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topos,topos_english,fragment,portuguese_text,greek_text,source
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Velhice,Old age,1,"Anacreonte, o cantor |
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De Teos me viu e falou |
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Comigo num dos meus sonhos. |
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Corri em sua direção, |
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Beijei-o e o abracei, |
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Pois mesmo velho era belo |
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E além de belo, amoroso, |
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Cheirando a vinho nos lábios. |
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E visto que ele tremia |
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O Amor |
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tomava a sua mão. |
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Depois me deu a guirlanda |
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Que tinha sobre a cabeça: |
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Cheirava a Anacreonte. |
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Eu, tolo, então a aceitei: |
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Ergui-a e a pus sobre a testa. |
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E desde então nunca mais |
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Cessei de me apaixonar.","Ἀνακρέων ἰδών με |
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ὁ Τήιος μελῳδὸς |
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ὄναρ λέγων προσεῖπεν, |
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κἀγὼ δραμὼν πρὸς αὐτὸν |
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περιπλάκην φιλήσας. |
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γέρων μὲν ἦν, καλὸς δέ, |
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καλὸς δὲ καὶ φίλευνος· |
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τὸ χεῖλος ὦζεν οἴνου, |
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τρέμοντα δ’ αὐτὸν ἤδη |
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Ἔρως ἐχειραγώγει. |
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ὁ δ’ ἐξελὼν καρήνου |
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ἐμοὶ στέφος δίδωσι· |
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τὸ δ’ ὦζ’ Ἀνακρέοντος. |
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ἐγὼ δ’ ὁ μωρὸς ἄρας |
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ἐδησάμην μετώπῳ· |
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καὶ δῆθεν ἄχρι καὶ νῦν |
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ἔρωτος οὐ πέπαυμαι.",https:
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Velhice,Old age,7,"As moças sempre dizem: |
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“Anacreonte, és velho! |
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Vai ver nalgum espelho: |
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Já foi o teu cabelo, |
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Tua testa está pelada!” |
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Não sei se meu cabelo |
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Se foi ou permanece, |
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Mas sei é que conforme |
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A Moira se aproxima |
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É mais apropriado |
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Que o velho se divirta.","λέγουσιν αἰ γυναῖκες· |
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«Ἀνάκρεον, γέρων εῖ· |
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λαβὼν ἔσοπτρον ἄθρει |
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κόμας μὲν οὐκέτ’ οὔσας, |
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ψιλὸν δέ σευ μέτωπον.» |
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ἐγὼ δὲ τὰς κόμας μέν, |
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εἴτ’ εἰσὶν εἴτ’ ἀπῆλθον, |
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οὐκ οἶδα· τοῦτο δ’ οῖδα, |
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ὡς τῷ γέροντι μᾶλλον |
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πρέπει τὸ τερπνὰ παίζειν, |
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ὅσῳ πέλας τὰ Μοίρης.",https:
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"Loucura, sobriedade e as muitas vozes das Anacreônticas","Madness, sobriety and the many voices of the Anacreontics",9,"Permita-me, em nome dos deuses, |
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Beber, beber sem respirar: |
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Eu quero, eu quero enlouquecer. |
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Enlouquecera Alcmeão, |
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Bem como Orestes pés-descalços |
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Após matar a sua mãe – |
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Bebendo o vinho rubro entanto |
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Sem ter ninguém assassinado |
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Eu quero, eu quero enlouquecer. |
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Enlouquecera Héracles |
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Brandindo a sua terrível aljava |
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Ao lado do arco de Ífito. |
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Enlouquecera também Ájax |
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Ao manejar o seu escudo |
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E a espada que de Heitor ganhara. |
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Mas eu, tomando a minha taça |
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E com guirlandas nos cabelos, |
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Não tendo arco nem espada, |
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Eu quero, eu quero enlouquecer.","ἄφες με, τοὺς θεούς σοι, |
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πιεῖν, πιεῖν ἀμυστί· |
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θέλω, θέλω μανῆναι. |
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ἐμαίνετ’ Ἀλκμαίων τε |
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χὠ λευκόπους Ὀρέστης |
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τὰς μητέρας κτανόντες· |
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ἐγὼ δὲ μηδένα κτάς, |
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πιὼν δ’ ἐρυθρὸν οἶνον |
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θέλω, θέλω μανῆναι. |
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ἐμαίνετ’ Ἡρακλῆς πρὶν |
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δεινὴν κλονῶν φαρέτρην |
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καὶ τόξον Ἰφίτειον. |
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ἐμαίνετο πρὶν Αἴας |
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μετ’ ἀσπίδος κραδαίνων |
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τὴν Ἕκτορος μάχαιραν· |
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ἐγὼ δ’ ἔχων κύπελλον |
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καὶ στέμμα τοῦτο χαίτης, |
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οὐ τόξον, οὐ μάχαιραν, |
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θέλω, θέλω μανῆναι.",https:
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"Loucura, sobriedade e as muitas vozes das Anacreônticas","Madness, sobriety and the many voices of the Anacreontics",12,"Alguns dizem que, pela bela |
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Cibele, o meio-fêmeo Átis, |
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Soltando gritos nas montanhas, |
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Enlouqueceu completamente. |
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Há quem beba as águas loquazes |
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De Febo, portador de louros, |
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Na margem elevada em Claros, |
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E enlouquecendo solte gritos. |
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Mas eu só quero a minha dose |
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De Lieu, mais o meu perfume |
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E também a minha garota |
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E eu quero, eu quero enlouquecer.","οἱ μὲν καλὴν Κυβήβην |
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τὸν ἡμίθηλυν Ἄττιν |
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ἐν οὔρεσιν βοῶντα |
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λέγουσιν ἐκμανῆναι. |
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οἱ δὲ Κλάρου παρ’ ὄχθαις |
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δαφνηφόνοιο Φοίβου |
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λάλον πιόντες ὕδωρ |
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μεμηνότες βοῶσιν. |
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ἐγὼ δὲ τοῦ Λυαίου |
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καὶ τοῦ μύρου κορεσθεὶς |
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καὶ τῆς ἐμῆς ἑταίρης |
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θέλω, θέλω μανῆναι.",https:
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"Loucura, sobriedade e as muitas vozes das Anacreônticas","Madness, sobriety and the many voices of the Anacreontics",2,"Dá-me a lira de Homero |
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Sem a corda de assassínio. |
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Traz-me as taças dos costumes, |
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Traz-me as leis mescladas nelas, |
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Pra que eu dance embriagado |
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Com sensata insanidade |
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E acompanhe a lira em canto, |
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Entoando o som do vinho. |
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Dá-me a lira de Homero |
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Sem a corda de assassínio","δότε μοι λύρην Ὁμήρου |
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φονίης ἄνευθε χορδῆς, |
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φέρε μοι κύπελλα θεσμῶν, |
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φέρε μοι νόμους κεράσσας, |
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μεθύων ὅπως χορεύσω, |
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ὑπὸ σώφρονος δὲ λύσσης |
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μετὰ βαρβίτων ἀείδων |
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τὸ παροίνιον βοήσω. |
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δότε μοι λύρην Ὁμήρου |
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φονίης ἄνευθε χορδῆς.",https:
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Poíesis,Poíesis,11,"Um jovem vendia uma estátua |
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Do Amor esculpido na cera. |
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Parei junto dele e então |
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“Por quanto” lhe disse “tu queres |
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Vender o teu artesanato?” |
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Em Dório ele me respondeu: |
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“Por quanto quiseres pagar. |
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Pra bem da verdade, confesso: |
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Nem sei trabalhar com a cera; |
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Apenas não quero viver |
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Ao lado do Amor, o vilão.” |
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“Dá aqui! Dá-me aqui e toma um dracma. |
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Será um bonito consorte.” |
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Amor, vai tratando de pôrMe em chamas senão serás tu |
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Quem vai derreter lá no fogo.”","Ἔρωτα κήρινόν τις |
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νεηνίης ἐπώλει· |
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ἐγὼ δέ οἱ παραστὰς |
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‘πόσου θέλεις’ ἔφην ‘σοὶ |
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τὸ τευχθέν ἐκπρίωμαι;’ |
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ὁ δ’ εἶπε δωριάζων |
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‘λάβ’ αὐτόν, ὁππόσου λῇς. |
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ὅπως <δ’> ἂν ἐκμάθῃς πᾶν, |
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οὐκ εἰμὶ κηροτέχνας, |
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ἀλλ’ οὐ θέλω συνοικεῖν |
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Ἔρωτι παντορέκτᾳ.’ |
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‘δὸς οὖν, δὸς αὐτὸν ἡμῖν |
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δραχμῆς, καλὸν σύνευνον.’ |
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Ἔρως, σὺ δ’ εὐθέως με |
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πύρωσον· εἰ δὲ μή, σὺ |
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κατὰ φλογὸς τακήσῃ.",https:
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Poíesis,Poíesis,60a,"Eu farei as cordas vibrarem, |
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Não por conta de um campeonato, |
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Mas por ser uma arte que todos |
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Os poetas devem saber. |
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Com meu plectro de marfim eu |
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Tocarei as notas mais claras, |
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E num ritmo frígio eu irei |
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Bradar feito um cisne do Caistro, |
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Com as asas ao vento, cantando |
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Uma melodia complexa. |
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E tu, Musa, dança comigo! |
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Pois pra Febo a lira e o louro |
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E o tripé são todos sagrados. |
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A paixão de Febo é meu tema: |
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Um desejo não saciado, |
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Pois a moça se mantém casta, |
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Escapando do seu ferrão, |
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Tendo o corpo sido tornado |
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Numa planta bem vicejante. |
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Porém Febo, Febo então veio |
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E pensando ser seu senhor |
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Arrancou-lhe as folhas, supondo |
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Que fazia os ritos Citérios.","ἀνὰ βάρβιτον δονήσω· |
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ἄεθλος μὲν οὐ πρόκειται, |
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μελέτη δ’ ἔπεστι παντὶ |
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σοφίης λαχόντ’ ἄωτον. |
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ἐλεφαντίνῳ δὲ πλήκτρῳ |
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λιγυρὸν μέλος κροαίνων |
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Φρυγίῳ ῥυθμῷ βοήσω, |
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ἅτε τις κύκνος Καΰστρου |
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ποικίλον πτεροῖσι μέλπων |
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ἀνέμου σύναυλος ἠχῇ. |
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σὺ δέ, Μοῦσα, συγχόρευε· |
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ἱερὸν γάρ ἐστι Φοίβου |
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κιθάρη, δάφνη τρίπους τε. |
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λαλέω δ’ ἔρωτα Φοίβου, |
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ἀνεμώλιον τὸν οἶστρον· |
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σαόφρων γάρ ἐστι κούρα· |
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τὰ μὲν ἐκπέφευγε κέντρα, |
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φύσεως δ’ ἄμειψε μορφήν, |
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φυτὸν εὐθαλὲς δ’ ἐπήχθη· |
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ὁ δὲ Φοῖβος, ᾖὲ, Φοῖβος, |
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κρατέειν κόρην νομίζων, |
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χλοερὸν δρέπων δὲ φύλλον |
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ἐδόκει τελεῖν Κυθήρην",https:
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Riqueza,Wealth,8,"Não me importa a fortuna |
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De Giges, rei de Sardes. |
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Eu nunca o invejei, |
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Nem a nenhum tirano. |
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Importa-me molhar |
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A barba com perfume. |
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Importa-me cingir |
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Com rosas a cabeça. |
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O agora é o que me importa. |
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Quem sabe o amanhã? |
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Enquanto o tempo é bom, |
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Portanto, bebe e brinca, |
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Libando pra Lieu. |
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Não chegue uma doença |
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E diga: “Já não podes.”","οὔ μοι μέλει τὰ Γύγεω, |
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τοῦ Σάρδεων ἄνακτος· |
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οὐδ’ εἷλέ πώ με ζῆλος, |
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οὐδὲ φθονῶ τυράννοις. |
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ἐμοὶ μέλει μύροισιν |
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καταβρέχειν ὑπήνην, |
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ἐμοὶ μέλει ῥόδοισιν |
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καταστέφειν κάρηνα· |
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τὸ σήμερον μέλει μοι, |
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τὸ δ’ αὔριον τίς οἶδεν; |
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ὡς οὖν ἔτ’ εὔδι’ ἔστιν, |
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καὶ πῖνε καὶ κύβευε |
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καὶ σπένδε τῷ Λυαίῳ, |
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μὴ νοῦσος, ἤν τις ἔλθῃ, |
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λέγῃ, ‘σὲ μὴ δεῖ πίνειν.’",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,60b,"Coração, por que te enlouqueces |
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Co’ a melhor loucura de todas? |
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Vamos! Joga longe essa lança, |
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Para que acertando tu partas! |
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Abandona o arco com que |
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Afrodite venceu os deuses. |
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Imitando o bardo famoso, |
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Anacreonte, faz um brinde |
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Aos moços e bebe essa taça, |
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Tua amável taça de palavras! |
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Contentemo-nos com o néctar |
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Da bebida, evitando a estrela |
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Cuja luz refulge escarlate.","ἄγε, θυμέ, πῇ μέμηνας |
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μανίην μανεὶς ἀρίστην; |
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τὸ βέλος, φέρε, κράτυνον, |
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σκοπὸν ὡς βαλὼν ἀπέλθῃς. |
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τὸ δὲ τόξον Ἀφροδίτης |
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ἄφες, ᾧς θεοὺς ἐνίκα. |
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τὸν Ἀνακρέοντα μιμοῦ, |
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τὸν ἀοίδιμον μελιστήν. |
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φιάλην πρόπινε παισίν, |
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φιάλην λόγων ἐραννήν· |
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ἀπὸ νέκταρος ποτοῖο |
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παραμύθιον λαβόντες |
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φλογερὸν φυγόντες ἄστρον",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,31,"Com uma vara de jacintos, |
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O Amor batia em mim sem pena, |
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Mandando que eu o acompanhasse. |
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Corri ao longo de águas duras, |
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De arbustos e também de abismos, |
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Corri e o suor me incomodava. |
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O coração subiu-me ao rosto, |
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Até o nariz. Pensei morrer. |
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Mas Eros abanando as suas |
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Asinhas tenras me falou: |
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“Não podes mesmo então amar?”","ὑακινθίνῃ με ῥάβδῳ |
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χαλεπῶς Ἔρως ῥαπίζων |
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ἐκέλευε συντροχάζειν. |
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διὰ δ’ ὀξέων μ’ ἀναύρων |
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ξυλόχων τε καὶ φαράγγων |
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τροχάοντα τεῖρεν ἱδρώς· |
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κραδίη δὲ ῥινὸς ἄχρις |
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ἀνέβαινε, κἂν ἀπέσβην. |
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ὁ δ’ Ἔρως †μέτωπα σείων† |
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ἁπαλοῖς πτεροῖσιν εἶπεν· |
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‘σὺ γὰρ οὐ δύνῃ φιλῆσαι;’",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,33,"Certa vez, no meio da noite, |
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Chegado o momento em que a Ursa |
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Já se vira à mão do Boieiro |
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E todas as tribos dos homens |
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Se deitam pelo seu cansaço, |
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O Amor se pôs em frente à minha |
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Porta e começou a bater. |
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“Quem bate em minha porta?” eu disse. |
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“Partiste todos os meus sonhos!” |
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O Amor então responde: “Abre! |
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Sou um bebê! Não tenhas medo! |
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Estou molhado e estou perdido |
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Em meio à noite sem luar.” |
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Fiquei com pena do que ouvi. |
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Por isso, acendo um lampião |
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E abrindo a porta então eu vejo |
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Um bebezinho com seu arco, |
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Aljava e asas sobre as costas. |
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Sentei-o junto da lareira, |
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A fim de que esquentasse as mãos, |
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E então sequei o seu cabelo, |
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Espremendo os cachos molhados. |
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Quando o frio por fim o soltou, |
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“Vem!”, ele disse. “Vem testar |
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Meu arco para ver se a corda |
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Acaso se estragou na chuva!” |
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Armou a flecha e me acertou |
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No meio do meu coração. |
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Depois, pulando e rindo, disse: |
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“Amigo, alegra-te comigo! |
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Meu arco está ileso, mas |
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Teu coração irá doer!”","μεσονυκτίοις ποτ’ ὥραις, |
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στρέφετ’ ἡνίκ’ Ἄρκτος ἤδη |
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κατὰ χεῖρα τὴν Βοώτου, |
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μερόπων δὲ φῦλα πάντα |
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κέαται κόπῳ δαμέντα, |
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τότ’ Ἔρως ἐπισταθείς μευ |
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θυρέων ἔκοπτ’ ὀχῆας. |
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‘τίς’ ἔφην ‘θύρας ἀράσσει, |
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κατά μευ σχίσας ὀνείρους;’ |
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ὁ δ’ Ἔρως ‘ἄνοιγε’ φησίν· |
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‘βρέφος εἰμί, μὴ φόβησαι· |
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βρέχομαι δὲ κἀσέληνον |
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κατὰ νύκτα πεπλάνημαι.’ |
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ἐλέησα ταῦτ’ ἀκούσας, |
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ἀνὰ δ’ εὐθὺ λύχνον ἅψας |
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ἀνέῳξα, καὶ βρέφος μὲν |
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ἐσορῶ φέροντα τόξον |
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πτέρυγάς τε καὶ φαρέτρην· |
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παρὰ δ’ ἱστίην καθίξας |
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παλάμαισι χεῖρας αὐτοῦ |
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ἀνέθαλπον, ἐκ δὲ χαίτης |
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ἀπέθλιβον ὑγρὸν ὕδωρ. |
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ὃ δ’, ἐπεὶ κρύος μεθῆκε, |
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‘φέρε’ φησὶ ‘πειράσωμεν |
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τόδε τόξον, εἴ τί μοι νῦν |
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βλάβεται βραχεῖσα νευρή.’ |
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τανύει δὲ καί με τύπτει |
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μέσον ἧπαρ, ὥσπερ οἶστρος. |
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ἀνὰ δ’ ἅλλεται καχάζων· |
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‘ξένε’ δ’ εἶπε ‘συγχάρηθι· |
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κέρας ἀβλαβὲς μὲν ἡμῖν, |
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σὺ δὲ καρδίαν πονήσεις.’",https:
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Velhice,Old age,39,"Amo um velho que é gentil; |
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Amo um jovem dançarino; |
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E, se um homem velho dança, |
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Ele é velho em seus cabelos, |
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Mas é novo em coração.","φιλῶ γέροντα τερπνόν, |
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φιλῶ νέον χορευτάν· |
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ἂν δ’ ὁ γέρων χορεύῃ, |
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τρίχας γέρων μέν ἐστιν, |
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τὰς δὲ φρένας νεάζει.",https:
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Poíesis,Poíesis,16,"Vinde, mestre dos pintores! |
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Pintai, mestre dos pintores! |
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Comandante da arte ródia, |
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Da maneira que vos digo, |
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Desenhai a moça ausente: |
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Desenhai primeiro os cachos – |
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Delicados cachos negros – |
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E, se a cera o permitir, |
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Desenhai o seu perfume. |
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Desenhai as suas bochechas |
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Sob um cenho de marfim |
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E madeixas negro-roxas. |
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Não corteis as sobrancelhas, |
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Mas também não as unais: |
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Que elas sejam como são, |
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Bordas negras de seus olhos |
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Encontrando-se de leve. |
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Os seus olhos, veramente, |
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Vós deveis fazer de fogo; |
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Glaucos, como os de Atena; |
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Úmidos, tal qual Citéria. |
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Desenhai nariz, bochechas, |
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Misturando o rosa ao creme. |
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Lábios: como os de Peitó, |
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Sempre provocando beijos. |
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Sob o queixo delicado, |
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Junto ao seu pescoço níveo, |
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Permiti que as Graças voem. |
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Sobre o resto ponde peplos |
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Com um leve tom purpúreo, |
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Mas mostrai a pele um pouco, |
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Como prova de seu corpo. |
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É o bastante! Posso vê-la! |
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Mais um pouco e a cera fala!","ἄγε, ζωγράφων ἄριστε, |
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γράφε, ζωγράφων ἄριστε, |
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Ῥοδίης κοίρανε τέχνης, |
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ἀπεοῦσαν, ὡς ἂν εἴπω, |
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γράφε τὴν ἐμὴν ἑταίρην. |
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γράφε μοι τρίχας τὸ πρῶτον |
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ἁπαλάς τε καὶ μελαίνας· |
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ὁ δὲ κηρὸς ἂν δύνηται, |
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γράφε καὶ μύρου πνεούσας. |
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γράφε δ’ ἐξ ὅλης παρειῆς |
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ὑπὸ πορφυραῖσι χαίταις |
|
ἐλεφάντινον μέτωπον. |
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τὸ μεσόφρυον δὲ μή μοι |
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διάκοπτε μήτε μίσγε, |
|
ἐχέτω δ’, ὅπως ἐκείνη, |
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τὸ λεληθότως σύνοφρυ, |
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βλεφάρων ἴτυν κελαινήν. |
|
τὸ δὲ βλέμμα νῦν ἀληθῶς |
|
ἀπὸ τοῦ πυρὸς ποίησον, |
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ἅμα γλαυκὸν ὡς Ἀθήνης, |
|
ἅμα δ’ ὑγρὸν ὡς Κυθήρης. |
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γράφε ῥῖνα καὶ παρειὰς |
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ῥόδα τῷ γάλακτι μίξας· |
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γράφε χεῖλος, οἷα Πειθοῦς, |
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προκαλούμενον φίλημα. |
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τρυφεροῦ δ’ ἔσω γενείου |
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περὶ λυγδίνῳ τραχήλῳ |
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Χάριτες πέτοιντο πᾶσαι. |
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στόλισον τὸ λοιπὸν αὐτὴν |
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ὑποπορφύροισι πέπλοις, |
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διαφαινέτω δὲ σαρκῶν |
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ὀλίγον, τὸ σῶμ’ ἐλέγχον. |
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ἀπέχει· βλέπω γὰρ αὐτήν· |
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τάχα κηρέ, καὶ λαλήσεις.",https:
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Poíesis,Poíesis,17,"Desenhai meu companheiro |
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Bátilo conforme digo: |
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Ponde brilho em seu cabelo: |
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Negro embaixo, mas nas pontas |
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Clareado pelo sol. |
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Dai-lhe mechas cacheadas, |
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Livres, e deixai que fiquem |
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Em desordem como querem. |
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O seu cenho sob orvalho, |
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Laureai com sobrancelhas |
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Mais escuras que serpentes. |
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Que seus olhos negros sejam |
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Tão ferozes quanto calmos – |
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Com a fúria de Ares junto à |
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Calma de Citéria bela –, |
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Pra que causem tanto o medo |
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Quanto nutram a esperança. |
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Rosas, como uma maçã, |
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Engendrai as suas bochechas. |
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Se possível, dai-lhes cor |
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Semelhante à da Modéstia. |
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Não sei como, mas os lábios |
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Vós deveis fazer macios, |
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Cheios de persuasão. |
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Mas deixai que a cêra diga |
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Tudo com o seu silêncio. |
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Que haja então depois do rosto |
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Um pescoço de marfim |
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Superior ao de Adônis. |
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Engendrai depois seu peito |
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E suas mãos como as de Hermes; |
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Coxas, como Polideuces; |
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O abdômen, de Dioniso; |
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Sobre as suas tenras coxas, |
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Abrasadas pelo fogo, |
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Ponde uma vergonha simples, |
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Mas que já deseje a Páfia. |
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Vossa arte é uma invejosa, |
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Pois não mostra as costas dele. |
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Haveria algo melhor? |
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Descrever os pés pra quê? |
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Quanto ao preço, não me importo. |
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Mas levai convosco Apolo, |
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Dele vós fareis meu Bátilo. |
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Mas se fordes para Samos, |
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Febo vós fareis de Bátilo.","γράφε μοι Βάθυλλον οὕτω, |
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τὸν ἑταῖρον, ὡς διδάσκω· |
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λιπαρὰς κόμας ποίησον, |
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τὰ μὲν ἔνδοθεν μελαίνας, |
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τὰ δ’ ἐς ἄκρον ἡλιώσας· |
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ἕλικας δ’ ἐλευθέρους μοι |
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πλοκάμων ἄτακτα συνθεὶς |
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ἄφες, ὡς θέλωσι, κεῖσθαι. |
|
ἁπαλὸν δὲ καὶ δροσῶδες |
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στεφέτω μέτωπον ὀφρὺς |
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κυανωτέρη δρακόντων. |
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μέλαν ὄμμα γοργὸν ἔστω |
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κεκερασμένον γαλήνῃ, |
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τὸ μὲν ἐξ Ἄρηος ἕλκον, |
|
τὸ δὲ τῆς καλῆς Κυθήρης, |
|
ἵνα τις τὸ μὲν φοβῆται, |
|
τὸ δ’ ἀπ’ ἐλπίδος κρεμᾶται. |
|
ῥοδέην δ’ ὁποῖα μῆλον |
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χνοΐην ποίει παρειήν· |
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ἐρύθημα δ’ ὡς ἂν Αἰδοῦς |
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δύνασ’ εἰ βαλεῖν ποίησον. |
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τὸ δὲ χεῖλος οὐκέτ’ οἶδα |
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τίνι μοι τρόπῳ ποιήσεις |
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ἁπαλόν γέμον τε πειθοῦς· |
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τὸ δὲ πᾶν ὁ κηρὸς αὐτὸς |
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ἐχέτω λαλῶν σιωπῇ. |
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μετὰ δὲ πρόσωπον ἔστω |
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τὸν Ἀδώνιδος παρελθὼν |
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ἐλεφάντινος τράχηλος. |
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μεταμάζιον δὲ ποίει |
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διδύμας τε χεῖρας Ἑρμοῦ, |
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Πολυδεύκεος δὲ μηρούς, |
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Διονυσίην δὲ νηδύν· |
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ἁπαλῶν δ’ ὕπερθε μηρῶν, |
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μαλερὸν τὸ πῦρ ἐχόντων, |
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ἀφελῆ ποίησον αἰδῶ |
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Παφίην θέλουσαν ἤδη. |
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φθονερὴν ἔχεις δὲ τέχνην, |
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ὅτι μὴ τὰ νῶτα δεῖξαι |
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δύνασαι· τὰ δ’ ἦν ἀμείνω. |
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τί με δεῖ πόδας διδάσκειν; |
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λάβε μισθὸν, ὅσσον εἴπῃς, |
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τὸν Ἀπόλλωνα δὲ τοῦτον |
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καθελὼν ποίει Βάθυλλον· |
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ἢν δ’ ἐς Σάμον ποτ’ ἔλθῃς, |
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γράφε Φοῖβον ἐκ Βαθύλλου.",https:
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Poíesis,Poíesis,4,"Trabalha a tua prata, |
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Hefesto e uma armadura |
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Pra mim não faças, não. |
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Que tenho a ver com lutas? |
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Mas antes faz-me um copo |
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Tão fundo quanto der. |
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Não ponhas nele, entanto, |
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Estrelas: nem a Ursa |
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Nem Órion brilhante. |
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Por que me importariam |
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As Plêiades, Boieiro? |
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Põe vinhas para mim |
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Com cachos de uva nelas |
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E Bacas pra as colherem. |
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Põe homens amassando |
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As uvas com seus pés |
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E sátiros que riem |
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E Amores feitos de ouro |
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E o riso da Citéria |
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E de Lieu formoso |
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E de Eros e Afrodite.","τὸν ἄργυρον τορεύων |
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Ἥφαιστέ μοι ποίησον |
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πανοπλίαν μὲν οὐχί· |
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τί γὰρ μάχαισι κἀμοί; |
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ποτήριον δὲ κοῖλον |
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ὅσον δύνῃ βαθύνας. |
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ποίει δέ μοι κατ’ αὐτοῦ |
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μήτ’ ἄστρα μήτ’ Ἅμαξαν, |
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μὴ στυγνὸν Ὠρίωνα. |
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τί Πλειάδων μέλει μοι, |
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τί γὰρ καλοῦ Βοώτου; |
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ποίησον ἀμπέλους μοι |
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καὶ βότρυας κατ’ αὐτῶν |
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καὶ μαινάδας τρυγώσας, |
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ποίει δὲ ληνὸν οἴνου, |
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ληνοβάτας πατοῦντας, |
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τοὺς σατύρους γελῶντας |
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καὶ χρυσοῦς τοὺς Ἔρωτας |
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καὶ Κυθέρην γελῶσαν |
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ὁμοῦ καλῷ Λυαίῳ, |
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Ἔρωτα κἀφροδίτην.",https:
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Poíesis,Poíesis,23,"Do Atrida eu falaria |
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E cantaria Cadmo |
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Se a lira em suas cordas |
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De amor não só vibrasse. |
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Eu já troquei suas fibras |
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E até a lira inteira. |
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Tentei cantar os feitos |
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De Héracles e a lira |
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No entanto o amor ressona. |
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Adeus pra sempre a vós, |
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Heróis, pois que esta lira |
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Somente o amor me canta!","θέλω λέγειν Ἀτρείδας, |
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θέλω δὲ Κάδμον ᾄδειν, |
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ὁ βάρβιτος δὲ χορδαῖς |
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Ἔρωτα μοῦνον ἠχεῖ. |
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ἤμειψα νεῦρα πρώην |
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καὶ τὴν λύρην ἅπασαν· |
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κἀγὼ μὲν ῇδον ἄθλους |
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Ἡρακλέους· λύρη δὲ |
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Ἔρωτας ἀντεφώνει. |
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χαίροιτε λοιπὸν ἡμῖν, |
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ἥρωες· ἡ λύρη γὰρ |
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μόνους Ἔρωτας ᾄδει.",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,35,"Certa vez, o Amor, por não ver |
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Que em meio às rosas uma abelha |
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Dormia, acabou se ferindo. |
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Tão logo sentiu a picada |
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Num dedo da mão ele uivou |
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E foi-se correndo e voando |
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Atrás da venusta Citéria. |
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“Mataram-me, mãe!” ele disse. |
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“Mataram-me! Ai, estou morrendo! |
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Uma cobrinha voadora |
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Me picou! Aquela chamada |
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De abelha pelos camponeses!” |
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E ela respondeu: “Se o ferrão |
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Da abelha dói dessa maneira, |
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Que dor tu pensas que eles sentem, |
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Amor, por conta de tuas flechas?”","Ἔρως ποτ’ ἐν ῥόδοισι |
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κοιμωμένην μέλιτταν |
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οὐκ εἶδεν, ἀλλ’ ἐτρώθη· |
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τὸν δάκτυλον παταχθεὶς |
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τᾶς χειρὸς ὠλόλυξε. |
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δραμὼν δὲ καὶ πετασθεὶς |
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πρὸς τὴν καλὴν Κυθήρην |
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ὄλωλα, μῆτερ,’ εἶπεν, |
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‘ὄλωλα κἀποθνήσκω· |
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ὄφις μ’ ἔτυψε μικρός |
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πτερωτός, ὃν καλοῦσιν |
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μέλιτταν οἱ γεωργοί.’ |
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ἃ δ’ εἶπεν· ‘εἰ τὸ κέντρον |
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πονεῖς τὸ τᾶς μελίττας, |
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πόσον δοκεῖς πονοῦσιν, |
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Ἔρως, ὅσους σὺ βάλλεις;’",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,59,"Sobre os ombros, homens e moças |
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Vão levando as uvas de pele |
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Negra em cachos dentro de cestos, |
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[No caminho ao longo das vinhas,] |
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Depois jogam-nas nos tonéis |
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Onde os homens as espezinham, |
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Liberando o vinho dos cachos |
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E com clamor saudando o deus |
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Com hinos de vindima ao ver |
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Como borbulha o adorável |
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Baco novo dentro das jarras. |
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Quando um homem velho o ingere, |
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Ele dança em pés tremebundos, |
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Balançando os cachos grisalhos. |
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Entretanto, um jovem amável, |
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Quando tem deitada à sua espera |
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Uma moça [plena de vinho] |
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Vacilando ao peso do sono, |
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O seu corpo meigo ele abraça, |
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Reclinado à sombra das folhas. |
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Por sua vez, o Amor [quando bebe] |
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Faz feitiços fora do tempo: |
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[Uma esposa] trai suas núpcias. |
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E um rapaz que falha em seu flerte |
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Toma a moça contra a vontade. |
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Esses são os jogos sem ordem |
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Com que Baco brinca entre os jovens.","τὸν μελανόχρωτα βότρυν |
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ταλάροις φέροντες ἄνδρες |
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μετὰ παρθένων ἐπ’ ὤμων, |
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. . . . . . . . . |
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κατὰ ληνοῦ δὲ βαλόντες |
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μόνον ἄρσενες πατοῦσιν |
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σταφυλήν, λύοντες οἶνον, |
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μέγα τὸν θεὸν κροτοῦντες |
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ἐπιληνίοισιν ὕμνοις, |
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ἐρατὸν πίθοις ὁρῶντες |
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νέον ἐσζέοντα Βάκχον. |
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ὃν ὅταν πίνῃ γεραιός, |
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τρομεροῖς ποσὶν χορεύει |
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πολιὰς τρίχας τινάσσων. |
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ὁ δὲ παρθένον λοχήσας |
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ἐρατὸς νέος . . . . . . . |
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. . . . . . . . . ἐλυσθεὶς |
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ἁπαλὸν δέμας χυθεῖσαν |
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σκιερῶν ὕπαιθα φύλλων |
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βεβαρημένην ἐς ὕπνον. |
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ὁ δ’ Ἔρως ἄωρα θέλγων |
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. . . . . . . . . |
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προδότιν γάμων γενέσθαι. |
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ὁ δὲ μὴ λόγοισι πείθων |
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τότε μὴ θέλουσαν ἄγχει· |
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μετὰ γὰρ νέων ὁ Βάκχος |
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μεθύων ἄτακτα παίζει.",https:
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Riqueza,Wealth,36,"Se a Riqueza oferecesse |
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Vida pros mortais por ouro, |
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Com zelo eu o guardaria, |
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Pra que quando viesse a Morte |
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Lhe pagasse e fosse embora. |
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No entanto, como os mortais |
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Não podem comprar a vida, |
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Para que sofrer em vão? |
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Pra que chorar e gemer? |
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Se estou fadado a morrer, |
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De que irá servir-me o ouro? |
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Deixa-me beber e, tendo |
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Bebido o meu doce vinho, |
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Deitar-me com meus amigos |
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Numa cama bem macia |
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Para os ritos de Afrodite.","ὁ Πλοῦτος εἴ γε χρυσοῦ |
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τὸ ζῆν παρεῖχε θνητοῖς, |
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ἐκαρτέρουν φυλάττων, |
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ἵν’, ἂν Θάνατος ἐπέλθῃ. |
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λάβῃ τι καὶ παρέλθῃ. |
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εἰ δ’ οὖν μὴ τὸ πρίασθαι |
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τὸ ζῆν ἔνεστι θνητοῖς, |
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τί καὶ μάτην στεγάζω; |
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τί καὶ γόους προπέμπω; |
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θανεῖν γὰρ εἰ πέπρωται, |
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τί χρυσὸς ὠφελεῖ με; |
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ἐμοὶ γένοιτο πίνειν, |
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πιόντι δ’ οἶνον ἡδὺν |
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ἐμοῖς φίλοις συνεῖναι, |
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ἐν δ’ ἁπαλαῖσι κοίταις |
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τελεῖν τὰν Ἀφροδίταν",https:
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"Loucura, sobriedade e as muitas vozes das Anacreônticas","Madness, sobriety and the many voices of the Anacreontics",42,"Anseio pelas danças de |
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Dioniso, o amante da alegria! |
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Eu amo quando toco a lira |
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Bebendo em companhia a um jovem, |
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Mas mais que tudo eu amo pôr |
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Guirlandas de jacintos ao |
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Redor da testa e então brincar |
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Na companhia de garotas. |
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Meu coração não sabe o que é |
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A inveja que lacera o peito. |
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Eu fujo das velozes lanças |
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De línguas dadas ao abuso. |
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Detesto brigas junto ao vinho. |
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Em festas cheias de alegria, |
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Com moças feito flores frescas, |
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Dançando ao som que vem da lira, |
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Que eu leve a minha vida em paz","ποθέω μὲν Διονύσου |
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φιλοπαίγμονος χορείας, |
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φιλέω δ’, ὅταν ἐφήβου |
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μετὰ συμπότου λυρίζω· |
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στεφανίσκους δ’ ὑακίνθων |
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κροτάφοισιν ἀμφιπλέξας |
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μετὰ παρθένων ἀθύρειν |
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φιλέω μάλιστα πάντων. |
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φθόνον οὐκ οἶδ’ ἐμὸν ἦτορ, |
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φθόνον οὐκ οἶδα δαϊκτήν. |
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φιλολοιδόροιο γλώττης |
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φεύγω βέλεμνα κοῦφα· |
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στυγέω μάχας παροίνους. |
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πολυκώμους κατὰ δαῖτας |
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νεοθηλέσιν ἅμα κούραις |
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ὑπὸ βαρβίτῳ χορεύων |
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βίον ἥσυχον φέροιμι.",https:
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Eros doceamargo,Eros sweet-bitte,29,"É bem difícil não amar. |
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É bem difícil amar também. |
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Mas mais difícil do que tudo |
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É quando o amor fraqueja e falha. |
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Pro Amor linhagem não é nada. |
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Saber, caráter: ignorados. |
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Dinheiro é tudo que eles veem. |
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Maldito o homem que primeiro |
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Apaixonou-se por dinheiro! |
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Por causa dele nós perdemos |
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O nosso irmão e os nossos pais. |
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Por causa dele há guerra e morte. |
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Mas o pior é perecermos, |
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Por causa dele, nós amantes. |
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","χαλεπὸν τὸ μὴ φιλῆσαι, |
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χαλεπὸν δὲ καὶ φιλῆσαι, |
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χαλεπώτερον δὲ πάντων |
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ἀποτυγχάνειν φιλοῦντα. |
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γένος οὐδὲν εἰς Ἔρωτα· |
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σοφίη, τρόπος πατεῖται· |
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μόνον ἄργυρον βλέπουσιν. |
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ἀπόλοιτο πρῶτος αὐτὸς |
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ὁ τὸν ἄργυρον φιλήσας. |
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διὰ τοῦτον οὐκ ἀδελφός, |
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διὰ τοῦτον οὐ τοκῆες· |
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πόλεμοι, φόνοι δι’ αὐτόν. |
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τὸ δὲ χεῖρον· ὀλλύμεσθα |
|
διὰ τοῦτον οἱ φιλοῦντες.",https:
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