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[ "दूसरी पारी के हीरो", "एक सर्वे में सामने आया है कि 50 और उससे अधिक आयु के लगभग 64 प्रतिशत वरिष्ठ वित्तीय स्वतंत्रता, मानसिक शांति और स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखने के लिए रिटायरमेंट के बाद भी काम करना जारी रखना चाहते हैं। तभी तो रिटायरमेंट के बाद नीट क्वालिफाई करके कोई एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है, तो कोई एवरेस्ट फतह करके या अपना स्टार्टअप शुरू करके सोशल मीडिया पर वाहवाही पा रहा है। जज्बे से भरपूर कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी बता रही हैं स्वाति गौड़" ]
<p>दिन गए जब रिटायरमेंट की जिंदगी को प्रोडक्टिव होने की बजाय आराम से जोड़ा जाता था। आंकड़े बताते हैं कि नौकरी के बाजार में लौटने वाले सेवानिवृत्त लोगों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। 2016 में रिटायरमेंट के बाद दोबारा से कोई काम करने वालों की संख्या जहां 1 था, वहीं 2018 में 5 तक पहुंच गया। मतलब, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, स्वतंत्रता की जरूरत और समाज को वापस देने की इच्छा के साथ, बुजुर्ग अपनी सेवानिवृत्ति को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। वो इसे दूसरी पारी के रूप में देख रहे हैं। अंतरा सीनियर लिविंग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 64 प्रतिशत वरिष्ठ वित्तीय स्वतंत्रता, मानसिक शांति और स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखने के लिए रिटायरमेंट के बाद भी काम करना जारी रखना चाहते हैं। </p><p><b>शौक को बना लिया स्टार्टअप</b></p><p>‘शी हू निट्स’ (She Who Knit) फेसबुक पेज पर, अगर आप जाएं तो आपको वहां फैशनेबल ऊनी कपड़ों की एक से एक वैरायटी देखने को मिलेगी। पर शायद आपको पता न हो कि इस स्टार्टअप के पीछे युवा नहीं, बल्कि रिटायर हो चुकीं 66 वर्षीय मधु मेहरा का हाथ है। मेहरा कहती हैं, ‘मुझे बुनाई का शौक था, और इस शौक ने अब मुझे सेवानिवृत्ति के बाद व्यस्त बना दिया है। अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। कई बार मेरे स्टॉल पर आने वाले कुछ युवा आश्चर्यचकित होते हैं कि इस उद्यम के पीछे एक वरिष्ठ व्यक्ति का दिमाग है।’ </p><p>पिछले पांच वर्षों में 2,000 से अधिक उत्पादों को बुनने वाली मधु मेहरा नए जमाने के वरिष्ठ नागरिक का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जो घर से दूर होने के बजाय नई शुरुआत करने के लिए सेवानिवृत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं। </p><p><b>कुछ नया सीखने का समय</b></p><p>बंगलुरू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर सी.टी. कुरियन, लगभग दो साल पहले रिटायर हुए थे। उनकी बेटियां विदेश में थीं, लेकिन वह वहां नहीं जाना चाहते हैं। इसलिए वे अपनी पत्नी के साथ केरल के एर्नाकुलम चले गए। अब उनका कुछ समय लाइबेरी में पढ़ने में बीतता है, तो सप्ताह में दो दिन वे एक क्राफ्ट वर्कशॉप में भाग लेकर आर्टिफिशियल फूल बनाना सीखते हैं। वे कहते हैं कि यह आकर्षक और एक नई मजेदार गतिविधि है, जिसमें मुझे मजा आ रहा है।</p><p><b>एंटरप्रेन्योर बनी बर्फी वाली दादी </b></p><p>धंधे में मंदी और पैसों की तंगी का रोना रोने वाले युवाओं को 94 वर्षीय हरभजन कौर से प्रेरणा जरूर लेनी चाहिए। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि चंडीगढ़ की रहने वाली इस दादीजी ने 90 साल की उम्र में बेसन की बर्फी बनाने का बिजनेस शुरू किया था, जो आज एक ब्रांड बन चुका है। वह कहती हैं, ‘नब्बे साल की होने के बाद एक दिन मुझे यह अहसास हुआ कि मैंने पूरी जिंदगी बस यूं ही निकाल दी और एक पैसा तक नहीं कमाया। और इसी सोच ने मेरे अंदर के हुनर को बिजनेस में तब्दील करने के लिए प्रेरित किया। ’ बर्फी के साथ-साथ वे अचार और चटनी वगैरह भी बेचने लगी हैं और ये सब होता है बिना किसी दुकान के, क्योंकि वे सिर्फ ऑर्डर मिलने के बाद ही डिलीवरी करती हैं।</p><p><b>68 की उम्र में बनीं पर्वतारोही</b></p><p>उम्र 68 साल। जज्बा एवरेस्ट फतह करने का। मूल रूप से कर्नाटक की रहने वाली माला होन्नाट्टी, जो अब गुरुग्राम में रहती हैं, अपने सपने साकार करने में लगी हैं। उनका कहना है कि स्पोर्ट्स के लिए कोई उम्र नहीं होती। अगर मन में कुछ ठान लिया जाए, तो जब तक जिंदगी है उसे पूरा करते रहना चाहिए। माला ने 28 साल तक बैंकिंग सेक्टर में काम करने के बाद अपने खेल के शौक पर ध्यान देना शुरू किया, जो सामाजिक मान्यताओं के कारण युवावस्था में कहीं पीछे छूट गया था। हालांकि नौकरी करते हुए भी उन्होंने अपने शौक को जगाए रखा और मैराथन में भाग लेती रहीं। पर रिटायरमेंट के बाद जब मौका मिला, तो एवरेस्ट फतह करने निकल पड़ीं और इसमें कामयाब भी र्हुईं। वह मैराथन धावक और पर्वतारोही ही नहीं हैं, बल्कि बतौर फिटनेस व कॉरपोरेट ट्रेनर भी एक्टिव हैं। आश्चर्य तो है ही कि 68 की उम्र में, वह अपने चौथे करियर की बात कर रही हैं।</p><p><b>सत्तर साल में बनेंगे डॉक्टर</b></p><p>भारत में ऐसा पहली बार हुआ, जब कोई 64 साल की उम्र में नीट क्वालिफाई करके एमबीबीएस में एडमिशन लिया है। सुनने में बेशक ये सच न लगे, पर ओडिशा के जय किशोर प्रधान, जो सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं, ने यह कर दिखाया है। प्रधान एमबीबीएस कोर्स पूरा होने तक 70 वर्ष के हो जाएंगे। इस पर वह कहते हैं,‘उम्र मेरे लिए सिर्फ एक संख्या है। एमबीबीएस करना मेरा कोई व्यावसायिक इरादा नहीं है। मैं तब तक लोगों की सेवा करना चाहता हूं जब तक मैं जीवित हूं।’ इसी तरह पढ़ाई से जी चुराने वालों को 99 वर्षीय कार्त्यायनी अम्मा को सलाम करना चाहिए। केरल में साक्षरता मिशन में 98 फीसदी अंक लेकर शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाली ये दादी अब कम्प्यूटर सीखना चाहती हैं।</p><p><b>वो</b></p>
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[ "मन के साधे सब सधे", "कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण फिर से बढ़ा है। लोगों को डर है कि कहीं पहली जैसी स्थिति फिर से न हो जाए। लॉकडाउन का डर और भविष्य की चिंता से मन अशांत है। ऐसे समय में मन को कैसे रखें शांत, बता रही हैं हमारी विशेषज्ञ " ]
<p>म जीवन में आनंद का अनुभव केवल तभी ही कर सकते हैं, जब हमने अपने मन को नियंत्रित करना सीख लिया हो। जीवन में शांति को कायम रखना, कोई कठिन काम नहीं है। यह तो मन को शांत रखने और आगे की जिंदगी जीने की एक सहज प्रक्रिया है। पेश है शांति और आनंद की इस सहज अवस्था को प्राप्त करने के कुछ शक्तिशाली सिद्धांत-</p><p><b>क्षमा करें और आगे बढ़ें</b></p><p>यह मन की शांति के लिए सबसे शक्तिशाली तरीका है। हम अकसर उन व्यक्तियों के लिए अपने दिल के अंदर नकारात्मक भावनाओं का पोषण करते हैं, जिन्होंने हमें अपमानित किया या नुकसान पहुंचाया। ऐसा करके हम अपना ही सुख-चैन खोते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम क्षमा की कला को अपने अंदर जागृत करें। ऐसा करके हम अपने दिमाग को शांत रखने में कामयाब हो सकते हैं। याद रखें, हर किसी को अपने कर्म का परिणाम मिलता ही है। इसलिए हमें न्याय की चिंता किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए। </p><p><b>अपने काम से काम रखें</b></p><p>हम में से अधिकांश लोग अन्य लोगों के मामलों में अकसर हस्तक्षेप करके अपने लिए समस्याएं पैदा करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि किसी तरह हमने खुद को आश्वस्त किया है कि हमारा तर्क सही तर्क है, और जो लोग हमारे सोचने के तरीके के अनुरूप नहीं हैं, उनकी आलोचना की जानी चाहिए और उन्हें सही दिशा में लाया जाना चाहिए। इस प्रकार हम दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं। लेकिन हमारी ओर से इस तरह का रवैया बहुत गलत है। हमें बिना पूछे दूसरों के काम में हस्तक्षेप करने की अपनी आदत को दूर करना चाहिए। </p><p>याद रखें कोई भी दो व्यक्ति एक ही तरह से सोच या कार्य नहीं कर सकते हैं। हर कोई उसी के अनुसार कार्य करता है, जो उसके भीतर से प्रेरित होता है। यदि हम अपने विचारों को दूसरों के साथ साझा करना चाहते हैं, तो हमें इसे विनम्रता के साथ करना चाहिए, न कि दबाव बनाकर। इस तरह से हमारे पास मन की शांति होगी।</p><p><b>आप जो संभाल सकते हैं</b></p><p>अकसर हम जितनी सफलता से काम कर पाते हैं, उससे कहीं अधिक जिम्मेदारियां ले लेते हैं। जबकि हमें अपनी सीमा पता होनी चाहिए। अतिरिक्त या अनावश्यक कार्यभार चिंता और तनाव का कारण बन सकता है। हम अपने अहंकार को संतुष्ट करके मन की शांति प्राप्त नहीं कर सकते। यह हमें अधिक बेचैन और तनावग्रस्त बना देगा। इसलिए अपने विचारों को व्यवस्थित करने और अपने कार्यों को प्राथमिकता देने का प्रयास करें। जो आप हाथ में लेते हैं, उसे समय पर पूरा करें। इससे मन की शांति सुनिश्चित होगी।</p><p><b>पछतावे में न जिएं</b></p><p>जो कुछ हुआ है, उसके लिए बुरा महसूस न करें। इस तरह दिन, सप्ताह, महीने और साल इन भावनाओं में बर्बाद हो सकते हैं कि ‘मैंने ऐसा क्यों किया या मैंने ऐसा क्यों नहीं किया?’ याद रखें, आपने अपनी जागरूकता के स्तर के अनुसार जो किया, वह किया। इसलिए अफसोस और अपराधबोध में न रहें। </p><p>ध्यान रखें कि यूनिवर्स हमेशा हमारा मार्गदर्शन और सुरक्षा करने के लिए तैयार है। इसलिए अपने समय और जीवन को महत्व दें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अतीत में विफल रहे होंगे। हम आगे अपनी गलतियों को सुधार सकते हैं और अगली बार सफल हो सकते हैं। बस बैठे रहने और चिंता करने से कुछ नहीं होगा। अपनी गलतियों से सीखें, लेकिन अतीत से अटके न रहें। अफसोस न करें। सोचें, जो भी हुआ, हमारे अपने भले के लिए हुआ। <b>(हो’ओपोनोपोनो क्षमाशीलता पर </b></p><p><b>आधारित एक प्राचीन जीवन दर्शन है)</b></p><p><b>ह</b></p>
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[ "हालिया शोध से पता चला है कि जब हमारी आंखें किसी रंग से जुड़ती है, तो हमारा दिमाग अलग-अलग रसायन छोड़ता है, जो हमें शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। या यूं कहें कि रंग हमारे मूड को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं" ]
<p><b>क्या आपने </b>कभी सोचा है कि रंग हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं? कितनी आसानी से वे हमारे मूड को बदल सकते हैं, हमारी मांसपेशियों को कमजोर बना सकते हैं या हमारी नींद को कम कर सकते हैं। शोध में भी यह बात सामने आ चुकी है कि रंग एक शक्तिशाली कम्युनिकेशन टूल हैं, जो एक्शन, मूड और हमारी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।</p>
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[ "शहरीकरण ने विकास की रफ्तार भले ही तेज की हो, लेकिन जिस तरह हरे-भरे जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए, उससे पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचा है। ऐसे में कुछ लोग हैं, जो हरियाली को बचाने की कवायद में जुटे हैं। दिल्ली के पीपल बाबा भी इसकी मिसाल बन चुके हैं", "पेड़ों और पर्यावरण के प्रहरी बने पीपल बाबा" ]
<p><b>फौजी परिवार</b> में जन्म हुआ पीपल बाबा यानी स्वामी प्रेम परिवर्तन का। वैसे उनका नाम आजाद है। पिता फौज में डॉक्टर थे, ब्रिगेडियर रिटायर हुए। यह 1976 के आसपास की बात है, जब पिता की पोस्टिंग पुणे में थी और उनकी नानी साथ रहा करती थीं। वह प्रकृति प्रेमी थीं, उन्हें खेती-किसानी से जुड़ी ढेरों कहानियां सुनाया करती थीं। इस तरह महज 5-6 साल की उम्र में ही हरियाली के संस्कार मिल गए। पीपल बाबा बताते हैं , ‘मेरे जीवन में कई लोगों का प्रभाव रहा, जिनमें सबसे प्रमुख हैं मेरी नानी और मेरी टीचर मिसेज विलियम्स। मेरी टीचर श्रीलंका की थीं, उनकी पैदाइश ही जंगलों में हुई थीं और वहां उन्होंने हजारों पेड़ लगाए थे। वह इस तरह पशु-पक्षियों की आवाजें निकालतीं कि पक्षी आकर उनके पास बैठ जाते थे। वह कहती थीं कि डॉक्टर-इंजीनियर तो बहुत बन जाएंगे, लेकिन प्रकृति के बारे में कौन सोचेगा? जबकि हमारी जिंदगी जंगलों से शुरू होकर पेड़ों पर ही खत्म होती है।’</p><p>नानी और टीचर का ही प्रभाव था कि आजाद ने एक दिन नानी से 25 पैसे लिए और नर्सरी जाकर नौ पौधे ले आए। पुणे के कंटोनमेंट जोन में आज भी ये पेड़ खड़े हैं। यहां से शुरुआत हो गई। पढ़ाई में अच्छे थे, टॉपर रहे। फौजी पिता को लगता था कि कुछ करें लेकिन उनके मन में प्रकृति ही बस गई थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया। नानी ने समझाया कि टीचिंग करो, इसमें अपने मकसद के लिए समय मिल सकेगा। पीपल बाबा कहते हैं, ‘मैं अपने जीवनयापन के लिए पढ़ाता हूं। कुछ बच्चे मुझसे कोचिंग भी लेते हैं, इससे मेरा खर्च निकल आता है। जीवन में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब मैग्सैसे विजेता माइक पांडे ने मुझसे संपर्क किया। 2010 में अनसंग हीरोज नाम से एक अवॉर्ड समारोह हुआ, जहां जॉन अब्राहम के हाथों मुझे पुरस्कार मिला। मैंने ‘गिव मी ट्रीज’ के नाम से एक ट्रस्ट भी बनाया है। मैं किसी से पैसा नहीं लेता, लेकिन कृषि के सामान ले लेता हूं। स्कूल, यूनिवर्सिटी, कॉलेज के अलावा सेना, बीएसफ, सीआरपीएफ ने मुझे बहुत मदद की। मेरे दोस्तों ने भी बहुत मदद की। साथ में मैं प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चला रहा हूं। ’</p><p>स्वामी प्रेम परिवर्तन ने सबसे ज्यादा पीपल और नीम के पेड़ लगाए हैं। कोरोना दौर में भी उनका यह काम रुका नहीं, बल्कि लगभग 8 हजार नए पेड़ भी उन्होंने लगाए। दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान आदि कई जगहों पर उन्होंने पीपल, नीम, जामुन, शीशम, कचनार, बबूल, दून, बेर, अर्जुन, अनार जैसे पेड़-पौधे लगाए। </p><p><b>इंदिरा राठौर</b></p>
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[ "हरे में है संतुलन शक्ति " ]
<p>ऑफिस में काम के वक्त यदि आपको ध्यान केंद्रित करने या सचेत रहने में परेशानी हो रही है, तो बाहर टहलें या फिर अपने कार्यस्थल पर हरे रंग को बढ़ावा दें। यह रंग भावनात्मक रूप से सुखदायक है, जो ताजगी का अहसास कराता है। यह उन कमरों के लिए अच्छा है, जहां आप आराम करना चाहते हैं। इनडोर प्लांट्स और हर्ब्स गार्डन घरों में हरियाली लाने का एक शानदार तरीका साबित हो सकता है। </p>
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[ "चिंता करेगा दूर नीला या आसमानी" ]
<p>अपने व्यस्त जीवन में सुकून का अनुभव करना चाहते हैं, तो अपने आसपास नीले या आसमानी रंग को बढ़ावा दें। यह उस कमरे में अच्छी तरह से काम करेगा, जहां आप कम तनाव महसूस करने के लिए लंबे समय तक काम करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार जिन लोगों को कठिन कार्यों का सामना करना पड़ा था, उन्हें कुछ नीला देखने के बाद कम चिंता महसूस हुई, क्योंकि यह रंग आराम महसूस कराता है। </p>
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[ "निर्णय लेने में होती है परेशानी" ]
<p>अध्ययन में पीला को सबसे प्रभावशाली रंगों में से एक माना गया है। इसे अवसाद को कम करने और हंसी को प्रोत्साहित करने में सहायक माना गया है। यह मानसिक गतिविधि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और आत्मविश्वास की भावना को बढ़ावा देता है। यह आपको रचनात्मक ही नहीं बनाता, निर्णय लेने की क्षमता को भी बढ़ावा देता है। पीले रंग की कुर्सियां, डेस्क या परदे कमरे में लगाएं।</p>
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[ "वजन घटाने का एक तरीका ये भी" ]
<p>ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी द्वारा कराए गए एक शोध में दावा किया गया है कि धीरे-धीरे खाना चबाकर खाने से वजन घटता है और तेजी से खाने से ओवरवेट होने का खतरा ज्यादा रहता है। शोधकर्ता डॉ. गिब्सन कहते हैं कि जो लोग जल्दबाजी में खाना खाते हैं उनकी कमर का साइज और बॉडी मास इंडेक्स बढ़ता है।</p>
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[ "शूटिंग का आखिरी दिन मुझे पसंद नहीं: इलियाना ", "फिल्म ‘बर्फी’ से हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री करने वाली इलियाना डिक्रूज इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘द बिग बुल’ को लेकर खासा उत्साहित हैं, जिसमें उनके साथ अभिषेक बच्चन भी हैं। बेशक हिन्दी में उन्होंने कुछ ज्यादा फिल्में न की हों, मगर बॉलीवुड में आने से पहले इलियाना साउथ की सुपर स्टार बन चुकी थीं। पेश है उनसे हुई एक दिलचस्प बातचीत " ]
<p>न दिनों इलियाना डिक्रूज अलग मूड़ में हैं। फिल्मों में काम करके उन्हें बहुत अच्छा लगता है। साल भर बाद उनकी नई फिल्म रिलीज हो रही है, जिसमें उनके साथ अभिषेक बच्चन भी हैं। अपनी इस फिल्म को लेकर वह खासा उत्साहित नजर आ रही हैं। ये पूछे जाने पर कि फिल्म की शूटिंग के बाद वह सबसे ज्यादा किस चीज को याद करती हैं, तो उन्होंने कहा,‘पूछिए मत! मेरे साथ एक सबसे बड़ी बुरी बात है, मैं जिस भी फिल्म को करती हूं उसके कास्ट और क्रू के साथ इतनी जुड़ जाती हूं कि जिस दिन हमारी फिल्म की शूटिंग का आखिरी दिन होता है, उस दिन उन सबको देखकर मेरे आंखों से गंगा-जमुना बहने लगती है। मेरा बस चले, तो कभी भी किसी टीम को छोड़ कर जाऊं ही नहीं। अब तो ऐसे कई डायरेक्टर हैं, जो मुझे जानते हैं, वो तो मजा लेने के लिए कहने लगे हैं कि मैडम आज तो लास्ट डे है, तो टिशू के कितने डिब्बे लगेंगे आपको?’</p><p>अपनी पसंदीदा फिल्मों के बारे में इलियाना कहती हैं,‘मुझे लोग अलग-अलग नामों से बुलाते हैं जैसे कि ‘रेड’ की मालिनी के नाम से, तो कोई ‘बर्फी’ की श्रुति के नाम से। इतने सालों में मैंने कई नाम कमाए, लेकिन एक नाम जो मेरे दिल के सबसे करीब है, वह है ‘श्रुति’। उस नाम और काम से जुड़ी सबसे ज्यादा यादें हैं मेरे पास। इसलिए वह हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा।’ </p><p><b>ट्रोलर्स पर नहीं देतीं ध्यान</b></p><p>बॉलीवुड के ऐसे कई सेलेब्स हैं, जो अकसर ऑनलाइन ट्रोल और बॉडी शेम का शिकार होते हैं। उनमें से एक इलियाना डिक्रूज भी हैं। असल में इलियाना सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहती हैं और कई बार वह ट्रोलर्स के निशाने पर आ जाती हैं। इस पर वह कहती हैं, ‘लोगों को सेलेब्स के काम से ज्यादा, उनकी निजी जिंदगी में क्या हो रहा है, उसे जानने में दिलचस्पी रहती है। अगर उन्हें कुछ पता चल जाता है, तो वह उन्हें ट्रोल करने लगते हैं। मैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल उनके लिए करती हूं, जो मुझे प्यार करते हैं और मेरे बारे में जानना चाहते हैं। न कि उनके लिए, जो सिर्फ अपनी भड़ास निकालने के लिए किसी की तस्वीर देखते हैं। हालांकि कभी भी मुझे बहुत भद्दे कमेंट का सामना नहीं करना पड़ा है, फिर भी देखती हूं कि कैसे लोग सेलेब को बुरी बातें लिखते हैं।’ </p><p><b>सफाई पसंद इलियाना</b></p><p>इलियाना कहती हैं,‘ यूं तो मैं काफी शांत किस्म की लड़की हूं, लेकिन एक चीज है, जिससे मैं अपना गुस्सा काबू में नहीं रख पाती, और वह है गंदगी और अव्यवस्था। मैं बहुत ही अच्छी तरह से अपना सामान रखती हूं। अगर एक साल बाद भी मैं अपनी कोई चीज ढूंढ़ती हूं, तो वह उसी जगह पर मिलती है। लेकिन जब मैं ऐसे किसी इनसान से मिलती हूं या फिर देखती हूं, जो ऐसा बिल्कुल भी न हो, तो मेरा मूड खराब हो जाता है। कई बार सेट पर भी ऐसा होता है कि मेरा सामान ठीक से नहीं रखा जाता या कास्टयूम के लिए लापरवाही होती है, तो मैं उसे ठीक करती हूं और फिर अपना काम करती हूं। इसलिए जो लोग मेरे साथ रहते हैं वह समझ गए हैं और इस बात का खास ध्यान रखते हैं।’</p><p><b>मैं दिल से काम करती हूं </b></p><p>अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’ के बारे में बात करते हुए इलियाना कहती हैं, ‘मैं इसमें एक पत्रकार का किरदार निभा रही हूं। इसके लिए मुझे कई लोगों ने कहा था कि मैं कुछ होमवर्क करूं। लेकिन मैंने काफी सोचा और फैसला किया कि इसके लिए मैं दिल से उन लोगों के बारे में सोचूंगी, जिन्हें मैं सालों से जानती हूं। फिर मैंने उन्हीं लोगों की छोटी-छोटी बातें अपने किरदार में अपनाई।’</p><p>वह आगे कहती हैं,‘मैं उन कलाकारों में से नहीं हूं, जो किसी किरदार को जानने के लिए लंबी छुट्टी लेते हैं या फिर लोगों से दूर हो जाते हैं। मेरा मानना है कि हमारे किरदार लोगों के बीच से ही आते हैं और उन्हें निभाने के लिए लोगों के पास रहना बहुत जरूरी है। इसलिए मैं उनके बीच रह कर उन पर काम करती हूं,ताकि वह वास्तविक लगे।’ कोविड के समय में काम करने को लेकर वह कहती हैं,‘मेरा तो आजकल सबसे ज्यादा मूड इसी बात से खराब रहता है कि लोग मास्क अच्छे से क्यों नहीं पहन रहे। मैं हर दिन ऐसे कई लोगों को देखती हूं, जोे मास्क नाम भर के लिए लगाते हैं। ड्रेस के साथ मैचिंग मास्क फैशन के लिए नहीं, बल्कि अपनी और दूसरों की सुरक्षा के लिए पहना जाता है।’</p><p><b>नीलम कोठारी बडोनी</b></p><p><b>इ</b></p>
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[ "अभिषेक का अच्छा काम भी काम ना आया" ]
<p>‘जेल तो अब हम जाएंगे नहीं, जितना चाहे पैसा ले लो। भगवान से भी ज्यादा पैसा है हमारे पास...’ अगर सब ठीक रहता, तो शायद पहली कतार में बैठने वाले सीटीमार दर्शक इस संवाद को सुनते ही रेजगारी उछालते और अपने हीरो की अलाएं-बलाएं काले मुंह वाले की नजर कर देते। फिल्म की भव्यता बताती है कि किस तामझाम के साथ बड़े परदे के लिए ही तैयार किया था, मगर कोरोना के आगे सब धरा रह गया। मिलिए बाल कला केन्द्र में एक साधारण-सी नौकरी करने वाले हेमंत शाह (अभिषेक) से, जिसके भाई वीरेन (सोहम) को जब कुछ गुंडे मारते हैं, तो वह यह कहते हुए हीरो की तरह उनके सामने आ जाता है कि 2 हफ्ते में वह उनके 3 लाख रुपये लौटा देगा। </p><p>पार्श्व में बजते संगीत से लगता है कि हीरो है, कुछ तो करेगा ही। पर कैसे? इस सवाल पर हेमंत अपने चपरासी से कहता है- ‘आदमी अगर ऊंचाई की तरफ देख रहा हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए...।’ एक पल को ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी ऐसे शख्स की बायोपिक है, जो आजादी के चालीस वर्षों बाद देश में आर्थिक आजादी की तरक्की की राह बुन रहा है। जल्द ही इसकी पुष्टि भी हो जाती है, जह हेमंत अपनी प्रेमिका प्रिया (निकिता) से कहता है कि मैं इस शहर को आसमान तक पहुंचाऊंगा। </p><p>पर शहर को आसामान तक पहुंचाने वाली सीढ़ी तो लाखों-करोड़ों के फर्जी बीआर पर टिकी है, जिसे वेंकटेश्वर (कन्नन अरुणाचलम) और हरि (सुमित वत्स) जैसे भ्रष्ट बैंककर्मियों ने हेमंत को सहारा दिया हुआ है। </p><p>हालांकि बीएसई चेयरमैन मन्नू मालपानी (सौरभ) को खबर है कि हेमंत कैसे राणा सावंत (महेश मांजरेकर) के सहयोग से लाखों की हेराफेरी कर स्टॉकब्रोकर बनने के सपने देख रहा है। लेकिन जल्द ही हेमंत दिल्ली में सत्ता के गलियारों में बैठे एक नेता के बेटे संजीव कोहली (समीर सोनी) के संपर्क में आ जाता है, जहां से वह लंबी छलांग तो लगा लेता है, साथ ही वह रिपोर्टर मीरा राव (इलियाना) की नजरों में आ जाता है, जो उसके 565 करोड़ रुपये के घोटाले को उजागर कर देती है। यह कहानी हर्षद मेहता कांड पर आधारित है और उसी तर्ज पर इसे प्रचारित भी किया गया है, लेकिन पात्रों के नाम और घटनाक्रम बदल दिए गए हैं। दूसरा ये भी कि इस फिल्म की तुलना हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी’ से किया जाना लाजमी है, क्योंकि अभिनय और निर्देशन के लिहाज से वह एक शानदार सिरीज का दर्जा रखती है। लेकिन आप तुलना न भी करें तो ‘द बिग बुल’ चकाचौंध, तेजी, भव्यता और महत्वकांक्षा का ‘बड़ा बुलबुला’ सा लगती है, जिसमें तत्व और ताजगी के एहसास लगभग नदारद से हैं। </p><p>निर्देशक ने हर मोड़ पर हेमंत को न्यायसंगत ढंग से पेश करने की कोशिश की है। ये जताते हुए कि उसने जो किया उससे देश की तरक्की हुई। उसकी वजह से पूरे देश ने पैसा कमाया। बस उसका कसूर सिर्फ ये है कि उसने बहुत जल्दी और बहुत सारा पैसा कमाया। मीरा की पत्रकारिता का चित्रण सतही, शायद इसलिए रखा गया है कि यह दिखाया जा सके कि वह हेमंत से कहीं न कहीं प्रभावित है। जो किरदार अच्छे से उठ सकते थे जैसे हेमंत के वकील अशोक मीरचंदानी (राम) और संजीव कोहली को कम जगह दी गई है। अंकित तिवारी की आवाज में इश्क नमाजा... गीत अच्छा है। संदीप शिरोडकर का बैकग्राउंड संगीत दृश्यों में थ्रिल पैदा करता है। <b>विशाल </b></p>
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[ "सिनेमा और कोरोना इस रात की सुबह नहीं...", "कोरोना एक बार फिर बॉलीवुड को तगड़ा झटका देने जा रहा है। बीते कुछ दिनों से संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए थियेटर में रिलीज होने वाली कुछ बड़ी फिल्मों की रिलीज डेट आगे बढ़ा दी गई है। इस फैसले से बॉलीवुड पर क्या होगा असर, इसकी पड़ताल करता एक आलेख" ]
<p>रोना एक बार फिर बॉलीवुड को तगड़ा झटका देता दिख रहा है, जिसकी वजह से कई फिल्मों की रिलीज डेट आगे खिसक गई है। बीते साल करीब 8 हजार करोड़ रुपये के झटके के बाद बॉलीवुड एक बार फिर से अनिश्चितता के दौर की तरफ बढ़ता दिख रहा है। </p><p><b>ये फिल्में फिर से खिसकी आगे </b></p><p>अक्षय कुमार की ‘सूर्यवंशी’ पूरे एक साल से लटकी पड़ी है। अब कहीं जा कर रिलीज के लिए 30 अप्रैल की तारीख निश्चित की गई, लेकिन अब फिर से इसे टाल दिया गया है। इससे फिल्म इंडस्ट्री में निराशा का माहौल है, क्योंकि रोहित शेट्टी के ही शब्दों में जानें तो उनकी फिल्मों से इंडस्ट्री में पैसा आता है। वहीं कोरोना के प्रकोप के कारण सैफ अली खान की ‘बंटी और बबली 2’, राणा दग्गुबती की ‘हाथी मेरे साथी’, अमिताभ बच्चन की ‘चेहरे’, ‘नो मीन्स नो’ और राम गोपाल वर्मा की ‘डी कंपनी’ जैसी फिल्में भी आगे खिसक गई हैं। देखना है कि अगले हफ्ते आने वाली एआर रहमान द्वारा निर्मित बहुभाषीय फिल्म ‘99’ रिलीज होगी या नहीं? </p><p><b>जोखिम लेगी थलइवी?</b></p><p>एक तरफ जहां पूरी फिल्म इंडस्ट्री कोरोना की दूसरी लहर से होने वाले नुकसान को लेकर आशंकित है, वहीं कंगना का बेफिक्राना अंदाज दूसरों को परेशानी में डाल रहा है। उनकी फिल्म ‘थलइवी’ हिन्दी, तमिल व तेलुगु भाषा में 23 अप्रैल को रिलीज होनी है। कंगना का यह कहना कि वह बॉलीवुड के बाकी धुरंधरों की तरह ‘थलइवी’ को आगे नहीं खिसकाएंगी। पर उनकी चिंता 4 अप्रैल के एक ट्वीट से थोड़ी तो झलकती है, जिसमें वह कहती हैं कि एक महीने तक सिनेमाघर बंद करने से बेहतर होता कि एक हफ्ते के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगाकर संक्रमण की चेन को तोड़ा जाता। आंशिक लॉकडाउन से वायरस तो नहीं रुकेगा, लोगों के बिजनेस का नुकसान होगा।’ सूत्र बताते हैं कि अगर मेकर्स इस फिल्म को फिलहाल तमिल-तेलुगु में रिलीज करने की सोचते हैं, तो हिन्दी बेल्ट में पैदा हुआ जोश बाद में ठंडा पड़ सकता है। </p><p><b>ये भी हैं सकते में</b></p><p>अगर अप्रैल में भी कोरोना नहीं संभला, तो मई में इन फिल्मों पर तलवार लटकेगी। शायद सलमान खान यह भांप गए हैं कि ऐसे माहौल में फिल्म रिलीज करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। उन्होंने कह दिया है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’ इस साल की ईद (13 मई) के बजाए अगले साल ईद पर रिलीज हो। तो क्या सलमान के अलावा कुछ अन्य सितारे भी ऐसा ही सोच रहे हैं? क्योंकि जॉन अब्राहम की ‘सत्यमेव जयते 2’ 13 मई को और अक्षय कुमार की ‘बेलबॉटम’ 28 मई को रिलीज होनी है, जबकि रनवीर सिंह की ‘83’ 4 जून, अमिताभ बच्चन की ‘झुंड’ 18 जून को और रणबीर कपूर की ‘शमशेरा’ 25 जून को रिलीज होनी है। </p><p><b>फिल्मकारों की चिंता</b></p><p>ये तय है कि जब तक मुंबई टेरिटरी में सामान्य स्थिति बहाल नहीं होती, बड़ी फिल्मों को रिलीज नहीं किया जा सकता, क्योंकि फिल्म वितरण व प्रदर्शन के लिहाज से मुंबई सर्किट सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके तहत दादर-नगर हवेली, दमन-दीव, गोवा, मुंबई समेत महाराष्ट्र व कर्नाटक के कुछ हिस्से आते हैं। हिन्दी बेल्ट के कुल कलेक्शन का करीब 30-35 फीसदी हिस्सा इसी सर्किट से आता है। बीते 5-6 वर्षों की बात करें तो पीके, संजू, सुल्तान, तानाजी, दंगल, टाइगर जिंदा है, जैसी फिल्मों का करीब 50 फीसदी कलेक्शन, जो करीब 1300 करोड़ रुपये है, इसी टेरिटरी से आया। </p><p>जाहिर है ये समय ओटीटी के लिए किसी जश्न से कम नहीं है। ताजा रिलीज हुई ‘दि बिग बुल’ और ‘हैलो चार्ली’ इसका सबूत हैं। फिल्मकारों को ओटीटी इसलिए भी रास आ रहा है, क्योंकि इस साल सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्में 2-3 करोड़ रुपये भी नहीं बटोर पा रही हैं। <b>विशाल ठाकुर </b></p><p><b>को</b></p>
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[ "हृतिक पूरे मूड में" ]
<p><b>जो </b>काम तमिल फिल्म ‘विक्रम वेदा’ में आर. माधवन नहीं कर पाए, वो अब उसके हिंदी रीमेक में हृतिक रोशन करने जा रहे हैं। दरअसल, इस सुपरहिट फिल्म में दो मुख्य किरदार हैं- एक नायक, एक खलनायक। यह कहना मुश्किल है कि असल जिंदगी में कौन सही है, कौन गलत। मूल तमिल फिल्म में पुलिस वाले का किरदार निभाया था आर. माधवन ने। लेकिन वो एंटी हीरो वाला किरदार निभाना चाहते थे, जो विजय सेतुपति ने निभाया था। निर्देशक ने उन्हें यह किरदार निभाने को नहीं दिया, यह कहते हुए कि तुम एंटी हीरो नहीं लगते। दरअसल हृतिक के साथ भी यह दिक्कत थी। पर वो अड़ गए कि अगर गैंगस्टर वाली भूमिका उन्हें नहीं मिली, तो वो यह फिल्म करेंगे ही नहीं। </p><p>अब इस फिल्म के लिए हृतिक रोशन हड्डी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, हट्टा-कट्टा बन रहे हैं, ताकि वो पूरी शिद्दत से यह एंटी रोल निभा सके।</p>
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[ "नुसरत बरूचा क्यों खुश हैं?" ]
<p><b>बॉलीवुड </b>सितारों पर कोविड की बारिश हो रही है। जिसे देखो, वही पॉजिटिव निकल रहा है। अक्षय कुमार के बाद नुसरत को भी डर था कि उन्हें भी कोरोना हो गया है। दरअसल वो भी अक्षय के साथ ही फिल्म राम सेतु की शूटिंग कर रही थीं। लेकिन डर के अलावा उन्हें चिंता भी थी। नुसरत ने अपने आसपास देखा था कि कोरोना पॉजिटिव होने के बाद रिकवर करने में काफी वक्त लगता है। यही नहीं, नुसरत को यह भी लगता है कि उनकी इम्यूनिटी भी स्ट्रॉन्ग नहीं है। इसलिए जब उनका रिपोर्ट निगेटिव आया, तो वो बेहद खुश हो गईं। इतना कि घर में छोटी-मोटी पार्टी ही कर डाली। पर नुसरत को कौन बताए कि कोरोना का खतरा अभी गया नहीं है। खुश होने के बजाय अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान दें।</p>
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[ "नीना की किस्मत खुल गई" ]
<p>जो काम नीना गुप्ता अपनी जवानी के दिनों में नहीं कर पाईं, अब कर रही हैं। यानी बड़ी फिल्में और नामी हीरो के साथ काम। साठ की उम्र पार करने के बाद नीना को एक से एक फिल्मों में काम करने का मौका मिल रहा है। ‘बधाई हो’ में अवार्ड विनिंग रोल करने के बाद वे सबकी निगाहों में चढ़ गई हैं। खबर है कि अमिताभ बच्चन भी उनके काम से इतने प्रभावित हो गए कि अपनी आने वाली फिल्म ‘गुडबॉय’ में निर्माताओं से कहा कि वो इस फिल्म में नीना के साथ काम करना चाहते हैं। इस फिल्म को साइन करने के बाद नीना ने कहा कि उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी तमन्ना पूरी हो गई। उन्हें बिग बी की पत्नी की भूमिका निभाने का मौका मिल रहा है। </p>
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[ "पसीने को यूं दें मात" ]
<p>ब गर्मी है तो पसीना आएगा ही। कुछ लोगों के लिए ये सामान्य बात हो सकती है, मगर हर किसी के लिए नहीं। यह मौसम उन लोगों के लिए खास परेशानी का सबब बन जाता है, जिन्हें जरूरत से ज्यादा पसीना आता है। ऐसे में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मसलन, मनमाफिक कपड़े पहनने से गुरेज, पसीने की दुर्गंध, त्वचा में जलन, खुजली आदि। इस पर एमडी डॉ. नेहा यादव कहती हैं,‘कुछ हद तक पसीना आना शरीर के लिए ठीक ही है, क्योंकि यह शरीर के तापमान को कम करके उसे हानि पहुंचने से बचाता है। लेकिन पसीना हद से ज्यादा आने लगे, तो यह एक चिकित्सकीय परिस्थिति होती है, जिसे हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। अगर आपको भी यह समस्या है तो कुछ मामूली उपाय आपको राहत पहुंचा सकते हैं।’ </p><p><b>ज्यादा पसीना आने की यह है वजह</b></p><p>डॉ. नेहा कहती हैं, ‘हाइपरहाइड्रोसिस आनुवंशिक समस्या हो सकती है। इसके अलावा इसके कुछ चिकित्सकीय कारण भी होते हैं। अगर आपको कम पसीना आता रहा हो और अचानक से ज्यादा पसीना आने लगे, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए। ऐसे में आपको हृदय संबंधी समस्या, हाइपरटेंशन या मधुमेह की शिकायत हो सकती है। अचानक ज्यादा पसीना आने पर बिना देर किए चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक है। कई बार यह समस्या तब होती है, जब आप हॉर्मोनल बदलाव, थाइरॉएड, कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हृदय रोग जैसी समस्याओं की जद में हों। महिलाएं कुछ अन्य परिस्थितियों जैसे गर्भावस्था, मेनोपॉज आदि में भी ज्यादा पसीने की समस्या का सामना कर सकती हैं। स्थिति जो भी हो, अगर पसीना ज्यादा आता है, तो चिकित्सकीय परामर्श आपकी मदद कर सकता है। इसके लिए आप किसी भी फिजिशियन या फिर डर्मेटोलॉजिस्ट की सलाह ले सकती हैं।’</p><p><b>खानपान भी डालता है असर</b></p><p>हमारी भोजन की आदत भी हमारे जीवन पर प्रभाव डालती है। यानी अस्वास्थ्यकर भोजन खासतौर पर तला-भुना खाना अधिक पसीने का कारण बन सकता है। नॉनवेज अधिक खाने वाले लोगों को भी ज्यादा पसीना आने की समस्या होती है। गर्म तासीर का भोजन, ज्यादा मीठा या मसालेदार खाना भी पसीना ज्यादा आने का कारण बन सकता है। ऐसे में शरीर में पानी के स्तर को बनाए रखना जरूरी है। इस तरह के मौसम में पर्याप्त पानी पीना आवश्यक है, इसी से डिहाइड्रेशन की समस्या से बच सकती हैं। </p><p><b>बालों से आता है अधिक पसीना</b></p><p>शरीर में पसीना वहां भी अधिक आता है, जहां बाल ज्यादा होते हैं। ऐसा इसलिए कि त्वचा में बालों वाले हिस्से में नमी अधिक होती है। जाहिर है, जहां नमी अधिक होगी, वहां से पसीना भी अधिक आएगा।</p><p><b>पसीना न करे शर्मिंदा</b></p><p>अधिक पसीने के कारण कई दफा आपको असहज महसूस होता होगा। खासतौर पर जब पसीना कपड़ों के ऊपर दिखने लगे या उससे दुर्गंध आने लगे तो समस्या बढ़ जाती है। ऐसे में आप कुछ उपाय करके कुछ समय के लिए समस्या से निजात पा सकती हैं- </p><p><b>वैक्सिंग नियमित करें: </b>शेव या वैक्सिंग से पसीने को रोका नहीं जा सकता लेकिन लेकिन पसीना अधिक आने पर बाल देर तक भीगे रहते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा रहता है। वैक्सिंग से नमी कम होगी तो पसीना जल्दी सूखेगा और कपड़ों पर दाग नहीं दिखेगा। </p><p><b>स्वेट पैड का करें इस्तेमाल: </b>अगर आपको बांहों के नीचे यानी अंडरआर्म्स में पसीना अधिक आता है, तो आप स्वेट पैड का इस्तेमाल कर सकती हैं। बाजार में ये आसानी से मिल जाते हैं। इनको कपड़े में चिपका लीजिए। ये पसीने को सोख लेंगे। स्वेट पैड न हो, तो सैनेटरी पैड को बीच से काटकर दोनों बाजुओं पर चिपका सकती हैं।</p><p><b>बर्फ की सिंकाई आएगी काम: </b>कुछ बरस पहले तक मेकअप टिके रहने के लिए गर्मियों में मेकअप लगाने से पूर्व चेहरे की बर्फ से सिंकाई कर ली जाती थी। यही नुस्खा अपनाकर आप कुछ देर के लिए पसीने से बच सकती हैं। यानी आपको जिस स्थान पर पसीना अधिक आता है, वहां बर्फ से सिंकाई कर लें। इससेे कुछ देर के लिए रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं और पसीना कम आता है।</p><p><b>टेलकम पाउडर भी है काम का : </b>आप पसीने वाले स्थान पर टेलकम पाउडर से केकिंग कर सकती हैं। पाउडर न हो, तो आप बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकती हैं। ऐसा करने से कुछ देर तक के लिए आपको पसीने की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। मिंट युक्त पाउडर इस काम में आपकी अधिक मदद कर सकता है। </p><p>इसी तरह आप पसीने वाले स्थान पर नीबू का रस भी लगा सकती हैं। ऐसा करने से न सिर्फ पसीने से बच सकेंगी, बल्कि दुर्गंध से भी बचाव हो सकेगा। इसके अतिरिक्त आप रोलऑन वाले डियोडरेंट का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, जिससे पसीने के स्थान पर कोटिंग हो जाती है और दुर्गंध नहीं आती।</p>
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[ "गुस्से का गुबार न बने बवाल", "ऑफिस में अगर आपका सामना किसी गुस्सैल सहकर्मी से हो, तो कैसे करें उसका सामना, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी" ]
<p><b>हमारी </b>जिंदगी में हमारा कार्यक्षेत्र बहुत अहम होता है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि औसतन एक पेशेवर अपनी जिंदगी के नब्बे हजार घंटे या यूं कहें कि अपनी जिंदगी का चौथाई भाग अपने कार्यक्षेत्र में बिता देता है। लिहाजा, वहां का माहौल, लोग आपकी कार्यक्षमता, यहां तक कि निजी जिंदगी तक को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर जाते हैं। ऐसे में अगर आपका सामना एक गुस्सैल सहकर्मी से हो जाता है, तो यकीनन वहां काम करना मुश्किल हो सकता है। ऐसा आपके साथ न हो, इसके लिए आपको तैयारी करनी होगी, ताकि न सिर्फ आपकी पेशेवर, बल्कि व्यक्तिगत जिंदगी सहज बनी रह सके।</p><p><b>दिल पर न लें बातें</b></p><p>कार्यक्षेत्र में आपके सहकर्मी की नाक पर गुस्सा रहता है? क्या उसका गुस्सा आपकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है? जवाब ‘हां’ में है तो उसमें पूरी तरह से गलती आपके सहकर्मी की हो, जरूरी नहीं। मनोचिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं, ‘कार्यक्षेत्र में आपको यह ध्यान रखना होता है कि आपको अपने सहकर्मी की किसी भी बात को व्यक्तिगत नहीं लेना है। कार्यक्षेत्र में आपके रिश्ते व्यक्तिगत न होकर पेशेवर होते हैं। लिहाजा, उसकी बातों को दिल पर लेकर खुद को प्रभावित होने देना आपकी पेशेवर क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा देगा। बेहतर होगा कि आप व्यक्तिगत और पेशेवर रिश्ते में फर्क करना सीख लें।’</p><p><b>शांत होने पर करें चर्चा</b></p><p>डॉ. कुमार कहते हैं,‘ गुस्से में अकसर लोग ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो सुनने में गलत लगता है। पर आमतौर पर देखा जाता है कि ऐसी मनोदशा में या गुस्सैल प्रवृत्ति के शख्स की बातें पूरी तरह से गलत नहीं होती, बल्कि वह सही दिशा में और सही तथ्यों पर बात कर रहा होता है। हालांकि उसका लहजा गलत होता है। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप उसकी बात को बिंदुवार याद रखें और उसका गुस्सा शांत होने के बाद उन तमाम बिंदुओं पर चर्चा करें। ऐसा करके आप बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकती हैं।</p><p><b>गुस्से का जवाब नहीं है गुस्सा</b></p><p>कई बार जब सामने वाला गुस्से में बात कर रहा होता है, तो हम भी उसकी तर्ज पर अपना आपा खो देते हैं, और गुस्से का जवाब गुस्से में देते हैं। पर यहां हमें इस बात का खयाल रखना होगा कि गुस्से का जवाब गुस्सा नहीं होता, बल्कि आपका यह व्यवहार या प्रतिक्रिया पूरी परिस्थिति को और भी खराब कर देगी। ऐसे स्थिति में जब एक शख्स गुस्से में हो, तो बेहतर होगा कि आप शांत रहकर माहौल को गंभीर होने से बचाएं। </p>
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[ "घर की रसोई को दोबारा बनवा रही हैं या नए घर में रसोई का वुडवर्क करा रही हैं, कुछ बातों पर गौर जरूर करें। बता रही हैं पारुल ", "आपकी शानआपकी रसोई" ]
<p><b>कैसे करें रखरखाव</b></p><p>● मॉड्यूलर किचन बेहद नाजुक होते हैं, इसलिए किचन में काम करते हुए आपको भी बहुत सलीके से काम करना होगा। इसमें हर तरफ कैबिनेट्स लगे होते हैं, जो कुछ पेंच पर टिके होते हैं। इनकी फिटिंग्स कायम रहे, इसलिए इन्हें आराम से खोलें और बंद करें। इनकी सफाई के लिए भी हल्का साबुन या सूखा कपड़ा इस्तेमाल करें। समय-समय पर रैक्स और कैबिनेट्स की नियमित सफाई जरूरी है। </p><p>● चिमनी की सफाई भी हर 10-15 दिन में करें, वरना उसमें जमा गंदगी आपकी रसोई को भी गंदा करेगी। </p><p>● किचन में वुडवर्क करा रही हैं, तो सारी पॉलिशिंग एक साथ हो, अन्यथा रंग अलग-अलग भी हो सकते हैं। </p><p>र में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है रसोई। इसे अगर घर की धुरी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। अब अगर रसोई इतनी ही महत्वपूर्ण है, तो जाहिर है उसकी बनावट और डिजाइनिंग भी परफेक्ट होनी चाहिए! आइए जानें कैसे? </p><p><b>अगर चाहती हैं मरम्मत करवाना</b></p><p>पहले के समय की रसोई आपको जरूर याद होंगी या फिर शायद आज भी आपके घर में वैसी ही रसोई हो। लेकिन अब रसोई मॉड्यूलर या सेमी-मॉड्यूलर हो चुकी हैं। तो अगर आप भी रसोई को मॉड्यूलर बनाने की सोच रही हैं तो आपको सबसे पहले उसमें तीन तरह के काम करवाने होंगे-पहली तरह के काम में जरूरी तोड़-फोड़ करने के बाद स्लैब का माप बदलने जैसे काम आते हैं। फिर प्लंबिंग, जिसमें पानी के पाइप वगैरह बदलने, आरओ के लिए लाइन लगवाना आदि काम आते हैं। ये दोनों काम होने के बाद तीसरा काम होता है बिजली का। पुरानी रसोई में बिजली का एक ही प्वॉइंट होता था, लेकिन अब कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल बढ़ने के कारण एक से ज्यादा बिजली के प्वॉइंट की जरूरत होती है। </p><p><b>त्रिकोण देगा पूरी सुविधा</b></p><p>गैस, सिंक और फ्रिज, आपकी रसोई का आधे से ज्यादा काम इन्हीं तीन चीजों से होता है। इसलिए रसोई की डिजाइनिंग में सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है त्रिकोण पर। यानी इन तीनों को इस तरह रखा जाए कि त्रिकोण बने। इससे आपको काम करने में बहुत आसानी होगी। ये त्रिकोण बनाते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि पैरों की तरफ पूरी खाली जगह मिले, ताकि चलने-फिरने में आसानी हो। इस त्रिकोण के बीच में किसी तरह की अलमारी या कैबिनेट न बनाएं। </p><p><b>कैबिनेट के डिजाइन का ध्यान</b></p><p>आजकल मॉड्यूलर किचन के लिए कैबिनेट्स बने-बनाए भी मिलने लगे हैं। लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले देखें कि आपके पास रसोई का कितना और कैसा सामान है, जैसे बड़े बर्तन कितने हैं, उनके लिए एक कैबिनेट की जरूरत होगी या एक से ज्यादा। दाल, मसालों के डिब्बे रखने के लिए कितने कैबिनेट्स, क्रॉकरी, चम्मच और दूसरे सामान रखने के लिए किस तरह के कैबिनेट्स ठीक रहेंगे। पूरी प्लानिंग करके ही कैबिनेट्स का चुनाव करें। </p><p><b>थोड़ी खाली जगह भी जरूरी</b></p><p>रसोई में हर तरफ बंद अलमारियां ही होंगी, तो रसोई छोटी लगेगी, इसलिए यहां कुछ ओपन कैबिनेट्स भी रखें। इनका इस्तेमाल ऐसा सामान रखने के लिए करें, जिसकी जरूरत आपको दिन में कई बार पड़ती हो। इसका इस्तेमाल क्रॉकरी सजाने के लिए भी कर सकती हैं। </p><p>(आर्किटेक्ट आशीम भट्टाचार्य से बातचीत </p><p>पर आधारित)</p>
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[ "स्वादिष्ट हरी मूंग " ]
<p><b>सामग्री</b></p><p>● हरी मूंग- 1/2 कप, ● साबुत जीरा-1 चम्मच</p><p>● करी पत्ता-10</p><p>● कद्दूकस किया अदरक- 1 छोटा चम्मच, ● बारीक कटी मिर्च-1 चम्मच, ● हल्दी पाउडर- 1/2 चम्मच, ● नीबू का रस- 1 चम्मच, ● बारीक कटी धनिया पत्ती-2 चम्मच, ● तेल- 1 चम्मच, ● नमक-स्वादानुसार</p>
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[ "अपने घुटने संभालकर रखना!" ]
<p>ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार सिर्फ बायोलॉजिकल ही नहीं, कई तरह के सामाजिक कारणों से भी महिलाओं को घुटने से जुड़ी परेशानी होने का खतरा ज्यादा होता है। महिलाओं को घुटने से जुड़ी परेशानी होने का खतरा पुरुषों की तुलना में तीन से छह गुना ज्यादा होता है। यह बीमारी फुटबॉल, टेनिस जैसी खेल से जुड़ी महिलाओं को ज्यादा होती है।</p>
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1,616,722
[ "सामग्री" ]
<p>● मूंग दाल-1/2 कप, ● बेसन-2 चम्मच, ● दही-4 चम्मच, ● हल्दी पाउडर-1/4 चम्मच, ● हींग-1/4 चम्मच, ● सरसों-1/2 चम्मच, </p><p>● जीरा- 1/2 चम्मच, ● करी पत्ता-10, ● बारीक कटा अदरक-1 चम्मच, ● कटी मिर्च- 2, ● तेल- 1 चम्मच, </p><p>● बारीक कटी धनिया पत्ती-2 चम्मच, ● नमक-स्वादानुसार</p>
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1,616,725
[ "विधि" ]
<p>साबुत मूंग को रात भर के लिए पानी में भिगोएं। अब मूंग, 1 1/4 कप पानी और नमक कुकर में डालें। तीन सीटी आने तक पकाएं। गैस ऑफ करें और कुकर का प्रेशर अपने आप निकलने दें। एक कड़ाही में तेल गर्म करें। उसमें जीरा डालें और दस सेकंड बाद हरी मिर्च, करी पत्ता, अदरक और हल्दी पाउडर डालें। अच्छी तरह से मिलाएं और तीस सेकंड तक पकने दें। अब इसमें उबली हुई मूंग डालकर मिलाएं। पैन को ढक कर मूंग को धीमी आंच पर पांच से दस मिनट तक पकने दें। इसे नीबू के रस और धनिया पत्ती से गार्निश कर सर्व करें।</p>
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[ "विधि" ]
<p>मूंग दाल को रात भर के लिए पानी में भिगोएं और सुबह दो कप पानी के साथ कुकर में डालकर तीन सीटी आने तक पकाएं। एक बड़े बर्तन में दही, बेसन, हल्दी, हींग, नमक और एक कप पानी डालकर अच्छी तरह से फेंट लें। ध्यान रहे, मिश्रण में कोई गांठ न हो। एक पैन में तेल गर्म करें और उसमें सरसों, जीरा और करी पत्ता डालें। जब जीरा भुन जाए, तो पैन में मिर्च और अदरक डालें। कुछ सेकंड बाद दही वाले घोल और मूंग दाल को पैन में डालकर मिलाएं। जब मिश्रण में उबाल आने लगे, तो आंच धीमी करें और लगभग पांच मिनट तक सभी सामग्री को पकाएं। गैस ऑफ करें। धनिया पत्ती से गार्निश करके इसे रोटी के साथ गर्मा-गर्म सर्व करें।</p>
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1,616,730
[ "मन्नू मैडम बता रही हैं" ]
<p>● मूंग की दाल और हरी मूंग के सेवन से ऐसे हार्मोन्स सक्रिय होते हैं, जो पेट भरने का एहसास कराते हैं। यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर वजन कम करने में भी फायदेमंद है। </p><p>● मूंग पोटैशियम और आयरन से भरपूर होती है। मूंग दाल से रक्तसंचार संतुलित रहता है और मांसपेशियां भी स्वस्थ रहती हैं। </p><p>● हरी मूंग का सेवन आपने कई बार किया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हरी मूंग एक लो-ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड है। ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने के लिए विशेषज्ञ लो ग्लाइसेमिक फूड्स खाने की सलाह देते हैं। मूंग खाने से शरीर में इंसुलिन और ब्लड शुगर का स्तर संतुलित रहता है और शरीर की चर्बी कम होती है।</p><p>● मूंग का सेवन करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। मूंग दाल में काफी मात्रा में आयरन पाया जाता है। आयरन शरीर में ब्लड सेल्स को बनाने में फायदेमंद माना जाता है। नियमित रूप से हरी मूंग का सेवन करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती है। </p><p>● साबुत मूंग को अंकुरित करके नियमित रूप से खाना लाभदायक होता है। इससे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है।</p>
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[ "अरुणाचल प्रदेशजादुई एहसास की रोमांचक दुनिया" ]
<p>नई-नई जगहों पर जाने को लेकर काफी उत्साहित रहता हूं। अभी तक मैंने जितनी भी यात्राएं की हैं, उनमें से ज्यादातर अकेले ही की हैं। अरुणाचल प्रदेश के तवांग की यात्रा भी उनमें से एक थी। शानदार पहाड़ों से लेकर सुंदर मठों तक कितना कुछ है वहां! विविध वनस्पतियों से घिरी खूबसूरत वादियों से लेकर बौद्ध भिक्षुओं के अतिथि-सत्कार तक, वाकई इस प्रदेश की यात्रा हर उम्र के लोगों को एक जादुई एहसास कराती है।</p><p>असल में 2018 में, मैं अपने एक दोस्त के यहां गुवाहाटी गया हुआ था। वहीं मैंने कुछ दोस्तों से तवांग के बारे में सुना। तो वहीं से निकल पड़ा तवांग की यात्रा पर। वहां जाने के बाद पता चला कि तवांग ही नहीं, आलोंग, ईटानगर, जीरो, बोमडिला, पासीघाट जैसी जगहें भी घूमने के लिए खास हैं। </p><p><b>दिल को भा गई तवांग की खूबसूरती</b></p><p>अरुणाचल प्रदेश के सबसे पश्चिम में स्थित तवांग को जब पास से देखने का मौका मिला, तब पता चला कि पर्यटकों के बीच यह शहर इतना प्रसिद्ध क्यों है? सुबह-सुबह का समय था, जब मैं अपने गंतव्य पर पहुंचा था। सच में प्राकृतिक सुंदरता के मामले में तवांग बहुत समृद्ध शहर है। लगभग साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर मौजूद तवांग के छोटे-छोटे गांव, शांत झीलों के साथ हरे-भरे पहाड़ों को देखने का अपना एक अलग ही रोमांच है। चूंकि यह जगह बौद्ध मठ के लिए काफी प्रसिद्ध है, इसलिए मैं सबसे पहले तवांग मठ पहुंचा, जहां बौद्ध भिक्षुओं के सत्कार ने मेरा मन मोह लिया। कुछ समय मठ में बिताने और वहां के इतिहास से रूबरू होकर, जब वापसी के लिए निकला तो अचानक मेरी नजर आसमान पर पड़ी। सूरज की आखिरी किरणों का गुजरना और अनगिनत तारों से आसमान का भरना, मुझे अपने बचपन में ले गया, क्योंकि आजकल शहर की चकाचौंध में तारे नजर ही कहां आते हैं। मेरे लिए यह नजारा भी कम रोमांचक नहीं था। वैसे तो यहां आए लोग याक की सवारी, कैंपिंग, बाइक राइडिंग का मजा ले रहे थे, मगर मेरी रुचि यहां के पुलों में थी, जो बांस से बने हुए थे। फूलों की घाटी के बाद ये पुल यहां के मुख्य आकर्षण हैं, जो पर्यटकों को लुभाते हैं।</p><p><b>सेला पास के दिलकश नजारें</b></p><p>तवांग में मठ का इतिहास जानने के बाद, मैंने सेला पास जाने का निर्णय लिया। गाइड से पता चला कि यहां कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। हालांकि यहां मौजूद छोटी-छोटी झीलों और ऊंचे-ऊंचे वाटरफॉल को देखकर पता चल गया था कि ये शूटिंग स्थल क्यों बना होगा? हालांकि साल के ज्यादातर समय यह जगह बर्फ से ढकी होती है, ऐसा लगता है मानो पहाड़ों पर सफेद चादर सी बिछ गई हो। यहां करीब 101 झीलें हैं, जो बौद्ध समुदाय के लिए खास महत्व रखती हैं। </p><p><b>अरुणाचल में और क्या करें</b></p><p>दरअसल अरुणाचल प्रदेश के मुख्य आकर्षणों में प्राचीन मंदिर, मठ, झरने, ऐतिहासिक स्मारक, संग्रहालय और अभयारण्य शामिल हैं। फिर भी अगर आप एडवेंचर की तलाश में हैं, तो यहां ट्रेकिंग, राफ्टिंग, कैंपिंग और रॉक क्लाइम्बिंग जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। यहां आए पर्यटक एंगलिंग (कांटा लगा कर मछली पकड़ना) का भी लुत्फ उठाते हैं। अगर आप ट्रेकिंग में दिलचस्पी रखते हैं तो बॉम्डिला-तवांग एरिया में आपको बहुत सारे विकल्प मिल जाएंगे। मई से अक्तूबर के बीच का समय ट्रेकिंग के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा अगर वन्य जीवों को देखना चाहते हैं तो राज्य की राजधानी ईटानगर में आप वन्य जीव अभ्यारण्य के साथ-साथ गोम्पा मंदिर, ईटा फोर्ट, नामधापा नेशनल पार्क आदि की सैर कर सकते हैं। </p><p>अगर आप आदिवासियों के रहन-सहन को पास से देखना चाहते हैं तो अरुणाचल के जीरो वैली आएं। यहां के ‘अपातानी’ नाम के आदिवासी अपने फेशियल टैटू और नाक में पहनी जानी वाली नोज पिन के लिए मशहूर हैं। इनके साथ कुछ वक्त बिता सकते हैं, लेकिन यहां बिना गाइड के न जाएं।</p><p><b>मैं</b></p>
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[ "अगर आप प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर किसी ऐसी हरी-भरी वादियों की खोज में हैं, जहां सुकून के साथ-साथ रोमांचक यात्रा का भी अनुभव मिले, तो यकीन मानिए अरुणाचल प्रदेश में आपकी दिली इच्छा जरूर पूरी होगी। शानदार पहाड़ों से लेकर सुंदर मठों तक, इस प्रदेश की यात्रा हर उम्र के लोगों को एक जादुई एहसास कराती है। यहां के कुछ ऐसे ही पर्यटन स्थलों की जानकारी दे रहे हैं सारांश भारद्वाज" ]
<p><b>कला और शिल्प </b></p><p>आप अरुणाचल के तवांग आएं और यहां से कुछ खरीद कर न ले जाएं, ऐसा भला हो सकता है! यहां के बाजारों में खूबसूरत परंपरागत शिल्प को देखकर शायद ही कोई खुद को रोक पाएगा। लकड़ी से बने सामान, बुने हुए कार्पेट और बांस से बने बर्तनों की खूबसूरती देखने लायक होती हैं। थनका पेंटिंग और हाथ से बने पेपर ने मुझे खास आकर्षित किया। लकड़ी से बनी शिल्पकृति में लकड़ी का मुखौटा भी आकर्षित करते हैं। वैसे मैंने ग्रुक लकड़ी से तैयार दो कप लिए, सिर्फ सजाने के लिए, क्योंकि उस पर उकेरी गई आकृति ने मुझे बहुत लुभाया।</p><p><b>कब जाएं</b></p><p>अरुणाचल प्रदेश की यात्रा कभी भी की जा सकती है, क्योंकि यह प्रदेश हर मौसम में पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। फिर भी, यदि आप सबसे अच्छा समय देख रहे हैं, तो आपको अक्तूबर से अप्रैल के बीच यात्रा करनी चाहिए, जो सर्दियों और वसंत के महीने हैं। इन महीनों में धुंध की घाटियों, बर्फीले पहाड़ों की सुंदरता और भी ज्यादा निखरी-सी नजर आती है। साथ ही, आप कई त्योहारों का लुत्फ भी ले पाएंगे, जो अक्तूबर से अप्रैल तक होते हैं।</p>
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[ "11 अप्रैल से 17 अप्रैल 2021" ]
<p><b>पं. राघवेन्द्र शर्मा</b></p><p>जाने-माने एस्ट्रोलॉजर</p><p><b>तुला </b><b>(2३ सितंबर-2३ अक्तूूबर) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे। 13 अप्रैल से आशा-निराशा के भाव रहेंगे। धैर्यशीलता में कमी रहेगी, परंतु आय की स्थिति में सुधार होगा। मीठे खानपान में रुचि बढ़ सकती है। 14 अप्रैल से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।</p><p><b>मेष </b><b>(21 मार्च-20 अप्रैल) </b></p><p>दांपत्य सुख में वृद्धि होगी। 13 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। शैक्षिक कार्यों में सुधार और खर्चों में कमी आएगी। संतान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। नौकरी में परिवर्तन के अवसर मिल सकते हैं। 14 अप्रैल से कारोबार में व्यवधान आ सकते हैं।</p><p><b>वृश्चिक </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में धैर्यशीलता में कमी तो रहेगी, परंतु आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। 13 अप्रैल से पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। खर्चों में वृद्धि होगी। 14 अप्रैल से मन परेशान हो सकता है। आत्मविश्वास में कमी आएगी। बातचीत में संतुलित रहें।</p><p><b>वृष </b><b>(21 अप्रैल-20 मई) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में मन अशांत रहेगा। 13 अप्रैल से खर्चों में वृद्धि होगी। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। वाहन सुख में कमी आएगी। 14 अप्रैल से बातचीत में संतुलित रहें। धैर्यशीलता में कमी आएगी। सेहत का ध्यान रखें।</p><p><b>धनु </b><b>(2२ नवंबर-2१ दिसंबर) </b></p><p>मन प्रसन्न रहेगा। कला या संगीत में रुचि बढ़ सकती है। किसी मित्र के सहयोग से आय में वृद्धि हो सकती है। 13 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे। 14 अप्रैल से संतान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। </p><p><b>मिथुन </b><b>(21 मई-2१ जून) </b></p><p>13 अप्रैल से संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। नौकरी में कार्यभार में वृद्धि हो सकती है। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। आय की स्थिति में सुधार होगा।</p><p><b>मकर </b></p><p>आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे, परंतु आत्म संयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। 13 अप्रैल से रहन-सहन कष्टमय हो सकता है। नौकरी में अधिकारियों से वाद-विवाद से बचें। 14 अप्रैल से माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। </p><p><b>कर्क </b><b>(2२ जून-2३ जुलाई)</b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। 13 अप्रैल से परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती है। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। 14 अप्रैल से शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। संतान तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। चिकित्सा खर्च बढ़ सकते हैं।</p><p><b>कुंभ </b><b>(2० जनवरी-१८ फरवरी) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में पठन-पाठन में रुचि रहेगी। 13 अप्रैल के बाद नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगा। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आएगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। चिकित्सा खर्च में वृद्धि हो सकती है। </p><p><b> सिंह </b><b>(2४ जुलाई-2२ अगस्त) </b></p><p>13 अप्रैल से आत्मविश्वास में वृद्धि होगी, परंतु कारोबार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 14 अप्रैल के बाद माता से धन की प्राप्ति हो सकती है। किसी संपत्ति से भी आय के साधन बन सकते हैं। बातचीत में संतुलित रहें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।</p><p><b>कन्या </b><b>(2३ अगस्त-2२ सितंबर) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। 13 अप्रैल से खर्चों में वृद्धि हो सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी रहेगी। वाहन सुख में कमी आएगी। पारिवारिक समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं। रहन-सहन कष्टमय रहेगा।</p><p><b>मीन </b><b>(१९ फरवरी-20 मार्च)</b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में धैर्यशीलता में कमी रहेगी। 13 अप्रैल से बातचीत में संतुलित रहें। परिवार में व्यर्थ के वाद विवाद से बचें। 14 अप्रैल से नौकरी में अधिकारियों से संबंधों में उतार-चढ़ाव आ सकता है। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे।</p>
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[ "वैसे तो..... " ]
<p>वैसे तो आज इंटरनेट पर मेकअप व्लॉगिंग में इंफ्लूएंसर्स की कोई कमी नहीं हैं, लेकिन इनमें चंद नाम ही मशहूर हैं। इन्हीं चंद लोगों में एक प्रसिद्ध नाम है मुंबई की अंकिता चतुर्वेदी का, जिन्हें लोग ‘कोरलिस्टा’ के नाम से ज्यादा जानते हैं। गूगल, इंस्टाग्राम, यूट्यूब या किसी भी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकिता चतुर्वेदी सर्च करने पर कोरलिस्टा का नाम सामने आ जाता है। मुंबई की अंकिता अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मेकअप और स्किन, हेयर केयर के टिप्स देती नजर आती हैं। देखा जाए तो ये काम अन्य कई इंन्फ्लूएंसर्स भी कर रहे हैं, लेकिन अंकिता ने इसमें खास पहचान बना ली। अंकिता इस क्षेत्र में बीते 10 वर्षों से हैं। सन् 2011 में उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल ‘कोरलिस्टा’ के नाम से बनाया था, जिसके बाद से अब तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंकिता के इस चैनल के 7.34 लाख सब्सक्राइबर्स हैं। सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म्स पर भी उनके फॉलोअर्स की लंबी फेहरिस्त है।</p><p><b>पहले बनना चाहती थीं इंजीनियर</b></p><p>आईआईटी जैसे बड़े संस्थान से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करना अपने आप में गर्व की बात होती है, और यह डिग्री छात्रों के करियर में एक मजबूत स्तंभ का काम करती है। लेकिन इससे इतर अंकिता ने दूसरी राह ही पकड़ ली। आईआईटी बॉम्बे से बीटेक करने वाली अंकिता को अपने पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष में ही एहसास हो गया था कि उन्हें जीवन में आगे क्या करना है। उन्हें ब्रश चलाना था, लेकिन शुरुआत में कैनवास तय नहीं हो पा रहा था। हमेशा अच्छे अंकों से पास होने वाली अंकिता एक पेपर में सिर्फ इस कारण पीछे रह गई थीं कि उन्होंने पेपर की तैयारी की जगह पेंटिंग करना पसंद किया था। इस वक्त तक वह इंजीनियर नहीं, पेंटर बनना चाहती थीं। एक समय बाद अंदर का कलाकार इंजीनियर पर भारी पड़ने लगा। यही नहीं, उन्होंने कथक की छह वर्षीय डिग्री भी प्राप्त की। लेकिन ब्रश से प्यार उन्हें ज्यादा था, इसलिए मेकअप कला में हाथों ने आजमाइश शुरू कर दी।</p><p><b>ऐसे मिली प्रेरणा</b></p><p>कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। अंकिता के मामले में आविष्कार था उनके करियर का और जरूरत थी उनकी निजी देखरेख। दरअसल, अंकिता मुंहासों से परेशान रहा करती थीं। अब ऐसे में किस-किस तरह की समस्याएं होती हैं और इसे ठीक करने के लिए कितने जतन करने होते हैं, यह हर वह व्यक्ति समझ सकता है, जिसे तैलीय त्वचा और मुंहासों जैसी समस्या हो। बस इससे जूझते और राहत के नुस्खे आजमाते अंकिता बन गईं स्किन एक्सपर्ट, और अपने अनुभवों को लोगों से साझा करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्हें बालों की देख-रेख का भी खास शौक रहा, तो अंकिता ब्यूटी एक्सपर्ट के तौर पर उभरने लगीं। </p><p>अंकिता अपने वीडियो में छोटी और जरूरी बातों का जिक्र करती हैं, जिन्हें लोग खास तौर पर पसंद करते हैं। मेकअप के आसान तरीके, स्किन और हेयर केयर के किफायती और कारगर नुस्खे इनके कंटेंट का हिस्सा होते हैं। सरल टिप्स होने के कारण ही उनकी बातें लोगों के दिल तक पहुंच बना लेती हैं। </p><p><b>स्वाति शर्मा</b></p>
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[ "नवरात्रि में पहली बार जब बनाई थी पूरी...." ]
<p>ैत्र नवरात्र शुरू होने वाला है। जब भी नवरात्रि आती है तो मुझे पूरी का एक किस्सा याद आता है, जो मुझे आज भी गुदगुदाता है। सच में वह किस्सा मेरे लिए सबसे मजेदार है। चैत्र नवरात्र का वह समय था, जब मैंने कन्याओं को खिलाने का निर्णय लिया। पारंपरिक रूप से कन्याओं को पूरी और हलवा खिलाने का रिवाज है, इसलिए मैंने भी पूरी बनाने की कोशिश की, वह भी पहली बार। लेकिन दुर्भाग्य से पूरी ऐसी बनी कि बच्चों के लिए उसे चबाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्होंने उन्हें अपनी जेब में भर लिया और उन्होंने मेरे पति से कहा कि वे उन्हें खा चुके हैं। दरअसल, तब मेरी नई-नई शादी हुई थी और मुझे नहीं पता था कि चाय और मैगी को छोड़कर कुछ भी कैसे पकाया जाता है। यहां तक कि मुझे चावल बनाना भी नहीं आता था! </p><p>शादी के बाद यह मेरा पहला नवरात्रि उत्सव था। मैंने नौ लड़कियों के लिए सामान्य नवरात्रि का प्रसाद (हलवा, पूरी और चना)पकाया। चूंकि यह प्रसाद था, इसलिए सर्व करने से पहले मैं इसका स्वाद नहीं ले सकी। तो मैं यह नहीं जान पाई कि सारी चीजें बनी कैसी थीं। मैंने नौ लड़कियों के पैर धोए और टीका लगाकर प्रसाद परोसा। मैंने उनसे पूछा कि उन्हें ये प्रसाद कैसा लगा? नन्ही लड़कियां काफी विनम्र थीं और उन्होंने मेरे चेहरे पर यह नहीं कहा कि उन्हें यह पसंद नहीं आया। लेकिन मेरे पति ने उनके भावों को अच्छी तरह से समझ लिया था। उन्होंने उनसे कहा कि अगर उन्हें खाना पसंद नहीं है, तो वे इसे खाना छोड़ सकते हैं। जैसे ही मेरे पति ने यह प्रस्ताव दिया, बच्चों ने कहा कि ठीक है और उन्होंने प्रसाद रख लिया।</p><p>फिर मैं किसी काम से रसोई में चली गई। तभी मेरे पति ने कुछ लड़कियों को अपनी जेब में पूरी भरते या उन्हें छिपाते हुए देखा, क्योंकि उन्हें चबाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। मेरे पति ने उनसे कहा कि वे चाहें तो अपने साथ खाने की प्लेट ले जा सकती हैं। बाद में जब लड़कियां चली गईं, तो मेरे पति ने मुझे सारा किस्सा बताया और वह मेरी इस मेहनत पर खूब हंसे भी। हालांकि यह सब बहुत शर्मनाक बात थी मेरे लिए, लेकिन अब यह मेरे प्रयोगों की किताब में शामिल हो गया है। मैं आज सभी प्रकार की भारतीय चपाती बनाने में समर्थ हूं और कह सकती हूं कि मैं पूरी बहुत बढ़िया बनाती हूं। </p><p><b>चै</b></p>
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[ " क्या कहते हैं आंकड़े" ]
<p>स-बाइस उम्र की एक लड़की। शायद अस्पताल में अपने किसी परिजन को दिखाने आई थी। वह जिस काउंटर पर वह जा रही थी, पहले वहां स्प्रे कर रही थी, फिर किसी से बात। यह सारा जतन कोरोना संक्रमण से बचने के लिए किया जा रहा था। संक्रमण से बचाव के लिए कुछ एहतियात हम सबके लिए जरूरी हैं, पर उस लड़की का व्यवहार सामान्य नहीं लग रहा था। देखा जाए तो महामारी की वजह से पिछला एक साल हम सबके लिए काफी उथल- पुथल वाला रहा है। हम सभी बाहरी सफाई को लेकर काफी सचेत भी हुए हैं, लेकिन मन की स्वच्छता यानी डिटॉक्स भी जरूरी है। </p><p><b>मन की स्वच्छता पर क्यों है बहस</b></p><p>इंडियन साइकाएट्री सोसाइटी के सर्वे के अनुसार कोरोना महामारी के कारण देश में मानसिक अस्वस्थता के शिकार लोगों की संख्या में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसमें कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर, लॉकडाउन से जन्मा अकेलापन, सामाजिक अलगाव, नौकरी और बिजनेस को लेकर अनिश्चितता जैसी स्थितियां कारण बनी हैं। इसकी वजह से अवसाद, चिंता, तनाव, एंग्जाइटी आदि की समस्या बढ़ी है। खराब मानसिक सेहत को लेकर आंकड़ों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह दुनिया में 15-29 आयु वर्ग में आत्महत्या या मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण बन चुका है।</p><p><b>अब अगला कदम ये हो</b></p><p>कोरोना की वजह से जो अनिश्चितता पैदा हुई है, उसे बहुत से लोगों के लिए संभालना कठिन हो रहा है, विशेषकर युवाऔर बच्चों के लिए। इस कठिन समय में मानसिक स्वच्छता या जिसे हम डिटॉक्स करना कहते हैं, युवाओं की रक्षा करने की कुंजी साबित हो सकती है। हमें अपनी मानसिक शांति के लिए माइंडफुलनेस और इमोशनल रिलीज तकनीक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए।</p><p><b>यूं करें मन की सफाई</b></p><p>डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार, हम सभी को अपनी भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कुछ आदतों को अपनाने की आवश्यकता को महसूस कर रहे हैं- </p><p>● मन के स्तर पर ठीक महसूस करने के लिए हमारी सबसे पहली जरूरत है अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना, जैसे कि सही खाना और ठीक से सोना। ये मानसिक वेलनेस की कुंजी हैं।</p><p>● भरोसा करना सीखें। अच्छी मानसिक स्वच्छता का आनंद लेने के लिए यह जरूरी है कि हम खुद को वैसे ही स्वीकार करें, जैसे हम हैं। खुद पर भरोसा रखने के साथ-साथ दूसरों पर भरोसा करना भी जरूरी है। </p><p>● नियमित व्यायाम मदद करता है, न केवल हमें शारीरिक रूप से फिट रखने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, बल्कि हमारे दिलो-दिमाग में भावनात्मक कचरे को साफ करने में भी। </p><p>● संगीत में लोगों के मूड और व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता होती है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संगीत का स्वास्थ्य के कई पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसमें स्मृति और मनोदशा से लेकर दिल की सेहत भी शामिल है।</p><p>● अपने अकेले के समय का रचनात्मक उपयोग करें। रिलैक्स करने वाले काम करें। ये समय टहलने के लिए रखें, कुकिंग करें। </p><p>● ऑफिस और घर के कामकाज में संतुलन बनाएं और नियमित अंतराल पर ब्रेक लें। ये सिर्फ शारीरिक थकान दूर करने के लिए नहीं है, बल्कि मन की आंतरिक सफाई के लिए भी जरूरी है।</p><p>● काम पर फोकस करें और व्यस्त रहें। इससे मन में बेकार की बातों को घर करने का मौका नहीं मिलेगा।</p><p><b>बतकही के हैं कई फायदे</b></p><p>अभी के हालात को देखते हुए जरूरी हो गया है कि हम अपनों के संपर्क में रहें और उनसे बातें करें। शोध भी बताते हैं कि हमारी भावनाओं को कुछ भरोसेमंद और परिपक्व व्यक्ति के साथ साझा करना हमारी मानसिक स्वच्छता बनाए रखने का एक और बहुत शक्तिशाली तरीका है। अपनी चिंता को दूर करने के लिए आप किसी प्रियजन या एक्सपर्ट से बात करें। खुद को चुनौती दें कि आप गुस्से पर काबू पा सकते हैं। ‘ऑल इज वेल’ और ‘टेक इट ईजी’ जैसे वाक्यों का इस्तेमाल करें। साथ ही तुलना, आलोचना और शिकायत करना भी बंद करें। अपने सभी विचारों, आशंकाओं और चिंताओं को अपने अंदर रखने दिमाग का बोझ बढ़ाता है, लेकिन उन्हें कागज पर लिखना मस्तिष्क और दिल को आराम करने का मौका देता है।</p><p><b>जो नई चीजें सीखी हैं, उसे जारी रखें</b></p><p>अध्ययनों से पता चला है कि नई दिनचर्या या नई चीजों को सीखना आपको मानसिक शक्ति प्रदान करेगा। तो, जो चीजें आपने पिछले साल सीखी थीं, उसे जारी रखें। खुद को अहमियत दें और नई चीजों के साथ अपनी दिनचर्या को सेट करें। पुरानी अच्छी यादों को ताजा करें। एक्सरसाइज, मेडिटेशन करें। फोन के बिना 30 मिनट की वॉकिंग पर ध्यान दें। ये मन को डिटॉक्स करने के लिए प्रभावी हैं।</p>
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[ "पुराने कपड़ों से कर रही हैं कमाल ", "पुराने कपड़ों का क्या किया जाए? यह सवाल अकसर हम सभी के जेहन में आता है। कई बार पुराने कपड़े यूं ही बेकार होकर कचरे के ढेर में चले जाते हैं। जाहिर है, इनसे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है। दिल्ली की अपसायक्लिंग आर्टिस्ट मीनाक्षी शर्मा पुराने कपड़ों की रीसाइक्लिंग करके तरह-तरह का सामान बना रही हैं " ]
<p>भी जानते हैं कि अगर बात फैशन या सामाजिकता की ना हो, तो नए कपड़ों की खरीदारी इतनी जल्दी नहीं होगी, जितना कि आजकल देखा जाता है। हम जल्दी ही पुराने कपड़ों से बोर हो जाते हैं और नए कपड़े लेते हैं। पुराने कपड़े कई बार दूसरों के काम आते हैं, लेकिन ज्यादातर ये कचरे में चले जाते हैं और इनसे हमारे पर्यावरण को नुकसान होता है। पुराने कपड़ों की रीसाइक्लिंग करें कैसे? क्या इन्हें रीयूज किया जा सकता है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब दे रही हैं मीनाक्षी शर्मा, जो अपने ब्रांड ‘यूज मी’ के जरिये पुराने कपड़ों से बैग, सजावटी वस्तुएं, पर्दे, कालीन, रग्स जैसी बहुत-सी चीजें बना रही हैं। मीनाक्षी बताती हैं, ‘मुझे लगता है कि पुरानी वस्तुओं को थोड़ी सी कलात्मकता के साथ नया बनाया जा सकता है। मैंने मर्चेंडाइजिंग एंड प्रोडक्शन का कोर्स किया है, जिसमें मैं इसी तरह के प्रोजेक्ट्स करती थी, ताकि पुराने कपड़ों से कुछ नया बना सकूं।’</p><p>मीनाक्षी ने अपने आइडियाज पर काम करने के लिए साल 2011 में घर से ही ‘यूज मी’ की शुरुआत की। उनके इस नायाब आइडिया को लोगों ने सराहा और उनका काम पिछले दस वर्षों में तेजी से बढ़ा। आज वह अपनी टीम के साथ बहुत तरह का सामान बनाती हैं, साथ ही इवेंट्स में भी इको फ्रेंड्ली सजावट करती हैं। वह कहती हैं, ‘मेरे लिए यह काम सिर्फ मेरे बिजनेस का हिस्सा नहीं है, इससे मैं कचरा प्रबंधन की तमाम समस्याओं के बारे में भी लोगों को अवगत कराना चाहती हूं। हमें आम लोगों के अलावा फैशन से जुड़े स्टोर्स व कारोबारी भी बेकार कपड़े देते हैं। जैसे किसी ने हमें डेनिम जींस दी तो इससे बैग्स, वॉल हैंगिंग्स जैसी चीजें बन जाती हैं। इसी तरह पुरानी साड़ियों, दुपट्टों से घरों के लिए खूबसूरत परदे, कालीन और रग्स बन जाते हैं।’ मीनाक्षी वेस्ट फैब्रिक से शादी, बर्थ डे पार्टी या अन्य आयोजनों के लिए सजावट का काम भी करती हैं। </p><p>उनके बनाए क्रिसमस ट्री कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। वह कहती हैं, ‘हमने अपने घरों में दादी-नानी को देखा है कि जब कपड़े पुराने हो जाते थे तो उनसे रजाई-गद्दे के खोल या तकिया गिलाफ बना दिए जाते थे। मैंने उसी आइडिया को नए ढंग से आजमाने की कोशिश की है। मीनाक्षी वर्कशॉप भी आयोजित करती हैं। उनकी बनाई शानदार चीजों को उनकी वेबसाइट यूज मी के अलावा फेसबुक और इंस्टा पेज पर भी देखा जा सकता है। </p><p><b>इंदिरा राठौर </b></p><p><b>स</b></p>
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[ "विटामिन सी वाले आहार लें" ]
<p>शरीर की गर्मी कम करने के लिए विटामिन-सी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन अच्छा रहता है। ये आपके रक्त प्रवाह और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने का काम करते हैं और शरीर की गर्मी को दूर करने में भी मदद करते हैं। विटामिन सी युक्त रोजाना सेवन करने वाले फल हैं-संतरा, अनानास, स्ट्रॉबेरी, नींबू आदि। ये स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। विटामिन सी न केवल आपकी अंदरूनी गर्मी को दूर करेगा, बल्कि आपको ऊर्जा भी देगा, जो गर्मी में आपके लिए बहुत जरूरी है। विटामिन सी आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएगा, जो गर्मी से लड़ने के लिए बेहद जरूरी है।</p><p><b>कैफीन को कम करें </b></p><p>कैफीन या अल्कोहल का अधिक सेवन आपके लिए जानलेवा हो सकता है। यह आपके रक्तचाप और हृदय गति को बढ़ाता है। ऐसे में जब शरीर में पर्याप्त रक्त परिसंचरण नहीं होता है, तो हमारा शरीर गर्म हो जाता है। इस प्रकार अपने शरीर की गर्मी को कम करने के लिए आपको अल्कोहल या चाय व कॉफी के सेवन को कम करना होगा। इसकी बजाय छाछ, नारियल पानी या बेल का शर्बत या सत्तू पिएं। </p><p><b>हाइड्रेशन का रखें खास ध्यान</b></p><p>यह शरीर की गर्मी के प्राकृतिक कारणों में से एक है। जब आपके शरीर में ठंडा होने के लिए और मेटाबॉलिज्म में सुधार करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता है, तो यह आपके शरीर की गर्मी को बढ़ाते हुए डिहाइड्रेशन की वजह बनता है। ऐसे में पानी की मात्रा का खास ध्यान दें।</p><p><b>ज्योति भारद्वाज, डाइटिशियन</b></p>
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[ "तो, मुस्कुराते क्यों नहीं हैं", "क्या हम हमेशा खुश रह सकते हैं? क्या हम वास्तव में अपने आप में खुशी महसूस कर सकते हैं? यहां खुशी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं, जो हमें यह समझने में मदद करेंगी कि इसे अपने जीवन में कैसे महसूस किया जाए" ]
<p>खुशी एक भावना है, एक परिस्थिति नहीं। हमारी खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि हमारे साथ क्या हो रहा है? यह इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे अंदर क्या हो रहा है? अगर हमें लगता है कि दूसरे हमें खुश कर सकते हैं या हम तब खुश होंगे, जब हमारे पास यह या वह होगा,तो हम गलत सोच रहे हैं। खुशी हमारे जीवन के बारे में सोचने के तरीके पर निर्भर करती है। इसका मतलब यह है कि लोग आमतौर पर उतने ही खुश होते हैं, जितना वे चाहते हैं। </p><p>खुशी की भावना का अभ्यास किया जाना चाहिए। जैसे आप अभ्यास करके कुछ करने में बेहतर होते हैं, वैसे ही खुशी के साथ भी होता है। जितना अधिक हम इसका अभ्यास करते हैं, उतना ही बेहतर हम इसे महसूस कर पाएंगे। सकारात्मक विचार हमारे भीतर सकारात्मक भाव उत्पन्न करते हैं। इसलिए अगर हम खुश महसूस करना चाहते हैं, तो हमें विचारों को सकारात्मक विचारों में बदलना चाहिए, जो खुशी की भावनाओं को बढ़ाता है। </p><p>खुश लोगों के सबसे आम लक्षण क्या हैं? यह पैसा, शोहरत या अच्छा रूप नहीं है। यह बुद्धिमत्ता या प्रतिभा भी नहीं है। यह है -वे अपनी अच्छी परिस्थितियों की गिनती करते हैं और अपने परिवार और दोस्तों को महत्व देते हैं। जीवन में आभारी होना और सामंजस्यपूर्ण व्यक्तिगत संबंध बहुत अहम हैं। </p><p>खुशी पैदा करने के लिए हमेशा आधे खाली गिलास वाली मानसिकता के बजाय आधा भरे गिलास वाली मानसिकता रखें। वर्तमान में आपके जीवन में जो चीजें गलत हो रही हैं, उन्हें गिनने के बजाय, आपके लिए क्या काम कर रहा है, उस पर ध्यान केंद्रित करें। </p><p>ज्यादातर लोग अपनी सभी पिछली असफलताओं, गलतियों, दर्द और भय को अपने साथ रखते हैं। जो हुआ उसे जाने देना सीखें, ताकि आप अपनी ऊर्जा को इस बात पर केंद्रित कर सकें कि वर्तमान में क्या चल रहा है। अतीत को बदला नहीं जा सकता है, लेकिन आपका भविष्य बदल सकता है। इस सरल विचार के साथ अपना दिन बिताएं, ‘मैं क्षमा करने को तैयार हूं।’</p><p> जिस दिन आप अपने सभी दोषों और कमजोरियों के साथ खुद से प्यार करना सीख जाएंगे, यह आपके जीवन का सबसे खुशी का दिन होगा। खुद से प्यार के अभ्यास करने का एक तरीका यह है कि आप अपने आप को याद दिलाते रहें कि आप विशेष हैं और आप निश्चित रूप से अपने हर काम में सफल होंगे। आप खुद को पसंद करें, तो खुशी खुद-ब-खुद आ जाएगी।</p><p><b>(हो’ओपोनोपोनो क्षमाशीलता पर आधारित एक प्राचीन जीवन दर्शन है)</b></p>
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[ "ये खाइए, दिल रहेगा दुरुस्त" ]
<p>एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सब्जियां, साबुत अनाज और बीन्स आदि की मात्रा को डाइट में बढ़ाना दिल की सेहत के लिए अच्छा होता है। इस तरह के खानपान से मस्तिष्क में खून की सप्लाई भी बाधित नहीं होती है। साथ ही डाइट में मैदा, पॉलिश्ड शुगर आदि की मात्रा को कम करना होगा। इस अध्ययन की रिपोर्ट अमेरिकन एके डमी ऑफ न्यूरोलॉजी की पत्रिका न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुई है। </p>
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[ "फिल्म रिलीज का प्रेशर खास होता है: अभिषेक बच्चन", "अभिषेक बच्चन को इंडस्ट्री में काम करते हुए कई साल हो गए हैं और इन सालों में उनकी कई एक फिल्में भी रिलीज हुई हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए भी उन्होंने काम किया। लेकिन आज भी अपनी फिल्म की रिलीज से पहले वह उतना ही नर्वस रहते हैं, जैसे पहली फिल्म के दौरान हुए थे। एक बातचीत में अपने फिल्मी सफर पर बात करते हुए अभिषेक ने कई दिलचस्प खुलासे किए" ]
<p>ल्म ‘रिफ्यूजी’ से अपने करियर की शानदार शुरुआत करने वाले अभिषेक बच्चन ने ‘सरकार’, ‘दस’, ‘गुरु’, ‘धूम’, ‘ब्लफ मास्टर’ जैसी कई सफल फिल्में दीं। हालांकि वे अपनी सफलता को ज्यादा दिनों तक भुना नहीं पाए। एक के बाद एक उनकी कई फिल्में परदे पर असफल रहीं, इसके बावजूद उन्होंने लोगों को अपने अभिनय से हमेशा आकर्षित किया। शायद यही वजह है कि अभिषेक लगातार फिल्में करते रहे हैं। उन्होंने अपनी असफलता को खुद पर हावी नहीं होने दिया। हालांकि आज भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले वह उतना ही नर्वस रहते हैं, जैसे कि पहली फिल्म के दौरान हुए थे। </p><p>इस पर अभिषेक कहते हैं,‘मुझे फिल्म से पहले होने वाली चर्चा नहीं, बल्कि फिल्म की रिलीज के बाद होने वाली चर्चा सुनना ज्यादा पसंद है। उससे पता चलता है कि मैंने जो मेहनत की है, वह लोगों को पसंद आई है कि नहीं।’</p><p><b>हर फिल्म को दिल से करता हूं</b></p><p>ये पूछे जाने पर कि क्या सालों बाद भी आपको अपनी फिल्म की रिलीज को लेकर दबाव रहता है? इस पर वह कहते हैं,‘क्यों नहीं, मैं एक कलाकार हूं और मैं अपनी हर फिल्म को दिल से करता हूं। इसलिए जब भी मेरी कोई फिल्म या फिर शो रिलीज होता है, तो उस पूरी रात मैं प्रेशर में रहता हूं और ये अच्छा भी है। एक कलाकार एक प्रोजेक्ट पर अपने कई महीने लगा देता है। ऐसे में उसे उससे प्यार होना लाजिमी है।’</p><p><b>तारीफ से मिलती है प्रेरणा</b></p><p>अभिषेक कहते हैं ,‘मैं उन लोगों में से हूं, जो फिल्म रिलीज के बाद सोशल मीडिया से लेकर हर उस प्लेटफॉर्म पर जाकर लोगों के कमेंट देखते हैं, जहां पर फिल्म की चर्चा होती है। अच्छा लगता है, जब लोग अभिनय और फिल्म की कहानी की तारीफ करते हैं। उससे मुझे आगे की फिल्मों में और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है।’ </p><p>पिता बिग बी के साथ काम और फिल्मों को लेकर बातचीत भी अभिषेक से हुई। इससे जुड़े सवाल पर जूनियर बच्चन कहते हैं, ‘पापा कभी अपना काम घर पर नहीं लेकर आए। कभी किसी चीज को थोपते नहीं हैं। हम घर पर फिल्मों की चर्चा नहीं करते। घर पर, वह मेरे दोस्त हैं, जिनके साथ मैं बैठ सकता हूं, स्पोर्ट्स या फिल्में देख सकता हूं। राजनीति पर चर्चा कर सकता हूं। हम आपस में बैठकर बहुत बातें करते हैं। अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।’ </p>
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[ "इश्किया हुईं तारा" ]
<p><b>सच बताइएगा</b>...क्या आप तारा सुतारिया को खबरों में मिस नहीं कर रहे। सुनते हैं कि आजकल उन्हें इश्क हो गया है और वह इन दिनों इश्क में मशगूल हैं। इश्क हुआ है कपूर खानदान से ताल्लुक रखने वाले आदर जैन से। आपको बता दें कि आदर जैन रणबीर कपूर की बुआ रीमा कपूर के छोटे बेटे हैं। पर हमारा सवाल तारा से यही है कि अगर वह अभी से ही प्यार-व्यार वगैरह के चक्कर में पड़ जाएंगी, तो उनके हाथ से करियर की बाजी अनन्या पांडे, शनाया कपूर (अनिल कपूर के छोटे भाई संजय कपूर की बेटी) जैसों के हाथ में जाते देर नहीं लगेगी। शनाया भी जल्द ही फिल्मी डेब्यू करेंगी।</p><p>अगर तारा सुतारिया सच में प्रेम-प्यार के चक्कर में पड़ गई हैं, तो उन्हें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि एक्टिंग के बाजार में आलिया क्यूट लुकिंग उनकी ही कद-काठ वाली ज्यादा दमदार हीरोइन भी पहले से मौजूद है। ऐसे में तारा अपने करियर को रूमानियत की भेंट क्यों चढ़ने दे रही हैं। वैसे हम तो यही चाहेंगे कि तारा को सब मिले, प्रेम भी और फेम भी।</p>
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[ "किस्मत नहीं, मेहनत आई है काम", "टीवी और फिल्मों में कई लोगों की किस्मत ऐसी चमकी कि वह स्टार बन गए। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने दिन-रात घंटों काम करके अपना नाम बनाया, क्योंकि किस्मत से उनका कुछ खास भला नहीं हुआ। आइए जानते हैं उनके बारे में" ]
<p><b>टीवी शो </b>‘क्यों इत्थे दिल छोड़ आए’ से घर-घर में अपने किरदार रणधीर की वजह से मशहूर हो चुके जान खान कहते हैं, ‘मेरा घर भोपाल में है और मेरे शो के बाद आलम ये है कि अब जहां भी मेरी अम्मी-अब्बू जाते हैं लोग उनके साथ फोटो लेने लगते हैं और कहते हैं कि मैं अच्छा कर रहा हूं।’ जान को अपने किरदार के कारण न सिर्फ उर्दू सीखनी पड़ी, बल्कि अपने लुक पर भी बहुत काम करना पड़ा। </p><p><b>्र्रफैंस से जुड़ा रहता हूं</b></p><p>अपने शो के बारे में जान कहते हैं, ‘अपने शो के लिए मैंने खुद को पूरी तरह से बदल दिया और मेरी मेहनत सफल भी हुई जब एक दिन अम्मी का फोन आया कि उनसे कुछ लोगों ने मेरा नंबर मांगा है। मुझे नहीं पता कि लोग क्यों कहते हैं कि वह 12-13 घंटे काम करते हैं और उनके पास न तो परिवार के लिए और न फैंस के संदेश देखने का टाइम होता है। जबकि मैं भी काम करता हूं, लेकिन उसके साथ ही मैं दिन में कई बार अपने घर भोपाल फोन कर लेता हूं। साथ ही मैं फैंस के साथ बातचीत और उनके बनाए वीडियो से लेकर हर छोटे-बड़े मीम्स भी देख लेता हूं। सच कहूं तो अच्छा लगता है कि जब लोग हमारे वीडियो बनाकर हमें भेजते हैं। उससे पता चलता है कि हम जो काम कर रहे हैं वह लोगों को पसंद आ रहा है।’</p><p>अपने से कई साल छोटी को-स्टार ग्रेसी के साथ काम करने को लेकर जान कहते हैं, ‘शो में हम दोनों को एक-दूसरे का पार्टनर दिखाया गया है, लेकिन रियल लाइफ में मैं उसे देखता हूं, तो सोचता हूं कि आजकल के बच्चे कितने स्मार्ट और होशियार हैं। तभी तो इतनी छोटी उम्र में इतने बड़े शो के साथ अपनी पढ़ाई भी कर लेते है। वरना हमें तो हमारे घर वाले बोल-बोल कर पढ़ाते थे।’ इसके अलावा टीवी और वेब शो के बारे में बात करते हुए जान कहते हैं -‘मैं हर तरह के काम के लिए तैयार रहता हूं, बशर्ते मेरे पास समय होना चाहिए।’ </p><p><b>मैं अपने हर काम में जी जान लगा देती हूं</b></p><p>लगभग 200 से भी ज्यादा ऑडिशन देकर टीवी इंडस्ट्री में जगह बनाने वाली शिवांगी खेडकर इन दिनों ‘मेंहदी है रचने वाली’ शो में पल्लवी का किरदार निभा रही हैं। एक्टिंग करियर को लेकर शिवानी कहती हैं,‘मेरे पापा मेरे हीरोइन बनने के फैसले से बिल्कुल भी खुश नहीं थे, लेकिन अब जब लोग मेरे बारे में बात करते हैं और उनसे पूछते हैं कि पल्लू आपकी बेटी है, तो वह खुश होते हैं। हालांकि अभी भी वो खुलकर कभी तारीफ नहीं करते। लेकिन अब उन्हें तसल्ली है कि बेटी अच्छा काम कर रही है।’</p><p>शिवांगी आगे कहती हैं,‘मुझे कभी भी कुछ आसानी से नहीं मिला है। जहां मेरे साथ काम करने वाले कई दोस्तों को सामने से काम का ऑफर आता है, वहीं मुझे ऑडिशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और तब जाकर मुझे सफलता मिलती है। इसलिए जब भी मुझे कोई काम मिलता है, तो मैं उसके लिए जी जान लगा देती हूं, क्योंकि मुझे पता होता है कि इसे मेरी किस्मत नहीं, बल्कि सिर्फ मेहनत बचा सकती है।’ दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम कर चुकीं शिवांगी टीवी का हिस्सा बनकर काफी खुश हैं। इस पर वह कहती हैं,‘पहले मुझे सभी को बताना पड़ता था कि मेरी फिल्म आ रही है, लेकिन अब जब से मेरा शो टीवी पर आने लगा है, तब से लोग मुझे फोन करके पूछते हैं कि अब आगे क्या होगा? क्या राघव और पल्लवी की दूरियां मिट पाएंगी... वगैरह-वगैरह।’ </p><p><b>नीलम कोठारी</b></p>
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[ "अपनी एक्टिंग में हर बार सुधार करता हूं" ]
<p>यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अपनी किसी फिल्म में अपनी एक्टिंग कम लगी है या उसमें सुधार की गुजांइश लगी है। इस पर उन्होंने कहा, ‘हां, ऐसी कई फिल्में हैं, जिन्हें आज देख कर मुझे लगता है कि इसमें मैं ये सीन बेहतर कर सकता था, या फिर इस डायलॉग को मैं ऐसे बोल सकता था।’ आपको बता दें कि अभिषेक इन दिनों अपनी मोस्टअवेटेड फिल्म ‘द बिग बुल’ को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। कुछ समय पहले फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है, जो लोगों को काफी पसंद भी आ रहा है। इस बारे में वह कहते हैं कि मैंने इस फिल्म पर काफी काम किया और इसके होमवर्क के लिए काफी तैयारी की। जब इसका शूट हो रहा था, तो मैं इतना उत्साहित था कि सभी मुझे हैरानी से देख रहे थे।’ </p><p><b>फुरसत ही नहीं हुई</b></p><p>लॉकडाउन के दिनों में जहां ज्यादातर सितारों ने घर पर बैठकर अपने परिवार के साथ समय बिताया, वही अभिषेक कहते हैं,‘मुझे घर पर खाली बैठने का ज्यादा समय नहीं मिल पाया, क्योंकि मेरे पास उस समय काफी काम था। एक तो मुझे अपने डिजिटल शो की रिकॉर्डिंग और प्रमोशन करना पड़ रहा था, वहीं कुछ फिल्मों पर भी बात चल रही थी। फिर जब इन सभी को मैंने खत्म किया, तो फिर मेरी फिल्मों की शूटिंग शुरू हो गई और मैं घर से निकल पड़ा। मुझे जब भी कोई पूछता है कि आपने लॉकडाउन में कौन-सा डिजिटल शो देखा, तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि मुझे उस दौरान भी काम करने का मौका मिला और मैं उससे काफी खुश भी हूं, क्योंकि मैं ज्यादा समय तक खाली नहीं बैठ सकता।’</p><p><b>अपनों को दर्द में नहीं देखा जाता</b></p><p>कोविड का डर और ऐसे में सिनेमाघर खुलने के विषय में जब अभिषेक से पूछा गया, तो उन्होंने कहा,‘बाकी जगह का मुझे पता नहीं, लेकिन कुछ दिन पहले मैं आगरा के एक सिनेमाघर में गया और मुझे ताज्जुब हुआ, जब मैंने वहां पर कोविड गाइडलाइन्स के तहत लोगों को काम करते देखा। मेरा मानना है कि जान से बढ़कर कुछ नहीं है और अगर आपको लगता है कि आप सुरक्षित नहीं है तो आपको घर पर रहना चाहिए। कुछ पल के मनोरंजन के लिए अपनी जान को मुसीबत में डालना ठीक नहीं।’</p><p>कोविड की सावधानियों और अपने निजी अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा,‘मैं उन सभी लोगों को कहना चाहता हूं, जो सोच रहे हैं कि अब कोरोना की वैक्सीन आ गई है, तो आराम से घूम-फिर सकते हैं, पर ऐसा नहीं है। मैंने अपने पूरे परिवार को कोरोना की चपेट में देखा है और मैं जानता हूं कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता जब आपके अपनों की जान खतरे में होती है। इसलिए भूल कर भी कोई भूल न करें।’</p>
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[ "मनोज बाजपेयी ने निराश नहीं किया है" ]
<p><b>फिल्म </b>की शुरुआत में ही ये साफ हो जाता है कि एसीपी अविनाश वर्मा (मनोज) को यह केस क्यों दिया जा रहा है। वह अक्खड़ है, उसे पसंद है कानून के दायरे में रहकर काम ना करना और सब्र तो उसमें बिल्कुल नहीं है। हॉलीवुड से धूल-धक्कड़ खाती हुई यहां पहुंची ‘टॉप कॉप’ की यह छवि फिल्मकारों को अकसर बचा ले जाती है। ‘डाई हार्ड’ का नायक जॉन मैक्लेन (ब्रूस विलिस) इनका मसीहा रहा है। इसलिए ज्यादातर फिल्मकार ये मानकर चलने लगे हैं कि किसी जटिल या हाई-प्रोफाइल केस में रोचकता बढ़ाने के लिए ऐसे ही ‘टॉप कॉप्स’ की छवि काम आएगी। शहर से दूर जंगलों में पूजा (बरखा) की लाश मिलती है, जो कि जस्टिस चौधरी (शिशिर) की बेटी है। लेकिन पूजा तो अपनी सहेली कविता के घर गई थी, जहां उसका पति एमएलए रवि खन्ना (अर्जुन) और एक नौकर मौजूद था। मामले की जांच अविनाश वर्मा को सौंपी गई है, जिसके पास संजना भाटिया (प्राची), राज गुप्ता (वकार शेख), अमित चौहान (साहिल) जैसे काबिल अफसर हैं। शुरुआती जांच में शक रवि पर जाता है। लेकिन अविनाश को इंतजार है कविता के होश में आने का, जो उस घटना के बाद से कोमा में है। एक निर्देशक के रूप में देवहंस का प्रयास शुरू में बांधता तो है, लेकिन धीरे-धीरे असर कम होने लगता है। उन्होंने अपनी समझ से बेशक किरदारों को कुछ अलग ढंग से गढ़ने की कोशिश की है, लेकिन सस्पेंस-थ्रिलर के लिए जो गहराई और समझ चाहिए, वो उनमें नहीं दिखती। जांच टीम का सेटअप, शैली और तौर-तरीके बुनावटी हैं, जो लुभाते नहीं हैं। एसीपी की दर्दभरी जिंदगी और भुक्खड़ इंस्पेक्टर को कब तक भुनाते रहेंगे? जस्टिस चौधरी के सामने पुलिस कमिश्नर (डेंजिल स्मिथ) का अविनाश को केस सौंपना, ऐसा लगता है मानो कोई डील चल रही है। रिजल्ट्स जो हम चाहें, तरीका वो जो तुम चाहो। पर काम कानून के दायरे में हो। और ये दायरा क्या है? जज साहब के घर में ही संदिग्धों और गवाहों की पेशी हो रही है। क्या वाकई हमारा सिस्टम ऐसे काम कर रहा है? </p><p>यही नहीं जज साहब की जवान लड़की का कत्ल हो गया है और वह अविनाश के सामने अपनी पत्नी को ये कहकर सांत्वना दे रहे हैं- इट्स ओके... आप इस सीन को दो-चार बार आगे-पीछे करके देखिए और सोचिए कि क्या ये कोई चूक हो सकती है? हालांकि मनोज बाजपेयी ने अपने अभिनय से बांधे रखा है, लेकिन महज सात दिनों में केस सुलझाने वाले जांबाज पुलिसवाले ने गोली लगने के बावजूद काम करना नहीं छोड़ा। ऐसा करके वह जॉन मैक्लेन, जो कभी थकता नहीं, की बराबरी पर आ गए हैं। अर्जुन माथुर से ज्यादा उम्मीदें थीं और प्राची का काम टॉप कॉप की परछाई से ज्यादा कुछ नहीं है। <b>विशाल ठाकुर</b></p>
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1,522,047
[ "पंख फैला रही हैं सान्या " ]
<p><b>हाल ही में </b>सान्या मल्होत्रा की फिल्म ‘पगलैट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है। उनकी बाकी फिल्मों की तरह ही, इस फिल्म के लिए भी उन्हें खूब प्रशंसा मिल रही है। कहने की जरूरत नहीं कि यह अभिनेत्री लंबी रेस का घोड़ा साबित होगी। बिल्कुल राजकुमार राव की तर्ज पर सान्या मल्होत्रा भी किसी भी किरदार में ढल जाने की कूवत रखती हैं। शायद इसीलिए तेज-तर्रार महिला किरदारों को करने और लोगों की कमियां गिनाने के लिए जानी जाती एक मशहूर एक्ट्रेस ने भी उन्हें ट्विटर पर बधाई दे डाली है। वैसे तो यह सच है कि महामारी के दौरान भी मनोरंजन के क्षेत्र में कुछेक कलाकारों की दुकान कभी बंद होती नहीं दिखी, उनमें से एक सान्या भी हैं। कीप इट अप सान्या।</p>
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1,522,048
[ "राजवीर के लिए सनी का प्यार" ]
<p>सनी देओल के छोटे बेटे राजवीर देओल जल्द ही बॉलीवुड में एंट्री करेंगे। दादा धर्मेंद्र, पापा सनी और बड़े भाई करण के बाद देओल परिवार से राजवीर की बारी है परदे पर कुछ कर दिखाने की। सनी अपने बेटे की सफलता सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यहां तक कि इस खबर को शेयर करने के बाद उन्होंने कमेंट बॉक्स डिसेबल कर दिया, शायद इसलिए कि कोई भी कमेंट उनके बेटे का आत्मविश्वास ना डिगा सके। क्या बात है! </p>
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1,522,041
[ "फिल्म: साइलेंस........ " ]
<p><b>फिल्म: </b>साइलेंस... कैन यू हियर इट? </p><p><b>निर्देशक : </b>अबन भरूचा देवहंस</p><p><b>कलाकार: </b>मनोज बाजपेयी, प्राची देसाई, अर्जुन माथुर, बरखा सिंह, डेंजिल स्मिथ, शिशिर सिन्हा, साहिल वैद</p><p><b>वेब प्लेटफॉर्म</b>: जी5 </p>
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1,522,044
[ "थिएटर और नाटकों के प्रशंसक अब जल्द ही अपना पसंदीदा नाटक घर बैठे-बैठे देख सकेंगे। एक्टर श्रेयस तलपड़े थियेटर के शौकीन लोगों के लिए एक ऐसा ओटीटी मंच लेकर आ रहे हैं", "थियेटर के शौकीन लोगों के लिए ‘नाइन रसा’" ]
<p><b>कोरोना </b>महामारी का असर सिर्फ सिनेमा घरों पर ही नहीं पड़ा, रंगमंच व परफॉर्मिंग आर्ट पर भी हुआ है। लगभग एक साल हो चुका है, लेकिन अभी भी रंगमंच की रौनक नहीं लौटी है। इसी चिंता ने श्रेयस तलपड़े को एक ऐसा ओटीटी प्लेटफॉर्म लॉन्च करने के लिए प्रेरित किया, जो रंगमंच के लिए समर्पित हो। श्रेयस नौ अप्रैल को अपना नया स्टार्टअप ‘नाइन रसा’ लॉन्च कर रहे हैं। वह अपने ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘नाइन रसा’ के बारे में कहते हैं,‘असल में ‘नाइन रसा’ रंगमंच व परफॉर्मिंग आर्ट के लिए समर्पित मंच है और मैं इसको लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित हूं। इस प्लेटफॉर्म पर आपको जितनी भी स्टेज परफॉर्मेंसेज होती हैं, वो सब देखने को मिलेंगी, यानी घर बैठे-बैठे आप रंगमंच का आनंद ले सकेंगे। एक तरह से यह फैमिली और फ्रेंडली प्लेटफॉर्म होगा, जिसे आप परिवार के साथ भी देख सकेंगे। इसमें स्टैंडअप कॉमेडी, फुल लेंथ प्ले, वन एक्ट प्ले, डांस, डाक्यूमेंट्री, कविता रिकॉल, स्टोरी रीडिंग के साथ और भी बहुत कुछ होगा।’ श्रेयस आगे कहते हैं,‘ मैं खुद भी रंगमंच से जुड़ा हुआ हूं, इसलिए उनके दर्द को समझ सकता हूं। और मैं आज जो कुछ भी हूं थिएटर की बदौलत हूं। इसलिए मैंने सोचा कि जिस थिएटर ने मुझे इतना कुछ दिया है, तो मुझे भी इसके लिए कुछ करना चाहिए। इसलिए मैंने इस प्लेटफॉर्म को लॉन्च करने के बारे में सोचा।’ फिलहाल यहां हिंदी, मराठी, गुजराती व अंग्रेजी में कंटेंट उपलब्ध होगा। बाद में और भी कुछ भाषाएं जुड़ जाएंगी। </p>
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1,522,059
[ "हर मौसम में खिलखिलाती त्वचा ", "बदलता मौसम त्वचा की देखभाल केतौर-तरीकों में भी बदलाव की मांग करता है। गर्मी के मौसम में कैसे करें त्वचा की सही देखभाल, बता रही हैं स्वाति गौड़" ]
<p>सम का बदला मिजाज अब साफ-साफ नजर आने लगा है। गर्मी ने पुरजोर तरीकेसे दस्तक दे दी है। मौसम बदलने के साथ-साथ त्वचा शुष्क से तैलीय होने लगती है, जिसकी वजह से कई महिलाएं एक्ने और रैशेज की शिकायत करने लगती हैं। इसलिए जरूरी है कि मौसम के हिसाब से ही त्वचा की देखभाल की जाए। </p><p>गर्म और नमी वाले मौसम में वाटर, क्ले और जेल बेस्ड उत्पाद से चेहरा साफ करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि क्ले और वाटर बेस्ड क्लींजर त्वचा से अतिरिक्त चिकनाई हटाकर उसे तरोताजा रखते हैं। </p><p><b>फेस सीरम का रखें खयाल</b></p><p>गर्म मौसम में फेस ऑयल्स की जगह अच्छी क्वालिटी वाले फेस सीरम इस्तेमाल किए जाने चाहिए, जो गाढ़े ना हो, ताकि त्वचा में आसानी से समा सकें । अकसर महिलाएं शिकायत करती हैं कि जो लोशन सर्दियों में उनकी त्वचा को खिला-खिला और निखरा बनाए रखता है, वही लोशन गर्मियों में उन्हें चिपचिपा लगनेे लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्मियों में हमारी त्वचा की तैलीय ग्रंथियां ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं, इसलिए गर्मियों में हल्के, पतले और वाटर बेस्ड लोशन का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि त्वचा को जरूरी पोषण तो मिले पर वह चिपचिपी महसूस ना हो। </p><p><b>स्क्रब का करें इस्तेमाल</b></p><p>हमारी त्वचा के ऊपर मृत त्वचा की परत बनती रहती है, जिसे ना हटाने पर त्वचा रूखी और बेजान लगने लगती है। इसलिए विशेषज्ञ नियमित रूप से फेस स्क्रब इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, ताकि तेल और गंदगी से बंद हो चुकी त्वचा के पोर खुल सकें और मृत त्वचा की परत हट सके। इसलिए ऐसे स्क्रब का इस्तेमाल करें जो काफी सौम्य हो और त्वचा को बिना नुकसान पहुंचाए अच्छी तरह से उसकी सफाई कर सके। </p><p><b>सनस्क्रीन की भी सुनें</b></p><p>यूं तो सनस्क्रीन का महत्व हर महिला जानती है, पर गर्मियों में अकसर महिलाएं सनस्क्रीन इस्तेमाल करना पसंद नहीं करतीं, क्योंकि इससे उन्हें चिपचिपाहट महसूस होती है। पर असल में सर्दियों से ज्यादा गर्मियों में सनस्क्रीन इस्तेमाल करने की जरूरत होती है, क्योंकि सूरज की तीखी और तेज किरणें त्वचा को झुलसा सकती हैं। इसलिए एसपीएफ 50 युक्त कोई लाइटवेट सनस्क्रीन रोजाना इस्तेमाल करें। </p><p><b>बड़े काम का फेस मिस्ट</b></p><p>मौसम चाहे कोई भी हो, महिलाओं को घर से बाहर निकलना पड़ता ही है। पर अगर झुलसा देने वाली गर्मी में घर से बाहर निकलना पड़े तो छतरी और सनग्लासेज से भी बात नहीं बनती। ऐसे में फेसमिस्ट का इस्तेमाल बेेहद सुकून देता है। बाजार में आपको तरह-तरह के फेसमिस्ट मिल जाएंगे, जिन्हें आप थकान महसूस होने पर इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर एक स्प्रे बॉटल में पानी में गुलाब जल मिलाकर अपना खुद का मिस्ट भी तैयार कर सकती हैं। फिर जब भी बाहर गर्मी की वजह से थकान महसूस हो तो अपने फेस मिस्ट को चेहरे पर इस्तेमाल कीजिए। एक पल में आप ताजगी का अहसास करेंगी। </p><p><b>जब करें मेकअप</b></p><p>गर्मियों में मेकअप करते समय हैवी फाउंडेशन का इस्तेमाल आपको खूबसूरत बनाने के बजाए असहज बना सकता है, क्योंकि नमी और पसीने की वजह सेे फाउंडेशन आपके चेहरे पर टिक नहीं पाएगा और मेहनत से किया हुआ सारा मेकअप पसीनों में ही बह जाएगा। इसलिए गर्मियों में वाटर बेस्ड और वाटरप्रूफ मेकअप उत्पाद का ही इस्तेमाल करें। </p><p><b>होंठों की देखभाल</b></p><p>गर्मी के मौसम में होंठ बहुत ज्यादा सूखने लगते हैं, जिसकी वजह से जाने-अनजानेे हम बार-बार उन्हें जीभ से गीला करने लगते हैं। यह आदत होठों को बहुत नुकसान पहुंचाती है और उनकी गुलाबी रंगत कालेपन में बदलने लगती है। इसके अलावा घटिया क्वालिटी की लिपस्टिक और लिपबाम का इस्तेमाल भी होंठों की खूबसूरती को खराब करता है। इसलिए बेहतर होगा कि होंठ सूखने पर आप उन पर हल्का सा नारियल का तेल लगा लें। इसके अलावा नीबू में थोड़ी चीनी मिलाकर हल्के हाथ से होंठों पर स्क्रब कर लें। इससे होंठों की डेड स्किन हट जाएगी और वे फिर से नर्म और मुलायम लगनेे लगेंगे। </p><p><b>फेस मास्क की अहमियत</b></p><p>त्वचा को जवां, कसी हुई और खूबसूरत बनाए रखने में अच्छे फेस मास्क की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खासतौर पर गर्मियों में तो अपनी त्वचा के अनुसार सही मास्क का इस्तेमाल और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि फेस मास्क स्क्रबिंग और फेशियल के बाद न केवल खुले हुए पोर्स को बंद करते हैं बल्कि त्वचा से अतिरिक्त चिकनाई सोखकर उसे आकर्षक भी बनाते हैं। इस लिहाज से फ्रूट पल्प मास्क, मुल्तानी मिट्टी मास्क और चंदन फेस पैक बहुत पसंद किए जाते हैं। </p><p>(डॉ. पंकज चतुर्वेदी, डर्मेटोलॉजिस्ट-मेडिलिंक्स</p><p>से बातचीत पर आधारित) </p>
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