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ऍक्ट ऑफ़ सेटलमेंट अर्थात् समाधान का अधिनियम, इंग्लैंड की संसद द्वारा सन् 1701 में पारित एक अधिनियम था, जिसे अंग्रेजी और आयरिश राजमुकुटों पर उत्तराधिकार की समस्या का समाधान करने हेतु पारित किया गया था। इस अधिनियम को ब्रिटिश राजतंत्र के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण विधानों में से एक माना जाता है। इस अधिनियम द्वारा, उत्तराधिकार के समाधान के रूप में, अंग्रेजी राजसत्ता के वारिस होने के हक़ को, हनोवर की निर्वाचिता, सोफ़िया और उनके वंश की पुरुष-रेखा के जायज़, ग़ैर-रोमन कैथोलिक वंशजों को सौंप दिया था। इस अधिनियम के मौलिक दस्तावेज़ हनोवर के लोअर सैक्सन स्टेट पुरालेखागार में संरक्षित हैं। इस अधिनियम को विलियम तृतीय और रानी मैरी द्वितीय, और मैरी की बहन रानी ऐनी के कोई जीवित संतान उत्पन्न नहीं कर पाने, तथा स्टुअर्ट घराने के सभी सदस्यों के कैथोलिक धर्म होने के कारण किया गया था। सोफ़िया की वंशरेखा, स्टुअर्ट घराने की अवर्तम् रेखा थी, परंतु उसके सरे सदस्य वश्वास्पात्र प्रोटेस्टेंट थे। सोफ़िय का निधन, 8 जून 1714 को, 1 अगस्त 1714 को रानी ऐनी के देहांत से पहले ही होगई, जिसके पश्चात्, ज्याॅर्ज प्रथम ने सिंहासन पर विराज कर हनोवर वंश की शुरूआत की। इस अधिनियम ने स्काटलैंड और इंग्लैंड के विलय कर यय ग्रेट ब्रिटेन की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई थी। सन 1603 से ही दोनों देशों ने एक ही शासक को साझा किया था, परंतु दो भिन्न सारकारें थीं और ये दो वभक्त रूप से शासित देश थे। अंग्रेज़ी संसद के मुकाबले, स्काॅटियाई संसद, स्टुअर्ट घराने को, जरने स्काॅटलैंड पर इंग्लैण्ड पर हुकूमत करने से कहीं पहले से स्काॅटलैंड पर शासन करते आ रही थी, का त्याग करने का अधिक पक्ष में नहीं थी। एॅक्ट ऑफ़ सेटलमेंट को मंजूरी देने हेतु अंग्रेजी संसद का स्काॅटियाई संसद पर दबाव, इन दोनों देशों के संसदीय विलय का एक अतिमहत्वपूर्ण कारणों में से एक था। इस एॅक्ट के अंतर्गत, हर वो व्यक्ति, जो कि कैथलिक था, या किसी कैथोलिक व्यक्ति के संग विवाहित था, सिंहासन पर अधिकार से आजीवन वंजित होता है। साथ ही यह अधिनियम, विदेशियों का ब्रिटिश सर्कार में हस्तक्षेप तथा शासक का संसदीय कार्यों में हस्तक्षेप पर काफी रोक व सीमाएँ लगता है। हालांकि, इन विधानों में, बाद में, आवश्यक संशोधन भी लाए गए हैं। बिल ऑफ़ राइट्स, 1689 समेत, एॅक्ट ऑफ सेटलमेंट, ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल प्रदेशों के साझा सिंहासन पर उत्तराधिकार के क्रम को अनुशासित करनेवाले मुख्यतम् विधानों में से एक है। इसे साँझा सिंहासन रखनेवाले देश की संसद द्वारा किसी अन्य संसद द्वारा पलटा नहीं जा सकता है, और रीतिनुसार, साआरे राष्ट्रमंडल प्रदेशों की स्वीकृति से ही इसे पलटा जा सकता है। पर्थ समझौते के पश्चात्‌, इसे संशोधित करने के विधानों को साथे प्रदेशों में 26 मार्च 2015 को पारित किया गया, जिसके बाद, कैथोलिक व्यक्ति के संग विवाहित व्यक्ति, उत्तराधिकार के लिए सक्षम हैं।
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डीएलएफ कप 2006-07 ऑस्ट्रेलिया, भारत और वेस्ट इंडीज से जुड़े त्रिकोणीय वनडे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट है। ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल में 127 रनों के साथ वेस्टइंडीज को हराकर टूर्नामेंट जीतने के लिए, टूर्नामेंट में अपने तीन पांच मैचों में जीत दर्ज की। गेंद के साथ उत्कृष्ट योगदान के लिए ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज ब्रेट ली को प्लेयर ऑफ द सीरीज़ घोषित किया गया था। सभी खेल 12 सितंबर से 24 सितंबर 2006 तक मलेशिया के कुआलालंपुर में किनार्रा अकादमी ओवल में खेले गए थे।
20 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 263वॉ दिन है। साल मे अभी और 102 दिन बाकी है
कुप्पम आन्ध्र प्रदेश, भारत के चित्तूर जिले का जनगणना क्षेत्र है। यह बंगलौर से 105 किमी और चेन्नई से 250 किमी दूर है। यह कस्बा ग्रेनाइट की खदानों और ग्रेनाइट प्रकारों के लिए प्रसिद्ध है। कुप्पम ग्रीन नाम इस कस्बे के नाम पर पड़ा है। कुप्पम अब एक शैक्षणिक केन्द्र है जहाँ पर एक अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, मॅडिकल कॉलेज और द्रविड़ विश्वविद्यालय है। आन्ध्र के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री और तेदपा प्रमुख चन्द्र बाबू नायडू द्वारा चुनाव जीतने के पाद कुप्पम एक जाना-माना स्थान बन गया। चन्द्र बाबू नायडू 1989 से यहाँ से विधायक हैं।
आताकामा मरुस्थल, दक्षिण अमेरिका में स्थित एक लगभग शुष्क पठार है और इसका विस्तार एण्डीज़ पर्वतमाला के पश्चिम में महाद्वीप के प्रशांत तट पर लगभग 1000 किमी की दूरी तक है। नासा, नेशनल ज्योग्राफिक तथा अन्य कई प्रकाशनों के अनुसार यह दुनिया का सबसे शुष्क मरुस्थल है।चिली की तट शृंखला और एण्डीज़, के अनुवात पक्ष का वृष्टिछाया प्रदेश और शीतल अपतटीय हम्बोल्ट धारा द्वारा निर्मित तटीय प्रतिलोम परत, इस 20 करोड़ साल से ज्यादा पुराने मरुस्थल को कैलिफोर्निया स्थित मौत की घाटी से 50 गुणा अधिक शुष्क बनाते हैं। उत्तरी चिली में स्थित अटाकामा मरुस्थल का कुल क्षेत्रफल 40,600 वर्ग मील है और इसका अधिकांश नमक बेसिनों, रेत, और बहते लावा से बना है।
अहलावत एक जाट गोत्र है। यह भारत में राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब राज्यों में पाया जाता है।
उखरुल भारतीय राज्य मणिपुर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय उखरुल है। क्षेत्रफल - वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 1,09,275 समुद्र तल से उचाई - 913 m - 3114m अक्षांश - 24 N से 25.41 N, देशान्तर -94 E से 94.47 E औसत वर्षा -1763.7 मि.मि. साक्षरता -62.54% एस. टी. डी कोड - जिलाधिकारी -
खोरीगांव, सांरगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़] जिले का एक गाँव है।
निर्देशांक: 27°30′N 79°24′E / 27.5°N 79.4°E / 27.5; 79.4 मदियान तौफीक अमृतपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
कर्नाटक संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस 2650 भारतीय रेल द्वारा संचालित एक संपर्क क्रांति गाड़ी है। यह गाड़ी ह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से 06:45AM बजे छूटती है और यशवंतपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन पर 07:00PM बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है 36 घंटे 15 मिनट। यह ट्रेन सप्ताह में रविवार, सोमवार, मंगलवार, गुरुवार, शनिवार को चलती है।
विजय सिंह पथिक उर्फ़ भूप सिंह गुर्जर भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक गुर्जर परिवार में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। पथिक जी के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था। पथिक जी पर उनकी माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में ही उनका सम्पर्क रास बिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हो गया था। 1915 के लाहौर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूपसिंह गुर्जर से बदल कर विजयसिंह पथिक रख लिया था। मृत्यु पर्यन्त उन्हें इसी नाम से लोग जानते रहे। मोहनदास करमचंद गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से बहुत पहले उन्होंने बिजौलिया किसान आंदोलन के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था। 1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय किया। इस अवसर पर भारत के गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंग ने दिल्ली प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। उस समय अन्य क्रान्तिकारियों ने जुलूस पर बम फेंक कर लार्ड हार्डिग को मारने की कोशिश की किन्तु वायसराय साफ बच गया। रास बिहारी बोस, जोरावर सिंह, प्रताप सिंह, पथिक जी व अन्य सभी सम्बन्धित क्रान्तिकारी अंग्रेजों के हाथ नहीं आये और वे फरार हो गए। 1915 में रास बिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 21 फ़रवरी को देश के विभिन्न स्थानों 1857 की क्रान्ति की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाए। भारतीय इतिहास में इसे गदर आन्दोलन कहते हैं। योजना यह थी कि एक तरफ तो भारतीय ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए उकसाया जाए और दूसरी तरफ देशी राजाओं की सेनाओं का विद्रोह में सहयोग प्राप्त किया जाए। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व विजय सिंह पथिक को सौंपा गया। उस समय पथिक जी फिरोजपुर षडयन्त्र केस में फरार थे और खरवा में गोपाल सिंह के पास रह रहे थे। दोनों ने मिलकर दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें एकत्र की। दुर्भाग्य से अंग्रेजी सरकार पर क्रान्तिकारियों की देशव्यापी योजना का भेद खुल गया। देश भर में क्रान्तिकारियों को समय से पूर्व पकड़ लिया गया। पथिक जी और गोपाल सिंह ने गोला बारूद भूमिगत कर दिया और सैनिकों को बिखेर दिया गया। कुछ ही दिनों बाद अजमेर के अंग्रेज कमिश्नर ने पाँच सौ सैनिकों के साथ पथिक जी और गोपाल सिंह को खरवा के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया और टाडगढ़ के किले में नजरबंद कर दिया। उन्हीं दिनों लाहौर षडयंत्र केस में पथिक जी का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए। किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई और वो टाडगढ़ के किले से फरार हो गए। गिरफ्तारी से बचने के लिए पथिक जी ने अपना वेश राजस्थानी राजपूतों जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजौलिया से आये एक साधु सीताराम दास उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होनें पथिक जी को बिजौलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमंत्रित किया। बिजौलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाँ पर किसानों से भारी मात्रा में मालगुजारी वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति शोचनीय थी। पथिक जी 1916 में बिजौलिया पहुँच गए और उन्होंने आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली। प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली गई। किसानों की मुख्य माँगें भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्व कोष कर भी एक अहम मुददा था। एक अन्य मुददा साहूकारों से सम्बन्धित भी था जो जमीदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया गया। किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक जी ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र प्रताप के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया। 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक जी ने बम्बई जाकर किसानों की करुण कथा गांधी जी को सुनाई। गांधी जी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। महात्मा गांधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा पर कोई हल नहीं निकला। पथिक जी ने बम्बई यात्रा के समय गांधी जी की पहल पर यह निश्चय किया गया कि वर्धा से राजस्थान केसरी नामक पत्र निकाला जाये। पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी का जमनालाल बजाज की विचारधारा से मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर चले गए। 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई। शीघ्र ही इस संस्था की शाखाएँ पूरे प्रदेश में खुल गईं। इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया। अजमेर से ही पथिक जी ने एक नया पत्र नवीन राजस्थान प्रकाशित किया। 1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। गांधी जी पथिक जी के बिजौलिया आन्दोलन से प्रभावित तो हुए परन्तु उनका रुख देशी राजाओं और सामन्तों के प्रति नरम ही बना रहा। कांग्रेस और गांधी जी यह समझने में असफल रहे कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष आवश्यक है। गांधी जी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजौलिया के किसानों को हिजरत की सलाह दी। पथिक जी ने इसे अपनाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि यह तो केवल हिजड़ों के लिए ही उचित है मर्दों के लिए नहीं। सन् 1921 के आते-आते पथिक जी ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए। बिजौलिया आन्दोलन अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था। ऐसा लगने लगा मानो राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पड़ी है। इससे ब्रिटिश सरकार डर गई। इस आन्दोलन में उसे बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत: सरकार ने राजस्थान के ए0 जी0 जी0 हालैण्ड को बिजौलिया किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं। चैरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईँ। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए। किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई। इस बीच में बेगू में आन्दोलन तीव्र हो गया। मेवाड सरकार ने पथिक जी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पाँच वर्ष की सजा सुना दी गई। लम्बे अरसे की कैद के बाद पथिक जी अप्रैल 1927 में रिहा हुए। 48 वर्ष की अधेड़ आयु में उन्होंने 1930 में एक विधवा अध्यापिका से विवाह करके गृहस्थ जीवन शुरू किया ही था कि एक माह बाद उन्हें फिर गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी पत्नी जानकी देवी ने ट्यूशन करके घर का खर्च चलाया। पथिक जी को इस बात का मरते दम तक अफ़सोस रहा कि वे राजस्थान सेवा आश्रम को ज्यादा दिनों तक चला न सके और अपने मिशन को अधूरा छोड़ कर चले गये। पथिक जी जीवनपर्यन्त निःस्वार्थ भाव से देश सेवा में जुटे रहे। भारत माता का यह महान सपूत 28 मई 1954 में चिर निद्रा में सो गया। पथिक जी की देशभक्ति निःस्वार्थ थी और जब वह मरे उनके पास सम्पत्ति के नाम पर कुछ नहीं था जबकि तत्कालीन सरकार के कई मंत्री उनके राजनैतिक शिष्य थे। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माधुर ने पथिक जी का वर्णन राजस्थान की जागृति के अग्रदूत महान क्रान्तिकारी के रूप में किया। पथिक जी के नेतृत्व में संचालित हुए बिजौलिया आन्दोलन को इतिहासकार देश का पहला किसान सत्याग्रह मानते हैं। पथिक जी क्रांतिकारी व सत्याग्रही होने के अलावा कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। अजमेर से उन्होंने नव संदेश और राजस्थान संदेश के नाम से हिन्दी के अखबार भी निकाले। तरुण राजस्थान नाम के एक हिन्दी साप्ताहिक में वे "राष्ट्रीय पथिक" के नाम से अपने विचार भी व्यक्त किया करते थे। पूरे राजस्थान में वे राष्ट्रीय पथिक के नाम से अधिक लोकप्रिय हुए। उनकी कुछ पुस्तकें इस प्रकार हैं: गांधीजी का उनके बारे में कहना था-"और लोग सिर्फ़ बातें करते हैं परंतु पथिक एक सिपाही की तरह काम करता है।" उनके काम को देखकर ही उन्हें राजपूताना व मध्य भारत की प्रांतीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। भारत सरकार ने विजय सिंह पथिक की स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया।उनकी लिखी हुई कविता की ये पंक्तियाँ बहुत लोकप्रिय हुई थीं : "यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे; यदि इच्छा है तो यह है-जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।"
1206 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
भारत दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने 18वीं और 19वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। 1857 के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद 15 अगस्त 1947 को आज़ादी पाई। 1950 में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को 29 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों के आधार पर विश्व का छठा सबसे बड़ा और क्रय-शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। 33 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। 1991 के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। भारत के दो आधिकारिक नाम हैं- हिन्दी में भारत और अंग्रेज़ी में इण्डिया । इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम "इण्डस" से हुई है। भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के सबसे बड़े बेटे थे और जिनकी कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश या विदेक-रूपी प्रकाश में लीन। एक तीसरा नाम हिन्दुस्तान भी है जिसका अर्थ हिन्द की भूमि, यह नाम विशेषकर अरब/ईरान में प्रचलित हुआ। इसका समकालीन उपयोग कम और प्रायः उत्तरी भारत के लिए होता है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है। बहुत पहले भारत का एक मुंहबोला नाम 'सोने की चिड़िया' भी प्रचलित था। भारत का राष्ट्रीय चिह्न सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ की अनुकृति है जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। भारत सरकार ने यह चिह्न 26 जनवरी 1950 को अपनाया। उसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा सिंह दृष्टिगोचर नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न के नीचे देवनागरी लिपि में 'सत्यमेव जयते' अंकित है। भारत के राष्ट्रीय झंडे में तीन समांतर आयताकार पट्टियाँ हैं। ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की, मध्य की पट्टी सफेद रंग की तथा नीचे की पट्टी गहरे हरे रंग की है। झंडे की लंबाई चौड़ाई का अनुपात 3:2 का है। सफेद पट्टी पर चर्खे की जगह सारनाथ के सिंह स्तंभ वाले धर्मचक्र अनुकृति अशोक चक्र है जिसका रंग गहरा नीला है। चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी के चौड़ाई जितना है और उसमें 24 अरे हैं।राष्ट्रभाषा: हिंदीकवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित 'जन-गण-मन' के प्रथम अंश को भारत के राष्ट्रीय गान के रूप में 24 जनवरी 1950 ई. को अपनाया गया। साथ-साथ यह भी निर्णय किया गया कि बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित 'वंदे मातरम्' को भी 'जन-गण-मन' के समान ही दर्जा दिया जाएगा, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम में 'वंदे मातरम्' गान जनता का प्रेरणास्रोत था। भारत सरकार ने देश भर के लिए राष्ट्रीय पंचांग के रूप में शक संवत् को अपनाया है। इसका प्रथम मास 'चैत' है और वर्ष सामान्यत: 365 दिन का है। इस पंचांग के दिन स्थायी रूप से अंग्रेजी पंचांग के मास दिनों के अनुरूप बैठते हैं। सरकारी कार्यो के लिए ग्रेगरी कैलेंडर के साथ-साथ राष्ट्रीय पंचांग का भी प्रयोग किया जाता है। प्राचीन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। पाषाण युग भीमबेटका मध्य प्रदेश की गुफाएँ भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण हैं। प्रथम स्थाई बस्तियों ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। यही आगे चल कर सिन्धु घाटी सभ्यता में विकसित हुई, जो 2600 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी।लगभग 1600 ईसा पूर्व आर्य भारत आए और उन्होंने उत्तर भारतीय क्षेत्रों में वैदिक सभ्यता का सूत्रपात किया। इस सभ्यता के स्रोत वेद और पुराण हैं। किन्तु आर्य-आक्रमण-सिद्धांत अभी तक विवादस्पद है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सहित कुछ विद्वानों की मान्यता यह है कि आर्य भारतवर्ष के ही स्थायी निवासी रहे हैं तथा वैदिक इतिहास करीब 75,000 वर्ष प्राचीन है। इसी समय दक्षिण भारत में द्रविड़ सभ्यता का विकास होता रहा। दोनों जातियों ने एक दूसरे की खूबियों को अपनाते हुए भारत में एक मिश्रित-संस्कृति का निर्माण किया। 500 ईसवी पूर्व कॆ बाद कई स्वतंत्र राज्य बन गए। भारत के प्रारम्भिक राजवंशों में उत्तर भारत का मौर्य राजवंश उल्लेखनीय है जिसके प्रतापी सम्राट अशोक का विश्व इतिहास में विशेष स्थान है। 180 ईसवी के आरम्भ से मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में यूनानी, शक, पार्थी और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया।" दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न काल-खण्डों में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, पल्लव तथा पांड्य रहे। ईसा के आस-पास संगम-साहित्य अपने चरम पर था, जिसमें तमिळ भाषा का परिवर्धन हुआ। सातवाहनों और चालुक्यों ने मध्य भारत में अपना वर्चस्व स्थापित किया। विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोलशास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले। 12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालाँकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में अनेक राज्य शेष रहे, अथवा अस्तित्व में आये। मुगलों के संक्षिप्त अधिकार के बाद सत्रहवीं सदी में दक्षिण और मध्य भारत में मराठों का उत्कर्ष हुआ। उत्तर पश्चिम में सिक्खों की शक्ति में वृद्धि हुई। 17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और 1840 तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्‍व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्र्यता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर आदि के नेतृत्‍व मे चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप 15 अगस्त, 1947 भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल 1975-77 को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। इसके कारण इसे छोटे पैमानों पर युद्ध का भी सामना करना पड़ा है। 1962 में चीन के साथ, तथा 1947, 1965, 1971 एवं 1999 में पाकिस्तान के साथ लड़ाइयाँ हो चुकी हैं। भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्य देशों में से एक है। 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था जिसके बाद 1998 में 5 और परीक्षण किये गये। 1990 के दशक में किये गये आर्थिक सुधारीकरण की बदौलत आज देश सबसे तेज़ी से विकासशील राष्ट्रों की सूची में आ गया है। के राज्य और संघ क्षेत्र भारत का संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित करता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली की संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। भारत का प्रशासन संघीय ढांचे के अन्तर्गत चलाया जाता है, जिसके अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार और राज्य स्तर पर राज्य सरकारें हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान में दी गई रूपरेखा के आधार पर होता है। वर्तमान में भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र-शासित प्रदेश हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में, स्थानीय प्रशासन को राज्यों की तुलना में कम शक्तियां प्राप्त होती हैं। भारत का सरकारी ढाँचा, जिसमें केंद्र राज्यों की तुलना में ज़्यादा सशक्त है, उसे आमतौर पर अर्ध-संघीय कहा जाता रहा है, पर 1990 के दशक के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों के कारण इसकी रूपरेखा धीरे-धीरे और अधिक संघीय होती जा रही है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं, जिसके दो सदन हैं – उच्चसदन राज्यसभा, अथवा राज्यपरिषद् और निम्नसदन लोकसभा. राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में 545। राज्यसभा एक स्थाई सदन है और इसके सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से 6 वर्षों के लिये होता है। राज्यसभा के ज़्यादातर सदस्यों का चयन राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है, और हर दूसरे साल राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य पदमुक्त हो जाते हैं। लोकसभा के 543 सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, 5 वर्षों की अवधि के लिये आम चुनावों के माध्यम से किया जाता है जिनमें 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर सकते हैं। इसके इलावा 2 सदस्यों को राष्ट्रपति एंग्लो-इण्डियन समुदाय में से नामित कर सकती है, अगर यह समुदाय संसद में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व ना पा सका हो। कार्यपालिका के तीन अंग हैं – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मंत्रिमंडल। राष्ट्रपति, जो राष्ट्र का प्रमुख है, की भूमिका अधिकतर आनुष्ठानिक ही है। उसके दायित्वों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों पर अपनी सहमति देना और अध्यादेश जारी करना प्रमुख हैं। वह भारतीय सेनाओं का मुख्य सेनापति भी है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक अप्रत्यक्ष मतदान विधि द्वारा 5 वर्षों के लिये चुना जाता है। प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्तियाँ उसी के पास होती हैं। इसका चुनाव राजनैतिक पार्टियों या गठबन्धन के द्वारा प्रत्यक्ष विधि से संसद में बहुमत प्राप्त करने पर होता है। बहुमत बने रहने की स्थिति में इसका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। संविधान में किसी उप-प्रधानमंत्री का प्रावधान नहीं है पर समय-समय पर इसमें फेरबदल होता रहा है। मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। कार्यपालिका संसद को उत्तरदायी होती है, और प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमण्डल लोक सभा में बहुमत के समर्थन के आधार पर ही अपने कार्यालय में बने रह सकते हैं। भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का ढाँचा त्रिस्तरीय है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, जिसके प्रधान प्रधान न्यायाधीश है; 24 उच्च न्यायालय और बहुत सारी निचली अदालतें हैं। सर्वोच्च न्यायालय को अपने मूल न्यायाधिकार, और उच्च न्यायालयों के ऊपर अपीलीय न्यायाधिकार के मामलों, दोनो को देखने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के मूल न्ययाधिकार में मौलिक अधिकारों के हनन के इलावा राज्यों और केंद्र, और दो या दो से अधिक राज्यों के बीच के विवाद आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय को राज्य और केंद्रीय कानूनों को असंवैधानिक ठहराने के अधिकार है। भारत में 24 उच्च न्यायालयों के अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। संविधान ने न्यायपालिका को विस्तृत अधिकार दिये हैं, जिनमें संविधान की अंतिम व्याख्या करने का अधिकार भी सम्मिलित है। भारत विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र है। बहुदलीय प्रणाली वाले इस संसदीय गणराज्य में छ: मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां, और 40 से भी ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियां हैं। भारतीय जनता पार्टी, जिसकी नीतियों को केंद्रीय-दक्षिणपंथी या रूढिवादी माना जाता है, के नेतृत्व में केंद्र में सरकार है जिसके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं। अन्य पार्टियों में सबसे बडी भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस है, जिसे भारतीय राजनीति में केंद्र-वामपंथी और उदार माना जाता है। 2004 से 2014 तक केंद्र में मनमोहन सिंह की गठबन्धन सरकार का सबसे बडा हिस्सा कॉंग्रेस पार्टी का था। 1950 मे गणराज्य के घोषित होने से 1980 के दशक के अन्त तक कॉंग्रेस का संसद में निरंतर बहुमत रहा। पर तब से राजनैतिक पटल पर भाजपा और कॉंग्रेस को अन्य पार्टियों के साथ सत्ता बांटनी पडी है। 1989 के बाद से क्षेत्रीय पार्टियों के उदय ने केंद्र में गठबंधन सरकारों के नये दौर की शुरुआत की है। गणराज्य के पहले तीन चुनावों में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कॉंग्रेस ने आसान जीत पाई। 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री कुछ समय के लिये प्रधानमंत्री बने, और 1966 में उनकी खुद की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। 1967 और 1971 के चुनावों में जीतने के बाद 1977 के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पडा। 1975 में प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय आपात्काल की घोषणा कर दी थी। इस घोषणा और इससे उपजी आम नाराज़गी के कारण 1977 के चुनावों में नवगठित जनता पार्टी ने कॉंग्रेस को हरा दिया और पूर्व में कॉंग्रेस के सदस्य और नेहरु के केबिनेट में मंत्री रहे मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई सरकार बनी। यह सरकार सिर्फ़ तीन साल चली, और 1980 में हुए चुनावों में जीतकर इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी कॉंग्रेस के नेता और प्रधानमंत्री बने। 1984 के चुनावों में ज़बरदस्त जीत के बाद 1989 में नवगठित जनता दल के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चा ने वाम मोर्चा के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई, जो केवल दो साल चली। 1991 के चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, परंतु कॉंग्रेस सबसे बडी पार्टी बनी, और पी वी नरसिंहा राव के नेतृत्व में अल्पमत सरकार बनी जो अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। 1996 के चुनावों के बाद दो साल तक राजनैतिक उथल पुथल का वक्त रहा, जिसमें कई गठबंधन सरकारें आई और गई। 1996 में भाजपा ने केवल 13 दिन के लिये सरकार बनाई, जो समर्थन ना मिलने के कारण गिर गई। उसके बाद दो संयुक्त मोर्चे की सरकारें आई जो कुछ लंबे वक्त तक चली। ये सरकारें कॉंग्रेस के बाहरी समर्थन से बनी थीं। 1998 के चुनावों के बाद भाजपा एक सफल गठबंधन बनाने में सफल रही। भाजपा के अटल बिहारी वजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन नाम के इस गठबंधन की सरकार पहली ऐसी सरकार बनी जिसने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किय। 2004 के चुनावों में भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, पर कॉँंग्रेस सबसे बडी पार्टी बनके उभरी, और इसने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के नाम से नया गठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने वामपंथी और गैर-भाजपा सांसदों के सहयोग से मनमोहन सिँह के नेतृत्व में पाँच साल तक शासन चलाया। 2009 के चुनावों में यूपीए और अधिक सीटें जीता जिसके कारण यह साम्यवादी दलों के बाहरी सहयोग के बिना ही सरकार बनाने में कामयाब रहा। इसी साल मनमोहन सिँह जवाहरलाल नेहरू के बाद् ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जिन्हे दो लगातार कार्यकाल के लिये प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ। 2014 के चुनावों में 1984 के बाद पहली बार किसी राजनैतिक पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ, और भाजपा ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई। लगभग 13 लाख सक्रिय सैनिकों के साथ, भारतीय सेना दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी है। भारत की सशस्त्र सेना में एक थलसेना, नौसेना, वायु सेना और अर्द्धसैनिक बल, तटरक्षक, जैसे सामरिक और सहायक बल विद्यमान हैं। भारत के राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर है। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने ज्यादातर देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। 1950 के दशक में, भारत ने दृढ़ता से अफ्रीका और एशिया में यूरोपीय कालोनियों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। 1980 के दशक में भारत ने आमंत्रण पर दो पड़ोसी देशों में संक्षिप्त सैन्य हस्तक्षेप किया। मालदीव, श्रीलंका और अन्य देशों में ऑपरेशन कैक्टस में भारतीय शांति सेना को भेजा गया। हालाँकि, भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ एक तनावपूर्ण संबंध बने रहे और दोनों देशों में चार बार युध्द हुए हैं। कश्मीर विवाद इन युद्धों के प्रमुख कारण था, सिवाय 1971 के, जो कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नागरिक अशांति के लिए किया गया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध और पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद भारत ने अपनी सैन्य और आर्थिक स्थिति का विकास करने का प्रयास किया। सोवियत संघ के साथ अच्छे संबंधों के कारण सन् 1960 के दशक से, सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा। आज रूस के साथ सामरिक संबंधों को जारी रखने के अलावा, भारत विस्तृत इजरायल और फ्रांस के साथ रक्षा संबंध रखा है। हाल के वर्षों में, भारत में क्षेत्रीय सहयोग और विश्व व्यापार संगठन के लिए एक दक्षिण एशियाई एसोसिएशन में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। 10,000 राष्ट्र सैन्य और पुलिस कर्मियों को चार महाद्वीपों भर में पैंतीस संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सेवा प्रदान की है। भारत भी विभिन्न बहुपक्षीय मंचों, खासकर पूर्वी एशिया शिखर बैठक और जी-85 बैठक में एक सक्रिय भागीदार रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भारत दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते है। अब भारत एक "पूर्व की ओर देखो नीति" में भी संयोग किया है। यह "आसियान" देशों के साथ अपनी भागीदारी को मजबूत बनाने के मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला है जिसमे जापान और दक्षिण कोरिया ने भी मदद किया है। यह विशेष रूप से आर्थिक निवेश और क्षेत्रीय सुरक्षा का प्रयास है। 1974 में भारत अपनी पहले परमाणु हथियारों का परीक्षण किया और आगे 1998 में भूमिगत परीक्षण किया। जिसके कारण भारत पर कई तरह के प्रतिबन्ध भी लगाये गए। भारत के पास अब तरह-तरह के परमाणु हथियारें है। भारत अभी रूस के साथ मिलकर पाँचवीं पीढ़ के विमान बना रहे है। हाल ही में, भारत का संयुक्त राष्ट्रे अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक, सामरिक और सैन्य सहयोग बढ़ गया है। 2008 में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौते हस्ताक्षर किए गए थे। हालाँकि उस समय भारत के पास परमाणु हथियार था और परमाणु अप्रसार संधि के पक्ष में नहीं था यह अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप से छूट प्राप्त है, भारत की परमाणु प्रौद्योगिकी और वाणिज्य पर पहले प्रतिबंध समाप्त. भारत विश्व का छठा वास्तविक परमाणु हथियार राष्ट्रत बन गया है। एनएसजी छूट के बाद भारत भी रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा सहित देशों के साथ असैनिक परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने में सक्षम है। वित्त वर्ष 2014-15 के केन्द्रीय अंतरिम बजट में रक्षा आवंटन में 10 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी करते हुए 224,000 करोड़ रूपए आवंटित किए गए। 2013-14 के बजट में यह राशि 203,672 करोड़ रूपए थी। 2012–13 में रक्षा सेवाओं के लिए 1,93,407 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जबकि 2011–2012 में यह राशि 1,64,415 करोइ़ थी। साल 2011 में भारतीय रक्षा बजट 36.03 अरब अमरिकी डॉलर रहा । 2008 के एक SIRPI रिपोर्ट के अनुसार, भारत क्रय शक्ति के मामले में भारतीय सेना के सैन्य खर्च 72.7 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। साल 2011 में भारतीय रक्षा मंत्रालय के वार्षिक रक्षा बजट में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, हालाँकि यह पैसा सरकार की अन्य शाखाओं के माध्यम से सैन्य की ओर जाते हुए पैसों में शमिल नहीं होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़े हथियार आयातक है। 2014 में नरेन्द्र मोदी नीत भाजपा सरकार ने मेक इन इण्डिया के नाम से भारत में निर्माण अभियान की शुरुआत की और भारत को हथियार आयातक से निर्यातक बनाने के लक्ष्य की घोषणा की। रक्षा निर्माण के द्वार निजी कंपनियों के लिए भी खोल दिए गए और भारत के कई उद्योग घरानों ने बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में पूंजी निवेश की योजनाएँ घोषित की। फ्राँस की डसॉल्ट एविएशन ने अंबानी समूह के साथ साझेदारी में रफेल लड़ाकू विमान, तथा अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने टाटा समूह के साथ साझेदारी लड़ाकू विमान एफ-16 का निर्माण भारत में प्रारंभ करने की घोषणाएँ की हैं। अन्य प्रतिष्ठित समूह जैसे एल एंड टी, महिंद्रा, कल्याणी आदि भी कई परियोजनाओं के निर्माण की पहल कर चुके हैं जिनमें तोपें, असला, जलपोत व पनडुब्बियों का निर्मान शामिल है। रूस के साथ कमोव हेलीकॉप्टर का निर्माण भी भारत में करने के लिए समझौता हुआ है। शीर्ष फॉरेन पॉलिसी मैगजीन ने अपने सर्वे में कहा कि भारत 2017 में विश्व में 6 वीं महाशक्ति है। वर्तमान में भारत 29 राज्यों तथा 7 केन्द्रशासित प्रदेशों मे बँटा हुआ है। राज्यों की चुनी हुई स्वतंत्र सरकारें हैं, जबकि केन्द्रशासित प्रदेशों पर केन्द्र द्वारा नियुक्त प्रबंधन शासन करता है, हालाँकि पॉण्डिचेरी और दिल्ली की लोकतांत्रिक सरकार भी हैं। अन्टार्कटिका और दक्षिण गंगोत्री और मैत्री पर भी भारत के वैज्ञानिक-स्थल हैं, यद्यपि अभी तक कोई वास्तविक आधिपत्य स्थापित नहीं किया गया है। † चंडीगढ़ एक केंद्रशासित प्रदेश और पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी है। भाषाओं के मामले में भारतवर्ष विश्व के समृद्धतम देशों में से है। संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की राजभाषा है, और अंग्रेजी को सहायक राजाभाषा का स्थान दिया गया है। 1947-1950 के संविधान के निर्माण के समय देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भाषा और हिन्दी-अरबी अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को संघ सरकार की कामकाज की भाषा बनाया गया था, और गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी के प्रचलन को बढ़ाकर उन्हें हिन्दी-भाषी राज्यों के समान स्तर तक आने तक के लिये 15 वर्षों तक अंग्रेजी के इस्तेमाल की इजाज़त देते हुए इसे सहायक राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया था। संविधान के अनुसार यह व्यवस्था 1950 मे समाप्त हो जाने वाली थी, लेकिन् तमिलनाडु राज्य के हिन्दी भाषा विरोधी आन्दोलन और हिन्दी भाषी राज्यों राजनैतिक विरोध के परिणामस्वरूप, संसद ने इस व्यवस्था की समाप्ति को अनिश्चित काल तक स्थगित कर दिया है। इस वजह से वर्तमान समय में केंद्रीय सरकार में काम हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषाओं में होता है और राज्यों में हिन्दी अथवा अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं में काम होता है। केन्द्र और राज्यों और अन्तर-राज्यीय पत्र-व्यवहार के लिए, यदि कोई राज्य ऐसी मांग करे, तो हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं का होना आवश्यक है। भारतीय संविधान एक राष्ट्रभाषा का वर्णन नहीं करता। हिन्दी और अंग्रेज़ी के इलावा संविधान की आठवीं अनुसूची में 20 अन्य भाषाओं का वर्णन है जिन्हें भारत में आधिकारिक कामकाज में इस्तेमाल किया जा सकता है। संविधान के अनुसार सरकार इन भाषाओं के विकास के लिये प्रयास करेगी, और अधिकृत राजभाषा को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए इन भाषाओं का उपयोग करेगी। आठवीं अनुसूची में दर्ज़ भाषांए ये हैं: राज्यवार भाषाओं की आधिकारिक स्थिति इस प्रकार है: भारत पूरी तौर पर भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित है जो भारतीय आस्ट्रेलियाई प्लेट का उपखण्ड है। प्राचीन काल में यह प्लेट गोंडवानालैण्ड का हिस्सा थी और अफ्रीका और अंटार्कटिका के साथ जुड़ी हुई थी। तकरीबन 9 करोड़ वर्ष पहले क्रीटेशियस काल में भारतीय प्लेट 15 सेमी. वर्ष की गति से उत्तर की ओर बढ़ने लगी और इओसीन पीरियड में यूरेशियन प्लेट से टकराई। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मध्य स्थित टेथीज भूसन्नति के अवसादों के वालन द्वारा ऊपर उठने से तिब्बत पठार और हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ। सामने की द्रोणी में बाद में अवसाद जमा हो जाने से सिन्धु-गंगा मैदान बना। भारतीय प्लेट अभी भी लगभग 5 सेमी./वर्ष की गति से उत्तर की ओर गतिशील है और हिमालय की ऊंचाई में अभी भी 2 मिमी./वर्ष कि गति से उत्थान हो रहा है। भारत के उत्तर में हिमालय की पर्वतमाला नए और मोड़दार पहाड़ों से बनी है। यह पर्वतश्रेणी कश्मीर से अरुणाचल तक लगभग 1,500 मील तक फैली हुई है। इसकी चौड़ाई 150 से 200 मील तक है। यह संसार की सबसे ऊँची पर्वतमाला है और इसमें अनेक चोटियाँ 24,000 फुट से अधिक ऊँची हैं। हिमालय की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 29,028 फुट है जो नेपाल में स्थित है। हिमालय के दक्षिण सिन्धु-गंगा मैदान है जो सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बना है। हिमालय की तलहटी में जहाँ नदियाँ पर्वतीय क्षेत्र को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती हैं, एक संकीर्ण पेटी में कंकड पत्थर मिश्रित निक्षेप पाया जाता है जिसमें नदियाँ अंतर्धान हो जाती हैं। इस ढलुवाँ क्षेत्र को भाबर कहते हैं। भाबर के दक्षिण में तराई प्रदेश है, जहाँ विलुप्त नदियाँ पुन: प्रकट हो जाती हैं। यह क्षेत्र दलदलों और जंगलों से भरा है। तराई के दक्षिण में जलोढ़ मैदान पाया जाता है। मैदान में जलोढ़ दो किस्म के हैं, पुराना जलोढ़ और नवीन जलोढ़। पुराने जलोढ़ को बाँगर कहते हैं। यह अपेक्षाकृत ऊँची भूमि में पाया जाता है, जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। इसमें कहीं कहीं चूने के कंकड मिलते हैं। नवीन जलोढ़ को खादर कहते हैं। यह नदियों की बाढ़ के मैदान तथा डेल्टा प्रदेश में पाया जाता है जहाँ नदियाँ प्रति वर्ष नई तलछट जमा करती हैं। उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण का पूरा भाग एक विस्तृत पठार है जो दुनिया के सबसे पुराने स्थल खंड का अवशेष है और मुख्यत: कड़ी तथा दानेदार कायांतरित चट्टानों से बना है। पठार तीन ओर पहाड़ी श्रेणियों से घिरा है। उत्तर में विंध्याचल तथा सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, जिनके बीच नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा घाटी के उत्तर विंध्याचल प्रपाती ढाल बनाता है। सतपुड़ा की पर्वतश्रेणी उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करती है और पूर्व की ओर महादेव पहाड़ी तथा मैकाल पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। सतपुड़ा के दक्षिण अजंता की पहाड़ियाँ हैं। प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर पश्चिमी घाट और पूर्वी किनारे पर पूर्वी घाट नामक पहाडियाँ हैं। कई महत्वपूर्ण और बड़ी नदियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी और कृष्णा भारत से होकर बहती हैं। कोपेन के वर्गीकरण में भारत में छह प्रकार की जलवायु का निरूपण है किन्तु यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि भू-आकृति के प्रभाव में छोटे और स्थानीय स्तर पर भी जलवायु में बहुत विविधता और विशिष्टता मिलती है। भारत की जलवायु दक्षिण में उष्णकटिबंधीय है और हिमालयी क्षेत्रों में अधिक ऊँचाई के कारण अल्पाइन, एक ओर यह पुर्वोत्तर भारत में उष्ण कटिबंधीय नम प्रकार की है तो पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की। कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में निम्नलिखित छह प्रकार के जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं: परंपरागत रूप से भारत में छह ऋतुएँ मानी जाती रहीं हैं परन्तु भारतीय मौसम विज्ञान विभाग चार ऋतुओं का वर्णन करता है जिन्हें हम उनके परंपरागत नामों से तुलनात्मक रूप में निम्नवत लिख सकते हैं: शीत ऋतु – दिसंबर से मार्च तक, जिसमें दिसंबर और जनवरी सबसे ठंढे महीने होते हैं; उत्तरी भारत में औसत तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस होता है। ग्रीष्म ऋतु – अप्रैल से जून तक जिसमें मई सबसे गर्म महीना होता है, औसत तापमान 32 से 40 डिग्री सेल्सियस होता है। वर्षा ऋतु – जुलाई से सितम्बर तक, जिसमें सार्वाधिक वर्षा अगस्त महीने में होती है, वस्तुतः मानसून का आगमन और प्रत्यावर्तन दोनों क्रमिक रूप से होते हैं और अलग अलग स्थानों पर इनका समय अलग अलग होता है। सामान्यतः 1 जून को केरल तट पर मानसून के आगमन तारीख होती है इसके ठीक बाद यह पूर्वोत्तर भारत में पहुँचता है और क्रमशः पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर गतिशील होता है इलाहाबाद में मानसून के पहुँचने की तिथि 18 जून मानी जाती है और दिल्ली में 29 जून। शरद ऋतु - उत्तरी भारत में अक्टूबर और नवंबर माह में मौसम साफ़ और शांत रहता है और अक्टूबर में मानसून लौटना शुरू हो जाता है जिससे तमिलनाडु के तट पर लौटते मानसून से वर्षा होती है। भारत के मुख्य शहर हैं – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलोर | ये भी देंखे – भारत के शहर मुद्रा स्थानांतरण की दर से भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में दसवें और क्रयशक्ति के अनुसार तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2003 में भारत में लगभग 8% की दर से आर्थिक वृद्धि हुई है जो कि विश्व की सबसे तीव्र बढती हुई अर्थव्यवस्थओं में से एक है। परंतु भारत की अत्यधिक जनसंख्या के कारण प्रतिव्यक्ति आय क्रयशक्ति की दर से मात्र 3,262 अमेरिकन डॉलर है जो कि विश्व बैंक के अनुसार 125वें स्थान पर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 265 अरब अमेरिकी डॉलर है। मुम्बई भारत की आर्थिक राजधानी है और भारतीय रिजर्व बैंक और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का मुख्यालय भी। यद्यपि एक चौथाई भारतीय अभी भी निर्धनता रेखा से नीचे हैं, तीव्रता से बढ़ती हुई सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण मध्यमवर्ग में वृद्धि हुई है। 1991 के बाद भारत में आर्थिक सुधार की नीति ने भारत के सर्वंगीण विकास मे बड़ी भूमिका निभाई है। 1991 के बाद भारत में हुए आर्थिक सुधारोँ ने भारत के सर्वांगीण विकास मे बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय अर्थव्यवस्था ने कृषि पर अपनी ऐतिहासिक निर्भरता कम की है और कृषि अब भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का केवल 25% है। दूसरे प्रमुख उद्योग हैं उत्खनन, पेट्रोलियम, बहुमूल्य रत्न, चलचित्र, वस्त्र, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं, तथा सजावटी वस्तुऐं। भारत के अधिकतर औद्योगिक क्षेत्र उसके प्रमुख महानगरों के आसपास स्थित हैं। हाल ही के वर्षों में $1720 करोड़ अमरीकी डालर वार्षिक आय 2004-2005 के साथ भारत सॉफ़्टवेयर और बीपीओ सेवाओं का सबसे बडा केन्द्र बन कर उभरा है। इसके साथ ही कई लघु स्तर के उद्योग भी हैं जोकि छोटे भारतीय गाँव और भारतीय नगरों के कई नागरिकों को जीविका प्रदान करते हैं। पिछले वर्षों में भारत में वित्तीय संस्थानों ने विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। केवल तीस लाख विदेशी पर्यटकों के प्रतिवर्ष आने के बाद भी भारतीय पर्यटन राष्ट्रीय आय का एक अति आवश्यक, परन्तु कम विकसित स्रोत है। पर्यटन उद्योग भारत के जीडीपी का कुल 5,3% है। पर्यटन 10% भारतीय कामगारों को आजीविका देता है। वास्तविक संख्या 4.2 करोड है। आर्थिक रूप से देखा जाए तो पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग $400 करोड डालर प्रदान करता है। भारत के प्रमुख व्यापार सहयोगी हैं अमरीका, जापान, चीन और संयुक्त अरब अमीरात। भारत के निर्यातों में कृषि उत्पाद, चाय, कपड़ा, बहुमूल्य रत्न व आभूषण, साफ़्टवेयर सेवायें, इंजीनियरिंग सामान, रसायन तथा चमड़ा उत्पाद प्रमुख हैं जबकि उसके आयातों में कच्चा तेल, मशीनरी, बहुमूल्य रत्न, उर्वरक तथा रसायन प्रमुख हैं। वर्ष 2004 के लिये भारत के कुल निर्यात $6918 करोड़ डालर के थे जबकि उसके आयात $8933 करोड़ डालर के थे। दिसम्‍बर 2013 के अंत में भारत का कुल विदेशी कर्ज 426.0 अरब अमरीकी डॉलर था, जिसमें कि दीर्घकालिक कर्ज 333.3 अरब तथा अल्‍पकालिक कर्ज 92,7% अरब अमरीकी डॉलर था। कुल विदेशी कर्ज में सरकार का विदेशी कर्ज 76.4 अरब अमरीकी डॉलर था, बाकी में व्‍यावसायिक उधार, एनआरआई जमा और बहुउद्देश्‍यीय कर्ज आदि हैं। भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की विभिन्नताओं से भरी जनता में भाषा, जाति और धर्म, सामाजिक और राजनीतिक सौहार्द्र और समरसता के मुख्य शत्रु हैं। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 74.04 प्रतिशत साक्षरता है जिस में से +80% पुरुष और 6हैं।% स्त्रियाँ साक्षर हैं। लिंग अनुपात की दृष्टि से भारत में प्रत्येक 1000 पुरुषों के पीछे मात्र 940 महिलायें हैं। कार्य भागीदारी दर 39.1% है। पुरुषों के लिये यह दर 51,7% और स्त्रियों के लिये 25,6% है। भारत की 1000 जनसंख्या में 22.32 जन्मों के साथ बढ़ती जनसंख्या के आधे लोग 22.66 वर्ष से कम आयु के हैं। यद्यपि भारत की 79.80 प्रतिशत या 96.62 करोड़ जनसंख्या हिन्दू है, 14.23 प्रतिशत या 17.22 करोड़ जनसंख्या के साथ भारत विश्व में मुसलमानों की संख्या में भी इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद तीसरे स्थान पर है। अन्य धर्मावलम्बियों में ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, अन्य धर्म इनमें यहूदी, पारसी, अहमदी और बहाई आदि धर्मीय हैं। नास्तिकता 0,24% या 38.37 लाख है। भारत दो मुख्य भाषा-सूत्रों: आर्य और द्रविड़ भाषाओँ का स्रोत भी है। भारत का संविधान कुल 23 भाषाओं को मान्यता देता है। हिन्दी और अंग्रेजी केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी कामकाज के लिये उपयोग की जाती हैं। संस्कृत और तमिल जैसी अति प्राचीन भाषाएं भारत में ही जन्मी हैं। संस्कृत, संसार की सर्वाधिक प्राचीन भाषाओँ में से एक है, जिसका विकास पथ्यास्वस्ति नाम की अति प्राचीन भाषा/ बोली से हुआ था। तमिल के अलावा सारी भारतीय भाषाएँ संस्कृत से ही विकसित हुई हैं, हालाँकि संस्कृत और तमिल में कई शब्द समान हैं ! कुल मिला कर भारत में 1652 से भी अधिक भाषाएं एवं बोलियाँ बोली जातीं हैं। भारत की सांस्कृतिक धरोहर बहुत संपन्न है। यहाँ की संस्कृति अनोखी है और वर्षों से इसके कई अवयव अब तक अक्षुण्य हैं। आक्रमणकारियों तथा प्रवासियों से विभिन्न चीजों को समेट कर यह एक मिश्रित संस्कृति बन गई है। आधुनिक भारत का समाज, भाषाएं, रीति-रिवाज इत्यादि इसका प्रमाण हैं। ताजमहल और अन्य उदाहरण, इस्लाम प्रभावित स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। भारतीय समाज बहुधर्मिक, बहुभाषी तथा मिश्र-सांस्कृतिक है। पारंपरिक भारतीय पारिवारिक मूल्यों को काफी आदर की दृष्टि से देखा जाता है। विभिन्न धर्मों के इस भूभाग पर कई मनभावन पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं - दिवाली, होली, दशहरा. पोंगल तथा ओणम . ईद उल-फ़ित्र, ईद-उल-जुहा, मुहर्रम, क्रिसमस, ईस्टर आदि भी काफ़ी लोकप्रिय हैं। हालाँकि हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल है, क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय है। वर्तमान में फुटबॉल, हॉकी तथा टेनिस में भी बहुत भारतीयों की अभिरुचि है। देश की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम 1983 और 2011 में दो बार विश्व कप और 2007 का 20–20 विश्व-कप जीत चुकी है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2003 में वह विश्व कप के फाइनल तक पहुँची थी। 1930 तथा 40 के दशक में हॉकी भारत में अपने चरम पर थी। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी में भारत को बहुत प्रसिद्धि दिलाई और एक समय भारत ने अमरीका को 24–0 से हराया था जो अब तक विश्व कीर्तिमान है। शतरंज के जनक देश भारत के खिलाड़ी विश्वनाथ आनंद ने अच्छा प्रदर्शन किया है। भारत में संगीत तथा नृत्य की अपनी शैलियां भी विकसित हुईं, जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कथक प्रसिद्ध भारतीय नृत्य शैली है। हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्नाटक संगीत भारतीय परंपरागत संगीत की दो मुख्य धाराएं हैं। वैश्वीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परंपरा का नया दौर कई भारतीयों की दृष्टि में उचित नहीं है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग इसे भारतीय पारंपरिक मूल्यों का हनन भी मानते हैं। विज्ञान तथा साहित्य में अधिक प्रगति न कर पाने की वजह से भारतीय समाज यूरोपीय लोगों पर निर्भर होता जा रहा है। ऐसे समय में लोग विदेशी अविष्कारों का भारत में प्रयोग अनुचित भी समझते हैं। भारतीय फिल्म उद्योग, दुनिया की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली सिनेमा का उत्पादन करता है। इसके अलावा यहाँ असमिया, बंगाली, भोजपुरी, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, गुजराती, मराठी, ओडिया, तमिल और तेलुगू भाषाओं के क्षेत्रीय सिनेमाई परंपराएं भी मौजूद हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय फिल्म राजस्व में 75% से अधिक का हिस्सा है। भारत में सितंबर 2016 तक 2200 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन सिनेमाघर थे तथा इसके 2019 तक 3000 तक बढ़ने की अपेक्षा की गई हैं। 1959 में भारत में टेलीविजन का प्रसारण, राज्य संचालित संचार के माध्यम के रूप में शुरू हुआ, और अगले दो दशकों तक इसका धीमी गति से विस्तार हुआ। 1990 के दशक में टेलीविजन प्रसारण पर राज्य के एकाधिकार समाप्त हो गया, और तब से, उपग्रह चैनलों ने भारतीय समाज की लोकप्रिय संस्कृति को आकार दिया है। आज, भारत में टेलीविज़न मनोरंजन का सबसे प्रचलित माध्यम हैं, तथा इसकी पैठ समाज के हर वर्ग तक फैली हैं। उद्योग के अनुमान हैं कि भारत में 2012 तक 462 मिलियन उपग्रह या केबल कनेक्शन के साथ, कुल 554 मिलियन से अधिक टीवी उपभोक्ता हैं, मनोरंजन के अन्य साधनो में प्रेस मीडिया, रेडियो तथा इंटरनेट भी सम्मलित हैं भारतीय खानपान बहुत ही समृद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही तरह का खाना पसन्द किया जाता है। भारतीय व्यंजन विदेशों में भी बहुत पसन्द किए जाते हैं। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद, भारत के अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। 1950 के दशक में, भारत ने पुरजोर रूप से अफ्रीका और एशिया में यूरोपीय उपनिवेशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी की भूमिका निभाई। 1980 के दशक में भारत दो पड़ोसी देशों के निमंत्रण पर, सेना के द्वारा संक्षिप्त सैन्य हस्तक्षेप किया, एक श्रीलंका मे और दुसरा मालदीव में। भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के साथ एक तनाव भरा संबंध है और दोनों देशों के बीच चार बार युद्ध हुआ है, 1947, 1965, 1971 और 1999में। कश्मीर विवाद इन युद्धों का प्रमुख कारण था। 1962 के भारत - चीन युद्ध और पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद भारत और सोवियत संघ के साथ सैन्य संबंधों मे॑ काफी बढ़ोतरी हुई। 1960 के दशक के अन्त में सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरी थी। रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध हैं। हाल के वर्षों में, भारत ने क्षेत्रीय सहयोग और विश्व व्यापार संगठन के लिए एक दक्षिण एशियाई एसोसिएशन में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। भारत ने 100,000 सैन्य और पुलिस कर्मियों को चार महाद्वीपों भर में संयुक्त राष्ट्र के पैंतीस शांति अभियानों में सेवा प्रदान की है। भारत ने विभिन्न बहुपक्षीय मंचों, सबसे खासकर पूर्वी एशिया के शिखर बैठक और जी-8 5 में एक सक्रिय भागीदारी निभाई है। आर्थिक क्षेत्र में भारत का दक्षिण अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका के विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ संबंध है। भारत में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं, जिसमें 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, और 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पूरे देश में मनाई जाती है। इसके अलावा अन्य पर्व राज्यों के अनुसार होते हैं। पर्वत · हिमनद · ज्वालामुखी · घाटियां · नदियां · झीलें · मरुस्थल · द्वीप · जलप्रपात · सागरतटमैदान भारत · ईरान · मालदीव · ओमान · पाकिस्तान · सोमालिया · यमन सन्दर्भ त्रुटि: "lower-alpha" नामक सन्दर्भ-समूह के लिए टैग मौजूद हैं, परन्तु समूह के लिए कोई टैग नहीं मिला। यह भी संभव है कि कोई समाप्ति टैग गायब है।
मोहन राकेश नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए किया। जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और लहरों के राजहंस के रचनाकार। 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित। 3 जनवरी 1972 को नयी दिल्ली में आकस्मिक निधन। मोहन राकेश हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। समाज के संवेदनशील व्यक्ति और समय के प्रवाह से एक अनुभूति क्षण चुनकर उन दोनों के सार्थक सम्बन्ध को खोज निकालना, राकेश की कहानियों की विषय-वस्तु है। मोहन राकेश की डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। मोहन राकेश को कहानी के बाद सफलता नाट्य-लेखन के क्षेत्र में मिली। हिंदी नाटकों में भारतेंदु और प्रसाद के बाद का दौर मोहन राकेश का दौर है जिसें हिंदी नाटकों को फिर से रंगमंच से जोड़ा। हिन्दी नाट्य साहित्य में भारतेन्दु और प्रसाद के बाद यदि लीक से हटकर कोई नाम उभरता है तो मोहन राकेश का। हालाँकि बीच में और भी कई नाम आते हैं जिन्होंने आधुनिक हिन्दी नाटक की विकास-यात्रा में महत्त्वपूर्ण पड़ाव तय किए हैं; किन्तु मोहन राकेश का लेखन एक दूसरे ध्रुवान्त पर नज़र आता है। इसलिए ही नहीं कि उन्होंने अच्छे नाटक लिखे, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने हिन्दी नाटक को अँधेरे बन्द कमरों से बाहर निकाला और उसे युगों के रोमानी ऐन्द्रजालिक सम्मोहक से उबारकर एक नए दौर के साथ जोड़कर दिखाया। वस्तुतः मोहन राकेश के नाटक केवल हिन्दी के नाटक नहीं हैं। वे हिन्दी में लिखे अवश्य गए हैं, किन्तु वे समकालीन भारतीय नाट्य प्रवृत्तियों के द्योतक हैं। उन्होंने हिन्दी नाटक को पहली बार अखिल भारतीय स्तर ही नहीं प्रदान किया वरन् उसके सदियों के अलग-थलग प्रवाह को विश्व नाटक की एक सामान्य धारा की ओर भी अग्रसर किया। प्रमुख भारतीय निर्देशकों इब्राहीम अलकाजी,ओम शिवपुरी, अरविन्द गौड़, श्यामानन्द जालान, राम गोपाल बजाज और दिनेश ठाकुर ने मोहन राकेश के नाटकों का निर्देशन किया। मोहन राकेश के दो नाटकों आषाढ़ का एक दिन तथा लहरों के राजहंस में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को लेने पर भी आधुनिक मनुष्य के अंतर्द्वंद और संशयों की ही गाथा कही गयी है। एक नाटक की पृष्ठभूमि जहां गुप्तकाल है तो दूसरा बौद्धकाल के समय के ऊपर लिखा गया है। आषाढ़ का एक दिन में जहां सफलता और प्रेम में एक को चुनने के द्वन्द से जूझते कालिदास एक रचनाकार और एक आधुनिक मनुष्य के मन की पहेलियों को सामने रखते हैं वहीँ प्रेम में टूटकर भी प्रेम को नही टूटने देनेवाली इस नाटक की नायिका के रूप में हिंदी साहित्य को एक अविस्मरनीय पात्र मिला है। लहरों के राजहंस में और भी जटिल प्रश्नों को उठाते हुए जीवन की सार्थकता, भौतिक जीवन और अध्यात्मिक जीवन के द्वन्द, दूसरों के द्वारा अपने मत को दुनिया पर थोपने का आग्रह जैसे विषय उठाये गए हैं। राकेश के नाटकों को रंगमंच पर मिली शानदार सफलता इस बात का गवाह बनी कि नाटक और रंगमंच के बीच कोई खाई नही है। संगीत नाटक अकादमी,1968
सॉस एक पकवान है जो द्रव-अवस्था में या अर्ध-द्रव अवस्था में होती है तथा दूसरे भोजन के साथ या उसे सजाने के लिये प्रयोग की जाती है। सॉस प्राय: अकेले कभी भी नहीं ग्रहण की जाती है। सॉस के प्रयोग से किसी दूसरे व्यंजन का फ्लेवर, नमी बदली जाती है या इसके प्रयोग से भोजन देखने में सुन्दर/आकर्षक दिखने लगता है। सॉस फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - नमक मिलाया हुआ या नमकीन।
इन्द्रजव एक आयुर्वेदिक वनस्पति है।
कक्वल ब्व्क एक्शप्रेस 0930 भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन कोचुवेली रेलवे स्टेशन से 08:50AM बजे छूटती है और भावनगर टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर 08:45AM बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है 47 घंटे 55 मिनट।
निर्देशांक: 21°36′10″N 71°13′05″E / 21.602871°N 71.21817°E / 21.602871; 71.21817रँगपुर भारत देश में गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र विस्तार में अमरेली जिले के 11 तहसील में से एक अमरेली तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। रँगपुर गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजदूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मूँगफली, तल, बाजरा, जीरा, अनाज, सेम, सब्जी, अल्फला इत्यादी की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नजदीकी शहर अमरेली है।
गांधार प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया। महाभारत काल में यहाँ के राजा शकुनि थे। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी यहाँ की राजकुमारी थी जिसका नाम इसी के नाम पर पड़ा।
आशिक हूँ बहारों का 1977 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
प्रोफेसर डी.पी.अग्रवाल संघ लोक सेवा आयोग, नई दिल्ली के अध्यक्ष थे। प्रोफेसर अग्रवाल अक्टूबर 2003 में एक सदस्य के रूप में संघ लोक सेवा आयोग शामिल हुए और अगस्त 2008 में उसके अध्यक्ष बन गए। प्रोफेसर अग्रवाल शिक्षण और अनुसंधान केन्द्रो में इंजीनियरिंग, आई.टी., शिक्षा प्रशासन और संस्थागत योजना और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में 30 वर्षों का अनुभव रखते हैं।
लीडिया या लुडया ईसा के पूर्व आठवीं सदी में वर्तमान पश्चिमी तुर्की में एक साम्राज्य हुआ करता था जिसे हिन्द-आर्य जाति का माना गया है। इनका प्राचीन ग्रीक लेखों में ज़िक्र मिलता है। छठी सदी ईसा पूर्व के अन्त में इसे फ़ारसी शासकों ने हरा दिया था। सरडिस इनकी राजधानी हुआ करती थी।
मुनार, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
रबिन्द्र कुमार जेना भारत की सोलहवीं लोकसभा में सांसद हैं। 2014 के चुनावों में इन्होंने ओडिशा की बालासोर सीट से बीजू जनता दल की ओर से भाग लिया।
मेरी कविता मेरे गीत डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार पद्मा सचदेव द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1971 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सनकुआ जलप्रपात मध्य प्रदेश में स्थित एक जलप्रपात है।
नास्त्रेदमस फ्रांस के एक 16वीं सदी के भविष्यवक्ता थे। नास्त्रेदमस केवल भविष्यवक्ता ही नही, डॉक्टर और शिक्षक भी थे। ये प्लेग जैसी बिमारियों का इलाज करते थे। इन्होने ने अपनी कविताओ के द्वारा भविष्य में होने वाली घटनाओ का वर्णन किया था। अधिकांश शैक्षणिक और वैज्ञानिक सूत्रों का कहना है कि दुनिया की घटनाओं और नास्त्रेदमस के शब्दों के बीच दिखाए गए संबंध काफी हद तक गलत व्याख्याओं या गलत अनुवाद का परिणाम है या फिर इतने कमजोर हैं कि उन्हें वास्तविक भविष्य बताने की शक्ति के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करना बेकार है। कुछ गलत व्याख्याएँ या गलत अनुवाद तो जानबूझकर भी किए गए हैं। इस के बावजूद है भी, बीसवीं शताब्दी में नास्त्रेदमस की कथित भविष्यवाणियाँ आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गईं और कई प्रमुख विश्व घटनाओं की भविष्यवाणी का श्रेय उन्हें दिया गया। भविष्य की बातों को हजारों साल पहले घोषणा करने के लिए मशहूर नास्त्रेदमस का जन्म 14 दिसम्बर 1503 को फ्रांस के एक छोटे से गांव सेंट रेमी में हुआ। उनका नाम मिशेल दि नास्त्रेदमस था बचपन से ही उनकी अध्ययन में खास दिलचस्पी रही और उन्होनें लैटिन, यूनानी और हीब्रू भाषाओं के अलावा गणित, शरीर विज्ञान एवं ज्योतिष शास्त्र जैसे गूढ विषयों पर विशेष महारत हासिल कर ली। नास्त्रेदमस ने किशोरावस्था से ही भविष्यवाणियां करना शुरू कर दी थी। ज्योतिष में उनकी बढती दिलचस्पी ने माता-पिता को चिंता में डाल दिया क्योंकि उस समय कट्टरपंथी ईसाई इस विद्या को अच्छी नजर से नहीं देखते थे। ज्योतिष से उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हे चिकित्सा विज्ञान पढने मांट पेलियर भेज दिया गया जिसके बाद तीन वर्ष की पढाई पूरी कर नास्त्रेदमस चिकित्सक बन गए। 23 अक्टूबर 1529 को उन्होने मांट पोलियर से ही डॉक्टरेट की उपाधि ली और उसी विश्वविद्यालय में शिक्षक बन गए। पहली पत्नी के देहांत के बाद 1547 में यूरोप जाकर उन्होने ऐन से दूसरी शादी कर ली। इस दौरान उन्होनें भविष्यवक्ता के रूप में खास नाम कमाया। एक किंवदंती के अनुसार एक बार नास्त्रेदमस अपने मित्र के साथ इटली की सड़कों पर टहल रहे थे, उन्होनें भीड़ में एक युवक को देखा और जब वह युवक पास आया तो उसे आदर से सिर झुकाकर नमस्कार किया। मित्र ने आश्चर्यचकित होते हुए इसका कारण पुछा तो उन्होने कहा कि यह व्यक्ति आगे जाकर पोप का आसन ग्रहण करेगा। किंवदंती के अनुसार वास्तव में वह व्यक्ति फेलिस पेरेती था जिसने 1585 में पोप चुना गया। नास्त्रेदमस के बारे में ऐसी कई कहानियाँ हैं, लेकिन इनमें से किसी के लिए कोई सबूत नहीं है। नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियां की ख्याति सुन फ्रांस की महारानी कैथरीन ने अपने बच्चों का भविष्य जानने की इच्छा जाहिर की। नास्त्रेदमस अपनी इच्छा से यह जान चुके थे कि महारानी के दोनो बच्चे अल्पायु में ही पूरे हो जाएंगे, लेकिन सच कहने की हिम्मत नहीं हो पायी और उन्होंने अपनी बात को प्रतीकात्मक छंदों में पेश किया। इसक प्रकार वह अपनी बात भी कह गए और महारानी के मन को कोई चोट भी नहीं पहुंची। तभी से नास्त्रेदमस ने यह तय कर लिया कि वे अपनी भविष्यवाणीयां को इसी तरह छंदो में ही व्यक्त करेंगें। 1550 के बाद नास्त्रेदमस ने चिकित्सक के पेशे को छोड़ अपना पूरा ध्यान ज्योतिष विद्या की साधना पर लगा दिया। उसी साल से अन्होंने अपना वार्षिक पंचाग भी निकालना शुरू कर दिया। उसमें ग्रहों की स्थिति, मौसम और फसलों आदि के बारे में पूर्वानुमान होते थे। कहा जाता है कि उनमें से ज्यादातर सत्य साबित हुई। नास्त्रेदमस ज्योतिष के साथ ही जादू से जुड़ी किताबों में घंटों डूबे रहते थे। नास्त्रेदमस ने 1555 में भविष्यवाणियों से संबंधित अपने पहले ग्रंथ सेंचुरी के प्रथम भाग का लेखन पूरा किया, जो सबसे पहले फ्रेंच और बाद में अंग्रेजी, जर्मन, इटालवी, रोमन, ग्रीक भाषाओं में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक ने फ्रांस में इतना तहलका मचाया कि यह उस समय महंगी होने के बाद भी हाथों-हाथ बिक गई। उनके कुछ व्याख्याकारों क मानना है कि इस किताब के कई छंदो में प्रथम विश्व युद्ध, नेपोलियन, हिटलर और कैनेडी आदि से संबंद्ध घटनाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। व्याख्याकारों ने नास्त्रेदमस के अनेक छंदो में तीसरे विश्वयुद्ध का पूर्वानुमान और दुनिया के विनाश के संकेत को भी समझ लेने में सफलता प्राप्त कर लेने का दावा किया है। अधिकांश शैक्षणिक और वैज्ञानिक सूत्रों का कहना है कि ये व्याख्याएँ गलत अनुवाद या गलतफ़हमी का परिणाम हैं और कुछ गलतियाँ तो जानबूझकर भी की गईं हैं। नास्त्रेदमस के जीवन के अंतिम साल बहुत कष्ट से गुजरे। फ्रांस का न्याय विभाग उनके विरूद्ध यह जांच कर रहा था कि क्या वह वास्ताव में जादू-टोने का सहारा लेते थे। यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता, तो वे दंड के अधिकारी हो जाते। लेकिन जांच का निष्कर्ष यह निकला कि वे कोई जादूगर नहीं बल्कि ज्योतिष विद्या में पारंगत है। उन्हीं दिनों जलोदर रोग से ग्रस्त हो गए। शरीर में एक फोड़ा हो गया जो लाख उपाचार के बाद भी ठीक नहीं हो पाया। उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था, इसलिए उन्होंने 17 जून 1566 को अपनी वसीयत तैयार करवाई। एक जुलाई को पादरी को बुलाकर अपने अंतिम संस्कार के निर्देश दिए। 2 जूलाई 1566 को इस मशहूर भविष्यवक्ता का निधन हो गया। कहा जाता है कि अपनी मृत्यु की तिथि और समय की भविष्यवाणी वे पहले ही कर चुके थे। एक व्याख्या के अनुसार "नास्त्रेदमस ने अपने संबंध मे जो कुछ गिनी-चुनी भविष्यवाणियां की थी, उनमें से एक यह भी थी कि उनकी मौत के 225 साल बाद कुछ समाजविरोधी तत्व उनकी कब्र खोदेंगे और उनके अवशेषों को निकालने का प्रयास करेंगे लेकिन तुरंत ही उनकी मौत हो जाएगी। वास्तव मे ऐसी ही हुआ। फ्रांसिसी क्रांति के बाद 1791 में तीन लोगों ने नास्त्रेदमस की कब्र को खोदा, जिनकी तुरंत मौत हो गयी।" यह केवल एक शहरी मिथक .
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निर्देशांक: 27°30′N 79°24′E / 27.5°N 79.4°E / 27.5; 79.4 रसीदपुर मजरा अटसेनी कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
18 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 291वॉ दिन है। साल मे अभी और 74 दिन बाकी है।
बिछट्टा, कनालीछीना तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इस अनुच्छेद को विकिपीडिया लेख Black hole के इस संस्करण से अनूदित किया गया है। सामान्य सापेक्षता में, कालाछिद्र या ब्लैक होल या कृष्ण विवर इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र वाली कोई ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसके खिंचाव से प्रकाश-सहित कुछ भी न बच सके। कालेछिद्र के चारों ओर घटना क्षितिज नामक एक सीमा होती है जिसमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ नहीं आ सकता। इसे "काला" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता। यह ऊष्मागतिकी में ठीक एक आदर्श कृष्णिका की तरह है। कालेछिद्र का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक कालाछिद्र अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। मसलन कालेछिद्र का पता तारों के किसी समूह की गति से लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से की परिक्रमा कर रहे हों। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे द्वारा आप अपेक्षाकृत छोटे कालेछिद्र में गैस गिराते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, उनके स्वयं न दिखने के बावजूद, हमारे ब्रह्मांड में कालेछिद्र अस्तित्व रखते है। इन्हीं विधियों से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग, के केन्द्र में स्थित धनु ए* नामक रेडियो स्रोत में एक विशालकाय कालाछिद्र स्थित है जिसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान से 43 लाख गुना है। सैद्धांतिक रूप से, किसी भी मात्रा का पदार्थ एक कालाछिद्र बन सकता है, यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान 3 कि. मी. की त्रिज्या तथा पृथ्वी का 9 मि.मी. के अन्दर होने पर यह कालेछिद्र में परिवर्तित हो सकते हैं। व्यावहारिक रूप में इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन आपजात्य दबाव के विपरीत न तो पृथ्वी और न ही सूरज में आवश्यक द्रव्यमान है और इसलिए न ही आवश्यक गुरुत्वाकर्षण बल है। इन दबावों से उबरकर और अधिक संकुचित होने में सक्षम होने के लिए एक तारे के लिए आवश्यक न्यूनतम द्रव्यमान तोलमन - ओप्पेन्हेइमेर - वोल्कोफ्फ़ द्वारा प्रस्तावित हद है, जो लगभग तीन सौर द्रव्यमान है। एक कालेछिद्र को अक्सर एक ऐसी वस्तु रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका पलायन वेग प्रकाश की गति से अधिक हो। यह तस्वीरगुणात्मक रूप से गलत है लेकिन कालेछिद्र की त्रिज्या के परिमाण के क्रम को समझने का एक तरीका प्रदान करती है। पलायन वेग वह न्यूनतम गति है जो एक वस्तु में होनी चाहिए ताकि वह वस्तु रुकने से पहले किसी गुरुत्त्वाकर्षण स्रोत की कक्षा से बचकर निकल जाये। पृथ्वी पर पलायन वेग 11.2 किमी/सेकंड के बराबर है, अतः वस्तु चाहे कोई भी हो, एक गोली या एक बॉल, इसे पृथ्वी की सतह पर वापस गिरने से बचने के लिए कम से कम 11.2 किमी/सेकंड की गति से चलना होगा। न्यूटोनियन यांत्रिकी में पलायन वेग की गणना हेतु, मानिये कि एक भारी वस्तु है जिसका द्रव्यमान M मूल पर केन्द्रित है। एक m {\displaystyle m} द्रव्यमान वाली दूसरी वस्तु मूल से r {\displaystyle r} की दूरी पर v {\displaystyle v} गति से शुरू होती है, इन्फिनिटी की तरफ बचकर निकलने की कोशिश करती है, इसके पास ठीक उतनी गतिज ऊर्जा होनी चाहिए ताकि वह नकारात्मक गुरुत्वाकर्षण की संभावित ऊर्जा से पार पा सके, बाद में कुछ भी शेष न रहे: इस प्रकार, यह जैसे जैसे r = ∞ {\displaystyle r=\infty } के करीब आती जाती है वैसे वैसे इसकी गतिज ऊर्जा कम होती जाती है, अंततः यह बिना किसी गति के अनंतता पर पहुँच जाती है। यह फार्मूला क्रिटिकल पलायन वेग v {\displaystyle v} को M {\displaystyle M} और r {\displaystyle r} के सन्दर्भ में दर्शाता है। लेकिन यह फार्मूला यह भी कहता है कि v {\displaystyle v} और M {\displaystyle M} की प्रत्येक वेल्यू के लिए, r {\displaystyle r} की एक क्रिटिकल वेल्यू होती है ताकि v {\displaystyle v} गति वाला एक कण भागने मात्र में सफल रहे: जब वेग प्रकाश की गति के बराबर हो, यह एक काल्पनिक न्यूटोनियन डार्क स्टार की त्रिज्या प्रदान करता है, एक न्यूटोनियन शरीर जहाँ से प्रकाश की गति से चलने वाला कोई कण बच नहीं सकता है। एक कालेछिद्र की त्रिज्या की वेल्यू के लिए सर्वाधिक प्रयुक्त चलन में, घटना क्षितिज की त्रिज्या इस न्यूटोनियन वेल्यू के बराबर होती है। सामान्य सापेक्षता में, अंतरिक्ष-समय की वक्रित प्रकृति और विभिन्न निर्देशांकों के चयन की वजह से r निर्देशांक को परिभाषित करना सरल नहीं है। इस परिणाम के सत्य होने के लिए, r की वेल्यू को इस प्रकार परिभाषित करना चाहिए ताकि वक्रित अन्तरिक्ष समय में r त्रिज्या एक स्फियर के A सतही क्षेत्र को अभी भी इस फार्मूला द्वारा प्रकट किया जा सके A = 4 π r 2 {\displaystyle A=4\pi r^{2}} r की इस परिभाषा से कोई अर्थ तभी निकलता है जब गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र स्फेरिकली सममित हो, ताकि वहां एक के ऊपर एक कई सियार हों जिनपर एकसमान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र हो। किसी वस्तु के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बच निकलने के लिए पलायन वेग उसके घनत्व पर निर्भर करती है; यह है, उसके द्रव्यमान और मात्रा का अनुपात। एक कालाछिद्र तब बनता है जब कोई वस्तु इतनी घनी हो जाये कि किसी खास दूरी तक प्रकाश भी उससे बचकर न जाने पाये, क्योंकि प्रकाश की गति कालेछिद्र के पलायन वेग से कम होगी। न्यूटोनियन गुरुत्वाकर्षण के विपरीत, सामान्य सापेक्षता में, कालेछिद्र से दूर जाता हुआ प्रकाश धीमा नहीं पड़ता है और वापिस नहीं मुड़ता है। स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या अभी भी वह अंतिम दूरी है जहाँ से प्रकाश अनन्तता के लिए बच सकता है, लेकिन स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या से शुरू होकर बाहर निकलने वाला प्रकाश वापस नहीं आता है, वह बाहर ही रहता है। स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या अंदर, प्रत्येक वस्तु अन्दर की तरफ गति करती है, किसी प्रकार केंद्र में कुचले जाने हेतु। सामान्य सापेक्षता में, कालाछिद्र का द्रव्यमान किसी गुरुत्वीय अपूर्वता) पर केन्द्रित रह सकता है, यह एक बिंदु, एक छल्ला, एक प्रकाश किरण, या एक स्फियर हो सकता है; वर्तमान में इसके विषय में ठीक ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस सिंग्युलेरीटी के आसपास एक गोलाकार सीमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है। यह घटना क्षितिज को 'वापस लौटने का स्थान' होता है, एक सीमा जिसके परे सारे पदार्थ और विकिरण भीतर सिंग्युलेरीटी की तरफ खींचे चले आते हैं। केन्द्रस्थ इस सिंग्युलेरीटी और घटना क्षितिज के बीच की दूरी कालेछिद्र का आकार होती है और यह इकाई में द्रव्यमान के दुगने के बराबर होती है जहाँ G और c बराबर 1 हैं। सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाले कालेछिद्र की त्रिज्या लगभग 3 किमी होती है। इससे कई गुनी अधिक दूरियों के लिए, कालेछिद्र की गुरुत्त्वाकर्षण शक्ति समान द्रव्यमान वाले किसी भी अन्य शरीर की गुरुत्त्वाकर्षण शक्ति के ठीक बराबर होती है, बिलकुल सूर्य के समान। इसलिए यदि सूर्य को समान द्रव्यमान वाले एक कालेछिद्र के परिवर्तित कर दिया जाये, ग्रहों की कक्षाएं अपरिवर्तित रहेंगी। कई प्रकार के कालेछिद्र हैं, जो उनके विशिष्ट आकार द्वारा पहचाने जाते हैं। जब वे एक तारा के गुरुत्वाकर्षण पतन के कारण बनते हैं, उन्हें तारकीय कालाछिद्र कहा जाता है। गैलेक्सियों के केंद्र में बनने वाले कालाछिद्रों के द्रव्यमान सौर द्रव्यमान के कई अरब गुना हो सकते हैं, उन्हें विशालकाय काला छिद्र कहा जाता है क्योंकि वे अति विशाल होते हैं। इन दोनों पैमानों के बीच में कुछ मध्यवर्ती कालेछिद्र भी होते हैं जिनके द्रव्यमान सौर द्रव्यमान के कई हजार गुने तक होते हैं। बहुत कम द्रव्यमान वाले कालेछिद्र का, जिनके बारे में ऐसा माना जाता है कि उनका निर्माण ब्रह्माण्ड के शुरुआती इतिहास में बिग बैंग के दौरान हुआ होगा, अब भी अस्तित्व भी हो सकते हैं और उन्हें प्रिमौरडियल कालाछिद्र कहा जाता है। वर्तमान में उनका अस्तित्व अभी निश्चित नहीं है। प्रत्यक्ष तौर पर एक कालेछिद्र को देख पाना संभव नहीं है। हालाँकि, आसपास के पर्यावरण पर उसके गुरुत्त्वीय प्रभाव द्वारा उसकी उपस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है, खास कर माइक्रोक्वासार और सक्रीय गैलेक्सीय नाभिकों द्वारा, जहाँ पास के कालेछिद्र में गिरने वाले पदार्थ अति गरम हो जाते हैं और एक्स-रे विकिरण की बड़ी मात्रा छोड़ते हैं। यह प्रेक्षण विधि खगोलविदों को उनके अस्तित्व का पता लगाने में सक्षम बनाती है। कालेछिद्र एकमात्र ऐसे पदार्थ हैं जो इन पैमानों पर खरे उतरते हैं और सामान्य सापेक्षता के ढांचे के अनुरूप होते हैं। एक ऐसे भारी शरीर की अवधारणा जिससे कि प्रकाश भी बचने से असमर्थ हो को, भूविज्ञानी जॉन मिचेल द्वारा 1783 में हेनरी कावेंदिश को लिखे गये एक पत्र में प्रकट किया गया था और रॉयल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किया गया था: 1796 में, गणितज्ञ पिएर्रे-साइमन लाप्लास ने अपनी किताब एक्स्पोसिशन डू सिस्टेम डू मोंडे के पहले और दूसरे संस्करण में इसी विचार को बढ़ावा दिया था । उन्नीसवीं सदी में इन "डार्क स्टार्स" पर ध्यान नहीं दिया गया था, क्योंकि तब ऐसा माना जाता था कि प्रकाश द्रब्यमान रहित तरंग है अतः गुरुत्व के प्रभाव से मुक्त है। आधुनिक ब्लैक होल अवधारणा के विपरीत, ऐसा माना जाता था कि क्षितिज के पीछे की वस्तु का पतन नहीं हो सकता है। 1915 में, अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को विकसित किया, वे पहले ही यह सिद्ध कर चुके थे कि गुरुत्वाकर्षण प्रकाश की गति पर वास्तव में प्रभाव डालता है। कुछ महीने बाद, कार्ल स्च्वार्जस्चिल्ड ने एक बिंदु द्रब्यमान और एक गोलाकार द्रव्यमान के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का समाधान दिया, यह दिखाते हुए कि एक ब्लैक होल का अस्तित्व सिद्धांततः संभव है। स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या को अब गैर-चक्रित ब्लैक होल के घटना क्षितिज की त्रिज्या के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस तथ्य को उस समय नहीं समझा जा सका था, उदाहरण के लिए स्च्वार्जस्चिल्ड खुद इसे भौतिक नहीं मानते थे। जोहानिस द्रोस्ते नें, हेंड्रिक लोरेंत्ज़ के एक छात्र, स्वतंत्र रूप से बिंदु द्रव्यमान पर स्च्वार्जस्चिल्ड के कुछ महीनों के बाद ऐसा ही समाधान दिया और इसके गुणों के बारे में बड़े पैमाने पर और अधिक लिखा। 1930 में, खगोलविद सुब्रमन्यन चंद्रशेखर नें सामान्य सापेक्षता का उपयोग करते हुए यह गणना की कि इलेक्ट्रॉन-डिजनरेट पदार्थ वाले एक गैर-चक्रित शरीर का सौर द्रव्यमान यदि 1.44 से अधिक हुआ तो उसका पतन हो जायेगा। उनके तर्क का आर्थर एडिंग्टन द्वारा विरोध किया गया था, जिनका विश्वास था कि कोई वस्तु निश्चित रूप से इस पतन को रोकेगी। एडिंग्टन आंशिक रूप से सही थे: चंद्रशेखर सीमा से थोडा अधिक द्रब्यमान वाला सफेद बौना सितारा पतन के बाद न्यूट्रॉन तारे में परिवर्तित हो जायेगा. लेकिन 1939 में, रॉबर्ट ओप्पेन्हेइमेर और उनके सहयोगियों ने भविष्यवाणी की कि चन्द्रशेखर द्वारा दिए गए कारणों की वजह से, लगभग तीन से अधिक सौर द्रब्यमान वाले सितारा का पतन एक ब्लैक होल के रूप में हो जायेगा। ओप्पेन्हेइमेर और उनके सह लेखकों ने श्वार्ज़स्चाइल्ड निर्देशांक प्रणाली का उपयोग किया, जिसने श्वार्ज़स्चाइल्ड त्रिज्या पर गणितीय विशिष्टता को उत्पादित किया, दूसरे शब्दों में, इस समीकरण में इस्तमाल किये गए कुछ घटक श्वार्ज़स्चाइल्ड त्रिज्या पर अनंत हो जाते थे। इसका अर्थ यह निकला गया कि स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या एक "बुलबुले" की सीमा थी जिसमें समय "रुक" जाता था। यह बाहर से देखने वालों के लिए एक वैध बिंदु है, लेकिन अन्दर गिरने वालों के लिए नहीं। इस विशेषता के कारण, पतन हो चुके तारों को कुछ समय के लिए "फ्रोजेन स्टार्स " के नाम से जाना गया, क्योंकि एक बाहरी पर्यवेक्षक को तारे की सतह उस समय में जमी हुई दिखाई देगा जिस पल में तारे का पतन उसे स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या के अंदर ले जा रहा होगा। यह आधुनिक ब्लैक होलों का एक ज्ञात लक्षण है, लेकिन इस बात पर बल दिया जाना चाहिए कि जमे हुए तारे की सतह का प्रकाश बहुत जल्दी रेडशिफ्टेड हो जाता है और ब्लैक होल को बहुत जल्दी काले रंग का बना देता है। कई भौतिकविद इस विचार को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या के भीतर समय रुक जाता है और 20 वर्षों तक इस बिषय पर लोगों कि रूचि नहीं रही थी। 1958 में, डेविड फिन्केइस्तें ने एडिंग्टन-फिन्केल्स्तें निर्देशांक प्रस्तुत करते हुए घटना क्षितिज की अवधारणा पेश की, जिसने उन्हें यह साबित करने में सक्षम किया कि स्च्वार्जस्चिल्ड सतह r= 2 m एक विशिष्टता नहीं है बल्कि यह एक आदर्श एकलदिशा झिल्ली के रूप में कार्य करता है: कारणात्मक प्रभाव इसे एक ही दिशा में पार कर सकते हैं। इसमें और ओपेन्हीमर के परिणामों को कोई खास विरोधाभास नहीं था, बल्कि इसने एक अन्दर गिरते हुए पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण को शामिल करके इसका विस्तार ही किया। फ़िन्केल्स्तीन समेत, अभी तक के सारे सिद्धांत केवल गैर-चक्रित ब्लैक होलों को कवर करते थे। 1963 में, रॉय केर ने आवर्ती ब्लैक होल के लिए एकदम सटीक समाधान खोज लिया। इसकी चक्रित सिंग्युलेरिटी एक बिंदु नहीं बल्कि एक छल्ला थी। कुछ समय बाद, रोजर पेनरोस यह साबित करने में सक्षम हो गये कि सिंग्युलेरिटी सभी ब्लैक होलों के अन्दर पाई जाती हैं। 1967 में, खगोलविदों ने पल्सर की खोज की और कुछ वर्षों के भीतर यह साबित करने में सक्षम हो गये कि ज्ञात पल्सर, तेजी से चक्रित न्यूट्रॉन तारे ही हैं। उस समय तक, न्यूट्रॉन तारे भी सिर्फ सैद्धांतिक उत्सुकता तक ही सिमित थे। इसलिए पल्सर की खोज ने उन सभी अति घनत्व वाली वस्तुओं के प्रति रूचि को जागृत किया जिनकी संरचना गुरुत्वीय पतन से होना संभव हुआ होगा। भौतिकविद् जॉन व्हीलर को व्यापक रूप से 1967 में दिए गए अपने सार्वजनिक भाषण हमारा ब्रह्मांड: ज्ञात और अज्ञात में ब्लैक होल शब्द को गढ़ने का श्रेय दिया जाता है, अधिक दुष्कर "गुरुत्वीय रूप से पूर्णतः पतन को प्राप्त कर चुका तारा" के एक विकल्प के रूप में। हालांकि, व्हीलर ने जोर दिया था कि सम्मेलन में यह शब्द किसी और ने गढ़ा था और उन्होंने इसको केवल एक उपयोगी लघु-शब्द के रूप में अपनाया। यह शब्द 1964 में ऐनी एविंग द्वारा AAAS को लिखे एक पत्र में भी उद्धृत किया गया था: जब किसी बड़े तारे का पूरा का पूरा ईंधन जल जाता है तो उसमें एक ज़बरदस्त विस्फोट होता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं। विस्फोट के बाद जो पदार्थ बचता है वह धीरे धीरे सिमटना शुरू होता है और बहुत ही घने पिंड का रूप ले लेता है जिसे न्यूट्रॉन स्टार कहते हैं। अगर न्यूट्रॉन स्टार बहुत विशाल है तो गुरुत्वाकर्षण का दबाव इतना होगा कि वह अपने ही बोझ से सिमटता चला जाएगा और इतना घना हो जाएगा कि ब्लैक होल बन जाएगा और श्याम विवर, कृष्ण गर्त या ब्लैक होल के रूप में दिखाई देगा। नो हेयर प्रमेय में कहा गया है कि, एक बार स्थापित हो जाने के बाद ब्लैक होल के केवल तीन स्वतंत्र भौतिक लक्षण होते हैं: द्रव्यमान, चार्ज और कोणीय गति। किन्हीं दो ब्लैक होल की इन विशेषताओं या पैरामीटर की वेल्यू यदि समान हो तो उनके बीच भेद करना काफी दुष्कर हो जाता है। ये लक्षण खास होते हैं क्योंकि ये ब्लैक होल के बाहर से दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, अन्य किसी चार्जकृत वस्तु की ही तरह एक चार्जकृत ब्लैक होल भी समान चार्ज को दूर धकेलता है, इस तथ्य के बावजूद भी कि विद्युत और चुंबकीय बलों के लिए जिम्मेदार कण फोटौंस, आतंरिक क्षेत्र से बचकर निकल नहीं पाते हैं। इसका कारण है गाऊस नियम, एक बड़े स्फियर से बाहर निकलने वाला कुल विद्युत प्रवाह हमेशा समान रहता है और स्फियर के भीतर के कुल चार्ज को मापता है। जब चार्ज ब्लैक होल में गिरता है, विद्युत क्षेत्र लाइनें बनी रहती हैं और क्षितिज से बाहर की और झांकती रहती हैं और ये क्षेत्र लाइनें गिरने वाले सभी पदार्थों के कुल चार्ज को संरक्षित करती हैं। बिजली क्षेत्र लाइनें अंततः ब्लैक होल की सतह पर समान रूप से फ़ैल जाती हैं, सतह पर समान क्षेत्र लाइन घनत्व स्थापित करती हैं। इस सन्दर्भ में ब्लैक होल एक आम कंडकटिंग स्फियर की तरह काम करता है जिसकी एक निश्चित रेसिसटीविटी होती है। इसी तरह, ब्लैक होल को समाहित किये हुए एक स्फीयर के कुल द्रव्यमान को गॉस नियम के गुरुत्वीय अनुरूप का उपयोग करके पाया जा सकता है, ब्लैक होल से बहुत दूर बैठे बैठे। इसी तरह, कोणीय गति को बहुत दूर से, गुरुत्त्वीय-चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा फ्रेम ड्रेगिंग का उपयोग करके मापा जा सकता है। जब ब्लैक होल किसी पदार्थ को निगलता है, उसका क्षितिज घर्षण युक्त विस्तृत झिल्ली की तरह दोलन करता है, एक क्षणिक प्रणाली, जब तक यह अंतिम अवस्था में स्थापित नहीं हो जाता। यह विद्युत-चुंबकत्व या गेज सिद्धांत जैसे अन्य क्षेत्र सिद्धांत से अलग है, जिनमें कभी भी कोई घर्षण या रेसिसटीविटी नहीं होती क्योंकि वे समय पलटवाँ होते हैं। क्योंकि ब्लैक होल अंततः एक अंतिम अवस्था में केवल तीन मापदंडों के साथ स्थापित होता है, प्रारंभिक स्थितियों के बारे में जानकारी को खोने से बचाने का कोई तरीका नहीं है: ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण और विद्युत क्षेत्र उसके अन्दर जाने वाली चीजों के बारे में बहुत कम जानकारी प्रदान कर पाते हैं। लुप्त जानकारी में वे सभी चीजें शामिल हैं जिन्हें ब्लैक होल क्षितिज से बहुत दूरी से मापा नहीं जा सकता है, जैसे की, कुल बेरयोन नंबर, लेपटोन नंबर, तथा कण भौतिकी के लगभग सभी अन्य संरक्षित स्यूडो-चार्ज। यहाँ से करना है यह व्यवहार इतना अजीब है कि इसे 'ब्लैक होल जानकारी नुकसान विरोधाभास' कहा गया है। पारंपरिक रूप से भी ब्लैक होल में जानकारी का लुप्त होना काफी अजीब है, क्योंकि सामान्य सापेक्षता एक लैग्रेन्गियन सिद्धांत है जो ऊपर ऊपर से टाइम रिवर्सिबल और हैमिल्टोनीयन प्रतीत होता है। लेकिन क्षितिज के कारण ब्लैक होल समय पलटवाँ नहीं होता है: पदार्थ इसमें घुस सकते हैं पर निकल नहीं सकते। एक आम ब्लैक होल में समय के पलटने को व्हाइट होल कहा गया है, हालाँकि एंट्रोपी और क्वांटम मकेनिक्स यह दर्शाते हैं कि व्हाइट होल ब्लैक होल के समान ही हैं। नो-हेयर प्रमेय हमारे ब्रह्मांड और उसमें शामिल पदार्थों की प्रकृति के बारे में कुछ मान्यताओं बनाता है, जबकि अन्य मान्यतायें अलग निष्कर्ष प्रदान करती हैं। उदहारण के लिए, यदि चुम्बकीय एकल-ध्रुवों का अस्तित्व है, जैसा कि कुछ सिद्धांतों द्वारा कहा गया है, चुम्बकीय चार्ज एक पारम्परिक ब्लैक होल का चौथा मापदंड होगा। निम्नलिखित मामलों के लिए नो-हेयर प्रमेय के प्रति-उदहारण ज्ञात हैं: ये अपवाद कभी कभी अस्थिर होते हैं और कभी कभी ब्लैक होल से दूर नई संरक्षित क्वांटम संख्याओं तक नहीं ले जाते हैं। हमारे चार-आयामी और लगभग सपाट ब्रह्माण्ड में इस प्रमेय को लागू होना चाहिए। सरलतम ब्लैक होल वह है जिसका द्रब्यमान है लेकिन न तो चार्ज है और न ही कोणीय गति। इन ब्लैक होल को स्च्वार्जस्चिल्ड ब्लैक होल के नाम से भी जाना जाता है, भौतिकविद् कार्ल स्च्वार्जस्चिल्ड के नाम पर जिन्होंने 1915 में इस समाधान की खोज की थी। यह आइंस्टीन क्षेत्र समीकरण के लिए खोजा जाने वाला पहला विश्वसनीय और सटीक समाधान था और बिर्खोफ्फ़ प्रमेय के अनुसार यह एकमात्र निर्वात समाधान है जो स्फेरिकली सिमेट्रिक है। इसका मतलब यह है कि इस तरह के एक ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र और समान द्रव्यमान की किसी भी अन्य गोलाकार वस्तु के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बीच कोई दृश्य अंतर नहीं है। ब्लैक होल के लिए यह लोकप्रिय धारणा की यह अपने चारों ओर "प्रत्येक वस्तु को अन्दर खींचता रहता है" केवल इसके क्षितिज के पास ही सत्य बैठती है; दूरी पर, इसका बाहरी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अनिवार्य रूप से साधारण भारी पिंडों की तरह का ही होता है। ब्लैक होल के अधिक सामान्य समाधान 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में खोजे गये थे। रेइस्स्नेर-नोर्दस्त्रोम मेट्रिक विद्युत चार्ज वाले ब्लैक होल का वर्णन करता है, जबकि केर्र मेट्रिक एक चक्रित ब्लैक होल प्रदान करता है। केर्र -न्यूमैन मेट्रिक सामान्यतया अधिक प्रचलित स्थिर ब्लैक होल समाधान है, जो चार्ज और कोणीय गति दोनों का वर्णन करता है। हालांकि एक ब्लैक होल का द्रव्यमान कोई भी पोजिटिव मूल्य ले सकता है, चार्ज और कोणीय गति द्रव्यमान द्वारा बाध्य होते हैं। प्राकृतिक इकाइयों में, कुल चार्ज Q {\displaystyle Q\,} और कुल कोणीय गति J {\displaystyle J\,} से उम्मीद की जाती है कि वे निम्नलिखित को संतुष्ट करेंगे M द्रव्यमान वाले एक ब्लैक होल के लिए। इस असमानता को भरने वाले ब्लैक होल को एक्सट्रीमल कहा जाता है। असमानता का उल्लंघन करने वाले आइंस्टीन के समीकरणों के समाधानों का अस्तित्व है, लेकिन उनमें क्षितिज नहीं है। इन समाधानों में नग्न विशिष्टता है और इन्हें अभौतिक माना जाता है, क्योंकि कॉस्मिक सेंसरशिप परिकल्पना वास्तविक पदार्थों के समग्र गुरुत्वाकर्षण पतन की वजह से इस विशिष्टता को नकार देती है। यह संख्यात्मक अनुकृतियों द्वारा समर्थित है। विद्युत चुम्बकीय बल की अपेक्षाकृत बड़ी ताकत के कारण, तारों के पतन से बनने वाले ब्लैक होल से अपेक्षा की जाती है कि वे तारों के न्यूट्रल चार्ज को बनाये रखेंगे। चक्रण को कॉम्पैक्ट वस्तुओं का एक सामान्य गुण माना गया है और ऐसा प्रतीत होता है कि ब्लैक होल के प्रत्याशी binary X-ray source GRS 1915+105 की कोणीय गति अपने अधिकतम संभव वेल्यू के करीब है। ब्लैक होल को सामान्यतः उनके द्रव्यमान के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, कोणीय गति J {\displaystyle J\,} से स्वतंत्र. घटना क्षितिज त्रिज्या, या श्वार्ज़स्चाइल्ड त्रिज्या, द्वारा निर्धारित ब्लैक होल का आकार द्रव्यमान M {\displaystyle M\,} के अनुपात में होता है, जहाँ r s h {\displaystyle r_{sh}\,} स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या है और M ⨀ {\displaystyle M_{\bigodot }} सूर्य का द्रव्यमान है। इस प्रकार एक ब्लैक होल का आकार और द्रव्यमान साधारण रूप से संबंधित होते हैं, रोटेशन से स्वतंत्र। इस कसौटी के अनुसार, ब्लैक होलों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है: ब्लैक होल की विशिष्टता है घटना क्षितिज का प्रकट होना; अन्तरिक्ष-समय की एक सीमा जिसके परे घटनाएँ एक बाहरी पर्यवेक्षक को प्रभावित नहीं कर सकती हैं। जैसा कि सामान्य सापेक्षता ने भविष्यवाणी की थी, द्रव्यमान की उपस्थिति अन्तरिक्ष-समय को इस प्रकार विकृत कर देती है कि कणों के मार्ग उन्हें उस द्रव्यमान की तरफ ले जाते हैं। ब्लैक होल के घटना क्षितिज पर यह विकृति इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि बाहर जाने का कोई मार्ग बचता ही नहीं है। एक बार कोई कण घटना क्षितिज के अन्दर आ जाये, उसका ब्लैक होल के भीतर जाना अवश्यंभावी हो जाता है। दूर खड़े एक दर्शक के लिए, ब्लैक होल के निकट की घडियाँ ज्यादा धीरे चलती प्रतीत होंगी। इस प्रभाव के कारण, दूर खड़ा दर्शक यह देखेगा कि ब्लैक होल में गिरने वाली कोई वस्तु उसके घटना क्षितिज के निकट आने पर धीमी हो जाती है, उस तक पहुँचने के लिए अनंत समय लेती हुई प्रतीत होती है। उसी समय इस वस्तु की सभी क्रियाएँ धीमी हो जाती हैं जिसके परिणाम स्वरूप निकलने वाला प्रकाश अधिक लाल और मद्धम प्रतीत होता है, इस प्रभाव को ग्रेविटेशनल रेड शिफ्ट कहा जाता है। अंत में, गिरने वाली वस्तु इतनी मद्धम हो जाती है कि दिखाई देना बंद हो जाती है, एक बिंदु पर घटना क्षितिज पर पहुँचने से ठीक पहले। गैर-चक्रित ब्लैक होल के लिए स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या स्फेरिकल घटना क्षितिज को सीमा-मुक्त करती है। एक वस्तु की स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या द्रव्यमान के अनुपात में होती है। चक्रित ब्लैक होल में विकृत, नोन्स्फेरिकल घटना क्षितिज होता है। चूंकि घटना क्षितिज एक भौतिक सतह नहीं है बल्कि केवल एक गणितीय परिभाषित सीमा है, पदार्थ या विकिरण को ब्लैक होल में प्रवेश करने से रोकने वाला कुछ भी नहीं है, केवल बाहर निकलने से इनको रोका जाता है। ब्लैक होल के लिए सामान्य सापेक्षता द्वारा दिया गया वर्णन एक सन्निकटन है और ऐसी अपेक्षा की जाती है कि क्वांटम गुरुत्व प्रभाव घटना क्षितिज के निकट से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यह, ब्लैक होल के घटना क्षितिज के निकट पदार्थ के प्रेक्षण को, सामान्य सापेक्षता और उसके प्रस्तावित विस्तारों के अध्ययन को संभव बनाता है। हालाँकि ब्लैक होल स्वयं उर्जा विकिरित नहीं करते हैं, घटना क्षितिज के ठीक बाहर से, हॉकिंग विकिरण के माध्यम से, विद्युत-चुम्बकीय विकिरण और पदार्थ कण विकीर्ण हो सकते हैं। सिंग्युलेरिटी ब्लैक होल के केंद्र में होती है, जहाँ पदार्थ में दबने के कारण अनंत घनत्व हो जाता है, गुरुत्वाकर्षण खिंचाव अनंत शक्तिशाली होता है और अन्तरिक्ष-समय में अनंत विकृति होती है। इसका मतलब एक ब्लैक होल का द्रव्यमान शून्य वोल्यूम वाले एक क्षेत्र में पुर्णतः संकुचित हो जाता है। ब्लैक होल के केंद्र में इस शून्य-आयतन, अनंत रूप से सघन क्षेत्र को गुरुत्वीय सिंग्युलेरिटी कहा जाता है। एक गैर-चक्रित ब्लैक होल की सिंग्युलेरिटी की लम्बाई, चौडाई और ऊँचाई शून्य होती है; एक चक्रित ब्लैक होल की सिंग्युलेरिटी छल्ले के आकार की होती है और रोटेशन के प्लेन में स्थित होती है। छल्ले में कोई मोटाई नहीं होती इसलिए कोई आयतन नहीं होता। सामान्य सापेक्षता में सिंग्युलेरिटी की उपस्थिति को सामान्यतः सिद्धांत के लागू न होने का संकेत माना जाता है। हालाँकि यह अपेक्षित है; यह ऐसी परिस्थिति में घटित होता है जहाँ क्वांटम यांत्रिक प्रभावों को इनका वर्णन करना चाहिए था, अति उच्च घनत्व और कण सहभागिताओं के कारण। अब तक क्वांटम और गुरुत्व के प्रभाव का एक ही सिद्धांत में संयोजन करना संभव नहीं हो सका है। आम तौर पर उम्मीद की जाती है कि क्वांटम गुरुत्व के सिद्धांत में सिन्ग्युलेरिटी रहित ब्लैक होल होंगे। फोटोन स्फीयर शून्य मोटाई वाली एक स्फेरिकल सीमा है जहाँ स्फीयर की स्पर्शरेखा में चलते हुए फोटोन एक गोल कक्षा में फंस जायेंगे। अनावर्ती ब्लैक होल के लिए, फोटोन स्फीयर की त्रिज्या स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या की 1.5 गुना होती है। ये कक्षाएं गतिशील रूप से अस्थिर हैं, इसलिए कोई भी छोटी सी गड़बडी भी समय के साथ बड़ी होती जायेगी और या तो उसे ब्लैक होल के परे फेंक देगी या घटना क्षितिज के भीतर धकेल देगी. हालाँकि प्रकाश अभी भी फोटोन स्फीयर के अंदर से बच सकता है, कोई प्रकाश जो अन्दर की और जाती प्रक्षेपण पथ से फोटोन क्षेत्र को पार करती है उस पर ब्लैक होल का कब्जा हो जायेगा। इसलिए कोई भी प्रकाश जो फोटोन स्फीयर के अंदर से बाहर खड़े एक दर्शक तक पहुँचता है, निश्चित रूप से फोटोन स्फीयर के अदंर परंतु घटना क्षितिज के बाहर की किसी वस्तु द्वारा उत्सर्जित हुआ होगा। न्यूट्रॉन तारों जैसी अन्य कॉम्पैक्ट वस्तुओं में भी फोटोन स्फीयर हो सकते हैं। यह तथ्य इस बात पर आधारित है कि एक वस्तु का गुरुत्व क्षेत्र उसके वास्तविक आकार पर निर्भर नहीं करता, इसलिए कोई वस्तु जो स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या के 1.5 गुना से अधिक छोटी हो उस, वस्तु के द्रब्यमान से सम्बंधित एक फोटोन स्फीयर वास्तव में होगा। चक्रित ब्लैक होल चारों तरफ से एर्गोस्फियर नमक एक अन्तरिक्ष-समय क्षेत्र से घिरा होता है जिसमें स्थिर खडा होना असंभव है। यह फ्रेम-ड्रेगिंग नामक एक प्रक्रिया का परिणाम है; सामान्य सापेक्षता की भविष्यवाणी है कि कोई भी चक्रित द्रब्यमान, स्वंयम को घेरे हुए अंतरिक्ष समय को थोड़ा खींचने की चेष्टा करेगा। चक्रित द्रब्यमान के पास की कोई भी वस्तु चक्र की दिशा में घूमना शुरू कर देगी। एक चक्रित ब्लैक होल के लिए घटना क्षितिज के पास इसका प्रभाव इतना मजबूत हो जाता है कि किसी वस्तु को स्थिर खड़े रहने मात्र के लिए इसके विपरीत दिशा में प्रकाश कि गति से भी तेज चलना होगा। एक ब्लैक होल का एर्गोस्फियर निम्नलिखित से घिरा होता है: एर्गोस्फियर के भीतर, अंतरिक्ष-समय प्रकाश से अधिक गति से खींचा जाता है-- सामान्य सापेक्षता में भौतिक वस्तुओं का प्रकाश से तेज गति से चलना वर्जित है, लेकिन अंतरिक्ष-समय क्षेत्रों को अनुमति देता है कि वे अन्य अंतरिक्ष-समय क्षेत्रों की तुलना में प्रकाश से तेज चल सकें। वस्तुएं और विकिरण, केंद्र में गिरे बिना एर्गोस्फियर के भीतर कक्षा में रह सकती हैं। लेकिन वे मंडरा नहीं सकते, क्योंकि इसके लिए उन्हें स्वयं के अन्तरिक्ष-समय क्षेत्र की तुलना में पीछे की ओर प्रकाश से भी तेज चलने की आवश्यकता होगी, जो एक बाहरी दर्शक की तुलना में प्रकाश से तेज चल रहे हैं। वस्तुएं और विकिरण भी एर्गोस्फियर से बच कर निकल सकते हैं। असल में पेनरोज़ प्रक्रिया भविष्यवाणी करती है कि वस्तुएं कभी कभी एगोस्फियर उड़ कर बाहर चली जाएँगी, इसके लिए उर्जा वे ब्लैक होल की कुछ ऊर्जा को "चुरा" कर प्राप्त करेंगी। अगर वस्तुओं के कुल द्रब्यमान का बड़ा भाग इस तरह बच निकलता है, ब्लैक होल की घूमने की गति और धीमी पड़ जायेगी और अंततः शायद घूमना बंद भी हो जाये | ब्लैक होल की आकर्षक छवि के कारण यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वास्तव में इस प्रकार की विचित्र वस्तुओं का अस्तित्व है, या ये आइंस्टीन समीकरणों के काल्पनिक समाधान मात्र है। आइंस्टाइन की स्वयं kr यह गलत धारणा थी कि ब्लैक होलों का निर्माण संभव नहीं है, क्योंकि उनका विश्वास था कि पतन की ओर अग्रसर कणों की कोणीय गति उनकी चाल को स्थिरता प्रदान करेगी। इसकी वजह से सामान्य सापेक्षता समुदाय कई वर्षों तक इसके विरोधी परिणामों को खारिज करता रहा। लेकिन उनमें से कुछ इस विश्वास पर कायम रहे कि ब्लैक होल का अस्तित्व वास्तव में है, और 1960 के दशक के अंत तक वे अधिकांश शोधकर्ताओं को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि घटना क्षितिज का निर्माण वाकई में संभव है। एक बार एक घटना रोजर पेनरोज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि उसके भीतर कहीं न कहीं सिन्ग्युलेरिटी का निर्माण अवश्य होगा। इसके कुछ ही समय पश्चात्, स्टीफेन हॉकिंग ने यह दर्शाया कि बिग बैंग के कई ब्रह्मांडीय समाधानों में सिन्ग्युलेरिटी का अस्तित्व है, स्केलर क्षेत्रों और अन्य विदेशी पदार्थों की अनुपस्थिति में । केर्र समाधान, नो-हेयर प्रमेय और ब्लैक होल ऊष्मप्रवैगिकी के नियमों ने दर्शाया कि ब्लैक होल के भौतिक लक्षण सरल हैं और आसानी से समझे जा सकते हैं, इन्हें शोध के सम्मानित विषयों का दर्जा मिल गया। ऐसा माना जाता है कि ब्लैक होलों के निर्माण की प्राथमिक प्रक्रिया तारों जैसी भारी वस्तुओं का गुरुत्त्वीय पतन रही होगी, लेकिन कई अन्य प्रक्रियाएं भी हैं जो ब्लैक होल के निर्माण की तरफ ले जा सकती हैं। गुरुत्वीय पतन तब होता है जब एक वस्तु का आंतरिक दबाव उसके अपने गुरुत्वाकर्षण का विरोध करने के लिए अपर्याप्त हो। तारों में यह आमतौर पर इसलिए होता है क्योंकि या तो तारों में अपने तापमान को बनाए रखने के लिए "ईंधन" अपर्याप्त है, या एक तारा जो स्थिर था उसे ढेर सारे अतिरिक्त पदार्थ मिले परंतु उसके क्रोड़ का तापमान नहीं बढा। दोनों स्थितियों में, तारे का तापमान स्वयं के वजन तले अपने पतन को रोक पाने के लिए अपर्याप्त साबित होगा । इस पतन को तारे के घटकों के आपजात्य दबाव द्वारा रोका जा सकता है, पदार्थ एक आकर्षक घनी अवस्था में संघनित हो जाता है। इसका परिणाम, एक प्रकार का कॉम्पैक्ट तारा. किस किस्म का कॉम्पैक्ट तारा बनेगा यह अवशेष के द्रब्यमान पर निर्भर करेगा - पतन के कारण हुए परिवर्तनों के बाद बचे हुए पदार्थों नें बाहरी सतहों को नेस्तनाबूद कर दिया है। नोट करें कि यह मूल तारे से काफी कम होगा- 5 से अधिक सौर द्रब्यमान वाले अवशेषों का उत्पादन ऐसे तारों से होता है जिनका द्रव्यमान पतन से पहले 20 से अधिक रहा होगा। यदि अवशेष का द्रव्यमान ~ 3-4 सौर द्रब्यमान से अधिक हो-- क्योंकि मूल तारा या तो बहुत भारी था या अवशेष ने अतिरिक्त द्रब्यमान एकत्र कर लिया है)- न्यूट्रॉन का अपजात्य दबाव भी पतन को रोकने के लिए अपर्याप्त है। इसके बाद ऐसी कोई ज्ञात प्रक्रिया नहीं है जो इस पतन को रोक सके और वस्तु पतित हो कर ब्लैक होल में तब्दील हो जायेगी। भारी तारों के इस गुरुत्वीय पतन को ही अधिकांश तारकीय द्रब्यमान वाले ब्लैक होलों के गठन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। गुरुत्वीय पतन के लिए बहुत अधिक घनत्व की आवश्यकता होती है। ब्रह्मांड के वर्तमान युग में यह उच्च घनत्व केवल तारों में ही मिलती है, लेकिन प्रारंभिक ब्रह्मांड में बिग बैंग के शीघ्र बाद घनत्व काफी अधिक हुआ करते थे, हो सकता है इसी ने ब्लैक होल के निर्माण को संभव बनाया हो। उच्च घनत्व अकेले एक ब्लैक होल के निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि द्रब्यमान का समान वितरण, द्रब्यमान को इकट्ठा होने की अनुमति नहीं देगा। इस घने माध्यम में प्राचीन ब्लैक होलों के गठन हेतु, प्रारंभिक घनत्वीय गड़बड़ियों का होना आवश्यक है जो बाद में स्वयं के गुरुत्त्व के प्रभाव में बढ़ सकें। प्रारंभिक ब्रह्मांड के विभिन्न मॉडलों में इन गड़बडियों के आकार के बारे में व्यापक मतभेद है। विभिन्न मॉडलों ने ब्लैक होल के निर्माण का पूर्वानुमान लगाया था, प्लैंक द्रव्यमान से लेकर सैकड़ों हजारों सौर द्रब्यामानों तक के। अतः आदिम ब्लैक होल किसी भी प्रकार के ब्लैक होल के निर्माण का कारण हो सकते हैं। गुरुत्वीय पतन ही एकमात्र प्रक्रिया नहीं है जो ब्लैक होल का निर्माण कर सकती है। सिद्धांत रूप में, ब्लैक होल का निर्माण उच्च ऊर्जा टक्करों में भी संभव है जो पर्याप्त घनत्व पैदा करती हैं। हालाँकि, अभी तक, ऐसी किसी भी ऐसी कोई घटना को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में, कण त्वरक प्रयोगों में द्रब्यमान संतुलन की कमी के रूप में नहीं पाया गया है। इसका अर्थ यह निकलता है कि ब्लैक होल के द्रव्यमान के लिए एक निचली सीमा होनी चाहिए। सिद्धांततः, इस सीमा को प्लैंक द्रव्यमान के आसपास होना चाहिए, जहाँ ऐसी अपेक्षा की जाती है कि क्वांटम प्रभाव सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को गलत साबित कर देंगे। इस कारण पृथ्वी या उसके आस पास ब्लैक होल के निर्माण की संभावना को बिलकुल नकारा जा सकता है। हालाँकि, क्वांटम गुरुत्व के कुछ विकास ऐसा दर्शाते हैं कि इस बंध की सीमा काफी नीचे हो सकती है। उदहारण के लिए, कुछ ब्रेनवर्ल्ड परिदृश्य प्लैंक द्रव्यमान को काफी नीचे रखते हैं, शायद 1 TeV/c2 इतना नीचे तक। यह, सूक्ष्म ब्लैक होल के निर्माण को उच्च उर्जा टक्करों या CERN के विशाल हैड्रन कोलाइडर में संभव कर सकता है। हालाँकि ये सारे सिद्धांत काफी काल्पनिक हैं और कई वैज्ञानिको का मत है कि इन प्रक्रियाओं में ब्लैक होल का निर्माण संभव नहीं है। एक बार बनने के बाद ब्लैक होल, अतिरिक्त पदार्थों के अवशोषण द्वारा विकसित होना जारी रखता है। सारे ब्लैक होल अंतरतारकीय धूल और सर्वव्यापी विकिरण को लगातार अवशोषित करते रहेंगे, लेकिन इनमें से किसी भी प्रक्रिया का एक तारकीय ब्लैक होल के द्रव्यमान पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। अधिक महत्वपूर्ण योगदान तब होते हैं जब एक ब्लैक होल का निर्माण एक द्विआधारी तारा प्रणाली में होती है। निर्माण के बाद ब्लैक होल अपने साथी से काफी मात्रा में पदार्थ अवशोषित कर सकता है। अत्यधिक बड़े योगदान तब प्राप्त होते हैं जब एक ब्लैक होल का अन्य तारों या कॉम्पैक्ट वस्तुओं से विलय होता है। अधिकांश आकाशगंगाओं के केंद्र में स्थित अति विशालकाय ब्लैक होलों का निर्माण संभवतः कई छोटी वस्तुओं के विलय के द्वारा हुआ होगा। इसी प्रक्रिया को कुछ मध्यवर्ती द्रब्यमान वाले ब्लैक होलों के निर्माण के लिए भी प्रस्तावित किया गया है। जैसे जैसे एक वस्तु घटना क्षितिज की तरफ बढती है, क्षितिज फूलना आरंभ कर देता है और लपक कर उसको निगल लेता है। इसके शीघ्र बाद त्रिज्या का विस्तार पूरे होल में समान रूप से वितरित हो जाता है। 1974 में, स्टीफन हॉकिंग ने दिखाया कि ब्लैक होल पूरी तरह से काले नहीं हैं, बल्कि ये थोड़ी मात्रा में तापीय विकिरण भी निकालते हैं। उन्हें यह परिणाम मिला एक स्थिर ब्लैक होल पृष्ठभूमि में प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धांत का प्रयोग करके। उनके समीकरणों का परिणाम यह है कि एक ब्लैक होल को कणों को एक आदर्श ब्लैक बॉडी स्पेक्ट्रम में छोड़ना चाहिए। यह प्रभाव हॉकिंग विकिरण के रूप में जाना गया। हॉकिंग परिणाम के बाद से, कईयों नें विभिन्न तरीकों के माध्यम से इस प्रभाव को सत्यापित किया है। यदि ब्लैक होल विकिरण का यह सिद्धांत सही है, तो ऐसी अपेक्षा की जाती है कि ब्लैक होल विकिरण के तापीय किरणपुंज को निकालेंगे और इससे द्रब्यमान का क्षय होगा, क्योंकि सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार द्रब्यमान उच्च संघनित ऊर्जा मात्र है . समय के साथ ब्लैक होल सिकुड़ कर हवा में उड़ जायेंगे। इस किरणपुंज का तापमान ब्लैक होल के सतही गुरुत्वाकर्षणके आनुपातिक रहता है, जो बदले में द्रव्यमान के लिए विपरीत रूप में अनुपातिक रहता है। इसलिए बड़े ब्लैक होल छोटे ब्लैक होल से कम विकिरण छोड़ते हैं। 5 सौर द्रब्यमान वाले एक तारकीय ब्लैक होल का हॉकिंग तापमान करीब 12 नानोकेल्विंस होता है। यह अन्तरिक्षीय सूक्ष्म-तरंग पृष्ठभूमि द्वारा उत्पादित 2.7K से काफी कम है। तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल हॉकिंग विकिरण के माध्यम से जितना द्रब्यमान छोड़ते हैं उससे अधिक द्रव्यमान वे कॉस्मिक माइक्रोवेव पृष्ठभूमि से प्राप्त कर लेते हैं, अतः वे सिकुड़ने की बजाय फैलते जाते हैं। 2.7 K से अधिक हॉकिंग तापमान प्राप्त करने के लिए, एक ब्लैक होल को चंद्रमा से भी हल्का होना पड़ेगा । दूसरी तरफ यदि एक ब्लैक होल बहुत छोटा है, उम्मीद की जाती है कि उसका विकिरण का प्रभाव बहुत शक्तिशाली हो जायेगा। एक ब्लैक होल जो मनुष्यों की तुलना में भी भारी है, क्षण में लुप्त हो जायेगा। एक कार के वजन वाला ब्लैक होल को वाष्पित होने के लिए मात्र एक नैनोसैकंड का समय ही लगेगा, इस दौरान कुछ क्षणों के लिए इसकी चमक सूर्य से 200 गुना से भी अधिक हो जायेगी। हल्के ब्लैक होल से उम्मीद की जाती है कि वे और भी तेजी से वाष्पित हो जायेंगे, उदाहरण के लिए 1 TeV/c 2 द्रब्यमान वाला एक ब्लैक होल पूरी तरह लुप्त होने में 10−88 सेकंड से भी कम समय लगाएगा। बेशक, इतने छोटे ब्लैक होल के लिए क्वांटम गुरुत्व प्रभाव से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है और यहाँ तक कि – हालाँकि क्वांटम गुरुत्व में हुए हाल के विकास इस ओर कोई संकेत नहीं करते हैं – परिकाल्पनिक तौर पर ऐसे छोटे ब्लैक होल स्थिर होंगे। अधिकांश अभिवृद्धि डिस्क तथा गैस जेट की मौजूदगी तारकीय द्रब्यमान वाले ब्लैक होल की उपस्थिति का स्पष्ट सबूत नहीं है, क्योंकि न्यूट्राॅन तारे और सफेद बौनों जैसी अन्य अधिक द्रब्यमान वाली और अति घनी वस्तुएं अभिवृद्धि डिस्कों और गैस धाराओं के निर्माण का कारण हो सकती हैं और उनका व्यवहार वैसा ही होता है जैसा ब्लैक होल के इर्दगिर्द होता है। लेकिन वे अक्सर खगोलविदों की यह बतलाकर मदद कर सकती हैं कि किस जगह ब्लैक होल की तलाश फलदायी सिद्ध हो सकती है। मगर दूसरी तरफ, अति विशाल अभिवृद्धि डिस्क और गैस धाराएं अत्यधिक द्रब्यमान वाले ब्लैक होल की उपस्थिति का अच्छा सबूत हो सकती हैं, क्योंकि जहाँ तक हम जानते हैं केवल एक ब्लैक होल ही इन घटनाओं की उत्पत्ति का कारण हो सकता है। स्थिर एक्स-रे और गामा किरण उत्सर्जन भी किसी ब्लैक होल की मौजूदगी साबित नहीं करते हैं, लेकिन खगोलविदों को यह बता सकते हैं कि कहाँ खोज करना फलदायी होगा- और इनकी ये खूबी होती है कि वे काफी आसानी से नाब्युलाई और गैस के बादलों से निकल पाते हैं। लेकिन शक्तिशाली, अनियमित एक्स-रे, गामा किरणें और अन्य विद्युत-चुम्बकीय विकिरण यह साबित करने में मदद कर सकते हैं कि वह विशाल, अति घनी वस्तु एक ब्लैक होल नहीं है, ताकि "ब्लैक होल आखेटक" किसी अन्य वस्तु की तरफ ध्यान केन्द्रित कर सकें। न्यूट्रॉन तारों और अन्य अति सघन तारों पर सतहें होती हैं और पदार्थों का प्रकाश की गति के एक उच्च प्रतिशत पर सतह के साथ टकराव, अनियमित अंतरालों पर विकिरण की गहन लपटों का उत्सर्जन करता है। ब्लैक होल में कोई ठोस सतह नहीं होती है, इसलिए किसी अत्यधिक द्रब्यमान वाली अति सघन वस्तु के इर्दगिर्द अनियमित अंतराल पर विकिरण की गहन लपटों का अभाव, यह दर्शाता है कि वहाँ एक ब्लैक होल के मिलने की अच्छी संभावना हो सकती है। गहन परन्तु एक ही बार गामा किरण का निकलना किसी "नए" ब्लैक होल के जन्म का संकेत हो सकता है, क्योंकि खगोल-भौतिकविदों का विचार है कि GRBs का कारण या तो किसी विशाल तारे का गुरुत्वीय पतन है अथवा न्यूट्रॉन तारों के बीच टकराव, और इन दोनों घटनाओं में ब्लैक होल का सृजन करने हेतु पर्याप्त द्रब्यमान और दबाव शामिल होता है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि एक न्यूट्रॉन तारे और एक ब्लैक होल के बीच का टकराव भी एक GRB पैदा कर सकता है, इसलिए एक GRB सबूत नहीं है कि एक "नए" ब्लैक होल का गठन हुआ है। सभी ज्ञात GRB हमारी अपनी आकाशगंगा के बाहर से आते हैं और अधिकांश अरबों प्रकाश वर्षों की दूर से आते हैं इसलिए इनसे जुड़े ब्लैक होल वास्तव में अरबों वर्ष पुराने हैं। कुछ अन्तरिक्ष-भौतिकविदों का विश्वास है कि कुछ अति चमकीले एक्स-रे स्रोत मध्यवर्ती-द्रब्यमान वाले ब्लैक होल के अभिवृद्धि डिस्क हो सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि कासार अत्यधिक द्रब्यमान वाले ब्लैक होल की अभिवृद्धि डिस्क हैं, क्योंकि अब तक ज्ञात कोई भी वस्तु इतनी शक्तिशाली नहीं है जो इतना शक्तिशाली उत्सर्ज़न कर सके। क़सार पूरे विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में शक्तिशाली उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, जिसमें शामिल हैं यूवी, एक्स-रे और गामा-किरण और अपनी उच्च चमक के कारण ये काफी दूरी से भी दिखाई देते हैं। 5 से 25 प्रतिशत के बीच कासार "रेडियो लाउड" होते हैं, यह संज्ञा इनके शक्तिशाली रेडियो उत्सर्जन के कारण है। एक गुरुत्वीय लेंस का निर्माण तब होता है जब किसी बहुत दूर स्थित उज्ज्वल स्रोत से आती हुई प्रकाश की किरणें किसी विशालकाय वस्तु के आसपास "मुड़" जाती हैं, दर्शक और स्रोत वस्तु के बीच. इस प्रक्रिया को गुरुत्वीय लेंसिंग के रूप में जाना जाता है और यह सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की भविष्यवाणियों में से एक है। इस सिद्धांत के अनुसार, द्रब्यमान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों को बनाने के लिए अंतरिक्ष-समय को "समेटे" रहता है और इसलिए परिणामस्वरूप प्रकाश को मोड़ देता है। लेंस के पीछे के स्रोत की छवि एक पर्यवेक्षक को कई छवियों के रूप में दिखाई पड़ सकती है। यदि स्रोत, भारी लेंसिंग वस्तु और पर्यवेक्षक एक सीधी रेखा में हों, स्रोत भारी वस्तु के पीछे एक छल्ले के रूप में दिखाई देगा। गुरुत्वीय लेंसिंग ब्लैक होल के अलावा अन्य वस्तुओं के कारण भी हो सकता है, क्योंकि कोई भी अति शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र प्रकाश किरणों को मोड़ने की क्षमता रखता है। इन बहु छवियों वाले प्रभावों में से कुछ, संभवतः सुदूर स्थित आकाशगंगाओं के कारण निर्मित होते हैं। ब्लैक होल की परिक्रमा करती वस्तुएं, केंद्रीय वस्तु के आसपास के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का अन्वेषण करती रहती हैं। 1970 के दशक में खोजा गया, एक पुराना उदाहरण है, एक प्रसिद्ध एक्सरे स्रोत सिग्नस X-1 के लिए जिम्मेदार कल्पित ब्लैक होल के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती अभिवृद्धि डिस्क। हालाँकि स्वयं पदार्थ को तो सीधे तौर पर नहीं देखा जा सकता, एक्सरे की टिमटिमाहट मिली सेकंडों में जारी रहती है, जैसा कि लगभग दस सौर द्रब्यमान वाले एक ब्लैक होल के चारों ओर परिक्रमा करने वाले किसी गर्म पिंड रूपी पदार्थ से अभिवृद्धि से ठीक पहले उम्मीद की जाती है। एक्सरे स्पेक्ट्रम उस विशिष्ट आकार को दर्शाता है जिसकी अपेक्षा उस डिस्क से की जाती है जिसमें और्बिटिंग रिलेटीविस्टिक पदार्थ हों, एक लौह रेखा के साथ और जिसे ~6.4 KeV पर उत्सर्जित किया गया हो, तथा लाल और नीले की तरफ चौड़ा किया गया हो। एक अन्य उदाहरण है S2 तारा जिसे आकाशगंगीय केंद्र की परिक्रमा करते देखा जाता है। यह तारा ~ 3.5 × 106 सौर द्रब्यमान वाले ब्लैक होल से कई प्रकाश घंटों की दूरी पर है, इसलिए इसकी परिक्रमण गति को अंकित किया जा सकता है। पर्यवेक्षित कक्षा के केंद्र में कुछ भी दिखाई नहीं देता है, जैसा कि एक काली वस्तु से उम्मीद की जाती है। अर्ध-आवधिक दोलन का इस्तमाल ब्लैक होल के द्रव्यमान का निर्धारण करने के लिए किया जा सकता है। यह तकनीक ब्लैक होल और उसके आसपास की डिस्कों के भीतरी भाग के बीच के संबंध का उपयोग करती है, जहां गैस घटना क्षितिज तक पहुँचने से पहले भीतर की ओर घुमावदार रूप में आती रहती है। जैसे ही गैस का पतन भीतर की ओर होता है, यह एक्सरे विकिरण प्रसारित करता है जिसकी तीव्रता एक निश्चित क्रम से कम-ज्यादा होती रहती है और जो एक नियमित अंतराल पर खुद को दोहराता रहता है। यह संकेतक अर्ध-आवधिक दोलन या QPO कहलाता है। एक QPO की आवृत्ति ब्लैक होल के द्रव्यमान पर निर्भर करती है; छोटे ब्लैक होल में घटना क्षितिज निकट ही स्थित होता है, इसलिए QPO की आवृत्ति उच्च होती है। अधिक द्रव्यमान वाले ब्लैक होल के लिए, घटना क्षितिज काफी आगे बाहर की ओर होता है, इसलिए QPO आवृत्ति कम होती है। अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि प्रत्येक आकाशगंगा के, या लगभग प्रत्येक, केंद्र में एक अति विशालकाय ब्लैक होल होता है। इस ब्लैक होल के द्रव्यमान और मेजबान आकाशगंगा के उभार के बीच जो नजदीकी सहसंबंध है, वह यह दर्शाता है कि आकाशगंगा और ब्लैक होल के निर्माण के बीच काफी गहरा सम्बंध है। दशकों तक, खगोलविदों ने "सक्रिय आकाशगंगा" शब्द का इस्तेमाल ऐसी आकाशगंगाओं का वर्णन करने के लिए किया जिनमें असामान्य विशेषताएं होती थी, जैसे कि असामान्य वर्णक्रमीय रेखा उत्सर्जन और अति शक्तिशाली रेडियो उत्सर्जन। हालांकि, सैद्धांतिक और पर्यवेक्षणीय अध्ययन दिखाते हैं कि इन आकाशगंगाओं के सक्रिय गांगेय नाभिक में अति विशालकाय ब्लैक होल हो सकते हैं। इन AGN के मॉडलों में एक केंद्रीय ब्लैक होल होता है जो कि सूरज से लाखों या अरबों गुना अधिक भारी हो सकता है; एक गैस और धूल की डिस्क जिसे अभिवृद्धि डिस्क कहते हैं; और दो धाराएं जो अभिवृद्धि डिस्क के लंबवत होती हैं। हालाँकि, उम्मीद की जाती है कि अति विशालकाय ब्लैक होल लगभग सभी AGN में पाए जायेंगे, सिर्फ कुछ ही आकाशगंगाओं के नाभिकों का ध्यान पूर्वक अध्ययन किया गया है इस प्रयास में कि केंद्रस्थ अति विशालकाय ब्लैक होल उम्मीदवारों की पहचान और वास्तविक द्रव्यमान की माप, दोनों की जा सके। ऐसी कुछ उल्लेखनीय आकाशगंगाओं के उदाहरण हैं, एन्द्रोमेदा आकाशगंगा, M32, M87, NGC 3115, NGC 3377, NGC 4258, और सोम्ब्रेरो आकाशगंगा. खगोलविदों का विश्वास है कि हमारी अपनी आकाशगंगा के केंद्र में एक अति विशालकाय ब्लैक होल स्थित है, सेजिटेरियस A* नामक क्षेत्र में, क्योंकि: 2002 में, हब्बल अन्तरिक्षीय दूरबीन ने जो अवलोकन प्रस्तुत किया वे संकेत करते हैं कि M15 और G1 नामक गोलाकार समूहों में मध्यवर्ती-द्रव्यमान वाले ब्लैक होल के होने की संभावना है। यह व्याख्या गोलाकार समूहों में तारों के कक्षा के आकार और अवधी पर आधारित है। लेकिन हब्बल सबूत निर्णायक नहीं है, क्योंकि न्यूट्रॉन तारों का एक समूह इस तरह के अवलोकनों का कारण हो सकता है। हाल की खोजों तक, कई खगोलविद सोचते थे कि गोलाकार समूहों में जटिल गुरुत्वाकर्षण अन्तः-क्रियायें नए बने ब्लैक होलों को निष्कासित कर देंगी। नवंबर 2004 में, खगोलविदों की एक टीम ने हमारी आकाशगंगा के प्रथम और पूर्णतः सत्यापित मध्यवर्ती-द्रव्यमान वाले ब्लैक होल की खोज की सूचना दी, जो सेजिटेरिअस A* से 3 प्रकाश वर्ष दूर परिक्रमा कर रहा है। 1300 सौर द्रव्यमान वाला यह ब्लैक होल सात तारों के एक समूह के बीच में है, संभवतः यह एक विशाल तारा समूह का अवशेष है जो आकाश गंगा के केंद्र से छिटक गया है। यह अवलोकन इस बात की पुष्टि करता है कि अति विशालकाय ब्लैक होल आसपास के छोटे ब्लैक होलों और तारों के अवशोषण द्वारा अपनी वृद्धि करते है। जनवरी 2007 में, यूनाइटेड किंगडम के साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने एक ब्लैक होल की खोज की सूचना दी, यह संभवतः 10 सौर द्रव्यमानों वाल था और NGC 4472 नामक एक आकाशगंगा में स्थित था, लगभग 5.5 करोड़ प्रकाश वषों की दूरी पर। हमारी आकाशगंगा में कई संभावित तारकीय-द्रव्यमान वाले ब्लैक होल शामिल हैं, जो सैगिटेरिअस A* क्षेत्र के अति विशालकाय ब्लैक होल की तुलना में हमसे अधिक नजदीक हैं। ये सभी उम्मीदवार एक्स-रे द्विआधारी प्रणालियों के सदस्य हैं जिसमें अधिक घनी वस्तु अपने साथी से एक अभिवृद्धि डिस्क के माध्यम से पदार्थों को अपनी ओर खींचती है। इन जोड़ों में ब्लैक होल तीन से लेकर एक दर्ज़न से ज्यादा सौर द्रव्यमानों के हो सकते हैं। अब तक अवलोकित तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होलों में दूरतम, मेसिए 33 आकाशगंगा में स्थित द्विआधारी प्रणाली का सदस्य है। सिद्धांततः एक ब्लैक होल के लिए कोई न्यूनतम आकार तय नहीं है। एक बार इनकी रचना हो जाने पर, इनमें ब्लैक होल के गुण आ जाते हैं। स्टीफन हॉकिंग ने प्रतिपादित किया कि अतिप्राराम्भिक ब्लैक होल वाष्पित हो कर और भी सूक्ष्म हो सकते हैं, अर्थात सूक्ष्म ब्लैक होल। वाष्पित होते अतिप्रराम्भिक ब्लैक होल की खोज हेतु फर्मी गामा-रे स्पेस टेलीस्कोप को प्रस्तावित किया जा रहा है, जिसका प्रक्षेपण 11 जून 2008 को किया गया था। हालाँकि, अगर सूक्ष्म ब्लैक होल का निर्माण दूसरे तरीकों से हो सकता है, जैसे कि अन्तरिक्षीय किरण के प्रभाव से या कोलाइडर्स में, इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें निश्चित रूप से वाष्पित हो जाना चाहिए। धरती पर कण त्वरकों में ब्लैक होल के अनुरूपों का निर्माण होने की सूचना है। ये ब्लैक होल अनुरूप गुरुत्वीय ब्लैक होल के समान नहीं होते हैं, लेकिन गुरुत्व प्रमात्रा सिद्धांतों की जांच के लिए ये महत्वपूर्ण हैं। वे मजबूत नाभिकीय शक्ति के सिद्धांत के अनुरूप होने की वजह से ब्लैक होल की तरह व्यवहार करते हैं, जिनका गुरुत्वाकर्षण और गुरुत्वाकर्षण के प्रमात्रा सिद्धांत से कोई लेना देना नहीं है। वे समान हैं क्योंकि दोनों स्ट्रिंग सिद्धांत द्वारा वर्णित किये जाते हैं। अतः क्वार्क ग्लुओं प्लाज्मा में आग के गोले के गठन और विघटन की व्याख्या ब्लैक होल की भाषा में की जा सकती है। रिलेतिविस्तिक हैवी आयन कोलाइडर में आग का गोला परिघटना ब्लैक होल के काफी निकट का अनुरूप है और इस अनुरूप का उपयोग करके इसके कई भौतिक गुणों की भविष्यवाणी सही ढंग की जा सकती है। आग का गोला, हालाँकि, एक गुरुत्वीय वस्तु नहीं है। वर्तमान में यह ज्ञात नहीं है कि क्या और अधिक ऊर्जावान लार्ज हैड्रन कोलाइडर आशा के अनुरूप बड़े अतिरिक्त आयाम वाले सूक्ष्म ब्लैक होल के उत्पादन में सक्षम होगा, जैसा कि कई शोधकर्ताओं द्वारा सुझाया गया है। अधिक गहराई से चर्चा के लिए देखें: लार्ज हैड्रन कोलाइडर में कण टकराव की सुरक्षा। सामान्य सापेक्षता में ऐसे विन्यास की संभावना का वर्णन किया गया है जिसमें दो ब्लैक होल एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस तरह के विन्यास को आमतौर पर एक वर्महोल कहा जाता है। वर्महोलों ने कल्पित विज्ञान कथाओं के लेखकों को प्रेरित किया है क्योंकि वे अति लम्बी दूरी की यात्राओं को शीघ्रता से तय करने का साधन प्रदान करते हैं, टाइम ट्रेवल भी। व्यवहार में, खगोल भौतिकी में ऐसे विन्यास लगभग असंभव सी बात हैं, क्योंकि कोई भी ज्ञात प्रक्रिया इन वस्तुओं के निर्माण की अनुमति देती प्रतीत नहीं होती है। 1971 में, स्टीफन हॉकिंग ने दिखाया कि पारंपरिक ब्लैक होल के किसी भी संग्रह के घटना क्षितिज के कुल क्षेत्र को कम नहीं किया जा सकता है, भले ही वे आपस में टकरा कर एक दूसरे को निगल लें, अर्थात विलय हो जाए। यह उल्लेखनीय रूप से ऊष्मप्रवैगिकी के द्वितीय नियम के समान है, जहाँ क्षेत्र एंट्रोपी की भूमिका अदा करता है। ऐसा माना जाता था कि शून्य तापमान होने की वजह से ब्लैक होल की एंट्रोपी शून्य होगी। यदि ऐसा होता तो एंट्रोपी-कृत पदार्थ के ब्लैक होल में प्रवेश से ऊष्मप्रवैगिकी के दूसरे नियम का उल्लंघन होता था, परिणामस्वरूप ब्रह्मांड की कुल एंट्रोपी में कमी आनी चाहिए थी। इसलिए, जेकब बेकेंस्तें ने प्रस्ताव रखा कि एक ब्लैक होल की एक एंट्रोपी चाहिए और इसे घटना क्षितिज का अनुपातिक होना चाहिए। चूंकि ब्लैक होल पारंपरिक रूप से विकिरण नहीं छोड़ते है, ऊष्मप्रवैगिकी दृष्टिकोण एक अनुरूप मात्र प्रतीत होता है, क्योंकि शून्य तापमान का अर्थ है ऊष्मा के किसी भी योग से एंट्रोपी में अनंत परिवर्तनों का होना, जिसका अर्थ है अनंत एंट्रोपी। हालाँकि, 1974 में, हॉकिंग ने घटना क्षितिज के पास प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धांत को वक्रित अंतरिक्ष-समय पर लागू किया और पाया कि ब्लैक होल हॉकिंग विकिरण छोड़ते हैं, जो एक तरह का तापीय विकिरण है और उनरू प्रभाव से सम्बद्ध है, जिसका अर्थ यह निकला कि उनमें एक साकारात्मक तापमान निहित है। इसने ब्लैक होल गतिशीलता और ऊष्मप्रवैगिकी के बीच के अनुरूपण को बल प्रदान किया: ब्लैक होल यांत्रिकी के पहले नियम का उपयोग करते हुए, यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि एक गैर-चक्रित ब्लैक होल की एंट्रोपी उसके घटना क्षितिज के क्षेत्र की एक चौथाई होगी। यह एक सार्वभौमिक परिणाम है और इसे सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय क्षितिज पर लागू किया जा सकता है, जैसे की डी सिट्टर अंतरिक्ष क्षेत्र में। बाद में यह सुझाव आया कि एक ब्लैक होल अधिकतम एंट्रोपी वाली वस्तु है, अर्थात अंतरिक्ष के किसी एक क्षेत्र की अधिकतम संभव एंट्रोपी उस क्षेत्र में समा सकने वाले सबसे बड़े ब्लैक होल की एंट्रोपी होगी। इसकी वजह से होलोग्राफिक सिद्धांत की उत्पत्ति हुई। हॉकिंग विकिरण ब्लैक होल के विशिष्ट तापमान को दर्शाता है, जिसकी गणना उसकी एंट्रोपी से की जा सकती है। तापमान जितना गिरेगा, ब्लैक होल उतना ही विशाल होता जायेगा: जितनी अधिक उर्जा अवशोषित करेगा, उतना ही अधिक अधिक ठंड़ा होता जायेगा। बुध ग्रह के लगभग द्रव्यमान वाले ब्लैक होल में आकाशीय सूक्ष्म-तरंग विकिरण के संतुलन में तापमान होता है । इससे अधिक भारी होने पर, एक ब्लैक होल पृष्ठभूमि विकिरण से अधिक ठंडा हो जाएगा और यह हॉकिंग विकिरण के माध्यम से उत्सर्जित उर्जा की तुलना में, पृष्ठभूमि से ज्यादा तेजी से उर्जा प्राप्त करेगा, इससे भी अधिक ठंडा हो जायेगा। हालाँकि, एक कम भारी ब्लैक होल में यह प्रभाव यह दर्शायेगा कि ब्लैक होल का द्रव्यमान समय के साथ धीरे धीरे वाष्पित हो कर उड़ जायेगा, जबकि ब्लैक होल ऐसा करते हुए और अधिक गरम होता जायेगा। हालाँकि ये प्रभाव उन ब्लैक होल के लिए नगण्य हैं जो अन्तरिक्षीय रूप से गठित होने के लिए पर्याप्त रूप से भारी हैं, वे काल्पनिक छोटे ब्लैक होल के लिए बड़ी तेजी से महत्वपूर्ण हो जायेंगे, जहाँ प्रमात्रा-यांत्रिक प्रभाव हावी हों। वास्तव में, छोटे ब्लैक होल संभवतः द्रुत गति से वाष्पित होंगे और अंततः विकिरण के एक विस्फोट के साथ लुप्त हो जायेंगे। हालांकि सामान्य सापेक्षता का उपयोग किसी ब्लैक होल की एंट्रोपी की गणना हेतु किया जा सकता है, यह स्थिति सिद्धांततः संतुष्टि देने वाला नहीं है। सांख्यिकीय यांत्रिकी में, एंट्रोपी का अर्थ एक प्रणाली की सूक्ष्म विन्यास की संख्या की गणना के रूप में समझा जाता है जिनमें समान सूक्ष्म गुण हो । लेकिन एक प्रमात्रा गुरुत्व के संतोषजनक सिद्धांत के बिना, ब्लैक होल के लिए इस प्रकार की गणना करना संभव नहीं है। हालाँकि, स्ट्रिंग सिद्धांत द्वारा थोडी आशा जगाई गयी है, जिसके अनुसार ब्लैक होल की स्वतंत्रता की सूक्ष्म मात्रा D-ब्रेन्स है। प्रदान किये गये चार्ज और ऊर्जा द्वारा डी-ब्रांस की अवस्थाओं की गणना करके, कुछ ख़ास अति सममित ब्लैक होल के उत्क्रम माप को प्राप्त किया जा सकता है। इन गणनाओं की वैधता के क्षेत्र को विस्तृत करना, अनुसंधानों के लिए एक जारी कार्य क्षेत्र है। तथाकथित जानकारी लोप विरोधाभास, या ब्लैक होल केन्द्रीकरण विरोधाभास, मौलिक भौतिकी में एक खुला प्रश्न है। पारंपरिक रूप से, भौतिक विज्ञान के नियम समान ही रहेंगे, आगे की तरफ बढ़ें या पीछे जाएँ । अर्थात, यदि ब्रह्मांड के प्रत्येक कण की स्थिति और वेग की माप की जाये, तो हम इच्छानुसार अतीत के ब्रह्मांड के इतिहास की खोज के लिए पीछे की तरफ काम कर सकते हैं। लूविल प्रमेय फेज़ स्पेस वोल्यूम के संरक्षण का वर्णन करता है, जिसे "जानकारी के संरक्षण" के रूप में समझा जा सकता है, इसलिए स्थापित भौतिकी में भी कुछ समस्या अवश्य है। क्वांटम यांत्रिकी में, यह केन्द्रीकरण नामक एक महत्वपूर्ण गुण के साथ मेल खाती है, जिसका संबंध प्रायिकता के संरक्षण के साथ है । हालाँकि, ब्लैक होल इस नियम का उल्लंघन कर सकते हैं। स्थापित सामान्य सापेक्षता के अंतर्गत यह स्थिति सूक्ष्म किन्तु स्पष्ट है: स्थापित नो-हेयर प्रमेय के कारण, यह कभी निर्धारित नहीं किया जा सकता कि ब्लैक होल के अंदर क्या गया? हालाँकि, बाहर से देखने पर, जानकारी वास्तव में कभी नष्ट नहीं होती है, क्योंकि ब्लैक होल में गिरते हुए पदार्थ को घटना क्षितिज तक पहुँचने में अनंत समय लगता है। इस बात पर जोर देना आवश्यक है कि सामान्य सापेक्षता के समीकरण असल में टी-समरूपता का पालन करते हैं और यह तथ्य कि उपरोक्त तर्क सामान्य सापेक्षता के एप्लीकेशन से ही आता है, हमें थोड़ा सतर्क हो जाना चाहिए। यह इस तथ्य की वजह से है कि टाइम-सिमेट्रिक सिद्धांत द्वारा टाइम-रिवर्सल-एसिमेट्रिक निष्कर्ष तक पहुँचाना संभव नहीं है, जो इस मामले में सामान्य सापेक्षता है। रिन्द्लर निर्देशांक, जो एक बाहरी दर्शक के लिए घटना क्षितिज के निकट लागू होते हैं, टी-सममित हैं अतः "अपरिवर्तनीय" प्रक्रिया जैसी किसी चीज के अस्तित्व को नकारा जा सकता है। यह संभव है कि "विरोधाभास" टाइम-सममित सिद्धांत पर टाइम-असममित सीमा को लागू करने का परिणाम है, यह इसको लोश्मित विरोधाभास का एक प्रकार बनता है। दूसरी ओर, प्रमात्रा गुरुत्व के बारे में विचार, यह सुझाव देते हैं कि वहां केवल एक सीमित परिमित उत्क्रम माप हो सकती है जो क्षितिज के पास के अंतरिक्ष से संबंधित होगी: लेकिन क्षितिज के उत्क्रम माप में परिवर्तन और हॉकिंग विकिरण का उत्क्रम माप सर्वथा पर्याप्त होता है उन पदार्थ और ऊर्जा के सभी उत्क्रम मापों को अपने में समाहित करने के लिए जो ब्लैक होल में गिर रहें हों। हालाँकि कई भौतिकीविदों की यह चिंता है कि यह अभी भी ठीक प्रकार से समझा नहीं जा सका है। खास कर, एक प्रमात्रा स्तर पर, हॉकिंग विकिरण की प्रमात्रा अवस्था निर्धारित होती है केवल इस बात से कि ब्लैक होल में पूर्व में क्या गिर चुका है; और इतिहास कि ब्लैक होल में क्या गिरा था एकमात्र निर्धारित होती है ब्लैक होल और विकिरण के प्रमात्रा अवस्था द्वारा। यही नियतत्ववाद और केन्द्रीकरण की आवश्यकता होगी। लंबे समय तक स्टीफन हॉकिंग ने इस विचार का बिरोध किया, अपनी मूल 1975 की स्थिति पर वे अड़े रहे कि हॉकिंग विकिरण पूरी तरह से तापीय है इसलिए पूर्णतया अव्यवस्थित है, ब्लैक होल द्वारा पूर्व में निगले गए पदार्थों की कोई भी जानकारी मौजूद नहीं रहती है; उन्होनें तर्क दिया कि इस जानकारी का लोप हो चुका है। हालाँकि, 21 जुलाई 2004 में, उन्होंने नया तर्क प्रस्तुत किया, अपने पिछले तर्क के विपरीत। इस नई गणना में, ब्लैक होल से सम्बंधित उत्क्रम माप निकलकर हॉकिंग विकिरण में ही जाता है। हालाँकि, इसे सिद्धांत में समझ पाना भी मुश्किल है, जब तक ब्लैक होल अपना वाष्पीकरण पूरा न कर ले। तब तक हॉकिंग विकिरण की जानकारी और व्यवस्था की प्रारंभिक अवस्था में 1:1 तरीके से संबद्ध स्थापित करना असंभव है। एक बार जब ब्लैक होल पूरी तरह वाष्पित हो जाये, उनकी पहचान की जा सकती है और उनमें हुआ केन्द्रीकरण संरक्षित रहता है। जिस समय हॉकिंग ने अपनी गणना पूरी की, यह AdS/ CFT संबंध के द्वारा काफी स्पष्ट हो चुका था कि ब्लैक होल का क्षय एकात्मक तरीके से होता है। क्योंकि गेज सिद्धांतों में आग के गोले, जो हॉकिंग विकिरण के अनुरूप हैं, निश्चित रूप से एकात्मक हैं। हॉकिंग की नई गणना का विशेषज्ञ वैज्ञानिक समुदाय द्वारा मूल्यांकन नहीं किया गया है, क्योंकि उनके उपयोग किये तरीके अनजाने और संदिग्ध अनुरूपता वाले हैं। लेकिन खुद हॉकिंग ने इसपर पर्याप्त विश्वास जताते हुए 1997 में कैलटेक भौतिकविद् जॉन प्रेस्किल्ल के साथ लगाई गयी शर्त के लिए भुगतान किया, जिसमें मीडिया को काफी रुचि रही थी। लेओनार्ड सस्किंड और नोबेल पुरस्कार विजेता जेरार्ड टी हूफ्ट ने यह सुझाव दिया है कि ब्लैक होल के चारों और के त्रिआयामी अन्तरिक्ष को घटना क्षितिज के एक द्विआयामी व्यवहार द्वारा पूर्ण रूप से वर्णित किया जा सकता है। वे इसपर विश्वास करते हैं क्योंकि यह ब्लैक होल जानकारी-लोप विरोधाभास का समाधान कर सकता है। इस विचार को स्ट्रिंग सिद्धांत के अर्न्तगत सामायिक किया गया है, तथा होलोग्राफिक सिद्धांत के तौर पर जाना जाता है।
श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन अथवा राम स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 16वीं शताब्दी का एक भजन है। यह संस्कृतमय अवधी में है। नीचे की तीन पंक्तियाँ अवधी में लिखी गयी है। इसमें कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। भक्तिरस से ओत-प्रोत यह कविता, साहित्यिक तौर पर भी अद्भुत है। यह जगती छंद में लिखी गयी है। श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणं। नवकंजलोचन कंजमुख करकंज पदकंजारुणं ॥1॥ व्याख्या: हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं। मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥1॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरं। पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरं ॥2॥ व्याख्या: उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥ भजदीनबन्धु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकन्दनं। रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथनन्दनं ॥3॥ व्याख्या: हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥3॥ शिरमुकुटकुण्डल तिलकचारू उदारुअंगविभूषणं। आजानुभुज शरचापधर संग्रामजितखरदूषणं ॥4॥ व्याख्या: जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं। जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं। जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥4॥ इति वदति तुलसीदास शङकरशेषमुनिमनरंजनं। ममहृदयकंजनिवासकुरु कामादिखलदलगञजनं ॥5॥ व्याख्या: जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥5॥ मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥6॥ व्याख्या: जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से सुन्दर साँवला वर तुमको मिलेगा। वह जो दया का खजाना और सुजान है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥6॥ एही भाँति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली। तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥7॥ व्याख्या: इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥7॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥8॥ व्याख्या: गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ॥8॥
ओडिशा में कई विश्वविद्यालय हैं। उनकी सूची इस प्रकार से है:-
Otolemur Euoticus गलेगो Sciurocheirus Galagoides गलेगो, जो बुशबेबी और नागापाए भी कहलाता है, अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी नरवानर प्राणी होते हैं। यह रात को वृक्षों पर घूम कर बच्चों जैसी आवाज़ें करता है, जिस कारण उसका नाम "झाड़शिशु" पड़ा। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण के लोरिसोइडेआ अधिकुल में एक अलग गलेगिडाए या गलेगोनिडाए नामक कुल हैं।
नाजिर हुसेन एक नेपाली अभिनेता हैं। उन्होंने अपना अभिनय कैरियर मन्दला थिएटर से शुरू किया हैं।
सर्वेक्षण शोध मुख्यतः विचारों, मतों और भावनाओं के आकलन को कहा जाता है। यह सिमित एवं विशिष्ट हो सकता है एवं वैश्विक, व्यापक भी हो सकता है।
काण्डा लगा क्वींठी, पोखरी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है।
टॉरस एक प्रकार की ज्यामितीय आकृति है।
काबुलिस्तान वर्तमान समय के अफगानिस्तान के काबुल प्रदेश पर केन्द्रित भूभाग का ऐतिहासिक क्षेत्रीय नाम है। इसके अन्तर्गत पेशावर तक का क्षेत्र लिया जा सकता है। काबुलिस्तान के दक्षिण का भूभाग अफगानिस्तान था जबकि उत्तर-पश्चिम का भाग खोरासान।
कंजर, लक्ष्मण्चंदा मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
दहेज का मतलब है कोई सम्पति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप सेः अविभावक या दूसरे व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी पक्षकार को विवाह के समय या पहले या बाद देने या देने के लिए सहमत होना। लेकिन जिन पर मुस्लिम विधि लागू होती है उनके संबंध में महर दहेज में शामिल नहीं होगा। दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा। दहेज की मांग के लिए जुर्माना- यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है। किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव भी दहेज की श्रेणी में आता है और उसे भी कम से कम छह मास और अधिकतम पाँच वर्ष के कारावास की सजा तथा प्रन्द्रह हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है। यदि कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाता है तो दहेज प्राप्त करने के तीन माह के भीतर या औरत के नाबालिग होने की स्थिति में उसके बालिग होने के एक वर्ष के भीतर उसे अंतरित कर देगा। यदि महिला की मृत्यु हो गयी हो और संतान नहीं हो तो अविभावक को दहेज अन्तरण किया जाएगा और यदि संतान है तो संतान को अन्तरण किया जाएगा। यदि घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत की गयी हो तो न्यायालय पुलिस रिपोर्ट या क्षुब्ध द्वारा शिकायत किये जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा। दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी जो बनाये गये नियमों का अनुपालन कराने या दहेज की मांग के लिए उकसाने या लेने से रोकने या अपराध कारित करने से संबंधित साक्ष्य जुटाने का कार्य करेगा।
आज़ाद कश्मीर, आधिकारिक रूप से आज़ाद जम्मू और कश्मीर पाकिस्तान के प्रशासनिक प्रभागों में से एक है। यह पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर का एक हिस्सा है और पाक-प्रशासित कश्मीर को दो हिस्सों में बांटा गया है, पहला हिस्सा यह आज़ाद जम्मू-ओ-कश्मीर हैऔर दूसरा हिस्सा गिलगित-बल्तिस्तान है। गिलगित-बल्तिस्तान रहित आज़ाद कश्मीर का इलाक़ा 13,300 वर्ग किलोमीटर पर फैला है और इसकी आबादी अंदाज़न 40 लाख है। आज़ाद कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद है और इसमें 8 ज़िले, 19 तहसीलें और 182 संघीय काउन्सिलें हैं। आज़ाद कश्मीर के मीरपुर डवीज़न में भिम्बेर ज़िला, कोटली ज़िला और मीरपुर ज़िला, मुज़फ़्फ़राबाद डवीज़न में बाग़ ज़िला, मुज़फ़्फ़राबाद ज़िला और नीलम ज़िला जबकि पुंछ रावलाकोट डवीज़न में पूंछ ज़िला, रावला कोट और सुधनोती ज़िला शामिल हैं।
वाराणसी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय वाराणसी है। क्षेत्रफल - वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - ज़िलाधिकारी - समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - उत्तर देशांतर - पूर्व औसत वर्षा - मि॰मी॰ एस॰टी॰डी॰ कोड - 0542 एस॰टी॰डी॰ कोड - ]
जीव जंतुओं या किसी भी जीवित वस्तु के अध्ययन को जीवविज्ञान या बायोलोजी कहते हैं। इस विज्ञान की मुख्यतः दो शाखाएँ हैं : प्राणिविज्ञान, जिसमें जंतुओं का अध्ययन होता है और वनस्पतिविज्ञान या पादपविज्ञान, जिसमें पादपों का अध्ययन होता है। सामान्य अर्थ में जीवधारियों को दो प्रमुख वर्गों - प्राणियों और पादपों - में विभक्त किया गया है। दोनों में अनेक समानताएँ हैं। दोनों की शरीर रचनाएँ कोशिकाओं और ऊतकों से बनी हैं। दोनों के जीवनकार्य में बड़ी समानता है। उनका जनन भी सादृश्य है। उनकी श्वसनक्रिया भी लगभग एक सी है। पादप प्राणियों से कुछ मामलों में भिन्न भी होते हैं। जैसे पादपों में पर्णहरित नामक हरा पदार्थ रहता है, जो प्राणियों में नहीं पाया जाता। पादपों की कोशिका भित्तियाँ मुख्यतः सेलुलोज नामक कार्बोहाइड्रेट की बनी होती हैं, जबकि प्राणियों में कोशिका भित्तियाँ सामान्यतः पायी ही नहीं जातीं। अधिकांश पादपों में गमनशीलता नहीं होती, जो प्राणी चलने में सक्षम होते हैं। वनस्पतियाँ धरती पर जीवन के मूलभूत अंश हैं। वनस्पतियाँ आक्सीजन छोड़ती हैं। मानव एवं अन्य जन्तुओं का भोजन उनसे ही मिलता है। वनस्पतियों से रेशे, ईंधन, औषधियाँ प्राप्त होतीं है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे कार्बन डाई आक्साइड सोखते हैं। पेड़ों से ही इमारती लकड़ियाँ एवं अन्य संरचनाओं के निर्माण के लिए लकड़ी मिलती है। अतः वनस्पतियों के बारे में अच्छी तरह जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि- - इसके अंतर्गत पादप में आकार, बनावट इत्यादि का अध्ययन होता है। आकारिकी आंतर हो सकती है या बाह्य। 2. कोशिकानुवंशिकी - इसके अंतर्गत कोशिका के अंदर की सभी चीजों का, कोशिका तथा केंद्रक के विभाजन की विधियों का तथा पौधे किस प्रकार अपने जैसे गुणोंवाली नई पीढ़ियों को जन्म देते हैं इत्यादि का, अध्ययन होता है। 3. पादप परिस्थितिकी - इसके अंतर्गत पादपों और उनके वातावरण के आपसी संबंध का अध्ययन होता है। इसमें पौधों के सामाजिक जीवन, भौगोलिक विस्तार तथा अन्य मिलती जुलती चीजों का भी अध्ययन किया जाता है। 4. पादप शरीर-क्रिया-विज्ञान - इसके अंतर्गत जीवनक्रियाओं का बृहत् रूप से अध्ययन होता है। 5. भ्रूणविज्ञान - इसके अंतर्गत लैंगिक जनन की विधि में जब से युग्मक बनते हैं और गर्भाधान के पश्चात् भ्रूण का पूरा विस्तार होता है तब तक की दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 6. विकास - इसके अंतर्गत पृथ्वी पर नाना प्रकार के प्राणी या पादप किस तरह और कब पहले पहल पैदा हुए होंगे और किन अन्य जीवों से उनकी उत्पत्ति का संबंध है, इसका अध्ययन होता है। 7. आर्थिक पादपविज्ञान - इसके अंतर्गत पौधों की उपयोगिता के संबंध में अध्ययन होता है। 8. पादपाश्मविज्ञान - इसके अंतर्गत हम उन पौधों का अध्ययन करते हैं जो इस पृथ्वी पर हजारों, लाखों या करोड़ों वर्ष पूर्व उगते थे पर अब नहीं उगते। उनके अवशेष ही अब चट्टानों या पृथ्वी स्तरों में दबे यत्र तत्र पाए जाते हैं। 9. वर्गीकरण या क्रमबद्ध पादपविज्ञान - इसके अंतर्गत पौधों के वर्गीकरण का अध्ययन करते हैं। पादप संघ, वर्ग, गण, कुल इत्यादि में विभाजित किए जाते हैं। 18वीं या 19वीं शताब्दी से ही अंग्रेज या अन्य यूरोपियन वनस्पतिज्ञ भारत में आने लगे और यहाँ के पौधों का वर्णन किया और उनके नमूने अपने देश ले गए। डाक्टर जे. डी. हूकर ने लगभग 1860 ई. में भारत के बहुत से पौधों का वर्णन अपने आठ भागों में लिखी "फ्लोरा ऑव ब्रिटिश इंडिया" नामक पुस्तक में किया है। डार्विन के विचारों के प्रकाश में आने के पश्चात् यह वर्गीकरण पौधों की उत्पत्ति तथा आपसी संबंधों पर आधारित होने लगा। ऐसे वर्गीकरण को 'प्राकृतिक पद्धति' कहते हैं और जो वर्गीकरण इस दृष्टिकोण को नहीं ध्यान में रखते उसे 'कृत्रिम पद्धति' कहते हैं।
कुलदीप पवार भारतीय सिनेमा के मराठी भाषा के अभिनेता थे। वो मूल रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर के रहने वाले थे। उन्हें उनके हास्य विनोद और कुछ नकारात्मक किरदारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने गुपचुप-गुपचुप, शापित, अरे संसार संसार और वजीर जैसी कई प्रसिद्ध मराठी फिल्मों में अभिनय किया। टेलीविजन की दुनिया में उनको धारावाहिक परमवीर से प्रसिद्धि मिली। 24 मार्च 2014 को गुर्दे की विफलता के कारण मुंबई के कोक्लाबेन अंबानी अस्तपताल में निधन हो गया। उनके निधन के समय उनके परिवार में उनकी पत्नी निलिमा और दो बच्चे हैं।
रडियोधर्मी कचरा या रेडियोऐक्टिव कचरा वह कचरा है जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थ उपस्थित हों। यह प्राय: किसी नाभिकीय अभिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं उदाहरण के लिये नाभिकीय भट्ठी में नाभिकीय संलयन के पश्चात बचा हुआ इंधन आदि। रेडियोधर्मी अपशिष्ट में ऐसे पदार्थ होते हैं जो जीवन के लिये हानिकारक होते हैं। यह धीरे-धीरे समान्य बनता है जिसकी अवधि सैकड़ों वर्ष भी हो सकती है। नाभिकीय अपशिष्ट को बड़ी सावधानी से ऐसी जगह पर और इस प्रकार से गाड़ा जाता है कि उससे निकलने वाली हानिकारक विकिरण एवं अन्य कण कम से कम हानि पहुँचा सकें और सैकड़ों वर्षों तक उसमें कोई रिसाव आदि न हो।
वंगारी मथाई केन्याई पर्यावरणविद् और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। ये ग्रीन बेल्ट आंदोलन की संस्थापक और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली प्रसिद्ध केन्याई राजनितिज्ञ और समाजसेवी थीं। उन्हें साल 2004 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली अफ्रीकी महिला थी| उन्होंने अमेरिका और कीनिया में उच्चशिक्षा अर्जित की। 1970 के दशक में माथे ने ग्रीन बेल्ट आंदोलन नामक गैर सरकारी संगठन की नीव डालकर पौधरोपण, पर्यावरण संरक्षण और महिलाओं के अधिकारों की ओर ध्यान दिया। 2004 में "सतत विकास, लोकतंत्र और शांति के लिए के लिए अपने योगदान" की वजह से नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली अफ्रीका महिला और पहली पर्यावरणविद् बनी। वर्ष 2005 में इन्हें जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 2002 में सांसद बनी और कीनिया की सरकार में मंत्री भी रहीं। 26 सितंबर 2011 को नैरोबी में उनका निधन हो गया।
व्यवसाय विधिक रूप से मान्य संस्था है जो उपभोक्ताओं को कोई उत्पाद या सेवा प्रदान करने के लक्ष्य से निर्मित की जाती है। व्यवसाय को 'कम्पनी', 'इंटरप्राइज' या 'फर्म' भी कहते हैं। पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार का प्रमुख स्थान है जो अधिकांशत: निजी हाथों में होते हैं और लाभ कमाने के ध्येय से काम करते हैं तथा साथ-साथ स्वयं व्यापार की भी वृद्धि करते हैं। किन्तु सहकारी संस्थाएँ तथा सरकार द्वारा चलायी जानी वाली संस्थाएं प्राय: लाभ के बजाय अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बनायी गयी होती हैं। हम व्यावसायिक वातावरण में रहते हैं। यह समाज का एक अनिवार्य अंग है। यह व्यावसायिक क्रियाओं के विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तथा सेवाएं उपलब्ध कराकर हमारी आश्यकताओं की पूर्ति करता है। अन्य शब्द - व्यापार, व्यवसाय-प्रतिष्‍ठान, फर्म, धंधा, व्यवसाय, कारबार, कारोबार, काम-काज, काम-धंधा, उद्यम जब हम अपने आसपास ध्यान देते हैं तो देखते हैं कि ज्यादातर लोग किसी न किसी काम में संलग्न हैं। अध्यापक विद्यालयों में पढ़ाते हैं, किसान खेतों में काम करते हैं, मजदूर कारखानों में काम करते हैं, चालक गाड़ियाँ चलाते हैं, दुकानदार सामान बेचते हैं, चिकित्सक रोगियों को देखते हैं आदि। इस तरह बारहों महीने हर आदमी दिन भर, या कभी-कभी रात भर, किसी न किसी काम में व्यस्त रहता है। लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि हम सब इस तरह किसी न किसी काम में अपने आपको इतना व्यस्त क्यों रखते हैं? इसका सिर्फ एक ही उत्तर है - 'अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए'। इस तरह काम करके या तो हम अपने विभिन्न उत्तरदायित्वों की पूर्ति करते हैं या धन अर्जित करते हैं, जिससे कि हम अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीद सकें। मनुष्य द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाएँ मानवीय क्रियाएँ कहलाती हैं। इन सभी क्रियाओं को हम दो वर्गो में बाँट सकते हैं- जो क्रियाएँ धन अर्जित करने के उद्देश्य से की जाती हैं, उन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसान खेत में हल चलाकर फसल उगाता है और उसे बेचकर धन अर्जित करता है, कारखाने अथवा कार्यालय का कर्मचारी अपने काम के बदले वेतन या मजदूरी प्राप्त करता है, व्यापारी वस्तुओं के क्रय विक्रय से लाभ अर्जित करता है। ये सभी क्रियाएँ आर्थिक हैं। जो क्रियाएँ धन अर्जित करने की अपेक्षा, संतुष्टि प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाती हैं उन्हें अनार्थिक क्रियाएँ कहते हैं। इस तरह की क्रियाएँ, सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति, मनोरंजन या स्वास्थ्य लाभ के लिए की जाती हैं। लोग पूजा स्थलों पर जाते हैं, बाढ़ अथवा भूकंप राहत कोष में दान देते हैं, स्वास्थ्य लाभ के लिए स्वयं को खेलकूद में व्यस्त रखते हैं, बागवानी करते हैं, रेडियो सुनते हैं, टेलीविजन देखते हैं या इसी तरह की अन्य क्रियाएँ करते हैं। ये कुछ उदाहरण अनार्थिक क्रियाओं के हैं। आमतौर पर आर्थिक क्रियाएँ धन अर्जित करने के उद्देश्यों से की जाती है। साधरणतया लोग इस तरह की क्रियाओं में नियमित रूप में संलग्न होते हैं, जिसे आर्थिक क्रिया कहा जाता है। व्यवसाय को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है : व्यवसाय की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं : भारत की सांस्कृतिक ध्रोहर बहुत समृद्ध है। लेकिन शायद यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि प्राचीन काल में भारत, अर्थव्यवस्था तथा व्यवसाय के स्तर पर बहुत ही विकसित देश था। यह बात ऐतिहासिक साक्ष्यों, खुदाई से प्राप्त प्रमाणों, साहित्य व लिखित दस्तावेज़ों से सिधि होती हैं। इन सबसे अध्कि भारत की असीम धन संपत्ति से आकर्षित होकर विभिन्न विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा समय-समय पर हुए आक्रमण भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं। प्राचीन भारतीय सभ्यता न केवल वृफषि आधारित थी, बल्कि इसके आंतरिक व बाह्य व्यापार व वाणिज्य भी काफी उन्नत थे। व्यावसायिक जगत के विभिन्न क्षेत्रों में भारत का असीम योगदान है। उस समय के अन्य देशों में प्रचलित व्यवसायों से तुलना करने पर हम पाते हैं कि भारतीय व्यवसाय अपनी विलक्षणता, गतिशीलता ;गत्यात्मकताद्ध व गुणात्मकता में इन सबसे कहीं आगे था। शुरू के दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि आधरित थी। लोग अपने उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन स्वयं करते थे। वस्तुओं को बेचने अथवा विनिमय की आवश्यकता ही नहीं थी। लेकिन विकास के साथ-साथ लोगों की आवश्यकताएँ बढ़ने लगी। जिसके कारण वस्तुओं के उत्पादन में भी वृधि होने लगी। लोगों ने दैनिक उपयोग तथा विलासिता संबंधी विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में विशेषज्ञता अर्जित करनी शुरू कर दी और इस तरह से उनके पास अपने उपयोग की अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए दक्षताऔर समय का व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र अभाव होना शुरू हो गया। इस प्रकार इनकी कुशलता में वृधि होने लगी और ये अपनी आवश्यकता से अध्कि वस्तुओं का उत्पादन करने में सक्षम हो गए। अतः अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी अध्कि उत्पादित वस्तुओं के विनिमय की प्रणाली विकसित हो गई। यह व्यापार की शुरूआत थी। आज ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि भारत में व्यवसाय व व्यापार के क्षेत्र में इतना विकास स्वतंत्राता प्राप्ति के पश्चात ही हुआ है। भारत, आज औद्योगिक उत्पादन में इतना सक्षम हो गया है कि हम सभी वस्तुओं का उत्पादन देशी तकनीक के प्रयोग से कर सकते हैं। लेकिन इससे यह परिणाम नहीं निकाल लेना चाहिए कि भूत काल में भारतीय सभ्यता विकसित या उन्नत नहीं थी। जबकि हमें आज भी भारत की समृधि व्यापारिक व वाणिज्यिक ध्रोहर पर गर्व है। आप यह जानकर हैरान होंगे कि भारत ने व्यापार व वाणिज्य के क्षेत्र में अपनी यात्रा 5000 वर्ष ई.पू. शुरू कर दी थी। कई ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह प्रमाणित होता है कि उस समय भारत में सुनियोजित शहर थे। भारतीय कपड़ों, आभूषणों और इत्रा इत्यादि के प्रति पूरे विश्व में आकर्षण था। यह भी प्रमाण मिले हैं कि काफी समय से भारतीय व्यापारियों में व्यवसाय के लिए मुद्रा के प्रयोग का चलन था। व्यापारियों, शिल्पकारों व उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए संघों ;हनपसकद्ध का प्रचलन था। यह भारत में व्यापार व वाणिज्य के जटिल विकास की ओर संकेत करता है। उस समय भारत के व्यापारियों ने न केवल सुदृढ़ आंतरिक व्यवसायिक रास्तों का जाल बुना था, बल्कि उनके व्यावसायिक संबंध अरब, मध्य व दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारियों से भी थे। भारत विभिन्न प्रकार की धतु सामग्री के उत्पादन में भी सक्रिय था, जैसे तांबा, पीतल की वस्तुएं, बर्तन, गहने तथा सजावटी सामान आदि। भारतीय व्यापारी विश्व के विभिन्न भागों में अपने उत्पादों का निर्यात करते थे और वहां से उनके उत्पादों का आयात करते थे। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि अंग्रेज सर्वप्रथम भारत में व्यापार करने के लिए ही आए थे, जिन्होंने बाद में यहां अपना राज्य स्थापित कर लिया। भारत ने कई प्रकार से विश्व व्यापार व वाणिज्य में योगदान दिया है। गणना के लिए अंक प्रणाली, जिसका हम आज भी उपयोग करते हैं, भारत में पहले से विकसित थी। संयुक्त परिवार प्रथा तथा व्यवसाय में श्रम विभाजन का विकास भी यहीं हुआ, जो आज तक प्रचलित है। आज आध्ुनिक समय में प्रयोग की जाने वाली उपभोक्ता केंद्रित व्यवसाय तकनीक पुराने समय से भारतीय व्यवसाय का एक अभिन्न अंग रही है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत की अपनी समृधि व्यावसायिक ध्रोहर है, जिसने इसकी उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सभी व्यावसायिक क्रियाएँ कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती हैं। व्यवसाय के उद्देश्यों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है : व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों के अंतर्गत लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ वे समस्त आवश्यक क्रियाएँ भी आती हैं, जिनके द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है, जैसे ग्राहक बनाना, नियमित नव प्रवर्तन तथा उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग आदि। लाभ, व्यवसाय के लिए जीवन दायिनी शक्ति का कार्य करता है। इसके बिना कोई भी व्यवसाय प्रतियोगिता के बाजार में टिका नहीं रह सकता। वास्तव में किसी भी व्यावसायिक इकाई के अस्तित्व में आने का उद्देश्य होता है- लाभ कमाना। लाभ, व्यवसायी को न केवल उसकी आजीविका अर्जित करने में सहायता करता है, अपितु लाभ का एक भाग व्यवसाय में पुनः विनियोजित कर व्यावसायिक गतिविध्यिं के विस्तार में भी सहायक होता है। लाभ कमाने के प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यवसाय के कुछ अन्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं : सामाजिक उद्देश्य व्यवसाय के वे उद्देश्य होते हैं, जिन्हें समाज के हितों के लिए प्राप्त करना आवश्यक होता है। अतः हर व्यवसाय का उद्देश्य होना चाहिए कि वह किसी भी प्रकार से समाज को हानि न पहुँचाए। व्यवसाय के सामाजिक उद्देश्यों के अंतर्गत अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन तथा पूर्ति, उचित व्यापारिक प्रथाएँ अपनाना, समाज के सामान्य कल्याणकारी कार्यों में योगदान तथा कल्याणकारी सुविधाओं में योगदान करना सम्मिलित है। मानवीय उद्देश्यों से अभिप्राय उन उद्देश्यों से है, जिनमें समाज के अक्षम तथा विकलांग, शिक्षा अथवा प्रशिक्षण से वंचित लोगों के कल्याण तथा कर्मचारियों की अपेक्षाओं की पूर्ति के लक्ष्य निहित होते हैं। इस प्रकार व्यवसाय के मानवीय उद्देश्यों के अंतर्गत कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक संतुष्टि और मानव संसाधनों का विकास निहित है। व्यवसाय, देश का एक महत्वपूर्ण अंग होता है अतः राष्ट्रीय लक्ष्यों और आकांक्षाओं की प्राप्ति प्रत्येक व्यवसाय का उद्देश्य होना चाहिए। व्यवसाय के राष्ट्रीय उद्देश्य निम्नलिखित हैं: पहले भारत के अन्य देशों के साथ बहुत ही सीमित व्यापारिक संबंध थे। तब वस्तुओं की आयात और निर्यात संबंधी नीतियाँ बहुत कठोर थीं, लेकिन आजकल उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण काफी हद तक विदेशी निवेश पर प्रतिबंध समाप्त हो चुका है, तथा आयातित वस्तुओं पर लगने वाला शुल्क भी काफी कम हो गया है। इन परिवर्तनों से बाजार में प्रतियोगिता काफी बढ़ गई है। आज वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया एक बड़े बाजार के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। आज एक देश में तैयार माल दूसरे देश में आसानी से उपलब्ध है। इस प्रकार विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से प्रत्येक व्यवसाय अपने मस्तिष्क में कुछ उद्देश्य रखकर काम करने लगा है, जिसे वैश्विक उद्देश्य कहा जा सकता है। लोग लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से व्यवसाय चलाते हैं। लेकिन केवल लाभ अर्जित करना ही व्यवसाय का एकमात्रा उद्देश्य नहीं होता। समाज का एक अंग होने के नाते इसे बहुत से सामाजिक कार्य भी करने होते हैं। यह विशेष रूप से अपने अस्तित्व की सुरक्षा में संलग्न स्वामियों, निवेशकों, कर्मचारियों तथा सामान्य रूप से समाज व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र व समुदाय की देखरेख की जिम्मेदारी भी निभाता है। अतः प्रत्येक व्यवसाय को किसी न किसी रूप में इनके प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। उदाहरण के लिए, निवेशकों को उचित प्रतिफल की दर का आश्वासन देना, अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन, सुरक्षा, उचित कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना, अपने ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्यों पर उलब्ध कराना, पर्यावरण की सुरक्षा करना तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से कार्य करने चाहिए। हालांकि ऐसे कार्य करते समय व्यवसाय के सामाजिक उत्तारदायित्वों के निर्वाह के लिए दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। पहली तो यह कि ऐसी प्रत्येक क्रिया र्ध्मार्थ क्रिया नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यवसाय किसी अस्पताल अथवा मंदिर या किसी स्कूल अथवा कॉलेज को कुछ धनराशि दान में देता है तो यह उसका सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं कहलाएगा, क्योंकि दान देने से सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं होता। दूसरी बात यह है कि, इस तरह की क्रियाएँ कुछ लोगों के लिए अच्छी और कुछ लोगों के लिए बुरी नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए एक व्यापारी तस्करी करके या अपने ग्राहकों को धेखा देकर बहुत सा धन अर्जित कर लेता है और गरीबों के मुफ्रत इलाज के लिए अस्पताल चलाता है तो उसका यह कार्य सामाजिक रूप से न्यायोचित नहीं है। सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ है कि एक व्यवसायी सामाजिक क्रियाओं को सम्पन्न करते समय ऐसा कुछ भी न करे, जो समाज के लिए हानिकारक हो। इस प्रकार सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधरणा व्यवसायी को जमाखोरी व कालाबाजारी, कर चोरी, मिलावट, ग्राहकों को धेखा देना जैसी अनुचित व्यापरिक क्रियाओं के बदले व्यवसायी को विवेकपूर्ण प्रबंध्न के द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह कर्मचारियों को उचित कार्य तथा आवासीय सुविधएँ प्रदान करके, ग्राहकों को उत्पाद विक्रय उपरांत उचित सेवाएँ प्रदान करके, पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करके तथा प्राकृतिक संसाध्नों की सुरक्षा द्वारा संभव है। व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधरणा तथा इसके महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद आइए जानें कि व्यवसाय का इसके विभिन्न हित-समूहों, जिन पर यह आश्रित है, के प्रति क्या उत्तरदायित्व हैं। व्यवसाय प्रायः स्वामियों, विनिवेशकों, कर्मचारियों, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों तथा उपभोक्ताओं, प्रतियोगियों, सरकार तथा समाज पर आश्रित है। इन्हें हित-समूह इसलिए कहा जाता है, क्योंकि व्यवसाय की प्रत्येक क्रिया से इन समूहों का हित, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। व्यवसाय के अपने स्वामियों के प्रति उत्तरदायित्व हैं : व्यवसाय के अपने लेनदारों के प्रति उत्तरदायित्व हैः व्यवसाय के अपने कर्मचारियों के प्रति निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं : व्यवसाय के अपने आपूर्तिकर्त्ताओं के प्रति उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं : ग्राहकों के प्रति व्यवसाय के उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं : व्यवसाय के अपने प्रतियोगियों के प्रति निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं : सरकार के प्रति व्यवसाय के विभिन्न उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं : एक समाज, व्यक्तियों, समूहों, संगठनों, परिवारों आदि से मिलकर बनता है। ये सभी समाज के सदस्य होते हैं। ये सभी एक दूसरे के साथ मिलते-जुलते हैं तथा अपनी लगभग सभी गतिविधियों के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। इन सभी के बीच एक संबंध होता है, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। समाज का एक अंग होने के नाते, समाज के सदस्यों के बीच संबंध बनाए रखने में व्यवसाय को भी मदद करनी चाहिए। इसके लिए उसे समाज के प्रति कुछ निश्चित उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना आवश्यक है। ये उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं :
काण्डई, घाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है।
रोल्वालिंग हिमाल पूर्व-मध्य नेपाल में तिब्बत की सीमा के साथ चलने वाला हिमालय का एक खण्ड है। यह नांगपा ला नामक पहाड़ी दर्रे से महालंगूर हिमाल से बंटा हुआ है और इसके दक्षिण में रोल्वालिंग घाटी है जहाँ कई छोटे शेरपा समुदाय के गाँव हैं। पश्चिमोत्तर में तमकोसी नदी के पार लाबुचे हिमाल स्थित है। रोल्वालिंग हिमाल के कुछ प्रसिद्ध पर्वत इस प्रकार हैं: इनके अलावा इस श्रेणी में 6000 मीटर की ऊँचाई से अधिक वाले लगभग 50 अन्य पर्वत हैं।
शिंजियांग जनवादी गणराज्य चीन का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। ये एक रेगिस्तानी और शुष्क इलाक़ा है इसलिए इस की आबादी बहुत कम है। शिंजियांग की सरहदें दक्षिण में तिब्बत और भारत, दक्षिण-पूर्व में चिंग हई और गांसू, पूर्व में मंगोलिया, उत्तर में रूस और पश्चिम में क़ाज़क़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से मिलती हैं। भारत का अक्साई चिन का इलाका भी, जिसपर चीन का क़ब्ज़ा है, प्रशासनिक रूप से शिंजियांग में शामिल है। शिंजियांग की राजधानी उरुमची नाम का शहर है, जबकि इसका सबसे बड़ा नगर काश्गर है। मांछु भाषा में 'शिंजियांग' का मतलब 'नया सूबा' है। यहाँ तुर्की नसल की जाति के लोगों तूर्क हैं जो उइग़ुर कहलाते हैं और जो तक़रीबन सभी मुसलमान हैं। ये इलाक़ा चीनी तुर्किस्तान या मशरक़ी तुर्किस्तान भी कहलाता है। शिंजियांग संघर्ष शिंजियांग प्राँत में चीन से अलग होने के लिए चल रहा संघर्ष है। उइग़ुर लोगों का एक अलगाववादी समूह मानता है कि यह क्षेत्र, जिसे वे पूर्वी तुर्किस्तान कहते हैं, चीन का वैध अंश नहीं है बल्कि 1949 में चीन द्वारा आक्रमण करके कब्जाया गया था और अभी तक चीन उस पर अनधिकृत रूप से काबिज है। अलगाववादी आँदोलन कुछ तुर्की मुस्लिम संगठनों द्वारा चलाया जा रहा है, जिनमें पूर्वी तुर्किस्तान स्वाधीनता आँदोलन नाम का दल प्रमुख है। 24 अप्रैल 2013 को काश्गर के निकट हिंसक झड़पों में 21 की मृत्यु हुई, जिनमें 15 पुलिसकर्मी थे। एक स्थानीय सरकारी अधिकारी ने बताया कि ये झड़पें तब हुईं जब तीन सरकारी अधिकारियों ने काशगार के बाहर सेलिबुया इलाके में कुछ संदिग्ध चाकूधारी लोगों के छुपे होने की खबर दी। दो महीने बाद 26 जून 2013 को हुए दंगे में 27 लोग मारे गए; जिनमें 17 दंगाईयों द्वारा मारे गए थे और बाकी दस कथित तौर पर हमलावर थे जिन्हें पुलिस ने Lukqun शहर में मार गिराया। 1 मार्च 2014 को चाकूधारी हमलावरों के एक समूह ने कुनमिंग रेलवे स्टेशन पर लोगों पर हमला किया जिसमें कम से कम 29 लोग मारे गए और 130 अन्य घायल हुए. चीन ने इन हमलों के लिए शिंजियांग के उग्रवादी तत्वों को जिम्मेदार ठहराया। अनहुइ · फ़ूज्यान · गान्सू · गुआंगदोंग · गुइझोऊ · हाइनान · हेबेई · हेइलोंगजियांग · हेनान · हूबेई · हूनान · जिआंगसू · जिआंगशी · जीलिन · लियाओनिंग · चिंगहई · शान्शी · शानदोंग · शन्शी · सिचुआन · युन्नान · झेजियांग गुआंगशी · भीतरी मंगोलिया · निंगशिया · तिब्बत · शिंजियांग बीजिंग · चोंग्किंग · शंघाई · तिआन्जिन हांगकांग · मकाऊ
सोंगख्ला, जिसे सिंग्गोरा भी कहा जाता है, थाईलैण्ड के दक्षिणी भाग के सोंगख्ला प्रान्त में स्थित एक नगर है जो उस प्रान्त का मुख्यालय भी है। यह शहर सोंगख्ला झील के थाईलैण्ड की खाड़ी पर खुलने वाले मुख के समीप बस्स हुआ है। सोंगख्ला क्रा थलसंधि के पूर्वी तट पर स्थित एक मुख्य बंदरगाह है और मत्स्योद्योग भी इसकी आर्थिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है। थाईलैण्ड की राष्ट्रीय राजधानी बैंकॉक सोंगख्ला से लगभग 968 किमी उत्तर में स्थित है जबकि पड़ोसी देश मलेशिया की सरहद कुछ ही दूरी पर दक्षिण में है। "सोंगख्ला" शब्द मलय भाषा के "सिंग्गोरा" से परिवर्तित होकर बना है। "सिंग्गोरा" स्वयं संस्कृत के "सिंह पुरा" से विकसित हुआ था जो इसकी मूल जड़ है। सोंगख्ला के समीप एक सिंह की आकृति की पहाड़ी है और यह अनुमान लगाया जाता है कि शहर का नाम इसी पहाड़ी पर रखा गया था। सोंगख्ला जलपरी तिंसुलानोन्दा पुल सोंगख्ला बंदरगाह सोंगख्ला लाक मुआंग मलय परिवार
दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के आठ सदस्य राज्यों द्वारा प्रायोजित एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। आठ देश हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका। दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय ने अकबर भवन, भारत में अस्थायी परिसर में, 2010 में छात्रों को स्वीकार करना शुरू किया। इसका स्थायी परिसर भारत में दक्षिण दिल्ली, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के बगल में मैदान गढ़ी में होगा। विश्वविद्यालय का पहला अकादमिक सत्र अगस्त 2010 में दो स्नातकोत्तर शैक्षणिक कार्यक्रमों के साथ अर्थशास्त्र और कंप्यूटर विज्ञान में शुरू हुआ था। 2014 के रूप में एसएयू ने गणित, जैव प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर विज्ञान, विकास अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय संबंधों, कानून और समाजशास्त्र में मास्टर और एमफिल / पीएचडी कार्यक्रमों की पेशकश की। 8 देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के अनुसार सार्क के सभी सदस्य राष्ट्रों द्वारा विश्वविद्यालय की डिग्री मान्यता प्राप्त है। दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय, प्रमुख रूप से सभी आठ सार्क देशों से छात्रों को आकर्षित करता है, हालांकि अन्य महाद्वीपों के छात्र भी भाग लेते हैं। छात्रों के प्रवेश के लिए कोटा प्रणाली है। हर साल एसएयू सभी 8 देशों में कई केन्द्रों में प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है।
निर्देशांक: 25°36′40″N 85°08′38″E / 25.611°N 85.144°E / 25.611; 85.144 पुरैनियां पुनपुन, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 27°13′N 79°30′E / 27.22°N 79.50°E / 27.22; 79.50 लिलुइआ तिरवा, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
क्रायोमॉड्यूल या निम्नताप मॉड्यूल उन पात्रों को कहते हैं जिनके अन्दर अतिचालक रेडियो आवृत्ति कैविटी को रखकर उसे अतिचालक बनाया जाता है। इसके लिये क्रायोमॉड्यूल के अन्दर द्रव हिलियम का प्रवेश कराकर उसकी सहायता से कैविटी को 4K या 2K तक ठण्डा किया जाता है। ये कैविटीज आधुनिक कण त्वरक के प्रमुख अंग हैं। इनके द्वारा ही आवेशित कण किरणपुंज को त्वरित किया जाता है।
रथ का अर्थ होता है घोड़ों से जुता हुआ भव्य वाहन।
नहाड, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
वॉल स्ट्रीट एक मार्ग है जो लोवर मैनहट्टन, न्यूयॉर्क सिटी, न्यूयॉर्क, USA में है। यह मार्ग ब्रॉडवे से पूर्व दिशा में ईस्ट नदी की ओर इस आर्थिक जिले के ऐतिहासिक केन्द्र से होते हुए साउथ स्ट्रीट तक जाता है। यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज का पहला स्थायी स्थल है; कुछ समय बाद वॉल स्ट्रीट, आसपास के भौगोलिक स्थल का नाम बन गया। वॉल स्ट्रीट, अमेरिकी वित्तीय उद्योग के "प्रभावशाली वित्तीय हितों" के लिए संक्षेपीकरण भी है, जो न्यूयॉर्क शहर क्षेत्र में केंद्रित है। वॉल स्ट्रीट द्वारा बल प्रदत्त, न्यूयॉर्क सिटी दुनिया की वित्तीय राजधानी बनने के लिए लंदन के साथ होड़ लेती है और यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, का गृह है, जो अपनी सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। कई प्रमुख अमेरिकी स्टॉक और अन्य केन्द्रों का मुख्यालय वॉल स्ट्रीट और आर्थिक जिले में है, जिसमें शामिल हैं NYSE, NASDAQ, AMEX, NYMEX और NYBOT. • Fort Amsterdam • Fort Nassau • Fort Orange • Fort Nassau • Fort Goede Hoop • De Wal • Fort Casimir • Fort Altena • Fort Wilhelmus • Fort Beversreede • Fort Nya Korsholm • De Rondout • Noten Eylandt • New Amsterdam • Rensselaerswyck • New Haarlem • Noortwyck • Beverwijck • Wiltwyck • Bergen • Pavonia • Vriessendael • Achter Col • Vlissingen • Oude Dorpe • Colen Donck • Greenwich • Heemstede • Rustdorp • Gravesende • Breuckelen • New Amersfoort • Midwout • New Utrecht • Boswyck • Swaanendael • New Amstel • Nieuw Dorp Charter of Freedoms and Exemptions Cornelius Jacobsen May Willem Verhulst Peter Minuit Sebastiaen Jansen Krol Wouter van Twiller Willem Kieft Peter Stuyvesant New Netherlander Twelve Men Eight Men इस सड़क का नाम 17वीं सदी में तब व्युत्पन्न हुआ, जब वॉल स्ट्रीट ने न्यू एम्स्टर्डम समझौते की उत्तरी सीमा का गठन किया। इसका निर्माण अंग्रेज़ी औपनिवेशिक अतिक्रमण के खिलाफ रक्षा के लिए किया गया। 1640 के दशक में मूल पिकेट और तख्ते के बाड़, कॉलोनी में ज़मीन और निवास स्थान को इंगित करते थे। बाद में, डच वेस्ट इंडिया कंपनी की ओर से पीटर स्टुवेसंट, जो आंशिक रूप से अफ्रीकी दास का इस्तेमाल करते थे, एक मजबूत लकड़ी का घेरा बनाने के लिए डच का नेतृत्व किया। विभिन्न अमेरिकी मूल जनजाति के हमले के खिलाफ एक मजबूत 12-फुट दीवार. 1685 के निरीक्षकों ने मूल घेराबंदी की पंक्ति के साथ वॉल स्ट्रीट की रूप-रेखा बनाeeया. यह दीवार पर्ल स्ट्रीट से शुरू हुई, जो कि तटरेखा के पीछे थी और इंडियन पाथ ब्रॉडवे को पार करते हुए एक अन्य तटरेखा पर समाप्त होती है जहां ये दक्षिण की ओर मुड़ती है और पुराने किले पर ख़त्म होने तक तट के साथ-साथ चलती है। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1699 में दीवार को ध्वस्त कर दिया गया। 18वीं सदी के उत्तरार्ध में वॉल स्ट्रीट में एक बटनवुड पेड़ था जहां व्यापारी और सट्टेबाज अनौपचारिक रूप से व्यापार करने के लिए इकट्ठा होते थे। 1792 में, व्यापारियों ने बटनवुड समझौते के साथ अपने संघ को औपचारिक बनाया। यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज का आरम्भ था। 1789 में, फेडरल हॉल और वॉल स्ट्रीट, संयुक्त राज्य अमेरिका के पहले राष्ट्रपति उद्घाटन का स्थान था। जॉर्ज वॉशिंगटन ने फेडरल हॉल की बालकनी पर वॉल स्ट्रीट को देखते हुए 30 अप्रैल 1789 को अपने पद की शपथ ली। यह बिल ऑफ राइट्स को पारित करने का भी स्थल था। 1889 में, मूल स्टॉक रिपोर्ट, कस्टमर आफ्टरनुन लेटर, द वॉल स्ट्रीट जर्नल बना। वास्तविक सड़क के नाम के संदर्भ में, अब यह एक प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय दैनिक कारोबार अखबार के रूप में न्यूयॉर्क शहर में प्रकाशित हो रहा है। कई सालों तक संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी भी समाचार पत्र की तुलना में इसका प्रसार सबसे व्यापक था, हालांकि वर्तमान में USA टुडे के बाद इसका दूसरा स्थान आता है। 2007 के बाद से रूपर्ट मर्डोक की न्यूज कॉर्प द्वारा इसके अधिकार को प्राप्त किया गया है। मैनहट्टन फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट, संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक जिलों में से एक है और न्यूयॉर्क शहर में केवल मिडटाउन के बाद इसका स्थान दूसरा है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध और 20वीं के पूर्वार्ध में, गगनचुंबी इमारतों के निर्माण के लिए न्यूयॉर्क की कॉर्पोरेट संस्कृति एक प्राथमिक केंद्र थी . यह वित्तीय जिला, आज भी, वास्तव में अपनी एक अलग ही क्षितिज-रेखा बनाता है, लेकिन यह उत्तर में कुछ मील की दूरी के अपने मिडटाउन समकक्ष के समान उंचाई वाला नहीं है। 1914 में निर्मित, 23 वॉल स्ट्रीट को "हाउस ऑफ़ मॉर्गन" के रूप में जाना जाता था और दशकों तक बैंक का मुख्यालय अमेरिकी वित्त में सबसे महत्वपूर्ण पता था। 16 सितंबर 1920 की दोपहर, बैंक के सामने एक बम विस्फोट हुआ जिसमें 38 लोग मारे गए और 300 घायल हुए. बम के फटने से कुछ समय पहले ही एक चेतावनी नोट को सेडर स्ट्रीट और ब्रॉडवे के कोने में एक मेलबॉक्स में रखा गया था। हालांकि वॉल स्ट्रीट बमबारी के पीछे किन अपराधियों का हाथ था और ऐसा करने के पीछे कई कारणों को बताया गया, लेकिन 20 साल की जांच के बाद 1940 में FBI ने अपराधियों का बिना पता लगाए ही फाइल को निष्क्रिय कर दिया। यह जरुर था कि विस्फोट ने, लाल भय को भड़काने में मदद की, जो उस समय मौजूद था। 1929 के स्टॉक मार्केट के ध्वस्त हो जाने से बाज़ार महान मंदी में प्रवेश कर गया। इस दौरान वित्तीय जिले का विकास रुक गया। 20वीं शताब्दी की आखिरी तीन तिमाहियों के दौरान जारी की गई प्रमुख परियोजनाओं में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का निर्माण एक था और आर्थिक रूप से यह मूलतः उतना सफल नहीं हुआ जितनी योजना बनाई गई थी। तथ्य के कुछ बिंदुओं के अनुसार वास्तव में यह एक सरकारी वित्त पोषित परियोजना थी और आर्थिक विकास के इरादे के साथ न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी के पत्तन प्राधिकरण द्वारा परियोजना का निर्माण किया गया था। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए सभी आवश्यक साधनों को परिसर में रखा जाना था। हालांकि शुरुआत में, अधिकांश हिस्से काफी खाली थे। बहरहाल, बड़ी और शक्तिशाली कंपनियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में कुछ स्थान खरीदा. इसके अलावा, अन्य शक्तिशाली व्यवसायों को भी इसने आकर्षित किया। कुछ मायनों में, यह तर्क दिया जा सकता है कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ने वित्तीय जिले के संबंधों को वॉल स्ट्रीट से ट्रेड सेंटर में बदल दिया। 11 सितंबर 2001 के हमले ने जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को नष्ट कर दिया गया था, तब इससे कुछ वास्तुशिल्पीय शून्यता उपजी क्योंकि 1970 के दशक के बाड़ से बनने वाले नए निर्माणों ने इस संकुल की सौन्दर्यपरकता से प्रतिस्पर्धा की थी। तथापि, अस्थायी-से-स्थायी रूप में न्यू जर्सी में स्थानान्तरण करने और इसके अलावा विकेन्द्रीकरण के तहत प्रतिष्ठानों का शिकागो, डेन्वर और बोस्टन जैसे शहरों में हुए स्थानान्तरण के कारण, इस हमले ने वॉल स्ट्रीट पर कारोबार के नुकसान में काफी योगदान दिया। स्वयं वॉल स्ट्रीट और समग्र रूप में वित्तीय जिले में किसी भी पैमाने से उच्च निर्माण भरे हुए हैं। इसके अलावा, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ध्वंस ने वास्तव में वित्तीय जिले के विकास में ऐसा अंकुश लगाया जिसे दशकों के दौरान कभी नहीं देखा गया था। आंशिक रूप से यह कर प्रोत्साहन के कारण है जिसे संघीय, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदान किया गया। डैनियल लिबेसकाइंड के मेमोरी फाउंडेशन पर केंद्रित एक नए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर परिसर की योजना विकास के प्रारंभिक चरणों में है और एक भवन को पहले से ही प्रतिस्थापित कर दिया गया है। इस योजना का मध्य हिस्सा 1,776-फुट लंबा 1 विश्व व्यापार केंद्र है . नई आवासीय इमारतें पहले से ही पनप रही हैं और इमारतें जो पहले कार्यालय थी उन्हें आवासीय इकाइयों में परिवर्तित किया जा रहा है, जिससे कर बढ़ावा से लाभ प्राप्त हो रहा है। वित्तीय जिले के बेहतर उपयोग के लिए एक नियमित आने-जाने वाला रेलवे स्टेशन और फुल्टन स्ट्रीट के केन्द्र पर शहर में एक नयी परिवहन योजना बनाई गई है।यदि आप इमारत की बाईं ओर देखेंगे, तो आपको यह ग्रीक पार्थेनोन के बाद सबसे अधिक पसंदीदा संरचना महसूस होगी। वॉल स्ट्रीट की वास्तुकला आमतौर पर गिल्डेड एज में निहित है, हालांकि वहां आस-पास कुछ आर्ट डेको भी हैं। वॉल स्ट्रीट पर ऐतिहासिक इमारतों में फेडरल हॉल, 14 वॉल स्ट्रीट,, 40 वॉल स्ट्रीट और ब्रॉड स्ट्रीट के कोने पर न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज शामिल हैं। इन वर्षों में, वॉल स्ट्रीट के साथ जुड़े कुछ अभिजात वर्ग व्यक्ति काफी प्रसिद्ध हो गए हैं। हालांकि उनकी प्रतिष्ठा औमतौर पर स्टॉक ब्रोकरेज के सदस्य और बैंकिंग समुदाय तक सीमित है, लेकिन कई लोगों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। कुछ ने अपनी निवेश रणनीतियों, वित्तपोषण, रिपोर्टिंग, कानूनी या नियामक कौशल के लिए प्रसिद्धि अर्जित की है, जबकि कुछ लोगों को उनके लालच के लिए याद किया जाता है। बाज़ार समृद्धि का एक सबसे स्थापित प्रदर्शन है अर्टुरो डी मोडिका द्वारा निर्मित चार्जिंग बुल की मूर्तिकला. बुल बाज़ार अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने के लिए मूर्तिकला को वास्तव में न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के सामने रखा गया था और बाद में इसे वर्तमान स्थान बोलिंग ग्रीन में स्थानांतरित किया गया। वॉल स्ट्रीट की कठोर संस्कृति के रूप में अक्सर इसकी आलोचना की गई है। यह एक दशक-पुराना रूढ़ प्रारूप है जो वॉल स्ट्रीट प्रतिष्ठानों के अपने हितों के संरक्षण और WASP प्रतिष्ठान से सम्बन्ध से निकला है। हाल की आलोचनाएं, संरचनात्मक समस्याओं और अच्छी तरह से स्थापित प्रवृतियों में बदलाव करने की इच्छा की कमियों पर केंद्रित हैं। वॉल स्ट्रीट की स्थापना, सरकारी निरीक्षण और विनियमन को रोकती है। साथ ही साथ, न्यूयॉर्क शहर की प्रतिष्ठा एक बहुत ही नौकरशाही शहर के रूप में है, जो मध्यम वर्ग के उद्यमियों के लिए आस-पास प्रवेश करने को कठिन या असंभव तक बना देता है। 1900 के दशक के प्रारम्भ के रेलवे दिग्गजों के दिनों से ही वॉल स्ट्रीट की विशिष्ट संस्कृतियों की पृष्ठभूमि बड़े पैमाने पर अपरिवर्तित रही है, जैसा कि द कॉर्नर्स प्रोजेक्ट के अध्याय वॉल+ब्रॉड के चित्रों में अंकित है। वॉल स्ट्रीट के कई प्रसिद्ध व्यक्तियों में जॉन मेरीवेथेर, जॉन ब्रिग्स, माइकल ब्लूमबर्ग और वॉरेन बफेट और साथ ही बर्नी मडोफ्फ और कई अन्य शामिल हैं। "मेन स्ट्रीट" की तुलना में अलंकार के रूप में "वाल स्ट्रीट" छोटे व्यापारों और मध्यम वर्ग के कार्यों के विपरीत बड़े व्यापारिक हितों को उद्धृत कर सकता है। कभी-कभी इसे अधिक विशेष रूप से अनुसंधान विश्लेषकों, शेयरधारकों और निवेश बैंकों जैसे वित्तीय संस्थानों के लिए प्रयोग किया जाता है। जबकि "मेन स्ट्रीट" का प्रयोग स्थानीय व्यापारों और बैंकों के लिए किया जाता है, "वॉल स्ट्रीट" वाक्यांश को आमतौर पर "कॉर्पोरेट अमेरिका" के साथ आंतरिक परिवर्तन में इस्तेमाल किया जाता है। इसे कभी-कभी निवेश बैंकों के हितों, संस्कृति और जीवन शैली के साथ फॉर्च्यून 500 के औद्योगिक या सेवा निगमों के बीच भेदों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पुरानी गगनचुंबी इमारतों को अक्सर विस्तृत अग्र भाग के साथ बनाया गया था; ऐसा विस्तृत सौंदर्यशास्त्र दशकों से कॉर्पोरेट वास्तुकला में आम नहीं था। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को 1970 के दशक में बनाया गया था, जो उसकी तुलना में सादा और अधिक उपयोगितावादी था . वॉल स्ट्रीट, किसी और चीज़ की तुलना में वित्तीय और आर्थिक शक्ति का प्रतिनिधित्व अधिक करता है। अमेरिकियों के लिए, वॉल स्ट्रीट कभी-कभी उच्छिष्टवर्गवाद और सत्ता की राजनीति का प्रतिनिधित्व कर सकता है। वॉल स्ट्रीट एक देश और आर्थिक प्रणाली का प्रतीक बन गया जिसे कई अमेरिकी व्यापार, पूंजीवाद और नवीनता के माध्यम से हुए विकास के रूप में देखते हैं। चूंकि वॉल स्ट्रीट एक ऐतिहासिक यात्री गंतव्य था, इसीलिए यहां देखा गया है कि परिवहन की बुनियादी सुविधाओं के साथ यह विकसित हुआ है। आज, सड़क के नीचे पियर 11 उस पार ले जाने वाला काफी व्यस्त टर्मिनल है और वॉल स्ट्रीट के नीचे न्यूयॉर्क शहर मेट्रो में ही तीन स्टेशन हैं। इसमें कोई भी आसानी से पैदल यात्रा कर सकता है: निर्देशांक: 40°42′23″N 74°00′34″W / 40.70639°N 74.00944°W / 40.70639; -74.00944 साँचा:Streets of Manhattan
लुड्डन, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के विहाड़ी ज़िले का एक कस्बा और यूनियन परिषद् है। यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा काफ़ी हद तक समझी जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है।
धार जिला तीन भौगोलिक खंडों में फैला हुआ है जो क्रमशः उत्तर में मालवा, विंध्यांचल रेंज मध्य क्षेत्र में तथा दक्षिण में नर्मदा घाटी। हालांकि घाटी पुनः दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों द्वारा बंद होती है। धार जिला भारत के सांस्कृतिक मानचित्र में प्रारंभ से ही रहा है। लोगों ने अपने आपको ललित कला, चित्रकारी, नक्काशी, संगीत व नृत्य इत्यादि में संलिप्त रखा था। इस संपूर्ण जिले में बहुत से धार्मिक स्थल हैं, जहां वार्षिक मेलों के आयोजन में हजारों लोग एकत्र होते हैं। इस जिले का मुख्या लय धार शहर है। धार जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पहले यह धार नगरी के नाम से जाना जाता था। 1857 स्वतंत्रता की लड़ाई में भी धार महत्वपूर्ण केंद्र था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने धार के किले पर अपना कब्जा कर लिया था। दूसरी ओर बाग भी अंतराष्ट्रिय एवं राष्ट्रीय महत्व का स्थान है। बाग नदी के किनारे स्थित गुफाएं ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां पर 5वीं और 6वीं शताब्दी की चित्रकला भी है। यहां भारतीय चित्रकला का अनूठा नजारा देखने को मिलता है। यहां की बौद्धकला भारत ही नहीं एशिया में भी प्रसिद्ध है, तथा बाग की परम्परागत बाग प्रिंट बहुत मसहूर हे। बाग प्रिंट का कार्य पुर्णतः प्राकर्तिक रंगो से लकड़ी के ब्लॉक से किया जाता हे, बाग प्रिंट को अंतराष्ट्रिय ख्याती दिलाने में शिल्पकार मोहम्मद युसूफ खत्री की अहम भूमिका हे। नगर के उत्तर में स्थित यह किला एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल किला समृद्ध इतिहास के आइने का झरोखा है, जो अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है। 14वीं शताब्दी के आसपास सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने यह किला बनवाया था। 1857 के विद्रोह दौरान इस किले का महत्व बढ़ गया था। क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस किले पर अधिकार कर लिया था। बाद में ब्रिटिश सेना ने किले पर पुन: अधिकार कर लिया और यहां के लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। हिन्दु, मुस्लिम और अफगान शैली में बना यह किला पर्यटकों को लुभाने में सफल होता है। भोजशाला मूल रूप से एक मा सरस्वती मंदिर के तौर पर स्थापित था, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना तो यह क्षेत्र उसके साम्राज्य में मिल गया। उसने इस मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। भोजशाला मस्जिद में संस्कृत में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं जो इसके इसके मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। हाल ही में 15 फ़रवरी 2013 को यहां आंदोलन हुआ है। इसमें 97 लोग पुलिस की लाठीचार्ज से घायल है। मां वाग्‍देवी की प्रतिमा भारत लाने के लिए लंदन की कोर्ट में सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने एक याचिका दायर की है। धार से लगभग 40 किलोमीटर दूर सरदारपुर तहसील में अमझेरा गांव स्थित है। इस गांव में शैव और वैष्णव संप्रदाय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। यहां के अधिकांश शैव मंदिर महादेव, चामुंडा, अंबिका को समर्पित हैं। लक्ष्मीनारायण और चतुभरुजंता मंदिर वैष्णव संप्रदाय के लोकप्रिय मंदिर हैं। गांव के निकट ही ब्रह्म कुंड और सूर्य कुंड नामक दो टैंक हैं। गांव के पास ही राजपूत सरदारों को समर्पित तीन स्मारक बने हुए हैं। जोधपुर के राजा राम सिंह राठौर ने 18-19वीं शताब्दी के बीच यहां एक किला भी बनवाया था। किले में इस काल के तीन शानदार महल भी बने हुए हैं। किले के रंगमहल में बनें भिति‍चित्रों से दरबारी जीवन की झलक देखने को मिलती है। इन गुफाओं का संबंध बौद्ध मत से है। यहां अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं। अजंता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएं बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बनी प्राचीन चित्रकारी मनुष्य को हैरत में डाल देती है। इन गुफाओं की खोज 1818 में की गई थी। माना जाता है कि दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के पतन के बाद इन गुफाओं को मनुष्य ने भुला दिया था और यहां बाघ निवास करने लगे। इसीलिए इन्हें बाघ गुफाओं के नाम से जाना जाता है। बाघ गुफा के कारण ही यहां बसे गांव को बाघ गांव और यहां से बहने वाली नदी को बाघ नदी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की यहा पर पाचों पाण्डव आकर रहे थे। धार का निकटतम एयरपोर्ट इंदौर में है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, भोपाल और ग्वालियर आदि शहरों से नियमित फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा है। रतलाम और इंदौर यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। देश के प्रमुख शहरों से यह रेलवे स्टेशन अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से नियमित रूप से जुड़ा हुआ है। धार मध्य प्रदेश के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इंदौर, मांडू, महू, रतलाम, उज्‍जैन और भोपाल से मध्य प्रदेश परिवहन निगम की नियमित बसें धार के लिए चलती हैं।
सरकार की आली, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
ब्रैंपटन कनाडा के सबसे बड़े राज्य ओण्टारियो के ग्रेटर टोरंटो एरिया का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह पील की क्षेत्रीय नगर पालिका की सीट है। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार ब्रैंपटन की आबादी 523,911 थी, जो इसे कनाडा के अंदर नौवां सबसे बड़ा शहर बनाती है। औसत आयु 33.7 होने के कारण यह ग्रेटर टोरंटो एरिया का सबसे युवा समुदाय है। ब्रैंपटन की कनाडा में दक्षिण एशियाई लोगों की सबसे अधिक एकाग्रता है, इसकी 31.7% आबादी दक्षिण एशियाई मूल की है। ब्रैंपटन को 1853 में एक गाँव के रूप में निगमित किया गया था। इसका यह नाम इसे इंग्लैंड की कम्ब्रिया काउंटी के ब्रैंपटन ग्रामीण नगर से मिला था। एक समय में ब्रैंपटन कनाडा के फूलों के शहर के नाम से जाना जाता था। यह शीर्षक शहर में स्थित बड़े ग्रीनहाउस उद्योग के कारण मिला था। वर्तमान समय में शहर के प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में उन्नत विनिर्माण, खुदरा प्रशासन और संभार-तंत्र, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, खाद्य और पेय पदार्थ, जीवन विज्ञान और व्यापार सेवाएँ शामिल हैं।
} निर्देशांक: 25°06′N 85°54′E / 25.10°N 85.90°E / 25.10; 85.90 खुदीबन सूर्यगढा, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 25°06′N 85°54′E / 25.10°N 85.90°E / 25.10; 85.90 पहारपुर सूर्यगढा, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 29°21′07″N 79°33′07″E / 29.352°N 79.552°E / 29.352; 79.552 भीमताल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। नैनीताल जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। यह क्षेत्र साल 2008 के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आदेश से अस्तित्व में आया। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 86,901 मतदाता थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में दान सिंह भंडारी इस क्षेत्र के विधायक चुने गए।
खगोलशास्त्र तथा ब्रह्माण्ड विज्ञान में आन्ध्र पदार्थ या डार्क मैटर एक ,प्रायोगिक आधार पर अप्रमाणित परंतु गणितीय आधार पर प्रमाणित, पदार्थ है। इसकी विशेषता है कि अन्य पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित विकिरण से पहचाने जा सकते हैं किन्तु आन्ध्र पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित विकिरण से पहचाने नहीं जा सकते। इनके अस्तित्व का अनुमान दृष्यमान पदार्थों पर इनके द्वारा आरोपित गुरुत्वीय प्रभावों से किया जाता है। आन्ध्र पदार्थ के बारे में माना जाता है कि इस ब्रह्मांड का 85 प्रतिशत आन्ध्र पदार्थ का ही बना है और यूरोप के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उन्होंने आन्ध्र पदार्थ खोज निकाला है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आन्ध्र पदार्थ न्यूट्रालिनॉस नाम के कणों या पार्टिकल से बना है। इसकी खासियत है कि यह साधारण मैटर से कोई क्रिया नहीं करता। हर सेकंड हमारे शरीर के आर-पार हजारों न्यूट्रालिनॉस गुजरते रहते हैं। वे अदृश्य हैं। इसी वजह से हम अंतरिक्ष में मौजूद आन्ध्र पदार्थ के बादल के दूसरी ओर मौजूद आकाशगंगाओं को देख पाते हैं। पामेला नाम के एक यूरोपियन स्पेस प्रोब ने कुछ ऐसे हाई एनर्जी पार्टिकल खोजे हैं, जो हमारी आकाशगंगा के केंद्र से निकले हैं। उनसे निकलने वाला रेडिएशन ठीक उसी तरह का है, जैसा आन्ध्र पदार्थ के लिए तय किया गया था। इस खोज के डिटेल स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित एक कॉन्फरन्स में रखे गए। गौरतलब है कि, यूरोप में शुरू हुई महामशीन या लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के ढेरों मकसदों में से एक आन्ध्र पदार्थ की खोज करना भी है।
हरीश अय्यर एक भारतीय स्तंभकार और कार्यकर्ता हैं। वे विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर बहस करते हैं, ख़ासकर वातावरण-संबंधी तथा समलैंगिकता-संबंधी मुद्दों पर। पिंक पेजज़ ने उनको भारत के सबसे प्रभावशाली समलैंगिक लोगों की सूची पर नामांकित किया।
एलिजाह जॉर्डन वुड, एक अमेरिकी अभिनेता है। इलाइज़ा का जन्म 28 जनवरी 1981 को संयुक्त राज्य अमेरिका के आयोवा में हुआ था। इलाइज़ा ने अपने अभिनय की शुरुआत 1989 में बैक टू द फ़्यूचर-भाग II नामक फिल्म में एक छोटी सी भूमिका से की थी, पर उसके बाद निभाई गयी महत्वपूर्ण भूमिकाओं ने उसे 9 साल की उम्र तक एक प्रसिद्ध बाल कलाकार बना दिया था।.
रतवाड -बंगारस्यूं, थलीसैंण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
ताँका जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ। इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31 वर्णों की होती है। एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग 7+7 की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था। इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी। ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7=31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है।इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है। इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है। ताँका का शाब्दिक अर्थ है लघुगीत अथवा छोटी कविता। लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती। साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है। अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
कठपुतली विश्व के प्राचीनतम रंगमंच पर खेला जानेवाले मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्योंकि पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा।प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस भी मनाया जाता है। कठपुतली के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ हमें पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है। इसके जन्म को लेकर कुछ पौराणिक मत इस प्रकार भी मिलते हैं कि भगवान शिव जी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर माता पार्वती का मन बहला कर इस कला को प्रारंभ किया इसी प्रकार उज्जैन नगरी के राजा विक्रमादित्य के सिंहासन में जड़ित 32 पुतलियों का उल्लेख सिंहासन बत्तीसी नामक कथा में भी मिलता है सतवर्धन काल में इस कला का भारत से लेकर पूर्वी एशिया के देशों जैसे इंडोनेशिया म्यांमार थाईलैंड श्रीलंका जावा सुमात्रा इत्यादि में विस्तार हुआ आधुनिक युग में यह कला रूस रोमानिया चेकोस्लोवाकिया जर्मनी जापान अमेरिका चीन आदि अनेक देशों में भली भांति प्रकार से विस्तारित हो चुका है अब कठपुतली का उपयोग मात्र मनोरंजन न रहकर शिक्षा कार्यक्रमों, रिसर्च कार्यक्रमों, विज्ञापनों आदि अनेक क्षेत्रों में उपयोग किया जा रहा है
यूटीसी+05:30 यूटीसी से 5 घंटे 30 मिनट आगे का समय मंडल है जिसे वर्षपर्यन्त भारत और श्रीलंका में समय जानने के लिये उपयोग किया जाता है। मानकों अनुरूप इसे कुछ यूं लिखते हैं :
निर्देशांक: 27°30′N 79°24′E / 27.5°N 79.4°E / 27.5; 79.4 हब्बापुर फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
उदयपुर जो कि भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है इसकी स्थापना सन 1553 ईस्वी में महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने की थी उस समय उदयपुर को मेवाड़ साम्राज्य की राजधानी बनाई गयी थी।
चक धनपुर, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
बगबास एटा जिले के पटियाली प्रखण्ड का एक गाँव है।
उड़ान परिचर या केबिन कर्मीदल वो हवाई कर्मी होते हैं जिनकी नियुक्ति किसी विमान सेवा के द्वारा मुख्य रूप से किसी वाणिज्यिक उड़ान के दौरान यात्रियों की सुरक्षा और आराम के लिए की जाती है। इसके अतिरिक्त यह कुछ व्यवसायिक जेट विमानों और कुछ सैन्य विमानों में भी उड़ानों के दौरान सेवायें प्रदान करते है। विश्व की पहली विमान परिचारिका को 1930 में यूनाइटेड एयरलाइंस द्वारा नौकरी पर रखा गया था जो, एक 25 साल की नर्स थी, जिसका नाम एलेन चर्च था। इसकी देखा देखी में दूसरी विमान सेवाओं ने भी नर्सों को विमानों में नौकरी पर रख।
गुनीपुर मौना, हल्द्वानी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
कर्मवीर एक हिन्दी पत्रिका थी। पत्रकारिता के पितृ पुरूष माधवराव सप्रे की प्रेरणा से इसका प्रथम प्रकाशन 17 जनवरी 1920 को जबलपुर से हुआ। इसके प्रथम सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी थे। नवम्बर 1922 तक यह जबलपुर से निकलती थी किन्तु बाद में खण्डवा से प्रकाशित हुई। 17 जनवरी 1920 के पहले ही अंक में चतुर्वेदीजी ने लिखा-
बरमटाना, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
सामाजिक सन्दर्भों में समानता का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान अधिकार या प्रतिष्ठा रखते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान पहुँच आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आतीं हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी इसके अन्तर्गत आता है। सामाजिक समानता किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है। दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख हैं। समानता किसी हद तक आधुनिक अवधारणा है। आज मानव-समाज आदमी-आदमी के बीच जिस तरह समानता की आवश्यकता महसूस करता है उस तरह उसने हमेशा महसूस नहीं किया है। पश्चिमी दुनिया में राजाओं को राज करने का दैवी अधिकार प्राप्त माना जाता था और ऐसा ही अपने-अपने क्षेत्रों की हद तक सामंत श्रीमंतों के संबंध में भी समझा जाता था। उधर पादरी-पुरोहित यह मानते थे कि जैसे सर्वज्ञ वे हैं वैसा कोई और हो ही नहीं सकता। यूनानी काल में समानता स्थापित करने की सीमित और बहुत कमजोर कोशिश ही की गई। आखिरकार सत्रहवीं सदी में यूरोप में अधिकारों और स्वतंत्रता की माँग उठने लगी और अठारहवीं तथा उन्नीसवीं सदियों में समानता की माँग की गई। आरंभ में यह माँग व्यापारियों तथा व्यवसायियों में से नव-धनाढ्यों ने या बुर्जुआ ने की, जिनका कहना था कि जब सामंत श्रीमंतों और राजाओं के साथ-साथ उनके पास भी संपत्ति और आर्थिक रुतवा है तब उनका कानूनी दर्जा उनकी बराबरी का क्यों नहीं है। उदाहरण के लिए टाउनी के शब्दों में इंग्लैंड में वस्तु-स्थिति निम्नलिखित ढंग की थीः ‘चूँकि असमानताओं में सबसे खास आर्थिक नहीं बल्कि कानूनी असमानताएँ थीं इसलिए संपत्ति की असमानता नहीं बल्कि कानूनी विशेषाधिकार पर सबसे पहले प्रहार किया गया।... सुधारकों का प्राथमिक लक्ष्य कानूनी समानता प्राप्त करना था, क्योंकि ऐसा समझा गया कि उसके प्राप्त हो जाने के बाद आर्थिक समानता वांछित सीमा तक स्वतः ही स्थापित हो जाएगी।’ इसी प्रकार फ्रांस में मुद्दा आर्थिक समानता नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार था और समानता के लिए किए गए संघर्ष ने ‘संपत्ति पर आधारित नए अभिजात वर्ग को भूमि पर आधारित पुराने अभिजात वर्ग की बराबरी के स्तर पर प्रतिष्ठित कर दिया।’ अठारहवीं सदी में मुख्य रूप से कानूनी और राजनीतिक समानता के लिए आवाज उठाई गई और आखिरकार उन्नीसवीं सदी में नए श्रमिक वर्ग के उदय के परिणामस्वरूप सामाजार्थिक समानता के लिए अधिक जोरदार माँग की गई। उन्नीसवीं सदी में निर्बंध पूँजीवाद के बढ़ते कदम ने एक ओर तो कुछ परिवारों के लिए धन का अंबार लगा दिया लेकिन साथ ही दूसरी ओर भारी गरीबी और आर्थिक असमानता को जन्म दिया। इसलिए आर्थिक समानता के लिए माँग उठी और यह काम किया मानवतावादियों ने, आदर्शवादी समाजवादियों ने और सकारात्मक उदारवादियों ने। आर्थिक समानता की यह माँग नकारात्मक राजनीतिक और कानूनी समानता के लिए नहीं, बल्कि सकारात्मक समानता के लिए थी और इसमें निजी संपत्ति पर अंकुश, अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण पर रोक का समावेश था और इसका अर्थ था समाज की समग्र आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में राज्य की सकारात्मक भूमिका। समानता के लिए चलने वाले संघर्ष में एक बहुत ही अहम मील का पत्थर बीसवीं सदी के पूर्वार्ध्ध में महिला मताधिकारवादियों जिसके प्रयत्नों के फलस्वरूप महिलाओं को मताधिकार दिया जाना था। उसी सदी में ब्रिटेन जैसी साम्राज्यवादी शक्तियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भारत जैसे उपनिवेशों के स्वतंत्रता आंदोलन फलीभूत हुए, जिससे समानता की यात्रा को और भी गति मिली। यूनान के नगर-राज्यों, जैसे एथेंस और स्पार्टा में राज-काज के कामों में प्रत्येक नागरिक की आवाज़ का समान मूल्य समझा जाता था। अरस्तू के एथेनियन कांस्टीट्यूशन में उन समतामूलक सुधारों के कई हवाले मिलते हैं जिनके आधार पर लोकतांत्रिक आदर्श की आज़माइश की जा सकी। इन सुधारों का मकसद था सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विषमताओं को घटाना ताकि भू-स्वामित्व, सत्ता और सामाजिक गौरव पर कुलीनों और सामंतों की जकड़ ढीली हो सके।  कानून के आधार पर समानता का व्यवहार ही वह कसौटी था जिसके आधार पर लोकतंत्र कसा जा सकता था। लेकिन, प्राचीन एथेंस में इस समतामूलक दायरे से स्त्रियों, दासों और विदेशियों को अलग भी रखा गया था। अरस्तू की रचना पॉलिटिक्स में इस बहिर्वेशन का ज़िक्र भी किया है और उसे जायज़ भी ठहराया है। उनके लिए समानता का अर्थ था उस वर्ग के सदस्यों की समानता जिसे नागरिक कहा जाता था। वे न्याय को केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध मानते थे जो उनकी समानता के दायरे में आते थे। जो उससे बाहर थे, उनके लिए विषमता की स्थिति ही न्यायपूर्ण थी। अरस्तू की बुनियादी मान्यता थी कि प्रकृति ने लोगों को शासक और शासित में बाँट कर बनाया है। शासक की श्रेणी में होने के लिए व्यक्ति में बुद्धिसंगत, विचारात्मक और अधिकारपूर्णता की ख़ूबियाँ होना अनिवार्य है। वे यह भी मानते थे कि यही गुण शासक को शासित से अलग करते हैं। अरस्तू की समानता की धारणा की आलोचना करते हुए हॉब्स ने अपने ग्रंथ लेवायथन में प्रकृत अवस्था की संकल्पना करके उसके तहत हर व्यक्ति को समान ठहराया। भले ही कोई व्यक्ति शारीरिक शक्ति में या कोई दिमाग़ी तेज़ी में दूसरे से कुछ बेहतर हो, पर कुल मिला कर मनुष्यों के बीच ऐसा कोई फ़र्क नहीं होता जिसके आधार पर वे किसी विशेष लाभ की माँग कर सकें। हॉब्स का तर्क था कि जो जिस्म के लिहाज़ से कमज़ोर है, वह ताकतवर को योजना बना कर मार सकता है और मस्तिष्क के स्तर पर अनुभव के ज़रिये हर व्यक्ति समान समझ विवेक हासिल करने की क्षमता से सम्पन्न होता है। इसी के साथ मनुष्य में सत्ता हासिल करने की समान आकांक्षा भी होती है जिससे उनके बीच होड़ का जन्म होता है और प्राकृतिक समानता जोखिमग्रस्त हो जाती है। हॉब्स की मान्यता थी कि अपनी सत्ता के एक हिस्से को राजनीतिक प्राधिकार के लिए छोड़ कर ही व्यक्ति एक सभ्य और समतामूलक जीवन गुजार सकता है। अर्थात् एक निश्चित प्राधिकार का प्रभुत्व ही उसे पूरी सुरक्षा का आश्वासन दे सकता है। हॉब्स मानते थे कि धर्म समेत हर प्रकार के ग़ैर- राजनीतिक प्राधिकारों से मुक्ति के ज़रिये ही व्यक्ति को उसकी प्राकृतिक समानता उपलब्ध  हो सकती है।  रूसो भी अपने हिसाब से एक प्रकृत-अवस्था कल्पित करते हैं। उन्होंने अपने दूसरे डिस्कोर्स में समानता के बजाय विषमता पर विचार करते हुए उसे प्राकृतिक और अप्राकृतिक में बाँटा है।  प्राकृतिक विषमता केवल शारीरिक शक्ति के क्षेत्र में होती है। लेकिन, विधि निर्माण और सम्पत्ति के स्वामित्व ने विषमता के अप्राकृतिक रूपों को जन्म दिया है। दरअसल, यह विषमता का पहला स्तर है जिससे ग़रीब और अमीर के बीच का फ़र्क पैदा हुआ है। दूसरा स्तर दण्ड देने का संस्थागत अधिकार है जिससे शक्तिशाली और दुर्बल की असमानता पैदा हुई। विषमता का आख़िरी स्तर वैध सत्ता को स्वैच्छिक सत्ता में बदलने से पैदा हुआ है जिससे ग़ुलाम और मालिक की श्रेणियाँ पैदा हुई हैं। सम्पत्ति के स्वामी सत्ता जमा करके मालिक बन जाते हैं और ग़रीब दुर्बल होते हुए दासत्व में पड़ जाते हैं। रूसो के मुताबिक इस विषमता की भी एक सीमा है। जब विषमता में वृद्धि सम्भव नहीं रह जाती तो नयी क्रांतियाँ या तो हुकू¸मतों को नष्ट कर देती हैं या उन्हें सत्ता की वैध संस्थाओं के नज़दीक आना पड़ता है।  मार्क्स ने अपना समानता संबंधी विचार उदारतावादी समानता की आलोचना के रूप में विकसित किया। वे मानते थे कि पूँजीवादी वर्ग समानता के विचार का अपने हित में इस्तेमाल करता है। जिस तरह रूसो कहते थे कि अमीरों के झूठे आश्वासनों के फेर में फँस कर ग़रीब उनकी सत्ता का वैधीकरण करने के लिए तैयार हो जाते हैं, उसी तरह मार्क्स कहते हैं कि शासक वर्ग अपनी विचारधारा पैदा करता है ताकि आर्थिक शोषण की व्यवस्था जारी रखी जा सके। पूँजीवादी वर्ग के भीतर एक तरह का कार्य-विभाजन होता है। एक हिस्सा पूँजी का स्वामित्व ग्रहण करता है और दूसरा विचारधारात्मक औज़ारों का इस्तेमाल करते हुए समानता और स्वाधीनता के विचारों के ज़रिये भ्रम का माहौल बनाये रखता है। मार्क्स के अनुसार सामंतशाही में जो स्थान गौरव और निष्ठा जैसे विचारों का था, वही स्थान पूँजीवाद में समानता और स्वाधीनता का है। इन अमूर्त विचारों की प्रभावकारिता इतनी अधिक है कि कुछ समाजवादी भी उनके चंगुल में फँस जाते हैं। लेकिन, ये विचार उस समय तक खोखले और तत्त्वहीन हैं जब तक उनमें साम्यवादी दृष्टि का समावेश न हो। मार्क्स के अनुसार शोषणकारी वर्ग-संबंधों की समाप्ति के बिना स्थापित नहीं की जा सकती। इसके लिए वे पहले समाजवादी चरण की संकल्पना करते हैं जो हर एक को उसके श्रम के मुताबिक देने पर आधारित होगा। दूसरा चरण साम्यवादी होगा जिसमें हर एक से उसकी क्षमता के अनुसार और हर एक को उसकी क्षमता के अनुसार देने का आधार ग्रहण किया जाएगा। अमेरिकी लोकतांत्रिक क्रांति की जाँच-पड़ताल करते हुए टॉकवील समानता का अध्ययन आधुनिक इतिहास की प्रमुख प्रवृत्ति के रूप में करते हैं। अमेरिकी उदाहरण के ज़रिये वे समझना चाहते थे कि पश्चिमी समाज ने सामंतवाद से लोकतंत्र की तरफ़ किस तरह संक्रमण किया है। वे इस सवाल का जवाब खोजते हैं कि इस प्रक्रिया में समानता की विजय क्यों अपरिहार्य है? सामाजिक समानता उत्तरोत्तर क्यों विकसित होती चली जाएगी?  टॉकवील का कहना है कि सामंतशाही किसान से लेकर राजा तक एक लम्बी शृंखला बनाती चली जाती है। पर लोकतंत्र उसे तोड़ कर शृंखला की हर कड़ी को मुक्त कर देता है। दासता और निर्भरता की जकड़ से निकलने की इच्छा समानता के विचार में लोगों की रुचि बढ़ाती है और इस प्रकार लोकतांत्रिक जीवन की सम्भावना पैदा होती है। टॉकवील के अनुसार लोकतंत्रों में व्यक्ति समानता को आज़ादी के ऊपर भी प्राथमिकता देते हुए उसके झंडे को दृढ़ता से थामे रखता है। समानता के विचार की इन निष्पत्तियों के बाद इस प्रश्न पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि आख़िर समानता और समरूपता में क्या फ़र्क है। परीक्षा में बैठने वाले हर छात्र को समान अंक नहीं दिये जा सकते। परिवार के आकार का ध्यान न रखते हुए हर एक को समान घर आबंटित नहीं किया जा सकता। प्रतिभा और क्षमता को दरकिनार करते हुए हर व्यक्ति की आमदनी समान नहीं की जा सकती।  इसलिए समानता की उपयुक्त कसौटी समरूपता के बजाय कुछ और होनी चाहिए। लेकिन, दूसरी तरफ़ समरूपता का महत्त्व न्यायपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए उभरता है। समानता लाने की प्रक्रियाएँ तभी न्यायपूर्ण हो सकती हैं जब वे सभी के लिए समरूप हों, जैसे अवसरों की समानता, कानून की निगाह में सबको समान समझना, आदि। समानता की परिभाषा करना जरा कठिन है। यह मूर्त्त की अपेक्षा बहुत अधिक अमूर्त्त है। ज्यादातर लोग इसे अचेतन रूप से उन भावों से जोड़ते हैं जो ‘वही’, ‘एक-जैसा’, ‘न्यायोचित’ आदि शब्दों से संप्रेषित होते हैं। एच.जे. लास्की का कहना है, ‘राजनीति विज्ञान के पूरे क्षेत्र में कोई भी विचार’ समानता से ‘अधिक कठिन नहीं है।’ रूसो प्राकृतिक और पारंपरिक असमानताओं में भेद करते थे। प्रकृति-प्रदत्त असमानताएँ पारंपरिक असमानताएँ हैं। समाजवादियों और मार्क्सवादियों का कहना है कि पारंपरिक असमानताओं, खासतौर से पारंपरिक आर्थिक असमानताओं में इतनी शक्ति होती है कि वे तमाम प्राकृतिक असमानताओं को ढक देती हैं। मार्क्स कहते हैं: सर्वाधिक प्रभावशाली सकारात्मक चिंतक लास्की ने समानता के लिए निम्नलिखित स्थितियों को आवश्यक बतायाः हाल में ब्रायन वर्नन ने समानता की एक व्यापक अवधारणा प्रस्तुत करते हुए सुझाया है कि समानता में निम्नलिखित घटक अवधारणाओं का समावेश होना चाहिएः कानूनी समानता का मतलब है कानून के सामने समानता और सबके लिए कानून की समान सुरक्षा। अवधारणा यह है कि सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, इसलिए कानून के सामने समान हैसियत के पात्र हैं। कानून अंधा होता है और इसलिए वह जिस व्यक्ति से निबट रहा है उसके साथ कोई मुरौवत नहीं करेगा। वह बुद्धिमान हो या मूर्ख, तेजस्वी को या बुद्धू, नाटा हो या कद्दावर, गरीब हो या अमीर, उसके साथ कानून वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा औरों के साथ करेगा। लेकिन उपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी बालक या बालिका के साथ किसी वयस्क पुरुष या स्त्री जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा और बालक या बालिका के साथ मुरौवत किया जाएगा। राजनीतिक स्वतंत्रता का मतलब बुनियादी तौर पर सार्वजनीन मताधिकार और प्रतिनिधिक सरकार है। सार्वजनीन मताधिकार का मतलब यह है कि सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार है और एक व्यक्ति का एक ही मत होता है। प्रतिनिधिक सरकार का अर्थ यह है कि सभी को बिना किसी भेदभाव के चुनाव में स्पर्धा में खड़े होने का अधिकार है और वह सार्वजनिक सेवा के लिए चुनाव में खड़ा होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी को मत देने के लिए विवश किया जा सकता है और प्रत्येक को अपनी पसन्द जाहिर करनी है या यदि कुछ लोगों को गलत प्रभाव डालकर मतदान करने से विमुख कर दिया जाता है या चाहे जिसे मत देने के लिए राजी कर लिया जाता है तो उसके संबंध में राज्य कुछ खास नहीं कर सकता और अगर ज्यादातर लोग या काफी बड़ी संख्या में लोग मतदान नहीं करते और इस प्रकार सरकार के प्रतिनिधिक स्वरूप को कमजोर करते हैं तो राजनीतिक समानता की शुद्ध उदारवादी समझ के अनुसार किसी प्रकार की राजनीतिक असमानता का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है। मात्र तकनीकी तौर या संवैधानिक रूप से गारंटी की गई राजनीतिक समानता का मतलब भी सच्ची राजनीतिक समानता नहीं होती, क्योंकि देखा गया है कि प्रमुख उदारवादी लोकतंत्रों में पैसे की ताकत एक प्रमुख भूमिका निभाती है। जिन लोगों, समूहों या वर्गों के पास यह ताकत होती है वे अगर इसका इस्तेमाल करने को तत्पर रहते हैं तो उन्हें अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने में इससे इतनी ज्यादा मदद मिलती है कि उसकी काट करना कठिन होता है। इस प्रकार अकेले पैसे की ताकत आमतौर पर अक्सर चुनावों के परिणामों को नियंत्रित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। केवल उम्मीदवारों और पार्टियों द्वारा खर्च किया गया पैसा ही नहीं बल्कि पैसे के संबंध का पूरा तंत्र इसमें मददगार होता है। प्रचार माध्यम आजकल के उदारवादी लोकतंत्रों में और खास कर इस तरह के जिन लोकतंत्रों में बहुत बड़े मध्य वर्ग का अस्तित्व है उनमें बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं और यद्यपि इन माध्यमों को स्वतंत्र माना जाता है लेकिन वास्तव में वे स्वतंत्र हो नहीं सकते, क्योंकि वे अपने आर्थिक अस्तित्व और फलने-फूलने के लिए मुख्य रूप से कंपनियों के विज्ञापनों पर निर्भर होते हैं और उनके लिए व्यवसाय जगत् की राजनीतिक संवेदनशीलताओं और हितों तथा कंपनियों की कार्य-सूची के प्रति संवेदनशील होना जरूरी होता है। जिस हद तक प्रचार माध्यम लोगों को प्रभावित करते हैं उस हद तक ये कार्य-सूचियाँ उन तक संप्रेषित हो जाती हैं, चाहे यह काम वे किसी सोची-समझी योजना के अधीन करते हों या यों ही, या इसके पीछे उनकी मजबूरी हो या न हो। इस प्रकार इनका अंतिम परिणाम राजनीतिक समानता के स्तर की उस समतलता को भंग कर देता है जो अन्यथा व्यवहारतः कायम रहती। ऊपर कही गई बातों के अलावा भारत जैसे लोकतंत्र में शक्तिशाली कार्यकारी नौकरशाहियाँ और न्यायिक सेवाओं के सदस्य होते हैं, जिन्हें राजनीतिज्ञों की तरह जनता नहीं चुनती और अगर लोग उनसे तंग आ चुके हैं तो उनका कोई चुनाव नहीं होता कि वे उन्हें निकाल बाहर करें। अपनी शैक्षिक तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण इन समूहों के सदस्य अक्सर ऊपरी आर्थिक तबकों औेर वर्गों से आते हैं और नीति-निर्धारण को अनवरत और प्रबल रूप से प्रभावित करते रहते हैं। जाहिर है कि ये समूह अन्यों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक समानता का उपभोग करते हैं। उदाहरण के लिए, जब उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश सरकार के किसी नीतिगत विधान पर रोक लगा देता है और उसे गैर-कानूनी घोषित कर देता है हालांकि उस विधान की रचना स्वतंत्र और साफ-सुथरे चुनाव में निर्वाचित प्रतिनिधियों ने, चाहे वे जितने अशिक्षित या शैक्षित दृष्टि से योग्यताहीन हों, की है। वह न्यायाधीश कानूनी तौर पर तो नहीं लेकिन विशुद्ध राजनीतिक दृष्टिकोण है स्पष्टतः अपने अन्य सह-नागरिकों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ समानता की स्थिति का उपभोग कर रहा होता है। आर्थिक और सामाजिक समानता की अभिधारणा का अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग है। आर्थिक समानता से प्रारंभिक उदारवादियों का तात्पर्य केवल यह था कि हर व्यक्ति को, उसकी पारिवारिक या आर्थिक स्थिति चाहे जो हो, अपना धंधा और पेशा चुनने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अनुबंध करने की स्वतंत्रता है, ताकि जहाँ तक अनुबंधात्मक दायित्वों का संबंध है, देश के हर व्यक्ति के साथ समान व्यवहार हो सके। धीरे-धीरे स्थिति इस अभिधारणा की दिशा में बदलने लगी कि प्रत्येक को पूर्ण मानव प्राणी के रूप में जीने का समान अवसर प्राप्त हो। धीरे-धीरे यह समझा और स्वीकार किया जाने लगा कि समानता का मतलब यह होना चाहिए कि समाज में कोई भी इतना गरीब न हो कि उसके पास बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन न हों और मानसिक तथा शारीरिक विकास के लिए उसे प्राथमिक अवसर सुलभ न हों। रूसो के शब्दों में कहें तो ‘समानता से हमारा मतलब यह नहीं होना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति को बिल्कुल बराबरी की सत्ता और धन प्राप्त होना चाहिए, बल्कि उसका मतलब यह होना चाहिए कि कोई भी नागरिक इतना धनवान न हो कि वह दूसरों को खरीद ले और किसी भी नागरिक को इतना निर्धन न होना चाहिए कि वह बिकने के लिए मजबूर हो जाए।’ एच. जे. लास्की ने आर्थिक समानता की सकारात्मक उदारवादी अभिधारणा को परिष्कृत रूप प्रदान किया और समानता का अर्थ जिनके बिना जीवन निरर्थक है उन सभी चीजों की उपलब्धता करायी। उन्होंने कहा कि बुनियादी आवश्यकता की वस्तुएँ तो परिमाण और किस्म के किसी भेद के बिना सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। सभी मनुष्यों को आवश्यक भोजन और आवास सुलभ होना चाहिए। उन्होंने बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति को अवसर की समानता की पूर्व-शर्त माना और उस आर्थिक समानता के लिए आर्थिक असमानता की अति को कम करने की हिमायत की समानता-संबंधी मार्क्सवादी दृष्टि समानता को, विशेषतः आर्थिक समानता को, संपत्ति और वर्ग -शोषण से जोड़ कर देखती है। सच तो यह है कि रूसो और केंस जैसे गैर-मार्क्सवादी उदारवादी चिंतकों ने भी समानता और संपत्ति के बीच के संबंध का निर्देश किया है। उदाहरण के लिए, केंस कहते हैं: ‘खानाबदोश और आखेटक कबीलों जैसे जिन समाजों के लिए निजी संपत्ति का कोई उपयोग नहीं है उनके लिए समतावादी होना आसान है लेकिन जो समाज व्यक्तियों को निजी संपत्ति का संग्रह करने की सुविधा देते हैं उनके लिए यह आसान नहीं होता।’ मार्क्सवादी विश्लेषण में समानता केवल वर्गों या वर्ग-विभाजित समाज को मिटा कर ही प्राप्त की जा सकती है और उसकी पूर्ण प्राप्ति निजी संपत्ति के उन्मूलन से ही संभव है। मार्क्सवादी विचार ऐसा समाज स्थापित करने का है जिसमें कोई निजी संपत्ति या आर्थिक वर्ग नहीं होंगे और प्रत्येक को ‘योग्यतानुसार काम और आवश्यकतानुसार दाम’ के सिद्धांत के मुताबिक जो देना है सो दिया जाएगा। वितरण का काम राज्य का है। लेनिन और अन्य मार्क्सवादी इस सकारात्मक उदारवादी अभिधारणा पर प्रहार करते हैं कि राज्य के हस्तक्षेप से आर्थिक असमानताएँ मिटाई जा सकती हैं और जीवन के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुओं की सुलभता सबके लिए सुनिश्चित की जा सकती है, क्योंकि उनका मानना है कि यदि निजी संपत्ति का उन्मूलन नहीं किया जाता है तो ऊपरी वर्गों की पैसे की ताकत के कारण शोषण और असमानताएँ आहिस्ते से फिर लौट आयेंगी। सामाजिक समानता का मतलब है रंग, लिंग, जाति, लैंगिक प्रवृत्ति आदि के आधार पर भेद -भाव की अनुपस्थिति, समानता के कानूनी, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं से भिन्न, वर्षों से यह महसूस किया जाता रहा है कि बाकी के जो भेद-भाव कुछ समाजों में हजारों साल से विद्यमान रहे हैं उन्हें राजनीतिक और कानूनी अधिकारों आर्थिक विकास और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन की तीव्र प्रगति के बल पर भी कमजोर करना कठिन है। स्त्रियों को इंगलैंड में 1920 वाले दशक में जाकर मताधिकार प्राप्त हुआ। दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरीका के कुछ हिस्सों में चंद दशक पहले तक कालों को अपने ही देश में बहुत सारे क्षेत्रों से अलग रखा जाता था। कई देशों में मेहतरों को समाज से दूर पृथक्कृत गंदे स्थानों में रहने को मजबूर होना पड़ता है, जिसका कारण न राजनीतिक होता है और न आर्थिक बल्कि होता है सामाजिक मानसिकता। आज भी भारत में ऐसे गाँव हैं जहाँ निचली जातियों के लोगों के साथ ऊपरी जाति के लोग जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं और यदि उनमें से कोई अपनी सूझ-बूझ से धनवान या शक्तिशाली बन जाता है तो भी उसके साथ उसकी जाति के अन्य लोगों से भिन्न व्यवहार नहीं किया जाता है। उधर नव-उदारवादी चिंतन - खासतौर से मिल्टन फ्रइडमेन और एफ.ए. हेक द्वारा प्रतिपादित नव-उदारवादी चिंतन - समानता के संबंध में बिल्कुल अलग राग अलापता है। वह मानता है कि समानता और स्वतंत्रता मूलतः एक-दूसरे के विरुद्ध हैं और इसलिए स्वतंत्रता के हक में असमानता को सहन करना चाहिए और आज दुनिया भर में नीति-निर्धारण में - खासतौर से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के नीति-निर्धारण में इस विचार का जबर्दस्त बोलबाला है। नव-उदारवादी यह भी मानते हैं कि असमानता को सहन करना अंततः संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए अधिकतम लाभदायक सिद्ध होगा, क्योंकि उसके फलस्वरूप निजी आर्थिक गतिविधियों की अभिवृद्धि होगी।) इस चिंतन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
निल पैट्रिक हैरिस एक अमरिकी अभिनेता, गायक, निर्देशक व जादुगर है। मुख्य किरदारों में इनके डुगी हाउज़र, एमडी, स्टारशिप ट्रुप्रर्स में कर्नल कार्ल जेनकिन्स, हाउ आई मेट योर मदर में बार्नी स्टिन्सन, हैरोल्ड ऐंड कुमार श्रंखला में खुद का हि एक मनघडंत रूप, द स्मर्फ्स में पैट्रिक विन्सलो शामिल है। इन्होने 7 जून 2009 में हुए 63वें टोनी पुरस्कारों व 20 सितंबर 2009 में हुए 61वें प्राइम टाइम एमी पुरस्कारों की मेजबानी की। 7 मार्च 2010 को इन्होने 82वें अकादमी पुरस्कारों में शुरूआती गाना गा कर सभिको अचंभे में डाल दिया था। 21 अगस्त 2010 को इन्हे दो एमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सितंबर 2011 में हैरिस को हॉलिवुड वाक ऑफ फेम में उनके नाम का सितारा देकर सम्मानित किया गया। हैरिस का जन्म ऐल्बुक्युर्क्यू, न्यु मेक्सिको में हुआ और वे रुइडोसो, न्यु मेक्सिको में बडे हुए। उनके माता पिता शिला और रॉन एक रेस्टरॉ चलाते थे। इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर नील पैट्रिक हैरिस
निर्देशांक: 27°11′N 78°01′E / 27.18°N 78.02°E / 27.18; 78.02 निनबया किरौली, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। · अंबेडकर नगर जिला · आगरा जिला · अलीगढ़ जिला · आजमगढ़ जिला · इलाहाबाद जिला · उन्नाव जिला · इटावा जिला · एटा जिला · औरैया जिला · कन्नौज जिला · कौशम्बी जिला · कुशीनगर जिला · कानपुर नगर जिला · कानपुर देहात जिला · खैर · गाजियाबाद जिला · गोरखपुर जिला · गोंडा जिला · गौतम बुद्ध नगर जिला · चित्रकूट जिला · जालौन जिला · चन्दौली जिला · ज्योतिबा फुले नगर जिला · झांसी जिला · जौनपुर जिला · देवरिया जिला · पीलीभीत जिला · प्रतापगढ़ जिला · फतेहपुर जिला · फार्रूखाबाद जिला · फिरोजाबाद जिला · फैजाबाद जिला · बलरामपुर जिला · बरेली जिला · बलिया जिला · बस्ती जिला · बदौन जिला · बहरैच जिला · बुलन्दशहर जिला · बागपत जिला · बिजनौर जिला · बाराबांकी जिला · बांदा जिला · मैनपुरी जिला · महामायानगर जिला · मऊ जिला · मथुरा जिला · महोबा जिला · महाराजगंज जिला · मिर्जापुर जिला · मुझफ्फरनगर जिला · मेरठ जिला · मुरादाबाद जिला · रामपुर जिला · रायबरेली जिला · लखनऊ जिला · ललितपुर जिला · लखीमपुर खीरी जिला · वाराणसी जिला · सुल्तानपुर जिला · शाहजहांपुर जिला · श्रावस्ती जिला · सिद्धार्थनगर जिला · संत कबीर नगर जिला · सीतापुर जिला · संत रविदास नगर जिला · सोनभद्र जिला · सहारनपुर जिला · हमीरपुर जिला, उत्तर प्रदेश · हरदोइ जिला
यह हिन्दी पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशक हैं।
एमी जूडिथ लेवी एक ब्रिटीश निबंधकार, कवि और उपन्यासकार थे। लेवी का जन्म, लंदन के एक यहुदी परिवार में हुआ था। एक व्यस्क के रूप में, लेवी ने खुद को यहूदी के रूप में प
निर्देशांक: 25°36′40″N 85°08′38″E / 25.611°N 85.144°E / 25.611; 85.144 चिस्तीपुर धनरूआ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
2017-18 प्रीमियर लीग टूर्नामेंट श्रीलंका के प्रीमियर ट्रॉफी में प्रथम श्रेणी के क्रिकेट का 30 वां सत्र है, जिसमें ग्रुप स्टेज में प्रत्येक तीन-तीन दिनों में खेले गए मैच थे। यह 21 दिसंबर 2017 को शुरू हुआ और 11 फरवरी 2018 को समाप्त होने का अनुमान है, जिसमें आठ टीम प्रतिस्पर्धा करती है। पांडुर स्पोर्ट्स क्लब डिफेंडिंग चैंपियन हैं।
शासन-अंतराल, राजा-अंतराल या शासन अंतर्काल या केवल अंतर्काल, किसी निरंतर व अविरल शासन व्यवस्था में अनिरंतर्ता या असातत्यता के काल को कहा जाता है। इस शब्द को किसी सरकार, राजतंत्र या संगठन में शीर्ष नेतृत्व के परिवर्तन के मध्य के समय के बोध के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। किसी राजतांत्रिक व्यवस्था में एक शासक की मृत्यु या पदत्याग और उसके उत्तराधिकारी के राज्याभिषेक के बीच के काल को कहा जा सकता है, वहीँ किसी गणतांत्रिक व्यवस्था में एक राष्ट्रप्रमुख या शासनप्रमुख के पदत्याग और अगले पदाधिकारी के पदप्रवेश के बीच के समय को भी कहा जा सकता है। तथा एक विशेष प्रकार के शासन-व्यवस्था की निरंतरता के बीच किसी अन्य व्यवस्था के अनिरंतर्ता के काल को कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप:वर्ष 1540 से 1555 के बीच शेर शाह सूरी का राज, मुग़ल शासन का अंतर्काल था, उसी प्रकार 1649 से 1650 के बीच अंग्रेज़ी गणसंघ और प्रोटेक्टरेट का गणतांत्रिक काल, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और आयरलैंड राजशाही में राजतांत्रिक शासन का अंतर्काल था। ऐतिहासिक तौर पर अमूमन ऐसा देखा गया है की लंबे अंतर्शासन काल, अस्त-व्यस्तता, अराजकता, उत्तराधिकार युद्ध और गृहयुद्ध जैसी परिस्थितियों से ग्रस्त होते हैं। एक विफल राज्य आमतौर पर अंतर्काल का हिस्सा होता है। संसदीय व्यवस्था में संसद के भंग होने और नवीन संसद के निर्वाचन के बीच के काल को अंतर्काल कहा जाता है। कई देशों में इस समय के दौरान एक अंतर्कालीन सरकार या सामायिक सरकार का शासन होता है, जिसे किसी न्यायाधीश या सभापति जैसे निष्पक्ष पदाधिकारी के नेतृत्व में निर्वाचन काल की अघुआई करने हेतु रखा जाता है। कई राजतांत्रिक देशों में ऐसे अंतर्काल से बचने के लिए, तत्क्षणिक उत्तराधिकार की व्यवस्था होती है, जिसके कारण, पूर्वशासक के निधन के साथ ही उनका उत्तराधिकारी, बिना किसी औपचारिकता या समारोह के, सिंघासन पर विराजमान हो जाता है, अतः तकनीकी तौर पर, ऐसी व्यवस्था में, सिंघासन कभी भी रिक्त नहीं रहता है। ऐसी व्यवस्था यूनाइटेड किंगडम तथा कुछ अन्य योरोपीय देशों में देखि जा सकती है।
चौखुडिया, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
खेतेश्वर महाराज राजपुरोहित समाज के सन्त तथा अराध्य महात्मा थे। इनका जन्म राजस्थान के जालौर जिले के सांचौर तहसील के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री शेर सिंह जी तथा माँ का नाम श्रीमती शृंगारी देवी जी था। ये उदेशथे।इन्होने 12 वर्ष की अल्पावस्था में वैग्य धारण किया। गणेशानन्द जी महाराज इनके गुरु थे।
ग्रीन लैंटर्ण 2011 में बनी 3डी अमरिकी सुपरहीरो फ़िल्म है जो डीसी कॉमिक्स के ग्रीन लैंटर्ण किरदार पर आधारित है। ग्रीन लैंटर्ण इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर
राजकीय इंटर कॉलेज देहरादून, उत्तराखंड के पटेल नगर में स्थित एक सरकारी विद्यालय है। इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा 1948 में की गई थी। विद्यालय के बारे में सामान्य जानकारी इस प्रकार है:-
आँखें 2002 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह फिल्म एक गुजराती उपन्यास पर आधारित है। एक पूर्व बैंक अधिकारी अपने साथ हुए अपमान का बदला लेने के लिये तीन अन्धे लोगो की मदद से अपने ही बैंक को लूटने की कोशिश करता है।
टाइटन, या शनि शष्टम, शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह वातावरण सहित एकमात्र ज्ञातचंद्रमा है, और पृथ्वी के अलावा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिसके सतही तरल स्थानों, जैसे नहरों, सागरों आदि के ठोस प्रमाण उपलब्ध हों। यूरोपीय-अमेरिकी के कासीनी अंतरिक्ष यान के साथ गया उसका अवतरण यान हायगन्स, 16 जनवरी 2004 को, टाइटन के धरातल पर उतरा जहां उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले जो चित्र भेजे। टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देख या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं था। 2008 अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की राजधानी रियो दी जनेरो में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ के सम्मेलन में ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता स्पष्ट होती है। ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे। यान के यहां उतरते समय चारो तरफ काफ़ी धुंध थी पर वह इतनी पारदर्शी थी कि होयगन्स के कैमरे 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर से ही नीचे के दृश्य के फ़ोटो लेने में सक्षम हो पाये। वह कई परतों वाले वायुमंडल से गुज़रता हुआ एक ऊबड़- खाबड़ जगह पर उतरा था। वायुमंडल में उसे बिजली कौंधने के संकेत भी मिले थे। होयगन्स अभियान प्रबंधक जौं पियेर लेब्रेतां के अनुसार इस का मतलब है कि टाइटन का वायुमंडल बहुत चंचल है। वहां उस समय तेज़ हवाएं चल रही थीं। पैराशूट के सहारे उतरना काफी झूलेदार रहा होगा। होयगन्स में रखे विश्लेषण उपकरणों ने टाइटन की हवा में तैरने वाले तत्वों का जो विश्लेषण किया, उससे पता चला कि उसके बादल मुख्यतः ईथेन और मीथेन गैसों के बने होते हैं। इन बादलों से मुख्यतः तरल मीथेन की बरसात होती है। होयगन्स को अपनी यात्रा के दौरान ऐसी कोई बरसात नहीं मिली। इस तरल मीथेन गैस वर्षा से उसके गैस बनने और बरसने का चक्र पृथ्वी पर पानी की बरसात के समान ही होता है। यान के नीचे की जमीन भीगी हुई रेत जैसी दृढ़ थी, फिर भी यान इस जमीन में लगभग 10 सेंटीमीटर धंस गया था और एक तरफ को हल्का सा झुक गया था। पृथ्वी और शनि ग्रह के इस उपग्रह के बीच और भी कई समानताएं हैं। टाइटन पर ज्वालामुखी जैसी क्रियाएं भी देखने में आती हैं और यहां खाइयां, नदियों के पाट और मुहाने भी दिख्ते हैं, किन्तु बड़े पहाड़ नहीं दिखे। बहुत कम क्रेटर-जैसे गोलाकार गड्ढे हैं और किसी प्रकार का जीवन नहीं है। वातावरण अत्यंत ठंडा है। तरल मीथेन तरल पानी का काम करती है। हवा में प्रतिध्वनि भी होती है, पृथ्वी की तरह तरंगें भी पैदा होती हैं। वैज्ञानिक जॉनथन लूनिन के अनुसार होयगन्स जहां उतरा, वहां नीची पहाड़ियों और उनके बीच समतल मैदानों वाली दृश्यावली थी। उतरने से पहले वह एक पहाड़ के ऊपर से होता हुआ गुज़रा। उसने नदियों की कटान से ज़मीन पर बनी टाइटन की ऊपरी सतह पर आकृतियां देखीं, जो एक समतल मैदान की तरफ जा रही थीं। इस इलाके को पार करता हुआ वह एक ऐसी जगह उतरा, जहां पहाड़ियों के बीच आस-पास बड़ी-बड़ी चट्टानें बिखरी हुई थीं। वह कंकड़-पत्थर और बर्फ के टुकड़ों वाली एक समतल जगह पर उतरा। ये चीज़ें शायद पास के पहाड़ों पर से बह कर वहां आयी थीं। यह चंद्रमा पृथ्वी की अपेक्षा बेहद ठंडा है और औसत तापमान शून्य से भी 180 डिग्री सेल्सियस नीचे है, जो साइबेरिया से भी तीन गुना ठंडा है। नदियों और झीलों में पानी के बदले तरल मीथेन गैस बहती है। ज्वालामुखी से बर्फीली अमोनिया निकलती है। वायुमंडल में 98.4 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस है और शेष 1.6 प्रतिशत अन्य गैसें हैं जिसमें मीथेन का अनुपात सर्वाधिक है। वायुमंडल बहुत सघन और गुरुत्वाकर्षण बल कम है। टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है। 5.150 किलोमीटर व्यास वाला ये चंद्रमा पृथ्वी के चंद्रमा से 1.624 किलोमीटर बड़ा है। उसका घना वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल के विपरीत एक ऐसा विलोम ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करता है कि सूर्य की किरणें अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इस कारण उसे जितना ठंडा होना चाहिये, उससे कहीं अधिक ठंडा है। टाइटन वातावरण का चित्र टाइटन के उत्तरी ध्रुव का चित्र ग्रीष्म और शीत ऋतुओं के कारण ऊपर गहरा और नीचे हल्का रंग हायगन्स का भेजा टाइटब्न के सतह का चित्र, जो शुक्र, मंगल, पृथ्वी और चंद्रमा के अलावा एकमात्र खगोलीय पिंड के सतह के उपलब्ध चित्र हैं।
बाल हितकर पत्रिका 1891 में लखनऊ से प्रकाशित हुई।
सम्बंधित क्वांटम संख्या: संयुक्त: उच्च ऊर्जा भौतिकी में B − L बेरिऑन संख्या और लेप्टॉन संख्या का अन्तर है। यह क्वांटम संख्या कुछ महा-एकीकृत सिद्धान्त मॉडलों में ग्लोबल/गेज U सममिति का आवेश है जिसे UB − L कहा जाता है। एकाकी बेरिऑन संख्या और लेप्टॉन संख्या से भिन्न यह परिकल्पित समरूपता काइरल असमता अथवा गुरुत्वीय असमता में भी यह सममिति भंग नहीं होती इसी लिए इसे व्यापक सममिति कहते हैं। यदि B − L सममिति यदि मौजूद है तो न्यूट्रिनो जैसे द्रव्यमान रहित कणों के लिए स्वतः विघटन आवश्यक होता है। इस सममिति से सम्बद्ध गेज बोसॉनों को सामान्यतः X और Y बोसॉन कहा जाता है। उस असंगत अवस्था में जहाँ बेरिऑन संख्या संरक्षण और लेप्टॉन संख्या संरक्षण अलग-अलग विघटित होते हैं वहाँ इस प्रकार निरसित होते हैं कि B − L हमेशा संरक्षित रहता है। इसका एक परिकल्पित उदाहरण प्रोटॉन क्षय है जहाँ एक प्रोटॉन एक पाइमेसॉन और पोजीट्रॉन में क्षयित होता है। दुर्बल हाइपर आवेश YW, B − L से निम्न प्रकार सम्बद्ध है: जहाँ X महा-एकीकृत U सममिति से सम्बद्ध संरक्षित क्वांटम संख्या है।
सुब्रत राय सहारा भारत के एक व्यवसायी तथा सहारा इण्डिया परिवार के संस्थापक, प्रबंध निदेशक एवं अध्यक्ष हैं। वे 'सहाराश्री' के नाम से भी जाने जाते हैं। इण्डिया टुडे ने उनका नाम भारत के दस सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न लोगों में शामिल किया था। उन्होने सन् 1978 में सहारा इण्डिया परिवार की स्थापना की। सन् 2004 में टाइम पत्रिका ने सहारा समूह को भारतीय रेल के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बताया था। वे पुणे वॉरियर्स इंडिया, ग्रॉसवेनर हाउस, एमबी वैली सिटी, प्लाजा होटल, ड्रीम डाउनटाउन होटल के मालिक हैं। राय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में पिता सुधीर चन्द्र राय और माँ छबि राय के घर हुआ था। उन्होंने कोलकाता के होली चाइल्ड स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद राजकीय तकनीकी संस्थान गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। उन्होने 1978 में गोरखपुर से अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। संप्रति उनका निवास लखनऊ में है। रॉय ने 1978 में गोरखपुर में सहारा इंडिया परिवार की स्थापना की, जिसके वे प्रबंध कार्यकर्ता और चेयरमैन हैं।यह भारत की एक बहु-व्यापारिक कंपनी है, जिसके कार्य वित्तीय सेवाओं, गृहनिर्माण वित्त, म्युचुअल फंडों, जीवन बीमा, नगर-विकास, रीयल-इस्टेट, अखबार एवं टेलीविजन, फिल्म-निर्माण, खेल, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, पर्यटन, उपभोक्ता सामग्री सहित अनेकों क्षेत्रों में फैला हुआ है। वर्तमान में वे आई पी एल की फ्रेंचाईजी पुणे वॉरियर्स इंडिया, लंदन के ग्रॉसवेनर हाउस,मुंबई के लोनावाला में स्थित एमबी वैली सिटी तथा न्यूयार्क के प्लाजा होटल, ड्रीम डाउनटाउन होटल के मालिक भी हैं। रॉय द्वारा संचालित सहारा समूह के पास 30 जून-10 तक 1,09,224 करोड़ रूपये की परिसंपत्तियां हैं। रॉय ने अपने व्यवसाय की प्रगति हेतु "सामूहिक भौतिकवाद" का दर्शन दिया,जिसका अभिप्राय है "सामूहिक प्रगति और उन्नति, समूहिक देखरेख में।"