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20231101.hi_185289_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
कैनाबिस के पौधों से गाँजा, चरस और भाँग, ये मादक और चिकित्सोपयोगी द्रव्य तथा फल, बीजतैल और हेंप (सन सदृश रेशा), ये उद्योगोपयोगी द्रव्य, प्राप्त किए जाते हैं।
0.5
6,952.520512
20231101.hi_185289_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
नारी पौधों के फूलदार और (अथवा) फलदार शाखाओं को क्रमश: सुखा और दबाकर चप्पड़ों के रूप में गाँजा तैयार किया जाता है। केवल कृषिजात पौधों से, जिनका रेज़िन पृथक्‌ न किया गया हो, गाँजा तैयार होता है। इसकी खेती आर्द्रएवं उष्ण प्रदेशों में भुरभुरी, दोमट (loamy) अथवा बलुई मिट्टी में बरसात में होती है। जून जुलाई में बोआई और दिसंबर जनवरी में, जब नीचे की पत्तियाँ गिर जाती हैं और पुष्पित शाखाग्र पीले पड़ने लगते हैं, कटाई होती है। कारखानों में इनकी पुष्पित शाखाओं को बारंबार उलट-पलट कर सुखाया और दबाया जाता है। फिर गाँजे को गोलाकार बनाकर दबाव के अंदर कुछ समय तक रखने पर इसमें कुछ रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो इसे उत्कृष्ट बना देते हैं। अच्छी किस्म के गाँजे में से १५ से २५ प्रतिशत तक रेज़िन और अधिक से अधिक १५ प्रतिशत राख निकलती है।
0.5
6,952.520512
20231101.hi_185289_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
नारी पौधों से जो रालदार स्राव निकलता है उसी को हाथ से काछकर अथवा अन्य विधियों से संगृहीत किया जाता है। इसे ही चरस या 'सुल्फा' कहते हैं। ताजा चरस गहरे रंग का और रखने पर भूरे रंग का हो जाता है। अच्छी किस्म के चरस में ४० प्रतिशत राल होती है। वायु के संपर्क में रखने से इसकी मादकता क्रमश: कम होती जाती है। रेज़िन स्राव पुष्पित अवस्था में कुछ पहले निकलना प्रारंभ होता है और गर्भाधान के बाद बंद हो जाता है। इसलिये गाँजा या चरस के खेतों से नर पौधों को छाँट छाँटकर निकाल दिया जाता है। प्राय: शीततर प्रदेशों में यह स्राव अधिक निकलता है। इसलिये चरस का आयात भारत में बाहर से प्राय: यारकंद से तिब्बत मार्ग द्वारा, होता रहा है।
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20231101.hi_185289_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
वस्तुतः चरस गाँजे के पेड़ से निकला हुआ एक प्रकार का गोंद या चेप है जो देखने में प्रायः मोम की तरह का और हरे अथवा कुछ पीले रंग का होता है और जिसे लोग गाँजे या तंबाकू की तरह पीते हैं। नशे में यह प्रायः गाँजे के समान ही होता है। यह चेप गाँजे के डंठलों और पत्तियों आदि से उत्तरपश्चिम हिमालय में नेपाल, कुमाऊँ, काश्मीर से अफगानिस्तान और तुर्किस्तान तक बराबर अधिकता से निकलता है और इन्ही प्रदेशों का चरस सबसे अच्छा समझा जाता है। बंगाल, मध्यप्रदेश आदि देशों में और यूरोप में भी यह बहुत ही थोड़ी मात्रा में निकलता है।
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20231101.hi_185289_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
गाँजे के पेड़ यदि बहुत पास-पास हों तो उनमें से चरस भी बहुत ही कम निकलता है। कुछ लोगों का मत है कि चरस का चेप केवल नर पौधों से निकलता है। गरमी के दिनों में गाँजे के फूलने से पहले ही इसका संग्रह होता है। यह गाँजे के डंठलों को हावन दस्ते में कूटकर या अधिक मात्रा में निकलने के समय उस पर से खरोंचकर इकट्ठा किया जाता है। कहीं-कहीं चमड़े का पायजामा पहनकर भी गाँजे के खेतों में खूब चक्कर लगाते हैं जिससे यह चेप उसी चमड़े में लग जाता है, पीछे उसे खरोचकर उस रूप में ले आते हैं जिसमें वह बाजारों में बिकता है। ताजा चरस मोम की तरह मुलायम और चमकीले हरे रंग का होता है पर कुछ दिनों बाद वह बहुत कड़ा और मटमैले रंग का हो जाता है। कभी-कभी व्यापारी इसमें तीसी के तेल और गाँजे की पत्तियों के चूर्ण की मिलावट भी देते हैं। इसे पीते ही तुरंत नशा होता है और आँखें बहुत लाल हो जाती हैं। यह गाँजे और भाँग की अपेक्षा बहुत अधिक हानिकारक होता है और इसके अधिक व्यवहार से मस्तिष्क में विकार आ जाता है। पहले चरस मध्य एशिया से चमड़े के थैलों (या छोटे-छोटे चरसों) में भरकर आता था। इसी से उसका नाम चरस पड़ गया।
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20231101.hi_185289_8
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गाँजा
दुनिया का सबसे अच्छा चरस मलाना क्रिम के नाम से जाना जाता है। मलाना नाम के गांव मे यह चरस बनती है। यह गांव अपने आप में एक अजूबां है। यहा २०१८ में ५९३ एकर गांजा का उत्पादन हुआ था। यहा कि चरस (Ind. Currency ) ११०० रू. प्रति १० ग्राम के भाव से बिकती है।
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6,952.520512
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
कैनाबिस के जंगली अथवा कृषिजात, नर अथवा नारी, सभी प्रकार के पौधों की पत्तियों से भाँग प्राय: तैयार की जाती है। पुष्पित शाखाएँ भी कभी साथ में मिली पाई जाती हैं, परंतु नीचे की पुरानी और निष्क्रिय पत्तियाँ संग्रह के समय छोड़ दी जाती हैं। तैयार करते समय पत्तियों को बारी-बारी से धूप और ओस में रखते हैं और सूख जाने पर इन्हें दबाकर रखते हैं। उत्तरी भारत के सभी प्रदेशों एवं मद्रास में, जंगली पौधों से, हल्के दर्जे की भाँग तैयार की जाती है। भाँग, सिद्धि, विजया, सब्जी तथा पत्ती आदि नामों से यह प्रसिद्ध है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE
गाँजा
गाँजा और चरस का तंबाकू के साथ धूप्रपान के रूप में और भाँग का शक्कर आदि के साथ पेय अथवा तरह-तरह के माजूमों (मधुर योगों) के रूप में प्राय: एशियावासियों द्वारा उपयोग होता है। उपर्युक्त तीनों मादक द्रव्यों का उपयोग चिकित्सा में भी उनके मनोल्लास-कारक एवं अवसादक गुणों के कारण प्राचीन समय से होता आया है। ये द्रव्य दीपन, पाचन, ग्राही, निद्राकर, कामोत्तेजक, वेदनानाशक और आक्षेपहर होते हैं। अत: पाचनविकृति, अतिसार, प्रवाहिका, काली खाँसी, अनिद्रा और आक्षेप में इनका उपयोग होता है। बाजीकर, शुक्रस्तंभ और मन:प्रसादकर होने के कारण कतिपय माजूमों के रूप में भाँग का उपयोग होता है। अतिशय और निरंतर सेवन से क्षुधानाश, अनिद्रा, दौर्बल्य और कामावसाद भी हो जाता है।
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गाँजा
स्वयंजात पौधों से, फलों का संग्रह, मुर्गी आदि पालतू चिड़ियों को खिलाने के लिए होता है। इसे पेरने पर लगभग ३५ प्रतिशत हरतपीत तैल निकलता है, जिसका उपयोग प्राय: अलसी तैल के स्थान पर होता है।
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6,952.520512
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विकिपीडिया
2008 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि विकिपीडिया के उपयोगकर्ता, गैर-विकिपीडिया उपयोगकर्ताओं की तुलना में कम खुले और सहमत होने के कम योग्य थे हालाँकि वे अधिक ईमानदार थे।
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6,941.662808
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विकिपीडिया
विकिपीडिया सईनपोस्ट अंग्रेजी विकिपीडिया पर समुदाय अखबार है, और इसकी स्थापना विकिमीडिया फाउंडेशन न्यासी मंडल के वर्तमान अध्यक्ष और प्रशासक माइकल स्नो के द्वारा की गयी। यह साइट से ख़बरों और घटनाओं को शामिल करता है और साथ ही सम्बन्धी परियोजनाओं जैसे विकिमीडिया कोमन्स से मुख्य घटनाओं को भी शामिल करता है।
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विकिपीडिया
विकिपीडिया की मेजबानी और वित्तपोषण विकिमीडिया फाउनडेशन के द्वारा किया जाता है, यह एक गैर लाभ संगठन है जो विकिपीडिया से सम्बंधित परियोजनाओं जैसे विकिबुक्स का भी संचालन करता है।
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विकिपीडिया
विकिमीडिया के अध्याय, विकिपीडिया के उपयोगकर्ताओं का स्थानीय सहयोग भी परियोजना की पदोन्नति, विकास और वित्त पोषण में भाग लेता है।
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विकिपीडिया
विकिपीडिया का संचालन मीडियाविकी पर निर्भर है। यह एक कस्टम-निर्मित, मुफ्त और खुला स्रोत विकी सॉफ़्टवेयर प्लेटफोर्म है, जिसे PHP में लिखा गया है और MySQL डेटाबेस पर बनाया गया है। इस सॉफ्टवेयर में प्रोग्रामिंग विशेषताएं शामिल हैं जैसे मेक्रो लेंग्वेज, वेरिएबल्स, अ ट्रांसक्लुजन सिस्टम फॉर टेम्पलेट्स और URL रीडायरेक्शन.
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विकिपीडिया
मीड़याविकी को GNU जनरल पब्लिक लाइसेंस के तहत लाइसेंस प्राप्त है और इसका उपयोग सभी विकिमीडिया परियोजनाओं और कई अन्य विकी परियोजनाओं के द्वारा किया जाता है।
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विकिपीडिया
मूल रूप से, विकिपीडिया क्लिफ्फोर्ड एडम्स (पहला चरण) द्वारा पर्ल में लिखे गए यूजमोडविकी पर चलता था, जिसे प्रारंभ में लेख हाइपरलिंक के लिए केमलकेस की आवश्यकता होती थी; वर्तमान डबल ब्रेकेट प्रणाली का समावेश बाद में किया गया।
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विकिपीडिया
जनवरी 2002 (द्वितीय चरण) में शुरू होकर, विकिपीडिया ने MySQL डेटाबेस के साथ एक PHP विकी इंजन पर चलना शुरू कर दिया; यह सॉफ्टवेयर माग्नस मांसके के द्वारा विकिपीडिया के लिए कस्टम-निर्मित था।
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विकिपीडिया
दूसरे चरण के सॉफ्टवेयर को तीव्र गति से बढ़ती मांग को समायोजित करने के लिए बार बार संशोधित किया गया। जुलाई 2002 (तीसरे चरण) में, विकिपीडिया तीसरी पीढ़ी के सॉफ्टवेयर में स्थानांतरित हो गया, यह मिडिया विकी था जिसे मूल रूप से ली डेनियल क्रोकर के द्वारा लिखा गया था।
0.5
6,941.662808
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती (मोरवी) के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य भाई अंजनपर्व और मेघवर्ण का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है। बर्बरीक को उनकी माता मोरवी ने यही सिखाया था कि सदा ही पराजित पक्ष की तरफ से युद्ध करना और वे इसी सिद्धान्त पर लड़ते भी रहे। बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिनके बल से पलक झपते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकते थे। जब वे युद्ध में सहायता देने आये, तब इनकी शक्ति का परिचय प्राप्त कर श्रीकृष्ण ने इनसे इनके शीश का दान मांग लिया था। महाभारत युद्ध की समाप्ति तक युद्ध देखने की इनकी कामना श्रीकृष्ण के वर से पूर्ण हुई और इनका कटा सिर अन्त तक युद्ध देखता और वीरगर्जन करता रहा।
0.5
6,935.255428
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
कुछ कहानियों के अनुसार बर्बरीक सूर्यवर्चा नामक यक्ष थे, जिनका पुनर्जन्म एक मानव के रूप में हुआ था। बर्बरीक भीमसेन और हिडिम्बा के पोते और घटोत्कच और मौरवी के पुत्र थे। इनके गुरु श्री कृष्ण थे और बर्बरीक भगवान शिव के परम भक्त थे।
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6,935.255428
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बर्बरीक
बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध-कला अपनी माता से सीखी। माॅं आदिशक्ति की तपस्या कर उन्होंने उनसे त्रिलोकों को जीतने में सक्षम धनुष प्राप्त किया साथ ही असीमित शक्तियों को भी अर्जित कर लिया तत्पश्चात् अपने गुरु श्रीकृष्ण की आज्ञा से उन्होंने कई वर्षों तक महादेव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और भगवान शिव शंकर से तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए और 'तीन बाणधारी' का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया।
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बर्बरीक
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने लीले घोड़े, जिसका रङ्ग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
सर्वव्यापी श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी भी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकस में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी कि इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेदकर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया।
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बर्बरीक
तीर ने क्षण भर में पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वरना ये आपके पैर को चोट पहुँचा देगा। श्रीकृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराया कि वह युद्ध में उस ओर से भाग लेगा जिस ओर की सेना निर्बल हो और हार की ओर अग्रसर हो। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
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6,935.255428
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। श्रीकृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिए चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की दृढ़ता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतएव उनका शीश दान में मांगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95
बर्बरीक
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्रीकृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान कार्य किया है। उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था। यह सुनकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वर दिया और कहा कि तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे खाटू नामक ग्राम में प्रकट होने के कारण खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्धि पाओगे और मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में स्थापित होंगी और तुम मेरे ही प्रतिरूप बनकर पूजे जाओगे।
0.5
6,935.255428
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
अश्वगंधा
खेत की तैयारी करते समय सड़ी गोबर की खाद या जैविक खादों का प्रयोग 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अवश्य करनी चाहिये।
0.5
6,928.377876
20231101.hi_54493_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
अश्वगंधा
बुवाई के 25-30 दिन बाद कतार और छिंटकवाँ विधि दोनों में फालतू पौधों को हटा देना चाहिये। 1 वर्ग मीटर में 30-40 पौधे रखने चाहिये। 1 हेक्टेयर में 3 से 4 लाख पौधे पर्याप्त होते हैं।
0.5
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20231101.hi_54493_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE
अश्वगंधा
निराई एंव गुड़ाई: बुवाई के 40-50 दिन बाद एक बार निराई गुड़ाई अवश्य करनी चाहिये पौधों की अच्छी बढ़वार तथा अधिक उपज प्राप्त करने के लिये फालतू पौधों को खेत से बाहर निकाल देना चाहिये।
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अश्वगंधा
अश्वगंधा बर्षा ऋतु की फसल है। इसलिये इसमें बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। मृदा में नमी की कम मात्रा होने पर सिंचाई करना अनिवार्य हो जाता है। जलभराव की समस्या होने पर जड़ों का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इसलिये खेत में जलनिकास की व्यवस्था ठीक प्रकार से कर लेनी चाहिये। जल भराव के अधिक हो जाने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है तथा पौधे मरने लगते हैं।
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अश्वगंधा
अश्वगंधा की खेती सिंचित एंव असिंचित दोनों ही दशाओं में की जाती है। असिंचित अवस्था में जड़ों की बढ़वार अधिक होती है। क्योकि जड़े पानी की तलाश में सीधी बढ़ती हैं और शाखा रहित रहती हैं।
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अश्वगंधा
रोग एंव कीट का प्रभाव पौधे पर होता है परन्तु व्यावसायिक द्रष्टिकोण से अश्वगंधा की फसल में यह नुकसान दायक नहीं हैं।
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अश्वगंधा
फरवरी-मार्च के महीने में पौधों में फूल एंव फल आना प्रारम्भ हो जाते हैं। अश्वगंधा की फसल अप्रैल-मई में 240-250 दिन के पश्चात खुदाई के योग्य हो जाती है। परिपक्व पौधे की खुदाई की सही अवस्था जानने के लिये फलों का लाल होना और पत्तियों का सूखना आदि बातों का अध्ययन करना चाहिये। खेत में कुछ स्थानों से पौधों को उखाड़ कर उनकी जड़ों को तोड़ कर देखना चाहिये यदि जड़ आसानी से टूट जाये और जड़ों में रेशे न हों तो समझ लेना चाहिये कि फसल खुदाई हेतु तैयार है। जड़ों के रेशेदार हो जाने पर जड़ की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। पौधे को जड़ों सहित उखाड़ लेना चाहिये यदि जड़ें ज्यादा लम्बी हैं तो जुताई क्रिया भी की जा सकती है। बाद में पौधों को एकत्र करके जड़ों को काट कर पौधों से अलग करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर धूप में सुखा लेना चाहिये। पके फलों को हाँथ से तोड़ कर सुखा कर बीजों को अलग कर लेना चाहिये।
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अश्वगंधा
सूखी जड़ों को छोटे-छोटे भागों में काट कर साफ कर लेना चाहिये। इन्हें रंग व आकार के आधार पर 4 भागों में बाँटा गया है।
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अश्वगंधा
ग्रेड 1: इस ग्रेड में जड़ों के टुकड़ों की लम्बाई 7 से.मी. एंव चैड़ाई 1-1.5 से.मी. होती है। यह बेलनाकार होती हैं। जड़ की बाहरी सतह कोमल ओर रंग में हल्कापन होता है। जड़ें अन्दर से ठोस एंव सफेद होती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
भाषाविज्ञान
अर्थात् यह सम्पूर्ण भुवन अन्धकारपूर्ण हो जाता, यदि संसार में शब्द-स्वरूप ज्योति अर्थात् भाषा का प्रकाश न होता। स्पष्ट ही है कि यह कथन मानव भाषा को लक्ष्य करके ही कहा गया है। पशु-पक्षी भावों को प्रकट करने के लिए जिन ध्वनियों का आश्रय लेते हैं वे उनके भावों का वहन करने के कारण उनके लिए भाषा हो सकती हैं किन्तु मानव के लिए अस्पष्ट होने के कारण विद्वानों ने उसे ‘अव्यक्त वाक्’ कहा है, जो भाषा-विज्ञान की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखती। क्योंकि ‘अव्यक्त वाक्’ में शब्द और अर्थ दोनों ही अस्पष्ट बने रहते हैं। मनुष्य भी कभी-कभी अपने भावों को प्रकट करने के लिए अंग-भंगिमा, भ्रू-संचालन, हाथ-पाँव-मुखाकृति आदि के संकेतों का प्रयोग करते हैं परन्तु वह भाषा के रूप में होते हुए भी ‘व्यक्त वाक्’ नहीं है। मानव भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वह ‘व्यक्त वाक्’ अर्थात् शब्द और अर्थ की स्पष्टता लिए हुए होती है। महाभाष्य के रचयिता पतंजलि के अनुसार ‘व्यक्त वाक्’ का अर्थ भाषा के वर्णनात्मक होने से ही है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
भाषाविज्ञान
यह सत्य है कि कभी-कभी संकेतों और अंगभंगिमाओं की सहायता से भी हमारे भाव और विचारों का प्रेषण बड़ी सरलता से हो जाता है। इस प्रकार वे चेष्टाएँ भाषा के प्रतीक बन जाती हैं किन्तु मानव भावों को प्रकट करने का सबसे उपयुक्त साधन वह वर्णनात्मक भाषा है जिसे ‘व्यक्त वाक्’ की संज्ञा प्रदान की गई है। इस में विभिन्न अर्थों को प्रकट करने के लिए कुछ निश्चित् उच्चरित या कथित ध्वनियों का आश्रय लिया जाता है। अतः भाषा हम उन शब्दों के समूह को कहते हैं जो विभिन्न अर्थों के संकेतों से सम्पन्न होते हैं। जिनके द्वारा हम अपने मनोभाव सरलता से दूसरों के प्रति प्रकट कर सकते हैं। इस प्रकार भाषा की परिभाषा करते हुए हम उसे मानव-समाज में विचारों और भावों का आदान-प्रदान करने के लिए अपनाया जाने वाला एक माध्यम कह सकते हैं जो मानव के उच्चारण अवयवों से प्रयत्नपूर्वक निःसृत की गई ध्वनियों का सार्थक आधार लिए रहता है। वो ध्वनि-समूह शब्द का रूप तब लेते हैं जब वे किसी अर्थ से जुड़ जाते हैं। सम्पूर्ण ध्वनि-व्यापार अर्थात् शब्द-समूह अपने अर्थ के साथ एक ‘यादृच्छिक’ सम्बंध पर आधारित होता है। ‘यादृच्छिक’ का अर्थ है पूर्णतया कल्पित। संक्षेप में विभिन्न अर्थों में व्यक्त किये गए मुख से उच्चरित उस शब्द समूह को हम भाषा कहते हैं जिसके द्वारा हम अपने भाव और विचार दूसरों तक पहुँचाते हैं।
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भाषाविज्ञान
7. अनुवाद करने वाली तथा स्वयं टाइप करने वाली एवं इसी प्रकार की मशीनों के विकास और निर्माण में सहायता।
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भाषाविज्ञान
इन सभी लाभों की दृष्टि से आज के युग में भाषा-विज्ञान को एक अत्यन्त उपयोगी विषय माना जा रहा है और उसके अध्ययन के क्षेत्र में नित्य नवीन विकास हो रहा है।
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भाषाविज्ञान
भाषा एक प्राकृतिक वस्तु है जो मानव को ईश्वरीय वरदान के रूप में मिली हुई है। भाषा का निर्माण मनुष्य के मुख से स्वाभाविक रूप में निःसृत ध्वनियों (वर्णों) के द्वारा होता है। भाषा का सामान्य ज्ञान इसके बोलने और सुनने वाले सभी को हो जाता है। यही भाषा का सामान्य ज्ञान कहलाता है। इसके आगे, भाषा कब बनी, कैसे बनी ? इसका प्रारम्भिक एवं प्राचीन स्वरूप क्या था ? इसमें कब-कब, क्या-क्या परिवर्तन हुए और उन परिवर्तनों के क्या कारण हैं ? अथवा कुल मिलाकर भाषा कैसे विकसित हुई ? उस विकास के क्या कारण हैं ? कौन सी भाषा किस दूसरी भाषा से कितनी समानता या विषमता रखती है ? यह सब भाषा का विशेष ज्ञान या ‘भाषा-विज्ञान’ कहा जाएगा। इसी भाषा-विज्ञान के विशेष रूप अर्थात् भाषा विज्ञान को आज अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण विषय मान लिया गया है।
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भाषाविज्ञान
भाषा-विज्ञान जब अध्ययन के विषयों में बड़ी-बड़ी कक्षाओं के पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया तो सर्वप्रथम यह एक स्वाभाविक प्रश्न उत्पन्न हुआ कि भाषा-विज्ञान को कला के अन्तर्गत गिना जाए या विज्ञान में। अर्थात् भाषा-विज्ञान कला है अथवा विज्ञान है। अध्ययन की प्रक्रिया एवं निष्कर्षों को लेकर निश्चय किया जाने लगा कि वस्तुतः उसे भौतिक विज्ञान, एवं रसायन विज्ञान आदि की भाँति विशुद्ध विज्ञान माना जाए अथवा चित्र, संगीत, मूर्ति, काव्य आदि कलाओं की भाँति कला के रूप में स्वीकार किया जाए।
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भाषाविज्ञान
कला का सम्बन्ध मानव-जाति वस्तुओं या विषयों से होता है। यही कारण है कि कला व्यक्ति प्रधान या पूर्णतः वैयक्तिक होती है। व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ किसी देश विशेष और काल-विशेष का भी कला पर प्रभाव रहता है। इसका अभिप्राय यह है कि किसी काल में कला के प्रति जो मूल्य रहते हैं उनमें कालान्तर में नये-नये परिवर्तन उपस्थित हो जाते हैं तथा वे किसी दूसरे देश में भी मान लिए जाएँ, यह भी आवश्यक नहीं है। एक व्यक्ति को किसी वस्तु में उच्च कलात्मक अभिव्यक्ति लग रही है। किन्तु दूसरे को वह इस प्रकार की न लग रही हो। अतः कला की धारणा प्रत्येक व्यक्ति की भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
भाषाविज्ञान
कला का सम्बन्ध मानव हृदय की रागात्मिक वृत्ति से होता है। उसमें व्यक्ति की सौन्दर्यानुभूति का पुट मिला रहता है। कला का उद्देश्य भी सौन्दर्यानुभूति कराना, या आनन्द प्रदान करना है, किसी वस्तु का तात्विक विश्लेषण करना नहीं। कला के स्वरूप की इन सभी विशेषताओं की कसौटी पर परखने से ज्ञात होता है कि भाषा-विज्ञान कला नहीं है। क्योंकि उसका सम्बन्ध हृदय की सरसता-वृत्ति से न होकर बुद्धि की तत्त्वग्राही दृष्टि से होता है। भाषा-विज्ञान का उद्देश्य सौन्दर्यानुभूति कराना या मनोरंजन कराना भी नहीं है। वह तो हमारे बौद्धिक चिन्तन को प्रखर बनाता है। भाषा के अस्तित्व का तात्त्विक मूल्यांकन करता है। उसका दृष्टिकोण बुद्धिवादी है। भाषा-विज्ञान के निष्कर्ष किसी व्यक्ति, राष्ट्र या काल के आधार पर परिवर्तित नहीं होते हैं तथा भाषा-विज्ञान के अध्ययन का मूल आधार जो भाषा है वह मानवकृत पदार्थ नहीं है। अतः भाषा-विज्ञान को हम कला के क्षेत्र में नहीं गिन सकते। भाषा-विज्ञान की उपयोगिता इसमें है कि वह भाषा सिखाने की कला का ज्ञान कराता है। इसी कारण स्वीट ने व्याकरण को भाषा को कला तथा विज्ञान दोनों कहा है। भाषा का शुद्ध उच्चारण, प्रभावशाली प्रयोग कला की कोटि में रखे जा सकते हैं।
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भाषाविज्ञान
भाषा-विज्ञान को कला की सीमा में नहीं रखा जा सकता, यह निश्चय हो जाने पर यह प्रश्न उठता है कि क्या भाषा-विज्ञान, भौतिक-शास्त्र, रसायन-विज्ञान आदि विषयों की भाँति पूर्णतः विज्ञान है ?
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
स्वयं पर्यटन की प्रारंभिक शुरुआत से लेकर निर्माणात्मक पर्यटन ने अपना अस्तित्व सांस्कृतिक पर्यटन (cultural tourism) के रूप में बनाये रखा है। यूरोप में लोगों को अपने पिछले समय की बड़ी यात्राओं (Grand Tour) की याद आई, जब कुलीन परिवार के पुत्रों को (ज्यादातर इंटरैक्टिव) शैक्षिक अनुभव के उद्देश्य से यात्रा पर भेजा जाता था। अभी हाल ही में, क्रिस्पिन रेमंड और ग्रेग रिचर्ड्स, के द्वारा निर्माणात्मक पर्यटन को अपना नाम दिया गया है, जो एसोसिएशन फॉर टूरिज़्म एंड लीज़र एजुकेशन के सदस्य हैं, इन्होने यूरोपीय आयोग (European Commission) के लिए कई परियोजनाओं को निर्देशित किया है, जिसमें सांस्कृतिक पर्यटन, या शिल्प पर्यटन स्थायी पर्यटन शामिल है (sustainable tourism).इन्होने "निर्माणात्मक पर्यटन" को मेजबान समुदाय की संस्कृति में यात्रियों की सक्रिय भागीदारी से सम्बंधित पर्यटन के रूप में परिभाषित किया है, जो अनौपचारिक शिक्षा और आपस में बैठकर की गई कार्य शालाओं के माध्यम से कार्यान्वित होती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
साथ ही, "निर्माणात्मक पर्यटन" की अवधारणा को उच्च स्तरीय संगठनों जैसे उनेस्को (UNESCO) के द्वारा अपनाया गया है, जो क्रिएटिव शहर नेटवर्क (Creative Cities Network) के माध्यम से निर्माणात्मक पर्यटन को एक प्रामाणिक (authentic) अनुभव मानते हैं, यह एक स्थान (place) के विशेष सांस्कृतिक लक्षणों को सक्रीय रूप से समझने में मदद करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
मनोरंजन यात्रा यूनाइटेड किंगडम के उद्योगीकरण से सम्बंधित थी;--यह पहला यूरोपीय देश था जिसने बढती हुई औद्योगिक जनसंख्या के मनोरंजन को बढावा दिया.प्रारम्भ में, यह मशीनरी के मालिकों के उत्पादन, कुलीन तंत्र की आर्थिक अवस्था, फैक्टरी के मालिक और व्यापारियों पर लागू हुआ .इसमें नया मध्यम वर्ग (middle class) शामिल है।कॉक्स एंड किंग्स (Cox & Kings) १७५८ में गठित हुई पहली आधिकारिक यात्रा कंपनी थी। बाद में, श्रमिक वर्ग (working class) फुरसत के समय का लाभ उठाने लगा.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
ब्रिटिश मूल का यह नया उद्योग कई जगहों के नामों से परिलक्षित होता है। Nice, France में French Riviera (French Riviera) पर समुद्र के सामने सबसे पहले स्थापित होली डे रिसोर्ट Promenade des Anglais के नाम से जाना जाता है; यूरोप महाद्वीप (continental Europe) में कई अन्य ऐतिहासिक रिसोर्ट जो बहुत पुराने होटल हैं उनके नाम हैं होटल ब्रिस्टल, होटल कार्लटन या होटल मजेस्टिक जो अंग्रेजी ग्राहकों की प्रभाविता को प्रर्दशित करते हैं .
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
कई पर्यटक फुरसत में गर्मी और सर्दियों दोनों में कटिबंधों में जाते हैं। यह प्रायः क्यूबा, इस डोमिनिक गणराज्य, थाईलैंड, उत्तर क्वींसलैंड (North Queensland) ऑस्ट्रेलिया और फ्लोरिडा (Florida) में संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जाता है।.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
शीतकालीन खेलों (Winter sports) की खोज बड़े पैमाने पर ब्रिटिश स्वछंद वर्गों, के द्वारा की गई, प्रारम्भ में १८६४ में स्विस गांव जरमेट (Zermatt) (Valais (Valais)) और सेंट मोरित्ज़ (St Moritz) में इन्हे खोजा गया। पहले पेकेज्ड शीतकालीन अवकाश खेल (packaged winter sports holidays)१९०२ में एडलबोडन (Adelboden), स्विट्जरलैंड में हुए.शीतकालीन खेल इन स्वछंद लोगों के लिए एक प्राकृतिक जवाब था जो ठंडे मौसम के दौरान मनोरंजन की तलाशकर रहे थे।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
मेजर स्की रिसॉर्ट् विभिन्न यूरोपीय देशों, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, कोरिया, चिली और अर्जेंटीना के मुख्य भागों में स्थित हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
जनसंचार यात्रा तकनीक में सुधार के साथ ही विकसित हो सकती थी जिसने बड़ी संख्या में लोगों को कम समय में घूमने के स्थानों पर परिवहन (transport) में मदद की, अब ज्यादा संख्या में लोग खाली समय का आनंद उठाने लगे.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8
पर्यटन
संयुक्त राज्य अमेरिका में यूरोपीय शैली में, प्रथम महान समुद्र तटीय सैरगाह बनाया गया, यह अटलांटिक सिटी, न्यू जर्सी (Atlantic City, New Jersey) और लंबे द्वीप में था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
दस्त का इलाज: नए पत्तों को पानी में भिगोकर आप एक एस्ट्रिंजेंट बना सकते हैं जो जीआई ट्रैक्ट की मरम्मत और सूजन के लिए लाभदायक होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
दांतों से जड़ों को चबाने से मसूढ़ों से खून आना, दांतों की सड़न और मसूढ़ों की बीमारी की रोकथाम में मदद मिलती है। बीज दुर्गंध को दूर करने में मदद करते हैं और प्राकृतिक टूथपेस्ट की तरह काम करते हैं। जड़ के शुद्धिकरण गुण मुंह की अधिकतर स्वास्थ्य परेशानियों की  रोकथाम और उनका इलाज करने में सहायता करते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
पेड़ के रस में सूजन-रोधी प्रभाव होता है और इसका इस्तेमाल गठिया के इलाज के लिए किया जाता है। यह सूजन को कम करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
अवसाद को दूर करता है: ऐसा कहा जाता है कि बरगद के पेड़ के फल से निकला अर्क मस्तिष्क में सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
कोलेस्ट्रॉल कम करता है: हमारे शरीर में ‘अच्छा’ और ‘खराब’ दोनों कोलेस्ट्रॉल होते हैं। बरगद के पेड़ की छाल अच्छे कोलेस्ट्रॉल की उच्च मात्रा को बनाए रखते हुए प्रभावी रूप से खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
आपने आजतक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए इंसान को ही देखा होगा, या तो वो अपनी फिटनेस पर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रहे हैं या फिर अपनी कला की वजह से उन्हें वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए देखा जा रहा है, कुछ ऐसे भी हैं, जिनकी उम्र को लेकर भी वर्ल्ड रिकॉर्ड बने हैं। लेकिन भारत में इंसान नहीं बल्कि एक पेड़ भी अपनी उम्र की वजह से वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। जी हां, कोलकाता द आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डेन में बरगद का पेड़ है, जो 250 साल पुराना है। इस पेड़ को दुनिया का सबसे विशालकाय बरगद के पेड़ के रूप में जाना जाता है। ये विशाल बरगद का पेड़ कोलकाता के आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डेन में स्थित है। 1787 में इस पेड़ को यही स्थापित किया गया था। उस दौरान इसकी उम्र करीबन 20 साल थी। पेड़ की इतनी जड़ें और बड़ी-बड़ी शाखाएं हैं, जिसकी वजह से ये हर किसी को देखने में ऐसा लगता है, जैसे कोई जंगल में आ गया हो। इस देखकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि ये सिर्फ पेड़ है।14,500 वर्ग मीटर में फैला ये पेड़ करीबन 24 मीटर ऊंचा है। इसकी 3 हजार से अधिक जटाएं हैं, जो अब जड़ों में बदल चुकी हैं। इस वजह से भी इसे दुनिया का सबसे चौड़ा पेड़ या 'वॉकिंग ट्री' भी कहते हैं। आपको जानकार शायद हैरानी हो इस पेड़ पर पक्षियों की 80 से अधिक प्रजातियां निवास करती हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
वर्ष 1987 में भारत सरकार ने इस बड़े से बरगद के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। इसे बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया का प्रतीक चिन्ह भी मानते हैं। पेड़ की देखरेख 13 लोगों की एक टीम द्वारा की जाती है, जिसमें आपको बॉटनिस्ट से लेकर माली तक हर कोई मिल जाएगा। समय-समय पर इस पेड़ की जांच भी की जाती है, ये देखने के लिए इसे किसी भी तरह का नुकसान तो नहीं पहुंच रहा।बगीचे को हमेशा आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान के नाम से नहीं जाना जाता था। 2009 में बगीचे का नाम बदल दिया गया था, और फिर इसका नाम प्राकृतिक वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के सम्मान में रखा गया था। 1787 में, ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्नल रॉबर्ट किड ने मसाले, चाय जैसी व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य पौधों की प्रजातियों को विकसित करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ बगीचे की स्थापना की थी। उन्हें क्या पता था कि एक दिन, सदियों बाद, अंजीर की यह प्रजाति दुनिया का सबसे बड़ा पेड़ बन जाएगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
हिंदू धर्म में, बरगद के पेड़ की पत्ती को भगवान कृष्ण के लिए विश्राम स्थल कहा जाता है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार, पूर्वी तरफ एक बरगद का पेड़, पश्चिमी तरफ एक छिलका पेड़ और घर के उत्तरी हिस्से में एक इथथी पेड़ (फिकसविरेन) धन और सामग्री दोनों के रूप में सौभाग्य सुनिश्चित करेगा और एक शाही जीवन में योगदान देगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6
बरगद
बरगद का पेड़ दीर्घायु और अमरता का प्रतीक है क्योंकि यह कुछ भी अपने विकास को विचलित करने की अनुमति नहीं देता है। यह अपने रास्ते में किसी भी चीज के आसपास अपना जीवन जारी रखेगा। इसमें सदियों तक जीवित रहने और बढ़ने की क्षमता है। अपने जीवन में बरगद के बीज जोड़ना निरंतर याद दिलाता है कि क्या महत्वपूर्ण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
भारत की आज़ादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हिन्दू थे और बाकी मुसल्मान। आतंकवाद शुरू होने के बाद आज कश्मीर में सिर्फ़ 4 % हिन्दू बाकी रह गये हैं, यानि कि वादी में 96 % मुस्लिम बहुमत है। ज़्यादातर मुसल्मानों और हिन्दुओं का आपसी बर्ताव भाईचारे वाला ही होता है। कश्मीरी लोग खुद काफ़ी खूबसूरत खूबसूरत होते है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
यहाँ की सूफ़ी-परम्परा बहुत विख्यात है, जो कश्मीरी इस्लाम को परम्परागत शिया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हिन्दुओं के प्रति सहिष्णु बना देती है। कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीरी पण्डित कहा जाता है और वो सभी ब्राह्मण माने जाते हैं। सभी कश्मीरियों को कश्मीर की संस्कृति, यानि कि कश्मीरियत पर बहुत नाज़ है। वादी-ए-कश्मीर अपने चिनार के पेड़ों, कश्मीरी सेब, केसर (ज़ाफ़रान, जिसे संस्कृत में काश्मीरम् भी कहा जाता है), पश्मीना ऊन और शॉलों पर की गयी कढ़ाई, गलीचों और देसी चाय (कहवा) के लिये दुनिया भर में मशहूर है। यहाँ का सन्तूर भी बहुत प्रसिद्ध है। आतंकवाद से बशक इन सभी को और कश्मीरियों की खुशहाली को बहद धक्का लगा है। कश्मीरी व्यंजन भारत भर में बहुत ही लज़ीज़ माने जाते हैं!मुसल्मानों के (मांसाहारी) व्यंजन हैं : कई तरह के कबाब और कोफ़्ते, रिश्ताबा, गोश्ताबा, इत्यादि। परम्परागत कश्मीरी दावत को वाज़वान कहा जाता है। कहते हैं कि हर कश्मीरी की ये ख्वाहिश होती है कि ज़िन्दगी में एक बार, कम से कम, अपने दोस्तों के लिये वो वाज़वान परोसे। कुल मिलाकर कहा जाये तो कश्मीर हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर ग्रेट हिमालयन रेंज और पीर पंजाल पर्वत शृंखला के मध्य स्थित है। यहाँ की नैसर्गिक छटा हर मौसम में एक अलग रूप लिए नजर आती है। गर्मी में यहाँ हरियाली का आँचल फैला दिखता है, तो सेबों का मौसम आते ही लाल सेब बागान में झूलते नजर आने लगते हैं। सर्दियों में हर तरफ बर्फकी चादर फैलने लगती है और पतझड शुरू होते ही जर्द चिनार का सुनहरा सौंदर्य मन मोहने लगता है। पर्यटकों को सम्मोहित करने के लिए यहाँ बहुत कुछ है। शायद इसी कारण देश-विदेश के पर्यटक यहाँ खिंचे चले आते हैं। वैसे प्रसिद्ध लेखक थॉमस मूर की पुस्तक लैला रूख ने कश्मीर की ऐसी ही खूबियों का परिचय पूरे विश्व से कराया था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
भारत की स्वतन्त्रता के समय हिन्दू राजा हरि सिंह यहाँ के शासक थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) उस समय कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे। पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी)। सो 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया। उस समय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु ने मोहम्मद अली जिन्ना से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्यवाही पर पूरा भरोसा था। महाराजा ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। जब भारतीय सेना ने राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया और ये विवाद संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया तो संयुक्तराष्ट्र महासभा ने दो क़रारदाद (संकल्प) पारित किये :
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
शान्ति होने के बाद दोनो देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करेंगे (बाद में कहा गया जनमत संग्रह से)।
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कश्मीर
जम्मू और कश्मीर की लोकतान्त्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से महाराजा के विलय के कागजात को हामी दे दी और राज्य का ऐसा संविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर के भारत में स्थायी विलय को मान्यता दी गयी थी।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
कई चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर भारत का साथ दिया है। भारतीय फौज की नये सिपाहियों के भर्ती अभियान में हजारों कश्मीरी नवयुवक आते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
पाकिस्तान अपनी भूमि पर अतंकवादी शिविर चला रहा है (खास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के खिलाफ़ भड़का रहा है। ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक (या तालिबानी अफ़गान) ही हैं। ये और कुछ कश्मीरी मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ रखे हैं। लगभग सभी कश्मीरी पण्डितों को आतंकवादियों ने वादी के बाहर निकाल दिया है और वो शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0
कश्मीर
राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्ता प्राप्त है। कोई गैर-कश्मीरी यहाँ जमीन नहीं खरीद सकता। उम्मीद है कि बहुत जल्द ये अनुच्छेद जनमत से हटा दिया जाएगा.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
बायोगैस संयंत्र में गोबर की पाचन क्रिया के बाद 25% ठोस पदार्थ का रूपान्तर गैस के रूप में होता है और 75% ठोस पदार्थ का रूपान्तर खाद के रूप में होता है। 2 घन मीटर के गैस संयंत्र में जिसमें करीब 50 किलो गोबर रोज या 18-25 टन गोबर एक वर्ष में डाला जाता है, उस गोबर से 80% नमीयुक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लरी का खाद प्राप्त होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
बायोगैस संयन्त्र से निकली पतली स्लरी में 20% नाइट्रोजन अमो. निकल नाइट्रोजन के रूप में होता है अतः यदि इसका तुरन्त उपयोग खेत में नालियाँ बनाकर अथवा सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में छोड़ दिया जाए तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह से फसल पर तुरन्त होता है और उत्पादन में 10 से 20 परसेंट बेनिफिट मिलता है ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
यह खेती के लिये अति उत्तम खाद होता है इसमें नाइट्रोजन 1.5 से 2% फास्फोरस 1.0% एवं पोटाश 1.0% तक होता है। बायोगैस संयन्त्र से जब स्लरी के रूप में खाद बाहर आता है तब जितना नाइट्रोजन गोबर में होता है उतना ही नाइट्रोजन स्लरी में भी होता है, परन्तु संयन्त्र में पाचन क्रिया के दौरान कार्बन का रूपान्तर गैस में होने से कार्बन का प्रमाण कम होने से कार्बन नाइट्रोजन अनुपात कम हो जाता है व इससे नाइट्रोजन का प्रमाण बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
बायोगैस संयन्त्र से निकली पतली स्लरी में 20% नाइट्रोजन अमो. निकल नाइट्रोजन के रूप में होता है अतः यदि इसका तुरन्त उपयोग खेत में नालियाँ बनाकर अथवा सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में छोड़ दिया जाए तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह से फसल पर तुरन्त होता है और उत्पादन में 10 से 20% तक बढ़त हो सकती है। स्लरी खाद को सुखाने के बाद उसमें नाइट्रोजन का कुछ भाग हवा में उड़ जाता है। यह खाद असिंचित खेती में एक हेक्टर में करीब 5 टन व सिंचाई वाली खेती में 10 टन प्रति हेक्टर के प्रमाण में डाला जाता है। बायोगैस स्लरी के खाद में मुख्य तत्वों के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व एवं ह्यूमस भी होता है जिससे मिट्टी का पोत सुधरता है , जलधारण क्षमता बढ़ती है और सूक्ष्म जीवाणु बढ़ते है। इस खाद के उपयोग से अन्य जैविक खाद की तरह 3 वर्षों तक पोषक तत्व फसलों को धीरे-धीरे उपलब्ध होते रहते है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
यदि गोबर गैस संयंत्र घर के पास व खेत से दूर है तब पतली स्लरी को संग्रहण करने के लिये बहुत जगह लगती है व पतली स्लरी का स्थानान्तरण भी कठिन होता है ऐसी अवस्था में स्लरी को सूखाना आवश्यक है। इसके लिये ग्रामोपयोगी फिल्ट्रेशन टैंक की पद्धति विकसित की गई है। इसमें बायोगैस के निकास कक्ष से जोड़कर 2 घनमीटर के संयन्त्र के लिये 1.65 मीटर × 0.6 मीटर × 0.5 मीटर के दो सीमेन्ट के टैंक बनाये जाते हैं इसकी दूसरी तरफ छना हुआ पानी एकत्र करने हेतु एक पक्का गड्ढ़ा बनाया जाता है। फिल्ट्रेशन टैंक में नीचे 15 से.मी. मोटाई का काड़ी कचरा, सूखा कचरा, हरा कचरा, इत्यादि डाला जाता है। इस पर निकास कक्ष से जब द्रव रूप की स्लरी गिरती है तब स्लरी का पानी कचरे के थर से छन कर नीचे गड्ढ़े में एकत्र हो जाता है। इस तरह जितना पानी बायोगैस संयंत्र में गोबर की भराई के समय डाला जाता है उसका 2/3 हिस्सा गड्ढ़े में पुनः एकत्र हो जाता है इसे गोबर के साथ मिलाकर पुनः संयंत्र में डालने से गैस उत्पादन बढ़ जाता है। इसके अलावा इसमें सभी पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में होते है अतः पौधों पर छिड़काव करने से पौधों का विकास अच्छा होता है, एवं फल में वृद्धि होती है। करीब 15-20 दिनों में पहला टैंक भर जाता है तब इस टैंक को ढक कर स्लरी का निकास दूसरे टैंक में खोल दिया जाता है, इसका भंडारण अलग से गड्ढ़े में किया जा सकता है अथवा इसको बैलगाड़ी में भरकर खेत तक पहुँचाना आसान होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
फिल्ट्रेशन टैंक की मदद से कम जगह में अधिक बायोगैस की स्लरी का संग्रहण किया जा सकता है व फिल्टर्ड पानी के बाहर निकलने व उसका संयन्त्र में पुनः उपयोग करने से पानी की भी बचत होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8
बायोगैस
इस प्रकार बायोगैस संयन्त्र से बायोगैस द्वारा ईंधन की समस्या का समाधान तो होता ही है साथ में स्लरी के रूप में उत्तम खाद भी खेती के लिये प्राप्त होता है। अतः बायोगैस संयन्त्र को बॉयोडंग स्लरी खाद संयंत्र भी कहा जाना उचित होगा।% तक बढ़त हो सकती है। स्लरी खाद को सुखाने के बाद उसमें नाइट्रोजन का कुछ भाग हवा में उड़ जाता है। यह खाद असिंचित खेती में एक हेक्टर में करीब 5 टन व सिंचाई वाली खेती में 10 टन प्रति हेक्टर के प्रमाण में डाला जाता है। बायोगैस स्लरी के खाद में मुख्य तत्वों के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व एवं ह्यूमस भी होता है जिससे मिट्टी का पोत सुधरता है , जलधारण क्षमता बढ़ती है और सूक्ष्म जीवाणु बढ़ते है। इस खाद के उपयोग से अन्य जैविक खाद की तरह 3 वर्षों तक पोषक तत्व फसलों को धीरे-धीरे उपलब्ध होते रहते है।
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बायोगैस
यदि गोबर गैस संयंत्र घर के पास व खेत से दूर है तब पतली स्लरी को संग्रहण करने के लिये बहुत जगह लगती है व पतली स्लरी का स्थानान्तरण भी कठिन होता है ऐसी अवस्था में स्लरी को सूखाना आवश्यक है। इसके लिये ग्रामोपयोगी फिल्ट्रेशन टैंक की पद्धति विकसित की गई है। इसमें बायोगैस के निकास कक्ष से जोड़कर 2 घनमीटर के संयन्त्र के लिये 1.65 मीटर × 0.6 मीटर × 0.5 मीटर के दो सीमेन्ट के टैंक बनाये जाते हैं इसकी दूसरी तरफ छना हुआ पानी एकत्र करने हेतु एक पक्का गड्ढ़ा बनाया जाता है। फिल्ट्रेशन टैंक में नीचे 15 से.मी. मोटाई का काड़ी कचरा, सूखा कचरा, हरा कचरा, इत्यादि डाला जाता है। इस पर निकास कक्ष से जब द्रव रूप की स्लरी गिरती है तब स्लरी का पानी कचरे के थर से छन कर नीचे गड्ढ़े में एकत्र हो जाता है। इस तरह जितना पानी बायोगैस संयंत्र में गोबर की भराई के समय डाला जाता है उसका 2/3 हिस्सा गड्ढ़े में पुनः एकत्र हो जाता है इसे गोबर के साथ मिलाकर पुनः संयंत्र में डालने से गैस उत्पादन बढ़ जाता है। इसके अलावा इसमें सभी पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में होते है अतः पौधों पर छिड़काव करने से पौधों का विकास अच्छा होता है, एवं फल में वृद्धि होती है। करीब 15-20 दिनों में पहला टैंक भर जाता है तब इस टैंक को ढक कर स्लरी का निकास दूसरे टैंक में खोल दिया जाता है, इसका भंडारण अलग से गड्ढ़े में किया जा सकता है अथवा इसको बैलगाड़ी में भरकर खेत तक पहुँचाना आसान होता है।
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बायोगैस
फिल्ट्रेशन टैंक की मदद से कम जगह में अधिक बायोगैस की स्लरी का संग्रहण किया जा सकता है व फिल्टर्ड पानी के बाहर निकलने व उसका संयन्त्र में पुनः उपयोग करने से पानी की भी बचत होती है।
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पुष्प
बाह्यदलपुंज: बाह्यदलों का बाह्य वोर्ल; आदर्श रूप में ये हरे होते हैं, पर कुछ नस्लों में पंखुडी रूपी भी होते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
दलचक्र: दलपुंज का चक्र, जो कि अधिकांशतः पतले, कोमल और रंगीन होते हैं ताकि परागण की प्रक्रिया की मदद के लिए कीटों को आकर्षित कर सकें.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
पुमंग: पुंकेशर के एक या दो चक्र, प्रत्येक एक तन्तु होता है जिसके ऊपर परागकोष होता है जो जिसमें पराग का उत्पादन होता है। पराग में पुरूष युग्मक कोशिका विद्यमान होते हैं
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
जायांग: जो कि एक या उससे अधिक स्त्रीकेशर होते हैं। स्त्रीकेशर मादा प्रजनन अंग हैं, जिसमे अण्डाशय के साथ पूर्वबीज (जिनमें मादा जननकोष होते हैं) भी होते हैं। एक जायांग में कई स्त्रीकेशर एक दुसर में सलग्न हो सकते हैं, ऐसे मामलो में प्रत्येक पुष्प का एक स्त्रीकेशर, या एक युक्ताण्डप होता है (तब फूल को युक्ताण्डपी कहा जाता है) स्त्रीकेशर का लसलसा अग्र भाग- वर्त्तिकाग्र पराग का ग्राही होता है, वर्त्तिका पराग नली के लिए रास्ता बन जाती है ताकि वे पराग के कणों से अण्डकोष के लिए प्रजनन के सामान को ले जाते हुए निर्मित हो सकें।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
यद्यपि ऊपर वर्णित फूलों की संरचना को 'आदर्श' संरचनात्मक योजना माना जा सकता है, परन्तु पौधों की जाति इस योजना से हटकर बदलाव के व्यापक भिन्नता को दिखाते हैं। ये बदलाव फूल-पौधों के विकास में बहुत मायने रखते हैं और वनस्पतिज्ञ इसका गहन प्रयोग पौधों की नस्ल के संबंधों को स्थापित करने के लिए करते हैं। मसलन फूल-पौधों कि दो उपजातियां का भेद उनके प्रत्येक चक्र के पुष्पांगो को लेकर हो सकता है: एक द्विबीजपत्री के चक्र में आदर्श रूप में चार या पाँच अंग होते हैं (या चार या पाँच के गुणांक वाले) और एकबीजपत्री में तीन या तीन के गुणांक वाले अंग होते हैं। एक युक्ताण्डप में केवल दो स्त्रीकेशर हो सकते हैं, या फिर ऊपर दिए गए एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री के सामान्यीकरण से सम्बन्धित न हों।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है कि व्यक्तिक फूलों के ज्यादातर नस्लों में जायांग (pistil) और पुंकेसर दोना होते हैं। वनस्पतिज्ञ इन फूलों का वर्णन पूर्ण, उभयलैंगीय, हरमाफ्रोडाइट (hermaphrodite) के रूप में करते हैं। फिर भी कुछ पौधों कि नस्लों में फूल अपूर्ण या एक लिंगीय होते हैं: या तो केवल पुंकेसर या स्त्रीकेसर अंगों को धारण किया हुए.पहले मामले में अगर एक विशेष पौधा जो कि या तो मादा या पुरूष है तो ऐसी नस्ल को डायोइसिअस (dioecious) माना जाता है। लेकिन अगर एक लिंगीय पुरूष या मादा फूल एक ही पौधे पर दीखते हैं तो ऐसे नस्ल को मोनोइसिअस (monoecious) कहा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
मूल योजना से फूलों के बदलाव पर अतिरिक्त विचार-विमर्श का उल्लेख फूलों के मूल भागों वाले लेखों में किया गया है। उन प्रजातियों में जहाँ एक ही शिखर पर एक से ज्यादा फूल होते हैं जिसे तथाकथित रूप से सयुंक्त फुल भी कहा जाता हैं-ऐसे फूलों के संग्रह को इनफ्लोरोसेंस (inflorescence) भी कहा जाता है, इस शब्द को फूलों की तने पर एक विशिष्ट व्यवस्था को लेकर भी किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में ध्यान देने का अभ्यास किया जाना चाहिए कि "फूल" क्या है। उदहारण के लिए वनस्पतिशास्त्र की शब्दावली में एक डेजी (daisy) या सूर्यमुखी (sunflower) एक फूल नहीं है पर एक फूल शीर्ष (head) है-एक पुष्पण जो कि कई छोटे फूलों को धारण किए हुए रहते हैं (कभी कभी इन्हें फ्लोरेट्स भी कहा जाता है) इनमे से प्रत्येक फूल का वर्णन शारीरिक रूप में वैसे ही होंगे जैसा कि इनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। बहुत से फूलों में अवयव संयोग होता है, अगर बाह्य भाग केंद्रीय शिखर से किसी भी बिन्दु पर विभाजीत होता है, तो दो सुमेल आधे हिस्से सृजित होते हैं- तो उन्हें नियत या समानधर्मी कहा जाता है। उदा गुलाब या ट्रीलियम. जब फूल विभाजित होते हैं और केवल एक रेखा का निर्माण करते हैं जो कि अवयव संयोंग का निर्माण करते हैं ऐसे फूलों को अनियमित या जाइगोमोर्फिक उदा स्नैपड्रैगन/माजुस या ज्यादातर ओर्किड्स.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
एक फूल का फार्मूला, एक तरीका है जिससे एक फूल की संरचना का प्रतिनिधित्व एक विशेष अक्षर, अंक या प्रतीक के द्वारा किया जाता है। बजाय एक विशेष प्रजाति के, एक सामान्य फार्मूले का इस्तेमाल एक पौधे के परिवार (family) के फुलीय संरचना को इंगित करने के लिए किया जाता है। निम्नलिखित प्रतिनिधियों का इस्तेमाल किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA
पुष्प
और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; Z यदि जोड़े जाईगोमोर्फिक (उदाहरण, CoZ ६ = जाईगोमोर्फिक ६ पंखुडियों के साथ)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8
हाइड्रोजन
असंयुक्त हाइड्रोजन बड़ी अल्प मात्रा में वायु में पाया जाता है। ऊपरी वायु में इसकी मात्रा अपेक्षाकृत अधिक रहती है। सूर्य के परिमंडल में इसकी प्रचुरता है। पृथ्वी पर संयुक्त दशा में यह जल, पेड़ पौधे, जांतव ऊतक, काष्ठ, अनाज, तेल, वसा, पेट्रालियम, प्रत्येक जैविक पदार्थ में पाया जाता है। अम्लों का यह आवश्यक घटक है। क्षारों और कार्बनिक यौगिकों में भी यह पाया जाता है।
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हाइड्रोजन
प्रयोगशाला में जस्ते पर तनु गंधक अम्ल की क्रिया से यह प्राप्त होता है। युद्ध के कामों के लिए कई सरल विधियों से यह प्राप्त हो सकता है। 'सिलिकोल' विधि में सिलिकन या फेरो सिलिकन पर सोडियम हाइड्राक्साइड की क्रिया से ; 'हाइड्रोलिथ' (जलीय अश्म) विधि में कैलसियम हाइड्राइड पर जल की क्रिया से ; 'हाइड्रिक' विधि में एलुमिनियम पर सोडियम हाइड्राक्साइड की क्रिया से प्राप्त होता है। गर्म स्पंजी लोहे पर भाप की क्रिया से एक समय बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन तैयार होता था
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हाइड्रोजन
आज हाइड्रोजन प्राप्त करने की सबसे सस्ती विधि 'जल गैस' है। जल गैस में हाइड्रोजन और कार्बन मोनोक्साइड विशेष रूप से रहते हैं। जल गैस को ठंडाकर द्रव में परिणत करते हैं। द्रव का फिर प्रभाजक आसवन करते हैं। इससे कार्बन मोनोऑक्साइड (क्वथनांक 191° सें.) और नाइट्रोजन (क्वथनांक 195 सें.) पहले निकल जाते हैं और हाइड्रोजन (क्वथनांक 250° से.) शेष रह जाता है।
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हाइड्रोजन
जल के वैद्युत अघटन से भी पर्याप्त शुद्ध हाइड्रोजन प्राप्त हो सकता है। एक किलोवाट घंटासे लगभग 7 घन फुट हाइड्रोजन प्राप्त हो सकता है। कुछ विद्युत्‌ अपघटनी निर्माण में जैसे नमक से दाहक सोडा के निर्माण में, उपोत्पाद के रूप में बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन प्राप्त होता है।
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हाइड्रोजन
हाइड्रोजन वायु या ऑक्सीजन में जलता है। जलने का ताप ऊँचा होता है। ज्वाला रंगहीन होती है। जलकर यह जल (H2O) और अत्यल्प मात्रा में हाइड्रोजन पेरॉक्साइड (H2O2) बनाता है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण में आग लगाने या विद्युत्‌ स्फुलिंग से बड़े कड़ाके के साथ विस्फोट होता है और जल की बूँदें बनती हैं।
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हाइड्रोजन
हाइड्रोजन अच्छा अपचायक है। लोहे के मोर्चों को लोहे में और ताँबे के आक्साइड को ताँबे में परिणत कर देता है। यह अन्य तत्वों के साथ संयुक्त हो यौगिक बनाता है। क्लोरीन के साथ क्लोराइड, (HCl), नाइट्रोजन के साथ अमोनिया (NH3) गंधक के साथ हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), फास्फोरस के साथ फास्फोन (PH3) ये सभी द्विअंगी यौगिक हैं। इन्हें हाइड्राइड या उदजारेय कहते है।
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हाइड्रोजन
हाइड्रोजन एक विचित्र गुणवाला तत्व है। यह है तो अधातु पर अनेक यौगिकों से धातुओं सा व्यवहार करता है। इसके परमाणु में केवल एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन होते हैं। सामान्य हाइड्रोजन में 0.002 प्रतिशत एक दूसरा हाइड्रोजन होता है जिसको भारी हाइड्रोजन की संज्ञा दी गई है। यह सामान्य परमाणु हाइड्रोजन से दुगुना भारी होता है। इसे 'ड्यूटीरियम' (D) कहते हैं और इसका उत्पत्ति होता है जब हाइड्रोजन (उदजन) को एक अधिक न्यूट्रॉन मिलते है और ऐसे ड्यूटेरियम को हाइड्रोजन का एक समस्थानिक कहते है। ऑक्सीजन के साथ मिलकर यह भारी जल (D2O) बनाता है। हाइड्रोजन के एक अन्य समस्थानिक का भी पत लगा है। इसे ट्रिशियम (Tritium) कहते हैं और इसका उत्पत्ति होता है जब ड्यूटीरियम को एक अधिक न्यूट्रॉन मिलते है। सामान्य हाइड्रोजन से यह तिगुना भारी होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8
हाइड्रोजन
हाइड्रोजन के अणु को जब अत्यधिक ऊष्मा में रखते हैं तब वे परमाणुवीय हाइड्रोजन में वियोजित हो जाते हैं। ऐसे हाइड्रोजन का जीवनकाल दबाव पर निर्भर करता और बड़ा अल्प होता है। ऐसा पारमाण्वीय हाइड्रोजनरसायनत: बड़ा सक्रिय होता है और सामान्य ताप पर भी अनेक तत्वों के साथ संयुक्त हो यौगिक बनाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8
हाइड्रोजन
हाइड्रोजन के अनेक उपयोग हैं। हेबर विधि में नाइट्रोजन के साथ संयुक्त हो यह अमोनिया बनता है जो उर्वरक के रूप में व्यवहार में आता है। तेल के साथ संयुक्त होकर हाइड्रोजन वनस्पति तेल (ठोस या अर्धठोस वसा) बनाता है। खाद्य के रूप में प्रयुक्त होने के लिए वनस्पति तेल बहुत बड़ी मात्रा (mass scale) में बनती है। अपचायक के रूप में यह अनेक धातुओं के निर्माण में काम आता है। इसकी सहायता से कोयले से संश्लिष्ट पेट्रोलियम भी बनाया जाता है। अनेक ईधंनों में हाइड्रोजन जलकर ऊष्मा उत्पन्न करता है। ऑक्सीहाइड्रोजन ज्वाला का ताप बहुत ऊँचा होता है। वह ज्वाला धातुओं के काटने, जोड़ने और पिघलाने में काम आती है। विद्युत्‌ चाप (electric arc) में हाइड्रोजन के अणु के तोड़ने से परमाण्वीय हाइड्रोजन ज्वाला प्राप्त होती है जिसका ताप 3370° सें. तक हो सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3
पोषण
पोषण के लिये ऊष्मा को जहाँ तक प्राप्त होना चाहिए वह इन तीनों खाद्य तत्वों से रोज के भोजन से मिलता है और पोषण ठीक स्तर पर रहता है। उपवास काल में एक के बाद दूसरा खाद्य तत्व पोषण को कायम रखने में भाग लेता है और संचित तत्व जैसे जैसे समाप्त होते जाते हें, पोषण का स्तर गिरता जाता है। लंबे उपवास के बाद दुर्बलता, कायाहीनता और वजन की कमी इन्हीं कारणों से होती है।
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