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यूनिसिस
अक्टूबर 2005 में, वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट दी है कि श्रम और ओवरटाइम के लिए अनुबंध द्वारा 24,983 घंटे की अनुमति नहीं दिए जाने समेत कथित तौर पर अधिकतम दर 131.13 डॉलर प्रति घंटे तक की दर से कंपनी का लगभग 171,000 घंटे के लिए अतिरिक्त बिल 1 से 3 बिलियन डॉलर तक आया। यूनिसिस ने इस गड़बड़ी से इनकार किया।
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यूनिसिस
2006 में, वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट दी कि एफबीआई संयुक्त राज्य अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के साथ कंपनी के अनुबंध के तहत कथित तौर पर साइबर सुरक्षा खामियों की जांच कर रहा था। अनुमान है कि कुछ सुरक्षा खामियां, जिसमें चीनी सर्वर को डाटा प्रेषित करने जैसी घटना शामिल है, अनुबंध के दौरान हुईं. यूनिसिस इन आरोपों से इनकार करता है और उसने कहा कि इसके पास इनके पास इन आरोपों का खंडन करने हेतु कानूनी दस्तावेज मौजूद हैं।
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यूनिसिस
2008 में बोर्ड की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के बाद जो मैक्ग्रा ने पद छोड़ दिया और उनके स्थान पर गेटवे इंक. के पूर्व सीईओ जे. एडवर्ड कोलमैन आए. संघीय क्षेत्र के अध्यक्ष ग्रेग बारोनी भी निकाल दिए गए।
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यूनिसिस
30 जून 2008 को यूनिसिस ने घोषणा की कि कंपनी ने इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम के लिए दूसरे चरण के इंतजाम के लिए ट्रांसपोटेशन सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (टीएसए (TSA)) को नहीं चुना था। जुलाई में गवर्नमेंट एकाउंटेबिलिटी ऑफिस (जीएओ) के साथ टीएसए के निर्णय के खिलाफ औपचारिक विरोध दर्ज करने की योजनाओं की यूनिसिस ने घोषणा की. 20 अगस्त को टीएसए (TSA) ने घोषणा की कि उसने यूनिसिस और नॉर्थरोप ग्रुमैन समेत सभी प्रतियोगियों को बोली लगाने की अनुमति दी, प्रारंभिक तौर पर चुने नहीं जाने के बाद इन दोनों की ओर से जीएओ में औपचारिक विरोध दर्ज किया गया और फेडरल एवीएशन एडमिनिस्ट्रेशन के विवाद के समाधान कार्यालय (Federal Aviation Administration's Office of Dispute Resolution) में टीएसए के निर्णय का विरोध किया था।
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यूनिसिस
2009: यूनिसिस ने यू. एस. कर्मचारियों की संख्या को कम कर दिया; "हम यू. एस. आधारित नौकरियों से बड़ी संख्या में लोगों को निकालने में सक्षम थे और भारत से बाहर दो लोगों के साथ उन्हें प्रतिस्थापित जैसा कर दिया गया।" (रिचर्ड मार्सेलो, प्रौद्योगिकी, सलाहकार और एकीकृत समाधान के अध्‍यक्ष). कंपनी ने अक्टूबर 2009 में शेयरों की कीमतों को उठाने और असूचीयन से बचाव की एक कोशिश के तहत दस में एक रिवर्स स्टॉक स्प्लिट भी किया।
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वंचिनाथन
वांचिनाथन का जन्म 1886 में शेनकोट्टाई में रघुपति अय्यर और रुक्मणी अम्मल के घर हुआ था। उनका वास्तविक नाम शंकरन था। उन्होंने शेनकोट्टाई से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और तिरुवनंतपुरम में मूलम तिरूनल महाराजा कॉलेज से एम. ए. की उपाधि प्राप्त की. कोलेज में पढ़ते हुए ही उन्होंने पोन्नम्माळ से विवाह कर लिया और एक लाभपूर्ण सरकारी नौकरी करने लगे.
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वंचिनाथन
17 जून 1911 को, वांचि ने ऐश की हत्या की, जो तिरुनेलवेली का जिला कलेक्टर था और जो कलेक्टर दोराई के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने ऐश को उस समय बहुत नज़दीक से गोली मारी जब वह मनियाची स्टेशन से मद्रास की ओर जा रहा था। उसके तुरंत बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली. तभी से उस रेलवे स्टेशन का नाम वांचि मनियाची रख दिया गया।
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वंचिनाथन
उस दिन, ऐश प्रातः 9-30 तिरुनेलवेली जंक्शन से मनियाची मेल में बैठा. उसके साथ उसकी पत्नी मेरी लिलियन पैटर्सन थी, जो आयरलैंड से कुछ ही दिनों पहले आयी थी। उनका विवाह 6 अप्रैल 1898 में बरहामपुर में में हुआ था; मेरी ऐश से लगभग एक वर्ष बड़ी थी। वे कोडाईकनाल जा रहे थे जहां उनके चार बच्चे मोली, आर्थर, शेइला और हर्बर्ट एक किराए के बंगले में रहते थे।
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वंचिनाथन
10-38 पर ट्रेन मनियाची में रुकी. सीलोन बोट मेल 10-48 पर आने वाली थी। जब ऐश परिवार प्रथम श्रेणी डिब्बे में एक दूसरे के आमने-सामने बैठ कर बोट मेल की प्रतीक्षा कर रहे थे, बड़े करीने से कपड़े पहने हुए गुच्छेदार बालों वाला एक व्यक्ति और धोती पहना हुआ एक अन्य व्यक्ति डिब्बे के पास आये. पहले आदमी ने डब्बे में प्रवेश किया और एक बेल्जियन-निर्मित ब्राउनिंग स्वचालित पिस्टल निकाली. गोली सीधे ऐश के सीने में लगी और वह वही मर गया। गोली की आवाज़ तेज़ हवा की आवाज़ से दब गयी।
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वंचिनाथन
हत्या करने के बाद वे प्लेटफॉर्म के साथ दौड़ते हुए एक शौचालय में छुप गए। कुछ समय बाद उन्हें मृत पाया गया, उन्होंने स्वयं को गोली मार ली थी। उनकी जेब से यह पत्र प्राप्त हुआ:
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वंचिनाथन
"इंग्लैंड के इन मलेच्छों ने हमारे देश पर कब्जा करके, हिन्दुओं के सनातन धर्म को पैरों के नीचे कुचल डाला और उन्हें बर्बाद कर दिया. प्रत्येक भारतीय, अंग्रेजों को बाहर भगाने और स्वराज्य पाने और सनातन धर्म कि रक्षा करने का प्रयास कर रहा है। हमारे राम, शिवाजी, कृष्ण, गुरु गोविंद, अर्जुन ने सभी धर्मों की रक्षा करते हुए हमारी धरती पर राज किया और इस धरती पर वे जोर्ज V की ताजपोशी करने की तैयारी कर रहे हैं, जो एक मलेच्छ और गोमांस भक्षी है। तीन हजार मद्रासियों ने जॉर्ज V के हमारी भूमि पर कदम रखते ही उसे मार देने का प्रण लिया है। दूसरों को अपने उद्देश्यों से अवगत कराने के लिए, मैंने, जो कम्पनी में सबसे निम्न हूं, यह काम आज किया है। हिन्दुस्तान में सभी को इसे अपना कर्तव्य मानना चाहिए.
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वंचिनाथन
पत्र की विषय-वस्तु ने संकेत दिया कि हत्या राजनीतिक थी और इसने घोर आशंका को जन्म दिया. हत्या के समय ने आसन्न राज्याभिषेक के खिलाफ एक विरोध का संकेत दिया.
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वंचिनाथन
वांची, वाराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्या अय्यर के एक करीबी सहयोगी थे (सामान्य रूप वी.वी.एस.अय्यर या वा.वे.सु अय्यर के रूप में संक्षिप्त), एक और स्वतंत्रता सेनानी, जो ब्रिटिश को हराने के लिए हथियारों की तलाश कर रहे थे। उन्होंने इस योजना को बेहतरीन ढंग से निष्पादित करने के लिए वन्चिनाथन को प्रशिक्षित किया।वे भारत माता एसोसिएशन के सदस्य थे।
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वंचिनाथन
फिल्म कप्पालोट्टिया तमिड़न में अभिनेता बालाजी ने वांचिनाथन की भूमिका निभाई। शिवाजी गणेशन ने वी॰ओ॰ चिदम्बरम पिल्लै की भूमिका निभाई।
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बांकेलाल
2016 में बीबीसी ने बताया कि बांकेलाल भारत में सबसे अधिक बिकने वाली चार कॉमिक्स में से एक है। राज कॉमिक्स ने घोषणा की कि बांकेलाल उन चार कॉमिक्स पात्रों में शामिल होंगे जिनकी एनिमेटेड फिल्में बनेंगी। 2014 में नवभारत टाइम्स ने बांकेलाल को उन शीर्ष 10 कॉमिक्स में सूचीबद्ध किया, जिनके बिना भारतीय बच्चों की गर्मी अधूरी थी।
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बांकेलाल
बांकेलाल को जितेंद्र बेदी ने बनाया था, और पहली बार 1987 में कॉमिक बुक 'बांकेलाल का कमाल' में दिखाई दिया, जिसे पापिंदर जुनेजा ने लिखा था।
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बांकेलाल
किताब के मुताबिक वह नंकू नाम के एक किसान का बेटा है। उसकी माँ का नाम गुलाबती था। दंपति के कोई संतान नहीं थी। गुलाबती भगवान शिव की भक्त थी और उन्हें एक बच्चा भगवान के आशीर्वाद के रूप में दिया गया था। उन्होंने बच्चे का नाम बांकेलाल रखा। वह राजा विक्रम सिंह के खिलाफ बुराई करने की साजिश करता है, लेकिन उसकी साजिशें हास्यरूप अक्सर विक्रम सिंह की मदद करती हैं।
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बांकेलाल
सीरीज की ज्यादातर कहानियां सिर्फ एक कॉमिक तक ही सीमित होती हैं। अधिकांश कहानियों में बांकेलाल को एक रहस्य या तरकीब के बारे में पता चलता है जिसका उपयोग वह राजा विक्रम सिंह को मारने और सिंहासन को हथियाने के लिए कर सकता है। कहानी के आगे बढ़ने के साथ ऋषि, योगी, देवी-देवता और राक्षस भी शामिल हो जाते हैं, जिनके कारण कहानी में अविश्वसनीय मोड़ आता है। अंत में बांकेलाल की सभी चालें विफल हो जाती हैं और विक्रम सिंह को नुकसान के बजाय बहुत उपकार मिलता है।
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बांकेलाल
हालांकि कुछ कॉमिक हैं जिनकी कहानियाँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं जैसे जब बांकेलाल और विक्रम सिंह के साथ विभिन्न लोकों (दुनिया) की यात्रा करता है। इस श्रंखला में बांकेलाल ततैयालोक में, कंकाललोक में, देव लोक में, सर्पलोक में, वानरलोक में जैसे कॉमिक शामिल हैं।
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बांकेलाल
एक दिन भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ बांकेलाल के घर गए। उसकी माँ ने उन्हें एक गिलास दूध पिलाया, लेकिन उसे पता नहीं था कि उसके शरारती बेटे ने दूध में एक मेंढक डाल दिया था। जब शिव को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने बांकेलाल को श्राप दिया कि बांकेलाल जब भी किसी को हानि पहुँचाने का प्रयास किया, तो व्यक्ति को अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे और उसका कुछ भाग बांकेलाल को भी मिल जाएगा।
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बांकेलाल
बांकेलाल बेहद बेवकूफ लगता है लेकिन उसके पास शैतान का दिमाग है; जो हमेशा शरारत करने तो तैयार रहता है। लेकिन उस पर लगाए गए "धन्य" शाप के कारण वह जब भी बुरा करना चाहता है, वह अच्छा हो जाता है, जिसके कारण पासे उसके पक्ष में पलट जाते हैं। इसके अलावा उसके पास कुछ भी नहीं है, यहाँ तक कि एक अच्छा चेहरा भी नहीं है, और केवल एक चार्ली चैपलिन स्टाइल वाली मूंछ और उसके दो खरगोश जैसे दांत जो तब दिखाई देते हैं जब वह चिल्लाता या हंसता है। अच्छी बात यह है कि उनकी हर हरकत (शरारत) पाठकों के लिए हास्य का काम करती है।
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बांकेलाल
बांकेलाल के पास चेतक नाम का एक घोड़ा है जो कॉमिक्स श्रृंखला में एक और बहुत ही मज़ेदार चरित्र है। बांकेलाल श्रृंखला में कुछ उल्लेखनीय अतिथि भूमिकाओं में तिलिस्मदेव और भोकाल शामिल हैं ।
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बांकेलाल
बांकेलाल राजा विक्रम सिंह को अपना कट्टर दुश्मन मानता है। बांकेलाल हमेशा उन्हें मारने की कोशिश करता है (जिसमें वह कभी कामयाब नहीं हुआ) ताकि वह विशालगढ़ का राजा बन जाए। विशालगढ़ का राजकुमार मोहक सिंह उसकी बुरी योजनाओं से अच्छी तरह वाकिफ है। बांकेलाल की लोकप्रियता से अन्य दरबारियों को भी जलन होती है। इनमें सेनापति मरखप, प्रबंध मंत्री और कई अन्य शामिल हैं। विशालगढ़ की कुछ आस-पास की रियासत वालों को भी विक्रम सिंह को मारना मुश्किल लगता है जब बांकेलाल उनके साथ होता है।
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गुरुवायूर
गुरुवायूर (Guruvayur) भारत के केरल राज्य के त्रिस्सूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थान है और त्रिस्सूर से 28 किमी पश्चिमोत्तर में स्थित है।
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गुरुवायूर
गुरुवायूर अपने मंदिर के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जो कई शताब्दियों पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मंदिर के देवता भगवान गुरुवायूरप्पन हैं जो बालगोपालन (कृष्ण भगवान का बालरूप) के रूप में हैं। हालांकि गैर-हिन्दुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है, तथापि कई धर्मों को मानने वाले भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।
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गुरुवायूर
एक विख्यात शास्त्रीय प्रदर्शन कला कृष्णनट्टम कली, जोकि विश्व स्तर पर प्रसिद्ध नाट्य-नृत्य कथकली के प्रारंभिक विकास में सहायक थी, उसका गुरुयावूर में काफी प्रचलन है क्यूंकि मंदिर प्रशासन (गुरुयावूर देवास्वोम) एक कृष्णट्टम संस्थान का संचालन करता है। इसके अतिरिक्त, गुरुयावूर मंदिर दो प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों के लिए भी विख्यात है: मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी के नारायणीयम और पून्थानम के ज्नानाप्पना, दोनों (स्वर्गीय) लेखक गुरुवायूरप्पन के परम भक्त थे। जहां नारायणीयम संस्कृत में, दशावतारों (महाविष्णु के दस अवतार) पर डाली गयी एक सरसरी दृष्टि है, वहीं ज्नानाप्पना स्थानीय मलयालम भाषा में, जीवन के नग्न सत्यों का अवलोकन करती है और क्या करना चाहिए व क्या नहीं करना चाहिए, इसके सम्बन्ध में उपदेश देती है।
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गुरुवायूर
गुरुवायूर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय कर्नाटकीय संगीत का एक प्रमुख स्थल है, विशेषकर यहां के शुभ एकादसी दिवस के दौरान जोकि सुविख्यात गायक चेम्बाई वैद्यनाथ भगावतार की स्मृति में मनाया जाता है, यह भी गुरुवायूरप्पन के दृढ़ भक्त थे। मंदिर वार्षिक समारोह (उल्सवम) भी मनाता है जो कुम्भ के मलयाली महीने (फरवरी-मार्च) में पड़ता है इसके दौरान यह शास्त्रीय नृत्य जैसे कथकली, कूडियट्टम, पंचवाद्यम, थायाम्बका और पंचारिमेलम आदि का आयोजन करता है। इस स्थान ने कई प्रसिद्ध थाप वाले वाद्यों जैसे चेन्दा, मद्दलम, तिमिला, इलाथलम और इडक्का आदि के वादकों को जन्म दिया है।
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गुरुवायूर
मंदिर का संचालन गुरुवायूर देवास्वोम प्रबंधन समिति के द्वारा, केरल सरकार के निर्देशन में किया जा रहा है। समिति के अस्थायी सदस्यों का "नामांकन" राज्य सरकार के सत्तारूढ़ दल द्वारा समय-समय पर किया जाता है। स्थायी सदस्य, चेन्नास माना (मंदिर के परंपरागत तंत्री), सामुथिरी और मल्लिस्सेरी माना, परिवारों के वर्तमान मुखिया होते हैं।
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गुरुवायूर
टीपू सुल्तान के आक्रमण के दौरान श्री गुरुवायूरप्पन की पवित्र प्रतिमा को अम्बलाप्पुज्हा मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था और फिर मवेलिक्कारा श्री कृष्णास्वामी मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था।
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गुरुवायूर
मंदिर के भगवान के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रसिद्ध पौराणिक कथा गुरु बृहस्पति और वायु (पवन देवता) से सम्बंधित है। वर्तमान "युग" के आरम्भ में, बृहस्पति को भगवान कृष्ण की एक तैरती हुई मूर्ति मिली। उन्होंने और वायु देवता ने, इस युग में मानवों की सहायता हेतु इस मंदिर में भगवान की स्थापना की। यह पौराणिक कथा ही दोनों लघु प्रतिमाओं के नाम गुरुवायूरप्पन और इस नगर के नाम गुरुवायूर का आधार है। यह माना जाता है कि यह मूर्ति जो अब गुरुवायूर में है, वह द्वापर युग में श्री कृष्ण द्वारा प्रयोग की गयी थी।
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गुरुवायूर
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिन्दुस्तान की सामाजिक बुराइयों में में छुआछूत एक प्रमुख बुराई थी जिसके के विरूद्ध महात्मा गांधी और उनके अनुयायी संघर्षरत रहते थे। उस समय देश के प्रमुख मंदिरों में हरिजनों का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित था। केरल राज्य का जनपद त्रिशुर दक्षिण भारत की एक प्रमुख धार्मिक नगरी है। यहीं एक प्रतिष्ठित मंदिर है गुरूवायूर मंदिर, जिसमें कृष्ण भगवान के बालरूप के दर्शन कराती भगवान गुरूवायुरप्पन की मूर्ति स्थापित है। आजादी से पूर्व अन्य मंदिरों की भांति इस मंदिर में भी हरिजनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध था।
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गुरुवायूर
केरल के गांधी समर्थक श्री केलप्पन ने महात्मा की आज्ञा से इस प्रथा के विरूद्ध आवाज उठायी और अंततः इसके लिये सन् 1933 ई0 में सविनय अवज्ञा प्रारंभ की गयी। मंदिर के ट्रस्टियों को इस बात की ताकीद की गयी कि नये वर्ष का प्रथम दिवस अर्थात 1 जनवरी 1934 को अंतिम निश्चय दिवस के रूप में मनाया जायेगा और इस तिथि पर उनके स्तर से कोई निश्चय न होने की स्थिति में महात्मा गांधी तथा श्री केलप्पन द्वारा आन्दोलनकारियों के पक्ष में आमरण अनशन किया जा सकता है। इस कारण गुरूवायूर मंदिर के ट्रस्टियो की ओर से बैठक बुलाकर मंदिर के उपासको की राय भी प्राप्त की गयी। बैठक में 77 प्रतिशत उपासको के द्वारा दिये गये बहुमत के आधार पर मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को स्वीकृति दे दी गयी और इस प्रकार 1 जनवरी 1934 से केरल के श्री गुरूवायूर मंदिर में किये गये निश्चय दिवस की सफलता के रूप में हरिजनों के प्रवेश को सैद्वांतिक स्वीकृति मिल गयी। गुरूवायूर मंदिर जिसमें आज भी गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है तथापि कई घर्मो को मानने वाले भगवान भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।
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माधुरीदास
माधुरीदास गौड़ीय सम्प्रदाय के अंतर्गत ब्रजभाषा के अच्छे कवि हैं। अभी तक हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों से इनका कोई परिचय नहीं है। इनकी वाणी के प्रकाशक बाबा कृष्णदास ने इनके विषय में कुछ लिखा है।
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माधुरीदास
यहाँ 'रूप मंजरी 'शब्द श्री रूपगोस्वामी के लिए स्वीकर किया गया है। निम्न दोहे से भी ये रूपगोस्वामी के शिष्य होने की पुष्टि होती है ~`
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माधुरीदास
बाबा कृष्णदास के अनुसार माधुरीदास ब्रज में माधुरी कुंड पर रहा करते थे। यह स्थान मथुरा-गोबर्धन मार्ग पर अड़ींग नामक ग्राम से ढाई कोस ( ८ किलोमीटर ) दक्षिण दिशा में है। अपने इस मत की पुष्टि के लिए कृष्णदास जी ने श्रीनारायण भट्ट के 'ब्रजभक्ति विलास' का उल्लेख किया है।
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माधुरीदास
कृष्ण वर्ण से साँवले परन्तु सुन्दर हैं। उनका मोहन रूप सबको मोहित करने में समर्थ है। इस प्रकार मनहरण करके भी वे सबको सुखी करने वाले हैं। वे गुणों में रतिनिधि ,रसनिधि ,रूपनिधि और प्रेम तथा उल्लास की निधि हैं। वृन्दाविपिनेश्वरी राधा नवल किशोरी ,गौरवर्णा,भोली,मोहिनी,माधुर्य पूर्ण ,मृगनयनी आमोददा ,आनंद राशि आदि विभिन्न गुणों से संयुक्त हैं। सर्वगुण सम्पन्न होने के साथ-साथ रसरूपा हैं। आधा नाम लेने से भी साधक के सब सुख सिद्ध हो जाते हैं ~`
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माधुरीदास
राधा-कृष्ण के सम्बन्ध में इनके भी वही विचार हैं जो गौड़ीय संप्रदाय के अन्य ब्रजभाषा कवियों के हैं। अतः माधुरीदास ने अपने उपास्य-युगल को दूल्हा-दुल्हिन के रूप में चित्रित किया है:
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माधुरीदास
उपास्य-युगल की मधुर -लीलाओं का ध्यान तथा भावना मधुरदास की उपासना है। अतः उन्होंने राधा -कृष्ण की प्रेम -लीलाओं की माधुरी को ही अपनी रचना में गया है।। इस विहार का आधार प्रेम है। इसीलिये राधा -कृष्ण के विलास का ध्यान कर भक्त को अत्यधिक आनन्द प्राप्त होता है :
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माधुरीदास
इस प्रेम की गति अगम्य है और इसका स्वरुप कठिन से कठिन है। इस प्रेम का अनुभव कभी मिलन , वियोग और कभी संयोग-वियोग मिश्रित रूप में होता है। किन्तु इसे वही जान सकता है जिसे इसका कभी अनुभव हुआ हो :
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माधुरीदास
राधा-कृष्ण की मधुर लीलाएं विविध हैं। कभी कृष्ण प्रिया के साथ हास करने के लिए उसके आभूषणों को उतारते हैं और फिर उन्हें पहना देते हैं ,कभी उनके कपोलों को मृगमद से चित्रित करते हैं और फिर मिटा देते हैं। दूसरी ओर राधा को प्रियतम के इस स्पर्श से अत्यधिक सुख मिलता है। इस अवसर पर राधा में जिन सात्विक भावों का उदय होता है उसका कवि ने बहुत सुंदर वर्णन निम्न कवित्त में किया है ~~
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माधुरीदास
इसके अतिरिक्त राधा-कृष्ण की संयोग-परक लीलाओं में जल- केलि ,नौका-विहार ,रास,दान-लीला,होली आदि का भी सुन्दर वर्णन है। दान-लीला का वर्णन अपनी संवादात्मक शैली के कारण अत्यधिक मनोरम हो गया है। कृष्ण की छेड़छाड़ का उत्तर देती हुई गोपियों की यह उक्ति वाक् चातुर्य का सुन्दर उदाहरण :
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ज़ावी
निरंतर प्रभावशाली प्रदर्शनों के कारण वे जल्दी ही लुईस वान गाल की खिताब जीतने वाली टीम के प्रमुख सदस्य बन गए।
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ज़ावी
अगले ला लीगा के 1999-00 के सत्र में पेप गार्डीओला को चोट लगने के कारण ज़ावी बार्सेलोना की प्रमुख खिलाडी बन गए, इस पद को ज़ावी ने हमेशा बनाये रखा है।
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ज़ावी
2005-06 के सत्र में, प्रशिक्षण के दौरान ज़ावी के बाएं घुटने का स्नायु (ligament) फट गया; वे पांच महीने के लिए खेल से बाहर हो गए, इस दौरान वे कई खेल सत्रों में नहीं खेल पाए, लेकिन अप्रैल में वे वापस लौटे और अब वे 2006 यूईएफए चैम्पियन्स लीग फाइनल के लिए विकल्पी बेंच पर थे।
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ज़ावी
वे बार्सेलोना के ट्रेबल (तीन प्रतिस्पर्धाओं की एक श्रृंखला) का मुख्य हिस्सा थे, उन्होंने तीनों प्रतिस्पर्धाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया:
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ज़ावी
उन्होंने एथलेटिक बिलबाओ के खिलाफ कोपा डेल रे 2008–09 के फाइनल में एक फ्री किक के साथ चौथा गोल करते हुए, 4–1 से जीत हासिल की.
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ज़ावी
ला लीगा में, कई अच्छे प्रदर्शनों में संभवतया सबसे महत्वपूर्ण प्रदर्शन था, 2 मई को रिअल मेड्रिड के खिलाफ 6–2 के साथ अल-क्लासिको विजय. उन्होंने 6 में से 4 गोल में योगदान दिया (एक बार पुयोल को, एक बार हेनरी को और दो बार मेस्सी को) और निश्चित रूप से इसी प्रदर्शन और इसी जीत के कारण बार्सेलोना ने 2009 का खिताब जीता.
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ज़ावी
अंत में, ज़ावी ने मेनचेस्टर युनाईटेड के खिलाफ 2009 की चैम्पियन्स लीग फाइनल को जीतने में बार्सेलोना की मदद की, जो 2–0 के साथ ख़त्म हुई, इसमें ज़ावी ने 69 मिनट के बाद लायोनल मेस्सी के हेडर को गेंद पास कर के दूसरे गोल में मदद की. उन्होंने लगभग स्कोर बना ही लिया था, क्योंकि उनका शोट पेनल्टी बॉक्स के ठीक बाहर से आया और उसने पोस्ट को हिट किया।
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ज़ावी
बार्सेलोना के 2008-09 के यूईएफए चैम्पियन्स लीग विजय अभियान के दौरान ज़ावी के योगदान के लिए उन्हें "यूईएफए चैम्पियन्स लीग का सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डर" चुना गया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%80
ज़ावी
ज़ावी 20 योगदानों के साथ, ला लीगा के उच्चतम सहायक खिलाडी थे। वे चैम्पियन्स लीग में भी 7 योगदानों के साथ उच्चतम सहायक खिलाडी थे।
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बरानगर
बरानगर (Baranagar) या बराहनगर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तर २४ परगना ज़िले में स्थित एक शहर है। यह कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण (KMDA) के अंतर्गत आता है।
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बरानगर
बारानगर नगरपालिका की स्थापना 1869 में हुई थी, यह भारत की सबसे पुरानी नगरपालिकाओं में से एक है। बारानगर कृषि एवं औद्योगिक मशीनरी, रसायन, अरंडी का तेल और माचिस के निर्माण का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र है; वहाँ भी कई कपास प्रसंस्करण कंपनियाँ हैं। यहाँ स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान, राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है, जो सांख्यिकी, प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञानों के अनुसंधान, शिक्षण और अनुप्रयोग के लिए समर्पित है। बरानगर रामकृष्ण मिशन आश्रम उच्च विद्यालय बारानगर और उत्तर २४ परगना में सबसे पुराने और प्रसिद्ध स्कूलों में से एक है।
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बरानगर
डच के सत्रहवीं शताब्दी में यहां घर थे। स्ट्रेन्शम मास्टर जिन्होंने १६७६ में क्षेत्र का दौरा किया था उन्होंने हॉग फैक्ट्री की बात की थी जहाँ एक वर्ष में लगभग ३,००० हॉग मारे गए थे और निर्यात के लिए नमकीन थे। बाद में यह व्यापक जूट व्यापार, विनिर्माण गन बैग के लिए केंद्र बन गया।<ref name = Cotton> HEA, Calcutta Old and New ', 1909/1980, pp 806 -807 , जनरल प्रिंटर्स एंड पब्लिशर्स प्रा। लि।</ref> हुगली नदी के समानांतर एक प्रमुख सड़क बारानगर बाज़ार को दक्षिणेश्वर से जोड़ती है। कचनार मंदिर (यानी कांच मंदिर), जॉय मित्र काली बारी, और पथबारी जैसे मंदिरों के बीच में स्थित हैं। कुटीघाट (बारानगर) में, अभी भी डच व्यापारियों का एक पुराना घर/लॉज है।
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बरानगर
बारानगर पर स्थित है। इसकी औसत ऊंचाई 12 & nbsp; मीटर (39 और nbsp; पैर) है। यह हुगली नदी के पूर्व में स्थित है। बारानगर म्युनिसिपल एरिया सिंटे और डनलप के बीच स्थित है।
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बरानगर
विशेष रूप से कहने के लिए, बारानगर की सीमा है - पूर्व में, सियालदह से रेल लाइन कृष्णानगर; पश्चिम में - पवित्र नदी गंगा, उत्तर में - PWD रोड और दक्षिण में - बारानगर बाज़ार। यह पवित्र गंगा से दक्षिणेश्वर मंदिर से जुड़ा हुआ है जो इस स्थान से केवल एक मील की दूरी पर स्थित है। बारानगर में गंगा के कई घाट हैं, उदाहरण के लिए प्रमाणिक घाट, कुटीघाट, दक्षिणेश्वर घाट, कांकर मंदिर या ग्लास मंदिर घाट।
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बरानगर
बैरकपुर उपखंड की आबादी का 96% (आंशिक रूप से मानचित्र में प्रस्तुत किया गया है, मानचित्र पर चिह्नित सभी स्थान पूर्ण स्क्रीन मानचित्र में जुड़े हुए हैं) शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। 2011 में, इसकी घनत्व 10,967 प्रति किमी 2 थी। उपखंड में 16 नगरपालिकाएं और 24 जनगणना शहर हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0
बरानगर
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, बारानगर की कुल आबादी 245,213 थी, जिनमें से 126,187 (51%) पुरुष थे और 119,026 (49%) महिलाएँ थीं। 6 वर्ष से कम की आबादी 16,825 थी। बारानगर में साहित्यकारों की कुल संख्या 208,779 (6 साल से अधिक जनसंख्या का 91.41%) थी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0
बरानगर
2011 की जनगणना में निम्नलिखित नगर पालिकाएं, बैरकपुर उपखंड में जनगणना शहर और अन्य स्थान कोलकाता शहरी समूह का हिस्सा थे: कांचरापारा (एम), जेटिया (सीटी, हलिसहर (एम), बालीभारा (सीटी), नैहाटी (एम), भाटपारा (एम), कौगछी (सीटी), वर्षाशमनगर (सीटी), गरुलिया (एम), इछापुर डिफेंस इस्टेट (सीटी), उत्तर बैरकपुर (एम), बैरकपुर छावनी (सीबी), बैरकपुर (एम), जफरपुर ( सीटी), रुइया (सीटी), टीटागढ़ (एम), खरदाह (एम), बंदीपुर (सीटी), पनहाटी (एम), मुरगचा (सीटी) न्यू बैरकपुर (एम), चांदपुर (सीटी), तलबंधा (सीटी), पटुलिया ( सीटी), कमरहटी (एम), 'बरानगर' '' (एम), साउथ दमदम (एम), उत्तर दमदम (एम), दम दम एम), नोआपारा (सीटी), बबनपुर (सीटी), तेघरी (सीटी), नन्ना (ओजी), चकला | (OG), श्रोत्रिबति (OG) और पानपुर (OG)।
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बरानगर
जिला जनगणना पुस्तिका 2011 के अनुसार, बारानगर नगरपालिका ने 7.12 किमी 2 के क्षेत्र को कवर किया। सड़कों की सुविधाओं के बीच 160.23 & nbsp; सड़कों के किमी और खुले और बंद दोनों नालियां हैं। चिकित्सा सुविधाओं के बीच इसकी 55 दवा दुकानें थीं। शैक्षिक सुविधाओं के बीच इसमें 49 प्राथमिक विद्यालय, 33 मध्य विद्यालय, 33 माध्यमिक विद्यालय, कई उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और 2 गैर-औपचारिक शिक्षा केंद्र थे। सामाजिक, मनोरंजक और सांस्कृतिक सुविधाओं के बीच इसमें 2 सिनेमा / थिएटर और 2 सभागार / सामुदायिक हॉल थे। इसकी 20 बैंक शाखाएँ थीं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%B0
केलनसर
केलनसर गांव (अंग़्रेजी -Kelansar) गाँव यह एक भारतीय प्रांत के राजस्थान राज्य के फलौदी जिले की पंचायत समिति तथा तहसील घंटियाली में स्थित हैं। यह लोकसभा क्षेत्र जोधपुर एवं फलौदी विधानसभा क्षेत्र भाग-122 के क्षेत्र में आता हैं। इस गाँव के ज्यादातर लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि पर निर्भर हैं, कृषि के साथ-साथ पशुपालन- गाय , भैंस, भेङ और बकरी आदि लोगों का प्रमुख आर्थिक व्यवसाय हैं। इस क्षेत्र में कई सरकारी व निजी प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र , आँगनबाङी केन्द्र भी हैं। गांव के अधिकांश लोगों की स्थिति गरीबी , निरक्षर होने के कारण अधिकांश लोग झुग्गी झोपङीयों में निवास करते हैं। स्थानीय भाषा: हिंदी और राजस्थानी इस गांव मैं एक उचित मूल्य की दुकान है जिसे सहकारी विभाग की उपशाखा पिन कोड नंबर 342311 यह गांव मुख्य रूप से एकमात्र ऐसा गांव है जहां पर भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा आरएलपी यानी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के समर्थक लोग हैं यह राजनीति का प्रमुख केंद्र माना जाता यहां पर हिंदू धर्म के लोग रहते हैं बड़े-बड़े धोरे जिन्हें टीले कहते हैं यह रेगिस्तान का भाग सिंचित कृषि एवं असिंचित कृषि की जाती है वर्षा के अनिश्चितता के कारण कभी-कभी जल संकट का सामना करना पड़ता है।
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केलनसर
आर्य सम्राट वीरभद्र के पांच पुत्रों से क्षत्रिय संघ के पांच गोत्र प्रचलित हुए । जाखड़ जाट गोत्र का संस्थापक राजा वीरभद्र का पुत्र जखभद्र था। यह चन्द्रवंशी क्षत्रिय आर्यों का संघ था। आरंभ में यह क्षत्रियों का दल शिवालिक कीपहाडिय़ों एवं हिमालय पर्वत की दक्षिणी तलहटी में रहा। इस संबंध में अलग अलग विद्वानोंं की अलग अलग राय है लेकिन जाट प्राचीन शासक इतिहास के लेखक बीएस दहिया ने लिखा है कि जाखड़ लोग कश्मीर के उत्तर में दूर मध्य एशिया बल्ख के क्षेत्र में निवास करते थे। ये अपने केसरिया रंग के लिए सदियों तक प्रसिद्ध रहे। इनका वर्णन महाभारत और मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है। जाट इतिहास लेखक ठाकुर देशराज जाखड़ गोत्र को सूर्च वंशी मानते हैं।
0.5
68.019164
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केलनसर
जाखड़ जाटों के बीकानेर में भी गई छोटे-छोटे राज्य थे। जब राजस्थान में राजपूतों के राज्य स्थापित हो गए तब जाखड़ों का एक दल(हरियाणा) रोहतक क्षेत्र में आ गया। इनका नेता लाढ सिंह था। यहां जाखड़ों ने साहलावास लड़ान आदि गांव बसाए। दिल्ली के बादशाह की ओर से बहू झौलरी पर एक मुसलमान नवाब का शासन था। जिससे इनका युद्ध हुआ। युद्ध में डीघल के वीर योद्धा विन्दरा ने जाखड़ों का सहयोग दिया था। और बहु झोलरी किले को जीत लिया था। बिन्दरा तो शहीद हो गया लेकिन इसके बाद दिल्ली का बादशाह भी जाटों की शक्ति को पहचानकर कर कभी भी आक्रमण का साहस न कर पाया। आईने अकबरी में लिखा है कि जाटों के नेता वीर लाढसिंह जाखड़ ने पठानों और दिल्ली के बादशाहों से युद्ध करके अपनी वीरता का प्रमाण दिया था। जाखड़ गोत्र के लोग कश्मीर, सिन्ध व बिलोचिस्तान में भी बड़ी संख्या में हैं जो मुसलमान हैं। राजस्थान, बीकानेर, अलवर, जयपुर में जाखड़ हिन्दू जाट हैं। अलवर के चौधरी नानक सिंह जाखड़ आर्य समाज के सक्रेट्री थे। जयपुर के मारवर गांव के चौधरी लाधूराम जाखड़ शेखावाटी जाट पंचायत के प्रधान थे।
0.5
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केलनसर
हरियाणा प्रान्त में रोहतक में जाखड़ों के १९ गांव हैं जो लाडान गांव लाढ़सिंह द्वारा बसाया गया था से निकल कर बसे हैं। जाखड़ खाप के कुल गांव ३८ हैं।
0.5
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केलनसर
चौधरी बलराम जाखड़, चौधरी श्रीराम जाखड़, डॉ राजाराम , श्री भागीरथ मल जाखड़, बीरबल सिंह जाखड़, चौधरी जयमलराम जाखड़, चौधरी भीमसेन जाखड़, चौधरी कृष्ण कुमार जाखड़, सुखदेव सिंह जाखड़, धन्नराम सिंह जाखड़, चेनाराम जाखड़, दीनदयाल जाखड़, रामेश्वरलाल जाखड़, बद्रीराम जाखड़ आदि गणमान्य लोग है।
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केलनसर
नैण गोत्र का अत्यंत ही प्राचीन गोत्र है यह चंद्रवंशी गोत्र है , जाट जाति के इतिहास कार ठाकुर देशराज के अनुसार नेण 'शाखा' अनंगपाल तोमर (तंवर) के नाम पर चली । नैण और उनके पूर्वज क्षत्रियों के उस प्रसिद्ध राजघराने में से थे , जो तोमर या तंवर कहलाते हैं , जिनका अंतिम प्रतापी राजा अनंगपाल तोमर था । तोमर के 12 पुत्र थे, उनमें नैंणसी (1100 ई•) के वंशज कहलाये ।
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केलनसर
नैंणसी के वंशज नैण आन मान मर्यादा और स्वाभिमान के धनी है ।जहां भी उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची वहां उन्होंने साका (सामूहिक आत्मोत्सर्ग) किया,तथा उस स्थान को त्याग दिया । जिसे स्थानीय भाषा में तागा यानी (त्यागना) (उस स्थान या गांव का अंन जल त्यागना) कहते हैं । भिराणी और बालासर (नोहर भादरा जिला हनुमानगढ़) में साका किया तदनंतर ढिंगसरी के सामंतवादियों से कुंठित होकर 'नाथूसर गांव ' को त्यागा । गांव नाथूसर नोखा जिला बीकानेर में पड़ता है । त्यागें हुए गांव में आज भी नैण गौत्र के विश्नोई या जाट बारहमासी (स्थायी) आवास बनाकर नहीं रहते हैं ।
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केलनसर
सन् 1485 सवंत् 1542 में राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा अकाल से व्यथित होकर लोग मालवा (मध्य प्रदेश और सिंध ) प्रदेश पलायन को मजबूर हो गए थे , उसी समय समराथल धोरे (नोखा जिला बीकानेर) के पास श्री जांभोजी द्वारा 'बिश्नोई पंथ' का प्रवर्तन किया गया । अकाल की कोख में जन्मे इस 'विश्नोई संप्रदाय में दीक्षा का विशेष कार्यक्रम विक्रम संवत् 1542 की कार्तिक वदी अष्टमी से दीपावली तक चला रहा । बिश्नोई धर्म में दीक्षा का कार्यक्रम आगे भी चलता रहा इस दीक्षा कार्यक्रम 36 खङो ( गांवो) के लोगों ने विश्नोई धर्म स्वीकार किया । ये गांव ज्यादातर 'नोखा' बीकानेर के आसपास बसे हुए थे , विक्रमी संवत 1440 तक नैण भामटसर नोखा में आबाद थे । कतिपय नैण उसके बाद भी भामटसर में रहे। भामटसर में श्री खिदलजी जाट (नैण) के दो पुत्र ऊदोजी व ऊदोजी हुए । ऊमोजी जाट ही रहे ऊदोजी ने ही 'विश्नोई धर्म' स्वीकार किया । 'विश्नोई धर्म' में दीक्षित होने के बाद श्री ऊदोजी ने अलग ही अपना ढोर 'ठिकाना' बसाया । ऊदोजी नैण के पुत्र बालोजी हुए , बालोजी के पुत्र भोजराज जी हुए, भोजराजजी के पुत्र हलजीरामजी हुए, हलजीराम जी के पुत्र श्री जागणजी हुए ।
0.5
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केलनसर
जागरण जी के सुपुत्र श्री सोनग जी नैण खारा गांव (नोखा के पास) से प्रस्थान कर अपनी तीन पीढ़ियों (दादा पुत्र पोता परिवार) के साथ विक्रमी संवत 1613 को वैशाख सुदी तीज के दिन (आखातीज) केलनसर गांव के मध्य अपना आवास (घर) बसाया । घर के ठीक सामने 'खावे' की थरपना की , खावा वह स्थान विशेष (जगह) है, जहां प्रतिवर्ष होली के बाद धूलंडी के दिन गांव के सभी विश्नोईजन थापन अथवा गयणों से पाहल (मंत्रों से अभिमंत्रित आवाहित जल) बनवाते हैं । सामूहिक पाहल जिसे अमृत जल कहते हैं , सामूहिक रूप से विश्नोईजन अमृत रूपी जलपान करते हैं, यह पाहल शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए बनाया जाता है । इस दिन खावे की जगह पर चुग्गा इकट्ठा करते हैं कभी कभार तो सुकाल के समय यह चुग्गा 500 मया 600 मण के आसपास इकट्ठा हो जाता है । कुण चुग्गा इकट्ठा करवाने में श्री भेरूजी साजेङ का विशेष योगदान रहता है । भेरूजी के सुपुत्र श्री गौतमजी छाजेङ बेजुबान निरीह और मूक प्राणियों के लिए चूण चुबग्गा इकट्ठा करने -करवाने में अपनी महती भूमिका आज भी निभाते हैं , उनका यह प्रयास प्रशंसनीय है ।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
हिंदू पौराणिक कथाओं में, सरमा एक पौराणिक पात्र है जिसे 'देव-शुनि' कहा गया है। पहली बार ऋग्वेद में इसका प्रसंग आता है। इसके बाद महाभारत और कुछ पुराणों में भी सरमा का संक्षिप्त उल्लेख आया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
विद्वानों ने सरमा-पाणि संवाद की अलग-अलग व्‍याख्‍याएं की हैं। 'गौ' के अलग-अलग अर्थ लेकर ही कथा के अलग अर्थ निकाले गये हैं। कुछ लोग गौ का सीधा अर्थ गाय लेते हैं। वे गाय को मुक्‍त कराने की कथा मानते हैं। पर 'गौलोक' का अर्थ 'किरण लोक' है और गौ मतलब किरण है। इस अर्थ को मानने वाले रात्रि के बाद उषा का रूपक मानते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
सरमा-पणि संवाद ऋग्वेद का एक सुप्रसिद्ध आख्‍यान है। 'पणि' उस समय का कोई जनसमुदाय था। पणियों ने इन्द्रदेव की गायें चुरा ली थी और बृहस्पति ने देख लिया। बृहस्पति की सूचना पर इन्द्र ने सरमा नामक शुनि (कुतिया) को गायों की खोज के लिये भेजा। 'सरमा' का शाब्दिक अर्थ यास्क ने 'शीघ्रगामी' लगाया है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
इन्द्र की दूती सरमा पणियों के पास 'रसा' नामक एक जलयुक्‍त क्षेत्र को पार कर जाती है। सरमा पणियों को इन्द्र के तेज से आतंकित करती है जबकि पणि इन्द्र से मित्रता चाहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
इस रूपक के द्वारा मेघों के धिरने व बारिश होने को दर्शाया गया है। इन्द्र या वायु के सहारे मेघों की गर्जना या चेतना ही यहां इन्द्र की दूती है जो मेघ रूप पणि से जलधारा को मुक्‍त कराती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
पणि : हे सरमा ! तुम यहाँ क्यों आयी हो? यहाँ आने में तुम्हारा क्या व्यक्तिगत स्वार्थ है? तुमने बहुत से कष्ट झेले होंगे, क्या तुम यहाँ सुविधाओं के लिए आयी हो?
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
सरमा : ऐ पणि ! मैं राष्ट्र को बनाने वाले इन्द्र की दूत हूँ। तुमने क्या-क्या छुपायाहै, मैं वह सब जानना चाहती हूँ। यह सही है कि मैने बहुत कष्ट उठाएं हैं, परन्तु अब मैं उस सबकी अभ्यस्त हो चुकी हूँ।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
पणि : ओ सरमा! तुम्हारा स्वामी इन्द्र कितना शक्तिशाली एवं सम्पन्न है? हम उससे मैत्री करना चाहते हैं। वह हमारे व्यापार को स्वयं भी कर सकता है और धन कमा सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE
सरमा
सरमा : इन्द्र जिसकी मैं दूत हूँ, उस तक कोई पहुँच नहीं सकता, उसे कोई डिगा नहीं सकता। भ्रमित जल-प्रवाह उसे बहा के नहीं ले जा सकते। वह तुम्हारा मुकाबला करने में सक्षम है।
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देल्हुआ
देल्हुआ नवादा शहर से लगभग २० किलोमीटर दूर बसा हुआ एक सुन्दर गांव है। यह गोविंदपुर प्रखंड के सरकंडा पंचायत में आता है। यह गांव प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। गोविंदपुर से इस बाजार की दुरी लगभग ३ किलो मीटर है। एक तरफ सकरी नदी और दूसरी तरफ पहाड़ों की लंबी स्रिंखलाएँ हैं। यहाँ की जनसँख्या लगभग २००० है। यहाँ की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। यहां की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है। यहां धन और गेहूं के साथ - साथ शब्जियों और दाल की भी खेती होती है। यहाँ खेत छोटे छोटे हैं इसलिए यहाँ परंपरागत खेती होती है। यहाँ का मुख्य बाजार गोविंदपुर है। खरीदारी और बिक्री के लिए यहाँ के लोग गोविंदपुर बाजार ही जाते हैं।
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देल्हुआ
जैसा की सभी स्थान चाहे वो गाँव हो या कोई शहर, इन सभी के बसने या बसाने का एक इतिहास होता है ठीक उसी तरह देल्हुआ के बनने का भी इतिहास रहा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86
देल्हुआ
बात उन दिनों की है जब भारत को आजाद हुए लगभग १० साल हो गए थे, आजादी का जश्न अभी तक लोगों के दिलों में छाया हुआ था। उस समय देल्हुआ का अस्तित्व न के बराबर था। जैसा की माना जाता है पुराने समय में कोई भी शहर हो या गाँव, उनको नदी के किनारे बसाया जाता था ताकि काफी जरूरतें नदी से पूरी हो जाए ठीक उसी तरह देल्हुआ गाँव भी सकरी नदी के किनारे बसा था। गावँ के नाम पर ७ से ८ फुश की झोपड़ियां थी। उस समय खेत ही जीवन यापन का जरिया था। सकरी नदी उस समय भी ऐसे ही बहती थी जैसे की वर्तमान में बह रही है। सकरी नदी के किनारे की मिट्टी बड़ी उपजाऊ पहले भी थी और आज भी है, इसलिए उस समय भी खाने योग्य फसल हो जाती थी। काफी सालों तक जिंदगी बसर ऐसे ही होता रहा। उस समय बस दो वक़्त का खाना मिल जाए यही जिंदगी होती थी। दूर दूर तक वीरान और जंगल ही दिखाई देते थे। दूर दूर तक कोई गाँव नहीं था।
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देल्हुआ
उस समय शहर के नाम पर सिर्फ नवादा होता था जहां जाना आसान नहीं था। और जाए भी क्यों क्योंकि शहरों में जाने के लिए पैसा चाहिए और वो किसी के पास नहीं था, परंतु कभी अगर ज्यादा ही जरुरत पड़ जाए तो यहाँ के लोग पैदल जाया करते थे। गावँ से जाने और वापस आने में दो दिन तक का समय लग जाता था।
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देल्हुआ
सकरी नदी आज की तरह पहले भी बरसाती ही नदी थी। हर साल बरसात में बाढ़ आना तय था परन्तु गाँव के लोगो को इससे फायदा नुकसान दोनों होता था। इस बाढ़ में इमारती लकड़ियां बह के आती थी तो उनको इकठ्ठा कर लिया जाता था और पूरे साल तक प्रयोग करते थे। नुकसान ये था की नदी फश्लें भी बहाकर ले जाती थी और जहरीले सांप छोड़ जाती थी। ऐसे ही हर साल होता चला आ रहा था। उस साल भी बरसाती रात थी सकरी नदी में बाढ़ आया हुआ था। पानी का स्तर अधिकतम सीमा तक आ चूका था और अब इसे कम होना था जैसा की हर साल होता चला आ रहा था।
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देल्हुआ
पर इस साल नदी का मिजाज कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। पानी का स्तर कम होने के बजाए बढ़ता चला जा रहा था। गाँव के सभी लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पर इस बार यह नदी रुकने वाली नहीं थी, पानी का स्तर और अधिक बढ़ता जा रहा था। अब इस गाँव में लोग ज्यादा देरी तक नहीं रुक सकते थे। क्योंकि पानी अब घरों में भी आ चूका था। कुछ ही समय में त्राहि त्राहि मचने लगी। शोर बढ़ने लगा। भगदड़ मचने लगी। क्योंकि थोड़ा ही समय था गाँव के डूबने में तो जो हो सका सबने पोटली में बांधा और वहां से चलने लगे। लगभग आधे घंटे में सभी रोते बिलखते देल्हुआ पहाड़ी की तलहटी में रुके और वही रात गुजारने का फैसला लिया। जो बचा हुआ खाना लाए थे वो बच्चों को खिलाया गया। सभी लोग सारी रात जागते रहे और भगवान से मनाते रहे की हमारा घर सही सलामत हो। जैसे ही सुबह हुई सब की निगाहें अपने घरों पर थी जो की अब दिखाई देना बंद हो चूका था। सभी भागे भागे उस जगह गए जहां देल्हुआ गाँव था, सबकी ऑंखें नम थी क्यों की सभी घर उस भयंकर बाढ़ में बह चुके थे। वहां बस घर होने के निशानियां थी। और उसमे भी जहरीले सांपों ने अपना बसेरा बना लिया था।
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देल्हुआ
अब सब कुछ ख़त्म हो चूका था। कुछ दिनों तक सभी अपने उजड़े हुए गाँव की याद के सहारे देल्हुआ पहाड़ी की तलहटी में ही रहने लगे। परंतु अब इस तरह से सभी नहीं रह सकते थे, कोई न कोई फैसला करना था की क्या देल्हुआ गाँव फिर से उसी जगह बसाया जाए जहाँ पहले था या कही और किसी सुरक्षित स्थान जहाँ नदी का पानी ना पहुँच पाए. सबसे राय माँगा गया। कुछ लोग इस पक्ष में थे की गाँव यही बसाया जाए और कुछ लोग दूसरे पक्ष में, काफी नोंक झोंक के बाद ये फैसला लिया गया की गाँव यहाँ बसाना सही नहीं रहेगा, फिर अगले साल इसी तरह तबाह हो जाएगा।
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देल्हुआ
अब देल्हुआ कहां बसाया जाए उस जगह को ढूँढना था, तो कुछ लोगों को नयी जगह ढूंढने का काम दिया गया। जहाँ अभी देल्हुआ गाँव है वहां उस समय खतरनाक जंगल था। जिसमे शेर से लेकर हर तरह के जंगली जानवर रहते थे। शाम तक वो सभी लोग जो जगह ढूंढने गए थे वो वापस आ गए और उन्होंने बताया की यहाँ से एक कोष की दुरी पर बिच जंगल में एक समतल इलाका है निशानी के तौर पर वहां एक पुराना करम का पेड़ है जो काफी बड़ा है। वहां जंगली काँटों की झाड़ियां हैं, अगर हम उन्हें साफ कर देंगे तो वहां हम अपने रहने के लिए घर बना सकते हैं।
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देल्हुआ
वहां पानी की भी सुविधा है, लगता है बिच जंगल में कोई तालाब है तो उसी से पानी बह रहा होगा। वहां जंगली जानवरों का खतरा है परंतु सकरी नदी का पानी वहां तक नहीं आएगा।
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क्लीवलैंड
क्लीवलैंड ने अमेरिकी गृहयुद्ध के बाद तेजी से विकास किया। पूर्वी तट और मध्य-पश्चिमी के बीच परिवहन केन्द्र के रूप में शहर की प्रमुख भौगोलिक स्थिति ने एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्लीवलैंड मिनेसोटा से भेजे गए लौह अयस्क के लिए एक गंतव्य के रूप में सेवारत था, साथ ही रेल द्वारा कोयले का परिवहन भी किया जाता था। 1870 में, जॉन डी. रॉकफेलर ने क्लीवलैंड में स्टैंडर्ड ऑइल की स्थापना की। 1885 में, उन्होंने अपना मुख्यालय न्यूयॉर्क शहर में स्थानांतरित कर दिया, जो वित्त और व्यापार का केंद्र बन गया था।
0.5
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क्लीवलैंड
संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना ब्यूरो के अनुसार, शहर का कुल क्षेत्रफल , जिसमें से भूमि और जल है। ईरी झील का किनारा समुद्र तल से ऊपर है; हालाँकि, शहर में कई अन्य अनियमित झीलें हैं, जो इस झील के समानांतर हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
क्लीवलैंड
ग्रेट लेक्स क्षेत्र के विशिष्ट, क्लीवलैंड चार अलग-अलग मौसमों के साथ एक महाद्वीपीय जलवायु प्रदर्शित करता है, जो आर्द्र महाद्वीपीय (कोपेन डीएफए ) क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। ग्रीष्मकाल गर्म और आर्द्र होते हैं जबकि सर्दियाँ ठंडी और बर्फीली होती हैं। ईरी झील के प्रभाव से शहर भर में भौगोलिक बर्फबारी के योगों में एक सापेक्ष अंतर हो जाता है: जबकि हॉपकिंस हवाई अड्डा, शहर के दूर पश्चिम की ओर, केवल तक बर्फबारी होती है। शहर के पूर्व की ओर और उसके उपनगरों से फैली हुई, स्नो बेल्ट बफ़ेलो के रूप में एरी झील तक पहुँचती है।
0.5
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क्लीवलैंड
2010 की जनगणना के अनुसार, शहर में 396,698 लोग, 167,490 घरवासी और 89,821 परिवार निवास कर रहे थे। जनसंख्या घनत्व 5,107.0 व्यक्ति प्रति वर्ग मील (1,971.8/किमी2) है। शहर के नस्लीय विवरण के अनुसार यहां 53.3% अफ्रीकी अमेरिकी, 37.3% श्वेत, 0.3% मूल अमेरिकी, 1.8% एशियाई, 4.4% अन्य जातियां , और 2.8% दो या दो से अधिक जातियों वाले शामिल है। किसी भी जाति के हिस्पैनिक या लातीनी आबादी का 10.0% थे।
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क्लीवलैंड
19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में आप्रवासियों की आगमन ने क्लीवलैंड के धार्मिक परिदृश्य को काफी बदल दिया। न्यू इंग्लैंड प्रोटेस्टेंट की एक सजातीय बस्ती से, यह एक विविध धार्मिक रचना के साथ एक शहर में विकसित हुआ। आज क्लीवलैंडर्स में प्रमुख धर्म में, ईसाई धर्म ( कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और रूढ़िवादी ) यहूदी, मुस्लिम, हिंदू और बौद्ध अल्पसंख्यक शामिल है।
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क्लीवलैंड
क्युहोगा नदी और ईरी झील पर क्लीवलैंड का स्थान इसके विकास की कुंजी है। ओहियो और ईरी नहर ने रेल लिंक के साथ मिलकर शहर को एक महत्वपूर्ण व्यवसाय केंद्र बनने में मदद की। स्टील और कई अन्य निर्मित सामान अग्रणी उद्योगों के रूप में उभरे। शहर ने तब से अपने विनिर्माण क्षेत्र के अलावा अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाई है।
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क्लीवलैंड
यह शहर कई बड़ी कंपनियों जैसे एप्लाइड इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजीज, क्लिफ्स नेचुरल रिसोर्सेज, फॉरेस्ट सिटी एंटरप्राइजेज, NACCO इंडस्ट्रीज, शेरविन-विलियम्स कंपनी और KeyCorp का कॉर्पोरेट मुख्यालय भी है। नासा का क्लीवलैंड के ग्लेन रिसर्च सेंटर में एक परिसर संचालित है। जोन्स डे, अमेरिका की सबसे बड़ी कानून फर्मों में से एक, क्लीवलैंड में स्थापित किया गया था।
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क्लीवलैंड
क्लीवलैंड की मौजूदा प्रमुख पेशेवर खेल टीमों में क्लीवलैंड इंडियंस (मेजर लीग बेसबॉल), क्लीवलैंड ब्राउन (नेशनल फुटबॉल लीग), और क्लीवलैंड कैवेलियर्स (नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन) शामिल हैं। स्थानीय खेल सुविधाओं में प्रोग्रेसिव फील्ड, फर्स्टएनेर्जी स्टेडियम, रॉकेट बंधक फील्डहाउस, और वोल्स्टीन केंद्र शामिल हैं । यह शहर अमेरिकी हॉकी लीग के क्लीवलैंड मॉन्स्टर्स के लिए भी मेजबान है।
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क्लीवलैंड
क्लीवलैंड सरकार एक महापौर-परिषद (मजबूत महापौर) के तौर पर कार्य करता है, जिसमें महापौर मुख्य कार्यकारी होता है। महापौर-परिषद प्रणाली से पूर्व, 1924 से 1931 तक, शहर विलियम आर हॉपकिंस और डैनियल ई. मॉर्गन के अधीन एक परिषद-प्रबंधक सरकार के रूप में प्रशासित था।
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साप्पोरो
साप्पोरो में कई पार्क हैं, जिनमें ओड़ीरी पार्क शामिल है, जो कि शहर के केंद्र में स्थित है यहाँ साल भर कई वार्षिक आयोजनों और त्योहारों का आयोजन होता रहता है। मोरेमेमा पार्क भी साप्पोरो के सबसे बड़े पार्कों में से एक है, और यह एक जापानी-अमेरिकी कलाकार और परिदृश्य वास्तुकार इसामु नोगुची की योजना के तहत बनाया गया हैं।
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साप्पोरो
साप्पोरो में एक उमस भरे महाद्वीपीय जलवायु (कोप्पन डीफा) है, जिसमें गर्मियों और सर्दियों में तापमान के बीच काफी अंतर होता है। ग्रीष्मकाल आम तौर पर गर्म होते हैं लेकिन उमस कम हि होती है, और सर्दियाँ बहुत बर्फ़ीली होती है, जिसमें 5.96 मीटर (19 फीट 7 इंच) तक औसतन बर्फबारी होती है। साप्पोरो, दुनिया में कुछ महानगरों में से एक है, जहाँ भारी हिमपात होती है। जिसके कारण यह कई बर्फ के खेलों और त्योहारों कि मेजबानी करता है। शहर में वार्षिक औसतन वर्षा लगभग 1,100 मिमी (43.3 इंच) होती है, और औसतन वार्षिक तापमान 8.5 डिग्री सेल्सियस (47.3 डिग्री फारेनहाइट) है।
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साप्पोरो
शहर की अनुमानित आबादी 30 सितंबर, 2016 तक 1,947,097, और जनसंख्या घनत्व 1,700 प्रति व्यक्ति प्रति किमी2 (4,500 व्यक्ति प्रतिमी2)था। शहर का कुल क्षेत्रफल 1,121.12 किमी2 (432.87 वर्ग मील) है।
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साप्पोरो
साप्पोरो, तीन उद्योग क्षेत्र में पर आगे हैं, प्रमुख उद्योगों में सूचना प्रौद्योगिकी, खुदरा बाजार और पर्यटन शामिल हैं। अपेक्षाकृत शांत जलवायु के कारण साप्पोरो, सर्दियों के खेल और त्योहारों और गर्मियों की चहलपहल के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है।
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साप्पोरो
शहर, होक्काइदो प्रांत का विनिर्माण केंद्र भी है, यहाँ खाद्य और संबंधित उत्पादों, गढ़े धातु के उत्पादों, इस्पात, मशीनरी, पेय पदार्थ, और लुगदी और कागज जैसे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जाता हैं।
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