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भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ), नई दिल्ली स्थित भारतीय वैज्ञानिकों की सर्वोच्च संस्था है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसका उद्देश्य भारत में विज्ञान व उसके प्रयोग को बढ़ावा देना है। इसके मूल रूप की स्थापना 1935 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज़ ऑफ इण्डिया नाम से हुई थी, जिसे बाद में 1970 में वर्तमान स्वरूप दिया गया है। भारत सरकार ने इसे 1945 में भारत में विज्ञान की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के रूप में दी थी। 1968 में इसे भारत सरकार की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद में भेजा गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की स्थापना भारत में विज्ञान की प्रगति तथा मानवता एवं राष्ट्र कल्याण के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का प्रसार करने के उद्देश्य से की गई थी। अकादमी जिसे पहले नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंसेज इन इंडिया के नाम से जाना जाता था, की स्थापना कुछ संस्थाओं और व्यक्तियों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी तथा इस संबंध में इंडियन साइंस काँग्रेस एसोसिएशन ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। वर्ष 1930 के अंतिम दौर में, तत्कालीन भारत सरकार ने विभिन्न राज्यों सरकारों, वैज्ञानिक विभागों, विद्वत समाजों, विश्वविद्यालयों तथा आई.एस.सी.ए. को पत्र लिखा और एक राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद के निर्माण की वांछनीयता पर उनकी राय मांगी जो अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद और इससे संबद्ध संघों के साथ मिलकर सहयोगात्मक रूप में काम करे। इसी समय नेचर के संपादक सर रिचर्ड ग्रेगोर इंडियन अकेडमी ऑफ साइंस को प्रोत्साहन देने के लिए करंट साइंस के संपादक के साथ बातचीत करने भारत आए। इस प्रस्ताव पर बहुतेरे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने विचार विमर्श किया और एक स्तरीय राष्ट्रीय परिषद के संगठन तथा कार्यप्रणाली के संबंध में उनके दृष्टिकोणों को आई.एस.सी.ए.के पुणे सत्र के दौरान, एक प्रस्ताव के रूप में सबके सामने रखा। इस योजना पर विचार करने के लिए जनवरी, 1934 में मुम्बई में आई.एस.सी.ए. की एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया। आई.एस.सी.ए. के अध्यक्ष प्रोफेसर एम.एन. साहा द्वारा रॉयल सोसाइटी, लंदन के अनुरुप, भारतीय विज्ञान अकादमी बनाने के लिए किए गए निवेदन के फलस्वरुप आई.एस.पी. ए. की आम समिति ने राष्ट्रीय वैज्ञानिक के निर्माण के प्रस्ताव को एकमत से सहमति प्रदान की। समिति ने एक ‘अकादमी समिति’ का गठन किया, जिससे आई.एस.सी.ए. के अगले सत्र में विचार के लिए एक विस्तृत ब्यौरा तैयार करने हेतु अनुरोध किया गया। समिति ने 1935 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें इन्सा नई दिल्ली डॉ॰ एल.एल. फ्रेमोर ने 3 जनवरी 1935 को संयुक्त समिति की एक विशेष बैठक में अकादमी समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। अकादमी समिति की सिफारिशों को आई.एस.सी.ए. ने सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा स्वीकार कर लिया और इस प्रकार वैज्ञानिकों के एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सांइसेज ऑफ इंडिया की नींव पड़ी। कलकत्ता में 7 जनवरी 1935 को, डॉ॰ जे.एच. हटन की उद् घाटन बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें निसि के प्रथम अध्यक्ष डॉ॰ एल.एल. फ्रेमोर ने उद् घाटन भाषण दिया। इस प्रकार इस संस्थान में उसी दिन से 1, पार्क स्ट्रीट कलकत्ता स्थित एशियाटिक सोसाइटी के प्रधान कार्यालय से अपना कार्य करना आरम्भ कर दिया। नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंसेज ऑफ इंडिया को सरकार द्वारा वैज्ञानिकों की एक प्रतिनिधि संस्था के रूप में मान्यता देने के विषय को, इसकी स्थापना के दस वर्षों के पश्चात उठाया गया। पर्याप्त विचार विमर्श और चर्चाओं के पश्चात, अक्टूबर, 1945 में नेशनल इंस्टीटयूट को एक प्रमुख वैज्ञानिक संस्था के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया गया जिसमें भारत में विज्ञान की सभी शाखाओं तो प्रतिनिधित्व मिल सके। मई 1946 में इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थानांतरित हो गया और सरकार ने इसे अधिक सहायता अनुदान देना प्रारम्भ कर दिया ताकि यात्रा, प्रकाशनों, अनुसंधान अध्येतावृत्तियों पर होने वाले खर्च को पूरा करने तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं को उनके पत्र प्रकाशित करने के लिए अनुदान प्रदान करने में होने वाले खर्च को पूरा किया जा सके। सरकार ने 1948 में मुख्यालय का भवन बनाने के लिए एक पूंजीगत अनुदान को भी मंजूरी दे दी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने 19 अप्रैल 1948 को इस भवन की नींव रखी। वर्ष 1951 में निसि का कार्यालय बहादुर शाह ज़फर मार्ग, नई दिल्ली स्थित इस वर्तमान परिसर में आ गया। जनवरी 1968 में भारत सरकार की ओर से इसे इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ साइंस की सहयोगी संस्था के रूप में र्निदिष्ट किया गया। फरवरी, 1970 में नेशनल इंस्टीटयूट, ऑफ साइंसेज ऑफ इंडिया का नाम बदल कर इंडियन नेशनल सांइस अकेडमी कर दिया गया।
निर्देशांक: 25°33′N 82°05′E / 25.55°N 82.09°E / 25.55; 82.09फूलपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है।
जापानी स्कूल नई दिल्ली वसंत कुंज, दिल्ली स्थित जापानी इंटरनेशनल विद्यालय है। निर्देशांक: 28°30′51″N 77°10′10″E / 28.51417°N 77.16944°E / 28.51417; 77.16944
लाँगफ़र्ड एक पश्चिम लंदन में हिलिंगडन बरो का जिला है। काउली | ईस्टकोट | ईस्टकोट विलज | हैटन | हार्लिंगटन | हेज़ | हेज़ एंड | हेज़ टाउन | हेरफ़ील्ड | हार्मंड्सवर्थ | हिलिंगडन | इकनहम | लॉंगफ़र्ड | न्यूयीअर्स ग्रीन | नॉर्थ हिलिंगडन | नॉर्थवुड | नॉर्थवुड हिल्स | राइस्लिप | राइस्लिप कॉमन | राइस्लिप मैनर | सिप्सन | साउथ हेरफ़ील्ड | साउथ राइस्लिप | अक्सब्रिज | वेस्ट ड्रेटन | येडिंग | यूसली ऐक्टन |बार्किंग |बार्न्स |बार्नेट |बैटरसी |बेकनहम |बर्मंडसी |बेथनल ग्रीन |बेक्सलीहीथ |ब्लूम्सबरी |ब्रेंटफ़र्ड |ब्रिक्सटन |ब्रॉमली |केम्बरवेल |कैमडन टाउन |कार्शल्टन |कैटफ़र्ड |चेल्सी |चिंगफ़र्ड |चिसलहर्स्ट |चिज़िक |सिटी |क्लैपहम |क्लर्कनवेल |कूल्सडन |क्रॉयडन |डेगनहम |डेटफ़र्ड |ईलिंग |ईस्ट हैम |एडमंटन |एल्ठम |एनफ़ील्ड टाउन |फ़ेल्ठम |फ़िंचली |फ़ुलहम |ग्रेनिच |हैकनी |हैमरस्मिथ |हैम्पस्टेड |हैरो |हेंडन |हाइबरी |हाइगेट |हिलिंगडन |हॉलबोर्न |हॉर्नचर्च |हाउंस्लो |इलफ़र्ड |आइल ऑफ़ डॉग्स |आइज़लवर्थ |इस्लिंगटन |केंसिंगटन |केंटिश टाउन |किलबर्न |किंग्स्टन अपॉन टेम्स |लैम्बेथ |लूविशम |लेटन |मेफ़ेयर |मिचम |मोर्डेन |नैग्स हेड |न्यू मॉल्डन |ओर्पिंगटन |पैडिंगटन |पेखम |पेंज |पिनर |पॉप्लर |पर्ली |पटनी |रिचमंड |रॉमफ़र्ड |राइस्लिप |शेपर्ड्स बुश |शोरडिच |सिडकप |सोहो |साउथॉल |साउथगेट |स्टेपनी |स्टोक न्यूइंगटन |स्ट्रैटफ़र्ड |स्ट्रेटहम |सर्बिटन |सटन |सिडनहम |टेडिंगटन |टेम्समेड |टूटिंग |टॉटनहम |ट्विकनहम |अपमिनिस्टर |अक्सब्रिज |वल्ठम्सटो |वंड्सवर्थ |वंस्टेड |वैपिंग |वेल्डस्टोन |वेलिंग |वेम्बली |वेस्ट हैम |वेस्टमिंस्टर |ह्वाइटचैपल |विल्सडन |विम्बलडन |वुड ग्रीन |वुडफ़र्ड |वुलिच
काजी जफर अहमद मौदूद अहमद, एक बांग्लादेशी राजनेता थे, एवं 12 अगस्त 1989 से 6 दिसंबर 1990 के बीच वे, बांग्लादेश के प्रधानमंत्री थे।
निर्देशांक: 27°13′N 79°30′E / 27.22°N 79.50°E / 27.22; 79.50 कटरी अमीनाबाद कन्नौज, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
कंपिला उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले का एक नगर है। यह फर्रुखाबाद से 45 किमी दूरी पर स्थित है। इसकी गणना भारत के प्रचीनतम नगरों में है। इसका प्राचीन नाम 'काम्पिल्य' था। काम्पिल्य उत्तर प्रदेश के बदायूँ और फर्रुखाबाद के बीच गंगा तट पर स्थित एक प्राचीन कालीन ऐतिहासिक नगर है। वर्तमान समय में यह कम्पिल के नाम से जाना जाता है। यह उत्तर पूर्व रेलवे लाइन पर कायमगंज रेलवे स्टेशन से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। कम्पिल फर्रुखाबाद जिले में फतेहगढ़ से उत्तर-पश्चिम दिशा में 45 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसका उल्लेख रामायण, महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में इसका उल्लेख द्रौपदी के स्वयंवर के समय किया गया है कि राजा द्रुपद ने द्रौपदी स्वयंवर यहाँ आयोजित किया था। कम्पिल पांचाल देश की राजधानी थी। यहाँ कपिल मुनि का आश्रम है जिसके अनुरुप यह नामकरण प्रसिद्ध हुआ। यह स्थान हिन्दू व जैन दोनों ही के लिए पवित्र है। कम्पिल जैन धर्म का प्रसिद्ध पवित्र तीर्थ स्थल है। जैन धर्मग्रन्थों के अनुसार प्रथम तीर्थकर श्री ॠषभदेव ने इस नगर को बसाया तथा अपना पहला उपदेश दिया। इसे तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ जी का जन्मस्थल भी बताया गया है। तेरहवें तीर्थकर बिमलदेव ने अपना सम्पूर्ण जीवन यहीं पर व्यतीत किया। कम्पिल पर अनेक प्रसिद्ध राजाओं ने शासन किया। महाभारत की द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद ने यहाँ पर शासन किया। काम्पिल्य नरेश धर्मरुचि बहुत ही पवित्रात्मा माना गया है। रामायण में इसे इन्द्रपुरी अमरावती की भाँति भव्य और सुन्दर कहा गया है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि प्रसिद्ध ज्योतिषी वाराहमिहिर इसी नगर में जन्मे थे। द्रोपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था। कम्पिल में अनेक वैभवशाली मंदिर हैं। वर्तमान कम्पिल में दो प्रसिद्ध जैन मन्दिर है। अवाजपुर.अकरखेरा • अकबरगंज गढ़िया • अकबरपुर • अकबरपुर दामोदर • अकराबाद • अचरा • अचरातकी पुर • अचरिया वाकरपुर • अजीजपुर • अजीजाबाद • अटसेनी • अटेना • अतगापुर • अताईपुर • अताईपुर कोहना • अताईपुर जदीद • अतुरुइया • अद्दूपुर • अद्दूपुर डैयामाफी • अब्दर्रहमान पुर • अमरापुर • अमिलापुर • अमिलैया आशानन्द • अमिलैया मुकेरी • अरियारा • अलमापुर • अल्लापुर • अल्लाहपुर • अलादासपुर • अलियापुर • अलियापुर मजरा किसरोली • अलेहपुर पतिधवलेश्वर • असगरपुर • 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गोविन्दपुर हकीमखान • गौरखेरा • गौरीमहादेव पुर • गंगरोली मगरिब • गंगलउआ • गंगलऊ परमनगर • घुमइया रसूलपुर • चन्दपुर • चन्दपुर कच्छ • चम्पतपुर • चरन नगला • चहुरेरा • चँदुइया • चहोरार • चाँदनी • चिचौली • चिलसरा • चिलसरी • चौखड़िया • छछौनापुर • छिछोना पट्टी • छोटन नगला • ज्योना • ज्योनी • जटपुरा • जरारा • जरारी • जहानपुर • जिजपुरा • जिजौटा खुर्दजिजौटा बुजुर्ग • जिनौल • जिनवाह • जिरखापुर • जिराऊ • जैदपुर • जैसिंगपुर • जॅसिंगापुर • जोगपुर • जौंरा • झब्बूपुर • झौआ • डेरा शादीनगर • ढुड़ियापुर • त्यौर खास • त्यौरी इस्माइलपुर • तलासपुर • तारापुर भोयापुर • ताल का नगला • तुर्क ललैया • तुर्कीपुर • तेजपुर • द्युरियापुर • द्योरा महसौना • दरियापुर • दलेलगंज • दारापुर • दिवरइया • दीपुरनगरिया • दुर्गा नगला • दुन्धा • दुबरी • धधुलिया पट्टी • धरमपुर • धाउनपुरा • नगरिया • नगला कलार • नगला खमानी • नगला दमू • नगला थाला • नगला बसोला • नगला मकोड़ा • नगला सेठ • नगलाकेल • नगलानान • नटवारा • नये नगरा • नरसिंगपुर • नरायनपुर • नरु नगला • नरैनामऊ • नवाबगंज • नसरुल्लापुर • नहरोसा • निजामुद्दीनपुर • नियामतपुर दिलावली • 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बर्मी भाषा, स्वतंत्र देश म्यांमार की राजभाषा है। यह मुख्य रूप से ब्रह्मदेश में बोली जाती है। म्यांमार की सीमा से सटे भारतीय राज्यों असम, मणिपुर एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी कुछ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। बर्मी भाषा तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार में आती है जो आर्य एवं चीनी भाषा परिवार के बीच में है। तिब्बती-बर्मी भाषापरिवार में भी बर्मी शाखा एवं तिब्बती शाखा - ये दो प्रकार हैं। बर्मी भाषा में चीनी भाषा की तरह कुछ शब्द अयोगात्मक भी होते हैं तथा आर्यभाषाओं की तरह उसमें कुछ शब्द योगात्मक भी होते हैं। आजकल की बर्मी लिपि में पालि भाषा के प्रभाव से 33 व्यंजन और 12 स्वर माने जाते हैं। वस्तुत: बर्मी बोली में वर्ग के चतुर्थ अक्षर तथा संपूर्ण दंत्य वर्ग नहीं होता, इसलिए प्राय: बर्मी में वर्ग के तृतीय एवं चतुर्थ अक्षरों का समान उच्चारण तथा मूर्धन्य एवं दंत्य वर्गों के अक्षरों का भी समान रूप से उच्चारण होता है। वैदिक संस्कृत एवं पालि में प्रयुक्त क का बर्मी साहित्य में प्रयोग किए जाने पर भी वह बोली में नहीं होता। बर्मी भाषा में जो 64 स्वर होते हैं उन्हें 64 "कारांत" भी कहते हैं। इन स्वरों के बल पर ही संसार की भाषाओं का उच्चारण बर्मी भाषा में लिखा जा सकता है। अन्य देशों की भाँति बर्मा का भी अपना साहित्य है जो अपने में पूर्ण एवं समृद्ध है। बर्मी साहित्य का अभ्युदय प्राय: काव्यकला को प्रोत्साहन देनेवाले राजाओं के दरबार में हुआ है इसलिए बर्मी साहित्य के मानवी कवियों का संबंध वैभवशाली महीपालों के साथ स्थापित है। राजसी वातावरण में अभ्युदय एवं प्रसार पाने के कारण बर्मी साहित्य अत्यंत सुश्लिष्ट तथा प्रभावशाली हो गया है। बर्मी साहित्य के अंतर्गत बुद्धवचन, अट्टकथा तथा टीका ग्रंथों के अनुवाद सम्मिलित हैं। बर्मी भाषा में गद्य और पद्य दोनों प्रकार की साहित्य विधाएँ मौलिक रूप से मिलती हैं। इसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुवाद भी हैं। पालि साहित्य के प्रभाव से इसकी शैली भारतीय है तथा बोली अपनी है। पालि के पारिभाषिक तथा मौलिक शब्द इस भाषा में बर्मीकृत रूप में पाए जाते हैं। रस, छंद और अलंकारों की योजना पालि एवं संस्कृत से प्रभावित है। बर्मी साहित्य के विकास को दृष्टि में रखकर विद्वानों ने इसे नौ कालों में विभाजित किया है, जिसमें प्रत्येक युग के साहित्य की अपनी विशेषता है।
आजकाल भारत में प्रकाशित होने वाला बांग्ला भाषा का एक समाचार पत्र है।
गणित में डीरिख्ले श्रेणी निम्न प्रकार की श्रेणी को कहा जाता है: जहाँ s सम्मिश्र और a सम्मिश्र अनुक्रम है। यह सामान्य डीरिख्ले श्रेणी की विशेष अवस्था है। डीरिख्ले श्रेणी विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में विभिन्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रीमान जीटा फलन की सबसे प्रचलित परिभाषा डीरिख्ले एल-फलन के रूप में डीरिख्ले श्रेणी है। श्रेणी का नामकरण पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले के सम्मान में रखा गया। डीरिख्ले श्रेणी को कार्तिय गुणन के दौरान संयुक्त रूप से गुणात्मकतः संयुग्मी भार से वस्तुओं के गणित्र भारित समुच्चयों के लिए जनित श्रेणी के रूप में उपयोग किया जा सकता है। माना कि A एक समुच्चय है जिसमें फलन w: A → N समुच्चय A के सभी अवयवों का भार निर्दिष्ट करता है और इसके साथ ही माना कि भार के अन्तर्गत किसी भी प्राकृत संख्या पर तंतु एक परिमित समुच्चय है। भारित समुच्चय कहते हैं।) इसके अतिरिक्त माना कि an भार n के साथ समुच्चय A के अवयवों की संख्या है। इसके बाद हम w के सापेक्ष A के लिए सामान्य डीरिख्ले जनित श्रेणी निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं: ध्यान दें कि यदि A और B किसी भारित समुच्चय के असंयुक्त उपसमुच्चय हैं तो उनके संघ के लिए डीरिख्ले श्रेणी उनकी डीरिख्ले श्रेणी के योग के बराबर होगी: इसके अतिरिक्त, यदि और दो भारित समुच्चय हैं और हम एक भार फलन w: A × B → N, A के सभी अवयवों a और B के सभी अवयवों b पर निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं: तब हम कार्तिय गुणन की डीरिख्ले श्रेणी के लिए वियोजन निम्नलिखित है जो अन्ततः समान्य तथ्य n − s ⋅ m − s = − s . {\displaystyle n^{-s}\cdot m^{-s}=^{-s}.} का अनुसरण करता है।
संगुटिका दो या उससे अधिक निगमों का एक संयोजन है जो एक ही कारपोरेट संरचना के अंतर्गत, अक्सर एक पैरेंट कंपनी और विभिन्न अधीनस्थ कंपनियों को शामिल करती हुई, पूरी तरह से भिन्न व्यापार में सलग्न होती हैं। प्राय: संगुटिका एक बहु-औद्योगिक कंपनी होती है। संगुटिका अक्सर बड़ी और बहुराष्ट्रीय होती है। संगुटिका 1960 के दशक में कम ब्याज दर और बार-बार होने वाले बियर/बुल मार्केट के कारण लोकप्रिय थी, जो लाभ पर कंपनियों को खरीदने का अवसर देती थी, कभी-कभी अस्थायी तौर पर एक दम सिमटी हुई दर पर भी. 1960 के दशक से प्रसिद्ध उदाहरणों में लिंग-टेम्को-वॉट, आईआईटी निगम, लिट्टॉन इंडस्ट्रीज, टेक्सट्रॉन, टेलेडायन, गल्फ एवं वेस्टर्न इंडस्ट्रीज और ट्रांसअमेरिका शामिल हैं। जब तक लक्ष्य कंपनी के पास ऋण पर ब्याज की तुलना में अधिक लाभ होता है, संगुटिका का निवेश पर प्रतिफल विकास करता हुआ दिखता है। इसके अलावा, संगुटिका में मुद्रा बाजार या पूंजी बाजार से उनके सामुदायिक बैंक के छोटे फर्म की तुलना में उधार लेने की अधिक क्षमता होती है। कई सालों के लिए यह कंपनी के शेयर मूल्य में वृद्धि करने के लिए पर्याप्त था, क्योंकि कंपनियां प्राय: विधिक रूप से अपने आरओआई को महत्व देती थीं। संगुटिकारकों का आपस में आक्रामक रवैये ने निवेशकों को, जिन्होंने व्यापार में एक शक्तिशाली और प्रकट रूप में न रोके जाने योग्य बल को देखा, शेयर खरीदने के लिए उकसाया. अपने शेयर के मूल्यों के आधार पर उच्च शेयर कीमतों ने उन्हें और अधिक ऋण जुटाने के लिए प्रेरित किया और उससे से भी अधिक कंपनियों को खरीदने की प्ररणा दी. इसने एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को दिशा दी, जिसने उन्हे तेजी से आगे बढ़ने की ओर प्ररित किया। हालांकि, यह विकास कुछ हद तक भ्रामक था। मुद्रास्फिति की कमी को पूरा करने के लिए जैसे ही ब्याज दर बढ़ना शुरू हुआ, संगुटिकाओं का लाभ रूक गया। निवेशकों ने भी देखा कि समूह के अंदर कंपनियां उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही थी जैसा कि खरीदने के पहले होता था, जबकि कंपनी को खरीदने के पीछे यह तर्क था कि सहक्रियता उन्हें अधिक कार्यकुशलता की ओर ले जाएगी. 1960 के उत्तरार्ध तक वे बाजार के दबाव में थी और उन्होंने इपने शेयरों को व्यापक तौर पर बेचा। कंपनियों को चालू रखने के लिए संगुटिकाओं को हाल में खरीदी गई कंपनियों को बेचने के लिए बाध्य किया गया और 1970 के दशक के मध्य तक उनमें से अधिकतर सिमट गईं. संगुटिका की सनक बाद में चलकर कंपनी की कोर योग्यता जैसे अपेक्षाकृत नए विचार पर केन्द्रित हो गई। अन्य मामलों में, संगुटिका का निर्माण विविधिकरण के वास्तविक हितों के लिए किया गया था बनिस्बत कागज के ऊपर आरओआई के उपरोक्त हेरफेर के अभिविन्यास युक्त कंपनी केवल उपार्जन कर सकती हैं, या अन्य सेक्टरों में नई शाखाएं चालू कर सकती हैं जब उन्हे यह विश्वास हो कि इससे लाभ या स्थिरता में बढ़ोतरी होगी. 1980 के दशक के दौरान नकदी के आवेग के साथ, जनरल इलेक्ट्रिक भी वित्तीय या वित्तीय सेवाओं की ओर मुड़ गया, जो 2005 में कंपनी के 45% शुद्ध आय के लिए जिम्मेदार था। जीई भी एनबीसी यूनिवर्सल के अधिकांश का मालिक है, जो एनबीसी टेलीविज़न नेटवर्क और विभिन्न केबल नेटवर्क पर अधिकार रखता है। कुछ मायनों में, जीई 1960 के दशक के टिपिकल संगुटिकाओं से इस मायने में अलग है कि कंपनी उच्च स्तर की लाभकारी नहीं थी और जब ब्याज दर बढ़ गया, उन्होने इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया, मानो ऋण का उपयोग कर नए उपस्कर खरीदना जीई से लीज लेने की अपेक्षा कम खर्चीला था। यूनाइटेड टेक्नोलॉजीज ने खुद को एक बहुत ही सफल संगुटिका के उदाहरण के रूप में सिद्ध किया है। सफल संगुटिका का एक अन्य उदाहरण एक होल्डिंग कम्पनी वारेन बफेट की बर्कशायर हैथअवे है, जो बीमा अनुषमगों से प्राप्त अपने अधिशेषों का इस्तेमाल विभिन्न उत्पादन वाले एवं सेवा व्यापारों में निवेश के लिए करती है। प्रथम विश्व युद्ध के अंत के कारण जर्मनी में एक छोटा आर्थिक संकट पैदा हुआ जिसने विविध व्यापारों को कम कीमत पर खरीदने के लिए उद्यमियों को प्ररित किया। सबसे सफल, ह्यूगो स्टिन्नस, ने 1920 के दशक के यूरोप में स्टिन्नस इंटरप्राइजेज नामक सबसे शक्तिशाली निजी वित्तीय संगुटिका की स्थापना की- जिसने उत्पादन, खनन, होटल, जहाज निर्माण, अखबार तथा अन्य वित्तीय कंपनियों के संकलन जैसे विविध क्षेत्रों को अंगिकार किया। जानी - मानी और सबसे अच्छी ब्रिटिश संगुटिका हैंसन पीएलस थी। इसने अमेरिका के उपरोक्त उदाहरण से अलग टाइमस्केल का अनुसरण किया, क्योंकि यह 1964 में स्थापित की गयी थी और 1995 और 1997 के बीच अलग से सूचीबद्ध चार अलग कंपनियों को मिलाकर एक संगुटिका में तब्दील हो गई। जापान में, एक अलग संगुटिका मॉडल, केईरेट्सू, विकसित हुई. समूह के पश्चिमी मॉडल जहां विभिन्न सहायक युक्त एक एकल निगम से निर्मित और उसी निगम के द्वारा नियंत्रित होते हैं वहीं केईरेट्सू इंटरलॉकिंग शेयरधारकों द्वारा तथा एक बैंक के एक केंद्रीय भूमिका से जुड़े हैं। मित्सुबिशी को जापान में एक सबसे अच्छी संगुटिका के रूप में जाना जाता है, जो टेलीविजन जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन से लेकर ऑटोमोबाइल विनिर्माण तक पहुंच गई है। दक्षिण कोरिया में, शाइबोल एक ऐसी संगुटिका है जो एक परिवार के स्वामित्व में तथा उसी के द्वारा परिचालित है। एक शाइबोल दाय भी है, क्योंकि शाइबोल्स के अधिकतर वर्तमान अध्यक्ष अपने पिता या दादा के उतराधिकारी हैं। सैमसंग, एलजी और हुंडई किया अटोमोटिव समूह कुछ विख्यात कोरिअन शाइबोल्स हैं। भारत में लाइसेंस राज के युग ने कई संगुटिकाओं का निर्माण किया, जैसे - टाटा ग्रुप, किरलोसकर ग्रुप ,इसार ग्रुप, रिलायंस एडीए ग्रुप, रिलायंस इंडस्ट्रीज, आदित्य बिड़ला ग्रुप तथा भारती इंटरप्राइजेज . कुछ लोग संगुटिका स्टॉक के कम लागत को इन नुकसानों के साक्ष्य के रूप में पेश करते हैं, जबकि अन्य ट्रेडर यह विश्वास करते हैं कि यह प्रवृति बाजार की अक्षमता है जो इन शेयरों की सही ताकत को अवमूल्यित कर देती है। 1999 की अपनी किताब नो लोगो में नाओमी केलिन ने मिडिया कंपनियों के बीच सहक्रिया के उद्देश्य के लिए तथा संगुटिका बनाने के लिए डिजाईन की गई कमपनियों के बीच विलयन एवं अभिग्रहण के विभिन्न उदाहरणों को प्रस्तुत किया। अन्य उद्योगों की तरह इसी प्रकार कई कम्पनियां हैं जिन्हें संगुटिका कहा जा सकता है।
ताटकुंट्ल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
अहमद तृतीय उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान रहे थे। वे महमद चतुर्थ के बेटे थे। उनकी माँ अमतुल्लाह राबिया गुलनुश सुल्तान थीं, जिनका मूल नाम एवमानिया वोरिया था, उनकी नस्ल यूनानी थी। उनका जन्म हाजीओलु पाज़ारजक, दोब्रुजा में हुआ था। वे 1703 में तख़्तनशीन हो गए, जब उनके भाई मुस्तफ़ा द्वितीय ने तख़्त को त्याग दिया था। वज़ीर-ए-आज़म नौशहरी दामाद इब्राहीम पाशा और सुल्तान की बेटी फ़ातिमा सुल्तान ने 1718 से 1730 तक असल हकूमत संभाली, यह दौर ट्यूलिप युग कहा जाता है। फ़्रांस के साथ अहमद तृतीय के अच्छे ताल्लुक़ात थे जिसने रूस की नाराज़गी को उकसाया। उस्मानिया ने स्वीडन के शार्ल्स सप्तम को पनाह दिया जब रूस के पीटर महान ने स्वीडों को पोल्तावा की लड़ाई में हराया था। सुल्तान अहमद तृतीय ने 1710 में, शार्ल्सा सप्तम के कहने पर, रूस पर जंग का ऐलान किया। बालाताज महमद पाशा की अगुवाई में उस्मानी सेना ने प्रुत की लड़ाई में एक बड़ी जीत हासिल की थी। बाद में रूसियों ने अज़ोव के क्षेत्र उस्मानियों को दिया और रूसियों ने तागानरोग के क़िले और उनके बाक़ी नज़दीकी क़िल्लों को ध्वस्त किया। पोलिश-लिथुआनियन राष्ट्रमंडल में रूस की दख़लअंदाज़ी भी समाप्त हो गई। रूसियों पर उस्मानियों के बाद की जीतें इतनी विशाल थीं कि अगर सुल्तान चाहता था, उस्मानी सेना रूसी राजधानी मोस्को पर क़ब्ज़ा कर सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि सफ़वियों ने उस्मानिया पर हमला किया। इस कारण से सुल्तान के ध्यान सफ़वी हमलों की ओर चलाना पड़ा। उनकी और उनके क़रीबी वज़ीरों की महंगी और बड़ी शानोशौक़त से भरी हुई जीवनशैलियों की वजह से सुल्तान अहमद तृतीय आवाम के मध्य अप्रिय हो गया। अल्बानियाई पात्रोना ख़लील की अगुवाई में, सत्रह यनीचरियों ने कुछ नागरिकों की सहायता से, 20 सितंबर पर विद्रोह किया। इस विद्रोह के कारण से सुल्तान तख़्त त्यागने के लिए मजबूर कर दिया गया था। अहमद ने स्वेच्छा से अपने भतीजा, महमूद प्रथम को तख़्त पर बिठाया था। इसके बाद वे कफ़स में सेवानिवृत्त हुए और छः माह के पश्चात उनकी मृत्यु हुई। 1712 में मुग़ल बादशाह जहांदार शाह, जो औरंगज़ेब के पोते थे, ने उस्मानी सुल्तान अहमद तृतीय को तोहफ़े भेजे थे और उन्होंने अपने आप को "उस्मानी सुल्तान के समर्पित प्रशंसक" के रूप में वर्णित किया। मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़ सियर, औरंगज़ेब के एक और पोते, ने उस्मानियों को ख़त भेजा। इस बार उस्मानी वज़ीर-ए-आज़म नौशहरी इब्राहीम पाशा ने ख़त मिला था। ख़त में मुग़ल सिपहसालार सैयद हसन अली ख़ान बरहा द्वारा राजपूत और मराठा विद्रोहों को ख़त्म करने की कोशिशों का वर्णन था।
रूबियस हैग्रिड हॉग्वर्ट्स का गेम-कीपर है। हैग्रिड एक हाफ-जाएंट है और वो कई सालों से हॉवग्वर्ट्स में ही रह रहा है। हैग्रिड की मां एक जाएंट थी और पिता एक मनुष्य जादूगर और हैग्रिड के पिता की मौत जब वह छोटा था, तभी हो गई थी। हैग्रिड हैरी और उसके दोस्तों का काफी अच्छा मित्र है। हैग्रिड हॉग्वर्ट्स में जादूई प्राणियों की देख-रेख का विषय पढ़ाता है। हैग्रिड के कई पालतू जादूई जीव है और सभी काफी खतरनाक है।