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पिछड़ेपन को निहित स्वार्थ बनाने का जघन्य नमूना हाल ही में देखने को मिला जब अपनी बैकवर्डनेस की डिग्री बढ़ाने के लिए आंदोलनरत एक समुदाय ने प्रतिवेदन दिया कि उसके सदस्य बेहद दकियानूसी और अंधविश्वासी हैं, अपनी बीवियों को पीटते हैं, भूत प्रेतों में यकीन करते हैं इसलिए उन्हें ओबीसी की श्रेणी से निकाल कर एसटी आदिवासी श्रेणी में आरक्षण दिया जाना चाहिए |
पिछड़ेपन को सिर के बल खड़ाकर देने यानी उसे त्याज्य से स्वीकार्य बना देने के इस उद्यम में हर पार्टी और हर नेता शामिल है |
आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय के निर्धारण के लिए एक आयोग गठित करने का प्रस्ताव बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीएसरकार ने २००३ के अक्टूबर में किया था, जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे |
समाज के बाकी सभी तबकों दलित, आदिवासी और ओबीसी को तो पहले से ही सामाजिक शैक्षिक पिछड़ेपन के तहत लाभान्वित किया जा रहा था |
कोई गलतफहमी न रह जाए, इसलिए घोषणा करते समय तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सुषमास्वराज ने यह भी कह दिया था कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन किया जाएगा |
दिलचस्प बात यह है कि इस आयोग की रपट भी एक ऐसे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आयी है जिसमें ऊंची जाति के वोटर राजनीतिक हवा में इधरउधर तैर रहे हैं |
पिछड़ेपन कई तरह का हो सकता है, इसलिए संविधान निर्माताओं ने साफ कर दिया था कि वे इसकी जिस किस्म से चिंतित हैं वह सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन है |
पिछड़ेपन के इसी प्रकार को खत्म करने के लिए उन्होंने विशेष सुविधाओं के प्रावधान किए थे, जिनका एक प्रमुख रूप आरक्षण है |
उन्हें यकीन था कि इन प्रक्रियाओं से काम चल जाएगा और पिछड़ेपन के अन्य रूपों को विशेष सुविधाएं देने की जरूरत नहीं पड़ेगी |
सरकारों ने गरीबी हटाने, सस्ती दर पर कर्ज देने और रोजगार की गारंटी देने के कार्यक्रम इसलिए चलाए ताकि खुद को पिछड़ा समझने वाला हर व्यक्ति और तबका आरक्षण की राह न देखने लगे |
आजादी के बाद लंबे समय तक नीति निर्माता यह चौकन्नापन दिखाते रहे कि पिछड़ेपन के आर्थिक रूप को राजनीतिक और सरकारी मान्यता न मिलने पाए |
मसलन, अगर निचली जातियों के लोगों की आमदनी कम है तो उन्हें गरीब कहा जाएगा, लेकिन ऊंची जातियों के कम आमदनी वाले लोग गरीब के बजाय पिछड़े कहे जाएंगे |
आयोग की सिफारिश है कि देश में आर्थिक रूप से पिछड़े करीब एककरोड़ परिवारों को दुर्दशा से निकालने के लिए दसहजाररुपए की मदद दी जानी चाहिए |
आरक्षण प्रक्रिया के आधार में भी कुल मिला कर उत्पीडित समुदायों की योग्यता और क्षमता में बढ़ोतरी करते हुए उन्हें भौतिक और मानसिक धरातल पर समकक्षता की अनुभूति से संपन्न करना ही है |
पिछले कुछ दिनों से भारत समेत कॉमनवेल्थगेम्स में भाग लेने वाले दुनिया के कई अन्य देशों का मीडिया लगातार इसमें करप्शन के बारे मे खबरें दे रहा है |
जैसे कि काम की खराब क्वालिटी, जानबूझकर चीजों में देरी करना और पैनिक की स्थिति बनाना ताकि बिना किसी सवालजवाब के ज्यादा से ज्यादा धन खींचा जा सके, दिल्ली में हरजगह और बेवजह की खुदाई और अच्छेखासे दिख रहे इंफ्रास्ट्रक्चर को तोड़ना वगैरह |
आजकल मुझे किसी भी चीज पर ज्यादा आश्चर्य नहीं होता लेकिन कॉमनवेल्थगेम्स के मामले में उड़ी गर्द ने मुझे अपनी राय बदलने पर मजबूर कर दिया है |
कल्पना कीजिए कि एकलाखरुपये से कम कीमत की ट्रेडमिल का ४५दिन का किराया १०लाखरुपये हो और टॉयलेट पेपर का एक ४हजाररुपये में खरीदा जाए |
हालांकि, इतना शोरशराबा होने के बाद इसकी जांच हो रही है और एक बलि का बकरा खोजा जाएगा, सजा दी जाएगी और हमेशा की तरह मामला दफना दिया जाएगा |
सेंट्रल विजिलेंस कमिशन सीवीसी की जांच में पता चला है कि गेम्स के लिए जारी किए गए हर क्वालिटी सर्टिफिकेट में फर्जीवाड़ा किया गया है क्या इससे बड़ी त्रासदी कोई हो सकती है |
बहुत साल पहले, जानेभीदोयारो ’ फिल्म में एक बिल्डर अपने जूनियर अफसर को सीमेंट की पर्याप्त मात्रा न होने की शिकायत पर हड़काता है |
हमें क्या पता था कि २५साल में ही यह सच साबित होगा और वह भी एक ऐसे प्रॉजेक्ट के लिए जो दुनिया के मंच पर हमारी हैसियत और ताकत का मुजाहिरा करता |
क्या आप एक ऐसे स्टेडियम में घुसना चाहेंगे जो असुरक्षित नींव पर खड़ा हो क्या आप अपनी जिंदगी खतरे में डालने के लिए पैसे खर्च करेंगे मुझे तो ऐसा नहीं लगता |
इसी तरह गुड़गांव में सीआरपीएफ शूटिंग रेंज को जाने वाली नई बनी ६ लेन की सड़क कुछ घंटों की बारिश में ही जगहजगह क्षतिग्रस्त हो गई |
ठीक बात है लेकिन, किस कीमत पर इसकी कीमत कौन चुकाएगा इसके लिए पैसा किसकी जेब से आएगा अभीतक, कई प्रॉजेक्ट तैयार नहीं हैं और इंजीनियर खुलेआम कह रहे हैं कि अब उन्हें कंप्लीट करने का समय नहीं बचा है |
अगर उन्हें जबर्दस्ती यह काम पूरा करने को कहा जाएगा तो वह कर देंगे लेकिन इन इमारतों में रहना खतरे से भरा होगा – उदाहरण के तौर पर वसंतकुंज में बन रहे डीडीए फ्लैट्स |
बहुचर्चित प्रियदर्शनीमट्टू हत्याकांड में सुप्रीमकोर्ट बुधवार सुबह अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के फांसी के फैसले के बदल दिया है |
सीबीआई के मुताबिक संतोष ने दिल्लीयूनिवर्सिटी लॉ कर रही स्टूडेंट प्रियदर्शनीमट्टू की जनवरी१९९६ में बलात्कार के बाद हत्याकर दी थी इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को संतोष ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे रखी है |
बीजेपी ने कहा कि वह अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर देखना चाहती है और मामले को चुनावों से जोड़ने की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अगर वहां राममंदिर बनता है तो पार्टी २०वर्षों चुनाव हारने के लिए तैयार है |
बीजेपी अध्यक्ष नितिनगडकरी ने एक आम सभा को संबोधितकरते हुए कहा, विपक्षियों ने मुझे कहा कि अगर अयोध्या में राममंदिर बनता है तो बीजेपी के पास कोई चुनावी मुद्दा नहीं होगा |
इस पर पलटवार करते हुए मेरा जवाब है कि अगर अयोध्या में राममंदिर बनता है तो बीजेपी अगले २०सालों तक चुनाव हारने के लिए तैयार है हम अयोध्या में भव्य राममंदिर चाहते हैं |
यूं कहें कि कांग्रेस पार्टी ने सरकार की कई नीतियों पर सवाल खड़े किए कुछ मसलों पर पार्टी की राय सरकार से बिल्कुल अलग दिखी |
लेकिन पार्टी अध्यक्ष सोनियागांधी ने इस समस्या को मानवीय ढंग से देखने और इसकी जड़ तक जाने की वकालत की अभी उड़ीसा में वेदांता को बॉक्साइट खनन की मंजूरी नहीं दिए जाने के फैसले में भी दृश्य कुछ ऐसा ही था |
कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ने संपादकों के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि विकास के हर काम में पर्यावरण का अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए |
मनमोहनसिंह देश में खुली अर्थव्यवस्था और बाजार के पैरोकार माने जाते हैं बावजूद इसके वेदांता को पर्यावरण के नाम पर ही खनन की इजाजत नहीं दी गई |
ऐसे वाकयों से पूरे देश में संकेत गया है कि सोनियागांधी अब मनमोहनसिंह को पसंद नहीं करतीं मीडिया में भी चर्चा शुरूहो गई कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहनसिंह की उलटी गिनती शुरूहो गई है |
लेकिन इस मसले पर जल्दबाजी में किसी निर्णय पर पहुंचने के बजाय इसका निहितार्थ समझने की जरूरत है सरकार और सत्ताधारी पार्टी के बीच मतभेद होना लोकतंत्र के मजबूत होने की निशानी है |
अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो पहले इस तरह की परंपरा नहीं थी जब जवाहरलालनेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो कुछ दिनों तक आजाद होने का रूमानी एहसास कायम था |
बाद में उनका कद इतना बड़ा हो गया था कि उनकी सरकार की आलोचना उनकी आलोचना मान ली जाती थी लेकिन जब इंदिरागांधी प्रधानमंत्री बनी तो मतभेद बेकाबू होने लगे |
पार्टी पर कब्जे की लड़ाई शुरू हुई जिसमें इंदिरागांधी को उनकी राजनैतिक कौशल की वजह से जीत मिली इमरजेंसी के बाद १९७७ के आम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली |
उन्होंने यह पद १९८० में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं छोड़ा यहां पहुंचकर पार्टी ही सरकार और सरकार ही पार्टी बन गई |
राजीवगांधी ने भी इस परंपरा को कायम रखा उन्होंने भी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष का पद अपने ही पास रखा १९८५ से शुरू कर मृत्युपर्यंत वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे |
बाद में जब एनडीए का शासन आया तो लगा कि यह परंपरा टूटने वाली है अटलबिहारीवाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उसवक्त कुशाभाईठाकरे बीजेपी के अध्यक्ष थे |
कालांतर में भी बीजेपी के अध्यक्ष बदलते रहे लेकिन प्रधानमंत्री अटलबिहारीवाजपेयी ने संगठन पर काबिज होने की कोशिश नहीं की |
लेकिन नेहरू की ही तरह अटलबिहारीवाजपेयी का कद भी इतना बड़ा हो गया था कि वे पार्टी से ऊपर हो गए थे उनकी सरकार के कामकाज की आलोचना भी अटलबिहारी की व्यक्तिगत आलोचना मान ली जाती थी |
अगर कुछ देर के लिए बीजेपी को छोड़ दिया जाए और राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ और उससे जुड़े संगठनों की बात की जाए तो वहां भी सरकार की नीतियों की आलोचना होती थी, या फिर ये संगठन सरकार से अलग राय जाहिरकरते थे |
एनडीए शासन काल में सरकार खुले बाजार और वैश्वीकरण के पक्ष में थी और सरकारी कंपनियों में विनिवेश का सिलसिला चल पड़ा था |
उस समय संघ से जुड़े संगठन इसकी खुलेआम आलोचना कर रहे थे आरएसएस के आनुषंगिक संगठन स्वदेशीजागरणमंच ने सरकार की खुले बाजार की नीति का सार्वजनिक तौर पर विरोध किया था |
राम्मभूमि के मसले पर वीएचपी ने सरकार की नीतियों की खुलेआम आलोचना की थी लेकिन बीजेपी में आंतरिक लोकतंत्र अपेक्षाकृत कम है |
जसवंतसिंह को किताब लिखकर अपनी राय जाहिरकरने पर पार्टी से निकाल दिया गया था आडवाणी को जिन्ना पर अपनी राय जाहिरकरना भारी पड़ा था और उन्हें भी पार्टी अध्यक्ष पद से हटाया गया था |
२००४ में जब यूपीए की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री पद ठुकराने के बाद सोनिया ने पार्टी को सरकार से अलग पहचान देने की कोशिशें शुरूकर दीं |
कई मंत्रियों को शपथ लेने के बाद पार्टी का पद छोड़ना पड़ा यूपीए के वक्त यह काम थोड़ा धीमा अवश्य रहा लेकिन अब पार्टी में इंटर्नल डेमॉक्रेसी साफ तौर पर रेखांकित की जा सकती है |
प्रणवमुखर्जी, दिग्विजयसिंह और मणिशंकरअय्यर कई मसलों पर खुलकर अपनी राय रख चुके हैं राहुलगांधी पार्टी में एक अलग सत्ता केंद्र हैं |
वह भी अपनी राय खुलकर सामने रख रहे हैं और कई बार यह अपनी ही सरकार की नीतियों के खिलाफ दिखाई देती है कश्मीर में जारी संकट के बीच उमरअब्दुल्ला को उन्होंने खुलेआम सपोर्ट किया लेकिन सोनियागांधी की राय उस मसले पर अलग है |
ऊपर से देखने पर तो यही लगता है कि देश में सबसे बड़ी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र आ चुका है, जहां सबको अपनी राय खुलकर रखने की आजादी है |
मैं समझ नहीं पा रहा था कि जब हाईकोर्ट ने रामलला के जन्मस्थान पर मंदिर बनाने का मार्ग साफ कर दिया है तो उनके चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं |
उन्होंने पहले ही कह दिया कि वह पत्रकारों के किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे उन्होंने बस एक बयान पढ़ा और सारे नेता उठकर चल दिए |
मुझे लगा, कहीं वे इसलिए तो दुखी नहीं हैं कि जब कोर्ट ने मंदिर का मामला सेटल कर दिया तो अब वे किस मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे… क्योंकि अब वे यह नारा नहीं लगा पाएंगे कि कसम राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे क्योंकि अब तो मंदिर के वहीं’ बनने पर कोई रोक नहीं है |
अगर हम यह मानकर चलें कि सुप्रीम कोर्ट कोई उल्टा फैसला नहीं देगा लेकिन यह कारण नहीं हो सकता क्योंकि मंदिर का मुद्दा तो कभी का फुस्स हो चुका काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती |
उदासी और चुप्पी का राज़ जल्दी ही पता चल गया जब फैसले के डीटेल देखे और पत्रकारों के सीधे सवाल पर बीजेपी के नेताओं की चुप्पी देखी |
पत्रकार पूछ रहे थे कि जब आप शांति और एकता और भाईचारे की बात करते हो और यह कहते हो कि अब पूरे देश को रामजन्मस्थान पर राम का भव्य मंदिर बनाने में अपना सहयोग करना चाहिए, तो क्या आप विवादित जगह पर मुसलमानों को दिए गए एक तिहाई हिस्से पर मस्जिद बनाने में सहयोग करने को तैयार हो आडवाणी एंड कंपनी को पता था कि ऐसा सवाल पूछा जाएगा इसलिए उन्होंने तो छूटते ही कह दिया – नो क्वेश्चंस विल भी टेकन |
लेकिन उमाभारती और रविशंकरप्रसाद या धर्मेंद्रमहाराज जैसों ने इस सवाल का जवाब ही नहीं दिया बारबार पूछने पर भी नहीं दिया |
ऐसा लग रहा है कि इन नेताओं को रामलला की जमीन पर हक मिलने की जितनी खुशी है, उससे ज्यादा दुख इस बात का है कि पड़ोस की ज़मीन मुसलमानों को क्यों दे दी गई क्योंकि वे चाहें तो वहां मस्जिद भी बना सकते हैं |
मुझे इस मामले में अपने चाचा याद आते हैं मेरे दादाजी ने दो प्लॉट खरीदे थे और उनमें से एक मेरे पिताजी के और दूसरा मेरे चाचाजी के नाम कर दिया |
लेकिन चांस की बात कि चाचाजी वाले प्लॉट के पास की जमीन सरकार ने हरिजनों को आवंटित कर दी अब चाचाजी को यह बात खटक गई कि वह हरिजनों की बस्ती के पास रहेंगे |
उन्होंने उस प्लॉट पर मकान तो बनवाया लेकिन किराये पर चढ़ा दिया, खुद वहां कभी रहे नहीं अंत में कुछसाल पहले उसे बेच दिया और दूसरे शहर में मकान ले लिया और वहीं बस गए |
तो संघ परिवार के नेताओं को यह बात खटक रही है कि मंदिर की बगल में मस्जिद कैसे जैसे मस्जिद में कोई छूत हो रविशंकरप्रसाद तो कह रहे थे कि कोर्ट ने वह जगह वक्फ बोर्ड को दी है लेकिन यह नहीं कहा है कि यह ज़मीन मस्जिद बनाने के लिए दी गई है |
उसने तो सिर्फ ज़मीन बांटी है क्योंकि ज़मीन का मालिक कौन है, इसका फैसला करने लायक सबूत कोई भी पक्ष नहीं जुटा सका इसीलिए २१ के बहुमत से ज़मीन तीनों को बांट दी गई |
लेकिन संघ परिवार लाख मुस्लिम प्रेम की दुहाई दे, लाख भाईचारे की बात करे, मंदिर की बगल में मस्जिद कैसे स्वीकारकर ले आखिर छुआछूत की भावना तो उसके खून में है इतनी आसानी से थोड़े ही जाएगी |
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेजमुशर्रफ ने कबूल किया है कि पाक ने कश्मीर में लड़ने के लिए अंडरग्राउंड आंतकवादी गुटों को ट्रेंड किया था |
मुशर्रफ ने लंदन में अपनी नई पार्टी पाकिस्तानमुस्लिमलीग की शुरुआत की और सन्२०१३ में पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया |
मुशर्रफ ने जर्मन मैगजीन 'डेर स्पीजेल' को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ने के लिए अंडरग्राउंड उग्रवादी गुटों को तैयार किया गया |
यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान ने कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ने के लिए उग्रवादियों को ट्रेनिंग क्यों दी, पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि नवाजशरीफ की कश्मीर मुद्दे को लेकर असंवेदनशीलता एक कारण था और दुनिया ने भी इस विवाद से आंखें फेर ली थीं |
जब भारत संयुक्तराष्ट्र में कश्मीर पर चर्चा करने के लिए और इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए तैयार नहीं है |
उन्होंने कहा शरीफ सरकार ने इसलिए आंखें मूंद रखी थीं क्योंकि वह चाहते थे कि भारत कश्मीर पर चर्चा करे मुशर्रफ ने संकेत दिया कि उन्हें कारगिल घुसपैठ पर कोई अफसोस नहीं है |
मुशर्रफ ने कश्मीर मुद्दे की लगातार उपेक्षा करने और कई आरोपों के चलते पाकिस्तान को अकेला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर पश्चिमी देशों को लेकर नाराजगी जताई |
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक ने कहा, 'कश्मीर मुद्दे के समाधान की लगातार उपेक्षा की जा रही है, जबकि यह पाकिस्तान में प्रमुख मुद्दा है |
उन्होंने कहा, 'पश्चिमी देश हर बात का दोष पाकिस्तान पर मढ़ता है भारतीय प्रधानमंत्री से कोई नहीं पूछता कि आपने अपने देश में परमाणु हथियार क्यों बनाए |
क्यों आप कश्मीर में बेकसूर लोगों को मार रहे हैंसन्१९७१ में बांग्लादेश के लिए भारत के समर्थन के कारण पाकिस्तान का विभाजन हुआ और कोई व्यथित नहीं हुआ |
सन् १९९९ में शरीफ सरकार को बेदखल करने वाले मुशर्रफ कारगिल युद्ध के दौरान भी सेना प्रमुख थे और भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध तेज करने की धमकी दी थी |
मुशर्रफ ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर भारत के साथ रणनीतिक समझौता करने और पाकिस्तान के साथ एक चालाक देश जैसा व्यवहार करने का आरोप लगाया |
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के साथ रणनीतिक समझौते में हर किसी की दिलचस्पी है लेकिन पाकिस्तान को हमेशा एक चालाक देश के तौर पर देखा जाता है |
अमरीका से जुड़ी लाखों विवादित जानकारियाँ इंटरनेट पर सार्वजनिक करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स के सस्थापक जूलियनअसांज के वकील ने बीबीसी को बताया है कि असांज ने कुछ ऐसी सामग्री को बचाकर रखा है जो उन्हें या उनकी वेबसाइट को कुछ होने पर सार्वजनिक की जाएगी। |
इनसे अमरीकी सरकार के प्रतिनिधियों की सऊदीअरब, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, चीन, दक्षिणकोरिया के साथ हुई बातचीत और उनके अनेक देशों के बारे में समयसमय पर बनी सोच और विचारों की झलक मिलती है। |
वेबसाइट विकीलीक्स के सांस्थापक जूलियन असांज के वकील मार्कस्टीफ़ंस ने बीबीसी को बताया कि जो जानकारियों असांज ने बचाकर रखी हैं वो इंटरनेट के युग के लिए 'परमाणु हथियार' के समान हैं। |
असांज के वकील हाल में जूलियन असांज के ख़िलाफ़ स्वीडन में एक कथित बलात्कार और छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया गया है और उनके ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीयपुलिसइंटरपोल ने एक नोटिस भी जारी किया है। |
उनके वकील मार्कस्टीफंस ने बीबीसी के साथ बातचीत में आरोप लगाया कि असांज के ख़िलाफ़ तैयार किया जा रहा बलात्कार का मामला राजनीति से प्रेरित है और यदि उन्हें स्वीडन प्रत्यर्पित किया गया तो उन्हें अंतमें अमरीका भेज दिया जाएगा। |
विकीलीक्स की ओर से जारी की गई ताज़ा जानकारियों में ऐसे संकेत दिए गए हैं कि एकसाल पहले सर्च इंडन गूगल पर हुए साइबर हमलों के पीछे वरिष्ठ चीनी अधिकारियों का हाथ हो सकता है। |
जो कंपनी विकीलीक्स को डोमेन सेवाएं दे रही थीं उसने अपने ढाँचे को ख़तरे का हवाला देते हुए विकीलीक्स की साइट को बंद कर दिया था। |
इससे पहले विकीलीक्स की सेवाएँ ख़त्म करने वाली कंपनी एवरीडीएनएसडॉटनेट (everydn । net) ने कहा था कि वेबसाइट को इसलिए बंद करना पड़ा क्योंकि उस पर व्यापक रुप से साइबर हमले हो रहे थे। |
कंपनी का तर्क था कि इन हमलों की वजह से उनके पूरे इंफ़्रास्ट्रक्चर या ढाँचे को ख़तरा पैदाहो गया और इसकी वजह से उन हज़ारों वेबसाइटों को ख़तरा पैदाहो गया था जिनका डोमेन इस कंपनी के पास था। |
वर्ष २००७ में रावलपिंडी में बेनज़ीरभुट्टो की हत्याकर दी गई थी। विशेष वकील चौधरीज़ुल्फ़िकारअली ने कहा कि ये दोनों अधिकारी बेनज़ीर की सुरक्षा के प्रभारी थे। |
संयुक्तराष्ट्र के एक जाँचआयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तानी अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि कई अधिकारियों ने जाँच में रूकावट डाली। |
ये भी कहा गया कि अगर विश्वसनीय जाँच हो तो देश के सैनिक और सुरक्षा अधिकारियों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। |
दिल्ली के हैदरपुरवॉटरप्लांट में क्लोरीन गैस लीक हो गई है। सवाघंटे तक लीक होते रहने के बाद हालात पर काबू पाया जा सका। |
मिली जानकारी के मुताबिक यह हादसा रविवार दिन में साढ़ेचारबजे हुआ जब क्लोरीन गैस सिलिंडर से भरा ट्रक सिलिंडर उतार रहा था। |
वॉटर प्लांट प्रबंधन का दावा है कि क्लोरीन ऑपरेटर्स ने हालात पर काबू पा लिया है। फायरसर्विस और पुलिस के लोग मौके पर पहुंच गए हैं। |
यह प्लांट नॉर्थदिल्ली में है। इसके आसपास करनालबाईपास, पीतमपुरा और रोहिणी के कुछ सेक्टर हैं। इन इलाकों में क्लोरीन गैस का असर पड़ सकता है। हालांकि कहा जा रहा है कि प्लांट में सेफ्टी अरेंजमेंट होने की वजह से कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। |
लेकिन अगर आप रंगीन मिजाज नशेबाज हैं, वाइल्ड पार्टियों का बेइंतहा शौक है तो करोड़ों क्या अरबोंरुपये भी आपके इस जनम के लिए काफी ऐसां। ऐसा ही हुआ एक ब्रिटिश के साथ। |
रकम कोकेन के नशे, हर रात औरतों के साथ रंगीन करने, पार्टीबाजी और कारों पर खर्चकर दी। कोकेन रखने के कारण उसे ५महीने की जेल भी हुई। |
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