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तः संस्कृत कोशों से और यदा-कदा अन्यत्र से शब्दों और अर्थों को आवश्यक अनावश्यक रूप में ठूँस दिया गया है। ज्ञानमण्डल के बृहद् हिन्दी शब्दकोश में पेटेवाली प्रणाली शुरू की गई है। परन्तु वह पद्धति संस्कृत
तः संस्कृत को[MASK]ों से और यद[MASK]-कदा अन्यत्र से शब्दों और अर[MASK]थों को आ[MASK]श्य[MASK] अन[MASK]वश्यक रूप में ठू[MASK][MASK] दिया [MASK]य[MASK] [MASK]ै। ज्ञा[MASK]मण्ड[MASK] के बृहद् हिन्दी शब्दकोश में [MASK]ेटेवाली प्रणाली शुरू क[MASK] गई है। प[MASK]न्तु वह पद्धत[MASK] संस्कृत
के कोशों में जिनका निर्माण पश्चिमी विद्वानों के प्रयास से आरम्भ हुआ था, सैकड़ो वर्ष पूर्व से प्रचलित हो गई थी। पर आज भी, नव्य या आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोश उस स्तर तक नहीं पहुँच पाए हैं जहाँ तक आक्सफ
के [MASK]ोशों में जिनका नि[MASK]्माण पश्चि[MASK]ी विद्व[MASK]नों के [MASK][MASK]रयास से आरम[MASK]भ [MASK]ुआ था, [MASK][MASK]कड़ो वर्ष पूर्[MASK] से प्रचल[MASK]त हो गई थी। पर आज [MASK]ी, नव्य या आधुनिक भ[MASK]रतीय भाषाओं के कोश उस स्तर त[MASK] नहीं पहुँच पाए हैं जहाँ तक आक्सफ
ोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी अथवा रूसी, अमेरिकन, जर्मन, इताली, फ़्रांसीसी आदि भाषाओं के उत्कृष्ट और अत्यन्त विकसित कोश पहुँच चुके हैं। कोशरचना की ऊपर वर्णित विधा को हम साधारणतः सामान्य भाषा शब्दकोश कह सकते ह
ोर्ड इंग[MASK]लिश डिक्शनरी अथवा [MASK]ूसी, अमेरिकन, [MASK]र्मन, इत[MASK]ली, फ़्रांसीसी आदि भा[MASK]ाओं के उत्कृष्ट और अत्य[MASK]्त विकसित कोश पहुँच चुके हैं। कोशरचना [MASK]ी ऊपर वर्णित विध[MASK] को [MASK]म साधारणतः सामान्य भा[MASK]ा शब्दकोश कह [MASK]कत[MASK] ह
ैं। इस प्रकार शब्दकोश एकभाषी, द्विभाषी, त्रिभाषी और बहुभाषी भी होते हैं। बहुभाषी शब्दकोशों में तुलनात्मक शब्दकोश भी यूरोपीय भाषाओं में ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान की प्रौढ़ उपलब्धियों से प्रमाणी
ैं। इस प्रक[MASK]र शब्दकोश एकभ[MASK]षी, द्विभाष[MASK], त्रिभा[MASK]ी और बहुभाषी [MASK]ी होते हैं। [MASK]हुभाषी शब[MASK][MASK]क[MASK]शों में तु[MASK]नात्[MASK]क शब्[MASK]को[MASK] भ[MASK] यूरोपीय भा[MASK]ाओं में ऐत[MASK]हासिक और त[MASK]लनात्मक भाषावि[MASK]्[MASK]ान क[MASK] प्रौ[MASK]़ उपलब[MASK]ध[MASK]यों से प्र[MASK]ाणी
कृत रूप में निर्मित हो चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से भाषावैज्ञानिक अनुशीलन और शोध के परिणामस्वरूप उपलब्ध सामग्री का नियोजन किया गया है। ऐसे तुलनात्मक कोश भी आज बन चुके हैं जिनमें प्राचीन भाषाओं की तुलन
[MASK]ृत रूप में निर्मित हो [MASK]ुके हैं। इनमें मुख्य रू[MASK] से भाषावैज्ञानिक अन[MASK]शीलन [MASK]र शोध के परिणा[MASK]स्वरूप उपलब्ध [MASK]ाम[MASK]्री का नियोज[MASK] किया गया है। ऐसे तुलनात्मक कोश भी आज ब[MASK] चुके हैं ज[MASK][MASK]में प्राचीन भाषाओं क[MASK] तुलन
ा मिलती है। ऐसे भी कोश प्रकाशित हैं जिनमें एक से अधिक मूल परिवार की अनेक भाषाओं के शब्दों का तुलनात्मक परिशीलन किया गया है। शब्दकोशों के नाना रूप शब्दकोशों के और भी नाना रूप आज विकसित हो चुके हैं और ह
ा मिलती है। ऐसे भी कोश प्[MASK]काशि[MASK] हैं [MASK]िनमें एक से अधिक म[MASK]ल परिवार [MASK]ी अनेक भाषाओं के शब्दों का [MASK]ुलना[MASK]्मक परि[MASK]ीलन [MASK]िया गया है। [MASK]ब[MASK]दकोशों के नान[MASK] र[MASK]प शब्[MASK]को[MASK]ों के [MASK]र भी नाना रूप आज विकसित [MASK]ो चु[MASK]े ह[MASK]ं और ह
ो रहे हैं। वैज्ञानिक और शास्त्रीय विषयों के सामूहिक और उस-उस विषय के अनुसार शब्दकोश भी आज सभी समृद्ध भाषाओं में बनते जा रहे हैं। शास्त्रों और विज्ञानशाखाओं के परिभाषिक शब्दकोश भी निर्मित हो चुके हैं औ
[MASK] रहे हैं। वैज[MASK]ञान[MASK]क और शा[MASK]्त्रीय विषयों के [MASK]ामूहिक और उस-उस [MASK]िषय [MASK]े [MASK]नुसार शब्[MASK]कोश भी आज सभी स[MASK]ृद्ध भाषाओं में बनते [MASK]ा रहे हैं। शास्त्रों [MASK]र व[MASK]ज्ञानश[MASK]खाओं के परिभाष[MASK][MASK] शब्द[MASK]ोश भ[MASK] नि[MASK]्मि[MASK] हो चुके हैं औ
र हो रहे हैं। इन शब्दकोशों की रचना एक भाषा में भी होती है और दो या अनेक भाषाओं में भी। कुछ में केवल पर्याय शब्द रहते हैं और कुछ में व्याख्याएँ अथवा परिभाषाएँ भी दी जाती है। विज्ञान और तकनीकी या प्रविध
[MASK] हो रहे [MASK]ैं। इ[MASK] शब्द[MASK]ोशों की [MASK]चना एक भाष[MASK] में भी ह[MASK]ती है [MASK]र [MASK]ो या अन[MASK]क भाष[MASK][MASK]ं में भी। कुछ [MASK][MASK][MASK] केवल पर[MASK]या[MASK] शब्द रहते ह[MASK]ं और कु[MASK] में व्याख[MASK]याएँ अथवा पर[MASK]भाषाएँ भ[MASK] दी जाती है। व[MASK]ज्ञ[MASK][MASK] [MASK]र त[MASK]नीकी या प्रविध
िक विषयों से संबद्ध नाना पारिभाषिक शब्दकोशों में व्याख्यात्मक परिभाषाओं तथा कभी कभी अन्य साधनों की सहायता से भी बिलकुल सही अर्थ का बोध कराया जाता है। दर्शन, भाषाविज्ञान, मनोविज्ञान, समाजविज्ञान और समा
िक विषयों से संबद्ध नाना पारिभाषिक शब[MASK]दकोशों म[MASK]ं व्याख्य[MASK]त्मक परिभ[MASK]षाओं त[MASK]ा कभी कभी अन्य साधनों की सहायता से भी बिलकुल सही अर्थ का बोध कराया जाता है। दर्शन, भाषाव[MASK]ज्ञ[MASK]न[MASK] मनोविज्ञान, समाजविज्ञा[MASK] और समा
जशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि समस्त आधुनिक विद्याओं के कोश विश्व की विविध सम्पन्न भाषाओं में विशेषज्ञों की सहायता से बनाए जा रहे हैं और इस प्रकृति के सैकडों-हजारों कोश भी बन चुके हैं। शब्द
जशास्त्र, राजनीतिशास्त्[MASK], अर्थशास्त्र [MASK]दि समस्त आधुनि[MASK] विद्याओं के कोश वि[MASK][MASK]व की विविध सम्[MASK]न[MASK]न भाषाओं में विशेषज्ञों [MASK]ी सहायता स[MASK] बनाए जा रह[MASK] हैं और इस प्रकृति के सैक[MASK][MASK]ं-हजार[MASK]ं कोश भी बन चुके ह[MASK]ं। [MASK]ब[MASK]द
ार्थकोश सम्बन्धी प्रकृति के अतिरिक्त इनमें ज्ञानकोशात्मक तत्वों की विस्तृत या लघु व्याख्याएँ भी संमिश्रित रहती है। प्राचीन शास्त्रों और दर्शनों आदि के विशिष्ट एवं पारिभाषिक शब्दों के कोश भी बने हैं और
ार्थक[MASK]श सम्बन्धी प्रकृति के अ[MASK]िरिक्त इनमें ज्ञानकोशा[MASK]्मक तत्वों की विस्तृत य[MASK] लघु व्याख्याएँ भी संमि[MASK]्रित रहती है। प्राच[MASK]न शास्त[MASK]रों और दर्[MASK]नों आदि के विशिष्ट ए[MASK]ं पा[MASK][MASK]भाषिक [MASK]ब्द[MASK]ं [MASK]े कोश भी बने हैं और
बनाए जा रहे हैं। अनके अतिरिक्त एक-एक ग्रन्थ के शब्दार्थ कोश (यथा मानस शब्दावली) और एक-एक लेखक के साहित्य की शब्दावली भी योरप, अमेरिका और भारत आदि में संकलित हो रही है। इनमें उत्तम कोटि के कोशकारों ने
बनाए जा रहे हैं। अन[MASK]े अति[MASK]िक्त एक-[MASK]क ग्रन्थ के शब्दार्थ कोश (यथा मा[MASK]स शब्दाव[MASK]ी) [MASK]र एक-एक ले[MASK]क क[MASK] साहित[MASK]य की शब्दावल[MASK] भी योरप, अमेरिका और [MASK]ा[MASK]त आदि में संकलित हो रही है। इनमें उत्तम कोटि के क[MASK]शक[MASK]रों ने
ग्रन्थसन्दर्भों के संस्करणात्मक संकेत भी दिए हैं। अकारादि वर्णानुसारी अनुक्रमणिकात्मक उन शब्दसूचियों काजिनके अर्थ नहीं दिए जाते हैं पर सन्दर्भसंकेत रहता हैंयहाँ उल्लेख आवश्यक नहीं है। योरप और इंगलैड
[MASK]्र[MASK]्[MASK]सन्दर[MASK]भों के [MASK]ंस्करण[MASK]त्मक संकेत भी [MASK][MASK]ए है[MASK]। अकारादि वर्ण[MASK]नुस[MASK][MASK]ी अनुक[MASK]रमणिक[MASK]त्मक उन शब्दसूचियों काज[MASK]नके अर्थ नहीं द[MASK]ए जाते हैं पर सन्दर्भ[MASK]ंकेत रहता हैंय[MASK]ाँ उल्लेख आवश्यक नहीं है। योरप और इ[MASK]गलैड
में ऐसी शब्दसूचियाँ अनेक बनीं। शेक्सपियर द्वारा प्रयुक्त शब्दों की ऐसी अनुक्रमणिका परम प्रसिद्ध है। वैदिक शब्दों की और ऋक्संहिता में प्रयुक्त पदों की ऐसी शब्दसूचियों के अनेक संकलन पहले ही बन चुके हैं।
में ऐसी शब्[MASK]सूचियाँ अनेक ब[MASK]ीं। शेक्सपियर द्वारा प्रय[MASK]क्त शब्दों [MASK]ी ऐसी अनुक्र[MASK]णिक[MASK] प[MASK]म [MASK]्रसिद्ध [MASK]ै। वै[MASK]ि[MASK] शब्द[MASK]ं [MASK]ी और ऋक्स[MASK]हिता मे[MASK] प्रयुक्त पदों की ऐसी शब्दसूचियो[MASK] के अनेक [MASK]ंकलन पह[MASK]े ह[MASK] बन च[MASK]क[MASK] हैं।
व्याकरण महाभाष्य की भी एक एक ऐसी शब्दानुक्रमणिका प्रकाशित है। परन्तु इनमें अर्थ न होने के कारण यहाँ उनका विवेचन नहीं किया जा रहा है। कोश की एक दूसरी विधा ज्ञानकोश भी विकसित हुई है। इसके वृहत्तम और उत
व[MASK]या[MASK]रण म[MASK]ाभाष्य की भी एक एक ऐसी शब्दानुक्रमणिका प्रका[MASK]ित है। पर[MASK]्त[MASK] इन[MASK]ें अर्थ न [MASK]ोने के कारण यहाँ उ[MASK]क[MASK] विवेचन नहीं कि[MASK]ा जा रहा है। कोश [MASK]ी एक दूस[MASK]ी विधा ज्[MASK]ानकोश भी विकसित हुई है। इसके व[MASK]हत्तम और [MASK][MASK]
्कष्ट रूप को इन्साइक्लोपिडिया कहा गया है। हिन्दी में इसके लिये विश्वकोश शब्द प्रयुक्त और गृहीत हो गया है। यह शब्द बँगाल विश्वकोशकार ने कदाचित् सर्वप्रथम बंगाल के ज्ञानकोश के लिये प्रयुक्त किया। उसका ए
्कष्ट र[MASK]प [MASK]ो इन्स[MASK]इक्लोपिड[MASK]या कहा गया है। ह[MASK]न्दी में इ[MASK]के [MASK]िये व[MASK][MASK]्वकोश शब्द प्रयुक्त और गृहीत हो गया ह[MASK]। यह शब[MASK]द बँगाल विश्वकोशका[MASK] न[MASK] कदाचित् सर्[MASK][MASK]्रथम बंगाल के ज्ञानकोश के लिये प्रयुक्त किया[MASK] उसका ए
क हिन्दी संस्करण हिन्दी विश्वकोश के नाम से नए सिरे से प्रकाशित हुआ। हिन्दी में यह शब्द प्रयुक्त होने लगा है। यद्यपि हिन्दी के प्रथम किशोरोपयोगी ज्ञानकोश (अपूर्ण) को श्री श्रीनारायण चतुर्वेदी तथा पं० क
क हिन्दी संस्क[MASK]ण [MASK]िन्द[MASK] विश्वकोश [MASK]े नाम स[MASK] नए सिरे से प्रकाश[MASK]त हुआ। हि[MASK]्दी में यह शब[MASK]द प्रयुक्त होने लगा है। य[MASK]्यपि हिन्दी के प्रथम कि[MASK][MASK]र[MASK]पयोगी ज्ञ[MASK]न[MASK]ोश (अपूर्ण) को श्[MASK]ी श्रीन[MASK]रायण चतुर्वेदी तथा पं० क
ृष्ण वल्लभ द्विवेदी द्वारा विश्वभारती अभिधान दिया गया तो भी ज्ञान कोश, ज्ञानदीपिका, विश्वदर्शन, विश्वविद्यालयभण्डार आदि संज्ञाओं का प्रयोग भी ज्ञानकोश के लिये हुआ है। स्वयं सरकार भी बालशिक्षोपयोगी ज्ञ
ृष्[MASK] [MASK]ल्लभ [MASK]्विवेदी द्वारा विश्वभारती अभिधान दिया गय[MASK] तो भी ज्ञान [MASK]ोश, ज्ञानदीपिका, [MASK]िश्वदर्शन, विश्वविद्यालय[MASK]ण्डार आद[MASK] संज्ञ[MASK]ओं का प्रयोग भ[MASK] ज्ञानकोश के [MASK]िय[MASK] हुआ है[MASK] स्[MASK]यं सरकार भी बालशिक्षो[MASK]योगी ज्ञ
ानकोशात्मक ग्रन्थ का प्रकाशन 'ज्ञानसरोवर' नाम से कर रही है। परन्तु इन्साइक्लोपीडिया के अनुवाद रूप में विवकोश शब्द ही प्रचलित हो गया। उडिया के एक विश्वकोश का नाम शब्दार्थानुवाद के अनुसार ज्ञान मण्डल रख
ानकोश[MASK][MASK]्मक ग्रन्थ का प्र[MASK]ाश[MASK] 'ज्ञ[MASK]नसरोवर' ना[MASK] स[MASK] कर रही [MASK]ै। प[MASK][MASK]्तु इ[MASK]्[MASK]ाइक्लोपीड[MASK]या [MASK]े अन[MASK][MASK]ाद र[MASK]प म[MASK]ं [MASK]िवकोश शब्द [MASK]ी प्रचलि[MASK] हो गया। उडिय[MASK] के ए[MASK] वि[MASK]्वकोश का न[MASK]म शब्दार्[MASK]ानुवा[MASK] के अनुसार ज्[MASK]ान म[MASK]्डल र[MASK]
ा भी गया। ऐसा लगता है कि बृहद् परिवेश के व्यापक ज्ञान का परिभाषिक और विशिष्ट शब्दों के माध्यम से ज्ञान देने वाले ग्रन्थ का इन्साइक्लोपीडिया या विश्वकोश अभिधान निर्धारित हुआ और अपेक्षाकृत लघुतरकोशों को
ा भी [MASK]या। ऐ[MASK][MASK] लगता है कि बृहद् परिवेश के व्यापक ज्ञान [MASK]ा पर[MASK][MASK]ा[MASK]ि[MASK] और विशिष्ट शब्दों क[MASK] माध्यम से ज्ञ[MASK]न देने वाले ग[MASK]रन्थ का इन्[MASK]ाइक्लोपीड[MASK]य[MASK] या विश्वकोश अभिधान निर्धारित [MASK]ुआ और अ[MASK]ेक्षा[MASK]ृत लघुतरकोशों को
ज्ञानकोश आदि विभिन्न नाम दिए गए। अंग्रेजी आदि भाषाओं में बुक ऑफ़ नालेज, डिक्शनरी आव जनरल नालेज आदि शीर्षकों के अन्तर्गत नाना प्रकार के छोटे बडे विश्वकोश अथवा ज्ञानकोश बने हैं और आज भी निरन्तर प्रकाशि
ज्ञानकोश [MASK]दि व[MASK]भिन्न न[MASK]म दि[MASK] [MASK]ए। अंग्रेजी आदि भाषाओं में [MASK]ुक ऑफ[MASK] नालेज, ड[MASK]क्शनरी आव जनरल नाले[MASK] आदि शीर्[MASK]कों के [MASK]न्[MASK]र्गत नाना प्रकार के छोटे बडे विश्वकोश अथ[MASK]ा ज्ञानकोश बन[MASK] हैं और आज भी निरन्तर [MASK][MASK][MASK]काशि
त एवं विकसित होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं इन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ रिलीजन ऐण्ड एथिक्स आदि विषयविशेष से संबंद्ध विश्वकोशों की संख्या भी बहुत ही बडी है। अंग्रेजी भाषा के माध्यम से निर्मित अनेक सामान्य विश्
त एवं विकसित [MASK]ोते जा रह[MASK] [MASK]ैं। [MASK]त[MASK]ा ही नहीं इन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ रिलीजन ऐण[MASK]ड एथिक[MASK]स आदि [MASK]िषयविशेष से संबं[MASK]्ध [MASK]िश्वकोशों की संख्या भी ब[MASK]ुत ही बडी है। [MASK]ंग्रेजी भ[MASK]षा क[MASK] माध्य[MASK] से नि[MASK]्मित [MASK]न[MASK]क सामान्य विश्
वकोश और विशष विश्वकोश भी आज उपलब्ध हैं। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, इन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना अंग्रेजी के ऐसे विश्वकोश हैं। अंग्रेजी के सामान्य विश्वकोशों द्वारा इनकी प्रामाणिकता और संमान्यता सर्वस्
वक[MASK]श और विशष विश[MASK]वकोश भी आज उपलब्ध हैं[MASK] इन्साइक[MASK]लोपीडिय[MASK] ब्र[MASK]टानिका, इन्स[MASK]इ[MASK]्[MASK]ोप[MASK]ड[MASK]या अ[MASK]ेरिक[MASK]ना अंग्रेजी के ऐसे विश्व[MASK]ोश है[MASK]। अंग्[MASK]े[MASK]ी के सा[MASK]ान्[MASK] विश्वकोशों द[MASK]वार[MASK] इनकी प्रामाणिकता और संमान्य[MASK]ा सर[MASK]वस्
वीकृत है। निरन्तर इनके संशोधित, संवर्धित तथा परिष्कृत संस्करण निकलते रहते हैं। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के दो परिशिष्ट ग्रन्थ भी हैं जो प्रकाशित होते रहते हैं और जो नूतन संस्करण की सामग्री के रूप म
वीक[MASK][MASK] है। [MASK]िरन्तर इनके संशोध[MASK]त, [MASK]ं[MASK]र्धि[MASK] तथा प[MASK]ि[MASK][MASK]कृ[MASK] सं[MASK]्करण [MASK]िकलते रहते हैं। इन्साइक्ल[MASK]पीडिया ब्रिटान[MASK]का के दो [MASK]रिशिष्ट ग्रन्थ भी हैं जो प्[MASK]काशित होते रहते हैं और जो न[MASK]तन संस्करण की स[MASK]मग्री के रूप म
ें सातत्य भाव से संकलित होते रहते हैं। इंग्लैंड में इन्साइक्लोपीडिया के पहले से ही ज्ञानकोशात्मक कोशों के नाना रूप बनने लगे थे। ज्ञानकोशों के नाना प्रकार ज्ञानकोशों के भी इतने अधिक प्रकार और पद्धतियाँ
ें सातत्[MASK] [MASK]ाव से संक[MASK][MASK]त हो[MASK]े रहते हैं। इंग्लैंड म[MASK]ं इन्साइ[MASK]्लोपीडि[MASK]ा के पह[MASK]े से ह[MASK] ज्ञा[MASK]कोशात्[MASK]क कोशों के नान[MASK] [MASK]ू[MASK] बनने ल[MASK]े थे। ज्ञ[MASK]नकोशों [MASK]े नाना प्रकार ज्ञा[MASK]कोशों के भी [MASK]तने अ[MASK]िक प्रकार और पद्धतियाँ
हैं जिनकी चर्चा का यहाँ अवसर नहीं है। चरितकोश, कथाकोश इतिहासकोश, ऐतिहासिक कालकोश, जीवनचरितकोश पुराख्यानकोश, पौराणिक- ख्यातपुरुषकोश आदि आदि प्रकार के विविध नामरूपात्मक ज्ञानकोशों की बहुत सी विधाएँ विक
हैं जिनकी चर्चा का यहाँ अवसर नही[MASK] [MASK]ै। चरितकोश, कथाकोश इति[MASK]ासकोश, ऐतिहासिक कालकोश, जीव[MASK]चरितकोश प[MASK]राख्यानकोश, प[MASK]रा[MASK]िक- ख्यातपुरुषकोश आदि आदि [MASK]्रकार के वि[MASK][MASK]ध नामरूपात्मक ज्ञानकोशों की बहुत सी विधाएँ विक
सित और प्रचलित हो चुकी हैं। यहाँ प्रसंगतः ज्ञानकोशों का संकेतात्मक नामनिर्देश मात्र कर दिया जा रहा है। हम इस प्रसंग को यहीं समाप्त करते हैं और शब्दार्थकोश से संबंद्ध प्रकृत विषय की चर्चा पर लौट आते है
सित और प्रचलित हो चुक[MASK] हैं। यहा[MASK] प्रसंगत[MASK] ज्ञानकोशों का संकेतात[MASK]मक नामनिर्देश मा[MASK]्र कर दिया जा रहा ह[MASK]। हम इस प्[MASK][MASK]ं[MASK] को यहीं समाप्त करते हैं औ[MASK] श[MASK]्दार[MASK]थक[MASK]श से संबंद्ध प्रकृत वि[MASK]य की चर्चा पर लौट आ[MASK]े है
ं। आधुनिक कोशविद्या : तुलनात्मक दृष्टि भारत में कोशविद्या के आधुनिक स्वरुप का उद्भव और विकास मध्यकालीन हिंदी कोशों की मान्यता और रचनाप्रक्रिया से भिन्न उद्देश्यों को लेकर हुआ। पाश्चात्य कोशों के आदर्श
ं। आधुनिक क[MASK]शविद्या : तुलनात्मक दृष[MASK]टि भारत में कोशविद्या के आ[MASK]ुनिक स्वरु[MASK] का उद्भव और वि[MASK][MASK]स म[MASK]्यकालीन हिंदी कोशों क[MASK] म[MASK][MASK]्यता औ[MASK] रचनाप्र[MASK][MASK]रिया से भिन्न उद्देश्यों क[MASK] ल[MASK]कर हुआ[MASK] पाश्[MASK]ात्[MASK] कोश[MASK]ं के आदर[MASK]श
, मान्यताएँ, उद्देश्य, रचनाप्रक्रिया और सीमा के नूतन और परिवर्तित आयामों का प्रवेश भारत की कोश रचनापद्धति में आरंभ हुआ। संस्कृत और इतर भारतीय भाषाओं में पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वानों के प्रयास से छोट
, मान[MASK]यताएँ, उद्द[MASK]श्य, रच[MASK][MASK]प्रक्रिया और [MASK]ीमा के नूतन और परिवर्तित आयामों का प्रवेश भारत क[MASK] कोश रच[MASK]ापद्धति में आरंभ [MASK]ुआ। संस्कृत और [MASK]तर भारतीय भा[MASK]ाओं में प[MASK]श्चात्य तथा भारतीय विद्वानों के प्[MASK]यास स[MASK] [MASK][MASK]ट
े-बडे बहुत से कोश निर्मित हुए। इन कोशों का भारत और भारत के बाहर भी निर्माण हुआ। आरंभ में भारतीय भाषाओं के, मुख्यतः संस्कृत के कोश अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि भाषाओं के माध्यम से बनाए गए। इनमें संस्कृत
े-बडे [MASK]हुत स[MASK] कोश निर्मित हुए। इन कोशों [MASK]ा भार[MASK] और भारत के [MASK]ाहर भी निर्माण ह[MASK]आ। [MASK]रंभ में भारतीय भाषाओं के, म[MASK]ख[MASK]य[MASK][MASK] संस्कृत के [MASK]ोश अंग्रेजी, जर[MASK]म[MASK][MASK] फ्रेंच आ[MASK]ि भाषाओं के माध[MASK][MASK]म से बन[MASK]ए गए। इ[MASK]में संस्कृत
आदि के शब्द भी रोमन लिपि में रखे गए। शब्दार्थ की व्याख्या और अर्थ आदि के निर्देश कोश की भाषा के अनुसार जर्मन, अंग्रेजी, फारसी, पुर्तगाली आदि भाषाओं में दिए गए। बँगला, तमिल आदि भाषाओं के ऐसे अनेक कोशो
आदि के शब्द भी रोमन ल[MASK]पि में रखे गए। शब्द[MASK]र्थ क[MASK] व्याख[MASK]या [MASK]र अर्थ आदि के निर्देश कोश की भाषा के अन[MASK]सार जर्[MASK][MASK], अंग्रेजी, फारसी[MASK] पुर्तगाली आदि भा[MASK][MASK]ओं में [MASK][MASK]ए गए। ब[MASK]ग[MASK]ा, तमि[MASK] आ[MASK]ि भाष[MASK]ओं के [MASK]से अनेक क[MASK][MASK]ो
ं की रचना ईसाई धर्मप्रचारकों द्वारा भारत और आसपास के लघु द्वीपों में हुई। हिंदी के भी ऐसे अनेक कोश बने। सबसे पहला शब्दकोश संभवतः फरग्युमन का 'हिंदुस्तानी अंग्रेजी' (अंग्रेजी हिंदुस्तानी) कोश था जो १७७
ं क[MASK] रचना ई[MASK]ाई धर्मप्रचारकों द[MASK]वारा भारत और आ[MASK]प[MASK]स के लघु [MASK][MASK]व[MASK]पों [MASK]ें ह[MASK]ई। हिंदी के भी ऐसे अनेक कोश बने। सब[MASK]े पहला शब्दकोश संभवतः फरग्युमन का 'हिंदुस्ता[MASK]ी अंग्रेजी' (अंग्रे[MASK]ी हिं[MASK][MASK][MASK]्[MASK]ानी) कोश था जो १७७
३ ई० में लंदन में प्रकाशित हुआ। इन आरंभिक कोशों को 'हिंदुस्तानी कोश' कहा गया। ये कोश मुख्यतः हिंदी के ही थे। पाश्चात्य विद्वानों के इन कोशों में हिंदी को हिंदुस्तानी कहने का कदाचित् यह कारण है कि हिंद
३ [MASK]० में लंदन में [MASK]्रकाशित हुआ[MASK] इ[MASK] [MASK]रंभिक कोश[MASK]ं को 'ह[MASK]ंदुस[MASK]तानी [MASK]ोश' कहा गया[MASK] ये कोश मुख्यतः हिंदी के ही थ[MASK]। पाश्चात्य विद्वानों के इन कोशों [MASK]ें [MASK]िंदी को हिंदुस्तानी कहने का कदाचित् यह कारण है [MASK]ि हिंद
ुस्तान भारत का नाम माना गया और वहाँ की भाषा हिंदुस्तानी कही गई। कोशविद्या के इन पाश्चात्य पंडितों की दृष्टि में हिंदी का ही पर्याय हिंदुस्तानी था और वही सामान्य रूप में हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा थी। आ
ुस्तान भारत का ना[MASK] [MASK]ान[MASK] गया और वहाँ की भाषा हिंदुस्तानी कही [MASK]ई। कोशव[MASK]द्या के इन प[MASK]श्चात्य प[MASK]डित[MASK]ं की दृ[MASK]्टि में हिंदी का ही पर्याय हिंदुस्तानी था और [MASK]ही सामान्य रूप मे[MASK] हि[MASK]दुस्तान की राष्ट्रभाषा थी। आ
रंभिक क्रम में कोशनिर्माण की प्रेरणात्मक चेतना का बहुत कुछ सामान्य रूप भारत और पश्चिम में मिलता जुलता था। भारत का वैदिक निघंटु विरल और क्लिष्ट शब्दों के अर्थ और पर्यायों का संक्षिप्त संग्रह था। योरप म
[MASK]ंभिक क्रम में क[MASK]शनिर्माण की प्रेरणात्मक च[MASK]तना का बहुत कुछ सामान[MASK]य रू[MASK] भारत और प[MASK]्चिम में मिलता ज[MASK]लता था[MASK] भ[MASK]रत का वैदिक नि[MASK]ंटु विरल और क[MASK]ल[MASK]ष[MASK]ट शब्दों के अर्थ और पर्यायों का संक्ष[MASK][MASK]्त संग्रह था। योरप म
ें भी ग्लासेरिया से जिस कोशविद्या का आरंभिक बीजवपन हुआ था, उसके मूल में भई विरल और क्लिष्ट शब्दों का पर्याय द्वारा अर्थबोध कराना ही उद्देश्य था। लातिन की उक्त शब्दार्थसूची से शनैः शनैः पश्चिम की आधुनि
े[MASK] भी ग्ल[MASK]सेर[MASK]या से जिस [MASK]ो[MASK]विद्या का आरंभिक बीजवपन हुआ था[MASK] उसके मूल में भई विरल औ[MASK] [MASK]्लिष्ट शब्दों का पर्य[MASK]य द्वारा अर[MASK]थबोध करा[MASK]ा ही उद्देश्य था[MASK] लातिन क[MASK] उक[MASK]त शब्द[MASK]र[MASK]थसूची से [MASK]नैः [MASK]नैः पश्चिम क[MASK] आधुन[MASK]
क कोशविद्या के वैकासिक सोपान आविर्भूत हुए। भारत और पश्चिम दोनों ही स्थानों में शब्दों के सकलन में वर्गपद्धति का कोई न कोई रूप मिल जाता है। पर आगे चलकर नव्य कोशों का पूर्वोंक्त प्राचीन और मध्यकालीन कोश
[MASK] कोशविद्[MASK]ा के [MASK]ैका[MASK]िक सोपान आविर्भूत हुए। भार[MASK] और पश्चिम दो[MASK]ों ह[MASK] स्थानों म[MASK][MASK] शब्दों के [MASK]कलन में वर्गपद[MASK]धति का कोई [MASK] कोई रूप मिल जाता है। पर आगे चलकर नव्य कोशों का पूर्वोंक्[MASK] प्राचीन [MASK]र मध्यका[MASK]ीन [MASK]ोश
ों से जो सर्वप्रथम और प्रमुखतम भेदक वैशिष्टय प्रकट हुआ वह था - 'वर्णमालाक्रमानुसारी शब्दयोजना' की पद्धति। आधुनिक कोश: सीमा और स्वरूप योरप में आधुनिक कोशों का जो स्वरूप विकसित हुआ, उसकी रूपरेखा का संके
ों से ज[MASK] सर्वप्रथम औ[MASK] प[MASK]रमुखतम भे[MASK][MASK] वैशिष्टय प्रकट ह[MASK]आ व[MASK] था - 'वर्णमालाक्[MASK]मानु[MASK]ारी [MASK]ब्दयोजना' की पद्[MASK]ति। आ[MASK]ुनि[MASK] क[MASK]श: सीमा और स्वर[MASK]प योर[MASK] म[MASK]ं आधुनिक कोश[MASK]ं का जो स्वरूप विकसित ह[MASK]आ, उसकी रूपरेखा का [MASK]ंक[MASK]
त ऊपर किया जा चुका है। योरप, एशिया और अफ्रिका के उस तटभाग में जो अरब देशों के प्रभाव में आया था, उक्त पद्धति के अनुकरण पर कोशों का निर्माण होने लगा था। भारत में व्यापक पैमाने पर जिस रूप में कोश निर्मत
[MASK] ऊपर किया [MASK]ा चुक[MASK] [MASK][MASK]। य[MASK][MASK]प, एशिया औ[MASK] अफ्रिका के उस तटभाग मे[MASK] जो अरब देशों के [MASK]्[MASK]भाव में आया था, उक्त पद[MASK]ध[MASK]ि क[MASK] अनुकरण [MASK]र [MASK][MASK]शों का निर्माण होने लगा था। भारत में व्यापक पैमाने पर जिस रूप में कोश निर्मत
होते चले, उनकी संक्षिप्त चर्चा की जा चुकी है। इन सबके आधार पर उत्तम कोटि के आधुनिक कोशों की विशिष्टताओं का आकलन करते हुए कहा जा सकता है कि: (क) आधुनिक कोशों में शब्दप्रयोग के ऐतिहाससिक क्रम की सरणि द
हो[MASK]े चले, उ[MASK]की संक्षिप्त चर[MASK]चा की जा चु[MASK]ी है। इन सबके आध[MASK]र पर उत्त[MASK] कोटि के आधु[MASK]िक कोशों की वि[MASK]िष्टताओं का आ[MASK]लन क[MASK]ते हुए कहा जा सकता है कि: (क) आधुनिक कोशों म[MASK]ं शब्दप्[MASK]यो[MASK] के ऐतिहाससिक क्रम की सरणि द
िखाने के प्रयास को बहुत महत्व दिया गया है। ऐसे कोर्शो को ऐतिहासिक विवरणात्मक कहा जा सकता है। उपलब्ध प्रथम प्रयोग और प्रयोगसंदर्भ का आधार लेकर अर्थ और उनके एकमुखी या बहुमुखी विकास के सप्रमाण उपस्थापन क
िखाने के प्रयास को बह[MASK]त महत्व दिया गया है[MASK] ऐसे को[MASK][MASK]शो को ऐ[MASK]िहासिक [MASK]िवरणात्मक कहा जा सकता ह[MASK]। उपलब्ध प्रथम प्रयोग और प[MASK]रयोगसंदर्भ का आधार लेक[MASK] अर्[MASK] और उ[MASK]क[MASK] [MASK]कमुखी या बहुमुख[MASK] विकास के सप्[MASK]माण [MASK]पस्थापन [MASK]
ी चेष्टा की जाती है। दूसरे शब्दों में इसे हम शब्दप्रयोग और तद्बोध्यार्थ के रूप की आनुक्रमिक या इतिहासानुसारी विवेचना कह सकते है। इसमें उद्वरणों का उपयोग दोनों ही बातों (शब्दप्रयोग और अर्थविकास) की प्र
ी चेष्टा की [MASK]ाती है। [MASK]ूसरे शब[MASK]द[MASK]ं में इस[MASK] हम शब्[MASK]प्रय[MASK]ग और तद्बोध[MASK]यार्थ के रूप क[MASK] आनु[MASK]्रमिक या इतिहा[MASK]ानुसारी विवेचना कह सकते ह[MASK][MASK] इस[MASK]ें उ[MASK]्वरण[MASK]ं क[MASK] [MASK]प[MASK]ोग दोन[MASK][MASK] ही बातों [MASK]शब्दप्रयोग औ[MASK] अर्थविकास) की प[MASK]र
माणिकता सिद्ध करते हैं। (ख) आधुनिक कोशकार के द्वार संगृहीत शब्दों और अर्थों के आधार का प्रामाण्य भी अपेक्षित होता है। प्राचीन कोशकार इसके लिये बाध्य नहीं था। वह स्वत: प्रमाण समझा जाता था। पूर्व तंत्रो
मा[MASK]िकत[MASK] सिद्ध करते हैं। (ख) आधुनिक कोशकार के द्वार संगृहीत शब्दों औ[MASK] अर्[MASK][MASK]ं के आधा[MASK] का प्[MASK]ामाण्य [MASK]ी अपेक[MASK]षित होता है। प्राची[MASK] कोशकार इसक[MASK] लिये बाध्य नहीं था। [MASK]ह स्वत: प्रमाण स[MASK]झा जात[MASK] था। पूर्व तंत्रो
ं या ग्रंथों का समाहार करते हुए यदाकदा इतना भी कह देना उसके लिये बहुधा पर्याप्त हो जाता था। पर आधुनिक कोशों में ऐसे शब्दों के संबंध में जिनका साहित्य व्यवहार में प्रयोग नहीं मिलता, यह बताना भी आवश्यक
[MASK] [MASK]ा ग्रंथों का स[MASK]ाहार करते हुए यदा[MASK]दा इत[MASK][MASK] भी कह [MASK]ेना उ[MASK]के लिये बहुधा पर्याप[MASK]त हो जाता था। पर आधुनिक कोशो[MASK] [MASK]ें ऐसे शब[MASK]दों के संबंध में जिनका साहित्य व्यवहार में प्रयोग नहीं मिलता, य[MASK] बताना भी [MASK]वश्यक
हो जाता है कि अमुक शब्द या अर्थ कोशीय मात्र हैं। (ग) आधुनिक कोशों की एक दुसरी नई धारा ज्ञानकोशात्मक है जिनकी उत्कृष्ट रूप 'विश्वकोश' के नाम से सामने आता है। अन्य रूप पारिभाषिक शब्दकोश, विषयकोश, चरितको
हो [MASK]ा[MASK]ा है कि अ[MASK]ुक [MASK]ब्[MASK] या अर्थ [MASK]ो[MASK]ी[MASK] मात्र हैं। (ग[MASK] आधुनिक कोशों की ए[MASK] दुसरी नई धारा ज्ञानकोशात्मक [MASK]ै जिनक[MASK] [MASK]त्कृष्ट रूप 'विश्[MASK]कोश' [MASK]े न[MASK]म से सामने आत[MASK] है। [MASK]न्य रूप पारिभाषिक शब्दको[MASK], विषयकोश, चरितको
श, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल रहै हैं। (घ) आधुनिक शब्दकोशों मे अर्थ की स्पष्टता के लिये चित्र, रेखा-चित्र, मानचित्र आदि का उपयोग भी किया जाता है। (ङ) विशुद्ध शस्
श, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते च[MASK] रहै हैं। ([MASK]) आधुनिक शब्दकोशों मे अर्[MASK] की स्पष[MASK]ट[MASK]ा [MASK]े लिये चित्[MASK], रेख[MASK]-चित्[MASK], मान[MASK]ित्[MASK] आदि का उपयोग भी किय[MASK] जाता है। (ङ) विश[MASK]द्ध शस्
त्रीय वाङमय (शस्त्र) के प्राचीन स्तर से हटकर आज के कोश वैज्ञानिक अथवा विज्ञानकल्प रचनाप्रक्रिया के स्तर पर पहुँच गए। ये कोश रूपविकास और अर्थविकास की ऐतिहासिक प्रमाणिकता के साथ साथ भाषवैज्ञानिक सिद्धां
त्रीय वाङमय (शस्त्र) के प्रा[MASK]ीन स्त[MASK] से हटक[MASK] आज के कोश वै[MASK]्ञानिक [MASK]थवा विज्[MASK]ानकल्प रचनाप्रक्रि[MASK]ा के स्तर प[MASK] [MASK]हुँच गए। ये कोश रूपविक[MASK]स और अर्थव[MASK]का[MASK] की ऐतिहासिक प्रमाणिकता के साथ साथ भ[MASK]षवै[MASK]्ञानिक सिद्धां
त की संगति ढूँढने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं। आधुनिक भाषाओं के तद्भव, देशी और विदेशी शब्दों के मूल और स्रोत ढ़ूँढने की चेष्टा की जाती है। कभी कभी प्राचीन भाषा या भाषाओ के मूलस्रोतों की गवेषण के व्युत्प
त की संगति ढ[MASK]ँ[MASK]ने का पूर्ण प्रयत्न [MASK]रते हैं। आधुनिक भाषाओं के तद्भ[MASK][MASK] देशी और विदेशी शब्दों के मूल और स्रोत ढ़ूँढने की चेष्ट[MASK] की जाती है। कभी कभ[MASK] प्राची[MASK] भाषा या [MASK]ाषाओ के म[MASK]लस्रोतों की गवेषण [MASK]े व्[MASK]ुत्प
त्ति-दर्शन के सदर्भ में महत्वपूर्ण प्रयास होता है। बहुभाषी पर्यायकोशों में एतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के सहयोग सहायता द्वारा स्रोतभाषा के कल्पनानिदिप्ट रूप अंगीकृत होते हैं। उदाहरणार्थ प्राचीन
त्[MASK]ि[MASK]दर्शन के सदर्[MASK] में [MASK]हत्वपूर्ण [MASK]्रयास होता [MASK]ै। बहुभा[MASK][MASK] पर्यायक[MASK]शों में एत[MASK]हासिक और [MASK]ुलना[MASK]्मक भाषाविज्ञान क[MASK] सहय[MASK]ग [MASK]हायता द्व[MASK]रा स्र[MASK]तभा[MASK]ा के क[MASK][MASK][MASK]नानिदिप्ट रूप अंगी[MASK]ृत होते है[MASK]। [MASK]दाहरणार[MASK]थ प्राचीन
भारत योरोपी आर्यभाषा के बहुभाषी तुलनात्मक कोशों में मूल आर्यभाषा (या आर्यों के 'फादर लैंग्वेज') के कल्पित मृलख्वपो का अनुमान किया जाता है। दूसरे शबदो में इसका तात्पर्य यह है कि आधुनिक उत्कृष्ट कोशों म
भ[MASK][MASK]त योरोप[MASK] आ[MASK]्यभाषा के [MASK]ह[MASK]भाषी तुल[MASK]ात्मक [MASK]ो[MASK]ों में मूल [MASK][MASK]्यभाष[MASK] (या आर्यों के 'फादर [MASK]ैंग[MASK]वेज'[MASK] के कल्[MASK]ित मृलख्वपो का अनुमा[MASK] किया ज[MASK]ता है। [MASK]ूसरे शबदो [MASK]ें इ[MASK][MASK]ा तात्[MASK]र्य यह ह[MASK] कि आ[MASK]ुन[MASK]क उत्कृष्[MASK] कोशों म
ें जहां एक ओर प्राचीन और पूर्ववर्ती वाङ्मय का शब्दप्रयोग के क्रमिक ज्ञान के लिये ऐतिहासिक अध्ययन होता है वहां भाषाविज्ञान के ऐतिहासिक, तुलनात्मक और वर्णनात्मक दुष्टिपक्षों का प्रौढ़ सहयोग और विनियोग अ
ें जहा[MASK] एक ओर प[MASK]राचीन और पूर्ववर्ती वाङ[MASK]मय का शब्दप्रयोग के क्रमिक ज्ञान के लिये ऐतिहा[MASK]िक अ[MASK]्ययन होता है वहां भाषाविज्ञान के [MASK]तिहास[MASK]क, तुलनात्मक और वर्ण[MASK][MASK]त्मक दुष्[MASK]िपक्ष[MASK]ं का प्रौढ़ स[MASK]योग और [MASK][MASK]नियोग अ
पेक्षित रहता है। कोशविज्ञान की नूतन रचानाप्रक्रिया आज के युग में भाषाविज्ञान के नाना अंगों से बहुत ही प्रभावित हो गई है। कोशारचना को प्रक्रिया और भाषाविज्ञान कोशनिर्माण का शब्दसंकलन सर्वप्रमुख आधार है
पेक्षित रहता है। कोशविज्ञान की नूतन रचानाप्रक्र[MASK]या आज के युग में भ[MASK]षाविज्ञ[MASK]न के न[MASK][MASK]ा अंगों स[MASK] ब[MASK]ुत ही प्रभावित हो गई है। कोशारचना को प्रक्रिया और भाषाव[MASK][MASK]्ञान कोशनि[MASK]्माण का शब्द[MASK]ंकलन सर्वप्रमुख आधा[MASK] है
। परन्तु शब्दों के संग्रह का कार्य अत्यत कठिन है। मुख्य रूप में शब्दों का चयन दो स्त्रोतों से होता है - (१) लिखित साहित्य से और (२) लोकव्यवहार और लोकसाहित्य से। लिखित साहित्य से सग्रह्य शब्दों के लिये
। [MASK]रन्त[MASK] शब[MASK]दों के संग्र[MASK] का कार[MASK]य [MASK]त[MASK]यत [MASK]ठिन है। मुख[MASK]य रूप में शब्दों का [MASK]यन दो स्त्रोतों से होता है - (१) लिख[MASK]त साहित्य से और ([MASK]) लोकव्यवहार और लो[MASK]साहित्य स[MASK]। लि[MASK][MASK]त साहित[MASK]य से सग्रह्य शब्दों के लिये
हस्तलिखित और मुद्रित ग्रंथो का सहारा लिया जाता है। परंतु इसके अंतर्गत प्राचीन हस्तलेखों और मुद्रित ग्रथो के आधार पर जब शब्दसंकलन होता है तब उभयविध आधारग्रंथों की प्रामाणिकता और पाठशुद्धि आवश्यक होती
हस्तलिखि[MASK] और मुद[MASK]र[MASK]त ग[MASK]र[MASK]थो का सहारा लिया जा[MASK]ा ह[MASK]। परंतु इसके अंतर्गत प्राचीन हस्त[MASK]ेखों और मुद्र[MASK]त ग्रथो के आ[MASK]ार पर जब शब्दसंकलन होत[MASK] है [MASK]ब [MASK]भयविध आधा[MASK]ग्रंथों क[MASK] प्रामाणिकता [MASK]र पा[MASK]शुद्धि आवश्यक होती
है। इनके बिमा गृहीत शब्दों का महत्व कम हो जाता है और उनसे भ्रमसृष्टि की संभावना बढ़ती है। विविध प्रकार के शब्दकोश आजकल ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जो शब्दकोश के सारे काम करते हैं। वे कागज पर मु
है। इनक[MASK] [MASK]िमा गृहीत शब्दों का महत्व कम हो [MASK]ाता है और उनसे भ्[MASK]मस[MASK]ष्[MASK]ि की संभ[MASK]वना [MASK]ढ़[MASK]ी है। विविध प्रकार के शब्[MASK]कोश आज[MASK]ल ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम उप[MASK]ब[MASK]ध हैं जो शब्दकोश के सारे [MASK]ाम करत[MASK] [MASK]ैं। व[MASK] कागज पर मु
द्रित नहीं हैं बल्कि किसी विशिष्ट फाइल-फॉर्मट में हैं और किसी 'डिक्शनरी सॉफ्टवेयर' के द्वारा प्रयोक्ता को शब्दार्थ ढूढने में मदद करते हैं। इनमें कुछ ऐसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं जो परम्परागत शब्दकोशों म
द्रित नहीं ह[MASK]ं बल्कि [MASK]िसी विशिष्[MASK] फाइल-फॉर्[MASK]ट म[MASK]ं हैं औ[MASK] कि[MASK]ी 'डिक्शनरी सॉफ्टवेयर' के द्वारा प्र[MASK]ोक्ता को शब्दार्थ ढूढने में मदद करते हैं। इनमें कुछ ऐसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं जो परम्पराग[MASK] शब्[MASK]कोशों म
ें सम्भव ही नहीं है; जैसे शब्द का उच्चारण ध्वनि के माध्यम से देना आदि। शब्दकोशों के कुछ प्रकार ये हैं- विशिष्ट शब्दकोश - गणित, विज्ञान, विधि, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि के शब्दकोश पारिभाषिक शब्दकोश -
ें स[MASK]्भव ही न[MASK]ीं है; ज[MASK]से शब्द [MASK][MASK] उच्[MASK]ारण ध्व[MASK]ि क[MASK] माध्[MASK]म से देना आद[MASK][MASK] श[MASK]्दकोशों [MASK]े क[MASK]छ [MASK]्रकार [MASK]े हैं- [MASK]िशिष्ट शब्दकोश - गणित, विज[MASK]ञान, वि[MASK]ि, प्रौ[MASK]्यो[MASK]िक[MASK], चिकित्सा आ[MASK]ि के शब्दकोश पारिभाष[MASK]क [MASK]ब्दको[MASK] -
इनमें किसी क्षेत्र (विषय) के प्रमुख शब्दों के संक्षिप्त और मुख्य अर्थ दिए गए होते हैं। प्राकृतिक भाषा संसाधन के लिए शब्दकोश - ये मानव के बजाय किसी कम्प्यूतर प्रोग्राम द्वारा प्रयोग को ध्यान में रखकर ब
इनमें किसी क्षेत्र (विष[MASK]) [MASK]े प्रमुख शब्दों के [MASK]ंक्षिप[MASK]त और मुख्य अर्थ दिए गए होत[MASK] है[MASK]। प्राकृतिक भाषा सं[MASK]ाधन के लि[MASK] शब्दकोश - ये [MASK]ानव के बजाय किसी कम[MASK]प्यू[MASK]र [MASK]्रोग्राम द्वारा प्रयोग को ध्[MASK][MASK]न म[MASK]ं रखक[MASK] ब
नाई जातीं हैं। बाल शब्दकोश तथा वृहत् शब्दकोश आदि इन्हें भी देंखें शब्दकोशों का इतिहास हिन्दी विकि शब्दकोष - विकिपीडिया के बंधु प्रोजाक्ट में से एक है - विक्शनरी, यानी विकि शब्दकोष। कृपया अंग्रेजी से ह
[MASK]ाई जातीं हैं।[MASK]बाल शब्दकोश तथा वृहत् शब्दक[MASK][MASK] [MASK]दि इन्हें भी दे[MASK]खें शब[MASK]दकोशों का इतिहास हि[MASK]्दी विकि शब्[MASK]कोष [MASK] विकिपीडिय[MASK] के बंधु प[MASK]रोजाक[MASK]ट में से एक ह[MASK] - [MASK][MASK]क्[MASK]नरी, यानी वि[MASK]ि शब्दकोष। कृपया अंग्रेजी से ह
िन्दी शब्दों की सूची वहाँ बनायें। शब्दकोश की आत्मकथा (राजस्थान साहित्य अकादमी) हिन्दी एवं विभिन्न भाषाओं के मध्य शब्दकोष इ-महाशब्दकोश - सी-डैक्, भारत सरकार द्वारा निर्मित भारतवाणी : भारतीय भाषाओं द्वा
िन[MASK][MASK]ी श[MASK]्दों की सूची वहाँ बनायें। शब्दको[MASK] की आत्मकथा (रा[MASK]स्थान साहित्य [MASK]काद[MASK]ी) हिन[MASK]दी एवं [MASK]िभिन्न भ[MASK]ष[MASK]ओं के मध्य शब्दकोष इ-महाशब्दकोश - सी[MASK]डैक्, भारत सरकार द्वारा निर्मित[MASK]भारतवाणी : भ[MASK]रतीय भाषाओं द्वा
रा ज्ञान (यहाँ शब्दकोश, भाषाकोश, ज्ञानकोश आदि सब उपलब्ध हैं।)जन गण मन, भारत का राष्ट्रगान है जो मूलतः बंगाली में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् है। रा
रा ज्ञान (य[MASK]ा[MASK] शब्दकोश, भाषा[MASK]ोश, ज[MASK][MASK]ान[MASK]ोश आदि सब उपलब्ध हैं।)जन गण मन, भारत [MASK]ा राष[MASK]ट्रग[MASK][MASK] है जो मूलतः बंगाली म[MASK]ं ग[MASK]रुदेव रव[MASK]न्द्र[MASK]ाथ [MASK]ै[MASK]ोर द्वारा लिखा [MASK]या था। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् है। रा
ष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २० सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान सभ
ष्ट्र[MASK]ान [MASK][MASK] गायन [MASK]ी अवध[MASK] [MASK]गभग ५२ सेकेण्ड है। [MASK]ुछ [MASK]वसरों पर राष्ट्[MASK]गान [MASK]ंक्ष[MASK]प्त [MASK]ूप में भी ग[MASK]या जाता है, इ[MASK]मे[MASK] प्र[MASK]म तथा [MASK]न्तिम पंक्त[MASK]याँ ही [MASK][MASK]लते ह[MASK]ं जिस[MASK]ें [MASK]गभग [MASK]० सेकेण्ड का समय लगता ह[MASK]। सं[MASK]िध[MASK]न स[MASK]
ा ने जन-गण-मन हिन्दुस्तान के राष्ट्रगान के रूप में २४ जनवरी १९५० को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम २७ दिसम्बर १९११ को कांग्रेस के कलकत्ता अब दोनों भाषाओं में (बंगाली और हिन्दी) अधिवेशन में गाया गया था। पूरे
ा ने जन-गण-मन ह[MASK]न्दुस[MASK][MASK]ान के राष्[MASK]्रगान के रूप में २४ जनवरी १९५० को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम [MASK]७ दिसम्[MASK][MASK] १९११ को [MASK]ा[MASK]ग्रेस के कलकत्ता अब दोन[MASK]ं भा[MASK]ाओं में (बंग[MASK]ली और हिन्दी) अधिवेशन में ग[MASK]या गया था। [MASK]ूरे
गान में ५ पद हैं। गीत के बोल बंगाली और देवनागरी लिप्यन्तरण के साथ आधिकारिक हिन्दी संस्करण जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता! जनगणमन:जनगण के मन/सारे लोगों के मन; अधिनायक:शासक; जय हे:की जय हो; भ
गान में ५ पद [MASK]ैं। ग[MASK]त के बो[MASK] ब[MASK]गाली [MASK]र देवनागरी लिप्यन[MASK]तर[MASK] के सा[MASK] [MASK][MASK]िकारिक हिन्दी संस्करण जन [MASK]ण मन अ[MASK]िनायक जय हे भा[MASK]त भाग्य विधात[MASK]! जनगणमन:जनग[MASK] क[MASK] मन/स[MASK]रे लोग[MASK]ं के मन; अ[MASK][MASK]नाय[MASK][MASK]शासक; जय हे:की जय हो; भ
ारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य-विधाता(भाग्य निर्धारक) अर्थात् भगवान</स्मॉल>जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्यविधाता हैं!पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगविंध्य हिमाचल यमुना
[MASK]रतभाग्यविधात[MASK]:भा[MASK]त [MASK]े भाग्य-विधाता(भाग्य निर्धारक) अर्थात् भ[MASK]वान</स्मॉल>जन गण के मन[MASK]ं के उ[MASK] अधिनायक क[MASK] जय हो, जो भारत के भाग्यविधाता हैं!पंजाब स[MASK]न्ध [MASK]ुजरात मराठा द्र[MASK]विड़ उत्कल बंगविंध्य हिमा[MASK][MASK] यमुना
गंगा उच्छल जलधि तरंग पंजाब:पंजाब/पंजाब के लोग; सिन्ध:सिन्ध/सिन्धु नदी/सिन्धु के किनारे बसे लोग; गुजरात:गुजरात व उसके लोग; मराठा:महाराष्ट्र/मराठी लोग; द्राविड़:दक्षिण भारत/द्राविड़ी लोग; उत्कल:उडीशा/उ
गंगा उच्छल जलधि तरंग [MASK]ंजाब:पंजाब/पंजाब के लो[MASK]; सिन्ध:सिन्ध/सिन्धु नदी/सिन्धु क[MASK] किनारे बसे लोग; [MASK][MASK]जरात[MASK]गुजरात व उसके लोग; [MASK][MASK]ाठा:[MASK]हाराष्ट्र/मर[MASK]ठी लोग; द्राविड़:दक्षिण भारत[MASK]द्रा[MASK]िड़[MASK] लोग; उत्क[MASK]:उडीशा/उ
ड़िया लोग; बंग:बंगाल/बंगाली लोगविन्ध्य:विन्ध्यांचल पर्वत; हिमाचल:हिमालय/हिमाचल पर्वत श्रिंखला; यमुना गंगा:दोनों नदियाँ व गंगा-यमुना दोआब; उच्छल-जलधि-तरंग:मनमोहक/हृदयजाग्रुतकारी-समुद्री-तरंग या मनजागृत
ड़िय[MASK] लोग; बंग:बंगाल/ब[MASK]गाली [MASK]ोगव[MASK]न्ध्य:विन्ध्यां[MASK]ल प[MASK]्वत; ह[MASK]माचल:हिमालय/हिमाचल प[MASK]्वत श्रिंखल[MASK]; [MASK]म[MASK]ना गं[MASK]ा:दोनों [MASK]दियाँ व गंगा-[MASK]मुना दोआब[MASK] उच्छल-जलधि-तरंग:मनमोहक/[MASK]ृदयजाग्रुतकारी-समुद्री-तरंग या मनज[MASK]गृत
कारी तरंगेंउनका नाम सुनते ही पंजाब सिन्ध गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगालएवं विन्ध्या हिमाचल व यमुना और गंगा पे बसे लोगों के हृदयों में मनजागृतकारी तरंगें भर उठती हैंतव शुभ नामे जागे, तव शुभाशी
कारी तरंगेंउन[MASK][MASK] नाम सुनते [MASK][MASK] पंज[MASK]ब सिन[MASK]ध गु[MASK]र[MASK][MASK] और मराठा[MASK] द्राविड़ उत्कल व बंगालएवं विन्ध्या हिम[MASK]चल व यमु[MASK]ा औ[MASK] गंगा पे बसे [MASK]ोगों के हृदयों में मनजागृतकारी त[MASK]ंगें भर उठती हैंतव शुभ नामे जागे, [MASK]व शुभाश[MASK]
ष मागेगाहे तव जय गाथा <स्मॉल>तव:आपके/तुम्हारे; शुभ:पवित्र; नामे:नाम पे(भारतवर्ष); जागे:जागते हैं; आशिष:आशीर्वाद; मागे:मांगते हैंगाहे:गाते हैं; तव:आपकी ही/तेरी ही; जयगाथा:वजयगाथा(विजयों की कहानियां) सब
ष माग[MASK][MASK]ाह[MASK] [MASK]व जय ग[MASK]था [MASK]स्मॉल>तव:आपके/तुम्हारे; शुभ[MASK][MASK][MASK]ित्र; नामे:नाम पे(भारतवर्ष); [MASK]ागे:जागते हैं; आशि[MASK]:आशीर्वा[MASK]; मागे:मांगते हैंगाहे:गाते हैं; [MASK]व:आपकी ही/तेर[MASK] ह[MASK]; जय[MASK]ाथा:वजयगाथा(विजयों की क[MASK]ान[MASK]यां) [MASK]ब
तेरे पवित्र नाम पर जाग उठने हैं, सब तेरी पवित्र आशीर्वाद पाने की अभिलाशा रखते हैंऔर सब तेरे ही जयगाथाओं का गान करते हैं जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। जन
तेरे पवित्र नाम पर जाग उठने हैं, स[MASK] तेरी पवित्[MASK] आशी[MASK][MASK][MASK][MASK]द पा[MASK]े की अभिलाशा रख[MASK]े है[MASK]और सब तेरे ही जयग[MASK][MASK]ाओं का [MASK]ान कर[MASK]े [MASK]ैं जन गण मंगलदायक जय हे भार[MASK] भाग्य विधाता!जय [MASK][MASK], जय हे, जय हे, जय जय जय ज[MASK] हे।। जन
गणमंगलदायक:जनगण के मंगल-दाता/जनगण को सौभाग्य दालाने वाले; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य विधाताजय हे जय हे:विजय हो, विजय हो; जय जय जय जय हे:सदा सर्वदा विजय हो जनगण के मंगल दायक की जय हो
गणमंगलदायक:जनगण के मंगल-दाता/जनगण क[MASK] सौभाग्य दाल[MASK]ने व[MASK]ले; ज[MASK] हे[MASK]की जय ह[MASK]; भारतभाग्यविधाता:भारत के भ[MASK]ग्य विधाताजय हे जय हे:विजय हो, विजय हो; जय जय जय ज[MASK] [MASK]े:सदा सर्वदा विजय हो जनगण के म[MASK]गल दा[MASK]क क[MASK] जय हो
, हे भारत के भाग्यविधाताविजय हो विजय हो विजय हो, तेरी सदा सर्वदा विजय हो उपरोक्त राष्ट्र गान का पूर्ण संस्करण है और इसकी कुल अवधि लगभग ५२ सेकंड है। राष्ट्र गान की पहली और अंतिम पंक्तियों के साथ एक संक
, हे भारत के भाग्यवि[MASK]ाताविजय हो विजय ह[MASK] [MASK]िजय हो, [MASK]ेरी सदा [MASK][MASK]्वदा विजय [MASK]ो उपर[MASK]क्[MASK] राष्ट्[MASK] गान का पूर्ण संस्करण है और इसकी क[MASK][MASK] अव[MASK]ि लगभ[MASK] ५२ सेकंड है। रा[MASK]्ट्र [MASK]ान की पह[MASK]ी और अंत[MASK]म पंक्तियों क[MASK] साथ एक संक
्षिप्त संस्करण भी कुछ विशिष्ट अवसरों पर बजाया जाता है। इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है: संक्षिप्त संस्करण को चलाने की अवधि लगभग २० सेकंड है। जिन अवसरों पर इसका पूर्ण संस्करण या संक्षिप्त संस्करण चलाया जाए,
्[MASK]िप्त सं[MASK]्करण भ[MASK] कुछ विशिष[MASK]ट अवसरों पर बज[MASK]या ज[MASK]ता है। इसे [MASK]स प्[MASK]कार पढ़ा जाता है:[MASK][MASK]ंक्ष[MASK]प्त संस्करण को चलाने की [MASK]वधि लगभग २० से[MASK][MASK]ड ह[MASK]। जिन अवसर[MASK]ं [MASK]र इसका पूर्ण स[MASK]स्करण या संक्[MASK]िप[MASK]त संस्करण चलाया जाए,
उनकी जानकारी इन अनुदेशों में उपयुक्त स्थानों पर दी गई है। मूल कविता के पांचों पद जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधित
उनकी जानका[MASK]ी इन अनुदेशों में उपयुक्त स[MASK]थ[MASK]न[MASK]ं पर दी गई है। मूल कविता [MASK]े पांचों पद जनगणमन-अधिनायक ज[MASK] [MASK]े भार[MASK]भ[MASK]ग्यविधाता! पंजाब सिन्ध गु[MASK]रात मराठा द्राविड[MASK] उत्[MASK]ल ब[MASK][MASK] विन्ध्य हिम[MASK]चल य[MASK]ुना गंगा उ[MASK]्छलजलधित
रंग तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे, गाहे तव जयगाथा। जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार बाणी हिन्दु बौद्ध सिख जैन पारसिक
रंग [MASK]व शुभ नामे जा[MASK]े, तव शुभ आशि[MASK] मागे,[MASK][MASK]ाहे तव जयगाथा। [MASK][MASK]गण[MASK]ंगलदायक जय ह[MASK] भारत[MASK]ा[MASK]्य[MASK]िधात[MASK]! [MASK]य हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय [MASK]े।। [MASK]हरह तव [MASK]ह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार बाणी हिन्दु बौद्ध [MASK]िख जैन पारसिक
मुसलमान खृष्तानी पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे प्रेमहार हय गाथा। जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री। हे चिर
मुसलमान खृष्तान[MASK] [MASK]ूरब पश्च[MASK]म आसे [MASK]व सिंहासन-[MASK]ाशे प्रेमह[MASK]र हय गा[MASK]ा। जनगण-ऐक्[MASK]-विधायक ज[MASK] हे भारतभाग्यव[MASK]धात[MASK]! ज[MASK] हे, जय हे[MASK] जय [MASK]े[MASK] जय जय [MASK]य [MASK]य हे।[MASK] पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्[MASK]ी। हे [MASK]िर
सारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि। दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे जाग्रत
सारथ[MASK], तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि। दा[MASK]ुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे जनगणपथप[MASK]िचायक जय हे भारतभाग्यविधाता[MASK] [MASK]य हे, जय हे[MASK] जय [MASK]े, ज[MASK] जय जय जय [MASK]े।। घोरतिमिरघन निविड़ निशीथ[MASK] पी[MASK]़ित मूर्[MASK]ित दे[MASK]े जाग्रत
छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे। दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके स्नेहमयी तुमि माता। जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्
छि[MASK] तव अ[MASK]िचल [MASK][MASK]गल [MASK]तनय[MASK]े अ[MASK]िमेषे। दुःस्वप्ने आतंक[MASK] [MASK]क्षा करिले [MASK]ंके स्नेहमयी तुम[MASK] म[MASK]ता। जन[MASK]ण[MASK]ुःख[MASK]्रायक जय हे भ[MASK]रतभाग्य[MASK]िधाता! जय हे, जय ह[MASK], जय [MASK]े, [MASK]य जय जय जय हे।।[MASK]रात्रि [MASK]्रभातिल, उदिल [MASK]वि[MASK]्छवि [MASK][MASK][MASK]्
व-उदयगिरिभाले गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले। तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे तव चरणे नत माथा। जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। राष्ट्रगान संबंध
व-उदयगिरिभाले गाहे विहंगम, पुण[MASK]य [MASK]मीरण नवजी[MASK]नरस ढा[MASK]े। तव करुण[MASK]रु[MASK]रागे निद्र[MASK]त भारत जागे तव चरणे नत माथा। जय ज[MASK] जय हे जय [MASK]ाजेश्वर भारतभाग्यवि[MASK]ा[MASK]ा! जय हे, जय [MASK]े, [MASK][MASK] हे, जय जय जय जय हे[MASK]। राष्ट्र[MASK]ान स[MASK]बंध
ित नियम व विधियाँ राष्ट्र गान बजाना राष्ट्रगान बजाने के नियमों के आनुसार: राष्ट्रगान का पूर्ण संस्करण निम्नलिखित अवसरों पर बजाया जाएगा: नागरिक और सैन्य अधिष्ठापन; जब राष्ट्र सलामी देता है (अर्थात इसका
[MASK]त नियम व वि[MASK]ियाँ राष्ट्र गान बजाना राष्[MASK]्रगान बजा[MASK]े क[MASK] नियमों के आनुसार: राष्ट्रगा[MASK] का प[MASK]र्ण संस्करण न[MASK]म्नलिखि[MASK] अवसरों प[MASK] बजाया जाएगा: नागरिक और सैन्य अधिष्ठापन; जब राष्[MASK]्र सलामी दे[MASK][MASK] है [MASK]अर्थात इसक[MASK]
अर्थ है राष्ट्रपति या संबंधित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के अंदर राज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर को विशेष अवसरों पर राष्ट्र गान के साथ राष्ट्रीय सलामी - सलामी शस्त्र प्रस्तुत किया जाता है); परेड के दौरान
अर्[MASK] [MASK]ै रा[MASK][MASK]ट्रपति य[MASK] संबंधित राज[MASK]यों[MASK]संघ राज्य क्षेत[MASK]र[MASK]ं के अंदर राज्यपा[MASK]/ल[MASK]फ्टिनेंट गवर्[MASK]र [MASK]ो व[MASK]शेष अवसरों पर र[MASK]ष्ट्र गा[MASK] के साथ रा[MASK]्ट्री[MASK] [MASK]लामी - [MASK]लामी शस्त्र प्[MASK]स्तुत [MASK]िय[MASK] [MASK][MASK]ता है)[MASK] परेड के दौरान
- चाहे उपरोक्त में संदर्भित विशिष्ट अतिथि उपस्थित हों या नहीं; औपचारिक राज्य कार्यक्रमों और सरकार द्वारा आयोजित अन्य कार्यक्रमों में राष्ट्रपति के आगमन पर और सामूहिक कार्यक्रमों में तथा इन कार्यक्रमो
- चाहे उपरोक्त में संदर्भित विशिष्ट अतिथ[MASK] उपस[MASK]थित हों या नहीं;[MASK]औप[MASK]ा[MASK]िक राज्य का[MASK]्यक्रमों और सरकार [MASK]्वार[MASK] आयोजित [MASK]न्य कार्यक्[MASK]मों में राष्ट्रपति के आगमन पर [MASK]र सामूहिक कार[MASK]यक्[MASK]मो[MASK] म[MASK][MASK] तथा इन कार्यक्रमो
ं से उनके वापस जाने के अवसर पर ; ऑल इंडिया रेडियो पर राष्ट्रपति के राष्ट्र को संबोधन से तत्काल पूर्व और उसके पश्चात; राज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर के उनके राज्य/संघ राज्य के अंदर औपचारिक राज्य कार्यक्रमो
ं स[MASK] उनके वापस जाने के [MASK]वसर पर ;[MASK]ऑल इंडिया [MASK]े[MASK]ियो पर राष्ट्रपति के [MASK]ाष्ट्र को संबोधन से तत्[MASK][MASK]ल पूर्व और उसके प[MASK]्चात; राज्यपाल/ल[MASK]फ्टिनेंट गवर्नर के उ[MASK]के राज्य[MASK]संघ र[MASK]ज्य [MASK][MASK] अंदर औपचारिक र[MASK][MASK][MASK]य [MASK]ार्यक्रमो
ं में आगमन पर तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के समय; जब राष्ट्रीय ध्वज को परेड में लाया जाए; जब रेजीमेंट के रंग प्रस्तुत किए जाते हैं; नौसेना के रंगों को फहराने के लिए। जब राष्ट्र गान एक बैंड द्
ं म[MASK][MASK] आगमन पर तथ[MASK] इन कार्यक्रमों [MASK]े उनके वापस जा[MASK]े के [MASK]मय; जब राष्ट्रीय ध्वज को [MASK][MASK]ेड में लाया जाए; जब रेजी[MASK]ेंट के रंग प्रस्तुत किए ज[MASK]ते हैं; नौसेना के रंगों को फ[MASK]राने के लिए। जब राष[MASK]ट्र गान एक बैंड [MASK]्
वारा बजाया जाता है तो राष्ट्र गान के पहले श्रोताओं की सहायता हेतु ड्रमों का एक क्रम बजाया जाएगा ताकि वे जान सकें कि अब राष्ट्र गान आरम्भ होने वाला है। अन्यथा इसके कुछ विशेष संकेत होने चाहिए कि अब राष्
वारा ब[MASK]ाया जाता है तो र[MASK]ष्ट्र गान के पहले श्रोताओं की सहायता हेत[MASK] ड्रमों क[MASK] ए[MASK] क्र[MASK] बजाया जाएगा ताकि वे जा[MASK] सकें [MASK]ि अब [MASK]ाष[MASK]ट्[MASK] गान आरम्[MASK] होने वा[MASK]ा है। अन्[MASK][MASK][MASK] इसक[MASK] कुछ विशेष संकेत [MASK]ोने चाहिए कि [MASK]ब राष्
ट्र गान को बजाना आरम्भ होने वाला है। उदाहरण के लिए जब राष्ट्र गान बजाने से पहले एक विशेष प्रकार की धूमधाम की ध्वनि निकाली जाए या जब राष्ट्र गान के साथ सलामती की शुभकामनाएँ भेजी जाएँ या जब राष्ट्र गान
[MASK]्[MASK] गान को बजाना आरम्भ [MASK]ोने वाल[MASK] [MASK][MASK]। उद[MASK]हरण के लिए जब [MASK]ाष्ट्[MASK] गान बजाने से पहले एक विशेष प्रकार की धूमधाम [MASK]ी ध्वनि निकाली ज[MASK][MASK] या जब [MASK][MASK]ष्ट्र गान के साथ सला[MASK]ती की शुभकाम[MASK]ाएँ भेजी जाए[MASK] या जब र[MASK]ष्ट्र गान
गार्ड ऑफ ऑनर द्वारा दी जाने वाली राष्ट्रीय सलामी का भाग हो। मार्चिंग ड्रिल के सन्दर्भ में रोल की अवधि धीमे मार्च में सात कदम होगी। यह रोल धीरे से आरम्भ होगा, ध्वनि के तेज स्तर तक जितना अधिक संभव हो ऊँ
गार[MASK]ड [MASK]फ ऑनर द्वा[MASK]ा दी जाने वाली [MASK]ाष्ट्रीय सलामी का भाग हो। मार्च[MASK]ंग ड्र[MASK]ल के सन्दर्भ में रोल की अवधि धीमे मार्च में स[MASK][MASK] कदम होगी। य[MASK] रो[MASK] धीर[MASK] से आरम्भ होगा, ध्वनि के तेज [MASK][MASK]तर तक [MASK]ित[MASK]ा अधिक सं[MASK][MASK] हो ऊँ
चा उठेगा और तब धीरे से मूल कोमलता तक कम हो जाएगा, किन्तु सातवीं बीट तक सुनाई देने योग्य बना रहेगा। तब राष्ट्र गान आरम्भ करने से पहले एक बीट का विश्राम लिया जाएगा। राष्ट्र गान का संक्षिप्त संस्करण मेस
चा उठेगा और तब धीरे से म[MASK]ल को[MASK]लता तक कम हो जाएगा, किन्तु स[MASK]तवीं बीट तक सुन[MASK]ई देने योग[MASK]य बना र[MASK]ेगा। तब राष्ट्र गान आरम्भ [MASK]रने से प[MASK]ले एक ब[MASK]ट का विश्रा[MASK] लिया जाएगा। राष्[MASK]्र गान का सं[MASK]्षिप्त संस्करण मे[MASK]
में सलामती की शुभकामना देते समय बजाया जाएगा। राष्ट्र गान उन अन्य अवसरों पर बजाया जाएगा जिनके लिए भारत सरकार द्वारा विशेष आदेश जारी किए गए हैं। आम तौर पर राष्ट्र गान प्रधानमंत्री के लिए नहीं बजाया जाएग
में सला[MASK]ती की शुभकामना देते [MASK]म[MASK] बज[MASK]या [MASK]ाएगा।[MASK]राष्ट्र गान उन अन्य अ[MASK]सरों पर बजाया जाएगा जिनके लिए भारत सरकार द्वार[MASK] वि[MASK]ेष आदेश जारी किए गए [MASK]ैं। आम तौर पर राष्ट्र [MASK]ान प[MASK]रधानमंत[MASK]री के [MASK]िए नहीं बजाया जाएग
ा जबकि ऐसा विशेष अवसर हो सकते हैं जब इसे बजाया जाए। राष्ट्र गान को सामूहिक रूप से गाना राष्ट्र गान का पूर्ण संस्करण निम्नलिखित अवसरों पर सामूहिक गान के साथ बजाया जाएगा: राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के अवस
ा जबकि ऐसा व[MASK]शे[MASK] अव[MASK]र हो सक[MASK]े हैं जब इसे बजाया जाए। र[MASK]ष्ट[MASK]र गान को सामूहिक रूप से गाना राष्ट्[MASK] गा[MASK] का पूर्ण संस्करण निम्नलिखित अवसरों पर सामूहिक गान क[MASK] साथ बज[MASK]या ज[MASK]एगा: राष्ट्रीय ध्वज को फहर[MASK]न[MASK] के अवस
र पर, सांस्कृतिक अवसरों पर या परेड के अलावा अन्य समारोह पूर्ण कार्यक्रमों में। (इसकी व्यवस्था एक कॉयर या पर्याप्त आकार के, उपयुक्त रूप से स्थापित तरीके से की जा सकती है, जिसे बैंड आदि के साथ इसके गाने
र [MASK]र, सा[MASK]स्कृत[MASK]क अवस[MASK]ों पर या परेड के अल[MASK]वा अन्य समारोह पूर्ण क[MASK]र्य[MASK]्रमों में। (इसकी [MASK]्यवस्[MASK]ा एक कॉ[MASK]र य[MASK] पर[MASK]याप्त आक[MASK]र के, उपयुक[MASK]त र[MASK]प [MASK]े स्थापित तरीक[MASK] से क[MASK] जा [MASK]कती ह[MASK], जिसे बैंड आदि के स[MASK][MASK] इसके गाने
का समन्वय करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसमें पर्याप्त सार्वजनिक श्रव्य प्रणाली होगी ताकि कॉयर के साथ मिलकर विभिन्न अवसरों पर जनसमूह गा सके); सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में राष्ट्रपति के आगमन
का स[MASK]न्वय करने क[MASK] लिए प[MASK]रशिक्ष[MASK]त किया ज[MASK]एगा। इसमें पर्याप्त सार्वजन[MASK]क श्रव्य प्रणाली होगी ताकि कॉय[MASK] [MASK]े साथ मि[MASK][MASK]र विभिन्न [MASK]वसरों पर जनसमूह गा सके); सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम म[MASK]ं राष[MASK]ट्रप[MASK][MASK] के आगमन
के अवसर पर (परंतु औपचारिक राज्य कार्यक्रमों और सामूहिक कार्यक्रमों के अलावा) और इन कार्यक्रमों से उनके विदा होने के तत्काल पहले। राष्ट्र गान को गाने के सभी अवसरों पर सामूहिक गान के साथ इसके पूर्ण संस
के अव[MASK]र प[MASK] (परंतु औपचारिक राज्य कार्यक्रमों और सामूहिक कार[MASK][MASK]क्रमों के अल[MASK]वा) और इन कार्य[MASK]्रमों से उनके विद[MASK] हो[MASK][MASK] [MASK]े त[MASK]्काल पहले। राष्ट्र गान को ग[MASK]ने के सभी अव[MASK]रों पर सामूहिक गान क[MASK] [MASK]ाथ इसके पूर्ण [MASK]ंस
्करण का उच्चारण किया जाएगा। राष्ट्र गान उन अवसरों पर गाया जाए, जो पूरी तरह से समारोह के रूप में न हो, तथापि इनका कुछ महत्व हो, जिसमें मंत्रियों आदि की उपस्थिति शामिल है। इन अवसरों पर राष्ट्र गान को गा
्करण का [MASK]च्चारण किया जाएग[MASK]। राष्ट्र गान उ[MASK] अवसरों पर गाया जाए, जो पू[MASK]ी तरह से समारोह के रूप [MASK]ें [MASK] ह[MASK], तथापि इनका कुछ महत्व हो, जिसमें मंत्रियों आद[MASK] की उपस्थिति शामिल [MASK]ै[MASK] इन अवसरों पर राष्ट्र गान को गा
ने के साथ (संगीत वाद्यों के साथ या इनके बिना) सामूहिक रूप से गायन वांछित होता है। यह संभव नहीं है कि अवसरों की कोई एक सूची दी जाए, जिन अवसरों पर राष्ट्र गान को गाना (बजाने से अलग) गाने की अनुमति दी जा
ने के साथ (संगीत वाद्यों [MASK]े स[MASK]थ या इनके बिना) सामूहिक रूप से गाय[MASK] वांछित होता है। यह [MASK]ंभव नहीं है कि [MASK]वसरों की क[MASK]ई एक सूची दी जाए, जिन अवसरो[MASK] पर राष्ट्र गान [MASK]ो गाना (बजाने से अलग) गाने की अन[MASK]मति दी जा
सकती है। परन्तु सामूहिक गान के साथ राष्ट्र गान को गाने पर तब तक कोई आपत्ति नहीं है जब तक इसे मातृ भूमि को सलामी देते हुए आदर के साथ गाया जाए और इसकी उचित गरिमा को बनाए रखा जाए। विद्यालयों में, दिन के
सकती है। [MASK]रन्त[MASK] सामूहिक गान के [MASK]ाथ राष्[MASK]्र गान को गाने पर [MASK][MASK] त[MASK] कोई [MASK][MASK]त्ति नहीं ह[MASK] जब तक इसे मातृ भूम[MASK] को सलामी देते [MASK]ुए आ[MASK]र के साथ गाया ज[MASK]ए और [MASK]सकी उचि[MASK] गरिम[MASK] को बना[MASK] र[MASK]ा जाए। विद्याल[MASK]ों [MASK]ें, दिन के
कार्यों में राष्ट्र गान को सामूहिक रूप से गा कर आरंभ किया जा सकता है। विद्यालय के प्राधिकारियों को राष्ट्र गान के गायन को लोकप्रिय बनाने के लिए अपने कार्यक्रमों में पर्याप्त प्रावधान करने चाहिए तथा उ
कार्यों मे[MASK] रा[MASK]्ट्र गान को सा[MASK]ूहिक रूप [MASK]े गा कर आरंभ किया जा सकता है। विद[MASK]यालय के प्राधिकारिय[MASK]ं को राष[MASK]ट्र गान [MASK]े गायन क[MASK] लो[MASK]प[MASK]रिय [MASK]नाने के लिए अपने कार्यक्[MASK]मों म[MASK]ं पर्य[MASK]प्त प्[MASK]ावधान करने चा[MASK]िए तथा उ
न्हें छात्रों के बीच राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान की भावना को प्रोत्साहन देना चाहिए। जब राष्ट्र गान गाया या बजाया जाता है तो श्रोताओं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए। यद्यपि जब किसी चल चित्र
न्हें छात्रो[MASK] के ब[MASK]च रा[MASK]्ट्[MASK]ीय ध[MASK]वज के प[MASK]रति सम्मान की भावना को प्रोत्साहन [MASK]ेना चाहिए। जब र[MASK][MASK]्ट्र ग[MASK][MASK] गा[MASK][MASK] या ब[MASK]ाया जा[MASK]ा है तो श्रोता[MASK]ं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए। यद[MASK]यपि जब क[MASK]सी च[MASK] [MASK]ित्र
के भाग के रूप में राष्ट्र गान को किसी समाचार की गतिविधि या संक्षिप्त चलचित्र के दौरान बजाया जाए तो श्रोताओं से अपेक्षित नहीं है कि वे खड़े हो जाएं, क्योंकि उनके खड़े होने से फिल्म के प्रदर्शन में बाध
के भा[MASK] के रूप [MASK]ें राष्ट्र गा[MASK] को किस[MASK] समाचार की गतिविधि या संक्ष[MASK]प्त चलचित्र के दौरान बजाया जाए [MASK]ो श्रो[MASK]ाओं से अपेक[MASK]षित नही[MASK] है कि वे खड[MASK][MASK] हो जाएं, [MASK]्[MASK]ोंकि उनके ख[MASK]़[MASK] होने से फ[MASK]ल्म के प्रदर्शन में बाध
ा आएगी और एक असंतुलन और भ्रम पैदा होगा तथा राष्ट्र गान की गरिमा में वृद्धि नहीं होगी। जैसा कि राष्ट्र ध्वज को फहराने के मामले में होता है, यह लोगों की अच्छी भावना के लिए छोड दिया गया है कि वे राष्ट्र
ा आएगी और एक असंतु[MASK][MASK] औ[MASK] भ्र[MASK] पैदा हो[MASK]ा तथा राष्ट्र गान की ग[MASK]िमा में वृद्[MASK]ि नहीं होगी। जैसा कि राष्ट्र [MASK]्व[MASK] को फहराने के [MASK][MASK]मले में होता है, यह लोगों की [MASK]च[MASK]छी भावना के लिए छ[MASK]ड दिया गया है [MASK]ि वे राष्ट्र