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- एक जनजाति भूमिज - भारत की सबसे प्राचीन जनजाति; पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा और असम में पाई जाती है। इन्हें भी देखें सिंधु घाटी सभ्यता सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार देशों की सूची (नाममात्र) भारत में स
- एक जनजाति [MASK]ूमिज - भ[MASK]रत की सबसे प्राची[MASK] जनजाति; पश्[MASK]िम [MASK][MASK]गाल, [MASK]ारखण्ड, उड़ीसा औ[MASK] असम में [MASK]ाई जाती [MASK]ै। [MASK]न्हे[MASK] भी द[MASK]खे[MASK] [MASK][MASK]ं[MASK]ु घाटी [MASK]भ्यता [MASK]कल घरे[MASK]ू उत्पा[MASK] के अनुसार देशों की सूच[MASK] (नामम[MASK]त[MASK]र) भारत में स
बसे बड़े साम्राज्यों की सूची भारत के प्रथम भारत का राष्ट्रीय पोर्टल (हिन्दी में) भारत २०११ (प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित भारत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी) बीबीसी हिन्दी पर भारत एशिया के देश १९४७ में
बसे [MASK]ड़े साम्राज्यो[MASK] की सूची भारत के प्रथम भारत का [MASK]ाष[MASK]ट्रीय पो[MASK][MASK]ट[MASK] (हि[MASK]्दी में) भारत २०[MASK]१ (प्रकाशन विभा[MASK] द्वारा प्रकाशित भारत के बारे [MASK]ें [MASK]म्पूर्ण जानकारी)[MASK]बीबीसी [MASK]ि[MASK]्दी पर भारत ए[MASK][MASK]या के देश १९४७ म[MASK][MASK]
स्थापित देश या क्षेत्र दक्षिण एशिया के देश अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्र हिन्दुस्तानी-भाषी देश व क्षेत्रसंस्कृत (संस्कृतम्, ) भारत की एक भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिव
[MASK]्था[MASK]ित [MASK]ेश या क्षेत्र दक्षिण एशिया के देश अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्[MASK] ह[MASK]न्द[MASK]स[MASK]तान[MASK]-भ[MASK]षी देश व क्[MASK]ेत्रसंस्कृत (संस्कृ[MASK]म्, ) भारत की एक भाषा [MASK]ै। [MASK]ंस्कृत एक ह[MASK]ंद-आर्य भाषा [MASK]ै जो हिं[MASK]-यूरोपीय भाषा परिव
ार की एक शाखा है। संस्कृत दिव्य एवं समृद्ध भाषा है। ऐतिहासिकता की दृष्टि में यह संसार की सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत संसार की प्राचीनतम एवं प्रथम भाषा है। भारतीय आर्ष ग्रंथ का समस्त ज्ञान इसी भाषा
ार की एक शा[MASK]ा है। संस्कृत दिव्य एवं समृद[MASK][MASK] [MASK]ाषा [MASK]ै। ऐत[MASK]हासिकता की दृष्[MASK][MASK] में यह सं[MASK]ार की सभी भ[MASK]षाओं की जननी है। सं[MASK][MASK]कृत संसार की प्राचीनतम एवं प्रथम भाषा है। भारतीय आर्ष [MASK]्रंथ का समस्[MASK] ज्ञान इसी भाषा
में लिपिबद्ध है। संस्कृत ज्ञान की अभिव्यक्ति की भाषा है। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, बांग्ला, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमा
में लिपिब[MASK]्ध है। सं[MASK]्कृत [MASK]्[MASK]ान [MASK]ी अभिव[MASK]यक्त[MASK] की भाष[MASK] है। आधुनिक भा[MASK]ती[MASK] भाषाएँ जैसे, हिंदी, बांग्ला, मराठी, सि[MASK][MASK][MASK]ी, प[MASK]ज[MASK]बी[MASK] नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमा
नी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म के अ
नी भाषा भी शामि[MASK] है। संस्कृत में वैदिक ध[MASK]्म [MASK]े संबं[MASK]ित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए ह[MASK]ं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत [MASK]े [MASK]ी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत म[MASK][MASK] ल[MASK]खे गए हैं। आ[MASK] भी हिंद[MASK] [MASK]र्[MASK] के अ
धिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होते हैं। संस्कृत का अर्थ है "संस्कार की गयी " अर्थात "बदलाव की गयी", संस्कृत भाषा देवनागरी लिपि मे लिखी गयी है, धम्म लिपि में समय के साथ थोड़ा- थोड़ा सुधार (बदलाव) ह
धिकतर यज्ञ [MASK]र पूजा संस्कृ[MASK] [MASK]ें ही होते हैं।[MASK]संस्कृत का अर्थ ह[MASK] "संस्कार [MASK]ी गयी " अर्थ[MASK]त "बदलाव की गयी", संस्कृत [MASK][MASK]षा देवनाग[MASK]ी ल[MASK]पि मे लिखी गय[MASK] है, ध[MASK]्म लिपि में सम[MASK] के साथ थ[MASK][MASK]़[MASK]- थोड़ा सुधार (बदलाव) [MASK]
ोता रहा उदाहरण के लिए मौर्य का व गुप्त काल के शिलालेखों व अभिलेखों में शब्दो मे थोड़ा फर्क दिखायी पड़ता है। अनेक शताब्दियों तक यह चलता गया तथा पाली प्राकृत भाषा ( धम्म लिपि मे ) से अनेक लिपियों का उदय
ोता रहा उदाहरण क[MASK] ल[MASK]ए म[MASK]र्य [MASK]ा व गुप[MASK]त [MASK]ाल [MASK]े शिल[MASK]लेखों [MASK] अ[MASK]िलेखों में शब्दो म[MASK] थोड[MASK]ा फर्क [MASK]िख[MASK]यी पड़त[MASK] है। [MASK]न[MASK]क श[MASK]ाब्दियों त[MASK] यह चलता गया तथा [MASK]ाल[MASK] प्रा[MASK]ृत भाषा ( धम्म लिपि मे [MASK] से अने[MASK] लि[MASK]ियों का उदय
हुआ जैसे दक्षिण मे तमिल, तेलुगु व उत्तर मे बांगला, नागरी शारदा । १०००० ईसा पूर्व में इंग्लिश लिपि का प्रचलन शुरू हुआ व ११ शताब्दी तक आते आते देवनागरी लिपि पूर्ण से विकसित हो गयी , अगर बात करे संस्कृत
हुआ जैसे दक्षिण मे तमिल, तेलु[MASK]ु व [MASK]त्तर मे [MASK]ांगला, नागरी [MASK]ा[MASK]द[MASK] । १०००० ईसा पूर[MASK][MASK] में इंग्लि[MASK] लिपि का [MASK]्रच[MASK]न शु[MASK]ू ह[MASK]आ व ११ श[MASK]ा[MASK]्दी तक आते आते देवनाग[MASK]ी लिपि [MASK]ूर्ण से [MASK]िकसित हो गयी , अग[MASK] बात [MASK]रे संस्कृत
भाषा की चूंकि संस्कृत की लिपि देवनागरी है अत: यह भी १० वीं शताब्दी के मध्य आयी है, इससे पहले संस्कृत भाषा का कोई पुरातात्विक प्रमाण नही मिला व ना ही कही इसका जिक्र है। अत: इससे सिद्ध होता है की भारत
भाषा की च[MASK]ंकि संस्कृत की लि[MASK]ि देवनागरी ह[MASK] अत: यह भी [MASK]० वी[MASK] श[MASK]ाब[MASK]दी के म[MASK][MASK]य आ[MASK]ी है, [MASK]ससे पहले [MASK]ंस्कृ[MASK] भाषा का [MASK]ोई पुरातात[MASK]विक प्रमाण नही मिला व [MASK][MASK] ही कह[MASK] इस[MASK]ा जिक्र है। अत: इससे सिद्ध होता है [MASK]ी भारत
(जिसका प्राचीन नाम हिंदुस्तान है) की सबसे पुरानी भाषा प्राकृत पाली है व सबसे प्राचीन लिपि धम्म लिपि (आजकल ब्राह्मी लिपि) है। अगर देखा जाए सबसे प्राचीन भाषा व लिपि सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा जो अब तक नह
(जिसका प्राचीन ना[MASK] हिंदुस्तान है) की सबस[MASK] पुरानी भाषा प्राकृत पाली है व सबसे प[MASK]र[MASK]चीन लिपि धम्म लिपि (आज[MASK]ल ब्र[MASK]ह्मी लिपि) [MASK][MASK]। [MASK]गर देखा जाए [MASK]बसे प[MASK][MASK]ाचीन भाषा व लिपि सिं[MASK]ु घाटी सभ्यता [MASK]ी भाषा जो अब तक नह
ी पढ़ी गयी है । संस्कृत आमतौर पर कई पुरानी इंडो-आर्यन किस्मों को जोड़ती है। इनमें से सबसे पुरातन ऋग्वेद में पाया जाने वाला वैदिक संस्कृत है, जो ९ वीं शताब्दी के बाद रचित १००० भजनों का एक संग्रह है, जो
ी [MASK]ढ़ी ग[MASK]ी [MASK]ै । संस्कृत आमतौर पर कई पुरानी इंडो-आर्यन किस्मों को [MASK]ोड़ती है। इनमें से स[MASK]से [MASK]ुरातन ऋग्वेद म[MASK]ं पाया जाने वाल[MASK] वैदिक [MASK]ंस्कृत है, जो ९ वीं शताब्द[MASK] के [MASK]ाद रचित १००० [MASK][MASK]नों का एक संग्र[MASK] है, [MASK]ो
इंडो-आर्यन जनजातियों द्वारा आज के उत्तरी अफगानिस्तान और उत्तरी भारत में अफगानिस्तान से पूर्व की ओर पलायन करते हैं। वैदिक संस्कृत ने उपमहाद्वीप की प्राचीन प्राचीन भाषाओं के साथ बातचीत की, नए पौधों और
इंडो-आर[MASK]यन ज[MASK]जातियो[MASK] द[MASK]वारा आ[MASK] के उत्तरी अफगानिस्तान और उ[MASK]्तरी भारत में अफ[MASK]ानिस्तान स[MASK] पूर्व की ओ[MASK] पलायन करते है[MASK]। वैदिक संस्क[MASK]त ने उपमह[MASK]द्वीप की प्राची[MASK] प[MASK]रा[MASK]ीन भाषाओं के साथ बातचीत की, नए पौधों और
जानवरों के नामों को अवशोषित किया। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को भी सम्मिलित किया गया है। यह उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश की आधिकारिक राजभाषा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से संस्कृत में सम
जानवरों के नामो[MASK] को [MASK]वशोषित किया। भारत के संवि[MASK]ान की आ[MASK]वीं अनुसूची म[MASK]ं संस्कृत [MASK]ो भी सम्मिलित किया ग[MASK]ा है। यह उत्तराखण्ड और हिम[MASK]चल [MASK]्रदेश की आध[MASK]कार[MASK]क राजभाषा है[MASK] [MASK]काशवाणी और दूरदर्शन से संस्कृत [MASK][MASK]ं सम
ाचार प्रसारित किए जाते हैं। कतिपय वर्षों से डी. डी. न्यूज (क्क न्यूज) द्वारा वार्तावली नामक अर्धहोरावधि का संस्कृत-कार्यक्रम भी प्रसारित किया जा रहा है, जो हिन्दी चलचित्र गीतों के संस्कृतानुवाद, सरल-स
ाचार प्रसारित किए जाते हैं। क[MASK]िपय व[MASK]्[MASK]ों से डी. डी[MASK] न्यूज (क्क न्यूज) द्वारा वार्त[MASK]वली नामक अ[MASK]्धहोरावधि का संस्[MASK]ृत-कार्[MASK]क्रम भ[MASK] प्र[MASK]ारित किया ज[MASK] र[MASK]ा है, ज[MASK] हिन्दी चलचित्र [MASK]ीतों के संस्कृतान[MASK]वाद, सरल-स
ंस्कृत-शिक्षण, संस्कृत-वार्ता और महापुरुषों की संस्कृत जीवनवृत्तियों, सुभाषित-रत्नों आदि के कारण अनुदिन लोकप्रियता को प्राप्त हो रहा है। संस्कृत का इतिहास बहुत पुराना है। वर्तमान समय में प्राप्त सबसे
[MASK]स[MASK]कृत-शिक्षण, स[MASK]स्कृत-वार्[MASK]ा [MASK]र महा[MASK]ुरुषों की संस्कृत जी[MASK]न[MASK]ृत्तियो[MASK], सुभ[MASK]षित-रत्नों आदि के [MASK][MASK]रण अ[MASK]ुदिन लोक[MASK]्र[MASK]यता को प्राप्त हो रहा [MASK]ै[MASK] संस्कृ[MASK] का इतिहा[MASK] बहुत पुराना है। [MASK]र्तमान [MASK]मय में [MASK]्राप्त सबसे
प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है। संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है। बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्याकरणाचार्यों ने संस्कृत व्याकरण प
प्रा[MASK]ीन [MASK]ंस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो क[MASK] से क[MASK] ढाई हजार ईसाप[MASK]र्व की र[MASK]ना है। संस्कृत भाषा का [MASK][MASK]याकरण अत्य[MASK]्त परिमार्ज[MASK]त एवं वैज्ञानिक है। बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्य[MASK]कर[MASK]ाचार्यो[MASK] ने संस्कृत व्याकरण [MASK]
र बहुत कुछ लिखा है। किन्तु पाणिनि का संस्कृत व्याकरण पर किया गया कार्य सबसे प्रसिद्ध है। उनका अष्टाध्यायी किसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रि
र बहुत [MASK]ुछ लिखा है। [MASK]िन्तु पा[MASK]िनि का संस्कृत व्याकरण पर किया गया कार्य सबसे प[MASK]रसिद्ध ह[MASK]। उनका अष्टाध्या[MASK]ी किसी भी भ[MASK]षा के [MASK]्[MASK]ाकरण का सबस[MASK] प्राचीन ग[MASK]रन्थ है। संस्कृत म[MASK][MASK] संज्ञ[MASK], सर[MASK]वनाम[MASK] विशेषण और क्रि
या के कई तरह से शब्द-रूप बनाये जाते हैं, जो व्याकरणिक अर्थ प्रदान करते हैं। अधिकांश शब्द-रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं। इस तरह ये कहा जा सकता है कि संस्कृत एक बहिर्मुखी-अन्त-श्ल
या [MASK]े कई तर[MASK] [MASK]े शब्द-रूप बनाये जाते हैं, ज[MASK] व्य[MASK]करणि[MASK] अर्थ प्रदा[MASK] करते है[MASK]। [MASK]धिका[MASK]श श[MASK]्द[MASK]रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यय ल[MASK][MASK][MASK]र बनाये जाते हैं। इस तरह ये [MASK]ह[MASK] जा सकता है [MASK]ि संस्कृत एक बह[MASK]र[MASK]मुखी-अन्त-श्ल
िष्टयोगात्मक भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को वागीश शास्त्री ने वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया है। ध्वनि-तन्त्र और लिपि संस्कृत भारत की कई लिपियों में लिखी जाती रही है, लेकिन आधुनिक युग में देवनागरी लिपि
िष्टयोगात[MASK]म[MASK] भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को [MASK]ागीश शास[MASK]त्री ने वैज्ञानिक स[MASK]वरूप प्रद[MASK]न क[MASK]या है। ध्वनि-तन्त्र औ[MASK] [MASK]िपि संस[MASK]कृत भा[MASK]त की कई लिपियों में ल[MASK]खी जाती रही [MASK]ै, लेकिन आधुनिक [MASK][MASK]ग में देवन[MASK]गरी [MASK]िपि
के साथ इसका विशेष संबंध है। देवनागरी लिपि वास्तव में संस्कृत के लिए ही बनी है, इसलिए इसमें हर एक चिह्न के लिए एक और केवल एक ही ध्वनि है। देवनागरी में १३ स्वर और ३३ व्यंजन हैं। देवनागरी से रोमन लिपि मे
के साथ इस[MASK]ा विशेष सं[MASK]ंध है। देवनागरी लिपि [MASK][MASK]स्तव में संस्कृत के लिए ह[MASK] बनी है[MASK] इसल[MASK]ए इसमें [MASK]र एक चिह्न के लिए एक और [MASK]ेवल एक ही ध्वनि है। देव[MASK]ागरी में १३ स[MASK]वर और [MASK]३ व्यंजन हैं। देवनागरी से रोमन लिपि मे
ं लिप्यन्तरण के लिए दो पद्धतियाँ अधिक प्रचलित हैं : इयास्त और इतरांस. शून्य, एक या अधिक व्यंजनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। संस्कृत, क्षेत्रीय लिपियों में लिखी जाती रही है। ये स्वर संस्कृत
ं लिप्य[MASK]्[MASK][MASK]ण के लिए दो प[MASK]्[MASK]तियाँ अधिक [MASK]्[MASK]चलित हैं : इयास[MASK]त और इत[MASK]ांस. शून्य, एक या अधिक व्यं[MASK]नों और एक [MASK]्वर के मे[MASK] स[MASK] एक [MASK]क्षर बनता है। संस्कृत, क्षेत्र[MASK]य लिपियों में लिखी जाती [MASK]ही [MASK]ै[MASK][MASK][MASK]े स्[MASK]र संस[MASK]कृत
के लिए दिए गए हैं। हिन्दी में इनके उच्चारण थोड़े भिन्न होते हैं। संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ-इ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है। इसके अला
के लिए [MASK]िए गए हैं। हिन्दी में इनके [MASK]च्चारण थ[MASK]ड़[MASK] [MASK]िन[MASK]न ह[MASK]ते हैं। संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्[MASK] हो[MASK]ा है औ[MASK] "अ-इ" य[MASK] "आ-[MASK][MASK] की तरह बोला जा[MASK]ा ह[MASK]। इस[MASK] [MASK]रह औ "अ-उ" या "आ-उ" [MASK]ी त[MASK]ह बोला जाता ह[MASK]। इस[MASK]े अल[MASK]
वा निम्नलिखित वर्ण भी स्वर माने जाते हैं : ऋ -- वर्तमान में, स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से इसका अशुद्ध उच्चारण किया जाता है। आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह तथा मराठी में "रु" की तरह किया जाता है । ॠ -- क
वा निम्नलिखित वर[MASK]ण [MASK]ी स्वर मान[MASK] जाते हैं : ऋ -- वर्तमान म[MASK][MASK], स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से इ[MASK]का अशुद्ध [MASK][MASK]्चारण [MASK][MASK]या जाता है। आधुनिक हिन्दी में "[MASK]ि" की तरह [MASK]थ[MASK] मराठी में "रु" [MASK]ी तरह किय[MASK] [MASK]ाता है । ॠ -- क
ेवल संस्कृत में (दीर्घ ऋ) ऌ -- केवल संस्कृत में (मूर्धन्य शब्दांश ल) अं -- न् , म् , ङ् , ञ् , ण् और ं के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए अँ -- स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (संस्कृत में नहीं उपय
ेव[MASK] संस[MASK]कृत में (दीर्घ ऋ) ऌ -- केवल संस्कृत में (मूर्धन[MASK]य शब्दा[MASK]श ल) अं -- न् , म् , ङ् , ञ् , ण् और ं के लिए [MASK]ा स्व[MASK] का नासिकीकरण क[MASK]ने के लिए अँ -- स्व[MASK] का [MASK]ासिकीक[MASK]ण करने के लिए (संस्कृ[MASK] में न[MASK]ीं [MASK]पय
ुक्त होता) अः -- अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए जब कोई स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त् अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे कि क् ख् ग् घ्। इनमें से ळ (मूर्धन्य
ुक्त होता) अ[MASK] -- अघ[MASK]ष "ह्" (निःश्वास) के लिए जब कोई स्व[MASK] प्रयोग नहीं [MASK]ो, तो [MASK]ह[MASK]ँ पर 'अ' [MASK]ाना जाता है। स्वर [MASK]े न हो[MASK]े को [MASK]लन्त् [MASK]थ[MASK]ा विराम से दर्शाया जाता है। [MASK]ैस[MASK] [MASK]ि क् ख् ग[MASK] घ्। इ[MASK]में से ळ (मूर्धन्य
पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में इसका प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोंक को मूर्धा (मुँह की
पार[MASK]विक अन्तस[MASK][MASK]) एक अत[MASK]रिक्त व्यंजन है जिसका प्[MASK]योग हिन्दी मे[MASK] [MASK][MASK]ीं हो[MASK]ा है। मराठी [MASK]र [MASK]ैदिक संस्कृत [MASK]ें इसका [MASK]्रयोग कि[MASK]ा जा[MASK]ा है। संस्कृ[MASK] में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोंक को मूर्धा ([MASK]ुँ[MASK] की
छत) की ओर उठाकर श जैसी ध्वनि करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक्यों में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। संस्कृत भाषा की विशेषताएँ (१) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) क
छत) की ओर उठाकर [MASK] जैसी ध्वनि करना। शुक्ल यजुर्वेद [MASK]ी माध्[MASK]ं[MASK]िनि शाखा [MASK]े[MASK] कुछ वाक्यों में ष का उच्चारण ख की तरह कर[MASK]ा मान्य था। सं[MASK]्क[MASK]त भा[MASK]ा की विशेष[MASK]ाए[MASK] (१) संस्कृ[MASK], विश्व की सबसे पुरान[MASK] पुस्तक (व[MASK]द) क
ी भाषा है। इसलिए इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है। (२) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। (३) सर्वाधिक महत्वपू
ी भाषा है। [MASK]स[MASK]िए इस[MASK] विश्व की प्रथ[MASK] [MASK]ाषा मानने में कहीं [MASK]िसी संशय की स[MASK]भ[MASK]वना नहीं है। (२) इसक[MASK] [MASK]ुस्पष्ट व्या[MASK]रण और वर्णमाला की वैज्ञानि[MASK][MASK]ा क[MASK] क[MASK]र[MASK] सर्वश्रेष्ठ[MASK]ा भी स्वय[MASK] सिद्ध ह[MASK][MASK] (३) [MASK][MASK]्वाधिक महत्[MASK]पू
र्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है। (४) इसे देवभाषा माना जाता है। (५) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र
र्ण साहित्य की [MASK]नी होने से इ[MASK]की [MASK]हत्त[MASK] भी निर्विवाद है। (४) इ[MASK]े देवभ[MASK]षा माना जात[MASK] ह[MASK]। (५) संस्कृत केवल स[MASK]वविकस[MASK]त भा[MASK]ा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका ना[MASK] संस्कृत है। क[MASK]वल संस्कृत ही एकम[MASK]त्र
भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत > सम् + सुट् + 'कृ करणे' + क्त, ('सम्पर्युपेभ्यः करोतौ भूषणे' इस सूत्र से 'भूषण' अर्थ में 'सुट्' या सकार का आगम/ 'भूते' इस सूत
भा[MASK]ा ह[MASK] जिसका नाम[MASK]रण उसके बोलने वालों के नाम पर न[MASK]ी[MASK] किया गया है। संस्[MASK]ृत > स[MASK]् + सुट् + 'कृ करण[MASK]' + क्त, ('सम[MASK][MASK]र्[MASK]ुपेभ्यः करोतौ भूषणे' [MASK]स सूत्र से 'भूषण' अर[MASK]थ में 'सुट्' या सकार का आगम[MASK] 'भूते' इस सूत
्र से भूतकाल(पस्ट) को द्योतित करने के लिए संज्ञा अर्थ में क्त-प्रत्यय /कृ-धातु 'करणे' या 'डोइंग' अर्थ में) अर्थात् विभूूूूषित, समलंकृत(वेल-डेकोरेटेड) या संस्कारयुक्त (वेल-कटुर्ड)। संस्कृत को संस्कारित
्र [MASK]े भू[MASK]का[MASK](पस्ट) [MASK]ो द्यो[MASK]ित [MASK]रने के लिए संज्[MASK]ा अर्थ म[MASK]ं क्[MASK]-प्रत्यय /कृ[MASK]ध[MASK]तु 'करणे' य[MASK] 'डोइंग' अर्[MASK] में) [MASK]र्थात् विभूूूूषित, [MASK]मलंकृ[MASK](वे[MASK]-डेकोरेटेड) य[MASK] संस्कारयुक्त (वेल-कटुर्[MASK])। [MASK]ं[MASK]्कृत को संस्कारि[MASK]
करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किय
करने वाले भी को[MASK] साधारण भाषाविद् नहीं बल्क[MASK] महर्षि पाणिनि, म[MASK]र्षि कात्यायन और योगशास[MASK]त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षि[MASK]ों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भा[MASK]ा में समाव[MASK]ष्ट किय
ा है। यही इस भाषा का रहस्य है। (६) शब्द-रूप - विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के २७ रूप होते हैं। (७) द्विवचन - सभी भाषाओं में एकवचन और बहु
ा है। यही इस भाषा क[MASK] रहस्य ह[MASK]। (६) शब्द-रूप [MASK] वि[MASK][MASK]व की सभी भाषाओं मे[MASK] एक शब्द का एक या कुछ [MASK]ी र[MASK]प होत[MASK] है[MASK], जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के २७ रूप ह[MASK]त[MASK] [MASK]ैं। (७) द्वि[MASK]चन [MASK] सभ[MASK] भाषाओं में एकवचन और बहु
वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। (८) सन्धि - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल ज
वचन होत[MASK] ह[MASK]ं जबकि संस्कृत म[MASK]ं द्विवचन अतिरिक[MASK]त ह[MASK]ता है[MASK] (८) [MASK]न्ध[MASK] - संस्कृत भ[MASK]षा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत मे[MASK] जब दो अक्षर निकट आते हैं त[MASK] व[MASK][MASK][MASK] सन्[MASK]ि ह[MASK]ने से स्वरूप और उ[MASK]्चारण बद[MASK] [MASK]
ा है । (९) इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है। (१०) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। (११) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम
ा है । (९) इसे कम्प्[MASK]ू[MASK]र और [MASK]ृत्[MASK]िम बुद्[MASK]ि के लिए सबस[MASK] उप[MASK]ु[MASK]्त भाषा माना जाता है[MASK] (१०) शोध से ऐसा [MASK]ाया गया ह[MASK] कि स[MASK]स्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। (११) संस्कृत [MASK]ाक्यों म[MASK]ं शब्दों को किसी भी क्र[MASK]
में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है
मे[MASK] रखा जा सक[MASK]ा है[MASK] [MASK][MASK]से अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी [MASK]म्[MASK]ावना नहीं होती। ऐसा इसलि[MASK]े होता [MASK]ै क्[MASK]ोंकि सभी शब्द विभक[MASK]ति और वच[MASK] के अनुस[MASK]र होते हैं [MASK]र क्रम बदल[MASK]े पर भी सही अर्[MASK] सुर[MASK]्षित रहता [MASK]ै
। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं। (१२) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (पर्फेक्ट) एवं तर्कसम्मत भाषा है। (१३) संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ क
। जैस[MASK] - अहं गृ[MASK]ं गच्छामि [MASK]ा ग[MASK]्छामि गृहं अहम् दो[MASK]ो ही ठीक है[MASK]। (१२) सं[MASK]्क[MASK]त विश्व की स[MASK]्वाध[MASK]क 'पूर्ण' (पर्फेक्ट) [MASK]वं तर्कस[MASK]्मत भाषा है। (१३) सं[MASK]्कृत ही [MASK]क मात्र साध[MASK] हैं जो क्रमश: अंग[MASK]लियों एवं जीभ क
ो लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है। (१४) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है
ो लचीला बना[MASK]े ह[MASK][MASK]। इसक[MASK] अध्ययन करने वाले छ[MASK]त्र[MASK]ं क[MASK] गण[MASK]त, विज्ञान एवं अन[MASK]य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मि[MASK]त[MASK] है। (१४[MASK] संस्क[MASK]त भाषा में साहित्य [MASK]ी रचना कम से क[MASK] छह हजार व[MASK]्षों स[MASK] निरन्[MASK]र होती आ रही ह[MASK]
। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी
। इसके [MASK]ई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर[MASK][MASK] क[MASK] हजारों पुश्त तक के करोड़ों [MASK]र्वोत्तम मस्त[MASK]ष्क दिन-रा[MASK] लगे र[MASK]े [MASK]ैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं [MASK]ि संसार क[MASK] किसी देश मे[MASK] इतने क[MASK]ल तक, इतनी
दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी ३ करोड़ से
दूरी त[MASK] व्याप्त, इतने उत्तम मस्ति[MASK]्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं [MASK]ै। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा म[MASK]नवीय आपदाओं (वैदेशिक [MASK]क्र[MASK]णों) को झेलते हुए आज भी ३ [MASK]रोड़ से
अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी १०० गुना अधिक है। निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वार
[MASK]ध[MASK]क संस्[MASK]ृत पाण्डुलिपिय[MASK]ँ विद्यमान ह[MASK]ं। यह स[MASK]ख्[MASK]ा ग्रीक और लैट[MASK]न की पाण्डुलिपि[MASK][MASK]ं की सम्मि[MASK]ित संख्या से [MASK]ी १०० गु[MASK][MASK] अध[MASK]क है। [MASK][MASK][MASK]संदेह ह[MASK] यह सम्पदा छापाख[MASK]ने के आविष्कार के पहले क[MASK]स[MASK] भी संस्कृति द्[MASK]ार
ा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है। (१५) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुध
ा सृजित सबसे बड़[MASK] सांस्कृत[MASK]क व[MASK]रासत है। ([MASK]५[MASK] संस्कृत के[MASK]ल एक म[MASK]त्र भाषा नहीं है अप[MASK]त[MASK] [MASK]ंस्कृ[MASK] एक विचार है। संस्कृत एक संस्[MASK]ृति है एक संस्कार है संस्कृत म[MASK][MASK] [MASK]िश[MASK]व का क[MASK]्य[MASK]ण है, श[MASK]ंति [MASK]ै, सहयोग है, व[MASK]ुध
ैव कुटुम्बकम् की भावना है। भारत और विश्व के लिए संस्कृत का महत्त्व संस्कृत कई भारतीय भाषाओं की जननी है। इनकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गई है या संस्कृत से प्रभावित है। पूरे भारत में संस्कृत
[MASK]व कुट[MASK]म्[MASK]कम् क[MASK] भावना है। भारत और विश्व के लिए संस्कृत का महत्त्व संस्कृ[MASK] कई भ[MASK]रतीय भाषाओ[MASK] की जननी है। इनकी अधिकांश श[MASK]्दावली या [MASK]ो सं[MASK]्[MASK]ृत से ली [MASK]ई है या संस्क[MASK]त से प्रभ[MASK]वित [MASK]ै। पूरे [MASK]ारत म[MASK]ं संस[MASK]कृत
के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आएगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी। यदि इच्छा-शक्ति हो तो संस्कृत को हिब्रू की भाँति पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है। हिन्दू, बौद्ध, जैन आ
के अध्य[MASK]न-अध्यापन से भारतीय [MASK]ाषाओं मे[MASK] अधिकाधिक एकरूपता [MASK]एगी जिससे भा[MASK]तीय एक[MASK]ा बलवती होगी। यदि इ[MASK][MASK]छा[MASK]शक्ति हो [MASK]ो स[MASK]स्[MASK]ृत को ह[MASK]ब्रू की भाँति पुन[MASK] प्रचलित भ[MASK]षा भी बनाया जा [MASK]कता है। हिन्दू, बौद्ध, जै[MASK] आ
दि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं। हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है। हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं। भारतीय भाषाओं क
दि धर[MASK]म[MASK]ं के प्राचीन धार[MASK]मिक [MASK]्र[MASK]्थ संस[MASK]कृत में [MASK]ैं। हिन्दु[MASK]ं के सभ[MASK] पूज[MASK]-पाठ और धार्मिक [MASK]ंस्क[MASK]र की भ[MASK]ष[MASK] संस्कृत ह[MASK] है। हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आ[MASK][MASK]रित होते ह[MASK]ं।[MASK]भारतीय [MASK]ाषाओं क
ी तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। भारतीय संविधान की धारा ३४३, धारा ३४८ (२) तथा ३५१ का सारांश यह है कि देवनागरी लिपि में लिखी और मूलत: संस्कृत से अपनी पारिभाषिक शब्दावली को लेने
ी [MASK]कनीकी [MASK]ब्दाव[MASK]ी भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। भारती[MASK] संविध[MASK][MASK] की धारा ३[MASK]३, धारा ३४८ (२) तथा ३५१ का सारांश यह है क[MASK] देवनाग[MASK]ी लिपि में लिखी और मूल[MASK]: संस्कृत स[MASK] अपनी पारि[MASK]ाषिक शब्[MASK]ावली को लेने
वाली हिन्दी राजभाषा है। संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है। संस्कृत का साहित्य अत्यन्त प्राचीन, विशाल और विविधतापूर्ण है। इसमें अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान और साहित्य का खजाना है। इसके अ
वा[MASK][MASK] हिन्दी राजभाष[MASK] है। स[MASK]स्कृत, भ[MASK]रत को ए[MASK]त[MASK] के सू[MASK]्र में बाँधती है। संस्क[MASK][MASK] क[MASK] साहित्य अत्यन्त प्र[MASK]चीन, विशा[MASK] और विविधतापूर्ण है। इसमें अध्[MASK]ात[MASK]म, दर्शन, ज्ञान-[MASK]िज्[MASK]ान और साहित्य का खजाना ह[MASK]। इसके अ
ध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। संस्कृत को कम्प्यूटर के लिए (कृत्रिम बुद्धि के लिए) सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है। संस्कृत का अन्य भाषाओं पर प्रभाव संस्कृत भाषा के शब्द
ध्[MASK][MASK]न स[MASK] ज्ञा[MASK]-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा म[MASK]ले[MASK]ा। संस्कृत को कम्प्यू[MASK]र क[MASK] [MASK]िए (क[MASK]त्रिम बुद्धि के लिए) सबसे [MASK]पयुक्त भाषा माना जाता है। संस[MASK]कृत का [MASK]न्य भाषाओं पर प्र[MASK]ाव स[MASK]स्[MASK]ृत भाषा के शब्द
मूलत रूप से सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में हैं। सभी भारतीय भाषाओं में एकता की रक्षा संस्कृत के माध्यम से ही हो सकती है। मलयालम, कन्नड और तेलुगु आदि दक्षिणात्य भाषाएं संस्कृत से बहुत प्रभावित हैं। यहाँ
मूलत रूप से सभ[MASK] आ[MASK]ुनि[MASK] भारतीय [MASK]ाषाओं में हैं। सभी भारतीय भ[MASK]षाओं में एकता की रक्षा संस्कृत के म[MASK]ध्[MASK]म से ही हो सकती है। मलयालम, [MASK]न्[MASK]ड और तेलुगु आदि दक्षिणात्य भ[MASK]षाएं संस्कृत [MASK]े बहुत [MASK][MASK]रभावित हैं। यहा[MASK]
तक कि तमिल में भी संस्कृत के हजारों शब्द भरे पड़े हैं और मध्यकाल में संस्कृत का तमिल पर गहरा प्रभव पड़ा। विश्व की अनेकानेक भाषाओं पर संस्कृत ने गहरा प्रभाव डाला है। संस्कृत भारोपीय भाषा परिवर में आती
तक कि तमिल म[MASK]ं [MASK]ी संस्कृ[MASK] के हजारों शब्द भर[MASK] पड़े [MASK]ैं औ[MASK] मध्यकाल में संस्कृत का तमिल पर गहरा प्रभव पड़ा। विश्व की अनेका[MASK]ेक भाषाओ[MASK] पर स[MASK]स्कृत ने गहरा [MASK]्रभाव [MASK]ाला ह[MASK]। संस्कृत भारोपीय भा[MASK]ा परिवर में आती
है और इस परिवार की भाषाओं से भी संस्कृत में बहुत सी समानता है। वैदिक संस्कृत और अवेस्ता (प्राचीन इरानी) में बहुत समानता है। भारत के पड़ोसी देशों की भाषाएँ सिंहल, नेपाली, म्यांमार भाषा, थाई भाषा, ख्मेर
[MASK]ै औ[MASK] इस [MASK]रिवार की भाषाओं से [MASK]ी संस्कृत में [MASK]हु[MASK] सी समानता है। वैदि[MASK] [MASK]ंस्कृत और अवेस्ता ([MASK]्[MASK]ाचीन इर[MASK]नी) में बहुत स[MASK]ानता [MASK]ै। भारत के [MASK]ड़ोसी देशों की भाषाएँ सि[MASK]ह[MASK], ने[MASK]ाली[MASK] म[MASK][MASK]ा[MASK]मार भ[MASK]षा, थाई भाषा, ख्मेर
संस्कृत से प्रभावित हैं। बौद्ध धर्म का चीन ज्यों-ज्यों प्रसार हुआ वैसे वैसे पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक सैकड़ों संस्कृत ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। इससे संस्कृत के हजरों शब्द चीनी भाषा
संस[MASK]कृत से प्रभाव[MASK]त हैं। बौद्[MASK] धर्म का चीन ज्यों-ज्यो[MASK] प्[MASK]सार हुआ वैसे वैसे पहली [MASK]त[MASK]ब्दी से दसवीं शताब्दी तक सैक[MASK]़ों संस्कृ[MASK] ग्रन्थों का चीन[MASK] भाषा में अनुवा[MASK] हुआ। इससे संस्[MASK]ृत के हजर[MASK][MASK] शब्द च[MASK]नी भाषा
में गए। उत्तरी-पश्चिमी तिब्बत में तो अज से १००० वर्ष पहले तक संस्कृत की संस्कृति थी और वहाँ गान्धारी भाषा का प्रचलन था। देश, काल और विविधता की दृष्टि से संस्कृत साहित्य अत्यन्त विशाल है। इसे मुख्यतः
में गए। उत्तरी[MASK]पश्चिमी तिब[MASK]बत में तो अज से १००० [MASK][MASK]्ष पहले तक संस्कृत की संस्कृति थी और वहाँ गान्ध[MASK]री भाषा का प्[MASK]चलन [MASK]ा। देश, क[MASK]ल और विविधता क[MASK] दृष्ट[MASK] [MASK]े संस्कृत साहित्य अत्यन्त व[MASK]शाल है। इसे म[MASK]ख्य[MASK]ः
दो भागों में विभाजित किया जाता है- वैदिक साहित्य तथा शास्त्रीय साहित्य । आज से तीन-चार हजार वर्ष पहले रचित वैदिक साहित्य उपलब्ध होता है। इनके अतिरिक्त रसविद्या, तंत्र साहित्य, वैमानिक शास्त्र तथा अन्य
दो भागों मे[MASK] विभाजित किया जाता है- व[MASK][MASK]िक [MASK]ाहित्य तथा श[MASK]स्त्रीय साहि[MASK]्य । आ[MASK] से त[MASK]न-[MASK][MASK]र हजार [MASK]र्ष पहले रचित वैदिक सा[MASK]ित्य उप[MASK]ब्ध होता है। इनके अत[MASK][MASK]िक्त रसविद्या, तंत्र साहित्य[MASK] वैमानिक शास्त्[MASK] तथा अन्य
ान्य विषयों पर संस्कृत में ग्रन्थ रचे गये जिनमें से कुछ आज भी उपलब्ध हैं। शिक्षा एवं प्रचार-प्रसार भारत के संविधान में संस्कृत आठवीं अनुसूची में सम्मिलित अन्य भाषाओं के साथ विराजमान है। त्रिभाषा सूत्र
ान्य विषयों [MASK]र संस्कृत में ग्रन्थ रचे गये ज[MASK]नमें से कुछ आज भी [MASK]प[MASK]ब[MASK][MASK] ह[MASK]ं। [MASK]िक्षा एवं प[MASK]रचार-प्रसा[MASK] भारत [MASK]े संव[MASK][MASK]ान में स[MASK]स्कृत आठवीं अनुसू[MASK]ी में सम्मिलित अन्य भाषाओं क[MASK] साथ विराजमान [MASK]ै। त[MASK]रिभाषा सूत्र
के अन्तर्गत संस्कृत भी आती है। हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की की वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली संस्कृत से निर्मित है। भारत तथा अन्य देशों के कुछ संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची नीचे दी गयी है- (देख
[MASK][MASK] अन्तर्गत स[MASK]स्कृत भी आ[MASK]ी है। ह[MASK]न्दी एवं अन्य भारतीय भा[MASK]ाओ[MASK] [MASK]ी की वै[MASK]्ञानिक तथा तकनीकी शब्द[MASK]वल[MASK] [MASK]ंस्क[MASK]त से निर्म[MASK]त है। भारत तथ[MASK] अ[MASK]्य देशों के कुछ [MASK]ंस्कृत वि[MASK]्वव[MASK]द[MASK]य[MASK]लयों की सूची नीचे दी गयी ह[MASK]- [MASK]देख
ें, भारत स्थित संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची) यह भी देखिए भारत की भाषाएँ संस्कृत भाषा का इतिहास संस्कृत का पुनरुत्थान संस्कृत के विकिपीडिया प्रकल्प संस्कृत (संस्कृत विकोश:) राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान
ें, भारत स्थित स[MASK]स्कृत विश्वविद्[MASK]ालयों की [MASK]ूची) यह भी [MASK]ेखिए भार[MASK] [MASK]ी भाषाए[MASK] संस्कृत भ[MASK]षा का इतिहा[MASK] सं[MASK]्कृत का पुनरुत[MASK][MASK]ान सं[MASK]्कृ[MASK] के व[MASK]क[MASK]पीडिया प्रकल्[MASK] संस्[MASK]ृत (संस्क[MASK]त व[MASK][MASK]ोश:) राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान
भारतीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर आधारित शोध प्रबन्धों की निर्देशिका (राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान) संस्कृत गूगल समूह हिन्दी-संस्कृत वार्तालाप पुस्तिका (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान) सारस्वतसर्वस्वम् (श
भारतीय विश्वविद्यालयों में संस्कृ[MASK] पर आधारित शोध प्रबन्[MASK]ों की निर्देशिका (राष्ट[MASK][MASK]ीय संस्कृत संस्थान) स[MASK]स्कृ[MASK] गूगल स[MASK]ूह ह[MASK]न्दी-संस्कृ[MASK] वार्तालाप प[MASK]स्तिका (केन्द्[MASK]ीय ह[MASK]न्दी संस्थान[MASK] सारस्वतसर्वस्[MASK]म् (श
ब्दकोश, संस्कृत ग्रन्थों आदि का विशाल संग्रह) संस्कृत के अनेकानेक ग्रन्थ, देवनागरी में वैदिक साहित्य : महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय - पी डी एफ़ प्रारूप, देवनागरी गौडीय ग्रन्थ-मन्दिर पर सहस्रों संस्कृत ग
ब[MASK][MASK]कोश, संस्कृत ग्रन्थों आदि का विशाल [MASK][MASK]ग्रह) संस्कृ[MASK] के अनेकानेक ग्रन्थ, देवनागरी [MASK]ें वै[MASK]िक साहित्य : [MASK]हर[MASK]षि वैदिक विश्वविद्यालय - पी ड[MASK] एफ़ प्रारूप, देव[MASK]ागरी गौड[MASK]य ग्रन्थ-मन्दिर पर [MASK]ह[MASK][MASK]रों स[MASK]स[MASK]क[MASK]त [MASK]
्रन्थ, बलराम इनकोडिंग में ग्रेटिल पर सहस्रों संस्कृत ग्रन्थ, अनेक स्रोतों से, अनेक इनकोडिंग में इंटरनेट सक्रड टेक्स्ट आर्चिव - यहाँ बहुत से हिन्दू ग्रन्थ अंग्रेजी में अर्थ के साथ उपलब्ध हैं। कहीं-कहीं
[MASK]रन[MASK]थ, बलराम इनकोडिंग में [MASK]्रेटिल पर सहस्रों स[MASK]स्कृत ग्रन्थ[MASK] अनेक स्रोतों से, अ[MASK]ेक [MASK]न[MASK]ोडिंग में[MASK][MASK]ंट[MASK][MASK]ेट सक्र[MASK] टेक्स्ट आर्चिव - यहाँ [MASK]हुत से ह[MASK]न्[MASK]ू ग्रन्[MASK] अंग्रेजी में अर्थ के साथ उपलब[MASK]ध हैं। कहीं-कहीं
मूल संस्कृत पाठ भी उपलब्ध है। क्ले संस्कृत पुस्तकालय संस्कृत साहित्य के प्रकाशक हैं; यहाँ पर भी बहुत सारी सामग्री डाउनलोड के लिये उपलब्ध है। मुक्तबोध डिजिटल पुस्तकालय मुक्तबोध इंडोलोजिकल रिसर्च इंस्ट
मूल [MASK]ंस्कृत पाठ भी उपलब्ध है। क्ले संस्[MASK]ृत पुस्तकालय स[MASK]स[MASK]कृत स[MASK]हित्य के प[MASK]रकाशक हैं; यहाँ पर [MASK]ी बहुत सा[MASK]ी सामग्री डाउनलोड के लिये उपलब्ध है। मुक्तबोध डिजिटल पु[MASK]्तकालय[MASK]मु[MASK]्तबोध इंडोलोजिकल रिसर्च इंस्ट
िट्यूट (तंत्र एवं आगम साहित्य पर विशेष सामग्री) आंध्रभारती का संस्कृत कोश गपेषणम् : आनलाइन संस्कृत कोश शोधन ; कई कोशों में एकसाथ खोज ; देवनागरी, बंगला आदि कई भारतीय लिपियों में आउटपुट; कई प्रारूपों मे
िट्यूट (तंत्[MASK] एवं आगम साहित्य पर व[MASK]शेष सामग्री) आंध्रभारती का स[MASK]स्[MASK][MASK]त कोश ग[MASK]ेषण[MASK]् : आनलाइन संस्कृत कोश शोध[MASK] ; कई कोशों में एकसाथ खोज ; देवनागरी, बंगला आदि कई भारत[MASK]य लि[MASK]ि[MASK]ों [MASK]ें आउटपुट; कई प्रारूपों म[MASK]
ं इनपुट की सुविधा संस्कृत-हिन्दी कोश (राज संस्करण) (गूगल पुस्तक ; रचनाकार - वामन शिवराम आप्टे) आप्टे अंग्रेजी --> संस्कृत शब्दकोश - इसमें परिणाम इच्छानुसार देवनागरी, इतरांस, रोमन यूनिकोड आदि में प्राप
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्त किये जा सकते हैं। संक्षिप्त संस्कृत-आंग्लभाषा शब्दकोश (कंसिस संस्कृत-इंग्लिश डाइक्शनरी) - संस्कृत शब्द देवनागरी में लिखे हुए हैं। अर्थ अंग्रेजी में। लगभग १० हजार शब्द। डाउनलोड करके आफलाइन उपयोग के
्त किये जा सकते है[MASK]। संक्षिप[MASK]त संस[MASK]कृत-आंग[MASK][MASK][MASK]ाषा शब्दकोश (कंसिस संस्कृत-इंग्लिश डाइक्शनरी) - संस्कृत शब्द द[MASK][MASK]नागरी में लिखे हुए हैं। अर्थ अंग्रेजी मे[MASK]। [MASK]गभग १० हजार शब[MASK]द। डाउनलोड करके आ[MASK][MASK]ाइन उप[MASK][MASK]ग के
लिये उत्तम ! डाउनलोड योग्य शब्दकोश संस्कृत विषयक लेख तीसरी संस्कृत क्रांति अगर भारत में नहीं आएगी तो फिर कहाँ? (स्वराज्य पत्रिका; ऑस्कर पुजोल ; ५ फरवरी २०१९) संस्कृत - विज्ञान और कंप्यूटर की समर्थ भाष
लिये उत्तम ! ड[MASK]उन[MASK][MASK]ड योग्य शब्दकोश संस्कृत विषयक ले[MASK] ती[MASK]र[MASK] सं[MASK][MASK][MASK]ृत क्रांति अगर भारत मे[MASK] नहीं आएगी तो फिर कहाँ? (स्वराज्य पत्रिका; ऑस्[MASK]र पुजोल ; ५ फरवरी २०१९) [MASK]ंस्क[MASK][MASK] - वि[MASK]्ञान और कंप्यूटर की समर्थ भ[MASK]ष
ा सशक्त भाषा संस्कृत संस्कृत के बारे में महापुरुषों के विचार (अंग्रेजी में) संस्कृत बनेगी नासा की भाषा, पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी संस्कृत साफ्टवेयर एवं उपकरण संस्कृत अनुवाद (गूगल ट्
ा सशक्त भाषा संस्[MASK]ृत [MASK]ंस्कृत के बारे [MASK]ें म[MASK]ापुरुषों के विचार (अंग्रेजी में[MASK] संस्कृ[MASK] बन[MASK]गी [MASK]ासा क[MASK] भाषा, पढ़ने से गणित औ[MASK] वि[MASK]्ञान की [MASK]िक्षा मे[MASK] आसानी संस्कृत साफ्[MASK]वेयर एवं उ[MASK]करण संस[MASK]कृत अनुवाद (गूगल [MASK]्
रान्स्लेट द्वारा) रोमन को यूनिकोड संस्कृत में लिप्यंतरित करने का उपकरण बरह - कम्प्यूटर पर संस्कृत लिखने एवं फाण्ट परिवर्तन का औजार गणकाष्टाध्यायी - संस्कृत व्याकरण का साफ्टवेयर (पाणिनि के सूत्रों पर आ
रान्स[MASK]लेट [MASK][MASK]वारा) रोमन को यूनिको[MASK] संस्कृत में लिप्[MASK]ंतरित कर[MASK]े का उ[MASK]करण[MASK]बरह - कम्प[MASK]यू[MASK]र पर संस्कृत लिखने एवं फाण्ट परिवर्तन का औ[MASK]ार गणकाष्टाध्यायी - संस्क[MASK]त व्याक[MASK]ण क[MASK] साफ्ट[MASK]ेयर (पाणिन[MASK] के सूत्रों पर आ
धारित) संस्कृतटूल्स - संस्कृत टूलबार संसाधनी (संस्कृत टेक्स्ट के विश्लेषण के औजार) संस्कृतम् - संस्कृत के बारे में गूगल चर्चा समूह संस्कृतं भारतस्य जीवनम् नेपाल की भाषाएँ भारत की भाषाएँहिंदू ( ; / ह न
ध[MASK]रित)[MASK][MASK]ंस्कृतटूल्स - स[MASK]स[MASK]कृ[MASK] टू[MASK]बार संसाधनी (संस[MASK]कृत टेक्स्[MASK] के विश्लेषण के औजार) [MASK]ंस्कृतम् - संस्कृत के बारे [MASK]ें गूगल [MASK][MASK]्चा समूह सं[MASK]्कृ[MASK]ं भ[MASK]रतस्य जीवनम् न[MASK]पाल की भाषाएँ भारत [MASK]ी भ[MASK][MASK]ाएँहि[MASK]दू ( ; / ह न
ड उ ज़ / ) वे लोग हैं जो धार्मिक रूप से हिंदू धर्म का पालन करते हैं। ऐतिहासिक रूप से, इस शब्द का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक, सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता क
ड उ ज़ / ) वे लोग हैं [MASK]ो धार्मिक रू[MASK] से ह[MASK]ंदू धर्म [MASK]ा प[MASK][MASK]न [MASK]रते हैं। ऐतिहा[MASK]िक रूप से[MASK] इस श[MASK]्द [MASK]ा उपयोग भारतीय [MASK]पमहाद्व[MASK]प मे[MASK] रहने वाले लोगों [MASK][MASK] [MASK]िए भौग[MASK]लि[MASK], सांस्कृतिक औ[MASK] बाद में धार्म[MASK][MASK] पहच[MASK]नकर्ता क
े रूप में भी किया गया है। "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति पुरानी फ़ारसी से हुई है जिसने इन नामों को संस्कृत नाम सिंधु , सिंधु नदी का जिक्र करते हुए। समान शब्दों के ग्रीक सजातीय शब्द " इंडस " (नदी के लिए) और
े रूप में भी किया गया [MASK]ै। [MASK]हिन्दू" शब्[MASK] की उत्पत्ति पुरानी फ़ारसी से हुई है [MASK][MASK]सने इन नामों को स[MASK]स्कृत नाम सिंधु , सिंध[MASK] नदी का [MASK]ि[MASK]्र [MASK]रते ह[MASK]ए। समान श[MASK]्[MASK]ों के ग्रीक सजातीय शब्द " इंडस " (नद[MASK] के लिए) औ[MASK]
" इंडिया " (नदी की भूमि के लिए) हैं। " हिंदू " शब्द का तात्पर्य सिंधु (सिंधु) नदी के आसपास या उससे परे भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए एक भौगोलिक, जातीय या सांस्कृतिक पहचानकर्ता भी है। १
[MASK] इंडिया " (नदी की [MASK]ूमि के लिए) हैं। " हिंद[MASK] " श[MASK]्[MASK] का तात्पर्य सिं[MASK]ु (सिंधु) नदी के आसपास या उस[MASK]े प[MASK]े भारतीय उपमहा[MASK][MASK]वीप में र[MASK]ने वाले लोगों क[MASK] लिए एक भौगो[MASK]ि[MASK], जातीय या सांस्कृत[MASK]क पहचानकर्[MASK]ा भी है[MASK] [MASK]
६वीं शताब्दी ईस्वी तक, यह शब्द उपमहाद्वीप के उन निवासियों को संदर्भित करने लगा जो तुर्क या मुस्लिम नहीं थे। हिंदू एक पुरातन वर्तनी संस्करण है, जिसका उपयोग आज अपमानजनक माना जाता है। धार्मिक या सांस्कृत
६व[MASK]ं शता[MASK]्दी ईस्वी [MASK][MASK], यह शब्द उपमहाद्वीप के उन नि[MASK]ासियों को संदर्भ[MASK]त कर[MASK]े लगा जो त[MASK]र्क [MASK]ा मुस्लिम नहीं थे। हिंद[MASK] एक पुरातन वर्तनी संस्[MASK]रण है, जिसका उपयोग आज अपमानजनक माना जाता है। [MASK][MASK]र्मिक या सांस्कृत
िक अर्थ में, स्थानीय भारतीय आबादी के भीतर हिंदू आत्म-पहचान का ऐतिहासिक विकास अस्पष्ट है। प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों में कहा गया है कि हिंदू पहचान ब्रिटिश औपनिवेशिक युग में विकसित हुई, या यह मुस्लिम आक्रम
िक [MASK]र्थ में, स्थानी[MASK] भारतीय आबादी के [MASK]ीतर हिंदू आत्म-पहचान का ऐतिहासिक व[MASK]कास अस्पष्ट है। प्रतिस्पर्धी [MASK]िद्धां[MASK]ों में कहा गया है [MASK]ि हिंदू पहचान ब्रि[MASK]िश औपनिवेशिक युग में विकसित हुई, या यह मुस्ल[MASK]म आक्रम
णों और मध्ययुगीन हिंदू-मुस्लिम युद्धों के बाद ८वीं शताब्दी ईस्वी के बाद विकसित हुई होगी। हिंदू पहचान की भावना और हिंदू शब्द १३वीं और 1८वीं शताब्दी के बीच संस्कृत और बंगाली के कुछ ग्रंथों में दिखाई देत
[MASK]ो[MASK] और मध्ययुगीन हि[MASK]दू-मुस्ल[MASK]म युद्धों के बाद ८वीं शताब्दी ईस्व[MASK] के बाद विकसि[MASK] [MASK]ुई [MASK]ोगी[MASK] हिंदू पहचा[MASK] की भावन[MASK] [MASK]र हिंद[MASK] शब्द १३वीं और 1८वीं शताब्दी के [MASK]ीच संस्कृत और बंगाली क[MASK] कुछ ग्रंथों में दिखाई देत
ा है। १४वीं और 1८वीं सदी के भारतीय कवियों जैसे विद्यापति, कबीर, तुलसीदास और एकनाथ ने हिंदू धर्म (हिंदू धर्म) वाक्यांश का इस्तेमाल किया और इसकी तुलना तुरक धर्म ( इस्लाम ) से की। ईसाई भिक्षु सेबेस्टियाओ
ा [MASK]ै। १४[MASK]ीं और [MASK]८वीं सदी [MASK]े भारतीय [MASK][MASK][MASK]य[MASK]ं जैसे वि[MASK]्याप[MASK]ि, कबीर, तुलसीदास औ[MASK] एकन[MASK]थ ने हिंदू धर्म (हिंदू [MASK][MASK]्म) वाक्यांश का इस्तेमाल किया और इसकी तुलना तुरक धर्म ( इस्लाम ) से की। ईसाई भिक्षु [MASK]ेबेस्टिया[MASK]
मैनरिक ने १६४९ में एक धार्मिक संदर्भ में 'हिंदू' शब्द का इस्तेमाल किया था। 1८वीं शताब्दी में, यूरोपीय व्यापारियों और उपनिवेशवादियों ने सामूहिक रूप से भारतीय धर्मों के अनुयायियों को हिंदू के रूप में स
मैनरिक ने १६४९ में एक धार्मिक स[MASK][MASK]र्भ में 'हिंदू' [MASK]ब[MASK]द क[MASK] [MASK]स्तेमाल किया था। 1८वीं शत[MASK]ब[MASK]दी में, यूरोप[MASK]य [MASK]्[MASK]ा[MASK]ारियों और [MASK]प[MASK]िव[MASK][MASK]वाद[MASK]यों ने सामूहिक रूप [MASK]े भारत[MASK]य [MASK][MASK]्मों के अनुया[MASK]ियों क[MASK] हिंद[MASK] के रूप में स
ंदर्भित करना शुरू कर दिया था। तुर्क, मुगल और अरब जैसे समूहों के लिए मुसलमानों के विपरीत, जो इस्लाम के अनुयायी थे। १९वीं सदी के मध्य तक, औपनिवेशिक प्राच्यवादी ग्रंथों ने हिंदुओं को बौद्ध, सिख और जैन से
ंदर्भित करना शुरू कर दिया था। तुर्क[MASK] मुगल और अरब जैसे समूहों के [MASK]िए [MASK]ुसलमानों के विपरी[MASK], जो इस्लाम के अनुयायी थे। १९वीं सदी के मध्य [MASK]क, औपनिवेशिक प्राच्यवादी ग्रंथों ने हिंदुओं को बौद्ध, सि[MASK] औ[MASK] जैन [MASK]े
अलग कर दिया, लेकिन औपनिवेशिक कानून लगभग २०वीं सदी के मध्य तक उन सभी को हिंदू शब्द के दायरे में मानते रहे। विद्वानों का कहना है कि हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के बीच अंतर करने की प्रथा एक आधुनिक घटना ह
अलग क[MASK] [MASK]िया, ले[MASK]िन औपनिवेशिक [MASK]ानून ल[MASK]भग २०वीं सदी [MASK]े [MASK]ध[MASK]य तक उन सभी को हिंदू शब्[MASK] के दायर[MASK] में मानते रहे। [MASK]िद्[MASK]ा[MASK]ों का कहना है कि हिंदू, ब[MASK]द्ध, जैन [MASK]र सिखों के बीच अंतर करने की प्रथा एक आधुन[MASK]क घटना ह
ै। लगभग १.२ परअरब, ईसाई और मुसलमानों के बाद हिंदू दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं। २0११ की भारतीय जनगणना के अनुसार, हिंदुओं का विशाल बहुमत, लगभग ९६६ मिलियन (वैश्विक हिंदू आबादी का ९४.३%) भा
[MASK]।[MASK]लगभग १.२ परअर[MASK], ईसा[MASK] और म[MASK][MASK]लमान[MASK][MASK] के ब[MASK]द हिंदू द[MASK]निया का [MASK]ीसरा स[MASK]से बड[MASK]ा धार्मिक समूह हैं। [MASK]0११ की भ[MASK]रतीय जनगणना के अनुसार, [MASK]िंदुओं का विशाल बहुमत[MASK] ल[MASK]भग ९६६ मिलि[MASK]न [MASK]वैश्विक हिंदू आबादी का ९४.३%) भा
रत में रहता है । भारत के बाद, सबसे अधिक हिंदू आबादी वाले अगले नौ देश घटते क्रम में हैं: नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त राज्य अमेरिका, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइट
रत में रहता है । भारत के बाद, [MASK][MASK]से अधिक हिंदू आबादी वाले अगले नौ देश घटते क्र[MASK] में ह[MASK]ं: नेप[MASK]ल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, प[MASK]किस[MASK]तान, श्रीलंका, संयुक्त रा[MASK][MASK]य अमे[MASK]िका, मलेशिया, संयुक[MASK]त [MASK]र[MASK] अमीरात और [MASK]ूनाइट
ेड किंगडम । ये विश्व की ९९% हिंदू आबादी के लिए जिम्मेदार हैं, और दुनिया के शेष देशों में कुल मिलाकर लगभग ६ मिलियन हिंदू थे । हिंदू शब्द की उत्पत्ति हिन्दू शब्द एक पर्यायवाची शब्द है। यह हिंदू शब्द इंड
ेड किंगडम । ये विश्व की ९९% हिंदू आबाद[MASK] क[MASK] ल[MASK]ए जिम्मेदा[MASK] [MASK]ैं, और दुन[MASK]या के शेष देशो[MASK] में कुल मिलाकर लगभग ६ मिलियन हिं[MASK][MASK] थे [MASK] हिंदू शब्द की उ[MASK]्पत्ति[MASK]ह[MASK]न्दू शब्द एक पर्याय[MASK]ाची शब्द है। यह हिंदू शब्द इ[MASK]ड
ो-आर्यन और संस्कृत शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है "पानी का एक बड़ा शरीर", जो "नदी, महासागर" को कवर करता है। इसका उपयोग सिंधु नदी के नाम के रूप में किया गया था और इसकी सहायक नदियों को भी संदर्भित
ो-आर्यन और संस्कृत शब्द [MASK]िंधु स[MASK] बना है, जिसका अर्थ है "पा[MASK]ी का एक ब[MASK]़[MASK] शरीर[MASK], जो "न[MASK]ी, महासागर" क[MASK] कवर करता है। इसका उपयोग सिंध[MASK] नदी के नाम के [MASK]ूप में किया [MASK]या थ[MASK] और इसकी सहायक नदियों को भी संदर्भित
किया गया था। गेविन फ्लड के अनुसार, वास्तविक शब्द ' हिन्दू ' सबसे पहले आता है, "सिंधु (संस्कृत: सिंधु ) नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए एक फ़ारसी भौगोलिक शब्द", विशेष रूप से डेरियस प्रथम के ६ठी शताब्
किया ग[MASK]ा था। गेविन [MASK]्ल[MASK] के अनुसार, व[MASK][MASK]्तवि[MASK] श[MASK]्द ' हिन्दू ' सबसे पहले आता है, "सिंधु (संस्कृत: सिं[MASK]ु ) नदी क[MASK] पार रहन[MASK] वाले ल[MASK]गों के लिए एक फ़ारसी भौगोलिक [MASK]ब्द", वि[MASK]ेष रूप से डेरियस प[MASK]रथम [MASK]े ६ठी श[MASK]ाब्
दी ईसा पूर्व के शिलालेख में पंजाब क्षेत्र, जिसे वेदों में सप्त सिंधु कहा जाता है, ज़ेंड अवेस्ता में हप्त हिंदू कहा जाता है। डेरियस प्रथम के ६वीं शताब्दी ईसा पूर्व के शिलालेख में उत्तर-पश्चिमी भारत का
दी ई[MASK]ा पूर्व के शिलालेख में [MASK]ंजाब क्षेत्र, [MASK]िस[MASK] वेद[MASK]ं में सप्त [MASK]िं[MASK]ु [MASK]हा जाता ह[MASK], ज़ेंड अवे[MASK][MASK]ता मे[MASK] हप्[MASK] हि[MASK]दू कहा जाता है। डेरियस प्रथम के ६वीं श[MASK]ाब्द[MASK] ईसा पू[MASK][MASK][MASK] [MASK]े शिलालेख में उत[MASK]तर-पश[MASK]चिमी भारत का
जिक्र करते हुए हि[एन]डुश प्रांत का उल्लेख है। भारत के लोगों को हिंदूवान कहा जाता था और ८वीं शताब्दी के पाठ चचनामा में हिंदवी का इस्तेमाल भारतीय भाषा के लिए विशेषण के रूप में किया गया था। डीएन झा के अन
जिक्र करते हुए ह[MASK][एन]डुश प्रांत का उल्लेख [MASK]ै। [MASK][MASK]रत के लोगो[MASK] को हिंदूवान कहा जाता था औ[MASK] ८वीं शताब्दी के पाठ चचन[MASK]मा में हि[MASK][MASK]वी का इस्तेमाल भारतीय भाषा के लिए विशेषण के रूप म[MASK]ं क[MASK]या गया [MASK]ा। डीएन झा के अन
ुसार, इन प्राचीन अभिलेखों में 'हिंदू' शब्द एक जातीय-भौगोलिक शब्द है और यह किसी धर्म का संदर्भ नहीं देता है। धर्म के अर्थों के साथ 'हिंदू' के सबसे पहले ज्ञात अभिलेखों में बौद्ध विद्वान जुआनज़ैंग द्वारा
ुसार, इन प्र[MASK]चीन अभिलेखों में 'हिंदू' शब्द एक जातीय-भौगोल[MASK]क शब्द है [MASK][MASK] यह किसी धर्म का संदर्भ [MASK]हीं देता है। धर्म के अर्थों के साथ 'हिंदू' के सबस[MASK] पहले ज्ञात अभिलेखो[MASK] में बौद्ध व[MASK]द्वान जुआन[MASK]़ैंग द[MASK]वारा
लिखित ७वीं शताब्दी ई.पू. का चीनी पाठ 'रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन्स''' शामिल हो सकता है। जुआनज़ैंग लिप्यंतरित शब्द इन-टू का उपयोग करता है जिसका अरविंद शर्मा के अनुसार "अर्थ धार्मिक में बहता है"। जबक
लिखित ७वीं श[MASK][MASK]ब्दी ई.पू[MASK] का [MASK]ीनी प[MASK][MASK] 'रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न [MASK][MASK]जन्स''' शामि[MASK] ह[MASK] सकता [MASK]ै। [MASK]ुआनज[MASK]ै[MASK]ग लिप्यंत[MASK]ित श[MASK]्द इन-टू का उपयोग करता ह[MASK] ज[MASK]सका अरविं[MASK] [MASK]र्मा के अनुसार "अर्थ धार्मिक में [MASK]हत[MASK] [MASK]ै"। जबक
ि जुआनज़ैंग ने सुझाव दिया कि यह शब्द चंद्रमा के नाम पर रखे गए देश को संदर्भित करता है, एक अन्य बौद्ध विद्वान इत्सिंग ने इस निष्कर्ष का खंडन करते हुए कहा कि इन-टू देश का सामान्य नाम नहीं है। अल-बिरूनी
ि जुआनज़ैंग ने सुझाव द[MASK]या कि यह शब्द चंद्रमा के नाम पर रखे गए [MASK][MASK]श क[MASK] संद[MASK]्भित करता है, एक अन[MASK][MASK] बौद्[MASK] वि[MASK]्[MASK]ान इत्सिंग ने इस [MASK]िष्कर्ष [MASK]ा खंडन करते हुए कहा कि इन-टू देश का सामान्[MASK] नाम [MASK]हीं है[MASK] अ[MASK]-बिरूनी
के ११वीं शताब्दी के ग्रंथ तारिख अल-हिंद, और दिल्ली सल्तनत काल के ग्रंथों में 'हिंदू' शब्द का उपयोग किया गया है, जहां इसमें बौद्ध जैसे सभी गैर-इस्लामिक लोग शामिल हैं, और "एक क्षेत्र" होने की अस्पष्टता
के [MASK]१वीं शताब्दी के ग्रंथ तारिख अल-हि[MASK]द, और दिल्ली सल्[MASK]नत काल के ग्[MASK]ंथों में 'हिंदू' शब्द [MASK]ा उप[MASK]ोग [MASK]िया गय[MASK] [MASK]ै, जहा[MASK] इस[MASK]ें ब[MASK][MASK]्ध जैसे सभी गैर-[MASK]स[MASK]लाम[MASK]क लोग शा[MASK]िल हैं[MASK] औ[MASK] "एक क्षेत्र[MASK] होने की अस्पष्टता
बरकरार रखी गई है। या एक धर्म"। भारतीय इतिहासकार रोमिला थापर के अनुसार, 'हिंदू' समुदाय अदालत के इतिहास में मुस्लिम समुदाय के अनाकार 'अन्य' के रूप में आता है। तुलनात्मक धर्म विद्वान विल्फ्रेड केंटवेल स्
बरकरार रखी गई ह[MASK]। या एक [MASK]र्म"। भारतीय [MASK]ति[MASK]ासकार रोमिला था[MASK]र [MASK][MASK] अनुसार, '[MASK]ि[MASK]दू' स[MASK]ुदाय अ[MASK]ालत के [MASK]त[MASK][MASK]ास में मुस्लिम स[MASK]ुदाय के अनाकार 'अन[MASK]य' के रूप में आ[MASK]ा है। तुलनात्मक [MASK]र्म विद[MASK]वान विल्फ्रेड [MASK]ें[MASK]वेल स्
मिथ कहते हैं कि 'हिंदू' शब्द ने शुरुआत में अपना भौगोलिक संदर्भ बरकरार रखा: 'भारतीय', 'स्वदेशी, स्थानीय', वस्तुतः 'मूल'। धीरे-धीरे, भारतीय समूहों ने खुद को और अपने "पारंपरिक तरीकों" को आक्रमणकारियों से
मिथ कहते ह[MASK]ं कि 'हिंदू' शब्द ने [MASK]ुरुआत में अपना भौगोलि[MASK] संदर्भ बरक[MASK]ार र[MASK]ा: 'भारतीय', '[MASK]्वदेशी, स्थानीय', वस्तु[MASK]ः 'मूल[MASK]। धी[MASK]े-धीरे, भारतीय समूह[MASK]ं ने [MASK]ुद को और अपने "पारंपरिक [MASK]रीकों" को आक्रमणकारियों से
अलग करते हुए, इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया। ११९२ ई. में मुहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार के बारे में चंद बरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो पाठ "हिंदुओं" और "तुर्कों" के संदर्भ से भर
अलग करते ह[MASK]ए, इस शब्द का उपयो[MASK] करना श[MASK]रू कर दिया। ११९२ ई. में मुह[MASK]्[MASK]द गोरी के [MASK]ाथो[MASK] पृथ्वी[MASK]ाज चौहा[MASK] [MASK]ी हार के बारे में [MASK]ंद ब[MASK]दाई द्वारा लिखित प[MASK]थ्वीराज रासो पाठ "हिंदुओं" और "तुर्कों" क[MASK] स[MASK]दर्भ से भर
ा है, और एक स्तर पर कहता है, "दोनों धर्मों ने अपनी घुमावदार तलवारें;" हालाँकि, इस पाठ की तारीख स्पष्ट नहीं है और अधिकांश विद्वान इसे नवीनतम मानते हैं। इस्लामी साहित्य में, 'अब्द अल-मलिक इसामी की फ़ारस
ा है, और एक स्त[MASK] पर कहत[MASK] है[MASK] "द[MASK]नों धर्मों ने अपनी [MASK]ु[MASK]ा[MASK]दा[MASK] [MASK]लवारें;" हालाँ[MASK]ि, इस पाठ की तारी[MASK] स्पष्ट नहीं है और अधि[MASK][MASK]ंश विद्वान इसे नवी[MASK]तम म[MASK]नत[MASK] हैं। इस[MASK]लाम[MASK] साहित्य में[MASK] 'अब[MASK]द अल-मलिक इसामी की फ[MASK]ारस
ी कृति, फ़ुतुहु-सलातीन, जिसकी रचना १३५० में बहमनी शासन के तहत दक्कन में की गई थी, जातीय-भौगोलिक अर्थ में भारतीय के अर्थ में ' हिन्दी ' शब्द का उपयोग करती है और यह शब्द ' हिन्दू ' का अर्थ हिन्दू धर्म क
[MASK] कृति, फ[MASK]ुतुहु-सलात[MASK]न, जि[MASK]की रचना १३५० [MASK]ें बह[MASK]नी [MASK]ासन के तहत [MASK]क्[MASK][MASK] में की गई थी, जातीय-भौ[MASK][MASK]लिक [MASK]र[MASK]थ में भारतीय के अर्थ में ' हिन[MASK]दी [MASK] शब्द का उ[MASK]योग [MASK]रती ह[MASK] औ[MASK] यह शब्द ' ह[MASK]न[MASK]दू ' का अ[MASK]्थ हिन्दू ध[MASK]्म [MASK]
े अनुयायी के अर्थ में 'हिन्दू' है। कवि विद्यापति की कृतिलता (१३८०) में हिन्दू शब्द का प्रयोग एक धर्म के अर्थ में किया गया है, यह हिंदुओं की संस्कृतियों के विपरीत है और एक शहर में तुर्क (मुसलमान) और नि
े अनु[MASK]ा[MASK]ी के अर्थ में 'हिन्दू' है। कवि विद्यापति की [MASK]ृतिलता (१३८०) [MASK]ें हिन्[MASK]ू शब्द का प्र[MASK]ोग एक धर्म के अर्थ में [MASK]िया ग[MASK]ा है, [MASK]ह हिंदुओं की संस्कृति[MASK][MASK]ं के [MASK]िपरीत है [MASK]र एक शहर में तुर[MASK]क [MASK]मुसलमान) [MASK][MASK] नि
ष्कर्ष निकाला कि "हिंदू और तुर्क एक साथ रहते हैं; प्रत्येक दूसरे के धर्म ( धम्मे ) का मज़ाक उड़ाता है।" यूरोपीय भाषा (स्पेनिश) में धार्मिक संदर्भ में 'हिंदू' शब्द का सबसे पहला उपयोग १६४९ में सेबस्टियो
ष्क[MASK]्ष [MASK]िकाला कि "हिं[MASK]ू और तुर[MASK][MASK] एक साथ रहते हैं; प्[MASK]त्येक दूसरे [MASK]े धर्म ( धम्मे ) का मज[MASK][MASK]क उड[MASK]ाता है।" यूरोपीय भाषा (स्पेनिश) में धा[MASK]्मिक संदर्[MASK] में 'हिंदू' शब[MASK]द क[MASK] सब[MASK]े प[MASK]ल[MASK] उपय[MASK]ग १६४९ म[MASK]ं [MASK]ेब[MASK]्टियो
मैनरिक द्वारा किया गया प्रकाशन था। भारतीय इतिहासकार डीएन झा के निबंध "लुकिंग फॉर ए हिंदू आइडेंटिटी" में वे लिखते हैं: "चौदहवीं शताब्दी से पहले किसी भी भारतीय ने खुद को हिंदू नहीं बताया" और "अंग्रेजों
मैनरिक द्[MASK]ा[MASK][MASK] किया ग[MASK]ा प्[MASK]काशन था। भारत[MASK]य इत[MASK]हासकार डी[MASK]न झा के निबंध "[MASK]ुकि[MASK]ग फॉर ए हिंदू आइडेंटिटी" में व[MASK] लिखते हैं: "चौदहव[MASK]ं शताब्[MASK]ी से पहले कि[MASK]ी भी भारतीय न[MASK] खुद को हिंदू नहीं बताया" और "अंग्रेजों
ने 'हिंदू' शब्द भारत से उधार लिया, दिया। इसने एक नया अर्थ और महत्व दिया, [और] इसे हिंदू धर्म नामक एक संशोधित घटना के रूप में भारत में पुनः लाया।" १८वीं शताब्दी में, यूरोपीय व्यापारियों और उपनिवेशवादि
[MASK]े 'हिंदू' शब्द भारत से उधार लिया, दिय[MASK][MASK] इसने एक नया अर्थ और महत्[MASK] दिय[MASK], [और] इसे हिंदू धर्म [MASK]ा[MASK]क एक संशोधित घ[MASK]ना क[MASK] रूप में भारत में पु[MASK]ः लाया।" १८वी[MASK] शता[MASK]्दी में[MASK] यू[MASK]ोपीय व्यापारियों और उप[MASK]िवेशवादि
यों ने भारतीय धर्मों के अनुयायियों को सामूहिक रूप से हिंदू कहना शुरू कर दिया। 'हिंदू' के अन्य प्रमुख उल्लेखों में १४वीं शताब्दी में मुस्लिम राजवंशों के सैन्य विस्तार से लड़ने वाले आंध्र प्रदेश राज्यों
यों [MASK]े भ[MASK]रतीय धर्मों [MASK][MASK] अनुया[MASK]ियों को स[MASK]मूह[MASK]क रूप से हिंदू कहना शुरू कर [MASK]ि[MASK]ा। 'हिंदू' के अ[MASK]्य प्रमुख उल्ल[MASK]खों में १४वीं शताब्दी [MASK]ें मुस्लिम राजवंशों [MASK]े सैन्य वि[MASK]्तार से लड़ने वाले आंध्र प्रदेश राज्यों