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फ्रीडा पिंटो एक भारतीय अभिनेत्री और व्यावसायिक मॉडल हैं, जो की अपनी पहली फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर, जिसने 2009 में सर्वोत्तम फिल्म के लिए एकेडमी पुरस्कार जीता है, में उनके लतिका के किरदार के लिए प्रसिद्ध हैं। पिंटो ने मोशन पिक्चर में कलाकार द्वारा उत्कृष्ट अभिनय के लिए स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड जीता और उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री की श्रेणी में BAFTA पुरस्कार के लिए नामांकन भी मिला। फ्रीडा पिंटो मुंबई में सिल्विया पिंटो, जो सेंट जॉन यूनिवर्सल हाई स्कूल में प्रधानाचार्य हैं और फ्रेडरिक पिंटो, जो की बड़ौदा बैंक के एक वरिष्ठ शाखा प्रबंधक हैं उनके घर पैदा हुई। फ्रीडा पिंटो के पिता नीरुड़े से और उनकी माता डेरेबैल से हैं, यह दोनों कस्बे मेंग्लोर में हैं। उनका परिवार मेंग्लोरीयन कैथोलिक मूल का है, और एक इंटरव्यू में, पिंटो ने कहा है कि वह "पूरी तरह से शुद्ध भारतीय" हैं, लेकिन उनका परिवार कैथोलिक है। उनकी बड़ी बहन शेरोन पिंटो NDTV समाचार चैनल पर एक सहायक निर्माता है। पिंटो ने मलाड में सेंट जोसेफ स्कूल के कर्मेल में अभ्यास किया और अंग्रेजी साहित्य में कला स्नातक की उपाधि सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से ली। वर्तमान समय में वह मुंबई के एक उपनगर, मलाड के ऑरलेम इलाके में रहती है। वह भारतीय शास्त्रीय नृत्य के विभिन्न रूपों के साथ साथ साल्सा में भी प्रशिक्षित हैं। वह अपने पूर्व प्रचारक और आठ साल के प्रेमी रोहन अन्ताओ के साथ संलग्न थी, लेकिन 2009 की शुरुआत में स्टार बनने के बाद उन्होंने यह सगाई तोड़ दी। आजकल वह अपने 'स्लमडॉग मिलियनेर' फिल्म के सह अभिनेता, देव पटेल के साथ डेटिंग कर रहीं है, जो की उनसे उम्र में छह साल छोटे है। वह पीपल People पत्रिका की "सबसे खूबसूरत लोगों की सूची" में और "दुनिया की बेहतरीन सजने वाली महिलाओं की सूची" में भी शामिल हो चुकी हैं। स्लमडॉग मिलियनेर में काम करने से पहले, पिंटो ने 2006-08 के बीच अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय ट्रावेल शो, फुल सर्कल में ज़ी इंटरनेशनल एशिया पैसिफिक पर एंकरिंग का काम किया हैं। इसके अलावा पिंटो ] जैसे जानेमाने उत्पादनों के लिए टीवी और प्रिंट विज्ञापनों में भी काम कर चुकी हैं। पिंटो ने चार साल तक मोडेलिंग की है और वह रनवे शो पर एवं कई पत्रिका के कवर पर दिखाई दी हैं। उन्होंने अंधेरी स्थित बैरी जॉन अभिनय स्टूडियो से अभिनय सीखा और वह अपने गुरु बैरी जॉन द्वारा प्रशिक्षित की गयी हैं। छह महीने तक ऑडिशन देते रहने के बाद, उन्हें स्लमडॉग मिलियनेर के ऑडिशन के लिए एक कॉल मिला। पिंटो ने डैनी बोयल के लिए ऑडिशन दिया जहाँ वह शोर्ट लिस्ट की गयी और अंत में स्लमडॉग मिलियनेर में काम करने के लिए चुनी गयीं। पिंटो ने सन 2008 में अपने फीचर फिल्म व्यवसाय की शुरुआत की। स्लमडॉग मिलियनेर मुंबई की एक गंदी बस्ती में रहने वाले एक युवक की कहानी बताती हैं जो एक गेम शो पर प्रदर्शित होता है और लोगों की उम्मीदों से बहोत ज्यादा अच्छा खेलता है, जो गेम शो के मेज़बान एवं कानून प्रवर्तन अधिकारियों के मन में शक पैदा करता हैं। फिल्म में, पिंटो ने लतिका नामक लड़की की भूमिका निभाई हैं, जिसको जमाल प्यार करता है। 2008 टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म ने कैडिलैक पीपल्स चोइस अवार्ड जीता। गोल्डन ग्लोब पुरस्कार 2009 में, फिल्म ने चार पुरस्कार जीते। खुद पिंटो को 2009 BAFTA पुरस्कार में "सहायक की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री" के लिए नामांकन मिला, और स्लमडॉग मिलियनेर में साथी कलाकारों के साथ मोशन पिक्चर में किए उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड भी जीता। उन्होंने जूलियन स्केन्बेल द्वारा निर्देशित मिरल नामक, एक फ्रेंको-इजराईली फिल्म पूरी की है। पिंटो वुडी एलन की यु विल मीट अ टोल डार्क स्ट्रेंजर नामक फिल्म में, एंटोनियो बेन्ड़ेरस, जोश ब्रोलिन, एंथनी हॉपकिंस, अनुपम खेर और नाओमी वोट्स जैसे सितारों के साथ कास्ट की गयीं हैं। डेली टेलीग्राफ के अनुसार, वह इस समय बॉलीवुड में सबसे अधिक भुगतान पानेवाली अभिनेत्री है। 13 मई 2009 में "छह आंकड़ा के सौदे" के साथ प्रतिद्वंद्वी सौंदर्य प्रसाधन कंपनी ईस्टी लौडर के साथ जुड़ने वाली हैं ऐसी कई अफवाहों के बावजूद पिंटो को ल'ओरियल का 'नया चेहरा' बनाने की घोषणा की गयी।
बंजारा साम्राज्य उन साम्राज्यों को कहा जाता है जो धनुषधारी, अश्वसवार, यूरेशियाई बंजारों द्वारा खड़े किये गये। ऐसे साम्राज्य बहुत प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल के आरम्भ तक देखे जा सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण बंजारा साम्राज्य इस प्रकार थे:
खगेटा ल0 तोप, कर्णप्रयाग तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है।
मुड़मा जतरा, मुड़मा नामक एक गाँव में प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। मुड़मा गाँव झारखंड की राजधानी राँची से लगभग 28 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-75 पर जिसे राँची-डलटेनगंज मार्ग के नाम से भी जाना जाता है, स्थित है। यहाँ दशहरा के दसवें दिन ‘मुड़मा जतरा’ का आयोजन झारखंड के आदिवासी समुदायों के द्वारा मेला किया जाता है। यह मेला कब और कैसे प्रारम्भ हुआ इसकी कोई लिखित प्रामाणिक जानकारी उपल्ब्द्ध नहीं है लेकिन लोकगितों एवं किवदंतियों के अनुसार जनजातीय समुदाय के उराँव आदिवासी जनजाति जो की रोहतसगढ, बिहार के थे, के पलायन से जोड़कर देखा जाता है। छोटनागपुर के इतिहास के अनुसार जब मुग़लों ने रोहतसगढ़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया तो वहाँ रह रहे उराँव समुदाय के लोगों को गढ़ छोड़कर भागना पड़ा था और इसी क्रम में वे सोन नदी पार कर वर्तमान पलामू होते हुए वे राँची ज़िला में प्रवेश किए जहाँ मुड़मा में इनका सामना मुंडा जनजाति के मुँड़ाओं से हुआ और जब उराँव लोगों ने अपनी व्यथा कथा मुँड़ाओं को सुनाई तब मुँड़ाओं ने इनको पश्चिम वन क्षेत्र की सफ़ाई करके वहाँ रहने की अनुमति प्रदान की थी और यह समझौता मुड़मा गाँव में हुआ था। इसलिए उराँव समुदाय के 40 पाड़हा के लोग उस ऐतिहासिक समझौते के स्मृति में ‘मुड़मा जतरा’ को आयोजित करते हैं। इस दिन सरना धर्मगुरु के अगुवाई में अधिष्ठात्री शक्ति के प्रतीक जतरा खूंटे की परिक्रमा व जतरा खूंटा की पूजा-अर्चना भी की जाती है। पाड़हा झंडे के साथ मेला स्थल पहुंचे पाहन ढोल, नगाड़ा, माँदर के थाप अन्य ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते आते हैं और मेला स्थल पर पाहन पारम्परिक रूप से सरगुजा के फूल सहित अन्य पूजन सामग्रियों के साथ देवताओं का आहवाहन करते हुए ‘जतरा खूँटा’ का पूजन करता है एवं प्रतीक स्वरूप दीप भी जलाया जाता है और इस प्रकार मेला का आरम्भ किया जाता है। इस पूजन में सफ़ेद एवं काला मुर्ग़ा की बलि भी चढ़ाई जाती है। सरना धर्मगुरु के अनुसार यह आदिवासियों का शक्ति पीठ है। आदिवासी व मुंडा समाज का मिलन स्थल भी है। यहां सभी समाज के लोग आते हैं। सुख-समृद्धि व शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
पॉलीएथिलीन या पॉलीथीन ) सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक है। वर्तमान में इसका वार्षिक वैश्विक उत्पादन 8 करोड़ टन है। इसका मुख्य उपयोग पैकेजिंग बनाने में होता है। पॉलीथीलीन कई प्रकार के होते हैं जिनमें से अधिकांश का सूत्र nH2 होता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि पॉलीथीन एक ही प्रकार के कार्बनिक यौगिकों का मिश्रण होता है जिनमें n का मान अलग-अलग होता है। पालीइथिलीन एक बहुलक है। यह इथिलीन के अणु द्वारा बनता है। यह एक बहुउपयोगी पदार्थ है।
मोहम्मदपुर नाथनगर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 26°30′42″N 77°22′11″E / 26.5117°N 77.3698°E / 26.5117; 77.3698 सरमथुरा भारत के राजस्थान राज्य में धौलपुर जिले में स्थित है। सरमथुरा तहसील बलुआ लाल पत्थर के लिए जाना जाता है। ऐतिहासिक रूप से, सरमथुरा के लाल बलुआ पत्थर का उपयोग तालाब-ए-शाही, जुबली हॉल, धौलपुर, धौलपुर राज पेलेस और निहाल घड़ी टावर के निर्माण के लिए किया गया था। लाल किला और हुमायूं मकबरे जैसे राष्ट्रीय स्मारक भी धौलपुर लाल बलुआ पत्थर से बने होते हैं, जिन्हें सरमथुरा और बारी क्षेत्र से निकाला गया था। सरमथुरा के निकटतम शहर बारी और निकटतम जिले करौली, धौलपुर है। स्थानीय रूप से, बोली जाने वाली भाषाएँ हिंदी और बोली हैं| राजस्थान की यह रियासत के जिले में चंबल नदी के पास स्थित है। शहर का प्राथमिक निर्यात में लाल बलुआ पत्थर, मिठाई, बाजरा, और सरसों आदि शामिल है। सरमथुरा की जनसंख्या 17,988 है, जिसमें से 54% पुरुष और 46% महिलाएं हैं। पूरी आबादी में, 77% अग्र जाति, 17% अनुसूचित जाति से संबंधित है और 6% का संबंध अनुसूचित जनजाति से है। सरमथुरा जनगणना शहर की जनसंख्या की संख्या 3,147 है, जिसमें से 54% लड़के और 46% लड़कियां हैं हिंदू धर्म का अभ्यास करने वाली कुल जनसंख्या का 62.90%, इस्लाम धर्म का अभ्यास करने वाली कुल आबादी का 37.02% हिस्सा है। शहर में कई अन्य धर्म भी मौजूद हैं। सरमथुरा में औसत से कम महिला लिंग अनुपात और राजस्थान राज्य की तुलना में कम बाल लिंग अनुपात है। सरमथुरा की साक्षरता दर 66.18% है, जो राजस्थान राज्य की 66.11% औसत औसत से अधिक है। सरमथुरा में, पुरुष साक्षरता लगभग 76.86% है और महिला साक्षरता दर 53.84% है। जनगणना के शहर में 2,950 घर हैं, और प्रत्येक परिवार में औसत 6 लोग रहते हैं। See also: Dholpur–Sarmathura Railway यह धौलपुर- सरमथुरा संकीर्ण रेल लाइन 2'6 "फुट है और सरमथुरा से धौलपुर तक की दूरी 72 किलोमीटर है। यह रेल लाइन मुख्य रूप से सरमथुरा से दूसरे स्थान पर लाल बलुआ पत्थर की आपूर्ति करने के लिए उपयोग की जाती है। इसे राजा राम सिंह के शासनकाल में 1929 में पूरा किया गया था। इस मार्ग पर अब भी एक यात्री ट्रेन चलती है। रेलवे गेज रूपांतरण 1,676 मिमी में व्यापक गेज चल रहा है। रेलवे से जुड़ने की एक योजना भी है करौली के माध्यम से गंगापुर लाइन। दमोह झरना 300 फीट ऊंचा है और यह मानसून के मौसम में, जुलाई से सितंबर तक दिखाई देता है। पार्वती नदी पर स्थित इस बांध में पानी के बाहर जाने के लिए 22 दरवाजे हैं। महाकालेश्वर मंदिर, झिरी रोड पर भगवान शिव का एक लोकप्रिय मंदिर है। हजारों लोग हर रविवार को इस मंदिर में जाते हैं और भोज नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।
कवरा सकरा-द0मौ0-1, सतपुली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
शिवा 1989 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
इरकुत्स्क ओब्लास्त रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणपूर्वी भाग में स्थित रूस का एक संघीय खंड है जो उस देश की शासन प्रणाली में ओब्लास्त का दर्जा रखता है। यह अंगारा, लेना और निझ़नाया तुंगुस्का नदियों का जलसम्भर क्षेत्र है। इसकी राजधानी इरकुत्स्क शहर है और इस प्रान्त की आबादी 2010 की जनगणना में 24,28,750 अनुमानित की गई थी। इरकुत्स्क ओब्लास्त का क्षेत्रफल 7,67,900 वर्ग किमी है यानि लगभग पाकिस्तान के क्षेत्रफल के बराबर। इरकुत्स्क ओब्लास्त की स्थापना सोवियत संघ के ज़माने में 26 सितम्बर 1937 को हुई थी। इरकुत्स्क वनस्पति-विज्ञान उद्यान में बहार का मौसम बायकल परिक्रमा रेलमार्ग उस्त-इलिम्स्क बाँध
1576 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। हल्दी घाटी का युद्ध । मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप की अकबर की सेना द्वारा पराजय।
बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विधालय की स्थापना मे मदन मोहन मालवीय जी का योगदान सिर्फ सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप मे था ,महाराजा दरभंगा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान ले कर की ।इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। विश्वविद्यालय को "राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान" का दर्ज़ा प्राप्त है। संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर वाराणसी में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी। मुख्य परिसर में 6 संस्थान्, 14 संकाय और लगभग 140 विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह पर स्थित है। 75 छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय है जिसमे 30,000 से ज्यादा छात्र अध्यनरत हैं जिनमे लगभग 34 देशों से आये हुए छात्र भी शामिल हैं। हैदराबाद के सातवे निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने वर्ष 1951 में इस विश्‍वविद्यालय के प्रति 10 लाख रुपैये का दान दिया। इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुक-डिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी, पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी. प्रशिक्षण केंद्र, "हिंदू यूनिवर्सिटी" नामक डाकखाना एवं सेवायोजन कार्यालय भी विश्वविद्यालय तथा जनसामान्य की सुविधा के लिए इसमें संचालित हैं। श्री सुंदरलाल, पं॰ मदनमोहन मालवीय, डॉ॰ एस. राधाकृष्णन्, डॉ॰ अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ॰ रामस्वामी अय्यर, डॉ॰ त्रिगुण सेन जैसे मूर्धन्य विद्वान यहाँ के कुलपति रह चुके हैं। वर्ष 2015-16 विश्वविद्यालय की स्थापना का शताब्दी वर्ष था जिसे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, उत्सवों व प्रतियोगिताओं एवं 25 दिसंबर को महामना मालवीय जी की जयंती-उत्सव का आयोजन कर मनाया गया। पं॰ मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश 1904 ई. में किया, जब काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, 1906 ई. में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। डॉ॰ ऐनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों दरभंगा के राजा महाराज रामेश्वर सिंह भी काशी में "शारदा विद्यापीठ" की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डॉ॰ बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की 15 दिसम्बर 1911 को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर सुंदरलाल सचिव, महाराज प्रभुनारायण सिंह, पं॰ मदनमोहन मालवीय एवं डॉ॰ ऐनी बेसेंट सम्मानित सदस्य थीं। तत्कालीन शिक्षामंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयास से 1915 ई. में केंद्रीय विधानसभा से हिंदू यूनिवर्सिटी ऐक्ट पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंज ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। 14 जनवरी 1916 ई. के दिन ससमारोह वाराणसी में गंगातट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज प्रभुनारायण सिंह द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद् वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। गांधी जी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधी जी ने डॉ॰ बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-रजवाड़ों, सामंतों तथा देश के अनेक गण्यमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटिश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासकों की घोर भर्त्सना की गई। डॉ॰ बेसेंट द्वारा समर्पित सेंट्रल हिंदू कालेज में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का विधिवत शिक्षणकार्य, 1 अक्टूबर 1917 से आरंभ हुआ। 1916 ई. में आयी बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में 1,300 एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कालेज का निर्माण हुआ तत्पश्चात क्रमशः आर्ट्स कालेज एवं साइंस कालेज स्थापित किया गया। 1921 ई से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई कमच्छा कॉलेज से स्थानांतरित होकर नए भवनों में प्रारंभ हुई। विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन 13 दिसम्बर 1921 को प्रिंस ऑव वेल्स ने किया। काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय के कुलगीत की रचना प्रसिद्ध वैज्ञानिक शान्ति स्वरूप भटनागर ने की थी। यह निम्नलिखित है-
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील संभल, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :09 जिला कोड :135 तहसील कोड : 00721 उत्तर प्रदेश के जिले
कदिरिपूलकुंट में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
टीपू का सम्मर पेलेस, भारत के शहर बेंगलूर के क़िले में एक महल है जिसे मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने बनवाना शुरू किया और टीपू सुल्तान ने उसको 1791 में पूरा किया। टीपू सुल्तान की मृत्यू के बाद ब्रिटिश सरकार के हाथों में यह महल आया। आज कल इसे कर्नाटक सरकार देख भाल कर रही है। यह पर्याटकों और संदर्शकों से भरा रहता है। यह महल शहर बेंगलूर के बीच क़िले के अंदर है, जो कलासिपालेम बस स्टांड ए क़रीब है। इस महल में रखे गये चित्र में फ़ारसे भाशा में लिखे कविता में इसका वर्णन किया गया है। जिस में इस महल को "रष्क-ए-जन्नत" कहा गया। कब्बन पार्क और संग्रहालय · विधान सौध · गांधी भवन · टीपू सुल्तान का सुमेर महल · बासवांगुडी मंदिर · इस्कॉन का हरे कृष्ण मंदिर · लाल बाग · बेंगलोर पैलेस · साईं बाबा का आश्रम · नृत्य ग्राम · बानेरघाट राष्ट्रीय उद्यान
पेंडल्धारि, सारंगापूर‌ मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
पास्कल का सिद्धान्त या पास्कल का नियम द्रवस्थैतिकी में दाब से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसे फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने प्रतिपादित किया था। यह सिद्धान्त इस प्रकार है - जहाँ ρ {\displaystyle \rho }, द्रव का घनत्व हत तथा g गुरुत्वजनित त्वरण है। अतः h गहराई पर स्थित किसी भी बिन्दु पर दाब का मान निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त किया जा सकता है: जहाँ P0 द्रव की सतह पर दाब का मान है। यदि द्रव 'खुली हवा' में है तो P0 = [[वाणुमण्डलीय दाब)
कारतीगई दीपम एक हिन्दू पर्व हैं जो मुख्यतः दक्षिण भारत में तमिल और तेलगू समुदाय के लोगो द्वारा मनाया जाता हैं।
अंटार्कटिक तख़्ता एक भौगोलिक प्लेट है जिसपर अन्टार्कटिका का महाद्वीप और उसके इर्द-गिर्द के महासागर का क्षेत्र स्थित है। इसकी सीमा नाज़का प्लेट, दक्षिण अमेरिकी प्लेट, अफ़्रीकी प्लेट, हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट, स्कोशिया प्लेट और प्रशांत प्लेट से मिलती है।
बेढ़ब बनारसी पिछली सदी के एक प्रसिद्ध हिन्दी लेखक थे, जो अपनी मजाकिया लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध थे। वो अपने कल्पित नाम बेढ़ब बनारसी से विनोदी और व्यंग्यपूर्ण हिन्दी कविताएँ लिखते थे। उन्होंने गद्य और कविता की दर्ज़नभर पुस्तकें प्रकाशित किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में बेढब की बैठक, काव्य कमल, बनारसी इक्का, गांधी का भूत और तनातन, अभिनीता
चित्रे भञ्ज्याङ नेपाल के पश्चिमांचल विकास क्षेत्र के गण्डकी अंचल के स्यांजा जिल्ला में स्थित एक अत्याधिक उर्वर एवं घना वस्ती समेटा हुआ गाँउ विकास समिति हैं। साँचा:स्यांगजा जिला के गाविसएं
डीपीटी संयोजित टीकों की एक श्रेणी को संदर्भित करता है जो मनुष्यों को होने वाले तीन संक्रामक रोगों से बचाव के लिए दिए जाते हैं: डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस. टीके के घटकों में शामिल है डिप्थीरिया और टेटनस जीव विषाभ और काली खांसी उत्पन्न करने वाले जीवों की मरी हुई पूर्ण कोशिकाएं. DTaP एक इसी प्रकार के मिलते-जुलते संयोजित टीके को संदर्भित करता है जिसमें काली खांसी के घटक अकोशिकीय होते हैं। डीटी या टीडी टीका भी उपलब्ध है, जिसमें काली खांसी के घटक का अभाव होता है। नीदरलैंड में, डीटीपी का संक्षिप्त रूप डिप्थीरिया, टेटनस और पोलियोमायालाइटिस के संयोजित टीके को संदर्भित करता है। वहां काली खांसी को किनखोएस्ट के नाम से जाना जाता है और DKTP, डिप्थीरिया, काली खांसी/किनखोएस्ट, टेटनस और पोलियो के संयोजित टीके को संदर्भित करता है। बाल्यावस्था प्रतिरक्षण के सामान्य कोर्स पांच खुराक के होते हैं जो 2 महीने से 15 वर्ष की आयु के बीच दी जाती है। वयस्कों के लिए, अलग संयोजन वाले टीकों का उपयोग किया जाता है जो घटकों के सापेक्षिक संकेंद्रण को समायोजित करता है। जबकि यह समझा जा रहा था की संयुक्त राज्य अमेरिका से काली खांसी का पूरी तरह सफाया हो चुका है, हाल के वर्षों में इस रोग की वापसी हुई और इसके परिणामस्वरूप कई मौतें हुईं. ऐसे समय में, कई अभिभावकों ने दुष्प्रभाव के डर से अपने बच्चों को टीका लगवाने से इनकार कर दिया; बहरहाल, टीकाकरण के अधिकांश पार्श्व प्रभाव मामूली ही होते हैं और डीपीटी प्रतिरक्षण के तुरंत बाद होने वाली गंभीर समस्याएं बहुत दुर्लभ हैं। इनमें शामिल है गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया, लंबे समय तक दौरे, चेतना में कमी, स्थायी मस्तिष्क रोग, या मृत्यु. 2009 में पीडीऐट्रिक्स पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि टीका ना लगवाने वाले बच्चों में उस रोग का जोखिम सर्वाधिक होता है जिससे रक्षा के लिए यह टीका तैयार किया गया है। 1980 के दशक में, सम्पूर्ण कोशिका डीटीपी, जो अब विकसित देशों में शायद ही कभी उपलब्ध होता है, पर किए गए ब्रिटिश अनुसंधान के अनुसार इस प्रकार की स्नायुविज्ञान सम्बंधी गंभीर घटनाएं डीपीटी टीके के 140,000 खुराकों में से लगभग 1 में होती है . ऐसा माना जाता है कि पूर्ण-कोशिका डीपीटी इंजेक्शन की अधिकांश प्रतिक्रियाएं काली खांसी घटकों होती है। 1994 में, अमरीकी नैशनल एकैडमी ऑफ़ साइन्सेज़ के चिकित्सा संस्थान ने एक आख्या पेश की जिसमें यह बताया गया था कि यदि पूर्ण सेल पर्टुसिस टीके द्वारा टीकाकरण किए जाने के सात दिनों के अंदर तंत्रिका सम्बंधी पहली क्षति के लक्षण नज़र आते हैं, तब यह सबूत इस संभावना के साथ संगत होती है कि यह अन्यथा जाहिरा तौर पर स्वस्थ बच्चों में स्थायी मस्तिष्क क्षति का कारण हो सकता है। और आगे बताया कि प्रकृति, जगह, वातावरण के आधार पर, डीटीपी टीकाकरण के विभिन्न लाभ और नुकसान हैं। डीटीपी टीके के सामान्य प्रभाव 0.1% से 1.0% बच्चों में पाए जाते हैं और इनमें शामिल हैं निरंतर रोना, तेज़ बुखार और एक असामान्य, उच्च आवाज़ में रोना. 2002 के बाद से पूर्ण-कोशिका काली खांसी टीके अब अमेरिका में उपयोग नहीं किए जाते हैं। DTaP डिप्थीरिया, टिटनेस और काली खांसी, के खिलाफ एक संयोजन टीका है, जिसमें पर्टुसिस घटक अकोशिकीय है। यह पूर्ण-कोशिका निष्क्रिय डीटीपी के विपरीत है . यह अकोशिकीय टीके रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रेरित करने के लिए पर्टुसिस रोगज़नक़ के चुने हुए प्रतिजनों का प्रयोग करता है। क्योंकि यह पूर्ण-कोशिका टीकों की तुलना में कम प्रतिजनों का उपयोग करता है, यह सुरक्षित माना जाता है, लेकिन यह अधिक महंगा भी है। अधिकांश विकसित विश्व DTaP का प्रयोग करने लगी है, लेकिन विकासशील देशों में डीटीपी का उपयोग जारी है। डीटीपी और डीटीएपी दोनों ही प्रतिरक्षा पैदा करने में समान रूप से प्रभावी नज़र आते हैं। यह अकोशिकीय टीका सुरक्षित है क्योंकि इसके पार्श्व प्रभाव काफी कम होते हैं, जिसमें आमतौर पर स्थानीय दर्द और लालीमा और/या बुखार शामिल है। 1991 में DTaP को अमेरिका में शुरू किया गया। Tdap, कभी-कभी dTap के रूप में जाना जाता है, जो किशोरों और वयस्कों में टिटनेस, डिप्थीरिया, और काली खांसी के एक संगृहित टीके का संक्षिप्त रूप है, जिसे 2005 के वसंत में संयुक्त राज्य अमेरिका लाइसेंस प्राप्त हुआ। ये टीके बाल्यावस्था DTaP टीकों से अपने संकेतों में अलग होते हैं। जैसा की छोटे "d" और "p" द्वारा इंगित किया जाता है डिप्थीरिया और काली खांसी जीव विषाभ को "वयस्कों" के लिए बनाये जाते समय कम किया गया ताकि प्रतिकूल प्रभाव को रोका जा सके, जबकि "ap" का "a" यह बताता है कि काली खांसी जीव विषाभ अकोशिकीय है। दो Tdap टीके सानोफी पाश्चर द्वारा उत्पादित टीके, अमेरिकी अडासेल में उपलब्ध है, जिसे 11 से 64 वर्ष की आयु वाले वयस्कों पर उपयोग का लाइसेंस प्राप्त है। ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन द्वारा निर्मित बूसट्रिक्स, 10 से 64 वर्ष की आयु वाले किशोरों पर उपयोग के लिए लाइसेंस प्राप्त है। अमेरिका की टीकाकरण प्रक्रियाओं पर सलाहकार समिति और कनाडा की टीकाकरण पर राष्ट्रीय सलाहकार समिति दोनों ने यह सिफारिश की कि किशोरों और वयस्कों को Td बूस्टर के स्थान पर Tdap दिया जाए . Tdap को टिटनेस घाव प्रबंधन के लिए प्रोफिलैक्सिस के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। Td की खुराकों अथवा Td और Tdap की खुराकों के बीच पांच वर्ष, देखभाल के मौजूदा मानक है; टेटनस जीव विषाभ के साथ लगातार सम्पर्क से स्थानीय प्रतिक्रिया हो सकती है। जो लोग शिशुओं के संपर्क में रहते हैं उन्हें Tdap लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तब भी जब Td या TT लिए हुए पांच वर्षों से कम का समय बीता हो क्योंकि इससे शिशुओं के काली खांसी के सम्पर्क में आने का जोखिम कम होता है। किशोरों पर Tdap के उपयोग पर ACIP का बयान इस जोखिम को कम करने के लिए Td और Tdap के बीच 5 साल को प्रोत्साहित करता है; हालांकि, दोनों का सुझाव है कि कुछ परिस्थितियों में, जैसे काली खांसी के प्रकोप में सुरक्षा के लिए कम अंतराल उपयुक्त हो सकता है। NACI ने सलाह दी कि 5 साल से कम के अंतराल को एक कैच-अप कार्यक्रम और अन्य उदाहरण थे कार्यक्रम संबंधी चिंताएं 5 वर्ष के अंतराल को कठिन बनाता है। थिमेरोसाल कभी-कभी कुछ टीकों के साथ प्रयोग किया जाने वाला एक परिरक्षक है। आठ उत्पादित डीपीटी टीकों में से कभी केवल तीन में थिमेरोसाल निहित होता है। वर्तमान में, बाजार में आठ डीपीटी टीकों में से सात, थिमेरोसाल का प्रयोग नहीं करते और जो उत्पाद इसका प्रयोग करते हैं उनमें ट्रेस लेवल 0.3 माइक्रोग्राम प्रति डोज़ से भी कम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निष्कर्ष निकाला है कि टीकों में थिमेरोसाल से किसी प्रकार की विषाक्तता का सबूत नहीं मिलता है। अगस्त 2006 में, इंस्टीच्युट फॉर सेफ मेडिकेशन प्रैक्टिसेज़ नाम के एक गैर-लाभ रोगी सुरक्षा संगठन ने दो अलग-अलग योगों के बीच के भ्रम से होने वाली चिकित्सा त्रुटियों को वर्णित किया। डैपटासेल और अडासेल के बीच कई मिश्रण होते हैं। डैपटासेल शिशुओं और 6 सप्ताह से लेकर 6 वर्ष के बच्चों में सक्रिय प्रतिरक्षण के लिए होता है। अडासेल को 11 से 64 साल की उम्र में लोगों में सक्रिय बूस्टर प्रतिरक्षण के लिए एक खुराक के रूप में इंगित किया जाता है और यह वयस्कों के लिए पहला काली खांसी बूस्टर के रूप में अनुमोदित टीका है। अडासेल और डैपटासेल में घटक प्रतिजन समान होते हैं, लेकिन सापेक्षिक मात्रा शिशु टीकाकरण में अधिक से अधिक होती है। इसलिए, यह आसानी से भ्रमित करते हैं। एक क्लिनिक में, 13 वयस्कों को गलती से डैपटासेल टीके लगा दिए गए। एक और क्लिनिक में, सात वयस्कों को अडासेल के बजाय डैपटासेल दिया गया। किसी भी रोगी को असामान्य टीका प्रतिक्रिया का अनुभव करते नहीं पाया गया इस तथ्य के बावजूद कि बाल चिकित्सा के लिए निर्मित यौगिकों में विषमुक्त पर्टुसिस विषाक्त और डिप्थीरिया जीव विषभ अधिक से अधिक मात्रा में मौजूद होते हैं। यह महसूस किया गया कि ब्रांड नाम, सामान्य पद और टीका संक्षिप्ताक्षरों में समानता ने इस भ्रम की स्थिति में योगदान दिया है। combination: MMR · MMRV M: BAC bact gr+f/gr+a/gr-p/gr-o drug M: VIR virs cutn/syst, epon drugJ
संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरे देशों के ऊपर आर्थिक, सैनिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव अमेरिकी साम्राज्यवाद कहलाता है। यही प्रभाव अमेरिका के विदेशी भूक्षेत्रों में वृद्धि के रूप में भी दिखायी पड़ती है।
भुवनेश्वर स्थित भौतिकी संस्थान भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग का एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
मोल्दावा, आधिकारिक तौर पर मोल्दोवा गणराज्य, पूर्वी यूरोप में स्थित एक लैंडलाक देश है, जिसके पश्चिम में रोमानिया और उत्तर, पूर्व और दक्षिण में यूक्रेन स्थित है। पुराने समय में आज का मोल्दोवा दासिया का हिस्सा हुआ करता था, जिसके बाद यह रोमन साम्राज्य के अधीन आ गया। मध्य युग में आज के मोल्दोवा का अधिकांश हिस्सा मोल्दोवा राज्य का हिस्सा हुआ करता था। 1812 में इस राज्य के पूर्वी हिस्से पर रूसी साम्राज्य ने कब्जा कर लिया और नाम रखा गया बेस्साराबिया. 1856 से लेकर 1878 के बीच दक्षिण के दो प्रांत मोल्दोवा में फिर से मिल गए, जो 1859 में वेलाशिया के साथ मिलकर आधुनिक रोमानिया बनाए थे। 1917 में रूसी साम्राज्य के विघटन के बाद पहले स्वायत्त और बाद में स्वतंत्र मोल्दोवियाई लोकतांत्रिक गणराज्य का गठन किया गया, जो 1918 में वृहदतर रोमानिया के साथ मिल गया। 1940 में बेस्साराबिया पर सोवियत संघ ने कब्जा कर यूक्रेनियाई एसएसआर और नवनिर्मित मोल्दोवियाई एसएसआर में विभक्त कर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सत्ता परिवर्तन के दौर से लेकर 27 अगस्त 1991 को स्वतंत्र होने तक, यह देश सोवियत संघ का हिस्सा बना रहा। मार्च 1992 में मोल्दोवा संयुक्त राष्ट्र में शामिल किया गया। सितंबर 1990 में मोल्दोवा के द्नाइस्त्र नदी के पूर्वी तट से लगी संकरे क्षेत्र ट्रांसट्रिया में अलग सरकार का गठन किया गया। 1992 में एक छोटे युद्ध के बाद यह स्वतंत्र राष्ट्र बन गया, हालांकि किसी भी संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इसे मान्यता नहीं दी है। देश में संसदीय गणतंत्र है, जहां राष्ट्रपति राष्ट्र का मुखिया है और प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया हैं। मोल्दोवा संयुक्त राष्ट्र के अलावा, यूरोपीय समिति, डब्ल्यूटीओ, ओएससीई, गुआम, सीआईएस, बीएसईसी और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है। मोल्दोवा वर्तमान में यूरोपीय संघ का सदस्य बनना चाहता है और यूरोपीय पड़ोसी नीति के तहत पहले तीन साल कार्य योजना पर अमल कर लिया है। देश की राजधानी चिसीनाउ है।
चौंरीखर्क नेपाल के पूर्वांचल विकास क्षेत्र के सगरमाथा अंचल, सोलुखुम्बु जिला में स्थित गाँव विकास समिति है।
सीरिलिक लिपि पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्र की कई भाषओं को लिखने में प्रयुक्त होती है। इसे अज़्बुका भी कहते हैं, जो इस लिपि की वर्णमाला के शुरुआती दो अक्षरों के पुराने नामों को मिलाकर बनाया गया है, जैसे कि यूनानी वर्णमाला के दो शुरुआती अक्षरों - अल्फ़ा और बीटा - को मिलाकर अल्फ़ाबेट यानि वर्णमाला बनता है। इस लिपि के वर्णों से जिन भाषओं को लिखा जाता है उसमें रूसी भाषा प्रमुख है। सोवियत संघ के पूर्व सदस्य ताजिकिस्तान में फ़ारसी भाषा का स्थानीय रूप भी इसी लिपि में लिखा जाता है। इसके अलावा बुल्गारियन, सर्बियन, कज़ाख़, मैसीडोनियाई, उज़बेक, यूक्रेनी तथा मंगोलियाई भाषा भी मुख्यतः इसी लिपि में लिखी जाती है। इस वर्णमाला को यूरोपीय संघ में आधिकारिक मान्यता प्राप्त है जहाँ केवल रोमन तथा यूनानी लिपि ही अन्य आधिकारिक लिपियाँ हैं। हिन्दी से मिलती-जुलती तजकिस्तान और उज़बेकिस्तान के कुछ भागों में बोली जाने वाली परया भाषा भी सिरिलिक लिपि में लिखी जाती है। सन 1863 ई. में दो भाई किरील्ल और मेफोदी ने पुरानी स्लाव वर्णमाला का निर्माण किया। यह पुरानी ग्रीक वर्णमाला के आधार पर बनाई गई थी। पुरानी स्लाव वर्णमाला में 43 वर्ण थे। सिरिलिक में ग्रीक वर्णमाला के सब वर्ण सम्मिलित हैं। इसके सिवा इसमें यहूदी, ब्राह्मी की वर्णमाला के भी कुछ वर्ण हैं। आधुनिक रूसी वर्णमाला में 33 वर्ण हैं – 10 स्वर और 23 व्यंजन। आधुनिक रूसी वर्णमाला का मानकीकरण करने के लिए उसमें बहुत सुधार किए गए थे। ये सुधार वर्णों की संख्या कम करने के लिए किए गए थे। अंतिम लिपि सुधार सन 1918 ई. में किया गया था। सिरिलिक अक्षरों के दो रूप होते हैं - सीधे और आइटैलिक। यह दोनों और सम्बंधित ध्वनियाँ नीचे दी गई हैं। ध्यान रहे कि कुछ भाषाओँ में इन के आलावा कुछ अन्य अक्षर भी सिरिलिक में जोड़े जाते हैं।
8 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 159वाँ दिन है। साल में अभी और 206 दिन बाकी हैं।
पेंच या बोल्ट एक प्रकार की यांत्रिक युक्ति है जो दो भागों को परस्पर कसने के काम आती है। यह किसी धातु के बेलनाकार दण्ड पर वर्तुलाकार चूड़ियाँ काटकर बनायी जाती है। आमतौर पर पेंचों का एक शीर्ष होता है, यह पेंच के एक सिरे पर विशेष रूप से गठित अनुभाग है। पेंच को शीर्ष से ही घुमाया या कसा जाता है। पेचों को कसने के लिए पेंचकस एवं पाना जैसे औजारों का प्रयोग किया जाता है। अधिकतर पेंच दक्षिणावर्त घूर्णन के द्वारा कसे जाते हैं। इन पेंचों को दक्षिणावर्त चूडियों वाला कहा जाता है। वामावर्त चूडियों वाले पेंचों को विशिष्ट स्थिति में प्रयोग किया जाता है। साइकिल के बाएं पाद में वामावर्त चूड़ी वाले पेंच का प्रयोग किया जाता है। पेंच निर्माण के तीन चरण हैं- शीर्ष निर्माण, चूड़ी बेल्लन एवं विलेपन | साधारणतया, पेंचों का निर्माण तार से किया जाता है। तारों की आपूर्ति बड़ी कुंडली या बड़े पेंचों के लिए गोल बिलेट के रूप में की जाती है। तार या छड को बनाये जाने वाले पेंच के प्रकार के हिसाब से काटा जाता है। अतप्त कर्मण प्रक्रिया द्वारा पेंच के शीर्ष का निर्माण किया जाता है। यन्त्र में प्रयोग किये गए ठप्पे के आकारानुसार पेंच के शीर्ष के लक्षण तय होते हैं। अधिकतर पेंचों में चूडियों का निर्माण चूड़ी बेल्लन द्वारा किया जाता है। इसके बाद, पेंचों को संक्षारण से बचने हेतु उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण एवं कृष्णकरण जैसी प्रकिया द्वारा विलेपन किया जाता है।
अयोध्या के राजा।
बच एक बारहमासी पौधा है जिसकी शाखायें बहुत विस्तृत होती है। पत्तियाँ रेखाकार, लंबी मोटी व मध्य शिरा युक्त होती है और 0.7 से 1.7 से.मी. चौड़ी होती है। इसके प्रकंद सुगंधित होते है। फूल 3 से 8 से.मी. लंबे आकार में बेलनाकार हरे-भूरे रंग के और चारों से वाली से ढ़के हुये होते है। फल छोटे और बेर की तरह गोल आकार के होते है। यह पौधा 45 से 60 से.मी. उँचाई का होता है। इसका स्वाद कड़वा होता है। बच की उत्पत्ति भारत एवं मध्यएशिया है परन्तु अब यह दुनिया भर में पाया जाता है। भारत में कश्मीर, मणिपुर, कर्नाटक और उत्तर–पूर्व हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में यह दलदली जगहों में पाया जाता है। बच एक लोकप्रिय औषधीय पौधा है जिसका उपयोग भारत में अनेक आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। इसकी पत्तियों से नींबू की तरह सुगंध आती है और जड़ों से मधुर मीठी गंध आती है। इसके बढ़ते औषधीय उपयोग के कारण यह जंगलो से तेजी से निकाला जा रहा है। वर्तमान में यह लुप्त प्रजातियों की सूची में है।
पु ललथनहवला भारतीय राज्य मिजोरम के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। इनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 2008 के मिजोरम के विधानसभा चुनावों में जबरदस्त जीत दर्ज की। पु ललथनहवला हमार्त्वान्फुंगा सैलो और लालसव्न्लिनी के पुत्र है। इन्होने 1958 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1961 में इंटरमीडएट तथा 1964 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये कट्टर ईसाई मतावलंबी माने जाते है। ललथनहवला ने अपना कैरियर रिकॉर्डर के तौर पर शुरू किया। उसके बाद उन्होंने असम को-ऑपरेटिव अपेक्स बैंक में असिस्टेंट के रूप में काम किया। 1967 तक वे राजनितिक पार्टी मिज़ो नेशनल फ्रंट के सचिव रहे। 1967 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गए। 1973 में वे मिजोरम के पार्टी अध्यक्ष चुने गए। उनके नेतृत्व में 1984 में कांग्रेस पार्टी ने मिजोरम में बहुमत हासिल किया और वे राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए। वह 1989 से लेकर 1998 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 2008 में वह राज्य के पुनः मुख्यमंत्री चुने गए। वे वर्तमान में मुख्यमंत्री के साथ मिजोरम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।
बीजापुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के कर्नाटक राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है।
गांधीधाम एक्स्प्रेस 6506 भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन बंगलौर सिटी जंक्शन रेलवे स्टेशन से 09:50PM बजे छूटती है और गांधीधाम जंक्शन रेलवे स्टेशन पर 02:00PM बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है 40 घंटे 10 मिनट।
यहाँ भारत के सभी संघीय अधिनियमों की सूची दी गयी है जो अंग्रेजों के समय में या स्वतंत्रता के बाद पारित हुए हैं। Credit Information Companies Act || 2005 || 30
संयुक्त राज्य के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रपति देश और सरकार दोनों का प्रमुख है। देश की कार्यकारिणी शाखा और संघीय सरकार के मुखिया के रूप में राष्ट्रपति पद प्रभाव और मान्यता द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च राजनीतिक पद है। राष्ट्रपति संयुक्त राज्य अमेरिका के सशस्त्र बलों का प्रमुख भी है। राष्ट्रपति परोक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा चार साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है । 1951 में संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में बाईसवें संशोधन के बाद से कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति निर्वाचित नहीं किया जा सकता है और कोई भी जिसने दो साल से ज़्यादा राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला है जब कोई और निर्वाचित हुआ था, एक से अधिक बार चुने नहीं जा सकते हैं।अगर कोई अवलंबी राष्ट्रपति कार्यालय के बीच में पद त्याग देता है या उन्हें हटा दिया जाता है या उनकी मृत्यु हो जा जाती है, इस परिस्थिति में उपराष्ट्रपति उनका पद संभाल लेता है। किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति बनने के लिये 35 या उससे अधिक वर्ष का होना जरूरी है, न्यूनतम 14 साल वो संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे हों और वो "प्राकृतिक रूप से जन्मे" अमेरिका के नागरिक हो। आज तक 43 व्यक्ति राष्ट्रपति पद पर आसीन हुये हैं और 44 कार्यकाल हुये हैं, चूंकि ग्रोवर क्लीवलाण्ड गैरलगातार दो बार राष्ट्रपति बने थे। राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित व्यक्तियों में से चार लोगो की कार्यालय अवधि में मृत्यु हो गयी थी, चार की हत्या कर दी गयी और एक ने इस्तीफ़ा दे दिया । जार्ज वाशिंगटन 1789 में निर्वाचन मंडल के सर्वसम्मत वोट के बाद सबसे पहले राष्ट्रपति बने थे। विलियम हेनरी हैरिसन 1841 में केवल 32 दिन इस पद पर रहे थे, जो किसी भी राष्ट्रपति का सबसे छोटा कार्यकाल है। फ्रेंकलिन रोज़वेल्ट बारह से अधिक वर्षो तक इस पद पर रहे जो सबसे बड़ा कार्यकाल है, पर जल्द ही उनकी अपने चौथे कार्यकाल में मृत्यु हो गयी; वो अकेले राष्ट्रपति है जो इस पद पर दो बार से ज़्यादा चुने गये हैं। जाह्न केनेडी अकेले राष्ट्रपति रहे हैं जिनका धर्म रोमन कैथोलिक था और निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा, अफ्रीकी मूल के पहले राष्ट्रपति थे, अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं। इस सूची में अमेरिका की मौजूदा सरकार के राष्ट्रपति के नाम है जो 1789 में अस्तित्व में आयी थी, हालांकि इससे पहले भी संयुक्त राज्य में सरकार रही है। इसके अलावा गृहयुद्ध के दौरान एक और राष्ट्रपति नामक पद था जो अपने अस्तित्व के दौरान केवल एक व्यक्ति के पास रहा। निर्दलीय फेडरलिस्ट डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन डेमोक्रैटिक व्हिग रिपब्लिकन
बेलगाम विमानक्षेत्र भारत के बेलगाम शहर में स्थित हवाई अड्डा है। इसका ICAO कोड है: VABM, और IATA कोड है: IXG । यह एक नागरिक हवाई अड्डा है। यहां कस्टम्स विभाग नहीं है।यहां की उड़ान पट्टी पेव्ड है,इसकी लंबाई 4700 फी. हैयहां अवतरण प्रणाली यांत्रिक हाँ है, अहमदाबाद →सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा · अमृतसर →राजा सांसी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र* · बेंगलुरु → देवनहल्ली अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र · कालीकट→ कालीकट अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र * · चेन्नई → चेन्नई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा · कोयंबतूर→ कोयंबतूर विमानक्षेत्र * · गुवाहाटी → लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोइ · गया→गया विमानक्षेत्र * · गोआ →डैबोलिम विमानक्षेत्र * · हैदराबाद →राजीव गाँधी · इंदौर →देवी अहिल्याबाई होल्कर* · जयपुर →सांगानेर हवाई अड्डा)* · कोचीन अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, नेदुंबस्सरी · कोलकाता→नेताजी सेभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा दमदम · लखनऊ→अमौसी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र* · मंगलौर→मंगलौर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र * · मुंबई→छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, सहर · नागपुर → डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र * · नई दिल्ली→ इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पालम · पटना→लोकनायक जयप्रकाश विमानक्षेत्र* · पुणे→पुणे विमानक्षेत्र * · तिरुवनंतपुरम →त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र · तिरुचिरापल्ली →तिरुचिरापल्ली विमानक्षेत्र* · वाराणसी →वाराणसी विमानक्षेत्र * कुडप्पा · दोनकोंड · श्री सत्य साईं, पुट्टपर्थी · राजामुंद्री · तिरुपति · विजयवाड़ा · · वारंगल अलोंग · डापोरिजो · पासीघाट · तेज़ु · ज़िरो डिब्रुगढ़ · जोरहाट · लीलाबाड़ी · सिल्चर · तेजपुर मुजफ्फरपुर · पुर्णिया · रक्सौल बिलासपुर · जगदलपुर · रायपुर भावनगर · भुज · कांदला · जामनगरपोरबंदर · राजकोट · सूरत · वडोदरा करनाल फ्लाइंग क्लब गग्गल · भुंतर · शिमला जम्मू · लेह कुशोक बकुला रिम्पोची · श्रीनगर जमशेदपुर · बिरसा मुंडा जाक्कुर · बेल्गाम · बेल्लारी · हुबली · मंदकली भोपाल · ग्वालियर · जबलपुरपुर · खजुराहो · खंडवा विमानक्षेत्र औरंगाबाद · कोल्हापुर · जूहू इम्फाल शिलांग लेंगपुई दीमापुर बीजू पटनायक साहनिवाल · पटियाला एविएशन क्लब जैसलमेर · जोधपुर · महाराणा प्रताप, उदयपुर मदुरई · तुतिकुड़ी अगरतला जॉलीग्रांट बागडोगरा अगाति · चंडीगढ़ · दमन · दीव · सफदरजंग, नई दिल्ली · वीर सावरकर अर्कोणम · अंबाला · बागडोगरा · भुज रुद्र माता · कार निकोबार · चाबुआ · चंडीगढ़ · दीमापुर · डिंडीगल · गुवाहाटी · हलवाड़ा · हाशीमारा · हिंडन · कुंभिर्ग्राम · पालम · सफ़दरजंग · तंजौर · यलहंका बेगमपेट · एच ए एल बंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय · बीकानेर · बमरौली · गोरखपुर
पोखरी मल्ली, धारी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
एमोबार्बिटल जिसे पहले एमाइलोबार्बिटोन के नाम से जाना जाता था, बार्बिट्यूरेट से व्युतपन्न औषधि है। इसमें शामक-स्वापक और दर्दनिवारक गुण होते हैं। यह एक गंधहीन और हल्के कड़वे स्वाद का सफेद क्रिस्टलीय पाउडर है। यह पहली बार 1923 में जर्मनी में संश्लेषित किया गया था। अगर एमोबार्बिटल का सेवन एक लंबी अवधि के लिए किया जाए तो इस पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक निर्भरता विकसित हो सकती है।
ककुआ आगरा प्रखंड, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
लौह अयस्क को अधिक कार्बन वाले ईँधन बनता है उसे कच्चा लोहा कहते हैं। इसमें प्रायः चूने के पत्थर को फ्लक्स के रूप में प्रयोग करते हैं। ईंधन के रूप में चारकोल और एंथ्रासाइट भी प्रयोग किये जा सकते हैं। कच्चे लोहे में कार्बन की मात्रा बहुत अधिक होती है । इसके कारण कच्चा लोहा बहुत भंगुर होता है। इसे वेल्ड भी नहीं किया जा सकता। अतः इसका सीधे तौर पर बहुत कम उपयोग होता है। वात्या भट्ठी से कच्चा लोहा ही निकलता है। वस्तुतः 'कच्चा लोहा' लौह, कार्बन, सिलिकन, मैंगनीज, फॉस्फोरस और गंधक की मिश्रधातु है। यह एक माध्यमिक उत्पाद है जिसकी और प्रसंस्करण करके अन्य उत्पाद बनाये जाते हैं। अन्य चीजें बनाने के लिए यह एक 'कच्चा माल' है इसी से इसका 'पिग आइरन' नाम पड़ा है।
आबू अल-हस्सन बानि-सादर इरान का राष्ट्रपति था।
दिक्चालन किसी वाहन की एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति की योजना, अध्ययन एवं उस पर नियंत्रण को कहते हैं। इसका अंग्रेजी शब्द navigate अपने लैटिन मूल navis अर्थात नौका से निकला है। इसी प्रकार इसका हिंदी में मूल शब्द है नौवहन या नौसंचालन जिसका अर्थ भी वही है। सभी दिक्चालन तकनीकों में दिक्चालक की स्थिति को किन्हीं पूर्व ज्ञात सन्दर्भों की अपेक्षा से निकाली जाती है।
पंडित बालचंद्र सिद्धान्तशास्त्री भारत के एक भाषाशास्त्री एवं विद्वान थे जिन्होने जैन धर्म के प्राचीन एवं नवीन विद्वानों के बीच 'सेतु' का काम किया।
परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जिसे नियंत्रित परमाणु अभिक्रिया से उत्पन्न किया जाता है। वाणिज्यिक संयंत्र वर्तमान में बिजली उत्पन्न करने के लिए परमाणु विखंडन अभिक्रिया का उपयोग करते हैं। नाभिकीय रिएक्टर से प्राप्त उष्मा पानी को गर्म करके भाप बनाने के काम आती है, जिसे फिर बिजली उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 2009 में, दुनिया की बिजली का 15% परमाणु ऊर्जा से प्राप्त हुआ। इसके अलावा, परमाणु प्रणोदन का उपयोग करने वाले 150 से अधिक नौसेना पोतों का निर्माण किया गया है। यथा 2005, परमाणु ऊर्जा ने विश्व की ऊर्जा का 6.3% और विश्व की कुल बिजली का 15% प्रदान किया और जिसमें फ्रांस, अमेरिका और जापान का परमाणु जनित बिजली में, एक साथ 56.5% का योगदान रहा। 2007 में, IAEA ने खबर दी कि विश्व में कुल 439 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर काम कर रहे हैं, जो 31 देशों में संचालित हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे अधिक परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करता है, जिसके तहत वह विद्युत् की अपनी खपत का 19% परमाणु ऊर्जा से प्राप्त करता है, जबकि फ्रांस परमाणु रिएक्टरों से अपनी खपत की विद्युत ऊर्जा के सबसे उच्च प्रतिशत का उत्पादन करता है - यथा 2006 80%. यूरोपीय संघ में समग्र रूप, परमाणु ऊर्जा बिजली का 30% प्रदान करती है। यूरोपीय संघ के देशों के बीच परमाणु ऊर्जा नीति भिन्न है और कुछ देशों, जैसे ऑस्ट्रिया, एस्टोनिया और आयरलैंड, में कोई सक्रिय परमाणु ऊर्जा केंद्र नहीं है। इसकी तुलना में, फ्रांस में इनके ढेरों संयंत्र हैं, जिसमें से 16 बहु-इकाई केंद्र, वर्तमान में उपयोग में हैं। अमेरिका में, जबकि कोयला और गैस विद्युत उद्योग के 2013 तक $85 बीलियन मूल्य के होने का अनुमान है, परमाणु ऊर्जा जनरेटर के $18 बीलियन मूल्य के होने का पूर्वानुमान है। कई सैन्य और कुछ नागरिक जहाज परमाणु समुद्री प्रणोदन का उपयोग करते हैं, परमाणु प्रणोदन का एक रूप. कुछ अंतरिक्ष विमानों को पूर्ण विकसित परमाणु रिएक्टर का उपयोग करते हुए प्रक्षेपित किया गया: सोवियत RORSAT श्रृंखला और अमेरिकी SNAP-10A. अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान, सुरक्षा सुधार को आगे बढ़ा रहा है, जैसे निष्क्रिय रूप से सुरक्षित संयंत्र, नाभिकीय संलयन का उपयोग और प्रक्रिया ताप का अतिरिक्त उपयोग जैसे हाइड्रोजन उत्पादन, समुद्री जल को नमकविहीन करना और डिस्ट्रिक्ट हीटिंग प्रणाली में इस्तेमाल करना। नाभिकीय संलयन अभिक्रिया अपेक्षाकृत सुरक्षित होती है और विखंडन की अपेक्षा कम रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करती है। ये अभिक्रियाएं संभावित रूप से व्यवहार्य दिखाई देती हैं, हालांकि तकनीकी तौर पर काफी मुश्किल हैं और इन्हें अभी भी ऐसे पैमाने पर निर्मित किया जाना है जहां एक कार्यात्मक बिजली संयंत्र में इनका इस्तेमाल किया जा सके। संलयन ऊर्जा 1950 के बाद से, गहन सैद्धांतिक और प्रायोगिक जांच से गुज़र रही है। विखंडन और संलयन, दोनों अंतरिक्ष प्रणोदन अनुप्रयोगों के लिए संभावनापूर्ण दिखते हैं, जो न्यून अभिक्रिया राशि के साथ उच्च अभियान वेग सृजित करते हैं। ऐसा, परमाणु अभिक्रिया के बहुत अधिक ऊर्जा घनत्व के कारण है: परिमाण के कुछ 7 क्रम रॉकेट की वर्तमान पीढ़ी को ऊर्जा प्रदान करने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं से अधिक ऊर्जावान. रेडियोधर्मी क्षय को अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है, ज्यादातर अंतरिक्ष अभियानों और प्रयोगों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए। परमाणु भौतिकी के पिता के रूप में, अर्नेस्ट रदरफोर्ड को 1919 में परमाणु विखंडन के लिए श्रेय दिया जाता है। इंग्लैंड में उनके दल ने नाइट्रोजन पर रेडियोधर्मी पदार्थ से प्राकृतिक रूप से निकलने वाले अल्फा कण से बमबारी की और अल्फा कण से भी अधिक ऊर्जा युक्त एक प्रोटॉन को उत्सर्जित होते देखा. 1932 में उनके दो छात्र जॉन कौक्रोफ्ट और अर्नेस्ट वाल्टन ने, जो रदरफोर्ड के दिशा-निर्देश में काम कर रहे थे, पूरी तरह कृत्रिम तरीके से परमाणु नाभिक को विखंडित करने की कोशिश की, उन्होंने लिथियम पर प्रोटॉनों की बमबारी करने के लिए एक कण त्वरक का उपयोग किया, जिससे दो हीलियम नाभिक की उत्पत्ति हुई। जेम्स चैडविक द्वारा 1932 में न्यूट्रॉन की खोज के बाद, परमाणु विखंडन को सर्वप्रथम एनरिको फर्मी ने प्रयोगात्मक रूप से 1934 में रोम में हासिल किया, जब उनके दल ने यूरेनियम पर न्यूट्रॉन से बमबारी की। 1938 में, जर्मन रसायनशास्त्री ओट्टो हान और फ्रिट्ज स्ट्रासमन और साथ में ऑस्ट्रियाई भौतिकविद लिसे मेट्नर और मेट्नर के भतीजे ओट्टो रॉबर्ट फ़्रिश ने न्यूट्रॉन से बमबारी किए गए यूरेनियम उत्पादों पर प्रयोग किए। उन्होंने निर्धारित किया कि अपेक्षाकृत छोटा न्यूट्रॉन, महाकाय यूरेनियम परमाणुओं के नाभिक को लगभग दो बराबर टुकड़ों में विभाजित करता है, जो एक आश्चर्यजनक परिणाम था। लियो शिलार्ड सहित जो एक अगुआ थे, अनेकों वैज्ञानिकों ने यह पाया कि अगर विखंडन अभिक्रियाएं अतिरिक्त न्यूट्रॉन छोड़ती हैं तो एक स्व-चालित परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया फलित हो सकती है। इस बात ने कई देशों में वैज्ञानिकों को परमाणु विखंडन अनुसंधान के समर्थन के लिए अपनी सरकारों को याचिका देने के लिए प्रेरित किया। इस खोज ने अमेरिका में, जहां फर्मी और शीलार्ड, दोनों ने प्रवास किया था, मानव निर्मित प्रथम रिएक्टर को प्रेरित किया, जो शिकागो पाइल-1 कहलाया और जिसने 2 दिसम्बर 1942 को क्रिटिकलिटी हासिल की। यह कार्य मैनहट्टन प्रोजेक्ट का हिस्सा बन गया, जिसने हैनफोर्ड साईट पर विशाल रिएक्टर बनाए, ताकि प्रथम परमाणु हथियारों में प्रयोग के लिए प्लूटोनियम पैदा किया जा सके, जिन्हें हिरोशिमा और नागासाकी के शहरों पर इस्तेमाल किया गया। यूरेनियम संवर्धन का एक समानांतर प्रयास भी जारी रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यह डर कि रिएक्टर अनुसंधान, परमाणु हथियारों और प्रौद्योगिकी के तीव्र प्रसार को प्रोत्साहित करेगा और इस डर के साथ संयुक्त कई वैज्ञानिकों की यह सोच कि यह विकास की एक लंबी यात्रा होगी, ऐसी परिस्थिति उत्पन्नं हुई जिसमें सरकार ने रिएक्टर अनुसंधान को कड़े सरकारी नियंत्रण और वर्गीकरण के तहत रखने का प्रयास किया। इसके अलावा, अधिकांश रिएक्टर अनुसंधान, विशुद्ध रूप से सैन्य प्रयोजनों पर केंद्रित थे। एक तत्काल हथियार और विकास की दौड़ शुरू हो गई जब अमेरिकी सेना ने जानकारी साझा करने और परमाणु सामग्री को नियंत्रित करने के अपने ही वैज्ञानिक समुदाय की सलाह का पालन करने से इनकार कर दिया। 2006 तक, एक चक्र पूरा करते हुए बातें, वैश्विक परमाणु ऊर्जा भागीदारी के साथ वहीं पहुंची हैं . 20 दिसम्बर 1951 को पहली बार एक परमाणु रिएक्टर द्वारा बिजली उत्पन्न की गई, आर्को, आइडहो के नज़दीक EBR-I प्रयोगात्मक स्टेशन में, जिसने शुरुआत में 100 kW का उत्पादन किया . 1952 में, राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के लिए पाले आयोग की एक रिपोर्ट ने परमाणु ऊर्जा का "अपेक्षाकृत निराशावादी" मूल्यांकन किया और "सौर ऊर्जा के सम्पूर्ण क्षेत्र में आक्रामक अनुसंधान की मांग की." राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर द्वारा दिसम्बर 1953 को दिए गए भाषण "शांति के लिए परमाणु" ने परमाणु के उपयोगी दोहन पर बल दिया और परमाणु ऊर्जा के अंतरराष्ट्रीय प्रयोग के लिए अमेरिका को मजबूत सरकारी समर्थन के मार्ग पर आगे बढ़ाया. 27 जून 1954 को USSR के ओबनिंस्क न्यूक्लियर पावर प्लांट, विद्युत् ग्रिड के लिए बिजली उत्पादित करने वाला दुनिया का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र बना और इसने करीब 5 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया। बाद में 1954 में, अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग के उस वक्त के अध्यक्ष, लुईस स्ट्रास ने भविष्य में बिजली के बारे में कहा कि यह "इतनी सस्ती होगी कि मीटर से नापने की आवश्यकता नहीं होगी". स्ट्रास, हाइड्रोजन संलयन का जिक्र कर रहे थे - जिसे गुप्त रूप से उस वक्त शेरवुड परियोजना के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा था - लेकिन स्ट्रास के बयान को परमाणु विखंडन से मिलने वाली अत्यंत सस्ती ऊर्जा के एक वादे के रूप में समझा गया। U.S. AEC ने कुछ महीने पहले अमेरिकी कांग्रेस में, परमाणु विखंडन के बारे में कहीं अधिक रूढ़िवादी गवाही जारी की, यह दर्शाते हुए कि "लागत को नीचे लाया जा सकता है।.. परंपरागत स्रोतों से मिलने वाली बिजली की लागत के बराबर ही.. " महत्वपूर्ण निराशा बाद में तब पनपी जब नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों ने "अत्यंत सस्ती" ऊर्जा प्रदान नहीं की। 1955 में, संयुक्त राष्ट्र संघ के "प्रथम जिनेवा सम्मेलन", उस वक्त वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा, ने प्रौद्योगिकी को और खंगालने के लिए मुलाकात की। 1957 में EURATOM को यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ शुरू किया गया। उसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का भी गठन किया गया। सेलाफील्ड, इंग्लैंड में स्थित विश्व का पहला वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा केंद्र, काल्डर हॉल, को 1956 में 50 मेगावाट की आरंभिक क्षमता के साथ खोला गया . परिचालन शुरू करने वाला अमेरिका का पहला वाणिज्यिक परमाणु जनरेटर था शिपिंगपोर्ट रिएक्टर . परमाणु ऊर्जा को विकसित करने वाले पहले संगठनों में से एक था अमेरिकी नौसेना, जिसने इसका उपयोग पनडुब्बी और विमान वाहकों को चलाने के लिए किया। परमाणु सुरक्षा में इसका रिकार्ड दाग रहित है, शायद एडमिरल हैमन जी. रिकोवर की कड़ी मांगों की वजह से, जो परमाणु समुद्री प्रणोदन और साथ ही साथ शिपिंगपोर्ट रिएक्टर के प्रणेता थे . अमेरिकी नौसेना ने किसी भी अन्य संस्था की तुलना में, जिसमें सोवियत नौसेना भी शामिल है, सार्वजनिक रूप से ज्ञात, बिना किसी प्रमुख घटना के अधिक परमाणु रिएक्टरों को संचालित किया है। पहली परमाणु संचालित पनडुब्बी, USS नौटीलस को दिसम्बर 1954 में समुद्र में छोड़ा गया। दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी, USS स्कोर्पियन और USS थ्रेशर, समुद्र में खो गए। ये दोनों जहाज, प्रणाली में ऐसी खराबी के कारण खो गए जो रिएक्टर संयंत्र से संबंधित नहीं था। साइटों की निगरानी की जाती है और जहाज पर रिएक्टरों से कोई ज्ञात रिसाव नहीं हुआ है। अमेरिकी सेना के पास भी एक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम है, जो 1954 में शुरु हुआ। Ft. बेल्वोइर, Va. में स्थित SM-1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र, अप्रैल 1957 में, वाणिज्यिक ग्रिड को विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति करने वाला US का पहला ऊर्जा रिएक्टर था, शिपिंगपोर्ट से पहले . एनरिको फर्मी और लियो शीलार्ड ने 1955 में परमाणु रिएक्टर के लिए अमेरिकी पेटेंट 27,08,656 साझा किया, उस काम के लिए देर से प्रदान किया गया जो उन्होंने मैनहट्टन परियोजना के दौरान किया था। संस्थापित परमाणु क्षमता शुरू में अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ी, 1960 में 1 गीगावाट से भी कम से लेकर 1970 के दशक के उत्तरार्ध में 100 GW और 1980 के दशक के उत्तरार्ध में 300 GW. 1980 के दशक के उत्तरार्ध के बाद से, दुनिया भर में क्षमता अपेक्षाकृत धीरे-धीरे बढ़ी है, जो 2005 में 366 GW तक पहुंची. 1970 और 1990 के बीच, 50 GW से अधिक की क्षमता निर्माणाधीन थी - 2005 में करीब 25 GW की नई क्षमता की योजना बनाई गई। जनवरी 1970 के बाद से आदेश दिए गए कुल परमाणु संयंत्रों में से दो तिहाई से अधिक को अंततः रद्द कर दिया गया। 1975 से 1980 के बीच अमेरिका में कुल 63 परमाणु यूनिट को रद्द कर दिया गया। 1970 और 1980 के दशक में बढ़ती आर्थिक लागत के दौरान और जीवाश्म ईंधन की कीमतों में गिरावट ने उस वक्त के निर्माणाधीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को अनाकर्षक बना दिया। 1980 के दशक में और 1990 के दशक में, सपाट भार विकास और विद्युत् उदारीकरण ने भी विशाल नई बेसलोड क्षमता के जुड़ाव को अरुचिकर बना दिया। 1973 के तेल संकट का देशों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, जैसे फ्रांस और जापान, जो बिजली उत्पादन के लिए तेल पर अत्यधिक निर्भर थे ने परमाणु ऊर्जा में निवेश की योजना बनाई। आज, परमाणु ऊर्जा इन देशों में क्रमशः करीब 80% और 30% की विद्युत् आपूर्ति करती है। परमाणु ऊर्जा के खिलाफ आंदोलन 20वीं सदी के आखिरी तीसरे भाग में उभरा, जो संभावित परमाणु दुर्घटना के डर के साथ ही साथ दुर्घटनाओं का इतिहास, विकिरण की आशंका के साथ ही साथ सार्वजनिक विकिरण के इतिहास, परमाणु अप्रसार और परमाणु कचरे के उत्पादन, परिवहन और संग्रहण की किसी अंतिम योजना की कमी पर आधारित था। नागरिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर कथित खतरा, थ्री माइल आइलैंड पर 1979 की दुर्घटना और 1986 की चेरनोबिल आपदा ने कई देशों में नए संयंत्रों के निर्माण को रोकने में भूमिका अदा की, हालांकि सार्वजनिक नीति संगठन ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन का सुझाव है कि अमेरिका में नई परमाणु इकाइयों का आदेश नहीं दिया गया है, जिसकी वजह है बिजली की हलकी मांग और निर्माण में देरी और विनियामक मुद्दों के कारण परमाणु संयंत्रों की बढ़ती लागत. थ्री माइल आइलैंड दुर्घटना के विपरीत, अधिक गंभीर चेरनोबिल दुर्घटना ने वेस्टर्न रिएक्टर को प्रभावित करने वाले नियमों को नहीं बढ़ाया क्योंकि चेरनोबिल रिएक्टर समस्याग्रस्त RBMK डिज़ाइन वाले थे जिसे सिर्फ सोवियत संघ में इस्तेमाल किया जाता था, उदाहरण के लिए "मज़बूत" रोकथाम बिल्डिंग की कमी. इनमें से कई रिएक्टर आज भी प्रयोग में हैं। हालांकि, एक नकली दुर्घटना की संभावना को कम करने के लिए, रिएक्टरों और नियंत्रण प्रणाली, दोनों में परिवर्तन किए गए। परमाणु सुविधाओं में ऑपरेटरों पर सुरक्षा जागरूकता और पेशेवर विकास को बढ़ावा देने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाया गया: WANO; वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ न्यूक्लिअर ऑपरेटर्स. आयरलैंड और पोलैंड में विपक्ष ने परमाणु कार्यक्रमों को रोका, जबकि आस्ट्रिया, स्वीडन और इटली ने जनमत-संग्रह में परमाणु ऊर्जा का विरोध करने या समाप्त करने के लिए मतदान किया। जुलाई 2009 में, इतालवी संसद ने एक कानून पारित किया जिसने पूर्व के एक जनमत संग्रह के परिणाम को रद्द कर दिया और इतालवी परमाणु कार्यक्रम को तुरंत शुरू करने की अनुमति दी। यथा 2007, वाट्स बार 1, 7 फ़रवरी 1996 को ऑन-लाइन आया, वह आखिरी अमेरिकी वाणिज्यिक परमाणु रियेक्टर था जो ऑन-लाइन गया। इसे अक्सर, परमाणु ऊर्जा को समाप्त करने के लिए एक सफल वैश्विक अभियान के साक्ष्य के रूप में उद्धृत किया जाता है। हालांकि, अमेरिका और पूरे यूरोप में, अनुसंधान और परमाणु ईंधन चक्र में निवेश जारी है और परमाणु उद्योग के कुछ विशेषज्ञों ने बिजली की कमी, जीवाश्म ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी, ग्लोबल वार्मिंग और जीवाश्म ईंधन के उपयोग से भारी धातु उत्सर्जन होने का पूर्वानुमान लगाया है, नई प्रौद्योगिकी जैसे निष्क्रिय रूप से सुरक्षित संयंत्र और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की मांग को नवीनीकृत करेगी। विश्व परमाणु संघ के अनुसार, 1980 के दशक के दौरान वैश्विक स्तर पर हर 17 दिनों में एक नया परमाणु रिएक्टर औसत रूप से शुरू हुआ और 2015 तक यह दर प्रत्येक 5 दिनों में एक तक बढ़ सकता है। कई देश परमाणु ऊर्जा विकसित करने में सक्रिय हैं, जिसमें चीन, भारत, जापान और पाकिस्तान शामिल है। सभी सक्रिय रूप से तेज़ और तापीय प्रौद्योगिकी का विकास कर रहे हैं, दक्षिण कोरिया और अमेरिका, केवल तापीय प्रौद्योगिकी का विकास कर रहे हैं और दक्षिण अफ्रीका और चीन पेबल बेड मॉड्यूलर रिएक्टर के संस्करणों का विकास कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के कई सदस्य, सक्रिय रूप से परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि कुछ अन्य सदस्य राज्यों में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर प्रतिबंध जारी है। जापान में एक सक्रिय परमाणु उत्पादन कार्यक्रम है जिसके तहत 2005 में नई इकाइयों को चालू किया गया। अमेरिका में, 2010 परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के अंतर्गत अमेरिकी ऊर्जा विभाग के अनुरोध का तीन भागीदारों ने 2004 में जवाब दिया और उन्हें मिलान निधि प्रदान की गई - 2005 के ऊर्जा नीति अधिनियम ने छः नए रिएक्टरों के लिए ऋण गारंटी अधिकृत की और ऊर्जा विभाग को बिजली और हाइड्रोजन, दोनों का उत्पादन करने के लिए चतुर्थ पीढ़ी अति उच्च तापमान रिएक्टर अवधारणा पर आधारित एक रिएक्टर बनाने के लिए अधिकृत किया। यथा 21वीं सदी के पूर्वार्ध, चीन और भारत, दोनों के लिए तेजी से उभरती उनकी अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए परमाणु ऊर्जा विशेष रूचि का है - दोनों ही फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का विकास कर रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम की ऊर्जा नीति में, यह माना गया है कि भविष्य की ऊर्जा आपूर्ति में कमी की संभावना है, जिसकी भरपाई या तो नए परमाणु संयंत्रों के निर्माण से या मौजूदा संयंत्रों को उनके निर्धारित जीवन से अधिक समय तक बनाए रखने के द्वारा की जा सकती है। परमाणु बिजली संयंत्रों के उत्पादन में कुछ संभावित रुकावटें हैं क्योंकि विश्व भर में कुछ ही कंपनियों के पास सिंगल-पीस रिएक्टर दबाव वाहिकाओं को गढ़ने की क्षमता है, जो अधिकांश रिएक्टर डिज़ाइन में आवश्यक है। दुनिया भर में सुविधा कम्पनियां इन जहाजों के लिए किसी वास्तविक जरूरत के लिए अग्रिम आदेश प्रस्तुत कर रही हैं। अन्य निर्माता विभिन्न विकल्पों का परीक्षण कर रहे हैं, जिसमें शामिल है घटक को स्वयं बनाना, या वैकल्पिक विधि का उपयोग करके समान चीज़ बनाने के तरीके को खोजना. अन्य समाधान में शामिल है ऐसे डिज़ाइन प्रयोग करना जिसमें सिंगल-पीस फोर्ज्ड प्रेशर वेसल की ज़रूरत नहीं है, जैसे कनाडा का अडवांस्ड CANDU रिएक्टर या सोडियम कूल्ड फास्ट रिएक्टर. चीन की 100 से ज्यादा संयंत्र बनाने की योजना है, जबकि अमेरिका में इसके आधे रिएक्टरों के लाइसेंस को लगभग 60 वर्षों के लिए पहले ही विस्तारित कर दिया गया है और 30 नए रिएक्टर बनाने की योजना विचाराधीन है। इसके अलावा, US NRC और अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने हलके पानी के रिएक्टर की स्थिरता में अनुसंधान शुरू किया है जिससे रिएक्टर लाइसेंस को 60 साल से अधिक के विस्तार की अनुमति मिलने की आशा है, 20 साल की वृद्धि के साथ, बशर्ते कि सुरक्षा को बनाए रखा जाए, क्योंकि रिएक्टरों को वापस करने के द्वारा गैर-CO2-उत्सर्जन उत्पादन क्षमता "अमेरिकी ऊर्जा सुरक्षा को चुनौती दे सकती है, जिससे संभावित रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है और बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा हो सकता है". 2008 में, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का पूर्वानुमान है कि 2030 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता दुगुनी हो सकती है, हालांकि बिजली उत्पादन के परमाणु हिस्से को बढ़ाने के लिए यह पर्याप्त नहीं होगा। जिस प्रकार कई परम्परागत तापीय ऊर्जा केंद्र, जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाली ताप ऊर्जा के दोहन से बिजली उत्पन्न करते हैं, वैसे ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र, आम तौर पर परमाणु विखंडन के माध्यम से एक परमाणु के नाभिक से निकली ऊर्जा को परिवर्तित करते हैं। जब एक अपेक्षाकृत बड़ा विखंडनीय परमाणु नाभिक एक न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है तो उस परमाणु का विखंडन अक्सर फलित होता है। विखंडन, परमाणु को गतिज ऊर्जा के साथ दो या दो से अधिक छोटे नाभिक में विभाजित करता है और गामा विकिरण और मुक्त न्यूट्रॉन को भी छोड़ता है। इन न्यूट्रॉनों के एक हिस्से को अन्य विखंडनीय परमाणु द्वारा बाद में अवशोषित किया जा सकता है तथा और अधिक विखंडन जन्म ले सकते हैं, जो और अधिक न्यूट्रॉन को छोड़ेंगे और इसी प्रकार आगे होता रहेगा. इस परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए न्यूट्रॉन विष और न्यूट्रॉन मंदक का प्रयोग किया जा सकता है, जो न्यूट्रॉन के उस भाग को परिवर्तित कर देता है जो विखंडन को आगे बढ़ाता है। असुरक्षित स्थितियों का पता चलने पर, विखंडन अभिक्रिया को बंद करने के लिए, परमाणु रिएक्टरों में आमतौर पर स्वचालित और हस्तचालित प्रणाली होती है। एक शीतलन प्रणाली, रिएक्टर के केंद्र से ताप को हटाती है और उसे संयंत्र के अन्य क्षेत्र में भेजती है, जहां तापीय ऊर्जा का दोहन बिजली उत्पादन के लिए या अन्य उपयोगी कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। आम तौर पर गर्म शीतलक को बॉयलर के लिए एक ताप स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा और बॉयलर की दाबावयुक्त भाप, एक या अधिक भाप टरबाइन द्वारा संचालित विद्युत जनरेटर को ऊर्जा देगा। रिएक्टर के कई अलग-अलग डिज़ाइन हैं, जो विभिन्न ईंधन और शीतलक का प्रयोग करते हैं और इनकी नियंत्रण विधि विभिन्न होती है। इन डिज़ाइनों में से कुछ को किसी किसी विशिष्ट जरूरत को पूरा करने के लिए परिवर्तित किया गया है। परमाणु पनडुब्बी और विशाल नौसेना जहाजों के लिए प्रयुक्त रिएक्टर, उदाहरण के लिए, ईंधन के रूप में अत्यधिक संवर्धित यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। ईंधन का यह विकल्प रिएक्टर के ऊर्जा घनत्व को बढ़ाता है और परमाणु ईंधन लोड के प्रयोग किए जाने की अवधि को लंबा करता है, लेकिन अन्य परमाणु ईंधनों की तुलना में यह अधिक महंगा है और इससे परमाणु प्रसार का अधिक खतरा है। परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए ढेरों नए डिज़ाइन सक्रिय अनुसंधान के अधीन हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से चतुर्थ पीढ़ी रिएक्टर कहा जाता है और भविष्य में व्यावहारिक ऊर्जा उत्पादन के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें से कई नए डिज़ाइन, विखंडन रिएक्टरों को विशेष रूप से स्वच्छ, सुरक्षित और/या एक परमाणु हथियारों के प्रसार के खतरे को कम करने का प्रयास करते हैं। निष्क्रिय रूप से सुरक्षित संयंत्र बनाए जाने के लिए उपलब्ध हैं और अन्य डिज़ाइन जिनके भूल-रक्षित होने का विश्वास है उन पर काम आगे बढ़ाया जा रहा है। संलयन रिएक्टर, जो भविष्य में व्यवहार्य हो सकते हैं, परमाणु विखंडन के साथ जुड़े कई जोखिमों को कम या समाप्त कर देंगे। एक परमाणु रिएक्टर, परमाणु ऊर्जा के लिए जीवन चक्र का ही हिस्सा है। यह प्रक्रिया खनन के साथ शुरू होती है . यूरेनियम खानें भूमिगत, खुले-गड्ढे की, या स्वस्थानी लीच खानें होती हैं। किसी भी हालत में, यूरेनियम अयस्क को निकाला जाता है, आमतौर पर एक स्थिर और ठोस रूप में परिवर्तित किया जाता है, जैसे यल्लोकेक और फिर उसे किसी प्रसंस्करण सुविधा में भेजा जाता है। यहां, यल्लोकेक को यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड में परिवर्तित किया जाता है, जिसे फिर विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते संवर्धित किया जाता है। इस बिंदु पर, संवर्धित यूरेनियम, जिसमें प्राकृतिक 0.7% U-235 से अधिक है, उसका प्रयोग उचित संरचना और ज्यामिति की छड़ें बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उस विशेष रिएक्टर के लिए जिसके लिए ईंधन नियत है। ईंधन छड़ें रिएक्टर के अंदर करीब तीन परिचालन चक्र पूरा करती हैं, सामान्यतः जब तक कि उनका करीब 3% यूरेनियम विखंडित न हो जाए, तब उन्हें एक खर्चित ईंधन पूल में भेजा जाता है जहां विखंडन द्वारा उत्पन्न अल्प-जीवित आइसोटोप नष्ट हो जाते हैं। एक शीतलक तालाब में लगभग 5 साल के बाद, खर्चित ईंधन रेडिओधर्मी और तापीय आधार पर संभालने के लिए पर्याप्त ठंडा हो चुका होता है और उसे शुष्क भंडारण पीपों में रखा जा सकता है या पुनः संवर्धित किया जा सकता है। यूरेनियम, भू-पर्पटी में पाया जाने वाला काफी आम तत्व है। यूरेनियम लगभग उतना ही आम है जितना भू-पर्पटी में टिन या जर्मेनियम का पाया जाना और रजत की तुलना में यह 35 गुना आम है। यूरेनियम अधिकांश चट्टानों, धूल और महासागरों का एक घटक है। यह तथ्य कि यूरेनियम इतना बिखरा हुआ है, एक समस्या है, क्योंकि यूरेनियम खनन आर्थिक रूप से केवल वहीं व्यवहार्य है जहां बड़ी मात्रा में इसका संकेन्द्रण हो। फिर भी, वर्तमान में नापे गए दुनिया के यूरेनियम संसाधन, जो आर्थिक रूप से 130 USD/kg की कीमत पर वसूले जा सकते हैं, खपत की वर्तमान दर के अनुसार "कम से कम एक सदी" तक चलने के लिए पर्याप्त हैं। अधिकांश खनिजों की सामान्य तुलना में, यह निश्चित संसाधनों के एक उच्च स्तर को दर्शाता है। अन्य धातु खनिज के साथ अनुरूपता के आधार पर, कीमत में वर्तमान स्तर से दुगुनी वृद्धि करने से मापन किए गए संसाधनों में, समय के साथ दस गुना वृद्धि होने की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि, परमाणु ऊर्जा की लागत, मुख्यतः विद्युत् केंद्र के निर्माण में निहित है। इसलिए, उत्पादित बिजली की कुल लागत में ईंधन का योगदान अपेक्षाकृत थोड़ा है, अतः एक अत्यधिक ईंधन मूल्य वृद्धि का अंतिम कीमत पर अपेक्षाकृत कम असर होगा। उदाहरण के लिए, आम तौर पर यूरेनियम की बाजार कीमत का एक दोहरीकरण, हल्के जल के रिएक्टर के लिए ईंधन की कीमत में 26% की वृद्धि करेगा और बिजली की लागत में करीब 7%, जबकि प्राकृतिक गैस की कीमत में दुगुनी वृद्धि, आम तौर पर बिजली की कीमत में उस स्रोत से 70% की बढ़ोतरी करेगी। पर्याप्त उच्च कीमतों पर, स्रोतों से अंततः निकासी, जैसे ग्रेनाइट और समुद्री जल आर्थिक रूप से संभव हो जाते हैं। वर्तमान के हल्के जल रिएक्टर, परमाणु ईंधन का अपेक्षाकृत अकुशल प्रयोग करते हैं और केवल बहुत दुर्लभ यूरेनियम-235 आइसोटोप का विखंडन करते हैं। परमाणु पुनर्संसाधन इस कचरे को पुनः उपयोग के लायक बना सकता है और अधिक कुशल रिएक्टर डिज़ाइन, उपलब्ध संसाधनों के बेहतर प्रयोग की अनुमति देते हैं। वर्तमान हल्के जल के रिएक्टरों के विपरीत, जो यूरेनियम-235 का प्रयोग करते हैं, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर यूरेनियम- 238 का उपयोग करते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि इन संयंत्रों में 5 बीलियन वर्षों तक प्रयोग के लायक यूरेनियम-238 मौजूद हैं। ब्रीडर प्रौद्योगिकी का कई रिएक्टरों में इस्तेमाल किया गया है, लेकिन ईंधन को सुरक्षित तरीके से पुनर्संसाधित करने की उच्च लागत को, आर्थिक रूप से उचित बनने से पहले 200 USD/kg से अधिक की यूरेनियम कीमतों की आवश्यकता है। यथा दिसम्बर 2005, ऊर्जा उत्पादन करने वाला एकमात्र ब्रीडर रिएक्टर बेलोयार्स्क, रूस में BN-600 है। BN-600 का बिजली उत्पादन 600 मेगावाट है - रूस ने बेलोयार्स्क परमाणु ऊर्जा संयंत्र में एक और इकाई, BN-800, के निर्माण की योजना बनाई है। इसके अलावा, जापान के मोंजू रिएक्टर को पुनः आरंभ करने की योजना है और चीन और भारत, दोनों ब्रीडर रिएक्टर बनाने का इरादा रखते हैं। एक अन्य विकल्प होगा यूरेनियम-233 का प्रयोग जिसे थोरिअम ईंधन चक्र में थोरियम से विखंडन ईंधन के रूप में पैदा किया जाता है। थोरियम, भू-पर्पटी में यूरेनियम से 3.5 गुना अधिक आम है और इसका भौगोलिक लक्षण भिन्न है। यह कुल व्यावहारिक विखंडन-योग्य संसाधन आधार को 450% तक बढ़ा देगा। प्लूटोनियम के रूप में U-238 के उत्पादन के विपरीत, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर आवश्यक नहीं हैं - इसे और अधिक पारंपरिक संयंत्रों में संतोषजनक रूप में संपादित किया जा सकता है। भारत ने इस तकनीक में झांकने की कोशिश की है, क्योंकि इसके पास प्रचुर मात्रा में थोरियम भंडार हैं लेकिन यूरेनियम थोड़ा ही है। संलयन ऊर्जा के पैरोकार ईंधन के रूप में सामान्यतः ड्यूटेरिअम या ट्रिटियम के उपयोग का प्रस्ताव करते हैं, दोनों ही हाइड्रोजन के आइसोटोप हैं और कई मौजूदा डिज़ाइनों में बोरान और लिथियम का भी. एक संलयन ऊर्जा उत्पादन को मौजूदा वैश्विक उत्पादन के बराबर मान कर और यह मानकर कि इसमें भविष्य में वृद्धि नहीं होगी, तो ज्ञात वर्तमान लिथियम भंडार 3000 साल तक चलेंगे, समुद्री जल का लिथियम 60 मिलियन वर्ष चलेगा और एक अधिक जटिल संलयन प्रक्रिया जो समुद्री जल से केवल ड्यूटेरिअम का उपयोग करती है उसके पास अगले 150 बीलियन वर्षों तक के लिए ईंधन होगा। यद्यपि इस प्रक्रिया को अभी भी सिद्ध किया जाना है, कई विशेषज्ञ और नागरिक संलयन को भविष्य की एक आशाजनक ऊर्जा के रूप में देखते हैं जिसकी वजह है उसके द्वारा उत्पादित अपशिष्ट की अल्पकालिक रेडियोधर्मिता, इसका निम्न कार्बन उत्सर्जन और इसका भावी बिजली उत्पादन. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से सबसे महत्वपूर्ण अपशिष्ट धारा है खर्चित परमाणु ईंधन. यह मुख्यतः अपरिवर्तित यूरेनियम से बना है और साथ ही ट्रांससुरानिक एक्टिनाइड्स की महत्वपूर्ण मात्रा . इसके अलावा, इसका करीब 3%, परमाणु अभिक्रिया से निकला विखंडन उत्पाद है। एक्टिनाइड्स लम्बी अवधि की रेडियोधर्मिता के बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि विखंडन उत्पाद, अल्पावधि की रेडियोधर्मिता के बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। परमाणु रिएक्टर के अन्दर एक परमाणु ईंधन छड़ के 5 प्रतिशत अभिक्रिया कर लेने के बाद, वह छड़ ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाने के लायक नहीं रहती . आज, वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि कैसे इन छड़ों को दुबारा प्रयोग करने लायक बनाया जाए ताकि कचरे को कम किया जा सके और बचे हुए एक्टिनाइड्स को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सके . एक ठेठ 1000-मेगावाट परमाणु रिएक्टर, प्रति वर्ष करीब 20 क्यूबिक मीटर खर्चित परमाणु ईंधन को उत्पन्न करता है . अमेरिका में सभी वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र द्वारा आज की तारीख तक उत्पन्न खर्चित ईंधन, एक फुटबॉल मैदान को एक मीटर तक भर सकता है। खर्चित परमाणु ईंधन शुरू में बहुत उच्च रेडियोधर्मी होता और इसलिए इसे अत्यंत सावधानी और पूर्वविचारित तरीके से संभालना चाहिए। हालांकि, हजारों वर्षों की अवधि के दौरान यह काफी कम रेडियोधर्मी हो जाता है। 40 वर्षों के बाद, विकिरण प्रवाह 99.9% है, जो संचालन से खर्चित ईंधन को हटाए जाने के क्षण की तुलना में कम है, हालांकि खर्चित ईंधन अभी भी खतरनाक रूप से रेडियोधर्मी है। रेडियोधर्मी क्षय के 10,000 वर्षों के बाद, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों के अनुसार, खर्चित परमाणु ईंधन से सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होगा। जब पहली बार निकाला जाता है तो खर्चित ईंधन छड़ों को पानी के परिरक्षित बेसिनों में संग्रहीत किया जाता है, जो आमतौर पर साइट पर होते हैं। यह पानी दोनों प्रदान करता है, अब भी नष्ट होते विखंडन उत्पादों के लिए शीतलन और जारी रहने वाली रेडियोधर्मिता से परिरक्षण. एक अवधि के बाद, अब शीतलक, कम रेडियोधर्मी ईंधन को आम तौर पर एक शुष्क भंडारण सुविधा या शुष्क पीपा भंडारण में भेजा जाता है, जहां ईंधन को स्टील और कंक्रीट के कंटेनरों में रखा जाता है। वर्तमान में ज्यादातर अमेरिकी परमाणु कचरे को साइट पर ही जमा किया जाता है जहां यह उत्पन्न होता है, जबकि उपयुक्त स्थायी निपटान के तरीकों पर चर्चा हो रही है। यथा 2007, संयुक्त राज्य अमेरिका, परमाणु रिएक्टरों से निकले 50,000 मीट्रिक टन से अधिक खर्चित परमाणु ईंधन को जमा कर चुका है। अमेरिकी में स्थायी भूमिगत भंडारण को युक्का पर्वत परमाणु अपशिष्ट भण्डार में प्रस्तावित किया गया था, लेकिन उस परियोजना को अब प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया गया है - अमेरिका के उच्च-स्तरीय अपशिष्ट का स्थायी निपटान अभी तक अनसुलझी राजनैतिक समस्या बना हुआ है। उच्च-स्तरीय कचरे की मात्रा को विभिन्न तरीकों से कम किया जा सकता है, विशेष रूप से परमाणु पुनर्संसाधन द्वारा. फिर भी, एक्टिनाइड्स को हटा देने के बावजूद बचा हुआ अपशिष्ट, कम से कम 300 वर्षों तक के लिए काफी रेडियोधर्मी होगा और यदि एक्टिनाइड्स को अंदर ही छोड़ दिया जाता है तो हज़ारों साल तक के लिए। सारे एक्टिनाइड्स को हटा देने के बाद भी और फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों का उपयोग करते हुए रूपांतरण द्वारा दीर्घ-जीवित गैर-एक्टिनाइड्स को नष्ट कर देने के बावजूद, कचरे को एक सौ वर्षों से कुछ सौ वर्षों तक वातावरण से अलग रखना आवश्यक है और इसलिए इसे उचित रूप से एक दीर्घकालिक समस्या के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। उप-जोखिम रिएक्टर या संलयन रिएक्टर भी कचरे को जमा किए जाने की अवधि को कम कर सकते हैं। यह तर्क दिया गया है कि परमाणु कचरे के लिए सबसे अच्छा उपाय है भूमि के ऊपर अस्थायी भंडारण, क्योंकि तकनीक तेज़ी से बदल रही है। कुछ लोगों का मानना है कि मौजूदा अपशिष्ट भविष्य में एक मूल्यवान संसाधन हो सकता है। 60 मिनट में प्रसारित 2007 की एक कहानी के अनुसार, किसी भी अन्य औद्योगिक देश की तुलना में, परमाणु ऊर्जा, फ्रांस को सबसे स्वच्छ हवा देती है और सम्पूर्ण यूरोप में सबसे सस्ती बिजली. फ्रांस अपने परमाणु कचरे को, उसका द्रव्यमान कम करने के लिए और अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए पुनः संवर्धित करता है। हालांकि लेख जारी रहता है, "आज हम कचरे के कंटेनरों को जमा रखते हैं क्योंकि वर्तमान में वैज्ञानिकों को यह नहीं पता है कि विषाक्तता को कैसे कम या समाप्त किया जाए, लेकिन शायद 100 वर्षों बाद वैज्ञानिकों को पता होगा ... परमाणु कचरा, एक अत्यधिक कठिन राजनीतिक समस्या है जिसे आज तक कोई भी देश सुलझा नहीं पाया है। एक अर्थ में, यह परमाणु उद्योग की कमज़ोर कड़ी है।.. मंदिल का कहना है कि, "अगर फ्रांस यह मुद्दा हल करने में असमर्थ है, तो मुझे नहीं समझ में आता कि हम अपना परमाणु कार्यक्रम कैसे जारी रख सकते हैं". इसके अलावा, खुद पुनर्संसाधन के भी आलोचक हैं, जैसे चिंतित वैज्ञानिकों का संघ. परमाणु उद्योग, दूषित वस्तुओं के रूप में निम्न-स्तरीय रेडियोधर्मी कचरे का भी भारी मात्रा में उत्पादन करता है, जैसे कपड़ा, हस्त-उपकरण, जल शुद्धक रेजिन और वे सामग्रियां जिनसे रिएक्टर खुद बना है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, परमाणु नियामक आयोग ने निम्न-स्तरीय कचरे को सामान्य कचरे के रूप में व्यवहार किए जाने की अनुमति देने की बार-बार कोशिश की है: किसी एक जगह जमा कर, उपभोक्ता वस्तु के रूप में पुनर्नवीनीकरण के द्वारा. अधिकांश निम्न-स्तरीय कचरे, निम्न स्तर की रेडियोधर्मिता छोड़ते हैं और सिर्फ अपने इतिहास की वजह से रेडियोधर्मी कचरा माने जाते हैं। परमाणु ऊर्जा वाले देशों में, कुल औद्योगिक विषाक्त कचरे में रेडियोधर्मी कचरे का योगदान 1% से भी कम है, जिसमें से अधिकांश भाग अनिश्चित काल तक के लिए खतरनाक बना रहता है। कुल मिलाकर, जीवाश्म-ईंधन आधारित विद्युत संयंत्रों की तुलना में परमाणु ऊर्जा द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा काफी कम होती है। कोयला चालित संयंत्रों को विषाक्त और हल्की रेडियोधर्मी राख उत्पन्न करने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है जिसकी वजह है स्वाभाविक रूप से होने वाले धातुओं का संकेन्द्रण और कोयले से निकलने वाली मंद रेडियोधर्मी वस्तु. ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी की एक ताजा रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि कोयला ऊर्जा से वातावरण में, परमाणु ऊर्जा संक्रिया की तुलना में वास्तव में अधिक रेडियोधर्मिता पहुंचती है और कि कोयले के संयंत्र के विकिरण के बराबर जनसंख्या प्रभावी खुराक, परमाणु संयंत्र के आदर्श संचालन से 100 गुना ज्यादा है। बेशक, कोयले की राख, परमाणु कचरे से काफी कम रेडियोधर्मी है, लेकिन राख वातावरण में सीधे जाती है, जबकि परमाणु संयंत्र, विकिरणित रिएक्टर पोत, ईंधन छड़ें और साइट पर किसी भी रेडियोधर्मी अपशिष्ट से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए परिरक्षण का उपयोग करते हैं। पुनर्संसाधन से, खर्चित परमाणु ईंधन से प्लूटोनियम और यूरेनियम के संभावित रूप से 95% को, इसे मिश्रित ऑक्साइड ईंधन में डाल कर पुनः प्राप्त किया जा सकता है। इससे बचे हुए कचरे के भीतर दीर्घकालिक रेडियोधर्मिता में कमी होती है, क्योंकि यह काफी हद तक एक अल्पकालिक विखंडन उत्पाद है और 90% से अधिक एक अपनी मात्रा कम कर लेता है। ऊर्जा रिएक्टरों से नागरिक ईंधन का पुनर्संसाधन, वर्तमान में बड़े पैमाने पर ब्रिटेन, फ्रांस और रूस में किया जाता है और शीघ्र ही चीन में और शायद भारत में भी किया जाएगा और जापान में यह एक बृहत् पैमाने पर किया जा रहा है। पुनर्संसाधन की पूर्ण क्षमता को हासिल नहीं किया गया है क्योंकि इसके लिए 0}ब्रीडर रिएक्टर की आवश्यकता होती है, जो अभी तक वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध नहीं है। . फ्रांस को सबसे सफल पुनर्संसाधन करने वाले के रूप में जाना जाता है, लेकिन वह वर्तमान में प्रयोग किए जाने वाले वार्षिक ईंधन का केवल 28% को पुनर्संसाधित करता है, फ्रांस के अन्दर 7% को और शेष 21% को रूस में. अन्य देशों के विपरीत, अमेरिका ने 1976 से 1981 तक, अमेरिकी अप्रसार नीति के एक हिस्से के रूप में नागरिक पुनर्संसाधन को रोक दिया, क्योंकि पुनर्संसाधित सामग्री जैसे प्लूटोनियम को परमाणु हथियारों में इस्तेमाल किया जा सकता है: हालांकि, अमेरिका में पुनर्संसाधन की अब अनुमति है। फिर भी, अमेरिका में सभी खर्चित परमाणु ईंधन को वर्तमान में अपशिष्ट के रूप में समझा जाता है। फरवरी, 2006 में, एक नई अमेरिकी पहल, वैश्विक परमाणु ऊर्जा भागीदारी की घोषणा की गई। यह एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास होगा जो ईंधन के पुनर्संसाधन को इस तरीके से करेगा कि जिससे परमाणु प्रसार अव्यवहार्य हो जाएगा, जबकि विकासशील देशों को परमाणु ऊर्जा उपलब्ध रहेगी. यूरेनियम संवर्धन, कई टन के रिक्त यूरेनियम को उत्पन्न करता है, जो U-238 से बना होता है जिसमें से, आसानी से विखंडनीय U-235 आइसोटोप को हटा दिया गया होता है। U-238 एक कठोर धातु है जिसके कई वाणिज्यिक उपयोग हैं - उदाहरण के लिए, विमान उत्पादन, विकिरण परिरक्षण और कवच - क्योंकि लीड की तुलना में इसका घनत्व उच्च है। रिक्त यूरेनियम, हथियारों में भी उपयोगी है जैसे DU पेनीट्रेटर का "सेल्फ शार्पेन", जिसकी वजह है कतरनी बैंड के साथ फ्रैक्चर की यूरेनियम की प्रवृत्ति. कुछ ऐसी भी चिंताएं हैं कि U-238, उन समूहों के लिए स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न कर सकता है जो इस सामग्री के संपर्क में जरूरत से ज्यादा रहते हैं, जैसे टैंक के कर्मचारी दल और वे नागरिक जो ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां DU गोला बारूद की एक बड़ी मात्रा का प्रयोग परिरक्षण, बम, मिसाइल, स्फोटक शीर्ष और गोलियों में किया गया हो। जनवरी 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट खोज को जारी किया कि DU युद्ध सामग्री से संदूषण स्थानीय क्षेत्र में प्रभाव स्थल से कुछ दसियों मीटर तक था और स्थानीय वनस्पति और जल का संदूषण 'बेहद कम' था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खा ली गई लगभग 70% DU चौबीस घंटे बाद शरीर से निकल जाएगी और कुछ दिनों के बाद 90%. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का अर्थशास्त्र, मुख्य रूप से विशाल प्रारंभिक निवेश से प्रभावित होता है जो एक संयंत्र का निर्माण करने के लिए आवश्यक है। 2009 में, अमेरिका में एक नए संयंत्र की लागत अनुमानित रूप से $6 से $10 बीलियन के बीच होती है। इसलिए यह आमतौर पर अधिक किफायती होता है कि उन्हें जितना लम्बा हो सके चलाया जाए या या मौजूदा सुविधाओं में ही अतिरिक्त रिएक्टर ब्लॉकों का निर्माण किया जाए. 2008 में, नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण की लागत अन्य प्रकार के ऊर्जा संयंत्रों की लागत की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहे थे।. 2003 MIT के लिए इस उद्योग का अध्ययन करने के लिए गठित एक प्रतिष्ठित पैनल ने निम्नलिखित पाया: MIT अध्ययन ने परमाणु रिएक्टर के जीवन के लिए एक 40 वर्ष की आधार-रेखा का इस्तेमाल किया। कई मौजूदा संयंत्रों को अच्छी तरह से संचालित करने के लिए इस अवधि से आगे बढ़ाया गया है और अध्ययनों से पता चला है कि संयंत्र के जीवन को 60 वर्षों तक बढ़ाने से उसकी समग्र लागत नाटकीय रूप से कम हो जाती है। अन्य ऊर्जा स्रोतों के साथ तुलनात्मक अर्थशास्त्र की ऊपर मुख्य लेख में और परमाणु ऊर्जा बहस में चर्चा की गई है। अक्सर यह दावा किया गया है कि परमाणु केंद्र अपने उत्पादन में लचीले नहीं होते हैं, जिसका अर्थ है कि चरम मांग को पूरा करने के लिए ऊर्जा के अन्य रूपों की आवश्यकता होगी। हालांकि यह कुछ रिएक्टरों के मामले में सच है, यह अब कम से कम कुछ आधुनिक डिज़ाइन वालों पर लागू नहीं होता। परमाणु संयंत्रों को फ्रांस में बड़े पैमाने पर नियमित तौर पर लोड पालन मोड में इस्तेमाल किया जाता है। उबलते जल के रिएक्टरों में सामान्य रूप से लोड पालन क्षमता होती है, जिसे जल के प्रवाह को बदलने के द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के जीवन चक्र विश्लेषण की अधिकांश तुलना, परमाणु ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तुलना में दर्शाती है। परमाणु ऊर्जा बहस उस विवाद के बारे में है जो परमाणु ईंधन से बिजली पैदा करने के असैनिक उद्देश्यों के लिए परमाणु विखंडन रिएक्टरों की तैनाती और उपयोग के इर्द-गिर्द चलता है। परमाणु ऊर्जा से सम्बंधित विवाद 1970 और 1980 के दशक के दौरान चरम पर था, जब यह कुछ देशों में, "इतना भीषण हो गया जो प्रौद्योगिकी इतिहास में अभूतपूर्व था". परमाणु ऊर्जा के समर्थकों का तर्क है कि परमाणु ऊर्जा एक संपोषणीय ऊर्जा स्रोत है जो विदेशी तेल पर निर्भरता को कम करते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करता है और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाता है। समर्थकों का दावा है कि परमाणु ऊर्जा, जीवाश्म ईंधन के प्रमुख व्यवहार्य विकल्प के विपरीत, वास्तव में कोई पारंपरिक वायु प्रदूषण नहीं फैलाती है, जैसे ग्रीन हाउस गैस और कला धुंआ. समर्थकों का यह भी मानना है कि परमाणु ऊर्जा ही अधिकांश पश्चिमी देशों के लिए ऊर्जा में निर्भरता प्राप्त करने का एकमात्र व्यवहार्य रास्ता है। समर्थकों का दावा है कि कचरे के भंडारण का जोखिम छोटा है और जिसे नए रिएक्टरों में नवीनतम प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा आगे कम किया जा सकता है और पश्चिमी विश्व में अन्य प्रकार के प्रमुख ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में, परिचालन सुरक्षा इतिहास उत्कृष्ट रहा है। विरोधियों का मानना है कि परमाणु ऊर्जा लोगों और पर्यावरण के लिए खतरा उत्पन्न करती है।. इन खतरों में शामिल है रेडियोधर्मी परमाणु अपशिष्ट के प्रसंस्करण, परिवहन और भंडारण की समस्या, परमाणु हथियार प्रसार और आतंकवाद और साथ ही साथ यूरेनियम खनन से होने वाले स्वास्थ्य खतरे और पर्यावरण नुकसान. उनका यह भी तर्क है कि रिएक्टर खुद अत्यधिक जटिल मशीनें हैं जहां बहुत सी बातें गलत हो सकती हैं या कर सकती हैं और कई गंभीर परमाणु दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। आलोचक इस बात पर विश्वास नहीं करते हैं कि ऊर्जा के स्रोत के रूप में परमाणु विखंडन के उपयोग के जोखिम को नई प्रौद्योगिकी के विकास के माध्यम समायोजित किया जा सकता है। उनका यह भी तर्क है कि जब परमाणु ईंधन श्रृंखला के सभी ऊर्जा-गहन चरणों पर ध्यान दिया जाता है, यूरेनियम खनन से लेकर परमाणु कार्यमुक्ति तक, परमाणु ऊर्जा, एक निम्न-कार्बन विद्युत् स्रोत नहीं है। सुरक्षा और अर्थशास्त्र के तर्कों का, बहस के दोनों पक्षों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।
मलयनूरु में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
अभिप्रेरणा लक्ष्य-आधारित व्यवहार का उत्प्रेरण या उर्जाकरण है। अभिप्रेरणा या प्रेरणा आंतरिक या बाह्य हो सकती है। इस शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर इंसानों के लिए किया जाता है, लेकिन सैद्धांतिक रूप से, पशुओं के बर्ताव के कारणों की व्याख्या के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस आलेख का संदर्भ मानव अभिप्रेरणा है। विभिन्न सिद्धांतों के अनुसार, बुनियादी ज़रूरतों में शारीरिक दुःख-दर्द को कम करने और सुख को अधिकतम बनाने के मूल में अभिप्रेरणा हो सकती है, या इसमें भोजन और आराम जैसी खास ज़रूरतों को शामिल किया जा सकता है; या एक अभिलषित वस्तु, शौक, लक्ष्य, अस्तित्व की दशा, आदर्श, को शामिल किया जा सकता है, या इनसे भी कमतर कारणों जैसे परोपकारिता, नैतिकता, या म्रत्यु संख्या से बचने को भी इसमें आरोपित किया जा सकता है। आंतरिक प्रेरणा अपने आप में किसी कार्य या गतिविधि में ही अंतर्निहित पुरस्कार - किसी पहेली का आनंद लेने या खेल से लगाव से-आती है।1970 के दशक से प्रेरणा के इस स्वरूप का अध्ययन सामाजिक और शैक्षणिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। शोध में पाया गया है कि यह आमतौर पर उच्च शैक्षणिक उपलब्धि और छात्रों द्वारा उठाये जाने वाले लुत्फ़ के साथ जुड़ा हुआ है। फ्रिट्ज हेइदर के गुणारोपण सिद्धांत, बंडूरा के आत्म-बल पर किए गए कार्यों और रयान और रयान और डेकी के संज्ञानात्मक मूल्यांकन सिद्धांत के जरिए आंतरिक प्रेरणा की व्याख्या की गयी। विद्यार्थी आंतरिक रूप से अभिप्रेरित हो सकते हैं अगर वे: आन्त्रिक अभिप्रेरणा जैसे: भुख, प्यास्, मल्, मुत्र्, कमेछा, क्रोध्, प्रेम्, उदसि आदिबह्ये अभिप्रेरणा जैसे: परीक्षा परिणाम्, पुरुस्कार, दन्ड्, प्रतियोगिता, प्रशन्सा, निन्दा आदि। बाह्य अभिप्रेरणा साधक के बाहर से आती है। रुपया-पैसा सबसे स्पष्ट उदाहरण है, लेकिन दबाव और सजा का खतरा भी आम बाह्य प्रेरणा हैं। खेल में, खिलाडी के प्रदर्शन पर भीड़ तालियां बजाती है, जो उसे और बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित कर सकती है। ट्राफियां भी बाहरी प्रोत्साहन हैं। प्रतियोगिता भी सामान्य बाह्य प्रेरणा है, क्योंकि यह प्रदर्शनकर्त्ता को जीतने और अन्य को हराने के लिए प्रोत्साहित करती है, न कि गतिविधि के आंतरिक पुरस्कार का लुत्फ़ उठाने के लिए। सामाजिक मनोवैज्ञानिक शोध बताता है कि बाह्य पुरस्कार अति औचित्यता और साथ ही आंतरिक प्रेरणा में कमी की ओर ले जा सकता है। बाह्य प्रोत्साहन कभी-कभी अभिप्रेरणा को कमजोर कर सकते हैं। ग्रीन और लेप्पर द्वारा किये गए एक क्लासिक अध्ययन से पता चलता है कि जिन बच्चों को उनकी चित्रकारी के लिए मुक्तहस्त हो कर फेल्ट-टिप कलमों से पुरस्कृत किया गया था, बाद में उनहोंने कलमों के साथ फिर से खेलने या कलमों को चित्रकारी के लिए इस्तेमाल में कम रुचि दिखाई. प्रेरणा के आत्म-संयम को भावनात्मक बौद्धिकता का एक उपसमूह समझनेवालों की तादाद में वृद्धि हो रही है, संतुलित परिभाषा के अनुसार एक व्यक्ति भले ही बहुत अधिक बुद्धिमान हो सकता है, फिर भी कुछ खास कार्यों में इस बौद्धिकता को समर्पित करने में वह अभिप्रेरित नहीं भी हो सकता है। येल स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट के प्रोफेसर विक्टर व्रूम का "प्रत्याशा सिद्धांत" इसका लेखा पेश करता है कि व्यक्ति ही तय करेंगा कि एक विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह अपने आत्मसंयम को कब लागू करे. प्रेरकशक्ति और अभिलाषाओं की व्याख्या एक कमी या ज़रुरत के रूप में की जा सकती है, जो एक लक्ष्य या प्रोत्साहन को प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित करती है . ये विचार व्यक्ति के अंदर पैदा होते हैं और आचरण को प्रोत्साहित करने के लिए किसी बाहरी उत्प्रेरक की ज़रुरत नहीं पड़ सकती है। बुनियादी प्रेरकशक्ति किन्हीं कमियों; मसलन- भूख जो एक व्यक्ति को भोजन की तलाश के लिए प्रेरित करता है, से कौंधती है, जबकि अधिक सूक्ष्म प्रेरकशक्ति प्रशंसा और अनुमोदन प्राप्त करने की इच्छा, जो एक व्यक्ति को इस तरह से आचरण करने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे दूसरे खुश हों. इसके विपरीत, बाह्य पुरस्कार की भूमिका और उद्दीपना को पशुओं में भी देखा जाता है। पशुओं को प्रशिक्षण देने के दौरान जब वे सही ढंग से किसी चाल को सही ढंग से समझकर उस कार्य को संपन्न करते हैं तो उन्हें अच्छी तरह खिला-पिलाकर उनकी आवभगत में इसकी मिसाल देखी जा सकती है। पशुओं को अच्छा खाना खिलाना उनके लगातार बढ़िया प्रदर्शन के लिए उत्प्रेरक का काम करता है; यहां तक कि बाद में जब अच्छा भोजन न भी दिया जाए तब भी उनका प्रदर्शन समान बना रहता है। कोई इनाम, ठोस या अमूर्त, एक क्रिया के बाद इस इरादे से दिया जाता है, ताकि वह व्यवहार दुबारा घटित हो। व्यवहार में सकारात्मक अर्थ जोड़कर ऐसा किया जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि अगर व्यक्ति को इनाम तुरंत मिलता है, तो प्रभाव बहुत अधिक होता है और देरी होते जाने से प्रभाव कम होता जाता है। क्रिया-पुरस्कार के संयोजन के दोहराव से वह क्रिया आदत बन सकती है। प्रेरणा दो स्रोतों से आती है: अपने अदंर से और अन्य लोगों से. इन दोनों स्रोतों को क्रमशः आंतरिक अभिप्रेरणा और बाह्य अभिप्रेरणा कहा जाता है। उचित प्रेरक तकनीक लागू करना उससे कहीं अधिक मुश्किल है जैसा कि वो लगता है। स्टीवन केर्र ने यह पाया कि जब एक इनाम प्रणाली बनायी जाती है, यह आसान हो सकता है कि A को पुरस्कृत किया जाय, जबकि B से आशा लगायी जा रही है और इस प्रक्रिया में हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं जो आपके लक्ष्यों को जोखिम में डाल सकते है। एक संबलितकारक पुरस्कार से अलग है, माहौल में कुछ खास चीजों के योग से इस संबलितकरण या सुदृढीकरण में वांछित व्यवहार की दर में मापी गयी वृद्धि पैदा करने का इरादा होता है। कई तरह के सहज प्रेरणा सिद्धांत होते हैं। सहज प्रेरणा-कटौती सिद्धांत इस अवधारणा से पनपा है कि हमारी कुछ खास जैविक सहज प्रेरणा होती हैं, जैसे कि भूख. अगर इसे संतुष्ट नहीं किया जाता, समय के गुजरने के साथ सहज प्रेरकशक्ति में वृद्धि होती जाती है। प्रेरकशक्ति संतुष्ट हो जाती है तो उसकी ताकत कम हो जाती है। यह सिद्धांत विचारों की प्रतिक्रिया नियंत्रण प्रणाली जैसे ऊष्मास्थैतिक के फ्रायड के सिद्धांतों के विविध विचारों पर आधारित है। प्रेरकशक्ति के कुछ सहज ज्ञान युक्त या लोक वैधता सिद्धांत हैं। उदाहरण के लिए जब भोजन पकाया जा रहा होता है तो भोजन तैयार हो जाने तक भूख के बढ़ने के साथ ताल मिला कर सहज प्रेरकशक्ति प्रतिमान भी उपस्थित होता है और खाना खा लेने के बाद मनोगत भूख में कमी आ जाती है। कई तरह की समस्याएं हैं, तथापि, जो सहज प्रेरणा कटौती की वैधता को खुली बहस के लिए छोड़ देती हैं। पहली समस्या यह है कि यह इसकी व्याख्या नहीं करता कि गौण संबलितकारक सहज प्रेरणा को कैसे कम करते है। उदाहरण के लिए पैसों से जैविक या मनोवैज्ञानिक जरूरत पूरी नहीं होती, लेकिन तनख्वाह दूसरे क्रम की स्थिति के जरिए प्रेरकशक्ति को कम कर देती है। दूसरे, एक सहज प्रेरणा, जैसे कि भूख, को खाना खाने की एक "इच्छा" के रूप में देखा जाता है, जो सहज प्रेरणा को एक होमुनकुलर स्वभाव बनाता है - एक ऐसा लक्षण जिसकी आलोचना 'छोटे आदमी' की बुनियादी समस्या और उसकी इच्छाओं को सहज ही हृदयद्रावी बताकर की जाती है। इसके अलावा यह साफ़ है कि सहज प्रेरणा कटौती सिद्धांत पूरी तरह से आचरण का सिद्धांत नहीं हो सकता, या एक भूखा इंसान खाना पकाना पूरा करने से पहले खाए बगैर भोजन पका नहीं सकता. सभी प्रकार के व्यवहार से निपटने में सहज प्रेरणा सिद्धांत की सक्षमता, सहज प्रेरणा को सतुष्ट नहीं करने से, या "स्वादिष्ट" भोजन के लिए अतिरिक्त प्रेरकशक्ति लगाकर, जो "भोजन" के लिए सहज प्रेरकशक्तियों से मिलकर खाना पकाने और स्वाद के बारे बताती है। लिओन फेस्टिंगर ने सुझाया है, दो संज्ञानों के बीच असामंजस्य से जब कोई व्यक्ति कुछ असुविधा का अनुभव करता है तब ऐसा होता है। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अपनी एक खरीद के लिए खुद को आश्वासित करता है, लेकिन साथ ही वह पुनरावलोकन करते हुए सोचता है कि दूसरा फैसला बेहतर हो सकता है। जब किसी विश्वास और किसी व्यवहार के बीच संघर्ष चल रहा हो, तब संज्ञानात्मक विचार वैषम्य का एक अन्य उदाहरण देखने को मिलता है। एक व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उसका मानना है कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी वह धूम्रपान जारी रखता है। अभिप्रेरणा के व्यापक रूप से चर्चित होने वाले सिद्धांतों में से एक अब्राहम मस्लोव का सिद्धांत है। सिद्धांत का सारांश इस तरह प्रकट किया जा सकता है: जरूरतों की सूची मूलभूत से लेकर सबसे जटिल तक इस प्रकार है: फ्रेडरिक हर्जबर्ग का दोहरा कारक सिद्धांत, उर्फ आंतरिक / बाह्य प्रेरणा के सिद्धांत, का निष्कर्ष है कि कार्यस्थल में कुछ तत्वों से काम में संतुष्टि मिलती है, लेकिन अगर ये अनुपस्थित हो तो असंतोष पैदा होता है। जो कारक लोगों को अपना जीवन हमेशा के लिए बदलने के लिए प्रेरित करते है, लेकिन 'एक व्यक्ति के रूप में मेरा सम्मान हो' की भावना जीवन के किसी भी स्तर पर बहुत ही प्रेरित करनेवाला कारक है। उन्होंने इसमें इस तरह फर्क किया: सेहत संबंधी कारक नाम इसलिए दिया गया क्योंकि जहां सफाई हो, जरूरी नहीं कि आप और अधिक स्वस्थ हो जाएं, लेकिन इसके न होने पर आपकी सेहत में गिरावट हो सकती है। इस सिद्धांत को कभी-कभी "अभिप्रेरक-स्वच्छता सिद्धांत" भी कहा जाता है। सूचना प्रणाली और उपयोगकर्ता की संतुष्टि से संबंधित अध्ययन जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में हर्जबर्ग सिद्धांत का उपयोग पाया जाता है। क्लेटन एल्डरफर ने मस्लोव के जरूरतों के पदानुक्रम का विस्तार कर ERG सिद्धांत को स्थापित किया। शारीरक और सुरक्षा संबंधी जरुरतों, जो कि निचले क्रम की जरूरतें है, को अस्तित्व की श्रेणी में रखा जाता हैं; जबकि प्रेम और आत्मसम्मान संबंधी जरुरतों को संबद्धता की श्रेणी में रखा जाता है। विकास श्रेणी में हमारे आत्म-प्रत्यक्षीकरण और आत्मसम्मान संबंधित जरूरतें निहित हैं। एडवर्ड डेसी और रिचर्ड रयान द्वारा विकसित आत्म-संकल्प के सिद्धांत में मानव व्यवहार की प्रेरकशक्ति के रूप में आंतरिक प्रेरणा के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। मस्लोव और इस आधार पर निर्मित अन्य के पदानुक्रमिक सिद्धांत की तरह SDT वृद्धि और विकास की स्वाभाविक प्रवृत्ति को मान्यता देता है। हालांकि ऐसे दूसरे सिद्धांतों की तरह SDT किसी भी तरह की उपलब्धि के लिए "स्वतः चालक" को शामिल नहीं करता है, लेकिन इसके बजाय माहौल से सक्रिय प्रोत्साहन की मांग करता है। प्राथमिक कारक, जो प्रेरणा और विकास को प्रोत्साहित करते हैं; वे स्वायत्तता, योग्यता की सराहना और संबद्धता हैं। उपलब्धि अभिप्रेरणा के मामले में नवीनतम प्रस्ताव एकीकृत दृष्टि है, जैसा कि हाइंज स्कूलर, जॉर्ज सी थोर्नटन III, एंडरिअस फ्रिंट्रप और रोज मुलर-हनसन द्वारा प्रतिपादित "ओनियन-रिंग मॉडल ऑफ एचीवमेंट मोटिवेशन" में प्रतिपादित किया गया है। इस विचार का आधार यह है कि प्रदर्शन अभिप्रेरणा के कारण व्यक्तित्व का मुख्य घटक प्रदर्शन की ओर रुख कर लेता है। नतीजतन, यह आयामों के एक अनुक्रम को शामिल करता है जो कि काम में सफलता के लिए प्रासंगिक हैं, लेकिन जिन्हें पारंपरिक तौर पर प्रदर्शन अभिप्रेरणा का हिस्सा नहीं माना जाता. विशेष रूप से यह पूर्व में अलग रहे दृष्टिकोणों को वर्चस्व जैसे सामाजिक उद्देश्यों के साथ उपलब्धि की ज़रुरत के लिए एकीकृत करता है। उपलब्धि प्रेरणा सूची इसी सिद्धांत पर आधारित हैं और व्यवसायिक व पेशेवर सफलता के आकलन के लिए तीन कारक प्रासंगिक हैं। लक्ष्य सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि कभी-कभी एक स्पष्ट रूप से परिभाषित अंत तक पहुंचने के लिए लोगों के पास एक प्रेरकशक्ति होती है। अक्सर, यह अंत अपने आपमें एक पुरस्कार होता है। एक लक्ष्य दक्षता इन तीन विशेषताओं से प्रभावित होती हैं: निकटता, कठिनाई और विशिष्टता. एक आदर्श लक्ष्य को एक ऐसी स्थिति बनानी चाहिए, जहां व्यवहार के प्रवर्तन और अंत के बीच का समय समीप हो। यह हमें बताता है कि कुछ बच्चे बीजगणित में माहिर होने के बजाय मोटर साइकिल चलाना सीखने के लिए क्यों अधिक प्रेरित हुआ करते हैं। एक लक्ष्य मध्यम श्रेणी का होना चाहिए, जो पूरा करने में न बहुत कठिन हो न बहुत आसान. दोनों ही मामलों में, चुनौती पसंद करने वालों की तरह अधिकांश लोग बेहतर तरीके से प्रेरित नहीं होते. साथ ही लोग यह महसूस करना चाहते हैं कि इस बात की काफी संभावना है कि वे सफल हो जाएंगे. अपनी कक्षा में लक्ष्य के वर्णन में विशिष्टता की दिलचस्पी है। व्यक्ति विशेष के लिए लक्ष्य निष्पक्ष रूप से परिभाषित और सुस्पष्ट होना चाहिए। अधिकतम संभव ग्रेड पाने के लिए की गयी कोशिश, एक खराब निर्दिष्ट लक्ष्य का एक बढ़िया उदाहरण है। अधिकांश बच्चों को पता ही नहीं होता कि उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उन्हें कितना प्रयास करने की जरूरत है। डगलस वेर्मीरेन ने इस पर व्यापक शोध किया है कि अनेक लोग अपने लक्ष्यों को पाने में क्यों विफल हो जाते हैं। असफलता के लिए सीधे-सीधे प्रेरित कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है। वेर्मीरेन ने कहा है कि जब तक एक व्यक्ति स्पष्ट रूप से अपने प्रेरित कारक या उनके महत्त्वपूर्ण और सार्थक कारणों की पहचान नहीं कर लेता, वह भला क्यों लक्ष्य प्राप्त करना चाहेगा, उनमें कभी भी इसे प्राप्त करने की शक्ति नहीं होगी। व्यवहार परिवर्तन के सामाजिक-संज्ञानात्मक मॉडल में प्रेरणा और इच्छाशक्ति का निर्माण शामिल है। प्रेरणा को एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है जो व्यवहार के इरादों के निर्माण की अगुवाई करता है। इच्छाशक्ति को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है जो इरादे को वास्तविक व्यवहार की ओर ले जाने का काम करती है। दूसरे शब्दों में, प्रेरणा और इच्छाशक्ति क्रमशः लक्ष्य स्थापित करने और लक्ष्य हासिल करने के संदर्भ में देखे जाते हैं। दोनों प्रक्रियाओं में आत्म-नियामक प्रयासों की आवश्यकता है। अनेक आत्म-नियामक रचनाओं को लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वृन्दवादन में काम करने की जरूरत होती है। आत्म-गुण या आत्म-बल को समझना अभिप्रेरक और इच्छाशक्ति रचना का एक उदाहरण है। व्यवहार के इरादों, कार्य योजनाओं के विकास और कार्रवाई की इच्छाशक्ति के विकास के निर्माण को आत्मबल सहज बनाता है। यह इरादे को कार्रवाई में बदलने में मदद कर सकता हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानव व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अचेतन अभिप्रेरणा से ऊर्जाकृत और निर्देशित होता है। मस्लोव के अनुसार, "मनोविश्लेषण ने अक्सर ही दिखाया है कि एक सचेत इच्छा और परम अचेतन लक्ष्य के बीच रिश्ते का आधार प्रत्यक्ष होने की जरूरत नहीं." दूसरे शब्दों में, बतायी गयी अभिप्रेरणा हमेशा कुशल पर्यवेक्षकों द्वारा लगाये गए अनुमान से मेल नहीं खाती. उदाहरण के लिए, यह संभव है कि एक व्यक्ति दुर्घटना-प्रवण हो, क्योंकि उसमें खुद को चोट पहुंचाने की अचेतन इच्छा है और इसलिए नहीं कि वह लापरवाह या सुरक्षा-नियमों से अनजान है। इसी तरह, कुछ ज्यादा वजनी लोग भोजन के बिल्कुल भूखे नहीं होते, लेकिन लड़ने और चुंबन के लिए बेचैन रहते हैं। भोजन करना ध्यान की कमी का महज एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है। कुछ श्रमिक दूसरों की तुलना में उपकरणों की अधिक क्षति करते हैं, क्योंकि उनके अचेतन भावनाओं में प्रबंधन के विरूद्ध आक्रोश है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि कुछ व्यवहार इतने स्वचालित होते हैं कि व्यक्ति के चेतन मन में इसके कारण उपलब्ध नहीं हो पाते. बाध्यकारी सिगरेट धूम्रपान इसका एक उदाहरण है। कभी-कभी आत्मसम्मान को बनाए रखना इतना महत्त्वपूर्ण होता है और किसी गतिविधि के लिए अभिप्रेरणा ऐसी भयावह होती है कि इसे समझा नहीं जा सकता, वास्तव में, जो छद्मवेश में या दबा दी गयी होती है। युक्तिसंगत, या "व्याख्या से परे", ऐसे छद्मवेश या रक्षा प्रणाली है, के नाम से यह जाना जाता है। खुद अपनी गलतियां दूसरे पर आरोपित करना एक अन्य मिसाल है। "मुझे लगता है कि मुझे दोष दिया जाय", दरअसल "यह उसकी गलती है, वह स्वार्थी है" में बदल जाता है। शक्तिशाली लेकिन सामाजिक रूप से अस्वीकार्य प्रेरकशक्ति का दमन दिखावटी व्यवहार में बदल जा सकता है, जो कि दमित प्रवृत्तियों के विपरीत है। उदाहरणस्वरुप, एक कर्मचारी जो अपने बॉस से नफरत करता है, लेकिन वह कुछ ज्यादा ही काम किया करता है ताकि ऐसा लगे कि बॉस के प्रति उसके मन में बड़ा आदरभाव है। अचेतन प्रेरकशक्तियां मानव व्यवहार की व्याख्या में बाधा डालती हैं और वे जिस हद तक मौजूद रहती हैं, प्रशासक के जीवन को उतना ही मुश्किल में डाल देती हैं। दूसरी ओर, अचेतन प्रेरकशक्तियों के अस्तित्व की जानकारी से व्यवहार की समस्याओं का और अधिक चौकस आकलन किया जा सकता है। हालांकि कुछ समकालीन मनोवैज्ञानिक अचेतन कारकों के अस्तित्व से इंकार करते हैं, कई लोगों का मानना है कि ये केवल चिंता और तनाव के समय में सक्रिय होते हैं और सामान्य जीवन की घटनाओं में मानव व्यवहार-कर्त्ता के दृष्टिकोण से - युक्तिसंगत रूप से उद्देश्यपूर्ण होता है। 6,000 से अधिक लोगों पर किये गए अध्ययन की शुरुआत से प्रोफेसर स्टीवन रेइस ने एक सिद्धांत प्रस्तावित किया, जिसमें 16 बुनियादी इच्छाओं की बात कही गयी है जो लगभग सभी इंसानी व्यवहार में पाया जाता है। ये इच्छाएं इस प्रकार हैं: इस मॉडल में, इन बुनियादी इच्छाओं पर लोगों में मतभेद है। ये बुनियादी इच्छाएं आंतरिक प्रेरणा का प्रतिनिधित्व करती हैं जो व्यक्ति के व्यवहार को सीधे प्रेरित करती है और इनका उद्देश्य परोक्ष रूप से अन्य इच्छाओं को संतुष्ट करने का नहीं है। लोग गैर-बुनियादी इच्छाओं से भी प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन इस मामले में गभीर प्रेरणा से यह संबंधित नहीं है, या केवल अन्य बुनियादी इच्छाओं को प्राप्त करने के साधन के तौर पर अकेला साधन नहीं है। अभिप्रेरणा पर नियंत्रण को केवल एक सीमित हद तक समझा जाता है। अभिप्रेरणा प्रशिक्षण ' के विभिन्न दृष्टिकोण हैं, लेकिन आलोचकों द्वारा इनमें से कई को छद्म वैज्ञानिक माना गया है। अभिप्रेरणा को कैसे नियंत्रित किया जाए यह जानने के लिए पहले इसे समझने की जरुरत है कि बहुत सारे लोगों में प्रेरणा की कमी क्यों होती है। आधुनिक ख्याल इस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत को अनुभवसिद्ध सहायता प्रदान करता है कि बचपन में ही मोटे तौर पर भावनात्मक प्रोग्रामिंग हो जाया करती है। मिशिगन के बच्चों के अस्पताल की PET क्लिनिक के चिकित्सा निदेशक और वेन स्टेट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडीसिन में बाल रोग, तंत्रिका विज्ञान और रेडियोलोजी के प्राध्यापक हैरोल्ड चुगानी ने पाया कि वयस्कों की तुलना में बच्चों के दिमाग नयी सूचनाओं को ग्रहण करने में कहीं अधिक सक्षम होते हैं। वल्कुटीय क्षेत्रों में मस्तिष्क गतिविधि वयस्कों की अपेक्षा तीन से नौ साल की उम्र के बच्चों में दुगुनी होती है। इस अवधि के बाद, वयस्कता के साथ-साथ निरंतर इसमें गिरावट निम्न स्तर की ओर जाती रहती है। दूसरी ओर, नौ साल की उम्र तक मस्तिष्क आयतन लगभग 95% तक बड़ा हो चुका होता है। अभिप्रेरणा के बिल्कुल सीधे दृष्टिकोणों के अलावा, प्रारंभिक जीवन में, ऐसे समाधान हैं जो अधिक निरपेक्ष हैं, लेकिन शायद आत्म-प्रेरणा के लिए अधिक व्यावहारिक नहीं हैं। वस्तुतः हर अभिप्रेरणा परिदर्शिका में कम से कम एक अध्याय व्यक्ति के कार्यों और लक्ष्यों की समुचित व्यवस्था के बारे में होता है। आमतौर पर यह सुझाव दिया जाता है कि जो कार्य पूरे हो चुके हैं और जो काम पूरे नहीं हुए हैं, उनके बीच अंतर करते हुए कार्यों की सूची बनाना जरूरी होता है इसलिए उसे बनाने के लिए कुछ जरूरी प्रेरणा को उस "मेटा-टास्क" में स्थानांतरित करना चाहिए, कार्य सूची में जिसे कार्य की प्रगति बताया गया है, जो एक दिनचर्या बन सकती है। पूरे किये गए कार्यों की सूची देखना भी प्रेरक का काम कर सकता है, क्योंकि यह उपलब्धि के लिए एक संतोषजनक भावना पैदा कर सकती है। अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक कार्यों की सूचियों में यह बुनियादी प्रकार्यात्मकता है, हालांकि पूरा हो चुके और अधूरे कार्यों के बीच अंतर हमेशा स्पष्ट नहीं होता है। सूचना व्यवस्था के अन्य रूप भी अभिप्रेरक हो सकते हैं, जैसे कि किसी के विचारों को व्यवस्थित करने के लिए मन के नक्शे का उपयोग और इस प्रकार तंत्रिका नेटवर्क को इस तरह "प्रशिक्षित" करना, जिससे कि मानवीय मस्तिष्क दिए गए कार्यों पर ध्यान केंद्रित करे. विचारों को चिह्नित करने का सबसे आसान तरीका यह है कि उन्हें गोल बिन्दु लगाने वाली शैली सूचीबद्ध करना भी पर्याप्त होगा, या यह उनके लिए अधिक उपयोगी हो सकता है जो आंखों का कम इस्तेमाल करते हैं। किसी भी संस्था में श्रमिकों को कार्यरत रखने के लिए कुछ न कुछ चाहिए। अधिकांशतः कर्मचारियों के वेतन किसी संस्था के लिए उनके द्वारा काम करते रहने के लिए पर्याप्त है। लेकिन, कभी-कभी सिर्फ वेतन के लिए संस्था में काम करते रहना कर्मचारियों के लिए पर्याप्त नहीं होता। कर्मचारी को एक कंपनी या संस्था के लिए काम करने को प्रेरित किया जाना जरूरी है। किसी कर्मचारी में अगर कोई प्रेरणा मौजूद नहीं है, तो उसके काम की गुणवत्ता या आम तौर पर सारे कार्य में गिरावट आएगी. कर्मचारी-प्रेरणा का अंतिम लक्ष्य है पूरी क्षमता के साथ कर्मचारी को काम पर लगाये रखना. कर्मचारियों को प्रेरित करने के कई तरीके हैं। कर्मचारियों के बीच प्रतिस्पर्धा करवाकर उन्हें प्रेरित करने के कुछ परंपरागत तरीके हैं। कर्मचारियों के बीच प्रेरणा उत्पन्न करने का एक शानदार तरीका है दोस्ताना प्रतियोगिता. इससे कर्मचारियों को प्रतियोगिता में अपने साथियों की तुलना में अपने हुनर को बेहतर दिखाने का एक मौका मिलता है। यह न केवल कर्मचारियों को अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित करेगा। बल्कि प्रतिस्पर्धा के कारण हुए रिकॉर्ड परिणामों से नियोक्ता को इसका भी पता चलेगा कि कौन सबसे अधिक उत्पादनशील है। विशेष रूप से ट्रांस ह्यूमनिस्ट आंदोलन से जुड़े हुए कुछ लेखकों का सुझाव है कि "प्रेरणा-उत्प्रेरक" के रूप में "स्मार्ट ड्रग्स", जिसे नूट्रॉपिक्स भी कहा जाता है, का इस्तेमाल करना चाहिए। दिमाग पर इनमें से कई दवाओं के प्रभाव को सुस्पष्ट रूप से नहीं समझा गया है और उनकी कानूनी स्थिति अक्सर खुले प्रयोग को मुश्किल बनाती है। विद्यार्थियों की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण शैक्षणिक मनोवैज्ञानिकों में प्रेरणा के लिए खास दिलचस्पी है। हालांकि, प्रेरणा के विशिष्ट प्रकार का अध्ययन अन्य क्षेत्रों में मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे कहीं अधिक सामान्य रूप के अध्ययनों से गुणात्मक रूप से अलग है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा के विभिन्न प्रभाव पड़ सकते हैं कि कैसे कोई विद्यार्थी सीखता है और वह विषय वस्तु के प्रति कैसा व्यवहार करता है। यह कर सकता है: क्योंकि विद्यार्थी हमेशा आंतरिक तौर पर प्रेरित नहीं होते हैं, सो उन्हें कभी-कभी स्थापित प्रेरणा की जरूरत पड़ती है, जो शिक्षक द्वारा पैदा किये गए वातावरण में मिलती है। प्रेरणा दो प्रकार की होती हैं: यह भी ध्यान रखने योग्य है कि प्रेरणा के इस द्विविभाजन के विस्तार, जैसे कि आत्मसंकल्प के सिद्धांत के बारे में पहले से ही सवाल उठाया गया है। आत्मकेंद्रित वर्णक्रम विकार के उपचार में प्रेरणा को एक आधारभूत क्षेत्र, निर्णायक प्रतिक्रिया थेरेपी के रूप में पाया गया है। Andragogy की अवधारणा में प्रेरणा भी एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। सडबरी मॉडल स्कूलों का यह निष्कर्ष है कि सामान्य तौर पर सीखने में और विशेष रूप से वैज्ञानिक निरक्षरता में, विलंब की समस्या का इलाज यह है कि असली रोग: स्कूलों में बाध्यता, को सब के लिए सिरे से ही समाप्त कर दिया जाय. उनका दावा है कि एक मुक्त समाज में यह मानवीय स्वभाव है सांचे में ढालने के लिए दबाव के हर प्रयास से पीछे हटता है; कि हम स्कूल में बच्चों पर ज़रूरतों का अधिक बोझ डालेंगे, तो यह तय है कि हम उनके गले में जो चीजें उतारने की कोशिश कर रहे हैं, उनसे वे दूर भागने लगेंगे; कि बच्चों के अभियान और अभिप्रेरणा आखिरकार उन्हें विश्व का महान नायक बनाने के लिए ही तो है। वे इस पर जोर देते हैं कि स्कूल इस अभियान को जीवित रखें, जैसा कि कुछ स्कूल यह काम कर रहे हैं: खुले तौर पर पालन-पोषण कर रहे हैं, जो इनके फलने-फूलने के लिए जरूरी है। सडबरी मॉडल स्कूल प्रदर्शन नहीं करते और न ही मूल्यांकन, आंकलन, प्रतिलिपि, या सिफारिशें इस तर्क पर प्रस्तुत नहीं करते कि वे लोगों की कीमत नहीं लगाया करते और यह कि स्कूल कोई न्यायाधीश नहीं होता; विद्यार्थियों की एक दूसरे से तुलना, या उनके लिए कोई मानक निर्धारित करना विद्यार्थियों की गोपनीयता और आत्म-निर्णय के अधिकार का उल्लंघन है। छात्र खुद ही तय करें कि आत्म-मूल्यांकन की एक प्रक्रिया के रूप में खुद से ही सीखनेवाले के लिए अपने आत्म-मूल्यांकन को कैसे मापा जाय: पूरे वास्तविक जीवन की सीख और 21वीं सदी के लिए उचित शैक्षिक मूल्यांकन को वे प्रस्तुत करते हैं। सडबरी मॉडल स्कूल के मुताबिक, यह नीति अपने छात्रों को नुकसान नहीं पहुंचाती, जब वे स्कूल के बाहर के जीवन में प्रवेश करते हैं। हालांकि, वे स्वीकार करते हैं यह प्रक्रिया को और अधिक कठिन बना देती है, लेकिन ऐसी कठिनाई विद्यार्थियों को अपना रास्ता खुद बनाना, अपने मानक खुद तय करना और अपने लक्ष्यों को पूरा करना सिखाती है। श्रेणीकरण और योग्यता निर्धारण नहीं करने की नीति से छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा या वयस्क अनुमोदन की लड़ाई से मुक्त माहौल बनाने में मदद मिलती है और छात्रों के बीच एक सकारात्मक सहकारी वातावरण को प्रोत्साहन मिलता है। मस्लोव के ज़रूरतों के पदानुक्रम के निचले स्तर पर, जैसे कि शारीरिक जरूरतें, पैसा एक प्रेरक है, हालाँकि इसका प्रेरक प्रभाव कर्मचारियों पर केवल एक छोटी अवधि के लिए रह पाता है . अब्राहम मस्लोव के अभिप्रेरणा के सिद्धांत और डगलस मक्ग्रेगोर के X सिद्धांत और Y सिद्धांत दोनों का ही कहना है कि उच्च स्तर के पदों में पैसे की अपेक्षा प्रशंसा, सम्मान, पहचान, सत्ताधिकार और कुछ होने की भावना कहीं अधिक शक्तिशाली अभिप्रेरणा होती हैं। मस्लोव ने पदानुक्रम के निम्नतम स्तर पर पैसे को रखा और अन्य ज़रूरतों को कर्मचारियों के लिए बेहतर अभिप्रेरक बताया। मक्ग्रेगोर अपनी X सिद्धांत श्रेणी में पैसे को रखा और महसूस किया कि यह एक कमजोर अभिप्रेरक है। प्रशंसा और मान्यता को Y सिद्धांत श्रेणी में रखा और पैसे से मजबूत अभिप्रेरक माना. औसत कार्यस्थल गंभीर जोखिम और श्रेष्ठ अवसर के चरम के लगभग बीच में होते हैं। घुड़की से अभिप्रेरणा एक अंधगली जैसी रणनीति है और स्वाभाविक रूप से कर्मचारी इस घुड़की पक्ष के बजाय अभिप्रेरणा घुमाव के अवसर पक्ष की ओर कहीं अधिक आकर्षित होते हैं। काम के माहौल में अभिप्रेरणा एक शक्तिशाली उपकरण है, जो कर्मचारियों को उत्पादन के उनके सबसे कुशल स्तरों पर काम करने की ओर ले चलता है। फिर भी, स्टेनमेर्त्ज़ ने अधीनस्थों के तीन आम चरित्र प्रकार की भी चर्चा की: प्रबल, उदासीन और उभयवृत्ति, जो सभी अनूठे ढंग से प्रतिक्रिया और परस्पर क्रिया करते हैं और तदनुसार इनके उपाय, बंदोबस्त और अभिप्रेरित किये जाने चाहिए। सभी चरित्रों का कैसे प्रबंध किया जाय, एक प्रभावी नेता को यह समझना जरूरी है और प्रबंधक को उन रास्तों का उपयोग करना अधिक महत्त्वपूर्ण है, जो कर्मचारियों को स्वतंत्र रूप से काम करने, बढ़ने और जवाब खोजने के अवसर प्रदान करते हैं। मस्लोव और हेर्ज्बेर्ग की मान्यताओं को ब्रिटेन के एक निर्माण प्लांट वौक्सहॉल मोटर्स के एक क्लासिक अध्ययन द्वारा चुनौती दी गयी। इसने काम करने के उन्मुखीकरण की अवधारणा का आरंभ किया और तीन मुख्य झुकावों के बीच अंतर निकला: निमित्त, नौकरशाही और एकात्मकता . कर्ट लेविन का फोर्स फील्ड सिद्धांत, एडविन लोके का लक्ष्य सिद्धांत और विक्टर व्रूम का प्रत्याशा सिद्धांत सहित अन्य सिद्धांतों ने मस्लोव और हेर्ज्बेर्ग के सिद्धांतों को व्यापक और विस्तारित बनाया। इन्होंने सांस्कृतिक मतभेदों और तथ्य पर जोर दिया कि लोग अलग-अलग समय पर अलग-अलग कारणों से प्रेरित होते हैं। फ्रेडरिक विंस्लो टेलर द्वारा विकसित वैज्ञानिक प्रबंधन की व्यवस्था के अनुसार श्रमिक की अभिप्रेरणा पूरी तरह से वेतन से निर्धारित होती है और इसलिए प्रबंधन को काम के मनोवैज्ञानिक या सामाजिक पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रुरत नहीं। सार-संक्षेप में, वैज्ञानिक प्रबंधन मानवीय अभिप्रेरणा को बाह्य कारकों पर आधारित करता है और आंतरिक प्रोत्साहनों को खारिज करता है। इसके विपरीत, डेविड मकक्लेल्लैंड का मानना है कि श्रमिक महज पैसे की आवश्यकता से प्रेरित नहीं होता है - दरअसल, बाह्य प्रेरणा उपलब्धि प्रेरणा के रूप में आंतरिक प्रेरणा को बुझा सकती है, हालांकि पैसे को विभिन्न अभिप्रेरणाओं के लिए सफलता के एक सूचक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, उनके सलाहकार फर्म, मकबेर एंड कंपनी, ने अपना पहला आदर्श रखा था "हर किसीको उत्पादनशील, प्रसन्न और मुक्त रखने के लिए." मकक्लेल्लैंड के लिए, व्यक्ति की बुनियादी अभिप्रेरणा के साथ संतोष उसके जीवन तरतीब करता है। एल्टन मेयो ने पाया कि कार्यस्थल पर मजदूर के सामाजिक संपर्क बहुत महत्त्वपूर्ण है और ऊब तथा कार्यों की एकरसता अभिप्रेरणा में कमी लाती है। मेयो का मानना था कि मजदूरों की सामाजिक जरूरतों को स्वीकार करने और उन्हें महत्त्वपूर्ण मानने से उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है। नतीजतन, कर्मचारियों को काम के दौरान निर्णय लेने की आजादी दी गयी और अनौपचारिक कार्य समूहों पर अधिक से अधिक ध्यान दिया गया। मेयो ने मॉडल का नाम दिया हावथोर्न प्रभाव. कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए कार्यस्थल में सामाजिक संपर्कों पर बहुत अधिक भरोसा करने के लिए उनके मॉडल की आलोचना की गयी। रॉबिंस और जज नेसंगठनात्मक व्यवहार के लिए आवश्यक सिद्धांत में मान्यता कार्यक्रमों को अभिप्रेरणा के रूप परीक्षण में किया और पांच सिद्धांत बताया जो किसी कर्मचारी प्रोत्साहन कार्यक्रम की सफलता में योगदान करते हैं। ऑनलाइन समुदायों की सफलता में एक सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व भाग लेने और योगदान करने के लिए अभिप्रेरणा का प्रतिनिधित्व करता है। और अधिक देखें: ऑनलाइन भागीदारी
इंग्लैंड के क्षेत्र यूनाइटेड किंगडम सरकार द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले उप-राष्ट्रीय विभाजन की उच्चतम श्रेणी है। वर्ष 1994 से 2011 के बीच नौ क्षेत्रों ने यूनाइटेड किंगडम सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन में एक प्रशासनिक भूमिका निभाई थी। हर क्षेत्र का अपना सरकारी कार्यालय होता था। क्षेत्रीय मंत्रियों को 2010 में बनी गठबंधन सरकार द्वारा पुनर्नियुक्त नहीं किया गया और सरकारी कार्यालयों को 2011 में समाप्त कर दिया गया।
विवाह समारोह के प्रतिभागी, जिनकी ओर वेडिंग पार्टी के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, वह लोग होते हैं जो स्वयं प्रत्यक्ष रूप से विवाह समारोह में भाग लेते हैं। स्थान, धर्म और विवाह की शैली के आधार पर, इस समूह में केवल विवाह करने वाले व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, या इसमें एक या एक से अधिक दुल्हनें, दूल्हे, मेड्स ऑफ ऑनर, ब्राइड्समेड्स, बेस्टमेन, ग्रूम्समेन, फ्लावर गर्ल्स, पेज ब्वायज़ और रिंगबियरर्स शामिल हो सकते हैं। वधू पक्ष का अर्थ उन लोगों से होता है जो वधू की ओर से विवाह समारोह में शामिल होते हैं। जो वर की ओर से होते हैं उन्हें वर-पक्ष कहा जाता है। दुल्हन शब्द उस युवती के लिए प्रयोग किया जाता है जिसका विवाह होने वाला है या जो नवविवाहित है। इस शब्द की उत्पत्ति "भोजन पकाने" के लिए प्रयोग किये जाने वाले ट्युटॉनिक शब्द से हुई है। पश्चिमी सभ्यता में, एक दुल्हन के साथ एक या एक से अधिक ब्राइड्स मेड्स या मेड ऑफ ऑनर हो सकती हैं। उसके साथी, जो विवाह के बाद उसका पति बन जायेगा, यदि वह पुरुष है तो दूल्हा कहलाता है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में, दुल्हन के लिए आदर्श पहनावा एक औपचारिक पोशाक और एक घूंघट होता है। आम तौर पर, "श्वेत विवाह" शैलियों में, दुल्हन की पोशाक विशेष रूप से विवाह के लिए ही खरीदी जाती है और इस प्रकार की नहीं होती जिसे बाद में किसी अन्य अवसर पर पहना जा सके. पूर्व में, कम से कम 19 वीं शताब्दी के मध्य तक, दुल्हन विवाह के अवसर पर अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनती थी चाहे वह जिस भी रंग की हो और यदि दुल्हन धनीवर्ग से होती थी तो, वह अपने मनपसंद रंग में एक नयी पोशाक बनवाती थी और यह आशा करती थी कि वह उसे आगे भी पहनेगी. पश्चिमी देशों में, पहले विवाह के लिए आम तौर पर श्वेत विवाह पोशाक पहनी जाती थी, यह परंपरा महारानी विक्टोरिया के विवाह के साथ शुरू हुई थी। 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में, पश्चिमी सभ्यता के नियमानुसार यह माना जाता था कि श्वेत पोशाक को पहले विवाह के बाद नहीं पहना जाना चाहिए, हालांकि विवाह समारोह में दुल्हन द्वारा सफ़ेद पोशाक पहना जाना एक अत्यंत नवीन प्रचालन था लेकिन इस तथ्य के बावजूद भी कुछ लोग गलती से श्वेत पोशाक पहनने को कौमार्य का एक प्राचीन संकेत मानते थे। आज, पश्चिमी दुल्हने पहले या किसी भी विवाह के लिए प्रायः श्वेत, क्रीम या हाथी दांत के रंग की पोशाक ही पहनती हैं; पोशाक के रंग के आधार पर दुल्हन के यौन जीवन के इतिहास पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती. चीनी, हिन्दू, वियतनामी, कोरियाई और जापानी परम्पराओं में लोगों में श्वेत विवाह पोशाक का प्रचलन नहीं है, क्यूंकि इन संस्कृतियों में श्वेत को शोक व मृत्यु का सूचक माना जाता है। कई एशियाई सभ्यताओं में आम तौर पर दुल्हन लाल रंग की पोशाक पहनती है, क्यूंकि यह रंग जीवन्तता और स्वास्थ का सूचक है और कई वर्षों से इसे दुल्हन से ही सम्बंधित माना जाता है। यद्यपि आधुनिक दौर में अन्य रंग भी पहने जा सकते हैं, या पश्चिमी शैली को प्राथमिकता दी जा सकती है। अधिकतर एशियाई संस्कृतियों में रंग की परवाह ना करते हुए दुल्हन के लिए बनायी गई पोशाक अत्यंत सजावटी होती हैं, जो प्रायः कढ़ाई, उभरी हुई किनारियों और स्वर्ण द्वारा की गई सजावट से भरी होती हैं। कुछ परम्पराओं के अनुसार दुल्हन एक से अधिक पोशाक पहन सकती है, यह उदाहरण जापान, भारत के कुछ भागों और प्राचीन जानकारी के अनुसार अरब देशों के कुछ भागों के लिए सत्य है। आभूषणों की कुछ विशेष शैलियां प्रायः दुल्हन की पोशाक से सम्बद्ध होती हैं, उदाहरण के तौर पर, अधिकतर पश्चिमी सभ्यताओं मे विवाह की अंगूठी, या पंजाबी सिख संस्कृति में चूड़ा . पारंपरिक तौर पर वैवाहिक आभूषणों का प्रयोग दुल्हन के दहेज़ की कीमत के प्रदर्शन के लिए किया जाता था। गाउन के अतिरिक्त, दुल्हन प्रायः एक घूंघट भी पहनती है और फूलों का एक गुलदस्ता, एक छोटी विरासत में मिली निशानी जैसे कोई भाग्यशाली सिक्का, प्रार्थना पुस्तक या कोई अन्य छोटा सा प्रतीक लिए रहती है। पश्चिमी देशों में, दुल्हन कुछ भी "पुराना, नया, किसी से मांगा हुआ या नीले रंग की कोई पोशाक" पहन सकती है; दुल्हन के द्वारा लिया गया बटुआ भी प्रचलित है। ब्राइड शब्द कई शब्दों के साथ संयोजन में प्रयुक्त पाया जाता है, उनमे से अधिकांश अब प्रयोग नहीं किये जाते. इसलिए "ब्राइडग्रूम" का अर्थ नवविवाहित पुरुष होता है और "ब्राइड-बेल," "ब्राइड-बैंक्वेट" वे प्राचीन शब्द हैं जो पहले वेडिंग बेल्स व वेडिंग ब्रेकफास्ट के लिए प्रयोग किये जाते थे। "ब्राइडल ", जिसका मूल अर्थ वेडिंग फीस्ट है, वह अब एक सामान्य वर्णनात्मक विशेषण, द ब्राइडल सेरेमनी के रूप में प्रयोग होने लगा है। ब्राइड-केक की उत्पत्ति रोमन शब्द कौन्फेरेतियो से हुई है, जोकि एक विवाह शैली है, जिसकी विशेषताएं यह है कि इसमें नवविवाहित जोड़े को नमक, पानी और एक विशेष प्रकार के गेहूं के आटे द्वारा बना केक खाना होता था और दुल्हन को समृद्धता के प्रतीक के रूप में गेहूं की तीन बालियां पकड़नी होती थी। केक खाने का प्रचलन तो अब समाप्त हो गया है, लेकिन गेहूं की बालियां पकड़ने की प्रथा अब भी जीवित है। मध्य युग में गेहूं की बालियां या तो दुल्हन पहनती थी या इन्हें पकड़े रहती थी। अंततः चर्च के बरामदे के बाहर एकत्र होकर दुल्हन के ऊपर गेहूं के दाने फेंकना, युवतियों के लिए एक रिवाज़ बन गया और बाद में इन दानो को पाने के लिए संघर्ष होने लगा. समय के साथ, गेहूं के दानों को पतले सूखे बिस्कुट के रूप में बनाया जाने लगा, जिन्हें दुल्हन के सर के ऊपर करके तोड़ दिया जाता था, स्कॉटलैंड की एक परंपरा के अनुसार वहां पर इसके लिए जौ के आटे से बने केक का प्रयोग होता है। एलिज़ाबेथ के शासन के दौरान इन बिस्कुटों के स्थान पर अंडे, दूध, चीनी, किशमिश और कुछ मसालों से बने छोटे आयताकार केक के प्रयोग का प्रचलन हो गया। विवाह में उपस्थित प्रत्येक अतिथि के पास कम से कम एक केक अवश्य ही होता था और जैसे ही दुल्हन दहलीज पार करती थी यह सभी छोटे केक उस पर फेंक दिये जाते थे। इनमे से वह, जो दुल्हन के सर या कंधे पर गिरते थे, उन्हे पाने के लिए लोग आपस में बहुत संघर्ष करते थे और वह इन्हें बहुत कीमती मानते थे। अंततः चार्ल्स II के समय में, इन सभी केक के मिश्रण के रूप में एक बड़ा केक बनाया जाने लगा जोकि सजावटी सामग्रियों और बादाम के मिश्रण के द्वारा बहुत ही भव्यता के साथ सजाया जाता था। लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों जैसे, उत्तरी नॉट्स में, नवविवाहित जोड़े के ऊपर गेहूं फेंका जाता है और ऊंची आवाज़ में यह कहा जाता है कि "ब्रेड फॉर लाइफ एंड पुडिंग फॉर एवर," यह वाक्यांश इस भाव को व्यक्त करता है कि नवविवाहित जोड़ा सदैव समृद्ध रहे. एक प्राचीन प्रथा के अनुसार दुल्हन पर चावल फेंका जाता है जो इस इच्छा का प्रतीक होता है कि दुल्हन सौभाग्यशाली हो, लेकिन यह प्रथा गेहूं फेंकने की प्रथा से अधिक प्राचीन नहीं है। ब्राइड-कप, प्राचीन बाउल या लविंग-कप होता था, जिसमे दूल्हा, दुल्हन के लिए और दुल्हन, दूल्हे के लिए वैवाहिक वचन लेती थी। इस वाइन कप में रखे पेय को विवाहित जोड़े द्वारा पी लेने के बाद उसे तोड़ देने की प्रथा यहूदी धर्म को मानने वालों के बीच प्रचलित है। इसे पैर के नीचे कुचल दिया जाता है। "ब्राइड-कप" शब्द का प्रयोग कभी-कभी मसालों द्वारा निर्मित उस वाइन के बाउल के लिए भी किया जाता था जोकि रात में नवविवाहित जोड़े के लिए बनायी जाती थी। ब्राइड-फेवर्स, जिसे प्राचीन समय में ब्राइड-लेस कहते थे, वह प्रारंभ में स्वर्ण, सिल्क या अन्य लेस के कुछ टुकड़े होते थे जिनका प्रयोग पूर्व में विवाह के दौरान पहने जाने वाले रोजमेरी के फूलों के गुच्छों को बांधने के लिए किया जाता था। बाद में इन्होने रिबन के गुच्छों का रूप ले लिया, जो अंततः रिबन के बने फूलों में रूपांतरित हो गए। ब्राइड-वेन, वह सवारी जिसमे बैठकर दुल्हन अपने नए घर जाती है, के नाम पर कुछ गरीब, योग्य जोड़ों के विवाहों को नाम दिया गया, जोकि गांव में चारों और "वेन" द्वारा भ्रमण करते थे और अपनी गृहस्थी के लिए कुछ धन या अन्य ज़रूरी सामान इकठ्ठा करते थे। इन विवाहों को बिडिंग-वेडिंग, या बिड-एल्स कहा जाता था, जो "परोपकार" भोज के रूप में होती थीं। वेल्स में "बिडिंग-वेडिंग्स" की प्रथा इतनी प्रचलित है कि छपाई करने वाले इसका आमंत्रण पहले से ही छाप कर रखते हैं। इसलिए कभी-कभी काफी अधिक, लगभग छह सौ जोड़े वैवाहिक मंडल में चलते हैं। ब्राइड्स-रीथ, सभी यहूदी दुल्हनों द्वारा पहने जाने वाले, सोना चढ़े छोटे मुकुट का एक ईसाई स्थानापन्न है। रूसी लोग और हौलैंड व स्विटज़रलैंड के कैल्विनिस्टो द्वारा अभी भी दुल्हन का अभिषेक समापन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नारंगी फूलों का पहना जाना साराकेंस के समय से प्रारंभ हुआ जो इन्हें उच्च प्रजनन क्षमता का प्रतीक मानता था। यूरोप में इसकी शुरुआत क्रुसेडर्स द्वारा करायी गयी। ब्राइड्स वेल, फ्लेमेनम या बड़े पीले घूंघट का जोकि यूनानी और रोम की दुल्हनों को विवाह कार्यक्रम के दौरान पूरी तरह से ढक लेता था, का एक आधुनिक रूप है। यहूदी और पारसी लोगों में इस प्रकार के घूंघट का प्रयोग अब भी किया जाता है। एक ब्राइडग्रूम वह व्यक्ति है जो विवाहित होने वाला है, या जिसका विवाह तुरंत हुआ हो. ब्राइडग्रूम शब्द का प्रयोग 1604 से माना जाता है, जोकि ब्राइड और प्राचीन शब्द गूम से लिया गया है, गूम शब्द प्राचीन अंग्रेजी शब्द गुमा से लिया गया है, जिसका अर्थ "लड़का" होता है। आमतौर पर ब्राइडग्रूम के साथ बेस्टमैन और ग्रूम्समेन होते हैं। दूल्हे की पोशाक शैली दिन के प्रहर, समारोह के स्थान, कार्यक्रम की शैली और इस बात पर निर्भर करती है कि वह सशस्त्र सेना का सदस्य है या नहीं. संसार के अधिकांश भागों में, सेना और कुछ कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सक्रिय तैनात सदस्य असैनिक वस्त्रों के स्थान पर अपनी फौजी वर्दी ही पहनते हैं। पश्चिमी सभ्यता में दूल्हा आम तौर पर कार्यक्रम की औपचारिकता के स्तर के अनुकूल और दिन के प्रहर के अनुसार सूट पहनता है। अमेरिका में, दूल्हा आम तौर पर विवाह समारोह के दौरान गहरे रंग का सूट या टक्सीडो सूट पहनता है। ब्रिटिश परंपरा के अनुसार दूल्हे, पुरुष प्रवेशक और दूल्हे के परिवार के नजदीकी पुरुषों को मॉर्निंग सूट पहनना होता है। स्कॉटलैंड में, शाम को होने वाले समारोह के लिए पूर्ण ईवनिंग सूट पहनना आवश्यक होता है, जिसमे प्रायः किल्ट भी शामिल होती है। दूल्हा आमतौर पर कोई ऐसा नेकवियर पहनते हैं जो उनके द्वारा पहनी गयी पोशाक पर फबती हो. अधिकांश दूल्हे अपने सूट या टक्सीडो से मेल करती हुई बो-टाई पहनते हैं, क्यूंकि यह इस श्रंखला में सर्वाधिक औपचारिक नेकवियर माना जाता है। एक गुलुबन्द साधारणतया कम औपचारिक व अधिक भड़कीला माना जाता है और मॉर्निंग सूट के साथ पहना जाता है। सरल उपलब्धता व विविधता के कारण फोर इन हैंड टाई भी काफी प्रचलित होती जा रही है। एक विवाह में ब्राइड्समेड्स वधू पक्ष के वैवाहिक दल की सदस्य होती हैं। एक ब्राइड्समेड आमतौर पर एक युवती होती है और प्रायः करीबी मित्र या बहन होती है। वह विवाह के दिन या वैवाहिक समारोह के दौरान दुल्हन के साथ रहती है। परंपरागत रूप से, ब्राइड्समेड्स का चुनाव विवाह योग्य आयु की अविवाहित युवतियों में से किया जाता है। प्रमुख ब्राइड्समेड, यदि किसी को यह उपाधि दी जाती है तो, को अविवाहित होने की स्थिति में चीफ ब्राइड्समेड या मेड ऑफ ऑनर कहा जाता है और विवाहित होने कि स्थिति में उसे मेट्रन ऑफ ऑनर कहा जाता है। कनिष्ठ ब्राइड्समेड वह युवती होती है जो स्पष्टतया विवाह योग्य आयु से बहुत छोटी होती है, लेकिन जिसे सम्मानार्थ ब्राइड्समेड के रूप में शामिल कर लिया गया है। प्रायः एक से अधिक ब्राइड्समेड्स होती हैं: आधुनिक समय में दुल्हन यह तय करती है कि कितनी ब्राइड्समेड्स होनी चाहिए. इतिहास के अनुसार, किसी भी सम्मानित व्यक्ति ने बिना ब्राइड्समेड्स के विवाह नहीं किया और परिजनों की संख्या बहुत ध्यानपूर्वक इतनी रखी जाती थी कि वह परिवार के सामाजिक स्तर के अनुकूल हो. फिर, जैसा कि अब होता है, ब्राइड्समेड्स का एक विशाल समूह परिवार की प्रतिष्ठा और संपत्ति के प्रदर्शन का एक अवसर माना जाने लगा. ब्राइड्समेड्स के द्वारा निभाए जाने वाले कर्त्तव्य अत्यंत सीमित हैं। उनसे यही अपेक्षा की जाती है कि वह विवाह समारोह में उपस्थित रहें और विवाह के दिन दुल्हन के साथ रहें. यूरोप और नॉर्थ अमेरिका में प्रायः ब्राइड्समेड्स से कहा जाता है कि वह विवाह और विवाह के स्वागत समारोह की योजना में दुल्हन की सहायता करें. आधुनिक समय में, आदर्श रूप में एक ब्राइड्समेड से विवाह संबंधी कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए भी कहा जाता है, जैसे कि दुल्हन का स्नान या बैचलरेट पार्टी, यदि कोई ऐसा आयोजन होने वाला है तो. हालांकि यह सब वैकल्पिक कार्यक्रम हैं; शिष्टाचार विशेषज्ञ जुडिथ मार्टिन के अनुसार, "लोकवाद के विपरीत, ब्राइड्समेड्स, दुल्हन के सम्मान में उसके साथ रहने के लिए विवश नहीं हैं, ना ही उन्हें उन पोशाकों को पहनने की कोई विवशता होती है जिसका खर्च वह नहीं उठा सकतीं." यदि दुल्हन के निवास क्षेत्र के अनुसार ब्राइड्समेड्स लंच का आयोजन आवश्यक है, तो इसका आयोजन किया जाता है, इसलिए इसके आयोजन व खर्च दोनों की जिम्मेदारी दुल्हन द्वारा ली जाती है। एक कनिष्ठ ब्राइड्समेड पर विवाह समारोह में उपस्थित रहने के अतिरिक्त अन्य कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। चूंकि प्राचीन ब्राइड्समेड्स की तरह आधुनिक ब्राइड्समेड्स, इस बात पर आश्रित नहीं रह सकती कि उनके वस्त्रों और यात्रा तथा कभी कभी उन समारोहों का अनुमानित खर्च भी, जो कि दुल्हन विवाह से पहले आयोजित करना चाहती है, दुल्हन का परिवार उठाये, अतः अब दुल्हन के लिए यह रिवाज़ हो गया है कि वह ब्राइड्समेड्स को उनकी भूमिका के साथ जुड़ी सहायता और वित्तीय प्रतिबद्धता के आभार के रूप में कुछ उपहार प्रदान करे. उन सजग युवतियों के लिए भी, जिन्हें ब्राइड्समेड्स बनने के लिए आमंत्रित किया गया है, यह सामान रूप से आवश्यक है कि वह इस आमंत्रण को स्वीकार करने से पहले यह अवश्य जान लें कि दुल्हन उनसे कितने समय, सहभागिता और धन की अपेक्षा रखती है। यूनाइटेड किंगडम में, वाक्यांश "मेड ऑफ ऑनर" मूलतः रानी की महिला सेविकाओं की ओर संकेत करता है। यूके में शब्द ब्राइड्समेड सामान्यतया दुल्हन की सभी साथियों के लिए प्रयोग किया जाता है। हालांकि, यदि कोई साथी विवाहित या प्रौढ़ महिला हो तो, वाक्यांश मेट्रन ऑफ ऑनर का प्रयोग किया जाता है। अमेरिकी अंग्रेजी के प्रभाव के कारण कभी कभी चीफ ब्राइड्समेड को मेड ऑफ ऑनर कहा जाता है। नॉर्थ अमेरिका में, एक वैवाहिक समारोह में कई ब्राइड्समेड्स हो सकती हैं, लेकिन मेड ऑफ ऑनर वह उपाधि है जो दुल्हन की प्रमुख साथी को ही दी जाएगी, आम तौर पर दुल्हन की नजदीकी सखी या बहन. आधुनिक विवाहों में कुछ दुल्हनें अपने पुराने पुरुष मित्र या भाई को अपने प्रमुख साथी के रूप में चुनती हैं, जिसके लिए उपाधि बेस्ट मैन या मैन ऑफ ऑनर का प्रयोग किया जाता है। प्रमुख ब्राइड्समेड की जिम्मेदारियों की गिनती और विविधता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह दुल्हन को स्वयं पर कितनी जिम्मेदारियां डालने की अनुमति देती है। उसका एक मात्र आवश्यक कर्तव्य विवाह समारोह में हिस्सा लेना है। आदर्शतः, हालांकि, एक कार्यक्रम के रूप में विवाह की तैयारियों में सहायता के लिए उससे अवश्य ही पूछा जाता है, जैसे कि आमंत्रणों के संबोधन और एक मित्र के रूप में उसकी सहायता के लिए, जैसे वैवाहिक पोशाक की खरीदारी के दौरान दुल्हन के साथ रहना. पारंपरिक रूप से, दुल्हन स्नान के आयोजन की जिम्मेदारी दुल्हन की मां की होती है। जो दुल्हन स्नान के कार्यक्रम में शामिल होते हैं उनसे उपहार की अपेक्षा नहीं होती, हालांकि उपहार लाना ही उचित शिष्टता है। स्नान का यह कार्यक्रम आम तौर पर, विवाह के 4 से 6 सप्ताह पहले आयोजित किया जाता है। विवाह के दिन, उसकी प्रमुख जिम्मेदारी दुल्हन को व्यवहारिक और भावनात्मक संबल प्रदान करना है। वह तैयार होने में दुल्हन की सहायता कर सकती है और यदि आवश्यक हो तो, दिन के दौरान दुल्हन को उसका घूंघट, फूलों का गुलदस्ता, एक प्रार्थना पुस्तक या विवाह पोशाक का घेर संभालने में उसकी सहायता कर सकती है। दोहरी अंगूठी वाले विवाह में, दूल्हे की विवाह वाली अंगूठी चीफ ब्राइड्समेड के भरोसे ही छोड़ दी जाती है जबतक कि कार्यक्रम के दौरान इसकी आवश्यकता ना पड़े. कई दुल्हने ब्राइड्समेड्स से पूछती हैं कि, यदि वह बालिग हों तो, विवाह के बाद विवाह लाइसेंस पर हस्ताक्षर करने के लिए कानूनी गवाह बन जायें. यदि विवाह के बाद एक स्वागत समारोह का भी आयोजन है तो, मेड और ऑनर से नवविवाहित जोड़े के लिए मदिरापान सहित शुभकामना की अपेक्षा की जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि पश्चिमी ब्राइड्समेड की परंपरा रोमन कानून से पैदा हुई है, जिसमे एक विवाह में 10 गवाहों की आवश्यकता होती थी जिससे कि सभी दूल्हा और दुल्हन जैसे कपड़े पहनकर बुरी आत्माओं को मात दे सकें और बुरी आत्माएं यह नहीं जान सकें कि वास्तव में किसका विवाह होने वाला है। काफी बाद तक, यहां तक कि 19 वीं शताब्दी के दौरान इंग्लैंड में ऐसी मान्यता थी कि बुरा चाहने वाले बद्दुयाएं दे सकते और विवाह को कलंकित कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, विक्टोरियन काल की वैवाहिक तस्वीरों में, दूल्हा और दुल्हन प्रायः उसी तरह की पोशाक में होते थे जैसी कि विवाह समारोह के अन्य सदस्यों ने पहनी होती थी। अन्य लोग जैकब और उसकी दो पत्नियों लेह व रैचल की किताबी कहानी का उदाहरण देते हैं, जो दोनों ही अपने विवाह के दौरान वास्तव में अपनी सेविकाओं के साथ उपस्थित हुई थीं, जैसा कि ब्राइड्समेड्स की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बुक ऑफ जेनेसिस में वर्णित है। यह युवतियां सामाजिक समकक्ष होने के स्थान पर नौकरानियां थीं। एक ग्रूम्समैन विवाह समारोह में दूल्हे के पुरुष साथियों में से एक होता है। यूके में अशर शब्द अधिक प्रचलित है, लेकिन यूएस में ऐसे शब्द का प्रयोग यह संकेत देगा कि दूल्हे के मित्र, दुल्हन के मित्र से कम महत्त्वपूर्ण या कम सम्माननीय हैं। आम तौर पर दूल्हा ग्रूम्समैन हेतु अपने नजदीकी मित्रों और/या रिश्तेदारों का चुनाव करता है और इसके लिए चुना जाना एक सम्मान की बात मानी जाती है। अपने द्वारा चुने गए ग्रूम्समेन में से एक का चुनाव दूल्हा बेस्टमैन के रूप में करता है। ग्रूम्समेन का कर्त्तव्य समारोह शुरू होने से पूर्व अतिथियों की अपने स्थान पर बैठने में सहायता करना और विवाह समारोह में भाग लेना होता है। इसके अतिरिक्त, दूल्हा उनसे अन्य प्रकार की सहायता के लिए भी अनुरोध कर सकता है, जैसे कि उत्सवी कार्यक्रमों का आयोजन उदाहरण के लिए, बैचलर पार्टी, जिसे कि स्टैग नाईट या बक्स नाईट भी कहते हैं; और वह अकेले बैठे लोगों से बातचीत के द्वारा या अकेले ही नृत्य कर रहे अतिथियों अथवा ब्राइड्समेड्स का साथ दे कर अतिथियों के लिए विवाह को आनंददायक भी बना सकते हैं, यदि विवाह के स्वागत समारोह में नृत्य कार्यक्रम शामिल किया गया है तो; या वह उपहारों, सामान अथवा अप्रत्याशित जटिलताओं में व्यवहारिक सहायता भी प्रदान कर सकते हैं। ग्रूम्समेन स्थानीय या क्षेत्रीय परम्पराओं में भी भाग ले सकते हैं, जैसे कि नवविवाहित जोड़े की कार को सजाना. ऐसे विवाह के लिए जिसमे अतिथियों की संख्या बहुत अधिक हो, दूल्हा अपने अन्य पुरुष मित्रों और रिश्तेदारों से बिना वैवाहिक कार्यक्रमों में भाग लिए भी अशर्स के रूप में कार्य करने के लिए कह सकता है; उनका एक मात्र कार्य समारोह से पूर्व अतिथियों को अपने निर्धारित स्थान पर बैठाना होगा. बहुत विशाल स्तर के विवाहों के लिए अशर्स को किराये पर भी बुलाया जा सकता है। एक सैन्य अधिकारी के विवाह में, ग्रूम्समेन की भूमिका सोर्ड ऑनर गार्ड के सोर्डमेन द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है। आम तौर पर यह दूल्हे के ऐसे करीबी निजी मित्रों में से चुने जाते हैं जिन्होंने उसके साथ कार्य किया हो. उनकी जिम्मेदारी विवाहित जोड़े और अतिथियों के चलने के लिए पारंपरिक सेबर आर्क बनाना होता है। पहले ब्राइडग्रूम-मेन और ब्राइड्समेड्स को दी जाने वाली जिम्मेदारियां महत्त्वपूर्ण होती थीं। पुरुषों को ब्राइड-नाइट्स कहा जाता था और वह प्रारंभिक दिनों की जबरन अधिकार द्वारा विवाह की प्रथा का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसमे कि एक व्यक्ति अपनी दुल्हन के अपहरण में सहायता के लिए अपने मित्रों को बुलाता है। बेस्ट मैन विवाह में दूल्हे का प्रमुख पुरुष साथी होता है। नॉर्थ अमेरिका और यूरोप में, दूल्हा यह सम्मान अपने किसी नजदीकी व्यक्ति को देता है, आम तौर पर अपने सबसे करीबी मित्र पुरुष या अपने भाई को. जब दूल्हा यह सम्मान किसी महिला को देने की इच्छा करता है तो, उस महिला को बेस्ट वुमेन या बेस्ट पर्सन कहा जा सकता है, या उसे भी 'बेस्ट मैन' कहा जा सकता है। दुल्हन की ओर से बेस्ट मैन के समकक्ष मेड या मेट्रन ऑफ ऑनर होती हैं। एक लिंग उदासीन शब्द होता है, ऑनर अटेंडेंट . जहां बेस्ट मैन की आवश्यक जिम्मेदारियों में मित्रवत जिम्मेदारियां ही शामिल होती हैं, वही पश्चिमी श्वेत विवाह के सन्दर्भ में, बेस्ट मैन को आदर्शतः पूर्व में, बैचलर पार्टी का आयोजन आम तौर पर विवाह के एक सप्ताह पूर्व किसी सुविधाजनक संध्या को किया जाता था। यह एक प्रकार का विदाई भोज होता था, इसका आयोजन, मेजबानी और खर्च का वहन सदैव दूल्हे द्वारा ही किया जाता था। इसके लिए प्रचलित खास शब्द संसार के विभिन्न भागों में बैचलर पार्टी, स्टैग डू या बक्स नाईट हैं। कई क्षेत्रों में, इस भोज का आयोजन आम तौर पर बेस्ट मैन द्वारा किया जाता है और इसका खर्च सभी प्रतिभागियों द्वारा बांट लिया जाता है। आम तौर पर बेस्ट मैन, या ऑनर अटेंडेंट्स, सार्वभौम प्रथा नहीं है। उन स्थानों पर भी जहां बेस्ट मैन का होना आवश्यक है, अन्य स्थानों व समयों की तुलना में इनकी भूमिका काफी भिन्न हो सकती है। अधिकांश आधुनिक, अंग्रेजी भाषी देशों में, बेस्ट मैन प्रायः दूल्हे का सबसे नजदीकी पुरुष मित्र होता है। कुछ लेखकों का मानना है कि बेस्ट मैन की उत्पत्ति अपहरण द्वारा विवाह की प्राचीन प्रथा या फिर भावी अपहरणकर्ताओं से दुल्हन की रक्षा करने से हुई है। यूनान के पूर्वीय रूढ़िवादी विवाहों में, बेस्ट मैन प्रायः कौम्बरोस या धार्मिक प्रायोजक होता है और परंपरागत रूप से दूल्हे का धर्म शिक्षक होता है। कौम्बरोस एक सम्मानित प्रतिभागी होता है जो जोड़े को मुकुट धारण करवाता है और वेदी के तीन गोल चक्कर लगाने में भाग लेता है। कुछ क्षेत्रों में, यह व्यक्ति विवाह के सभी खर्च भी वहन करता है। युक्रेन में एक बेस्ट मैन वैवाहिक उत्सवों के दौरान दुल्हन की रक्षा करने के लिए भी जिम्मेदार होता है। जब वह या दूल्हा दूर जाते हैं, तो दुल्हन का "अपहरण" कर लिया जाता है या एक जूता चुरा लिया जाता है। तब फिर दूल्हे या बेस्ट मैन को दुल्हन को वापस पाने के बदले में फिरौती देनी पड़ती है, आमतौर पर धन के रूप में या फिर उन्हें कुछ लज्जाजनक कार्य करना पड़ता है। युगांडा में बेस्ट मैन से अपेक्षा की जाती है कि वह नवविवाहित जोड़े को वैवाहिक जीवन के लिए निर्देशित करे. इसका अर्थ यह है कि आदर्शतः एक बेस्ट मैन को अवश्य ही विवाहित होना चाहिए, अच्छा होगा कि उसकी एक ही पत्नी हो और वह इस अवस्था में होना चाहिए कि वह ठोस, विश्वसनीय और परखी हुई सलाह दे सके. एक बेस्ट मैन अवश्य ही एक विश्वसनीय व्यक्ति होना चाहिए और उसे नवविवाहित जोड़े के साथ बांटे गए रहस्यों के सम्बन्ध में भी सावधान रहना होगा. भूटान में बेस्ट मैन विवाह के अवसर पर स्वयं को दूल्हा और दुल्हन दोनों के औपचारिक अभिभावक के रूप में प्रस्तुत करता है। इसके बाद वह अतिथियों का मनोरंजन करता है, कभी-कभी कई घंटों तक. एक फ्लावर गर्ल विवाह दल में भाग लेने वाली एक प्रतिभागी होती है। रिंग बियरर और पेज ब्वायज की तरह ही, फ्लावर गर्ल भी दुल्हन या दूल्हे के विस्तृत परिवार की एक सदस्य होती है, लेकिन वह एक मित्र भी हो सकती है। आम तौर पर, फ्लावर गर्ल प्रवेश सम्बन्धी धार्मिक गीत के दौरान दुल्हन के सामने चलती है। वह दुल्हन के रास्ते में फूलों की पंखुड़ियां बिछा सकती है या कांटे रहित गुलाबों अथवा फूलों का एक गुलदस्ता लेते हुए चल सकती है। धार्मिक गीत समाप्त हो जाने पर, युवा फ्लावर गर्ल अपने माता-पिता के साथ बैठ जाएगी. यदि समारोह विशेष रूप से लम्बा नहीं है तो, अधिक आयु की लड़की अन्य सम्मानित लोगों के साथ वही पर शांतिपूर्वक खड़े रहना पसंद करेगी. क्यूंकि बहुत छोटे बच्चे जिम्मेदारियों से अभिभूत हो जाते हैं और बड़ी लड़कियां बच्चे जैसे कार्य की जिम्मेदारी दिए जाने के कारण अपमानित अनुभव कर सकती हैं, इसलिए इस कार्य हेतु 4 से 8 वर्ष तक की आयु के बच्चों को लेने की सलाह दी गयी है, या इससे अधिक आयु के, यदि यह उस युवती की भावनाओं के लिए अपमानजनक ना हो तो. एक से अधिक फ्लावर गर्ल भी हो सकती हैं, विशेषतः तब जब कि सम्मान करने के लिए दुल्हन के अनेक युवा रिश्तेदार हों. ब्रिटेन के शाही विवाहों में, शाही विवाहों के सामान विस्तृत विवाहों में, या विक्टोरियन शैली पर आधारित विवाहों में यह प्रथा बहुत प्रचलित है। इतिहास के अनुसार, उनके वस्त्र दुल्हन या दूल्हे के परिवार वालों की ओर से दिए जाते थे, लेकिन अधिकांश आधुनिक जोड़े यह अपेक्षा करते हैं कि फ्लावर गर्ल के माता-पिता उसके वस्त्रों का मूल्य दें और प्रतिभागिता से सम्बंधित उसके अन्य खर्चे भी वहन करें. उसका पुरुष समकक्ष रिंगबियरर या पेज ब्वाय होता है। प्रायः रिंग बियरर और फ्लावर गर्ल एक जोड़े के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं और उनके वस्त्र भी दूल्हा और दुल्हन के वस्त्रों के बिलकुल सामान ही होते हैं, बस उनकी नाप छोटी होती है। विवाह समारोह या कोटिलियन में एक पेज ब्वाय एक युवा पुरुष अटेंडेंट होता है। इस प्रकार के विवाह अटेंडेंट का प्रचालन पहले की अपेक्षा काफी कम हो गया है, लेकिन अब भी यह युवा रिश्तेदारों या रिश्तेदारों व मित्रों के बच्चों को विवाह में शामिल करने का एक माध्यम है। ब्रिटेन के शाही विवाहों में पेज ब्वाय प्रायः ही दिखायी पड़ते हैं। कोटिलियन समारोहों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए वहां कई पेज ब्वाय उपस्थित होते हैं। पारंपरिक रूप से, पेज ब्वाय दुल्हन की पोशाक के पिछले घेर को संभालता है, विशेष रूप से, यदि दुल्हन द्वारा पहनी गयी पोशाक का पिछला घेर काफी अधिक है तो. घेर को संभालने में होने वाली कठिनाई के कारण, पेज ब्वाय की आयु सात वर्ष से कम नहीं रखी जाती और इससे अधिक आयु के बच्चों को अन्य जटिल कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। औपचारिक विवाह में, रिंग बियरर एक विशेष पेज ब्वाय होता है जो वधू पक्ष के लिए विवाह की अंगूठी लेकर आता है। यह लगभग सदैव ही प्रतीकात्मक होता है, जिसमे रिंग बियरर एक विशाल सफ़ेद सैटिन कपड़े की तकिया लेकर आता है जिसपर कि नकली अंगूठियां जड़ी होती हैं, जबकि विवाह की असली अंगूठियां बेस्ट मैन की सुरक्षा में रखवायी जाती हैं। यदि वास्तविक अंगूठियों का प्रयोग किया जाता है तो, उन्हें धागे की सहायता से तकिये पर टांक दिया जाता है जिससे कि वह दुर्घटनापूर्वक खो न जायें. रिंग बियरर की एक अलग भूमिका अपेक्षाकृत आधुनिक रीति है। आज के सामान्य वैवाहिक समाराहों में, बेस्ट मैन ही अंगूठियां लेकर जाता है। रिंग बियरर्स प्रायः छोटे भाई या भतीजे होते हैं और उनकी आयु की सीमा भी फ्लावर गर्ल्स के ही सामान होती है, जिसका आशय यह है कि वह 5 वर्ष से कम और 10 वर्ष से अधिक आयु के नहीं होते. यदि विवाह करने वाले जोड़े के विवाह पूर्व भी बच्चे हैं तो, उनका अपना बच्चा रिंग बियरर बन सकता हैं। क्वायन बियरर भी रिंग बियरर के ही सामान होता है। क्वायन बियरर एक युवा लड़का होता है जो विवाह के सिक्के लाने के लिए विवाह पथ पर चलता है। विवाह के सिक्के यां क्वायंस आम तौर पर वेडिंग एरे के नाम से जाने जाते हैं।. सिक्के आशीर्वाद के रूप में उत्सवकर्ता को दे दिए जाते हैं। सिक्कों में आमतौर पर 13 सोने और चांदी के सिक्के होते हैं, जो ईसा मसीह और उनके धर्मदूतों के प्रतीक होते हैं। इतिहास के अनुसार, स्पेन के औपनिवेशिक शासकों ने यह परंपरा आरम्भ की थी। संयुक्त राज्य, कनाडा और विश्व के अन्य कई देशों में, एक अनुष्ठानकर्ता वह व्यक्ति होता है जो विवाह, अंत्येष्टि, नामकरण, वयस्कता और अन्य रिवाजों की धार्मिक या धर्म निरपेक्ष अनुष्ठान सम्बन्धी रीतियों का निष्पादन करता है। अधिकांश अनुष्ठानकर्ता विधिवत रूप से नियुक्त पादरी होते हैं, जबकी कुछ अन्य कानूनी अधिकारी होते हैं और इसके आलावा अन्य अनुष्ठानकर्ता विश्व की मानवीय संस्थाओं द्वारा अधिकृत होते हैं। अनुष्ठानकर्ता ऐसे स्थानों व समय पर वैकल्पिक और गैर परंपरागत अनुष्ठान कर सकते हैं जो एक मुख्य धारा का पादरी नहीं कर सकता. कुछ अनुष्ठानकर्ता समलैंगिक विवाह और प्रतिबद्धता अनुष्ठान भी करवाते हैं। इन्हें उत्सवकर्ता भी कहा जाता है, ये प्रायः बगीचों, समुद्र तटों, पर्वतों पर, नावों में, लम्बी पैदल यात्रा के दौरान, होटल में, उत्सव गृहों में, निजी भवनों में और अन्य कई स्थानों पर समारोहों का आयोजन करते हैं। संयुक्त राज्य के प्रत्येक राज्य में इस सन्दर्भ में अलग कानून है कि किसे विवाह समारोह करवाने के अधिकार है, लेकिन अनुष्ठानकर्ता या उत्सवकर्ता प्रायः पादरी के रूप में श्रेणीबद्ध होते हैं और उनके पास एक विधिवत नियुक्त पादरी के सम्मान ही अधिकार एवं जिम्मेदारियां होती हैं। कनाडा और मेसाचुसेट्स, कनेक्टिकट, डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया, इयोवा, न्यू हेम्पशायर और वरमॉन्ट के यूएस राज्य, उत्तरी अमेरिका के उन कुछ मात्र स्थानों में से हैं जहां समलैंगिक विवाह वैध है, यहां अनुष्ठानकर्ता और उत्सवकर्ता अनेक एलजीबीटी विवाह संपन्न करवाते हैं। 2010 के अनुसार, यूरोप के भी सात देशों में समलैंगिक विवाह कानूनी रूप से वैध है, इन देशों में बेल्जियम, आइसलैंड, नीदरलैंड, नौर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडेन, दक्षिणी अमेरिका का एक देश, अर्जेन्टाइना और अफ्रीका का एक देश, दक्षिणी अफ्रीका आदि शामिल हैं। स्कॉटलैंड में, रजिस्ट्रार जनरल द्वारा 2005 में जारी नियम के समय से, मानवीय विवाह अब वैधानिक माने जाते हैं, किन्तु इसकी शर्त यह है कि वह स्कॉटलैंड की मानवीय संस्था द्वारा अधिकृत अनुष्ठानकर्ता द्वारा करवाया जाये, यह घटना स्कॉटलैंड को विश्व के मात्र उन तीन देशों में से एक बनाती है जहां ऐसा मामला अस्तित्व में है। अनुष्ठानकर्ता पादरी से इस प्रकार भिन्न होते हैं कि वह व्यापक रूप से असम्बद्ध जनता की सेवा करते हैं, जबकि पादरी आम तौर पर किसी संस्था जैसे अस्पताल या अन्य स्वस्थ्य सुरक्षा केंद्र, सेना आदि के द्वारा नियुक्त होते हैं। ऑस्ट्रेलिया में, अनुष्ठानकर्ताओं की भूमिका थोड़ी भिन्न होती है, जोकि स्थानीय व राष्ट्रीय कानून द्वारा नियमित होती है। अधिक जानकारी के लिए देखें अनुष्ठानकर्ता . संयुक्त राज्य में, अनुष्ठानकर्ता व्यवसायिक समारोह संपादक होते हैं जो समाज व व्यक्ति विशेष की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुष्ठान और रिवाजों की शक्ति व प्रभाव में आस्था रखते हैं। वह ऐसे व्यक्तिगत अनुष्ठानों के निर्माण और निष्पादन के लिए अपने ग्राहक के साथ मिलकर काम करते हैं, जिनसे उनके ग्राहक की आस्था, जीवन दर्शन और व्यक्तित्व की एक झलक मिलती हो, ना कि स्वयं अनुष्ठानकर्ता के व्यक्तिगत विचारों की. अधिक जानकारी के लिए देखें अनुष्ठानकर्ता . क्वेकर मतानुयायियों में विवाहों के जोड़े बिना किसी अन्य पक्ष के हस्तक्षेप के ही विवाह कर लेते हैं। शिंटो शादी में एक दुल्हन भारतीय मुसलमान दुल्हन दो दूल्हे और उनकी शादी की पार्टी के कुछ अपने दुल्हन गाउन में एक दुल्हन दुल्हन को चूमना 19 वीं सदी के समय में एक दुल्हन एक मध्ययुगीन शादी समारोह के जर्मन लकड़ी का सांचा स्कैंडिनेवियाई दूल्हे और नौकरानी फ्रेंच रॉयल्टी इस लेख की सामग्री सम्मिलित हुई है ब्रिटैनिका विश्वकोष एकादशवें संस्करण से, एक प्रकाशन, जो कि जन सामान्य हेतु प्रदर्शित है।.
पुराना वेम्बली स्टेडियम /ˈwɛmbli/, वेम्बली में एक फुटबॉल स्टेडियम, उत्तर पश्चिम लंदन के एक उपनगर, अब 2007 में खोला गया है कि नए वेम्बली स्टेडियम के कब्जे में साइट पर खड़ा था। यह वार्षिक एफए कप फाइनल में, पाँच यूरोपीय कप फाइनल में, 1948 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, 1966 के विश्व कप फाइनल, यूरो 96 के फाइनल की मेजबानी के लिए प्रसिद्ध था। वेम्बली स्टेडियम की, पेले "वेम्बली फुटबॉल के गिरजाघर है। यह फुटबॉल की राजधानी है और यह फुटबॉल के दिल ने कहा," दुनिया की सबसे प्रसिद्ध फुटबॉल स्टेडियम के रूप में अपनी स्थिति की मान्यता में. स्टेडियम इंग्लैंड और वेम्बली के लिए एक चिह्न था, 2003 में विध्वंस से पहले, जो कई समर्थकों को परेशान कर दिया.
कलिगोपाल असम का परिद्ध लोक नृत्य है।
मेरा हक 1986 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
भागीरथी भारत की एक नदी है। यह उत्तराखंड में से बहती है और देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। उद्गम स्थल - गौमुख, गंगोत्री उत्तरकाशी उत्तराखंड सहायक नदियाँ - रुद्रागंगा,केदारगंगा,जाडगंगा/जहाँव्ही, सियागंगा,असीगंगा,भिलंगना,अलकनंदा भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है। भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं। भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है। सहायक नदियां कपिल नेगी बड़कोट उत्तरकाशी द्वारा प्रकाशित। सहायक नदियाँ इतिहास शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल हके बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन इसके बाद गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। इसके तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। भारत में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-पद्मा नदी का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कलकत्ता पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है। भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की कथा है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है- गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृतारोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ- सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ।केशिनी- जिसके असमंजस नामक पुत्र हुआ।सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।
डिजिटल इमेजिंग सिस्टम में रंग प्रबंधन विभिन्न उपकरणों द्वारा रंग अभ्यावेदन में नियंत्रित रूपांतरण है।
कॊर्तिकोट में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
निर्देशांक: 28°37′N 77°14′E / 28.61°N 77.23°E / 28.61; 77.23सुदर्शन पार्क, दिल्ली दिल्ली का एक आवासीय क्षेत्र है।
क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले योद्धा वर्ण के मुल निवासी हैं, इन्हें पहाड़ी राजपुत, खस राजपुत, नेपाली या गोर्खाली क्षत्रिय भी कहाँ जाता है। ये एक हिन्द-आर्य भाषिक जाति हैं। क्षेत्री या छेत्री या क्षथरीय सब क्षत्रिय के अपभ्रंश हैं और ये हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत क्षत्रिय वर्ण में आते हैं। ये लोग मूल रूप से सैनिक, राजा और प्रशासनिक क्षेत्र में काफी आगे हैं। ये बाहुन और खस दलित के जैसे खस समुदाय के एक विभाजन हैं। क्षेत्री नेपाल के कुल जनसंख्या में सर्वाधिक 16.6% हैं। इस जाति को नेपाल में सत्तारुढ माना जाता है। इन लोगों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न इतिहासकार और खोजकर्ता जेसै कि डोरबहादुर विष्ट और सूर्यमणि अधिकारी, आदि के अनुसार नेपाल के पश्चिमी पहाड़ी इलाका कर्णाली प्रदेश में हुआ था। इस जाति के पूर्वज पूर्वी इरानी भाषिक खस जाति हैं जो बाह्लिक-गान्धार क्षेत्रमें पाए जाते थे। आज ये नेपाल के सभी क्षेत्रों और भारत के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं। ये लोग पूर्णत: हिन्दु होते हैं और स्थानिय मष्टो देवता की पुजा करते हैं। इस पुजा को मष्ट पुजा या देवाली कहते हैं। इन का मातृभाषा नेपाली भाषा है और ये इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हैं। नेपाल के खस राजवंश, खप्तड राजवंश, सिंजा राजवंश, थापा वंश, बस्नेत, कुँवर और पाँडे वंश, दरबारिया समुह और नेपाल के पिछले समय के क्रुर शासक राणा वंश भी क्षेत्री जाति में आते हैं। क्षेत्री अधिकतर नेपाल सरकार और नेपाली सेना के उच्च पद पर कार्यरत पाए जाते हैं। इन के लिए भारतिय सेना में एक सैनिक दस्ता 9वीं गोरखा रेजिमेन्त आरक्षित है। क्षेत्री क्षत्रिय की नेपाली बोलीचाली के शब्द हैं। क्षेत्री संस्कृत शब्द क्षत्रिय के सिधे अप्रभंश हैं। इन्को खसिया भि कहाँ जाता हे। छेत्री और ठकुरी लोगके थर व पारिवारिक नाम निम्न लिखित है: A ऐ - Air K क - Kathayat B ब - Basnet/Basnyat, Bisht/Bista, Banshi, Barma, Baruwal B बा - Baniya, Bam B बु - Budathoki, Budha B बो - Bohora, Bogati C च - Chand, Chauhan, Chhetri/Kshetri D दा - Dangi D धा - Dhami G घ - Gharti H ह - Hamal K क - Karki, Katuwal K कु - Kunwar K ख - Khadka, Khatri K खा - Khati M म - Malla, Mahat P पा - Pande/Pandey, Paal R रा - Rana, Rajaghat Raut/Rawat, Rawal, Rathore, Raya, Rayamajhi R रो - Roka/Rokka/Rokaya S स - Samal, Sanjel S सि - Singh, Silwal S से - Sen, shakya S शा - Shah, Shahi T था - Thapa, Thakuri
सनकाफल, लोहाघाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
नृपकाम अथवा नृप काम होयसल राजवंश का एक राज था। यह द्वार समुद्र के होयसल राजाओं में से एक था और इसका उत्तराधिकारी विनयादित्य बना।
इंडिया अगेंस्ट करप्शन भारत का राष्ट्र-व्यापी जन-आंदोलन है, जिसके द्वारा देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कानून बनाने की मांग की जा रही है। कई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता जैसे अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल, मेधा पाटेकर, किरण बेदी इत्यादि इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।भ्रष्टाचार विरोधी भारत नामक गैर सरकारी सामाजिक संगठन का निमाण करेंगे। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागु कराने के लिए सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरु किया गया। 16 अगस्त में हुए जन लोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जन समर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, अन्ना हजारे, 5 अप्रैल 2011 से नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठ गए थे। उनका उद्देश्य भारत सरकार को जन-लोकपाल बिल पारित करने के लिए बाध्य करना था। उनके अनशन को संपूर्ण भारत में भारी समर्थन मिल रहा था। 5 अप्रैल 2011 के आमरण अनशन के दोरान सरकार ने भरोसा दिया था कि सरकार आप के साथ मिल कर नया मसोदा तैयार करेगी। लेकिन अन्ना टीम कि कोई बात नहीं सुनी गई व सरकारी जोकपाल संसद में रखा गया जिस के कारण अन्ना को दोबारा 16.08.11 को फिर से आमरण अनशन पर जाना पड़ा जिसको इतना समर्थन मिला कि मैंने अपनी 50 साल कि जिन्दगी में नहीं देखा. 12 दिन तक रामलीला मदान में दो लाख लोग हर रोज आते रहे। जिस के कारण सरकार को दोबारा नए सिरे से जनलोकपाल लाने का वायदा किया है। ये वायदा भी पूरा नहीं होने पर फिर से जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठना पडा। वहाँ पर भी जब सुनवाई नहीं हुई तो अन्ना साहब को पार्टी बना कर चुनाव लड़ने की घोसना करनी पड़ी। लेकिन जब पार्टी बनाने की बात आई तो अन्ना साहब ने पार्टी में शामिल होने से यह कह कर इनकार कर दिया कि राजनीति तो कीचड़ है। जिस पर 26 नवम्बर 2012 को अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी बनाई गई। पार्टी बनने पर मिडिया ने साथ नहीं दिया जिस पर पार्टी के कार्यकर्ताओ को घर-घर जा कर पार्टी का प्रचार करना पड़ा जिस का फायदा यह मिला कि 4 दिसम्बर 2012 को चुनाव होने पर आम आदमी पार्टी को 70 में से 28 सीटो पर जीत मिली। परिणाम सवरूप कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आम आदमी पार्टी का समर्थन करना पड़ा व अरविन्द केजरीवाल ने 28 दिसम्बर 2013 को राम लीला मैदान में मुख्य मंत्री की शपथ ली। इंडिया अगेंस्ट करप्शन संस्था ने एक वोट बैंक प्रारंभ किया है। इस वोट बैंक के सदस्यों को शपथ दिलाई जाती है, कि वो ऐसे किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव में वोट नहीं देंगे जो जन-लोकपाल बिल को पारित नहीं करते। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए जन लोकपाल बिल को तैयार किया गया है। जन-लोकपाल संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था।
2314 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 2314 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है- उपरोक्त अन्तर के आधार पर 2314 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते है।
काव्य रीति से अभिप्राय मोटे तौर पर काव्य रचना की शैली से है। यद्यपि संस्कृत काव्यशास्त्र में यह एक व्यापक अर्थ धारण करने वाला शब्द है। काव्य रीति को काव्य की आत्मा मानकर काव्य पर विचार करने वाला एक संप्रदाय रीति संप्रदाय के नाम से विख्यात है जिसके प्रवर्तक आचार्य वामन हैं। उन्होंने काव्यालंकार सूत्रवृत्ति में रीति को काव्य की आत्मा घओषित किया है। रीतिरात्मा काव्यस्य। वे रिती को पदरचना की विशिष्ट रीति मानते हैं। विशिष्ट पदरचना रितिः। विशिष्ट शब्द को स्पष्ट करते हुये वे कहते हैं विशेषो गुणात्मा। वामन ने गुण को विशेष महत्व दिया है। रीति काव्य की आत्मा है और गुण रीति के कारणभूत वैशिष्ट्य की आत्मा है।
उच्च पर्वतों की तलहटी से स्थित पठारों को पीडमाण्ट, पर्वतपादीय या गिरीपद पठार कहते हैं। बहिर्जात बलों से उत्पन्न पठारजलीय पठार | वायव्य पठार | हिमानी पठार | उस्यन्त पठार
निर्देशांक: 25°30′N 86°29′E / 25.5°N 86.48°E / 25.5; 86.48 बलेथा बेलदौर, खगड़िया, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 24°49′N 85°00′E / 24.81°N 85°E / 24.81; 85 इमनाबाद इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
वलसपल्लॆ में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कडप जिले का एक गाँव है।
मजियाखेत, बागेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है। गृहनिर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। मकान की नींव में घी और दुग्ध छिड़का जाता था। ऐसा विश्वास है कि इससे गृहस्वामी को दुधारु गाएँ प्राप्त हेती हैं एवं गृहपत्नी वीर पुत्र उत्पन्न करती है। खेत में बीज डालते समय मंत्र बोला जाता था कि विद्युत् इस अन्न को क्षति न पहुँचाए, अन्न की विपुल उन्नति हो और फसल को कोई कीड़ा न लगे। पशुओं की समृद्धि के लिए भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग होता था जिससे उनमें कोई रोग नहीं फैलता था। गायों को खूब संतानें होती थीं। यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता था। इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती थी। मार्ग में हिंसक पशु या चोर और डाकू नहीं मिलते थे। व्यापार में लाभ होता था, अच्छे मौसम के लिए भी यह मंत्र जपा जाता था जिससे दिन और रात्रि सुखद हों, स्वास्थ्य लाभ हो तथा खेती को कोई हानि न हो। पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माने जाते थे। इससे बच्चा स्वस्थ रहता था, उसकी आयु बढ़ती थी और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता था। इसके अलावा भूत, पिशाच तथा रोग उसके पास नहीं आ सकते थे। षोडश संस्कारों में भी मंत्र का अंश कम नहीं है और यह सब स्वस्तिक मंत्र हैं जो शरीररक्षा के लिए तथा सुखप्राप्ति एवं आयुवृद्धि के लिए प्रयुक्त होते हैं।
निर्देशांक: 25°36′40″N 85°08′38″E / 25.611°N 85.144°E / 25.611; 85.144 धनरूआ पटना, बिहार का एक प्रखण्ड है।
निर्देशांक: 25°27′N 81°51′E / 25.45°N 81.85°E / 25.45; 81.85 पट्टी बैरिशल उपरहार फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
खगोलीय निर्देशांक पद्धति ब्रह्माण्ड में किसी भी प्रकार की खगोलीय वस्तु का स्थान निर्धारित करने का एक तरीक़ा है। जहाँ तक मनुष्यों का अनुभव है पूरा ब्रह्माण्ड एक तीन आयामों वाला दिक् है। इसमें एक निर्देशांक पद्धति के ज़रिये किसी भी स्थान को अंकों के साथ बताया जा सकता है। खगोलशास्त्रियों के समुदाय में कई भिन्न खगोलीय निर्देशांक प्रणालियों का इस्तेमाल होता है। इन सब में एक 'मूल समतल' चुना जाता है और एक प्रमुख दिशा को चुना जाता है। अब किसी भी वस्तु का स्थान तीन चीज़ों से बताया जा सकता है: सबसे ज़्यादा प्रयोगित प्रणालियाँ नीचे की तालिका में दी गई हैं। हर एक का नाम उसके चुने हुए मूल समतल के नाम पर रखा गया है।
उष्मा समीकरण महत्वपूर्ण आंशिक अवकल समीकरण है जो किसी वस्तु के किसी क्षेत्र में समय के साथ ताप की स्थिति बताता है। तीन स्पेस चरों एवं समय t के किसी फलन u के लिये उष्मा समीकरण निम्नवत है: ऐसे भी लिखा जाता है या कभी कभी
प्रीतम 1971 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
मेरा जवाब 1985 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है।
चॆन्नूरुवारिपालॆं में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
13 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 13 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है- उपरोक्त अन्तर के आधार पर 13 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते है।
निर्देशांक: 27°11′N 78°01′E / 27.18°N 78.02°E / 27.18; 78.02 भोजपुर खैरागढ़, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। · अंबेडकर नगर जिला · आगरा जिला · अलीगढ़ जिला · आजमगढ़ जिला · इलाहाबाद जिला · उन्नाव जिला · इटावा जिला · एटा जिला · औरैया जिला · कन्नौज जिला · कौशम्बी जिला · कुशीनगर जिला · कानपुर नगर जिला · कानपुर देहात जिला · खैर · गाजियाबाद जिला · गोरखपुर जिला · गोंडा जिला · गौतम बुद्ध नगर जिला · चित्रकूट जिला · जालौन जिला · चन्दौली जिला · ज्योतिबा फुले नगर जिला · झांसी जिला · जौनपुर जिला · देवरिया जिला · पीलीभीत जिला · प्रतापगढ़ जिला · फतेहपुर जिला · फार्रूखाबाद जिला · फिरोजाबाद जिला · फैजाबाद जिला · बलरामपुर जिला · बरेली जिला · बलिया जिला · बस्ती जिला · बदौन जिला · बहरैच जिला · बुलन्दशहर जिला · बागपत जिला · बिजनौर जिला · बाराबांकी जिला · बांदा जिला · मैनपुरी जिला · महामायानगर जिला · मऊ जिला · मथुरा जिला · महोबा जिला · महाराजगंज जिला · मिर्जापुर जिला · मुझफ्फरनगर जिला · मेरठ जिला · मुरादाबाद जिला · रामपुर जिला · रायबरेली जिला · लखनऊ जिला · ललितपुर जिला · लखीमपुर खीरी जिला · वाराणसी जिला · सुल्तानपुर जिला · शाहजहांपुर जिला · श्रावस्ती जिला · सिद्धार्थनगर जिला · संत कबीर नगर जिला · सीतापुर जिला · संत रविदास नगर जिला · सोनभद्र जिला · सहारनपुर जिला · हमीरपुर जिला, उत्तर प्रदेश · हरदोइ जिला
इस परिवार की भाषाएं आस्ट्रेलिया महाद्वीप के सभी प्रदेशों में मूलनिवासियों द्वारा बोली जाती हैं और एक ही स्रोत से निकली हैं। ये अंत में प्रत्यय जोड़नेवाली, योगात्मक, अश्लिष्ट प्रकृति की हैं, इस कारण कुछ लोग इन्हें द्राविड़ भाषाओं से संबद्ध समझते थे। इस परिवार की टस्मेनिया भाषा अब समाप्त हो चुकी है। अन्य भाषाएँ भी जंगली जातियों की हैं। समस्त आस्ट्रेलिया महाद्वीप की जनंसख्या में ये मूलनिवासी केवल 50-60 हजार रह गए हैं। इन भाषाओं में महाप्राण व्यंजनों को छोड़कर कवर्ग, तवर्ग और पवर्ग के तीन-तीन व्यंजन हैं। चारों अतस्थ भी हैं। स्वरों में इ, ई, उ, ऊ, ए, ए, ओ, ओ विद्यमान हैं। एकवचन, द्विवचन और बहुवचन का प्रयोग होता है। कहीं-कहीं त्रिवचन भी है। क्रिया की प्रक्रिया जटिल है जिसमें सर्वनाम जुड़ जाता है। संज्ञा की कर्तृ, कर्म, संप्रदान, संबंध, अपादान आदि विभक्तियाँ भी हैं।
श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास गोनेर-सिरोली सड़क पर स्थित पुरामहत्व की कलात्मक बावड़ी
वसास्नेही ऐसे रासायनिक यौगिक होते हैं जो वसा, तेलों, लिपिडों और हेक्सेन व टाल्यूईन जैसे अध्रुवीय विलायकों में घुल जाते हैं। कुछ रसायनों के अलावा देखा जाता है कि वसास्नेही रसायन अन्य वसास्नेही रसायनों में घुल जाते हैं जबकि जलस्नेही रसायन जल व अन्य जलस्नेही रसायनों में घुल जाते हैं।
थिओफ्रैस्टस ग्रीस देश के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं प्रकृतिवादी थे। इनका जन्म ईसा पूर्व 372 में, लेज़बासॅ द्वीप के एरेसस नामक नगर में हुआ था तथा मृत्यु ईसा पूर्व 287 में हुई। लेज़बॉस में ही इन्होंने ल्युसिपस से दर्शनशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद एथेन्स चले गए। यहाँ पर प्लेटो से संपर्क बढ़ा। प्लेटों की मृत्यु के पश्चात्‌, आपका घनिष्ठ संबंध प्रसिद्ध दर्शनिक ऐरिस्टॉट्ल से हुआ। कहा जाता है, थिओफ्रैस्टस नाम भी, बातचीत के सिलसिले में, ऐरिस्टॉट्ल का ही दिया हुआ है। ऐरिस्टॉट्ल अपने वसीयतनामों में, थिओफ्रैस्टस को ही अपने बच्चों का अभिभावक बना गए थे तथा उन्हें अपनी पुस्तकालय और मूल निबंध, लेख आदि सब कुछ सौंप गए थे। ऐरिस्टॉट्ल के कैलसिस नगर चले जाने के बाद, उनके स्थापित विद्यालय के ये उत्तराधिकारी हुए और इस पद पर वे 35 वर्ष तक रहे। इस विद्यालय में संसार के हर कोने से छात्र आते थे। आपने ऐरिस्टॉट्ल के दर्शनशास्त्र का पूरा अनुकरण किया। आप की रुचि विशेषकर वनस्पतिशास्त्र एवं प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे अग्नि, वायु आदि की ओर थी। आपने लगभग 200 निबंध एवं लेख, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, कानून, पदार्थ विज्ञान, काल्पनिक वस्तुओं, वृक्षों, कविता आदि पर लिखे। इनमें से बहुतों का कोई पता नहीं लगता है। आपकी मुख्य रचनाओं में वनस्पतिशास्त्र पर लिखे दो निबंध हैं : पहला "वनस्पतियों का इतिहास" तथा दूसरा "पौधों के प्रवर्तक" है। प्राचीन तथा मध्य काल में लिखे हुए वनस्पतिशास्त्र के ग्रंथों में इनका बड़ा महत्व है। थिओफ्रैस्टस की एक अन्य रचना में उनके समय के जीवन का सुंदर चित्रण है।
ईडो एक आयोजित भाषा है जिसके निर्माता चाहते थे की वह एक वैश्विक भाषा बने। उसका व्याकरण अत्यंत नियमशील होनेके कारण वह बिलकुल आसानीसे सिखी जा सकती है। यह भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है जिसमें 26 अक्षर हैं। उदाहरण: Ido es la maxim facila linguo. ईदो सबसे आसान भाषा है।
आवारा पागल दीवाना 2002 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। सभी गीत समीर द्वारा लिखित; सारा संगीत अनु मलिक द्वारा रचित।
निर्देशांक: 27°13′N 79°30′E / 27.22°N 79.50°E / 27.22; 79.50 परनपुर पल्यौरा छिबरामऊ, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
मूलामट्टमं केरल के इडुक्की ज़िले के इडुक्की तालूक के अंतरगत अराक्कुलम ग्राम पंचायत के मुख्यालय है। ये तोटुपुज़ा शहर से 22 क़ी मी दूर दक्षिण पूर्व की ओर तोटुपुज़यार नदी के किनारे पे बसा हुआ है। ये गाव तीनों तरफ से पर्वतमालाएं घिरा हुआ और तराई में बसा होने के कारण यह जगह सुरम्य स्थान है, इसलिए दक्षिण भारतीय भाषा फिल्मों का बहुत फिल्में यहाँ फिल्माए गए हैं। भारत में सबसे बड़ी भूमिगत जल विद्युत पावर स्टेशन के कारण मूलामट्टमं प्रसिद्ध है। मूलामट्टमं पावर स्टेशन भारत में सबसे बड़ी भूमिगत जल विद्युत परियोजना है, इडुक्की बांध से पानी भूमिगत पाइप द्वारा यहाँ ले आकर 669.2 मीटर ऊचाई से नीचे पानी 6 जनरेटरों पे गिराकर 780 मेगावाट का बिजली उद्पादन करता है। बिजली उद्पादन के बाद में, पानी त्रिवेणी संगमं पे तोटुपुऴायार नदी जा मिलते है, इसलिए तोटुपुऴायार नदी 365 दिनों में पानी से भरपुर है। कडि सुरक्षा के वजह से पर्यटकों को प्रवेश प्रतिबंध है। सागौन बागानों, इलाप्पल्ली जल-प्रपात, त्रिवेणी संगमं, हैंगिगं पुल, तुम्बिच्ची काल्वरी समुच्चयम, नाटुकाणी मंडप, मलंकारा बांध, कुडायात्तूर पर्वत, वायानाक्कावु मंदिर और इलावीऴापून्चिरा आदि पर्यटकों केलिए मुख्य आकर्षण का जगह हैं। दुनिया का दूसरा और एशिया का पहिला आर्क बांध इडुक्की यहां से 45 कि॰मी॰ दूर पे है। स्कूल: IHEP यूपी स्कूल, गवर्नमेंट वोकेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल, सेंट जॉर्ज स्कूल, सेक्रेड हार्ट अंग्रेजी मीडियम हायस्कूल कॉलेज: सेन्ट जोसफ कॉलेज, सीएमआई पाद्री लोगों से 1980 में स्थापित किया गया था। यह मूलामट्टम से 5 किमी दूर अराक्कुळम स्थित है। यह प्रबंधन, सामाजिक कार्य, रसायन विज्ञान, वाणिज्य, अर्थशास्त्र और अंग्रेजी भाषा में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करता है।
चन परदेसी 1980 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है।
एक फूल दो माली 1969 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। सन्जय खन और साध्ना
हीरो हिन्दुस्तानी 1998 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
ज़ी स्टूडियो भारत में प्रसारित होने वाला एक अंग्रेज़ी फिल्म चैनल है।
फारस की खाड़ी, पश्चिम एशिया में हिन्द महासागर का एक विस्तार है, जो ईरान और अरब प्रायद्वीप के बीच तक गया हुआ है। 1980-1988 के ईरान इराक युद्ध के दौरान यह खाड़ी लोगों के कौतूहल का विषय बनी रही, जब दोनों पक्षों ने एक दूसरे के तेल के जहाजों पर आक्रमण किया था। 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान, फारस की खाड़ी एक बार फिर से चर्चा का विषय बनी, हालाँकि यह संघर्ष मुख्य रूप से एक भूमि संघर्ष था, जब इराक ने कुवैत पर हमला किया था और जिसे बाद में वापस पीछे ढकेल दिया गया। फारस की खाड़ी में कई अच्छी मछली पकड़ने के जगहें हैं, व्यापक प्रवाल भित्तियाँ और प्रचुर मात्रा में मोती कस्तूरी है, लेकिन इसकी पारिस्थितिकी का औद्योगीकरण के कारण क्षय हुआ है, विशेष रूप से, युद्ध के दौरान फैले तेल और पेट्रोलियम ने इस पर विपरीत प्रभाव डाला है। अक्सर "फारस की खाड़ी" को अधिकतर अरब राष्ट्रों द्वारा इसके विवादास्पद नाम "अरब की खाड़ी" या सिर्फ "खाड़ी" कहकर पुकारा जाता है, हालाँकि इन दोनों नामों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है। अंतरराष्ट्रीय जल सर्वेक्षण संगठन इसके लिए "ईरान की खाड़ी " नाम का इस्तेमाल करता है। फ़ारस की खाड़ी का राष्ट्रीय दिवस निर्देशांक: 26°54′17″N 51°32′51″E / 26.90472°N 51.54750°E / 26.90472; 51.54750
रीमा क्वीटी, कांडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
खान से निम्नलिखित का बोध हो सकता है-
मधु और कैटभ सृष्टि के निर्माण की प्राचीन भारतीय अवधारणा से जुड़े हुए असुर हैं। इन दोनों का जन्म कल्पान्त तक सोते हुए विष्णु के दोनों कानों से हुई थी। जब वे ब्रह्मा को मारने दौड़े तो विष्णु ने उन्हें नष्ट कर दिया। तभी से विष्णु को 'मधुसूदन' एवं 'कैटभाजित्' कहते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कैटभ का नाश उमा द्वारा हुआ था जिससे उन्हें 'कैटभा' कहते हैं। हरिवंश पुराण की अनुश्रुति है कि दोनों राक्षसों की मेदा की ढेर के कारण पृथ्वी का नाम मेदिनी पड़ गया।
873 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 873 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है- उपरोक्त अन्तर के आधार पर 873 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते हैं।
वैंकूवर व्हाइटकैप्स एफसी, एक प्रसिद्ध फुटबॉल टीम है, जो वैंकूवर में आधारित है। वे मेजर लीग सॉकर में खेलते हैं। इनका घरेलू स्टेडियम बीसी प्लेस है।
स्टेनबिक बैंक ट्वेंटी-20 पूर्व महानगर बैंक ट्वेंटी-20 के रूप में जाना जिम्बाब्वे में घरेलू ट्वेंटी-20 क्रिकेट प्रतियोगिता है। यह 2007 में गठन किया और जिम्बाब्वे क्रिकेट द्वारा बनाए रखा गया था। यह से जिम्बाब्वे और कुछ अंतरराष्ट्रीय सितारों के सभी राष्ट्रीय और घरेलू खिलाड़ियों की सुविधा है। इस टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में दक्षिण अफ्रीका में स्टैंडर्ड बैंक प्रो-20 सीरीज में खेलने के लिए जिम्बाब्वे शेवरॉन के रूप में बनेगी। हाल ही में, टूर्नामेंट कुछ उच्च गुणवत्ता वाले क्रिकेट, और इस तरह के ब्रायन लारा, रेयान साइडबाटम, क्रिस गेल, शॉन टेट, इयान हार्वे, और डर्क नानेस के रूप में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सितारों के आकर्षण के साथ प्रोफ़ाइल में पहुंच गया है। टूर्नामेंट विशेष रूप से जिम्बाब्वे में क्रिकेट के पुनर्गठन के बाद प्रोफ़ाइल में गुलाब। यह 2009-10 सत्र में बहुत सफल है कि टूर्नामेंट फिर नवंबर में आयोजित किया गया था। 2009-10 में एक घरेलू क्रिकेट रिकॉर्ड 7500 दर्शकों पर्वतारोहियों और मशोनलैंड ईगल्स के बीच फाइनल देखने के लिए हरारे स्पोर्ट्स क्लब में आया। पर्वतारोहियों मौजूदा चैंपियन 2011-12 स्टेनबिक बैंक-20 सीरीज के फाइनल में मशोनलैंड ईगल्स को हराने है। यह वर्तमान में स्टेनबिक बैंक लिमिटेड द्वारा प्रायोजित है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' के नाम से जाना जाता है। उन्होने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में 15 मई 1864 को हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। धनाभाव के कारण इनकी शिक्षा का क्रम अधिक समय तक न चल सका। इन्हें जी आई पी रेलवे में नौकरी मिल गई। 25 वर्ष की आयु में रेल विभाग अजमेर में 1 वर्ष का प्रवास। नौकरी छोड़कर पिता के पास मुंबई प्रस्थान एवं टेलीग्राफ का काम सीखकर इंडियन मिडलैंड रेलवे में तार बाबू के रूप में नियुक्ति। अपने उच्चाधिकारी से न पटने और स्वाभिमानी स्वभाव के कारण 1904 में झाँसी में रेल विभाग की 200 रुपये मासिक वेतन की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। नौकरी के साथ-साथ द्विवेदी अध्ययन में भी जुटे रहे और हिंदी के अतिरिक्त मराठी, गुजराती, संस्कृत आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। सन् 1903 में द्विवेदी जी ने सरस्वती मासिक पत्रिका के संपादन का कार्यभार सँभाला और उसे सत्रह वर्ष तक कुशलतापूर्वक निभाया। 1904 में नौकरी से त्यागपत्र देने के पश्चात स्थायी रूप से 'सरस्वती'के संपादन कार्य में लग गये। 200 रूपये मासिक की नौकरी को त्यागकर मात्र 20 रूपये प्रतिमास पर सरस्वती के सम्पादक के रूप में कार्य करना उनके त्याग का परिचायक है। संपादन-कार्य से अवकाश प्राप्त कर द्विवेदी जी अपने गाँव चले आए। अत्यधिक रुग्ण होने से 21 दिसम्बर 1938 को रायबरेली में इनका स्वर्गवास हो गया। महावीरप्रसाद द्विवेदी हिन्दी के पहले लेखक थे, जिन्होंने केवल अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, बल्कि उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा था। उन्होने अनेक विधाओं में रचना की। कविता, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा, अनुवाद, जीवनी आदि विधाओं के साथ उन्होंने अर्थशास्त्र, विज्ञान, इतिहास आदि अन्य अनुशासनों में न सिर्फ विपुल मात्रा में लिखा, बल्कि अन्य लेखकों को भी इस दिशा में लेखन के लिए प्रेरित किया। द्विवेदी जी केवल कविता, कहानी, आलोचना आदि को ही साहित्य मानने के विरुद्ध थे। वे अर्थशास्त्र, इतिहास, पुरातत्व, समाजशास्त्र आदि विषयों को भी साहित्य के ही दायरे में रखते थे। वस्तुतः स्वाधीनता, स्वदेशी और स्वावलंबन को गति देने वाले ज्ञान-विज्ञान के तमाम आधारों को वे आंदोलित करना चाहते थे। इस कार्य के लिये उन्होंने सिर्फ उपदेश नहीं दिया, बल्कि मनसा, वाचा, कर्मणा स्वयं लिखकर दिखाया। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत-साहित्य की निरंतर प्रवहमान धारा का अवगाहन किया था एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक दृष्टि अपनायी थी। उन्होंने श्रीहर्ष के संस्कृत महाकाव्य नैषधीयचरितम् पर अपनी पहली आलोचना पुस्तक 'नैषधचरित चर्चा' नाम से लिखी, जो संस्कृत-साहित्य पर हिन्दी में पहली आलोचना-पुस्तक भी है। फिर उन्होंने लगातार संस्कृत-साहित्य का अन्वेषण, विवेचन और मूल्यांकन किया। उन्होंने संस्कृत के कुछ महाकाव्यों के हिन्दी में औपन्यासिक रूपांतर भी किया, जिनमें कालिदास कृत रघुवंश, कुमारसंभव, मेघदूत, किरातार्जुनीय प्रमुख हैं। संस्कृत, ब्रजभाषा और खड़ी बोली में स्फुट काव्य-रचना से साहित्य-साधना का आरंभ करने वाले महावीर प्रसाद द्विवेदी ने संस्कृत और अंग्रेजी से क्रमश: ब्रजभाषा और हिन्दी में अनुवाद-कार्य के अलावा प्रभूत समालोचनात्मक लेखन किया। उनकी मौलिक पुस्तकों में नाट्यशास्त्र, विक्रमांकदेव चरितचर्या, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और संपत्तिशास्त्र प्रमुख हैं तथा अनूदित पुस्तकों में शिक्षा और स्वाधीनता । द्विवेदी जी ने विस्तृत रूप में साहित्य रचना की। इनके छोटे-बड़े ग्रंथों की संख्या कुल मिलाकर 81 है।पद्य के मौलिक-ग्रंथों में काव्य-मंजूषा, कविता कलाप, देवी-स्तुति, शतक आदि प्रमुख है। गंगा लहरी, ॠतु तरंगिणी, कुमार संभव सार आदि इनके अनूदित पद्य-ग्रंथ हैं। गद्य के मौलिक ग्रंथों में तरुणोपदेश, नैषध चरित्र चर्चा, हिंदी कालिदास की समालोचना, नाटय शास्त्र, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, कालीदास की निरंकुशता आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अनुवादों में वेकन विचार, रत्नावली, हिंदी महाभारत, वेणी संसार आदि प्रमुख हैं। हिंदी भाषा के प्रसार, पाठकों के रुचि परिष्कार और ज्ञानवर्धन के लिए द्विवेदी जी ने विविध विषयों पर अनेक निबंध लिखे। विषय की दृष्टि से द्विवेदी जी निबंध आठ भागों में विभाजित किए जा सकते हैं - साहित्य, जीवन चरित्र, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, उद्योग, शिल्प भाषा, अध्यात्म।द्विवेदी जी ने आलोचनात्मक निबंधों की भी रचना की। उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में संस्कृत टीकाकारों की भांति कृतियों का गुण-दोष विवेचन किया और खंडन-मंडन की शास्त्रार्थ पद्धति को अपनाया है। द्विवेदी जी सरल और सुबोध भाषा लिखने के पक्षपाती थे। उन्होंने स्वयं सरल और प्रचलित भाषा को अपनाया। उनकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है और न उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों की भरमार है वे गृह के स्थान पर घर और उच्च के स्थान पर ऊँचा लिखना अधिक पसंद करते थे।द्विवेदी जी ने अपनी भाषा में उर्दू और फारसी के शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया, किंतु इस प्रयोग में उन्होंने केवल प्रचलित शब्दों को ही अपनाया। द्विवेदी जी की भाषा का रूप पूर्णतः स्थित है। वह शुद्ध परिष्कृत और व्याकरण के नियमों से बंधी हुई है। उनका वाक्य-विन्यास हिंदी को प्रकृति के अनुरूप है कहीं भी वह अंग्रेज़ी या उर्दू के ढंग का नहीं। द्विवेदी जी की शैली के मुख्यतः तीन रूप दृष्टिगत होते हैं- द्विवेदी जी ने नये-नये विषयों पर लेखनी चलाई। विषय नये और प्रारंभिक होने के कारण द्विवेदी जी ने उनका परिचय सरल और सुबोध शैली में कराया। ऐसे विषयों पर लेख लिखते समय द्विवेदी जी ने एक शिक्षक की भांति एक बात को कई बार दुहराया है ताकि पाठकों की समझ में वह भली प्रकार आ जाए। इस प्रकार लेखों की शैली परिचयात्मक शैली है। हिंदी भाषा के प्रचलित दोषों को दूर करने के लिए द्विवेदी जी इस शैली में लिखते थे। इस शैली में लिखकर उन्होंने विरोधियों को मुंह-तोड़ उत्तर दिया। यह शैली ओजपूर्ण है। इसमें प्रवाह है और इसकी भाषा गंभीर है। कहीं-कहीं यह शैली ओजपूर्ण न होकर व्यंग्यात्मक हो जाती है। ऐसे स्थलों पर शब्दों में चुलबुलाहट और वाक्यों में सरलता रहती है।'इस म्यूनिसिपाल्टी के चेयरमैन श्रीमान बूचा शाह हैं। बाप दादे की कमाई का लाखों रुपया आपके घर भरा हैं। पढ़े-लिखे आप राम का नाम हैं। चेयरमैन आप सिर्फ़ इसलिए हुए हैं कि अपनी कार गुज़ारी गवर्नमेंट को दिखाकर आप राय बहादुर बन जाएं और खुशामदियों से आठ पहर चौंसठ घर-घिरे रहें।' गंभीर साहित्यिक विषयों के विवेचन में द्विवेदी जी ने इस शैली को अपनाया है। इस शैली के भी दो रूप मिलते हैं। पहला रूप उन लेखों में मिलता है जो किसी विवादग्रस्त विषय को लेकर जनसाधारण को समझाने के लिए लिखे गए हैं। इसमें वाक्य छोटे-छोटे हैं। भाषा सरल है। दूसरा रूप उन लेखों में पाया जाता है जो विद्वानों को संबोधित कर लिखे गए हैं। इसमें वाक्य अपेक्षाकृत लंबे हैं। भाषा कुछ क्लिष्ट है। उदाहरण के लिए - हिंदी साहित्य की सेवा करने वालों में द्विवेदी जी का विशेष स्थान है। द्विवेदी जी की अनुपम साहित्य-सेवाओं के कारण ही उनके समय को द्विवेदी युग के नाम से पुकारा जाता है।
459 किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग चस से निकल्कर तलचेर के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 42 में मिल जाता है।
असदाबाद दक्षिण-पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के कुनर प्रान्त की राजधानी है। यह पाकिस्तान की सरहद से 13 किमी पश्चिमोत्तर में कुनर नदी और पेच नदी के संगम स्थल के पास एक वादी में स्थित है। असदाबाद 2,713 फ़ुट की ऊँचाई पर हिन्दू कुश पर्वतों में स्थित है। यह जलालाबाद शर से 80 किमी पूर्वोत्तर में और नावा दर्रे से 16 किमी उत्तर में है। ख़ैबर​ दर्रे के बाद नावा दर्रा हिन्दू कुश को पार करने का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है और इसमें से बहुत से तालिबान चरमपंथी उग्रवादी और तस्करी करने वाले लोग अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच आया-जाया करते हैं। आसपास के पहाड़ी इलाक़े में लोगों ने सीढ़ीदार खेतों में 10-15% प्रतिशत ज़मीन पर कृषि जारी रखी है। यहाँ वे गेंहू, चावल, गन्ना और सब्ज़ियाँ उगाते हैं।