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भगवान महावीर
https://hi.wikipedia.org/wiki/भगवान_महावीर
REDIRECT महावीर
सचिन तेंदुलकर
https://hi.wikipedia.org/wiki/सचिन_तेंदुलकर
सचिन रमेश तेंदुलकर Sachin Tendulkar, जन्म: 24 अप्रैल 1973) क्रिकेट के इतिहास में विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ में माने जाते हैं। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले वह सर्वप्रथम खिलाड़ी और सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले क्रिकेट खिलाड़ी हैं। सन् २००८ में वे पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है। सन् १९८९ में अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के पश्चात् उन्होंने बल्लेबाजी में भी कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उन्होंने टेस्ट व एक दिवसीय क्रिकेट, दोनों में सर्वाधिक शतक अर्जित किये हैं। वे टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं। इसके साथ ही टेस्ट क्रिकेट में १४००० से अधिक रन बनाने वाले वह विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं। एकदिवसीय मैचों में भी उन्हें कुल सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान प्राप्त है।    उन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच मुम्बई के लिये १४ वर्ष की आयु में खेला था। उनके अन्तर्राष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत १९८९ में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची से हुई। 2001 में, सचिन तेंदुलकर अपनी 259 पारी में 10,000 ओडीआई रन पूरा करने वाले पहले बल्लेबाज बने। बाद में अपने करियर में, तेंदुलकर भारतीय दल का हिस्सा थे जिन्होंने २०११ क्रिकेट विश्व कप जीता, भारत के लिए छह विश्व कप के प्रदर्शन में उनकी पहली जीत। दक्षिण अफ्रीका में आयोजित टूर्नामेंट के 2003 संस्करण में उन्हें पहले "प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट" नाम दिया गया था। 2013 में, वे विस्डेन क्रिकेटर्स के अल्मनैक की 150 वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए नामित एक अखिल भारतीय टेस्ट वर्ल्ड इलेवन में शामिल एकमात्र भारतीय क्रिकेटर थे। सचिन क्रिकेट जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं और विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं जिनमें सबसे प्रचलित लिटिल मास्टर व मास्टर ब्लास्टर है। क्रिकेट के अलावा वह अपने ही नाम के एक सफल रेस्टोरेंट के स्वामी  भी हैं। सचिन तेंदुलकर भूतपूर्व राज्य सभा सांसद भी रह चुके हैं। सन् २०१२ में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर एक बायोपिक फिल्म ‘सचिन : ए बिलियन ड्रीम्स’ बनाई जा चुकी है। इस फ़िल्म का टीज़र भी बहुत रोमांचक हैं। टीजर में सचिन को उन्हीं की कहानी सुनाते हुए देखेंगे जो एक शरारती बच्चे से एक हीरो बनकर उभरता है। ख़ुद सचिन तेंदुलकर का भी ये मानना है कि क्रिकेट खेलने से अधिक चुनौतीपूर्ण अभिनय करना है। सचिन – ए बिलियन ड्रीम्स’ का निर्माण श्रीकांत भासी और रवि भगचंदका ने किया है और इसका निर्देशन जेम्स अर्सकिन ने। सचिन ने 14 साल की आयु में क्रिकेट खेलना शुरू किया था व्यक्तिगत जीवन (family life) thumb|left|200px|अंजलि व सचिन एक सार्वजनिक समारोह में राजापुर के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे सचिन का नाम उनके पिता रमेश तेंदुलकर ने अपने चहेते संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था। सचिन के पिता मराठी स्कूल में शिक्षक थे। उनके बड़े भाई अजीत तेंदुलकर ने उन्हें क्रिकेट खेलने के लिये प्रोत्साहित किया था। सचिन के एक भाई नितिन तेंदुलकर और एक बहन सविताई तेंदुलकर भी हैं। 24 मई, 1995 के दिन सचिन ने डॉ. अंजलि महेता से शादी की थी, मूल गुजरात की डॉ. अंजलि बालरोग निष्णात है। सचिन और अंजलि दोनो पहली बार एयरपोर्ट पर मिले थे, उस वक्त अंजली को सचिन और क्रिकेट दोनों के बारे में कोई ज्यादा ज्ञान नही था। सचिन और अंजलि के दो बच्चें है, बड़ी बेटी सारा तेंदुलकर और बेटा अर्जुन तेंदुलकर है।https://hindiverse.com/sachin-tendulkar-biography-in-hindi/ सचिन ने शारदाश्रम विद्यामन्दिर में अपनी शिक्षा ग्रहण की। वहीं पर उन्होंने प्रशिक्षक (कोच) रमाकान्त अचरेकर के सान्निध्य में अपने क्रिकेट जीवन का आगाज किया। तेज गेंदबाज बनने के लिये उन्होंने एम०आर०एफ० पेस फाउण्डेशन के अभ्यास कार्यक्रम में शिरकत की पर वहाँ तेज गेंदबाजी के कोच डेनिस लिली ने उन्हें पूर्ण रूप से अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा। अन्य रोचक तथ्य युवाकाल में सचिन अपने कोच के साथ अभ्यास करते थे। उनके कोच स्टम्प पर एक रुपये का सिक्का रख देते और जो गेंदबाज सचिन को आउट करता, वह सिक्का उसी को मिलता था और यदि सचिन बिना आउट हुए पूरे समय बल्लेबाजी करने में सफल हो जाते, तो ये सिक्का उनका हो जाता। सचिन के अनुसार उस समय उनके द्वारा जीते गये वे १३ सिक्के आज भी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय हैं। १९८८ में स्कूल के एक हॅरिस शील्ड मैच के दौरान साथी बल्लेबाज विनोद कांबली के साथ सचिन ने ऐतिहासिक ६६४ रनों की अविजित साझेदारी की। इस धमाकेदार जोड़ी के अद्वितीय प्रदर्शन के कारण एक गेंदबाज तो रोने ही लगा और विरोधी पक्ष ने मैच आगे खेलने से इनकार कर दिया। सचिन ने इस मैच में ३२० रन और प्रतियोगिता में हजार से भी ज्यादा रन बनाये। सचिन प्रति वर्ष २०० बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी हेतु अपनालय नाम का एक गैर सरकारी संगठन भी चलाते हैं। भारतीय टीम का एक अन्तर्राष्ट्रीय मैच ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध इन्दौर में ३१ मार्च २००१ को खेला गया था। तब इस छोटे कद के खिलाड़ी ने पहली बार १०,००० रनों का आँकड़ा पार करके इन्दौर के स्टेडियम में एक मील का पत्थर गाड़ दिया था। खेल पद्धति left|thumb|तेंदुलकर क्रीज पर, डिलीवरी का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हैं सचिन तेंदुलकर क्रिकेट में बल्लेबाज़ी दायें हाथ से करते हैं किन्तु लिखते बाये हाथ से हैं। वे नियमित तौर पर बायें हाथ से गेंद फेंकने का अभ्यास करते हैं। उनकी बल्लेबाज़ी उनके बेहतरीन सन्तुलन और नियन्त्रण पर आधारित है। वह भारत की धीमी पिचों की बजाय वेस्ट इंडीज़ और ऑस्ट्रेलिया की सख्त व तेज़ पिच पर खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। वह अपनी बल्लेबाजी की अनूठी पंच शैली के लिये भी जाने जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रशिक्षक जॉन ब्यूकैनन का कहना है कि तेंदुलकर अपनी पारी की शुरुआत में शॉर्ट गेंद को ज्यादा पसन्द करते हैं। उनका मानना यह भी है कि बायें हाथ की तेज गेंद तेंदुलकर की कमज़ोरी है। अपने कैरियर की शुरुआत में सचिन के बैटिंग की शैली आक्रामक हुआ करती थी। सन् २००४ से वह कई बार चोटग्रस्त भी हुए। इस वजह से उनकी बल्लेबाजी की आक्रामकता में थोड़ी कमी आयी। पूर्व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी इयान चैपल के अनुसार तेंदुलकर अब पहले जैसे खिलाड़ी नहीं रहे। किन्तु २००८ में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर तेंदुलकर ने कई बार अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी का परिचय दिया। तेंदुलकर नियमित गेंदबाज़ नहीं हैं, किन्तु वे मध्यम तेज, लेग स्पिन व ऑफ स्पिन गेंदबाज़ी में प्रखर हैं। वे कई बार लम्बी व देर से टिकी हुई बल्लेबाजों की जोड़ी को तोड़ने के लिये गेंदबाज़ के रूप में लाये जाते हैं। भारत की जीत पक्की कराने में अनेक बार उनकी गेंदबाज़ी का प्रमुख योगदान रहा है। इंडियन प्रीमियर लीग और चैंपियंस लीग ट्वेंटी 20 मैच में तेंदुलकर का रिकॉर्ड मैचरनसर्वाधिकशतकअर्द्धशतकऔसत टी20 अं 110100010.00आईपीएल 782334100*11334.83चैंपियंस लीग ट्वेंटी20 13265690120.38 2008 में उद्घाटन इंडियन प्रीमियर लीग ट्वेंटी -20 प्रतियोगिता में तेंदुलकर को अपने घरेलू मैदान में मुंबई इंडियंस के लिए आइकन खिलाड़ी और कप्तान बनाया गया था। एक आइकन खिलाड़ी के रूप में, वह $ 1,121,250 की राशि के लिए हस्ताक्षर किए गए, टीम के सनथ जयसूर्या में दूसरे सबसे ज्यादा भुगतान करने वाले खिलाड़ी की तुलना में 15% अधिक। इंडियन प्रीमियर लीग के 2010 संस्करण में मुंबई इंडियंस टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंच गया। टूर्नामेंट के दौरान तेंदुलकर ने 14 पारियों में 618 रन बनाए, आईपीएल सीजन में शान मार्श के सर्वाधिक रन का रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने कहा कि मौसम के दौरान अपने प्रदर्शन के लिए प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट घोषित किया गया था। उन्होंने 2010 आईपीएल पुरस्कार समारोह में सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज और सर्वश्रेष्ठ कैप्टन पुरस्कार भी जीता। सचिन ने कप्तान के रूप में दो अलग-अलग सत्रों में आईपीएल में 500 से अधिक रन बनाए हैं। सचिन तेंदुलकर ने लीग के दूसरे संस्करण के 4 लीग मैच में मुंबई इंडियंस का नेतृत्व किया। उन्होंने पहले मैच में 68 और गुयाना के खिलाफ 48 रन बनाये। लेकिन शुरुआती दो मैचों की हार के बाद मुंबई इंडियंस सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई करने में नाकाम रहे। तेंदुलकर ने 135 रन बनाए। 2011 आईपीएल में, कोच्चि टस्कर्स केरल के खिलाफ, तेंदुलकर ने अपना पहला ट्वेंटी -20 शतक बनाया। उन्होंने 66 गेंदों पर नाबाद 100 रन बनाए। आईपीएल में 51 मैचों में उन्होंने 1,723 रन बनाये, जिससे उन्हें प्रतिस्पर्धा के इतिहास में दूसरा सबसे ज्यादा रन-स्कोरर बना। 2013 में, सचिन ने इंडियन प्रीमियर लीग से सेवानिवृत्त हुए, और वर्तमान में 2014 में उन्हें मुंबई इंडियंस टीम के 'आइकन' के रूप में नियुक्त किया गया है। निम्नलिखित फैन 180px|thumb|सचिन का एक प्रशंसक तेंदुलकर के प्रशंसक सुधीर कुमार चौधरी ने भारत के सभी घरेलू खेलों के लिए टिकट का विशेषाधिकार प्राप्त किया तेंदुलकर के लगातार प्रदर्शन ने उन्हें दुनिया भर में एक प्रशंसक बनाया, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई भीड़ भी शामिल थे, जहां तेंदुलकर ने लगातार शतक बनाए हैं। उनके प्रशंसकों द्वारा सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है "क्रिकेट मेरा धर्म है और सचिन मेरा भगवान है"। क्रिकइन्फो ने अपने प्रोफाइल में बताया कि "... तेंदुलकर एक दूरी से, दुनिया में सबसे ज्यादा पूजा करने वाले क्रिकेटर हैं।" [1] 1998 में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान मैथ्यू हेडन ने कहा, "मैंने भगवान को देखा है। 4 टेस्ट मैचों में भारत में। " हालांकि, भगवान पर, तेंदुलकर ने खुद कहा है कि" मैं क्रिकेट का ईश्वर नहीं हूं। मैं गलती करता हूं, भगवान नहीं करता है। " तेंदुलकर ने एक विशेष प्रदर्शन किया 2003 में बॉलीवुड की फिल्म स्टम्प्ड, खुद के रूप में प्रदर्शित हुई। कई उदाहरण हैं जब तेंदुलकर के प्रशंसकों ने खेल में अपनी बर्खास्तगी पर अत्यधिक गतिविधियों की है। जैसा कि कई भारतीय समाचार पत्रों की रिपोर्ट में, एक व्यक्ति ने 100 वीं शताब्दी तक पहुंचने में तेंदुलकर की असफलता पर संकट के कारण खुद को फांसी दी थी। मुंबई में घर पर, तेंदुलकर के प्रशंसक ने उन्हें एक अलग जीवन शैली का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया। इयान चैपल ने कहा है कि वह जीवन शैली से निपटने में असमर्थ होंगे, तेंदुलकर को "विग पहनने और बाहर जाने और रात में ही फिल्म देखना" करने के लिए मजबूर होना पड़ा। टिम शेरिडन के साथ एक साक्षात्कार में, तेंदुलकर ने स्वीकार किया कि वह कभी-कभी रात की देर में मुंबई की सड़कों पर चुप ड्राइव के लिए चले गए थे, जब वह कुछ शांति और मौन का आनंद ले पाएंगे। तेंदुलकर की लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर में यूज़र नेम sachin_rt के साथ मई 2010 से मौजूद है। क्रिकेट के कीर्तिमान IPL सचिन तेंदुलकर के कीर्तिमानSeasonTeamMatchInningRunHSAveSR10050FourSix2008Mumbai Indians771886531.33106.2101262200913133646833.09120.13023910201015156188947.54132.62058632011161655310042.54113.3212675201213133247429.45114.4902394201314142875422.08124.2401385Total7878233410034.84119.8211329529 मीरपुर में १६ फरवरी २०१२ को बांग्लादेश के खिलाफ १०० वाँ शतक। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में दोहरा शतक जड़ने वाले पहले खिलाड़ी। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मुक़ाबले में सबसे ज्यादा (१८००० से अधिक) रन। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मुक़ाबले में सबसे ज्यादा ४९ शतक। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय विश्व कप मुक़ाबलों में सबसे ज्यादा रन। टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा (51) शतक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ५ नवम्बर २००९ को १७५ रन की पारी के साथ एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में १७ हजार रन पूरे करने वाले पहले बल्लेबाज बने। टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रनों का कीर्तिमान। टेस्ट क्रिकेट १३००० रन बनने वाले विश्व के पहले बल्लेबाज। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मुक़ाबले में सबसे ज्यादा मैन ऑफ द सीरीज। एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मुक़ाबले में सबसे ज्यादा मैन ऑफ द मैच। अन्तर्राष्ट्रीय मुक़ाबलो में सबसे ज्यादा ३०००० रन बनाने का कीर्तिमान। कुछ अन्य उल्लेखनीय घटनायें ५ नवम्बर २००९: अपना ४३५ वाँ मैच खेल रहे तेंदुलकर ने तब तक ४३४ पारियों में ४४.२१ की औसत से १७,००० रन बनाये थे जिसमें ४५ शतक और ९१ अर्धशतक शामिल हैं। तेंदुलकर के बाद एक दिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक रन श्रीलंका के सनथ जयसूर्या ने बनाये हैं। उनके नाम पर इस मैच से पहले तक १२,२०७ रन दर्ज़ थे। जयसूर्या ४४१ मैच खेल चुके है। अब तक ४०० से अधिक एकदिवसीय मैच केवल इन्हीं दो खिलाडि़यों ने खेले हैं। तेंदुलकर ने अपने एक दिवसीय कैरियर में सर्वाधिक रन आस्ट्रेलिया के खिलाफ बनाये। उन्होंने विश्व चैम्पियन के खिलाफ ६० मैच में ३,००० से ज्यादा रन ठोंके जिसमें ९ शतक और १५ अर्धशतक शामिल हैं। श्रीलंका के खिलाफ भी उन्होंने सात शतक और १४ अर्धशतक की मदद से २४७१ रन बनाये लेकिन इसके लिये उन्होंने ६६ मैच खेले। इस स्टार बल्लेबाज ने पाकिस्तान के खिलाफ ६६ मैच में २३८१ रन बनाये। इसके अलावा उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ १६५५, वेस्टइंडीज के खिलाफ १५७१, न्यूजीलैंड के खिलाफ १४६०, जिम्बाब्वे के खिलाफ १३७७ और इंग्लैंड के खिलाफ भी एक हजार से अधिक रन (१२७४) रन बनाये हैं। तेंदुलकर ने घरेलू सरजमीं पर १४२ मैच में ४६.१२ के औसत से ५७६६ और विदेशी सरजमीं पर १२७ मैच में ३५.४८ की औसत से ४१८७ रन बनाये। लेकिन वह सबसे अधिक सफल तटस्थ स्थानों पर रहे हैं जहाँ उन्होंने १४०मैच में ६०५४ रन बनाये जिनमें उनका औसत ५०.८७ है। वह भारत के अलावा इंग्लैंड (१०५१), दक्षिण अफ्रीका (१४१४), श्रीलंका (१३०२) और संयुक्त अरब अमीरात (१७७८) की धरती पर भी एक दिवसीय मैचों में एक हजार रन बना चुके हैं। पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने तेंदुलकर को सलामी बल्लेबाज के तौर पर भेजने की शुरुआत की थी जिसमें मुम्बई का यह बल्लेबाज खासा सफल रहा। ओपनर के तौर पर उन्होंने १२८९१ रन बनाए हैं। जहाँ तक कप्तानों का सवाल है तो तेंदुलकर सबसे अधिक सफल अजहर की कप्तानी में ही रहे। उन्होंने अजहर के कप्तान रहते हुए १६० मैच में ६२७० रन बनाये जबकि सौरभ गांगुली की कप्तानी में १०१ मैच में ४४९० रन ठोंके। हालांकि स्वयं की कप्तानी में वह अधिक सफल नहीं रहे और ७३ मैच में ३७.७५ के औसत से केवल २४५४ रन ही बना पाये। २४ फ़रवरी २०१०: सचिन तेंदुलकर ने अपने एक दिवसीय क्रिकेट के ४४२ वें मैच में २०० रन बनाकर ऐतिहासिक पारी खेली। एक दिवसीय क्रिकेट के इतिहास में दोहरा शतक जड़ने वाले पहले खिलाड़ी बने। तेंदुलकर १६० टेस्ट मैचों में भी अब तक १५००० रन बना चुके हैं। और इस तरह उनके नाम पर अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ३०,००० से ज्यादा रन और १०० शतक दर्ज़ हैं। तेंदुलकर ने अपने एक दिवसीय कैरियर में सर्वाधिक रन आस्ट्रेलिया के खिलाफ बनाये। उन्होंने विश्व चैंपियन टीम के खिलाफ ६० मैच में ३,००० से ज्यादा रन ठोंके जिसमें ९ शतक और १५ अर्धशतक शामिल हैं। सचिन ने २००३ के वर्ल्ड कप में रिकॉर्ड ६७३ रन बनाए थे। तेंदुलकर के २००३ वर्ल्ड कप में प्रदर्शन के बारे में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने कहाकि पूरे टूर्नामेंट के दौरान सचिन ने नेट में एक भी गेंद नहीं खेली थी। समय के हिसाब से अपनी तैयारियों में बदलाव करते रहते हैं। तेंदुलकर क्रिकेट के मैदान में सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट कभी अपने लिये नहीं खेला। वह हमेशा ही अपनी टीम के लिये या उससे भी ज्यादा अपने देश के लिये खेले। उनके मन में क्रिकेट के प्रति अत्यधिक सम्मान का भाव रहा। उन्होंने आवेश में आकर कभी कोई टिप्पणी नहीं की। किसी खिलाड़ी ने अगर उनके खिलाफ कभी कोई टिप्पणी की भी तो उन्होंने उस टिप्पणी का जवाब जुबान से देने के बजाय अपने बल्ले से ही दिया। सचिन जब भी बल्लेबाजी के लिये उतरे, उन्होंने मैदान पर कदम रखने से पहले सूर्य देवता को नमन किया। क्रिकेट के प्रति उनके लगाव का अन्दाज़ इसी घटना से लगाया जा सकता है कि विश्व कप के दौरान जब उनके पिताजी का निधन हुआ उसकी सूचना मिलते ही वह घर आये, पिता की अन्त्येष्टि में शामिल हुए और वापस लौट गये। उसके बाद सचिन अगले मैच में खेलने उतरे और शतक ठोककर अपने दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि दी। अच्छा क्रिकेट खेलने के लिये ऊँचे कद को वरीयता दी जाती है लेकिन छोटे कद के बावजूद लम्बे-लम्बे छक्के मारना और बाल को सही दिशा में भेजने की कला के कारण दर्शकों ने उन्हें लिटिल मास्टर का खिताब दिया जो बाद में सचिन के नाम का ही पर्यायवाची बन गया। टेस्ट क्रिकेट से संन्यास २३ दिसम्बर २०१२ को सचिन ने वन-डे क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कि। लेकिन उससे भी बड़ा दिन तब आया जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से भी संन्यास लेने की घोषणा की। इस अवसर पर उन्होंने कहा - "देश का प्रतिनिधित्व करना और पूरी दुनिया में खेलना मेरे लिये एक बड़ा सम्मान था। मुझे घरेलू जमीन पर २०० वाँ टेस्ट खेलने का इन्तजार है। जिसके बाद मैं संन्यास ले लूँगा।" उनकी चाहत के अनुसार उनका अन्तिम टेस्ट मैच वेस्टइण्डीज़ के खिलाफ मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम में ही खेला गया। और जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही किया भी। १६ नवम्बर २०१३ को मुम्बई के अपने अन्तिम टेस्ट मैच में उन्होंने ७४ रनों की पारी खेली। मैच का परिणाम भारत के पक्ष में आते ही उन्होंने ट्र्स्ट क्रिकेट को अलविदा! कह दिया। सम्मान भारत रत्न: १६ नवम्बर २०१३ को मुंबई में सचिन के क्रिकेट से संन्यास लेने के संकल्प के बाद ही भारत सरकार ने भी उन्हें देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की आधिकारिक घोषणा कर दी। ४ फ़रवरी २०१४ को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें भारत रत्न से सम्मनित किया गया। ४० वर्ष की आयु में इस सम्मान को प्राप्त करने वाले वे सबसे कम उम्र के व्यक्ति और सर्वप्रथम खिलाड़ी हैं। गौरतलब है कि इससे पहले यह सम्मान खेल के क्षेत्र में नहीं दिया जाता था। सचिन को यह सम्मान देने के लिए पहले नियमों में बदलाव किया गया था। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं। सन् २००८ में वे पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है। राष्ट्रीय सम्मान 1994 - अर्जुन पुरस्कार, खेल में उनके उत्कृष्ट उपलब्धि के सम्मान में भारत सरकार द्वारा 1997-98 - राजीव गांधी खेल रत्न, खेल में उपलब्धि के लिए दिए गए भारत के सर्वोच्च सम्मान 1999 - पद्मश्री, भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 2001 - महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार, महाराष्ट्र राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 2008 - पद्म विभूषण, भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 2014 - भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारअन्य सम्मान 1997 - इस साल के विज्डन क्रिकेटर 2002 - बराबरी की तेंदुलकर की उपलब्धि के उपलक्ष्य में डॉन ब्रैडमैन टेस्ट क्रिकेट में 'एस 29 शताब्दियों, मोटर वाहन कंपनी फेरारी में अपनी मंडूक करने के लिए उसे आमंत्रित सिल्वरस्टोन की पूर्व संध्या पर ब्रिटिश ग्रांड प्रिक्स एक प्राप्त करने के लिए, 23 जुलाई को फेरारी 360 मोडेना F1 दुनिया से चैंपियन माइकल शूमाकर 2003 - 2003 क्रिकेट विश्व कप के प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट 2004, 2007, 2010 - आईसीसी विश्व एक दिवसीय एकादश 2009, 2010, 2011 - आईसीसी विश्व टेस्ट एकादश 2010 - खेल और कम से पीपुल्स च्वाइस अवार्ड में उत्कृष्ट उपलब्धि एशियाई पुरस्कार, लंदन में 2010 - विज़डन लीडिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर 2010 - वर्ष के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के लिए आईसीसी पुरस्कार, सर गारफील्ड सोबर्स ट्राफी 2010 - एलजी पीपुल्स च्वाइस अवार्ड 2010 - भारतीय वायु सेना द्वारा मानद ग्रुप कैप्टन की उपाधि 2011 - बीसीसीआई द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ भारतीय क्रिकेटर 2011 - कैस्ट्रॉल वर्ष के इंडियन क्रिकेटर 2012 - विज्डन इंडिया आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट पुरस्कार 2012 - सिडनी क्रिकेट ग्राउंड (एससीजी) की मानद आजीवन सदस्यता 2012 - ऑस्ट्रेलिया के आदेश के मानद सदस्य, ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा दिए गए 2013 - भारतीय पोस्टल सर्विस ने तेंदुलकर का एक डाक टिकट जारी किया और वह मदर टेरेसा के बाद दूसरे भारतीय बने जिनके लिये ऐसा डाक टिकट उनके अपने जीवनकाल में जारी किया गया। इन्हें भी देखें सचिन तेंदुलकर के अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट शतकों की सूची सचिन: ए बिलियन ड्रीम्स महानतम भारतीय (सर्वेक्षण) महेंद्र सिंह धोनी एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के कीर्तिमानों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सचिन तेंदुलकर के विजडन प्रोफाइल सचिन तेंदुलकर के आधिकारिक फेसबुक पेज श्रेणी:1973 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:भारत रत्न सम्मान प्राप्तकर्ता श्रेणी:भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:राज्यसभा सदस्य श्रेणी:भारतीय बल्लेबाज़ श्रेणी:दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ श्रेणी:अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ता श्रेणी:पद्म विभूषण धारक श्रेणी:राजीव गांधी खेल रत्न के प्राप्तकर्ता श्रेणी:पद्मश्री प्राप्तकर्ता श्रेणी:मुम्बई के लोग श्रेणी:सचिन तेंदुलकर श्रेणी:बल्लेबाज श्रेणी:भारतीय क्रिकेट कप्तान श्रेणी:भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:भारतीय ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी
सिसमोमीटर
https://hi.wikipedia.org/wiki/सिसमोमीटर
अनुप्रेषित भूकम्पमापी
हँस
https://hi.wikipedia.org/wiki/हँस
हंस एक पक्षी का नाम है। हंस पक्षी देखें। हंस जिसके संपादक राजेन्द्र यादव हैं। हंस ऐतिहासिक पत्रिका जिसके संपादक प्रेमचंद थे।
हंस पत्रिका
https://hi.wikipedia.org/wiki/हंस_पत्रिका
हंस उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित पत्रिका रही है। वह दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की कथा मासिक पत्रिका है जिसका पुनः प्रकाशन राजेन्द्र यादव ने 1986 से 2013 तक किया। महात्मा गांधी और कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी दो वर्ष तक हंस के सम्पादक मण्डल में शामिल रहे। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। आने वाले वर्षों में यह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी साहित्यिक पत्रिका के रूप में उभरी और आज भी यह हिंदी साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित और विचारशील पत्रिका का स्थान बनाए हुए है। सन् 2013 में राजेन्द्र यादव की मृत्यु के बाद हंस का प्रकाशन और प्रबंध निदेशन उनकी पुत्री रचना यादव द्वारा किया जा रहा है और हिंदी के प्रख्यात कहानीकार संजय सहाय अब हंस के संपादक हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अन्तरजाल पर हंस पत्रिका श्रेणी:हिन्दी पत्रिकाएँ श्रेणी:सामाजिक पत्रिकाएँ श्रेणी:साहित्यिक पत्रिकाएँ
सिंहभूम
https://hi.wikipedia.org/wiki/सिंहभूम
पूर्वी सिंहभूम पश्चिमी सिंहभूम
नाईजीरिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/नाईजीरिया
right|thumb फेडेरल रिपब्लिक ऑफ नाईजीरिया या नाईजीरिया संघीय गणराज्य पश्चिम अफ्रीका का एक देश है। इसकी सीमाएँ पश्चिम में बेनीन, पूर्व में चाड, उत्तर में hiकैमरून और दक्षिण में गुयाना की खाड़ी से लगती हैं। इस देश के बड़े शहरों में राजधानी अबुजा, भूतपूर्व राजधानी लागोस के अलावा इबादान, कानो, जोस और बेनिन शहर शामिल हैं। नाइजीरिया पश्चिमी अफ्रीका का एक प्रमुख देश है। पूरे अफ्रीका महाद्वीप में इस देश की आबादी सबसे अधिक है। नाइजीरिया की सीमा पश्चिम में बेनिन, पूर्व में चाड और कैमरून और उत्तर में नाइजर से मिलती हैं। इतिहास नाइजीरिया के प्राचीन इतिहास को देखने पर पता चलता है कि यहां सभ्‍यता की शुरुआत ईसा पूर्व 9000 में हुई थी। जैसा कि पुरातात्विक अभिलेखों में दिखाया गया है। नाइजीरिया के सबसे शुरुआती शहर कानो और कत्स्यिना उत्तरी शहर थे जो लगभग 1000 ईस्वी में शुरू हुए थे। लगभग 1400 ईस्वी के आसपास, ओयो के योरूबा साम्राज्य की स्थापना दक्षिण पश्चिम में हुई थी और 17 वीं से 19 वीं शताब्दी तक इसकी सफलता ऊंचाई तक पहुंच गयी। इसी समय, यूरोपीय व्यापारियों ने अमेरिका के दास व्यापार के लिए बंदरगाहों की स्थापना शुरू कर दी। लेकिन 19 वीं शताब्दी में यह ताड़ के तेल और लकड़ी जैसे सामानों के व्यापार में बदल गया था। 1885 ईस्वी में, अंग्रेजों ने नाइजीरिया पर प्रभाव का एक क्षेत्र दावा किया और 1886 में, रॉयल नाइजर कंपनी की स्थापना हुई। 1900 में, क्षेत्र ब्रिटिश सरकार द्वारा नियंत्रित हो गया और 1 914 में यह उपनीवेस और संरक्षित बन गया। 1900 के दशक के मध्य और विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, नाइजीरिया के लोगों ने आजादी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। अक्टूबर 1960 में, यह तब आया जब इसे संसदीय सरकार के साथ तीन क्षेत्रों के संघ के रूप में स्थापित किया गया था। 1963 ईस्वी में, नाइजीरिया ने खुद को एक संघीय गणराज्य घोषित किया और एक नया संविधान तैयार किया जिसके बाद 1960 के दशक के दौरान, नाइजीरिया की सरकार अस्थिर थी क्योंकि इसमें कई सरकारी उथल-पुथल थीं; इसके प्रधान मंत्री की हत्या कर दी गई थी और गृह युद्ध शुरू हो गया था। गृहयुद्ध के बाद, नाइजीरिया ने आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया और 1977 में, सरकारी अस्थिरता के कई वर्षों बाद, देश ने एक नया संविधान तैयार किया। नाइजीरिया सरकार नाईजीरिया संघीय गणराज्य सूत्रवाक्य: "एकता और शक्ति, शांति और प्रगति" चित्र:LocationNigeria.png राजभाषा अंग्रेजी राजधानी अबुजा राष्ट्रपति ओलुसेंगुन ओबासांजो क्षेत्रफल - कुल  - % जल 31 वाँ स्थान 923,768 वर्ग कि मी 1.4% जनसँख्या - कुल (2004)  - घनत्व9 वाँ स्थान 133,881,703 147/वर्ग कि मी; आज़ादी - इंग्लैंड से1 अक्टूबर, 1960 मुद्रा नाइरा समय क्षेत्र ग्रिनविच मानक समय +1 राष्ट्रगीत जागो नाईजीरिया वासी देश पुकारे इंटरनेट डोमेन.ng कालिंग कोड234 नाइजीरिया की सरकार को संघीय गणराज्य माना जाता है और इसमें अंग्रेजी आम कानून, इस्लामी कानून (उत्तरी राज्यों में) और पारंपरिक कानूनों के आधार पर कानूनी व्यवस्था है। नाइजीरिया की कार्यकारी शाखा राज्य के मुखिया और सरकार के मुखिया से बना है- दोनों राष्ट्रपति द्वारा भरे जाते हैं। इसमें एक द्विपक्षीय राष्ट्रीय असेंबली भी है जिसमें सीनेट और प्रतिनिधि सभा शामिल हैं। नाइजीरिया की न्यायिक शाखा सर्वोच्च न्यायालय और अपील की संघीय न्यायालय से बना है। नाइजीरिया को 36 राज्यों और स्थानीय प्रशासनो में बांटा गया है। राजनीतिक भ्रष्टाचार राजनीतिक भ्रष्टाचार 1970 ईस्वी के दशक के उत्तरार्ध में और 1980 के दशक में और 1983 में बना रहा, दूसरी गणराज्य सरकार जिसे उसे नष्ट कर दिया गया था। 1989 में, तीसरा गणराज्य शुरू हुआ और 1990 के दशक की शुरुआत में, सरकार भ्रष्टाचार बनी रही और सरकार को फिर से उखाड़ फेंकने के कई प्रयास हुए। अंत में 1995 में, नाइजीरिया ने नागरिक शासन में संक्रमण करना शुरू कर दिया। 1999 में एक नया संविधान और उसी वर्ष मई में, नाइजीरिया राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य शासन के वर्षों के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया। 2007 में, राष्ट्रपति ओबासंजो के रूप में पद छोड़ दिया। उमरू यार अदुआ फिर नाइजीरिया के राष्ट्रपति बने और उन्होंने देश के चुनावों में सुधार करने, अपनी अपराध समस्याओं से लड़ने और आर्थिक विकास पर काम करना जारी रखने की कसम खाई। लेकिन 5 मई, 2010 को, यार्ड अदुआ की मृत्यु हो गई और गुडलुक जोनाथन 6 मई को नाइजीरिया के राष्ट्रपति बने। नाइजीरिया भूगोल और जलवायु नाइजीरिया एक बड़ा देश है जिसमें विविध स्थलाकृति है। अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया राज्य के आकार के लगभग दोगुना है और बेनिन और कैमरून के बीच स्थित है। दक्षिण की भूमि नीची है जो देश के मध्य भाग में पहाड़ियों और पठारों में ऊंचा है। दक्षिणपूर्व में पहाड़ हैं जबकि उत्तर मुख्य रूप से मैदानी इलाके होते हैं। नाइजीरिया का वातावरण भी भिन्न होता है लेकिन भूमध्य रेखा के निकट स्थानों के कारण केंद्र और दक्षिण उष्णकटिबंधीय हैं, जबकि उत्तर शुष्क है। यातायात अर्थव्यवस्था हालांकि नाइजीरिया में राजनीतिक भ्रष्टाचार की समस्याएं थीं और बुनियादी ढांचे की कमी थी, यह प्राकृतिक संसाधनों जैसे तेल और हाल ही में इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ से बढ़ने लगी है। हालांकि, तेल अकेले विदेशी मुद्रा आय का 9 5% प्रदान करता है। नाइजीरिया के अन्य उद्योगों में कोयले, टिन, कोलम्बिट, रबर उत्पाद, लकड़ी, छुपाएं और खाल, कपड़ा, सीमेंट और अन्य निर्माण सामग्री, खाद्य उत्पाद, जूते, रसायन, उर्वरक, मुद्रण, मिट्टी के बरतन और स्टील शामिल हैं। नाइजीरिया के कृषि उत्पाद कोको, मूंगफली, कपास, ताड़ के तेल, मक्का, चावल, ज्वारी, बाजरा, कसावा, याम, रबड़, मवेशी, भेड़, बकरियां, सूअर, लकड़ी और मछली हैं। शिक्षा पर्यटन अजुमिनी ब्‍लू रिवर रोज अजुमिनी ब्‍लू रिवर अबिआ राज्‍य में स्थित है। अपनी खूबसूरती के कारण यह नदी पर्यटक स्‍थल के रूप में मशहूर हो रही है। पर्यटकों को यहां के साफ नीले पानी में नौका विहार का आनंद लेना बहुत लुभाता है। यहां के तटों पर आराम करने के लिए सुविधाएं उपलब्‍ध कराई जाती हैं। द लॉन्‍ग जुजु श्राइन ऑफ अरोचुकवा यह एक प्रसिद्ध पर्यटक सथान है। गुफा में स्थित जुजु की ऊंची प्रतिमा यहां का मुख्‍य आकर्षण है। इस गुफा के बारे में माना जाता है यहां पर एक लंबा धातु का पाइप है जिसके जरिए भगवान लोगों से बात करते थे। यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यहां पर प्रबंधकीय शाखा भी है जहां पर मुख्‍य पुजारी रहते हैं। यंकारी राष्‍ट्रीय उद्यान यह उद्यान नाइजीरिया का सबसे विकसित राष्‍ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान यहां पाए जाने वाले विभिन्‍न प्रकार के जानवरों के कारण प्रसिद्ध है। ये वन्‍य जीव नवंबर से मई के बीच अधिक दिखाई पड़ते हैं। इस दौरान पानी की तलाश में ये गजी नदी के किनारे पर आते हैं। यहां दिखाई देने वाले प्रमुख्‍य जानवरों में हाथी, मगरमच्‍छ, गैंडे, बंदर, वॉटरहॉग, बबून, वॉटरबक और बुशबक शामिल हैं। यंकारी राष्‍ट्रीय उद्यान का मुख्‍य आकर्षण विक्‍की वॉर्म स्प्रिंग है। यह गर्म पानी का झरना है जहां पूरे दिन तैराकी का आनंद उठाया जा सकता है। चाड झील यह झील नाइजीरिया के बोर्नो प्रांत में स्थित है। योजनापूर्वक बनाई गई यह झील न केवल इस प्रांत की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करती है बल्कि नाइजीरिया के तीन पड़ोसी देशों नाइजर, कैमरून और चाड की आवश्‍यकताओं को भी पूरा करती है। यह झील कृषि में सहायता करने के साथ-साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करती है। यहां पर बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। चीफ नाना पेलेस, कोको चीफ नाना ओलोमु 19वीं शताब्‍दी में नाइजीरिया के बहुत बड़े उद्यमी थे। अपनी उपलब्धियों को दर्शाने के लिए उन्‍होंने इस भव्‍य महल का निर्माण करवाया था। इस महल में उनके ब्रिटेन की महारानी से संपर्क और अंग्रेज व्‍यापारिया के साथ उनके संबंधों से संबंधित दस्‍तावेज व अन्‍य सामग्री रखी गई है। डेल्‍टा राज्‍य में स्थित इस भवन को अब राष्‍ट्रीय स्‍मारक का दर्जा हासिल है। इन्हें भी देखें अफ्रीका बाहरी कड़ियाँ नाइजीरिया (अभिव्यक्ति) श्रेणी:देश श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:पश्चिम अफ्रीका के देश श्रेणी:संघीय गणराज्य श्रेणी:नाईजीरिया
प्यारा केरकेट्टा
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खडिया आदिवासी समुदाय से आने वाले प्यारा केरकेट्टा भारतीय समाज और राजनीति में झारखंडी जनता की दावेदारी को बडी शिद्दत के साथ उठाया और उसे स्थापित किया। झारखंड की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिये उन्होंने देशज भाषाओं को पुनर्सृजित और संगठित किया। मातृभाषा में देशज भाषाओं के अध्ययन अध्यापन के लिये पुस्तकें लिखीं और छपवाईं। खडिया भाषा में आधुनिक शिष्ट साहित्य की शुरूआत की। झारखंड की देशज जनता के स्वभिमान और गौरव को स्थापित करने के लिये युवाओं का नेतृत्व करते हुए सांस्कृतिक आंदोलन को संगठित किया। आजादी के पहले और बाद के भारत में झारखंड की उत्पीडित आबादी के समग्र उत्थान के लिये वे हमेशा संघर्षरत रहे।''' इन्हें भी देखें झारखंड बाहरी कड़ियाँ
दक्षिण अफ़्रीका
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दक्षिण अफ़्रीका (अंग्रेज़ी: South Africa) अफ़्रीका महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित एक गणराज्य है। इसकी सीमाएँ उत्तर में नामीबिया, बोत्सवाना और ज़िम्बाब्वे और उत्तर-पूर्व में मोज़ाम्बीक और एस्वातीनी के साथ लगती हैं, जबकि लेसूथो एक स्वतंत्र देश है, जो पूरी तरह से दक्षिण अफ़्रीका से घिरा हुआ है। आधुनिक मानव की बसाहट दक्षिण अफ़्रीका में एक लाख साल पुरानी है। यूरोपीय लोगों के आगमन के दौरान क्षेत्र में रहने वाले बहुसंख्यक स्थानीय लोग आदिवासी थे, जो अफ़्रीका के विभिन्न क्षेत्रों से हजार साल पहले आए थे। 4थी-5वीं सदी के दौरान बांतू भाषी आदिवासी दक्षिण को ओर बढ़े और दक्षिण अफ़्रीका के वास्तविक निवासियों, खोई सान लोगों, को विस्थापित करने के साथ-साथ उनके साथ शामिल भी हो गए। यूरोपीय लोगों के आगमन के दौरान कोसा और ज़ूलु दो बड़े समुदाय थे। केप समुद्री मार्ग की खोज के करीबन डेढ़ शताब्दी बाद 1962 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस जगह पर खानपान केंद्र (रिफ्रेशमेंट सेंटर) की स्थापना की, जिसे आज केप टाउन के नाम से जाना जाता है। 1806 में केप टाउन ब्रिटिश कॉलोनी बन गया। 1820 के दौरान बुअर (डच, फ्लेमिश, जर्मन और फ्रेंच सेटलर्ज़) और ब्रिटिश लोगों के देश के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्रों में बसने के साथ ही यूरोपीय बसाहट में वृद्धि हुई। इसके साथ ही क्षेत्र पर क़ब्ज़े के लिए कोसा, जुलू और अफ़्रिकानरों के बीच झड़पें भी बढ़ती गई। हीरे और बाद में सोने की खोज के साथ ही 19वीं सदी में द्वंद शुरू हो गया, जिसे अंग्रेज़-बुअर युद्ध के नाम से जाना जाता है। हालाँकि ब्रिटिश ने बुअरों पर युद्ध में जीत हासिल कर ली थी, लेकिन 1910 में दक्षिण अफ़्रीका को ब्रिटिश डोमिनियन के तौर पर सीमित स्वतंत्रता प्रदान की। 1961 में दक्षिण अफ़्रीका को गणराज्य का दर्जा मिला। देश के भीतर और बाहर विरोध के बावजूद सरकार ने रंगभेद की नीति को जारी रखा। 20वीं सदी में देश की दमनकारी नीतियों के विरोध में बहिष्कार करना शुरू किया। काले दक्षिण अफ़्रीकी और उनके सहयोगियों के सालों के अंदरुनी विरोध, कार्रवाई और प्रदर्शन के परिणामस्वरूप आख़िरकार 1990 में दक्षिण अफ़्रीकी सरकार ने वार्ता शुरू की, जिसकी परिणति भेदभाव वाली नीति के ख़त्म होने और 1994 में लोकतांत्रिक चुनाव से हुई। देश फिर से राष्ट्रकुल देशों में शामिल हुआ। दक्षिण अफ़्रीका, अफ़्रीका में जातीय रूप से सबसे ज़्यादा विविधताओं वाला देश है और यहाँ अफ़्रीका के किसी भी देश से ज़्यादा सफ़ेद लोग रहते हैं। अफ़्रीकी जनजातियों के अलावा यहाँ कई एशियाई देशों के लोग भी हैं जिनमे सबसे ज़्यादा भारत से आये लोगों की संख्या है। भाषाएँ दक्षिण अफ़्रीका में ग्यारह भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है, जिसमें अंग्रेज़ी के साथ-साथ अफ़्रिकांस, दक्षिणी दीबीली, उत्तरी सूथो, दक्षिणी सूथो, स्वाज़ी, त्सोंगा, त्स्वाना, कोसा और जुलू शामिल है। किसी एक देश में बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या के हिसाब से यह बोलिविया और भारत के बाद तीसरा देश है। २००१ के राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार, मातृभाषा के तौर पर बोली जाने वाली तीन पहली भाषाओं में जुलू (२३.८ प्रति.), कोसा (१७.६ प्रति.) और अफ़्रीकांस (१३.३ प्रति.) हैं। हालाँकि अंग्रेज़ी व्यापार और विज्ञान की भाषा है, लेकिन दक्षिण अफ़्रीका में सिर्फ़ ८.२ प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है। इन भाषाओं के अलावा देश में आठ अन्य ग़ैर आधिकारिक भाषाओं को भी मान्यता प्रदान की गई है, जिसमें फानागालो, खोई, लोबेदू, नामा, उत्तरी दीबीली, फूथी, सान और दक्षिण अफ्रीकी साइन भाषा शामिल है। अर्थव्यवस्था दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था नाइजीरिया के बाद अफ्रीका में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है। उप-सहारा अफ्रीका में अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति अपेक्षाकृत उच्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) है (2012 तक क्रय शक्ति समता पर यूएस $ 11,750)। इसके बावजूद, दक्षिण अफ्रीका अभी भी गरीबी और बेरोजगारी की अपेक्षाकृत उच्च दर के बोझ से दबी है और आर्थिक असमानता, के लिए दुनिया के शीर्ष दस देशों में स्थान पर है, जिसे गिनी गुणांक द्वारा मापा जाता है। 2015 में, 71% शुद्ध संपत्ति 10% आबादी के पास थी, जबकि 60% आबादी के पास शुद्ध संपत्ति का केवल 7% था, और गिनी गुणांक 0.63 था, जबकि 1996 में 0.61 था। दुनिया के अधिकांश गरीब देशों के विपरीत, दक्षिण अफ्रीका में एक संपन्न अनौपचारिक अर्थव्यवस्था नहीं है। ब्राजील और भारत में लगभग आधे और इंडोनेशिया में लगभग तीन-चौथाई की तुलना में केवल 15% दक्षिण अफ्रीकी नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) इस अंतर का श्रेय दक्षिण अफ्रीका की व्यापक कल्याण प्रणाली को देता है। विश्व बैंक के शोध से पता चलता है कि दक्षिण अफ्रीका में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद बनाम इसकी मानव विकास सूचकांक रैंकिंग के बीच सबसे बड़ा अंतर है, जिसमें केवल बोत्सवाना एक बड़ा अंतर दिखा रहा है। 1994 के बाद, सरकारी नीति ने मुद्रास्फीति को कम किया, सार्वजनिक वित्त को स्थिर किया, और कुछ विदेशी पूंजी को आकर्षित किया, हालांकि विकास अभी भी कम था। 2004 के बाद से, आर्थिक विकास में उल्लेखनीय वृद्धि हुई; रोजगार और पूंजी निर्माण दोनों में वृद्धि हुई। जैकब जुमा की अध्यक्षता के दौरान, सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) की भूमिका में वृद्धि की। कुछ सबसे बड़े एसओई हैं एस्कॉम, इलेक्ट्रिक पावर एकाधिकार, दक्षिण अफ्रीकी एयरवेज (एसएए), और ट्रांसनेट, रेल और बंदरगाहों का एकाधिकार। इनमें से कुछ SOE लाभदायक नहीं रहे हैं, जैसे SAA, जिसके लिए 2015 से पहले के 20 वर्षों में कुल R30 बिलियन ($2.08 बिलियन) के बेलआउट की आवश्यकता है। अन्य अफ्रीकी देशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक साझेदारों में जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान, यूनाइटेड किंगडम और स्पेन शामिल हैं। 2020 के वित्तीय गोपनीयता सूचकांक ने दक्षिण अफ्रीका को दुनिया में 58 वें सबसे सुरक्षित टैक्स हेवन के रूप में स्थान दिया। दक्षिण अफ्रीकी कृषि उद्योग औपचारिक रोजगार में लगभग 10% का योगदान देता है, अफ्रीका के अन्य हिस्सों की तुलना में अपेक्षाकृत कम, साथ ही साथ आकस्मिक मजदूरों के लिए काम प्रदान करता है और राष्ट्र के लिए सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.6% योगदान देता है। भूमि की शुष्कता के कारण फसल उत्पादन के लिए केवल 13.5% का उपयोग किया जा सकता है, और केवल 3% को उच्च क्षमता वाली भूमि माना जाता है। अगस्त 2013 में, देश की आर्थिक क्षमता, श्रम वातावरण, लागत-प्रभावशीलता, बुनियादी ढांचे, व्यापार मित्रता और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश रणनीति के आधार पर एफडीआई इंटेलिजेंस द्वारा दक्षिण अफ्रीका को भविष्य के शीर्ष अफ्रीकी देश के रूप में स्थान दिया गया था। ऊर्जा दक्षिण अफ्रीका में एक बहुत बड़ा ऊर्जा क्षेत्र है और वर्तमान में अफ्रीकी महाद्वीप का एकमात्र देश है जिसके पास परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। यह देश अफ्रीका में बिजली का सबसे बड़ा उत्पादक और दुनिया में 21 सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है दक्षिण अफ्रीका 248 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन करता है और इसका लगभग तीन-चौथाई घरेलू स्तर पर खपत करता है। दक्षिण अफ्रीका की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 77% सीधे कोयले से प्राप्त होता है और अफ्रीकी महाद्वीप पर खपत होने वाले कोयले का 92% दक्षिण अफ्रीका में खनन किया जाता है। अफ्रीका का सबसे बड़ा बिजली उत्पादक होने के बावजूद, देश एक ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है जो देश की अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव डालता है, लोडशेडिंग के लगातार दौर के रूप में प्रकट होने वाली सबसे उल्लेखनीयता, राज्य के रूप में व्यापक राष्ट्रीय स्तर के रोलिंग ब्लैकआउट की निरंतर अवधि है- स्वामित्व वाली बिजली कंपनी एस्कॉम दक्षिण अफ्रीका की ऊर्जा मांग को पूरा करने में विफल रही, यह 2007 के बाद के महीनों में शुरू हुई और आज भी जारी है। पर्यटन दक्षिण अफ्रीका एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, और पर्यटन से पर्याप्त मात्रा में राजस्व प्राप्त होता है। दक्षिण अफ्रीका एक विशाल, विविध और एक सुंदर देश है। यह अद्वितीय है और इसे "द वर्ल्ड इन वन कंट्री" के रूप में भी जाना जाता है। शेर, भैंस, तेंदुआ, गैंडा और हाथी की तलाश में दुनिया भर से वन्यजीव प्रेमी यहां आते हैं। वन्य जीवन और परिदृश्य के अलावा, गंतव्य प्रवाल भित्तियों, शार्क डाइव्स, व्हाइट-वाटर राफ्टिंग, सुनहरे समुद्र तटों, सर्फिंग और भी बहुत कुछ दिखाता है। दक्षिण अफ्रीका में सभी सनबाथ प्रेमियों के लिए लगभग 3000 किलोमीटर की खूबसूरत तटरेखा है। कोई भी स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों का अनुभव कर सकता है जिसमें दक्षिण अफ्रीका की अपनी प्रसिद्ध वाइन शामिल हैं। दक्षिण अफ्रीका में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहें एडो हाथी राष्ट्रीय उद्यान कांगो की गुफाएं टेबल माउंटेन जोहान्सबर्ग सिटी माइनिंग (खुदाई) दक्षिण अफ्रीका हमेशा से खनन का पावरहाउस रहा है। 2013 में हीरा और सोने का उत्पादन अपने शिखर से काफी नीचे था, हालांकि दक्षिण अफ्रीका अभी भी सोने में पांचवें नंबर पर है, और खनिज संपदा का एक कॉर्नुकोपिया बना हुआ है। यह क्रोम, मैंगनीज, प्लेटिनम, वैनेडियम और वर्मीक्यूलाइट का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है । यह इल्मेनाइट, पैलेडियम, रूटाइल और जिरकोनियम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है। यह लौह अयस्क का बहुत बड़ा उत्पादक है; 2012 में, इसने भारत को पछाड़कर चीन को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क आपूर्तिकर्ता बन गया, जो दुनिया का लौह अयस्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। श्रम बाजार 1995 से 2003 तक, औपचारिक नौकरियों की संख्या में कमी आई और अनौपचारिक नौकरियों में वृद्धि हुई; समग्र बेरोज़गारी बिगड़ गई। केप टाउन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 2017 और 2020 के अंत के बीच, दक्षिण अफ्रीका ने अपने मध्यम वर्ग के कमाने वालों का 56% खो दिया था, और न्यूनतम मजदूरी से कम कमाने वाले अति-गरीबों की संख्या में 6.6 मिलियन की वृद्धि हुई थी। (54%)। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अफ़्रीका अफ़्रीका के देश बाहरी कड़ियाँ फोटो गैलरी श्रेणी:देश श्रेणी:अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:दक्षिण अफ़्रीका
अमरीश पुरी
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अमरीश पुरी (२२ जून १९३२ – १२ जनवरी २००५) चरित्र अभिनेता मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे है। अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले श्री पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी। उन्होंने १९८४ में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म "इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम" (अंग्रेज़ी- Indiana Jones and the Temple of Doom) में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हट कर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर। और इस दौर में भी उन्होंने अपनी अभिनय कला का जादू कम नहीं होने दिया फ़िल्म मिस्टर इंडिया के एक संवाद "मोगैम्बो खुश हुआ" किसी व्यक्ति का खलनायक वाला रूप सामने लाता है तो फ़िल्म DDLJ का संवाद "जा सिमरन जा - जी ले अपनी ज़िन्दगी" व्यक्ति का वह रूप सामने लाता है जो खलनायक के परिवर्तित हृदय का द्योतक है। इस तरह हम पाते है कि अमरीश पुरी भारतीय जनमानस के दोनों पक्षों को व्यक्त करते समय याद किये जाते है। फिल्मी सफर अमरीश पुरी ने सदी की सबसे बड़ी फिल्मों में कार्य किया। उनके द्वारा शाहरुख खान की हिट फिल्म "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" में निभाये गए "बाबूजी" के किरदार की प्रशंसा सर्वत्र की जाती है। उन्होंने मुख्यतः फिल्मो में विलेन का पात्र निभाते देखा गया है। 1987 में बनी अनिल कपूर की मिस्टर इंडिया में उन्होंने "मोगैम्बो" का किरदार निभाया जो कि फिल्म का मुख्य खलनायक है। इसी फिल्म में अमरीश का डायलॉग "मोगैम्बो खुश हुआ" फिल्म-जगत मेंं प्रसिद्ध है। व्यक्तिगत जीवन पढ़ाई अमरीश पुरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पजाब से की। उसके बाद वह शिमला चले गए। शिमला के बी एम कॉलेज(B.M. College) से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। शुरुआत में वह रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया। उन्हें रंगमंच से उनको बहुत लगाव था। एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेयी और स्व. इंदिरा गांधी जैसी हस्तियां उनके नाटकों को देखा करती थीं। पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए। करियर अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच की दुनिया से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उन्होंने सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियां दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कॅरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। अमरीश पुरी के फ़िल्मी करियर शुरुआत साल 1971 की ‘प्रेम पुजारी’ से हुई। पुरी को हिंदी सिनेमा में स्थापित होने में थोड़ा वक्त जरूर लगा, लेकिन फिर कामयाबी उनके कदम चूमती गयी। 1980 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। 1987 में शेखर कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया में मोगैंबो की भूमिका के जरिए वे सभी के जेहन में छा गए। 1990 के दशक में उन्होंने ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ‘घायल’ और ‘विरासत’ में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता। अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल फिल्मों तथा हॉलीवुड फिल्म में भी काम किया। उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फिल्मों में 'निशांत', 'गांधी', 'कुली', 'नगीना', 'राम लखन', 'त्रिदेव', 'फूल और कांटे', 'विश्वात्मा', 'दामिनी', 'करण अर्जुन', 'कोयला' आदि शामिल हैं। दर्शक उनकी खलनायक वाली भूमिकाओं को देखने के लिए बेहद उत्‍साहित होते थे। उनके जीवन की अंतिम फिल्‍म 'किसना' थी जो उनके निधन के बाद वर्ष 2005 में रिलीज़ हुई। उन्‍होंने कई विदेशी फिल्‍मों में भी काम किया। उन्‍होंने इंटरनेशनल फिल्‍म 'गांधी' में 'खान' की भूमिका निभाई था जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई थी। अमरीश पुरी का 12 जनवरी 2005 को 72 वर्ष के उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से उनका निधन हो गया। उनके अचानक हुए इस निधन से बॉलवुड जगत के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब गया था। आज अमरीश पुरी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी फिल्मों के माध्यम से हमारे दिल में बसी हैं। प्रमुख फिल्में वर्ष फ़िल्म चरित्र टिप्पणी 2006 कच्ची सड़क 2005 मुम्बई एक्सप्रेस 2005 किस्ना भैरो सिंह 2004 पुलिस फोर्स 2004 मुझसे शादी करोगी 2004 ऐतराज़ रंजीत रॉय 2004 देव शिवाजीराव भंडारकर 2004 गर्व इंस्पेक्टर समर सिंह 2004 हलचल अंगार चन्द 2004 अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 2004 लक्ष्य ब्रिगेडियर जनरल गौतम पुरी 2004 टार्ज़न: द वण्डर कार 2004 वो तेरा नाम था 2003 खुशी 2003 दिल परदेसी हो गया 2003 सूर्या 2003 द हीरो 2003 जाल मेजर अमरीश कौल 2003 आउट ऑफ कन्ट्रोल 2002 शरारत 2002 रिश्ते यशपाल चौधरी 2002 बधाई हो बधाई 2002 बाबा तांत्रिक 2002 जानी दुश्मन 2001 नायक 2001 ग़दर अशरफ अली 2001 मुझे कुछ कहना है 2001 यादें जगदीश कुमार मल्होत्रा 2001 चोरी चोरी चुपके चुपके 2001 सेंसर 2001 ज़ुबेदा सुलेमान सेठ 2001 ऑन विंग्स ऑफ फायर 2000 ढ़ाई अक्षर प्रेम के 2000 शहीद ऊधम सिंह 2000 बादल ए सी पी रंजीत सिंह 2000 मोहब्बतें 1999 काला साम्राज्य 1999 बादशाह 1999 तक्षक नाहर सिंह 1999 ताल जगमोहन मेहता 1999 आरज़ू दयाशंकर 1999 गैर 1999 लाल बादशाह 1999 ज़ुल्मी बलराज दत्त 1999 जय हिन्द 1998 चाची ४२० दुर्गाप्रसाद भारद्वाज 1998 सलाखें 1998 श्याम घनश्याम 1998 बारूद 1998 डोली सजा के रखना 1998 झूठ बोले कौआ काटे 1998 धूँढते रह जाओगे 1998 चाइना गेट 1997 परदेस 1997 कोयला 1997 इतिहास बलवंत 1997 निर्णायक 1997 तराज़ू 1997 विरासत 1997 हिमालय पुत्र 1997 ढाल 1997 महानता 1996 सरदारी बेगम 1996 काला पानी मिर्ज़ा ख़ान 1996 घातक शंभुनाथ 1996 जान 1996 बेकाबू 1996 विजेता 1996 जीत गजराज चौधरी 1996 दिलजले 1996 तू चोर मैं सिपाही गजेन्द्र सिंह 1995 गुंडाराज पुलिस इंस्पेक्टर 1995 दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे 1995 जय विक्रान्ता जसवंत सिंह 1995 कर्तव्य 1995 हकीकत 1995 करन अर्जुन दुर्जन सिंह 1995 ओ डार्लिंग यह है इण्डिया 1995 मैदान-ए-जंग 1995 हलचल शोभराज 1995 प्रेम 1995 पापी देवता रतन सेठ 1994 एलान 1994 द्रोह काल आई जी पी पाठक 1994 परमात्मा 1994 पहला पहला प्यार 1994 महा शक्तिशाली 1994 तेजस्वनी लाला खुराना 1993 गर्दिश 1993 कुंदन शमशेर सिंह 1993 संग्राम 1993 सूरज का सातवाँ घोड़ा 1993 दिव्य शक्ति 1993 दामिनी 1992 अश्वमेधम 1992 टाइम मशीन 1992 वंश 1992 तहलका 1992 मुस्कुराहट 1992 ज़िन्दगी एक जुआ भल्ला 1992 आई लव यू 1992 विश्वात्मा 1992 दीवाना 1991 आदमी और अप्सरा 1991 आदित्य 1991 कोहराम 1991 मस्त कलंदर 1991 सौदागर 1991 इरादा 1991 शिकारी 1991 धर्म संकट 1991 दलपति 1991 अज़ूबा 1991 बेनाम बादशाह 1991 जिगरवाला 1991 फूल और काँटे 1991 त्रिनेत्र सिंघानिया 1991 नम्बरी आदमी राना 1990 घायल बलवंत राय 1990 हातिमताई 1990 आज का अर्जुन 1990 तेजा 1990 जीने दो 1990 मुकद्दर का बादशाह 1990 दूध का कर्ज़ रघुवीर सिंह 1990 किशन कन्हैया 1989 जादूगर महाप्रभु जगतसागर चिन्तामणि 1989 निगाहें 1989 तुझे नहीं छोड़ूँगा 1989 दो कैदी के के 1989 सूर्या 1989 फर्ज़ की जंग 1989 बटवारा 1989 आग से खेलेंगे 1989 राम लखन 1989 मिल गयी मंज़िल मुझे 1989 मुज़रिम ख़ान 1989 नफ़रत की आँधी 1989 त्रिदेव 1989 हिसाब खून का 1989 ज़ुर्रत 1989 नाइंसाफी बिल्ला 1989 इलाका 1989 दाता 1988 आखिरी पोरतम 1988 हम फ़रिश्ते नहीं 1988 शहँशाह 1988 यतीम 1988 वारिस 1988 हमारा खानदान 1988 मोहब्बत के दुश्मन शहबाज़ ख़ान 1988 गंगा जमुना सरस्वती ठाकुर हंसराज सिंह 1988 रुख़सत जगदीश चोपड़ा 1988 मर मिटेंगे अजीत सिंह 1988 कमांडो 1988 खून बहा गंगा में 1988 दयावान इंस्पेक्टर रतन सिंह 1988 साजिश 1987 इनाम दस हज़ार 1987 सड़क छाप 1987 प्यार करके देखो 1987 डांस डांस 1987 शेर शिवाजी 1987 मददगार 1987 दादागिरी भानु प्रताप 1987 दिल तुझको दिया मोहला 1987 परम धरम 1987 लोहा 1987 हवालात 1987 मिस्टर इण्डिया 1987 जवाब हम देंगे सेठ धनराज 1986 एक और सिकन्दर 1986 रिकी 1986 तमस 1986 काँच की दीवार भूप सिंह 1986 प्यार हो गया 1986 जाँबाज़ राना विक्रम सिंह 1986 नगीना 1986 नसीब अपना अपना भीम सिंह 1986 सल्तनत 1986 असली नकली 1986 दोस्ती दुश्मनी 1986 समुन्दर 1986 आप के साथ 1986 मेरा धर्म 1985 आज के शोले बलबीर गुप्ता 1985 कर्मयुद्ध 1985 पत्थर दिल 1985 मोहब्बत चौधरी 1985 ज़बरदस्त बलराम सिंह 1985 अघात 1985 निशान 1985 तेरी मेहरबानियाँ ठाकुर विजय सिंह 1985 पैसा ये पैसा जुगल 1985 मेरी जंग 1985 फाँसी के बाद 1984 ज़ख्मी शेर 1984 झूठा सच 1984 इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम 1984 इंसाफ कौन करेगा भानुप्रताप 1984 यह देश 1984 कसम पैदा करने वाले की 1984 दुनिया बलवंत सिंह कालरा 1984 गंगवा विशेष भूमिका 1984 आवाज़ 1984 मशाल 1984 पार्टी डॉक्टर 1984 जागीर 1983 अर्द्ध सत्य 1983 मंडी 1983 हादसा 1983 कुली 1983 अंधा कानून 1983 हीरो 1982 जॉनी आई लव यू ज़ालिम सिंह 1982 मैं इन्तकाम लूँगी 1982 आदत से मजबूर 1982 अपना बना लो 1982 विजेता 1982 शक्ति जे वर्मा 1982 गाँधी 1982 तहलका 1982 विधाता 1982 अशान्ति 1981 क्रोधी 1981 कलयुग किशन चाँद 1981 नसीब 1980 चन परदेसी 1980 दोस्ताना बलवंत सिंह 1980 मान अभिमान 1980 गहराई 1980 पत्थर से टक्कर 1980 कुर्बानी 1980 हम पाँच वीर प्रताप सिंह 1980 आक्रोश 1979 लखन 1979 हमारे तुम्हारे 1979 जानी दुश्मन 1979 सावन को आने दो 1979 नैया 1978 कोन्दुरा 1977 भूमिका 1977 पापी 1977 ईमान धर्म धर्मदयाल 1977 अलीबाबा मरज़ीना जब्बार 1976 मंथन 1975 निशांत 1975 सलाखें मास्टर 1973 कादू 1973 हिन्दुस्तान की कसम 1971 शांता! कोर्ट चालू आहे मराठी फ़िल्म 1971 रेशमा और शेरा रहमत ख़ान 1971 हलचल सरकारी वादी वकील 1970 प्रेम पुजारी इन्हें भी देखें हिन्दी सिनेमा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता श्रेणी:हिन्दी खलनायक श्रेणी:1932 में जन्मे लोग श्रेणी:2005 में निधन श्रेणी:लाहौर के लोग
पुर्तगाल
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+रिपब्लिका पोर्तुगुएसा सूत्रवाक्य: कोई नहीं Location of Portugalराजभाषा पुर्तगाली भाषाराजधानी लिस्बनसबसे बड़ा शहर लिस्बनराष्ट्रपति: मारसेलो रेवेलो डिसूसाप्रधानमंत्री: एंटोनियो कोस्टा क्षेत्रफल  - कुल  - % जल109 वाँ स्थान 92,391 वर्ग कि मी 0.5%जनसँख्या  - कुल (2004)  - घनत्व75 वाँ स्थान 10,524,145 114/कि मी;<संप्रभुताआज़ादी8681095मुद्रा यूरो (€)1 समय क्षेत्र  - युरोपियन समर टाइम में WET2, ग्रिनविच मानक समययुरोपियन समर टाइम (ग्रिनविच मानक समय+1) राष्ट्रगीत आ पोर्तुगीजा इंटरनेट डोमेन .pt कालिंग कोड +351 <small> 1 1999से पूर्व: एस्क्यूडो. 2 अजोरेस: ग्रिनविच मानक समय-1; UTC युरोपियन ग्रीष्मकालीन समयमें पुर्तगाली गणराज्य यूरोप खंड में स्थित देश है। यह देश स्पेन के साथ आइबेरियन प्रायद्वीप बनाता है। इस राष्ट्र का भाषा पुर्तगाली भाषा है। इस राष्ट्र का राजधानी लिस्बन है। पुर्तगाल दक्षिण-पश्चिमी यूरोप में इबेरियन प्रायद्वीप पर स्थित एक देश है, और जिसके क्षेत्र में अज़ोरेस और मदीरा के मैकरोनेशियन द्वीपसमूह भी शामिल हैं। यह महाद्वीपीय यूरोप में सबसे पश्चिमी बिंदु है, इसकी मुख्य भूमि पश्चिम और दक्षिण सीमा उत्तरी अटलांटिक महासागर के साथ है और उत्तर और पूर्व में, पुर्तगाल-स्पेन सीमा यूरोपीय संघ में सबसे लंबी निर्बाध सीमा-रेखा बनाती है। इसके द्वीपसमूह अपनी क्षेत्रीय सरकारों के साथ दो स्वायत्त क्षेत्र बनाते हैं। मुख्य भूमि में, अलेंटेज़ो क्षेत्र सबसे बड़े क्षेत्र पर कब्जा करता है, लेकिन यूरोप में कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक है। लिस्बन राजधानी और जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़ा शहर है, यह पोर्टो और अल्गार्वे के साथ-साथ पर्यटकों के लिए मुख्य स्थान भी है। पुर्तगाली नाविक वास्को द गामा ने 1498 AD में भारत के समुद्री मार्ग की खोज की थी। सर्वप्रथम ग्लास का निर्माण इसी देश ने किया था। यह भी देखिए wikt:पुर्तगाल (विक्षनरी) सन्दर्भ श्रेणी:पुर्तगाल श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:इबेरिया प्रायद्वीप श्रेणी:पुर्तगाली-भाषी देश व क्षेत्र
पोर्तुगल
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REDIRECTपुर्तगाल
उन्नाव
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उन्नाव (Unnao) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है उन्नाव जिले की सुरुआत लखनऊ सीमा से सोहरामऊ से होती है , सोहरामऊ लखनऊ कानपुर रोड पर सबसे ज्यादा बस्ती वाला कस्बा है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 भूगोल उन्नाव जनपद लखनऊ तथा कानपुर के बीच में स्थित है। उन्नाव की सुरूवात सई नदी के पुल से सोहरामऊ से होती है यह लखनऊ उन्नाव की सीमा पर स्थित है । यह लखनऊ से लगभग 60 किलोमीटर तथा कानपुर से 18 किलोमीटर दूर है। दोनों शहरों को जोड़ने वाले राजमार्ग व रेलमार्ग यहाँ से गुज़रते है। जनपद के पूर्व में सईं नदी व लखनऊ नगर की सीमाएँ, पश्चिम में गंगा नदी और कानपुर नगर की सीमाएँ, उत्तर में हरदोई, दक्षिण में रायबरेली व दक्षिण-पश्चिम में फतेहपुर है। जनपद मुख्यालय से 6 किमी की दूरी पर शारदा नहर के तट पर स्थित प्रियदर्शी नगर (हिन्दूखेड़ा) ग्राम में सम्राट बृहद्रथ बुद्ध विहार में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न अशोक स्तम्भ निर्मित है। ऐतिहासिक सन्दर्भ पौराणिक मान्यता के अनुसार उन्नाव के गंगा तट के परियर नामक स्थल पर बैठकर महर्षि वाल्मीकि ने दुनिया के प्रथम महाकाव्य "रामायण" की रचना की थी। मान्यता है कि लव-कुुुश ने राम की सेना को यहीं परास्त किया था। गौतम बुद्ध ने जनपद के बांगरमऊ ब्लॉक के नेवल जगटापुर ग्राम में 512 ई.पू. में 16वाँ वर्षावास व्यतीत किया। नगर को अभी तक अनेक देशभक्त, हिंदी साहित्य के पुरोधाओ की धरती से जाना जाता है। ह्वेन त्सांग ने जनपद के बांगरमऊ स्थल का जिक्र ना-फो-टु-पो-कु-लो नाम से किया है। 1857 की क्रांति के बाद तत्काल अवध के बैसवारा चकला को विभाजित करके उत्तरी भाग उन्नाव को नया जनपद बनाया गया। यह धरती लेखकों की कर्म भूमि भी है। साहित्यिक सन्दर्भ हिन्दी साहित्य में इसके पश्चात भगवती चरण वर्मा, नन्ददुलारे वाजपेयी, जगदंबा प्रसाद मिश्रा 'हितैषी' एवं डॉ॰ राम विलास शर्मा, डॉ॰ शिवमंगल सिंह 'सुमन' , प्रतापनारायण मिश्र, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ,आल्हा सम्राट लल्लू बाजपेई , रमई काका दिनेश बैसवारी केे नाम से जाना जाता है। जलवायु इन्हें भी देखें उन्नाव ज़िला उन्नाव स्वर्ण खजाने की घटना सन्दर्भ श्रेणी:उन्नाव ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:उन्नाव ज़िले के नगर *
गोरखपुर
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गोरखपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में, नेपाल की सीमा के पास, गोरखपुर ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध नगर है। यह जिले का प्रशासनिक मुख्यालय और पूर्वोत्तर रेलवे (एन०ई०आर०) का मुख्यालय भी है। "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 गोरखपुर ज़िले की सीमाएँ पूर्व में देवरिया एवं कुशीनगर से, पश्चिम में संत कबीर नगर से, उत्तर में महराजगंज एवं सिद्धार्थनगर से, तथा दक्षिण में मऊ, आज़मगढ़ तथा अम्बेडकर नगर से लगती हैं।North Eastern Railway . Ner.indianrailways.gov.in. Retrieved on 21 October 2011. गोरखपुर का महत्व गोरखपुर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र है, जो अतीत से बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा है। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद, उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, १८वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीताप्रेस। गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन गोरखपुर शहर का रेलवे स्टेशन है। गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार विश्व का सर्वाधिक लम्बा प्लेटफॉर्म यहीं पर स्थित है। यह सन् 1930 में शुरू हुआ। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर भी है, जो इस जिले का प्रमुख मंदिर है। जनसांख्यकीय आँकड़े (आधिकारिक जनगणना 2011 के आँकड़ों के अनुसार) भौगोलिक क्षेत्र 3,483.8 वर्ग किलोमीटर जनसंख्या 44,36,275 लिंग अनुपात 944/1000 ग्रामीण जनसंख्या 81.22% शहरी जनसंख्या 18.78% साक्षरता 73.25% जनसंख्या घनत्व 1,336 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार 32 गांवों को नगर निगम की सीमा में शामिल किया गया है,जिससे जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो गई है और नगरनिगम के आंकड़ो के अनुसार वर्तमान मे गोरखपुर महानगर की आबादी 15 लाख है। शहर का क्षेत्रफल भी 2011 में 145.5 किमी2 से बढ़कर 226.6 किमी2 हो गया है। नाम की उत्पत्ति गोरखपुर शहर और जिले के का नाम प्रसिद्ध तपस्वी सन्त मत्स्येन्द्रनाथ के प्रमुख शिष्य गोरखनाथ के नाम पर पड़ा है।"History – Origin of Name" . gorakhpur.nic.in. Retrieved 13 January 2020."Mallinson, James (2011) 'Nāth Saṃpradāya.' In: Brill Encyclopedia of Hinduism Vol. 3. Brill, pp. 407–428" (PDF). Retrieved 11 January 2020. योगी मत्स्येन्द्रनाथ एवं उनके प्रमुख शिष्य गोरक्षनाथ ने मिलकर सन्तों के सम्प्रदाय की स्थापना की थी। गोरखनाथ मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ गोरखनाथ हठ योग का अभ्यास करने के लिये आत्म नियन्त्रण के विकास पर विशेष बल दिया करते थे और वर्षानुवर्ष एक ही मुद्रा में धूनी रमाये तपस्या किया करते थे। गोरखनाथ मन्दिर में आज भी वह धूनी की आग अनन्त काल से अनवरत सुलगती हुई चली आ रही है। इतिहास प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र में बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ आदि आधुनिक जिले शामिल थे। वैदिक लेखन के मुताबिक, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सूर्यवंश के संस्थापक थे जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के राम को सभी अच्छी तरह से जानते हैं। पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छ्ठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज के लिये जाने से पहले अपने राजसी वस्त्र त्याग दिये थे। बाद में उन्होने मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनारा, जो अब कुशीनगर के रूप में जाना जाता है, पर मल्ल राजा हस्तिपाल मल्ल के आँगन में अपना शरीर त्याग दिया था। कुशीनगर में आज भी इस आशय का एक स्मारक है। यह शहर भगवान बुद्ध के समकालीन 24वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की यात्रा के साथ भी जुड़ा हुआ है। भगवान महावीर जहाँ पैदा हुए थे वह स्थान गोरखपुर से बहुत दूर नहीं है। बाद में उन्होने पावापुरी में अपने मामा के महल में महानिर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। यह पावापुरी कुशीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। ये सभी स्थान प्राचीन भारत के मल्ल वंश की जुड़वा राजधानियों (16 महाजनपद) के हिस्से थे। इस तरह गोरखपुर में क्षत्रिय गण संघ, जो वर्तमान समय में मल्ल-सैंथवार के रूप में जाना जाता है, का राज्य भी कभी था। right|280px|thumb| गोरखनाथ मन्दिर के बाहर का चित्र (क्योंकि यहाँ अन्दर का चित्र लेना वर्जित है) इक्ष्वाकु राजवंश के बाद मगध पर जब नंद राजवंश द्वारा चौथी सदी में विजय प्राप्त की उसके बाद गोरखपुर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। भारत का महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो मौर्य वंश का संस्थापक था, उसका सम्बन्ध पिप्पलीवन के एक छोटे से प्राचीन गणराज्य से था। यह गणराज्य भी नेपाल की तराई और कसिया में रूपिनदेई के बीच उत्तर प्रदेश के इसी गोरखपुर जिले में स्थित था। 10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया। राजा विकास संकृत्यायन का जन्म स्थान भी यहीं रहा है। मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू सन्त गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम दिया गया था। हालांकि गोरक्षनाथ की जन्म तिथि अभी तक स्पष्ट नहीं है, तथापि जनश्रुति यह भी है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का निमन्त्रण देने उनके छोटे भाई भीम स्वयं यहाँ आये थे। चूँकि गोरक्षनाथ जी उस समय समाधिस्थ थे अत: भीम ने यहाँ कई दिनों तक विश्राम किया था। उनकी विशालकाय लेटी हुई प्रतिमा आज भी हर साल तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है। 12वीं सदी में, गोरखपुर क्षेत्र पर उत्तरी भारत के मुस्लिम शासक मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की थी बाद में यह क्षेत्र कुतुबुद्दीन ऐबक और बहादुरशाह, जैसे मुस्लिम शासकों के प्रभाव में कुछ शताब्दियों के लिए बना रहा। शुरुआती 16वीं सदी के प्रारम्भ में भारत के एक रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर भी यहीं रहते थे और मगहर नाम का एक गाँव (वर्तमान संतकबीरनगर जिले में स्थित), जहाँ उनके दफन करने की जगह अभी भी कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, गोरखपुर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है। १६वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने साम्राज्य के पुनर्गठन पर, जो पाँच सरकार स्थापित की थीं सरकार नाम की उन प्रशासनिक इकाइयों में अवध प्रान्त के अन्तर्गत गोरखपुर का नाम मिलता है। गोरखपुर 1803 में सीधे ब्रिटिश नियन्त्रण में आया। यह 1857 के विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में रहा और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसने एक प्रमुख भूमिका निभायी। गोरखपुर जिला चौरीचौरा की 4 फ़रवरी 1922 की घटना जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई, के बाद चर्चा में आया जब पुलिस अत्याचार से गुस्साये 2000 लोगों की एक भीड़ ने चौरीचौरा का थाना ही फूँक दिया जिसमें उन्नीस पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी। आम जनता की इस हिंसा से घबराकर महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन यकायक स्थगित कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक देशव्यापी प्रमुख क्रान्तिकारी दल गठित हुआ जिसने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप दल के प्रमुख क्रन्तिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल' को गोरखपुर जेल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भाग लेने के लिये फाँसी दे दी गयी। 19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की गयी वह राजघाट नाम का स्थान गोरखपुर में ही राप्ती नदी के तट पर स्थित है। सन 1934 में यहाँ एक भूकम्प आया था जिसकी तीव्रता 8.1 रिक्टर पैमाने पर मापी गयी, उससे शहर में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था। जिले में घटी दो अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं ने 1942 में शहर को और अधिक चर्चित बनाया। प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के बाद शीघ्र ही 9 अगस्त को जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार किया गया था और इस जिले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने यहाँ की जेल में अगले तीन साल बिताये। सहजनवा तहसील के पाली ब्लॉक अन्तर्गत डोहरिया गाँव में 23 अगस्त को आयोजित एक विरोध सभा पर ब्रिटिश सरकार के सुरक्षा बलों ने गोलियाँ चलायीं जिसके परिणामस्वरूप अकारण नौ लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये। एक शहीद स्मारक आज भी उस स्थान पर खड़ा है। भूगोल यह नगर राप्ती और रोहिणी नामक दो नदियों के तट पर बसा हुआ है। नेपाल से निकलने वाली इन दोनों नदियों में सहायक नदियों का पानी एकत्र हो जाने से कभी-कभी इस क्षेत्र में भयंकर बाढ भी आ जाती है। यहाँ एक बहुत बड़ा तालाब भी है जिसे रामगढ़ ताल कहते हैं। यह बारिश के दिनों में अच्छी खासी झील के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिससे आस-पास के गाँवों की खेती के लिये पानी की कमी नहीं रहती। अर्थव्यवस्था गोरखपुर महानगर की अर्थव्यवस्था सेवा-उद्योग पर आधारित है। यहाँ का उत्पादन उद्योग पूर्वांचल के लोगों को बेहतर शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधायें, जो गांवों की तुलना में उपलब्ध कराता है जिससे गांवों से शहर की ओर पलायन रुकता है। एक बेहतर भौगोलिक स्थिति और उप शहरी पृष्ठभूमि के लिये शहर की अर्थव्यवस्था सेवा में वृद्धि पर निश्चित रूप से टिकी हुई है। शहर हाथ से बुने कपडों के लिये प्रसिद्ध है यहाँ का टेराकोटा उद्योग अपने उत्पादों के लिए जाना जाता है। अधिक से अधिक व्यावसायिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखायें भी हैं। विशेष रूप में आई०सी०आई०सी०आई०, एच०डी०एफ०सी० और आई०डी०बी०आई० बैंक जैसे निजी बैंकों ने इस शहर में अच्छी पैठ बना रखी है। शहर के भौगोलिक केन्द्र "गोलघर" में कई प्रमुख दुकानों, होटलों, बैंकों और रेस्तराँ के रूप में बलदेव प्लाजा शॉपिंग मॉल शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बख्शीपुर में भी कई शॉपिंग माल हैं। यहाँ के "सिटी माल" में 3 स्क्रीन वाला आइनॉक्स मल्टीप्लेक्स भी है जो फिल्म प्रेमियों के लिये एक आकर्षण है। यहाँ एक वाटर पार्क भी है। संस्कृति गोरखपुर शहर की संस्कृति अपने आप में अद्भुत है। यहाँ परम्परा और संस्कृति का संगम प्रत्येक दिन सुरम्य शहर में देखा जा सकता है। जब आप का दौरा गोरखपुर शहर में हो तो जीवन और गति का सामंजस्य यहाँ आप भली-भाँति देख सकते हैं। सुन्दर और प्रभावशाली लोक परम्पराओं का पालन करने में यहाँ के निवासी नियमित आधार पर अभ्यस्त हैं। यहाँ के लोगों की समृद्ध संस्कृति के साथ लुभावनी दृश्यावली का अवलोकन कर आप मन्त्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते। गोरखपुर की महिलाओं की बुनाई और कढ़ाई, लकड़ी की नक्काशी, दरवाजों और उनके शिल्प-सौन्दर्य, इमारतों के बाहर छज्जों पर छेनी-हथौडे का बारीक कार्य आपका मन मोह लेगा। गोरखपुर में संस्कृति के साथ-साथ यहाँ का जन-जीवन बड़ा शान्त और मेहनती है। देवी-देवताओं की छवियों, पत्थर पर बने बारीक कार्य देखते ही बनते हैं। ब्लॉकों से बनाये गये हर मन्दिर को सजाना यहाँ की एक धार्मिक संस्कृति है। गोरखपुर शहर में स्वादिष्ट भोजन के कई विकल्प हैं। रामपुरी मछली पकाने की परम्परागत सांस्कृतिक पद्धति और अवध के काकोरी कबाब की थाली यहाँ के विशेष व्यंजन हैं। गोरखपुर संस्कृति का सबसे बड़ा भाग यहाँ के लोक-गीतों और लोक-नृत्यों की परम्परा है। यह परम्परा बहुत ही कलात्मक है और गोरखपुर संस्कृति का ज्वलन्त हिस्सा है। यहाँ के बाशिन्दे गायन और नृत्य के साथ काम-काज के लम्बे दिन का लुत्फ लेते हैं। वे विभिन्न अवसरों पर नृत्य और लोक-गीतों का प्रदर्शन विभिन्न त्योहारों और मौसमों में वर्ष के दौरान करते है। बारहो महीने बरसात और सर्दियों में रात के दौरान आल्हा, कजरी, कहरवा और फाग गाते हैं। गोरखपुर के लोग हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, मृदंग, नगाडा, थाली आदि का संगीत-वाद्ययन्त्रों के रूप में भरपूर उपयोग करते हैं। सबसे लोकप्रिय लोक-नृत्य कुछ त्योहारों व मेलों के विशेष अवसर पर प्रदर्शित किये जाते हैं। विवाह के मौके पर गाने के लिये गोरखपुर की विरासत और परम्परागत नृत्य उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गोरखपुर प्रसिद्ध बिरहा गायक बलेसर, भोजपुरी लोकगायक मनोज तिवारी, मालिनी अवस्थी, मैनावती आदि की कर्मभूमि रहा है। साहित्य रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर (1440-1518) यहीं के थे। उनका मगहर नाम के एक गाँव (गोरखपुर से 20 किमी दूर) देहान्त हुआ। कबीर दास ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने देशवासियों में शान्ति और धार्मिक सद्भाव स्थापित करने की कोशिश की। उनकी मगहर में बनी दफन की जगह तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है। मुंशी प्रेमचंद (1880-1936)], भारत के एक महान हिन्दी उपन्यासकार, गोरखपुर में रहते थे। वह घर जहाँ वे रहते थे और उन्होंने अपना साहित्य लिखा उसके समीप अभी भी एक मुंशी प्रेमचंद पार्क उनके नाम पर स्थापित है। संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान तथा हिन्दी साहित्यकार और सफल सम्पादक विद्यानिवास मिश्र यहीं के थे। फिराक गोरखपुरी (1896-1982, पूरा नाम : रघुपति सहाय फिराक), प्रसिद्ध उर्दू कवि, गोरखपुर में उनका बचपन का घर अभी भी है। वह बाद में इलाहाबाद में चले गया जहाँ वे लम्बे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे। परमानन्द श्रीवास्तव (जन्म: 10 फ़रवरी 1935 - मृत्यु: 5 नवम्बर 2013) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा। कई पुस्तकों के लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका आलोचना का सम्पादन भी किया था। आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। लम्बी बीमारी के बाद उनका गोरखपुर में निधन हो गया। प्रसिद्ध संगीत निर्देशक लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का जन्म इसी शहर गोरखपुर में हुआ था। लोग जनसंख्या की प्रमुख संरचना में हिन्दू धर्म के कायस्थ, ब्राह्मण, क्षत्रिय, मारवाड़ी वैश्य समाज व मुसलमान, सिख, ईसाई, शामिल हैं। कुछ समय से बिहार के लोग भी आकर गोरखपुर में बसने लगे हैं। शहर में स्थित दुर्गाबाड़ी बंगाली समुदाय के सैकड़ों लोगों का भी निवासस्थल है जो कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक विलक्षण बात है। गोरखपुर की भाषा में हिन्दी और भोजपुरी शामिल है। इन दोनों भाषाओं का भारत में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। हिन्दी भाषा तो अधिकांश भारतीयों की मातृभाषा है परन्तु जो हिन्दी गोरखपुर में बोली जाती है उसकी भाषा में कुछ स्थानीय भिन्नता है। लेकिन यह शहर में सबसे व्यापक रूप से प्रयुक्त भाषा है। शहर की दूसरी भाषा भोजपुरी है। इसमें उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में बोली जाने वाली विशेष रूप से भोजपुरी की कई बोलियाँ शामिल हैं। भोजपुरी संस्कृत, हिन्दी, उर्दू और अन्य भाषाओं के हिन्द-आर्यन आर्यन शब्दावली के मिश्रणों से बनी है। भोजपुरी भाषा बिहारी भाषाओं से भी सम्बन्धित है। यह भोजपुरी भाषा ही है जो फिजी, त्रिनिदाद, टोबैगो, गुयाना, मारीशस और सूरीनाम में भी बोली जाती है। दर्शनीय स्थल उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में गोरखपुर पर्यटन परिक्षेत्र एक विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ है। इसके अंतर्गत गोरखपुर- मण्डल, बस्ती-मण्डल एवं आजमगढ़-मण्डल के कई जनपद है। अनेक पुरातात्विक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों को समेटे हुए इस पर्यटन परिक्षेत्र की अपनी विशिष्ट परम्पराए हैं। सरयू, राप्ती, गंगा, गण्डक, तमसा, रोहिणी जैसी पावन नदियों के वरदान से अभिसंचित, भगवान बुद्ध, तीर्थकर महावीर, संत कबीर, गुरु गोरखनाथ की तपःस्थली, सर्वधर्म-सम्भाव के संदेश देने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों के देवालयों और प्रकृति द्वारा सजाये-संवारे नयनाभिराम पक्षी-विहार एवं अभयारण्यों से परिपूर्ण यह परिक्षेत्र सभी वर्ग के पर्यटकों का आकर्षण-केन्द्र है। गोरखनाथ मन्दिर गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में स्थित नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक सिद्ध पुरूष श्री मत्स्येन्द्रनाथ (निषाद) के शिष्य परम सिद्ध गुरु गोरखनाथ का अत्यन्त सुन्दर भव्य मन्दिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 'खिचड़ी-मेला' का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु/पर्यटक सम्मिलित होते हैं। यह एक माह तक चलता है। विष्णु मन्दिर यह मेडिकल कॉलेज मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर शाहपुर मोहल्ले में स्थित है। इस मन्दिर में 12वीं शताब्दी की पालकालीन काले कसौटी पत्थर से निर्मित भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यहां दशहरा के अवसर पर पारम्परिक रामलीला का आयोजन होता है। गीताप्रेस रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर रेती चौक के पास स्थित गीताप्रेस में सफ़ेद संगमरमर की दीवारों पर श्रीमद्भगवदगीता के सम्पूर्ण 18 अध्याय के श्लोक उत्कीर्ण है। गीताप्रेस की दीवारों पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की 'चित्रकला' प्रदर्शित हैं। यहां पर हिन्दू धर्म की दुर्लभ पुस्तकें, हैण्डलूम एवं टेक्सटाइल्स वस्त्र सस्ते दर पर बेचे जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण का प्रकाशन यहीं से किया जाता है। विनोद वन रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर दूर गोरखपुर-कुशीनगर मार्ग पर अत्यन्त सुन्दर एवं मनोहारी छटा से पूर्ण मनोरंजन केन्द्र (पिकनिक स्पॉट) स्थित है जहाँ बारहसिंघे व अन्य हिरण, अजगर, खरगोश तथा अन्य वन्य पशु-पक्षी विचरण करते हैं। यहीं पर प्राचीन बुढ़िया माई का स्थान भी है, जो नववर्ष, नवरात्रि तथा अन्य अवसरों पर कई श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। गीतावाटिका गोरखपुर-पिपराइच मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित गीतावाटिका में राधा-कृष्ण का भव्य मनमोहक मन्दिर स्थित है। इसकी स्थापना प्रख्यात समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी। रामगढ़ ताल यह तालाब गोररखपुर शहर के अन्दर स्थित एक विशाल तालाब (ताल) है। यह रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दक्षिण में 1700 एकड़ के विस्तृत भू-भाग में स्थित है। इसका परिमाप लगभग १८ किमी है। यह पर्यटकों के लिए अत्यन्त आकर्षक केन्द्र है। यहां पर जल-क्रीड़ा केन्द्र, नौकाविहार, बौद्ध संग्रहालय, तारा मण्डल, चम्पादेवी पार्क एवं अम्बेडकर उद्यान आदि दर्शनीय स्थल हैं। इमामबाड़ा गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस इमामबाड़ा का निर्माण हज़रत बाबा रोशन अलीशाह की अनुमति से सन्‌ 1717 ई० में नवाब आसफुद्दौला ने करवाया। उसी समय से यहां पर दो बहुमूल्य ताजियां एक स्वर्ण और दूसरा चांदी का रखा हुआ है। यहां से मुहर्रम का जुलूस निकलता है। प्राचीन महादेव झारखंडी मन्दिर गोरखपुर शहर से देवरिया मार्ग पर कूड़ाघाट बाज़ार के निकट शहर से 4 किलोमीटर पर यह प्राचीन शिव स्थल रामगढ़ ताल के पूर्वी भाग में स्थित है। मुंशी प्रेमचन्द उद्यान गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मनोरम उद्यान प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द के नाम पर बना है। इसमें प्रेमचन्द्र के साहित्य से सम्बन्धित एक विशाल पुस्तकालय निर्मित है तथा यह उन दिनों का द्योतक है जब मुंशी प्रेमचन्द गोरखपुर में एक शिक्षक थे। सूर्यकुण्ड मन्दिर गोरखपुर नगर के एक कोने में रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित ताल के मध्य में स्थित इस स्थान में के बारे में यह विख्यात है कि भगवान श्री राम ने यहाँ पर विश्राम किया था जो कि कालान्तर में भव्य सुर्यकुण्ड मन्दिर बना। 10 एकड में फैला है। महत्वपूर्ण स्थान गोरखनाथ मन्दिर (एक सन्त समर्पित मठ) प्रणव मन्दिर ॐकार अश्राम (महर्षि ओमकरानन्द द्वारा स्थापित ) गीता प्रेस आरोग्य मन्दिर भारतीय वायुसेना (जगुआर स्टेशन) दुनिया का सबसे बड़ा सहारा इंडिया परिवार (सबसे पहले पूरी दुनिया में स्थापित) सरस्वती शिशु मन्दिर (सबसे पहले पूरी दुनिया में स्थापित शिक्षण सस्थान ???) भगवान बुद्ध संग्रहालय (एक बौद्ध संग्रहालय) तारामण्डल (मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह द्वारा स्थापित) गीता वाटिका सूरज कुण्ड रामगढ़ ताल (झील) सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम गोरखा राइफल्स रेजीमेण्ट नीर-निकुंज (उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा पानी का पार्क) विष्णु मन्दिर बुढिया माता मन्दिर ( कुस्मही मे) शाही जामा मस्जिद (उर्दू बाजार में पुराने शहर की एक प्रसिद्ध मस्जिद) इमामबाड़ा (रोशन अली शाह नामक सूफी सन्त की दरगाह) इन्दिरा गान्धी बाल विहार जामा मस्जिद रसूलापुर जामा मस्जिद (गोरखनाथ मन्दिर के पास) नूर मस्जिद (चिल्मापुर रुस्तमपुर) मदीना मस्जिद (रेती रोड) गाया-ए-मस्जिद (मदरसा चौक बसन्तपुर) रेलवे संग्रहालय विनोद वन चिड़ियाघर (सबसे बड़ा) रेडियो स्टेशन ऑल इंडिया रेडियो (100.10 मेगाहर्ट्ज) फीवर fm(94.3 मेगा हर्ट्ज) बिग fm(92.7 मेगा हर्ट्ज) रेडियो सिटी(91.9 मेगा हर्ट्ज) मुख्य स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, बी० आर० डी० एम० एम० एम० मैडिकल कॉलेज, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और कई निजी इंजीनियरिंग कॉलेज वर्षों से यहाँ हैं, एक पुरुष पॉलिटेक्निक, एक महिला पॉलिटेक्निक और कई औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) यहाँ स्थित हैं। कुछ नए प्रौद्योगिकी और प्रबन्धन विद्यालय, डेण्टल कॉलेज आदि के अतिरिक्त शहर में कुछ अन्य संस्थान जैसे निजी कॉलेज भी खोले गये हैं जो आस-पास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। बालकों के लिये राजकीय जुबिली इण्टर कॉलेज, तथा बालिकाओं के लिये अयोध्यादास राजकीय कन्या इण्टर कॉलेज स्थापित है। दिव्यांगजनों के पुनर्वास हेतु समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (दिव्यांगजन) की स्थापना गोरखपुर में की गयी है I वर्तमान समय में यह संस्थान सीतापुर नेत्र चिकित्सालय के परिसर में अस्थायी भवन में संचालित किया जा रहा है I इसका स्थाई भवन बी. आर.डी. मेडिकल कॉलेज परिसर में निर्माणाधीन है I यहाँ दिव्यांगजनों की समस्त समस्याओं का निदान एक ही छत के नीचे उपलब्ध है I लाल बहादुर शास्त्री इन्टर कालेज जगदीशपुर,गोरखपुर नाथ चंद्रावत महाविद्यालय जगदीशपुर, गोरखपुर एल० पी० के० इण्टर कॉलेज बसडीला सरदार नगर गोरखपुर नगर गोरखपुर इंटरमीडिएट कॉलेज रामपुरवा खजनी गोरखपुर श्री गणेश पाण्डेय इंटर कॉलेज कटघर खजनी गोरखपुर सरस्वती विद्या मंदिर आर्य नगर, गोरखपुर बापू इण्टर कॉलेज पीपीगंज गोरखपुर राजकीय जुबिली इण्टर कॉलेज महाराणा प्रताप इण्टर कालेज गोरखपुर संस्कृति पब्लिक स्कूल, रानी डीहा दिव्यनगर खोराबार मारवाड़ बिज़नेस स्कूल गोरखपुर (कॉलेज) सेंट पॉल स्कूल, मोघलपुर अयोध्या दास राजकीय कन्या इण्टर कॉलेज कार्मल गर्ल्स स्कूल भगवती देवी कन्या इण्टर कॉलेज महात्मा गाँधी इण्टर कॉलेज सरस्वती शिशु मन्दिर सीनियर सेकेण्डरी स्कूल नेहरु इण्टर कालेज, बिछिया जवाहर नवोदय विद्यालय, पीपीगंज, गोरखपुर। डी० बी० इण्टर कॉलेज स्प्रिंगर पब्लिक स्कूल एच० पी० चिल्ड्रेंस एकेडमी जी० एन० नेशनल पब्लिक स्कूल सेण्ट जोसेफ स्कूल एन० ई० आर० सीनियर सेकेण्डरी स्कूल लिटिल फ्लावर स्कूल सेण्ट्रल अकादमी डी० ए० वी० इण्टर कॉलेज वायु सेना विद्यालय आर्मी पब्लिक स्कूल केन्द्रीय विद्यालय एम० एस० आई० इण्टर कॉलेज वीरेन्द्रनाथ गांगुली मेमोरियल स्कूल, बशारतपुर इमामबाडा मुस्लिम गर्ल्स इण्टर कॉलेज मारवाड़ इण्टर कॉलेज पूर्वांचल सेन्ट्रल अकेडमी गर्ल्स इण्टर कॉलेज बरईपार रामरूप ब्लॉक गोला गोरखपुर डिग्री कॉलेज नाथ चंद्रावत महाविद्यालय जगदीशपुर गोरखपुर सरस्वती विद्या मंदिर पीजी कॉलेज (महिला), आर्यनगर गोरखपुर इस्लामिया कामर्स कॉलेज सेन्ट एन्ड्रयूज डिग्री कॉलेज डी० वी० एन० डी० कॉलेज गंगोत्री देवी महिला महाविद्यालय मारवाड़ बिजनेस स्कूल श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ, गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर एम० जी० पी० जी० कॉलेज महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय डी० ए० वी० पी० जी० कालेज, बक्शीपुर नेशनल पी० जी० कालेज, बड़हलगंज गोरखपुर सरस्वती देवी महाविद्यालय नंदापर जैतपुर गोरखपुर श्री मती द्रौपदी देवी महाविद्यालय खजनी गोरखपुर इंजीनियरिंग कॉलेज मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर (उ.प्र.) भारत इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेन्ट सुयस इंस्टीट्यूट ऑफ इनफाँरमेशन टेक्नोलॉजी बुद्धा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (भारत सरकार) कैलाश कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी पॉलिटेक्निक संस्थान गवर्नमेण्ट पॉलिटेक्निक कॉलेज महाराणा प्रताप पॉलीटेक्निक गवर्न्मेण्ट आई० टी० आई० कॉलेज अन्य व्यावसायिक संस्थान फार्मेसी कॉलेज आई० टी० एम० फार्मेसी कॉलेज मेडिकल/डेण्टल कालेज बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज पूर्वांचल दन्त विज्ञान संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, गोरखपुर क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान,गोरखपुर समेकित क्षेत्रीय कौशल विकास,पुनर्वास एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण केंद्र गोरखपुर विश्वविद्यालय दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय आयुष विश्वविद्यालय परिवहन रेल thumb|280px|right|गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन का एक दृश्य गोरखपुर रेलवे स्टेशन भारत के उत्तर पूर्व रेलवे का मुख्यालय है। यहाँ से गुजरने वाली गाडियाँ भारत में हर प्रमुख शहर से इस प्रमुख शहर को सीधा जोड़ती हैं। पुणे, चेन्नई, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर,जौनपुर,उज्जैन, जयपुर, जोधपुर, त्रिवेंद्रम, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, बंगलौर, वाराणसी, अमृतसर, जम्मू, गुवाहाटी और देश के अन्य दूर के भागों के लिये यहाँ से सीधी गाड़ियाँ मिल जाती हैं। सड़क प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों पर एक दूसरे को काटते हुए गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 28 और 29तथा233B(जो गोरखपुर, राजेसुल्तानपुर, आजमगढ) तक जाता है। यहाँ सेफैजाबाद 100किलोमीटर कुशीनगर 50 किलोमीटर,जौनपुर 170 किलोमीटर ,कानपुर 276 किलोमीटर, लखनऊ 231 किलोमीटर, इलाहाबाद 339 किलोमीटर, आगरा 624 किलोमीटर, दिल्ली 783 किलोमीटर, कोलकाता] 770 किलोमीटर, ग्वालियर 730 किलोमीटर, भोपाल 922 किलोमीटर और मुम्बई 1690 किलोमीटर दूर है। इन शहरों के लिये यहाँ से लगातार बस सेवा उपलब्ध है। पूर्व पश्चिम गलियारे की सड़क परियोजना से गोरखपुर सड़क सम्पर्क में पर्याप्त सुधार हुआ है। वायुसेवा गोरखपुर शहर के केंद्र से 5 कि०मी० पूर्व में गोरखपुर हवाईअड्डा स्थित है। एलाएंस एयर, इंडिगो और स्पाइसजेट सहित घरेलू विमान सेवाओं की एक छोटी संख्या दिल्ली, कोलकाता, बैंगलोर, हैदराबाद, प्रयागराज, अहम्दाबाद इत्यादि गंतव्यों तक जाने के लिये नागरिक विमानन सेवाओं का कार्य करती हैं। गोरखपुर में आने वाले कई पर्यटकों के लिये, जो इसे एक केंद्र के रूप में उपयोग करते हैं, उन्हें भगवान बुद्ध के तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिये मेजबानी का कार्य भी यह शहर करता है। यहाँ अब कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का निर्माण भी हो चुका है जो गोरखपुर शहर से 44 कि०मी० की दूरी पर कुशीनगर जिले की सीमा पर स्थित है। प्रसिद्ध व्यक्तित्व प्रसिद्ध हिन्दी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कर्मस्थली भी यह शहर रहा है। क्रान्तिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल, जिन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली, ने भी अपने जीवन के अन्तिम क्षण इसी शहर में बिताये। शचिन दा 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के संस्थापकों में थे बाद में जब उन्हें टी०बी० (क्षय रोग) ने त्रस्त किया तो वे स्वास्थ्य लाभ के लिये भुवाली चले गये वहीं उनकी मृत्यु हुई। उनका घर आज भी बेतियाहाता में है जहाँ एक बहुत बड़ी बहुमंजिला आवासीय इमारत सहारा के स्वामित्व पर खडी कर दी गयी है। इसी घर में कभी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने वाले उनके छोटे भाई स्वर्गीय जितेन्द्र नाथ सान्याल भी रहे। इन्हीं जितेन दा ने सरदार भगत सिंह पर एक किताब थी लिखी थी जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। उर्दू कवि फिराक गोरखपुरी, कमर गोरखपुरी,हॉकी खिलाड़ी प्रेम माया तथा दिवाकर राम, राम आसरे पहलवान और हास्य अभिनेता असित सेन गोरखपुर से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों में हैं। प्रसिद्ध पत्रकार आलोक वर्मा की भी यह कर्मस्थली रहा। महन्त अवैद्यनाथ योगी आदित्यनाथ मुंशी प्रेमचन्द इन्हें भी देखें गुरु गोरखनाथ नाथ सम्प्रदाय गोरखनाथ मन्दिर गीता प्रेस गोरखपुर ज़िला बाहरी कड़ियाँ जिला आधिकारिक वेब साइट प्रसिद्ध लोग गोरखपुर डिविजन की आधिकारिक वेबसाइट सन्दर्भ श्रेणी:गोरखपुर ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:गोरखपुर ज़िले के नगर *
अयोध्या
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अयोध्या () भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में सरयू नदी के तट पर स्थित एक शहर है। यह अयोध्या जिले के साथ-साथ भारत के उत्तर प्रदेश के अयोध्या मंडल का प्रशासनिक मुख्यालय है। अयोध्या शहर का प्रशासन अयोध्या नगर निगम द्वारा किया जाता है, जो शहर का शासी नागरिक निकाय है। अयोध्या को ऐतिहासिक रूप से साकेत के नाम से जाना जाता था। प्रारंभिक बौद्ध और जैन विहित ग्रंथों में उल्लेख है कि धार्मिक नेता गौतम बुद्ध और महावीर इस शहर में आए और रहते थे। जैन ग्रंथों में इसे पांच तीर्थंकरों, ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ की जन्मस्थली के रूप में भी वर्णित किया गया है और इसे पौराणिक भरत चक्रवर्ती के साथ जोड़ा गया है। गुप्त काल के बाद से, कई स्रोतों में अयोध्या और साकेत को एक ही शहर के नाम के रूप में उल्लेख किया गया है। अयोध्या का पौराणिक शहर (रामायण), जिसे वर्तमान में अयोध्या के रूप में जाना जाता है, कोसल के हिंदू देवता राम का जन्मस्थान और महान महाकाव्य रामायण और इसके कई संस्करणों की स्थापना है। यही विश्वास अयोध्या को हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र शहर के रूप में प्रतिष्ठित होने का मुख्य कारण है। राम के जन्मस्थान के रूप में मान्यता के कारण, अयोध्या को हिंदुओं के सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से पहला माना गया है। ऐसा माना जाता है कि राम जन्म स्थान पर एक मंदिर था, जिसे मुगल सम्राट बाबर या औरंगजेब के आदेश से ध्वस्त कर दिया गया था और उसके स्थान पर एक मस्जिद बनाई गई थी। 1992 में, उस स्थान पर विवाद के कारण हिंदू भीड़ द्वारा मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया, जिसका उद्देश्य उस स्थान पर राम के एक भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण करना था। सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने अगस्त से अक्टूबर 2019 तक स्वामित्व मामलों की सुनवाई की और फैसला सुनाया कि कर रिकॉर्ड के अनुसार भूमि सरकार की थी, और इसे हिंदू मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। इसने सरकार को वैकल्पिक देने का भी आदेश दियाध्वस्त बाबरी मस्जिद के बदले में अयोध्या मस्जिद बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जमीन दी जाएगी। राम मंदिर का निर्माण अगस्त 2020 में शुरू हुआ और मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण करके 22 जनवरी 2024 में श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में समस्त कार्य पूर्ण हुए। और पिछले 5 सदियों का विवाद खत्म हुआ। आज देश में नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का कार्य पूरा होने पर घर घर दीप जला कर खुशियां मनाई गई मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था। जैसे कलयुग में त्रेता युग का आगमन हुआ है। व्युत्पत्ति और नाम "अयोध्या" शब्द संस्कृत की क्रिया युद्ध, "लड़ना, युद्ध छेड़ना" का नियमित रूप से बना व्युत्पत्ति है। योध्या भविष्य का निष्क्रिय कृदंत है, जिसका अर्थ है "लड़ा जाना"; आरंभिक a ऋणात्मक उपसर्ग है; इसलिए, संपूर्ण का अर्थ है "लड़ा नहीं जाना चाहिए" या, अंग्रेजी में अधिक मुहावरेदार रूप से, "अजेय"। यह अर्थ अथर्ववेद द्वारा प्रमाणित है, जो इसका उपयोग देवताओं के अजेय शहर को संदर्भित करने के लिए करता है। नौवीं शताब्दी की जैन कविता आदि पुराण में यह भी कहा गया है कि अयोध्या "केवल नाम से नहीं बल्कि दुश्मनों से अजेय होने की योग्यता से अस्तित्व में है"। सत्योपाख्यान इस शब्द की थोड़ी अलग तरह से व्याख्या करते हुए कहता है कि इसका अर्थ है "वह जिसे पापों से नहीं जीता जा सकता" (शत्रुओं के बजाय)। "साकेता" शहर का पुराना नाम है, जो संस्कृत, जैन, बौद्ध, ग्रीक और चीनी स्रोतों में प्रमाणित है। वामन शिवराम आप्टे के अनुसार, "साकेता" शब्द संस्कृत के शब्द सह (साथ) और अकेतेन (घर या भवन) से बना है। आदि पुराण में कहा गया है कि अयोध्या को "अपनी शानदार इमारतों के कारण साकेत कहा जाता है, जिनकी भुजाओं में महत्वपूर्ण बैनर थे"। हंस टी. बेकर के अनुसार, यह शब्द सा और केतु ("बैनर के साथ") जड़ों से लिया जा सकता है; साकेतु का भिन्न नाम विष्णु पुराण में प्रमाणित है। अंग्रेजी में पुराना नाम "अवध" या "औड" था, और 1856 तक यह जिस रियासत की राजधानी थी, उसे आज भी अवध स्टेट के नाम से जाना जाता है। रामायण में अयोध्या को प्राचीन कोशल साम्राज्य की राजधानी बताया गया है। इसलिए इसे "कोशल" भी कहा जाता था। आदि पुराण में कहा गया है कि अयोध्या "अपनी समृद्धि और अच्छे कौशल के कारण" सु-कोशल के रूप में प्रसिद्ध है। अयुत्या (थाईलैंड) और योग्यकार्ता (इंडोनेशिया) शहरों का नाम अयोध्या के नाम पर रखा गया है। इतिहास अंगूठाकार|चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की जैन तीर्थंकर की टेराकोटा प्रतिमा अयोध्या से खुदाई में प्राप्त हुई है अंगूठाकार|अजमेर जैन मंदिर में पौराणिक अयोध्या का सोने की नक्काशी वाला चित्रणप्राचीन भारतीय संस्कृत भाषा के महाकाव्यों, जैसे रामायण और महाभारत में अयोध्या नामक एक पौराणिक शहर का उल्लेख है, जो राम सहित कोसल के प्रसिद्ध इक्ष्वाकु राजाओं की राजधानी थी। न तो इन ग्रंथों में, न ही वेदों जैसे पहले के संस्कृत ग्रंथों में साकेत नामक शहर का उल्लेख है। गैर-धार्मिक, गैर-पौराणिक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ, जैसे पाणिनि की अष्टाध्यायी और उस पर पतंजलि की टिप्पणी, साकेत का उल्लेख करते हैं। बाद के बौद्ध ग्रंथ महावस्तु में साकेत को इक्ष्वाकु राजा सुजाता की सीट के रूप में वर्णित किया गया है, जिनके वंशजों ने शाक्य राजधानी कपिलवस्तु की स्थापना की थी। सबसे पुराने बौद्ध पाली-भाषा ग्रंथों और जैन प्राकृत-भाषा ग्रंथों में कोसल महाजनपद के एक महत्वपूर्ण शहर के रूप में साकेता (प्राकृत में सगेया या सैया) नामक शहर का उल्लेख है। बौद्ध और जैन दोनों ग्रंथों में स्थलाकृतिक संकेत बताते हैं कि साकेत वर्तमान अयोध्या के समान है। उदाहरण के लिए, संयुक्त निकाय और विनय पिटक के अनुसार, साकेत श्रावस्ती से छह योजन की दूरी पर स्थित था। विनय पिटक में उल्लेख है कि दोनों शहरों के बीच एक बड़ी नदी स्थित थी, और सुत्त निपात में साकेत को श्रावस्ती से प्रतिष्ठान तक दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क पर पहला पड़ाव स्थल बताया गया है। चौथी शताब्दी के बाद, कालिदास के रघुवंश सहित कई ग्रंथों में अयोध्या का उल्लेख साकेत के दूसरे नाम के रूप में किया गया है। बाद के जैन विहित पाठ जम्बूद्वीप-पन्नति में भगवान ऋषभनाथ के जन्मस्थान के रूप में विनिया (या विनीता) नामक शहर का वर्णन किया गया है, और इस शहर को भरत चक्रवर्ती के साथ जोड़ा गया है; कल्प-सूत्र में इक्खागाभूमि को ऋषभदेव का जन्मस्थान बताया गया है। जैन पाठ पौमचरिया पर सूचकांक स्पष्ट करता है कि अओझा (अयोध्या), कोसल-पुरी ("कोसल शहर"), विनिया, और सैया (साकेता) पर्यायवाची हैं। उत्तर-विहित जैन ग्रंथों में "अओज्ज्झा" का भी उल्लेख है; उदाहरण के लिए, अवस्सागाकुर्नी इसे कोसल के प्रमुख शहर के रूप में वर्णित करता है, जबकि अवस्सागानिजुट्टी इसे सागर चक्रवर्ती की राजधानी के रूप में वर्णित करता है। अवससागनिजुट्टी का तात्पर्य है कि विनिया ("विनिया"), कोसलपुरी ("कोसलपुरा"), और इक्खागाभूमि अलग-अलग शहर थे, उन्हें क्रमशः अभिनामदान, सुमाई और उसाभा की राजधानियों के रूप में नामित किया गया था। थाना सुत्त पर अभयदेव की टिप्पणी, एक अन्य उत्तर-विहित पाठ, साकेत, अयोध्या और विनीता को एक शहर के रूप में पहचानती है। एक सिद्धांत के अनुसार, पौराणिक अयोध्या शहर ऐतिहासिक शहर साकेत और वर्तमान अयोध्या के समान है। एक अन्य सिद्धांत के अनुसार, पौराणिक अयोध्या एक पौराणिक शहर है, और "अयोध्या" नाम का उपयोग साकेत (वर्तमान अयोध्या) के लिए केवल चौथी शताब्दी के आसपास किया जाने लगा, जब एक गुप्त सम्राट (संभवतः स्कंदगुप्त ) चले गए। उनकी राजधानी साकेत थी, और पौराणिक शहर के नाम पर इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया। वैकल्पिक, लेकिन कम संभावना वाले, सिद्धांतों में कहा गया है कि साकेत और अयोध्या दो निकटवर्ती शहर थे, या कि अयोध्या साकेत शहर के भीतर एक इलाका था। साकेत के रूप में पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या का स्थल ईसा पूर्व पाँचवीं या छठी शताब्दी तक एक शहरी बस्ती के रूप में विकसित हो गया था। इस स्थल की पहचान प्राचीन साकेत शहर के स्थान के रूप में की गई है, जो संभवतः दो महत्वपूर्ण सड़कों, श्रावस्ती - प्रतिष्ठान उत्तर-दक्षिण सड़क, और राजगृह - वाराणसी -श्रावस्ती- तक्षशिला पूर्व-पश्चिम के जंक्शन पर स्थित एक बाज़ार के रूप में उभरा। सड़क। संयुक्त निकाय जैसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में कहा गया है कि साकेत प्रसेनजीत (या पसेनदी; लगभग छठी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व) द्वारा शासित कोसल साम्राज्य में स्थित था, जिसकी राजधानी श्रावस्ती में स्थित थी। बाद की बौद्ध टिप्पणी धम्मपद- अट्ठकथा में कहा गया है कि साकेत शहर की स्थापना राजा प्रसेनजीत के सुझाव पर व्यापारी धनंजय ( विशाखा के पिता) ने की थी। दीघा निकाय इसे भारत के छह बड़े शहरों में से एक के रूप में वर्णित करता है। प्रारंभिक बौद्ध विहित ग्रंथों में श्रावस्ती को कोसल की राजधानी के रूप में उल्लेख किया गया है, लेकिन बाद के ग्रंथों, जैसे जैन ग्रंथों नयाधम्मकहाओ और पन्नवन सुत्तम, और बौद्ध जातक में, साकेत को कोशल की राजधानी के रूप में उल्लेख किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक व्यस्त शहर के रूप में जहां यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है, यह गौतम बुद्ध और महावीर जैसे प्रचारकों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। संयुक्त निकाय और अंगुत्तर निकाय में उल्लेख है कि बुद्ध कभी-कभी साकेत में निवास करते थे। प्रारंभिक जैन विहित ग्रंथों (जैसे कि अंतगदा-दसाओ, अनुत्तरोवैया-दसाओ, और विवागसुया ) में कहा गया है कि महावीर ने साकेत का दौरा किया था; नयाधम्मकहाओ का कहना है कि पार्श्वनाथ ने भी साकेत का दौरा किया था। जैन ग्रंथ, विहित और उत्तर-विहित दोनों, अयोध्या को विभिन्न तीर्थस्थलों के स्थान के रूप में वर्णित करते हैं, जैसे कि साँप, यक्ष पसामिया, मुनि सुव्रतस्वामिन और सुरप्पिया के मंदिर। यह स्पष्ट नहीं है कि पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास मगध सम्राट अजातशत्रु द्वारा कोसल पर विजय प्राप्त करने के बाद साकेत का क्या हुआ। अगली कुछ शताब्दियों तक शहर की स्थिति के बारे में ऐतिहासिक स्रोतों की कमी है: यह संभव है कि शहर माध्यमिक महत्व का एक वाणिज्यिक केंद्र बना रहा, लेकिन मगध के राजनीतिक केंद्र के रूप में विकसित नहीं हुआ, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र में स्थित थी। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान शहर में कई बौद्ध इमारतों का निर्माण किया गया होगा: ये इमारतें संभवतः अयोध्या में वर्तमान मानव निर्मित टीलों पर स्थित थीं। अयोध्या में खुदाई के परिणामस्वरूप एक बड़ी ईंट की दीवार की खोज हुई है, जिसे पुरातत्वविद् बीबी लाल ने एक किले की दीवार के रूप में पहचाना है। यह दीवार संभवतः तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की अंतिम तिमाही में बनाई गई थी। अंगूठाकार|देव वंश के शासक मूलदेव का सिक्का अयोध्या, कोसल में ढाला गया था। अवलोकन: मूलदेवसा, हाथी बाईं ओर का प्रतीक है। रेव: पुष्पांजलि, ऊपर प्रतीक, नीचे साँप। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, साकेत पुष्यमित्र शुंग के शासन के अधीन आ गया प्रतीत होता है। धनदेव के प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के शिलालेख से पता चलता है कि उन्होंने वहां एक राज्यपाल नियुक्त किया था। युग पुराण में साकेत का उल्लेख एक राज्यपाल के निवास के रूप में किया गया है, और इसका वर्णन यूनानियों, मथुराओं और पंचालों की संयुक्त सेना द्वारा हमला किए जाने के रूप में किया गया है। पाणिनि पर पतंजलि की टिप्पणी में साकेत की यूनानी घेराबंदी का भी उल्लेख है। बाद में, साकेत एक छोटे, स्वतंत्र राज्य का हिस्सा बन गया प्रतीत होता है। युग पुराण में कहा गया है कि यूनानियों के पीछे हटने के बाद साकेत पर सात शक्तिशाली राजाओं का शासन था। वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में भी कहा गया है कि कोसल की राजधानी में सात शक्तिशाली राजाओं ने शासन किया था। इन राजाओं की ऐतिहासिकता धनदेव सहित देव वंश के राजाओं के सिक्कों की खोज से प्रमाणित होती है, जिनके शिलालेख में उन्हें कोसल के राजा ( कोसलाधिपति ) के रूप में वर्णित किया गया है। कोसल की राजधानी के रूप में, साकेत ने संभवतः इस अवधि के दौरान श्रावस्ती को महत्व नहीं दिया। पाटलिपुत्र को तक्षशिला से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम मार्ग, जो पहले साकेत और श्रावस्ती से होकर गुजरता था, इस अवधि के दौरान दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो गया प्रतीत होता है, जो अब साकेत, अहिच्छत्र और कान्यकुब्ज से होकर गुजरता है। ऐसा प्रतीत होता है कि देव राजाओं के बाद साकेत पर दत्त, कुषाण और मित्र राजाओं का शासन रहा, हालाँकि उनके शासन का कालानुक्रमिक क्रम अनिश्चित है। बेकर का सिद्धांत है कि पहली शताब्दी ईस्वी के मध्य में दत्त देव राजाओं के उत्तराधिकारी बने और उनके राज्य को कनिष्क ने कुषाण साम्राज्य में मिला लिया। तिब्बती पाठ एनल्स ऑफ ली कंट्री (लगभग 11वीं शताब्दी) में उल्लेख है कि खोतान के राजा विजयकीर्ति, राजा कनिका, गु-ज़ान के राजा और ली के राजा के गठबंधन ने भारत पर चढ़ाई की और सो-केड शहर पर कब्जा कर लिया। इस आक्रमण के दौरान, विजयकीर्ति ने साकेत से कई बौद्ध अवशेष ले लिए, और उन्हें फ्रु-नो के स्तूप में रख दिया। यदि कनिका को कनिष्क के रूप में और तथाकथित को साकेत के रूप में पहचाना जाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि कुषाणों और उनके सहयोगियों के आक्रमण के कारण साकेत में बौद्ध स्थल नष्ट हो गए। अंगूठाकार|धनदेव-अयोध्या शिलालेख, पहली शताब्दी ईसा पूर्व फिर भी, कुषाण शासन के दौरान साकेत एक समृद्ध शहर बना हुआ प्रतीत होता है। दूसरी शताब्दी के भूगोलवेत्ता टॉलेमी ने एक महानगर "सगेदा" या "सगोडा" का उल्लेख किया है, जिसकी पहचान साकेता से की गई है। सबसे पहला शिलालेख जिसमें साकेत को एक स्थान के नाम के रूप में उल्लेखित किया गया है, वह कुषाण काल के उत्तरार्ध का है: यह श्रावस्ती में एक बुद्ध छवि के आसन पर पाया गया था, और साकेत के सिहादेव द्वारा छवि के उपहार को रिकॉर्ड करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुषाणों से पहले या बाद में, साकेत पर राजाओं के एक राजवंश का शासन था, जिनके नाम "-मित्र" में समाप्त होते थे, और जिनके सिक्के अयोध्या में पाए गए हैं। वे संभवतः किसी स्थानीय राजवंश के सदस्य रहे होंगे जो मथुरा के मित्र राजवंश से भिन्न था। ये राजा केवल उनके सिक्कों से प्रमाणित होते हैं: संघ-मित्र, विजय-मित्र, सत्य-मित्र, देव-मित्र, और आर्य-मित्र; कुमुदा-सेना और अज-वर्मन के सिक्के भी खोजे गए हैं। गुप्त काल चौथी शताब्दी के आसपास, यह क्षेत्र गुप्तों के नियंत्रण में आ गया, जिन्होंने ब्राह्मणवाद को पुनर्जीवित किया। वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण प्रमाणित करते हैं कि प्रारंभिक गुप्त राजाओं ने साकेत पर शासन किया था। वर्तमान अयोध्या में गुप्तकालीन कोई पुरातात्विक परत नहीं खोजी गई है, हालाँकि यहाँ बड़ी संख्या में गुप्तकालीन सिक्के मिले हैं। यह संभव है कि गुप्त काल के दौरान, शहर में बस्तियाँ उन क्षेत्रों में स्थित थीं जिनकी अभी तक खुदाई नहीं हुई है। खोतानी-कुषाण आक्रमण के दौरान जिन बौद्ध स्थलों को विनाश का सामना करना पड़ा था, वे वीरान बने हुए प्रतीत होते हैं। पाँचवीं शताब्दी के चीनी यात्री फैक्सियन का कहना है कि उसके समय में "शा-ची" में बौद्ध इमारतों के खंडहर मौजूद थे। एक सिद्धांत शा-ची की पहचान साकेत से करता है, हालाँकि यह पहचान निर्विवाद नहीं है। यदि शा-ची वास्तव में साकेत है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि पांचवीं शताब्दी तक, शहर में अब कोई समृद्ध बौद्ध समुदाय या कोई महत्वपूर्ण बौद्ध भवन नहीं था जो अभी भी उपयोग में था। गुप्त काल के दौरान एक महत्वपूर्ण विकास साकेत को इक्ष्वाकु वंश की राजधानी, अयोध्या के प्रसिद्ध शहर के रूप में मान्यता देना था। कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल के दौरान जारी 436 ईस्वी के करमदंड (कर्मदंड) शिलालेख में, अयोध्या को कोसल प्रांत की राजधानी के रूप में नामित किया गया है, और कमांडर पृथ्वीसेन द्वारा अयोध्या के ब्राह्मणों को दान देने का रिकॉर्ड है। बाद में गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी गई। परमार्थ में कहा गया है कि राजा विक्रमादित्य शाही दरबार को अयोध्या ले गए; जुआनज़ैंग ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इस राजा ने दरबार को "श्रावस्ती देश", यानी कोसल में स्थानांतरित कर दिया था। अयोध्या की एक स्थानीय मौखिक परंपरा, जिसे पहली बार 1838 में रॉबर्ट मॉन्टगोमरी मार्टिन द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया गया था, उल्लेख किया गया है कि राम के वंशज बृहदबाला की मृत्यु के बाद शहर वीरान हो गया था। यह शहर तब तक वीरान रहा जब तक कि उज्जैन के राजा विक्रम इसकी खोज में नहीं आये और इसे फिर से स्थापित नहीं किया। उसने प्राचीन खंडहरों को ढकने वाले जंगलों को काटा, रामगर किला बनवाया और 360 मंदिर बनवाए। विक्रमादित्य कई गुप्त राजाओं की एक उपाधि थी, और जिस राजा ने राजधानी को अयोध्या में स्थानांतरित किया, उसे स्कंदगुप्त के रूप में पहचाना जाता है। बेकर का सिद्धांत है कि अयोध्या की ओर कदम पाटलिपुत्र में गंगा नदी की बाढ़, पश्चिम से हूणों की प्रगति को रोकने की आवश्यकता और स्कंदगुप्त की खुद की तुलना राम से करने की इच्छा (जिनका इक्ष्वाकु वंश पौराणिक अयोध्या से जुड़ा हुआ है) के कारण हुआ होगा। ). परमारथ के लाइफ ऑफ वसुबंधु के अनुसार, विक्रमादित्य विद्वानों के संरक्षक थे, और उन्होंने वसुबंधु को सोने की 300,000 मोहरें प्रदान की थीं। पाठ में कहा गया है कि वसुबंधु साकेत ("शा-की-ता") के मूल निवासी थे, और विक्रमादित्य को अयोध्या के राजा ("ए-यू-जा") के रूप में वर्णित करते हैं। इस धन का उपयोग अ-यु-जा (अयोध्या) देश में तीन मठों के निर्माण के लिए किया गया था। परमार्थ आगे कहते हैं कि बाद के राजा बालादित्य ( नरसिम्हगुप्त के साथ पहचाने जाने वाले) और उनकी मां ने भी वसुबंधु को बड़ी मात्रा में सोना दिया था, और इन निधियों का उपयोग अयोध्या में एक और बौद्ध मंदिर बनाने के लिए किया गया था। इन संरचनाओं को सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री जुआनज़ांग ने देखा होगा, जो अयोध्या में एक स्तूप और एक मठ ("ओ-यू-टू") का वर्णन करता है। मुख्य आकर्षण center|thumb|550px|राम की पैड़ी का विहंगम दृष्य मानव सभ्यता की पहली पुरीhttps://archive.org/details/SkandaMahaPuranaIINagPublishers/page/n549/mode/2up होने का पौराणिक गौरव अयोध्या को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। फिर भी रामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी ,राजद्वार मंदिर ,दशरथमहल , लक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। बिरला मन्दिर , श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज , श्रीलक्ष्मणकिला , श्रीसियारामकिला , उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग जैसे अनेक आश्रम आगन्तुकों का केन्द्र हैं। मुख्य पर्व अयोध्या यूँ तो सदैव किसी न किसी आयोजन में व्यस्त रहती है परन्तु यहाँ कुछ विशेष अवसर हैं जो अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। श्रीरामनवमी ,https://www.tv9bharatvarsh.com/uttar-pradesh/sri-ram-navami-ayodhya-ramlala-view-extended-time-188695.html श्रीजानकीनवमी , गुरुपूर्णिमा , सावन झूला , कार्तिक परिक्रमा , श्रीरामविवाहोत्सव आदि उत्सव यहाँ प्रमुखता से मनाये जाते हैं। श्रीरामजन्मभूमि शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट में स्थित अयोध्या का सर्वप्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बालरूप के दर्शन यहाँ होते हैं। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है। कनक भवन हनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है। इसी कारण बहुत बार इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। यह मंदिर टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था। इस मन्दिर के श्री विग्रह (श्री सीताराम जी) भारत के सुन्दरतम स्वरूप कहे जा सकते हैं। यहाँ नित्य दर्शन के अलावा सभी समैया-उत्सव भव्यता के साथ मनाये जाते हैं। हनुमान गढ़ी नगर के केन्द्र में स्थित इस मंदिर में 76 कदमों की चाल से पहुँचा जा सकता है। अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां हनुमान जी सदैव वास करते हैं। इसलिए अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। यहां का सबसे प्रमुख हनुमान मंदिर "हनुमानगढ़ी" के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। कहा जाता है कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था। प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को ये अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। यहां आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं,जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं। इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कथा प्रचलित है। सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था। एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई। इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप में रहा वो हनुमान टीला है जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान भी इसी मंदिर में रखे गए जो आज भी खास मौके पर बाहर निकाले जाते हैं और जगह-जगह पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। मन्दिर में विराजमान हनुमान जी को वर्तमान अयोध्या का राजा माना जाता है। कहते हैं कि हनुमान यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। राजद्वार मंदिर यह अयोध्या के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जो उत्तर प्रदेश के अयोध्या क्षेत्र, हनुमान गढ़ी के पास स्थित है। यह भव्य मंदिर एक उच्च पतला शिखर वाला एक उच्च भूमि पर खड़ा है और दूर से दिखाई देता है। मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यह समकालीन वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। आचार्यपीठ श्री लक्ष्मण किला महान संत स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी महाराज की तपस्थली यह स्थान देश भर में रसिकोपासना के आचार्यपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। श्री स्वामी जी चिरान्द (छपरा) निवासी स्वामी श्री युगलप्रिया शरण 'जीवाराम' जी महाराज के शिष्य थे। ईस्वी सन् १८१८ में ईशराम पुर (नालन्दा) में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज में विशिष्ट स्थान है। आपने उच्चतर साधनात्मक जीवन जीने के साथ ही आपने 'रघुवर गुण दर्पण','पारस-भाग','श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश' तथा 'इश्क-कान्ति' आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की है। श्री लक्ष्मण किला आपकी तपस्या से अभिभूत रीवां राज्य (म.प्र.) द्वारा निर्मित कराया गया। ५२ बीघे में विस्तृत आश्रम की भूमि आपको ब्रिटिश काल में शासन से दान-स्वरूप मिली थी। श्री सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम श्री सीताराम जी आराधना के साथ संत-गो-ब्राह्मण सेवा संचालित करता है। श्री राम नवमी, सावन झूला, तथा श्रीराम विवाह महोत्सव यहाँ बड़ी भव्यता के साथ मनाये जाते हैं। यह स्थान तीर्थ-यात्रियों के ठहरने का उत्तम विकल्प है। सरयू की धार से सटा होने के कारण यहाँ सूर्यास्त दर्शन आकर्षण का केंद्र होता है। नागेश्वर नाथ मंदिर कहा जाता है कि नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य के काल के पहले से है। शिवरात्रि पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीअनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर अन्तर्गृही अयोध्या के शिरोभाग में गोप्रतार घाट पर पञ्चमुखी शिव का स्वरूप विराजमान है जिसे अनादि माना जाता है।https://www.jagran.com/uttar-pradesh/faizabad-up-faizabad-news-11475789.html शैवागम में वर्णित ईशान , तत्पुरुष , वामदेव , सद्योजात और अघोर नामक पाँच मुखों वाले लिंगस्वरूप की उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। राघवजी का मन्दिर ये मन्दिर अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित बहुत ही प्राचीन भगवान श्री रामजी का स्थान है जिस्को हम (राघवजी का मंदिर) नाम से भी जानते हैं मन्दिर में स्थित भगवान राघवजी अकेले ही विराजमान है ये मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमें भगवन जी के साथ माता सीताजी की मूर्ति बिराजमान नहीं है। सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते हैं। सप्तहरि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला के अतिरिक्त अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुए हैं जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। अलग-अलग समय देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुए भगवान् विष्णु के सात स्वरूपों को ही सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। इनके नाम भगवान "गुप्तहरि" , "विष्णुहरि", "चक्रहरि", "पुण्यहरि", "चन्द्रहरि", "धर्महरि" और "बिल्वहरि" हैं। जैन मंदिर हिन्दुओं के मंदिरों के अलावा अयोध्या जैन मंदिरों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। जहां जिस र्तीथकर का जन्म हुआ था, वहीं उस र्तीथकर का मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था। स्मरणीय सन्त प्रभु श्रीराम की नगरी होने से अयोध्या उच्चकोटि के सन्तों की भी साधना-भूमि रही। यहाँ के अनेक प्रतिष्टित आश्रम ऐसे ही सन्तों ने बनाये। इन सन्तों में स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज 'करुणासिन्धु जी' स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी, स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी, पं. श्रीरामवल्लभाशरण जी महाराज, श्रीमणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्रीरघुनाथ दास जी, पं.श्रीजानकीवरशरण जी, पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं आवागमन रेल मार्ग अयोध्या, लखनऊ पंडित दीनदयाल रेलवे प्रखंड का एक स्टेशन है। लखनऊ से बनारस रूट पर फैजाबाद से आगे अयोध्या जंक्शन है। अयोध्या को एशिया के श्रेष्ठतम रेलवे स्टेशन के रूप में विकसित किये जाने का कार्मुय प्गरगति पर है। उत्तर प्रदेश और देश के लगभग तमाम शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है। यहाँ से बस्ती, बनारस एवं रामेश्वरम के लिए भी सीधी ट्रेन है सड़क मार्ग उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बसें लगभग सभी प्रमुख शहरों से अयोध्या के लिए चलती हैं। अयोध्या राष्ट्रीय राजमार्ग 27 व राष्ट्रीय राजमार्ग 330 और राज्य राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें रामायण कोशल राम की पैड़ी हनुमान गढ़ी अयोध्या ज़िला अयुध्या - थाईलैण्ड में इस नाम से एक प्राचीन नगर, जिला तथा प्रान्त हैं। राम जन्मभूमि अयोध्या विवाद धनदेव का अयोध्या अभिलेख सरयू नदी बाहरी कड़ियाँ अयोध्या अयोध्या के नाम पर श्रीराम मन्दिर, अयोध्या अयोध्या निर्देशिका अयोध्या, जैन विरासत केन्द्र अयोझा, बौद्ध पाली शब्दकोश में भारत के तीर्थस्थल अयोध्या के प्रसिद्ध स्थान सन्दर्भ श्रेणी:अयोध्या ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:अयोध्या ज़िले के नगर * श्रेणी:संस्कृत शब्द श्रेणी:पाली शब्द श्रेणी:प्राचीन भारत के नगर श्रेणी:हिन्दू तीर्थ स्थल श्रेणी:रामायण में स्थान
मुरादाबाद
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मुरादाबाद (Moradabad) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला रामगंगा नदी के किनारे पर स्थित है यहां की जलवायु सम व विषम है तथा मुरादाबाद जिले में एक नगर पंचायत कांठ भी तथा तहसील व कांठ थाना उत्तर प्रदेश में नंबर 1 की श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त है विवरण मुरादाबाद पीतल हस्तशिल्प के निर्यात के लिए प्रसिद्ध है। रामगंगा नदी के तट पर स्थित मुरादाबाद पीतल पर की गई हस्तशिल्प के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसका निर्यात केवल भारत में ही नहीं अपितु अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और मध्य पूर्व एशिया आदि देशों में भी किया जाता है। अमरोहा, गजरौला और तिगरी आदि यहाँ के प्रमुख पयर्टन स्थलों में से हैं। रामगंगा]] और गंगा यहाँ की दो प्रमुख नदियाँ हैं। मुरादाबाद विशेष रूप से प्राचीन समय की हस्तकला, पीतल के उत्पादों पर की रचनात्मकता और हॉर्न हैंडीक्राफ्ट के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह जिला बिजनौर जिला के उत्तर, बदायूँ जिला के दक्षिण, रामपुर जिला के पूर्व और ज्योतिबा फुले नगर जिला के पश्चिम से घिरा हुआ है। इतिहास पूर्व में यह शहर चौपला नाम से जाना जाता था जो हिमालय के तराई और कुमाऊं क्षेत्रों में व्यवसाय और दैनिक जीवनोपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति का प्रमुख स्थान रहा है बाद में इसका वर्तमान नाम यह सन् १६००+ में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के बेटे मुराद के नाम पर रखा गया; जिसके कारण इस शहर का नाम मुरादाबाद पड़ गया। 1624 ई. में सम्भल के गर्वनर रुस्तम खान ने मुरादाबाद शहर पर कब्जा कर लिया था और इस जगह पर एक किले का निर्माण करवाया था। उनके नाम पर इस जगह का नाम रुस्तम खान रखा गया। इसके पश्चात् मुरादाबाद शहर की स्थापना मुगल शासक शाहजहाँ के पुत्र मुराद बख्श ने की थी। अत: उसके नाम पर इस जगह का नाम मुरादाबाद रख दिया गया। भूगोल मुरादाबाद की स्थिति पर है। यहां की औसत ऊंचाई है 186 मीटर (610 फीट). कृषि और उद्योग right|thumb|300px| प्रमुख सड़क और रेल जंक्शन पर स्थित यह शहर कृषि उत्पादों का व्यापार केंद्र है। कृषि वस्तुओं के व्यापार का प्रमुख केन्द्र है। कलई किए गए पीतल के बर्तनों के लिए यह नगर प्रसिद्ध है। यहाँ पर कुछ चीनी व कपड़े की मिलें भी हैं। यहाँ के उद्योगों में कपास मिल, बुनाई, धातुकर्म, इलेक्ट्रोप्लेटिंग और छपाई उद्योग शामिल हैं। यहाँ अनाज, कपास और गन्ने की खेती होती है। चीनी मिल और सूती वस्त्र निर्माण यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। प्रमुख आकर्षण मुरादाबाद में होलीडे रीजेंसी नाम का एक पंच सितारा होटल है। इसके अलावा प्रेम वाटर किंगडम घूमने के लिए उपयुक्त जगह है एवं यहाँ पर हाफिज साहब का मजार भी देखने योग्य है जो रामगंगा नदी के किनारे पर स्थित है साथ ही यहाँ 400 बर्ष से भी अधिक पुराना काली माता मंदिर है जो रामगंगा नदी के किनारे स्थित है। रेलवे हॉस्पिटल के पास स्थित प्राचीन मनोकामना मंदिर में भी मंगलवार को श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ जुटा करती है,और नगर की चाऊ वाली बस्ती नामक पुरानी आबादी में स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार होने से यह मंदिर भी चर्चा का विषय बन चुका है इसके पूरी दीवार को बहुत रमणीक भित्ति चित्रों से सजाया गया है यदि नवीनता की बात करें तो अब इस नगर में एक आबादी नया मुरादाबाद के नाम से बसी है और इसमें निर्मित हर्बल पार्क भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का नया केंद्र बनकर उभरा है,कई एकड़ में फैला यह पार्क विभिन्न प्रजाति के पौधों के कारण तो चर्चा में है ही इसके अलावा समीप ही बह रही गांगन नदी का तट भी कुछ पर्यटकों को एकांतवास के लिए आकर्षित करता है , कुछ लोग नए मुरादाबाद के उस छोर में भी घूमना पसंद करते हैं जिस ओर आधुनिकीकरण की आभा बिखेरते बहुमंजिला टॉवर्स स्थित हैं, शहर सर्व धर्म समभाव का उत्कृष्ट उदाहरण है। अमरोहा अमरोहा मुरादाबाद से तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस शहर का निर्माण लगभग 3,000 पूर्व हुआ था। इसकी स्थापना हस्तिनापुर के राजा अमरजोध ने की थी। बाद में दिल्ली के राजा पृथ्वी राजा की बहन अम्बा देवी द्वारा अमरोहा का पुनर्निर्माण करवाया गया। इसके बाद जब तक यहां मुगलों का प्रवेश नहीं हो गया इस जगह पर त्यागियों ने शासन किया। आम और मछली यहां बाहुल्य मात्रा में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, ऐसा भी कहा जाता है कि जब शराफुद्दीन इस जगह पर आया था तब स्थानीय लोगों ने उन्हें आम और मछली पेश की थी। इसके बाद ही से इस जगह को अमरोहा के नाम से जाना जाने लगा। अमरोहा स्थित प्रमुख स्थलों में वसुदेव मंदिर, तुलसी पार्क, बायें का कुंआ, नसरूद्दीन साहिब की मजार, दरगाह भूरे शाह और मजार शाह विजयत साहिब आदि हैं। गजरौला गजरौला राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 24 पर स्थित है। यह स्थान मुरादाबाद से 53 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है। यह शहर महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हो रहा है। कई कुटीर व लघु उद्योग जैसे हिन्दुस्तान लीवर का शिवालिक सेलोलॉस, चड्ढ़ा रबर, वाम ओरगेनिक आदि यहाँ पर स्थित है। तिगरी गंगा नदी पर स्थित तिगरी मुरादाबाद से लगभग 62 किलोमीटर की दूरी पर है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर प्रसिद्ध गंगा मेले का आयोजन किया जाता है। लाखों की संख्या में भक्त इस पवित्र जल में स्नान करने के लिए आते हैं। आवागमन वायु मार्ग यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा दिल्‍ली स्थित इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे लखनऊ, कलकत्ता, मुम्बई, लखनऊ, चंडीगढ़ आदि से दिल्ली के लिए नियमित रूप से उड़ान भरी जाती है। रेल मार्ग सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन मुरादाबाद जंक्शन है। भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे नई दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई, चैन्नई, आगरा और वाराणसी आदि से मुरादाबाद रेल द्वारा पहुँचा जा सकता है। सड़क मार्ग मुरादाबाद सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे मथुरा, दिल्ली, चंडीगढ़, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, झाँसी और आगरा आदि से पहुँचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य मार्ग परिवहन निगम द्वारा इन सभी शहरों से मुरादाबाद के लिए बस सुविधा उपलब्ध करवा रखी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न निजी लक्सरी बसों की सुविधा भी उपलब्ध है। खरीदारी right|thumb|250px|पीतल का एक सजावटी पेपरवेट मुरादाबाद में खरीदारी किए बिना आपका सफर अधूरा ही रहेगा। मुरादाबाद स्थित मुख्य बाजार पीतल मंडी है। इस जगह पर कई सौ छोटी और बड़ी दुकानें है जहां तांबा और कांसा की बिक्री की जाती है। इन छोटी-छोटी दुकानों से जहां आप तांबा और कांसे से बनी खूबसूरत वस्तुओं की खरीदारी कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर बड़ी दुकानों से बेशकिमती और आकर्षक वस्तुओं खरीद सकते हैं। यहां आपको तांबे के आइटम सभी साइज और शेप में मिल जाएंगे। उन पर की खूबसूरत नक्काशी का काम देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त यहां जिस चीज की बिक्री सबसे अधिक होती है वह इत्रदान और गुलाबपाश है। यह इत्रदान और गुलाबपाश आपको हर शेप में विशेष रूप से कांसे और तांबे के मिश्रण से बने बर्तन में आसानी से मिल जाएंगे। इसके साथ-साथ अफताब अथवा वाइन सर्वर की खरीदारी भी जरूर करें। इन पर तांबे की लाइंनिग का काम हुआ होता है और इसका भार भी अधिक होता है। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें मुरादाबाद ज़िला मुरादाबाद रेलवे स्टेशन बाहरी कड़ियाँ मुरादाबाद आधिकारिक जालस्थल सन्दर्भ श्रेणी:मुरादाबाद ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:मुरादाबाद ज़िले के नगर *
मेरठ
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मेरठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा शहर है। मेरठ दिल्ली से 72 किमी (44 मील) उत्तर पूर्व में स्थित है। मेरठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन.सी.आर) का हिस्सा है। यहाँ भारतीय सेना की एक छावनी भी है। यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते क्षेत्रों में से एक है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 इतिहास thumb|280px|छठी शताब्दी के बालुपत्थर से बने अशोक स्तंभ का एक अंश जिस पर अशोक ने ब्राह्मी लिपि मे राज्यादेश खुदवाये थे, मूलतः मेरठ मे मिला था और अब ब्रिटिश संग्राहलय मे रखा है। सन् १९५० में यहाँ से २३ मील उत्तर-पूर्व में स्थित एक स्थल विदुर का टीला की पुरातात्विक खुदाई से ज्ञात हुआ, कि यह शहर प्राचीन नगर हस्तिनापुर का अवशेष है, जो महाभारत काल मे कौरव राज्य की राजधानी थी।पर्यटन स्थल - विदुर-का-टीला मेरठ आधिकारिक वेबसाइट, यह बहुत पहले गंगा नदी की बाढ़ में बह गयी थी। एक अन्य किवंदती के अनुसार रावण के श्वसुर मय दानव के नाम पर यहाँ का नाम मयराष्ट्र पड़ा, जैसा की रामायण में वर्णित है।Homepage मेरठ आधिकारिक वेबसाइट. मेरठ मौर्य सम्राट अशोक के काल में (273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा, जिसके निर्माणों के अवशेष जामा मस्जि़द के निकट वर्तमान में मिले हैं। दिल्ली के बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल, दिल्ली विश्वविद्यालय के निकट अशोक स्तंभ, फिरोज़ शाह तुगलक (1351 – 1388) द्वारा दिल्ली लाया गया था।, बाद में यह 1713 में, एक बम धमाके में ध्वंस हो गया, एवं 1867 में जीर्णोद्धार किया गया।अशोक स्तंभ की स्थिति विकिमैपिया. बाद में मुगल सम्राट अकबर के काल में, (1556-1605), यहाँ तांबे के सिक्कों की टकसाल थी।मेरठ के निकट समतल इलाकों में स्थित हिन्दू मंदिर ब्रिटिश पुस्तकालय ग्यारहवीं शताब्दी में, जिले का दक्षिण-पश्चिमी भाग, बुलंदशहर के दोर –राजा हर दत्त द्वारा शासित था, जिसने एक क़िला बनवाया, जिसका आइन-ए-अकबरी में उल्लेख भी है, तथा वह अपनी शक्ति हेतू प्रसिद्ध रहा। बाद में वह महमूद गज़नवी द्वारा 1018 में पराजित हुआ। हालाँकि शहर पर पहला बड़ा आक्रमण मोहम्मद ग़ौरी द्वारा 1192 में हुआ,मेरठ जिला - इतिहास द इम्पेरियल गैज़ेटियर ऑफ इण्डिया, 1909, v. 17, p. 254-255. किन्तु इस शहर का इससे बुरा भाग्य अभी आगे खड़ा था, जब तैमूर लंग ने 1398 में आक्रमण किया, उसे राजपूतों ने कड़ी टक्कर दी। यह लोनी के किले पर हुआ, जहाँ उन्होंने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ से भी युद्ध किया। परंतु अन्ततः वे सब हार गये, यह तैमूर लंग के अपने उल्लेख तुज़ुक-ए-तैमूरी में मिलता है।दिल्ली की फतह की तैयारी … माल्फुज़त-ए-तैमूरी, या तुज़ुक- ए-तैमूरी (तैमूर की आत्मकथा), द्वारा: तैमूर लंग, ":en:The History of India, as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period", by Sir H. M. Elliot, Edited by John Dowson; London, Trubner Company; 1867–1877.. उसके बाद, वह दिल्ली पर आक्रमण करने आगे बढ़ गया, व वापस मेरठ पर हमला बोला, जहाँ तब एक अफ़गान मुख्य का शासन था। उसने नगर पर दो दिनों में कब्ज़ा किया, जिसमें विस्तृत विनाश सम्मिलित था और फिर वह आगे उत्तर की ओर बढ़ गया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मेरठ का नाम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लिये भी प्रसिद्ध है।The Sepoy War of १८५७: Mutiny or First Indian War of Independence? {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20130114213449/http://www.english.emory.edu/Bahri/Mutiny.html |date= ●प्रसिद्ध नारा "दिल्ली चलो" पहली बार यहीं से दिया गया था। ●मेरठ छावनी ही वह स्थान है, जहां हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों को बन्दूकें दी गयीं, जिनमें जानवरों की खाल से बनी गोलियां डालनी पड़तीं थीं, जिन्हें मुंह से खोलना पड़ता था। इससे हिन्दुओं व मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई, क्योंकि वह जानवर की चर्बी गाय व सूअर की थी। गाय हिन्दुओं के लिये पवित्र है और सूअर मुसलमानों के लिये अछूत है। ●मेरठ को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि 1857 के विद्रोह से प्राप्त हुई। २४ अप्रैल, १८५७ को; तृतीय अश्वारोही सेना की 90 में से 85 टुकड़ियों ने गोलियों को छूने तक से मना कर दिया। कोर्ट-मार्शल के बाद उन्हें दस वर्ष का कारावस मिला। इसके विद्रोह में ही, ब्रिटिश राज से मुक्ति पाने की पहली चिंगारी (10 मई 1857) की क्रांति भड़क उठी, जिसे शहरी जनता का पूरा समर्थन मिला। ●1857 की जनक्रान्ति के प्रथम महानायक "कोतवाल धनसिंह गुर्जर। कोतवाल धन सिंह गुर्जर (१८२० - ४ जुलाई ) एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और १८५७ के महान क्रांतिकारी एवं शहीद थे।[1] १० मई १८५७ को मेरठ में क्रान्ति आरम्भ करने का श्रेय धन सिंह गुर्जर को है। मेरठ क्रान्ति का प्रारम्भ/आरम्भ ”10 मई 1857“ को हुआ था। क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है। उस दिन मेरठ में धनसिंह के नेतृत्व मे विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। धन सिंह कोतवाल जनता के सम्पर्क में थे। उनका संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश, देहरादून, दिल्ली, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी, पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गुर्जर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। विद्रोह की खबर मिलते ही आस-पास के गांव के हजारों ग्रामीण गुर्जर मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह पुलिस प्रमुख थे। 10 मई 1857 को धन सिंह ने की योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया और धन सिंह के नेतृत्व में देर रात २ बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था सब नष्ट कर चुकी थी। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। ●इस क्रान्ति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने धन सिंह को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, और सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने गुर्जरो की भीड को नहीं रोका और उन्हे खुला संरक्षण दिया। इसके बाद घनसिंह को गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया। ●मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः 4 बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपों से हमला किया। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों गुर्जर किसान मारे गए, जो बच गए उनको कैद कर फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक "स्वाधीनता आन्दोलन" और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी दे दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। ●मेरठ में ही मेरठ षड्यंत्र मामला, मार्च १९२९ में हुआ। इसमें कई व्यापार संघों को तीन अंग्रेज़ों समेत गिरफ्तार किया गया, जो भारतीय रेलवे की हड़ताल कराने वाले थे। इस पर इंग्लैंड का सीधा ध्यान गया, जिसे वहां के मैन्चेस्ट्र स्ट्रीट थियेट्स्र ग्रुप ने अपने “रड मैगाफोन” नाम के नाटक में दिखाया, जिसमें कोलोनाइज़ेशन व औद्योगिकरण के हानिकारक प्रभाव दिखाये गये थे| पौराणिक महत्व महाभारत में वर्णित लाक्षागृह, जो पांडवों को जीवित जलाने हेतु दुर्योधन ने तैयार करवाया था, यहीं पास में वार्णावत (वर्तमान बरनावा) में स्थित था। यह मेरठ-बड़ौत मार्ग पर पड़ता है। रामायण में वर्णित श्रवण कुमार ने अपने बूढ़े माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने ले जा रहा था। वे दोनों एक कांवड़ पर बैठे थे। यहीं आकर, श्रवण कुमार ने प्यास के मारे, उन्हें जमीन पर रखा, व बर्तन लेकर सरोवर से जल लेने गया। उसके बर्तन की पाने में आवाज को सुनकर, आखेट हेतु निकले महाराजा दशरथ ने उसे जानवर समझ कर तीर चला दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसके दुःख में ही उसके माता पिता तड़प तड़प कर मर गये, व मरते हुए, उन्होंने दशरथ को शाप दिया, कि जिस प्रकार हम अपने पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने पुत्र के वियोग में मरोगे। और वैसा ही हुआ भी मेरठ को दैत्यराज रावण की ससुराल भी माना जाता है। भूगोल मेरठ की भौगोलिक स्थिति 28.98° उत्तर एवं 77.7° पूर्व है। यहां की औसत ऊंचाई 219 मीटर (718 फीट) है। निकटवर्ती शहर हैं: राजधानी दिल्ली,मुजफ्फरनगर रुड़की, देहरादून,सहारनपुर, अलीगढ़, नौयडा, गाजियाबाद हापुड़ बुलंदशहर‌ इत्यादि। जनसांख्यिकी मेरठ शहर ही मेरठ जिले का मुख्यालय है, जिसमें 1,025 गाँव भी सम्मिलित हैं। 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार मेरठ शहरी क्षेत्र (जिसमें नगर निगम एवं छावनी परिषद के अंतर्गत आते क्षेत्र सम्मिलित हैं) की जनसंख्या लगभग 14 लाख है, जिसमें से लगभग 13 लाख 10 हज़ार नगर निगम के क्षेत्र में है।<ref name="cen11city"> इस हिसाब से जनसंख्या अनुसार मेरठ शहरी क्षेत्र भारत के शहरी क्षेत्रों में 33वे स्थान पर है और भारत के शहरों में 26वे स्थान पर है। मेरठ में लिंग अनुपात 888 है, राज्य औसत 908 से कम; बाल लिंग अनुपात 847 है, राज्य औसत 899 से कम। 12.41% जनसंख्या 6 साल की उम्र से छोटी है। साक्षरता दर 78.29% है, राज्य औसत 69.72% से अधिक। 2012 अनुसार मेरठ में अपराध दर (भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कुल संज्ञेय अपराध प्रति लाख जनसंख्या) 309.1 है, राज्य औसत 96.4 और राष्ट्रीय औसत 196.7 से अधिक। 2001 की राष्ट्रीय जनगणना अनुसार शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जनसंख्या अनुसार दूसरे स्थान पर है और राष्ट्र में 25वे स्थान पर। +ऐतिहासिक जनगणना आँकड़े वर्ष पुरुष स्त्री कुल वृद्धि 1847 -- -- 29,014 1853 -- -- 82,035 182.74% 1872 -- -- 81,386 -0.79% 1881 -- -- 99,565 22.34% 1891 -- -- 119,390 19.91% 1901 65,822 (55.53%) 52,717 (44.47%) 118,539 -0.71% 1911 66,542 (57.05%) 50,089 (42.95%) 116,631 -1.6% 1921 71,816 (58.57%) 50,793 (41.43%) 122,609 5.12% 1931 80,073 (58.57%) 56,636 (41.43%) 136,709 11.49% 1941 98,829 (58.38%) 70,461 (41.62%) 169,290 23.83% 1951 133,094 (57.08%) 100,089 (42.92%) 233,183 37.74% 1961 157,572 (55.48%) 126,425 (44.52%) 283,997 21.79% + जनगणना आँकड़े वर्ष पुरुष स्त्री कुल वृद्धि दर लिंग अनुपात 2001 621,481 (53.50%) 540,235 (46.50%) 1,161,716 -- -- 2011 754,857 (52.98%) 670,051 (47.02%) 1,424,908 22.66% 888 + साक्षरता दर (प्रतिशत) वर्ष पुरुष स्त्री कुल 2001 65.22 53.17 59.62 2011 83.74 (+18.52) 72.19 (+19.02) 78.29 (+18.67) मेरठ में भारत के मुख्य शहरों में, सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या है, जो 34.43 के लगभग है। यहां की ईसाई संख्या भी ठीक ठाक है। मेरठ 1987 के सांप्रदायिक दंगों की स्थली भी रहा था। डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर हवाई अड्डा मेरठ में स्तिथ है वायु मार्ग पंतनगर विमानक्षेत्र या इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र मेरठ के निकटतम एयरपोर्ट है। पंतनगर का एयरपोर्ट मेरठ से 215 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक्सप्रेसवे दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे एक 90 किलोमीटर लम्बा निर्माणाधीन द्रुतगामी मार्ग है  | जो की दिल्ली से प्रारम्भ हो कर मेरठ पर ख़त्म होता है। यह राजमार्ग अभिगम नियंत्रण द्रुतगामी मार्ग होगा। इस द्रुतगामी मार्ग पर 14 लेन दिल्ली से डासना तक होंगी तथा 6 लेन डासना से मेरठ तक होंगी | ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, दिल्ली मेरठ आरआरटीएस जैसी एक्सप्रेसवे परियोजनाओं के कारण मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगामी लॉजिस्टिक हब है। अंगूठाकार|280x280पिक्सेल|मेरठ मेट्रो रेल मार्ग मेरठ में दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं,मेरठ छावनी व मेरठ जंक्शन। मेरठ देश के प्रमुख शहरों से अनेक ट्रेनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जम्मू, अंबाला, सहारनपुर आदि स्थानों से आसानी से मेरठ पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग मेरठ उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों के अनेक शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से मेरठ के लिए नियमित रूप से चलती हैं। अंगूठाकार|280x280पिक्सेल|मेरठ मेट्रो नक्शा मेरठ मेट्रो मेरठ मेट्रो एक निर्माणाधीन रैपिड ट्रांजिट सिस्टम है, जो भारत के उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर को सेवा प्रदान करेगी। इसे दो चरणों में बनाया जा रहा है, जिसमें से पहला चरण पहली लाइन के साथ मोदीपुरम से मेरठ साउथ तक 13 स्टेशनों के साथ 23.6 किमी (14.7 मील) को कवर करेगा। उद्योग मेरठ का सर्राफा एशिया का नंबर एक का व्यवसाय बाजार है।.. सोने के बारे में कहें तो मेरठ शहर कई तरह के उद्योगों के लिये प्रसिद्ध है। मेरठ में निर्माण व्यवसाय में खूब तेजी आयी है, जैसा कि दिखता है- शहर में कई ऊंची इमारतें , शॉपिंग परिसर एवं अपार्टमेन्ट्स हैं। मेरठ भारत के शहरों में क्रीड़ा सामग्री के सर्वोच्च निर्माताओं में से एक है। साथ ही वाद्य यंत्रों के निर्माण में भी यह उच्च स्थान पर है। मेरठ में यू.पी.एस.आइ.डी.सी के दो औद्योगिक क्षेत्र हैं, एक परतापुर में एवं एक उद्योग पुरम में। मेरठ में कुछ प्रसिद्ध फार्मास्यूटिकल कंपनियाँ भी हैं, जैसे पर्क फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, मैनकाईंड फार्मा एवं बैस्टोकैम। आयकर विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, मेरठ ने वर्ष २००७-०८ में ही १०,०८९ करोड़ रुपये, राष्ट्रीय कोष में दिये हैं, जो लखनऊ, जयपुर, भोपाल, कोच्चि एवं भुवनेश्वर से कहीं अधिक हैं। मीडिया मेरठ एक महत्वपूर्ण मास मीडिया केन्द्र बनता जा रहा है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से पत्रकार एवं अन्य मीडियाकर्मी यहां कार्यरत हैं। हाल ही में, कई समाचार चैनलों ने अपराध पर केन्द्रित कार्यक्रम दिखाने आरंभ किये हैं। चूँकि मीडिया केन्द्र मेरठ में स्थित हैं, तो शहर को राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रचार मिल रहा है। हाल के वर्षों में नगर में कानून व्यवस्था की स्थिति काफी सुधरी है। इसमें मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। मेरठ वेब मीडिया का भी मुख्य केंद्र बनता जा रहा है मेरठ मे एक्सएन व्यू न्यूज और कई अन्य वेब मीडिया चैनल मौजूद है। शिक्षा नगर में कुल पांच विश्वविद्यालय हैं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, शोभित विश्वविद्यालय एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय IIMT विश्विद्यालय । इसके अलावा नगर में कई महाविद्यालय एवं विद्यालय हैं। नौचंदी मेला यहां का ऐतिहासिक नौचंदी मेला हिन्दू – मुस्लिम एकता का प्रतीक है। हजरत बाले मियां की दरगाह एवं नवचण्डी देवी (नौचन्दी देवी) का मंदिर एक दूसरे के निकट ही स्थित हैं। मेले के दौरान मंदिर के घण्टों के साथ अज़ान की आवाज़ एक सांप्रदायिक आध्यात्म की प्रतिध्वनि देती है। यह मेला चैत्र मास के नवरात्रि त्यौहार से एक सप्ताह पहले से लग जाता है। होली के लगभग एक सप्ताह बाद और एक माह तक चलता है। पर्यटन स्थल 280px|thumb||280px|शहीद स्मारक परिसर में स्थित मंगल पांडे की मूर्ति right|thumb||280px|हस्तिनापुर मंदिर thumb|right|280px|सेन्ट जॉन चर्च औंघड़नाथ मंदिर १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस मंदिर का विशेष योगदान रहा है। यह मन्दिर महानगर में छावनी क्षेत्र में स्थित है।चूंकि यहां भगवान शिव स्वरूप में विद्यमान हैं, इस कारण इसे औंघडनाथ मंदिर कहा जाता है। वैसे यह काली पल्टन वाला मंदिर भी कहलाता है।यह मान्यता है, कि इस मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है। यानि यह शिवलिंग स्वयं पृथ्वी से बाहर निकला है। तभी यह सद्य फलदाता है। भक्तों की मनोकामनाएं औंघड़दानी शिव स्वरूप में पूरी करने के साथ साथ ही शांति संदेश देते हैं। इसके साथ ही नटराज स्वरूप में क्रांति को भी प्रकाशित करते हैं। पांडव किला - यह किला मेरठ के (बरनावा) में स्थित है। महाभारत से संबंध रखने वाले इस किले में अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं। कहा जाता है कि यह किला पांडवों ने बनवाया था। दुर्योधन ने पांडवों को उनकी मां सहित यहां जीवित जलाने का षडयंत्र रचा था, किन्तु वे एक भूमिगत मार्ग से बच निकले थे। शहीद स्मारक - शहीद स्मारक उन बहादुरों को समर्पित है, जिन्होंने 1857 में देश के लिए "प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम" में अपने प्राणों की आहुति दे दी। संग-ए-मरमर से बना यह स्मारक लगभग 30 मीटर ऊंचा है। 1857 का भारतीय विद्रोह मेरठ छावनी स्थिति काली पलटन मंदिर, जिसे वर्तमान में औघडनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, से आरंभ हुआ था, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रितानी शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी मास तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारतीय साम्राज्य पर ब्रितानी ताज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया जो अगले ९० वर्षों तक चला। शाहपीर मकबरा - यह मकबरा मुगलकालीन है। यह मेरठ के ओल्ड शाहपीर गेट के निकट स्थित है। शाहपीर मकबरे के निकट ही लोकप्रिय सूरज कुंड स्थित है। हस्तिनापुर तीर्थ - हस्तिनापुर तीर्थ जैनियों के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है। यहां का मंदिर जैन तीर्थंकर शांतिनाथ को समर्पित है। ऐतिहासिक दृष्टि से जैनियों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि जैनियों के तीसरे तीर्थंकर आदिनाथ ने यहां 400 दिन का उपवास रखा था। इस मंदिर का संचालन श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति द्वारा किया जाता है। जैन श्वेतांबर मंदिर - मेरठ जिले के हस्तिनापुर में स्थित जैन श्वेतांबर मंदिर तीर्थंकर विमल नाथ को समर्पित है। एक ऊंचे चबूतरे पर उनकी आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चारों किनारे चार कल्याणक के प्रतीक हैं। हस्तिनापुर मेरठ से 30 किलोमीटर उत्तर-पर्व में स्थित है। रोमन कैथोलिक चर्च - सरधना स्थित रोमन कैथोलिक चर्च अपनी खूबसूरत कारीगरी के लिए चर्चित है। मदर मैरी को समर्पित इस चर्च का डिजाइन इटालिक वास्तुकार एंथनी रघेलिनी ने तैयार किया था। 1822 में इस चर्च को बनवाने की लागत 0.5 मिलियन रूपये थी। भवन निर्माण साम्रगी जुटाने के लिए आसपास खुदाई की गई थी। खुदाई वाला हिस्सा आगे चलकर दो झीलों में तब्दील हो गया। सेन्ट जॉन चर्च - 1819 में इस चर्च को ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से चेपलिन रेव हेनरी फिशर ने स्थापित किया था। इस चर्च की गणना उत्तर भारत के सबसे प्राचीन चर्चो में की जाती है। इस विशाल चर्च में दस हजार लोगों के बैठने की क्षमता है। नंगली तीर्थ - पवित्र नंगली तीर्थ मेरठ के नंगली गांव में स्थित है। नंगली तीर्थ स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज की समाधि की वजह से लोकप्रिय है। मुख्य सड़क से तीर्थ तक 84 मोड़ हैं जो चौरासी लाख योनियों के मुक्ति के प्रतीक हैं। देश के विविध हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं। सूरज कुंड - इस पवित्र कुंड का निर्माण एक धनी व्यापारी लावार जवाहर लाल ने 1714 ई. में करवाया था। प्रारंभ में अबु नाला से इस कुंड को जल प्राप्त होता था। वर्तमान में गंग नहर से इसे जल प्राप्त होता है। सूरज कुंड के आसपास अनेक मंदिर बने हुए हैं जिनमें मनसा देवी मंदिर और बाबा मनोहर नाथ मंदिर प्रमुख हैं। ये मंदिर शाहजहां के काल में बने थे। जामा मस्जिद - कोतवाली के निकट स्थित इस मस्जिद का यह निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था। द्रोपदी की रसोई - द्रोपदी की रसोई हस्तिनापुर में बरगंगा नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि महाभारत काल में इस स्थान पर द्रोपदी की रसोई थी। हस्तिनापुर अभयारण्य - इस अभयारण्य की स्थापना 1986 में की गई थी। 2073 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में मृग, सांभर, चीतल, नीलगाय, तेंदुआ, हैना, जंगली बिल्ली आदि पशुओं के अलावा पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती हैं। नंवबर से जून का समय यहां आने के सबसे उपयुक्त माना जाता है। अभयारण्य का एक हिस्सा गाजियाबाद, बिजनौर और ज्योतिबा फुले नगर के अन्तर्गत आता है। मेरठ की हस्तियां संजीव त्यागी अरुण गोविल वर्षा कौशिक अन्य तथ्य 21 दिसंबर, 2005, को मेरठ राष्ट्रीय समाचार की झलकियों में था, जब पुलिस ने सार्वजनिक रूप से हाथ पकड़े जोड़ों को मारा पीटा, जो कि देश के कई भागों में सांस्कृतिक रूप से अस्वीकृत तथा अभद्र है। यह "आप्रेशन मजनूं" के तहत था। इसके अन्तर्गत युवा जोड़े निशाना थे। हालांकि इसके बाद स्थानीय पुलिस को अप्रसिद्धि मिली। मेरठ की माल रोड, मूलतः ब्रिटिश छावनी का भाग थी, जहां रघुवीर सारंग नामक एक आदमी, जो घोड़े और बघ्घियां चलाता था; को एक अंग्रेज़ अफसर के साथ रेस में हराने के बाद अभद्र व्यवहार का आरोप लगाकर कोड़े लगाये गये थे। 1940 के दशक में, मेरठ के सिनेमाघरों में ब्रिटिश राष्त्रगान बजने के समय हिलना निषेध था। 10 अप्रैल 2006 में एक अग्नि कांड में 225 (आधिकारिक घोषित) लोग मारे गये, जब विक्टोरिया पार्क में लगे एक इलेक्ट्रॉनिक मेले के मण्डप में अग लग गयी। अन्य सूत्रों के अनुसार तब यहां 1000 लोग मारे गये थे। इसके कुछ समय बाद ही, यहाँ के एक मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर पी वी एस मॉल में भी आग लगी थी। मेरठ के प्रसिद्ध क्रीड़ा सामान (खासकर क्रिकेट का बल्ला) विश्व भर में प्रयोग होता है। मेरठ को भारत की क्रीड़ा राजधानी कहा जाता है। इन्हें भी देखें मेरठ ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:मेरठ ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:मेरठ ज़िले के नगर *
युक्रेन
https://hi.wikipedia.org/wiki/युक्रेन
{{ज्ञानसन्दूक देश | native_name = युक्रेन | conventional_long_name = | common_name = युक्रेन | image_flag = Flag of Ukraine.svg | image_coat = Lesser Coat of Arms of Ukraine.svg | image_map = Europe-Ukraine (disputed territory).svg | map_caption = | national_anthem = (Ukrainian) युक्रेन पूर्वी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी सीमा पूर्व में रूस, उत्तर में बेलारूस, पोलैंड, स्लोवाकिया, पश्चिम में हंगरी, दक्षिणपश्चिम में रोमानिया एवं मॉल्डोवा और दक्षिण में काला सागर और अजोव सागर से मिलती है। देश की राजधानी होने के साथ-साथ सबसे बड़ा नगर भी कीव है। युक्रेन का आधुनिक इतिहास ९वीं शताब्दी में तब से प्रारम्भ होता है जब यह 'कीवियन रुुस' के नाम से एक बड़ा और शक्तिशाली राज्य बनकर खड़ा हुआ। परन्तु १२वीं शताब्दी में यह महान उत्तरी लड़ाई के बाद क्षेत्रीय शक्तियों में विभाजित हो गया। १९वीं शताब्दी में इसका बड़ा भाग रूसी साम्राज्य का और बाकी का भाग आस्ट्रो-हंगेरियन नियंत्रण में आ गया। बीच के कुछ वर्षो के उथल-पुथल के पश्चात १९२२ में सोवियत संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बना। १९४५ में यूक्रेनियाई एसएसआर संयुक्त राष्ट्रसंघ का सह-संस्थापक सदस्य बना। सोवियत संघ के विघटन के बाद युक्रेन पुनः स्वतंत्र देश बना। नाम की उत्पत्ति यूक्रेन के नाम की व्युत्पत्ति के बारे में अलग अलग परिकल्पनाये हैं। सबसे व्यापक और पुरानी परिकल्पना के अनुसार इसका अर्थ "परदेश" है, जबकि हाल ही के कुछ अध्ययन में इसका एक अलग ही अर्थ "मातृभूमि" या "क्षेत्र, देश" का दावा किया जा रहा है। अधिकतर इंग्लिश बोलने बाले देशों में इसे "द यूक्रेन" के नाम से ही जाना जाता है। इतिहास thumb|left|"Reply of the Zaporozhian Cossacks to Sultan Mehmed IV of the Ottoman Empire." Painted by Ilya Repin from 1880 to 1891. १९वी शताब्दी,प्रथम विश्व युद्ध, और क्रांति १९वीं सदी में, ऑस्ट्रिया और रूस के बीच में यूक्रेन की स्थिति एक ग्रामीण क्षेत्र जैसी ही थी। इन देशो में होते तेजी से शहरीकरण और आधुनिकीकरण के बीच यूक्रेन में भी राष्ट्रवाद, बुद्धिजीवीवर्ग का उदय हुआ जिनमे प्रमुख नाम राष्ट्रीय कवि तारस शेवचेन्को (1814-1861) तथा राजनीतिक विचारक मिखाइलो द्राहोमनोव (1841-1895) का रहा। रूस-तुर्की युद्ध (1768-1774) के बाद, रूस के शासको ने यूक्रेन में रह रहे तुर्कीयों की जन्संख्या में कमी लाने के लिए, विशेष कर क्रीमिया में जर्मन आव्रजन को प्रोत्साहित किया, जिसका लाभ आगे चल कर कृषिक्षेत्र में हुआ १९वीं सदी के आरम्भ में, यूक्रेन से रूसी साम्राज्य के सुदूर क्षेत्रों में लोगो का पलायन किया गया था। १८९७ की जनगणना के अनुसार, साइबेरिया में 223,000 और मध्य एशिया में 102,000 यूक्रेनियन थे।Rainer Münz, Rainer Ohliger (2003). "Diasporas and ethnic migrants: German, Israel, and post-Soviet successor ". Routledge. p. 164. ISBN 0-7146-5232-6 जबकि 1906 में ट्रांस-साइबेरियन रेलवे के उद्घाटन के बाद अतिरिक्त 1.6 मिलियन लोगो को यूक्रेन के बाहर बसाया गया। यूक्रेन के बाहर यूक्रेनी की इतनी बड़ी जनसँख्या के कारण, सुदूर पूर्वी क्षेत्र, "ग्रीन यूक्रेन" के रूप में जाना जाने लगा। १९वीं सदी में राष्ट्रवादी और समाजवादी पार्टियों का उदय हुआ। ऑस्ट्रियन गैलिसिया, हैब्सबर्ग्ज़ की अपेक्षाकृत उदार नियम के तहत, राष्ट्रवादी आंदोलन का केंद्र बन गया। प्रथम विश्व युद्ध में यूक्रेन ने केन्द्रीय शक्तियों, की ओर से ऑस्ट्रिया के तहत, तथा ट्रिपल इंटेंट, की ओर से रूस के तहत में प्रवेश किया। 35 लाख यूक्रेनियन, इम्पीरियल रूसी सेना के साथ लड़ाई लड़ी है, जबकि 250,000 ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेना के लिए लड़ाई लड़ी। ऑस्ट्रो-हंगेरियन अधिकारियों रूसी साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए यूक्रेनी सेना की स्थापना की। जिसे यूक्रेनी गैलिशियन् सेना का नाम दिया गया, जोकि विश्व युद्ध के बाद भी (1919-23) में बोल्शेविक और पोल्स के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे। यहाँ तक की ऑस्ट्रिया में रुशियो के साथ उदार भावना रखने वालो को कठोरता के साथ दमन किया गया। thumb|left|1918 में यूक्रेन प्रथम विश्व युद्ध ने दोनों साम्राज्यो को नष्ट कर दिया। जहाँ 1917 की रूसी क्रांति में बोल्शेविक के तहत सोवियत संघ के संस्थापना हुई, वही यूक्रैन में भी, उग्र कम्युनिस्ट और समाजवादी प्रभाव के बीच स्वाधीनता के लिए एक यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन उभरा। कई यूक्रेनी राज्यों का उथान हुआ जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक (UNR ) के रूप में हुई यूक्रेन के उन राज्यो में जहा कभी रूसी साम्राज्य का राज था वह यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य (या सोवियत यूक्रेन) की स्थापना; जबकि पूर्व ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के क्षेत्र में पश्चिम यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक और हुतसुल गणराज्य का गठन हुआ। आगे चल कर 22 जनवरी, 1919 को कीव में सेंट सोफिया स्क्वायर पर यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक और पश्चिम यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक के बीच जलूक अधिनियम (एकीकरण अधिनियम) के तहत समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। जिसने आगे चल कर गृहयुद्ध को जन्म दिया रूसी गृहयुद्ध के समय ही एक बागी आंदोलन जिसे ब्लैक आर्मी नाम दिया गया जो आगे चल कर "यूक्रेन के क्रांतिकारी विद्रोही सेना" कहलाई, जिसका नेतृत्व नेस्टर मखनो कर रहे थे जो की यूक्रेनी क्रांति के दौरान 1918 से 1921 तक स्वशासित राज्य के निर्माड़ के लिए, ट्रोट्स्की के सफ़ेद सेना से, देनीकिन के नेतृत्व में जबकि तसर्रिस्ट के नेतृत्व में लाल सेना से लड़ते रहे हालकि इनका प्रयास अगस्त 1921 में उत्तरार्द्ध में ख़तम हो चूका था। पोलैंड ने पोलिश-यूक्रेनी युद्ध में पश्चिमी यूक्रेन को हराया, लेकिन कीव में बोल्शेविक के खिलाफ विफल रहे। रीगा की शांति के अनुसार, पश्चिमी यूक्रेन को पोलैंड में सम्मलित कर लिया गया, जिसे मार्च 1919 में यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सोवियत सत्ता की स्थापना के साथ ही, यूक्रेन के आधे क्षेत्र, में पोलैंड, बेलारूस और रूस का अधिकार हो गया, जबकि दनिएस्टर नदी के बाएं किनारे पर मोलदावियन स्वायत्तता राष्ट्र का निर्माड़ हो गया। यूक्रेन दिसंबर 1922 में सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ के एक संस्थापक सदस्य बन गया। यूक्रेन का इतिहास द्वितीय विश्व युद्ध सितंबर 1939 में पोलैंड पर आक्रमण के बाद, जर्मन और सोवियत सेना ने पोलैंड के क्षेत्र को आपस में बाट लिया। इस प्रकार, यूक्रेनी जनसंख्या बहुल पूर्वी गालिसिया और वोल्होनिया क्षेत्र फिर से यूक्रेन के बाकी हिस्सों के साथ जुड़ गया। और इतिहास में पहली बार, यह राष्ट्र एकजुट हुआ था।Wilson, p. 17Subtelny, p. 487 1940 में, सोवियत संघ ने बेस्सारबिया और उत्तरी बुकोविना पर अपना कब्ज़ा किया। यूक्रेनी एसएसआर ने बेस्सारबिया के उत्तरी और दक्षिणी जिलों, उत्तरी बुकोविना और हर्त्सा क्षेत्र को अपने में शामिल तो कर किया, लेकिन मोल्डावियन स्वायत्त सोवियत समाजवादी गणराज्य के पश्चिमी भाग को नव निर्मित मोल्डावियन सोवियत समाजवादी गणराज्य को सौंप दिया। यूएसएसआर को उसके विजित इन क्षेत्रो पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1947 के पेरिस शांति संधियों द्वारा मान्यता दिया गया। 22 जून 1941 को जर्मन सेना ने सोवियत संघ पर हमला किया, और लगभग चार वर्ष के युद्ध का प्रारम्भ हो गया। प्रारम्भ में धुरी राष्ट्र ने बढ़त बनाई पर लाल सेना ने उन्हें रोक दिया। कीव के युद्ध में, इसके भयंकर प्रतिरोध के कारण, शहर को "हीरो शहर" के रूप में प्रशंसित किया गया। 600,000 से अधिक सोवियत सैनिक (या सोवियत की पश्चिमी मोर्चा का एक चौथाई) मारे गए या बंदी बना लिया गए।Roberts, p. 102Boshyk, p. 89 यद्यपि अधिकांश यूक्रेनियन, लाल सेना और सोवियत प्रतिरोध के साथ-साथ में लड़े, पश्चिमी यूक्रेन में एक स्वतंत्र यूक्रेनी विद्रोही सेना आंदोलन (यूपीए, 1942) आगे आया। कुछ यूपीए प्रभागों ने स्थानीय पोल्स जातीय का नरसंहार भी किया, जिससे प्रतिहिंसा की स्थिति उत्पन्न हो गयी हो गयी। युद्ध के बाद भी, यूपीए 1950 के दशक तक यूएसएसआर से लड़ते रहा। इसी समय, यूक्रेनी लिबरेशन आर्मी, एक और राष्ट्रवादी आंदोलन सेना, नाजियों के के साथ-साथ लड़ती रही। thumb|कीव में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ नुकसान, 19 सितंबर 1941 से 6 नवंबर 1943 तक यहाँ नाजी जर्मनी का कब्जा रहा। सोवियत सेना के लिए लड़ते यूक्रेनियनों की संख्या, 4.5 मिलियन से 7 मिलियन के पास थी। यूक्रेन में प्रो-सोवियत कट्टरपंथी गोरिल्ला प्रतिरोध की संख्या 47,800 अपने अधिग्रहण के आरम्भ में से लेकर 1944 में अपने चरम पर 500,000 तक होने का अनुमान है। जिनमे लगभग 50% संख्या स्थानीय यूक्रेनियन की थी। सामान्यतः यूक्रेनी विद्रोही सेना के आंकड़े अविश्वसनीय होते हैं, पर इनकी संख्या १५,००० से लेकर १,००,००० सैनिकों तक के बीच रही होगी।Magocsi, p. 635 यूक्रेनी एसएसआर में अधिकांश भर्ती, यूक्रेन (Reichskommissariat) के भीतर से ही की गई थी, ताकि इसके संसाधनों और जर्मन आबादी का उपयोग (शोषण) किया जा सके। कुछ पश्चिमी यूक्रेनियन द्वारा, जो 1939 में ही सोवियत संघ में शामिल हुए थे, जर्मनी का मुक्तिदाता के रूप में स्वागत किया गया। हलाकि क्रूर जर्मन शासन ने अंततः अपने ही समर्थकों को खिलाफत की ओर मोड़ दिया, जिन्होंने कभी स्टालिनिस्ट नीतियों के खिलाफ खड़े होकर इनका साथ दिया था।. नाजियों ने सामूहिक खेत व्यवस्था को संरक्षित रखने के बजाय, यहूदियों के खिलाफ नरसंहार चालू कर दिया,यहाँ से जर्मनी में काम करने के लिए लाखों लोगों को भेज गया, और जर्मन उपनिवेशण के लिए एक वंशानुक्रम कार्यक्रम शुरू किया गया उन्होंने कीव नदी पर भोजन के परिवहन को अवरुद्ध कर दिया।Karel Cornelis Berkhoff. Harvest of despair: life and death in Ukraine under Nazi rule, Harvard University Press: April 2004. p. 164 द्वितीय विश्व युद्ध की अधिकतर लड़ाई पूर्वी मोर्चो पर हुई। कुछ अनुमानों के अनुसार, लगभग 93% जर्मन की जनहानि यहाँ हुई थी।Rozhnov, Konstantin, "Who won World War II?" , BBC. Citing Russian historian Valentin Falin. Retrieved 5 July 2008. युद्ध के दौरान यूक्रेनी आबादी का कुल नुकसान का अनुमान 5 से 8 मिलियन के बीच था,Kulchytsky, Stalislav, "Demographic losses in Ukrainian in the twentieth century", Zerkalo Nedeli, 2–8 October 2004. Available online in Russianand . Retrieved 27 January 2008. जिनमे नाजियों द्वारा मारे गए, लगभग डेढ़ लाख यहूदि भी शामिल थे। अनुमानित 8.7 मिलियन सोवियत सैनिकों जोकि नाजियों के खिलाफ लड़ाई में उतरे थे,Overy, p. 518Кривошеев Г. Ф., Россия и СССР в войнах XX века: потери вооруженных сил. Статистическое исследование (Krivosheev G. F., Russia and the USSR in the wars of the 20th century: losses of the Armed Forces. A Statistical Study) में 1.4 मिलियन स्थानीय यूक्रेनियन थे। विजय दिवस, दस यूक्रेनी राष्ट्रीय छुट्टियों में से एक के रूप में मनाया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूक्रेन को युद्ध से भारी क्षति हुई थी, और इसे पुनर्वास के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता थी। ७०० से अधिक नगरों और कस्बे और 28,000 से अधिक गांव नष्ट हो चुके थे। 1946-47 में आये सूखे और युद्धकाल में नष्ट हुए बुनियादी सुविधाओं के कारण आये अकाल से स्थिति और बिगड़ गई। अकाल से हुए मृतकों की संख्या लाखो में थी। 1945 में, यूक्रेनी एसएसआर संयुक्त राष्ट्र संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक था। युद्ध के बाद के नए विस्तारित सोवियत संघ में जाति संहार को बढ़ावा मिला। 1 जनवरी 1953 तक, 20% से अधिक वयस्कों के "विशेष निर्वासन" में रूस के बाद यूक्रेनियन का ही स्थान था। इसके अलावा, यूक्रेन के 450,000 से अधिक जर्मन मूल और 200,000 से अधिक क्रीमिया तातारों को निर्वासन के लिए मजबूर किया गया। 1953 में स्टालिन की मृत्यु के बाद, निकिता ख्रुश्चेव सोवियत संघ के नए नेता बने। 1938-49 में यूक्रेनी एसएसआर कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख सचिव रह चुके ख्रुश्चेव यहाँ के गणराज्य से भली-भांति परिचित थे; संघ के नेता बनते ही, उन्होंने यूक्रेनी और रूसी राष्ट्रों के बीच दोस्ती को बढ़ावा दिया। 1954 में, पेरेसास्लाव की संधि की 300 वीं वर्षगांठ को व्यापक रूप से मनाया गया। क्रीमिया को रूसी एसएफएसआर से यूक्रेनी एसएसआर को स्थानांतरित कर दिया गया। 1950 तक, यूक्रेन ने उद्योग और उत्पादन में युद्ध के पूर्व के स्तर को पार कर लिया। 1946-1950 की पंचवर्षीय योजना के दौरान, सोवियत बजट का लगभग 20%, सोवियत यूक्रेन में निवेश किया गया था, जोकि युद्ध-पूर्व योजना से 5% अधिक था। नतीजतन, यूक्रेनी जनबल 1940 से 1955 तक 33.2% बढ़ गया, जबकि इसी अवधि में औद्योगिक उत्पादन में 2.2 गुना की वृद्धि हुई। सोवियत यूक्रेन जल्द ही औद्योगिक उत्पादन में यूरोप को पीछे छोड़ दियाMagocsi, p. 644, और साथ ही सोवियत में हथियार उद्योग और उच्च तकनीक अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। इस तरह की एक महत्वपूर्ण भूमिका के परिणामस्वरूप स्थानीय अभिजात वर्ग को एक बड़ा प्रभाव हासिल हो गया। सोवियत नेतृत्व के कई सदस्य यूक्रेन से आए, जिसमे सबसे खास तौर पर लियोनिद ब्रेझ़नेव थे। बाद में जिन्होंने ख्रुश्चेव को हटा कर 1964 से 1982 तक सोवियत नेता बन रहे। कई प्रमुख सोवियत खिलाड़ी, वैज्ञानिक और कलाकार यूक्रेन से आए थे। thumb|लियोनिद ब्रेझ़नेव 26 अप्रैल 1986 को, चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र के एक रिएक्टर में विस्फोट हुआ, परिणामस्वरूप चेर्नोबिल दुर्घटना, इतिहास का सबसे खराब परमाणु रिएक्टर दुर्घटना माना जाता हैं। दुर्घटना के समय, 7 मिलियन लोग उस क्षेत्रों में रहते थे, जिसमें 2.2 मिलियन लोग यूक्रेन के थे। दुर्घटना के बाद, एक नया नगर स्लावुतच, प्रदूषित क्षेत्र के बाहर बनाया गया और संयंत्र के कर्मचारियों का वह बसाया गया, जिसे आगे चल कर सन 2000 में सेवा मुक्त कर दिया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विवरण के अनुसार 56 मौते प्रत्यक्ष से दुर्घटना के समय हुई, तथा आगे चल कर 4,000 अतिरिक्त मृत्यु कैंसर के कारण हुई। स्वतंत्रता thumb|left|Protesters at Independence Square on the first day of the Orange Revolution २०१४ की क्राँति एवं रूस का सैन्य दखल नवंबर २०१२ में यूरोपीय संघ के साथ अंतिम समय में एक व्यापारिक समझौता रद्द कर रूस के साथ जाने पर के बाद यूक्रेन की राजधानी कीव में सरकार विरोधी प्रदर्शन प्रारम्भ हो गए। लाखों लोगों ने इंडिपेंडेंट स्क्वेयर पर प्रदर्शन किया। पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प हुई जिसमें 70 से अधिक मारे गए और लगभग 500 घायल हो गए। 23 फ़रवरी 2014 को यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के ऊपर महाभियोग लगाए जाने के बाद यूक्रेन की संसद ने स्पीकर ओलेक्जेंडर तुर्चिनोव को अस्थायी रूप से राष्ट्रपति के कार्यो की जिम्मेदारी सौंप दी। यानुकोविच देश छोड़कर भाग गए। 26 फ़रवरी 2014 को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी बिल्डिंगो पर को कब्जा कर लिया। रूसी सैनिकों ने क्रीमिया के हवाई अड्डों, एक बंदरगाह और सैन्य अड्डे पर भी कब्जा कर लिया जिससे रूस और यूक्रेन के बीच आमने-सामने की जंग जैसे हालात बन गए।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/world/other-countries/Ukraine-mobilizes-troops-after-Russias-declaration-of-war/articleshow/31350211.cms रूस-यूक्रेन में जंग की आहट २ मार्च को रूस की संसद ने भी राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन में रूसी सेना भेजने के निर्णया का अनुमोदन कर दिया।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/world/europe/putin-gets-russian-parliament-approval-to-attack-ukraine/articleshow/31232126.cms रूसी संसद ने दी यूक्रेन में आर्मी भेजने की इजाजत दुनिया भर में इस संकट से चिंता छा गई और कई देशों के राजनयिक अमले हरकत में आ गए। यही नहीं, 3 मार्च को दुनिया भर के शेयर बाजार गिर गए। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके यूरोपीय सहयोगियों ने रूस के कदम को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बताया।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/world/europe/World-scrambles-as-Russia-tightens-grip-on-Crimea/articleshow/31348485.cms यूक्रेन संकट : दुनिया बोली रुको रूस उन्होंने फोन पर रूसी राष्ट्रपति से डेढ़ घंटा बात की।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/31350003.cms यूक्रेन पर आमने-सामने। 4 मार्च को रूस के राष्ट्रपति ने सेनाएँ वापिस बुलाने की घोषणा कर दी।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/31356242.cms पुतीन के यूटर्न के बाद सेंसेक्स 250 अंक चढ़ा, निफ्टी 6300 के करीब भूगोल 603,628 वर्ग किलोमीटर (233,062 वर्ग मील) के क्षेत्रफल और 2782 किलोमीटर (1729 मील) लम्बी तटरेखा के साथ, यूक्रेन दुनिया का 46वां सबसे बड़ा देश है (मेडागास्कर से पहले, दक्षिण सूडान के बाद)। यह पूर्णतः यूरोपियाई सीमा के अंदर आने वाला सबसे बड़ा देश है एवं यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। मिट्टी उत्तर-पश्चिम से दक्षिण तक यूक्रेन की मिट्टी तीन प्रमुख भागो में विभाजित किया जा सकता है: बलुआ पॉडजॉलीज़ेड मिट्टी क्षेत्र, अत्यंत उपजाऊ काली मिटटी(Chernozem) का मध्यक्षेत्र, तथा भूरा और लवणता उक्त मिट्टी के क्षेत्र। इनमे से सबसे प्रमुख काली मिटटी हैं जोकि यूक्रेन के दो तिहाई हिस्सो में पाई जाती हैं। यह अत्यंत ही उपजाऊ मिटटी होती है इसे दुनिया कि सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक माना जाता हैं और "पाव का टोकरी" के नाम से प्रसिद्ध हैं।Magocsi, Paul R. A history of Ukraine: The land and its peoples. University of Toronto Press, 2010. जैव विविधता यूक्रेन जानवरों, कवक, सूक्ष्मजीवों और पौधों की विभिन्नतओ का घर है। जीव-जंतु यूक्रेन का प्राणि क्षेत्र दो भागो में बता हुआ हैं पहला पश्चिमी क्षेत्र जहा यूरोप कि सीमा स्थित हैं यहाँ मिश्रित वनों की विशिष्ट प्रजातियों देखने को मिलती हैं और दूसरा पूर्वी यूक्रेन की ओर का क्षेत्र हैं जहां मैदान में रहने वाली प्रजातियों पनपती हैं देश के वन क्षेत्रों में जंगली बिल्ली, भेड़िये, जंगली सूअर और नेवला मुख्य रूप से पाए जाते है इनके अलावा यह अन्य की प्रकार के जीव पाया जाते हैं, वही कार्पेथियन पहाड़ियां जोकि कई स्तनधारियों का घर हैं जिनमे भूरे भालू, ऊदबिलाव तथा मिंक प्रमुख हैं कवक कवक की 6,600 से अधिक ज्ञात प्रजातियों को यूक्रेन में दर्ज किया गया है, लेकिन अभी कई संख्या में अज्ञात प्रजातिया भी है। जलवायु thumb|यूक्रेन के कोपेन जलवायु वर्गीकरण का नक्शा। यूक्रेन में ज्यादातर समशीतोष्ण जलवायु रहती है, इसके अपवाद क्रिमीआ के दक्षिणी तट हैं जहाँ उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है। यहाँ की जलवायु अटलांटिक महासागर से आने वाली मामूली गर्म तथा नम हवा से प्रभावित होती है। औसत वार्षिक तापमान 7 °C (41.9–44.6 °F) उत्तर की ओर, से लेकर 11–13 °C (51.8–55.4 °F)दक्षिण में रहती हैं। वर्षण (बूंदा बांदी, बारिश, ओले के साथ वर्षा, बर्फ, कच्चा ओला और ओलों इत्यादि) का वितरण भी असमान्य है; यह पश्चिम और उत्तर में सबसे अधिक जबकि पूर्व और दक्षिण पूर्व में सबसे कम है। पश्चिमी यूक्रेन में, विशेष रूप कार्पथियान पहाड़ों में वर्षा 1,200 मिलीमीटर (47.2 में) के आसपास प्रतिवर्ष होता है जबकि क्रिमीआ और काला सागर के तटीय क्षेत्रों के आसपास 400 मिलीमीटर होती है। राजनीति यूक्रेन एक गणराज्य है जिसमे अलग विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शाखाओं के साथ एक मिश्रित अर्द्ध संसदीय, अर्द्ध राष्ट्रपति प्रणाली लागु हैं। शासन प्रणाली 24 अगस्त 1991 में अपनी स्वतंत्रता के साथ ही यूक्रेन ने 28 जून 1996 को संविधान लागु कर अर्द्ध-राष्ट्रपति गणतंत्र की पद्धति अपना ली, हलाकि 2004 में इसमें कई संशोधन किये गए जिससे इसका झुकाओ संसदीय प्रणाली की और बढ़ गया, हलाकि इसका विरोध सारे देश में किया गया और अंत में यूक्रेनी कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को सारे संविधान में किये गए संशोधनों को ख़ारिज कर पुनः 1996 वाले संविधान को लागु कर दिया 2004 का संवैधानिक संशोधन तथा 2010 पर कोर्ट के आदेश पर राजनीतिक बहस का एक प्रमुख विषय बन गया कि न तो 1996 के संविधान और न ही 2004 के संविधान, "संविधान पूर्ववत करें" करने की क्षमता प्रदान करता हैं, 21 फरवरी 2014 को राष्ट्रपति विक्टर यानुकोवायच और विपक्षी नेताओं के बीच पुनः 2004 के संविधान की वापसी के लिये एक समझौता हुआ। यह समझौता यूरोपीय संघ की मध्यस्थता के बाद हुआ, जिसके बाद सारे देश में विरोध पनपने लगा। नवम्बर 2013 में शुरू हुआ हिंसक झड़प एक सप्ताह तक चला जिसमें कई प्रदर्शनकारी मारे गए। इस सौदे में 2004 के संविधान में देश के लौटने , गठबंधन सरकार का गठन , जल्दी चुनाव का आवाहन तथा जेल से पूर्व प्रधानमंत्री यूलिया Tymoshenko की रिहाई भी शामिल थी। समझौते के एक दिन बाद, यूक्रेन की संसद ने समझौता खारिज कर दिया और अपनी वक्ता ऑलेक्ज़ेंडर Turchynov को अंतरिम राष्ट्रपति और Arseniy Yatsenyuk को यूक्रेन के प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित किया। विदेश संबंध प्रशासनिक विभाग सेना thumb|left|युक्रेनी एयर फोर्स का सुखोई एस यू-27. सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन को अपने विरासत में 780,000 सैन्य बल, के साथ दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी परमाणु हथियार शस्त्रागार मिला है। मई 1992 में, यूक्रेन ने लिस्बन में अपने सभी परमाणु हथियारों को नष्ट करने हेतु रूस को सौपने और परमाणु अप्रसार संधि पर एक गैर परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के रूप में शामिल होने के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। यूक्रेन ने 1994 में संधि की पुष्टि की, और 1996 तक देश में उपस्थित सभी परमाणु हथियारों से मुक्त हो गया। यूक्रेन, वर्तमान में अनिवार्य भरती आधारित सैन्य को एक पेशेवर स्वयंसेवक सेना में के रूप में परिवर्तित करने के लिए योजना बना रही है। यूक्रेन शांति अभियानों में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। यूक्रेनी सैनिक, यूक्रेनी-पोलिश बटालियन के रूप में कोसोवो में तैनात किए गए हैं।एक यूक्रेनी सैनिक टुकड़ी को लेबनान में "अनिवार्य संघर्ष विराम समझौते" को लागू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सेना के भूमिका के रूप में तैनात किया गया था। 2003-05 में, यूक्रेनी की सैनिक इकाई को पोलिश नियंत्रण में इराक में बहुराष्ट्रीय बल के रूप में तैनात किया गया था। अपनी स्वतंत्रता के बाद से ही, यूक्रेन अपने आप को एक तटस्थ राष्ट्र घोषित करता रहा हैं। 1994 तक देश की रूस, नाटो, और अन्य सीआईएस देशों के साथ सीमित सैन्य साझेदारी है। 2000 के दशक में यूक्रेन सरकार का नाटो की ओर झुकाव बढ़ गया और 2002 में आपस में प्रगण सहयोग स्थापित करने हेतु नाटो-यूक्रेन कार्य योजना पर हस्ताक्षर किए गए। अभी तक रूस के दवाब के कारण यूक्रेन के नाटो में जुड़ने के आसार काम ही दिखाई देते रहे हैं। हलाकि 2008 बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन के दौरान नाटो ने घोषणा की कि यूक्रेन, जब परिग्रहण के लिए सभी मानदंडों को पूरा कर लेगा, वह अंततः नाटो का सदस्य बन जाएगा। अर्थव्यवस्था निगमों परिवहन ऊर्जा इंटरनेट यूक्रेन इंटरनेट के क्षेत्र में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जोकि 2007-08 के वित्तीय संकट से अप्रभावित रहा है। जून, 2014 तक, वहाँ 18.2 करोड़ डेस्कटॉप इंटरनेट उपयोगकर्ताओं थे, जोकि कुल वयस्क आबादी का 56% है. इस क्षेत्र का केंद्र-बिंदु, 25 से 34 वर्षीय आयु वर्ग,की और हैं जोकि जनसंख्या का 29% प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया के सबसे तेजी से इंटरनेट का उपयोग करने वाले शीर्ष दस देशों के बीच, यूक्रेन 8 वें स्थान पर है। पर्यटन thumb|येनिकले किला,केर्च (क्रिमीआ) यूक्रेन, विश्व पर्यटन संगठन श्रेणी के अनुसार आने वाले पर्यटकों की संख्या से यूरोप में 8 वें स्थान पर है,UNWTO World Tourism Barometer, volume 6, UNWTO (June 2008) क्योंकि यहाँ कई पर्यटकों के आकर्षणो का केंद्र हैं: पहाड़ स्कीइंग, लंबी पैदल यात्रा और मछली पकड़ने के लिए शैलानी यहाँ बड़ी मात्रा में आते हैं काला सागर का तट गर्मियों में गंतव्य के रूप में लोकप्रिय हैं ; विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति भंडार; चर्चों, महल खंडहरो, पार्क स्थलों तथा विभिन्न आउटडोर गतिविधि के लिए प्रशिद्ध हैं अपनी कई ऐतिहासिक स्थलों तथा आतिथ्य बुनियादी सुविधाओं के साथ कीव, लविवि , ओडेसा और कम्यानेट्स-पोडिलसकइ यूक्रेन के प्रमुख पर्यटन केंद्रों में से एक हैं। क्रीमिया की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पर्यटन हुआ करता था लेकिन 2014 में रूसी विलय के बाद आगंतुक संख्या में एक बड़ी गिरावट आई है।Tourism takes a nosedive in Crimea bbc.co.uk, accessed 29 December 2015 जनसांख्यिकी जनसंख्या में गिरावट शहरीकरण यूक्रेन में कुल 457 शहर हैं, जिनमे से १७६ ओब्लास्ट वर्ग, 279 छोटे रायोन-स्तरीय शहरों, और दो शहर विशेष कानूनी दर्ज है। 'यूक्रेन में सबसे बड़े शहर या कस्बे' श्रेणी नाम क्षेत्र जन्संख्या 1 कीव कीव (शहर) 2,814,258 भाषा धर्म युक्रेन मे ईसाई लगभग 83%है बाकी मुसलमान,यहुदी और बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं स्वास्थ्य शिक्षा संस्कृति यूक्रेन रूढ़िवादी ईसाई धर्म, को की देश में प्रमुख धर्म हैं से बहुत प्रभावित हैं। यूक्रेन की संस्कृति अपने पूर्वी और पश्चिमी पड़ोसी देशो से भी बहुत प्रभावित है इसका उदाहरण वहा की स्थापत्य कला, संगीत और कला में देखने को मिल सकता हैं। कम्युनिस्ट युग का यूक्रेन के कला और लेखन पर काफी गहरा प्रभाव रहा हैं। 1932 में स्टालिन ने सोवियत संघ में समाजवादी यथार्थवाद राज्यनीति का गठन किया जिसने वहा के रचनात्मकता पर बुरा असर डाला। 1980 के दशक glasnost (खुलापन) पेश किया गया और सोवियत कलाकार और लेखक फिर से खुद को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हो गए। ईस्टर एग की परंपरा, जो की वहा pysanky के रूप में जाना जाता हैं, यूक्रेन की जड़ों में बसा हुआ है। यहाँ पर रंग-बिरंगे ईस्टर एग बनाये जाते हैं जोकि वहा के पारंपरिक विरासत हैं बुनाई और कढ़ाई thumbnail|यूक्रेनी कढ़ाई के कुछ नमूने दस्तकार वस्त्र कला, यूक्रेनी संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं विशेषकर यूक्रेनी शादी की परंपराओं में। यूक्रेनी कढ़ाई, बुनाई और फीता बनाने पारंपरिक कला वहा के लोक पोशाक और पारंपरिक समारोह में देखा जा सकता है। राष्ट्रीय पोशाक बुना जाता है और इसे अत्यधिक सजाया जाता हैं। हस्तनिर्मित करघे के साथ बुनाई अभी भी Krupove गांव, जोकि Rivne Oblast में स्थित हैं प्रचलित है। यह गांव राष्ट्रीय शिल्प निर्माण के दो मशहूर हस्तियों का जन्मस्थान है। नीना Myhailivna और Uliana Petrivna, जिनकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैं। इस पारंपरिक ज्ञान को सहेजने के लिए गांव में एक स्थानीय बुनाई केंद्र, एक संग्रहालय तथा बुनाई स्कूल खोलने की योजना बनाई जा रही है। साहित्य यूक्रेनी साहित्य का इतिहास 11 वीं सदी से है, उस समय के लेखन मुख्य रूप से पूजन पद्धति संबंधी थे तथा पुराने चर्च स्लावोनिक भाषा में लिखा गया था। साहित्यिक गतिविधि को मंगोल आक्रमण के दौरान अचानक गिरावट का सामना करना पड़ा। यूक्रेनी साहित्य फिर से 14 वीं सदी में विकसित होना शुरू किया और 16 वीं सदी छाप की शुरूआत के बाद , Cossack युग की शुरुआत के साथ में काफी फला-फूला, वहा की कला में रूसी और पोलिश कलाओ का प्रभुत्व दिखा। यह उन्नति 17वीं और 18वीं शताब्दी में वापस स्थगित हो गए, जब यूक्रेनी भाषा में प्रकाशित करने को गैरकानूनी और निषिद्ध कर दिया गया। बहरहाल, 18वीं सदी में आधुनिक साहित्यिक यूक्रेनी फिर से उभर कर सामने आया। वास्तुकला संगीत और सिनेमा thumb|कॉसैक मैमे, कोब्जा(एक प्रकार का वाद्ययंत्र) बजाते हुए संगीत एक लंबे इतिहास के साथ यूक्रेनी संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है। पारंपरिक लोक संगीत से, पारंपरिक और आधुनिक रॉक संगीत तक, यूक्रेन कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संगीतकारों का घर है। जिनमे किरिल कराबिट्स, ओकेयन एलजी और रुस्लाना शामिल हैं। पारंपरिक यूक्रेनी लोक संगीत के धुन ने पश्चिमी संगीत और आधुनिक जैज़ संगीत को भी प्रभावित किया हैं। 1960 के दशक के मध्य से, पश्चिमी-प्रभावित पॉप संगीत की लोकप्रियता यूक्रेन में बढ़ रही है। लोक गायक और हार्मोनियम वादक मारियाना सदोवस्का प्रमुख कलाकार हैं। यूक्रेन का यूरोपीय सिनेमा पर भी प्रभाव है यूक्रेनी निर्देशक अलेक्जेंडर दोवजहेंको, अक्सर महत्वपूर्ण सोवियत फिल्म निर्माताओं में याद किये जाते है। उन्होंने अपनी खुद की सिनेमाई शैली का आविष्कार किया, यूक्रेनी काव्य सिनेमा, जोकि उस समय के समाजवादी मार्गदर्शक सिद्धांतों से एकदम अलग थे। महत्वपूर्ण और सफल प्रस्तुतियों के बावजूद, यहाँ के फिल्म उद्योग में यूरोपीय और रूसी प्रभाव को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। यूक्रेनी निर्माता, अंतरराष्ट्रीय सह-निर्माण में सक्रिय हैं और यूक्रेनी अभिनेता, निर्देशक और चालक दल नियमित रूप से रूसी (पूर्व में सोवियत) फिल्मों में दिखाई देते रहते हैं। पत्रकारिता खेल thumb|यूक्रेनी फुटबॉलर एंड्री शेवचेन्को यूरो 2012 में स्वीडन के खिलाफ गोल कर उत्सव मनाते हुए यूक्रेन को सोवियत के शारीरिक शिक्षा पर जोर से काफी लाभ हुआ। इस तरह की नीतियों से यहाँ कई स्टेडियम, स्विमिंग पूल, जिम्नॅशिअम और कई अन्य पुष्ट सुविधाएं विरासत में यूक्रेन को मिले। यहाँ का सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल है। यहाँ के शीर्ष पेशेवर लीग में Vyscha LIHA ( "प्रीमियर लीग") का नाम है। कई यूक्रेनियन्स ने सोवियत राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए भी खेला हैं यहाँ की राष्ट्रीय टीम 2006 के फीफा विश्व कप में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे, और अंततः चैंपियन इटली से हार का सामना करना पड़ा यूक्रेनियन का मुक्केबाजी में भी अच्छा प्रदर्शन रहा हैं जिनमे Vitali और Wladimir क्लिट्सचको भाइयों को विश्व हैवीवेट चैंपियन का दर्ज हासिल है। शतरंज यूक्रेन में एक लोकप्रिय खेल है। यहाँ के Ruslan Ponomariov पूर्व विश्व चैंपियन रह चुके है। यहाँ यूक्रेन में 85 ग्रैंडमास्टर तथा 198 अंतर्राष्ट्रीय मास्टर्स हैं। यूक्रेन 1994 के शीतकालीन ओलंपिक में अपने ओलंपिक करियर की शुरुआत की। अब तक ओलंपिक में यूक्रेन शीतकालीन ओलंपिक की तुलना में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक (पांच मैचों में 115 पदक) में बहुत अधिक सफल रहा है। यूक्रेन वर्तमान में स्वर्ण पदकों की संख्या से 35 वें स्थान पर है। भोजन परंपरागत यूक्रेनी आहार में मुर्गी-सुअर का मांस, मांस, मछली और मशरूम शामिल है। यहाँ आलू, अनाज, ताजा, उबला हुआ या मसालेदार सब्जिया भी बहुत खाये जाते हैं। यहाँ का लोकप्रिय पारंपरिक व्यंजन, Varenyky (मशरूम, आलू, गोभी, पनीर, चेरी के साथ उबला हुआ पकौड़ी), nalysnyky (पनीर, खसखस, मशरूम, मछली के अंडे या मांस के साथ पेनकेक्स),और Pierogi (उबला हुआ आलू और पनीर या मांस के साथ भरा पकौड़ी) शामिल हैं। यूक्रेनी व्यंजन में चिकन कीव और कीव केक भी शामिल हैं। यूक्रेनियन पेय पदार्थो में फल जूस, दूध, छाछ, चाय और कॉफी, बीयर, वाइन और horilka शामिल हैं। टिप्पणी अ. रूस और कजाखस्तान पहले और दूसरे सबसे बड़े देश हैं लेकिन दोनों यूरोपीय और एशियाई महाद्वीपों में फैले हैं। रूस यूक्रेन से अधिक यूरोपियाई क्षेत्रफल रखने वाला एकमात्र देश है। सन्दर्भ श्रेणी:युक्रेन श्रेणी:यूरोप के देश
अफ़घानिस्तान में शहरों की सूची
https://hi.wikipedia.org/wiki/अफ़घानिस्तान_में_शहरों_की_सूची
अनुप्रेषित अफ़ग़ानिस्तान
इंद्रकुमार गुज़राल
https://hi.wikipedia.org/wiki/इंद्रकुमार_गुज़राल
REDIRECTइन्द्र कुमार गुजराल
तबला
https://hi.wikipedia.org/wiki/तबला
तबला भारतीय संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है। यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ" कहते हैं। यह तालवाद्य हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में काफी महत्वपूर्ण है और अठारहवीं सदी के बाद से इसका प्रयोग शास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन-वादन में लगभग अनिवार्य रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त सुगम संगीत और हिंदी सिनेमा में भी इसका प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। यह बाजा भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, और श्री लंका में प्रचलित है।Tabla एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका पहले यह गायन-वादन-नृत्य इत्यादि में ताल देने के लिए सहयोगी वाद्य के रूप में ही बजाय जाता था, परन्तु बाद में कई तबला वादकों ने इसे एकल वादन का माध्यम बनाया और काफी प्रसिद्धि भी अर्जित की। नाम तबला की उत्पत्ति अरबी-फ़ारसी मूल के शब्द "तब्ल" से बतायी जाती है। हालाँकि, इस वाद्य की वास्तविक उत्पत्ति विवादित है - जहाँ कुछ विद्वान् इसे एक प्राचीन भारतीय परम्परा में ही उर्ध्वक आलिंग्यक वाद्यों का विकसित रूप मानते हैं वहीं कुछ इसकी उत्पत्ति बाद में पखावज से निर्मित मानते हैं और कुछ लोग इसकी उत्पत्ति का स्थान पच्छिमी एशिया भी बताते हैं। उत्पत्ति तबले का इतिहास सटीक तौर पर नामालूम है और इसकी उत्पत्ति के बारे में कई उपस्थापनायें मौजूद हैं। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में वर्णित विचारों को दो समूहों में बाँटा जा सकता है: तुर्क-अरब उत्पत्ति औपनिवेशिक शासन के दौरान इस परिकल्पना को काफी बलपूर्वक पुरःस्थापित किया गया कि तबले की मूल उत्पत्ति मुस्लिम सेनाओं के साथ चलने वाले जोड़े ड्रम से हुई है; इस स्थापना का मूल अरबी के "तब्ल" शब्द पर आधारित है जिसका अर्थ "ड्रम (ताल वाद्य)" होता है। बाबर द्वारा सेना के साथ ऐसे ड्रम लेकर चलने को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, हालाँकि तुर्क सेनाओं के साथ चलने वाले ये वाद्ययंत्र तबले से कोई समानता नहीं रखते बल्कि "नक्कारा" (भीषण आवाज़ पैदा करने वाले) से समानता रखते हैं। दूसरी स्थापना के मुताबिक़, अलाउद्दीन खिलजी के समय में, अमीर ख़ुसरो ने "आवाज़ बाजा" (बीच में पतला तालवाद्य) को काट कर तबले का रूप देने की बात कही जाती है। हालाँकि, यह भी संभव नहीं लगता क्योंकि उस समय के कोई भी चित्र इस तरह के किसी वाद्य यंत्र का निरूपण नहीं करते। मुस्लिम इतिहासकारों ने भी अपने विवरणों में ऐसे किसी वाद्ययंत्र का उल्लेख नहीं किया है। उदाहरण के लिए, अबुल फैजी ने आईन-ए-अकबरी में तत्कालीन वाद्ययंत्रों की लंबी सूची गिनाई है, लेकिन इसमें तबले का ज़िक्र नहीं है। एक अन्य तीसरे मतानुसार दिल्ली के ख़यात गायक सदारंग के शिष्य और प्रसिद्ध पखावज वादक रहमान खान के पुत्र, अमीर खुसरो (द्वितीय) ने 1738 ई॰ में पखावज से तबले का आविष्कार किया। इससे पहले ख़याल गायन में भी पखावज से संगत की जाती थी। इस सिद्धांत में सत्यता संभावित है क्योंकि उस समय की लघु कलाकृतियों (मिनियेचर पेंटिंग) में तबले से मिलते-जुलते वाद्ययंत्र के प्रमाण मिलते हैं। हालाँकि, इससे यह प्रतीत होता है की इस वाद्ययंत्र की उत्पत्ति भारतीय उपमहादीप के मुस्लिम समुदायों में दिल्ली के आसपास हुई न कि यह अरब देशों से आयातित वाद्ययंत्र है। नील सोर्रेल और पंडित राम नारायण जैसे संगीतविद पखावज काट कर तबला बनाये जाने की इस किम्वदंती में बहुत सत्यता नहीं देखते। भारतीय उत्पत्ति thumb|upright=1.2|चौथी-पाँचवी सदी की मूर्तियों में विविध वाद्ययंत्र बजाते गंधर्व, जिनमें दो नादवाद्य बजा रहे, हालाँकि ये तबले जैसे नहीं दीखते, अन्य मंदिर उत्कीर्णनों में अवश्य दिखता है। भारतीय उत्पत्ति के सिद्धांत को मानने वाले तबले का मूल भारत में मानते हैं और यह कहते हैं कि मुस्लिम काल में इसने मात्र अरबी नाम ग्रहण कर लिया। भारतीय नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत मुनि के द्वारा उर्ध्वक आलिंग्यक वाद्यों के वर्णन की बात कही जाती है। ऐसे ही, हाथ में लेकर बजाये जाने वाले "पुष्कर" नामक तालवाद्यों से तबले की उत्पत्ति बतायी जाती है। "पुष्कर" वाद्य के प्रमाण छठवीं-सातवीं सदी के मंदिर उत्कीर्णनों में, ख़ासतौर पर मुक्तेश्वर और भुवनेश्वर मंदिरों में, प्राप्त होते हैं। इन कलाकृतियों में वादक कलाकार दो या तीन अलग-अलग रखे तालवाद्यों को सामने रख कर बैठे दिखाए गए हैं और उनके हाथों और उँगलियों के निरूपण से वे इन्हें बजाते हुए प्रतीत होते हैं। हालाँकि, इन निरूपणों से यह नहीं पता चलता कि ये वाद्ययंत्र उन्हीं पदार्थों से निर्मित हैं और चर्मवाद्य ही हैं, जैसा की आधुनिक समय का तबला होता है। तबला आज जिन पदार्थों से और जिस रूप में बनाया जाता है, ऐसे वाद्ययंत्रों के निर्माण के लिखित प्रमाण संस्कृत ग्रंथों में उपलब्ध हैं। "तबला"-जैसे वाद्ययंत्र के निर्माण सम्बन्धी सबसे पुरानी जानकारी संस्कृत नाट्य शास्त्र में मिलती है। इन तालवाद्यों को बजाने से सम्बंधित विवरण भी नाट्यशास्त्र में मिलती है। वहीं, दक्षिण भारतीय ग्रंथ, उदाहरणार्थ, शिलप्पदिकारम, जिसकी रचना प्रथम शताब्दी ईसवी मानी जाती है, लगभग तीस ताल वाद्यों का विवरण देता है जिनमें कुछ रस्सियों द्वारा कसे जाने वाले और अन्य शामिल हैं, लेकिन इसमें "तबला" नामक किसी वाद्य का विवरण नहीं है। इतिहास thumbnail|200 ईपू की बौद्ध भाजे गुफाओं, महाराष्ट्र में, एक स्त्री तालवाद्यों का जोड़ा बजाते हुए और अन्य नर्तकी। ताल और तालवाद्यों का वर्णन वैदिक साहित्य से ही मिलना शुरू हो जाता है।दि थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ़ तबला, नेम्पल्ली सदानंद, पॉपुलर प्रकाशन दो या तीन अंगों वाला, डोरियों के सहारे लटका कर, हाथों से बजाये जाने वाले वाद्य यंत्र पुष्कर (अथवा "पुष्कल") के प्रमाण पाँचवीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं जो मृदंग के साथ अन्य तालवाद्यों में गिने जाते थे, हालाँकि, तब इन्हें तबला नहीं कहा जाता था। पांचवीं सदी से पूर्व की अजंता गुफाओं के भित्ति-चित्र जमीन पर रख कर बजाये जाने वाले ऊर्ध्वमुखी ड्रमों का निरूपण करते हैं।, उद्धरण: "To her left are two girls standing with cymbals in their hands, and two seated playing drums, one with a pair of upright drums like the modern Indian dhol, and the other, sitting cross-legged, with a drum held horizontally, like the modern mirdang." बैठ का ताल वाद्य बजाते हुए कलाकारों का ऐसा ही निरूपण एलोरा की प्रस्तर मूर्तियों में मिलता है, तथा अन्य स्थलों से भी। पहली सदी के चीनी-तिब्बती यात्रियों द्वारा भी भारत में छोटे आकार के ऊर्ध्वमुखी ड्रमों का प्रचलन होने का विवरण प्राप्त होता है (पुष्कर को तिब्बती साहित्य में "जोंग्पा" कहा गया है)।རྫོགས་པ་, तिब्बती अंग्रेजी डिक्शनरी (2011) जैन और बौद्ध ग्रंथों, जैसे समवायसूत्र, ललितविस्तार और सूत्रालंकार इत्यादि में भी पुष्कर नामक इस तालवाद्य के विवरण मिलते हैं। thumb|तबले से मिलते जुलते कुछ अन्य भारतीय वाद्ययंत्र कई हिन्दू और जैन मंदिर, जैसे की राजस्थान के जयपुर स्थित एकलिंगजी मंदिर, तबले जैसे आकार के वाद्य बजाते हुए व्यक्ति का प्रस्तर मूर्तियों में निरूपण करते हैं। दक्षिण में यादव शासन के समय (1210 से 1247) में भी आईएस तरह के छोटे तालवाद्यों का प्रमाण मिलता है जब सारंगदेव संगीत रत्नाकर की रचना कर रहे थे। हालिया बिंबशास्त्रीय दावे जिनमें तबले को 1799 के आसपास का माना गया हैफ्रांस बल्थाज़र सोल्विन्स, A Collection of Two Hundred and Fifty Coloured Etchings (1799) अब महत्वहीन हो चुकी हैं और भाजे गुफाओं से प्राप्त चित्र प्राचीन भारत में इस तरह के वाद्य का प्रयोग प्रमाणित करते हैं। जमीन पर रख कर बजाये जाने वाले ऊर्ध्वमुखी वाद्यों के प्रमाण कई हिन्दू मंदिरों से प्राप्त हुए हैं जो 500 ईपू के आसपास तक के समय के हैं।web.mit.edu/chintanv/www/tabla/class_material/Introduction%20to%20Tabla.ppt दक्षिण भारत में इसतरह के वाद्यों के मौजूद होने के प्रमाण के रूप में होयसलेश्वर मंदिर, कर्नाटकम का उदाहरण लिया जा सकता है जिसमें एक नक्काशी में नृत्य समारोह में एक स्त्री तबले जैसे वाद्य बजाती दिखाई गयी है। तबला, बजाने की कला के आधार पर मृदंग और पखावज से अलग है। इसमें हाथ की उंगलियों की कलात्मक गति का महत्व अधिक है। वहीं, पखावज और मृदंग पंजों की गति से बजाये जाते हैं क्योंकि इनपर आघात क्षैतिज रूप से किया जाता है और इस प्रकार इनके बोलों में जटिलता उतनी नहीं जितनी तबले में पाई जाती है। अतः ध्वनिशास्त्रीय और वादन कला आधारित अध्ययनों में तबले की समानता तीनों वाद्यों के साथ स्थापित की जा सकती है; पखावज की तरह का "दायाँ", नक्कारे की तरह आकार वाला "बायाँ", ढोलक की तरह गमक वाला प्रयोग, तीनों प्राप्त होते हैं।आर॰ स्टीवर्ट, अप्रकाशित शोध प्रबन्ध, UCLA, 1974 अंग अंगूठाकार|तबला और डुग्गी "तबला" के दो अंग होते हैं, अर्थात इसमें दो ड्रम होते हैं जिनका आकार और आकृति एक दूसरे से कुछ भिन्नता लिए होती है। तकनीकी तौर पर, एक सीधे हाथ वाले वादक द्वारा, दाहिने हाथ (कुशल हाथ) से बजाय जाने वाला अंग ही तबला कहलाता है। आम भाषा में इसे दायाँ या दाहिना कहते हैं। यह लगभग 15 सेंटीमीटर (~6 इंच) व्यास वाला और 25 सेंटीमीटर (~10 इंच) ऊँचाई वाला होता है। बायें वाले हिस्से को क्षेत्र अनुसार डग्गा, डुग्गी अथवा धामा भी कहते हैं। पुराने प्राप्त चित्रों में दाहिने और बायें अंग का आकार लगभग समान पाया गया है और कभी कभी बायें का आकर छोटा भी। हालाँकि, अब बायाँ का आकार तबले की तुलना में काफी बड़ा होता है। दाहिना या तबला बहुधा लकड़ी का बना होता है जबकि बायाँ मिट्टी (पके बर्तन के रूप में जिस पर चमड़ा मढ़ा जाय) का भी होता है अथवा दोनों ही पीतल या फूल (मिश्र-धातु) के भी बने हो सकते हैं। बायाँ, चौड़े मुँह वाला, चमड़े मढ़ा ड्रम होता है जिसका आकार लगभग 20 सेंटीमीटर (~8 इंच) व्यास वाला और 25 सेंटीमीटर (~10 इंच) ऊँचाई वाला होता है। दाहिने में डोरियों के बीच (जो अक्सर चमड़े की ही होती हैं) लकड़ी के छोटे आड़े बेलन बेलन लगे होते हैं, जिनपर हथौड़ी से चोट कर डोरियों के कसाव को बदला जा सकता है। इस क्रिया को सुर मिलाना कहते हैं। गायन-वादन के दौरान राग के मुख्य स्वर "सा" के साथ तबले की ध्वनि की तीक्ष्णता का मिलान किया जाता है, जिसे तबले को "षडज" पर मिलाना कहते हैं। सितार के साथ, चूँकि तार वाद्य और ऊँची तीक्ष्णता का वाद्य है, तबले को "पंचम" पर भी मिलाया जाता है। बायें को सामान्यतः, तबले की तुलना में निचले स्वरों "मन्द्र पंचम" पर सुर में रखा जाता है। कलाकार अपनी हथेली के पिछले हिस्से (मणिबंध) के दबाव द्वारा भी बायें के सुरों में मामूली बदलाव कर सकते हैं। इन दोनों अंगों के आकार में विषमता के कारण तीखे और चंचल बोल - ता, तिन, ना इत्यादि दाहिने पर बजाये जाते हैं और बायें का आकार बड़ा होने के कारण गंभीर आवाज वाले नाद धे, धिग इत्यादि बायें पर बजते हैं। इसीलिए "बायें" को "बेस ड्रम" की तरह प्रयोग में लाया जाता है। अंगूठाकार|तबला तरंग, जिसमें केवल कई "दायें" अलग-अलग सुरों में मिला कर, सरगम के रूप में बजाये जाते हैं। तबलों के चमड़ा मढ़े मुख पर भी तीन हिस्से होते हैं: चाट, चांटी, किनारा, किनार, की, या स्याही - सबसे किनारे का हिस्सा। सुर, मैदान, लव, या लौ - स्याही और किनारे के बीच का भाग। बीच, स्याही, सियाही, या गाँव - सबसे बीच का काला हिस्सा, जहाँ एक प्रकार का काला पदार्थ चिपका होता है, जिससे यह हिस्सा मोटा हो जाता है। तबले के प्रत्येक हिस्से के बीचोबीच एक काले चकत्ते के रूप में जो हिस्सा होता है उसे "स्याही" कहते हैं। यह मुख्य रूप से चावल या गेहूँ के मंड में कई प्रकार की चीजे मिला कर बनाया गया एक लेप होता है जो सूख कर कड़ा हो जाने के बाद तबले के चमड़े की स्वाभाविक धवनि का परिष्कार करके इसे एक खनकदार आवाज़ प्रदान करता है। तबला निर्माण की प्रक्रिया के दौरान स्याही का समुचित प्रयोग एक निपुणता की चीज है और इस वाद्ययंत्र की गुणवत्ता काफ़ी हद तक स्याही आरोपण की कुशलता पर निर्भर होती है। कुछ वादक, डुग्गी पर सियाही के बजाय, गूँधे गए आटे को चिपका कर सुखा लेते हैं, हालाँकि यह प्रक्रिया हर बार करनी पड़ती है और तबला वादन के बाद इसे खुरच कर हटा दिया जाता है। पंजाब में यह अभी भी प्रचलन में है और ऐसे "बायें" को "धामा" कहते हैं। तबले के बोल thumb|तबला वादन का एक उदाहरण। तबले के बोलों को "शब्द", "अक्षर" या "वर्ण" भी कहते हैं। ये बोल परंपरागत रूप से लिखे नहीं बल्कि गुरु-शिष्य परम्परा में मौखिक रूप से सीखे सिखाये जाते रहे हैं। इसीलिए इनके नामों में कुछ विविधता देखने को मिलती है। अलग-अलग क्षेत्र और घराने के वादन में भी बोलों का अंतर आता है। एक ही बोल को बजाने के कई तरीकों का प्रचलन भी मिलता है। एक विवरण के अनुसार तबले के मूल बोलों की संख्या पंद्रह है जिनमें से ग्यारह दायें पर बजाये जाते हैं और चार बायें पर। नीचे डेविड कर्टनी लिखित "फंडामेंटल्स ऑफ़ तबला" और बालकृष्ण गर्ग लिखित बोलों का एक संक्षिप्त और सामान्यीकृत विवरण प्रस्तुत किया गया है: दाहिने के बोल ता/ना - किनारा पर तर्जनी (पहली) उउंगली से, ठोकर के बाद उंगली तुरंत उठ जाती है। ती - मैदान में तर्जनी से ठोकर, उंगली तुरंत उठ जाती है। तिन् - सियाही पर तर्जनी से ठोकर, उंगली तुरंत उठ जाती है। ते - तर्जनी अतिरिक्त बाकी तीन उंगलियाँ (या केवल मध्यमा) से सियाही पर, गुंजन नहीं। टे - तर्जनी अँगुरी से सियाही पर, गुंजन नहीं। तिट - दोहरे ठोकर का बोल, ते और टे का सामूहिक रूप (अन्य उच्चारण तिर)। बायाँ के बोल धा/धे - पहिली (या दूसरी) उंगली से बीच में ठोकर, मणिबंध (कलाई का पिछला हिस्सा) "मैदान" में रखा रहता है। क/के/गे - पूरी हथेली खुली सपाट रख दी जाती है, गुंजन नहीं। घिस्सा - बीच में ठोकर के हथेली का पिछला हिस्सा बीच की ओर सरकाया जाता है, जिससे से गुंजन धीरे-धीरे क्रमिक रूप से बंद होता है। तबला के प्रमुख घराने thumb|right|240px|पंजाब घराने के प्रसिद्ध भारतीय तबला वादक जाकिर हुसैन तबला वादन के कुल छह घराने हैं- दिल्ली घराना लखनऊ घराना फर्रुखाबाद घराना अजराड़ा घराना बनारस घराना पंजाब घराना दिल्ली घराने के प्रवर्तक उस्ताद सिध्‍दाथ॔ ख़ाँ थे और पंजाब घराने के अलावा बाकी के चार अन्य घराने भी दिल्ली घराने का ही विस्तार माने जाते हैं। लखनऊ घराने के प्रवर्तक मोदू ख़ाँ और बख़्शू ख़ाँ; फ़र्रूख़ाबाद घराने के प्रवर्तक विलायत अली ख़ाँ उर्फ़ हाजी साहब; अजराड़ा घराने के प्रवर्तक कल्लू ख़ाँ और मीरू ख़ाँ; बनारस घराने के प्रवर्तक पंडित राम सहाय और पंजाब घराने के प्रवर्तक उस्ताद फ़क़ीरबख़्श ख़ाँ थे। प्रसिद्ध तबला वादक प्रसिद्ध तबला वादकों में पंजाब घराने के अल्ला रक्खा ख़ाँ और ज़ाकिर हुसैन (पिता पुत्र) का नाम आता है। ज़ाकिर हुसैन को मात्र 37 वर्ष की आयु में पद्म भूषण सम्मान प्राप्त हुआ और वे सबसे कम उम्र में यह सम्मान पाने वाले व्यक्ति बने, बाद में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ग्रैमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तबला वादन को प्रतिष्ठित कराने में चतुरलाल का उल्लेखनीय योगदान रहा। बनारस घराने के सामता प्रसाद मिश्र (गुदई महराज), अनोखेलाल मिश्र, कंठे महराज और किशन महाराज (2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित) उल्लेखनीय हैं। इसी घराने के संदीप दास को भी ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया है।संदीप दास को मिला ग्रैमी अवार्ड , एनडीटीवी पर इंटरव्यू (फ़रवरी 2017)। इनके अलावा प्रसिद्ध पाकिस्तानी तबला वादक शौक़त हुसैन ख़ाँ, मुंबई के योगेश शम्सी, त्रिलोक गुर्टू, कुमार बोस, तन्मय बोस, फ़जल क़ुरैशी इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्हें भी देखें डमरू ड्रम ढोलक मृदंग टीका-टिप्पणी सन्दर्भ आगे पढ़ने हेतु दि मेजर ट्रेडिशंस ऑफ़ नॉर्थ इंडियन तबला ड्रमिंग: अ सर्वे प्रेसेंटेशन बेस्ड ऑन परफॉर्मेंसेज बाय इंडियाज लीडिंग आर्टिस्ट्स, लेखक - रॉबर्ट ऍस॰ गौट्लिब, म्युज़िकवर्लाग ई॰ कात्ज़बिश्लर, 1977. ISBN 978-3-87397-300-8. दि तबला ऑफ़ लखनऊ: अ कल्चरल ऍनालिसिस ऑफ़ अ म्यूज़िकल ट्रेडिशन, लेखक - जेम्स किपेन, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1988. ISBN 0-521-33528-0. सोलो तबला ड्रमिंग ऑफ़ नॉर्थ इंडिया: टेक्स्ट & कमेंटरी, लेखक - रॉबर्ट ऍस॰ गौट्लिब, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन, 1993. ISBN 81-208-1093-7. फंडामेंटल्स ऑफ़ तबला, (भाग 1). लेखक - डेविड आर॰ कर्टनी, सुर संगीत सर्विसेस प्रकाशन, 1995. ISBN 0-9634447-6-X. एडवांस्ड थ्योरी ऑफ़ तबला, (भाग 2). लेखक - डेविड आर॰ कर्टनी, सुर संगीत सर्विसेस प्रकाशन, 2000. ISBN 0-9634447-9-4. मैन्युफैक्चर एंड रिपेयर ऑफ़ तबला, (भाग 3). लेखक - डेविड आर॰ कर्टनी, सुर संगीत सर्विसेस प्रकाशन, 2001. ISBN 1-893644-02-2. फोकस ऑन कायदाज ऑफ़ तबला, (भाग 4). लेखक - डेविड आर॰ कर्टनी, सुर संगीत सर्विसेस प्रकाशन, 2002. ISBN 1-893644-03-0. थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ़ तबला, लेखक- सदानंद नाइमपल्ली, पॉपुलर प्रकाशन, 2005. ISBN 81-7991-149-7 बाहरी कड़ियाँ ऍसऍसबी रेडियो, ऑस्ट्रेलिया - प्रसारण: बनारस घराने के पंडित चन्द्रनाथ शास्त्री का इंटरव्यू, बनारस घराने की विशिष्टताओं पर। श्रेणी:भारतीय वाद्य यंत्र श्रेणी:तालवाद्य
मोहिनीअट्टम
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thumb|मोहिनीयाट्टम इस ए क्लासिकल इंडियन डांस फ्रॉम केरल. मोहिनीअट्टम (मलयालम: മോഹിനിയാട്ടം) भारत के केरल राज्य के दो शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जो अभी भी काफी लोकप्रिय है केरल की एक अन्य शास्त्रीय नृत्य कथकली भी है। मोहिनीअट्टम नृत्य शब्द मोहिनी के नाम से बना है, मोहिनी रूप हिन्दुओ के देव भगवान विष्णु ने धारण इसलिए किया था ताकि बुरी ताकतों के ऊपर अच्छी ताकत की जीत हो सके मोहिनीअट्टम की जड़ों, सभी शास्त्रीय भारतीय नृत्यों की तरह, नाट्य शास्त्र में हैं – यह एक प्राचीन हिंदू संस्कृत ग्रन्थ है जो शास्त्रीय कलाओ पर लिखी गयी हैं , Quote: "the Natyashastra remains the ultimate authority for any dance form that claims to be 'classical' dance, rather than 'folk' dance". [7]। यह परंपरागत रूप से व्यापक प्रशिक्षण के बाद महिलाओं द्वारा किया एक एकल नृत्य है। व्युत्पत्ति पौराणिक मोहिनी मोहिनीअट्टम, जिसको मोहिनी अट्टम भी बोला जाता हैं यह "मोहिनी" शब्द से लिया गया है जो भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान् विष्णु का एक प्रसिद्ध नारी अवतार हैं मोहिनी का अर्थ एक "दिव्य जादूगरनी या मन को मोहने वाला" होता है। जिसका अवतरण देव और असुरों के बीच युद्ध के दौरान हुआ था जब असुरों ने अमृत के ऊपर अपना नियंत्रण कर लिया था। मोहिनी ने वो अमृत असुरों को मोह में लेकर देवताओं को दे दिया था इतिहास मोहिनीअट्टम एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य है, जिसकी जड़े कला की भारतीय कला की जननी समझी जाने वाली पुष्तक नाट्य शास्त्र में हैं। जिसके रचयिता प्राचीन विद्वान भरत मुनि हैं इसकी पहली पूर्ण संकलन 200 ईसा पूर्व और 200 ईसा के बाद की मानी जाती हैं मोहिनीअट्टम संरचना इस प्रकार है और नाट्य शास्त्र में लास्य नृत्य के लिए करना है। रेजिनाल्ड मैसी के अनुसार, मोहिनीअट्टम के इतिहास के बारे में स्पष्ट नहीं है। केरल जहां इस नृत्य शैली विकसित हुई है और लोकप्रिय है, लास्य शैली नृत्य जिसका मूल बातें और संरचना जड़ में हो सकता है कि एक लंबी परंपरा है। ब्रिटिश शासन का युग 19 वीं सदी में ब्रिटिश शासन के प्रसार के साथ भारत के सभी शास्त्रीय नृत्यों का उपहास और खिल्ली उड़ाई गयी जिससे इनके प्रसार में गंभीर रूप से गिरावट हुई। आधुनिक युग ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान उपहास और अधिनियमित प्रतिबंध ने राष्ट्रवादी भावनाओं के लिए योगदान दिया है, और मोहिनीअट्टम सहित सभी हिंदू प्रदर्शन कला पर इनका असर पड़ा। 1930 के दशक में इसको भी पुनर्जीवित किया गया था। प्रदर्शनों की सूची एक कलाकार की अभिव्यक्ति मोहिनीअट्टम नृत्य की शैली लास्य की हैं एवं इससे कसिका वृति में प्रस्तुत किया जाता हैं। जिसका वर्णन भारतीय कला की प्राचीन ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में किया गया हैं। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण है इसकी एकल अभिनय शैली जिसमे संगीत एवं गायन का भी योगदान रहता हैं। अनुक्रम मोहिनीअट्टम के प्रदर्शनों की सूची अनुक्रम भरतनाट्यम के समान है। संगीत और वाद्य मोहिनीअट्टम के मुख्य संगीत में विभिन्न प्रकार के लय शामिल है। मोहिनीअट्टम में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले संगीत उपकरण में मृदंगम या मधालम (बैरल ड्रम), इदक्का (ऑवर गिलास ड्रम), बांसुरी, वीणा एवं किज्हितलम शामिल हैं। रागों (राग) को सोपाना शैली में गाया जाता है, जो धीमी गति से मधुर शैली में गाया जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ About Mohiniyattam Mohiniyattam, Aishwarya, Kalolsavam (2012, video clip, 7'51'') श्रेणी:शास्त्रीय नृत्य श्रेणी:भारतीय संस्कृति
रक्षाबन्धन
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रक्षाबन्धन भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यह एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र -)- येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥ इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)" अनुष्ठान प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्त्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह-सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन, वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। thumb| राखी में ओम,राखी में गणेश (२ ) thumb|राखी में गणेश (२ ) thumb|राखी २ सामाजिक प्रसंग thumb|200x200px|भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राखी बाँधते बच्चे। नेपाल के पहाड़ी इलाकों में ब्राह्मण एवं क्षेत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरू और भागिनेय के हाथ से बाँधा जाता है। लेकिन दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बँधवाते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और सुख-दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है। सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। रक्षाबन्धन का पर्व भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के निवास पर भी मनाया जाता है। जहाँ छोटे छोटे बच्चे जाकर उन्हें राखी बाँधते हैं। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं। रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है। रक्षाबन्धन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमकपारे और घुघनी। घेवर सावन का विशेष मिष्ठान्न है यह केवल हलवाई ही बनाते हैं जबकि शकरपारे और नमकपारे आमतौर पर घर में ही बनाये जाते हैं। घुघनी बनाने के लिये काले चने को उबालकर चटपटा छौंका जाता है। इसको पूरी और दही के साथ खाते हैं। हलवा और खीर भी इस पर्व के लोकप्रिय पकवान हैं। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में रक्षा बन्धन पर्व की भूमिका रक्षाबंधन* राखी कौन किसे बाँध सकता है? बहन भाई के या पत्नी पति को* हमें सबसे प्राचीन दो कथाएं मिलती है। पहली भविष्य पुराण में इंद्र और शची की कथा और दूसरी श्रीमद्भागवत पुराण में वामन और बाली की कथा। अब दोनों ही कथा का समय काल निर्धारित करना कठिन है। राजा बली भी इंद्र के ही काल में हुए थे। उन्होंने भी देवासुर संग्राम में भाग लिया था। यह ढूंढना थोड़ा मुश्किल है कि कौनसी घटना पहले घटी। फिर भी जानकार कहते हैं कि पहले समुद्र मंथन हुआ फिर वामन अवतार। 1.भविष्य पुराण में कहीं पर लिखा है कि देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर या दैत्य देवों पर भारी पड़ने लगे। ऐसे में देवताओं को हारता देख देवेंद्र इन्द्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति के सुझाव पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से ही पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बांधने लगी। 2.दूसरी कथा हमें स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार असुरराज दानवीर राजा बली ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था और ऐसे में उसका अहंकार चरम पर था। इसी अहंकार को चूर-चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए। चूंकि राज बली महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग ली। बली ने तत्काल हां कर दी, क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देना थी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बली ने कहा, भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया। लेकिन बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं। आज भी रक्षा बंधन में राखी बांधते वक्त या किसी मंगल कार्य में मौली बांधते वक्त यह श्लोक बोला जाता है:- ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।* तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल-माचल:।।’* अर्थात् जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बली को बांधा गया था, उसी रक्षा सूत्र से मैं तुम्हें बांधता-बंधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो या आप अपने वचन से कभी विचलित न होना। सदैव प्रसन्न रहिए I* जो प्राप्त है, पर्याप्त है I I* भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता "मातृभूमि वन्दना" का प्रकाशन हुआ जिसमें वे लिखते हैं- "हे प्रभु! मेरे बंगदेश की धरती, नदियाँ, वायु, फूल - सब पावन हों; है प्रभु! मेरे बंगदेश के, प्रत्येक भाई बहन के उर अन्तःस्थल, अविछन्न, अविभक्त एवं एक हों।" (बांग्ला से हिन्दी अनुवाद) सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग करके वन्दे मातरम् के आन्दोलन से भड़की एक छोटी सी चिंगारी को शोलों में बदल दिया। 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षा बन्धन की योजना साकार हुई और लोगबाग गंगा स्नान करके सड़कों पर यह कहते हुए उतर आये- सप्त कोटि लोकेर करुण क्रन्दन, सुनेना सुनिल कर्ज़न दुर्जन; ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल, आमि स्वजने राखी बन्धन। अंगूठाकार|भारत में रक्षाबंधन पर्व भाई बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक है। धार्मिक प्रसंग thumb|right|राजस्थान में प्रयुक्त की जाने वाली चूड़ाराखीउत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है। महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है। यही कारण है कि इस एक दिन के लिये मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं। राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं। इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत। व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं। उत्तर प्रदेश: श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। रक्षा बंधन के अवसर पर बहिन अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा (राखी ) के रूप में अपने भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती है। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का बचन देता है। पौराणिक प्रसंग राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है, दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। भगवान हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐतिहासिक प्रसंग राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की। एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया। महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं। महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तान्त भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई। साहित्यिक प्रसंग अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन। पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबन्धन' नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्‍म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्‍म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्‍म में राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- "राखी धागों का त्‍यौहार"। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्‍म बनायी थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्‍म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्‍म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फ़िल्‍म 'रक्षाबन्धन' नाम की भी बनायी थी। सरकारी प्रबन्ध भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं। ये लिफाफे अन्य लिफाफों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिजाइन भी अलग है जिसके कारण राखी इसमें ज्यादा सुरक्षित रहती है। डाक-तार विभाग पर रक्षाबन्धन के अवसर पर 20 प्रतिशत अधिक काम का बोझ पड़ता है। अतः राखी को सुरक्षित और तेजी से पहुँचाने के लिए विशेष उपाय किये जाते हैं और काम के हिसाब से इसमें सेवानिवृत्त डाककर्मियों की सेवाएँ भी ली जाती है। कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिये अलग से बाक्स भी लगाये जाते हैं। इसके साथ ही चुनिन्दा डाकघरों में सम्पर्क करने वाले लोगों को राखी बेचने की भी इजाजत दी जाती है, ताकि लोग वहीं से राखी खरीद कर निर्धारित स्थान को भेज सकें। राखी और आधुनिक तकनीकी माध्यम आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। इसके अतिरिक्त भारत में 2007 राखी के अवसर पर इस पर्व से सम्बन्धित एक एनीमेटेड सीडी भी आ गयी है जिसमें एक बहन द्वारा भाई को टीका करने व राखी बाँधने का चलचित्र है। यह सीडी राखी के अवसर पर अनेक बहनें दूर देश में रहने वाले अपने भाइयों को भेज सकती हैं। टीका टिप्पणी      ख.  गोबर गाय के मल को कहते हैं। शरीर, मन और घर की शुद्धि के लिए भारतीय संस्कृति में इसका बहुत महत्व है।    ग.  मिट्टी पंच तत्वों में से एक होने के कारण शरीर की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है।    घ.  यज्ञ की भस्म का शरीर की शुद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है।    ङ.  रक्षिष्ये सर्वतोहं त्वां सानुगं सपरिच्छिदम्। सदा सन्निहितं वीरं तत्र माँ दृक्ष्यते भवान्॥-श्रीमद्भागवत 8 स्कन्ध 23 अध्याय 33 श्लोक जैन मतानुसार रक्षाबंधन इस दिन बिष्णुकुमार नामक मुनिराज ने ७०० जैन मुनियों की रक्षा की थी।जैन मतानुसार इसी कारण रक्षाबंधन पर्व हम सब मनाने लगे व हमें इस दिन देश व धर्म की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। चित्र दीर्घा सन्दर्भ सन्दर्भ ग्रन्थ बाहरी कड़ियाँ सामाजिक पारिवारिक एकबद्धता का उपक्रम है रक्षाबंधन रक्षाबंधन की शुभकामनाएं भेजें श्रेणी:संस्कृति श्रेणी:हिन्दू त्यौहार श्रेणी:रक्षाबंधन श्रेणी:निर्वाचित लेख श्रेणी:भारत में त्यौहार
दिलीप वेंगसरकर
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दिलीप वेंगसरकर भारत के भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी हैं। इन्होंने टेस्ट क्रिकेट और एक दिवसीय क्रिकेट दोनों में एक समान प्रसिद्धी हासिल की। कुछ वर्षों के लिये इन्होंने भारतीय क्रिकेट दल के कप्तान की भूमिका भी निभाई। सन्दर्भ श्रेणी:भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:1956 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:महाराष्ट्र के लोग श्रेणी:भारतीय क्रिकेट कप्तान श्रेणी:भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ श्रेणी:अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
स्टीवेन स्पीलबर्ग
https://hi.wikipedia.org/wiki/स्टीवेन_स्पीलबर्ग
REDIRECT स्टीवन स्पिलबर्ग
उत्तर पूर्वी भारत
https://hi.wikipedia.org/wiki/उत्तर_पूर्वी_भारत
REDIRECTपूर्वोत्तर भारत
दमन और दीव
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दमन और दीव मुंबई के समीप अरब सागर में स्थित द्वीप समूह हैं जो भारत का एक केन्द्र शासित प्रान्त है। यहाँ की राजधानी दमन है। दमण केंद्र शासित प्रदेश दमन गुजरात राज्‍य के वलसाड जिला के नजदीक स्थित है। पहले यह पुर्तगालियों के कब्‍जे में था। स्‍वतंत्रता के बहुत बाद तक यह पुर्तगालियों के कब्‍जे में रहा। 1961 ई. जब गोवा को पुर्तगालियों के कब्‍जे से मुक्‍त कर भारत में मिलाया गया, उसी समय दमन को भी भारत में शामिल कर लिया गया। उस समय इसे गोवा में मिला दिया गया था। 1987 ई. में इसे अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। मुख्य आकर्षण दमनगंगा नदी दमनगंगा नदी 72 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस केंद्र शासित प्रदेश को दो भागों, नानी दमन (छोटा दमन) तथा मोटी दमन (बड़ा दमन) में बांटती है। होटल तथा रेस्‍टोरेंट नानी दमन में स्थित है जबकि प्रशासनिक भवन तथा चर्च बड़े दमन अर्थात मोती दमन में स्थित है। मोटी दमन में दमनगंगा टूरिस्‍ट काम्‍पलेक्‍स भी है। इस काम्‍पलेक्‍स में कैफे, कॉटेज तथा झरने भी हैं। मोटी दमन मोटी दमन में अनेक चर्च स्थित है। यहां का सबसे प्रसिद्ध चर्च कैथेडरल बोल जेसू है। इसका निर्माण 1603 ई. में हुआ था। इस कैथेडरल में लकड़ी की बहुत सुंदर कारीगरी की गई है। इस चर्च की दीवारों पर की गई चित्रकारी भी काफी आकर्षक है। इन चित्रों में ईसा मसीह को चित्रित किया गया है। इसी के पास सत्‍य सागर उद्यान भी है। इस उद्यान में शाम के समय घूमने का एक अलग ही मजा है। इस उद्यान में रेस्‍टोरेंट तथा बार की व्‍यवस्‍था भी है। नानी दमन संत जेरोम किला नानी दमन में 1614 ई. से 1627 ई. के बीच बना था। इस किले का निर्माण मुगल आक्रमणों से सुरक्षा के लिए किया गया था। इस किले में तीन बुर्ज हैं। इस किले सामने नदी बहती है। इस किले में इसके संरक्षक संत की मूर्त्ति स्‍थापित है। इस समय इस किले में एक कब्रिस्‍तान तथा एक स्‍कूल है। देविका बीच यह बीच दमन से 5 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस बीच के पास पर्यटकों की सुविधा के लिए रेस्‍टोरेंट, बार तथा होटल की व्‍यवस्‍था है। इस बीच में स्‍नान नहीं करना चाहिए क्‍योंकि इस बीच में पानी के अंदर पत्‍थर है। यहां पर दो पुर्तगाली चर्च भी हैं। जैमपोरे बीच यह बीच नानी दमन के दक्षिण में स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पिकनिक स्‍पॉट है। यहां से समुद्र का नजारा बहुत सुंदर दिखता है। भोजन यहां के सभी होटलों में आमतौर पर रेस्‍टोरेंट हैं। किदादे दमन होटल में रेस्‍टोरेंट भी है। इस रेस्‍टोरेंट में केकड़ा तथा झींगा मछली का लजीज व्‍यंजन परोसा जाता है। यहां के शेफ का कहना है कि आप जिस तरह का भोजन मांगें आपको यहां मिल जाएगा। सैंडी रिजॉर्ट में भी खाने पीने की अच्‍छी व्‍यवस्‍था है। होटल मिरामर्स सी फूड तथा दक्षिण भारतीय भोजन के लिए प्रसिद्ध है। जजीरा उदय रेस्‍टोरेंट भी सी फूड के लिए प्रसिद्ध है। दीव केंद्र शासित प्रदेश दीव गुजरात राज्‍य के जूनागढ़ जिला के नजदीक स्थित है। राजनीति भारत की लोकसभा में दमन एवं दीव के लिए एक सीट आबंटित है। वर्तमान सोलहवीं लोकसभा में यहाँ का प्रतिनिधित्व श्री लालूभाई पटेल कर रहे हैं जो कि भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हैं। सन्दर्भ श्रेणी:भारत के केन्द्र शासित प्रदेश श्रेणी:दमन और दीव श्रेणी:लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
कवरत्ती
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कवरत्ती भारत के केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप की राजधानी है। यह लक्षद्वीप द्वीप-समूह का भाग है। यह जिस द्वीप पर स्थित है उसका नाम भी कवरत्ती है। स्थिति: यह केरल के शहर कोचीन के पश्चिमी तट से 398 किमी दूर 10°-33’ उत्तर 72°-38’ पूर्व पर स्थित है। इसका औसत उन्नयन 0 मी है। कवरत्ती का कुल क्षेत्रफल 4.22 वर्ग किमी है। जनसंख्या: भारत की 2001 की जनगणना के अनुसार कवरत्ती की कुल जनसंख्या 10113 है, जिसमे पुरुष 55% और महिलाओं का प्रतिशत 45 है। कवरत्ती की साक्षरता दर 78% है जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक है। पुरुष साक्षरता 83% और महिला साक्षरता 72% है। कवरत्ती की 12% जनसंख्या 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की है। भाषा अधिकतर लोग मलयालम बोलते हैं। मौसमः पर्यटन आकर्षण right|thumb|कवरत्ती का सागर तट. कवरत्ती द्वीप का अनूप क्षेत्र पानी के खेल, तैराकी के लिए आदर्श स्थल है और वहाँ का रेतीला सागर तट धूप सेंकने के लिए आदर्श हैं। पर्यटक समुद्री जीवन से संबंधित विशाल संग्रह का आनन्द यहां के समुद्री संग्रहालय में सकते हैं। काँच के तले वाली नौकाओं से अनूप के जलीय जीवन का जीवंत और रमणीक दृश्यावलोकन भी बहुत लोकप्रिय हैं। कयाक और पाल नौकायें नौकायन के लिए किराए पर उपलब्ध हैं। अलवणीकरण संयंत्र भारत का पहला कम तापमान अलवणीकरण संयंत्र (LLTD) कवरती में मई 2005 में खोला गया था। इस अलवणीकरण संयंत्र को पांच करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया है और इससे समुद्र के पानी से हर रोज 100,000 लीटर पीने योग्य पानी के उत्पादन की आशा है। सन्दर्भ श्रेणी:लक्षद्वीप * श्रेणी:लक्षद्वीप के द्वीप श्रेणी:लक्षद्वीप के नगर श्रेणी:लक्षद्वीप ज़िले के नगर
दीमापुर
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दीमापुर (Dimapur) भारत के नागालैण्ड राज्य के दीमापुर ज़िले में स्थित एक शहर है। यह ज़िले का मुख्यालय और राज्य का सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। यह असम की राज्य सीमा के पास, धनसीरी नदी के किनारे बसा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग २९, राष्ट्रीय राजमार्ग १२९ और राष्ट्रीय राजमार्ग १२९ए यहाँ से गुज़रते हैं।"Mountains of India: Tourism, Adventure and Pilgrimage," M.S. Kohli, Indus Publishing, 2002, ISBN 9788173871351 विवरण मध्यकाल में यह नगर दिमासा कछारी शासकों की राजधानी थी। यह भारत का ११५वाँ सबसे बड़ा नगर है। इसका निर्देशांक 25°54′45″ उत्तर 93°44′30″ पूर्व है। इस नगर के दक्षिण और पूर्व में कोहिमा जिला है, पश्चिम में असम का कार्बी आंगलोंग ज़िला (Karbi Anglong) है और उत्तर तथा पश्चिम दिशा में असम का गोलाघाट जिला है। 'दिमापुर' की उत्पत्ति 'दिमस' नामक एक कछारी शब्द से हुई है जो एक नदी का नाम है। दिमापुर, नागालैण्ड का प्रवेशद्वार है और यहाँ का एकमात्र रेलवे स्टेशन तथा एकमात्र कार्यशील हवाई अड्डा है। इतिहास कछारी राज्य के खंडहर : हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह कछारी राज्य के अवशेष हैं। मशरूम के आकार के ये खंभे कछारी खंडहर के हिस्से हैं। दीमापुर कछारी राज्य की प्राचीन राजधानी थी। यह महापाषाण युग के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। हिन्दू राज्य कछारी पर 13वीं सदी में अहोम राजाओं ने आक्रमण किया जिसके चलते यह राज्य तहस-नहस हो गया था। यह खंडहर उसी आक्रमण का सबूत है। सबसे प्रसिद्ध कछारी खंडहर के बीच केवल पत्थर का खंभा खड़ा है। इस खंभे के अलावा, इस जगह पर मंदिरों, टंकियों और तटबंधों के कई खंडहर हैं। विभिन्न डिजाइनों के बिखरे हुए पत्थर के टुकड़े भी आसपास पाए जाते हैं। महाभारत से सम्बन्ध भारतीय राज्य नागालैंड के दीमापुर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहां हिडिंबा नाम से एक वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां हैं जो चट्टानों से निर्मित है। शतरंज की इतनी विशालकाय गोटियों नो देखना पर्यटकों के लिए आश्चर्य में डालने वाला ही होता है। हालांकि इनमें से अब कुछ गोटियां टूट चुकी है। भीम की पत्नी हिडिम्बा यहां की राजकुमारी थीं: दीमापुर कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। इस जगह महाभारत काल में हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे। यही पर हिडिंबा ने कुंति-पवनपुत्र भीम से विवाह किया था। यहां रहने वाली डिमाशा जनजाति के लोग खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानते हैं। भीम और घटोत्कच खेलते थे इस शतरंज से : यहां के निवासियों कि मान्यता है कि इन गोटियों से भीम और उसका पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलते थे। इस जगह पांडवो ने अपने वनवास का काफी समय गुजारा किया था। मान्यता अनुसार जब वनवास काल में पांडवों का महल षड़यंत्र के चलते जलकर खाक हो गया था तब वे एक गुप्त रास्ते से वहां से एक दूसरे वन में चले गए थे। इस वन में हिडिंब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। कहते हैं कि एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा को वन में भोजन की तलाश करने के लिए भेजा और इसी दौरान राक्षसी हिडिंबा ने भीम को देख लिया। बलशाली भीम को देखकर राक्षसी हिडिंबा का मान भीम पर आ गया। उसने इस प्रेम के चलते भीम और उसके परिवार को छोड़ दिया। जब हिडिंब को यह पता चला तो उसने पाण्डवों पर हमला बोल दिया। भीम का हिडिंब से भयानक युद्ध हुआ और अंत: हिडिंब मारा गया। हिडिंब की मौत के बाद हिडिंबा और भीम का विवाह हुआ और कुछ काल तक भीम वहीं रहे। विवाह उपरान्त भीम और हिडिम्बा को घटोत्कच नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। घटोत्कच अपनी मां के समान विशाल काया वाला निकला। इन्हें भी देखें दीमापुर ज़िला धनसीरी नदी कछारी राज्य सन्दर्भ श्रेणी:दीमापुर ज़िला श्रेणी:नागालैण्ड के नगर श्रेणी:दीमापुर ज़िले के नगर
नाम्ची
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नाम्ची (Namchi) भारत के सिक्किम राज्य के दक्षिण सिक्किम ज़िले में स्थित एक शहर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग ७१० यहाँ से गुज़रता है।"Sikkim Development Report," Planning Commission, Government of India, Academic Foundation, 2008, ISBN 9788171886685 इन्हें भी देखें दक्षिण सिक्किम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:सिक्किम के नगर श्रेणी:दक्षिण सिक्किम ज़िला श्रेणी:दक्षिण सिक्किम ज़िले के नगर
देहरादून
https://hi.wikipedia.org/wiki/देहरादून
देहरादून (, ), देहरादून जिले का मुख्यालय है जो भारत की राजधानी दिल्ली से २३० किलोमीटर दूर दून घाटी में बसा हुआ है। ९ नवंबर, २००० को उत्तर प्रदेश राज्य को विभाजित कर जब उत्तराखण्ड राज्य का गठन किया गया था, उस समय इसे उत्तराखण्ड (तब उत्तरांचल) की अंतरिम राजधानी बनाया गया। देहरादून नगर पर्यटन, शिक्षा, स्थापत्य, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। इतिहास देहरादून का इतिहास कई सौ वर्ष पुराना है। देहरादून से ५६ किलोमीटर दूर कालसी के पास स्थित शिलालेख से इस पर तीसरी सदी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक का अधिकार होने की सूचना मिलती है। देहरादून ने सदा से ही आक्रमणकारियों को आकर्षित किया है। खलीलुल्लाह खान के नेत्वृत्व में १६५४ में इस पर मुगल सेना ने आक्रमण किया था। सिरमोर के राजा सुभाक प्रकाश की सहायता से खान गढ़वा के राजा पृथ्वी शाह को हराने में सफल रहे। गद्दी से अपदस्त किए गए राजा को इस शर्त पर गद्दी पर आसीन किया गया कि वे नियमित रूप से मुगल बादशाह शाहजहाँ को कर चुकाएगें। इसे १७७२ में गुज्जरों ने लूटा था। तत्कालीन राजा ललत शाह जो पृथ्वी शाह के वंशज थे, की पुत्री की शादी गुलाब सिंह नामक गुज्जर से की गई थी। गुलाब सिंह के पुत्र का नियंत्रण देहरादून पर था और उनके वंशज इस समय भी नगर में मिल सकते हैं। गढ़वाल के राजा ललत शाह के पुत्र प्रदुमन शाह के शासन काल में रोहिल्ला नजीब के पोते गुलाम कादिर के नेतृत्व में अफगानों का आक्रमण हुआ। जिसमें उसने गुरू राम राय के अनुयायियों और शिष्यों को मौत के घाट उतार दिया। जिन लोगों ने हिन्दू धर्म त्यागने का निर्णय लिया, उन्हें छोड़ दिया गया। लेकिन अन्य लोगों के साथ बहुत निमर्मतापूर्वक व्यवहार किया गया। सहारनपुर के राज्यपाल और अफगान प्रमुख नजीबुदौल्ला भी देहरादून को अपने अधिकार में करने के उद्देश्य में सफल रहा उसके बाद देहरादून पर गुज्जरों, सिक्खों, राजपूतों और गोरखाओं के लगातार आक्रमण हुए और यह उपजाऊ और सुंदर भूमि शिघ्र ही बंजर स्थल में बदल गई। १७८३ में एक सिक्ख प्रमुख बुघेल सिंह ने देहरादून पर आक्रमण किया और बिना किसी बड़े प्रतिरोध के सहजता से इस क्षेत्र को जीत लिया। १७८६ में देहरादून पर गुलाम कादिर का आक्रमण हुआ। उसने पहले हरिद्वार को लूटा और फिर देहरादून पर कहर बरपाया। उसने नगर पर आक्रमण किया और उसे जमकर लूटा तथा बाद में देहरादून को बर्बाद कर दिया। १८०१ तक अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखा राज्य ने दून घाटी पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। १८१४ में नालापानी के लिए अमर सिंह थापा के पोते बलभद्र कुंवर के नेत्वृत्व में गोरखा और जनरल जिलेस्पी के नेत्वृत्व में ब्रिटिश के बीच युद्ध हुआ। गोरखाओं ने इस लड़ाई में जमकर बराबरी कि और जनरल समेत कई ब्रिटिश सेनाओं को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। इस बीच गोरखाओं को एक असामान्य स्थिति का सामना करना पड़ा और उन्हें नालापानी के किले को छोड़ कर जाना पड़ा। १८१५ तक गोरखाओं को हरा कर ब्रिटिश शासन ने इस पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। देहरादून के दो स्मारक प्रसिद्ध हैं। (कलंगा स्मारक) का निर्माण ब्रिटिश जनरल गिलेस्पी और उसके अधिकारियों की स्मृति में कराया गया है। दूसरा स्मारक गिलेस्पी से लोहा लेनेवाले कैप्टन बलभद्र सिंह थापा और उनके गोरखा सिपाहियों की स्मृति में बनवाया गया है। कालंगा गढ़ी सहस्त्रधारा सड़क पर स्थित है। घंटा घर से इसकी दूरी ४.५ किलोमीटर है। इसी वर्ष देहरादून तहसील के वर्तमान क्षेत्र को सहारनपुर जिले से जोड़ दिया गया। इसके बाद १८२५ में इसे कुमाऊँ मण्डल को हस्तांतरित कर दिया गया। १८२८ में अलग-अलग उपायुक्त के प्रभार के अंतर्गत देहरादून और जॉनसार बवार हस्तांतरित कर दिया गया और १८२९ में देहरादून जिले को मेरठ खण्ड को हस्तांतरित कर दिया गया। १८४२ में देहरादून को सहारनपुर जिले से जोड़ दिया गया और इसे जिलाधीश के अधिनस्थ एक अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में रखा गया। १८७१ से यह एक अलग जिला है। १९६८ में इस जिले को मेरठ खण्ड से अलग करके गढ़वा खण्ड से जोड़ दिया गया। देहरादून के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी चंदर रोड पर स्थित स्टेट आर्काइव्स में है। यह संस्था दलानवाला में स्थित है। स्थापना देहरादून की स्थापना 1699 में हुई थी। कहते हैं कि सिक्खों के गुरु रामराय किरतपुर पंजाब से आकर यहाँ बस गए थे। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें कुछ ग्राम टिहरी नरेश से दान में दिलवा दिए थे। यहाँ उन्होंने 1699 ई. में मुग़ल मक़बरों से मिलता-जुलता मन्दिर भी बनवाया जो आज तक प्रसिद्ध है। शायद गुरु का डेरा इस घाटी में होने के कारण ही इस स्थान का नाम देहरादून पड़ गया होगा। इसके अतिरिक्त एक अत्यन्त प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार देहरादून का नाम पहले द्रोणनगर था और यह कहा जाता था कि पाण्डव-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर अपनी तपोभूमि बनाई थी और उन्हीं के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार जिस द्रोणपर्त की औषधियाँ हनुमान जी लक्ष्मण के शक्ति लगने पर लंका ले गए थे, वह देहरादून में स्थित था, किन्तु वाल्मीकि रामायण में इस पर्वत को महोदय कहा गया है। जलवायु देहरादून की जलवायु समशीतोष्ण है। यहां का तापमान १६ से ३६ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है जहां शीत का तापमान २ से २४ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। देहरादून में औसतन २०७३.३ मिलिमीटर वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा जून और सितंबर के बीच होती है। अगस्त में सबसे अधिक वर्षा होती है।पाठ=देहारादून घंटाघर सुबह का नजारा|अंगूठाकार|413x413पिक्सेल|देहारादून घंटाघर सुबह का नजारा नगर के विषय में राजपुर मार्ग पर या डालनवाला के पुराने आवासीय क्षेत्र में पूर्वी यमुना नहर सड़क से देहरादून शुरु हो जाता है। सड़क के दोनों किनारे स्थित चौड़े बरामदे और सुन्दर ढालदार छतों वाले छोटे बंगले इस शहर की पहचान हैं। इन बंगलों के फलों से लदे हुए पेड़ों वाले बगीचे बरबस ध्यान आकर्षित करते हैं। घण्टाघर से आगे तक फैलाहुआ रंगीन पलटन बाजार यहाँ का सर्वाधिक पुराना और व्यस्त बाजार है। यह बाजार तब अस्तित्व में आया जब १८२० में ब्रिटिश सेना की टुकड़ी को आने की आवश्यकता पड़ी। आज इस बाजार में फल, सब्जियां, सभी प्रकार के कपड़े, तैयार वस्त्र (रेडीमेड गारमेंट्स) जूते और घर में प्रतिदिन काम आने वाली वस्तुयें मिलती हैं। इसके स्टोर माल, राजपुर सड़क तक है जिसके दोनों ओर विश्व के लोकप्रिय उत्पादों के शो रूम हैं। अनेक प्रसिद्ध रेस्तरां भी राजपुर सड़क पर है। कुछ छोटी आवासीय बस्तियाँ जैसे राजपुर, क्लेमेंट टाउन, प्रेमनगर और रायपुर इस शहर के पारंपरिक गौरव हैं। देहरादून के राजपुर मार्ग पर भारत सरकार की दृष्टिबाधितों के लिए स्थापित पहली और एकमात्र राष्ट्रीय स्तर की संस्था राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान (एन.आइ.वी.एच.) स्थित है। इसकी स्थापनी 19वीं सदी के नब्बे के दशक में विकलांगों के लिए स्थापित चार संस्थाओं की श्रंखला में हुआ जिसमें राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्था के लिए देहरादून का चयन किया गया। यहाँ दृष्टिबाधित बच्चों के लिए स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, ब्रेल पुस्तास्तलय एवं ध्वन्यांकित पुस्तकों का पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है। इसके कर्मचारी इसके अन्दर रहते हैं इसके अतिरिक्त (तेज यादगार) शार्प मेमोरियल नामक निजी संस्था राजपुर में हैं यें दृष्टि अपंगता तथा कानों सम्बन्धि बजाज संस्थान तथा राजपुर सड़क पर दूसरी अन्य संस्थाये बहुत अच्छा कार्य कर रही है। उत्तराखण्ड सरकार का एक और नया केन्द्र है। करूणा विहार, बसन्त विहार में कुछ कार्य शुरू किये है। तथा गहनता से बच्चों के लिये कार्य कर रहें है तथा कुछ नगर के चारों ओर केन्द्र है। देहरादून राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द है। ‍रिस्पना ब्रिज शायर गृह डालनवाला में हैं। जो मानसिक चुनौतियों के लिए कार्य करते है। मानसिक चुनौतियों के लिए काम करने के अतिरिक्त राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द्र ने टी.बी व अधरंग के इलाज के लिये भी अस्पताल बनाया। अधिकाँश संस्थायें भारत और विदेश से स्वेच्छा से आने वालो को आकर्षित तथा प्रोत्साहित करती है। आवश्यकता विहीन का कहना है कि स्वेच्छा से काम करने वाले इन संस्थाओं को ठीक प्रकार से चलाते है। तथा अयोग्य, मानसिक चुनौतियो और कम योग्य वाले लोगो को व्यक्तिगत रूप से चेतना देते है। देहरादून अपनी पहाडीयों और ढलानो के साथ-साथ साईकिलिंग का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। चारों ओर पर्वतो और हरियाली से घिरा होने के कारण यहाँ साईकिलिंग करना बहुत सुखद है। लीची देहरादून का पर्यायवाची है क्योंकि यह स्वादिष्ट फल चुनिँदा जलवायु में ही उगता है। देहरादून देश के उन जगहों में से एक है जहाँ लीची उगती है। लीची के अतिरिक्त देहरादून के चारों ओर बेर, नाशपत्ती, अमरूद्ध और आम के पेड है। जो नगर की बनावट को घेरे हुये है। ये सारी चीजे घाटी के आकर्षण में वृद्धि करती है। यदि आप मई माह या जून के शुरू की गर्मियों में भ्रमण के लिये जाओ तो आप इन फलों को केवल देखोगें ही नही बल्कि खरीदोंगे भी। बासमती चावल की लोकप्रियता देहरादून या भारत में ही नही बल्कि विदेशो में भी है। एक समय अंग्रेज भी देहरादून में रहते थे और वे नगर पर अपना प्रभाव छोड गयें। उदाहरण के रूप में देहरादून की बैकरीज (बिस्कुट आदि) आज भी यहाँ प्रसिद्ध है। उस समय के अंग्रेजो ने यहाँ के स्थानीय स्टाफ को सेंकना (बनाना) सीखाया। यह निपुणता बहुत अच्छी सिद्ध हुई तथा यह निपुणता अगली संतति सन्तान में भी आयी। फिर भी देहरादून के रहने वालो के लिये यहाँ के स्थानीय रस्क, केक, होट क्रोस बन्स, पेस्टिज और कुकीज मित्रों के लिये सामान्य उपहार है, कोई भी ऐसी नही बनाता जैसे देहरादून में बनती है। दूसरा उपहार जो पर्यटक यहाँ से ले जाते है विख्यात क्वालिटी की टॉफी जोकि क्वालिटी रेस्टोरेन्ट (गुणवत्ता वाली दुकानों) से मिलती हैं। यद्यपि आज बडी संख्या में दूसरी दुकानों (स्टोर) से भी ये टॉफी मिलती है परन्तु असली टॉफी आज भी सर्वोतम है। देहरादून में आन्नद के और बहुत से पर्याप्त विकल्प है। प्रर्याप्त मात्रा में देहरादून में दर्शनीय चीजे है जो उनके लिये प्रकृति के उपहार है विशेष रूप से देहरादून से मसूरी का मार्ग जो कि पैदल चलने वालों के लिये बहुत लोकप्रिय है। उन लोगो के लिये जो साधारण से ऊपर कुछ करना चाहते है सर्वोतम योग संस्थानों में से किसी एक से जुड़ना चाहिये अथवा सीखना चाहिये। आवागमन सड़क मार्गः देहरादून देश के विभिन्न हिस्सों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और यहां पर किसी भी जगह से बस या टेक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सभी तरह की बसें, (साधारण और लक्जरी) गांधी बस स्टेंड जो दिल्ली बस स्टेंड के नाम से जाना जाता है, यहां से खुलती हैं। यहां पर दो बस स्टैंड हैं। देहरादून और दिल्ली, शिमला और मसूरी के बीच डिलक्स/ सेमी डिलक्स बस सेवा उपलब्ध है। ये बसें क्लेमेंट टाउन के नजदीक स्थित अंतरराज्यीय बस टर्मिनस से चलती हैं। दिल्ली के गांधी रोड बस स्टैंड से एसी डिलक्स बसें (वोल्वो) भी चलती हैं। यह सेवा हाल में ही यूएएसआरटीसी द्वारा शुरू की गई है। आईएसबीटी, देहरादून से मसूरी के लिए हर १५ से ७० मिनट के अंतराल पर बसें चलती हैं। इस सेवा का संचालन यूएएसआरटीसी द्वारा किया जाता है। देहरादून और उसके पड़ोसी केंद्रों के बीच भी नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध है। इसके आसपास के गांवों से भी बसें चलती हैं। ये सभी बसें परेड ग्राउंड स्थित स्थानीय बस स्टैड से चलती हैं। देहरादून और कुछ महत्वपूर्ण स्थानों के बीच की दूरी नीचे दी गयी है: दिल्ली - २४० किमी यमुनोत्री - २७९ किमी मसूरी - ३५ किमी नैनीताल - २९७ किमी हरिद्वार - ५४ किमी शिमला - २२१ किमी ऋषिकेश - 44 किमी आगरा - ३८२ किमी रुड़की - ४३ किमी ऊखीमठ - २१९ किमी पाठ= देहारादून घंटाघर सुबह का नजारा|अंगूठाकार|320x320पिक्सेल|देहारादून घंटाघर सुबह का नजारा रेलः देहरादून उत्तरी रेलवे का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। यह भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से सीधी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है। ऐसी कुछ प्रमुख ट्रेनें हैं- हावड़ा-देहरादून एक्सप्रेस, चेन्नई- देहरादून एक्सप्रेस, दिल्ली- देहरादून एक्सप्रेस, बांद्रा- देहरादून एक्सप्रेस, इंदौर- देहरादून एक्सप्रेस आदि। वायु मार्गः जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून से २५ से किलोमीटर है। यह दिल्ली एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। एयर डेक्कन दोनों एयरपोर्टों के बीच प्रतिदिन वायु सेवा संचालित करती है। इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियां देहरादून की सम्पूर्ण जानकारी श्रेणी:उत्तराखण्ड के नगर श्रेणी:उत्तराखण्ड के नगर, कस्बे और ग्राम श्रेणी:देहरादून श्रेणी:देहरादून जिला श्रेणी:उत्तराखण्ड के नगर निगम श्रेणी:देहरादून ज़िले के नगर
हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/हमीरपुर,_हिमाचल_प्रदेश
हमीरपुर भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। हिमाचल की निचली पहाडि़यों पर स्थित हमीरपुर जिला समुद्र तल से ४०० से ११०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पाइन के पेड़ों से घिरा यह शहर हिमाचल के अन्‍य शहरों से सामान्‍यत: कम ठंडा है। कांगडा जिले से अलग करने के बाद १९७२ में हमीरपुर अस्तित्‍व में आया था। सर्दियों में ट्रैकिंग और कैंपिग के लिए यह शहर तेजी से विकसित हो रहा है। हिमाचल प्रदेश और पडोसी राज्‍यों के शहरों से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां के कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक स्‍थल इस जिले की प्रसिद्धी के कारण हैं। हमीरपुर का देवसिद्ध मंदिर, सुजानपुर टीहरा और नादौन खासे लोकप्रिय हैं। शिमला-धर्मशाला रोड़ पर स्थित हमीरपुर टाउन यहां का जिला मुख्‍यालय है।दुनिया देखो.कॉम भूगोल , मुख्य आकर्षण देयोटसिद्ध मंदिर Deot Sidh mandir बाबा बालक नाथ का यह गुफा मंदिर पूरे साल श्रद्धालुओं से भरा रहता है। बिलासपुर की सीमा पर स्थित यह मंदिर चारों तरफ के सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। नवरात्रों के अवसर पर बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए यहां लोग बड़ी संख्‍या में पहुंचते हैं। इस मौके पर सरकार लोगों के ठहरने की उचित टेंट कालोनी की व्‍यवस्‍था करती है और उसमें पानी, शौच आदि बहुत सी सुविधाएं उपलब्ध कराईं जाती हैं। नादौन यह नगर उस समय चर्चा में आया जब कांगड़ा शासकों ने अपनी राजधानी कांगड़ा किला जहांगीर की सेना से हारने के बाद यहां स्‍थानांतरित कर दी। उसके बाद राजा संसार चंद ने कांगड़ा किले को फिर से जीत लिया और कांगड़ा घाटी का शक्तिशाली शासक के रूप में आसीन हुआ। तब से नादौन का महत्‍व कम हो गया। शिमला-धर्मशाला मार्ग पर स्थित यह नगर व्‍यास नदी के किनारे बसा है। नादौन हमीरपुर से २० और कांगड़ा से ४३ किमी की दूरी पर है। इस शांत नगर में एक शिव मंदिर और प्राचीन महल बना हुआ है। प्राचीन महल में उस काल की कुछ चित्रकारियां देखी जा सकती है। ज्‍वालाजी का मंदिर भी यहां से अधिक दूर नहीं है। व्‍यास नदी के तट पर स्थित होने के कारण यहां फिशिंग और राफ्टिंग की भी व्‍यवस्‍था है। नादौन से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर अमतर नामक गाँव मे क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण किया गया है। सुजानपुर टीहरा सुजानपुर टीहरा हमीरपुर से २२ किमी की दूरी पर है। यह स्‍थान एक जमाने में कटोक्ष वंश की राजधानी थी। यहां बने एक प्राचीन किले को देखने के लिए लोगों का नियमित आना जाना लगा रहता है। यहां एक विशाल मैदान है जिसमें चार दिन तक होली पर्व आयोजित किया जाता है। यहां एक सैनिक स्‍कूल भी स्थित है। धार्मिक केन्‍द्र के रूप में भी यह स्‍थान खासा लोकप्रिय है और यहां नरबदेश्‍वर, गौरी शंकर और मुरली मनोहर मंदिर बने हुए हैं। स स‍ाहसिक और रोमांचप्रिय पर्यटकों को सुजानपुर काफी पसंद आता है क्‍योंकि वे यहां पैराग्‍लाइडिंग, एंगलिंग, राफ्टिंग और ट्रैकिंग जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं। आवागमन वायु मार्ग कांगड़ा जिले का गग्‍गल एयरपोर्ट यहां का निकटतम एयरपोर्ट है। रेल मार्ग हमीरपुर का निकटतम ब्रोड गैज रेलवे स्‍टेश्‍ान ऊना है। रानीताल यहां का नजदीकी नैरो गैज रेलवे स्‍टेशन है जो पठानकोट-जोगिन्‍दर नगर रेल लाइन पर पड़ता है। हमीरपुर के लिए यहां से नियमित बसें चलती रहती हैं। सड़क मार्ग हिमाचल का लगभग पूरा क्षेत्र सड़क मार्ग से हमीरपुर से जुड़ा है। हिमाचल प्रदेश के लगभग सभी शहरों और पड़ोसी शहरों से यहां के लिए बस सेवाएं उपल्‍ाब्‍ध हैं। सन्दर्भ श्रेणी:हिमाचल प्रदेश के शहर श्रेणी:हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश श्रेणी:हमीरपुर ज़िला, हिमाचल प्रदेश श्रेणी:हमीरपुर ज़िले, हिमाचल प्रदेश के नगर
लता मंगेशकर
https://hi.wikipedia.org/wiki/लता_मंगेशकर
Lata Mangeshkar - क्या आप जानते हैं प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर के बारे में ये कुछ अनसुनी बातें, नहीं आइए जानते guruji shree ram mai aapke deel ka dard samjhta hu didi क्लिक करें लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929 – 6 फ़रवरी 2022) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थी, जिनका छः दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान सिनेमा में एक पार्श्वगायिका के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता जी की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। भारत सरकार ने उन्हें 'भारतरत्न' से सम्मानित किया था। इनकी मृत्यु कोविड से जुड़े जटिलताओं से 6 फरवरी 2022 रविवार माघ शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि वि स 2078 (पंचक) को मुम्बई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में हुई। वे कुछ समय से बीमार थीं। उनकी महान गायकी और सुरमय आवाज के दीवाने पूरी दुनिया मे हैं। प्यार से सब उन्हें 'लता दीदी' कहकर पुकारते हैं। वर्ष 2001 में इन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया । Lata Mangeshkar - क्या आप जानते हैं प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर के बारे में ये कुछ अनसुनी बातें, नहीं आइए जानते हैं बचपन thumb|right|लता मंगेशकर की बचपन की छबि लता का जन्म एक कर्हाडा ब्राह्मण दादा और गोमंतक मराठा दादी के परिवार में, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में सबसे बड़ी बेटी के रूप में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता रंगमंच एलजी के कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना। हालाँकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र मे हुई। वह बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। बचपन में कुन्दन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी। पहली बार लता ने वसंत जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये। पिता की मृत्यु के बाद (जब लता सिर्फ़ तेरह साल की थीं), लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की कारण से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फिल्मों में काम करना पड़ा। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका निभाई आशा भोंसले ने। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दिया। इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों "अंग्रेजी छोरा चला गया" और "दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने" जैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की। हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी। 1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म "महल" के "आयेगा आनेवाला" गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। विविध पिता दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे। उन्होने अपना पहला गाना मराठी फिल्म 'किती हसाल' (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था। लता मंगेशकर को सबसे बड़ा ब्रेक फिल्म महल से मिला। उनका गाया "आयेगा आने वाला" सुपर डुपर हिट था। लता मंगेशकर अब तक 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गाने गा चुकी हैं। लता मंगेशकर ने 1980 के बाद से फ़िल्मो में गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी। लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति थीं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। लता मंगेशकर ने आनंद घन बैनर तले फ़िल्मो का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है। वे हमेशा अपने पैर से चप्पल उतार कर हि (नंगे पाँव) स्टूडियो, स्टेज आदि पर गाना रिकार्डिंग करती अथवा गाती थीं। पुरस्कार right|thumb|250px|लता की युवावस्था की छबि फिल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994) राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 और 1990) महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 और 1967) 1969 - पद्म भूषण 1974 - दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड 1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार 1993 - फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 1997 - राजीव गांधी पुरस्कार 1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार 1999 - पद्म विभूषण 1999 - ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार 2001 - बंजारा पुरस्कार 2001 - महाराष्ट्र पूरस्कार सन्दर्भ श्रेणी:1929 में जन्मे लोग श्रेणी:पद्म भूषण श्रेणी:भारतीय हिन्दू श्रेणी:बॉलीवुड श्रेणी:गायिका श्रेणी:भारतीय फिल्म पार्श्वगायक श्रेणी:विकिपरियोजना संगीत श्रेणी:मध्य प्रदेश के लोग श्रेणी:दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता श्रेणी:भारत रत्न सम्मान प्राप्तकर्ता श्रेणी:इंदौर जिले के लोग श्रेणी:भारतीय महिला गायक श्रेणी:पद्म विभूषण धारक श्रेणी:भारतीय शास्त्रीय गायिका श्रेणी:२०२२ में निधन
छोटानागपुर का पठार
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REDIRECT छोटा नागपुर पठार
गंगा नदी
https://hi.wikipedia.org/wiki/गंगा_नदी
गंगाजी ( ; ; ) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। गंगा नदी का उद्गम भागीरथी व अलकनंदा नदी मिलकर करती है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखंड में हिमालय के गंगोत्री हिमनद के गोमुख स्थान से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक भारत की मुख्य नदी के रूप में विशाल भू-भाग को सींचती है। गंगा नदी देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र नदी भी मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी जाती ही हैं, तथा मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित जरूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं(नमामी गंगे योजना ) के क्रम में नवम्बर,2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा प्रयाग (प्रयागराज) और हल्दिया के बीच (1620 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। भारत में गंगाजल को उतम जल माना जाता है।(इसमे गंगेटिक डाल्फिन भी पाया जाताहै जिसे भारत सरकार द्वारा 2009 जलीय जीव के रूप मे मान्यता दिया गया है ) उद्गम thumb|256px|left|भागीरथी नदी, गंगोत्री में गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो गढ़वाल में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद या ग्लेशियर(GURUKUL) से निकलती हैं। गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 कि॰मी॰ उत्तर की ओर 3,892 मी॰ (12,770 फीट) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि॰मी॰ लंबा व 4 कि॰मी॰ चौड़ा और लगभग 40 मीटर ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती हैं। इसका जल स्रोत 5,000 मीटर ऊँचाई पर स्थित एक घाटी है। इस घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3,600 मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गौमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नन्दा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है, लेकिन 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है। अलकनन्दा (विष्णु गंगा) की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मन्दाकिनी है। धौली गंगा का अलकनन्दा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। फिर 2805 मीटर ऊँचे नन्द प्रयाग में अलकनंदा का नन्दाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनंदा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से 139 कि॰मी॰ दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मन्दाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनंदा 1500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पाँच प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है। इस प्रकार 200 कि॰मी॰ का सँकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती हैं। गंगा का मैदान thumb|256px|त्रिवेणी-संगम, प्रयागराज हरिद्वार से लगभग 800 कि॰मी॰ मैदानी यात्रा करते हुए बिजनौर, गढ़मुक्तेश्वर, सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा प्रयाग (प्रयागराज) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिंदुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिंदू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, गाज़ीपुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गण्डक, सरयू, कोसी आदि मिल जाती हैं। भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है— भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती फरक्का बैराज (1974 निर्मित) से छनते हुई बंग्ला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 3-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाये हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकृतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुम्फित नदियाँ पायी जाती हैं। गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी व वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत, बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ, जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया। गंगा का सुंदरवन डेल्टा thumb|256px|सुंदरवन-विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा-गंगा का मुहाना-बंगाल की खाड़ी में हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवं मेघना नदी मिलती हैं। अंततः ये 350 कि॰मी॰ चौड़े सुंदरवन डेल्टा में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी नवीन जलोढ़ से 1,000 वर्षों में निर्मित समतल तथा निम्न मैदान है। यहाँ गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ है जिसे गंगा-सागर-संगम कहते हैं। विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (सुन्दरवन) बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है। यह डेल्टा धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परंतु अब यह तट से 15-20 मील (24-32 किलोमीटर) दूर स्थित लगभग 1,80,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरंतर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं। सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यंत कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यंत धीमी गति से बहती है और अपने साथ लायी गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है, जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ तथा उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गई हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा चावल की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे जूट का उत्पादन होता है। कटका अभ्यारण्य सुन्दरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुजरता है। यहाँ बड़ी तादाद में सुन्दरी पेड़ मिलते हैं जिसके कारण इन वनों का नाम सुन्दरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुन्दरवन में पायी जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों। सहायक नदियाँ thumb|256px|right|देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं गंगा में बायें ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ राम गंगा , करनाली (सरयू), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दाहिनी नदियाँ यमुना, चम्बल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस पुु हैं यमुना, गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है। हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना प्रयागराज के निकट दायें ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में मिलती है। करनाली नदी मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया जिले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में सरयू कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में शालीग्राम नाम से बहती हुई मैदानी भाग में नारायणी नदी का नाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिलती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के घाटी के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है, जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद एवरेस्ट के कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई यह दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है, जहाँ पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी (मध्यप्रदेश) से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य-प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर हमीरपुर के निकट यमुना में मिलती है। भागीरथी नदी के बाएँ किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बाएँ किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गई हैं। सहायक नदी 1 महाकाली 2 करनाली 3 कोसी 4 गंडक 5 सरयू 6 यमुना 8 सोमनदी 9 महानंदा जीव-जन्तु thumb|right|256px|गंगा नदी में पाए जाने वाले घड़ियाल 256px|thumb|गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉलफिन मछली जिसे आम बोलचाल की भाषा में सोंस कहते हैं ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि १६वीं तथा १७वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गेंडा, शेर, बाघ तथा गवल का शिकार होता था। गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शान्त व अनुकूल पर्यावरण के कारण रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार अपने आंचल में संजोए हुए है। इसमें मछलियों की १४० प्रजातियाँ, ३५ सरीसृप तथा इसके तट पर ४२ स्तनधारी प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की उत्कृष्ट पारिस्थितिकी संरचना में कई प्रजाति के वन्य जीवों जैसे— नीलगाय, साम्भर, खरगोश, नेवला, चिंकारा के साथ सरीसृप वर्ग के जीव-जन्तुओं को भी आश्रय मिला हुआ है। इस इलाके में ऐसे कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ हैं जो दुर्लभ होने के कारण संरक्षित घोषित की जा चुकी हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, साम्भर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफ़ी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियाँ तथा कीट भी यहाँ पाए जाते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव में धीरे-धीरे वनों का लोप होने लगा है और गंगा की घाटी में सर्वत्र कृषि होती है फिर भी गंगा के मैदानी भाग में हिरण, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ, भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी की अनेक प्रजातियाँ काफी संख्या में पाए जाते हैं। डॉलफिन की दो प्रजातियाँ गंगा में पाई जाती हैं। जिन्हें गंगा डॉलफिन और इरावदी डॉलफिन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गंगा में पाई जाने वाले शार्क की वजह से भी गंगा की प्रसिद्धि है, जिसमें बहते हुए पानी में पाई जानेवाली शार्क के कारण विश्व के वैज्ञानिकों की काफी रुचि है। इस नदी और बंगाल की खाड़ी के मिलन स्थल पर बनने वाले मुहाने को सुन्दरवन के नाम से जाना जाता है जो विश्व की बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल बाघ का गृहक्षेत्र है। आर्थिक महत्त्व thumb|256px|गंगा में रैफ्टिंग भी होती है। गंगा अपनी उपत्यकाओं (घाटियों) में भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगायी जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवम् गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल तथा झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसो, तिल, गन्ना और जूट की बहुतायत फसल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है; इसमें लगभग ३७५ मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में १११ मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है। फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। गंगा का महत्त्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, प्रयागराज एवम् वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या निरन्तर बनी रहती है तथा धार्मिक पर्यटन में महत्त्वपूर्ण योगदान करती हैं। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अत्यधिक होता है, इस समय उत्तराखण्ड में ऋषिकेश, बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग, क्याकिंग व कैनोइंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खेलों के शौकीनों व पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करके भारत के आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाँध एवम् नदी परियोजनाएँ thumb|256px|टिहरी बांध गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं— फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बाँध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिए किया गया था जो कि १९५० से १९६० तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता हुगली नदी पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरन्तर बनाए रखने के लिए गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख टिहरी बाँध, टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखण्ड प्रान्त के टिहरी जिले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से २४०० मेगावाट विद्युत उत्पादन, २,७०,००० हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन १०२.२० करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवम् उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन् १८४० में अंग्रेज़ों ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिए बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बाँध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बाँध टूट जाया करता था तथा मॉनसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फसलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बाँध निर्माण स्‍थल के अनुप्रवाह (नीचे की ओर बहाव) में वर्ष १९७८-१९८४ की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फसल में भी पानी दिया जाने लगा। प्रदूषण एवं पर्यावरण thumb|right|256px|गोमुख पर शुद्ध गंगागंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाये रखने की असाधारण क्षमता है; किन्तु इसका कारण अभी तक अज्ञात है। एक राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे महामारियाँ होने की सम्भावना बड़े स्तर पर टल जाती है।बैक्टीरियोफेज का स्व-शुद्धिकरण प्रभाव, ऑक्सीजन रिटेन्शन रहस्य: मिस्ट्री फ़ैक्टर गिव्स गैन्जेस ए क्लीन रेप्युटेशन जूलियन क्रैन्डा-२ हॉल्लिक. नेशनल पब्लिक रेडियो। लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता के चिन्ता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है। वैज्ञानिक जाँच के अनुसार गंगा का बायोलॉजिकल ऑक्सीजन स्तर ३ डिग्री (सामान्य) से बढ़कर ६ डिग्री हो चुका है। गंगा में २ करोड़ ९० लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की १२ प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगाजल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए घड़ियालों की मदद ली जा रही है। शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयन्त्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गयी हैं। हालाँकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाये जाते रहे हैं। जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किये जा रहे हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाये हुए हैं। २००७ की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की २०३० तक समाप्त होने की सम्भावना है। इसके बाद नदी का बहाव वर्षा-ऋतु पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा।बोस्टन.कॉम पर देखें- वैश्विक ऊष्मीकरण का उ.प्र. की गंगा पर प्रभाव। नमामि गंगे इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया। प्रधानमन्त्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियन्त्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया। इसके बाद उन्होंने जुलाई २०१४ में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की। इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित ४८ औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है। भारत में 2020 के 25 मार्च से 3 मई तक लोक डाउन होने का कारण गंगा के किनारे सभी फैक्टरी बंद है जिस के कर उन का गंदा पानी गंगा में नहीं जा रहा है और गंगा का जल बहुत अधिक साफ हुआ है पिछले दस वर्षो में पहली बार हरकिपोड़ी में गंगा का पानी पीने के लायक बताया गया है। धार्मिक महत्त्व thumb|right|230px|वाराणसी घाट पर गंगा की आरती भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुए हैं, जिनमें वाराणसी, हरिद्वार और प्रयागराज उत्तरकाशी प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए मकर संक्रांति, कुम्भ और गंगा दशहरा के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं। गंगा को लक्ष्य करके अनेक भक्ति ग्रन्थ लिखे गये हैं। जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम् और आरती सबसे लोकप्रिय हैं। अनेक लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं। गंगोत्री तथा अन्य स्थानों पर गंगा के मंदिर और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनके दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को कृतार्थ समझते हैं। उत्तराखण्ड के पंच प्रयाग तथा प्रयागराज जो उत्तर प्रदेश में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गये हैं। पौराणिक प्रसंग thumb|right|230px|गंगा और शांतनु- राजा रवि वर्मा की कलाकृति गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। मिथकों के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने की बून्दों से गंगा का निर्माण कियाा तथा पृथ्वी पर आते समय शिवजी ने गंगा को अपने शिर जटाओं में रखा। त्रिमूर्ति के तीनों सदस्यों के स्पर्श के कारण यह पवित्र समझा गया। एक अन्य कथा के अनुसार राजा सगर ने जादुई रूप से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिए एक अश्ववमेध नामक यज्ञ किया। यज्ञ के लिए घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इन्द्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अन्त में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि कपिल मुनि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोचकर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं, उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जलकर वहीं भस्म हो गए। सगर के पुत्रों की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगीं क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएँ स्वर्ग में जा सकें। भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हुए और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति सम्भव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर अवतरित होऊँगी तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तत्पश्चात् भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोककर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा-सागर संगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयीं और पृथ्वीवासियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गई। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं। इसी प्रकार एक पौराणिक कथा राजा शान्तनु और गंगा के विवाह तथा उनके सात पुत्रों के जन्म की है। साहित्यिक उल्लेख thumb|right|230px|गंगा अवतरण एक लोकचित्रभारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और हिन्दी साहित्य की मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है। ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी' नामक काव्य की रचना की है। हिन्दी के आदि महाकाव्य पृथ्वीराज रासो तथा वीसलदेव रास (नरपति नाल्ह) में गंगा का उल्लेख है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रन्थ जगनिक रचित आल्हखण्ड में गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। श्रृंगार-रस के कवि विद्यापति, कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु सूरदास और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-महात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली के उत्तरकाण्ड में ‘श्री गंगा महात्म्य’ का वर्णन तीन छंदों में किया है— इन छंदों में कवि ने गंगा दर्शन, गंगा स्नान, गंगा जल सेवन, गंगा तट पर बसने वालों के महत्त्व को वर्णित किया है। रीतिकाल में सेनापति और पद्माकर का गंगा वर्णन श्लाघनीय है। पद्माकर ने गंगा की महिमा और कीर्ति का वर्णन करने के लिए गंगालहरी नामक ग्रन्थ की रचना की है। सेनापति कवित्त रत्नाकर में गंगा महात्म्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पाप की नाव को नष्ट करने के लिए गंगा की पुण्यधारा तलवार-सी सुशोभित है। रसखान, रहीम आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। आधुनिक काल के कवियों में जगन्नाथदास रत्नाकर के ग्रन्थ गंगावतरण में कपिल मुनि द्वारा शापित सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिए भगीरथ की 'भगीरथ-तपस्या' से गंगा के भूमि पर अवतरित होने की कथा है। सम्पूर्ण ग्रन्थ तेरह सर्गों में विभक्त और रोला छंद में निबद्ध है। अन्य कवियों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, सुमित्रानन्दन पन्त और श्रीधर पाठक आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा का वर्णन किया है। छायावादी कवियों का प्रकृति वर्णन हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय है। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘नौका विहार’ में ग्रीष्मकालीन तापस बाला गंगा का जो चित्र उकेरा है, वह अति रमणीय है। उन्होंने गंगा नामक कविता भी लिखी है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक भारत एक खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है। गंगा की पौराणिक कहानियों को महेन्द्र मित्तल अपनी कृति माँ गंगा में संजोया है। चित्र दीर्घा टीका टिप्पणी क.    इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गंगा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे। ख.    कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि। ग.    प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय॥/एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय॥/सरस्वती नीचे से निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय॥ घ.    कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी।/रविमंडल परचण्डा कहिअए, गंगा कहिअए पानी॥ ङ.    सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गंगा ज्यौं आई जगमाँह॥/कहौं सो कथा सुनौ चितलाइ। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ॥ च.    देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे।/देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।           पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे।/ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे॥ (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४५)           ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को।/जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।           सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को।/मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को॥ (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४६)           बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो।/ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बड़े दोष दहौंगो।           बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीर को ह्वै तव तीर रहौंगो।/भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो॥ (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४७) छ.    पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है।/देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।           बड़ी रज राखै जाकौं महाधीर तरसत, सेनापति ठौर-ठौर नीकीयै बहति है।/पाप पतवारि के कतल करिबे को गंगा, पुण्य की असील तरवारि सी लसति है॥--सेनापति ज.    अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल॥--रहीम झ.    "The Ganga, especially, is the river of India, beloved of her people, round which are interwined her memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. She has been a symbol of India's age long culture and civilization, ever changing , ever flowing, and yet ever the same Ganga." -जवाहरलाल नेहरू इन्हें भी देखें टीन का पुरा गंगा देवी सन्दर्भ श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:भारत की नदियाँ श्रेणी:गंगा नदी श्रेणी:उत्तराखण्ड की नदियाँ श्रेणी:उत्तराखण्ड का भूगोल श्रेणी:उत्तर प्रदेश का भूगोल श्रेणी:उत्तर प्रदेश की नदियाँ श्रेणी:बिहार का भूगोल श्रेणी:बिहार की नदियाँ श्रेणी:पश्चिम बंगाल का भूगोल श्रेणी:पश्चिम बंगाल की नदियाँ श्रेणी:उत्तम लेख श्रेणी:भूगोल के निर्वाचित लेख श्रेणी:पवित्र नदियाँ श्रेणी:कॉमन्स पर निर्वाचित चित्र युक्त लेख श्रेणी:ऋग्वैदिक नदियाँ
पाकुड़
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पाकुड़ (Pakur) भारत के झारखंड प्रान्त का एक शहर है। यह पाकुड़ ज़िले का मुख्यालय है।"Lonely Planet Bihar & Jharkhand," Lonely Planet Publications, 2012, ISBN 9781743212004"Superfast Jharkhand GK," Prabhat Prakashan पाकुड़ को पत्थर नगरी भी कहा जाता है। यहां के पत्थर एशिया के बेहतरीन पत्थरों में एक है। पाकुड़ के मुख्य व्यवसायिक स्त्रोत कोयला एवं पत्थर के खदान हैं। पाकुड़ के सिदो कान्हू मुर्मू पार्क में स्थित मार्टिलो टावर 1855 ई० के हूल क्रांति का प्रतीक है। इन्हें भी देखें पाकुड़ ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड के शहर श्रेणी:पाकुड़ ज़िला श्रेणी:पाकुड़ ज़िले के नगर
पुरुलिया
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पुरुलिया (Purulia) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के पुरुलिया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित है।"Lonely Planet West Bengal: Chapter from India Travel Guide," Lonely Planet Publications, 2012, ISBN 9781743212202"Kolkata and West Bengal Rough Guides Snapshot India," Rough Guides, Penguin, 2012, ISBN 9781409362074 भूगोल पुरुलिया "मानभुम सिटी" के रूप में भी जाना जाता है। शहर 1876 में गठित किया गया था। पुरुलिया नगर के दक्षिण में कंगसाबती नदी (कांसाई नदी) बहती है। पुरुलिया जिला 6251 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह छोटा नागपुर पठार की सबसे छोटी श्रेणी में अवस्थित है। क्षेत्र में कम ऊंचाई की छोटी पहाड़ियां व टीले और मैदानी भूमि हैं। संस्कृति यह "चौधरी नृत्य" के लिए प्रसिद्ध है। छऊ नृत्य पुरुलिया का प्रमुख मुखोटा नृत्य है। नृत्य पौराणिक धार्मिक कथा जैसे रामायण और महाभारत की कहानी पर आधारित होता है। वीर रस के इस नृत्य को पहले सिर्फ पुरुष ही करते हैं। जिसमें महिलाओं की भूमिका भी पुरुष निभाते हैं। इन दिनों कई लड़कियां भी इस नृत्य को सीख रही हैं और देश विदेश में प्रस्तुतियां दे रहीं हैं। इस नृत्य आज काफी लोकप्रिय हो हैं। आवागमन सड़क - राष्ट्रीय राजमार्ग 18 यहाँ से गुज़रता है और इसे कई अन्य स्थानों से जोड़ता है। रेल - पुरुलिया रेलवे जंक्शन से कई स्थानों के लिए रेल यातायात उपलब्ध है। पुरुलिया का रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ "रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ" प्राचीन गुरुकुल प्रणाली है जिसकी विचारधारा के शांत वातावरण के साथ लड़कों के लिए एक आवासीय स्कूल द्वारा स्वामी विवेकानंद ने स्थापित की थी। सैनिक स्कूल रांची रोड पर है। GRK डीएवी एक आवासीय स्कूल आर्य समाज, स्वामी दयानंद द्वारा की स्थापना की की विचारधाराओं पर आधारित है। भगवान चर्च स्कूल की एक सुबह (Bhatbhandh) बैच और एक दिन बैच (रांची रोड) है। स्कूलों की प्राचीनतम पुरुलिया जिला है जो 1853 में स्थापित किया गया था। इन्हें भी देखें छऊ नृत्य कांसाई नदी पुरुलिया ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:पश्चिम बंगाल के शहर श्रेणी:पुरुलिया ज़िला श्रेणी:पुरुलिया ज़िले के नगर *
बुद्धदेव भट्टाचार्य
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बुद्धदेव भट्टाचार्य (; जन्म १ मार्च १९४४) भारतीय राजनीतिज्ञ तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं। वो २००० से २०११ तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। वो जाधवपुर विधानसभा क्षेत्र से १४ मई २०११ तक विधायक रहे। २४ वर्षों तक विधायक रहने के बाद वो अपनी ही सरकार के पूर्व मुख्य सचिव मनीष गुप्ता से १६,६८४ मतों से पराजित हुये। वो अपने ही विधानसभा क्षेत्र से हारने वाले पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री हैं। उनसे पहले प्रफुल चन्द्र सेन १९६७ में अपने ही निर्वाचन क्षेत्र से हारे थे। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ माकपा जालस्थल पर जीवनी लेख श्रेणी:1944 में जन्मे लोग श्रेणी:भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राजनीतिज्ञ श्रेणी:पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री श्रेणी:जीवित लोग
साक्षरता
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साक्षरता का अर्थ है साक्षर होना अर्थात पढने और लिखने की क्षमता से संपन्न होना। अलग अलग देशों में साक्षरता के अलग अलग मानक हैं। भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपना नाम लिखने और पढने की योग्यता हासिल कर लेता है तो उसे साक्षर माना जाता है। साक्षरता दर किसी देश अथवा राज्य की साक्षरता दर वहाँ के कुल लोगों की जनसँख्या व पढ़े लिखे लोगों के अनुपात को कहा जाता है। अधिकाँश यह प्रतिशत में दर्शाया जाता है। परन्तु कभी कभी इसे प्रति-कोटि (हर हज़ार पर) भी दिखाया जाता है सूत्र इसको समझने का गणितीय सूत्र है: साक्षरता दर प्रतिशत = शिक्षित जनसंख्या/कुल जनसंख्या अर्थात हर सौ लोगों में से कितने लोग साक्षर हैं। भारत में स्थिति आज़ादी के समय भारत की साक्षरता दर मात्र बारह (१२%) प्रतिशत थी जो बढ़ कर लगभग चोहत्तर (७४%) प्रतिशत हो गयी है। परन्तु अब भी भारत संसार के सामान्य दर (पिच्यासी प्रतिशत ८५%) से बहुत पीछे है। भारत में संसार की सबसे अधिक अनपढ़ जनसंख्या निवास करती है। वर्तमान स्थिति कुछ इस प्रकार है: पुरुष साक्षरता: बयासी प्रतिशत (८२%) स्त्री साक्षरता: पैंसठ प्रतिशत (६५%) सर्वाधिक साक्षरत दर (राज्य): केरल (चोरान्वे प्रतिशत ९४%) न्यूनतम साक्षरता दर (राज्य): बिहार (चौसठ प्रतिशत ६४%) सर्वाधिक साक्षरता दर (केन्द्र प्रशासित): लक्षद्वीप (बानवे प्रतिशत ९२%) जब से भारत ने शिक्षा का अधिकार लागू किया है, तब से भारत की साक्षरता दर बहुत अधिक बढ़ी है। केरल हिमाचल, मिजोरम, तमिल नाडू एवं राजस्थान में हुए विशाल बदलावों ने इन राज्यों की काया पलट कर दी एवं लगभग सभी बच्चों को अब वहाँ शिक्षा प्रदान की जाती है। बिहार में शिक्षा सबसे बड़ी समस्या है जिस से सरकार जूझ रही है। वहाँ गरीबी की दर इतनी अधिक है कि लोग जीवन की मूल-भूत आवश्यकताएं जैसे रोटी कपडा और मकान का भी जुगाड़ नहीं कर पाते| वे किताबों का खर्च नहीं उठा पाते| साक्षर कौन हैं? भारतीय नियम के अनुसार इस सूत्र में जो उन लोगों को भी शिक्षित गिना जाता है जो अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं तथा पैसे का हिसाब किताब करना जानते हैं अथवा समझ सकते हैं अथवा दोनों। इन्हें भी देखें विधिक साक्षरता (या, कानूनी साक्षरता) सूचना साक्षरता श्रेणी:साक्षरता मिशन श्रेणी:ज्ञान
किरोड़ीमल महाविद्यालय
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किरोड़ीमल महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में स्थित एक प्रमुख महाविद्यालय है। इस महाविद्यालय के पढ़े छात्र-छात्राये देश विदेशो में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत है। सन्दर्भ श्रेणी:दिल्ली विश्वविद्यालय
खरसावाँ
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खरसावाँ (Kharsawan) भारत के झारखण्ड राज्य के सराइकेला खरसावाँ ज़िले में स्थित एक शहर है। यहाँ एक रेल स्टेशन है।"Tourism and Its Prospects in Bihar and Jharkhand ," Kamal Shankar Srivastava, Sangeeta Prakashan, 2003"The district gazetteer of Jharkhand," SC Bhatt, Gyan Publishing House, 2002 इन्हें भी देखें सराइकेला खरसावाँ ज़िला झारखण्ड सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड के शहर श्रेणी:सराइकेला खरसावाँ ज़िला श्रेणी:सराइकेला खरसावाँ ज़िले के नगर
बिरसा मुंडा
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बिरसा मुंडा (15 नवम्बर 1875 - 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और 'धरती आबा' के नाम से भी जाना जाता है। आरंभिक जीवन बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए। बिरसा मुंडा को उनके पिता ने मिशनरी स्कूल में यह सोचकर भर्ती किया था कि वहाँ अच्छी पढ़ाई होगी लेकिन स्कूल में ईसाईयत के पाठ पर जोर दिया जाता था। आदिवासी विद्रोह के नायक बिरसा मुंडा 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हत्यारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई ने छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह 'उलगुलान'। ● आदिवासी पुनरुत्थान के जनक बिरसा मुंडा धीरे-धीरे बिरसा मुंडा का ध्यान मुंडा समुदाय की गरीबी की ओर गया। आदिवासियों का जीवन अभावों से भरा हुआ था। और इस स्थिति का फायदा मिशनरी उठाने लगे थे और आदिवासियों को ईसाईयत का पाठ पढ़ाते थे। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गरीब आदिवासियों को यह कहकर बरगलाया जाता था कि तुम्हारे ऊपर जो गरीबी का प्रकोप है वो ईश्वर का है। हमारे साथ आओ हमें तुम्हें भात देंगे कपड़े भी देंगे। उस समय बीमारी को भी ईश्वरी प्रकोप से जोड़ा जाता था। 20 वर्ष के होते होते बिरसा मुंडा वैष्णव धर्म की ओर मुड़ गए जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थे उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते और लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुनते और उनकी बात मानते थें। आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है। वो आदिवासियों को धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कहते और साथ ही साथ मिशनरियों के कुचक्र से बचने की सलाह भी देते। धीरे धीरे लोग बिरसा मुंडा की कही बातों पर विश्वास करने लगे और मिशनरी की बातों को नकारने लगे। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें 'धरती आबा' कहा जाने लगा। लेकिन आदिवासी पुनरुत्थान के नायक बिरसा मुंडा, अंग्रेजों के साथ साथ अब मिशनरियों की आँखों में भी खटकने लगे थे। अंग्रेजों एवं मिशनरियों को अपने मकसद में बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक लगने लगे। thumb|मुंडा विद्रोह विद्रोह में भागीदारी और अंत thumb|right|200px|बिरसा मुंडा की राँची में स्थित मूर्ति ● अंग्रेजो के षड्यंत्र के तहत पकड़ कर जहर दे दिया गया मिशनरीओ ने छोटा नागपुर पठार के क्षेत्र में आदिवासी धर्मांतरण का जो सपना 19 वीं सदी में देखा था, उसमें बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक बने। षड्यंत्र कर 3 मार्च को बिरसा मुंडा को पकड़ लिया गया। इसमें उनके किसी अपने ने ही 500 रुपये के लालच में उनके गुप्त ठिकाने के बारे में प्रसाशन को सबकुछ बता दिया। उनके साथ पकड़े गए लगभग 400 लोगों को कई धारा के अंतर्गत दोषी बनाया गया। बिरसा पकड़े गए किंतु मई मास के अंतिम सप्ताह तक बिरसा और अन्य मुंडा वीरों के विरुद्ध केस तैयार नहीं हुआ था। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की बहुत सी धाराओं में मुंडा पकड़े गया थे, लेकिन बिरसा जानते थे कि उन्हें सजा नहीं होगी। 9 जून की सुबह सुबह उन्हें उल्टियाँ होने लगी, कुछ ही क्षण में वो बंदीगृह में अचेत हो गए। डॉक्टर को बुलाया गया उसने बिरसा मुंडा की नाड़ी देखी, वो बंद हो चुकी थी। इतिहासकार कहते हैं कि अंग्रेज जानते थे कि बिरसा मुंडा कुछ ही दिनों में छूट जाएंगे, क्यों कि उनपर लगाई गई धाराओं के अंतर्गत उनके ऊपर दोष साबित नहीं किया जा सकता। वो ये भी जानते थे कि बिरसा मुंडा छूटने के बाद विद्रोह को वृहद रूप देंगे और तब यह अंग्रेजों के लिए और घातक होगा। इसलिए उन्होंने उनके दातुन/पानी मे विषैला पदार्थ मिला दिया। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है। thumb|बिरसा मुंडा को पकड़कर राँची कारागार ले जाया गया बिरसा मुंडा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में राँची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है। 10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। जनजातीय गौरव दिवस भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 10 नवंबर 2021 को आयोजित बैठक में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद करने के लिए बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को "जनजातीय गौरव दिवस" ​​​​के रूप में घोषित किया है।इस दिन को भारत के एक वीर स्वतंत्रता सेनानी को याद किया जाता है। बिरसा मुंडा अमर हो गए। बिरसा मुंडा मरे नहीं, अपितु अमर हो गए। जब जब आदिवासी विद्रोह के बारे में हम बात करेंगे, बिरसा मुंडा का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाएगा। संदर्भ इन्हें भी देखें मुंडा विद्रोह मुंडा जनजाति बिरसा मुंडा आदिवासी विश्वविद्यालय बाहरी कड़ियाँ बिरसा एक क्रांतिकारी थे, जिन्हें लोग पूजा करते हैं (प्रभासाक्षी) अब भी अधूरी है शहीद बिरसा मुंडा का सपना श्रेणी:आदिवासी श्रेणी:भारतीय (आदिवासी) श्रेणी:झारखंड श्रेणी:१८७५ जन्म श्रेणी:१९०० में निधन
झारखंड आंदोलन
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झारखंड आंदोलन भारत के छोटा नागपुर पठार और इसके आसपास के क्षेत्र, जिसे झारखण्ड के नाम से जाना जाता है, को अलग राज्य का दर्जा देने की माँग के साथ शुरू होने वाला एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था। इसकी शुरुआत 20 वीं सदी के शुरुआत में हुई। अंततः 2000 में बिहार पुनर्गठन बिल के पास होने के बाद इसे अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। thumb|झारखंड झारखंड शब्द की उत्पत्ति "झार" यानी जंगल और खंड यानी स्थान से है। झारखंड वनों से आच्छादित छोटानागपुर के पठार का हिस्सा है जो गंगा के मैदानी हिस्से के दक्षिण में स्थित है। झारखंड शब्द का प्रयोग कम से कम चार सौ साल पहले सोलहवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। अपने बृहत और मूल अर्थ में झारखंड क्षेत्र में पुराने बिहार के ज्यादातर दक्षिणी हिस्से और छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ जिले शामिल है। इस क्षेत्र में नागपुरी और कुड़माली बोली जाती है। इसके आलावा कुछ क्षेत्र में मुंडारी, हो, संताली, भूमिज, खड़िया तथा खोरठा भाषा बोली जाती है। 1845 में पहली बार यहाँ ईसाई मिशनरियों के आगमन से इस क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरू हुआ। मिशनरियाँ आदिवासी समुदाय के एक बड़ा और महत्वपूर्ण भाग को ईसाई बनाने में सफल रहे। उन्होंने क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खोले। लेकिन ईसाई धर्म में बृहत धर्मांतरण के बावज़ूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्थाएँ भी कायम रखी और ये द्वंद्व कायम रहा। झारखंड के खनिज पदार्थों से संपन्न प्रदेश होने का खामियाजा भी इस क्षेत्र के आदिवासियों को चुकाते रहना पड़ा है। यह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा खनिज क्षेत्र है जहाँ कोयला, लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसके अलावा बाक्साईट, ताँबा चूना-पत्थर इत्यादि जैसे खनिज भी बड़ी मात्रा में हैं। यहाँ कोयले की खुदाई पहली बार 1856 में शुरू हुआ और टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी की स्थापना 1907 में जमशेदपुर में की गई। इसके बावजूद कभी केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस क्षेत्र की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया गया। प्रारंभिक आंदोलन 1765 में बक्सर के युद्ध के बाद, झारखंड क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन जा चुकी थी। इस क्षेत्र के आदिवासियों ने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए अनेकों लड़ाईयां लड़ी। शुरुआती दौर में चुआड़ विद्रोह, तमाड़ विद्रोह, तिलका मांझी विद्रोह और हो विद्रोह हुए, लेकिन ये ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सके। भूमिज और कोल आंदोलन 1830 में गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में झारखंड के जंगल महल और सिंहभूम में आदिवासियों का सबसे शक्तिशाली आंदोलन हुआ, जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को हिला कर रख दिया। गंगा नारायण ने क्षेत्र में आदिवासी राज स्थापित करने के लिए क्षेत्र के भूमिजों को एकजुट किया और कंपनी शासन पर धावा बोला। यह भारत में पहला संगठित आंदोलन था, जो 7 फरवरी 1833 गंगा नारायण की मृत्यु के साथ थम गया। इसे "जंगल महल आंदोलन" के नाम से भी जाना जाता है। thumb|200px|centre|गंगा नारायण सिंह, औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ने वाले पहले क्रांतिकारियों में से एक हैं। छोटानागपुर में बिंदराय मानकी और सिंदराय मानकी ने 1832 में कोल विद्रोह की शुरुआत की, झारखंड में हजारों दिकुओं (बाहरी लोगों) की हत्या की गई। झारखंड के कोल (हो, भूमिज, मुण्डा और उरांव) आदिवासियों ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। हूल आंदोलन thumb|200px|centre|सिद्धू कान्हू, औपनिवेशिक शासन की नींद उड़ानें वाले दो भाई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जमींदार और सामंतवादियों के क्रुर नीतियों के खिलाफ पूर्वी भारत में झारखंड में एक विद्रोह हुआ। यह 1855 को शुरू हुआ और 1856 तक चला। विद्रोह का नेतृत्व चार मूर्मू भाइयों - सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव तथा दो जुड़वां मूर्मू बहनें - फूलो और झानो ने किया। यह संतालों द्वारा सबसे बड़ा विद्रोह था। इसे "संथाल विद्रोह" या "हूल आंदोलन" कहा जाता है। उलगुलान आंदोलन thumb|200px|centre|बिरसा मुंडा, उलगुलान क्रांति के जनक थे। इन्हें धरती आबा भी कहा जाता है। 1900 में बिरसा मुंडा की लड़ाई का मुख्य उद्देश्य छोटानागपुर में मुण्डा राज स्थापित करना था। अंग्रेजों द्वारा शोषण और जल, जंगल और जमीन के अधिकारों से वंचित होना; आदिवासी की सबसे बड़ी नाराजगी थी। बिरसा मुंडा आदिवासियों के एक महान नेता के रूप में उभरे, किन्तु वह औपनिवेशिक शासन का अंत करने में विफल रहे। विद्रोह को "उलगुलान आंदोलन" कहा जाता है। आधुनिक काल अलग झारखण्ड राज्य आंदोलन की शुरुआत 20वीं सदी के शुरुआत में हुई, जिसकी पहल ईसाई आदिवासियों द्वारा शुरू की गई। लेकिन बाद में इसे सभी वर्गों जिसमें गैर आदिवासी भी शामिल थे; का समर्थन हासिल हुआ। thumb|200px|right|जयपाल सिंह मुंडा, झारखंड अलग राज्य की मांग करने वाले पहले नेताओं में से एक हैं। अलग राज्य की मांग 1912 में शुरू हुई, जब पहली बार इसका प्रस्ताव सेंट कोलंबिया कॉलेज, हज़ारीबाग के एक छात्र ने रखा था। 1928 में, ईसाई आदिवासियों की एक राजनीतिक शाखा ‘उन्नति समाज’ ने पूर्वी भारत में एक आदिवासी राज्य के गठन के लिए साइमन कमीशन को एक ज्ञापन सौंपा। जयपाल सिंह मुंडा और राम नारायण सिंह जैसे बड़े नेता ने अलग राज्य की मांग की। 1939 में, ‘उन्नति समाज’ का नाम बदलकर ‘आदिवासी महासभा’ कर दिया गया, जयपाल सिंह मुंडा इसके अध्यक्ष बने। आदिवासी महासभा ने बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुल 28 जिलों को मिलाकर अलग झारखण्ड राज्य की सीमा तैयार की। बाद में ‘आदिवासी महासभा’ का नाम बदलकर ‘झारखण्ड पार्टी’ कर दिया गया। आजादी के बाद 1947 में भारत की आज़ादी के बाद व्यवस्थित रूप से औद्योगिक विकास पर काफी बल दिया गया जो भारी उद्योगों पर केन्द्रित थी और जिसके लिये खनिजों की खुदाई एक जरूरी हिस्सा थी। समाजवादी सरकारी नीति के तहत भारत सरकार द्वारा स्थानीय लोगों की जमीनें बगैर उचित मुआवज़े के अन्य हाथों में जाने लगीं। दूसरी तरफ़ सरकार का यह भी मानना था कि चूँकि वहाँ की जमीन बहुत उपजाऊ नहीं है इसलिये वहाँ औद्योगीकरण न सिर्फ़ राष्ट्रीय हित के लिये आवश्यक है बल्कि स्थानीय विकास के लिये भी जरूरी है। लेकिन औद्योगीकरण का नतीजा हुआ कि वहाँ बाहरी लोगों का दखल और भी बढ़ गया और बड़ी सँख्या में लोग कारखानों में काम के लिये वहाँ आने लगे। इससे वहाँ स्थानीय लोगों में असंतोष की भावना उभरने लगी और उन्हें लगा कि उनके साथ नौकरियों में भेद-भाव किया जा रहा है। 1971 में बनी राष्ट्रीय खनन नीति इसी का परिणाम थी। सरकारी भवनों, बाँधों, इत्यादी के लिये भी भूमि का अधिग्रहण होने लगा। लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन बाँधों से उत्पादन होने वाली विद्युत का बहुत कम हिस्सा इस क्षेत्र को मिलता था। इसके अलावा सरकार द्वारा वनरोपण के क्रम में वहाँ की स्थानीय रूप से उगने वाले पेड़ पौधों के बदले व्यवसायिक रूप से लाभदायक पेड़ों का रोपण होने लगा। पारंपरिक झूम खेती और चारागाह क्षेत्र सिमटने लगे और उनपर प्रतिबंधों और नियमों की गाज गिरने लगी। आज़ादी के बाद के दशकों में ऐसी अनेक समस्याएँ बढ़ती गयीं। thumb|झारखंड पार्टी राजनैतिक स्तर पर 1938 में जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 21 जिले शामिल थे, आदिवासियों के लिए अलग राज्य के आंदोलन में संताल, मुंडा, उरांव, भूमिज, खड़िया जैसे बड़े जनजातियों के साथ-साथ छोटे जनजातियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस आंदोलन में गैर-जनजातीय समुदायों जैसे कुड़मी महतो का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 31 जनवरी 1947 को सरायकेला और खरसावां को उड़ीसा में शामिल करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में हजारों की संख्या में आदिवासी इकट्ठा हुए, जिन्हें उड़ीसा पुलिस ने गोलियों से भून दिया। जिसे 'आजाद भारत का जालियांवाला नरसंहार' भी कहा गया। 1950 के दशकों में झारखंड पार्टी बिहार में सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा लेकिन धीरे-धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरू हुआ। अप्रैल 1954 में बिहार विधानसभा में छोटानागपुर और संथाल परगना के विधायकों ने राज्य पुनर्गठन आयोग को एक स्मार पत्र देकर अलग राज्य की मांग की, जिसमें सिधू हेंब्रम (कोल्हान), सुशील कुमार बागे (कोलेबिरा), हरमन लकड़ा (बेड़ो), शुभनाथ देवगम (मनोहरपुर), सुखदेव मांझी (चक्रधरपुर), लुकस मुंडा (खूंटी), जीतू किस्कू (महेशपुर), जुनस सुरीन (बसिया), विलियम हेंब्रम (शिकारीपाड़ा), कैलाश प्रसाद (जुगसलाई-पोटका एक), जेठा किस्कू (राजमहल-दामिन), सुपई मूर्मू (रामगढ़), शत्रुघन बेसरा (जामताड़ा), रामचरण किस्कू (पाकुड़-दामिन), हरिपद सिंह (जुगसलाई-पोटका दो), बाबूलाल टुडू (गोड्डा-दामिन), देवी सोरेन (दुमका), जगन्नाथ महतो कुरमी (सोनाहातू), पाल दयाल (रांची), मदन बेसरा (मसलिया), घानी राम संताल (घाटशिला-बहरागोड़ा दो), उजिंद्र लाल हो (खरसावां), देवचरण मांझी (चैनपुर), बलिया भगत (सिसई), मुकुंद राम तांती (घाटशिला-बहरागोड़ा एक), सुकरू उरांव (गुमला), अंकुरा हो (जायदा), अल्फ्रेड उरांव (सिमडेगा), चुका हेंब्रम (पोड़ैयाहाट-जरमुंडी) भैयाराम मुंडा (तमाड़), सुरेन्द्र नाथ बिरुआ (मंझारी), इग्नेस कुजुर (लोहरदगा), गोकुल महारा और जयपाल सिंह द्वारा हस्ताक्षर किया गया था। आंदोलन को सबसे बड़ा अघात तब पहुँचा जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी ने बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं। झारखंड आंदोलन में ईसाई-आदिवासी और गैर-ईसाई आदिवासी समूहों में भी परस्पर प्रतिद्वंदिता की भावना रही है। इसका कुछ कारण शिक्षा का स्तर रहा है तो कुछ राजनैतिक। 1940-1960 के दशकों में गैर ईसाई आदिवासियों ने अपनी अलग सँस्थाओं का निर्माण किया और सरकार को प्रतिवेदन देकर ईसाई आदिवासी समुदायों के अनुसूचित जनजाति के दर्जे को समाप्त करने की माँग की, जिसके समर्थन और विरोध में काफी राजनैतिक गोलबंदी हुई। 1967 में अखिल भारतीय झारखंड पार्टी का गठन किया गया, जिसमें बागुन सुंब्रुई अध्यक्ष और एनईर होरो महासचिव बने। इसके बाद, हुल झारखंड और बिरसा सेवा दल का भी गठन हुआ। इसी वर्ष, बिनोद बिहारी महतो द्वारा शिवाजी समाज नामक संगठन की स्थापना की गई। 1969 में शिबू सोरेन द्वारा सोनत सांथाल समाज संगठन की स्थापना की। बिनोद बिहारी महतो 25 साल तक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। उन्का अविश्वास अखिल भारतीय दलों से टूट चुका था। उन्होंने सोचा था कि कांग्रेस और जनसंघ सामंतवाद, पूंजीवादी के लिए थे, दलित और पिछड़ी जाति के लिए नहीं थे। इसलिए इन दलों के सदस्य के रूप में दलित और पिछड़ी जाति के लिए लड़ना मुश्किल है। फिर उन्होंने शिबू सोरेन के साथ मिलकर 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा बनाया। झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले झारखंड अलग राज्य के लिए कई आंदोलन हुए। 1978 में कोल्हान में जंगल आंदोलन हुआ, जिसमें देवेंद्र मांझी, शैलेन्द्र महतो, मछुआ गगराई, सूला पूर्ति, लाल सिंह मुंडा, भुवनेश्वर महतो और बहादुर उरांव शामिल थे। 1986 में निर्मल महतो ने ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन कि स्थापना की और झारखंड अलग राज्य के लिए कई आंदोलन किया। 1990 में आजसू पार्टी द्वारा झारखंड एकता पदयात्रा निकाली गई, जिसने 15 दिनों में 600 किलोमीटर पदयात्रा किया। अगस्त 1995 में बिहार सरकार ने 180 सदस्यों वाले झारखंड स्वायत्तशासी परिषद की स्थापना की। इतिहास क्रम अवधिइतिहासटिप्पणी1912सेंट कोलंबिया कॉलेज, हज़ारीबाग के एक छात्र द्वारा अलग राज्य की मांग1928"छोटानागपुर उन्नति समाज" द्वारा आदिवासी राज्य का गठन के लिए साइमन कमीशन को ज्ञापन"उन्नति समाज" ईसाई आदिवासियों की एक राजनीतिक शाखा थी1936जयपाल सिंह मुंडा "छोटानागपुर उन्नति समाज" के अध्यक्ष बने1939"आदिवासी महासभा" का गठन"छोटानागपुर उन्नति समाज" का नाम बदलकर; जयपाल सिंह अध्यक्ष 1940कांग्रेस रामगढ़ अधिवेशन1947भारत की आजादी1948खरसावां गोलीकांडओडिशा पुलिस बल द्वारा लगभग 30 हजार आदिवासियों का नरसंहार जस्टिन रिचर्ड द्वारा "युनाइटेड झारखंड पार्टी" का गठन1949"आदिवासी महासभा" और "युनाइटेड झारखंड पार्टी" का विलयसंयुक्त अधिवेशन जमशेदपुर मेंझारखंड पार्टी का गठनजयपाल सिंह अध्यक्ष और इदसेन देवा महासचिव1951झारखंड पार्टी बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बनी34 सीटें जीती1954झारखंड पार्टी तथा छोटानागपुर और संथाल परगना के विधायकों द्वारा झारखंड राज्य के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग को ज्ञापन1963झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय1965बिरसा सेवा दल का गठनललित कुजुर अध्यक्ष1967डेविड मुंजनी द्वारा "अखिल भारतीय झारखंड पार्टी" का गठनबागुन सुमब्राई अध्यक्ष और एन.ई. होरो महासचिवजस्टिन रिचर्ड द्वारा "हुल झारखंड पार्टी" का गठनबिनोद बिहारी महतो द्वारा "शिवाजी समाज" की स्थापना1970शिबू सोरेन द्वारा "सोनत सांथाल समाज" की स्थापना1971अरुण कुमार रॉय द्वारा "माक्सावादी समन्वय समिति" की स्थापना1972झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठनबिनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव 1977"कोल्हान रक्षा संघ" का गठन1978 कोल्हान में जंगल आंदोलन1980गुआ गोलीकांडबिहार पुलिस बल द्वारा 11 आदिवासियों की हत्याचाईबासा में "कोल्हान राज्य" की मांगझामुमो और कांग्रेस का गठबंधनबिनोद बाबू ने पार्टी छोड़ी1986ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन का गठनप्रभाकर तिर्की अध्यक्ष और सूर्य सिंह महासचिव 1987झारखंड समन्वय समिति का गठन48 संगठन और समूह शामिल थे1988डॉ.बीपी केशरी द्वारा झारखंड राज्य बनाने के लिए ज्ञापन1989झारखंड राज्य मामले पर समिति का गठन1990आजसू पार्टी द्वारा "झारखंड एकता पदयात्रा"15 दिनों में 600 किलोमीटर पदयात्रा1991झारखंड पीपुल्स पार्टी का गठनराम दयाल मुंडा अध्यक्ष और सूर्य सिंह बेसरा महासचिव 1994झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद विधेयक बिहार विधानसभा में पारित1995झारखंड स्वायत्तशासी परिषद का गठन180 सदस्य1998न्यायमूर्ति लाल पिंगले नाथ शाहदेव का आंदोलन"ऑल पार्टी सेपरेट स्टेट फॉर्मेशन कमेटी" का गठन; झारखंड एक्ट पर वोटिंग2000झारखंड अलग राज्य का गठनबिरसा मुंडा की जन्म जयंती पर सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड श्रेणी:झारखंड का इतिहास
झारखंड आँदोलन
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चूड़ाचाँदपुर
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चूड़ाचाँदपुर मणिपुर प्रान्त का एक जिला है। श्रेणी:शहर
बाम्बे
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REDIRECTमुम्बई
भीष्म
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right|thumb|300px|भीष्म प्रतिज्ञा भीष्म अथवा भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक क्षत्रिय राजा थे। भीष्म महाराजा शान्तनु के पुत्र थे महाराज शांतनु की पटरानी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे | उनका मूल नाम देवव्रत था। भीष्म में अपने पिता शान्तनु का सत्यवती से विवाह करवाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की भीषण प्रतिज्ञा की थी | अपने पिता के लिए इस तरह की पितृभक्ति देख उनके पिता ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था | इनके दूसरे नाम गाँगेय, शांतनव, नदीज, तालकेतु आदि हैं। इन्हें अपनी उस भीष्म प्रतिज्ञा के लिये भी सर्वाधिक जाना जाता है जिसके कारण इन्होंने राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका निभाई। इन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया व ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए महाभारत में उन्होने कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था। यह कौरवों के पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति रहे थे। कहा जाता है कि द्रोपदी ने शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से पूछा कि उनकी आंखों के सामने चीर हरण हो रहा था और वे चुप रहे, तब भीष्म पितामह ने जवाब दिया कि उस समय मै कौरवों का नमक खाता था इस वजह से मुझे मेरी आँखों के सामने एक स्त्री के चीरहरण का कोई फर्क नही पड़ा; परंतु अब अर्जुन ने बाणों की वर्षा करके मेरा कौरवों के नमक ग्रहण से बना रक्त निकाल दिया है, अतः अब मुझे अपने पापों का ज्ञान हो रहा है अतः मुझे क्षमा करें द्रौपदी। महाभारत युद्ध खत्म होने पर इन्होंने गंगा किनारे इच्छा मृत्यु ली। पूर्व जन्म में वसु थे भीष्म भीष्म के नाम से प्रसिद्ध देवव्रत पूर्व जन्म में एक वसु देवता थे | एक बार कुछ वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण करने गए | उस पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ जी का आश्रम था | उस समय महर्षि वशिष्ठ जी आपने आश्रम में नहीं थे लेकिन वहां उनकी प्रिय गायें कामधेनु की बछड़ी नंदिनी गाये बंधी थी | उस गायें को देखकर द्यौ नाम के एक वसु की पत्नी उस गायें को लेने की जिद करने लगी | अपनी पत्नी की बात मानकर द्यौ वसु ने महर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम से उस गायें को चुरा लिया | जब महर्षि वशिष्ठ जी वापिस आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से पूरी घटना को देख लिया | महर्षि वशिष्ठ जी वसुओं के इस कार्य को देखकर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने वसुओं को श्राप दे दिया कि उन्हें मनुष्य रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा |  इसके बाद सभी वसु वशिष्ठ जी से माफ़ी मांगने लगे | इस पर महर्षि वशिष्ठ जी ने बाकी वसुओं को माफ़ कर दिया और कहा की उन्हें जल्दी ही मनुष्य जन्म से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन द्यौ नाम के वसु को लम्बे समय संसार में रहना होगा और दुःख भोगने पड़ेंगे |   परशुराम के साथ युद्ध भगवान परशुराम के शिष्य देवव्रत अपने समय के बहुत ही विद्वान व शक्तिशाली पुरुष थे। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी और ब्रह्मचारी देवव्रत को किसी भी तरह के युद्ध में हरा पाना असंभव था। उन्हें संभवत: भगवान शिव और नारायण ही हरा सकते थे लेकिन परशुराम और भीष्म दोनों के बीच हुई युद्ध में परशुराम जी की हार हुई और दो अति शक्तिशाली योद्धाओं के लड़ने से होने वाले नुकसान को आंकते हुए इसे भगवान शिव द्वारा रोक दिया गया। कथा शांतनु से सत्यवती का विवाह भीष्म की ही विकट प्रतिज्ञा के कारण संभव हो सका था। भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने और गद्दी न लेने का वचन दिया और सत्यवती के दोनों पुत्रों को राज्य देकर उनकी बराबर रक्षा करते रहे। दोनों के नि:संतान रहने पर उनके विधवाओं की रक्षा भीष्म ने की, परशुराम से युद्ध किया, उग्रायुद्ध का बध किया। फिर सत्यवती के पूर्वपुत्र कृष्ण द्वैपायन द्वारा उन दोनों की पत्नियों से पांडु एवं धृतराष्ट्र का जन्म कराया। इनके बचपन में भीष्म ने हस्तिनापुर का राज्य संभाला और आगे चलकर कौरवों तथा पांडवों की शिक्षा का प्रबंध किया। महाभारत छिड़ने पर उन्होंने दोनों दलों को बहुत समझाया और अंत में कौरवों के सेनापति बने। युद्ध के अनेक नियम बनाने के अतिरिक्त इन्होंने अर्जुन से न लड़ने की भी शर्त रखी थी, पर महाभारत के दसवें दिन इन्हें अर्जुन पर बाण चलाना पड़ा। शिखंडी को सामने कर अर्जुन ने बाणों से इनका शरीर छेद डाला। बाणों की शय्या पर ५८ दिन तक पड़े पड़े इन्होंने अनेक उपदेश दिए। अपनी तपस्या और त्याग के ही कारण ये अब तक भीष्म पितामह कहलाते हैं। इन्हें ही सबसे पहले तर्पण तथा जलदान दिया जाता है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें भीष्मपर्व भीष्म का प्राण त्याग शान्तनु सत्यवती बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:महाभारत के पात्र
कीव
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कीव या कियीव (, ; ) रूस के पश्चिम में स्थित देश यूक्रेन की राजधानी और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। यह उत्तर-मध्य यूक्रेन में द्नीपर नदी के किनारे स्थित है। 1 जनवरी 2021 तक, इसकी जनसंख्या 2,962,180 थी, जिससे कीव यूरोप का सातवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन गया।कीव पूर्वी यूरोप का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र है। यह कई उच्च तकनीक उद्योगों, उच्च शिक्षा संस्थानों और ऐतिहासिक स्थलों का घर है। शहर में सार्वजनिक परिवहन और बुनियादी अर्थव्यवस्था की एक व्यापक व्यवस्था है, जिसमें कीव मेट्रो भी शामिल है। यह कहा जाता है कि शहर का नाम "क्यी" के नाम पर पड़ा है, जो इसके चार महान संस्थापकों में से एक हैं। अपने इतिहास के दौरान, कीव पूर्वी यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक, प्रमुखता और अस्पष्टता के कई चरणों से गुज़रा है। अपने इतिहास के दौरान, कीव, पूर्वी यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक, प्रमुखता और अस्पष्टता के कई चरणों से गुज़रा। यह शहर संभवत: 5वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में अस्तित्व में था। स्कैंडिनेविया और कॉन्स्टेंटिनोपल के बीच के एक महान व्यापार मार्ग पर एक स्लाविक रिहायशी क्षेत्र, कीव खज़ारों की तब तक एक सहायक नदी थी, जब तक कि उसपर 9वीं शताब्दी के मध्य में वरंगियन ( वाइकिंग्स ) द्वारा कब्जा नहीं किया गया था। वारंगियन शासन के तहत, शहर कीवन रस की राजधानी बन गया, जो पहला पूर्वी स्लाव राज्य था। 1240 में मंगोल आक्रमणों के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो गया, शहर भविष्य में कई शताब्दियों तक अधिकांशत: प्रभावहीन रहा। यह अपने शक्तिशाली पड़ोसियों, पहले लिथुआनिया, फिर पोलैंड और अंततः रूस द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों के बाहरी इलाके में सीमांत महत्व की एक प्रांतीय राजधानी रहा। 19वीं सदी के अंत में रूसी साम्राज्य की औद्योगिक क्रांति के दौरान यह शहर फिर से समृद्ध हुआ। 1918 में, यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक द्वारा सोवियत रूस से स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, कीव इसकी राजधानी बन गया। 1921 के बाद से, कीव सोवियत यूक्रेन का एक शहर था, जिसे लाल सेना द्वारा घोषित किया गया था, और 1934 से, कीव इसकी राजधानी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शहर लगभग पूरी तरह से बर्बाद हो गया था, लेकिन युद्ध के बाद के वर्षों में जल्द ही फिर से ठीक हो गया और सोवियत संघ का तीसरा सबसे बड़ा शहर बना रहा।1991 में सोवियत संघ के पतन और यूक्रेनी स्वतंत्रता के बाद, कीव यूक्रेन की राजधानी बना रहा और देश के अन्य क्षेत्रों से जातीय यूक्रेनी प्रवासियों की लगातार आमद का अनुभव किया। देश के बाजार अर्थव्यवस्था और चुनावी लोकतंत्र में परिवर्तन के दौरान, कीव यूक्रेन का सबसे बड़ा और सबसे धनी शहर बना हुआ है। सोवियत के पतन के बाद इसका शस्त्र-आश्रित औद्योगिक उत्पादन गिर गया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, लेकिन सेवाओं और वित्त जैसे अर्थव्यवस्था के नए क्षेत्रों ने वेतन और आधारभूत संरचना में निवेश से कीव विकसित होता रहा, साथ ही आवास और शहरी विकास के लिए निरंतर वित्त पोषण प्रदान किया। कीव यूक्रेन के सबसे पश्चिमी समर्थक क्षेत्र के रूप में उभरा; यहाँ चुनाव के दौरान यूरोपीय संघ के साथ कड़े एकीकरण की वकालत करने वाली पार्टियों का बोलबाला रहा है। नामकरण अंगूठाकार| पोलैंड और हंगरी के सेबस्टियन मुंस्टर के मानचित्र का विवरण, 1552, जिसमें कीव को "क्यूइया एपेटस" लेबल दिखाया गया है ( ' कीव उपनिषद ' Category:Articles containing Latin-language text ) यूक्रेनी नाम है, यूक्रेनी सिरिलिक वर्णमाला में लिखा गया है, और आमतौर पर लैटिन अक्षरों (या रोमनकृत ) में Kyiv के रूप में लिखा जाता है।20वीं सदी की शुरुआत में वर्णमाला के मानकीकरण से पहले, नाम की वर्तनी , , or भी थी, अब-अप्रचलित अक्षर यात के साथ। 14 वीं और 15 वीं शताब्दी से पुरानी यूक्रेनी वर्तनी नाममात्र *Києвъ थी, लेकिन विभिन्न सत्यापित वर्तनी में кїєва ( जीन। ), вь और иев (ac . ), кїєво या кїєвом ( ins. ), києвє, Кіеве, вѣ, вѣ, вѣ या иѣве ( loc. ) शामिल हैं।यह नाम ओल्ड ईस्ट स्लाविक Kyjevŭ ( Kыѥвъ) से निकला है। लॉरेंटियन कोडेक्स और नोवगोरोड क्रॉनिकल जैसे पुराने पूर्व स्लाव इतिहास ने वर्तनी Києвъ, Къıєвъ, या Кїєвъ का इस्तेमाल किया।Lavretian Chronicle and Novgorod Chronicles : "В лЂто 6743. Не хотя исперва оканныи, всепагубныи диаволъ роду человЂческому добра, въздвиже крамолу межи рускыми князи да быша человЂци не жили мирно: о том бо ся злыи радуется кровопролитью крестияньскому. Поиде князь Володимиръ Рюриковиць с кыяны и Данило Романович с галицаны на Михаила /л.158./ Всеволодица Чермного къ Чернигову, а Изяславъ побЂжа в Половци; и много воева около Чернигова и посадъ пожьже, а Михаилъ выступи ис Чернигова; и много пустошивъ около Чернигова, поиде опять; и Михаилъ створивъ прелесть на ДанилЂ и много би галицанъ и бещисла, Данила же едва уиде; а Володимиръ пришедши опять, сЂде въ КиевЂ. И не ту бысть того до сыти зла, нь прииде Изяславъ с погаными Половци в силЂ тяжьцЂ и Михаилъ с черниговци под Киевъ, и взяша Кыевъ; а Володимера и княгыню его изымаша Половци, поведоша в землю свою, и много зла сътвориша кияномъ; а Михаилъ сЂде в ГалицЂ, а Изяславъ в КиевЂ; и опять пустиша Володимира Половци на искупЂ и жену его, и на НЂмцЂх имаша искупъ князи. 'В лЂто 6744 [1236]. Поиде князь Ярославъ из Новаграда къ Киеву на столъ, понявши съ собою новгородцовъ болших муж: Судимира въ СлавнЂ, Якима Влунковица, Костя Вячеслалича, а новоторжець 100 муж; а в НовЂградЂ посади сына своего Александра; и, пришедши, сЂде в Кие†на столЂ; и державъ новгородцовъ и новоторжанъ одину недЂлю и, одаривъ, отпусти прочь; и приидоша вси здрави. Того же лЂта пришедше безбожныи Татарове, плениша всю землю Болгарьскую А и град их Великыи взяша, исЂкоша вся и жены и дЂти" and others. यह सबसे अधिक संभावना है कि प्रोटो-स्लाविक नाम * किजेव गोर्डो (शाब्दिक रूप से, "की का महल"), से लिया गया है और यह शहर के प्रसिद्ध नामांकित संस्थापक ( Кий ), ) से जुड़ा है।कीव (Kyiv) शहर के लिए रोमनकृत आधिकारिक यूक्रेनी नाम है, और इसका उपयोग विधायी और आधिकारिक कृत्यों के लिए किया जाता है। कीव (Kyiv) शहर का पारंपरिक अंग्रेजी नाम है, लेकिन रूसी नाम से इसकी ऐतिहासिक व्युत्पत्ति के कारण, रूस-यूक्रेनी युद्ध के फैलने के बाद कीव कई पश्चिमी मीडिया में बदनाम हो गया।इतिहास में इस शहर को विभिन्न नामों से जाना जाता था। नॉर्स कथाओं में यह Kænugarðr था या Kœnugarðr, अर्थात कीवंस का शहर (Old East Slavic से ), जो आधुनिक आइसलैंडिक में अभी भी उपयोग में है । शायद शहर का नाम रखने वाली सबसे पुरानी मूल पांडुलिपि कीवान पत्र है, जिसे शहर के यहूदी समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा लगभग 930 ई. में लिखा गया था। एक लंबे इतिहास वाले एक प्रमुख शहर के रूप में, इसके अंग्रेजी नाम का क्रमिक विकास होता रहा। प्रारंभिक अंग्रेजी स्रोतों ने इस शब्द को Kiou, Kiow, Kiew, Kiovia के रूप में लिखा है। क्षेत्र के सबसे पुराने अंग्रेजी मानचित्रों में से एक पर, रूस , जो ऑर्टेलियस (लंदन, 1570) द्वारा प्रकाशित हुआ था, शहर के नाम की वर्तनी कीउ (Kiiow) है। गिलाउम डी ब्यूप्लान द्वारा 1650 के नक्शे पर, शहर का नाम किओव है, और इस क्षेत्र का नाम क्लोविया Kÿowia.रखा गया था। जोसेफ मार्शल (लंदन, 1772) द्वारा ट्रेवल्स पुस्तक में, शहर को किओविया (Kiovia) कहा जाता है।अंग्रेजी में, कीव 1804 की शुरुआत में जॉन कैरी के "यूरोप का नया नक्शा, नवीनतम अधिकारियों से" और मैरी होल्डरनेस के 1823 के यात्रा वृतांत न्यू रूस: जर्नी फ्रॉम रीगा टू द क्रीमिया में कीव के माध्यम से मुद्रन में दिखाई दिया। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने 1883 में प्रकाशित एक उद्धरण में कीव (Kiev) और 2018 में काईव (Kyiv) को शामिल किया।नाम का यूक्रेनी संस्करण, काईव (Kyiw), 1883 में प्रकाशित पोलैंड साम्राज्य के भौगोलिक शब्दकोश के खंड 4 में दिखाई देता है।अंगूठाकार| जॉन कैरी, लंदन, 1808 द्वारा न्यू यूनिवर्सल एटलस का एक टुकड़ा। यह शहर पूर्व पोलिश (बाएं) और रूसी (दाएं) प्रभाव क्षेत्रों के बीच की सीमा रेखा पर स्थित था, जिसका नाम कीव के रूप में प्रस्तुत किया गया था। यूक्रेन के 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद, यूक्रेनी सरकार ने अक्टूबर 1995 में विधायी और आधिकारिक कृत्यों के लिए लैटिन वर्णमाला में भौगोलिक नामों के लिप्यंतरण के लिए राष्ट्रीय नियम पेश किए, जिसके अनुसार यूक्रेनी नाम को (Kyiv) कीव के रूप में रोमनकृत है। ये नियम स्थान के नाम और पते के साथ-साथ पासपोर्ट में व्यक्तिगत नाम, सड़क के संकेत आदि के लिए लागू होते हैं। 2018 में, यूक्रेनी विदेश मंत्रालय ने "पुराने, सोवियत-युग" स्थान-नामों के स्थान पर, देशों और संगठनों द्वारा आधिकारिक यूक्रेनी वर्तनी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए #CorrectUA, नामक एक ऑनलाइन अभियान शुरू किया।अंग्रेजी भाषा के स्रोतों में उपयोग किए जाने वाले वैकल्पिक रोमानीकरण में (Kyïv) क्यूव , (ग्रंथ सूची सूचीकरण में प्रयुक्त एएलए-एलसी रोमानीकरण के अनुसार), (Kyjiv) काजीव (भाषाविज्ञान में प्रयुक्त विद्वानों के लिप्यंतरण), और (Kyyiv) कीव (1965 बीजीएन /पीसीजीएन लिप्यंतरण मानक) शामिल हैं।अमेरिकी मीडिया संगठन एनपीआर ने जनवरी 2022 में स्थानीय आबादी के इतिहास और पहचान के पक्ष में, यूक्रेनी के ज्यादा समान (Kyiv) काईव के ऑन-एयर उच्चारण को अपनाया। इतिहास कीव के क्षेत्र में पहले ज्ञात मानव वहां पुरापाषाण काल (पाषाण युग) के बाद के काल में रहते थे।Kyiv at Ukrainian Soviet Encyclopedia कांस्य युग के दौरान कीव के आसपास की आबादी तथाकथित ट्रिपिलियन संस्कृति का हिस्सा बन गई, जैसा कि क्षेत्र में मिली उस संस्कृति की कलाकृतियों से स्पष्ट है।Kiev in the Ukrainian Soviet Encyclopedia: "Населення періоду мідного віку на тер. प्रारंभिक लौह युग के दौरान कुछ जनजातियाँ कीव के आसपास बस गईं जो भूमि की खेती, खेती और सीथियन और उत्तरी काला सागर तट के प्राचीन राज्यों के साथ व्यापार करती थीं। दूसरी से चौथी शताब्दी के रोमन सिक्कों की खोज से पता चलता है कि रोमन साम्राज्य के पूर्वी प्रांतों के साथ व्यापारिक संबंध थे। ज़रुबिंट्सी संस्कृति के लोगों को प्राचीन स्लावों का प्रत्यक्ष पूर्वज माना जाता है जिन्होंने बाद में कीव की स्थापना की। कीव के आसपास के क्षेत्र के उल्लेखनीय पुरातत्त्वविदों में विकेंटी ख्वॉयका शामिल हैं।शहर की स्थापना के समय विद्वानों ने बहस जारी रखी: पारंपरिक स्थापना तिथि 482 ईस्वी है, इसलिए शहर ने 1982 में अपनी 1,500 वीं वर्षगांठ मनाई। पुरातत्व संबंधी आंकड़े छठी या सातवीं शताब्दी में एक स्थापना का संकेत देते हैं,"Kyiv", ब्रिटानिका ज्ञानकोष। Petro Tolochko, Glib Ivakin, Yaroslava Vermenych. कुछ शोधकर्ताओं ने इसका स्थापनाकाल 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पाया है।Rabinovich GA From the history of urban settlements in the eastern Slavs. अंगूठाकार| रैडज़िविल क्रॉनिकल में पौराणिक की, शेक, खोरीव और लाइबिड शहर की उत्पत्ति के कई पौराणिक कहानियाँ हैं। एक कहानी स्लाव जनजाति (पूर्वी पोलन) के सदस्यों के बारे में बताती है, जिसमें भाइयों क्यी (सबसे बड़े, जिनके नाम पर शहर का नाम रखा गया था) श्केक और खोरिव, और उनकी बहन लाइबिड हैं जिन्होंने शहर की स्थापना की ( प्राथमिक क्रॉनिकल देखें)। एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि सेंट एंड्रयू पहली शताब्दी में इस क्षेत्र से गुजरे थे। जहां अब शहर है, उन्होंने एक क्रॉस बनाया, जहां बाद में एक गिरिजाघर बनाया गया था। मध्य युग के बाद से सेंट माइकल की एक छवि ने शहर के साथ-साथ डची का भी प्रतिनिधित्व किया है।दाएँ|अंगूठाकार| 830 में रूस के खगनाते के समय में कीव में हंगेरियाई लोग। उस समय से संबंधित बहुत कम ऐतिहासिक साक्ष्य हैं जब शहर की स्थापना हुई थी। 6 वीं शताब्दी से इस क्षेत्र में बिखरी हुई स्लाव बस्तियों का अस्तित्व था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उनमें से कोई बाद में शहर में विकसित हुआ या नहीं। टॉलेमी दुनिया के नक्शे पर बोरीस्थनीज की मध्य-धारा के साथ संकेतित कई बस्तियां हैं, जिनमें से अज़ागेरियम है, जिसे कुछ इतिहासकार कीव के पूर्ववर्ती मानते हैं।हालांकि, अलेक्जेंडर मैकबीन के प्राचीन भूगोल के 1773 के शब्दकोश के अनुसार, यह समझौता आधुनिक शहर चेरनोबिल से मेल खाता है। अज़ागरियम के ठीक दक्षिण में, एक और बस्ती है, अमाडोका, जिसे अमादोसी लोगों की राजधानी के रूप में माना जाता है जो पश्चिम में अमाडोका के दलदल और पूर्व में अमाडोका पहाड़ों के बीच के क्षेत्र में रहते हैं।इतिहास में उल्लेखित कीव का एक अन्य नाम, जिसकी उत्पत्ति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, संबत है, जिसका स्पष्ट रूप से खजर साम्राज्य से कुछ लेना-देना है। द प्राइमरी क्रॉनिकल का कहना है कि कीव के निवासियों ने आस्कॉल्ड को बताया, "तीन भाई क्यी, श्केक और खोरीव थे। उन्होंने इस शहर की स्थापना की और मर गए, और अब हम रह रहे हैं और उनके रिश्तेदारों खजरों को कर दे रहे हैं"। अपनी पुस्तक डी एडमिनिस्ट्रांडो इम्पीरियो में, कॉन्स्टेंटाइन पोर्फिरोजेनिटस ने छोटे-कार्गो नावों के एक कारवां का उल्लेख किया है जो सालाना इकट्ठा होते हैं, और लिखते हैं, "वे नीपर नदी के नीचे आते हैं और कीव (किओवा) के मजबूत बिंदु पर इकट्ठा होते हैं, जिसे संबात भी कहा जाता है"।Sigfús Blöndal. कम से कम तीन अरबी भाषी 10वीं शताब्दी के भूगोलवेत्ता जिन्होंने इस क्षेत्र की यात्रा की, ज़ांबाट शहर का उल्लेख रूस के मुख्य शहर के रूप में किया। उनमें से अहमद इब्न रुस्तह, अबू सईद गरदेज़ी और हुदुद अल-आलम के लेखक हैं। उन लेखकों के ग्रंथों की खोज रूसी प्राच्यविद् अलेक्जेंडर तुमांस्की ने की थी। संबत की व्युत्पत्ति का तर्क कई इतिहासकारों द्वारा दिया गया है, जिनमें ग्रिगोरी इलिन्स्की, निकोले करमज़िन, जान पोटोकी, निकोले लैम्बिन, जोआचिम लेलेवेल, गुसब्रांडुर विगफसन शामिल हैं । इतिहासकार जूलियस ब्रुत्स्कस ने अपने काम "द खजर ओरिजिन ऑफ एंशिएंट कीव" में परिकल्पना की है कि संबत और कीव दोनों क्रमशः खजर मूल के हैं जिसका अर्थ है "पहाड़ी किला" और "निचला समझौता"। ब्रुत्ज़्कुस का दावा है कि संबत कीव नहीं है, बल्कि वाइसहोरोड (हाई सिटी) है जो पास में स्थित है।प्राथमिक कथाएँ (प्राइमरी क्रॉनिकल्स) बताती हैं कि 9वीं या 10वीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान किसी समय आस्कोल्ड और डिर, जो वाइकिंग या वारंगियन वंश के हो सकते थे, ने कीव में शासन किया। 882 में नोवगोरोड के ओलेग द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी, लेकिन कुछ इतिहासकार, जैसे ओमेलजन प्रित्सक और कॉन्स्टेंटाइन जुकरमैन, विवाद करते हैं कि खजर शासन 920 के दशक के अंत तक जारी रहा (उल्लेखनीय ऐतिहासिक दस्तावेजों में कीवान पत्र और शेचटर पत्र हैं)।अन्य इतिहासकारों का मानान है कि कुछ खजर जनजातियों के साथ कार्पेथियन बेसिन में प्रवास करने से पहले, मग्यार जनजातियों ने 840 और 878 के बीच इस शहर पर शासन किया। प्राथमिक कथाओं में हंगरी लोगों के कीव से आगे जाने का भी उल्लेख है। आज भी कीव में एक जगह मौजूद है जिसे " उहोर्स्के यूरोचिश " (हंगेरियाई स्थान) के नाम से जाना जाता है,History. जिसे आस्कोल्ड्स ग्रेव के नाम से जाना जाता है।दाएँ|अंगूठाकार| कीवीयों का बपतिस्मा, क्लावडी लेबेदेवी की एक चित्रकारी। कीव शहर वरंगियन और यूनानियों के बीच व्यापार मार्ग पर खड़ा था। 968 में खानाबदोश पेचनेग्स ने हमला किया और फिर शहर को घेर लिया। 1000 ईस्वी तक शहर की आबादी 45,000 थी।मार्च 1169 में, व्लादिमीर- सुज़ाल के ग्रैंड प्रिंस एंड्री बोगोलीबुस्की ने पुराने शहर और राजकुमार के हॉल को खंडहर में छोड़कर कीव को बर्खास्त कर दिया। उन्होंने धार्मिक कलाकृति के कई टुकड़े - व्लादिमीर आइकन के थियोटोकोस सहित - पास के विशोरोड से लिए।Janet Martin, Medieval Russia:980–1584, (Cambridge University Press, 1996), 100. 1203 में, राजकुमार रुरिक रोस्टिस्लाविच और उनके किपचक सहयोगियों ने कीव पर कब्जा कर लिया और जला दिया। 1230 के दशक में, विभिन्न रूसी राजकुमारों द्वारा शहर को कई बार घेर लिया गया और तबाह कर दिया गया। शहर इन हमलों से उबर नहीं पाया था, जब 1240 में, बाटू खान के नेतृत्व में रूस के मंगोल आक्रमण ने कीव के विनाश को पूरा किया।The Destruction of Kiev, University of Toronto Research Repositoryइन घटनाओं का शहर के भविष्य और पूर्वी स्लाव सभ्यता पर गहरा प्रभाव पड़ा। बोगोलीबुस्की की लूट से पहले, कीव की दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक के रूप में प्रतिष्ठा थी, जिसकी आबादी 12 वीं शताब्दी की शुरुआत में 100,000 से अधिक थी।1320 के दशक की शुरुआत में, ग्रैंड ड्यूक गेडिमिनस के नेतृत्व में एक लिथुआनियाई सेना ने इरपेन नदी पर लड़ाई में कीव के स्टानिस्लाव के नेतृत्व में एक स्लाव सेना को हराया और शहर पर विजय प्राप्त की। टाटर्स, जिन्होंने कीव पर भी दावा किया, ने 1324-1325 में जवाबी कार्रवाई की, इसलिए जबकि कीव पर लिथुआनियाई राजकुमार का शासन था, उसे गोल्डन होर्डे को श्रद्धांजलि देनी पड़ी। अंत में, 1362 में ब्लू वाटर्स की लड़ाई के परिणामस्वरूप, लिथुआनिया के ग्रैंड ड्यूक, अल्गिरदास ने कीव और आसपास के क्षेत्रों को लिथुआनिया के ग्रैंड डची में शामिल किया।Jones, Michael (2000). 1482 में, क्रीमियन टाटर्स ने कीव के अधिकांश हिस्से को तहस नहस कर दिया और जला दिया।Jerzy Lukowski, W. H. Zawadzki (2006). अंगूठाकार| कीव के शहर का 1686 का मानचित्र("किओविया")। 1569 ( ल्यूबेल्स्की संघ) के साथ, जब पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल की स्थापना हुई, कीव क्षेत्र ( पोडोलिया, वोल्हिनिया और पोडलाचिया ) की लिथुआनियाई-नियंत्रित भूमि को लिथुआनिया के ग्रैंड डची से राज्य के क्राउन में स्थानांतरित कर दिया गया। पोलैंड और कीव कीव वोइवोडीशिप की राजधानी बन गए Davies, Norman (1982). हादियाच की 1658 संधि ने पोलिश-लिथुआनियाई-रूथेनियन राष्ट्रमंडल केMagocsi, Paul Robert (1996). कीव को रूस के ग्रैंड डची की राजधानी बनने की परिकल्पना की थी, लेकिन संधि का यह प्रावधान कभी भी लागू नहीं हुआ।Т.Г. Таирова-Яковлева, Иван Выговский // Единорогъ. Материалы по военной истории Восточной Европы эпохи Средних веков и Раннего Нового времени, вып.1, М., 2009: Под влиянием польской общественности и сильного диктата Ватикана сейм в мае 1659 г. पेरेयास्लाव की 1654 की संधि के बाद से रूसी सैनिकों द्वारा कब्जा कर लिया गया, कीव 1667 से एंड्रसोवो के युद्धविराम के बाद रूस के साम्राज्य का हिस्सा बन गया और एक सीमा तक स्वायत्त भी बना रहा। कीव से संबंधित पोलिश-रूसी संधियों में से किसी की भी कभी पुष्टि नहीं की गई है।Eugeniusz Romer, O wschodniej granicy Polski z przed 1772 r., w: Księga Pamiątkowa ku czci Oswalda Balzera, t. रूसी साम्राज्य में, कीव एक प्राथमिक ईसाई केंद्र था, जो तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता था, और साम्राज्य के कई सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आंकड़ों का पालना था, लेकिन 19वीं शताब्दी तक, शहर का व्यावसायिक महत्व मामूली रहा।अंगूठाकार| पोलिश वर्चस्व के खिलाफ खमेलनित्सकी विद्रोह के बाद कीव में प्रवेश करने वाले कोसैक बोहदान खमेलनित्सकी । माइकोला-इवासिउक द्वारा चित्रकारी। 1834 में, रूसी सरकार ने सेंट व्लादिमीर विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसे अब यूक्रेनी कवि तारास शेवचेंको (1814-1861) के बाद कीव का तारास शेवचेंको राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कहा जाता है। (शेवचेंको ने भूगोल विभाग के लिए एक क्षेत्र शोधकर्ता और संपादक के रूप में काम किया)। सेंट व्लादिमीर विश्वविद्यालय के चिकित्सा संकाय, सोवियत काल के दौरान 1919-1921 में एक स्वतंत्र संस्थान में अलग हो गए, 1995 में बोगोमोलेट्स नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी बन गए।दाएँ|अंगूठाकार| 19वीं सदी के अंत में कीव 19वीं शताब्दी के अंत में रूसी औद्योगिक क्रांति के दौरान, कीव रूसी साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण व्यापार और परिवहन केंद्र बन गया, रेलवे और द्नीपर नदी पर चीनी और अनाज निर्यात में विशेषज्ञता हासिल की। 1900 तक, शहर 250,000 की आबादी वाला एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र भी बन गया था। उस अवधि के स्थलों में रेलवे बुनियादी ढांचा, कई शैक्षिक और सांस्कृतिक सुविधाओं की नींव, और उल्लेखनीय स्थापत्य स्मारक (ज्यादातर व्यापारी-उन्मुख) शामिल हैं। 1892 में, रूसी साम्राज्य की पहली इलेक्ट्रिक ट्राम लाइन कीव (दुनिया में तीसरी) में चलने लगी।कीव 19वीं सदी के अंत में रूसी साम्राज्य में औद्योगिक क्रांति के दौरान समृद्ध हुआ, जब यह साम्राज्य का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर और इसके दक्षिण-पश्चिम में वाणिज्य का प्रमुख केंद्र बन गया। 1917 की रूसी क्रांति के बाद की अशांत अवधि में, कीव एक के बाद आए कई यूक्रेनी राज्यों की राजधानी बना और कई संघर्षों के बीच में फंस गया: प्रथम विश्व युद्ध, जिसके दौरान जर्मन सैनिकों ने 2 मार्च 1918 से नवंबर 1918 तक इस पर कब्जा कर लिया, रूसी नागरिक 1917 से 1922 का युद्ध और 1919-1921 का पोलिश-सोवियत युद्ध। 1919 के अंतिम तीन महीनों के दौरान, कीव पर रुक-रुक कर श्वेत सेना का नियंत्रण रहा। 1918 के अंत से अगस्त 1920 तक कीव ने सोलह बार हाथ बदले।दाएँ|अंगूठाकार| 1930 में कीव के परिषद कक्ष 1921 से 1991 तक, शहर यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा बना, जो 1922 में सोवियत संघ का एक संस्थापक गणराज्य बन गया। युद्ध के बीच की अवधि के दौरान सोवियत यूक्रेन में हुई प्रमुख घटनाओं ने कीव को प्रभावित किया: 1920 के उक्रेनीकरण के साथ-साथ ग्रामीण उक्रेनोफोन आबादी के प्रवास ने रूसोफोन शहर को यूक्रेनी-भाषी बना दिया और शहर में यूक्रेनी सांस्कृतिक जीवन के विकास को बढ़ावा दिया; 1920 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुए सोवियत औद्योगीकरण ने शहर को एक प्रमुख औद्योगिक, तकनीकी और वैज्ञानिक केंद्र में बदल दिया, जो वाणिज्य और धर्म का एक पूर्व केंद्र था; 1932-1933 महान अकाल ने प्रवासी आबादी के उस हिस्से को तबाह कर दिया जो राशन कार्ड के लिए पंजीकृत नहीं थे; और जोसफ स्टालिन के 1937-1938 के महान शुद्धिकरण ने शहर के बुद्धिजीवियों को लगभग समाप्त कर दिया1934 में, कीव सोवियत यूक्रेन की राजधानी बना। सोवियत औद्योगीकरण के वर्षों के दौरान शहर में फिर से उछाल आया क्योंकि इसकी आबादी तेजी से बढ़ी और कई औद्योगिक दिग्गज स्थापित हुए, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं।बाएँ|अंगूठाकार|  द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कीव के खंडहर द्वितीय विश्व युद्ध में, शहर को फिर से महत्वपूर्ण क्षति हुई, और नाजी जर्मनी ने 19 सितंबर 1941 से 6 नवंबर 1943 तक इस पर कब्जा कर लिया। 1941 में कीव के महान घेराव युद्ध में धुरी बलों ने 600,000 से अधिक सोवियत सैनिकों को मार डाला या कब्जा कर लिया। पकड़े गए अधिकांश लोग कभी जीवित नहीं लौटे।Daniel Goldhagen, Hitler's Willing Executioners (p. 290) – "2.8 million young, healthy Soviet POWs" killed by the Germans, "mainly by starvation... in less than eight months" of 1941–42, before "the decimation of Soviet POWs... was stopped" and the Germans "began to use them as laborers". वेहरमाच के शहर पर कब्जा करने के कुछ ही समय बाद, एनकेवीडी अधिकारियों की एक टीम, जो छिपी हुई थी ने शहर की मुख्य सड़क, ख्रेशचैटिक पर अधिकांश इमारतों को डाइनामाइट से उडा दिया, जहां जर्मन सैन्य और नागरिक अधिकारियों ने अधिकांश इमारतों पर कब्जा कर लिया था; इमारतें दिनों तक जलती रहीं और 25,000 लोग बेघर हो गए।कथित तौर पर एनकेवीडी की कार्रवाइयों के जवाब में, जर्मनों ने उन सभी स्थानीय यहूदियों को घेर लिया, जो उन्हें मिल सकते थे, लगभग 34,000, और 29 और 30 सितंबर 1941 को कीव के बाबी यार में उनका नरसंहार किया। इसके बाद के महीनों में, हजारों और लोगों को बाबी यार ले जाया गया जहां उन्हें गोली मार दी गई। यह अनुमान लगाया गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनों ने बाबी यार में विभिन्न जातीय समूहों के 100,000 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी, जिनमें ज्यादातर नागरिक थे।दाएँ|अंगूठाकार| 24 जुलाई 1990 को पहली बार कीव के सिटी हॉल के बाहर यूक्रेनी राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। युद्ध के बाद के वर्षों में कीव आर्थिक रूप से ठीक होता गया और एक बार फिर सोवियत संघ का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर बन गया। 1986 में चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विनाशकारी दुर्घटना शहर के उत्तर में केवल हुई। हालांकि, उस समय दक्षिण की ओर चल रही हवा ने अधिकांश रेडियोधर्मी मलबे को कीव से दूर उड़ा दिया।सोवियत संघ के पतन के दौरान यूक्रेनी संसद ने 24 अगस्त 1991 को शहर में यूक्रेन की स्वतंत्रता की घोषणा की घोषणा की । 2004-2005 में, ऑरेंज क्रांति के समर्थन में, शहर में उस समय तक सोवियत संघ के बाद के सबसे बड़े सार्वजनिक प्रदर्शन हुए। नवंबर 2013 से फरवरी 2014 तक, केंद्रीय कीव यूरोमैदान का प्राथमिक स्थान बन गया। वातावरण भूगोल अंगूठाकार| एक कॉपरनिकस कार्यक्रम प्रहरी-2 कीव और नीपर की छवि भौगोलिक रूप से, कीव पोलेसिया वुडलैंड पारिस्थितिक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है, जो यूरोपीय मिश्रित जंगल क्षेत्र का एक हिस्सा है, और पूर्वी यूरोपीय वन स्टेपी बायोम है। हालांकि, शहर का अनूठा परिदृश्य इसे आसपास के क्षेत्र से अलग करता है। कीव पूरी तरह से कीव ओब्लास्ट से घिरा हुआ है।मूल रूप से पश्चिमी तट पर, आज कीव नीपर के दोनों किनारों पर स्थित है, जो शहर के बीच से काला सागर की ओर दक्षिण की ओर बहती है। शहर का पुराना और ऊँचा पश्चिमी भाग कई जंगली पहाड़ियों ( कीव हिल्स ) पर स्थित है, जिसमें खड्ड और छोटी नदियाँ हैं। कीव की भौगोलिक राहत ने पोडिल (निचला मतलब), पेचेर्सक (गुफाएं), और उज्विज़ (एक खड़ी सड़क, "वंश") जैसे इसके शीर्ष नामों में योगदान दिया। कीव, अपने मध्य-प्रवाह में नीपर के पश्चिमी तट से सटे बड़े नीपर अपलैंड का एक हिस्सा है, और जो शहर के उन्नयन परिवर्तन में योगदान देता है।शहर के भीतर नीपर नदी शहर की सीमा के भीतर सहायक नदियों, द्वीपों और बंदरगाहों की एक शाखा प्रणाली बनाती है। यह शहर उत्तर में देसना नदी के मुहाने और कीव जलाशय और दक्षिण में कानिव जलाशय के करीब है। नीपर और डेसना दोनों नदियाँ कीव में नौगम्य हैं, हालाँकि जलाशय शिपिंग तालों द्वारा विनियमित और सर्दियों के फ़्रीज़-ओवर द्वारा सीमित हैं।कुल मिलाकर, कीव की सीमाओं के भीतर खुले पानी के 448 निकाय हैं, जिनमें स्वयं नीपर, इसके जलाशय और कई छोटी नदियाँ, दर्जनों झीलें और कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाब शामिल हैं। वे 7949 हेक्टेयर पर स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, शहर में 16 विकसित समुद्र तट (कुल 140 हेक्टेयर) और 35 निकट-जल मनोरंजन क्षेत्र (1,000 हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल) हैं। कई का उपयोग आनंद और मनोरंजन के लिए किया जाता है, हालांकि पानी के कुछ निकाय तैरने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।संयुक्त राष्ट्र 2011 के मूल्यांकन के अनुसार, कीव और उसके महानगरीय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं का कोई जोखिम नहीं था। जलवायु कानूनी स्थिति, स्थानीय सरकार और राजनीति कानूनी स्थिति और स्थानीय सरकार कीव शहर की नगर पालिका को देश के अन्य प्रशासनिक उपखंडों की तुलना में यूक्रेन के भीतर एक विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त है। सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि शहर को यूक्रेन का एक क्षेत्र माना जाता है (यूक्रेन के क्षेत्र देखें)। यह एकमात्र ऐसा शहर है जिसका दोहरा अधिकार क्षेत्र है। सिटी स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख - शहर के गवर्नर - को यूक्रेन के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जबकि सिटी काउंसिल के प्रमुख - कीव के मेयर - को स्थानीय लोकप्रिय वोट द्वारा चुना जाता है।कीव के मेयर विटाली क्लिट्स्को हैं, जिन्होंने 5 जून 2014 को शपथ ली थी,Vitali Klitschko sworn in as mayor of Kyiv, Interfax-Ukraine (5 June 2014) जब उन्होंने 25 मई 2014 को कीव के मेयर के चुनाव में लगभग 57% मतों के साथ जीत हासिल की थी।Klitschko officially announced as winner of Kyiv mayor election, Interfax-Ukraine (4 June 2014) 25 जून 2014 से, क्लिट्स्को कीव सिटी एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख भी हैं।Poroshenko appoints Klitschko head of Kyiv city administration – decree, Interfax-Ukraine (25 June 2014)Poroshenko orders Klitschko to bring title of best European capital back to Kyiv, Interfax-Ukraine (25 June 2014) क्लिट्स्को को आखिरी बार 2020 कीव स्थानीय चुनाव में 50.52% वोटों के साथ चुनाव के पहले दौर में फिर से चुना गया था।Vitali Klitschko wins in first round of Kyiv mayor election, Ukrinform (6 November 2020)राष्ट्रीय सरकार की अधिकांश प्रमुख इमारतें ह्रुशेवस्कोहो गली (वुलिट्सिया मायखाइला ह्रुशेवस्कोहो) और इंस्टीट्यूट गली (वुलिट्सिया इंस्टिटुत्स्का) के साथ स्थित हैं। ह्रुशेवस्कोहो गली का नाम यूक्रेनी शिक्षाविद, राजनेता, इतिहासकार और राजनेता मायखाइलो ह्रुशेव्स्की के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने बार, यूक्रेन के इतिहास के बारे में "बार स्टारोस्टो: ऐतिहासिक नोट्स: XV-XVIII" नामक एक अकादमिक पुस्तक लिखी है। शहर के उस हिस्से को अनौपचारिक रूप से सरकारी तिमाही के रूप में भी जाना जाता है ( )शहर राज्य प्रशासन और परिषद ख्रेशचैटिक स्ट्रीट पर कीव नगर परिषद भवन में स्थित है। ओब्लास्ट राज्य प्रशासन और परिषद प्लोशा लेसी उक्रेयंकी (लेसिया उक्रेयंका स्क्वायर) पर कीव ओब्लास्ट परिषद भवन में स्थित है। कीव-स्विआतोशिन रायन राज्य प्रशासन प्रॉस्पेक्ट पेरेमोही (विजय पार्कवे) पर किल्टसेवा दोरोहा (रिंग रोड) के पास स्थित है, जबकि कीव-सिवातोशिन रायन स्थानीय परिषद वुलित्सिया यंतर्ना (यंतरनया स्ट्रीट) पर स्थित है। राजनीति शहर की बढ़ती राजनीतिक और आर्थिक भूमिका, इसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ-साथ व्यापक इंटरनेट और सोशल नेटवर्क पैठ के साथ, ने कीव को यूक्रेन का सबसे बड़ा पश्चिमी और लोकतंत्र समर्थक क्षेत्र बना दिया है; (तथाकथित) यूरोपीय संघ के साथ कड़े एकीकरण की वकालत करने वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टियों को कीव में चुनावों के दौरान सबसे अधिक वोट प्राप्त होते हैं। फरवरी 2014 की पहली छमाही में कीव इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशियोलॉजी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, कीव में मतदान करने वालों में से 5.3% का मानना था कि "यूक्रेन और रूस को एक ही राज्य में एकजुट होना चाहिए", पूरे राष्ट्र में यह प्रतिशत 12.5 था।How relations between Ukraine and Russia should look like? उप विभाजन अंगूठाकार| कीव के बाएं किनारे के पड़ोस का एक दृश्य पारंपरिक उपखंड अंगूठाकार| द्निप्रो रायोन में बेरेज़्नियाकी पड़ोस नीपर नदी स्वाभाविक रूप से कीव को दाएँ किनारे और बाएँ किनारे के क्षेत्रों में विभाजित करती है। ऐतिहासिक रूप से नदी के पश्चिमी दाहिने किनारे पर स्थित, शहर का विस्तार केवल 20 वीं शताब्दी में बाएं किनारे में हुआ। कीव के अधिकांश आकर्षण के साथ-साथ अधिकांश व्यावसायिक और सरकारी संस्थान दाहिने किनारे पर स्थित हैं। पूर्वी "वाम बैंक" मुख्य रूप से आवासीय है। दाएँ किनारे और बाएँ किनारे दोनों में बड़े औद्योगिक और हरित क्षेत्र हैं।कीव को अनौपचारिक रूप से ऐतिहासिक या क्षेत्रीय पड़ोस में विभाजित किया गया है, प्रत्येक आवास में लगभग 5,000 से 100,000 निवासी हैं। औपचारिक उपखंड अंगूठाकार|280x280पिक्सेल| कीव के दस रियोन (जिलों) : जनसांख्यिकी आधिकारिक पंजीकरण आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2013 में कीव शहर की सीमा के भीतर 2,847,200 निवासी थे। ऐतिहासिक जनसंख्या अखिल-यूक्रेनी जनगणना के अनुसार, 2001 में कीव की जनसंख्या 2,611,300 थी। जनसंख्या में हुए ऐतिहासिक परिवर्तनों को बगल की सारणी में दिखाया गया है। जनगणना के अनुसार, कुछ 1,393,000 (53.3%) महिलाएं थीं और 1,219,000 (46.7%) पुरुष थे। पिछली जनगणना (1989) के साथ परिणामों की तुलना करने से जनसंख्या की उम्र बढ़ने की प्रवृत्ति का पता चलता है, जो कि पूरे देश में प्रचलित है, लेकिन कीव में कामकाजी उम्र के प्रवासियों की आमद से आंशिक रूप से ऑफसेट है। कुछ 1,069,700 लोगों ने उच्च या पूर्ण माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की, 1989 के बाद से 21.7% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।शहर में बेचे जाने वाले बेकरी उत्पादों की मात्रा के आधार पर जून 2007 के अनौपचारिक जनसंख्या अनुमान (इस प्रकार अस्थायी आगंतुकों और यात्रियों सहित) ने कम से कम 3.5 लाख लोगों की संख्या दी। जातीय संरचना 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, कीव के क्षेत्र में 130 से अधिक राष्ट्रीयताएं और जातीय समूह रहते हैं। यूक्रेनियन कीव में सबसे बड़े जातीय समूह का गठन करते हैं, और वे 2,110,800 लोगों, या 82.2% आबादी के लिए जिम्मेदार हैं। रूसियों में 337,300 (13.1%), यहूदी 17,900 (0.7%), बेलारूसवासी 16,500 (0.6%), पोल 6,900 (0.3%), अर्मेनियाई 4,900 (0.2%), अजरबैजान 2,600 (0.1%), टाटार 2,500 (0.1%) शामिल हैं। जॉर्जियाई 2,400 (0.1%), मोल्दोवन 1,900 (0.1%)।इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट के 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि कीव का 94% जातीय यूक्रेनी था, और 5% जातीय रूसी था। शहर की अधिकांश गैर-स्लाव आबादी में टाटार, कोकेशियान और पूर्व सोवियत संघ के अन्य लोग शामिल हैं। भाषा सांख्यिकी यूक्रेनी और रूसी दोनों आमतौर पर शहर में बोली जाती हैं; कीव की आबादी के लगभग 75% ने अपनी मूल भाषा पर 2001 की जनगणना के सवाल पर "यूक्रेनी" का जवाब दिया, लगभग 25% ने "रूसी" का जवाब दिया। 2006 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, कीवंस के 23% लोग यूक्रेनियन का उपयोग करते हैं, 52% रूसी का उपयोग करते हैं, और 24% दोनों के बीच स्विच करते हैं।"Kiev: the city, its residents, problems of today, wishes for tomorrow", Zerkalo Nedeli, 29 April – 12 May 2006. in Russian . 2003 के समाजशास्त्रीय सर्वेक्षण में, जब प्रश्न "रोजमर्रा की जिंदगी में आप किस भाषा का उपयोग करते हैं?" पूछा गया, 52% ने कहा "ज्यादातर रूसी", 32% "रूसी और यूक्रेनी दोनों समान माप में", 14% "ज्यादातर यूक्रेनी", और 4.3% "विशेष रूप से यूक्रेनी"।1897 की जनगणना के अनुसार, कीव के लगभग 240,000 लोगों में से लगभग 56% लोग रूसी भाषा बोलते थे, 23% यूक्रेनी भाषा बोलते थे, 13% यहूदी बोलते थे, 7% पोलिश बोलते थे और 1% बेलारूसी भाषा बोलते थे।Первая всеобщая перепись населения Российской Империи 1897 г. Распределение населения по родному языку и уездам. г. Киев (in Russian).इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट द्वारा 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि कीव में घर पर बोली जाने वाली भाषाएं यूक्रेनी (27%), रूसी (32%) और यूक्रेनी और रूसी (40%) का एक समान संयोजन थीं। यहूदी कीव के यहूदियों का पहली बार 10वीं शताब्दी के एक पत्र में उल्लेख किया गया है। उन्नीसवीं सदी तक यहूदी आबादी अपेक्षाकृत कम रही। पोग्रोम्स की एक श्रृंखला 1882 में और दूसरी 1905 में की गई थी। प्रथम विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर, शहर की यहूदी आबादी 81,000 से अधिक थी। 1939 में कीव में लगभग 224,000 यहूदी थे, जिनमें से कुछ जून 1941 में शुरू हुए सोवियत संघ के जर्मन आक्रमण से पहले शहर छोड़कर भाग गए थे। 29 और 30 सितंबर 1941 को, जर्मन वेहरमाच, एसएस, यूक्रेनी सहायक पुलिस और स्थानीय सहयोगियों द्वारा बाबी यार में लगभग 34,000 कीवान यहूदियों का नरसंहार किया गया था।युद्ध के अंत में यहूदियों ने कीव लौटना शुरू किया, लेकिन सितंबर 1945 में एक और नरसंहार का अनुभव किया। 21वीं सदी में, कीव के यहूदी समुदाय की संख्या लगभग 20,000 है। शहर में दो प्रमुख आराधनालय हैं: ग्रेट कोरल सिनेगॉग और ब्रोडस्की कोरल सिनेगॉग। नगर दृश्य आधुनिक कीव पुराने का मिश्रण है।Forgotten Soviet Plans For Kyiv , कीव पोस्ट (28 जुलाई 2011) कीव ने 1907-1914 के दौरान निर्मित 1,000 से अधिक इमारतों का लगभग 70 प्रतिशत संरक्षित किया और वास्तुकला से लेकर दुकानों और स्वयं लोगों तक हर चीज को नए रूप में देखा गया। जब यूक्रेनी एसएसआर की राजधानी को खार्किव से कीव में स्थानांतरित किया गया था, तो शहर को "एक राजधानी की चमक और पॉलिश" देने के लिए कई नई इमारतों को चालू किया गया था। शोकेस सिटी सेंटर बनाने के तरीके पर केंद्रित चर्चाओं में, ख्रेशचैटिक और मैदान नेज़ालेज़्नोस्ती (इंडिपेंडेंस स्क्वायर) का वर्तमान शहर केंद्र स्पष्ट विकल्प नहीं थे। कुछ शुरुआती, अंततः भौतिक नहीं, विचारों में पेचेर्सक, लिप्की, यूरोपीय स्क्वायर और मायखाइलिवस्का स्क्वायर का एक हिस्सा शामिल था। संबंधित शहर कीव इन शहरों से जुड़ा हुआ है: अंकारा, तुर्की (1993) अश्क़ाबाद, तुर्कमेनिस्तान (2001) एथेंस, यूनान (1996) बाकू, अज़रबैजान (1997) बीजिंग, चीन (1993) बिश्केक, किर्गिज़स्तान (1997) ब्रासीलिया, ब्राज़ील (2000) ब्रातिस्लावा, स्लोवाकिया (1969) ब्रसेल्स, बेल्जियम (1997) ब्यूनस आयर्स, आर्जेंटिना (2000) शिकागो, संयुक्त राज्य (1991) चिसिनाऊ, मोल्डोवा (1993) एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड (1989) फ्लोरेंस, इटली (1967) हवाना, क्यूबा (1994) जकार्ता, इंडोनिशिया (2005) क्राकौ, पोलैंड (1993) क्योटो, जापान (1971) लीप्ज़िक, जर्मनी (1956) लीमा, पेरू (2005) मेक्सिको शहर, मेक्सिका (1997) म्यूनिख, जर्मनी (1989) नूर-सुल्तान, कज़ाकिस्तान (1998) ओडेंस, डेनमार्क (1989) ओश, किरगिज़स्तान (2002) प्रिटोरिया, दक्षिण अफ्रीका (1993) रीगा, लैटविया (1998) रियो डि जेनेरो, ब्राज़ील (2000) सैंटियागो, चिली (1998) सोफ़िया, बुल्गारिया (1997) सूझो, चीन (2005) ताल्लिन, एस्टोनिया (1994) टामपेरे, फ़िनलैंड (1954) ताशकंद, उज़्बेकिस्तान (1998) तिब्लिसी, जोर्जिया (1999) तोलोस, फ्रांस (1975) विलनियस, लिथुआनिया (1991) वारसॉ, पोलैंड (1994) वूहान, चीन (1990) इन्हें भी देखें सन्दर्भ श्रेणी:युक्रेन के शहर श्रेणी:युक्रेन श्रेणी:यूरोप में राजधानियाँ
मोज़ाम्बीक
https://hi.wikipedia.org/wiki/मोज़ाम्बीक
मोज़ाम्बीक (अंग्रेजी: Mozambique, पुर्तगाली: Moçambique) दक्षिणपूर्वी अफ़्रीका में स्थित एक देश है जो पूर्व में हिन्द महासागर से, उत्तर में तंज़ानिया से, पश्चिमोत्तर में मालावी और ज़ाम्बिया से. पश्चिम में ज़िम्बाब्वे से और दक्षिण में स्वाज़ीलैंड और दक्षिण अफ़्रीका से बंधा हुआ है। पहली से पांचवी सदी ईसवी में यहाँ उत्तर और पश्चिम से बांटू-भाषी लोग आ बसे, जिसके बाद स्वाहिली-भाषी और फिर अरब लोगों का प्रभाव रहा। सन् १४९८ में पुर्तगाली खोजयात्री वास्को दा गामा जो अपनी नौकाएँ लेकर भारत जा रहा था रास्ते में यहाँ आ धमका। १५०५ में पुर्तगाल ने मोज़ाम्बीक पर अपना राज घोषित कर दिया और मोज़ाम्बीक उसका उपनिवेश (कोलोनी) बन गया। पुर्तगाली ज़माने में बहुत से भारतीय मूल के लोग भी मोज़ाम्बीक जा बसे और वे २००७ में आबादी का ०.०८% थे। १९७५ में मोज़ाम्बीक आज़ाद हुआ। १९७७ से १९९२ में यहाँ एक ज़बरदस्त गृह युद्ध चला। इन्हें भी देखें दक्षिण अफ़्रीका सन्दर्भ श्रेणी:मोज़ाम्बीक श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:भूतपूर्व पुर्तगाली उपनिवेश श्रेणी:१९७५ में स्थापित देश या क्षेत्र श्रेणी:पुर्तगाली-भाषी देश व क्षेत्र
अंबानी परिवार
https://hi.wikipedia.org/wiki/अंबानी_परिवार
अंबानी परिवार भारत का एक औद्योगिक घराना है। धीरूभाई अंबानी द्वारा छोटे स्तर पर शुरु किया गयी एक कंपनी भारत और एशिया के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में से है। तेल, टेलीकाम से ले कर बहुत से क्षेत्रों में इस परिवार का दबदबा है। आजकल धीरूभाई के बेटों अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी में चल रहे पारिवारिक विवाद के कारण यह परिवार विवाद और चर्चा का विषय बना | अम्बानी परिवार के व्यवसाय देश की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर मुकेश अंबानी देश के सबसे अमीर बिजनेसमैन हैं। 19 अप्रैल को उन्होंने 59वां बर्थडे मनाया। मुकेश अंबानी ने 1981 में रिलायंस का काम संभाला और रिलायंस इंडस्ट्रीज को नए मुकाम तक पहुंचाया। दुनिया की सबसे बड़ी पेट्रोलियम रिफायनरी बनाई... श्रेणी:भारतीय परिवार
ऍच॰ डी॰ देवगौड़ा
https://hi.wikipedia.org/wiki/ऍच॰_डी॰_देवगौड़ा
अनुप्रेषित एच॰ डी॰ देवगौड़ा
चेरापूँजी
https://hi.wikipedia.org/wiki/चेरापूँजी
पुनर्प्रेषित चेरापूंजी
खासी
https://hi.wikipedia.org/wiki/खासी
खासी (या खासिया, या खासा) एक जनजाति है जो भारत के मेघालय, असम तथा बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करते हैं। ये खासी तथा जयंतिया की पहाड़ियों में रहनेवाली एक मातृकुलमूलक जनजाति है। इनका रंग काला मिश्रित पीला, नाक चपटी, मुँह चौड़ा तथा सुघड़ होता है। ये लोग हृष्टपुष्ट और स्वभावत: परिश्रमी होते हैं। स्त्री तथा पुरुष दोनों सिर पर बड़े बड़े बाल रखते हैं, निर्धन लोग सिर मुँडवा लेते हैं। परिचय खासियों की विशेषता उनका मातृमूलक परिवार है। विवाह होने पर पति ससुराल में रहता है। परंपरानुसार पुरूष की विवाहपूर्व कमाई पर मातृपरिवार का और विवाहोत्तर कमाई पर पत्नीपरिवार का अधिकार होता है। वंशावली नारी से चलती है और सम्पत्ति की स्वामिनी भी वही है। संयुक्त परिवार की संरक्षिका कनिष्ठ पुत्री होती है। समुदाय के लोग बताते हैं कि प्राचीन समय में पुरुष युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से दूर रहते थे। ऐसे में परिवार और समाज की देखरेख का जिम्मा महिलाएं संभालती थीं। तभी से यहां महिला प्रधान सिस्टम का चलन है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि खासी समुदाय में पहले महिलाएं बहुविवाह करती थीं। इसलिए बच्चे का सरनेम उसे जन्म देने वाली मां के नाम पर ही रख दिया जाता था। अब कुछ खासिए शिलांग आदि में संयुक्त परिवार से अलग व्यापार, नौकरी आदि कृषितर वृत्ति भी करने लगे हैं। परंपरागत पारिवारिक जायदाद बेचना निषिद्ध है। विवाह के लिए कोई विशेष रस्म नहीं है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर युवक ससुराल में आना जाना शुरू कर देता है और संतान होते ही वह स्थायी रूप से वहीं रहने लगता है। संबंधविच्छेद भी अक्सर सरलतापूर्वक होते रहते हैं। संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता। खासियों में ईश्वर की कल्पना होते हुए भी केवल उपदेवताओं की पूजा होती है। कुछ खासियों ने काली और महादेव जैसे हिन्दू देवदेवियों को अपना लिया है। रोग होने पर ये लोग ओषधि का उपयोग न कर संबंधित देवता को बलि द्वारा प्रसन्न करते हैं। शव का दाह किया जाता है और मृत्यु के तुरन्त बाद काग की और कभी कभी बैल या गाय की भी बलि दी जाती है। मृत्युपरांत महीनों तक कर्मकांड का सिलसिला चलता रहता है और अन्त में अवश्ष्टि अस्थियों को परिवार-समाधिशाला में रखते समय बैल की बलि दी जाती है और इस अवसर पर तीन चार दिन तक नृत्यगान तथा दावतें होती हैं। खासियों का विश्वास है कि जिनका अन्त्येष्टि संस्कार विधिवत् सम्पन्न होता है उनकी आत्माएँ ईश्वर के उद्यान में निवास करती हैं, अन्यथा पशु-पक्षी बनकर पृथ्वी पर घूमती हैं। right|thumb|300px|खासी बच्चे (१९४४) right|thumb|300px|खासी पुरुष पारम्परिक नृत्य (Shad Suk Mysiem) करते हुए right|thumb|300px|खासी परिवेश (सिलहट, बांग्लादेश) खासिया खेतिहर हैं और धान के अतिरिक्त नारंगी, पान तथा सुपारी का उत्पादन करते हैं। ये लोग कपड़ा बुनना बिलकुल नहीं जानते और एतत्संबंधी आवश्यकता बाहर से पूरी करते है। खासिया अनेकानेक शाखाओं में विभक्त हैं। खासी, सिंतेंग, वार और लिंग्गम, उनकी चार मुख्य शाखाएँ हैं। इनके बीच परस्पर विवाहसंबंध होता है। केवल अपने कुल या कबीले में विवाहसंबंध निषिद्ध है। प्रत्येक कबीले में राजवंश, पुरोहित, मन्त्री तथा जन सामान्य ये चार श्रेणियाँ हैं। किंतु वार शाखा में विशिष्ट सामाजिक श्रेणियाँ नहीं हैं। कबीले के सरदार या मन्त्री संबंधित विशिष्ट श्रेणी के सदस्य ही बन सकते हैं। एक कबीले में स्त्री ही सर्वोच्च शासक होती है और वह अपने पुत्र अथवा भांजे को लिंगडोह (मुख्य मन्त्री) बनाकर उसके द्वारा शासन करती है। खासी समुदाय की परंपरागत बैठक, जिन्हें दरबार कहा जाता है, उनमें महिलाएं शामिल नहीं होतीं। इनमें केवल पुरुष सदस्य होते हैं, जो समाज से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हें और जरूरी फैसले लेते हैं। अनेक खासियों ने पिछले डेढ़-दो सौ वर्ष में ईसाई धर्म ईसाई तथा हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया है, फिर भी विभिन्न मतावलंबी एक ही परिवार के सदस्य हैं। शिलांग खासियों के क्षेत्र में स्थित है; फलत: खासियों पर बाहरी संस्कृति तथा आधुनिक सभ्यता का बराबर प्रभाव पड़ रहा हैं। अब अनेक खासिए व्यापार तथा नौकरी और कुछ पढ़ लिखकर अध्यापकी एवं वकालत जैसे पेशे भी करने लगे हैं। इन्हें भी देखें खासी भाषा सेंग खासी सन्दर्भ श्रेणी:भारत की जनजातियाँ
पंचकुला
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पंचकुला (Panchkula) भारत के हरियाणा राज्य के पंचकुला ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और चण्डीगढ़ के शहरी क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है।"General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018"Haryana: Past and Present ," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468"Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859 नामोत्पत्ति पंचकुला शब्द संस्कृत से लिया गया है पंच (संस्कृत: पंच) (पांच) और कुला (संस्कृत: कुला) (नहरों) जिसका मतलब है "5 नहरों का शहर"। विवरण इस शहर की स्थापना 15 अगस्त 1995 को करी गई थी। चण्डीगढ़ की तरह, पंचकुला भी एक नियोजित शहर है। शहर मे मौरनी की पहाड़िया हैं , जिसकी सबसे उची चोटी 1,514 मीटर ऊँची करोह है। इसका कुछ भाग वनों से ढका है और पास में रैतान वन्य जीव अभ्यारण तथा 1975 में स्थापित बीर शिकारगढ वन्य जीव अभ्यारण स्थित हैं। पंचकुला मे पालतु पशु चिकित्सा केन्द्र है। यहाँ गिर प्रजनन केन्द्र (1992-93) और गिद्द प्रजनन केन्द्र (2006) हैं। पंचकुला में योग व प्राकृतिक चिकीत्सा केन्द्र भी हैं। प्रसिद्ध सुखना झील और टिकरताल झील पंचकुला में हैं। इन्हें भी देखें पंचकुला ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:हरियाणा के शहर श्रेणी:पंचकुला ज़िला श्रेणी:भारत में नियोजित नगर श्रेणी:पंचकुला ज़िले के नगर *
सानिया मिर्जा
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जूलिया राबर्ट्स
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जूलिया फियोना रॉबर्ट्स(जन्म 28 अक्टूबर, 1967) एक अमेरिकी अभिनेत्री हैं। हॉलीवुड के सबसे बैंक योग्य सितारों में से एक , वह रोमांटिक कॉमेडी और ड्रामा से लेकर थ्रिलर और एक्शन फिल्मों तक कई शैलियों की फिल्मों में अपनी प्रमुख भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं। उनकी कई फिल्मों ने दुनिया भर में $ 100 मिलियन से अधिक की कमाई की है, और छह ने अपने संबंधित वर्षों की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में स्थान दिया है। उनकी टॉप चारटेडफिल्मोंने सामूहिक रूप से वैश्विक स्तर पर 3.8 बिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की है। उन्हें एक अकादमी पुरस्कार , एक ब्रिटिश अकादमी फिल्म पुरस्कार और तीन गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों सहित कई पुरस्कार मिले ह मिस्टिक पिज़्ज़ा (1988) और स्टील मैगनोलियास (1989) में उपस्थिति के साथ एक प्रारंभिक सफलता के बाद , रॉबर्ट्स ने रोमांटिक कॉमेडी प्रिटी वुमन (1990) में खुद को एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया , जिसने दुनिया भर में $464 मिलियन की कमाई की। उन्होंने कई सफल फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें स्लीपिंग विद द एनिमी (1991), हुक (1991), द पेलिकन ब्रीफ (1993), माई बेस्ट फ्रेंड्स वेडिंग (1997), नॉटिंग हिल (1999), रनवे ब्राइड (1999) शामिल हैं। , एरिन ब्रोकोविच (2000), ओशन इलेवन (2001), ओशन्स ट्वेल्व (2004), चार्ली विल्सन्स वॉर (2007), वेलेंटाइन डे (2010), ईट प्रेयर लव (2010), अगस्त: ओसेज काउंटी (2013), और वंडर (2017)। एरिन ब्रोकोविच में उनके प्रदर्शन के लिए, रॉबर्ट्स ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अकादमी पुरस्कार जीता । उन्हें एचबीओ टेलीविजन फिल्म द नॉर्मल हार्ट (2014) में उनके प्रदर्शन के लिए प्राइमटाइम एमी अवार्ड नामांकन मिला और अमेज़ॅन प्राइम वीडियो मनोवैज्ञानिक थ्रिलर श्रृंखला होमकमिंग (2018) के पहले सीज़न में उनकी पहली नियमित टेलीविजन भूमिका थी 1990 के दशक के अधिकांश समय, और साथ ही 2000 के दशक के पूर्वार्ध में रॉबर्ट्स दुनिया की सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्री थीं। प्रिटी वुमन (1990) के लिए उनकी फीस $300,000 थी, जबकि उन्हें मोना लिसा स्माइल (2003) में उनकी भूमिका के लिए अभूतपूर्व $25 मिलियन का भुगतान किया गया था । 2020 तक , रॉबर्ट्स की कुल संपत्ति $250 मिलियन आंकी गई थी। पीपल मैगजीन ने उन्हें रिकॉर्ड पांच बार दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला का खिताब दिया है। प्रारंभिक जीवन और परिवार रॉबर्ट्स का जन्म 28 अक्टूबर 1967 को अटलांटा के एक उपनगर जॉर्जिया के स्मिर्ना में हुआ था , और वाल्टर ग्रेडी रॉबर्ट्स के यहाँ। वह अंग्रेजी, स्कॉटिश, आयरिश, वेल्श, जर्मन और स्वीडिश मूल की हैं। उसके पिता एक बैपटिस्ट थे, उसकी माँ एक कैथोलिक, और उसकी परवरिश कैथोलिक थी। उनके बड़े भाई एरिक रॉबर्ट्स (जन्म 1956), जिनसे वह 2004 तक कई वर्षों तक अलग रहीं, बड़ी बहन लिसा रॉबर्ट्स गिलन (जन्म 1965), और भतीजी एम्मा रॉबर्ट्स , अभिनेता भी हैं। उसकी एक छोटी सौतेली बहन भी थी जिसका नाम नैन्सी मोट्स था। रॉबर्ट्स के माता-पिता, एक बार के अभिनेता और नाटककार, सशस्त्र बलों के लिए नाट्य प्रस्तुतियों में प्रदर्शन करते हुए मिले। बाद में उन्होंने अटलांटा में अटलांटा एक्टर्स एंड राइटर्स वर्कशॉप की सह-स्थापना की , मिडटाउन में जुनिपर स्ट्रीट से दूर। वे जॉर्जिया के डेकाटुर में बच्चों का एक्टिंग स्कूल चलाते थे, जबकि वे जूलिया की उम्मीद कर रहे थे। कोरेटा और मार्टिन लूथर किंग जूनियर के बच्चे स्कूल में पढ़ते थे; वाल्टर रॉबर्ट्स ने अपनी बेटी योलान्डा के लिए अभिनय कोच के रूप में काम किया । उनकी सेवा के लिए धन्यवाद के रूप में, श्रीमती किंग ने श्रीमती रॉबर्ट्स के अस्पताल के बिल का भुगतान किया जब जूलिया का जन्म हुआ। उसके माता-पिता ने 1955 में शादी की। उसकी माँ ने 1971 में तलाक के लिए अर्जी दी; 1972 की शुरुआत में तलाक को अंतिम रूप दे दिया गया था। 1972 से, रॉबर्ट्स स्मिर्ना, जॉर्जिया में रहती थीं, जहाँ उन्होंने फ़ित्ज़ुग ली एलीमेंट्री स्कूल, ग्रिफिन मिडिल स्कूल और कैंपबेल हाई स्कूल में पढ़ाई की। 1972 में, उनकी मां ने माइकल मोट्स से शादी की, जो गाली गलौच और अक्सर बेरोजगार थे; रॉबर्ट्स ने उसका तिरस्कार किया। दंपति की एक बेटी, नैन्सी थी, जिसकी 9 फरवरी 2014 को 37 वर्ष की उम्र में एक स्पष्ट ड्रग ओवरडोज से मृत्यु हो गई थी। शादी 1983 में समाप्त हुई, जिसमें बेट्टी लू ने मोट्स को क्रूरता के आधार पर तलाक दे दिया; उसने कहा था कि उससे शादी करना उसके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। रॉबर्ट्स के अपने पिता की कैंसर से मृत्यु हो गई जब वह दस वर्ष की थीं। रॉबर्ट्स बचपन में पशु चिकित्सक बनना चाहती थी। उसने अपने स्कूल बैंड में शहनाई भी बजायी । स्मिर्ना के कैंपबेल हाई स्कूल से स्नातक होने के बाद , उन्होंने जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, लेकिन स्नातक नहीं किया। बाद में वह अभिनय में अपना करियर बनाने के लिए न्यूयॉर्क शहर चली गईं। एक बार वहाँ, उसने क्लिक मॉडलिंग एजेंसी के साथ हस्ताक्षर किए और अभिनय कक्षाओं में दाखिला लिया। कॅरिअर प्रारंभिक कार्य और सफलता (1987-1989) 13 फरवरी, 1987 को प्रसारित एपिसोड "द सर्वाइवर" में डेनिस फ़रीना के साथ, क्राइम स्टोरी श्रृंखला के पहले सीज़न में एक किशोर बलात्कार पीड़िता के रूप में अपनी पहली टेलीविज़न उपस्थिति के बाद , रॉबर्ट्स ने एक उपस्थिति के साथ बड़े पर्दे पर अपनी शुरुआत की। ड्रामेडी सैटिस्फैक्शन (1988), लियाम नीसन और जस्टिन बेटमैन के साथ, एक बैंड के सदस्य के रूप में काम किया। उन्होंने पहले ब्लड रेड में अपने भाई एरिक के साथ एक छोटी सी भूमिका निभाई थी , हालांकि उनके पास संवाद के केवल दो शब्द थे, जिन्हें 1987 में फिल्माया गया था, हालांकि इसे 1989 तक रिलीज़ नहीं किया गया था। 1988 में, रॉबर्ट्स की चौथे सीज़न के समापन में भूमिका थी। मियामी वाइस . का और फिल्म देखने वालों के साथ उनकी पहली महत्वपूर्ण सफलता स्वतंत्र रोमांटिक कॉमेडी मिस्टिक पिज्जा के साथ आई , जिसमें उन्होंने एक पिज्जा पार्लर में वेट्रेस के रूप में काम करने वाली एक पुर्तगाली-अमेरिकी किशोर लड़की की भूमिका निभाई। रोजर एबर्ट ने रॉबर्ट्स को " प्रमुख सुंदरता" के रूप में पाया और देखा कि फिल्म "किसी दिन उन फिल्म सितारों के लिए जानी जा सकती है जो इसे स्टार बनने से पहले वापस दिखाए गए थे। इस फिल्म के सभी युवा अभिनेताओं के पास वास्तविक उपहार हैं"। रॉबर्ट हार्लिंग के 1987 के इसी नाम के नाटक का फिल्म रूपांतरण स्टील मैगनोलियास (1989) में , रॉबर्ट्स ने सैली फील्ड , डॉली पार्टन , शर्ली मैकलेन और डेरिल हन्ना के साथ मधुमेह से पीड़ित एक युवा दुल्हन के रूप में अभिनय किया । फिल्म निर्माता लौरा डर्न और विनोना राइडर दोनों को देख रहे थे, जब कास्टिंग निर्देशक ने जोर देकर कहा कि उन्होंने रॉबर्ट्स को देखा, जो उस समय मिस्टिक पिज्जा का फिल्मांकन कर रहे थे । हार्लिंग ने कहा: "वह कमरे में चली गई और उस मुस्कान ने सब कुछ रोशन कर दिया और मैंने कहा 'वह मेरी बहन है', इसलिए वह पार्टी में शामिल हुई और वह शानदार थी"। निर्देशक हर्बर्ट रॉस नवागंतुक रॉबर्ट्स पर बेहद सख्त थे, सैली फील्ड ने स्वीकार किया कि वह "जूलिया के पीछे एक प्रतिशोध के साथ गए थे। यह उनकी पहली बड़ी फिल्म थी"। फिर भी, जब यह फिल्म रिलीज़ हुई, तब यह एक आलोचनात्मक और व्यावसायिक प्रिय थी, और रॉबर्ट्स को अपना पहला अकादमी पुरस्कार नामांकन ( सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में ) और पहला गोल्डन ग्लोब पुरस्कार ( मोशन पिक्चर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री ) के लिए मिला। विश्वव्यापी मान्यता (1990-1999) अपने 1989 के अकादमी पुरस्कार नामांकन पर कैटापल्टिंग करते हुए, रॉबर्ट्स ने 1990 में रिचर्ड गेरे के साथ सिंड्रेला - पाइग्मेलियोनेस्क कहानी, प्रिटी वुमन में अभिनय करते हुए, सोने के दिल के साथ एक मुखर फ्रीलांस हूकर की भूमिका निभाते हुए दुनिया भर के दर्शकों से और अधिक ध्यान आकर्षित किया । रॉबर्ट्स ने मिशेल फ़िफ़र , मौली रिंगवाल्ड , मेग रयान , जेनिफर जेसन लेह , करेन एलन और डेरिल हन्ना ( स्टील मैगनोलियास में उनके सह-कलाकार ) द्वारा इसे ठुकराने के बाद भूमिका जीती। इस भूमिका ने उन्हें इस बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में दूसरा ऑस्कर नामांकन और मोशन पिक्चर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (संगीत या हास्य) के रूप में दूसरा गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीता । प्रिटी वुमन ने अमेरिका में अब तक की रोमांटिक कॉमेडी के लिए सबसे अधिक टिकट बिक्री देखी, और दुनिया भर में 463.4 मिलियन डॉलर कमाए। फिल्म में रॉबर्ट्स द्वारा पहनी गई लाल पोशाक को सिनेमा में सबसे प्रसिद्ध गाउन में से एक माना गया है। प्रिटी वुमन के बाद उनकी अगली फिल्म रिलीज जोएल शूमाकर की अलौकिक थ्रिलर फ्लैटलाइनर्स (1990 भी) थी, जिसमें रॉबर्ट्स ने उन पांच छात्रों में से एक के रूप में अभिनय किया, जो गुप्त प्रयोगों का संचालन करते हैं जो मृत्यु के करीब के अनुभव पैदा करते हैं । उत्पादन को एक ध्रुवीकृत आलोचनात्मक स्वागत के साथ मिला, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर एक लाभ बन गया और तब से इसे एक पंथ फिल्म माना जाता है । 1991 में, रॉबर्ट्स ने स्टीवन स्पीलबर्ग की फंतासी फिल्म हुक में एक पस्त पत्नी की भूमिका निभाई, जो थ्रिलर स्लीपिंग विद द एनिमी में आयोवा में एक नया जीवन शुरू करने का प्रयास कर रही थी , एक पंखों वाला, छह इंच लंबा टॉमबॉयश टिंकरबेलऔर निर्देशक जोएल शूमाकर, रोमांस ड्रामा डाइंग यंग के साथ अपने दूसरे सहयोग में एक निवर्तमान लेकिन सतर्क नर्स । हालांकि नकारात्मक समीक्षाओं ने उनकी 1991 की फिल्मों का स्वागत किया, स्लीपिंग विद द एनिमी ने $175 मिलियन, हुक $300.9 मिलियन और डाइंग यंग ने $82.3 मिलियन वैश्विक स्तर पर कमाई की। रॉबर्ट्स ने स्क्रीन से दो साल का अंतराल लिया, जिसके दौरान उन्होंने रॉबर्ट ऑल्टमैन की द प्लेयर (1992) में एक कैमियो उपस्थिति के अलावा कोई फिल्म नहीं बनाई । 1993 की शुरुआत में, वह पीपुल पत्रिका की कवर स्टोरी का विषय थी, जिसमें पूछा गया था, "जूलिया रॉबर्ट्स को क्या हुआ?"। रॉबर्ट्स ने जॉन ग्रिशम के 1992 के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थ्रिलर द पेलिकन ब्रीफ (1993) में डेनजेल वाशिंगटन के साथ अभिनय किया । इसमें, उसने एक युवा कानून की छात्रा की भूमिका निभाई, जो खुद को और दूसरों को खतरे में डालकर एक साजिश का खुलासा करती है। फिल्म एक व्यावसायिक सफलता थी, जिसने दुनिया भर में $195.2 मिलियन की कमाई की। उनकी अगली कोई भी फिल्म रिलीज़ नहीं हुई - आई लव ट्रबल (1994), प्रेट-ए-पोर्टर (1994) और समथिंग टू टॉक अबाउट (1995) - विशेष रूप से आलोचकों द्वारा अच्छी तरह से प्राप्त हुई और न ही बड़े बॉक्स ऑफिस पर। 1996 में, उन्होंने फ्रेंड्स के दूसरे सीज़न (एपिसोड 13, " द वन आफ्टर द सुपरबॉवेल ") में अतिथि भूमिका निभाई, और ऐतिहासिक नाटक माइकल कोलिन्स में लियाम नीसन के साथ दिखाई दीं , हत्यारे आयरिश क्रांतिकारी नेता की मंगेतर किट्टी कीरनन को चित्रित करते हुए ।स्टीफन फ्रियर्स की मैरी रेली , उनकी अन्य 1996 की फिल्म, एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक विफलता थी। 1990 के दशक के अंत तक, रॉबर्ट्स को रोमांटिक कॉमेडी शैली में नए सिरे से सफलता मिली। पीजे होगन की माई बेस्ट फ्रेंड्स वेडिंग (1997) में, उन्होंने डर्मोट मुलरोनी , कैमरन डियाज़ और रूपर्ट एवरेट के साथ एक खाद्य समीक्षक के रूप में अभिनय किया , जिसे पता चलता है कि वह अपने सबसे अच्छे दोस्त से प्यार करती है और किसी से शादी करने का फैसला करने के बाद उसे वापस जीतने की कोशिश करती है। वरना। सभी समय के सर्वश्रेष्ठ रोमांटिक कॉमेडी में से एक माना जाता है, रॉटेन टोमाटोज़ ने फिल्म को 59 समीक्षाओं के आधार पर 73% की स्वीकृति रेटिंग दी, जिसमें महत्वपूर्ण सहमति पढ़ने के साथ, "जूलिया रॉबर्ट्स के एक आकर्षक प्रदर्शन और एक विध्वंसक स्पिन के लिए धन्यवाद। शैली, माई बेस्ट फ्रेंड्स वेडिंगएक ताज़ा मनोरंजक रोमांटिक कॉमेडी है।" यह फिल्म एक वैश्विक बॉक्स-ऑफिस हिट थी, जिसने 299.3 मिलियन डॉलर कमाए। उनकी अगली फिल्म में, रिचर्ड डोनर की राजनीतिक थ्रिलर कॉन्सपिरेसी थ्योरी (1997) , रॉबर्ट्स ने मेल गिब्सन के साथ न्याय विभाग के वकील के रूप में अभिनय किया। सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल के मिक लासेल ने कहा: "जब बाकी सब विफल हो जाता है, तब भी सितारों को देखना होता है-रॉबर्ट्स, जो वास्तव में कुछ अच्छा अभिनय करने का प्रबंधन करते हैं, और गिब्सन, जिनके संभावना वास्तव में एक मजबूत चीज होनी चाहिए।" फिर भी, फिल्म ने $137 मिलियन की एक सम्मानजनक कमाई की।1998 में, रॉबर्ट्स एल्मो के चरित्र के विपरीत टेलीविजन श्रृंखला सेसम स्ट्रीट में दिखाई दिए, और सुसान सारंडन के साथनाटक स्टेपमॉम में अभिनय किया , एक बीमार मां और उसकी भावी सौतेली मां के बीच जटिल संबंधों के इर्द-गिर्द घूमती है। बच्चे। जबकि समीक्षा मिश्रित थी, फिल्म ने दुनिया भर में 159.7 मिलियन डॉलर कमाए। रॉबर्ट्स ने ह्यूग ग्रांट के साथ नॉटिंग हिल (1999) के लिए जोड़ी बनाई, जिसमें एक प्रसिद्ध अभिनेत्री का चित्रण किया गया, जिसे एक संघर्षरत पुस्तक स्टोर के मालिक से प्यार हो जाता है। फिल्म ने फोर वेडिंग्स एंड ए फ्यूनरल को सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी ब्रिटिश हिट के रूप में विस्थापित किया, जिसकी कमाई दुनिया भर में 363 मिलियन डॉलर थी। मुख्यधारा की संस्कृति में आधुनिक रोमांटिक कॉमेडी का एक उदाहरण, फिल्म को समीक्षकों द्वारा भी सराहा गया। सीएनएन समीक्षक पॉल क्लिंटन ने रॉबर्ट्स को "रोमांटिक कॉमेडी की रानी [जिसका] शासन जारी है" कहा, और टिप्पणी की: " नॉटिंग हिल सभी बाधाओं के खिलाफ प्यार के बारे में एक और मजेदार और दिल को छू लेने वाली कहानी है।"1999 में, वह रनवे ब्राइड के लिए रिचर्ड गेरे और गैरी मार्शल के साथ फिर से जुड़ गईं , जिसमें उन्होंने एक महिला की भूमिका निभाई, जिसने वेदी पर मंगेतर की एक स्ट्रिंग छोड़ दी है। मिश्रित समीक्षाओं के बावजूद, रनवे ब्राइड एक और वित्तीय सफलता थी, जिसने दुनिया भर में $309.4 मिलियन की कमाई की। रॉबर्ट्स टेलीविजन श्रृंखला लॉ एंड ऑर्डर के सीज़न 9 एपिसोड " एम्पायर " में एक अतिथि कलाकार थे , जिसमें नियमित कलाकार सदस्य बेंजामिन ब्रैट थे, जो उस समय उनके प्रेमी थे। उनके प्रदर्शन ने उन्हें ड्रामा सीरीज़ में उत्कृष्ट अतिथि अभिनेत्री के लिए प्राइमटाइम एमी अवार्ड के लिए नामांकित किया । कामयाब एक्ट्रेस के रूप मे(2000–2007) रॉबर्ट्स एक फिल्म के लिए $20 मिलियन का भुगतान करने वाली पहली अभिनेत्री बनीं, जब उन्होंने एरिन ब्रोकोविच में कैलिफोर्निया की पैसिफिक गैस एंड इलेक्ट्रिक कंपनी (पीजी एंड ई) के खिलाफ अपनी लड़ाई में वास्तविक जीवन के पर्यावरण कार्यकर्ता एरिन ब्रोकोविच की भूमिका निभाई। (2000)। रॉलिंग स्टोन के पीटर ट्रैवर्स ने लिखा, "रॉबर्ट्स एरिन पर भावनात्मक प्रभाव दिखाता है क्योंकि वह अपने बच्चों और नौकरी के लिए जिम्मेदार रहने की कोशिश करती है जिसने उसे आत्म-सम्मान का पहला स्वाद प्रदान किया है", जबकि एंटरटेनमेंट वीकली आलोचक ओवेन ग्लीबरमैनमहसूस किया कि यह "रॉबर्ट्स को उसकी चुलबुली चमक और उदासी के स्वर के साथ देखकर खुशी हुई"। एरिन ब्रोकोविच ने दुनिया भर में $256.3 मिलियन कमाए, और कई अन्य प्रशंसाओं के साथ, रॉबर्ट्स को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अकादमी पुरस्कार मिला। 1992 में सूची शुरू होने के बाद से 2000 में, वह हॉलीवुड रिपोर्टर की शो व्यवसाय में 50 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची बनाने वाली पहली अभिनेत्री बनीं , और उनकी शोलेस प्रोडक्शंस कंपनी को जो रोथ के साथ एक सौदा मिला। एरिन ब्रोकोविच के बाद उनकी पहली फिल्म रोड गैंगस्टर कॉमेडी द मैक्सिकन (2001) थी, जिससे उन्हें लंबे समय के दोस्त ब्रैड पिट के साथ काम करने का मौका मिला । फिल्म की स्क्रिप्ट का मूल रूप से प्रमुख मोशन पिक्चर सितारों के बिना एक स्वतंत्र उत्पादन के रूप में फिल्माया जाना था , लेकिन रॉबर्ट्स और पिट, जो कुछ समय से एक ऐसी परियोजना की तलाश में थे, जिसे वे एक साथ कर सकते थे, इसके बारे में सीखा और साइन करने का फैसला किया। हालांकि एक ठेठ रोमांटिक कॉमेडी स्टार वाहन के रूप में विज्ञापित, फिल्म केवल अभिनेताओं के रिश्ते पर ध्यान केंद्रित नहीं करती है और दोनों ने अपेक्षाकृत कम स्क्रीन समय एक साथ साझा किया है। मैक्सिकन ने उत्तरी अमेरिका में $66.8 मिलियन कमाए। जो रोथ मेंकी रोमांटिक कॉमेडी अमेरिका की स्वीटहार्ट्स (2001) में, रॉबर्ट्स ने बिली क्रिस्टल , जॉन क्यूसैक और कैथरीन ज़ेटा-जोन्स के साथ, एक बार अधिक वजन वाली बहन और हॉलीवुड अभिनेत्री की सहायक के रूप में अभिनय किया । आलोचकों ने महसूस किया कि इसके प्रसिद्ध कलाकारों के बावजूद, उत्पादन में "सहानुभूतिपूर्ण पात्रों" की कमी थी और यह "केवल स्पर्ट्स में मजाकिया था।" एक व्यावसायिक सफलता, हालांकि, इसने दुनिया भर में $138 मिलियन से अधिक की कमाई की। 2001 में रिलीज हुई अपनी आखिरी फिल्म में, रॉबर्ट्स ने एरिन ब्रोकोविच के निर्देशक स्टीवन सोडरबर्ग के साथ ओशन्स इलेवन के लिए टीम बनाई, जो 1960 में इसी नाम की फिल्म की रीमेक थी।जॉर्ज क्लूनी , ब्रैड पिट और मैट डेमन सहित कलाकारों की टुकड़ी । रॉबर्ट्स ने टेस ओशन की भूमिका निभाई , जो नेता डैनी ओशन (क्लूनी) की पूर्व पत्नी थी, जो मूल रूप से एंजी डिकिंसन द्वारा निभाई गई थी । समीक्षकों के साथ और बॉक्स ऑफिस पर समान रूप से सफल, ओशन इलेवन दुनिया भर में कुल $450 मिलियन के साथ वर्ष की पांचवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई । माइक नेवेल के नाटक मोना लिसा स्माइल में 1953 में वेलेस्ली कॉलेज में एक आगे की सोच रखने वाले कला इतिहास के प्रोफेसर को चित्रित करने के लिए रॉबर्ट्स ने रिकॉर्ड $ 25 मिलियन प्राप्त किया, जो उस समय एक अभिनेत्री द्वारा अर्जित की गई सबसे अधिक कमाई थी । फिल्म को समीक्षकों द्वारा काफी हद तक गुनगुनी समीक्षा मिली, जिन्होंने इसे "अनुमानित और सुरक्षित" पाया, लेकिन सिनेमाघरों में $141 मिलियन से अधिक की कमाई की। 2004 में, रॉबर्ट्स ने केट ब्लैंचेट की जगह माइक निकोल्स की फिल्म क्लोजर के लिए एक अमेरिकी फोटोग्राफर की भूमिका निभाई , जो पैट्रिक मार्बर द्वारा लिखित एक रोमांटिक ड्रामा है, जो उनके 1997 के इसी नाम के पुरस्कार विजेता नाटक पर आधारित है ।, जूड लॉ , नताली पोर्टमैन और क्लाइव ओवेन के सह-कलाकार । इसके बाद उन्होंने ओशन्स ट्वेल्व में टेस ओशन की भूमिका को दोहराया , जो जानबूझकर पहली फिल्म की तुलना में बहुत अधिक अपरंपरागत थी, जिसे एक अनुक्रम द्वारा दर्शाया गया था जिसमें रॉबर्ट्स का चरित्र वास्तविक जीवन में जूलिया रॉबर्ट्स का प्रतिरूपण करता है, क्योंकि फिल्म के पात्रों का मानना ​​​​है कि यह है उनकी मजबूत समानता। हालांकि इलेवन की तुलना में कम अच्छी तरह से समीक्षा की गई , यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक और बड़ी सफलता बन गई, जिसने दुनिया भर में $363 मिलियन की कमाई की। 2005 में, उन्हें एकल " ड्रीमगर्ल " के संगीत वीडियो में चित्रित किया गया था" डेव मैथ्यू बैंड द्वारा । यह उनका पहला संगीत वीडियो प्रदर्शन था। रॉबर्ट्स 2002 से (जब पत्रिका ने अपनी सूची संकलित करना शुरू किया) 2005 से हर साल हॉलीवुड रिपोर्टर की 10 सबसे अधिक भुगतान वाली अभिनेत्रियों की सूची में दिखाई दिया। 2006 में, रॉबर्ट्स ने द एंट बुली में एक नर्स चींटी और चार्लोट्स वेब में एक खलिहान मकड़ी को आवाज दी । उन्होंने 19 अप्रैल 2006 को रिचर्ड ग्रीनबर्ग के 1997 के नाटक थ्री डेज़ ऑफ़ रेन के पुनरुद्धार में ब्रैडली कूपर और पॉल रुड के साथ नान के रूप में ब्रॉडवे की शुरुआत की । हालांकि इस नाटक ने अपने पहले सप्ताह के दौरान टिकटों की बिक्री में लगभग 1 मिलियन डॉलर की कमाई की और अपने सीमित समय के दौरान व्यावसायिक रूप से सफल रही, उसके प्रदर्शन की आलोचना हुई। न्यूयॉर्क टाइम्स के बेन ब्रैंटली रॉबर्ट्स को "आत्म-चेतना (विशेषकर पहले अभिनय में) [और] केवल उनके द्वारा निभाए गए दो पात्रों से परिचित होने के रूप में वर्णित किया गया है।" ब्रेंटली ने भी समग्र उत्पादन की आलोचना करते हुए लिखा कि "जो मैन्टेलो द्वारा निर्देशित इस लकड़ी और बिखरी हुई व्याख्या से इसके कलात्मक गुणों को पहचानना लगभग असंभव है।" न्यू यॉर्क पोस्ट में लिखते हुए , क्लाइव बार्न्स ने घोषणा की, "नाटक से नफरत थी। सच कहूं तो, यहां तक ​​कि उससे नफरत भी। कम से कम मुझे बारिश पसंद थी-भले ही इसके तीन दिन अनंत काल के लगें।" माइक निकोल्स के जीवनी नाटक चार्ली विल्सन्स वॉर (2007) में, रॉबर्ट्स ने सोशलाइट के रूप में अभिनय कियाटॉम हैंक्स और फिलिप सीमोर हॉफमैन के सामने डेमोक्रेटिक टेक्सास के कांग्रेसी चार्ल्स विल्सन के प्रेमी जोआन हेरिंग । फिल्म को काफी प्रशंसा मिली, ने दुनिया भर में 119.5 मिलियन डॉलर कमाए, और रॉबर्ट्स को अपना छठा गोल्डन ग्लोब नामांकन मिला। करियर में उतार-चढ़ाव (2008-2016) स्वतंत्र नाटक फायरफ्लाइज़ इन द गार्डन , जिसमें रॉबर्ट्स ने एक माँ की भूमिका निभाई, जिसकी मृत्यु ने कहानी को गति प्रदान की, यूरोपीय सिनेमाघरों में दिखाए जाने से पहले 2008 के बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया था - इसे 2011 तक उत्तर अमेरिकी रिलीज़ नहीं मिली थी। रॉबर्ट्स ने कॉमिक थ्रिलर डुप्लिसिटी (2009) में क्लाइव ओवेन के विपरीत एक जटिल चोर को अंजाम देने के लिए एक अन्य जासूस के साथ सहयोग करते हुए एक सीआईए एजेंट की भूमिका निभाई । मिश्रित समीक्षाओं और मध्यम बॉक्स ऑफिस रिटर्न के बावजूद, आलोचक एओ स्कॉटउसके प्रदर्शन की प्रशंसा की: "सुश्री रॉबर्ट्स ने लगभग पूरी तरह से अमेरिका के प्रिय व्यवहार को पीछे छोड़ दिया है, सिवाय इसके कि जब वह उन्हें रणनीतिक रूप से निरस्त्र या भ्रमित करने के लिए उपयोग करती है। वह 41 साल की उम्र में, स्पष्ट रूप से अपने प्रमुख में है"। उन्हें अपनी भूमिका के लिए सातवां गोल्डन ग्लोब नामांकन मिला। 2010 में, रॉबर्ट्स ने रोमांटिक कॉमेडी वेलेंटाइन डे में एक बड़े कलाकारों की टुकड़ी के हिस्से के रूप में एक दिन की छुट्टी पर एक अमेरिकी सेना के कप्तान की भूमिका निभाई , और ईट प्रेयर लव के फिल्म रूपांतरण में तलाक के बाद खुद को खोजने वाले लेखक के रूप में अभिनय किया । जहां उन्हें वैलेंटाइन डे में छह मिनट की भूमिका के लिए कुल 3 प्रतिशत की तुलना में 3 मिलियन डॉलर का अग्रिम प्राप्त हुआ , ईट प्रेयर लव ने अमेरिका के स्वीटहार्ट्स के बाद से रॉबर्ट्स के लिए सबसे अधिक बिल वाली भूमिका में बॉक्स ऑफिस पर सबसे अधिक शुरुआत की । वह रोमांटिक कॉमेडी लैरी क्राउन में शिक्षा की ओर लौट रहे एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति की शिक्षिका के रूप में दिखाई दी, जो टॉम हैंक्स के विपरीत थी।, जिन्होंने निदेशक के रूप में भी काम किया। फिल्म को आलोचकों और दर्शकों द्वारा खराब रूप से प्राप्त किया गया था, हालांकि रॉबर्ट्स के हास्य प्रदर्शन की प्रशंसा की गई थी। मिरर मिरर (2012) में, स्नो व्हाइट के तरसेम सिंह अनुकूलन , रॉबर्ट्स ने क्वीन क्लेमेंटियाना , स्नो व्हाइट की दुष्ट सौतेली माँ, लिली कोलिन्स के विपरीत चित्रित की । रोलिंग स्टोन के पीटर ट्रैवर्स ने महसूस किया कि उन्होंने अपनी भूमिका में "बहुत कठिन" कोशिश की, जबकि केटी रिच ऑफ़ सिनेमा ब्लेंडदेखा कि वह "अपने दुष्ट [चित्रण] में आनंद लेती है लेकिन इसके साथ और भी आगे बढ़ सकती है"। मिरर मिरर ने विश्व स्तर पर 183 मिलियन डॉलर कमाए। 2013 में, रॉबर्ट्स ने ब्लैक कॉमेडी ड्रामा अगस्त: ओसेज काउंटी में मेरिल स्ट्रीप और इवान मैकग्रेगर के साथ अभिनय किया , एक बेकार परिवार के बारे में जो पारिवारिक घर में फिर से एकजुट हो जाता है जब उनके पिता अचानक गायब हो जाते हैं। उनके प्रदर्शन ने उन्हें गोल्डन ग्लोब अवार्ड , स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड , क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए अकादमी पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों के लिए नामांकित किया। यह उनका चौथा अकादमी पुरस्कार नामांकन था। 2014 में, रॉबर्ट्स ने लैरी क्रेमर के एड्स-युग के नाटक, द नॉर्मल हार्ट के टेलीविजन रूपांतरण में डॉ. लिंडा लॉबेनस्टीन पर आधारित एक चरित्र, डॉ. एम्मा ब्रुकनर , के रूप में अभिनय किया, जो एचबीओ पर प्रसारित हुआ ; फिल्म को समीक्षकों द्वारा सराहा गया और वैनिटी फेयर ने अपनी समीक्षा में लिखा: "रॉबर्ट्स, इस बीच, धर्मी, एरिन ब्रोकोविच -इयान क्रोध के साथ गुनगुनाते हैं। इस और अगस्त के बीच: ओसेज काउंटी , वह अपने लिए एक अच्छा नया स्थान बना रही है, भंगुर खेल रही है जो महिलाएं विस्फोटक स्वभाव के माध्यम से अपना प्यार और चिंता दिखाती हैं"। उनकी भूमिका ने उन्हें के लिए नामांकित कियालघु-श्रृंखला या मूवी में उत्कृष्ट सहायक अभिनेत्री के लिए प्राइमटाइम एमी पुरस्कार । रॉबर्ट्स ने 2014 में मेकर्स: वूमेन हू मेक अमेरिका के दूसरे सीज़न की एक कड़ी "वीमेन इन हॉलीवुड" सुनाई , और 2015 में गिवेंची के स्प्रिंग-समर कैंपेन में दिखाई दीं । उन्होंने इसमें अभिनय किया। सीक्रेट इन देयर आइज़ (2015) में निकोल किडमैन और चिवेटेल इजीओफ़ोर के विपरीत एक दुःखी माँ , इसी नाम की 2009 की अर्जेंटीना फ़िल्म की रीमेक है, दोनों लेखक एडुआर्डो साचेरी के उपन्यास ला प्रीगुंटा डे सस ओजोस पर आधारित हैं । मूल फिल्म के विपरीत, अमेरिकी संस्करण को नकारात्मक समीक्षा मिली और दर्शकों को खोजने में असफल रहा। आयरिश टाइम्स के डोनाल्ड क्लार्कनिष्कर्ष निकाला कि कलाकारों द्वारा एक "सुंदर काम" "परियोजना के चारों ओर लटके हुए समझौते की आवाज को पूरी तरह से हिला नहीं सकता"। 2016 में, रॉबर्ट्स ने गैरी मार्शल के साथ पुनर्मिलन किया और कथित तौर पर चार दिन की शूटिंग के लिए $3 मिलियन का शुल्क प्राप्त किया, एक कुशल लेखक की भूमिका निभाई, जिसने रोमांटिक कॉमेडी मदर्स डे में अपने बच्चे को गोद लेने के लिए दिया , जिसमें एक कमजोर आलोचनात्मक और व्यावसायिक था जवाब। उनकी अगली फिल्म रिलीज जोड़ी फोस्टर की थ्रिलर मनी मॉन्स्टर थी, जिसमें उन्होंने जॉर्ज क्लूनी और जैक ओ'कोनेल के साथ एक टेलीविजन निर्देशक के रूप में अभिनय किया ।सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के सैंड्रा हॉलने कहा: "यह हॉलीवुड का मेलोड्रामा हो सकता है लेकिन यह रेंज में सबसे ऊपर है, क्लूनी और रॉबर्ट्स को स्टार पावर के मूल्य को प्रदर्शित करने का हर मौका देता है।" फिल्म ने दुनिया भर में 93.3 मिलियन डॉलर का सम्मानजनक कमाई की। हाल की भूमिकाएँ (2017–वर्तमान) इन वंडर (2017), आरजे पलासियो द्वारा इसी नाम के 2012 के उपन्यास का फिल्म रूपांतरण , रॉबर्ट्स ने ट्रेचर कॉलिन्स सिंड्रोम वाले एक लड़के की मां की भूमिका निभाई । द टाइम्स ने कहा कि वह " वंडर में अपने प्रत्येक दृश्य को निकट-उत्कृष्ट स्थानों पर ले जाती है"। दुनिया भर में 305.9 मिलियन डॉलर की कमाई के साथ, वंडर रॉबर्ट्स की सबसे अधिक देखी जाने वाली फिल्मों में से एक के रूप में उभरा। 2017 में, उन्होंने एनिमेटेड फिल्म स्मर्फ्स: द लॉस्ट विलेज में एक मातृ स्मर्फ नेता को आवाज दी । रॉबर्ट्स ने पीटर हेजेज के नाटक बेन इज़ बैक (2018) में एक परेशान युवक की माँ की भूमिका निभाई। डेली एक्सप्रेस के शॉन किचनर ने टिप्पणी की: "रॉबर्ट्स अक्सर किसी भी फिल्म के बारे में सर्वश्रेष्ठ, या सर्वश्रेष्ठ में से एक होते हैं-और बेन इज़ बैक अलग नहीं है"। मनोवैज्ञानिक थ्रिलर श्रृंखला होमकमिंग के पहले सीज़न में एक गुप्त सरकारी सुविधा में एक केसवर्कर की भूमिका रॉबर्ट्स की पहली नियमित टेलीविजन परियोजना थी। श्रृंखला, जिसका प्रीमियर अमेज़न वीडियो पर हुआनवंबर 2018 में, आलोचकों से प्रशंसा प्राप्त हुई, जिन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह रॉबर्ट्स के लिए "छोटे पर्दे की प्रभावशाली शुरुआत" थी, जो "अपने भूतिया रहस्य को एक उन्मत्त संवेदनशीलता के साथ संतुलित करती है जो पकड़ में आती है और जाने नहीं देती है।" उन्हें टेलीविज़न सीरीज़ - ड्रामा में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए गोल्डन ग्लोब नामांकन मिला । रॉबर्ट्स रोमांटिक कॉमेडी टिकट टू पैराडाइज के लिए जॉर्ज क्लूनी के साथ फिर से जुड़ेंगे , जो 21 अक्टूबर, 2022 को यूनिवर्सल पिक्चर्स द्वारा रिलीज़ होने वाली है । उन्होंने वाटरगेट कांड के दौरान एक विवादास्पद व्यक्ति मार्था मिशेल की भूमिका निभाने के लिए भी साइन किया । लियोन नेफख द्वारा पॉडकास्ट स्लो बर्न के पहले सीज़न पर आधारित राजनीतिक थ्रिलर टेलीविजन श्रृंखला गैसलिट । अन्य एंटर प्रेज़ेज़ चैरिटी वर्क रॉबर्ट्स ने यूनिसेफ के साथ-साथ अन्य धर्मार्थ संगठनों में योगदान दिया है। 1995 में पोर्ट-ऑ-प्रिंस , हैती की उनकी छह दिवसीय यात्रा , जैसा कि उन्होंने कहा, "खुद को शिक्षित करने के लिए", दान के एक विस्फोट को ट्रिगर करने की उम्मीद थी — उस समय $10 मिलियन की सहायता मांगी गई थी - यूनिसेफ के अधिकारियों द्वारा। 2006 में, वह अर्थ बायोफ्यूल्स की प्रवक्ता और साथ ही अक्षय ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने वाले कंपनी के नवगठित सलाहकार बोर्ड की अध्यक्ष बनीं। 2013 में, वह एक गुच्ची अभियान, "चाइम फॉर चेंज" का हिस्सा थीं, जिसका उद्देश्य महिला सशक्तिकरण का प्रसार करना है। 2000 में, रॉबर्ट्स ने रेट्ट सिंड्रोम के बारे में एक वृत्तचित्र सुनाया , एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर, जिसे बीमारी के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, और 2014 में, वह जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से कंजर्वेशन इंटरनेशनल के लिए एक लघु फिल्म में मदर नेचर की आवाज थी। जलवायु परिवर्तन के बारे में । प्रोडक्शन कंपनी रॉबर्ट्स अपनी बहन, लिसा रॉबर्ट्स गिलन और मारिसा येरेस गिल के साथ प्रोडक्शन कंपनी रेड ओम फिल्म्स (रेड ओम "मोडर" है, जो उसके पति के अंतिम नाम के बाद लिखा गया है) चलाते हैं। रेड ओम के माध्यम से, रॉबर्ट्स ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए एक कार्यकारी निर्माता के रूप में काम किया है, जैसे कि ईट प्रेयर लव और होमकमिंग , साथ ही साथ अमेरिकन गर्ल फिल्म श्रृंखला की पहली चार फिल्मों के लिए ( अमेरिकन गर्ल लाइन पर आधारित) ऑफ़ डॉल्स), 2004 और 2008 के बीच रिलीज़ हुई। एंडोर्समेंट 2006 में, रॉबर्ट्स ने फैशन लेबल जियानफ्रेंको फेरे के साथ $6 मिलियन मूल्य के एक एंडोर्समेंट सौदे पर हस्ताक्षर किए। मारियो टेस्टिनो द्वारा लॉस एंजिल्स में ब्रांड के विज्ञापन अभियान के लिए उसकी तस्वीर खींची गई थी , जिसे यूरोप , एशिया और ऑस्ट्रेलिया में वितरित किया गया था । 2009 से, रॉबर्ट्स ने लैंकोमे के वैश्विक राजदूत के रूप में काम किया है, एक भूमिका जिसमें वह ब्रांड के सौंदर्य प्रसाधन और सौंदर्य उत्पादों के विकास और प्रचार में शामिल रही है। उसने शुरू में 2010 में $50 मिलियन के लिए कंपनी के साथ पांच साल के विस्तार पर हस्ताक्षर किए। निज़ी जीवन परिवारिक रिश्ते और संबंध रॉबर्ट्स के अभिनेता जेसन पैट्रिक , लियाम नीसन , किफ़र सदरलैंड , डायलन मैकडरमोट और मैथ्यू पेरी के साथ रोमांटिक संबंध थे । सदरलैंड के साथ उनकी कुछ समय के लिए सगाई हुई थी; 11 जून, 1991 को अपनी निर्धारित शादी से तीन दिन पहले वे अलग हो गए। 25 जून, 1993 को, उन्होंने देशी गायिका लायल लवेट से शादी की ; शादी इंडियाना के मैरियन में सेंट जेम्स लूथरन चर्च में हुई थी । मार्च 1995 में वे अलग हो गए और बाद में उनका तलाक हो गया। 1998 से 2001 तक, रॉबर्ट्स ने अभिनेता बेंजामिन ब्रैट को डेट किया । रॉबर्ट्स और उनके पति, कैमरामैन डैनियल मोडर , 2000 में अपनी फिल्म द मैक्सिकन के सेट पर मिले, जब वह अभी भी ब्रैट को डेट कर रही थीं। उस समय, मोडर की शादी वेरा स्टिमबर्ग से हुई थी। उन्होंने एक साल बाद तलाक के लिए अर्जी दी, और इसे अंतिम रूप देने के बाद, उन्होंने और रॉबर्ट्स ने 4 जुलाई, 2002, को ताओस, न्यू मैक्सिको में अपने खेत में शादी कर ली । साथ में, उनके तीन बच्चे हैं: जुड़वाँ, एक बेटी और एक बेटा, जिसका जन्म नवंबर 2004 में हुआ, और दूसरा बेटा जून 2007 में पैदा हुआ। धर्म 2010 में, रॉबर्ट्स ने कहा कि वह हिंदू है, "आध्यात्मिक संतुष्टि" के लिए परिवर्तित हुई है। रॉबर्ट्स गुरु नीम करोली बाबा (महाराज-जी) के भक्त हैं, जिनकी एक तस्वीर ने रॉबर्ट्स को हिंदू धर्म की ओर आकर्षित किया। सितंबर 2009 में, पटौदी में आश्रम हरि मंदिर के स्वामी दरम देव , जहां रॉबर्ट्स ईट प्रेयर लव की शूटिंग कर रहे थे , ने अपने बच्चों को हिंदू देवताओं के नाम पर नए नाम दिए: हेज़ल के लिए लक्ष्मी , फिनिअस के लिए गणेश और हेनरी के लिए कृष्ण बलराम । फ़िल्मोग्राफी और सम्मान रॉबर्ट्स की जिन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर 2021 तक सबसे अधिक कमाई की है , उनमें शामिल हैं: Pretty Woman (1990) Hook (1991) Sleeping with the Enemy (1991) The Pelican Brief (1993) My Best Friend's Wedding (1997) Notting Hill (1999) Runaway Bride (1999) Erin Brockovich (2000) Ocean's Eleven (2001) Ocean's Twelve (2004) Charlie Wilson's War (2007) Valentine's Day (2010) Eat Pray Love (2010) Mirror Mirror (2012) Money Monster (2016) Wonder (2017) रॉबर्ट्स ने चार अकादमी पुरस्कार नामांकन प्राप्त किए हैं, 73वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए जीत हासिल की, एरिन ब्रोकोविच में उनके नाममात्र के चित्रण के लिए , जिसने उन्हें गोल्डन ग्लोब , बाफ्टा अवार्ड और स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड भी अर्जित किया । उन्होंने स्टील मैगनोलियास और प्रिटी वुमन में अपने प्रदर्शन के लिए गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीते , और 2019 तक, आठ नामांकन प्राप्त किए। रॉबर्ट्स को दो प्राइमटाइम एमी अवार्ड्स नामांकन प्राप्त हुए, एक ड्रामा सीरीज़ में उत्कृष्ट अतिथि अभिनेत्री के लिए, उनकी अतिथि भूमिका के लिएलॉ एंड ऑर्डर , और दूसरा सीमित श्रृंखला या टेलीविज़न मूवी में उत्कृष्ट सहायक अभिनेत्री के लिए, द नॉर्मल हार्ट में उनके प्रदर्शन के लिए। इन्हें भी देखें केट विंसलेट ऐनी हैथवे जेनिफ़र लॉरेंस डकोटा जॉनसन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जूलिया रॉबर्ट्स ने स्वीकारा हिन्दू धर्म श्रेणी:अंग्रेजी अभिनेत्री श्रेणी:1967 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग अमरीका के श्रेणी:अमेरिकी अभिनेत्री
भारतीय रेल
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_रेल
भारतीय रेल (भारे), यह भारत सरकार-नियंत्रित सार्वजनिक रेलवे सेवा है। भारत में रेलवे की कुल लंबाई 115,000 किलोमीटर है। भारतीय रेल रोजाना करीब 2 करोड़ 31 लाख (लगभग पूरे ऑस्ट्रेलिया देश की जनसंख्या के बराबर) यात्रियों और 33 लाख टन माल ढोती है। भारतीय रेलवे के स्वामित्व में, भारतीय रेलवे में 12147 लोकोमोटिव, 74003 यात्री कोच और 289185 वैगन हैं और 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13523 ट्रेनें चलती हैं। भारतीय रेलवे में 300 रेलवे यार्ड, 2300 माल ढुलाई और 700 मरम्मत केंद्र हैं। यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। 12.27 लाख कर्मचारियों के साथ, भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई है। रेलवे विभाग भारत सरकार के मध्य रेलवे विभाग का एक प्रभाग है, जो भारत में संपूर्ण रेलवे नेटवर्क की योजना बना रहा है। रेलवे विभाग की देखरेख रेलवे विभाग के कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती है और रेलवे विभाग की योजना रेलवे बोर्ड द्वारा बनाई जाती है। यह भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक है। यह न केवल देश की मूल संरचनात्‍मक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने में और देश राष्‍ट्रीय अखंडता का भी संवर्धन करता है। राष्‍ट्रीय आपात स्थिति के दौरान आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने में भारतीय रेलवे अग्रणी रहा है। देश के औद्योगिक और कृषि क्षेत्र की त्‍वरित प्रगति ने रेल परिवहन की उच्‍च स्‍तरीय मांग का सृजन किया है, विशेषकर मुख्‍य क्षेत्रकों में जैसे कोयला, लौह और इस्‍पात अयस्‍क, पेट्रोलियम उत्‍पाद और अनिवार्य वस्‍तुएं जैसे खाद्यान्‍न, उर्वरक, सीमेंट, चीनी, नमक, खाद्य तेल आदि। इतिहास भारत में रेलवे के लिए पहली बार प्रस्ताव मद्रास में 1832 में किए गए थे. भारत में पहली ट्रेन १८३७ में मद्रास में लाल पहाड़ियों से चिंताद्रीपेत पुल (लिटिल माउंट)तक 25किमी चली थी. इसे आर्थर कॉटन द्वारा सड़क-निर्माण के लिए ग्रेनाइट परिवहन के लिए बनाया गया था| इसमें विलियम एवरी द्वारा निर्मित रोटरी स्टीम लोकोमोटिव प्रयोग किया गया था| १८४५ में, गोदावरी बांध निर्माण रेलवे को गोदावरी नदी पर बांध के निर्माण के लिए पत्थर की आपूर्ति करने के लिए राजामुंदरी के डोलेस्वरम में कॉटन द्वारा बनाया गया था। ८ मई १८४५ को, मद्रास रेलवे की स्थापना की गई, उसके बाद उसी वर्ष ईस्ट इंडिया रेलवे की स्थापना की गई। १ अगस्त १८४९ में ग्रेट इंडियन प्रायद्वीपीय रेलवे (GIPR) की स्थापना की गई संसद के एक अधिनियम द्वारा। १८५१ में रुड़की में सोलानी एक्वाडक्ट रेलवे बनाया गया था। इसका नाम थॉमसन स्टीम लोकोमोटिव द्वारा रखा गया था, जिसका नाम उस नाम के एक ब्रिटिश अधिकारी के नाम पर रखा गया था। रेलवे ने सोलानी नदी पर एक एक्वाडक्ट के लिए निर्माण सामग्री पहुंचाई। १८५२ में, मद्रास गारंटी रेलवे कंपनी की स्थापना की गई। सन् १८५० में ग्रेट इंडियन प्रायद्वीपीय रेलवे कम्पनी ने बम्बई से थाणे तक रेल लाइन बिछाने का कार्य प्रारम्भ किया गया था।भारतीय रेल के इतिहास के बारे में "History of Indian Railway in Hindi" इसी वर्ष हावड़ा से रानीगंज तक रेल लाइन बिछाने का काम शुरू हुआ। सन् १८५३ में बहुत ही मामूली शुरूआत से जब पहली प्रवासी ट्रेन ने मुंबई से थाणे तक (३४ कि॰मी॰ की दूरी) की दूरी तय की थी, अब भारतीय रेल विशाल नेटवर्क में विकसित हो चुका है। साल २०१७ में भारतीय रेल व्यवस्था को सुधरने हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाये गए| रेल सुरक्षा निधि १००,००० करोड़ रुपये के एक कोष के साथ ५ साल की अवधि में बनाया जा राहा है| लिफ्टों और एस्केलेटर प्रदान करके ५०० से अधिक रेलवे स्टेशनों को अलग-अलग तरीके से अनुकूल बनाया जा राहा है। तीर्थयात्रा और पर्यटन के लिए समर्पित गाड़ियों को लॉन्च करने के लिए कदम उठाए जा राहा है| २०१९ तक, भारतीय रेल के सभी कोचों को जैव-शौचालयों के साथ फिट किया गया| यह कार्य पूरा हो गया है| मानव रहित रेलवे स्तरीय क्रॉसिंग को २०२० तक समाप्त किया गया| यह कार्य पूरा हो गया है| ऐसे नेटवर्क को आधुनिक बनाने, सुदृढ़ करने और इसका विस्‍तार करने के लिए भारत सरकार निजी पूंजी तथा रेल के विभिन्‍न वर्गों में, जैसे पत्‍तन में- पत्‍तन संपर्क के लिए परियोजनाएं, गेज परिवर्तन, दूरस्‍थ/पिछड़े क्षेत्रों को जोड़ने, नई लाइन बिछाने, सुंदरबन परिवहन आदि के लिए राज्‍य निधियन को आ‍कर्षित करना चाहती है। तद्नुसार भारतीय रेल में रेल प्रौद्योगिकी की प्रगति को आत्‍मसात करने के लिए अनेकानेक प्रयास किए हैं और बहुत से रेल उपकरणों जैसे रोलिंग स्‍टॉक के उत्‍पादन में आत्‍मनिर्भर हो गया है। यह ईंधन किफायती नई डिज़ाइन के उच्‍च हॉर्स पावर वाले इंजन, उच्‍च गति के कोच और माल यातायात के लिए आधुनिक बोगियों को कार्य में लगाने की प्रक्रिया कर रहा है। आधुनिक सिग्‍नलिंग जैसे पैनल-इंटर लॉकिंग, रूट रीले इंटर लॉकिंग, केंद्रीकृत यातायात नियंत्रण, स्‍वत: सिग्‍नलिंग और बहु पहलू रंगीन प्रकाश सिग्‍नलिंग की भी शुरूआत हो चुका है। इसके अतिरिक्‍त सरकार ने दिल्‍ली, मुंबई, चैन्नई, बैंगलूर, हैदराबाद और कोलकाता मेट्रोपोलिटन शहरों में रेल आधारित मास रेपिड ट्रांज़िट प्रणाली शुरू की है। परियोजना का लक्ष्‍य, शहरों के यात्रियों के लिए विश्‍वसनीय सुरक्षित एवं प्रदूषण रहित यात्रा मुहैया कराना है। यह परिवहन का सबसे तेज साधन सुनिश्चित करती है, समय की बचत करती एवं दुर्घटना कम करती है। इस परियोजना ने उल्‍लेखनीय प्रगति की है। विशेषकर दिल्‍ली मेट्रो रेल परियोजना का कार्य निष्‍पादन स्‍मरणीय है। भारत में रेल मूल संरचना के विकास में निजी क्षेत्रों की भागीदारी का धीरे-धीरे विस्‍तार हो रहा है, मान और संभावना दोनों में। उदाहरण के लिए, पीपावाव रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड (पीआरसीएल) रेल परिवहन में पहला सरकारी निजी भागीदारी का मूल संरचना मॉडल है। यह भारतीय रेल और गुजरात पीपावाव पोर्ट लिमिटेड की संयुक्‍त उद्यम कंपनी है, जिसकी स्‍थापना २७१ कि॰मी॰ लंबी रेल लाइंस का निर्माण, रखरखाव और संचालन करने के लिए की गई है, यह गुजरात राज्‍य में पीपावाव पत्‍तन को पश्चिमी रेल के सुरेन्‍द्र नगर जंक्‍शन से जोडती है।राष्ट्रीयकृत साझेदारी के माध्यम से चयनित वस्तुओं के लिए परिवहन समाधान समाप्त करने के लिए रेलवे एकीकृत होगा| संस्था भारत में रेल मंत्रालय, रेल परिवहन के विकास और रखरखाव के लिए नोडल प्राधिकरण है। यह विभन्‍न नीतियों के निर्माण और रेल प्रणाली के कार्य प्रचालन की देख-रेख करने में रत है। सहायक कंपनिया भारतीय रेल के कार्यचालन की विभिन्‍न पहलुओं की देखभाल करने के लिए इसने अनेकानेक सरकारी क्षेत्र के उपक्रम स्‍थापित किये हैं.:- रेल इंडिया टेक्‍नीकल एवं इकोनॉमिक सर्विसेज़ लिमिटेड (आर आई टी ई एस) इंडियन रेलवे कन्‍स्‍ट्रक्‍शन (आई आर सी ओ एन) अंतरराष्‍ट्रीय लिमिटेड इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई आर एफ सी) कंटनेर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सी ओ एन सी ओ आर) कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड (के आर सी एल) इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्‍म कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई आर सी टी सी ) रेलटेल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (रेलटेल) मुंबई रेलवे विकास कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एम आर वी सी लि) रेल विकास निगम लिमिटेड (आर वी एन आई) नेशनल हाई स्पीड रेल कार्पोरेशन लिमिटेड (ने हा स्पी रे का र्लि) अनुसंधान, डिज़ाइन और मानक संगठन: आरडीएसओ के अतिरिक्‍त लखनऊ में अनुसंधान और विकास स्‍कंध (आर एंड डी) भारतीय रेल का है। यह तकनीकी मामलों में मंत्रालय के परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। यह रेल विनिर्माण और डिज़ाइनों से संबद्ध अन्‍य संगठनों को भी परामर्श देता है। रेल सूचना प्रणाली के लिए भी केंद्र है (सीआरआईएस), जिसकी स्‍थापना विभिन्‍न कम्‍प्‍यूटरीकरण परियोजनाओं का खाका तैयार करने और क्रियान्‍वयन करने के लिए की गई है। इनके साथ-साथ छह उत्‍पादन यूनिटें हैं जो रोलिंग स्‍टॉक, पहिए, एक्‍सेल और रेल के अन्‍य सहायक संघटकों के विनिर्माण में रत हैं अर्थात, चितरंजन लोको वर्क्स; डीजल इंजन आधुनिकीकरण कारखाना; डीजल इंजन कारखाना; एकीकृत कोच फैक्‍टरी; रेल कोच फैक्‍टरी; और रेल पहिया फैक्‍टरी। क्षेत्र तथा मंडल thumb|right|भारतीय रेलके क्षेत्र प्रशासनिक सुविधा एवं रेलों के परिचालन की सुविधा की दृष्टि से भारतीय रेल को सत्रह क्षेत्र या जोन्स में बाँटा गया है। यद्यपि कोलकाता मेट्रो भारतीय रेल द्वारा ही संचालित होती है परंतु इसे किसी जोन में नहीं रखा गया है। प्रशासनिक रूप से इसे एक क्षेत्रीय रेलवे के रूप में देखा जाता है। हर जोन में कुछ रेलमंडल होते हैं, इस समय भारत में कुल 67 रेलमंडल है जो उपरोक्त 18 रेल-क्षेत्र (जोन) के अंतर्गत कार्य करते हैं। उत्पादन रेल ईंजन निर्माण केंद्र चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, चितरंजन (विद्युत इंजन) बनारस लोकोमोटिव वर्क्स, वाराणसी (डीजल इंजन विधुत इंजन) डीजल कम्पोनेट वर्क्स, पटियाला (डीजल इंजन के पूर्जे) टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कम्पनी लिमिटेड, चितरंजन (डीजल इंजन) डीजल लोकोमोटिव कंपनी, जमशेदपुर (डीजल इंजन) भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड, भोपाल (डीजल इंजन) रेल डिब्बे निर्माण केंद्र इंटीग्रल कोच फैक्ट्री पैराम्बूर (चेन्नई) बी.जी.डिब्बा निर्माण रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला (पंजाब) बी.जी. डिब्बा निर्माण चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, चितरंजन भारत अर्थमूवर्स लिमिटेड बेंगलुरु (कर्नाटक) जेसफ़ एंड कंपनी लिमिटेड, कोलकाता (पं.बंगाल) व्हील एंड एक्सेल, बेंगलुरु (कर्नाटक) रेलवे प्रशिक्षण केंद्र इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ मेकेनिकल एंड इलिक्ट्रोनिक, इंजीनियरिंग, जमालपुर। रेलवे स्टाफ कालेज, बड़ौदा इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल इंजीनियरिंग एंड हेली कम्यूनिकेशन, सिकंदराबाद। इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, पुणे इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, नासिक। सेवा भारतीय रेल के दो मुख्‍य सेवा हैं - भाड़ा/माल वाहन और सवारी। भाड़ा खंड लगभग दो तिहाई राजस्‍व जुटाता है जबकि शेष सवारी यातायात से आता है। भाड़ा खंड के भीतर थोक यातायात का योगदान लगभग 95 प्रतिशत से अधिक कोयले से आता है। वर्ष 2002-03 से सवारी और भाड़ा ढांचा यौक्तिकीकरण करने की प्रक्रिया में वातानुकूलित प्रथम वर्ग का सापेक्ष सूचकांक को 1400 से घटाकर 1150 कर दिया गया है। एसी-2 टायर का सापेक्ष सूचकांक 720 से 650 कर दिया गया है। एसी प्रथम वर्ग के किराए में लगभग 18 प्रतिशत की कटौती की गई है और एसी-2 टायर का 10 प्रतिशत घटाया गया है। 2005-06 में माल यातायात में वस्‍तुओं की संख्‍या 4000 वस्‍तुओं से कम करके 80 मुख्‍य वस्‍तु समूह रखा गया है और अधिक 2006-07 में 27 समूहों में रखा गया है। भाड़ा प्रभारित करने के लिए वर्गों की कुल संख्‍या को घटाकर 59 से 17 कर दिया गया है। सवारी सेवा रेलगाड़िया का प्रकार गतिमान एक्सप्रेस – दिल्ली से वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी के बीच 160 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार से चलने वाली रेल है। ये रेल हजरत निजामुद्दीन से वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी की 188 किमी दूरी मात्र 100 मिनट में तय कर लेती है| राजधानी एक्सप्रेस – ये रेलगाड़ी भारत के मुख्य शहरों को सीधे राजधानी दिल्ली से जोडती हुयी एक वातानुकूलित रेल है इसलिए इसे राजधानी एक्सप्रेस कहते है| ये भारत की सबसे तेज रेलगाड़ियो में शामिल है जो लगभग 130-140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक चल सकती है| इसकी शुरुआत 1969 में हुयी थी| शताब्दी एक्सप्रेस – शताब्दी रेल वातानुकूलित इंटरसिटी रेल है जो केवल दिन में चलती है| भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस भारत की सबसे तेज रेलों में से एक है जो दिल्ली से भोपाल के बीच चलती है| ये रेलगाड़ी 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुच सकती है| इसकी शुरुवात 1988 में हुयी थी| दुरन्त एक्सप्रेस – 2009 में में शुरू हुयी यह रेल सेवा एक नॉन स्टॉप रेल है जो भारत के मेट्रो शहरों और राज्यों की राजधानियों को आपस में जोडती है| इस रेल की रफ्तार लगभग राजधानी एक्सप्रेस के बराबर है| तेजस एक्सप्रेस – ये भी शताब्दी एक्सप्रेस की तरह पूर्ण वातानुकूलित रेलगाड़ी है लेकिन शताब्दी एक्सप्रेस से हटकर इसमें स्लीपर कोच भी है जो लम्बी दूरी के लिए काम आती है| उदय एक्सप्रेस – दो मंजिला , पूर्ण वातानुकूलित ,उच्च प्राथमिकता , सिमीत स्टॉप , रात्रि यात्रा के लिए अच्छी है| जनशताब्दी एक्सप्रेस – शताब्दी एक्सप्रेस की सस्ती किस्म , गति 130 किमी प्रति घंटा , AC और Non-AC दोनों है| गरीब रथ एक्सप्रेस – वातानुकूलित, गति अधिकतम 130 किमी प्रति घंटा, साधारण कोच से लेकर 3 टियर इकॉनमी बर्थ है| हमसफर एक्सप्रेस – पूर्ण वातानुकूलित 3 टियर AC कोच रेलगाड़ी संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस – राजधानी दिल्ली से जोडती सुपर एक्सप्रेस रेलगाड़ी| युवा एक्सप्रेस – 60 प्रतिशत से ज्यादा सीट 18-45 साल के यात्रियों के लिए रिज़र्व है| कवि गुरु एक्सप्रेस – रविन्द्रनाथ टैगोर के सम्मान में शुरू रेलगाड़ी है| विवेक एक्सप्रेस – स्वामी विवेकानंद की 150वी वर्षगांठ पर 2013 में शुरू है| राज्य रानी एक्सप्रेस – राज्यों की राजधानियों को महत्वपूर्ण शहरों से जोड़ती रेलगाड़ी है| महामना एक्सप्रेस – आधुनिक सुविधाओं युक्त रेलगाड़ी है| इंटरसिटी एक्सप्रेस – महत्वपूर्ण शहरों को आपस में जोड़ने के लिए छोटे रूट वाली गाडिया है| एसी एक्सप्रेस – ये पूर्ण वातानुकूलित रेलगाड़ी भारत के मुख्य शहरों को आपस में जोडती है | ये भी भारत की सबसे तेज रेलगाड़ियो से शामिल है जिसकी रफ्तार लगभग 130 किमी प्रति घंटा है| डबल डेकर एक्सप्रेस – ये भी शताब्दी एक्सप्रेस की तरह पूर्ण वातानुकूलित दो मंजिला एक्सप्रेस रेल है| ये केवल दिन के समय सफर करती है और भारत की सबसे तेज रेलों में शामिल है| सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस – लगभग 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली गाडिया है| अन्त्योदय एक्सप्रेस और जन साधारण एक्सप्रेस – पूर्ण रूप से अनारक्षित रेल है| पैसेंजर – हर स्टेशन पर रुकने वाली धीमी रेलगाड़ियां (40-80 किमी प्रति घंटा), जो सबसे सस्ती रेलगाड़ियां होती है| सबअर्बन रेल – शहरी इलाको जैसे मुम्बई ,दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदाराबाद, अहमदाबाद, पुणे आदि में चलने वाली रेलगाड़ियां, जो हर स्टेशन पर रुकती है और जिसमे अनारक्षित सीट होती है| विश्व विरासत रेलगाड़िया दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जो पतली गेज की रेल व्यवस्था है उसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है। यह रेल अभी भी भाप से चलित इंजनों द्वारा खींची जाती है। आजकल यह न्यू जलपाईगुड़ी से सिलीगुड़ी तक चलती है। इस रास्ते में सबसे ऊँचाई पर स्थित स्टेशन घूम है। नीलगिरि पर्वतीय रेल जो पतली गेज की रेल व्यवस्था है इसे भी विश्व विरासत घोषित किया गया है। कालका शिमला रेलवे जो पतली गेज की रेल व्यवस्था है इसे भी विश्व विरासत घोषित किया गया है। पर्यटन रेलगाड़िया पैलेस आन व्हील्स डेकन ओडिसी महाराजा एक्सप्रेस इतर रेलगाड़िया समझौता एक्सप्रेस थार एक्सप्रेस जीवन रेखा एक्सप्रेस, भारतीय रेल की चलंत अस्पताल सेवा जो दुर्घटनाओं एवं अन्य स्थितियों में प्रयोग की जाती है। माल सेवा भाड़ा सेगमेंट में, IR भारत की लंबाई और चौड़ाई में औद्योगिक, उपभोक्ता और कृषि क्षेत्रों में विभिन्न वस्तुओं और ईंधनों की आपूर्ति करता है। आईआर ने माल व्यवसाय से होने वाली आय के साथ यात्री खंड को ऐतिहासिक रूप से सब्सिडी दी है। नतीजतन, माल ढुलाई सेवा लागत और वितरण की गति दोनों पर परिवहन के अन्य साधनों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इस नीचे की प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए, IR ने माल खंडों में नई पहल शुरू की है, जिसमें मौजूदा माल शेड को उन्नत करना, बहु-वस्तु मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स टर्मिनलों का निर्माण करने के लिए निजी पूंजी को आकर्षित करना, कंटेनर के आकार को बदलना, समय-समय पर मालवाहक गाड़ियों का परिचालन, और साथ में ट्विकिंग करना शामिल है। माल का मूल्य निर्धारण / उत्पाद मिश्रण। इसके अलावा, एंड-टू-एंड इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सॉल्यूशंस जैसे रोल-ऑन, रोल-ऑफ (RORO) सर्विस, कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन द्वारा 1999 में फ्लैटबेड ट्रेलरों पर ट्रकों को ले जाने के लिए एक सड़क-रेल प्रणाली का नेतृत्व किया गया, अब इसे बढ़ाया जा रहा है। भारत भर में अन्य मार्गों के लिए। शायद माल खंड में आईआर के लिए गेम चेंजर नए समर्पित फ्रेट कॉरिडोर हैं जो 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है। जब पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो 3300 किमी के आसपास फैले नए कॉरिडोर, लंबाई में 1.5 किमी तक की गाड़ियों के ठहराव का समर्थन कर सकते हैं। 100 किलोमीटर प्रति घंटे (62 मील प्रति घंटे) की गति से 32.5 टन एक्सल-लोड। साथ ही, वे घने यात्री मार्गों पर क्षमता को मुक्त कर देंगे और आईआर को उच्च गति पर अधिक ट्रेनें चलाने की अनुमति देंगे। देश में माल ढाँचे को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त गलियारों की योजना बनाई जा रही है। इन्हें भी देखें रेल मंत्रालय, भारत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय रेल हिंदी में आधिकारिक जालस्थल भारतीय रेल ऑनलाइन टिकट बुक आधिकारिक जालस्थल पत्र सूचना कार्यालय का जालस्थल भारतीय रेल सहायता वेबसाइट * रेल श्रेणी:भारत में रेल परिवहन
जबलपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/जबलपुर
जबलपुर भारत के मध्यप्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय तथा राज्य न्यायिक अकादमी जहाँ मध्यप्रदेश राज्य के समस्त न्यायधीशों की ट्रेनिंग होती है। तथा राज्य विज्ञान संस्थान है। इसे मध्यप्रदेश की 'संस्कारधानी' तथा जबलपुर को मध्यप्रदेश की न्यायिक राजधानी भी कहा जाता है। थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय आयुध निर्माणियों के कारखाने तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। इतिहास पुराणों और किंवदंतियों के अनुसार इस शहर का नाम पहले जबालिपुरम् था, क्योंकि इसका सम्बंध महर्षि जबालि से जोड़ा जाता है। जिनके बारे में कहा जाता है कि वह यहीं निवास करते थे। 1781 के बाद ही मराठों के मुख्यालय के रूप में चुने जाने पर इस नगर की सत्ता बढ़ी, बाद में यह सागर और नर्मदा क्षेत्रों के ब्रिटिश कमीशन का मुख्यालय बन गया। यहाँ 1864 में नगरपालिका का गठन हुआ था। एक पहाड़ी पर मदन महल का किला स्थित है, जो लगभग 1100 ई. में राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया एक पुराना गोंड किला है जिसका निर्माण सामरिक उद्देश्य से किया गया था. इसमें आवासीय व्यवस्था नहीं थी । इसके ठीक पश्चिम में गढ़ है, जो 14वीं शताब्दी के चार स्वतंत्र गोंड राज्यों का प्रमुख नगर था। भेड़ाघाट, ग्वारीघाट और जबलपुर से प्राप्त जीवाश्मों से संकेत मिलता है कि यह प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण युग के मनुष्य का निवास स्थान था। मदन महल, नगर में स्थित कई ताल और गोंड राजाओं द्वारा बनवाए गए कई मंदिर इस स्थान की प्राचीन महिमा की जानकारी देते हैं। इस क्षेत्र में कई बौद्ध, हिन्दू और जैन भग्नावशेष भी हैं। कहते है कि जबलपुर में स्थ‍ित ५२ प्राचीन ताल तलेैयों ने यहाँ की पहचान को बढाया, इनमें से अब कुछ ही तालाब शेष बचे हैं परन्तु उन प्राचीन ताल तलैयों के नाम अभी तक प्रचलित हैं। जिनमें से कुछ निम्न हैं; अधारताल, रानीताल, चेरीताल, हनुमानताल, फूटाताल, मढाताल, हाथीताल, सूपाताल, देवताल, कोलाताल, बघाताल, ठाकुरताल, गुलौआ ताल, माढोताल, मठाताल, सुआताल, खम्बताल, गोकलपुर तालाब, शाहीतालाब, महानद्दा तालाब, उखरी तालाब, कदम तलैया, भानतलैया, श्रीनाथ की तलैया, तिलकभूमि तलैया, बैनीसिंह की तलैया, तीनतलैया, लोको तलैया, ककरैया तलैया, जूडीतलैया, गंगासागर, संग्रामसागर। जबलपुर भेड़ाघाट मार्ग पर स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ संस्कृत के कवि राजशेखर से सम्बंधित है । भौगोलिक स्थिति विंध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित यह नगर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। जबलपुर भारत के प्रमुख शहरों दिल्ली हैदराबाद अहमदाबाद पुणे कोलकाता तथा मुंबई से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार जबलपुर नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या 14,44,667 है, जबलपुर छावनी क्षेत्र की जनसंख्या 102,482 और जबलपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 24,63,289 है। उद्योग और व्यापार यह नगर सामरिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, यहाँ तोपगाड़ी बनाने का केंद्रीय कारख़ाना शस्त्र निर्माण कारख़ाना और एक शस्त्रागार स्थित है। यहाँ के प्रमुख उद्योगों में खाद्य प्रसंस्करण, आरा मिल और विभिन्न निर्माण शामिल हैं। रेडीमेड वस्त्र उत्पादन जबलपुर रेडीमेड वस्त्र उद्योग - सलवार-सूट , शर्ट, का प्रमुख उत्पादक केंद्र बन गया है। कृषि तथा खनिज इसके आसपास के क्षेत्रों में नर्मदा नदी घाटी के पश्चिमी छोर पर स्थित एक अत्यधिक उपजाऊ, गेहूँ की खेती वाला इलाक़ा हवेली शामिल है। चावल, ज्वार चना और तिलहन आसपास के क्षेत्रों की अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें हैं। यहाँ लौह अयस्क, चूना-पत्थर बॉक्साइट, चिकनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी, शैलखड़ी, फ़ेल्सपार, मैंगनीज और गेरू का व्यापक पैमाने पर खनन होता है। शिक्षा इस शहर के विश्वविद्यालय निम्न हैं- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जबलपुर DSNLU शासकीय महाकोशल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय स्वशासी जबलपुर कृषि महाविद्यालय चिकित्सा महाविद्यालय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस चिकित्सा महाविद्यालय नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय आभियांत्रिकी महाविद्यालय right|thumb|300px|जबलपुर अभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर अभियांत्रिकी महाविद्यालय तक्षशिला इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी लक्ष्मी नारायण प्रौद्योगिकी महाविद्यालय पी.डी.पी.एम. भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी, अभिकल्पन एवं विनिर्माण संस्थान हितकारिणी प्रौद्योगिकी व अभियांत्रिकी महाविद्यालय श्री राम प्रौद्योगिकी संस्थान - [एसआरआईटी] संगीत कला भातखंडे संगीत कला महाविद्यालय संभागीय बालभवन शासकीय ललित कला महाविद्यालय प्रसिद्ध स्थल right|thumb|300px|भेड़ाघाट right|thumb|300px|हनुमान ताल बड़ा जैन मन्दिर right|thumb|300px|मदन महल रानी दुर्गावती का मदन महल - मदन महल का किला सन् १११६ में राजा मदन शाह द्वारा बनवाया गया था। जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने 'संस्‍कारधानी का नाम दिया था। भेड़ाघाट- भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चौंसठ योगिनी मंदिर इसके समीप ही स्थित है - धुंआधार जलप्रपात, भेड़ाघाट एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। मंदिर त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर बाजना मठ: बाजना मठ, रेलवे स्टेशन से करीब ८ कि॰मी॰ की दूरी पर मेडीकल कालेज से, तिलवारा घाट रोड पर स्तिथ है, इस मन्दिर में "श्री बाबा बटुक भैरवनाथ जी"* विराजमान हैं। प्रति शनिवार को इस मन्दिर में भक्तों की इतनी भीड होती है कि मन्दिर के अन्दर उनके द्वारा जलाई गयी अगरबत्तीयों से निकले धुएं के कारण कुछ भी दिखायी नहीं देता। कुछ लोग इस मन्दिर को तान्त्रिक मन्दिर मानते हैं। गुप्तेश्वर मन्दिर पच-मठा रामलला हनुमानजी मंदिर ग्वारीघाट छोटे महावीर मंदिर शनि मंदिर तिलवारा बूढी खेरमाई कचनार सिटी - शिव जी की विशाल मूर्ति घाट भेड़ाघाट तिलवारा घाट जिलहरी घाट ग्वारीघाट उमा घाट खारी घाट लम्हेटा घाट सिध्दघाट दरोगा घाट सरस्वती घाट झांसीघाट गौरैयाघाट घाट पिंडरई भि‍टौली घाट इसे भटौलीघाट नाम से जानते हैं जमतरा घाट नन्द‍िकेश्वर घाट प्रसिद्ध व्यक्ति right|thumb|300px|जबलपुर के व्यौहार महल की सीढ़ियों पर गांधीजी को चढ़ाने में सहायता करते हुए व्यौहार राजेन्द्र सिंह सेठ गोविन्द दास व्यौहार राजेन्द्र सिंह द्वारका प्रसाद मिश्र, पूर्व मुख्य मंत्री, मध्य प्रदेश महर्षि महेश योगी सुभद्रा कुमारी चौहान, भारतीय कवयित्री हरिशंकर परसाई, भारतीय व्यंग्यकार पन्नालाल श्रीवास्तव "नूर" पंडित रामेश्वर गुरु केशव पाठक भवानी प्रसाद तिवारी भूपेंद्र नाथ कौशिक रामेश्वर शुक्ल अंचल अमृतलाल वेगड़ , भारतीय पर्यावरणविद अर्जुन रामपाल, भारतीय अभिनेता बृजेश मिश्र, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, भारत प्रेमनाथ राजिंदर नाथ रघुवीर यादव पुष्पा जोशी मुस्कान किरार, भारतीय महिला तीरंदाज श्रेया अग्रवाल, भारतीय महिला निशानेबाज बाहरी कड़ियाँ जबलपुर के बारे में विस्तृत जानकारी से सम्पन्न जालस्थल पलपलइंडिया डॉट कॉम, जबलपुर के बारे में विस्तृत समाचार पत्र नगर पालिक निगम, जबलपुर द्वारा संचालित डिजिटल पुस्तकालय जबलपुर दर्शनीय स्थल टीन का पुरा श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर श्रेणी:जबलपुर ज़िला श्रेणी:जबलपुर ज़िले के नगर *
मध्यप्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/मध्यप्रदेश
REDIRECTमध्य प्रदेश
इंडियन रेलवे
https://hi.wikipedia.org/wiki/इंडियन_रेलवे
REDIRECTभारतीय रेल
भारतीय अर्थव्यवस्था
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भारतीय अर्थव्यवस्था की एक झलक 1मुद्रा1 रुपया (रु) = 100 पैसावित्तीय वर्ष1 अप्रेल - 31 मार्चPerCapitaरोजगारी दर10.19प्रति व्यक्ति आय2900$रोजगार क्षमता47963.2 करोड़GDPसकल घरेलू उत्पाद वास्तविक वृद्धि दर8.3%सकल घरेलू उत्पाद में स्थानcolspan="2" valign="top"सौंवासकल घरेलू उत्पाद2.94 लाख करोङ (2021)व्यवसाय द्वारा श्रमिक क्षमता (२०१९)प्राइमरी(42.60%), सेकेण्डरी(25.12%), सेवा (32.28%)राज्यगरीबी रेखा से नीचे की आबादी25%सकल घरेलू उत्पाद विभिन्न क्षेत्रों मेंप्राइमरी (18.8%), सेकेण्डरी (28.2%), सेवा क्षेत्र (53%)मुख्य उत्पादउद्यान विज्ञान, चावल, गेहूँ, तिलहन, कपास, जूट, चाय, गन्ना, आलू; पशु, भैंस, भेंड़, बकरी, मुर्गी; मत्सय मुख्य उद्योगवस्त्र उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, औषध उद्योग, रसायन, इस्पात, यातायात के उपकरण, सीमेंट, खनन, पेट्रोलियम, भारी मशीनें, साफ्टवेयरमुख्य व्यापार कच्चा तेल, मशीनें, जवाहरात, उर्वरक, रासायन, कपड़े, जवाहरात और गहने, इंजिनयरिंग के सामान, रासायन, आर्थिक सहयोगीमुद्रास्फीति दर3.8%निर्यात(2021-2022)421.88 अरब डॉलरआयात (2021-2022)612.608 अरब डॉलरमुख्य सहयोगी (2003)संराअमेरिका 6.4%, ब्रिटेन 4.8%, बेल्जियम 5.6%, जापान,सिंगापुर 4%, रूस 4.3%,मुख्य सहयोगी (2001)संराअमेरिका २०.६%, ब्रिटेन ५.३%, जापान/हांगकांग ४.८%, जर्मनी ४.४%, चीन ६.४%, आर्थिक संगठन (सदस्य)साफ्टा, आसियान और विश्व व्यापार संगठनसार्वजनिक वित्त आय ८६.६९ अरब डॉलरव्यय१०१.१ अरब डॉलरपूँजी व्यय१३.५ अरब डॉलरवित्तीय सहायता ग्रहण (१९९८/९९)२.९ अरब डॉलरबाहरी ऋण१०१.७ अरब डॉलरऋण१.८१०७०१ अरब डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का ५९.७%) भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है, जनसंख्या में भारत का स्थान दूसरा था, किंतु वर्ष 2023 के मध्य से प्रथम स्थान पर है और केवल 2.4% क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व की जनसंख्या के 17.76% भाग को शरण प्रदान करता है। 1991 से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है। सुधारों से पूर्व मुख्य रूप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियन्त्रण का बोलबाला था और सुधार लागू करने से पूर्व इसका जोरदार विरोध भी हुआ परन्तु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से विरोध काफी हद तक कम हुआ है। हालाँकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुआ हैं। पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों (सांकेतिक) के आधार पर विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अप्रैल २०१४ में जारी रिपोर्ट में वर्ष २०११ के विश्लेषण में विश्व बैंक ने "क्रयशक्ति समानता" (परचेज़िंग पावर पैरिटी) के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किया। बैंक के इंटरनैशनल कंपेरिजन प्रोग्राम (आईसीपी) के 2011 राउंड में अमेरिका और चीन के बाद भारत को स्थान दिया गया है। 2005 में यह 10वें स्थान पर थी। २००३-२००४ में भारत विश्व में १२वीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था थी। संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (यूएनएसडी) के राष्ट्रीय लेखों के प्रमुख समाहार डाटाबेस, दिसम्बर 2013 के आधार पर की गई देशों की रैंकिंग के अनुसार वर्तमान मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार भारत की रैंकिंग 10 और प्रति व्यक्ति सकल आय के अनुसार भारत विश्व में 161वें स्थान पर है।सन २००३ में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से विश्व बैंक के अनुसार भारत का 143 वाँ स्थान था। इतिहास आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दुनिया की कुल जीडीपी का 32.9% था; 1000 में यह 28.9% था; और 1700 में 24.4% लेकिन उस दौरान आर्थिक प्रगति जनसंख्या वृद्धि से जुड़ी हुई थी क्योंकि वे कोई मशीन या तकनीकी नवाचार नहीं थे।अंगस मैडिसन (Angus Maddison) 'द वर्ड इकनॉमी : अ इलेनिअल परस्पेक्टिव' ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण व दोहन हुआ जिसके फलस्वरूप 1947 में आज़ादी के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सुनहरी इतिहास का एक खंडहर मात्र रह गई। आज़ादी के बाद से भारत का झुकाव समाजवादी प्रणाली की ओर रहा। सार्वजनिक उद्योगों तथा केंद्रीय आयोजन को बढ़ावा दिया गया। बीसवीं शताब्दी में सोवियत संघ के साथ साथ भारत में भी इस प्रणाली का अंत हो गया। 1991 में भारत को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जिसके फलस्वरूप भारत को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद नरसिंह राव की सरकार ने वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देशन में आर्थिक सुधारों की लंबी कवायद शुरु की जिसके बाद धीरे धीरे भारत विदेशी पूँजी निवेश का आकर्षण बना और संराअमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना। १९९१ के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता का दौर आरम्भ हुआ। इसके बाद से भारत ने प्रतिवर्ष लगभग 8% से अधिक की वृद्धि दर्ज की। अप्रत्याशित रूप से वर्ष २००३ में भारत ने ८.४ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का एक संकेत समझा गया। यही नहीं 2005-06 और 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक 9 प्रतिशत से अधिक की अभूतपूर्व विकास दर प्राप्त की। कुल मिलाकर 2004-05 से 2011-12 के दौरान भारत की वार्षिक विकास दर औसतन 8.3 प्रतिशत रही किंतु वैश्विक मंदी की मार के चलते 2012-13 और 2013-14 में 4.6 प्रतिशत की औसत पर पहुंच गई। लगातार दो वर्षों तक 5 प्रतिशत से कम की स.घ.उ. विकास दर, अंतिम बार 25 वर्ष पहले 1986-87 और 1987-88 में देखी गई थी। सकल घरेलू उत्पाद अंगूठाकार|300px 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद भारतीय रूपयों में - 113550.73 अरब रुपये था। आंकड़ा श्रेणियां 2009-10 2010-11 2011-12 2012-13 2013-14 स.घ.उ. (रु करोड़) (वर्तमान बाजार मूल्य) 6477827 7784115 9009722 10113281 11355073वृद्धि दर (%) 15.1 20.2 15.7 12.2 12.3 स.घ.उ. (रु करोड़) (घटक लागत 2004-05 के मूल्य पर) 4516071 4918533 5247530 5482111 5741791वृद्धि दर (%) 8.6 8.9 6.7 4.5 4.7प्रति व्यक्ति निवल राष्ट्रीय आय(मौजूदा कीमतों पर उपादान लागत) 46249 54021 61855 67839 4380 center|thumb|550px|1990 के बाद भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) तेजी से बढ़ा है। विभिन्न क्षेत्रों का योगदान किसी समय में भारत कृषि प्रधान देश था किंतु नए आँकड़े बताते हैं कि यह देश अपनी विकास की यात्रा में काफी आगे निकल गया है तथा विकसित देशों के इतिहास को दोहराते हुए द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का योगदान जीडीपी में बढ़ोतरी का रुझान दर्शा रहा है। आंकड़ा श्रेणियां 1999-2000 2007-08 2012-13 2013-14 (अनुमान) प्राथमिक क्षेत्र (कृषि और सहबद्ध) 23.2 16.8 13.9 13.9 द्वितीयक क्षेत्र (उद्योग, खनन, विनिर्माण) 26.8 28.7 27.3 26.1 तृतीयक क्षेत्र (सेवाएँ - व्यापार, होटल, परिवहन, संचार, वित्त बीमा आदि) 50.00 54.4 58.8 59.9 भारत बहुत से उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादको में से है। इनमें प्राथमिक और विनिर्मित दोनों ही आते हैं। भारत दूध का सबसे बडा उत्पादक है ओर गेंहू, चावल, चाय,चीनी, और मसालों के उत्पादन में अग्रणियों मे से एक है यह लौह अयस्क, वाक्साईट, कोयला और टाईटेनियम के समृद्ध भंडार हैं। यहाँ प्रतिभाशाली जनशक्ति का सबसे बडा पूल है। लगभग २ करोड भारतीय विदेशों में काम कर रहे है। और वे विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। भारत विश्व में साफ्टवेयर इंजीनियरों के सबसे बडे आपूर्ति कर्त्ताओं में से एक है और सिलिकॉन वैली में सयुंक्त राज्य अमेरिका में लगभग ३० % उद्यमी पूंजीपति भारतीय मूल के है। भारत में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या अमेरिका के पश्चात दूसरे नम्बर पर है। लघु पैमाने का उद्योग क्षेत्र, जोकि प्रसार शील भारतीय उद्योग की रीड की हड्डी है, के अन्तर्गत लगभग ९५% औद्योगिक इकाईयां आती है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन का ४०% और निर्यात का ३६% ३२ लाख पंजीकृत लघु उद्योग इकाईयों में लगभग एक करोड ८० लाख लोगों को सीधे रोजगार प्रदान करता है। वर्ष २००३-२००४ में भारत का कुल व्यापार १४०.८६ अरब अमरीकी डालर था जो कि सकल घरेलु उत्पाद का २५.६% है। भारत का निर्यात ६३.६२% अरब अमरीकी डालर था और आयात ७७.२४ अरब डालर। निर्यात के मुख्य घटक थे विनिर्मित सामान (७५.०३%) कृषि उत्पाद (११.६७%) तथा लौह अयस्क एवं खनिज (३.६९%)। वर्ष २००३-२००४ में साफ्टवेयर निर्यात, प्रवासी द्वारा भेजी राशि तथा पर्यटन के फलस्वरूप बाह्य अर्जन २२.१ अरब अमेरिकी डॉलर का हो गया। center|thumb|650px|१९५१ से २०१४ तक भारत की आर्थिक विकास दर विदेशी मुद्रा भंडार जून २०२१ तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार 605.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया। अमेरिकी डॉलर की कीमत 75 रुपए के स्तर पर जा पहुँची आंकड़ा श्रेणियां 2009-10 2010-11 2011-12 2012-13 2013-14 विदेशी मुद्रा भंडार(बिलियन अमेरिकी डॉलर) 279.1 304.8 294.4 292.0 304.2औसत विनिमय दर(रु / अमेरिकी डॉलर) 47.44 45.56 47.92 54.41 60.5 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वैश्विक निर्यातों और आयातों में भारत का हिस्सा वर्ष 2000 में क्रमशः 0.7 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत से बढ़ता हुआ वर्ष 2013 में क्रमशः 1.7 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत हो गया। भारत के कुल वस्तु व्यापार में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है जिसका सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा 2000-01 के 21.8 प्रतिशत से बढ़कर 2013-14 में 44.1 प्रतिशत हो गया। भारत का वस्तु निर्यात 2013-14 में 312.6 बिलियन अमरीकी डॉलर (सीमा शुल्क आधार पर) तक जा पहुंचा। इसने 2012-13 के दौरान की 1.8 प्रतिशत के संकुचन की तुलना में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। 2012-13 की तुलना में 2013-14 में आयातों के मूल्य में 8.3 प्रतिशत की गिरावट हुई जिसकी वजह तेल-भिन्न आयातों में 12.8 प्रतिशत की गिरावट रही। सरकार द्वारा किए गए अनेक उपायों के कारण सोने का आयात 2011-12 के 1078 टन से कम होकर 2012-13 में 1037 टन तथा और कम होकर 2013-14 में 664 टन रह गया। मूल्य के संदर्भ में, सोने और चांदी के आयात में 2013-14 में 40.1 प्रतिशत की गिरावट हुई और वह 33.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया। 2013-14 में आयातों में हुई जबरस्त गिरावट और साधारण निर्यात वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत का व्यापार घाटा 2012-13 के 190.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से कम होकर 137.5 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया जिससे चालू व्यापार घाटे में कमी आई। चालू खाता घाटा 2012-13 में कैड में भारी वृद्धि हुई और यह 2011-12 के 78.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से कहीं अधिक 88.2 बिलियन अमरीकी डॉलर (स.घ.उ. का 4.7 प्रतिशत) के रिकार्ड स्तर पर जा पहुंचा। सरकार द्वारा शीघ्रतापूर्वक किए गए कई उपायों जैसे सोने के आयात पर प्रतिबंध आदि के परिणामस्वरूप, व्यापार घाटा 2012-13 के 10.5 प्रतिशत से घटकर 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद का 7.9 प्रतिशत रह गया। विदेशी ऋण भारत का विदेशी ऋण स्टॉक मार्चांत 2012 के 360.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले मार्चांत 2013 में 404.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था। दिसम्बर 2013 के अंत तक यह बढ़कर 426.0 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। चूंकि एक बिलियन डॉलर = एक अरब डॉलर इसलिए 426 बिलियन डॉलर = 426अरब डॉलर अब चूंकि एक डाॅलर= 60 रुपये इसलिए 426 अरब डॉलर = 426*60 अरब रुपये अर्थात 25560 अरब रुपये अर्थात 25560*100 करोड़ रुपये =2556000 करोड़ रुपये =पच्चीस लाख छप्पन हजार करोड़ रुपये। रोजगार भारत में रोजगार देने में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान रंगराजन सी॰, सीमा और ई॰एम॰ विबीश (2014), ‘डेवल्पमेंट्स इन दि वर्कफोर्स बिटवीन 2009-10 एंड 2011-12, इकनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली, वाल्यूम XLIX (23)A : क्षेत्र/वर्ष 1999-2000 2004-05 2011-12 प्राथमिक (कृषि आदि) 59.9 58.5 48.9 द्वितीयक (उद्योग आदि) 16.4 18.2 24.3 तृतीयक (सेवाएँ) 23.7 23.3 26.9 कर प्रणाली भारत के केन्द्र सरकार द्वारा अर्जित आयकेन्द्रीय बजट दस्तावेज और लेखा महानियंत्रक (सीजीए)। : आँकड़े करोड़ रुपयों में नोट: १ करोड़ = १० मिलियन Head 2009-10 2010-11 2011-12 2012-13 2013-14व्यक्तिगत आयकर 122475 139069 164485 196512 237789निगम कर 244725 298688 322816 356326 394677कुल प्रत्यक्ष कर || 367648 || 438477 || 488113 || 553705 || 633473 कस्टम 83324 135813 149328 165346 172132एक्साईज़ 102991 137701 144901 175845 169469 सेवा कर (सर्विस टैक्स) 58422 71016 97509 132601 154630कुल अप्रत्यक्ष कर || 244737 || 344530 || 391738 || 473792 || 496231 कुल कर राजस्व || 624528 || 793072 || 889177 || 1036235 || 1133832नोट- योग में अंतर "अन्य" करों के कारण है। राजसहायता (सब्सिडी) भारत में राजसहायता प्राप्त प्रमुख मदों की सूची तथा 2013-14 के आँकड़े व 2014-15 के बजट प्रावधान इस प्रकार हैं: मद 2014-15 (बजट प्रावधान) 2013-14 (जुलाई 2014 के संशोधित अनुमान) उर्वरक सब्सिडी 67970.30 67971.50 खाद्य सब्सिडी 115000.00 92000.00 पैट्रोलियम सब्सिडी 63426.95 85480.00 ब्‍याज सब्सिडी 8462.88 8174.85 अन्‍य सब्सिडी 847.49 1889.90 2008-09 के बाद से केन्द्रीय राजस्व घाटे में बढ़त कराने वाले प्रधान कारणों में से एक कारण सब्सिडियों का उत्तरोत्तर बढ़ते जाना रहा है। लेखा महानियंत्रक (सीजीए) के अनंतिम वास्तविक आंकड़ों के अनुसार, 2013-14 में प्रधान सब्सिडियों का योग 2,47,596 करोड़ रुपए था। सब्सिडियों में तीव्र वृद्धि हुई है जो 2007-08 में स.घ.उ. के 1.42 प्रतिशत से बढ़ती हुई 2012-13 में स.घ.उ. के 2.56 प्रतिशत हो गई, 2013-14 (संशोधित अनुमान) के अनुसार यह स.घ.उ. का 2.26 प्रतिशत थी। उर्वरक सब्सिडी का अंशतः विनियंत्रण हुआ है, इसी प्रकार पेट्रोल की कीमतें विनियंत्रित कर दी गई हैं तथा डीजल की कीमतों में 50 पैसे प्रति लीटर की मासिक बढ़ोतरी करायी जा रही है। लॉकडाउन अथर्व्यवस्था प्रभाव अप्रैल-दिसम्बर 2021 तक की अवधि में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के हुए निर्यात के वास्तविक आंकड़ों को देखते हुए अब यह कहा जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के पार हो जाने की प्रबल सम्भावना है। जिस गति से वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ रहे हैं उससे अब यह माना जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 100,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर सकता है, जो कि अपने आप में एक इतिहास रच देगा।भारत एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात की ओर अग्रसर, बनेगा इतिहास भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आंकड़े नीचे दी गयी सारणी में १९८० से लेकर १९२२ तक के भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख आर्थिक संसूचक (इंडिकेटर्स) को दर्शाया गया है। जहाँ मुद्रास्फीति ५% से कम है उसे हरे रंग में दर्शाया गया है। वार्षिक बेरोजगारी की दर विश्व बैंक के आकड़ों से लिया गया है, यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष इन आंकड़ों को अविश्वसनीय मानता है। वर्षGDP(in Bil. US$PPP)GDP प्रति व्यल्ति(in US$ PPP)GDP(in Bil. US$nominal)GDP प्रति व्यक्ति(in US$ nominal)GDP growth(real)मुद्रास्फीति की दर(in Percent)बेरोजगारी(in Percent)सरकारी ऋण(in % of GDP)1980371.9532.0189.4271.06.74%11.3%n/an/a1981431.5603.2196.5274.76.01%12.7%n/an/a1982474.1647.5203.5278.03.5%7.7%n/an/a1983528.6705.3222.0296.37.3%12.6%n/an/a1984568.6741.4215.6281.13.8%5.2%n/an/a1985617.4787.1237.6302.95.3%5.56%n/an/a1986659.9822.8252.8315.24.8%7.8%n/an/a1987703.0857.7283.8346.24.0%9.1%n/an/a1988797.9952.7299.6357.810.18%7.2%n/an/a1989878.51,027.0301.2352.25.9%4.6%n/an/a1990961.81,101.3326.6374.05.5%11.2%n/an/a19911,004.81,127.4274.8308.41.1%13.5%5.6%75.3%19921,084.11,192.2293.3322.55.5%9.9%5.7%77.4%19931,162.51,253.5284.2306.44.8%7.3%5.7%77.0%19941,266.41,339.2333.0352.26.7%10.3%5.7%73.5%19951,390.81,442.9366.6380.37.6%10.0%5.8%69.7%19961,523.21,550.6399.8407.07.6%9.4%5.7%66.0%19971,612.31,610.8423.2422.84.1%6.8%5.6%67.8%19981,731.21,698.1428.8420.66.2%13.1%5.7%68.1%19991,904.21,834.4466.9449.88.5%5.7%5.7%70.0%20002,024.71,916.3476.6451.14.0%3.8%5.6%73.6%20012,172.72,021.1494.0459.54.9%4.3%5.6%78.7%20022,292.82,097.1524.0479.23.9%4.0%5.5%82.9%20032,523.82,270.6618.4556.37.9%3.9%5.6%84.4%20042,795.02,474.2721.6638.87.8%3.8%5.6%83.4%20053,150.32,745.1834.2726.99.3%4.4%5.6%81.0%20063,548.33,044.5949.1814.49.3%6.7%5.6%77.2%20074,001.43,381.81,238.71,046.910.3%6.2%5.6%74.1%20084,236.83,528.71,224.11,019.53.9%9.1%5.4%72.8%20094,625.53,798.51,365.41,121.27.9%12.3%5.5%71.5%20105,161.44,181.71,708.51,384.28.5%10.5%5.5%66.4%20115,618.44,493.71,823.11,458.16.6%9.5%5.4%68.6%20126,153.24,861.21,827.61,443.95.5%10.0%5.4%68.0%20136,477.55,057.21,856.71,449.66.4%9.4%5.4%67.7%20146,781.05,233.92,039.11,573.97.4%5.8%5.4%67.1%20157,159.85,464.92,103.61,605.68.0%4.9%5.4%69.0%20167,735.05,839.92,294.81,732.68.3%4.5%5.4%68.9%20178,276.96,112.12,702.91,958.06.8%3.6%5.4%69.7%20189,023.06,590.92,702.91,974.46.5%3.4%5.3%70.4%20199,540.46,897.82,835.62,050.24.2%4.8%5.3%75.0%20209,101.36,517.82,671.61,913.2-5.8%6.1%8.0%88.5%202110,370.87,355.43,150.32,234.39.1%5.5%6.0%83.7%202211,900.78,397.53,389.72,391.97.2%6.7%7.3%81.0%202313,119.69,183.43,732.22,612.56.3%5.5%8.7%81.9%202414,261.29,891.84,105.42,847.66.3%4.6%n/a82.3%202515,469.110,634.64,511.83,101.86.3%4.1%n/a82.2%202616,765.211,426.44,951.63,374.86.3%4.1%n/a81.8%202718,155.712,270.85,427.43,668.26.3%4.0%n/a81.2%202819,650.213,173.35,944.43,985.06.3%4.0%n/a80.5% इन्हें भी देखें भारत का आर्थिक इतिहास भारतीय अर्थव्यवस्था की समयरेखा ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था भारत का आर्थिक विकास भारत का विदेश व्यापार दस खरब डॉलर क्लब सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत के वित्त मंत्रालय का आधिकारिक जालस्थल ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था (स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन) भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना (फरवरी २०२०) आईएचएस मार्किट का दावा: भारत 2030 तक एशिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, ब्रिटेन और जर्मनी को भी छोड़ देगा पीछे (८ जनवरी, २०२२) मोदी राज में अर्थव्यवस्था मजबूत: सबसे तेज रहेगी भारत की विकास दर (१४ जनवरी २०२२) UN ने लगाया अनुमान, सबसे तेजी से बढ़ेगी भारतीय अर्थव्यवस्था (मई, २०२२) IMF 'corrects' maths, says India to be $5-trillion economy by FY27 (२० मई, २०२२) २०२७ तक जापान और जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बनेगा भारत (अगस्त २०२३) धुआंधार रफ्तार से दौड़ी इकॉनमी, तीसरी तिमाही में 8.4% ग्रोथ, धरे रह गए सारे अनुमान (मार्च २०२४) जब चीन-जापान परेशान, इंडियन GDP रिकॉर्डतोड़ कैसे? (मार्च, २०२४) श्रेणी:अर्थशास्त्र श्रेणी:एशिया की अर्थव्यवस्थाएँ श्रेणी:भारत की अर्थव्यवस्था
भारत की अर्थव्यवस्था
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REDIRECTभारतीय अर्थव्यवस्था
दिल्ली सल्तनत
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इतिहासकारों के मत से 1206 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत () या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। ये पाँच वंश थे- गुलाम वंश (1206 - 1290), ख़िलजी वंश (1290- 1320), तुग़लक़ वंश (1320 - 1414), सैयद वंश (1414 - 1451), तथा लोदी वंश (1451 - 1526)। इनमें से पहले चार वंश मूल रूप से तुर्क थे और आखरी अफगान था। मुहम्मद ग़ौरी का गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक, गुलाम वंश का पहला सुल्तान था। ऐबक का साम्राज्य पूरे उत्तर भारत तक फैला था। इसके बाद ख़िलजी वंश ने मध्य भारत पर कब्ज़ा किया लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप को संगठित करने में नाकाम रहा।प्रदीप बरुआ The State at War in South Asia, ISBN 978-0803213449, पृष्ठ 29-30 ,रिचर्ड ईटन (2000), Temple Desecration and Indo-Muslim States , Journal of Islamic Studies, 11(3), pp 283-319 पर इसने भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।A. Welch, “Architectural Patronage and the Past: The Tughluq Sultans of India,” Muqarnas 10, 1993, ब्रिल पब्लिशर, पृष्ठ 311-322जे. ए. पेज, Guide to the Qutb , Delhi, Calcutta, 1927, पृष्ठ 2-7 दिल्ली सल्तनत मुस्लिम इतिहास के कुछ कालखंडों में है जहां किसी महिला ने सत्ता संभाली।Bowering et al., The Princeton Encyclopedia of Islamic Political Thought, ISBN 978-0691134840, प्रिंसटन विश्विद्यालय प्रेस 1526 में मुगल सल्तनत द्वारा इस साम्राज्य का अंत हुआ। पृष्ठभूमि 962 ईस्वी में दक्षिण एशिया के हिन्दू और बौद्ध साम्राज्यों के ऊपर सेना द्वारा, जो कि फारस और मध्य एशिया से आए थे, व्यापक स्तर पर हमलें होने लगे।देखें: M. Reza Pirbha, Reconsidering Islam in a South Asian Context, ISBN 978-9004177581, Brill Richards J. F. (1974), The Islamic frontier in the east: Expansion into South Asia, Journal of South Asian Studies, 4(1), pp. 91-109 Sookoohy M., Bhadreswar - Oldest Islamic Monuments in India, ISBN 978-9004083417, Brill Academic; see discussion of earliest raids in Gujarat इनमें से महमूद गज़नवी ने सिंधु नदी के पूर्व में तथा यमुना नदी के पश्चिम में बसे साम्राज्यों को 997 इस्वी से 1030 इस्वी तक 17 बार लूटा।Peter Jackson (2003), The Delhi Sultanate: A Political and Military History, Cambridge University Press, ISBN 978-0521543293, pp 3-30 महमूद गज़नवी अपने साम्राज्य को पश्चिम पंजाब तक ही बढ़ा सका।T. A. Heathcote, The Military in British India: The Development of British Forces in South Asia:1600-1947, (Manchester University Press, 1995), pp 5-7Barnett, Lionel (1999), , Atlantic pp. 73–79 Richard Davis (1994), Three styles in looting India, History and Anthropology, 6(4), pp 293-317, परंतु वो भारत में स्थायी इस्लामिक शासन स्थापित न कर सके। इसके बाद गोर वंश के सुल्तान मोहम्मद ग़ौरी ने उत्तर भारत पर योजनाबद्ध तरीके से हमले करना आरम्भ किया।MUHAMMAD B. SAM Mu'izz AL-DIN, T.W. Haig, Encyclopaedia of Islam, Vol. VII, ed. C.E.Bosworth, E.van Donzel, W.P. Heinrichs and C. Pellat, (Brill, 1993) उसने अपने उद्देश्य के तहत इस्लामिक शासन को बढ़ाना शुरू किया।C.E. Bosworth, The Cambridge History of Iran, Vol. 5, ed. J. A. Boyle, John Andrew Boyle, (Cambridge University Press, 1968), pp 161-170 गोरी एक सुन्नी मुसलमान था, जिसने अपने साम्राज्य को पूर्वी सिंधु नदी तक बढ़ाया और सल्तनत काल की नीव डाली। कुछ ऐतेहासिक ग्रंथों में सल्तनत काल को 1192-1526 (334 वर्ष) तक बताया गया है।History of South Asia: A Chronological Outline Columbia University (2010) 1206 में गोरी की हत्या कर दी गई।Muʿizz al-Dīn Muḥammad ibn Sām Encyclopedia Britannica (2011) गोरी की हत्या के बाद उसके एक तुर्क गुलाम (या ममलूक, अरबी: مملوك) कुतुब-उद-दीन ऐबक ने सत्ता संभाली और दिल्ली का पहला सुल्तान बना। वंश ममलूक या गुलाम (1206 - 1290) कुतुब-उद-दीन ऐबक एक गुलाम था, जिसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। वह मूल रूप से तुर्क था। उसके गुलाम होने के कारण ही इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।जैक्सन पी. (1990), The Mamlūk institution in early Muslim India, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain & Ireland (New Series), 122(02), pp 340-358 ऐबक चार साल तक दिल्ली का सुल्तान बना रहा। उसकी मृत्यु के बाद 1210 इस्वी में आरामशाह ने सत्ता संभाली परन्तु उसकी हत्या इल्तुतमिश ने 1211 इस्वी में कर दी।सी.ई. बोसवर्थ, The New Islamic Dynasties, Columbia University Press (1996) इल्तुतमिश की सत्ता अस्थायी थी और बहुत से मुस्लिम अमीरों ने उसकी सत्ता को चुनौती दी। कुछ कुतुबी अमीरों ने उसका साथ भी दिया। उसने बहुत से अपने विरोधियों का क्रूरता से दमन करके अपनी सत्ता को मजबूत किया।Barnett & Haig (1926), A review of History of Mediaeval India, from ad 647 to the Mughal Conquest - Ishwari Prasad, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain & Ireland (New Series), 58(04), pp 780-783 इल्तुतमिश ने मुस्लिम शासकों से युद्ध करके मुल्तान और बंगाल पर नियंत्रण स्थापित किया, जबकि रणथम्भौर और शिवालिक की पहाड़ियों को हिन्दू शासकों से प्राप्त किया। इल्तुतमिश ने 1236 इस्वी तक शासन किया। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के बहुत से कमजोर शासक रहे जिसमे उसकी पुत्री रजिया सुल्ताना भी शामिल है। यह क्रम गयासुद्दीन बलबन, जिसने 1266 से 1287 इस्वी तक शासन किया था, के सत्ता सँभालने तक जारी रहा।Peter Jackson (2003), The Delhi Sultanate: A Political and Military History, Cambridge University Press, ISBN 978-0521543293, pp 29-48Anzalone, Christopher (2008), "Delhi Sultanate", in Ackermann, M. E. etc. (Editors), Encyclopedia of World History 2, ISBN 978-0-8160-6386-4 बलबन के बाद कैकूबाद ने सत्ता संभाली। उसने जलाल-उद-दीन फिरोज शाह खिलजी को अपना सेनापति बनाया। खिलजी ने कैकुबाद की हत्या कर सत्ता संभाली, जिससे गुलाम वंश का अंत हो गया। thumb|220px|अलई दरवाजा और कुतुबमीनार गुलाम और खिलजी वंश के दौरान बने। गुलाम वंश के दौरान, कुतुब-उद-दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार और कुवत्त-ए-इस्लाम (जिसका अर्थ है इस्लाम की शक्ति) मस्जिद का निर्माण शुरू कराया, जो कि आज यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासत स्थल है।Qutb Minar and its Monuments, Delhi युनेस्को क़ुतुब मीनार का निर्माण कार्य इल्तुतमिश द्वारा आगे बढ़ाया और पूर्ण कराया गया।Welch and Crane note that the Quwwatu'l-Islam was built with the remains of demolished Hindu and Jain temples; See: Anthony Welch and Howard Crane, The Tughluqs: Master Builders of the Delhi Sultanate , Muqarnas, Vol. 1, (1983), pp. 123-166 गुलाम वंश के शासन के दौरान बहुत से अफगान और फारस के अमीरों ने भारत में शरण ली और बस गए।Anthony Welch and Howard Crane, The Tughluqs: Master Builders of the Delhi Sultanate , Muqarnas, Vol. 1, (1983), pp. 123-166 खिलजी (1290 -1320) इस वंश का पहला शासक जलालुद्दीन खिलजी था। उसने 1290 इस्वी में गुलाम वंश के अंतिम शासक शम्सुद्दीन कैमुर्स की हत्या कर सत्ता प्राप्त की। उसने कैकुबाद को तुर्क, अफगान और फारस के अमीरों के इशारे पर हत्या की। जलालुद्दीन खिलजी मूल रूप से अफगान-तुर्क मूल का था। उसने 6 वर्ष तक शासन किया। उसकी हत्या उसके भतीजे और दामाद जूना खान ने कर दी।Holt et al., The Cambridge History of Islam - The Indian sub-continent, south-east Asia, Africa and the Muslim west, ISBN 978-0521291378, pp 9-13 जूना खान ही बाद में अलाउद्दीन खिलजी नाम से जाना गया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैन्य अभियान का आरम्भ कारा जागीर के सूबेदार के रूप में की, जहां से उसने मालवा (1292) और देवगिरी (1294) पर छापा मारा और भारी लूटपाट की। अपनी सत्ता पाने के बाद उसने अपने सैन्य अभियान दक्षिण भारत में भी चलाए। उसने गुजरात, मालवा, रणथम्बौर और चित्तौड़ को अपने राज्य में शामिल कर लिया।Alexander Mikaberidze, Conflict and Conquest in the Islamic World: A Historical Encyclopedia, ISBN 978-1598843361, pp 62-63 उसके इस जीत का जश्न थोड़े समय तक रहा क्योंकि मंगोलों ने उत्तर-पश्चिमी सीमा से लूटमार का सिलसिला शुरू कर दिया। मंगोलों लूटमार के पश्चात वापस लौट गए और छापे मारने भी बंद कर दिए।Rene Grousset - Empire of steppes, Chagatai Khanate; Rutgers Univ Pr,New Jersey, U.S.A, 1988 ISBN 0-8135-1304-9 मंगोलों के वापस लौटने के पश्चात अलाउद्दीन ने अपने सेनापति मलिक काफूर और खुसरों खान की मदद से दक्षिण भारत की ओर साम्राज्य का विस्तार प्रारंभ कर दिया और भारी मात्रा में लूट का सामान एकत्र किया।Frank Fanselow (1989), Muslim society in Tamil Nadu (India): an historical perspective, Journal Institute of Muslim Minority Affairs, 10(1), pp 264-289 उसके सेनापतियों ने लूट के सामान एकत्र किये और उस पर घनिमा (الْغَنيمَة, युद्ध की लूट पर कर) चुकाया, जिससे खिलजी साम्राज्य को मजबूती मिली। इन लूटों में उसे वारंगल की लूट में अब तक के मानव इतिहास का सबसे बड़ा हीरा कोहिनूर भी मिला। Hermann Kulke and Dietmar Rothermund, A History of India, 3rd Edition, Routledge, 1998, ISBN 0-415-15482-0 अलाउद्दीन ने कर प्रणाली में बदलाव किए, उसने अनाज और कृषि उत्पादों पर कृषि कर 20% से बढ़ाकर 50% कर दिया। स्थानीय आधिकारी द्वारा एकत्र करों पर दलाली को खत्म किया। उसने आधिकारियों, कवियों और विद्वानों के वेतन भी काटने शुरू कर दिए। उसकी इस कर नीति ने खजाने को भर दिया, जिसका उपयोग उसने अपनी सेना को मजबूत करने में किया। उसने सभी कृषि उत्पादों और माल की कीमतों के निर्धारण के लिए एक योजना भी पेश की। कौन सा माल बेचना, कौन सा नहीं उसपर भी उसका नियंत्रण था। उसने सहाना-ए-मंडी नाम से कई मंडियां भी बनवाई।AL Srivastava, Delhi Sultanate 5th Edition, , pp 156-158 मुस्लिम व्यापारियों को इस मंडी का विशेष परमिट दिया जाता था और उनका इन मंडियों पर एकाधिकार भी था। जो इन मंडियों में तनाव फैलाते थे उन्हें मांस काटने जैसी कड़ी सजा मिलती थी। फसलों पर लिया जाने वाला कर सीधे राजकोष में जाता था। इसके कारण अकाल के समय उसके सैनिकों की रसद में कटौती नहीं होती थी। अलाउद्दीन अपने जीते हुए साम्राज्यों के लोगों पर क्रूरता करने के लिए भी मशहूर है। इतिहासकारों ने उसे तानाशाह तक कहा है। अलाउद्दीन को यदि उसके खिलाफ किए जाने वाले षडयंत्र का पता लग जाता था तो वह उस व्यक्ति को पूरे परिवार सहित मार डालता था। 1298 में, उसके डर के कारण दिल्ली के आसपास एक दिन में 15,000 से 30,000 लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।Vincent A Smith, , Chapter 2, pp 231-235, Oxford University Press अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात 1316 में, उसके सेनापति मलिक काफूर जिसका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था और बाद में इस्लाम स्वीकार किया था, ने सत्ता हथियाने का प्रयास किया परन्तु उसे अफगान और फारस के अमीरों का समर्थन नहीं मिला। मलिक काफूर मारा गया। खिलजी वंश का अंतिम शासक अलाउद्दीन का 18 वर्षीय पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह था। उसने 4 वर्ष तक शासन किया और खुसरों शाह द्वारा मारा गया। खुसरों शाह का शासन कुछ महीनों में समाप्त हो गया, जब गाज़ी मलिक जो कि बाद में गयासुद्दीन तुगलक कहलाया, ने उसकी 1320 इस्वी में हत्या और गद्दी पर बैठा और इस तरह खिलजी वंश का अंत तुगलक वंश का आरम्भ हुआ। तुग़लक़ (1320-1414) thumb|दिल्ली सल्तनत १३२०-१३३० के दौरान तुगलक वंश ने दिल्ली पर 1320 से 1414 तक राज किया। तुगलक वंश का पहला शासक गाज़ी मलिक जिसने अपने को गयासुद्दीन तुगलक के रूप में पेश किया। वह मूल रूप तुर्क-भारतीय था, जिसके पिता तुर्क और मां हिन्दू थी। गयासुद्दीन तुगलक ने पाँच वर्षों तक शासन किया और दिल्ली के समीप एक नया नगर तुगलकाबाद बसाया।William Hunter (1903), , 23rd Edition, pp. 124-127 कुछ इतिहासकारों जैसे विन्सेंट स्मिथ के अनुसार,Vincent A Smith, , Chapter 2, pp 236-242, Oxford University Press वह अपने पुत्र जूना खान द्वारा मारा गया, जिसने 1325 इस्वी में दिल्ली की गद्दी प्राप्त की। जूना खान ने स्वयं को मुहम्मद बिन तुगलक के पेश किया और 26 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया।Elliot and Dowson, Táríkh-i Fíroz Sháhí of Ziauddin Barani, The History of India as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period (Vol 3), London, Trübner & Co उसके शासन के दौरान दिल्ली सल्तनत का सबसे अधिक भौगोलिक क्षेत्रफल रहा, जिसमे लगभग पूरा भारतीय उपमहाद्वीप शामिल था।Muḥammad ibn Tughluq Encyclopedia Britannica मुहम्मद बिन तुगलक एक विद्वान था और उसे कुरान की कुरान, फिक, कविताओं और अन्य क्षेत्रों की व्यापक जानकारियाँ थी। वह अपनें नाते-रिश्तेदारों, वजीरों पर हमेशा संदेह करता था, अपने हर शत्रु को गंभीरता से लेता था तथा कई ऐसे निर्णय लिए जिससे आर्थिक क्षेत्र में उथल-पुथल हो गया। उदाहरण के लिए, उसने चांदी के सिक्कों के स्थान पर ताम्बे के सिक्कों को ढलवाने का आदेश दिया। यह निर्णय असफल साबित हुआ क्योकि लोगों ने अपने घरों में जाली सिक्कों को ढालना शुरू कर दिया और उससे अपना जजिया कर चुकाने लगे। thumb|left|240px|मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा ढलवाया गया ताम्बे का सिक्का एक अन्य निर्णय के तहत उसने अपनी राजधानी दिल्ली से महाराष्ट्र के देवगिरी (इसका नाम बदलकर उसने दौलताबाद कर दिया) स्थानान्तरित कर दिया तथा दिल्ली के लोगों को दौलताबाद स्थानान्तरित होने के लिए जबरन दबाव डाला। जो स्थानांतरित हुए उनकी मार्ग में ही मृत्यु हो गई। राजधानी स्थानांतरित करने का निर्णय गलत साबित हुआ क्योंकि दौलताबाद एक शुष्क स्थान था जिसके कारण वहाँ पर जनसंख्या के अनुसार पीने का पानी बहुत कम उपलब्ध था। राजधानी को फिर से दिल्ली स्थानांतरित किया गया। फिर भी, मुहम्मद बिन तुगलक के इस आदेश के कारण बड़ी संख्या में आये दिल्ली के मुसलमान दिल्ली वापस नहीं लौटे। मुस्लिमों के दिल्ली छोड़कर दक्कन जाने के कारण भारत के मध्य और दक्षिणी भागों में मुस्लिम जनसंख्या काफी बढ़ गई। मुहम्मद बिन तुगलक के इस फैसले के कारण दक्कन क्षेत्र के कई हिन्दू और जैन मंदिर तोड़ दिए गए, या उन्हें अपवित्र किया गया; उदाहरण के लिए स्वंयभू शिव मंदिर तथा हजार खम्भा मंदिर।Richard Eaton, , (2004) thumb|दौलताबाद के किले का एक दृश्य मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ 1327 इस्वी से विद्रोह प्रारंभ हो गए। यह लगातार जारी रहे, जिसके कारण उसके सल्तनत का भौगोलिक क्षेत्रफल सिकुड़ता गया। दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य का उदय हुआ जो कि दिल्ली सल्तनत द्वारा होने वाले आक्रमणों का मजबूती से प्रतिकार करने लगा।Hermann Kulke and Dietmar Rothermund, A History of India, (Routledge, 1986), 188. 1337 में, मुहम्मद बिन तुगलक ने चीन पर आक्रमण करने का आदेश दिया और अपनी सेनाओं को हिमालय पर्वत से गुजरने का आदेश दिया। इस यात्रा में कुछ ही सैनिक जीवित बच पाए। जीवित बच कर लौटने वाले असफल होकर लौटे। उसके राज में 1329-32 के दौरान, उसके द्वारा ताम्बे के सिक्के चलाए जाने के निर्णय के कारण राजस्व को भारी क्षति हुई। उसने इस क्षति को पूर्ण करने के लिए करों में भारी वृद्धि की। 1338 में, उसके अपने भतीजे ने मालवा में बगावत कर दी, जिस पर उसने हमला किया और उसकी खाल उतार दी। 1339 से, पूर्वी भागों में मुस्लिम सूबेदारों ने और दक्षिणी भागों से हिन्दू राजाओं ने बगावत का झंडा बुलंद किया और दिल्ली सल्तनत से अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। मुहम्मद बिन तुगलक के पास इन बगावतों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं थे, जिससे उसका सम्राज्य सिकुड़ता गया।Vincent A Smith, , Chapter 2, pp 242-248, Oxford University Press इतिहासकार वॉलफोर्ड ने लिखा है कि मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के दौरान, भारत को सर्वाधिक अकाल झेलने पड़े, जब उसने ताम्र धातुओं के सिक्के का परिक्षण किया।Cornelius Walford (1878), , pp 9-10Judith Walsh, A Brief History of India, ISBN 978-0816083626, pp 70-72; Quote: "In 1335-42, during a severe famine and death in the Delhi region, the Sultanate offered no help to the starving residents." 1347 में, बहमनी साम्राज्य सल्तनत से स्वतंत्र हो गया और सल्तनत के मुकाबले दक्षिण एशिया में एक नया मुस्लिम साम्राज्य बन गया। मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 1351 में गुजरात के उन लोगों को पकड़ने के दौरान हो गई, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के खिलाफ बगावत की थी। उसका उत्तराधिकारी फिरोज शाह तुगलक (1351-1388) था, जिसने अपने सम्राज्य की पुरानी क्षेत्र को पाने के लिए 1359 में बंगाल के खिलाफ 11 महीनें का युद्ध आरम्भ किया। परन्तु फिर भी बंगाल दिल्ली सल्तनत में शामिल न हो पाया। फिरोज शाह तुगलक ने 37 वर्षों तक शासन किया। उसने अपने राज्य में खाद्य पदार्थ की आपूर्ति के लिए व अकालों को रोकने के लिए यमुना नदी से एक सिंचाई हेतु नहर बनवाई। एक शिक्षित सुल्तान के रूप में, उसने अपना एक संस्मरण लिखा।Firoz Shah Tughlak, Futuhat-i Firoz Shahi - Memoirs of Firoz Shah Tughlak , Translated in 1871 by Elliot and Dawson, Volume 3 - The History of India, Cornell University Archives इस संस्मरण में उसने लिखा कि उसने अपने पूर्ववर्तियों के उलट, अपने राज में यातना देना बंद कर दिया है। यातना जैसे कि अंग-विच्छेदन, आँखे निकाल लेना, जिन्दा व्यक्ति का शरीर चीर देना, रीढ़ की हड्डी तोड़ देना, गले में पिघला हुआ सीसा डालना, व्यक्ति को जिन्दा फूँक देना आदि शामिल था।Vincent A Smith, , Chapter 2, pp 249-251, Oxford University Press इस सुन्नी सुल्तान यह भी लिखा है कि वह सुन्नी समुदाय का धर्मान्तरण को सहन नहीं करता था, न ही उसे वह प्रयास सहन थे जिसमे हिन्दू अपने ध्वस्त मंदिरों को पुनः बनाये।Firoz Shah Tughlak, Futuhat-i Firoz Shahi - Autobiographical memoirs , Translated in 1871 by Elliot and Dawson, Volume 3 - The History of India, Cornell University Archives, pp 377-381 उसने लिखा है कि दंड के तौर पर बहुत से शिया, महदी और हिंदुओं को मृत्युदंड सुनाया। अपने संस्मरण में, उसने अपनी उपलब्धि के रूप में लिखा है कि उसने बहुत से हिंदुओं को सुन्नी इस्लाम धर्म में दीक्षित किया और उन्हें जजिया कर व अन्य करों से मुक्ति प्रदान की, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया उनका उसने भव्य स्वागत किया। इसके साथ ही, उसने सभी तीनों स्तरों पर करों व जजिया को बढ़ाकर अपने पूर्ववर्तियों के उस फैसले पर रोक लगा दिया जिन्होंने हिन्दू ब्राह्मणों को जजिया कर से मुक्ति दी थी।Annemarie Schimmel, Islam in the Indian Subcontinent, ISBN 978-9004061170, Brill Academic, pp 20-23 उसने व्यापक स्तर पर अपने अमीरों व गुलामों की भर्ती की। फिरोज शाह के राज के यातना में कमी तथा समाज के कुछ वर्गों के साथ किए जा रहे पक्षपात के खत्म करने के रूप में देखा गया, परन्तु समाज के कुछ वर्गों के प्रति असहिष्णुता और उत्पीड़न में बढ़ोत्तरी भी हुई। फिरोज शाह के मृत्यु ने अराजकता और विघटन को जन्म दिया। इस राज के दो अंतिम शासक थे, दोनों ने अपने सुल्तान घोषित किया और 1394-1397 तक शासन किया। जिनमे से एक महमूद तुगलक था जो कि फिरोज शाह तुगलक का बड़ा पुत्र था, उसने दिल्ली से शासन किया। दूसरा नुसरत शाह था, जो कि फिरोज शाह तुगलक का ही रिश्तेदार था, ने फिरोजाबाद पर शासन किया।Vincent A Smith, , Chapter 2, pp 248-254, Oxford University Press दोनों सम्बन्धियों के बीच युद्ध तब तक चलता रहा जब तक तैमूर लंग का 1398 में भारत पर आक्रमण नहीं हुआ। तैमूर, जिसे पश्चिमी साहित्य में तैम्बुरलेन भी कहा जाता है, समरकंद का एक तुर्क सम्राट था। उसे दिल्ली में सुल्तानों के बीच चल रही जंग के बारे में जानकारी थी। इसलिए उसने एक सुनियोजित ढंग से दिल्ली की ओर कूच किया। उसके कूच के दौरान १ लाख से २ लाख के बीच हिन्दू मारे गए।Elliot, Studies in Indian History, 2nd Edition, pp 98-101Timur, Malfuzat-i Timuri: Autobiography of Timur , Translated in 1871 by Eliott & Dawson in The History of India, Vol 3, Cornell University Archives, pp 435-447 तैमूर का भारत पर शासन करने का उद्देश्य नहीं था। उसने दिल्ली को जमकर लूटा और पूरे शहर को में आग के हवाले कर दिया। पाँच दिनों तक, उसकी सेना ने भयंकर नरसंहार किया। इस दौरान उसने भारी मात्रा में सम्पति, गुलाम व औरतों को एकत्र किया और समरकंद वापस लौट गया। पूरे दिल्ली सल्तनत में अराजकता और महामारी फैल गई। सुल्तान महमूद तुगलक तैमूर के आक्रमण के समय गुजरात भाग गया। आक्रमण के बाद वह फिर से वापस आया तुगलक वंश का अंतिम शासक हुआ और कई गुटों के हाथों की कठपुतली बना रहा।Annemarie Schimmel, Islam in the Indian Subcontinent, ISBN 978-9004061170, Brill Academic, Chapter 2 सैयद वंश शासन काल 1414 से 1451 तक (३६ वर्ष) सैयद वंश एक तुर्क राजवंश था [70] जिसने दिल्ली सल्तनत पर 1415 से 1451 तक शासन किया। [22] टमुरुद पर आक्रमण और लूटने दिल्ली सल्तनत को बदमाशों में छोड़ दिया था, और सैयद वंश के शासन के बारे में बहुत कम जानकारी है। एन्निमरी शिममेल, राजवंश के पहले शासक को खज़्र खान के रूप में नोट करता है, जिन्होंने टिमूर का प्रतिनिधित्व करने का दावा करके शक्ति ग्रहण की थी दिल्ली के पास के लोगों ने भी उनके अधिकार पर सवाल उठाए थे उनका उत्तराधिकारी मुबारक खान था, जिन्होंने खुद को मुबारक शाह के रूप में नाम दिया और पंजाब के खो राज्यों को फिर से हासिल करने की कोशिश की, असफल। [69] सईद वंश की शक्ति के साथ, भारतीय उपमहाद्वीप पर इस्लाम के इतिहास में गहरा परिवर्तन हुआ, शमीमल के अनुसार। [6 9] इस्लाम का पहले प्रमुख सुन्नी संप्रदाय पतला था, शिया गुलाब जैसे वैकल्पिक मुस्लिम संप्रदायों, और इस्लामी संस्कृति के नए प्रतिस्पर्धा केन्द्रों ने दिल्ली से परे जड़ें निकालीं। सैयद वंश को 1451 में लोदी राजवंश द्वारा विस्थापित किया गया था। लोदी वंश शासन काल 1451 से 1526 तक (७६ वर्ष) लोदी वंश अफगान लोदी जनजाति का था। [70] बहलोल खान लोदी ने लोदी वंश को शुरू किया और दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला पहला पश्तून था। [71] बहलोल लोदी ने अपना शासन शुरू किया कि दिल्ली सल्तनत के प्रभाव का विस्तार करने के लिए मुस्लिम जौनपुर सल्तनत पर हमला करके, और एक संधि के द्वारा आंशिक रूप से सफल हुए। इसके बाद, दिल्ली से वाराणसी (फिर बंगाल प्रांत की सीमा पर) का क्षेत्र वापस दिल्ली सल्तनत के प्रभाव में था। बहलुल लोदी की मृत्यु के बाद, उनके बेटे निजाम खान ने सत्ता संभाली, खुद को सिकंदर लोदी के रूप में पुनः नामित किया और 14 9 8 से 1517 तक शासन किया। [72] राजवंश के बेहतर ज्ञात शासकों में से एक, सिकंदर लोदी ने अपने भाई बारबक शाह को जौनपुर से निष्कासित कर दिया, अपने बेटे जलाल खान को शासक के रूप में स्थापित किया, फिर पूर्व में बिहार पर दावा करने के लिए चलाया। बिहार के मुस्लिम गवर्नर्स ने श्रद्धांजलि और करों का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की, लेकिन दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र संचालित। सिकंदर लोदी ने मंदिरों का विनाश करने का अभियान चलाया, विशेषकर मथुरा के आसपास। उन्होंने अपनी राजधानी और अदालत को दिल्ली से आगरा तक ले जाया, [73] [उद्धरण वांछित] एक प्राचीन हिंदू शहर जिसे लुप्त और दिल्ली सल्तनत काल की शुरुआत के दौरान हमला किया गया था। इस प्रकार सिकंदर ने अपने शासन के दौरान आगरा में भारत-इस्लामी वास्तुकला के साथ इमारतों की स्थापना की, और दिल्ली सल्तनत के अंत के बाद, आगरा का विकास मुगल साम्राज्य के दौरान जारी रहा। [71] [74] सिकंदर लोदी की मृत्यु 1517 में एक प्राकृतिक मौत हुई, और उनके दूसरे पुत्र इब्राहिम लोदी ने सत्ता ग्रहण की। इब्राहिम को अफगान और फारसी प्रतिष्ठित या क्षेत्रीय प्रमुखों का समर्थन नहीं मिला। [75] इब्राहिम ने अपने बड़े भाई जलाल खान पर हमला किया और उनकी हत्या कर दी, जिन्हें उनके पिता ने जौनपुर के गवर्नर के रूप में स्थापित किया था और अमीरों और प्रमुखों का समर्थन किया था। [71] इब्राहिम लोदी अपनी शक्ति को मजबूत करने में असमर्थ थे, और जलाल खान की मृत्यु के बाद, पंजाब के राज्यपाल, दौलत खान लोदी, मुगल बाबर तक पहुंच गए और उन्हें दिल्ली सल्तनत पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया। [73] 1526 में बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया और मार डाला। इब्राहिम लोदी की मृत्यु ने दिल्ली सल्तनत को समाप्त कर दिया और मुगल साम्राज्य ने इसे जगह दी। यह भी देखें मुस्लीम आक्रमण का राजपूत विरोध सन्दर्भ श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:दिल्ली श्रेणी:भारत की सल्तनत श्रेणी:भारत के साम्राज्य
चोल साम्राज्य
https://hi.wikipedia.org/wiki/चोल_साम्राज्य
पुनर्प्रेषित चोल राजवंश
सुमित सरकार
https://hi.wikipedia.org/wiki/सुमित_सरकार
सुमित सरकार भारत के एक सुप्रसिद्ध इतिहासविद हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन करते हैं। इन्होंनें आधुनिक भारत के इतिहास पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की है और बहुत से शोध प्रबंधों का निर्देशन किया है। प्रमुख पुस्तकें आधुनिक भारत-सुमित सरकाऱ सामाजिक इतिहासलेखन की चुनौती सन्दर्भ श्रेणी:इतिहास श्रेणी:इतिहासकार श्रेणी:सबाल्टर्न अध्ययन श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:1939 में जन्मे लोग
जामिया मिलिया इस्लामिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/जामिया_मिलिया_इस्लामिया
thumb|250px|जामिया मिल्लिया इस्लामिया जामिया मिल्लिया इस्लामिया (अनुवाद : राष्ट्रीय इस्लामी विश्वविद्यालय) दिल्ली में स्थित भारत का एक प्रमुख सार्वजनिक विश्‍वविद्यालय है। इसे केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय का स्तर हासिल है। यह नई दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र कें ओखला में यमुना के किनारे स्थित हैं| यह 1920 में ब्रिटिश शासन के दौरान स्थापित किया गया था। यह 1988 में भारतीय संसद के एक अधिनियम द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया गया। दिल्ली के सर सरवर जंग ने विश्वविद्यालय का डिजाइन किया। इसके नजदीकी मेट्रो स्टेशन का नाम जामिया मिल्लिया इस्लामिया है जो दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर स्थित है । इतिहास thumb|डॉ। जाकिर हुसैन का मकबरा भारतीय स्वतंत्रता से पहले, 1920 में मुस्लिम नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। Jamia Millia Islamia Act 1988 संस्थापक नेताओं में से मुख्य, अली ब्रदर्स के नाम से मशहूर मुहम्मद अली जौहर और शौकत अली थे । इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेता अबुल कलाम आज़ाद अपने मुख्य प्रारंभिक संरक्षकों में से एक थे। मोहम्मद अली जौहर जामिया के पहले कुलगुरू बने। डाक्टर ज़ाकिर हुसैन ने 1927 में अपने अशांत समय में विश्वविद्यालय को संभाला और सभी कठिनाइयों के माध्यम से इसे निर्देशित किया। उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें विश्वविद्यालय के परिसर में दफनाया गया जहां उनका मकबरा जनता के लिए खुला है। बाद में मुख्तार अहमद अंसारी कुलपति बन गए। विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार और स्वास्थ्य केंद्र का नाम उनके नाम पर रखा गया है। महमूद अल-हसन अब्दुल मजीद ख्वाजा आबिद हुसैन हकीम अजमल ख़ान मोहम्मद मुजीब , जिनके नेतृत्व में जामिया एक डीम्ड विश्वविद्यालय बन गया दिसंबर 1988 में जामिया को जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम 1988 (1988 का संख्या 59) के तहत संसद द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थिति दी गई थी। 2006 में सऊदी अरब के सुल्तान अब्दुल्ला बिन अल सऊद ने विश्वविद्यालय की यात्रा की और पुस्तकालय के निर्माण के लिए 30 मिलियन डॉलर का दान दिया। अब, वह पुस्तकालय डॉ। जाकिर हुसैन लाइब्रेरी (सेंट्रल लाइब्रेरी) के रूप में जाना जाता है। कैंपस परिसर एक बड़े क्षेत्र में वितरित किया गया है। इसकी कई इमारतों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। हरियाली और वनों का समर्थन किया जाता है। विश्वविद्यालय के सुंदर क्रिकेट मैदान (जिसे भोपाल ग्राउंड के नाम से जाना जाता है) ने रंजी ट्रॉफी मैचों और महिलाओं के क्रिकेट टेस्ट मैच की मेजबानी की है। अपने सात फैकल्टीज के अलावा, जामिया में अनवर जमाल किदवाई मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर (एमसीआरसी), इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी फैकल्टी, ललित कला फैकल्टी, सैद्धांतिक भौतिकी केंद्र और मौलाना मोहम्मद अली जौहर अकादमी जैसे सीखने और शोध के केंद्र हैं। थर्ड वर्ल्ड स्टडीज (एटीडब्ल्यूएस) भी है। जामिया स्नातक और स्नातकोत्तर सूचना और प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम प्रदान करता है। फैकल्टी जामिया मिलिया इस्लामिया में नौ संकाय हैं जिसके तहत यह अकादमिक और विस्तार कार्यक्रम प्रदान करता है: कानून फैकल्टी यह संकाय निम्नलिखित कार्यक्रमों के माध्यम से उभरते वकीलों को गुणवत्ता प्रशिक्षण और शिक्षा में माहिर हैं: बी ए । एलएलबी (ऑनर्स) सीनियर सेकेंडरी।एलएलएम (डिग्री) इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संकाय thumb|भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू जेट इंजीनियरिंग के संकाय के सामने खड़ा है यह संकाय 1985 में सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागों के साथ स्थापित किया गया था। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग विभाग, एप्लाइड साइंस एंड ह्यूमैनिटीज विभाग (1996) के विभागों को जोड़ा है और इसमें छह इंजीनियरिंग विभाग हैं: एप्लाइड साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज, सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशंस, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर इंजीनियरिंग और एक विश्वविद्यालय पॉलिटेक्निक। ये विभाग एजेंसियों द्वारा प्रायोजित कई परियोजनाओं का संचालन करते हैं। संकाय नियमित पाठ्यक्रम और सतत कार्यक्रम प्रदान करता है। इस फैकल्टी के सात विभाग हैं इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग मैकेनिकल इंजीनियरिंग इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग कंप्यूटर इंजीनियरिंग असैनिक अभियंत्रण एप्लाइड साइंसेज और हयूमैनिटिज़ वास्तुकला और एकता के संकाय इस संकाय में वास्तुकला विभाग है और यह निम्नलिखित कार्यक्रम प्रदान करता है: बी आर्क (नियमित और आत्म-वित्तपोषण) एम आर्क एम। एकीस्टिक्स हुमनिटीज़ और भाषाओं के फैकल्टी thumb|हुमनिटीज़ और भाषा निर्माण संकाय का एक दृश्य इस फैकल्टी में नौ विभाग हैं जो पीएचडी, एम फिल (प्री-पीएचडी), स्नातकोत्तर, स्नातक, डिप्लोमा और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम में कार्यक्रम पेश करते हैं। अरबी अंग्रेजी और आधुनिक यूरोपीय भाषाएं पर्यटन और आतिथ्य हिंदी इतिहास और संस्कृति 1920 में अलीगढ़ में अपनी स्थापना के बाद इस्लामी अध्ययन जामिया के पाठ्यक्रम का हिस्सा रहा है। इस्लाम के प्रमुख विद्वानों ने जामिया में इस्लामिक स्टडीज को वैकल्पिक और एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया है, कुछ नाम: मौलाना मोहम्मद अली जोहर, मौलाना असलम जयराजपुरी, मौलाना मोहम्मद अब्दुस सलाम किडवाई नादवी, मौलाना काजी जैनुल अबदीन सजद मेरुति, मोहम्मद मुजीब, एस अबीद हुसैन, ज़ियाल हसन फारुकी, मुशिरुल हक, मजीद अली खान और आईएच आज़ाद फरुकी। 1975 में इस्लामिक और अरब-ईरानी अध्ययनों का एक अलग बहु अनुशासनात्मक विभाग स्थापित किया गया था। एक ट्राइफुरेशन के बाद, 1988 में इस्लामिक स्टडीज का एक पूर्ण विभाग स्थापित किया गया। विभाग सालाना पत्रिका, "सदा ए जौहर" प्रकाशित करता है। फ़ारसी उर्दू तुर्की भाषा और साहित्य फ्रेंच भाषा और साहित्य संस्कृत ललित कला संकाय thumb|कैंपस में एमएफ हुसैन आर्ट गैलरी इस संकाय में छः विभाग हैं जो पीएचडी, ललित कला के मास्टर (एमएफए), बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए), डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स में कार्यक्रम पेश करते हैं। चित्र मूर्ति एप्लाइड आर्ट्स कला शिक्षा ग्राफ़िक कला कला इतिहास और कला प्रशंसा कैंपस में भारतीय चित्रकार एमएफ हुसैन के नाम पर एक कला गैलरी है। सामाजिक विज्ञान के फैकल्टी thumb|गुलिस्तान-ए-गालिब, जिसमें मिर्जा गालिब की मूर्ति है। इस संकाय में सात विभाग हैं मनोविज्ञान अर्थशास्त्र वयस्क और निरंतर शिक्षा राजनीति विज्ञान नागरिक सास्त्र सामाजिक कार्य वाणिज्य और व्यापार अध्ययन सोशल साइंस का संकाय गुलिस्तान-ए-गालिब के आसपास स्थित है और इसे आमतौर पर मुख्य परिसर के रूप में जाना जाता है। प्राकृतिक विज्ञान के संकाय इस फैकल्टी में आठ विभाग हैं: भौतिक विज्ञान रसायन विज्ञान अंक शास्त्र भूगोल जीव शस्त्र कंप्यूटर विज्ञान जैव सूचना विज्ञान जैव प्रौद्योगिकी यूनानी फार्मेसी में डिप्लोमा शिक्षा संकाय यह संकाय दो विभागों के माध्यम से उभरते शिक्षकों को गुणवत्ता प्रशिक्षण और शिक्षा में माहिर हैं: शैक्षणिक अध्ययन शिक्षा में उन्नत अध्ययन संस्थान (पूर्व में शिक्षक प्रशिक्षण विभाग और गैर औपचारिक शिक्षा) दंत चिकित्सा के संकाय यह संकाय पांच साल के बीडीएस कार्यक्रम के माध्यम से उभरते दंत चिकित्सकों को गुणवत्ता प्रशिक्षण और शिक्षा में माहिर हैं। केंद्र thumb|कैंपस में ऍफ़ टी के मॉस कम्युनिकेशन सेंटर ए जे के मॉस कम्युनिकेशन सेंटर मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर की स्थापना 1982 में जामिया मिलिया इस्लामिया के तत्कालीन कुलगुरू (बाद के चांसलर) अनवर जमाल किडवाई ने की थी। जामिया आज मुख्य रूप से इन जन संचार पाठ्यक्रमों के लिए अपनी साइट के अनुसार जाना जाता है। सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनोटेक्नोलॉजी (सीएनएन) इस केंद्र का मिशन राष्ट्रीय रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संभावित अनुप्रयोगों के साथ, नैनोसाइंस और नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी बुनियादी और व्यावहारिक अनुसंधान को बढ़ावा देना है। केंद्र के मुख्य शोध फोकस में नैनो-फैब्रिकेशन और नैनो-डिवाइस, नैनो-सामग्री और नैनो-स्ट्रक्चर, नैनो-जैव प्रौद्योगिकी और नैनो-दवा, नैनो-संरचना विशेषता और माप शामिल हैं। प्रबंधन अध्ययन केंद्र प्रबंधन अध्ययन केंद्र वर्तमान में तीन कार्यक्रम प्रदान करता है: पीएच.डी. प्रबंधन में, एमबीए (पूर्णकालिक) कार्यक्रम और एमबीए (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार) कार्यक्रम। पीएच.डी. कार्यक्रम एमबीए (पूर्णकालिक) कार्यक्रम एमबीए (इंटरनेशनल बिजनेस) प्रोग्राम इन संकायों के अलावा, सीखने और शोध के 20 केंद्र हैं। इनमें से उल्लेखनीय है एजेके मास कम्युनिकेशन एंड रिसर्च सेंटर द्वारा पेश मास कम्युनिकेशन में एमए: सूचना प्रौद्योगिकी के लिए एफटीके-केंद्र संकाय सदस्यों, कर्मचारियों, शोध विद्वानों और छात्रों के लिए एक इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है। डॉ। जाकिर हुसैन इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज़ मौलाना मोहम्मद अली जौहर अकादमी ऑफ थर्ड वर्ल्ड स्टडीज़ अर्जुन सिंह सेंटर फॉर डिस्टेंस एंड ओपन लर्निंग नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन जवाहर लाल नेहरू अध्ययन केंद्र तुलनात्मक धर्मों और सभ्यताओं के अध्ययन के लिए केंद्र पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र दलित और अल्पसंख्यक अध्ययन के लिए डॉ केआर नारायणन सेंटर स्पेनिश और लैटिन अमेरिकी अध्ययन केंद्र फिजियोथेरेपी और पुनर्वास विज्ञान केंद्र उर्दू माध्यम शिक्षकों के व्यावसायिक विकास अकादमी अकादमिक स्टाफ कॉलेज बरकत अली फिराक राज्य संसाधन केंद्र कोचिंग और करियर योजना केंद्र संस्कृति मीडिया और शासन केंद्र गांधीवादी अध्ययन केंद्र बेसिक साइंसेज में अंतःविषय अनुसंधान केंद्र सैद्धांतिक भौतिकी के लिए केंद्र बाल मार्गदर्शन केंद्र भारत - अरब सांस्कृतिक केंद्र जामिया के प्रेमचंद अभिलेखागार और साहित्यिक केंद्र महिला अध्ययन के लिए सरोजिनी नायड सेंटर विश्वविद्यालय परामर्श और मार्गदर्शन केंद्र प्रारंभिक बचपन के विकास और अनुसंधान केंद्र Full list of Faculties/Centres स्कूल जामिया मिलिया इस्लामिया भी नर्सरी से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक शिक्षा प्रदान करता है। बालक माता केंद्र गेरडा फिलिप्सबोर्न डे केयर सेंटर मुशिर फात्मा जामिया नर्सरी स्कूल जामिया मिडिल स्कूल जामिया सीनियर सेकेंडरी स्कूल सय्यद आबिद हुसैन सीनियर सेकेंडरी स्कूल जामिया गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाइब्रेरी डॉ। जाकिर हुसैन लाइब्रेरी विश्वविद्यालय की मुख्य केंद्रीय पुस्तकालय डॉ। जाकिर हुसैन लाइब्रेरी के रूप में जाना जाता है, जिसमें 400,000 कलाकृतियों के संग्रह के साथ-साथ किताबें, माइक्रोफिल्म्स, आवधिक खंड, पांडुलिपियों और दुर्लभ किताबें शामिल हैं। कुछ हॉल उन्हें समर्पित हैं। पुस्तकालय जामिया के सभी सशक्त छात्रों के लिए खुला है। इसके अलावा, कुछ संकाय और केंद्रों के पुस्तकालयों में विषय संग्रह हैं। रैंकिंग THE_W_2018 = 801-1000 THES_A_2018 = 201-250 NIRF_O_2022 = 13 NIRF_U_2022 = 3 NIRF_E_2018 = 32 NIRF_B_2018 = 34 OUTLOOK_L_2017 = 6 WEEK_L_2017 = 20 QS_A_2018 = 200 2018 वर्ष में एशिया में 201-250 और दुनिया में 801-1000 रैंकिंग टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग द्वारा स्थान दिया गया है। 2018 की क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग ने इसे एशिया में 200 स्थान दिया। 2018 में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) द्वारा भारत में 19 स्थान पर था, 12 विश्वविद्यालयों में, इंजीनियरिंग रैंकिंग में 32 और प्रबंधन रैंकिंग में 34। कानून के संकाय को आउटलुक इंडिया के "2017 में शीर्ष 25 कानून कॉलेजों" और भारत में 20 वें सप्ताह के "शीर्ष कानून कॉलेज 2017" द्वारा भारत में छठा स्थान दिया गया था। पूर्व चांसलर हाकिम अजमल खान (1920 - 1927) मुख्तार अहमद अंसारी (1928 - 1936) अब्दुल मजीद ख्वाजा (1936 - 1962) जाकिर हुसैन (1963 - 1969) मोहम्मद हिदातुल्लाह (1969 - 1985) खुर्शेद आलम खान (1985 - 1990) एसएमएच बर्नी (1990 - 1995) खुर्शेद आलम खान (1995 -2001) फखरुद्दीन टी खोराकीवाला (2002 - 2011) लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अहमद जाकी (2012 - 2017) नज्मा हेपतुल्ला (2017 -2022) डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन (2023- आज तक) पूर्व कुलगुरू मोहम्मद अली जौहर जौहर (1920 - 1923) अब्दुल मजीद ख्वाजा (1923 - 1925) डॉ. ज़ाकिर हुसैन (1926 - 1948) मुहम्मद मुजीब (1948 - 1973) मसूद हुसैन खा़न (1973 - 1978) अनवर जमाल किदवाई (1978 - 1983) अली अशरफ (1983 - 1989) सय्यद ज़हूर क़ासिम (1989 - 1991) बशीरुद्दीन अहमद (1991 - 1996) लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अहमद ज़की (1997 -2000) सैयद शाहिद महदी , सेवानिवृत्त आईएएस (2000 - 2004) मुशिरुल हसन (2004 - 2009) नजीब जंग, आईएएस (2009 -2014) तलत अहमद, एफएनए (2014 - 2019) यह भी देखें भारत में विश्वविद्यालयों की सूची भारत में शिक्षा संदर्भ बाहरी कड़ियाँ जामिया मिलिया इस्लामिया का आधिकारिक जालक्षेत्र जामिया मिलिया इस्लामिया: एक परिचय (भाग 1) Youtube.com पर जामिया मिलिया इस्लामिया: एक परिचय (भाग 2) Youtube.com पर श्रेणी:दिल्ली श्रेणी:दिल्ली के विश्वविद्यालय श्रेणी:केन्द्रीय विश्वविद्यालय Category:नई दिल्ली
अरुन्धती रॉय
https://hi.wikipedia.org/wiki/अरुन्धती_रॉय
REDIRECT अरुंधति राय
विश्व व्यापार संगठन
https://hi.wikipedia.org/wiki/विश्व_व्यापार_संगठन
विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का उदारीकरण है। यह व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित और प्रतिष्ठित करने के लिए विकसित देशों की पहल पर आरम्भ किया गया था। इसने आधिकारिक रूप से 1 जनवरी 1995 को, 1994 के मराकेश सहमति के अनुसार संचालन शुरू किया, इस प्रकार 1948 में स्थापित प्रशुल्क और व्यापार पर सामान्य सहमति (गैट) की जगह ली। विश्व व्यापार संगठन दुनिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन है, जिसमें 164 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व है। यह वैश्विक व्यापार और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 98% से अधिक है। विश्व व्यापार संगठन व्यापार सहमतियों पर आलोचना के लिए एक ढाँचा प्रदान करके भाग लेने वाले देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक सम्पदा में व्यापार की सुविधा प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य साधारणतः प्रशुल्क, कोटा और अन्य प्रतिबंधों को कम करना या समाप्त करना है; इन समझौतों पर सदस्य सरकारों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं और उनकी विधायिकाओं द्वारा इसकी पुष्टि की जाती है। विश्व व्यापार संगठन व्यापार सहमतियों के लिए प्रतिभागियों के पालन को लागू करने और व्यापार से सम्बन्धित विवादों को हल करने के लिए स्वतंत्र विवाद समाधान का प्रबंधन करता है। संगठन व्यापारिक भागीदारों के बीच भेदभाव को प्रतिबन्धित करता है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण, राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों के लिए अपवाद प्रदान करता है। WTO का मुख्यालय जिनेवा, स्वित्सरलैंड में स्थित है। इसका शीर्ष निर्णय लेने वाला निकाय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन है, जो सभी सदस्य राज्यों से बना है और साधारणतः द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है; सभी निर्णयों में सामान्य सहमति पर महत्व दिया जाता है। दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सामान्य परिषद द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसमें सभी सदस्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। महानिदेशक और चार डिप्टी के नेतृत्व में 600 से अधिक कर्मियों का एक सचिवालय, प्रशासनिक, पेशेवर और तकनीकी सेवाएँ प्रदान करता है। विश्व व्यापार संगठन का वार्षिक आय-व्ययक लगभग 220 मिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो सदस्यों द्वारा उनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अनुपात के आधार पर योगदान दिया जाता है। संरचना डब्ल्यूटीओ की मूल संरचना में निम्नलिखित निकाय हैं– मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Council) : यह डब्ल्यूटीओ का शासी निकाय हैI यह संगठन की रणनीतिक दिशा तय करने और अपने अधिकार क्षेत्र के तहत समझौतों पर सभी अंतिम निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होता है। इसमें सभी सदस्य देशों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री होते हैं। सामान्य काउंसिल (General Council) : व्यवहार में, ज्यादातर मामलों के लिए यह डब्ल्यूटीओ का फैसला करने वाला प्रमुख अंग है। इसमें सभी सदस्य देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधि (सामान्यतः पर राजदूत स्तर के) होते हैं। यह डब्ल्यूटीओ के प्रतिदिन के कारोबार और प्रबंधन की देखरेख के लिए जिम्मेदार होता है। नीचे वर्णित निकायों में से कई सीधे सामान्य काउंसिल को रिपोर्ट करते हैं। व्यापार नीति समीक्षा निकाय (The Trade Policy Review Body): यह उरुग्वे राउंड के बाद बने व्यापार नीति समीक्षा तंत्र की देखरख करता है। यह सभी सदस्य देशों की व्यापार नीतियों की आवधिक समीक्षा करता है। इसमें भी डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य होते हैं। विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body): जिन देशों के बीच व्यापार सम्बन्धी कोई विवाद होता है तो वे इसी निकाय के सामने अपील कर न्याय मांगते हैं I यह सभी डब्ल्यूटीओ समझौतों के लिए विवाद समाधान प्रक्रिया के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता एवं डब्ल्यूटीओ विवादों पर दिए गए फैसलों के कार्यान्वयन की देखरेख करता है। इसमें भी डब्ल्यूडीओ के सभी सदस्य होते हैं। वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार पर परिषद (The Councils on Trade in Goods and Trade in Services) : यह वस्तुओं ( कपड़ा और कृषि जैसे) और सेवाओं में व्यापार पर हुए आम एवं विशेष समझौतों के विवरणों की समीक्षा के लिए तंत्र प्रदान करते हैं। यह जनरल काउंसिल के जनादेश के तहत काम करती है। इसमें सभी सदस्य देश शामिल रहते हैं। विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य विश्व व्यापार संगठन के समझौते लंबे और जटिल होते हैं क्योंकि इनका पाठ कानूनी होता है और यह गतिविधियों की व्यापक रेंज को कवर करते हैं। लेकिन कई सरल, मौलिक सिद्धान्त भी इन सभी दस्तावेजों में होते हैं। ये सिद्धान्त बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के आधार हैं। किसी देश को अपने व्यापार भागीदारों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए और इसे अपने और विदेशी उत्पादों, सेवाओं और नागरिकों के बीच भी भेदभाव नहीं करना चाहिए। व्यापार को प्रोत्साहित करने के सबसे स्पष्ट तरीकों में से एक है व्यापार बाधाओं को कम करना। सीमा शुल्क ( या टैरिफ) और आयात प्रतिबंध या कोटा, एंटी डंपिंग शुल्क आदि इन बाधाओं में शामिल हैं। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विदेशी कंपनियों, निवेशकों और सरकारों के लिए व्यापार बाधाओं को मनमाने ढंग से नहीं बढाया जाय। स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता के साथ निवेश प्रोत्साहित होता है, रोजगार के अवसर बनते हैं और उपभोक्ता प्रतिस्पर्धा का पूरी तरह से लाभ – पसंद और कम कीमत, उठा सकते हैं। 'अनुचित' प्रथाओं को हतोत्साहित करना ; जैसे बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए निर्यात सब्सिडियों और डंपिंग उत्पादों की लागत कम कर देना। डब्ल्यूटीओ के समझौते सदस्यों को न सिर्फ पर्यावरण बल्कि जन स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य एवं ग्रह के स्वास्थ्य के सरंक्षण के उपाय करने की अनुमति देते हैं। हालांकि, ये उपाय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार दोनों ही पर एक ही तरीके से लागू किए जाने चाहिए। कार्य डब्ल्यूटीओ अपने सदस्य देशों द्वारा संचालित है। अपनी गतिविधियों को समन्वित करने के लिए यह बिना अपने सचिवालय द्वारा काम नहीं कर सकता। सचिवालय में ६०० से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और इनमें– वकील, अर्थशास्त्री, सांख्यिकीविद् औऱ संचार विशेषज्ञ होते हैं– जो डब्ल्यूटीओ के सदस्यों को अन्य बातों के अलावा दैनिक आधार पर, वार्तालाप प्रक्रिया के सुचारू होने और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों को सही तरह से लागू करना सुनिश्चित करता है। सभी प्रमुख फैसले पूर्ण सदस्यों द्वारा, चाहे वह मंत्रियों ( जो आम तौर पर दो वर्षों में कम– से– कम एक बार बैठक करते हैं) या उनके राजदूत या प्रतिनिधियों द्वारा ( जो जेनेवा में नियमित रूप से बैठक करते हैं) किया जाता है। व्यापार वार्ता : डब्ल्यूटीओ समझौते वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक संपदा को कवर करते हैं। यह उदारीकरण के सिद्धान्तों और अनुमित अपवादों की व्याख्या करते हैं। इसमें व्यक्तिगत देशों की कम सीमा शुल्क टैरिफ और अन्य व्यापार बाधाओं के प्रति प्रतिबद्धता एवं सेवा बाजार को खोलने एवं उसे खुला रखना शामिल है। विवादों के निपटान के लिए ये प्रक्रियाओं का निर्धारण करते हैं। ये समझौते स्थायी नहीं होते, समय–समय पर इन पर फिर से बातचीत की जाती है औऱ पैकेज में नए समझौते जोड़े जा सकते हैं। नवंबर २००१ में दोहा (कतर) में डब्ल्यूटीओ के व्यापार मंत्रियों द्वारा शुरु किए गए दोहा विकास एजेंडा, के तहत अब कई समझौते किए जा चुके हैं । कार्यान्वयन और निगरानी : डब्ल्यूटीओ समझौते के तहत सरकारों को लागू कानूनों एवं अपनाए गए उपायों के बारे में डब्ल्यूटीओ को सूचित कर अपनी व्यापार नीतियों को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता होती है। डब्ल्यूटीओ के कई परिषद और समितियां इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं और डब्ल्यूटीओ के समझौतों का कार्यान्वयन उचित तरीके से हो रहा है या नहीं। समय–समय पर डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्यों की व्यापार नीतियों और प्रथाओं की समीक्षा की जाती है। प्रत्येक समीक्षा में संबंधित देश और डब्ल्यूटीओ सचिवालय द्वारा दी गई रिपोर्ट होती है। विवादों का निपटारा : यदि किसी देश या किन्हीं देशों को लगता है कि समझौते के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है तो वे उस विवाद को डब्ल्यूटीओ में ले जाते हैं। विशेष रूप से नियुक्त किए गए स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा किए गए फैसले, समझौते की व्याख्याएं, और अलग–अलग देशों की प्रतिबद्धताओं पर आधारित होते हैं। व्यापार क्षमता का निर्माण : डब्ल्यूटीओ के समझौतों में विकासशील देशों के लिए विशेष प्रावधान हैं। इसमें समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए अधिक समय, उनके व्यापार अवसरों को बढ़ाने के लिए उपाय और उनके व्यापार क्षमता के निर्माण, विवादों से निपटने और तकनीकी मानकों को लागू करने में मदद करने के लिए समर्थन देना शामिल हैं। डब्ल्यूटीओ प्रतिवर्ष विकासशील देशों के लिए तकनीकी सहायता मिशनों का आयोजन करता है। साथ ही यह सरकारी अधिकारियों के लिए जेनेवा में हर वर्ष कई पाठ्यक्रम भी आयोजित करता है। विकासशील देशों को उनके व्यापार में विस्तार के लिए जरूरी कौशल एवं संरचनात्मक ढांचे के विकास हेतु व्यापार के लिए सहायता (Aid for Trade) प्रदान करता है। आउटरीच : डब्ल्यूटीओ सहयोग को बढ़ाने एवं संस्था की गतिविधियों के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए गैर–सरकारी संगठनों, सांसदों, अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों, मीडिया और आम जनता से डब्ल्यूटीओ के अलग–अलग पहलुओं एवं चालू दोहा वार्ता पर नियमित तौर पर बातचीत करता है। अंगूठाकार|विश्व व्यापार संगठन और गैट सदस्य और पर्यवेक्षक सदस्य २९ जुलाई २०१६ तक विश्व व्यापार संगठन में १६४ सदस्य हैं। विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के तारीखों के साथ कुछ सदस्य ये हैं: अफगानिस्तान २९ जुलाई २०१६ nam अल्बानिया ८ सितंबर २००9 अंगोला २३ नवंबर १९९६ (गैट: ८ अप्रैल १९९४) एंटीगुआ और बारबुडा १ जनवरी १९९५ (गैट: ३० मार्च १९८७) अर्जेंटीना १ जनवरी १९९५ (गैट: ११ अक्टूबर १९६७) आर्मीनिया ५ फरवरी २००३ ऑस्ट्रेलिया १ जनवरी १९९५ (गैट: १ जनवरी १९४८) क्यूबा २० अप्रैल १९९५ (गैट: १ जनवरी १९४८) साइप्रस ३० जुलाई १९९५ (गैट: १५ जुलाई १९६३) चेक गणराज्य १ जनवरी १९९५ (गैट: १५ अप्रैल १९९३) यमन २६ जून २०१४ जाम्बिया १ जनवरी १९९५ (गैट: १० फरवरी १९८२) जिम्बाब्वे ५ मार्च १९९५ (गैट: ११ जुलाई १९४८) अंगूठाकार|विश्व व्यापार संगठन के सदस्य प्रेक्षक सरकारें एलजीरिया अंडोरा आज़रबाइजान बहामा बेलोरूस भूटान बोस्निया और हर्जेगोविना कोमोरोस भूमध्यवर्ती गिनी इथियोपिया पवित्र देखो (वैटिकन) ईरान इराक लेबनान गणराज्य लीबिया साओ टोमे और प्रिंसिपे सर्बिया सूडान सीरिया अरब गणतंत्र उज़्बेकिस्तान लाभ लागत में कटोती और जीवन स्तर में सुधार विवादो को निपटाने और व्यापार तनाव में कमी आर्थिक विकास और रोजगार को प्रोत्साहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार कर की लागत में कटौती प्रोत्साहित सुशासन मदद के देशों का विकास कमजोर को एक मजबूत आवाज देना पर्यावरण और स्वास्थ्य का समर्थन शांति और स्थिरता के लिए योगदान सुर्खियों से टकराने के बिना प्रभावी हो। सन्दर्भ https://web.archive.org/web/20170327023602/https://www.wto.org/english/res_e/doload_e/inbr_e.pdf https://web.archive.org/web/20170626184700/https://www.wto.org/english/thewto_e/cwr_e/cwr_history_e.htm बाहरी कड़ियाँ विश्व व्यापार संगठन के 20 साल भारत एवं विश्व व्यापार संगठन
हुडको झील
https://hi.wikipedia.org/wiki/हुडको_झील
हुडको झील जमशेदपुर में छोटा गोविंदपुर और टेल्को कालोनी के बीच स्थित टाटा मोटर्स द्वारा निर्मित एक कृत्रिम झील है। कंपनी द्वारा इस क्षेत्र को एक पिकनिक स्पाट के रूप में विकसित किया गया है। श्रेणी:भारत की झीलें श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:पर्यटन श्रेणी:झारखंड
टाटा इस्पात
https://hi.wikipedia.org/wiki/टाटा_इस्पात
225px|thumb|right टाटा स्टील (पूर्व में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी लिमिटड) अर्थात टिस्को के नाम से जाने जाने वाली यह भारत की प्रमुख इस्पात कंपनी है। जमशेदपुर स्थित इस कारखाने की स्थापना 1907 में की गयी थी। यह दुनिया की पांचवी सबसे बडी इस्पात कंपनी है जिसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता २८ मिलियन टन है। यह फार्च्यून ५०० कंपनियों में भी शुमार है जिसमें इसका स्थान ३१५ वां है। कम्पनी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। यह बृहतर टाटा समूह की एक अग्रणी कंपनी है। टाटा स्टील भारत की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली नीजि क्षेत्र की दूसरी बडी कंपनी भी है जिसकी सकल वार्षिक आय १,३२,११० करोड रुपये है जिसमें ३१ मार्च २००८ को समाप्त हुए वर्ष में शुद्ध लाभ १२,३५० करोड रुपये दर्ज किया गया था। कंपनी का मुख्य प्लांट जमशेदपुर, झारखंड में स्थित है हलाकि हाल के अधिग्रहणो के बाद इसने बहुराष्ट्रीय कम्पनी का रूप हासिल कर लिया है जिसका काम कई देशों में होता है। वर्ष २००० में इसे दुनिया में सबसे कम लागत में इस्पात बनाने वाली कंपनी का खिताब भी हासिल हुआ। २००५ में इसे दुनिया में सर्वश्रेष्ट इस्पात बनाने का खिताब भी मिला था वर्ल्ड स्टील डायनेमिक्स। कंपनी मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के साथ साथ नेशनल स्टाक एक्सचेंज में भी सूचित है एवं वर्ष २००७ के आंकडो के अनुसार इसमें लगभग ८२,७०० कर्मचारी कार्यरत हैं। टाटा लौह इस्पात मुम्बई, कोलकाता, रेल्वे मागॆ के बहुत निकट स्थित है। सयंत्र को प्रयाप्त जल सुवणॆ रेखा,खार, कोई नदियो से, लोहा नोआमण्ङी और बादाम पहाड से मिल जाता है। कोयला झारिया व रानीगंज, बोकारो से प्राप्त होता है। 240 किलोमीटर दूर कोलकाता बन्दरगाह है, जँहा से मशीनो का आयात एवं इस्पात के निर्यात कि सुविघा रहती है। यह भारत का पहला कारखाना है जँहा भारत का 20% इस्पात तैयार होता है। सन्दर्भ वाहय सूत्र टाटा स्टील का हिन्दी जालघर श्रेणी:टाटा समूह श्रेणी:बीएसई सेंसेक्स श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:झारखंड की अर्थव्यवस्था श्रेणी:भारतीय कंपनियाँ
वायुदूत
https://hi.wikipedia.org/wiki/वायुदूत
वायुदूत भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की एक विमान सेवा कंपनी है जो दूर दराज के इलाकों के लिये हेलीकाप्टर सेवा मुहैया कराती है।
सोनारी हवाई-अड्डा
https://hi.wikipedia.org/wiki/सोनारी_हवाई-अड्डा
सोनारी हवाई अड्डा झारखंड प्रान्त में स्थित जमशेदपुर स्थित घरेलू हवाई-अड्डा। इसका ICAO कोड है: VEJS , और IATA कोड है: IXW । यह जमशेदपुर स्थित एक स्थानीय हवाई अड्डा है। पहले यह वायुदूत की सेवाओं द्वारा कोलकाता जैसे नगरों से जुड़ा था। परंतु अभी यहाँ कोई सार्वजनिक विमान नहीं आता। आमतौर पर इस हवाई अड्डे का उपयोग कुछ विमान चालन प्रशिक्षण क्लबों और टिस्को के अधिकारियों द्वारा किया जाता है। सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड के विमानक्षेत्र श्रेणी:झारखंड में स्थापत्य
खड़कई नदी
https://hi.wikipedia.org/wiki/खड़कई_नदी
खड़कई नदी झारखंड के दक्षिण पश्चिम हिस्से में बहने वाली एक पहाड़ी नदी है। नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे) अपवाह तन्त्र सहायक नदियां मुहाना स्वर्णरेखा नदी श्रेणी:भारत की नदियाँ श्रेणी:झारखंड श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:नदी
सुवर्णरेखा। स्वर्णरेखा
https://hi.wikipedia.org/wiki/सुवर्णरेखा।_स्वर्णरेखा
REDIRECT सुवर्णरेखा नदी
राँची विश्वविद्यालय
https://hi.wikipedia.org/wiki/राँची_विश्वविद्यालय
राँची विश्वविद्यालय () भारत के झारखण्ड राज्य में राँची जिले में एक सार्वजनिक राज्य विश्वविद्यालय है। यह राँची जिले के राँची शहर में स्थित है। इसकी स्थापना 1960 में बिहार विधानसभा के एक अधिनियम द्वारा की गई थी। इतिहास राँची विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले, वर्तमान झारखण्ड के सभी डिग्री कॉलेजों (संथाल परगना को छोड़कर) पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। राँची विश्वविद्यालय की स्थापना 12 जुलाई 1960 को एक शिक्षण सह संबद्धता विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी। जब पहली बार राँची विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तो वर्तमान झारखण्ड के सभी डिग्री कॉलेज इसके अधिकार क्षेत्र में आ गए। बिष्णुदेव नारायण सिंह को इस विश्वविद्यालय का पहला कुलपति नियुक्त किया गया था। 1992 में, राँची विश्वविद्यालय को विभाजित करके विनोबा भावे विश्वविद्यालय बनाया गया, जिसके अधिकार क्षेत्र को लगभग आधा कर दिया गया। 2009 में, विश्वविद्यालय को दो और विश्वविद्यालय बनाने के लिए विभाजित किया गया - जनवरी 2009 में नीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर और अगस्त 2009 में कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा। 2019 में इसे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची में विभाजित कर दिया गया। वर्तमान में, राँची विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र केवल झारखण्ड के पांच जिलों- राँची, गुमला, खूंटी, सिमडेगा और लोहरदगा के कॉलेजों पर है। संगठन एवं प्रशासन संगठन भारत के अधिकांश राज्य विश्वविद्यालयों की तरह, विश्वविद्यालय के कुलाधिपति राज्य के राज्यपाल होते हैं - 15 नवंबर 2000 को झारखण्ड की स्थापना तक बिहार के राज्यपाल और तब से झारखण्ड के राज्यपाल। विश्वविद्यालय का मुख्य कार्यकारी कुलपति होता है। संकाय और विभाग रांची विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों को तीन संकायों में संगठित किया गया था। विज्ञान विभाग इस संकाय में गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, वनस्पति विज्ञान और प्राणीशास्त्र विभाग शामिल हैं। मानविकी संकाय इस संकाय में बंगाली, अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा, उर्दू और दर्शनशास्त्र विभाग शामिल हैं। सामाजिक विज्ञान और वाणिज्य संकाय इस संकाय में इतिहास, भूगोल, मानव विज्ञान, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, गृह विज्ञान, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और वाणिज्य विभाग शामिल हैं। संबद्धता राँची विश्वविद्यालय एक संबद्ध विश्वविद्यालय है और इसका अधिकार क्षेत्र झारखण्ड के पांच जिलों: राँची जिला, गुमला जिला, खूंटी जिला, सिमडेगा जिला और लोहरदगा जिला के उच्च शिक्षण संस्थानों पर है। इस विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में 15 घटक कॉलेज और 29 संबद्ध कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, लॉ कॉलेज, प्रबंधन संस्थान, मनोचिकित्सा संस्थान आदि शामिल हैं। शैक्षणिक पारंपरिक एवं दूरस्थ शिक्षा विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेज और संस्थान चिकित्सा, नर्सिंग, इंजीनियरिंग, उदार कला आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। राँची विश्वविद्यालय आम तौर पर अपने परिसर में उदार कला में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है; जबकि व्यावसायिक और उदार स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम संबद्ध कॉलेजों और संस्थानों के माध्यम से पेश किए जाते हैं। व्यावसायिक स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम (जैसे एम.टेक., एमडी, एमएस) भी संबद्ध संस्थानों के माध्यम से पेश किए जाते हैं। स्नातक उदार कला डिग्री पाठ्यक्रमों में प्रवेश मुख्य रूप से उच्च माध्यमिक (10+2) परीक्षा के परिणाम पर आधारित होता है। हालाँकि, चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक विषयों के स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए, राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा (नीट यूजी या जेईई) देनी होगी। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश स्नातक डिग्री परिणामों और विश्वविद्यालय या राष्ट्रीय एजेंसी द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा के प्रदर्शन पर आधारित होता है। अनुसंधान-स्तरीय कार्यक्रमों के लिए इच्छुक उम्मीदवारों को एक प्रवेश परीक्षा देनी होगी और उसके बाद साक्षात्कार देना होगा। राँची विश्वविद्यालय का एक निदेशालय भी हैदूरस्थ शिक्षा में स्नातकोत्तर अध्ययन संचालित करने के लिए दूरस्थ शिक्षा। पुस्तकालय राँची विश्वविद्यालय में एक केंद्रीय पुस्तकालय है जिसमें 1,00,000 से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। राँची विश्वविद्यालय संग्रहालय राँची विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग में एक संग्रहालय है जो मध्य भारतीय राज्यों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के नृवंशविज्ञान संग्रह सहित विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन प्रदर्शित करता है। रैंकिंग और मान्यताएँ राँची विश्वविद्यालय को यूजीसी अधिनियम की धारा 12बी के तहत मान्यता प्राप्त है। 2017 में, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) ने राँची विश्वविद्यालय को 'बी+' ग्रेड से सम्मानित किया। प्रमुख अंगीभूत कालेज जमशेदपुर जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज जमशेदपुर महिला महाविद्यालय जेवियर प्रबंधन संस्थान। एक्स एल आर आई करीम सिटी कालेज ग्रैजुएट कालेज फार वीमेन जमशेदपुर वर्कस कालेज अब्दुल बारी मेमोरियल कालेज जनता पारिख कालेज लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कालेज श्यामाप्रसाद मुखर्जी कालेज केएमपीएम इंटर कालेज राँची सेंट जेवियर्स कालेज, राँची राँची कालेज राँची महिला महाविद्यालय अंगीभूत संस्थानों की सूची अब्दुल बारी स्मारक महाविद्यालय, जमशेदपुर बी एन कॉलेज डाल्टेनगंज बीडीएसटी महिला महाविद्यालय, घाटशिला छोटानागपुर विधि महाविद्यालय, जैन मंदिर रोड, रांची गोसनर महाविद्यालय, क्लब रोडा, रांची Graduate School & College for Womens, जमशेदपुर जमशेदपुर कोआपरेटिव महाविद्यालय, जमशेदपुर जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय, चक्रधरपुर जमशेदपुर महिला महाविद्यालय, जमशेदपुर जेकेएस महाविद्यालय, जमशेदपुर केओ महाविद्यालय, रातू रोड, राँची करीम सिटी महाविद्यालय, जमशेदपुर कर्पूरी ठाकुर महाविद्यालय, रांची लोहिया महाविद्यालय, रांची लालबहादुर शास्त्री महाविद्यालय, जमशेदपुर महात्मा गांधी चिकित्सा महाविद्यालय, जमशेदपुर महेन्द्र प्रसाद महिला महाविद्यालय, घाटशिला मौलाना आजाद महाविद्यालय, जैन मंदिर रोड, रांची निर्मला महाविद्यालय, डोरंडा, राँची पीवीई स्मारक महाविद्यालय, चैनपुर राजेन्द्र चिकित्सा महाविद्यालय, रांची राममनोहर लोहिया महाविद्यालय, रांची बीएनजे महाविद्यालय, सिसाई राष्ट्रीय प्रौधोगिकी संस्थान, जमशेदपुर एस के बागे महाविद्यालय, कोलबीरा एस एन सिन्हा प्रबंधन संस्थान, ध्रुर्वा, रांची एस पी महाविद्यालय, गढवा श्यामाप्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय, जमशेदपुर संजय गांधी महाविद्यालय, रांची सिल्ली महाविद्यालय, सिल्ली संत अगस्तीन महाविद्यालय, मनोहरपुर संत जोसफ महाविद्यालय तोरपा संत पाल महाविद्यालय, बहू बाजारा, रांची संत जेवियर महाविद्यालय, पुरुलिया रोड [[राँची] ताना भगत महाविद्यालय, घाघरा टाटा कालेज, चाईबासा वर्कर्स कालेज, जमशेदपुर [[वाई एस महाविद्यालय], रांची शिवा कालेज आफे एड्यूकेशन, झारखंड मास्टर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड टेक्नालाजी उल्लेखनीय पूर्व छात्र बाबूलाल मरांडी, राजनीतिज्ञ करिया मुंडा, राजनीतिज्ञ राधा चरण गुप्त, गणितज्ञ दिगंबर हांसदा, साहित्यकार नरेन्द्र कोहली, साहित्यकार लुईस मरांडी, राजनितिज्ञ दिनेश उरांव, राजनितिज्ञ नीरा यादव, राजनितिज्ञ सन्दर्भ बाहरी कड़ियां रांची विश्वविद्यालय का आधिकारिक जालस्थल श्रेणी:झारखंड के विश्वविद्यालय श्रेणी:राँची की इमारतें
चाकुलिया
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चाकुलिया (Chakulia) भारत के झारखण्ड राज्य के पूर्वी सिंहभूम ज़िले में स्थित एक शहर है। यह पश्चिम बंगाल और झारखंड की सीमा पर स्थित है और हावड़ा टाटानगर मुख्य रेलमार्ग पर स्थित है।"Tourism and Its Prospects in Bihar and Jharkhand ," Kamal Shankar Srivastava, Sangeeta Prakashan, 2003"The district gazetteer of Jharkhand," SC Bhatt, Gyan Publishing House, 2002 इन्हें भी देखें पूर्वी सिंहभूम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:पूर्वी सिंहभूम ज़िला श्रेणी:झारखंड के शहर श्रेणी:पूर्वी सिंहभूम ज़िले के नगर
जादूगोड़ा
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जादूगोड़ा (Jadugora) भारत के झारखण्ड राज्य के पूर्वी सिंहभूम ज़िले में स्थित एक शहर है।"Tourism and Its Prospects in Bihar and Jharkhand ," Kamal Shankar Srivastava, Sangeeta Prakashan, 2003"The district gazetteer of Jharkhand," SC Bhatt, Gyan Publishing House, 2002 विवरण जादूगोड़ा अपने यूरेनियम की खानों के लिये मशहूर है। जादूगोड़ा का पुराना नाम जारागोरा हुआ करता था। जादूगोड़ा में एक छोटी सी कॉलोनी है जिसमें यूरेनियम खान को नियंत्रित करने वाली कंपनी यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड में काम करने वाले लोग रहते हैं। कॉलोनी के आसपास अन्य लोग भी रहते हैं और इन छोटे छोटे गांवों के अलग अलग नाम हैं। इन्हें भी देखें पूर्वी सिंहभूम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:पूर्वी सिंहभूम ज़िला श्रेणी:झारखंड के शहर श्रेणी:पूर्वी सिंहभूम ज़िले के नगर
समाजशास्त्र
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समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से सम्बन्धित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचनगिडेंस, एंथोनी, डनेर, मिशेल, एप्पल बाम, रिचर्ड. 2007इंट्रोडक्शन टू सोशिऑलोजी. छठा संस्करण. न्यू यॉर्क: डबल्यू. डबल्यू. नोर्टन और कंपनी और समालोचनात्मक विश्लेषण की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है। समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले सम्पर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है। समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है। परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रियता सामाजिक स्तर-विन्यास (या "वर्ग"), सामाजिक संबंध, सामाजिक संपर्क, धर्म, संस्कृति और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है। चूँकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसे- चिकित्सा, सैन्य और दंड संगठन, जन-संपर्क और यहाँ तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है। सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया। इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण। W.SHIV SIDDH आधार इतिहास thumb|upright|right|ऑगुस्ट कॉम्ट समाजशास्त्रीय तर्क इस शब्द की उत्पत्ति की तिथि उचित समय से पूर्व की बताते हैं। आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रणालीयों सहित समाजशास्त्र की उत्पत्ति, पश्चिमी ज्ञान और दर्शन के संयुक्त भण्डार में आद्य-समाजशास्त्रीय है। प्लेटो के समय से ही सामाजिक विश्लेषण किया जाना शुरू हो गया। यह कहा जा सकता है कि पहला समाजशास्त्री 14वीं सदी का उत्तर अफ्रीकी अरब विद्वान, इब्न खल्दून था, जिसकी मुक़द्दीमा, सामाजिक एकता और सामाजिक संघर्ष के सामाजिक-वैज्ञानिक सिद्धांतों को आगे लाने वाली पहली कृति थी। एच.मोलाना (2001) "अरब विश्व में सूचना", कोओपरेशन साउथ जर्नल 1 .डॉ॰एस. डबल्यू . अख्तर (1997). "इस्लामिक ज्ञान की संकल्पना", अल तौहिद : इस्लामी विचार एवं संस्कृति की एक त्रैमासिक पत्रिका 12 (3).एम्बर हक़ (2004)m, "इस्लामी नज़रिए से मनोविज्ञान : समकालीन मुस्लिम मनोवैज्ञानिक के लिए आरंभिक मुस्लिम विद्वानों का योगदान और चुनौती", धर्म और स्वास्थ्य के समाचार पत्र 43 (4):357-377[375]. शब्द "sociologie " पहली बार 1780 में फ़्रांसीसी निबंधकार इमेनुअल जोसफ सीयस (1748-1836) द्वारा एक अप्रकाशित पांडुलिपि में गढ़ा गया। Des Manuscrits de Sieyès 1773-1799, खंड I और II, क्रिस्टीन फुर द्वारा प्रकाशित, जैक्स गिलहाउमो, Jacques Vallier et Françoise Weil, Paris, Champion>, 1999 और 2007.क्रिस्टीन फुरे और जैक्स गिलहाउमो, Sieyès et le non-dit de la sociologie: du mot à la chose, in Revue d’histoire des sciences humaines, Numéro 15, novembre 2006: Naissances de la science sociale भी देखें.फ्रेंच- भाषा के विकिपीडिया में भी लेख 'सोशियोलोजी' देखें. यह बाद में ऑगस्ट कॉम्ट(1798-1857) द्वारा 1838 में स्थापित किया गया। समाजशास्त्र का एक शब्दकोष, अनुच्छेद: कॉम्ट, अगस्टे इससे पहले कॉम्ट ने "सामाजिक भौतिकी" शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन बाद में वह दूसरों द्वारा अपनाया गया, विशेष रूप से बेल्जियम के सांख्यिकीविद् एडॉल्फ क्योटेलेट. कॉम्ट ने सामाजिक क्षेत्रों की वैज्ञानिक समझ के माध्यम से इतिहास, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र को एकजुट करने का प्रयास किया। फ्रांसीसी क्रांति की व्याकुलता के शीघ्र बाद ही लिखते हुए, उन्होंने प्रस्थापित किया कि सामाजिक निश्चयात्मकता के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है, यह द कोर्स इन पोसिटिव फिलोसफी (1830-1842) और ए जनरल व्यू ऑफ़ पॉसिटिविस्म (1844) में उल्लिखित एक दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण है। कॉम्ट को विश्वास था कि एक 'प्रत्यक्षवादी स्तर' मानवीय समझ के क्रम में, धार्मिक अटकलों और आध्यात्मिक चरणों के बाद अंतिम दौर को चिह्नित करेगा। यद्यपि कॉम्ट को अक्सर "समाजशास्त्र का पिता" माना जाता है, तथापि यह विषय औपचारिक रूप से एक अन्य संरचनात्मक व्यावहारिक विचारक एमिल दुर्खीम(1858-1917) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसने प्रथम यूरोपीय अकादमिक विभाग की स्थापना की और आगे चलकर प्रत्यक्षवाद का विकास किया। तब से, सामाजिक ज्ञानवाद, कार्य पद्धतियां और पूछताछ का दायरा, महत्त्वपूर्ण रूप से विस्तृत और प्रसारित हुआ महत्वपूर्ण व्यक्ति left|thumbnail|120px|एमिल दुर्खीम समाजशास्त्र का विकास 19वी सदी में उभरती आधुनिकता की चुनौतियों, जैसे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वैज्ञानिक पुनर्गठन की शैक्षणिक अनुक्रिया, के रूप में हुआ। यूरोपीय महाद्वीप में इस विषय ने अपना प्रभुत्व जमाया और वहीं ब्रिटिश मानव-शास्त्र ने सामान्यतया एक अलग पथ का अनुसरण किया। 20वीं सदी के समाप्त होने तक, कई प्रमुख समाजशास्त्रियों ने एंग्लो अमेरिकन दुनिया में रह कर काम किया। शास्त्रीय सामाजिक सिद्धांतकारों में शामिल हैं एलेक्सिस डी टोकविले, विल्फ्रेडो परेटो, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, लुडविग गम्प्लोविज़, फर्डिनेंड टोंनीज़, फ्लोरियन जेनिके, थोर्स्तेइन वेब्लेन, हरबर्ट स्पेन्सर, जॉर्ज सिमेल, जार्ज हर्बर्ट मीड,, चार्ल्स कूले, वर्नर सोम्बर्ट, मैक्स वेबर, अंतोनियो ग्राम्शी, गार्गी ल्यूकास, वाल्टर बेंजामिन, थियोडोर डब्ल्यू. एडोर्नो, मैक्स होर्खेइमेर, रॉबर्ट के. मेर्टोंन और टेल्कोट पार्सन्स.विभिन्न शैक्षणिक विषयों में अपनाए गए सिद्धांतों सहित उनकी कृतियां अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र, मनोविज्ञान और दर्शन को प्रभावित करती हैं। 20वीं सदी के उत्तरार्ध के और समकालीन व्यक्तियों में पियरे बौर्डिए सी.राइट मिल्स, उल्रीश बैक, हावर्ड एस. बेकर, जरगेन हैबरमास डैनियल बेल, पितिरिम सोरोकिन सेमोर मार्टिन लिप्सेट मॉइसे ओस्ट्रोगोर्स्की लुई अलतूसर, निकोस पौलान्त्ज़स, राल्फ मिलिबैंड, सिमोन डे बौवार, पीटर बर्गर, हर्बर्ट मार्कुस, मिशेल फूकाल्ट, अल्फ्रेड शुट्ज़, मार्सेल मौस, जॉर्ज रित्ज़र, गाइ देबोर्ड, जीन बौद्रिलार्ड, बार्नी ग्लासेर, एनसेल्म स्ट्रॉस, डोरोथी स्मिथ, इरविंग गोफमैन, गिल्बर्टो फ्रेयर, जूलिया क्रिस्तेवा, राल्फ डहरेनडोर्फ़, हर्बर्ट गन्स, माइकल बुरावॉय, निकलस लुह्मन, लूसी इरिगरे, अर्नेस्ट गेलनेर, रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल, रेमंड विलियम्स, फ्रेडरिक जेमसन, एंटोनियो नेग्री, अर्नेस्ट बर्गेस, गेर्हार्ड लेंस्की, रॉबर्ट बेलाह, पॉल गिलरॉय, जॉन रेक्स, जिग्मंट बॉमन, जुडिथ बटलर, टेरी ईगलटन, स्टीव फुलर, ब्रूनो लेटर, बैरी वेलमैन, जॉन थॉम्पसन, एडवर्ड सेड, हर्बर्ट ब्लुमेर, बेल हुक्स, मैनुअल कैसल्स और एंथोनी गिडन्स . प्रत्येक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति एक विशेष सैद्धांतिक दृष्टिकोण और अनुस्थापन से सम्बद्ध है। दुर्खीम, मार्क्स और वेबर को आम तौर पर समाजशास्त्र के तीन प्रमुख संस्थापकों के रूप में उद्धृत किया जाता है; उनके कार्यों को क्रमशः प्रकार्यवाद, द्वंद सिद्धांत और गैर-प्रत्यक्षवाद के उपदेशों में आरोपित किया जा सकता है। सिमेलऔर पार्सन्स को कभी-कभार चौथे "प्रमुख व्यक्ति" के रूप में शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है। एक अकादमिक विषय के रूप में समाजशास्त्र का संस्थानिकरण thumbnail|right|हसम में फर्डिनेंड टोंनी की आवक्ष मूर्ति 1890 में पहली बार इस विषय को इसके अपने नाम के तहत अमेरिका केकन्सास विश्वविद्यालय, लॉरेंस में पढ़ाया गया। इस पाठ्यक्रम को जिसका शीर्षक समाजशास्त्र के तत्व था, पहली बार फ्रैंक ब्लैकमर द्वारा पढ़ाया गया। अमेरिका में जारी रहने वाला यह सबसे पुराना समाजशास्त्र पाठ्यक्रम है। अमेरिका के प्रथम विकसित स्वतंत्र विश्वविद्यालय, कन्सास विश्वविद्यालय में 1891 में इतिहास और समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गयी। शिकागो विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1892 में एल्बिओन डबल्यू. स्माल द्वारा की गयी, जिन्होंने 1895 में अमेरिकन जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की स्थापना की। प्रथम यूरोपीय समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1895 में, L'Année Sociologique(1896) के संस्थापक एमिल दुर्खीम द्वारा बोर्डिऑक्स विश्वविद्यालय में की गयी। 1904 में यूनाइटेड किंगडम में स्थापित होने वाला प्रथम समाजशास्त्र विभाग, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स एंड पोलिटिकल साइन्स (ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की जन्मभूमि) में हुआ। 1919 में, जर्मनी में एक समाजशास्त्र विभाग की स्थापना लुडविग मैक्सीमीलियन्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख में मैक्स वेबर द्वारा और 1920 में पोलैंड में फ्लोरियन जेनेक द्वारा की गई। समाजशास्त्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 1893 में शुरू हुआ, जब रेने वोर्म्स ने स्थापना की , जो 1949 में स्थापित अपेक्षाकृत अधिक विशाल अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक संघ(ISA) द्वारा प्रभावहीन कर दिया गया। http://www.isa-sociology.org/ International Sociological Association वेबसाइट 1905 में, विश्व के सबसे विशाल पेशेवर समाजशास्त्रियों का संगठन, अमेरिकी सामाजिक संगठन की स्थापना हुई और 1909 में फर्डिनेंड टोनीज़, जॉर्ज सिमेल और मैक्स वेबर सहित अन्य लोगों द्वारा Deutsche Gesellschaft für Soziologie (समाजशास्त्र के लिए जर्मन समिति) की स्थापना हुई | प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद आरंभिक सिद्धांतकारों का समाजशास्त्र की ओर क्रमबद्ध दृष्टिकोण, इस विषय के साथ प्रकृति विज्ञान के समान ही व्यापक तौर पर व्यवहार करना था। किसी भी सामाजिक दावे या निष्कर्ष को एक निर्विवाद आधार प्रदान करने हेतु और अपेक्षाकृत कम अनुभवजन्य क्षेत्रों से जैसे दर्शन से समाजशास्त्र को पृथक करने के लिए अनुभववाद और वैज्ञानिक विधि को महत्व देने की तलाश की गई। प्रत्यक्षवाद कहा जाने वाला यह दृष्टिकोण इस धारणा पर आधारित है कि केवल प्रामाणिक ज्ञान ही वैज्ञानिक ज्ञान है और यह कि इस तरह का ज्ञान केवल कठोर वैज्ञानिक और मात्रात्मक पद्धतियों के माध्यम से, सिद्धांतों की सकारात्मक पुष्टि से आ सकता है। एमिल दुर्खीम सैद्धांतिक रूप से आधारित अनुभवजन्य अनुसंधान के एक बड़े समर्थक थे, जो संरचनात्मक नियमों को दर्शाने के लिए "सामाजिक तथ्यों" के बीच संबंधो को तलाश रहे थे। उनकी स्थिति "एनोमी" को खारिज करने और सामाजिक सुधार के लिए सामाजिक निष्कर्षों में उनकी रूचि से अनुप्राणित होती थी। आज, दुर्खीम का विद्वता भरा प्रत्यक्षवाद का विवरण, अतिशयोक्ति और अति सरलीकरण के प्रति असुरक्षित हो सकता है: कॉम्ट ही एकमात्र ऐसा प्रमुख सामाजिक विचारक था जिसने दावा किया कि सामाजिक विभाग भी कुलीन विज्ञान के समान वैज्ञानिक विश्लेषण के अन्तर्गत आ सकता है, जबकि दुर्खीम ने अधिक विस्तार से मौलिक ज्ञानशास्त्रीय सीमाओं को स्वीकृति दी। फिश, जोनाथन एस. 2005. 'दुर्खीमियन परंपरा का बचाव करते हुए. धर्म, जज्बात और 'नैतिकता एल्डरशट : एशगेट प्रकाशन. thumbnail|upright|right|कार्ल मार्क्स प्रत्यक्षवाद के विरोध में प्रतिक्रियाएं तब शुरू हुईं जब जर्मन दार्शनिक जॉर्ज फ्रेडरिक विल्हेम हेगेल ने दोनों अनुभववाद के खिलाफ आवाज उठाई, जिसे उसने गैर-विवेचनात्मक और नियतिवाद के रूप में खारिज कर दिया और जिसे उसने अति यंत्रवत के रूप में देखा. कार्ल मार्क्स की पद्धति, न केवल हेगेल के प्रांतीय भाषावाद से ली गयी थी, बल्कि, भ्रमों को मिटाते हुए "तथ्यों" के अनुभवजन्य अधिग्रहण को पूर्ण करने की तलाश में, विवेचनात्मक विश्लेषण के पक्ष में प्रत्यक्षवाद का बहिष्कार भी है। उसका मानना रहा कि अनुमानों को सिर्फ लिखने की बजाय उनकी समीक्षा होनी चाहिए। इसके बावजूद मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के आर्थिक नियतिवाद पर आधारित साइंस ऑफ़ सोसाइटी प्रकाशित करने का प्रयास किया। हेनरिक रिकेर्ट और विल्हेम डिल्थे सहित अन्य दार्शनिकों ने तर्क दिया कि प्राकृतिक दुनिया, मानव समाज के उन विशिष्ट पहलुओं (अर्थ, संकेत और अन्य) के कारण सामाजिक संसारसामाजिक वास्तविकता से भिन्न है, जो मानव संस्कृति को अनुप्राणित करती है। 20वीं सदी के अंत में जर्मन समाजशास्त्रियों की पहली पीढ़ी ने औपचारिक तौर पर प्रक्रियात्मक गैर-प्रत्यक्षवाद को पेश किया, इस प्रस्ताव के साथ कि अनुसंधान को मानव संस्कृति के मानकों, मूल्यों, प्रतीकों और सामाजिक प्रक्रियाओं पर व्यक्तिपरक दृष्टिकोण से केन्द्रित होना चाहिए। मैक्स वेबर ने तर्क दिया कि समाजशास्त्र की व्याख्या हल्के तौर पर एक 'विज्ञान' के रूप में की जा सकती है, क्योंकि यह खास कर जटिल सामाजिक घटना के आदर्श वर्ग अथवा काल्पनिक सरलीकरण के बीच - कारण-संबंधों को पहचानने में सक्षम है। बहरहाल, प्राकृतिक वैज्ञानिकों द्वारा खोजे जाने वाले संबंधों के विपरीत एक गैर प्रत्यक्षवादी के रूप में, एक व्यक्ति संबंधों की तलाश करता है जो "अनैतिहासिक, अपरिवर्तनीय, अथवा सामान्य है".फर्डिनेंड टोनीज़ ने मानवीय संगठनों के दो सामान्य प्रकारों के रूप में गेमाइनशाफ्ट और गेसेल्शाफ्ट(साहित्य, समुदाय और समाज) को प्रस्तुत किया। टोंनीज़ ने अवधारणा और सामाजिक क्रिया की वास्तविकता के क्षेत्रों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींची: पहले वाले के साथ हमें स्वतःसिद्ध और निगमनात्मक तरीके से व्यवहार करना चाहिए ('सैद्धान्तिक' समाजशास्त्र), जबकि दूसरे से प्रयोगसिद्ध और एक आगमनात्‍मक तरीके से ('व्यावहारिक' समाजशास्त्र). left|120px|upright वेबर और जॉर्ज सिमेल, दोनों, समाज विज्ञान के क्षेत्र में फस्टेहेन अभिगम (अथवा 'व्याख्यात्मक') के अगुआ रहे; एक व्यवस्थित प्रक्रिया, जिसमें एक बाहरी पर्यवेक्षक एक विशेष सांकृतिक समूह, अथवा स्वदेशी लोगो के साथ उनकी शर्तों पर और उनके अपने दृष्टिकोण के हिसाब से जुड़ने की कोशिश करता है। विशेष रूप से, सिमेल के कार्यों के माध्यम से, समाजशास्त्र ने प्रत्यक्ष डाटा संग्रह या भव्य, संरचनात्मक कानून की नियतिवाद प्रणाली से परे, प्रत्यक्ष स्वरूप प्राप्त किया। जीवन भर सामाजिक अकादमी से अपेक्षाकृत पृथक रहे, सिमेल ने कॉम्ट या दुर्खीम की अपेक्षा घटना-क्रिया-विज्ञान और अस्तित्ववादी लेखकों का स्मरण दिलाते हुए आधुनिकता का स्वभावगत विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिन्होंने सामाजिक वैयक्तिकता के लिए संभावनाओं और स्वरूपों पर विशेष तौर पर ध्यान केन्द्रित किया। लेविन, डोनाल्ड (संस्करण)'सिमेल : व्यक्तित्व और सामाजिक' रूपों पर शिकागो यूनिवर्सिटी प्रेस, 1971. pxix. उसका समाजशास्त्र अनुभूति की सीमा के नियो-कांटीयन आलोचना में व्यस्त रहा, जिसमें पूछा जाता है 'समाज क्या है?'जो कांट के सवाल 'प्रकृति क्या है?', का सीधा संकेत है। लेविन, डोनाल्ड (संस्करण) 'सिमेल : व्यक्तित्व और सामाजिक' रूपों पर शिकागो यूनिवर्सिटी प्रेस, 1971 पर. p6. 120px|upright|left बीसवीं सदी के विकास 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में समाजशास्त्र का विस्तार अमेरिका में हुआ जिसके तहत समाज के विकास से संबंधित स्थूल समाजशास्त्र और मानव के दैनंदिन सामाजिक संपर्कों से संबंधित, सूक्ष्म समाजशास्त्र, दोनों का विकास शामिल है। जार्ज हर्बर्ट मीड, हर्बर्ट ब्लूमर और बाद में शिकागो स्कूल के व्यावहारिक सामाजिक मनोविज्ञान के आधार पर समाजशास्त्रियों ने प्रतीकात्मक परस्पारिकता विकसित की। मीड परियोजना 1930 के दशक में, टेल्कोट पार्सन्स ने, चर्चा को व्यवस्था सिद्धांत और साइबरवाद के एक उच्च व्याख्यात्मक संदर्भ के अन्दर रखते हुए, सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन को स्थूल और सूक्ष्म घटकों के संरचनात्मक और स्वैच्छिक पहलू के साथ एकीकृत करते हुए क्रिया सिद्धांत विकसित किया। ऑस्ट्रिया और तदनंतर अमेरिका में, अल्फ्रेड शुट्ज़ ने सामाजिक घटना-क्रिया-विज्ञान का विकास किया, जिसने बाद में सामाजिक निर्माणवाद के बारे में जानकारी दी। उसी अवधि के दौरान फ्रैंकफर्ट स्कूल के सदस्यों ने, सिद्धांत में - वेबर, फ्रायड और ग्रैम्स्की की अंतर्दृष्टि सहित मार्क्सवाद के ऐतिहासिक भौतिकवादी तत्वों को एकीकृत कर विवेचनात्मक सिद्धांत का विकास किया, यदि हमेशा नाम में ना रहा हो, तब भी अक्सर ज्ञान के केन्द्रीय सिद्धांतों से दूर होने के क्रम में पूंजीवादी आधुनिकता की विशेषता बताता है। यूरोप में, विशेष रूप से आतंरिक युद्ध की अवधि के दौरान, अधिनायकवादी सरकारों द्वारा और पश्चिम में रूढ़िवादी विश्वविद्यालयों द्वारा भी प्रत्यक्ष राजनीतिक नियंत्रण के कारणों से समाजशास्त्र को कमज़ोर किया गया। आंशिक रूप से, इसका कारण था, उदार या वामपंथी विचारों की ओर अपने स्वयं के लक्ष्यों और परिहारों के माध्यम से इस विषय में प्रतीत होने वाली अंतर्निहित प्रवृत्ति.यह देखते हुए कि यह विषय संरचनात्मक क्रियावादियों द्वारा गठित किया गया था: जैविक सम्बद्धता और सामाजिक एकता से संबंधित यह अवलोकन कही न कहीं निराधार था (हालांकि यह पार्सन्स ही था जिसने दुर्खीमियन सिद्धांत को अमेरिकी दर्शकों से परिचय कराया और अव्यक्त रूढ़िवादिता के लिए उसकी विवेचना की आलोचना, इरादे से कहीं ज़्यादा की गयी).फिश, जोनाथन एस. 2005. 'दुर्खीमियन परंपरा का बचाव करते हुए. धर्म, जज्बात और 'नैतिकता एल्डरशट : ऐश्गेट प्रकाशन. उस दौरान क्रिया सिद्धांत और अन्य व्यवस्था सिद्धांत अभिगमों के प्रभाव के कारण 20वीं शताब्दी के मध्य में U.S-अमेरिकी समाजशास्त्र के, अधिक वैज्ञानिक होने की एक सामान्य लेकिन असार्वभौमिक प्रवृति थी। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में, सामाजिक अनुसंधान तेजी से सरकारों और उद्यमों द्वारा उपकरण के रूप में अपनाया जाने लगा। समाजशास्त्रियों ने नए प्रकार के मात्रात्मक और गुणात्मक शोध विधियों का विकास किया। 1960 के दशक में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के उदय के समानान्तर, विशेष रूप से ब्रिटेन में, सांस्कृतिक परिवर्तन ने सामाजिक संघर्ष (जैसे नव-मार्क्सवाद, नारीवाद की दूसरी लहर और जातीय सम्बन्ध) पर जोर देते विरोधी सिद्धांत का उदय देखा, जिसने क्रियावादी दृष्टिकोण का सामना किया। धर्म के समाजशास्त्र ने उस दशक में, धर्मनिरपेक्षीकरण लेखों, भूमंडलीकरण के साथ धर्म की अन्योन्य-क्रिया और धार्मिक अभ्यास की परिभाषा पर नयी बहस के साथ पुनर्जागरण देखा.लेंस्की और यिन्गेर जैसे सिद्धान्तकारों ने धर्म की 'वृत्तिमूलक' परिभाषा की रचना की; इस बात की पड़ताल करते हुए कि धर्म क्या करता है, बजाय आम परिप्रेक्ष्य में कि, यह क्या है .इस प्रकार, विभिन्न नए सामाजिक संस्थानों और आंदोलनों को उनकी धार्मिक भूमिका के लिए निरीक्षित किया जा सकता है। ल्युकस और ग्राम्स्की की परम्परा में मार्क्सवादी सिद्धांतकारों ने उपभोक्तावाद का परीक्षण समरूपी शर्तों पर करना जारी रखा। 1960 और 1970 के दशक में तथाकथित उत्तर-सरंचनावादी और उत्तर-आधुनिकतावादी सिद्धांत ने, नीत्शे और घटना-क्रिया विज्ञानियों के साथ-साथ शास्त्रीय सामाजिक वैज्ञानिकों को आधारित करते हुए, सामाजिक जांच के सांचे पर काफी प्रभाव डाला। अक्सर, अंतरपाठ-सम्बन्ध, मिश्रण और व्यंग्य, द्वारा चिह्नित और सामान्य तौर पर सांस्कृतिक शैली 'उत्तर आधुनिकता' के रूप में समझे जाने वाले उत्तरआधुनिकता के सामाजिक विश्लेषण ने एक पृथक युग पेश किया जो सबंधित है (1) मेटानरेटिव्स[अधिवर्णन] के विघटन से (विशेष रूप से ल्योटार्ड के कार्यों में) और (2) वस्तु पूजा और पूंजीवादी समाज के उत्तरार्ध में खपत के साथ प्रतिबिंबित होती पहचान से (डेबोर्ड; बौड्रीलार्ड; जेम्सन).सांस्कृतिक अध्ययन : सिद्धांत और अभ्यास. द्वारा: बार्कर, क्रिस. सेज प्रकाशन, 2005. p446. उत्तर आधुनिकता का सम्बन्ध मानव इकाई की ज्ञानोदय धारणाओं की कुछ विचारकों द्वारा अस्वीकृति से भी जुड़ा हुआ है, जैसे मिशेल फूको, क्लाड लेवी-स्ट्रॉस और कुछ हद तक लुईस आल्तुसेर द्वारा मार्क्सवाद को गैर-मानवतावाद के साथ मिलाने का प्रयास. इन आन्दोलनों से जुड़े अधिकतर सिद्धांतकारों ने उत्तरआधुनिकता को किसी तरह की विवेचनात्मक पद्धति के बजाय एक ऐतिहासिक घटना के रूप में स्वीकार करने को महत्ता देते हुए, सक्रिय रूप से इस लेबल को नकार दिया। फिर भी, सचेत उत्तरआधुनिकता के अंश सामान्य रूप में सामाजिक और राजनीतिक विज्ञान में उभरते रहे। एंग्लो-सैक्सन दुनिया में काम कर रहे समाजशास्त्री, जैसे एन्थोनी गिडेंस और जिग्मंट बाऊमन, ने एक विशिष्ट "नए" स्वाभाविक युग का प्रस्ताव रखने के बजाय संचार, वैश्विकरण और आधुनिकता के 'उच्च चरण' के मामले में अड़तिया पुनरावृति के सिद्धांतों पर ध्यान दिया। प्रत्यक्षवादी परंपरा समाजशास्त्र में सर्वत्र है, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में.सामाजिक अनुसंधान में प्रत्यक्षवाद : USA और UK(1966-1990).द्वारा: गारत्रेल, सी. डेविड, गारत्रेल, जॉन डब्ल्यू., समाजशास्त्र के ब्रिटिश समाचार पत्र, 00071315, दिसम्बर 2002, वॉल्यूम.53, भाग 4 इस विषय की दो सबसे व्यापक रूप से उद्धृत अमेरिकी पत्रिकाएं, अमेरिकन जर्नल ऑफ सोशिऑलोजी और अमेरिकन सोशिऑलोजिकल रिव्यू, मुख्य रूप से प्रत्यक्षवादी परंपरा में अनुसंधान प्रकाशित करती हैं, जिसमें ASR अधिक विविधता को दर्शाती है (दूसरी ओर ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलोजी मुख्यतया गैर-प्रत्यक्षवादी लेख प्रकाशित करती है). बीसवीं सदी ने समाजशास्त्र में मात्रात्मक पद्धतियों के प्रयोग में सुधार देखा.अनुदैर्घ्य अध्ययन के विकास ने, जो कई वर्षों अथवा दशकों के दौरान एक ही जनसंख्या का अनुसरण करती है, शोधकर्ताओं को लंबी अवधि की घटनाओं के अध्ययन में सक्षम बनाया और कारण-कार्य-सिद्धान्त का निष्कर्ष निकालने के लिए शोधकर्ताओं की क्षमता में वृद्धि की। नए सर्वेक्षण तरीकों द्वारा उत्पन्न समुच्चय डाटा के आकार में वृद्धि का अनुगमन इस डाटा के विश्लेषण के लिए नई सांख्यिकीय तकनीकों के आविष्कार से हुआ। इस प्रकार के विश्लेषण आम तौर पर सांख्यिकी सॉफ्टवेयर संकुल जैसे SAS, Stata, या SPSS की सहायता से किए जाते हैं। सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण, प्रत्यक्षवाद परंपरा में एक नए प्रतिमान का उदाहरण है। सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण का प्रभाव कई सामाजिक उपभागों में व्याप्त है जैसे आर्थिक समाजशास्त्र (उदाहरण के लिए, जे. क्लाइड मिशेल, हैरिसन व्हाइट या मार्क ग्रानोवेटर का कार्य देखें), संगठनात्मक व्यवहार, ऐतिहासिक समाजशास्त्र, राजनीतिक समाजशास्त्र, अथवा शिक्षा का समाजशास्त्र.स्टेनली अरोनोवित्ज़ के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में सी.राइट मिल्स की प्रवृत्ति और उनके पॉवर एलीट के अध्ययन में उनके मुताबिक अधिक स्वतंत्र अनुभवजन्य समाजशास्त्र का एक सूक्ष्म पुनुरुत्थान दिखाई देता है। ज्ञान मीमांसा और प्रकृति दर्शनशास्त्र विषय का किस हद तक विज्ञान के रूप में चित्रण किया जा सकता है यह बुनियादी प्रकृति दर्शनशास्त्र और ज्ञान मीमांसा के प्रश्नों के सन्दर्भ में एक प्रमुख मुद्दा रहा है। सिद्धांत और अनुसंधान के आचरण में किस प्रकार आत्मीयता, निष्पक्षता, अंतर-आत्मीयता और व्यावहारिकता को एकीकृत करें और महत्व दें, इस बात पर विवाद उठते रहते हैं। हालांकि अनिवार्य रूप से 19वीं सदी के बाद से सभी प्रमुख सिद्धांतकारों ने स्वीकार किया है कि समाजशास्त्र, शब्द के पारंपरिक अर्थ में एक विज्ञान नहीं है, करणीय संबंधों को मजबूत करने की क्षमता ही विज्ञान परा-सिद्धांत में किये गए सामान मौलिक दार्शनिक विचार विमर्श का आह्वान करती है। कभी-कभी नए अनुभववाद की एक नस्ल के रूप में प्रत्यक्षवाद का हास्य चित्रण हुआ है, इस शब्द का कॉम्ते के समय से वियना सर्कल और उससे आगे के तार्किक वस्तुनिष्ठवाद के लिए अनुप्रयोगों का एक समृद्ध इतिहास है। एक ही तरीके से, प्रत्यक्षवाद कार्ल पॉपर द्वारा प्रस्तुत महत्वपूर्ण बुद्धिवादी गैर-न्यायवाद के सामने आया है, जो स्वयं थॉमस कुह्न के ज्ञान मीमांसा के प्रतिमान विचलन की अवधारणा के ज़रिए विवादित है। मध्य 20वीं शताब्दी के भाषाई और सांस्कृतिक बदलावों ने समाजशास्त्र में तेजी से अमूर्त दार्शनिक और व्याख्यात्मक सामग्री में वृद्धि और साथ ही तथाकथित ज्ञान के सामाजिक अधिग्रहण पर "उत्तरआधुनिक" दृष्टिकोण को अंकित करता है। सामाजिक विज्ञान के दर्शन पर साहित्य के सिद्धांत में उल्लेखनीय आलोचना पीटर विंच के द आइडिया ऑफ़ सोशल साइन्स एंड इट्स रिलेशन टू फ़िलासफ़ी (1958) में पाया जाता है। हाल के वर्षों में विट्टजेनस्टीन और रिचर्ड रोर्टी जैसी हस्तियों के साथ अक्सर समाजशास्त्री भिड़ गए हैं, जैसे कि सामाजिक दर्शन अक्सर सामाजिक सिद्धांत का खंडन करता है। thumbnail|upright|left|एंथनी गिडेंस संरचना एवं साधन सामाजिक सिद्धांत में एक स्थायी बहस का मुद्दा है: "क्या सामाजिक संरचनाएं अथवा मानव साधन किसी व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण करता है?" इस संदर्भ में 'साधन', व्यक्तियों के स्वतंत्र रूप से कार्य करने और मुक्त चुनाव करने की क्षमता इंगित करता है, जबकि 'संरचना' व्यक्तियों की पसंद और कार्यों को सीमित अथवा प्रभावित करने वाले कारकों को निर्दिष्ट करती है (जैसे सामाजिक वर्ग, धर्म, लिंग, जातीयता इत्यादि). संरचना अथवा साधन की प्रधानता पर चर्चा, सामाजिक सत्ता-मीमांसा के मूल मर्म से संबंधित हैं ("सामाजिक दुनिया किससे बनी है?", "सामाजिक दुनिया में कारक क्या है और प्रभाव क्या है?"). उत्तर आधुनिक कालीन आलोचकों का सामाजिक विज्ञान की व्यापक परियोजना के साथ मेल-मिलाप का एक प्रयास, खास कर ब्रिटेन में, विवेचनात्मक यथार्थवाद का विकास रहा है। राय भास्कर जैसे विवेचनात्मक यथार्थवादियों के लिए, पारंपरिक प्रत्यक्षवाद, विज्ञान को यानि कि खुद संरचना और साधन को ही संभव करने वाले, सत्तामूलक हालातों के समाधान में नाकामी की वजह से 'ज्ञान तर्कदोष' करता है। अत्यधिक संरचनात्मक या साधनपरक विचार के प्रति अविश्वास का एक और सामान्य परिणाम बहुआयामी सिद्धांत, विशेष रूप से टैलकॉट पार्सन्स का क्रिया सिद्धांत और एंथोनी गिड्डेन्स का संरचनात्मकता का सिद्धांत का विकास रहा है। अन्य साकल्यवादी सिद्धांतों में शामिल हैं, पियरे बौर्डियो की गठन की अवधारणा और अल्फ्रेड शुट्ज़ के काम में भी जीवन-प्रपंच का दृश्यप्रपंचवाद का विचार. सामाजिक प्रत्यक्षवाद के परा-सैद्धांतिक आलोचनाओं के बावजूद, सांख्यिकीय मात्रात्मक तरीके बहुत ही ज़्यादा व्यवहार में रहते हैं। माइकल बुरावॉय ने सार्वजनिक समाजशास्त्र की तुलना, कठोर आचार-व्यवहार पर जोर देते हुए, शैक्षणिक या व्यावसायिक समाजशास्त्र के साथ की है, जो व्यापक रूप से अन्य सामाजिक/राजनैतिक वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के बीच संलाप से संबंध रखता है। समाजशास्त्र का कार्य-क्षेत्र और विषय संस्कृति thumbnail|right|1965 में हाईडेलबर्ग में, मैक्स होर्खेमर (सामने बाएं), थियोडोर एडोर्नो (सामने दाएं) और युरगेन हैबरमास (पीछे दाएं). सांस्कृतिक समाजशास्त्र में शब्दों, कलाकृतियों और प्रतीको का विवेचनात्मक विश्लेषण शामिल है, जो सामाजिक जीवन के रूपों के साथ अन्योन्य क्रिया करता है, चाहे उप संस्कृति के अंतर्गत हो अथवा बड़े पैमाने पर समाजों के साथ.सिमेल के लिए, संस्कृति का तात्पर्य है "बाह्य साधनों के माध्यम से व्यक्तियों का संवर्धन करना, जो इतिहास के क्रम में वस्तुनिष्ठ बनाए गए हैं। लेविने, डोनाल्ड (संस्करण)'सिमेल : व्यक्तित्व और सामाजिक रूपों पर' शिकागो विश्वविद्यालय प्रेस, 1971. pxix.थियोडोर एडोर्नो और वाल्टर बेंजामिन जैसे फ्रैंकफर्ट स्कूल के सिद्धांतकारों के लिए स्वयं संस्कृति, एक ऐतिहासिक भौतिकतावादीविश्लेषण का प्रचलित विषय था। सांस्कृतिक शिक्षा के शिक्षण में सामाजिक जांच-पड़ताल के एक सामान्य विषय के रूप में, 1964 में इंग्लैंड के बर्मिन्घम विश्वविद्यालय में स्थापित एक अनुसंधान केंद्र, समकालीन सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र(CCCS) में शुरू हुआ। रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल और रेमंड विलियम्स जैसे बर्मिंघम स्कूल के विद्वानों ने विगत नव-मार्क्सवादी सिद्धांत में परिलक्षित 'उत्पादक' और उपभोक्ताओं' के बीच निर्भीक विभाजन पर प्रश्न करते हुए, सांस्कृतिक ग्रंथों और जनोत्पादित उत्पादों का किस प्रकार इस्तेमाल होता है, इसकी पारस्परिकता पर जोर दिया। सांस्कृतिक शिक्षा, अपनी विषय-वस्तु को सांस्कृतिक प्रथाओं और सत्ता के साथ उनके संबंधों के संदर्भ में जांच करती है। उदाहरण के लिए, उप-संस्कृति का एक अध्ययन (जैसे लन्दन के कामगार वर्ग के गोरे युवा), युवाओं की सामाजिक प्रथाओं पर विचार करेगा, क्योंकि वे शासक वर्ग से संबंधित हैं।विक़ास वैष्णव अपराध और विचलन 'विचलन' क्रिया या व्यवहार का वर्णन करती है, जो सांस्कृतिक आदर्शों सहित औपचारिक रूप से लागू-नियमों (उदा.,जुर्म) तथा सामाजिक मानदंडों का अनौपचारिक उल्लंघन करती है। समाजशास्त्रियों को यह अध्ययन करने की ढील दी गई है कि कैसे ये मानदंड निर्मित हुए; कैसे वे समय के साथ बदलते हैं; और कैसे वे लागू होते हैं। विचलन के समाजशास्त्र में अनेक प्रमेय शामिल हैं, जो सामाजिक व्यवहार के उचित रूप से समझने में मदद देने के लिए, सामाजिक विचलन के अंतर्गत निहित प्रवृत्तियों और स्वरूप को सटीक तौर पर वर्णित करना चाहते हैं। विपथगामी व्यवहार को वर्णित करने वाले तीन स्पष्ट सामाजिक श्रेणियां हैं: संरचनात्मक क्रियावाद; प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद; और विरोधी सिद्धांत अर्थशास्त्र thumbnail|right|120px|मैक्स वेबर का द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ़ कैपिटलिस्म आर्थिक समाजशास्त्र, आर्थिक दृश्य प्रपंच का समाजशास्त्रीय विश्लेषण है; समाज में आर्थिक संरचनाओं तथा संस्थाओं की भूमिका, तथा आर्थिक संरचनाओं और संस्थाओं के स्वरूप पर समाज का प्रभाव.पूंजीवाद और आधुनिकता के बीच संबंध एक प्रमुख मुद्दा है। मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद ने यह दर्शाने की कोशिश की कि किस प्रकार आर्थिक बलों का समाज के ढांचे पर मौलिक प्रभाव है। मैक्स वेबर ने भी, हालांकि कुछ कम निर्धारक तौर पर, सामाजिक समझ के लिए आर्थिक प्रक्रियाओँ को महत्वपूर्ण माना.जॉर्ज सिमेल, विशेष रूप से अपने फ़िलासफ़ी ऑफ़ मनी में, आर्थिक समाजशास्त्र के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण रहे, जिस प्रकार एमिले दर्खिम अपनी द डिवीज़न ऑफ़ लेबर इन सोसाइटी जैसी रचनाओं से.आर्थिक समाजशास्त्र अक्सर सामाजिक-आर्थिकी का पर्याय होता है। तथापि, कई मामलों में, सामाजिक-अर्थशास्त्री, विशिष्ट आर्थिक परिवर्तनों के सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जैसे कि फैक्ट्री का बंद होना, बाज़ार में हेराफेरी, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधियों पर हस्ताक्षर, नए प्राकृतिक गैस विनियमन इत्यादि.(इन्हें भी देखें: औद्योगिक समाजशास्त्र) पर्यावरण पर्यावरण संबंधी समाजशास्त्र, सामाजिक-पर्यावरणीय पारस्परिक संबंधों का सामाजिक अध्ययन है, जो पर्यावरण संबंधी समस्याओं के सामाजिक कारकों, उन समस्याओं का समाज पर प्रभाव, तथा उनके समाधान के प्रयास पर ज़ोर देता है। इसके अलावा, सामाजिक प्रक्रियाओं पर यथेष्ट ध्यान दिया जाता है, जिनकी वजह से कतिपय परिवेशगत परिस्थितियां, सामाजिक तौर पर परिभाषित समस्याएं बन जाती हैं। (इन्हें भी देखें: आपदा का समाजशास्त्र) शिक्षा शिक्षा का समाजशास्त्र, शिक्षण संस्थानों द्वारा सामाजिक ढांचों, अनुभवों और अन्य परिणामों को निर्धारित करने के तौर-तरीक़ों का अध्ययन है। यह विशेष रूप से उच्च, अग्रणी, वयस्क और सतत शिक्षा सहित आधुनिक औद्योगिक समाज की स्कूली शिक्षा प्रणाली से संबंधित है। गॉर्डन मार्शल (संस्करण) समाजशास्त्र का एक शब्दकोश (अनुच्छेद: शिक्षा का समाजशास्त्र), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1998 परिवार और बचपन परिवार का समाजशास्त्र, विभिन्न सैद्धांतिक दृष्टिकोणों के ज़रिए परिवार एकक, विशेष रूप से मूल परिवार और उसकी अपनी अलग लैंगिक भूमिकाओं के आधुनिक ऐतिहासिक उत्थान की जांच करता है। परिवार, प्रारंभिक और पूर्व-विश्वविद्यालयीन शैक्षिक पाठ्यक्रमों का एक लोकप्रिय विषय है। लिंग और लिंग-भेद लिंग और लिंग-भेद का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, छोटे पैमाने पर पारस्परिक प्रतिक्रिया औरर व्यापक सामाजिक संरचना, दोनों स्तरों पर, विशिष्टतः सामर्थ्य और असमानता के संदर्भ में इन श्रेणियों का अवलोकन और आलोचना करता है। इस प्रकार के कार्य का ऐतिहासिक मर्म, नारीवाद सिद्धांत और पितृसत्ता के मामले से जुड़ा है: जो अधिकांश समाजों में यथाक्रम महिलाओं के दमन को स्पष्ट करता है। यद्यपि नारीवादी विचार को तीन 'लहरों', यथा (1)19वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रारंभिक लोकतांत्रिक मताधिकार आंदोलन, (2)1960 की नारीवाद की दूसरी लहर और जटिल शैक्षणिक सिद्धांत का विकास, तथा (3) वर्तमान 'तीसरी लहर', जो सेक्स और लिंग के विषय में सभी सामान्यीकरणों से दूर होती प्रतीत होती है, एवं उत्तरआधुनिकता, गैर-मानवतावादी, पश्चमानवतावादी, समलैंगिक सिद्धांत से नज़दीक से जुड़ी हुई है। मार्क्सवादी नारीवाद और स्याह नारीवाद भी महत्वपूर्ण स्वरूप हैं। लिंग और लिंग-भेद के अध्ययन, समाजशास्त्र के अंतर्गत होने की बजाय, उसके साथ-साथ विकसित हुए हैं। हालांकि अधिकांश विश्वविद्यालयों के पास इस क्षेत्र में अध्ययन के लिए पृथक प्रक्रिया नहीं है, तथापि इसे सामान्य तौर पर सामाजिक विभागों में पढ़ाया जाता है। इंटरनेट इंटरनेट समाजशास्त्रियों के लिए विभिन्न तरीकों से रुचिकर है। इंटरनेट अनुसंधान के लिए एक उपकरण (उदाहरणार्थ, ऑनलाइन प्रश्नावली का संचालन) और चर्चा-मंच तथा एक शोध विषय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। व्यापक अर्थों में इंटरनेट के समाजशास्त्र में ऑनलाइन समुदायों (उदाहरणार्थ, समाचार समूह, सामाजिक नेटवर्किंग साइट) और आभासी दुनिया का विश्लेषण भी शामिल है। संगठनात्मक परिवर्तन इंटरनेट जैसी नई मीडिया से उत्प्रेरित होती हैं और तद्द्वारा विशाल स्तर पर सामाजिक बदलाव को प्रभावित करते हैं। यह एक औद्योगिक से एक सूचनात्मक समाज में बदलाव के लिए रूपरेखा तैयार करता है (देखें मैनुअल कैस्टेल्स तथा विशेष रूप से उनके "द इंटरनेट गैलेक्सी" में सदी के काया-पलट का वर्णन).ऑनलाइन समुदायों का सांख्यिकीय तौर पर अध्ययन नेटवर्क विश्लेषण के माध्यम से किया जा सकता है और साथ ही, आभासी मानव-जाति-वर्णन के माध्यम से उसकी गुणात्मक व्याख्या की जा सकती है। सामाजिक बदलाव का अध्ययन, सांख्यिकीय जनसांख्यिकी या ऑनलाइन मीडिया अध्ययनों में बदलते संदेशों और प्रतीकों की व्याख्या के माध्यम से किया जा सकता है। ज्ञान ज्ञान का समाजशास्त्र, मानवीय विचारों और सामाजिक संदर्भ के बीच संबंधों का, जिसमें उसका उदय हुआ है और समाजों में प्रचलित विचारों के प्रभाव का अध्ययन करता है। यह शब्द पहली बार 1920 के दशक में व्यापक रूप से प्रयुक्त हुआ, जब कई जर्मन-भाषी सिद्धांतकारों ने बड़े पैमाने पर इस बारे में लिखा, इनमें सबसे उल्लेखनीय मैक्स शेलर और कार्ल मैन्हेम हैं। 20वीं सदी के मध्य के वर्षों में प्रकार्यवाद के प्रभुत्व के साथ, ज्ञान का समाजशास्त्र, समाजशास्त्रीय विचारों की मुख्यधारा की परिधि पर ही बना रहा। 1960 के दशक में इसे व्यापक रूप से पुनः परिकल्पित किया गया तथा पीटर एल.बर्गर एवं थामस लकमैन द्वारा द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ़ रियाल्टी (1966) में विशेष तौर पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर और भी निकट से लागू किया गया, तथा और यह अभी भी मानव समाज से गुणात्मक समझ के साथ निपटने वाले तरीकों के केंद्र में है (सामाजिक तौर पर निर्मित यथार्थ से तुलना करें).मिशेल फोकाल्ट के "पुरातात्विक" और "वंशावली" अध्ययन काफी समकालीन प्रभाव के हैं। क़ानून और दंड क़ानून का समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की उप-शाखा और क़ानूनी शिक्षा के क्षेत्रांतर्गत अभिगम, दोनों को संदर्भित करता है। क़ानून का समाजशास्त्रीय अध्ययन विविधतापूर्ण है, जो समाज के अन्य पहलुओं जैसे कि क़ानूनी संस्थाएं, सिद्धांत और अन्य सामाजिक घटनाएं और इनके विपरीत प्रभावों का क़ानून के साथ पारस्परिक संपर्क का परीक्षण करता है। उसके अनुसंधान के कतिपय क्षेत्रों में क़ानूनी संस्थाओं के सामाजिक विकास, क़ानूनी मुद्दों के सामाजिक निर्माण और सामाजिक परिवर्तन के साथ क़ानून से संबंध शामिल हैं। क़ानून का समाजशास्त्र न्यायशास्त्र, क़ानून का आर्थिक विश्लेषण, अपराध विज्ञान जैसे अधिक विशिष्ट विषय क्षेत्रों के आर-पार जाता है। जेरी, समाजशास्त्र का कोलिन्स शब्दकोष, 636 क़ानून औपचारिक है और इसलिए 'मानक' के समान नहीं है। इसके विपरीत, विचलन का समाजशास्त्र, सामान्य से औपचारिक और अनौपचारिक दोनों विचलनों, यथा अपराध और विचलन के सांस्कृतिक रूपों, दोनों का परीक्षण करता है। मीडिया सांस्कृतिक अध्ययन के समान ही, मीडिया अध्ययन एक अलग विषय है, जो समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक-विज्ञान तथा मानविकी, विशेष रूप से साहित्यिक आलोचना और विवेचनात्मक सिद्धांत का सम्मिलन चाहता है। हालांकि उत्पादन प्रक्रिया या सुरूचिपूर्ण स्वरूपों की आलोचना की छूट समाजशास्त्रियों को नहीं है, अर्थात् सामाजिक घटकों का विश्लेषण, जैसे कि वैचारिक प्रभाव और दर्शकों की प्रतिक्रिया, सामाजिक सिद्धांत और पद्धति से ही पनपे हैं। इस प्रकार 'मीडिया का समाजशास्त्र' स्वतः एक उप-विषय नहीं है, बल्कि मीडिया एक सामान्य और अक्सर अति-आवश्यक विषय है। सैन्य सैन्य समाजशास्त्र का लक्ष्य, सैन्य का एक संगठन के बजाय सामाजिक समूह के रूप में व्यवस्थित अध्ययन करना है। यह एक बहुत ही विशिष्ट उप-क्षेत्र है, जो सैनिकों से संबंधित मामलों की एक अलग समूह के रूप में, आजीविका और युद्ध में जीवित रहने से जुड़े साझा हितों पर आधारित, बाध्यकारी सामूहिक कार्यों की, नागरिक समाज के अंतर्गत अधिक निश्चित और परिमित उद्देश्यों और मूल्यों सहित जांच करता है। सैन्य समाजशास्त्र, नागरिक-सैन्य संबंधों और अन्य समूहों या सरकारी एजेंसियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं से भी संबंधित है। इन्हें भी देखें: आतंकवाद का समाजशास्त्र. शामिल विषय हैं: सैन्य द्वारा धारित प्रबल धारणाएं, सेना के सदस्यों की लड़ने की इच्छा में परिवर्तन, सैन्य एकता, सैन्य वृत्ति-दक्षता, महिलाओं का वर्धित उपयोग, सैन्य औद्योगिक-शैक्षणिक परिसर, सैन्य की अनुसंधान निर्भरता और सेना की संस्थागत और संगठनात्मक संरचना. राजनीतिक समाजशास्त्र thumbnail|right|अग्रणी जर्मन समाजशास्त्री और महत्वपूर्ण विचारक, युर्गेन हैबरमास राजनीतिक समाजशास्त्र, सत्ता और व्यक्तित्व के प्रतिच्छेदन, सामाजिक संरचना और राजनीति का अध्ययन है। यह अंतःविषय है, जहां राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र एक दूसरे के विपरीत रहते हैं। यहां विषय समाजों के राजनीतिक माहौल को समझने के लिए, सरकारी और आर्थिक संगठनों की प्रणाली के विश्लेषण हेतु, तुलनात्मक इतिहास का उपयोग करता है। इतिहास और सामाजिक आंकड़ों की तुलना और विश्लेषण के बाद, राजनीतिक रुझान और स्वरूप उभर कर सामने आते हैं। राजनीतिक समाजशास्त्र के संस्थापक मैक्स वेबर, मोइसे ऑस्ट्रोगोर्स्की और रॉबर्ट मिशेल्स थे। समकालीन राजनीतिक समाजशास्त्र के अनुसंधान का ध्यान चार मुख्य क्षेत्रों में केंद्रित है:rajniti आधुनिक राष्ट्र का सामाजिक-राजनैतिक गठन. "किसका शासन है?" समूहों के बीच सामाजिक असमानता (वर्ग, जाति, लिंग, आदि) कैसे राजनीति को प्रभावित करती है। राजनीतिक सत्ता के औपचारिक संस्थानों के बाहर किस प्रकार सार्वजनिक हस्तियां, सामाजिक आंदोलन और प्रवृतियां राजनीति को प्रभावित करती हैं। सामाजिक समूहों (उदाहरणार्थ, परिवार, कार्यस्थल, नौकरशाही, मीडिया, आदि) के भीतर और परस्पर सत्ता संबंध वर्ग एवं जातीय संबंध वर्ग एवं जातीय संबंध समाजशास्त्र के क्षेत्र हैं, जो समाज के सभी स्तरों पर मानव जाति के बीच सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधो का अध्ययन करते हैं। यह जाति और नस्लवाद तथा विभिन्न समूहों के सदस्यों के बीच जटिल राजनीतिक पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को आवृत करता है। राजनैतिक नीति के स्तर पर, इस मुद्दे की आम तौर पर चर्चा या तो समीकरणवाद या बहुसंस्कृतिवाद के संदर्भ में की जाती है। नस्लवाद-विरोधी और उत्तर-औपनिवेशिकता भी अभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रमुख सिद्धांतकारों में पॉल गिलरॉय, स्टुअर्ट हॉल, जॉन रेक्स और तारिक मदूद शामिल हैं। धर्म धर्म का समाजशास्त्र, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक ढांचों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विकास, सार्वभौमिक विषयों और समाज में धर्म की भूमिका से संबंधित है। सभी समाजों और पूरे अभिलिखित ऐतिहासिक काल में, धर्म की पुनरावर्ती भूमिका पर विशिष्ट ज़ोर दिया जाता रहा है। निर्णायक तौर पर धर्म के समाजशास्त्र में किसी विशिष्ट धर्म से जुड़े सच्चाई के दावों का मूल्यांकन शामिल नहीं है, यद्यपि कई विरोधी सिद्धांतों की तुलना के लिए, पीटर एल.बर्गर द्वारा वर्णित, अन्तर्निहित 'विधिक नास्तिकता' की आवश्यकता हो सकती है। धर्म के समाजशास्त्रियों ने धर्म पर समाज के प्रभाव और समाज पर धर्म के प्रभाव को, दूसरे शब्दों में उनके द्वंदात्मक संबंध को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र विषय दुर्खिम के 1897 में किए गए कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों के आत्महत्या अध्ययन दरों में धर्म विश्लेषण से आरंभ हुआ। वैज्ञानिक ज्ञान एवं संस्थाएं विज्ञान के समाजशास्त्र में विज्ञान का अध्ययन, एक सामाजिक गतिविधि के रूप में शामिल है, विशेषतः जो "वैज्ञानिक गतिविधियों की सामाजिक संरचना और प्रक्रियाओं सहित, विज्ञान की सामाजिक परिस्थितियां और प्रभावों" से वास्ता रखता है। सिद्धांतकारों में गेस्टन बेकेलार्ड, कार्ल पॉपर, पॉल फेयरबेंड, थॉमस कुन, मार्टिन कश, ब्रूनो लेटर, मिशेल फाउकाल्ट, एन्सेल्म स्ट्रॉस लूसी सचमैन, सैल रिस्टिवो, केरिन नॉर-सेटिना, रैनडॉल कॉलिन्स, बैरी बार्नेस, डेविड ब्लूर,हैरी कॉलिन्स और स्टीव फुलरशामिल हैं। स्तर-विन्यास सामाजिक स्तर-विन्यास, समाज में व्यक्तियों के सामाजिक वर्ग, जाति और विभाग की पदानुक्रमित व्यवस्था है। आधुनिक पश्चिमी समाज में स्तर-विन्यास, पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक और आर्थिक वर्ग के तीन मुख्य स्तरों से संबंधित हैं : उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग, लेकिन हर एक वर्ग आगे जाकर और छोटे वर्गों में उप-विभाजित हो सकता है (उदाहरणार्थ, व्यावसायिक).सामाजिक स्तर-विन्यास समाजशास्त्र में बिल्कुल भिन्न प्रकार से उल्लिखित है। संरचनात्मक क्रियावाद के समर्थकों का सुझाव है कि, सामाजिक स्तर-विन्यास अधिकांश राष्ट्र समाजों में मौजूद होने की वजह से, उनके अस्तित्व को स्थिर करने हेतु मदद देने में पदानुक्रम लाभकारी होना चाहिए। इसके विपरीत, विवादित सिद्धांतकारों ने विभजित समाज में संसाधनों के अभाव और सामाजिक गतिशीलता के अभाव की आलोचना की। कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी व्यवस्था में सामाजिक वर्गों को उनकी उत्पादकता के आधार पर विभाजित किया: पूंजीपति-वर्ग का ही दबदबा है, लेकिन यह स्वयं ही दरिद्रतम श्रमिक वर्ग को शामिल करता है, चूंकि कार्यकर्ता केवल अपनी श्रम शक्ति को बेच सकते हैं (ठोस भवन के ढांचे की नींव तैयार करते हुए). अन्य विचारक जैसे कि मैक्स वेबर ने मार्क्सवादी आर्थिक नियतत्ववाद की आलोचना की और इस बात पर ध्यान दिया कि सामाजिक स्तर-विन्यास विशुद्ध रूप से आर्थिक असमानताओं पर निर्भर नहीं है, बल्कि स्थिति और शक्ति में भिन्नता पर भी निर्भर है। (उदाहरण के लिए पितृसत्ता पर). राल्फ़ दह्रेंदोर्फ़ जैसे सिद्धांतकारों ने आधुनिक पश्चिमी समाज में विशेष रूप से तकनीकी अथवा सेवा आधारित अर्थव्यवस्थाओं में एक शिक्षित कार्य बल की जरूरत के लिए एक विस्तृत मध्यम वर्ग की ओर झुकाव को उल्लिखित किया। भूमंडलीकरण से जुड़े दृष्टिकोण, जैसे कि निर्भरता सिद्धांत सुझाव देते हैं कि यह प्रभाव तीसरी दुनिया में कामगारों के बदलाव के कारण है। शहरी और ग्रामीण स्थल शहरी समाजशास्त्र में सामाजिक जीवन और महानगरीय क्षेत्र में मानवीय संबंधों का विश्लेषण भी शामिल है। यह एक मानक का अध्ययन है, जिसमें संरचनाओं, प्रक्रियायों, परिवर्तन और शहरी क्षेत्र की समस्याओं की जानकारी देने का प्रयास किया जाता है और ऐसा कर आयोजना और नीति निर्माण के लिए शक्ति प्रदान की जाती है। समाजशास्त्र के अधिकांश क्षेत्रों की तरह, शहरी समाजशास्त्री सांख्यिकी विश्लेषण, निरीक्षण, सामाजिक सिद्धांत, साक्षात्कार और अन्य तरीकों का उपयोग, कई विषयों जैसे पलायन और जनसांख्यिकी प्रवृत्तियों, अर्थशास्त्र, गरीबी, वंशानुगत संबंध, आर्थिक रुझान इत्यादि के अध्ययन के लिए किया जाता है। औद्योगिक क्रांति के बाद जॉर्ज सिमेल जैसे सिद्धांतकारों ने द मेट्रोपोलिस एंड मेंटल लाइफ (1903) में शहरीकरण की प्रक्रिया और प्रभावित सामाजिक अलगाव और गुमनामी पर ध्यान केन्द्रित किया। 1920 और 1930 के दशक में शिकागो स्कूल ने शहरी समाजशास्त्र में प्रतीकात्मक पारस्परिक सम्बद्धता को क्षेत्र में अनुसंधान की एक विधि के रूप में उपयोग में लाकर एक विशेष काम किया है। ग्रामीण समाजशास्त्र, इसके विपरीत, गैर सामाजिक जीवन महानगरीय क्षेत्रों के अध्ययन से जुड़े समाजशास्त्र का एक क्षेत्र है। शोध विधियां सिंहावलोकन thumbnail|upright|left|समाजशास्त्र में सामाजिक अन्योन्यक्रिया और उसके परिणामों का अध्ययन किया जाता है सामाजिक शोध विधियों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: मात्रात्मक डिजाइन, कई मामलों के मध्य छोटी मात्रा के लक्षणों के बीच संबंधो पर प्रकाश डालते हुए, सामाजिक घटना की मात्रा निर्धारित करने और संख्यात्मक आंकड़ों के विश्लेषण के प्रयास से सम्बद्ध है। गुणात्मक डिजाइन, मात्रात्मकता की बजाय व्यक्तिगत अनुभवों और विश्लेषण पर जोर देता है और सामाजिक घटना के प्रयोजन को समझने से जुड़ा हुआ है और अपेक्षाकृत चंद मामलों के मध्य कई लक्षणों के बीच संबंधों पर केन्द्रित है। जबकि कई पहलुओं में काफी हद तक भिन्न होते हुए, गुणात्मक और मात्रात्मक, दोनों दृष्टिकोणों में सिद्धांत और आंकडों के बीच व्यवस्थित अन्योन्य-क्रिया शामिल है। विधि का चुनाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्ता क्या खोज रहा है। उदाहरण के लिए, एक पूरी आबादी के सांख्यिकीय सामान्यीकरण का खाका खींचने से जुड़ा शोधकर्ता, एक प्रतिनिधि नमूना जनसंख्या को एक सर्वेक्षण प्रश्नावली वितरित कर सकता है। इसके विपरीत, एक शोधकर्ता, जो किसी व्यक्ति के सामाजिक कार्यों के पूर्ण प्रसंग को समझना चाहता है, नृवंशविज्ञान आधारित प्रतिभागी अवलोकन या मुक्त साक्षात्कार चुन सकता है। आम तौर पर अध्ययन एक 'बहु-रणनीति' डिजाइन के हिस्से के रूप में मात्रात्मक और गुणात्मक विधियों को मिला देते हैं। उदाहरण के लिए, एक सांख्यिकीय स्वरूप या एक लक्षित नमूना हासिल करने के लिए मात्रात्मक अध्ययन किया जा सकता है और फिर एक साधन की अपनी प्रतिक्रिया को निर्धारित करने के लिए गुणात्मक साक्षात्कार के साथ संयुक्त किया जा सकता है। जैसा कि अधिकांश विषयों के मामलों में है, अक्सर समाजशास्त्री विशेष अनुसंधान तकनीकों के समर्थन शिविरों में विभाजित किये गए हैं। ये विवाद सामाजिक सिद्धांत के ऐतिहासिक कोर से संबंधित हैं (प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद, तथा संरचना और साधन). पद्धतियों के प्रकार शोध विधियों की निम्नलिखित सूची न तो अनन्य है और ना ही विस्तृत है : thumbnail|'नोड्स' नामक, एक-एक व्यक्ति (या संगठनों) से बना एक सामाजिक नेटवर्क ढांचा, जो एक या एक से अधिक, विशेष प्रकार की पारस्परिक निर्भरता द्वारा जुड़ा होता है अभिलेखीय अनुसंधान: कभी-कभी "ऐतिहासिक विधि" के रूप में संबोधित.यह शोध जानकारी के लिए विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों का उपयोग करता है जैसे आत्मकथाएं, संस्मरण और समाचार विज्ञप्ति. सामग्री विश्लेषण: साक्षात्कार और प्रश्नावली की सामग्री का विश्लेषण, व्यवस्थित अभिगम के उपयोग से किया जाता है। इस प्रकार की अनुसंधान प्रणाली का एक उदाहरण "प्रतिपादित सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है। पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का भी विश्लेषण यह जानने के लिए किया जाता है कि लोग कैसे संवाद करते हैं और वे संदेश, जिनके बारे में लोग बातें करते हैं या लिखते हैं। प्रयोगात्मक अनुसंधान: शोधकर्ता एक एकल सामाजिक प्रक्रिया या सामाजिक घटना को पृथक करता है और डाटा का उपयोग सामाजिक सिद्धांत की या तो पुष्टि अथवा निर्माण के लिए करता है। प्रतिभागियों ("विषय" के रूप में भी उद्धृत) को विभिन्न स्थितियों या "उपचार" के लिए बेतरतीब ढंग से नियत किया जाता है और फिर समूहों के बीच विश्लेषण किया जाता है। यादृच्छिकता शोधकर्ता को यह सुनिश्चित कराती है कि यह व्यवहार समूह की भिन्नताओं पर प्रभाव डालता है न कि अन्य बाहरी कारकों पर. सर्वेक्षण शोध: शोधकर्ता साक्षात्कार, प्रश्नावली, या एक विशेष आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए लोगों के एक समूह से (यादृच्छिक चयन सहित) समान पुनर्निवेश प्राप्त करता है। एक साक्षात्कार या प्रश्नावली से प्राप्त सर्वेक्षण वस्तुएं, खुले-अंत वाली अथवा बंद-अंत वाली हो सकती हैं। जीवन इतिहास: यह व्यक्तिगत जीवन प्रक्षेप पथ का अध्ययन है। साक्षात्कार की एक श्रृंखला के माध्यम से, शोधकर्ता उनके जीवन के निर्णायक पलों या विभिन्न प्रभावों को परख सकते हैं। अनुदैर्ध्य अध्ययन: यह एक विशिष्ट व्यक्ति या समूह का एक लंबी अवधि में किया गया व्यापक विश्लेषण है। अवलोकन: इन्द्रियजन्य डाटा का उपयोग करते हुए, कोई व्यक्ति सामाजिक घटना या व्यवहार के बारे में जानकारी रिकॉर्ड करता है। अवलोकन तकनीक या तो प्रतिभागी अवलोकन अथवा गैर-प्रतिभागी अवलोकन हो सकती है। प्रतिभागी अवलोकन में, शोधकर्ता क्षेत्र में जाता है (जैसे एक समुदाय या काम की जगह पर) और उसे गहराई से समझने हेतु एक लम्बी अवधि के लिए क्षेत्र की गतिविधियों में भागीदारी करता है। इन तकनीकों के माध्यम से प्राप्त डाटा का मात्रात्मक या गुणात्मक तरीकों से विश्लेषण किया जा सकता है। व्यावहारिक अनुप्रयोग सामाजिक अनुसंधान, अर्थशास्त्रियों,राजनेता|शिक्षाविदों, योजनाकारों, क़ानून निर्माताओं, प्रशासकों, विकासकों, धनाढ्य व्यवसायियों, प्रबंधकों, गैर-सरकारी संगठनों और लाभ निरपेक्ष संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सार्वजनिक नीतियों के निर्माण तथा सामान्य रूप से सामाजिक मुद्दों को हल करने में रुचि रखने वाले लोगों को जानकारी देता है। माइकल ब्रावो ने सार्वजनिक समाजशास्त्र, व्यावहारिक अनुप्रयोगों से स्पष्ट रूप से जुड़े पहलू और अकादमिक समाजशास्त्र, जो पेशेवर और छात्रों के बीच सैद्धांतिक बहस के लिए मोटे तौर पर संबंधित है, के बीच अंतर को दर्शाया है। समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र विभिन्न विषयों के साथ अतिच्छादन करता है, जो समाज का अध्ययन करते हैं; "समाजशास्त्र" और "सामाजिक विज्ञान" अनौपचारिक रूप से पर्यायवाची हैं। नृविज्ञान, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान ने समाजशास्त्र को प्रभावित किया है और इससे प्रभावित भी हुए हैं; चूंकि ये क्षेत्र एक ही इतिहास और सामयिक रूचि को साझा करते हैं। सामाजिक मनोविज्ञान का विशिष्ट क्षेत्रशेरिफ, एम. और CW शेरिफ.सामाजिक मनोविज्ञान की एक रूपरेखा (रिवर्स. संस्करण.). न्यू यॉर्क: हार्पर एंड ब्रदर्स, 1956 सामाजिक और मनोवैज्ञानिक हितों के कई रास्तों से उभर कर आया है; यह क्षेत्र आगे चल कर सामाजिक या मनोवैज्ञानिक बल के आधार पर पहचाना गया है। विवेचनात्मक सिद्धांत, समाजशास्त्र और साहित्यिक सिद्धांतों की संसृति से प्रभावित है। सामाजिक जैविकी, इस बात का अध्ययन है कि कैसे सामाजिक व्यवहार और संगठन, विकास और अन्य जैविक प्रक्रियाओं द्वारा प्रभावित हुए हैं। यह क्षेत्र समाजशास्त्र को अन्य कई विज्ञान से मिश्रित करता है जैसे नृविज्ञान, जीव विज्ञान, प्राणी शास्त्र व अन्य. सामाजिक जैविकी ने, समाजीकरण और पर्यावरणीय कारकों के बजाय जीन अभिव्यक्ति पर बहुत अधिक ध्यान देने के कारण, सामाजिक अकादमी के भीतर विवाद को उत्पन्न किया है ('प्रकृति अथवा पोषण' देखें). इन्हें भी देखें समाजशास्त्रियों की सूची समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पत्रिकाओं की सूची समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण प्रकाशनों की सूची सामाजिक मानदंड सामाजिक दर्शन सामाजिक मनोविज्ञान संरचना और साधन सामाजिक सिद्धांत समाजशास्त्र के उप-क्षेत्र समाजशास्त्र की समय-रेखा संबंधित सिद्धांत, तरीके और जांच के क्षेत्र नृविज्ञान अपराधशास्त्र परजीवी जीव विज्ञान हेतु विज्ञान राजनीति विज्ञान मनोविज्ञान सामाजिक नृविज्ञान सामाजिक मनोविज्ञान सामाजिक-विज्ञान सामाजिक अर्थशास्त्र सामाजिक कल्पना सामाजिक जीवन विद्या सांख्यिकीय सर्वेक्षण पाद टिप्पणियां ग्रंथ सूची एबी, स्टीफेन एच. सोशिऑलोजी: ए गाइड टू रेफ़रेन्स एंड इनफ़र्मेशन, 3सरा संस्करण .लिटिलटन, CO, पुस्तकालय असीमित संकलन, 2005, ISBN 1-56308-947-5 केल्हन, क्रेग (संस्करण) डिक्शनरी ऑफ़ सोशल साइन्सस, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस, 2002, 1SBN 978-0195123715 मैकिओनिस, जॉन जे. 2004.सोशिऑलोजी (10 वां संस्करण) .अप्रेंटिस हॉल, ISBN 0-13-184918-2 नैश, केट. 2000.कंटेम्पोररी पोलिटिकल सोशिऑलोजी: ग्लोबलाइज़ेशन, पॉलिटिक्स, एंड पवर . ब्लैकवेल प्रकाशक. ISBN 0-631-20660-4 स्कॉट, जॉन & मार्शल, गॉर्डन (eds)ए डिक्शनरी ऑफ़ सोशिऑलोजी (3रा संस्करण).ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2005, ISBN 0-19-860986-8, अतिरिक्त पठन विकिबुक्स : समाजशास्त्र का परिचय बेबी, अर्ल आर.. (2003).द प्रैक्टिस ऑफ़ सोशल रिसर्च, 10 वां संस्करण . वड्सवर्थ, थॉमसन लर्निंग इंक., ISBN 0-534-62029-9 कॉलिन्स, रैंडल.1994.फ़ोर सोशिऑलोजिकल ट्रेडिशन्स. ऑक्सफोर्ड, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ISBN 0-19-508208-7 कोसर लुईस ए., मास्टर्स ऑफ़ सोशिऑलोजिकल थॉट: आइ़डियास इन हिस्टारिकल एंड सोशल कॉन्टेक्स्ट, न्यूयॉर्क, हरकोर्ट ब्रेस जोह्वंविक, 1971.ISBN 0-15-555128-0. गिडेंस, एंथोनी. 2006.सोशिऑलोजी (5 वां संस्करण), राजनीति, कैम्ब्रिज. 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ISBN 0-13-036245-X व्हाइट, हैरिसन सी.. 2008.आइडेन्टिटी एंड कंट्रोल. हाउ सोशल फार्मेशन्स इमर्ज .(2रा संस्करण., पूर्णतया संशोधित संस्करण)) प्रिंसटन, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस.ISBN 978-0-691-13714-8 विलिस, इवान. 1996.द सोशिऑलोजिकल क्वेस्ट: एन इंट्रो़डक्शन टू द स्टडी ऑफ़ सोशल लाइफ़, न्यू ब्रंसविक, NJ, रजर्स विश्वविद्यालय प्रेस.ISBN 0-81-135-2367-2 बाहरी कड़ियाँ - सामाजिक और स्थानिक असमानताएं व्यावसायिक संगठन अफ्रीकी सामाजिक संघ (AfSA) अमेरिकी सामाजिक संघ (ASA) ऑस्ट्रेलियाई सामाजिक संघ (TASA) ब्रिटिश सामाजिक संघ (BSA) ब्राजील सामाजिक संस्था (SBS) - Sociedade Brasileira de Sociologia कैनेडियन सामाजिक संघ (CSA) यूरोपीय सामाजिक संघ (ESA) जर्मन सामाजिक संघ (DGS) अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक संघ (ISA) भारतीय सामाजिक संस्था (Insoso) पुर्तगाली सामाजिक संस्था (APS) - Associação Portuguesa de Sociologia आयरलैंड का सामाजिक संघटन (SAI) दक्षिण अफ्रीकी सामाजिक संघ (SASA) अन्य संसाधन नोट्रे डैम विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र ओपनकोर्सवेअर इंटरनेट समाजशास्त्री, समाजशास्त्र के छात्रों को इन्टरनेट शोध कौशल सिखाने के लिए एक शुल्क मुक्त ऑनलाइन शिक्षण सोशियोलॉग समाजशास्त्र संसाधनों की एक निर्देशिका सोशियोसाईट, समाजशास्त्र संसाधनों की निर्देशिका सोशिऑलोजी, समाजशास्त्र के छात्रों और पेशेवरों पर एक ई-फोरम सामाजिक विज्ञान और मानविकी Sociologically.net, एक अंतरराष्ट्रीय सामाजिक समुदाय अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट समाजशास्त्रीय समूह, एक इंटरनेट आधारित सामाजिक व्यवहार अध्ययन समूह अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान के अध्ययन के लिए समूह लंदन पूर्व अनुसंधान समूह श्रेणी:समाजशास्त्र श्रेणी:सामाजिक विज्ञान
गिरिजाघर
https://hi.wikipedia.org/wiki/गिरिजाघर
पुनर्प्रेषित गिरजाघर
उपासनास्थल
https://hi.wikipedia.org/wiki/उपासनास्थल
प्रमुख उपासना स्थल गिरिजाघर विहार मस्ज़िद मन्दिर सिनेगाग
मन्दिर
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thumb|right|300px|मन्दिर भारतीय धर्मों (सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म आदि) हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिन्तन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं। और मठ वह स्थान है, जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परम्परा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं, जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि, उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग शंकराचार्य के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है। [ Hindi]] में मन्दिर को कोईल या कोविल (கோவில்) कहते हैं। मन्दिर निर्माण का इतिहास गुप्तकाल (चौथी से छठी शताब्दी) में मन्दिरों के निर्माण का उत्तरोत्तर विकास दृष्टि गोचर होता है। पहले लकड़ी के मन्दिर बनते थे या बनते होंगे लेकिन जल्दी ही भारत के अनेक स्थानों पर पत्थर और ईंट से मन्दिर बनने लगे। 7वीं शताब्दी तक देश के आर्य संस्कृति वाले भागों में पत्थरों से बने मंदिरों का निर्माण होना पाया गया है। चौथी से छठी शताब्दी में गुप्तकाल में मन्दिरों का निर्माण बहुत द्रुत गति से हुआ। मूल रूप से हिन्दू मन्दिरों की शैली बौद्ध मन्दिरों से ली गयी होगी जैसा- कि उस समय के पुराने मन्दिरो में मूर्तियों को मन्दिर के मध्य में रखा होना पाया गया है और जिनमें बौद्ध स्तूपों की भांति परिक्रमा मार्ग हुआ करता था। गुप्तकालीन बचे हुए लगभग सभी मन्दिर अपेक्षाकृत छोटे हैं,जिनमें काफी मोटा और मजबूत कारीगरी किया हुआ एक छोटा केन्द्रीय कक्ष है, जो या तो मुख्य द्वार पर या भवन के चारों ओर बरामदे से युक्त है। गुप्तकालीन आरम्भिक मन्दिर, उदाहरणार्थ सांची के बौद्ध मन्दिरों की छत सपाट है; तथापि मन्दिरों की उत्तर भारतीय शिखर शैली भी इस काल में ही विकसित हुयी और शनै: शनै: इस शिखर की ऊंचाई बढती रही। 7वीं शताब्दी में बोध गया में निर्मित बौद्ध मन्दिर की बनावट और ऊंचा शिखर गुप्तकालीन भवन निर्माण शैली के चरमोत्कर्ष का प्रतिनिधित्व करता है। भारत के प्रसिद्ध मन्दिर एवम मठ जैसे-उज्जैन का महाकालेश्वर,ओमकारेश्वर,जगन्नाथ पुरी एवम महाभारत काल से जुड़ी मान्यताओं में खाटू श्याम जी का मन्दिर आज ख्याति प्राप्त मन्दिर हैं।220x124px|thumb|right|alt=khatu shyam ji temple rajsthan|khatu shyam ji temple rajsthan बौद्ध और जैन पन्थियों द्वारा धार्मिक उद्देश्यों के निमित्त कृत्रिम गुफाओं का प्रयोग किया जाता था और हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा भी इसे आत्मसात कर लिया गया था। फिर भी हिन्दुओं द्वारा गुफाओं में निर्मित मन्दिर तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं और गुप्तकाल से पूर्व का तो कोई भी साक्ष्य(प्रमाण) इस सम्बन्ध में नहीं पाया जाता है। गुफा मन्दिरों और शिलाओं को काटकर बनाये गये मन्दिरों के सम्बन्ध में अधिकतम जानकारी जुटाने का प्रयास करते हुए हैं हम जितने स्थानों का पता लगा सके वो पृथक सूची में सलंग्न की है। मद्रास (वर्तमान 'चेन्नई') के दक्षिण में पल्लवों के स्थान महाबलिपुरम् में, 7वीं शताब्दी में निर्मित अनेक छोटे मन्दिर हैं, जो चट्टानों को काटकर बनाये गये हैं और जो तमिल क्षेत्र में तत्कालीन धार्मिक भवनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मन्दिरों का अस्तित्व और उनकी भव्यता गुप्त राजवंश के समय से देखने को मिलती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुप्त काल से हिन्दू मन्दिरों का महत्त्व और उनके आकार में उल्लेखनीय विस्तार हुआ तथा उनकी बनावट पर स्थानीय वास्तुकला का विशेष प्रभाव पड़ा। उत्तरी भारत में हिन्दू मन्दिरों की उत्कृष्टता उड़ीसा तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के खजुराहो में देखने को मिलती है। उड़ीसा के भुवनेश्वर में सिथत लगभग 1000 वर्ष पुराना लिंगराजा का मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, 13वीं शताब्दी में निर्मित कोणार्क का सूर्य मन्दिर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और विश्वविख्यात मन्दिर है। इसका शिखर इसके आरम्भिक दिनों में ही टूट गया था और आज केवल प्रार्थना स्थल ही शेष बचा है। काल और वास्तु के दृष्टिकोण से खजुराहो के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मन्दिर 11वीं शताब्दी में बनाये गये थे। गुजरात और राजस्थान में भी वास्तु के स्वतन्त्र शैली वाले अच्छे मन्दिरों का निर्माण हुआ किन्तु उनके अवशेष उड़ीसा और खजुराहो की अपेक्षा कम आकर्षक हैं। प्रथम दशाब्दी के अन्त में वास्तु की दक्षिण भारतीय शैली तंजौर (प्राचीन नाम तंजावुर) के राजराजेश्वर मन्दिर के निर्माण के समय अपने चरम पर पहुंच गयी थी। हर मन्दिर मे के प्रारम्भ मे कछुआ क्यो होता है ? ध्वज प्रत्येक देवता के ध्वज पर उनको सूचित करने वाला चिह्न (वाहन) होता है। विष्णु —विष्णुजी की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पीले रंग का होता है। उस पर गरुड़ का चिह्न अंकित होता है। शिव —शिवजी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है। उस पर वृषभ का चिह्न अंकित होता है। ब्रह्माजी —ब्रह्माजी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज पद्मवर्ण का होता है । उस पर कमल (पद्म) का चिह्न अंकित होता है। गणपति —गणपति की ध्वजा का दण्ड तांबे या हाथीदांत का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर मूषक का चिह्न अंकित होता है। सूर्यनारायण —सूर्यनारायण की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पचरंगी होता है। उस पर व्योम का चिह्न अंकित होता है। गौरी —गौरी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज बीरबहूटी के समान अत्यन्त रक्त वर्ण का होता है । उस पर गोधा का चिह्न होता है । भगवती—देवी की ध्वजा का दण्ड सर्वधातु का व ध्वज लाल रंग का होता है। उस पर सिंह का चिह्न अंकित होता है। चामुण्डा —चामुण्डा की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज नीले रंग का होता है । उस पर मुण्डमाला का चिह्न अंकित होता है। कार्तिकेय —कार्तिकेय की ध्वजा का दण्ड त्रिलौह का व ध्वज चित्रवर्ण का होता है। उस पर मयूर का चिह्न अंकित होता है। बलदेवजी —बलदेवजी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है। उस पर हल का चिह्न अंकित होता है। कामदेव —कामदेव की ध्वजा का दण्ड त्रिलौह का (सोना, चांदी, तांबा मिश्रित) व ध्वज लाल रंग का होता है। उस पर मकर का चिह्न अंकित होता है। यम —यमराज की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज कृष्ण वर्ण का होता है। उस पर महिष (भैंसे) का चिह्न अंकित होता है। इन्हें भी देखें हिन्दू मन्दिर स्थापत्य जैन मन्दिर वृहदेश्वर मन्दिर मीनाक्षी मन्दिर कामाख्या मन्दिर अक्षरधाम मन्दिर, दिल्ली सोमनाथ मन्दिर शाकम्भरी देवी मन्दिर बाहरी कड़ियाँ भारत के प्रसिद्ध मंदिरों की हिन्दी में जानकारी प्रसिद्ध नगरों के मन्दिर श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:मन्दिर
हिटलर
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिटलर
पुनर्प्रेषित एडोल्फ़ हिटलर
हड़प्पा सभ्यता
https://hi.wikipedia.org/wiki/हड़प्पा_सभ्यता
अनुप्रेषित सिंधु घाटी सभ्यता
सरगुजा
https://hi.wikipedia.org/wiki/सरगुजा
REDIRECTसरगुजा जिला
जूनीचीरो कोईजूमी
https://hi.wikipedia.org/wiki/जूनीचीरो_कोईजूमी
200px|right|thumbnail|जूनीचीरो कोईजूमी (2006) अंगूठाकार जूनीचीरो कोईजूमी जापान के प्रधानमंत्री हैं। (2005)
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_प्रौद्योगिकी_संस्थान
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान () भारत के 23 तकनीकी शिक्षा संस्थान हैं। ये संस्थान भारत सरकार द्वारा स्थापित किये गये "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" हैं। 2018 तक, सभी 23 आईआईटी में स्नातक कार्यक्रमों के लिए सीटों की कुल संख्या 11,279 है। संस्थान संस्थानों का एक विवरण : + भा. प्रौ. सं. एवं उनके स्थापना दिवस नाम प्रचलित नाम स्थापित संस्थापित 1 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर भाप्रौसंख / IITKGP 1951 1951 2 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई भाप्रौसंमु / IITB 1958 1958 3 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर भाप्रौसंक / IITK 1959 1959 4 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास भाप्रौसंम / IITM 1959 1959 5 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली भाप्रौसंदि / IITD 19611963 6 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी भाप्रौसंगु / IITG 1994 1994 7 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की भाप्रौसंरु / IITR 18472001 8 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ भाप्रौसंरो / IITRPR 2008 2008 9 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भुवनेश्वर भाप्रौसंभू / IITBBS 2008 2008 10 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर भाप्रौसंगा / IITGN 20082008 11 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद भाप्रौसंहै / IITH 2008 2008 12 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर भाप्रौसंजो / IITJ 2008 2008 13 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान पटना भाप्रौसंप / IITP 2008 2008 14 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर भाप्रौसंइ / IITI 2009 2009 15 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मण्डी भाप्रौसंस्म / IITMandi 2009 2009 16 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी भाप्रौसं(बहिवि) / IIT(BHU) 19192012 17 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान पलक्कड़ भाप्रौसंस्प / IITPKD 2015 2015 18 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुपति भाप्रौसंति / IITTP 2015 2015 19 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(भारतीय खनि विद्यापीठ) धनबाद भाप्रौसं(भाखवि) / IIT(ISM)1926201620भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भिलाईभाप्रौसंभि / IITBh2016201621भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गोवाभाप्रौसंगो / IITGoa2016201622भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जम्मूभाप्रौसंज / IITJM20162016२३भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान धरवाडभाप्रौसंज / IITDH20162016 इतिहास भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना का इतिहास ईसवी सन १९४६ को जाता है जब जोगेंद्र सिंह नें भारत में उच्च शिक्षा के संस्थानों की स्थापना के लिए एक समिति का गठन किया। नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति नें भारत भर में ऐसे संस्थानों के गठन की सिफ़ारिश की। इन सिफ़ारिशों को ध्यान में रखते हुए पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना कलकत्ता के पास स्थित खड़गपुर में १९५० में हुई। शुरुआत में यह संस्थान हिजली कारावास में स्थित था। १५ सितंबर १९५६ को भारत की संसद नें "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम" को मंज़ूरी देते हुए इसे "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" घोषित कर दिया। इसी तर्ज़ पर अन्य संस्थानों की स्थापना बंबई (१९५८), मद्रास (१९५९), कानपुर (१९५९), तथा नई दिल्ली (१९६१) में हुई। असम में छात्र आंदोलन के चलते तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गान्धी नें असम में भी एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना का वचन दिया जिसके परिणामस्वरूप १९९४ में गुवाहाटी में आई आई टी की स्थापना हुई। सन २००१ में रुड़की स्थित रुड़की विश्वविद्यालय को भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की महत्ता भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में शिक्षित अभियंताओं तथा शोधार्थियों की पहचान भारत में ही नहीं पुरे विश्व में है। यद्यपि, यह पहचान मुख्यतः उन अभियंताओं से है, जिन्होने यहाँ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है।इन संस्थानों की प्रसिद्धी के कारण, भारत में अभियांत्रिकी की पढाई करने का इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी इन संस्थानों में प्रवेश पाने की 'महत्वाकांक्षा' रखता है।इन संस्थानों में स्नातक स्तर की पढाई में प्रवेश एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) के आधार पर होता है। यह परीक्षा बहुत ही कठिन मानी जाती है और सिर्फ इस परीक्षा की तयारी के लिए देश भर में हजारों शिक्षण संस्थाए चलाये जा रहे हैं। इन संस्थानों की कभी कभी आलोचना की जाती है कि भारत की जनता के मेहनत की कमाई के पैसों से पढकर निकलने वाले पैसा कमाने के लालच में स्वदेश छोडकर किसी अन्य देश में चले जाते हैं, जिसके कारण इससे भारत को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भारतीय प्रबन्धन संस्थान आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में केंद्रीय संस्थाएं : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थाएं (IITs) आई आई टी कानपुर आई आई टी दिल्ली आई आई टी रुड़की आई आई टी मुंबई आई आई टी गुवाहाटी आई आई टी खड़गपुर आई आई टी चेन्नई आई आई टी हैदराबाद आई आई टी रोपड़ आई आई टी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी समाचार आईआईटी-आईआईएम की फैकल्‍टी में दम नहीं, छात्रों के बूते है इनका नाम : जयराम रमेश आईआईएम और आईआईटी ने भारत को बर्बाद किया है संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी
भारतीय तकनीकी संसथान
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_तकनीकी_संसथान
REDIRECT भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
सोमालिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/सोमालिया
अंगूठाकार अंगूठाकार सोमालिया (; ), या आधिकारिक तौर पर संघीय गणराज्य सोमालियाThe Federal Republic of Somalia is the country's name per Article 1 of the Provisional Constitution ., जिसे पूर्व में सोमाली लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में जाना जाता था, अफ़्रीका के पूर्वी किनारे पर स्थित एक देश है। इसके उत्तरपश्चिम में जिबूती, दक्षिण पश्चिम में केन्या, उत्तर में अदन की खाड़ी, पूर्व में हिन्द महासागर और पश्चिम में इथियोपिया स्थित हैं। अफ्रीका पर सोमालिया का सबसे लंबा समुद्र तट है, और यह मुख्यतः पठार, मैदानी इलाकों और हाइलैंड्स आदि से मिलकर बना हैं। मौसम की दृष्टि से, आवधिक मानसून हवाओं और अनियमित वर्षा के साथ गर्म मौसम, वर्ष भर में रहती है। सोमालिया की अनुमानित जनसंख्या लगभग १ करोड़ ४३ लाख है। इसके लगभग ८५% निवासियों में सोमालीस जाति के लोग हैं, जो ऐतिहासिक रूप से देश के उत्तरी भाग में निवास करते हैं। वहीं अल्पसंख्यक जाति के लोग मुख्य तौर पर दक्षिणी क्षेत्रों में रहते हैं। सोमालिया की आधिकारिक भाषा सोमाली भाषा और अरबी भाषा हैं, जो दोनों अफ्रोसिआटिक परिवार से संबंधित हैं। देश में ज्यादातर लोग सुन्नी मुस्लिम हैं। प्राचीन काल में सोमालिया बाकी दुनिया के साथ वाणिज्य के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इसके नाविक और व्यापारी लोबान, मसाले और उन तमाम वस्तुओं के मुख्य आपूर्तिकर्ता थे, जिन्हें प्राचीन मिस्री, फोनिशियाई, मेसेनिशियाई और बेबिलोन निवासियों द्वारा मूल्यवान माना जाता था। विद्वानों के अनुसार, सोमालिया वह स्थान भी था, जहां पुन्त का प्राचीन राज्य स्थित था। प्राचीन पुन्तितेस ऐसे लोगों का देश था, जिनका प्राचीन मिस्र के साथ राजा फारोह सहुरे और रानी हत्शेपसट के दौर में घनिष्ठ संबंध था। सोमालिया के आसपास बिछी हुई पिरामिड संरचनाएं, मंदिर और तराशी हए पत्थर के प्राचीन घर इस अवधि के माने जाते हैं। सन्दर्भ श्रेणी:सोमालिया श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:संघीय गणराज्य
सूडान
https://hi.wikipedia.org/wiki/सूडान
सूडान, आधिकारिक तौर पर सूडान गणराज्य, उत्तरी पूर्व अफ्रीका में स्थित एक देश है। इसके उत्तर में मिस्र, उत्तर पूर्व में लाल सागर, पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया, दक्षिणपूर्व में युगांडा और केन्या, दक्षिण पश्चिम में कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, पश्चिम में चाड और पश्चिमोत्तर में लीबिया स्थित है। 2022 मे इस देश की आबादी ४.५७ करोड़ है। जो 1,886,068 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। क्षेत्रफल के आधार पर यह अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा देश है। इसकी राजधानी खार्तूम है। सितंबर 2020 में, सूडान की संक्रमणकालीन सरकार ने राज्य से अलग धर्म को स्वीकार करने के बाद सूडान संवैधानिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया, जिसने 30 साल के इस्लामी शासन और इस्लाम को उत्तरी अफ्रीकी राष्ट्र में आधिकारिक राज्य धर्म के रूप में समाप्त कर दिया। इसने धर्मत्यागी कानून और सार्वजनिक झड़पों को भी खत्म कर दिया। सूडान दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहां आज भी 3000 ईपू बसी बस्तियां अपना वजूद बचाए हुए हैं। यूनाइटेड किंगडम से 1956 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सूडान को 17 साल तक चले लंबे गृह युद्ध का सामना करना पड़ा, जिसके बाद अरबी और न्यूबियन मूल की बहुतायत वाले उत्तरी सूडान और ईसाई और एनिमिस्ट निलोट्स बहुल वाले दक्षिणी सूडान के बीच जातीय, धार्मिक और आर्थिक युद्ध छिड़ गया, जिसकी वजह से 1983 में दूसरा गृहयुद्ध शुरू हुआ। इन लड़ाइयों के बीच कर्नल उमर अल बाशिर ने 1989 में रक्तविहिन तख्तापटल कर सत्ता हथिया ली। सूडान ने व्यापक आर्थिक सुधारों को लागू कर वृहदतर आर्थिक विकास दर हासिल की और 2005 में एक नया संविधान के माध्यम से दक्षिण के विद्रोही गुटों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करने और 2011 में स्वतंत्रता के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने की बात सहमति बनने के बाद गृहयुद्ध समाप्त किया। प्राकृतिक संसाधन के रूप में पेट्रोलियम और कच्चे तेल से भरे-पूरे सूडान की अर्थव्यवस्था वर्तमान में विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। जनवादी गणराज्य चीन और रूस सूडान के सबसे बड़े व्यापार भागीदार हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:सूडान श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:अरब लीग के देश श्रेणी:अरबी-भाषी देश व क्षेत्र
भाषा इंडोनेशिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/भाषा_इंडोनेशिया
अनुप्रेषित इंडोनेशियाई भाषा
सिंध
https://hi.wikipedia.org/wiki/सिंध
अर्थव्यवस्था thumb|A view of Karachi downtown, the capital of Sindh province 300px|thumb|left|GDP by province thumb|Qayoom Abad Bridge Karachi thumb|Navalrai Market Clock Tower Hyderabad धर्म thumb|Shrine of Lal Shahbaz Qalandar प्रमुख शहर List of major cities in Sindh Rank City District(s) Population Image 1 Karachi arachi Eastarachi WestKarachi Southkarachi tralalirKorangi 14,910,352 200px 2 yderabad hyderabad]] 1,732,693 200px 3 Sukkur Sukkur District 499,900 200px 4 Larkana arkana 490,508 5 Nawabshah Shaheed Benazirabad 279,688 200px 6 Kotri Jamshoro 259,358 200px 7 Mirpur Khas Mirpur Khas 233,916 200px Source: Pakistan Census 2017 This is a list of city proper populations and does not indicate metro populations. Government Sindh province + Provincial symbols of Sindh Provincial animal Sindh ibexalt=|center|135x135px Provincial bird Black partridgealt=|center|90x90px Provincial tree Neem Treethumb|160x160px Prehistoric period thumb|150px|left|Extent and major sites of the Indus Valley Civilization in pre-modern Pakistan and India 3000 BC thumb|100px|left|The Priest-King from Mohenjo-daro, more than 4000 years old, in the National Museum of Pakistan, Larkana thumb|Excavated ruins of Mohenjo-daro, Larkana नाम 'सिन्ध' संस्कृत के शब्द 'सिन्धु' से बना है जिसका अर्थ है समुद्र। सिंधु नाम से एक नदी भी है जो इस प्रदेश के लगभग बीचोंबीच बहती है। फ़ारसी "स" को "ह" की तरह उच्चारण करते थे। उदाहरणार्थ दस को दहा या सप्ताह को हफ़्ता (यहां कहने का अर्थ ये नहीं कि ये संस्कृत शब्दों के फ़ारसी रूप थे पर उनका मूल एक ही हुआ होगा)। अतः वे इसे हिंद कहते थे। असीरियाई स्रोतों में सातवीं सदी ईसा पूर्व में इसे सिंदा नाम से द्योतित किया गया है यहां । इतिहास ईसा के 3300 साल पहसे से ईसापूर्व 1900 तक यहां सिंधु घाटी सभ्यता फली-फूली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ व्यापार करती थी। मिस्र में कपास के लिए 'सिन्ध' शब्द का प्रयोग होता था जिससे अनुमान लगता है कि वहां कपास यहीं से आयात किया जाता था। ईसा के 1900 साल पहसे सिंधु घाटी सभ्यता अनिर्णीत कारणों से समाप्त हो गई। इसकी लिपि को भी अब तक पढ़ा नहीं जा सका जिससे इसके मूल निवासियों के बारे में अधिक पता नहीं चल पाया है। सिन्ध का नाम 'सप्त सैन्धव' था जहां सिन्धु सहित शतद्रु, विपाशा, चन्द्रभागा, वितस्ता, परुष्णी और सरस्वती बहती थीं। सिन्धु के तीन अर्थ हैं- सिन्धु नदी, समुद्र और सामान्य नदियां। ऋग्वेद कहता है मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। कालान्तर में इस भूभाग से सप्त सिन्धव लुप्त होकर सिन्ध रह गया है, जो खण्डित भारत यानी पाकिस्तान का सिन्ध प्रदेश है। ईसा के 1500 साल पहले भारतीय (तथा ईरानी) क्षेत्रों में आर्यों का अगमन आरंभ हुआ। आर्य भारत के कई भागों में बस गए। ईरान में भी आर्यों की बस्तियां फैलने लगीं। भारतीय स्रोतों में सिन्ध का नाम सिंध, सिंधु, सिंधुदेश तथा सिंधुस्थान जैसे शब्दों के रूप में हुआ है। 700 ईस्वी में हिन्दू ब्रााहृण राजा दाहिर सैन सिन्ध के शासक थे। उनके स्वर्णयुग राजा दाहिर ने समुद्र से व्यापार करने वाले अरबियों को लूटा और सिन्ध में अन्य लोगों से लूट करते थे। खलीफा की ओर से मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिन्ध में अरबी सैनिकों ने आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। उनसे युद्ध करते हुए राजा दाहिर को खत्म किया और अपने फंसे कैदियों को छुड़ाया । सिन्ध में अरब घुस आया। दाहिर की रानी वीर बाला ने अधूरे युद्ध को हवा दी। युद्ध छिड़ गया। रानी ने अरबों के खिलाफ प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग किया। रानी जीत गई। इसके बाद सिन्ध में इस्लाम की घुसपैठ शुरू हो गई। अधिसंख्यक हिन्दू इस्लामी तौर तरीकों के चलते मुसलमान हुए। उस समय सिन्ध के दलित वर्ग के लोग छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अवमानना से खिन्न होकर इस्लाम में आ गए क्योंकि यहां के बड़े लोग अपने से कम वर्ग के लोगों से छुआछूत करते थे इसलिए इस्लामी तरीके को देखते देखते ब्राह्मण दाहिर के पुत्र जयसिंह भी मुसलमान हो गए। यदि हिन्दू राजाओं ने जयसिंह की सहायता की होती तो वे मतान्तरित न होते। भयाक्रांतता के चलते हिन्दू इस्लाम को मानने के बारे में जानकर हुए या कुछ लोग कहते हैं मजबूर हुए। राजनीतिक अलगाववादी नीति के चलते मतान्तरित मुसलमान मुख्यधारा से आज तक जुट न पाए। ब्राह्मणवाद इस्लामवाद हो गया। अरबी बहुत दिनों तक सिन्ध में रहे और अपने अलग रवैये और व्यवहार के जरिए हिन्दुओं को इस्लाम में लाते रहे। मतान्तरित मुसलमान नारियां भी हिन्दुओं के इस्लामीकरण का काम करने लगी थीं। सिन्ध से लेकर ब्लूचिस्तान तक जितने कबीले, जनजातियां, शोषित, पीड़ित और दलित वर्ग के लोग थे, उनके पुरखे हिन्दू थे। उनकी निर्धनता, अशिक्षा पिछड़ापन और मजबूरी को ध्यान में रखकर अरबों ने उन्हें लगा के मुसलमानो में बराबरी छुआ छूत कम है और वो मुसलमान बन गए। इस प्रकार सिन्ध के हिन्दुओं में फूट, आपसी कलह और भेदभाव के चलते अन्तत: वे मतान्तरित हुए। धीरे-धीरे सिन्ध में मुसलमान अधिसंख्यक हो गए और बचे खुचे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए। अब अल्पसंख्यक हिन्दू सिन्ध प्रान्त में इस्लाम की ओर झुक रहे हैं। सिन्ध में अनेक गरीब जाट वर्ग के लोगों ने भी इस्लाम को मान लिया था। देश के हिन्दू राजाओं में आपसी मनमुटाव, प्रतिद्वन्द्विता और शत्रुत्रा थी। वे हिन्दुओं को क्या बचा पाते? आज भी देश में अधिसंख्यक हिन्दुओं में पारस्परिक एकता का अभाव है। देश में जात-पांत का बोलबाला है। अनेक जातिवादी घटक हैं। दलगत नीतियों का वर्चस्व है। ऐसी ही भयावह स्थिति 700 ईस्वी में सिन्ध में थी। देश की इन दुर्बलताओं से अरबी लुटेरों और आक्रान्ताओं ने लाभ उठाया। उन दिनों सिन्ध में इस्लामीकरण का अभियान था। "इस्लाम के तरीकों को देखकर हताश जनता ने इस्लाम ही कबूल लिया और उन्हें सहानुभूति मिली। ऐसा ही मुगलकाल में भी हुआ था। सिन्ध से हम हिन्दू हुए हैं। वरुण देवता झूलेलाल के अनुयायी हिन्दू अपने को सिन्धी कहते हैं। दाहिर सिन्धी थे। पाक अधिकृत सिन्ध प्रान्त के वर्तमान मुसलमानों के पुरखे हिन्दू थे, यानी सिन्धी। सिन्ध की संस्कृति सिन्धु संस्कृति के नाम से जानी जाती है। सप्त सैन्धव संस्कृति आर्य संस्कृति है वह वैदिक ललित पुष्प है। उसकी गन्ध सनातन और शाश्वत है। ईसा के 500 साल पहले यहां ईरान के हख़ामनी शासकों का अधिकार हो गया। यह घटना इस्लाम के आगमन से कोई 1000 साल पहले की है। फ़ारस, यानि आज का ईरान, पर यूनान के सिकंदर का अधिकार हो जान के बाद सन् 328 ईसापूर्व में यह यवनों के शासन में आया। ईसापूर्व 305 में मौर्य साम्राज्य के अंग बनने के बाद यह ईसापूर्व 185 से करीब सौ सालों तक ग्रेको-बैक्टि्रयन शासन में रहा। इसके बाद गुप्त और फिर अरबों के शासन में आ गया। मुगलों का अधिकार सोलहवीं सदी में हुआ। यह ब्रिटिश भारत का भी अंग था। thumb|सिंध की संस्कृति सिन्ध के जिले कराँची -- जमशोरो -- थट्टा -- बादिन -- थारपारकर -- उमरकोट -- मीरपुर ख़ास -- टंडो अल्लहयार -- नौशहरो फ़िरोज़ -- टंडो मुहम्मद ख़ान -- हैदराबाद -- संगहार -- खैरपुर -- नवाबशाह -- दादु -- क़म्बर शहदाकोट -- लरकाना -- [[मटियारी== सिन्ध के जिले == कराँची -- जमशोरो -- थट्टा -- बादिन -- थारपारकर -- उमरकोट -- मीरपुर ख़ास -- टंडो अल्लहयार -- नौशहरो फ़िरोज़ -- टंडो मुहम्मद ख़ान -- हैदराबाद -- संगहार -- खैरपुर -- नवाबशाह -- दादु -- क़म्बर शहदाकोट -- लरकाना -- मटियारी -- घोटकी -- शिकारपुर -- जैकोबाबाद -- सुक्कुर -- काशमोरे श्रेणी:पाकिस्तान के प्रान्त जिला|मटियारी]] -- घोटकी -- शिकारपुर -- जैकोबाबाद -- सुक्कुर -- काशमोरे श्रेणी:पाकिस्तान के प्रान्त
पाकिस्तान के शहर
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right|पाकिस्तान का मानचित्र यह पाकिस्तान के बडे़ शहरों की सूची है। पाकिस्तान के शहर रैंक शहर जनसंख्या, १९९८ १. कराची ९,३३९,०२३ २. लाहौर ५,१४३,४९५ ३. फैसलाबाद २,००८,८६१ ४. रावलपिंडी १,४०९,७६८ ५. मुल्तान १,१९७,३८४ ६. हैदराबाद १,१६६,८९४ ७. गुजरांवाला १,१३२,५०९ ८. पेशावर ९८२,८१६ ९. क्वेटा ५६५,१३७ १०. इस्लामाबाद ५२९,१८० बलोचिस्तान अमीर चाह बज़दर बेला (पाकिस्तान) बेलपत बुर्ज चगाई चमन क्वेटा चक्कु छत्तर डेरा बुगती गढी खैरो गुलिस्तान जिवानी कानपुर(बलोचिस्तान) नघा कलात नौरोज़ कलात नुश्की किला अब्दुल्लाह किला सफेद किला सैफुल्लाह शाहपुर शबाज़ कलात ग्वदर हमीदाबाद कलात पिशिन कमरुद्दीन कुरेज़ स्पेज़न्द उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त - :en:NWFP अबटाबाद बन्दा दाऊद शाह बन्नू बटग्राम बुनेर चरसद्दा चित्राल दरया खान डेरा इस्माइल खान द्रोश हंगु हरिपुर कलाम कडक कोहट कोहिस्तान लक्की मरवात मालाकन्द मनसेहरा मरदान मसतूज नौशेहरा पहाडपुर स्वात पेशावर पंजाब अटक भलवाल बहावलनगर बहावलपुर भक्कर चकवाल दरया खान डेरा गाज़ी खान फैसलाबाद फतेह जंग गुजरांवाला गुजरात (पाकिस्तान) इस्लामाबाद झंग झेलम कसूर कमालिया कमोकी खुशाब मियांवाली मुल्तान मुरीदके मुज़फ्फरगढ पीरमहल रहीम यार खान सादिकाबाद साहिवाल सरगोधा शेखपुरा सुयांवाला तोबा टेक सिंह वज़ीराबाद रावलपिंडी सिन्ध अली बन्दर छाछरो दादू डोकरी घौसपुर हैदराबाद (पाकिस्तान) इस्लामकोट जकोबाबाद जेम्साबाद जमशोरो जंघर जंगशाही कशमोर खैरपुर लरकाना मेहर मोरो नौशहरा नवाबशाह नौकोट रानीपुर शाहबन्दर उमरकोट वाराह श्रेणी:पाकिस्तान
सीता
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माता सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, कंब रामायण की मुख्य नायिका हैं । सीता मिथिला (पुनौराधाम सीतामढ़ी जिला, वर्तमान भारत ) में जन्मी थी । देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं । इनका विवाह अयोध्या के नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इन्होंने स्त्री व पतिव्रता धर्म का पूर्ण रूप से पालन किया था जिसके कारण इनका नाम बहुत आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हें सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार कहा गया है। जन्म व नाम रामायण के अनुसार मिथिला के राजा जनक के खेतों में हल जोतते समय एक पेटी से अटका। इन्हें उस पेटी में पाया था। राजा जनक और रानी सुनयना के गर्भ में इनके कलाओं एवं आत्मा की दिव्यता को महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा स्थापित किया गया तत्पश्चात सुनयना ने अपनी मातृत्व को स्वीकार किया और पालन किया। उर्मिला उनकी छोटी बहन थीं। राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे जानकी, जनकात्मजा अथवा जनकसुता भी कहते थे। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण यें मैथिली नाम से भी प्रसिद्ध है। भूमि में पाये जाने के कारण इन्हे भूमिपुत्री या भूसुता भी कहा जाता है। सीता जी का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में नवमी तिथि को मिथिला (पुनौराधाम सीतामढी, भारत) में हुआ था। विवाह ऋषि विश्वामित्र का यज्ञ राम व लक्ष्मण की रक्षा में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इसके उपरांत महाराज जनक ने सीता स्वयंवर की घोषणा किया और ऋषि विश्वामित्र की उपस्थिति हेतु निमंत्रण भेजा। आश्रम में राम व लक्ष्मण उपस्थित के कारण वे उन्हें भी मिथिपलपुरी साथ ले गये। महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशिर्वाद से स्वयंवर के लिये शिवधनुष उठाने के नियम की घोषणा की। सभा में उपस्थित कोइ राजकुमार, राजा व महाराजा धनुष उठानेमें विफल रहे। श्रीरामजी ने धनुष को उठाया और उसका भंग किया। इस तरह सीता का विवाह श्रीरामजी से निश्चय हुआ। इसी के साथ उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, मांडवी का भरत से तथा श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न से निश्चय हुआ। कन्यादान के समय राजा जनक ने श्रीरामजी से कहा "हे कौशल्यानंदन राम! ये मेरी पुत्री सीता है। इसका पाणीग्रहण कर अपनी पत्नी के रूप मे स्वीकर करो। यह सदा तुम्हारे साथ रहेगी।" इस तरह सीता व रामजी का विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण संपन्न हुआ। विवाहोपरांत सीता अयोध्या आई और उनका दांपत्य जीवन सुखमय था। वनवास राजा दशरथ अपनी पत्नी कैकेयी को दिये वचन के कारण श्रीरामजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ। श्रीरामजी व अन्य बडों की सलाह न मानकर अपने पति से कहा "मेरे पिता के वचन के अनुसार मुझे आप के साथ ही रहना होगा। मुझे आप के साथ वनगमन इस राजमहल के सभी सुखों से अधिक प्रिय हैं।" इस प्रकार राम व लक्ष्मण के साथ वनवास चली गयी। वे चित्रकूट पर्वत स्थित मंदाकिनी तट पर अपना वनवास किया। इसी समय भरत अपने बड़े भाई श्रीरामजी को मनाकर अयोध्या ले जाने आये। अंतमे वे श्रीरामजी की पादुका लेकर लौट गये। इसके बाद वे सभी ऋषि अत्री के आश्रम गये। सीता ने देवी अनसूया की पूजा की। देवी अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म का विस्तारपूर्वक उपदेश के साथ चंदन, वस्त्र, आभूषणादि प्रदान किया। इसके बाद कई ऋषि व मुनि के आश्रम गये, दर्शन व आशिर्वाद पाकर वे पवित्र नदी गोदावरी तट पर पंचवटी में वास किया। अपहरण thumb|अपहरण के उद्देश्य से भिक्षुक के रूप में रावण सीता के पास गया हुआ पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा "सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।" रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। इसके अनुसार मारीच सोने के हिरण का रूप धर राम व लक्ष्मण को वन में ले जायेगा और उनकी अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करेगा। आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिये। जब कोई सहायता नहीं मिली तो माता सीताजी ने अपने पल्लू से एक भाग निकालकर उसमें अपने आभूषणों को बांधकर नीचे डाल दिया। नीचे वनमे कुछ वानरों ने इसे अपने साथ ले गये। रावण ने सीता को लंकानगरी के अशोकवाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों को उसकी देख-रेख का भार दिया। हनुमानजी की भेंट thumb|left|अशोक वाटिका में हनुमान जी और सीता जी सीताजी से बिछड़कर रामजी दु:खी हुए और लक्ष्मण सहित उनकी वन-वन खोज करते जटायु तक पहुंचे। जटायु ने उन्हें सीताजी को रावण दक्षिण दिशा की ओर लिये जाने की सूचना देकर प्राण त्याग दिया। राम जटायु का अंतिम संस्कार कर लक्ष्मण सहित दक्षिण दिशा में चले। आगे चलते वे दोनों हनुमानजी से मिले जो उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित अपने राजा सुग्रीव से मिलाया। रामजी संग मैत्री के बाद सुग्रीव ने सीताजी के खोजमें चारों ओर वानरसेना की टुकडियाँ भेजीं। वानर राजकुमार अंगद की नेतृत्व में दक्षिण की ओर गई टुकड़ी में हनुमान, नील, जामवंत प्रमुख थे और वे दक्षिण स्थित सागर तट पहुंचे। तटपर उन्हें जटायु का भाई सम्पाति मिला जिसने उन्हें सूचना दी कि सीता लंका स्थित एक वाटिका में है। हनुमानजी समुद्र लाँघकर लंका पहुँचे, लंकिनी को परास्त कर नगर में प्रवेश किया। वहाँ सभी भवन और अंतःपुर में सीता माता को न पाकर वे अत्यंत दुःखी हुए। अपने प्रभु श्रीरामजी को स्मरण व नमन कर अशोकवाटिका पहुंचे। वहाँ 'धुएँ के बीच चिंगारी' की तरह राक्षसियों के बीच एक तेजस्विनी स्वरूपा को देख सीताजी को पहचाना और हर्षित हुए। उसी समय रावण वहाँ पहुँचा और सीता से विवाह का प्रस्ताव किया। सीता ने घास के एक टुकड़े को अपने और रावण के बीच रखा और कहा "हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न है। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति मे मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और राक्षस जाति के विनाश को आमंत्रण दिया है। रघुवंशीयों की वीरता से अपरचित होकर तुमने ऐसा दुस्साहस किया है। तुम्हारे श्रीरामजी की शरण में जाना इस विनाश से बचने का एक मात्र उपाय है। अन्यथा लंका का विनाश निश्चित है।" इससे निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को दो माह की अवधि दी। इसके उपरांत रावण व सीता का विवाह निश्चिय है। रावण के लौटने पर सीताजी बहुत दु:खी हुई। त्रिजटा राक्षसी ने अपने सपने के बारे में बताते हुए धीरज दिया की श्रीरामजी रावण पर विजय पाकर उन्हें अवश्य मुक्त करेंगे। उसके जाने के बाद हनुमान सीताजी के दर्शन कर अपने लंका आने का कारण बताते हैं। सीताजी राम व लक्ष्मण की कुशलता पर विचारण करती है। श्रीरामजी की मुद्रिका देकर हनुमान कहते हैं कि वे माता सीता को अपने साथ श्रीरामजी के पास लिये चलते हैं। सीताजी हनुमान को समझाती है कि यह अनुचित है। रावण ने उनका हरण कर रघुकुल का अपमान किया है। अत: लंका से उन्हें मुक्त करना श्रीरामजी का कर्तव्य है। विशेषतः रावण के दो माह की अवधी का श्रीरामजी को स्मरण कराने की विनती करती हैं। हनुमानजी ने रावण को अपनी दुस्साहस के परिणाम की चेतावनी दी और लंका जलाया। माता सीता से चूड़ामणि व अपनी यात्रा की अनुमति लिए चले। सागरतट स्थित अंगद व वानरसेना लिए श्रीरामजी के पास पहुँचे। माता सीता की चूड़ामणि दिया और अपनी लंका यात्रा की सारी कहानी सुनाई। इसके बाद राम व लक्ष्मण सहित सारी वानरसेना युद्ध के लिए तैयार हुई। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:रामायण के पात्र
संसकृत
https://hi.wikipedia.org/wiki/संसकृत
REDIRECTसंस्कृत भाषा
म्हार
https://hi.wikipedia.org/wiki/म्हार
म्हार मणिपुर और असम के पहाड़ी जिलों में रहने वाली एक जनजाति है। इन्हें भी देखें म्हार भाषा
तिब्बत
https://hi.wikipedia.org/wiki/तिब्बत
right|thumb|300px|तिब्बत thumb|300x300px|तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी वर्णों में) thumb|300x300px|तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे तिब्बत तिब्बत एक देश था। जिसकी सीमा भारतऔर चीनी जनवादी गणराज्य अफगानिस्तानवबर्मा से लगती है। दलाई लामा यहां के प्रसिद्ध धार्मिक नेता हैं। यह 1950 में चीन की साम्राज्यवादी नीति का शिकार हो गया। अब यह चीन का राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र है, और इसकी भूमि मुख्य रूप से पठारी है। इसे पारंपरिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। चीन द्वारा तिब्बती लोगों पर काफी अत्याचार किए गए व अब भी किये जा रहें हैं। thumb|400x400px|तिब्बत का पठार thumb|300x300px|तिब्बत का ध्वजभारत स्थिति व भूगोल ३२ अंश ३० मिनट उत्तर अक्षांश (लैटीट्यूड) तथा ८६ अंश ० मिनट पूर्वी देशान्तर (लॉन्गीट्यूड)। तिब्बत मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेंणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई १६,००० फुट तक है। यहाँ का क्षेत्रफल ४७,००० वर्ग मील है। तिब्बत का पठार पूर्व में शीकांग से, पशिचम में कश्मीर से दक्षिण में हिमालय पर्वत से तथा उत्तर में कुनलुन पर्वत से घिरा हुआ है। यह पठार पूर्वी एशिया की बृहत्तर नदियों हवांगहो, मेकांग आदि का उद्गम स्थल है, जो पूर्वी क्षेत्र से निकलती हैं। पूर्वी क्षेत्र में कुछ वर्षा होती है एवं ३६५.७६ मी॰ (१२०० फुट) की ऊँचाई तक वन पाए जाते है। यहाँ कुछ घाटियाँ १५२४ मी॰(५,००० फुट) ऊँची हैं, जहाँ किसान कृषि करते हैं। जलवायु की शुष्कता उत्तर की ओर बढ़ती जाती है एवं जंगलों के स्थान पर घास के मैदान अधिक पाए जाते है। जनसंख्या का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है। कृषि के स्थान पर पशुपालन बढ़ता जाता है। साइदान घाटी एवें कीकोनीर जनपद पशुपालन के लिये विशेष प्रसिद्ध है। right|thumb|300px|याक(yak: a wooly animal) बाह्य तिब्बत की ऊबड़-खाबड़ भूमि की मुख्य नदी यरलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र) है, जो मानसरोवर झील से निकल कर पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है और फिर दक्षिण की ओर मुड़कर भारत एवं बांग्लादेश में होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी घाटी के उत्तर में खारे पानी की छोटी - छोटी अनेक झीलें हैं, जिनमें नम त्सो (उर्फ़ तेन्ग्री नोर) मुख्य है। इस अल्प वर्षा एवं स्वल्प कृषि योग्य है। त्संगपो की घाटी में वहाँ के प्रमुख नगर ल्हासा, ग्यान्त्से एवं शिगात्से आदि स्थित है। बाह्य तिब्बत का अधिकांश भाग शुष्क जलवायु के कारण केवल पशुचारण के योग्य है और यही यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय हो गया है। कठोर शीत सहन करनेवाले पशुओं में याक(Yak: a wooly animal) मुख्य है जो दूध देने के साथ बोझा ढोने का भी कार्य करता है। इसके अतिरिक्त भेड़, बकरियाँ भी पाली जाती है। इस विशाल भूखंड में नमक के अतिरिक्त स्वर्ण एवं रेडियमधर्मी खनिजों के संचित भंडार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ऊबड़ खाबड़ पठार में रेलमार्ग बनाना अत्यंत दुष्कर और व्ययसाध्य है अत: पर्वतीय रास्ते एवं कुछ राजमार्ग (सड़कें) ही आवागमन के मुख्य साधन है, हालांकि चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग तैयार हो चुका है। सड़के त्संगपो नदी की घाटी में स्थित नगरों को आपस में मिलाती है। पीकिंग-ल्हासा राजमार्ग एवं ल्हासा काठमांडू राजमार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने की अवस्था में है। इनके पूर्ण हो जोने पर इसका सीधा संबंध पड़ोसी देशों से हो जायेगा। चीन और भारत ही तिब्बत के साथ व्यापार में रत देश पहले थे। यहाँ के निवासी नमक, चमड़े तथा ऊन आदि के बदले में चीन से चाय एवं भारत से वस्त्र तथा खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। तिब्बत एवं शिंजियांग को मिलानेवाले तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग का निर्माण जो लद्दाख़ के अक्साई चिन इलाक़े से होकर जाती है पूर्ण हो चुका है। ल्हासा - पीकिंग वायुसेवा भी प्रारंभ हो गई है। इतिहास मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित १६००० फुट की ऊँचाई पर स्थित इस राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग ७वी शताब्दी से मिलता है। ८वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। १०१३ ई॰ में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। १०४२ ई॰ में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल १२०७ ई॰ में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत १७२० ई॰ में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर १७८८-१७९२ ई॰ के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणाम स्वरूप १९वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के मुताबिक तिब्बत को दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत को हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद माँगी चीन के मदद से उसने नेपाल से छुटकारा तो पा लिया लेकिन इसके बाद १९०६-१९०७ ई॰ में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार कर लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। १९१२ ई॰ में चीन से [[चिंग राजवंश |मान्छु शासन]] अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् १९१३-१९१४ में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित कर दिया गया: (१) पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के चिंगहई एवं सिचुआन प्रांत हैं। इसे 'अंतर्वर्ती तिब्बत' (Inner Tibet) कहा गया। (२) पश्चिमी भाग जो बौद्ध धर्मानुयायी शासक लामा के हाथ में रहा। इसे 'बाह्य तिब्बत' (Outer Tibet) कहा गया। सन् १९३३ ई॰ में १३वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी घेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित पालित १४वें दलाई लामा ने १९४० ई॰ में शासन भार सँभाला। १९५० ई॰ में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। १९५१ की संधि के अनुसार यह साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय से भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो क्रमश: १९५६ एवं १९५९ ई॰ में जोरों से भड़क उठी। परतुं बलप्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँच सके। अभी वे भारत में बैठकर चीन से तिब्बत को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सर्वतोभावेन चीन के अनुगत पंछेण लामा यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैं। thumb|८ सितम्बर १९५० को तिब्बत का एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ|300x300पिक्सेल right|thumb|300px|कैलाश पर्वत इन्हें भी देखें तिब्बत 2050 तक आजादी प्राप्त कर लेगा। तिब्बत का इतिहास तिब्बत का पठार दलाई लामा चिंगहई अकसाई चिन तिब्बती भाषा तिब्बती लिपि तिब्बती साहित्य तिब्बती बौद्ध धर्म तिब्बती पंचांग तिब्बत विवाद बाहरी कड़ियाँ तिब्बत की आजादी का संघर्ष (राजकिशोर) मानसरोवर की भूमि तिब्बत (जागरण) तिब्बत पर चीन के खूनी अत्याचारों के पचास वर्ष (डा. सतीश चन्द्र मित्तल) सन्दर्भ श्रेणी:तिब्बत श्रेणी:जनवादी गणराज्य चीन के स्वायत्त क्षेत्र
मद्रिद
https://hi.wikipedia.org/wiki/मद्रिद
मद्रिद, स्पेन की राजधानी और सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। शहर में लगभग 3.4 मिलियन निवासी हैं और महानगरीय क्षेत्र की आबादी लगभग 6.7 मिलियन है। यह यूरोपीय संघ का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, और इसका महानगरीय क्षेत्र यूरोपीय संघ में दूसरा सबसे बड़ा शहर है। नगरपालिका में 604.3 km² भौगोलिक क्षेत्र शामिल है। नामोत्पत्ति मद्रिद नाम के पीछे बहुत से कहानियां तथा सिद्धांत छुपे हुए है। मद्रिद की खोज ओच्नो बिअनोर ने की थी और इसे "Metragirta" (मेत्राग्रिता) या "Mantua Carpetana" (मंतुआ कार्पेताना) नाम दिया गया था। कई लोगो का विश्वास है कि इसका मूल नाम "उर्सरिया" था। किन्तु अब ये माना जाता है कि इस शहर नाम BC कि दूसरी शताब्दी से आया है। रोमन साम्राज्य ने मंज़नारेस नदी के तट पर बसने के बाद इसे मत्रिस नाम दिया था। सातवी शताब्दी में इस्लामिक ताकतों ने इबेरियन पेनिन्सुला पर विजय प्राप्त करने के बाद इसका नाम बदल कर मेरिट रख दिया था, जो कि अरबी भाषा के शब्द मायरा से लिया गया था। इतिहास इस शहर का मूल नवी शताब्दी से आया जब मोहम्मद-I ने एक छोटे से महल को बनाने का आदेश जारी किया। ये महल उसी जगह स्थित था जहा आज पलासियो रियल स्थित है। पर्यटन मैड्रिड उन स्पेनिश शहरों में से एक है जिन्हें दिन और रात का आनंद लेना चाहिए। दिन के दौरान आप इसकी आकर्षक सड़कों और चौराहों पर टहल सकते हैं, इसके प्रसिद्ध संग्रहालयों और महलों की यात्रा कर सकते हैं, इसके ऐतिहासिक स्मारकों का दौरा कर सकते हैं, इसके बाजारों में खरीदारी कर सकते हैं या रेटिरो पार्क में टहल सकते हैं। और जब रात आती है, तो आप रात को कुछ फैशनेबल जगह पर रात खत्म करने के लिए लैटिना, चुचे या मलसाना के पड़ोस में एक तपस और कैन मार्ग बनाना बंद कर सकते हैं और चुरोस के साथ एक अच्छा गर्म चॉकलेट रख सकते हैं। सन्दर्भ श्रेणी:विश्व के प्रमुख नगर श्रेणी:स्पेन श्रेणी:यूरोपीय नगर श्रेणी:यूरोप में राजधानियाँ
रोम
https://hi.wikipedia.org/wiki/रोम
यह लेख इटली की राजधानी एवं प्राचीन नगर 'रोम' के बारे में है। इसी नाम के अन्य नगर संयुक्त राज्य अमरीका में भी है। स्तनधारियों की त्वचा पर पाए जाने वाले कोमल बाल (:en:hair) के लिये बाल देखें। इसका पर्यायवाची शब्द रोयाँ या रोआँ (बहुवचन - रोएँ) है। इसे सात पहाड़ियों का नगर, पोप का शहर रक्त वर्ण महिला, प्राचीन विश्व की सामग्री, इटरनल सिटि ( होली सिटी ) के उपनामों से भी जाना जाता है। right|thumb|300px|रोम नगर की स्थिति रोम ( (रोमा)) इटली देश की राजधानी है। परिचय स्थिति : 41°55' उ.अ. तथा 12°28' पू.दे.। वैटिकन नगर को मिलाकर यह रोमन कैथोलिक धर्म का केंद्र भी है। नगर की स्थिति इटली प्रायद्वीप के मध्य में, पश्चिमी तट पर, टाइबर नदी के किनारे, नदी के मुहाने से 17 मील उत्तर-पूर्व में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि रोम नगर की नींव 'वर्गाकार रोम' के रूप में पैलेटाइन (Paletine) पहाड़ी पर रॉमुलस (Romulus) के द्वारा डाली गई थी। इसका विस्तार अन्य पहाड़ियों पर, एवं नदी के दोनों ओर, बाद में हुआ। रोम की एक विशेषता पहाड़ी ढालों पर इसके चित्ताकर्षक उद्यानों एवं गिरजाघरों की उपस्थिति है, जिनका दृश्य बड़ा ही रमणीक है। नगर में लगभग 300 गिरजाघर कई पुस्तकालय, अजायबघर आदि हैं। विश्वविद्यालय भवन, यूरोप का सुंदरतम अस्पताल, पैलेस ऑव जस्टिस, आदि अन्य प्रसिद्ध भवन हैं। रेल के डिब्बे, ट्रामकार, कृषियंत्र, शल्यचिकित्सा संबंधी यंत्र, कागज, रासायनिक पदार्थ, नकली रेशम, साबुन, कलाप्रदर्शन के सामान, जैसे फर्नीचर, काँच, गहना एवं चमड़े के समान आदि तैयार करने के कारखाने वहाँ हैं। नगर पर्यटन का केंद्र एवं कृषि उपजों और ऊन का बाजार भी है। इन्हें भी देखें रोमन साम्राज्य Trip to Rome daily photo रोम का रोमांच श्रेणी:यूरोपीय नगर श्रेणी:यूरोप में राजधानियाँ श्रेणी:इटली
मदीना
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thumb|400px|इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन , 2017 से मदीना। ध्यान दें कि उत्तर सही है। मदीना या अल-मदीना (अरबी: ) जिसे सम्मानपूर्वक 'अल-मदीना अल-मुनव्वरा' (/ mədiːnə/ ; अरबी : المدينة المنورة, अल-मदीना अल-मुनव्वरा, " चमकदार शहर"; या المدينة, अल-मदीना (हेजाज़ी उच्चारण: [almadiːna] ), "शहर"), मदीना के रूप में भी लिप्यंतरित, अरब प्रायद्वीप के हेजाज़ क्षेत्र में एक शहर है और सऊदी अरब के अल-मदीना क्षेत्र के प्रशासनिक मुख्यालय है। ग्रान्धिक रूप से अरबी शब्द मदीना का अर्थ 'शहर' या 'नगर' है। मदीनतुन-नबी का अर्थ नबी का शहर है। शहर के दिल में अल-मस्जिद अन-नबवी ("पैगंबर की मस्जिद") है,मक्का के बाद इस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र शहर है। मुहम्मद ने मक्का से मदीना को अपनी हिजरत (प्रवासन) की। मुहम्मद के नेतृत्व में, तेजी से बढ़ रहे मुस्लिम साम्राज्य की राजधानी मदीना बन गई। यह पहली शताब्दी में इस्लाम के पावर बेस के रूप में कार्य करता था जहां प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय विकसित हुआ था। मदीना तीन सबसे पुरानी मस्जिदों का घर है, अर्थात् मस्जिद ए क़ुबा, मस्जिद ए नबवी, और मस्जिद अल-क़िब्लातैन ("दो क़िब्लों की मस्जिद")। मुसलमानों का मानना ​​है कि कुरान के कालानुक्रमिक रूप से अंतिम सूरह मदीना में मुहम्मद को प्रकट हुआ था, और उन्हें पहले मक्कन सूरह के विपरीत मेदीनन सूरह कहा जाता है। Historical value of the Qur'ân and the Ḥadith A.M. KhanWhat Everyone Should Know About the Qur'an Ahmed Al-Laithy यह इस्लाम में पवित्रतम दूसरा शहर है और इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की दफ़नगाह है और यह उनकी हिजरह (विस्थापित होने) के बाद उनके घर आने के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस्लाम के आगमन से पहले, मदीना शहर 'यसरिब' नाम से जाना जाता था, लेकिन व्यक्तिगत रूप से पैगंबर मुहम्मद द्वारा नाम दिया गया। मदीना में इस्लाम के तीन सबसे पुराने मस्जिद मस्जिद अल नबवी (पैगंबर की मस्जिद), मस्जिद ए क़ुबा (इस्लाम के इतिहास में पहली मस्जिद) और मस्जिद अल क़िब्लतैन (वह मस्जिद जिस में दो क़िब्लओं की तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढी गयी) उपस्थित है। मक्का की तरह, मदीना का शहर केंद्र किसी भी व्यक्ति के लिए बंद है जिसे गैर-मुसलमान माना जाता है, जिसमें राष्ट्रीय सरकार द्वारा अहमदीय आंदोलन के सदस्य भी शामिल हैं; हालांकि, शहर के अन्य हिस्सों को बंद नहीं किया गया है। Sandra Mackey's account of her attempt to enter Mecca in व्युत्पत्ति विज्ञान अरबी शब्द अल-मदीना (المدينة) का अर्थ "शहर" है। इस्लाम के आगमन से पहले, शहर यथ्रिब (यस्रिब - يثرب) के रूप में जाना जाता था । यथ्रिब शब्द का ज़िक्र कुरान के सूरत अल-अहज़ाब में मिलता है। [कुरान 33:13] इसे तैबा भी कहा जाता है ( طيبة)। एक वैकल्पिक नाम अल-मदीना एन-नाबावियाह ( المدينة النبوية ) या मदिनत एन-नबी ( مدينة النبي , "पैगंबर का शहर") है। अवलोकन 2010 तक, मदीना शहर की जनसंख्या 1,183,205 है। पूर्व इस्लामी युग यथ्रिब के दौरान निवासियों ने यहूदी जनजातियों को भी शामिल किया था। बाद में शहर का नाम अल-मदीन-तु एन-नबी या अल-मदीनातु 'अल-मुनव्वारह ( المدينة المنورة "रोशन शहर" या " चमकदार शहर" में बदल दिया गया था)। मदीना अल-मस्जिद अन-नबवी और शहर के रूप में भी माना जाता है, वह शहर जिसने नबी और उनके अनुयायियों को शरण दी, और इसलिए मक्का के बाद इस्लाम के दूसरे सबसे पवित्र शहर के रूप में रैंक किया गया। However, an article in Aramco World by John Anthony states: "To the perhaps parochial Muslims of North Africa in fact the sanctity of Kairouan is second only to Mecca among all cities of the world." Saudi Aramco's bimonthly magazine's goal is to broaden knowledge of the cultures, history and geography of the Arab and Muslim worlds and their connections with the West; pages 30–36 of the January/February 1967 print edition The Fourth Holy City मुहम्मद को सब्ज़ गुंबद के नीचे मदीना में दफनाया गया था, जैसा कि पहले दो रशीदुन खलीफा, अबू बकर और उमर भी दफ़न थे। मदीना मक्का के उत्तर में 210 मील (340 किमी) और लाल सागर तट से लगभग 120 मील (190 किमी) दूरी पर है। यह सभी हेजाज क्षेत्र के सबसे उपजाऊ हिस्से में स्थित है, इस इलाके में अभिसरण करने के आसपास के आसपास की धाराएं। एक विशाल मैदान दक्षिण में फैला हुआ है; हर दिशा में दृश्य पहाड़ियों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। इस ऐतिहासिक शहर ने 12 वीं शताब्दी ई से, एक मजबूत दीवार से घिरा एक अंडाकार रूप में बनाया गाया था, 30 से 40 फीट (9.1 से 12.2 मीटर) ऊंचा, और टावरों के साथ घिरा हुआ था, जबकि एक चट्टान पर एक महल खड़ा था। इसके चार द्वारों में से, बाब-अल-सलाम, या मिस्र के द्वार, इसकी सुंदरता के लिए उल्लेखनीय था। शहर, पश्चिम और दक्षिण की दीवारों से परे उपनगर थे जिनमें कम घर, गज, बगीचे और वृक्षारोपण शामिल थे। इन उपनगरों में दीवारें और द्वार भी थे। सऊदी युग में लगभग सभी ऐतिहासिक शहर को ध्वस्त कर दिया गया है। पुनर्निर्मित शहर बड़े पैमाने पर विस्तारित अल-मस्जिद एन-नाबावी पर केंद्रित है। फ़ातिमा (मुहम्मद की बेटी) और हसन (मुहम्मद के पोते) की कब्र, जन्नत अल-बक़ी में दफ़न हैं, और अबू बकर (पहले खलीफ़ा और मुहम्मद की पत्नी, आइशा सिद्दीक़ा के पिता), और उमर (उमर इब्न अल-ख़त्ताब) ), दूसरे खलीफ़ा, यहां दफ़न हैं। मस्जिद मुहम्मद के समय बनाई गयी थी, लेकिन इसे दो बार पुनर्निर्मित किया गया है। 1954 Encyclopedia Americana, vol. 18, pp.587, 588 इस्लाम में धार्मिक महत्व thumb|पैगंबर के मस्जिद का सब्ज़ (हरा) गुंबद एक धार्मिक स्थल के रूप में मदीना का महत्व अल-मस्जिद एन-नाबावी की उपस्थिति से निकला है। मस्जिद उमायाद खलीफ अल-वालिद प्रथम द्वारा विस्तारित किया गया था। माउंट उहूद मदीना के उत्तर में एक पहाड़ है जो मुस्लिम और मक्का सेनाओं के बीच दूसरी लड़ाई का स्थल था। मुहम्मद के समय के दौरान निर्मित पहली मस्जिद मदीना में स्थित है और इसे क़ुबा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। यह बिजली से नष्ट हो गई थी, शायद लगभग 850 ई, और कब्र लगभग भूल गए थे। 892 में, जगह को मंजूरी दे दी गई थी, कब्रें स्थित थीं और एक अच्छी मस्जिद बनाई गई थी, जिसे 1257 सीई में आग से नष्ट होगयी थी और उसे तुरंत पुनर्निर्मित किया गया था। इसे 1487 में मिस्र के शासक क ऐतबे ने बहाल कर दिया था। मस्जिद अल-क़िबलतेन मुसलमानों के लिए ऐतिहासिक रूप से एक और मस्जिद महत्वपूर्ण है। हदीस के अनुसार यह वह जगह है जहां मुहम्मद को आदेश हुआ कि अपने किबले को यरूशलेम से मक्का की तरफ दिशा बदलें। मक्का की तरह, मदीना शहर केवल मुसलमानों को प्रवेश करने की इजाजत देता है, हालांकि मदीना के हरम (गैर-मुसलमानों के लिए बंद) मक्का की तुलना में बहुत छोटा है, जिसके परिणामस्वरूप मदीना के बाहरी इलाके में कई सुविधाएं गैर- मुस्लिम, जबकि मक्का में गैर-मुसलमानों के लिए बंद क्षेत्र बिल्ट-अप क्षेत्र की सीमा से परे फैला हुआ है। दोनों शहरों की कई मस्जिद उनके उमर (हज के बाद दूसरी तीर्थ यात्रा) पर बड़ी संख्या में मुस्लिमों के लिए गंतव्य हैं। तीर्थयात्रा हज प्रदर्शन करते समय सैकड़ों हजार मुसलमान मदीना सालाना आते हैं। अल-बक़ी' मदीना में एक महत्वपूर्ण कब्रिस्तान है जहां मुहम्मद, खलीफ़ा और विद्वानों के कई परिवार के सदस्यों को दफनाया जाता है। इस्लामी शास्त्र मदीना की पवित्रता पर जोर देते हैं। मदीना को कुरान में पवित्र होने के रूप में कई बार उल्लेख किया गया है, उदाहरण के लिए आयत ; 9: 101, 9: 12 9, 5 9: 9, और अय्या 63:7 मदनी सूरा आमतौर पर अपने मक्का समकक्षों से अधिक लंबे हैं। बुखारी के हदीस में 'मदीना के गुण' नामक एक किताब भी है। hadith found in 'Virtues of Madinah' of Sahih Bukhari searchtruth.com सही बुख़ारी में उल्लेख है; इतिहास यह भी देखें: मदीना की समयरेखा इस्लाम से पहले चौथी शताब्दी तक, अरब जनजातियों ने यमन से अतिक्रमण करना शुरू कर दिया, और वहां तीन प्रमुख यहूदी जनजातियां थीं जो 7 वीं शताब्दी ईस्वी में शहर में बसे थे: बानू कयनुका , बानू कुरैजा और बानू नादिर । Jewish Encyclopedia Medina इब्न खोर्डदाबे ने बाद में बताया कि हेजाज़ में फारसी साम्राज्य के प्रभुत्व के दौरान, बानू कुरैया ने फारसी शाह के लिए कर संग्रहकर्ता के रूप में कार्य किया था। Peters 193 thumb|left|ऐतिहासिक मदीना बनू औस (या बानू 'अवस) और बनू खजराज नामक दो नई अरब जनजातियों के यमन से आने के बाद स्थिति बदल गई। सबसे पहले, इन जनजातियों को यहूदी शासकों के साथ संबद्ध किया गया था, लेकिन बाद में वे विद्रोह कर गए और स्वतंत्र हो गए। "Al-Medina." Encyclopaedia of Islam 5 वीं शताब्दी के अंत में, for date see "J. Q. R." vii. 175, note यहूदी शासकों ने शहर के नियंत्रण को बनू औस और बानू खजराज में खो दिया। यहूदी विश्वकोष में कहा गया है कि "बाहरी सहायता में बुलाकर और भरोसेमंद यहूदी भोज में मुख्य यहूदी", बानू औस और बानू खजराज ने अंततः मदीना में ऊपरी हाथ प्राप्त किया। अधिकांश आधुनिक इतिहासकार मुस्लिम स्रोतों के दावे को स्वीकार करते हैं कि विद्रोह के बाद, यहूदी जनजातियां औस और खजराज के ग्राहक बन गईं। See e.g., Peters 193; "Qurayza", Encyclopaedia Judaica हालांकि, इस्लाम के विद्वान विलियम मोंटगोमेरी वाट के विद्वान के अनुसार, यहूदी जनजातियों की ग्राहकता 627 से पहले की अवधि के ऐतिहासिक खातों से नहीं उभरी है, और उन्होंने कहा कि यहूदी जनसंख्या ने राजनीतिक स्वतंत्रता को माप लिया है। प्रारंभिक मुस्लिम इतिहासकार इब्न इशाक हिमालय साम्राज्य के अंतिम यमेनाइट राजा Muslim sources usually referred to Himyar kings by the dynastic title of "Tubba". और याथ्रिब के निवासियों के बीच पूर्व इस्लामी संघर्ष के बारे में बताते हैं । जब राजा ओएसिस से गुज़र रहा था, तो निवासियों ने अपने बेटे को मार डाला, और यमेनाइट शासक ने लोगों को खत्म करने और हथेलियों को काटने की धमकी दी। इब्न इशाक के मुताबिक, उन्हें बानू कुरैजा जनजाति के दो खरगोशों ने ऐसा करने से रोक दिया था, जिन्होंने राजा को ओएसिस छोड़ने के लिए आग्रह किया क्योंकि यह वह स्थान था जहां " कुरैशी का एक भविष्यवक्ता आने के समय में माइग्रेट करेगा, और यह उसका घर और विश्राम स्थान होगा। " यमन के राजा ने इस प्रकार शहर को नष्ट नहीं किया और यहूदी धर्म में परिवर्तित कर दिया। उसने रब्बी को उसके साथ ले लिया, और मक्का में , उन्होंने कबा को इब्राहीम द्वारा निर्मित मंदिर के रूप में पहचाना और राजा को सलाह दी कि "मक्का के लोगों ने क्या किया: मंदिर को घेरने, सम्मान करने और सम्मान करने के लिए अपने सिर को दाढ़ी दें और सभी नम्रता से व्यवहार करें जब तक कि वह अपनी परिसर छोड़ नहीं लेता। " यमन के पास, इब्न इशाक को बताते हुए, खरगोशों ने स्थानीय लोगों को बिना आग से बाहर निकलने के चमत्कार से चमत्कार किया और यमनियों ने यहूदी धर्म को स्वीकार कर लिया। Guillaume 7–9, Peters 49–50 आखिर में बानू औस और बानू खजराज एक दूसरे के प्रति शत्रु हो गए और मुहम्मद के हिजरा (प्रवासन) के समय 622 ईस्वी / 1 एएच में मदीना के समय तक, वे 120 साल से लड़ रहे थे और एक दूसरे के शपथ ग्रहण कर रहे थे। बानू नादिर और बानू कुरैजा को औस के साथ सहयोग किया गया था, जबकि बानू कयणुका खजराज के साथ थे। उन्होंने कुल चार युद्ध लड़े। </ref> They fought a total of four wars. उनकी आखिरी और खूनी लड़ाई बुआथ की लड़ाई थी जो मुहम्मद के आगमन से कुछ साल पहले लड़ी गई थी। युद्ध का नतीजा अनिश्चित था, और विवाद जारी रहा। एक खजराज प्रमुख अब्द-अल्लाह इब्न उबायी ने युद्ध में भाग लेने से इंकार कर दिया था, जिसने उन्हें इक्विटी और शांति के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की थी। मुहम्मद के आगमन तक, वह याथ्रिब का सबसे सम्मानित निवास स्थान था। चल रहे विवाद को हल करने के लिए, शहर के संबंधित निवासी अल-अकाबा में मुहम्मद के साथ गुप्त रूप से मिले, मक्का और मीना के बीच एक जगह, उन्हें और उनके छोटे समूह विश्वासियों को याथ्रिब आने के लिए आमंत्रित किया, जहां मुहम्मद गुटों के बीच अनिच्छुक मध्यस्थ के रूप में सेवा कर सकते थे और उसका समुदाय स्वतंत्र रूप से अपने विश्वास का अभ्यास कर सकता था। मुहम्मद का आगमन 622 ईस्वी / 1 हिजरी में, मुहम्मद और लगभग 70 मक्का मुहजीरुन विश्वासियों ने यस्रिब में अभय दिया गया शहर के लिए मक्का छोड़ा, एक घटना जिसने शहर के धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया; औस और खजराज जनजातियों के बीच लंबी शत्रुता को दो अरब जनजातियों में से कई के रूप में डूब गया था और कुछ स्थानीय यहूदियों ने इस्लाम को गले लगा लिया था। मुहम्मद, खजराज से उनकी दादी के माध्यम से जुड़े, नागरिक नेता के रूप में सहमत हुए थे। मुसलमान मूल रूप से याथ्रिब को जो भी पृष्ठभूमि-मूर्तिपूजक अरब या यहूदी कहते हैं, उन्हें अंसार ("संरक्षक" या "सहायक") कहा जाता है, जबकि मुसलमान जकात कर का भुगतान करेंगे। इब्न इशाक के अनुसार, स्थानीय मूर्तिपूजक अरब जनजातियों, मक्का से मुस्लिम मुहजीरीन, स्थानीय मुस्लिम (अंसार), और क्षेत्र की यहूदी आबादी ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, मदीना का संविधान, जिसने सभी पार्टियों को पारस्परिक सहयोग के लिए प्रतिबद्ध किया मुहम्मद का नेतृत्व इस दस्तावेज की प्रकृति इब्न इशाक द्वारा दर्ज की गई है और इब्न हिशाम द्वारा प्रेषित आधुनिक पश्चिमी इतिहासकारों के बीच विवाद का विषय है, जिनमें से कई यह मानते हैं कि यह "संधि" संभवतः अलग-अलग तिथियों के लिखित रूप से अलग-अलग समझौतों का एक महाविद्यालय है, और यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कब बनाया गया था। हालांकि, अन्य विद्वान पश्चिमी और मुस्लिम दोनों तर्क देते हैं कि समझौते का पाठ-चाहे मूल रूप से या कई दस्तावेज संभवतः हमारे सबसे पुराने इस्लामिक ग्रंथों में से एक है। Firestone 118. For opinions disputing the early date of the Constitution of Medina, see e.g., Peters 116; "Muhammad", "Encyclopaedia of Islam"; "Kurayza, Banu", "Encyclopaedia of Islam". यमन के यहूदी स्रोतों में, हिजरा (638 सीई) के 17 वें वर्ष में लिखित मुहम्मद और उनके यहूदी विषयों के बीच एक और संधि तैयार की गई, जिसे किताब इममत अल-नबी के नाम से जाना जाता है, और जिसने अरब में रहने वाले यहूदियों को व्यक्त स्वतंत्रता दी सब्त का पालन करने और अपने साइड-लॉक को बढ़ाने के लिए, लेकिन अपने संरक्षकों द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए सालाना जिज्या (मतदान कर) का भुगतान करना आवश्यक था। Shelomo Dov Goitein, The Yemenites – History, Communal Organization, Spiritual Life (Selected Studies), editor: Menahem Ben-Sasson, Jerusalem 1983, pp. 288–299. बदर की लड़ाई thumb|बदर में युद्ध की स्थिति इस्लाम के शुरुआती दिनों में बद्र की लड़ाई एक महत्वपूर्ण लड़ाई थी और मक्का में कुरैशी के बीच मुहम्मद के विरोधियों के साथ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 624 के वसंत में, मुहम्मद को अपने खुफिया स्रोतों से शब्द प्राप्त हुआ कि अबू सूफान इब्न हरब द्वारा आदेश दिया गया एक व्यापार कारवां और तीस से चालीस पुरुषों की रक्षा करता है, सीरिया से वापस मक्का तक यात्रा कर रहा था। मुहम्मद ने 313 पुरुषों की एक सेना इकट्ठी की, मुसलमानों ने अब तक की सबसे बड़ी सेना को मैदान में रखा था। हालांकि, कुरान समेत कई प्रारंभिक मुस्लिम स्रोतों से संकेत मिलता है कि कोई गंभीर लड़ाई की उम्मीद नहीं थी, Sahih al-Bukhari: Volume 5, Book 59, Number 287 और भविष्य में खलीफ उथमान इब्न अफ़ान अपनी बीमार पत्नी की देखभाल करने के लिए पीछे रहे। जैसा कि कारवां ने मदीना से संपर्क किया, अबू सूफान ने मुहम्मद के नियोजित हमले के बारे में यात्रियों और सवारों से सुनना शुरू कर दिया। उन्होंने कुरैश को चेतावनी देने और सुदृढीकरण प्राप्त करने के लिए दमडम नामक मक्का नामक एक संदेशवाहक भेजा। अलार्म, कुरैशी ने कारवां को बचाने के लिए 900-1,000 पुरुषों की एक सेना को इकट्ठा किया। अमृत ​​इब्न हिशाम, वालिद इब्न उट्टा, शाबा और उमायाह इब्न खलाफ समेत कई कुरैशी महारानी सेना में शामिल हो गए। हालांकि, कुछ सेना बाद में युद्ध से पहले मक्का लौट आई थी। युद्ध में शामिल होने के लिए उभर रहे दोनों सेनाओं के चैंपियनों के साथ लड़ाई शुरू हुई। मुसलमानों ने अली , उबायदा इब्न अल-हरिथ ( ओबेदा ), और हमज़ा इब्न 'अब्द अल- मुतालिब को भेजा। मुस्लिमों ने मक्का चैंपियनों को तीन-तीन-तीन मैली में भेज दिया, हमजा ने पहली बार हड़ताल के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी को मार डाला, हालांकि उबायदाह घायल हो गए थे। Sunan Abu Dawud: Book 14, Number 2659 अब दोनों सेनाओं ने एक दूसरे पर फायरिंग तीर शुरू कर दिया। दो मुस्लिम और अज्ञात संख्या में कुरैश मारे गए थे। युद्ध शुरू होने से पहले, मुहम्मद ने मुसलमानों को अपने हथियारों के साथ हमला करने का आदेश दिया था, और जब वे उन्नत होते थे तो केवल कुरैशी को मेली हथियारों से जोड़ते थे। Sunan Abu Dawud: Book 14, Number 2658 अब उन्होंने चाकतों को चार्ज करने का आदेश दिया, मक्का में मुट्ठी भर मुंह फेंकने के लिए शायद पारंपरिक अरब इशारा क्या था, "उन चेहरों को रोक दिया!" Armstrong, p. 176.Lings, p. 148. मुस्लिम फौज ने कहा "या मंसूर अमित!""O thou whom God hath made victorious, slay!" मुस्लिम सेना ने चिल्लाया "या मनु अमित!" और कुरैशी लाइनों पर पहुंचे। मक्का, हालांकि मुस्लिमों की तुलना में काफी हद तक, तुरंत तोड़ दिया और भाग गया। लड़ाई केवल कुछ घंटों तक चली और शुरुआती दोपहर तक खत्म हो गई। कुरान कई छंदों में मुस्लिम हमले की शक्ति का वर्णन करता है, जिसमें बद्र में स्वर्ग से उतरने वाले हजारों स्वर्गदूतों को कुरैशी को मारने का उल्लेख किया गया है। Quran: Al-i-Imran प्रारंभिक मुस्लिम स्रोत इस खाते को शाब्दिक रूप से लेते हैं, और कई हदीस हैं जहां मुहम्मद एंजेल जिब्रियल और युद्ध में खेले गए भूमिका पर चर्चा करते हैं। उबायदा इब्न अल-हरिथ (ओबेदा) को "इस्लाम के लिए पहला तीर मारने वाले" का सम्मान दिया गया था क्योंकि अबू सूफान इब्न हार्ब ने हमले से भागने के लिए पाठ्यक्रम बदल दिया था। इस हमले के बदले में अबू सूफान इब्न हरब ने मक्का से एक सशस्त्र बल का अनुरोध किया। The Biography of Mahomet, and Rise of Islam. Chapter Fourth. Extension of Islam and Early Converts, from the assumption by Mahomet of the prophetical office to the date of the first Emigration to Abyssinia by William Muir सर्दियों और वसंत के दौरान 623 अन्य हमलावर पार्टियों को मुथान ने मदीना से भेजा था। उहूद की लड़ाई thumb|right|उहुद की पहाडी 625 में, मक्का के क़ुरैश के प्रधान अबू सुफ़ियान इब्न हर्ब ने नियमित रूप से बाईजान्टिन साम्राज्य को कर चुकाया, एक बार फिर मदीना के खिलाफ एक मक्का बल का नेतृत्व किया। मुहम्मद के ख़िलाफ़ बल से मिलने के लिए बाहर निकल गए लेकिन युद्ध तक पहुंचने से पहले, अब्द-अल्लाह इब्न उबाय के तहत सेनाओं में से एक तिहाई वापस ले गए। एक छोटी सेना के साथ, मुस्लिम सेना को ऊपरी हाथ हासिल करने की रणनीति मिलनी पड़ी। तीरंदाजों के एक समूह को मक्का की घुड़सवारी बलों पर नजर रखने और मुस्लिम सेना के पीछे सुरक्षा प्रदान करने के लिए पहाड़ी पर रहने का आदेश दिया गया था। जैसे ही युद्ध गर्म हो गया, मक्का को कुछ हद तक पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। युद्ध के मोर्चे को तीरंदाजों से आगे और आगे धकेल दिया गया था, जिन्हें युद्ध की शुरुआत से, वास्तव में करने के लिए कुछ भी नहीं था लेकिन देखो। युद्ध के हिस्से बनने के लिए उनकी बढ़ती अधीरता में, और यह देखते हुए कि वे कुछ हद तक काफ़िरों (अविश्वासी) पर लाभ प्राप्त कर रहे थे, इन तीरंदाजों ने पीछे हटने वाले मक्का का पीछा करने के लिए अपनी पद छोड़ने का फैसला किया। हालांकि, एक छोटी पार्टी पीछे रह गई; अपने कमांडरों के आदेशों का उल्लंघन न करने के लिए सभी के साथ सभी को दलील देना। लेकिन उनके शब्द उनके साथियों के उत्साही योद्धाओं में खो गए थे। हालांकि, मक्का की वापसी वास्तव में एक निर्मित चालक था जो भुगतान किया गया था। पहाड़ी की स्थिति मुस्लिम बलों के लिए एक बड़ा फायदा रहा है, और उन्हें टेबल को चालू करने के लिए मक्का के लिए अपनी पदों को लुभाना पड़ा। यह देखते हुए कि उनकी रणनीति वास्तव में काम कर चुकी थी, मक्का कैवलरी बलों पहाड़ी के चारों ओर चली गई और पीछा करने वाले तीरंदाजों के पीछे फिर से दिखाई दी। इस प्रकार, पहाड़ी और सामने की रेखा के बीच मैदान में हमला किया गया, तीरंदाजों को व्यवस्थित रूप से कत्ल कर दिया गया, पहाड़ में पीछे रहने वाले अपने हताश कामरेडों ने देखा, हमलावरों को विफल करने के लिए तीर शूटिंग, लेकिन थोड़ा प्रभाव पड़ा। हालांकि, मदीना पर हमला करके मक्का ने अपने लाभ पर पूंजीकरण नहीं किया और मक्का लौट आया। मदीना वासियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, और मुहम्मद घायल हो गये थे। खंदक की लड़ाई 627 में, अबू सूफान इब्न हरब ने मदीना के खिलाफ मक्का सेना का नेतृत्व किया। क्योंकि मदीना के लोगों ने शहर की रक्षा करने के लिए एक खाई खोद ली थी, इस घटना को खाई की लड़ाई के रूप में जाना जाने लगा। एक लंबी घेराबंदी और विभिन्न झड़पों के बाद, मक्का फिर से वापस ले लिया। घेराबंदी के दौरान, अबू सूफान इब्न हरब ने बानू कुरैजा के शेष यहूदी जनजाति से संपर्क किया था और रक्षकों पर लाइनों के पीछे से हमला करने के लिए उनके साथ एक समझौता किया था। हालांकि यह मुस्लिमों द्वारा खोजा गया था और विफल हो गया था। यह मदीना के संविधान का उल्लंघन था और मक्का वापसी के बाद, मुहम्मद ने तुरंत कुरैजा के खिलाफ मार्च किया और अपने गढ़ों पर घेराबंदी की। यहूदी सेनाओं ने अंततः आत्मसमर्पण कर दिया। बनू औस के कुछ सदस्य अब अपने पुराने सहयोगियों की तरफ से हस्तक्षेप कर चुके थे और मुहम्मद न्यायाधीश के रूप में अपने प्रमुखों में से एक, साद इब्न मुआदाह की नियुक्ति पर सहमत हुए। साद ने यहूदी कानून द्वारा निर्णय लिया कि जनजाति के सभी पुरुष सदस्यों को मार डाला जाना चाहिए और महिलाओं और बच्चों को राजद्रोह (Deutoronomy) के लिए पुराने नियम में कहा गया कानून था। Robert Mantran, L'expansion musulmane Presses Universitaires de France 1995, p. 86. यह कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए एक रक्षात्मक उपाय के रूप में कल्पना की गई थी कि मुस्लिम समुदाय मदीना में अपने निरंतर अस्तित्व के प्रति आश्वस्त हो सकता है। इतिहासकार रॉबर्ट मंतरन का तर्क है कि इस दृष्टिकोण से यह सफल रहा - इस बिंदु से, मुस्लिम अब मुख्य रूप से अस्तित्व के साथ चिंतित नहीं थे बल्कि विस्तार और विजय के साथ थे। प्रारंभिक इस्लाम का राजधानी शहर और ख़िलाफ़त thumb|250px|तुर्क काल के दौरान मदीना का पुराना चित्रण हिजरा के दस वर्षों बाद, मदीना ने उस आधार का गठन किया जहां से मुहम्मद और मुस्लिम सेना पर हमला किया गया था और हमला किया गया था, और यह यहां से था कि वह मक्का पर चढ़ गया , 629 ईस्वी / 8 एएच में युद्ध के बिना प्रवेश कर रहा था, सभी पार्टियां उनका नेतृत्व बाद में, हालांकि, मुक्का के मुहम्मद के आदिवासी संबंध और इस्लामी तीर्थयात्रा ( हज ) के लिए मक्का काबा के निरंतर महत्व के बावजूद, मुहम्मद मदीना लौट आए, जो कुछ वर्षों तक इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण शहर और प्रारंभिक खलीफा की राजधानी बना रहा। मोहम्मद की भविष्यवाणी और मृत्यु के सम्मान में याथ्रिब का नाम मदीना अल-नबी (" अरबी में पैगंबर शहर") से मदीना रखा गया था। (वैकल्पिक रूप से, लुसीन गुब्बे ने सुझाव दिया कि मदीना अरामाईक शब्द मेडिंटा से व्युत्पन्न भी हो सकती है, जिसे यहूदी निवासियों ने शहर के लिए उपयोग किया होगा। ) पहले तीन खलीफा अबू बकर , उमर और उथमान के तहत, मदीना तेजी से बढ़ रहे मुस्लिम साम्राज्य की राजधानी थीं। उथमान की अवधि के दौरान, तीसरे खलीफ, मिस्र से अरबों की एक पार्टी, अपने राजनीतिक निर्णयों से असंतुष्ट, 656 ईस्वी / 35 एएच में मदीना पर हमला किया और उसे अपने घर में हत्या कर दी। चौथी खलीफा अली ने मदीना से खलीफा की राजधानी इराक में कुफा में बदल दी । उसके बाद, मदीना का महत्व घट गया, राजनीतिक शक्ति की तुलना में धार्मिक महत्व का एक और स्थान बन गया। 1256 ईस्वी में मदीना को हररत राहत ज्वालामुखीय क्षेत्र से लावा प्रवाह से धमकी दी गई थी। Bosworth,C. Edmund: Historic Cities of the Islamic World, p. 385 – "Half-a-century later, in 654/1256, Medina was threatened by a volcanic eruption. After a series of earthquakes, a stream of lava appeared, but fortunately flowed to the east of the town and then northwards." खलीफा के विखंडन के बाद, शहर 13 वीं शताब्दी में काहिरा के मामलुक और आखिरकार, 1517 में, तुर्क साम्राज्य सहित विभिन्न शासकों के अधीन हो गया। सऊदी नियंत्रण के लिए प्रथम विश्व युद्ध 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, मदीना ने इतिहास में सबसे लंबी घेराबंदी में से एक देखा। मदीना तुर्की तुर्क साम्राज्य का एक शहर था । स्थानीय नियम हस्मिथ वंश के हाथों में शरीफ या मक्का के एमिर के रूप में था। फखरी पाशा मदीना के तुर्क गवर्नर थे। मक्का के शरीफ अली हस हुसैन और हस्मिथ वंश के नेता, कॉन्स्टेंटिनोपल ( इस्तांबुल ) में खलीफ के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे और ग्रेट ब्रिटेन के साथ थे । मदीना शहर शरीफ की सेनाओं से घिरा हुआ था, और फखरी पाशा ने 1916 से 10 जनवरी 1919 तक मदीना के घेराबंदी के दौरान दृढ़ता से आयोजित किया था। उन्होंने आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया और मॉर्ड्रोस के युद्ध के 72 दिनों बाद उसे गिरफ्तार कर दिया, जब तक कि उसे गिरफ्तार नहीं किया गया अपने ही पुरुष Peters, Francis (1994). Mecca: A Literary History of the Muslim Holy Land. PP376-377. Princeton University Press. लूट और विनाश की प्रत्याशा की प्रत्याशा में, फखरी पाशा ने गुप्त रूप से इस्तांबुल के मदीना के पवित्र अवशेषों को भेजा। Mohmed Reda Bhacker (1992). Trade and Empire in Muscat and Zanzibar: Roots of British Domination. Routledge Chapman & Hall. P63: Following the plunder of Medina in 1810 'when the Prophet's tomb was opened and its jewels and relics sold and distributed among the Wahhabi soldiery'. P122: the Ottoman Sultan Mahmud II was at last moved to act against such outrage. 1920 तक, अंग्रेजों ने मदीना को "मक्का से अधिक आत्म-समर्थन" के रूप में वर्णित किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, हस्मिथ साईंद हुसैन बिन अली को एक स्वतंत्र हेजाज का राजा घोषित किया गया था। इसके तुरंत बाद, 1924 में, उन्हें इब्न सौद ने पराजित किया, जिन्होंने मदीना और पूरे हेजाज़ को सऊदी अरब के आधुनिक साम्राज्य में एकीकृत किया। मदीना आज thumb|right|मदीना का आधुनिक शहर आज, मदीना ("मदीना" आधिकारिक तौर पर सऊदी दस्तावेजों में), मक्का के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी तीर्थ स्थल होने के अलावा, अल मदीना के पश्चिमी सऊदी अरब प्रांत की एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय राजधानी है। यद्यपि पुराने शहर का शहर का पवित्र केंद्र गैर-मुस्लिमों के लिए सीमा से बाहर है, मदीना अन्य अरब राष्ट्रीयताओं (मिस्र के लोग, जॉर्डनियों, लेबनानी, आदि) के मुस्लिम और गैर-मुस्लिम प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती संख्या में निवास कर रही है, दक्षिण एशियाई ( बांग्लादेशियों, भारतीयों, पाकिस्तानियों, आदि) और फिलिपिनो। भूगोल मदीना के आस-पास की मिट्टी में ज्यादातर बेसाल्ट है, जबकि पहाड़ियों, विशेष रूप से शहर के दक्षिण में ध्यान देने योग्य, ज्वालामुखीय राख हैं जो पैलेज़ोइक युग की पहली भूगर्भीय अवधि की तारीखें को बताती है। अल मदीना अल मुनव्वरा सऊदी अरब के राज्य में अल हिजाज़ क्षेत्र के पूर्वी भाग में स्थित है, जो 39º 36 'पूर्व और अक्षांश 24º 28' उत्तर पर है। मदीना राज्य के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में लाल सागर स्थित है, जो इससे केवल 250 किलोमीटर (160 मील) दूरी पर है। यह कई पहाड़ों से घिरा हुआ है: अल-हुजाज, या पश्चिम में तीर्थयात्रियों का पर्वत, उत्तर-पश्चिम में सला, अल-ईर या दक्षिण में कारवां पर्वत और उत्तर में उहद। मदीना अल-अकल, अल-अकिक और अल-हिमह के तीन घाटियों के जंक्शन पर एक फ्लैट पर्वत पठार पर स्थित है। इस कारण से, शुष्क पहाड़ी क्षेत्र के बीच बड़े हरे रंग के क्षेत्र हैं। शहर समुद्र तल से 620 मीटर (2,030 फीट) ऊपर है । इसके पश्चिमी और दक्षिणपश्चिम हिस्सों में कई ज्वालामुखीय चट्टान हैं। मदीना 39º36 'पूर्व और अक्षांश 24º28' उत्तर की बैठक के बिंदु पर स्थित है। इसमें लगभग 50 वर्ग किलोमीटर (19 वर्ग मील ) का क्षेत्र शामिल है। अल मदीना अल मुनवावरह एक रेगिस्तान ओएसिस है जो पहाड़ों और पत्थरों के इलाकों से घिरा हुआ है। इसका उल्लेख कई संदर्भों और स्रोतों में किया गया था। इसे प्राचीन मैनेन्द के लेखन में यथ्रिब के नाम से जाना जाता था, यह स्पष्ट सबूत है कि इस रेगिस्तान ओएसिस की जनसंख्या संरचना उत्तर अरबों और दक्षिण अरबों का एक संयोजन है, जो वहां बस गए और मसीह से हजारों वर्षों के दौरान अपनी सभ्यता का निर्माण किया। जलवायु मदीना एक गर्म रेगिस्तानी जलवायु है ( कोपेन जलवायु वर्गीकरण BWh )। गर्मियों में तापमान लगभग 43 डिग्री सेल्सियस (109 डिग्री फ़ारेनहाइट) के साथ लगभग 29 डिग्री सेल्सियस (84 डिग्री फारेनहाइट) के साथ तापमान गर्म रहता है। 45 डिग्री सेल्सियस (113 डिग्री फ़ारेनहाइट) से ऊपर तापमान जून और सितंबर के बीच असामान्य नहीं है। सर्दियों में हल्के होते हैं, दिन में 12 डिग्री सेल्सियस (54 डिग्री फारेनहाइट) से तापमान 25 डिग्री सेल्सियस (77 डिग्री फारेनहाइट) तक रहता है। बहुत कम वर्षा होती है, जो नवंबर और मई के बीच लगभग पूरी तरह से गिरती है। मदीना के लिए जलवायु डेटा (1985-2010) धर्म सऊदी अरब के अधिकांश शहरों के साथ, मदीना की अधिकांश आबादी भी इस्लाम धर्म का पालन करता है। विभिन्न विद्यालय (हनफी, मालिकी, शाफ़ई और हम्बली) सुन्नी बहुमत का गठन हैं, जबकि नखविला जैसे मदीना के आसपास और आसपास शिया अल्पसंख्यक महत्वपूर्ण है। शहर के केंद्र (केवल मुस्लिमों के लिए आरक्षित) के बाहर, गैर-मुस्लिम प्रवासी श्रमिकों और विदेशियों की बड़ी संख्या बसी हुई है। centre|thumb|790px|सूर्यास्त में मस्जिद नबवी अर्थव्यवस्था thumb|upright|Panel representing the Mosque of Medina. Found in İznik, Turkey, 18th century. Composite body, silicate coat, transparent glaze, underglaze painted. मदीना के मस्जिद का प्रतिनिधित्व पैनल। 18 वीं शताब्दी में तुर्की, इज़्निक में मिला। समग्र शरीर, सिलिकेट कोट, पारदर्शी शीशा लगाना, चित्रित अंडरग्लज़। ऐतिहासिक रूप से, मदीना बढ़ती तिथियों के लिए जाना जाता है । 1920 तक, क्षेत्र में 139 प्रकार की तिथियां उगाई जा रही थीं। मदीना भी कई प्रकार की सब्जियों को बढ़ाने के लिए जाना जाता था। मदीना नॉलेज इकोनॉमिक सिटी प्रोजेक्ट, ज्ञान आधारित उद्योगों पर केंद्रित एक शहर की योजना बनाई गई है और उम्मीद है कि विकास को बढ़ावा मिलेगा और मदीना में नौकरियों की संख्या में वृद्धि होगी। .Economic cities a rise यह शहर प्रिंस मोहम्मद बिन अब्दुलजाइज़ हवाई अड्डे द्वारा 1974 में खोला गया था। यह दिन में औसतन 20-25 उड़ानों को संभाला जाता है, हालांकि यह संख्या हज सीजन और स्कूल की छुट्टियों के दौरान तीन गुना है। प्रत्येक वर्ष तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या के साथ, कई होटल बनाए जा रहे हैं। शिक्षा विश्वविद्यालयों में शामिल हैं: मदीना के इस्लामी विश्वविद्यालय ताइबा विश्वविद्यालय परिवहन वायु thumb|प्रिंस मोहम्मद बिन अब्दुलजाइज एयरपोर्ट। मदीना को राजकुमार मोहम्मद बिन अब्दुलजाज हवाई अड्डे ( आईएटीए : एमईडी , आईसीएओ : OEMA ) द्वारा शहर के केंद्र से करीब 15 किलोमीटर (9.3 मील) की दूरी पर परोसा जाता है। यह हवाई अड्डा ज्यादातर घरेलू गंतव्यों को संभालता है और इसने काइरो, बहरीन, दोहा, दुबई, इस्तांबुल और कुवैत जैसे क्षेत्रीय स्थलों तक अंतर्राष्ट्रीय सेवाएं सीमित कर दी हैं। रेल हाई स्पीड इंटर-सिटी रेल लाइन ( हरमन हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट जिसे "वेस्टर्न रेलवे" भी कहा जाता है) सऊदी अरब में निर्माणाधीन है। यह 444 किलोमीटर (276 मील), मुस्लिम पवित्र शहर मदीना और मक्का राजा अब्दुल्ला इकोनॉमिक सिटी, रबीघ , जेद्दाह और राजा अब्दुलजाइज़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के माध्यम से लिंक करेगा। एक तीन-पंक्ति मेट्रो भी योजनाबद्ध है। सड़क मेडिना शहर से कनेक्ट होने वाली प्रमुख सड़कों देश के अन्य हिस्सों में हैं: राजमार्ग 15 (सऊदी अरब) - मदीना को मक्का , आभा , खमिस मुशैत और तबुक से जोड़ता है। राजमार्ग 60 (सऊदी अरब) - मदीना को बुरीदाह से जोड़ता है बस मदीना बस परिवहन निकटतम बस स्टेशन / स्टॉप और अल-मस्जिद एन-नाबावी के मार्ग का पता लगाता है अब मदीना में मदीना और उसके ऐतिहासिक स्थानों ("पैगंबर की मस्जिद") के आसपास भ्रमण करने के लिए "पर्यटक बस" नामक नई बस है। विरासत का विनाश thumb|17 वीं शताब्दी के सिरेमिक टाइल पर दिखाए गए अनुसार मदीना में अल हरम अल-नाबावी। यह भी देखें: सऊदी अरब में प्रारंभिक इस्लामी विरासत स्थलों का विनाश सऊदी अरब डर के महत्व के ऐतिहासिक या धार्मिक स्थानों को दिए गए किसी भी सम्मान के प्रति शत्रुतापूर्ण है कि यह शर्करा (मूर्तिपूजा) को जन्म दे सकता है। नतीजतन, सऊदी शासन के तहत, मदीना को अपनी भौतिक विरासत के काफी विनाश से पीड़ित होना पड़ा जिसमें हजारों साल से अधिक की इमारतों के नुकसान शामिल थे। आलोचकों ने इसे "सऊदी बर्बरता" के रूप में वर्णित किया है और दावा किया है कि पिछले 50 वर्षों में मदीना और मक्का में , मुहम्मद, उनके परिवार या साथी से जुड़ी 300 ऐतिहासिक साइटें खो गई हैं। Islamic heritage lost as Makkah modernises , Center for Islamic Pluralism मदीना में, ऐतिहासिक स्थलों के उदाहरणों को नष्ट कर दिया गया है जिनमें सलमान अल-फारसी मस्जिद, राजत राख-शम्स मस्जिद, जन्नतुल बाकी कब्रिस्तान और मोहम्मद का घर शामिल है। History of the Cemetery of Jannat al-Baqi retrieved 17 January 2011 यह भी देखें सऊदी अरब पोर्टल पोर्टल:इस्लाम हरमैन हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट हेजाज़ी एक्सेंट जेद्दा मस्जिद अल-क़िबलाटेन नाखाविला क़ुबा मस्जिद हिजाज़ मक्का मदीना का घेराबंदी मदीना में मुहम्मद के अभियान की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:सउदी अरब के शहर श्रेणी:मदीना प्रान्त श्रेणी:इस्लामी तीर्थ स्थल
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