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---|---|---|
1 | चार से आठ बजे तक हाथ रोके बग़ैर, आराम का सांस लिए बग़ैर, वो जल्दी जल्दी काम करता। | 1Descriptive
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1 | आठ बजे उसका ठेला ख़ाली हो जाता और वह उसे लेकर अपने मालिक के घर वापस आजाता। | 1Descriptive
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1 | बारह बजे रात को सिनेमा से लौट कर अपनी चटाई बिछा कर सीढ़ीयों के पीछे सो जाता और सुबह फिर अपने काम पर। ये उसकी ज़िंदगी थी। | 1Descriptive
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1 | ये उसकी दुनिया थी। | 1Descriptive
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1 | वो बेफ़िकर और ज़िंदा-दिल था। | 1Descriptive
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1 | न माँ न बाप न भाई न बहन। न बच्चे न बीवी। | 1Descriptive
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1 | दूसरे लोगों के बहुत से ख़ाने होते हैं। | 1Descriptive
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1 | उसका सिर्फ़ एक ही ख़ाना था। | 1Descriptive
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1 | दूसरे लोग बहुत से टुकड़ों में बटे होते हैं और उन टुकड़ों को जोड़ कर ही उनकी शख़्सियत देखी जा सकती है | 1Descriptive
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1 | मगर चन्द्रु एक ही लकड़ी का था और लकड़ी के एक ही टुकड़े से बना था। | 1Descriptive
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1 | जैसा वो अंदर से था वैसा ही वो बाहर से भी नज़र आता था। | 1Descriptive
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1 | वो अपनी ज़ात में बेजोड़ और मुकम्मल था। | 1Descriptive
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1 | साँवली पारो को उसे परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था। | 1Descriptive
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1 | कानों में चांदी के बाले झुलाती, पांव में छोटी सी पाज़ेब खनकाती जब वो अपनी सहेलियों के साथ उसके ठेले के गिर्द खड़ी हो जाती तो चन्द्रु समझ जाता कि अब उसकी शामत आई है। | 1Descriptive
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1 | दही बड़े की पत्तल तक़रीबन चाट कर वो ज़रा सा दही बड़ा उस पर लगा रहने देती और फिर उसे दिखा कर कहती," अबे गूँगे, तू बहरा भी है क्या? | 2Dialogue
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1 | मैंने दही बड़े नहीं मांगे थे दही पिटा करी मांगी थी। | 2Dialogue
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1 | अब इसके पैसे कौन देगा। | 1Descriptive
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1 | तेरा बाप?" इतना कह कर वो इस बड़े की तक़रीबन ख़ाली पत्तल को उसे दिखा कर बड़ी हक़ारत से ज़मीन पर फेंक देती। | 1Descriptive
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1 | वो जल्दी जल्दी उसके लिए दही पटा करी बनाने लगता। | 1Descriptive
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1 | पारो उस पटाकरी की पत्तल साफ़ करके उसमें आधी पटाकरी छोड़ देती और ग़ुस्से से कहती," इतनी मिर्च डाल दी? | 1Descriptive
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1 | इतनी मिर्ची? | 2Dialogue
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1 | चाट बनाना नहीं आता है तो ठेला लेकर इधर क्यों आता है? | 2Dialogue
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1 | ले अपनी पटाकरी वापस ले-ले।" इतना कह कर वो दही और चटनी की पटाकरी अपने नाख़ुन की कोर में फंसा कर उसके ठेले पर घुमाती। | 2Dialogue
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1 | कभी उसे झूटी पटा करियों के थाल में वापस डाल देने की धमकी देती। | 1Descriptive
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1 | उसकी सहेलियाँ हँसतीं, तालियाँ बजातीं। | 1Descriptive
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1 | चन्द्रु दोनों हाथों से नाँ-नाँ के इशारे करता हुआ पारो से अपनी झूटी पटाकरी ज़मीन पर फेंक देने का इशारा करता। | 1Descriptive
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1 | अच्छा समझ गई, तेरे चनों के थाल में डाल दूं वो जान-बूझ कर उसका इशारा ग़लत समझती। | 2Dialogue
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1 | जल्दी-जल्दी घबराए हुए अंदाज़ में चन्द्रु ज़ोर ज़ोर से सर हिलाता फिर ज़मीन की तरफ़ इशारा करता। | 1Descriptive
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1 | पारो खिलखिलाकर कहती," अच्छा ज़मीन से मिट्टी उठा कर तेरे दही के बर्तन में डाल दूं? | 2Dialogue
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1 | " | 5Other
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1 | पारो नीचे ज़मीन से थोड़ी से मिट्टी उठा लेती। | 1Descriptive
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1 | इस पर चन्द्रु और भी घबरा जाता। | 1Descriptive
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1 | दोनों हाथ ज़ोर से हिला कर मना करता। | 1Descriptive
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1 | बिलआख़िर पारो उसे धमकाती," तो चल जल्दी से आलू की छः टिकियां तल दे और ख़ूब गर्म-गर्म मसालहे वाले चने देना और अद्रक भी, नहीं तो ये पटा करी अभी जाएगी | 2Dialogue
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1 | तेरे काले गुलाब जामुनों के बर्तन में ... | 2Dialogue
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1 | " चन्द्रु ख़ुश हो कर पूरी बत्तीसी निकाल देता। | 2Dialogue
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1 | माथे पर आई हुई एक घुंगरियाले लट पीछे को हटाके तौलिये से हाथ पोंछ कर जल्दी से पारो और उसकी सहेलियों के लिए आलू की टिकियां तलने में मसरूफ़ हो जाता। | 1Descriptive
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1 | फिर कभी कभी पारो हिसाब में भी घपला किया करती। | 1Descriptive
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1 | " साठ पैसे की टिकियां, तीस पैसे की पटा करी। | 2Dialogue
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1 | दही बड़े तो मैंने मांगे ही नहीं थे। | 2Dialogue
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1 | उसके पैसे क्यों मिलेंगे तुझे? | 2Dialogue
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1 | हो गए नव्वे पैसे दस पैसे कल के बाक़ी हैं ...ले एक रुपया।" गूँगा चन्द्रु पैसे लेने से इनकार करता। | 2Dialogue
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1 | वो कभी पारो की शोख़ चमकती हुई शरीर आँखों को देखता। | 1Descriptive
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1 | कभी उसकी लंबी लंबी उंगलियों में कपकपाते एक रुपये के नोट को देखता और सर हिला कर इनकार कर देता और हिसाब समझाने बैठता। | 1Descriptive
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1 | वो वक़्त क़ियामत का होता था जब वो पारो को हिसाब समझाता था। | 1Descriptive
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1 | दही बड़े के थाल की तरफ़ इशारा करके अपनी उंगली को अपने मुँह पर रखकर चुप-चुप की आवाज़ पैदा करते हुए गोया उससे कहता," दही बड़े खा तो गई हो। | 1Descriptive
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1 | उस के पैसे क्यों नहीं दोगी? | 2Dialogue
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1 | तीस पैसे दही बड़े के भी लाओ।" वो अपने गल्ले में से तीस पैसे निकाल के पारो को दिखाता। | 2Dialogue
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1 | इस पर फ़ौरन चमक कर कहती," अच्छा तीस पैसे मुझे वापस दे रहे हो? लाओ..." इस पर चन्द्रु फ़ौरन अपना हाथ पीछे खींच लेता," नहीं ..." इनकार में वो सर हिलाकर पारो को समझाता," मुझे नहीं तुम्हें देना होंगे ये तीस पैसे।" वो अपनी तहदीदी उंगली पारो की तरफ़ बढ़ा के इशारा करके कहता। | 2Dialogue
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1 | इस पर पारो फ़ौरन उसे टोक देती," अबे अपना हाथ पीछे रख. ..नहीं तो मारूंगी चप्पल।" इस पर चन्द्रु घबरा जाता। | 2Dialogue
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1 | पारो की डाँट से लाजवाब हो कर बिल्कुल बेबस हो कर मजबूर और ख़ामोश निगाहों से पारो की तरफ़ देखने लगता कि पारो को उस पर रहम आजाता। | 1Descriptive
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1 | जेब से पूरे पैसे निकाल के उसे दे देती और बोलती," तू बहुत घपला करता है | 1Descriptive
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1 | हिसाब में। | 2Dialogue
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1 | कल से तेरे ठेले पर नहीं आऊँगी।" मगर दूसरे दिन वो फिर आजाती। | 2Dialogue
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1 | उसे चन्द्रु को छेड़ने में मज़ा आता था और अब चन्द्रु को भी मज़ा आने लगा था। | 1Descriptive
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1 | जिस दिन वो नहीं आती थी हालाँकि उस दिन भी उसकी गाहकी और कमाई में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था मगर जाने क्या बात थी चन्द्रु को वो दिन सूना सूना सा लगता था। | 1Descriptive
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1 | जहां पर उसका ठेला रखा था वो उसके सामने एक गली से आती थी। | 1Descriptive
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1 | पहले-पहल चन्द्रु का ठेला बिल्कुल यूनीयन बैंक के सामने नाके पर था हौले-हौले चन्द्रु अपने ठेले को खिसकाते-खिसकाते पारो की गली के बिल्कुल सामने ले आया। | 4Narrative
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1 | अब वो दूर से पारो को अपने घर से निकलते देख सकता था। | 1Descriptive
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1 | पहले दिन जब उसने ठेला यहां लगाया था तो पारो ठेले की बदली हुई जगह देखकर कुछ चौंकी थी। | 1Descriptive
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1 | कुछ ग़ुस्से से भड़क गई थी। | 1Descriptive
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1 | " अरे तू नाके से उधर क्यों आगया गूँगे? | 2Dialogue
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1 | " | 5Other
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1 | गूँगे चन्द्रु ने टेलीफ़ोन ऐक्सचेंज की इमारत की तरफ़ इशारा किया। | 4Narrative
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1 | जहां वो अब तक ठेला लगाता आरहा था। | 4Narrative
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1 | उधर केबल बिछाने के लिए ज़मीन खोदी जा रही थी और बहुत से काले-काले पाइप रखे हुए थे। | 1Descriptive
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1 | वजह माक़ूल थी, पारो लाजवाब हो गई। | 4Narrative
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1 | फिर कुछ नहीं बोली। | 4Narrative
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1 | लेकिन जब केबल बिछ गई और ज़मीन की मिट्टी हमवार कर दी गई तो भी चन्द्रु ने अपना ठेला नहीं हटाया। | 4Narrative
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1 | तो भी वो कुछ नहीं बोली। | 4Narrative
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1 | हाँ उसके चंचल सुभाव में एक अजीब तेज़ी सी आगई। | 1Descriptive
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1 | वो उसे पहले से ज़्यादा सताने लगी। | 4Narrative
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1 | पारो की देखा देखी उसकी दूसरी सहेलियाँ भी चन्द्रु को सताने लगीं और कई छोटे छोटे लड़के भी। | 4Narrative
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1 | मगर लड़कों को तो चन्द्रु डाँट देता और वो जल्दी से भाग जाते। | 1Descriptive
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1 | एक-बार उसने पारो की सहेलियों से आजिज़ आकर उन्हें भी डाँट पिलाई। | 4Narrative
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1 | तो इस पर पारो इस क़दर नाराज़ हुई कि उसने अगले तीन चार दिनों तक चन्द्रु को सताना बंद कर दिया, इस पर चन्द्रु को ऐसा लगा कि आसमान उस पर ढय् पड़ा हो। | 4Narrative
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1 | या उसके पैरों तले ज़मीन फट गई हो। | 1Descriptive
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1 | ये पारो मुझे सताती क्यों नहीं है? | 2Dialogue
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1 | तरह तरह के हीलों-बहानों से उसने चाहा कि पारो उसे डाँट पिलाए। | 1Descriptive
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1 | लेकिन जब इस पर भी पारो के अंदाज़ नहीं बदले और वो एक मुहज़्ज़ब, मुतमद्दिन, लेकिन चाट बेचने वाले चन्द्रु ऐसे छोकरों को फ़ासले पर रखने वाली लड़की की तरह, उस से चाट खाती रही तो चन्द्रु अपनी गूँगी हमाक़तों पर बहुत नादिम हुआ। | 1Descriptive
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1 | एक दफ़ा उसने बजाय पारो के ख़ुद से हिसाब में घपला कर दिया। | 4Narrative
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1 | सवा रुपया बनता था, उसने पारो से पौने दो रुपये तलब किए, जान-बूझ कर। ख़ूब लड़ाई हुई। | 4Narrative
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1 | जम के लड़ाई हुई। | 4Narrative
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1 | बिलआख़िर सर झुका कर चन्द्रु ने अपनी ग़लती तस्लीम करली और ये गोया एक तरह पिछली तमाम ग़लतीयों की भी तलाफ़ी थी। | 4Narrative
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1 | चन्द्रु बहुत ख़ुश हुआ क्योंकि पारो और उसकी सहेलियाँ अब फिर उसे सताने लगी थीं। | 1Descriptive
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1 | बस उसे इतना कुछ ही चाहिए। | 1Descriptive
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1 | एक पाज़ेब की खनक औरा एक शरीर हंसी जो फुलझड़ी की तरह उसकी गूँगी सुनसान दुनिया के वीराने को एक लम्हे के लिए रोशन कर दे। | 1Descriptive
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1 | फिर जब पारो के क़दम सहेलीयों के क़दमों में गड मड होके चले जाते, वो उस पाज़ेब की खनक को दूसरी पाज़ेबों की खनक से अलग करके सुनता था। | 1Descriptive
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1 | क्योंकि दूसरी लड़कियां भी चांदी की पाज़ेबें पहनती थीं | 1Descriptive
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1 | मगर पारो की पाज़ेब की मौसीक़ी ही कुछ और थी। | 1Descriptive
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1 | ये मौसीक़ी जो उसके कानों में नहीं उसके दिल के किसी तन्हा तारीक और शर्मीले गोशे में सुनाई देती थी। | 1Descriptive
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1 | बस इतना ही काफ़ी था और वो उसी में ख़ुश था। | 1Descriptive
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1 | अचानक मुसीबत नाज़िल हुई एक दूसरे ठेले की सूरत में। | 4Narrative
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1 | क्या ठेला था ये! बिल्कुल नया और जदीद डिज़ाइन का। | 1Descriptive
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1 | चारों तरफ़ चमकता हुआ कांच लगा था ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं चारों तरफ़ लाल पीले, ऊदे और नीले रंग के कांच थे। | 1Descriptive
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1 | गैस के दो हण्डे थे। जिनसे ये ठेला बुक़ा-ए-नूर बन गया था। | 1Descriptive
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1 | पत्तल की जगह चमकती हुई चीनी की प्लेटें थीं। | 1Descriptive
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1 | ठेले वाले के साथ एक छोटा सा छोकरा भी था जो गाहक को बड़ी मुस्तइद्दी से एक प्लेट और एक साफ़ सुथरी नैपकिन भी पेश करता था और पानी भी पिलाता था। | 1Descriptive
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1 | चाट वाले के घड़े के गिर्द मोगरे के फूलों का हार भी लिपटा हुआ था और एक छोटा हार चाट वाले ने अपनी कलाई पर भी बांध रखा था और जब वो मसालेदार पानी में गोलगप्पे डुबोकर प्लेट में रखकर गाहक के हाथों की तरफ़ सरकाता तो चाट की कर्रारी ख़ुशबू के साथ गाहक के नथनों में मोगरे की महक भी शामिल हो जाती और गाहक मुस्कुरा कर नए चाट वाले से गोया किसी तमगे की तरह उस प्लेट को हासिल कर लेता। | 1Descriptive
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1 | और नया चाट वाला गूँगे | 1Descriptive
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