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अफ़ग़ानिस्तान
अफ़गानिस्तान के प्रमुख नगर हैं- राजधानी काबुल, कन्धार (गन्धार प्रदेश) भारत के प्राचीन ग्रन्थ महाभारत में इसे राजा सकुनी का प्रदेश गन्धार प्रदेश कहा जाता था। यहाँ कई नस्ल के लोग रहते हैं जिनमें पश्तून (पठान या अफ़ग़ान) सबसे अधिक हैं। इसके अलावा उज्बेक, ताजिक, तुर्कमेन और हज़ारा शामिल हैं। यहाँ की मुख्य भाषा पश्तो है। फ़ारसी भाषा के अफ़गान रूप को दरी कहते हैं।
0.5
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अफ़ग़ानिस्तान
वर्तमान में अफगानिस्तान में तालिबान नामक संगठन का नियंत्रण है। अब वहाँ शरिया क़ानून लागू किया गया है
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अफ़ग़ानिस्तान
अफ़्ग़ानिस्तान का नाम अफगान और स्थान या (स्तान ) जिसका मतलब भूमि होता है से लकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है अफ़गानों की भूमि। स्थान या (स्तान) भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत का शब्द है- पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाख़स्तान, हिन्दुस्तान इत्यादि जिसका अर्थ है भूमि या देश। अफ़्गान का अर्थ यहां के सबसे अधिक वसित नस्ल (पश्तून) को कहते हैं। अफ़्गान शब्द को संस्कृत अवगान से निकला हुआ माना जाता है। ध्यान रहे की "अफ़्ग़ान" शब्द में ग़ की ध्वनी है और "ग" की नहीं।
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अफ़ग़ानिस्तान
"स्टेन" का अर्थ है भूमि। अफगानिस्तान का अर्थ है अफगानों की भूमि। शब्द "स्टेन" का उपयोग कुर्दिस्तान और उज़बेकिस्तान के नामों में भी किया जाता है।
0.5
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अफ़ग़ानिस्तान
मानव बसाहट १०,००० साल से भी अधिक पुराना हो सकता है। ईसा के १८०० साल पहले आर्यों का आगमन इस क्षेत्र में हुआ। ईसा के ७०० साल पहले इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय काव्य ग्रंथ महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है। ईसापूर्व ५०० में फ़ारस के हखामनी शासकों ने इसको जीत लिया। सिकन्दर के फारस विजय अभियान के तहत अफ़गानिस्तान भी यूनानी साम्राज्य का अंग बन गया। इसके बाद यह शकों के शासन में आए। शक स्कीथियों के भारतीय अंग थे। ईसापूर्व २३० में मौर्य शासन के तहत अफ़ग़ानिस्तान का संपूर्ण इलाका आ चुका था पर मौर्यों का शासन अधिक दिनों तक नहीं रहा। इसके बाद पार्थियन और फ़िर सासानी शासकों ने फ़ारस में केन्द्रित अपने साम्राज्यों का हिस्सा इसे बना लिया। सासनी वंश इस्लाम के आगमन से पूर्व का आखिरी ईरानी वंश था। अरबों ने ख़ुरासान पर सन् ७०७ में अधिकार कर लिया। सामानी वंश, जो फ़ारसी मूल के पर सुन्नी थे, ने ९८७ इस्वी में अपना शासन गजनवियों को खो दिया जिसके फलस्वरूप लगभग संपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान ग़ज़नवियों के हाथों आ गया। ग़ोर के शासकों ने गज़नी पर ११८३ में अधिकार कर लिया।
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अफ़ग़ानिस्तान
मध्यकाल में कई अफ़्गान शासकों ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया या करने का प्रयत्न किया जिनमें लोदी वंश का नाम प्रमुख है। अफगानिस्तान पर सिख साम्राज्य के प्रतापी राजा दिलीप सिंह का कई वर्षों तक अधिकार रहा l अफगान से मिलकर बाबर, नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर आक्रमण किए अफ़ग़ानिस्तान के कुछ क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अंग थे।
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अफ़ग़ानिस्तान
उन्नीसवीं सदी में आंग्ल-अफ़ग़ान युद्धों के कारण अफ़ग़ानिस्तान का काफी हिस्सा ब्रिटिश इंडिया के अधीन हो गया जिसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में यूरोपीय प्रभाव बढ़ता गया। १९१९ में अफ़ग़ानिस्तान ने विदेशी ताकतों से एक बार फिर स्वतंत्रता पाई। आधुनिक काल में १९३३-१९७३ के बीच का काल अफ़ग़ानिस्तान का सबसे अधिक व्यवस्थित काल रहा जब ज़ाहिर शाह का शासन था। पर पहले उसके जीजा तथा बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के सत्तापलट के कारण देश में फिर से अस्थिरता आ गई। सोवियत सेना ने कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग के लिए देश में कदम रखा और मुजाहिदीन ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और बाद में अमेरिका तथा पाकिस्तान के सहयोग से सोवियतों को वापस जाना पड़ा। ११ सितम्बर २००१ के हमले में मुजाहिदीन का हाथ होने की खबर के बाद अमेरिका ने देश के अधिकांश हिस्से पर सत्तारुढ़ मुजाहिदीन (तालिबान), जिसको कभी अमेरिका ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ लड़ने में हथियारों से सहयोग दिया था, के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
0.5
6,691.213883
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0
इन्दौर
उज्जैन पर विजय पाने की राह में, राजा इंद्र सिंह ने काह्न नदी (आधुनिक नाम कान(Kahn) और विकृत नाम खान) के निकट एक शिविर रखी और वे इस जगह की प्राकृतिक हरियाली से बहुत प्रभावित हुए।
0.5
6,681.417933
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इन्दौर
इस प्रकार वह नदियों काह्न और सरस्वती के संगम की जगह पर एक शिवलिंग रखी और १७३१ ई. में इन्द्रेश्वर मंदिर का निर्माण प्रारम्भ किया। साथ ही इंद्रपुर की स्थापना की गई। कई वर्षों बाद जब पेशवा बाजीराव-१ द्वारा, मराठा शासन के तहत, इसे मराठा सूबेदार 'मल्हार राव होलकर' को दिया गया था तब से इसका नाम इन्दूर पड़ा। ब्रिटिश राज के दौरान यह नाम अपने वर्तमान रूप इंदौर में बदल गया था।
0.5
6,681.417933
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0
इन्दौर
मुग़ल युग के दौरान, आधुनिक इंदौर जिले के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र उज्जैन और मांडू के प्रशासन (सरकारों) के बीच समान रूप से विभाजित था। कम्पेल मालवा सुबाह (प्रांत) की उज्जैन सरकार के अधीन एक महल (प्रशासनिक इकाई) का मुख्यालय था। आधुनिक इंदौर शहर का क्षेत्र कम्पेल परगना (प्रशासनिक इकाई) में शामिल था।
0.5
6,681.417933
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इन्दौर
१७१५ में, मराठों ने इस क्षेत्र (मुगल क्षेत्र) पर आक्रमण किया और कंपेल के मुगल अमिल (प्रशासक) से चौथ (कर) की मांग की। आमिल उज्जैन भाग गए, और स्थानीय ज़मींदार मराठों को चौथ देने के लिए तैयार हो गए। मुख्य जमींदार, नंदलाल चौधरी (जिसे बाद में नंदलाल मंडलोई के नाम से जाना जाता था) ने लगभग रुपये का चौथ का भुगतान किया। मराठों को २५,००० मालवा के मुगल गवर्नर जय सिंह द्वितीय, ८ मई १७१५ को कंपेल पहुंचे और गांव के पास एक युद्ध में मराठों को हराया। मराठा १७१६ की शुरुआत में वापस आए, और १७१७ में कम्पेल पर छापा मारा। मार्च १७१८ में, संताजी भोंसले के नेतृत्व में मराठों ने फिर से मालवा पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार असफल रहे।
0.5
6,681.417933
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0
इन्दौर
१७२० तक, शहर में बढ़ती व्यावसायिक गतिविधियों के कारण, स्थानीय परगना का मुख्यालय कंपेल से इंदौर स्थानांतरित कर दिया गया था। १७२४ में, नए पेशवा बाजी राव I के तहत मराठों ने मालवा में मुगलों पर एक नया हमला किया। बाजी राव प्रथम ने स्वयं इस अभियान का नेतृत्व किया, उनके साथ उनके लेफ्टिनेंट उदाजी राव पवार, मल्हारराव होलकर और रानोजी सिंधिया थे। मुगल निज़ाम ने १८ मई १७२४ को नालछा में पेशवा से मुलाकात की और क्षेत्र से चौथ लेने की उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। पेशवा दक्कन लौट आए, लेकिन चौथ संग्रह की देखरेख के लिए मल्हार राव होल्कर को इंदौर में छोड़ दिया।
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6,681.417933
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इन्दौर
मराठों ने राव नन्दलाल चौधरी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे, जिनका स्थानीय सरदारों (प्रमुखों) पर प्रभाव था। १७२८ में, उन्होंने अमझेरा में मुगलों को निर्णायक रूप से हराया और अगले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अपना अधिकार मजबूत किया। ३ अक्टूबर १७३० को, मल्हार राव होल्कर को मालवा के मराठा प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। मराठा शासनकाल के दौरान स्थानीय ज़मींदारों, जिनके पास चौधरी की उपाधि थी, को मंडलोई (मंडल के बाद, एक प्रशासनिक इकाई) के रूप में जाना जाने लगा। मराठों के होल्कर राजवंश, जिसने इस क्षेत्र को नियंत्रित किया, ने स्थानीय जमींदार परिवार को राव की उपाधि प्रदान की। नंदलाल की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र तेजकराना को पेशवा बाजी राव प्रथम द्वारा कंपेल के मंडलोई के रूप में स्वीकार किया गया था। परगना औपचारिक रूप से १७३३ में पेशवा द्वारा २८ और डेढ़ परगना को विलय करके मल्हार राव होल्कर को दे दिया गया था। परगना मुख्यालय को वापस स्थानांतरित कर दिया गया था। अपने शासनकाल के दौरान कम्पेल को। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी बहू अहिल्याबाई होल्कर ने १७६६ में मुख्यालय को इंदौर स्थानांतरित कर दिया। कंपेल की तहसील को नाम में परिवर्तन करके इंदौर तहसील में बदल दिया गया। अहिल्याबाई होल्कर १७६७ में राज्य की राजधानी महेश्वर चली गईं, लेकिन इंदौर एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और सैन्य केंद्र बना रहा।
0.5
6,681.417933
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इन्दौर
शहर में बढ़ रही व्यावसायिक गतिविधियों के कारण स्थानीय परगना मुख्यालय कम्पेल से इंदौर के लिए १७२० में स्थानांतरित कर दिया गया। १८ मई १७२४ को, निज़ाम ने बाजीराव प्रथम द्वारा क्षेत्र से चौथ (कर) इकट्ठा करने के लिए मंज़ूरी दे दी। १७३३ में, पेशवा ने मालवा का पूर्ण नियंत्रण ग्रहण किया, और सेनानायक मल्हारराव होलकर को प्रान्त के सूबेदार (राज्यपाल) के रूप में नियुक्त किया। नंदलाल चौधरी ने मराठों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। मराठा शासन के दौरान, चौधरीयों को "मंडलोई" (मंडल से उत्पत्ति) के रूप में जाना जाने लगा। होलकरों ने नंदलाल के परिवार को राव राजा" की विभूति प्रदान की। साथ ही साथ होलकर शासकों दशहरा पर होलकर परिवार से पहले "शमी पूजन" करने की अनुमति भी दे दी।
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6,681.417933
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0
इन्दौर
२९ जुलाई १७३२, बाजीराव पेशवा प्रथम ने होलकर राज्य में '२८ और आधा परगना' में विलय कर दी जिससे मल्हारराव होलकर ने होलकर राजवंश की स्थापना की।
0.5
6,681.417933
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इन्दौर
उनकी पुत्रवधू देवी अहिल्याबाई होलकर ने १७६७ में राज्य की नई राजधानी महेश्वर में स्थापित की। लेकिन इंदौर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र बना रहा।
0.5
6,681.417933
20231101.hi_9056_4
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प्रसव
बच्चे के जन्म का तीसरा चरण बच्चे के जन्म होने से औवल को बाहर आने को तीसरा चरण कहते हैं। बच्चे के जन्म होने के बाद बच्चा एक नाड़ (कोर्ड) से जुड़ा होता है जिसको नाड़ कहते हैं। यह सफेद, मटमैला और रस्सी के समान आकृति का होता है। इसके बच्चे की धड़कन महसूस की जा सकती है। यह बच्चे को रक्त और आक्सीजन पर्यात्प मात्रा में पहुंचाया रहता है। दूसरी तरफ यह नाड़ ओवल से जुड़ा रहता है जो मां के बच्चेदानी की दीवार से चिपका रहता है जब बच्चा ठीक तरफ से रोने लगता है और उसका रंग गुलाबी रंग का हो जाए तो इसका अर्थ यह होता है कि बच्चे का दिल और फेफड़े कार्य करने लगे हैं इसी अवस्था में नाड़ को बच्चे की नाभि से लगभग 8 से 10 सेमी की दूरी पर क्लैम्प लगाकर काटा जाता है।
0.5
6,654.184145
20231101.hi_9056_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B5
प्रसव
नाड़ को काटकर यह देखें कि यह जमीन या किसी अन्य चीज से छू न जाए क्योंकि यह शीघ्र ही रोग को पकड़ लेता है और उससे बच्चे को रोग हो सकता है। इसीलिए इसे काटने के बाद बच्चे के पेट पर डाल देना ही उचित होता है बच्चे की कटी नाड़ पर कोई दवा भी लगाई जा सकती है। बच्चे की कटी हुई नाड़ 24 घंटे के अंदर धीरे-धीरे करके सूख जाती है। लगभग 7 से 10 दिन में यह सूखकर शरीर से अलग हो जाती है तथा इसके स्थान पर एक बटन के आकार का दाग शरीर पर रह जाता है जिसको नाभि कहते हैं। जब तक यह शरीर पर रहता है इसकी देखरेख आवश्यक होती है। इसे प्रतिदिन दिन में दो बार डाक्टरी रूई से स्प्रिट के सहायता से साफ करना तथा कीटाणुनाशक दवा का उपयोग करना चाहिए।
0.5
6,654.184145
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B5
प्रसव
एमनीओटिक झिल्ली के फाड़ने के बाद यह नाड़ (एमलाइकल कोर्ड) बच्चा पैदा होने से पहले कई बार बाहर निकल जाती है। यह अवस्था यह अवगत कराती है कि बच्चा अपने समय के अनुसार छोटा, शारीरिक त्रुटियां, गर्भ में बच्चे की आसामान्य अवस्था या गर्भाशय में एमनीओटिक द्रव का अधिक मात्रा होना प्रमुख कारण होता है। भग से नाड़ के बाहर आने पर नाड़ में रक्त का बहाव कम होने लगता है बच्चे के सिर का दबाव तथा मां के कूल्हे की बीच की हडिड्यों के बीच नाड़ पर लगातार दबाव पड़ने के कारण कई बार रक्त का संचार बिल्कुल ही बंद हो जाता है। इस अवस्था में बच्चे का तापमान व रक्त कम होने के कारण बच्चा गर्भ में ही मर जाता है। इसी कारण इस अवस्था में प्रसव का शीघ्र करना या आपरेशन के द्वारा प्रसव कराना लाभदायक होता है।
0.5
6,654.184145
20231101.hi_9056_7
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प्रसव
कई बार नाड़ की इस प्रकार की अवस्था प्रारम्भ में मालूम नहीं हो पाती है। इस अवस्था को मालूम करने के लिए भग द्वारा जांच करनी पड़ती है। इस दशा में प्रसव शीघ्र नहीं हो पाता है तथा बच्चे के दिल की धड़कनें कम होने लगती है। इस कारण यह आवश्यक है कि जैसे ही एमन्योटिक झिल्ली फटती है। उस समय स्त्री की जांच भंग द्वारा शीघ्र होनी चाहिए। ऐसी स्त्रियां जिनमें बच्चे का सिर कूल्हे पर आकर न टिका हो उनमें नाड़ का बाहर आने की संभावन भी अधिक होती है और कुछ समय बाद यह स्वयं सूखकर गिर जाती है तथा बच्चे की नाभि का निशान जीवनपर्यन्त के लिए रह जाता है।
0.5
6,654.184145
20231101.hi_9056_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B5
प्रसव
बच्चे के जन्म के समय जैसे ही बच्चे का सिर बाहर आता है तो इस बात को ध्यान देना चाहिए कि बच्चे के चेहरे पर चिकनाईयुक्त द्रव कितना लगा है क्योंकि यही चिकनाईयुक्त द्रव बच्चे को सांस लेने में कठिनाई डाल सकता है। इसी कारण एक साफ कपड़े के टुकड़े द्वारा बच्चे का चेहरा, नाक और मुंह को अच्छी प्रकार से साफ करना चाहिए। बच्चे के पैदा होते ही बच्चे को उल्टा लटकाया जा सकता है। जिसके कारण फेफड़े आदि में गया हुआ चिकना द्रव मुंह में लौटकर आ जाए और मुंह का द्रव फेफड़ों में न जा पाये। इस कारण इसको सक्शन द्वारा सावधानी से निकाला जा सकता है।
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6,654.184145
20231101.hi_9056_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B5
प्रसव
थोड़ी सी मात्रा में चिकनाईयुक्त द्रव फेफड़ों में जा सकता है। परन्तु अधिक मात्रा में द्रव फेफड़ो में जाने से बच्चे का रोना ठीक नहीं होता है। ऐसी स्थिति म्रें फेफड़े में नली डालकर इसे निकालना पड़ता है तथा बच्चे को दवाइयां भी शुरू करनी पड़ती है। पहले बच्चे के फेफड़े गुब्बारे की भांति बिना हवा के होते हैं। परन्तु पहली बार सांस लेते ही फेफड़े हवा से भर जाते हैं। उसमें से रक्त आने लगता है तथा आक्सीजनयुक्त रक्त फेफड़े से बच्चे के हृदय की ओर पहुंच जाता है। इस अवस्था में बच्चे का हृदय शीघ्र ही कार्य करने लगता है। इसी बीच बच्चे का संबन्ध औवल से अलग हो जाता है।
0.5
6,654.184145
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B5
प्रसव
बच्चेदानी में कुछ दर्द के साथ औवल भी धीरे-धीरे बच्चेदानी की दीवारों की पकड़ को छोड़ने लगती है तथा धीरे-धीरे करके पूरा औवल अलग होकर इसी द्वार से बाहर आ जाती है। कभी-कभी औवल को आने में 10 मिनट से लेकर आधे घंटे का समय लग सकता है ऐसी स्थिति में मां के पेट की हल्की मालिश भी करनी पड़ सकती है। यदि इसके बाद भी औवल बाहर नहीं आता है तो उसे रिटैनड् औवल कहते हैं। औवल के बाहर आते ही औवल को अच्छी प्रकार से देखना चहिए। यदि औवल का एक भी टुकड़ा नहीं आ पाया तो फिर बच्चेदानी पूरी तरफ से सिकुड़ नहीं पाती तथा रक्तस्राव होता रहता है।
0.5
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प्रसव
बच्चे के जन्म लेते ही बच्चा कुछ नीले रंग का हो जाता है। परन्तु बच्चे के रोने से अक्सीजन और रक्त बच्चे के शरीर में संचरित होने लगता है। इसके कारण बच्चे का रंग गुलाबी हो जाता है। बच्चे के शरीर पर सफेद चिकनईयुक्त पदार्थ लगा रहता है। इस चिकनाईयुक्त पदार्थ को वरनिक्स कहते हैं। बच्चे को साफ कपड़े से पोंछने या बच्चे को स्नान कराने से यह चिकनाईयुक्त द्रव शरीर से बाहर आ जाता है।
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प्रसव
बच्चे के चेहरे पर कुछ सूजन, आंखों का धंसा रहना और बच्चे का सिर का कुछ भाग उठा-सा दिखाई पड़ता है जिसको कैपुट कहा जाता है। यह सब समय के साथ ठीक हो जाता है। बच्चे के पैदा होते समय सिर पर जो मांसपेशियों का जोर लगता है। उससे कैपुट बन जाता है। परन्तु यह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। बच्चे के जन्म के समय बच्चे की छाती कुछ बढ़ी हुई होती है। प्रसव में यदि लड़की होती है। तो उसके मूत्रद्वार के दोनों ओर की त्वचा लेबिया कुछ अधिक भूरी और सूजी हुई होती है और कुछ भाग बाहर निकलता दिखाई देता है। कभी-कभी थोड़ा सा रक्त भी आ जाता है इसी प्रकार लड़के में अंडकोषों का बड़ा होना या कुछ हल्के नीले ब भूरे रंग का दिखाई पड़ना आदि सामान्य बातें होती है जो समय के अनुसार बदल जाती है। गर्भावस्था के समय महिला को यह निर्णय ले लेना चाहिए कि उन्हें प्रसव घर में या हास्पिटल में करवाना है। गर्भावस्था के दौरान महिला की किसी स्त्री रोग से विशेषज्ञ से करवानी चाहिए।
0.5
6,654.184145
20231101.hi_539442_11
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मंगलयान
बस: अंतरिक्ष यान का सैटेलाइट बस चंद्रयान-1 के समान संशोधित संरचना और प्रणोदन हार्डवेयर विन्यास का आई-2के बस है। उपग्रह संरचना का निर्माण एल्यूमीनियम और कार्बन प्लास्टिक फाइबर से किया है।
0.5
6,618.503782
20231101.hi_539442_12
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मंगलयान
पावर: इलेक्ट्रिक पावर तीन सौर सरणी पैनलों द्वारा मंगल ग्रह की कक्षा में अधिकतम 840 वाट उत्पन्न करेंगे। बिजली एक 36 एम्पेयर-घंटे वाली लिथियम आयन बैटरी में संग्रहित होगी।
0.5
6,618.503782
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मंगलयान
संचालक शक्ति: 440 न्यूटन का बल का एक तरल ईंधन इंजन जो कक्षा बढ़ाने और मंगल ग्रह की कक्षा में प्रविष्टि के लिए प्रयोग किया जाएगा। ऑर्बिटर दृष्टिकोण नियंत्रण के लिए भी आठ 22-न्यूटन वाले थ्रुस्टर ले जायेगा। इसका ईंधन द्रव्यमान है।
0.5
6,618.503782
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मंगलयान
मीथेन सेंसर (मीथेन संवेदक) - यह मंगल के वातावरण में मिथेन गैस की मात्रा को मापेगा तथा इसके स्रोतों का मानचित्र बनाएगा। मिथेन गैस की मौजूदगी से जीवन की संभावनाओं का अनुमान लगाया जाता है।
0.5
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मंगलयान
थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) (ऊष्मीय अवरक्त स्पेक्ट्रोमापक) - यह मंगल की सतह का तापमान तथा उत्सर्जकता (emissivity) की माप करेगा जिससे मंगल के सतह की संरचना तथा खनिज की (mineralogy) का मानचित्रण करने में सफलता मिलेगी।
1
6,618.503782
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मंगलयान
मार्स कलर कैमरा (MCC) (मंगल वर्ण कैमरा)- यह दृष्य स्पेक्ट्रम में चित्र खींचेगा जिससे अन्य उपकरणों के काम करने के लिए सन्दर्भ प्राप्त होगा।
0.5
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मंगलयान
लमेन अल्फा फोटोमीटर (Lyman Alpha Photometer (LAP)) (लिमैन अल्फा प्रकाशमापी) - यह ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्रा मापेगा।
0.5
6,618.503782
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मंगलयान
मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक (MENCA) (मंगल बहिर्मंडल उदासीन संरचना विश्लेषक) - यह एक चतुःध्रुवी द्रव्यमान विश्लेषक है जो बहिर्मंडल (इक्सोस्फीयर) में अनावेशित कण संरचना का विश्लेषण करने में सक्षम है।
0.5
6,618.503782
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मंगलयान
3 अगस्त 2012 - इसरो की मंगलयान परियोजना को भारत सरकार ने स्वीकृति दी। इसके लिये 2011-12 के बजट में ही धन का आबण्टन कर दिया गया था।
0.5
6,618.503782
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सातवाहन
ऐसा प्रतीत होता है कि इसी समय (प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में) पश्चिमी भारत पर शकों का आक्रमण हुआ । शकों ने महाराष्ट्र, मालवा, काठियावाड़ आदि प्रदेशों को सातवाहनों से जीत लिया । पश्चिमी भारत में शकों की क्षहरात शाखा की स्थापना हुई ।
0.5
6,587.351088
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सातवाहन
शकों की विजयी के फलस्वरूप सातवाहनों का महाराष्ट्र तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में अधिकार समाप्त हो गया और उन्हें अपना मूलस्थान छोड़कर दक्षिण की ओर खिसकना पड़ा । संभव है इस समय सातवाहनों ने शकों की अधीनता भी स्वीकार कर ली हो । इस प्रकार शातकर्णि प्रथम से लेकर गौतमीपुत्र शातकर्णि के उदय के पूर्व तक का लगभग एक शताब्दी का काल सातवाहनों के ह्रास का काल है ।
0.5
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सातवाहन
सातवाहन शासन की शुरुआत 30 ईसा पूर्व से 200ई तक विभिन्न समयों में की गई है। सातवाहन प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक दक्खन क्षेत्र पर प्रभावी थे। यह तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व तक चला। निम्नलिखित सातवाहन राजाओं को ऐतिहासिक रूप से एपिग्राफिक रिकॉर्ड द्वारा सत्यापित किया जाता है, हालांकि पुराणों में कई और राजाओं के नाम हैं (देखें सातवाहन वंश # शासकों की सूची ):
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सातवाहन
यज्ञश्री की मृत्यु के पश्चात् सातवाहन साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हुई । यह अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया । पुराणों में यज्ञश्री के पश्चात् शासन करने वाले विजय, चन्द्रश्री तथा पुलोमा के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कोई इतना योग्य नहीं था कि वह विघटन की शक्तियों को रोक सके । दक्षिण-पश्चिम में सातवाहनों के बाद आभीर, आन्ध्रप्रदेश में ईक्ष्वाकु तथा कुन्तल में चुटुशातकर्णि वंशों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली ।
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सातवाहन
इस वंश का संस्थापक ईश्वरसेन था जिसने 248-49 ईस्वी के लगभग कलचुरिचेदि संवत् की स्थापना की । उसके पिता का नाम शिवदत्त मिलता है । नासिक में, उसके शासनकाल के नवें वर्ष का एक लेख प्राप्त हुआ है ।
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सातवाहन
यह इस बात का सूचक है कि नासिक क्षेत्र के ऊपर उसका अधिकार था । अपरान्त तथा लाट प्रदेश पर भी उसका प्रभाव था क्योंकि यहाँ कलचुरि-चेदि संवत् का प्रचलन मिलता है । आभीरों का शासन चौथी शती तक चलता रहा ।
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सातवाहन
इस वंश के लोग कृष्णा-गुण्टूर क्षेत्र में शासन करते थे । पुराण में उन्हें ‘श्रीपर्वतीय’ (श्रीपर्वत का शासक) तथा ‘आन्ध्रभृत्य’ (आन्ध्रों का नौकर) कहा गया है । पहले वे सातवाहनों सामन्त थे किन्तु उनके पतन के बाद उन्होंने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी ।
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सातवाहन
इस वंश का संस्थापक श्रीशान्तमूल था । अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित करने के उपलक्ष में उसने अश्वमेध यज्ञ किया । वह वैदिक धर्म का अनुयायी था । उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त हुआ जिसने 20 वर्षों तक राज्य किया ।
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सातवाहन
अमरावती तथा नागार्जुनीकोंड से उसके लेख मिलते हैं । इनमें बौद्ध संस्थाओं को दिये जाने वाले दान का विवरण है । वीरपुरुषदत्त का पुत्र तथा उत्तराधिकारी शान्तमूल द्वितीय हुआ जिसने लगभग ग्यारह वर्षों तक राज्य किया ।
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20231101.hi_192619_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
आत्महत्या
मानसिक विकार आम तौर पर आत्महत्या के समय उपस्थित रहते हैं जिनका अनुमान 27 से लेकर 90 प्रतिशत से अधिक तक होता है। वे जिनको किसी मनोवैज्ञानिक इकाइयों में भर्ती किया गया हो उनके द्वारा जीवन में आत्महत्या को पूरा करने की संभावना 8.6 प्रतिशत होती है। आत्महत्या करके मरने वाले समस्त लागों में से आधे को प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार होता है; इसके या द्विध्रुवी विकार जैसे दूसरे मनोदशा विकारों के कारण आत्महत्या का जोखिम 20 गुना तक बढ़ जाता है। अन्य परिस्थितयों में विखंडितमनस्कताग्रस्त(14%), व्यक्तित्व विकार (14%), द्विध्रुवी विकार और अभिघातज तनाव पश्चात विकार शामिल है। विखंडितमनस्कताग्रस्त से पीड़ित लगभग 5% लोग आत्महत्या के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। भोजन विकार एक और उच्च जोखिम परिस्थिति है।पहले के आत्महत्या के प्रयासों का इतिहास आत्महत्या के अंततः पूर्ण होने का सबसे बड़ा भविष्यवक्ता होता है। आत्महत्या के लगभग 20% मामलों में पहले भी प्रयास होते हैं और जो पहले आत्महत्या का प्रयास कर चुके होते हैं उनमें से 1% लोग, एक साल के भीतर ही आत्महत्या पूर्ण कर लेते हैं और 5% से अधिक 10 सालों के बाद आत्महत्या करते हैं। जबकि खुद को चोट पहुंचाने की क्रिया को आत्महत्या के प्रयास के रूप में नहीं देखा जाता है, फिर भी खुद को चोट पहुंचाने से संबंधित व्यवहार को आत्महत्या के बढ़े जोखिम से जोड़ कर देखा जाता है।
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6,552.979018
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
आत्महत्या
पूर्ण हुए आत्महत्या के लगभग 80% मामलों में लोग अपनी मृत्यु के पहले एक साल के भीतर चिकित्सक से मिल होते हैं, इनमें से 45% पिछले माह ही मिले होते हैं। आत्महत्या पूरा करने वालों में से 25–40% लोगों ने पिछले साल मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से संपर्क किया था।
0.5
6,552.979018
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
आत्महत्या
बड़े अवसाद और द्विध्रुवी विकार के बाद मादक पदार्थ उपयोग आत्महत्या का दूसरा सबसे आम जोखिम कारक है। काफी लंबे समय तक मादक पदार्थ उपयोग तथा तीव्र नशा दोनों ही संबंधित हैं। जब इनको एकाकीपन जैसे निजी विषाद के साथ जोड़ा जाता है तो जोखिम और बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त मादक पदार्थ दुरुपयोग मानसिक स्वाथ्य विकारों से संबंधित है। आत्महत्या करने वाले अधिकतर लोग, आत्महत्या करते समय शामक कृत्रिम निद्रावस्था दवाएं (जैसे कि अल्कोहल या बेंज़ोडाइज़ेपाइन्स) के प्रभाव में होते हैंजिनमें अल्कोहल के नशे की उपस्थिति की मात्रा 15% से 61% मामलों में हो सकती है। वे देश जहाँ पर अल्कोहल उपयोग की दर उच्च है तथा मदिरालयों का घनत्व अधिक है उनके यहां पर आत्महत्या की दर उच्च है यह संयोग प्राथमिक रूप से आसवित सुरा के उपयोग से संबंधित है न कि अल्कोहल के कुल उपयोग से। अल्कोहल से उपचार किए गए लोगों में से लगभग 2.2–3.4% वे लोग हैं जिन्होने अपने जीवन में आत्महत्या से मृत्यु प्राप्त करने का प्रयास किया है।अल्कोहल के नशेड़ी जिन्होने आत्महत्या का प्रयास किया वे आम तौर पर पुरुष, बुजुर्ग और पहले आत्महत्या का प्रयास कर चुके लोग हैं।हेरोइन का उपयोग करने वालों में होने वाली म़त्यु का 3 से लेकर 35% तक आत्महत्या के कारण मरे थे (यह उनकी संख्या का 14 गुना है जो इनका उपयोग नहीं करते हैं)।
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20231101.hi_192619_9
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आत्महत्या
The misuse of कोकीन और मेथाम्फेटामीन तथा आत्महत्या के बीच उच्च अंतःसंबंध है।वे जो कोकीन का उपयोग करते हैं उनमें इस अवस्था की वापसी के जोखिम काफी अधिक हैं। Those who used श्वसन द्वारा ग्रहण किए जाने वाले नशीले पदार्थ का उपयोग करने वाले भी बड़े जोखिम में है जिसमें से लगभग 20% कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास करते हैं और 65% इसके बारे में सोचते हैं। सिगरेट पीना भी आत्महत्या के जोखिम से जुड़ा है। इस बात के साक्ष्य काफी कम हैं कि यह संबंध क्यों अभी भी मौजूद है; हलांकि यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जो धूम्रपान के प्रति संवेदनशील होते हैं वे आत्महत्या के प्रति भी संवेदनशील होते हैं और धूम्रपान स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है जिसके चलते लोग अपना जीवन समाप्त करना चाहते हैं और धूम्रपान मस्तिष्क की रासायनिक संरचना को प्रभावित करती है। भांग के कारण स्वतंत्र रूप से यह जोखिम बढ़ता नहीं दिखता है।
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आत्महत्या
जुएं की लत का सम्बन्ध सामान्य जनसंख्या की अपेक्षा बढ़े हुए आत्महत्या के विचार तथा प्रयासों के साथ है। 12 से 24% लती जुआरी आत्महत्या का प्रयास करते हैं।उनकी पत्नियों के बीच आत्महत्या की दर सामान्य जनसंख्या की अपेक्षा तीन गुना अधिक होती है। लती जुआरियों में जोखिम को बढ़ाने वाले अन्य कारकों में मानसिक व्याधियाँ, अल्कोहल तथा नशीली दवाओं का सेवन आदि हैं।
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आत्महत्या
आत्महत्या की प्रवत्ति तथा शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच सम्बन्ध है जैसे:पुराने दर्द, अभिघातजन्य मस्तिष्क की चोट, कैंसर,ऐसे व्यक्ति जो हीमोडायलिसिस पर हों, एचआईवी, सिस्टमिक ल्युपस एरीथेमाटोटस तथा कुछ अन्य बीमारियाँ। कैंसर की पहचान के पश्चात आत्महत्या के बाद खतरा लगभग दोगुना हो जाता है। आत्महत्या की बढ़ी हुई प्रवृत्ति अवसादग्रस्तता की बीमारी और शराब के अत्यधिक सेवन के समायोजन के बाद भी बनी रहती है। एक से अधिक चिकित्सा स्थिति वाले व्यक्तियों में, जोखिम विशेष रूप से ऊँचा था। जापान में स्वास्थ्य समस्याओं को आत्महत्या के प्राथमिक औचित्य के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है।नींद की समस्याएँ जैसे कि अनिद्रा तथा स्लीप एप्निया अवसाद और आत्महत्या के लिए जोखिम कारक हैं। कुछ मामलों में नींद की समस्याएँ अवसाद से अलग एक जोखिम कारक हो सकती हैं। कई अन्य चिकित्सा स्थितियाँ मनोदशा विकारों के लक्षणों के साथ उपस्थित हो सकती हैं, जैसे: हाइपोथायरायडिज्म, अल्जाइमर्स, मस्तिष्क का ट्यूमर, सिस्टमिक ल्युपस एरीथेमाटोटस तथा कई दवाइयों के प्रतिकूल प्रभाव (जैसे बीटा ब्लॉकर्स तथा स्टेरॉयड्स)।
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6,552.979018
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आत्महत्या
कई मनोवैज्ञानिक अवस्थाएं आत्महत्या के खतरों को बढ़ाती हैं, जिनमें निराशा, जीवन में आनन्द की कमी, अवसाद तथा व्यग्रता शामिल हैं। समस्याओं को हल करने की क्षमता की कमी, भूत-काल की क्षमताओं में कमी तथा आवेग पर नियन्त्रण में कमी भी इसमें भूमिका निभाते हैं।अधिक उम्र के वयस्कों में दूसरों पर बोझ होने की धारणा भी महत्वपूर्ण है।
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आत्महत्या
हाल के जीवन के तनाव जैसे परिवार के किसी सदस्य अथवा किसी मित्र को खोना, नौकरी खोना, अथवा सामाजिक अलगाव (जैसे अकेले रहना) इस खतरे में वृद्धि करते हैं। कभी विवाहित नहीं रहने वाले लोग भी उच्च जोखिम में आते हैं। धार्मिक होने से किसी व्यक्ति के लिये आत्महत्या का खतरा कम हो जाता है। इसका कारण अनेक धर्मों में आत्महत्या के लिये नकारात्मक रूख तथा धर्म से प्राप्त होने वाली संयुक्तता है। धार्मिक व्यक्तियों में, मुस्लिम लोगों में आत्महत्या की दर कम प्रतीत होती है।
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आत्महत्या
कुछ लोग धमकी अथवा पक्षपात से बचने के लिये आत्महत्या कर लेते हैं। बचपन में हुआ यौन शोषण तथा पालक घर में व्यतीत समय भी जोखिम के कारक हैं। यौन शोषण को कुल जोखिम के 20% को योगदान का कारक माना जाता है।आत्महत्या की क्रमिक विकास व्याख्या यह है कि यह समावेशी फिटनेस में सुधार ला सकती है। ऐसा तब हो सकता है जब आत्महत्या करने वाला व्यक्ति बच्चे पैदा नहीं कर सकता तथा जीवित रह कर वह अपने रिश्तेदारों से संसाधनों को लेता रहता है। इसकी एक आपत्ति यह है कि स्वस्थ किशोरों की मृत्यु की सम्भावना समावेशी फिटनेस में वृद्धि नहीं करती है। एक निनान्त अलग पैतृक वातावरण में अनुकूलन वर्तमान वातावरण की तुलना में दोषपूर्ण अनुकूलन हो सकता है।
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6,552.979018
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
स्वर्ण के तेज से मनुष्य अत्यंत पुरातन काल से प्रभावित हुआ है क्योंकि बहुधा यह प्रकृति में मुक्त अवस्था में मिलता है। प्राचीन सभ्यताकाल में भी इस धातु को सम्मान प्राप्त था। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यताकाल में (जिसके भग्नावशेष मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिले हैं) स्वर्ण का उपयोग आभूषणों के लिए हुआ करता था। उस समय दक्षिण भारत के मैसूर प्रदेश से यह धातु प्राप्त होती थी। चरकसंहिता में (ईसा से 300 वर्ष पूर्व) स्वर्ण तथा उसके भस्म का औषधि के रूप में वर्णन आया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्वर्ण की खान की पहचान करने के उपाय धातुकर्म, विविध स्थानों से प्राप्त धातु और उसके शोधन के उपाय, स्वर्ण की कसौटी पर परीक्षा तथा स्वर्णशाला में उसके तीन प्रकार के उपयोगों (क्षेपण, गुण और क्षुद्रक) का वर्णन आया है। इन सब वर्णनों से यह ज्ञात होता है कि उस समय भारत में सुवर्णकला का स्तर उच्च था।
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6,538.069636
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
इसके अतिरिक्त मिस्र की सभ्यता के इतिहास में भी स्वर्ण के विविध प्रकार के आभूषण बनाए जाने की बात कही गई है और इस कला का उस समय अच्छा ज्ञान था।
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6,538.069636
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
मध्ययुग के कीमियागरों का लक्ष्य निम्न धातु (लोहे, ताम्र, आदि) को स्वर्ण में परिवर्तन करना था। वे ऐसे पत्थर पारस की खोज करते रहे जिसके द्वारा निम्न धातुओं से स्वर्ण प्राप्त हो जाए। इस काल में लोगों को रासायनिक क्रिया की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान न था। अनेक लोगों ने दावे किये कि उन्होंने ऐसे गुर का ज्ञान पा लिया है जिसके द्वारा वे लौह से स्वर्ण बना सकते हैं जो बाद में सदैव मिथ्या सिद्ध हुए।
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6,538.069636
20231101.hi_5498_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
स्वर्ण प्राय: मुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह उत्तम (noble) गुण का तत्व है जिसके कारण से उसके यौगिक प्राय: अस्थायी ही होते हैं। आग्नेय (igneous) चट्टानों में यह बहुत सूक्ष्म मात्रा में वितरित रहता है परंतु समय के साथ क्वार्ट्‌ज नलिकाओं (quartz veins) में इसकी मात्रा में वृद्धि हो गई है। प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ खनिज पदार्थों में जैसे लौह पायराइट (Fe S2), सीस सल्फाइड (Pb S), चेलकोलाइट (Cu2 S) आदि अयस्कों के साथ स्वर्ण भी कुछ मात्रा में जमा हो गया है। यद्यपि इसकी मात्रा न्यून ही रहती है परंतु इन धातुओं का शोधन करते समय स्वर्ण की समुचित मात्रा मिल जाती है। चट्टानों पर जल के प्रभाव द्वारा स्वर्ण के सूक्ष्म मात्रा में पथरीले तथा रेतीले स्थानों में जमा होने के कारण पहाड़ी जलस्रोतों में कभी कभी इसके कण मिलते हैं। केवल टेल्डूराइल के रूप में ही इसके यौगिक मिलते हैं।
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6,538.069636
20231101.hi_5498_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
भारत में विश्व का लगभग दो प्रतिशत स्वर्ण प्राप्त होता है। मैसूर की कोलार की खानों से यह सोना निकाला जाता है। कोलार में स्वर्ण की 5 खानें हैं। इन खानों से स्वर्ण पारद के साथ पारदन (amalgamation) तथा सायनाइड विधि द्वारा निकाला जाता है। उत्तर में सिक्किम प्रदेश में भी स्वर्ण अन्य अयस्कों के साथ मिश्रित अवस्था में मिला करता है। बिहार के मानसून और सिंहभूम जिले में सुवर्णरेखा नदी में भी स्वर्ण के कण प्राप्य हैं।
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6,538.069636
20231101.hi_5498_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
दक्षिण अमरीका के कोलंबिया प्रदेश, मेक्सिको, संयुक्त राष्ट्र अमरीका के केलीफोर्निया तथा अलासका प्रदेश, आस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका स्वर्ण उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं। ऐसा अनुमान है कि यदि पंद्रहवीं शताब्दी के अंत से आज तक उत्पादित स्वर्ण को सजाकर रखा जाए तो लगभग 20 मीटर लंबा, चौड़ा तथा ऊँचा धन बनेगा। आश्चर्य तो यह है कि इतनी छोटी मात्रा के पदार्थ द्वारा करोड़ों मनुष्यों के भाग्य का नियंत्रण होता रहा है।
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6,538.069636
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
स्वर्ण निकालने की पुरानी विधि में चट्टानों की रेतीली भूमि को छिछले तवों पर धोया जाता था। स्वर्ण का उच्च घनत्व होने के कारण वह नीचे बैठ जाता था और हल्की रेत धोवन के साथ बाहर चली जाती थी। हाइड्रालिक विधि (hydraulic mining) में जल की तीव्र धारा को स्वर्णयुक्त चट्टानों द्वारा प्रविष्ट करते हैं जिससे स्वर्ण से मिश्रित रेत जमा हो जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
आधुनिक विधि द्वारा स्वर्णयुक्त क्वार्ट्‌ज (quartz) को चूर्ण कर पारद की परतदार ताम्र की थालियों पर धोते हैं जिससे अधिकांश स्वर्ण थालियों पर जम जाता है। परत को खुरचकर उसके आसवन (distillation) द्वारा स्वर्ण को पारद से अलग कर सकते हैं। प्राप्त स्वर्ण में अपद्रव्य वर्तमान रहता है। इसपर सोडियम सायनाइड के विलयन द्वारा क्रिया करने से सोडियम ऑरोसायनाइड बनेगा।
0.5
6,538.069636
20231101.hi_5498_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE
सोना
सोडियम ऑरोसायनाइड विलयन के विद्युत्‌ अपघटन द्वारा अथवा यशद धातु की क्रिया से स्वर्ण मुक्त हो जाता है।
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6,538.069636
20231101.hi_50561_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
विकासशील देश आपदा का भारी मूल्य चुकाते हैं- आपदा के कारण ९५ % मौतें विकासशील देशों में होती हैं और प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतें २० गुना ज्यादा हैं। औद्योगिक देशों की तुलना में विकाशशील देशों का (GDP %).
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6,512.471617
20231101.hi_50561_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
आपदा को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है -एक दुखद घटना, जैसे सड़क दुर्घटना, आग, आतंकवादी हमला या विस्फोट, जिसमें कम से कम एक पीड़ित व्यक्ति हो।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
विस्नेर एट अल एक सामान्य विचार को प्रकट करते हैं जब वे तर्क देते हैं कि सभी आपदा मनुष्य द्वारा उत्पन्न माने जा सकते हैं, इसका कारण यह है कि कोई भी खतरा विनाश में परिवर्तित हो इससे पहले मनुष्य इसे रोक सकता है। इस प्रकार सभी आपदा मानवीय असफलता का परिणाम है, जो अनुचित आपदा प्रबंधन (disaster management) उपायों का सूचक हैं
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20231101.hi_50561_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
आपदा को नियमित, प्राकृतिक व मानव निर्मित के भेदों में बटा है। हालाँकि विकासशील देश (developing countries) में कोई एक मूल कारण नहीं है। एक विशेष आपदा प्रभाव को बढाने वाला हो सकता है भूकंप, जो समुद्री तटों में सुनामी के द्वारा बाढ़ लाता है, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
एक प्राकृतिक आपदा (hazard) एक स्वाभाविक परिणाम है (जैसे ज्वालामुखी विस्फोट (volcanic eruption) या भूकंप) जो मनुष्य को प्रभावित करते हैं। उपर्युक्त आपातकालिन प्रबंधन (emergency management) की कमी द्वारा मानव सुभेद्यता (vulnerability) से वित्तीय, पर्यावरण सम्बन्धी या मानवीय प्रभाव होतें हैं। परिणामी हानि या विरोध आपदा जनसँख्या के सहयोग की क्षमता पर निर्भर करती है। समझ निर्माण में केंद्रित है "आपदा के समय खतरों के होने से जोखिम होता है"। इसलिए प्राकृतिक खतरा कभी भी ऐसे क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा नहीं होगी। यानि निर्जन क्षेत्रों में प्रबल भूकंप प्राकृतिक शब्द विवादित है, क्योंकि घटनायें, बिना मानवीय सहभागिता के आपदा या ख़तरा नहीं है।
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20231101.hi_50561_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
मानवीय कार्य से निर्मित आपदा लापरवाही, भूल, या व्यवस्था की असफलता मानव - निर्मित आपदा कही जाती है। मानव निर्मित आपदा तकनीकि या सामाजिक कहे जाते हैं तकनीकि आपदा तकनीक की असफलता के परिणाम हैं जैसे इंजीनियरिंग असफलता, यातायात आपदा या पर्यावरण आपदा (environmental disaster), समेत.सामाजिक आपदा एक मजबूत मानवीय प्रेरणा है, जैसे आपराधिक क्रिया (criminal acts), भगदड़ (stampede), दंगा (riot) और युद्ध.
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20231101.hi_50561_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
आपदा और संस्कृति : मानव शास्त्र की आपदा है।Susanna M.Hoffman and Anthony Oliver-Smith, Eds..Santa Fe NM : स्कूल ऑफ अमेरिका के अनुसंधान प्रेस, २००२
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20231101.hi_50561_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
GBankoff, G.Frerks, D.हिल्होर्स्त (eds.)(२००३) .भेद्यता का मिलान : आपदाओं के विकास और लोग हैं। ISBN १-८५३८३-९६४-७.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE
आपदा
डी.सिकंदर (२००२) .आपातकालीन योजना और प्रबंधन के सिद्धांतों .हर्पेंदेद: टेरा प्रकाशन है।ISBN १-९०३५४४-१०-६.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0
कुम्हार
(1) पंजाब में एक लोक मान्यता के अनुसार, ऋषि कुबा भिक्षा देने के लिए प्रतिदिन बीस घड़े बनाते थे, लेकिन एक दिन तीस साधुओं का एक समूह उनके घर आया और भिक्षा में बर्तनों की मांग की। भगवान की कृपा पर भरोसा करते हुए, कुबा भगत ने अपनी पत्नी को पर्दे के पीछे बैठने और साधुओं को एक-एक करके बर्तन देने के लिए कहा। दैवीय चमत्कार से बीस बर्तन बढ़कर तीस हो गए और इस तरह प्रत्येक साधु को एक एक घड़ा मिल गया।
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6,486.493522
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0
कुम्हार
(2) कुललन शब्द का उपयोग तमिलनाडु के द्रविड़ भाषी लोगों द्वारा किया जाता है, जो मानते हैं कि 'कुम्हार' कुललन के तीनों पुत्रों के वंशज हैं, जो ब्रह्मा के पुत्र थे। यहां कुलाल शब्द उत्तर और दक्षिण के बीच एक सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने का आधार प्रदान करता है।
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कुम्हार
(3) एक बार ब्रह्मा ने अपने पुत्रों के बीच गन्ना बाँट दिया और उनमें से कुम्हार को छोड़कर प्रत्येक ने अपना हिस्सा खाया, लेकिन कुम्हार जो अपने काम में बहुत तल्लीन था, गन्ने को खाना भूल गया। गन्ने का वह टुकड़ा जो उसने अपनी मिट्टी के ढेले के पास रखा था, कुछ समय बाद गन्ने के पौधे में बदल गया। कुछ समय पश्चात्, जब ब्रह्मा ने अपने पुत्रों से गन्ना पुनः मांगा, तो उनमें से कोई भी उन्हें गन्ना नहीं दे सका, केवल कुम्हार ने नए गन्ने सहित पूरा पौधा पेश किया। ब्रह्मा 'कुम्हार' की अपने काम के प्रति समर्पण से प्रसन्न हुए और उसे "प्रजापति" की उपाधि से सम्मानित किया।
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कुम्हार
यह कथा पंजाब, राजस्थान और गुजरात में बहुत प्रचलित है। मालवा के कुछ हिस्सों में भी भी प्रचलित हैं। अन्य स्थानों पर किंवदंती कुछ अंतर के साथ दोहराई जाती है। कहा जाता है कि गन्ने के स्थान पर पान के पत्ते (नागरबेल) ब्रह्मा द्वारा वितरित किये गये थ
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कुम्हार
कुम्हारों ,े कई समूह है, जैसे कि - गुजराती कुम्हार, राणा कुम्हार, लाद, तेलंगी कुम्हार इत्यादि। इन सभी को सम्मिलित रूप से कुम्हार जाति कहा जाता है।
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कुम्हार
चम्बा के कुम्हार घड़े, सुराही, बर्तन, अनाज संग्राहक, मनोरंजन के लिए खिलौने इत्यादि बनाने में निपुण होते है। कुछ बर्तनो पर चित्रण कार्य भी किया जाता है।
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कुम्हार
सतारा, कोल्हापुर, भंडारा-गोंदिया , नागपुर विदर्भ, सांगली, शोलापुर तथा पुणे क्षेत्रों में कुम्हार पाये जाते है। वे आपस में मराठी भाषा बोलते है परन्तु बाहरी लोगो से मराठी ओर हिन्दी दोनों भाषाओ में बात करते हैं। पत्र व्यवहार में वे देवनागरी लिपि का प्रयोग करते है। यहां कुछ गैर मराठी कुम्हार भी है जो मूर्तियां ओर बर्तन बनाते हैं ।
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कुम्हार
यहा हथरेटी, गोल्ला ओर चकारेटी कुम्हार पाये जाते है। बर्तन बनाने के लिए चाक को हाथ से घुमाने के कारण इन्हे हथरेटी कहा जाता है।
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कुम्हार
राजस्थान में कुम्हारों (प्रजापतियों) के उप समूह है-माथेरा, कुम्हार, खेतेरी, मारवाडा., तिमरिया, और मालवी,जाटवा सामाजिक वर्ण क्रम में इनका स्थान उच्च जातियो व हरिजनो के मध्य का है। वे जातिगत अंतर्विवाही व गोत्र वाहिर्विवाही होते है।
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6,486.493522
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मनोविकार
कार्य अभिविन्यस्त प्रक्रिया का उद्देश्य किसी विशेष तनाव कारक द्वारा अधिरोपित की गई समायोजी मांग का यथार्थवादिता से समाधान ढूंढना है। ये चेतन और तर्कसंगत स्तर पर तनावपूर्ण स्थितियों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पर आधारित होती हैं। तनाव से निपटने के इन तरीकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे प्रारम्भ, प्रत्याहार और समझौता।
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मनोविकार
1. प्रारम्भ की स्थिति में कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से स्थिति के सम्मुख आता है। वह साधानों के सम्भाव्य व व्यवहार्यता का मूल्यांकन करता है। तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए वह सबसे ज्यादा आशाजनक कार्यवाही का चुनाव करता है और व्यवहार्यता बनाए रखता है, वहीं यदि ये क्रिया उपयोगी न लगे तो वह इस पद्धति को बदल लेता है। परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति नई जानकारियां जुटा कर, सामर्थ्य का विकास करके, वर्तमान योग्यताओं का सुधार करके, नए संसाधानों का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए प्रारम्भ की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब विद्यार्थी मुश्किल परीक्षा से पहले दोहराने की योजना बनाता है।
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मनोविकार
2. प्रत्याहार या अलगाव की स्थिति में यदि किसी व्यक्ति ने भूतकाल में अत्याधिक कठिन परिस्थिति का सामना किया हो एवं उसने उसका सामना करने के लिए अनुचित कूटनीति अपनाई हो, तब वह प्रथम अवस्था में अपनी असफलता को स्वीकार कर लेता है। वह शारीरिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर उस तनावपूर्ण स्थिति को छोड़ देता है। वह अपने प्रयत्नों को पुनर्निर्देशित करके उचित लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाता है। प्रत्याहार के उदाहरण स्वरूप जब किसी दोस्त के बार-बार नकारने पर आप उससे सम्बन्ध-विच्छेद करके दूसरे लोगों से मित्रता करने के प्रयत्न करते हैं।
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मनोविकार
3. समझौते की स्थिति में, यदि व्यक्ति को लगता है कि मूलभूत लक्ष्य की प्रप्ति नहीं हो सकती, तो ऐसे में वह विकल्प के तौर पर दूसरे लक्ष्य को स्वीकार कर लेता है। इस तरह की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब व्यक्ति अपनी योग्यताओं का पुनर्मूल्यांकन करता है और अपनी अभिलाषाओं के स्तर को उसी के अनुसार कम कर लेता है। ये तनावपूर्ण स्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनाए गए समझौतापरक व्यवहार को दर्शाता है। उदाहरण स्वरूप एक विद्यार्थी किसी विशेष विषय में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता परंतु वह अन्य विषयों में अच्छे अंकों को प्राप्त करता है और वह इस सत्य को स्वीकारने की कोशिश करता है।
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मनोविकार
मनोभाव केंद्रित या आत्मरक्षा-अभिविन्यस्त तरीकों से तनाव का सामना करना लाभकारी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि व्यक्ति इसके द्वारा किसी समाधान पर नहीं पहुंचता, बस स्वयं को आश्वासन देने के तरीके ढूंढता है। आत्मरक्षक पद्धतियों का उदाहरण बुद्विसंगत व्याख्या करना है जैसे यह तर्क देना कि सभी विद्यार्थी इसीलिए असफल रहे, क्योंकि परीक्षा-पत्र काफी कठिन था। इसका अन्य उदाहरण है विस्थापन करना जैसे सख्त अध्यापक पर आ रहे क्रोध को अपने छोटे भाई को डांट या मार कर उतारना। यहां आपने क्रोध का विस्थापन किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
मनोविकार
यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि तनाव से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए व्यक्ति को स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना चाहिए। सकरात्मक सोच, मनोभावों और क्रियाओं द्वारा सिर्फ तनाव से ही बेहतर तरीके से नहीं निपटा जा सकता है, वरन् इसके द्वारा हम जीवन में अत्यधिक प्रसन्न व हल्का महसूस करते हैं, एवं अधिक योग्य बनते हैं।
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मनोविकार
मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है-
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
मनोविकार
मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
मनोविकार
स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं।
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20231101.hi_18584_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80
तेजाजी
वीर तेजाजी या सत्यवादी वीर तेजाजी एक राजस्थानी लोक देवता हैं। उन्हें शिव के प्रमुख ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है और राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में देवता के रूप में पूजा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80
तेजाजी
राजस्थान का इतिहास बहुत सारी वीर गाथाओं और उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ लोगों ने अपने जीवन और परिवारों को जोखिम में डाला लेकिन निष्ठा, स्वतंत्रता, सच्चाई, आश्रय, सामाजिक सुधार आदि जैसे गौरव और मूल्यों को बरकरार रखा है। वीर तेजा जी राजस्थान के इतिहास में इन प्रसिद्ध महापुरुषों में से एक थे।
0.5
6,465.109492
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80
तेजाजी
विक्रम संवत 1131 माघ सुदी शुक्ल पक्ष चौदस अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 28 अगस्त 1074 को श्री वीर तेजाजी महाराज का जन्म दिवस मनाया जाता है उनके पिता राजस्थान में नागौर जिले के खरनाल के मुखिया तहाड जी जाट थे।
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तेजाजी
उनकी माता का नाम रामकंवरी था।, तेजाजी के माता और पिता भगवान शिव के उपासक थे। माना जाता है कि माता राम कंवरी को नाग-देवता के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्म के समय तेजाजी की आभा इतनी मजबूत थी कि उन्हें तेजा बाबा नाम दिया गया था।
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तेजाजी
तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ था, रायमल जी मुथा की पुत्री थी, जो गाँव पनेर के प्रमुख थे। पेमल का जन्म बुद्ध पूर्णिमा विक्रम स॰ 1131 (1074 ई॰) को हुआ था। पेमल के साथ तेजाजी का विवाह पुष्कर में 1074 ई॰ में हुआ था जब तेजा 9 महीने के थे और पेमल 6 महीने की थी। विवाह पुष्कर पूर्णिमा के दिन पुष्कर घाट पर हुआ। पेमल के मामा का नाम खाजू-काला था, जो धोल्या परिवार से दुश्मनी रखता था और इस रिश्ते के पक्ष में नहीं था। खाजू काला और ताहड़ देव के बीच विवाद पैदा हो गया। खाजा काला इतना क्रूर हो गया कि उसने उसे मारने के लिए ताहड़ देव पर हमला कर दिया। अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए, ताहड़ देव को तलवार से खाजू काला को मारना पड़ा। इस अवसर पर तेजाजी के चाचा असकरन भी उपस्थित थे। यह घटना पेमल की माँ को ठीक नहीं लगी जो अब ताहड़ देव और उसके परिवार से बदला लेना चाहती थी।
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तेजाजी
लोक देवता तेजाजी का जन्म एक क्षत्रिय जाट घराने में हुआ था। उनका जन्म नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ल चौदस, विक्रम संवत 1130 (29 जनवरी 1074) में हुआ माना जाता था। तथा उस खेत को तेजाजी का धोरा नाम से जाना जाता है | उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमलजी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं लुटेरे चुरा ले गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा पेमल भी उनके साथ सती हो गई। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तेजाजी का जन्म धौलिया गौत्र के जाट घराने परिवार में हुआ।
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तेजाजी
खरनाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खरनाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सहस्र एक सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
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तेजाजी
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -
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तेजाजी
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
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शैवाल
(३) क्लोरोफाइसिई ,,,- इन शैवालों में निश्चित केंद्रक तथा पर्णहरित विद्यमान रहते हैं। बर्फीले स्थानों के शैवालों की बनावट में विभिन्नता पाई जाती है। एककोशिक से लेकर सूत्रवत्‌ पौधे तक इनमें मिलते हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक से असमयुग्मक तक मिलता है।
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शैवाल
(४) ज़ैंथोफाइसिई - इन शैवालों में पर्णपीत (xanthophyll) रंग विद्यमान रहता है। स्टार्च के अतिरिक्त तैल पदार्थ भोज्य पदार्थ के रूप में रहता है। कशाभिका दो होती हैं, जो लंबाई में समान नहीं होतीं। लैंगिक जनन बहुधा नहीं होता। यदि होता है, तो समयुग्मक ही होता है। कोशिका की दीवार में दो सम या असम विभाजन होते हैं।
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शैवाल
(५) क्राइसोफाइसिई - इनमें भूरा या नारंगी रंग का वर्णकीलवक (chromatophore) होता है। भ्रमणशील कोशिका में एक, दो या तीन कशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक ढंग का होता है।
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