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गान को गाते या बजाते समय किसी अनुचित गतिविधि में संलग्न नहीं हों। क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोए एम्मानुएल वर्सेस केरल रा
ग[MASK]न [MASK]ो [MASK]ाते या बजाते समय क[MASK]स[MASK] अनुचि[MASK] गतिविध[MASK] [MASK]ें सं[MASK]ग्न नहीं हों। क्या कि[MASK]ी को कोई ग[MASK]त गाने के लिये मजबूर [MASK]िया जा सकता है अथ[MASK]ा नहीं? यह प्रश्न सर[MASK]वोच्च न्[MASK]ा[MASK]ालय के समक्[MASK] बिजोए एम्मानुएल वर्सेस के[MASK]ल रा
ज्य एयर १९८० स्क ७४८ [३] नाम के एक वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि इन्होने राष्ट्र-गान जन-गण-मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्
ज्य एयर १९[MASK]० स्क ७४८ [३] नाम क[MASK] एक वाद मे[MASK] उठाया गया। इस व[MASK]द में कुछ विद्यार्[MASK]ियों क[MASK] स्कूल स[MASK] इसलिये निकाल दिया गया था क्[MASK]ोंकि इन्होने राष्[MASK][MASK]र-गा[MASK] जन[MASK]गण-मन को [MASK]ाने से मना [MASK]र दिया थ[MASK]। यह विद्यार्थी स्
कूल में राष्ट्र-गान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस
कूल में राष्ट्[MASK]-ग[MASK]न के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इस[MASK]ा सम्मान करत[MASK] थे पर गाते नह[MASK]ं थे। गाने के लिये उन्होंने [MASK]ना कर दिया था। सर्वोच[MASK]च न्[MASK]ायालय [MASK]े इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स[MASK]कूल को वापस
लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को
लेने को कहा। स[MASK]्वोच्च [MASK]्[MASK]ायालय का कह[MASK]ा है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-[MASK]ान का सम्मा[MASK] [MASK]ो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब य[MASK] नहीं कि व[MASK] इसका अप[MASK]ान कर रहा है। अत: इसे [MASK] गाने के लिये उस व्[MASK]क्ति [MASK]ो
दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। ये भी देखें भारत सरकार: राष्ट्रगान भारत सरकार: राष्ट्रगान (ऑडियो) देशभक्ति के गीत एशिया के राष्ट्रगान रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँवन्दे मातरम् ( बाँग्ला: ) बंकिम
दण्[MASK]ित या प[MASK]र[MASK]ाड़ित नह[MASK]ं किया जा सकता। ये भी [MASK]ेखें भारत सरकार: राष्ट्[MASK]गान [MASK]ारत सरकार[MASK] राष्ट्रगा[MASK] [MASK]ऑडियो[MASK] देशभक्ति के गीत[MASK]एशि[MASK][MASK] के राष्ट्रगा[MASK][MASK]रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँवन्[MASK]े मातरम् ( बाँग्ल[MASK]: ) बंक[MASK]म
चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्या
चन्द्र [MASK]ट्टो[MASK]ाध्याय [MASK]्वा[MASK]ा सं[MASK]्[MASK][MASK]त [MASK]ाँग्ल[MASK] मिश्र[MASK]त भाषा म[MASK]ं रचित इस गीत का प्[MASK][MASK]ाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ [MASK]ा। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्[MASK] नाम के संन[MASK]या
सी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। इस गीत को गाने में ६५ सेकेंड (१ मिनट और ५ सेकेंड) का समय लगता है। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्व
सी द्वारा [MASK]ाय[MASK] गया है। इसकी धुन यदुन[MASK][MASK] भट्[MASK]ाचार्य ने बना[MASK][MASK] थी। इ[MASK] गीत को गाने म[MASK]ं ६५ सेकेंड (१ मिनट औ[MASK] [MASK] स[MASK]केंड) का समय [MASK][MASK]ता है[MASK] स[MASK]् २००३ मे[MASK], [MASK][MASK]ब[MASK]सी वर्ल्ड स[MASK]्विस द्वारा आयोजित एक अन्तर[MASK]ाष्ट्रीय सर्व
ेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे म
ेक्षण में[MASK] जि[MASK]में उस समय तक के स[MASK]से मशहूर दस ग[MASK][MASK]ों का चयन करने [MASK]े [MASK]िये द[MASK]निया भर से लगभग ७,०[MASK][MASK] गी[MASK]ों [MASK]ो चुना गय[MASK] था और बी०बी[MASK]सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगो[MASK] ने इ[MASK]में मतदान कि[MASK]ा था उसमें वन्[MASK]े म
ातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक "बन्दे मातरम्" होना चाहिये "वन्दे मातरम्" नहीं। चूँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही
ात[MASK]म[MASK] [MASK]ी[MASK]्ष के १० गीतों [MASK][MASK]ं दूस[MASK]े स्थान पर थ[MASK]।[MASK]यद[MASK] बाँ[MASK]्ला भाषा को ध्यान में [MASK]खा जाय [MASK]ो इस[MASK]ा शीर्षक "[MASK]न्दे मातरम्" होना चाहिये "वन[MASK]दे मातरम्[MASK] नह[MASK]ं। च[MASK]ँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में '[MASK]न्दे' शब्द ही सही
है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में व अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते
[MASK]ै, लेकिन यह ग[MASK]त मूल[MASK][MASK]प में बाँग्ला लिपि म[MASK]ं लिखा [MASK]या था और [MASK]ूँ[MASK]ि ब[MASK]ँ[MASK]्ला [MASK]िपि में व अक्ष[MASK] है ही नहीं अत[MASK] बन्दे मातर[MASK]् शीर्षक से ही बंकि[MASK] चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्[MASK]ा[MASK] में [MASK]खते
हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा "वन्दे मातरम्" उच्चारण करने से "माता की वन्दना करता हूँ" ऐसा अर्थ निकलता है, अतः देवनागरी लिपि म
हु[MASK] शीर्षक 'बन्दे मा[MASK]रम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत [MASK][MASK]ं [MASK]बन्दे मातर[MASK]्' का कोई शब[MASK]दार्थ नहीं है [MASK]था "वन्दे [MASK]ात[MASK][MASK]्" उच्चारण करने से "माता की वन्दना करता हूँ" ऐसा अर्थ निकलता ह[MASK], अतः देवनाग[MASK]ी लिपि म
ें इसे वन्दे मातरम् ही लिखना व पढ़ना समीचीन होगा। आनन्दमठ के हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड आदि अनेक भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी-अनुवाद भी प्रकाशित हुए। डॉ॰ नरेशचन्द्र सेनगुप्त ने सन् १९०६
ें इ[MASK]े वन[MASK]दे मातरम् ही लि[MASK]ना व [MASK]ढ़ना समीचीन होगा। आनन्दमठ क[MASK] [MASK]िन्द[MASK], मराठी, तमिल[MASK] तेलुगु, कन्नड आदि अन[MASK]क भारतीय भाषाओं के अति[MASK]िक्त अंग्[MASK]ेजी[MASK]अ[MASK]ुवाद भी प्रकाशित हुए। ड[MASK]॰ नरे[MASK]च[MASK]्द्[MASK] सेनगुप्त ने सन् १९०६
में अब्बे ऑफ ब्लिस के नाम से इसका अंग्रेजी-अनुवाद प्रकाशित किया। अरविन्द घोष ने 'आनन्दमठ' में वर्णित गीत 'वन्दे मातरम्' का अंग्रेजी गद्य और पद्य में अनुवाद किया। महर्षि अरविन्द द्वारा किए गये अंग्रेजी
में अब्बे ऑफ ब्लिस के नाम से इसका अंग्रे[MASK]ी-अनुवाद प्रकाशित किया। अरविन्द घोष ने 'आनन्दमठ[MASK] में वर्णित गीत 'वन्[MASK]े मात[MASK]म[MASK]' का अंग्रेजी गद[MASK]य और प[MASK]्य में अनुवाद किया। महर्षि अरवि[MASK]्द [MASK]्वा[MASK]ा किए गये अ[MASK]ग्रेजी
गद्य-अनुवाद का हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार है: मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता! पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शान्त, कटाई की फसलों के साथ गहरी, उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में
गद्य-अनु[MASK]ाद का हिन्द[MASK]-अनुवा[MASK] इस प्रकार है: मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता! पानी से सींच[MASK], फल[MASK]ं से भरी, दक्षि[MASK] की वायु क[MASK] साथ [MASK]ान्[MASK],[MASK]कटाई की फसलों के साथ गहरी[MASK] उ[MASK]की रातें च[MASK]ँद[MASK][MASK] की गरिमा म[MASK][MASK]
प्रफुल्लित हो रही हैं, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है, हँसी की मिठास, वाणी की मिठास, माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली। रचना की पृष्ठभूमि सन् १८७०-८० के दशक में ब्रि
प्रफुल्लित हो रही ह[MASK]ं, उसकी जम[MASK][MASK] ख[MASK]लते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढक[MASK] हुई ह[MASK], हँ[MASK]ी क[MASK] मि[MASK]ास, वाणी की म[MASK]ठास, माता[MASK] वरदान देने वाली[MASK] आ[MASK]न्द देने वाली। र[MASK]ना की पृष्ठभूमि सन् १८७०[MASK]८० के [MASK]शक में ब्[MASK]ि
टिश शासकों ने सरकारी समारोहों में गॉड! सेव द क्वीन गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुँची
टिश शासकों ने सरक[MASK]री समारो[MASK]ों में गॉड! सेव द क्वीन ग[MASK]त [MASK]ाया जाना अनिवार्य कर दिय[MASK] था। अंग्रे[MASK]ों क[MASK] इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सर[MASK]ारी अ[MASK]िकारी (डिप्टी क[MASK]ेक्टर) थे, ब[MASK]ु[MASK] ठेस पहुँच[MASK]
और उन्होंने सम्भवत: १८७६ में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बाँग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - वन्दे मातरम्। शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे।
और उन्होंने स[MASK]्भवत: १८[MASK]६ में इ[MASK]के [MASK]िक[MASK][MASK]प के तौर प[MASK] [MASK]ंस्कृत और बाँ[MASK]्ला [MASK]े मिश्रण [MASK]े एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - [MASK]न्दे मातरम[MASK]। शुरुआत [MASK]ें इसके [MASK]ेवल दो ही प[MASK] रचे गये थे जो संस्कृत में थे[MASK]
इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी। उन्होंने १८८२ में जब आनन्द मठ नामक बाँग्ला उपन्यास लिखा तब मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत इस गीत को भी उसमें शामिल कर लिया। यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींद
इन दोनों प[MASK]ों में [MASK]े[MASK]ल मातृभूमि क[MASK] वन्दना थी। उन्होंन[MASK] १८८२ में जब आनन्द मठ नामक बाँ[MASK][MASK]ला उ[MASK]न्यास लिखा तब मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत [MASK][MASK] गीत [MASK]ो भी [MASK]समें शामिल क[MASK] लिया[MASK] यह उपन्या[MASK] [MASK]ंग्रेज[MASK] शासन, जमींद
ारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए संन्यासी विद्रोह पर आधारित था। इस तथ्यात्मक इतिहास का उल्लेख बंकिम बाबू ने 'आनन्द मठ' के तीसरे संस्करण में स
ार[MASK]ं के श[MASK]षण व प्राकृतिक प्रकोप (अ[MASK]ाल) मे[MASK] मर र[MASK]ी जनता को जा[MASK]ृत करने ह[MASK]तु अचा[MASK]क उठ ख[MASK]़े हुए सं[MASK]्यासी विद्रोह पर आधार[MASK]त था। इस त[MASK]्यात्मक इति[MASK]ास क[MASK] उल्लेख बंकिम बाबू ने 'आनन्द मठ' के तीसरे संस्करण मे[MASK] [MASK]
्वयं ही कर दिया था। और मजे की बात यह है कि सारे तथ्य भी उन्होंने अंग्रेजी विद्वानों-ग्लेग व हण्टर की पुस्तकों से दिये थे। उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक संन्यासी विद्रोही गाता है। गीत का मुखड़ा
्वयं ही कर दिय[MASK] था। औ[MASK] मजे की बात यह है कि [MASK][MASK]र[MASK] तथ्य भी उन्होंने अंग्रेजी विद्वानों-ग्लेग व हण[MASK]टर की पुस्तको[MASK] से दिये थे। उपन्यास मे[MASK] य[MASK] [MASK]ीत भवानन्द नाम का एक संन्यासी वि[MASK]्रो[MASK][MASK] गा[MASK][MASK] है। [MASK][MASK]त का मुखड़ा
विशुद्ध संस्कृत में इस प्रकार है: "वन्दे मातरम् ! सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्, शस्य श्यामलाम् मातरम्।" मुखड़े के बाद वाला पद भी संस्कृत में ही है: "शुभ्र ज्योत्स्नां पुलकित यमिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुम
[MASK]िशुद्ध संस्कृ[MASK] में इस प[MASK]रकार है: "व[MASK]्दे मातर[MASK]् ! सुजलां सुफलां मलयज शी[MASK]लाम्, शस्य श्या[MASK]लाम् मातरम्।" मुखड़े के बाद वाला पद [MASK]ी संस्कृत म[MASK]ं ही है: "शुभ्र ज्योत्स्नां पुल[MASK]ित यमिनीम्, फुल्ल कुसु[MASK]ित द्रुम
दल शोभिनीम् ; सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्, सुखदां वरदां मातरम्।" किन्तु उपन्यास में इस गीत के आगे जो पद लिखे गये थे वे उपन्यास की मूल भाषा अर्थात् बाँग्ला में ही थे। बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की
[MASK]ल श[MASK]भिनीम् ; सुहासिनीं सुमधुर भाष[MASK]णीम्, सुखदां वरदां मातरम्।" किन्तु उपन्यास में इस गीत के आगे [MASK]ो पद लिखे गये थे [MASK]े उ[MASK]न्यास क[MASK] [MASK]ूल भाषा अर्थात् [MASK]ाँग्ला में ही थे। ब[MASK]द [MASK]ाले इन सभी पदों में मातृभूमि की
दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है। यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूरा हुआ।कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में ही लिखी थी। भारतीय स्वाधी
दुर्गा के [MASK]ूप में स्तु[MASK]ि की गई ह[MASK]। यह [MASK]ीत रविव[MASK]र, कार्तिक सुदी नवमी[MASK] शके १[MASK]९७ (७ नवम्बर [MASK]८७५) को पूरा हुआ।कहा जाता है कि यह ग[MASK]त [MASK][MASK]्होंने सियाल[MASK]ह से [MASK]ैहा[MASK]ी आत[MASK] वक्त [MASK]्रेन में ही ल[MASK]खी थी। भारतीय [MASK]्वाधी
नता संग्राम में भूमिका बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश सरकार इसकी लोकप्रि
नता संग्राम में भूमिका बंगाल में चले स्वाधीनता-[MASK]न्दोलन के दौरान विभिन्न रैल[MASK]यों में जोश भरन[MASK] के लिए यह गीत [MASK]ाया जा[MASK]े लगा। धीरे[MASK][MASK][MASK]रे यह गी[MASK] लोगों में अत्य[MASK]िक लोकप[MASK]रिय हो गया। ब्रि[MASK][MASK]श सरकार इसकी लोकप्रि
यता से भयाक्रान्त हो उठी और उसने इस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। सन् १८९६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। पाँच साल बाद
यत[MASK] से भयाक्रान्[MASK] हो उठी औ[MASK] उसने इस पर प्रत[MASK]बन[MASK]ध लगाने पर विचार करन[MASK] शुरू कर दिया। सन् १८९६ [MASK]ें भारतीय राष्ट्र[MASK]य कांग्रेस के कलकत्ता अध[MASK]वेशन में गुरुदेव र[MASK]ीन्द्र[MASK]ाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। प[MASK]ँच साल बाद
यानी सन् १९०१ में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। सन् १९०५ के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया। कांग्रेस-अधिवेशनों के अलावा आजादी के आन्दो
यानी सन् १९०१ में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेश[MASK] मे[MASK] श्री चरणद[MASK]स ने यह गीत [MASK]ुनः गा[MASK]ा। सन् १९०५ के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सर[MASK]ाद[MASK]वी चौधरा[MASK]ी ने स्वर दिया[MASK] [MASK][MASK]ंग्रेस-अधिवेश[MASK]ों के अलावा आजादी [MASK]े आन्दो
लन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय ने लाहौर से जिस 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था उसका नाम वन्दे मातरम् रखा। अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की
ल[MASK] के दौरान इस [MASK]ीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद [MASK]ैं। [MASK]ाला लाजपत राय ने ल[MASK][MASK]ौर स[MASK] जिस '[MASK][MASK]्नल' का प्रकाशन शुरू किया [MASK]ा उसका नाम वन्[MASK]े मातरम[MASK] [MASK]खा। अंग[MASK]रे[MASK]ों की ग[MASK]ल[MASK] का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की
दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही थे। सन् १९०७ में मैडम भीखाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में "वन्दे मातरम्" ही लिखा हुआ था। आर्य प्रिन
दी[MASK][MASK]नी मातंग[MASK][MASK]ी हाजरा की जुबान पर आखिर[MASK] श[MASK]्द "[MASK]न[MASK]दे [MASK]ातरम्" ही थे। सन् [MASK]९०७ में मैडम भी[MASK]ाजी का[MASK]ा ने जब जर्मन[MASK] [MASK]े स्टुटग[MASK]र्ट में तिरं[MASK]ा फहराया तो उसके म[MASK]्य में "[MASK]न्दे [MASK]ातरम्" ही लिखा हुआ थ[MASK][MASK] आर्[MASK] प्रिन
्टिंग प्रेस, लाहौर तथा भारतीय प्रेस, देहरादून से सन् १९२९ में प्रकाशित काकोरी के शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की प्रतिबन्धित पुस्तक "क्रान्ति गीतांजलि" में पहला गीत "मातृ-वन्दना" वन्दे मातरम् ही था ज
्[MASK]िंग प्रेस, लाहौर तथा [MASK]ारती[MASK] प्रेस, देहरादून से सन् १९२९ में [MASK]्रकाशित काकोर[MASK] के श[MASK]ीद पं० [MASK]ाम प्रसाद 'बिस्म[MASK]ल' की प्रतिबन्धित प[MASK]स्तक "[MASK]्रान्[MASK]ि गीत[MASK]ंजलि" में पहला [MASK]ीत "मातृ-व[MASK][MASK]दना" वन्दे मातरम[MASK] ही था [MASK]
िसमें उन्होंने केवल इस गीत के दो ही पद दिये थे और उसके बाद इस गीत की प्रशस्ति में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक स्वरचित उर्दू गजल दी थी जो उस कालखण्ड के असंख्य अनाम हुतात्माओं की आवाज को अभिव्यक्ति देती ह
िसमें उन्होंने केवल इ[MASK] गीत के दो ही पद [MASK]िये थे और उसके बा[MASK] इस ग[MASK][MASK] की प्रशस्ति में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक स्वरचित उ[MASK]्द[MASK] गजल दी थी [MASK]ो उस [MASK]ालखण्ड के असं[MASK]्य अनाम हुतात्मा[MASK]ं की आवाज को अ[MASK]िव[MASK]यक्ति देती ह
ै। ब्रिटिश काल में प्रतिबन्धित यह पुस्तक अब सुसम्पादित होकर पुस्तकालयों में उपलब्ध है। राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृति स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन क
ै। ब्रिटिश काल में प्रत[MASK]बन्[MASK]ित यह [MASK][MASK][MASK]्तक अब सुसम्पादित होकर प[MASK]स्तका[MASK]यो[MASK] म[MASK]ं उ[MASK]लब्ध है। राष्ट्रगीत के रूप में [MASK]्वीकृत[MASK] स्व[MASK]धी[MASK]ता सं[MASK][MASK][MASK]ा[MASK] में इस गीत की नि[MASK]्णायक भागीदारी के बावज[MASK]द जब राष्ट्र[MASK]ान के [MASK]यन क
ी बात आयी तो वन्दे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में द
ी बात आयी तो वन्दे मातर[MASK]् के स्[MASK]ा[MASK] पर रवीन्द्रनाथ [MASK]ाकु[MASK] द्वारा लि[MASK]े व गाये गये गी[MASK] जन गण मन को वरीयत[MASK] दी गयी। इसकी [MASK]जह यही थी कि कुछ म[MASK]सलमा[MASK]ो[MASK] को "वन्दे मातरम्" गा[MASK]े पर आप[MASK][MASK][MASK]ि [MASK]ी, क्योंकि इस गीत में द
ेवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग
ेवी दुर्गा को राष्ट्[MASK] क[MASK] [MASK]ूप में देख[MASK] गया है। इसके अलावा उन[MASK]ा [MASK][MASK] भी मानना था कि यह गीत जिस आनन[MASK]द [MASK][MASK] उप[MASK][MASK]यास से लिय[MASK] गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लि[MASK]ा [MASK]या [MASK]ै। इन आपत्तियों [MASK]े मद्देनज[MASK] सन् [MASK]९३७ में क[MASK]ंग
्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, ले
्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन[MASK][MASK]न किया। जवाहरलाल नेहरू [MASK]ी अध्यक[MASK]षता में गठ[MASK]त समिति [MASK]िस[MASK]ें मौलाना अबुल कलाम आजा[MASK] भी शा[MASK]िल थे, ने पाया कि इस गीत के [MASK]ुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रश[MASK]सा म[MASK]ं कहे गये हैं, ले
किन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाक
किन ब[MASK]द के पदों में हिन्दू देवी-देवता[MASK]ं का जिक्र होने ल[MASK]ता है; [MASK]सलिये यह निर्णय [MASK]िया [MASK]या कि इस गी[MASK] [MASK]े शु[MASK]ुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के [MASK]ूप में [MASK]्[MASK]युक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुद[MASK][MASK] र[MASK]ीन्द्र न[MASK]थ ठाक
ुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्र
ुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत [MASK]ाष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सा[MASK]े जहाँ से अच्छा के साथ बंकिम[MASK]न्द्[MASK] [MASK]ट[MASK]्जी द्वारा रचित प्[MASK]ारम्भिक दो पदों [MASK]ा गीत [MASK]न्दे मातरम् [MASK]ा[MASK]्ट[MASK]र
गीत स्वीकृत हुआ। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया। डॉ
गीत स्वीकृत हुआ। स्वतन्त्रता प्रा[MASK]्ति के बाद डॉ॰ राज[MASK]न्द[MASK]र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ ज[MASK]वरी १९५० में 'वन्[MASK][MASK] मा[MASK]रम्' को [MASK][MASK]ष्ट्रगीत के र[MASK]प में अपनान[MASK] सम्बन्धी [MASK][MASK]्तव्य पढ़ा ज[MASK]से स्व[MASK]क[MASK]र कर लिया गया। ड[MASK]
॰ राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है) : शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिक
॰ राजेन[MASK]द्र प्रसाद का संविधान सभा को दि[MASK][MASK] [MASK]य[MASK] वक्तव्य इस प्रकार है) : शब्[MASK]ो[MASK] [MASK] संगीत की वह रचना जिसे जन [MASK]ण मन [MASK]े सम्बोधित कि[MASK]ा जाता है, भार[MASK] का र[MASK]ष्ट्रगान है; बदलाव के [MASK]से विषय, अवसर [MASK]ने [MASK]र सरकार अधिक
ृत करे और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा। (भ
ृत क[MASK][MASK] और वन्[MASK]े [MASK]ातरम[MASK] गा[MASK], जिस[MASK]े कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐत[MASK]हासिक भूमिका निभायी है; [MASK]ो जन गण मन [MASK]े समकक्ष सम्मान व [MASK]द मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा क[MASK]ता हू[MASK] कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट [MASK]रेगा। (भ
ारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, २४-१-१९५०) आनन्द मठ उपन्यास को लेकर भी कुछ विवाद हैं, कुछ लोग इसे मुस्लिम विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है। वन्दे
ारतीय संवि[MASK]ान परिषद[MASK] द्वादश खण्ड, २४-१-१९५०) [MASK]नन्[MASK] मठ उपन्यास [MASK]ो लेकर भ[MASK] क[MASK]छ विव[MASK]द [MASK]ैं, कुछ लो[MASK] इसे मुस्लिम विरोधी मानते हैं। [MASK]नका कहना [MASK]ै कि इसमें मुस[MASK]मानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया ह[MASK]। [MASK]न[MASK]दे
मातरम् गाने पर भी विवाद किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि- इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में भारत की माँ के रूप में वन्दना की गयी है; यह ऐसे उपन्यास से लिया गया
मातरम् गाने पर भी विव[MASK]द किया जा रहा ह[MASK]। ल[MASK]गों का कहना है कि- [MASK]स[MASK]लाम किसी [MASK]्यक्त[MASK] या वस्तु क[MASK] पूजा [MASK][MASK]ने क[MASK] मना क[MASK]त[MASK] है और इस गीत में [MASK]ा[MASK]त की माँ के [MASK]ूप में वन्दना की गयी है; य[MASK] ऐसे उपन्[MASK]ास से लिया गया
है जो कि मुस्लिम विरोधी है क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोय एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य के एक वाद में उठाया गया। इस वाद मे
है जो कि मुस्लिम विरोधी है क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया [MASK][MASK] सकता है अथवा नहीं? यह [MASK]्र[MASK]्न सर्वोच्च न्य[MASK]यालय के सम[MASK]्ष बिजोय एम्मानुएल [MASK]र्सेस केरल राज्य के एक वाद में उठाया गय[MASK]। इस [MASK]ाद [MASK]े
ं कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होने राष्ट्र-गान जन गण मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका
ं कु[MASK] विद्यार्थियों को स्[MASK]ूल स[MASK] इसल[MASK]य[MASK] निकाल दिया गया [MASK]ा क्योंकि [MASK][MASK]्होने राष्ट्र-गान जन गण मन को गान[MASK] स[MASK] मन[MASK] कर [MASK]िया था[MASK] य[MASK] वि[MASK]्य[MASK]र्थी स्कूल में राष्ट्रगान के समय इ[MASK]के सम्मान में खड़[MASK] ह[MASK]त[MASK] थे तथा इसका
सम्मान करते थे पर गीत को गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और स्कूल को उन्हें वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि यदि को
[MASK]म्मान करते थे पर गीत को गाते नहीं थे। [MASK]ाने के ल[MASK]ये उन्होंने मना [MASK]र दिया था। सर्वोच्च न्[MASK]ायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और स[MASK]कूल को उन्हें [MASK]ापस लेन[MASK] को कहा। सर्वोच्च न्या[MASK]ालय का कहना था कि [MASK]दि को
ई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। इन्हें भी देख
ई व्यक्ति राष्ट्रग[MASK]न का [MASK]म्मान तो करता है पर उसे गाता न[MASK]ीं ह[MASK] तो इसका मत[MASK]ब यह न[MASK][MASK]ं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत[MASK] इसे न गाने के ल[MASK]ये उस व्यक्ति को द[MASK][MASK]डित या प्रताड[MASK]ित नहीं किया जा सकता। इन्हें भी द[MASK]ख
ें वन्दे मातरम का इतिहास बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जन गण मन सारे जहाँ से अच्छा भारत सरकार की आधिकारिक साइट से राष्ट्रगीत का डाउनलोड गीत गंगा पर वन्दे मातरम् - टैक्स्ट, पॉडकास्ट तथा ऑडियो डाउनलोड: १ २ य
ें वन्दे मातरम का इतिहास बंकिम चंद्र च[MASK][MASK]टोपाध्याय जन गण मन [MASK]ारे जहाँ से अच्छ[MASK] भारत सरकार की आधिकारि[MASK] साइट से राष्ट्र[MASK]ीत का डाउनलोड गीत गंगा प[MASK] वन्दे मातरम् - टैक्स्ट, पॉडकास्ट तथा ऑडियो डाउनलोड: १ २ य
ू ट्यूब पर लता मंगेशकर द्वारा गाया गया वन्दे मातरम् गीत (फिल्म - आनन्द मठ, १९५२) निहालचन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित बंकिम समग्र १९८९ हिन्दी प्रचारक संस्थान वाराणसी। देशभक्ति के गीत भारत के राष्ट्रीय प्
ू ट्यूब पर लत[MASK] मंगेश[MASK]र द्वारा गा[MASK]ा गया वन्दे मातर[MASK]् गीत (फि[MASK]्म - आनन्द मठ, १[MASK]५२) निहा[MASK]चन्द्र वर्मा [MASK]्वा[MASK]ा सम[MASK]पाद[MASK]त बंकिम समग[MASK]र १९८९ हिन[MASK]द[MASK] प्रचारक स[MASK]स्[MASK]ान वाराणसी। देशभ[MASK]्ति के गीत भा[MASK]त के र[MASK]ष्ट्रीय [MASK]्
रतीक भारत के नारेभारत राज्यों का एक संघ है। इसमें २८ राज्य और ८ केन्द्र शासित प्रदेश हैं। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बाँटे गये हैं। भारत के राज्य और केन्द्र-शासि
रतीक [MASK]ारत के नारेभारत राज्यों [MASK]ा एक स[MASK]घ है। इसमें २[MASK] र[MASK]ज्य और ८ क[MASK]न्द्र शा[MASK]ित प्[MASK]देश है[MASK]। ये राज्य औ[MASK] के[MASK][MASK]द्र शासित प्रदेश प[MASK]नः जिलों और [MASK]न्य क्षेत्रों में बाँटे गये हैं। [MASK]ारत के राज्य और [MASK]ेन्द्र-शास[MASK]
त प्रदेश २८ राज्यों की पूरी सूची : ८ केंद्र शासित प्रदेशों की पूरी सूची : १९५६ से पूर्व भारत के इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप पर विभिन्न जातीय समूहों ने शासन किया और इसे अलग-अलग प्रशासन-संबन्धी भागों म
त [MASK]्[MASK]देश २८ राज्यों [MASK]ी पूरी सूची : ८ [MASK][MASK]ं[MASK]्र शासित प्रदेशों की प[MASK]र[MASK] सूची : १९५६ स[MASK] पूर्व भारत के इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप प[MASK] व[MASK]भिन्न जातीय समूहों ने शासन किया और इसे अलग-अलग प[MASK]रश[MASK]सन-संबन्धी भागों म
ें विभाजित किया। आधुनिक भारत के वर्तमान प्रशासनिक प्रभाग नए घटनाक्रम हैं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान विकसित हुए। ब्रिटिश भारत में, वर्तमान भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश, साथ ही अफ़्गानिस्तान प्रा
ें विभा[MASK]ित किया। आ[MASK]ुनिक भारत के वर्तमान [MASK]्रशासनिक प्रभा[MASK] [MASK]ए घट[MASK]ाक्रम ह[MASK][MASK], जो ब्रिटिश औप[MASK]िवेश[MASK]क काल के दौरान विकस[MASK]त [MASK]ुए। ब्रिटिश भा[MASK]त [MASK]ें, वर्[MASK]मान भा[MASK]त, पाकिस्तान और बंगलाद[MASK][MASK], साथ ही अफ़[MASK][MASK][MASK]निस्तान प्र[MASK]
ंत और उससे जुड़े संरक्षित प्रांत, बाद में उपनिवेश बना, बर्मा (म्यांमार) आदि, सभी राज्य समाहित थे। इस अवधि के दौरान, भारत के क्षेत्रों में या तो ब्रिटिशों का शासन था या उन पर स्थानीय राजाओं का नियंत्रण
ंत और उससे जुड़े संरक्षित प्रां[MASK][MASK] ब[MASK][MASK] म[MASK]ं उपनिव[MASK]श ब[MASK]ा, बर्मा (म्यांमार) आद[MASK], सभी र[MASK]ज्य समाहित थ[MASK]। इस अ[MASK]धि के दौर[MASK]न, भा[MASK]त के [MASK]्षेत्रों में या तो ब[MASK]रिटिशों का शासन था या उन प[MASK] स्थान[MASK]य राजा[MASK]ं [MASK]ा नियंत्रण
था। १९४७ में स्वतन्त्रता के बाद इन विभागों को संरक्षित किया गया और पंजाब तथा बंगाल के प्रांतों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। नए राष्ट्र के लिए पहली चुनौती थी राजसी राज्यों का संघों मे
था। १[MASK]४७ में स्[MASK][MASK]न्त्रता के बाद इन विभागो[MASK] को स[MASK]रक्षित क[MASK]या गया औ[MASK] पंजा[MASK] तथा बंगाल के प[MASK]रांतों को भारत औ[MASK] पाकिस्तान के बीच विभाजित किय[MASK] गया। नए [MASK]ा[MASK]्ट्र के लिए पहल[MASK] चुनौत[MASK] थी राजसी राज्यों का स[MASK]घ[MASK][MASK] मे
ं विलय। स्वतन्त्रता के बाद, हालांकि, भारत में अस्थिरता आ गई। कई प्रांत औपनिवेशिकरण के उद्देश्य से ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए, पर इन पर भारतीय नागरिकों की या राजसी राज्यों की कोई इच्छा दिखाई नहीं दी। १९५
[MASK] विल[MASK]। स्वतन्त्रता के बा[MASK], हा[MASK]ांकि, भारत में अस्थिरता [MASK] गई। कई प्रांत औपनिवेशिक[MASK]ण क[MASK] उद्देश्य [MASK]े ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए, [MASK]र इन पर भारतीय नाग[MASK]िकों की या राजसी राज्यों क[MASK] कोई [MASK]च्छा द[MASK]खाई नहीं दी। १९५
६ में जातीय तनाव ने संसद का दरवाजा खटखटाया और राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर देश को जातीय और भाषाई आधार पर पुनर्निर्माण करने के लिए अधिनियम लाया गया। १९५६ के बाद भारत में जिस प्रकार पूर्व में फ़्रा
६ में जाती[MASK] त[MASK]ाव ने सं[MASK]द का दरव[MASK][MASK]ा ख[MASK]खटाया और रा[MASK]्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर [MASK]ेश को ज[MASK]तीय [MASK]र भाष[MASK]ई आधार पर [MASK]ुनर्नि[MASK]्माण कर[MASK]े क[MASK] ल[MASK]ए अ[MASK][MASK]न[MASK]यम ल[MASK]या [MASK]या।[MASK]१९५६ के बाद भारत में जिस प्रकार प[MASK]र्व में फ़्रा
ंसीसी और पुर्तगाली उपनिवेशों को गणराज्य में समाहित किया गया था, वैसे ही १९६२ में पांडिचेरी, दादरा, नगर हवेली, गोआ, दमन और दियू को संघ राज्य बनाया गया। १९५६ के बाद कई नए राज्यों और संघ राज्यों को बनाया
ं[MASK]ीस[MASK] और पुर्[MASK]गाली उपनिवेशों को गणराज्य में समाहि[MASK] किया गया था, वैसे ही १९[MASK]२ में पांडिचेरी, दादर[MASK], [MASK]गर हव[MASK]ली, गोआ, दमन और दियू को संघ राज्य बनाय[MASK] [MASK]या। [MASK]९५६ के बा[MASK] [MASK]ई नए राज[MASK]यों और संघ राज्यों को बन[MASK]या
गया। बम्बई पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा १ मई, १९६० को भाषाई आधार पर बंबई राज्य को गुजरात और महाराष्ट्र के रूप में अलग किया गया। १९६६ के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम ने भाषाई और धार्मिक पैमाने पर पंजाब (भारत)
ग[MASK][MASK]। बम्बई पुनर[MASK]गठन [MASK]धिनियम क[MASK] [MASK]्[MASK]ार[MASK] १ मई, १९६० को भाषाई आधार पर बंबई राज[MASK][MASK] को गुज[MASK]ात और महाराष[MASK][MASK]्र क[MASK] र[MASK]प में अलग [MASK]िया गया। १९६६ के पंजाब पुनर्गठन अधिन[MASK]यम ने भाषाई और [MASK]ार्मिक पैमाने पर पंजाब (भारत)
को हरियाणा के नए हिन्दू बहुल और हिन्दी भाषी राज्यों में बाँटा और पंजाब के उत्तरी जिलों को हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया और एक जिले को चण्डीगढ़ का नाम दिया जो पंजाब और हरियाणा की साझा राजध
को हरियाणा क[MASK] नए [MASK]िन्दू बहुल औ[MASK] हिन्दी भाषी राज्यों में बाँटा [MASK]र पं[MASK]ाब के उत्तरी ज[MASK]लों को हिमाचल प[MASK]रदेश में स[MASK]थानांतरित कर दिया गया और ए[MASK] जिल[MASK] [MASK]ो चण्डीगढ़ का नाम दिया [MASK]ो पंजाब और हरियाणा की साझा राजध
ानी है। नागालैण्ड १९६२ में, मेघालय और हिमाचल प्रदेश १९७१ में, त्रिपुरा और मणिपुर १९७२ में राज्य बनाए गए। १९७२ में अरुणाचल प्रदेश को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। सिक्किम राज्य १९७५ में एक राज्य
[MASK]नी है। नागालैण्[MASK] १९६२ में[MASK] मेघालय और हिमाचल प[MASK]रदेश १९७१ में, [MASK]्रिपुरा और मण[MASK]पु[MASK] १९७२ में राज्य बनाए गए। १९७२ में अरुणा[MASK]ल प[MASK][MASK]देश [MASK]ो एक केंद्र [MASK]ा[MASK]ित प्[MASK]देश बना दि[MASK]ा गया। स[MASK]क्किम र[MASK]ज्य १९७[MASK] में एक राज[MASK]य
के रूप में भारतीय संघ में सम्मिलित हो गया। १९८६ में मिज़ोरम और १९८७ में गोआ और अरुणाचल प्रदेश राज्य बने जबकि गोवा के उत्तरी भाग दमन और दीयु एक अलग संघ राज्य बन गए। २००० में तीन नए राज्य बनाए गए। पूर्
के रूप में भार[MASK][MASK]य सं[MASK] में सम्मिलित हो गया। १९८६ में मिज़ोरम और १९[MASK]७ में गोआ और अरु[MASK][MASK]चल प्रदेश राज्य बने जबक[MASK] गोवा के [MASK]त्तरी भाग दमन और दीयु एक [MASK]लग संघ राज्य बन गए। [MASK]००० में तीन न[MASK] राज्[MASK] बनाए गए[MASK] पूर[MASK]
वी मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ (१ नवंबर, २०००) में और उत्तरांचल (९ नवंबर, २०००) बनाए गए जो अब उत्तराखण्ड है। उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के कारण झारखण्ड (१५ नवंबर २०००) को बिहार के दक्षिणी जिलों में
वी मध्य प्रदेश [MASK]े छत्त[MASK]सगढ़ (१ नवंबर, २०००) में और उत्तरांचल (९ नवंबर, २०००) बनाए गए जो अ[MASK] उ[MASK]्तरा[MASK]ण्ड है। उत्तर प्रदेश [MASK]े पहाड़ी क्षेत्[MASK]ों के कारण झारखण्ड (१५ न[MASK]ं[MASK]र २[MASK]००) क[MASK] बिहार [MASK]े दक्षिणी जिलो[MASK] म[MASK]ं
से पृथक कर बनाया गया। दो केन्द्र शासित प्रदेशों दिल्ली और पाण्डिचेरी (जो बाद में पुदुचेरी कहा गया) को विधानसभा सदस्यों का अधिकार दिया गया और अब वे छोटे राज्यों के रूप में गिने जाते हैं। इन्हें भी देख
से [MASK]ृथक कर ब[MASK]ाया [MASK][MASK][MASK]। दो [MASK]ेन[MASK]द्[MASK] [MASK]ा[MASK]ित प्र[MASK][MASK]शों दिल्ली और [MASK]ाण्डिचेर[MASK] (जो बाद में पुदुचेरी कहा गया) को विध[MASK]नसभा सदस्यो[MASK] का अध[MASK]कार [MASK]िया गया [MASK]र अ[MASK] वे छोटे राज्यों के रूप [MASK]ें गिने जाते ह[MASK]ं[MASK] इन्हें भी देख
ें भारत के राज्य और संघशासित प्रदेश भारत के स्वायत्त क्षेत्र भारत के राज्य भारत के केन्द्र शासित प्रदेश औफ्फिसिअल गवेर्नामेंट ऑफ इंडिया वेबसैट : स्टेटस एंड यूनीयन तेर्रितोरीस क्लिकेबिल मेप ऑफ इंडिया ए
[MASK]ं भारत के [MASK]ाज्य औ[MASK] संघशास[MASK]त प्रद[MASK][MASK] भारत के स्वाय[MASK]्त क्षेत्[MASK] भार[MASK] के राज[MASK]य[MASK]भारत के केन्द्र शासित [MASK]्[MASK]देश औफ्फिसिअल गवेर्न[MASK]मेंट ऑफ इंडिया वे[MASK][MASK]ैट : [MASK]्टेटस एंड यूनीयन तेर्रितोरीस क्लिकेबिल मेप ऑफ इंडि[MASK]ा ए
ंड हिस्ट्री ऑफ स्टेटस आर्टिकल ओंन सब-नेशेनेल गवर्नेंस इन इंडिया इंटरेक्टिव मेप ऑफ़ इंडिया भारत के राज्य भारत के केन्द्र शासित प्रदेश भारत के उपविभागसप्ताह के दिन एक सप्ताह या हफ़्ते में सात दिन होते ह
ंड हिस्ट्री ऑफ स्टेटस आर्टिकल ओंन सब[MASK]नेशेने[MASK] गवर्[MASK]ेंस इन इंड[MASK]या इंटरेक्[MASK]िव मेप ऑ[MASK]़ इंड[MASK]या भार[MASK] के राज्य भारत के केन्द[MASK]र शासित प्र[MASK]ेश भार[MASK] [MASK][MASK] उपविभागसप्ताह के दिन एक सप[MASK][MASK]ाह या हफ़्ते [MASK]ें सात दिन होते ह
ैं। हिन्दी में ये निम्न नामों से पुकारे जाते हैं। रविवार अथवा इतवार गुरुवार अथवा बृहस्पतिवार अथवा वीरवार शनिवार अथवा शनिचर सप्ताह के दिन सामान्यत: एक माह में चार सप्ताह होते हैं और एक सप्ताह में सात द
[MASK]ं। हिन्दी में य[MASK] निम्न [MASK]ामों से पुकारे जाते हैं। रविवार अथवा इतवार[MASK]गुरु[MASK]ार अथवा बृहस्पतिवा[MASK] अथ[MASK]ा वीरव[MASK]र शनिवार [MASK]थवा शनिचर स[MASK]्ता[MASK] के [MASK]िन सामान्यत: एक माह में चार सप्ताह होते ह[MASK]ं और एक सप्ताह में स[MASK]त द
िन होते हैं। सप्ताह के प्रत्येक दिन पर नौ ग्रहों के स्वामियों में से क्रमश: पहले सात का राज चलता है. जैसे- रविवार पर सूर्य का राज चलता है। सोमवार पर चन्द्रमा का राज चलता है। मंगलवार पर मंगल का राज चलत
िन ह[MASK]ते हैं। सप्ताह के प्रत्येक दिन पर नौ ग्रहों के स्वामि[MASK]ों में से क[MASK][MASK][MASK]श: प[MASK]ले सात का [MASK][MASK]ज चलता है. जैसे- रवि[MASK]ार प[MASK] सूर्[MASK] का राज च[MASK]ता है।[MASK]सोमवार पर चन्द्रमा का राज चलता है[MASK] मंगलवार पर मंगल का राज चलत
ा है। बुधवार पर बुध का राज चलता है। बृहस्पतिवार पर गुरु का राज चलता है। शुक्रवार पर शुक्र का राज चलता है। शनिवार पर शनि का राज चलता है। अन्तिम दो राहु और केतु क्रमश: मंगलवार और शनिवार के साथ सम्बन्ध ब
ा है। बुधवार पर ब[MASK][MASK] [MASK]ा राज चलता है। बृहस्पतिवार पर ग[MASK]रु का राज चलता है। शुक्रवार पर शुक्र का राज च[MASK]ता [MASK]ै। शनि[MASK]ार पर शनि का र[MASK]ज चलता है। अन्तिम दो [MASK]ा[MASK][MASK] [MASK][MASK] के[MASK]ु क्रमश: मंगलवार और शनिवार के स[MASK]थ सम्बन्ध ब
नाते हैं। यहाँ एक बात याद रखना ज़रूरी है- पश्चिम में दिन की शुरुआत मध्य रात्रि से होती है और वैदिक दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। वैदिक ज्योतिष में जब हम दिन की बात करें तो मतलब सूर्योदय से ही होग
नाते [MASK]ैं। यहाँ एक बात याद रखन[MASK] ज़रू[MASK]ी [MASK][MASK][MASK] पश[MASK]चिम में दि[MASK] की शुरुआत मध्य रात्रि से होती ह[MASK] [MASK]र वैदिक दिन की शुर[MASK][MASK]त सूर्[MASK]ो[MASK]य से होती है। वैदिक ज्योतिष में जब हम दिन की बात करें त[MASK] मतलब सूर्य[MASK]दय से ह[MASK] होग
ा। सप्ताह के प्रत्येक दिन के कार्यकलाप उसके स्वामी के प्रभाव से प्रभावित होते हैं और व्यक्ति के जीवन में उसी के अनुरुप फल की प्राप्ति होती है। जैसे- चन्द्रमा दिमाग और गुरु धार्मिक कार्यकलाप का कारक हो
ा[MASK] सप्ताह क[MASK] प्[MASK]त्येक दिन [MASK][MASK] कार्य[MASK]लाप उसके स्वा[MASK]ी के प्रभाव से प्[MASK]भावित [MASK]ोते है[MASK] और व्य[MASK]्ति के जीवन में उस[MASK] के अनु[MASK]ुप फ[MASK] की प्[MASK][MASK]प्ति होती है। जैसे- चन्द्रमा दिमाग और ग[MASK]रु धार्मि[MASK] कार्यकला[MASK] का क[MASK]रक ह[MASK]
ता है। इस वार में इनसे सम्बन्धित कार्य करना व्यक्ति के पक्ष में जाता है। सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं। जैसे-
ता है। इस व[MASK]र में इन[MASK]े सम्बन्धित कार्[MASK] करना व्यक्ति के पक्[MASK] में ज[MASK]त[MASK] ह[MASK]। सप[MASK]ताह क[MASK] दिनों के नाम ग्रहों [MASK][MASK] संज्ञाओं के आधा[MASK] पर र[MASK]े गए हैं अर[MASK]थात जो नाम ग्र[MASK]ों [MASK]े ह[MASK]ं, वही न[MASK]म इन [MASK]ि[MASK]ों के भी हैं। जैसे-
सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि। शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि। संस्कृत में या अन्य किसी भी भाषा में भी साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर ही मिलते
सूर्य के दिन का [MASK][MASK]म रविव[MASK]र[MASK] आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि। शन[MASK]श्चर के दिन का नाम शनिवार[MASK] सौरिवार आदि। संस्[MASK]ृत में या अन[MASK]य किसी भी भाषा में भी साप्ताहिक [MASK]िन[MASK]ं के नाम सात ग्रहों के नाम प[MASK] ही मिलते
हैं। संस्कृत में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है। सप्ताह केवल मानव निर्मित व्यवस्था है। इसके पीछे कोई ज्योतिष शास्त्रीय या प्राकृतिक योजना नहीं है। स्पेन आक्र
[MASK]ैं[MASK] [MASK]ंस्कृत में ग्रह [MASK]े न[MASK]म के आगे वार या व[MASK]सर या कोई ओर प्र[MASK][MASK]यवाची शब्द रख दिया जाता है। सप्ताह केवल मानव निर्मित व्यवस्था है। इसके पीछे कोई ज्योतिष शास्त्रीय या प्राकृतिक य[MASK]जना नहीं है। स्पेन आक्र
मण के पूर्व मेक्सिको में पाँच दिनों की योजना थी। सात दिनों की योजना यहूदियों, बेबिलोनियों एवं दक्षिण अमेरिका के इंका लोगों में थी। लोकतान्त्रिक युग में रोमनों में आठ दिनों की व्यवस्था थी, मिस्रियों एव
मण के पूर्व मेक्सिको में प[MASK]ँ[MASK] दिनों [MASK]ी [MASK]ोजना थी। सा[MASK] दिनो[MASK] क[MASK] यो[MASK]ना [MASK]हूदियों, बेबिल[MASK]नियो[MASK] एवं दक्षिण अम[MASK]रिका के इ[MASK]का लोगों मे[MASK] [MASK]ी। लोकतान्त्रिक यु[MASK] में रोमनों में [MASK]ठ [MASK]िनों की व्य[MASK]स्था थी, मिस्रियों एव
ं प्राचीन अथेनियनों में दस दिनों की योजना थी। ओल्ड टेस्टामेण्ट में आया है कि ईश्वर ने छः दिनों तक सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम करके उसे आशीष देकर पवित्र बनाया। - जेनेसिरा१, एक्सोडस२ एवं डेउटेरोनामी
ं प्राच[MASK]न अथेनियन[MASK]ं [MASK]ें दस दिन[MASK]ं की [MASK]ोजना थी। ओल्ड टेस्टामे[MASK]्ट म[MASK]ं आया है क[MASK] ई[MASK]्वर ने छः दिनों त[MASK] सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम कर[MASK]े उसे आशीष देकर [MASK][MASK]ित्र ब[MASK][MASK]या। - जेनेसिरा१, एक्सोडस२ एवं डेउटेरोनामी
३ में ईश्वर ने यहूदियों कोसात दिनों के वृत्त के उद्भव एवं विकास का वर्णन 'एफ. एच. कोल्सन' के ग्रन्थ 'दी वीक'४ में उल्लिखित है। डायोन कैसिअस (तीसरी शती के प्रथम चरण में) ने अपनी ३७वीं पुस्तक में लिखा ह
३ मे[MASK] ईश्वर ने यहू[MASK]ियों कोसात दिनों [MASK]े व[MASK]त्त के उ[MASK][MASK][MASK]व एवं विकास [MASK]ा वर्णन 'एफ. एच. कोल्सन[MASK] के ग्र[MASK]्[MASK] 'दी वीक'४ मे[MASK] उल्ल[MASK]खित है। डायो[MASK] कैसिअस (त[MASK]सरी शत[MASK] के प्रथम चरण में) ने अ[MASK]नी ३७वीं पुस्तक में लिखा ह
ै कि 'पाम्पेयी ई. पू. ८३ में येरूसलेम पर अधिकार किया, उस दिन यहूदियों का विश्राम दिन था। उसमें आया है कि ग्रहीय सप्ताह (जिसमें दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर आधारित हैं) का उद्भव मिस्र में हुआ। डियो ने
ै कि 'पाम्पेय[MASK] ई. पू. ८३ में येरूसल[MASK]म पर [MASK]धिकार किया, उस दिन यहूदियो[MASK] का विश्राम दिन था। उसमें आया है कि ग[MASK]रहीय सप[MASK]ताह (जिसमें [MASK][MASK]नों के नाम ग्रहों [MASK]े नाम पर आधार[MASK]त हैं) [MASK]ा उद्भव मिस्र [MASK]ें हुआ। डिय[MASK] [MASK]े
'रोमन हिस्ट्री'५ में यह स्पष्ट किया है कि सप्ताह का उद्गम यूनान में न होकर मिस्र में हुआ और वह भी प्राचीन नहीं है बल्कि हाल का है। रोमन केलैंण्डर में सम्राट कोंस्टेंटाईन ने ईसा के क़रीब तीन सौ वर्ष क
'रोमन हिस्ट्री'५ में यह स[MASK]पष्ट [MASK]ि[MASK]ा है कि सप्ता[MASK] का [MASK]द[MASK]गम यू[MASK][MASK]न में न होकर मिस्र में [MASK]ुआ और वह भी प्राचीन [MASK]हीं है बल्कि हाल का [MASK]ै।[MASK]रोमन केलैंण्ड[MASK] में [MASK]म्राट कोंस्टेंटाईन ने ईसा के क़रीब तीन [MASK]ौ वर्ष क
े बाद सात दिनों वाले सप्ताह को निश्चत किया और उन्हें नक्षत्रों के नाम दिये - सप्ताह के पहले दिन को 'सूर्य का नाम' दिया गया है। दूसरे दिन को चाँद का नाम दिया गया है। तीसरे दिन को मंगल दिया गया है। चौथे
े बाद स[MASK]त [MASK][MASK][MASK]ों वाले सप्ताह क[MASK] निश्चत किया [MASK]र [MASK][MASK]्हें नक्षत्रों के नाम दिये - सप[MASK]ताह के पहले द[MASK]न क[MASK] [MASK]सूर्य का नाम' दिया गया है। द[MASK]सरे दिन को चाँद [MASK]ा नाम दिया गया है। तीसरे दिन को [MASK]ंगल दिय[MASK] गय[MASK] [MASK]ै। चौथे
दिन को बुध दिया गया है। पाँचवें दिन को बृहस्पति दिया गया है। छठे दिन को शुक्र दिया गया है। सातवें दिन को शनि का नाम दिया गया है। आज भी रोमन संस्कृति से प्रभावित देशों में इन्हीं नामों का प्रयोग होता
दिन को बु[MASK] दिय[MASK] गया है। पाँचवें दिन को बृहस्पत[MASK] दिया [MASK]या है। छठे दिन को शुक[MASK]र दिया गया ह[MASK]। सा[MASK]वे[MASK] दिन को शनि का नाम दिया गया है। आज भी रोम[MASK] संस्कृ[MASK][MASK] से प[MASK]र[MASK][MASK]वित देशों में [MASK]न्हीं नाम[MASK]ं का प्रयोग होता
है। टीका टिप्पणी और संदर्भ १ जेनेसिरा २|१-३ २ एक्सोडस २0|८-११,२3|1२-१४ ३ डेउटेरोनामी ५|१२-1५ ४ एफ. एच. कोल्सन के ग्रन्थ 'दी वीक' कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस, १९२६ ५ रोमन हिस्ट्री जिल्द ३, पृ० १२९, 1३1
है[MASK] ट[MASK]का टि[MASK]्पणी और संदर्भ १ जे[MASK]ेसिरा २|१-३ २ एक्सोडस २0[MASK]८-११,२3|1२-१४ ३ डेउ[MASK]े[MASK]ो[MASK]ामी ५[MASK]१२-1५ ४ एफ[MASK] एच. कोल्सन क[MASK] ग्रन्थ 'दी वीक' कैम्ब्रिज यूनीवर्सि[MASK]ी प्रेस, १९२६ [MASK] रोमन हिस्ट्र[MASK] जिल्द ३, पृ[MASK] १२९, 1३1
चैत्र हिंदू पंचांग का पहला मास है। इसी महीने से भारतीय नववर्ष आरम्भ होता है। हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता है। अनेक पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णि
चैत्र [MASK]िंदू पंचांग का पहला मास [MASK]ै। इसी महीने स[MASK] भारत[MASK]य नववर्ष आरम्भ होता है। हिंदू व[MASK][MASK]ष [MASK]ा पहला मास होने के कारण चैत्र की बह[MASK]त ही अधिक महता है। अनेक पर्व इ[MASK] मास [MASK]ें मनाये जाते हैं। चैत्[MASK] मास की [MASK]ू[MASK]्णि
मा, चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत
मा, चित्रा नक्षत्र में ह[MASK]ती है [MASK]सी कार[MASK] इसका महीने का नाम [MASK]ैत्र [MASK]ड़ा। मान्यता है कि स[MASK]ष्टि [MASK]े रचयिता ब्[MASK][MASK][MASK][MASK]ा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा स[MASK] ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत
्र माह से माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मतस्यावतार अवतरित हुए एवं जल प्रलय के बीच घिरे मनु को सुरक्षित स्थल पर पहुँचाया
्र माह से माना ज[MASK]ता है। पौर[MASK]णिक [MASK][MASK]न्य[MASK]ाओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्[MASK][MASK] के दशावतारों में से प[MASK]ले अवतार [MASK]तस्याव[MASK]ार अव[MASK]र[MASK]त हुए एवं जल प्[MASK]लय [MASK]े [MASK]ी[MASK] [MASK]िरे मनु [MASK]ो [MASK]ुरक[MASK]षित स्थल [MASK]र पहुँचाया
था, जिनसे प्रलय के पश्चात नई सृष्टि का आरम्भ हुआ। इसी दिन आर्य समाज (१८७५) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (१९२५) की स्थापना हुई थी। वर्ष प्रतिपदा या युगादि या 'गुड़ी पड़वा' हनुमान जयन्ती (चैत्र पूर्णिमा
था, जिनस[MASK] प्रलय के पश्चात नई [MASK]ृष्टि क[MASK] आरम्भ हुआ। इसी दिन आर[MASK]य समाज (१८७५) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (१९२५) की स्थापन[MASK] हुई थी। वर्ष प्रतिपदा या [MASK]ुगादि या 'गुड़ी पड़वा' हनुमा[MASK] जयन[MASK]ती ([MASK]ैत्र पूर्णिमा
को)मास या महीना, काल मापन की एक ईकाई है। भारतीय कालगणना में एक वर्ष में १२ मास होते हैं। इसी तरह ग्रेगरी कैलेण्डर में भी एक वर्ष में बारह मास होते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में मासों के नाम अलग-अलग है
को)मास या महीना, काल मापन क[MASK] एक ईकाई है। भारतीय कालगणना में एक वर्ष [MASK]ें १२ मास होते हैं। इसी [MASK]रह ग्रेगरी [MASK]ैलेण्डर में [MASK]ी एक वर्ष में [MASK]ारह मास हो[MASK]े हैं। विभि[MASK]्न संस्कृतियो[MASK] में [MASK]ासों के नाम अलग-अलग है
ं। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष के बारह मासों के नाम ये हैं- चैत्र नक्षत्र चित्रा में पूर्णिमा होने के कारण वैशाख विशाखा में होने के ज्येष्ठ ज्येष्ठा में आषाढ पूर्वाषाढ़ में श्रावण श्रवणा में भाद्र
ं। हिन्दू पंचांग के [MASK]नुसार एक वर्ष के बार[MASK] मासों के ना[MASK] ये हैं- चैत्र नक्षत्र चित्रा म[MASK]ं पूर[MASK]णिमा [MASK]ो[MASK]े [MASK]े कार[MASK] वैशाख विशाखा में होने [MASK]े ज्य[MASK]ष[MASK]ठ ज्येष्ठ[MASK] [MASK]ें [MASK]षाढ पूर[MASK][MASK]ाषाढ़ मे[MASK] श्रा[MASK]ण श्[MASK]वणा में[MASK]भाद[MASK]र
पद पूर्वभाद्रपद में आश्विन अश्विनी में कार्तिक कृतिका में अग्रहायण या मार्गशीर्ष मृगशिरा में पौष पुष्य में माघ मघा में फाल्गुन उत्तराफाल्गुनी में जैसा आपने पढ़ा की हिन्दू पंचांग के नौसर साल का पहला मह
पद [MASK]ूर[MASK]व[MASK]ाद्रपद में आश्वि[MASK] अश्विनी मे[MASK] [MASK]ार्तिक कृतिक[MASK] में अ[MASK]्रहायण या मार्गशीर[MASK]ष मृ[MASK]शिरा में पौष पुष्य में माघ मघा म[MASK]ं फा[MASK]्गुन उत्तराफाल[MASK]गुनी में [MASK]ैसा आपने पढ़ा की हिन्दू प[MASK]चांग के नौसर साल [MASK]ा पहला मह
िना चेत्र से शुरू होता है और साल का अंतिम महिना फाल्गुन है इन सभी महीनों मे से वैशाख का महिना ही एक ऐसा महिना है जिसमे २८ दिन होते है और लीप बर्ष के दुरान इसमे २९ दिन होते है ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसा
िना [MASK][MASK]त्र से शुरू ह[MASK]ता है और [MASK]ाल का अंतिम महि[MASK][MASK] फाल्गु[MASK] है [MASK]न सभी म[MASK]ीनों मे से वैशा[MASK] का महिना ही एक ऐसा [MASK]हिना है जि[MASK]मे २८ दिन ह[MASK]ते है और लीप बर्ष के [MASK]ु[MASK]ान इस[MASK][MASK] [MASK]९ दि[MASK] होते है ग्रेगरी [MASK][MASK]लदर्श[MASK] के अनुसा
र ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसार अंग्रेजी भाषा में वर्ष के बारह महीनों के नाम ये हैं-यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भ
र ग्रेगरी [MASK]ालदर्श[MASK] के अनु[MASK]ार अंग्रेजी भाषा में वर्ष के बारह [MASK]हीनों के नाम य[MASK] है[MASK]-[MASK]ूनिकोड प[MASK]रत[MASK]येक अक्[MASK]र क[MASK] [MASK]िए एक विशेष संख[MASK]या प्रदा[MASK] करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूट[MASK] प[MASK]लेटफॉ[MASK]्[MASK], प्रोग्रा[MASK] अथवा कोई भी भ
ाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानद
ाषा हो। [MASK]ूनिकोड स्ट[MASK]ंडर्[MASK] को एपल, ए[MASK].पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस[MASK]टम, माइक्रोसॉफ्[MASK], ऑरेकल, सैप, स[MASK], साईब[MASK]स, य[MASK]निसिस [MASK]ै[MASK]ी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य [MASK]े अपनाया है। यूनिक[MASK]ड की आव[MASK]्य[MASK]ता आधुनिक मानद
ंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा ३.०, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. १०६४६ को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालिय
[MASK]डों, जैस[MASK] ए[MASK]्स.एम.ए[MASK], ज[MASK]वा, एकमा स्क[MASK]रिप्ट (ज[MASK]वास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा ३.०, डब्ल्यू.एम.एल क[MASK] लिए होती है और य[MASK] [MASK]ई.एस.ओ/आई[MASK]ई.सी. १०६४६ को लाग[MASK] करने का अधिक[MASK]र[MASK]क तरीका है। यह कई संचालन प्रणालिय
ों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं।
ों, सभी आ[MASK]ुनिक ब्राउजरो[MASK] और कई अन्य [MASK]त्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड क[MASK] उत्पत[MASK] और इसके सहायक [MASK]पकरणों क[MASK] उपलब[MASK]धता, हा[MASK] [MASK]ी क[MASK] अति महत्व[MASK]ूर्ण विश्वव्यापी सॉफ[MASK][MASK]वे[MASK][MASK] प्रौद्[MASK]ोगिकी [MASK][MASK]झानो[MASK] में से ह[MASK]ं।
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा [MASK]हु-आयामी उ[MASK]कर[MASK]ो[MASK] और वेब[MASK]ाइटों में शामिल करने स[MASK], परंपराग[MASK] उपकरण[MASK]ं के प्रयोग की अपेक्[MASK]ा खर[MASK]च में अत्[MASK]धिक बचत होती है। [MASK][MASK]निको[MASK] से [MASK]क ऐसा अकेला सॉ[MASK]्टवेय[MASK] उत्पाद अथवा अकेला
वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लेटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है। यूनिक
वेबसाइट मिल जाता है, ज[MASK]से री[MASK]इ[MASK]ज[MASK]नियर[MASK][MASK]ग के बिना विभ[MASK][MASK]्न प्लेटफ[MASK]र्मो[MASK], भ[MASK]षाओं और देशों में उपयो[MASK] किया जा सकत[MASK] [MASK]ै[MASK] [MASK]ससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रण[MASK]लियों से होकर ले जाया जा सकता ह[MASK]। यूनिक
ोड क्या है? यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफ़ॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो। कम्प्यूटर, मूल रूप से, नम्बरों से सम्बन्ध रखते हैं।
ोड क्या है? यू[MASK]िकोड प्रत्येक [MASK]क्षर के [MASK]ि[MASK] ए[MASK] विश[MASK]ष नम्बर प्[MASK]द[MASK]न करता ह[MASK], चाहे कोई भी प्लैटफ़ॉर्म [MASK]ो, चाह[MASK] [MASK]ोई भी प[MASK]रो[MASK]्रा[MASK] हो, चाहे कोई भी भाषा [MASK]ो[MASK] क[MASK]्प्यूटर, मूल र[MASK][MASK] से, न[MASK]्बरों से सम[MASK]बन्ध [MASK]खते हैं।
ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नम्बर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नम्बर देने के लिये सैंकड़ों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियाँ थीं। किसी एक स
ये प्र[MASK]्येक अक्षर और व[MASK]्[MASK] के लिए एक नम्बर निर[MASK]धारित करके अ[MASK]्षर और व[MASK]्ण सं[MASK]्रह[MASK]त करते हैं। यूनिकोड का आविष्का[MASK] होन[MASK] से पहले, ऐसे नम्बर देने के लिये स[MASK]ंक[MASK]़[MASK]ं [MASK]िभि[MASK]्न संके[MASK] [MASK]िपि प्[MASK]णालि[MASK]ाँ थीं। किसी एक स
ंकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिये अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिये भ
ंकेत [MASK]िपि मे[MASK] पर[MASK]याप्[MASK] [MASK]क्षर नहीं [MASK]ो सकते [MASK]ैं : उदाहरण क[MASK] लिए[MASK] य[MASK]रोपीय [MASK]ंघ को अक[MASK]ले ही, अप[MASK]ी स[MASK]ी भाषाओं को कवर करने के लिये अनेक विभि[MASK]्न संकेत ल[MASK]पिय[MASK][MASK] की आवश्यक[MASK]ा [MASK]ोती ह[MASK][MASK] अ[MASK]ग्रेजी जैस[MASK] भाषा के लि[MASK]े भ
ी, सभी अक्षरों, विरामचिह्नों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी। ये संकेत लिपि प्रणालियाँ परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियाँ दो विभिन्न अक्षरों के
ी, सभी अक्षरों[MASK] विरामचिह्न[MASK]ं और सामान्य प्रयोग के [MASK]कनीकी [MASK]्रतीकों [MASK]े[MASK]ु एक ही संके[MASK] लिप[MASK] पर्याप्त नहीं थी।[MASK]ये संकेत लिपि प्रणालि[MASK]ा[MASK] परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिप[MASK]याँ दो विभिन्न अक्षरों के
लिए, एक ही नम्बर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियाँ संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्
[MASK]िए, [MASK]क ही नम्बर प्रयोग [MASK]र सक[MASK]ी है[MASK], अथवा समान अक्षर के ल[MASK]ए व[MASK]भिन[MASK]न नम्बर[MASK]ं का प्रयोग [MASK]र स[MASK]ती हैं। किस[MASK] भी कम्प्यूटर (विश[MASK]ष रूप से सर्वर) को व[MASK]भिन्न संकेत लिपियाँ [MASK]ंभा[MASK]नी पड़ती है; फिर [MASK]ी जब दो विभ[MASK]न्
न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफ़ॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है। यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है! यूनिकोड की विशेषताएँ (१) यह विश्व की सभी लिपियों से सभी संक
न संकेत लिपियो[MASK] अथवा प्ले[MASK]फ़ॉर्[MASK]ों के बीच डाटा भ[MASK]जा ज[MASK]ता है तो उस डा[MASK]ा के हमेशा खराब ह[MASK]ने का जोख[MASK]म रह[MASK]ा है। यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है! यू[MASK]िकोड [MASK]ी विशेषत[MASK][MASK]ँ (१) य[MASK] विश्[MASK] की [MASK]भी लिपि[MASK]ों से सभी संक
ेतों के लिए एक अलग कोड बिन्दु प्रदान करता है। (२) यह वर्णों (कैरेक्टर्स) को एक कोड देता है, न कि ग्लिफ (ग्लीफ) को। (३) जहाँ भी सम्भव यूनिकोड होता है, यह भाषाओं का एकीकरण करने का प्रयत्न करता है। इसी न
ेतों के [MASK]िए एक अ[MASK]ग कोड बिन्दु प्रदान करत[MASK] है। (२) यह वर्णों (कैरेक्[MASK]र्स) [MASK]ो एक कोड देता [MASK]ै, न कि ग्लिफ (ग्ल[MASK]फ) को। (३) ज[MASK]ाँ भी सम्भव यूनिकोड होता है, यह भाषाओं का एकी[MASK]रण क[MASK]ने का प[MASK]रयत्न करत[MASK] है। इस[MASK] न