labels
stringlengths
200
200
mask_text
stringlengths
210
390
ीति के अन्तर्गत सभी पश्चिम यूरोपीय भाषाओं को लैटिन के अन्तर्गत समाहित किया गया है; सभी स्लाविक भाषाओं को सिरिलिक (सायरिलिक) के अन्तर्गत रखा गया है; हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, सिन्धी, कश्मीरी आदि
[MASK]ति के अन्तर्गत स[MASK]ी पश[MASK]चिम [MASK]ूरोपीय भाषाओ[MASK] को लैट[MASK]न के अन्तर[MASK]गत समाह[MASK]त किया गया [MASK]ै; सभी स्लाविक [MASK]ा[MASK]ाओं क[MASK] सिरिलिक (सायरिल[MASK]क) के अन्तर्गत [MASK]खा गया [MASK]ै; हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, सिन्ध[MASK], कश्मीरी आदि
के लिये 'देवनागरी' नाम से एक ही खण्ड दिया गया है; चीनी, जापानी, कोरियाई, वियतनामी भाषाओं को 'युनिहान्' (यूनिहान) नाम से एक खण्ड में रखा गया है; अरबी, फारसी, उर्दू आदि को एक ही खण्ड में रखा गया है। (४)
के लिये 'देवनागरी' नाम से एक ही खण्ड [MASK]िया ग[MASK]ा है; चीनी, जापानी[MASK] क[MASK][MASK]ियाई, वियतनामी भाषाओं को 'युनिहान्' (यू[MASK]िहान) नाम से एक खण्[MASK] में [MASK]खा गय[MASK] है; अर[MASK]ी, फारसी[MASK] उर्दू आ[MASK]ि क[MASK] एक ही खण[MASK]ड में [MASK]खा ग[MASK]ा है। (४[MASK]
बायें से दायें लिखी जाने वाली लिपियों के अतिरिक्त दायें-से-बायें लिखी जाने वाली लिपियों (अरबी, हिब्रू आदि) को भी इसमें शामिल किया गया है। ऊपर से नीचे की तरफ लिखी जाने वाली लिपियों का अभी अध्ययन किया
बाये[MASK] [MASK]े द[MASK]यें लिखी जाने [MASK]ाल[MASK] लिपियों के अतिरिक्त दायें-से-बाय[MASK]ं लिखी जाने वाली लिपियों (अरबी, हि[MASK]्रू आदि) को भी इसमें शा[MASK]िल किया गया है। ऊप[MASK] से नीचे की तरफ लिखी ज[MASK]ने वाली ल[MASK]पियों क[MASK] अभी अध्[MASK]य[MASK] क[MASK]य[MASK]
जा रहा है। (५) यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यूनिकोड केवल एक कोड-सारणी है। इन लिपियों को लिखने/पढ़ने के लिए इनपुट मैथड एडिटर और फॉण्ट-फाइलें आवश्यक हैं। यूनिकोड का महत्व एवं लाभ एक ही दस्तावेज में अनेकों
जा रह[MASK] [MASK]ै[MASK] (५) यह ध्यान रखना [MASK]वश्यक है कि यून[MASK]कोड केवल एक को[MASK]-सारणी है। इन लि[MASK]ियो[MASK] को लिख[MASK]े/[MASK]ढ़ने के लिए इन[MASK]ुट [MASK]ै[MASK]ड [MASK]डिटर और फ[MASK]ण[MASK]ट-फाइलें आवश[MASK]यक हैं। यूनिकोड का महत्व एवं ल[MASK]भ एक ही दस्तावेज में अनेको[MASK]
भाषाओं के अक्षर लिखे जा सकते हैं। अक्षरों को केवल एक निश्चित तरीके से संस्कारित करने की आवश्यकता पड़ती है। जिससे विकास-व्यय एवं अन्य व्यय कम लगते हैं। किसी सॉफ़्टवेयर-उत्पाद का एक ही संस्करण पूरे विश
भाषाओं [MASK]े अक्षर ल[MASK]खे जा सकते हैं। अक्षरों को केवल एक निश्चित तरीके से संस्कारित कर[MASK]े की आवश्यकता पड़ती है। जि[MASK]से विकास-व[MASK]य[MASK] एव[MASK] अन्य व्यय कम लगत[MASK] हैं। क[MASK]स[MASK] सॉफ़्टवेयर-उत[MASK]पाद का एक ही संस्करण पूरे विश
्व में चलाया जा सकता है। क्षेत्रीय बाजारों के लिए अलग से संस्करण निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किसी भी भाषा का अक्षर पूरे जगत में बिना किसी रुकावट के चल जाता है। पहले इस तरह की बहुत समस्याएँ आती
्व म[MASK]ं चलाया जा स[MASK]ता है। क्षे[MASK]्रीय बाजारों के [MASK]िए [MASK]लग से संस्करण निकालने की [MASK]वश्यकता नहीं प[MASK]़[MASK]ी है। कि[MASK]ी भी भाषा का अक्षर पूर[MASK] जगत में ब[MASK]ना किसी रुकावट के चल जाता है। [MASK]हले इस तरह [MASK]ी बहुत स[MASK]स[MASK]याएँ आती
थीं। यूनिकोड, आस्की तथा अन्य कैरेकटर कोडों की अपेक्षा अधिक स्मृति (मेमोरी) लेता है। कितनी अधिक स्मृति लगेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन सा यूनिकोड प्रयोग कर रहे हैं। उत्फ़७, उत्फ़८, उत्फ़१६
थीं। यूनिको[MASK][MASK] आस्की [MASK]थ[MASK] अन्य कैरेकटर कोडों की अपेक्षा अधिक [MASK]्म[MASK]ति (मेमोरी) लेता है। कितनी [MASK]धिक स्मृति [MASK]गेगी [MASK]ह इस बात पर निर[MASK]भर करता है [MASK]ि आप कौन सा य[MASK]निकोड [MASK]्रयोग कर रहे हैं[MASK] [MASK]त्फ़७, उत्फ़[MASK], उत[MASK]फ़१६
या वास्तविक यूनिकोड - एक अक्षर अलग-अलग बाइट प्रयोग करते हैं। देवनागरी यूनिकोड की परास (रेंज) ०९०० से ०९७फ तक है। (दोनो संख्याएँ षोडषाधारी हैं) क्ष, त्र एवं ज्ञ के लिये अलग से कोड नहीं है। इन्हें संयुक
या वा[MASK]्तविक यूनिको[MASK] - एक अक[MASK]षर अलग[MASK]अलग बाइट प्रय[MASK]ग करत[MASK] हैं। दे[MASK]नागरी यूनिकोड क[MASK] परास (रेंज[MASK] ०९०० से ०९७फ तक [MASK]ै[MASK] (दोनो संख[MASK]याएँ षोडषाधारी हैं) क्ष, त्र एवं ज्ञ के ल[MASK]ये अ[MASK]ग से कोड न[MASK]ीं है। इन्हे[MASK] सं[MASK]ुक
्त वर्ण मानकर अन्य संयुक्त वर्णों की भाँति इनका अलग से कोड नहीं दिया गया है। इस परास (रेंज) में बहुत से ऐसे वर्णों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में व्यवहृत नहीं होते। किन्तु मराठी,
्त वर्ण मानकर अन्य संय[MASK]क्त व[MASK]्णों की भाँति इनका अलग से कोड नहीं दि[MASK]ा [MASK]या है। इस [MASK]रास ([MASK]ेंज[MASK] में बहुत से ऐसे [MASK]र्णों के [MASK]िये भी कोड दिये गये हैं जो सा[MASK]ान्यतः ह[MASK]न्दी में व[MASK]यव[MASK][MASK]त [MASK]हीं हो[MASK][MASK]। किन[MASK]तु म[MASK]ाठ[MASK],
सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढँग से लिखने के लिये आवश्यक हैं। नुक्ता वाले वर्णों (जैसे ज़) के लिये यूनिकोड निर्धारित किया गया है। इसके अलावा नुक्ता के लिये भी अलग से एक यूनिकोड दे दिया गया
सिन्धी, मलया[MASK]म आदि [MASK]ो देवनाग[MASK]ी में सम्यक ढँग से लि[MASK]ने [MASK]े लिये आवश्यक ह[MASK]ं[MASK] नुक[MASK]ता वाले वर्णों (जै[MASK][MASK] ज़) क[MASK] लिये यू[MASK][MASK][MASK]ोड निर्[MASK]ारित किया [MASK]या है। इ[MASK]के अल[MASK]वा नुक्ता के लिये भी [MASK]लग स[MASK] एक यूनिकोड दे दिया गया
है। अतः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिकोड की दृष्टि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं - एक बाइट यूनिकोड के रूप में या दो बाइट यूनिकोड के रूप में। उदाहरण के लिये ज़ को ' ज ' के बाद नुक्ता (़) टाइप करके भी लिखा
है[MASK] [MASK]तः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिको[MASK] की [MASK]ृष्[MASK]ि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं - एक ब[MASK]इट यूनिकोड के रूप में [MASK]ा द[MASK] बाइट यूनिकोड के रूप में। उ[MASK][MASK]हरण के लिय[MASK] ज़ को [MASK] ज ' के बा[MASK] नुक्त[MASK] (़[MASK] टाइप करके [MASK]ी लिख[MASK]
जा सकता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है। जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ़्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार
जा सकता है। यूनिकोड कन्सॉर्शि[MASK]म, एक लाभ [MASK] कम[MASK]ने व[MASK]ला एक संगठन है। जिसकी स्थापना य[MASK]निकोड स्[MASK]ैंडर्ड, जो आधु[MASK]िक [MASK]ॉफ़्ट[MASK]ेयर उत[MASK]पादो[MASK] और [MASK]ानक[MASK]ं में पाठ की प्रस्तुत[MASK] को न[MASK]र्[MASK]िष्ट करता ह[MASK], [MASK]े विकास, वि[MASK]्तार
और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये की गयी थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से
और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के [MASK][MASK]ये की गयी थी। इस कन्स[MASK]र्[MASK]ियम के सदस्यों में, क[MASK]्प्यूट[MASK] और सूचना उद्य[MASK]ग में विभिन्न निग[MASK] और स[MASK]गठन शामिल हैं। इस क[MASK]्सॉर्शियम का व[MASK][MASK]्तपोष[MASK] पूर्णतः सदस्यों क[MASK] शुल्क [MASK]े
किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिये खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते है
किया जाता है[MASK] यू[MASK]िकोड कन[MASK]स[MASK]र्शियम मे[MASK] सदस[MASK]यत[MASK], वि[MASK]्व में क[MASK]ीं भी स[MASK]थ[MASK]त उन संगठनों और व्यक्तियों के लिये खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके [MASK][MASK][MASK][MASK]तार और कार्यान्वयन [MASK][MASK]ं सहायता करना चाहते है
ं। यूनिकोड का मतलब है सभी लिपिचिह्नों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम 'एकसमान मानकीकृत कोड'। पहले सोचा गया था कि केवल १६ बिट के माध्यम से ही दुनिया के सभी लिपिचिह्नों के लिये अलग-अलग कोड प्रदान क
ं। यूनिको[MASK] का मतलब है सभी लि[MASK]िचिह्नों [MASK]ी आव[MASK]्[MASK][MASK]ता की पूर्ति करने में सक्[MASK]म 'एकसमान [MASK]ानक[MASK]कृत क[MASK]ड'। पहले सोचा गया था कि केवल १६ बिट के म[MASK]ध्यम से ही दुनिया के सभी लिपिचि[MASK]्नों के लिये अलग-अलग कोड [MASK]्र[MASK]ान क
िये जा सकेंगे। बाद में पता चला कि यह कम है। फिर इसे ३२ बिट कर दिया गया। अर्थात इस समय दुनिया का कोई संकेत नहीं है जिसे ३२ बिट के कोड में कहीं न कहीं जगह न मिल गयी हो। ८ बिट के कुल २ पर घात ८ = २56 अलग
[MASK]ये [MASK]ा स[MASK]ेंगे। ब[MASK]द में पता [MASK]ला [MASK]ि य[MASK] कम है। फिर इसे ३२ बि[MASK] कर दिया ग[MASK]ा। अर्थ[MASK]त इस समय दुनिया का कोई संकेत न[MASK]ीं है जिसे [MASK]२ बिट के कोड में कहीं न कहीं [MASK]गह न [MASK]िल [MASK]यी हो।[MASK]८ [MASK]िट [MASK]े कु[MASK] २ पर घात ८ = [MASK][MASK]6 अ[MASK]ग
-अलग बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं; १६ बिट से २ पर घात १६ = ६५५३६ और 3२ बिट से 4२94967२96 भिन्न (डिस्टिनट) बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं। यूनिकोड के तीन रूप प्रचलित हैं। उत्फ़-८, उत्फ़-१६ और उत्फ़-३२. इनम
-अलग [MASK]ाइ[MASK]री संख्याएँ ब[MASK] सकती हैं[MASK] १६ बिट से २ पर घात १[MASK] = [MASK]५५३[MASK] और 3२ बिट से 4२94967२[MASK]6 भिन्न ([MASK]िस्टिनट[MASK] बाइनरी संख्याएँ बन [MASK]कती हैं। यूनिकोड के [MASK]ीन रूप प्रचलित हैं। उत्फ़-८, उत्[MASK]़-१६ और उत्फ़-३२.[MASK]इन[MASK]
ें अन्तर क्या है? मान लीजिये आपके पास दस पेज का कोई टेक्स्ट है जिसमें रोमन, देवनागरी, अरबी, गणित के चिन्ह आदि बहुत कुछ हैं। इन चिन्हों के यूनिकोड अलग-अलग होंगे। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ संक
[MASK]ं अन्[MASK]र क्या है? मान लीज[MASK]ये आपके पास दस पेज का कोई टेक्[MASK]्ट है जिसमें रोमन, [MASK][MASK]वनागरी, अरबी, ग[MASK]ित के च[MASK]न्ह आ[MASK]ि बहुत कुछ हैं। इन [MASK]िन्हों के यूनिकोड अलग-अलग होंगे। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ सं[MASK]
ेतों के ३२ बिट के यूनिकोड में शुरू में शून्य ही शून्य हैं (जैसे अंग्रेजी के संकेतों के लिये)। यदि शुरुआती शून्यों को हटा दिया जाय तो इन्हें केवल ८ बिट के द्वारा भी निरूपित किया जा सकता है और कहीं कोई
ेतों के ३२ बिट के [MASK]ूनिकोड में शुरू में शून्य ह[MASK] शून्य हैं (जैसे अंग्[MASK]ेजी के संकेतों के लिये)। [MASK]दि शुर[MASK]आती शून्यों को हटा दिया [MASK]ाय तो इन्हें केवल ८ बिट के [MASK]्वारा भी निरूपित किया जा सकत[MASK] है और कहीं कोई
भ्रम या कॉन्फ़्लिक्ट नहीं होगा। इसी प्रकार रूसी, अरबी, हिब्रू आदि के यूनिकोड ऐसे हैं कि शून्य को छोड़ देने पर उन्हें प्राय: १६ बिट = २ बाइट से निरूपित किया जा सकता है। देवनागरी, जापानी, चीनी आदि को आर
भ्र[MASK] य[MASK] कॉन्फ़्लिक्ट नहीं होगा[MASK] इ[MASK]ी प्रकार रूसी, अ[MASK]बी, हिब्रू आदि क[MASK] यूनिकोड ऐसे हैं कि शून्य को [MASK]ोड़ देन[MASK] [MASK]र उन[MASK][MASK]े[MASK] प्राय[MASK] १६ बिट = [MASK] बाइट से [MASK]िर[MASK]पित क[MASK]या जा सकता है। [MASK]ेवनागरी, जाप[MASK]न[MASK], चीनी आदि को [MASK]र
म्भिक शून्य हटाने के बाद प्राय: २4 बिट = तीन बाइट से निरूपित किया जा सकता है। किन्तु बहुत से संकेत होंगे जिनमें आरम्भिक शून्य नहीं होंगे और उन्हें निरूपित करने के लिये चार बाइट ही लगेंगे। बिन्दु (५) म
म्भिक शून्य हटाने क[MASK] बाद [MASK][MASK]राय: २4 बिट = तीन बाइट से निरूपित किया जा सकता [MASK]ै। किन्तु बह[MASK]त से संक[MASK]त होंग[MASK] जिनमें आरम्भिक श[MASK]न्य न[MASK]ीं होंगे और उ[MASK]्ह[MASK]ं निरूप[MASK]त [MASK]रने के लिये चार बाइट ही लगेंगे। बिन[MASK]दु (५) म
ें बताए गये काम को उत्फ़-८, उत्फ़-१६ और उत्फ़-३२ थोड़ा अलग अलग ढंग से करते हैं। उदाहरण के लिये यूटीएफ़-८ क्या करता है कि कुछ लिपिचिह्नों के लिये १ बाइट, कुछ के लिये २ बाइट, कुछ के लिये तीन और चार बाइट
[MASK]ं बत[MASK]ए गये काम को उत्फ़-८, उत्फ़-१६ और [MASK]त्फ़-३२ थोड[MASK]ा अलग [MASK][MASK]ग ढंग स[MASK] करते हैं। उदाहरण के [MASK]िये यूटीएफ़-८ [MASK]्[MASK]ा करता है कि कुछ लिपिचिह्नों के लिये १ बाइट, कु[MASK] के [MASK]िये २ बाइट, कुछ के लि[MASK][MASK] तीन औ[MASK] चार बाइट
इस्तेमाल करता है। लेकिन उत्फ़-१६ इसी काम के लिये १६ न्यूनतम बिटों का इस्तेमाल करता है। अर्थात जो चीजें उत्फ़-८ में केवल एक बाइट जगह लेती थीं वे अब १६ बिट == २ बाइट के द्वारा निरूपित होंगी। जो उत्फ़-८
इस्तेमाल करता है। लेक[MASK][MASK] उत्फ[MASK]-१६ इ[MASK]ी [MASK]ाम के लि[MASK]े १[MASK] न्यूनतम बिटों का इस्त[MASK]माल करता है। अर्थात जो [MASK]ीजे[MASK] उत्फ़-८ में केवल ए[MASK] बाइट जगह लेती थीं वे अब १६ बिट == २ बाइट के द्वारा न[MASK]रू[MASK]ित [MASK]ोंग[MASK]। जो उ[MASK]्फ़-८
में २ बाइट लेतीं थी यूटीएफ-१६ में भी दो ही लेंगी। किन्तु पहले जो संकेतादि ३ बाइट या चार बाइट में निरूपित होते थे यूटीएफ-१६ में ३२ बिट = ४ ४ बाइट के द्वारा निरूपित किये जायेंगे। (आपके पास बड़ी-बडी ईंट
में २ बाइट ल[MASK]तीं थी यूटीएफ-१६ म[MASK]ं भी दो ही लेंगी। किन्[MASK]ु पहले जो संकेताद[MASK] ३ बाइट य[MASK] चार बाइट में निर[MASK][MASK]ित होते थे यूटीएफ-१६ में ३२ ब[MASK]ट = ४ ४ बाइ[MASK] के द[MASK]वारा निरूपित किये जाय[MASK]ंगे। (आपके पास बड़ी-बडी ईंट
ें हों और उनको बिना तोड़े खम्भा बनाना हो तो खम्भा ज्यादा बड़ा ही बनाया जा सकता है।) लगभग स्पष्ट है कि प्राय: उत्फ़-८ में इनकोडिंग करने से उत्फ़-१६ की अपेक्षा कम बिट्स लगेंगे। इसके अलावा बहुत से पुराने
ें [MASK]ों और उनको [MASK]ि[MASK]ा [MASK][MASK]ड़े खम्भा बनाना हो त[MASK] खम्भा ज्यादा बड़ा ही बनाया जा सक[MASK]ा है।) लगभग स[MASK]पष्ट है कि [MASK][MASK]राय: उ[MASK]्फ़-८ में इन[MASK][MASK]डिंग करने से उ[MASK]्फ़-१[MASK] की अपेक्षा कम [MASK]िट्स [MASK][MASK]ेंगे। इसके अला[MASK]ा बह[MASK]त से प[MASK]राने
सिस्टम १६ बिट को हैंडिल करने में अक्षम थे। वे एकबार में केवल ८-बिट ही के साथ काम कर सकते थे। इस कारण भी उत्फ़-८ को अधिक अपनाया गया। यह अधिक प्रयोग में आता है। उत्फ़-१६ और उत्फ़-३२ के पक्ष में अच्छाई
सिस्टम १६ बिट को हैंडि[MASK] करने में [MASK]क्षम थे। वे एक[MASK]ार में के[MASK]ल ८[MASK]बिट ही [MASK]े साथ काम कर सकते [MASK]े। इस क[MASK][MASK]ण भी उत्फ़-८ को अध[MASK]क अपनाया गया। यह अधिक प्र[MASK]ो[MASK] में आता है। उ[MASK]्फ़-[MASK]६ [MASK]र [MASK]त्फ़-[MASK]२ के प[MASK]्ष [MASK][MASK]ं [MASK]च्छाई
यह है कि अब कम्प्यूटरों का हार्डवेयर ३२ बिट या ६४ बिट का हो गया है। इस कारण उत्फ़-८ की फाइलों को 'प्रोसेस' करने में उत्फ़-१६, उत्फ़-३२ वाली फाइलों की अपेक्षा अधिक समय लगेगा। उपयोगी यूनिकोड वर्तमान स्थ
यह है कि अब कम्प्यू[MASK]रों का हार्डवे[MASK]र ३२ बिट य[MASK] ६४ बिट का ह[MASK] गया है। इस क[MASK]र[MASK] उत्फ़-८ की फाइलों [MASK]ो 'प्रोसेस' करने में उत्फ़-१६[MASK] उत्फ़[MASK]३२ वाल[MASK] फाइलों की अपेक्षा अधिक समय लगेगा। उपयोगी यूनि[MASK]ोड वर्तमान स्थ
िती अगर कोई लेख किसी जगह पर किसी ऐसे फ़ॉण्ट को प्रयोग कर के लिखा गया है। जो कि यूनिकोड नहीं है, तो फ़ॉण्ट परिवर्तक प्रोग्रामों का प्रयोग करके उसे यूनिकोड में बदला जा सकता है। विस्तृत जानकारी के लिये द
िती अगर कोई लेख किसी जगह [MASK]र किसी ऐसे फ़ॉण्ट को प्रयोग कर के लिखा गया है। जो कि य[MASK]निकोड [MASK]हीं है, तो फ़ॉण्ट [MASK][MASK]िवर्तक प्रोग्रामों का [MASK]्र[MASK]ोग करके उसे यूनिकोड में बदल[MASK] जा सक[MASK]ा है। विस्तृत जानकारी के लि[MASK]े द
ेखें - 'फॉण्ट परिवर्तक' जंक (विकृत) यूनिकोड को सही करने के उपाय याहू जैसे ईमेल सेवाओं में यूनिकोड कैरेक्टर विकृत हो जाने पर मूल ईमेल प्राप्त कर पढ़ने के ऑनलाईन औजार बालेन्दु शर्मा दाधीच द्वारा विकसित
े[MASK]ें - 'फ[MASK]ण्ट परिवर्तक' जंक (विकृ[MASK]) [MASK]ू[MASK]िकोड को सही करने [MASK]े [MASK]प[MASK]य याहू जैसे ईम[MASK][MASK] सेवाओं में यूनिकोड [MASK][MASK]रेक्टर विक[MASK]त हो जाने पर मूल ईमेल [MASK]्राप्त कर पढ़ने के ऑन[MASK]ाईन औजार बाल[MASK]न्दु शर्म[MASK] [MASK]ा[MASK]ीच द्वारा विकसित
आनलाइन यूनिकोड विकृति संशोधक इन्हें भी देखें देवनागरी यूनिकोड खण्ड यूनिकोड समानुक्रमण अल्गोरिद्म (यूनिकोड कोलेशन अल्गोरिद्म) यूनिकोड क्या है? भूमंडलीकरण में आईटी का योगदान है यूनिकोड यूनिकोड-सक्षम उत्
आनलाइन यूनिको[MASK] विकृति संशोधक इन्हें भी द[MASK]खें देवनागरी यूनिकोड [MASK]ण्ड यूनिकोड स[MASK]ानुक्रमण अ[MASK]्गोरिद्म (यूनिकोड कोलेशन अल्गोर[MASK]द्म) यून[MASK]कोड क्[MASK]ा [MASK]ै? [MASK][MASK]मंडल[MASK]कर[MASK] में आईटी का य[MASK][MASK]द[MASK][MASK] है यूनि[MASK]ोड यूनिकोड-सक्षम उत्
पादों की सूची - आपरेटिंग सिस्टम, ब्राउजर, प्रोग्रामिंग की भाषायें, एवं अन्य अनेक उत्पाद देवनागरी का यूनिकोड चार्ट (स्टैण्डर्ड ५.०) हिन्दी एवं देवनागरी के लिए यूनिकोडोत्तर दौर की चुनौती अलग और बड़ी हैं
पा[MASK]ो[MASK] क[MASK] [MASK]ूच[MASK] - आपरेटिंग सिस्ट[MASK], ब्रा[MASK]जर, प्रोग्रामिंग की भाषायें, एवं अन्य अनेक उ[MASK][MASK]पाद देवनागरी का यूनिकोड चार्[MASK] (स[MASK]ट[MASK]ण्ड[MASK]्ड [MASK].०) हिन्दी एव[MASK] देवनागरी के लिए यूनिकोडोत्तर दौर की [MASK]ु[MASK]ौती अलग और बड़[MASK] हैं
(बालेन्दु शर्मा दाधीच) हिंदी में यह क्रांति न आती यदि यूनिकोड न होता! (अगस्त २०१५ ; बालेन्दु शर्मा दाधीच) यूनिकोड उपकरण तथा फॉण्ट यूनीकोड कोड कॉन्वेर्टर व७.०९ - यूनिकोड को तरह-तरह के वैकल्पिक रूपों म
([MASK]ालेन्दु श[MASK]्मा द[MASK]धीच) हिंदी में यह क[MASK]रांति न आत[MASK] यदि यूनिकोड न ह[MASK]ता! [MASK]अगस्त २०१[MASK] ; बालेन्दु शर्मा दाधीच)[MASK]यूनिकोड उपकरण तथा फॉ[MASK]्ट[MASK]यूनीकोड कोड कॉन्वेर्टर व७.०९ - यूनिकोड [MASK]ो तरह-तरह के वैकल्पिक रूपों म
ें बदलने वाला आनलाइन प्रोग्रामशुक्रवार, ०८ अगस्त २००३ हमास का बदले का संकल्प -- फ़लस्तीन के चरमपंथी संगठन हमास की सशस्त्र शाखा ने अपने सदस्यों से अपील की है कि वे इसराइली सेना के हमले में मारे गए दो न
ें बदलने [MASK]ाला आनलाइन प्रोग्रा[MASK][MASK]ुक्रवार, ०[MASK] अगस्[MASK] २००३ हम[MASK]स का बदले [MASK]ा संकल्प -- फ़लस्तीन के चरमपंथी संग[MASK]न हमास की स[MASK][MASK][MASK]त्र शाखा [MASK]े अपने सद[MASK]्यों से अप[MASK][MASK] [MASK]ी है क[MASK] वे इसर[MASK]इली सेना के हमले में मारे गए [MASK]ो न
ेताओं की मौत का बदला लें. अभिनेता उमर शरीफ़ को सज़ा -- जाने माने अभिनेता उमर शरीफ़ को फ़्राँस की एक अदालत ने मारपीट के आरोप में सज़ा सुनाई है। उन्हें एक महीने की सस्पेंडेड जेल की सज़ा के साथ-साथ ग्यार
ेताओं की मौत का बदला [MASK]ें. अभिनेता उमर शरी[MASK]़ को सज़ा -- जान[MASK] मा[MASK]े अभिनेता उमर शर[MASK]फ़ को फ़्र[MASK]ँस की एक अद[MASK]लत ने मा[MASK]पीट के आरोप में सज़ा [MASK]ु[MASK]ाई है। उन्ह[MASK]ं एक महीने की सस्पें[MASK]ेड जेल की सज़ा के साथ-साथ ग्य[MASK]र
ह सौ पाउंड का जुर्माना भी लगाया गया है। 'अंतरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी' -- इंडोनेशिया की राष्ट्रपति मेगावती सुकर्णोपुत्री ने आतंकवाद के विरुद्ध दुनियाभर का एक गठबंधन बनाने की माँग उठाई है। राजधानी जकार्त
ह सौ प[MASK]उंड का जुर्मा[MASK]ा भी ल[MASK]ाया गया है। 'अंतरराष[MASK]ट्रीय सहयोग ज़रूरी' -- इंडो[MASK]ेशिया की [MASK]ाष्ट्[MASK]पति मेगावती स[MASK]कर्णोप[MASK]त्री [MASK]े आतंकवाद के विरुद्ध दुनियाभर का ए[MASK] गठबंधन बनाने की माँग उठाई है। [MASK]ाजधान[MASK] जकार्त
ा के एक होटल में मंगलवार को हुए बम धमाके के बाद उन्होंने पहली टिप्पणी में ये माँग उठाई. अमरीकी रणनीति बदलेगी? -- अमरीका इराक़ में अपनी सैन्य रणनीति में बदलाव करने की योजना बना रहा है। अब अमरीका इराक़
ा के एक होटल में मंग[MASK]वा[MASK] को ह[MASK]ए बम धमाके के बाद उन्होंने पहली टिप्पण[MASK] में ये माँग उठाई. अमरीकी [MASK]णनी[MASK]ि बदलेगी[MASK] [MASK]-[MASK]अ[MASK]रीका इराक़ में अपन[MASK] सैन्[MASK] रणन[MASK]ति में बदल[MASK]व करने की [MASK]ो[MASK]ना बना [MASK]हा है[MASK] अब अमरीक[MASK] इर[MASK]क़
में स्थानीय लोगों को अधिक संख्या में सामने लाना चाहता है और बड़े पैमाने पर होने वाली कार्रवाइयाँ कम करना चाहता है। नए परमाणु हथियारों पर चर्चा -- अमरीकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन ने माना है कि वह सैनिक अ
में स्था[MASK]ीय लोगों को अधिक संख्या में सामन[MASK] ला[MASK]ा चाहता है [MASK]र ब[MASK]़े पैमान[MASK] [MASK]र होने वाली कार्रवाइयाँ कम करना चा[MASK][MASK][MASK] है।[MASK]नए परमाणु हथ[MASK][MASK]ारों पर चर्[MASK][MASK] -- अ[MASK]रीकी रक्षा म[MASK]ख्[MASK]ाल[MASK] पेंटागन ने माना है कि [MASK]ह सैनि[MASK] अ
धिकारियों और वैज्ञानिकों की एक उच्च स्तरीय बैठक कर रहा है। इसमें अगले चरण के अत्याधुनिक परमाणु हथियारों पर विचार होने की संभावना है।भारत बहुत सारी भाषाओं का देश है, परन्तु सरकारी कामकाज में व्यवहार मे
धिकारियों और वै[MASK]्[MASK]ानिक[MASK]ं की [MASK]क उ[MASK]्च स्तरीय बैठक क[MASK] रहा ह[MASK]। इ[MASK]म[MASK]ं अगले चरण के [MASK]त्याधुनिक प[MASK]माणु ह[MASK]ि[MASK]ारों पर विचार होने की संभा[MASK][MASK]ा है।भारत बह[MASK]त सारी भाषाओं [MASK]ा द[MASK]श है, प[MASK]न्तु सरकार[MASK] कामका[MASK] [MASK]ें व्यवहार मे
ं लायी जाने वाली दो भाषाऍँ हैं, हिन्दी और अंग्रेज़ी। भारत में द्विभाषी वक्ताओं की संख्या ३१.४९ करोड़ है, जो २०११ में जनसंख्या का २६% है। पालि, प्राकृत, मारवाड़ी/मेवाड़ी, अपभ्रंश, हिंदी, उर्दू, पंजाबी,
ं [MASK]ाय[MASK] जा[MASK]े वा[MASK]ी दो भाषाऍँ हैं, हिन्दी और अंग्रे[MASK]़ी। भा[MASK]त [MASK]ें द[MASK]विभाषी वक्ताओं की स[MASK]ख्या ३१.४९ करोड़ है, जो २०११ में जन[MASK]ंख्या का २६% है। पालि, प्राकृत, मारवाड़ी/मेवाड[MASK]ी[MASK] अपभ्रंश, हिंदी, उर्दू, पंजाब[MASK],
राजस्थानी, सिंधी, कश्मीरी, मैथिली, भोजपुरी, नेपाली, मराठी, डोगरी, कुरमाली, नागपुरी, कोंकणी, गुजराती, बंगाली, ओड़िआ, असमिया, गुजरी तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तुलू, गोंडी, कुड़ुख संथाली, हो, मुंडारी
रा[MASK]स्[MASK]ानी, [MASK]िंध[MASK][MASK] कश्म[MASK]री, [MASK]ैथिली, भोजपुरी, नेपाली, [MASK]राठी, डोगरी, कुरमाली, ना[MASK]पुरी, कोंकणी, गुजरा[MASK]ी, ब[MASK]गाली, ओड़िआ, असमिया, गुजरी तमिल[MASK] ते[MASK]ुगु, मलयालम, कन्नड़, तुल[MASK], गोंडी, क[MASK]ड़ुख संथाली, हो, मुं[MASK]ार[MASK]
, खासी, भूमिज नेपाल भाषा, मणिपुरी, खासी, मिज़ो, आओ, म्हार, नागा मातृभाषा के अनुसार बड़ी भारतीय भाषाओं की सूची यहाँ यह ध्यान रखने योग्य बात है कि भारत में द्विभाषिकता एवं बहुभाषिकता का प्रचलन है इसलिए
, खासी, भूमिज नेपाल भ[MASK]षा, [MASK]णिपुरी, खासी[MASK] [MASK]िज़ो, आओ, म्हार, न[MASK]गा मातृभाषा के अनुसार बड़ी भारतीय भा[MASK][MASK]ओं की [MASK]ूची यह[MASK]ँ यह ध्यान र[MASK]ने योग्य बात है कि भारत म[MASK]ं द्[MASK]िभाषिकता एवं बहु[MASK]ाष[MASK]क[MASK]ा [MASK]ा प्रचलन ह[MASK] इसलिए
यह सँख्या उन लोगों की है जिन्होंने ने हिन्दी को अपनी प्रथम भाषा के तौर पर १९९१ की जनगणना में दर्ज़ किया था। मान्यता प्राप्त भाषाएं हिंदी भारत के उत्तरी हिस्सों में सबसे व्यापक बोली जाने वाली भाषा है।
[MASK]ह सँख्या उन लोगों की ह[MASK] जिन्होंने न[MASK] हिन्द[MASK] क[MASK] अपनी प्[MASK]थम भाषा के तौर पर १९९१ की [MASK]नग[MASK]ना में दर्ज़ किया था। मान[MASK]यता प्र[MASK]प्त [MASK]ाषाएं हिंदी भारत के उत[MASK]तरी हिस्सों में सबसे व्य[MASK]पक बोली जाने [MASK]ाली [MASK]ा[MASK]ा [MASK]ै।
भारतीय जनगणना "हिंदी" की व्यापक विविधता के रूप में "हिंदी" की व्यापक संभव परिभाषा लेती है। २०११ की जनगणना के अनुसार, ४३.६३% भारतीय लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित कर दिया है। भाषा डे
भारतीय जनगणना "हिंदी[MASK] की व्य[MASK]पक [MASK]िविधत[MASK] के रूप में [MASK]हिंदी" की व्यापक संभव परिभाषा लेती है। २[MASK]१[MASK] की जनगणन[MASK] के अनुसार, [MASK]३.६३% भारतीय लोगों न[MASK] हि[MASK]दी को अपनी मूल भाषा या [MASK]ातृभ[MASK]ष[MASK] [MASK]ोषित क[MASK] द[MASK]या है। भाष[MASK] डे
टा २६ जून २०१८ को जारी किया गया था। भिली / भिलोदी १.०४ करोड़ वक्ताओं के साथ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली गैर अनुसूचित भाषा थी, इसके बाद गोंडी २९ लाख वक्ताओं के साथ थीं। भारत की जनगणना २०११ में भारत की आ
टा २६ जून २०१८ को ज[MASK]री किया गया था। भ[MASK]ली / भिलोद[MASK] [MASK].०४ क[MASK][MASK]ड़ व[MASK]्ताओं के स[MASK]थ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली ग[MASK]र अनुसूचित भाषा थी, इ[MASK]के बाद गोंडी २९ लाख वक[MASK]ताओं [MASK]े [MASK]ाथ थीं[MASK] भा[MASK]त की जनगणना २०११ में भ[MASK]रत की आ
बादी का ९६.7१% २२ अनुसूचित भाषाओं में से एक अपनी मातृभाषा के रूप में बोलता है। दस लाख से कम व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ अंग अंग या अंगिका लिपि, आस. असमिया लिपि, बेन. बंगाली लिपि, देव. देवन
बादी का ९६.7१% २२ अनुसूच[MASK]त भाषाओं में से एक अपनी म[MASK]त[MASK]भा[MASK]ा के रूप मे[MASK] [MASK]ो[MASK]ता है। द[MASK] लाख से कम व्यक[MASK]तिय[MASK]ं द्[MASK]ारा बोली जाने वाली भाषा[MASK]ँ अंग अंग य[MASK] अंगिका लिपि, आस. अस[MASK]िया लिपि[MASK][MASK]बेन. [MASK]ंगाली [MASK]िपि, देव. देव[MASK]
ागरी लिपि, गुज. गुजराती लिपि, गुर. गुरमुखी लिपि, कण. कन्नड़ लिपि, लत. लैटिन लिपि, मैं. मैथिली लिपि, मिथिलाक्षर, कैथी माल. मलयालम लिपि, ओरी. ओड़िआ लिपि, सिन. सिंहल लिपि, तेल. तेलुगु लिपि. इन्हें भी देख
ागरी लिपि, गुज. गुजराती लिपि, गुर. गुरम[MASK]खी लिपि, कण. [MASK][MASK]्नड़ [MASK]िपि[MASK] लत. [MASK]ैटिन लि[MASK]ि,[MASK]मैं. मैथि[MASK]ी लिपि, मि[MASK][MASK]लाक्षर, [MASK]ैथी[MASK]माल. मलयाल[MASK] लिपि[MASK][MASK]ओरी. ओड़िआ लिपि, सिन. सिं[MASK]ल लिपि, तेल. तेलु[MASK]ु लि[MASK]ि. इ[MASK]्हे[MASK] भी देख
ें भारत का भाषाई इतिहास भारत के भाषा परिवार भारत की आधिकारिक भाषाओं में भारत गणराज्य के नाम भारत की बोलियाँ हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं का परस्परिक सम्बन्ध (डॉ
ें[MASK]भारत [MASK]ा भाषाई इत[MASK]हास भारत के भाषा प[MASK][MASK][MASK]ार भारत क[MASK] आध[MASK]कार[MASK]क भाषाओं [MASK]ें भारत गणराज्य के नाम भारत [MASK]ी ब[MASK]लियाँ हिंदी क[MASK] विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्दी और क्ष[MASK]त्रीय भाषाओं का परस्परिक सम[MASK]ब[MASK]्ध (डॉ
विनोद कुमार) भारत की भाषाएँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ राजमल बोरा) भारतीय भाषाएँ और हिन्दी अनुवाद (गूगल पुस्तक ; लेखक - कैलाशचन्द्र भाटिया) भारतीय भाषाओं की पहचान (डॉ सियाराम तिवारी) भारतीय भाषाएं एवं ल
विनोद कुमार) भ[MASK]रत की भाषाए[MASK] (गू[MASK][MASK] [MASK]ुस्तक ; ल[MASK][MASK]क - डॉ राजमल बो[MASK]ा) भ[MASK]रती[MASK] भ[MASK]षा[MASK]ँ और ह[MASK]न्दी अनु[MASK]ाद (गूगल पुस्त[MASK] ; लेखक - कैल[MASK]शचन्द्र भाटिया)[MASK]भारतीय भाषाओं की पहचा[MASK] (डॉ सियार[MASK]म तिव[MASK]री) भारतीय भाषाएं एवं ल
िपियाँ सीखें (यहाँ अपनी सुविधा लिपि एवं भाषा के माध्यम से भारत की दूसरी भाषाएँ सीखने की निःशुल्क सुविधा है।) भारतीय भाषा कोश (२१ भारतीय भाषाओं का एकल कोश)हिन्दू धर्म एक धर्म या जीवन पद्धति है जिसके अन
िप[MASK]याँ स[MASK]खें (यहाँ अपनी सुव[MASK]धा लिपि एवं [MASK]ाषा के माध्यम से भा[MASK]त की दूसरी भाषाएँ [MASK][MASK]खने की न[MASK]ःशुल्क सुविधा है[MASK]) भारतीय भाषा कोश (२१ भारतीय भाषाओं का एकल कोश)ह[MASK]न्दू धर्म एक धर्म या [MASK]ीवन पद[MASK]धति है जिसके अन
ुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरीनाम, फ़िजी इत्यादि। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी
ुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरी[MASK]ाम[MASK] फ़िजी इत्यादि। इसे वि[MASK]्व क[MASK] प्र[MASK]चीनतम धर्[MASK] मान[MASK] जाता है[MASK] इसे 'व[MASK]दिक [MASK]ना[MASK]न [MASK]र[MASK]णाश्रम धर[MASK]म[MASK] [MASK]ी कह[MASK]े ह[MASK]ं जिसका अर्थ ह[MASK] कि [MASK]सकी
उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासन
उत्पत[MASK]ति मा[MASK]व की उत्पत्ति से भी पहल[MASK] स[MASK] [MASK]ै। वि[MASK]्वान लोग हिन्दू [MASK]र्म को भारत क[MASK] विभि[MASK]्न संस्कृ[MASK][MASK]य[MASK]ं एव[MASK] परम[MASK]पराओं का सम्मिश्रण मा[MASK]ते हैं जिसका को[MASK] स[MASK]स्थापक [MASK]ह[MASK]ं [MASK]ै[MASK] यह धर्म [MASK]पने अन्दर कई अलग[MASK]अलग उपास[MASK]
ा पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में
ा पद्धतिय[MASK]ँ, मत, स[MASK]्प्रद[MASK]य और दर्शन स[MASK]ेटे हुए हैं। अनुयाय[MASK]यों क[MASK] संख्या के आधार पर ये विश्व क[MASK] तीस[MASK]ा सबसे बड़ा धर्म [MASK]ै। स[MASK]ख्या के आ[MASK]ार पर इसक[MASK] अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में
हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दू आगम" है। हिन
हैं[MASK] [MASK]ालाँकि इसमें कई [MASK]ेवी-देवताओं की [MASK]ूजा की ज[MASK]ती है, ले[MASK]िन वा[MASK]्तव मे[MASK] यह एकेश्वर[MASK]ादी धर्म है।[MASK]इसे सनातन धर्म अ[MASK]वा वैदिक धर्[MASK] भी कह[MASK]े हैं। इण्डोने[MASK]िया में इस [MASK]र्म का औपचारिक नाम "हिन्दू आ[MASK]म" है। हिन
्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इ
्दू केवल एक धर्[MASK] या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की [MASK]क प[MASK]्धति है। स[MASK]ातन धर्म पृथ्[MASK]ी [MASK]े सबसे प्राचीन धर्मों में से एक [MASK]ै; ह[MASK]ल[MASK]ँकि [MASK]सके इत[MASK]हास क[MASK] बारे में अ[MASK]ेक [MASK]िद्वानों क[MASK] अनेक मत हैं[MASK] आ[MASK]ु[MASK]िक इ
तिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई च
तिहासकार हड़प्[MASK]ा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्[MASK]िक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ ह[MASK]़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत (और आ[MASK][MASK]निक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई च
िह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौ
िह्न [MASK][MASK]लते हैं। इनमे[MASK] ए[MASK] अज्ञात म[MASK]तृदेवी की मू[MASK]्तियाँ, भगवान शिव पशुपत[MASK] जैस[MASK] दे[MASK]ता की मुद्राए[MASK], शिवलिंग[MASK] पी[MASK]ल की पूजा, इत्यादि प्रमुख ह[MASK]ं। इतिहासकारों के एक दृ[MASK]्टिको[MASK] के अन[MASK]सार इस सभ्यता के अन्त के दौ
रान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा
रान म[MASK]्य एशिया से एक अन्य ज[MASK]ति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य क[MASK]ते थे औ[MASK] स[MASK]स[MASK]कृत नाम की एक ह[MASK]न्द यूरो[MASK][MASK]य भाषा बो[MASK]ते थे। आर्यों की सभ्[MASK]ता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृ[MASK]्टिक[MASK]ण क[MASK] अन[MASK]सार लगभग १७[MASK]० [MASK]सा
पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें
पूर्व में आर्य अफ़[MASK][MASK]़ान[MASK]स्[MASK]ान, कश्[MASK][MASK]र, पंज[MASK]ब और हरियाणा [MASK]ें बस गए। तभी से व[MASK] लो[MASK] (उनके विद्वान ऋषि) अपने दे[MASK]त[MASK]ओं को प्रसन्न करने [MASK]े ल[MASK]ए वैदिक स[MASK]स[MASK]क[MASK]त में मन्त्[MASK] [MASK]चने ल[MASK]े। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें
ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हु
ऋग्वेद [MASK]्[MASK]थम [MASK]ा[MASK] उसके बा[MASK] उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, [MASK]पन[MASK]षद [MASK]दि ग्रन्थ अनाद[MASK], नित्य हैं, ईश्वर की क[MASK][MASK]ा से अलग-अल[MASK] म[MASK]्[MASK]्रद्रष[MASK]टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्[MASK]ान प्राप्त [MASK]ु
आ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अन
आ जिन्होंने फिर उ[MASK]्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्म[MASK]ं के अलग हो जाने क[MASK] बाद वैदि[MASK] धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। [MASK]य[MASK] देवता और नये [MASK]र[MASK]शन उभरे[MASK] इस तरह [MASK]धुनिक ह[MASK]न्[MASK]ू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे द[MASK]ष्टिकोण के अन
ुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। हालांकि भारत विरोधी विद्वानों ने कई प्रयासों के बावजू
ुसार हिन्दू धर्म [MASK]ा मूल [MASK]दाचित सिन्धु सरस्वत[MASK] परम्[MASK]रा (जि[MASK]क[MASK] स्[MASK]ोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है[MASK] से भी [MASK]हले की [MASK]ारती[MASK] परम्परा में है। हाल[MASK]ंकि भारत विरोधी विद्वान[MASK]ं [MASK]े कई प्रय[MASK]स[MASK]ं क[MASK] बावजू
द यहां तक कि भ्रामक प्रमाणो के आधार पर भी अपने विचार को सिद्ध नहीं कर पाए। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार: हिमालयात्
द यहां तक कि भ्[MASK]ामक प्र[MASK]ाणो के आधार पर भी अपने विचार [MASK]ो सिद्[MASK] नह[MASK]ं कर प[MASK]ए। भा[MASK]तवर्ष को प्राचीन ऋष[MASK]यों ने [MASK]हिन्[MASK]ुस्थान" नाम दिया थ[MASK], जिसका अपभ्र[MASK]श "हिन[MASK][MASK]ुस्तान" है। "बृहस्प[MASK]ि आगम" के अनुसार: हिमालयात्
समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। "हिन्दू" शब्द "सिन्धु"
समारभ्य य[MASK]व[MASK][MASK] [MASK]न्द[MASK] सरोवरम्। [MASK]ं [MASK][MASK]वनिर्मितं देशं हिन्दुस्[MASK]ानं प्रचक्ष[MASK]े॥ अर्था[MASK]् हिमाल[MASK] से प्र[MASK]रम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासा[MASK][MASK][MASK] तक यह देव निर्मित देश हि[MASK]्दुस्थान कहलाता है। "हिन्दू" श[MASK]्द "सिन्धु"
से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र में मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि।
से [MASK]ना माना जाता है। स[MASK]स्कृत में सि[MASK]्धु शब्द के दो मु[MASK]्य अर्थ हैं [MASK] पहला, स[MASK]न्धु नदी जो मान[MASK]रोव[MASK] क[MASK] पास से निक[MASK] क[MASK] ल[MASK]्दाख़ और प[MASK]किस्तान से बहती हु[MASK] समु[MASK]्र में मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि।
ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "ह
ऋग्वे[MASK] [MASK]ी नदीस्तुति [MASK][MASK] अनुसार व[MASK] सात नदियाँ थीं : सिन्[MASK][MASK], सरस[MASK]वती, वितस्त[MASK] (झे[MASK]म), शुतुद्र[MASK] (सतलु[MASK]), विपाशा (व्[MASK]ास), परुषिणी (राव[MASK]) और अस्[MASK]िनी [MASK]चेनाब)। एक अन्[MASK] व[MASK]च[MASK]र के अनुसार हिमाल[MASK] के प्रथ[MASK] अक[MASK][MASK]र "ह
ि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय
ि" [MASK]वं [MASK]न्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और य[MASK] भू-भ[MASK]ग हिन्दु[MASK]्थान कहलाय[MASK]। हिन्दू शब्[MASK] [MASK]स समय धर्म [MASK]े बजाय राष्[MASK]्रीयत[MASK] के र[MASK]प मे[MASK] प्रयु[MASK]्त हो[MASK]ा था। चूँकि [MASK]स समय
भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं)
भारत में केवल व[MASK]दिक ध[MASK]्म को ही म[MASK]नने व[MASK]ले लोग थे, [MASK]ल्कि तब तक अन्य किसी [MASK]र्म का उदय नहीं ह[MASK]आ था इस[MASK]िए "हिन्दू[MASK] शब्द सभी भारतीयों [MASK]े [MASK]िए [MASK]्रयुक्त ह[MASK]ता [MASK]ा। भा[MASK]त में क[MASK]वल व[MASK]दिक धर्मावलम्बियों (हिन्द[MASK]ओ[MASK])
के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया। आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुस
के [MASK]सने के कारण काला[MASK]्तर में विदेशियों न[MASK] इस शब्द क[MASK] धर्[MASK] के सन्दर्भ में प्रयो[MASK] [MASK]रना शुरु कर दिया। आम त[MASK]र पर हिन्द[MASK] शब्द को अने[MASK] व[MASK]श्[MASK]ेषकों ने [MASK]िदेशियों द्वार[MASK] द[MASK]या [MASK]या शब्द [MASK]ाना है। इस धारणा के अनुस
ार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार
ार हिन्[MASK]ू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सना[MASK]न धर्म या वैदिक सना[MASK]न वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्[MASK]ेद में स[MASK]्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविद[MASK]ं के अनुसार
हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो गया (अ
हिन्द आर्य भाषाओ[MASK] की "स[MASK]" ध्[MASK]नि ([MASK]ंस्कृत का व्यंजन "स्"[MASK] ईरान[MASK] भाषाओं की "ह्" ध्वनि म[MASK]ं बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्ध[MASK] अवेस[MASK]तन भा[MASK]ा (पारस[MASK]यों की धर्मभ[MASK]षा) में जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो ग[MASK]ा (अ
वेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द १.१8)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कह
वे[MASK]्त[MASK]: वेन्[MASK]ीदाद, फ़र्गर्द १.१8)। इसके बाद ईरानियों ने [MASK]िन[MASK]धु नदी क[MASK] पूर्व म[MASK]ं रहने वा[MASK]ों को हिन[MASK][MASK]ु नाम दिया। जब अरब से मुस्[MASK]िम ह[MASK]लाव[MASK] भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्[MASK]ा[MASK]ल[MASK]्बियों को हिन[MASK]दू कह
ना शुरू कर दिया। चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दु धर्म नहीं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है। हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं ह
[MASK]ा शुरू कर द[MASK]या। [MASK]ारो[MASK] [MASK]ेदों [MASK]ें, पुराणों में, महाभारत में[MASK] स[MASK]मृतियों में इस [MASK]र्म क[MASK] ह[MASK]न्दु धर्[MASK] नहीं कहा है, वैदिक सनातन [MASK]र्णाश्र[MASK] ध[MASK][MASK]म [MASK]हा है।[MASK]हिन्दू धर्[MASK] में कोई एक अकेले सिद्धान्त[MASK]ं का समूह नही[MASK] ह
ै जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभ
ै जिसे सभी हिन्दुओं को मानन[MASK] ज़रूरी है। ये तो ध[MASK]्म स[MASK] ज़्यादा एक जीवन क[MASK] मार्[MASK] है। हि[MASK]्दु[MASK]ं का कोई केन्द्रीय चर्च या [MASK]र्मसंगठन नहीं [MASK]ै और [MASK] ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत [MASK]ई मत [MASK]र सम्प्रदाय [MASK]त[MASK] हैं और स[MASK]
ी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र
ी को बर[MASK][MASK]र श[MASK]रद[MASK]धा दी जाती है। [MASK]र्मग्रन्[MASK] भी [MASK]ई ह[MASK]ं। [MASK]़िर [MASK]ी, वो मु[MASK]्य सिद्धान्त, जो ज़्या[MASK]ातर ह[MASK]न्[MASK]ू मानते हैं, इन सब म[MASK]ं विश्वास: धर्म (वैश्व[MASK]क क़ानून), कर[MASK]म (और उसके फल), पु[MASK]र[MASK]जन्म का सांसारिक चक्र
, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य
[MASK] मो[MASK]्ष (सांसारिक [MASK]न्धनों से [MASK]ुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक[MASK] [MASK]श[MASK][MASK]र। हिन्दू धर्म स्[MASK]र्ग औ[MASK] नरक को अस[MASK]थायी मानता है। ह[MASK]न्दू धर्म के अनु[MASK]ार संसार क[MASK] सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य
ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश
ह[MASK] ऐसा प्रा[MASK]ी ह[MASK] जो इस लोक में पाप [MASK]र पुण्य, दोनो कर[MASK]म भोग सकता है [MASK]र मोक्ष प्राप्त कर सकता [MASK]ै। हिन्[MASK]ू धर[MASK]म में चार मुख्[MASK] सम्प्रदा[MASK] हैं : वैष्[MASK]व (जो विष्ण[MASK] को [MASK][MASK]मेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को [MASK]रमेश
्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्
्वर मानते हैं)[MASK] शाक्त (जो [MASK]ेवी को पर[MASK]शक्ति [MASK]ानते है[MASK]) और स्मार्त (जो पर[MASK]ेश्वर के विभिन्न र[MASK]पों को [MASK]क ही समान मानते हैं)। [MASK]ेकिन [MASK]्या[MASK]ातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्[MASK]दाय में वर्गीक[MASK]त [MASK][MASK]ीं [MASK]रते हैं। प[MASK]
राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया। संक्षेप में, हिन्दुत्व के प्रमुख
रा[MASK]ीन[MASK]ाल [MASK]र [MASK]ध्यकाल में शैव, शाक्त और वै[MASK]्ण[MASK] आपस मे[MASK] लड़ते रह[MASK]े थे। जिन्हें म[MASK]्यकाल [MASK][MASK] संतों [MASK]े समन्वित करने [MASK]ी सफल कोशिश की और सभी स[MASK]प्रदायो[MASK] को परस्पर आश्[MASK]ित बताया। स[MASK]क्षेप में, हिन्दुत्व के प्रमुख
तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म मे
तत्त्व निम्नलिखित हैं-[MASK]िन्[MASK]ू-धर्म गोष[MASK] भक्ति[MASK]्भवेद्यस्य प्रणवे [MASK] [MASK]ृढ़ा [MASK]ति[MASK]। पु[MASK]र्ज[MASK]्मनि विश्[MASK]ासः स वै ह[MASK]न्दुरिति स्मृतः।। [MASK]र्थात-- गोम[MASK][MASK]ा में जिस[MASK]ी भक्[MASK]ि हो[MASK] प्रणव जिसका पूज्य मन[MASK]त्र हो, पु[MASK]र्जन्म मे
ं जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार-
ं जि[MASK]का विश्वा[MASK] हो--वही हिन्दू [MASK]ै। [MASK]ेरुतन्त्र [MASK]३ प[MASK][MASK]करण के [MASK]नुस[MASK]र ' हीनं दूषयति [MASK] हिन[MASK]दु ' अर्थात जो ही[MASK] (हीनता या नीचता) को [MASK]ूषित समझता है ([MASK]स[MASK]ा त्य[MASK]ग करता है) वह ह[MASK]न्[MASK]ु है। [MASK]ोकमान्य तिलक के अ[MASK]ुसार-
असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भ
अस[MASK]न[MASK]धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृत[MASK]।। अर्[MASK]ात्- सिन्धु नदी के उद्गम[MASK]स्थान से लेकर स[MASK]न्धु (हिन[MASK][MASK] [MASK]हासागर) तक [MASK]म्पूर्ण भार[MASK] भूमि जिसकी पि[MASK]ृभू (अथवा [MASK]ातृ भ
ूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भ
ूमि) तथा पु[MASK]्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उस[MASK]ा [MASK]र[MASK]म हिन्दुत्व ह[MASK]) व[MASK] [MASK]िन्दु कहला[MASK]ा [MASK][MASK]। हिन्दु श[MASK][MASK]द मूलतः फा़रसी है इस[MASK]ा अर्[MASK] [MASK]न भारतीयों से है जो भारतवर्[MASK] के [MASK]्राचीन ग[MASK]रन्थ[MASK]ं, वेदो[MASK], पुराणों में [MASK]र्णित भ
ारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने व
ारतवर्[MASK] [MASK]ी सीमा के म[MASK]ल एवं पै[MASK]ायसी प्राचीन निव[MASK]स[MASK] हैं। कालिका पुर[MASK][MASK], म[MASK]दनी कोष आदि [MASK]े [MASK]धार पर वर्[MASK]मान हिन्दू ल[MASK] [MASK][MASK] मू[MASK]भूत आ[MASK]ारों के अनुसार [MASK]ेदप्रत[MASK]पा[MASK]ित वर्णाश्रम रीति से वैदिक [MASK]र[MASK]म में विश[MASK]वास रखने व
ाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारत
ा[MASK]ा हिन्[MASK]ू है। यद्यपि कुछ ल[MASK]ग कई संस्कृति के मिश्र[MASK]त रूप क[MASK] ही भारतीय संस[MASK]कृति मानते है, जबकि ऐसा [MASK]हीं [MASK]ै। जिस [MASK]ंस[MASK]कृति [MASK]ा धर्[MASK] की उत्प[MASK]्ती [MASK]वं विकास भारत भूमि पर नह[MASK]ं हु[MASK] [MASK][MASK], वह धर्म य[MASK] संस्कृ[MASK]ि भारत
ीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है। हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु १. ईश्वर एक नाम अनेक. २. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है। ३. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें. ४. हिन्दुत्व का
ीय ([MASK]िन्[MASK]ू) कैसे ह[MASK] सकती [MASK]ै। हिन्दू धर्म के [MASK]िद्धान्त के कुछ [MASK]ुख्य बि[MASK]्दु १. ईश्वर एक नाम अनेक. २. [MASK]्रह[MASK]म या परम तत्त्व [MASK]र[MASK]वव्या[MASK]ी है। ३. ईश्वर से डरें नहीं[MASK] प्र[MASK]म कर[MASK]ं और प्र[MASK]रणा ले[MASK]. ४. हिन्दुत्व का
लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर. ५. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है। ६. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं। ७. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है। ८. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा
लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर. ५. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं [MASK]ै। ६. धर्म [MASK][MASK] रक्[MASK]ा के लिए ई[MASK]्वर बार-ब[MASK]र पै[MASK]ा हो[MASK]े [MASK]ैं। ७. प[MASK]ोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है। ८. ज[MASK]व[MASK]ा[MASK]्र की स[MASK]वा ह[MASK] परमात[MASK]मा
की सेवा है। ९. स्त्री आदरणीय है। १०. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है। ११. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में. १२. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता. १३. हिन्दू दृष्टि स
की सेवा है। ९. स्त्री आदरणीय है। १[MASK]. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है। ११. हिन्द[MASK]त्व का वास हिन्दू के मन, स[MASK]स्कार और [MASK]रम्[MASK]राओं मे[MASK].[MASK]१२[MASK] पर्याव[MASK]ण की रक्षा को उच[MASK]च प्राथमिकता. १३. हिन्दू द[MASK][MASK]्टि स
मतावादी एवं समन्वयवादी. १४. आत्मा अजर-अमर है। १५. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र. १६. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं। १७. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम म
मतावादी [MASK]वं समन्वयवा[MASK]ी. १४. आत्मा अजर-अमर है। १५. सबसे बड़[MASK] मंत्र गायत[MASK]र[MASK] मंत्[MASK]. १६. हिन्दुओं के पर्व और [MASK]्योहार खुशियों से जु[MASK]़े हैं[MASK][MASK]१७. हिन्द[MASK]त्व का लक्ष्य पुरुषा[MASK]्[MASK] है और मध्य मार्[MASK] को सर्वोत्तम म
ाना गया है। १८. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है। हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो व
ाना गया है। १[MASK][MASK] हिन्दुत्व [MASK]कत्व का [MASK]र्शन है। हिन्दू धर[MASK]मग्रन्थ उप[MASK]िषदों के अनुसार ब्रह्म [MASK]ी परम तत्त्व ह[MASK] [MASK]इसे त्रिमूर्ति के दे[MASK]ता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। [MASK]ो ही जगत का सार ह[MASK], जगत की आत्मा है। वो व
िश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्
ि[MASK]्व का आधा[MASK] है। उसी से विश्व की उत्पत्ति [MASK][MASK]ती है [MASK]र [MASK]िश्व नष्ट होने पर उ[MASK]ी में विलीन हो जाता है। ब्[MASK]ह[MASK]म एक और सिर्फ़ [MASK][MASK] ही है। वो विश्वातीत भी है और [MASK][MASK]श्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्[MASK]शक्ति[MASK][MASK]न औ[MASK] सर्
वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्
वज्[MASK] है। वो कालातीत, नित्य औ[MASK] शाश्वत है। [MASK]ही परम [MASK][MASK]ञान [MASK]ै। ब[MASK]रह[MASK]म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म अस[MASK]म, अनन्त और रूप-शरीर विह[MASK]न है। वो सभी गुण[MASK]ं से भी परे ह[MASK], पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्
त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन
त चित् और अनन्त आनन्द ह[MASK]। ब्रह्म की पूज[MASK] न[MASK]ीं की जा[MASK]ी है, क्योंकि वो पूजा से पर[MASK] और अनिर्वचनीय है। उसका ध्[MASK]ान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्म[MASK]ाक्य [MASK][MASK], ज[MASK]से सभी हिन्द[MASK] प[MASK]म पवित्र शब्द मानते हैं। हिन
्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम दे
्दू यह मानते हैं कि [MASK]म् की ध्वनि पूरे ब्[MASK]ह्माण्ड में गू[MASK]ज [MASK]ह[MASK] है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता [MASK]ै। ब्रह्म क[MASK] पर[MASK]कल्पना वेद[MASK]न्त द[MASK]्शन क[MASK] केन्द्रीय स्तम्भ ह[MASK] और हिन्दू धर्म की विश्[MASK] को अन[MASK][MASK]म दे
न है। ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मान
न है। ब्रह्म औ[MASK] ईश[MASK]वर में क्[MASK]ा सम्बन[MASK]ध [MASK]ै[MASK] [MASK]समें हिन्दू दर्शनों की स[MASK]च अलग अल[MASK] है। अद्व[MASK]त वेद[MASK][MASK]्त के [MASK]न[MASK]सार जब म[MASK]नव ब्[MASK]ह्म को अपने मन से जानन[MASK] की कोशिश करत[MASK] है, तब ब्र[MASK]्म ईश्वर [MASK]ो ज[MASK]ता है, [MASK]्योंक[MASK] मान
व माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश में रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति "माया" से
व माया ना[MASK] की एक जादु[MASK] शक्ति के वश मे[MASK] रहता है। अर्थात जब मा[MASK]ा के आइने में ब्रह्म की [MASK]ाया पड[MASK]ती है, तो ब्र[MASK]्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप म[MASK]ं दिखायी पड़ता है। ईश्[MASK]र अपनी इ[MASK]ी जादुई शक्ति "माया" से
विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्थिति में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं हो
[MASK]िश्[MASK] की सृष्टि [MASK]रता है और उस [MASK][MASK] शासन करता है। इस स्थि[MASK]ि में हालाँकि [MASK]श्वर एक [MASK]कारात्मक श[MASK][MASK]ति के स[MASK]थ है[MASK] ल[MASK]किन माया उस[MASK]र अपना [MASK]ुप्रभाव [MASK]ह[MASK]ं डा[MASK] पाती है, [MASK]ैसे [MASK]क जादूग[MASK] [MASK]प[MASK]े ह[MASK] जादू से [MASK]चंम्भित नहीं हो
ता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जा
ता ह[MASK]। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी [MASK]ै। वैसे तो ईश्[MASK][MASK] रूपहीन है[MASK] पर माया की वजह स[MASK] वो हमें कई द[MASK]वताओं के रूप में प्रतीत हो [MASK]कता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर[MASK]शनों में माना ज[MASK]
ता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं है--और विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा औ
[MASK]ा है कि [MASK]श्व[MASK] [MASK]र ब्रह्म में कोई [MASK]़र्क नहीं [MASK]ै--औ[MASK] विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर [MASK]ैं। न्[MASK]ाय, वैषेश[MASK]क और योग दर[MASK]शनो[MASK] के [MASK]नुसार ईश्वर एक परम और सर्वो[MASK]्च आत्मा है[MASK] जो चैतन्य से य[MASK]क्त है और [MASK]ि[MASK]्व का सृष्टा औ
र शासक है। जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। वो पूजा और उपासना का व
र शासक है[MASK] जो भी हो, बाकी बातें [MASK]भी हिन्द[MASK] मा[MASK]ते हैं : ई[MASK]्वर एक और [MASK]ेवल एक [MASK]ै। व[MASK] विश्वव्या[MASK]ी और विश्व[MASK]तीत दोनो है। बेश[MASK], ईश्वर [MASK]ग[MASK]ण [MASK]ै। वो स्वयंभू और विश्व का कारण ([MASK]ृष्टा) है। वो पूजा और उ[MASK]ा[MASK]ना का व
िषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो राग-द्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं
िषय है। वो [MASK]ूर्ण, अनन्त, सना[MASK]न, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर[MASK]वव्यापी है। वो राग-द्व[MASK]ष से [MASK]रे है, पर अपने भक[MASK]तों स[MASK] प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। [MASK]सकी इच्छा के बिना [MASK]स [MASK]ुनिया में [MASK]क पत्ता भी नही[MASK]