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Discourse Mode
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6 classes
51
अच्‍छा, अभी चलिए: देख तो लीजिए, विवाह की बातचीत न कीजिएगा, नहीं तो निकाल ही देंगे।
2Dialogue
51
समझिए- पत्‍नी मरी हैं।' रामखेलावन दबे। धीरे-धीरे चलते गए।
2Dialogue
51
लड़की कुछ पढ़ी भी है?
2Dialogue
51
पढ़ती थी- तीन साल हुए, जब मैं गया था, गवाही थी- मौका देखने के लिए?' मित्र ने पूछा।
2Dialogue
51
लड़की तो सरस्‍वती है। आपने देखा ही है।
2Dialogue
51
संस्‍कृत पढ़ी है।'' ठीक है। देखिए, बाबा विश्‍वनाथ हैं।' मित्र की तरह पर उतरे गले से कहा।
2Dialogue
51
रामखेलावन जी डरे कि बिगाड़ न दे। दिल से जानते थे, बदमाश है, उनकी तरफ से झूठ गवाही दे चुका है रुपए लेकर; लेकिन लाचार थे;
1Descriptive
51
कहा,' हम तो आपमें बाबा विश्‍वनाथ को ही देखते हैं।
2Dialogue
51
यह काम आपका बनाया बनेगा।' मित्र हंसा।
2Dialogue
51
बोला,' कह तो चुके।
2Dialogue
51
गाढ़े में काम न दे, वह मित्र नहीं, दुश्‍मन है।' सामने देखकर,' वह शास्‍त्री जी का ही मकान है, सामने।' था वह किराये का मकान।
2Dialogue
51
अच्‍छी तरह देखकर कहा,' हैं नहीं बैठक में; शायद पूजा में हैं।' दोनों बैठक में गए।
2Dialogue
51
मित्र ने पं. रामखेलावन जी को आश्‍वासन देकर कहा,' आप बैठिए। मैं बुलाए लाता हूं।' पं. रामखेलावन जी एक कुर्सी पर बैठे।
4Narrative
51
मित्रवर आवाज देते हुए जीने पर चढ़े।
4Narrative
51
जिस तरह मित्र ने यहां रोब गांठा था, उसी तरह शास्‍त्री जी पर गांठना चाहा।
1Descriptive
51
वह देख चुका था, शास्‍त्री खिजाब लगाते हैं, अर्थ- विवाह के सिवा दूसरा नहीं।
1Descriptive
51
शास्‍त्री जी बढ़-चढ़कर बातें करते हैं, यह मौका बढ़कर बातें करने का है।
1Descriptive
51
उसका मंत्र है, काम निकल जाने पर बेटा बाप का नहीं होता।
1Descriptive
51
उसे काम निकालना है।
1Descriptive
51
शास्‍त्री जी ऊपर एकांत में दवा कूट रहे थे।
1Descriptive
51
आवाज पहचानकर बुलाया। मित्र ने पहुंचने के साथ देखा- खिजाब ताजा है।
1Descriptive
51
प्रसन्‍न होकर बोला,' मेरी मानिए, तो वह ब्‍याह कराऊं, जैसा कभी किया न हो, और बहू अप्‍सरा, संस्‍कृत पढ़ी, रुपया भी दिलाऊं।' शास्‍त्री जी पुलकित हो उठे।
2Dialogue
51
कहा,' आप हमें दूसरा समझते हैं?
2Dialogue
51
- इतनी मित्रता रोज की उठक-बैठक, आप मित्र ही नहीं- हमारे सर्वस्‍व हैं।
2Dialogue
51
आपकी बात न मानेंगे तो क्‍या रास्‍ता-चलते की मानेंगे?
2Dialogue
51
- आप भी!'' आपने अभी स्‍नान नहीं किया शायद?
2Dialogue
51
नहाकर चंदन लगाकर अच्‍छे कपड़े पहनकर नीचे आइए।
2Dialogue
51
विवाह करने वाले जमींदार साहब हैं।
2Dialogue
51
वहीं परिचय कराऊंगा।
2Dialogue
51
लेकिन अपनी तरफ से कुछ कहिएगा मत। नहीं तो, बड़ा आदमी है, भड़क जाएगा।
2Dialogue
51
घर की शेखी में मत भूलिएगा।
2Dialogue
51
आप जैसे उसके नौकर हैं।
2Dialogue
51
हां, जन्‍म-पत्र अपना हरगिज न दीजिएगा।
2Dialogue
51
उम्र का पता चला तो न करेगा।
2Dialogue
51
मैं सब ठीक कर दूंगा।
2Dialogue
51
चुपचाप बैठे रहिएगा।
2Dialogue
51
नौकर कहां है?'' बाजार गया है।'' आने पर मिठाई मंगवाइएगा।
2Dialogue
51
हालांकि खाएगा नहीं।
2Dialogue
51
मिठाई से इंकार करने पर नमस्‍कार करके सीधे ऊपर का रास्‍ता नापिएगा।
2Dialogue
51
मैं भी यह कह दूंगा, शास्‍ती तजी ने आधे घंटे का समय दिया है।' शास्‍त्री गजानन्‍द जी गदगद हो गए।
2Dialogue
51
ऐसा सच्‍चा आदमी यह पहला मिला है, उनका दिल कहने लगा।
4Narrative
51
मित्र नीचे उतरा और मित्र से गंभीर होकर बोला,' पूजा में हैं, मैं तो पहले ही समझ गया था।
4Narrative
51
दस मिनट के बाद आंख खोली, जब मैंने घंटी टिनटिनाई।
2Dialogue
51
जब से स्‍त्री का देहांत हुआ है, पूजा में ही तो रहते हैं।
2Dialogue
51
सिर हिलाकर कहा- चलो। देखिए, बाबा विश्‍वनाथ ही हैं।
2Dialogue
51
हे प्रभो! शरणागत-शरण! तुम्‍हीं हो- बाबा विश्‍वनाथ!' कहते हुए मित्र ने पलकें मूंद लीं।
2Dialogue
51
इसी समय पैरों की आहट मालूम थी।
2Dialogue
51
देखा, नौकर आ रहा था।
2Dialogue
51
डांटकर कहा,' पंखा झल। शास्‍त्री जी अभी आते हैं।' नौकर पंखा झलने लगा।
2Dialogue
51
वैद्य का बैठका था ही।
1Descriptive
51
पं. रामखेलावन जी प्रभाव में आ गए।
4Narrative
51
आधे घंटे बाद जीने में खड़ाऊं की खटक सुन पड़ी।
4Narrative
51
मित्र उठकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, उंगली के इशारे पं. रामखेलावन जी को खड़े हो जाने के लिए कहकर।
4Narrative
51
मित्र की देखा-देखी पंडित जी ने भी भक्तिपूर्वक हाथ जोड़ लिए।
4Narrative
51
नौकर अचंभे से देख रहा था।
1Descriptive
51
ऐसा पहले नहीं देखा था।
1Descriptive
51
शास्‍त्री जी के आने पर मित्र ने घुटने तक झुककर प्रणाम किया।
4Narrative
51
पं. रामखेलावन जी ने भी मित्र का अनुसरण किया।
4Narrative
51
बैठिए, गदाधर जी' कोमल सभ्‍य कंठ से कहकर गजानंद जी अपनी कुर्सी पर बैठ गए।
4Narrative
51
वैद्यजी की बढिया गद्दीदार कुर्सी बीच में थी।
1Descriptive
51
पं. रामखेलावन जी आश्‍चर्य और हर्ष से देख रहे थे।
1Descriptive
51
आश्‍चर्य इसलिए कि शास्‍त्री जी बड़े आदती तो हैं ही, उम्र भी अधिक नहीं, 25 से 30 कहने की हिम्‍मत नहीं पड़ती।
1Descriptive
51
शास्‍त्री जी ने नौकर को पान और मिठाई ले आने के लिए भेजा और स्‍वाभाविक बनावटी विनम्रता के साथ मित्रवर गदाधर ने आगंतुक अपरिचित महाशय का परिचय पूछने लगे। पं. गदाधर जी बड़े दात्त कंठ से पं. रामखेलावन जी की प्रशंसा कर चले, पर किस अभिप्राय से वे गए थे, यह न कहा। कहा,' महाराज! आप एक अत्‍यंत आवश्‍यक गृहधर्म से मुक्‍त होना चाहते हैं।
4Narrative
51
पलकें मूंदते हुए, भावावेश मे, शास्‍त्री जी ने कहा,' काशी तो मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है।'' हां, महाराज!' मित्र ने और आविष्‍ट होते हुए कहा,' वह छूट तो सबसे बड़ी मुक्ति है, पर यह साधारण मुक्ति ही है, जैसे बाबा विश्‍वनाथ के परमसिद्ध भक्‍त स्‍वीकारमात्र से इस भव-बंधन से मुक्ति दे सकते हैं।' कहकर हाथ जोड़ दिए। पं. रामखेलावन जी ने भी साथ दिया।
2Dialogue
51
हां, नहीं, कुछ न कहकर एकांत धार्मिक दृष्टि को परम सिद्ध पं. गजानन्‍द जी शास्‍त्री पलकों के अंदर करके बैठ रहे।
4Narrative
51
इसी समय नौकर पान और मिठाई ले आया।
4Narrative
51
शास्‍त्री जी ने खटक से आंखें खोलकर देखा, नौकर को शुद्ध जल ले आने के लिए कहकर बड़ी नम्रता से पं. रामखेलावन जी को जलपान करने के लिए पूछा।
4Narrative
51
पं. रामखेलावन जी दोनों हाथ उठाकर जीभ काटकर सिर हिलाते हुए बोले,' नहीं महराज, नहीं, यह तो अधर्म है। चाहिए तो हमें कि हम आपकी सेवा करें, बल्कि आपके सेवा संबंध में सदा के लिए-'' अहाहा! क्‍या कही!- क्‍या कही!' कहकर, पूरा दोना उठाकर एक रसगुल्‍ला मुंह में छोड़ते हुए मित्र ने कहा,' बाबा विश्‍वनाथ जी के वर से काशी का एक-एक बालक अंतर्यामी होता है, फिर उनकी सभा के परिषद शास्‍त्री जी तो-'' शास्‍त्री जी अभिन्‍न स्‍नेह की दृष्टि से प्रिय मित्र को देखते र‍हे।
2Dialogue
51
मित्र ने, स्‍वल्‍पकाल मे रामभवन का प्रसिद्ध मिष्‍ठान्‍न उदरस्‍थ कर जलपान के पश्‍चात मगही बीड़ों की एक नत्‍थी मुखव्‍यादान कर यथा स्‍थान रखी।
4Narrative
51
शास्‍त्री जी विनयपूर्वक नमस्‍कार कर जीना तै करने को चले।
4Narrative
51
उनके पीठ फेरने पर मित्र ने रामखेलावन जी को पंजा दिखाकर हिलाते हुए आश्‍वासन दिया।
4Narrative
51
शास्‍त्री जी के अदृश्‍य होने पर इशारे से पं. रामखेलावन जी को साथ लेकर वासस्‍थल की ओर प्रस्‍थान किया।
4Narrative
51
रामखेलावन जी के मौन पर शास्‍त्री जी का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ चुका था।
1Descriptive
51
कहा,' अब हमें इधर से जाने दीजिए; कल रुपए लेकर आएंगे।
2Dialogue
51
लेकिन इसी महीने विवाह हो जाएगा?
2Dialogue
51
' इसी महीने- इसी महीने', गंभीर भाव से मित्र ने कहा,' जन्‍मपत्र लड़की का लेते आइएगा।
2Dialogue
51
हां, एक बात और है। बाकी डेढ़ हजार में बाहर सौ का जेवर होना चाहिए, नया; आइएगा हम खरीदवा देंगे', दलाली की सोचते हुए- कहा,' आपको ठग लेगा।
2Dialogue
51
आप इतना तो समझ गए होंगे कि इतने के बिना बनता नहीं, तीन सौ रुपए रह जाएंगे।
2Dialogue
51
खिलाने-पिलाने और परजों को देने की बहुत है। बल्कि कुछ बच जाएगा आपके पास।
2Dialogue
51
फिजूल खर्च हो यह मैं नहीं चाहता।
2Dialogue
51
इसीलिए, ठोस-ठोस काम वाला खर्च कहा।
2Dialogue
51
अच्‍छा, नमस्‍कार!' शास्‍त्री जी का ब्‍याह हो गया।
4Narrative
51
सुपर्णा पति के साथ है। शास्‍त्री जी ब्‍याह करते-करते कोमल हो गए थे।
1Descriptive
51
नवीना सुपर्णा को यथाभ्‍यास सब प्रकार प्रीत रखने लगे।
4Narrative
51
बाग से लौटने पर सुपर्णा के हृदय में मोहन के लिए क्रोध पैदा हुआ।
4Narrative
51
घरवालों ने सख्‍त निगरानी रखने के अलावा, डर के मारे उससे कुछ नहीं कहा।
4Narrative
51
उसने भी विरोध किए बिना विवाह के बहाव में अपने को बहा दिया।
4Narrative
51
मन में यह प्रतिहिंसा लिए हुए, कि मोहन इस बहते में मिलेगा। और उसे हो सकेगा तो उचित शिक्षा देगी।
4Narrative
51
शास्‍त्री जी को एकांत भक्‍त देखकर मन में मुस्‍कराई।
4Narrative
51
सुपर्णा का जीवन शास्‍त्री जी के लिए भी जीवन सिद्ध हुआ।
4Narrative
51
शास्‍त्री जी अपना कारोबार बढ़ाने लगे।
4Narrative
51
सुपर्णा को वैदक की अनुवादित हिंदी पुस्‍तकें देने लगे, नाड़ी-विचार चर्चा आदि करने लगे।
4Narrative
51
उस आग में तृण की तरह जल-जलकर जो प्रकाश देखने लगे, वह मर्त्‍य में उन्‍हें दुर्लभ मालूम दिया।
4Narrative
51
एक दिन श्रीमती गजानन्‍द शास्त्रिणी के नाम से स्त्रियों के लिए बिना फीस वाला रोग परीक्षणालय खोल दिया- इस विचार से कि दवा के दाम मिलेंगे, फिर प्रसिद्धि होने पर फीस भी मिलेगी।
4Narrative
51
लेकिन ध्‍यान से सुपर्णा के पढ़ने का कारण कुछ और है।
1Descriptive
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शास्‍त्री जी अपनी मेज की सजावट तथा प्रतीक्षा करते रोगियों के समय काटने के विचार से' तारा' के ग्राहक थे।
1Descriptive
51
एक दिन सुपर्णा' तारा' के पन्‍ने उलटने लगी।
4Narrative
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मोहन की एक रचना छिपी थी।
1Descriptive
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यह उसकी पहली प्रकाशित कविता थी।
1Descriptive
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विषय था' व्‍यर्थ प्रणय'। बात बहुत कुछ मिलती थी।
1Descriptive