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इसरानी ने मुझे बताया।
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दो सौ डालर रोज़ पर ,कैसी है?
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अच्छी है! मिलोगे।
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नहीं! तुम्हारी मर्ज़ी।
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बाहर आ के हम उस की मर्सिडीज़ में उड़ गए।
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उसने बताया पूरे कोलूओन में टी हॉक का चंडूख़ाना सबसे बढ़िया है।
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रात को पाँच सात हज़ार डालर की गाहकी होती है।
1Descriptive
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दिन को भी दो ढाई हज़ार की हो जाती है।
1Descriptive
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वंडरफुल बिज़नस। और कपड़े की दुकान?
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मैंने पूछा।
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अरे वो तो एक साइनबोर्ड है, वहां से किया मिलता है।
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आजकल सीधा धंदा कर के कौन जी सकता है?
0Argumentative
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कैसी बेवक़ूफ़ी की बात करते हो! उसने मुझसे कहा।
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इस में क्या शुबा है।
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मैंने जवाब दिया।
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फिर वो मुझे एक क़हबा ख़ाने ले गया।
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मैं समझ गया कि वो क्या चाहता है।
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वो दरअसल मुझे अपनी सलतनत दिखा रहा था।
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ग़रीब सिंधी आज से पैंतीस बरस पहले दो सौ डालर लिए हांगकांग आया था।
1Descriptive
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आज उसी बी. डी. इसरानी का शुमार हांगकांग के अमीर तरीन लोगों में होता है।
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ऐसे ऐसे मेरे छे हैं।
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उसने पहला क़ुहबाख़ाना दिखाते हुए कहा।
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कोई लड़की पसंद आई?
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नहीं! क्या तुमको लड़कीयां पसंद नहीं?
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हैं तो सही, मगर अपने घरों में। क्या मतलब?
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उसने फिर उन्ही हैरत-ज़दा मासूम निगाहों से मेरी तरफ़ देखा जो उस की बड़ी बड़ी रोशन और स्याल पतीलों से छिन कर आ रही थीं।
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इस लम्हे वो निगाहें बहुत पाकीज़ा थीं।
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सर्दीयों की पहली बर्फ़ की तरह मेरे चेहरे पर गिर रही थीं।
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मैंने तशरीह करना मुनासिब ना समझा, सिर्फ इतना कहा कि मेरे लिए हांगकांग और कलकत्ता या बंबई के क़हबा ख़ानों में कोई फ़र्क़ नहीं।
4Narrative
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अगर कोई फ़र्क़ है, तो महिज़ ज़ाहिरी सजाट या फिर चेहरे की ज़ाहिरी साख़त में! वहां लड़कीयां भारती हैं, यहां चीनी और कोई फ़र्क़ नहीं! ओह, मैं समझ गया, तुमको फ़ौरन माल पसंद है, एंबेसी रोड पर जो मेरा बुरा थल है, इस में बाहर का माल भी मिलता है।
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अभी तुमको उधर ले चलता हूँ।
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उधर एक नई छोकरी आई है, इस को ज़रा देख लू।
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इसरानी ने मुहतमिम से चीनी में कुछ बात की।
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वो लोग हमें एक नियम-तारीक कमरे में ले गए जहां एक चीनी लड़की हाथ पांव से बंधी सोफ़े पर पड़ी थी।
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इसरानी के कहने पर उस के हाथ पांव खोल दिए गए।
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इस की उम्र मुश्किल से पंद्रह सोला साल होगी।
1Descriptive
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इसरानी चंद मिनट तक उसे चीनी ज़बान में कुछ समझाता रहा।
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मगर वो लड़की बराबर सर हिला कर इनकार करती रही।
4Narrative
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आख़िर में चीख़ने और कमरे से भागने की कोशिश करने लगी।
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इसरानी ने घूँसा मार कर लड़की को नीचे गिरा दिया।
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इस के मुँह से ख़ून जारी हो गया।
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वो फ़र्श पर पड़ी पड़ी सिसकने और वहशत-ज़दा निगाहों से हमारी तरफ़ देखने लगी।
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इसरानी मुझे लेकर बाहर आ गया।
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उसने दरवाज़ा बाहर से बंद कर के अपने माथे का पसीना पोंछा।
4Narrative
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फिर मेरी तरफ़ देखकर बोला कल ही तायवान से छे लड़कीयों का एक बीज मंगवाया है।हर दूसरे तीसरे महीने नई मंगानी पड़ती हैं
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वर्ना कारोबार नहीं चलता।
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अग़वा कर के लाई गई हैं, इसलिए धंदा बिलकुल नहीं जानतीं।
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एक दम अनाड़ी हैं।
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उसे कुछ मर्दों के हवाले करता हूँ तभी सीधी होगी।
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इस का घर बहुत उम्दा और छोटी सी पहाड़ी ढलवान पर वाक़्य था।
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वहां से हांगकांग का सारा मंज़र नज़र आता।
1Descriptive
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बीवी, शारदा बहुत ही घरेलू और सीधी साधी औरत थी।
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दो बच्चीयां थीं, बड़ी प्यारी और मासूम।
1Descriptive
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एक दस साल की होगी, दूसरी कोई बारह तेराह बरस की।
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उसने मुझे बताया सबसे बड़ी लड़की की शादी हो चुकी।
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इस का ख़ावंद अमरीका में कारोबार करता है, सिंधी है।
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जुनूबी अमरीका में बहुत बड़ा धंदा है इस का! मेरी लड़की के दो बच्चे भी हैं।
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वो बहुत ख़ुश है अपने घर में।
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लड़का कोई नहीं?
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मैंने पूछा। लड़का ना हो, तो मुक्ती कैसे होवे?
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वो ज़ोर से हँसा। दो लड़के हैं मगर दोनों सियाने उम्र के एक को फ़िलपाइन में बिज़नस करके दिया है, दूसरा जापान में है।
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पी के वो चहकने लगा।
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भगवान ने सब कुछ दिया है मुझको।
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शारदा उस के क़रीब बैठी हमारी बातें सुनते पीले रंग की ऊओन से एक स्वेटर बन रही थी।
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थोड़ी देर बाद शारदा ने अपनी बड़ी बेटी की तस्वीर ला के मुझे दिखाई।
4Narrative
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एक ख़ूबसूरत बेअक़ल लड़की एक मोटे ताजिर के साथ खड़ी थी।
1Descriptive
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दोनों के चेहरों पर वो हमाक़त भरी ख़ुशी तारी थी, जो सिर्फ शादी के इबतिदाई दिनों में नज़र आती है।
1Descriptive
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तभी वो हंसकर बोला पैंतीस साल हुए मैं हांगकांग आया था, दो सौ डालर लेकर।
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आज दो करोड़ से ज़्यादा की जायदाद मेरे पास है।
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तुम एक आतिश-फ़िशाँ पहाड़ के दहाने पर बैठे हो।
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हांगकांग दो घंटे में चीन के पास जा सकता है।
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मैं बेवक़ूफ़ नहीं।
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इसरानी बोला।
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इसी लिए तो मैंने अपनी फ़र्म का सदर दफ़्तर मनीला में खोल रखा है।
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सुख दास क़व्वास का इंचार्ज बना दिया।
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बाक़ी सब बंद-ओ-बस्त ऐसा है कि में भी हांगकांग से दो घंटे में जा सकता हूँ।
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एक अजीब मुक़द्दस मुसर्रत आमेज़ मुस्कुराहट उस के चेहरे पर फैली थी।
1Descriptive
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वो बड़े इतमीनान से अपने पेट पर धीरे धीरे हाथ फेरते कह रहा था।
1Descriptive
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मैं बहुत ख़ुश हूँ।
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मैं बहुत ख़ुश हूँ।
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खाना खा के हम काफ़ी पी रहे थे कि दीवारी घड़ी ने दस बजाय।
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इसरानी के मुँह से निकला अरे काफ़ी की प्याली उस के हाथ से छूट कर फ़र्श पर जा गिरी।
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उसने जल्दी से चेहरा अपने दोनों हाथों में छिपा लिया।
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शारदा दौड़ी दौड़ी दूसरे कमरे में गई और दौड़ी दौड़ी वापिस आई।
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इस के हाथ नेता दर ता बहुत से रूमाल पकड़ रखे थे।
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शारदा ने जल्दी से वो रूमाल इसरानी के घुटने पर रख दिए।
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मैंने देखा इतनी देर में इसरानी का चेहरा आंसूओं से भीग गया।
4Narrative
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ना सिर्फ चेहरा बल्कि उस की हथेलियाँ भी भीग गई थीं।
4Narrative
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जल्द ही वो रूमाल लेकर अपनी आँखें साफ़ करने लगा।
4Narrative
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मगर आँसू थे कि इस की बड़ी बड़ी आँखों से उबलते चले आ रहे थे।
1Descriptive
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मैं हैरत से इस की तरफ़ देख रहा था।
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वो रूमाल से अपने आँसू साफ़ करते हुए बोला तुमसे बातें करते हुए मुझे ख़्याल नहीं रहा।
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क्या ख़्याल नहीं रहा?
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कि वक़्त आ गया है।
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कौन सा वक़्त?
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वो कुछ देर चुप रहा।
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फिर अपनी आँखें साफ़ करते हुए बोला मुझे इस दुनिया में कोई तकलीफ़ नहीं बस अगर कोई तकलीफ़ है, तो यही! जूं ही रात के दस बजीं मेरी आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं।
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कभी घंटा भर, कभी दो घंटे, कभी तीन घंटे मेरी आँखों से आँसू जारी रहते हैं।
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मगर क्यों?
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क्या मालूम! अमरीका तक हो आया हूँ
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