्वारा बताई गई यह कहानी उन चार दोस्तों को दिग्भ्रमित करने के लिए काफी थी। उन्होंने राजकुमार से मोमल के ठिकाने के बारे में जानकारी ली और उसी साहसिक कार्य को जारी रखने का निर्णय लिया। मोमल-रानो की कहानी तथ्य और कल्पना का मिला-जुला स्वरूप है। कथा से संबंधित स्थानों के नाम वास्तविक हैं। दोनों सिंध और राजस्थान प्रांत की सीमाओं के भीतर हैं। हालाँकि किंवंदतियों में जादू की युक्ति, सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे रानो उमेरकोट से लोध्रूवा तक लगभग हर दिन इतनी तेजी से यात्रा करने में सक्षम थे। मोमल रानो की कहानी की तुलना ऑर्फियस की कथा से भी की गई है। यूनानी मिथक में सुंदर किंतु खतरनाक जीव सायरन अपनी करामाती आवाज़ों और संगीत से पास के नाविकों को लुभाते थे। और अपने जहाजों को अपने द्वीप एंथेमोएसा के चट्टानी तट पर बर्बाद करने के लिए उकसाते थे, नाविकों को लूटते और नष्ट करते थे। मोमल और रानो का प्रेम आत्मा और परमात्मा के प्रेम का स्वरूप माना जाता है।
बर्मा शोसलिस्ट प्रोग्राम पार्टी म्यांमार का एक मृत राजनीतिक दल है।
एक स्टोरेज एरिया नेटवर्क (सन) एक ढांचा है जो कि रिमोट कंप्यूटर उपकरणों (जैसे डिस्क सारिणी, टेप लाईब्रेरी तथा ऑप्टिकल ज्यूक बॉक्स) को सर्वर से इस ढंग से जोड़ता है कि सिस्टम स्थानीय ऑपरेटिंग सिस्टम से जुड़ा प्रतीत होता है। हालांकि सन की लागत और जटिलता कम हो रही है, लेकिन वे बड़े उद्यमों के बाहर सामान्य रूप से नहीं पाए जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से, डाटा केंद्र पहले "स्कसी डिस्क सारिणी को द्वीप बना कर प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए संग्रहण (दास) के रूप में बदलते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक एप्लीकेशन को समर्पित होता है और 'आभासी हार्ड ड्राइव' की एक संख्या (अथार्त लूंस) के रूप में दिखाई देता है। मूलतः, सन ऐसे संग्रहण द्वीपों को एक उच्च गति नेटवर्क का उपयोग कर के जोड़ता है। आपरेटिंग सिस्टम एक समर्पित बिना शेयरिंग के - लूंस का प्रयोग कर के अपना फाइल सिस्टम बनाते हैं जैसे कि वे स्थानीय रूप से स्वयं के लिए करते हैं। यदि एक से अधिक सिस्टम लूँ को शेयर करने का प्रयास करेंगे तो वे एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप करेंगे तथा डाटा खराब कर देंगे। लूँ पर कम्प्यूटरों के बीच डाटा शेयर करने की किसी भी योजना के लिए एक उन्नत समाधान की आवश्यकता है जैसे कि सन फाइल सिस्टम या क्लसटर्ड कम्प्यूटिंग/गणना. इन मुद्दों के बावजूद, सन संग्रहण क्षमता का उपयोग बढ़ाने में मदद करता है चूंकि एक से अधिक सर्वर अपने निजी संग्रहण स्थान को डिस्क सारिणी के रूप में इकठ्ठा करते हैं। सन के सामान्य उपयोगों में व्यवहारिक डाटा का प्रावधान भी है जिसके लिए हार्ड डिस्क तक उच्च गति ब्लॉक स्तर तक पहुँच आवश्यक है जैसे कि ईमेल सर्वर, डाटाबेस और अत्याधिक प्रयोग होने वाले फ़ाइल सर्वर. सन के विपरीत, नेटवर्क संलग्न संग्रहण(नस) फ़ाईल आधारित प्रोटोकॉल जैसे कि नस या सम्ब/सिफ्स का प्रयोग करता है जिसमे यह स्पष्ट है कि संग्रहण रिमोट स्थान पर है और कम्प्यूटर डिस्क ब्लाक के बजाए फ़ाईल कस एक हिस्से का अनुरोध करता है। हाल ही में, नस हेड्स ने सन संग्रहण का नस में रूपांतरण सरल बना दिया है। ह् नस और सन के बीच अंतर होने के बावजूद, ऐसे समाधान बनाना संभव है जिसमें दोनों तकनीकें शामिल हों, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। संग्रहण को शेयर करने से स्टोर प्रबंधन सरल और लचीला होता है क्योंकि एक सर्वर से दूसरे सर्वर पर संग्रहण स्थानांतरित करने के लिए तारों तथा संग्रहण उपकरणों के स्थान में परिवर्तन नहीं करना पड़ता. अन्य लाभों में सर्वर को सन से बूट करने की क्षमता शामिल है। इससे खराब सर्वर को तेजी तथा आसानी से बदला जा सकता है चूंकि सन को दोबारा व्यवस्थित किया जा सकता है अतः परिवर्तित सर्वर खरं सर्वर का लूँ उपयोग कर सकता है। इस प्रक्रिया में आधे घंटे का समय लगता है तथा नये डाटा केन्द्रों में तेजी से लागू किया जा रहा है। इसे सुविधाजनक बनाने तथा इस गति को और बढ़ाने के लिए कई उभरते हुए उत्पाद डिजाईन किये जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, ब्रोकेड, एक रिसोर्स मैनेजर नामक एक एप्लीकेशन प्रस्तुत करता है जिसमें स्वचालित ढंग से सर्वर को बूट ऑफ करने का प्रावधान है तथा जिसमें विशिष्ट मामले में लोड समय मिनट में मापा जाता है। यद्यपि प्रौद्योगिकी का यह क्षेत्र अभी नया है कई लोग इसे उद्यम डाटा केंद्र के भविष्य के रूप में देखते हैं। सन अत्याधिक प्रभावी ढंग से आपदा प्रबंधन प्रक्रिया को सक्षम करते हैं। सन एक अवधि में दूर स्थान पर स्थित दूसरी संग्रहण सारिणी तक पहुँच सकता है। यह संग्रहण में बदलाव को संभव बनाता है चाहे इसे डिस्क सारिणी नियंत्रक, सर्वर सोफ्टवेयर या विशेषज्ञ सन उपकरण द्वारा कार्यान्वित किया जाये. चूंकि लम्बी दूरी के संचार के लिए इप वन सबसे सस्ती विधि है, अतः इप (फ्सिप) और इस्कसी प्रोटोकॉल को फाइबर चैनल पर विकसित किया गया ताकि इप नेटवर्क पर सन का विस्तार हो सके। पारंपरिक भौतिक स्कसी परत केवल कुछ ही मीटर की दूरी पर काम कर सकती थी जो एक आपदा में कारोबार बरकरार रखने के लिए पर्याप्त नहीं था। संयुक्त राज्य अमेरिका में ११ सितम्बर के हमले के बाद इस सन एप्लीकेशन की मांग नाटकीय रूप से बढ़ गयी है और सर्बानेस ओक्स्ले और समान कानून से जुड़े विनियामक बनाने की मांग तेजी से बढ़ रही है। डिस्क सारिणियों के आर्थिक जुड़ाव ने कई सुविधाओं के विकास को त्वरित किया है जिसमें ई/ओ कैशिंग, स्नैपशौटिंग और वॉल्यूम क्लोनिंग (बिजनेस कोंटीन्युअंस वोल्यूम अथवा बैस) शामिल हैं। नेटवर्क के प्रकार ज्यादातर संग्रहण नेटवर्क सर्वर तथा डिस्क ड्राइव उपकरणों के बीच संचार के लिए स्कसी प्रोटोकॉल का प्रयोग करते हैं। वे भौतिक निम्न स्तर के स्कसी का प्रयोग नहीं करते, इसके बजाए नये संग्रहण नेटवर्क इस्कसी का प्रयोग करते हैं। नेटवर्क बनाने के लिए अन्य निम्न स्तर प्रोटोकॉल के लिए एक मैपिंग परत का प्रयोग किया जाता है: ईथरनेट (आओए) पर आता, ईथरनेट पर आता की मैपिंग फाइबर चैनल प्रोटोकॉल (फप), फाइबर चैनल पर स्कसी की मैपिंग के लिए सबसे प्रमुख है ईथरनेट फ़्कोए पर फाइबर चैनल फ़्क पर फिकन की मैपिंग, इसका उपयोग मेनफ्रेम कंप्यूटर द्वारा किया जाता है इस्कसी, टीसीपी / आईपी पर स्कसी की मैपिंग सन अक्सर एक फाइबर चैनल फैब्रिक टोपोलॉजी का उपयोग करता है - जो संग्रहण सम्बंधित संचार के लिए एक विशेष रूप से तैयार किया गया बुनियादी ढांचा है। यह नस में प्रयुक्त उच्च स्तर प्रोटोकॉल की अपेक्षा अधिक तेज तथा विश्वसनीय पहुँच प्रदान करता है। कपड़ा लोकल एरिया नेटवर्क में प्रयुक्त होने वाले नेटवर्क सेगमेंट के समान होता है। एक विशेष फाइबर चैनल सन कपड़ा कई फाइबर चैनल स्विचों की संख्या से मिल कर बनता है। आजकल, सभी प्रमुख सन उपकरण बेचने वाले भी फाइबर चैनल रूटिंग समाधान के कुछ प्रकार प्रस्तुत कर रहे हैं और ये समाधान डाटा को कपड़े की विभिन्न परतों में बिना मिलाये, गुजरने की अनुमति दे कर सन को अत्यधिक लाभदायक बना रहे हैं। ये समाधान मूल प्रोटोकॉल तत्त्वों का प्रयोग करते हैं तथा उच्च स्तर पर प्रदर्शित ढांचे बिल्कुल भिन्न हैं। वे अक्सर आईपी या सोनेट/स्ध पर फाइबर चैनल ट्रैफिक की मैपिंग को सक्षम बनाते हैं। सन फाइबर चैनल के साथ शुरूआती समस्याओं में एक समस्या यह थी कि विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित स्विच और अन्य हार्डवेयर पूरी तरह से अनुकूल नहीं थे। यद्यपि मूल संग्रहण प्रोटोकॉल फप हमेशा ही काफी अच्छी गुणवत्ता के थे, उच्च स्तर के कुछ प्रोग्रामों ने अच्छी तरह से काम नहीं किया। इसी तरह, कई होस्ट ऑपरेटिंग सिस्टम दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ एक ही कपड़े के बंटवारे पर खराब प्रतिक्रिया करेंगे। मानकों को अंतिम रूप देने से पहले कई समाधान बाज़ार में उतारे गये और इसके बाद विक्रेताओं ने कई मानकों का अविष्कार किया है। घरेलू स्तर पर सन बड़ी डिस्क सारिणियों का नेटवर्क होने के कारण सन का मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर, उच्च प्रदर्शन वाले उद्यमों में संग्रहण के कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। सन उपकरण अपेक्षाकृत महंगा है और इतने फाइबर चैनल होस्ट बस अडाप्टर डेस्कटॉप कंप्यूटर में दुर्लभ हैं। इस्कसी सन प्रौद्योगिकी के द्वारा अंततः सस्ते सन उत्पादन की उम्मीदें हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग उद्यम डाटा केंद्र के बाहर किया जाएगा. डेस्कटॉप ग्राहकों द्वारा नस प्रोटोकॉल जैसे कि सम्ब तथा नस का प्रयोग जारी रखने की उम्मीद की जाती है। इसका अपवाद रिमोट संग्रहण प्रतिकृति को माना जा सकता है। मीडिया और मनोरंजन में सन वीडियो संपादन कार्य समूहों में अत्यधिक डाटा स्थानान्तरण दर की आवश्यकता होती है। उद्यम बाजार के बाहर, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सन से अत्यधिक लाभ मिला है। प्रति नोड बैंडविड्थ के उपयोग पर नियंत्रण, जिसे कभी कभी सेवा की गुणवत्ता(कोस) के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है, वीडियो कार्य समूहों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर अपर्याप्त खुली बैंडविड्थ हो तो यह पूरे नेटवर्क में साफ़ और प्राथमिकता के आधार पर बैंडविड्थ का उपयोग सुनिश्चित करता है। एविड यूनिटी, एप्पल का ज़्सन और टाइगर प्रौद्योगिकी मेटासन विशेष रूप से वीडियो नेटवर्क के लिए डिजाइन किए हैं और यह सुविधा प्रदान करते हैं। संग्रहण का आभासीकरण एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें तार्किक संग्रहण को भौतिक संग्रहण से अलग किया जाता है, संग्रहण आभासीकरण कहते हैं। भौतिक संग्रहण संसाधनों को संग्रहण पूल में एकत्रित किया जाता है, जिससे तार्किक संग्रहण बनाया गया है। यह उपयोगकर्ता के डाटा के भंडारण के लिए एक तार्किक जगह प्रदान करती है और वास्तविक भौतिक स्थान पर मैपिंग की प्रक्रिया को पारदर्शी ढंग से सम्भालती है। इसका उपयोग विक्रेता के स्वामित्व वाले समाधान का उपयोग कर के आधुनिक डिस्क सारीणियों में किया जाता है। हालांकि, इसका लक्ष्य विभिन्न विक्रेताओं के नेटवर्क पर बिखरी हुई कई डिस्क सारिणियों को एक एकाकी संग्रहण उपकरण में आभासी रूप से इकठ्ठा करना है जिसका प्रबंधन समान रूप से किया जा सके। इन्हें भी देखें ईथरनेट पर फाइबर चैनल फ़ाइल एरिया नेटवर्क सन नेटवर्क प्रबंधन प्रणालियों और संग्रहण संसाधन प्रबंधन (सर्म) की सूची नेटवर्क संग्रहण हार्डवेयर प्लेटफॉर्म की सूची निष्क्रिय डिस्क की विशाल सारिणी नेटवर्क संलग्न संग्रहण स्वतंत्र डिस्क की निरर्थक सारिणी (रेड) स्मी-स - संग्रहण प्रबंधन विशिष्टता की पहल र्डमा के लिए इस्कसी एक्सटेंशन्स संग्रहण एरिया नेटवर्क का परिचय - सन, आईबीएम रैडबुक का संपूर्ण परिचय सन बनाम दास : उद्यम में संग्रहण की लागत का विश्लेषण लोकल एरिया नेटवर्क
खटिकयाना (खतीक्याना) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी शहर का एक मुहल्ला है। प्रशासनिक रूप से यह झाँसी ज़िले में स्थित है। यहाँ हर वर्ष काली माँ का विसर्जन आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्याँ में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इन्हें भी देखें
जयदेवपुर, हल्द्वानी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा जयदेवपुर, हल्द्वानी तहसील जयदेवपुर, हल्द्वानी तहसील
जैविक युद्ध (बायोलॉजिकल वरफरे) अथवा कीटाणु युद्ध (जर्म वरफरे) किसी युद्ध में किसी व्यक्ति, पशु अथवा पौधे को मारने के उद्देश्य से उसके उसमें जीवाणु, विषाणु अथवा फफूंद जैसे जैविक आविष अथवा संक्रमणकारी तत्वों का उपयोग करना कहलाता है। परम्परागत अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी विधियों एवं कई अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों द्वारा जैविक हथियारों का प्रयोग प्रतिबन्धित है सशस्त्र-संघर्ष के दौरान जैविक हथियारों का इस्तेमाल युद्ध-अपराध की श्रेणी में आता है। प्रथागत अन्तरराष्ट्रीय मानवीय कानून और कई अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों के तहत आक्रामक जैविक युद्ध निषिद्ध है। विशेष रूप से, १९७२ जैविक हथियार सम्मेलन जैविक हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, हस्तान्तरण, भण्डारण और उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है। इसलिए, सशस्त्र संघर्ष में जैविक एजेण्टों का उपयोग एक युद्ध अपराध है। इसके विपरीत, बीडब्ल्यूसी द्वारा रोगनिरोधी, सुरक्षात्मक या अन्य शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए रक्षात्मक जैविक अनुसन्धान निषिद्ध नहीं है। इन्हें भी देखें जैविक हथियार और अन्तर्राष्ट्रीय मानवतावादी विधि, आई॰सी॰आर॰सी॰। जैविक और रासायनिक हथियारों के स्वाथ्य सम्बन्धी पहलू: विश्व स्वास्थ्य संगठन अमेरिकी सेना की वेबसाइट पर
अनर्सा, बागेश्वर (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा अनर्सा, बागेश्वर (सदर) तहसील अनर्सा, बागेश्वर (सदर) तहसील अनर्सा, बागेश्वर (सदर) तहसील
स्वात एक पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त का एक जिला एवं सुन्दर घाटी है। यह इस्लामाबाद से १६० किमी की दूरी पर स्थित है। सैदू शरीफ यहाँ की राजधानी है किन्तु मिंगोरा यहाँ का मुख्य नगर है। इस घाटी की सुन्दरता को देखते हुए इसे पाकिस्तान का "स्विटजरलैण्ड" भी कहा जाता है। दिसम्बर २००८ में इसके अधिकांश भाग पर तालिबान का कब्जा हो गया। उसके बाद तालिबानों के दबाव में आकर पाकिस्तान सरकार को यहाँ शरीयत लागू करने की मांग माननी पड़ी। इस समय पर्यटन के लिये ययाँ जाना बहुत खतरनाक है। श्रीलंका के बौद्धों ने स्वात घाटी को बताया बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थान स्वात घाटी का अप्रतिम सौंदर्य ; कश्मीर जैसी स्वर्ग-तुल्य स्वात घाटी (वेबदुनिया) ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के ज़िले
गंगा नदी में होने वाला प्रदूषण पिछले कई सालों से भारतीय सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस नदी उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की सबसे मजबूत आधार है। उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर और उद्योग करोड़ों लोगों की श्रद्धा की आधार गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं और यही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो रहे हैं। प्रदूषण का कारण ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारख़ाने लगे हैं। कानपुर का जाजमऊ इलाक़ा अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है। यहाँ तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर, वहाँ खड़े होकर साँस तक नहीं ली जा सकती। गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने १९८५ में गंगा के किनारे लगे कारख़ानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। फिर सरकार ने गंगा सफ़ाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई। गंगा एक्शन प्लान अप्रैल १९८५ में गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई और बीस सालों में इस पर १२०० करोड़ रुपये खर्च हुए। इस योजना की बदौलत गंगा के किनारे बसे शहरों और कारख़ानों में गंदे और जहरीले पानी को साफ़ करने के प्लांट लगाए गए। इनसे गंगा के पानी में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ लेकिन गंगा में गंदगी का गिरना बदस्तूर जारी रहा। अंत में यह समझा गया कि गंगा एक्शन प्लान असफल हो गया। इस प्लान की सबसे बड़ी ख़ामी शायद ये थी कि उसमें गंगा के बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। गंगा में ग्लेशियरों और झरनों से आने वाले पानी को तो कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है। ज़मीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था लेकिन नंगे पहाड़ों से कट कर आने वाली मिट्टी ने गंगा की गहराई कम करके अब इस स्रोत को भी बंद कर दिया है। बनारस के 'स्वच्छ गंगा अभियान' के संचालक प्रोफ़ेसर वीरभद्र मिश्र इस बारे में चिंतित हैं और बताते हैं कि गंगा पर कितना दबाव है। उन्होंने कहा कि गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है। इसलिए उस पर दबाव भी ज़्यादा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले हिमालय के ग्लेशियरों को बचाना होगा। ब्रह्म-द्रव गंगा का पराभव! भ्रष्टाचार मुक्त भारत की संकल्पना की ही तर्ज पर ब्रह्म-द्रव गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए वर्षों से अकूत संपदा एक्शन प्लान के रूप में बहायी जाती रही है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। गंगा ही नहीं, सभी नदियों की बदहाली है। लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का कालिया मर्दन प्रसंग ही एकमात्र ऐसा एक्शन प्लान है जो जहरीले नद-जगत् को विष हीन अर्थात् प्रदूषण मुक्त कर सकता है। कालिया नाग प्रदूषण का प्रतीक है, जिसके असंख्य फन नाले, नालियों, सीवर लाइनें, फैक्ट्रियों की विषाक्त गंदगी आदि के प्रतीक हैं। इन फनों को कुचलने का तात्पर्य है विषाक्त स्रोतों को रोक देना। सवाल उठता है कि जब नाले नालियां जाम कर दी जायेंगी तो गंदा पानी घरों में जायेगा, हालात खराब होंगे, ऐसा नहीं है। समस्या जब पैदा होती है तब समाधान भी ढूंढा जाता है। जल शुष्क संयंत्र यानी सोख्ते बनाकर इसका निस्तारण किया जा सकता है। स्वच्छ गंगा अभियान स्वच्छ गंगा अभियान वाराणसी तथा समीपवर्ती स्थानों में गंगा को साफ़ करने के लिए एक सस्ता और सुरक्षित तरीका है। यह तरीका बिजली पर निर्भर नहीं है। इसमें कूड़े-करकट को गुरुत्वाकर्षण का सहारा लेकर एक बड़े कुंड में जमा कर लिया जाता है जहाँ जैविक तरीके से इसकी सफ़ाई होती है। कूड़े में से कीटनाशक, लोहा-लक्कड़ और दूसरे प्रदूषकों को हटा दिया जाता है। अमरीका में नदियों की सफ़ाई इसी तरीके से होती है। इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया।प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया। इसके बाद उन्होंने जुलाई २०१४ में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की। इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित ४८ औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया।
मस्मोली, डीडीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मस्मोली, डीडीहाट तहसील मस्मोली, डीडीहाट तहसील
कन्दीसा भारतीय रॉक बैंड, इंडियन ओशॅन की तीसरी एल्बम है। सात गीतों वाली यह एल्बम मार्च २००० में रिलीस की गई थी, और इसने इंडियन ओशॅन को भारत के सबसे वास्तविक और रचनात्मक बैंडों में से एक की पहचान दिलाई, और यह आगे चलकर किसी भी भारतीय बैंड की सर्वाधिक बिकने वाली एल्बम बनी। इस एल्बम के दो गीत, "मा रेवा" और "कन्दीसा" रोलिंग स्टोन की २०१४ की "२५ सर्वश्रेष्ठ भारतीय रॉक गीत" सूची में शामिल किये गए थे। १९९७ में डेजर्ट रेन की रिलीस के बाद इंडियन ओशॅन समूचे भारत में घूम-घूम कर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा था। १९९८ में बैंड को टाइम्स म्यूजिक द्वारा साइन कर लिया गया। इसके कुछ समय बाद इंडियन ओशॅन ने खजुराहो में राष्ट्रपति के आर नारायणन की उपस्थिति में एक शो किया, जिसे काफी सराहा गया। इस शो तथा इससे पहले सड़कों पर गाये उनके गीतों को ही उन्होंने कन्दीसा एल्बम में प्रयोग किया। एल्बम की रिकॉर्डिंग मुम्बई के वेस्टर्न आउटडोर स्टूडियो में हुई थी। इन गीतों को रिकॉर्ड करने में उन्हें कुल २ सप्ताह लगे, और फिर अगले ५ दिन मिक्स करने में। इंडियन ओशॅन के सदस्यों के अनुसार यह उनकी पहली 'वास्तविक' स्टूडियो एल्बम थी, क्योंकि इसमें उन्होंने पहली बार किसी म्यूजिक प्रोड्यूसर की सहायता ली थी। एल्बम का शीर्षक गीत "कन्दीसा" आरामाईक-सीरियाई भाषा मे है, जो केरल में सेंट थॉमस ईसाइयों द्वारा बोली जाती है। इसके अतिरिक्त "कौन" गीत में कश्मीरी भाषा का प्रयोग है, जिन्हें ड्रमर अमित किलम की माता, इंदिरा किलम ने लिखा था। कन्दीसा इंडियन ओशॅन के आधिकारिक जालस्थल पर कन्दीसा आईट्यून्स पर इंडियन ओशॅन की एल्बमें
मुंबई मेल २३२१ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:हह) से १०:००प्म बजे छूटती है और मुंबई छ. शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:कस्टम) पर ११:२५आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३७ घंटे २५ मिनट। भारत में मेल रेलगाड़ियां
अष्टाङ्गहृदयम्, आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके रचयिता महर्षि वाग्भट हैं। इसका रचनाकाल ५०० ईसापूर्व से लेकर २५० ईसापूर्व तक अनुमानित है। इस ग्रन्थ में औषधि (मेडिसिन) और शल्यचिकित्सा दोनो का समावेश है। यह एक संग्रह ग्रन्थ है, जिसमें चरक, सुश्रुत, अष्टांगसंग्रह तथा अन्य अनेक प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रन्थों से उद्धरण लिये गये हैं। वाग्भट ने अपने विवेक से अनेक प्रसंगोचित विषयों का प्रस्तुत ग्रन्थ में समावेश किया है। चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टाङ्गहृदयम् को सम्मिलित रूप से वृहत्त्रयी कहते हैं। अपनी विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। अष्टांगहृदय में आयुर्वेद के सम्पूर्ण विषय- कायचिकित्सा, शल्यचिकित्सा, शालाक्य आदि आठों अंगों का वर्णन है। उन्होंने अपने ग्रन्थ के विषय में स्वयं ही कहा है कि, यह ग्रन्थ शरीर रूपी आयुर्वेद के हृदय के समान है। जैसे- शरीर में हृदय की प्रधानता है, उसी प्रकार आयुर्वेद वाङ्मय में अष्टांगहृदय, हृदय के समान है। तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतरोच्चयः । क्रियतेऽष्टाङ्गहृदयं नातिसङ्क्षेपविस्तरम् ॥'' -- अष्टाङ्गहृदयम - ४ (अर्थ: इधर-उधर (प्रकीर्ण) विक्षिप्त उन प्राचीन तन्त्रों में से उत्तम से उत्तम (सार) भाग को लेकर यह संग्रह किया गया है। इस संग्रह ग्रंथ का नाम अष्टांगहृदय है। इसमें वर्णित विषय न अत्यन्त संक्षेप से और न अत्यन्त विस्तार से कहे गये हैं।) अष्टांगहृदय में ६ खण्ड, १२० अध्याय एवं कुल 7१२० श्लोक हैं। अष्टांगहृदय के छः खण्डों के नाम निम्नलिखित हैं- १) सूत्रस्थान (३० अध्याय) २) शारीरस्थान (६ अध्याय) ३) निदानस्थान (१६ अध्याय) ४) चिकित्सास्थान (२२ अध्याय) ५) कल्पस्थान (६ अध्याय) ६) उत्तरस्थान (४० अध्याय) (०१) आयुष्कामीयः (०२) दिनचर्या (०३) ऋतुचर्या (०४) रोगानुत्पादनीयः (०५) द्रवद्रव्यविज्ञानीयः (०६) अन्नस्वरूपविज्ञानीयः (०७) अन्नरक्षा (०८) मात्राशितीयः (०९) द्रव्यादिविज्ञानीयः (१०) रसभेदीयः (११) दोषादिविज्ञानीयः (१२) दोषभेदीयः (१३) दोषोपक्रमणीयः (१४) द्विविधोपक्रमणीयः (१५) शोधनादिगणसङ्र्नहः (१६) स्नेहविधिः (१७) स्वेदविधिः (१८) वमनविरेचनविधिः (१९) बस्तिविधिः (२०) नस्यविधिः (२१) धूमपानविधिः (२२) गण्डुषादिविधिः (२३) आश्चोतनाञ्जनविधिः (२४) तर्पणपुटपाकविधिः (२५) यन्त्रविधिः (२६) शस्त्रविधिः (२७) सिराव्यधविधिः (२८) शल्याहरणविधिः (२९) शस्त्रकर्मविधिः (३०) क्षाराग्निकर्मविधिः । (१) गर्भावक्रान्तिशारीराध्यायः (२) गर्भव्यापद्विध्यध्यायः (३) अङ्गविभागशारीराध्यायः (४) मर्मविभागशारीराध्यायः (५) विकृतिविज्ञानीयाध्यायः (६) दूतादिविज्ञानीयाध्यायः । (१) सर्वरोगनिदानाध्यायः (२) ज्वरनिदानाध्यायः (३) रक्तपित्तनिदानाध्यायः (४) श्वासहिध्मानिदानाध्यायः (५) राजयक्ष्मादिनिदानाध्यायः (६) मदात्ययादिनिदानाध्यायः (७) अर्शोनिदानाध्यायः (८) अतीसारग्रहणीरोगनिदानाध्यायः (९) मूत्राघातनिदानाध्यायः (१०) प्रमेहनिदानाध्यायः (११) विद्रधिवृद्धिगुल्मनिदानाध्यायः (१२) उदरनिदानाध्यायः (१३) पाण्डुरोगशोफविसर्पनिदानाध्यायः (१४) कुष्ठश्वित्रकृमिनिदानाध्यायः (१५) वातव्याधिनिदानाध्यायः (१६) वातशोणितनिदानाध्यायः । (१) ज्वरचिकित्सिताध्यायः (२) रक्तपित्तचिकित्सिताध्यायः (३) कासचिकित्सिताध्यायः (४) श्वासहिध्माचिकित्सिताध्यायः (५) राजयक्ष्मादिचिकित्सिताध्यायः (६) छर्दिहृद्रोगतृष्णाचिकित्सिताध्यायः (७) मदात्ययादिचिकित्सिताध्यायः (८) अर्शश्चिकित्सिताध्यायः (९) अतीसारचिकित्सिताध्यायः (१०) ग्रहणीदोषचिकित्सिताध्यायः (११) मूत्राघातचिकित्सिताध्यायः (१२) प्रमेहचिकित्सिताध्यायः (१३) विद्रधिवृद्धिचिकित्सिताध्यायः (१४) गुल्मचिकित्सिताध्यायः (१५) उदरचिकित्सिताध्यायः (१६) पाण्डुरोगचिकित्सिताध्यायः (१७) श्वयथुचिकित्सिताध्यायः (१८) विसर्पचिकित्सिताध्यायः (१९) कुष्ठचिकित्सिताध्यायः (२०) श्वित्रकृमिचिकित्सिताध्यायः (२१) वातव्याधिचिकित्सिताध्यायः (२२) वातशोणितचिकित्सिताध्यायः । (१) वमनकल्पाध्यायः (२) विरेचनकल्पाध्यायः (३) वमनविरेचनव्यापत्सिद्ध्यध्यायः (४) बस्तिकल्पाध्यायः (५) बस्तिव्यापत्सिद्ध्यध्यायः (६) द्रव्यकल्पाध्यायः । (०१) बालोपचरणीयाध्यायः (०२) बालामयप्रतिषेधाध्यायः (०३) बालग्रहप्रतिषेधाध्यायः (०४) भूतविज्ञानीयाध्यायः (०५) भूतप्रतिषेधाध्यायः (०६) उन्मादप्रतिषेधाध्यायः (०७) अपस्मारप्रतिषेधाध्यायः (०८) वर्त्मरोगविज्ञानीयाध्यायः (०९) वर्त्मरोगप्रतिषेधाध्यायः (१०) सन्धिसितासितरोगविज्ञानीयाध्यायः (११) सन्धिसितासितरोगप्रतिषेधाध्यायः (१२) दृष्टिरोगविज्ञानीयाध्यायः (१३) तिमिरप्रतिषेधाध्यायः (१४) लिङ्गनाशप्रतिषेधायाध्यायः (१५) सर्वाक्षिरोगविज्ञानीयाध्यायः (१६) सर्वाक्षिरोगप्रतिषेधाध्यायः (१७) कर्णरोगविज्ञानीयाध्यायः (१८) कर्णरोगप्रतिषेधाध्यायः (१९) नासारोगविज्ञानीयाध्यायः (२०) नासारोगप्रतिषेधाध्यायः (२१) मुखरोगविज्ञानीयाध्यायः (२२) मुखरोगप्रतिषेधाध्यायः (२३) शिरोरोगविज्ञानीयाध्यायः (२४) शिरोरोगप्रतिषेधाध्यायः (२५) व्रणप्रतिषेधाध्यायः (२६) सद्योव्रणप्रतिषेधाध्यायः (२७) भङ्गप्रतिषेधाध्यायः (२८) भगन्दरप्रतिषेधाध्यायः (२९) ग्रन्थ्यर्बुदापचीनाडीविज्ञानीयाध्यायः (३०) ग्रन्थ्यर्बुदापचीनाडीप्रतिषेधाध्यायः (३१) क्षुद्ररोगविज्ञानीयाध्यायः (३२) क्षुद्ररोगप्रतिषेधाध्यायः (३३) गुह्यरोगविज्ञानीयाध्यायः (३४) गुह्यरोगप्रतिषेधाध्यायः (३५) विषप्रतिषेधाध्यायः (३६) सर्पविषप्रतिषेधाध्यायः (३७) कीटलूतादिविषप्रतिषेधाध्यायः (३८) मूषिकालर्कविषप्रतिषेधाध्यायः (३९) रसायनविध्यध्यायः (४०) वाजीकरणविध्यध्यायः । कुछ प्रमुख अध्यायों में वर्णित मुख्य विषय निम्नलिखित हैं- १. आयुष्कामीय अध्याय १. आयुर्वेद का प्रयोजन, आयुर्वेदावतरण, अष्टांगहृदय का स्वरूप, आयुर्वेद के आठ अंग २. दोषों का वर्णन, विकृत-अविकृत दोष, दोषों के स्थान एवं प्रकोपकाल, वय आदि के अनुसार काल ३. दोषों का कोष्ठ पर प्रभाव, दोषों से गर्भप्रकृति का वर्णन ४. वात दोष के गुण, पित्त दोष के गुण, कफ दोष के गुण, संसर्ग-सन्निपात परिभाषा ५. धातुओं का वर्णन, मलों का वर्णन, दोष, धातु, मलों की वृद्धि एवं क्षय ६. रसों का वर्णन, रसो का वात आदि पर प्रभाव ७. द्रव्य का वर्णन, वीर्य का वर्णन, विपाक का वर्णन ८. द्रव्यों के गुणों का वर्णन ९. रोग एवं आरोग्य के कारण, रोग-आरोग्य में भेद २. दिनचर्या अध्याय १. ब्रह्म मुहूर्त, दतवन का विधान, दतवन करने की विधि, दतवन का निषेध २. अञ्जन प्रयोग, रसाञ्जन प्रयोग विधि, नस्य आदि सेवन निर्देश ३. ताम्बूल सेवन विधि, ताम्बूल सेवन निषेध, अभ्यंग सेवन विधान, अभ्यंग के प्रमुख स्थान, अभ्यंग का निषेध ४. व्यायाम का विधान, व्यायाम का निषेध, अर्धशक्ति एवं काल निर्देश, शरीरमर्दन निर्देश, अतिव्यायाम से हानि, व्यायाम आदि का निषेध ५. उद्वर्तन (उबटन) के गुण, स्नान के गुण, उष्ण-शीत जल प्रयोग, स्नान का निषेध ६. भोजन आदि कर्तव्य, सुख का साधन धर्म, मित्र-अमित्र सेवन विचार, पापकर्मों का त्याग ७. अनुकूल व्यवहार-निर्देश, समदृष्टिता का निर्देश, सम्मान करने का निर्देश, याचकों की सम्मान विधि, समभाव का निर्देश, मधुरभाषण निर्देश, भाषण विधि, विचारों को गुप्त रखें, परच्छन्दानुवर्तन ८. इन्द्रियव्यवहार विधि, त्रिवर्ग विरोध का निषेध, सभी धर्मों का आचरण, शरीरशुद्धि के प्रकार, रत्न आदि का धारण, छाता आदि धारण, दण्ड आदि धारण ९. गमन निर्देश, निषिद्ध कार्य, छींक आदि करने की विधि, आंगिक चेष्टाओं की मात्रा, मद्यविक्रय आदि का निषेध, अन्य निषिद्ध कर्म, अन्य सदुपदेश, सदाचार सूत्र, विचार पद्धति, सदवृत्त का उपसंहार ३. ऋतुचर्या अध्याय १. छः ऋतुएँ, उतरायण तथा आदान काल, अग्निगुणप्रधान आदान काल, विसर्गकाल-परिचय, बल का चयापचय २. हेमन्त ऋतुचर्या प्रातःकाल के कर्तव्य, स्नान आदि की विधि, शीतनाशक उपाय, निवास विधि ३. शिशिर ऋतुचर्या, वसन्त ऋतुचर्या, मध्याह्नचर्या, वसन्त ऋतु में अपथ्य ४. ग्रीष्म ऋतुचर्या सेवनीय पदार्थ, सत्तूसेवन विधि, मद्यसेवन विधि, मद्यपान का निषेध, भोजन-विधान, पेय-विधान, रात्रि में दुग्धपान-विधि, मध्याह्नचर्या, शयन विधान,रात्रिचर्या, मनोहर वातावरण ५. वर्षा ऋतुचर्या शरीर शुद्धि, सेवनीय विहार, त्याज्य विहार ६. शरद् ऋतुचर्या आहार-विधि, हंसोदक सेवन-निर्देश, विहार-विधि, अपथ्य-निषेध, संक्षिप्त ऋतुचर्या, रससेवन-निर्देश, ऋतुसन्धि में कर्तव्य ४. रोगानुत्पादनीय अध्याय १. वेगों को न रोकने का निर्देश, अपान वायु को रोकने से हानि, मलवेगरोधज रोग, मूत्रवेगरोधज रोग, वेगरोधजन्य रोगों की चिकित्सा, मूत्रवेगरोधज रोग-चिकित्सा २. उद्गारवेगरोधज रोग चिकित्सा, छींक के वेग को रोकने से हानि, हिक्कावेगनिरोधज रोग चिकित्सा, तृषावेगनिरोधज चिकित्सा, क्षुधावेगनिरोधज रोग चिकित्सा, निद्रावेगनिरोधज रोग- चिकित्सा, कासवेगनिरोधज रोग चिकित्सा, श्रमश्वासवेगनिरोधज रोग चिकित्सा, जृम्भावेगनिरोधज रोग चिकित्सा ३. अश्रुवेगनिरोधज रोग चिकित्सा, छर्दिवेगनिरोधज रोग चिकित्सा, शुक्र के वेग को रोकने के कारण उत्पन्न रोग चिकित्सा, वेगरोधी के असाध्य लक्षण, सामान्य चिकित्सा ४. धारणीय वेग, शोधन की आवश्यकता, संशोधन कर्म की प्रशंसा, रसायन वाजीकरण योगों का प्रयोग, शोधनोत्तर चिकित्सा, चिकित्सा का फल, आगन्तुज रोग, निजागन्तुक रोगों का निरोध एवं शमन, शोधन योग्य ऋतुएं, स्वस्थ रहने के उपाय ५. द्रवद्रव्यविज्ञानीय अध्याय १.तोयवर्ग गंगा का जल, गंगाजल का परिचय, सामुद्र जल, पानीय जल, न पीने योग्य जल, कूप आदि का जल, जलपान-विधि, जलपान का प्रभाव, शीतल जलपान के लाभ, उष्ण जलसेवन के लाभ, शृतशीत एवं बासी जल, नारियल का ज़ल, उत्तम एवं अधम जल २. क्षीरवर्ग ॰ सामान्य दूध के गुण, गाय के दूध के गुण, भैंस के दूध के गुण, बकरी के दूध के गुण, ऊँटनी के दूध के गुण, मानुषी दूध के गुण, भेड़ी के दूध के गुण, हथिनी के दूध के गुण, एकशफ दूध के गुण, आम-शृत दुग्ध-गुण, धारोष्ण दूध के गुण, दधिगुण-वर्णन, तक्र का वर्णन, मस्तु का वर्णन, नवनीत वर्णन, दूध का नवनीत, घृत के गुण, पुराने घृत के प्रयोग, किलाट आदि का वर्णन, उत्तम अधम विचार ३. इक्षुवर्ग ईख के रस का वर्णन, अगले भाग का रस, यान्त्रिक रस के भेद, ईख के भेद एवं गुण, शतपर्वक आदि ईखों के गुण, फाणित के गुण, गुड़ के गुण, पुराने-नये गुड़ के गुण, मत्स्यण्डिका आदि के गुण, यासशर्करा के गुण, सभी शर्कराओं के गुण, शर्करा की उत्तमता ४. मधुवर्ग मधु का वर्णन, उष्ण मधुसेवन का निषेध, संशोधन में मधु-प्रयोग ५. तैलवर्ग सामान्य तैल का वर्णन, एरण्डतेल के गुण, सरसों का तेल, बहेड़े की गिरी का तेल, नीम की गिरी का तेल, अतसी-कुसुम्भ तेल, प्राणिज स्नेह ६. मद्यवर्ग मद्य का वर्णन, नया एवं पुराना मद्य, मद्य का निषेध, विभिन्न सुराओं का वर्णन, वारूणी परिचय, यव (जौ से निर्मित) सुरा, बहेड़ा की सुरा, कौहली सुरा, मधूलक सुरा, अरिष्ट- परिचय, मुनक्का (मार्द्वीक) आसव, खार्जूर, शार्कर आसव, गुड़-निर्मित आसव, सीधु का वर्णन, मध्वासव का वर्णन, शुक्त का वर्णन, गुड़ आदि शुक्त, कन्द आदि शुक्त, शाण्डाकी-वर्णन, धान्याम्ल आदि का वर्णन, सौवीरक तथा तुषोदक ७. मूत्रवर्ग मूत्रों का वर्णन ६. अन्नस्वरूपविज्ञानीय अध्याय १. सूत्रस्थान में ३० अध्याय है। दिनचर्या, ऋतुचर्या, द्रव्यगुणविज्ञान, का विस्तृत वर्णन है। २. शल्यविधि, शल्य आहरण (शरीर में चुभे धातु के टुकड़े को शस्त्र से निकालना), शिरा वेध (रक्त को वहन करने वाली शिरा का वेध करना) आदि का वर्णन है। ३. अष्टांगहृदय पद्यमय है जबकि अष्टांगसंग्रह गद्य एवं पद्य दोनों रूप में है। ४. वाग्भट्ट संहिता में चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता, भेलसंहिता के विषय संग्रहित है। ५. मद्यपान के लिए सुन्दर श्लोकों का वर्णन किया गया है। इस संहिता में बौद्ध धर्म की विशेषता दिखाई देती है। महामयुरीविद्या का भी उल्लेख है। ६. वाग्भट्ट संहिता के निदानस्थान, शारीरस्थान, चिकित्सास्थान,कल्पस्थान तथा उत्तरस्थान में सम्पूर्ण रोगों का निदान (कारण), लक्षणों, रोग के भेद, गर्भ एवं शरीर सम्बधित विषयों का विस्तृत वर्णन है। ७. अरिष्ट वर्ग या रोगों का वह लक्षण जिससे रोग की साध्य-असाध्यता एवं मृत्यु का ज्ञान होता है, इसका विस्तृत वर्णन है। ८. समस्त रोगों की चिकित्सा, पंचकर्म के लिए औषधि द्रव्यों का वर्णन, पंचकर्म विधि, हानियों, उपचार आदि का वर्णन है। ९. बाल रोग, बालकों में ग्रह विकार, भूत विद्या एवं मानसिक रोगों का वर्णन है। १०. उर्ध जत्रुगत रोगों (सिर, आंख, नाक, कान के रोग) के लक्षण, गुप्त रोगों (स्त्री एवं पुरूषों के जननागों में होने वाले रोग) के कारण, लक्षण एवं चिकित्सा का व्यापक रूप से वर्णन दिया है। ११. अपने समकक्ष आचार्यो के आयुर्वेद से सम्बन्धित सिद्धान्तों को सरलता से समझाना इस संहिता की विशिष्टता है। अष्टांगहृदय (देवनागरी में) अष्टांग हृदय (रोमन में) अष्टांगहृदयम् (सर्वांगसुन्दरी व्याख्या सहित ; हिन्दी व्याख्या : श्री लालचन्द्र वैद्य)
त्रूदोस (अंग्रेज़ी: ट्रूडोस, यूनानी: , तुर्की: ट्रोडोस) साइप्रस द्वीप देश की सबसे बड़ी पर्वतमाला है। यह द्वीप के लगभग मध्य में स्थित है और यह द्वीप के पश्चिमी अर्ध के अधिकांश भाग में विस्तृत है। इसका सर्वोच्च पहाड़ १,९५२ मीटर ऊँचा ओलम्पस पर्वत है। त्रूदोस पहाड़ियाँ अपने पर्यटन स्थलों, सुंदर पहाड़ी गाँवों, गिरजों और ईसाई मठों के लिए प्रसिद्ध है। ओलम्पस पर्वत पर भारी मात्रा में हिम गिरता है और यहाँ कई स्की-स्थल उपस्थित हैं। त्रूदोस क्षेत्र में कई प्राचीन कांस्य की खाने हैं जहाँ से निकला कांसा पूरे भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में हज़ारों सालों से पहुँचाया गया था। इन पहाड़ों में ब्रिटिश वायु सेना का एक जासूसी व सर्वेक्षण केन्द्र भी है। इन्हें भी देखें साइप्रस की पर्वतमालाएँ
सुहासिनी गांगुली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी थी। उनका जन्म खुलना में हुआ। पैत्रिक घर ढाका, जिला विक्रमपुर के बाघिया गाँव में था। पिता अविनाश चन्द्र गांगुली और माता सरलासुन्दरी देवी की बेटी सुहासिनी १९२४ में ढाका ईडन हाईस्कूल से मैट्रिक पास करके ईडन कालेज से स्नातक बनीं। एक तैराकी स्कूल में वे कल्याणी दास और कमला दासगुप्ता के सम्पर्क में आईं और क्रांतिकारी दल का साथ देने के लिए प्रशिक्षण लेने लगीं। १९२९ में विप्लवी दल के नेता रसिक लाल दास से परिचय होने के बाद तो वह पूरी तरह से दल में सक्रिय हो गईं। हेमन्त तरफदार ने भी उन्हें इस ओर प्रोत्साहित किया। १९३० के `चटगांव शस्त्रागार कांड' के बाद बहुत से क्रांतिकारी ब्रिटिश पुलिस की धर-पकड़ से बचने के लिए चन्द्रनगर चले गये थे। सुहासिनी गांगुली इन क्रांतिकारियों को सुरक्षा देने के लिए कलकत्ता से चंद्रनगर पहुँचीं। इसके पहले वह कलकत्ता में गूंगे-बहरे बच्चों के एक स्कूल में कार्य कर रहीं थीं। चन्द्रनगर पहुँचकर उन्होंने वहीं के एक स्कूल में अध्यापन-कार्य ले लिया। शाम से सुबह तक वह क्रांतिकारियों की सहायक उनकी प्रिय सुहासिनी दीदी थीं। दिन भर एक समान्य अध्यापिका के रूप में काम पर जाती थीं और घर में शशिधर आचार्य की छद्म पत्नी बन कर रहती थीं ताकि किसी को संदेह न हो और यह घर एक सामान्य गृहस्थ का घर लगे और वह क्रांतिकारियों को सुरक्षा भी दे सकें। गणेश घोष, लोकनाथ बल, जीवन घोषाल, हेमन्त तरफदार आदि क्रांतिकारी बारी-बारी से यहीं आकर ठहरते थे। इतना सब करने पर भी अधिकारियों को संदेह हो गया। उस घर पर चौबीसों घंटे निगाह रखी जाने लगी। फिर १ सितम्बर १९३० को उस मकान पर घेरा डाल दिया गया। आमने-सामने की मुठभेड़ में जीवन घोषाल, गोली से मारे गए। अनन्त सिंह पहले ही पुलिस को आत्म समर्पण कर चुके थे। शेष साथी और सुहासिनी गांगुली अपने तथाकथित पति श्री शशिधर आचार्य के साथ गिरफ्तार हो गईं। उन्हें हिजली जेल भेज दिया गया जहाँ इन्दुमति सिंह भी थीं। आठ साल की लम्बी अवधि के बाद वे १९३८ में रिहा की गईं। १९४२ के आन्दोलन में उन्होंने फिर से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया फिर जेल गईं और १९४५ में छूटीं। हेमन्त तरफदार तब धनबाद के एक आश्रम में संन्यासी भेष में रह रहे थे। रिहाई के बाद सुहासिनी गांगुली भी उसी आश्रम में पहुँच गईं और आश्रम की ममतामयी सहासिनी दीदी बनकर वहीं रहने लगीं। बाकी का अपना जीवन उन्होंने इसी आश्रम में बिताया। भारतवर्ष की आज़ादी उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना था जिसको पूरा करने में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। उनके इस त्यागमय जीवन और साहसिक कार्य को सम्मान देने के लिए कोलकाता की एक सड़क का नाम सुहासिनी गांगुली सरनी रखा गया है। रचना भोला यामिनी ने अपनी पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी महिलाएँ में उनके जीवन चरित्र का वर्णन किया है। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी
उयूनी दक्षिण-पश्चिम बोलीविया का एक शहर है। यह शहर दुनिया में पर्यटन और फिल्मोग्राफी के लिए जाना जाता है। पानी की कमी और क्षारीय भूमि के कारण, इस क्षेत्र में कृषि बहुत कम है। यहां की अर्थव्यवस्था ज्यादातर पर्यटन उद्योग से जुड़ी है। उयूनी दुनिया का सबसे बड़ा क्षारित मैदान है, यहां पर्यटकों और फिल्म निर्माताओं की पूरे साल बहुत भीड़ होती है। चूँकि यह शहर चिली और अर्जेंटीना की सीमा के पास स्थित है, दोनों देशों के साथ उनके आर्थिक और सामाजिक संबंध हैं। इस शहर में रेल्वे शवस्थान और क्षारित मैदान आकर्षक स्थान हैं। वर्ष २०१६ में रिलीज़ हुई तेलुगु फिल्म सर्राईनोडु में दिखाए जाने के बाद यह शहर भारतीय यात्रियों के बीच लोकप्रिय हुआ हैं।
भागलपुर बिहार प्रान्त का एक शहर है। गंगा के तट पर बसा यह एक अत्यंत प्राचीन शहर है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के कैमूर की पहाड़ी का मिलन स्थल है। भागलपुर सिल्क के व्यापार के लिये विश्वविख्यात रहा है, तसर सिल्क का उत्पादन अभी भी यहां के कई परिवारों के रोजी रोटी का श्रोत है। वर्तमान समय में भागलपुर हिन्दू मुसलमान दंगों और अपराध की वजह से सुर्खियों में रहा है। यहाँ एक हवाई अड्डा भी है जो अभी चालू नहीं है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना है। रेल और सड़क मार्ग से भी यह शहर अच्छी तरह जुड़ा है। प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों यथा तक्षशिला, नालन्दा और विक्रमशिला में से एक विश्वविद्यालय भागलपुर में ही था जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्थलों के रूप में है ये हैं बासुकीनाथ और मंदार पर्वत। पवित्र् गंगा नदी को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर गंगा को यह नाम दिया गया उसे अजगैवी नाथ कहा जाता है यह तीर्थ भी भागलपुर में ही है। बीते समय में भागलपुर भारत के दस बेहतरीन शहरों में से एक था। आज का भागलपुर सिल्क नगरी के रूप में भी जाना जाता है। इसका इतिहास काफी पुराना है। भागलपुर को (ईसा पूर्व ५वीं सदी) चंपावती के नाम से जाना जाता था। यह वह काल था जब गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भारतीय सम्राटों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था। अंग १६ महाजनपदों में से एक था जिसकी राजधानी चंपावती थी। अंग महाजनपद को पुराने समय में मलिनी, चम्पापुरी, चम्पा मलिनी, कला मलिनी आदि आदि के नाम से जाना जाता था। अथर्ववेद में अंग महाजनपद को अपवित्र माना जाता है, जबकि कर्ण पर्व में अंग को एक ऐसे प्रदेश के रूप में जाना जाता था जहां पत्नी और बच्चों को बेचा जाता है। वहीं दूसरी ओर महाभारत में अंग (चम्पा) को एक तीर्थस्थल के रूप में पेश किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार अंग राजवंश का संस्थापक राजकुमार अंग थे। जबकि रामयाण के अनुसार यह वह स्थान है जहां कामदेव ने अपने अंग को काटा था। शुरुआत से ही अपने गौरवशाली इतिहास का बखान करने वाला भागलपुर आज कई बड़ों शहरों में से एक है तथा अब तो उसने अपना नाम समार्ट सिटी में भी दाखिल कर लिया है। आज का साहेबगंज जिला,पाकुड़ जिला,दुमका जिला,गोड्डा जिला,देवघर जिला,जामताड़ा जिला( १५ नवम्बर २००० ई॰ से ये सभी जिले अब झारखण्ड राज्य में है।) कभी भागलपुर जिला के सभ-डिवीज़न थे।जबकी देवघर जिला और जामताड़ा जिला बिहार के भागलपुर जिला और पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिला से शेयर किए जाते थे।मुंगेर जिला(संयुक्त मुंगेर)और बाँका जिला भी पहले भागलपुर जिला में ही थे।ये दोनों ही जिले अब बिहार राज्य में हैं। पुराणों के अनुसार भागलपुर का पौराणिक नाम भगदतपुरम् था जिसका अर्थ है वैसा जगह जो की भाग्यशाली हो।आज का भागलपुर जिला बिहार में पटना जिला के बाद दुसरे विकसित जिला के स्थान पर है तथा आस-पास के जिलों का मुख्य शहर भी भागलपुर जिला हीं है।यहाँ के लोग अंगिका भाषा का मुख्य रूप से इस्तमाल करते हैं तथा यहाँ के लोग अक्सर रुपया को टका(जो की बंगलादेश की मुद्रा है)कहकर संबोधित करते है। भागलपुर नगर के कुछ मुहल्लों के नाम की हकीकत मोजाहिदपुर इसका नाम १५७६ ई बादशाह अकबर के एक मुलाज़िम मोजाहिद के नाम पर नामित हुआ था / सिकंदर पुर बंगाल के सुल्तान सिकंदर के नाम पर यह मुहल्ला बसा । ततारपुर अकबर काल मे एक कर्मचारी तातार खान के नाम पर इस मुहल्ले का नाम रखा गया । काजवली चक यह मुहल्ला शाहजहाँ काल के मशहूर काज़ी काजी काजवली के नाम पर पड़ा । उनकी मज़ार भी इसी मुहल्ले मे है । कबीरपुर अकबर के शासन काल मे फकीर शाह कबीर के नाम पर पड़ा ,उनकी कब्र भी इसी मुहल्ले मे है । नरगा इसका पुराना नाम नौगजा था यानी एक बड़ी कब्र ।कहते हैं कि खिलजी काल मे हुये युद्ध के शहीदो को एक ही बड़े कब्र मे दफ़्नाया गया था । कालांतर नौ गजा नरगा के नाम से पुकारा जाने लगा । मंदरोजा इस मुहल्ले का नाम मंदरोजा इस लिए पड़ा क्योंकि यहाँ शाह मदार का रोज़ा (मज़ार ) था जिसे बाद मे मदरोजा के नाम से जाना जाने ल्लगा । मंसूर गंज कहते हैं कि अकबर के कार्यकाल मे शाह मंसूर की कटी उँगलियाँ जो युद्ध मे कटी थी , यहाँ दफनाई गई थी ,इस लिए इसका नाम मंसूरगंज हो गया । आदमपुर और खंजरपुर अकबर के समय के दो भाई आदम बेग और खंजर बेग के नाम पर ये दोनों मुहल्ले रखे गए थे । मशाकचक अकबर के काल के मशाक बेग एक पहुंचे महात्मा थे ,उनका मज़ार भी यही है इस लिए इस मुहल्ले का नाम मशाक चक पड़ा । हुसेना बाद,हुसैन गंज और मुगलपुरा यह जहांगीर के समय बंगाल के गवर्नर इब्राहिम हुसैन के परिवार की जागीर थी ,उसी लिए उनके नाम पर ये मुहल्ले बस गए । बरहपुरा सुल्तानपुर के १२ परिवार एक साथ आकर इस मुहल्ले मे बस गए थे ,इस लिए इसे बरहपुरा के नाम से जाना जाने लगा । फ़तेहपुर १५७६ ई मे शाहँशाह अकबर और दाऊद खान के बीच हुई लड़ाई मे अकबर की सेना को फ़तह मिली थी ,इस लिए इसका नाम फ़तेहपुर रख दिया गया था / सराय यहाँ मुगल काल मे सरकारी कर्मचारिओ और आम रिआया के ठहरने का था ,इसी लिए इसे सराय नाम मिला । / सूजा गंज यह मुहल्ला औरंगजेव के भाई शाह सूजा के नाम पर पड़ा है । यहाँ शाह सुजा की लड़की का मज़ार भी है उर्दू बाज़ार उर्दू का अर्थ सेना होता है । इसी के नजदीक रकाबगंज है रेकाब का मानी घोड़सवार ऐसा बताया जाता है कि उर्दू बाज़ार और रेकाबगंज का क्षेत्र मुगल सेना के लिए सुरक्षित था । हुसेनपुर इस मुहल्ले को दमडिया बाबा ने अपने महरूम पिता मखदूम सैयद हुसैन के नाम पर बसाया था । मुंदीचक अकबर काल के ख्वाजा सैयद मोईनउद्दीन बलखी के नाम पर मोइनूद्दीनचक बसा था जो कालांतर मे मुंदीचक कहलाने लगा । खलीफाबाग- जमालउल्लाह एक विद्वान थे जो यहाँ रहते थे ,उन्हे खलीफा कह कर संबोधित किया जाता था । जहां वे रहते थे ,उस जगह को बागे खलीफा यानि खलीफा का बाग कहते थे । उनका मज़ार भी यहाँ है ।इस लिए यह जगह खलीफाबाग के नाम से जाना जाने लगा । आसानन्दपुर यह भागलपुर स्टेशन से नाथनगर जाने के रास्ते मे हैं शाह शुजा के काल मे सैयद मुर्तजा शाह आनंद वार्शा के नाम पर यह मुहल्ला असानंदपुर पड़ गया । यह पहाड़ी भागलपुर से ४८ किलोमीटर की दूरी पर है, जो अब बांका जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई ८०० फीट है। इसके संबंध में कहा जाता है कि इसका प्रयोग सागर मंथन में किया गया था। किंवदंतियों के अनुसार इस पहाड़ी के चारों ओर अभी भी शेषनाग के चिन्ह को देखा जा सकता है, जिसको इसके चारों ओर बांधकर समुद्र मंथन किया गया था। कालिदास के कुमारसंभवम में पहाड़ी पर भगवान विष्णु के पदचिन्हों के बारे में बताया गया है। इस पहाड़ी पर हिन्दू देवी देवताओं का मंदिर भी स्थित है। यह भी माना जाता है कि जैन के १२वें तिर्थंकर ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण को प्राप्त किया था। लेकिन मंदार पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी चोटी पर स्थित झील है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पहाड़ी के ठीक नीचे एक पापहरनी तलाब है, इस तलाब के बीच में एक विश्नु मन्दिर इस द्रिश्य को रोमान्चक बानाता है। यहाँ जाने के लिये भागलपुर से बस और रेल कि सुविधा उप्लब्ध है। विश्व प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर से ३८ किलोमीटर दूर अन्तीचक गांव के पास है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय नालन्दा के समकक्ष माना जाता था। इसका निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल (७७०-८१० ईसा ) ने करवाया था। धर्मपाल ने यहां की दो चीजों से प्रभावित होकर इसका निर्माण कराया था। पहला, यह एक लोकप्रिय तांत्रिक केंद्र था जो कोसी और गंगा नदी से घिरा हुआ था। यहां मां काली और भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है। दूसरा, यह स्थान उत्तरवाहिनी गंगा के समीप होने के कारण भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। एक शब्दों में कहा जाए तो यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान था। कहलगांव भागलपुर से ३२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तीन छोटे-छोटे टापू हैं। कहा जाता है कि जाह्नु ऋषि के तप में गंगा की तीव्र धारा से यहीं पर व्यवधान पड़ा था। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को पी लिया। बाद में राजा भागीरथ के प्रार्थना के उपरांत उन्होंने गंगा को अपनी जांघ से निकाला। तत्पश्चात गंगा का नाम जाह्नवी कहलाया। बाद से गंगा की धाराएं बदल गई और यह दक्षिण से उत्तर की ओर गमन करने लगी। एक मात्र पत्थर पर बना हुआ मंदिर भी देखने लायक है। इस प्रकार का मंदिर बिहार में अन्यत्र नहीं है। कहलगांव में डॉल्फीन को भी देखा जा सकता है। यहाँ एन. टी. पी. सी. भी है। इसके अलावा कुप्पा घाट, विषहरी स्थान, भागलपुर संग्रहालय, मनसा देवी का मंदिर, जैन मन्दिर, चम्पा, विसेशर स्थान, २५किलोमीटर दूर सुल्तानगंज आदि को देखा जा सकता है। भागलपुर से ४० किमी की दुरी पर स्थित है। यहाँ आने की सुविधा सड़क मार्ग से है। यह भागलपुर से पूर्व -दक्षिण में स्थित है। यहाँ की मुख्य कृषि चावल की खेती होती है। भागलपुर शहर प्रमुख रेल और सड़क मार्गो से जुड़ा है। कृषि और खनिज यह कृषि उत्पादो और वस्त्रो का व्यापार केंद्र है। खाद्यान्न और तिलहन यहाँ पर उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें है। चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी और अभ्रक के भंडार यहाँ पाए जाते हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में जलोढ मैदान और दक्षिण में छोटा नागपुर पठार की वनाच्छादित अपरी भूमि है। गंगा और चंदन नदियों द्वारा इस क्षेत्र की सिंचाई होती है। यहाँ एक कृषि विश्वविद्यालय भी है। उद्योग और व्यापार प्रदेश उद्योगों में चावल और चीनी की मिलें और ऊनी कपड़ों की बुनाई शामिल है। भागलपुर रेशम के उत्पादन के लिए भी विख्यात है। यहाँ एक रेशम उत्पादन संस्थान और एक कृषि अनुसंधान केंन्द स्थापित किए गए हैं।भागलपुर के सन्हौला के अंतर्गत ग्राम पंचायत (तरार) के दोगच्छी ग्राम में अधिक में आम का उत्पादन किया जाता है। भागलपुर विश्वविद्यालय यहाँ का प्रमुख शिक्षा केन्द्र हैं। भागलपुर शहर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (१९६०) से संबद्ध तेजनारायण बनैली कॉलेज , मारवाड़ी कॉलेज , भागलपुर इंजिनीयरिंग कॉलज, जे .एल .एन .मेडिकल कॉलेज, ताड़र कॉलेज ताड़र (दोगच्छी के नजदीक स्थित हैं )और अनेक महाविद्यालय है। सबौर में कृषि विश्वविद्यालय भी है। वर्ष २०११ से भागलपुर में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय केन्द्र भी खुल गया है। जेल रोड, तिलकामांझी स्थित इग्नू के क्षेत्रीय केन्द्र ने यहाँ कई नए पाठ्यक्रम आरम्भ किये हैं और बांका, मुंगेर और भागलपुर के भीतरी हिस्सों में अपने नए केन्द्रों और प्रोजेक्ट्स के माध्यम से उच्च शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने में योगदान दे रहा है। वर्ष २०१४ में यहां सम्पूर्ण कम्पयूटर शिक्षा के लिये मानव भारती एजुकेशन मिशन तथा लाल बहादुर शास्त्री ट्रेनिंग संस्थान खुल गया है। विक्रमशीला विश्वविद्यालय (कहलगोन)को जीवीत करने का काम चालू है। २००१ की जनगणना के अनुसार भागलपुर शहर कुल जनंसख्या ३,४०,३49 है। अशोक कुमार (अभिनेता) भागलपुर रेल और सड़क मार्ग दोनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह शहर पटना से कोई २२० किलोमीटर तथा कोलकाता से ४१० किलोमीटर दूर स्थित है। भागलपुर के लिए राजधानी पटना से सीधी ट्रेनें हैं। दिल्ली जाने के लिए विक्रमशिला, ब्रह्मपुत्र एक्सप्रेस, फरक्का एक्सप्रेस, सप्ताहिक एक्सप्रेस, गरीब रथ आदि ट्रेनें जाती हैं। इसके अलावा दिल्ली से पटना पहुंचकर स्थानीय ट्रेन से भागलपुर जाया जा सकता है। कोलकाता से इस शहर के लिए सीधी ट्रेन है। कोलकाता से आने के लिए दिल्ली हावड़ा रूट की ट्रेन लेकर लक्खीसराय स्थित कियूल जंक्शन से भी भागलपुर के लिए ट्रेन ली जा सकती है। भागलपुर बिहार के अन्य शहरों से सड़क के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ८० पर स्थित है। विक्रशिला पुल के बन जाने से यह शहर बिहार के उत्तरी राज्यों से सीधा जुड़ गया है। भागलपुर की आंतरिक परिवहन ऑटो रिक्शा, रिक्शा, तांगा, ई-रिक्शा आदि पर निर्भर है। भागलपुर में उल्टापुल के पास बस टर्मिनल स्थित है, जहां से विभिन्न स्थानों के लिए बसें जाती है।जिसे कोयल डिपो के नाम से जानते है। जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा, पटना उतरकर भागलपुर आया जा सकता है। यह हवाई अड्डा भागलपुर स्टेशन से ५ .८ किलोमीटर दूर है। भागलपुर का प्रथम ऑनलाइन न्यूज़ पेपर बिहार के शहर भागलपुर ज़िले के नगर
धीरे धीरे से सिद्धार्थ कुमार तिवारी द्वारा उनके बैनर स्वस्तिक प्रोडक्शंस के तहत निर्मित एक भारतीय हिंदी -भाषा नाटक टेलीविजन श्रृंखला है। श्रृंखला में रीना कपूर और राहिल आज़म हैं, जिनका प्रीमियर १२ दिसंबर २०२२ को स्टार भारत पर होना है। पतिके मर जाने के बाद एक औरत की जिंदगी की नई शुरुवात और मुश्किलों का सामना कैसे करती है इसके के बारे में धारावाहिक में बताया गया है। भावना (विधवा) के रूप में रीना कपूर : आँचल की माँ राहिल आज़म राघव के रूप में आंचल के रूप में ध्रुति मंगेशकर: भावना की बेटी भावना के पति (मृत) के रूप में विजय बदलानी जेठजी के रूप में अमन वर्मा बृजमोहन श्रीवास्तव के रूप में राजू खेर भावना के रूप में रीना कपूर, और राघव के रूप में राहिल आज़म को मुख्य भूमिका के रूप में साइन किया गया। अमन वर्मा और रूही चतुर्वेदी को नकारात्मक भूमिका निभाने के लिए कास्ट किया गया था। नवंबर २०२२ में पहला प्रोमो आया जिसमें रीना कपूर को भावना के रूप में दिखाया गया था। यह भी देखें स्टार भारत द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों की सूची स्टार भारत के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
भनपोखरा न.ज़.आ., धारी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा न.ज़.आ., भनपोखरा, धारी तहसील न.ज़.आ., भनपोखरा, धारी तहसील
कानकोर पत्रिका, भारतीय कंटेनर निगम लिमिटिड, कन्ष्कि प्लाजा, १९, अशोक रोड, नई दिल्ली-१, से प्रकाशित होती है।
वेदिका स्तम्भ एक मूर्ति है जो कि मथुरा संग्रहालय में रखि हुइ है।
यासिर उस्मान (जन्म १९८०) एक भारतीय टेलीविजन पत्रकार, समाचार प्रस्तुतकर्ता, लेखक और जीवनी लेखक हैं। मीडिया में उन्हें भारत के सबसे सफल फिल्म जीवनीकारों में माना गया है। उनका लेखन बॉलीवुड के तथाकथित "अंधेरे पक्ष" पर केंद्रित है। १९८० दशक में जन्मे लोग
गणित में, किसी समुच्चय का गणनांक "समुच्चय के तत्त्वों की संख्या" का एक मापन है। उदाहरण के लिए, समुच्चय आ = {२, ४, ६} में ३ तत्त्व शामिल हैं, और इसलिए आ का गणनांक ३ हैं। समुच्चय के गणनांक को उसका आकार भी कहते है जब आकार की अन्य धारणाओं के साथ कोई संभ्रम नहीं हो।
ताज़ा ख़बर () एक भारतीय फंतासी कॉमेडी थ्रिलर लघु श्रृंखला है। यह लघु श्रृंखला अब्बास दलाल और हुसैन दलाल द्वारा लिखी गई है और इसका निर्देशन हिमांक गौर ने किया है। इसके निर्माता रोहित राज और भुवन बाम हैं। इस श्रृंखला की मुख्य भूमिका में भुवन बाम, महेश मांजरेकर, श्रिया पिलगांवकर, चक्रवर्ती, देवेन भोजानी, प्रथमेश परब, नित्या माथुर, शिल्पा शुक्ला और मिथिलेश चतुर्वेदी हैं। इस वेब श्रृंखला के द्वारा यूट्यूबर भुवन बाम ने अपना ओटीटी पदार्पण किया है। ताज़ा ख़बर वसंत "वस्या" गावड़े की कहानी है जो एक सफाई कार्यकर्ता अर्थात सुलभ शौचालय में प्रभारी है। वस्या की जिंदगी में खिटपिट है। वह अपनी मां से बहुत प्यार करता और उसका पिता शराब के नशे में रहता है। लेकिन इन सब के बीच एक दिन अचानक वस्या की जिंदगी बदल जाती है। उसे एक जादुई वरदान मिलता है जो भविष्य की भविष्यवाणी कर सकता है। अब वस्या इस जादुई वरदान के बूते अपने खास लोगों के साथ मिलकर जिंदगी बदलना चाहता है लेकिन यह वरदान उसके और उसके आस-पास के सभी लोगों के जीवन में संकट पैदा करता है। भुवन बाम वसंत "वस्या" गावड़े के रूप में श्रिया पिलगांवकर मधुबाला "मधु" के रूप में चक्रवर्ती शेट्टी अन्ना के रूप में देवेन भोजानी मेहबूब के रूप में प्रथमेश परब राजा चतुर्वेदी उर्फ पीटर के रूप में शाज़िया के रूप में नित्या माथुर शिल्पा शुक्ला आपा के रूप में मिथिलेश चतुर्वेदी बिलमोरिया के रूप में महेश मांजरेकर किस्मत भाई के रूप में आतिशा नाइक वसंत की माँ के रूप में विजय निकम वसंत के पिता के रूप में ६ जनवरी २०२३ को ताज़ा ख़बर सीज़न-१ डिज़्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज़ हुआ। द टाइम्स ऑफ इंडिया की अर्चिका खुराना ने ५ में से ३ स्टार रेटिंग दी और लिखा, "'ताजा खबर' एक देखने लायक श्रृंखला है, जिस तरह से यह बड़े सपनों वाले एक साधारण व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी का वर्णन करती है। यह यह भी दर्शाती है कि पैसा आने पर लोगों का नजरिया और व्यवहार कैसे बदल जाता है।" हिंदी भाषा की वेब श्रृंखला भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम
ढुग्याडी, द्वाराहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा ढुग्याडी, द्वाराहाट तहसील ढुग्याडी, द्वाराहाट तहसील
आंध्र एक राज्य था जिसका उल्लेख महाकाव्य रामायण और महाभारत में मिलता है। यह एक दक्षिणी राज्य था, जिसे वर्तमान में भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के रूप में पहचाना जाता है, जहां से इसे इसका नाम मिला। आंध्र समुदायों का उल्लेख वायु और मत्स्य पुराण में भी किया गया है। महाभारत में सात्यकी की पैदल सेना आंध्र नामक जनजाति से बनी थी, जो अपने लंबे बालों, लंबे कद, मधुर भाषा और शक्तिशाली कौशल के लिए जानी जाती थी। वे गोदावरी नदी के किनारे रहते थे। महाभारत युद्ध के दौरान आंध्र और कलिंगों ने कौरवों का समर्थन किया था। सहदेव ने राजसूय यज्ञ करते हुए पांड्य, आंध्र, कलिंग, द्रविड़, ओड्र और चेर राज्यों को हराया। आंध्रों के बौद्ध संदर्भ भी पाए जाते हैं। आंध्र - विश्व की सबसे पुरानी जनजाति आंध्र प्रदेश का इतिहास
चिकनिया में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
जॉन बर्दीन(२३ मई १९०८ - ३० जनवरी १९९१) एक अमेरिकी भौतिक वैज्ञानिक थे जिन्हें विलियम शोक्ली और वॉल्टर ब्रैट्टैन के साथ १९४७ में ट्रांज़िस्टर इजाद करने के लिये १९५६ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें १९७२ में अतिचालकता का बी॰सी॰एस॰ सिद्धांत बनाने के लिये फिरसे इस पुरस्कार से नवाज़ा गया। इन्हें भी देखें नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी
तुर्कमेनाबत (तुर्कमेनी: ट्र्कमैनाबत, रूसी: ) तुर्कमेनिस्तान के लेबाप प्रांत की राजधानी है। सन् २००९ की जनगणना में इसकी आबादी लगभग २,५४,००० थी। इस शहर को पहले चारझ़ेव (, चार्ज़ऊ) या 'चारजू' () बुलाया जाता था (जिसका अर्थ फ़ारसी में 'चार नदियाँ या नहरें' है, इसमें 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें)। तुर्कमेनाबत उज़बेकिस्तान की सीमा के नज़दीक आमू दरिया के किनारे बसा हुआ है। हालांकि यह अब एक आधुनिक औद्योगिक शहर है, इसका इतिहास २,००० साल से भी अधिक है। किसी ज़माने में यह आमूल (अमूल) नाम का शहर हुआ करता था और कहा जाता है कि आमू दरिया का नाम भी शायद इसी शहर पर रखा गया हो। यह ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर भी एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। मध्यकाल में यह सदियों तक बुख़ारा ख़ानत का हिस्सा रहा और फिर रूसी साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। १८८६ में रूसियों ने यहाँ से ट्रांस-कैस्पियन रेलवे नाम का रेलमार्ग निकला और बहुत से रूसी यहाँ आकर बस गए। उन्होंने अपनी बस्ती का नाम नया चारजू रखा। नया शहर वहीं से शुरू हुआ। सोवियत संघ के बनाने के बाद उसकी सरकार ने उज़बेकों में स्वतंत्रता की तीव्र भावना को देखते हुए इस शहर को नवगठित तुर्कमेन सोवियत गणतंत्र में शामिल किया (जो सोवियत संघ का एक प्रांत था)। उज़बेक प्रभाव के कारण तुर्कमेनाबत शहर में उज़बेकों की बहुतायत रही है और वे अब इस शहर की आबादी के ७०% हैं। तुर्कमेनाबत अपने बाज़ारों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें गोक बाज़ार, दुनिया बाज़ार और मरकज़ी बाज़ार सबसे जाने-माने हैं। दुनिया बाज़ार में चीन, तुर्की, उज़बेकिस्तान और रूस से लाया गया माल बिकता है। तुर्कमेनाबत से ७० किमी दक्षिण पर पूर्वी काराकुम रेगिस्तान शुरू हो जाता है और वहाँ रेपेतेक प्राकृतिक अरक्षित क्षेत्र स्थित है, जो अपने ज़ेमज़ेन (ज़ेम्जेन) नामक रेगिस्तानी मगरमच्छों के लिए मशहूर है। इन्हें भी देखें मध्य एशिया के शहर तुर्कमेनिस्तान के शहर
यह हिन्दी पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशक हैं। इन्हें भी देखें भारत के प्रकाशन संस्थान
मैंने दिल तुझको दिया २००२ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। सुहेल ख़ान - अजय समीरा रेड्डी - आयशा वर्मा अर्चना पूरन सिंह - नर्तकी नामांकन और पुरस्कार २००२ में बनी हिन्दी फ़िल्म
बैतूल जिला मध्य प्रदेश के दक्षिण में स्थित है। बैतूल जिले के मुलताई तहसील पर पुण्य सलिला मां ताप्ती जी का उद्गम स्थल है। बैतूल के मुलताई तहसील पवित्र नगरी के रूप में भी पूजी जाती है यह सतपुड़ा पर्वत के पठार पर स्थित है। यह सतपुड़ा श्रेणी की संपूर्ण चौड़ाई को घेरे हुए है जो नर्मदा घाटी और उसके दक्षिण के मैदान तक फैला है। यह भोपाल संभाग को दक्षिणी छोर से छूता है। इस जिले का नाम छोटे से कस्बे बैतूल बाजार के नाम से जाना जाता है और जिला मुख्यालय से लगभग ५ किलो मीटर की दूरी पर है। मराठा शासन और अंग्रेजों के शासन के प्रारंभ में भी बैतूल बाजार जिला मुख्यालय था। बैतूल का खेरला प्राचीन चार महान गोंड राज्य में से एक था यहां १३० ईस्वी से१६० ईस्वी तक कोंडाली नामक गोंड राजा का राज्य था। बाद में मराठाओं ने यह जिला १८१८ में ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। १८२६ में विधिवत रूप से यह ब्रिटिश अधिकार में चला गया। १८६१ में यह सागर और नर्मदा प्रांत में चला गया। बैतूल जिला नर्मदा संभाग के अंतर्गत आता था। ब्रिटिश सेना ने मुलताई में छावनी बनाई थी। बैतूल और शाहपुर मराठा शासक अप्पा साहब के शासन से अलग हो गई थी। मराठा जनरल और सेना जून १८६२ में बैतूल में रही। जिले के मुलताई शहर से ताप्ती का उदगम हुआ है। इसको पवित्र माना जाता है। और उनका प्रसिद्ध ताप्ती मंदिर भी यहां है। बेैतुल ही वो पहला जिला था जिसमे ९ मार्च को कवि दिवस के रूप मे मनाना प्रारम्भ किया गया था। भारत की जनगणना -२०११ के अनुसार बैतूल की आबादी १,५७५,२४७ है। पुरुष जनसंख्या ७९९,72१ है, जबकि महीला आबादी ७७५,५२६ है। यहां के मुख्य धर्मों में हिन्दू धर्म आता है, जिसके साथ ही यहां मुस्लिम, सिख, जैन एवं ईसाई लोग भी रहते हैं। प्रमुख हिंदू जातियों में क्षत्रिय भोयर पवार/पंवार, राजपूत, रघुवंशी, कुर्मी, कुन्बी हैं। इसके अलावा गोंड, भील, कोरकू आदि है । बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी, पवारी/भोयरी , मराठी, गोंडी एवं कोरकू हैं। जिले की तहसील जिले में निम्नांकित १० तहसीलें हैं- बैतूल . पर स्थित है तथा समुंद्रतल से ६५७ मीटर (२१५८ फुट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है। जयवंती हक्सर स्नातकोत्तर महाविद्यालय बैतूल भोपाल फोन २२२२४४. शासकीय गर्ल्स डिग्री कालेज बैतूल भोपाल फोन २३३०७१ शासकीय डिग्री कालेज आमला फोन २८५२२२ विद्या आनन्द चिल्ड्रन अकादमी स्कूल आठनेर जिला बैतूल फोन २८६५७२ शासकीय उत्कृष्ट उ.मा. विद्यालय बैतूल फोन २३३४०४ शासकीय बहुताकनीक महाविद्यालय सोंना घाटी शिव मंदिर, सोनाघाटी काजली एवं कन्नोजिया बालाजी पुरम मंदिर बैतूल बाजार मुक्तागिरी जैन मंदिर शेरगढ़ का किला ताप्ती उदगम स्थल मुल्ताई पॉवर प्लांट सारणी अकबर के राजस्व और भू सुधार मंत्री राजा टोडरमल द्वारा स्थापित तत्कालीन अखण्ड भारत का केंद्र बिंदु बरसाली रेल्वे स्टेशन के समीप है शिलालेख पर फ़ारसी में लिखा गया है कि इस बिंदु को अखण्ड भारत का बिन्दु घोषित किया जाना चाहिए मध्य प्रदेश के जिले
कामोव रोटरक्राफ्ट उत्पादित करने वाली एक रूसी एयरोस्पेस कंपनी है। इसकी स्थापना निकोलाई कामोव द्वारा की गयी थी। रूस में यातायात
किज़िलओरदा प्रांत (कज़ाख़: , अंग्रेज़ी: क्य्ज़िलॉर्ड प्रोविंस) मध्य एशिया के क़ाज़ाख़स्तान देश का एक प्रांत है। इसकी राजधानी का नाम भी किज़िलओरदा शहर ही है। मध्य एशिया की महत्वपूर्ण नदी, सिर दरिया पूर्व में तियान शान पहाड़ियों से उत्पन्न होकर इस प्रांत से गुज़रकर अरल सागर जाती हैं। इस प्रान्त में अरल्स्क शहर है, जिसे अरल शहर भी कहते हैं, जो अरल सागर पर एक बंदरगाह हुआ करती थी लेकिन अरल के अधिकाँश हिस्से के सूखने से अब अरल सागर के बचे-कुचे अंश से १२ किमी दूर है। तुर्की भाषाओँ के मशहूर प्राचीन कवि कोरकुत अता (कोरकूट आता) ९वीं सदी ईसवी में इसी प्रांत में पैदा हुए माने जाते हैं। किज़िलओरदा प्रांत के कुछ नज़ारे इन्हें भी देखें क़ाज़ाख़स्तान के प्रांत क़ाज़ाक़्स्तान के प्रांत
चंदा और बिजली १९६९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। नामांकन और पुरस्कार १९६९ में बनी हिन्दी फ़िल्म
मध्य प्रदेश यूथ कांग्रेस या एम.पी यूथ कांग्रेस, भारतीय यूथ कांग्रेस की प्रदेश टुकड़ी है। विक्रांत भूरिया,मध्यप्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष हैं मध्य प्रदेश की राजनीति
दक्षिण ध्रुव-ऐटकेन घाटी चंद्रमा के विमुख फलक पर स्थित एक विशाल प्रहार क्रेटर है। तकरीबन २,५०० किमी (१,६०० मील) चौड़ा और १3 किमी (८.१ मील) गहरा, यह सौरमंडल के ज्ञात सबसे बड़े प्रहार क्रेटरों में से एक है। चंद्रमा पर मान्यता प्राप्त यह सबसे बड़ी, सबसे पुरानी और सबसे गहरी घाटी है। यह विमुख फलक की दो रचनाओं पर नामित हुआ था; उत्तरी छोर पर स्थित क्रेटर ऐटकेन एवं दूसरे छोर पर स्थित दक्षिणी चंद्र ध्रुव। इस घाटी की बाह्य परिधि चंद्रमा के दक्षिणी भुजा पर स्थित पहाड़ों की एक विशाल श्रृंखला के रूप में पृथ्वी से देखी जा सकती है, जिसे कभी "लिबनिट्ज पर्वत" कहा गया, हालांकि यह नाम अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा आधिकारिक तौर पर नहीं माना गया है। चंद्रमा पर प्रहार क्रेटर चंद्रमा का भूविज्ञान
रेपूडि (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फरवरी १९६६) भारत के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राजनेता तथा विचारक थे। उनके समर्थक उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित करते हैं।। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा 'हिन्दुत्व' को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये। उन्होंने भारत की एक सामूहिक "हिन्दू" पहचान बनाने के लिए हिन्दुत्व का शब्द गढ़ा । उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद (पॉजिट्विस्म), मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। हिन्दू महासभा के वह प्रमुख चेहरे थे। विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् १८९९ में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से १९०१ में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी। सन् १९०१ में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। १९०२ में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी॰ए॰ किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी। १९०४ में उन्होंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। १९०५ में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर १९०६ में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुए , जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।१० मई, १९०७ को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई। इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित १८५७ के संग्राम को गदर नहीं अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया। जून, १९०८ में इनकी पुस्तक द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : १८५७ तैयार हो गयी परन्त्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी। इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे। बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैण्ड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयीं। इस पुस्तक में सावरकर ने १८५७ के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया। मई १९०९ में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।इस पुस्तक को सावरकार जी ने पीक वीक पेपर्स व स्काउट्स पेपर्स के नाम से भारत पहुचाई थी। इण्डिया हाउस की गतिविधियाँ सावरकर ने लन्दन के ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद इण्डिया हाउस में रहना आरम्भ कर दिया था। इण्डिया हाउस उस समय राजनितिक गतिविधियों का केन्द्र था जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी चला रहे थे। सावरकर ने 'फ़्री इण्डिया सोसायटी' का निर्माण किया जिससे वो अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतन्त्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे। सावरकर ने १८५७ की क्रान्ति पर आधारित पुस्तकों का गहन अध्ययन किया और "द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स" (थे हिस्ट्री ऑफ थे वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस) नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने इस बारे में भी गहन अध्ययन किया कि अंग्रेजों को किस तरह जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन और मार्सिले में गिरफ्तारी लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। १ जुलाई १909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। १3 मई १9१0 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु ८ जुलाई १9१0 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। २४ दिसम्बर १9१0 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 3१ जनवरी १9११ को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। आर्बिट्रेशन कोर्ट केस परीक्षण और दण्ड सावरकर ने अपने मित्रों को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। १९०९ में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। सेलुलर जेल में नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें ७ अप्रैल, १९११ को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।। सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई, 19२१ तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। १९२० में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। सावरकर जी जानते थे कि सालों जेल में रहने से बेहतर भूमिगत रह करके उन्हें काम करने का जितना मौका मिले, उतना अच्छा है। उनकी सोच ये थी कि अगर वो जेल के बाहर रहेंगे तो वो जो करना चाहेंगे, वो कर सकेंगे जोकि अण्डमान निकोबार की जेल से सम्भव नहीं था। कई लोगों द्वारा शुरू से ही उन्हें भारत रत्न की माँग की जा रही है। वल्लभ भाई पटेल देशद्रोही गद्दारों के प्रति बहुत सख्त थे तथा वे अंग्रेजों से माफी मांगने की सलाह व न ही किसी को गद्दारी करने के लिए प्रोत्साहित करते। यह एक गद्दार जिसने अंग्रेज़ो से पेंशन पाने के लिए अपनी नाक रगड़ी की महिमा मंडित करने का दुष्प्रचार है। इन्होंने ही देशद्रोही संगठनों को प्रतिबंधित किया। रत्नागिरी में प्रतिबन्धित स्वतन्त्रता १९२१ में मुक्त होने पर वे स्वदेश लौटे और फिर ३ साल जेल भोगी। जेल में उन्होंने हिन्दुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। इस बीच ७ जनवरी १९२५ को इनकी पुत्री, प्रभात का जन्म हुआ। मार्च, १९२५ में उनकी भॆंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, डॉ॰ हेडगेवार से हुई। 1७ मार्च १९२८ को इनके बेटे विश्वास का जन्म हुआ। फरवरी, 19३1 में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। २५ फरवरी 19३1 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की। १९३७ में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए १९वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये। १५ अप्रैल १९3८ को उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। १३ दिसम्बर १९३७ को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी। २२ जून १९41 को उनकी भेंट नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। ९ अक्टूबर १९42 को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया। सावरकर जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था। १९43 के बाद दादर, बम्बई में रहे। १६ मार्च १९45 को इनके भ्राता बाबूराव का देहान्त हुआ। १९ अप्रैल १९45 को उन्होंने अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी वर्ष ८ मई को उनकी पुत्री प्रभात का विवाह सम्पन्न हुआ। अप्रैल १९46 में बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया। १९47 में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया। महात्मा रामचन्द्र वीर नामक (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया। सावरकर २०वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी रहे। विनायक दामोदर सावरकर को बचपन से ही हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था। सावरकर ने जीवन भर हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए ही काम किया। सावरकर को ६ बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। १९३७ में उन्हें हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद १९३८ में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे। द्वितीय विश्व युद्ध एवं फासीवाद यहूदियों के प्रति मुसलमानों के प्रति हिन्दू महासभा की गतिविधियाँ भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिका नागरिक प्रतिरोध आन्दोलन सावरकर जब १९३७ में रिहा हुए तथा १९४१-४३ हिन्दू महासभा को संबोधित करते हुए आज़ाद हिंद फौज के विरोध में कहा " तुम गोरों(अंग्रेजो) की फौज में भर्ती हो जाओ और इन्हें मजबूती दो " महात्मा गांधी पर विचार भारत के विभाजन का विरोध फिलिस्तीन में यहूदी राज्य के लिए समर्थन १५ अगस्त १९४७ को उन्होंने सावरकर सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं। ५ फरवरी १९४८ को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। १९ अक्टूबर १९४9 को इनके अनुज नारायणराव का देहान्त हो गया। ४ अप्रैल १९५0 को पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री लियाक़त अली ख़ान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया। मई, १९५2 में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया। १० नवम्बर १९५7 को नई दिल्ली में आयोजित हुए, १८५7 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में वे मुख्य वक्ता रहे। ८ अक्टूबर १९४9 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया। ८ नवम्बर १९63 को इनकी पत्नी यमुनाबाई चल बसीं। सितम्बर, १९6५ से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। १ फ़रवरी १९66 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। २६ फरवरी १९66 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः १० बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया। महात्मा गाँधी की हत्या में गिरफ्तार और निर्दोष सिद्ध गांधीजी के हत्या में सावरकर के सहयोगी होने का आरोप लगा जो सिद्ध नहीं हो सका। एक सच्चाई यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बन्धुओं का परिचय बहुत पुराना था। सावरकर-बन्धुओं के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें वीर कहने और मानने वालों में गांधी भी थे। गोडसे की गवाही सावरकर गाय को पूजनीय नहीं मानते थे, कहते थे कि गाय एक उपयोगी पशु है। सावरकर एक बुद्धिवादी व्यक्ति थे, परंतु कई प्रमाणोम से लगता है कि वे ईश्वर में विश्वास रखते थे। 'मोपला' पुस्तक की भूमिका में उन्होंने "ईश्वर कृपा..." ऐसा शब्दप्रसोग किया है। उनके समकालीन विद्वान आचार्य अत्रे ने "क्रांतिकारकांचे कुलपुरुष-सावरकर" में लिखा है कि उन्होंने दुर्गा देवी की मूर्ति के समक्ष स्वतंत्रता संग्राम में प्राणाहुति देने तक की प्रतिज्ञा की। इससे उनकी आस्तिकता का पता चलता है। सावरकर ने १०,००० से अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा १५०० से अधिक पन्ने अंग्रेजी में लिखा है। बहुत कम मराठी लेखकों ने इतना मौलिक लिखा है। उनकी "सागरा प्राण तळमळला", "हे हिन्दु नृसिंहा प्रभो शिवाजी राजा", "जयोस्तुते", "तानाजीचा पोवाडा" आदि कविताएँ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की ४० पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं, जो निम्नलिखित हैं- अखण्ड सावधान असावे ; १८५७ चे स्वातंत्र्यसमर ; अंदमानच्या अंधेरीतून ; अंधश्रद्धा भाग १ ; अंधश्रद्धा भाग २ ; संगीत उत्तरक्रिया ; संगीत उ:शाप ; ऐतिहासिक निवेदने ; काळे पाणी ; क्रांतिघोष ; गरमा गरम चिवडा ; गांधी आणि गोंधळ ; जात्युच्छेदक निबंध ; जोसेफ मॅझिनी ; तेजस्वी तारे ; प्राचीन अर्वाचीन महिला ; भारतीय इतिहासातील सहा सोनेरी पाने ; भाषा शुद्धी ; महाकाव्य कमला ; महाकाव्य गोमांतक ; माझी जन्मठेप ; माझ्या आठवणी - नाशिक ; माझ्या आठवणी - पूर्वपीठिका ; माझ्या आठवणी - भगूर ; मोपल्यांचे बंड ; रणशिंग ; लंडनची बातमीपत्रे ; विविध भाषणे ; विविध लेख ; विज्ञाननिष्ठ निबंध ; शत्रूच्या शिबिरात ; संन्यस्त खड्ग आणि बोधिवृक्ष ; सावरकरांची पत्रे ; सावरकरांच्या कविता ; स्फुट लेख ; हिंदुत्व ; हिंदुत्वाचे पंचप्राण ; हिंदुपदपादशाही ; हिंदुराष्ट्र दर्शन ; क्ष - किरणें 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७' सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। अधिकांश इतिहासकारों ने १९५७ के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को एक सिपाही विद्रोह या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर किया गया था। "सागरा प्राण तळमळला" (मेरा दिल तड़प रहा है, हे महासागर) उनके करीबी सहयोगी मदन लाल ढींगरा को लंदन में फांसी के लिए भेजे जाने के बाद लिखा गया था। ढींगरा के साथ उसकी दोस्ती के बारे में जानते हुए, ब्रिटिश पुलिस सावरकर पर गहरी नजर रख रही थी। ढींगरा की शहादत और उसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा दमन का असर सावरकर के स्वास्थ्य पर पड़ा। वह अपने स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए लंदन से लगभग ५० मील दक्षिण में ब्राइटन गए और १०-१२ दिनों तक वहीं रहे। उनके सहयोगी निरंजन पाल उन्हें नैतिक समर्थन देने के लिए उनसे मिलने जाते थे। दोनों अक्सर ब्राइटन के तटों पर टहलते थे। उस वक्त निरंजन पाल जी ने देखा सावरकर जी रोते हुए कुछ कह रहे थे उन्होंने तुरंत अपने डायरी मैं लिखना शुरू किया । हे सागर, मुझे मेरी मातृभूमि में वापस ले चलो; मेरी आत्मा तड़प रही है। मेरे मातृभूमि के पांव धोते हुए मैंने तुम्हें हमेशा देखा था। आपने मुझे दुसरे देश मे चलने के लिए कहा, वहां सृष्टि की विविधता का अनुभव करने के लिए (रशिया फ्रांस जर्मनी मैं उन दिनों ब्रिटिशों के खिलाफ बगावत चल रही थी ) । यह जानकर मेरी भारत माँ को विरह की शंका हुई और उसका हृदय वेदना से भरा, तो तुमने उससे वादा किया कि तुम मुझे वापस ले आओगे । यह सुनकर मैं भी निश्चिंत हो गया । मुझे विश्वास था कि दुनिया का मेरा अनुभव, मुझे उसकी बेहतर सेवा करने में मदद करेगा। यह कहते हुए कि मैं जल्दी लौटूंगा, मैंने उससे विदा ले ली। ओह, महासागर, मैं अब अपनी मातृभूमि के लिए तरस रहा हूं । जाल में फंसे हिरण या पिंजरे में फँसे हुए कबूतर की तरह मेरी हालत हो गई है (तुमने जो वादा किया था वह कपटपूर्ण था!) मैं अब और अलगाव नहीं सह सकता, ऐसा लग रहा है दसों दिशाओं मैं अंधेरा सा छा गया है। मैंने यह सद्गुणों के फूल (बैरिस्टर की पदवी, फ्रांस और रशिया से बगावत के तरीके ) जमा किए थे, इस उम्मीद में कि मेरी माँ उनकी महक से और महक उठेगी। मगर क्या फायदा, यह ज्ञान और गुण सिर्फ एक बोझ हैं, अगर मेरी माँ इससे समृद्ध नहीं हो सकती ? किसी आम के बड़े पेड़ जैसा हमे छाव देने वाला मेरा बड़ा भाई, घर में नई आई हुई दो बहुएं जिन्होंने लताओंकी तरह हमारे वृक्षरूपी परिवार को बांध कर रखा है और मेरा ताजे गुलाब जैसा छोटा भाई हे सागर आपने मेरा फूलोंसे भरा बगीचा छीन लिया । ओह, महासागर, मैं अब अपनी मातृभूमि के लिए तरस रहा हूं । आकाश में बहोत से तारे ओर नक्षत्र है पर मुझे मेरी मातृभूमि भारत का तारा ही पसंद है । यहां बड़े बड़े महल और घर हैं मगर मुझे तो मेरी मां की झोपड़ी ही प्यारी लगती हैं । तुम ये ऐश्वर्य राज्य देने की बात करते हो मगर मैं हंसते हंसते वहा जंगलो मैं वनवास सह लूंगा । बस अब मुझे ओर झांसा मत दो मुझे मेरे प्यारे देशवासियों कि याद आ रही है, तुम्हे हजारों नदिया मिलने आती है अगर किसी अकाल से तुम्हारी प्रिय नदी नहीं आ सकी तो तुम बैचेन हो जाते होंगे तुम्हे उसी बैचैनी का वास्ता है । ओह, महासागर, मैं अब अपनी मातृभूमि के लिए तरस रहा हूं । तुम अपना वचन तोड़कर मुझपर अपनी सफेद मूंछों से मूझपर हस रहे हो । जो तुम पर अपना अधिकार जमा चुके हैं उन अंग्रेजोंसे क्या तुम डर रहे हो । मुझे यहां फंसाकर तुमने मेरे मां को कमजोर समझ लिया होगा तो सुनो वो कमजोर नहीं है वो ये सब अगस्त्य ऋषि को बताएगी जिन्होंने तुम्हे एक क्षण में पी लिया था । ओह, महासागर, मैं अब अपनी मातृभूमि के लिए तरस रहा हूं । पाल ने उस महत्वपूर्ण अवसर का वर्णन २९ साल बाद एक लेख, "सावरकर की यादें," दिनांक २७ मई १९३८ को द मराठा, पुणे में किया। पाल ने लिखा, "वर्तमान में, उन्होंने (सावरकर) एक गाना गुनगुनाना शुरू किया। उन्होंने जैसा बनाया, वैसा ही गाया। यह एक मराठी गीत था, जिसमें भारत की दयनीय दासता का वर्णन किया गया था। सब कुछ भूलकर सावरकर गाते चले गए। इस समय उनके गालों पर आंसू छलकने लगे। उनकी आवाज दब गई। गीत अधूरा रह गया; और सावरकर बच्चों की तरह रोने लगे।" पुस्तक एवं फिल्म इनके जन्म की १२५वीं वर्षगांठ पर इनके ऊपर एक अलाभ जालस्थल आरंभ किया गया है। इसका संपर्क अधोलिखित काड़ियों मॆं दिया गया है। इसमें इनके जीवन के बारे में विस्तृत ब्यौरा, डाउनलोड हेतु ऑडियो व वीडियो उपलब्ध हैं। यहां उनके द्वारा रचित १९२४ का दुर्लभ पाठ्य भी उपलब्ध है। यह जालस्थल २८ मई, २००७ को आरंभ हुआ था। १९५८ में एक हिन्दी फिल्म काला पानी (१९५८ फ़िल्म) बनी थी। जिसमें मुख्य भूमिकाएं देव आनन्द और मधुबाला ने की थीं। इसका निर्देशन राज खोसला ने किया था। इस फिल्म को १९५९ में दोफ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले थे। इंटरनेट मूवी डाटाबेस पर काला पानी १९९६ में मलयालम में प्रसिद्ध मलयाली फिल्म-निर्माता प्रियदर्शन द्वारा निर्देशित फिल्म काला पानी बनी थी। इस फिल्म में हिन्दी फिल्म अभिनेता अन्नू कपूर ने सावरकर का अभिनय किया था। इंटरनेट मूवी डाटाबेस पर सज़ा-ए-काला पानी २००१ में वेद राही और सुधीर फड़के ने एक बायोपिक चलचित्र बनाया- वीर सावरकर। यह निर्माण के कई वर्षों के बाद रिलीज़ हुई। सावरकर का चरित्र इसमें शैलेन्द्र गौड़ ने किया है। , इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है। सावरकर एक महान समाज सुधारक भी थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किन्तु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। १९२४ से १९३७ का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा। सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।। स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध सावरकरजी हिन्दू समाज में प्रचलित जाति-भेद एवं छुआछूत के घोर विरोधी थे। बम्बई का पतितपावन मंदिर इसका जीवन्त उदाहरण है, जो हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला है।। पिछले सौ वर्षों में इन बन्धनों से किसी हद तक मुक्ति सावरकर के ही अथक प्रयासों का परिणाम है। राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का समर्थन हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सावरकर सन् १९०६ से ही प्रयत्नशील थे। लन्दन स्थित भारत भवन (इंडिया हाउस) में संस्था 'अभिनव भारत' के कार्यकर्ता रात्रि को सोने के पहले स्वतंत्रता के चार सूत्रीय संकल्पों को दोहराते थे। उसमें चौथा सूत्र होता था हिन्दी को राष्ट्रभाषा व देवनागरी को राष्ट्रलिपि घोषित करना'। अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बन्दियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। १९११ में कारावास में राजबंदियों को कुछ रियायतें देना शुरू हुई, तो सावरकर जी ने उसका लाभ राजबन्दियों को राष्ट्रभाषा पढ़ाने में लिया। वे सभी राजबंदियों को हिंदी का शिक्षण लेने के लिए आग्रह करने लगे। हालांकि दक्षिण भारत के बंदियों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे उर्दू और हिंदी को एक ही समझते थे। इसी तरह बंगाली और मराठी भाषी भी हिंदी के बारे में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कहते थे कि इसमें व्याकरण और साहित्य नहीं के बराबर है। तब सावरकर ने इन सभी आक्षेपों के जवाब देते हुए हिन्दी साहित्य, व्याकरण, प्रौढ़ता, भविष्य और क्षमता को निर्देशित करते हुए हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा के सर्वथा योग्य सिद्ध कर दिया। उन्होंने हिन्दी की कई पुस्तकें जेल में मंगवा ली और राजबंदियों की कक्षाएं शुरू कर दीं। उनका यह भी आग्रह था कि हिन्दी के साथ बांग्ला, मराठी और गुरुमुखी भी सीखी जाए। इस प्रयास के चलते अण्डमान की भयावह कारावास में ज्ञान का दीप जला और वहां हिंदी पुस्तकों का ग्रंथालय बन गया। कारावास में तब भाषा सीखने की होड़-सी लग गई थी। कुछ माह बाद राजबंदियों का पत्र-व्यवहार हिन्दी भाषा में ही होने लगा। तब अंग्रेजों को पत्रों की जांच के लिए हिंदीभाषी मुंशी रखना पड़ा। मराठी पारिभाषिक शब्दावली में योगदान भाषाशुद्धि का आग्रह धरकर सावरकर ने मराठी भाषा को अनेकों पारिभाषिक शब्द दिये, उनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं - सावरकर के नाम पर स्थापित संस्थाएँ सावरकर के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए भारत में अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं, उनमें से कुछ ये हैं- नादब्रह्म (चिंचवड-पुणे) : रवींद्र-सावनी-वंदना घांगुर्डे द्वारा संचालित यह संगठन, रंगमंच पर सावरकर के साहित्य पर आधारित कई कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। वीर सावरकर फाउंडेशन (कलकता) वीर सावरकर मित्र मंडळ () वीर सावरकर स्मृती केंद्र (वडोदरा) समग्र सावरकर वाङ्मय प्रकाशन समिती सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान (मुंबई) सावरकर रुग्ण सेवा मंडळ (लातूर) स्वातंत्र्यवीर सावरकर गणेश मंडळ () स्वातंत्र्यवीर सावरकर मंडळ (निगडी-पुणे जिला) स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य अभ्यास मंडळ (डोंबिवली-ठाणे जिला) स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य अभ्यास मंडळ (मुंबई) -- यह संस्था सावरकर साहित्य सम्मेलन का आयोजन करती है। सावरकर के प्रमुख कार्य, एक दृष्टि में सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लन्दन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन संगठित किया। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् १९०५ के बंग-भंग के बाद सन् १९०६ में 'स्वदेशी' का नारा दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 'पूर्ण स्वतन्त्रता' की मांग की। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् १८५७ की लड़ाई को 'भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए १९०७ में लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखा। वे भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबन्धित कर दिया था। वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे जिनका मामला हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में चला था। वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे जिसने एक अछूत को मन्दिर का पुजारी बनाया था। वे गाय को एक 'उपयोगी पशु' कहते थे। उन्होने बौद्ध धर्म द्वारा सिखायी गयी "अतिरेकी अहिंसा" की आलोचना करते हुए केसरी में 'बौद्धों की अतिरेकी अहिंसा का शिरच्छेद' नाम से शृंखलाबद्ध लेख लिखे थे। सावरकर, महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे। उन्होने अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के विरुद्ध हिंसा को गांधीजी द्वारा समर्थन किए जाने को 'पाखण्ड' करार दिया। सावरकर ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दुत्व' के पृष्ठ ८१ पर लिखा है कि कोई भी व्यक्ति बगैर वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है''। उनके अनुसार केवल जातीय सम्बन्ध या पहचान हिन्दुत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है बल्कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं भौगोलिक एकता, जातीय गुण और साझा संस्कृति। जब भीमराव आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तब सावरकर ने कहा था, "अब जाकर वे सच्चे हिन्दू बने हैं"। सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में १९०७ की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था। वे प्रथम क्रान्तिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में उनके निर्दोष साबित होने पर उनसे माफी मांगी। सावरकर ने भारत की आज की सभी राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं को बहुत पहले ही भाँप लिया था। १९६२ में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के लगभग दस वर्ष पहले ही कह दिया था कि चीन भारत पर आक्रमण करने वाला है। भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद गोवा की मुक्ति की आवाज सबसे पहले सावरकर ने ही उठायी थी। इन्हें भी देखें अखिल भारतीय हिन्दू महासभा द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७ नारायण दामोदर सावरकर वीर सावरकर अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र युगपुरुष वीर सावरकर वीर सावरकर पर जालस्थल (अंग्रेजी एवं मराठी में) पहल करने वालों में प्रथम थे सावरकर विनायक दामोदर सावरकर (विकिसूक्ति पर) १८५७ का स्वातंत्र्य समर (गूगल पुस्तक ; लेखक - विनायक दामोदरसावरकर) दलित मसीहा के रूप में वीर सावरकर (पैट्रिऑट्स फोरम) क्या आप जानते हैं महान क्रांतिकारी वीर सावरकर दलितों के मसीहा थे? अद्वितीय समाजसेवी सावरकर (पाञ्चजन्य) पुस्तकें एवं विडियो वीर सावरकर (गूगल पुस्तक ; लेखक डॉ भवान सिंह राणा) यज्ञ (गूगल पुस्तक ; लेखक - भालचन्द्र दत्तात्रय खेर, शैलजा राजे) - वीर सावरकर के जीवनचरित पर आधारित मराठी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर महात्मा गांधी की हत्या भारतीय स्वतंत्रता सेनानी महाराष्ट्र के लोग भारत का इतिहास हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना १८८३ में जन्मे लोग १९६६ में निधन
२००० के दशक अंगूठाकार|३००क्स३००पिक्सेल|स्विट्जरलैंड ओक्ड का श्रम उत्पादकता स्तर, २०१७
आधुनिक कवि:७ हरिवंश राय बच्चन की एक कृति है। हरिवंश राय बच्चन
१०९२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
सन्दर्भ ग्रन्थ:चरक संहिता सुश्रुत संहिता वाग्भट्ट भाव प्रकाश चिकित्सा चन्द्रोदय यह भी देखें आयुर्वेद बाहरी कडियां
जानकीपुरम (उर्दु: ) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक आवासीय एवं वाणिज्यिक, संस्थानीय परिसर है। यह लखनऊ के बड़े क्षेत्रों में से एक है। यह तीन भागों में विभाजित है:- जानकीपुरम फेस-१ एवं जानकीपुरम लखनऊ का पाचवां रिहायशी क्षेत्र है जानकीपुरम १० खंडों में बंटा है, जो , सेक्टर आ से आरंभ होता है:- सेक्टर ए बी सी डी थाना विकास नगर के अंतर्गत आते हैं और बाकि सेक्टर थाना जानकीपुरम के अंतर्गत ई जानकीपुरम के डाकघर का पिन कोड २२६०२१ हैई भारत का प्रमुख राजमार्ग न्ह-२४ जो की लखनऊ -दिल्ली राजमार्ग से जाना जाता है यही से होकर गुजरता हैई यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन मोहीबुल्लापुर हैई कुर्सी रोड, ठेरी पुलिया, साठ फीट यहाँ के मुख्य व्यापारिक केंद्र है इसके अलावा यहाँ पर कुर्सी रोड की सब्जी मंडी भी बहुत व्यस्त मंडी है, जानकीपुरम के अलावा यहाँ से लगे हुए क्षेत्र जैसे अलीगंज, विकासनगर, कल्यानपुर, आदिल नगर के लोगो के लिए दैनिक आहार में लायी जाने वाली वस्तुओ का एक केंद्र है जहा प्रतिदिन लगभग २००० लोग आते हैं और सब्जियां और फल खरीदते हैंई यहाँ पर सिटी लाइफ मॉल भी है जो आकर्षण का केंद्र हैई लखनऊ विकास प्राधिकरण लखनऊ के क्षेत्र
मारुति सुजुकी वैगन आर एक ५-सीटर हैचबैक कार है जो भारत में लोकप्रिय है। यह अपनी ईंधन दक्षता, विशाल इंटीरियर और किफायती कीमत के लिए जाना जाता है। वैगन आर पेट्रोल और सीएनजी (संपीड़ित प्राकृतिक गैस) दोनों वेरिएंट में उपलब्ध है। वैगन आर १.०-लीटर या १.२-लीटर पेट्रोल इंजन द्वारा संचालित है जो क्रमशः ६७ एचपी और ८३ एचपी उत्पन्न करता है। कंग वेरिएंट में ९९८क्क का इंजन है जो ५५ हप पैदा करता है। वैगन आर ११ वेरिएंट में उपलब्ध है, जिसमें ल्क्सी, व्क्सी, ज़्क्सी और ज़्क्सी+ शामिल हैं। टॉप-ऑफ-द-लाइन ज़्क्सी+ वेरिएंट ऑटोमैटिक क्लाइमेट कंट्रोल, टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम और एलईडी हेडलाइट्स जैसी सुविधाओं के साथ आता है। वैगन आर की ईंधन दक्षता २5.१9 किमी/लीटर (पेट्रोल) और ३४.०5 किमी/किग्रा (सीएनजी) है। वैगन आर का बूट स्पेस ३४१ लीटर है। यह एक ५-सीटर हैचबैक कार है जो भारत में उपलब्ध है। यह १.०ल या १.२ल पेट्रोल इंजन, या ९९८क्क कंग इंजन द्वारा संचालित है। यह मैनुअल और ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के साथ ११ वेरिएंट में उपलब्ध है। यह ९ रंगों में उपलब्ध है। वैगन आर की कीमत ५.५4 लाख रुपये से लेकर ७.4२ लाख रुपये तक है। अपनी ईंधन दक्षता, विशाल इंटीरियर और किफायती कीमत के कारण वैगन आर भारत में एक लोकप्रिय कार है। यह अपने सुरक्षा फीचर्स के लिए भी जाना जाता है, जिसमें अब्स, एब्द और डुअल एयरबैग शामिल हैं। वैगन आर को पहली बार भारत में १९९९ में लॉन्च किया गया था। तब से यह भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक रही है। वैगन आर उन परिवारों और व्यक्तियों के लिए एक लोकप्रिय पसंद है जो ईंधन-कुशल और किफायती कार की तलाश में हैं। यहां मारुति सुजुकी वैगन आर की कुछ खूबियां और खामियां दी गई हैं: विशाल आंतरिक भाग अच्छा ग्राउंड क्लीयरेंस ड्राइव करना और पार्क करना आसान कम सुरक्षा रेटिंग बहुत शक्तिशाली नहीं बहुत स्टाइलिश नहीं निर्माण गुणवत्ता बेहतर हो सकती है कुल मिलाकर, मारुति सुजुकी वैगन आर उन लोगों के लिए एक अच्छी कार है जो ईंधन-कुशल और किफायती हैचबैक की तलाश में हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वैगन आर की सुरक्षा रेटिंग और बुनियादी सुविधाएँ कम हैं।
कमांडर मारिया हिल मार्वल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अमेरिकी कॉमिक पुस्तकों में दिखने वाली एक काल्पनिक चरित्र है। शुरुआत में निक फ्यूरी की सहायक रही मरिया, फ्यूरी के बाद शील्ड एजेंसी की निर्देशक बनी। इसी दौरान वह प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अवेंजर्स के कई मिशनों में भी शामिल रही है। अभिनेत्री कोबी स्मल्डर्स टीवी धारावाहिक एजेंट्स ऑफ़ शील्ड में, तथा मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स की फिल्मों में मारिया हिल की भूमिका निभा रही हैं। स्मल्डर्स द अवेंजर्स (२०१२), कैप्टन अमेरिका: विंटर सोल्जर (२०१४), अवेंजर्स: एज ऑफ़ अल्ट्रॉन (२०१५), और कैप्टन अमेरिका: सिविल वॉर (२०१७) में मारिया हिल का अभिनय कर चुकी हैं, और वह ही एमसीयू की आगामी अवेंजर्स: इन्फिनिटी वॉर, और उसके सीक्वल में भी मारिया हिल की भूमिका का निर्वहन करेंगी। कॉमिक्स के पात्र
बरौठ इगलास, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
बोची में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
तालव्य नासिक्य (पलटल नेसल) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है, लेकिन हिन्दी और अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता। देवनागरी में इसे ञ लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में '' लिखा जाता है। इन्हें भी देखें
महम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हरियाणा हरियाणा के रोहतक जिले में स्थित एक विधान सभा क्षेत्र है। यह रोहतक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। ये भी देखें रोहतक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हरियाणा के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में पायी जाने वाली एक जमींदार ब्राह्मण जाति है। त्यागी परशुराम भगवान के वंशज हैं इन्होंने ही परशुराम भगवान के साथ मिलके अधर्मी क्षत्रिय राजाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा था और जीता भी था त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जमींदारी व् रियासतों से जाने जाते है। तलहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार(दिल्ली), बेतिया रियासत, राजा का ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत, आदि बहुत सारे प्रमुख राजचिन्ह है। इसके अलावा सैकड़ो बावनी(बावन हजार बीघा जमीन वाले) गांव है। बनारस का राजघराना (विभूति साम्राज्य) काशी नरेश भी इसी परिवार से है। इसके अलावा ईरान, अफ़ग़ानिस्तान के प्राचीन राजा भी मोहयाल शाखा के यही थे। इनमे सबसे प्रमुख है अफ़ग़ानिस्तान का प्राचीन शाही साम्राज्य जो मोहयालो का महान साम्राज्य था जिन्होंने भारतवर्ष में सबसे पहले अरबो को युद्ध में धुल चटाई थी और ऐसी हार दी थी की अगले ३०० साल तक कोई हमला नही कर पाए थे। त्यागी समाज की उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, मुरादाबाद और बिजनौर जिले के गाँव में अधिक संख्या है, इसके अलावा दिल्ली में छतरपुर, शाहदरा, शकरपुर, होलंबी कलां, मंडोली, बुराडी इत्यादि त्यागीयो के मुख्य गाँव है, हरियाणा के कुछ जिले जैसे कि सोनीपत, फरीदाबाद, गुडगाँव, पानीपत, रोहतक, पलवल और करनाल में भी त्यागीयो के गाँव मिलेंगे। मध्यप्रदेश के मुरैना मैं त्यागीयो के ४५ गांव हैं जिसे पेतालिसी के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रमुख तोर पै दीपेरा,निधान,चिन्नोनी करैरा, बदरपुरा(यही गालव पूर्व त्यागी ब्राह्मणों कि कुलदेवी माता सती का मंदिर है),खरिका,भटपुरा और चचिया जैसे गांव आते है।मध्यप्रदेश के भिंड मैं भी त्यागीयो के अच्छे खासे गांव है।नरसिंहपुर,सीहोर, आगर मालवा मैं भी त्यागीयो ठीक ठाक आबादी है। राजस्थान के धौलपुर मैं भी त्यागीयो के ४० गांव है जिसे चालीसी के नाम से जाना जाता है। यहां त्यागियो का अच्छा दबदबा है। दिल्ली के एक राजा ने भाइचारे की मिसाल देते हुए छतरपुर के पास तंवर(गुर्जरो) को दिल्ली के ८ गाँवो में बसाया था, जिनमें से एक प्रमुख गाँव (असोला फतेहपुर बेरी) आज भी छतरपुर के पास स्तिथ तंवर(गुर्जरों) का प्रमुख गाँव माना जाता है। गाजियाबाद के मुरादनगर में त्यागी समाज का इतिहास बहोत पुराना है यहां एक समय लगभग ४० गाँव का जमींदारा त्यागीयो पर था, उस समय के कुछ प्रमुख गाँव जो जमींदारी थी वो वर्तमान मे भी मौजूद है जिनमे प्रमुख तौर पर ग्राम [ बन्दीपुर ] और [ काकड़ा ] शामिल है जो उस समय अपनी जमींदारी के लिए जाने जाते थे। आजादी के समय मुरादनगर के ही ५ त्यागीयो के गाँव अंग्रेजो के खिलाफ बागी हो गए थे जिनमे ग्राम कुम्हैड़ा, खिंदौडा, भनेडा, ग्यास्पुर और सुहाना शामिल थे। राजस्थान के सामाजिक समुदाय
सार्क चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग के लिए क्षेत्रीय एपेक्स बॉडी के रूप में मान्यता प्राप्त, सार्क के सदस्य राष्ट्रों के वाणिज्य और उद्योग के चैंबर के आठ राष्ट्रीय महासंघों का नक्षत्र है। सार्क देशों के सार्क चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के निर्माण के पीछे के तर्क इस क्षेत्र में व्यापार और उद्योग को बढ़ावा देना और व्यापार और उद्योग के क्षेत्रों में सामान्य उद्देश्यों को विकसित करना और हासिल करना था, इसके अलावा सार्क चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री को पूरे क्षेत्र में निजी क्षेत्र की आवाज़ के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन
अमृति वी मोदी को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। १९७२ पद्म भूषण
घनश्याम दूबे महाविद्यालय उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर जिले के सुरियावां नामक कस्बे में स्थित है। उत्तर प्रदेश के महाविद्यालय
आर्वी (अरवी) भारत के महाराष्ट्र राज्य के वर्धा ज़िले में स्थित एक नगर है। आर्वी ज़िले में प्रशासनिक दृष्टि से तहसील का दर्जा रखता है। यह सन्तों कि भूमि भी मानी जाती है। यहाँ "लोकमान्य वाचनालय" नाम से एक बहुत ही पुराना पुस्तकालय है। इन्हें भी देखें महाराष्ट्र के शहर वर्धा ज़िले के नगर
भीमवरप्पाडु (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
घट्टि, उट्नूरु मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
अल्लाह पुर अमृतपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
बिद्रल्लि, मुधोल मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (जिसे लघु रूप में डीएसटी भी कहते हैं) भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य उन विषयों से सम्बन्धित गतिविधियों के आयोजन एवं समन्वय के लिए स्थापित किया गया एक विभाग है। इसकी स्थापना मई १९७१ में की गई थी। यह भारत में एक नोडल विभाग की भूमिका निभाने का कार्य करता है। यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन आता है। इस विभाग के कई दायित्व हैं जिनमें से विशिष्ट परियोजनाओं और कार्यक्रमों के प्रमुख दायित्व हैं: विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियों का निर्माण। कैबिनेट की वैज्ञानिक सलाहकार समिति से संबंधित मामले (एसएसीसी)। उभरते हुए क्षेत्रों पर विशेष जोर देने के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देना। जैव ईंधन उत्पादन, प्रसंस्करण, मानकीकरण और अनुप्रयोगों के स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अपने अनुसंधान संस्थानों या प्रयोगशालाओं के माध्यम से अनुसंधान और विकास के विषय में संबंधित मंत्रालय या विभाग के साथ समन्वय उप उत्पादों से मूल्य वर्धित रसायन विकास के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियां। पार-क्षेत्रीय संबंधों वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों का समन्वय और एकीकरण जिसमें अनेक संस्थाओं और विभागों के हित और क्षमताएं हैं। उपक्रम अथवा आर्थिक रूप से वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वेक्षण, अनुसंधान डिजाइन और विकास के प्रायोजन, जहां आवश्यक हो। वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों, वैज्ञानिक संघों और निकायों के लिए समर्थन और अनुदान सहायता। संबंधित उप विभाग एवं मामले इस विभाग के उप-विभाग एवं संबंधित मामलों में निम्न हैं: विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद; प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड और संबंधित अधिनियम जैसे कि अनुसंधान और विकास उपकर अधिनियम, १९८६, (१९८६ का ३२) और प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, १९९५ (१९९५ का ४४ राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड विदेश में वैज्ञानिक संलग्न की नियुक्ति सहित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग (इन कार्यों का निष्पादन विदेश मंत्रालय के साथ निकट सहयोग में किया जाएगा) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत इस विषय से संबंधित स्वायत्त विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान सहित, खगोल भौतिकी संस्थान और भूचुम्बकत्व संस्थान पेशेवर विज्ञान अकादमियों को बढ़ावा दिया गया और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित भारतीय सर्वेक्षण, और नेशनल एटलस और थीमेटिक मैपिंग ऑर्गेनाइजेशन राष्ट्रीय स्थानिक डेटा बुनियादी संरचना और जी.आई.एस. को बढ़ावा देना नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन, अहमदाबाद। इन्हें भी देखें भारत सरकार के संस्थान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
यह एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं। यह पश्चिम भारत में विकसित लघु चित्रों की चित्रकला शैली थी, जो ११वीं से १५वीं शताब्दी के बीच प्रारम्भ में ताड़ पत्रों पर और बाद में कागज़ पर चित्रित हुई इस शैली को जैन गुजराती तथा पश्चमी शैली आदि नामों से भी जाना जाता है।
राठवा आदिवासी मूलतः अलीराजपुर जिले के भील आदिवासियों से संबंधित है यह लोग अलीराजपुर से ही गुजरात क्षेत्र में गए है । छोटा उदयपुर में राठवा आदिवासियों की आबादी अधिक है और इस नगर के अंतिम राठवा राजा कालिया भील थे जिन्हे १४८४ में मार दिया था। मुख्यरूप से छोटा उदयपुर के छोटा उदयपुर, कवांट, पावी-जेतपुर,संखेडा नसवाडी और बोडेली तालुका और पंचमहल जिला के हलोल, कलोल और बारीया तालुका में रहते है। राजा कालिया भील - छोटा उदयपुर के अंतिम राठवा राजा कालिया भील थे जिनकी हत्या १४८४ ईसवी में हुई थी। वर्ष १९८१ की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या ३०८६४० दर्ज है पिथोरा चित्रकला एक प्रकार की चित्रकला है। मध्य प्रदेश के पिथोरा क्षेत्र मे इस कला का उद्गम स्थल माना जाता है। इस कला के विकास में भील जनजाति के लोगों का योगदान उल्लेखनीय है। इस कला में पारम्परिक रंगों का प्रयोग किया जाता था। प्रायः घरों की दीवारों पर यह चित्रकारी की जाती थी परन्तु अद्यतन समय में यह कागजों, केन्वस, कपड़ों आदि पर की जाने लगी है। यह चित्रकला बड़ोदा से ९० किलोमीटर पर स्थित तेजगढ़ ग्राम (मध्य गुजरात) में रहने वाली राठवा जनजाति के लोगों द्वारा दीवारों पर बनाई जाती है।यहाँ के लोग रामदेव पीर को बहुत मानते है इसके अतिरिक्त छोटा उग्र जिले के तेजगढ़ व छोटा उदपुर, कवांट ताल्लुक के आसपास भी पिथोरा चित्रकला घरों की तीन भीतरी दीवारों में काफी संख्या में वहां रहने वाले जनजातीय लोगों के घरों में देखी जा सकती हैं। पिथोरा चित्रकला का इन जनजातीय लोगों के जीवन में विशेष महत्व है तथा उनका यह मानना है कि इस चित्रकला को घरों की दीवारों पर चित्रित करने से घर में शान्ति, खुशहाली व सौहार्द का विकास होता है। पिथोरा चित्रकला का चित्रण राठवा जाति के लोग ही सबसे अधिक करते हैं तथा अत्यन्त ही साधारण स्तर के किन्तु धार्मिक लोग होते हैं। इनके लिए पिथोरा बाबा अति विशिष्ठ व पूजनीय होते हैं। इस चित्रकला के चित्रण में ये लोग बहुत धन लगाते हैं तथा जो अपने घर में अधिकाधिक पिथोरा चित्र रखते हैं वे समाज में अति सम्माननीय होते हैं। पिथोरा चित्रकार को लखाड़ा कहा जाता है तथा जो इन चित्रकलाओं का खाता रखते हैं उन्हें झोखरा कहा जाता है। सर्वोच्च पद पर आसीन जो पुजारी धार्मिक अनुष्ठान करवाता है उसे बडवा या अध्यक्ष पुजारी कहते हैं। सामान्यत: लखाड़ा किसान होते हैं। इस् चित्रकला का चित्रण केवल पुरुष ही कर सकते हैं। खातों की देखरेख के अतिरिक्त लखाड़ा सामान्य चित्रण जैसे रंग भरने का कार्य ही पिथोरा चित्रकारों में शामिल होकर कर सकते हैं। वरिष्ठ कलाकारों के मार्गदर्शन में लखाड़ा अच्छे चित्रकार बन जाते हैं। महिलाओं के लिए पिथोरा चित्रण निषेध है। भारत की जनजातियाँ
'भेड़ियामानव () एक मिथक जीव है जो पौराणिक कहानियों में पाया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह असल में मानव होता है जो भेड़िए में परिवर्तित होने में सक्षम होता है। एक आम इंसान स्वयं होकर या श्राप के चलते या किसी अन्य भेडियामानव के दंश के कारण भेडियामानव बन सकता है। इसी परिवर्तन को अक्सर पूरनमासी के चाँद से जोड़ा जाता है। भेड़ियामानव पर कई कहानियाँ, उपन्यास, फिल्में, टीवी सीरियल और कॉमिक्स में वर्णित किया गया है !
सादोपुर गुरारू, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
नोकिया ३३५०, नोकिया द्वारा बनाया गया एक मोबाइल फ़ोन उपकरण है। इसे सन २००१ में बाज़ार में उपलब्ध कराया गया। यह सीडीएमए तकनीक पर कार्य करता है। यह नोकिया ३००० एक्सप्रेशन श्रृंखला का केंडीबार बनावट वाला व मोनोक्रोम रंग स्क्रीन लगा उत्पाद है। नोकिया के मोबाइल फ़ोन
राधा कमल मुखर्जी (७ दिसम्बर १८८९ - २४ अगस्त १९६८ ) आधुनिक भारत के प्रसिद्ध चिन्तक एवं समाजविज्ञानी थे। वे लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के प्राध्यापक तथा उपकुलपति रहे। उन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। प्रोफेसर मुकर्जी के ही नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सर्वप्रथम लखनऊ विश्वविद्यालय में १९२१ में समाजशास्त्र का अध्ययन प्रारम्भ हुआ इसलिए वे उत्तर प्रदेश में समाजशास्त्र के प्रणेता के रूप में भी विख्यात हैं। प्रोफेसर मुकर्जी वे इतिहास के अत्यन्त मौलिक दार्शनिक थे। वे २०वीं सदी के कतिपय बहुविज्ञानी सामाजिक वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्होंने विभिन्न विषयों- अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, परिस्थितिविज्ञान, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, साहित्य, समाजकार्य, संस्कृति, सभ्यता, कला, रहस्यवाद, संगीत, धर्मशास्त्र, अध्यात्म, आचारशास्त्र, मूल्य आदि विभिन्न अनुशासनों को अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है। इन समस्त क्षेत्रों में प्रोफेसर मुकर्जी की अद्वितीय देन उनके द्वारा प्रणयित ५० अमर कृतियों में स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है। भारत सरकार द्वारा उन्हें सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनकी बहुचर्चित पुस्तकें निम्न हैं। प्रोफेसर राधा कमल मुकर्जी का जन्म ७ दिसम्बर १८८९ को पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद जनपद के एक छोटे से कस्बे बहरामपुर में हुआ था। उन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा जुलाई १९०५ में कृष्णनाथ कालेजिएट स्कूल बहरामपुर से प्रारम्भ की। १९०४ में माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् उच्च शिक्षा हेतु कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश लिया। १९०८ में अंग्रेजी साहित्य एवं इतिहास तथा सामान्य विषय दर्शनशास्त्र के साथ स्नातक आनर्स परीक्षा उत्तीर्ण की। शिक्षक बनने का लक्ष्य बनाकर अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र विषय का चयन करके कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उसी वर्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र विषय का स्नातकोत्तर स्तर का संयुक्त पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया गया था। मुकर्जी का स्नातकोत्तर स्तर पर अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र का चयन अनायास ही नहीं था अपितु उनके ही शब्दों में कलकत्ता की बस्तियों में दुःख-दारिद्रय, गंदगी और अधःपतन के साथ जो मेरा आमने-सामने परिचय हुआ उसने मेरी भविष्य रूचि को अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र की ओर आकर्षित किया। देश एवं राष्ट्र के लिए अध्ययन के विचार से प्रभावित होकर उन्होंने स्नातकोत्तर स्तर पर अर्थशास्त्र विषय का चयन किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि अर्थशास्त्र ही भारतीय दरिद्रता, शोषण एवं आधीनता जैसे गम्भीर मुद्दों के वैज्ञानिक एवं उचित उत्तर दे सकता है। २१ वर्ष की आयु में वर्ष १९१० में एम.ए. अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र विषय की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के प्रथम समूह में थे। दिनचर्या एवं वेषभूषा प्रोफेसर मुकर्जी की दिनचर्या एवं वेष-भूषा का वर्णन करते हुए प्रोफेसर बंशीधर त्रिपाठी लिखते हैं ''प्रोफेसर मुकर्जी का जीवन घोर संयम की डोर से बँध गया था। वे ब्रह्म मुहूर्त में तीन बजे शैय्या छोड़ देते हैं; नित्य-कर्म के उपरान्त योगासन करते हैं। तदन्तर वे भजन-पूजन, ईश्वर-चिन्तन, आत्म-चिंतन करते हैं। श्रीमद्भागवत एवं श्रीमद्भगवदगीता का नियमित पाठ करते हैं। प्रातःकाल आठ बजे से लेखन-कार्य में जुट जाते हैं। वे नियमित रूप से प्रतिदिन तीन-चार घण्टे लेखन-कार्य करते हैं। इतना सब करके वे विभाग की ओर प्रस्थान करते हैं। विभागीय कार्य के उपरान्त वे समाजसेवा के विभिन्न कार्यों में अपना समय लगाते हैं। प्रोफेसर मुकर्जी की एक निर्धारित वेश-भूषा है। वे सफेद या हल्के पीले रंग की कमीज या बुशर्ट और पैंट पहनते हैं। जाड़े में वे बंद गले का कोट पहनते हैं। सिर पर गांधी टोपी लगाते हैं। टाई लगाने से उन्हें सख्त नफरत है। जहाँ तक संभव है वे खादी अथवा स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग करते हैं। वे भारतीय संस्कृति के जीते-जागते प्रतीक हैं। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र आदि विषयों में उनकी गहरी रुचि थी। कला का अध्ययन भी उनका प्रिय विषय था। उनकी विद्वता ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था। यूरोप और अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहाँ भाषण देने के लिए आमंत्रित करते रहते थे। भारतीय कलाओं के प्रति अपने अनुराग के कारण ही वे कई वर्षों तक लखनऊ के प्रसिद्ध भातखंडे संगीत महाविद्यालय और प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। १९५५ में लन्दन के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के जे. के. इंस्टीटयूट के निदेशक तो वे जीवन भर रहे। डॉ. राधाकमल मुखर्जी की मान्यता थी कि ज्ञान का अत्यधिक विखण्डन समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए अहितकर है। वे प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विचार धाराओं में समन्वय के समर्थक थे। राधाकमल मुखर्जी का देहावसान ललित कला अकादमी परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए २४ अगस्त, १९६८ में हुआ। राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान ललित कला अकादमी के द्वितीय अध्यक्ष डॉ. राधाकमल मुखर्जी का योगदान अकादमी के लिये अविस्मरणीय है। राधाकमल मुखर्जी का देहावसान अकादमी परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए हुआ था। ऐसे महान् पुरुष की स्मृति में वर्ष १९७० से प्रतिवर्ष डॉ. राधाकमल मुखर्जी व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत देश के ख्याति प्राप्त कलाकार, इतिहासकार तथा कला समीक्षकों को आमंत्रित किया जाता है। १९६२ पद्म भूषण १८८९ में जन्मे लोग निधन वर्ष अनुपलब्ध
शेल्डन () डॉ॰ जिरायुथ चुसानाचोटी द्वारा चैनल ३ के लिए निर्देशित एक थाई-सिंगापुर-अमेरिकी कंप्यूटर-एनिमेटेड बच्चों की टेलीविजन सीरीज है।
राजा मुहम्मद सफ़दर खान एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में | वह ना-६२ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है पाकिस्तानी पंजाब के लिएपाकिस्तानी पंजाब के प्रतिनिधियों - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा | पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य
मस्तिष्क की क्षति या मस्तिष्क के किसी रोग के कारण से याद करने की क्षमता में जो कमी आती है उसे स्मृतिलोप (अम्नेशिया) कहते हैं। किन्तु कुछ दवाओं के सेवन के कारण भी अस्थायी रूप से कम समय के लिए स्मृतिलोप दकी समस्या देखने को मिल सकता है। स्मृतिलोप मुख्यतः दो प्रकार का होता है: रेट्रोग्रेड अमेनेसिया और एंटरोग्रेड अमेनेसिया। रेट्रोग्रेड अमेनेसिया किसी विशेष तारीख से पहले अधिग्रहित की गई जानकारी को पुनर्प्राप्त करने में असमर्थता है, आमतौर पर दुर्घटना या संचालन की तारीख। [३] कुछ मामलों में स्मृति हानि दशकों तक बढ़ सकती है, जबकि अन्य में व्यक्ति केवल कुछ महीनों की स्मृति खो सकता है। एंटरोग्रेड अमेनेसिया अल्पकालिक स्टोर से लंबी अवधि की दुकान में नई जानकारी स्थानांतरित करने में असमर्थता है। इस प्रकार के अम्लिया वाले लोग लंबे समय तक चीजों को याद नहीं कर सकते हैं। ये दो प्रकार पारस्परिक रूप से अनन्य नहीं हैं; दोनों एक साथ हो सकता है। केस स्टडीज यह भी दिखाते हैं कि आम तौर पर मिनेसिया मध्यकालीन लौकिक लोब को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, हिप्पोकैम्पस (सीए १ क्षेत्र) के विशिष्ट क्षेत्र स्मृति के साथ शामिल हैं। शोध से यह भी पता चला है कि जब डायनेसफ्लोन के क्षेत्रों को क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है, तो भूलभुलैया हो सकती है। हाल के अध्ययनों ने आरबीएपी ४८ प्रोटीन और मेमोरी लॉस की कमी के बीच एक सहसंबंध दिखाया है। वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में सक्षम था कि क्षतिग्रस्त स्मृति वाले चूहों में सामान्य, स्वस्थ चूहों की तुलना में आरबीएपी ४८ प्रोटीन का निम्न स्तर होता है। [उद्धरण वांछित] अम्लिया से पीड़ित लोगों में, तत्काल जानकारी को याद करने की क्षमता अभी भी बरकरार है, [४] [पूर्ण उद्धरण आवश्यक] और वे अभी भी नई यादें बनाने में सक्षम हो सकते हैं। हालांकि, नई सामग्री सीखने और पुरानी जानकारी को पुनर्प्राप्त करने की क्षमता में गंभीर कमी देखी जा सकती है। मरीजों को नए प्रक्रियात्मक ज्ञान सीख सकते हैं। इसके अलावा, प्राइमिंग (अवधारणात्मक और वैचारिक दोनों) ताजा गैर-घोषणात्मक ज्ञान के सीखने में अमीरात की सहायता कर सकते हैं। [१] पूर्व शिक्षण एपिसोड में सामने आने वाली विशिष्ट जानकारी को याद करने की क्षमता में गहन हानि के बावजूद अमेनिक रोगियों ने भी बौद्धिक, भाषाई और सामाजिक कौशल को बरकरार रखा है। [५] [६] [७] यह शब्द ग्रीक से है, जिसका अर्थ है 'भूलना'; - (ए-) से, जिसका मतलब है 'बिना', और (मेनेसिस), जिसका अर्थ है 'स्मृति'। हैलो नई यादों का अधिग्रहण अम्लिया के साथ मरीज़ नई जानकारी, विशेष रूप से गैर-घोषणात्मक ज्ञान सीख सकते हैं। हालांकि, घने एंटरोग्रेड अमेनेसिया वाले कुछ रोगियों को एपिसोड याद नहीं है, जिसके दौरान उन्होंने पहले सूचना को सीखा या देखा। एंटरोग्रेड एमनेसिया वाले कुछ रोगी अभी भी कुछ अर्थपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, भले ही यह अधिक कठिन हो और शायद अधिक सामान्य ज्ञान से असंबंधित रहे। एच.एम. घर की एक फर्श योजना को सटीक रूप से आकर्षित कर सकती है जिसमें वह शल्य चिकित्सा के बाद रहता था, भले ही वह वर्षों में वहां नहीं रहा था। कारण रोगी नई एपिसोडिक यादें नहीं बना सकते हैं क्योंकि हिप्पोकैम्पस का सीए १ क्षेत्र घाव था, और इस प्रकार हिप्पोकैम्पस कॉर्टेक्स से कनेक्शन नहीं बना सका। शल्य चिकित्सा के बाद एक इस्किमिक एपिसोड के बाद, रोगी आरबी के एक एमआरआई ने सीएच १ पिरामिड कोशिकाओं तक सीमित एक विशिष्ट घाव को छोड़कर अपने हिप्पोकैम्पस को बरकरार रखा। [१] कुछ रेट्रोग्रेड और एंटरोग्रेड एमनेसिक्स गैर-घोषणात्मक स्मृति में सक्षम हैं, जिसमें अंतर्निहित शिक्षण और प्रक्रियात्मक शिक्षा शामिल है। उदाहरण के लिए, कुछ रोगी स्वस्थ लोगों के रूप में छद्म यादृच्छिक अनुक्रम प्रयोग में सुधार दिखाते हैं। इसलिए, प्रक्रियात्मक शिक्षा घोषणात्मक स्मृति के लिए आवश्यक मस्तिष्क प्रणाली से स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ सकती है। एफएमआरआई अध्ययनों के मुताबिक, प्रक्रियात्मक यादों का अधिग्रहण बेसल गैंग्लिया, प्रीमोटर कॉर्टेक्स और पूरक मोटर क्षेत्र, क्षेत्रों को सक्रिय करता है जो आम तौर पर घोषणात्मक यादों के गठन से जुड़े नहीं होते हैं। घोषणात्मक और प्रक्रियात्मक स्मृति के बीच इस प्रकार का विघटन कोर्सकॉफ सिंड्रोम जैसे डायनेस्फेलिक अम्नेसिया वाले रोगियों में भी पाया जा सकता है। कुछ रोगियों द्वारा प्रदर्शित एक और उदाहरण, जैसे कि के.सी. और एचएम, जिनके पास मध्यकालीन अस्थायी क्षति और एंटरोग्रेड अमेनेसिया है, अभी भी अवधारणात्मक प्राइमिंग है। उन रोगियों ने खंड पूर्णता परीक्षण शब्द में अच्छा प्रदर्शन किया। [१] तीन सामान्यीकृत श्रेणियां हैं जिनमें एक व्यक्ति द्वारा भूलभुलैया प्राप्त की जा सकती है। तीन श्रेणियां सिर आघात हैं (उदाहरण: सिर की चोटें), दर्दनाक घटनाएं (उदाहरण: दिमाग में कुछ विनाशकारी), या शारीरिक कमी (उदाहरण: हिप्पोकैम्पस का एट्रोफी)। अधिकांश खुशियां और संबंधित स्मृति मुद्दे पहले दो श्रेणियों से प्राप्त होते हैं क्योंकि ये अधिक आम हैं और तीसरे को पहले की उपश्रेणी माना जा सकता है। हेड आघात एक बहुत व्यापक सीमा है क्योंकि यह मस्तिष्क की ओर किसी प्रकार की चोट या सक्रिय कार्रवाई से संबंधित है जो अम्लता का कारण बन सकता है। रेट्रोग्रेड और एंटरोग्रेड एमनेशिया अक्सर इस तरह की घटनाओं से देखा जाता है, दोनों के कारण का एक सटीक उदाहरण इलेक्ट्रोशॉक थेरेपी होगा, जो प्राप्तकर्ता रोगी के लिए संक्षेप में दोनों का कारण बनता है। दर्दनाक घटनाएं अधिक व्यक्तिपरक हैं। दर्दनाक क्या है इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को दर्दनाक लगता है। भले ही, एक दर्दनाक घटना एक ऐसी घटना है जहां कुछ परेशान होता है कि मन तनाव से निपटने के बजाय भूलना चुनता है। दर्दनाक घटनाओं के कारण होने वाली अम्लिया का एक आम उदाहरण विघटनकारी भूलभुलैया है, जो तब होता है जब व्यक्ति ऐसी घटना को भूल जाता है जिसने उन्हें गहराई से परेशान किया है। [८] एक उदाहरण एक व्यक्ति होगा जो अपने प्रियजनों को शामिल करने वाली घातक और ग्राफिक कार दुर्घटना को भूल जाएगा। शारीरिक कमीएं सिर के आघात से अलग हैं क्योंकि शारीरिक कमीएं निष्क्रिय भौतिक मुद्दों की ओर अधिक निर्भर करती हैं। अम्नेसिया के विशिष्ट कारणों में निम्नलिखित हैं: इलेक्ट्रोकोन्वुलसिव थेरेपी जिसमें चिकित्सकीय प्रभाव के लिए रोगियों में दौरे विद्युत् रूप से प्रेरित होते हैं, दोनों प्रतिकृति और एंटरोग्रेड अमेनेसिया सहित तीव्र प्रभाव हो सकते हैं। [९] शराब दोनों ब्लैकआउट [१०] का कारण बन सकते हैं और स्मृति निर्माण पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। [११] एंटरोग्रेड अमेनेसिया मस्तिष्क के नुकसान के कारण नई यादें बनाने में असमर्थता है, जबकि घटना से पहले लंबी अवधि की यादें बरकरार रहती हैं। मस्तिष्क का नुकसान दीर्घकालिक शराब, गंभीर कुपोषण, स्ट्रोक, सिर आघात, एन्सेफलाइटिस, सर्जरी, वर्निकिक-कोर्साकॉफ सिंड्रोम, सेरेब्रोवास्कुलर घटनाओं, एनोक्सिया या अन्य आघात के प्रभावों के कारण हो सकता है। [१२] इस स्थिति से संबंधित दो मस्तिष्क क्षेत्र मध्यकालीन अस्थायी लोब और मध्यवर्ती डायनेन्सफ्लोन हैं। न्यूरोनल हानि के कारण एंटरोग्रेड अमेनेसिया का औषधीय तरीकों से इलाज नहीं किया जा सकता है। [१३] हालांकि, रोगियों को अपने दैनिक दिनचर्या को परिभाषित करने के लिए शिक्षित करने में उपचार मौजूद है और कई चरणों के बाद वे अपनी प्रक्रियात्मक स्मृति से लाभ उठाने लगते हैं। इसी तरह, एंटरोग्रेड अमेनेसिया पीड़ितों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए सामाजिक और भावनात्मक समर्थन महत्वपूर्ण है। [१३] ओपियोड उपयोगकर्ताओं द्वारा फेंटनियल उपयोग को बोस्टन, एमए में हुए मामलों के समूह में संभावित कारण के रूप में पहचाना गया है। [१४] रेट्रोग्रेड अमेनेसिया अम्लिया की शुरुआत से पहले यादों को याद करने में असमर्थता है। घटना के बाद कोई नई यादें एन्कोड करने में सक्षम हो सकता है। रेट्रोग्रेड आम तौर पर हिप्पोकैम्पस के अलावा मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में सिर के आघात या मस्तिष्क के नुकसान के कारण होता है। हिप्पोकैम्पस नई मेमोरी एन्कोडिंग के लिए ज़िम्मेदार है। एपिसोडिक मेमोरी अर्थपूर्ण स्मृति से प्रभावित होने की अधिक संभावना है। नुकसान आमतौर पर सिर के आघात, सेरेब्रोवास्कुलर दुर्घटना, स्ट्रोक, ट्यूमर, हाइपोक्सिया, एन्सेफलाइटिस या पुरानी शराब के कारण होता है। प्रतिकृति अमेनेसिया से पीड़ित लोगों को विशिष्टताओं के बजाय सामान्य ज्ञान याद रखने की अधिक संभावना है। हाल की यादें पुनर्प्राप्त होने की संभावना कम है, लेकिन समय के साथ मजबूत होने के कारण पुरानी यादें याद रखना आसान हो जाएगा। [१५] रेट्रोग्रेड अमेनेसिया आमतौर पर अस्थायी होता है और उन्हें नुकसान से यादों को उजागर करके इलाज किया जा सकता है। [१६] एक और प्रकार की समेकन (प्रक्रिया जिसके द्वारा मस्तिष्क में यादें स्थिर हो जाती हैं) समय / दिन, सप्ताह, महीनों और वर्षों की लंबी अवधि में होती है और संभवतः हिप्पोकैम्पस से जानकारी को स्थानांतरित करने में कॉर्टेक्स में अधिक स्थायी भंडारण साइट शामिल होती है। इस दीर्घकालिक समेकन प्रक्रिया का संचालन हिप्पोकैम्पल क्षति वाले मरीजों के रेट्रोग्रेड अमेनेसिया में देखा जाता है जो अपेक्षाकृत सामान्य रूप से बचपन से यादों को याद कर सकते हैं, लेकिन जब वे अमेज़ॅन बनने के कुछ ही वर्षों पहले हुए अनुभवों को याद करते हैं तो वे प्रभावित होते हैं। (किरण एट अल।, २००८) पोस्ट-आघात संबंधी भूलभुलैया आम तौर पर सिर की चोट के कारण होती है (उदाहरण: एक गिरावट, सिर पर दस्तक)। दर्दनाक अम्लिया अक्सर क्षणिक होता है, लेकिन यह स्थायी या या तो एंटरोग्रैड, रेट्रोग्रेड, या मिश्रित प्रकार हो सकता है। अम्नेसिया द्वारा कवर की गई अवधि की सीमा चोट की डिग्री से संबंधित है और अन्य कार्यों की वसूली के लिए पूर्वानुमान का संकेत दे सकती है। मामूली आघात, जैसे कार दुर्घटना, जिसके परिणामस्वरूप हल्के व्हीप्लाश से अधिक नहीं होता है, शॉर्ट / दीर्घावधि मेमोरी ट्रांसफर मैकेनिज्म में थोड़ी देर के बाधा के कारण दुर्घटना से ठीक पहले किसी कार के मालिक को क्षणों की याद नहीं आती है। । पीड़ित भी जान सकते हैं कि लोग कौन हैं। चोट के बाद लंबे समय तक अम्लता या चेतना होने का संकेत यह हो सकता है कि शेष कसौटी के लक्षणों से वसूली में काफी समय लगेगा। [१७] सिर की चोट, शारीरिक आघात या बीमारी के कारण मस्तिष्क को सीधी क्षति के विरोध में एक मनोवैज्ञानिक कारण से विषाक्त अम्लिया परिणाम, जिसे जैविक अम्लिया के रूप में जाना जाता है। विच्छेदक भूलभुलैया में शामिल हो सकते हैं: दमन की याददाश्त जानकारी को याद करने में असमर्थता है, आम तौर पर हिंसक हमले या आपदा जैसे व्यक्तियों के जीवन में तनावपूर्ण या दर्दनाक घटनाओं के बारे में। स्मृति लंबी अवधि की स्मृति में संग्रहीत है, लेकिन मनोवैज्ञानिक रक्षा तंत्र के कारण इसकी पहुंच खराब है। व्यक्ति नई जानकारी सीखने की क्षमता बनाए रखते हैं और कुछ बाद में आंशिक या स्मृति की पूरी वसूली हो सकती है। पूर्व में "साइकोोजेनिक अमेनेसिया" के रूप में जाना जाता है। विषाक्त फ्यूगू (पूर्व में मनोवैज्ञानिक फ्यूगू) को फ्यूगू राज्य भी कहा जाता है। यह मनोवैज्ञानिक आघात के कारण होता है और आमतौर पर अस्थायी और अनसुलझा होता है, और इसलिए वापस आ सकता है। विघटनकारी फ्यूगू डिसऑर्डर वाला व्यक्ति अनजान या उसकी पहचान के बारे में उलझन में है और नई पहचानों को खोजने या बनाने के लिए परिचित परिवेश से दूर यात्रा में यात्रा करेगा। [१८] मर्क मैनुअल इसे "अम्नेसिया के एक या एक से अधिक एपिसोड" के रूप में परिभाषित करता है जिसमें मरीज़ कुछ या सभी अतीत को याद नहीं कर सकते हैं और या तो अपनी पहचान खो देते हैं या एक नई पहचान बनाते हैं। एपिसोड, जिन्हें फ्यूग्स कहा जाता है, आघात या तनाव से होता है। अक्सर विच्छेदनपूर्ण फगू घर से दूर अचानक, अप्रत्याशित, उद्देश्यपूर्ण यात्रा के रूप में प्रकट होता है। "[१ ९] कथाओं में लोकप्रिय होने पर, यह बेहद दुर्लभ है। पॉस्थ्यप्नोटिक भूल जाता है जब सम्मोहन के दौरान घटनाओं को भुला दिया जाता है, या जहां पिछली यादें याद करने में असमर्थ हैं। उन घटनाओं को याद करने में विफलता सम्मोहन के दौरान किए गए सुझावों से प्रेरित होती है। [२०] लैकुनर एमनेसिया एक विशिष्ट घटना के बारे में स्मृति का नुकसान है। बचपन में अम्लिया (जिसे शिशु अम्नेसिया भी कहा जाता है) अपने बचपन से घटनाओं को याद रखने में सामान्य अक्षमता है। सिगमंड फ्रायड ने कुख्यात रूप से यौन दमन के लिए जिम्मेदार ठहराया, जबकि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण आमतौर पर इसे मस्तिष्क के विकास के पहलुओं या भाषा विकास सहित विकास मनोविज्ञान के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, यही कारण है कि लोग आसानी से पूर्व-भाषा की घटनाओं को याद नहीं करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि निहित यादों को याद या वर्णित नहीं किया जा सकता है। पियानो को कैसे खेलना याद रखना एकमात्र स्मृति का एक आम उदाहरण है, जैसे चलना, बोलना और अन्य रोजमर्रा की गतिविधियों को ध्यान में रखना मुश्किल होगा यदि उन्हें सुबह में उठने पर हर बार रिलीज़ किया जाना था। दूसरी तरफ, स्पष्ट यादें, शब्दों में याद और वर्णित की जा सकती हैं। एक शिक्षक से मिलने पहली बार याद रखना स्पष्ट यादों का एक उदाहरण है। [२१] क्षणिक वैश्विक अम्लिया एक अच्छी तरह से वर्णित चिकित्सा और नैदानिक घटना है। हिपोकैम्पस में उस असामान्यताओं में अम्लिया का यह रूप अलग-अलग होता है जिसे कभी-कभी मस्तिष्क के चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग के एक विशेष रूप से प्रसारित किया जा सकता है जिसे प्रसार-भारित इमेजिंग (डीडब्ल्यूआई) कहा जाता है। लक्षण आमतौर पर एक दिन से भी कम समय तक चलते हैं और अक्सर कोई स्पष्ट प्रक्षेपण कारक या कोई अन्य न्यूरोलॉजिकल घाटे नहीं होते हैं। इस सिंड्रोम का कारण स्पष्ट नहीं है। सिंड्रोम की परिकल्पना में क्षणिक कम रक्त प्रवाह, संभावित जब्त या माइग्रेन का एक अटूट प्रकार शामिल है। मरीजों को आम तौर पर अतीत में कुछ मिनटों से अधिक घटनाओं की अनावश्यक होती है, हालांकि तत्काल याद को आमतौर पर संरक्षित किया जाता है। स्रोत भूलभुलैया याद रखने में असमर्थता है कि तथ्यात्मक ज्ञान को बनाए रखते हुए, कब या कैसे पहले से सीखा गया जानकारी हासिल की गई है। [२२] कोर्साकॉफ सिंड्रोम दीर्घकालिक शराब या कुपोषण से हो सकता है। यह विटामिन बी १ की कमी के कारण मस्तिष्क की क्षति के कारण होता है और शराब का सेवन और पोषण पैटर्न संशोधित नहीं होने पर प्रगतिशील होगा। इस प्रकार के अम्नेसिया के संयोजन में अन्य तंत्रिका संबंधी समस्याएं मौजूद होने की संभावना है। कोर्सकॉफ सिंड्रोम भी कॉन्फाबुलेशन से जुड़ा हुआ जाना जाता है। व्यक्ति की शॉर्ट-टर्म मेमोरी सामान्य प्रतीत हो सकती है, लेकिन व्यक्ति को पिछली कहानी, या असंबंधित शब्दों के साथ-साथ जटिल पैटर्न को याद करने का प्रयास करने में मुश्किल हो सकती है। [२३] ड्रग-प्रेरित एमनेसिया जानबूझकर एक अनावश्यक दवा के इंजेक्शन के कारण होता है ताकि रोगी को सर्जरी या चिकित्सा प्रक्रियाओं को भूलने में मदद मिल सके, विशेष रूप से पूर्ण संज्ञाहरण के तहत नहीं किया जाता है, या विशेष रूप से दर्दनाक होने की संभावना है। ऐसी दवाओं को "प्रीमेडिकेंट्स" के रूप में भी जाना जाता है। सबसे आम तौर पर, २-हलोजनयुक्त बेंजोडायजेपाइन जैसे कि मिडज़ोलम या फ्लुनिट्राज़ेपम पसंद की दवा है, हालांकि इस आवेदन के लिए प्रोपोफोल या स्कोपोलमाइन जैसी अन्य दृढ़ता से अनावश्यक दवाओं का भी उपयोग किया जा सकता है। कम समय-फ्रेम की यादें जिसमें प्रक्रिया की गई थी, स्थायी रूप से खो जाती है या कम से कम काफी कम हो जाती है, लेकिन एक बार दवा पहनने के बाद, स्मृति अब प्रभावित नहीं होती है। स्थिति-विशिष्ट अम्लिया विभिन्न परिस्थितियों में उत्पन्न हो सकती है (उदाहरण के लिए, अपराध करना, बाल यौन शोषण करना) जिसके परिणामस्वरूप पस्ड होती है। यह दावा किया गया है कि इसमें केंद्रीय अवधारणात्मक विवरणों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ चेतना को संकुचित करना शामिल है और / या भावनात्मक या दर्दनाक घटनाओं को सामान्य यादों से अलग तरीके से संसाधित किया जाता है। क्षणिक मिर्गी एमेनिशिया अस्थायी लोब मिर्गी का एक दुर्लभ और अपरिचित रूप है, जो आम तौर पर एक एपिसोडिक पृथक स्मृति हानि है। इसे एंटी-मिर्गी दवाओं के लिए अनुकूल उपचार-प्रतिक्रियाशील सिंड्रोम के रूप में पहचाना गया है। [२४] अम्लिया के कई रूपों का इलाज किए बिना खुद को ठीक करें। [२५] हालांकि, अगर ऐसा नहीं है तो स्मृति हानि से निपटने के कुछ तरीके हैं। इन तरीकों में से एक संज्ञानात्मक या व्यावसायिक थेरेपी है। थेरेपी में, एमनेशियाक उनके पास मेमोरी कौशलों का विकास करेंगे और उन चीज़ों को वापस पाने का प्रयास करेंगे जो वे खो चुके हैं, यह जानने के लिए कि कौन सी तकनीक यादें पुनर्प्राप्त करने या नए पुनर्प्राप्ति पथ बनाने में मदद करती है। [२६] इसमें जानकारी को व्यवस्थित करने के लिए रणनीतियों को और अधिक आसानी से याद रखने और लंबी बातचीत की समझ में सुधार के लिए रणनीतियां शामिल हो सकती हैं। [२७] एक और मुकाबला तंत्र तकनीकी सहायता का लाभ उठा रहा है, जैसे व्यक्तिगत डिजिटल डिवाइस, दिन-प्रति-दिन कार्यों का ट्रैक रखने के लिए। दवाओं, जन्मदिन और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं को लेने के लिए, नियुक्तियों के लिए अनुस्मारक स्थापित किए जा सकते हैं। कई चित्रों को मित्रों, परिवार और सहकर्मियों के नाम याद रखने में मदद करने के लिए भी संग्रहीत किया जा सकता है। [२६] नोटबुक, दीवार कैलेंडर, गोली अनुस्मारक और लोगों और स्थानों की तस्वीरें कम तकनीक मेमोरी एड्स हैं जो भी मदद कर सकती हैं। [२७] जबकि अम्लिया के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है, अंतर्निहित चिकित्सा स्थितियों का इलाज स्मृति में सुधार के लिए किया जा सकता है। ऐसी स्थितियों में मस्तिष्क में कम थायरॉइड फ़ंक्शन, यकृत या गुर्दे की बीमारी, स्ट्रोक, अवसाद, द्विध्रुवीय विकार और रक्त के थक्के तक सीमित नहीं हैं। [२८] वर्निके-कोर्साकॉफ सिंड्रोम में थियामिन की कमी और थियमिन युक्त समृद्ध खाद्य पदार्थ जैसे पूरे अनाज अनाज, फलियां (सेम और मसूर), पागल, दुबला सूअर का मांस, और खमीर का उपभोग करके इस विटामिन को बदलना शामिल है। [२५] शराब का इलाज और अल्कोहल और अवैध दवाओं के उपयोग को रोकने से और नुकसान हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में खोई हुई स्मृति को ठीक नहीं किया जाएगा। [२७] यद्यपि सुधार तब होते हैं जब रोगियों को कुछ उपचार मिलते हैं, फिर भी अब तक अम्लिया के लिए कोई वास्तविक उपचार उपाय नहीं है। रोगी कितनी हद तक ठीक हो जाता है और कितनी देर तक मूत्र जारी रहेगा घाव के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक मॉड्यूल-आर्मंड रिबोट अमेज़ॅनिया का अध्ययन करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने रिबोट्स लॉ का प्रस्ताव दिया जो कहता है कि रेट्रोग्रेड अमेनेसिया में समय ढाल है। कानून बीमारी के कारण स्मृति हानि की तार्किक प्रगति का पालन करता है। सबसे पहले, एक रोगी हाल की यादों, फिर व्यक्तिगत यादें, और अंततः बौद्धिक यादें खो देता है। उन्होंने निहित किया कि सबसे हाल की यादें पहले खो गई थीं। [३०] केस स्टडीज ने अम्नेसिया की खोज और मस्तिष्क के कुछ हिस्सों की खोज में बड़ी भूमिका निभाई है। अध्ययनों ने मस्तिष्क को प्रभावित करने के तरीके में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि दी। अध्ययनों ने वैज्ञानिकों को एक इलाज या रोकथाम में अम्लता और अंतर्दृष्टि के बारे में अपने ज्ञान में सुधार करने के संसाधन भी दिए। कई अत्यंत महत्वपूर्ण केस स्टडीज हैं: हेनरी मोलाइसन, आरबी, और जीडी। पूर्व में एचएम के रूप में जाने वाले हेनरी मोलाइसन ने लोगों को स्मृति के बारे में सोचा। मामले की पहली बार १ ९ ५७ में विलियम बीचर स्कोविल और ब्रेंडा मिलनर द्वारा एक पेपर में रिपोर्ट की गई थी। [3१] वह एक मरीज था जो नौ साल की उम्र में साइकिल दुर्घटना के कारण गंभीर मिर्गी से पीड़ित था। चिकित्सक दवाओं के साथ अपने दौरे को नियंत्रित करने में असमर्थ थे, इसलिए न्यूरोसर्जन स्कोविल ने मस्तिष्क सर्जरी से जुड़े एक नए दृष्टिकोण की कोशिश की। उन्होंने एक अस्थायी लोबेटोमी करके द्विपक्षीय रूप से अपने मध्यवर्ती अस्थायी लोब को हटा दिया। उनके मिर्गी में सुधार हुआ, लेकिन मोलाइसन ने नई दीर्घकालिक यादें (एंटरोग्रेड अमेनेसिया) बनाने की क्षमता खो दी। उन्होंने सामान्य शॉर्ट-टर्म मेमोरी क्षमता प्रदर्शित की। अगर उन्हें शब्दों की सूची दी गई, तो वह उन्हें लगभग एक मिनट के समय में भूल जाएंगे। वास्तव में, वह भूल जाएगा कि उसे पहले स्थान पर भी एक सूची दी गई थी। [३२] एक बार मोलाइसन ने सूचियों के बारे में सोचने से रोक दिया तो वह उन्हें दीर्घकालिक स्मृति से फिर से याद करने में असमर्थ था। इसने शोधकर्ताओं को सबूत दिया कि अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्मृति वास्तव में दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं। [३३] भले ही वह सूचियों के बारे में भूल गया, फिर भी वह अपनी अंतर्निहित स्मृति के माध्यम से चीजों को सीखने में सक्षम था। मनोवैज्ञानिक उन्हें कागज के टुकड़े पर कुछ आकर्षित करने के लिए कहेंगे, लेकिन एक दर्पण का उपयोग करके पेपर को देखने के लिए। हालांकि वह कभी भी उस कार्य को कभी याद नहीं रख सकता था, फिर भी वह बार-बार ऐसा करने के बाद सुधार करेगा। इससे मनोवैज्ञानिकों ने दिखाया कि वह बेहोशी से चीजों को सीख रहा था और याद कर रहा था। [३४] अमेनेसिया के बारे में अधिक जानने के लिए अध्ययन मोलाइसन के जीवन भर में लगातार पूरा हो गए। [१] शोधकर्ताओं ने मोलाइसन पर १4 साल का अनुवर्ती अध्ययन किया। उन्होंने अपनी भूलभुलैया के बारे में और जानने के लिए दो सप्ताह की अवधि के लिए अध्ययन किया। १4 सालों के बाद, मोलाइसन अभी भी अपनी सर्जरी के बाद हुई चीजों को याद नहीं कर सका। हालांकि, वह अभी भी उन चीजों को याद कर सकता था जो ऑपरेशन से पहले हुआ था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि, जब पूछा गया, मोलाइसन राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के बारे में सवालों का जवाब दे सकता है, लेकिन वह अपनी व्यक्तिगत यादों को याद नहीं कर सका। [३२] उनकी मृत्यु के बाद मोलाइसन ने अपने मस्तिष्क को विज्ञान में दान दिया, जहां वे मस्तिष्क के उन क्षेत्रों को खोजने में सक्षम थे जिनके घावों में उनकी भूल होती है। [३३] इस मामले के अध्ययन ने मस्तिष्क के उन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की जो एंटरोग्रेड अम्नेसिया में प्रभावित होते हैं, साथ ही साथ अमेनिशिया कैसे काम करता है। रोगी आरबी ५२ वर्ष की उम्र तक आम तौर पर काम करने वाला व्यक्ति था। ५० साल की उम्र में, उसे एंजिना का निदान किया गया था और दो मौकों पर दिल की समस्याओं के लिए सर्जरी हुई थी। एक हाइस्किक एपिसोड (मस्तिष्क को रक्त में कमी) के बाद जो हृदय बाईपास सर्जरी से उत्पन्न हुआ था, आरबी ने अपनी सर्जरी से कुछ साल पहले अपवाद के साथ एंटरोग्रेड मेमोरी का नुकसान दिखाया, लेकिन रेट्रोग्रेड मेमोरी का लगभग कोई नुकसान नहीं हुआ, और किसी भी अन्य संज्ञानात्मक हानि का कोई संकेत प्रस्तुत नहीं किया। उनकी मृत्यु के बाद तक शोधकर्ताओं को अपने दिमाग की जांच करने का मौका नहीं मिला, जब उन्हें पता चला कि उनके घाव हिप्पोकैम्पस के सीए १ भाग तक सीमित थे। इस मामले के अध्ययन में हिप्पोकैम्पस की भूमिका और स्मृति के कार्य को शामिल करने में महत्वपूर्ण अनुसंधान हुआ। रोगी जीडी १ ९ ४० में पैदा हुए एक सफेद पुरुष थे जिन्होंने नौसेना में सेवा की थी। उन्हें पुरानी गुर्दे की विफलता का निदान किया गया था और उनके बाकी के जीवन के लिए हेमोडायलिसिस उपचार प्राप्त हुआ था। १ ९ ८३ में, वह वैकल्पिक पैराथीरोइडक्टोमी के लिए अस्पताल गए। उसके बाएं लोब में खून की गंभीर हानि के कारण भी उसने थायराइड लोबेटोमी छोड़ा था। सर्जरी के परिणामस्वरूप उन्हें हृदय संबंधी समस्याएं शुरू हुईं और बहुत उत्तेजित हो गईं। अस्पताल से रिहा होने के पांच दिन बाद भी वह याद नहीं कर पाया कि उसके साथ क्या हुआ था। स्मृति हानि के अलावा, उनकी कोई अन्य संज्ञानात्मक प्रक्रिया प्रभावित नहीं हुई। वह ज्यादा शोध में शामिल नहीं होना चाहता था, लेकिन डॉक्टरों के साथ मेमोरी परीक्षणों के माध्यम से, वे यह पता लगाने में सक्षम थे कि उनकी मृत्यु की समस्या अगले ९ .५ वर्षों तक उनकी मृत्यु तक मौजूद थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके दिमाग को विज्ञान, फोटोग्राफ और भविष्य के अध्ययन के लिए संरक्षित किया गया था। इन्हें भी देखें
नबग्राम (नबाग्राम) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के पुरुलिया ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें पश्चिम बंगाल के शहर पुरुलिया ज़िले के नगर
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील चंदौसी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२२ चंदौसी तहसील के गाँव
लाम्डा वलोरम, जिसका बायर नाम भी यही ( वेलोरम या वेल) है, पाल तारामंडल का एक तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ६३वाँ सब से रोशन तारा है। पृथ्वी से देखी गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +२.२३ मैग्नीट्यूड है और यह पृथ्वी से लगभग ५७० प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। यह एक क श्रेणी का चमकीला दानव या महादानव तारा है। लाम्डा वलोरम एक परिवर्ती तारा भी है जिसकी चमक समय के साथ-साथ +२.१४ से +२.३० मैग्नीट्यूड के बीच चढ़ती-उतरती रहती है। अन्य भाषाओँ में लाम्डा वलोरम तारे को कभी-कभी सुहैल (सुहेल) भी कहते है, लेकिन यही नाम गामा वलोरम तारे के लिए भी प्रयोग होता है जिस से असमंजस बन सकता है। यह अरबी भाषा के "अल-सुहैल अल-वज़न" () से लिया गया है, जिसका मतलब "वज़न वाला तेजस्वी (तारा)" है। लाम्डा वलोरम एक क४.५ इब-ई श्रेणी का तारा है। इसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान का ९ गुना और व्यास हमारे सूरज के व्यास का २०० गुना है। इसकी निहित चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) सूरज की लगभग १०,००० गुना है। इसका सतही तापमान ४,००० कैल्विन है। इस तारे की आयु केवल २.७ करोड़ साल अनुमानित की गई है (तुलना के लिए हमारे सूरज की उम्र ४.५७ अरब साल है)। महादानव तारे अपना नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) बहुत तेज़ी से चलते हैं जिस से यह कम उम्र के ही मिलते हैं। इन्हें भी देखें चमकीला दानव तारा हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
शाद बाग , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर शहर का एक इलाक़ा और एक यूनियन परिषद् है। यह लाहौर का एक प्रमुख इलाक़ा है। शहर के अन्य इलाक़ों के सामान ही यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा समझी और शिक्षा तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उपयोग की जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। लाहौर की वाणिज्यिक, आर्थिक महत्व के कारण यहाँ पाकिस्तान के लगभग सारे प्रांतों के लोग वास करते हैं। इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन लाहौर के यूनियनों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-१९९८ की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) लाहौर के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
दंडनायक प्राचीन भारतीय शासनयंत्र का एक अधिकारी था। प्राय: इस पदवी का प्रयोग किसी सेनाधिकारी (दंड = सेना अथवा बल का नायक = नेता या अधिकारी) के लिये किया जाता था। किंतु दंडनायक से तात्पर्य सर्वदा किसी सैनिक अधिकारीअधिकारी से ही होता हो, ऐसी बात नहीं। उसका प्रयोग आधुनिक मजिस्ट्रेट अथवा मध्यकालीन फौजदार जैसे अधिकारियों के लिये भी कभी-कभी किया जाता था। यदा-कदा दंडनायक के कार्यक्षेत्र में कुछ गाँवों के समूह की रक्षा का भी कार्य होता था। प्राचीन भारतीय अभिलेखों में दंडनायकों के उल्लेख प्राय: मिलते हैं, तथापि उनके कार्यों का कोई निश्चित स्वरूप बता सकना कठिन है। अधिकारों की व्यापकता अथवा बड़ी बड़ी सेनाओं के संचालन के कार्यभार के कारण साधारण दंडनायकों से बड़े अधिकारी भी होते थे, जिन्हें महादंडनायक, महाप्रचंडदंडनायक अथवा सर्वदंडनायक कहा जाता था। डणायक, डणांग, डनायक एवं डनाक उपनाम दंडनायक के ही अपभृंश हैं।
जामिरपानी, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा जामिरपानी, पिथौरागढ (सदर) तहसील जामिरपानी, पिथौरागढ (सदर) तहसील
इस लेख में १९३८ (जब आस्ट्रिया पर कब्जा हुआ था) से लेकर १९४५ तक के काल में सैन्य-उत्पादन (हथियारों, गोलाबारूद, कर्मचारियों के उत्पादन) के बारे में है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सैनिक उपकरणों के उत्पादन और सैन्य बलों के आपूर्ति के लिए धन, लोगों, प्राकृतिक संसाधनों और पदार्थों का प्रबन्धन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य था। इस संघर्ष के में मित्रराष्ट्रों ने अधिकांश उत्पादन-श्रेणियों में धुरी के राष्ट्रों को पीछे छोड़ दिया।
कक्षीय तंत्र या एस्ट्रोडायनामिक्स में, व या डेल्टा-व (शाब्दिक : "वेग में परिवर्तन") एक अदिश है, जो गति की इकाइयां रखता है | इसकी गणना, एक प्रक्षेपवक्र से दूसरे में जाने के लिए आवश्यक ' ' प्रयास ' ' की मात्रा से की जाती है | सीधे शब्दों में डेल्टा-व, अंतरिक्ष यान द्वारा कक्षा बदलने के लिए, एक कक्षा से दूसरी कक्षा में छलांग लगाने के लिए आवश्यक प्रयास या अतिरिक्त धक्का या ऊर्जा की मात्रा है | अंतरिक्ष यान प्रणोदन
लालडेंगा एक मिज़ो राष्ट्रवादी नेता थे। और मिज़ोरम राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। साल १९५९ के अकाल के बाद, जिसमें कम से कम १०० लोगों की मौत हो गई थी और मानव संपत्ति व फसल का भारी नुकसाना हुआ था। लालडेंगा की अगुवाई में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने भारत सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए २० साल लंबी छापामार लड़ाई लड़ी। इसके बाद केंद्र के साथ १९८६ में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।३० जून १९८६ को भारत सरकार और मिजो विद्रोहियों के बीच मिजोरम समझौता हुआ था। लालडेंगा विद्रोही मिजो नेशनल फ्रंट के नेता थे और पूर्व के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के आदेश पर जेल में बंद किया गया था।वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल ने लालडेंगा का मुकदमा लड़ा और उन्हें बाहर निकालने में सफल रहे। कौशल ने हालांकि न केवल लालडेंगा को रिहा कराया बल्कि उन्होंने बाद में मिजो विद्रोहियों और सरकार के बीच होने वाले समझौते में भी अहम भूमिका निभाई। उनकी कोशिशों की वजह से ३० जून १९८६ को मिजोरम समझौता हुआ। एमएनएफ अब एक क्षेत्री राजनीतिक दल है। मिजोरम भारतीय संघ का २० फरवरी १९८७ को २३वां राज्य बना। मिज़ोरम के मुख्यमंत्री
मायापुर डुमरिया, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
अयोध्या प्रसाद उपाध्याय हरिऔध द्वारा रचित बाल साहित्य की प्रसिद्ध पुस्तक।
राजपाल त्यागी,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। २००७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मुरादनगर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश १५वीं विधान सभा के सदस्य मुरादनगर के विधायक
जीन-जोसेफ सैनफोरचे, जिसे केवल सैनफोरचे के रूप में जाना जाता है, एक फ्रांसीसी चित्रकार, कवि, डिजाइनर और मूर्तिकार है, जिसका जन्म २५ जून, १९२९ को बोर्डो में हुआ था और १३ मार्च २०१० को सेंट-लियोनार्ड-डी-नोबलाट में निधन हो गया। उन्होंने कला क्रूरता का अभ्यास किया और गैस्टन चिसैक, जीन डबफेट, रॉबर्ट डूसन्यू के मित्र थे, जिनके साथ उन्होंने एक पत्राचार बनाए रखा।
विहंगम योग, योग एवं ध्यान का एक विद्यालय है। विश्व के ५० से अधिक देशों में इसकी शाखाएँ हैं। इनका कहना है कि ये एक प्राचीन योग पद्धति की शिक्षा देते हैं। इस विद्यलय की स्थापना सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने १९२४ में किया था। कोई ६ करोड़ लोग इसके सदस्य हैं। विहंगम योग ध्यान की एक प्राचीन पद्धति है जिसे सद्गुरु सदाफल देव ने पुनर्जीवित किया था। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (इकोसॉक) ने सन २०१३ में अन्य १६० संस्थानों के साथ प्रयागराज स्थित "गुरु सदाफल देव विहंगम योग संस्थान" को भी विहंगम योग को "विशेष परामर्शदात्री" के रूप में स्वीकृति दी थी। सद्गुरु द्वारा रचित ग्रन्थ सद्गुरु सदाफल देव महाराज ने अपने १७ वर्ष के हिमालय एवं अन्य गुफओं के प्रवास में अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनमें से स्वर्वेद सबसे विलक्षण और पवित्र है। स्वर्वेद न केवल चेतना की तत्वमीमांसा का विज्ञान है बल्कि उसमें बताये गये चरणबद्ध आध्यात्मिक पद्धति को किसी सद्गुरु के सानिध्य में करके ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सत्ता का अनुभव किया जा सकता है। स्वर्वेद की रचना गुरुदेव नेण १९३८ में अपने हिमालय की गुफा में की थी। इसमें उन्होनें अपनी चैतन्य योग समाधि के समय के अनुभव का वर्णन किया है। इसमें सरल भाषा में ३९०६ दोहे हैं। इसके साथ ही उन दोहों का अभिप्राय भी दिया है। स्वर्वेद को पढ़ने से हमारी आन्तरिक आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत हो जाती है, इससे हमारे सारे आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान मिल जाता है। स्वामीजी ने विहंगम योग सन्देश नामक मासिक पत्रिका भी आरम्भ की जिसका प्रकाशन १९५० से होता आ रहा है। इस पत्रिका में ब्रह्मविद्या की जानकारी दी जाती है जिसके द्वारा हम अपने जीवन में सुख, शान्ति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं। अधिक जानकारी के देंखे विहंगमयोग का जालस्थल विहंगम योग सन्देश
स्वाँग एक लोकनाट्य रूप है जिसमें किसी रूप को स्वयं में आरोपित कर उसे प्रस्तुत किया जाता है। राजस्थान राज्य के लोकनाट्य रूपों में एक परम्परा 'स्वांग' की भी है। स्वांग में किसी प्रसिद्ध रूप की नकल रहती है। इस प्रकार से स्वांग का अर्थ किसी विशेष, ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र, लोकसमाज में प्रसिद्ध चरित्र या देवी, देवता की नकल में स्वयं का शृंगार करना, उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करना एवं उसी के चरित्र विशेष के अनुरूप अभिनय करना है। यह स्वांग विशेष व्यक्तित्व की नकल होते हुए भी बहुत जीवन्त होते हैं कि इनसे असली चरित्र होने का भ्रम भी हो जाता है। इसे बहलोल नाम से भी जाना जाता है।
सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स () दक्षिण पूर्व विंडवार्ड द्वीपसमूह में लेस्सर एंटिल्स द्वीप चाप में एक बहु द्वीपीय एंग्लो-कैरेबियन देश है, जो कैरिबियन सागर में पूर्वी सीमा के दक्षिणी छोर पर वेस्टइंडीज में स्थित है, जहाँ कैरिबियन सागर अटलांटिक महासागर से मिलता है। इस संप्रभु राज्य को अक्सर सेंट विंसेंट के नाम से भी जाना जाता है। सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स
पुराणों और वेदों में उन्नति को भगवान विष्णु के वाहन गरुड़देव की पत्नी और पक्षियों की रानी बताया गया है | उन्नति ने एक अन्डा प्रसव किया था उस अन्डे से महाबलशाली गरुड़ सुमुख का जन्म हुआ| वेदों और पुराणों में इनकी विशेष महत्वता है तथा प्राचीन ग्रन्थों में इनका निवास गरुड़ के साथ बैकुंठ में बताया गया है | कुछ स्थानों पर इन्हें श्येनी की छोटी बहन बताया गया है | श्येनी अरुणदेव की पत्नी हैं |
साक्षात का अर्थ प्रत्यक्षतः है। बहू के रूप में हमें साक्षात लक्ष्मी मिल गयी। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द
संयार -उ०त०२, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा -उ०त०२, संयार, यमकेश्वर तहसील -उ०त०२, संयार, यमकेश्वर तहसील
यह विश्व की एक प्रमुख वायुयान सेवा हैं। कुल वायुयान संख्या विश्व की प्रमुख वायुयान सेवाएं
न हन्यते बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार मैत्रेयी देवी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९७६ में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत बंगाली भाषा की पुस्तकें