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हम होंगे कामयाब
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हम होंगे कामयाब ( का गिरिजा कुमार माथुर द्वारा किया गया हिंदी भावानुवाद) एक प्रतिरोध गीत है। यह गीत बीसवीं सदी में नागरिक अधिकार आंदोलन का प्रधान स्वर बना। इस गीत को आमतौर पर "I'll Overcome Some Day" ("आई विल ओवरकम सम डे") से काव्यावतरित माना जाता है, जो चार्ल्स अल्बर्ट टिंडले द्वारा गाया गया था और जिसे 1900 में पहली बार प्रकाशित किया गया था। सन्दर्भ Hum Honge Kamyab Lyrics श्रेणी:नागरिक अधिकार आंदोलन श्रेणी:देशभक्ति के गीत श्रेणी:आधार
दैनिक पूजा
https://hi.wikipedia.org/wiki/दैनिक_पूजा
दैनिक पूजा विधि जिसे नित्य पूजा भी कहा जाता है, सनातन या हिन्दू धर्म की कई उपासना पद्धतियों में से एक है। यह एक दैनिक कर्म है। विभिन्न देवताओं को प्रसन्न करने के लिये कई मन्त्र बताये गये हैं, पूजा के लिये तीन प्रकार के मंत्र बताये गये हैं - नाम मंत्र, पौराणिक मंत्र और वैदिक मंत्र । नाम मंत्र : जिसमें देवता के नाम के आगे प्रणव हो और पीछे नमः लगा हो। पौराणिक मंत्र : जो मंत्र पुराणों में वर्णित हैं। वैदिक मंत्र : जो मंत्र वेदों में वर्णित हैं। पूजा मुख्यतः छः (6) प्रकार के होते हैं - पञ्चोपचार - पांच (5) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। दशोपचार : दश (10) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। षोडशोपचार : सोलह (16) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। द्वात्रिंशोपचार : बत्तीस (32) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। चतुष्षष्टयोपचार : चौंसठ (64) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। एकोद्वात्रिंशोपचार : एक सौ बत्तीस (132) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। पूजा की रीति इस तरह है : पहले कोई भी देवता चुनें, जिनकी पूजा करनी है। फ़िर विधिवत निम्नलिखित नाम मन्त्रों (सभी संस्कृत में हैं) के साथ उनकी पूजा करें। मुख्य देवताओं की पूजा के नाम मंत्र इस प्रकार हैं :- विनायक : ॐ सिद्धि विनायकाय नमः । सरस्वती : ॐ सरस्वत्यै नमः । लक्ष्मी : ॐ महा लक्ष्म्यै नमः । काली : ॐ कालिकायै नमः। दुर्गा : ॐ दुर्गायै नमः । महाविष्णु : ॐ श्री विष्णवे नमः . or ॐ नमो नारायणाय । कृष्ण : ॐ श्री कृष्णाय नमः . or ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । राम : ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । नरसिंह : ॐ श्री नारसिंहाय नमः । शिव : ॐ शिवाय नमः या ॐ नमः शिवाय । सूर्य : ॐ सूर्याय नमः। हनुमान : ॐ हनुमते नमः। नवग्रह : ॐ सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः। नीचे लिखे मन्त्र गणेश के लिये हैं : दैनिक विनायक पूजा ध्यान श्लोक शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये .. षोडशोपचार पूजन ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि ॥ अथ अंग पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . पादौ पूजयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . उदरम् पूजयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . बाहुं पूजयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . हृदयं पूजयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . शिरः पूजयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अंग पूजां समर्पयामि ॥ अथ पत्र पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . आम्र पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकि पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . सेवन्तिका पत्रं समर्पयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पत्रं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पत्र पूजां समर्पयामि ॥ अथ पुष्प पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . जाजी पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकी पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . सेवन्तिका पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्प पूजां समर्पयामि ॥ नाम पूजा अगर सम्भव हो तो गणेश के 108 नाम जपें : ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ एक दन्ताय नमः ॥ ॐ कपिलाय नमः ॥ ॐ गज कर्णकाय नमः ॥ ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ धूम्र केतवे नमः ॥ ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ भालचन्द्राय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः ॥ ॐ स्कन्द पूर्वजाय नमः ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ॥ ॐ श्री महागणपतये नमः ॥ ॐ नाम पूजां समर्पयामि ॥ उत्तर पूजा ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि ॥ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिं समर्पयामि ॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च . तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ॥ प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि ॥ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ . निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥ प्रार्थनां समर्पयामि ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं . पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम ॥ क्षमापनं समर्पयामि ॥ विसर्जन पूजा ॐ यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ॥ सन्दर्भ श्रेणी:हिन्दू धर्म
हिन्दी
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दी
हिन्दी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिन्दी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है और भारत की एक राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में सह-आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी–फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया है। एथनोलॉग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। भारत की जनगणना २०११ में 57.1% भारतीय जनसंख्या हिन्दी जानती है जिसमें से 43.63% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में 14 करोड़ 10 लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, व्याकरण के आधार पर हिन्दी के समान है, एवं दोनों ही हिन्दुस्तानी भाषा की परस्पर-सुबोध्य रूप हैं। एक विशाल संख्या में लोग हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझते हैं। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की 14 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग 1 अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। कभी-कभी 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग नौ भारतीय राज्यों के सन्दर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिन्दी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर (२०२० से) उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिन्दी या इसकी मान्य बोलियों का उपयोग करने वाले लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है। फरवरी 2019 में अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।[ https://hindi.oneindia.com/news/india/the-abu-dhabi-judicial-department-acknowledged-hindi-language-as-official-language-492820.html अबू धाबी में हिन्दी अब न्यायपालिका की आधिकारिक भाषा, सुषमा स्वराज ने कहा शुक्रिया 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। हिन्दी, यूरोपीय भाषा-परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। एथ्नोलॉग (2022, 25वां संस्करण) की रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हिंदी को प्रथम और द्वितीय भाषा के रूप में बोलने वाले लोगों की संख्या के आधार पर हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। नामोत्पत्ति हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द 'सिन्धु' से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्धु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इण्डिका’ या लैटिन 'इण्डेया' या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही दूसरे रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफ़ुद्दीन यज्दी’ के ‘जफ़रनामा’(1424) में मिलता है। प्रमुख उर्दू लेखकों ने 19वीं सदी की सूचना तक अपनी भाषा को हिंदी या हिंदवी के रूप में संदर्भित करते रहे। प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का अवेस्ता में सजाति समकक्ष शब्द 'अहुर' था। अफ़गानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को विशेषण के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का' या 'हिन्द से'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इण्डिके', 'इण्डिका', लैटिन में 'इण्डेया' तथा अंग्रेजी में 'इण्डिया' बन गया। दूसरा एक भावना के मुत़ाबिक़, अरबी هندية हिन्दीया लफ़्ज़ के साधारण लैटिनी कृत रूप है इंडिया India. जैसे Hindiyyah (मूल अरबी)> Hindia साधारणीकृत >India लैटिनीकृत. अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में भारत (हिन्द) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़ुबान-ए-हिन्दी' पद का उपयोग हुवा है। भारत आने के बाद अरबी-फ़ारसी बोलने वालों ने 'ज़ुबान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी ज़ुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भाषायी उत्पत्ति और इतिहास हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक सहस्र वर्ष पुराना माना गया है। हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अन्तिम अवस्‍था 'अवहट्ठ से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं। हिंदी के विकास की यात्रा, हिंदी कैसे बनी भारत के हृदय की भाषा (२०१९) चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया। अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रान्तिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई॰ के आसपास इसकी स्वतन्त्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक सन्दर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ। अपभ्रंश के सम्बन्ध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न हैं। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परन्तु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है। प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गयी। अंग्रेजी काल में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय हिन्दी के विकास में एक नयी चेतना आयी। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी सहित अनेक नेताओं ने भारतीय एकता के लिये हिन्दी के विकास का समर्थन किया। काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रयासों से हिन्दी को एक नयी ऊँचाई मिली। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया। हिंदी भाषा का इतिहास और हिंदी भाषा का विकास शैलियाँ भाषाशास्त्र के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं : मानक हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे 'शुद्ध हिन्दी' भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी। दक्षिणी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं। रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था। उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है। हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद 343, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है। हिन्दी एवं उर्दू भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशतः संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, नस्तालिक लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर फ़ारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है। हालाँकि व्याकरणिक रूप से उर्दू और हिन्दी में कोई अन्तर नहीं है परन्तु कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अन्तर है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचनाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। उर्दू और हिन्दी खड़ीबोली की दो आधिकारिक शैलियाँ हैं। मानकीकरण स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :- हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण वर्तनी का मानकीकरण शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास यूनिकोड का विकास बोलियाँ हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परम्परा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतन्त्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के विरुद्ध भी उसका रचना संसार सचेत है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी। लिपि हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। शब्दावली हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः चार वर्ग हैं। तत्सम शब्द – ये वे शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध, दन्त, मुख। (परन्तु हिन्दी में आने पर ऐसे शब्दों से विसर्ग का लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिन्दी में केवल 'नाम' हो जाता है।Masica, p. 65) तद्भव शब्द – ये वे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे आग, दूध, दाँत, मुँह। देशज शब्द – देशज का अर्थ है 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। तो देशज शब्द का अर्थ हुआ जो न तो विदेशी भाषा का हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो न संस्कृत का हो, न संस्कृत-शब्द का अपभ्रंश हो। ऐसा शब्द किसी प्रदेश (क्षेत्र) के लोगों द्वारा बोल-चाल में य़ों ही बना लिया जाता है। जैसे खटिया, लुटिया। विदेशी शब्द – इसके अतिरिक्त हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द लगभग पूर्ण रूप से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हिन्दी" कहते हैं। हिन्दी स्वरविज्ञान देवनागरी लिपि में हिन्दी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं : स्वर ये स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ीबोली) के लिये दिये गये हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्राआईपीए उच्चारण"प्" के साथ उच्चारणISO समतुल्यअंग्रेज़ी समतुल्य अपa बीच का मध्य प्रसृत स्वर आपाā दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर इपिi ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर ईपीī दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर उपुu ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर ऊपूū दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर एपेe दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर ऐपैai दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर ओपोo दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर औपौau दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं : ऋ — इसका उच्चारण संस्कृत में /r̩/ था मगर आधुनिक हिन्दी में इसे /ɻɪ/ उच्चारित किया जाता है । अं — पंचम वर्ण - ङ्, ञ्, ण्, न्, म् का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार) अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चंद्र बिंदु) अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग) व्यंजन जब किसी स्वर प्रयोग ना हो तो वहाँ पर डिफ़ॉल्ट रूप से 'अ' स्वर माना जाता है। स्वर के ना होना व्यंजन के नीचे हलन्त्‌ या विराम लगाके दर्शाया जाता है। जैसे क्‌ /k/, ख्‌ /kʰ/, ग्‌ /g/ और घ्‌ /gʱ/। स्पर्श (प्लोसिव) अल्पप्राणअघोष महाप्राणअघोष अल्पप्राणघोष महाप्राणघोष नासिक्यकण्ठ्यक ख ग घ ङ तालव्यच छ ज झ ञ मूर्धन्यट ठ ड ढ ण दन्त्यत थ द ध न ओष्ठ्यप फ ब भ म स्पर्शरहित (नॉन-प्लोसिव)तालव्यमूर्धन्यदन्त्य/वर्त्स्यकण्ठोष्ठ्य/काकल्यअन्तस्थय र ल व ऊष्म/संघर्षीश ष स ह ध्यातव्य इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक जोरदार ठोकर मारती है। परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है। विदेशी ध्वनियाँ ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फ़ारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होती हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी देवनागरी वर्ण के नीचे बिन्दु (नुक़्ता) लगाकर लिखे जाते हैं। वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) उदाहरण वर्णन क़ () क़त्ल अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श ख़ () ख़ास अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी ग़ () ग़ैर घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी फ़ () फ़र्क अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी ज़ () ज़ालिम घोष वर्त्स्य संघर्षी व्याकरण अन्य सभी भारतीय भाषाओं की तरह हिन्दी में भी कर्ता-कर्म-क्रिया वाला वाक्यविन्यास है। हिन्दी में दो लिंग होते हैं — पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। नपुंसक वस्तुओं का लिंग भाषा परम्परानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होता है। क्रिया के रूप कर्ता के लिंग पर निर्भर करता है। हिन्दी में दो वचन होते हैं — एकवचन और बहुवचन। क्रिया वचन-से भी प्रभावित होती है। विशेषण विशेष्य-के पहले लगता है। +कारक दर्शानेवाले परसर्गकारकपरसर्गउदाहरणविवरणकर्ता—लड़काक्रिया का करनेवाला/वाली व्यक्ति या चीज़ Ergativeनेलड़के नेperfective aspect में सकर्मक क्रियाओं के लिए वाक्यों का विषय चिह्नित करता हैकर्मकोलड़के को प्रत्यक्ष वास्तु को चिह्नित करता है। सम्प्रदानप्रत्यक्ष वस्तु को चिह्नित करता है मगर वाक्य के विषय को भी दर्शा सकता है।Bhatt, Rajesh (2003). Experiencer subjects. Handout from MIT course “Structure of the Modern Indo-Aryan Languages”.dative subjects; dative subjectकरण सेलड़के सेक्रिया जिस वस्तु या जिस व्यक्ति के साथ की गयी है उसे चिह्नित करता है। अपादानदिखता है कि कोई चीज किसी दुसरे चीज से दूर मूवमेंट है। सम्बन्धका, की, केलड़के कादिखता है कि कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु/व्यक्ति की है। Inessiveमेंलड़के मेंदिखाता है कि कोई चीज किसी चीज के अन्दर है। Adessiveपे / परलड़के पेदिखता है कि कोई चीज किसी चीज के ऊपर (सतह पर) है। Terminativeतकलड़के तकदिखता है कि कोई चीज दूसरे चीज तक गयी है। Semblativeसालड़के साकिसी चीज की दूसरे चीज से समानता दिखाता है। +लिंग और वचन सूचककारक♂♀एकवचनबहुवचनएकवचनबहुवचनकर्ताका के कीपरोक्षके जनसांख्यिकी भारत की जनगणना २०११ में 57.1% भारतीय आबादी हिन्दी जानती है जिसमें से 43.63% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077; मॉरीशस में 6,85,170; दक्षिण अफ़्रीका में 8,90,292; यमन में 2,32,760; युगांडा में 1,47,000; सिंगापुर में 5000; नेपाल में 8 लाख; जर्मनी में 30,000 हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में उपयोग सम्पर्क भाषा भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्क भाषा कहा जाता है। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही हिन्दी पूरे भारत की सम्पर्क भाषा बनी हुई है।Goa and the rise of Hindi अपने सीमित रूप –प्रशासनिक भाषा के रूप – में हिन्दी व्यवहार में भिन्न भाषाभाषियों के बीच परस्पर सम्प्रेषण का माध्यम बनी हुई है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली (बॉलीवुड के कारण) देशभाषा हिन्दी है, यह राजभाषा भी है तथा सारे देश को जोड़ने वाली सम्पर्क भाषा भी। राजभाषा right|thumb|200px|हिन्दी संघ की राजभाषा है। इसके अलावा पीले रंग में दिखाये गये क्षेत्रों (राज्यों) की राजभाषा भी है। हिन्दी भारत की राजभाषा है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। राष्ट्रभाषा भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी बहुत से लोग हिन्दी को 'राष्ट्रभाषा' कहते आये हैं (उदाहरणतः, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे आदि) किन्तु भारतीय संविधान में 'राष्ट्रभाषा' का उल्लेख नहीं हुआ है और इस दृष्टि से हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहने का कोई अर्थ नहीं है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहने के एक हिमायती महात्मा गांधी भी थे, जिन्होंने 29 मार्च 1918 को इन्दौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। उन्होने तो यहाँ तक कहा था कि हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। आजाद हिन्द फौज का राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' भी "हिन्दुस्तानी" में था। उनका अभियान गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था, परन्तु सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तानी भाषा के संस्कृतकरण के पक्षधर नहीं थे, अतः शुभ सुख चैन को जनगणमन के ही धुन पर, बिना कठिन संस्कृत शब्दावली के बनाया गया था। पूर्वोत्तर भारत में पूर्वोत्तर भारत में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं जिनकी अपनी-अपनी भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इनमें बोड़ो, कछारी, जयन्तिया, कोच, त्रिपुरी, गारो, राभा, देउरी, दिमासा, रियांग, लालुंग, नागा, मिजो, त्रिपुरी, जामातिया, खासी, कार्बी, मिसिंग, निशी, आदी, आपातानी, इत्यादि प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर की भाषाओं में से केवल असमिया, बोड़ो और मणिपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला है। सभी राज्यों में हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकांश प्रवासी हिन्दी भाषियों द्वारा आपस में किया जाता है। पूर्वोत्तर में हिन्दी का औपचारिक रूप से प्रवेश वर्ष 1934 में हुआ, जब महात्मा गांधी अखिल भारतीय हरिजन सभा की स्थापना हेतु असम आये। उस समय गड़मूड़ (माजुली) के सत्राधिकार (वैष्णव धर्मगुरू) एवं स्वतन्त्रता सेनानी पीताम्बर देव गोस्वामी के आग्रह पर गांधी जी सन्तुष्ट होकर बाबा राघव दास को हिन्दी प्रचारक के रूप में असम भेजा। वर्ष 1938 में असम हिन्दी प्रचार समिति की स्थापना गुवाहाटी में हुई। यह समिति आगे चलकर असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनी। आम लोगों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार करने हेतु- प्रबोध, विशारद, प्रवीण, आदि परीक्षाओं का आयोजन इस समिति के द्वारा होता आ रहा है। पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी की स्थिति दिनों-दिन सबल होती जा रही है और यह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। आजकल अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिन्दी बोली जाने लगी है। हिन्दी का प्रचार-प्रसार तथा उसकी लोकप्रियता एवं व्यावहारिकता टी.वी. (धारावाहिक, विज्ञापन), सिनेमा, आकाशवाणी, पत्रकारिता, विद्यालय, महाविद्यालय तथा उच्च शिक्षा में हिन्दी भाषा के प्रयोग द्वारा बढ़ रही है। भारत के बाहर सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में 'सैंसस ऑफ़ इण्डिया' का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है। विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिन्दी में विद्यमान हैं।हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य (डा. करुणाशंकर उपाध्याय) बीसवीं सदी के अन्तिम दो दशकों में हिन्दी का अन्तरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। हिन्दी एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिम्बित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की माँग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केन्द्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ़-एम' सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दिसम्बर 2016 में विश्व आर्थिक मंच ने 10 सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी एक है। इसी प्रकार 'कोर लैंग्वेजेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं'[http://corelanguages.com/top-ten-important-languages/ Top Ten Most Important Languages में हिन्दी को स्थान दिया था। के-इण्टरनेशनल ने वर्ष 2017 के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिया है। हिन्दी का एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से 11 फरवरी 2008 को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना आरम्भ किया है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त 2018 से संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन आरम्भ किया है। डिजिटिकरण और कम्प्यूटर क्रान्ति कम्प्यूटर और इण्टरनेट ने पिछले वर्षों में विश्व में सूचना क्रान्ति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नहीं रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिसके कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नहीं कर सकता। किन्तु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिन्दी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है। हिन्दी की इण्टरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिन्दी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है। फरवरी 2018 में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आयी कि इण्टरनेट की दुनिया में हिन्दी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यूथ4वर्क की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट ने इस आशा को सही साबित किया है कि जैसे-जैसे इण्टरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा, हिन्दी और भारतीय भाषाओं की दुनिया का विस्तार होता जाएगा। इस समय हिन्दी में सजाल (वेबसाइट), चिट्ठे (ब्लॉग), विपत्र (ईमेल), गपशप (चैट), खोज (वेब-सर्च), सरल मोबाइल सन्देश (एसएमएस) तथा अन्य हिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन (कम्प्यूटिंग) के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों में इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें। शब्दनगरी जैसी नई सेवाओं का प्रयोग करके लोग अच्छे हिन्दी साहित्य का लाभ अब इण्टरनेट पर भी उठा सकते हैं। जनसंचार मुम्बई में स्थित "बॉलीवुड" हिन्दी फ़िल्म उद्योग पर भारत के करोड़ो लोगों की धड़कनें टिकी रहती हैं। हर चलचित्र में कई गाने होते हैं। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बइया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में उपयुक्त होती हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। अधिकतर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं। अब मोबाइल कम्पनियाँ ऐसे हैंडसेट बना रही हैं जो हिन्दी और भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हिन्दी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हॉलीवुड की फिल्में हिन्दी में डब हो रही हैं और हिन्दी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं। हिन्दी, विज्ञापन उद्योग की पसन्दीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टेण्ट आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। हिन्दी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। फेसबुक और व्हाट्सएप हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। सोशल मीडिया ने हिन्दी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और कई जनान्दोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है। सितम्बर 2018 में प्रकाशित हुई एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार हिन्दी में ट्वीट करना अत्यन्त लोकप्रिय हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गये 15 सन्देशों में से 11 हिन्दी के थे। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक कम्पनियाँ अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं।How online vernacular market is becoming the next big battle ground for tech cos (मार्च २०१८) इन्हें भी देखें हिन्दी साहित्य का इतिहास हिन्दी व्याकरण भारत की भाषाएँ हिंग्लिश हिन्दको भाषा फिजी हिन्दी हिन्दी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्दी भाषियों की संख्या के आधार पर भारत के राज्यों की सूची हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी अन्तरजाल पर हिन्दी सामग्री - क्या कहाँ है? हिन्दी विक्षनरी हिन्दी विकिकोट हिन्दी विकिपुस्तक हिन्दी विकिस्रोत - हिन्दी के कापीराइट-मुक्त पुस्तकों का संग्रह </div> सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हिन्दी पर महापुरुषों के विचार हिन्दी फ़्रेजबुक दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रहे हिंदी बोलने वाले, देश के 44 फीसदी लोगों की बनी भाषा (२०११ जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार) हिन्दी श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ श्रेणी:विश्व की प्रमुख भाषाएं श्रेणी:भारत की भाषाएँ
फ़ारसी भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/फ़ारसी_भाषा
फ़ारसी (), एक भाषा है जो ईरान, ताजिकिस्तान, अफ़गानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है। यह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान की राजभाषा है और इसे ७.५ करोड़ लोग बोलते हैं। भाषाई परिवार के लिहाज़ से यह हिन्द यूरोपीय परिवार की हिन्द ईरानी (इंडो ईरानियन) शाखा की ईरानी उपशाखा का सदस्य है और हिन्दी की तरह इसमें क्रिया वाक्य के अंत में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क़ाफ़ी मिलती-जुलती है और उर्दू (और हिन्दी) में इसके कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। ये अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग दरबारी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार में प्रयुक्त होने के कारण ही अफ़गानिस्तान में इस दरी कहा जाता है। वर्गीकरण इसे हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा की ईरानी भाषाओं की उपशाखा के पश्चिमी विभाग में वर्गीकृत किया जाता है। हालाँकि भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी को ग़लती से अरबी भाषा के समीप समझा जाता है, भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह अरबी से बहुत भिन्न और संस्कृत के बहुत समीप है। संस्कृत और फ़ारसी में कई हज़ारों मिलते-जुलते सजातीय शब्द मिलते हैं जो दोनों भाषाओँ की सांझी धरोहर हैं, जैसे की सप्ताह/हफ़्ता, नर/नर (पुरुष), दूर/दूर, हस्त/दस्त (हाथ), शत/सद (सौ), आप/आब (पानी), हर/ज़र (फ़ारसी में पीला-सुनहरा, संस्कृत में पीला-हरा), मय/मद/मधु (शराब/शहद), अस्ति/अस्त (है), रोचन/रोशन (चमकीला), एक/येक, कपि/कपि (वानर), दन्त/दन्द (दाँत), मातृ/मादर, पितृ/पिदर, भ्रातृ/बिरादर (भाई), दुहितृ/दुख़्तर (बेटी), वंश/बच/बच्चा, शुकर/ख़ूक (सूअर), अश्व/अस्ब (घोड़ा), गौ/गऊ (गाय), जन/जान (संस्कृत में व्यक्ति/जीव, फ़ारसी में जीवन), भूत/बूद (था, अतीत), ददामि/दादन (देना), युवन/जवान, नव/नव (नया) और सम/हम (बराबर)।The eastern origin of the Celtic nations proved by a comparison of their dialects with the Sanskrit, Greek, Latin and Teutonic languages , James Cowles PrichardAryans and British India , Thomas R. Trautmann, Yoda Press, 2004, ISBN 978-81-902272-1-6, ... that Persian is closely related to Sanskrit, and that it is not closely related to Arabic, loanwords apart. Having twice read Firdausi, whose Shahnameh is almost devoid of Arabic words, he tells us, he finds that hundreds of Persian nounds are pure Sanskrit with no more change than one finds in the modern languages of India, that very many Persian imperatives are the roots of Sanskrit verbs, and that even the moods and tenses of the Persian verb substantive are deducible from the Sanskrit by an easy and clear analogy ... नाम भारत में इसे फ़ारसी कहा जाता है। इसका मूल नाम 'पारसी' है पर अरब लोग, जिन्होंने फ़ारस पर सातवीं सदी के अंत तक अधिकार कर लिया था, की वर्णमाला में 'प' अक्षर नहीं होता है। इस कारण से वे इसे फ़ारसी कहते थे और यही नाम भारत में भी प्रयुक्त होता है। यूनानी लोग फार्स को पर्सिया (पुरानी ग्रीक में पर्सिस, Πέρσις) कहते थे। जिसके कारण यहाँ की भाषा पर्सियन (Persian) कहलाई। यही नाम अंग्रेज़ी सहित अन्य यूरोपीय भाषाओं में प्रयुक्त होता है। इतिहास फ़ारसी एक ईरानी भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की हिंद-ईरानी शाखा में आती है। सामान्यत: ईरानी भाषा तीन अवधियों से जानी जाती है। आमतौर पर इस रूप में इसे ऐसे संदर्भित किया जाता हैं: पुरानी, मध्य और नई (आधुनिक) अवधि। ये ईरानी इतिहास में तीन युगों के अनुरूप हैं; पुराना युग हख़ामनी साम्राज्य से कुछ पहले का समय हैं, हख़ामनी युग और हख़ामनी के कुछ बाद वाला समय (400-300 ईसा पूर्व) है, मध्य युग सासानी युग और सासानी के कुछ बाद वाला समय और नया युग वर्तमान दिन तक की अवधि है। vi(2). Documentation. उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, फ़ारसी भाषा "केवल अकेली ईरानी भाषा" है, जिसके लिए इसके तीनों चरणों के नज़दीकी भाषाविज्ञान-संबंधी रिश्ते स्थापित किए गए हैं तो पुरानी, मध्य और नई फ़ारसी एक ही फारसी भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं, कि नई फ़ारसी मध्य और पुरानी फारसी की एक प्रत्यक्ष वंशज है। दक्षिण एशिया में प्रयोग फ़ारसी भाषा ने पश्चिम एशिया, यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिण एशियाई क्षेत्र की कई आधुनिक भाषाओं के निर्माण को प्रभावित किया। दक्षिण एशिया में तुर्कों-फ़ारसी गज़नवी विजय के बाद, फारसी सबसे पहले इस क्षेत्र में समाविष्ट की गई थी। ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना के पाँच सदियों पूर्व तक, फारसी व्यापक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में एक दूसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। इसने उपमहाद्वीप पर कई मुस्लिम दरबारों में संस्कृति और शिक्षा की भाषा के रूप में प्रमुखता ले ली। हालाँकि 1843 के शुरू से, अंग्रेजी और हिंदुस्तानी ने धीरे धीरे उपमहाद्वीप पर महत्व में फ़ारसी को बदल दिया। फ़ारसी के ऐतिहासिक प्रभाव के साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप की कुछ भाषाओं पर इसके प्रभाव की सीमा में देखा जा सकता है। फारसी से उधार लिए शब्द अभी भी आमतौर पर कुछ हिंद आर्य भाषाओं में उपयोग किए जाते है। कुछ मुख्य दक्षिण एशियाई साम्राज्य जिनकी राजभाषा फ़ारसी थी:- मोमिन राजवंश, ग़ज़नवी साम्राज्य, ग़ोरी राजवंश, गुलाम वंश, ख़िलजी वंश, तुग़लक़ वंश, सय्यद वंश, लोदी वंश, सूरी साम्राज्य, मुगल साम्राज्य तथा बहमनी सल्तनत। किस्में पश्चिमी फ़ारसी (फारसी, ईरानी फ़ारसी, या फारसी) ईरान में बोली जाती हैं और इराक और फारस की खाड़ी राज्यों में अल्पसंख्यकों द्वारा। पूर्वी फ़ारसी (दरी फ़ारसी, अफगान फ़ारसी, या दरी) अफगानिस्तान में बोली जाती है। ताजिकी (ताजिक फारसी) ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान में बोली जाती है। यह सिरिलिक लिपि में लिखी जाती है। निम्नलिखित फारसी से संबंधित कुछ भाषाएं हैं: लूरी, (या लोरी), दक्षिण पश्चिमी ईरान के प्रांतों में मुख्य रूप से बोली जाती हैं जैसे, लूरिस्तान, कोगिलुये और बोयर-अख़्मद प्रांत, फ़ार्स प्रांत के कुछ पश्चिमी भाग और ख़ूज़स्तान के कुछ भाग। लारी, (दक्षिणी ईरान में) टाट, अजरबैजान, रूस, आदि के कुछ हिस्सों में बोली जाती हैं। स्वर विज्ञान ईरानी फ़ारसी में छह स्वर और बाईस व्यंजन है। व्याकरण फारसी एक अभिश्लेषणी भाषा हैं। फ़ारसी के पदविज्ञान में प्रत्यय प्रबल हैं, हालाँकि उपसर्गों की एक छोटी संख्या है। क्रिया काल और पहलू व्यक्त कर सकते हैं और वे व्यक्ति और संख्या में विषय के साथ सहमत हैं। फारसी में कोई व्याकरणिक लिंग नहीं है और न ही सर्वनाम प्राकृतिक लिंग के लिए चिह्नित हैं। शब्द संग्रह फ़ारसी ने अरबी भाषा पर कम प्रभाव डाला है और साथ ही मेसोपोटामिया की अन्य भाषाओं पर और इसकी मूल शब्दावली मध्य फारसी मूल की है, पर नई फारसी में अरबी शाब्दिक मदों की काफी मात्रा है, जिनका फ़ारसीकरण हो गया है। अरबी मूल के फारसी शब्दों में विशेष रूप से इस्लामी शब्द शामिल हैं। अन्य ईरानी, तुर्की और भारतीय भाषाओं में अरबी शब्दावली आम तौर पर नई फ़ारसी से नकल की गई है। वर्तनी आधुनिक ईरानी फारसी और दारी में पाठ विशाल बहुमत से अरबी लिपि के साथ लिखा जाता है। ताजिक, जो मध्य एशिया की रूसी और तुर्की भाषाओं से प्रभावित है, को कुछ भाषाविदों द्वारा फारसी बोली माना जाता है, जिसे ताजिकिस्तान में सिरिलिक लिपि के साथ लिखा जाता है। इन्हें भी देखें फारसी का साहित्य अवस्ताई भाषा पहलवी भाषा पहलवी लिपि बाहरी कड़ियाँ फ़ारसी सीखें सन्दर्भ श्रेणी:फ़ारसी श्रेणी:ईरानी भाषाएँ श्रेणी:ईरान की भाषाएँ श्रेणी:विश्व की प्रमुख भाषाएं
हिन्दी भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दी_भाषा
REDIRECT हिन्दी
देवनागरी
https://hi.wikipedia.org/wiki/देवनागरी
right|thumb|300px|देवनागरी में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयुक्त प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित बाएँ से दाएँ आबूगीदा है। यह प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित किया गया था और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में था। देवनागरी लिपि, जिसमें १४ स्वर और ३३ व्यञ्जन सहित ४७ प्राथमिक वर्ण हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए किया जा रहा है। इस लिपि की शब्दावली भाषा के उच्चारण को दर्शाती है। रोमन लिपि के विपरीत, इस लिपि में अक्षर केस की कोई अवधारणा नहीं है। यह बाएँ से दाएँ लिखा गया है, चौकोर रूपरेखा के भीतर सममित गोल आकृतियों के लिए एक दृढ़ प्राथमिकता है, और एक क्षैतिज रेखा द्वारा पहचाना जा सकता है, जिसे शिरोरेखा के रूप में जाना जाता है, जो पूर्ण अक्षरों के शीर्ष के साथ चलती है। एक सरसरी दृष्टि में, देवनागरी लिपि अन्य भारतीय लिपियों जैसे पूर्वी नागरी लिपि या गुरमुखी लिपि से अलग दिखाई देती है, लेकिन एक निकटतम अवलोकन से पता चलता है कि वे कोण और संरचनात्मक जोर को छोड़कर बहुत समान हैं। परिचय अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है) जिसे शिरोरेखा कहते हैं। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल अध्वव लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है। भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या IAST । इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोड़कर)। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है। देवनागरी' शब्द की व्युत्पत्ति देवनागरी या नागरी नाम का प्रयोग "क्यों" प्रारम्भ हुआ और इसका व्युत्पत्तिपरक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर्णतः निश्चित नहीं है। (क) 'नागर' अपभ्रंश या गुजराती "नागर" ब्राह्मणों से उसका सम्बन्ध बताया गया है। पर दृढ़ प्रमाण के अभाव में यह मत सन्दिग्ध है। (ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम "नंदिनागरी" था। हो सकता है "नन्दिनागर" कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ सम्बन्ध रहा हो। (ग) यह भी हो सकता है कि "नागर" जन इसमें लिखा करते थे, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब "देवनागरी" भी कहा गया। (घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को "देवनागर" कहते थे। कालान्तर में नाम के प्रथमाक्षरों का उनसे बोध होने लगा और जिस लिपि में उनको स्थान मिला- वह 'देवनागरी' या 'नागरी' कही गई। इन सब पक्षों के मूल में कल्पना का प्राधान्य है, निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब्ध हैं। देवनागरी लिपि का उपयोग करने वाली भाषाएँ अवधी कनौजी कश्मीरी कांगड़ी किन्नौरी कुड़माली कुमाऊँनीकोंकणी कोया खानदेशी खालिङ खड़िया गढ़वाली गुर्जरीगुरुङ गोण्डी चम्बयाली चाम्लिङ चुराही चेपाङ भाषा छत्तिसगढ़ीछिन्ताङ जिरेल जुम्ली तिलुङ वारली वासवी वागडीवाम्बुले हिन्दी संस्कृत मराठी नेपाली https://scriptsource.org/cms/scripts/page.php?item_id=script_detail&uid=hh3a985d52 पहाड़ी भाषा में भी हम अधिकतम शब्द देवनागरी लिपी के नज़र आते हैं। इतिहास thumb| मुंबई के परेल नामक उपनगर में प्राप्त प्राचीन देवनागरी शिलालेख। यह सन् ११०९ ई में बनाया गया था। right|thumb|200px|वाराणसी में देवनागरी लिपि में लिखे विज्ञापन thumb| मुंबई के सार्वजनिक यातायात के टिकट पर देवनागरी thumb| मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि देवनागरी, भारत, नेपाल, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया की लिपियों के ब्राह्मी लिपि परिवार का हिस्सा है।George Cardona and Danesh Jain (2003), The Indo-Aryan Languages, Routledge, , pages 68–69 गुजरात से कुछ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनकी भाषा संस्कृत है और लिपि नागरी लिपि। ये अभिलेख पहली ईसवी से लेकर चौथी ईसवी के कालखण्ड के हैं।Gazetteer of the Bombay Presidency at Google Books, Rudradaman’s inscription from 1st through 4th century CE found in Gujarat, India, Stanford University Archives, pages 30–45, particularly Devanagari inscription on Jayadaman's coins pages 33–34 ध्यातव्य है कि नागरी लिपि, देवनागरी से बहुत निकट है और देवनागरी का पूर्वरूप है। अतः ये अभिलेख इस बात के साक्ष्य हैं कि प्रथम शताब्दी में भी भारत में देवनागरी का उपयोग आरम्भ हो चुका था। नागरी, सिद्धम और शारदा तीनों ही ब्राह्मी की वंशज हैं।Steven Roger Fischer (2004), A history of writing , Reaktion Books, ISBN 978-1-86189-167-9, "(p. 110) "... an early branch of this, as of the fourth century CE, was the Gupta script, Brahmi's first main daughter. [...] The Gupta alphabet became the ancestor of most Indic scripts (usually through later Devanagari). [...] Beginning around AD ६००, Gupta inspired the important Nagari, Sarada, Tibetan and Pāḷi scripts. Nagari, of India's northwest, first appeared around AD ६३३. Once fully developed in the eleventh century, Nagari had become Devanagari, or "heavenly Nagari", since it was now the main vehicle, out of several, for Sanskrit literature."" रुद्रदमन के शिलालेखों का समय प्रथम शताब्दी का समय है और इसकी लिपि की देवनागरी से निकटता पहचानी जा सकती हैं। जबकि देवनागरी का जो वर्तमान मानक स्वरूप है, वैसी देवनागरी का उपयोग १००० ई के पहले आरम्भ हो चुका था। Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, pages 40–42Krishna Chandra Sagar (1993), Foreign Influence on Ancient India, South Asia Books, ISBN 978-8172110284, page 137 मध्यकाल के शिलालेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नागरी से सम्बन्धित लिपियों का बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा था। कहीं-कहीं स्थानीय लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं। उदाहरण के लिए, ७वीं-८वीं शताब्दी के पट्टदकल्लु (मन्दिर परिसर) (कर्नाटक) के स्तम्भ पर सिद्धमात्रिका और तेलुगु-कन्नड लिपि के आरम्भिक रूप - दोनों में ही सूचना लिखी हुई है। कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के ज्वालामुखी अभिलेख में शारदा और देवनागरी दोनों में लिखा हुआ है। Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, page 71 ७वीं शताब्दी तक देवनागरी का नियमित रूप से उपयोग होना आरम्भ हो गया था और लगभग १००० ई तक देवनागरी का पूर्ण विकास हो गया था।Kathleen Kuiper (2010), The Culture of India, New York: The Rosen Publishing Group, ISBN 978-1615301492, page 83Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, pages 40–42 डॉ॰ द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार सर्वप्रथम देवनागरी लिपि का प्रयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट (७००-८०० ई.) के शिलालेख में मिलता है। आठवीं शताब्दी में चित्रकूट, नवीं में बड़ौदा के ध्रुवराज भी अपने राज्यादेशों में इस लिपि का उपयोग किया हैं। ७५८ ई. का राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामगढ़ ताम्रपट मिलता है जिस पर देवनागरी अंकित है। शिलाहारवंश के गंडारादित्य प्रथम के उत्कीर्ण लेख की लिपि देवनागरी है। इसका समय बारहवीं शताब्दी हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के चोलराजा राजेन्द्र के सिक्के मिले हैं जिन पर देवनागरी लिपि अंकित है। राष्ट्रकूट राजा इंद्रराज (दसवीं शताब्दी) के लेख में भी देवनागरी का व्यवहार किया है। प्रतिहार राजा महेंद्रपाल (८९१-९०७) का दानपत्र भी देवनागरी लिपि में है। कनिंघम की पुस्तक में सबसे प्राचीन मुसलमानों सिक्के के रूप में महमूद गजनवी द्वारा चलाये गए चांदी के सिक्के का वर्णन है जिस पर देवनागरी लिपि में संस्कृत अंकित है। मुहम्मद विनसाम (११९२-१२०५) के सिक्कों पर लक्ष्मी की मूर्ति के साथ देवनागरी लिपि का व्यवहार हुआ है। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (१२१०-१२३५) के सिक्कों पर भी देवनागरी अंकित है। सानुद्दीन फिरोजशाह प्रथम, जलालुद्दीन रज़िया, बहराम शाह, अलाऊद्दीन मसूदशाह, नासिरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दीन, गयासुद्दीन बलवन, मुईजुद्दीन कैकूबाद, जलालुद्दीन हीरो सानी, अलाउद्दीन महमद शाह आदि ने अपने सिक्कों पर देवनागरी अक्षर अंकित किये हैं। अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में ‘राम‘ सिया का नाम अंकित है। गयासुद्दीन तुग़लक़, शेरशाह सूरी, इस्लाम शाह, मुहम्मद आदिलशाह, गयासुद्दीन इब्ज, ग्यासुद्दीन सानी आदि ने भी इसी परम्परा का पालन किया। भाषाविज्ञान की दृष्टि से देवनागरी भाषावैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि मानी जाती है। लिपि के विकाससोपानों की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के अनंतर "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास माना जाता है। पाश्चात्य और अनेक भारतीय भाषाविज्ञानविज्ञों के मत से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद अल्फाबेटिक (वर्णात्मक) अवस्था का विकास हुआ। सबसे विकसित अवस्था मानी गई है ध्वन्यात्मक(फोनेटिक) लिपि की। "देवनागरी" को अक्षरात्मक इसलिए कहा जाता है कि इसके वर्ण- अक्षर (सिलेबिल) हैं- स्वर भी और व्यंजन भी। "क", "ख" आदि व्यंजन सस्वर हैं- अकारयुक्त हैं। वे केवल ध्वनियाँ नहीं हैं अपितु सस्वर अक्षर हैं। अत: ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। परंतु यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है- उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई.पू.) ने यह स्पष्ट बता दिया है कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। इस दृष्टि से विचार करते हुए कहा जा सकता है कि इस लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं। Writen By:- Dev Chouhan देवनागरी वर्णमाला देवनागरी की वर्णमाला में १२ स्वर और ३४ व्यञ्जन हैं। शून्य या एक या अधिक व्यञ्जनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। स्वर निम्नलिखित स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली) के लिये दिए गए हैं। संस्कृत में इनके उच्चारण थोड़े अलग होते हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्रा IPA उच्चारण"प्" के साथ उच्चारणIAST समतुल्य हिन्दी में वर्णन अपa बीच का मध्य प्रसृत स्वर आपाā दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर इपिi ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर ईपीī दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर उपुu ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर ऊपूū दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर एपेe दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर ऐपैai दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर ओपोo दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर औपौau दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ–इ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ऋ — आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह ॠ — केवल संस्कृत में ऌ — केवल संस्कृत में ॡ — केवल संस्कृत में अं — ङ् , ञ् , ण्, न्, म् के लिये या स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अँ — स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिये ऍ और ऑ — इनका उपयोग मराठी और कभी–कभी हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का निकटतम उच्चारण तथा लेखन करने के लिए किया जाता है। व्यञ्जन जब किसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' (अर्थात श्वा का स्वर) माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त्‌ अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे कि क्‌ ख्‌ ग्‌ घ्‌। जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यञ्जन कहते है। दूसरे शब्दो में- व्यञ्जन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है। स्पर्श (Plosives)अल्पप्राणअघोषमहाप्राणअघोषअल्पप्राणघोषमहाप्राणघोषनासिक्यकण्ठ्यक ख ग घ ङ तालव्यच छ ज झ ञ मूर्धन्यट ठ ड ढ ण दन्त्यत थ द ध न ओष्ठ्यप फ ब भ म स्पर्शरहित (Non-Plosives)तालव्यमूर्धन्यदन्त्य/वर्त्स्यकण्ठोष्ठ्य/काकल्यअन्तस्थय र ल व ऊष्म/संघर्षीश ष स ह नोट करें - इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्श्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यञ्जन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी, वैदिक संस्कृत, कोंकणी, मेवाड़ी, हरयाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खडी बोली इत्यादि में इसका प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था: जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। यदि यह 'ट्, ठ्, ड्, ढ्' ध्वनियों से पहले न आए तो इसका उच्चारण आजकल हिंदी में तालव्य (श) होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण ज़्यादातर ड़ँ की तरह होता है, यानि कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। पर संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह बिना ठोकर मारे होता था, अन्तर केवल इतना कि जीभ ण के समय मुँह की छत को छूती है। नुक़्ता वाले व्यञ्जन हिन्दी भाषा में मुख्यतः अरबी और फ़ारसी भाषाओं से आये शब्दों को देवनागरी में लिखने के लिये कुछ वर्णों के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगे वर्णों का प्रयोग किया जाता है (जैसे क़, ज़ आदि)। किन्तु हिन्दी में भी अधिकांश लोग नुक्तों का प्रयोग नहीं करते। इसके अलावा संस्कृत, मराठी, नेपाली एवं अन्य भाषाओं को देवनागरी में लिखने में भी नुक्तों का प्रयोग नहीं किया जाता है। वर्णाक्षर (अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला उच्चारण) उदाहरण हिन्दी में वर्णन अंग्रेज़ी में वर्णन अशुद्ध उच्चारणक़ (/q/) क़त्ल अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श Voiceless uvular stop   क (/k/)ख़ (/x or χ/) ख़रीद अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी Voiceless uvular or velar fricative ख (/kh/) ग़ (/ɣ or ʁ/) ग़ैर घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी Voiced uvular or velar fricative ग (/g/) ज़ (/z/) ज़िन्दगी घोष वर्त्स्य संघर्षी Voiced alveolar fricative ज (/dʒ/) झ़ (/ʒ/) अझ़दहा घोष तालव्य संघर्षी Voiced palatal fricative ज (/dʒ/) ड़ (/ ɽ /) पेड़ अल्पप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त Unaspirated retroflex flap   - ढ़ (/ɽh/) पढ़ना महाप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त Aspirated retroflex flap   - थ़ (/θ/) अथ़्रू अघोष दन्त्य संघर्षी Voiceless dental fricative थ (/t̪h/) द़ (/ð/) अद़ान घोष दन्त्य संघर्षी Voiced dental fricative द (/d̪/) फ़ (/f/) फ़र्क़ अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiceless labio-dental fricative फ (/ph/) ब़ (/v/) केलेब़ घोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiced labio-dental fricative ब (/b/) य़ (/yʰ/) फुलाय़ घोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiced labio-dental fricative य (/y/) थ़ का प्रयोग मुख्यतः पहाड़ी भाषाओँ में होता है जैसे की डोगरी (की उत्तरी उपभाषाओं) में "आँसू" के लिए शब्द है "अथ़्रू"। हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यञ्जन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिए गए हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं। असल में ये संस्कृत के साधारण ड और ढ के बदले हुए रूप हैं। विराम-चिह्न, वैदिक चिह्न आदि प्रतीकनामकार्य। डण्डा / खड़ी पाई / पूर्ण विराम वाक्य का अन्त बताने के लिए॥ दोहरा डण्डा॰ लाघव चिह्न   संक्षिप्तीकरण के लिये, जैसे मो॰ क॰ गाँधीॐ प्रणव , ओम हिन्दू धर्म का शुभ शब्दप॑ उदात्त उच्चारण बताने के लिए वैदिक संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में प्रयुक्तप॒ अनुदात्त उच्चारण बताने के लिए वैदिक संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में प्रयुक्त देवनागरी अङ्क देवनागरी अङ्क निम्न रूप में लिखे जाते हैं : ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ देवनागरी संयुक्ताक्षर देवनागरी लिपि में दो व्यञ्जन का संयुक्ताक्षर निम्न रूप में लिखा जाता है : <div lang="und-Deva"> ब्राह्मी परिवार की लिपियों में देवनागरी लिपि में सबसे अधिक संयुक्ताक्षर समर्थित हैं। डिजिटन उपकरणों पर छन्दस फॉण्ट देवनागरी में बहुत संयुक्ताक्षर समर्थन हैं। 250px|thumb| द् + ध् + र् + य संयुक्ताक्षर पुरानी देवनागरी पुराने समय में प्रयुक्त हुई जाने वाली देवनागरी के कुछ वर्ण आधुनिक देवनागरी से भिन्न हैं। आधुनिक देवनागरी पुरानी देवनागरी 15px 15px 15px 15px 15px 15px 15px 15px देवनागरी लिपि के गुण भारतीय भाषाओं के लिये वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता (५२ वर्ण, न बहुत अधिक न बहुत कम)। एक ध्वनि के लिये एक सांकेतिक चिह्न -- जैसा बोलें वैसा लिखें। लेखन और उच्चारण और में एकरुपता -- जैसा लिखें, वैसे पढ़े (वाचें)। एक सांकेतिक चिह्न द्वारा केवल एक ध्वनि का निरूपण -- जैसा लिखें वैसा पढ़ें। उपरोक्त दोनों गुणों के कारण ब्राह्मी लिपि का उपयोग करने वाली सभी भारतीय भाषाएँ 'स्पेलिंग की समस्या' से मुक्त हैं। स्वर और व्यंजन में तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-विन्यास - देवनागरी के वर्णों का क्रमविन्यास उनके उच्चारण के स्थान (ओष्ठ्य, दन्त्य, तालव्य, मूर्धन्य आदि) को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इसके अतिरिक्त वर्ण-क्रम के निर्धारण में भाषा-विज्ञान के कई अन्य पहलुओ का भी ध्यान रखा गया है। देवनागरी की वर्णमाला (वास्तव में, ब्राह्मी से उत्पन्न सभी लिपियों की वर्णमालाएँ) एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित है। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA) ने अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया। वर्णों का प्रत्याहार रूप में उपयोग : माहेश्वर सूत्र में देवनागरी वर्णों को एक विशिष्ट क्रम में सजाया गया है। इसमें से किसी वर्ण से आरम्भ करके किसी दूसरे वर्ण तक के वर्णसमूह को दो अक्षर का एक छोटा नाम दे दिया जाता है जिसे 'प्रत्याहार' कहते हैं। प्रत्याहार का प्रयोग करते हुए सन्धि आदि के नियम अत्यन्त सरल और संक्षिप्त ढंग से दिए गये हैं (जैसे, आद् गुणः) देवनागरी लिपि के वर्णों का उपयोग संख्याओं को निरूपित करने के लिये किया जाता रहा है। (देखिये कटपयादि, भूतसंख्या तथा आर्यभट्ट की संख्यापद्धति) मात्राओं की संख्या के आधार पर छन्दों का वर्गीकरण : यह भारतीय लिपियों की अद्भुत विशेषता है कि किसी पद्य के लिखित रूप से मात्राओं और उनके क्रम को गिनकर बताया जा सकता है कि कौन सा छन्द है। रोमन, अरबी एवं अन्य में यह गुण अप्राप्य है। लिपि चिह्नों के नाम और ध्वनि में कोई अन्तर नहीं (जैसे रोमन में अक्षर का नाम “बी” है और ध्वनि “ब” है) लेखन और मुद्रण में एकरूपता (रोमन, अरबी और फ़ारसी में हस्तलिखित और मुद्रित रूप अलग-अलग हैं) देवनागरी, 'स्माल लेटर" और 'कैपिटल लेटर' की अवैज्ञानिक व्यवस्था से मुक्त है। मात्राओं का प्रयोग thumb|600px|center|क के उपर विभिन्न मात्राएं लगाने के बाद का स्वरूप अर्ध-अक्षर के रूप की सुगमता : खड़ी पाई को हटाकर - दायें से बायें क्रम में लिखकर तथा अर्द्ध अक्षर को ऊपर तथा उसके नीचे पूर्ण अक्षर को लिखकर - ऊपर नीचे क्रम में संयुक्ताक्षर बनाने की दो प्रकार की रीति प्रचलित है। अन्य - बायें से दायें, शिरोरेखा, संयुक्ताक्षरों का प्रयोग, अधिकांश वर्णों में एक उर्ध्व-रेखा की प्रधानता, अनेक ध्वनियों को निरूपित करने की क्षमता आदि। भारतवर्ष के साहित्य में कुछ ऐसे रूप विकसित हुए हैं जो दायें-से-बायें अथवा बाये-से-दायें पढ़ने पर समान रहते हैं। उदाहरणस्वरूप केशवदास का एक सवैया लीजिये : मां सस मोह सजै बन बीन, नवीन बजै सह मोस समा। मार लतानि बनावति सारि, रिसाति वनाबनि ताल रमा ॥ मानव ही रहि मोरद मोद, दमोदर मोहि रही वनमा। माल बनी बल केसबदास, सदा बसकेल बनी बलमा ॥ इस सवैया की किसी भी पंक्ति को किसी ओर से भी पढिये, कोई अंतर नहीं पड़ेगा। सदा सील तुम सरद के दरस हर तरह खास। सखा हर तरह सरद के सर सम तुलसीदास॥ देवनागरी लिपि के दोष right|thumb|300px|लेकिन लगभग सभी भारतीय लिपियों में छोटी इ या छोटी ए (ऎ) की मात्रा व्यंजन के पहले ही लगती है। (१) कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकण, मुद्रण में कठिनाई। किन्तु आधुनिक प्रिन्टर तकनीक के लिए यह कोई समस्या नहीं है। (२) कुछ लोग शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक मानते हैं। (३) अनावश्यक वर्ण (ऋ, ॠ, लृ, ॡ, ष)— बहुत से लोग इनका शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते। (४) द्विरूप वर्ण (अ, ज्ञ, क्ष, त्र, छ, झ, ण, श) आदि को दो-दो प्रकार से लिखा जाता है। (५) समरूप वर्ण (ख में र+व का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)। (६) वर्णों के संयुक्त करने की व्यवस्था एकसमान नहीं है। (७) अनुस्वार एवं अनुनासिक के प्रयोग में एकरूपता का अभाव। (८) त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार–बार उठाना पड़ता है। (९) वर्णों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर अनेक लोगों को भ्रम की स्थिति। (११) इ की मात्रा (ि) का लेखन वर्ण के पहले, किन्तु उच्चारण वर्ण के बाद। देवनागरी पर महापुरुषों के विचार आचार्य विनोबा भावे संसार की अनेक लिपियों के जानकार थे। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि देवनागरी लिपि भारत ही नहीं, संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। अगर भारत की सब भाषाओं के लिए इसका व्यवहार चल पड़े तो सारे भारतीय एक दूसरे के बिल्कुल नजदीक आ जाएंगे। हिंदुस्तान की एकता में देवनागरी लिपि हिंदी से ही अधिक उपयोगी हो सकती है। अनन्त शयनम् अयंगार तो दक्षिण भारतीय भाषाओं के लिए भी देवनागरी की संभावना स्वीकार करते थे। सेठ गोविन्ददास इसे राष्ट्रीय लिपि घोषित करने के पक्ष में थे। (१) हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनोबा भावे (२) देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है। — सर विलियम जोन्स (३) मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है। — जान क्राइस्ट (४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी लिपि अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। — खुशवन्त सिंह (५) The Devanagri alphabet is a splendid monument of phonological accuracy, in the sciences of language. — मोहन लाल विद्यार्थी - Indian Culture Through the Ages, p. 61 (६) एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है। — एम.सी.छागला (७) प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्धियों में से एक उसकी विलक्षण वर्णमाला है जिसमें प्रथम स्वर आते हैं और फिर व्यंजन जो सभी उत्पत्ति क्रम के अनुसार अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किये गए हैं। इस वर्णमाला का अविचारित रूप से वर्गीकृत तथा अपर्याप्त रोमन वर्णमाला से, जो तीन हजार वर्षों से क्रमशः विकसित हो रही थी, पर्याप्त अंतर है। — ए एल बाशम, "द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद् भारत के लिये देवनागरी का महत्त्व बहुत से लोगों का विचार है कि भारत में अनेकों भाषाएँ होना कोई समस्या नहीं है जबकि उनकी लिपियाँ अलग-अलग होना बहुत बड़ी समस्या है। न्यायमूर्ति शारदा चरण मित्र (१८४८ - १९१७) ने भारत जैसे विशाल बहुभाषा-भाषी और बहुजातीय राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से ‘एक लिपि विस्तार परिषद‘ की स्थापना की थी और परिषद की ओर से १९०७ में ‘देवनागर‘ नामक मासिक पत्र निकाला था जो बीच में कुछ व्यवधान के बावजूद उनके जीवन पर्यन्त अर्थात्‌ सन्‌ १९१७ तक निकलता रहा। गांधीजी ने १९४० में गुजराती भाषा की एक पुस्तक को देवनागरी लिपि में छपवाया और इसका उद्देश्य बताया था कि मेरा सपना है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की लिपि देवनागरी हो। इस संस्करण को हिंदी में छापने के दो उद्देश्य हैं। मुख्य उद्देश्य यह है कि मैं जानना चाहता हूँ कि, गुजराती पढ़ने वालों को देवनागरी लिपि में पढ़ना कितना अच्छा लगता है। मैं जब दक्षिण अफ्रीका में था तब से मेरा स्वप्न है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की एक लिपि हो, और वह देवनागरी हो। पर यह अभी भी स्वप्न ही है। एक-लिपि के बारे में बातचीत तो खूब होती हैं, लेकिन वही ‘बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे’ वाली बात है। कौन पहल करे ! गुजराती कहेगा ‘हमारी लिपि तो बड़ी सुन्दर सलोनी आसान है, इसे कैसे छोडूंगा?’ बीच में अभी एक नया पक्ष और निकल के आया है, वह ये, कुछ लोग कहते हैं कि देवनागरी खुद ही अभी अधूरी है, कठिन है; मैं भी यह मानता हूँ कि इसमें सुधार होना चाहिए। लेकिन अगर हम हर चीज़ के बिलकुल ठीक हो जाने का इंतज़ार करते रहेंगे तो सब हाथ से जायेगा, न जग के रहोगे न जोगी बनोगे। अब हमें यह नहीं करना चाहिए। इसी आजमाइश के लिए हमने यह देवनागरी संस्करण निकाला है। अगर लोग यह (देवनागरी में गुजराती) पसंद करेंगे तो ‘नवजीवन पुस्तक’ और भाषाओं को भी देवनागरी में प्रकाशित करने का प्रयत्न करेगा। इस साहस के पीछे दूसरा उद्देश्य यह है कि हिंदी पढ़ने वाली जनता गुजराती पुस्तक देवनागरी लिपि में पढ़ सके। मेरा अभिप्राय यह है कि अगर देवनागरी लिपि में गुजराती किताब छपेगी तो भाषा को सीखने में आने वाली आधी दिक्कतें तो ऐसे ही कम हो जाएँगी। इस संस्करण को लोकप्रिय बनाने के लिए इसकी कीमत बहुत कम राखी गयी है, मुझे उम्मीद है कि इस साहस को गुजराती और हिंदी पढ़ने वाले सफल करेंगे। इसी प्रकार विनोबा भावे का विचार था कि- हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएँ देवनागरी में भी लिखी जाएं। सभी लिपियां चलें लेकिन साथ-साथ देवनागरी का भी प्रयोग किया जाये। विनोबा जी "नागरी ही" नहीं "नागरी भी" चाहते थे। उन्हीं की सद्प्रेरणा से 1975 में नागरी लिपि परिषद की स्थापना हुई। विश्वलिपि के रूप में देवनागरी बौद्ध संस्कृति से प्रभावित क्षेत्र नागरी के लिए नया नहीं है। चीन और जापान चित्रलिपि का व्यवहार करते हैं। इन चित्रों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण भाषा सीखने में बहुत कठिनाई होती है। देववाणी की वाहिका होने के नाते देवनागरी भारत की सीमाओं से बाहर निकलकर चीन और जापान के लिए भी समुचित विकल्प दे सकती है। भारतीय मूल के लोग संसार में जहां-जहां भी रहते हैं, वे देवनागरी से परिचय रखते हैं, विशेषकर मारीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो आदि के लोग। इस तरह देवनागरी लिपि न केवल भारत के अंदर सारे प्रांतवासियों को प्रेम-बंधन में बांधकर सीमोल्लंघन कर दक्षिण-पूर्व एशिया के पुराने वृहत्तर भारतीय परिवार को भी ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय‘ अनुप्राणित कर सकती है तथा विभिन्न देशों को एक अधिक सुचारू और वैज्ञानिक विकल्प प्रदान कर ‘विश्व नागरी‘ की पदवी का दावा इक्कीसवीं सदी में कर सकती है। उस पर प्रसार लिपिगत साम्राज्यवाद और शोषण का माध्यम न होकर सत्य, अहिंसा, त्याग, संयम जैसे उदात्त मानवमूल्यों का संवाहक होगा, असत्‌ से सत्‌, तमस्‌ से ज्योति तथा मृत्यु से अमरता की दिशा में।देवनागरी एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे ‘शिरोरेखा’ कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोङ्कणी, सिन्धी, कश्मीरी, हरियाणवी डोगरी, खस, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली भाषाएँ), तमाङ्ग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अङ्गिका, मगही, भोजपुरी, नागपुरी, मैथिली, सन्थाली, राजस्थानी बघेली आदि भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पञ्जाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। यह दक्षिण एशिया की १७० से अधिक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त हो रही है। लिपि-विहीन भाषाओं के लिये देवनागरी दुनिया की कई भाषाओं के लिये देवनागरी सबसे अच्छा विकल्प हो सकती है क्योंकि यह यह बोलने की पूरी आजादी देता है। दुनिया की और किसी भी लिपि में यह नहीं हो सकता है। इन्डोनेशिया, विएतनाम, अफ्रीका आदि के लिये तो यही सबसे सही रहेगा। अष्टाध्यायी को देखकर कोई भी समझ सकता है की दुनिया में इससे अच्छी कोई भी लिपि नहीं है। अग‍र दुनिया पक्षपातरहित हो तो देवनागरी ही दुनिया की सर्वमान्य लिपि होगी क्योंकि यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। अंग्रेजी भाषा में वर्तनी (स्पेलिंग) की विकराल समस्या के कारगर समाधान के लिये देवनागरी पर आधारित देवग्रीक लिपि प्रस्तावित की गयी है। देवनागरी लिपि में सुधार देवनागरी का विकास उस युग में हुआ था जब लेखन हाथ से किया जाता था और लेखन के लिए शिलाएँ, ताड़पत्र, चर्मपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र आदि का ही प्रयोग होता था। किन्तु लेखन प्रौद्योगिकी ने बहुत अधिक विकास किया और प्रिन्टिंग प्रेस, टाइपराइटर आदि से होते हुए वह कम्प्यूटर युग में पहुँच गयी है जहाँ बोलकर भी लिखना सम्भव हो गया है। जब प्रिंटिंग एवं टाइपिंग का युग आया तो देवनागरी के यंत्रीकरण में कुछ अतिरिक्त समस्याएँ सामने आयीं जो रोमन में नहीं थीं। उदाहरण के लिए रोमन टाइपराइटर में अपेक्षाकृत कम कुंजियों की आवश्यकता पड़ती थी। देवनागरी में संयुक्ताक्षर की अवधारणा होने से भी बहुत अधिक कुंजियों की आवश्यकता पड़ रही थी। ध्यातव्य है कि ये समस्याएँ केवल देवनागरी में नहीं थी बल्कि रोमन और सिरिलिक को छोड़कर लगभग सभी लिपियों में थी। चीनी और उस परिवार की अन्य लिपियों में तो यह समस्या अपने गम्भीरतम रूप में थी। इन सामयिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अनेक विद्वानों और मनीषियों ने देवनागरी के सरलीकरण और मानकीकरण पर विचार किया और अपने सुझाव दिए। इनमें से अनेक सुझावों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका या उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। कहने की आवश्यकता नहीं है कि कम्प्यूटर युग आने से (या प्रिंटिंग की नई तकनीकी आने से) देवनागरी से सम्बन्धित सारी समस्याएँ स्वयं समाप्त हों गयीं। भारत के स्वाधीनता आंदोलनों में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम बम्बई के महादेव गोविन्द रानडे ने एक लिपि सुधार समिति का गठन किया। तदनन्तर महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे ने सुधार योजना तैयार की। सन १९०४ में बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी पत्र में देवनागरी लिपि के सुधार की चर्चा की। प्रिणामस्वरूप देवनागरी के टाइपों की संख्या १९० निर्धारित की गयी और इन्हें 'केसरी टाइप' कहा गया। आगे चलकर सावरकर बंधुओं ने 'अ' की बारहखड़ी प्रयिग करने का सुझाव दिया ( अर्थात् 'ई' न लिखकर अ पर बड़ी ई की मात्रा लगायी जाय)। डॉ गोरख प्रसाद ने सुझाव दिया कि मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग से रखा जाय। डॉ. श्यामसुन्दर दास ने अनुस्वार के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये (पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग )। इसी प्रकार श्रीनिवास का सुझाव था कि महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे ऽ चिह्न लगाया जाय। १९४५ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय लिया गया।Hindi for Competitive Examinations, पृष्ठ ५१ से ५६ देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। १९३५ में हिंदी साहित्य सम्मेलन ने नागरी लिपि सुधार समितिNotes on the works of Script Reforms के माध्यम से 'अ' की बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार सुझाए। इसी प्रकार, १९४७ में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। देवनागरी लिपि के विकास हेतु भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास किये हैं। सन् १९६६ में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई और १९६७ में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया। १९८३ में ‘देवनागरी लिपि तथा हिन्दी की वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया। देवनागरी के सम्पादित्र व अन्य सॉफ्टवेयर इंटरनेट पर हिन्दी के साधन देखिये। देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण ITRANS (iTrans) निरूपण, देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। (Online Interface to iTrans) आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है। अक्षरमुख (लिपि परिवर्तक) कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo) यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है, क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन तथा अन्य डिजिटल युक्तियों पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है। संगणक कुंजीपटल पर देवनागरी center|600px|thumb|इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल पर देवनागरी वर्ण (Windows, Solaris, Java) Ram Narayan Ray देवनागरी यूनिकोड   0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 A B C D E F U+090x ऀ ँ ं ः ऄ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऌ ऍ ऎ ए U+091x ऐ ऑ ऒ ओ औ क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट U+092x ठ ड ढ ण त थ द ध न ऩ प फ ब भ म य U+093xर ऱ ल ळ ऴ व श ष स ह ऺ ऻ ़ ऽ ा ि U+094xी ु ू ृ ॄ ॅ ॆ े ै ॉ ॊ ो ौ ् ॎ ॏ U+095xॐ ॑ ॒ ॓ ॔ ॕ ॖ ॗ क़ख़ग़ज़ड़ढ़फ़य़ U+096xॠ ॡ ॢ ॣ । ॥ ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ U+097x॰ ॱ ॲ ॳ ॴ ॵ ॶ ॷ ॸ ॹ ॺ ॻ ॼ ॽ ॾ ॿ सन्दर्भ इन्हें भी देखें देवनागरी वर्णमाला देवनागरी का इतिहास देवनागरी यूनिकोड खण्ड नागरी प्रचारिणी सभा नागरी संगम पत्रिका नागरी एवं भारतीय भाषाएँ गौरीदत्त - देवनागरी के महान प्रचारक देवनागरी टंकण हिन्दी के साधन इंटरनेट पर हन्टेरियन लिप्यन्तरण इंस्क्रिप्ट इस्की (ISCII) ब्राह्मी लिपि ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ भारतीय लिपियाँ नन्दिनागरी पूर्वी नागरी लिपि भारतीय सङ्ख्या प्रणाली श्वा (Schwa) बाहरी कड़ियाँ ब्राह्मी-लिपि परिवार का वृक्ष - इसमें ब्राह्मी से उत्पन्न लिपियों की समय-रेखा का चित्र दिया हुआ है। पहलवी-ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न दक्षिण-पूर्व एशिया की लिपियों की समय-रेखा हर ढांचे में आसानी से ढल जाती है नागरी (डॉ॰ जुबैदा हाशिम मुल्ला ; 02 मई 2012) Unicode Entity Codes for the Devanāgarī Script https://web.archive.org/web/20030801223449/http://www.ancientscripts.com/devanagari.html https://web.archive.org/web/20140901145421/http://www.unicode.org/charts/PDF/U0900.pdf Language Independent Speech Compression using Devanagari Phonetics राजभाषा हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी) अंग्रेजी भी देवनागरी में लिखें Devanagari character picker v11 The Influence of Sanskrit on the Japanese Sound System (James H. Buck, University of Georgia) देवनागरी लिपि एवं संगणक (अम्बा कुलकर्णी, विभागाध्यक्ष ,संस्कृत अध्ययन विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) श्रेणी:देवनागरी श्रेणी:लिपि श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
भारत
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारत
{{Infobox country | conventional_long_name = भारत गणराज्य | common_name = भारत | native_name = Republic of India (अंग्रेज़ी में) | image_flag = Flag of India.svg | alt_flag = क्षैतिज तिरंगे झंडे में ऊपर से नीचे तक गहरी केसरिया, सफ़ेद और हरी क्षैतिज पट्टियाँ हैं। सफेद पट्टी के केंद्र में 24 तीलियों वाला एक नेवी-ब्लू पहिया है। | image_coat = Emblem of India.svg | symbol_width = 60px | alt_coat = तीन शेर बाएँ, दाएँ और दर्शक की ओर मुख किए हुए हैं, एक फ़्रिज़ के ऊपर एक सरपट दौड़ता घोड़ा, एक 24-आरियों वाला पहिया और एक हाथी है। नीचे एक आदर्श वाक्य है: "सत्यमेव जयते"। | symbol_type = राज्य प्रतीक | other_symbol_type = राष्ट्रीय गीत: | other_symbol = जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान है, जिसके शब्दों में सरकार अवसर पड़ने पर परिवर्तन कर सकती है; और गीत वंदे मातरम, जिसने भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, को जन गण मन के साथ समान रूप से सम्मानित किया जाएगा और इसके साथ समान दर्जा दिया जाएगा।File: Vande Mataram on Mohan Veena.ogg | national_motto = "सत्यमेव जयते" (संस्कृत | 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हिंद महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में भारतीय महासागर स्थित है। दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है। आधुनिक मानव (होमो सेपियंस) अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में 55,000 साल पहले आये थे।(a) ; (b) ; (c) 1,000 वर्ष पहले ये सिंधु नदी के पश्चिमी हिस्से की तरफ बसे हुए थे जहां से इन्होने धीरे धीरे पलायन किया और सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में विकसित हुए। (a) ; (b) 1,200 ईसा पूर्व संस्कृत भाषा संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुए थी और तब तक यहां पर हिंदू धर्म का उद्धव हो चुका था और ऋग्वेद की रचना भी हो चुकी थी। (a) ; (b) ; (c) इसी समय बौद्ध एवं जैन धर्म उत्पन्न हो रहे होते हैं प्रारंभिक राजनीतिक एकत्रीकरण ने गंगा बेसिन में स्थित मौर्य और गुप्त साम्राज्यों को जन्म दिया।(a) ; (b) ; (c) ; (d) उनका समाज विस्तृत सृजनशीलता से भरा हुआ था। (a) ; (b) प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में, ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म और पारसी धर्म ने भारत के दक्षिणी और पश्चिमी तटों पर जड़ें जमा लीं।(a) ; (b) ; (c) मध्य एशिया से मुस्लिम सेनाओं ने भारत के उत्तरी मैदानों पर लगातार अत्याचार किया,(a) ; (b) अंततः दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और उत्तर भारत को मध्यकालीन इस्लाम साम्राज्य में मिला लिया गया।(a) ; (b) 15 वीं शताब्दी में, विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत में एक लंबे समय तक चलने वाली समग्र हिंदू संस्कृति बनाई।" पंजाब में सिख धर्म की स्थापना हुई। धीरे-धीरे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का विस्तार हुआ, जिसने भारत को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल दिया तथा अपनी संप्रभुता को भी मज़बूत किया।(a) ; (b) ब्रिटिश राज शासन 1858 में शुरू हुआ। धीरे धीरे एक प्रभावशाली राष्ट्रवादी आंदोलन शुरू हुआ जिसे अहिंसक विरोध के लिए जाना गया और ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का प्रमुख कारक बन गया। 1947 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य को दो स्वतंत्र प्रभुत्वों में विभाजित किया गया, भारतीय अधिराज्य तथा पाकिस्तान अधिराज्य, जिन्हें धर्म के आधार पर विभाजित किया गया। 1950 से भारत एक संघीय गणराज्य है। भारत की जनसंख्या 1951 में 36.1 करोड़ से बढ़कर 2011 में 121.1 करोड़, 2021 में बढ़कर 140.76 करोड़ हो गई। प्रति व्यक्ति आय $64 से बढ़कर $1,498, 2020- 21 में $2150, शुरुआती 2022- 23 में $2450 हो गई और इसकी साक्षरता दर 16.6% से बढ़कर 74.04% पुरुषों के लिए एवम 64% महिलाओं की हो गई। भारत एक तेज़ी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं का केंद्र बन गया है। अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय तथा अद्वितीय प्रगति की। भारतीय फ़िल्में, संगीत और आध्यात्मिक शिक्षा वैश्विक संस्कृति में विशेष भूमिका निभाती हैं। भारत ने ग़रीबी दर को काफ़ी हद तक कम कर दिया है। भारत देश परमाणु बम रखने वाला देश है। भारत-चीन सीमा पर भारत का चीन से विवाद चल रहा है। कश्मीर क्षेत्र को लेकर भारत और पाकिस्तान में विवाद है।(a) ; (b) ; (c) लैंगिक असमानता, बाल शोषण, बाल कुपोषण, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, प्रदूषण इत्यादि भारत के सामने प्रमुख चुनौतियाँ है। 21.4% क्षेत्र पर वन है। भारत के वन्यजीव, जिन्हें परंपरागत रूप से भारत की संस्कृति में सहिष्णुता के साथ देखा गया है, इन जंगलों और अन्य जगहों पर संरक्षित आवासों में निवास करते हैं। 12 फ़रवरी वर्ष 1948 में महात्मा गाँधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है | नामोत्पत्ति भारत के दो आधिकारिक नाम हैं- हिंदी में भारत और इंग्लिश में इंडिया (India)। इंडिया नाम की उत्पत्ति सिंधु नदी के इंग्लिश नाम "इंडस" से हुई है। श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार भारत नाम मनु के वंशज तथा ऋषभदेव के सबसे बड़े बेटे एक प्राचीन सम्राट भरत के नाम से लिया गया है। एक व्युत्पत्ति के अनुसार भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आंतरिक प्रकाश या विदेक-रूपी प्रकाश में लीन। एक तीसरा नाम हिंदुस्तान भी है जिसका अर्थ हिंद की भूमि, यह नाम विशेषकर अरब तथा ईरान में प्रचलित हुआ। बहुत पहले भारत का एक मुंहबोला नाम सोने की चिड़िया भी प्रचलित था। संस्कृत महाकाव्य महाभारत में वर्णित है की वर्तमान उत्तर भारत का क्षेत्र भारत के अंतर्गत आता था। भारत को कई अन्य नामों इंडिया, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिंद, हिंदुस्तान, जंबूद्वीप आदि से भी जाना जाता है। इतिहास thumb|तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप प्राचीन भारत लगभग 55,000 वर्ष पहले (प्राचीन भारत) आधुनिक मानव या होमो सेपियंस अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे। उद्धरण: "आधुनिक मानव - होमो सेपियन्स- की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी । फिर, 60,000 से 80,000 साल के बीच कुछ समय पहले, उनमें से कुछ छोटे समूहों ने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम हिस्से में प्रवेश करना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता है कि शुरू में वे तट के रास्ते से आए थे। ... यह वास्तव में निश्चित है कि 55,000 साल पहले उपमहाद्वीप में होमो सेपियन्स (आधुनिक मनुष्य)थे, भले ही सबसे पुराने जीवाश्म जो वर्तमान से लगभग 30,000 साल पहले के हो। (पृष्ठ 1)" दक्षिण एशिया में ज्ञात मानव का प्राचीनतम अवशेष 30,000 वर्ष पुराना है। भीमबेटका, मध्य प्रदेश की गुफाएँ भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण हैं जो आज भी देखने को मिलता है। प्रथम स्थाई बस्तियों ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरुप लिया था। 6,500 ईसा पूर्व तक आते आते मनुष्य ने खेती करना, जानवरों को पालना तथा घरों का निर्माण करना शुरू कर दिया था, जिसका अवशेष मेहरगढ़ में मिला था जो कि अभी पाकिस्तान में है। यह धीरे-धीरे सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में विकसित हुए, जो की दक्षिण एशिया की सबसे प्राचीन शहरी सभ्यता है। यह 2600 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी। यह वर्तमान पश्चिम भारत तथा पाकिस्तान में स्थित है। यह मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा, और कालीबंगा जैसे शहरों के आसपास केंद्रित थी और विभिन्न प्रकार के निर्वाह पर निर्भर थी, यहाँ व्यापक बाजार था तथा शिल्प उत्पादन होता था। 2000 से 500 ईसा पूर्व तक ताम्र पाषाण युग संस्कृति से लौह युग का आगमन हुआ। इसी युग को हिंदू धर्म से जुड़े प्राचीनतम धर्म ग्रंथ, वेदों का रचनाकाल माना जाता है तथा पंजाब तथा गंगा के ऊपरी मैदानी क्षेत्र को वैदिक संस्कृति का निवास स्थान माना जाता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है की इसी युग में उत्तर-पश्चिम से भारतीय-आर्यन का आगमन हुआ था। इसी अवधि में जाति प्रथा भी प्रारंभ हुई थी। वैदिक सभ्यता में ईसा पूर्व 6 वीं शताब्दी में गंगा के मैदानी क्षेत्र तथा उत्तर-पश्चिम भारत में छोटे-छोटे राज्य तथा उनके प्रमुख मिल कर 16 कुलीन और राजशाही में सम्मिलित हुए जिन्हे महाजनपद के नाम से जाना जाता है। बढ़ते शहरीकरण के बीच दो अन्य स्वतंत्र अ-वैदिक धर्मों का उदय हुआ। महावीर के जीवन काल में जैन धर्म अस्तित्व में आया। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित बौद्ध धर्म ने मध्यम वर्ग के अनुयायिओं को छोड़कर अन्य सभी वर्ग के लोगों को आकर्षित किया; इसी काल में भारत का इतिहास लेखन प्रारंभ हुआ। बढ़ती शहरी संपदा के युग में, दोनों धर्मों ने त्याग को एक आदर्श माना, और दोनों ने लंबे समय तक चलने वाली मठ परंपराओं की स्थापना की। राजनीतिक रूप से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक मगध साम्राज्य ने अन्य राज्यों को अपने अंदर मिला कर मौर्य साम्राज्य के रूप में उभरा। मगध ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर पूरे भारत पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया लेकिन कुछ अन्य प्रमुख बड़े राज्यों ने इसके प्रमुख क्षेत्रों को अलग कर लिया। मौर्य राजाओं को उनके साम्राज्य की उन्नति के लिए तथा उच्च जीवन सतर के लिए जाना जाता है क्योंकि सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की स्थापना की तथा शस्त्र मुक्त सेना का निर्माण किया।180 ईसवी के आरंभ से मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में यूनानी, शक, पार्थी और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का स्वर्णिम काल कहलाया। तमिल के संगम साहित्य के अनुसार ईसा पूर्व 200 से 200 ईस्वी तक दक्षिण प्रायद्वीप पर चेर राजवंश, चोल राजवंश तथा पांड्य राजवंश का शासन था जिन्होंने बड़े सतर पर भारत और रोम के व्यापारिक संबंध और पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया के साम्राज्यों के साथ व्यापर किया। चौथी-पाँचवी शताब्दी के बीच गुप्त साम्राज्य ने वृहद् गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रशासन तथा कर निर्धारण की एक जटिल प्रणाली बनाई; यह प्रणाली बाद के भारतीय राज्यों के लिए एक आदर्श बन गई। गुप्त साम्राज्य में भक्ति पर आधारित हिन्दू धर्म का प्रचलन हुई। विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोलशास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले, जो शास्त्रीय संस्कृत में रचा गया। मध्यकालीन भारत ६०० से १२०० के बीच का समय क्षेत्रीय राज्यों में सांस्कृतिक उत्थान के युग के रूप में जाना जाता है। कन्नौज के राजा हर्ष ने ६०६ से ६४७ तक गंगा के मैदानी क्षेत्र में शासन किया तथा उसने दक्षिण में अपने राज्य का विस्तार करने का प्रयास किया किन्तु दक्क्न के चालुक्यों ने उसे हरा दिया। उसके उत्तराधिकारी ने पूर्व की और राज्य का विस्तार करना चाहा लेकिन बंगाल के पाल शासकों से उसे हारना पड़ा। जब चालुक्यों ने दक्षिण की और विस्तार करने का प्रयास किया तो पल्ल्वों ने उन्हें पराजित कर दिया, जिनका सुदूर दक्षिण में पांड्यों तथा चोलों द्वारा उनका विरोध किया जा रहा था। इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। प्रारंभिक आधुनिक भारत १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया हालांकि अंग्रेजों ने व्यापार करने के बहाने से देश में आए और आंतरिक विद्रोह करवाने की कोशिश की ताकि वे आपस में लड़ाई करवाकर भारतीयों को कमजोर कर सकें । इसमें वे कामयाब हुए और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। वास्तव में ये शासन की दृष्टि से नहीं आए बल्कि वे देश की भोलीभाली जनता को लूटना चाहते थे । क्योंकि भारत देश में बाहर से आया हर कोई मेहमान होता है और उसे वे देवता का दर्जा देते हैं । इसी का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और धीरे धीरे आंतरिक अशांति इस प्रकार फैलाई की सबसे पहले यहां की शिक्षा व्यवस्था को बदला जो की दुनियां में सबसे अच्छी व्यवस्था थी । और वर्ण व्यवस्था को जाती वाद में बदल दिया गया । ऊंची नीची जातियों में विभाजन किया । मुस्लिम धर्म वालों को धक्के से गाय माता की हत्या करवाने में लगा दिया । और फिर हिंदुओं को बोला की देखो आपके मुस्लिम भाई , आपकी माता की हत्या कर रहे हैं । ये तो आपके भाई कहलाने के लायक भी नहीं है । इस प्रकार देखते ही देखते दंगा फैला दिया । लेकिन१८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। thumb|270px| कोणार्क-चक्र - १३वीं शताब्दी में बने उड़ीसा के सूर्य मन्दिर में स्थित, यह दुनिया के सब से प्रसिद्घ ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। आधुनिक भारत बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्‍व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्‍व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। इसके कारण इसे छोटे पैमानों पर युद्ध का भी सामना करना पड़ा है। १९६२ में चीन के साथ, तथा १९४७, १९६५, १९७१ एवं १९९९ में पाकिस्तान के साथ लड़ाइयाँ हो चुकी हैं। भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्य देशों में से एक है। १९७४ में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था जिसके बाद १९९८ में ५ और परीक्षण किये गये। १९९० के दशक में किये गये आर्थिक सुधारीकरण की बदौलत आज देश सबसे तेज़ी से विकासशील राष्ट्रों की सूची में आ गया है। भूगोल एवं जलवायु भू-आकृतिक विशेषतायें thumb|right|300px|हिमालय उत्तर में जम्मू और कश्मीर से लेकर पूर्व में अरुणांचल प्रदेश तक भारत की अधिकतर पूर्वी सीमा बनाता है thumb|right|300px| राथोंग शिखर, कंचनजंघा के समीप स्थित, जेमाथांग ग्लेशियर के पास से लिया गया चित्र भारत पूरी तौर पर भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित है जो भारतीय आस्ट्रेलियाई प्लेट (Indo-Australian Plate) का उपखण्ड है। प्राचीन काल में यह प्लेट गोंडवानालैण्ड का हिस्सा थी और अफ्रीका और अंटार्कटिका के साथ जुड़ी हुई थी। तकरीबन ९ करोड़ वर्ष पहले क्रीटेशियस काल में भारतीय प्लेट १५ सेमी. वर्ष की गति से उत्तर की ओर बढ़ने लगी और इओसीन पीरियड में यूरेशियन प्लेट से टकराई। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मध्य स्थित टेथीस भूसन्नति के अवसादों के वालन द्वारा ऊपर उठने से तिब्बत पठार और हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ। सामने की द्रोणी में बाद में अवसाद जमा हो जाने से सिन्धु-गंगा मैदान बना। भारतीय प्लेट अभी भी लगभग ५ सेमी./वर्ष की गति से उत्तर की ओर गतिशील है और हिमालय की ऊँचाई में अभी भी २ मिमी./वर्ष कि गति से उत्थान हो रहा है। भारत के उत्तर में हिमालय की पर्वतमाला नए और मोड़दार पहाड़ों से बनी है। यह पर्वतश्रेणी कश्मीर से अरुणाचल तक लगभग १,५०० मील तक फैली हुई है। इसकी चौड़ाई १५० से २०० मील तक है। यह संसार की सबसे ऊँची पर्वतमाला है और इसमें अनेक चोटियाँ २४,००० फुट से अधिक ऊँची हैं। हिमालय की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई २९,०२८ फुट है जो नेपाल में स्थित है। हिमालय के दक्षिण सिन्धु-गंगा मैदान है जो सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बना है। हिमालय (शिवालिक) की तलहटी में जहाँ नदियाँ पर्वतीय क्षेत्र को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती हैं, एक संकीर्ण पेटी में कंकड पत्थर मिश्रित निक्षेप पाया जाता है जिसमें नदियाँ अंतर्धान हो जाती हैं। इस ढलुवाँ क्षेत्र को भाबर कहते हैं। भाबर के दक्षिण में तराई प्रदेश है, जहाँ विलुप्त नदियाँ पुन: प्रकट हो जाती हैं। यह क्षेत्र दलदलों और जंगलों से भरा है। तराई के दक्षिण में जलोढ़ मैदान पाया जाता है। मैदान में जलोढ़ दो किस्म के हैं, पुराना जलोढ़ और नवीन जलोढ़। पुराने जलोढ़ को बाँगर कहते हैं। यह अपेक्षाकृत ऊँची भूमि में पाया जाता है, जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। इसमें कहीं कहीं चूने के कंकड मिलते हैं। नवीन जलोढ़ को खादर कहते हैं। यह नदियों की बाढ़ के मैदान तथा डेल्टा प्रदेश में पाया जाता है जहाँ नदियाँ प्रति वर्ष नई तलछट जमा करती हैं। उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण का पूरा भाग एक विस्तृत पठार है जो दुनिया के सबसे पुराने स्थल खंड का अवशेष है और मुख्यत: कड़ी तथा दानेदार कायांतरित चट्टानों से बना है। पठार तीन ओर पहाड़ी श्रेणियों से घिरा है। उत्तर में विंध्याचल तथा सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, जिनके बीच नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा घाटी के उत्तर विंध्याचल प्रपाती ढाल बनाता है। सतपुड़ा की पर्वतश्रेणी उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करती है और पूर्व की ओर महादेव पहाड़ी तथा मैकाल पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। सतपुड़ा के दक्षिण अजंता की पहाड़ियाँ हैं। प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर पश्चिमी घाट और पूर्वी किनारे पर पूर्वी घाट नामक पहाडियाँ हैं। कई महत्वपूर्ण और बड़ी नदियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी और कृष्णा भारत से होकर बहती हैं। जलवायु कोपेन के वर्गीकरण में भारत में छह प्रकार की जलवायु का निरूपण है किन्तु यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि भू-आकृति के प्रभाव में छोटे और स्थानीय स्तर पर भी जलवायु में बहुत विविधता और विशिष्टता मिलती है। भारत की जलवायु दक्षिण में उष्णकटिबंधीय है और हिमालयी क्षेत्रों में अधिक ऊँचाई के कारण अल्पाइन (ध्रुवीय जैसी), एक ओर यह पुर्वोत्तर भारत में उष्ण कटिबंधीय नम प्रकार की है तो पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की। कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में निम्नलिखित छह प्रकार के जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं: अल्पाइन – (ETh); आर्द्र उपोष्ण – (Cwa); उष्ण कटिबंधीय नम और शुष्क – (Aw); उष्ण कटिबंधीय नम – (Am); अर्धशुष्क – (BSh); शुष्क मरुस्थलीय – (BWh). परंपरागत रूप से भारत में छह ऋतुएँ मानी जाती रहीं हैं परन्तु भारतीय मौसम विज्ञान विभाग चार ऋतुओं का वर्णन करता है जिन्हें हम उनके परंपरागत नामों से तुलनात्मक रूप में निम्नवत लिख सकते हैं: शीत ऋतु (Winters) – दिसंबर से मार्च तक, जिसमें दिसंबर और जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं; उत्तरी भारत में औसत तापमान १० से १५ डिग्री सेल्सियस होता है। ग्रीष्म ऋतु (Summers or Pre-monsoon) – अप्रैल से जून तक जिसमें मई सबसे गर्म महीना होता है, औसत तापमान ३२ से ४० डिग्री सेल्सियस होता है। वर्षा ऋतु (Monsoon or Rainy) – जून से सितम्बर तक, जिसमें सार्वाधिक वर्षा अगस्त महीने में होती है, वस्तुतः मानसून का आगमन और प्रत्यावर्तन (लौटना) दोनों क्रमिक रूप से होते हैं और अलग अलग स्थानों पर इनका समय अलग अलग होता है। सामान्यतः १ जून को केरल तट पर मानसून के आगमन तारीख होती है इसके ठीक बाद यह पूर्वोत्तर भारत में पहुँचता है और क्रमशः पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर गतिशील होता है इलाहाबाद में मानसून के पहुँचने की तिथि १८ जून मानी जाती है और दिल्ली में २९ जून। शरद ऋतु (Post-monsoon ot Autumn) - उत्तरी भारत में अक्टूबर और नवंबर माह में मौसम साफ़ और शांत रहता है और अक्टूबर में मानसून लौटना शुरू हो जाता है जिससे तमिलनाडु के तट पर लौटते मानसून से वर्षा होती है। भारत के मुख्य शहर हैं – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलोर (बेंगलुरु)| यह भी देंखे – भारत के शहर राजनीति एवं सरकार राजनीति भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। बहुदलीय प्रणाली वाले इस संसदीय गणराज्य में छ: मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां, और ४० से भी ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियां हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसकी नीतियों को केंद्रीय-दक्षिणपंथी या रूढिवादी माना जाता है, के नेतृत्व में केंद्र में सरकार है जिसके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं। अन्य पार्टियों में सबसे बडी भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस (कॉंग्रेस) है, जिसे भारतीय राजनीति में केंद्र-वामपंथी और उदार माना जाता है। २००४ से २०१४ तक केंद्र में मनमोहन सिंह की गठबन्धन सरकार का सबसे बड़ा हिस्सा कॉंग्रेस पार्टी का था। १९५० में गणराज्य के घोषित होने से १९८० के दशक के अन्त तक कॉंग्रेस का संसद में निरंतर बहुमत रहा। पर तब से राजनैतिक पटल पर भाजपा और कॉंग्रेस को अन्य पार्टियों के साथ सत्ता बांटनी पडी है। १९८९ के बाद से क्षेत्रीय पार्टियों के उदय ने केंद्र में गठबंधन सरकारों के नये दौर की शुरुआत की है। गणराज्य के पहले तीन चुनावों (१९५१–५२, १९५७, १९६२) में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कॉंग्रेस ने आसान जीत पाई। १९६४ में नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री कुछ समय के लिये प्रधानमंत्री बने, और १९६६ में उनकी खुद की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। १९६७ और १९७१ के चुनावों में जीतने के बाद १९७७ के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पडा। १९७५ में प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय आपात्काल की घोषणा कर दी थी। इस घोषणा और इससे उपजी आम नाराज़गी के कारण १९७७ के चुनावों में नवगठित जनता पार्टी ने कॉंग्रेस को हरा दिया और पूर्व में कॉंग्रेस के सदस्य और नेहरु के केबिनेट में मंत्री रहे मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई सरकार बनी। यह सरकार सिर्फ़ तीन साल चली, और १९८० में हुए चुनावों में जीतकर इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी कॉंग्रेस के नेता और प्रधानमंत्री बने। १९८४ के चुनावों में ज़बरदस्त जीत के बाद १९८९ में नवगठित जनता दल के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चा ने वाम मोर्चा के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई, जो केवल दो साल चली। १९९१ के चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, परंतु कॉंग्रेस सबसे बडी पार्टी बनी, और पी वी नरसिंहा राव के नेतृत्व में अल्पमत सरकार बनी जो अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। १९९६ के चुनावों के बाद दो साल तक राजनैतिक उथल पुथल का वक्त रहा, जिसमें कई गठबंधन सरकारें आई और गई। १९९६ में भाजपा ने केवल १३ दिन के लिये सरकार बनाई, जो समर्थन ना मिलने के कारण गिर गई। उसके बाद दो संयुक्त मोर्चे की सरकारें आई जो कुछ लंबे वक्त तक चली। ये सरकारें कॉंग्रेस के बाहरी समर्थन से बनी थीं। १९९८ के चुनावों के बाद भाजपा एक सफल गठबंधन बनाने में सफल रही। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग, या एनडीए) नाम के इस गठबंधन की सरकार पहली ऐसी सरकार बनी जिसने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किय। २००४ के चुनावों में भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, पर कॉंग्रेस सबसे बडी पार्टी बनके उभरी, और इसने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग, या यूपीए) के नाम से नया गठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने वामपंथी और गैर-भाजपा सांसदों के सहयोग से मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पाँच साल तक शासन चलाया। २००९ के चुनावों में यूपीए और अधिक सीटें जीता जिसके कारण यह साम्यवादी (कॉम्युनिस्ट) दलों के बाहरी सहयोग के बिना ही सरकार बनाने में कामयाब रहा। इसी साल मनमोहन सिंह जवाहरलाल नेहरू के बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जिन्हे दो लगातार कार्यकाल के लिये प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ। २०१४ के चुनावों में १९८४ के बाद पहली बार किसी राजनैतिक पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ, और भाजपा ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई। सरकार thumb|भारतीय संसद भवन thumb|भारतीय सर्वोच्च न्यायालय भारत का संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित करता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली की संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। भारत का प्रशासन संघीय ढांचे के अन्तर्गत चलाया जाता है, जिसके अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार और राज्य स्तर पर राज्य सरकारें हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान में दी गई रूपरेखा के आधार पर होता है। वर्तमान में भारत में २८ राज्य और ८ केंद्र-शासित प्रदेश हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में, स्थानीय प्रशासन को राज्यों की तुलना में कम शक्तियां प्राप्त होती हैं। भारत का सरकारी ढाँचा, जिसमें केंद्र राज्यों की तुलना में ज़्यादा सशक्त है, उसे आमतौर पर अर्ध-संघीय (सेमि-फ़ेडेरल) कहा जाता रहा है, पर १९९० के दशक के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों के कारण इसकी रूपरेखा धीरे-धीरे और अधिक संघीय (फ़ेडेरल) होती जा रही है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं:- न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं, जिसके दो सदन हैं – उच्चसदन राज्यसभा, अथवा राज्यपरिषद् और निम्नसदन लोकसभा. राज्यसभा में २४५ सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में ५४५। राज्यसभा एक स्थाई सदन है और इसके सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से ६ वर्षों के लिये होता है। राज्यसभा के ज़्यादातर सदस्यों का चयन राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है, और हर दूसरे साल राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य पदमुक्त हो जाते हैं। लोकसभा के ५४३ सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, ५ वर्षों की अवधि के लिये आम चुनावों के माध्यम से किया जाता है जिनमें १८ वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर सकते हैं। कार्यपालिका के तीन अंग हैं – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मंत्रिमंडल। राष्ट्रपति, जो राष्ट्र का प्रमुख है, की भूमिका अधिकतर आनुष्ठानिक ही है। उसके दायित्वों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों (विधेयक) पर अपनी सहमति देना और अध्यादेश जारी करना प्रमुख हैं। वह भारतीय सेनाओं का मुख्य सेनापति भी है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक अप्रत्यक्ष मतदान विधि द्वारा ५ वर्षों के लिये चुना जाता है। प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्तियाँ उसी के पास होती हैं। इसका चुनाव राजनैतिक पार्टियों या गठबन्धन के द्वारा प्रत्यक्ष विधि से संसद में बहुमत प्राप्त करने पर होता है। बहुमत बने रहने की स्थिति में इसका कार्यकाल ५ वर्षों का होता है। संविधान में किसी उप-प्रधानमंत्री का प्रावधान नहीं है पर समय-समय पर इसमें फेरबदल होता रहा है। मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। कार्यपालिका संसद को उत्तरदायी होती है, और प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमण्डल लोक सभा में बहुमत के समर्थन के आधार पर ही अपने कार्यालय में बने रह सकते हैं। भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का ढाँचा त्रिस्तरीय है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, जिसके प्रधान प्रधान न्यायाधीश है; २४ उच्च न्यायालय और बहुत सारी निचली अदालतें हैं। सर्वोच्च न्यायालय को अपने मूल न्यायाधिकार (ओरिजिनल ज्युरिडिक्शन), और उच्च न्यायालयों के ऊपर अपीलीय न्यायाधिकार के मामलों, दोनो को देखने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के मूल न्ययाधिकार में मौलिक अधिकारों के हनन के इलावा राज्यों और केंद्र, और दो या दो से अधिक राज्यों के बीच के विवाद आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय को राज्य और केंद्रीय कानूनों को असंवैधानिक ठहराने के अधिकार है। भारत में २४ उच्च न्यायालयों के अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। संविधान ने न्यायपालिका को विस्तृत अधिकार दिये हैं, जिनमें संविधान की अंतिम व्याख्या करने का अधिकार भी सम्मिलित है। प्रशासनिक प्रभाग वर्तमान में भारत 28 राज्यों तथा 8 केन्द्रशासित प्रदेशों में बँटा हुआ है। राज्यों की चुनी हुई स्वतंत्र सरकारें हैं, जबकि केन्द्रशासित प्रदेशों पर केन्द्र द्वारा नियुक्त प्रबंधन शासन करता है, हालाँकि पॉण्डिचेरी और दिल्ली की लोकतांत्रिक सरकार भी हैं। अन्टार्कटिका और दक्षिण गंगोत्री और मैत्री पर भी भारत के वैज्ञानिक-स्थल हैं, यद्यपि अभी तक कोई वास्तविक आधिपत्य स्थापित नहीं किया गया है। राज्यों के नाम निम्नवत हैं (कोष्ठक में राजधानी का नाम) अरुणाचल प्रदेश (इटानगर) असम (दिसपुर) उत्तर प्रदेश (लखनऊ) उत्तराखण्ड (देहरादून) ओड़िशा (भुवनेश्वर) आंध्र प्रदेश (अमरावती) कर्नाटक (बंगलोर) केरल (तिरुवनंतपुरम) गोआ (पणजी) गुजरात (गांधीनगर) छत्तीसगढ़ (रायपुर) झारखंड (रांची) तमिलनाडु (चेन्नई) तेलंगाना (हैदराबाद) त्रिपुरा (अगरतला) नागालैंड (कोहिमा) पश्चिम बंगाल (कोलकाता) पंजाब (चंडीगढ़†) बिहार (पटना) मणिपुर (इम्फाल) मध्य प्रदेश (भोपाल) महाराष्ट्र (मुंबई) मिज़ोरम (आइजोल) मेघालय (शिलांग) राजस्थान (जयपुर) सिक्किम (गंगटोक) हरियाणा (चंडीगढ़†) हिमाचल प्रदेश (शिमला) केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर (श्रीनगर/जम्मू) लदाख* (लेह) अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह(पोर्ट ब्लेयर) चंडीगढ़†* (चंडीगढ़) दमन और दीव* (दमन) दादरा और नागर हवेली* (सिलवासा) पॉण्डिचेरी* (पुडुचेरी) लक्षद्वीप* (कवरत्ती) दिल्ली (नई दिल्ली) †चंडीगढ़ एक केंद्रशासित प्रदेश है तथा यह पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी है। 26 जनवरी 2020 को दादरा एव नगर हवेली तथा दमन द्वीप का विलय करके एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया है। अब इसका पूरा नाम दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन द्वीप है। विदेश-सम्बन्ध thumb|2014 में पुतिन और मोदी नई दिल्ली में 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद, भारत के अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। 1950 के दशक में, भारत ने पुरजोर रूप से अफ्रीका और एशिया में यूरोपीय उपनिवेशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी की भूमिका निभाई। 1980 के दशक में भारत दो पड़ोसी देशों के निमंत्रण पर, सेना के द्वारा संक्षिप्त सैन्य हस्तक्षेप किया, एक श्रीलंका में और दुसरा मालदीव में। भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के साथ एक तनाव भरा संबंध है और दोनों देशों के बीच चार बार युद्ध हुआ था, 1947, 1965, 1971 और 1999 में। कश्मीर विवाद इन युद्धों का प्रमुख कारण था। 1962 के भारत - चीन युद्ध और पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद भारत और सोवियत संघ के साथ सैन्य संबंधों में बहुत बढ़ोतरी हुई। 1960 के दशक के अन्त में सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरी थी। रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध हैं। हाल के वर्षों में, भारत ने क्षेत्रीय सहयोग और विश्व व्यापार संगठन के लिए एक दक्षिण एशियाई एसोसिएशन में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। भारत ने 100,000 सैन्य और पुलिस कर्मियों को चार महाद्वीपों भर में संयुक्त राष्ट्र के पैंतीस शांति अभियानों में सेवा प्रदान की है। भारत ने विभिन्न बहुपक्षीय मंचों, सबसे खासकर पूर्वी एशिया के शिखर बैठक और जी-8 5 में एक सक्रिय भागीदारी निभाई है। आर्थिक क्षेत्र में भारत का दक्षिण अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका के विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ संबंध है। सैन्य शक्ति thumb|right|200px| भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोत - विराट एवं विक्रमादित्य thumb|right|200px| एच.ए.एल तेजस भारत द्वारा विकसित एक हल्‍का सुपरसौनिक लड़ाकू विमान है। thumb|right|200px| युद्ध अभ्यास करते भारतीय टैंक thumb|200px|भारतीय प्रक्षेपास्त्र अग्नि की मारक सीमा लगभग 13 लाख सक्रिय सैनिकों के साथ, भारतीय सेना दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी है। भारत की सशस्त्र सेना में एक थलसेना, नौसेना, वायु सेना और अर्द्धसैनिक बल, तटरक्षक, जैसे सामरिक और सहायक बल विद्यमान हैं। भारत के राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर है। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने ज्यादातर देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। 1950 के दशक में, भारत ने दृढ़ता से अफ्रीका और एशिया में यूरोपीय कालोनियों की स्वतंत्रता का समर्थन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। 1980 के दशक में भारत ने आमंत्रण पर दो पड़ोसी देशों में संक्षिप्त सैन्य हस्तक्षेप किया। मालदीव, श्रीलंका और अन्य देशों में ऑपरेशन कैक्टस में भारतीय शांति सेना को भेजा गया। हालाँकि, भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ एक तनावपूर्ण संबंध बने रहे और दोनों देशों में चार बार युध्द (1947, 1965, 1971 और 1999 में) हुए हैं। कश्मीर विवाद इन युद्धों के प्रमुख कारण था, सिवाय 1971 के, जो कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नागरिक अशांति के लिए किया गया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध और पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद भारत ने अपनी सैन्य और आर्थिक स्थिति का विकास करने का प्रयास किया। सोवियत संघ के साथ अच्छे संबंधों के कारण सन् 1960 के दशक से, सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा। आज रूस के साथ सामरिक संबंधों को जारी रखने के अलावा, भारत विस्तृत इजरायल और फ्रांस के साथ रक्षा संबंध रखा है। हाल के वर्षों में, भारत में क्षेत्रीय सहयोग और विश्व व्यापार संगठन के लिए एक दक्षिण एशियाई एसोसिएशन में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। १०,००० राष्ट्र सैन्य और पुलिस कर्मियों को चार महाद्वीपों भर में पैंतीस संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सेवा प्रदान की है। भारत भी विभिन्न बहुपक्षीय मंचों, खासकर पूर्वी एशिया शिखर बैठक और जी-८५ बैठक में एक सक्रिय भागीदार रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भारत दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते है। अब भारत एक "पूर्व की ओर देखो नीति" में भी संयोग किया है। यह "आसियान" देशों के साथ अपनी भागीदारी को मजबूत बनाने के मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला है जिसमे जापान और दक्षिण कोरिया ने भी मदद किया है। यह विशेष रूप से आर्थिक निवेश और क्षेत्रीय सुरक्षा का प्रयास है। 1974 में भारत अपनी पहले परमाणु हथियारों का परीक्षण किया और आगे 1998 में भूमिगत परीक्षण किया। जिसके कारण भारत पर कई तरह के प्रतिबन्ध भी लगाये गए। भारत के पास अब तरह-तरह के परमाणु हथियारें है। भारत अभी रूस के साथ मिलकर पाँचवीं पीढ़ के विमान बना रहे है। हाल ही में, भारत का संयुक्त राष्ट्रे अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक, सामरिक और सैन्य सहयोग बढ़ गया है। 2008 में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौते हस्ताक्षर किए गए थे। हालाँकि उस समय भारत के पास परमाणु हथियार था और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के पक्ष में नहीं था यह अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) से छूट प्राप्त है, भारत की परमाणु प्रौद्योगिकी और वाणिज्य पर पहले प्रतिबंध समाप्त. भारत विश्व का छठा वास्तविक परमाणु हथियार राष्ट्रत बन गया है। एनएसजी छूट के बाद भारत भी रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा सहित देशों के साथ असैनिक परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने में सक्षम है। वित्त वर्ष 2014-15 के केन्द्रीय अंतरिम बजट में रक्षा आवंटन में 10 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी करते हुए 224,000 करोड़ रूपए आवंटित किए गए। 2013-14 के बजट में यह राशि 203,672 करोड़ रूपए थी। 2012–13 में रक्षा सेवाओं के लिए 1,93,407 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जबकि 2011–2012 में यह राशि 1,64,415 करोइ़ थी। साल 2011 में भारतीय रक्षा बजट 36.03 अरब अमरिकी डॉलर रहा (या सकल घरेलू उत्पाद का 1,83%)। 2008 के एक SIRPI रिपोर्ट के अनुसार, भारत क्रय शक्ति के मामले में भारतीय सेना के सैन्य खर्च 72.7 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। साल 2011 में भारतीय रक्षा मंत्रालय के वार्षिक रक्षा बजट में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, हालाँकि यह पैसा सरकार की अन्य शाखाओं के माध्यम से सैन्य की ओर जाते हुए पैसों में शमिल नहीं होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़े हथियार आयातक है। वित्त वर्ष 2007-2008 2008-2009 2009-2010 2011-2012 2012-2013 2013-2014 2014-2015 2015-2016 2016-2017बजट (करोड़ रूपए) 96,000 1,05,600 1,41,703 1,64,415 1,93,407 2,03,672 2,24,000 2,94,320 3,59,854 २०१४ में नरेन्द्र मोदी नीत भाजपा सरकार ने मेक इन इण्डिया के नाम से भारत में निर्माण अभियान की शुरुआत की और भारत को हथियार आयातक से निर्यातक बनाने के लक्ष्य की घोषणा की। रक्षा निर्माण के द्वार निजी कंपनियों के लिए भी खोल दिए गए और भारत के कई उद्योग घरानों ने बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में पूंजी निवेश की योजनाएँ घोषित की। फ्राँस की डसॉल्ट एविएशन ने अंबानी समूह के साथ साझेदारी में रफेल लड़ाकू विमानhttp://hindi.economictimes.indiatimes.com/business/business-news/frances-dassault-to-bring-in-largest-defence-fdi-via-rafale-joint-venture-with-reliance-defence/articleshow/59063463.cms नवभारत टाईम्स ९ जून २०१७, तथा अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने टाटा समूह के साथ साझेदारी लड़ाकू विमान एफ-१६ http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/paris-airshow-lockheed-martin-signs-pact-with-tata-to-make-f-16-planes-in-india/articleshow/59219961.cms नवभारत टाईम्स १९ जून २०१७ का निर्माण भारत में प्रारंभ करने की घोषणाएँ की हैं। अन्य प्रतिष्ठित समूह जैसे एल एंड टी,http://hindi.economictimes.indiatimes.com/business/business-news/govt-signed-agreement-with-lt-for-firearms/articleshow/58646476.cms सेना के तोपों के लिए L&T से करार नवभारत टाईम्स १२ मई २०१७https://scholar.valpo.edu/cgi/viewcontent.cgi?referer=https://en.wikipedia.org/&httpsredir=1&article=1095&context=jvbl वालपराइसो विश्वविद्यालय अनुसंधान महिंद्रा, कल्याणी आदि भी कई परियोजनाओं के निर्माण की पहल कर चुके हैं जिनमें तोपें, असला, जलपोत व पनडुब्बियों का निर्मान शामिल है। रूस के साथ कमोव हेलीकॉप्टर का निर्माण भी भारत में करने के लिए समझौता हुआ है। अर्थव्यवस्था thumb|330 px|२०१४ में क्रयशक्ति समानता के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरी सबसे बड़ी थी। मुद्रा स्थानांतरण की दर से भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में दसवें और क्रयशक्ति के अनुसार तीसरे स्थान पर है। वर्ष २००३ में भारत में लगभग ८% की दर से आर्थिक वृद्धि हुई है जो कि विश्व की सबसे तीव्र बढती हुई अर्थव्यवस्थओं में से एक है। परंतु भारत की अत्यधिक जनसंख्या के कारण प्रतिव्यक्ति आय क्रयशक्ति की दर से मात्र ३,२६२ अमेरिकन डॉलर है जो कि विश्व बैंक के अनुसार १२५वें स्थान पर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार २६५ (मार्च २००९) अरब अमेरिकी डॉलर है। मुम्बई भारत की आर्थिक राजधानी है और भारतीय रिजर्व बैंक और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का मुख्यालय भी। यद्यपि एक चौथाई भारतीय अभी भी निर्धनता रेखा से नीचे हैं, तीव्रता से बढ़ती हुई सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण मध्यमवर्ग में वृद्धि हुई है। १९९१ के बाद भारत में आर्थिक सुधार की नीति ने भारत के सर्वंगीण विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। thumb|270px|left|सूचना प्रोद्योगिकी (आईटी) भारत के सबसे अधिक विकासशील उद्योगों में से एक है, वार्षिक आय २८५० करोड़ डालर, इन्फोसिस, भारत की सबसे बडी आईटी कम्पनियों में से एक १९९१ के बाद भारत में हुए आर्थिक सुधारोँ ने भारत के सर्वांगीण विकास में बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय अर्थव्यवस्था ने कृषि पर अपनी ऐतिहासिक निर्भरता कम की है और कृषि अब भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल २५% है। दूसरे प्रमुख उद्योग हैं उत्खनन, पेट्रोलियम, बहुमूल्य रत्न, चलचित्र, वस्त्र, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं, तथा सजावटी वस्तुऐं। भारत के अधिकतर औद्योगिक क्षेत्र उसके प्रमुख महानगरों के आसपास स्थित हैं। हाल ही के वर्षों में $१७२० करोड़ अमरीकी डालर वार्षिक आय २००४-२००५ के साथ भारत सॉफ़्टवेयर और बीपीओ सेवाओं का सबसे बड़ा केन्द्र बन कर उभरा है। इसके साथ ही कई लघु स्तर के उद्योग भी हैं जोकि छोटे भारतीय गाँव और भारतीय नगरों के कई नागरिकों को जीविका प्रदान करते हैं। पिछले वर्षों में भारत में वित्तीय संस्थानों ने विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। केवल तीस लाख विदेशी पर्यटकों के प्रतिवर्ष आने के बाद भी भारतीय पर्यटन राष्ट्रीय आय का एक अति आवश्यक, परन्तु कम विकसित स्रोत है। पर्यटन उद्योग भारत के जीडीपी का कुल ५,३% है। पर्यटन १०% भारतीय कामगारों को आजीविका देता है। वास्तविक संख्या ४.२ करोड है। आर्थिक रूप से देखा जाए तो पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग $४०० करोड डालर प्रदान करता है। भारत के प्रमुख व्यापार सहयोगी हैं अमरीका, जापान, चीन और संयुक्त अरब अमीरात। भारत के निर्यातों में कृषि उत्पाद, चाय, कपड़ा, बहुमूल्य रत्न व आभूषण, साफ़्टवेयर सेवायें, इंजीनियरिंग सामान, रसायन तथा चमड़ा उत्पाद प्रमुख हैं जबकि उसके आयातों में कच्चा तेल, मशीनरी, बहुमूल्य रत्न, उर्वरक (फ़र्टिलाइज़र) तथा रसायन प्रमुख हैं। वर्ष २००४ के लिये भारत के कुल निर्यात $६९१८ करोड़ डालर के थे जबकि उसके आयात $८९३३ करोड़ डालर के थे। दिसम्‍बर 2013 के अंत में भारत का कुल विदेशी कर्ज 426.0 अरब अमरीकी डॉलर था, जिसमें कि दीर्घकालिक कर्ज 333.3 अरब (78,2%) तथा अल्‍पकालिक कर्ज 92,7% अरब अमरीकी डॉलर (21,8%) था। कुल विदेशी कर्ज में सरकार का विदेशी कर्ज 76.4 अरब अमरीकी डॉलर (कुल विदेशी कर्ज का 17.9 प्रतिशत) था, बाकी में व्‍यावसायिक उधार, एनआरआई जमा और बहुउद्देश्‍यीय कर्ज आदि हैं। जनसांख्यिकी एवं भाषाएँ भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की विभिन्नताओं से भरी जनता में भाषा, जाति और धर्म, सामाजिक और राजनीतिक सौहार्द और समरसता के मुख्य शत्रु हैं। भारत में २०११ की जनगणना के अनुसार ७४.०४ प्रतिशत साक्षरता है, जिस में से ८२.१४% पुरुष और स्त्रियो की साक्षरता ६५.४६ हैं। लिंग अनुपात की दृष्टि से भारत में प्रत्येक १००० पुरुषों के पीछे मात्र ९४० महिलायें हैं। कार्य भागीदारी दर (कुल जनसंख्या में कार्य करने वालों का भाग) ३९.१% है। पुरुषों के लिए यह दर ५१,७% और स्त्रियों के लिये २५,६% है। भारत की १००० जनसंख्या में २२.३२ जन्मों के साथ बढ़ती जनसंख्या के आधे लोग २२.६६ वर्ष से कम आयु के हैं। धर्म thumb|पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनन्तपुरम, केरल thumb|स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) में सिख तीर्थयात्री, अमृतसर, पंजाब यद्यपि भारत की ७९.८० प्रतिशत या ९६.६२ करोड़ जनसंख्या हिन्दू है, १४.२३ प्रतिशत या १७.२२ करोड़ जनसंख्या के साथ भारत विश्व में मुसलमानों की संख्या में भी इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद तीसरे स्थान पर है। अन्य धर्मावलम्बियों में ईसाई (२.३० % या २.७८ करोड़), सिख (१,७२ % या २.०८ करोड़), बौद्ध (०,७० % या ८४.४३ लाख), जैन (०,३७ % या ४४.५२ लाख), अन्य धर्म (०,६६ % या ७९.३८ लाख) इनमें यहूदी, पारसी, अहमदी और बहाई आदि धर्मीय हैं। नास्तिकता ०,२४% या ३८.३७ लाख है। भारत की जनजातियां गोंड - गोंड भारत की जनजाति है , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इनका शासन था । भील - भील देश की सबसे विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई जनजाति है , यह जनजाति मुख्यरूप से राजस्थान , मध्यप्रदेश , गुजरात और महाराष्ट्र में निवास करती है , इस जनजाति का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है , यह जनजाति प्राचीन समय में एक कबीले में ना रह कर , देश के कई क्षेत्रों पर शासन किया । भील जनजाति देश में भील रेजिमेंट और भील प्रदेश चाहती है। मीणा - मीणा राजस्थान की जनजाति है। मध्य प्रदेश में मीणाओं को पूर्ण रूप से अनुसूचित जनजाति के रूप में प्रस्तावित किया गया है, जिस पर भारत सरकार विचार कर रही है। नागा - नागा जनजाति मुख्यरूप से नागालैंड में पाई जाती है , देश में नागा रेजिमेंट है। गारो - एक जनजाति भूमिज - भारत की सबसे प्राचीन जनजाति; पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा और असम में पाई जाती है। भाषाएँ भारत दो मुख्य भाषा-सूत्रों: आर्य और द्रविड़ भाषाओं का स्रोत भी है। भारत का संविधान कुल २३ भाषाओं को मान्यता देता है। हिन्दी और अंग्रेजी केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी कामकाज के लिए उपयोग की जाती हैं। संस्कृत और तमिल जैसी अति प्राचीन भाषाएं भारत में ही जन्मी हैं। संस्कृत, संसार की सर्वाधिक प्राचीन भाषाओं में से एक है, जिसका विकास पथ्यास्वस्ति नाम की अति प्राचीन भाषा/बोली से हुआ था। तमिल के अलावा सारी भारतीय भाषाएँ संस्कृत से ही विकसित हुई हैं, हालाँकि संस्कृत और तमिल में कई शब्द समान हैं, कुल मिला कर भारत में १६५२ से भी अधिक भाषाएं एवं बोलियाँ बोली जातीं हैं। भाषाओं के मामले में भारतवर्ष विश्व के समृद्धतम देशों में से है। संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की राजभाषा है, और अंग्रेजी को सहायक राजाभाषा का स्थान दिया गया है। १९४७-१९५० के संविधान के निर्माण के समय देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भाषा और हिन्दी-अरबी अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को संघ (केंद्र) सरकार की कामकाज की भाषा बनाया गया था, और गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी के प्रचलन को बढ़ाकर उन्हें हिन्दी-भाषी राज्यों के समान स्तर तक आने तक के लिये १५ वर्षों तक अंग्रेजी के इस्तेमाल की इजाज़त देते हुए इसे सहायक राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया था। संविधान के अनुसार यह व्यवस्था १९५० में समाप्त हो जाने वाली थी, लेकिन् तमिलनाडु राज्य के हिन्दी भाषा विरोधी आन्दोलन और हिन्दी भाषी राज्यों राजनैतिक विरोध के परिणामस्वरूप, संसद ने इस व्यवस्था की समाप्ति को अनिश्चित काल तक स्थगित कर दिया है। इस वजह से वर्तमान समय में केंद्रीय सरकार में काम हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषाओं में होता है और राज्यों में हिन्दी अथवा अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं में काम होता है। केन्द्र और राज्यों और अन्तर-राज्यीय पत्र-व्यवहार के लिए, यदि कोई राज्य ऐसी मांग करे, तो हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं का होना आवश्यक है। भारतीय संविधान एक राष्ट्रभाषा का वर्णन नहीं करता। हिंदी और अंग्रेजी भारत सरकार की आधिकारिक भाषाएं हैं, लेकिन कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है।  भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं, जिनमें से प्रत्येक को बड़ी संख्या में लोग बोलते हैं। हालाँकि, हिंदी का उपयोग अनिवार्य नहीं है, और अन्य आधिकारिक भाषाओं का भी उपयोग किया जा सकता है। हिन्दी और अंग्रेज़ी के इलावा संविधान की आठवीं अनुसूची में २० अन्य भाषाओं का वर्णन है जिन्हें भारत में आधिकारिक कामकाज में इस्तेमाल किया जा सकता है। संविधान के अनुसार सरकार इन भाषाओं के विकास के लिये प्रयास करेगी, और अधिकृत राजभाषा (हिन्दी) को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए इन भाषाओं का उपयोग करेगी। आठवीं अनुसूची में दर्ज़ २२ भाषाएँ यह हैं: संस्कृत हिन्दी अंग्रेजी मराठी नेपाली मैथिली पंजाबी तमिल तेलुगू मलयालम कन्नड गुजराती बांग्ला असमिया ओड़िया कश्मीरी मणिपुरी कोंकणी डोगरी उर्दू सिन्धी संथाली राज्यवार भाषाओं की आधिकारिक स्थिति इस प्रकार है: क्र॰सं॰ राज्य आधिकारिक भाषा(एं) अन्य मान्यता प्राप्त भाषाएं १. अरुणाचल प्रदेश अंग्रेज़ी २. असम असमिया, अंग्रेज़ी बोडो]] बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् के ज़िलों में। ३. आंध्र प्रदेश तेलुगु उर्दू इन ज़िलों में दूसरी आधिकारिक भाषा है: कुर्नूल, कडपा, अनंतपुर, गुन्टूर, चित्तूर और नेल्लोर जहां १२% से अधिक जनसंख्या उर्दू को प्राथमिक भाषा के तौर पर बोलती है।४. उत्तर प्रदेश हिन्दी उर्दूHindi is the official language, and Urdu is used for seven specific purposes, similar to those for which it is used in Bihar. ,भोजपुरी,अवधी,संस्कृत ५. उत्तराखण्ड हिन्दी संस्कृतSanskrit to be promoted with priority: Nishank ६. ओड़िशा ओड़िया ७. कर्नाटक कन्नड ८. केरल मलयालम अंग्रेज़ी ९. गुजरात गुजराती १०. गोआ कोंकणी मराठी, Dated, but gives a good overview of the controversy to give Marathi full "official status". English ११. छत्तीसगढ हिन्दीThe National Commission for Linguistic Minorities, 1950 (ibid) makes no mention of Chhattisgarhi as an additional state language, despite the 2007 notification of the State Govt, presumably because Chhattisgarhi is considered as a dialect of Hindi. छत्तीसगढीThe Chhattisgarh Official Language (Amendment) Act, 2007 added "छत्तीसगढ़ी" as an official language of the state, in addition to Hindi. १२. जम्मू और कश्मीर उर्दू अंग्रेज़ीArticle 145 of the जम्मू और कश्मीर का संविधान makes Urdu the official language of the state, but provides for the continued use of English for all official purposes. १३. झारखण्ड हिन्दी संथाली, ओडिया और् बांग्ला १४. तमिल नाडु तमिल अंग्रेज़ी १५. तेलंगाना तेलुगु उर्दू इन ज़िलों में दूसरी आधिकारिक भाषा है: हैदराबाद, रंगा रेड्डी, मेडक, निज़ामाबाद, महबूबनगर, अदीलाबाद और वारंगल १६. त्रिपुरा बांग्ला और कोक्रोबोरोक १७. नागालैंड अंग्रेज़ी १८. पंजाब पंजाबी १९. पश्चिमी बंगाल बांग्ला अंग्रेज़ी और नेपाली २०. बिहार हिन्दी उर्दू (कुछ क्षेत्रों और कामों के लिये), अंगिका, भोजपुरी, बज्जिका, और मैथिली २१. मणिपुर मणिपुरी(मेइतेई, या मेइतेईलॉन भी कहा जाता है)Section 2(f) of the Manipur Official Language Act, 1979 states that the official language of Manipur is the Manipuri language (an older English name for the Meitei language) written in the बंगाली लिपि. अंग्रेज़ी २२. मध्य प्रदेश हिन्दी २३. महाराष्ट्र मराठी २४. मिज़ोरम मिज़ो २५. मेघालय अंग्रेज़ीखासी भाषा और गारो भाषाराष्ट्रीय भाषाई अल्पसंख्यक आयोग की 43वीं रिपोर्ट बताती है कि निर्धारित तिथि से खासी को पूर्वी खासी हिल्स, वेस्ट खासी हिल्स, जयंतिया हिल्स और री भोई जिलों में एक सहयोगी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त होगा। पूर्वी गारो हिल्स, वेस्ट गारो हिल्स और साउथ गारो हिल्स के जिलों में गारो का समान दर्जा होगा।. On 21 मार्च 2006, the Chief Minister of Meghalaya stated in the State Assembly that a notification to this effect had been issued. २६. राजस्थान हिन्दी २७. सिक्किम नेपाली ११ अन्य भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है, लेकिन सिर्फ़ संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के नज़रिये से Eleven other languages — Bhutia, Lepcha, Limboo, Newari, Gurung, Mangar, Mukhia, Rai, Sherpa and Tamang - are termed "official", but only for the purposes of the preservation of culture and tradition. . See also २८. हरियाणा हिन्दी पंजाबी २९. हिमाचल प्रदेश हिन्दीअंग्रेज़ी संस्कृति thumb|270px|right| ताजमहल, विश्व के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में गिना जाता है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर बहुत संपन्न है। यहाँ की संस्कृति अनोखी है और वर्षों से इसके कई अवयव अब तक अक्षुण्ण हैं। आक्रमणकारियों तथा प्रवासियों से विभिन्न चीजों को समेट कर यह एक मिश्रित संस्कृति बन गई है। आधुनिक भारत का समाज, भाषाएं, रीति-रिवाज इत्यादि इसका प्रमाण हैं। ताजमहल और अन्य उदाहरण, इस्लाम प्रभावित स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। thumb|left|270px|गुम्पा नृत्य एक तिब्बती बौद्ध समाज का सिक्किम में छिपा नृत्य है। यह बौद्ध नव वर्ष पर किया जाता है। भारतीय समाज बहुधर्मिक, बहुभाषी तथा मिश्र-सांस्कृतिक है। पारंपरिक भारतीय पारिवारिक मूल्यों को बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। विभिन्न धर्मों के इस भूभाग पर कई मनभावन पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं - दिवाली, होली, दशहरा, पोंगल तथा ओणम, ईद उल-फ़ित्र, ईद-उल-जुहा, मुहर्रम, क्रिसमस, ईस्टर आदि भी बहुत लोकप्रिय हैं। भारत में संगीत तथा नृत्य की अपनी शैलियां भी विकसित हुईं, जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कथक प्रसिद्ध भारतीय नृत्य शैली है। हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्नाटक संगीत भारतीय परंपरागत संगीत की दो मुख्य धाराएं हैं। लोक नृत्यों में शामिल हैं पंजाब का भांगड़ा, असम का बिहू, झारखंड का झुमइर और डमकच, झारखंड और उड़ीसा का छाऊ, राजस्थान का घूमर, गुजरात का डांडिया और गरबा, कर्नाटक जा यक्षगान, महाराष्ट्र का लावनी और गोवा का देख्ननी । हालाँकि हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल है, क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय है। वर्तमान में फुटबॉल, हॉकी तथा टेनिस में भी बहुत भारतीयों की अभिरुचि है। देश की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम 1983 और 2011 में दो बार विश्व कप और 2007 का 20–20 विश्व-कप जीत चुकी है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2003 में वह विश्व कप के फाइनल तक पहुँची थी। 1930 तथा 40 के दशक में हॉकी भारत में अपने चरम पर थी। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी में भारत को बहुत प्रसिद्धि दिलाई और एक समय भारत ने अमरीका को 24–0 से हराया था जो अब तक विश्व कीर्तिमान है। शतरंज के जनक देश भारत के खिलाड़ी विश्वनाथ आनंद ने अच्छा प्रदर्शन किया है। वैश्वीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परंपरा का नया दौर कई भारतीयों की दृष्टि में उचित नहीं है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग इसे भारतीय पारंपरिक मूल्यों का हनन भी मानते हैं। विज्ञान तथा साहित्य में अधिक प्रगति न कर पाने की वजह से भारतीय समाज यूरोपीय लोगों पर निर्भर होता जा रहा है। ऐसे समय में लोग विदेशी अविष्कारों का भारत में प्रयोग अनुचित भी समझते हैं। भारतीय पर्व भारत में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं, जिसमें 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, 2 अक्टूबर को गांधी जयंती, दिवाली, होली, नवरात्रि, रामनवमी, दशहरा और ईद पूरे देश में मनाई जाती है। इसके अलावा अन्य पर्व राज्यों के अनुसार होते हैं। सिनेमा और टेलीविज़न भारतीय फिल्म उद्योग, दुनिया की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली सिनेमा का उत्पादन करता है। इसके अलावा यहाँ असमिया, बंगाली, भोजपुरी, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, गुजराती, मराठी, ओडिया, तमिल और तेलुगू भाषाओं के क्षेत्रीय सिनेमाई परंपराएं भी मौजूद हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय फिल्म राजस्व में 75% से अधिक का हिस्सा है। भारत में सितंबर 2016 तक 2200 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन सिनेमाघर थे तथा इसके 2019 तक 3000 तक बढ़ने की अपेक्षा की गई हैं। 1959 में भारत में टेलीविजन का प्रसारण, राज्य संचालित संचार के माध्यम के रूप में शुरू हुआ, और अगले दो दशकों तक इसका धीमी गति से विस्तार हुआ। 1990 के दशक में टेलीविजन प्रसारण पर राज्य के एकाधिकार समाप्त हो गया, और तब से, उपग्रह चैनलों ने भारतीय समाज की लोकप्रिय संस्कृति को आकार दिया है। आज, भारत में टेलीविज़न मनोरंजन का सबसे प्रचलित माध्यम हैं, तथा इसकी पैठ समाज के हर वर्ग तक फैली हैं। उद्योग के अनुमान हैं कि भारत में 2012 तक 462 मिलियन उपग्रह या केबल कनेक्शन के साथ, कुल 554 मिलियन से अधिक टीवी उपभोक्ता हैं, मनोरंजन के अन्य साधनो में प्रेस मीडिया (350 मिलियन), रेडियो (156 मिलियन) तथा इंटरनेट (37 मिलियन) भी सम्मलित हैं पाक-शैली (खानपान) thumb| thumb|दक्षिण भारत का खाना भारतीय खानपान बहुत ही समृद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही तरह का खाना पसन्द किया जाता है। भारतीय व्यंजन विदेशों में भी बहुत पसन्द किए जाते हैं। इन्हें भी देखें भारत सारावली सिंधु घाटी सभ्यता आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार भारतीय अर्थव्यवस्था भारतीय प्लेट सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार देशों की सूची (नाममात्र) भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची भारत के प्रथम टीन का पुरा सन्दर्भ टिप्पणी सूची बाहरी कड़ियाँ भारत का राष्ट्रीय पोर्टल (हिन्दी में) भारत २०११ (प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित भारत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी) India at UCB Libraries GovPubs बीबीसी हिन्दी पर भारत india gk question answer in hindi pdf श्रेणी:एशिया के देश श्रेणी:१९४७ में स्थापित देश या क्षेत्र श्रेणी:भारत श्रेणी:जम्बूद्वीप श्रेणी:दक्षिण एशिया के देश श्रेणी:अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:हिन्दुस्तानी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:संघीय गणराज्य
भारत की भाषाए
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भारत की भाषाये
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संस्कृत भाषा
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संस्कृत (संस्कृत में : संस्कृतम्, ) भारतीय उपमहाद्वीप की एक भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, बांग्ला, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। संस्कृत का अर्थ है "संस्कार की गयी " अर्थात "बदलाव की गयी", संस्कृत भाषा देवनागरी लिपि मे लिखी गयी है, धम्म लिपि मे समय के साथ थोड़ा- थोड़ा सुधार (बदलाव) होता रहा उदाहरण के लिए मौर्य का व गुप्त काल के शिलालेखों व अभिलेखों में शब्दो मे थोड़ा फर्क दिखायी पड़ता है। अनेक शताब्दियों तक यह चलता गया तथा पाली प्राकृत भाषा ( धम्म लिपि मे ) से अनेक लिपियों का उदय हुआ जैसे दक्षिण मे तमिल, तेलुगु व उत्तर मे बांगला, नागरी शारदा । 9 वीं शताब्दी में देवनागरी लिपि का प्रचलन शुरू हुआ व 11 शताब्दी तक आते आते देवनागरी लिपि पूर्ण से विकसित हो गयी , अगर बात करे संस्कृत भाषा की चूंकि संस्कृत की लिपि देवनागरी है अत: यह भी 9 वीं शताब्दी के मध्य आयी है, इससे पहले संस्कृत भाषा का कोई पुरातात्विक प्रमाण नही मिला व ना ही कही इसका जिक्र है। अत: इससे सिद्ध होता है की भारत (जिसका प्राचीन नाम जम्बूद्वीप है) की सबसे पुरानी भाषा प्राकृत पाली है व सबसे प्राचीन लिपि धम्म लिपि (आजकल ब्राह्मी लिपि) है। अगर देखा जाए सबसे प्राचीन भाषा व लिपि सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा जो अब तक नही पढ़ी गयी है । संस्कृत आमतौर पर कई पुरानी इंडो-आर्यन किस्मों को जोड़ती है। इनमें से सबसे पुरातन ऋग्वेद में पाया जाने वाला वैदिक संस्कृत है, जो 9 वीं शताब्दी के बाद रचित 1,028 भजनों का एक संग्रह है, जो इंडो-आर्यन जनजातियों द्वारा आज के उत्तरी अफगानिस्तान और उत्तरी भारत में अफगानिस्तान से पूर्व की ओर पलायन करते हैं। वैदिक संस्कृत ने उपमहाद्वीप की प्राचीन प्राचीन भाषाओं के साथ बातचीत की, नए पौधों और जानवरों के नामों को अवशोषित किया। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को भी सम्मिलित किया गया है। यह उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश की आधिकारिक राजभाषा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से संस्कृत में समाचार प्रसारित किए जाते हैं। कतिपय वर्षों से डी. डी. न्यूज (DD News) द्वारा वार्तावली नामक अर्धहोरावधि का संस्कृत-कार्यक्रम भी प्रसारित किया जा रहा है, जो हिन्दी चलचित्र गीतों के संस्कृतानुवाद, सरल-संस्कृत-शिक्षण, संस्कृत-वार्ता और महापुरुषों की संस्कृत जीवनवृत्तियों, सुभाषित-रत्नों आदि के कारण अनुदिन लोकप्रियता को प्राप्त हो रहा है। इतिहास right|thumb|350px|संस्कृत भाषा का वैश्विक विस्तृति : ३०० ईसापूर्व से लेकर १८०० ई तक की कालावधि में रचित संस्कृत ग्रन्थ एवं संस्कृत अभिलेखों की प्राप्ति के क्षेत्र संस्कृत का इतिहास बहुत पुराना है। वर्तमान समय में प्राप्त सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है। व्याकरण संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है। बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्याकरणाचार्यों ने संस्कृत व्याकरण पर बहुत कुछ लिखा है। किन्तु पाणिनि का संस्कृत व्याकरण पर किया गया कार्य सबसे प्रसिद्ध है। उनका अष्टाध्यायी किसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के कई तरह से शब्द-रूप बनाये जाते हैं, जो व्याकरणिक अर्थ प्रदान करते हैं। अधिकांश शब्द-रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं। इस तरह ये कहा जा सकता है कि संस्कृत एक बहिर्मुखी-अन्त-श्लिष्टयोगात्मक भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को वागीश शास्त्री ने वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया है। ध्वनि-तन्त्र और लिपि संस्कृत भारत की कई लिपियों में लिखी जाती रही है, लेकिन आधुनिक युग में देवनागरी लिपि के साथ इसका विशेष संबंध है। देवनागरी लिपि वास्तव में संस्कृत के लिए ही बनी है, इसलिए इसमें हर एक चिह्न के लिए एक और केवल एक ही ध्वनि है। देवनागरी में १३ स्वर और ३३ व्यंजन हैं। देवनागरी से रोमन लिपि में लिप्यन्तरण के लिए दो पद्धतियाँ अधिक प्रचलित हैं : IAST और ITRANS. शून्य, एक या अधिक व्यंजनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। संस्कृत, क्षेत्रीय लिपियों में लिखी जाती रही है। स्वर ये स्वर संस्कृत के लिए दिए गए हैं। हिन्दी में इनके उच्चारण थोड़े भिन्न होते हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्राIPA उच्चारण"प्" के साथ उच्चारणIAST समतुल्यअंग्रेज़ी समतुल्य हिन्दी में वर्णन अपaलघु या दीर्घ Schwa: जैसे a, above या ago मेंमध्य प्रसृत स्वर आपाāदीर्घ Open back unrounded vowel: जैसे a, father मेंदीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर इपिi लघु close front unrounded vowel: जैसे i, bit मेंह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर ईपीīदीर्घ close front unrounded vowel: जैसे i, machine मेंदीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर उपुu लघु close back rounded vowel: जैसे u, put मेंह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर ऊपूūदीर्घ close back rounded vowel: जैसे oo, school मेंदीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर एपेeदीर्घ close-mid front unrounded vowel: जैसे a in game (संयुक्त स्वर नहीं) मेंदीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर ऐपैaiदीर्घ diphthong: जैसे ei, height मेंदीर्घ द्विमात्रिक स्वर ओपोoदीर्घ close-mid back rounded vowel: जैसे o, tone (संयुक्त स्वर नहीं) मेंदीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर औपौauदीर्घ diphthong: जैसे ou, house मेंदीर्घ द्विमात्रिक स्वर संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ-इ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है। इसके अलावा निम्नलिखित वर्ण भी स्वर माने जाते हैं : ऋ -- वर्तमान में, स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से इसका अशुद्ध उच्चारण किया जाता है। आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह तथा मराठी में "रु" की तरह किया जाता है । ॠ -- केवल संस्कृत में (दीर्घ ऋ) ऌ -- केवल संस्कृत में (syllabic retroflex l) अं -- न् , म् , ङ् , ञ् , ण् और ं के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए अँ -- स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (संस्कृत में नहीं उपयुक्त होता) अः -- अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए व्यंजन जब कोई स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त्‌ अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे कि क्‌ ख्‌ ग्‌ घ्‌। स्पर्श अघोषघोषनासिक्यअल्पप्राणमहाप्राणअल्पप्राणमहाप्राणकण्ठ्यक k; अंग्रेजी: skipख kh; अंग्रेजी: catग g; अंग्रेजी: gameघ gh; महाप्राण /g/ङ n; अंग्रेजी: ringतालव्यच ch; अंग्रेजी: chatछ chh; महाप्राण /c/ज j; अंग्रेजी: jamझ jh; महाप्राण ञ n; अंग्रेजी: finchमूर्धन्यट t; अमेरिकी अंग्रेजी:: hurtingठ th; महाप्राण ड d; अमेरिकी अंग्रेजी:: murderढ dh; महाप्राण ण n; अमेरिकी अंग्रेज़ी:: hunterदन्त्यत t; स्पैनिश: tomateथ th; महाप्राण द d; स्पैनिश: dondeध dh; महाप्राण न n; अंग्रेज़ी: nameओष्ठ्यप p; अंग्रेज़ी: spinफ ph; अंग्रेज़ी: pitब b; अंग्रेज़ी: boneभ bh; महाप्राण /b/म m; अंग्रेज़ी: mine स्पर्शरहिततालव्यमूर्धन्यदन्त्य/वर्त्स्यकण्ठोष्ठ्य/काकल्यअन्तस्थय y; अंग्रेज़ी: youर r; स्कॉटिश अंग्रेज़ी: tripल l; अंग्रेजी: loveव v; अंग्रेजी: vaseऊष्म/संघर्षीश sh; अंग्रेज़ी: shipष shh; मूर्धन्य स s; अंग्रेज़ी: sameह h; अंग्रेज़ी: behind टिप्पणी इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में इसका प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोंक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी ध्वनि करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक्यों में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। संस्कृत भाषा की विशेषताएँ (१) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिए इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।Sagarika Dutt (2006). India in a Globalized World. Manchester University Press. p. 36. ISBN 978-1-84779-607-3.Gabriel J. Gomes (2012). Discovering World Religions. iUniverse. p. 54. ISBN 978-1-4697-1037-2. (२) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। (३) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है। (४) इसे देवभाषा माना जाता है। (५) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत > सम् + सुट् + 'कृ करणे' + क्त, ('सम्पर्युपेभ्यः करोतौ भूषणे' इस सूत्र से 'भूषण' अर्थ में 'सुट्' या सकार का आगम/ 'भूते' इस सूत्र से भूतकाल(past) को द्योतित करने के लिए संज्ञा अर्थ में क्त-प्रत्यय /कृ-धातु 'करणे' या 'Doing' अर्थ में) अर्थात् विभूूूूषित, समलंकृत(well-decorated) या संस्कारयुक्त (well-cutured)। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है। (६) शब्द-रूप - विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं। (७) द्विवचन - सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। (८) सन्धि - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जा है । (९) इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है। (१०) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।अमेरिकी पत्रिका (साइंटिफिक अमेरिकन) का दावा- संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से बढ़ती है याददाश्त (जनवरी २०१८) (११) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं। (१२) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है।Is Sanskrit the most suitable language for natural language processing? (१३) संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है। (१४) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी ३ करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी १०० गुना अधिक है। निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।Guide to OCR for Indic Scripts: Document Recognition and Retrieval (edited by Venu Govindaraju, Srirangaraj Ranga Setlur) (१५) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है। संस्कृत गिनती 1. एकम्2. द्वे3. त्रीणि4. चत्वारि5. पञ्च6. षट्7. सप्त8. अष्ट9. नव10. दश11. एकादश12. द्वादश13. त्रयोदश14. चतुर्दश15. पंचदश16. षोडश17. सप्तदश18. अष्टादश19. एकोनविंशतिः20. विंशतिः भारत और विश्व के लिए संस्कृत का महत्त्व संस्कृत कई भारतीय भाषाओं की जननी है। इनकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गई है या संस्कृत से प्रभावित है। पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आएगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी। यदि इच्छा-शक्ति हो तो संस्कृत को हिब्रू की भाँति पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है। हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं। हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है। हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं। भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। भारतीय संविधान की धारा 343, धारा 348 (2) तथा 351 का सारांश यह है कि देवनागरी लिपि में लिखी और मूलत: संस्कृत से अपनी पारिभाषिक शब्दावली को लेने वाली हिन्दी राजभाषा है। संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है। संस्कृत का साहित्य अत्यन्त प्राचीन, विशाल और विविधतापूर्ण है। इसमें अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान और साहित्य का खजाना है। इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। संस्कृत को कम्प्यूटर के लिए (कृत्रिम बुद्धि के लिए) सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।We should thank Sanskrit for the 21st century संस्कृत का अन्य भाषाओं पर प्रभाव संस्कृत भाषा के शब्द मूलत रूप से सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में हैं। सभी भारतीय भाषाओं में एकता की रक्षा संस्कृत के माध्यम से ही हो सकती है। मलयालम, कन्नड और तेलुगु आदि दक्षिणात्य भाषाएं संस्कृत से बहुत प्रभावित हैं। यहाँ तक कि तमिल में भी संस्कृत के हजारों शब्द भरे पड़े हैं और मध्यकाल में संस्कृत का तमिल पर गहरा प्रभव पड़ा।Tracing the Trajectory of Linguistic changes in Tamil: Mining the corpus of Tamil Texts विश्व की अनेकानेक भाषाओं पर संस्कृत ने गहरा प्रभाव डाला है।‘Sanskrit has had profound influence on world languages’ संस्कृत भारोपीय भाषा परिवर में आती है और इस परिवार की भाषाओं से भी संस्कृत में बहुत सी समानता है। वैदिक संस्कृत और अवेस्ता (प्राचीन इरानी) में बहुत समानता है। भारत के पड़ोसी देशों की भाषाएँ सिंहल, नेपाली, म्यांमार भाषा, थाई भाषा, ख्मेरSanskrit’s Influence on Khmer संस्कृत से प्रभावित हैं। बौद्ध धर्म का चीन ज्यों-ज्यों प्रसार हुआ वैसे वैसे पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक सैकड़ों संस्कृत ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। इससे संस्कृत के हजरों शब्द चीनी भाषा में गए। उत्तरी-पश्चिमी तिब्बत में तो अज से १००० वर्ष पहले तक संस्कृत की संस्कृति थी और वहाँ गान्धारी भाषा का प्रचलन था। How Sanskrit Language Is Associated With The Tibet and Xinjiang? +तत्सम-तद्भव-समान-शब्दसंस्कृत शब्दहिन्दीमलयालमकन्नडतेलुगुग्रीकलैटिनअंग्रेजीजर्मनफ़ारसी  मातृमाताअम्मामातेर मदर्मुटेरमादर  पितृ/पितरपिताअच्चन्पातेरफ़ाथर्फ़ाटेर दुहितृबेटीदाह्तर् भ्रातृ/भ्रातर भाईब्रदर्ब्रुडेर पत्तनम्पत्तनपट्टणम्टाउनवैधुर्यम्विधुरवैडूर्यम्वैडूर्यम्विजोवर्सप्तन्सातसेप्तम्सेव्हेन्ज़ीबेनअष्टौआठहोक्तोओक्तोऐय्‌ट्आख़्टनवन्नौहेणेअनोवेम्नायन्नोएन द्वारम् द्वारदोर्टोरनालिकेरः नारियलनाळिकेरम्कोकोस्नुस्स समसमान sameतात=पिता Dadअहम् I amस्मार्तSmartपंडित  पंडित/विशेषज्ञ Pundit center|thumb|600px|संस्कृत का प्राकृत भाषाओं से तथा भारोपीय भाषाओं से सम्बन्ध संस्कृत साहित्य देश, काल और विविधता की दृष्टि से संस्कृत साहित्य अत्यन्त विशाल है। इसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जाता है- वैदिक साहित्य तथा शास्त्रीय साहित्य । आज से तीन-चार हजार वर्ष पहले रचित वैदिक साहित्य उपलब्ध होता है। संस्कृत ग्रन्थ + परम्परानुसार संस्कृत साहित्य परम्परा संस्कृत ग्रन्थ, विधा श्रेणी उदाहरण सन्दर्भ हिन्दू धर्मग्रन्थ वेद, उपनिषद, आगम, भागवद्गीता Jan Gonda (1975), Vedic literature (Saṃhitās and Brāhmaṇas), Otto Harrassowitz Verlag, Teun Goudriaan, Hindu Tantric and Śākta Literature, Otto Harrassowitz Verlag, भाषा, व्याकरण अष्टाध्यायी, गणपाठ, पदपाठ, वार्त्तिक, महाभाष्य, वाक्यपदीय, फिट-सूत्र Hartmut Scharfe, A history of Indian literature. Vol. 5, Otto Harrassowitz Verlag, सामान्य नियम एवं धार्मिक नियम धर्मसूत्र/धर्मशास्त्र, मनुस्मृति राजनीति, राजशास्त्र अर्थशास्त्र कालगणना, गणित, तर्क कल्प, ज्योतिष, गणितशास्त्र, शुल्बसूत्र, सिद्धान्त, आर्यभटीय, दशगीतिकासूत्र, सिद्धान्तशिरोमणि, गणितसारसङ्ग्रह, बीजगणितम् Kim Plofker (2009), Mathematics in India, Princeton University Press, आयुर्विज्ञान, आयुर्वेद, स्वास्थ्य आयुर्वेद, सुश्रुतसंहिता, चरकसंहिता कामशास्त्र कामसूत्र, पञ्चसायक, रतिरहस्य, रतिमञ्जरी, अनङ्गरङ्ग, समयमातृका महाकाव्य रामायण, महाभारत राजवंशीय काव्य रघुवंश, कुमारसम्भव सुभाषित एवं शिक्षाप्रद साहित्य सुभाषित, नीतिशतक, बोधिचर्यावतार, शृंगार-ज्ञान-निर्णय, कलाविलास, चतुर्वर्गसङ्ग्रह, नीतिमञ्जरी, मुग्धोपदेश, सुभाषितरत्नसन्दोह, योगशास्त्र, शृंगार-वैराग्य-तरङ्गिणी नाटक, नृत्य तथा अन्य कलाएँ नाट्यशास्त्र संगीत संगीतशास्त्र, संगीतरत्नाकर, संगीत पारिजात Lewis Rowell, Music and Musical Thought in Early India, University of Chicago Press, काव्यशास्त्र काव्यशास्त्र Edwin Gerow, A history of Indian literature. Vol. 5, Otto Harrassowitz Verlag, मिथक पुराण Ludo Rocher (1986), The Puranas, Otto Harrassowitz Verlag, रहस्यमय अटकलें, दर्शन दर्शन, सांख्य, योग, न्याय, वैशेशिक, मीमांसा, वेदान्त वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त, आदि Karl Potter, The Encyclopedia of Indian Philosophies, Volumes 1 through 27, Motilal Banarsidass, कृषि एवं भोजन कृषिशास्त्र, वृक्षायुर्वेद Gyula Wojtilla (2006), History of Kr̥ṣiśāstra, Otto Harrassowitz Verlag, डिजाइन, शिल्प, वास्तुशास्त्र शिल्पशास्त्र, समराङ्गणसूत्रधार Also see volumes 1–6.Bruno Dagens (1995), Mayamata : An Indian Treatise on Housing Architecture and Iconography, मन्दिर, मूर्तिकला बृहत्संहिता, Stella Kramrisch, Hindu Temple, Vol. 1 and 2, Motilal Banarsidass, संस्कार गृह्यसूत्र Rajbali Pandey (2013), Hindu Saṁskāras: Socio-religious study of the Hindu sacraments, 2nd Edition, Motilal Banarsidass, बौद्ध धर्म धर्मग्रन्थ, मठ-सम्बन्धी नियम त्रिपिटक, महायान सम्प्रदाय के ग्रन्थ, अन्य जैन धर्म धर्मशास्त्र, दर्शन तत्त्वार्थ सूत्र, महापुराण एवं अन्य इनके अतिरिक्त रसविद्या, तंत्र साहित्य, वैमानिक शास्त्र तथा अन्यान्य विषयों पर संस्कृत में ग्रन्थ रचे गये जिनमें से कुछ आज भी उपलब्ध हैं। शिक्षा एवं प्रचार-प्रसार "संस्कृतम्" शब्द विभिन्न लिपियों में लिखा हुआ।|200px|right भारत के संविधान में संस्कृत आठवीं अनुसूची में सम्मिलित अन्य भाषाओं के साथ विराजमान है। त्रिभाषा सूत्र के अन्तर्गत संस्कृत भी आती है। हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की की वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली संस्कृत से निर्मित है। भारत तथा अन्य देशों के कुछ संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची नीचे दी गयी है- (देखें, भारत स्थित संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची) स्थापना वर्ष नाम स्थान1791सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयवाराणसी1876सद्विद्या पाठशालामैसूर1961कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयदरभंगा1962राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपतितिरुपति1962श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठनयी दिल्ली1970राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्लीनयी दिल्ली1981श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालयपुरी1986नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालयनेपाल1993श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालयकालडी1997कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालयरामटेक2001जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालयजयपुर2005श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालयवेरावल2008महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालयउज्जैन2011कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालयबंगलुरु सन्दर्भ यह भी देखिए वैदिक संस्कृत संस्कृत साहित्य भारत की भाषाएँ संस्कृत भाषा का इतिहास संस्कृत का पुनरुत्थान संस्कृत के विकिपीडिया प्रकल्प संस्कृत विकिपीडिया संस्कृत (संस्कृत विकोश:) संस्कृत विकिस्रोतम् (Sanskrit Wikisource) संस्कृत विकि पुस्तकानि (Sanskrit Wiki Books) बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भारतीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर आधारित शोध प्रबन्धों की निर्देशिका (राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान) संस्कृत गूगल समूह संस्कृत संसाधन हिन्दी-संस्कृत वार्तालाप पुस्तिका (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान) Links to Sanskrit resources Sankrit Web Sanskrit Fonts: South Asian Language and Resource Center - Sanskrit Discover Sanskrit Sanskrit Documents Sanskrit Texts and Stotras Omkarananda Ashram's Sanskrit Page संस्कृत सामग्री Sanskrit Documents Sanskrit Slokas सारस्वतसर्वस्वम् (शब्दकोश, संस्कृत ग्रन्थों आदि का विशाल संग्रह) संस्कृविश्वम् Sanskrit World संस्कृत के अनेकानेक ग्रन्थ, देवनागरी में Virtual e-Text Archive of Indic Texts (Indology page) SARIT वैदिक साहित्य : महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय - पी डी एफ़ प्रारूप, देवनागरी गौडीय ग्रन्थ-मन्दिर पर सहस्रों संस्कृत ग्रन्थ, बलराम इनकोडिंग में GRETIL पर सहस्रों संस्कृत ग्रन्थ, अनेक स्रोतों से, अनेक इनकोडिंग में संगणीकृतम बौद्ध संस्कृत त्रिपिटकम् (Digital Sanskrit Buddhistt Canon) TITUS Indica - Indic Texts Internet Sacred Text Archive - यहाँ बहुत से हिन्दू ग्रन्थ अंग्रेजी में अर्थ के साथ उपलब्ध हैं। कहीं-कहीं मूल संस्कृत पाठ भी उपलब्ध है। क्ले संस्कृत पुस्तकालय संस्कृत साहित्य के प्रकाशक हैं; यहाँ पर भी बहुत सारी सामग्री डाउनलोड के लिये उपलब्ध है। मुक्तबोध डिजिटल पुस्तकालय भारत विद्या मुक्तबोध इंडोलोजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (तंत्र एवं आगम साहित्य पर विशेष सामग्री) Asian Classic Input Project Digital Corpus of Sanskrit (a searchable collection of lemmatized Sanskrit texts) शब्दकोश आंध्रभारती का संस्कृत कोश गपेषणम् : आनलाइन संस्कृत कोश शोधन ; कई कोशों में एकसाथ खोज ; देवनागरी, बंगला आदि कई भारतीय लिपियों में आउटपुट; कई प्रारूपों में इनपुट की सुविधा संस्कृत-हिन्दी कोश (राज संस्करण) (गूगल पुस्तक ; रचनाकार - वामन शिवराम आप्टे) Monier Williams Dictionary (2006 revision) - इसमें संस्कृत शब्दों के अंग्रेजी अर्थ दिये गये हैं। शब्द इन्पुट Harvard-Kyoto, SLP1 या ITRANS में देने की सुविधा है। आप्टे अंग्रेजी --> संस्कृत शब्दकोश - इसमें परिणाम इच्छानुसार देवनागरी, iTrans, रोमन यूनिकोड आदि में प्राप्त किये जा सकते हैं। संक्षिप्त संस्कृत-आंग्लभाषा शब्दकोश (Concise Sanskrit-English Dictionary) - संस्कृत शब्द देवनागरी में लिखे हुए हैं। अर्थ अंग्रेजी में। लगभग १० हजार शब्द। डाउनलोड करके आफलाइन उपयोग के लिये उत्तम ! The Student's English-Sanskrit Dictionary (गूगल पुस्तक ; लेखक - Vaman Shivaram Apte) Monier-Williams Dictionary, printable Online Hypertext Dictionary The Sanskrit Heritage Dictionary Sanskrit-->French dictionary (download) (The Sanskrit Heritage Dictionary) Sanskrit Dictionary Glossary of Sanskrit Terms A Brief Sanskrit Glossary with the meanings of common Sanskrit spiritual terms. Recently updated. डाउनलोड योग्य शब्दकोश SanDic - Sanskrit-English Dictionary based on V. S. Apte's 'The practical Sanskrit-English dictionary', Arthur Anthony Macdonell's 'A practical Sanskrit dictionary' and Monier Williams 'Sanskrit-English Dictionary'. मुदगलकोश - software, which searches an offline version of the monier-williams dictionary, and integrates with several online tools stardict-mw-Sanskrit-English-2.4.2.tar.bz2 MW Sanskrit-English Dictionary in StarDict format. (can be used with GoldenDict also) Monier-Williams: DICT & HTML संस्कृत विषयक लेख तीसरी संस्कृत क्रांति अगर भारत में नहीं आएगी तो फिर कहाँ? (स्वराज्य पत्रिका; ऑस्कर पुजोल ; ५ फरवरी २०१९) संस्कृत - विज्ञान और कंप्यूटर की समर्थ भाषा सशक्त भाषा संस्कृत‌ The Wonder that is Sanskrit Sanskrit: The Mother of All Languages, अत्यन्त ज्ञानवर्धक लेख, तीन भागों में। संस्कृत के बारे में महापुरुषों के विचार (अंग्रेजी में) History of Sanskrit संस्कृत बनेगी नासा की भाषा, पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी Relevance of Sanskrit in Contemporary Society (B Mahadevan) संस्कृत साफ्टवेयर एवं उपकरण संस्कृत अनुवाद (गूगल ट्रान्स्लेट द्वारा) Diacritic Conversion - diCrunch - Balaram / CSX / (X)HK / ITRANS / Shakti Mac / Unicode / Velthuis / X-Sanskrit / Bengali Unicode / Devanagari Unicode / Oriya Unicode आदि इनकोडिंग का परस्पर परिवर्तक रोमन को यूनिकोड संस्कृत में लिप्यंतरित करने का उपकरण बरह - कम्प्यूटर पर संस्कृत लिखने एवं फाण्ट परिवर्तन का औजार Computational Linguistics R&D at Special Centre for Sanskrit Studies, J.N.U. - यहाँ अनेक भाषायी उपकरण उपलब्ध हैं। PaSSim — Paninian Sanskrit Simulator Sanskrit Verse Metre Recognizer गणकाष्टाध्यायी - संस्कृत व्याकरण का साफ्टवेयर (पाणिनि के सूत्रों पर आधारित) Sanskrit Utilities - Online Transliterator Sanskrit Dictionary, Sandhi, Pratyahara-Decoder and Metric Analyzer संस्कृतटूल्स - संस्कृत टूलबार मेधा - संस्कृत की-बोर्ड (मेधा) [medhA - a Sanskrit keyboard for Windows, Linux and Mac OS X.] संसाधनी (संस्कृत टेक्स्ट के विश्लेषण के औजार) संस्कृत जालस्थल सुसंस्कृतम् संस्कृतम् संस्कृतम् - संस्कृत के बारे में गूगल चर्चा समूह संस्‍कृतं भारतस्‍य जीवनम् ललितालालितः श्रेणी:प्राचीन भाषाएँ श्रेणी:नेपाल की भाषाएँ श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ श्रेणी:भारत की भाषाएँ
हिन्दू
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दू
हिंदू () वे लोग हैं जो धार्मिक रूप से हिंदू धर्म का पालन करते हैं। Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris, , pp. 35–37 ऐतिहासिक रूप से, इस शब्द का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक, सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में भी किया गया है। "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति पुरानी फ़ारसी से हुई है जिसने इन नामों को संस्कृत नाम सिंधु , सिंधु नदी का जिक्र करते हुए। समान शब्दों के ग्रीक सजातीय शब्द " इंडस " (नदी के लिए) और " इंडिया " (नदी की भूमि के लिए) हैं। " हिंदू " शब्द का तात्पर्य सिंधु (सिंधु) नदी के आसपास या उससे परे भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए एक भौगोलिक, जातीय या सांस्कृतिक पहचानकर्ता भी है। 16वीं शताब्दी ईस्वी तक, यह शब्द उपमहाद्वीप के उन निवासियों को संदर्भित करने लगा जो तुर्क या मुस्लिम नहीं थे। हिंदू एक पुरातन वर्तनी संस्करण है, जिसका उपयोग आज अपमानजनक माना जाता है। ; धार्मिक या सांस्कृतिक अर्थ में, स्थानीय भारतीय आबादी के भीतर हिंदू आत्म-पहचान का ऐतिहासिक विकास अस्पष्ट है। प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों में कहा गया है कि हिंदू पहचान ब्रिटिश औपनिवेशिक युग में विकसित हुई, या यह मुस्लिम आक्रमणों और मध्ययुगीन हिंदू-मुस्लिम युद्धों के बाद 8वीं शताब्दी ईस्वी के बाद विकसित हुई होगी। Sheldon Pollock (1993), Rāmāyaṇa and political imagination in India, Journal of Asian studies, Vol. 52, No. 2, pages 266–269 Brajadulal Chattopadhyaya (1998), Representing the other?: Sanskrit sources and the Muslims (eighth to fourteenth century), Manohar Publications, , pages 92–103, Chapter 1 and 2 हिंदू पहचान की भावना और हिंदू शब्द 13वीं और 18वीं शताब्दी के बीच संस्कृत और बंगाली के कुछ ग्रंथों में दिखाई देता है। 14वीं और 18वीं सदी के भारतीय कवियों जैसे विद्यापति, कबीर, तुलसीदास और एकनाथ ने हिंदू धर्म (हिंदू धर्म) वाक्यांश का इस्तेमाल किया और इसकी तुलना तुरक धर्म ( इस्लाम ) से की। ईसाई भिक्षु सेबेस्टियाओ मैनरिक ने 1649 में एक धार्मिक संदर्भ में 'हिंदू' शब्द का इस्तेमाल किया था। 18वीं शताब्दी में, यूरोपीय व्यापारियों और उपनिवेशवादियों ने सामूहिक रूप से भारतीय धर्मों के अनुयायियों को हिंदू के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया था। तुर्क, मुगल और अरब जैसे समूहों के लिए मुसलमानों के विपरीत, जो इस्लाम के अनुयायी थे। 19वीं सदी के मध्य तक, औपनिवेशिक प्राच्यवादी ग्रंथों ने हिंदुओं को बौद्ध, सिख और जैन से अलग कर दिया, लेकिन औपनिवेशिक कानून लगभग 20वीं सदी के मध्य तक उन सभी को हिंदू शब्द के दायरे में मानते रहे। Rachel Sturman (2010), Hinduism and Law: An Introduction (Editors: Timothy Lubin et al), Cambridge University Press, , pag 90 विद्वानों का कहना है कि हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के बीच अंतर करने की प्रथा एक आधुनिक घटना है। Julius J. Lipner (2009), Hindus: Their Religious Beliefs and Practices, 2nd Edition, Routledge, , pages 17–18 Leslie Orr (2014), Donors, Devotees, and Daughters of God, Oxford University Press, , pages 25–26, 204 लगभग 1.2 पर अरब, Hindu Population projections Pew Research (2015), Washington DC ईसाई और मुसलमानों के बाद हिंदू दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं। 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार, हिंदुओं का विशाल बहुमत, लगभग 966 मिलियन (वैश्विक हिंदू आबादी का 94.3%) भारत में रहता है । Rukmini S Vijaita Singh Muslim population growth slows The Hindu, 25 August 2015; 79.8% of more than 121 crore Indians (as per 2011 census) are Hindus भारत के बाद, सबसे अधिक हिंदू आबादी वाले अगले नौ देश घटते क्रम में हैं: नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त राज्य अमेरिका, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइटेड किंगडम । 10 Countries With the Largest Hindu Populations, 2010 and 2050 Pew Research Center (2015), Washington DC ये विश्व की 99% हिंदू आबादी के लिए जिम्मेदार हैं, और दुनिया के शेष देशों में कुल मिलाकर लगभग 6 मिलियन हिंदू थे । हिंदू शब्द की उत्पत्ति हिन्दू शब्द एक पर्यायवाची शब्द है। यह हिंदू शब्द इंडो-आर्यन और संस्कृत शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है "पानी का एक बड़ा शरीर", जो "नदी, महासागर" को कवर करता है। इसका उपयोग सिंधु नदी के नाम के रूप में किया गया था और इसकी सहायक नदियों को भी संदर्भित किया गया था। गेविन फ्लड के अनुसार, वास्तविक शब्द ' hindu ' सबसे पहले आता है, "सिंधु (संस्कृत: सिंधु ) नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए एक फ़ारसी भौगोलिक शब्द", विशेष रूप से डेरियस प्रथम के 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व के शिलालेख में पंजाब क्षेत्र, जिसे वेदों में सप्त सिंधु कहा जाता है, ज़ेंड अवेस्ता में हप्त हिंदू कहा जाता है। डेरियस प्रथम के 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के शिलालेख में उत्तर-पश्चिमी भारत का जिक्र करते हुए हि[एन]डुश प्रांत का उल्लेख है। भारत के लोगों को हिंदूवान कहा जाता था और 8वीं शताब्दी के पाठ चचनामा में हिंदवी का इस्तेमाल भारतीय भाषा के लिए विशेषण के रूप में किया गया था। डीएन झा के अनुसार, इन प्राचीन अभिलेखों में 'हिंदू' शब्द एक जातीय-भौगोलिक शब्द है और यह किसी धर्म का संदर्भ नहीं देता है। धर्म के अर्थों के साथ 'हिंदू' के सबसे पहले ज्ञात अभिलेखों में बौद्ध विद्वान जुआनज़ैंग द्वारा लिखित 7वीं शताब्दी ई.पू. का चीनी पाठ 'रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन्स''' शामिल हो सकता है। जुआनज़ैंग लिप्यंतरित शब्द इन-टू का उपयोग करता है जिसका अरविंद शर्मा के अनुसार "अर्थ धार्मिक में बहता है"। जबकि जुआनज़ैंग ने सुझाव दिया कि यह शब्द चंद्रमा के नाम पर रखे गए देश को संदर्भित करता है, एक अन्य बौद्ध विद्वान इत्सिंग ने इस निष्कर्ष का खंडन करते हुए कहा कि इन-टू देश का सामान्य नाम नहीं है। अल-बिरूनी के 11वीं शताब्दी के ग्रंथ तारिख अल-हिंद, और दिल्ली सल्तनत काल के ग्रंथों में 'हिंदू' शब्द का उपयोग किया गया है, जहां इसमें बौद्ध जैसे सभी गैर-इस्लामिक लोग शामिल हैं, और "एक क्षेत्र" होने की अस्पष्टता बरकरार रखी गई है। या एक धर्म"।   भारतीय इतिहासकार रोमिला थापर के अनुसार, 'हिंदू' समुदाय अदालत के इतिहास में मुस्लिम समुदाय के अनाकार 'अन्य' के रूप में आता है। तुलनात्मक धर्म विद्वान विल्फ्रेड केंटवेल स्मिथ कहते हैं कि 'हिंदू' शब्द ने शुरुआत में अपना भौगोलिक संदर्भ बरकरार रखा: 'भारतीय', 'स्वदेशी, स्थानीय', वस्तुतः 'मूल'। धीरे-धीरे, भारतीय समूहों ने खुद को और अपने "पारंपरिक तरीकों" को आक्रमणकारियों से अलग करते हुए, इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया। 1192 ई. में मुहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार के बारे में चंद बरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो पाठ "हिंदुओं" और "तुर्कों" के संदर्भ से भरा है, और एक स्तर पर कहता है, "दोनों धर्मों ने अपनी घुमावदार तलवारें;" हालाँकि, इस पाठ की तारीख स्पष्ट नहीं है और अधिकांश विद्वान इसे नवीनतम मानते हैं। इस्लामी साहित्य में, 'अब्द अल-मलिक इसामी की फ़ारसी कृति, फ़ुतुहु-सलातीन, जिसकी रचना 1350 में बहमनी शासन के तहत दक्कन में की गई थी, जातीय-भौगोलिक अर्थ में भारतीय के अर्थ में ' hindi ' शब्द का उपयोग करती है और यह शब्द ' hindu ' का अर्थ हिन्दू धर्म के अनुयायी के अर्थ में 'हिन्दू' है। कवि विद्यापति की कृतिलता (1380) में हिन्दू शब्द का प्रयोग एक धर्म के अर्थ में किया गया है, यह हिंदुओं की संस्कृतियों के विपरीत है और एक शहर में तुर्क (मुसलमान) और निष्कर्ष निकाला कि "हिंदू और तुर्क एक साथ रहते हैं; प्रत्येक दूसरे के धर्म ( धम्मे ) का मज़ाक उड़ाता है।" यूरोपीय भाषा (स्पेनिश) में धार्मिक संदर्भ में 'हिंदू' शब्द का सबसे पहला उपयोग 1649 में सेबस्टियो मैनरिक द्वारा किया गया प्रकाशन था। भारतीय इतिहासकार डीएन झा के निबंध "लुकिंग फॉर ए हिंदू आइडेंटिटी" में वे लिखते हैं: "चौदहवीं शताब्दी से पहले किसी भी भारतीय ने खुद को हिंदू नहीं बताया" और "अंग्रेजों ने 'हिंदू' शब्द भारत से उधार लिया, दिया। इसने एक नया अर्थ और महत्व दिया, [और] इसे हिंदू धर्म नामक एक संशोधित घटना के रूप में भारत में पुनः लाया।" 18वीं शताब्दी में, यूरोपीय व्यापारियों और उपनिवेशवादियों ने भारतीय धर्मों के अनुयायियों को सामूहिक रूप से हिंदू कहना शुरू कर दिया। 'हिंदू' के अन्य प्रमुख उल्लेखों में 14वीं शताब्दी में मुस्लिम राजवंशों के सैन्य विस्तार से लड़ने वाले आंध्र प्रदेश राज्यों के अभिलेखीय शिलालेख शामिल हैं, जहां 'हिंदू' शब्द आंशिक रूप से 'तुर्क' या इस्लामी धार्मिक पहचान के विपरीत एक धार्मिक पहचान को दर्शाता है। हिंदू शब्द का प्रयोग बाद में कभी-कभी कुछ संस्कृत ग्रंथों में किया गया, जैसे कश्मीर की बाद की राजतरंगिणी (हिंदूका, c. 1450 ) और 16वीं से 18वीं शताब्दी के कुछ बंगाली गौड़ीय वैष्णव ग्रंथ, जिनमें चैतन्य चरितामृत और चैतन्य भागवत शामिल हैं। इन ग्रंथों में इसका उपयोग 16वीं शताब्दी के चैतन्य चरितामृत पाठ और 17वीं शताब्दी के भक्त माला पाठ में "हिंदू धर्म " वाक्यांश का उपयोग करते हुए मुसलमानों से हिंदुओं की तुलना करने के लिए किया गया, जिन्हें यवन (विदेशी) या म्लेच्छ (बर्बर) कहा जाता है। हिंदू पहचान का इतिहास शेल्डन पोलक कहते हैं, 10वीं शताब्दी के बाद और विशेष रूप से 12वीं शताब्दी के इस्लामी आक्रमण के बाद, राजनीतिक प्रतिक्रिया भारतीय धार्मिक संस्कृति और सिद्धांतों के साथ जुड़ गई। Sheldon Pollock (1993), Rāmāyaṇa and political imagination in India, Journal of Asian studies, Vol. 52, No. 2, pages 266–269 देवता राम को समर्पित मंदिर उत्तर से दक्षिण भारत तक बनाए गए, और पाठ्य अभिलेखों के साथ-साथ भौगोलिक शिलालेखों में रामायण के हिंदू महाकाव्य की तुलना क्षेत्रीय राजाओं और इस्लामी हमलों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया से की जाने लगी। उदाहरण के लिए, पोलक के अनुसार, देवगिरि के रामचन्द्र नाम के यादव राजा का वर्णन 13वीं शताब्दी के एक अभिलेख में इस प्रकार किया गया है, "इस राम का वर्णन कैसे किया जाए.. जिन्होंने वाराणसी को म्लेच्छ (बर्बर, तुर्क मुस्लिम) गिरोह से मुक्त कराया और वहां निर्माण कराया।" सारंगधारा का एक स्वर्ण मंदिर"। पोलक कहते हैं कि यादव राजा रामचन्द्र को देवता शिव (शैव) के भक्त के रूप में वर्णित किया गया है, फिर भी उनकी राजनीतिक उपलब्धियों और वाराणसी में मंदिर निर्माण प्रायोजन, दक्कन क्षेत्र में उनके राज्य के स्थान से दूर, का वर्णन वैष्णववाद के संदर्भ में ऐतिहासिक अभिलेखों में किया गया है। राम, एक देवता विष्णु अवतार। पोलक ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और एक उभरती हुई हिंदू राजनीतिक पहचान का सुझाव देते हैं जो हिंदू धार्मिक ग्रंथ रामायण पर आधारित है, जो आधुनिक समय में भी जारी है, और सुझाव देते हैं कि यह ऐतिहासिक प्रक्रिया भारत में इस्लाम के आगमन के साथ शुरू हुई। Sheldon Pollock (1993), Rāmāyaṇa and political imagination in India, Journal of Asian studies, Vol. 52, No. 2, pages 261–297 ब्रजदुलाल चट्टोपाध्याय ने पोलक सिद्धांत पर सवाल उठाया है और पाठ्य एवं अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं। Brajadulal Chattopadhyaya (2004), Other or the Others? in The World in the Year 1000 (Editors: James Heitzman, Wolfgang Schenkluhn), University Press of America, , pages 303–323 चट्टोपाध्याय के अनुसार, इस्लामी आक्रमण और युद्धों के प्रति हिंदू पहचान और धार्मिक प्रतिक्रिया विभिन्न राज्यों में विकसित हुई, जैसे इस्लामी सल्तनत और विजयनगर साम्राज्य के बीच युद्ध, और तमिलनाडु में राज्यों पर इस्लामी हमले। चट्टोपाध्याय कहते हैं, इन युद्धों का वर्णन न केवल रामायण से राम की पौराणिक कहानी का उपयोग करके किया गया था, बल्कि मध्ययुगीन अभिलेखों में धार्मिक प्रतीकों और मिथकों की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग किया गया था जिन्हें अब हिंदू साहित्य का हिस्सा माना जाता है। Brajadulal Chattopadhyaya (1998), Representing the other?: Sanskrit sources and the Muslims (eighth to fourteenth century), Manohar Publications, , pages 92–103, Chapter 1 and 2 राजनीतिक शब्दावली के साथ धार्मिक का यह उद्भव आठवीं शताब्दी ईस्वी में सिंध पर पहले मुस्लिम आक्रमण के साथ शुरू हुआ और 13वीं शताब्दी के बाद तीव्र हुआ। उदाहरण के लिए, 14वीं शताब्दी का संस्कृत पाठ, मधुरविजयम, विजयनगर राजकुमार की पत्नी गंगादेवी द्वारा लिखित एक संस्मरण, धार्मिक शब्दों का उपयोग करके युद्ध के परिणामों का वर्णन करता है, 13वीं और 14वीं शताब्दी के काकतीय राजवंश काल के तेलुगु भाषा में ऐतिहासिक लेखन एक समान "विदेशी अन्य (तुर्क)" और "आत्म-पहचान (हिंदू)" विरोधाभास प्रस्तुत करते हैं। Cynthia Talbot (2000), Beyond Turk and Hindu: Rethinking Religious Identities in Islamicate South Asia (Editors: David Gilmartin, Bruce B. Lawrence), University Press of Florida, , pages 291–294 चट्टोपाध्याय और अन्य विद्वान, कहते हैं कि भारत के दक्कन प्रायद्वीप और उत्तर भारत में मध्ययुगीन युग के युद्धों के दौरान सैन्य और राजनीतिक अभियान, अब संप्रभुता की खोज नहीं थे, उन्होंने इसके खिलाफ एक राजनीतिक और धार्मिक शत्रुता का प्रतीक बना दिया था। "इस्लाम की अन्यता", और इससे हिंदू पहचान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया शुरू हुई। Brajadulal Chattopadhyaya (1998), Representing the other?: Sanskrit sources and the Muslims (eighth to fourteenth century), Manohar Publications, , pages 92–103, Chapter 1 and 2 एंड्रयू निकोलसन ने हिंदू पहचान के इतिहास पर विद्वता की अपनी समीक्षा में कहा है कि भक्ति आंदोलन के 15वीं से 17वीं शताब्दी के संतों, जैसे कबीर, अनंतदास, एकनाथ, विद्यापति का स्थानीय साहित्य बताता है कि हिंदुओं और तुर्कों (मुसलमानों) के बीच अलग-अलग धार्मिक पहचान हैं। ), इन शताब्दियों के दौरान गठित हुआ था। Andrew Nicholson (2013), Unifying Hinduism: Philosophy and Identity in Indian Intellectual History, Columbia University Press, , pages 198–199 निकोलसन कहते हैं, इस काल की कविता हिंदू और इस्लामी पहचानों के बीच विरोधाभास है और साहित्य "हिंदू धार्मिक पहचान की विशिष्ट भावना" के साथ मुसलमानों की निंदा करता है। अन्य भारतीय धर्मों के बीच हिंदू पहचान विद्वानों का कहना है कि हिंदू, बौद्ध और जैन पहचान पूर्वव्यापी रूप से प्रस्तुत आधुनिक निर्माण हैं। Leslie Orr (2014), Donors, Devotees, and Daughters of God, Oxford University Press, , pages 25–26, 204 दक्षिण भारत जैसे क्षेत्रों में 8वीं शताब्दी के बाद के शिलालेखीय साक्ष्य बताते हैं कि मध्ययुगीन युग के भारत में, कुलीन और लोक धार्मिक प्रथाओं दोनों स्तरों पर, संभवतः "साझा धार्मिक संस्कृति" थी, और उनकी सामूहिक पहचान "एकाधिक" थी। स्तरित और फजी"। Leslie Orr (2014), Donors, Devotees, and Daughters of God, Oxford University Press, , pages 42, 204 यहां तक कि शैव और वैष्णव जैसे हिंदू संप्रदायों में भी, लेस्ली ऑर का कहना है कि हिंदू पहचान में "दृढ़ परिभाषाओं और स्पष्ट सीमाओं" का अभाव था। जैन-हिंदू पहचानों में ओवरलैप में जैनियों द्वारा हिंदू देवताओं की पूजा करना, जैनियों और हिंदुओं के बीच अंतर्विवाह, और मध्ययुगीन युग के जैन मंदिरों में हिंदू धार्मिक प्रतीक और मूर्तिकला शामिल हैं। Paul Dundas (2002), The Jains, 2nd Edition, Routledge, , pages 6–10 K Reddy (2011), Indian History, Tata McGraw Hill, , page 93 Margaret Allen (1992), Ornament in Indian Architecture, University of Delaware Press, , page 211 भारत से परे, इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर, ऐतिहासिक अभिलेख हिंदुओं और बौद्धों के बीच विवाह, मध्ययुगीन युग के मंदिर वास्तुकला और मूर्तियां जो एक साथ हिंदू और बौद्ध विषयों को शामिल करते हैं, की पुष्टि करते हैं, Trudy King et al. (1996), Historic Places: Asia and Oceania, Routledge, , page 692 जहां हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का विलय हुआ और "एक के भीतर दो अलग-अलग पथ" के रूप में कार्य किया गया। समग्र प्रणाली", ऐन केनी और अन्य विद्वानों के अनुसार। Ann Kenney et al (2003), Worshiping Siva and Buddha: The Temple Art of East Java, University of Hawaii Press, , pages 24–25 इसी तरह, धार्मिक विचारों और उनके समुदायों दोनों में, सिखों का हिंदुओं के साथ एक जैविक संबंध है, और वस्तुतः सभी सिखों के पूर्वज हिंदू थे। Robert Zaehner (1997), Encyclopedia of the World's Religions, Barnes & Noble Publishing, , page 409 सिखों और हिंदुओं के बीच, विशेषकर खत्रियों के बीच, विवाह अक्सर होते थे। कुछ हिंदू परिवारों ने अपने बेटे को एक सिख के रूप में पाला, और कुछ हिंदू सिख धर्म को हिंदू धर्म के भीतर एक परंपरा के रूप में देखते हैं, भले ही सिख आस्था एक अलग धर्म है। जूलियस लिपनर का कहना है कि हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के बीच अंतर करने की प्रथा एक आधुनिक घटना है, लेकिन यह एक सुविधाजनक अमूर्तता है। Julius J. Lipner (2009), Hindus: Their Religious Beliefs and Practices, 2nd Edition, Routledge, , pages 17–18 लिपनर कहते हैं, भारतीय परंपराओं में अंतर करना एक हालिया अभ्यास है, और यह "न केवल सामान्य रूप से धर्म की प्रकृति और विशेष रूप से भारत में धर्म के बारे में पश्चिमी पूर्व धारणाओं का परिणाम है, बल्कि भारत में पैदा हुई राजनीतिक जागरूकता का भी परिणाम है"। इसके लोग और इसके औपनिवेशिक इतिहास के दौरान पश्चिमी प्रभाव का परिणाम है। पवित्र भूगोल फ्लेमिंग और एक जैसे विद्वानों का कहना है कि पहली सहस्राब्दी ईस्वी के बाद के महाकाव्य युग के साहित्य से यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है कि एक पवित्र भूगोल के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐतिहासिक अवधारणा थी, जहां पवित्रता धार्मिक विचारों का एक साझा समूह था। उदाहरण के लिए, शैव धर्म के बारह ज्योतिर्लिंग और शक्ति धर्म के इक्यावन शक्तिपीठों को प्रारंभिक मध्ययुगीन युग के पुराणों में एक विषय के आसपास तीर्थ स्थलों के रूप में वर्णित किया गया है। यह पवित्र भूगोल और शैव मंदिर समान प्रतिमा विज्ञान, साझा विषयों, रूपांकनों और अंतर्निहित किंवदंतियों के साथ भारत भर में पाए जाते हैं, हिमालय से लेकर दक्षिण भारत की पहाड़ियों तक, एलोरा गुफाओं से लेकर वाराणसी तक लगभग मध्य तक। पहली सहस्राब्दी. कुछ सदियों बाद के शक्ति मंदिर पूरे उपमहाद्वीप में सत्यापन योग्य हैं। वाराणसी को एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में स्कंद पुराण के अंदर सन्निहित वाराणसीमहात्म्य पाठ में प्रलेखित किया गया है, और इस पाठ का सबसे पुराना संस्करण 6वीं से 8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है। भारतीय उपमहाद्वीप में फैली शिव हिंदू परंपरा में बारह पवित्र स्थलों का विचार न केवल मध्ययुगीन युग के मंदिरों में, बल्कि विभिन्न स्थलों पर पाए गए तांबे के शिलालेखों और मंदिर की मुहरों में भी दिखाई देता है। भारद्वाज के अनुसार, गैर-हिंदू ग्रंथ जैसे कि चीनी बौद्ध और फ़ारसी मुस्लिम यात्रियों के संस्मरण पहली सहस्राब्दी ईस्वी के उत्तरार्ध में हिंदुओं के बीच पवित्र भूगोल की तीर्थयात्रा के अस्तित्व और महत्व की पुष्टि करते हैं। फ्लेमिंग के अनुसार, जो लोग सवाल करते हैं कि क्या हिंदू और हिंदू धर्म शब्द धार्मिक संदर्भ में एक आधुनिक रचना है, वे कुछ ग्रंथों के आधार पर अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं जो आधुनिक युग में बचे हैं, या तो इस्लामी अदालतों के या पश्चिमी मिशनरियों या औपनिवेशिक द्वारा प्रकाशित साहित्य के। युगीन भारतविद् इतिहास के तर्कसंगत निर्माण का लक्ष्य रखते हैं। हालाँकि, हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुफा मंदिरों जैसे गैर-पाठ्य साक्ष्य का अस्तित्व, साथ ही मध्ययुगीन युग के तीर्थ स्थलों की सूची, एक साझा पवित्र भूगोल और एक ऐसे समुदाय के अस्तित्व का प्रमाण है जो साझा धार्मिक परिसरों के बारे में स्वयं जागरूक था। और परिदृश्य. इसके अलावा, विकसित होती संस्कृतियों में यह एक आदर्श है कि एक धार्मिक परंपरा की "जीवित और ऐतिहासिक वास्तविकताओं" और संबंधित "पाठ्य प्राधिकारियों" के उद्भव के बीच एक अंतर है। यह परंपरा और मंदिर संभवतः मध्यकालीन युग की हिंदू पांडुलिपियों के सामने आने से बहुत पहले अस्तित्व में थे, जो उनका और पवित्र भूगोल का वर्णन करते हैं। फ्लेमिंग कहते हैं, यह वास्तुकला और पवित्र स्थलों के परिष्कार के साथ-साथ पौराणिक साहित्य के संस्करणों में भिन्नता को देखते हुए स्पष्ट है। डायना एल. एक और आंद्रे विंक जैसे अन्य भारतविदों के अनुसार, 11वीं शताब्दी तक मुस्लिम आक्रमणकारियों को मथुरा, उज्जैन और वाराणसी जैसे हिंदू पवित्र भूगोल के बारे में पता था। इसके बाद की शताब्दियों में ये स्थल उनके सिलसिलेवार हमलों का निशाना बने। हिंदू राष्ट्रवाद क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट का कहना है कि आधुनिक हिंदू राष्ट्रवाद का जन्म 1920 के दशक में महाराष्ट्र में इस्लामिक खिलाफत आंदोलन की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था, जिसमें भारतीय मुसलमानों ने दुनिया के अंत में सभी मुसलमानों के खलीफा के रूप में तुर्की ओटोमन सुल्तान का समर्थन किया था। युद्ध I Christophe Jaffrelot (2007), Hindu Nationalism: A Reader, Princeton University Press, , pages 13–15 Gail Minault (1982), The Khilafat Movement: Religious Symbolism and Political Mobilization in India, Columbia University Press, , pages 1–11 and Preface section हिंदुओं ने इस विकास को भारतीय मुस्लिम आबादी की विभाजित वफादारी, पैन-इस्लामिक आधिपत्य के रूप में देखा, और सवाल किया कि क्या भारतीय मुस्लिम एक समावेशी उपनिवेशवाद-विरोधी भारतीय राष्ट्रवाद का हिस्सा थे। जेफरलॉट कहते हैं, हिंदू राष्ट्रवाद की जो विचारधारा उभरी, उसे सावरकर द्वारा संहिताबद्ध किया गया था, जब वह ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के राजनीतिक कैदी थे। Amalendu Misra (2004), Identity and Religion, SAGE Publications, , pages 148–188 क्रिस बेली हिंदू राष्ट्रवाद की जड़ें हिंदू पहचान और मराठा संघ द्वारा हासिल की गई राजनीतिक स्वतंत्रता में खोजते हैं, जिसने भारत के बड़े हिस्से में इस्लामी मुगल साम्राज्य को उखाड़ फेंका, जिससे हिंदुओं को अपने विविध धार्मिक विश्वासों को आगे बढ़ाने की आजादी मिली और हिंदू पवित्र स्थानों को बहाल किया गया। जैसे वाराणसी. CA Bayly (1985), The pre-history of communialism? कुछ विद्वान हिंदू लामबंदी और परिणामी राष्ट्रवाद को 19वीं सदी में भारतीय राष्ट्रवादियों और नव-हिंदू धर्म गुरुओं द्वारा ब्रिटिश उपनिवेशवाद की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा हुआ मानते हैं। Christophe Jaffrelot (2007), Hindu Nationalism: A Reader, Princeton University Press, , pages 6–7 Antony Copley (2000), Gurus and their followers: New religious reform movements in Colonial India, Oxford University Press, , pages 4–5, 24–27, 163–164 Hardy, F. "A radical assessment of the Vedic heritage" in Representing Hinduism: The Construction of Religious and National Identity, Sage Publ., Delhi, 1995. जैफ़रलोट का कहना है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान ईसाई मिशनरियों और इस्लामी मतांतरणकर्ताओं के प्रयासों ने, जिनमें से प्रत्येक ने हिंदुओं को हीन और अंधविश्वासी होने की पहचान देकर रूढ़िवादी और कलंकित करके अपने धर्म में नए धर्मांतरण कराने की कोशिश की, ने हिंदुओं को फिर से संगठित करने में योगदान दिया। अपनी आध्यात्मिक विरासत पर जोर देते हुए और इस्लाम और ईसाई धर्म की प्रतिपरीक्षा करते हुए, हिंदू सभा'' (हिंदू संघ) जैसे संगठन बनाए और अंततः 1920 के दशक में हिंदू-पहचान से प्रेरित राष्ट्रवाद की स्थापना की। Christophe Jaffrelot (2007), Hindu Nationalism: A Reader, Princeton University Press, , pages 13 औपनिवेशिक युग का हिंदू पुनरुत्थानवाद और लामबंदी, हिंदू राष्ट्रवाद के साथ, पीटर वैन डेर वीर कहते हैं, मुख्य रूप से मुस्लिम अलगाववाद और मुस्लिम राष्ट्रवाद की प्रतिक्रिया और प्रतिस्पर्धा थी। Peter van der Veer (1994), Religious Nationalism: Hindus and Muslims in India, University of California Press, , pages 11–14, 1–24 प्रत्येक पक्ष की सफलताओं ने दूसरे पक्ष के भय को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू राष्ट्रवाद और मुस्लिम राष्ट्रवाद का विकास हुआ। वान डेर वीर कहते हैं, 20वीं सदी में, भारत में धार्मिक राष्ट्रवाद की भावना बढ़ी, लेकिन केवल मुस्लिम राष्ट्रवाद ही पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान (बाद में पाकिस्तान और बांग्लादेश में विभाजित) के गठन के साथ सफल हुआ, जो आजादी के बाद "एक इस्लामी राज्य" के रूप में स्थापित हुआ। . Peter van der Veer (1994), Religious Nationalism: Hindus and Muslims in India, University of California Press, , pages 31, 99, 102 धार्मिक दंगे और सामाजिक आघात के बाद लाखों हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख नव निर्मित इस्लामिक राज्यों से बाहर चले गए और ब्रिटिश-बहुल भारत में फिर से बस गए। Peter van der Veer (1994), Religious Nationalism: Hindus and Muslims in India, University of California Press, , pages 26–32, 53–54 1947 में भारत और पाकिस्तान के अलग होने के बाद, हिंदू राष्ट्रवाद आंदोलन ने 20वीं सदी के उत्तरार्ध में हिंदुत्व की अवधारणा विकसित की। Ram-Prasad, C. "Contemporary political Hinduism" in Blackwell companion to Hinduism, Blackwell Publishing, 2003. हिंदू राष्ट्रवाद आंदोलन ने भारतीय कानूनों में सुधार की मांग की है, आलोचकों का कहना है कि यह भारत के इस्लामी अल्पसंख्यकों पर हिंदू मूल्यों को थोपने का प्रयास है। उदाहरण के लिए, गेराल्ड लार्सन कहते हैं कि हिंदू राष्ट्रवादियों ने एक समान नागरिक संहिता की मांग की है, जहां सभी नागरिक समान कानूनों के अधीन हैं, सभी के पास समान नागरिक अधिकार हैं, और व्यक्तिगत अधिकार व्यक्ति के धर्म पर निर्भर नहीं होते हैं। GJ Larson (2002), Religion and Personal Law in Secular India: A Call to Judgment, Indiana University Press, , pages 55–56 इसके विपरीत, हिंदू राष्ट्रवादियों के विरोधियों की टिप्पणी है कि भारत से धार्मिक कानून को खत्म करने से मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक अधिकारों को खतरा है, और इस्लामी आस्था के लोगों को इस्लामी शरिया -आधारित व्यक्तिगत कानूनों का संवैधानिक अधिकार है। John Mansfield (2005), The Personal Laws or a Uniform Civil Code?, in Religion and Law in Independent India (Editor: Robert Baird), Manohar, , page 121-127, 135–136, 151–156 एक विशिष्ट कानून, जो भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों और उनके विरोधियों के बीच विवादास्पद है, लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र से संबंधित है। Sylvia Vatuk (2013), Adjudicating Family Law in Muslim Courts (Editor: Elisa Giunchi), Routledge, , pages 52–53 हिंदू राष्ट्रवादियों की मांग है कि विवाह की कानूनी उम्र अठारह वर्ष होनी चाहिए, जो सार्वभौमिक रूप से सभी लड़कियों पर लागू होती है, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो और विवाह की आयु को सत्यापित करने के लिए विवाह को स्थानीय सरकार के साथ पंजीकृत किया जाए। मुस्लिम मौलवी इस प्रस्ताव को अस्वीकार्य मानते हैं क्योंकि शरिया-व्युत्पन्न व्यक्तिगत कानून के तहत, एक मुस्लिम लड़की की शादी उसके यौवन तक पहुंचने के बाद किसी भी उम्र में की जा सकती है। कैथरीन एडेनी का कहना है कि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद एक विवादास्पद राजनीतिक विषय है, सरकार के स्वरूप और अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों के संदर्भ में इसका क्या अर्थ है या इसका क्या अर्थ है, इस पर कोई आम सहमति नहीं है। Katharine Adeney and Lawrence Saez (2005), Coalition Politics and Hindu Nationalism, Routledge, , pages 98–114 जनसांख्यिकी प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, दुनिया भर में 1.2 बिलियन से अधिक हिंदू (दुनिया की आबादी का 15%) हैं, जिनमें से 94.3% से अधिक भारत में केंद्रित हैं। ईसाई (31.5%), मुस्लिम (23.2%) और बौद्ध (7.1%) के साथ, हिंदू दुनिया के चार प्रमुख धार्मिक समूहों में से एक हैं। Pew Research Center, Washington DC, Religious Composition by Country (December 2012) (2012)]] अधिकांश हिंदू एशियाई देशों में पाए जाते हैं। सबसे अधिक हिंदू निवासियों और नागरिकों (घटते क्रम में) वाले शीर्ष पच्चीस देश भारत, नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त राज्य अमेरिका, मलेशिया, म्यांमार, यूनाइटेड किंगडम, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त अरब अमीरात हैं। , कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, त्रिनिदाद और टोबैगो, सिंगापुर, फिजी, कतर, कुवैत, गुयाना, भूटान, ओमान और यमन। हिंदुओं के उच्चतम प्रतिशत (घटते क्रम में) वाले शीर्ष पंद्रह देश नेपाल, भारत, मॉरीशस, फिजी, गुयाना, भूटान, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, कतर, श्रीलंका, कुवैत, बांग्लादेश, रीयूनियन, मलेशिया और सिंगापुर हैं। जन्म दर, यानी प्रति महिला बच्चे, हिंदुओं के लिए 2.4 है, जो विश्व के औसत 2.5 से कम है। Total Fertility Rates of Hindus by Region, 2010–2050 Pew Research Center (2015), Washington DC प्यू रिसर्च का अनुमान है कि 2050 तक 1.4 अरब हिंदू होंगे।Projected Global Hindu Population, 2010–2050 Pew Research Center (2015), Washington DC +महाद्वीपों में हिंदुओं की जनसंख्या (2017–18)महाद्वीपहिंदु जनसंख्या % हिंदु जनसंख्या % महाद्वीप जनसंख्याअनुयायी संख्याविश्व संख्याएशिया1,074,728,90199.26626.01 बढ़ोतरी बढ़ोतरीयूरोप2,030,9040.2140.278 बढ़ोतरी बढ़ोतरीअमेरिका2,806,3440.2630.281 बढ़ोतरी बढ़ोतरीअफ्रीका2,013,7050.2130.225 बढ़ोतरी बढ़ोतरीओशिनिया791,6150.0712.053 बढ़ोतरी बढ़ोतरीकुल1,082,371,46910015.03 बढ़ोतरी बढ़ोतरी अधिक प्राचीन समय में, हिंदू साम्राज्यों ने दक्षिण पूर्व एशिया, विशेष रूप से थाईलैंड, नेपाल, बर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, फिलीपींस, और जो अब मध्य वियतनाम है, में धर्म और परंपराओं का उदय और प्रसार किया। . बाली इंडोनेशिया में 3 मिलियन से अधिक हिंदू पाए जाते हैं, एक ऐसी संस्कृति जिसका मूल तमिल हिंदू व्यापारियों द्वारा पहली सहस्राब्दी सीई में इंडोनेशियाई द्वीपों में लाए गए विचारों का पता लगाता है। उनके पवित्र ग्रंथ वेद और उपनिषद भी हैं। पुराण और इतिहास (मुख्य रूप से रामायण और महाभारत) इंडोनेशियाई हिंदुओं के बीच स्थायी परंपराएं हैं, जो सामुदायिक नृत्यों और छाया कठपुतली (वायंग) प्रदर्शनों में व्यक्त की जाती हैं। जैसा कि भारत में, इंडोनेशियाई हिंदू आध्यात्मिकता के चार रास्तों को पहचानते हैं, इसे कैटूर मार्ग कहते हैं। इसी तरह, भारत में हिंदुओं की तरह, बालिनी हिंदुओं का मानना ​​​​है कि मानव जीवन के चार उचित लक्ष्य हैं, इसे चतुर पुरुषार्थ कहते हैं - धर्म (नैतिक और नैतिक जीवन की खोज), अर्थ (धन और रचनात्मक गतिविधि की खोज), काम (खुशी की खोज) और प्रेम) और मोक्ष (आत्मज्ञान और मुक्ति की खोज) संस्कृति हिंदू संस्कृति एक शब्द है जिसका इस्तेमाल ऐतिहासिक वैदिक लोगों सहित हिंदुओं और हिंदू धर्म की संस्कृति और पहचान का वर्णन करने के लिए किया जाता है। हिंदू संस्कृति को कला, वास्तुकला, इतिहास, आहार, वस्त्र, ज्योतिष और अन्य रूपों के रूप में गहनता से देखा जा सकता है। भारत और हिंदू धर्म की संस्कृति एक दूसरे के साथ गहराई से प्रभावित और आत्मसात है। दक्षिण पूर्व एशिया और ग्रेटर इंडिया के भारतीयकरण के साथ, संस्कृति ने एक लंबे क्षेत्र और उस क्षेत्र के अन्य धर्मों के लोगों को भी प्रभावित किया है। जैन धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म सहित सभी भारतीय धर्म हिंदू धर्म से गहराई से प्रभावित और नरम हैं। टिप्पणियाँ सन्दर्भ इन्हें भी देखें हिंदू धर्म हिंदुत्व हिंदुस्तान
भक्त कवियों की सूची
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आलवार सन्त नयनार रविदास (रैदास) सूरदास तुलसीदास मीरा बाई कबीर रहीम त्यागराज आण्डाल नरसिंह महेता ज्ञानेश्वर पुरंदरदास चैतन्य महाप्रभु जनाबाई तुकाराम मलिक मोहम्मद जायसी महिपति रामकृष्ण परमहंस Harivansh mahaprabhu इन्हें भी देखें हिंदी साहित्य भक्ति काल हिन्दी कवि श्रेणी:हिन्दी साहित्य
भक्त
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आराधना करने वाले को भक्त कहा जाता है। और भक्त समूह को भक्तों की संज्ञा दी जाती है। किसी धार्मिक स्थान पर सामूहिक रूप से इकट्ठा होना ही भक्तों की श्रेणी मे गिना जाता है। नरसिंह महेता चैतन्य महाप्रभु आण्डाल श्रेणी:धर्म श्रेणी:धार्मिक शब्दावली
शब्दकोश
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पुनर्निर्देशित हिन्दू धर्म की शब्दावली thumb|300px| शब्दकोश (अन्य वर्तनी: शब्दकोष) एक बडी सूची या ऐसा ग्रन्थ जिसमें शब्दों की वर्तनी, उनकी व्युत्पत्ति, व्याकरणनिर्देश, अर्थ, परिभाषा, प्रयोग और पदार्थ आदि का सन्निवेश हो। शब्दकोश एकभाषीय हो सकते हैं, द्विभाषिक हो सकते हैं या बहुभाषिक हो सकते हैं। अधिकतर शब्दकोशों में शब्दों के उच्चारण के लिये भी व्यवस्था होती है, जैसे - अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि में, देवनागरी में या आडियो संचिका के रूप में। कुछ शब्दकोशों में चित्रों का सहारा भी लिया जाता है। अलग-अलग कार्य-क्षेत्रों के लिये अलग-अलग शब्दकोश हो सकते हैं; जैसे - विज्ञान शब्दकोश, चिकित्सा शब्दकोश, विधिक (कानूनी) शब्दकोश, गणित का शब्दकोश आदि। सभ्यता और संस्कृति के उदय से ही मानव जान गया था कि भाव के सही सम्प्रेषण के लिए सही अभिव्यक्ति आवश्यक है। सही अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन आवश्यक है। सही शब्द के चयन के लिए शब्दों के संकलन आवश्यक हैं। शब्दों और भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता समझ कर आरम्भिक लिपियों के उदय से बहुत पहले ही आदमी ने शब्दों का लेखाजोखा रखना शुरू कर दिया था। इस के लिए उस ने कोश बनाना शुरू किया। कोश में शब्दों को इकट्ठा किया जाता है। इतिहास सब से पहले शब्द संकलन भारत में बने। भारत की यह शानदार परम्परा वेदों जितनी—कम से कम पाँच हजार वर्ष—पुरानी है। प्रजापति कश्यप का निघण्टु संसार का प्राचीनतम शब्द संकलन है। इस में 18 सौ वैदिक शब्दों को इकट्ठा किया गया है। निघण्टु पर महर्षि यास्क की व्याख्या निरुक्त संसार का पहला शब्दार्थ कोश (डिक्शनरी) एवं विश्वकोश (ऐनसाइक्लोपीडिया) है। इस महान शृंखला की सशक्त कड़ी है छठी या सातवीं सदी में लिखा अमर सिंह कृत नामलिंगानुशासन या त्रिकाण्ड जिसे सारा संसार 'अमरकोश' के नाम से जानता है। अमरकोश को विश्व का सर्वप्रथम समान्तर कोश (थेसेरस) कहा जा सकता है। भारत के बाहर संसार में शब्द संकलन का एक प्राचीन प्रयास अक्कादियाई संस्कृति की शब्द सूची है। यह शायद ईसा पूर्व सातवीं सदी की रचना है। ईसा से तीसरी सदी पहले की चीनी भाषा का कोश है 'ईर्या'। आधुनिक कोशों की नींव डाली इंग्लैंड में 1755 में सैमुएल जानसन ने। उन की डिक्शनरी सैमुएल जॉन्संस डिक्शनरी ऑफ़ इंग्लिश लैंग्वेज ने कोशकारिता को नए आयाम दिए। इस में परिभाषाएँ भी दी गई थीं। असली आधुनिक कोश आया इक्यावन वर्ष बाद 1806 में अमरीका में नोहा वैब्स्टर्स की नोहा वैब्स्टर्स ए कंपैंडियस डिक्शनरी आफ़ इंग्लिश लैंग्वेज प्रकाशित हुई। इस ने जो स्तर स्थापित किया वह पहले कभी नहीं हुआ था। साहित्यिक शब्दावली के साथ साथ कला और विज्ञान क्षेत्रों को स्थान दिया गया था। कोश को सफल होना ही था, हुआ। वैब्स्टर के बाद अंग्रेजी कोशों के संशोधन और नए कोशों के प्रकाशन का व्यवसाय तेजी से बढ़ने लगा। आधुनिक कोश की विधाएँ वर्तमान युग ने कोशविद्या को अत्यन्त व्यापक परिवेश में विकसित किया। सामान्य रूप से उसकी दो मोटी-मोटी विधाएँ कही जा सकती हैं - (1) शब्दकोश और (2) ज्ञानकोश। शब्दकोश के स्वरूप का बहुमुखी प्रवाह निरंतर प्रौढ़ता की ओर बढ़ता लक्षित होता रहा है। आज की कोशविद्या का विकसित स्वरूप भाषा विज्ञान, व्याकरणशास्त्र, साहित्य, अर्थविज्ञान, शब्दप्रयोगीय, ऐतिहासिक विकास, सन्दर्भसापेक्ष अर्थविकास और नाना शास्त्रों तथा विज्ञानों में प्रयुक्त विशिष्ट अर्थों के बौद्धिक और जागरूक शब्दार्थ संकलन का पुंजीकृत परिणाम है। शब्दकोश हमारे परिचित भाषाओं के कोशों में ऑक्सफोर्ड-इंग्लिश-डिक्शनरी के परिशीलन में उपर्युक्त समस्त प्रवृत्तियों का उत्कृष्ट निदर्शन देखा जा सकता है। उसमें शब्दों के सही उच्चारण का संकेत-चिह्नों से विशुद्ध और परिनिष्ठित बोध भी कराया है। योरप के उन्नत और समृद्ध देशों की प्रायः सभी भाषाओं में विकासित स्तर की कोशविद्या के आधार पर उत्कृष्ट, विशाल, प्रामाणिक और सम्पन्न कोशों का निर्माण हो चुका है और उन दोशों में कोशनिर्माण के लिये ऐसे स्थायी संस्थान प्रतिष्ठापित किए जा चुके हैं जिनमें अबाध गति से सर्वदा कार्य चलता रहता है। लब्धप्रतिष्ठा और बडे़-बडे़ विद्वानों का सहयोग तो उन संस्थानों को मिलता ही है, जागरूक जनता भी सहयोग देती है। अंग्रेजी डिक्शनरी तथा अन्य भाषाओं में निर्मित कोशकारों के रचना-विधान-मूलक वैशिष्टयों का अध्ययन करने से अद्यतन कोशों में निम्ननिर्दिष्ट बातों का अनुयोग आवश्यक लगता है— क) उच्चारणमसूचक संकेतचिह्नों के माध्यम से शब्दों के स्वरों व्यंजनों का पूर्णतः शुद्ध और परिनिष्ठित उच्चारण स्वरूप बताना और स्वराघात बलाघात का निर्देश करते हुए यथासम्भव उच्चार्य अंश के अक्षरों की बद्धता और अबद्धता का परिचय देना; ख) व्याकरण संबंद्ध उपयोगी और आवश्यक निर्देश देना; ग) शब्दों की इतिहास- संबंद्ध वैज्ञानिक—व्युत्पत्ति प्रदर्शित करना; घ) परिवार—संबंद्ध अथवा परिवारमुक्त निकट या दूर के शब्दों के साथ शब्दरूप और अर्थरूप का तुलनात्मक पक्ष उपस्थित करना; ङ) शब्दों के विभिन्न और पृथक्कृत नाना अर्थों को अधिक—न्यून प्रयोग क्रमानुसार सूचित करना; च) अप्रयुक्त-शब्दों अथवा शब्दप्रयोगों की विलोपसूचना देना; छ) शब्दों के पर्याय बताना; और ज) संगत अर्थों के समार्नाथ उदाहरण देना; झ) चित्रों, रेखाचित्रों, मानचित्रों आदि के द्वारा अर्थ को अधिक स्पष्ट करना। 'आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी' का नव्यतम और बृहत्तम संस्करण आधुनिक कोशविद्या की प्रायः सभी विशेषताओं से संपन्न है। नागरीप्रचारिणी सभा के हिंदी शब्दसागर के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाश्यमान मानक शब्दकोश एक विस्तृत आयास है। हिन्दी कोशकला के लब्धप्रतिष्ठ सम्पादक रामचन्द्र वर्मा के इस प्रशंसनीय कार्य का उपजीव्य भी मुख्यातः शब्दसागर ही है। उसका मूल कलेवर तात्विक रूप में शब्दसागर से ही अधिकांशतः परिकलित है। हिन्दी के अन्य कोशों में भी अधिकांश सामग्री इसी कोश से ली गयी है। थोडे-बहुत मुख्यतः संस्कृत कोशों से और यदा-कदा अन्यत्र से शब्दों और अर्थों को आवश्यक अनावश्यक रूप में ठूँस दिया गया है। ज्ञानमण्डल के बृहद् हिन्दी शब्दकोश में पेटेवाली प्रणाली शुरू की गई है। परन्तु वह पद्धति संस्कृत के कोशों में जिनका निर्माण पश्चिमी विद्वानों के प्रयास से आरम्भ हुआ था, सैकड़ो वर्ष पूर्व से प्रचलित हो गई थी। पर आज भी, नव्य या आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोश उस स्तर तक नहीं पहुँच पाए हैं जहाँ तक आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी अथवा रूसी, अमेरिकन, जर्मन, इताली, फ़्रांसीसी आदि भाषाओं के उत्कृष्ट और अत्यन्त विकसित कोश पहुँच चुके हैं। कोशरचना की ऊपर वर्णित विधा को हम साधारणतः सामान्य भाषा शब्दकोश कह सकते हैं। इस प्रकार शब्दकोश एकभाषी, द्विभाषी, त्रिभाषी और बहुभाषी भी होते हैं। बहुभाषी शब्दकोशों में तुलनात्मक शब्दकोश भी यूरोपीय भाषाओं में ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान की प्रौढ़ उपलब्धियों से प्रमाणीकृत रूप में निर्मित हो चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से भाषावैज्ञानिक अनुशीलन और शोध के परिणामस्वरूप उपलब्ध सामग्री का नियोजन किया गया है। ऐसे तुलनात्मक कोश भी आज बन चुके हैं जिनमें प्राचीन भाषाओं की तुलना मिलती है। ऐसे भी कोश प्रकाशित हैं जिनमें एक से अधिक मूल परिवार की अनेक भाषाओं के शब्दों का तुलनात्मक परिशीलन किया गया है। शब्दकोशों के नाना रूप शब्दकोशों के और भी नाना रूप आज विकसित हो चुके हैं और हो रहे हैं। वैज्ञानिक और शास्त्रीय विषयों के सामूहिक और उस-उस विषय के अनुसार शब्दकोश भी आज सभी समृद्ध भाषाओं में बनते जा रहे हैं। शास्त्रों और विज्ञानशाखाओं के परिभाषिक शब्दकोश भी निर्मित हो चुके हैं और हो रहे हैं। इन शब्दकोशों की रचना एक भाषा में भी होती है और दो या अनेक भाषाओं में भी। कुछ में केवल पर्याय शब्द रहते हैं और कुछ में व्याख्याएँ अथवा परिभाषाएँ भी दी जाती है। विज्ञान और तकनीकी या प्रविधिक विषयों से संबद्ध नाना पारिभाषिक शब्दकोशों में व्याख्यात्मक परिभाषाओं तथा कभी कभी अन्य साधनों की सहायता से भी बिलकुल सही अर्थ का बोध कराया जाता है। दर्शन, भाषाविज्ञान, मनोविज्ञान, समाजविज्ञान और समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि समस्त आधुनिक विद्याओं के कोश विश्व की विविध सम्पन्न भाषाओं में विशेषज्ञों की सहायता से बनाए जा रहे हैं और इस प्रकृति के सैकडों-हजारों कोश भी बन चुके हैं। शब्दार्थकोश सम्बन्धी प्रकृति के अतिरिक्त इनमें ज्ञानकोशात्मक तत्वों की विस्तृत या लघु व्याख्याएँ भी संमिश्रित रहती है। प्राचीन शास्त्रों और दर्शनों आदि के विशिष्ट एवं पारिभाषिक शब्दों के कोश भी बने हैं और बनाए जा रहे हैं। अनके अतिरिक्त एक-एक ग्रन्थ के शब्दार्थ कोश (यथा मानस शब्दावली) और एक-एक लेखक के साहित्य की शब्दावली भी योरप, अमेरिका और भारत आदि में संकलित हो रही है। इनमें उत्तम कोटि के कोशकारों ने ग्रन्थसन्दर्भों के संस्करणात्मक संकेत भी दिए हैं। अकारादि वर्णानुसारी अनुक्रमणिकात्मक उन शब्दसूचियों का—जिनके अर्थ नहीं दिए जाते हैं पर सन्दर्भसंकेत रहता हैं—यहाँ उल्लेख आवश्यक नहीं है। योरप और इंगलैड में ऐसी शब्दसूचियाँ अनेक बनीं। शेक्सपियर द्वारा प्रयुक्त शब्दों की ऐसी अनुक्रमणिका परम प्रसिद्ध है। वैदिक शब्दों की और ऋक्संहिता में प्रयुक्त पदों की ऐसी शब्दसूचियों के अनेक संकलन पहले ही बन चुके हैं। व्याकरण महाभाष्य की भी एक एक ऐसी शब्दानुक्रमणिका प्रकाशित है। परन्तु इनमें अर्थ न होने के कारण यहाँ उनका विवेचन नहीं किया जा रहा है। ज्ञानकोश कोश की एक दूसरी विधा ज्ञानकोश भी विकसित हुई है। इसके वृहत्तम और उत्कष्ट रूप को इन्साइक्लोपिडिया कहा गया है। हिन्दी में इसके लिये विश्वकोश शब्द प्रयुक्त और गृहीत हो गया है। यह शब्द बँगाल विश्वकोशकार ने कदाचित् सर्वप्रथम बंगाल के ज्ञानकोश के लिये प्रयुक्त किया। उसका एक हिन्दी संस्करण हिन्दी विश्वकोश के नाम से नए सिरे से प्रकाशित हुआ। हिन्दी में यह शब्द प्रयुक्त होने लगा है। यद्यपि हिन्दी के प्रथम किशोरोपयोगी ज्ञानकोश (अपूर्ण) को श्री श्रीनारायण चतुर्वेदी तथा पं० कृष्ण वल्लभ द्विवेदी द्वारा विश्वभारती अभिधान दिया गया तो भी ज्ञान कोश, ज्ञानदीपिका, विश्वदर्शन, विश्वविद्यालयभण्डार आदि संज्ञाओं का प्रयोग भी ज्ञानकोश के लिये हुआ है। स्वयं सरकार भी बालशिक्षोपयोगी ज्ञानकोशात्मक ग्रन्थ का प्रकाशन 'ज्ञानसरोवर' नाम से कर रही है। परन्तु इन्साइक्लोपीडिया के अनुवाद रूप में विवकोश शब्द ही प्रचलित हो गया। उडिया के एक विश्वकोश का नाम शब्दार्थानुवाद के अनुसार ज्ञान मण्डल रखा भी गया। ऐसा लगता है कि बृहद् परिवेश के व्यापक ज्ञान का परिभाषिक और विशिष्ट शब्दों के माध्यम से ज्ञान देने वाले ग्रन्थ का इन्साइक्लोपीडिया या विश्वकोश अभिधान निर्धारित हुआ और अपेक्षाकृत लघुतरकोशों को ज्ञानकोश आदि विभिन्न नाम दिए गए। अंग्रेजी आदि भाषाओं में बुक ऑफ़ नालेज, डिक्शनरी आव जनरल नालेज आदि शीर्षकों के अन्तर्गत नाना प्रकार के छोटे बडे विश्वकोश अथवा ज्ञानकोश बने हैं और आज भी निरन्तर प्रकाशित एवं विकसित होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं इन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ रिलीजन ऐण्ड एथिक्स आदि विषयविशेष से संबंद्ध विश्वकोशों की संख्या भी बहुत ही बडी है। अंग्रेजी भाषा के माध्यम से निर्मित अनेक सामान्य विश्वकोश और विशष विश्वकोश भी आज उपलब्ध हैं। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, इन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना अंग्रेजी के ऐसे विश्वकोश हैं। अंग्रेजी के सामान्य विश्वकोशों द्वारा इनकी प्रामाणिकता और संमान्यता सर्वस्वीकृत है। निरन्तर इनके संशोधित, संवर्धित तथा परिष्कृत संस्करण निकलते रहते हैं। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के दो परिशिष्ट ग्रन्थ भी हैं जो प्रकाशित होते रहते हैं और जो नूतन संस्करण की सामग्री के रूप में सातत्य भाव से संकलित होते रहते हैं। इंग्लैंड में इन्साइक्लोपीडिया के पहले से ही ज्ञानकोशात्मक कोशों के नाना रूप बनने लगे थे। ज्ञानकोशों के नाना प्रकार ज्ञानकोशों के भी इतने अधिक प्रकार और पद्धतियाँ हैं जिनकी चर्चा का यहाँ अवसर नहीं है। चरितकोश, कथाकोश इतिहासकोश, ऐतिहासिक कालकोश, जीवनचरितकोश पुराख्यानकोश, पौराणिक- ख्यातपुरुषकोश आदि आदि प्रकार के विविध नामरूपात्मक ज्ञानकोशों की बहुत सी विधाएँ विकसित और प्रचलित हो चुकी हैं। यहाँ प्रसंगतः ज्ञानकोशों का संकेतात्मक नामनिर्देश मात्र कर दिया जा रहा है। हम इस प्रसंग को यहीं समाप्त करते हैं और शब्दार्थकोश से संबंद्ध प्रकृत विषय की चर्चा पर लौट आते हैं। आधुनिक कोशविद्या : तुलनात्मक दृष्टि भारत में कोशविद्या के आधुनिक स्वरुप का उद्भव और विकास मध्यकालीन हिंदी कोशों की मान्यता और रचनाप्रक्रिया से भिन्न उद्देश्यों को लेकर हुआ। पाश्चात्य कोशों के आदर्श, मान्यताएँ, उद्देश्य, रचनाप्रक्रिया और सीमा के नूतन और परिवर्तित आयामों का प्रवेश भारत की कोश रचनापद्धति में आरंभ हुआ। संस्कृत और इतर भारतीय भाषाओं में पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वानों के प्रयास से छोटे-बडे बहुत से कोश निर्मित हुए। इन कोशों का भारत और भारत के बाहर भी निर्माण हुआ। आरंभ में भारतीय भाषाओं के, मुख्यतः संस्कृत के कोश अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि भाषाओं के माध्यम से बनाए गए। इनमें संस्कृत आदि के शब्द भी रोमन लिपि में रखे गए। शब्दार्थ की व्याख्या और अर्थ आदि के निर्देश कोश की भाषा के अनुसार जर्मन, अंग्रेजी, फारसी, पुर्तगाली आदि भाषाओं में दिए गए। बँगला, तमिल आदि भाषाओं के ऐसे अनेक कोशों की रचना ईसाई धर्मप्रचारकों द्वारा भारत और आसपास के लघु द्वीपों में हुई। हिंदी के भी ऐसे अनेक कोश बने। सबसे पहला शब्दकोश संभवतः फरग्युमन का 'हिंदुस्तानी अंग्रेजी' (अंग्रेजी हिंदुस्तानी) कोश था जो १७७३ ई० में लंदन में प्रकाशित हुआ। इन आरंभिक कोशों को 'हिंदुस्तानी कोश' कहा गया। ये कोश मुख्यतः हिंदी के ही थे। पाश्चात्य विद्वानों के इन कोशों में हिंदी को हिंदुस्तानी कहने का कदाचित् यह कारण है कि हिंदुस्तान भारत का नाम माना गया और वहाँ की भाषा हिंदुस्तानी कही गई। कोशविद्या के इन पाश्चात्य पंडितों की दृष्टि में हिंदी का ही पर्याय हिंदुस्तानी था और वही सामान्य रूप में हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा थी। आरंभिक क्रम में कोशनिर्माण की प्रेरणात्मक चेतना का बहुत कुछ सामान्य रूप भारत और पश्चिम में मिलता जुलता था। भारत का वैदिक निघंटु विरल और क्लिष्ट शब्दों के अर्थ और पर्यायों का संक्षिप्त संग्रह था। योरप में भी ग्लासेरिया से जिस कोशविद्या का आरंभिक बीजवपन हुआ था, उसके मूल में भई विरल और क्लिष्ट शब्दों का पर्याय द्वारा अर्थबोध कराना ही उद्देश्य था। लातिन की उक्त शब्दार्थसूची से शनैः शनैः पश्चिम की आधुनिक कोशविद्या के वैकासिक सोपान आविर्भूत हुए। भारत और पश्चिम दोनों ही स्थानों में शब्दों के सकलन में वर्गपद्धति का कोई न कोई रूप मिल जाता है। पर आगे चलकर नव्य कोशों का पूर्वोंक्त प्राचीन और मध्यकालीन कोशों से जो सर्वप्रथम और प्रमुखतम भेदक वैशिष्टय प्रकट हुआ वह था - 'वर्णमालाक्रमानुसारी शब्दयोजना' की पद्धति। आधुनिक कोश: सीमा और स्वरूप योरप में आधुनिक कोशों का जो स्वरूप विकसित हुआ, उसकी रूपरेखा का संकेत ऊपर किया जा चुका है। योरप, एशिया और अफ्रिका के उस तटभाग में जो अरब देशों के प्रभाव में आया था, उक्त पद्धति के अनुकरण पर कोशों का निर्माण होने लगा था। भारत में व्यापक पैमाने पर जिस रूप में कोश निर्मत होते चले, उनकी संक्षिप्त चर्चा की जा चुकी है। इन सबके आधार पर उत्तम कोटि के आधुनिक कोशों की विशिष्टताओं का आकलन करते हुए कहा जा सकता है कि: (क) आधुनिक कोशों में शब्दप्रयोग के ऐतिहाससिक क्रम की सरणि दिखाने के प्रयास को बहुत महत्व दिया गया है। ऐसे कोर्शो को ऐतिहासिक विवरणात्मक कहा जा सकता है। उपलब्ध प्रथम प्रयोग और प्रयोगसंदर्भ का आधार लेकर अर्थ और उनके एकमुखी या बहुमुखी विकास के सप्रमाण उपस्थापन की चेष्टा की जाती है। दूसरे शब्दों में इसे हम शब्दप्रयोग और तद्बोध्यार्थ के रूप की आनुक्रमिक या इतिहासानुसारी विवेचना कह सकते है। इसमें उद्वरणों का उपयोग दोनों ही बातों (शब्दप्रयोग और अर्थविकास) की प्रमाणिकता सिद्ध करते हैं। (ख) आधुनिक कोशकार के द्वार संगृहीत शब्दों और अर्थों के आधार का प्रामाण्य भी अपेक्षित होता है। प्राचीन कोशकार इसके लिये बाध्य नहीं था। वह स्वत: प्रमाण समझा जाता था। पूर्व तंत्रों या ग्रंथों का समाहार करते हुए यदाकदा इतना भी कह देना उसके लिये बहुधा पर्याप्त हो जाता था। पर आधुनिक कोशों में ऐसे शब्दों के संबंध में जिनका साहित्य व्यवहार में प्रयोग नहीं मिलता, यह बताना भी आवश्यक हो जाता है कि अमुक शब्द या अर्थ कोशीय मात्र हैं। (ग) आधुनिक कोशों की एक दुसरी नई धारा ज्ञानकोशात्मक है जिनकी उत्कृष्ट रूप 'विश्वकोश' के नाम से सामने आता है। अन्य रूप पारिभाषिक शब्दकोश, विषयकोश, चरितकोश, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल रहै हैं। (घ) आधुनिक शब्दकोशों मे अर्थ की स्पष्टता के लिये चित्र, रेखा-चित्र, मानचित्र आदि का उपयोग भी किया जाता है। (ङ) विशुद्ध शस्त्रीय वाङमय (शस्त्र) के प्राचीन स्तर से हटकर आज के कोश वैज्ञानिक अथवा विज्ञानकल्प रचनाप्रक्रिया के स्तर पर पहुँच गए। ये कोश रूपविकास और अर्थविकास की ऐतिहासिक प्रमाणिकता के साथ साथ भाषवैज्ञानिक सिद्धांत की संगति ढूँढने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं। आधुनिक भाषाओं के तद्भव, देशी और विदेशी शब्दों के मूल और स्रोत ढ़ूँढने की चेष्टा की जाती है। कभी कभी प्राचीन भाषा या भाषाओ के मूलस्रोतों की गवेषण के व्युत्पत्ति-दर्शन के सदर्भ में महत्वपूर्ण प्रयास होता है। बहुभाषी पर्यायकोशों में एतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के सहयोग सहायता द्वारा स्रोतभाषा के कल्पनानिदिप्ट रूप अंगीकृत होते हैं। उदाहरणार्थ प्राचीन भारत योरोपी— आर्यभाषा के बहुभाषी तुलनात्मक कोशों में मूल आर्यभाषा (या आर्यों के 'फादर लैंग्वेज') के कल्पित मृलख्वपो का अनुमान किया जाता है। दूसरे शबदो में इसका तात्पर्य यह है कि आधुनिक उत्कृष्ट कोशों में जहां एक ओर प्राचीन और पूर्ववर्ती वाङ्मय का शब्दप्रयोग के क्रमिक ज्ञान के लिये ऐतिहासिक अध्ययन होता है वहां भाषाविज्ञान के ऐतिहासिक, तुलनात्मक और वर्णनात्मक दुष्टिपक्षों का प्रौढ़ सहयोग और विनियोग अपेक्षित रहता है। कोशविज्ञान की नूतन रचानाप्रक्रिया आज के युग में भाषाविज्ञान के नाना अंगों से बहुत ही प्रभावित हो गई है। कोशारचना को प्रक्रिया और भाषाविज्ञान कोशनिर्माण का शब्दसंकलन सर्वप्रमुख आधार है। परन्तु शब्दों के संग्रह का कार्य अत्यत कठिन है। मुख्य रूप में शब्दों का चयन दो स्त्रोतों से होता है - (१) लिखित साहित्य से और (२) लोकव्यवहार और लोकसाहित्य से। लिखित साहित्य से सग्रह्य शब्दों के लिये हस्तलिखित और मुद्रित ग्रंथो का सहारा लिया जाता है। परंतु इसके अंतर्गत प्राचीन हस्तलेखों और मुद्रित ग्रथो के आधार पर जब शब्दसंकलन होता है तब उभयविध आधारग्रंथों की प्रामाणिकता और पाठशुद्धि आवश्यक होती है। इनके बिमा गृहीत शब्दों का महत्व कम हो जाता है और उनसे भ्रमसृष्टि की संभावना बढ़ती है। विविध प्रकार के शब्दकोश आजकल ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जो शब्दकोश के सारे काम करते हैं। वे कागज पर मुद्रित नहीं हैं बल्कि किसी विशिष्ट फाइल-फॉर्मट में हैं और किसी 'डिक्शनरी सॉफ्टवेयर' के द्वारा प्रयोक्ता को शब्दार्थ ढूढने में मदद करते हैं। इनमें कुछ ऐसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं जो परम्परागत शब्दकोशों में सम्भव ही नहीं है; जैसे शब्द का उच्चारण ध्वनि के माध्यम से देना आदि। शब्दकोशों के कुछ प्रकार ये हैं- सामान्य शब्दकोश विशिष्ट शब्दकोश - गणित, विज्ञान, विधि, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि के शब्दकोश पारिभाषिक शब्दकोश - इनमें किसी क्षेत्र (विषय) के प्रमुख शब्दों के संक्षिप्त और मुख्य अर्थ दिए गए होते हैं। प्राकृतिक भाषा संसाधन के लिए शब्दकोश - ये मानव के बजाय किसी कम्प्यूतर प्रोग्राम द्वारा प्रयोग को ध्यान में रखकर बनाई जातीं हैं। अन्य : द्विभाषी शब्दकोश एलेक्ट्रानिक शब्दकोश ज्ञानकोषीय शब्दकोश (Encyclopedic dictionary) बाल शब्दकोश तथा वृहत् शब्दकोश आदि तुकान्त शब्दकोश (Rhyming dictionary) व्युत्क्रम शन्दकोश (Reverse dictionary) सचित्र शब्दकोश (Visual dictionary) गलत इन्हें भी देंखें कोशकर्म समान्तर कोश अमरकोश शब्दकोशों का इतिहास हिन्दी शब्दसागर पारिभाषिक शब्दावली हिन्दी विकि शब्दकोष - 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भारत की भाषायेँ
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REDIRECT भारत की भाषाएँ
जन गण मन
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जन गण मन, भारत का राष्ट्रगान है जो मूलतः बंगाली में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम्‌ है। राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड है। कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २० सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान सभा ने जन-गण-मन हिन्दुस्तान के राष्ट्रगान के रूप में २४ जनवरी १९५० को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम २७ दिसम्बर १९११ को कांग्रेस के कलकत्ता अब दोनों भाषाओं में (बंगाली और हिन्दी) अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गान में ५ पद हैं। गीत के बोल बंगाली और देवनागरी लिप्यन्तरण के साथ জনগণমন-অধিনায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা! পঞ্জাব সিন্ধ গুজরাত মরাঠা দ্রাবিড় উৎকল বঙ্গ বিন্ধ্য হিমাচল যমুনা গঙ্গা উচ্ছলজলধিতরঙ্গ তব শুভ নামে জাগে, তব শুভ আশিষ মাগে, গাহে তব জয়গাথা। জনগণমঙ্গলদায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা! জয় হে, জয় হে, জয় হে, জয় জয় জয় জয় হে॥ आधिकारिक हिन्दी संस्करण thumb|व्हाइट हाउस में भारत के राष्ट्रीय गान के दौरान अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। वाक्य-दर-वाक्य अर्थ जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जनगणमन:जनगण के मन/सारे लोगों के मन; अधिनायक:शासक; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य-विधाता(भाग्य निर्धारक) अर्थात् भगवान</small>जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्यविधाता हैं!पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगविंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग पंजाब:पंजाब/पंजाब के लोग; सिन्ध:सिन्ध/सिन्धु नदी/सिन्धु के किनारे बसे लोग; गुजरात:गुजरात व उसके लोग; मराठा:महाराष्ट्र/मराठी लोग; द्राविड़:दक्षिण भारत/द्राविड़ी लोग; उत्कल:उडीशा/उड़िया लोग; बंग:बंगाल/बंगाली लोगविन्ध्य:विन्ध्यांचल पर्वत; हिमाचल:हिमालय/हिमाचल पर्वत श्रिंखला; यमुना गंगा:दोनों नदियाँ व गंगा-यमुना दोआब; उच्छल-जलधि-तरंग:मनमोहक/हृदयजाग्रुतकारी-समुद्री-तरंग या मनजागृतकारी तरंगेंउनका नाम सुनते ही पंजाब सिन्ध गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगालएवं विन्ध्या हिमाचल व यमुना और गंगा पे बसे लोगों के हृदयों में मनजागृतकारी तरंगें भर उठती हैंतव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागेगाहे तव जय गाथा <small>तव:आपके/तुम्हारे; शुभ:पवित्र; नामे:नाम पे(भारतवर्ष); जागे:जागते हैं; आशिष:आशीर्वाद; मागे:मांगते हैंगाहे:गाते हैं; तव:आपकी ही/तेरी ही; जयगाथा:वजयगाथा(विजयों की कहानियां) सब तेरे पवित्र नाम पर जाग उठने हैं, सब तेरी पवित्र आशीर्वाद पाने की अभिलाशा रखते हैंऔर सब तेरे ही जयगाथाओं का गान करते हैं जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। जनगणमंगलदायक:जनगण के मंगल-दाता/जनगण को सौभाग्य दालाने वाले; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य विधाताजय हे जय हे:विजय हो, विजय हो; जय जय जय जय हे:सदा सर्वदा विजय हो जनगण के मंगल दायक की जय हो, हे भारत के भाग्यविधाताविजय हो विजय हो विजय हो, तेरी सदा सर्वदा विजय हो संक्षिप्त संस्करण उपरोक्‍त राष्‍ट्र गान का पूर्ण संस्‍करण है और इसकी कुल अवधि लगभग 52 सेकंड है। राष्‍ट्र गान की पहली और अंतिम पंक्तियों के साथ एक संक्षिप्‍त संस्‍करण भी कुछ विशिष्‍ट अवसरों पर बजाया जाता है। इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है: संक्षिप्‍त संस्‍करण को चलाने की अवधि लगभग 20 सेकंड है। जिन अवसरों पर इसका पूर्ण संस्‍करण या संक्षिप्‍त संस्‍करण चलाया जाए, उनकी जानकारी इन अनुदेशों में उपयुक्‍त स्‍थानों पर दी गई है। मूल कविता के पांचों पद जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे, गाहे तव जयगाथा। जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार बाणी हिन्दु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्तानी पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे प्रेमहार हय गाथा। जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री। हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि। दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे संकटदुःखत्राता। जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे। दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके स्नेहमयी तुमि माता। जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले। तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे तव चरणे नत माथा। जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। राष्ट्रगान संबंधित नियम व विधियाँ राष्‍ट्र गान बजाना राष्ट्रगान बजाने के नियमों के आनुसार: राष्‍ट्रगान का पूर्ण संस्‍करण निम्‍नलिखित अवसरों पर बजाया जाएगा: नागरिक और सैन्‍य अधिष्‍ठापन; जब राष्‍ट्र सलामी देता है (अर्थात इसका अर्थ है राष्‍ट्रपति या संबंधित राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों के अंदर राज्‍यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर को विशेष अवसरों पर राष्‍ट्र गान के साथ राष्‍ट्रीय सलामी - सलामी शस्‍त्र प्रस्‍तुत किया जाता है); परेड के दौरान - चाहे उपरोक्‍त में संदर्भित विशिष्‍ट अतिथि उपस्थित हों या नहीं; औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों और सरकार द्वारा आयोजित अन्‍य कार्यक्रमों में राष्‍ट्रपति के आगमन पर और सामूहिक कार्यक्रमों में तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के अवसर पर ; ऑल इंडिया रेडियो पर राष्‍ट्रपति के राष्‍ट्र को संबोधन से तत्‍काल पूर्व और उसके पश्‍चात; राज्‍यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर के उनके राज्‍य/संघ राज्‍य के अंदर औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों में आगमन पर तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के समय; जब राष्‍ट्रीय ध्‍वज को परेड में लाया जाए; जब रेजीमेंट के रंग प्रस्‍तुत किए जाते हैं; नौसेना के रंगों को फहराने के लिए। जब राष्‍ट्र गान एक बैंड द्वारा बजाया जाता है तो राष्‍ट्र गान के पहले श्रोताओं की सहायता हेतु ड्रमों का एक क्रम बजाया जाएगा ताकि वे जान सकें कि अब राष्‍ट्र गान आरम्भ होने वाला है। अन्‍यथा इसके कुछ विशेष संकेत होने चाहिए कि अब राष्‍ट्र गान को बजाना आरम्भ होने वाला है। उदाहरण के लिए जब राष्‍ट्र गान बजाने से पहले एक विशेष प्रकार की धूमधाम की ध्‍वनि निकाली जाए या जब राष्‍ट्र गान के साथ सलामती की शुभकामनाएँ भेजी जाएँ या जब राष्‍ट्र गान गार्ड ऑफ ऑनर द्वारा दी जाने वाली राष्‍ट्रीय सलामी का भाग हो। मार्चिंग ड्रिल के सन्दर्भ में रोल की अवधि धीमे मार्च में सात कदम होगी। यह रोल धीरे से आरम्भ होगा, ध्‍वनि के तेज स्‍तर तक जितना अधिक संभव हो ऊँचा उठेगा और तब धीरे से मूल कोमलता तक कम हो जाएगा, किन्‍तु सातवीं बीट तक सुनाई देने योग्‍य बना रहेगा। तब राष्‍ट्र गान आरम्भ करने से पहले एक बीट का विश्राम लिया जाएगा। राष्‍ट्र गान का संक्षिप्‍त संस्‍करण मेस में सलामती की शुभकामना देते समय बजाया जाएगा। राष्‍ट्र गान उन अन्‍य अवसरों पर बजाया जाएगा जिनके लिए भारत सरकार द्वारा विशेष आदेश जारी किए गए हैं। आम तौर पर राष्‍ट्र गान प्रधानमंत्री के लिए नहीं बजाया जाएगा जबकि ऐसा विशेष अवसर हो सकते हैं जब इसे बजाया जाए। राष्‍ट्र गान को सामूहिक रूप से गाना राष्‍ट्र गान का पूर्ण संस्‍करण निम्‍नलिखित अवसरों पर सामूहिक गान के साथ बजाया जाएगा: राष्‍ट्रीय ध्‍वज को फहराने के अवसर पर, सांस्‍कृतिक अवसरों पर या परेड के अलावा अन्‍य समारोह पूर्ण कार्यक्रमों में। (इसकी व्‍यवस्‍था एक कॉयर या पर्याप्‍त आकार के, उपयुक्‍त रूप से स्‍थापित तरीके से की जा सकती है, जिसे बैंड आदि के साथ इसके गाने का समन्‍वय करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसमें पर्याप्‍त सार्वजनिक श्रव्‍य प्रणाली होगी ताकि कॉयर के साथ मिलकर विभिन्‍न अवसरों पर जनसमूह गा सके); सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में राष्‍ट्रपति के आगमन के अवसर पर (परंतु औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों और सामूहिक कार्यक्रमों के अलावा) और इन कार्यक्रमों से उनके विदा होने के तत्‍काल पहले। राष्‍ट्र गान को गाने के सभी अवसरों पर सामूहिक गान के साथ इसके पूर्ण संस्‍करण का उच्‍चारण किया जाएगा। राष्‍ट्र गान उन अवसरों पर गाया जाए, जो पूरी तरह से समारोह के रूप में न हो, तथापि इनका कुछ महत्‍व हो, जिसमें मंत्रियों आदि की उपस्थिति शामिल है। इन अवसरों पर राष्‍ट्र गान को गाने के साथ (संगीत वाद्यों के साथ या इनके बिना) सामूहिक रूप से गायन वांछित होता है। यह संभव नहीं है कि अवसरों की कोई एक सूची दी जाए, जिन अवसरों पर राष्‍ट्र गान को गाना (बजाने से अलग) गाने की अनुमति दी जा सकती है। परन्‍तु सामूहिक गान के साथ राष्‍ट्र गान को गाने पर तब तक कोई आपत्ति नहीं है जब तक इसे मातृ भूमि को सलामी देते हुए आदर के साथ गाया जाए और इसकी उचित ग‍रिमा को बनाए रखा जाए। विद्यालयों में, दिन के कार्यों में राष्‍ट्र गान को सामूहिक रूप से गा कर आरंभ किया जा सकता है। विद्यालय के प्राधिकारियों को राष्‍ट्र गान के गायन को लोकप्रिय बनाने के लिए अपने कार्यक्रमों में पर्याप्‍त प्रावधान करने चाहिए तथा उन्‍हें छात्रों के बीच राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रति सम्‍मान की भावना को प्रोत्‍साहन देना चाहिए। सामान्‍य जब राष्‍ट्र गान गाया या बजाया जाता है तो श्रोताओं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए। यद्यपि जब किसी चल चित्र के भाग के रूप में राष्‍ट्र गान को किसी समाचार की गतिविधि या संक्षिप्‍त चलचित्र के दौरान बजाया जाए तो श्रोताओं से अपेक्षित नहीं है कि वे खड़े हो जाएं, क्‍योंकि उनके खड़े होने से फिल्‍म के प्रदर्शन में बाधा आएगी और एक असंतुलन और भ्रम पैदा होगा तथा राष्‍ट्र गान की गरिमा में वृद्धि नहीं होगी। जैसा कि राष्‍ट्र ध्‍वज को फहराने के मामले में होता है, यह लोगों की अच्‍छी भावना के लिए छोड दिया गया है कि वे राष्‍ट्र गान को गाते या बजाते समय किसी अनुचित गतिविधि में संलग्‍न नहीं हों। विवाद क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोए एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य AIR 1980 SC 748 [3] नाम के एक वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि इन्होने राष्ट्र-गान जन-गण-मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्र-गान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। ये भी देखें वन्दे मातरम् सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत सरकार: राष्ट्रगान भारत सरकार: राष्ट्रगान (ऑडियो) श्रेणी:देशभक्ति के गीत श्रेणी:एशिया के राष्ट्रगान श्रेणी:रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ
वन्दे मातरम्
https://hi.wikipedia.org/wiki/वन्दे_मातरम्
right | thumb |150px| वन्दे मातरम् के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय thumb|right|200px|अवनीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र वन्दे मातरम् ( बाँग्ला: বন্দে মাতরম) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। इस गीत को गाने में ६५ सेकेंड (१ मिनट और ५ सेकेंड) का समय लगता है। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था।The Worlds Top Ten — BBC World Service गीत अंगूठाकार|भारतीय संविधान के पृष्ठ १६७ पर व्यौहार राममनोहर सिंहा द्वारा चित्रित वन्दे–मातरम् (सुजलाम् सुफलाम् मलयजशीतलाम् शस्यश्यामलाम् मातरम्) यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक "बन्दे मातरम्" होना चाहिये "वन्दे मातरम्" नहीं। चूँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में व अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा "वन्दे मातरम्" उच्चारण करने से "माता की वन्दना करता हूँ" ऐसा अर्थ निकलता है, अतः देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् ही लिखना व पढ़ना समीचीन होगा। बांग्ला लिपिदेवनागरी लिपिवन्दे मातरम् सुजलां सुफलाम् मलयजशीतलाम् शस्यश्यामलाम् मातरम्। शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम् फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम् सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् सुखदां वरदां मातरम्॥१॥ सप्तकोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले द्विसप्तकोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले, अबला केन मा एत बले। बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदलवारिणीं मातरम् ॥२॥ तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि, तुमि मर्म त्वम् हि प्राणा: शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति, हृदये तुमि मा भक्ति, तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे ॥३॥ त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् नमामि कमलाम् अमलां अतुलाम् सुजलां सुफलाम् मातरम् ॥४॥ वन्दे मातरम् श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम् धरणीं भरणीं मातरम् ॥५॥ हिन्दी अनुवाद आनन्दमठ के हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड आदि अनेक भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी-अनुवाद भी प्रकाशित हुए। डॉ॰ नरेशचन्द्र सेनगुप्त ने सन् १९०६ में Abbey of Bliss के नाम से इसका अंग्रेजी-अनुवाद प्रकाशित किया। अरविन्द घोष ने 'आनन्दमठ' में वर्णित गीत 'वन्दे मातरम्' का अंग्रेजी गद्य और पद्य में अनुवाद किया। महर्षि अरविन्द द्वारा किए गये अंग्रेजी गद्य-अनुवाद का हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार है: मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता! पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शान्त, कटाई की फसलों के साथ गहरी, माता! उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है, हँसी की मिठास, वाणी की मिठास, माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली। रचना की पृष्ठभूमि सन् १८७०-८० के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने सम्भवत: १८७६ में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बाँग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वन्दे मातरम्’। शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे। इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी। उन्होंने १८८२ में जब आनन्द मठ नामक बाँग्ला उपन्यास लिखा तब मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत इस गीत को भी उसमें शामिल कर लिया। यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए संन्यासी विद्रोह पर आधारित था। इस तथ्यात्मक इतिहास का उल्लेख बंकिम बाबू ने 'आनन्द मठ' के तीसरे संस्करण में स्वयं ही कर दिया था। और मजे की बात यह है कि सारे तथ्य भी उन्होंने अंग्रेजी विद्वानों-ग्लेग व हण्टर बंकिम समग्र हिन्दी प्रचारक संस्थान वाराणसी पृष्ठ ९९१ की पुस्तकों से दिये थे। उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक संन्यासी विद्रोही गाता है। गीत का मुखड़ा विशुद्ध संस्कृत में इस प्रकार है: "वन्दे मातरम् ! सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्, शस्य श्यामलाम् मातरम्।" मुखड़े के बाद वाला पद भी संस्कृत में ही है: "शुभ्र ज्योत्स्नां पुलकित यमिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम् ; सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्, सुखदां वरदां मातरम्।" किन्तु उपन्यास में इस गीत के आगे जो पद लिखे गये थे वे उपन्यास की मूल भाषा अर्थात् बाँग्ला में ही थे। बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है। यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूरा हुआ।कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में ही लिखी थी। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भूमिका right|thumb|300px|सन् १९०७ में भीखाजी कामा द्वारा फहराया गया ध्वज right|thumb|250px|१९०९ में प्रकाशित 'विजया' नामक तमिल पत्रिका का मुखपृष्ठ thumb|right|200px|पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' कृत क्रान्ति गीतांजलिक्रान्ति गीतांजलि पृष्ठ 11 में वन्दे मातरम् का मूल पाठ मातृ-वन्दना|कड़ी=Special:FilePath/Kranti_Geetanjali_2793.JPG बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश सरकार इसकी लोकप्रियता से भयाक्रान्त हो उठी और उसने इस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। सन् १८९६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। पाँच साल बाद यानी सन् १९०१ में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। सन् १९०५ के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया। कांग्रेस-अधिवेशनों के अलावा आजादी के आन्दोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय ने लाहौर से जिस 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था उसका नाम वन्दे मातरम् रखा। अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही थे। सन् १९०७ में मैडम भीखाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में "वन्दे मातरम्" ही लिखा हुआ था। आर्य प्रिन्टिंग प्रेस, लाहौर तथा भारतीय प्रेस, देहरादून से सन् १९२९ में प्रकाशित काकोरी के शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की प्रतिबन्धित पुस्तक "क्रान्ति गीतांजलि" में पहला गीत "मातृ-वन्दना" वन्दे मातरम् ही था जिसमें उन्होंने केवल इस गीत के दो ही पद दिये थे और उसके बाद इस गीत की प्रशस्ति में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक स्वरचित उर्दू गजल दी थी जो उस कालखण्ड के असंख्य अनाम हुतात्माओं की आवाज को अभिव्यक्ति देती है। ब्रिटिश काल में प्रतिबन्धित यह पुस्तक अब सुसम्पादित होकर पुस्तकालयों में उपलब्ध है। राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृति स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वन्दे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है) : शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा। (भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, २४-१-१९५०) विवाद आनन्द मठ उपन्यास को लेकर भी कुछ विवाद हैं, कुछ लोग इसे मुस्लिम विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है। वन्दे मातरम् गाने पर भी विवाद किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि- इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में भारत की माँ के रूप में वन्दना की गयी है; यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है विविध क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोय एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य के एक वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होने राष्ट्र-गान जन गण मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गीत को गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और स्कूल को उन्हें वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। चित्रावली 950px|center|thumb|सन १९२३ में वन्दे मातरम् का सचित्र प्रकाशन हुआ जो अत्यन्त दुर्लभ है। इन्हें भी देखें वन्दे मातरम का इतिहास भारत माता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय आनन्द मठ जन गण मन सारे जहाँ से अच्छा बाहरी कड़ियाँ भारत सरकार की आधिकारिक साइट से राष्ट्रगीत का डाउनलोड गीत गंगा पर वन्दे मातरम् - टैक्स्ट, पॉडकास्ट तथा ऑडियो डाउनलोड: १ २ यू ट्यूब पर लता मंगेशकर द्वारा गाया गया वन्दे मातरम् गीत (फिल्म - आनन्द मठ, १९५२) सन्दर्भ निहालचन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित बंकिम समग्र 1989 हिन्दी प्रचारक संस्थान वाराणसी। श्रेणी:राष्ट्रीय गान श्रेणी:देशभक्ति के गीत श्रेणी:भारत के राष्ट्रीय प्रतीक श्रेणी:भारत के नारे
भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारत_के_राज्य_तथा_केन्द्र-शासित_प्रदेश
भारत राज्यों का एक संघ है। इसमें 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बाँटे गये हैं। भारत के राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेश 28 राज्यों की पूरी सूची : क्र. सं.राज्यराजधानीमुख्यमंत्री राज्यपाल1 अजय दादा अयोध्यावासी अमरावतीवाई.एस.जगन मोहन रेड्डीबिस्वा भूषण हरिचंदन2अरुणाचल प्रदेशईटानगरपेमा खांडू3असम दिसपुर हेमंत विश्llll A very good 😊 hi nahi Happy 😁😁 hi sir good morning Anjali Mehta the Maestro 4बिहारपटनानीतीश कुमारश्री राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर5छत्तीसगढ़रायपुरविष्णुदेव सायबिस्वा भूषण हरिचंदन6गौवा पणजीप्रमोद सावंतसत्यपाल मलिक7गुजरातगांधी नगरभूपेंद्रभाई पटेलआचार्य देव व्रत8हरियाणाचण्डीगढ़मनोहर लाल खट्‌टरसत्यदेव नारायण आर्या9हिमाचल प्रदेशशिमलासुखविंदर सिंहबंडारू दत्तात्रेय10झारखंडरांचीचंपई सोरेन C.P. Radhakrishnan11कर्नाटकबेंगलुरुबसवराज बोमईथावरचंद गहलोत12केरलतिरुवनंतपुरमपिनारयी विजयनआरिफ मोहम्मद खान13मध्य प्रदेशभोपालमोहन यादवमंगू भाई पटेल14महाराष्ट्रमुंबईएकनाथ सम्भाजी शिंदेभगत सिंह कोश्यारी15मणिपुरइम्फालएन. बिरेन सिंहपद्मनाभ बालकृष्ण आचार्य16मेघालयशिलोंगकॉनराड कोंगकल संगमातथागत रॉय17मिज़ोरमआइज़ोललालदुहोमा पी.एस. श्रीधरन पिल्लई18नागालैंडकोहिमानेफियू रियोआर.एन.रवि19ओडिशाभुवनेश्वरनवीन पटनायकगणेशी लाल20पंजाबचण्डीगढ़भगवंत मानवी.पी. सिंह बदनोर21राजस्थानजयपुरभजन लाल शर्माकलराज मिश्र22सिक्किमगैंगटोकपीएस गोलयगंगा प्रसाद23तमिलनाडुचेन्नईएम.के स्टालिनबनवारीलाल पुरोहित24तेलंगानाहैदराबादरेवंत रेड्डी तमिलिसै सौंदरराजन25त्रिपुराअगरतलामाणिक साहारमेश बैस26उत्तरप्रदेशलखनऊSURJEET SINGH आनंदीबेन पटेल27उत्तराखंडदेहरादूनपुष्कर सिंह धामीगुरमीत सिंह28पश्चिम बंगालकोलकाताममता बनर्जीएल. गणेशन 8 केंद्र शासित प्रदेशों की पूरी सूची : क्र. सं.केंद्रशासित प्रदेशराजधानीमुख्यमंत्रीउप-राज्यपाल1अंडमान और निकोबार द्वीपपोर्ट ब्लेयरNAडी.के. जोशी2चंडीगढ़चंडीगढ़NAवी.पी. सिंह बदनोर3दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीवदमनNAप्रफुल पटेल4दिल्लीदिल्लीअरविंद केजरीवालअनिल बैजल5लद्दाखNANAराधा कृष्ण माथुर6लक्षद्वीपकवरत्तीNAफारूक खान7जम्मू और कश्मीरNANAमनोज सिन्हा8पुडुचेरीपुडुचेरीवी नारायणसामीकिरण बेदी राज्य या केन्द्र-शासित प्रदेश का नामआइएसओवाहन अक्षरराजधानीसबसे बड़ा शहरगठनजनसंख्या (2011)क्षेत्रफल(किमी2)राजभाषाअतिरिक्तराजभाषाअण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-ANANपोर्ट ब्लेयर1 नवम्बर 19563,80,5818,249हिन्दी, अंग्रेज़ी—अरुणाचल प्रदेश100pxराज्यIN-ARARईटानगर20 फ़रवरी 198713,83,72783,743अंग्रेज़ी—असम100pxराज्यIN-ASASदिसपुरगुवाहाटी26 जनवरी 19503,12,05,57678,550असमिया—आन्ध्र प्रदेश100pxराज्यIN-APAPहैदराबाद (कानूनी)अमरावती (वास्तव)विशाखपट्नम1 अक्टूबर 19534,93,86,7991,60,205तेलुगू—उत्तर प्रदेश100pxराज्यIN-UPUPलखनऊकानपुर24 जनवरी 195019,98,12,3412,43,286हिन्दीउर्दूउत्तराखण्ड100pxराज्यIN-UTUKदेहरादून9 नवम्बर 20001,00,86,29253,483हिन्दीसंस्कृतओडिशा100pxराज्यIN-ORODभुवनेश्वर26 जनवरी 19504,19,74,2181,55,820ओड़िया—कर्नाटक100pxराज्यIN-KAKAबेंगलुरु1 नवम्बर 19566,10,95,2971,91,791कन्नड़—केरल100pxराज्यIN-KLKLतिरुवनन्तपुरम1 नवम्बर 19563,34,06,06138,863मलयालम—गुजरात100pxराज्यIN-GJGJगाँधीनगरअहमदाबाद1 मई 1960 6,04,39,6921,96,024गुजराती—गोवा100pxराज्यIN-GAGAपणजीवास्को द गामा30 मई 1987 14,58,5453,702कोंकणीमराठीचण्डीगढ़100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-CHCHचण्डीगढ़1 नवम्बर 196610,55,450114अंग्रेज़ी—छत्तीसगढ़100pxराज्यIN-CTCGनया रायपुररायपुर1 नवम्बर 20002,55,45,1981,35,194हिन्दी—जम्मू और कश्मीर100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-JKJKश्रीनगर (ग्रीष्मकालीन)जम्मू (शीतकालीन)31 अक्टूबर 20191,25,48,926 हिंदी, उर्दूझारखण्ड100pxराज्यIN-JHJHराँचीजमशेदपुर15 नवम्बर 2000 3,29,88,13474,677हिन्दीबंगाली, हो, खड़िया, खोरठा, कुरमाली, कुड़ुख़, मुंडारी, नागपुरी, ओड़िया, पंचपरगनिया, संथाली, उर्दूतमिल नाडु100pxराज्यIN-TNTNचेन्नई26 जनवरी 19507,21,47,0301,30,058तमिलअंग्रेज़ीतेलंगाना100pxराज्यIN-TGTSहैदराबाद2 जून 20143,51,93,9781,14,840तेलुगू, उर्दू—दमन और दीव100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-DDDDदमन30 मई 1987 2,43,247112कोंकणी, गुजराती, हिन्दी, अंग्रेज़ी—दादरा और नगर हवेली100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-DNDNसिलवास11 अगस्त 19613,43,709491हिन्दी, गुजरातीमराठीनागालैण्ड100pxराज्यIN-NLNLकोहिमादीमापुर1 दिसम्बर 196319,78,50216,579अंग्रेज़ी—पंजाब100pxराज्यIN-PBPBचण्डीगढ़लुधियाना1 नवम्बर 19662,77,43,33850,362पंजाबी—पश्चिम बंगाल100pxराज्यIN-WBWBकोलकाता26 जनवरी 19509,12,76,11588,752बंगालीहिन्दी, उर्दू, संथाली, ओड़िया, पंजाबी पुदुच्चेरी100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-PYPYपुदुच्चेरी1 नवम्बर 195612,47,953492तमिल, अंग्रेज़ीमलयालम, तेलुगूबिहार100pxराज्यIN-BRBRपटना26 जनवरी 195010,40,99,45299,200हिन्दीउर्दूमणिपुर100pxराज्यIN-MNMNइम्फाल21 जनवरी 197228,55,79422,347मणिपुरीअंग्रेज़ीमध्य प्रदेश100pxराज्यIN-MPMPभोपालइन्दौर1 नवम्बर 19567,26,26,8093,08,252हिन्दी—महाराष्ट्र100pxराज्यIN-MHMHमुम्बई1 मई 196011,23,74,3333,07,713मराठी—मिज़ोरम100pxराज्यIN-MZMZआइज़ोल20 फ़रवरी 198710,97,20621,081अंग्रेज़ी, हिन्दी, मिज़ो—मेघालय100pxराज्यIN-MLMLशिलांग21 जनवरी 197229,66,88922,720अंग्रेज़ीखासीराजस्थान100pxराज्यIN-RJRJजयपुर1 नवम्बर 19566,85,48,4373,42,239हिन्दीअंग्रेज़ीराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-DLDLनई दिल्लीदिल्ली1 नवम्बर 196619,67,87,9411,490हिन्दीपंजाबी, उर्दूलद्दाखकेन्द्र-शासित प्रदेश IN-LH LHलेह31 अक्टूबर 20192,90,49259,146 लद्दाखी—लक्षद्वीप100pxकेन्द्र-शासित प्रदेशIN-LDLDकवरत्ती1 नवम्बर 195664,47332अंग्रेज़ीहिन्दीसिक्किम100pxराज्यIN-SKSKगान्तोक16 मई 19756,10,5777,096अंग्रेज़ीभूटिया, गुरूङ, लेपचा, लिंबू, मगर, मुखिया, नेपालभाषा, राई, शेर्पा, तामाङहरियाणा100pxराज्यIN-HRHRचण्डीगढ़फरीदाबाद1 नवम्बर 19662,53,51,46244,212हिन्दीपंजाबीहिमाचल प्रदेश100pxराज्यIN-HPHPशिमला25 जनवरी 1971 68,64,60255,673हिन्दीसंस्कृतत्रिपुरा100pxराज्यIN-TRTRअगरतला21 जनवरी 197236,73,91710,492बंगाली, ककबरक, अंग्रेज़ी— Jammu and Kashmir has 42,241 km2 of area administered by India and 78,114 km2 of area controlled by Pakistan under Azad Kashmir and Gilgit-Baltistan, which is claimed by India as part of Jammu and Kashmir. Additionally, it has 5,180 km2 of area controlled by the People's Republic of China under Trans-Karakoram Tract, which is also claimed by India as part of Jammu and Kashmir. Ladakh has 59,146 km2 of area administered by India and 37,555 km2 of area controlled by the People's Republic of China under Aksai Chin, which is claimed by India as part of Ladakh. १९५६ से पूर्व भारत के इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप पर विभिन्न जातीय समूहों ने शासन किया और इसे अलग-अलग प्रशासन-संबन्धी भागों में विभाजित किया। आधुनिक भारत के वर्तमान प्रशासनिक प्रभाग नए घटनाक्रम हैं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान विकसित हुए। ब्रिटिश भारत में, वर्तमान भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश, साथ ही अफ़्गानिस्तान प्रांत और उससे जुड़े संरक्षित प्रांत, बाद में उपनिवेश बना, बर्मा (म्यांमार) आदि, सभी राज्य समाहित थे। इस अवधि के दौरान, भारत के क्षेत्रों में या तो ब्रिटिशों का शासन था या उन पर स्थानीय राजाओं का नियंत्रण था। १९४७ में स्वतन्त्रता के बाद इन विभागों को संरक्षित किया गया और पंजाब तथा बंगाल के प्रांतों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। नए राष्ट्र के लिए पहली चुनौती थी राजसी राज्यों का संघों में विलय। स्वतन्त्रता के बाद, हालांकि, भारत में अस्थिरता आ गई। कई प्रांत औपनिवेशिकरण के उद्देश्य से ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए, पर इन पर भारतीय नागरिकों की या राजसी राज्यों की कोई इच्छा दिखाई नहीं दी। १९५६ में जातीय तनाव ने संसद का दरवाजा खटखटाया और राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर देश को जातीय और भाषाई आधार पर पुनर्निर्माण करने के लिए अधिनियम लाया गया। १९५६ के बाद भारत में जिस प्रकार पूर्व में फ़्रांसीसी और पुर्तगाली उपनिवेशों को गणराज्य में समाहित किया गया था, वैसे ही १९६२ में पांडिचेरी, दादरा, नगर हवेली, गोआ, दमन और दियू को संघ राज्य बनाया गया। १९५६ के बाद कई नए राज्यों और संघ राज्यों को बनाया गया। बम्बई पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा १ मई, १९६० को भाषाई आधार पर बंबई राज्य को गुजरात और महाराष्ट्र के रूप में अलग किया गया। १९६६ के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम ने भाषाई और धार्मिक पैमाने पर पंजाब (भारत) को हरियाणा के नए हिन्दू बहुल और हिन्दी भाषी राज्यों में बाँटा और पंजाब के उत्तरी जिलों को हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया और एक जिले को चण्डीगढ़ का नाम दिया जो पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी है। नागालैण्ड १९६२ में, मेघालय और हिमाचल प्रदेश १९७१ में, त्रिपुरा और मणिपुर १९७२ में राज्य बनाए गए। १९७२ में अरुणाचल प्रदेश को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। सिक्किम राज्य १९७५ में एक राज्य के रूप में भारतीय संघ में सम्मिलित हो गया। १९८६ में मिज़ोरम और १९८७ में गोआ और अरुणाचल प्रदेश राज्य बने जबकि गोवा के उत्तरी भाग दमन और दीयु एक अलग संघ राज्य बन गए। २००० में तीन नए राज्य बनाए गए। पूर्वी मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ (१ नवंबर, २०००) में और उत्तरांचल (९ नवंबर, २०००) बनाए गए जो अब उत्तराखण्ड है। उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के कारण झारखण्ड (१५ नवंबर २०००) को बिहार के दक्षिणी जिलों में से पृथक कर बनाया गया। दो केन्द्र शासित प्रदेशों दिल्ली और पाण्डिचेरी (जो बाद में पुदुचेरी कहा गया) को विधानसभा सदस्यों का अधिकार दिया गया और अब वे छोटे राज्यों के रूप में गिने जाते हैं। इन्हें भी देखें भारत के राज्य और संघशासित प्रदेश भारत के स्वायत्त क्षेत्र भारत के राज्य भारत के केन्द्र शासित प्रदेश सन्दर्भ विदेश संबंध औफ्फिसिअल गवेर्नामेंट ऑफ इंडिया वेबसैट : स्टेटस एंड यूनीयन तेर्रितोरीस क्लिकेबिल मेप ऑफ इंडिया एंड हिस्ट्री ऑफ स्टेटस आर्टिकल ओंन सब-नेशेनेल गवर्नेंस इन इंडिया इंटरेक्टिव मेप ऑफ़ इंडिया श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:भारत के केन्द्र शासित प्रदेश श्रेणी:भारत के उपविभाग
राष्ट्रीय गान
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अनुप्रेषित राष्ट्रगीत
वन्दे मातरं
https://hi.wikipedia.org/wiki/वन्दे_मातरं
REDIRECT वन्दे मातरम्
सप्ताह के दिन
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सप्ताह के दिन एक सप्ताह या हफ़्ते में सात दिन होते हैं। हिन्दी में ये निम्न नामों से पुकारे जाते हैं। रविवार अथवा इतवार सोमवार मंगलवार बुधवार गुरुवार अथवा बृहस्पतिवार अथवा वीरवार शुक्रवार शनिवार अथवा शनिचर श्रेणी:सप्ताह के दिन सामान्यत: एक माह में चार सप्ताह होते हैं और एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। सप्ताह के प्रत्येक दिन पर नौ ग्रहों के स्वामियों में से क्रमश: पहले सात का राज चलता है. जैसे- रविवार पर सूर्य का राज चलता है। सोमवार पर चन्द्रमा का राज चलता है। मंगलवार पर मंगल का राज चलता है। बुधवार पर बुध का राज चलता है। बृहस्पतिवार पर गुरु का राज चलता है। शुक्रवार पर शुक्र का राज चलता है। शनिवार पर शनि का राज चलता है। अन्तिम दो राहु और केतु क्रमश: मंगलवार और शनिवार के साथ सम्बन्ध बनाते हैं। यहाँ एक बात याद रखना ज़रूरी है- पश्चिम में दिन की शुरुआत मध्य रात्रि से होती है और वैदिक दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। वैदिक ज्योतिष में जब हम दिन की बात करें तो मतलब सूर्योदय से ही होगा। सप्ताह के प्रत्येक दिन के कार्यकलाप उसके स्वामी के प्रभाव से प्रभावित होते हैं और व्यक्ति के जीवन में उसी के अनुरुप फल की प्राप्ति होती है। जैसे- चन्द्रमा दिमाग और गुरु धार्मिक कार्यकलाप का कारक होता है। इस वार में इनसे सम्बन्धित कार्य करना व्यक्ति के पक्ष में जाता है। सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं। जैसे- सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि। शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि। संस्कृत में या अन्य किसी भी भाषा में भी साप्ताहिक दिनों के नाम सात ग्रहों के नाम पर ही मिलते हैं। संस्कृत में ग्रह के नाम के आगे वार या वासर या कोई ओर प्रयायवाची शब्द रख दिया जाता है। सप्ताह केवल मानव निर्मित व्यवस्था है। इसके पीछे कोई ज्योतिष शास्त्रीय या प्राकृतिक योजना नहीं है। स्पेन आक्रमण के पूर्व मेक्सिको में पाँच दिनों की योजना थी। सात दिनों की योजना यहूदियों, बेबिलोनियों एवं दक्षिण अमेरिका के इंका लोगों में थी। लोकतान्त्रिक युग में रोमनों में आठ दिनों की व्यवस्था थी, मिस्रियों एवं प्राचीन अथेनियनों में दस दिनों की योजना थी। ओल्ड टेस्टामेण्ट में आया है कि ईश्वर ने छः दिनों तक सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम करके उसे आशीष देकर पवित्र बनाया। - जेनेसिरा1, एक्सोडस2 एवं डेउटेरोनामी3 में ईश्वर ने यहूदियों कोसात दिनों के वृत्त के उद्भव एवं विकास का वर्णन 'एफ. एच. कोल्सन' के ग्रन्थ 'दी वीक'4 में उल्लिखित है। डायोन कैसिअस (तीसरी शती के प्रथम चरण में) ने अपनी 37वीं पुस्तक में लिखा है कि 'पाम्पेयी ई. पू. 83 में येरूसलेम पर अधिकार किया, उस दिन यहूदियों का विश्राम दिन था। उसमें आया है कि ग्रहीय सप्ताह (जिसमें दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर आधारित हैं) का उद्भव मिस्र में हुआ। डियो ने 'रोमन हिस्ट्री'5 में यह स्पष्ट किया है कि सप्ताह का उद्गम यूनान में न होकर मिस्र में हुआ और वह भी प्राचीन नहीं है बल्कि हाल का है। रोमन केलैंण्डर में सम्राट कोंस्टेंटाईन ने ईसा के क़रीब तीन सौ वर्ष के बाद सात दिनों वाले सप्ताह को निश्चत किया और उन्हें नक्षत्रों के नाम दिये - सप्ताह के पहले दिन को 'सूर्य का नाम' दिया गया है। दूसरे दिन को चाँद का नाम दिया गया है। तीसरे दिन को मंगल दिया गया है। चौथे दिन को बुध दिया गया है। पाँचवें दिन को बृहस्पति दिया गया है। छठे दिन को शुक्र दिया गया है। सातवें दिन को शनि का नाम दिया गया है। आज भी रोमन संस्कृति से प्रभावित देशों में इन्हीं नामों का प्रयोग होता है। टीका टिप्पणी और संदर्भ 1 ↑ जेनेसिरा 2|1-3 2 ↑ एक्सोडस 20|8-11,23|12-14 3 ↑ डेउटेरोनामी 5|12-15 4 ↑ एफ. एच. कोल्सन के ग्रन्थ 'दी वीक' कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस, 1926 5 ↑ रोमन हिस्ट्री जिल्द 3, पृ0 129, 131
चैत्र
https://hi.wikipedia.org/wiki/चैत्र
चैत्र हिंदू पंचांग का पहला मास है। इसी महीने से भारतीय नववर्ष आरम्भ होता है। हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता है। अनेक पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत्र माह से माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मतस्यावतार अवतरित हुए एवं जल प्रलय के बीच घिरे मनु को सुरक्षित स्थल पर पहुँचाया था, जिनसे प्रलय के पश्चात नई सृष्टि का आरम्भ हुआ। इसी दिन आर्य समाज (१८७५) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (१९२५) की स्थापना हुई थी। प्रमुख पर्व वर्ष प्रतिपदा या युगादि या 'गुड़ी पड़वा' चैत्र नवरात्रि रामनवमी हनुमान जयन्ती (चैत्र पूर्णिमा को) गणगौर सन्दर्भ इन्हें भी देखें वर्ष प्रतिपदा नवरात्रि भारतीय पञ्चाङ्ग *
मास
https://hi.wikipedia.org/wiki/मास
मास या महीना, काल मापन की एक ईकाई है। भारतीय कालगणना में एक वर्ष में १२ मास होते हैं। इसी तरह ग्रेगरी कैलेण्डर में भी एक वर्ष में बारह मास होते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में मासों के नाम अलग-अलग हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष के बारह मासों के नाम ये हैं- चैत्र नक्षत्र चित्रा में पूर्णिमा होने के कारण वैशाख विशाखा में होने के ज्येष्ठ ज्येष्ठा में आषाढ पूर्वाषाढ़ में श्रावण श्रवणा में भाद्रपद पूर्वभाद्रपद में आश्विन अश्विनी में कार्तिक कृतिका में अग्रहायण या मार्गशीर्ष मृगशिरा में पौष पुष्य में माघ मघा में फाल्गुन उत्तराफाल्गुनी में जैसा आपने पढ़ा की हिन्दू पंचांग के नौसर साल का पहला महिना चेत्र से शुरू होता है और साल का अंतिम महिना फाल्गुन है इन सभी महीनों मे से वैशाख का महिना ही एक ऐसा महिना है जिसमे 28 दिन होते है और लीप बर्ष के दुरान इसमे 29 दिन होते है ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसार ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसार अंग्रेजी भाषा में वर्ष के बारह महीनों के नाम ये हैं- जनवरी (जैन्युअरी) फ़रवरी (फ़ेब्रुअरी) मार्च अप्रैल (एप्रिल) मेइ जून जुलाइ अगस्त (औगस्ट) सितम्बर (सेप्टेंबर) अक्टूबर (ऑक्टोबर) नवम्बर (नोवेंबर) दिसम्बर (डिसेंबर) श्रेणी:मास
महीना
https://hi.wikipedia.org/wiki/महीना
REDIRECT मास
यूनिकोड
https://hi.wikipedia.org/wiki/यूनिकोड
right|thumb|200px|यूनिकोड का प्रतीक-चिह्न यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा ३.०, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. १०६४६ को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं। यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लेटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है। यूनिकोड क्या है? यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफ़ॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो। कम्प्यूटर, मूल रूप से, नम्बरों से सम्बन्ध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नम्बर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नम्बर देने के लिये सैंकड़ों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियाँ थीं। किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिये अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिये भी, सभी अक्षरों, विरामचिह्नों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी। ये संकेत लिपि प्रणालियाँ परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियाँ दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नम्बर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियाँ संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफ़ॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है। यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है! यूनिकोड की विशेषताएँ (1) यह विश्व की सभी लिपियों से सभी संकेतों के लिए एक अलग कोड बिन्दु प्रदान करता है। (2) यह वर्णों (कैरेक्टर्स) को एक कोड देता है, न कि ग्लिफ (glyph) को। (3) जहाँ भी सम्भव यूनिकोड होता है, यह भाषाओं का एकीकरण करने का प्रयत्न करता है। इसी नीति के अन्तर्गत सभी पश्चिम यूरोपीय भाषाओं को लैटिन के अन्तर्गत समाहित किया गया है; सभी स्लाविक भाषाओं को सिरिलिक (Cyrilic) के अन्तर्गत रखा गया है; हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, सिन्धी, कश्मीरी आदि के लिये 'देवनागरी' नाम से एक ही खण्ड दिया गया है; चीनी, जापानी, कोरियाई, वियतनामी भाषाओं को 'युनिहान्' (UniHan) नाम से एक खण्ड में रखा गया है; अरबी, फारसी, उर्दू आदि को एक ही खण्ड में रखा गया है। (4) बायें से दायें लिखी जाने वाली लिपियों के अतिरिक्त दायें-से-बायें लिखी जाने वाली लिपियों (अरबी, हिब्रू आदि) को भी इसमें शामिल किया गया है। ऊपर से नीचे की तरफ लिखी जाने वाली लिपियों का अभी अध्ययन किया जा रहा है। (5) यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यूनिकोड केवल एक कोड-सारणी है। इन लिपियों को लिखने/पढ़ने के लिए इनपुट मैथड एडिटर और फॉण्ट-फाइलें आवश्यक हैं। यूनिकोड का महत्व एवं लाभ एक ही दस्तावेज में अनेकों भाषाओं के अक्षर लिखे जा सकते हैं। अक्षरों को केवल एक निश्चित तरीके से संस्कारित करने की आवश्यकता पड़ती है। जिससे विकास-व्यय एवं अन्य व्यय कम लगते हैं। किसी सॉफ़्टवेयर-उत्पाद का एक ही संस्करण पूरे विश्व में चलाया जा सकता है। क्षेत्रीय बाजारों के लिए अलग से संस्करण निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किसी भी भाषा का अक्षर पूरे जगत में बिना किसी रुकावट के चल जाता है। पहले इस तरह की बहुत समस्याएँ आती थीं। हानियाँ यूनिकोड, आस्की तथा अन्य कैरेकटर कोडों की अपेक्षा अधिक स्मृति (मेमोरी) लेता है। कितनी अधिक स्मृति लगेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन सा यूनिकोड प्रयोग कर रहे हैं। UTF7, UTF8, UTF16 या वास्तविक यूनिकोड - एक अक्षर अलग-अलग बाइट प्रयोग करते हैं। देवनागरी यूनिकोड देवनागरी यूनिकोड की परास (रेंज) 0900 से 097F तक है। (दोनो संख्याएँ षोडषाधारी हैं) क्ष, त्र एवं ज्ञ के लिये अलग से कोड नहीं है। इन्हें संयुक्त वर्ण मानकर अन्य संयुक्त वर्णों की भाँति इनका अलग से कोड नहीं दिया गया है। इस परास (रेंज) में बहुत से ऐसे वर्णों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में व्यवहृत नहीं होते। किन्तु मराठी, सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढँग से लिखने के लिये आवश्यक हैं। नुक्ता वाले वर्णों (जैसे ज़) के लिये यूनिकोड निर्धारित किया गया है। इसके अलावा नुक्ता के लिये भी अलग से एक यूनिकोड दे दिया गया है। अतः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिकोड की दृष्टि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं - एक बाइट यूनिकोड के रूप में या दो बाइट यूनिकोड के रूप में। उदाहरण के लिये ज़ को ' ज ' के बाद नुक्ता (़) टाइप करके भी लिखा जा सकता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है। जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ़्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये की गयी थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिये खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं। UTF-8, UTF-16 तथा UTF-32 यूनिकोड का मतलब है सभी लिपिचिह्नों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम 'एकसमान मानकीकृत कोड'। पहले सोचा गया था कि केवल 16 बिट के माध्यम से ही दुनिया के सभी लिपिचिह्नों के लिये अलग-अलग कोड प्रदान किये जा सकेंगे। बाद में पता चला कि यह कम है। फिर इसे 32 बिट कर दिया गया। अर्थात इस समय दुनिया का कोई संकेत नहीं है जिसे 32 बिट के कोड में कहीं न कहीं जगह न मिल गयी हो। 8 बिट के कुल 2 पर घात 8 = 256 अलग-अलग बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं; 16 बिट से 2 पर घात 16 = 65536 और 32 बिट से 4294967296 भिन्न (distinct) बाइनरी संख्याएँ बन सकती हैं। यूनिकोड के तीन रूप प्रचलित हैं। UTF-8, UTF-16 और UTF-32. इनमें अन्तर क्या है? मान लीजिये आपके पास दस पेज का कोई टेक्स्ट है जिसमें रोमन, देवनागरी, अरबी, गणित के चिन्ह आदि बहुत कुछ हैं। इन चिन्हों के यूनिकोड अलग-अलग होंगे। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ संकेतों के ३२ बिट के यूनिकोड में शुरू में शून्य ही शून्य हैं (जैसे अंग्रेजी के संकेतों के लिये)। यदि शुरुआती शून्यों को हटा दिया जाय तो इन्हें केवल 8 बिट के द्वारा भी निरूपित किया जा सकता है और कहीं कोई भ्रम या कॉन्फ़्लिक्ट नहीं होगा। इसी प्रकार रूसी, अरबी, हिब्रू आदि के यूनिकोड ऐसे हैं कि शून्य को छोड़ देने पर उन्हें प्राय: 16 बिट = 2 बाइट से निरूपित किया जा सकता है। देवनागरी, जापानी, चीनी आदि को आरम्भिक शून्य हटाने के बाद प्राय: 24 बिट = तीन बाइट से निरूपित किया जा सकता है। किन्तु बहुत से संकेत होंगे जिनमें आरम्भिक शून्य नहीं होंगे और उन्हें निरूपित करने के लिये चार बाइट ही लगेंगे। बिन्दु (5) में बताए गये काम को UTF-8, UTF-16 और UTF-32 थोड़ा अलग अलग ढंग से करते हैं। उदाहरण के लिये यूटीएफ़-8 क्या करता है कि कुछ लिपिचिह्नों के लिये 1 बाइट, कुछ के लिये 2 बाइट, कुछ के लिये तीन और चार बाइट इस्तेमाल करता है। लेकिन UTF-16 इसी काम के लिये १६ न्यूनतम बिटों का इस्तेमाल करता है। अर्थात जो चीजें UTF-8 में केवल एक बाइट जगह लेती थीं वे अब 16 बिट == 2 बाइट के द्वारा निरूपित होंगी। जो UTF-8 में 2 बाइट लेतीं थी यूटीएफ-16 में भी दो ही लेंगी। किन्तु पहले जो संकेतादि 3 बाइट या चार बाइट में निरूपित होते थे यूटीएफ-16 में 32 बिट = ४ 4 बाइट के द्वारा निरूपित किये जायेंगे। (आपके पास बड़ी-बडी ईंटें हों और उनको बिना तोड़े खम्भा बनाना हो तो खम्भा ज्यादा बड़ा ही बनाया जा सकता है।) लगभग स्पष्ट है कि प्राय: UTF-8 में इनकोडिंग करने से UTF-16 की अपेक्षा कम बिट्स लगेंगे। इसके अलावा बहुत से पुराने सिस्टम 16 बिट को हैंडिल करने में अक्षम थे। वे एकबार में केवल 8-बिट ही के साथ काम कर सकते थे। इस कारण भी UTF-8 को अधिक अपनाया गया। यह अधिक प्रयोग में आता है। UTF-16 और UTF-32 के पक्ष में अच्छाई यह है कि अब कम्प्यूटरों का हार्डवेयर 32 बिट या 64 बिट का हो गया है। इस कारण UTF-8 की फाइलों को 'प्रोसेस' करने में UTF-16, UTF-32 वाली फाइलों की अपेक्षा अधिक समय लगेगा। उपयोगी यूनिकोड वर्तमान स्थिती Unicode Tools : (क) String to Unicode Value ; (ख) Numeric Value to String ; (ग) Numeric Value Generator UniView - An XHTML-based application to look up characters, character blocks, paste in and discover unknown characters, store your own info about characters, search on character names, do hex/dec/ncr conversions, highlight character types, etc. etc. UTF-8, UTF-16, UTF-32 Code Charts and Converter Character map (requires JavaScript) फ़ॉण्ट परिवर्तक अगर कोई लेख किसी जगह पर किसी ऐसे फ़ॉण्ट को प्रयोग कर के लिखा गया है। जो कि यूनिकोड नहीं है, तो फ़ॉण्ट परिवर्तक प्रोग्रामों का प्रयोग करके उसे यूनिकोड में बदला जा सकता है। विस्तृत जानकारी के लिये देखें - 'फॉण्ट परिवर्तक' जंक (विकृत) यूनिकोड को सही करने के उपाय याहू जैसे ईमेल सेवाओं में यूनिकोड कैरेक्टर विकृत हो जाने पर मूल ईमेल प्राप्त कर पढ़ने के ऑनलाईन औजार बालेन्दु शर्मा दाधीच द्वारा विकसित आनलाइन यूनिकोड विकृति संशोधक Hindi Unicode Repair Tool सन्दर्भ इन्हें भी देखें इण्डिक यूनिकोड देवनागरी यूनिकोड खण्ड इस्की (ISCII) आस्की (ASCII) यूनिकोड समानुक्रमण अल्गोरिद्म (यूनिकोड कोलेशन अल्गोरिद्म) बाहरी कड़ियाँ Unicode to Krutidev converter यूनिकोड.ऑर्ग यूनिकोड क्या है? भूमंडलीकरण में आईटी का योगदान है यूनिकोड यूनिकोड-सक्षम उत्पादों की सूची - आपरेटिंग सिस्टम, ब्राउजर, प्रोग्रामिंग की भाषायें, एवं अन्य अनेक उत्पाद FAQ about Unicode for Indic Scripts and Languages UTF-8 encoding table and Unicode characters DecodeUnicode - यूनिकोड विकी, 50.000 gifs Unicode Entity Codes for the Devanāgarī Script देवनागरी का यूनिकोड चार्ट (स्टैण्डर्ड 5.0) Table of Unicode characters from 1 to 6553 5 decodeunicode.org images of all 98,884 graphical unicode characters (German/English, full text search) Tim Bray's Characters vs Bytes explains how the different encodings work. Unicode (good introduction) हिन्दी एवं देवनागरी के लिए यूनिकोडोत्तर दौर की चुनौती अलग और बड़ी हैं (बालेन्दु शर्मा दाधीच) The Significance of Unicode हिंदी में यह क्रांति न आती यदि यूनिकोड न होता! (अगस्त २०१५ ; बालेन्दु शर्मा दाधीच) यूनिकोड उपकरण तथा फॉण्ट Krutidev to Unicode Font Converter - कृतिदेव-010 से यूनिकोड एवं चाणक्य फॉण्ट परिवर्तक Unicode Code Converter v7.09 - यूनिकोड को तरह-तरह के वैकल्पिक रूपों में बदलने वाला आनलाइन प्रोग्राम Free C++ Unicode Libraries Regular Expression Unicode Syntax Reference AnalyzingUnicodeText with RegularExpressions (Andy Heninger, IBM Corporation) Alan Wood's Unicode Resources Contains lists of word processors with Unicode capability; fonts and characters are grouped by type; characters are presented in lists, not grids. श्रेणी:कंप्यूटर श्रेणी:संगणक अभियान्त्रिकी श्रेणी:सॉफ्टवेयर श्रेणी:सूचना प्रौद्योगिकी श्रेणी:अंतरजाल
अगस्त २००३
https://hi.wikipedia.org/wiki/अगस्त_२००३
२००३ जनवरी | फरवरी | मार्च | अप्रैल | मई | जून | जुलाई | अगस्त | सितम्बर | अक्टूबर | नवम्बर | दिसम्बर शुक्रवार, 08 अगस्त 2003 हमास का बदले का संकल्प -- फ़लस्तीन के चरमपंथी संगठन हमास की सशस्त्र शाखा ने अपने सदस्यों से अपील की है कि वे इसराइली सेना के हमले में मारे गए दो नेताओं की मौत का बदला लें. अभिनेता उमर शरीफ़ को सज़ा -- जाने माने अभिनेता उमर शरीफ़ को फ़्राँस की एक अदालत ने मारपीट के आरोप में सज़ा सुनाई है। उन्हें एक महीने की सस्पेंडेड जेल की सज़ा के साथ-साथ ग्यारह सौ पाउंड का जुर्माना भी लगाया गया है। 'अंतरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी' -- इंडोनेशिया की राष्ट्रपति मेगावती सुकर्णोपुत्री ने आतंकवाद के विरुद्ध दुनियाभर का एक गठबंधन बनाने की माँग उठाई है। राजधानी जकार्ता के एक होटल में मंगलवार को हुए बम धमाके के बाद उन्होंने पहली टिप्पणी में ये माँग उठाई. अमरीकी रणनीति बदलेगी? -- अमरीका इराक़ में अपनी सैन्य रणनीति में बदलाव करने की योजना बना रहा है। अब अमरीका इराक़ में स्थानीय लोगों को अधिक संख्या में सामने लाना चाहता है और बड़े पैमाने पर होने वाली कार्रवाइयाँ कम करना चाहता है। नए परमाणु हथियारों पर चर्चा -- अमरीकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन ने माना है कि वह सैनिक अधिकारियों और वैज्ञानिकों की एक उच्च स्तरीय बैठक कर रहा है। इसमें अगले चरण के अत्याधुनिक परमाणु हथियारों पर विचार होने की संभावना है। श्रेणी:अगस्त श्रेणी:2003
भारत की भाषाएँ
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भारत बहुत सारी भाषाओं का देश है, परन्तु सरकारी कामकाज में व्यवहार में लायी जाने वाली दो भाषाऍँ हैं, हिन्दी और अंग्रेज़ी। भारत में द्विभाषी वक्ताओं की संख्या 31.49 करोड़ है, जो 2011 में जनसंख्या का 26% है। right|thumb|300px|वृहद भारत के भाषा परिवार right|thumb|350px|भारत की प्रमुख भाषाएँ तथा उनको बोलने वाले क्षेत्र हिन्द-आर्य भाषाएँ पालि, प्राकृत, मारवाड़ी/मेवाड़ी, अपभ्रंश, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, सिंधी, कश्मीरी, मैथिली, भोजपुरी, नेपाली, मराठी, डोगरी, कुरमाली, नागपुरी, कोंकणी, गुजराती, बंगाली, ओड़िआ, असमिया, गुजरी द्रविड़ भाषाएँ तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तुलू, गोंडी, कुड़ुख ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ संथाली, हो, मुंडारी, खासी, भूमिज तिब्बती-बर्मी भाषाएँ नेपाल भाषा, मणिपुरी, खासी, मिज़ो, आओ, म्हार, नागा मातृभाषा के अनुसार बड़ी भारतीय भाषाओं की सूची यहाँ यह ध्यान रखने योग्य बात है कि भारत में द्विभाषिकता एवं बहुभाषिकता का प्रचलन है इसलिए यह सँख्या उन लोगों की है जिन्होंने ने हिन्दी को अपनी प्रथम भाषा के तौर पर १९९१ की जनगणना में दर्ज़ किया था। मान्यता प्राप्त भाषाएं हिंदी भारत के उत्तरी हिस्सों में सबसे व्यापक बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय जनगणना "हिंदी" की व्यापक विविधता के रूप में "हिंदी" की व्यापक संभव परिभाषा लेती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 43.63% भारतीय लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित कर दिया है। भाषा डेटा 26 जून 2018 को जारी किया गया था। भिली / भिलोदी 1.04 करोड़ वक्ताओं के साथ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली गैर अनुसूचित भाषा थी, इसके बाद गोंडी 29 लाख वक्ताओं के साथ थीं। भारत की जनगणना २०११ में भारत की आबादी का 96.71% 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक अपनी मातृभाषा के रूप में बोलता है। +बोलने वालों की संख्या के आधार प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय भाषाएँ (2011 की जनगणना)भाषा प्रथम भाषाभाषीप्रथम भाषाभाषी कुल जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में द्वितीय भाषाभाषी (करोड़ में) तृतीय भाषाभाषी (करोड़ में) सभी भाषाभाषी (in करोड़ में) कुल जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में कुल भाषाभाषीहिंदी52,83,47,19343.6313.92.469.257.10अंग्रेज़ी2,59,6780.028.34.612.910.60बंगाली9,72,37,6698.300.90.110.78.90मराठी8,30,26,6807.091.30.39.98.20तेलुगू8,11,27,7406.931.20.19.57.80तमिल6,90,26,8815.890.70.17.76.30गुजराती5,54,92,5544.740.40.16.05.00उर्दू5,07,72,6314.341.10.16.35.20कन्नड़4,37,06,5123.731.40.15.94.94ओड़िया3,75,21,3243.200.5319,5254.33.56मलयालम3,48,38,8192.97499,188195,88533,761,4653.28पंजाबी3,31,24,7262.833,272,151319,52536,609,1223.56संस्कृत24,821<0.011,234,9313,742,2234,991,2890.49 दस लाख से कम व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ क्रमांक भाषा बोलने वालों की संख्या प्रतिशत 23 खानदेशी 973,709 0.116% 24 हो 16,79,916 1.8% 25 खासी 912,283 0.109% 26 मुंडारी 861,378 0.103% 27 कोकबराक भाषा 694,940 0.083% 28 गारो 675,642 0.081% 29 कुई 641,662 0.077% 30 मीज़ो 538,842 0.064% 31 हलाबी 534,313 0.064% 32 कोरकू 466,073 0.056% 33 मुंडा 413,894 0.049% 34 मिशिंग 390,583 0.047% 35 कार्बी/मिकिर 366,229 0.044% 36 सावरा 273,168 0.033% 37 कोया भाषा 270,994 0.032% 38 खड़िया 225,556 0.027% 39 खोंड 220,783 0.026% 40 अँग्रेजी 178,598 0.021% 41 निशी 173,791 0.021% 42 आओ 172,449 0.021% 43 सेमा 166,157 0.020% 44 किसान 162,088 0.019% 45 आदी 158,409 0.019% 46 रभा 139,365 0.017% 47 कोन्याक 137,722 0.016% 48 माल्तो भाषा 108,148 0.013% 49 थाड़ो 107,992 0.013% 50 तांगखुल 101,841 0.012% संक्षिप्त चिह्न Ang अंग या अंगिका लिपि, Ass. असमिया लिपि, Ben. बंगाली लिपि, Dev. देवनागरी लिपि, Guj. गुजराती लिपि, Gur. गुरमुखी लिपि, Kan. कन्नड़ लिपि, Lat. लैटिन लिपि, Mai. मैथिली लिपि, मिथिलाक्षर, कैथी Mal. मलयालम लिपि, Nep. नेपाली, Ori. ओड़िआ लिपि, Sin. सिंहल लिपि, Tam. तमिल लिपि, Tel. तेलुगु लिपि. सन्दर्भ इन्हें भी देखें भारत का भाषाई इतिहास भारत के भाषा परिवार भारत की आधिकारिक भाषाओं में भारत गणराज्य के नाम भारतीय लिपियाँ भारत की बोलियाँ हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य बाहरी कड़ियाँ हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं का परस्परिक सम्बन्ध (डॉ विनोद कुमार) भारत की भाषाएँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ राजमल बोरा) भारतीय भाषाएँ और हिन्दी अनुवाद (गूगल पुस्तक ; लेखक - कैलाशचन्द्र भाटिया) भारतीय भाषाओं की पहचान (डॉ सियाराम तिवारी) भारतीय भाषाएं एवं लिपियाँ सीखें (यहाँ अपनी सुविधा लिपि एवं भाषा के माध्यम से भारत की दूसरी भाषाएँ सीखने की निःशुल्क सुविधा है।) 10 Unusual Facts About Indian Languages. How Many Do You Know? भारतीय भाषा कोश (२१ भारतीय भाषाओं का एकल कोश)
कलकत्ता
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REDIRECT कोलकाता
मद्रास
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REDIRECTचेन्नई
आबादी
https://hi.wikipedia.org/wiki/आबादी
REDIRECT जनसंख्या
राष्ट्रीय गीत
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अनुप्रेषित वन्दे मातरम्
गिनती
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REDIRECTअंक
महीने
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REDIRECT मास
हिन्दू धर्म
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दू_धर्म
हिन्दू धर्म एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरीनाम, फिजी इत्यादि। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। इतिहास सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। हालांकि भारत विरोधी विद्वानों ने कई प्रयासों के बावजूद यहां तक कि भ्रामक प्रमाणो के आधार पर भी अपने विचार को सिद्ध नहीं कर पाए। निरुक्त भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार: हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। "हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र में मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया। आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दु धर्म नहीं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है। मुख्य सिद्धान्त thumb|right|हिंदू मंदिर, श्री लंका हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया। संक्षेप में, हिन्‍दुत्‍व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है। हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु 1. ईश्वर एक नाम अनेक. 2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है। 3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें. 4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर. 5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है। 6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं। 7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है। 8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है। 9. स्त्री आदरणीय है। 10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है। 11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में. 12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता. 13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी. 14. आत्मा अजर-अमर है। 15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र. 16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं। 17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है। 18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है। ब्रह्म हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है। ईश्वर ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश में रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति "माया" से विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्थिति में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं होता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जाता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं है--और विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा और शासक है। जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। वो पूजा और उपासना का विषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो राग-द्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुख-दुख प्रदान करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समय-समय पर धरती पर अवतार (जैसे कृष्ण) रूप ले कर आता है। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान (जो हिन्दी में सबसे ज़्यादा प्रचलित है)। इसी ईश्वर को मुसल्मान (अरबी में) अल्लाह, (फ़ारसी में) ख़ुदा, ईसाई (अंग्रेज़ी में) गॉड और यहूदी (इब्रानी में) याह्वेह कहते हैं। देवी और देवता हिन्दू धर्म में कई देवता हैं, जिनको अंग्रेज़ी में ग़लत रूप से "Gods" कहा जाता है। ये देवता कौन हैं, इस बारे में तीन मत हो सकते हैं : अद्वैत वेदान्त, भगवद गीता, वेद, उपनिषद्, आदि के मुताबिक सभी देवी-देवता एक ही परमेश्वर के विभिन्न रूप हैं (ईश्वर स्वयं ही ब्रह्म का रूप है)। निराकार परमेश्वर की भक्ति करने के लिये भक्त अपने मन में भगवान को किसी प्रिय रूप में देखता है। ऋग्वेद के अनुसार, "एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति", अर्थात एक ही परमसत्य को विद्वान कई नामों से बुलाते हैं।श्री अरविन्द, लाइफ डिवैन. योग, न्याय, वैशेषिक, अधिकांश शैव और वैष्णव मतों के अनुसार देवगण वो परालौकिक शक्तियां हैं जो ईश्वर के अधीन हैं मगर मानवों के भीतर मन पर शासन करती हैं।सुभाष काक, दि गाड्स विदिन। मुंशीराम मनोहरलाल, नई दिल्ली, २००२. योग दर्शन के अनुसार ईश्वर ही प्रजापति औत इन्द्र जैसे देवताओं और अंगीरा जैसे ऋषियों के पिता और गुरु हैं। मीमांसा के अनुसार सभी देवी-देवता स्वतन्त्र सत्ता रखते हैं और उनके ऊपर कोई एक ईश्वर नहीं है। इच्छित कर्म करने के लिये इनमें से एक या कई देवताओं को कर्मकाण्ड और पूजा द्वारा प्रसन्न करना ज़रूरी है। इस प्रकार का मत शुद्ध रूप से बहु-ईश्वरवादी कहा जा सकता है। एक बात और कही जा सकती है कि ज़्यादातर वैष्णव और शैव दर्शन पहले दो विचारों को सम्मिलित रूप से मानते हैं। जैसे, कृष्ण को परमेश्वर माना जाता है जिनके अधीन बाकी सभी देवी-देवता हैं और साथ ही साथ, सभी देवी-देवताओं को कृष्ण का ही रूप माना जाता है। तीसरे मत को धर्मग्रन्थ मान्यता नहीं देते। जो भी सोच हो, ये देवता रंग-बिरंगी हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। वैदिक काल के मुख्य देव थे-- इन्द्र, अग्नि, सोम, वरुण, रूद्र, विष्णु, प्रजापति, सविता (पुरुष देव) और देवियाँ-- सरस्वती, ऊषा, पृथ्वी, इत्यादि (कुल 33)। बाद के हिन्दू धर्म में नये देवी देवता आये (कई अवतार के रूप में)-- गणेश, राम, कृष्ण, हनुमान, कार्तिकेय, सूर्य-चन्द्र और ग्रह और देवियाँ (जिनको माता की उपाधि दी जाती है) जैसे-- दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, शीतला, सीता, काली, इत्यादि। ये सभी देवता पुराणों में उल्लिखित हैं और उनकी कुल संख्या 33 कोटी बतायी जाती है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव साधारण देव नहीं, बल्कि महादेव हैं और त्रिमूर्ति के सदस्य हैं। इन सबके अलावा हिन्दू धर्म में गाय को भी माता के रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि गाय में सम्पूर्ण 33 कोटि देवी देवता वास करते हैं। उल्लेखनीय है कि कोटि का यहाँ अर्थ प्रकार से है ना कि करोड़(संख्या) से हैं। हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियाँ हैं। सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता। विष्णु - शांति व वैभव। शिव - ज्ञान व विद्या। शक्ति - शक्ति व सुरक्षा। गणेश - बुद्धि व विवेक। देवताओं के गुरु देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं। गुरुवार, गुरु बृहस्पतिदेव की उपासना का विशेष दिन है। दानवों के गुरु दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है। आत्मा हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं: न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०॥ (यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।) किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य के कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म के प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है। धर्मग्रन्थ हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों में देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। वेदों को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरू द्वारा शिष्यों को दिया जाता था। हर वेद में चार भाग हैं- संहिता—मन्त्र भाग, ब्राह्मण-ग्रन्थ—गद्य भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये हैं, आरण्यक—इनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी हैं, उपनिषद्—इनमें ब्रह्म, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी। श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। सभी स्मृति ग्रन्थ वेदों की प्रशंसा करते हैं। इनको वेदों से निचला स्तर प्राप्त है, पर ये ज़्यादा आसान हैं और अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़े जाते हैं (बहुत ही कम हिन्दू वेद पढ़े होते हैं)। प्रमुख स्मृति ग्रन्थ हैं:- इतिहास--रामायण और महाभारत, भगवद गीता, पुराण--(18), मनुस्मृति, धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र, आगम शास्त्र। भारतीय दर्शन के ६ प्रमुख अंग हैं- सांख्य दर्शन, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त। देव और दानवों के माता-पिता का नाम हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता, किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है। इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है। २००८ की गणना के अनुसार right|thumb|400px|विश्व के विभिन्न भागों में हिन्दुओं की प्रतिशत संख्या विश्व में अधिकतम हिन्दू जनसँख्या वाले २० राष्ट्र 86.5% 80.5% 54%Dostert, Pierre Etienne. Africa 1997 (The World Today Series). Harpers Ferry, West Virginia: Stryker-Post Publications (1997), pg. 162. 28% 27.9% 25% 22.5% 20% 15% 9% 7.2% 6.7% 6.3% 6.25% 6% 5% 4% 3% 2.3% 2.1% हिन्दू संस्कृति वैदिक काल और यज्ञ प्राचीन काल में लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं बनाते थे। प्रमुख देवता थे : देवराज इन्द्र, अग्नि, सोम और वरुण। उनके लिये वैदिक मन्त्र पढ़े जाते थे और अग्नि में घी, दूध, दही, जौ, इत्यागि की आहुति दी जाती थी। तीर्थ एवं तीर्थ यात्रा भारत एक विशाल देश है, लेकिन उसकी विशालता और महानता को हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि उसे देखें नहीं। इस ओर वैसे अनेक महापुरूषों का ध्यान गया, लेकिन आज से बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरू शंकराचार्य ने इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ (मठ) स्थापित उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। तीर्थों के प्रति हमारे देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है। इसलिए शंकराचार्य ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलाते है। लोगों की मान्यता है कि जो इन चारों धाम की यात्रा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। मूर्तिपूजा ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं। मंदिर हिन्दुओं के उपासना स्थलों को मन्दिर कहते हैं। प्राचीन वैदिक काल में मन्दिर नहीं होते थे। तब उपासना अग्नि के स्थान पर होती थी जिसमें एक सोने की मूर्ति ईश्वर के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती थी। एक नज़रिये के मुताबिक बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा बुद्ध और महावीर की मूर्तियों और मन्दिरों द्वारा पूजा करने की वजह से हिन्दू भी उनसे प्रभावित होकर मन्दिर बनाने लगे। हर मन्दिर में एक या अधिक देवताओं की उपासना होती है। गर्भगृह में इष्टदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। मन्दिर प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। कई मन्दिरों में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। अधिकाँश हिन्दू चार शंकराचार्यों को (जो ज्योतिर्मठ, द्वारिका, शृंगेरी और पुरी के मठों के मठाधीश होते हैं) हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। त्यौहार right|thumb|300px|प्रयाग के संगम पर कुम्भ मेले का दृष्य right|thumb|300px|नवरात्रि में अम्मन के अवतारों का प्रदर्शन नववर्ष - द्वादशमासै: संवत्सर:।' ऐसा वेद वचन है, इसलिए यह जगत्मान्य हुआ। सर्व वर्षारंभों में अधिक योग्य प्रारंभदिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। इसे पूरे भारत में अलग-अलग नाम से सभी हिन्दू धूम-धाम से मनाते हैं। यद्यपि प्राचीनकालमे माघशुक्ल प्रतिपदासे शिशिर ऋत्वारम्भ उत्तरायणारम्भ और नववर्षाम्भ तिनौं एक साथ माना जाता था। हिन्दू धर्म में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम में अब यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश वासियों तक ही सीमित रह गया है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है। नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं। अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा अर्थात् नवरात्रोत्सव मनाया जाता है। श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस तिथि में दिन भर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालने में बालक श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं, अथवा अगले दिन प्रात: दही-कलाकन्द का प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे के पहले नौ दिनों (नवरात्रि) में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभासित होती हैं, व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। शाकाहार किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक नहीं है हालांकि शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 70% हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे गोमांस भी कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है। वर्ण व्यवस्था प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति का विशेष महत्व था। चार प्रमुख वर्ण थे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय हो जाता था चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। लेकिन मध्य काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरुप विदेशी आचार - व्यवहार एवं राज्य नियमों के तहत जाति व्यवस्था में बदल गया। विदेशी आक्रमणकारियों का शासन स्थापित होने से भारतीय जनमानस में भी उन्हीं प्रभाव हुआ। इन विदेशियों नें कुछ निर्बल भारतीयों को अपनी विस्ठा और मैला ढोने मे लगाया तथा इन्हें स्वरोजगार करने वाले लोगों (चर्मकार, धोबी, डोम {बांस से दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माता} इत्यादि) से जोड़ दिया। अंग्रेजो नें इस व्यवस्था को और अधिक विकृत किया एवं जनजातियों को भी शामिल कर दिया।। अवतार सनातनी हिंदू भगवान विष्णु के १० अवतार मानते हैं:- मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। हनुमान भी भगवान शिव के अवतार हैं। भक्त भक्त भक्त कवि इन्हें भी देखें हिन्दू धर्म का इतिहास नास्तिकता अज्ञेयवाद हिन्दू राष्ट्रवाद बौद्ध धर्म सनातन धर्म सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हिन्दू धर्म के अद्वितीय सिद्धान्त हिन्दू धर्म कोश (रचनाकार : महेश शर्मा) श्रेणी:हिन्दू धर्म
उपनिषद् सूची
https://hi.wikipedia.org/wiki/उपनिषद्_सूची
वेद शब्द का अर्थ 'ज्ञान' है। वेद-पुरुष के शिरोभाग को उपनिषद् कहते हैं। उप (व्यवधानरहित) नि (सम्पूर्ण) षद् (ज्ञान)। किसी विषय के होने न होने का निर्णय ज्ञान से ही होता है। अज्ञान का अनुभव भी ज्ञान ही कराता है। अतः ज्ञान को प्रमाणित करने के लिए ज्ञान से भिन्न किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। उपनिषद् का अन्य अर्थ उप (समीप) निषत् -निषीदति-बैठनेवाला। अर्थात- जो उस परम तत्त्व के समीप बैठता हो। उपनिषद्यते-प्राप्यते ब्रह्मात्मभावोऽनया इति उपनिषद्। अर्थात्-जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सके, वह उपनिषद् है। मुक्तिकोपनिषद् में एक सौ आठ (१०८) उपनिषदों का वर्णन आता है, इसके अतिरिक्त अडियार लाइब्रेरी मद्रास से प्रकाशित संग्रह में से १७९ उपनिषदों के प्रकाशन हो चुके हैं। गुजराती प्रिटिंग प्रेस बम्बई से मुदित उपनिषद्-वाक्य-महाकोष में २२३ उपनिषदों की नामावली दी गई है, इनमें उपनिषद (१) उपनिधि-त्स्तुति तथा (२) देव्युपनिषद नं-२ की चर्चा शिवरहस्य नामक ग्रंथ में है लेकिन ये दोनों उपलब्ध नहीं हैं तथा माण्डूक्यकारिका के चार प्रकरण चार जगह गिने गए है इस प्रकार अबतक ज्ञात उपनिषदो की संख्या २२० आती हैः- कुल ज्ञात उपनिषद १-ईशावास्योपनिषद् (शुक्लयजर्वेदीय) २-अक्षिमालिकौपनिषद् (ऋग्वेदीय) ३-अथर्वशिखोपनिषद् (सामवेद) ४-अथर्वशिर उपनिषद् (सामवेद) ५-अद्वयतारकोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ६-अद्वैतोपनिषद् ७-अद्वैतभावनोपनिषद् ८-अध्यात्मोपनिषद् (शुक्लयजर्वेदीय) ९-अनुभवसारोपनिषद् १०-अन्नपुर्णोंपनिषद् (सामवेद) ११-अमनस्कोपनिषद् १२-अमृतनादोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १३-अमृतबिन्दूपनिषद् (ब्रह्मबिन्दूपनिषद्) (कृष्णयजुर्वेदीय) १४-अरुणोपनिषद् १५अल्लोपनिषद १६-अवधूतोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक) (कृष्णयजुर्वेदीय) १७-अवधूतोपनिषद् (पद्यात्मक) १८-अव्यक्तोपनिषद् (सामवेद) १९-आचमनोपनिषद् २०-आत्मपूजोपनिषद् २१-आत्मप्रबोधनोपनिषद् (आत्मबोधोपनिषद्) (ऋग्वेदीय) २२-आत्मोपनिषद् (वाक्यात्मक) (सामवेद) २३-आत्मोपनिषद् (पद्यात्मक) २४-आथर्वणद्वितीयोपनिषद् २५-आयुर्वेदोपनिषद् २६-आरुणिकोपनिषद् (आरुणेय्युपनिषद्) (सामवेद) २७-आर्षेयोपनिषद् २८-आश्रमोपनिषद् २९-इतिहासोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक) ३०-ईसावास्योपनिषद उपनषत्स्तुति (शिव रहस्यान्तर्गत, अभी तक अनुपलब्ध है।) ३१-ऊध्वर्पण्ड्रोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक) ३२-एकाक्षरोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ३३-ऐतेरेयोपनिषद् (अध्यायात्मक) (ऋग्वेदीय) ३४-ऐतेरेयोपनिषद् (खन्ड़ात्मक) ३५-ऐतेरेयोपनिषद् (अध्यायात्मक) ३६-कठरुद्रोपनिषद् (कण्ठोपनिषद्) (कृष्णयजुर्वेदीय) ३७-कठोपनिषद् ३८-कठश्रुत्युपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ३९-कलिसन्तरणोपनिषद् (हरिनामोपनिषद्) (कृष्णयजुर्वेदीय) ४०-कात्यायनोपनिषद् ४१-कामराजकीलितोद्धारोपनिषद् ४२-कालाग्निरुद्रोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ४३-कालिकोपनिषद् ४४-कालिमेधादीक्षितोपनिषद् ४५-कुण्डिकोपनिषद् (सामवेद) ४६-कृष्णोपनिषद् (सामवेद) ४७-केनोपनिषद् (सामवेद) ४८-कैवल्योपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ४९-कौलोपनिषद् ५०-कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद् (ऋग्वेदीय) ५१-क्षुरिकोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ५२-गणपत्यथर्वशीर्षोपनिषद् (सामवेद) ५३-गणेशपूर्वतापिन्युपनिषद् (वरदपूर्वतापिन्युपनिषद्) ५४-गणेशोत्तरतापिन्युपनिषद् (वरदोत्तरतापिन्युपनिषद्) ५५-गर्भोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ५६-गान्धर्वोपनिषद् ५७-गायत्र्युपनिषद् ५८-गायत्रीरहस्योपनिषद् ५९-गारुड़ोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं मन्त्रात्मक) (सामवेद) ६०-गुह्यकाल्युपनिषद् ६१-गुह्यषोढ़ान्यासोपनिषद् ६२-गोपालपूर्वतापिन्युपनिषद् (सामवेद) ६३-गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद् ६४-गोपीचन्दनोपनिषद् ६५-चतुर्वेदोपनिषद् ६६-चाक्षुषोपनिषद् (चक्षरुपनिषद्, चक्षुरोगोपनिषद्, नेत्रोपनिषद्) ६७-चित्त्युपनिषद् ६८-छागलेयोपनिषद् ६९-छान्दोग्योपनिषद् (सामवेद) ७०जाबालदर्शनोपनिषद् (सामवेद) ७१-जाबालोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ७२-जाबाल्युपनिषद् (सामवेद) ७३-तारसारोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ७४-तारोपनिषद् ७५-तुरीयातीतोपनिषद् (तीतावधूतो०) (शुक्लयजुर्वेदीय) ७६-तुरीयोपनिषद् ७७-तुलस्युपनिषद् ७८-तेजोबिन्दुपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ७९-तैत्तरीयोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ८०-त्रिपादविभूतिमहानारायणोपनिषद् (सामवेद) ८१-त्रिपुरातापिन्युपनिषद् (सामवेद) ८२-त्रिपुरोपनिषद् (ऋग्वेदीय) ८३-त्रिपुरामहोपनिषद् ८४-त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ८५-त्रिसुपर्णोपनिषद् ८६-दक्षिणामूर्त्युपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ८७-दत्तात्रेयोपनिषद् (सामवेद) ८८-दत्तोपनिषद् ८९-दुर्वासोपनिषद् ९०- (१) देव्युपनिषद् (पद्यात्मक एवं मन्त्रात्मक) (सामवेद) * (२) देव्युपनिषद् (शिवरहस्यान्तर्गत-अनुपलब्ध) ९१-द्वयोपनिषद् ९२-ध्यानबिन्दुपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) ९३-नादबिन्दुपनिषद् (ऋग्वेदीय) ९४-नारदपरिब्राजकोपनिषद् (सामवेद) ९५-नारदोपनिषद् ९६-नारायणपूर्वतापिन्युपनिषद् ९७-नारायणोत्तरतापिन्युपनिषद् ९८-नारायणोपनिषद् (नारायणाथर्वशीर्ष) (कृष्णयजुर्वेदीय) ९९-निरालम्बोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) १००-निरुक्तोपनिषद् १०१-निर्वाणोपनिषद् (ऋग्वेदीय) १०२-नीलरुद्रोपनिषद् १०३-नृसिंहपूर्वतापिन्युपनिषद् १०४-नृसिंहषटचक्रोपनिषद् १०५-नृसिंहोत्तरतापिन्युपनिषद् (सामवेद) १०६-पंचब्रह्मोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १०७-परब्रह्मोपनिषद् (सामवेद) १०८-परमहंसपरिब्राजकोपनिषद् (सामवेद) १०९-परमहंसोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ११०-पारमात्मिकोपनिषद् १११-पारायणोपनिषद् ११२-पाशुपतब्राह्मोपनिषद् (सामवेद) ११३-पिण्डोपनिषद् ११४-पीताम्बरोपनिषद् ११५-पुरुषसूक्तोपनिषद् ११६-पैंगलोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) ११७-प्रणवोपनिषद् (पद्यात्मक) ११८-प्रणवोपनिषद् (वाक्यात्मक ११९-प्रश्नोपनिषद् (सामवेद) १२०-प्राणाग्निहोत्रोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १२१-बटुकोपनिषद (बटुकोपनिषध) १२२-ब्रह्वृचोपोपनिषद् (ऋग्वेदीय) १२३-बाष्कलमन्त्रोपनिषद् १२४-बिल्वोपनिषद् (पद्यात्मक) १२५-बिल्वोपनिषद् (वाक्यात्मक) १२६-बृहज्जाबालोपनिषद् (सामवेद) १२७-बृहदारण्यकोपनिषद् (शुक्लयजर्वेदीय) १२८-ब्रह्मविद्योपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १२९-ब्रह्मोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १३०-भगवद्गीतोपनिषद् १३१-भवसंतरणोपनिषद् १३२-भस्मजाबालोपनिषद् (सामवेद) १३३-भावनोपनिषद् (कापिलोपनिषद्) (सामवेद) १३४-भिक्षुकोपनिष (शुक्लयजुर्वेदीय) १३५-मठाम्नयोपनिषद् १३६-मण्डलब्राह्मणोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) १३७-मन्त्रिकोपनिषद् (चूलिकोपनिषद्) (शुक्लयजुर्वेदीय) १३८-मल्लायुपनिषद् १३९-महानारायणोपनिषद् (बृहन्नारायणोपनिषद्, उत्तरनारायणोपनिषद्) १४०-महावाक्योपनिषद् १४१-महोपनिषद् (सामवेद) १४२-माण्डूक्योपनिषद् (सामवेद) १४३-माण्डुक्योपनिषत्कारिका (क)-आगम (ख)-अलातशान्ति (ग)-वैतथ्य (घ)-अद्वैत १४४-मुक्तिकोपनिषद् (शुक्लयजर्वेदीय) १४५-मुण्डकोपनिषद् (सामवेद) १४६-मुद्गलोपनिषद् (ऋग्वेदीय) १४७-मृत्युलांगूलोपनिषद् १४८-मैत्रायण्युपनिषद् (सामवेद) १४९-मैत्रेव्युपनिषद् (सामवेद) १५०-यज्ञोपवीतोपनिषद् १५१-याज्ञवल्क्योपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) १५२-योगकुण्डल्युपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १५३-योगचूडामण्युपनिषद् (सामवेद) १५४-(१) योगतत्त्वोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १५५-(२) योगतत्त्वोपनिषद् १५६-योगराजोपनिषद् १५७-योगशिखोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १५८-योगोपनिषद् १५९-राजश्यामलारहस्योपनिषद् १६०-राधोकोपनिषद् (वाक्यात्मक) १६१-राधोकोपनिषद् (प्रपठात्मक) १६२-रामपूर्वतापिन्युपनिषद् (सामवेद) १६३-रामरहस्योपनिषद् (सामवेद) १६४-रामोत्तरतापिन्युपनिषद् १६५-रुद्रहृदयोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १६६-रुद्राक्षजाबालोपनिषद् (सामवेद) १६७-रुद्रोपनिषद् १६८-लक्ष्म्युपनिषद् १६९-लांगूलोपनिषद् १७०-लिंगोपनिषद् १७१-बज्रपंजरोपनिषद् १७२-बज्रसूचिकोपनिषद् (सामवेद) १७३-बनदुर्गोपनिषद् १७४-वराहोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १७५-वासुदेवोपनिषद् (सामवेद) १७६-विश्रामोपनिषद् १७७-विष्णुहृदयोपनिषद् १७८-शरभोपनिषद् (सामवेद) १७९-शाट्यायनीयोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) १८०-शाण्डिल्योपनिषद् (सामवेद) १८१-शारीरकोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १८२-(१) शिवसंकल्पोपनिषद् १८३-(२) शिवसंकल्पोपनिषद् १८४-शिवोपनिषद् १८५-शुकरहस्योपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १८६-शौनकोपनिषद् १८७-श्यामोपनिषद् १८८-श्रीकृष्णपुरुषोत्तमसिद्धान्तोपनिषद् १८९-श्रीचक्रोपनिषद् १९०-श्रीविद्यात्तारकोपनिषद् १९१-श्रीसूक्तम १९२-श्वेताश्वतरोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) १९३-षोढोपनिषद् १९४-संकर्षणोपनिषद् १९५-सदानन्दोपनिषद् १९६-संन्यासोपनिषद् (अध्यायात्मक) (सामवेद) १९७-संन्यासोपनिषद् (वाक्यात्मक) १९८-सरस्वतीरहस्योपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) २००-सर्वसारोपनिषद् (सर्वोप०) (कृष्णयजुर्वेदीय) २०१-स ह वै उपनिषद् २०२-संहितोपनिषद् २०३-सामरहस्योपनिषद् २०४-सावित्र्युपनिषद् (सामवेद) २०५-सिद्धाँन्तविठ्ठलोपनिषद् २०६-सिद्धान्तशिखोपनिषद् २०७-सिद्धान्तसारोपनिषद् २०८-सीतोपनिषद् (सामवेद) २०९-सुदर्शनोपनिषद् २१०-सुबालोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) २११-सुमुख्युपनिषद् २१२-सूर्यतापिन्युपनिषद् २१३-सूर्योपनिषद् (सामवेद) २१४-सौभाग्यलक्ष्म्युपनिषद् (ऋग्वेदीय) २१५-स्कन्दोपनिषद् (कृष्णयजुर्वेदीय) २१६-स्वसंवेद्योपनिषद् २१७-हयग्रीवोपनिषद् (सामवेद) २१८-हंसषोढोपनिषद् २१९-हंसोपनिषद् (शुक्लयजुर्वेदीय) २२०-हेरम्बोपनिषद् १०८ उपिनषद १०८ उपिनषदों की यह सूची मुक्तिक उपनिषद में १:३०-३९ में दी गयी है : ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद् केन (उपनिषद्)= सामवेद, मुख्य उपिनषद् कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद् प्रश्न = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद् मुण्डक = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद् माण्डुक्य = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद् तैतरीय = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद् ऐतरेय = ऋग् वेद, मुख्य उपिनषद् छान्दोग्य = साम वेद, मुख्य उपिनषद् बृहदारण्यक उपनिषद (१०) = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद् ब्रह्म = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् कैवल्य = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद् जाबाल (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् श्वेताश्वतर = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् हंस = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपिनषद् आरुणेय = साम वेद, संन्यास उपिनषद् गर्भ = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् नारायण = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद् परमहंस = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् अमृत-बिन्दु (२०) = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् अमृत-नाद = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् अथर्व-शिर = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् अथर्व-शिख = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् मैत्रायिण = साम वेद, सामान्य उपिनषद् कौषीिताक = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद् बृहज्जाबाल = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् नृसिंहतापनी = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् कालाग्निरुद्र = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद् मैत्रेय = साम वेद, संन्यास उपिनषद् सुबाल (३०) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् क्षुरिक = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् मान्त्रिक = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् सर्व-सार = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् निरालम्ब = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् शुक-रहस्य = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् वज्र-सिूच = साम वेद, सामान्य उपिनषद् तेजो-बिन्दु = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् नाद-बिन्दु = ऋग् वेद, योग उपिनषद् ध्यानिबन्दु = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् ब्रह्मिवद्या (४०) = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् योगतत्त्व = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् आत्मबोध = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद् परिव्रात् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद् त्रि-िषिख = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपिनषद् सीता = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद् योगचूडामिण = साम वेद, योग उपिनषद् निर्वाण = ऋग् वेद, संन्यास उपिनषद् मण्डलब्राह्मण = शुक्ल यजुर्वेद, उपिनषद् दकि्षणामूर्ति = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद् शरभ (५०) = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् स्कन्द (त्िरपाड्िवभूिट) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् महानारायण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् अद्वयतारक = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् रामरहस्य = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् रामतापिण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् वासुदेव = साम वेद, वैष्णव उपिनषद् मुद्गल = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद् शाणि्डल्य = अथर्व वेद, योग उपिनषद् पैंगल = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् भिक्षुक (६०) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् महत् = साम वेद, सामान्य उपिनषद् शारीरक = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् योगिशखा = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् तुरीयातीत = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् संन्यास = साम वेद, संन्यास उपिनषद् परमहंस-परिव्राजक = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद् अक्षमालिक = ऋग् वेद, शैव उपिनषद् अव्यक्त = साम वेद, वैष्णव उपिनषद् एकाक्षर = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् अन्नपूर्ण (७०) = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद् सूर्य = अथर्व वेद, सामान्य उपिनषद् अक्षि = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् अध्यात्मा = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् कुण्डिक = साम वेद, संन्यास उपिनषद् सावित्री = साम वेद, सामान्य उपिनषद् आत्मा = अथर्व वेद, सामान्य उपिनषद् पाशुपत = अथर्व वेद, योग उपिनषद् परब्रह्म = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद् अवधूत = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् त्रिपुरातपिन (८०) = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद् देवि = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद् त्रिपुर = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद् कठरुद्र = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् भावन = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद् रुद्र-हृदय = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद् योग-कुण्डिलिन = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद् भस्म = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् रुद्राक्ष = साम वेद, शैव उपिनषद् गणपित = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् दर्शन (९०) = साम वेद, योग उपिनषद् तारसार = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद् महावाक्य = अथर्व वेद, योग उपिनषद् पंच-ब्रह्म = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद् प्राणाग्नि-होत्र = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् गोपाल-तपिण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् कृष्ण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् याज्ञवल्क्य = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् वराह = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद् शात्यायिन = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद् हयग्रीव (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् दत्तात्रेय = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् गारुड = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद् किल-सण्टारण = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद् जाबाल (सामवेद) = साम वेद, शैव उपिनषद् सौभाग्य = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद् सरस्वती-रहस्य = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपिनषद् बह्वृच = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद् मुक्तिक (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद् १९ उपिनषद् शुक्ल यजुर्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ पूर्णमदः से आरम्भ होता है | ३२ उपिनषद कृष्ण यजुर्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ सहनाववतु से आरम्भ होता है | १६ उपिनषद् सामवेद से हैं और उनका शान्तिपाठ आप्यायन्तु से आरम्भ होता है | ३१ उपिनषद् अथर्ववेद से हैं और उनका शान्तिपाठ भद्रं कर्णेभिः से आरम्भ होता है | १० उपिनषद् ऋग्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ वण्मे मनिस से आरम्भ होता है | बाहरी कड़ियाँ उपिनषद texts from sanskrit documents site श्रेणी:पुस्तकें श्रेणी:उपनिषद
उपनिषद्
https://hi.wikipedia.org/wiki/उपनिषद्
उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। इनकी संख्या लगभग १०८ है, किन्तु मुख्य उपनिषद १३ हैं। हर एक उपनिषद किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है। उपनिषदों में कर्मकाण्ड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्त्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल (जगत और पदार्थ) से सूक्ष्म (मन और आत्मा) की ओर ले जाता है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है। भगवद्गीता तथा ब्रह्मसूत्र, उपनिषदों के साथ मिलकर वेदान्त की 'प्रस्थानत्रयी' कहलाते हैं। ब्रह्मसूत्र और गीता कुछ सीमा तक उपनिषदों पर आधारित हैं। भारत की समग्र दार्शनिक चिन्तनधारा का मूल स्रोत उपनिषद-साहित्य ही है। इनसे दर्शन की जो विभिन्न धाराएं निकली हैं, उनमें 'वेदान्त दर्शन' का अद्वैत सम्प्रदाय प्रमुख है। उपनिषदों के तत्त्वज्ञान और कर्तव्यशास्त्र का प्रभाव भारतीय दर्शन के अतिरिक्त धर्म और संस्कृति पर भी परिलक्षित होता है। उपनिषदों का महत्त्व उनकी रोचक प्रतिपादन शैली के कारण भी है। कई सुन्दर आख्यान और रूपक, उपनिषदों में मिलते हैं। उपनिषद् भारतीय सभ्यता की अमूल्य धरोहर है। उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य। उपनिषदों को स्वयं भी 'वेदान्त' कहा गया है। १७वीं सदी में दारा शिकोह ने अनेक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया। 19वीं सदी में जर्मन तत्त्ववेता शोपेनहावर ने इन ग्रन्थों में जो रुचि दिखलाकर इनके अनुवाद किए वह सर्वविदित हैं और माननीय हैं। विश्व के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिन्तन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। वे ब्रह्मविद्या हैं। जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा खोजे हुए उत्तर हैं। वे चिन्तनशील ऋषियों की ज्ञानचर्चाओं का सार हैं। वे कवि-हृदय ऋषियों की काव्यमय आध्यात्मिक रचनाएँ हैं, अज्ञात की खोज के प्रयास हैं, वर्णनातीत परमशक्ति को शब्दों में प्रस्तुत करनेकि की कोशिशें हैं और उस निराकार, निर्विकार, असीम, अपार को अन्तरदृष्टि से समझने और परिभाषित करने की अदम्य आकांक्षा के लेखबद्ध विवरण हैं। उपनिषद शब्द का अर्थ उपनिषद् शब्द का साधारण अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ या 'समीप बैठना (ब्रह्म विद्या की प्राप्ति के लिए शिष्य का गुरु के पास बैठना)। यह शब्द ‘उप’, ‘नि’ उपसर्ग तथा, ‘सद्’ धातु से निष्पन्न हुआ है। सद् धातु के तीन अर्थ हैं : विवरण-नाश होना; गति-पाना या जानना तथा अवसादन-शिथिल होना। उपनिषद् में ऋषि और शिष्य के बीच बहुत सुन्दर और गूढ संवाद है जो पाठक को वेद के मर्म तक पहुंचाता है। भूगोल thumb|400px|right|उत्तर वैदिक काल का भूगोल प्रारंभिक उपनिषदों की रचना का सामान्य क्षेत्र उत्तरी भारत माना जाता है। यह क्षेत्र पश्चिम में ऊपरी सिंधु घाटी, पूर्व में निचले गंगा क्षेत्र, उत्तर में हिमालय की तलहटी और दक्षिण में विंध्य पर्वत श्रृंखला से घिरा है।Bronkhorst, Johannes (2007). Greater Magadha: Studies in the Culture of Early India, pp. 258-259. BRILL. विद्वानों को यथोचित यकीन है कि प्रारंभिक उपनिषदों का निर्माण प्राचीन ब्राह्मणवाद के भौगोलिक केंद्र, कुरु - पंचाल और कोसल - विदेह, जो ब्राह्मणवाद का एक "सीमांत क्षेत्र" था, इसी के साथ-साथ इनके ठीक दक्षिण और पश्चिम के क्षेत्रों में हुआ था। इस क्षेत्र में आधुनिक बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान और उत्तरी मध्य प्रदेश शामिल हैं।Patrick Olivelle (2014), The Early Upanishads, Oxford University Press, , pages 12-14. हालाँकि व्यक्तिगत उपनिषदों के सटीक स्थानों की पहचान करने के लिए हाल ही में महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, लेकिन परिणाम अस्थायी हैं। विट्जेल बृहदारण्यक उपनिषद में गतिविधि के केंद्र की पहचान विदेह के क्षेत्र के रूप में करते हैं, जिसके राजा जनक का उल्लेख उपनिषद में प्रमुखता से है। छांदोग्य उपनिषद की रचना संभवतः भारतीय उपमहाद्वीप में पूर्वी से अधिक पश्चिमी स्थान पर की गई थी, संभवतः कुरु-पांचाल देश के पश्चिमी क्षेत्र में कहीं। प्रमुख उपनिषदों की तुलना में, मुक्तिका में दर्ज नए उपनिषद पूरी तरह से अलग क्षेत्र, शायद दक्षिणी भारत से संबंधित हैं, और अपेक्षाकृत हाल के हैं। कौशीतकी उपनिषद के चौथे अध्याय में काशी (आधुनिक बनारस) नामक स्थान का उल्लेख है। विषय-वस्तु उपनिषदों में मुख्य रूप से 'आत्मविद्या' का प्रतिपादन है, जिसके अन्तर्गत ब्रह्म और आत्मा के स्वरूप, उसकी प्राप्ति के साधन और आवश्यकता की समीक्षा की गयी है। आत्मज्ञानी के स्वरूप, मोक्ष के स्वरूप आदि अवान्तर विषयों के साथ ही विद्या, अविद्या, श्रेयस, प्रेयस, आचार्य आदि तत्सम्बद्ध विषयों पर भी भरपूर चिन्तन उपनिषदों में उपलब्ध होता है। वैदिक ग्रन्थों में जो दार्शनिक और आध्यात्मिक चिन्तन यत्र-तत्र दिखार्इ देता है, वही परिपक्व रूप में उपनिषदों में निबद्ध हुआ है। उपनिषदों में सर्वत्र समन्वय की भावना है। दोनों पक्षों में जो ग्राह्य है, उसे ले लेना चाहिए। दृष्टि से ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग, विद्या और अविद्या, संभूति और असंभूति के समन्वय का उपदेश है। उपनिषदों में कभी-कभी ब्रह्मविद्या की तुलना में कर्मकाण्ड को बहुत हीन बताया गया है। र्इश आदि कर्इ उपनिषदें एकात्मवाद का प्रबल समर्थन करती हैं। उपनिषद् ब्रह्मविद्या का द्योतक है। कहते हैं इस विद्या के अभ्यास से मुमुक्षुजन की अविद्या नष्ट हो जाती है (विवरण); वह ब्रह्म की प्राप्ति करा देती है (गति); जिससे मनुष्यों के गर्भवास आदि सांसारिक दुःख सर्वथा शिथिल हो जाते हैं (अवसादन)। फलतः उपनिषद् वे ‘तत्त्व’ प्रतिपादक ग्रन्थ माने जाते हैं जिनके अभ्यास से मनुष्य को ब्रह्म अथवा परमात्मा का साक्षात्कार होता है। उपनिषदों की कथाएँ उपनिषदों में देवता-दानव, ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी, पृथ्वी, प्रकृति, चर-अचर, सभी को माध्यम बना कर रोचक और प्रेरणादायक कथाओं की रचना की गयी है। इन कथाओं की रचना वेदों की व्याख्या के उद्देश्य से की गई। जो बातें वेदों में जटिलता से कही गयी है उन्हें उपनिषदों में सरल ढंग से समझाया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अग्नि, सूर्य, इन्द्र आदि देवताओं से लेकर नदी, समुद्र, पर्वत, वृक्ष तक उपनिषद के कथापात्र है। उपनिषद् गुरु-शिष्य परम्परा के आदर्श उदाहरण हैं। प्रश्नोत्तर के माध्यम से सृष्टि के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन उपनिषदों में सहज ढंग से किया गया है। विभिन्न दृष्टान्तों, उदाहरणों, रूपकों, संकेतों और युक्तियों द्वारा आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म आदि का स्पष्टीकरण इतनी सफलता से उपनिषद् ही कर सके हैं। प्रमुख कथाएँ- रजि की कथा, कार्तवीर्य की कथा, नचिकेता की कथा, उद्दालक और श्वेतकेतु की कथा, सत्यकाम जाबाल की कथा आदि। आध्यात्मिक चिन्तन की अमूल्य निधि उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलाधार है, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन स्रोत हैं। वे ब्रह्मविद्या हैं। जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा खोजे हुए उत्तर हैं। वे चिंतनशील ऋषियों की ज्ञानचर्चाओं का सार हैं। वे कवि-हृदय ऋषियों की काव्यमय आध्यात्मिक रचनाएँ हैं, अज्ञात की खोज के प्रयास हैं, वर्णनातीत परमशक्ति को शब्दों में बाँधने का प्रयत्न हैं और उस निराकार, निर्विकार, असीम, अपार को अंतर्दृष्टि से समझने और परिभाषित करने की अदम्य आकांक्षा के लेखबद्ध विवरण हैं। उपनिषदकाल के पहले : वैदिक युग वैदिक युग सांसारिक आनन्द एवं उपभोग का युग था। मानव मन की निश्चिंतता, पवित्रता, भावुकता, भोलेपन व निष्पापता का युग था। जीवन को संपूर्ण अल्हड़पन से जीना ही उस काल के लोगों का प्रेय व श्रेय था। प्रकृति के विभिन्न मनोहारी स्वरूपों को देखकर उस समय के लोगों के भावुक मनों में जो उद्‍गार स्वयंस्फूर्त आलोकित तरंगों के रूप में उभरे उन मनोभावों को उन्होंने प्रशस्तियों, स्तुतियों, दिव्यगानों व काव्य रचनाओं के रूप में शब्दबद्ध किया और वे वैदिक ऋचाएँ या मंत्र बन गए। उन लोगों के मन सांसारिक आनंद से भरे थे, संपन्नता से संतुष्ट थे, प्राकृतिक दिव्यताओं से भाव-विभोर हो उठते थे। अत: उनके गीतों में यह कामना है कि यह आनंद सदा बना रहे, बढ़ता रहे और कभी समाप्त न हो। उन्होंने कामना की कि इस आनंद को हम पूर्ण आयु सौ वर्षों तक भोगें और हमारे बाद की पीढियाँ भी इसी प्रकार तृप्त रहें। यही नहीं कामना यह भी की गई कि इस जीवन के समाप्त होने पर हम स्वर्ग में जाएँ और इस सुख व आनंद की निरंतरता वहाँ भी बनी रहे। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न अनुष्ठान भी किए गए और देवताओं को प्रसन्न करने के आयोजन करके उनसे ये वरदान भी माँगे गए। जब प्रकृति करवट लेती थी तो प्राकृतिक विपदाओं का सामना होता था। तब उन विपत्तियों केकाल्पनिक नियंत्रक देवताओं यथा मरुत, अग्नि, रुद्र आदि को तुष्ट व प्रसन्न करने के अनुष्ठान किए जाते थे और उनसे प्रार्थना की जाती थी कि ऐसी विपत्तियों को आने न दें और उनके आने पर प्रजा की रक्षा करें। कुल मिलाकर वैदिक काल के लोगों का जीवन प्रफुल्लित, आह्लादमय, सुखाकांक्षी, आशावादी और‍ जिजीविषापूर्ण था। उनमें विषाद, पाप या कष्टमय जीवन के विचार की छाया नहीं थी। नरक व उसमें मिलने वाली यातनाओं की कल्पना तक नहीं की गई थी। कर्म को यज्ञ और यज्ञ को ही कर्म माना गया था और उसी के सभी सुखों की प्राप्ति तथा संकटों का निवारण हो जाने की अवधारणा थी। यह जीवनशैली दीर्घकाल तक चली। पर ऐसा कब तक चलता। एक न एक दिन तो मनुष्य के अनंत जिज्ञासु मस्तिष्क में और वर्तमान से कभी संतुष्ट न होने वाले मन में यह जिज्ञासा, यह प्रश्न उठना ही था कि प्रकृति की इस विशाल रंगभूमि के पीछे सूत्रधार कौन है, इसका सृष्टा/निर्माता कौन है, इसका उद्‍गम कहाँ है, हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं, यह सृष्टि अंतत: कहाँ जाएगी। हमारा क्या होगा? शनै:-शनै: ये प्रश्न अंकुरित हुए। और फिर शुरू हुई इन सबके उत्तर खोजने की ललक तथा जिज्ञासु मन-मस्तिष्क की अनंत खोज यात्रा। कुछ लोगों की जीवन देखने की क्षमता गहरी होने लगी, जिसकी वजह से उनको जीवन चक्र दिखने लगा। जीवन में सुख और दुःख दोनों है ये दिखने लगा। कुछ लोगों को ये लगने लगा कि जीवन क्या सिर्फ यही है। उन्होंने 'ना' कहना शुरू किया पेट केंद्रित जीवन को। इसी "ना" से उपनिषद का आरम्भ हुआ। उपनिषदकालीन विचारों का उदय ऐसा नहीं है कि आत्मा, पुनर्जन्म और कर्मफलवाद के विषय में वैदिक ऋषियों ने कभी सोचा ही नहीं था। ऐसा भी नहीं था कि इस जीवन के बारे में उनका कोई ध्यान न था। ऋषियों ने यदा-कदा इस विषय पर विचार किया भी था। इसके बीज वेदों में यत्र-तत्र मिलते हैं, परंतु यह केवल विचार मात्र था। कोई चिंता या भय नहीं। आत्मा शरीर से भिन्न तत्त्व है और इस जीवन की समाप्ति के बाद वह परलोक को जाती है इस सिद्धांत का आभास वैदिक ऋचाओं में मिलता अवश्य है परंतु संसार में आत्मा का आवागमन क्यों होता है, इसकी खोज में वैदिक ऋषि प्रवृत्त नहीं हुए। अपनी समस्त सीमाओं के साथ सांसारिक जीवन वैदिक ऋषियों का प्रेय था। प्रेय को छोड़कर श्रेय की ओर बढ़ने की आतुरता उपनिषदों के समय जगी, तब मोक्ष के सामने ग्रहस्थ जीवन निस्सार हो गया एवं जब लोग जीवन से आनंद लेने के बजाय उससे पीठ फेरकर संन्यास लेने लगे। हाँ, यह भी हुआ कि वैदिक ऋषि जहाँ यह पूछ कर शांत हो जाते थे कि 'यह सृष्टि किसने बनाई है?' और 'कौन देवता है जिसकी हम उपासना करें'? वहाँ उपनिषदों के ऋषियों ने सृष्टि बनाने वाले के संबंध में कुछ सिद्धांतों का निश्चय कर दिया और उस 'सत' का भी पता पा लिया जो पूजा और उपासना का वस्तुत: अधिकार है। वैदिक धर्म का पुराना आख्यान वेद और नवीन आख्यान उपनिषद हैं।'वेदों में यज्ञ-धर्म का प्रतिपादन किया गया और लोगों को यह सीख दी गई कि इस जीवन में सुखी, संपन्न तथा सर्वत्र सफल व विजयी रहने के लिए आवश्यक है कि देवताओं की तुष्टि व प्रसन्नता के लिए यज्ञ किए जाएँ। 'विश्व की उत्पत्ति का स्थान यज्ञ है। सभी कर्मों में श्रेष्ठ कर्म यज्ञ है। यज्ञ के कर्मफल से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।' ये ही सूत्र चारों ओर गुँजित थे। दूसरे, जब ब्राह्मण ग्रंथों ने यज्ञ को बहुत अधिक महत्त्व दे दिया और पुरोहितवाद तथा पुरोहितों की मनमानी अत्यधिक बढ़ गई तब इस व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई और विरोध की भावना का सूत्रपात हुआ। लोग सोचने लगे कि 'यज्ञों का वास्तविक अर्थ क्या है?' 'उनके भीतर कौन सा रहस्य है?' 'वे धर्म के किस रूप के प्रतीक हैं?' 'क्या वे हमें जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुँचा देंगे?' इस प्रकार, कर्मकाण्ड पर बहुत अधिक जोर तथा कर्मकाण्डों को ही जीवन की सभी समस्याओं के हल के रूप में प्रतिपादित किए जाने की प्रवृत्ति ने विचारवान लोगों को उनके बारे में पुनर्विचार करने को प्रेरित किया। प्रकृति के प्रत्येक रूप में एक नियंत्रक देवता की कल्पना करते-करते वैदिक आर्य बहुदेववादी हो गए थे। उनके देवताओं में उल्लेखनीय हैं- इंद्र, वरुण, अग्नि, सविता, सोम, अश्विनीकुमार, मरुत, पूषन, मित्र, पितर, यम आदि। तब एक बौद्धिक व्यग्रता प्रारंभ हुई उस एक परमशक्ति के दर्शन करने या उसके वास्तविक स्वरूप को समझने की कि जो संपूर्ण सृष्टि का रचयिता और इन देवताओं के ऊपर की सत्ता है। इस व्यग्रता ने उपनिषद के चिंतनों का मार्ग प्रशस्त किया। उपनिषदों का स्वरूप उपनिषद चिंतनशील एवं कल्पाशील मनीषियों की दार्शनिक काव्य रचनाएँ हैं। जहाँ गद्य लिख गए हैं वे भी पद्यमय गद्य-रचनाओं में ऐसी शब्द-शक्ति, ध्वन्यात्मकता, लव एवं अर्थगर्भिता है कि वे किसी दैवी शक्ति की रचनाओं का आभास देते हैं। यह सचमुच अत्युक्ति नहीं है कि उन्हें 'मंत्र' या 'ऋचा' कहा गया। वास्तव में मंत्र या ऋचा का संबंध वेद से है परंतु उपनिषदों की हमत्ता दर्शाने के लिए इन संज्ञाओं का उपयोग यहाँ भी कतिपय विद्वानों द्वारा किया जाता है। उपनिषद अपने आसपास के दृश्य संसार के पीछे झाँकने के प्रयत्न हैं। इसके लिए न कोई उपकरण उपलब्ध हैं और न किसी प्रकार की प्रयोग-अनुसंधान सुविधाएँ संभव है। अपनी मनश्चेतना, मानसिक अनुभूति या अंतर्दृष्टि के आधार पर हुए आध्यात्मिक स्फुरण या दिव्य प्रकाश को ही वर्णन का आधार बनाया गया है। उपनिषद अध्यात्मविद्या के विविध अध्याय हैं जो विभिन्न अंत:प्रेरित ऋषियों द्वारा लिखे गए हैं। इनमें विश्व की परमसत्ता के स्वरूप, उसके अवस्थान, विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों के साथ उसके संबंध, मानवीय आत्मा में उसकी एक किरण की झलक या सूक्ष्म प्रतिबिंब की उपस्थिति आदि को विभिन्न रूपकों और प्रतीकों के रूप में वर्णित किया गया है। सृष्टि के उद्‍गम एवं उसकी रचना के संबंध में गहन चिंतन तथा स्वयंफूर्त कल्पना से उपजे रूपांकन को विविध बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। अंत में कहा यह गया कि हमारी श्रेष्ठ परिकल्पना के आधार पर जो कुछ हम समझ सके, वह यह है। इसके आगे इस रहस्य को शायद परमात्मा ही जानता हो और 'शायद वह भी नहीं जानता हो।' संक्षेप में, वेदों में इस संसार में दृश्यमान एवं प्रकट प्राकृतिक शक्तियों के स्वरूप को समझने, उन्हें अपनी कल्पनानुसार विभिन्न देवताओं का जामा पहनाकर उनकी आराधना करने, उन्हें तुष्ट करने तथा उनसे सांसारिक सफलता व संपन्नता एवं सुरक्षा पाने के प्रयत्न किए गए थे। उन तक अपनी श्रद्धा को पहुँचाने का माध्यम यज्ञों को बनाया गया था। उपनिषदों में उन अनेक प्रयत्नों का विवरण है जो इन प्राकृतिक शक्तियों के पीछे की परमशक्ति या सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता से साक्षात्कार करने की मनोकामना के साथ किए गए। मानवीय कल्पना, चिंतन-क्षमता, अंतर्दृष्टि की क्षमता जहाँ तक उस समय के दार्शनिकों, मनीषियों या ऋषियों को पहुँचा सकीं उन्होंने पहुँचने का भरसक प्रयत्न किया। यही उनका तप था। उपनिषदों का वर्गीकरण १०८ उपनिषदों को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है। वेद से सम्बन्ध वैदिक संहिताओं के अनन्तर वेद के तीन प्रकार के ग्रन्थ हैं- ब्राह्राण, आरण्यक और उपनिषद। इन ग्रन्थों का सीधा सम्बन्ध अपने वेद से होता है, जैसे ऋग्वेद के ब्राह्राण, ऋग्वेद के आरण्यक और ऋग्वेद के उपनिषदों के साथ ऋग्वेद का संहिता ग्रन्थ मिलकर भारतीय परम्परा के अनुसार 'ऋग्वेद' कहलाता है। किसी उपनिषद का सम्बन्ध किस वेद से है, इस आधार पर उपनिषदों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है- (१) ऋग्वेदीय -- १० उपनिषद् (२) शुक्ल यजुर्वेदीय -- १९ उपनिषद् (३) कृष्ण यजुर्वेदीय -- ३२ उपनिषद् (४) सामवेदीय -- १६ उपनिषद् (५) अथर्ववेदीय -- ३१ उपनिषद् कुल -- १०८ उपनिषद् इनके अतिरिक्त नारायण, नृसिंह, रामतापनी तथा गोपाल चार उपनिषद् और हैं। मुख्य उपनिषद एवं गौण उपनिषद विषय की गम्भीरता तथा विवेचन की विशदता के कारण १३ उपनिषद् विशेष मान्य तथा प्राचीन माने जाते हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने १० पर अपना भाष्य दिया है- (१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छान्दोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) मांडूक्य और (१०) मुण्डक। उन्होने निम्न तीन को प्रमाण कोटि में रखा है- (१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी। अन्य उपनिषद् तत्तद् देवता विषयक होने के कारण 'तांत्रिक' माने जाते हैं। ऐसे उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक उपनिषदों की प्रधान गणना है। प्रतिपाद्य विषय के आधार पर डॉ॰ ड्यूसेन, डॉ॰ बेल्वेकर तथा रानडे ने उपनिषदों का विभाजन प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से इस प्रकार किया है: १. गद्यात्मक उपनिषद् १. ऐतरेय, २. केन, ३. छान्दोग्य, ४. तैत्तिरीय, ५. बृहदारण्यक तथा ६. कौषीतकि; इनका गद्य ब्राह्मणों के गद्य के समान सरल, लघुकाय तथा प्राचीन है। २.पद्यात्मक उपनिषद् १.ईश, २.कठ, ३. श्वेताश्वतर तथा नारायण इनका पद्य वैदिक मंत्रों के अनुरूप सरल, प्राचीन तथा सुबोध है। ३.अवान्तर गद्योपनिषद् १.प्रश्न, २.मैत्री (मैत्रायणी) तथा ३.माण्डूक्य ४.आथर्वण (अर्थात् कर्मकाण्डी) उपनिषद् अन्य अवांतरकालीन उपनिषदों की गणना इस श्रेणी में की जाती है। भाषा तथा उपनिषदों के विकासक्रम के आधार पर भाषा तथा उपनिषदों के विकास क्रम की दृष्टि से डॉ॰ डासन ने उनका विभाजन चार स्तर में किया है: प्राचीनतम १. ईश, २. ऐतरेय, ३. छान्दोग्य, ४. प्रश्न, ५. तैत्तिरीय, ६. बृहदारण्यक, ७. माण्डूक्य और ८. मुण्डक प्राचीन १. कठ, २. केन अवान्तरकालीन १. कौषीतकि, २. मैत्री (मैत्राणयी) तथा ३. श्वेताश्वतर उपनिषदों की भौगोलिक स्थिति एवं काल उपनिषदों की भौगोलिक स्थिति मध्यदेश के कुरुपांचाल से लेकर विदेह (मिथिला) तक फैली हुई है। उपनिषदों के काल के विषय में निश्चित मत नहीं है पर उपनिषदो का काल ३००० ईसा पूर्व से ३५०० ई पू माना गया है। वेदो का रचना काल भी यही समय माना गया है। उपनिषद् काल का आरम्भ बुद्ध से पर्याप्त पूर्व है। "ग्रेट एजेज ऑफ मैन" के सम्पादक इसे लगभग ८०० ई.पू. बतलाते हैं। उपनिषदों के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। कुछ उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश माना गया है। ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। कुछ उपनिषद ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ ग्रन्थों के अंश माने गये हैं। इनका रचनाकाल संहिताओं के बाद का है। उपनिषदों के काल के विषय में निश्चित मत नहीं है समान्यत उपनिषदो का काल रचनाकाल ३००० ईसा पूर्व से ५०० ईसा पूर्व माना गया है। उपनिषदों के काल-निर्णय के लिए निम्न मुख्य तथ्यों को आधार माना गया है— पुरातत्व एवं भौगोलिक परिस्थितियां पौराणिक अथवा वैदिक ॠषियों के नाम सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाओं के समयकाल उपनिषदों में वर्णित खगोलीय विवरण निम्न विद्वानों द्वारा विभिन्न उपनिषदों का रचना काल निम्न क्रम में माना गया हैRanade 1926, pp. 13–14- + विभिन्न विद्वानों द्वारा वैदिक या उपनिषद काल के लिये विभिन्न निर्धारित समयावधि लेखक शुरुवात (BC)समापन (BC)विधिलोकमान्य तिलक (Winternitz भी इससे सहमत है)<div style="text-align: center;">6000<div style="text-align: center;">200खगोलिय विधिबी. वी. कामेश्वर<div style="text-align: center;">2300<div style="text-align: center;">2000खगोलिय विधिमैक्स मूलर<div style="text-align: center;">1000<div style="text-align: center;">800भाषाई विश्लेषणरनाडे<div style="text-align: center;">1200<div style="text-align: center;">600भाषाई विश्लेषण, वैचारिक सिदान्त, etcराधा कृष्णन<div style="text-align: center;">800<div style="text-align: center;">600वैचारिक सिदान्त+ मुख्य उपनिषदों का रचनाकाल डयुसेन (1000 or 800 – 500 BC) रनाडे (1200 – 600 BC) राधा कृष्णन (800 – 600 BC) अत्यन्त प्राचीन उपनिषद गद्य शैली में: बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, कौषीतकि, केनकविता शैली में: केन, कठ, ईश, श्वेताश्वतर, मुण्डकबाद के उपनिषद गद्य शैली में: प्रश्न, मैत्री, मांडूक्यसमूह १ : बृहदारण्यक, छान्दोग्यसमूह २ : ईश, केनसमूह ३ : ऐतरेय, तैत्तिरीय, कौषीतकिसमूह ४ : कठ, मुण्डक, श्वेताश्वतरसमूह ५ : प्रश्न, मांडूक्य, मैत्राणयीबुद्ध काल से पूर्व के: ऐतरेय, कौषीतकि, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, केनमध्यकालीन: केन (1–3), बृहदारण्यक (4 8–21), कठ, मांडूक्यसांख्य एवं योग पर अधारित: मैत्री, श्वेताश्वतर सन्दर्भ इन्हें भी देखिये उपनिषद् सूची वेदान्त वेदान्तसूत्र या ब्रह्मसूत्र वेदान्तसार बाहरी कड़ियाँ उपनिषदों ने आत्मनिरीक्षण का मार्ग बताया उपनिषद् शब्दावली () मूल ग्रन्थ Upanishads at Sanskrit Documents Site उपनिषद (वन्दे मतरम लाइब्रेरी ट्रस्ट तथा औरो_भारती का संयुक्त उपक्रम) पीडीईएफ् प्रारूप, देवनागरी में अनेक उपनिषद GRETIL TITUS अनुवाद Translations of major Upanishads 11 principal Upanishads with translations Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org Upanishads and other Vedanta texts डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks Quotes उपनिषद् श्रेणी:वेद श्रेणी:दर्शन श्रेणी:धर्मग्रन्थ श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:वैदिक धर्म श्रेणी:उपनिषद
रुपया
https://hi.wikipedia.org/wiki/रुपया
right|250px|thumb|रुपया १९०२, जर्मन पूर्वी अफ्रीका। चांदी। रुपया (रु॰) (हिंदी और उर्दू: रुपया, संस्कृत: रूप्यकम् से उत्प्रेरित जिसका अर्थ चांदी का सिक्का है) भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस और सेशल्स में उपयोग मे आने वाली मुद्रा का नाम है। इंडोनेशिया की मुद्रा को रुपिया जबकि मालदीव की मुद्रा को रुफियाह, के नाम से जाना जाता है जो असल मे हिन्दी शब्द रुपया का ही बदला हुआ रूप है। भारतीय और पाकिस्तानी रुपये मे सौ पैसे होते हैं (एक पैसा) में, श्रीलंकाई रुपये में १०० सेंट, तथा नेपाली रुपये को सौ पैसे या चार सूकों (एकवचन सूक) या दो मोहरों (एकवचन मोहर) मे विभाजित किया जा सकता है। नामकरण "रुपया" शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रुप् या रुप्याह् मे निहित है, जिसका अर्थ कच्ची चांदी होता है और रूप्यकम् का अर्थ चांदी का सिक्का है। कालांतर मे पूरे उपमहाद्वीप मे मौद्रिक प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए तीनों धातुओं के सिक्कों का मानकीकरण किया गया। मूल्य ‘रुपया’ आज तक प्रचलन मे है। भारत मे ब्रिटिश राज के दौरान भी यह प्रचलन मे रहा, इस दौरान इसका वजन ११.६६ ग्राम था और इसके भार का ९१.७% तक शुद्ध चांदी थी। १९वीं शताब्दी के अंत मे रुपया प्रथागत ब्रिटिश मुद्रा विनिमय दर, के अनुसार एक शिलिंग और चार पेंस के बराबर था वहीं यह एक पाउंड स्टर्लिंग का १ / १५ हिस्सा था। उन्नीसवीं सदी मे जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थायें स्वर्ण मानक पर आधारित थीं तब चांदी से बने रुपये के मूल्य मे भीषण गिरावट आयी। संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशों में विशाल मात्रा मे चांदी के स्रोत मिलने के परिणामस्वरूप चांदी का मूल्य सोने के अपेक्षा काफी गिर गया। अचानक भारत की मानक मुद्रा से अब बाहर की दुनिया से ज्यादा खरीद नहीं की जा सकती थी। इस घटना को ‘रुपए की गिरावट "के रूप में जाना जाता है। मूल्य वर्ग पहले रुपए (११.६६ ग्राम) को १६ आने या ६४ पैसे या १९२ पाई में बांटा जाता था। रुपये का दशमलवीकरण १८६९ में सीलोन (श्रीलंका) में, १९५७ में भारत मे और १९६१ में पाकिस्तान में हुआ। इस प्रकार अब एक भारतीय रुपया १०० पैसे में विभाजित हो गया। भारत में कभी कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था। भारत मे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा जारी की जाती है, जबकि पाकिस्तान मे यह स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के द्वारा नियंत्रित होता है। thumb|right|275px|वे देश जहाँ रुपया राष्ट्रीय मुद्रा है असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बोली जाने वाली असमिया और बांग्ला भाषाओं में, रुपये को टका के रूप में जाना जाता है और भारतीय बैंक नोटों पर भी इसी रूप में लिखा जाता है। भारत और पाकिस्तान की मुद्रा १, २, ५, १०, २०, ५०, १००, २००, ५०० और २००० रुपये के मूल्यवर्ग में जारी की जाती है, वहीं पाकिस्तान मे ५००० रुपये का नोट भी जारी किया जाता है। रुपये की बड़ी मूल्यवर्ग अक्सर लाख (१,००,०००) करोड़ (१,००,००,०००) और अरब (१,००,००,००,०००) रुपए में गिने जाते हैं। भारतीय रुपये का प्रतीक चिह्न thumb|100px|भारतीय रुपये का स्वीकृत प्रतीक चिह्न वर्ष २०१० में भारत सरकार द्वारा एक रुपये के लिये प्रतीक चिह्न निर्धारित करने हेतु एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया गयाhttp://finmin.nic.in/the_ministry/dept_eco_affairs/currency_coinage/Comp_Design.pdf। जूरी द्वारा सभी प्रविष्टियों में से पाँच डिजाइनों को चुना गयाhttp://timesofindia.indiatimes.com/India/Cabinet-decides-on-rupee-sign-today-/articleshow/6084121.cms जिनमें से अन्तिम रूप से आइआइटी के प्रवक्ता उदय कुमार के डिजाइनhttp://www.scribd.com/doc/34336047/Non-eligible-Candidate-In-Indian-Rupee-Symbol-Design-Competition को चुना गया। सन्दर्भ यह भी देखे रुपए का इतिहास खाड़ी रुपया बाहरी कड़ियाँ भारतीय मुद्रा के निर्माण की कहानी चांदी से टांका रहा है हमारे रुपये का (अर्थकाम) पैसों के बारे में महान व्यक्तियों के विचार श्रेणी:अर्थशास्त्र श्रेणी:मुद्रा श्रेणी:रुपया
अमरीकी डॉलर
https://hi.wikipedia.org/wiki/अमरीकी_डॉलर
REDIRECT अमेरिकी डॉलर
पचास
https://hi.wikipedia.org/wiki/पचास
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पच्चीस
https://hi.wikipedia.org/wiki/पच्चीस
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दस
https://hi.wikipedia.org/wiki/दस
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पांच
https://hi.wikipedia.org/wiki/पांच
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सौ
https://hi.wikipedia.org/wiki/सौ
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पाँच
https://hi.wikipedia.org/wiki/पाँच
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भौतिकी
https://hi.wikipedia.org/wiki/भौतिकी
REDIRECT भौतिक शास्त्र
भौतिक शास्त्र
https://hi.wikipedia.org/wiki/भौतिक_शास्त्र
right|thumb|350px|भौतिक परिघटनाओं के उदाहरण भौतिक शास्त्र या भौतिकी प्राकृतिक विज्ञान का एक मूल विषय है जो पदार्थ, उसके मूलभूत घटकों, उसकी गति और व्यवहार, देशकाल के माध्यम से और ऊर्जा और बल की सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। भौतिकी सबसे मौलिक वैज्ञानिक विषयों में से एक है, जिसका मुख्य लक्ष्य यह समझना है कि ब्रह्माण्ड कैसे व्यवहार करता है। एक वैज्ञानिक जो भौतिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है, भौतिक शास्त्री कहलाता है। भौतिकी प्राचीनतम शैक्षणिक विषयों में से एक है और, खगोल शास्त्र के समावेश के कारण, प्रायः प्राचीनतम है। पिछली दो सहस्राब्दी में, भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित की कुछ शाखाएँ प्राकृतिक दर्शनशास्त्र का एक अंश थीं, परन्तु 17वीं शताब्दी में वैज्ञानिक क्रान्ति के दौरान ये प्राकृतिक विज्ञान अपने आप में अद्वितीय शोध प्रयासों के रूप में उभरे। भौतिकी अनुसन्धान के कई अन्तर्विषयक क्षेत्रों, जैसे जैवभौतिकी और प्रमात्रा रसायनिकी के साथ प्रतिच्छेद करती है, और भौतिकी की सीमाओं को कठोर रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। भौतिकी में नए विचार प्रायः अन्य विज्ञानों द्वारा अध्ययन किए गए मौलिक तन्त्रों की व्याख्या करते हैं और इन और अन्य शैक्षणिक विषयों जैसे दर्शनशास्त्र में अनुसन्धान के नूतन मार्ग सुझाते हैं। भौतिकी में प्रगति अक्सर नूतन तकनीकों में प्रगति को सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, विद्युच्चुम्बकत्व, ठोसावस्था भौतिकी और परमाणु भौतिकी की समझ में हुई प्रगति ने सीधा नूतनोत्पादों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया जिन्होंने आधुनिक समाज को नाटकीय रूप से बदल दिया है, जैसे कि दूरदर्शन, संगणकों, गृहोपकरण और परमाण्वस्त्र; ऊष्मगतिकी में प्रगति के कारण औद्योगीकरण का विकास हुआ; और यान्त्रिकी में हुई प्रगति ने कलन के विकास को प्रेरित किया। भौतिकी की शाखाएँ चित्र:आधुनिक भौतिकी के क्षेत्र.svg चिरसम्मत भौतिकी चिरसम्मत भौतिकी में पारम्परिक शाखाएँ और विषय शामिल हैं जिन्हें 20 वीं शताब्दी की आरम्भ से पूर्व पहचाना और अच्छी तरह से विकसित किया गया था: चिरसम्मत यान्त्रिकी, ध्वनिकी, प्रकाशिकी, ऊष्मगतिकी और विद्युच्चुम्बकत्व। चिरसम्मत यान्त्रिकी गति में पिण्डों और बलों द्वारा पिण्डों पर कार्य किए जाने से सम्बन्धित है और इसे स्थैतिकी में विभाजित किया जा सकता है (किसी पिण्ड या पिण्डों पर बलों का अध्ययन जो त्वरण के अधीन नहीं है), शुद्ध गतिकी (गति के कारणों की ध्यान किए बिना उसका का अध्ययन), और गतिकी (गति का अध्ययन और इसे प्रभावित करने वाले बल); यान्त्रिकी को ठोस यान्त्रिकी और तरल यान्त्रिकी (सातत्यक यान्त्रिकी के रूप में एक साथ जाना जाता है) में विभाजित किया जा सकता है, उत्तरार्द्ध में द्रवस्थैतिकी, द्रवगतिकी, वायुगतिकी और गैसयान्त्रिकी जैसी शाखाएँ शामिल हैं। ध्वनिकी इस का अध्ययन है कि ध्वनि कैसे उत्पन्न, नियन्त्रित, प्रसारित और प्राप्त की जाती है। ध्वनिकी की महत्वपूर्ण आधुनिक शाखाओं में पराध्वनिकी शामिल हैं, मानव श्रवण की सीमा से परे बहुत उच्चावृत्ति की ध्वनि तरंगों का अध्ययन; जैवध्वनिकी, पश्वाह्वानों और श्वरण की भौतिकी, और विद्युद्ध्वनिकी, वैद्युतिकी का प्रयोग करके श्राव्य ध्वनि तरंगों का हेरफेर। प्रकाशिकी, प्रकाश का अध्ययन, न केवल दृश्य प्रकाश से सम्बन्धित है, बल्कि अवलाल और पराबैंगनी विकिरण से भी सम्बन्धित है, जो दृश्यता के अतिरिक्त दृश्य प्रकाश की सभी परिघटनाओं को प्रदर्शित करता है, जैसे, प्रतिबिम्ब, अपवर्तन, हस्तक्षेप, विवर्तन, विक्षेपण और ध्रुवीकरण। ताप ऊर्जा का एक रूप है, आन्तरिक ऊर्जा जो कणों के पास होती है जिससे पदार्थ बना होता है; ऊष्मगतिकी ताप और ऊर्जा के अन्य रूपों के मध्य सम्बन्धों से सम्बन्धित है। विद्युत और चुम्बकत्व का अध्ययन भौतिकी की एक ही शाखा के रूप में किया गया है क्योंकि 19वीं शताब्दी की आरम्भ में उनके बीच घनिष्ठ सम्बन्ध की खोज की गई थी; एक वैद्युतिक धारा एक चुम्बकीय क्षेत्र को जन्म देता है, और एक परिवर्तित चुम्बकीय क्षेत्र एक वैद्युतिक धारा को प्रेरित करता है। विद्युत्स्थैतिकी स्थैर्य पर वैद्युतिक आवेशों, गतिमान आवेशों के साथ विद्युद्गतिकी और स्थिर चुम्बकीय ध्रुवों के साथ स्थिर चुम्बकिकी से सम्बन्धित है। आधुनिक भौतिकी चिरसम्मत भौतिकी सामान्यतः अवलोकन के सामान्य स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा से सम्बन्धित है, जबकि आधुनिक भौतिकी का अधिकांश भाग अत्यधिक परिस्थितियों में वृहत्तम यह क्षुद्रतम स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार से सम्बन्धित है। उदाहरणार्थ, परमाणु और नाभिकीय भौतिकी क्षुद्रतम स्तर पर पदार्थ का अध्ययन करते हैं जिस पर रासायनिक तत्त्वों की पहचान की जा सकती है। प्राथमिक कणों की भौतिकी और भी क्षुद्रतर स्तर पर है क्योंकि यह पदार्थ की सबसे मूल इकाइयों से संबंधित है; कण त्वरक में कई प्रकार के कणों का उत्पादन करने के लिए आवश्यक अत्यंत उच्चोर्जा के कारण भौतिकी की इस शाखा को उच्चोर्जा भौतिकी के रूप में भी जाना जाता है। इस स्तर पर, अन्तरिक्ष, समय, पदार्थ और ऊर्जा की सामान्य, सामान्य धारणाएँ अब मान्य नहीं हैं। आधुनिक भौतिकी के दो प्रमुख सिद्धान्त चिरसम्मत भौतिकी द्वारा प्रस्तुत अन्तरिक्ष, समय और पदार्थ की अवधारणाओं की एक भिन्न चित्र प्रस्तुत करते हैं। चिरसम्मत यान्त्रिकी प्रकृति को निरन्तर मानती है, जबकि प्रमात्रा यान्त्रिकी परमाणु और उप-परमाणु स्तर पर कई घटनाओं की असतत प्रकृति और ऐसी परिघटनाओं के विवरण में कणों और तरंगों के पूरक पहलुओं से सम्बन्धित है। सापेक्षता सिद्धान्त परिघटना के वर्णन से सम्बन्धित है जो सन्दर्भ विन्यास में होता है जो एक पर्यवेक्षक के सम्बन्ध में गति में होता है; विशेषापेक्षिकता सिद्धान्त गुरुत्वाकर्षक क्षेत्र की अनुपस्थिति में गति से सम्बन्धित है और गति के साथ सामान्यापेक्षिकता सिद्धान्त और गुरुत्वाकर्षण के साथ इसका सम्बन्ध है। प्रमात्रा सिद्धान्त और सापेक्षता का सिद्धान्त दोनों ही आधुनिक भौतिकी के कई क्षेत्रों में अनुप्रयोग पाते हैं। भौतिक शास्त्र के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं: यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण ध्वनिकी ऊष्मा प्रकाशिकी आधुनिक भौतिकी कण भौतिकी इन्हें भी देखें भौतिकी के प्रमुख सूत्र भौतिक गुण भौतिक राशि भौतिक नियतांक सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ नूतन भौतिकी कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - शिवगोपाल मिश्र) गणित एवं भौतिकी के अप्लेट्स Flash Animations for Physics भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर - डॉ॰ सीमिन रुबाब भौतिकी के नियम (अंग्रेजी में) प्राचीन भारत में भौतिकी भौतिकी विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर भारतीय भौतिकी संस्थान भुवनेश्वर भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर - डॉ॰ सीमिन रुबाब भारतीय दर्शन और भौतिक विज्ञान श्रेणी:विज्ञान श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:प्राकृतिक विज्ञान
धर्म
https://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म
पन्थ/सम्प्रदाय के अर्थ में धर्म के लिए धर्म (पंथ) देखें। राजधर्म के लिए राजधर्म देखें। दक्षिणा के लिए दक्षिणा देखें। right|thumb|250px|धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) ंright|thumb|300px|सम्राट अशोक द्वारा लिखवाया गया कान्धार का द्विभाषी शिलालेख (258 ईसापूर्व) ; इस लेख में संस्कृत में 'धर्म' और ग्रीक में उसके लिए 'Eusebeia' लिखा है, जिसका अर्थ यह है कि प्राचीन भारत में 'धर्म' शब्द का अर्थ आध्यात्मिक प्रौढ़ता, भक्ति, दया, मानव समुदाय के प्रति कर्तव्य आदि था। धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। "धर्म" शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। ""धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह धर्म हैं। "" धर्म किसी के साथ भेद नहीं करता "" "धर्म" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है। मोह माया (मुद्रा) जैसे सामाजिक विश्वासों के आधार पर बनी  व्यवस्था व्यावसायिक परिषद  कहलाती है इस में पूर्व लिखित कानून व्यस्था लागु होती है जिसे धर्म भी कहा गया है आज के समय ये रिलिजन व  संविधान के नाम से जाना जाता है । ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यवसायिक परिषद द्वारा लागू शिक्षा व्यवस्था जो बाद मे कॉमन वेल्थ और आज के समय के ग्लोबल एजुकेशन सिस्टम के नाम से जानी जाती है । सिर्फ पूर्व लिखित कानून व्यवस्था यानि धर्म को ही सभ्य मानती है।  वही दूसरी ओर स्थिति , मंशा व दर्शन के आधार पर लागू व्यवस्था जैसे शैविक व्यवस्था (विदथ-गण- सभा-समिति, पंचायत -महापंचायत ,जनपद -महाजनपद आदि ) और वैष्णव व्यवस्था (जमीदार ,सामन्त व अन्य द्वैत व्यवस्था ) को असभ्य मानती है मानव धर्म डा0 श्री प्रकाश बरनवाल संस्थापक मानव धर्म का कहना है कि आधुनिक अवधारणा, एक अमूर्तता के रूप में जिसमें विश्वासों या सिद्धांतों के अलग-अलग सेट शामिल हैं, अंग्रेजी भाषा में एक हालिया आविष्कार है। प्रोटेस्टेंट सुधार के दौरान ईसाईजगत के विभाजन और अन्वेषण के युग में वैश्वीकरण, जिसमें गैर-यूरोपीय भाषाओं के साथ कई विदेशी संस्कृतियों के संपर्क शामिल थे, के कारण इस तरह का उपयोग 18वीं शताब्दी के ग्रंथों के साथ शुरू हुआ। कुछ लोगों का तर्क है कि इसकी परिभाषा की परवाह किए बिना, धर्म शब्द को गैर-पश्चिमी संस्कृतियों पर लागू करना उचित नहीं है। दूसरों का तर्क है कि गैर-पश्चिमी संस्कृतियों पर धर्म का उपयोग करने से लोग क्या करते हैं और क्या विश्वास करते हैं, यह विकृत हो जाता है। धर्म की अवधारणा 16वीं और 17वीं शताब्दी में बनाई गई थी, इस तथ्य के बावजूद कि बाइबिल, कुरान और अन्य जैसे प्राचीन पवित्र ग्रंथों में मूल भाषाओं में एक शब्द या धर्म की अवधारणा भी नहीं थी। और न ही वे लोग और न ही वे संस्कृतियां जिनमें ये पवित्र ग्रंथ लिखे गए थे। उदाहरण के लिए, हिब्रू में धर्म का कोई सटीक समकक्ष नहीं है, और यहूदी धर्म धार्मिक, राष्ट्रीय, नस्लीय या जातीय पहचान के बीच स्पष्ट रूप से अंतर नहीं करता है। इसकी केंद्रीय अवधारणाओं में से एक हलाखा है, जिसका अर्थ है चलना या पथ जिसे कभी-कभी कानून के रूप में अनुवादित किया जाता है, जो धार्मिक अभ्यास और विश्वास और दैनिक जीवन के कई पहलुओं का मार्गदर्शन करता है। भले ही यहूदी धर्म की मान्यताएं और परंपराएं प्राचीन दुनिया में पाई जाती हैं, प्राचीन यहूदियों ने यहूदी पहचान को एक जातीय या राष्ट्रीय पहचान के रूप में देखा और अनिवार्य विश्वास प्रणाली या विनियमित अनुष्ठानों की आवश्यकता नहीं थी। पहली शताब्दी सीई में जोसीफस ने एक जातीय शब्द के रूप में यूनानी शब्द आयौडाइस्मोस (यहूदी धर्म) का इस्तेमाल किया था और वह धर्म की आधुनिक अमूर्त अवधारणाओं या विश्वासों के समूह से जुड़ा नहीं था। "यहूदी धर्म" की अवधारणा का आविष्कार ईसाई चर्च द्वारा किया गया था। और 19वीं शताब्दी में यहूदियों ने अपनी पुश्तैनी संस्कृति को ईसाई धर्म के समान धर्म के रूप में देखना शुरू किया। यूनानी शब्द थ्रेस्किया, जिसका प्रयोग हेरोडोटस और जोसीफस जैसे यूनानी लेखकों द्वारा किया गया था, नए नियम में पाया जाता है। थ्रेस्केया को कभी-कभी आज के अनुवादों में "धर्म" के रूप में अनुवादित किया जाता है, हालांकि, मध्ययुगीन काल में इस शब्द को सामान्य "पूजा" के रूप में समझा जाता था। कुरान में, अरबी शब्द दीन को अक्सर आधुनिक अनुवादों में धर्म के रूप में अनुवादित किया जाता है, लेकिन 1600 के दशक के मध्य तक अनुवादकों ने दीन को "कानून" के रूप में व्यक्त किया। संस्कृत शब्द धर्म, जिसे कभी-कभी धर्म के रूप में अनुवादित किया जाता है, इसका अर्थ कानून भी है। पूरे शास्त्रीय दक्षिण एशिया में, कानून के अध्ययन में धर्मपरायणता और औपचारिक के साथ-साथ व्यावहारिक परंपराओं के माध्यम से तपस्या जैसी अवधारणाएं शामिल थीं। मध्यकालीन जापान में पहले शाही कानून और सार्वभौमिक या बुद्ध कानून के बीच एक समान संघ था, लेकिन बाद में ये सत्ता के स्वतंत्र स्रोत बन गए। हालांकि परंपराएं, पवित्र ग्रंथ और प्रथाएं पूरे समय मौजूद रही हैं, अधिकांश संस्कृतियां धर्म की पश्चिमी धारणाओं के साथ संरेखित नहीं हुईं क्योंकि उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी को पवित्र से अलग नहीं किया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, ताओवाद, कन्फ्यूशीवाद और विश्व धर्म शब्द सबसे पहले अंग्रेजी भाषा में आए। अमेरिकी मूल-निवासियों के बारे में भी सोचा जाता था कि उनका कोई धर्म नहीं है और उनकी भाषाओं में धर्म के लिए कोई शब्द भी नहीं है। 1800 के दशक से पहले किसी ने स्वयं को हिंदू या बौद्ध या अन्य समान शब्दों के रूप में पहचाना नहीं था। "हिंदू" ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के स्वदेशी लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में इस्तेमाल किया गया है। अपने लंबे इतिहास के दौरान, जापान के पास धर्म की कोई अवधारणा नहीं थी क्योंकि कोई संबंधित जापानी शब्द नहीं था, न ही इसके अर्थ के करीब कुछ भी, लेकिन जब अमेरिकी युद्धपोत 1853 में जापान के तट पर दिखाई दिए और जापानी सरकार को अन्य मांगों के साथ संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। चीजें, धर्म की स्वतंत्रता, देश को इस विचार से जूझना पड़ा। 19 वीं शताब्दी में भाषाशास्त्री मैक्स मुलर के अनुसार, अंग्रेजी शब्द धर्म की जड़, लैटिन धर्म, मूल रूप से केवल ईश्वर या देवताओं के प्रति श्रद्धा, दैवीय चीजों के बारे में सावधानीपूर्वक विचार करने के लिए इस्तेमाल किया गया था, धर्मपरायणता (जिसे सिसेरो ने आगे अर्थ के लिए व्युत्पन्न किया था) परिश्रम). मैक्स मुलर ने इतिहास में इस बिंदु पर एक समान शक्ति संरचना के रूप में मिस्र, फारस और भारत सहित दुनिया भर में कई अन्य संस्कृतियों की विशेषता बताई। जिसे आज प्राचीन धर्म कहा जाता है, उसे वे केवल कानून कहते। हिन्दू समुदाय सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ स्वीकार किए गये हैं जिनमें धर्म प्रमुख है। तीन अन्य पुरुषार्थ ये हैं- अर्थ, काम और मोक्ष। गौतम ऋषि कहते हैं - 'यतो अभ्युदयनिश्रेयस सिद्धिः स धर्म।' (जिस काम के करने से अभ्युदय और निश्रेयस की सिद्धि हो वह धर्म है। ) मनु ने मानव धर्म के दस लक्षण बताये हैं: धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।)जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है। श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥(धर्म का सर्वस्व क्या है, यह सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)वात्सायन के अनुसार धर्म वात्स्यायन ने धर्म और अधर्म की तुलना करके धर्म को स्पष्ट किया है। वात्स्यायन मानते हैं कि मानव के लिए धर्म मनसा, वाचा, कर्मणा होता है। यह केवल क्रिया या कर्मों से सम्बन्धित नहीं है बल्कि धर्म चिन्तन और वाणी से भी संबंधित है।Klaus Klostermaier, A survey of Hinduism,, SUNY Press, ISBN 0-88706-807-3, Chapter 3: Hindu dharma महाभारत महाभारत के वनपर्व (३१३/१२८) में कहा है- धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥ मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। इसी तरह भगवद्गीता में कहा है- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। '' अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि) जब-जब धर्म की ग्लानि (पतन) होता है और अधर्म का उत्थान होता है, तब तब मैं अपना सृजन करता हूँ (अवतार लेता हूँ)। पूर्वमीमांसा में धर्म मीमांसा दर्शन का प्रधान विषय 'धर्म' है। धर्म की व्याख्या करना ही इस दर्शन का मुख्य प्रयोजन है। इसलिए धर्म जिज्ञासा वाले प्रथम सूत्र- 'अथातो धर्मजिज्ञासा' के बाद द्वितीय सूत्र में ही सूत्रकार ने धर्म का लक्षण बतलाया है- "चोदनालक्षणोऽर्थों धर्मः" अर्थात् प्रेरणा देने वाला अर्थ ही धर्म है (सैंडल, 1999) एम. एल. सैंडल (1999), मीमांसा सूत्राज ऑफ जैमिनि, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स, दिल्ली. ISBN 81-208-1129-1.| कुमारिल भट्ट ने इसे 'धर्माख्यं विषयं वक्तुं मीमांसायाः प्रयोजनम्' ('धर्म' नामक विषय के बारे में बोलना मीमांसा का उद्देश्य है) रूप में अभिव्यक्त किया है गौरव शर्मा (2020), अर्थसंग्रहः अनुसार धर्म विवेचनम् ; गौरव ब्लॉग जैन समुदाय thumb|जैन मंदिर में अंकित अहिंसा परमो धर्मः जैन ग्रंथ, तत्त्वार्थ सूत्र में १० धर्मों का वर्णन है। यह १० धर्म है: उत्तम क्षमा उत्तम मार्दव उत्तम आर्जव उत्तम शौच उत्तम सत्य उत्तम संयम उत्तम तप उत्तम त्याग उत्तम आकिंचन्य उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का मानवीकरण पुराणों के अनुसार धर्म, ब्रह्मा के एक मानस पुत्र हैं। वे उनके दाहिने वक्ष से उत्पन्न हुए हैं। धर्म का विवाह दक्ष की १३ पुत्रियों से हुआ था, जिनके नाम हैं- श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ह्री और मूर्ति। श्रद्धा से नर और काम का जन्म हुआ ; तुष्टि से सन्तोष और क्रिया का जन्म हुआ ; क्रिया से दण्ड, नय और विनय का जन्म हुआ। अहिंसा, धर्म की पत्नी (शक्ति) हैं। धर्म तथा अहिंसा से विष्णु का जन्म हुआ है। धर्म की ग्लानि होने पर उसकी पुनर्प्रतिष्ठा के लिए विष्णु अवतार लेते हैं। विष्णुपुराण में 'अधर्म' का भी उल्लेख है। अधर्म की पत्नी हिंसा है जिससे अनृत नामक पुत्र और निकृति नाम की कन्या का जन्म हुआ। भय और नर्क अधर्म के नाती हैं । सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ धर्म-रक्षा से आत्म-रक्षा धर्म और संप्रदाय भिन्न होते हैं।
खगोल शास्त्र
https://hi.wikipedia.org/wiki/खगोल_शास्त्र
thumb|right|250px|चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरा परिचय खगोलिकी ब्रह्माण्ड में अवस्थित आकाशीय पिंडों का प्रकाश, उद्भव, संरचना और उनके व्यवहार का अध्ययन खगोलिकी का विषय है। अब तक ब्रह्माण्ड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग 19 अरब आकाश गंगाओं के होने का अनुमान है और प्रत्येक आकाश गंगा में लगभग 10 अरब तारे हैं। आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है। हमारी पृथ्वी पर आदिम जीव 2 अरब वर्ष पहले पैदा हुआ और आदमी का धरती पर अवतण 10-20 लाख वर्ष पहले हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक महापिंड के विस्फोट से हुई है। सूर्य एक औसत तारा है जिसके आठ मुख्य ग्रह हैं, उनमें से पृथ्वी भी एक है। इस ब्रह्माण्ड में हर एक तारा सूर्य सदृश है। बहुत-से तारे तो ऐसे हैं जिनके सामने अपना सूर्य अणु (कण) के बराबर भी नहीं ठहरता है। जैसे सूर्य के ग्रह हैं और उन सबको मिलाकर हम सौर परिवार के नाम से पुकारते हैं, उसी प्रकार हरेक तारे का अपना अपना परिवार है। बहुत से लोग समझते हैं कि सूर्य स्थिर है, लेकिन संपूर्ण सौर परिवार भी स्थानीय नक्षत्र प्रणाली के अंतर्गत प्रति सेकेंड 13 मील की गति से घूम रहा है। स्थानीय नक्षत्र प्रणाली आकाश गंगा के अंतर्गत प्रति सेकेंड 200 मील की गति से चल रही है और संपूर्ण आकाश गंगा दूरस्थ बाह्य ज्योर्तिमालाओं के अंतर्गत प्रति सेकेंड 100 मील की गति से विभिन्न दिशाओं में घूम रही है। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जिस पर मानव के कदम पहुँच चुके हैं। इस ब्रह्माण्ड में सबसे विस्मयकारी दृश्य है- आकाश गंगा (गैलेक्सी) का दृश्य। रात्रि के खुले (जब चंद्रमा न दिखाई दे) आकाश में प्रत्येक मनुष्य इन्हें नंगी आँखों से देख सकता है। देखने में यह हल्के सफेद धुएँ जैसी दिखाई देती है, जिसमें असंख्य तारों का बाहुल्य है। यह आकाश गंगा टेढ़ी-मेढ़ी होकर बही है। इसका प्रवाह उत्तर से दक्षिण की ओर है। पर प्रात:काल होने से थोड़ा पहले इसका प्रवाह पूर्वोत्तर से पश्चिम और दक्षिण की ओर होता है। देखने में आकाश गंगा के तारे परस्पर संबद्ध से लगते हैं, पर यह दृष्टि भ्रम है। एक दूसरे से सटे हुए तारों के बीच की दूरी अरबों मील हो सकती है। जब सटे हुए तारों का यह हाल है तो दूर दूर स्थित तारों के बीच की दूरी ऐसी गणनातीत है जिसे कह पाना मुश्किल है। इसी कारण से ताराओं के बीच तथा अन्य लंबी दूरियाँ प्रकाशवर्ष में मापी जाती हैं। एक प्रकाशवर्ष वह दूरी है जो दूरी प्रकाश एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेंड की गति से एक वर्ष में तय करता है। उदाहरण के लिए सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सवा नौ करोड़ मील है, प्रकाश यह दूरी सवा आठ मिनट में तय करता है। अत: पृथ्वी से सूर्य की दूरी सवा आठ प्रकाश मिनट हुई। जिन तारों से प्रकाश आठ हजार वर्षों में आता है, उनकी दूरी हमने पौने सैंतालिस पद्म मील आँकी है। लेकिन तारे तो इतनी इतनी दूरी पर हैं कि उनसे प्रकाश के आने में लाखों, करोड़ों, अरबों वर्ष लग जाता है। इस स्थिति में हमें इन दूरियों को मीलों में व्यक्त करना संभव नहीं होगा और न कुछ समझ में ही आएगा। इसीलिए प्रकाशवर्ष की इकाई का वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया है। मान लीजिए, ब्रह्माण्ड के किसी और नक्षत्रों आदि के बाद बहुत दूर दूर तक कुछ नहीं है, लेकिन यह बात अंतिम नहीं हो सकती है। यदि उसके बाद कुछ है तो तुरंत यह प्रश्न सामने आ जाता है कि वह कुछ कहाँ तक है और उसके बाद क्या है? इसीलिए हमने इस ब्रह्माण्ड को अनादि और अनंत माना। इसके अतिरिक्त अन्य शब्दों में ब्रह्माण्ड की विशालता, व्यापकता व्यक्त करना संभव नहीं है। upright=1.4|thumb|अवलोकनीय ब्रह्माण्ड का लघुगणक प्रतिनिधित्व। उल्लेखनीय खगोलीय पिंडों की व्याख्या की जाती है। इस छवि को असेंबल करने के लिए उपयोग की जाने वाली तस्वीरें मुख्य रूप से हबल स्पेस टेलीस्कोप से हैं। अंतरिक्ष में कुछ स्थानों पर दूरदर्शी से गोल गुच्छे दिखाई देते हैं। इन्हें स्टार क्लस्टर या ग्लीट्य्रूलर स्टार अर्थात् तारा गुच्छ कहते हैं। इसमें बहुत से तारे होते हैं जो बीच में घने रहते हैं और किनारे बिरल होते हैं। टेलिस्कोप से आकाश में देखने पर कहीं कहीं कुछ धब्बे दिखाई देते हैं। ये बादल के समान बड़े सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं। इन धब्बों को ही नीहारिका कहते हैं। इस ब्रह्माण्ड में असंख्य नीहारिकाएँ हैं। उनमें से कुछ ही हम देख पाते हैं। इस अपरिमित ब्रह्माण्ड का अति क्षुद्र अंश हम देख पाते हैं। आधुनिक खोजों के कारण जैसे जैसे दूरबीन की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे वैसे ब्रह्माण्ड के इस दृश्यमान क्षेत्र की सीमा बढ़ती जाती है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ब्रह्माण्ड की पूरी थाह मानव क्षमता से बहुत दूर है। खगोल भौतिकी का आधुनिक युग जर्मन भौतिकविद् किरचाक से आरंभ हुआ। सूर्य के वातावरण में सोडियम, लौह, मैग्नेशियम, कैल्शियम तथा अनेक अन्य तत्वों का उन्होंने पता लगाया (सन् 1859)। हमारे देश में स्वर्गीय प्रोफेसर मेघनाद साहा ने सूर्य और तारों के भौतिक तत्वों के अध्ययन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने वर्णक्रमों के अध्ययन से खगोलीय पिंडों के वातावरण में अत्यंत महत्वपूर्ण खोजें की हैं। आजकल भारत गणराज्य के दो प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ॰ एस. चंद्रशेखर और डॉ॰ जयंत विष्णु नारलीकर भी ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने में उलझे हुए हैं। बहुत पहले कोपर्निकस, टाइको ब्राहे और मुख्यत: कैप्लर ने खगोल विद्या में महत्वपर्णू कार्य किया था। कैप्लर ने ग्रहों के गति के संबंध में जिन तीन नियमों का प्रतिपादन किया है वे ही खगोल भौतिकी की आधारशिला बने हुए हैं। खगोल विद्या में न्यूटन का कार्य बहुत महत्वपूर्ण रहा है। ब्रह्माण्डविद्या के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों (लगभग 45 वर्षों पूर्व) की खोजों के फलस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण बातें समाने आई हैं। विख्यात वैज्ञानिक हबल ने अपने निरीक्षणों से ब्रह्माण्डविद्या की एक नई प्रक्रिया का पता लगाया। हबल ने सुदूर स्थित आकाश गंगाओं से आनेवाले प्रकाश का परीक्षण किया और बताया कि पृथ्वी तक आने में प्रकाश तरंगों का कंपन बढ़ जाता है। यदि इस प्रकाश का वर्णपट प्राप्त करें तो वर्णपट का झुकाव लाल रंग की ओर अधिक होता है। इस प्रक्रिया को डोपलर प्रभाव कहते हैं। ध्वनि संबंधी डोपलर प्रभाव से बहुत लोग परिचित होंगे। जब हम प्रकाश के संदर्भ में डोपलर प्रभाव को देखते हैं तो दूर से आनेवाले प्रकाश का झुकाव नीले रंग की ओर होता है और दूर जाने वाले प्रकाश स्रोत के प्रकाश का झुकाव लाल रंग की ओर होता है। इस प्रकार हबल के निरीक्षणों से यह मालूम हुआ कि आकाश गंगाएँ हमसे दूर जा रही हैं। हबल ने यह भी बताया कि उनकी पृथ्वी से दूर हटने की गति, पृथ्वी से उनकी दूरी के अनुपात में है। माउंट पोलोमर वेधशाला में स्थित 200 इंच व्यासवाले लेंस की दूरबीन से खगोल शास्त्रियों ने आकाश गंगाओं के दूर हटने की प्रक्रिया को देखा है। दूरबीन से ब्रह्माण्ड को देखने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम इस ब्रह्माण्ड के केंद्रबिंदु हैं और बाकी चीजें हमसे दूर भागती जा रही हैं। यदि अन्य आकाश गंगाओं में प्रेक्षक भेजे जाएँ तो वे भी यही पाएंगे कि इस ब्रह्माण्ड के केंद्र बिंदु हैं, बाकी आकाश गंगाएँ हमसे दूर भागती जा रही हैं। अब जो सही चित्र हमारे सामने आता है, वह यह है कि ब्रह्माण्ड का समान गति से विस्तार हो रहा है। और इस विशाल प्रारूप का कोई भी बिंदु अन्य वस्तुओं से दूर हटता जा रहा है। हबल के अनुसंधान के बाद ब्रह्माण्ड के सिद्धांतों का प्रतिपादन आवश्यक हो गया था। यह वह समय था जब कि आइन्सटीन का सापेक्षवाद का सिद्धांत अपनी शैशवावस्था में था। लेकिन फिर भी आइन्सटीन के सिद्धांत को सौरमंडल संबंधी निरीक्षणों पर आधारित निष्कर्षों की व्याख्या करने में न्यूटन के सिद्धांतों से अधिक सफलता प्राप्त हुई थी। न्यूटन के अनुसार दो पिंडों के बीच की गुरु त्वाकर्षण शक्ति एक दूसरे पर तत्काल प्रभाव डालती है लेकिन आइन्सटीन ने यह साबित कर दिया कि पारस्परिक गुरु त्वाकर्षण की शक्ति की गति प्रकाश की गति के समान तीव्र नहीं हो सकती है। आखिर यहाँ पर आइन्सटीन ने न्यूटन के पत्र को गलत प्रमाणित किया। लोगों को आइन्सटीन का ही सिद्धांत पसंद आया। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की तीन धारणाएँ प्रस्तुत हैं---- 1. स्थिर अवस्था का सिद्धांत 2. विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग सिद्धांत) और 3. दोलन सिद्धांत। इन धारणाओं में दूसरी धारणा की महत्ता अधिक है। इस धारणा के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक महापिंड के विस्फोट से हुई है और इसी कारण आकाश गंगाएँ हमसे दूर भागती जा रही है। इस ब्रह्माण्ड का उलटा चित्र आप अपने सामने रखिए तब आपको ब्रह्माण्ड प्रसारित न दिखाई देकर सकुंचित होता हुआ दिखाई देगा और आकाश गंगाएँ भागती हुई न दिखाई देकर आती हुई प्रतीत होगी। अत: कहने का तात्पर्य यह है कि किसी समय कोई महापिंड रहा होगा और उसी के विस्फोट होने के कारण आकाश गंगाएँ भागती हुई हमसे दूर जा रही हैं। क्वासर और पल्सर नामक नए तारों की खोज से भी विस्फोट सिद्धांत की पुष्टि हो रही है। इन्हें भी देखें खगोलिकी का इतिहास खगोलीय यांत्रिकी खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी ताराभौतिकी ज्योतिष खगोलशास्त्र से संबंधित शब्दावली खगोल विज्ञान शब्द-कोश बाहरी कड़ियाँ 1000 खगोल विज्ञान प्रश्नोत्तरी ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या और टोने-टुटके श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:खगोलभौतिकी
अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)
https://hi.wikipedia.org/wiki/अर्थशास्त्र_(ग्रन्थ)
अर्थशास्त्र , कौटिल्य या चाणक्य (चौथी शदी ईसापूर्व) द्वारा रचित संस्कृत का एक ग्रन्थ है। इसमें राज्यव्यवस्था, कृषि, न्याय एवं राजनीति आदि के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। अपने तरह का (राज्य-प्रबन्धन विषयक) यह प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसकी शैली उपदेशात्मक और सलाहात्मक (instructional) है। यह प्राचीन भारतीय राजनीति का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके रचनाकार का व्यक्तिनाम विष्णुगुप्त, गोत्रनाम कौटिल्य ('कुटिल' से व्युत्पत्न्न) और स्थानीय नाम चाणक्य (पिता का नाम 'चणक' होने से) था। अर्थशास्त्र (15.431) में लेखक का स्पष्ट कथन है: येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः। अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदंकृतम् ॥ कौटिल्य अर्थशास्त्र का हिन्दी भाषानुवाद (प्राणनाथ विद्यालङ्कार) इस ग्रंथ की रचना उन आचार्य ने की जिन्होंने अन्याय तथा कुशासन से क्रुद्ध होकर नन्दों के हाथ में गए हुए शस्त्र, शास्त्र एवं पृथ्वी का शीघ्रता से उद्धार किया था। चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य (323-298 ई.पू.) के महामंत्री थे। उन्होंने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। यह मुख्यतः सूत्रशैली में लिखा हुआ है और संस्कृत के सूत्रसाहित्य के काल और परम्परा में रखा जा सकता है। यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने में सरल एवं कौटिल्य द्वारा उन शब्दों में रचा गया है जिनका अर्थ सुनिश्चित हो चुका है। (अर्थशास्त्र, 15.6)' अर्थशास्त्र में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति, तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस विषय के जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हैं उनमें से वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण यह सबसे अधिक मूल्यवान् है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन और पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है (अर्थशास्त्र, 15.431)। इस ग्रंथ की महत्ता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसके पाठ, भाषांतर, व्याख्या और विवेचन पर बड़े परिश्रम के साथ बहुमूल्य कार्य किया है। शाम शास्त्री और गणपति शास्त्री का उल्लेख किया जा चुका है। इनके अतिरिक्त यूरोपीय विद्वानों में हर्मान जाकोबी (ऑन दि अथॉरिटी ऑव कौटिलीय, इं.ए., 1918), ए. हिलेब्रांड्ट, डॉ॰ जॉली, प्रो॰ए.बी. कीथ (ज.रा.ए.सी.) आदि के नाम आदर के साथ लिए जा सकते हैं। अन्य भारतीय विद्वानों में डॉ॰ नरेन्द्रनाथ ला (स्टडीज इन ऐंशेंट हिंदू पॉलिटी, 1914), श्री प्रमथनाथ बनर्जी (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन ऐंशेंट इंडिया), डॉ॰ काशीप्रसाद जायसवाल (हिंदू पॉलिटी), प्रो॰ विनयकुमार सरकार (दि पाज़िटिव बैकग्राउंड ऑव् हिंदू सोशियोलॉजी), प्रो॰ नारायणचंद्र वंद्योपाध्याय, डॉ॰ प्राणनाथ विद्यालंकार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इतिहास यद्यपि कतिपय प्राचीन लेखकों ने अपने ग्रंथों में अर्थशास्त्र से अवतरण दिए हैं और कौटिल्य का उल्लेख किया है, तथापि यह ग्रंथ लुप्त हो चुका था। 1904 ई. में तंजोर के एक पंडित ने भट्टस्वामी के अपूर्ण भाष्य के साथ अर्थशास्त्र का हस्तलेख मैसूर राज्य पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री आर. शाम शास्त्री को दिया। श्री शास्त्री ने पहले इसका अंशतः अंग्रेजी भाषान्तर 1905 ई. में "इंडियन ऐंटिक्वेरी" तथा "मैसूर रिव्यू" (1906-1909) में प्रकाशित किया। इसके पश्चात् इस ग्रंथ के दो हस्तलेख म्यूनिख लाइब्रेरी में प्jay हुए और एक संभवत: कलकत्ता में। तदनन्तर शाम शास्त्री, गणपति शास्त्री, यदुवीर शास्त्री आदि द्वारा अर्थशास्त्र के कई संस्करण प्रकाशित हुए। शाम शास्त्री द्वारा अंग्रेजी भाषान्तर का चतुर्थ संस्करण (1929 ई.) प्रामाणिक माना जाता है। पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही भारत तथा पाश्चात्य देशों में हलचल-सी मच गई क्योंकि इसमें शासन-विज्ञान के उन अद्भुत तत्त्वों का वर्णन पाया गया, जिनके सम्बन्ध में भारतीयों को सर्वथा अनभिज्ञ समझा जाता था। पाश्चात्य विद्वान फ्लीट, जौली आदि ने इस पुस्तक को एक ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण’ ग्रंथ बतलाया और इसे भारत के प्राचीन इतिहास के निर्माण में परम सहायक साधन स्वीकार किया। संरचना ग्रंथ के अंत में दिए चाणक्यसूत्र (15.1) में अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार हुई है : मनुष्यों की वृत्ति को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों से संयुक्त भूमि ही अर्थ है। उसकी प्राप्ति तथा पालन के उपायों की विवेचना करनेवाले शास्त्र को अर्थशास्त्र कहते हैं। इसके मुख्य विभाग हैं : (1) विनयाधिकरण, (2) अध्यक्षप्रचार, (3) धर्मस्थीयाधिकरण, (4) कंटकशोधन, (5) वृत्ताधिकरण, (6) योन्यधिकरण, (7) षाड्गुण्य, (8) व्यसनाधिकरण, (9) अभियास्यत्कर्माधिकरणा, (10) संग्रामाधिकरण, (11) संघवृत्ताधिकरण, (12) आबलीयसाधिकरण, (13) दुर्गलम्भोपायाधिकरण, (14) औपनिषदिकाधिकरण और (15) तंत्रयुक्त्यधिकरण इन अधिकरणों के अनेक उपविभाग (15 अधिकरण, 150 अध्याय, 180 उपविभाग तथा 6,000 श्लोक) हैं। +अमात्य : अर्थशास्त्र के अनुसार प्राचीन हिन्दू राज्य के पदाधिकारी पद अंग्रेजी पद अंग्रेजी राजा King युवराज Crown prince सेनापति Chief, armed forces परिषद् Council नागरिक City manager पौरव्य वाहारिक City overseer मन्त्री Counselor कार्मिक Works officer संनिधाता Treasurer कार्मान्तरिक Director, factories अन्तेपाल Frontier commander अन्तर विंसक Head, guards दौवारिक Chief guard गोप Revenue officer पुरोहित Chaplain करणिक Accounts officer प्रशास्ता Administrator नायक Commander उपयुक्त Junior officer प्रदेष्टा Magistrate शून्यपाल Regent अध्यक्ष Superintendent वर्ण्यविषय एवं ग्रन्थ का महत्त्व अर्थशास्त्र में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति, तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस विषय के जितने ग्रंथ अभी तक उपलब्ध हैं उनमें से वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण यह सबसे अधिक मूल्यवान् है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन और पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है (अर्थशास्त्र, 15.431)। इस ग्रंथ की महत्ता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसके पाठ, भाषांतर, व्याख्या और विवेचन पर बड़े परिश्रम के साथ बहुमूल्य कार्य किया है। शाम शास्त्री और गणपति शास्त्री का उल्लेख किया जा चुका है। इनके अतिरिक्त यूरोपीय विद्वानों में हर्मान जाकोबी (ऑन दि अथॉरिटी ऑव कौटिलीय, इं.ए., 1918), ए. हिलेब्रांड्ट, डॉ॰ जॉली, प्रो॰ ए.बी. कीथ (ज.रा.ए.सी.) आदि के नाम आदर के साथ लिए जा सकते हैं। अन्य भारतीय विद्वानों में डॉ॰ नरेंद्रनाथ ला (स्टडीज इन ऐंशेंट हिंदू पॉलिटी, 1914), श्री प्रेमथनाथ बनर्जी (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन ऐंशेंट इंडिया), डॉ॰ काशीप्रसाद जायसवाल (हिंदू पॉलिटी), प्रो॰ विनयकुमार सरकार (दि पाज़िटिव बैकग्राउंड ऑव् हिंदू सोशियोलॉजी), प्रो॰ नारायणचंद्र वन्द्योपाध्याय, डॉ॰ प्राणनाथ विद्यालंकार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। पुस्तक का नाम 'अर्थशास्त्र' ही क्यों ? कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' राजनीतिक सिद्धांतों की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इस संबंध में यह प्रश्न उठता है कि कौटिल्य ने अपनी पुस्तक का नाम 'अर्थशास्त्र' क्यों रखा? प्राचीनकाल में 'अर्थशास्त्र' शब्द का प्रयोग एक व्यापक अर्थ में होता था। इसके अन्तगर्त मूलतः राजनीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कानून आदि का अध्ययन किया जाता था। आचार्य कौटिल्य की दृष्टि में राजनीति शास्त्र एक स्वतंत्र शास्त्र है और आन्वीक्षिकी (दर्शन), त्रयी (वेद) तथा वार्ता एंव कानून आदि उसकी शाखाएँ हैं। सम्पूर्ण समाज की रक्षा राजनीति या दण्ड व्यवस्था से होती है या रक्षित प्रजा ही अपने-अपने कर्त्तव्य का पालन कर सकती है। उस समय अर्थशास्त्र को राजनीति और प्रशासन का शास्त्र माना जाता था। महाभारत में इस संबंध में एक प्रसंग है, जिसमें अर्जुन को अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ माना गया है। समाप्तवचने तस्मिन्नर्थशास्त्र विशारदः। पार्थो धर्मार्थतत्त्वज्ञो जगौ वाक्यमनन्द्रितः॥ (3) निश्चित रूप से कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी राजशास्त्र के रूप में लिया गया होगा, यों उसने अर्थ की कई व्याख्याएँ की हैं। कौटिल्य ने कहा है— मनुष्याणां वृतिरर्थः (4) अर्थात् मनुष्यों की जीविका को 'अर्थ' कहते हैं। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए उसने कहा है—तस्या पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थ-शास्त्रमिति। (5) (मनुष्यों से युक्त भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।) इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि 'अर्थशास्त्र' के अन्तर्गत राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों से संबंधित सिद्धांतों का समावेश है। वस्तुतः कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' को केवल राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था का शास्त्र कहना उपयुक्त नहीं होगा। वास्तव में, यह अर्थव्यवस्था, राजव्यस्था, विधि व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धर्म व्यवस्था से संबंधित शास्त्र है। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' के पूर्व और भी कई अर्थशास्त्रों की रचना की गयी थी, यद्यपि उनकी पांडुलिपियाँ उपलब्ध नहीं हैं। भारत में प्राचीन काल से ही अर्थ, काम और धर्म के संयोग और सम्मिलन के लिए प्रयास किये जाते रहे हैं और उसके लिये शास्त्रों, स्मृतियों और पुराणों में विशद् चर्चाएँ की गयी हैं। कौटिल्य ने भी 'अर्थशास्त्र' में अर्थ, काम और धर्म की प्राप्ति के उपायों की व्याख्या की है। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' में भी अर्थ, धर्म और काम के संबंध में सूत्रों की रचना की गयी है। अपने पूर्व अर्थशास्त्रों की रचना की बात स्वयं कौटिल्य ने भी स्वीकार किया है। अपने 'अर्थशास्त्र' में कई सन्दर्भों में उसने आचार्य वृहस्पति, भारद्वाज, शुक्राचार्य, पराशर, पिशुन, विशालाक्ष आदि आचार्यों का उल्लेख किया है। कौटिल्य के पूर्व अनेक आचार्यों के ग्रंथों का नामकरण दंडनीति के रूप में किया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कौटिल्य के पूर्व शास्त्र दंडनीति कहे जाते थे और वे अर्थशास्त्र के समरूप होते थे। परन्तु जैसा कि अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया है कि दंडनीति और अर्थशास्त्र दोनों समरूप नहीं हैं। यू. एन. घोषाल के कथनानुसार अर्थशास्त्र ज्यादा व्यापक शास्त्र है, जबकि दंडनीति मात्र उसकी शाखा है। (6) कौटिल्य के पाश्चात् लिखे गये शास्त्र 'नीतिशास्त्र' के नाम से विख्यात हुए, जैसे कामंदकनीतिसार, नीतिवाक्यामृत। वैसे कई विद्वानों ने अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र की अपेक्षा ज्यादा व्यापक माना है। परन्तु, अधिकांश विद्वानों की राय में नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों समरूप हैं तथा दोनों के विषय क्षेत्र भी एक ही हैं। स्वयं कामंदक ने नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र को समरूप माना है। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' के पूर्व और उसके बाद भी 'अर्थशास्त्र' जैसे शास्त्रों की रचना की गयी। 'अर्थशास्त्र' का रचनाकार thumb|140px|1915 में चाणक्य का चित्र, शामशास्त्री का अर्थशास्त्र अनुवाद। इस संबंध में ऐसे विद्वानों की अच्छी-खासी संख्या है जो यह मानते हैं कि कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' का रचनाकार नहीं था। ऐसे विद्वानों में पाश्चात्य विद्वानों की संख्या ज्यादा है। स्टेन, जॉली, विंटरनीज व कीथ इस प्रकार के विचार के प्रतिपादक हैं। भारतीय विद्वान आर. जी. भण्डारकर ने भी इसका समर्थन किया है। भंडारकर ने कहा है कि पतंजलि ने महाभाष्य में कौटिल्य का उल्लेख नहीं किया है। 'अर्थशास्त्र' के रचयिता के रूप में कौटिल्य को नहीं मान्यता देनेवालों ने अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये हैं— (१) 'अर्थशास्त्र' में मौर्य साम्राज्य या पाटलिपुत्र का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है। यदि चन्द्रगुप्त का मंत्री कौटिल्य अर्थशास्त्र का रचनाकार होता तो 'अर्थशास्त्र' में उसका कहीं-न-कहीं कुछ जिक्र करता ही। (२) इस संबंध में यह कहा जाता है कि 'अर्थशास्त्र' की विषय-वस्तु जिस प्रकार की है, उससे यह नहीं प्रतीत होता है कि इसका रचनाकार कोई व्यावहारिक राजनीतिज्ञ होगा। निःसन्देह कोई शास्त्रीय पंडित ने ही इसकी रचना की होगी। (३) चन्द्रगुप्त मौर्य का मंत्री कौटिल्य यदि 'अर्थशास्त्र' का रचनाकार होता तो उसके सूत्र एवं उक्तियाँ बड़े राज्यों के संबंध में होते, परन्तु 'अर्थशास्त्र' के उद्धरण एवं उक्तियाँ लघु एवं मध्यम राज्यों के लिये सम्बोधित हैं। अतः स्पष्ट है कि 'अर्थशास्त्र' का रचनाकार कौटिल्य नहीं था। डॉ॰ बेनी प्रसाद के अनुसार 'अर्थशास्त्र' में जिस आकार या स्वरूप के राज्य का जिक्र किया गया है, निःसन्देह वह मौर्य, कलिंग या आंध्र साम्राज्य के आधार से मेल नहीं खाता है। 7 (४) विंटरनीज ने कहा है कि मेगास्थनीज ने, जो लम्बे अरसे तक चन्द्रगुप्त के दरबार में रहा और जिसने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में चन्द्रगुप्त के दरबार के संबंध में बहुत कुछ लिखा है, कौटिल्य के बारे में कुछ नहीं लिखा है और न ही उसकी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' की कहीं कोई चर्चा की है। यदि 'अर्थशास्त्र' जैसे विख्यात शास्त्र का लेखक कौटिल्य चन्द्रगुप्त का मंत्री होता तो मेगास्थनीज की 'इंडिका' में उसका जिक्र अवश्य किया जाता। (५) मेगास्थनीज और कौटिल्य के कई विवरणों में मेल नहीं खाता। उदाहरण के लिए मेगास्थनीज के अनुसार उस समय भारतीय रासायनिक प्रक्रिया से अवगत नहीं थे, भारतवासियों को केवल पाँच धातुओं की जानकारी थी, जबकि 'अर्थशास्त्र' में इन सबों का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त प्रशासकीय संरचना, उद्योग-व्यवस्था, वित्त-व्यवस्था आदि के संबंध में भी मेगास्थनीज और 'अर्थशास्त्र' का लेखक चन्द्रगुप्त मौर्य का मंत्री कौटिल्य नहीं हो सकता है। चाणक्य को ही 'अर्थशास्त्र' का रचनाकार मानने के पीछे तर्क पुस्तक की समाप्ति पर स्पष्ट रूप से लिखा गया है- ‘‘प्राय: भाष्यकारों का शास्त्रों के अर्थ में परस्पर मतभेद देखकर विष्णुगुप्त ने स्वयं ही सूत्रों को लिखा और स्वयं ही उनका भाष्य भी किया।’’ (15/1) साथ ही यह भी लिखा गया है: ‘‘इस शास्त्र (अर्थशास्त्र) का प्रणयन उसने किया है, जिसने अपने क्रोध द्वारा नन्दों के राज्य को नष्ट करके शास्त्र, शस्त्र और भूमि का उद्धार किया।’ (15/1) विष्णु पुराण में इस घटना की चर्चा इस तरह की गई है: ‘‘महापदम-नन्द नाम का एक राजा था। उसके नौ पुत्रों ने सौ वर्षों तक राज्य किया। उन नन्दों को कौटिल्य नाम के ब्राह्मण ने मार दिया। उनकी मृत्यु के बाद मौर्यों ने पृथ्वी पर राज्य किया और कौटिल्य ने स्वयं प्रथम चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक किया। चन्द्रगुप्त का पुत्र बिन्दुसार हुआ और बिन्दुसार का पुत्र अशोकवर्धन हुआ।’’ (4/24) ‘नीतिसार’ के कर्ता कामन्दक ने भी घटना की पुष्टि करते हुए लिखा है: ‘‘इन्द्र के समान शक्तिशाली आचार्य विष्णुगुप्त ने अकेले ही वज्र-सदृश अपनी मन्त्र-शक्ति द्वारा पर्वत-तुल्य महाराज नन्द का नाश कर दिया और उसके स्थान पर मनुष्यों में चन्द्रमा के समान चन्द्रगुप्त को पृथ्वी के शासन पर अधिष्ठित किया।’’ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि विष्णुगुप्त और कौटिल्य एक ही व्यक्ति थे। ‘अर्थशास्त्र’ में ही द्वितीय अधिकरण के दशम अध्याय के अन्त में पुस्तक के रचयिता का नाम ‘कौटिल्य’ बताया गया है: ‘‘सब शास्त्रों का अनुशीलन करके और उनका प्रयोग भी जान करके कौटिल्य ने राजा (चन्द्रगुप्त) के लिए इस शासन-विधि (अर्थशास्त्र) का निर्माण किया है।’’ (2/10) पुस्तक के आरम्भ में ‘कौटिल्येन कृतं शास्त्रम्’ तथा प्रत्येक अध्याय के अन्त में ‘इति कौटिलीयेऽर्थशास्त्रे’ लिखकर ग्रन्थकार ने अपने ‘कौटिल्य नाम को अधिक विख्यात किया है। जहां-जहां अन्य आचार्यों के मत का प्रतिपादन किया है, अन्त में ‘इति कौटिल्य’ अर्थात् कौटिल्य का मत है-इस तरह कहकर कौटिल्य नाम के लिए अपना अधिक पक्षपात प्रदर्शित किया है। परन्तु यह सर्वथा निर्विवाद है कि विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य अभिन्न व्यक्ति थे। उत्तरकालीन दण्डी कवि ने इसे आचार्य विष्णुगुप्त नाम से यदि कहा है, तो बाणभट्ट ने इसे ही कौटिल्य नाम से पुकारा है। दोनों का कथन है कि इस आचार्य ने ‘दण्डनीति’ अथवा ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की। पंचतन्त्र में इसी आचार्य का नाम चाणक्य दिया गया है, जो अर्थशास्त्र का रचयिता है। कवि विशाखदत्त-प्रणीत सुप्रसिद्ध नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में चाणक्य को कभी कौटिल्य तथा कभी विष्णुगुप्त नाम से सम्बोधित किया गया है। ‘अर्थशास्त्र’ की रचना ‘शासन-विधि’ के रूप में प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के लिए की गई। अत: इसकी रचना का काल वही मानना उचित है, जो सम्राट चन्द्रगुप्त का काल है। पुरातत्त्ववेत्ता विद्वानों ने यह काल 321 ई.पू. से 296 ई.पू. तक निश्चित किया है। कई अन्य विद्वान सम्राट सेण्ड्राकोटस (जो यूनानी इतिहास में सम्राट चन्द्रगुप्त का पर्यायवाची है) के आधार पर निश्चित की हुई इस तिथि को स्वीकार नहीं करते। अर्थशास्त्र का वर्ण्य-विषय जैसे ऊपर कहा गया है, इसका मुख्य विषय शासन-विधि अथवा शासन-विज्ञान है: ‘‘कौटिल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधि: कृत:।’’ (कौटिल्य ने राजाओं के लिये शासन विधि की रचना की है।) इन शब्दों से स्पष्ट है कि आचार्य ने इसकी रचना राजनीति-शास्त्र तथा विशेषतया शासन-प्रबन्ध की विधि के रूप में की। अर्थशास्त्र की विषय-सूची को देखने से (जहां अमात्योत्पत्ति, मन्त्राधिकार, दूत-प्रणिधि, अध्यक्ष-नियुक्ति, दण्डकर्म, षाड्गुण्यसमुद्देश्य, राजराज्ययो: व्यसन-चिन्ता, बलोपादान-काल, स्कन्धावार-निवेश, कूट-युद्ध, मन्त्र-युद्ध इत्यादि विषयों का उल्लेख है) यह सर्वथा प्रमाणित हो जाता है कि इसे आजकल कहे जाने वाले अर्थशास्त्र (इकोनोमिक्स) की पुस्तक कहना भूल है। प्रथम अधिकरण के प्रारम्भ में ही स्वयं आचार्य ने इसे 'दण्डनीति' नाम से सूचित किया है। शुक्राचार्य ने दण्डनीति को इतनी महत्त्वपूर्ण विद्या बतलाया है कि इसमें अन्य सब विद्याओं का अन्तर्भाव मान लिया है- क्योंकि 'शस्त्रेण रक्षिते देशे शास्त्रचिन्ता प्रवर्तते' की उक्ति के अनुसार शस्त्र (दण्ड) द्वारा सुशासित तथा सुरक्षित देश में ही वेद आदि अन्य शास्त्रों की चिन्ता या अनुशीलन हो सकता है। अत: दण्डनीति को अन्य सब विद्याओं की आधारभूत विद्या के रूप में स्वीकार करना आवश्यक है और वही दण्डनीति अर्थशास्त्र है। जिसे आजकल अर्थशास्त्र (economics) कहा जाता है, उसके लिए 'वार्ता' शब्द का प्रयोग किया गया है, यद्यपि यह शब्द पूर्णतया अर्थशास्त्र का द्योतक नहीं। कौटिल्य ने वार्ता के तीन अंग कहे हैं - कृषि, वाणिज्य तथा पशु-पालन, जिनसे प्राय: वृत्ति या जीविका का उपार्जन किया जाता था। मनु, याज्ञवल्क्य आदि शास्त्रकारों ने भी इन तीन अंगों वाले वार्ताशास्त्र को स्वीकार किया है। पीछे शुक्राचार्य ने इस वार्ता में कुसीद (बैंकिग) को भी वृत्ति के साधन-रूप में सम्मिलित कर दिया है। परन्तु अर्थशास्त्र को सभी शास्त्रकारों ने दण्डनीति, राजनीति अथवा शासनविज्ञान के रूप में ही वर्णित किया है। अत: ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ को राजनीति की पुस्तक समझना ही ठीक होगा न कि सम्पत्तिशास्त्र की पुस्तक। वैसे इसमें कहीं-कहीं सम्पत्तिशास्त्र के धनोत्पादन, धनोपभोग तथा धन-विनिमय, धन-विभाजन आदि विषयों की भी प्रासंगिक चर्चा की गई है। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के प्रथम अधिकरण का प्रारम्भिक वचन इस सम्बन्ध में अधिक प्रकाश डालने वाला है: पृथिव्या लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्ये: प्रस्तावितानि प्रायश: तानि संहृत्य एकमिदमर्थशास्त्र कृतम्। अर्थात्-प्राचीन आचार्यों ने पृथ्वी जीतने और पालन के उपाय बतलाने वाले जितने अर्थशास्त्र लिखे हैं, प्रायः उन सबका सार लेकर इस एक अर्थशास्त्र का निर्माण किया गया है। यह उद्धरण अर्थशास्त्र के विषय को जहां स्पष्ट करता है, वहां इस सत्य को भी प्रकाशित करता है कि ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ से पूर्व अनेक आचार्यों ने अर्थशास्त्र की रचनाएं कीं, जिनका उद्देश्य पृथ्वी-विजय तथा उसके पालन के उपायों का प्रतिपादन करना था। उन आचार्यों तथा उनके सम्प्रदायों के कुछ नामों का निर्देशन ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ में किया गया है, यद्यपि उनकी कृतियां आज उपलब्ध भी नहीं होतीं। ये नाम निम्नलिखित है: (1) मानव - मनु के अनुयायी (2) बार्हस्पत्य - बृहस्पति के अनुयायी (3) औशनस - उशना अथवा शुक्राचार्य के मतानुयायी (4) भारद्वाज (द्रोणाचार्य) (5) विशालाक्ष (6) पराशर (7) पिशुन (नारद) (8) कौणपदन्त (भीष्म) (9) वाताव्याधि (उद्धव) (10) बाहुदन्ती-पुत्र (इन्द्र)। अर्थशास्त्र के इन दस सम्प्रदायों के आचार्यों में प्राय: सभी के सम्बन्ध में कुछ-न-कुछ ज्ञात है, परन्तु विशालाक्ष के बारे में बहुत कम परिचय प्राप्त होता है। इन नामों से यह तो अत्यन्त स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र नीतिशास्त्र के प्रति अनेक महान विचारकों तथा दार्शनिकों का ध्यान गया और इस विषय पर एक उज्ज्वल साहित्य का निर्माण हुआ। आज वह साहित्य लुप्त हो चुका है। अनेक विदेशी आक्रमणों तथा राज्यक्रान्तियों के कारण इस साहित्य का नाम-मात्र शेष रह गया है, परन्तु जितना भी साहित्य अवशिष्ट है वह एक विस्तृत अर्थशास्त्रीय परम्परा का संकेत करता है। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ में इन पूर्वाचार्यों के विभिन्न मतों का स्थान-स्थान पर संग्रह किया गया है और उनके शासन-सम्बन्धी सिद्धान्तों का विश्लेषणात्मक विवेचन किया गया है। इस अर्थशास्त्र में एक ऐसी शासन-पद्धति का विधान किया गया है जिसमें राजा या शासक प्रजा का कल्याण सम्पादन करने के लिए शासन करता है। राजा स्वेच्छाचारी होकर शासन नहीं कर सकता। उसे मन्त्रिपरिषद् की सहायता प्राप्त करके ही प्रजा पर शासन करना होता है। राज्य-पुरोहित राजा पर अंकुश के समान है, जो धर्म-मार्ग से च्युत होने पर राजा का नियन्त्रण कर सकता है और उसे कर्तव्य-पालन के लिए विवश कर सकता है। सर्वलोकहितकारी राष्ट्र का जो स्वरूप कौटिल्य को अभिप्रेत है, वह ‘अर्थशास्त्र’ के निम्नलिखित वचन से स्पष्ट है-प्रजा सुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां च हिते हितम्।नात्मप्रियं प्रियं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥'' (1/19) अर्थात्-प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है। अन्य अर्थशास्त्र 400 ई० सन् के लगभग कामन्दक ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर कामन्दकीय नीतिसार नामक 20 सर्गों में विभक्त काव्यरूप एक अर्थशास्त्र लिखा था। यह नैतिकता और विदेश-नीति के सिद्धान्तों पर भी विचार करता है। सोमदेव सूरि का नीतिवाक्यामृत, हेमचन्द्र का लघु अर्थनीति, भोज का युक्तिकल्पतरु, शुक्र का शुक्रनीति आदि कुछ दूसरे सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्र हैं, जिनको नीतिशास्त्र के व्यावहारिक पक्ष की व्याख्या करने वाले ग्रन्थों के अन्तर्गत भी गिना जा सकता है। चाणक्यनीतिदर्पण, नीतिश्लोकों का अव्यवस्थित संग्रह है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अर्थ - चार पुरुषार्थों में से एक चाणक्यनीति - चाणक्य द्वारा रचित नीतिग्रन्थ नीतिसार -- 'कामंदक' द्वारा रचित यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है। भारतीय राजनय का इतिहास द प्रिंस - मकियावेली कृत राजनीति की पुस्तक बाहरी कड़ियाँ कौटिल्यीय अर्थशास्त्र का मूलपाठ, देवनागरी में कौटिल्य अर्थशास्त्र का हिन्दी भाषानुवाद (प्राणनाथ विद्यालङ्कार) ARTHASHASTRA - Lessons for Management Theory and Practice by Dr. Anil M. Naik ArthaShastra (English Translation of Arthashastra) INDIGENOUS HISTORICAL KNOWLEDGE : Kautilya and His Vocabulary VOLUME I, (प्रदीप कुमार गौतम तथा अन्य) श्रेणी:पुस्तकें श्रेणी:संस्कृत साहित्य श्रेणी:प्राचीन भारत श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास श्रेणी:राजनय श्रेणी:राजनीति
भूगोल
https://hi.wikipedia.org/wiki/भूगोल
thumb|299px|right|पृथ्वी का मानचित्र (प्राकृतिक प्रक्षेप) thumb|upright=2|पृथ्वी का राजनीतिक मानचित्र भूगोल शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- भू + गोल। यहाँ भू शब्द का तात्पर्य पृथ्वी और गोल शब्द का अर्थ गोल आकार से है। यह एक विज्ञान है जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरुप और उसके प्राकृतिक विभागों (जैसे पहाड़, महाद्वीप, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, जल-संधियाँ, वन आदि) का ज्ञान होता है। "Geography " - The American Heritage Dictionary/ of the English Language, Fourth Edition. Houghton Mifflin Company. Retrieved October 9, 2006.प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। सर्वप्रथम प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटोस्थनिज़ ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्टविज्ञान के रूप में मान्यता दी। जिओग्राफिया शब्द का पहला रिकॉर्ड किया गया उपयोग ग्रीक विद्वान इरैटोस्थनिज़ (276-194 ईसा पूर्व) की एक पुस्तक के शीर्षक के रूप में था। इसके बाद हिरोडोटस तथा रोमन विद्वान स्ट्रैबो तथा क्लाडियस टॉलमी ने भूगोल को सुनिश्चित स्वरुप प्रदान किया। हालांकि भूगोल पृथ्वी से विशिष्ट रूप से जुड़ा है फिर भी ग्रह विज्ञान के क्षेत्र में अन्य खगोलीय पिंडों के लिए कई अवधारणाओं को अधिक व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है। ऐसी ही एक अवधारणा, वाल्डो टॉबलर द्वारा प्रस्तावित भूगोल का पहला नियम है, " हर चीज अन्य हर चीज से संबंधित है, लेकिन निकट की चीजें दूर की चीजों से अधिक संबंधित हैं।" भूगोल को "विश्व अनुशासन" और "मानव और भौतिक विज्ञान के बीच का पुल कहा गया है।" परिचय भूगोल पृथ्वी, उसकी विशेषताओं और उस पर होने वाली घटनाओं का एक व्यवस्थित अध्ययन है। भूगोल के क्षेत्र में आने के लिए आम तौर पर किसी प्रकार के स्थानिक घटक की आवश्यकता होती है जिसे मानचित्र पर रखा जा सकता है, जैसे निर्देशांक, स्थान के नाम या पते। इसने भूगोल को मानचित्रकला और स्थान के नामों से जोड़ दिया है। हालांकि कई भूगोलवेत्ताओं को स्थलाकृति और मानचित्र विज्ञान में प्रशिक्षित किया जाता है पर यह उनका मुख्य व्यवसाय नहीं है। भूगोलवेत्ता पृथ्वी के स्थानिक (Spatial) और लौकिक (Temporal) वितरण, घटनाओं, प्रक्रियाओं और विशेषताओं के साथ-साथ मनुष्यों और उनके पर्यावरण की अंतःक्रिया का अध्ययन करते हैं। स्पेस और स्थान विभिन्न प्रकार के विषयों को प्रभावित करते हैं, जैसे कि अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य, जलवायु, पौधे और जानवर, अतः भूगोल अत्यधिक अन्तः अनुशासित है। भौगोलिक दृष्टिकोण की अन्तः अनुशासित प्रकृति भौतिक और मानवीय घटनाओं और उनके स्थानिक पैटर्न के बीच संबंधों पर ध्यान देने पर निर्भर करती है। भूगोल पृथ्वी ग्रह से विशिष्ट रूप से जुड़ा है, और अन्य खगोलीय पिंडों को भी इसमें शामिल किया गया है, जैसे "मंगल ग्रह का भूगोल", या अन्य नाम एरियोग्राफी (Areography) दिए गए हैं। यह एक ओर अन्य श्रृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की समीक्षा तथा उनके संबंधों में यथासंभव समन्वय करने में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक उत्पत्ति संबंधी धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी उत्पत्ति संबंधी धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती है। अत: भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता है: विज्ञानों से प्राप्त तथ्यों का विवेचन करके मानवीय निवास स्थान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करता है। अन्य विज्ञानों के द्वारा विकसित धारणाओं में अंतर्निहित तथ्य की परीक्षा का अवसर देता है, क्योंकि भूगोल उन धारणाओं का स्थान विशेष पर प्रयोग कर सकता है। यह सार्वजनिक अथवा निजी नीतियों के निर्धारण में अपनी विशिष्ट पृष्ठभूमि प्रदान करता है, जिसके आधार पर समस्याओं का स्पष्टीकरण सुविधाजनक होता है। परिभाषा भूगोल पृथ्वी कि झलक को स्वर्ग में देखने वाला आभामय विज्ञान हैं -- क्लाडियस टॉलमी भूगोल एक ऐसा स्वतंत्र विषय है, जिसका उद्देश्य लोगों को इस विश्व का, आकाशीय पिण्डो का, स्थल, महासागर, जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों, फलों तथा भूधरातल के क्षेत्रों मे देखी जाने वाली प्रत्येक अन्य वस्तु का ज्ञान प्राप्त कराना हैं -- स्ट्रैबो भूगोल में पृथ्वी तल का अध्यन मानवीय निवास के रूप में क्षेत्रिय भिन्नताओं के आधार पर किया जाता है। -- मोंकहाउस इतिहास भूगोल एक प्राचीनतम विज्ञान है और इसकी नींव प्रारंभिक यूनानी विद्वानों के कार्यों में दिखाई पड़ती है। भूगोल शब्द का प्रथम प्रयोग यूनानी विद्वान इरैटोस्थनीज ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में किया था। भूगोल विस्तृत पैमाने पर सभी भौतिक व मानवीय तथ्यों की अन्तर्क्रियाओं और इन अन्तर्क्रियाओं से उत्पन्न स्थलरूपों का अध्ययन करता है। यह बताता है कि कैसे, क्यों और कहाँ मानवीय व प्राकृतिक क्रियाकलापों का उद्भव होता है और कैसे ये क्रियाकलाप एक दूसरे से अन्तर्संबंधित हैं। भूगोल की अध्ययन विधि परिवर्तित होती रही है। प्रारंभिक विद्वान वर्णनात्मक भूगोलवेत्ता थे। बाद में, भूगोल विश्लेषणात्मक भूगोल के रूप में विकसित हुआ। आज यह विषय न केवल वर्णन करता है, बल्कि विश्लेषण के साथ-साथ भविष्यवाणी भी करता है। पूर्व-आधुनिक काल यह काल 15वीं सदी के मध्य से शुरू होकर 18वीं सदी के पूर्व तक चला। यह काल आरंभिक भूगोलवेत्ताओं की खोजों और अन्वेषणों द्वारा विश्व की भौतिक व सांस्कृतिक प्रकृति के बारे में वृहत ज्ञान प्रदान करता है। 17वीं सदी का प्रारंभिक काल नवीन 'वैज्ञानिक भूगोल' की शुरूआत का गवाह बना। कोलम्बस, वास्कोडिगामा, मजेलिन और जेम्स कुक इस काल के प्रमुख अन्वेषणकर्त्ता थे। वारेनियस, कान्ट, हम्बोल्ट और रिटर इस काल के प्रमुख भूगोलवेत्ता थे। इन विद्वानों ने मानचित्रकला के विकास में योगदान दिया और नवीन स्थलों की खोज की, जिसके फलस्वरूप भूगोल एक वैज्ञानिक विषय के रूप में विकसित हुआ। आधुनिक काल रिटर और हम्बोल्ट का उल्लेख बहुधा आधुनिक भूगोल के संस्थापक के रूप में किया जाता है। सामान्यतः 19वीं सदी के उत्तरार्ध का काल आधुनिक भूगोल का काल माना जाता है। वस्तुतः रेट्जेल प्रथम आधुनिक भूगोलवेत्ता थे, जिन्होंने चिरसम्मत भूगोलवेत्ताओं द्वारा स्थापित नींव पर आधुनिक भूगोल की संरचना का निर्माण किया। नवीन काल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भूगोल का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ। हार्टशॉर्न जैसे अमेरिकी और यूरोपीय भूगोलवेत्ताओं ने इस दौरान अधिकतम योगदान दिया। हार्टशॉर्न ने भूगोल को एक ऐसे विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जो क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। वर्तमान भूगोलवेत्ता प्रादेशिक उपागम (अप्रोच) और क्रमबद्ध उपागम को विरोधाभासी की जगह पूरक उपागम के रूप में देखते हैं। मूल अवधारणाऐं स्पेस/अंतराल (दिक्) thumb|right|एक दाएं हाथ का त्रि-आयामी कार्टेशियन निर्देशांक प्रणाली स्पेस में स्थितियों को इंगित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भूगोल के दायरे में किसी चीज़ के अस्तित्व के लिए, इसे स्थानिक (Spatial) रूप से वर्णित करने में सक्षम होना चाहिए। इस प्रकार, भूगोल की नींव में स्पेस सबसे मौलिक अवधारणा है। यह अवधारणा इतनी बुनियादी है कि भूगोलवेत्ताओं को अक्सर यह परिभाषित करने में कठिनाई होती है कि वास्तव में यह क्या है। निरपेक्ष स्पेस वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों, या घटनाओं की जांच के तहत सटीक साइट, या स्थानिक निर्देशांक है। हम स्पेस में मौजूद हैं। निरपेक्ष स्पेस दुनिया को एक तस्वीर के रूप में देखने की ओर ले जाता है, जहां जब निर्देशांक रिकॉर्ड किए गए थे तो सब कुछ स्थिर था। आज, भूगोलवेत्ताओं को यह याद रखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है कि दुनिया, मानचित्र पर दिखाई देने वाली स्थिर छवि नहीं है; इसके बजाय, यह एक गतिशील स्थान है जहां सभी प्रक्रियाएं परस्पर क्रिया करती हैं और घटित होती हैं। स्थान स्थान भूगोल में सबसे जटिल और महत्वपूर्ण शब्दों में से एक है। मानव भूगोल में, स्थान पृथ्वी की सतह पर निर्देशांक का संश्लेषण है, जो गतिविधि और उपयोग घटित होता है, हुआ है, और निर्देशांक पर घटित होगा, और मानव व्यक्तियों और समूहों द्वारा स्पेस के लिए जो अर्थ निर्दिष्ट किया गया है। यह असाधारण रूप से जटिल हो सकता है, क्योंकि अलग-अलग स्पेस के अलग-अलग समय पर अलग-अलग उपयोग हो सकते हैं और अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजें हो सकती हैं। भौतिक भूगोल में, एक स्थान में स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल और जीवमंडल सहित स्पेस में होने वाली सभी भौतिक घटनाएं शामिल होती हैं। स्थान निर्वात में मौजूद नहीं होते हैं और इसके बजाय एक दूसरे के साथ जटिल स्थानिक संबंध होते हैं, और स्थान का संबंध है कि अन्य सभी स्थानों के संबंध में स्थान कैसे स्थित है। तब एक अनुशासन के रूप में, भूगोल में शब्द स्थान में एक स्थान पर होने वाली सभी स्थानिक घटनाएं शामिल होती हैं, विविध उपयोग और अर्थ जो मनुष्य उस स्थान को देते हैं, और कैसे वह स्थान पृथ्वी पर अन्य सभी स्थानों को प्रभावित करता है और प्रभावित होता है। यी-फू तुआन के एक पेपर में, वे बताते हैं कि उनके विचार में, भूगोल मानवता के लिए एक घर के रूप में पृथ्वी का अध्ययन है, और इस प्रकार स्थान और इस शब्द के पीछे का जटिल अर्थ भूगोल के अनुशासन का केंद्र है। समय thumb|upright=1|alt=स्पेस-टाइम क्यूब एक तीन-अक्ष वाला ग्राफ है जहां एक अक्ष समय आयाम का प्रतिनिधित्व करता है और अन्य अक्ष दो स्थानिक आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं।|समय भूगोल के दृश्य भाषा के उदाहरण: अंतरिक्ष-समय घन, पथ, प्रिज्म, बंडल, और अन्य अवधारणाएँ। समय को आमतौर पर इतिहास के दायरे में माना जाता है, हालांकि, यह भूगोल के अनुशासन में महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। भौतिकी में, स्पेस और समय अलग नहीं होते हैं, और स्पेस-टाइम की अवधारणा में संयुक्त होते हैं।भूगोल भौतिकी के नियमों के अधीन है, और स्पेस में होने वाली चीजों का अध्ययन करने में, समय पर विचार किया जाना चाहिए। भूगोल में समय विभिन्न असतत निर्देशांकों पर घटित होने वाली घटनाओं के ऐतिहासिक रिकॉर्ड से कहीं अधिक है; लेकिन इसमें स्पेस के माध्यम से लोगों, जीवों और चीजों की गतिशील क्रियाओं की मॉडलिंग करना भी शामिल है। समय स्पेस के माध्यम से गति की सुविधा देता है, अंततः चीजों को एक प्रणाली के माध्यम से प्रवाहित होने की अनुमति देता है। एक व्यक्ति, या लोगों का समूह, किसी स्थान पर जितना समय व्यतीत करता है, वह अक्सर उस स्थान के प्रति उनके लगाव और दृष्टिकोण को आकार देता है। प्रारंभिक बिंदु, संभावित मार्गों और यात्रा की दर को देखते हुए समय उन संभावित रास्तों को बाधित करता है जिन्हें स्पेस के माध्यम से लिया जा सकता है। मानचित्रकला के संदर्भ में स्पेस पर समय की कल्पना करना चुनौतीपूर्ण है, और इसमें अंतरिक्ष-प्रिज्म, उन्नत 3डी भू-दृश्यकरण, और एनिमेटेड मानचित्र शामिल हैं। भूगोल के नियम thumb|250px|न्यूबेरी लाइब्रेरी के सामने वाल्डो टॉबलर। शिकागो, नवंबर 2007 सामान्य तौर पर, कुछ भूगोल और सामाजिक विज्ञानों में नियमों की पूरी अवधारणा पर ही विवाद करते हैं।इन आलोचनाओं को वाल्डो टॉबलर और अन्य लोगों ने संबोधित किया है। हालाँकि, यह भूगोल में बहस का एक सतत स्रोत है और इसके जल्द ही हल होने की संभावना नहीं है। कई कानून प्रस्तावित किए गए हैं, और टॉबलर का भूगोल का पहला नियम भूगोल में सबसे आम तौर पर स्वीकृत है। कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि भौगोलिक नियमों को क्रमांकित करने की आवश्यकता नहीं है। पहले का अस्तित्व दूसरे को आमंत्रित करता है, और बहुतों ने स्वयं को ऐसा प्रस्तावित किया है। यह भी प्रस्तावित किया गया है कि टॉबलर के भूगोल के पहले नियम को दूसरे नियम में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और दूसरे के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। भूगोल के कुछ प्रस्तावित नियम नीचे हैं: टॉबलर का भूगोल का पहला नियम: "हर चीज हर चीज से संबंधित है, लेकिन पास की चीजें दूर से ज्यादा संबंधित हैं" टॉबलर का भूगोल का दूसरा नियम: "भौगोलिक क्षेत्र के बाहर की घटनाएं प्रभावित करती हैं कि अंदर क्या चल रहा है।" अरबिया का भूगोल का नियम: "हर चीज हर चीज से संबंधित है, लेकिन मोटे स्पैशल रेसोल्यूशन पर देखी गई चीजें बेहतर रेसोल्यूशन पर देखी गई चीजों से अधिक संबंधित हैं।" अनिश्चितता का सिद्धांत: "भौगोलिक दुनिया असीम रूप से जटिल है और इसलिए किसी भी प्रतिनिधित्व में अनिश्चितता के तत्व शामिल होने चाहिए, भौगोलिक डेटा प्राप्त करने में उपयोग की जाने वाली कई परिभाषाओं में अस्पष्टता के तत्व शामिल हैं, और यह कि पृथ्वी की सतह पर लोकैशन को मापना असंभव है। " अंग तथा शाखाएँ भूगोल ने आज विज्ञान का दर्जा प्राप्त कर लिया है, जो पृथ्वी तल पर उपस्थित विविध प्राकृतिक और सांस्कृतिक रूपों की व्याख्या करता है। भूगोल एक समग्र और अन्तर्सम्बंधित क्षेत्रीय अध्ययन है जो स्थानिक संरचना में भूत से भविष्य में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है। इस तरह भूगोल का क्षेत्र विविध विषयों जैसे सैन्य सेवाओं, पर्यावरण प्रबंधन, जल संसाधन, आपदा प्रबंधन, मौसम विज्ञान, नियोजन (प्लैनिंग) और विविध सामाजिक विज्ञानों में है। इसके अलावा यह भूगोलवेत्ता दैनिक जीवन से सम्बंधित घटनाओं जैसे पर्यटन, स्थान परिवर्तन, आवासों तथा स्वास्थ्य सम्बंधी क्रियाकलापों में सहायक हो सकता है। भूगोल पूछताछ की एक शाखा है जो पृथ्वी पर स्थानिक जानकारी पर केंद्रित है। यह एक अत्यंत व्यापक विषय है और इसे कई तरीकों से विभाजित किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए कई दृष्टिकोण रहे हैं, जिसमें "भूगोल की चार परंपराएँ" और "अलग-अलग शाखाएं" शामिल हैं। भूगोल की चार परंपराओं का उपयोग अक्सर उन विभिन्न ऐतिहासिक दृष्टिकोणों को विभाजित करने के लिए किया जाता है जो भूगोलवेत्ताओं ने अनुशासन में लिए हैं। इसके विपरीत, भूगोल की शाखाएँ समकालीन अनुप्रयुक्त (अप्लाइड) भौगोलिक दृष्टिकोणों का वर्णन करती हैं। भूगोल की चार परंपराएँ भूगोल एक अत्यंत विस्तृत क्षेत्र है। इस वजह से कई, दशकों से प्रस्तावित भूगोल की विभिन्न परिभाषाओं को अपर्याप्त मानते हैं। इसे संबोधित करने के लिए, विलियम डी. पैटिसन ने 1964 में "भूगोल की चार परंपराओं" की अवधारणा का प्रस्ताव रखा। ये परंपराएं स्थानिक या स्थानीय परंपरा, मानव-भूमि या मानव-पर्यावरण संपर्क परंपरा, क्षेत्रीय अध्ययन या क्षेत्रीय परंपरा, और पृथ्वी विज्ञान परंपरा हैं। ये अवधारणाएँ अनुशासन के भीतर एक साथ बंधे भूगोल दर्शन के व्यापक सेट हैं। वे कई तरीकों में से एक हैं जो भूगोलवेत्ता अनुशासन के भीतर विचारों और दर्शन के प्रमुख सेटों को व्यवस्थित करते हैं। स्थानिक (Spatial) या अवस्थिति (लोकेशनल) परंपरा स्थानिक या अवस्थिति परंपरा किसी स्थान की स्थानिक विशेषताओं का वर्णन करने के लिए मात्रात्मक तरीकों को नियोजित करने से संबंधित है। स्थानिक परंपरा किसी स्थान या घटना को समझने और समझाने के लिए स्थानिक विशेषताओं का उपयोग करना चाहती है। इस परंपरा के योगदानकर्ता ऐतिहासिक रूप से मानचित्रकार थे, लेकिन अब इसमें तकनीकी भूगोल और भौगोलिक सूचना विज्ञान शामिल है। क्षेत्र अध्ययन या प्रादेशिक परंपरा क्षेत्र अध्ययन या प्रादेशिक परंपरा पृथ्वी की सतह की अनूठी विशेषताओं के वर्णन से संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक क्षेत्र भौतिक और मानव पर्यावरण के रूप में अपनी पूर्ण प्राकृतिक या तत्वों के संयोजन से उत्पन्न होता है। मुख्य उद्देश्य किसी विशेष क्षेत्र की विशिष्टता, या चरित्र को समझना या परिभाषित करना है जिसमें प्राकृतिक और मानवीय तत्व शामिल हैं। प्रादेशिककरण पर भी ध्यान दिया जाता है, जो क्षेत्रों में इलाके के परिसीमन की उचित तकनीकों को शामिल करता है। मानव-पर्यावरण अन्तःक्रिया परंपरा मानव पर्यावरण अन्तःक्रिया परंपरा (मूल रूप से मानव-भूमि अन्तःक्रिया), जिसे एकीकृत भूगोल के रूप में भी जाना जाता है, मानव और प्राकृतिक दुनिया के बीच स्थानिक बातचीत के विवरण से संबंधित है। इसके लिए भौतिक और मानव भूगोल के पारंपरिक पहलुओं की समझ की आवश्यकता होती है, जैसे मानव समाज पर्यावरण की अवधारणा कैसे करते हैं। दो उप-क्षेत्रों, या शाखाओं की बढ़ती विशेषज्ञता के कारण एकीकृत भूगोल मानव और भौतिक भूगोल के बीच एक सेतु के रूप में उभरा है। वैश्वीकरण और तकनीकी परिवर्तन के परिणामस्वरूप पर्यावरण के साथ मानवीय संबंधों में बदलाव के बाद से बदलते और गतिशील संबंधों को समझने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। पर्यावरण भूगोल में अनुसंधान के क्षेत्रों के उदाहरणों में शामिल हैं: आपातकालीन प्रबंधन, पर्यावरण प्रबंधन, स्थिरता और राजनीतिक पारिस्थितिकी। पृथ्वी विज्ञान परंपरा पृथ्वी विज्ञान परंपरा काफी हद तक भौतिक भूगोल के रूप में संदर्भित है।यह परंपरा प्राकृतिक घटनाओं की स्थानिक विशेषताओं को समझने पर केंद्रित है। कुछ लोगों का तर्क है कि पृथ्वी विज्ञान परंपरा स्थानिक परंपरा का एक उपसमुच्चय है, हालांकि दोनों अलग-अलग होने के लिए अपने फोकस और उद्देश्यों में काफी भिन्न हैं। u..=== भूगोल की शाखाएं === भौतिक भूगोल मानव भूगोल तकनीकी भूगोल विद्वानों ने भूगोल के तीन मुख्य विभाग किए हैं- गणितीय भूगोल, भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल। पहले विभाग में पृथ्वी का सौर जगत के अन्यान्य ग्रहों और उपग्रहों आदि से संबंध बतलाया जाता है और उन सबके साथ उसके सापेक्षिक संबंध का वर्णन होता है। इस विभाग का बहुत कुछ संबंध गणित ज्योतिष से भी है। दूसरे विभाग में पृथ्वी के भौतिक रूप का वर्णन होता है और उससे यह जाना जाता है कि नदी, पहाड़, देश, नगर आदि किसे कहते है और अमुक देश, नगर, नदी या पहाड़ आदि कहाँ हैं। साधारणतः भूगोल से उसके इसी विभाग का अर्थ लिया जाता है। भूगोल का तीसरा विभाग मानव भूगोल है जिसके अन्तर्गत राजनीतिक भूगोल भी आता है जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि राजनीति, शासन, भाषा, जाति और सभ्यता आदि के विचार से पृथ्वी के कौन विभाग है और उन विभागों का विस्तार और सीमा आदि क्या है। एक अन्य दृष्टि से भूगोल के दो प्रधान अंग है : शृंखलाबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल। पृथ्वी के किसी स्थानविशेष पर शृंखलाबद्ध भूगोल की शाखाओं के समन्वय को केंद्रित करने का प्रतिफल प्रादेशिक भूगोल है। भूगोल एक प्रगतिशील विज्ञान है। प्रत्येक देश में विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्रों का विकास कर रहे हैं। फलत: इसकी निम्नलिखित अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हो गई है : आर्थिक भूगोल-- इसकी शाखाएँ कृषि, उद्योग, खनिज, शक्ति तथा भंडार भूगोल और भू उपभोग, व्यावसायिक, परिवहन एवं यातायात भूगोल हैं। अर्थिक संरचना संबंधी योजना भी भूगोल की शाखा है। राजनीतिक भूगोल -- इसके अंग भूराजनीतिक शास्त्र, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, औपनिवेशिक भूगोल, शीत युद्ध का भूगोल, सामरिक एवं सैनिक भूगोल हैं। ऐतिहासिक भूगोल --प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक वैदिक, पौराणिक, इंजील संबंधी तथा अरबी भूगोल भी इसके अंग है। रचनात्मक भूगोल-- इसके भिन्न भिन्न अंग रचना मिति, सर्वेक्षण आकृति-अंकन, चित्रांकन, आलोकचित्र, कलामिति (फोटोग्रामेटरी) तथा स्थाननामाध्ययन हैं। इसके अतिरिक्त भूगोल के अन्य खंड भी विकसित हो रहे हैं जैसे ग्रंथ विज्ञानीय, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, गणित शास्त्रीय, ज्योतिष शास्त्रीय एवं भ्रमण भूगोल तथा स्थाननामाध्ययन हैं। भौतिक भूगोल भौतिक भूगोल -- इसके भिन्न भिन्न शास्त्रीय अंग स्थलाकृति, हिम-क्रिया-विज्ञान, तटीय स्थल रचना, भूस्पंदनशास्त्र, समुद्र विज्ञान, वायु विज्ञान, मृत्तिका विज्ञान, जीव विज्ञान, चिकित्सा या भैषजिक भूगोल तथा पुरालिपि शास्त्र हैं। भू-आकृति (स्थलाकृति) विज्ञान पृथ्वी पर 7 महाद्वीप हैं: एशिया, यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका। पृथ्वी पर 5 महासागर हैं: अटलांटिक महासागर, आर्कटिक महासागर,हिंद महासागर, प्रशान्त महासागर | दक्षिण महासागर स्थलाकृति विज्ञान - शैल - (1) आग्नेय शैल (2) कायांतरित शैल (3) अवसादी शैल | महासागरीय विज्ञान ज्वार-भाटा लवणता तट महासागरीय तरंगे महासागरीय निक्षेप जलवायु-विज्ञान वायुमण्डल, ऋतु, तापमान, गर्मी, उष्णता, क्षय ऊष्मा, आर्द्रता | मानव भूगोल मानव भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जो मानव समाज के क्रियाकलापों और उनके परिणाम स्वरूप बने भौगोलिक प्रतिरूपों का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत मानव के राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक पहलू आते हैं। मानव भूगोल को अनेक श्रेणियों में बांटा जा सकता है, जैसे:' आर्थिक भूगोल राजनीतिक भूगोल जनसंख्या भूगोल सांस्कृतिक भूगोल कृषि भूगोल परिवहन भूगोल पर्यटन भूगोल {| style="border:1px solid #ddd; text-align:center; margin: auto;" cellspacing="15" | 96px || 96px || 96px || 96px |- |सांस्कृतिक भूगोल || विकास भूगोल || आर्थिक भूगोल || स्वास्थ्य भूगोल |- | 96px || 96px || 96px || 96px |- | ऐतिहासिक & समय भूगोल || राजनीतिक भूगोल व भूराजनीति || जनसंख्या भूगोल या जनांकिकी || धार्मिक भूगोल |- | 96px || 96px || 96px|कड़ी=Special:FilePath/Tourists-2-x.jpg||96px |- | सामाजिक भूगोल || परिवहन भूगोल || पर्यटन भूगोल || नगरीय भूगोल |} भूगोल एक अन्तर्सम्बंधित विज्ञान के रूप में इतिहास के भिन्न कालों में भूगोल को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। प्राचीन यूनानी विद्वानों ने भौगोलिक धारणाओं को दो पक्षों में रखा था- प्रथम गणितीय पक्ष, जो कि पृथ्वी की सतह पर स्थानों की अवस्थिति को केन्द्रित करता था दूसरा यात्राओं और क्षेत्रीय कार्यों द्वारा भौगोलिक सूचनाओं को एकत्र करता था। इनके अनुसार, भू गोल का मुख्य उद्देश्य विश्व के विभिन्न भागों की भौतिक आकृतियों और दशाओं का वर्णन करना है। भूगोल में प्रादेशिक उपागम का उद्भव भी भूगोल की वर्णनात्मक प्रकृति पर बल देता है। हम्बोल्ट के अनुसार, भूगोल प्रकृति से सम्बंधित विज्ञान है और यह पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी साधनों का अध्ययन व वर्णन करता है। हेटनर और हार्टशॉर्न पर आधारित भूगोल की तीन मुख्य शाखाएँ है : भौतिक भूगोल, मानव भूगोल और प्रादेशिक भूगोल। भौतिक भूगोल में प्राकृतिक परिघटनाओं का उल्लेख होता है, जैसे कि जलवायु विज्ञान, मृदा और वनस्पति। मानव भूगोल भूतल और मानव समाज के सम्बंधों का वर्णन करता है। भूगोल एक अन्तरा-अनुशासनिक विषय है। भूगोल का गणित, प्राकृतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों के साथ घनिष्ठ सम्बंध है। जबकि अन्य विज्ञान विशिष्ट प्रकार की परिघटनाओं का ही वर्णन करते हैं, भूगोल विविध प्रकार की उन परिघटनाओं का भी अध्ययन करता है, जिनका अध्ययन अन्यविज्ञानों में भी शामिल होता है। इस प्रकार भूगोल ने स्वयं को अन्तर्सम्बंधित व्यवहारों के संश्लेषित अध्ययन के रूप में स्थापित किया है। भूगोल स्थानों का विज्ञान है। भूगोल प्राकृतिक व सामाजिक दोनों ही विज्ञान है, जोकि मानव व पर्यावरण दोनों का ही अध्ययन करता है। यह भौतिक व सांस्कृतिक विश्व को जोड़ता है। भौतिक भूगोल पृथ्वी की व्यवस्था से उत्पन्न प्राकृतिक पर्यावरणका अध्ययन करता है। मानव भूगोल राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और जनांकिकीय प्रक्रियाओं से सम्बंधित है। यह संसाधनों के विविध प्रयोगों से भी सम्बंधित है। प्रारंभिक भूगोल सिर्फ स्थानों का वर्णन करता था। हालाँकि यह आज भी भूगोल के अध्ययन में शामिल है परन्तु पिछले कुछ वर्षों में इसके प्रतिरूपों के वर्णन में परिवर्तन हुआ है। भौगोलिक परिघटनाओंं का वर्णन सामान्यतः दो उपागमों के आधार पर किया जाता है जैसे (१) प्रादेशिक और (२) क्रमबद्ध। प्रादेशिक उपागम प्रदेशों के निर्माण व विशेषताओं की व्याख्या करता है। यह इस बात का वर्णन करने का प्रयास करता है कि कोई क्षेत्र कैसे और क्यों एक दूसरे से अलग है। प्रदेश भौतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, जनांकिकीय आदि हो सकता है। क्रमबद्ध उपागम परिघटनाओं तथा सामान्य भौगोलिक महत्वों के द्वारा संचालित है। प्रत्येक परिघटना का अध्ययन क्षेत्रीय विभिन्नताओं व दूसरे के साथ उनके संबंधों का अध्ययन भूगोल आधार पर किया जाता है। भूगोल का भौतिक विज्ञानों से संबंध भूगोल और गणित भूगोल की प्रायः सभी शाखाओं विशेष रूप से भौतिक भूगोल की शाखाओं में तथ्यों के विश्लेषण में गणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। भूगोल और खगोल विज्ञान (Geography and Astronomy) खगोल विज्ञान में आकाशीय पिण्डों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। भूतल की घटनाओं और तत्वों पर आकाशीय पिण्डों - सूर्य, चंद्रमा, धूमकेतुओं आदि का प्रत्यक्ष प्रभाव होता है। इसीलिए भूगोल में सौरमंडल, सूर्य का अपने आभासी पथ पर गमन, पृथ्वी की दैनिक और वार्षि गतियों तथा उनके परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों - दिन-रात और ऋतु परिवर्तन, चन्द्र कलाओं, सूर्य ग्रहण, चन्द्रगहण आदि का अध्ययन किया जाता है। इन तत्वों और घटनाओं का मौलिक अध्ययन खगोल विज्ञान में किया जाता है। इस प्रकार भूगोल का खगोल विज्ञान से घनिष्ट संबंध परिलक्षित होता है। भूगोल और भूविज्ञान (Geography and Geology) भू-विज्ञान पृथ्वी के संगठन, संरचना तथा इतिहास के वैज्ञानिक अध्ययन सं संबंधित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघठक पदार्थों, भूतल पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलें की संरचना एवं वितरण, पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक कालों आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है। भूगोल में स्थलरूपों के विश्लेषण में भूविज्ञान के सिद्धान्तों तथा साक्ष्यों का सहारा लिया जाता है। इस प्रकार भौतिक भूगोल विशेषतः भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) का भू-विज्ञान से अत्यंत घनिष्ट संबंध है। भूगोल और मौसम विज्ञान भूतल को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों में जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण कारक है। मौसम विज्ञान वायुमण्डल विशेषतः उसमें घटित होने वाले भौतिक प्रक्रमों तथा उससे सम्बद्ध स्थलमंडल और जलमंडल के विविध प्रक्रमों का अध्ययन करता है। इसके अंतर्गत वायुदाब, तापमान, पवन, आर्द्रता, वर्षण, मेघाच्छादन, सूर्य प्रकाश आदि का अध्ययन किया जाता है। मौसम विज्ञान के इन तत्वों का विश्लेषण भूगोल में भी किया जाता है। भूगोल और जल विज्ञान (Geography and Hydrology) जल विज्ञान पृथ्वी पर स्थित जल के अध्ययन से संबंधित है। इसके साथ ही इसमें जल के अन्वेषण, प्रयोग, नियंत्रण और संरक्षण का अध्यन भी समाहित होता है। महासारीय तत्वों के स्थानिक वितरण का अध्ययन भूगोल की एक शखा समुद्र विज्ञन (Oceanography) में किया जाता है। समद्र विज्ञान में महसागयी जल केकर पशुओं के पीने, फसलों की सिंचई करने, काखानों में जलापूर्ति, जशक्ति, जल रिवहन, मत्स्यखेट आदि विभिन्न रूपों में जल आवश्यक ही नहीं अनवर्य होता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि भूगोल और जल विज्ञान में अत्यंत निकट का और घनिष्ट संबंध है। भूगोल और मृदा विज्ञान (Geography and Pedology) मृदा विज्ञान (Pedology or soil science) मिट्टी के निर्माण, संरचना और विशेषता का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। भूतल पर मिट्टियों के वितरण का अध्ययन मृदा भूगोल (Pedogeogaphy or Soil Geography) के अंतर्गत किया जाता है। मिट्टी का अध्ययन कृषि भूगोल का भी महत्वपूर्ण विषय है। इस प्रकार भूगोल की घनिष्टता मृदा विज्ञान से भी पायी जाती है। भूगोल और वनस्पति विज्ञान पेड़-पौधों का मानव जीवन से गहरा संबंध है। वनस्पति विज्ञान पादप जीवन (Plant life) और उसके संपूर्ण विश्व रूपों का वैज्ञानिक अध्यय करता है। प्राकृतिक वनस्पतियों के स्थानिक वितरण और विशेषताओं का विश्लेषण भौतिक भूगोल की शाखा जैव भूगोल (Biogeography) और उपशाखा वनस्पति या पादप भूगोल (Plant Geography) में की जाती है। भूगोल और जन्तु विज्ञान जन्तु विज्ञान या प्राणि समस्त प्रकार के प्राणि जीवन की संरचना, वर्गीकरण तथा कार्यों का वैज्ञानिक अध्ययन है। मनुष्य के लिए जन्तु जगत् और पशु संसाधन (Animal resource) का अत्यधिक महत्व है। पशु मनुष्य के लिए बहु-उपयोगी हैं। मनुष्य को पशुओं से अनेक उपयोगी पदार्थ यथा दूध, मांस, ऊन, चमड़ा आदि प्राप्त होते हैं और कुछ पशुओं का प्रयोग सामान ढोने और परिवहन या सवारी करने के लिए भी किया जाता है। जैव भूगोल की एक उप-शाखा है जंतु भूगोल (Animal Geography) जिसमें विभिन्न प्राणियों के स्थानिक वितरण और विशेषताओं का विश्लेषण किया जाता है। मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में पशु जगत का महत्वपूर्ण स्थान होने के कारण इसको भौगोलिक अध्ययनों में भी विशिष्ट स्थान प्राप्त है। अतः भूगोल का जन्तु विज्ञान से भी घनिष्ट संबंध प्रमाणित होता है। भूगोल का सामाजिक विज्ञानों से संबंध भूगोल और अर्थ शास्त्र भोजन, वस्त्र और आश्रय मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं जो किसी भी देश, काल या परिस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य होती हैं। इसके साथ ही मानव या मानव समूह की अन्यान्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि आवश्यकताएं भी होती हैं जो बहुत कुछ अर्थव्यवस्था पर आधारित होती हैं। अर्थव्यवस्था (economy) का अध्ययन करना अर्थशास्त्र का मूल विषय है। किसी स्थान, क्षेत्र या जनसमुदाय के समस्त जीविका स्रोतों या आर्थिक संसाधनों के प्रबंध, संगठन तथा प्रशासन को ही अर्थव्यवस्था कहते हैं। विविध आर्थिक पक्षों स्थानिक अध्ययन भूगोल की एक विशिष्ट शाखा आर्थिक भूगोल में किया जाता है। भूगोल और समाजशास्त्र समाजशास्त्र मनुष्यों के सामाजिक जीवन, व्यवहार तथा सामाजिक क्रिया का अध्ययन है जिसमें मानव समाज की उत्पत्ति, विकास, संरचना तथा सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन सम्मिलित होता है। समाजशास्त्र मानव समाज के विकास, प्रवृत्ति तथा नियमों की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। समस्त मानव समाज अनेक वर्गों, समूहों तथा समुदायों में विभक्त है जिसके अपने-अपने रीति-रिवाज, प्रथाएं, परंपराएं तथा नियम होते हैं जिन पर भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव निश्चित रूप से पाया जाता है। अतः समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भौगोलिक ज्ञान आवश्यक होता है। भूगोल और इतिहास मानव भूगोल मानव सभ्यता के इतिहास तथा मानव समाज के विकास का अध्ययन भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में करता है। किसी भी देश या प्रदेश के इतिहास पर वहां के भौगोलिक पर्यावरण तथा परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पाया जाता है। प्राकृतिक तथा मानवीय या सांस्कृतिक तथ्य का विश्लेषण विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं तब मनुष्य और पृथ्वी के परिवर्तनशील संबंधों का स्पष्टीकरण हो जाता है। किसी प्रदेश में जनसंख्या, कृषि, पशुपालन, खनन, उद्योग धंधों, परिवहन के साधनों, व्यापारिक एवं वाणिज्कि संस्थाओं आदि के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है जिसके लिए उपयुक्त साक्ष्य और प्रमाण इतिहास से ही प्राप्त होते हैं। भूगोल और राजनीति विज्ञान राजनीति विज्ञान के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘शासन व्यवस्था’ है। इसमें विभिनन राष्ट्रों एवं राज्यों की शासन प्रणालियों, सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों आदि का अध्ययन किया जाता है। राजनीतिक भूगोल मानव भूगोल की एक शाखा है जिसमें राजनीतिक रूप से संगठित क्षेत्रों की सीमा, विस्तार, उनके विभिनन घटकों, उप-विभागों, शासित भू-भागों, संसाधनों, आंतरिक तथा विदेशी राजनीतिक संबंधों आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है। मानव भूगोल की एक अन्य शाखा भूराजनीति (Geopolitics) भी है जिसके अंतर्गत भूतल के विभिन्न प्रदेशों की राजनीतिक प्रणाली विशेष रूप से अंतर्राष्टींय राजनीति पर भौगोलिक कारकों के प्रभाव की व्याख्या की जाती है। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भूगोल और राजनीति विज्ञान परस्पर घनिष्ट रूप से संबंधित हैं। भूगोल और जनांकिकी (Geography and Demography) जनांकिकी या जनसांख्यिकी के अंतर्गत जनसंख्या के आकार, संरचना, विकास आदि का परिमाणात्मक अध्ययन किया जाता है। इसमें जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के एकत्रण, वर्गीकरण, मूल्यांकन, विश्लेषण तथा प्रक्षेपण के साथ ही जनांकिकीय प्रतिरूपों तथा प्रक्रियाओं की भी व्याख्या की जाती है। मानव भूगोल और उसकी उपशाखा जनसंख्या भूगोल में भौगोलिक पर्यावरण के संबंध में जनांकिकीय प्रक्रमों तथा प्रतिरूपों में पायी जाने वाली क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार विषय सादृश्य के कारण भूगोल और जनांकिकी में घनिष्ट संबंध पाया जाता है। भूगोल में प्रयुक्त तकनीकें मानचित्र कला right|thumb|300px|गेरार्डस मेर्केटर नकशा बनाना नाप, कम्पास दिक्सूचक मापन, पैमाइश करना आकाशी मानचित्र समोच्च रेखी भू- वैज्ञानिक मानचित्र आधार मानचित्र समोच्च नक्शा कार्नो प्रतिचित्र बिट प्रतिचित्र प्रोटोकॉल खंड प्रतिचित्र सारणी नक्शानवीसी मानचित्र भौगोलिक सूचना तंत्र भूसूचनाविज्ञान सुदूर संवेदन भूसांख्यिकीय विधियाँ भूमिति सर्वेक्षण प्रत्याशा सर्वेक्षण आर्थिक सर्वेक्षण खेत प्रबंध सर्वेक्षण भूमिगत जल सर्वेक्षण जल सर्वेक्षण प्रायोगिक सर्वेक ग्राम सर्वेक्षण सन्दर्भ इन्हें भी देखें भूगोल की रूपरेखा भूगोल का इतिहास देशों की सूची भूगोलवेत्ताओं की सूची बाहरी कड़ियाँ भूगोल (गूगल पुस्तक ; लेखक - यश पाल सिंह) भूगोल परिभाषा शब्द संग्रह (गूगल पुस्तक ; लेखक - माजिद हुसैन) भूगोल मुख्य परीक्षा के लिये (गूगल पुस्तक ; लेखक - डी आर खुल्लर) स्कूल भुवन - स्कूली बच्चों के लिये भूगोल सीखने का पोर्टल भूगोल से जुड़े प्रश्न भूगोल पर्वत, पठार एवं मैदान - प्रतियोगी परीक्षा श्रेणी:भूगोल श्रेणी:पृथ्वी विज्ञान श्रेणी:विद्यार्जन विषय
इतिहास
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thumb|right|260px|बोधिसत्व पद्मपाणि, अजन्ता, भारत। इतिहास का प्रयोग विशेषतः दो अर्थों में किया जाता है।जैसे एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा भारतीय संस्कृति में इतिहास शब्द (इति + ह + आस ; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "ऐसा वस्तुत: हुआ है "। यूनान के लोग इतिहास के लिए Ιστορία (अंग्रेज़ी: history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्टरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। भारतीय इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। भारतीय संस्कृति में किसी भी अनुष्ठान से पहले जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते अमुक। बोलते हैं, इसका अर्थ क्या है? विज्ञान और अन्वेषण से पता चला है कि कोई 500 लाख साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप , एशिया से अलग एक पृथक महादीप था जो कालांतर में आकर एशिया से जुड़ गया । इसी कारण हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ जो दो महाद्वीप के टकराव से एक कृत्रिम पर्वत है। भारतीय कालगणना के हिसाब से 2023 में,कल्प के आरंभ से 197,29,49,123 वर्ष , सृष्टि के आरंभ से 195,58,85,123 वर्ष, कलियुग 5123 वर्ष और विक्रम संवत से 2079 वर्ष बीत चुके हैं । यह गणना भारतीय पंचाग से लिया गया है । भारत वर्ष का प्राचीन काल में एक सुनियोजित और क्रमानुसार इतिहास था जो सत्य घटनाओं पर आधारित था । इसे पुराण के नाम से जाना जाता है। विदेशी आक्रांताओं ने उन सारी पुस्तकों को जला दिया या नष्ट कर दिया जिसमे भारत का इतिहास दर्ज था । नालंदा विश्वविद्यालय, तक्षशीला विश्वविद्यालय में लूटपाट कर इस्लामिक लुटेरों ने मानव विकास की क्रमानुकुल इतिहास सहित कई ज्ञान विज्ञान की पुस्तकों को नष्ट कर दिया है । आज का इतिहास अंग्रेजों द्वारा रचित इतिहास है जो मानवता के विकास को क्रमानुकूल नही दिखाता। इसलिए आज के इतिहास शब्द का अर्थ है - परम्परा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889). The Century dictionary; an encyclopedic lexicon of the English language . New York: The Century Co. Page 2842 |language=अंग्रेज़ी इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है। आम तौर पर यह समझा जाता है कि इतिहास की परंपरा सूत व चारण परंपरा से विकसित हुई, जिनके स्तुति काव्य स्वाभाविक रूप से राजाओं और उनके पूर्वजों के वीरता के कृत्यों, विजय और धार्मिकता की कहानियों पर केंद्रित था। इस तरह के पाठ और, बाद में, शिलालेख और साहित्यिक रचनाएँ, सम्राट की महानता और अक्सर उसके दिव्य-वंश की पुष्टि करने का काम करते। यह है एक शैली है जिसमें अतिशयोक्ति को किसी भी प्रकार से दोष नहीं माना जाता। परिणामस्वरूप, रघुवंश और भरत वंश के राजवंशों की यशकाव्य की यह रचनाएं हैं एकत्र होकर अंततः रामायण और महाभारत के स्मारकीय इतिहास-काव्यों में विकसित हुईं। इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दुःसाध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्त्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है। इतिहास का आरम्भ लिखित इतिहास का आरम्भ पद्य अथवा गद्य में वीरगाथा के रूप में हुआ। फिर वीरों अथवा विशिष्ट घटनाओं के संबंध में अनुश्रुति अथवा लेखक की पूछताछ से गद्य में रचना प्रारंभ हुई। इस प्रकार के लेख खपड़ों, पत्थरों, छालों और कपड़ों पर मिलते हैं। कागज का आविष्कार होने से लेखन और पठन पाठन का मार्ग प्रशस्त हो गया। लिखित सामग्री को अन्य प्रकार की सामग्री-जैसे खंडहर, शव, बर्तन, धातु, अन्न, सिक्के, खिलौने तथा यातायात के साधनों आदि के सहयोग द्वारा ऐतिहासिक ज्ञान का क्षेत्र और कोष बढ़ता चला गया। उस सब सामग्री की जाँच पड़ताल की वैज्ञानिक कला का भी विकास होता गया। प्राप्त ज्ञान को सजीव भाषा में गुंफित करने की कला ने आश्चर्यजनक उन्नति कर ली है, फिर भी अतीत के दर्शन के लिए कल्पना कुछ तो अभ्यास, किंतु अधिकतर व्यक्ति की नैसर्गिक क्षमता एवं सूक्ष्म तथा क्रांत दृष्टि पर आश्रित है। यद्यपि इतिहास का आरंभ एशिया में हुआ, तथापि उसका विकास यूरोप में विशेष रूप से हुआ। एशिया में चीनियों, किंतु उनसे भी अधिक इस्लामी लोगों को, जिनको कालक्रम का महत्त्व अच्छे प्रकार ज्ञात था, इतिहासरचना का विशेष श्रेय है। मुसलमानों के आने के पहले हिंदुओं की इतिहास संबंध में अपनी अनोखी धारणा थी। कालक्रम के बदले वे सांस्कृतिक और धार्मिक विकास या ह्रास के युगों के कुछ मूल तत्वों को एकत्र कर और विचारों तथा भावनाओं के प्रवर्तनों और प्रतीकों का सांकेतिक वर्णन करके संतुष्ट हो जाते थे। उनका इतिहास प्राय: काव्यरूप में मिलता है जिसमें सब कच्ची-पक्की सामग्री मिली जुली, उलझी और गुथी पड़ी है। उसके सुलझाने के कुछ-कुछ प्रयत्न होने लगे हैं, किंतु कालक्रम के अभाव में भयंकर कठिनाइयाँ पड़ रही हैं। वर्तमान सदी में यूरोपीय शिक्षा में दीक्षित हो जाने से ऐतिहासिक अनुसंधान की हिंदुस्तान में उत्तरोत्तर उन्नति होने लगी है। इतिहास की एक नहीं, सहस्रों धाराएँ हैं। स्थूल रूप से उनका प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में अधिक हुआ है। इसके सिवा अब व्यक्तियों में सीमित न रखकर जनता तथा उसके संबंध का ज्ञान प्राप्त करने की ओर अधिक रुचि हो गई है। भारत में इतिहास के स्रोत हैं: ऋग्वेद और अन्‍य वेद जैसे यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ग्रंथ, इतिहास पुराणस्मृति ग्रंथ आदि। इन्हें ऐतिहासिक सामग्री कहते हैं। पश्चिम में हिरोडोटस को प्रथम इतिहासकार मानते हैं। इतिहास का क्षेत्र इतिहास का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। प्रत्येक व्यक्ति, विषय, अन्वेषण आंदोलन आदि का इतिहास होता है, यहाँ तक कि इतिहास का भी इतिहास होता है। अतएव यह कहा जा सकता है कि दार्शनिक, वैज्ञानिक आदि अन्य दृष्टिकोणों की तरह ऐतिहासिक दृष्टिकोण की अपनी निजी विशेषता है। वह एक विचारशैली है जो प्रारंभिक पुरातन काल से और विशेषत: 17वीं सदी से सभ्य संसार में व्याप्त हो गई। 19वीं सदी से प्राय: प्रत्येक विषय के अध्ययन के लिए उसके विकास का ऐतिहासिक ज्ञान आवश्यक समझा जाता है। इतिहास के अध्ययन से मानव समाज के विविध क्षेत्रों का जो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है उससे मनुष्य की परिस्थितियों को आँकने, व्यक्तियों के भावों और विचारों तथा जनसमूह की प्रवृत्तियों आदि को समझने के लिए बड़ी सुविधा और अच्छी खासी कसौटी मिल जाती है। इतिहास प्राय: नगरों, प्रांतों तथा विशेष देशों के या युगों के लिखे जाते हैं। अब इस ओर चेष्ठा और प्रयत्न होने लगे हैं कि यदि संभव हो तो सभ्य संसार ही नहीं, वरन् मनुष्य मात्र के सामूहिक विकास या विनाश का अध्ययन भूगोल के समान किया जाए। इस ध्येय की सिद्ध यद्यपि असंभव नहीं, तथापि बड़ी दुस्तर है। इसके प्राथमिक मानचित्र से यह अनुमान होता है कि विश्व के संतोषजनक इतिहास के लिए बहुत लंबे समय, प्रयास और संगठन की आवश्यकता है। कुछ विद्वानों का मत है कि यदि विश्वइतिहास की तथा मानुषिक प्रवृत्तियों के अध्ययन से कुछ सर्वव्यापी सिद्धांत निकालने की चेष्टा की गई तो इतिहास समाजशास्त्र में बदलकर अपनी वैयक्तिक विशेषता खो बैठेगा। यह भय इतना चिंताजनक नहीं है, क्योंकि समाजशास्त्र के लिए इतिहास की उतनी ही आवश्यकता है जितनी इतिहास को समाजशासत्र की। वस्तुत: इतिहास पर ही समाजशास्त्र की रचना संभव है। सैन्य इतिहास सैन्य इतिहास युद्ध, रणनीतियों, युद्ध, हथियार और युद्ध के मनोविज्ञान से संबंधित है। 1970 के दशक के बाद से "नए सैन्य इतिहास" जो जनशक्ति से अधिक सैनिकों के साथ, एवं रणनीति से अधिक मनोविज्ञान के साथ और समाज और संस्कृति पर युद्ध के व्यापक प्रभाव से संबंधित है। धर्म का इतिहास धर्म का इतिहास सदियों से धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक इतिहासकारों दोनों के लिए एक मुख्य विषय रहा है, और सेमिनार और अकादमी में पढ़ाया जा रहा है। अग्रणी पत्रिकाओं में चर्च इतिहास, कैथोलिक हिस्टोरिकल रिव्यू, और धर्म का इतिहास शामिल है। विषय व्यापक रूप से राजनीतिक और सांस्कृतिक और कलात्मक आयामों से लेकर धर्मशास्त्र और मरणोत्तर गित तक फैला हुआ है। यह विषय दुनिया के सभी क्षेत्रों और जगहों में धर्मों का अध्ययन करता है जहां मनुष्य रहते हैं।उदाहरण के लिये देखें सामाजिक इतिहास सामाजिक इतिहास, जिसे कभी-कभी "नए सामाजिक इतिहास" कहा जाता है, एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सामान्य लोगों के इतिहास और जीवन के साथ सामना करने के लिए उनकी रणनीतियाँ शामिल हैं। अपने "स्वर्ण युग" 1960 और 1970 के दशक में यह विद्वानों के बीच एक प्रमुख विषय था, और अभी भी इतिहास के विभागों में इसकी अच्छी पैठ है। 1975 से 1995 तक दो दशकों में, अमेरिकी इतिहास के प्रोफेसरों का अनुपात सामाजिक इतिहास के साथ-साथ 31% से बढ़कर 41% हो गया, जबकि राजनीतिक इतिहासकारों का अनुपात 40% से 30% तक गिर गया। सांस्कृतिक इतिहास 1980 और 1990 के दशक में सांस्कृतिक इतिहास ने सामाजिक इतिहास कि जगह ले ली। यह आम तौर पर नृविज्ञान और इतिहास के दृष्टिकोण को भाषा, लोकप्रिय सांस्कृतिक परंपराओं और ऐतिहासिक अनुभवों की सांस्कृतिक व्याख्याओं को देखने के लिए जोड़ती है। यह पिछले ज्ञान, रीति-रिवाजों और लोगों के समूह के कला के अभिलेखों और वर्णनात्मक विवरणों की जांच करता है। लोगों ने कैसे अतीत की अपनी स्मृति का निर्माण किया है, यह एक प्रमुख विषय है। सांस्कृतिक इतिहास में समाज में कला का अध्ययन भी शामिल है, साथ ही छवियों और मानव दृश्य उत्पादन (प्रतिरूप) का अध्ययन भी है। राजनयिक इतिहास राजनयिक इतिहास राष्ट्रों के बीच संबंधों पर केंद्रित है, मुख्यतः कूटनीति और युद्ध के कारणों के बारे में। हाल ही में यह शांति और मानव अधिकारों के कारणों को देखता है। यह आम तौर पर विदेशी कार्यालय के दृष्टिकोण और लंबी अवधि के रणनीतिक मूल्यों को प्रस्तुत करता है, जैसा कि निरंतरता और इतिहास में परिवर्तन की प्रेरणा शक्ति है। इस प्रकार के राजनीतिक इतिहास समय के साथ देशों या राज्य सीमाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन का अध्ययन है। इतिहासकार म्यूरीयल चेम्बरलेन ने लिखा है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद, "राजनयिक इतिहास ने ऐतिहासिक जांच के प्रमुख के रूप में संवैधानिक इतिहास का स्थान ले लिया, जोकि कभी सबसे ऐतिहासिक, सबसे सटीक और ऐतिहासिक अध्ययनों में सबसे परिष्कृत था"।मुरीएल ई चेम्बरलेन, Pax Britannica'? ब्रिटिश विदेश नीति 1789–1914 (1988) p 1 उन्होंने कहा कि 1945 के बाद, प्रवृत्ति उलट गई है, अब सामाजिक इतिहास ने इसकी जगह ले ली है। आर्थिक इतिहास यद्यपि 19वीं सदी के उत्तरार्ध से ही आर्थिक इतिहास अच्छी तरह से स्थापित है, हाल के वर्षों में शैक्षिक अध्ययन पारंपरिक इतिहास विभागों से स्थानांतरित हो कर अधिक से अधिक अर्थशास्त्र विभागों की तरफ चला गया है। व्यावसायिक इतिहास व्यक्तिगत व्यापार संगठनों, व्यावसायिक तरीकों, सरकारी विनियमन, श्रमिक संबंधों और समाज पर प्रभाव के इतिहास से संबंधित है। इसमें व्यक्तिगत कंपनियों, अधिकारियों और उद्यमियों की जीवनी भी शामिल है यह आर्थिक इतिहास से संबंधित है; व्यावसायिक इतिहास को अक्सर बिजनेस स्कूलों में पढ़ाया जाता है पर्यावरण इतिहास पर्यावरण का इतिहास एक नया क्षेत्र है जो 1980 के दशक में पर्यावरण के इतिहास विशेष रूप से लंबे समय में और उस पर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव को देखने के लिए उभरा। विश्व इतिहास विश्व इतिहास पिछले 3000 वर्षों के दौरान प्रमुख सभ्यताओं का अध्ययन है। विश्व इतिहास मुख्य रूप से एक अनुसंधान क्षेत्र की बजाय एक शिक्षण क्षेत्र है। इसे 1980 के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और अन्य देशों में लोकप्रियता हासिल हुई थी, जिससे कि छात्रों को बढ़ते हुए वैश्वीकरण के परिवेश में दुनिया के लिए व्यापक ज्ञान की आवश्यकता होगी। thumb|200px|जूलियस औरेलिउस जेनोबियस अभिलेख, पलमायरा इतिहासकार इतिहासकार पिछली घटनाओं की जानकारी एकत्र करते हैं, इकट्ठा करते हैं, व्यवस्थित करते हैं और प्रस्तुत करते हैं। वे इस जानकारी को पुरातात्विक साक्ष्य के माध्यम से खोजते हैं, जो भूतकाल में प्राचीन स्रोतों जैसे पाण्डुलिपि, शिलालेख आदि से लिये गये और लिखे गए होते हैं। जैसे जगह के नाम, उनकी विचारधारा आवास, व्यवस्था, सामाजिक संस्था, सामाजिक उत्थान और भाषा आदि। इतिहासकारों की सूची में, इतिहासकारों को उस ऐतिहासिक काल के क्रम में समूहीकृत किया जा सकता है, जिसमें वे लिख रहे थे, जो जरूरी नहीं कि वह अवधि, जिस अवधि में वे विशेषीकृत थे या निपुण थे क्रॉनिकल्स और एनलिस्ट, हालांकि वे सही अर्थों में इतिहासकार नहीं हैं, उन्हें भी अक्सर शामिल किया जाता है। छद्मइतिहास छद्मइतिहास उन लेखों/रचनाओं के लिये प्रयुक्त किया जाता है जिनकी सामग्री की प्रकृति 'इतिहास जैसी' होती है किन्तु वे इतिहास-लेखन की मानक विधियों से मेल नहीं खाती। इसलिये उनके द्वारा दिये गये निष्कर्ष भ्रामक एवं अविश्वसनीय बन जाते हैं। प्राय: राष्ट्रीय, राजनैतिक, सैनिक, एवं धार्मिक विषयों के सम्बन्ध में नये एवं विवादित और काल्पनिक तथ्यों पर आधारित इतिहास को छद्मइतिहास की श्रेणी में रखा जाता है। प्रागैतिहास मानव सभ्यता का इतिहास वस्तुत: मानव के विकास का इतिहास है, पर यह प्रश्न सदा विवादग्रस्त रहा है कि आदि मनव और उसकी सभ्यता का विकास कब और कहाँ हुआ। इतिहास के इसी अध्ययन को प्रागैतिहास कहते हैं। यानि इतिहास से पूर्व का इतिहास। प्रागैतिहासिक काल की मानव सभ्यता को ४ भागों में बाँटा गया है। आदिम पाषाण काल पूर्व पाषाण काल उत्तर पाषाण काल धातु काल प्राचीनतम सभ्यताएँ असभ्यता से अर्धसभ्यता, तथा अर्धसभ्यता से सभ्यता के प्रथम सोपान तक हज़ारों सालों की दूरी तय की गई होगी। लेकिन विश्व में किस समय किस तरह से ये सभ्यताएँ विकसित हुईं इसकी कोई जानकारी आज नहीं मिलती है। हाँ इतना अवश्य मालूम हो सका है कि प्राचीन विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों की घाटियों में ही उदित हुईं और फली फूलीं। दजला-फ़रात की घाटी में सुमेर सभ्यता, बाबिली सभ्यता, तथा असीरियन सभ्यता, नील की घाटी में प्राचीन मिस्र की सभ्यता तथा सिंधु की घाटी में सिंधु घाटी सभ्यता का विकास हुआ। सन्दर्भ इन्हें भी देखें इतिहास लेखन (हिस्टोग्राफी) ऐतिहासिक विधि भारत का इतिहास बाहरी कड़ियाँ इतिहास के इतिहास की भारतीय दृष्टि (हृदयनारायन दीक्षित) इतिहास दर्शन (गूगल पुस्तक ; लेखक - परमानन्द सिंह) इतिहास की जरूरत किसे है? (वेबदुनिया) History & Mathematics: Historical Dynamics and Development of Complex Societies. Moscow: KomKniga, 2006. ISBN 5-484-01002-0 जो इतिहास में नहीं है (गूगल पुस्तक ; लेखक - राकेश कुमार सिंह, भारतीय ज्ञानपीठ) इतिहास शब्द-संग्रह‎ (हिन्दी-विकिकोश) इतिहास परिभाषा कोश (हिन्दी-विकिकोश)
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मानस शास्त्र
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साइकोलोजी या मनोविज्ञान (प्राचीन यूनानी भाषा : Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",साइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health). मनोविज्ञानवेत्ता व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार में मानसिक कार्य की भूमिका को समझने का प्रयास करते हैं, जबकि इसके तहत आने वाले शरीर कार्यिकी (physiological) तथा तंत्रिका (neurological) प्रक्रियाओं पर भी कार्य करते हैं। मनोविज्ञान में अध्ययन और अनुप्रयोग के कई उपक्षेत्र भी शामिल हैं जैसे मानव विकास (human development), खेल (sports), स्वास्थ्य (health), उद्योग (industry), मीडिया (media) और कानून (law).मनोविज्ञान में प्राकृतिक विज्ञान (natural sciences), सामाजिक विज्ञान और मानविकी (humanities) के अनुसंधान भी शामिल हैं। हजककसक सोसकन्सकZ बस स्वU8E दीदी डॉ स9 स इतिहास thumb|अगस्टे रोडिन (Auguste Rodin) विचारक. दार्शनिक और वैज्ञानिक जड़ें दार्शनिक संदर्भ में मनोविज्ञान का अध्ययन मिस्र, ग्रीस (Greece), चीन और भारत की प्राचीन सभ्यताओं से सन्दर्भ रखता है। मनोविज्ञान ने मध्यकाल में अधिक नैदानिक (clinical)इब्राहिम बी सैयद पीएचडी, "इस्लामी चिकित्सा :इसके समय से १००० साल आगे, " इस्लामी मेडिकल एसोसिएशन का जर्नल (Journal of the Islamic Medical Association), २००२ (२), पी. २ -९ . और प्रयोगात्मक (experimental) दृष्टिकोण अपना लिया जब मुस्लिम मनोवैज्ञानिकों (Muslim psychologists) और चिकित्सकों (physicians) ने ऐसे उद्देश्यों के लिए मनोरोग अस्पताल (psychiatric hospital) बनाने शुरू कर दिए। इब्राहिम बी सैयद पीएचडी, "इस्लामी चिकित्सा :इसके समय से १००० साल आगे, " इस्लामी मेडिकल एसोसिएशन का जर्नल (Journal of the Islamic Medical Association), २००२ (२), पी. २-९ [७-८].प्राचीन मनोविज्ञान की प्रारंभिक प्रथाओं में लोबोटोमी (lobotomy) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं, जिसमें मस्तिष्क के उन विशेष उतकों को हटाया जाता है जो विशेष मानसिक समस्याओं का कारण होते हैं। लोबोटोमी का उपयोग (हालाँकि असामान्य रूप से) मिस्र, चीन और फारस तथा कई अन्य प्राचीन सभ्यताओं में चिकित्सा पद्धतियों में किया जाता था। १८०२ में, फ्रांसीसी मनोविज्ञानी पियरे कबानीज (Pierre Cabanis) ने अपने निबंध रेपर्ट्स ड्यू फिजिक एट ड्यू मोरल डी आई 'होम (biological psychology) के द्वारा जैव मनो विज्ञान को आगे बढ़ाने की कोशिश की (मानव के शारीरिक और नैतिक पहलुओं के बीच संबंधों पर). कबानीज ने जीव विज्ञान के पूर्व अध्ययन के प्रकाश में मस्तिष्क के बारे में व्याख्या की और तर्क दिया कि संवेदनशीलता (sensibility) और आत्मा (soul), तंत्रिका तंत्र (nervous system) के गुण हैं। हालाँकि मनोवैज्ञानिक प्रयोगों (experiment) का उपयोग अल्हाजन (Alhazen's) की प्रकाशिकी की पुस्तक (Book of Optics) से १०२१ में शुरू हुआ,उम्र खलीफा (गर्मियाँ १९९९)"मनो भौतिकी और प्रायोगिक मनोविज्ञान का संस्थापक कौन है ?", इस्लामी सामाजिक विज्ञान की अमेरिकी जर्नल १६ (२).ब्राडली सटीफंस (२००६). इब्न अल हायथम: पहले वैज्ञानिक, अध्याय 5.मॉर्गन रेनॉल्ड्स प्रकाशन.आईएसबीएन १५९९३५०२४६ . फिर भी एक स्वतंत्र प्रायोगिक क्षेत्र के रूप में मनोविज्ञान का अध्ययन १८७९ में शुरू हुआ, जब विल्हेम वुन्द्त (Wilhelm Wundt) ने जर्मनी में लीपजीज विश्वविद्यालय (Leipzig University) में विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक पहली प्रयोगशाला बनायी, जिसके लिए वुन्द्त "मनोविज्ञान के जनक " के रूप में जाने जाते हैं। इसी लिए १८७९ को कभी कभी मनोविज्ञान की "जन्म तिथि" कहा जाता है। अमेरिकी दार्शनिक विलियम जेम्स (William James) ने १८९० में अपनी मौलिक पुस्तक मनोविज्ञान के सिद्धांत (Principles of Psychology)मनोविज्ञान के सिद्धांत (१८९०), जॉर्ज ए मिलर, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, के परिचय के साथ, १९८३ पेपरबेक, आई एस बी एन ० -६७४ -७०६२५ -० (संयुक्त संस्करण, १३२८ पेज) में कई ऐसे प्रश्नों की नीव रखी जिन पर आने वाले कई वर्षों में मनो वैज्ञानिकों (psychologist) ने अपना ध्यान केन्द्रित किया। इस क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण प्रारंभिक योगदानकर्ता हैं हरमन एब्बिनघस (Hermann Ebbinghaus) (१८५०-१९०९), जो बर्लिन विश्वविद्यालय (memory) में स्मृति (University of Berlin) पर अध्ययन करने में अग्रणी रहे हैं; और रुसी मनो विज्ञानी (physiologist) इवान पावलोव (Ivan Pavlov) (१८४९-१९३६) जिन्होंने सीखने की प्रक्रिया (learning) की खोज की जो आज क्लासिकल कंडिशनिंग (classical conditioning) के नाम से जाना जाता है। मनोविश्लेषण १८९० से लेकर १९३९ में उनकी मृत्यु तक, ऑस्ट्रिया के चिकत्सक सिगमंड फ्रुड ने मनश्चिकित्सा (psychotherapy) की एक विधि का विकास किया जिसे मनोविश्लेषण (psychoanalysis) के नाम से जाना जाता है। मस्तिष्क के बारे में फ्राइड की समझ बड़े पैमाने पर व्यख्यानात्मक विधियों, आत्मनिरीक्षण (introspection) और नैदानिक टिप्पणियों पर आधारित थी और इसने विशेष रूप से अचेत संघर्ष, मानसिक तनाव और मनो रोग विज्ञान (psychopathology) पर ध्यान केन्द्रित किया। फ्रुड के सिद्धांत बहुत ही लोकप्रिय हो गए क्योंकि इन्होने कई विषयों जैसे कामुकता (sexuality), दमन (repression) और अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) को मनो वैज्ञानिक विकास के सामान्य पहलुओं के रूप में नियंत्रित किया। इन्हें उस समय बड़े पैमाने पर पाबन्द (taboo) विषय माना जाता था और फ्रुड ने सभी समाज में इस पर खुले तौर पर चर्चा करने के लिए इनके लिए एक उत्प्रेरक उपलब्ध कराया. हालाँकि फ्रुड को संभवतः उसके मस्तिष्क के त्रिपक्षीय मॉडल के लिए जाना जाता था, जिसमें आई डी (id), अहंकार (ego) और अति अंहकार (superego) और इडिपस जटिल (Oedipus complex) के बारे में उनके सिद्धांत शामिल हैं, उनकी सबसे स्थायी विरासत शायद उनके सिद्धांत नहीं हैं बल्कि उनके नैदानिक नवाचार हैं, जैसे मुक्त संघ (free association) की विधि और क्लिनिकल इनट्रस्ट इन ड्रीम्स. फ्रुड ने एक स्विस मनोवैज्ञानिक कार्ल जंग (Carl Jung) पर गहरा प्रभाव डाला, जिसका विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (analytical psychology) गहरे मनो विज्ञान (depth psychology) के लिए एक विकल्पी विधि बन गया। मध्य बीसवीं सदी के अन्य प्रसिद्द मनो विश्लेषक विचारक जिसमें सिगमंड फ्रुड की बेटी मनोविश्लेषक ऐना फ्रुड (Anna Freud); जर्मन अमेरिकी मनो विज्ञानी एरिक एरिक्सन (Erik Erickson), ऑस्ट्रियाई-ब्रिटिश मनोविश्लेषक मेलानीक्लेन (Melanie Klein), अंग्रेजी मनोवैज्ञानिक और चिकित्सकडोनाल्ड विन्नीकोट (D. W. Winnicott), जर्मन मनोचिकित्सक करेन होर्नी (Karen Horney), जर्मन में जन्मे शामिल मनोवैज्ञानिक और दार्शनिकएरिच फ्रॉम (Erich Fromm) और अंग्रेजी मनोचिकित्सक जॉन बोल्बी (John Bowlby) शामिल हैं। समकालीन मनोविश्लेषण में विचारों के कई विद्यालय शामिल हैं इनके विषय हैं अहंकार मनोविज्ञान (ego psychology), उद्देश्य संबंधों (object relations), पारस्परिक (interpersonal), लेकेनियन (Lacanian) और संबंधपरक मनोविश्लेषण (relational psychoanalysis) जंग के सिद्धांतों के संशोधन ने मनोवैज्ञानिक विचारों के आद्य रूप (archetypal) तथा प्रक्रिया उन्मुख (process-oriented) स्कूलों का नेतृत्व किया। ऑस्ट्रियाई-ब्रिटिश दार्शनिक कार्ल पोप्पर (Karl Popper) ने तर्क दिया कि फ्रुद के मनो विश्लेषक सिद्धांत जांच के अयोग्य (untestable) रूप में पेश किये गए।कार्ल पोपर, कंजेकटर्स एंड रेफ़ुतेशन्स, लन्दन: रुल्तेज और कागन पॉल, १९६३, पी पी ३३-३९; थियोडोर शिक से, संस्करण, विज्ञान के दर्शन में पठान, माउंटेन व्यू, सीए: मेफ़ील्ड प्रकाशन कंपनी, २०००, पीपी ९ -१३ . अमेरिकी विश्विद्यालय में मनोविज्ञान के विभाग आज वैज्ञानिक उन्मुख (scientifically oriented) हैं और फ्रुड का सिद्धांत हाशिये पर रख दिया गया है, इसे एक हाल ही के ऐ पी ऐ (APA) अध्ययन के अनुसार एक "डेसीकेटेड और मृत" ऐतिहासिक तथ्य मन जा रहा है।२००८ का अध्ययन अमेरिकी मनोविश्लेषण संघ (American Psychoanalytic Association) के द्वारा जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स में रिपोर्ट किया गया , " फ्रुड ने मनोविज्ञान विभाग को छोड़ कर विश्विद्यालयों में व्यापक रूप से शिक्षण का कार्य किया " पेट्रिसिया कोहेन के द्वारा २५ नवम्बर २००७. "पश्चिमोत्तर विश्वविद्यालय (Northwestern University) में मनो विज्ञान विभाग के चेयर मेन डॉ॰ ऐलिस] इग्ली ने कहा.......कि हालाँकि मनो विज्ञान ने वैज्ञानिक रूप से उनके दृष्टिकोण की प्रमाणिकता की जांच पर बहुत जोर दिया है, फिर भी मनो विश्लेषकों ने समान प्रमाणों पर आधारित आधार भूमि का विकास नहीं किया है। इसके परिणाम स्वरुप, अधिकांश मनो वैज्ञानिक विभाग मनोविश्लेषण पर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते हैं। हाल ही में, तथापि, दक्षिण अफ्रीकी तंत्रिका विज्ञानी मार्क सोल्म्स (Mark Solms) और तंत्रिका मनो विश्लेषण (neuro-psychoanalysis) के विकसित होते हुए क्षेत्र में अन्य अनुसन्धानकर्ताओं का तर्क है कि फ्रुड के सिद्धांत, फ्रुड की अवधारणा से सम्बंधित मस्तिष्क की संरंचनाओं की और इशारा करते हैं, जैसे लिबिडो (libido), ड्राइव्स (drives), अचेत (unconscious) और दमन (repression).ऐसे तंत्रिका-मनोविश्लेषक अनुसंधानकर्ताओं में शामिल हैं ओलिवर सेक्स (Oliver Sacks)-सेक्स, ओ.(१९८४), अ लेग टू स्टेंड ओन, न्यू यार्क :शिखर सम्मेलन किताबें / साइमन और शुस्टर. मार्क सोल्म्स (Mark Solms)-kaplan सोल्म्स, के और सोल्म्स, एम.(२०००).तंत्रिका मनो विश्लेषण में नैदानिक अध्ययन: एक गहरी तंत्रिका मनो विज्ञान का परिचय.लंदन: कार्नक पुस्तकें ; सोल्म्स, एम और टर्नबुल, ओ (२००२), दी ब्रेन एंड दी इनर वर्ल्ड: व्यक्तिपरक अनुभव के तंत्रिका विज्ञान के लिए एक परिचय. न्यू यॉर्क: अन्य प्रेस.जाक पंकसेप (Jaak Panksepp), प्रभावी तंत्रिका विज्ञान: मानव और जंतुओं की भावनाओं की नीव, न्यू यार्क और ओक्स फोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस डगलस वाट (Douglas Watt).एंटोनियो दमासियो (António Damásio), डेसकार्टेस 'त्रुटि: भावनाएं, कारन और मानव मस्तिष्क (Descartes' Error: Emotion, Reason, and the Human Brain), १९९४; सोमेटिक मारकर परिकल्पना और प्रीफ्रोंटल कोरटेक्स के संभावित कार्य , १९९६ क्या होता है का अहसास सचेतता के निर्माण में शरीर और भावनाएं , १९९९; स्पिनोजा की खोज: ख़ुशी दुःख और मस्तिष्क का अहसास , २००३. एरिक कंडेल (Eric Kandel)जोसेफ ई ली डॉक्स (Joseph E. LeDoux), दी इमोशनल ब्रेन: भावनात्मक जीवन का रहस्यमयी आधार १९९६, साइमन और शुस्टर (Simon & Schuster), १९९८ टचस्टोन संस्करण आई एस बी एन ० -६८४ -८३६५९ -९ व्यवहारिकता व्यावहारिकता का आंशिक विकास प्रयोगशाला पर आधारित जंतु प्रयोगों की लोकप्रियता के कारण हुआ और आंशिक विकास फ्रुड की मनो गतिकी (psychodynamic) की प्रतिक्रिया में हुआ, जिसका मूल रूप से (empirically) परिक्षण करना मुश्किल था क्योंकि, अन्य कारणों के बीच, यह मामलों के अध्ययन और नैदानिक अनुभवों पर भरोसा करने की प्रवृति रखता था और बड़े पैमाने पर अन्तर-मनो घटना से क्रिया करता था, जिसकी मात्रात्मक गणना करना या उसे घटनात्मक रूप (define operationally) से परिभाषित करना मुश्किल काम था। इसके अलावा, प्रारंभी मनोविज्ञानी विल्हेम वुन्द्त और विलियम जेम्स के विपरीत, जिन्होंने आत्मनिरीक्षण (introspection) के माध्यम से मस्तिष्क का अध्ययन किया, व्यवहार विज्ञानियों का तर्क था कि मस्तिष्क के अवयव वैज्ञानिक जाँच के लिए खुले नहीं थे और वैज्ञानिक मनोविज्ञान को केवल प्रेक्षणीय व्यवहार से सन्दर्भ रखना चाहिए। आंतरिक प्रधिनिधित्व या मस्तिष्क के बारे में कोई विचार नहीं किया गया। व्यावहारिकता की शुरुआत २० वीं सदी में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन बी वाटसन (John B. Watson) के द्वारा की गयी, इसका विस्तार अमेरिकियों एडवर्ड थोर्नडीके (Edward Thorndike), क्लार्क एल हुल (Clark L. Hull), एडवर्ड सी. टोलमन (Edward C. Tolman) और बाद में बी एफ स्किनर (B.F. Skinner) के द्वारा किया गया। व्यावहारिकता अन्य दृष्टिकोणों से कई प्रकार से विभिन्न है। व्यवहार विज्ञानी व्यवहार-पर्यावरण संबंधों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और खुले और निजी व्यवहार को एक जीव के कार्य के रूप में विश्लेषित करते हैं, जो अपने वातावरण के साथ अंतर क्रिया करता है।स्किनर, बी एफ (१९७४) .व्यवहारिकता के बारे में.न्यूयार्क: रैंडम हाउस व्यवहार विज्ञानी, निजी घटनाओं के अध्ययन को अस्वीकृत नहीं करते हैं, (उदाहरण स्वप्न), लेकिन इस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देते हैं कि जीव के भीतर एक स्वायत्त संस्था खुले (उदाहरण चलना और बोलना) और निजी व्यवहार (उदाहरण सपने देखना और कल्पना करना) का कारण है।"मस्तिष्क" और "सचेतता" जैसी अव्धार्नाओं को व्यवहार विज्ञानियों के द्वारा प्रयुक्त नहीं किया जाता है, क्योंकि ऐसे शब्द वास्तविक मनो वैज्ञानिक घटनाओं का वर्णन नहीं करते हैं, (जैसे कि कल्पना) लेकिन ये जीव में कहीं पर छुपे हुए स्पष्टीकारक संस्थाओं के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं। इसके विपरीत, व्यावहारिकता निजी घटनाओं को व्यवहार मानता है और उन्हें खुले व्यवहार के तरीके से ही विश्लेषित करता है। व्यवहार का उपयोग जीव की ठोस घटनाओं, खुली या निजी के लिए किया जाता है। अमेरिकी भाषाविद् नोअम चोमस्की के भाषा अधिग्रहण (language acquisition) के व्यावहारिक मोडल की आलोचना को कई लोगों के द्वारा व्यावहारिकता की सामान्य प्रसिद्धि में कमी में एक मुख्य बिंदु माना जाता है। लेकिन स्किनर की व्यावहारिकता शायद आंशिक रूप से अभी ख़त्म नहीं हुई है, क्योंकि इसने सफल प्रायोगिक अनुप्रयोगों का विकास किया है। मनोविज्ञान के एक व्यापक माडल के रूप में व्यावहारिकता के आरोहण ने, हालाँकि, अगले प्रभावी उदाहरण, संज्ञानात्मक दृष्टिकोण को रास्ता दिया है। मानवता और अस्तित्ववाद मानवता मनोविज्ञान (Humanistic psychology) का विकास १९५० में, व्यावहारिकता और मनो विश्लेषण दोनों की प्रतिक्रिया में हुआ। घटना विज्ञान (phenomenology), अंतर विषयता (intersubjectivity) और पहले व्यक्ति की श्रेणी का उपयोग करते हुए, मानवता दृष्टिकोण, पूरे व्यक्ति की झलक देता है-नकि केवल व्यक्तित्व या संज्ञानात्मक कार्य के कुछ खंडों की झलक.रोवान, जॉन.(२००१). साधारण आनंद: मानवतावादी मनोविज्ञान का द्वंद्ववाद.लंदन, ब्रिटेन: ब्रुन्नर-रुल्टेज आईएसबीएन ०४१५२३६३३९. मानवतावाद अद्वितीय मानव मुद्दों और जीवन के मूल मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करता है, जैसे अपनी पहचान, मृत्यु, अकेलापन, स्वतंत्रता और अर्थ.ऐसे कई कारक हैं जो मानवीय दृष्टिकोण को मनो विज्ञान के अन्य दृष्टिकोणों से विभेदित करते हैं। इनमें शामिल हैं विषयात्मक अर्थ पर जोर, नियतत्ववाद की अस्वीकृति और रोगविज्ञान के बजाय सकारात्मक विकास के लिए सन्दर्भ.विचारों के इस स्कूल के पीछे कुछ कुछ संस्थापक सिद्धांत वादी अमेरिकी मनो विज्ञानी थे अब्राहम मसलो (Abraham Maslow), जिन्होंने मानव आवश्यकताओं का पदानुक्रम (hierarchy of human needs) बनाया और कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) जिन्होंने ग्राहक- केन्द्रित चिकित्सा (client-centered therapy) का निर्माण और विकास किया; और जर्मन-अमेरिकी मनो चिकित्सक फ्रिट्ज पर्ल्स (Fritz Perls) जिन्होंने गेसटाल्ट चिकित्सा (Gestalt therapy) के निर्माण और विकास में योगदान दिया। यह इतना प्रभावी बन गया की मनोविज्ञान, व्यावहारिकता और मनोविश्लेषण में "तीसरा बल" कहा जाने लगा। बुगेंटल, जे.(१९६४).मनोविज्ञान में तीसरा बल.मानवता मनोविज्ञान की जर्नल, ४ (१),१९-२५. जर्मन दार्शनिक मार्टिन हिदेगर (Martin Heidegger) और डैनीश दार्शनिकसोरेन कीरकेगार्ड (Søren Kierkegaard) के कार्य से प्रभावित होकर मनोविश्लेषक दृष्टि से प्रशिक्षित अमेरिकी मनो वैज्ञानिक रोलो मे (Rollo May) ने १९५० और १९६० के बीच मनोविज्ञान की एक अस्तित्व (existential) प्रजाति का विकास किया। अस्तित्व मनोवैज्ञानिकों ने तर्क दिया की लोगों को अपनी मरण शीलता को स्वीकार करना चाहिए। और ऐसा करने में लोगों को यह स्वीकार करना चाहिए कि वे मुक्त हैं; वे मुक्त इच्छा रखते हैं, वे उम्मीदें करने के लिए स्वतंत्र हैं और अपने जीवन के दौरान उनके अपने अर्थ पूर्ण (meaningful) पथ की उपेक्षा कर सकते हैं। में का कि अर्थ निर्माण करने वाली प्रक्रिया का एक मुख्य तत्व, है, मिथक (myth) की खोज, या कथात्मक प्रतिरूप जिनमें कोई व्यक्ति फिट हो सकता है। अस्तित्व के दृष्टिकोण से, न केवल मरण शीलता की स्वीकृति से उत्पन्न अर्थ के लिए प्रश्न किये जाते हैं बल्कि अर्थ की प्राप्ति मृत्यु की सम्भावना को ढक सकती है। ऑस्ट्रिया के एक अस्तित्व मनोचिकित्सक और पूर्ण आहुति उत्तरजीवी विक्टर फ्रेंकल (Viktor Frankl) ने देखा, "हम जो एकाग्रता शिविरों (concentration camps) में रहते थे, उन व्यक्तियों को याद रख सकते हैं जो दूसरों को आराम देते हुए झोपडियों में होकर जाते हैं, अपना रोटी का आखिरी टुकडा भी दूसरों को दे देते हैं। ये संख्या में बहुत कम हो सकते हैं, लेकिन वे इस बात का पर्याप्त प्रमाण देते हैं कि, एक व्यक्ति से सब कुछ वापिस लिया जा सकता है, लेकिन एक चीज: मानव की आखिरी स्वतंत्रता; परिस्थितियों के किसी भी दिए गए समुच्चय में किसी के रवैये का चयन, किसी के अपने रास्ते का चयन. मे ने अस्तित्व चिकित्सा (existential therapy) के विकास में अग्रणी होने में सहायता की और फ्रेंकल ने इसकी कई किस्मों का विकास किया जो लोगो थेरेपी (logotherapy) कहलाती हैं। मे और फ्रेंकल के अलावा, स्विस मनोविश्लेषक लुडविग बिन्सवेंगर (Ludwig Binswanger) और अमेरिकी मनो चिकित्सक जॉर्ज केली (George Kelly) को अस्तित्व स्कूल से सम्बंधित कहा जा सकता है। अस्तित्व और मानवता वादी दोनों प्रकार के मनो विज्ञानी तर्क देते हैं कि, लोगों को अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने के लिए भरपूर कोशिश करनी चाहिए, लेकिन केवल मानवतावादी मनोविज्ञानी विश्वास करते हैं कि, यह प्रयास सहज है। अस्तित्व मनोवैज्ञानिकों के लिए, यह प्रयास एक चिंताजनक मरणशीलता, स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व का कारण होता है। संज्ञानात्मकता व्यावहारिकता, २० वीं शताब्दी के पहले आधे भाग में अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रभावी प्रतिमान था। हालाँकि, मनोविज्ञान का आधुनिक क्षेत्र मुख्यतः संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (cognitive psychology) से प्रभावित रहा। नोअम चोमस्की ने १९५९ में बी॰ ऍफ़॰ स्किनर के मौखिक व्यवहार की समीक्षा की, जिसने उस समय प्रभावी भाषा और व्यवहार के अध्ययन के व्यावहारिक दृष्टिकोण को चुनौती दी और मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक क्रांति (cognitive revolution) में योगदान दिया। चोमस्की 'उत्तेजना', 'प्रतिक्रिया' और ' सुदृढीकरण' के मनमाने विचारों के बारे में जटिलता से सोचते थे, ये विचार स्किनर ने प्रयोगशाला में जंतु प्रयोगों के द्वारा प्राप्त किये। चोमस्की का तर्क था कि स्किनर के विचार केवल जटिल मानव व्यवहार जैसे भाषा अधिग्रहण पर एक अस्पष्ट और सतही तरीके से लागू किये जा सकते हैं। चोमस्की ने इस बात पर जोर दिया कि अनुसंधान और विश्लेषण के दौरान, भाषा के अधिग्रहण में एक बच्चे के योगदान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और प्रस्तावित किया कि मानव भाषा के अधिग्रहण (acquire language) की प्राकृतिक क्षमता के साथ पैदा हुए हैं।चोमस्की, एन ऐ.(१९५९), स्किनर के मौखिक व्यवहार की एक समीक्षा मनो विज्ञानी अल्बर्ट बन्दुरा (Albert Bandura) से सम्बंधित अधिकंश कार्य, जिन्होंने सामाजिक शिक्षा सिद्धांत (social learning theory) की शुरुआत की और इसका अध्ययन किया, ने दर्शाया कि बच्चे अवलोकन अधिगम (observational learning) के माध्यम से अपने रोल मॉडल से उग्रता सीख सकते हैं, इसके दौरान उनके खुले व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आता और इसे उप आंतरिक प्रक्रिया माना जा सकता है।बन्दुरा, ऐ.(१९७३).आक्रामकता: एक सामाजिक अधिगम विश्लेषण.एंगलवुड क्लिफ्स, एन जे: प्रेन्टिस हॉल कंप्यूटर विज्ञान और कृत्रिम बुद्धि के विकास के साथ, मानव के द्वारा सूचना संसाधन (information processing) और मशीनों के द्वारा सूचना संसाधन के बीच समरूपता को चित्रित किया गया। यह, इस अनुमान के साथ संयोजित हो गया कि मानसिक अभिव्यक्ति उपस्थित होती है और ये मानसिक स्थितियाँ और क्रियाएँ, प्रयोगशाला में वैज्ञानिक प्रयोगों के द्वारा निष्कर्षित की जा सकती हैं। जिसने मस्तिष्क के एक लोकप्रिय मोडल के रूप में संज्ञानात्मक (cognitivism) को जन्म दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के से लेकर हथियारों की क्रिया के बारे में एक बेहतर समझ विकसित करने के लिए संज्ञानात्मक मनोविज्ञान अनुसंधान किया गया।एडमेन, यूजीन, गलानीज, जोर्ज, मेंटन, जेरेमी, वोजो, अरमांडो और बोनार, माइकल (२००२) ' सैन्य प्रशिक्षण में मानव pranalii का मूल्यांकन', मनोविज्ञान की ऑस्ट्रेलियन जर्नल, ५४ :३, १६८ -१७३ संज्ञानात्मक मनोविज्ञान अन्य मनोविज्ञानिक परिप्रेक्ष्यों से दो मुख्य तरीकों से अलग है। पहला, यह वैज्ञानिक विधि के उपयोग को स्वीकार करता है और प्रतीकों का उपयोग करने वाले दृष्टिकोण जैसे फ्रुद की मनो गतिकी के विपरीत सामान्यतः आत्मनिरीक्षण को खोज की एक विधि के रूप में अस्वीकृत करता है। दूसरा, यह स्पष्ट रूप से आंतरिक मानसिक स्थिति के अस्तित्व को स्वीकार करता है और -जैसे विश्वास, इच्छा और प्रेरणा और - जबकि व्यावहारिकता ऐसा नहीं करती है। हालाँकि, फ्रुड और गहरे मनोविज्ञानियों की तरह संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक दमन (repression) सहित अचेत प्रक्रिया में रूचि लेते हैं, लेकिन उन्हें प्रचालन-परिभाषित (operationally-defined) घटकों के शब्दों में स्पष्ट करना पसंद करते हैं, जैसे कि अचेतन प्रसंस्करण (subliminal processing) और अंतर्निहित स्मृति (implicit memory) जो प्रयोगात्मक जाँच के लिए उत्तरदायी होते हैं। फिर भी संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकों ने इन घटकों के अस्तित्व पर कई सवाल उठाये हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकन मनोवैज्ञानिक एलिजाबेथ लोफ्ट्स (Elizabeth Loftus) ने उन तरीकों के प्रदर्शन के लिए मूल विधियों का उपयोग किया है जिनमें प्रकट होने वाली यादों को दमन के उन्मूलन के बजाय छलरचना (fabrication) के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है। संज्ञानात्मक क्रांति में आगे बढ़ते हुए, कई दशकों के दौरान, हरमन एब्बिनघास स्मृति के प्रायोगिक अध्ययन में अग्रणी रहे हैं, वे तर्क देते हैं की उच्चतर मानसिक प्रक्रियाएं, दृश्य से छुपी हुई नहीं है, लेकिन इसके बजाय प्रयोगों का उपयोग करते हुए उनका अध्ययन किया जा सकता है।वोज्निअक, आर॰ एच॰(१९९९).स्मृति को परिचय: हरमन एब्बिनघास (१८८५ /१९१३).मनोविज्ञान के इतिहास में उत्कृष्टता मनोवैज्ञानिक गतिविधि और मस्तिष्क (brain) और तंत्रिका तंत्र (nervous system) के कार्यों के बीच की कड़ियों को समझा गया, ऐसा आंशिक रूप से कुछ लोगों के प्रायोगिक कार्य के कारण हुआ जैसे अंग्रेजी मनो वैज्ञानिक औचार्ल्स शेरिंगटन (Charles Sherrington) और कनाडा के मनो चिकत्सक डोनाल्ड ओल्डिंग हेब्ब (Donald Hebb) तथा आंशिक रूप से मस्तिष्क क्षति (brain injury) से युक्त लोगों के अध्ययन से हुआ। ये मस्तिष्क-शरीर (mind-body) कडियाँ संज्ञानात्मक तंत्रिका मनो विज्ञानियों (cognitive neuropsychologists) के द्वारा लम्बाई में स्पष्ट की गयीं। मस्तिष्क के कार्यों के मापन के लिए तकनीकों के विकास के साथ, तंत्रिका मनो विज्ञान (neuropsychology) और संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान (cognitive neuroscience) समकालीन मनोविज्ञान के तेजी से बढ़ते हुए सक्रिय क्षेत्र बन गए हैं। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान को अन्य विषयों के साथ शामिल किया गया है जैसे मन के दर्शन (philosophy of mind), कंप्यूटर विज्ञान (computer science) और संज्ञानात्मक विज्ञान (cognitive science) के अनुशासन के अधीन तंत्रिका विज्ञान (neuroscience)। विचारों का विद्यालय विचारों के कई स्कूलों का तर्क है कि एक मार्गदर्शन सिद्धांत के रूप में एक विशेष मॉडल का उपयोग किया जाता है, जिसके द्वारा सभी या अधिकांश मानव व्यवहार को स्पष्ट किया जा सकता है। इनकी लोकप्रियता समय के साथ बढती घटती रही है। कुछ मनो वैज्ञानिक (psychologist) अपने आप को विचारों के विशेष स्कूल से जोड़ते हैं जबकि अन्य स्कूलों को अस्वीकृत करते हैं, हालाँकि अधिकांशतः प्रत्येक को मस्तिष्क की समझ के लिए एक दृष्टिकोण मानते हैं और जरुरी रूप से परस्पर अनन्य सिद्धांत के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।तिनबर्जन के चार सवालों (Tinbergen's four questions) के आधार पर मनोवैज्ञानिक अनुसंधान के सभी क्षेत्रों के रूपरेखा सन्दर्भ स्थापित किये जा सकते हैं। (जिसमें एन्थ्रोपोलोजी अनुसंधान और मानविकी शामिल है) आधुनिक समय में, मनोविज्ञान ने सचेतता, व्यवहार और सामाजिक अंतर्क्रिया की समझ की दिशा में एक एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाया है। इस परिप्रेक्ष्य को सामान्यतः जैव मनो सामाजिक (biopsychosocial) दृष्टिकोण कहा जाता है। जैव मनो सामाजिक मॉडल का मूल सिद्धांत यह है कि कोई भी दिया गया सिद्धांत या मानसिक प्रक्रिया प्रभाव डालती है और गतिक रूप से अंतर सम्बंधित जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों को प्रभावित करती है। मनोवैज्ञानिक पहलू एक भूमिका से सन्दर्भ रखता है जो अनुभूति और भावना एक दी गयी मनोवैज्ञानिक घटना में निभाते हैं; उदाहरण के लिए मूड का प्रभाव या एक घटना के लिए एक व्यक्ति से उम्मीदें या विशवास।जैविक पहलू, मनोवैज्ञानिक घटना में जैविक कारकों की भूमिका से सबंध रखता है और -; उदाहरण के लिए जन्म के पूर्व के वातावरण का मस्तिष्क विकास और संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रभाव, या व्यक्तिगत स्वभाव पर जीनों का प्रभाव। सामाजिक, सांस्कृतिक पहलू उस भूमिका से सन्दर्भ रखता है जो सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण एकदी गयी मनोवैज्ञानिक घटना में निभाते हैं; उदाहरण के लिए एक व्यक्ति के लक्षणों में अभिभावकों या सहकर्मियों का प्रभाव। उपक्षेत्र मनोविज्ञान, एक विशाल डोमेन से बना है और इसमें मानसिक प्रक्रिया और व्यवहार के अध्ययन के कई विभिन्न दृष्टिकोण शामिल हैं। नीचे पूछताछ के कई क्षेत्र दिए गए हैं जो मनोविज्ञान से युक्त हैं। मनोविज्ञान में क्षेत्रों और उपक्षेत्रों की एक व्यापक सूची को मनोविज्ञान विषयों की सूची (list of psychology topics) पर और मनो विज्ञान अनुशासनों की सूची (list of psychology disciplines) पर पाया जा सकता है। असामान्य मनोविज्ञान असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology) असामान्य व्यवहार (abnormal behavior) का अध्ययन है जिसमें क्रिया के असामान्य प्रतिरूप का वर्णन, अनुमान, स्पष्टीकरण और परिवर्तन किया जाता है। असामान्य मनोविज्ञान मनो रोग विज्ञान (psychopathology) और इसके कारणों की प्रकृति का अधययन करता है और इस ज्ञान को मनोवैज्ञानिक विकृतियों से युक्त रोगियों के उपचार के लिए नैदानिक मनोविज्ञान (clinical psychology) में लागू किया जाता है। सामान्य और असामान्य व्यवहार की बीच एक रेखा खींचना मुश्किल हो सकता है। सामान्यतयः, असामान्य व्यवहार अन अनुकूलित होना चाहिए और यह एक व्यक्तिगत महत्वपूर्ण परेशानी का कारण होता है ताकि नैदानिक और अनुसंधान प्रक्रिया को लागू किया जा सके। डीएसएम-आईवी-टीआर के अनुसार व्यवहार को असामान्य माना जा सकता है यदि वे विकलांगता, व्यक्तिगत परेशानी, सामाजिक मानदंडों के उल्लंघन या गलत क्रियाओं से सम्बंधित हो।मानसिक विकार के नैदानिक और सांख्यिकी मैनुअल (Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders) डीएसएम-आईवी-टीआर चौथा संस्करण (पाठ संशोधन) अमेरिकी मनोरोग एसोसिएशन द्वारा। जैविक मनोविज्ञान thumb|150px|right|एमआरआई (MRI) मानव मस्तिष्क चित्रण करते हुए. तीर हाइपो थेलेमस (hypothalamus) की स्थिति को सूचित करता है। जैविक मनोविज्ञान व्यवहार और मानसिक अवस्थाओं के जैविक सब्सट्रेट्स का वैज्ञानिक अध्ययन है। हर व्यवहार को तंत्रिका तंत्र (nervous system) से सम्बंधित मानते हुए, जैविक मनो विज्ञानी महसूस करते हैं कि व्यवहार को समझने के लिए मस्तिष्क (brain) की कार्य प्रणाली का अध्ययन समझदारी भरा है। यह वह दृष्टिकोण है जो व्यवहार तंत्रिका विज्ञान (behavioral neuroscience), संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान (cognitive neuroscience) और तंत्रिका मनो विज्ञान (neuropsychology) में प्रयुक्त किया जाता है। तंत्रिका मनो विज्ञान,मनो विज्ञान की एक शाखा है जो इस बात को समझने में मदद करती है कि मस्तिष्क की संरंचना और कार्य किस प्रकार से विशेष व्यवहारिक और मनो वैज्ञानिक प्रक्रियाओं से सम्बंधित हैं। तंत्रिका मनो विज्ञान विशेष रूप से मस्तिष्क की क्षति को समझने से सम्बंधित है, ताकि सामान्य मनो वैज्ञानिक कार्यों को बनाये रखने के लिए प्रयास किया जा सके। मस्तिष्क और व्यवहार के बीच सम्बन्ध के अध्ययन के लिए संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान का दृष्टिकोण तंत्रिका इमेजिंग उपकरणों का उपयोग करता है, ताकि यह प्रेक्षण किया जा सके कि मस्तिष्क के कौन से क्षेत्र एक विशेष क्रिया के दौरान सक्रिय हैं। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology) अनुभूति (cognition) का और व्यवहार के तहत आने वाली मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) का अध्ययन करता है, यह मस्तिष्क को समझने के लिए सूचना संसाधन (information processing) का उपयोग एक ढांचे के रूप में करता है। धारणा (Perception), सीख (learning), समस्या का हल (problem solving), स्मृति (memory), ध्यान (attention), भाषा और भावना (emotion) भी अनुसंधान के क्षेत्र हैं। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान विचारों के एक स्क्कोल से सम्बंधित है जो अनुभूति (cognitivism) के नाम से जाना जाता है, जिसे मानने वालों का तर्क है कि मानसिक क्रिया का सूचना संसाधन (information processing) मोडल, यक़ीन (positivism) और प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (experimental psychology) के द्वारा सूचित होता है। एक व्यापक स्तर पर, संज्ञानात्मक विज्ञान (Cognitive science) संज्ञानात्मक मनोविज्ञानियों, तंत्रिका जैव विज्ञानियों (neurobiologists), तथा कृत्रिम बुद्धि, तर्कविदों (logicians), भाषाविदों और सामाजिक विज्ञानियों के अनुसंधानकर्ताओं का संयुक्त उद्यम है और यह कम्प्यूटेशनल सिद्धांत व औपचारिकीकरण पर अधिक जोर डालता है। दोनों ही क्षेत्र कम्प्यूटेशनल मॉडल (computational models) का उपयोग रूची की घटना का अनुकरण करने के लिए करते हैं। क्योंकि मानसिक घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रेक्षित नहीं किया जा सकता है, कम्प्यूटेशनल मॉडल मस्तिष्क के कार्यात्मक संगठन का अध्ययन करने के लिए एक औजार का उपयोग करते हैं। इस तरह के मॉडल संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकों को एक ऐसा तरीका बताते हैं कि जिससे वे हार्डवेयर से स्वतंत्र रहकर मानसिक प्रक्रियाओं के सॉफ्टवेयर का अधययन कर सकते हैं, फिर चाहे वो मस्तिष्क हो या कंप्यूटर. तुलनात्मक मनोविज्ञान तुलनात्मक मनोविज्ञान (Comparative psychology) में मानव के अलावा जानवर (animal) में व्यवहार और मानसिक जीवन का अध्ययन किया जाता है। यह मनोविज्ञान के बाहर अनुशासन से सम्बंधित है जिसमें जंतु व्यवहार जैसे इथोलोजी (ethology) का अध्ययन किया जाता है। हालाँकि मनोविज्ञान का क्षेत्र प्रारंभिक रूप से मानव से सम्बंधित है, जानवरों (animal) के व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन भी मनो वैज्ञानिक अध्ययन का एक मुख्य भाग है। यह अपने आप में एक अलग विषय हो सकता है (उदाहरण पशु अनुभूति (animal cognition) और इथोलोजी) या विकास की कड़ियों के बारे में महत्वपूर्ण हो सकता है और विवादस्पद रूप से मानव मनो विज्ञान पर दृष्टि डालने का एक तरीका हो सकता है। इसे तुलना के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है या भावना और व्यवहार प्रणाली के पशु मोडल्स के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि मनोविज्ञान के तंत्रिका विज्ञान में देखा गया है। (उदाहरण, प्रभावी तंत्रिका विज्ञान (affective neuroscience) और सामाजिक तंत्रिका विज्ञान (social neuroscience)). परामर्श मनोविज्ञान परामर्श मनोविज्ञान (Counseling psychology) जीवन के दौरान व्यक्तिगत पारस्परिक (interpersonal) क्रियाओं को बढ़ावा देने का प्रयास करता है और सामाजिक, भावात्मक, व्यावसायिक (vocational), शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी, विकास और संगठनात्मक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करता है। सलाहकार मुख्य रूप से चिकित्सक होते हैं, ये ग्राहकों के उपचार के लिए मनश्चिकित्सा और अन्य उपायों का इस्तेमाल करते हैं। परंपरागत रूप से, परामर्श मनोविज्ञान ने मनो रोग विज्ञान की तुलना में सामान्य विकास मुद्दों पर और दैनिक तनाव (stress) के मुद्दों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है, लेकिन यह विभेदन समय के साथ कम हो गया है। परामर्श मनोविज्ञानी कई प्रकार के स्थानों पर कार्य कर रहे हैं जैसे विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, स्कूलों, सरकारी संगठनों, व्यापार, निजी प्रैक्टिस और सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र। नैदानिक मनोविज्ञान नैदानिक मनोविज्ञान (Clinical psychology) में मनोविज्ञान का अध्ययन और अनुप्रयोग शामिल है जो मनोविज्ञान पर आधारित तनाव या रोग से आराम दिलाने के लिए, उसे रोकने या समझने के लिए किया जाता है और व्यक्तिपरक जीवों के (well-being) व व्यक्तिगत विकास के लिए किया जाता है। इसके अभ्यास के केंद्र हैं मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और मनश्चिकित्सा (psychotherapy) हालाँकि नैदानिक मनोचिकित्सक अनुसंधान, शिक्षण, परामर्श, न्यायालयिक गवाही में और कार्यक्रम के विकास और प्रशासन में संलग्न हो सकते हैं।मस्तिष्क, क्रिस्टाइन (२००२). उन्नत मनोविज्ञान: आवेदन, मुद्दे और परिप्रेक्ष्य.चेल्तनहेम:नेल्सन थोर्न्स आईएसबीएन ०१७४९००५८९> कुछ नैदानिक मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क की चोट (brain injury) के रोगियों में नैदानिक प्रबंधन पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं- यह क्षेत्र नैदानिक तंत्रिका मनोविज्ञान (clinical neuropsychology) कहलाता है। अनेक देशों में नैदानिक मनोविज्ञान एक विनियमित मानसिक स्वास्थ्य पेशा (mental health profession) है। नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के द्वारा किया गया कार्य कई चिकित्सा मॉडल्स में किया जाता है, जिनमें से सभी में पेशेवर और ग्राहक के बीच एक औपचारिक सम्बन्ध होता है-सामान्यतः एक व्यक्ति, जोड़ा, परिवार, या एक छोटा समूह-जो चिकित्सा प्रक्रियाओं के एक समुच्चय से होकर गुजरता है, मनोवैज्ञानिक समस्योप्न की प्रकृति को स्पष्ट करता है और सोच, अहसास और व्यवहार के नए तरीकों को उत्साहित करता है। चार प्रमुख परिप्रेक्ष्य हैं मनो गतिकी (Psychodynamic), संज्ञानात्मक व्यवहार (Cognitive Behavioral), अस्तित्व-मानवतावाद (Existential-Humanistic) और तंत्र या परिवार चिकित्सा (Systems or Family therapy) इन विभिन्न चिकित्सा दृष्टिकोणों को एकीकृत करने के लिए एक बढ़ता हुआ आन्दोलन रहा है, विशेष रूप से संस्कृति, लिंग, आध्यात्मिकता और यौन उन्मुखता के मुद्दों के सम्बन्ध में एक बढ़ती हुई समझ के साथ। मनो चिकित्सा के सम्बन्ध में अधिक मजबूत शोध निष्कर्षों के आगमन के साथ, इस बात के प्रमाण बढ़ गए हैं की अधिकांश मुख्य चिकित्साएँ बराबर प्रभाविता की होती हैं, जिनमें एक प्रबल चिकित्सा गठबंधन के साथ सामान्य कुंजी तत्व होते हैं।लीचसेनरिंग, फाल्क और लीबिंग, एरिक. (२००३)। व्यक्तिगत रोग के उपचार में मनोगतिकी चिकित्सा और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा की प्रभाविता : एक मेटा-विश्लेषण.मनश्चिकित्सा के अमेरिकन जर्नल, १६० (७), १२२३ -१२३३ .रीज्नर, एंड्रयू.(२००५) .सामान्य कारक, मूल रूप से वैद्य उपचार और उपचार परिवर्तनों के वसूली मोडल मनोवैज्ञानिक रिकार्ड, ५५ (३), ३७७ -४०० . इस वजह से और अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और मनोविज्ञानी अब एक्लेक्टिक चिकित्सात्मक उन्मुखीकरण (eclectic therapeutic orientation) को अपना रहे हैं। गंभीर मनोविज्ञान गंभीर मनोविज्ञान (Critical psychology) मनोविज्ञान के गंभीर सिद्धांतों की विधियों पर लागू होता है। इस प्रकार, यह न केवल यथास्थिति के मानसिक सबसट्रेट्स की आलोचना करता है बल्कि मुख्यधारा मनोविज्ञान के तत्वों की भी आलोचना करता है, जो अपने आप में दमनकारी विचारधारा (ideologies) के योगदानकर्ताओं के रूप में देखे जाते हैं। गंभीर मनोविज्ञान इस विश्वास पर कार्य करती है कि "मनोविज्ञान की मुख्यधारा ने मानव के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र के नैतिक जनादेश के एक संकीर्ण दृष्टिकोण को संस्थागत रूप से संचालित किया है" इसमें सामाजिक बुराईयों को व्यक्तिगत रूप से दूर करने का प्रयास किया गया है, तुच्छ और महत्वहीन अनुसंधान को प्रोत्साहित किया गया है और ऐसी प्रक्रियाओं में भाग लिया गया है कि गंभीर संवीक्षा के तहत सकारात्मक तरीके विफल रहे हैं। एक गंभीर मनोविज्ञानी पूछ सकता है यदि एक "काम के तनाव का मामला" बडे स्तर के तंत्र को परिवर्तित करने के लिए प्रयास की वारंटी देता है जो कार्य का नियंत्रण करता है, बजाय इसके कि कि उस व्यक्ति का इलाज करता है जो तनाव का अनुभव करता है और-; अधिक सही है कि, अनगिनत अन्य व्यक्तियों के साथ कौन तनाव को शेयर करता है। कोई यह भी पूछ सकता है कि युद्ध में तबाह हो गए समुदायों में "मुख्य धारा के आघात प्रयास, मानव के अधिकारों और सामाजिक न्याय पर ध्यान केन्द्रित करने में क्यों असफल हो जाते हैं" संक्षेप में, गंभीर मनोविज्ञान, जहाँ यह समाज के लिए, एक व्यक्ति से विश्लेषण के मनोवैज्ञानिक स्तर को उठाने में उपयुक्त प्रतीत होता है, और मनोविज्ञान को उन्नत के तुलना में अधिक रूपांतरणीय बनाता है। गंभीर मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के अन्य उपक्षेत्रों की विस्तृत सारणी पर लागू होता है और इसके कई सिद्धांतवादी, मुख्यधारा मनोविज्ञानी पेशे में कार्यरत हैं। विकासात्मक मनोविज्ञान विकासात्मक मनोविज्ञान (developmental psychology) में मुख्य रूप से जीवन अवधि के माध्यम से मानव मस्तिष्क के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, इसमें यह बात समझी जाती है कि लोग कैसे दुनिया में होने वाली क्रियाओं को समझते हैं, उन पर प्रतिक्रिया करते हैं और यह प्रक्रिया उनकी उम्र बढ़ने के साथ कैसे बदल जाती है। यह बौद्धिक, सामाजिक, संज्ञानात्मक, तंत्रिका, या नैतिक विकास (moral development) पर ध्यान केन्द्रित कर सकता है। शोधकर्ता जो बच्चों का अध्ययन करते हैं, वे प्राकृतिक सेटिंग्स में अवलोकन करने के लिए कई अद्वितीय अनुसंधान विधियों का प्रयोग करते हैं या उन्हें प्रयोगात्मक कार्यों में व्यस्त करते हैं। इस प्रकार के कार्य सामान्यतः विशेष रूप से डिजाईन किये गए खेल या गतिविधियाँ होती हैं, जो बच्चों के लिए मजेदार भी होती हैं और वैज्ञानिक रूप से उपयोगी भी होती हैं। और शोधकर्ताओं ने यहाँ तक कि छोटे शिशुओं की मानसिक प्रक्रियाओं को अध्ययन करने के लिए भी चतुराई पूर्ण तरीके तैयार किये हैं। बच्चों का अध्ययन करने के अलावा, विकासात्मक मनोविज्ञानी उम्र बढ़ने (aging) का व जीवन अवधि के दौरान होने वाली प्रक्रियाओं का भी अध्ययन करते हैं, यह अध्ययन विशेष रूप से तीव्र परिवर्तन के समय पर किया जाता है (जैसे किशोरावस्था और बुढ़ापे के समय)। विकास मनोवैज्ञानिक अपने अनुसंधान की जानकारी देने के लिए वैज्ञानिक मनोविज्ञान में सिद्धान्तवादियों की पूरी रेंज को आकर्षित करते हैं। शैक्षणिक मनोविज्ञान शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology) में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मनुष्य कैसे शैक्षिक सेटिंग्स में सीखते हैं, साथ ही शैक्षिक हस्तक्षेप की प्रभावशीलता, शिक्षण के मनोविज्ञान और विद्यालयों के संगठनों के सामाजिक मनोविज्ञान (social psychology) का अध्ययन भी किया जाता है। बाल मनोवैज्ञानिकों जैसे लेव वयगोटस्की (Lev Vygotsky), जीन पिअगेत (Jean Piaget) और जेरोम ब्रूनर (Jerome Bruner) का कार्य शिक्षण (teaching) तरीकों और शैक्षिक प्रथाओं के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। शैक्षिक मनोविज्ञान को अक्सर अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम में शामिल किया जाता है, कम से कम उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ऐसा किया जाता है। विकासवादी मनोविज्ञान विकासवादी मनोविज्ञान (Evolutionary psychology) मानसिक और व्यवहारिक प्रतिरूप के आनुवंशिक (gene) जड़ों को स्पष्ट करता है और बताता है कि सामान्य प्रतिरूप उत्पन्न हुए हैं क्योंकि वे उनके पिछले विकास शील वातावरण में मानव के लिए उच्च अनुकूली (adaptive) थे; यहाँ तक कि इनमें से कुछ प्रतिरूप आज के वातावरण में उपयुक्त अनुकूली नहीं हैं। विकासवादी मनोविज्ञान से निकट संबंधी क्षेत्र हैं पशु व्यवहार पारिस्थितिकी (behavioral ecology), मानव व्यवहार पारिस्थितिकी (human behavioral ecology), दोहरा आनुवंशिक सिद्धांत (dual inheritance theory) और सामाजिक जैव विज्ञान (sociobiology).मेमेटिक्स (Memetics) जिसकी खोज ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी (evolutionary biologist) रिचर्ड डाकिंस (Richard Dawkins) के द्वारा की गयी। यह सम्बंधित लेकिन प्रतिस्पर्धी क्षेत्र है जो बताता है कि सांस्कृतिक विकास (cultural evolution) एक डार्विनी अर्थ में हो सकता है लेकिन यह मेंडल (Mendelian) की प्रणाली से स्वतंत्र होता है; इसलिए यह उन तरीकों की जाँच करता है जिनमें विचार या मेमे (meme), संभवतः जीन से स्वतंत्र रूप से विकसित हो सकते हैं। फॉरेंसिक मनोविज्ञान फॉरेंसिक मनोविज्ञान (Forensic psychology) प्रथाओं की एक व्यापक रेंज को कवर करता है, जिसमें प्रतिवादी (defendant) का नैदानिक मूल्यांकन (evaluations) शामिल है। यह दिए गए मुद्दों पर अदालती गवाही, जजों और कानूनी प्रतिनिधियों के लिए रिपोर्ट देता है। फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों को अदालत के द्वारा नियुक्त किया जाता है या कानूनी प्रतिनिधियों के द्वारा उन्हें हायर किया जाता है ताकि परीक्षण मूल्यांकन का संचालन किया जा सके, कार्यान्वित मूल्यांकन की प्रतिस्पर्धा का संचालन किया जा सके, विवेक मूल्यांकन, अस्वैच्छिक प्रतिबद्धता मूल्यांकन, यौन अपराधी मूल्यांकन और उपचार मूल्यांकन किया जा सके तथा लिखित रिपोर्ट और गवाही के माध्यम से अदालत को सिफारिशें उपलब्ध करायी जा सकें। बहुत से प्रश्न जो अदालत, फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिकों से पूछती है, अंततः कानूनी मुद्दों (issues) पर जाते हैं, हालाँकि एक मनोविज्ञानी कानूनी प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता है। उदहारण के लिए, मनोविज्ञान में मानसिक संतुलन की परिभाषा नहीं है। बल्कि, मानसिक संतुलन एक कानूनी परिभाषा है जो दुनिया भर में अलग अलग जगह पर अलग अलग होती है। इसलिए, एक फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक की एक प्रमुख योग्यता व्यवस्था, कानून की, विशेष रूप से आपराधिक कानून की एक अभिन्न समझ है। स्वास्थ्य मनोविज्ञान स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health psychology) मनोवैज्ञानिक सिद्धांत का अनुप्रयोग है और स्वास्थ्य, बीमारी और स्वास्थ्य देखभाल के लिए अनुसंधान है। जबकि नैदानिक मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य, तंत्रिका विकार पर ध्यान केन्द्रित करता है, स्वास्थ्य मनोविज्ञान (health psychology) एक स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार की एक अधिक व्यापक रेंज के मनो विज्ञान से सम्बंधित है जिसमें स्वस्थ भोजन, चिकित्सक रोगी संबंध, स्वास्थ्य सूचना के बारे में एक रोगी की समझ और बीमारी के बारे में विश्वास शामिल हैं। स्वास्थ्य मनोवैज्ञानिक जन स्वास्थ्य अभियान में शामिल हो सकते हैं, ये बीमारी या स्वास्थ्य नीति के जीवन की गुणवत्ता (quality of life) पर प्रभाव की जाँच करते हैं और स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर अनुसंधान करते हैं। औद्योगिक / संगठनात्मक मनोविज्ञान औद्योगिक और संगठनात्मक मनोविज्ञान (Industrial and organizational psychology) (आई / ओ) कार्यस्थान पर मानव की क्षमता को अनुकूलित करने के लिए मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं और विधियों को लागू करते हैं। कार्मिक मनोविज्ञान, आई / ओ मनोविज्ञान का एक उप क्षेत्र, मनोविज्ञान के सिद्धांतों और विधियों को श्रमिकों के चयन और मूल्यांकन पर लागू करता है। आई / ओ मनोविज्ञान का अन्य उपक्षेत्र, संगठनात्मक मनोविज्ञान (organizational psychology), काम के वातावरण और प्रबंधन शैलियों के कार्यकर्ता प्रेरणा, नौकरी से संतुष्टि और उत्पादकता पर प्रभाव की जाँच करता है।मायर्स (२००४).प्रेरणा और काम . मनोविज्ञान.न्यूयॉर्क, एनवाई: वॉर्थ प्रकाशक कानूनी मनोविज्ञान कानूनी मनोविज्ञान (Legal psychology) एक शोध उन्मुख क्षेत्र है जिसमें मनो विज्ञान की कई भिन्न क्षेत्रों से अनुसंधानकर्ता होते हैं (हालाँकि सामाजिक (social) और संज्ञानात्मक (cognitive) मनोवैज्ञानिक प्रारूपिक होते हैं।) कानूनी मनोवैज्ञानिक जूरी निर्णय, प्रत्यक्षदर्शी स्मृति, वैज्ञानिक सबूत और कानूनी नीति जैसे विषयों को स्पष्ट करते हैं। शब्द "कानूनी मनोविज्ञान" हाल ही में उपयोग में आया है और आम तौर पर किसी भी गैर नैदानिक कानून से संबंधित अनुसंधान के लिए प्रयुक्त किया जाता है। व्यक्तित्व मनोविज्ञान व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality psychology) एक व्यक्ति में व्यवहार (behavior), सोच (thought) और भावना (emotion) के प्रतिरूप का अध्ययन करता है, इसका प्रयोग आम तौर पर व्यक्तित्व के लिए किया जाता है। व्यक्तित्व के सिद्धांत विभिन्न मनोवैज्ञानिक स्कूलों और संस्थाओं में अलग अलग हो सकते हैं। वे ऐसे मुद्दों के लिए भिन्न अनुमान लगा सकते हैं, जैसे अचेत (unconscious) की भूमिका और बचपन के अनुभव के महत्व। फ्रुड के अनुसार, व्यक्तित्व अहंकार, अति अहंकार, और आई डी की गतिक अंतर क्रियाओं पर निर्भर करता है।करवर, सी और शियर, एम.(२००४).व्यक्तित्व पर परिप्रेक्ष्य (५ वां संस्करण).बोस्टन: पियरसन. इसके विपरीतविशेषता सिद्धांतवादी (Trait theorists), कारक विश्लेषण (factor analysis) की सांख्यिकीय गतिविधियों के द्वारा कुंजी लक्षणों की असतत संख्या के शब्दों में व्यक्तित्व का विश्लेषण करने के प्रयास करते हैं। प्रस्तावित लक्षणों की संख्या व्यापक रूप से कई प्रकार की होती है।हंस आईजेंक (Hans Eysenck) के द्वारा प्रस्तावित एक प्रराम्भ्की मॉडल बताता है कि तीन ऐसे गुण हैं जो मानव व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं: बहिर्मुखी और अंतर मुखी होना (extraversion-introversion), तंत्रिका वाद (neuroticism), मनोवाद (psychoticism).रेमंड केटल (Raymond Cattell) ने 16 व्यक्तित्व कारकों (16 personality factors) का सिद्धांत प्रस्तावित किया। "बड़ा पाँच (Big Five)" पाँच करक मॉडल, जो लुईस गोल्डवर्ग (Lewis Goldberg) के द्वारा प्रस्तावित किया गया, वर्तमान में उसे लक्षण सिद्धांत वादियों के बीच प्रबल समर्थन मिला है। मात्रात्मक मनोविज्ञान मात्रात्मक मनोविज्ञान (Quantitative psychology) में मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में गणितीय और सांख्यिकीय मॉडलिंग के अनुप्रयोग शामिल हैं, साथ ही व्यवहारिक आंकडों के विश्लेषण और स्पष्टीकरण के लिए सांख्यिकीय विधियों का विकास भी शामिल है। शब्द मात्रात्मक मनोविज्ञान अपेक्षाकृत नया है और बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है, (हाल ही में मात्रात्मक मनोविज्ञान में पीएचडी प्रोग्राम किये गए हैं) और यह शिथिल रूप से मनोमीती (psychometrics) और गणितीय मनोविज्ञान (mathematical psychology) उपक्षेत्रों को कवर करता है। मनोमिति (Psychometrics) मनो विज्ञान का एक क्षेत्र है जो मनो वैज्ञानिक मापन की तकनीक और सिद्धांत से सम्बंधित है, जिसमें ज्ञान, क्षमता (abilities), दृष्टिकोण (attitudes) और व्यक्तित्व के लक्षणों (personality traits) का मापन शामिल है। प्रेक्षण के लिए अयोग्य इस घटना (phenomena) का मापन मुश्किल है और इस विषय में अधिकांश अनुसंधान और संचित ज्ञान का विकास हुआ है ताकि इसे ठीक प्रकार से परिभाषित किया जा सके और ऐसी घटना का मात्रात्मक अनुमान लगाया जा सके। मनोमीती अनुसंधान में प्रारूपिक रूप से दो मुख्य अनुसंधान कार्य शामिल हैं नामतः (i) यंत्रों (instruments) का निर्माण और मापन के लिए प्रक्रियाएं और (ii) मापन के लिए सैद्धांतिक दृष्टिकोण के शोधन और विकास. जबकि मनोमीति (psychometrics) मुख्य रूप से व्यक्तिगत मतभेद (individual differences) और जनसंख्या संरचना (population structure) से सम्बंधित है और गणितीय मनोविज्ञान (mathematical psychology) औसत व्यक्ति कीमानसिक (mental) और प्रेरक प्रक्रियाओं (motor processes) की मॉडलिंग से सम्बंधित है। मनोमीति (Psychometrics) शैक्षिक मनोविज्ञान, व्यक्तित्व (personality) और नैदानिक मनोविज्ञान से अधिक सम्बंधित है।गणितीय मनोविज्ञान (Mathematical psychology) अधिक निकट रूप से साइको नोमिक्स (psychonomics)/प्रयोगात्मक (experimental) और संज्ञानात्मक (cognitive) और शरीर क्रिया मनोविज्ञान (physiological psychology) और (संज्ञानात्मक (cognitive)) तंत्रिका विज्ञान (neuroscience) से सम्बंधित है। सामाजिक मनोविज्ञान thumb|150px|right|सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology) सामाजिक व्यवहार की प्रकृति और कारणों का अध्ययन करता है। सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology) सामाजिक व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है, जिसमें इस बात पर जोर दिया जाता है कि लोग कैसे एक दूसरे के बारे में सोचते हैं और कैसे एक दूसरे से सम्बंधित होते हैं। सामाजिक मनोवैज्ञानिक विशेष रूप से इस बात में रूचि लेते हैं, के लोग सामाजिक स्थिति के लिए कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। वे ऐसे विषयों को एक व्यक्ति के व्यवहार पर दूसरों के प्रभाव के रूप में अध्ययन करते हैं (उदाहरण समनुरूपता (conformity), अनुनय (persuasion)) और साथ ही अन्य लोगों के बारे में विश्वासों के गठन, दृष्टिकोण (attitudes) और स्टीरियोटाइप (stereotype) पर दूसरों के प्रभाव के रूप में अध्ययन करते हैं।सामाजिक अनुभूति (Social cognition) में सामाजिक और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के तत्व संग्लित हो जाते हैं ताकि इस बात को समझा जा सके के लोग कैसे सामाजिक जानकारियों को याद रखते हैं, उन पर प्रतिक्रिया करते हैं और उन्हें विकृत करते हैं।समूह गतिशीलता (group dynamics) का अध्ययन नेतृत्व, संचार और वे घटनाएँ जो कम से कम सूक्ष्मदर्शीय (microsocial) स्तर पर विकसित होती हैं, के अनुकूलन की क्षमता और प्रकृति के बारे में जानकारी प्रकट करता है। हाल ही के वर्षों में, कई सामाजिक मनोवैज्ञानिकों ने अंतर्निहित (implicit) उपायों, मध्यस्थ (mediational) मॉडलों और व्यवहार के लेखांकन में व्यक्तियों और समाज की अंतर क्रिया पर बहुत अधिक रूचि दर्शायी है। स्कूल मनोविज्ञान स्कूल मनोविज्ञान (School psychology) में शैक्षिक मनोविज्ञान (educational psychology) और नैदानिक मनोविज्ञान (clinical psychology) दोनों के सिद्धांत शामिल हैं ताकि जिन विद्यार्थियों में सीखने की क्षमता का अभाव है, उनका उपचार किया जा सके और उन्हें समझा जा सके; "बहुत अच्छे" विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके; किशोरों में पूर्व सामाजिक व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सके; और सुरक्षित, सहायक और प्रभावी शिक्षण वातावरण का विकास किया जा सके। स्कूल मनोवैज्ञानिक शैक्षिक और व्यवहार मूल्यांकन, हस्तक्षेप, रोकथाम और परामर्श में प्रशिक्षित होते हैं और अधिकांश अनुसंधान में व्यापक प्रशिक्षण लेते हैं। वर्तमान में, स्कूल मनोविज्ञान एक मात्र क्षेत्र है जिसमें, एक पेशेवर को एक डॉक्टरेट की डिग्री के बिना एक "मनोवैज्ञानिक" कहा जा सकता है,स्कूल मनोविज्ञानवेत्ताओं का राष्ट्रीय संघ (National Association of School Psychologists) (एन ऐ एस पी) प्रवेश स्तर पर विशेषज्ञ की डिग्री (Specialist degree) देता है। यह एक विवादास्पद मामला है क्योंकि ऐ पी ऐ (APA) एक मनोवैज्ञानिक के लिए प्रवेश स्तर के रूप में एक डॉक्टरेट से नीचे कुछ भी नहीं मानता है। विशेषज्ञ स्तरीय स्कूल मनो विज्ञानी, जो आमतौर पर तीन साल का स्नातक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, वे स्कूल प्रणाली में विशेष रूप से कार्य करते हैं, जबकि डॉक्टरेट के स्तर के लोग अन्य सेटिंग्स में भी पाए जाते हैं, जिनमें विश्व विद्यालय, अस्पताल, क्लिनिक और निजी प्रेक्टिस शामिल है। अनुसंधान की विधियां thumbnail|250px|left|विल्हेम मेक्सीमिलियन वुन्द्त एक जर्मन मनोवैज्ञानिक था, सामान्य रूप से उसे प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (experimental psychology) के संस्थापक के रूप में स्वीकार किया गया। मनोविज्ञान के अधिकांश क्षेत्रों में अनुसंधान वैज्ञानिक विधियों (scientific method) के मानकों के साथ संचालित किये गए हैं जिसमें गुणात्मक (qualitative)इथोलोजिकल (ethological) और मात्रात्मक सांख्यिकीय (quantitative statistical) दोनों प्रकार की रूपात्मकताये शामिल हैं, जो मनोवैज्ञानिक घटना (explanatory) के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण (hypotheses) परिकल्पना (phenomena) का मूल्यांकन करता है और इसे उत्पन्न करता है। जाँच को प्रयोगात्मक प्रोटोकॉल (experimental protocols) के द्वारा किया जा सकता है, लेकिन कभी कभी नुसंधान नैतिकता के कारण, एक दिए गए अनुसंधान डोमेन में विकास की अवस्था के कारण और अन्य कारणों से वैकल्पिक तरीकों को प्राथमिकता दी जाती है।यूरी ब्रोनफेनब्रेनर (१९७९). मानव विकास की पारिस्थितिकी: प्रकृति और डिजाइन के द्वारा प्रयोग. केम्ब्रिज, एम ऐ:हार्वर्ड विश्वविद्यालय प्रेस (Harvard University Press).आई एस बी एन ० -६७४ -२२४५७ -४ मनो विज्ञान एक्लेक्टिक (eclectic) प्रवृति रख सकता है, ताकि मनो वैज्ञानिक घटना को समझने के लिए और उसे स्पष्ट करने के लिए अन्य क्षेत्र से ज्ञान प्राप्त किया जा सके। उदाहरण के लिए, विकासवादी मनो विज्ञानी, मनोविज्ञान, जैव विज्ञान और एन्थ्रोपोलोजी के कई उप क्षेत्रों से आंकडों का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावा, वे दो भिन्न प्रकार के कारणों का व्यापक उपयोग करते हैं। हालाँकि अक्सर सख्त धनात्मकता के निगमनात्मक-नोमोलोजिकल (deductive-nomological) तर्क को अपनाते हुए, वे आगमनात्मक तर्क (inductive reasoning) पर भरोसा करते हैं, ताकि शिकारी-संग्राहक (hunter-gatherer) जीवन के खाते बनाये जा सके, जो भिन्न विचारों व क्रियाओं के अनुकूली मूल्य को स्पष्ट कर सकेगा . गुणात्मक मनोवैज्ञानिक अनुसंधान (Qualitative psychological research) प्रेक्षणीय तरीकों के एक व्यापक स्पेक्ट्रमका उपयोग करता है, इसमें क्रिया अनुसंधान (action research), नृवंशविज्ञान (ethnography), अन्वेषणत्मक आंकडे (exploratory statistics), संरचित (structured) साक्षात्कार (interview) और भागीदार अवलोकन (participant observation) शामिल है, जो क्लासिकल प्रयोगों के द्वारा अच्छी जानकारी प्राप्त करने में मदद करते हैं। मानवता मनो विज्ञान में अनुसंधान, विज्ञान के बजाय अधिक प्रारूपिक रूप से नृवंशविज्ञान (ethnographic), ऐतिहासिक (historical) और इतिहास लेखन (historiographic) की विधियों से किया जाता है। मनो गतिकी अनुसंधान ने चिकित्सकीय मामलों के अध्ययन के अनुमान में पारंपरिक रूप से भाग लिया है, फ्रुड के मनो विश्लेषण से लेकर नव-जंगीय आद्य रूप मनो विज्ञान तक के उप स्कूलों ने व्याख्या के एक वाहन के रूप में मिथक (myth) पर कार्य किया है। हाल ही के विकास विशेष रूप से तंत्रिका मनो विश्लेषण में, विकास ने अपेक्षाकृत रूप से वैज्ञानिक निठरता के उच्च स्तर की मांग की है। महत्वपूर्ण मनोविज्ञान के लिए एक अग्रदूतमुक्ति मनोविज्ञान (liberation psychology) ने अपने बंधन मुक्त प्रश्नों में पारंपरिक सर्वे किया है। महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिकों के बीच एक विवाद है कि केवल उन्हें ही वे अनुसंधान लागू करना चाहिए जिसे वे संचालित करते हैं और उन्हें कैसे क्रियोन्मुख या जागरूकता की और उन्मुख होना चाहिए। सामान्य रूप में, हालाँकि, उनकी विधियां सकारात्मक से ज्यादा जटिल हो सकती हैं और इसीलिए, उन्हें न केवल वैज्ञानिक विधियों से बचना चाहिए बल्कि उन तरीकों की भी पहचान करनी चाहिए जिसमें इस विधि का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है और उसका दुरूपयोग किया जाता है। गंभीर मनो वैज्ञानिक अनुसंधान में एक मुख्य अवधारणा है रिफ्लेकसीविटी (reflexivity) या गंभीर आत्म निरिक्षण जो "इस बात का स्पष्टीकरण देता है कि (मनो विज्ञानी) मूल्य और मान्यताएं किस प्रकार से (उनके) सैद्धांतिक और विधिपूर्वक लक्ष्यों, क्रियाओं और व्याख्याओं को प्रभावित करते हैं। एक रिफ्लेकसिव दृष्टिकोण लेते हुए, गंभीर मनो विज्ञानी मनोवैज्ञानिक मामलों की वर्तमान अवस्था की जाँच करते हैं और "पुराने प्रश्नों और - पर सुरक्षात्मक स्थिति को तलाश में रहते हैं; जैसे कि मुक्त इच्छा बनाम नियतत्ववाद (determinism), प्रकृति बनाम पोषण (nature vs. nurture), [और] चेतना (consciousness) बनाम अचेत (unconscious) बल". मनोवैज्ञानिक कार्यों के विविध पहलुओं का परीक्षण (testing) मुख्यधारा मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। मनोमितीय (Psychometric) और सांख्यिकीय विधियाँ प्रभावी होती हैं, इनमें भिन्न जाने माने मानक परिक्षण शामिल हैं और वे जो स्थिति या प्रयोग को आवश्यकता के अनुसार बनाये जाते हैं। अकादमिक मनोविज्ञानी, शुद्ध रूप से अनुसंधान और मनो वैज्ञानिक सिद्धांत पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं, जिनका उद्देश्य है विशेष क्षेत्र में अग्रणी मनोवैज्ञानिक समझ, जबकि मनो विज्ञानी अनुप्रयोग मनो विज्ञान (applied psychology) पर कार्य कर सकते हैं, ताकि इस प्रकार के ज्ञान को तात्कालिक और प्रायोगिक लाभ पर लागू किया जा सके। ये दृष्टिकोण परस्पर, विशिष्ट नहीं होते हैं और कई मनो विज्ञानी करियर के दौरान किसी बिंदु पर मनोविज्ञान को लागू करने और इस क्षेत्र में अनुसंधान में लगे होते हैं। कई नैदानिक मनोविज्ञान के कार्यक्रमों का लक्ष्य होता है मनोविज्ञानियों के अभ्यास में ज्ञान का विकास और अनुसंधान व प्रायोगिक विधियों में अनुभव का विकास, जब वे मनो वैज्ञानिक मुद्दों से युक्त व्यक्तियों का इलाज करते हैं तब इन विकास के बिन्दुओं को रोगियों पर लागू करते हैं। जब किसी क्षेत्र को विशेष प्रशिक्षण और विशेष ज्ञान को जरुरत होती है, खासकर अनुप्रयोग क्षेत्रों में, मनोवैज्ञानिक संघ सामान्य रूप से प्रशिक्षण को जरूरतों के प्रबंधन के लिए एक प्रशासन निकाय को स्थापना करते हैं। इसी प्रकार, मनोविज्ञान में विश्व विद्यालयी डिग्री को जरुरत हो सकती है, ताकि विद्यार्थी कई क्षेत्रों में उपयुक्त ज्ञान प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त, प्रायोगिक मनोविज्ञान के क्षेत्र, जहाँ मनो विज्ञानी दूसरों का उपचार करते हैं, उन्हें जरुरत हो सकती है कि उन्हें सरकार द्वारा विनियमित किसी इकाई से लाइसेंस लेना पड़े। नियंत्रित प्रयोग प्रायोगिक मनोवैज्ञानिक अनुसंधान का संचालन एक प्रयोगशाला में नियंत्रित स्थितियों में किया जाता है। अनुसंधान को यह विधि व्यवहार को समझने के लिए वैज्ञानिक विधि (scientific method) के अनुप्रयोग पर निर्भर करता है। प्रयोगकर्ता कई प्रकार के मापन का प्रयोग करते हैं, जिसमें प्रतिक्रिया की दर, प्रतिक्रिया का समय (reaction time) और भिन्न मनोमितीय (psychometric) शामिल हैं। प्रयोगों को विशेष परिकल्पना (test) के परीक्षण (hypotheses) के लिए (निगमनात्मक दृष्टिकोण) या कार्यात्मक संबंध के मूल्यांकन के लिए (आगमनात्मक दृष्टिकोण) डिजाईन किया गया है। वे शोधकर्ताओं को व्यवहार और वातावरण के भिन्न पहलूओं के बीच अनौपचारिक सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देते हैं। एक प्रयोग में, रूचि के एक या अधिक चरों को प्रयोगकर्ता के द्वारा नियंत्रित किया जाता है (स्वतंत्र चर) और अन्य चर का मापन विभिन्न स्थितियों की प्रतिक्रिया में किया जाता है। (आश्रित चर) मनोविज्ञान के कई क्षेत्रों में प्रयोग प्राथमिक अनुसंधान विधियों में से एक है, विशेष रूप से संज्ञानात्मक (cognitive)/साइकोनोमिक्स (psychonomics), गणितीय मनोविज्ञान (mathematical psychology), मनोशरीरकार्यिकी (psychophysiology) और जैविक मनोविज्ञान (biological psychology)/संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान (cognitive neuroscience). मानव पर प्रयोग कुछ नियंत्रण के अंतर्गत किये गए हैं, जो नाम के द्वारा सूचित किये गए हैं और स्वैच्छिक सहमति के हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, प्रायोगिक विषयों के नाजी गलतियों की वजह से नुरेमबर्ग कोड (Nuremberg Code) की स्थापना की गयी। बाद में, अधिकांश देशों (और वैज्ञानिक पत्रिकाओं) ने हेलसिंकी की घोषणा (Declaration of Helsinki) को अपना लिया। अमेरिका में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के (National Institutes of Health) ने १९६६ में संस्थागत समीक्षा बोर्ड (Institutional Review Board) की स्थापना की और १९७४ में राष्ट्रीय अनुसंधान अधिनियम (National Research Act) (मानव संसाधन ७७२४) को अपना लिया। इन सभी कारणों से अनुसंधानकर्ता प्रयोगात्मक अध्ययनों में मानव प्रतिभागियों से सूचित सहमति प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित हुए। कई प्रभावी अध्ययनों से इस नियम की स्थापना हुई; इन अध्ययनों में शामिल थे, एमआईटी और फर्नाल्ड स्कूल रेडियो आइसोटोप का अध्ययन, थेलीडोमाईड त्रासदी (Thalidomide tragedy), विलोब्रुक हेपेटाइटिस (hepatitis) का अध्ययन और स्टैनले मिल्ग्राम (Stanley Milgram) का सत्ता के लिए आज्ञाकारिता का अध्ययन। सर्वेक्षण प्रश्नावली सांख्यिकी सर्वेक्षणों का उपयोग, मनोविज्ञान में व्यवहार और लक्षणों के मापन के लिए, मूड में परिवर्तन के नियंत्रण के लिए, प्रयोगात्मक अभिव्यक्ती की वैद्यता की जाँच के लिए किया जाता है। साथ ही कई अन्य मनोवैज्ञानिक विषयों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। सबसे अधिक सामान्य रूप से, मनोविज्ञानी कागज और पेंसिल सर्वेक्षण का उपयोग करते हैं। बहरहाल, सर्वेक्षण फोन पर या ई मेल के माध्यम से भी किए जा सकते हैं। तेजी से बढ़ते हुए, वेब आधारित सर्वेक्षण अनुसंधान में प्रयोग किए जा रहे हैं।उपलब्ध२००७ -११ -०२ (2 नवंबर 2007). समान विधी का उपयोग अनुप्रयोग सेटिंग में किया जाता है जैसे नैदानिक मूल्यांकन और आकलन कर्मियों का मूल्यांकन. अनुदैर्ध्य अध्ययन एक अनुदैर्ध्य अध्ययन (longitudinal study) अनुसंधान की एक विधी है जो समय के साथ एक विशेष जनसंख्या का प्रेक्षण करती है। उदाहरण के लिए, कोई एक समय अवधि के दौरान व्यक्तियों के एक समूह के प्रेक्षण के द्वारा, कुछ शर्तों के साथविशिष्ट भाषा हानि (specific language impairment) का अध्ययन करना चाह सकता है, इस विधी में यह लाभ होता है कि इससे पता चल जाता है कि कैसे लम्बे समय के दौरान परिस्थितियाँ एक व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। हालाँकि, ऐसे अध्ययनों में विषय की मृत्यु हो जाने पर या चले जाने पर मुश्किल हो जाती है। इसके अतिरिक्त, चूँकि समूह के सदस्यों के बीच अंतर नियंत्रित नहीं होता है, जनसंख्या के बारे में निष्कर्ष निकालना मुश्किल हो सकता है। अनुदैर्ध्य अध्ययन एक विकास अनुसंधान रणनीति है जिसमें कई वर्षों के दौरान बार बार एक आयु वर्ग की जांच की जाती है। अनुदैर्ध्य अध्ययन इस बारे में सजीव प्रश्नों का उत्तर देते हैं कि कैसे लोगों का विकास होता है। यह विकास अनुसंधान कई सालों के दौरान लोगों का अनुसरण करता है और परिणाम, मनोवैज्ञानिक समस्याओं से विशेष रूप से सम्बंधित खोज की अविश्वसनीय सारणी होती है। प्राकृतिक व्यवस्था में प्रेक्षण उसी तरह जेन गुडाल (Jane Goodall) ने चिंपांज़ी (chimpanzee) की सामाजिक और पारिवारिक जीवन का अध्ययन किया, मनो विज्ञानी इसी प्रकार के अध्ययन मानव के सामाजिक, पेशेवर और पारिवारिक जीवन के लिए करते हैं। कभी कभी प्रतिभागी यह जानते हैं कि उनका प्रेक्षण किया जा रहा है और कभी कभी यह गुप्त होता है: प्रतिभागियों को यह नहीं पता होता कि उन पर प्रेक्षण किया जा रहा है। नीतिशास्त्रीय दिशानिर्देश पर विचार किया जाना चाहिए जब गुप्त प्रेक्षण किया जा रहा है। गुणात्मक और वर्णनात्मक अनुसंधान मामलों की वर्तमान स्थिति, जैसे विचार, अहसास और व्यक्ति के व्यवहार, के बारे में प्रश्नों के उत्तर देने के लिए डिजाईन किया गया अनुसंधान, वर्णनात्मक अनुसंधान कहलाता है। वर्णनात्मक अनुसंधान अभिविन्यास में मात्रात्मक या गुणात्मक हो सकता है। गुणात्मक अनुसंधान एक वर्णनात्मक अनुसंधान है जो घटनाओं के प्रेक्षण और वर्णन पर ध्यान केन्द्रित करता है, जब ये घटनाएँ घटती हैं, इसका उद्देश्य है प्रतिदिन के व्यवहार की गुणवत्ता को पकड़ना और घटना को समझने और उसकी खोज की आशा के साथ, जो छूट सकता है यदि अधिक सरसरा परिक्षण किया जाये. तंत्रिका मनोवैज्ञानिक विधियां तंत्रिका मनोविज्ञान (Neuropsychology) में स्वस्थ व्यक्तियों और रोगियों दोनों का अध्ययन शामिल है, प्रारूपिक रूप से जो मस्तिष्क की चोट (brain injury) या मानसिक बीमारी से ग्रस्त हैं। संज्ञानात्मक तंत्रिका मनोविज्ञान (Cognitive neuropsychology) और संज्ञानात्मक तंत्रिका मनो चिकित्सा (cognitive neuropsychiatry) में तंत्रिका और मानसिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है, ताकि सामान्य मस्तिष्क व मन के सिद्धांतों का निष्कर्ष निकला जा सके। इसमें प्रारूपिक रूप से बची हुई क्षमता के प्रतिरूप में अंतर के लिए खोज शामिल है, (जो कार्यात्मक अ-संगठन कहलाता है) जो इस बात के सुराग दे सकता है कि यदि क्षमताएं छोटे कार्य से युक्त हैं या एकमात्र संज्ञानात्मक प्रणाली के द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। इसके अलावा, प्रयोगात्मक तकनीक अक्सर स्वस्थ व्यक्तियों के तंत्रिका विज्ञान के अध्ययन के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें व्यवहारिक प्रयोग, मस्तिष्क की स्केनिंग, या कार्यात्मक तंत्रिका इमेजिंग (functional neuroimaging) शामिल है जिसका उपयोग, कार्य निष्पादन के दौरान मस्तिष्क की गतिविधियों की जांच करने के लिए किया जाता है और उन तकनीकों जैसे परा क्रेनियम चुम्बकीय उत्प्रेरण (transcranial magnetic stimulation) की जाँच के लिए किया जाता है जो छोटे मस्तिष्क के क्षेत्रों के कार्य को सुरक्षित रूप से परिवर्तित कर सकते हैं ताकि मानसिक गतिविधियों में उनके महत्त्व को प्रकट किया जा सके। कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग दो परतों के साथ thumb|150px|कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (Artificial neural network), नोड्स का एक आपस में जुड़ा हुआ समूह, मानव के मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के बड़े जाल के सामान होता है। कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग (Computational modeling)रॉन सन, (२००८).कम्प्यूटेशनल मनोविज्ञान की कैम्ब्रिज हैंडबुक कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यूयॉर्क.२००८. का उपयोग अक्सर गणितीय मनोविज्ञान (mathematical psychology) और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (cognitive psychology) में किया जाता है, ताकि एक कंप्यूटर के उपयोग के द्वारा एक विशेष व्यवहार को उत्तेजित किया जा सके। इस विधि के कई फायदे हैं। चूंकि आधुनिक कंप्यूटर बहुत जल्दी प्रक्रिया करते हैं, कई उत्त्प्रेरण बहुत छोटे समय में किये जा सकते हैं, जो सांख्यिकीय क्षमता की बड़ी मात्रा की अनुमति देते हैं। मोडलिंग मनोविज्ञानियों को उन मानसिक घटनाओं के कार्यात्मक संगठन के बारे में परिकल्पना करने की अनुमति देता है जो मानव में प्रत्यक्ष रूप से प्रेक्षित नहीं की जा सकती हैं। व्यवहार के अध्ययन के लिए मॉडलिंग के कई प्रकारों का उपयोग किया जाता है।संबंधवाद (Connectionism) मस्तिष्क को उत्तेजित करने के लिए तंत्रिका नेटवर्क (neural network) का उपयोग करता है। एनी विधि है प्रतीकात्मक मॉडलिंग, जो चरों और नियमों के उपयोग के द्वारा भिन्न मानसिक वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है। मॉडलिंग के अन्य प्रकारों में शामिल हैं गतिशील प्रणाली (dynamic systems) और स्टोकेस्टिक (stochastic) मॉडलिंग. पशु अध्ययन thumb|पावलोव का एक कुत्ता जिसमें शल्य क्रिया के द्वारा केनुला (cannula) प्रत्यारोपित किया गया ताकि लार (saliva) के उत्पादन का मापन किया जा सकेपशु अधिगम प्रयोग मनोविज्ञान के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण हैं जैसे सीखना, स्मृति और व्यवहार के जैविक आधार पर जांच। 1890 में मनो विज्ञानी इवान पावलोव (Ivan Pavlov) ने क्लासिकल कंडिशनिंग (classical conditioning) के प्रदर्शन के लिए कुत्तों का उपयोग किया जो काफी प्रसिद्द रहा। गैर मानव प्राइमेट्स (Non-human primates) बिलियन, कुत्ते, चूहे और अन्य रोडेन्टस (rodents) अक्सर मनो वैज्ञानिक प्रयोगों में प्रयुक्त किये जाते हैं। नियंत्रित प्रयोगों में शामिल है एक समय में केवल एक चर (variable) को शामिल करना। इसीलिए, प्रयोगों में प्रयुक्त किये जाने वाले पशुओं को प्रयोगशाला सेटिंग्स में रखा जाता है। इसके विपरीत, मानव वातावरण और आनुवंशिक पृष्ठभूमि व्यापक रूप से भिन्न प्रकार के होते हैं, जो मानव विषयों के लिए महत्ववपूर्ण चरों के नियंत्रण को मुश्किल बनाता है। आलोचना एक विज्ञान के रूप में स्तर मनोविज्ञान की आलोचनाएँ अक्सर इस धारणा से आती हैं की यह एक "उलझन भरा " विज्ञान है। दार्शनिक थॉमस कुहन (Thomas Kuhn) के १९६२ के आलोचक ने मनोविज्ञान को एक पूर्व समग्र अवस्था पर लागू किया, जिसमें ऐसे समझौतों का अभाव था जो परिपक्व विज्ञान जैसे रसायन शास्त्र और भौतिकी में पाए जाने वाले सिद्धांतों तक पहुँच सके। मनोवैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने विभिन्न तरीकों से इस मुद्दे को संबोधित किया है।ग्रेग हेनरिक्स (Gregg Henriques), जो जेम्स मेडिसन विश्वविद्यालय (James Madison University) से थे, ने २००३ (Tree of Knowledge System) में ट्री ऑफ नोलेज सिस्टम को प्रकाशित किया, जो मनोविज्ञान के सैद्धांतिक एकीकरण के लिए एक प्रस्ताव के रूप में था। हेनरिक्स, जी आर (२००३).दी ट्री ऑफ नोलेज सिस्टम और मनोविज्ञान के सैद्धांतिक एकीकरण सामान्य मनोविज्ञान की समीक्षा, २, १५०-१८२. क्योंकि मनोविज्ञान के कुछ क्षेत्र अनुसंधान विधियों जैसे सर्वेक्षण और प्रश्नावली (questionnaire) पर भरोसा करते हैं, आलोचकों का यह मानना है की मनोविज्ञान वैज्ञानिक नहीं है। अन्य घटना जिसमें मनोविज्ञानी रूचि लेते हैं, जैसे व्यक्तित्व (personality), सोच (thinking) और भावना (emotion), का मापन प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है और अक्सर इन्हें विषयी स्व-रिपोर्टों से मापा जाता है, जो समस्या जनक हो सकता है। संभाव्यता (probability) की वैद्यता, जो सनुसंधान उपकरण के रूप में जांच करती है, उस पर प्रश्न उठते रहे हैं। इसमें सोचने की बात है कि सांख्यिकीय विधियाँ अर्थपूर्ण रूप में तुच्छ निष्कर्षों को बढ़ावा दे सकती हैं, विशेष रूप से जब बड़े नमूनों का उपयोग किया जाता है।कोहेन, जे (१९९४).पृथ्वी गोल है, पी < .०५ . अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, ४९. कुछ मनोवैज्ञानिकों ने प्रभावी आकार (effect size) सांख्यिकी के बढे हुए उपयोग के साथ प्रतिक्रिया दी है, इसके बजाय सांख्यिकीय परिकल्पना परिक्षण में यह केवल पारंपरिक पी <.०५ फैसले के नियम पर विश्वास नहीं करता है, कभी कभी विवाद मनोविज्ञान से उत्पन्न होता है, उदाहरण के लिए, प्रयोगशाला उन्मुख शोधकर्ताओं और चिकित्सकों या प्रेकटिशनर्स के बीच। हाल के वर्षों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य में, चिकित्सीय प्रभावकारिता की प्रकृति के बारे में विवाद (debate) बढा है और साथ ही मनो चिकित्सकीय रणनीति की मूल जांच पर भरोसे के बारे में भी विवाद बढ़ गया है।इलियट, रॉबर्ट.(१९९८).एडिटर्स इंट्रोडकशन : मूल रूप से समर्थित उपचार विवाद के लिए एक मार्गदर्शिका. मनोचिकित्सा अनुसंधान, ८ (2), ११५. एक तर्क के अनुसार कुछ थेरेपियां बदनाम सिद्धांतों पर आधारित हैं और इन्हें मूल प्रमाणों का समर्थन नहीं मिलता है। दूसरा पक्ष हाल ही के अनुसंधान की और इशारा करता है और बताता है कि सभी मुख्य धरा थेरेपियां सामान प्रभावित से युक्त होती हैं, जबकि इसका यह भी तर्क है कि नियंत्रित अध्ययन अक्सर वास्तविक दुनिया कि स्थितियों में विचाराधीन नहीं होते हैं।(उदाहरण चिकित्सावाद के अनुभव या उच्च सह रूग्णता दर) फ्रिंज नैदानिक प्रथायें वैज्ञानिक सिद्धांत और उसके अनुप्रयोगों के बीच एक कथित अंतर के बारे में सोचने की बात है, विशेष रूप से ऐसी चिकित्सकीय प्रथाओं के लिए जिन्हें साबित नहीं किया गया है या वे उपयुक्त नहीं हैं। अनुसंधानकर्ता जैसे बेयर स्टीन (२००१) कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है जो विज्ञान के प्रशिक्षण पर भारी नहीं है।बेयरस्टीन, बी, एल.(२००१)। फ्रिंज मनो चिकित्सा: दी पब्लिक एट रिस्क वैकल्पिक चिकित्सा की वैज्ञानिक समीक्षा, ५, ७०-७९ लीलिनफील्ड (२००२) के अनुसार" अमान्य और कभी कभी हानिकारक मनो चिकित्सकीय विधियों, की बहुत सी किस्में, जिसमें शिशु अटिस्म के लिए आसान संचार शामिल (facilitated communication) है।..ऐसी तकनीकें जिनकी सलाह स्मृति में सुधार के लिए दी गयी है, (उदाहरण हिप्नोटिक आयु प्रतिगमन, निर्देशित कल्पना, शरीर का कार्य (body work)), उर्जा थेरेपियां, (उदाहरण विचार क्षेत्र थेरेपी (Thought Field Therapy), भावनात्मक स्वतंत्रता तकनीक (Emotional Freedom Technique))....और अंतहीन धारियों की तरह प्रतीत होती हुई नए युग की चिकित्साएँ, (उदाहरण रीबर्थिंग (rebirthing), री पेरेंटिंग (reparenting), पास्ट लाइफ रिग्रेशन (past-life regression), प्राइमल.......थेरेपी (Primal...therapy), तंत्रिकाभाषी प्रोग्रामिंग (neurolinguistic programming), अलाइन एबडकशन थेरेपी, एंजल थेरेपी) हाल ही के दशकों में या तो विकसित हुए हैं, या इन्होने अपनी लोकप्रियता को बनाये रखा है।" एलेन न्युरिन्जर ने १९८४ में व्यवहार के प्रयोगात्मक विश्लेषण के क्षेत्र में सामान बिंदु बनाये हैं।न्यूरिन्जर, ऐ.:"मेलियोरेशन एंड सेल्फ एक्सपेरीमेनटेशन " व्यवहार के प्रयोगात्मक विश्लेषण की जर्नल http://www.pubmedcentral.nih.gov/articlerender.fcgi?artid=1348111 इन्हें भी देखें बुनियादी मनोविज्ञान विषयों की सूची (List of basic psychology topics) मनोवैज्ञानिकों की सूची (List of psychologists) मनोविज्ञान संगठनों की सूची (List of psychology organizations) मनोविज्ञान विषयों की सूची (List of psychology topics) मनोविज्ञान में प्रकाशनों की सूची (List of publications in psychology) सन्दर्भ बाहरी सम्बन्ध मनोविज्ञान का शब्दकोष की भावना श्रेणी:Psychology श्रेणी:Behavioural sciences श्रेणी:Greek loanwords
मनोविज्ञान
https://hi.wikipedia.org/wiki/मनोविज्ञान
मनोविज्ञान वह शैक्षिक और अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है।"How does the APA define "psychology"?". Retrieved 15 November 2011. दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से प्रेक्षणीय व्यवहार का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन, अवधान, प्रत्यक्षण, सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है। इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। शिवम- मनोविज्ञान मानव अन्तरनिहित वेदनाओं का संग्रह है परिभाषाएँ मनोविज्ञान की परिभाषाएँ :- वाटसन के अनुसार, मनोविज्ञान, व्यवहार का निश्चित या शुद्ध विज्ञान है। मैक्डूगल के अनुसार, मनोविज्ञान, आचरण एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है वुडवर्थ के अनुसार, मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान है। क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, मनोविज्ञान मानव–व्यवहार और मानव सम्बन्धों का अध्ययन है। बोरिंग के अनुसार, मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है। स्किनर के अनुसार, मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है। मन के अनुसार, आधुनिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से है। गैरिसन व अन्य के अनुसार, मनोविज्ञान का सम्बन्ध प्रत्यक्ष मानव – व्यवहार से है। गार्डनर मर्फी के अनुसार, मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो जीवित व्यक्तियों का उनके वातावरण के प्रति अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है। स्टीफन के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक विकास का क्रमिक अध्ययन है। ब्राउन के अनुसार, शिक्षा के द्वारा मानव व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है तथा मानव व्यवहार का अध्ययन ही मनोविज्ञान कहलाता है। क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है। स्किनर के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित सम्पूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आ जाता है। कॉलसनिक के अनुसार, मनोविज्ञान के सिद्धान्तों व परिणामों का शिक्षा के क्षेत्र में अनुप्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है। सारे व टेलफोर्ड के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है। किल्फोर्ड के अनुसार, बालक के विकास का अध्ययन हमें यह जानने योग्य बनाता है कि क्या पढ़ायें और कैसे पढाये। स्किनर के अनुसार, मानव व्यवहार एवं अनुभव से सम्बंधित निष्कर्षो का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है। जे.एम. स्टीफन के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमिक अध्ययन है। ट्रो के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों के मनोविज्ञान पक्षों का अध्ययन है। बी एन झा के अनुसार, शिक्षा की प्रकिया पूर्णतया मनोविज्ञान की कृपा पर निर्भर है। एस एस चौहान के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिवेश में व्यक्ति के विकास का व्यवस्थित अध्ययन है। पेस्टोलोजी के अनुसार, शिक्षा मनुष्य की क्षमताओं का स्वाभाविक, प्रगतिशील तथा विरोधहीन विकास है। जॉन डीवी के अनुसार, शिक्षा मनुष्य की क्षमताओं का विकास है , जिनकी सहायता से वह अपने वातावरण पर नियंत्रण करता हुआ अपनी संभावित उन्नति को प्राप्त करता है। जॉन एफ.ट्रेवर्स के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है ,जिसमे छात्र , शिक्षण तथा अध्यापन का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। स्किनर के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य शैक्षिक परिस्थति के मूल्य एवं कुशलता में योगदान देना है।'' अभिषेक के अनुसार , किसी मानव मस्तिष्क में किसी जीव या प्राणी के संदर्भ में आए विचारों का मानव मस्तिष्क द्वारा निकाले गए निष्कर्षों को परिभाषित करना मनोविज्ञान कहलाता हैं इतिहास प्राक्-वैज्ञानिक काल (pre-scientific period) में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र (Philosophy) की एक शाखा था। जब विल्हेल्म वुण्ट (Wilhelm Wundt) ने १८७९ में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला खोली, मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र के चंगुल से निकलकर एक स्वतंत्र विज्ञान का दर्जा पा सकने में समर्थ हो सका। मनोविज्ञान पर दर्शनशास्त्र का प्रभाव मनोविज्ञान पर वैज्ञानिक प्रवृत्ति के साथ-साथ दर्शनशास्त्र का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। वास्तव में वैज्ञानिक परंपरा बाद में आरंभ हुई पहले तो प्रयोग या पर्यवेक्षण के स्थान पर विचारविनिमय तथा चिंतन समस्याओं को सुलझाने की सर्वमान्य विधियाँ थीं मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दर्शन के परिवेश में प्रतिपादित करनेवाले विद्वानों में से कुछ के नाम उल्लेखनीय हैं। डेकार्ट (1596 - 1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्मा होती है जबकि पशु केवल मशीन की भाँति काम करते हैं। आत्मा के कारण मनुष्य में इच्छाशक्ति होती है। पिट्यूटरी ग्रंथि पर शरीर तथा आत्मा परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हे जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता। लायबनीत्स (1646 - 1716) के मतानुसार संपूर्ण पदार्थ "मोनैड" इकाई से मिलकर बना है। उन्होंने चेतनावस्था को विभिन्न मात्राओं में विभाजित करके लगभग दो सौ वर्ष बाद आनेवाले फ्रायड के विचारों के लिये एक बुनियाद तैयार की। लॉक (1632-1704) का अनुमान था कि मनुष्य के स्वभाव को समझने के लिये विचारों के स्रोत के विषय में जानना आवश्यक है। उन्होंने विचारों के परस्पर संबंध विषयक सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए बताया कि विचार एक तत्व की तरह होते हैं और मस्तिष्क उनका विश्लेषण करता है। उनका कहना था कि प्रत्येक वस्तु में प्राथमिक गुण स्वयं वस्तु में निहित होते हैं। गौण गुण वस्तु में निहित नहीं होते वरन् वस्तु विशेष के द्वारा उनका बोध अवश्य होता है। बर्कले (1685-1753) ने कहा कि वास्तविकता की अनुभूति पदार्थ के रूप में नहीं वरन् प्रत्यय के रूप में होती है। उन्होंने दूरी की संवेदनाके विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अभिबिंदुता धुँधलेपन तथा स्वत: समायोजन की सहायता से हमें दूरी की संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबंध के विषय में लॉक का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से "विचार" तथा "अनुमान" में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य-कारण-सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोविज्ञान को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुँचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705-1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु-तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। इस विचार की पृष्ठभूमि में न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित तथ्य थे जिनमें कहा गया था कि उत्तेजक के हटा लेने के बाद भी संवेदना होती रहती है। हार्टले ने साहचर्य विषयक नियम बताते हुए सान्निध्य के सिद्धांत पर अधिक जोर दिया। हार्टले के बाद लगभग 70 वर्ष तक साहचर्यवाद के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। इस बीच स्काटलैंड में रीड (1710-1796) ने वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण का वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्यक्षीकरण तथा संवेदना में भेद करना आवश्यक है। किसी वस्तु विशेष के गुणों की संवेदना होती है जबकि उस संपूर्ण वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना केवल किसी वस्तु के गुणों तक ही सीमित रहती है, किंतु प्रत्यक्षीकरण द्वारा हमें उस पूरी वस्तु का ज्ञान होता है। इसी बीच फ्रांस में कांडिलैक (1715-1780) ने अनुभववाद तथा ला मेट्री ने भौतिकवाद की प्रवृत्तियों की बुनियाद डाली। कांडिलैंक का कहना था कि संवेदन ही संपूर्ण ज्ञान का "मूल स्त्रोत" है। उन्होंने लॉक द्वारा बताए गए विचारों अथवा अनुभवों को बिल्कुल आवश्यक नहीं समझा। ला मेट्री (1709-1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। डेकार्ट की ही भाँति उन्होंने भी मनुष्य को एक मशीन की तरह माना। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भाँति आत्मा भी नाशवान् है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुखप्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806-1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वुंट के लिये उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार की। बेन (1818-1903) के बारे में यही बात लागू होती है। कांट ने समस्याओं के समाधान में व्यक्तिनिष्ठावाद की विधि अपनाई कि बाह्य जगत् के प्रत्यक्षीकरण के सिद्धांत में जन्मजातवाद का समर्थन किया। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूण्र योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभववाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया और लॉत्से (1817-1881) ने इसी दिशा में ओर आगे प्रगति की। मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का आरम्भ मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ उनके औपचारिक स्वरूप आने के बाद पहले से हो चुका था। सन् 1834 में वेबर ने स्पर्शेन्द्रिय संबंधी अपने प्रयोगात्मक शोधकार्य को एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। सन् 1831 में फेक्नर स्वयं एकदिश धारा विद्युत् के मापन के विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर चुके थे। कुछ वर्षों बाद सन् 1847 में हेल्मो ने ऊर्जा सरंक्षण पर अपना वैज्ञानिक लेख लोगों के सामने रखा। इसके बाद सन् 1856 ई, 1860 ई तथा 1866 ईदृ में उन्होंने "आप्टिक" नामक पुस्तक तीन भागों में प्रकाशित की। सन् 1851 ई तथा सन् 1860 ई में फेक्नर ने भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण ग्रंथ (ज़ेंड आवेस्टा तथा एलिमेंटे डेयर साईकोफ़िजिक प्रकाशित किए। सन् 1858 ई में वुंट हाइडलवर्ग विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान में डाक्टर की उपधि प्राप्त कर चुके थे और सहकारी पद पर क्रियाविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। उसी वर्ष वहाँ बॉन से हेल्मोल्त्स भी आ गए। वुंट के लिये यह संपर्क अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी के बाद उन्होंने क्रियाविज्ञान छोड़कर मनोविज्ञान को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वुंट ने अनगिनत वैज्ञानिक लेख तथा अनेक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित करके मनोविज्ञान को एक धुँधले एवं अस्पष्ट दार्शनिक वातावरण से बाहर निकाला। उसने केवल मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक परिवेश में रखा और उनपर नए दृष्टिकोण से विचार एवं प्रयोग करने की प्रवृत्ति का उद्घाटन किया। उसके बाद से मनोविज्ञान को एक विज्ञान माना जाने लगा। तदनंतर जैसे-जैसे मरीज वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर प्रयोग किए गए वैसे-वैसे नई नई समस्याएँ सामने आईं। आधुनिक मनोविज्ञान == आधुनिक मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इसके दो सुनिश्चित रूप दृष्टिगोचर होते हैं। एक तो वैज्ञानिक अनुसंधानों तथा आविष्कारों द्वारा प्रभावित वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा दूसरा दर्शनशास्त्र द्वारा प्रभावित दर्शन मनोविज्ञान। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ है। सन् 1860 ई में फेक्नर (1801-1887) ने जर्मन भाषा में "एलिमेंट्स आव साइकोफ़िज़िक्स" (इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है) नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक पद्धति के परिवेश में अध्ययन करने की तीन विशेष प्रणालियों का विधिवत् वर्णन किया : मध्य त्रुटि विधि, न्यूनतम परिवर्तन विधि तथा स्थिर उत्तेजक भेद विधि। आज भी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इन्हीं प्रणालियों के आधार पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जाते हैं। वैज्ञानिक मनोविज्ञान में फेक्नर के बाद दो अन्य महत्वपूर्ण नाम है : हेल्मोलत्स (1821-1894) तथा विल्हेम वुण्ट (1832-1920)। हेल्मोलत्स ने अनेक प्रयोगों द्वारा दृष्टीर्द्रिय विषयक महत्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया। इस संदर्भ में उन्होंने प्रत्यक्षीकरण पर अनुसंधान कार्य द्वारा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अस्तित्व ऊपर उठाया। वुंट का नाम मनोविज्ञान में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने सन् 1879 ई में लिपज़िग विश्वविद्यालय (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की।Schacter, D. L.; Gilbert, D. T. and Wegner, D. M. (2010). Psychology. 2nd Edition. Worth Publishers. ISBN 1429269677 मनोविज्ञान का औपचारिक रूप परिभाषित किया। लाइपज़िग की प्रयोगशाला में वुंट तथा उनके सहयोगियों ने मनोविज्ञान की विभिन्न समस्याओं पर उल्लेखनीय प्रयोग किए, जिसमें समय-अभिक्रिया विषयक प्रयोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। क्रियाविज्ञान के विद्वान् हेरिंग (1834-1918), भौतिकी के विद्वान् मैख (1838-1916) तथा जी ई म्यूलर (1850 से 1934) के नाम भी उल्लेखनीय हैं। हेरिंग घटना-क्रिया-विज्ञान के प्रमुख प्रवर्तकों में से थे और इस प्रवृत्ति का मनोविज्ञान पर प्रभाव डालने का काफी श्रेय उन्हें दिया जा सकता है। मैख ने शारीरिक परिभ्रमण के प्रत्यक्षीकरण पर अत्यंत प्रभावशाली प्रयोगात्मक अनुसंधान किए। उन्होंने साथ ही साथ आधुनिक प्रत्यक्षवाद की बुनियाद भी डाली। जी ई म्यूलर वास्तव में दर्शन तथा इतिहास के विद्यार्थी थे किंतु फेक्नर के साथ पत्रव्यवहार के फलस्वरूप उनका ध्यान मनोदैहिक समस्याओं की ओर गया। उन्होंने स्मृति तथा दृष्टींद्रिय के क्षेत्र में मनोदैहिकी विधियों द्वारा अनुसंधान कार्य किया। इसी संदर्भ में उन्होंने "जास्ट नियम" का भी पता लगाया अर्थात् अगर समान शक्ति के दो साहचर्य हों तो दुहराने के फलस्वरूप पुराना साहचर्य नए की अपेक्षा अधिक दृढ़ हो जाएगा ("जास्ट नियम" म्यूलर के एक विद्यार्थी एडाल्फ जास्ट के नाम पर है)। सम्प्रदाय व्यवहार विषयक नियमों की खोज ही मनोविज्ञान का मुख्य ध्येय था। सैद्धांतिक स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। मनोविज्ञान के क्षेत्र में सन् 1912 ई के आसपास संरचनावाद, क्रियावाद, व्यवहारवाद, गेस्टाल्टवाद तथा मनोविश्लेषण आदि मुख्य मुख्य शाखाओं का विकास हुआ। इन सभी वादों के प्रवर्तक इस विषय में एकमत थे कि मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन ही मनोविज्ञान का उद्देश्य है। उनमें परस्पर मतभेद का विषय था कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा ढंग कौन सा है। सरंचनावाद के अनुयायियों का मत था कि व्यवहार की व्याख्या के लिये उन शारीरिक संरचनाओं को समझना आवश्यक है जिनके द्वारा व्यवहार संभव होता है। क्रियावाद के माननेवालों का कहना था कि शारीरिक संरचना के स्थान पर प्रेक्षण योग्य तथा दृश्यमान व्यवहार पर अधिक जोर होना चाहिए। इसी आधार पर बाद में वाटसन ने व्यवहारवाद की स्थापना की। गेस्टाल्टवादियों ने प्रत्यक्षीकरण को व्यवहारविषयक समस्याओं का मूल आधार माना। व्यवहार में सुसंगठित रूप से व्यवस्था प्राप्त करने की प्रवृत्ति मुख्य है, ऐसा उनका मत था। फ्रायड ने मनोविश्लेषणवाद की स्थापना द्वारा यह बताने का प्रयास किया कि हमारे व्यवहार के अधिकांश कारण अचेतन प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित होते हैं। मनोविज्ञान के सम्प्रदाय 1879, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान, संरचनावाद -- डब्ल्यू वुन्ट 1896, मनोविश्लेषण -- सिग्मण्ड फ्रॉयड 1913, व्यवहारवाद -- जॉन ब्रोडस वाट्सन 1954, रेशनल इमोटिव बिहेविअरल थिरैपी -- अल्बर्ट एलिस 1960, संज्ञानात्मक चिकित्सा -- आरोन टी बैक 1967, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान -- उल्रिक नाइजर 1962, मानववादी मनोविज्ञान -- अमेरिकन एसोशिएशन ऑफ ह्युमनिस्टिक साइकोलॉजी 1940, गेस्ताल्तवाद -- फ्रिट्ज पर्ल्स आधुनिक मनोविज्ञान में इन सभी "वादों" का अब एकमात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है। इनके स्थान पर मनोविज्ञान में अध्ययन की सुविधा के लिये विभिन्न शाखाओं का विभाजन हो गया है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में मुख्य रूप से उन्हीं समस्याओं का मनोवैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाने लगा जिन्हें दार्शनिक पहले चिंतन अथवा विचारविमर्श द्वारा सुलझाते थे। अर्थात् संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण। बाद में इसके अंतर्गत सीखने की प्रक्रियाओं का अध्ययन भी होने लगा। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान, आधुनिक मनोविज्ञान की प्राचीनतम शाखा है। मनुष्य की अपेक्षा पशुओं को अधिक नियंत्रित परिस्थितियों में रखा जा सकता है, साथ ही साथ पशुओं की शारीरिक रचना भी मनुष्य की भाँति जटिल नहीं होती। पशुओं पर प्रयोग करके व्यवहार संबंधी नियमों का ज्ञान सुगमता से हो सकता है। सन् 1912 ई के लगभग थॉर्नडाइक ने पशुओं पर प्रयोग करके तुलनात्मक अथवा पशु मनोविज्ञान का विकास किया। किंतु पशुओं पर प्राप्त किए गए परिणाम कहाँ तक मनुष्यों के विषय में लागू हो सकते हैं, यह जानने के लिये विकासात्मक क्रम का ज्ञान भी आवश्यक था। इसके अतिरिक्त व्यवहार के नियमों का प्रतिपादन उसी दशा में संभव हो सकता है जब कि मनुष्य अथवा पशुओं के विकास का पूर्ण एवं उचित ज्ञान हो। इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक मनोविज्ञान का जन्म हुआ। सन् 1912 ई के कुछ ही बाद मैक्डूगल (1871-1938) के प्रयत्नों के फलस्वरूप समाज मनोविज्ञान की स्थापना हुई, यद्यपि इसकी बुनियाद समाज वैज्ञानिक हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903) द्वारा बहुत पहले रखी जा चुकी थी। धीरे-धीरे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर मनोविज्ञान का प्रभाव अनुभव किया जाने लगा। आशा व्यक्त की गई कि मनोविज्ञान अन्य विषयों की समस्याएँ सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। साथ ही साथ, अध्ययन की जानेवाली समस्याओं के विभिन्न पक्ष सामने आए। परिणामस्वरूप मनोविज्ञान की नई-नई शाखाओं का विकास होता गया। इनमें से कुछ ने अभी हाल में ही जन्म लिया है, जिनमें प्रेरक मनोविज्ञान, सत्तात्मक मनोविज्ञान, गणितीय मनोविज्ञान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मनोविज्ञान की मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त - दोनों प्रकार की शाखाएं हैं। इसकी महत्वपूर्ण शाखाएं सामाजिक एवं पर्यावरण मनोविज्ञान, संगठनात्मक व्यवहार/मनोविज्ञान, क्लीनिकल (निदानात्मक) मनोविज्ञान, मार्गदर्शन एवं परामर्श, औद्योगिक मनोविज्ञान, विकासात्मक, आपराधिक, प्रायोगिक परामर्श, पशु मनोविज्ञान आदि है। अलग-अलग होने के बावजूद ये शाखाएं परस्पर संबद्ध हैं। नैदानिक मनोविज्ञान - न्यूरोटिसिज्म, साइकोन्यूरोसिस, साइकोसिस जैसी क्लीनिकल समस्याओं एवं शिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया, ऑब्सेसिव-कंपलसिव विकार जैसी समस्याओं के कारण क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे मनोवज्ञानिक का प्रमुख कार्य रोगों का पता लगाना और निदानात्मक तथा विभिन्न उपचारात्मक तकनीकों का इस्तेमाल करना है। विकास मनोविज्ञान में जीवन भर घटित होनेवाले मनोवैज्ञानिक संज्ञानात्मक तथा सामाजिक घटनाक्रम शामिल हैं। इसमें शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान व्यवहार या वयस्क से वृद्धावस्था तक होने वाले परिवर्तन का अध्ययन होता है। पहले इसे बाल मनोविज्ञान भी कहते थे। आपराधिक मनोविज्ञान चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, जहां अपराधियों के व्यवहार विशेष के संबंध में कार्य किया जाता है। अपराध शास्त्र, मनोविज्ञान आपराधिक विज्ञान की शाखा है, जो अपराध तथा संबंधित तथ्यों की तहकीकात से जुड़ी है। पशु मनोविज्ञान एक अद्भुत शाखा है। मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ हैं - असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology) जीववैज्ञानिक मनोविज्ञान (Biological psychology) नैदानिक मनोविज्ञान (Clinical psychology) संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology) सामुदायिक मनोविज्ञान (Community Psychology) तुलनात्मक मनोविज्ञान (Comparative psychology) परामर्श मनोविज्ञान (Counseling psychology) आलोचनात्मक मनोविज्ञान (Critical psychology) विकासात्मक मनोविज्ञान (Developmental psychology) शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology) विकासात्मक मनोविज्ञान (Evolutionary psychology) आपराधिक मनोविज्ञान (Forensic psychology) वैश्विक मनोविज्ञान (Global psychology) स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health psychology) औद्योगिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान (Industrial and organizational psychology (I/O) विधिक मनोविज्ञान (Legal psychology) व्यावसायिक स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Occupational health psychology (OHP) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality psychology) संख्यात्मक मनोविज्ञान (Quantitative psychology) मनोमिति (Psychometrics) गणितीय मनोविज्ञान (Mathematical psychology) सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology) विद्यालयीन मनोविज्ञान (School psychology) पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental psychology) योग मनोविज्ञान (Yoga Psychology) मनोविज्ञान का स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र को सही ढंग से समझने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण श्रेणी वह श्रेणी है जिससे यह पता चलता है कि मनोविज्ञानी क्या चाहते हैं ? किये गये कार्य के आधार पर मनोविज्ञानियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है: पहली श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो शिक्षण कार्य में व्यस्त हैं, दूसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक समस्याओं पर शोध करते हैं तथा तीसरी श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं। इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र है—शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्यक्षेत्रों से सम्बन्धित मुख्य तथ्यों का वर्णन निम्नांकित है— शैक्षिक क्षेत्र (Academic areas) शिक्षण तथा शोध मनोविज्ञान का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के तहत निम्नांकित शाखाओं में मनोविज्ञानी अपनी अभिरुचि दिखाते हैं— (1) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span development Psychology) (2) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental Psychology) (3) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental Psychology) (4) दैहिक मनोविज्ञान (Psychological Psychology) (5) परिणात्मक मनोविज्ञान (Quantitative Psychology) (6) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality Psychology) (7) समाज मनोविज्ञान (Social Psychology) (8) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) (9) संज्ञात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology) (10) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास के अध्ययन से था परंतु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञान में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे 'जीवन अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान' कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञान मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे—बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे—आनुवांशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों का 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना सम्भव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परंतु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिन्तन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक मशहूर हैं। यह कथन एक महान विद्वान के द्वारा संचालित किया गया था,जो की चिंतन मनन के बाद भी आज तक वह प्रशंसनीय माना जाता है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान मनोविज्ञान का यह क्षेत्र मानव प्रयोगात्मक विज्ञान (Human experimental Psychology) के समान है। सिर्फ अन्तर इतना ही है कि यहाँ प्रयोग पशुओं जैसे—चूहों, बिल्लियों, कुत्तों, बन्दरों, वनमानुषों आदि पर किया जाता है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में अधिकतर शोध सीखने की प्रक्रिया तथा व्यवहार के जैविक पहलुओं के अध्ययन में किया गया है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्कीनर, गथरी, पैवलव, टॉलमैन आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। सच्चाई यह है कि सीखने के आधुनिक सिद्घान्त तथा मानव व्यवहार के जैविक पहलू के बारे में हम आज जो कुछ भी जानते हैं, उसका आधार पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ही है। इस मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहारों को समझने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों का मत है कि यदि मनोविज्ञान का मुख्य संबंध मानव व्यवहार के अध्ययन से है तो पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन करना कोई अधिक तर्कसंगत बात नहीं दिखता। परंतु मनोविज्ञानियों के पास कुछ ऐसी बाध्यताएँ हैं जिनके कारण वे पशुओं के व्यवहार में अभिरुचि दिखलाते हैं। जैसे पशु व्यवहार का अध्ययन कम खर्चीला होता है। फिर कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो मनुष्यों पर नैतिक दृष्टिकोण से करना संभव नहीं है तथा पशुओं का जीवन अवधि (life span) का लघु होना प्रमुख ऐसे कारण हैं। मानव एवं पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ मनोविज्ञानियों की संख्या का करीब 14% मनोविज्ञानी कार्यरत है। दैहिक मनोविज्ञान दैहिक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानियों का कार्यक्षेत्र प्राणी के व्यवहारों के दैहिक निर्धारकों (Physical determinants) तथा उनके प्रभावों का अध्ययन करना है। इस तरह के दैहिक मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो जैविक विज्ञान (biological science) से काफी जुड़ा हुआ है। इसे मनोजीवविज्ञान (Psychobiology) भी कहा जाता है। आजकल मस्तिष्कीय कार्य (brain functioning) तथा व्यवहार के संबंधों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे एक नयी अन्तरविषयक विशिष्टता (interdisplinary specialty) का जन्म हुआ है जिसे ‘न्यूरोविज्ञान’ (neuroscience) कहा जाता है। इसी तरह के दैहिक मनोविज्ञान हारमोन्स (hormones) का व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन में भी अभिरुचि रखते हैं। आजकल विभिन्न तरह के औषध (drug) तथा उनका व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन दैहिक मनोविज्ञान में किया जा रहा है। इससे भी एक नयी विशिष्टता (new specialty) का जन्म हुआ है, जिसे मनोफर्माकोलॉजी (Psychopharmacology) कहा जाता है तथा जिसमें विभिन्न औषधों के व्यवहारात्मक प्रभाव (behavioural effects) से लेकर तंत्रीय तथा चयापचय (metabolic) प्रक्रियाओं में होने वाले आणविक शोध (molecular research) तक का अध्ययन किया जाता है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें मनोविज्ञान शब्दावली आधुनिक मनोविज्ञान शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की समयरेखा मानसिक रोग मनोचिकित्सा असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान का इतिहास तथा शाखाएँ बाहरी कड़ियाँ भारतीय मनोविज्ञान (गूगल पुस्तक; लेखकद्वय - रामनाथ शर्मा एवं अर्चना शर्मा) मनोविज्ञान के सम्प्रदाय एवं इतिहास (The History And Systems Of Psychology) (गूगल पुस्तक; लेखक - अरुण कुमार सिंह) आधुनिक मनोविज्ञान के सम्प्रदाय एवं इतिहास (आनलाइन गूगल पुस्तक; लेखक - अरुण कुमार सिंह) उच्चतर नैदानिक मनोविज्ञान (Advanced Clinical Psychology) (आनलाइन गूगल पुस्तक; लेखक - अरुण कुमार सिंह) समाज मनोविज्ञान की रूपरेखा (An Outline of social Psychology) (आनलाइन गूगल पुस्तक; लेखक - अरुण कुमार सिंह) मनोविज्ञान शब्दावली (अंग्रेजी-हिन्दी) मनोविज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली-१ मनोविज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली-२ मनोविज्ञान के जाँच एवं परीक्षण (गूगल पुस्तक; लेखक - राणाप्रताप सिन्हा) मनोविज्ञान - मन का विज्ञान या आत्मा का ? मनोविज्ञान, शिक्षा एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों में अनुसंधान विधियाँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामजी श्रीवास्तव) मनोविज्ञान के सिद्धान्त व प्रतिपादक/जनक श्रेणी:मनोविज्ञान
खेल
https://hi.wikipedia.org/wiki/खेल
thumb|300px|right|बचपन का खेल.एसोसिएशन फुटबॉल, ऊपर दिखाया गया है, एक टीम खेल है जो सामाजिक कार्यों को भी प्रदान करता है। खेल, कई नियमों एवं रिवाजों द्वारा संचालित होने वाली एक प्रतियोगी गतिविधि है। खेल सामान्य अर्थ में उन गतिविधियों को कहा जाता है, जहाँ प्रतियोगी की शारीरिक क्षमता खेल के परिणाम (जीत या हार) का एकमात्र अथवा प्राथमिक निर्धारक होती है, लेकिन यह शब्द दिमागी खेल (कुछ कार्ड खेलों और बोर्ड खेलों का सामान्य नाम, जिनमें भाग्य का तत्व बहुत थोड़ा या नहीं के बराबर होता है) और मशीनी खेल जैसी गतिविधियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जिसमें मानसिक तीक्ष्णता एवं उपकरण संबंधी गुणवत्ता बड़े तत्त्व होते हैं। सामान्यतः खेल को एक संगठित, प्रतिस्पर्धात्मक और प्रशिक्षित शारीरिक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें प्रतिबद्धता तथा निष्पक्षता होती है। कुछ देखे जाने वाले खेल इस तरह के गेम से अलग होते है, क्योंकि खेल में उच्च संगठनात्मक स्तर एवं लाभ (जरूरी नहीं कि वह मौद्रिक ही हो) शामिल होता है। उच्चतम स्तर पर अधिकतर खेलों का सही विवरण रखा जाता है और साथ ही उनका अद्यतन भी किया जाता है, जबकि खेल खबरों में विफलताओं और उपलब्धियों की व्यापक रूप से घोषणा की जाती है। जिन खेलों का निर्णय निजी पसंद के आधार पर किया जाता है, वे सौंदर्य प्रतियोगिताओं और शरीर सौष्ठव कार्यक्रमों जैसे अन्य निर्णयमूलक गतिविधियों से अलग होते हैं, खेल की गतिविधि के प्रदर्शन का प्राथमिक केंद्र मूल्यांकन होता है, न कि प्रतियोगी की शारीरिक विशेषता। (हालाँकि दोनों गतिविधियों में "प्रस्तुति" या "उपस्थिति" भी निर्णायक हो सकती हैं)। खेल अक्सर केवल मनोरंजन या इसके पीछे आम तथ्य को उजागर करता है कि लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम करने की आवश्यकता है। हालाँकि वे हमेशा सफल नहीं होते है। खेल प्रतियोगियों से खेल भावना का प्रदर्शन करने और विरोधियों एवं अधिकारियों को सम्मान देने व हारने पर विजेता को बधाई देने जैसे व्यवहार के मानदंड के पालन की उम्मीद की जाती है। राजस्थान के खेल गिल्ली डंडा और हाथों लिया चार्ली नारियो लुक मिचली प्रसिद्ध खेल रहे हैं इन से शरीर को बहुत फायदा होता था वह रात को सारी बस्ती की लड़कियों और लड़कों के साथ खेलने में मजा ही कुछ और था व्युत्पत्ति "खेल" ("स्पोर्ट") शब्द की [संस्कृत] शब्द स्पर्ध से उत्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ "प्रतियोगिता" है। इतिहास thumb|150px|right|२सरी शताब्दी AD, माय्रण के डिस्कोबोलोस के रोमन पीतल की कटौती। प्राप्त कलाकृतियों और ढाँचों से पता चलता है कि चीन के लोग लगभग ४००० ईसा पूर्व से खेल की गतिविधियों में शामिल थे। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन के प्राचीन काल में जिम्नास्टिक एक लोकप्रिय खेल था। तैराकी और मछली पकड़ना जैसे खेलों के साथ कई खेल पूरी तरह से विकसित और नियमबद्ध थे। इनका संकेत फराहों के स्मारकों से मिलता है। मिस्र के अन्य खेलों में भाला फेंक, ऊँची कूद और कुश्ती भी शामिल थी। फारस के प्राचीन खेलों में जौरखानेह (Zourkhaneh) जैसा पारंपरिक ईरानी मार्शल आर्ट का युद्ध कौशल से गहरा संबंध था। अन्य खेलों में फारसी मूल के पोलो और खेल में सवारों का द्वंद्वयुद्ध शामिल हैं। प्राचीन यूनानी काल में कई तरह के खेलों की परंपरा स्थापित हो चुकी थी और ग्रीस की सैन्य संस्कृति और खेलों के विकास ने एक दूसरे को काफी प्रभावित किया। खेल उनकी संस्कृति का एक ऐसा प्रमुख अंग बन गया कि यूनान ने ओलिंपिक खेलों का आयोजन किया, जो प्राचीन समय में हर चार साल पर पेलोपोनेसस के एक छोटे से गाँव में ओलंपिया नाम से आयोजित किये जाते थे। प्राचीन ओलंपिक्स से वर्तमान सदी तक खेल आयोजित किये जाते रहे हैं और उनका विनियमन भी होता रहा है। औद्योगिकीकरण की वजह से विकसित और विकासशील देशों के नागरिकों के अवकाश का समय भी बढ़ा है, जिससे नागरिकों को खेल समारोहों में भाग लेने और दर्शक के रूप में मैदानों तक पहुँचने, एथलेटिक गतिविधियों में अधिक से अधिक भागीदारी करने और उनकी पहुँच बढ़ी है। मास मीडिया और वैश्विक संचार माध्यमों के प्रसार से ये प्रवृत्तियाँ जारी रहीं। व्यवसायिकता की प्रधानता हुई, जिससे खेलों की लोकप्रियता में वृद्धि हुई, क्योंकि खेल प्रशंसकों ने रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से व्यावसायिक खिलाड़ियों के खेल का बेहतरीन आनंद लेना शुरू किया। इसके अलावा व्यायाम और खेल में शौकिया भागीदारी का आनंद लेने का रिवाज भी बढ़ा। नई सदी में, नए खेल, प्रतियोगिता के शारीरिक पहलू से आगे जाकर मानसिक या मनोवैज्ञानिक पहलू को बढ़ावा दे रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक खेल संगठन दिन पर दिन लोकप्रिय होते जा रहे हैं। क्रियाएं, जहाँ परिणाम गतिविधि पर निर्णय से निर्धारित होता है, उन्हें प्रदर्शन या प्रतिस्पर्धा माना जाता है। खेल भावना खेल भावना एक दृष्टिकोण है, जो ईमानदारीपूर्वक खेलने, टीम के साथियों और विरोधियों के प्रति शिष्टाचार बरतने, नैतिक व्यवहार और सत्यनिष्ठा दिखाने तथा जीत या हार में बड़प्पन के प्रदर्शन की प्रेरणा देता है।देखें, जैसे, जोएल फिश और सुज़न मागी, 101 वेज़ टू बी अ टेरेफिक स्पोर्ट्स पेरेंट्स, पृष्ठ. 168. फायरसाइड, 2003. डेविड लेसी, "इट टेक्स अ बैड लुज़र टू बिकम अ गुड विनर." द गार्जियन, 10 नवम्बर 2007. खेल भावना एक आकांक्षा या लोकाचार को अभिव्यक्त करती है कि गतिविधि का आनंद खुद गतिविधि ही उठाये। खेल पत्रकार ग्रांटलैंड राइस का प्रसिद्ध कथन है कि "यह अहम नहीं है कि तुम हारे या जीते, अहम यह है कि तुमने खेल कैसा खेला", आधुनिक ओलिंपिक भावना की अभिव्यक्ति इसके संस्थापक पियरे डी कॉबिरटीन ने इस प्रकार की है कि "सबसे महत्वपूर्ण बात है।..जीतना नहीं, बल्कि इसमें हिस्सा लेना" ये इस भावना की विशिष्ट अभिव्यक्ति हैं। खेल में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और जानबूझकर आक्रामक हिंसा के बीच की रेखा को पार करने से ही हिंसा पैदा होती है। एथलीट, कोच, प्रशंसक, कभी अभिभावक कभी-कभी गुमराह वफादारी, प्रभुत्व, क्रोध, या उत्सव के तौर पर लोगों और संपत्ति को हिंसा की भेंट चढ़ा देते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में हुड़दंग और गुंडागर्दी आम बात हो गयी है और यह एक बड़ी समस्या बन गयी है। व्यावसायिकता thumb|200px|right|आधुनिक खेलों के नियम, जटिल होते हैं और इनका अत्यधिक आयोजन होता है। खेल के मनोरंजन वाले पहलू, मास मीडिया के प्रसार और अवकाश के लिए समय बढ़ने के साथ-साथ खेलों में व्यावसायिकता बढ़ी है। इसकी वजह से कुछ-कुछ संघर्ष के हालात भी पैदा हुए हैं, जहाँ भुगतान का चेक मनोरंजक पहलुओं से ज्यादा अहम हो जाता है या जहाँ खेलों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफेदार और लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जाती है और इस तरह कुछ महत्वपूर्ण परंपराएं लुप्त होती जाती हैं। खेल के मनोरंजन पहलू का मतलब यह भी है कि खिलाड़ियों और महिलाओं को अक्सर सेलिब्रिटी की हैसियत हासिल होती है। राजनीति समय के साथ खेल और राजनीति ने एक-दूसरे को काफी प्रभावित किया है। जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद सरकारी नीति थी, खेलों से जुड़े कई लोग, विशेष रूप से रग्बी यूनियन में आम सहमति से एक दृष्टिकोण अपनाया गया कि उन्हें वहाँ प्रतिस्पर्धात्मक खेलों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि रंगभेद की नीति के खात्मे में इसका एक प्रभावी योगदान था, जबकि दूसरों को लगता है कि यह काफी लंबे समय तक चल सकता था और और अपना सबसे बुरा प्रभाव दिखा सकता था। १९३६ के बर्लिन में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक एक मिसाल था, शायद पीछे मुड़कर आत्मनिरीक्षण करने का, जहाँ एक विचारधारा विकसित हुई, जिसने प्रचार-प्रसार के माध्यम से खुद को मजबूत करने के लिए आयोजन का उपयोग किया। thumb|200px|right|आधुनिक खेल में मोटरीकरण का आगमन हुआ है। आयरलैंड के इतिहास में, गेलिक खेल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े हुए थे। २०वीं सदी के मध्य तक कोई व्यक्ति गेलिक फुटबॉल खेलने, प्रक्षेपण, या गेलिक एथलेटिक एसोसिएशन (GAA) द्वारा प्रशासित खेलों में भाग लेने से रोका जा सकता था, अगर वह ब्रिटिश मूल के फुटबॉल या अन्य खेलों में भाग लेता या समर्थन करता। हाल तक GAA ने गेलिक स्थानों फुटबॉल और रग्बी यूनियन के खेलने पर प्रतिबंध जारी रखा था। यह प्रतिबंध आज भी लागू है, लेकिन क्रोक पार्क में फुटबॉल और रग्बी खेलने की अनुमति देने के लिए कुछ संशोधन किया गया। जबकि लैंसडाउन रोड को पुनर्विकसित किया जा रहा है। हाल तक नियम २१ के तहत, GAA ने भी ब्रिटिश सुरक्षा बलों और RUC के सदस्यों पर गेरिक खेल खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन १९९८ में गुड फ्राइडे समझौते के बाद इस प्रतिबंध को हटाया जा सका। खेल कार्यकलाप के दौरान, या इसकी रिपोर्टिंग में कई बार राष्ट्रवाद उभर कर सामने आ जाता है। राष्ट्रीय दलों में भाग लेने वाले खिलाड़ी या कमेंटेटर और दर्शक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं। कई अवसरों पर ऐसा तनाव खिलाड़ियों या मैदान के भीतर या बाहर के दर्शकों के बीच हिंसक झड़पों को जन्म (फुटबॉल युद्ध देख सकते हैं) देता है। खेल के बुनियादी मूल्यों के विपरीत ये प्रवृतियाँ अपने हित और प्रतियोगियों के मनोरंजन के लिए अपनाई जाती रही हैं। शारीरिक कला thumb|150px|right|जिम्नास्टिक्स खेल की कला के साथ कई समानताएं हैं। आइस स्केटिंग व ताई ची और उदाहरण के लिए डाँस स्पोर्ट, ऐसे खेल हैं जो कलात्मक नजरिये के करीब होते हैं। इसी प्रकार, कलात्मक जिमनास्टिक, शरीर सौष्ठव, पार्कआवर, प्रदर्शन कला, योग, बेसबॉल, ड्रेसेज, पाक कला जैसी गतिविधियों में खेल और कला दोनों के तत्त्व दिखते हैं। शायद इसका सबसे अच्छा उदाहरण बुल फाइटिंग (साँडों से लड़ना) है, जिनकी खबरें समाचार पत्रों के कला पन्नों में छापी जाती हैं। वस्तुत: कुछ स्थितियों में खेल, कला के इतने करीब होता है कि वह संभवत: खेल की प्रकृति से संबंधित हो जाता है। उपर्युक्त "खेल" की परिभाषा एक गतिविधि का विचार व्यक्त करती है, जो सामान्य प्रयोजनों के लिए नहीं होती, उदाहरण के लिए दौड़ना केवल कहीं पहुंचने के लिए नहीं होता, बल्कि अपने लिए दौड़ना है, जैसे कि हम दौड़ने में सक्षम हैं। यह सौंदर्य मूल्यबोध के आम विचार के करीब है, जो वस्तु के सामान्य उपयोग से निकले विशुद्ध कार्यकारी मूल्य से ऊपर है। जैसे, सौंदर्यबोध वाली मनभावन कार वह नहीं है जो ए से बी को मिलती है, बल्कि जो अनुग्रह, शिष्टता और करिश्में से हमें प्रभावित करती है। उसी तरह, उँची कूद जैसे खेल के प्रदर्शन में सिर्फ बाधाओं से बचने या नदियों को पार करने की गतिविधि हमें प्रभावित नहीं करती। इसमें दिखी योग्यता, कौशल और शैली से हम प्रभावित होते हैं। कला और खेल के बीच संभवतः स्पष्ट संपर्क प्राचीन ग्रीस के समय से है, जब जिमनास्टिक और कालिस्थेनिक्स (calisthenics) ने प्रतिभागियों द्वारा प्रदर्शित शारीरिक गठन, शक्ति और 'एरेट' सौंदर्य की सराहना शुरू की। कौशल के रूप में 'कला' आधुनिक अर्थ प्राचीन ग्रीक शब्द 'arete से संबंधित है। इस दौर में कला और खेल की निकटता ओलंपिक खेलों के जरिये दिखी, जैसा कि हमने खेल और कलात्मक उपलब्धियों दोनों के समारोहों, कविता, मूर्तिकला और वास्तुकला में देखा है। तकनीक खेल में प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, चाहे उसका किसी एथलीट के स्वास्थ्य के लिए उपयोग किया जाये या एथलीट्स की तकनीक या उपकरण की विशेषताओं के रूप में। उपकरण चूंकि खेल और अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं, इसलिए बेहतर उपकरणों की जरूरत बढ़ी है। नई तकनीक के प्रयोग से गोल्फ क्लब, फुटबॉल हेलमेट, बेसबॉल के बल्ले, फुटबॉल की गेंद, हॉकी, स्केट्स और अन्य उपकरणों में उल्लेखनीय बदलाव देखे गये हैं। स्वास्थ्य पोषण से लेकर चोटों के इलाज तक, समय के साथ मानव शरीर के ज्ञान में बढोत्तरी होने के कारण एक खिलाड़ी की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। एथलीट अब ज्यादा उम्र का होने के बावजूद खेलने में सक्षम हैं, उनके चोट जल्दी ठीक हो रहे हैं और पिछली पीढ़ियों के एथलीटों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित हो रहे हैं। अनुदेश प्रौद्योगिकी के विकास ने खेलों में अनुसंधान के लिए नये अवसर पैदा किये हैं। अब खेल के पहलुओं का विश्लेषण संभव है, जिन्हें पहले पहुँच से बाहर समझा जाता था। गति के चित्र लेने से लेकर खिलाड़ी की गति या उन्नत कंप्यूटर सिमुलेशन को पकड़ने से मॉडल भौतिक स्थितियों को कैद करने में सक्षम होने के कारण एथलीट के क्रियाकलापों को समझने और उनमें सुधार करने की क्षमता पैदा हुई है। शब्दावली thumb|200px|right|शो जम्पिंग, एक घुड़सवारी खेल। ब्रिटिश अंग्रेजी में खेल की गतिविधियाँ सामान्य संज्ञा "खेल" के रूप में चिह्नित हैं। अमेरिकी अंग्रेजी में "खेल" का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। अंग्रेजी की सभी बोलियों में, "खेल" एक से अधिक विशिष्ट खेलों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, "फुटबॉल और तैराकी, मेरे पसंदीदा खेल हैं", सभी अंग्रेज़ी बोलने वालों को स्वाभाविक लगेगा जबकि "मैं खेल का आनंद लेता हूँ", उत्तरी अमेरिकियों को "मैं खेलों का आनंद लेता हूँ" की तुलना में कम स्वाभाविक लगेगा। "खेल" शब्द का उपयोग कभी-कभी शारीरिक गतिविधि के स्तर के अलावा सभी प्रतिस्पर्धात्मक गतिविधियों के लिए किया जाता है। दक्षता वाले खेल और मोटरवाले खेल दोनों ही शारीरिक गतिविधि प्रदर्शित करते हैं, जैसे दक्षता, खिलाड़ीपन और यहाँ तक कि ऊँचे स्तर पर पेशेवर प्रायोजन भी शारीरिक रूप से खेले जाने वाले खेलों से जुड़े होते हैं। हवा के खेल, बिलियर्ड्स, ब्रिज, शतरंज, मोटरसाईकिल दौड़ और पावरबोटिंग, सब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा खेल के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, क्योंकि IOC द्वारा मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय खेल संघों की एसोसिएशन में उनकी प्रशासकीय निकायों का प्रतिनिधित्व होता है। दर्शक खेल खेल प्रतिभागियों के लिए मनोरंजन का एक रूप होने के बावजूद बहुत सारे खेल दर्शकों के सामने खेले जाते हैं। ज्यादातर पेशेवर खेल किसी तरह के 'थियेटर', एक स्टेडियम, मैदान, गोल्फ कोर्स, दौड़ ट्रैक, या खुली सड़क पर आम जनता के देखने के प्रावधान (अक्सर इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है) के तहत खेले जाते हैं। thumb|200px|right|ऑस्ट्रेलियन रूल्स फुटबॉल खेल में अब बड़े टीवी दर्शकों या रेडियो श्रोताओं को भी आकर्षित किया जाता है, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी प्रसारक कुछ खेलों के प्रसारण 'अधिकार' के लिए बड़ी राशि की बोली लगाते हैं। फुटबॉल विश्व कप, विश्व के लाखों-करोड़ों टीवी दर्शकों को आकर्षित करता है, जैसे २००६ के फाइनल ने अकेले पूरी दुनिया में ७०० मिलियन दर्शकों को आकर्षित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका में NFL की चैम्पियनशिप खेल- सुपर बाउल- वर्ष का सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टेलीविजन प्रसारणों में से एक बन गया। सुपर बाउल रविवार एक तरह से अमेरिका में राष्ट्रीय अवकाश बन जाता है और दर्शकों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि २००७ में प्रति ३० सेकेंड के स्लॉट के लिए २.६ मिलियन डॉलर की दर से विज्ञापन मिले। इन्हें भी देखें खेल की रूपरेखा खिलाड़ियों की सूची खेल उपस्थिति के आंकड़ों की सूची पेशेवर खेल लीग की सूची खेल की समयरेखा संबंधित विषय कॉम्बैट खेल विकलांग खेल फैन्डोम खेल का इतिहास बहु-खेल प्रतियोगिता राष्ट्रीय खेल राष्ट्रवाद और खेल ओलंपिक खेल अधिप्रेक्षक खेल प्रत्याभूति फिल्म में खेलk9 खेल के प्रशासी निकाय खेल प्रसारण खेल क्लब खेल कोचिंग खेल उपकरण खेल जख्म खेल लीग उपस्थिति खेल विपणन लोगों के नाम पर खेल शर्तों महिलाओं के खेल आगे पढ़ें द मीनिंग ऑफ़ स्पोर्ट्स बाई मिशैल मंडल (PublicAffairs, ISBN 1-58648-252-1) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ खेल जगत से जुडी ताजा खबरे हिन्दी में श्रेणी:खेल श्रेणी:गूगल परियोजना
नृत्य
https://hi.wikipedia.org/wiki/नृत्य
thumb|right|300px|भारतीय नृत्यनृत्य भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यह कला देवी-देवताओं- दैत्य दानवों- मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है। अमृत मंथन के पश्चात जब दुष्ट राक्षसों को अमरत्व प्राप्त होने का संकट उत्पन्न हुआ तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। इसी प्रकार भगवान शंकर ने जब कुटिल बुद्धि दैत्य भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह जिसके ऊपर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाए- तब उस दुष्ट राक्षस ने स्वयं भगवान को ही भस्म करने के लिये कटिबद्ध हो उनका पीछा किया- एक बार फिर तीनों लोक संकट में पड़ गये थे तब फिर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने मोहक सौंदर्यपूर्ण नृत्य से उसे अपनी ओर आकृष्ट कर उसका वध किया। भारतीय संस्कृति एवं धर्म की आरंभ से ही मुख्यत- नृत्यकला से जुड़े रहे हैं। देवेन्द्र इन्द्र का अच्छा नर्तक होना- तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा से हम भारतीयों के प्राचीन काल से नृत्य से जुड़ाव की ओर ही संकेत करता है। विश्वामित्र-मेनका का भी उदाहरण ऐसा ही है। स्पष्ट ही है कि हम आरंभ से ही नृत्यकला को धर्म से जोड़ते आए हैं। पत्थर के समान कठोर व दृढ़ प्रतिज्ञ मानव हृदय को भी मोम सदृश पिघलाने की शक्ति इस कला में है। यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है। जिसके कारण यह मनोरंजक तो है ही- धर्म- अर्थ- काम- मोक्ष का साधन भी है। स्व परमानंद प्राप्ति का साधन भी है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह कला-धारा पुराणों- श्रुतियों से होती हुई आज तक अपने शास्त्रीय स्वरूप में धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित न होती। इस कला को हिन्दू देवी-देवताओं का प्रिय माना गया है। भगवान शंकर तो नटराज कहलाए- उनका पंचकृत्य से संबंधित नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति- स्थिति एवं संहार का प्रतीक भी है। भगवान विष्णु के अवतारों में सर्वश्रेष्ठ एवं परिपूर्ण कृष्ण नृत्यावतार ही हैं। इसी कारण वे 'नटवर' कृष्ण कहलाये। भारतीय संस्कृति एवं धर्म के इतिहास में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि जिससे सफल कलाओं में नृत्यकला की श्रेष्ठता सर्वमान्य प्रतीत होती है। भारतीय नृत्य के प्रकार भारतीय नृत्य उतने ही विविध हैं जितनी हमारी संस्कृति, लेकिन इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है- शास्त्रीय नृत्य तथा लोकनृत्य। हाल ही में बॉलीवुड नृत्य की एक नई शैली लोकप्रिय होती जा रही हैं जो भारतीय सिनेमा पर आधारित है। इसमें भारतीय शास्त्रीय, भारतीय लोक और पाश्चात्य शास्त्रीय तथा पाश्चात्य लोक का समन्वय देखने को मिलता है। जिस तरह भारत में कोस-कोस पर पानी और वाणी बदलती है वैसे ही नृत्य शैलियाँ भी विविध हैं। प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्य हैं: कथक ओडिसी भारतनाट्यम कुचिपुडि मणिपुरी एवं कथकलि लोक नृत्यों में प्रत्येक प्रांत के अनेक स्थानीय नृत्य हैं। जैसे पंजाब में भांगड़ा, उत्तर-प्रदेश का पखाउज आदि भारतीय नृत्य का इतिहास नृत्य का प्राचीनतम ग्रंथ भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। लेकिन इसके उल्लेख वेदों में भी मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में नृत्य की खोज हो चुकी थी। इतिहास की दृष्टि में सबसे पहले उपलब्ध साक्ष्य गुफाओं में प्राप्त आदिमानव के उकेरे चित्रों तथा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाईयों में प्राप्त मूर्तियाँ हैं, जिनके संबंध में पुरातत्वेत्ता नर्तकी होने का दावा करते हैं। ऋगवेद के अनेक श्लोकों में नृत्या शब्द का प्रयोग हुआ है। इन्द्र यथा हयस्तितेपरीतं नृतोशग्वः । तथा नह्यंगं नृतो त्वदन्यं विन्दामि राधसे। अर्थात- इन्द्र तुम बहुतों द्वारा आहूत तथा सबको नचाने वाले हो। इससे स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज में नृत्यकला का प्रचार-प्रसार सर्वत्र था। इस युग में नृत्य के साथ निम्नलिखित वाद्यों का प्रयोग होता था। वीणा वादं पाणिघ्नं तूणब्रह्मं तानृत्यान्दाय तलवम्। अर्थात- नृत्य के साथ वीणा वादक और मृदंगवादक और वंशीवादक को संगत करनी चाहिए और ताल बजाने वाले को बैठना चाहिये। यर्जुवेद में भी नृत्य संबंधी सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। नृत्य को उस युग में व्यायाम के रूप में माना गया था। शरीर को अरोग्य रखने के लिये नृत्यकला का प्रयोग किया जाता था। पुराणों में भी नृत्य संबंधी घटनाओं का उल्लेख है। श्रीमद्भागवत महापुराण, शिव पुराण तथा कूर्म पुराण में भी नृत्य का उल्लेख कई विवरणों में मिला है। रामायण और महाभारत में भी समय-समय पर नृत्य पाया गया है। इस युग में आकर नृत्त- नृत्य- नाट्य तीनों का विकास हो चुका था। भरत के नाट्य शास्त्र के समय तक भारतीय समाज में कई प्रकार की कलाओं का पूर्णरूपेण विकास हो चुका था। इसके बाद संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों जैसे कालिदास के शाकुंतलम- मेघदूतम- वात्स्यायन की कामसूत्र- तथा मृच्छकटिकम आदि ग्रंथों में इन नृत्य का विवरण हमारी भारतीय संस्कृति की कलाप्रियता को दर्शाता है। आज भी हमारे समाज में नृत्य- संगीत को उतना ही महत्त्व दिया जाता है कि हमारे कोई भी समारोह नृत्य के बिना संपूर्ण नहीं होते। भारत के विविध शास्त्रीय नृत्यों की अनवरत शिष्य परंपराएँ हमारी इस सांस्कृतिक विरासत की धारा को लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित करती रहेंगी। भारतीय डाकटिकटों में नृत्य पश्चिमी नृत्य के प्रकार बैले नृत्य कई अन्य नृत्य शैलियों बैले के आधार पर कर रहे हैं के रूप में बैले, नृत्य के कई अन्य शैलियों के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है। बैले सदियों से विकसित किया गया है कि तकनीक पर आधारित है। बैले कहानियां बताने के लिए संगीत और नृत्य का उपयोग करता है। बैले नर्तकियों एक और दुनिया के लिए एक दर्शकों को परिवहन करने की क्षमता है। जाज जैज मौलिकता और कामचलाऊ व्यवस्था पर काफी निर्भर करता है कि एक मजेदार नृत्य शैली है। कई जैज नर्तकियों को अपने स्वयं की अभिव्यक्ति को शामिल, उनके नृत्य में विभिन्न शैलियों का मिश्रण। जैज नृत्य अक्सर् संकुचन सहित बोल्ड, नाटकीय शरीर आंदोलनों का उपयोग करता है। हिप - हॉप हिप हॉप संस्कृति से विकसित किया है कि आमतौर पर हिप हॉप संगीत के लिए नृत्य एक नृत्य शैली देश और पश्चिमी नृत्य आम तौर पर देश के पश्चिमी संगीत पर नृत्य किया कई नृत्य रूपों, भी शामिल है। यदि आप कभी भी एक देश और पश्चिमी क्लब या सराय लिए किया गया है, तो आप शायद उनके चेहरे पर बड़ी मुस्कान के साथ डांस फ्लोर के आसपास ट्वर्लिग्ग् कुछ चरवाहे बूट पहने नर्तकों देखा है। बेली नृत्यहै। हिप हॉप ऐसे तोड़ने पॉपिंग, लॉकिंग और क्रम्पिंग्ग् और यहां तक ​​कि घर के नृत्य के रूप में विभिन्न चाल भी शामिल है। कामचलाऊ व्यवस्था और व्यक्तिगत व्याख्या हिप - हॉप नृत्य करने के लिए आवश्यक हैं। स्विंग स्विंग नृत्य जोड़े, झूले स्पिन और एक साथ कूद जिसमें एक जीवंत नृत्य शैली है। स्विंग नृत्य एक सामान्य संगीत स्विंग करने के नाच का मतलब है कि अवधि, या संगीत है "झूलों. कि" एक गीत झूलों यदि आप कैसे बता सकते हैं? स्विंग नर्तकियों वे इसे सुना है, वे अभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं जब एक गाना झूलों क्योंकि जानते हैं। कॉन्ट्रा नृत्य कॉन्ट्रा नृत्य नर्तकियों दो समानांतर लाइनों फार्म और रेखा की लंबाई नीचे विभिन्न भागीदारों के साथ नृत्य आंदोलनों का एक दृश्य जो प्रदर्शन में अमेरिकी लोक नृत्य का एक रूप है। कॉन्ट्रा नृत्य परिवार की तरह वायुमंडल के साथ आराम कर रहे हैं। नृत्य बहुत अच्छा व्यायाम है और नर्तकियों को अपनी गति निर्धारित कर सकते हैं। कॉन्ट्रा नर्तकियों आमतौर पर नृत्य का एक प्यार के साथ दोस्ताना, सक्रिय लोग हैं। बेली नृत्य बेली नृत्य कूल्हों और पेट की तेज, रोलिंग आंदोलनों द्वारा विशेषता नृत्य का एक अनोखा रूप है। बेली डांसिंग का असली मूल उत्साही लोगों के बीच बहस कर रहे हैं। आधुनिक नृत्य आधुनिक नृत्य भीतर की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर बजाय ध्यान केंद्रित, शास्त्रीय बैले के कड़े नियमों से कई को खारिज कर दिया कि एक नृत्य शैली है। आधुनिक नृत्य नृत्यकला और प्रदर्शन में रचनात्मकता पर बल, शास्त्रीय बैले के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में बनाया गया था। लैटिन नृत्य लैटिन नृत्य सेक्सी हिप आंदोलनों द्वारा विशेषता एक तेजी से पुस्तक, अक्सर कामुक, साथी नृत्य है। हालांकि, हिप आंदोलनों लैटिन नृत्य में से किसी में जानबूझकर नहीं कर रहे हैं। हिप गति से एक दूसरे पैर से वजन बदलने का एक स्वाभाविक परिणाम है सालसा साल्सा क्यूबा से एक समधर्मी नृत्य शैली है। एकल रूपों में पहचाने जाते हैं, हालांकि साल्सा, सामान्य रूप से एक साथी नृत्य है। साल्सा आमतौर पर साल्सा संगीत पर नृत्य किया जाता है। आप एक साथी आवश्यक नहीं हो सकता है, जिसमें रेखा नृत्य का एक फार्म के रूप में यह नृत्य निर्देशन कर सकते हैं, हालांकि साल्सा, एक जोड़ी की आवश्यकता है। इस नृत्य शैली लैटिन अमेरिका भर में बहुत लोकप्रिय है और समय के साथ यह उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया और मध्य पूर्व के माध्यम से फैल गया। लाइन नृत्य एक लाइन नृत्य लोगों के एक समूह के व्यक्तियों के लिंग के संबंध के बिना एक या एक से अधिक लाइनों या पंक्तियों में नृत्य जिसमें कदम की एक दोहराया अनुक्रम के साथ एक नृत्य नृत्य है, सभी एक ही दिशा का सामना करना पड़ और एक ही समय में कदम क्रियान्वित करने। उनके पास नर्तकियों का हाथ पकड़े हुए हैं जबकि, पुराने नर्तकियों एक दूसरे का सामना जिसमें लाइनें है "रेखा नृत्य", या "रेखा" "लाइन" डांस फ्लोर के चारों ओर एक नेता का पालन में एक चक्र, या सभी नर्तकियों है। बॉलरूम डांस बॉलरूम डांस अपने साथी के साथ किया जाने वाला नृत्य है, जिसे दुनियाभर में बेहद पसंद किया जाता है। हल्‍की लाइट म्‍यूजिक में यह डांस बेहद आकर्षक दिखता है। इसमें साल्सा, रूंबा, सांबा, कैसीनो और बक आदि को मिक्‍स भ्‍ीा किया जा सकता है। आमतौर पर बॉरूम डांस अपने साथी के साथ एक दूसरे की बाहों में किया जाता है। बॉलरूम नृत्य के दो मुख्य शैलियों हैं - अमेरिकी शैली और अंतर्राष्ट्रीय शैली। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ नर्तकी - भारतीय नृत्य का 'प्रवेशद्वार' * * श्रेणी:नृत्य
संगीत
https://hi.wikipedia.org/wiki/संगीत
thumb|right|नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक thumb|right|नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य तीनों के समावेश को संगीत कहते हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें कोई संदेह नहीं।yughvn vi rich CL BB v CV गायन मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बताना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया है। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गायन ने व्यवस्थित रूप धारण किया। संगीत पद्धतियाँ उत्तरी राजस्थान संगीत पद्धति दक्षिणी संगीत पद्धति इतिहास thumb|400px|अपने-अपने क्षेत्रीय परिधानों में सजी हुई भारतीय महिलाएँ भारत के विभिन्न भागों में प्रचलित वाद्य बजा रही हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित) युद्ध, उत्सव और प्रार्थना या भजन के समय मानव गाने बजाने का उपयोग करता चला आया है। संसार में सभी जातियों में बाँसुरी इत्यादि फूँक के वाद्य (सुषिर), कुछ तार या ताँत के वाद्य (तत), कुछ चमड़े से मढ़े हुए वाद्य (अवनद्ध या आनद्ध), कुछ ठोंककर बजाने के वाद्य (घन) मिलते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि भारत में भरत के समय तक गान को पहले केवल 'गीत' कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़ जैसे शुष्क अक्षर होते थे, वहाँ उसे 'निर्गीत' या 'बहिर्गीत' कहते थे और नृत्त अथवा नृत्य की एक अलग कला थी। किंतु धीरे-धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते। भारत से बाहर अन्य देशों में केवल गीत और वाद्य को संगीत में गिनते हैं; नृत्य को एक भिन्न कला मानते हैं। भारत में भी नृत्य को संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया कि उसके साथ बराबर गीत या वाद्य अथवा दोनों रहते हैं। ऊपर लिखा जा चुका है कि स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय गीत और वाद्य दोनों में मिलते हैं, किंतु नृत्य में लय मात्र है, स्वर नहीं। हम संगीत के अंतर्गत केवल गीत और वाद्य की चर्चा करेंगे, क्योंकि संगीत केवल इसी अर्थ में अन्य देशों में भी व्यवहृत होता है। व्युत्पत्ति संगीत का आदिम स्रोत प्राकृतिक ध्वनियाँ ही है। प्राक् संगीत-युग में मनुष्य के प्रकृति की ध्वनियों और उनकी विशिष्ट लय को समझने की कोशिश की। हर तरह की प्राकृतिक ध्वनियाँ संगीत का आधार नहीं हो सकतीं, अत: भाव पैदा करने वाली ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बनाने के साथ-साथ उन्हें लय में बाँधने का प्रयास किया गया होगा। प्रकृति की वे ध्वनियाँ जिन्होंने मनुष्य के मन-मस्तिष्क को स्पर्श कर उल्लसित किया, वही सभ्यता के विकास के साथ संगीत का साधन बनीं। हालांकि विचारकों के भिन्न-भिन्न मत हैं। दार्शनिकों ने नाद के चार भागों परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी में से मध्यमा को संगीतोपयोगी स्वर का आधार माना। डार्विन ने कहा कि पशु रति के समय मधुर ध्वनि करते हैं। मनुष्य ने जब इस प्रकार की ध्वनि का अनुकरण आरम्भ किया तो संगीत का उद्भव हुआ।’’ कार्ल स्टम्फ ने भाषा उत्पत्ति के बाद मनुष्य द्वारा ध्वनि की एकतारता को स्वर की उत्पत्ति माना। उन्नीसवीं शदी के उत्तरार्द्ध में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा कि ‘‘संगीत की उत्पत्ति मानवीय संवेदना के साथ हुई।’’ उन्होंने संगीत को गाने, बजाने, बताने (केवल नृत्य मुद्राओं द्वारा) और नाचने का समुच्चय बताया। प्राच्य शास्त्रों में संगीत की उत्पत्ति को लेकर अनेक रोचक कथाएँ हैं। देवराज इन्द्र की सभा में गायक, वादक व नर्तक हुआ करते थे। गन्धर्व गाते थे, अप्सराएँ नृत्य करती थीं और किन्नर वाद्य बजाते थे। गान्धर्व-कला में गीत सबसे प्रधान रहा है। आदि में गान था, वाद्य का निर्माण पीछे हुआ। गीत की प्रधानता रही। यही कारण है कि चाहे गीत हो, चाहे वाद्य सबका नाम संगीत पड़ गया। पीछे से नृत्य का भी इसमें अन्तर्भाव हो गया। संसार की जितनी आर्य भाषाएँ हैं उनमें संगीत शब्द अच्छे प्रकार से गाने के अर्थ में मिलता है। 'संगीत' शब्द ‘सम्+ग्र’ धातु से बना है। अन्य भाषाओं में ‘सं’ का ‘सिं’ हो गया है और ‘गै’ या ‘गा’ धातु (जिसका भी अर्थ गाना होता है) किसी न किसी रूप में इसी अर्थ में अन्य भाषाओं में भी वर्तमान है। ऐंग्लो सैक्सन में इसका रूपान्तर है ‘सिंगन’ (singan) जो आधुनिक अंग्रेजी में ‘सिंग’ हो गया है, आइसलैंड की भाषा में इसका रूप है ‘सिग’ (singja), (केवल वर्ण विन्यास में अन्तर आ गया है,) डैनिश भाषा में है ‘सिंग (Synge), डच में है ‘त्सिंगन’ (tsingen), जर्मन में है ‘सिंगेन’ (singen)। अरबी में ‘गना’ शब्द है जो ‘गान’ से पूर्णतः मिलता है। सर्वप्रथम ‘संगीतरत्नाकर’ ग्रन्थ में गायन, वादन और नृत्य के मेल को ही ‘संगीत’ कहा गया है। वस्तुतः ‘गीत’ शब्द में ‘सम्’ जोड़कर ‘संगीत’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘गान सहित’। नृत्य और वादन के साथ किया गया गान ‘संगीत’ है। शास्त्रों में संगीत को साधना भी माना गया है। प्रामाणिक तौर पर देखें तो सबसे प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष, मूर्तियों, मुद्राओं व भित्तिचित्रों से जाहिर होता है कि हजारों वर्ष पूर्व लोग संगीत से परिचित थे। देव-देवी को संगीत का आदि प्रेरक सिर्फ हमारे ही देश में नहीं माना जाता, यूरोप में भी यह विश्वास रहा है। यूरोप, अरब और फारस में जो संगीत के लिए शब्द हैं उस पर ध्यान देने से इसका रहस्य प्रकट होता है। संगीत के लिए यूनानी भाषा में शब्द ‘मौसिकी’ (musique), लैटिन में ‘मुसिका’ (musica), फ्रांसीसी में ‘मुसीक’ (musique), पोर्तुगी में ‘मुसिका’ (musica), जर्मन में मूसिक’ (musik), अंग्रेजी में ‘म्यूजिक’ (music), इब्रानी, अरबी और फारसी में ‘मोसीकी’। इन सब शब्दों में साम्य है। ये सभी शब्द यूनानी भाषा के ‘म्यूज’(muse) शब्द से बने हैं। ‘म्यूज’ यूनानी परम्परा में काव्य और संगीत की देवी मानी गयी है। कोश में ‘म्यूज’ (muse) शब्द का अर्थ दिया है ‘दि इन्सपायरिंग गॉडेस ऑफ साँग’ अर्थात् ‘गान की प्रेरिका देवी’। यूनान की परम्परा में ‘म्यूज’ ‘ज्यौस’(zeus) की कन्या मानी गयी हैं। ज्यौस’ शब्द संस्कृत के ‘द्यौस्’ का ही रूपान्तर है जिसका अर्थ है ‘स्वर्ग’। ‘ज्यौस’ और ‘म्यूज’ की धारण ब्रह्मा और सरस्वती से बिलकुल मिलती-जुलती है। भारतीय संगीत—भारतीय संगीत का एक सबसे बड़ा संगीत का स्रोत सामवेद को भी माना जाता है सामवेद पूरा का पूरा संगीत का ही ज्ञान है। भारतीय संगीत का जन्म वेद के उच्चारण में देखा जा सकता है। संगीत का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ भरत मुनि का नाट्‍यशास्त्र है। अन्य ग्रन्थ हैं : बृहद्‌देशी, दत्तिलम्‌, संगीतरत्नाकर। संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संस्कृति का सुदृढ़ आधार है। भारतीय संस्कृति आध्यात्म प्रधान मानी जाती रही है। संगीत से आध्यात्म तथा मोक्ष की प्रप्ति के साथ भारतीय संगीत के प्राण भूत तत्व रागों के द्वारा मनः शांति, योग ध्यान, मानसिक रोगों की चिकित्सा आदि विशेष लाभ प्राप्त होते है। प्राचीन समय से मानव संगीत की आध्यात्मिक एवं मोहक शक्ति से प्रभावित होता आया है। प्राचीन मनीषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति नाद से मानी है। ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण जड़-चेतन में नाद व्याप्त है, इसी कारण इसे "नाद-ब्रह्म” भी कहते हैं। अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम् ।विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतोयतः॥निबन्ध संगीत, लक्ष्मी नारायण गर्ग, संगीत कार्यलय हाथरस, इलाहाबाद, पृष्ठ संख्या 123 अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण संसार अप्रत्यक्ष रूप से संगीतमय हैं। संगीत एक ईश्वरीय वाणी है। अतः यह ब्रह्म रूप ही हैं । संगीत आनन्द का अविर्भाव है तथा आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। संगीत के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। योग व ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री याज्ञवल्क्य जी कहते हैं - वीणावादनतत्वज्ञः श्रुतिजातिविशारदः। तालश्रह्नाप्रयासेन मोक्षमार्ग च गच्छति।संगीत रत्नाकर, भाग दाे पृष्ठ संख्या 8 संगीत एक प्रकार का योग है। इसकी विशेषता है कि इसमें साध्य और साधन दोनों ही सुखरूप हैं। अतः संगीत एक उपासना है, इस कला के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भारतीय संगीत के सुर और लय की सहायता से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवियों ने भक्त शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की और अन्त में ब्रह्म के आनन्द में लीन हो गए। इसीलिए संगीत को ईश्वर प्राप्ति का सुगम मार्ग बताया गया है। संगीत में मन को एकाग्र करने की एक अत्यन्त प्रभावशाली शक्ति है तभी से ऋषि मुनि इस कला का प्रयोग परमेश्वर का आराधना के लिए करने लगे। संगीत की शैलियाँ ध्रुपद धमार ख़्याल ठुमरी भजन गज़ल ‌‌‌संगीत सुनने के लाभ संगीत हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। और यह हमारी दैनिक जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। संगीत केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं सुना जाता है। वरन इसके कई सारे फायदे हैं। अब संगीत का प्रयोग वैज्ञानिक अनेक रोगों के उपचार के अंदर भी कर रहे हैं। अनेक वैज्ञानिक रिसर्च ने इस बात को ‌‌‌प्रमाणित किया है कि संगीत सुनने से कई सारे मानसिक फायदे होते हैं। ‌‌‌तनाव कम होता है आज कल हर इंसान की जिंदगी दौड़ धूप से भरी रहती है। काम करते करते हम बुरी तरह से थक जाते हैं। जब संगीत सुनते हैं तो हमारा दिमाग रिलेक्स मोड के अंदर आता है। हमारे दिमाग मे नई एनर्जी का संचार होता है। व हम अच्छा फील करते हैं। संगीत हमारे मूड को बदल देता है। ‌‌‌संगीत दिमाग मे कार्टिसोल के स्तर को कम करता है। जिससे दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है। ‌‌‌दिमाग की नसों को आराम मिलता है काम की वजह से दिमाग की नसे ज्यादा थक जाती हैं। संगीत सुनने से दिमाग को आराम मिलता है जहां पर कई बार दवाएं काम नहीं करती हैं ।वहां म्यूजिक थैरेपी काम करती है।स्वर- तरंगें संगीत का रूप लेकर जीवन दायनी सामर्थ्य उत्पन्न करती हैं । ‌‌‌दर्द कम करने मे लाभप्रद कुछ वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि जब इंसान किसी तरह के दर्द से पीड़ित होता है तो उसे उसका मन पसंद संगीत सुनाया जाना चाहिए । जिससे उसका ध्यान दर्द से हट जाता है। और उसे दर्द का एहसास कम होता है।संगीत सुनने से दिमाग मे डोपामाइन का स्तर अधिक होता है। जो खुशी पैदा ‌‌‌करता है। सांस से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए अमेरिका वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत थेरैपी फेफड़ों के लिए काफी अच्छी रहती है। सांस से संबंधित रोगी को संगीत थैरेपी से ईलाज करने से फायदा मिलता है। लेकिन गम्भीर सांस के रोग इससे सही नहीं हो पाते हैं। ‌‌‌स्मृति ह्रास (मेमोरी लॉस) को कम करता है जिन लोगों की यादाश्त अच्छी नहीं होती है। उनको संगीत सुनना चाहिए । जिससे उनकी यादाश्त अच्छी हो जाती है। और दिमाग काफी बेहतर तरीके से काम करने लग जाता है। हृदय के लिए भी संगीत अच्छा है संगीत सुनने से दिमाग के अंदर एंडोर्फिंस हार्मोन का स्त्राव होता है ।वैज्ञानिकों के अनुसार रोजाना 30 मिनट संगीत सुनने से दिल की क्षमता के अंदर बढ़ोतरी होती है। एक्सरसाइज के साथ संगीत सुनने से  दिल की कार्यक्षमता के अंदर इजाफा होता है। नींद अच्छी आती है अच्छे संगीत सुनने से दिमाग के अंदर चल रहे बेकार के विचारों को विराम मिलता है। और रात के समय दिमाग पूरा खाली हो जाने से अच्छी नींद आती है। आमतौर पर जिन लोगों को नींद नहीं आती उनको सोने से पहले कुछ देर अच्छे गाने सुनने चाहिए। यूरोपीय संगीत लोकप्रिय संगीत Lady Gaga - Born This Way(इटली) Lipa, Little Mix, Coldplay, One Direction, Ellie Goulding, Tinie Tempah, Dizzee Rascal, Skepta, Charli XCX, Calvin Harris, Jax Jones (यूके) Felix Jaehn, Nena, Kay One, Alex C, Alle Farben, Eko Fresh, Bausa, Dagi Bee, Capital Bra, Robin Schulz, Bushido, Namika, Scooter, Rammstein, Zedd, 187 Strassenbande, Bonez MC, Gzuz (जर्मनी) Cleo, Doda, Sitek, Natalia Nykiel, Ewelina Lisowska, Sokół, Tede, Donguralesko, Margaret, Donatan, Gromee, Sławomir, Zespol Akcent, Taconafide, C-BooL (पोलैण्ड) Timati, Feduk, T.A.T.u., Max Korzh, Gamora, Oxxxymiron, Serebro, Gorky Park, Filatov & Karas, Vremya i Steklo, Allj, Algie & Kravtsov (रूस) Álvaro Soler, Enrique Iglesias, Rels B (स्पेन) Black M, Willy William, Stromae, Maître Gims, Indila, Kendji Girac, Daft Punk, Imany, David Guetta, Soprano, Martin Solveig (फ्रांस) Andrea Bocelli, Gigi D'Agostino, Ghali, Francesco Gabbani, J-AX, Alex Gaudino, Fedez, Guè Pequeno, Benny Benassi, Marracash, Sfera Ebbasta, Tacabro (इटली) Inna, Alexandra Stan, Elena, Dan Balan, G Girls, Akcent, Sandu Ciorba, Morandi (Romania) Ektor, Rest, Krystof, Slza, Atmo Music, Helena Vondrackova (Czech Republic) Kontrafakt, Celeste Buckingham, Rytmus, Majk Spirit (Slovakia) Ruslana, Jamala, Pianoboy, Alekseev, Monatik, VovaZIL'Vova, TNMK, Seryoga, Yarmak (Ukraine) ABBA, Zara Larsson, Swedish House Mafia, Danny Saucedo, बॉसहंटर, Loreen, Galantis, Cherrie, Thrife, DJ Black Moose, Lykke Li (Sweden) Kygo, Alan Walker, Sigrid, Marcus & Martinus, Madcon, Jesper Jenset (Norway) The Rasmus, Alma, Nightwish, Lordi (Finland) Tiësto, Afrojack, Hardwell, Martin Garrix, Armin van Buuren, Nicky Romero, Sbmg, Boef, Laidback Luke, Oliver Heldens, Natalie La Rose (Netherlands) प्रसिद्ध संगीतकार भारतीय डी के पट्टम्माल भीमसेन जोशी तंजावूर बृंदा रवि शंकर पंडित भोला नाथ प्रसन्ना अजय प्रसन्ना लता मंगेशकर विदेशी चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें वाद्य संगीत संगीत का इतिहास भारतीय संगीत भारतीय संगीत का इतिहास पाश्चात्य संगीत लोक संगीत बाहरी कड़ियाँ संगीत मञ्जूषा (लेखिका - डॉ अंजू मुंजाल) ध्वनि और संगीत (गूगल पुस्तक ; लेखक - प्रो ललितकिशोर सिंह) सन्दर्भ श्रेणी:संगीत
साहित्य
https://hi.wikipedia.org/wiki/साहित्य
किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें संस्कृत भाषा में मिलता है। इस दृष्टि से संस्कृत साहित्य सभी साहित्यों का मूल स्रोत है। साहित्य - स+हित+य के योग से बना है। भारतीय साहित्य भारतीय वाङ्मय को काल की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है - +भारतीय वाङ्ममय के भागसाहित्यवसंतसंपात्काल अवधिकालऋग्वेदमृगशिरा६०००-४००० BCप्राचीनशतपथ ब्राह्मण रोहिणी २५०० BCप्राचीनअथर्ववेद तैत्तरीयसंहिता बौधायन श्रौतसूत्रकृत्तिका१३३०-८०० BC प्राचीनमहाभारतकृत्तिका१३३०-८०० BCप्राचीनवेदांग ज्योतिषभरणी१२०० BC प्राचीनवैशेषिक दर्शन -६०० BCमध्यबुद्धावतार -५०० BCमध्यकौटिल्य अर्थशास्त्र -३०० BC मध्यआर्यभट वराहमिहिररेवती४९९ AD मध्यभास्कर द्वितीय -१११४ AD मध्यसमरांगण सूत्रधार -११०० AD मध्य२०वीं शताब्दीपूर्वाभाद्रपदा१९०० ADअर्वाचीन भारत का संस्कृत साहित्य ऋग्वेद से आरम्भ होता है। व्यास, वाल्मीकि जैसे पौराणिक ऋषियों ने महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की। भास, कालिदास एवं अन्य कवियों ने संस्कृत में नाटक लिखे। भक्ति साहित्य में अवधी में गोस्वामी तुलसीदास, ब्रज भाषा में सूरदास तथा रविदास, मारवाड़ी में मीराबाई, खड़ीबोली में कबीर, रसखान, मैथिली में विद्यापति आदि प्रमुख हैं। अवधी के प्रमुख कवियों में रमई काका सुप्रसिद्ध कवि हैं। हिन्दी साहित्य में कथा, कहानी और उपन्यास के लेखन में प्रेमचन्द का महान योगदान है। ग्रीक साहित्य में होमर के इलियड और ऑडसी विश्वप्रसिद्ध हैं। अंग्रेज़ी साहित्य में शेक्स्पियर का नाम कौन नहीं जानता। इन्हें भी देखें हिन्दी साहित्य आदिवासी साहित्य भारतीय साहित्य पाश्चात्य साहित्य साहित्य का इतिहास बाहरी कड़ियाँ साहित्यिक निबन्ध (गूगल पुस्तक ; लेखक - गणपतिचन्द्र गुप्त) साहित्य सिद्धान्त (गूगल पुस्तक) साहित्यानुशीलन (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ दयाशंकर शुक्ल) समकालीन हिंदी साहित्य की जाल-पत्रिका 'अभिव्यक्ति' साहित्य, संस्कृति और भाषा अंतराष्ट्रीय मंच सृजनगाथा हिन्दी काव्य हिन्दी साहित्य प्रश्नोत्तरी (गूगल पुस्तक ; लेखिका - विभा देवसरे) Google's category on literature in Hindi Wikisource Indan English Literature भारतीय साहित्य का जाल-पुस्तकालय एवं लेखकों और कवियों के बारे में जानकारी के लिए संपूर्ण स्रोत 'पुस्तक' साहित्य में मूल्यबोध - डॉ॰ हरेकृष्ण मेहेर श्रेणी:साहित्य
मनोरंजन
https://hi.wikipedia.org/wiki/मनोरंजन
thumb|प्राचीन ग्रीक में मनोरंजन करते लोग मनोरंजन एक ऐसी क्रिया है जिसमें सम्मिलित होने वाले को आनन्द आता है एवं मन शान्त होता हैं। मनोरंजन सीधे भाग लेकर हो सकता है या कुछ लोगों को कुछ करते हुए देखने से हो सकता है। मनोरंजन के साधन टेलिविज़न चलचित्र रेडियो नाटक नौटंकी संगीत नृत्य डिस्को हास्य रस गोष्ठी कवि सम्मेलन जादू सर्कस मेला खेल श्रेणी:मनोरंजन Dirbal
कविता
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कविता एक स्त्री नाम है। जिसका अर्थ है काव्य। सुप्रसिद्ध कोरोजयी कवि गोलेन्द्र पटेल ने कविता के संदर्भ में कहा है कि "कविता आत्मा की औषधि है।"कोरोजीवी कविता, अप्रैल 2020 (वर्ष-1, अंक-2), पृष्ठ-11. उल्लेखनीय लोग कविता के. बड़जात्या (जन्म 12 नवंबर, 1977), भारतीय निर्माता। कविता दासवानी (जन्म 1971), अमेरिकी-भारतीय लेखिका। कविता कौशिक (जन्म 15 फरवरी, 1981), भारतीय अभिनेत्री। कविता कृष्णमूर्ति (जन्म 25 जनवरी, 1958), भारतीय पार्श्व गायिका। कविता राउत (जन्म 5 मई, 1985), भारतीय लंबी दूरी की धावक। कविता रॉय (जन्म 10 अप्रैल, 1980), भारतीय क्रिकेटर। कविता सेठ (जन्म 14 सितंबर, 1970), भारतीय गायिका। श्रेणी:हिंदू नाम
चित्रकला
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300px|right|300px|राजा रवि वर्मा कृत 'संगीकार दीर्घा' (गैलेक्सी ऑफ म्यूजिसियन्स) thumb|कृष्ण और राधा चित्रकला एक द्विविमीय (two-dimensional) कला है। भारत में चित्रकला का एक प्राचीन स्रोत विष्णुधर्मोत्तर पुराण है। इतिहास चित्रकला का प्रचार चीन, मिस्र, भारत आदि देशों में अत्यंत प्राचीन काल से है। मिस्र से ही चित्रकला यूनान में गई, जहाँ उसने बहुत उन्नति की। ईसा से १४०० वर्ष पहले मिस्र देश में चित्रों का अच्छा प्रचार था। लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में ३००० वर्ष तक के पुराने मिस्री चित्र हैं। भारतवर्ष में भी अत्यंत प्राचीन काल से यह विधा प्रचलित थी, इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। रामायण में चित्रों, चित्रकारों और चित्रशालाओं का वर्णन बराबर आया है। विश्वकर्मीय शिल्पशास्त्र में लिखा है कि स्थापक, तक्षक, शिल्पी आदि में से शिल्पी को ही चित्र बनाना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों को अंकित करने में प्राचीन भारतीय चित्रकार कितने निपुण होते थे, इसका कुछ आभास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है, जिसमें अपने सामने लाए हुए वनवास के चित्रों को देख सीता चकित हो जाती हैं। यद्यपि आजकल कोई ग्रंथ चित्रकला पर नहीं मिलता है, तथापि प्राचीन काल में ऐसे ग्रंथ अवश्य थे। कश्मीर के राजा जयादित्य की सभा के कवि दोमोदर गुप्त आज से ११०० वर्ष पहले अपने कुट्टनीमत नामक ग्रंथ में चित्रविद्या के 'चित्रसूत्र' नामक एक ग्रंथ का अल्लेख किया है। अजंता गुफा के चित्रों में प्राचीन भारतवासियों की चित्रनिपुणता देख चकित रह जाना पड़ता है। बड़े बड़े विज्ञ युरोपियनों ने इन चित्रों की प्रशंसा की है। उन गुफाओं में चित्रों का बनाना ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व से आरंभ हुआ ता औरक आठवीं शताब्दी तक कुछ न कुछ गुफाएँ नई खुदती रहीं। अतः डेढ़ दो हजार वर्ष के प्रत्यक्ष प्रमाण तो ये चित्र अवश्य हैं। परिचय चित्रविद्या सीखने के लिये पहले प्रत्येक प्रकार की सीधी टेढ़ी, वक्र आदि रेखाएँ खींचने का अभ्यास करना चाहिए। इसके उपरांत रेखाओं के ही द्वारा वस्तुओं के स्थूल ढाँचे बनाने चाहिए। इस विद्या में दूरी आदि के सिद्धांत का पूरा अनुशीलन किए बिना निपूणता नहीं प्राप्त हो सकती। दृष्टि के समानांतर या ऊपर नीचे के विस्तार का अंकन तो सहज है, पर आँखों के ठीक सामने दूर तक गया हुआ विस्तार अंकित करना कठिन विषय है। इस प्रकार की दूरी का विस्तार प्रदर्शित करने की क्रिया को 'पर्सपेक्टिव' (Perspective) कहते हैं। किसी नगर की दूर तक सामने गई हुई सड़क, सामने को बही हुई नदी आदि के दृश्य बिना इसके सिद्धांतों को जाने नहीं दिखाए जा सकते। किस प्रकार निकट के पदार्थ बड़े और साफ दिखाई पड़ते हैं और दूर के पदार्थ क्रमशः छोटे और धुँधले होते जाते हैं, ये सब बातें अंकित करनी पड़ती हैं। उदाहरण के लिये दूर पर रखा हुआ एक चौखूँटा संदूक लीजिए। मान लीजिए कि आप उसे एक ऐसे किनारे से देख रहे हैं जहाँ से उसके दो पार्श्व या तीन कोण दिखाई पड़ते हैं। अब चित्र बनाने के निमित्त हम एक पेंसिल आँखों के समानांतर लेकर एक आँख दबाकर देखेंगे तो संदूक की सबके निकटस्थ खड़ी कोणरेखा (ऊँचाई) सबसे बड़ी दिखाई देगी; जो पार्श्व अधिक सामने रहेगा, उसके दूसरे ओर की कोणरेखा उससे छोटी और जो पार्श्व कम दिखाई देगा, उसके दूसरे ओर की कोणरेखा सबसे छोटी दिखाई पड़ेगी। अर्थात् निकटस्थ कोण रेखा से लगा हुआ उस पार्श्व का कोण जो कम दिखाई देता है, अधिक दिखाई पड़नेवाले पार्श्व के कोण से छोटा होगा। दूसरा सिद्धांत आलोक और छाया का है जिसके बिना सजीवता नहीं आ सकती। पदार्थ का जो अंश निकट और सामने रहेगा वह खुलता (आलोकित) और स्पष्ट होगा; और जो दूर या बगल में पड़ेगा, वह स्पष्ट ओर कालिमा लिए होगा। पदार्थोंका उभार और गहराई आदि भी इसी आलोक और छाया के नियमानुसार दिकाई जाती है। जो अंश उठा या उभरा होगा, वह अधिक खुलता होगा और जो धँसा या गहरा होगा वह कुछ स्याही लिए होगा। इन्हीं सिद्धांतों को न जानने के कारण बाजारू चित्रकार शीशे आदि पर जो चित्र बनाते हैं वे खेलवाड़ से जान पड़ते हैं। चित्रों में रंग एक प्रकार की कूँची से भरा जाता है जिसे चित्रकार कलम कहते हैं। पहले यहाँ गिलहरी की पूँछ के बालों की कलम बनती थी। अब विलायती ब्रुश काम में आते हैं। इन्हें भी देखें भारतीय चित्रकला ललित कला रामायण और चित्रकला बाहरी कड़ियाँ भारतीय चित्रकला (हिन्दी ब्लाग) चित्रकला विभाग, एमएमएच कॉलेज गाजियाबाद भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास (गूगल पुस्तक ; लेखक - वाचस्पति गैरोला) Italian Paintings जापानी रंगचित्र कला 'हाइगा' श्रेणी:चित्रकला श्रेणी:दृश्य कलाएँ
ऋग्वेद
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सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें १० मण्डल, १०२८ सूक्त और वर्तमान में १०,४६२ मन्त्र हैं, मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाओं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह सनातन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। ऋग्वेद की रचनाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होत्र कहा जाता है। ऋग्वेद सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पुस्तक है। इसकी प्रारम्भिक परतें किसी भी इंडो-यूरोपीय भाषा में सबसे पुराने मौजूदा ग्रन्थों में से एक हैं। ऋग्वेद की ध्वनियों और ग्रन्थों को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौखिक रूप से प्रसारित किया गया है। दार्शनिक और भाषायी साक्ष्य इंगित करते हैं कि ऋग्वेद संहिता के थोक की रचना भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी। ऋक् संहिता में १० मण्डल तथा बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मन्त्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मन्त्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ॰ १०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ॰ १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ॰ १०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ॰ १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। इस ग्रन्थ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण रचना माना गया है। ईरानी अवेस्ता की गाथाओं का ऋग्वेद के श्लोकों के जैसे स्वरों में होना, जिसमें कुछ विविध भारतीय देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है। कालनिर्धारण और ऐतिहासिक सन्दर्भ ऋग्वेद किसी भी अन्य इण्डो-आर्यन पाठ की तुलना में कहीं अधिक पुरातन है। इस कारण से, यह मैक्स मूलर और रूडोल्फ रोथ के समय से पश्चिमी विद्वानों के ध्यान के केन्द्र में था। ऋग्वेद वैदिक धर्म के प्रारम्भिक चरण को दर्ज करता है। प्रारम्भिक ईरानी अवेस्ता (tr. Shrotri), p. 14 "The Vedic diction has a great number of favourite expressions which are common with the Avestic, though not with later Indian diction. In addition, there is a close resemblance between them in metrical form, in fact, in their overall poetic character. If it is noticed that whole Avesta verses can be easily translated into the Vedic alone by virtue of comparative phonetics, then this may often give, not only correct Vedic words and phrases, but also the verses, out of which the soul of Vedic poetry appears to speak." "The oldest part of the Avesta... is linguistically and culturally very close to the material preserved in the Rigveda... There seems to be economic and religious interaction and perhaps rivalry operating here, which justifies scholars in placing the Vedic and Avestan worlds in close chronological, geographical and cultural proximity to each other not far removed from a joint Indo-Iranian period." के साथ मजबूत भाषायी और सांस्कृतिक समानताएं हैं, जो प्रोटो-इंडो-ईरानी काल से व्युत्पन्न हैं, p. 36 "Probably the least-contested observation concerning the various Indo-European dialects is that those languages grouped together as Indic and Iranian show such remarkable similarities with one another that we can confidently posit a period of Indo-Iranian unity..." अक्सर प्रारम्भिक एण्ड्रोनोवो संस्कृति (या बल्कि, प्रारम्भिक एण्ड्रोनोवो के भीतर सिंटाष्ट संस्कृति) से जुड़ी हैं। क्षितिज) २००० ईसा पूर्व। ऋग्वेद का समय ईपू १०००० से अधिक प्राचीनतम माना गया है। =प्रमुख विषय ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है- ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं जिनमें १०२८ सूक्त हैं और कुल १०,५८० ऋचाएँ हैं। इन मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ बड़े हैं। ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है जो वर्तमान समय में उपलब्ध है। ॠग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्तोत्रों की प्रधानता है। ऋग्वेद में ३३ देवी-देवताओं का उल्लेख है। इस वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का वर्णन किया है। इसमें अग्नि को आशीर्षा, अपाद, घृतमुख, घृत पृष्ठ, घृत-लोम, अर्चिलोम तथा वभ्रलोम कहा गया है। इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली देवता माना गया है। इन्द्र की स्तुति में ऋग्वेद में २५० ऋचाएँ हैं। ऋग्वेद के एक मण्डल में केवल एक ही देवता की स्तुति में श्लोक हैं, वह सोम देवता है। इस वेद में बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, एकात्मवाद का उल्लेख है। ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्म का वर्णन है। इस वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिए सर्वत्र 'सप्त सिन्धवः' शब्द का प्रयोग हुआ है। इस में कुछ अनार्यों जैसे - पिसाकास, सीमियां आदि के नामों का उल्लेख हुआ है। इसमें अनार्यों के लिए 'अव्रत' (व्रतों का पालन न करने वाला), 'मृद्धवाच' (अस्पष्ट वाणी बोलने वाला), 'अनास' (चपटी नाक वाले) कहा गया है। इस वेद लगभग २५ नदियों का उल्लेख किया गया है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन अधिक है।सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है। इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है। ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था। ऋग्वेद में सूत, रथकार तथा कर्मार नामों का उल्लेख हुआ है, जो राज्याभिषेक के समय पर उपस्थित रहते थे। इन सभी की संख्या राजा को मिलाकर १२ थी। ऋग्वेद में 'वाय' शब्द का प्रयोग जुलाहा तथा 'ततर' शब्द का प्रयोग करघा के अर्थ में हुआ है। ऋग्वेद के ९वें मण्डल में सोम रस की प्रशंसा की गई है। ऋग्वेद के १०वे मंडल में पुरुषसुक्त का वर्णन है। "असतो मा सद्गमय" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। सूर्य (सवितृ को सम्बोधित "गायत्री मंत्र" ऋग्वेद में उल्लेखित है। इस वेद में गाय के लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग किया गया है। ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं के उदाहरण मिलते हैं जो दीर्घकाल तक या आजीवन अविवाहित रहती थीं। इन कन्याओं को 'अमाजू' कहा जाता था। इस वेद में हिरण्यपिण्ड का वर्णन किया गया है। इस वेद में 'तक्षन्' अथवा 'त्वष्ट्रा' का वर्णन किया गया है। आश्विन का वर्णन भी ऋग्वेद में कई बार हुआ है। आश्विन को नासत्य (अश्विनी कुमार) भी कहा गया है। इस वेद के ७वें मण्डल में सुदास तथा दस राजाओं के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है, जो कि पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया। इस युद्ध में सुदास की जीत हुई । ऋग्वेद में कई ग्रामों के समूह को 'विश' कहा गया है और अनेक विशों के समूह को 'जन'। ऋग्वेद में 'जन' का उल्लेख २७५ बार तथा 'विश' का १७० बार किया गया है। एक बड़े प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में 'जनपद' का उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार हुआ है। जनों के प्रधान को 'राजन्' या राजा कहा जाता था। आर्यों के पाँच कबीले होने के कारण उन्हें ऋग्वेद में 'पञ्चजनाः' कहा गया – ये थे- पुरु, यदु, अनु, तुर्वशु तथा द्रहयु। 'विदथ' सबसे प्राचीन संस्था थी। इसका ऋग्वेद में १२२ बार उल्लेख आया है। 'समिति' का ९ बार तथा 'सभा' का ८ बार उल्लेख आया है। ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख २४ बार हुआ है। ऋग्वेद में में कपड़े के लिए वस्त्र, वास तथा वसन शब्दों का उल्लेख किया गया है। इस वेद में 'भिषक्' को देवताओं का चिकित्सक कहा गया है। इस वेद में केवल हिमालय पर्वत तथा इसकी एक चोटी मुञ्जवन्त का उल्लेख हुआ है। पाठ इस पाठ को दस मण्डलों में बांटा गया है,जो कि अलग-अलग समय में लिखे गए हैं और अलग-अलग लम्बाई के हैं। मण्डल संख्या २ से ७ ऋग्वेद के सबसे पुराने और सूक्ष्मतम मंडल हैं। यह मण्डल कुल पाठ का ३८% है। भाषा उत्तर वैदिक काल से पहले का वह काल जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना हुई थी। इन ऋचाओं की जो भाषा थी वो ऋग्वैदिक भाषा कहलाती है। ऋग्वैदिक भाषा हिंद यूरोपीय भाषा परिवार की एक भाषा है। इसकी परवर्ती पुत्री भाषाएँ अवेस्ता, पुरानी फ़ारसी, पालि, प्राकृत और संस्कृत हैं। मातृभाषी ऋग्वैदिक भाषा के मूल मातृभाषी संस्कृत भाषी हिंद-इरानी थे। व्याकरण नामन् (संज्ञा) एकवचन द्विवचन बहुवचन कर्ता -स् (-म्) -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) -अस् (-नि) संबोधन -स् (-) -उ, -ई, -ऊ (-नी) -अस् (-नि) कर्म -अम् (-म्) -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) -न्, -अस् (-नि) करण -ना, -या -भ्यॅम् -भिस् संप्रदान -अइ -भ्यॅम् -भ्यस् आपादान -अस् -भ्यॅम् -भ्यस् संबंध। -अस् -अउस् -नॅम अधिकरण -इ, -ॲम् -अउस् -सु/-षु ऋग्वैदिक भाषा और संस्कृत में अंतर जैसे होमेरिक ग्रीक क्लासिकल ग्रीक से भिन्न है वैसै ऋग्वैदिक भाषा संस्कृत भाषा से भिन्न है। तिवारी ([1955] 2005) ने दोनोँ के बीच अंतर को निम्न सिद्धान्त स्वरूप सूचित किया: ऋग्वैदिक भाषा में voiceless bilabial fricative ( फ़, जो उपधमानीय कहलाता था और एक अघोष वर्त्य संघर्षी voiceless velar fricative (, यानि ख़ जो जिह्वामूलीय कहलाता था)—यह तब प्रयोग होता है जब श्वास विसर्ग अः क्रमशः अघोष ओष्ठ्य और velar व्यंजनोँ के ठीक पहले आता है। दोनोँ ही संस्कृत में लुप्त हो गए और विसर्ग बन गए। उपधमानीय प और फ, जिह्वामूलीय क और ख से ठीक पहले आता है। ऋग्वैदिक भाषा में retroflex lateral approximant ळ() और इसका बलाघाती सहायक ळ्ह भी, संस्कृत में लुप्त हो गए, (ड़) और (ढ़) में बदल गए। (क्षेत्रानुसार; वैदिक उच्चारण अभी तक कुछ क्षेत्रोँ में मौलिक हैं, जैसे. दक्षिण भारत, महाराष्ट्र सहित.) अक्षरात्मक (ऋ), (लृ) और उनके दीर्घ स्वर उत्तर ऋग्वैदिक काल में लुप्त हो गए। बाद में (रि) और (ल्रि) के रूप उच्चारित होने लगा. स्वर e (ए) और o (ओ) वैदिक में अइ और अउ रूप में उच्चारित हो, पर बाद में संस्कृत में ये पूर्ण शुद्ध ए और ओ हो गए।. स्वर ai (ऐ) और au (औ) वैदिक में (आइ) और (आउ) हो गए, पर संस्कृत में ये (अइ) और (अउ) हो गए। प्रातिशाख्यस् का दावा है कि दंत्य व्यंजन वस्तुतः दाँतोँ की जड़ (दंतमूलीय) थे, पर बाद में पूर्ण दंत्य हो गए। इसमें र भी है जो बाद में retroflex हो गया। वैदिक में सुर का बड़ा महत्त्व था जो कभी भी शब्द का अर्थ बदल देता था और पाणिनि से पहले तक सुरक्षित था। आजकल, सुरभेद केवल पारंपरिक वैदिक में पाया जाता है, बजाय इसके संस्कृत एक राग भेदी भाषा है। प्लुति स्वर या (त्रैमात्रिक स्वर) वैदिक में ध्वन्यात्मक थे पर संस्कृत में लुप्त हो गए। वैदिक में दो समान स्वरोँ में संधि के दौरान विकार न होकर मूल ध्वनि सुरक्षित रहती है। अवेस्ता की भाषा तथा ऋग्वेद की भाषा की तुलना १९वीं शताब्दी में अवस्ताई फ़ारसी और ऋग्वैदिक भाषा दोनों पर पश्चिमी विद्वानों की नज़र नई-नई पड़ी थी और इन दोनों के गहरे सम्बन्ध का तथ्य उनके सामने जल्दी ही आ गया। उन्होने देखा के अवस्ताई फ़ारसी और ऋग्वैदिक भाषा के शब्दों में कुछ सरल नियमों के साथ एक से दुसरे को अनुवादित किया जा सकता था और व्याकरण की दृष्टि से यह दोनों बहुत नज़दीक थे। अपनी सन् १८९२ में प्रकाशित किताब "अवस्ताई व्याकरण की संस्कृत से तुलना और अवस्ताई वर्णमाला और उसका लिप्यन्तरण" में भाषावैज्ञानिक और विद्वान एब्राहम जैक्सन ने उदाहरण के लिए एक अवस्ताई धार्मिक श्लोक का ऋग्वैदिक भाषा में सीधा अनुवाद किया। मूल अवस्ताईवैदिक संस्कृत अनुवादतम अमवन्तम यज़तम सूरम दामोहु सविश्तम मिथ़्रम यज़ाइ ज़ओथ़्राब्योतम आमवन्तम यजताम शूरम धामेसु शाविष्ठम मित्राम यजाइ होत्राभ्यः संगठन एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, वेद पहले एक संहिता में थे पर व्यास ऋषि ने अध्ययन की सुगमता के लिए इन्हें चार भागों में बाँट दिया। इस विभक्तीकरण के कारण ही उनका नाम वेद व्यास पड़ा। इनका विभाजन दो क्रम से किया जाता है - (१) अष्टक क्रम - यह पुराना विभाजन क्रम है जिसमें संपूर्ण ऋक संहिता को आठ भागों (अष्टक) में बाँटा गया है। प्रत्येक अष्टक ८ अध्याय के हैं और हर अध्याय में कुछ वर्ग हैं। प्रत्येक अध्याय में कुछ ऋचाएँ (गेय मंत्र) हैं - सामान्यतः ५। (२) मण्डल क्रम -ऋग्वेद के मंडल : इसके अतर्गत संपूर्ण संहिता १० मण्डलों में विभक्त हैं। प्रत्येक मण्डल में अनेक अनुवाक और प्रत्येक अनुवाक में अनेक सूक्त और प्रत्येक सूक्त में कई मंत्र (ऋचा)। कुल दसों मण्डल में ८५ अनुवाक और १०१७ सूक्त हैं। इसके अतिरिक्त ११ सूक्त बालखिल्य नाम से जाने जाते हैं। ऋग्वेद के सूक्तों के पुरुष रचियताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि प्रमुख हैं। सूक्तों के स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, शची, कांक्षावृत्ति, पौलोमी आदि प्रमुख हैं। ऋग्वेद के १० वें मंडल के ९५ सूक्त में पुरुरवा, ऐल और उर्वशी का संवाद है। वेदों में किसी प्रकार की मिलावट न हो इसके लिए ऋषियों ने शब्दों तथा अक्षरों को गिन कर लिख दिया था। कात्यायन प्रभृति ऋषियों की अनुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की संख्या १०,५८०, शब्दों की संख्या १५३५२६ तथा शौनककृत अनुक्रमणी के अनुसार ४,३२,००० अक्षर हैं। शतपथ ब्राह्मण जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रजापति कृत अक्षरों की संख्या १२००० बृहती थी। अर्थात् १२००० गुणा ३६ यानि ४,३२,००० अक्षर। आज जो शाकल संहिता के रूप में ऋग्वेद उपलब्ध है उनमें केवल १०५५२ ऋचाएँ हैं। ऋग्वेद में ऋचाओं का बाहुल्य होने के कारण इसे 'ज्ञान का वेद' कहा जाता है। शाखाएँ ऋग्वेद की जिन २१ शाखाओं का वर्णन मिलता है, उनमें से चरणव्युह ग्रंथ के अनुसार पाँच ही प्रमुख हैं- १. शाकल, २. वाष्कल, ३. आश्वलायन, ४. शांखायन और ५. माण्डूकायन। भाष्य सबसे पुराना भाष्य (यानि टीका, समीक्षा) किसने लिखा यह कहना मुश्किल है पर सबसे प्रसिद्ध उपलब्द्ध प्राचीन भाष्य आचार्य सायण का है। आचार्य सायण से पूर्व के भाष्यकार अधिक गूढ़ भाष्य बना गए थे। यास्क ने ईसापूर्व पाँचवीं सदी में (अनुमानित) एक कोष लिखा था जिसमें वैदिक शब्दों के अर्थ दिए गए थे। लेकिन सायण ही एक ऐसे भाष्यकार हैं जिनके चारों वेदों के भाष्य मिलते हैं। ऋग्वेद के परिप्रेक्ष्य में क्रम से इन भाष्यकारों ने ऋग्वेद की टीका लिखी - स्कन्द स्वामी - ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार वेदों का अर्थ समझने और समझाने की क्रिया कुमारिल-शंकर के समय शुरु हुई। स्कन्द स्वामी का काल भी यही माना जाता है - सन् ६२५ के आसपास। ऐसी प्रसिद्धि है कि शतपथ ब्राह्मण के भाष्यकार हरिस्वामी (सन् ६३८) को स्कन्द स्वामी ने अपना भाष्य पढ़ाया था। ऋग्वेद भाष्य के प्रथमाष्टक के अन्त में प्राप्त श्लोक से पता चलता है कि स्कन्द स्वामी गुजरात के वलभी के रहने वाले थे। इसमें प्रत्येक सूक्त के आरंभ में उस सूक्त के ऋषि-देवता और छन्द का उल्लेख किया गया है। साथ ही अन्य ग्रंथों से उद्धरण प्रस्तुत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि स्क्न्द स्वामी ने प्रथम चार मंडल पर ही अपना भाष्य लिखा था, शेष भाग नारायण तथा उद्गीथ ने मिलकर पूरा किया था। माधव भट्ट- प्रसिद्ध भाष्यकारों में माधव नाम के चार भाष्यकार हुए हैं। एक सामवेद भाष्यकार के रूप में ज्ञात हैं तो शेष तीन ऋक् के - लेकिन इन तीनों को सटीक पहचानना ऐतिहासिक रूप से संभव न हो पाया है। एक तो आचार्य सायण खुद हैं जिन्होंने अपने बड़े भाई माधव से प्रेरणा लेकर भाष्य लिखा और इसका नाम माधवीय भाष्य रखा। कुछ विद्वान वेंकट माधव को ही माधव समझते हैं पर ऐसा होना मुश्किल लगता है। वेंकट माधव नामक भाष्यकार की जो आंशिक ऋग्टीका मिलती है उससे प्रतीत होता है कि इनका वेद ज्ञान उच्च कोटि का था। इनके भाष्य का प्रभाव वेंकट माधव तथा स्कन्द स्वामी तक पर मिलता है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि इनका काल स्कन्द स्वामी से भी पहले था। वेंकट माधव - इनका लिखा भाष्य बहुत संक्षिप्त है। इसमें न कोई व्याकरण संबंधी टिप्पणी है और न ही अन्य कोई टिप्पणी। इसमें एक विशेष बात यह है कि ब्राहमण ग्रंथों से सुन्दर रीति से प्रस्तुत प्रमाण। धानुष्कयज्वा - विक्रम की १६वीं शती से पूर्व वेद् भाष्यकार धानुष्कयज्वा का उल्लेख मिलता है जिन्होंने तीन वेदों के भाष्य लिखे। आनन्दतीर्थ - चौदहवीं सदी के मध्य में वैष्णवाचार्य आन्नदतीर्थ जी ने ऋग्वेद के कुछ मंत्रों पर अपना भाष्य लिखा है। आत्मानन्द - ऋग्वेद भाष्य जहाँ सर्वदा यज्ञपरक और देवपरक मिलते हैं, इनके द्वारा लिखा भाष्य आध्यात्मिक लगता है। सायण - ये मध्यकाल का लिखा सबसे विश्वसनीय, संपूर्ण और प्रभावकारी भाष्य है। विजयनगर के महाराज बुक्का (वुक्काराय) ने वेदों के भाष्य का कार्य अपने आध्यात्मिक गुरु और राजनीतिज्ञ अमात्य माधवाचार्य को सौंपा था। पमन्चु इस वृहत कार्य को छोड़कर उन्होंने अपने छोटे भाई सायण को ये दायित्व सौंप दिया। उन्होंने अपने विशाल ज्ञानकोश से इस टीका का न केवल सम्पादन किया बल्कि २४ वर्षों तक सेनापतित्व का दायित्व भी निभाया। आधुनिक भाष्य तथा व्याख्या आधुनिक कल में ऋग्वेद को समझने हेतु महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" की रचना की गई। और उस भाष्य का फिर आगे सरल संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया। इसी प्रकार स्वामी जी ने यजुर्वेद का भी भाष्य लिखा। उन्होने अंधविश्वास मिटाने हेतु और सत्य विद्या को जन जन तक पहुँचने हेतु हिन्दी में " सत्यार्थ प्रकाश " नामक ग्रंथ की रचना की और आर्य समाज संस्था कि स्थापना की। हिंदू धर्म में अभिग्रहण श्रुति संपूर्ण रूप से वेदों को हिंदू परंपरा में "श्रुति" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसकी तुलना पश्चिमी धार्मिक परंपरा में दैवीय रहस्योद्घाटन की अवधारणा से की गई है, लेकिन स्टाल का तर्क है कि "यह कहीं नहीं कहा गया है कि वेद प्रकट हुआ था", और उस श्रुति का सीधा अर्थ है "जो सुना जाता है, इस अर्थ में कि यह से प्रसारित होता है पिता से पुत्र या शिक्षक से शिष्य तक"।Frits Staal (2009), Discovering the Vedas: Origins, Mantras, Rituals, Insights, Penguin, , pp. xvxvi हिंदू राष्ट्रवाद ऋग्वेद एक हिंदू पहचान के आधुनिक निर्माण में एक भूमिका निभाता है, जिसमें हिंदुओं को भारत के मूल निवासियों के रूप में चित्रित किया गया है। ऋग्वेद को "स्वदेशी आर्यों" और भारत के बाहर सिद्धांत में संदर्भित किया गया है। ऋग्वेद को समसामयिक बताते हुए, या यहां तक कि सिंधु घाटी सभ्यता से भी पहले, एक तर्क दिया जाता है कि आईवीसी आर्य था, और ऋग्वेद का वाहक था। अवेस्ता के साथ समानता ऋग्वेद के तत्वों में पारसी धर्म के अवेस्ता के साथ समानता है;, उदाहरण के लिए: अहुरा से असुर,देवा डेवा से, अहुरा मज़्दा से हिंदू एकेश्वरवाद, वरुण, विष्णु और गरुड़, अग्नि से अग्नि मंदिर, स्वर्गीय रस सोमा - हाओमा नामक पेय से, समकालीन भारतीय और फारसी युद्ध से देवासुर का युद्ध, अरिया से आर्य, मिथरा से मित्र, द्यौष्पिता और ज़ीउस से बृहस्पति, यज्ञ से यज्ञ, नरिसंग से नरसंगसा, इंद्र, गंधर्व से गंधर्व, वज्र, वायु, मंत्र , यम, अहुति, हमता से सुमति इत्यादि। इन्हें भी देखें ऋग्वेद संहिता वैदिक साहित्य यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद वैदिक काल वैदिक धर्म वैदिक संस्कृति वैदिक कला वैदिक संस्कृत ऋचा सर्वानुक्रमणी सन्दर्भ बाहरी कडियाँ हिंदी में पढ़े सभी अध्याय ऋग्वेद के ऋग्वेद (संस्कृत) (विकिस्रोत) ऋग्वेद, हिन्दी अर्थ सहित वेद-पुराण - यहाँ चारों वेद एवं दस से अधिक पुराण हिन्दी अर्थ सहित उपलब्ध हैं। पुराणों को यहाँ सुना भी जा सकता है। महर्षि प्रबंधन विश्वविद्यालय - यहाँ सम्पूर्ण वैदिक साहित्य संस्कृत में उपलब्ध है। ज्ञानामृतम् - वेद, अरण्यक, उपनिषद् आदि पर सम्यक जानकारी वेद एवं वेदांग - आर्य समाज, जामनगर के जालघर पर सभी वेद एवं उनके भाष्य दिये हुए हैं। जिनका उदेश्य है - वेद प्रचार वेद-विद्या_डॉट_कॉम ऋग्वेद और सामवेद डाउनलोड करें (गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय) Why Read Rig Veda ऋग्वेद काल श्रेणी:संस्कृत साहित्य श्रेणी:वेद श्रेणी:वैदिक धर्म Hiivhggy
रहीम
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बच्चे: जाना बेगम अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था। वे एक ही साथ कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे। जन्म से एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर रहीम ने जो मार्मिक तथ्य अंकित किये थे, उनकी विशाल हृदयता का परिचय देती हैं। हिंदू देवी-देवताओं, पर्वों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी उनके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है। वे जीवनभर हिंदू जीवन को भारतीय जीवन का यथार्थ मानते रहे। रहीम ने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवनव्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो भारतीय संस्कृति की वर झलक को पेश करता है। छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। का रहीम हरि को घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ जीवन परिचय अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म संवत् १६१३ (ई. सन् १५५६) में Lahore में हुआ था। संयोग से उस समय हुमायूँ , सिकंदर , सूरी का आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। रहीम के पिता बैरम खाँ तेरह वर्षीय अकबर के शिक्षक तथा अभिभावक थे। बैरम खाँ खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित थे। वे हुमायूँ के साढ़ू और अंतरंग मित्र थे। रहीम की माँ वर्तमान हरियाणा प्रांत के मेवाती राजपूत जमाल खाँ की सुंदर एवं गुणवती कन्या सुल्ताना बेगम थी। जब रहीम पाँच वर्ष के ही थे, तब गुजरात के पाटण नगर में सन १५६१ में इनके पिता बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। रहीम का पालन-पोषण अकबर ने अपने धर्म-पुत्र की तरह किया। शाही खानदान की परंपरानुरूप रहीम को 'मिर्जा खाँ' का ख़िताब दिया गया। रहीम ने बाबा जंबूर की देख-रेख में गहन अध्ययन किया। शिक्षा समाप्त होने पर अकबर ने अपनी धाय की बेटी माहबानो से रहीम का विवाह करा दिया। इसके बाद रहीम ने गुजरात, कुम्भलनेर, उदयपुर आदि युद्धों में विजय प्राप्त की। इस पर अकबर ने अपने समय की सर्वोच्च उपाधि 'मीरअर्ज' से रहीम को विभूषित किया। सन १५८४ में अकबर ने रहीम को खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित किया। रहीम का देहांत ७१ वर्ष की आयु में सन १६२७ में हुआ। रहीम को उनकी इच्छा के अनुसार दिल्ली में ही उनकी पत्नी के मकबरे के पास ही दफना दिया गया। यह मज़ार आज भी दिल्ली में मौजूद हैं। रहीम ने स्वयं ही अपने जीवनकाल में इसका निर्माण करवाया था। इनके संस्कृत के गुरु बदाऊनी थे। अकबर के दरबार में हुमायूँ ने युवराज अकबर की शिक्षा-दिक्षा के लिए बैरम खाँ को चुना और अपने जीवन के अंतिम दिनों में राज्य का प्रबंध की जिम्मेदारी देकर अकबर का अभिभावक नियुक्त किया था। बैरम खाँ ने कुशल नीति से अकबर के राज्य को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दिया। किसी कारणवश बैरम खाँ और अकबर के बीच मतभेद हो गया। अकबर ने बैरम खाँ के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया और अपने उस्ताद की मान एवं लाज रखते हुए उसे हज पर जाने की इच्छा जताई। परिणामस्वरुप बैरम खाँ हज के लिए रवाना हो गये। बैरम खाँ हज के लिए जाते हुए गुजरात के पाटन में ठहरे और पाटन के प्रसिद्ध सहस्रलिंग सरोवर में नौका-विहार के बाद तट पर बैठे थे कि भेंट करने की नियत से एक अफगान सरदार मुबारक खाँ आया और धोखे से बैरम खाँ की हत्या कर दी। यह मुबारक खाँ ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया। इस घटना ने बैरम खाँ के परिवार को अनाथ बना दिया। इन धोखेबाजों ने सिर्फ कत्ल ही नहीं किया, बल्कि काफी लूटपाट भी मचाया। विधवा सुल्ताना बेगम अपने कुछ सेवकों सहित बचकर अहमदाबाद आ गई। अकबर को घटना के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने सुल्ताना बेगम को दरबार वापस आने का संदेश भेज दिया। रास्ते में संदेश पाकर बेगम अकबर के दरबार में आ गई। ऐसे समय में अकबर ने अपने महानता का सबूत देते हुए इनको बड़ी उदारता से शरण दिया और रहीम के लिए कहा “इसे सब प्रकार से प्रसन्न रखो। इसे यह पता न चले कि इनके पिता खान खानाँ का साया सर से उठ गया है। बाबा जम्बूर को कहा यह हमारा बेटा है। इसे हमारी दृष्टि के सामने रखा करो। इस प्रकार अकबर ने रहीम का पालन- पोषण एकदम धर्म- पुत्र की भांति किया। कुछ दिनों के पश्चात अकबर ने विधवा सुल्ताना बेगम से विवाह कर लिया। अकबर ने रहीम को शाही खानदान के अनुरुप “मिर्जा खाँ’ की उपाधि से सम्मानित किया। रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्म- निरपेक्ष नीति के अनुकूल हुई। इसी शिक्षा-दीक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है। दिनकर जी के कथनानुसार अकबर ने अपने दीन-इलाही में हिंदूत्व को जो स्थान दिया होगा, उससे कई गुणा ज्यादा स्थान रहीम ने अपनी कविताओं में दिया। रहीम के बारे में यह कहा जाता है कि वह धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में रहीम का महत्वपूर्ण स्थान था। सुप्रसिद्ध युवा कवि गोलेन्द्र पटेल ने रहीम के संदर्भ कहा है कि "रहीम भक्तिकाल के वाक्वीर और वाक्दानी कवि थे, कवि गंग और तुलसी इनके विषेश कृपा पात्र थे।"रहीमनामा,2022, पृष्ठ-9 विवाह रहीम की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात बादशाह अकबर ने अपने पिता हुमायूँ की परंपरा का निर्वाह करते हुए, रहीम का विवाह बैरम खाँ के विरोधी मिर्जा अजीज कोका की बहन माहबानों से करवा दिया। इस विवाह में भी अकबर ने वही किया, जो पहले करता रहा था कि विवाह के संबंधों के बदौलत आपसी तनाव व पुरानी से पुरानी कटुता को समाप्त कर दिया करता था। रहीम के विवाह से बैरम खाँ और मिर्जा के बीच चली आ रही पुरानी रंजिश खत्म हो गयी। रहीम का विवाह लगभग तेरह साल की उम्र में कर दिया गया था।इनकी दस संताने थी मीर अर्ज का पद अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातों रात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिये जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम- काज सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने सच्चे तथा विश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रूप से विश्वसनीय है। रहीम शहजादा सलीम काफी मिन्नतों तथा आशीर्वाद के बाद अकबर को शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से एक लड़का प्राप्त हो सका, जिसका नाम उन्होंने सलीम रखा। शहजादा सलीम माँ-बाप और दूसरे लोगों के अधिक दुलार के कारण शिक्षा के प्रति उदासीन हो गया था। कई महान लोगों को सलीम की शिक्षा के लिए अकबर ने लगवाया। इन महान लोगों में शेर अहमद, मीर कलाँ और दरबारी विद्वान अबुलफजल थे। सभी लोगों की कोशिशों के बावजूद शहजादा सलीम को पढ़ाई में मन न लगा। अकबर ने सदा की तरह अपना आखिरी हथियार रहीम खाने खाना को सलीम का अतालीक नियुक्त किया। कहा जाता है रहीम यह गौरव पाकर बहुत प्रसन्न थे। भाषा शैली रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय। बैर, प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय ॥ उनके काव्य में शृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं। दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। रहीम दास जी की भाषा अत्यंत सरल है, उनके काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और श्रृंगार का सुन्दर समावेश मिलता है। उन्होंने सोरठा एवं छंदों का प्रयोग करते हुए अपनी काव्य रचनाओं को किया है| उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य रचनाएं की है| उनके ब्रज का रूप अत्यंत व्यवहारिक, स्पष्ट एवं सरल है| उन्होंने तदभव शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। ब्रज भाषा के अतिरिक्त उन्होंने कई अन्य भाषाओं का प्रयोग अपनी काव्य रचनाओं में किया है| अवधी के ग्रामीण शब्दों का प्रयोग भी रहीमजी ने अपनी रचनाओं में किया है, उनकी अधिकतर काव्य रचनाएं मुक्तक शैली में की गई हैं जो कि अत्यंत ही सरल एवं बोधगम्य है | प्रमुख रचनाएं रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि। इन्हें भी देखें भक्त कवियों की सूची हिन्दी साहित्य भक्ति काल सन्दर्भ श्रेणी:भक्तिकाल के कवि श्रेणी:कृष्णाश्रयी शाखा के कवि श्रेणी:कवि
दस सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ चलचित्र
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दस सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ हिंदी चलचित्र कुछ लोग इन्हें मानते हैं : मदर इन्डिया दो बीघा ज़मीन मुगल-ए-आज़म आवारा गाइड प्यासा शोले जाने भी दो यारों बन्दिनी जागते रहो श्रेणी:हिन्दी सिनेमा
एस्पेरान्तो का प्राग इश्तिहार
https://hi.wikipedia.org/wiki/एस्पेरान्तो_का_प्राग_इश्तिहार
एस्पेरान्तो की प्रगति चाहने वाले हम लोग यह इश्तिहार सब सरकारों अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और सज्जनों के नाम दे रहे हैं; यहाँ दिये गए उद्देश्यों की ओर दृढ़ निश्चय से काम करने की घोषणा कर रहे हैं; और सब संस्थाओं और लोगों को हमारे प्रयास में जुटने का निमन्त्रण दे रहे हैं। एस्पेरान्तो जिसका आगाज़ १८८७ में अन्तर्राष्ट्रीय संप्रेषण के लिये एक सहायक भाषा के रूप में हुआ था और जो जल्दी ही अपने आप में एक जीती जागती ज़बान बन गई -- पिछले एक शताब्दी से लोगों को भाषा और संस्कृति की दीवारों को पार कराने का काम कर रही है। जिन उद्देश्यों से एस्पेरान्तो बोलने वाले प्रेरित होते आए हैं, वो उद्देश्य आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और सार्थक हैं। ना दुनिया भर में कुछ ही राष्ट्रीय भाषाओं के इस्तेमाल होने से, ना संप्रेषण तकनीकों में प्रगति से, ना ही भाषा सिखाने के नए तौर-तरीक़ों से, यह निम्नलिखित मूल यथार्त हो पायेंगे जिन्हें हम सच्ची और साधक भाषा प्रणाली के लिए अनिवार्य मानते हैं। लोकतंत्र ऐसी संचार-प्रणाली जो किसी एक को ख़ास फ़ायदा प्रदान करते हुए औरों से यह चाहे कि वे सालों भर का प्रयास करें और वो भी एक मामूली योग्यता प्राप्त करने के लिए, ऐसी प्रणाली बुनियादी तौर पर अलौकतांत्रिक है। यद्यपि एस्पेरान्तो और ज़बानों की तरह ही, दोष-हीन नहीं है, पर विश्वव्यापक समान संप्रेषण के लिए, एस्पेरान्तो बाकी भाषाओं से कहीं बेहतर है। हम मानते हैं कि भाषा असमता संप्रेषण असमता को हर स्तर पर पैदा करती है, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी। हमारा आन्दोलन लोकतांत्रिक संप्रेषण का आन्दोलन है। विश्वव्यापी विद्या हर जातीय भाषा किसी ना किसी संस्कृति और देश से मिली जुड़ी हुई है। मिसाल के तौर पे, अंग्रेज़ी सीखता छात्र दुनिया के अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों के बारे में सीखता है -- ख़ास कर, अमेरिका और इंग्लैंड के बारे में। एस्पेरान्तो सीखने वाला छात्र एक ऐसी दुनिया के बारे में सीखता है जिसमे सीमाएँ नहीं हैं, जहाँ हर देश घर है। हमारा मत है कि हर भाषा में दी गयी विद्या किसी ना किसी दृष्टिकोण से जुड़ी हुई है। हमारा आन्दोलन विश्वव्यापी विद्या का आन्दोलन है। प्रभावशील विद्या विदेशी भाषा सीखने वालों में कुछ प्रतिशत ही विदेशी भाषा में धाराप्रवाह हासिल कर पाते हैं। एस्पेरान्तो में धाराप्रवाह घर बैठ कर पढ़ाई से भी मुमकिन है। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है कि एस्पेरान्तो सीखने से अन्य भाषाओं का सीखना आसान हो जाता है। यह भी अनुशंसित किया गया है कि भाषा-चेतना के पाठ्यक्रमों की बुनियाद में ही एस्पेरान्तो सम्मिलित होना चाहिए। हमारा मत है कि जिन विद्यार्थियों को दूसरी भाषा सीखने से फ़ायदा हो सकता है, उन विद्यार्थियों केलिए विदेशी भाषाएँ सीखने की कठिनाइयाँ हमेशा एक दीवार बन कर खड़ी रहेंगी। हमारा आन्दोलन प्रभावशील भाषाग्रहण का आन्दोलन है। बहुभाष्यता एस्पेरान्तो समुदाय उन चुने-गिने विश्वव्यापी समुदायों में से है जिनका हर सदस्य दुभाषी या बहुभाषी है। इस समुदाय के हर सदस्य ने कम से कम एक विदेशी भाषा को बोलचाल-स्तर तक सीखने का प्रयास किया है। कई बार इस कारण अनेक भाषाओं का ग्यान और अनेक भाषाओं के प्रति प्रेम पैदा हुआ है -- निजि मानसिक-क्षितिजों में बढ़ौत्री हुई है। हम मानते हैं कि हर इनसान को, चाहे वो छोटी ज़बान बोलने वाला हो, या बड़ी, एक दूसरी ज़बान उच्च-स्तर तक सीखने का मौका मिलना चाहिए। हमारा आन्दोलन वह मौका हर एक को देता है। भाषा-अधिकार भाषाओं की ताकतों का असमान वितरण, दुनिया में ज़्यादातर लोगों में भाषा असुरक्षा पैदा करती है, या फिर यह असमानता खुले आम भाषा अत्याचार का रूप लेती है। एस्पेरान्तो समुदाय का हर सदस्य, चाहे वो ताकतवर ज़बान का बोलने वाला हो, या बलहीन, एक समान स्तर पर हर दूसरे सदस्य से मिलता है, समझौता करने के लिए तय्यार। भाषा अधिकारों और ज़िम्मेवारियों का यह समतुलन, अन्य भाषा असमानताओं और संघर्षणों की कसौटी है। भाषा जो भी हो, बरताव एक ही होगा -- हम मानते हैं कि कई अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों में व्यक्त किया गया यह सिद्धांत, भाषाओं की ताकत में असमानताओं के कारण नसार्थक बन रहा है। हमारा आन्दोलन भाषा-अधिकारों का आन्दोलन है। भाषा विभिन्नता सरकारें दुनिया की विशाल भाषा विभिन्नता को संप्रेषण और तरक्की के रास्ते में एक दीवार मानती हैं। मगर एस्पेरान्तो समुदाय भाषा विभिन्नता को एक अत्यावष्यक और निरन्तर धन के रूप में देखती है। इस कारण, हर भाषा, हर प्रकार के जीव-जन्तु की तरह, सहायता और सुरक्षा के लायक है। हमारा मत है कि संप्रेषण और विकास की नीतियाँ जो सब ज़बानों के सम्मान और सहायता पर आधारित नहीं है, वह नीतियाँ दुनिया के अधिकतर भाषाओं के लिए सज़ा-ए-मौत साबित होंगी। हमारा आन्दोलन भाषा विभिन्नता का आन्दोलन है। मानव बन्धनमुक्ति हम मानते हैं कि केवल जातीय भाषाओं पर आधारित रहना अभिव्यक्ति, संप्रेषण और संघठन की स्वतंत्रता में अवश्य ही बाधाएँ पैदा करती है। हमारा आन्दोलन मानव बन्धनमुक्ति का आन्दोलन है। प्राग, जुलाई १९९६ विकिपीडिया में एस्पेरान्तो: अकसर पूछे जाने वाले कुछ सवाल बाहरी कड़ियाँ विश्व एस्पेरान्तो संस्था | Universala Esperanto-Asocio बहुभाष्यपोर्टल | multlingva informcentro भारतीय एस्पेरान्तो संघ | Federacio Esperanto de Barato श्रेणी:निर्मित भाषाएँ श्रेणी:अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषाएँ
भारत गणराज्य का प्रधानमंत्री
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारत_गणराज्य_का_प्रधानमंत्री
पुनर्प्रेषित भारत का प्रधानमन्त्री
एशिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/एशिया
thumb|2018 के अनुसार, भौतिक, राजनीतिक और जनसांख्यिकी विशेषताओं को दर्शाने वाला एशिया के सबसे अधिक आबादी वाले हिस्से का मानचित्र Asia ka maha dweep bhoot he bada ha yehesome likes aae hagin to woh kisi seh aseh keee kilometertekfelahouahaiएशिया या जम्बुद्वीप क्षेत्रफल (4,45,79,000 वर्ग किलोमीटर) और जनसंख्या ( 4.7 अरब )दोनों ही दृष्टि से विश्व या दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो उत्तरी गोलार्द्ध, भूमध्य रेखा के उत्तर में में स्थित है। पश्चिम में इसकी सीमाएँ यूरोप से मिलती हैं, हालाँकि इन दोनों के बीच कोई सर्वमान्य और स्पष्ट सीमा नहीं निर्धारित की गई है। एशिया और यूरोप दोनों देशों को मिलाकर यूरेशिया बना है। यह भूमध्य सागर, अंध सागर, आर्कटिक महासागर, प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर से घिरा हुआ है। जिसके कारण काकेशस पर्वत शृंखला और यूराल पर्वत शृंखला प्राकृतिक रूप दोनों पर्वत शृंखलाएँ एशिया को यूरोप से अलग करती है। विश्व के सबसे प्राचीन मानव सभ्यताओं का जन्म इसी महाद्वीप पर हुआ था जैसे सुमेर, भारतीय सभ्यता, चीनी सभ्यता इत्यादि। चीन और भारत विश्व के दो सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश हैं। पश्चिम में स्थित एक लंबी भू सीमा यूरोप को एशिया से पृथक करती है। सतह सीमा उत्तर-दक्षिण दिशा में नीचे की ओर रूस में यूराल पर्वत तक जाती है, यूराल नदी के किनारे कैस्पियन सागर तक और फिर काकेशस पर्वत से होते हुए हिंद सागर तक जाती है। रूस का लगभग तीन चौथाई भू-भाग एशिया में तथा शेष भू-भाग यूरोप में है। विश्व के कुल क्षेत्र का लगभग 1/10वां भाग और भू-भाग का 30% एशिया में है। इस महाद्वीप की जनसंख्या अन्य सभी महाद्वीपों की संयुक्त जनसंख्या से अधिक है जो कुल जनसंख्या का लगभग 3/5वां भाग अथवा 60% है। उत्तर में बर्फ़ीले आर्कटिक से लेकर दक्षिण में ऊष्ण भूमध्य रेखा तक यह महाद्वीप लगभग 4,45,70,000 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है और अपने में कुछ विशाल, रिक्त रेगिस्तानों, विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतों और कुछ सबसे लंबी नदियों को समेटे हुए है। एशिया दुनिया के अधिकांश धर्मों का हिंदू धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, सिख धर्म और साथ ही कई अन्य धर्मों का जन्म स्थान है। इतिहास thumb|upright=1.25|रेशम मार्ग पूरे एशिया की संस्कृतियों से जुड़ा था। thumb|right|upright=1.25||मंगोल साम्राज्य का विस्तार। एशिया के इतिहास को कई परिधीय तटीय क्षेत्रों के रूप में देखा जा सकता है :— पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व पश्चिम एशिया, जो मध्य एशियाई मैदानों के आर्द्र द्रव्यमान वाले भाग से जुड़ा हुआ है। तटीय परिधि वाली भाग दुनिया की कुछ शुरुआती अज्ञात सभ्यताओं की पहचान थी, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक उपजाऊ भूमि, नदी घाटियों के आसपास मेसोपोटामिया, सिंधु घाटी और पीली नदी जैसी कई सभ्यताएं विकसित हुई। इन्हीं सभ्यताओं में गणित और पहिया जैसी प्रौद्योगिकियों का अविष्कार हुआ। एशिया के इतिहास के अध्ययन से प्रतीत होता है कि एशिया के इन्हीं तराई क्षेत्रों में लेखन, हस्त कलाये, और नगर, राज्य और बड़े-बड़े साम्राज्य का विकास हुआ है। एशिया के केंद्रीय स्टेपी क्षेत्र में लंबे समय से घोड़े पर सवार खानाबदोशों का निवास स्थल हुआ करता था, जिनका समुह स्टेपी से लेकर एशिया के सभी क्षेत्रों तक शिकार के लिए जाते थे। भाषा के संबंध में देखा जाय तो सर्वप्रथम इंडो-यूरोपीय भाषाओं की खोज इसी क्षेत्र में हुई, जो बाद में मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और चीन की सीमाओं तक विकसित होने लगी। एशिया का सबसे उत्तरी भाग साइबेरिया, जहां घने जंगलों, जलवायु और टुंड्रा के कारण स्टेपी खानाबदोशों के लिए काफी हद तक यह क्षेत्र दुर्गम बना रहता था। जिसके कारण इस क्षेत्र में बहुत कम आबादी निवास करती थी। अधिकतर पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्र जैसे काकेशस और हिमालय पर्वत और काराकुम और गोबी रेगिस्तान इत्यादि स्टेपी निवासियों के लिए ख़तरनाक क्षेत्र माना जाता था जबकि शहरी निवासी तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक रूप से अधिक उन्नत थे। 7वीं शताब्दी की विजय के दौरान बीजान्टिन और फारसी साम्राज्यों की इस्लामिक खलीफा की हार के कारण पश्चिम एशिया और मध्य एशिया के दक्षिणी हिस्से और दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से उसके नियंत्रण में आ गए। 13वीं सदी में मंगोल साम्राज्य ने एशिया के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो चीन से लेकर यूरोप तक फैला हुआ क्षेत्र था। मंगोल आक्रमण से पहले, सांग राजवंश में कथित तौर पर लगभग 120 मिलियन आबादी थी; आक्रमण के बाद हुई 1300 की जनगणना में लगभग 60 मिलियन आबादी की सूचना दी गई। 17वीं शताब्दी से एशिया में रूसी साम्राज्य का विस्तार होना शुरू हुआ, और अंततः 19वीं शताब्दी के अंत तक पूरे साइबेरिया और अधिकांश मध्य एशिया पर कब्ज़ा कर लिया। 16वीं शताब्दी के मध्य से ओटोमन साम्राज्य ने अनातोलिया, अधिकांश मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और बाल्कन को नियंत्रित किया। 17वीं शताब्दी में मांचू नामक राजा ने चीन पर विजय प्राप्त की और चिंग राजवंश की स्थापना की। 16वीं और 18वीं शताब्दी में इस्लामिक मुगल साम्राज्य और हिंदू मराठा साम्राज्य ने क्रमशः भारत के अधिकांश हिस्से पर अपना अपना साम्राज्य स्थापित किया। भूगोल thumb|right|हिमालय पर्वत शृंखला सबसे ऊंची चोटियों का घर है। एशिया पृथ्वी पर सबसे बड़ा महाद्वीप है। पृथ्वी के कुल सतह क्षेत्र का 9% या इसके भूमि क्षेत्र का 30% भाग अनावरण करता है, और इसकी तटरेखा 62,800 किलोमीटर (39,022 मील) सबसे लंबी है। एशिया को आम तौर पर यूरेशिया के पूर्वी चौथे-पांचवें हिस्से के रूप में जाना जाता है। यह स्वेज़ नहर और यूराल पर्वत के पूर्व में और काकेशस पर्वत और काला सागर के दक्षिण में स्थित है यह पूर्व में प्रशांत महासागर, दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में आर्कटिक महासागर से घिरा है। एशिया को 49 देशों में विभाजित किया गया है, उनमें से जॉर्जिया, अजरबैजान, रूस, कजाकिस्तान और तुर्की अंतरमहाद्वीपीय देश हैं जो आंशिक रूप से यूरोप में स्थित हैं। भौगोलिक दृष्टि से, रूस एशिया में है, लेकिन सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से इसे एक यूरोपीय राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन thumb|कोप्पेन-गीजर जलवायु का वर्गीकरण एशिया का मानचित्र एशिया की जलवायु विशेषताएँ अत्यंत विविध हैं। एशिया की जलवायु साइबेरिया में आर्कटिक से लेकर दक्षिणी भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में उष्णकटिबंधीय तक फैला है। यह दक्षिण-पूर्वी भागों में नम पाये जाते है, और अधिकांश आंतरिक भाग शुष्क पाये जाते हैं। हिमालय की उपस्थिति के कारण मानसून परिसंचरण दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में हावी रहता है, जिससे तापीय न्यून दाब का निर्माण होता है जो गर्मियों के दौरान नमी को सुखा देता है। इसी कारण एशिया महाद्वीप का दक्षिणी-पश्चिमी भाग गर्म होता है। साइबेरिया का उत्तरी गोलार्द्ध सबसे ठंडे स्थानों में से एक माना जाता है, इसका प्रभाव मुख्यतः उत्तरी अमेरिका के निम्न द्रव्यमान वाले क्षेत्रों देखा जा सकता है। फिलीपींस के उत्तर-पूर्व और जापान के दक्षिण में उष्णकटिबंधीय चक्रवात के सक्रियता का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है।एशिया महाद्वीप के कई देशों पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा प्रभाव देखने को मिलता है। वैश्विक जोखिम विश्लेषण फार्म मेपलक्रॉफ्ट द्वारा 2010 में किए गए एक सर्वेक्षण में 16 ऐसे देशों की पहचान की गई जहां जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशीलता देखने को मिलता हैं। प्रत्येक राष्ट्र की भेद्यता की गणना 42 सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकेतकों को ध्यान में रख करके की गई, जिसमें अगले 30 वर्षों के दौरान संभावित जलवायु परिवर्तन प्रभावों की पहचान की जाने की संभावना है। और इन देशों के अन्तर्गत भारत, वियतनाम, थाईलैंड, पाकिस्तान, चीन और श्रीलंका के एशियाई देश जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक जोखिम का सामना करने वाले 16 देशों में से माने जाते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि कुछ बदलाव पहले से ही हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, अर्ध-शुष्क जलवायु वाले भारत के उष्णकटिबंधीय भागों में, 1901 और 2003 के बीच तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। अर्थव्यवस्था thumb|right|upright=1.25|सिंगापुर में दुनिया में सबसे व्यस्त बंदरगाहों की सूची में से एक है और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा व्यापार केंद्र है। एशिया की अर्थव्यवस्था यूरोप के बाद विश्व की, क्रय शक्ति के आधार पर, दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। एशिया की अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत लगभग 4 अरब लोग आते हैं, जो विश्व जनसंख्या का 80% है। ये 4 अरब लोग एशिया के 46 विभिन्न देशों में निवास करते है। छः अन्य देशों के कुछ भूभाग भी आंशिक रूप से एशिया में पड़ते हैं, लेकिन इन देशों का बहुत ही कम भाग एशिया में है इसलिए इन्हें गिना नहीं जाता। वर्तमान में विश्व का सबसे ते़ज़ी उन्नति करता हुआ क्षेत्र है और चीन इस समय एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो कई पूर्वानुमानों के अनुसार अगले कुछ वर्षों में विश्व की भी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। एशिया काफी हद तक दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और यह पेट्रोलियम, जंगल, मछली, पानी, चावल, तांबा और चांदी जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। एशिया में विनिर्माण परंपरागत रूप से पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे मजबूत रहा है, विषेशकर चीन, ताइवान , दक्षिण कोरिया, जापान, भारत, फिलीपींस और सिंगापुर में। बहुराष्ट्रीय निगमों के क्षेत्र में जापान और दक्षिण कोरिया का दबदबा कायम है, लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण भारत में भी चीन के जैसा प्रगति हो रही हैं। सस्ते श्रम की प्रचुर आपूर्ति और अपेक्षाकृत विकसित बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने के लिए यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान की कई कंपनियां एशिया के विकासशील देशों में परिचालन कर रही हैं। एशिया की 5 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश है चीन जापान दक्षिण कोरिया भारत और सिंगापुर इंडोनेशिया जनसांख्यिकी right|thumb|350px|जनसंख्या घनत्व के अनुसार संप्रभु देशों का मानचित्र एशिया महाद्वीप पृथ्वी के 29.4% भूमि क्षेत्र का अनावरण करता है और इसकी आबादी लगभग 4.75 बिलियन (2022 तक) है, जो विश्व की आबादी का लगभग 60% है। 2022 तक चीन और भारत दोनों की संयुक्त जनसंख्या 2.8 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है। 2055 तक एशिया की जनसंख्या 5.25 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है, या उस समय अनुमानित विश्व जनसंख्या का लगभग 54%। 2022 तक एशिया में जनसंख्या वृद्धि अत्यधिक असमान दरों के साथ 0.55% प्रति वर्ष के करीब थी। कई पश्चिमी एशियाई और दक्षिण एशियाई देशों की विकास दर विश्व औसत से ऊपर है, विशेष रूप से पाकिस्तान में 2% प्रति वर्ष, जबकि चीन में -0.06% की मामूली कमी हुई और भारत में 2022 में 0.6% की वृद्धि हुई। संस्कृति एशिया की संस्कृति रीति-रिवाजों और परंपराओं का एक विविध मिश्रण है जो सदियों से महाद्वीप के विभिन्न जातीय समूहों द्वारा प्रचलित है। महाद्वीप को छह भौगोलिक उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:— इन क्षेत्रों को उनकी सांस्कृतिक समानताओं से परिभाषित किया जाता है, जिसमें सामान्य धर्म, भाषाएं और जातीयताएं शामिल हैं। पश्चिम एशिया, जिसे दक्षिण-पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व के रूप में भी जाना जाता है, की सांस्कृतिक जड़ें उपजाऊ क्रिसेंट और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताओं में हैं, जिन्होंने फारसी, अरब, ओटोमन साम्राज्यों के साथ-साथ यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इब्राहीम धर्मों को जन्म दिया। इस्लाम। ये सभ्यताएं, जो पहाड़ी किनारों में स्थित हैं, दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से हैं, जिनमें खेती के प्रमाण लगभग 9000 ईसा पूर्व के हैं। महाद्वीप के विशाल आकार और रेगिस्तान और पर्वत शृंखलाओं जैसी प्राकृतिक बाधाओं की उपस्थिति से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में एशिया की छवि सुदृढ़ बनाने में मदद की है जो पूरे क्षेत्र में साझा की जाती है। प्रमुख एशियाई सीमाएं एशिया महाद्वीप अन्य अन्तर्राष्ट्रीय देशों के साथ समुद्री, हवाई, और स्थलीय सीमा साझा करती है। उदाहरण स्वरुप:— एशिया-अफ्रीका सीमा एशिया और अफ्रीका के बीच लाल सागर, और स्वेज़ नहर है। और इसके माध्यम से सीमा साझा करती हुईमिस्र से जुड़ती है जिसके कारण मिस्र को आज के संदर्भ में एक अंतरमहाद्वीपीय देश के नाम से जाना जाता है, व्यापारिक दृष्टि से मजबूत देश एशिया में हैं और शेष देश अफ्रीका में है। एशिया-उत्तरी अमेरिका सीमा बेरिंग जलडमरूमध्य और बेरिंग सागर एशिया और उत्तरी अमेरिका के भू-भाग को अलग करते हैं, साथ ही रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी साझा करते हैं। यह राष्ट्रीय और महाद्वीपीय सीमा बेरिंग जलडमरूमध्य में डायोमेड द्वीप समूह को रूस में बड़ा डायोमेड और संयुक्त राज्य अमेरिका में छोटा डायोमेड से अलग करती है। अलेउतियन द्वीप एक द्वीप शृंखला है जो अलास्का प्रायद्वीप से पश्चिम की ओर रूस के कोमांडोरस्की द्वीप और कामचटका प्रायद्वीप तक फैली हुई है। उनमें से अधिकांश हमेशा उत्तरी अमेरिका से जुड़े होते हैं, पश्चिमी निकट द्वीप समूह को छोड़कर, जो उत्तरी अलेउतियन बेसिन से पुरे एशिया के महाद्वीपीय शाखाओं पर स्थिर है। नोबेल पुरस्कार विजेता बहुश्रुत रवीन्द्रनाथ टैगोर, एक बंगाली कवि, नाटककार साहित्यकार थे। 1913 में पहले एशियाई नोबेल पुरस्कार विजेता बने। उन्हें शांतिनिकेतन के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच और यूरोप और अमेरिका के अन्य राष्ट्रीय गद्य साहित्य पर कार्य किया और उनके इसी साहित्यिक विचारों के उल्लेखनीय प्रभाव के कारण नोबेल पुरस्कार नवाजा गया। साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अन्य एशियाई लेखकों में यासुनारी कावाबाता (जापान, 1968), केन्ज़ाबुरो ओई (जापान, 1994), गाओ जिंगजियान (चीन, 2000), ओरहान पामुक (तुर्की, 2006), और मो यान (चीन, 2012) दलाई लामा इत्यादि शामिल हैं। जिनमें से एक दलाई लामा को अपने आध्यात्मिक और राजनीतिक जीवन काल में लगभग चौरासी पुरस्कार प्राप्त हुए प्राचीन भारतीय पुस्तकों में वर्तमान एशिया के नाम जंबुद्वीप – मध्य भूमि। पुष्करद्वीप – उत्तर पूर्वी प्रदेश। शाकद्वीप – दक्षिण पूर्वी द्वीप समूह। एशिया से संबंधित प्रमुख परियोजनाएं देखें एशियाई राजमार्ग जाल संदर्भ सूची बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:एशिया श्रेणी:महाद्वीप श्रेणी:एशिया का इतिहास श्रेणी:एशिया का भूगोल श्रेणी:एशिया की अर्थव्यवस्था
गांधी
https://hi.wikipedia.org/wiki/गांधी
अनुप्रेषित महात्मा गांधी
कला
https://hi.wikipedia.org/wiki/कला
right|thumb|200px|राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित 'गोपिका' कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती है। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी है। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है। परिभाषा मैथिली शरण गुप्त के शब्दों में, अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला है -- (साकेत, पंचम सर्ग) दूसरे शब्दों में -: मन के अंतःकरण की सुन्दर प्रस्तुति ही कला है। इतिहास कला शब्द का प्रयोग शायद सबसे पहले भरत के "नाट्यशास्त्र" में ही मिलता है। पीछे वात्स्यायन और उशनस् ने क्रमश: अपने ग्रंथ "कामसूत्र" और "शुक्रनीति" में इसका वर्णन किया। "कामसूत्र", "शुक्रनीति", जैन ग्रंथ "प्रबंधकोश", "कलाविलास", "ललितविस्तर" इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है। अधिकतर ग्रंथों में कलाओं की संख्या 64 मानी गयी है। "प्रबंधकोश" इत्यादि में 72 कलाओं की सूची मिलती है। "ललितविस्तर" में 86 कलाओं के नाम गिनाये गये हैं। प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित क्षेमेंद्र ने अपने ग्रंथ "कलाविलास" में सबसे अधिक संख्या में कलाओं का वर्णन किया है। उसमें 64 जनोपयोगी, 32 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सम्बन्धी, 32 मात्सर्य-शील-प्रभावमान सम्बन्धी, 64 स्वच्छकारिता सम्बन्धी, 64 वेश्याओं सम्बन्धी, 10 भेषज, 16 कायस्थ तथा 100 सार कलाओं की चर्चा है। सबसे अधिक प्रामाणिक सूची "कामसूत्र" की है। यूरोपीय साहित्य में भी कला शब्द का प्रयोग शारीरिक या मानसिक कौशल के लिए ही अधिकतर हुआ है। वहाँ प्रकृति से कला का कार्य भिन्न माना गया है। कला का अर्थ है रचना करना अर्थात् वह कृत्रिम है। प्राकृतिक सृष्टि और कला दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं। कला उस कार्य में है जो मनुष्य करता है। कला और विज्ञान में भी अंतर माना जाता है। विज्ञान में ज्ञान का प्राधान्य है, कला में कौशल का। कौशलपूर्ण मानवीय कार्य को कला की संज्ञा दी जाती है। कौशलविहीन या बेढब ढंग से किये गये कार्यों को कला में स्थान नहीं दिया जाता। वर्गीकरण right|thumb|300px|अंकोरवाट मंदिर की वास्तुकला कलाओं के वर्गीकरण में मतैक्य होना सम्भव नहीं है। वर्तमान समय में कला को मानविकी के अन्तर्गत रखा जाता है जिसमें इतिहास, साहित्य, दर्शन और भाषाविज्ञान आदि भी आते हैं। पाश्चात्य जगत में कला के दो भेद किये गये हैं- उपयोगी कलाएँ (Practice Arts) तथा ललित कलाएँ (Fine Arts)। परम्परागत रूप से निम्नलिखित सात को 'कला' कहा जाता है- स्थापत्य कला (Architecture) मूर्त्तिकला (Sculpture) चित्रकला (Painting) संगीत (Music) काव्य (Poetry) नृत्य (Dance) रंगमंच (Theater/Cinema) आधुनिक काल में इनमें फोटोग्राफी, चलचित्रण, विज्ञापन और कॉमिक्स जुड़ गये हैं। उपरोक्त कलाओं को निम्नलिखित प्रकार से भी श्रेणीकृत कर सकते हैं- साहित्य - काव्य, उपन्यास, लघुकथा, महाकाव्य आदि निष्पादन कलाएँ (performing arts) – संगीत, नृत्य, रंगमंच पाक कला (culinary arts) - बेकिंग, चॉकलेटरिंग, मदिरा बना मिडिया कला - फोटोग्राफी, सिनेमेटोग्राफी, विज्ञापन दृष्य कलाएँ - ड्राइंग, चित्रकला, मूर्त्तिकला कुछ कलाओं में दृश्य और निष्पादन दोनों के तत्त्व मिश्रित होते हैं, जैसे कला का महत्त्व जीवन, ऊर्जा का महासागर है। जब अंतश्‍चेतना जाग्रत होती है तो ऊर्जा जीवन को कला के रूप में उभारती है। कला जीवन को सत्‍यम् शिवम् सुन्‍दरम् से समन्वित करती है। इसके द्वारा ही बुद्धि आत्‍मा का सत्‍य स्‍वरुप झलकता है। कला उस क्षितिज की भाँति है जिसका कोई छोर नहीं, इतनी विशाल इतनी विस्‍तृत अनेक विधाओं को अपने में समेटे, तभी तो कवि मन कह उठा- साहित्‍य संगीत कला वि‍हीनः साक्षात् पशुः पुच्‍छ विषाणहीनः ॥ रवीन्द्रनाथ ठाकुर के मुख से निकला “कला में मनुष्‍य अपने भावों की अभिव्‍यक्ति करता है ” तो प्लेटो ने कहा - “कला सत्‍य की अनुकृति के अनुकृति है।” टालस्‍टाय के शब्‍दों में अपने भावों की क्रिया रेखा, रंग, ध्‍वनि या शब्‍द द्वारा इस प्रकार अभिव्‍यक्ति करना कि उसे देखने या सुनने में भी वही भाव उत्‍पन्‍न हो जाए कला है। हृदय की गइराईयों से निकली अनुभूति जब कला का रूप लेती है, कलाकार का अन्‍तर्मन मानो मूर्त ले उठता है चाहे लेखनी उसका माध्‍यम हो या रंगों से भीगी तूलिका या सुरों की पुकार या वाद्यों की झंकार। कला ही आत्मिक शान्ति का माध्‍यम है। यह ‍कठिन तपस्‍या है, साधना है। इसी के माध्‍यम से कलाकार सुनहरी और इन्‍द्रधनुषी आत्‍मा से स्‍वप्निल विचारों को साकार रूप देता है। कला में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे ऊँचे स्‍थान पर पहुँचा दे जहाँ मनुष्‍य केवल मनुष्‍य रह जाता है। कला व्‍यक्ति के मन में बनी स्‍वार्थ, परिवार, क्षेत्र, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ मिटाकर विस्‍तृत और व्‍यापकता प्रदान करती है। व्‍यक्ति के मन को उदात्‍त बनाती है। वह व्‍यक्ति को “स्‍व” से निकालकर “वसुधैव कुटुम्‍बकम्” से जोड़ती है। कला ही है जिसमें मानव मन में संवेदनाएँ उभारने, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। मनोरंजन, सौन्‍दर्य, प्रवाह, उल्‍लास न जाने कितने तत्त्वों से यह भरपूर है, जिसमें मानवीयता को सम्‍मोहित करने की शक्ति है। यह अपना जादू तत्‍काल दिखाती है और व्यक्ति को बदलने में, लोहा पिघलाकर पानी बना देने वाली भट्टी की तरह मनोवृत्तियों में भारी रुपान्‍तरण प्रस्‍तुत कर सकती है। जब यह कला संगीत के रूप में उभरती है तो कलाकार गायन और वादन से स्‍वयं को ही नहीं श्रोताओं को भी अभिभूत कर देता है। मनुष्‍य आत्‍मविस्‍मृत हो उठता है। दीपक राग से दीपक जल उठता है और मल्‍हार राग से मेघ बरसना यह कला की साधना का ही चरमोत्‍कर्ष है। संगीत की साधना; सुरों की साधना है। मिलन है आत्‍मा से परमात्‍मा का; अभिव्‍यक्ति है अनुभूति की। भाट और चारण भी जब युद्धस्‍थल में उमंग, जोश से सराबोर कविता-गान करते थे, तो वीर योद्धाओं का उत्‍साह दुगुना हो जाता था और युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़, तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत्‍कार से भर उठता था; यह गायन कला की परिणति ही तो है।pop संगीत केवल मानवमात्र में ही नहीं अपितु पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों में भी अमृत रस भर देता है। पशु-पक्षी भी संगीत से प्रभावित होकर झूम उठते हैं तो पेड़-पौधों में भी स्‍पन्‍दन हो उठता है। तरंगें फूट पड़ती हैं। यही नहीं मानव के अनेक रोगों का उपचार भी संगीत की तरंगों से सम्‍भव है। कहा भी है: संगीत है शक्ति ईश्‍वर की, हर सुर में बसे हैं राम। रागी तो गाये रागिनी, रोगी को मिले आराम।। संगीत के बाद ये ललित-कलाओं में स्‍थान दिया गया है तो वह है- नृत्‍यकला। चाहे वह भरतनाट्यम हो या कथक, मणिपुरी हो या कुचिपुड़ी। विभिन्‍न भाव-भंगिमाओं से युक्‍त हमारी संस्कृति व पौराणिक कथाओं को ये नृत्‍य जीवन्‍तता प्रदान करते हैं। शास्‍त्रीय नृत्‍य हो या लोकनृत्‍य इनमें खोकर तन ही नहीं मन भी झूम उठता है। कलाओं में कला, श्रेष्‍ठ कला, वह है चित्रकला। मनुष्‍य स्‍वभाव से ही अनुकरण की प्रवृत्ति रखता है। जैसा देखता है उसी प्रकार अपने को ढालने का प्रयत्‍न करता है। यही उसकी आत्‍माभिव्‍यंजना है। अपनी रंगों से भरी तूलिका से चित्रकार जन भावनाओं की अभिव्‍यक्ति करता है तो दर्शक हतप्रभ रह जाता है। पाषाण युग से ही जो चित्र पारितोषक होते रहे हैं ये मात्र एक विधा नहीं, अपितू ये मानवता के विकास का एक निश्चित सोपान प्रस्‍तुत करते हैं। चित्रों के माध्‍यम से आखेट करने वाले आदिम मानव ने न केवल अपने संवेगों को बल्कि रहस्‍यमय प्रवृत्ति और जंगल के खूंखार प्रवासियों के विरुद्ध अपने अस्तित्व के लिए किये गये संघर्ष को भी अभिव्‍यक्‍त किया है। धीरे-धीरे चित्रकला शिल्‍पकला सोपान चढ़ी। सिन्‍धुघाटी सभ्‍यता में पाये गये चित्रों में पशु-पक्षी मानव आकृति सुन्‍दर प्रतिमाएँ, ज्यादा नमूने भारत की आदिसभ्‍यता की कलाप्रियता का द्योतक है। अजन्‍ता, बाध आदि के गुफा चित्रों की कलाकृतियों पूर्व बौद्धकाल के अन्‍तर्गत आती है। भारतीय कला का उज्‍ज्वल इतिहास भित्ति चित्रों से ही प्रारम्‍भ होता है और संसार में इनके समान चित्र कहीं नहीं बने ऐसा विद्वानों का मत है। अजन्‍ता के कला मन्दिर प्रेम, धैर्य, उपासना, भक्ति, सहानुभूति, त्‍याग तथा शान्ति के अपूर्व उदाहरण है। मधुबनी शैली, पहाड़ी शैली, तंजौर शैली, मुगल शैली, बंगाल शैली अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण आज जनशक्ति के मन चिन्हित है। यदि भारतीय संस्‍कृति की मूर्त्ति कला व शिल्प कला के दर्शन करने हो तो दक्षिण के मन्दिर अपना विशिष्‍ट स्‍थान रखते हैं। जहाँ के मीनाक्षी मन्दिर, वृहदीश्‍वर मन्दिर, कोणार्क मन्दिर अपनी अनूठी पहचान के लिए प्रसिद्ध है। यही नहीं भारतीय संस्‍कृति में लोक कलाओं की खुश्बू की महक आज भी अपनी प्राचीन परम्‍परा से समृद्ध है। जिस प्रकार आदिकाल से अब तक मानव जीवन का इतिहास क्रमबद्ध नहीं मिलता उसी प्रकार कला का भी इतिहास क्रमबद्ध नहीं है, परन्‍तु यह निश्चित है कि सहचरी के रूप में कला सदा से ही साथ रही है। लोक कलाओं का जन्‍म भावनाओं और परम्‍पराओं पर आधारित है क्‍योंकि यह जनसामान्‍य की अनुभूति की अभिव्यक्ति है। यह वर्तमान शास्त्रीय और व्‍यावसायिक कला की पृष्‍ठभूमि भी है। भारतवर्ष में पृथ्‍वी को धरती माता कहा गया है। मातृभूति तो इसका सांस्कृतिक व परिष्कृत रूप है। इसी धरती माता का श्रद्धा से अलंकरण करके लोकमानव में अपनी आत्‍मीयता का परिचय दिया। भारतीय संस्‍कृति में धरती को विभिन्‍न नामों से अलंकृत किया जाता है। गुजरात में “साथिया” राजस्‍थान में “माण्‍डना”, महाराष्‍ट्र में “रंगोली” उत्‍तर प्रदेश में “चौक पूरना”, बिहार में “अहपन”, बंगाल में “अल्‍पना” और गढ़वाल में “आपना” के नाम से प्रसिद्ध है। यह कला धर्मानुप्रागित भावों से प्रेषित होती है; जिसमें श्रद्धा से रचना की जाती है। विवाह और शुभ अवसरों में लोककला का विशिष्‍ट स्‍थान है। द्वारों पर अलंकृत घड़ों का रखना, उसमें जल व नारियल रखना, वन्‍दनवार बांधना आदि को आज के आधुनिक युग में भी इसे आदरभाव, श्रद्धा और उपासना की दृष्टि से देखा जाता है। आज भारत की वास्‍तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण “ताजमहल” है, जिसने विश्‍व की अपूर्व कलाकृत्तियों के सात आश्‍चर्य में शीर्षस्‍थ स्‍थान पाया है। लालकिला, अक्षरधाम मन्दिर, कुतुबमीनार, जामा मस्जिद भी भारतीय वास्‍तुकला का अनुपम उदाहरण रही है। मूर्त्तिकला, समन्‍वयवादी वास्‍तुकला तथा भित्तिचित्रों की कला के साथ-साथ पर्वतीय कलाओं ने भी भारतीय कला से समृद्ध किया है। सत्‍य, अहिंसा, करुणा, समन्‍वय और सर्वधर्म समभाव ये भारतीय संस्‍कृति के ऐसे तत्त्व हैं, जिन्‍होंने अनेक बाधाओं के ‍बीच भी हमारी संस्‍कृति की निरन्‍तरता को अक्षुण्ण बनाए रखा है। इन विशेषताओं ने हमारी संस्कृति में वह शक्ति उत्पन्‍न की है कि वह भारत के बाहर एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी जड़े फैला सके। हमारी संस्‍कृति के इन तत्त्वों को प्राचीन काल से लेकर आज तक की कलाओं में देखा जा सकता है। इन्‍हीं ललित कलाओं ने हमारी संस्‍कृति को सत्‍य, शिव, सौन्‍दर्य जैसे अनेक सकारात्‍मक पक्षों को चित्रित किया है। इन कलाओं के माध्‍यम से ही हमारा लोकजीवन, लोकमानस तथा जीवन का आं‍तरिक और आध्‍यात्मिक पक्ष अभिव्‍यक्‍त होता रहा है, हमें अपनी इस परम्‍परा से कटना नहीं है ‍अपितु अपनी परम्‍परा से ही रस लेकर आधुनिकता को चित्रित करना है। भारतीय मनीषियों के अनुसार कलाओं की सूची कामसूत्र के अनुसार "कामसूत्र" के अनुसार 64 कलाएँ निम्नलिखित हैं : (1) गायन, (2) वादन, (3) नर्तन, (4) नाट्य, (5) आलेख्य (चित्र लिखना), (6) विशेषक (मुखादि पर पत्रलेखन), (7) चौक पूरना, अल्पना, (8) पुष्पशय्या बनाना, (9) अंगरागादि लेपन, (10) पच्चीकारी, (11) शयन रचना, (12) जलतंरग बजाना (उदक वाद्य), (13) जलक्रीड़ा, जलाघात, (14) रूप बनाना (मेकअप), (15) माला गूँथना, (16) मुकुट बनाना, (17) वेश बदलना, (18) कर्णाभूषण बनाना, (19) इत्र या सुगंध द्रव बनाना, (20) आभूषण धारण, (21) जादूगरी, इंद्रजाल, (22) असुंदर को सुंदर बनाना, (23) हाथ की सफाई (हस्तलाघव), (24) रसोई कार्य, पाक कला, (25) आपानक (शर्बत बनाना), (26) सूचीकर्म, सिलाई, (27) कलाबत्, (28) पहेली बुझाना, (29) अंत्याक्षरी, (30) बुझौवल, (31) पुस्तक वाचन, (32) काव्य-समस्या करना, नाटकाख्यायिका-दर्शन, (33) काव्य-समस्या-पूर्ति, (34) बेंत की बुनाई, (35) सूत बनाना, तुर्क कर्म, (36) बढ़ईगिरी, (37) वास्तुकला, (38) रत्नपरीक्षा, (39) धातुकर्म, (40) रत्नों की रंग परीक्षा, (41) आकर ज्ञान, (42) बागवानी, उपवन विनोद, (43) मेढ़ा, पक्षी आदि लड़वाना, (44) पक्षियों को बोली सिखाना, (45) मालिश करना, (46) केश-मार्जन-कौशल, (47) गुप्त-भाषा-ज्ञान, (48) विदेशी कलाओं का ज्ञान, (49) देशी भाषाओं का ज्ञान, (50) भविष्य कथन, (51) कठपुतली नर्तन, (52) कठपुतली के खेल, (53) सुनकर दोहरा देना, (54) आशुकाव्य क्रिया, (55) भाव को उलटा कर कहना, (56) धोखाधड़ी, छलिक योग, छलिक नृत्य, (57) अभिधान, कोशज्ञान, (58) नकाब लगाना (वस्त्रगोपन), (59) द्यूतविद्या, (60) रस्साकशी, आकर्षण क्रीड़ा, (61) बालक्रीड़ा कर्म, (62) शिष्टाचार, (63) मन जीतना (वशीकरण) और (64) व्यायाम। शुक्रनीति के अनुसार "शुक्रनीति" के अनुसार कलाओं की संख्या असंख्य है, फिर भी समाज में अति प्रचलित 64 कलाओं का उसमें उल्लेख हुआ है। "शुक्रनीति" के अनुसार गणना इस प्रकार है :- नर्तन (नृत्य), (2) वादन, (3) वस्त्रसज्जा, (4) रूप परिवर्तन, (5) शैय्या सजाना, (6) द्यूत क्रीड़ा, (7) सासन रतिज्ञान, (8) मद्य बनाना और उसे सुवासित करना, (9) शल्य क्रिया, (10) पाक कार्य, (11) बागवानी, (12) पाषाणु, धातु आदि से भस्म बनाना, (13) मिठाई बनाना, (14) धात्वौषधि बनाना, (15) मिश्रित धातुओं का पृथक्करण, (16) धातु मिश्रण, (17) नमक बनाना, (18) शस्त्र संचालन, (19) कुश्ती (मल्लयुद्ध), (20) लक्ष्य वेध, (21) वाद्य संकेत द्वारा व्यूह रचना, (22) गजादि द्वारा युद्धकर्म, (23) विविध मुद्राओं द्वारा देव पूजन, (24) सारथ्य, (25) गजादि की गति शिक्षा, (26) बर्तन बनाना, (27) चित्रकला, (28) तालाब, प्रासाद आदि के लिए भूमि तैयार करना, (29) घटादि द्वारा वादन, (30) रंगसाजी, (31) भाप के प्रयोग-जलवाटवग्नि संयोगनिरोधै: क्रिया, (32) नौका, रथादि यानों का ज्ञान, (33) यज्ञ की रस्सी बाटने का ज्ञान, (34) कपड़ा बुनना, (35) रत्न परीक्षण, (36) स्वर्ण परीक्षण, (37) कृत्रिम धातु बनाना, (38) आभूषण गढ़ना, (39) कलई करना, (40) चर्मकार्य, (41) चमड़ा उतारना, (42) दूध के विभिन्न प्रयोग, (43) चोली आदि सीना, (44) तैरना, (45) बर्त्तन माँजना, (46) वस्त्र प्रक्षालन (संभवत: पालिश करना), (47) क्षौरकर्म, (48) तेल बनाना, (49) कृषिकार्य, (50) वृक्षारोहण, (51) सेवा कार्य, (52) टोकरी बनाना, (53) काँच के बर्त्तन बनाना, (54) खेत सींचना, (55) धातु के शस्त्र बनाना, (56) जीन, काठी या हौदा बनाना, (57) शिशुपालन, (58) दंडकार्य, (59) सुलेखन, (60) तांबूलरक्षण, (61) कलामर्मज्ञता, (62) नटकर्म, (63) कलाशिक्षण और (64) साधने की क्रिया। अन्य वात्स्यायन के "कामसूत्र" की व्याख्या करते हुए जयमंगल ने दो प्रकार की कलाओं का उल्लेख किया है – (1) कामशास्त्र से सम्बन्धित कलाएँ, (2) तंत्र सम्बन्धी कलाएँ। दोनों की अलग-अलग संख्या 64 है। काम की कलाएँ 24 हैं जिनका सम्बन्ध सम्भोग के आसनों से है, 20 द्यूत सम्बन्धी, 16 कामसुख सम्बन्धी और 4 उच्चतर कलाएँ। कुल 64 प्रधान कलाएँ हैं। इसके अतिरिक्त कतिपय साधारण कलाएँ भी बतायी गयी हैं। प्रगट है कि इन कलाओं में से बहुत कम का सम्बन्ध ललित कला या फ़ाइन आर्ट्स से है। ललित कला – अर्थात् चित्रकला, मुर्त्तिकला आदि का प्रसंग इनसे भिन्न और सौंदर्यशास्त्र से सम्बन्धित है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें चौसठ कलाएँ चित्रकला शिल्पकला नाट्यकला नृत्यकला लोककला पुस्तक कला भारतीय कला बाहरी कड़ियाँ बृहद आधुनिक कला कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - विनोद भारद्वाज) भारतीय कला (गूगल पुस्तक ; लेखक : उदय नारायण राय) श्रेणी:कला
काव्य
https://hi.wikipedia.org/wiki/काव्य
300 px|thumb|राफेल द्वारा पारनासस (1511): प्रसिद्ध कवियों ने माउंट पारनासस के ऊपर नौ वाग्देवी (muses) के साथ पढ़ा। काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। सुप्रसिद्ध कोरोजयी कवि गोलेन्द्र पटेल ने कविता के संदर्भ में कहा है कि "कविता आत्मा की औषधि है।"कोरोजीवी कविता, अप्रैल 2020 (वर्ष-1, अंक-2), पृष्ठ-11. काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनने योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। परिचय सामान्यत: संस्कृत के काव्य-साहित्य के दो भेद किये जाते हैं- दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य शब्दों के अतिरिक्त पात्रों की वेशभूषा, भावभंगिमा, आकृति, क्रिया और अभिनय द्वारा दर्शकों के हृदय में रसोन्मेष कराता है। दृश्यकाव्य को 'रूपक' भी कहते हैं क्योंकि उसका रसास्वादन नेत्रों से होता है। श्रव्य काव्य शब्दों द्वारा पाठकों और श्रोताओं के हृदय में रस का संचार करता है। श्रव्यकाव्य में पद्य, गद्य और चम्पू काव्यों का समावेश किया जाता है। गत्यर्थक में पद् धातु से निष्पन ‘पद्य’ शब्द गति की प्रधानता सूचित करता है। अत: पद्यकाव्य में ताल, लय और छन्द की व्यवस्था होती है। पुन: पद्यकाव्य के दो उपभेद किये जाते हैं—महाकाव्य और खण्डकाव्य। खण्डकाव्य को ‘मुक्तकाव्य’ भी कहते हैं। खण्डकाव्य में महाकाव्य के समान जीवन का सम्पूर्ण इतिवृत्त न होकर किसी एक अंश का वर्णन किया जाता है— खण्डकाव्यं भवेत्काव्यस्यैकदेशानुसारि च। – साहित्यदर्पण, ६/३२१ कवित्व के साथ-साथ संगीतात्कता की प्रधानता होने से ही इनको हिन्दी में ‘गीतिकाव्य’ भी कहते हैं। ‘गीति’ का अर्थ हृदय की रागात्मक भावना को छन्दोबद्ध रूप में प्रकट करना है। गीति की आत्मा भावातिरेक है। अपनी रागात्मक अनुभूति और कल्पना के कवि वर्ण्यवस्तु को भावात्मक बना देता है। गीतिकाव्य में काव्यशास्त्रीय रूढ़ियों और परम्पराओं से मुक्त होकर वैयक्तिक अनुभव को सरलता से अभिव्यक्त किया जाता है। स्वरूपत: गीतिकाव्य का आकार-प्रकार महाकाव्य से छोटा होता है। इन सब तत्त्वों के सहयोग से संस्कृत मुक्तककाव्य को एक उत्कृष्ट काव्यरूप माना जाता है। मुक्तकाव्य महाकाव्यों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हुए हैं। संस्कृत में गीतिकाव्य मुक्तक और प्रबन्ध दोनों रूपों में प्राप्त होता है। प्रबन्धात्मक गीतिकाव्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण मेघदूत है। अधिकांश प्रबन्ध गीतिकाव्य इसी के अनुकरण पर लिखे गये हैं। मुक्तक वह हैजिसमें प्रत्येक पद्य अपने आप में स्वतंत्र होता है। इसके सुन्दर उदाहरण अमरूकशतक और भतृहरिशतकत्रय हैं। संगीतमय छन्द मधुर पदावली गीतिकाव्यों की विशेषता है। शृंंगार, नीति, वैराग्य और प्रकृति इसके प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। नारी के सौन्दर्य और स्वभाव का स्वाभाविक चित्रण इन काव्यों में मिलता है। उपदेश, नीति और लोकव्यवहार के सूत्र इनमें बड़े ही रमणीय ढंग से प्राप्त हो जाते हैं। यही कारण है कि मुक्तकाव्यों में सूक्तियों और सुभाषितों की प्राप्ति प्रचुरता से होती है। मुक्तककाव्य की परम्परा स्फुट सन्देश रचनाओं के रूप में वैदिक युग से ही प्राप्त होती है। ऋग्वेद में सरमा नामक कुत्ते को सन्देशवाहक के रूप में भेजने का प्रसंग है। वैदिक मुक्तककाव्य के उदाहरणों में वसिष्ठ और वामदेव के सूक्त, उल्लेखनीय हैं। रामायण, महाभारत और उनके परवर्ती ग्रन्थों में भी इस प्रकार के स्फुट प्रसंग विपुल मात्रा में उपलब्ध होते हैं। कदाचित् महाकवि वाल्मीकि के शाकोद्गारों में यह भावना गोपित रूप में रही है। पतिवियुक्ता प्रवासिनी सीता के प्रति प्रेषित श्री राम के संदेशवाहक हनुमान, दुर्योधन के प्रति धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा प्रेषित श्रीकृष्ण और सुन्दरी दयमन्ती के निकट राजा नल द्वारा प्रेषित सन्देशवाहक हंस इसी परम्परा के अन्तर्गत गिने जाने वाले प्रसंग हैं। इस सन्दर्भ में भागवत पुराण का वेणुगीत विशेष रूप से उद्धरणीय है जिसकी रसविभोर करने वाली भावना छवि संस्कृत मुक्तककाव्यों पर अंकित है। काव्य का प्रयोजन राजशेखर ने कविचर्या के प्रकरण में बताया है कि कवि को विद्याओं और उपविद्याओं की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। व्याकरण, कोश, छन्द, और अलंकार - ये चार विद्याएँ हैं। ६४ कलाएँ ही उपविद्याएँ हैं। कवित्व के ८ स्रोत हैं- स्वास्थ्य, प्रतिभा, अभ्यास, भक्ति, विद्वत्कथा, बहुश्रुतता, स्मृतिदृढता और राग। स्वास्थ्यं प्रतिभाभ्यासो भक्तिर्विद्वत्कथा बहुश्रुतता। स्मृतिदाढर्यमनिर्वेदश्च मातरोऽष्टौ कवित्वस्य ॥ (काव्यमीमांसा) मम्मट ने काव्य के छः प्रयोजन बताये हैं- काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये। सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे॥ (काव्य यश और धन के लिये होता है। इससे लोक-व्यवहार की शिक्षा मिलती है। अमंगल दूर हो जाता है। काव्य से परम शान्ति मिलती है और कविता से कान्ता के समान उपदेश ग्रहण करने का अवसर मिलता है।) काव्य परिभाषा कविता या काव्य क्या है इस विषय में भारतीय साहित्य में आलोचकों की बड़ी समृद्ध परंपरा है— आचार्य विश्वनाथ, पंडितराज जगन्नाथ, पंडित अंबिकादत्त व्यास, आचार्य श्रीपति, भामह आदि संस्कृत के विद्वानों से लेकर आधुनिक आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा जयशंकर प्रसाद जैसे प्रबुद्ध कवियों और आधुनिक युग की मीरा महादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए अपने अपने मत व्यक्त किए हैं। विद्वानों का विचार है कि मानव हृदय अनन्त रूपतामक जगत के नाना रूपों, व्यापारों में भटकता रहता है, लेकिन जब मानव अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे कविता कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक सम्बंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। काव्य के भेद: काव्य के भेद दो प्रकार से किए गए हैं– स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद और शैली के अनुसार काव्य के भेद स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद:n स्वरूप के आधार पर काव्य के दो भेद हैं - श्रव्यकाव्य एवं दृश्यकाव्य। श्रव्य काव्य जिस काव्य का रसास्वादन दूसरे से सुनकर या स्वयं पढ़ कर किया जाता है उसे श्रव्य काव्य कहते हैं। जैसे रामायण और महाभारत। श्रव्य काव्य के भी दो भेद होते हैं - प्रबन्ध काव्य तथा मुक्तक काव इसमें कोई प्रमुख कथा काव्य के आदि से अंत तक क्रमबद्ध रूप में चलती है। कथा का क्रम बीच में कहीं नहीं टूटता और गौण कथाएँ बीच-बीच में सहायक बन कर आती हैं। जैसे रामचरित मानस। प्रबंध काव्य के दो भेद होते हैं - महाकाव्य एवं खण्डकाव्य। 1- महाकाव्य इसमें किसी ऐतिहासिक या पौराणिक महापुरुष की संपूर्ण जीवन कथा का आद्योपांत वर्णन होता है। जैसे - पद्मावत, रामचरितमानस, कामायनी, साकेत आदि महाकव्य हैं। महाकाव्य में ये बातें होना आवश्यक हैं- महाकाव्य का नायक कोई पौराणिक या ऐतिहासिक हो और उसका धीरोदात्त होना आवश्यक है। जीवन की संपूर्ण कथा का सविस्तार वर्णन होना चाहिए। श्रृंगार, वीर और शांत रस में से किसी एक की प्रधानता होनी चाहिए। यथास्थान अन्य रसों का भी प्रयोग होना चाहिए। उसमें सुबह शाम दिन रात नदी नाले वन पर्वत समुद्र आदि प्राकृतिक दृश्यों का स्वाभाविक चित्रण होना चाहिए। आठ या आठ से अधिक सर्ग होने चाहिए, प्रत्येक सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन होना चाहिए तथा सर्ग के अंत में अगले अंक की सूचना होनी चाहिए। 2- खंडकाव्य इसमें किसी की संपूर्ण जीवनकथा का वर्णन न होकर केवल जीवन के किसी एक ही भाग का वर्णन होता है। जैसे - पंचवटी, सुदामा चरित्र, हल्दीघाटी, पथिक, विप्र सुदामा आदि खंडकाव्य हैं। खंड काव्य में ये बातें होना आवश्यक हैं- कथावस्तु काल्पनिक हो। उसमें सात या सात से कम सर्ग हों। उसमें जीवन के जिस भाग का वर्णन किया गया हो वह अपने लक्ष्य में पूर्ण हो। प्राकृतिक दृश्य आदि का चित्रण देश काल के अनुसार और संक्षिप्त हो। मुक्तक इसमें केवल एक ही पद या छंद स्वतंत्र रूप से किसी भाव या रस अथवा कथा को प्रकट करने में समर्थ होता है। गीत कवित्ता दोहा आदि मुक्तक होते हैं। दृश्य काव्य जिस काव्य की आनंदानुभूति अभिनय को देखकर एवं पात्रों से कथोपकथन को सुन कर होती है उसे दृश्य काव्य कहते हैं। जैसे नाटक में या चलचित्र में। शैली के अनुसार काव्य के भेद: 1- पद्य काव्य - इसमें किसी कथा का वर्णन काव्य में किया जाता है, जैसे गीतांजलि 2- गद्य काव्य - इसमें किसी कथा का वर्णन गद्य में किया जाता है, जैसे जयशंकर की कमायनी ।।। गद्य में काव्य रचना करने के लिए कवि को छंद शास्त्र के नियमों से स्वच्छंदता प्राप्त होती है। 3- चंपू काव्य - इसमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश होता है। मैथिलीशरण गुप्त की 'यशोधरा' चंपू काव्य है। काव्य का इतिहास आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास लगभग ८०० साल पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर भाषा की तरह हिंदी कविता भी पहले इतिवृत्तात्मक थी। यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था। भारतीय साहित्य के सभी प्राचीन ग्रंथ कविता में ही लिखे गए हैं। इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था। जिस समय छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ था और दस्तावेज़ों की अनेक प्रतियां बनाना आसान नहीं था उस समय महत्वपूर्ण बातों को याद रख लेने का यह सर्वोत्तम साधन था। यही कारण है कि उस समय साहित्य के साथ साथ राजनीति, विज्ञान और आयुर्वेद को भी पद्य (कविता) में ही लिखा गया। भारत की प्राचीनतम कविताएं संस्कृत भाषा में ऋग्वेद में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं। जीवन के अनेक अन्य विषयों को भी इन कविताओं में स्थान मिला है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें रस छन्द अलंकार काव्यशास्त्र बाहरी कड़ियाँ काव्यशास्त्र के मानदण्ड (गूगल पुस्तक; डॉ रामनिवास गुप्त) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका (गूगल पुस्तक; लेखक - योगेन्द्र प्रताप सिंह) कविता क्या है? विकिस्रोत पर, लेखक—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल। काव्य काव्य काव्य * श्रेणी:शायरी
ऑस्ट्रेलिया
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ऑस्ट्रेलिया (), सरकारी तौर पर ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल दक्षिणी गोलार्द्ध के महाद्वीप के अर्न्तगत एक देश है जो दुनिया का सबसे छोटा महाद्वीप भी है और दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप भी, जिसमे तस्मानिया और कई अन्य द्वीप हिंद और प्रशांत महासागर में है। ऑस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसी जगह है जिसे एक ही साथ महाद्वीप, एक राष्ट्र और एक द्वीप माना जाता है। पड़ोसी देश उत्तर में इंडोनेशिया, पूर्वी तिमोर और पापुआ न्यू गिनी, उत्तर पूर्व में सोलोमन द्वीप, वानुअतु और न्यू कैलेडोनिया और दक्षिणपूर्व में न्यूजीलैंड है। 18वी सदी के आदिकाल में जब यूरोपियन अवस्थापन प्रारंभ हुआ था उसके भी लगभग 40 हज़ार वर्ष पहले, ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप और तस्मानिया की खोज अलग-अलग देशोफर्स्ट ऑस्ट्रेलियंस वृत्तचित्र (प्रकरण 1), स्पेशल ब्राडकास्टिंग सर्विस, ऑस्ट्रेलिया, 2008. के करीब 250 स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाईयो ने की थी।बोथ ऑस्ट्रेलियंस एबोरिजिंस एंड यूरोपियन्स रूटेड इन अफ्रीका - 50,000 साल पहले . तत्कालिक उत्तर से मछुआरो के छिटपुट भ्रमण और होलैंडवासियो द्वारा 1606,मैक्नाईट, सीसी (1976). द वोयाज टू मारेज: मैकासन ट्रेपैन्जर्स इन नॉर्दर्न ऑस्ट्रेलिया .मेलबोर्न यूनिवर्सिटी प्रेस. में यूरोप की खोज के बाद,1770 में ऑस्ट्रेलिया के अर्द्वपूर्वी भाग पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया और 26 जनवरी 1788 में इसका निपटारा "देश निकला" दण्डस्वरुप बने न्यू साउथ वेल्स नगर के रूप में हुआ। इन वर्षों में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई और महाद्वीप का पता चला,19वी सदी के दौरान दूसरे पांच बड़े स्वयं-शासित शीर्ष नगर की स्थापना की गई। 1 जनवरी 1901 को, छ: नगर महासंघ हो गए और ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल का गठन हुआ। महासंघ के समय से लेकर ऑस्ट्रेलिया ने एक स्थायी उदार प्रजातांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था का निर्वहन किया और प्रभुता संपन्न राष्ट्र बना रहा। जनसंख्या 21.7मिलियन (दस लाख) से थोडा ही ऊपर है, साथ ही लगभग 60% जनसंख्या मुख्य राज्यों सिडनी, मेलबर्न, ब्रिस्बेन, पर्थ और एडिलेड में केन्द्रित है। राष्ट्र की राजधानी केनबर्रा है जो ऑस्ट्रेलियाई प्रधान प्रदेश (ACT) में अवस्थित है। प्रौद्योगिक रूप से उन्नत और औद्योगिक ऑस्ट्रेलिया एक समृद्ध बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है और इसका कई राष्ट्रों की तुलना में इन क्षत्रों में प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है जैसे स्वास्थ्य, आयु संभाव्यता, जीवन-स्तर, मानव विकास, जन शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकारों की रक्षा और राजनैतिक अधिकार. ऑस्ट्रेलियाई शहरों को जीवन कुशलता, सांस्कृतिक प्रस्तावों और जीवन-स्तर के क्षेत्र में दुनिया में उच्च स्थान दिया जाता है। यह कई संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र, जी-20मुख्य अर्थव्यवस्थाएँ, राष्ट्र मंडल देशों, ANZUS, OECD और विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य | व्युत्पत्ति thumbnail|left|पोर्ट जैक्सन कलाकार का प्रतिपादन, साइट जहां सिडनी स्थापित किया गया था, दक्षिण प्रमुख से देखा गया। ए वोयज टू ऑस्ट्रैलिस ऑस्ट्रेलिया नाम लैटिन के एक शब्द ऑस्ट्रेलिज़ से लिया गया है जिसका अर्थ "दक्षिणी" होता है। रोमन समय की एक पौराणिक कथा "अननोन लैंड ऑफ़ द साउथ"(Terra australis incognita) और मध्यकालीन भूगोल में भी इसका जिक्र था पर यह महाद्वीप के किसी दस्तावेजी जानकारी पर आधारित नहीं था। 1521 में प्रशांत महासागर में जहाज चलाने वाले पहले यूरोपियनों में से एक स्पनिअर्ड्स थे। अंग्रेजी में ऑस्ट्रेलिया शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1625 में, मास्टर हक्लुय्त द्वारा लिखित, 'हक्लुयतूस पोस्थुमस ' में सामुएल पुर्चास द्वारा प्रकाशित किताब "ए नोट ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया डेल एस्पिरितु सैनटो" में हुआ। पर्चास, वोल. आइवी, पीपी. 1422-32, 1625. यह मूल स्पेनिश "ऑस्ट्रिअलिया" का रूपांतर प्रतीत होता है [इस प्रकार से] .http://www.hispanicfiesta.com.au/pics/pdf_mag_2004/42.PDF लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस की एक प्रतिलिपि को ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है http:// memory.loc.gov/service/rbc/rbdk/d0404/02951422.jpg . डच विशेषण रूप ऑस्ट्रैलिस्चे का प्रयोग बताविया में डच ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियो द्वारा 1638 में दक्षिण में नए भू-भाग खोज लेने के सन्दर्भ में किया गया था।ऑस्ट्रेलिया शब्द का प्रयोग 1693 में 'जक्क़ुएस सडयूर' उप नाम से गाब्रिएल दे फोइग्न्य द्वारा 1676 में फ्रेंच में लिखित उपन्यास (Les Aventures de Jacques Sadeur dans la Découverte et le Voyage de la Terre Australe) के अनुवाद में हुआ था।सिडनी जे बेकर, द ऑस्ट्रेलियन लैंग्वेज, द्वितीय संस्करण, 1966. उसके बाद एलेकजेंडर डेलरिम्पल ने 'समुद्र यात्रा का ऐतिहासिक संचयन'और 'दक्षिणी प्रशांत महासागर में खोज (1771)'में समूचे दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र के सन्दर्भ में किया था। 1793 में, जॉर्ज शॉ और सर जेम्स स्मिथ ने जूलोजी (जीव-विज्ञान) और बोटनी ऑफ़ न्यू हॉलैंड (न्यू हॉलैंड का वनस्पति विज्ञान) किताब प्रकाशित की, जिसमे उन्होंने लिखा था "एक विशाल द्वीप या आंशिक रूप से ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप, ऑस्ट्रैलेसिया या न्यू-हॉलैंड". साथ ही 1799 में जेम्स विल्सन के चार्ट में भी यह दिखाई पड़ा. ऑस्ट्रेलिया नाम मैथ्यू फ्लिनडेर्स द्वारा मशहूर हुआ, जिन्होंने 1804 के करीब इसे औपचारिक तौर पर अपनाने के लिए दबाव डाला। जब वह अपनी पाण्डुलिपि और चार्ट अपनी किताब 1814 ए वोयज टू टेरा ऑस्ट्रैलिस (A Voyage to Terra Australis) के लिए तैयार कर रहे थे तब वे अपने सहयोगी सर जोसफ बैंक्स द्वारा टेर्रा ऑस्ट्रैलिस शब्द का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किये गए क्योंकि ये जनता के लिए सबसे परिचित शब्द था। फ्लिनडेर्स ने भी ऐसा ही किया पर एक टिप्पणी के साथ: "क्या मैं अपने आप को मौलिक शब्द से किसी नवरचना को अनुमति दूँ, यह होगा इसे ऑस्ट्रेलिया में बदलना, जो कानों को सुनने में ज्यादा अच्छा लगे और पृथ्वी के दूसरे महान भू-भागो का सम्मिलन हो", उस व्याखान में यही एक मात्र संयोग ऑस्ट्रेलिया शब्द का था लेकिन परिशिष्ट III,"रॉबर्ट ब्राउन के सामान्य टिप्पणी, भौगोलिक और व्यवस्थित, टेर्रा ऑस्ट्रैलिस का वनस्पति विज्ञान" में ब्राउन ने विशेषण रूप आस्ट्रेलियन ' का लगातार प्रयोग किया है, यह उस रूप का पहला जाना हुआ प्रयोग था। लोकप्रिय धारणा के बावजूद किताब नाम धारण करने में सहायक नहीं बनी, यह नाम अगले दस वर्षो में धीरे-धीरे सामने आया।इसटेनसेन पी. 450. लचलान मक्कुँरी 'न्यू-साउथ वेल्स के एक गवर्नर', अनंतर अपने इंग्लैंड के प्रेषणों में इस शब्द का प्रयोग करते थे और 12 दिसम्बर 1817 को इसे औपचारिक रूप से नगरीय कार्यालयों में प्रयोग के लिए स्वीकार्य बनाने की संस्तुति की। वीकेंड ऑस्ट्रेलियंस, 30-31 दिसम्बर 2000, पी. 16 1824 में, नौ सेना विभाग सहमत हुआ की अब यह महाद्वीप सरकारी तौर पर ऑस्ट्रेलिया नाम से जाना जाना चाहिए। ऑस्ट्रेलियाई अंग्रेजी में ऑस्ट्रेलिया शब्द का उच्चारण होता है.ऑस्ट्रेलियंस प्रोनन्सिएसन:मैक्वेरी डिक्शनरी, फोर्थ एडिसन (2005). मेलबोर्न, द मैक्वेरी लाइब्रेरी प्रेस पीटीवाई लिमिटेड. ISBN 1-876429-14-3. 20-वीं सदी के शुरुआती समय में कई बार इस देश को स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय रूप में ओज (Oz) नाम से उल्लेखित किया गया, ऑस्सी (Aussie) (कभी-कभी ओजी (Ozzie) लिखी जाती है जो उच्चारण को अच्छी तरह पेश करता है) सामान्य बोल-चाल की भाषा में यह एक विशेषण है और संज्ञा रूप में यह शब्द ऑस्ट्रेलियाइयो का उल्लेख करती हैं। इतिहास {मुख्य ऑस्ट्रेलिया का इतिहास} ऑस्ट्रेलिया के मानव निवास-स्थान की शुरुवात आज से 42000 और 48000 वर्षो पहले की अनुमानित की गयी है।गिलेस्पी, आर. (2002) डेटिंग द फर्स्ट ऑस्ट्रेलियंस. रेडियोकार्बन 44:455-72; ये पहले ऑस्ट्रेलियाई आज के आधुनिक स्वदेशी ऑस्ट्रैलियाईयो के पूर्वज रहे होंगे, वे भू-सेतु के रास्ते आये होंगे और छोटी समुद्री यात्रा वहां से कियें होंगे जो आज दक्षिणी-पूर्वी एशिया है। इनमें से अधिकांश लोग शिकारी-संग्राहक और साथ में मिश्रित मौखिक संस्कृति और ड्रीमटाइम में विश्वास और भूमि की इज्ज़त करने पर आधारित आध्यात्मिक गुण वाले थे। द टोर्रेस जलसंयोगी द्वीपवासी एथ्निकल्लीमेलानेसियन, वास्तविक में शिकारी और बागवानी करने वाले थे। उनकी सांस्कृतिक परंपरा हमेशा से महाद्वीप के आदि निवासियों से अलग रही है। left|thumbnail|कुकटाऊन हार्बर में "एंडेवर" लेफ्टिनेंट कुक के पोत एचएम बार्क की एक प्रतिकृति ऑस्ट्रेलियन महाद्वीप का पहला अभिलिखित यूरोपियन अवलोकन डच नाविक विलियम जनस्जून द्वारा किया गया, उन्होंने 1606 में केप यार्क पेनिन्सुला का अवलोकन किया था। 17वी सदी के दौरान डच ने सम्पूर्ण पश्चिमी और उत्तरी तटरेखा को अभिलिखित किया जिसे उन्होंने न्यू-हॉलैंड कहा, लेकिन उन्होंने इसके अवस्थापन की कोई कोशिश नहीं की। 1770 में, जेम्स कुक ने जहाज़ लेकर पूरा भ्रमण किया और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट का मानचित्र खींचा, जिसे उन्होंने नाम दिया न्यू-साउथ वेल्स और ग्रेट ब्रिटेन के लिए दावा किया। कूक की खोजों ने नए दंड सम्बन्धी नगर की स्थापना का रास्ता तैयार किया। 26 जनवरी 1788 को कैप्टेन आर्थर फिलिप द्वारा, न्यू साउथ वेल्स का शीर्ष ब्रिटिश नगर पोर्ट जैक्सन में अवस्थापन शुरू किया गया। यह दिन आगे चल कर ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय दिवस, 'ऑस्ट्रेलिया दिवस' बना। वेन डीमेंस लैंड जिसे अब तस्मानिया नाम से जाना जाता है, की स्थापना 1803 में की गयी और 1825 में यह एक अलग नगर हो गया। ग्रेटब्रिटेन ने 1829 में औपचारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी हिस्से पर अपना दावा किया। न्यू साउथ वेल्स के हिस्से से पृथक करके अलग नगरो का निर्माण किया गया, 1836 में दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया, 1851 में विक्टोरिया और 1859 में क्वींसलैंड.उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्र की स्थापना 1911 में हुई थी जब इसे दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया से अलग किया गया। दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया की स्थापना एक स्वतंत्र प्रदेश के रूप में की गयी, क्योकि यह कभी भी दंड संबंधी नगर नहीं रहा। विक्टोरिया और पश्चमी ऑस्ट्रेलिया की स्थापना भी स्वतंत्र रूप में की गई परन्तु बाद में ले गए दोषी कारागारवासियों को इसने स्वीकार कर लिया।कोंविक्ट रिकॉर्ड्स पब्लिक रिकॉर्ड ऑफ़ विक्टोरिया; स्टेट रिकॉर्ड्स ऑफिस ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया .दोषी कैदियों को न्यू साउथ वेल्स ले जाना नगरवासियों द्वारा चलाये गए एक अभियान के बाद 1848 में बंद कर दिया गया।ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटीस्टिक 1998 स्पेशल आर्टिकल --द स्टेट ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स. thumbnail|पोर्ट आर्थर, तस्मानिया लाए गए अपराधियों के लिए ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी जेल. 350,000 की अनुमानित स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाई आबादी जो यूरोपियन अवस्थापन के समय थी,स्मिथ, एल. (1980), द एबोरिजिनल पोपुलेशन ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया, आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी प्रेस, कैनबरा. उसमे मुख्यत: स्पर्शसंचारी बिमारियों के कारण 150 वर्षो तक चिन्ताजनक तरीके से कमी आई."चुराई गई पीढ़ी"(आदिवासी बच्चों को उनके परिवारों से हटाना), जिस पर हेनरी रेनॉल्ड्स जैसे इतिहासकार दलील देते है कि इसे जाति संहार का कारण मानना चाहिए, जिसने शायद स्वदेशी जनसंख्या को कम करने में भी अपना योगदान दिया। बैन अटवुड, टेलिंग द ट्रुथ अबाउट हिस्ट्री . (2005) ऑनलाइन संस्करण . आदिकालीन इतिहास के ऐसे भाषांतरण पर कुछ रूढ़ीवादी विवरणकारो द्वारा विवाद किया गया, जैसे भूतपूर्व प्रधानमंत्री हॉवर्ड, जैसे की राजनैतिक या वैचारिक कारणों के लिए अत्युक्ति या कल्पित हुई है। इतिहासकार किथ विंडशटल तर्क देते है कि आदिवासी लोगो के आचरण का प्रबल ऐतिहासिक भाषांतरण श्वेतो के सीमा अवस्थापन में ऑस्ट्रेलिया की कल्पना हुई। वह दावा करते हैं कि यह कार्य राजनैतिक रूप प्रेरित विद्वानों की एक पीढ़ी के कार्यों का नतीज़ा था। उन्होंने आरोप लगाये हैं कि यह कार्य कमज़ोर ऐतिहासिक पद्धति अपनाकर तथ्यों के अभाव में कहानियां गढ़कर, आकृतियां बनाकर, तथ्यों को छुपाकर गलत सन्दर्भ स्रोतों के जरिये किया गया है, जिससे पाठक ठगे गये हैं।कीथ विंशल, (2001). द फैब्रिकेसन ऑफ़ एबोरिजिनल हिस्ट्री , द न्यू क्राइटेरियन वोल. 20, संख्या 1, 20 सितम्बर.बैन अटवुड, द ट्रुथ अबाउट एबोरिजिनल हिस्ट्री (2005) पी. 2. इस वाद-विवाद को ऑस्ट्रेलिया के अन्दर इतिहास युद्धों के रूप में जाना जाता है।1967 के रिफ़रेंडम का पालन करते हुए संघीय सरकार ने नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए शक्ति प्राप्त किया और आदिवासियों के लिए कानून बनाया। पारंपरिक भू-स्वामित्व--देशी शीर्षक 1992 तक मानी नहीं गयी, जबतक उच्च न्यायालयने यूरोपियन अधिग्रहण के समय क्वींसलैंड के विरुद्ध मेबो के मामले में ऑस्ट्रेलिया के मत को टेर्रा न्युलिय्स (अक्षरश "स्वामित्त्व मुक्त भूमि"प्रभावता "खाली जमीन"या भूमि) कह कर उलट न दिया। left|thumbnail|द लास्ट पोस्ट पोर्ट मेलबोर्न, विक्टोरिया में एक ANZAC दिवस समारोह में खेला जाता हैइसी प्रकार के समारोह अधिकांश उपनगरों और कस्बों में आयोजित होता हैं 1850 के करीब ऑस्ट्रेलिया में एक स्वर्ण दौड़ शुरू हुई और यूरेका कठघरे के विद्रोहीयों द्वारा, 1854 में, लाइसेंस शुल्क के खिलाफ सविनय अवज्ञा इसकी शुरूआती अभिव्यक्ति थी। 1855 और 1890 के बीच छ: नगरो ने स्वतः एक दायित्वपूर्ण सरकार प्राप्त किया, अधिकतर मामलो की वे खुद व्यवस्था करते थे और बाकी ब्रिटिश साम्राज्य के हवाले था।landan का नगरीय कार्यालय ने कुछ मामले, विशेष तौर पर विदेशी मामले, रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय पोत-परिवहन को अपने पास रखा। 1 जनवरी 1901 को, नगरो का महासंघ, दशको की योजनाओं, परामर्श और मतों के बाद प्राप्त हुआ। ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल पैदा हुआ और यह 1907 में ब्रिटिश हुकूमत का रियासत बना। संघीय प्रमुख राज्यक्षेत्र (बाद में जिसका नाम ऑस्ट्रेलियाई प्रमुख राज्यक्षेत्र पड़ा) 1911 में न्यू साउथ वेल्स के कुछ हिस्सों से बना, जिसका मकसद प्रस्तावित नई संघीय राजधानी के लिए जगह प्रदान करना था। (1901 से 1927 तक मेलबर्न, सरकार का अस्थायी सीट था जबकि केनबर्रा निर्माणाधीन था।) उत्तरी क्षेत्र को दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई सरकार से 1911 में राष्ट्रमंडल स्थानांतरित किया गया। thumbnail|170px|1943 मे ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने जापानी झंडे का प्रदर्शन किया, जो कैअपित, न्यू गिनी, पर कब्जा करने से मिला था। 1914 में ऑस्ट्रेलिया, पहला विश्व युद्घ लड़ने में, ब्रिटेन के साथ हो गया जिसे साथ में निर्गामी लिबरल पार्टी और आवक लेबर पार्टी दोनों का समर्थन प्राप्त था।स्टुअर्ट मैकिनटायर, द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया: वोल 4 (1986), पी. 142; सी. बीन एड. (1941). वोल्यूम 1 - द स्टोरी ऑफ़ एन्जैक: द फर्स्ट फेज़ , फर्स्ट वर्ल्ड वार ओफिसिअल हिस्ट्रीज, ग्यारहवां संस्करण. ऑस्ट्रेलियाईयो ने पश्चिमी प्रान्त में हुए कुछ प्रमुख लड़ाइयो में हिस्सा लिया। कई ऑस्ट्रेलियाईयो का मानना है कि गलीपोली में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के सैन्य दलों की हार, राष्ट्र के जन्म का कारण बनी, जो इसका पहला बड़ा सैन्य अभियान था।मैकिनटायर, 151-3; लिज़ रीड, बिग्गर दैन गल्लिपोली: हिस्ट्री, एंड मेमोरी इन ऑस्ट्रेलिया (2004) पी. 5 ऑनलाइन .कोकोडा मार्ग अभियान को कईयों द्वारा द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान की एक अनुरूप राष्ट्र-परिभाषित घटना माना गया है।हांक नेल्सन, "गल्लिपोली, कोकोडा एंड द मेकिंग ऑफ़ नेशनल आईडेनटीटी", जर्नल ऑफ़ ऑस्ट्रेलियन स्टडीज, (1997) वी. 53#1 पीपी. 148-160 ऑनलाइन संस्करण . ब्रिटेन के 1931 के वेस्टमिन्स्टर की प्रतिमा ने ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच औपचारिक रूप से अधिकांशत संवैधानिक कड़ियों को ख़त्म कर दिया, ऑस्ट्रेलिया ने इसे 1942 में स्वीकार किया, लेकिन इसे द्वितीय विश्व युद्घ के शुरूआती समय का कर दिया ताकि ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा युद्घ के दौरान पारित इसकी कानूनी वैधता की पुष्टि हो जाए.ब्रिटेन के 1942 में एशिया में हार के सदमें और जापानी आक्रमणकारियों की धमकी ने ऑस्ट्रेलिया को संयुक्त राज्य का एक सहयोगी और अपना रक्षक बना दिया। ANZUS संधि के तहत,1951 से, ऑस्ट्रेलिया अमेरिका का एक औपचारिक सैन्य सहयोगी है। द्वितीय विश्व युद्घ के बाद,1970 के दशक और ऑस्ट्रेलिया की श्वेत नीति के अंत से, ऑस्ट्रेलिया ने यूरोप सेअप्रवास को बढ़ावा दिया, एशिया और दुसरे जगहों से भी अप्रवास को बढ़ावा दिया गया। परिणामस्वरूप, ऑस्ट्रेलिया की जनसांख्यिकी, संस्कृति और स्वयं की छवि रूपांतरित हो गयी। ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच अंतिम संवैधानिक संधि को 1986 ऑस्ट्रेलिया कानून के पारित होने के बाद अलग कर दिया गया और ऑस्ट्रेलिया राज्य-सरकार में ब्रिटिश भूमिका और UK गुप्त परिषद् को हुए न्यायिक निवेदन को ख़त्म कर दिया गया।ऑस्ट्रेलिया एक्ट टेक्स्ट .1999 के जनमत संग्रह पर,54% ऑस्ट्रेलियाई मतदाताओं ने गणतंत्र बनने और राष्ट्रपति को सांसदों के दो तिहाई मतों से नियुक्त करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। विटलम सरकार के चनाव के बाद 1972 में, दुसरे प्रशांतीय किनारों के राष्ट्रों तक सम्बन्ध विस्तार पर ध्यान केन्द्रित किया गया, जबकि ऑस्ट्रेलिया के पारंपरिक सहयोगी और व्यापारिक सहयोगियो के साथ संबंधो को मजबूत रखने का प्रयास भी जारी रहा। राजनीति thumbnail|संसद भवन के प्रतिनिधि सभा, कैनबरा को 1988 में, 1927 में खोले गए अनंतिम संसद भवन निर्माण की जगह खोला गया था। ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल संघीय शक्ति विभाजन पर आधारित, एक संवैधानिक प्रजातंत्र है। सरकार के संसदीय व्यवस्था के साथ सरकार का जो रूप उपयोग होता है वह ऑस्ट्रेलिया का संवैधानिक राजतंत्र है।क्वीन एलिजाबेथ II ऑस्ट्रेलिया की महारानी है, उनकी भूमिका दुसरे राष्ट्रीय मंडल राज्यों के अधीश्वरो के पदो से अलग है। संघ के स्तर पर गवर्नर-जेनरल के रूप में प्रतिनिधित्व करती है और राज्य स्तर पर गवर्नर के रूप में.जो कुछ भी हो संविधान गवर्नर-जनरल को विस्तृत प्रबंधकारिणी अधिकार देती है, ये सब सामान्यत: प्रधानमंत्री के परामर्श पर ही प्रयोग होते है। प्रधानमंत्री के आदेश के बाहर जो आरक्षित आधिकार गवर्नर-जनरल को प्राप्त है उसका सबसे उल्लेखनीय प्रयोग 1975 के संवैधानिक संकट के समय विटलम सरकार की बर्खास्तगी था।पर्लियामेंटरी लाइब्रेरी (1997). द रिजर्व पॉवर्स ऑफ़ द गवर्नर-जनरल . सरकार की तीन शाखाएँ हैं: विधान सभा: राष्ट्रमंडल संसद, जिसमे महारानी, मंत्री सभा और संसद है। महारानी गवर्नर जनरल के रूप में प्रतिनिधित्व करती है, जो प्रथानुसार प्रधानमंत्री के परामर्श पर कार्यवाही करती है। कार्यकारिणी: संघीय परिषद(गवर्नर जनरल जैसा कार्यकारिणी पार्षदों के द्वारा परामर्श दिया जाये); वास्तविकता में, पार्षद प्रधानमंत्री और राज्यमंत्री होते है। न्यायपालिका:ऑस्ट्रेलिया उच्च न्यायालय और अन्य संघीय न्यायालये. 1986 में जब ऑस्ट्रेलिया कानून पारित हुआ तब से ब्रिटेन के न्यायिक परिषद के खुफिया समिति में ऑस्ट्रेलियाई न्यायालयों द्वारा निवेदन बंद कर दिया गया। thumbnail|left|ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल का सरकारी निवास राष्ट्रमंडल के दो सदनों के संसद में महारानी, 76 सभासदों की मंत्री सभा (ऊपरी सदन) और 150 सदस्यों की एक प्रतिनिधि सभा (निचली सदन) निहित होते है। निचली सदन के सदस्य एकल सदस्य मतदाता क्षेत्र से चुने जाते है; जिसे सामान्य तौर पर "निर्वाचन क्षेत्रों" या "सीटों" के रूप में जाना जाता है, जिसे जनसंख्या के आधार पर राज्यों को बांटा गया है, साथ में हर मूल राज्य के लिए कम से कम पांच सीटें सुनिश्चित है। मंत्री सभा में, हर राज्य बारह सभासदो द्वारा प्रतिनिधित्व किये गए है और हर प्रदेश (ऑस्ट्रेलिया प्रमुख प्रदेश और उत्तरी प्रदेश) दो के द्वारा b.दोनों सदनों के लिए चुनाव हर तीन साल में होते है, साथ-साथ सांसदों का कार्यकाल अतिव्यापी छ: वर्षो का होता है, जबकि हर चुनाव में आधे सभासदों का चुनाव होता है जब तक कि यह चक्र दोगुनी विलयन द्वारा बाधित न हो। जो पार्टी संसद में बहुमत में होती है सरकार गठन करती है और उसके नेता प्रधानमंत्री बनते है। संघीय तौर पर और राज्य में दो मुख्य राजनैतिक दल है जो सरकार गठन करती है, वे है: ऑस्ट्रेलियन लेबर पार्टी और गठबंधन जो औपचारिकत: दो दलों का संगठन होता है: द लिबरल पार्टी और उसके छोटे सहयोगी दल, राष्ट्रीय पार्टी.स्वतंत्र सदस्य और कई छोटी पार्टिया- जिसमे ग्रीन्स और ऑस्ट्रेलियन डेमोक्रेट्स शामिल है-इन्होने ऑस्ट्रेलियाई संसद, अधिकांश: ऊपरी सदन में अपना प्रतिनिधित्व प्राप्त कर लिया है।नवम्बर 2007 चुनाव में लेबर पार्टी प्रधान मंत्री के तौर पर केविन रुड के साथ सत्ता में आई.हर ऑस्ट्रेलियाई संसद (संघीय, राज्य और प्रदेशीय) में उस समय 2008 सितम्बर तक एक लेबर पार्टी की सरकार होती थी जबतक पश्चमी ऑस्ट्रेलिया के नेशनल पार्टी के साथ गठ्संघन करके लेबर पार्टी ने एक अल्पसंख्यक सरकार की स्थापना न कर ली। 2004 के चुनाव में, पिछली जॉन हावर्ड की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने मंत्रीसभा की सत्ता जीती- ऐसा पिछले बीस वर्षो में पहली बार हुआ कि किसी पार्टी (या गठबंधन) ने सरकार में रहते हुए ऐसा किया। हर राज्य और प्रदेश और संघीय स्तर पर 18 और उससे ऊपर के उम्र वालो के लिए मतदान अनिवार्य है. दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर हर जगह मतदान के लिए नामांकन करवाना अनिवार्य है। राज्यों और प्रदेशों ऑस्ट्रेलिया के छ: राज्ये और दो मुख्य महाद्वीप प्रदेशे है। साथ ही कुछ छोटे प्रदेशे है जो संघीय सरकार के प्रबंधन के अंतगर्त है। राज्ये है, न्यू साउथ वेल्स, क्वींसलैंड, साउथ ऑस्ट्रेलिया, तस्मानिया, विक्टोरिया और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया.दो मुख्य महाद्वीप प्रदेश है उत्तरी प्रदेश और ऑस्ट्रेलियाई प्रमुख प्रदेश (ACT).अधिकतर मामलों में, दोनों प्रदेशे राज्यों की तरह कार्य करते है, पर राष्ट्रमंडल संसद इनके सांसदों द्वारा पारित किसी भी कानून की अवहेलना या उसे खारिज कर सकती है। विरोधास्वरूप, संघीय कानून सिर्फ कुछ क्षेत्रों में राज्य कानून की अवहेलना कर सकती है जो ऑस्ट्रेलियाई संविधान के धारा 51 में है; राज्य संसद के पास शेष सभी अधिकार कायम रहते है जिसमे अस्पताल, शिक्षा, पुलीस, न्यायालय, सड़क, जन परिवहन और स्थानीय सरकार पर अधिकार शामिल है। हर राज्य या मुख्य महाद्वीप प्रदेश का अपना कानून या संसद है: उत्तरी प्रदेश, द ACT और क्वींसलैण्ड में एक सभा या एक सदन और बाकी राज्यों में दो सदन या सभा है। राज्य प्रभुता सम्पन्न है, यद्यपि राष्ट्रमंडल के कुछ विषय पर अधिकार संविधान में परिभाषित है।निचले सदन को विधान सभा के नाम से जाना जाता है (दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में संयोजन सभा) और ऊपरी सदन को विधान परिषद नाम से जाना जाता है। हर राज्य में सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री (premier) होता है और हर प्रदेश में मुख्य मंत्री.महारानी की कई भूमिका है, प्रत्येक राज्य में गवर्नर द्वारा प्रतिनिधित्व करती है और उत्तरी प्रदेश में प्रबंधक द्वारा और ACT में ऑस्ट्रेलियाई गवर्नर जनरल के रूप में . संघीय सरकार प्रत्यक्ष रूप से इन प्रदेशों का प्रबंधन करती है: जर्विस बे प्रदेश एक नौसेना तल और राष्ट्रीय राजधानी के लिए द्वीप में समुंद्री बंदरगाह जो पूर्व में न्यू साउथ वेल्स का हिस्सा था। क्रिशमस द्वीप और कोकोस (कीलिंग) द्विपें, बाहर बसे प्रदेश अशमोर और कारटियर द्वीपें कोरल सुमुद्री द्वीप हर्ड द्वीपे और मैकडॉनल्ड द्वीपें ऑस्ट्रेलियाई दक्षिण-ध्रुवीय प्रदेश (विस्तृत:बिना बसा हुआ) नोरफोर्क द्वीप भी तकनीकी रूप से बाह्य प्रदेश है, जो कुछ भी हो, नोरफोर्क द्वीप कानून 1979 के तहत यह अपने ही विधान सभा द्वारा स्थानीय तौर पर शासन करती है और इसे अत्यधिक स्वायत्तता दी गयी है।महारानी प्रबंधक द्वारा प्रतिनिधित्व करती है, वर्त्तमान में ओवेन वाल्श. विदेश संबंध और सेना thumbnail|ऑस्ट्रेलियाई युद्ध स्मारक पिछले कई दशको से ऑस्ट्रेलिया के विदेश संबंध अमेरिका के साथ हुए ANZUS संधि के घनिष्ट सहचर्य के द्वारा चलती है और एशिया, विशेषकर ASEAN और प्रशांतीय द्वीप फोरम के साथ संबंधो को विकसित करने की इच्छा के साथ.अमिती की संधि और दक्षिणी पूर्वी एशिया सहयोग की अपनी अधिमिलन के द्वारा ऑस्ट्रेलिया ने पूर्वी एशिया सम्मेलन में मंचीय आसन सुनिशिचत कर लिया। ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रमंडल देशो का एक सदस्य है, जिसमे राष्ट्रमंडल सरकारों के प्रमुखों के बीच की मुलाक़ात आपसी सहयोग के लिए मुख्य मंच प्रदान करती है। ऑस्ट्रेलिया ने तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उदारीकरण के उद्देश्य का अनुसरण किया है। यह कैर्न्स समूह और एशिया प्रशांतीय अर्थव्यवस्था सहयोग गठन का कारण बना। ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और विकास संगठन और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है और इसने कई प्रमुख द्विपक्षिक स्वतंत्र व्यापार अनुबंधों का अनुसरण किया, तत्काल में ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका मुक्त व्यापार अनुबंध और न्यूजीलैंड के साथ बराबर का आर्थिक संबंध.ऑस्ट्रेलिया का जापान के साथ मुक्त व्यापार अनुबंध के लिए वार्ता जारी है, जिसके साथ ऑस्ट्रेलिया का एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक विशवासयोग्य साथी के रूप में संबंध है।जापान-ऑस्ट्रेलिया संबंध , www.mofa.go.jp. ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, मलेशिया और सिंगापूर के साथ पांच शक्तिशाली रक्षा सम्बन्धन व्यवस्था दल है।संयुक्त राष्ट्र के स्थापना का एक सदस्य देश, ऑस्ट्रेलिया अपने मध्य शक्ति सहयोगी कनाडा और नॉर्डिक देशों के साथ बहुपक्षीय संबंधो के लिए प्रबल रूप से प्रतिबद्ध है और एक अंतराष्ट्रीय सहायता कार्यक्रम का निर्वहन करता है जिसके अंतर्गत 60 देश सहायता पाते है। 2005-06 का बजट विकास सहयोग के लिए A$2.5 करोड़ प्रदान करता है;ऑस्ट्रेलियाई सरकार. (2005).बजट 2005-2006 . घरेलू विकास दर (GDP) के रूप में यह सहयोग सयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य में सिफारिश की गयी राशिः से कम है। ऑस्ट्रेलिया का स्थान 2008 वैश्विक विकास केन्द्र में विकास की प्रतिबद्धता सूचि में साँतवा है।वैश्विक विकास का केंद्र.विकास सूचकांक के प्रति वचनबद्धता: ऑस्ट्रेलिया, www.cgdev.org. 5 जनवरी 2008 को लिया गया। ऑस्ट्रेलियाई सशस्त्र सेनाएँ -- ऑस्ट्रेलियन सुरक्षा बल (ADF) में शाही ऑस्ट्रेलियन नौसेना (RAN) ऑस्ट्रेलियाई फौज और शाही ऑस्ट्रेलियाई वायु सेना (RAAF) की कुल संख्या 73,000 है (जिसमे 53000 नियमित और 20000 आरक्षित) है। (पीपी. 99-100). ऑस्ट्रेलिया की सेना दुनिया की 68वी बड़ी सेना है, लेकिन प्रति व्यक्ति आधार पर दुनिया की एक छोटी सेनाहै। ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बल (ADF) की सभी शाखाएँ संयुक्त राष्ट्र में और क्षेत्रीय शांति के लिए (अभी हाल ही में पूर्वी तिमोर,सोलोमन द्वीप और सूडान में), आपदा सहायता और सैन्य संघर्ष, जिसमे 2003 का इराक़ युद्घ सम्मिलित है, में शामिल है। सरकार किसी भी एक सैन्य बल से सुरक्षा बल के अध्यक्ष को नियुक्त करती है; वर्तामान में सुरक्षा बल के अध्यक्ष वायु सेना अध्यक्ष एंगस हस्टन है। 2006-07 के बजट में रक्षा खर्च $22 करोड़ था,ऑस्ट्रेलियाई रक्षा विभाग (2006)." पोर्टफोलियो बजट स्टेटमेंट्स 2006-07." पी.19. जो वैश्विक सैन्य खर्च का 1% से भी कम है। प्रमुखत:अपने अफगानिस्तान में उपस्थिति के कारण,2008 विश्व शांति सुचनांक, में ऑस्ट्रेलिया को 27वा स्थान दिया गया।एवरिन्घम, सारा. ऑस्ट्रेलिया शांति सूचकांक (2008) के अनुसार 27वें स्थान पर है, www.abc.net.au 23 जनवरी 2008 को प्राप्त. जबकि गवर्नर जनरल ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बल का प्रधान सेनापति होता है, इनका सुरक्षा बल (ADF) को चलाने में कोई सक्रिय योगदान नहीं होता, यह चुनी हुई ऑस्ट्रेलियाई सरकार चलाती है। भूगोल right|thumbnail|ऑस्ट्रेलिया में जलवायु क्षेत्रों, क्योपेन वर्गीकरण के आधार पर ऑस्ट्रेलिया का भूक्षेत्र हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई तख़्ते पर है। हिंद और प्रशांत महासागर से घिरा हुआ है, ऑस्ट्रेलिया एशिया से अराफुरा और तिमुर समुद्रों के कारण विभाजित है। ऑस्ट्रेलिया की तट रेखा है (सभी अपतट द्वीपों को छोड़कर) और के विस्तृत विशेष आर्धिक क्षेत्र पर अधिकार है। इस विशेष आर्थिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलियाई दक्षिण-ध्रुवीय प्रदेश सम्मिलित नहीं है। left|thumbnail|अंतरिक्ष से देखे गए ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रमंडल विशाल अवरोधक चट्टान, दुनिया का सबसे बड़ा मूंगा- चट्टान, उत्तरी पूर्वी तट से बहुत कम दुरी में स्थित है और से ज्यादा तक फैला हुआ है।माउंट अगस्टस को दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर का खम्भा, माना जाता है, जो पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थित है। पर स्थित ग्रेट डिवाइडिंग रेंज पर माउंट कोसिक्जो ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप का सबसे बड़ा चट्टान है; हलाकि हर्ड द्वीप के सुदूर ऑस्ट्रेलियन प्रदेश का मासन पीक लम्बा है। दूर तक का ऑस्ट्रेलिया का बड़ा भाग मरुस्थल है या अर्धशुष्क भूमि है जिसे सामन्यता पिछड़ा क्षेत्र कहा जाता है। ऑस्ट्रेलिया एक समतल महाद्वीप है, जिसकी मिट्टी सबसे पुरानी और कम उर्वरक है और सबसे सूखा आवासीय महाद्वीप है। सिर्फ महाद्वीप के दक्षिणी पूर्वी और दक्षिणी पश्चिमी किनारे की जलवायु समशीतोष्ण है।जनसँख्या का घनत्व 2.8 निवासी प्रति स्क्वायर किलोमीटर है, जो दुनिया के सबसे निचलो में से एक है, हालाँकि जनसँख्या का एक बड़ा भाग दक्षिणी-पूर्वी तट रेख के समशीतोष्ण हिस्से में रहती है। उष्णदेशीय जलवायु के साथ देश के उत्तरी भाग के भू-प्रदेश में वर्षा प्रचुरवन, जंगलीभूमि, घासभूमि, वायुशिफ, दलदल और मरुस्थल सम्मिलित है। महत्वपूर्णता से जलवायु महासागरीय बहावो से प्रभावित होती है, जिसमे भारतीय महासागर द्रिधुव और अल नीनो दक्षिणी दोलन, जो सामयिक सूखे के साथ सहसम्बंधित है और मौसमी उष्णदेशीय निम्न चाप व्यवस्था जो उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में चक्रवात का निर्माण करती है।नो मोर ड्रोट: यह एक "पर्मानेंट ड्राई" है ; ऑस्ट्रेलियास एपिक ड्रोट: स्थिति गंभीर है | पर्यावरण thumbnail|एक इकोनिक ऑस्ट्रेलियाई जोड़ी बनाने वाले कोआला और नीलगिरी हालांकि अधिकांशत: ऑस्ट्रेलिया अर्दशुष्क या मरुस्थल है, इसमें अलपाइन झाडियों से लेकर उष्णदेशीय वर्षाप्रचुरवन के विमित्र आवासीय क्षेणी है और इसे बहुविधिता वाला देश माना गया है। महाद्वीप के इतने पुराने होने के कारण, इसके अत्यधिक अस्थिर मौसम नमूने और इसका लंबी अवधि का भोगोलिक विलगन, ऑस्ट्रेलिया का अधिकांश बायोटा अनूठा और भिन्न-भिन्न प्रकार का है। लगभग 85% फूल-पौधे, 84% स्तनपायी, 45% से ज्यादा चिड़ियाँ और 89% जलचर, समशीतोष्ण क्षेत्र की मछलियाँ स्थानिक है। 755 जातियों के साथ, ऑस्ट्रेलिया में किसी भी देश से ज्यादा सर्पणशील जंतु है।लैम्बरटिनी, कटिबंधों पर एक प्रकृतिवादी की गाइड, अंश www.press.uchicago.edu इस क्षेत्र के अर्न्तगत ऑस्ट्रेलिया के कई इकोरीजन और जातियाँ मनुष्य के क्रियाकलापों और नई किस्म के पौधों और जानवरों के कारण खतरे में है। संघीय वातावरण सुरक्षा और जैव विविधता संरक्षण कानून 1999 खतरे में पड़े प्रजातियों के संरक्षण का एक कानूनी ढाँचा है। अनूठे परितंत्र की सुरक्षा और उसे बचाने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना के अंतगर्त विमित्र सुरक्षा क्षेत्र बनाए गए है; 64 आर्द्रतायुक्त भूमि को रामसर समझौता के अंतगर्त पंजीकृत किया गया है और 16 विश्व मीरास स्थल निर्मित किये गए है। ऑस्ट्रेलिया को 2005 के विश्व पर्यावरण निरंतरता सूचनांक में 13वां स्थान दिया गया।ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में बहुधा विभिन्न किस्म के नीलगिरी के वृक्ष है और ज्यादातर उच्च वर्षा दर वाले क्षेत्रों में स्थित है। अधिकतर ऑस्ट्रेलियाई काष्ठीय पौधों की जातियाँ सदाबहार है और कई आग और सुखा के अनुकूल है, जिसमे नीलगिरी और बबूल शामिल है। ऑस्ट्रेलिया के पास स्थानिक फली जाति के विशाल प्रकार है जो रिजोबिया बैक्टेरिया और माइक्रोजिल फंगी के साथ सहजीविता के कारण कम-पोषण वाले मिट्टियों में पनपते है। बहुप्रचलित ऑस्ट्रेलियाई जानवरों मेंमनोट्रिम्स(प्लेटिपस और इकिडना); मार्सुपिय्ल्स के परिचारक, जिसमे कंगारू, द कोअला और वोमब्रेट; नाम्किनिजल और साफ़ जल मगरमच्छ और चिडियाँ जैसे एमु और कोकबुराहै। ऑस्ट्रेलिया विश्व के कुछ विषैले साँपो का घर है।"स्नेक बाईट", ऑस्ट्रेलियाई जहर संग्रह. डिंगो(ऑस्ट्रेलियाई कुत्ता) को ऑस्ट्रोनेसियन लोगो द्वारा लाया गया था जो 3000 BCEसेवोलैनेन, पी. एट अल. 2004.माईटोकोंड्रीयल डीएनए के अध्ययन से प्राप्त, एक प्रकार के ऑस्ट्रेलियाई कुत्ते की उत्पत्ति का एक विस्तृत चित्र. नेशनल अकेडमी ऑफ़ साइंसेस ऑफ़ द यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की कार्यवाही. 101:12387-12390 PMID के करीब स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाईयो के साथ व्यापार करते थे, पहले मानव अवस्थापन के साथ कई पौधे और जानवरों की जांतिया जल्द ही गायब हो गई,ह्युमंस टु ब्लेम फॉर एक्सटीन्क्सन ऑफ़ ऑस्ट्रेलियास मेगाफौना. द यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबोर्न. जिसमे ऑस्ट्रेलियाई मेगाफौना; अन्य जो युरोपियन अवस्थान के बाद गायब हुए उसमे थाईलेसीनहै।; हाल के वर्षो में जलवायु परिवर्तन ऑस्ट्रेलिया का बड़ा चिंता का विषय बन गया है,वायुमंडल: प्रमुख मुद्दा: जलवायु परिवर्तन, ऑस्ट्रेलियन स्टेट ऑफ़ द एन्वायरन्मेंट कमिटी, 2006. साथ में कई ऑस्ट्रेलियाइयो का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मामला है देश अभी जिसका सामना कर रहा है।एएनयू पॉल फाइंड्स 'इट्स द इनवायरनमेंट, स्टूपिड', www.anu.edu.au 8 जनवरी 2008 को लिया गया। पहले रुड मंत्रालय ने उत्सर्ग घटाने के लिए कर क्रियाकलाप प्रारंभ किए,ऑस्ट्रेलिया 2020 तक 15% कार्बन कटौती का लक्ष्य रखता है, 2010 कार्बन मार्केट की घोषणा , www.greencarcongress.com. 8 जनवरी 2008 को लिया गया। रुड का पहला कार्यालयीन कानून, कार्यालय के पहले दिन,क्योटो प्रोटोकोलके दृढीकरण के कारक पर हस्ताक्षर करना। तथापि ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड निकासी दुनिया में उच्च में है, कुछ दुसरे औद्दयोगिक देश जैसे अमेरिका, कनाडा और नार्वे से कम है। पिछले सदी के अनंतर ऑस्ट्रेलिया में वर्षा में थोडी बढोत्तरी हुई है, देशभर में और राष्ट्र के दोनों चतुर्थ भाग में.चिरकालिक कमी जो शहरी आबादी में बढोत्तरी और स्थानीय सूखे के कारण हो रही है उसके कारण जलवायु के इस लाभदायक परिवर्तन के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों और क्षेत्रों में जल सीमा लागू है।ऑस्ट्रेलिया का जल बचाव , बीबीसी न्यूज़, 23 अप्रैल 2008. अर्थव्यवस्था thumbnail|द सुपर पिट कल्गूरली, ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े खुले सोने की खान ऑस्ट्रेलियाई डॉलर ऑस्ट्रेलियाइ राष्ट्रमंडल की मुद्रा है, जिसमे क्रिशमस द्वीप, कोकोस (किलिंग) द्वीप और नोरफोक द्वीप और साथ ही साथ किरीबती के प्रशांतीय द्वीप राज्य, नौरु और तुवालु शामिल है।ऑस्ट्रेलियन प्रतिभूति एक्सचेंज और सिडनी फ्यूचर्स एक्सचेंज ऑस्ट्रेलिया के बड़े शेयर बाज़ार है। आर्थिक स्वतंत्रता के सुचनांक के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया एक निर्वाध पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है।ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति (GDP) ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस से क्रय शक्ति समानता मामले में थोड़ा ऊँचा है। देश को 2007 के संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सुचनांक में तीसरा,2008 के लेगाटम में समृद्धि सुचनांक में पहला और द इकोनोमिस्ट वर्ल्डवाइड 2005 के जीवन स्तर सुचनांक में छठा स्थान दिया गया। ऑस्ट्रेलिया के सभी बड़े शहरों ने जीवन कुशलता के तुलनात्मक सर्वे में अच्छा प्रदर्शन किया;मेलबॉर्न 'दुनिया का शीर्ष शहर' (2004), द एज. 31 जनवरी 2009 को पुनः प्राप्त मेलबर्न को 2008 दुनिया के सबसे अच्छे आवासीय शहर में दूसरा स्थान, इस सूची में इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर को चौथा, एडिलेड को 7वाँ और सिडनी को 9वाँ स्थान मिला. सदी के शुरुआत में वस्तुओं के दाम बढ़ते समय, वस्तुओ के निर्माण की जगह उसके निर्यात पर ज्यादा ध्यान देना ऑस्ट्रेलिया के व्यापार में बढोतरी का आधार बना। ऑस्ट्रेलिया का भुगतान संतुलित है जो GDP के 7% से ज्यादा नकारात्मक है और 50 वर्षो से भी ज्यादा के एकसमान बड़े चालू खाता घाटा है। डाउनवंडर द इकोनोमिस्ट, 29 मार्च 2007. ऑस्ट्रेलिया 15 वर्षो से 3.6% की औसत दर से विकसित हुआ है, जिसमे कि एक अवधि तक OECD का वार्षिक औसत 2.5% था। ऑस्ट्रेलिया 2009 की मंदी में अस्थिर दिखाई दिया, इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून, 19 जनवरी 2009.IMF के अनुसार,17 वर्षो विकास के बाद ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था 2009 में मंदी की मार खा सकता है।ऑस्ट्रेलिया इन रिसेसन: आईएमएफ, द ऑस्ट्रेलियन, 31 जनवरी 2009. ''' thumbnail|left|300px|2006 में ऑस्ट्रेलिया के निर्यात का गंतव्य और मूल्य 1983 में हाक सरकार ने ऑस्ट्रेलियाई डॉलर को चलाया और अंशत: आर्थिक व्यवस्था को नियंत्रण मुक्त किया।मैक्फार्लेन, आई. जे. (1998).बीसवीं सदी की अंतिम तिमाही की ऑस्ट्रेलियाई मौद्रिक नीति. रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया बुलेटिन, अक्टूबर.हावर्ड सरकार लेबर बाज़ार के अंशत: विनियमन के साथ चली और अधिक राज्य अधीन व्यवसायों का निजिकरण किया, खासकरदूरसंचारउद्योग में.10% माल और सेवा कर (GST)लागू करने के साथपरहम, डी. (2002).ऑस्ट्रेलिया के उत्पादकता और जीवन स्तर की वृद्धि में सूक्ष्म अर्थनैतिक सुधार और पुनरुद्धार.कांफ्रेंस ऑफ़ एकोनोमिस्ट्स, एडिलेड, 1 अक्टूबर. अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को जुलाई 2000 में मूलत: परिवर्तित किया गया, जिसने ऑस्ट्रेलियाई कर व्यवस्था के व्यक्तिगत और कंपनी आयकर पर आत्मनिर्भरता को थोड़ा कम किया। 4.6% बेरोजगारी दर के साथ जनवरी 2007 में 10,033,480 लोग नियोजित थे।ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स.लेबर फोर्स ऑस्ट्रेलिया। Cat#6202.0. पिछले दशको से, महंगाई 2-3% और आधारभूत ब्याज दर 5-6% है। अर्थव्यवस्था का सेवा क्षेत्र जिसमे पर्यटन, शिक्षा और आर्थिक सेवाएँ हैं, उनका GDP में 69% योगदान है।डिपार्टमेंट ऑफ़ फोरेन एंड ट्रेड (2003).एड्वान्सिंग द नैशनल इंटरेस्ट, परिशिष्ट 1. यद्यापि कृषि ओर प्राकृतिक संसाधन GDP के सिर्फ 3% और 5% के लिए जिम्मेदार है, वे मूलतः निर्यात प्रदर्शन में योगदान करते है। ऑस्ट्रेलिया के बड़े निर्यात बाज़ार जापान, चीन, अमेरिका, दक्षिणी कोरिया और न्यूजीलैण्ड है।ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स.यर बुक ऑस्ट्रेलिया 2005. जनसांख्यिकी ऐतिहासिक आबादी 19 वीं सदी के आंकड़े में स्वदेशी जनसंख्या शामिल नहीं हैं। स्वदेशी जनसंख्या पूर्व 1788लग-भग 350,000 गैरस्वदेशी जनसंख्या वृद्धि1788 900-- 18005200477.8%1850405,4007,696.2% दशक कुल जनसंख्या वृद्धि19003,765,300--19104,525,10020.2%19205,411,00019.6%19306,501,00020.1%19407,078,0008.9%19508,307,00017.4%196010,392,00025.1%197012,663,00021.9%198014,726,00016.3%199017,169,00016.6%200019,169,10011.6%200921,828,70413.6% right|thumbnail|साउथ ऑस्ट्रेलिया का बारोसा घाटी-शराब निर्माण क्षेत्र. 15% से भी कम ऑस्ट्रेलियाई ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। अनुमानित 21.8 मिलियन (दस लाख) में अधिकतर ऑस्ट्रेलियाइ उपनिवेश काल के स्थापितो के वंशज है और यूरोप के उत्तर-संघीय अप्रवासी है और करीब जनसँख्या का 90% यूरोपीय वंशज के है। पीढ़ियों से, उपनिवेशकालीन स्थापितों और उत्तर संघीय अप्रवासियों का विशाल जनसंख्या ब्रिटिश आइस्ल्स से केवल यहाँ आई और ऑस्ट्रेलियाई लोग अभी भी मुख्यतः ब्रिटिश या आयरिश एथिनिक उत्पति के है। 2006 में ऑस्ट्रेलियाई गणना सबसे ज्यादा जिसमे ऑस्ट्रेलियाई वंशज (37.13%),ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स ने घोषित किया है कि अधिकतर जो अपने पूर्वजों को "ऑस्ट्रेलियाई" की सूची में रखते है वो एंग्लो-केल्टिक समूह के अंग है।http://www.abs.gov.au/Ausstats/abs@ .nsf/94713ad445ff1425ca25682000192af2/ 49f609c83cf34d69ca2569de0025c182!OpenDocument फिर अंग्रेज(31.65%), आयरिश(9.08%), स्कॉटिश(7.56%), इटालियन(4.29%), जर्मन (4.09 %), चाइनीज(3.37%) और ग्रीक (1.84%) आते हैं। ऑस्ट्रेलिया की आबादी पहले विश्व युद्घ से चार गुणा बढ़ गयी है, और महत्वाकांक्षी आप्रवासी कार्यक्रम के कारण भी बढ़ी.दूसरे विश्व युद्ध से 2000 तक, कुल जनसंख्या का करीब 5.9 मिलियन देश में नए अप्रवासी के तौर पर बसे, इसका मतलब हुआ की हर सात में से दो ऑस्ट्रेलियाई समुद्र पार पैदा हुआ। अधिकतर अप्रवासी कुशल है, लेकिन अप्रवासी कोटा में परिवार के सदस्यों और रिफ्यूजी के लिए विभाग शामिल है। 2001 में 23.1% ऑस्ट्रेलियाइयो का पाँच बड़ा समूह समुद्र पार ब्रिटेन, न्यूजीलैण्ड, इटली, वियतनाम और चीन में पैदा हुआ था। 1973 में ऑस्ट्रेलियाई श्वेत नीति के अंत के साथ, बहुसंस्कृतिवाद की नीति के आधार पर जाति सौहार्द को प्रोत्साहन और बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी पहलों को स्थापित किया गया। 2005-06 में मुख्यतः एशिया और ओसिनिया से 131,000 से ज्यादा अप्रवासी ऑस्ट्रेलिया आये। 2006-07 का प्रवासी लक्ष्य 144,000 था।वर्ष, जन्म का देश, के आधार पर विदेशों में जन्मीं जनसँख्या का आगमन ; ऑस्ट्रेलियन इमिग्रेसन फैक्ट शीट 20 .प्रवासन कार्यक्रम योजना स्तर. 2008-09 के लिए कुल प्रवासी कोटा 300,000-यह द्वितीय विश्व युद्घ के समय बने अप्रवासी विभाग के निर्माण के बाद सबसे ज्यादा है।आप्रवासन प्रवेश में 300,000 की उन्नति , 11/06/2008. thumbnail|left|लगभग तीन चौथाई ऑस्ट्रेलियाई महानगरों और तटीय क्षेत्रों में रहते हैं। यह बीच ऑस्ट्रेलिया की पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है। [152] स्वदेशी जनसंख्या-महाद्वीपीय आदिवासी और तोर्स स्ट्रेट द्वीपवासियों-की संख्या 2001 में 410,003(कुल जनसंख्या का 2.2%) गणना की गयी थी;जिसमे 1976 की गणना से अभूतपूर्व बढोत्तरी हुई; जिसमें सर्वदेशी जनसंख्या 115,953 गिनी गयी। बड़ी संख्या में स्वदेशी जनसंख्या की गणना नहीं हो सकी क्योंकि उनकी स्वदेशी स्थिति फार्म में दाखिल नहीं हुई थी, कारणों के समन्वय के बाद,ABS ने 2001 का सही आँकडा लगभग 460,140 (कुल जनसंख्या का 2.4%) अनुमानित किया। स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाईकारावास और बेरोजगारी, शिक्षा का निचा स्तर और जीवन काल पुरुषों और महिलाओं का जो 11-17 वर्ष विदेशियों से कम है, से प्रभावित है। कुछ सुदूर स्वदेशी वर्ग को "विफल राज्य" जैसी अवस्था से परिभाषित किया गया है। (तीसरा अंतिम अनुच्छेद). विकसित देशों में जो एक बात समान है, ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या बूढी जनसंख्या की ओर बढ़ रही है जिससे सेवानिवृत्ति और सेवा करने वालों की कम उम्र वाले ज्यादा है। 2004 में, सामान्य जनसंख्या की औसत उम्र 38.8 वर्ष थी।पार्लियामेन्ट ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया, पार्लियामेन्टरी लाइब्रेरी (2005).ऑस्ट्रेलिया का ढलता कार्यबल. एक बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलियाई (2002-03 की अवधि में 759,849)पार्लियामेन्ट ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया, सीनेट (2005).ऑस्ट्रेलियाई प्रवासियों की जांच . अपने देश से बाहर रहे। भाषा राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी है। "अंग्रेजी का कानूनन कोई स्थान नहीं है परन्तु यह साधारण भाषा के रूप में इतना आरोपित हो गया है कि वास्तव में यह आधिकारिक भाषा के साथ-साथ राष्ट्रीय भाषा के रूप में उपयोग हो रहा है |" अपनी खुद की विशेष उच्चारण गुण और शब्द संग्रह (जिसमे कुछ ने अपने लिए अंग्रेजी की राह खोज ली) के साथ ऑस्ट्रेलियाई अंग्रेजी भाषा का एक मुख्य प्रकार है, लेकिन अमेरिकन या ब्रिटिश अंग्रेजी से आंतरिक बोली भिन्नता में कम (छोटे क्षेत्रीय उच्चारण और शाब्दिक विविधता को छोड़कर) है। व्याकरण और वर्तनी मुख्यत: ब्रिटिश अंग्रेजी पर आधारित है। 2001 की गणना के अनुसार स्वदेश की करीब 80% जनसंख्या द्वारा सिर्फ अंग्रेजी भाषा बोली जाती है। दूसरे सामान्य जो भाषा घर में बोली जाती है वह है चीनी (2.1%), इटालियन (1.9%) और ग्रीक (1.4%).पहली और दूसरी पीढ़ी के प्रवासियों का एक उल्लेखनीय अनुपात द्विभाषिक है। ऐसा माना जाता है कि पहले यूरोपियन सम्पर्क के समय,ऑस्ट्रेलियाई प्राचीन भाषाएं 200 से 300 के बीच थी। इनमे से सिर्फ 70 के करीब ही बच पाए और उनमें से 20 अब खतरे में है। एक स्वदेशी भाषा 50,000(0.25%) लोगों की मुख्य भाषा अभी भी बनी हुई है। ऑस्ट्रेलिया के पास एक चिन्ह भाषा है जिसे असलन के नाम से जाना जाता है, जो करीब 6500 बहरे लोगों की मुख्य भाषा है। धर्म ऑस्ट्रेलिया का कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं है। 2006 की गणना में, 64% ऑस्ट्रेलियाई को किसी भी मनुष्य जाति के ईसाई के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जिसमे 26% रोमन कैथोलिक और 19% एंगलिकेन के रूप में थे।"धर्म रहित"(जिससे मानवतावाद, अनीश्वरवाद, अज्ञेयवाद और बुद्धिवाद) कुल मिलाकर 19% और जो तेजी से बढ़ता हुआ समूह है (2006 और 2001 के गणना में हुए विभिन्नता के सन्दर्भ में; और 12% जवाब नहीं दिए और न ही अनुवाद पर कोई अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त किए).ऑस्ट्रेलिया में दूसरा बड़ा धर्म बौद्ध, उसके बाद हिन्दू और इस्लाम धर्म है। कुल मिलाकर 6% से कम ऑस्ट्रेलियाई इसाई धर्म के अलावा के पाए गए है। (पैराग्राफ़ शीर्षक देखो "धर्म"). सर्वेक्षणो से पता चला है कि विकसित देशों में ऑस्ट्रेलिया कम धार्मिक राष्ट्र है, साथ ही ऑस्ट्रेलियाइयों के जीवन के धर्म की कोई महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में व्याख्या नहीं की गयी है।मॉरिस, लिंडी. गोड इस ओके, इट इस जस्ट रिलिजन बिट वी डोंट लाइक (2008), सिडनी मार्निंग हेराल्ड. 5 जनवरी 2008 को लिया गया।शिक्षाविदों के विचार से धर्म से सम्बंधित जनगणना त्रुटिपूर्ण है क्योंकि जनगणना "को धार्मिक आस्था वाले पहचान को मापने के लिए योजनावद्ध किया गया है - न कि स्वंय आस्था या इसकी अनुपस्थिति को" . एकाधिक स्वतंत्र सर्वेक्षण मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलियाई कैथोलिक विश्वविद्यालय और ईसाई रिसर्च एसोसिएशन द्वारा किया गया जो इससे तर्कयुक्त है कि जनगणना में सूचित 19% की तुलना में 52% व्यस्क ऑस्ट्रेलियाइयों का कोई धर्म नहीं है |स्रोत: द एड्वरटाईज़र अप्रैल 11, 2009 "व्हाई एडिलेड इज़ द सेंटर ऑफ़ एथिस्म" पीपी.10-12. जैसा कि विभिन्न पश्चिमी देशों में हैं, यहाँ चर्चो में अराधना करने वाले सक्रिय भागीदार कम है और कम हो रही है, चर्च के कायों में,राष्ट्रीय चर्च जीवन सर्वेक्षण: चर्च-आगे पतन कि ओर जा रहा है, www.ad2000.com.au. 5 जनवरी 2008 को लिया गया। 2004 के गणना के अनुसार, उपस्थित जनसंख्या का करीब 7.5% यानि 1.5 मिलियन है।एनसीएलएस चर्च उपस्थिति का नवीनतम अनुमान प्रकाशित करता है , राष्ट्रीय चर्च जीवन सर्वेक्षण, मीडिया रिलीज, 28 फ़रवरी 2004. शिक्षा पूरे ऑस्ट्रेलिया में स्कूल उपस्थिति अनिवार्य है। अधिकांश ऑस्ट्रेलिया राज्य में 5-6 वर्ष के बच्चे 11 वर्ष की अनिवार्य सिक्षा प्राप्त करते है; उसके बाद दो वर्ष और बढ़ सकते है (11 और 12 वर्ष), इसका साक्षरता दर में सहयोग करीब 99% माना गया है।अन्तराष्ट्रीय विद्यार्थी मुल्यांकन कार्यक्रम, आर्थिक सह भागिता और विकास संगठन (OECD) के सहयोग द्वारा, ऑस्ट्रलियाई शिक्षा को विश्व में आँठवा स्थान दिया गया है, जो विशेषतापूर्वक 30 देशों OECD के औसत स्थान से ज्यादा है। सरकारी अनुदान से ऑस्ट्रेलिया के 38 विश्वविद्यालयों को समर्थन दी जाती है और जबकि कई नीजि विश्वविद्यालय भी बनाए गए है, जिसमे से अधिकांश को सरकारी निधियन मिला। व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए एक राज्य आधारित व्यवस्था है, जो महाविद्यालयों से ज्यादा है जिसे टेफ संस्थान के नाम से जाना जाता है और कई उद्योग नए उद्यमियो के लिए प्रशिक्षण का प्रबंध करते है। लगभग 58% 25 से 64 वर्ष के ऑस्ट्रेलियाइयो के पास व्यावसायिक या तृतीय श्रेणी की पात्रता है, और OECD देशों में 49% के स्नातक दर के साथ इसका स्थान सबसे ऊपर है। तृतीय श्रेणी से शिक्षा लेने वाले स्थानीय और अंतराष्ट्रीय विद्यार्थियों का अनुपात OECD के देशों में सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया का है।एजूकेशन एट ग्लांस 2005 बाइ ओएसीडी: परसेंटेज ऑफ़ फॉरेन स्टूडेंट्स इन टर्शियरी एजूकेशन. संस्कृति thumbnail|मेलबोर्न का रॉयल प्रदर्शनी भवन ऑस्ट्रेलिया की ऐसी पहली इमारत थी जो 2004 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल में सूचीबद्ध है। 1788 से बाद ऑस्ट्रेलियाई संस्कृति का प्राथमिक आधार एंग्लो सेल्टिक रहा है, यद्यपि देश के प्राकृतिक वातावरण और स्वदेशी से संस्कृतियों से कई ऑस्ट्रेलियाई विशेषताएँ बाहर निकली। 20वीं सदी के मध्य से ऑस्ट्रेलियाई संस्कृति, अमेरिका प्रख्यात संस्कृति (विशेषकर टेलिविज़न और सिनेमा), ऑस्ट्रेलिया के एशियाई पड़ोसी और बड़े पैमाने पर अंग्रेजी भाषा न बोले जाने वाले देशों के अप्रवासियों से प्रभावित रही है। ऑस्ट्रेलियाई दृश्यकला की शुरुआत अपने स्वदेशी लोगो के गुफाओं और वृक्षों की चित्रकलाओं से मानी गयी है।वेल्श, डेविड. "एबोरिजिनल फाइन आर्ट्स गैलरी", aaia.com.au. 2 नवम्बर 2008 को लिया गया। स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाइयो की परंपरा मौखिक रूप से ज्यादा प्रसारित हुई और ड्रीमटाइम की कहानियों को कहने और समारोहों से जुडी हैं। ऑस्ट्रेलियाई प्राचीन संगीत, नृत्य और कला से प्रभावित हुई। यूरोपियन अवस्थापन के समय से, ऑस्ट्रेलियाई कला का विषय ऑस्ट्रेलियाई भूमि प्रदेश का चित्र, जो उदाहरणस्वरूप अल्बर्ट नमत्जीरा, अर्थर स्ट्रीटन और दुसरे हेडिलबर्ग स्कूल और अर्थर बोय्ड साथ जुड़े की कार्यो में देखा जाता है। इस समय जो ऑस्ट्रेलियाई कलाकार आधुनिक अमेरिका और यूरोपियन कलाओं के साथ जुड़े़ हैं उसमें क्यूबिस्ट ग्रेस क्रोवली, सुर्रेलिस्ट जेम्स ग्लीसन, अमूर्त व्यंजक ब्रेट विटले और पॉप कलाकार मार्टिन शार्प शामिल है।ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय चित्रशाला और विभिन्न दूसरे राज्य चित्रशालाएं ऑस्ट्रेलियाई और विदेशी संकलनों को सम्भाल कर रखे हुए हैं। 20वीं सदी के प्रारम्भ से लेकर अबतक ऑस्ट्रेलियाई आधुनिक कलाकारों के लिए देश के भूमि प्रदेश का चित्र मुख्य प्रेरणास्रोत बनी है; इस बात की स्तुति जीत कलाकारों की चित्रों में होती है, वे है सिडनी नोलन, ग्रेस कोसिंगटन स्मिथ, फ्रेड विलियम्स, सिडनी लॉन्ग और क्लिफ्टन पघ. thumbnail|upright|left|ऑस्ट्रेलियाई कलाकार आर्थर स्ट्रीटन का सनलाईट स्वीट ऑस्ट्रेलियाई प्रदर्शन कलाओं की कुछ कंपनियाँ संघीय सरकार की ऑस्ट्रेलिया परिषद से आर्थिक सहायता पाती है। हर राज्य के प्रधान शहर में एक स्वररचना वादक यंत्र है और राष्ट्रीय ओपेरा कंपनी, ओपेरा ऑस्ट्रेलिया, जो गायक जॉन सुथेरलैण्ड के द्वारा निकला। निली मेल्बा उनकी विख्यात पूर्वीधिकारी थी। नाटक और नृत्य ऑस्ट्रेलियाई बैलेट और विमित्र राज्य नृत्य कंपनियों के द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं। हर राज्य के पास सार्वजनिक निधि प्राप्त रंगमंच कंपनी हैं। thumbnail|upright|सिडनी के ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय में आदिवासी गीत और नृत्य का प्रदर्शन ऑस्ट्रेलियन सिनेमा उद्योग की शुरुआत ऑस्ट्रेलियाइ बुश रेंजर नेड केली की 70 - मिनट की फिल्म द स्टोरी ऑफ द केली गैंग के प्रदर्शनि के साथ 1906 में शुरू हुई, जिसे दुनिया की पहली लम्बी फिल्म माना जाता है।द न्यू वेव ऑफ ऑस्ट्रेलियन सिनेमा 1970 के दशक में उत्तेजक और सफल फिल्मे लाइ, कुछ देश के आदिवासियों के भुत-काल का वर्णन करती है, जैसे पिकनिक ऐट हैगिंग राक और द लास्ट वेव .बाद के सफल में मैड मैक्स और गालिपोली शामिल है। हाल ही की सफलता में शाइन, रैबिट-प्रूफ फेंस और हैप्पी फीट शामिल है। ऑस्ट्रेलियाइ के विविध भूमि प्रदेश और शहर कई दूसरे फिल्मों के प्राथमिक स्थान रहे है, जैसे- द मैट्रिक्स, पीटर पैन, सुपरमैन रीटर्न्स और फाइंडिंग नेमो के.हाल के अच्छी तरह विख्यात ऑस्ट्रेलियाई अभिनेता में जुडिथ अन्देरसों, एर्रोल फ़्लाइन, निकोले किडमन, हघ जक्क्मन, हेथ लेजर, गेओफ्फ्रे रश, रुस्सेल्ल क्रोवे, टोनी कोलेट्टे, नओमी वॉट्स और सिडनी रंगमंच कंपनी के संयुक्त निर्देशक- केट ब्लैनकेट शामिल है। ऑस्ट्रेलियाई साहित्य भी भूमि प्रदेश से प्रभावित हुई है, कई लेखको के काम जैसे बंजो पटेरसों, हेनरी लावसन और डोरोथा मैकेलर ऑस्ट्रेलियाई झाड़ों के अनुभव को लिए। ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का आचरण, जैसा कि शुरूआती साहित्यों में दर्शाया गया है, वह आधुनिक ऑस्ट्रेलियाइयो में मशहूर है। वे मानते है कि यह समतावाद, मेटशीप और एन्टी-ओथोरीटेनिस्म को बढ़ाता है। 1973 में पेट्रिक वाईट को नोबल प्राइज़ से नवाजा गया था, ऐसा करने वाले वे एकमात्र ऑस्ट्रेलियाई थे।कोलीन मैक्कुलोफ़, डेविड विलियम्सन और डेविड मुलोफ़ भी प्रसिद्ध लेखक है। ऑस्ट्रेलिया के पास दो सार्वजनिक प्रसारणकर्ता (द ऑस्ट्रेलियन ब्रोडकास्टिंग निगम और बहुसांस्कृतिक विशेष प्रसारण सेवा), तीन वाणिज्यिक टेलीविजन नेटवर्क, कई पे-टीवी सेवाएँ और विभिन्न सार्वजनिक, लाभ राहित टेलीविजन और रेडियो केंद्र है। हर प्रमुख शहर में रोजाना के अखबारे और दो राष्ट्रीय दैनिक अखबारे, द ऑस्ट्रेलियन और द ऑस्ट्रेलियन फैनैन्शियल रिव्यू है। 2008 में रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया का मुक्त प्रेस द्वारा दिए गए, 173 देशों को स्थान में 25वां है, न्यूजीलैण्ड के (7वां) और (23वां) के पीछे लेकिन अमेरिका (48वां) से आगे.पायदान में नीचे होने का प्रमुख कारण है ऑस्ट्रेलिया में व्याव्सायिक मीडिया के सिमित विभेद,बार, ट्रेवर. "मीडिया ओनरशिप इन ऑस्ट्रेलिया", australianpolitics.com. 2 जनवरी 2008 को लिया गया। साथ में, अधिकांश ऑस्ट्रेलियन प्रिंट मीडिया निउज कार्पोरेशन और जॉन फेयरफेक्स होल्डिंग्स के नियंत्रण अधीन है। thumbnail|upright|स्पष्ट: बोथ ऑस्ट्रेलियन फुटबॉल नियम विक्टोरिया में उत्पादित है और एक बहुत लोकप्रिय खेल है। ऑस्ट्रेलिया खेल क्रियाकलापों में 15 वर्ष के ऊपर वाले करीब 24% ऑस्ट्रेलियाइ नियमित रूप से भाग लेते है। ऑस्ट्रेलिया के कई मजबूत अंतर्राष्ट्रीय टीमें क्रिकेट, फिल्ड हॉकी, नेट बॉल, रग्बी लीग, रग्बी यूनियन में है और यह साइक्लिंग, रोइंग और तैराकी में अच्छा प्रदर्शन करते है। ऑस्ट्रेलिया में कुछ बड़े सफल खिलाडी है तैराक डाउन फ्रेजर, मर्रे रोस और लेन थोर्प, स्प्रिंटर बेट्टी कथब्र्ट, टेनिस खिलाडी रोड लेवर और मेर्ग्रेट कोर्ट और क्रिकेटर डोनाल्ड ब्रेडमैन.राष्ट्रीय तौर पर दुसरे मशहूर खेल है ऑस्ट्रेलियन टूल्स फूटबाल, घुड़दौड़, सर्फ़िंग, फूटबाल (सोकर) और मोटर दौड़.ऑस्ट्रेलिया ने आधुनिक दौर के सभी समर ओलम्पिक खेलो और सभी राष्ट्रमंडल खेलो में हिस्सा लिया है। ऑस्ट्रेलिया ने 1956 में मेलबर्न समर ओलंपिक और 2000 में सिडनी समर ओलंपिक कि मेंजबानी की और 2000 में मेडल पाने वाले शीर्ष छ: में शामिल रहां.एबीएस पदक मिलान: ऑस्ट्रेलिया तीसरे स्थान पर, ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो. 25 जनवरी 2008 को लिया गया। ऑस्ट्रेलिया ने साथ ही 1938, 1962, 1982 और 2006 राष्ट्रमंडल खेलो की भी मेजबानी कर चूका है। दुसरे महत्वपूर्ण श्रंखलाएं जो ऑस्ट्रेलिया में हुई है उनमे ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपेन टेनिस टूर्नामेंट, अंतराष्ट्रीय क्रिकेट मैचे और फार्मूला वन ऑस्ट्रेलियन ग्रैंड प्रिक्स शामिल है। उच्च स्थान प्राप्त टेलीविजन कार्यक्रम में खेल प्रसारण जैसे समर ओलंपिक गेम्स, स्टेट्स ऑफ आरिजिन और राष्ट्रीय रग्बी लीग और ऑस्ट्रेलियन फूटबाल लीग के भव्य फाइनल शामिल है।"ऑस्ट्रेलियाई फिल्म आयोग. ऑस्ट्रेलियाई क्या देख रहे हैं? " फ्री टू एयर, 1999-2004 TV. यह भी देखिये ऑस्ट्रेलिया संबंधित लेखो की सूची ऑस्ट्रेलिया (महाद्वीप) नोट्स (टिप्पणी) ऑस्ट्रेलिया का अपना एक शाही राष्ट्रगान है, "गड सेव दा क़ुइन (या किंग) (God save the Queen(or king))", जिसे शाही परिवार की उपस्तिथि में चलाया जाता है और दुसरे मौके पर ऑस्ट्रेलिया में होते है। दुसरे मौके पर ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रगान "अडवांस ऑस्ट्रेलिया फेयर (Advance Australia Fair)" बजाया जाता है।इट्स एन ओनर - सिम्बल्स - ऑस्ट्रेलियन नेशनल एंथेम एंड DFAT - "द ऑस्ट्रेलियन नेशनल एंथेम"; अंग्रेजी को कानूनी दर्जा नहीं प्राप्त है। इन तीन समय क्षेत्रों में सुक्ष्म अंतर है, ऑस्ट्रेलिया में समय देखे. ऑस्ट्रेलिया अपने महाद्वीप के दक्षिणी जालीम भाग को दक्षिणी महासागर के रूप में पारिभाषित करता है, ना कि भारतीय महासागर, जैसा की अंतराष्ट्रीय जल्माप चित्रण संगठन (IHO) द्वारा पारिभाषित किया गया है। 2000 में, IHO सदस्य देशों का एक मत,'दक्षिणी महासागर' शब्द को परिभाषित किया कि यह अन्टार्टिका और 60 डिग्री दक्षिणी अन्क्षाशा के बीच के जल पर सिर्फ लागू किया जायेगा. ओस (Oss) के रूप में, द ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्सनरी में यह पहली बार 1908 में दर्ज किया गया। फ्रैंक बौम के उपन्यास 'द वंडरफूल विजार्ड ऑफ़ ओजी (1900) पर आधारित फिल्म 'द विजार्ड ऑफ ओजी (1939) में ओजी के कल्पित भूमि को प्राय: अप्रत्याशित संधर्ब के रूप में प्राय: लिया गया है।जैकबसन, एच., इन द लैंड ऑफ़ ओज, पेंगुइन, 1988, ISBN 0-14-010966-8. ऑस्ट्रेलियाइयो "ऑस्ट्रेलियाइ को ओजी लैण्ड" के रूप में छवि नई नहीं है और इसमें बहुत गहरा समर्पण भावः निहित है। द अमेरिकाना एनुअल: 1988, अमेरिकाना कारपोरेशन, वोल. 13, 1989, पी.66, ISBN 0-7172-0220-8. 1939 के फिल्म के द्वारा oz का अक्षर विन्यांस प्रभावित माना जाता है, जबकि उच्चारण हमेशा /z/ के साथ होता है, जैसी है असी (Aussie) के साथ, कभी-कभी लिखित ओजी (Ozzie) .पैट्रिज़, इ., एट एल., द न्यू पैट्रिज़ डिक्शनरी ऑफ़ स्लैंग एंड अन्कोंवेंशनल इंग्लिश, टायलर & फ्रैन्सिस, 2006, ISBN 0-415-25938-X, 1431.बज लुह्र्मन की फिल्म ऑस्ट्रेलिया (2008) में द विजार्ड ऑफ़ ओजी के सन्दर्भ को ही दुबारा सन्दर्भित किया, जोऑस्ट्रेलिया की युद्घ समय के हलचलों के ठीक पहले प्रकट हुआ था। एक समीक्षक ने लिखा, "आप लुह्र्मन की बहादुरी पर अपनी सहमति दे सकते है बावजूद इसके की, द विजार्ड ऑफ़ ओजी का, ओजी भूमि एक चमत्कारी जगह इन्द्रधनुष के पार, ऑस्ट्रेलिया में पुनः प्रस्तुत हुआ है"."'ऑस्ट्रेलिया' टू बिग टु बी कोंट्रोल्ड" ,द साल्ट लेक ट्राईब्युन . कुछ आलोचकों ने यह अनुमान लगाया कि,ओज भूमि के नामकरण में, बौम 'ऑस्ट्रेलिया' से प्रेरित थे, ओज्मा ऑफ़ ओज में डोर्थी समुद्र पर आये तूफान के परिणाम स्वरुप ओज वापस चला जाता है, जबकि वह और उसके चाचा हेनरी समुंद्री जहाज द्वारा ऑस्ट्रेलिया यात्रा कर रहे है। इसलिए, ऑस्ट्रेलिया की तरह, ओज कैलिफोर्निया के पश्चिम के तरफ कहीं पर है। ऑस्ट्रेलिया की तरह ओजी एक द्वीप महाद्वीप है। ऑस्ट्रेलिया की तरह, ओज में महान सीमा पर आवासीय क्षेत्र बसा हुआ हैं। कोई ऐसा भी सोच सकता है कि बाम ने ओजी को ऑस्ट्रेलिया बना दिया या महान ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थल के केंद्र में एक चमत्कारी भूमि.एल्जियो, जे, "ऑस्ट्रेलिया एज द लैंड ऑफ़ ओज", अमेरिकन स्पीच, वोल.65, संख्या 1, 1990, पीपी.86-89. "ओकर, n 2 ऑस्ट्र्ल स्लैंग ....एक खुरदरा, अउपजाऊ, या अग्रसित भूरा ऑस्ट्रेलियाइ आदमी;(विशेषतः रुढिवादी)"(SOED) सन्दर्भ ग्रन्थसूची डेनून, डोनाल्ड, एट एल. (2000).ए हिस्ट्री ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, एंड द पैसिफिक. ऑक्सफोर्ड : ब्लैकवेल.ISBN 0-631-17962-3. हग्स, रॉबर्ट (1986). द फैटल शोर: द एपिक ऑफ़ ऑस्ट्रेलियास फाउन्डिंग. नोफ.ISBN 0-394-50668-5. मैकइनटायर, स्टुअर्ट (2000). ए कोंसाइज हिस्ट्री ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया .कैंब्रिज, ब्रिटेन: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस. 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जर्मनी
https://hi.wikipedia.org/wiki/जर्मनी
+ Bundesrepublik Deutschland जर्मन संघीय गणराज्य 125px|जर्मनी का झन्डा 100px|Germany: Coat of Arms जर्मन राष्ट्रीय ध्वज Location of Germanyआधिकारिक भाषा जर्मनराजधानी बर्लिनसबसे बडा शहर बर्लिनजर्मनी के चान्स्लर ओलाफ शुल्त्सजर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वाल्टर स्टिनमिअरक्षेत्रफल  - पूरा  - % पानी६१वे स्थान पर ३४९,२२३ km² 2.416%जनसंख्या  - पूरी (२००४)  - घनत्व१३वे स्थान पर बादेन-वुर्तेम्बर्ग स्टटगर्ट ३५,७५२१,०७,१७,००० बेयर्न म्यूनिख ७०,५४९१,२४,४४,००० बर्लिन राज्य बर्लिन ८९२३४,००,००० ब्रैंडेनबर्ग पॉट्सडैम २९,४७७२५,६८,००० ब्रेमेन ब्रेमेन ४०४६,६३,००० हैम्बर्ग हैम्बर्ग ७५५१७,३५,००० हेसे विसबैडेन २१,११५६०,९८,००० मेक्लेनबर्ग-वोर्पोमेर्न श्वेरीन २३,१७४१७,२०,००० निचला सैक्सोनी हेनोवर ४७,६१८८०,०१,००० उत्तरी राइन डसेलडॉर्फ़ ३४,०४३१,८०,७५,००० राइनलैन्ड मैन्ज़ १९,८४७४०,६१,००० सारलैंड सारब्रुकेन २,५६९१०,५६,००० सैक्सोनी ड्रेसडेन १८,४१६४२,९६,००० सैक्सोनी-एन्हाल्ट मेगडेबर्ग २०,४४५२४,९४,००० श्लेसविग-होल्सटीन काइल १५,७६३२८,२९,००० ठुरुंगिया अरफ़र्ट १६,१७२२३,५५,००० |} जर्मनी में कई बड़े नगर हैं। क्रमांक नगर जनसँख्या १ बर्लिन ३४४२६७५ २ हैम्बर्ग १७७४२२४ ३ म्यूनिख १३३०४४० ४ कोलोन १०००६६० ५ फ्रैंकफर्ट ६७१९२७ ६ स्टटगर्ट ६०१६४६ ७ डसेलडॉर्फ़ ५८६२१७ ८ डॉर्टमुंड ५८१३०८ ९ एस्सेन ५७६२५९ १० ब्रेमेन ५४७६८५ ११ हेनोवर ५२०९६६ १२ लिपजिग ५१८८६२ १३ ड्रेसडेन ५१७०५२ १४ नूर्नबर्ग ५०३६७३ १५ डुईसबर्ग ४९१९३१ १६ बोखुम ३७६३१९ १७ वुपर्ताल ३५१०५० १८ बिलेफेड ३२३०८४ १९ बॉन ३१९८४१ २० मैनहेम ३११९६९ भूगोल जर्मनी मध्य यूरोप में स्थित है, इसका कुल क्षेत्रफल ३५७,०२१ कि.मी.२ है| भौगोलिक दृष्टि से जर्मनी के निम्नलिखित विभाग किए गए हैं : जर्मनी का मैदान इस प्रदेश की अधिकतम चौड़ाई लगभग 150 मील है। हिमयुग का प्रभाव यहाँ के भूपटल पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। जलप्रवाह का विकास अच्छा नहीं है एवं भूमि हिम कटाव के कारण अनुपजाऊ है। इस भाग की मुख्य नदियाँ एल्बे (Elbe) तथा वेजर (Weser) हैं। अनुपजाऊ भागों को पोलैंड के आधार पर उपजाऊ बनाया जा रहा है। इस प्रदेश के मुख्य नगरों में बर्लिन तथा हैमवर्ग हैं। यहाँ से जर्मनी के प्रत्येक क्षेत्र के लिये आवागमन के साधन सुलभ हैं। मध्य जर्मनी यह संपूर्ण देश का अत्यधिक विकसित प्रदेश है। यहाँ जर्मनी के विशाल उद्योग, खनिज तथा अन्य संबंधित उद्योगों का विकास हुआ है। युद्धों के कारण इस भाग की अत्यधिक क्षति हुई थी। किंतु पुन: उद्योग धंधों का विकास किया गया है। यहाँ कपड़ा, रेशम, लोहा, इस्पात, कांच, बरतन, रसायनक तथा चमड़े के अनेक कारखाने हैं। प्रमुख नगरों में ड्रेसडेन एल्बे के तट पर स्थित है। लाइपसिग (Leipzig) महत्वपूर्ण आवागमन का केंद्र है, जो उत्तरी एवं मध्य जर्मनी के मुख्य औद्योगिक नगरों को मिलाता है। इस भौगोलिक विभाग के अंतर्गत सैक्सनी एवं वेस्टफेलिया हैं। वेस्टफेलिया क्षेत्र खनिजों के लिये विश्वप्रसिद्ध है। इसी क्षेत्र में रूर (Ruhr) कोयला क्षेत्र स्थित हे, जहाँ प्रति वर्ष लगभग 8,00,00,000 टन कोयले का उत्खनन होता है। इस प्रदेश के मुख्य औद्योगिक नगरों में एसेन (Essen) तथा डार्टमंट है। इन नगरों के क्षेत्र में कच्छा लोहा प्राप्त होता है। युद्ध के पहले लोहे इस्पात का उत्पादन यहाँ ग्रेट ब्रिटेन के उत्पादन से भी अधिक था। दक्षिणी पश्चिमी जर्मनी इस भौगोलिक विभाग के अंतर्गत राइन घाटी तथा समीपवर्ती प्रदेश आते हैं। यहाँ राइन नदी गहरी घाटी से होकर प्रवाहित होती है। यह क्षेत्र कृषि तथा आवागमन के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस घाटी से आवागमन के मार्ग दक्षिणी यूरोप के लिये बेसेल से होकर स्विटसरलैंड एवं इटली की ओर जाते हैं तथा पश्चिमी यूरोप के लिये सेवर्न गेट से होकर पेरिस जाते हैं। राइन घाटी के पूर्व की ओर त्रिकोणात्मक रूप में ब्लैक फारेस्ट का विस्तृत प्रदेश है। इस प्रदेश की ऊँचाई 2,000 से 3,000 फुट तक है। यहाँ के प्रमुख नगरों में न्यूरेनवर्ग एवं स्टटगॉर्ट (Stuttgart) हैं। मोड़दार पर्वतप्रदेश इसके अंतर्गत बवेरिया (Bavaria) का भाग आता है। यहाँ की भूमि अनुपजाऊ है। बवेरिया प्रमुख नगर तथा क्षेत्रीय राजधानी है। यह नगर आइज़र नदी के तट पर स्थित है। पर्वतीय भागों का प्रदेश अत्यंत ऊँचा नीचा है। यहाँ ओबरामरगोउ (Oberammergau) प्रसिद्ध दर्शनीय क्षेत्र है। जर्मनी की जलवायु कई प्रकार की है। उत्तरी जर्मनी मुख्यत: उत्तरी-पश्चिमी यूरोपीय जलवायु प्रदेश के अंतर्गत आता है। मध्य एवं दक्षिणी जर्मनी महाद्वीपी प्रकार की जलवायु के क्षेत्र में सम्मिलित किए जाते हैं। जाति, भाषा और धर्म thumb|बर्लिन में हिंदू मंदिर पूर्वी जर्मनी के निवासी प्राय: समजातीय हैं, यद्यपि स्वैबियनों (Swabians), थुरिंजियनों (Thuringians) सैक्सनियनों (Saxonians), प्रशियनों (Prussians) आदि में कुछ परस्पर भेदमूलक विशेषताएँ हैं। पश्चिमी में लगभग 99% मूल जर्मन हैं। अल्पसंख्यकों में केवल डेनी (Danes) हैं। हाल में पूर्वी यूरोप से कुछ लोग आकर बसे हैं। जर्मन राजभाषा है। भिन्न-भिन्न भागों में प्रयोग होनेवाली बोलियाँ जर्मन के ही अंतर्गत हैं। संविधान द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता मान्य है। प्राय: रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट लोग ही बसते हैं। अर्थव्यवस्था thumb|मर्सिडीज़ बेन्ज़। जर्मनी दुनिया में एक प्रमुख निर्यातक है। जर्मनी एक अत्यंत कुशल श्रम शक्ति, एक बड़े शेयर पूँजी, भ्रष्टाचार का स्तर कम, और नवीनता के एक उच्च स्तर के साथ एक सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था है। यह दुनिया की वस्तुओं का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक, और यूरोप में सबसे बड़ा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में जो भी है दुनिया की चौथी नाममात्र का सकल घरेलू उत्पाद और पीपीपी द्वारा पाँचवें एक करके सबसे बड़ा। सेवा क्षेत्र की कुल सकल घरेलू उत्पाद (सूचना प्रौद्योगिकी सहित), उद्योग 28% के लगभग 71%, और कृषि १% योगदान देता है। बेरोजगारी यूरोस्टेट द्वारा प्रकाशित दर जनवरी 2015, जो सभी 28 यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों की सबसे कम दर है में 4.7% के बराबर है। 7.1% के साथ जर्मनी भी यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के सबसे युवा बेरोजगारी दर है। ओईसीडी जर्मनी के अनुसार विश्व में सबसे अधिक श्रम उत्पादकता के स्तर में से एक है। जर्मनी यूरोपीय एकल बाजार जो अधिक से अधिक 508 मिलियन उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है का हिस्सा है। कई घरेलू वाणिज्यिक नीतियों यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्यों के बीच और यूरोपीय संघ के कानून द्वारा समझौतों से निर्धारित होते हैं। जर्मनी 2002 मेंम यूरोपीhjhjhjghjgh शुरू यह यूरोजोन का एक सदस्य जो चारों ओर 338 मिलियन नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी मौद्रिक नीति यूरोपीय सेंट्रल बैंक, जो फ्रैंकफर्ट, महाद्वीपीय यूरोप के वित्तीय केंद्र में मुख्यालय है द्वारा निर्धारित है। आधुनिक कार के लिए घर होने के नाते, जर्मनी में मोटर वाहन उद्योग के सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी और दुनिया में अभिनव से एक है, के रूप में माना जाता है और उत्पादन से चौथा सबसे बड़ा है। जर्मनी के शीर्ष 10 निर्यात वाहन, मशीनरी, रासायनिक वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, बिजली के उपकरणों, दवाइयों, परिवहन उपकरण, मूल धातुओं, खाद्य उत्पादों, और रबर और प्लास्टिक हैं। भाषा जर्मनी में सरकारी और प्रमुख बोली जाने वाली भाषा जर्मन भाषा (जर्मन : deutsch डॉइच्) है। यह 24 अधिकारी और यूरोपीय संघ का काम कर रहे भाषाओं में से एक, और यूरोपीय आयोग के तीन कार्य भाषाओं में से एक है। जर्मन लगभग १०० मिलियन देशी वक्ताओं के साथ, यूरोपीय संघ में सबसे व्यापक रूप से बोली पहली भाषा है। जर्मनी में मान्यता प्राप्त मूल निवासी अल्पसंख्यक भाषाओं, डेनिश, निचला जर्मन हैं सॉर्बियन, रोमानी, और फ़्रिसियाई; वे आधिकारिक तौर पर क्षेत्रीय या अल्पसंख्यक भाषाओं के यूरोपीय चार्टर द्वारा संरक्षित हैं। सबसे अधिक इस्तेमाल किया आप्रवासी भाषाओं, तुर्की, कुर्द हैं पॉलिश, बाल्कन भाषाओं, और रूसी। जर्मनी के आम तौर पर बहुभाषी हैं। जर्मन नागरिकों के 67% से कम से कम एक विदेशी भाषा और कम से कम दो में 27% में संवाद करने में सक्षम होने का दावा स्टैंडर्ड जर्मन एक पश्चिम जर्मन भाषा है और बारीकी से संबंधित है और निचला जर्मन, डच, फ़्रिसियाई और अंग्रेजी भाषाओं के साथ वर्गीकृत किया गया है। एक हद तक कम करने के लिए, यह भी पूर्व युरोपीय (विलुप्त) और स्कैंडिनेवियाई भाषाएँ से संबंधित है। अधिकांश जर्मन शब्दावली भारोपीय भाषा परिवार के जर्मनिक शाखा से प्राप्त होता है। शब्दों का महत्वपूर्ण अल्पसंख्यकों एक छोटे (Denglisch के रूप में जाना जाता है) फ्रेंच और सबसे हाल ही में अंग्रेजी से राशि के साथ, लैटिन और ग्रीक से निकाली गई है। जर्मन को लैटिन वर्णमाला का उपयोग कर लिखा गया है। जर्मन बोलियों, पारंपरिक स्थानीय किस्मों वापस युरोपीय जनजाति का पता लगाया है, उनके शब्दकोष, स्वर विज्ञान, और वाक्य रचना द्वारा मानक जर्मन की किस्मों से प्रतिष्ठित हैं। धर्म 1871 में इसकी नींव के बाद जर्मनी में किया गया है के बारे में दो तिहाई प्रोटेस्टेंट और एक तिहाई रोमन कैथोलिक, एक उल्लेखनीय यहूदी अल्पसंख्यक के साथ। अन्य धर्मों के राज्य में ही अस्तित्व में है, लेकिन एक जनसांख्यिकीय महत्व और इन तीन इकबालिया की सांस्कृतिक प्रभाव हासिल कभी नहीं। जर्मनी लगभग प्रलय के दौरान अपने यहूदी अल्पसंख्यक खो दिया है और देश के धार्मिक मेकअप धीरे-धीरे साथ पश्चिम जर्मनी अधिक धार्मिक विविध बनने आप्रवास के माध्यम से और पूर्वी जर्मनी राज्य की नीतियों के माध्यम से भारी अधार्मिक बनने के बाद 1945 के दशकों में बदल दिया है। यह 1990 में जर्मन एकीकरण के बाद में विविधता लाने के लिए जारी 2011 की जनगणना के अनुसार जर्मन, ईसाई कुल जनसंख्या का 66.8% का दावा, जर्मनी में सबसे बड़ा धर्म है। पूरी आबादी के सापेक्ष, 31.7% प्रोटेस्टेंट के रूप में खुद को घोषित जर्मनी में इंजील चर्च (EKD) (30.8%) और मुक्त चर्चों के सदस्यों सहित: (जर्मन Evangelische Freikirchen) (0.9%) और 31.2% रोमन के रूप में खुद को घोषित कैथोलिक। रूढ़िवादी विश्वासियों, 1.3% का गठन किया है, जबकि यहूदियों-0.1%। अन्य धर्मों 2.7% के लिए जिम्मेदार है। 2014 में, कैथोलिक चर्च में 23.9 लाख सदस्य (जनसंख्या का 29.5%) और के लिए 22.6 मिलियन (जनसंख्या का 27.9%) इंजील चर्च के लिए जिम्मेदार है। दोनों बड़े चर्चों हाल के वर्षों में अनुयायियों की महत्वपूर्ण संख्या को खो दिया है। भौगोलिक दृष्टि से, प्रोटेस्टेंट देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी भागों में केंद्रित है। इनमें से ज्यादातर EKD, जो लूथरन, सुधार और वापस 1817 रोमन कैथोलिक के प्रशिया संघ के लिए डेटिंग दक्षिण और पश्चिम में केंद्रित है दोनों परंपराओं का प्रशासनिक या इकबालिया यूनियनों शामिल के सदस्य हैं। 2011 में जर्मनी के 33% विशेष राज्य का दर्जा के साथ आधिकारिक तौर पर मान्यता धार्मिक संगठनों के सदस्य नहीं थे। जर्मनी में अधर्म पूर्व पूर्वी जर्मनी और मुख्य महानगरीय क्षेत्रों में सबसे मजबूत है। इस्लाम देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। 2011 की जनगणना में, जर्मनी के 1.9% के लिए खुद को घोषित मुसलमानों किया जाना है। और हाल ही में अनुमान लगता है, वहाँ 2.1 और जर्मनी में रहने वाले 4 लाख मुसलमानों के बीच हैं। मुसलमानों में से अधिकांश सुन्नी और Alevites तुर्की से हैं, लेकिन शिया, Ahmadiyyas और अन्य संप्रदायों की एक छोटी संख्या में हैं। अन्य जर्मनी की आबादी के कम से कम एक प्रतिशत शामिल धर्मों 250,000 अनुयायियों (लगभग 0.3%) और कुछ 100,000 अनुयायियों (0.1%) के साथ हिंदू धर्म के साथ बौद्ध धर्म हैं। जर्मनी में अन्य सभी धार्मिक समुदायों की तुलना में कम 50,000 अनुयायियों प्रत्येक है। विज्ञान thumb|हीडलबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी के सबसे पुराने विश्वविद्यालय जर्मनी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए किया गया है , विकास के प्रयासों की अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है। नोबेल पुरस्कार से 107 जर्मन पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया गया है। यह विज्ञान और इंजीनियरिंग (31%), दक्षिण कोरिया के बाद में स्नातकों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या पैदा करता है। 20 वीं सदी की शुरुआत में, जर्मन पुरस्कार विजेताओं किसी भी अन्य देश के उन लोगों, खासकर विज्ञान (फिजिक्स, केमिस्ट्री, और फिजियोलॉजी या चिकित्सा) की तुलना में अधिक पुरस्कार के लिए किया था। 20 वीं सदी से पहले उल्लेखनीय जर्मन भौतिकविदों हर्मन वॉन Helmholtz, यूसुफ वॉन Fraunhofer और गेब्रियल डैनियल फेरनहाइट, दूसरों के बीच में शामिल हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्रमश: 1905 और 1915 में प्रकाश और गुरुत्वाकर्षण के लिए सापेक्षता सिद्धांतों की शुरुआत की। मैक्स प्लैंक के साथ उन्होंने क्वांटम यांत्रिकी की शुरूआत की, जिसमें वर्नर हाइजेनबर्ग और अधिकतम जन्मे बाद में प्रमुख योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विल्हेम रॉन्टगन की खोज की एक्स रे। ओटो हैन, Radiochemistry और पता चला कि परमाणु विखंडन के क्षेत्र में एक अग्रणी था, जबकि फर्डिनेंड कोहन और रॉबर्ट कॉख सूक्ष्म जीव विज्ञान के संस्थापकों में थे। कई गणितज्ञों जर्मनी में पैदा हुए थे, कार्ल फ्रेडरिक गॉस, डेविड हिल्बर्ट, बर्नहार्ड Riemann, गोटफ्राइड लीबनीज, कार्ल Weierstrass, हरमन Weyl और फेलिक्स Klein भी शामिल है। जर्मनी में कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक और इंजीनियर, हंस गीजर, गीजर काउंटर के निर्माता सहित के घर गई है; और कोनराड झूस, जो पहली बार पूरी तरह से स्वचालित डिजिटल कंप्यूटर का निर्माण किया। इस तरह के जर्मन वैज्ञानिक, इंजीनियर और के रूप में गिनती फर्डिनेंड वॉन टसेपेल्लिन उद्योगपतियों, ओटो Lilienthal, Gottlieb डेमलर, रुडोल्फ डीजल, ह्यूगो Junkers और कार्ल बेंज आकार आधुनिक मोटर वाहन और हवाई परिवहन प्रौद्योगिकी में मदद की। जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) की तरह जर्मन संस्थानों ईएसए के लिए सबसे बड़ा योगदान कर रहे हैं। एयरोस्पेस इंजीनियर Wernher वॉन ब्राउन Peenemünde में पहला अंतरिक्ष रॉकेट विकसित की है और बाद में नासा के एक प्रमुख सदस्य थे और शनि वी मून रॉकेट विकसित की है। विद्युत चुम्बकीय विकिरण के क्षेत्र में हेनरिक रुडोल्फ हर्ट्ज के काम आधुनिक दूरसंचार के विकास के लिए निर्णायक था। जर्मनी में अनुसंधान संस्थानों के मैक्स प्लैंक सोसायटी, Helmholtz एसोसिएशन और Fraunhofer सोसायटी शामिल हैं। ग्रैफ्स्वाल्ड में Wendelstein 7 एक्स उदाहरण के लिए संलयन ऊर्जा के अनुसंधान के क्षेत्र में एक सुविधा होस्ट करता है। गाटफ्रीड लैबनिट्ज़ पुरस्कार दस वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों हर साल के लिए प्रदान किया जाता है। लाख € 2.5 पुरस्कार प्रति की एक अधिकतम के साथ यह दुनिया में सबसे ज्यादा संपन्न अनुसंधान पुरस्कार में से एक है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें जर्मनी का इतिहास जर्मनी का एकीकरण बाहारी कडियाँ यूरोप का 'सुपर पावर' जर्मनी जर्मनी: दो विश्वयुद्ध में मिली हार की जिल्ल्त, फिर भी आर्थिक महाशक्ति बन गया यह देश जर्मनी का इतिहास और महत्वपूर्ण जानकारी https://web.archive.org/web/20070206060037/http://www.tatsachen-ueber-deutschland.de/en/ https://web.archive.org/web/20070204235121/http://www.handbuch-deutschland.de/book_en.html https://web.archive.org/web/20070609145257/http://www.destatis.de/e_home.htm श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:जर्मनी श्रेणी:जर्मन-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:संघीय गणराज्य
यूरोप
https://hi.wikipedia.org/wiki/यूरोप
यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पूर्व में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के 10,180,000 वर्ग किलोमीटर (3,930,000 वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग 6.8% है। यूरोप के 50 देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, 73.1 करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग 11% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), 2050 तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर 7% पर आ सकता है। 1900 में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था।[संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यूरोप में कुल 44 देश हैं। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने 16 वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद. 16 वीं और 20 वीं सदी के बीच विभिन्न समयों पर, दोनो अमेरिका, अफ्रीका, ओशिआनिया और एशिया के बड़े भूभाग यूरोपीय देशों के नियंत्रित में थे। दोनों विश्व युद्धों की शुरुआत मध्य यूरोप में हुई थी, जिनके कारण 20 वीं शताब्दी में विश्व मामलों में यूरोपीय प्रभुत्व में गिरावट आई और संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के रूप में दो नये शक्ति के केन्द्रों का उदय हुआ। शीत युद्ध के दौरान यूरोप पश्चिम में नाटो के और पूर्व में वारसा संधि के द्वारा विभाजित हो गया। यूरोपीय एकीकरण के प्रयासों से पश्चिमी यूरोप में यूरोपीय परिषद और यूरोपीय संघ का गठन हुआ और यह दोनों संगठन 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद से पूर्व की ओर अपने प्रभुत्व का विस्तार कर रहे यूरोप का इतिहास यूरोप में मानव ईसापूर्व 35,000 के आसपास आया। ग्रीक (यूनानी) तथा लातिनी () राज्यों की स्थापना प्रथम सहस्त्राब्दी के पूर्वार्ध में हुई। इन दोनों संस्कृतियों ने आधुनिक य़ूरोप की संस्कृति को बहुत प्रभावित किया है। ईसापूर्व 480 के आसपास य़ूनान पर फ़ारसियों का आक्रमण हुआ जिसमें यवनों को बहुधा पीछे हटना पड़ा। 330 ईसापूर्व में सिकन्दर ने फारसी साम्राज्य को जीत लिया। 146 ई.पू. में यूनानी प्रायद्वीप (द्वीपों को छोड़कर) रोमन प्रोटेक्टोरेट का भाग बन गया। यूनान का अन्तिम पतन 88 ई.पू में हुआ जब पोन्टस के मिथ्रिडेट्स षष्ठ नामक राजा ने रोम के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जब वह रोमन जनरल लुसियस कॉर्नेलियस सुला द्वारा यूनान से बाहर खदेड़ा गया तब यूनान पर पुनः रोम का अधिकार हो गया और यूनानी नगर फिर कभी इससे उबर न सके। सन् 27 ईसापूर्व में रोमन गणतंत्र समाप्त हो गया और रोमन साम्राज्य की स्थापना हुई। सन् 313 में कांस्टेंटाइन ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया और यह धर्म रोमन साम्राज्य का राजधर्म बन गया। पाँचवीं सदी तक आते आते रोमन साम्राज्य कमजोर हो चला और पूर्वी रोमन साम्राज्य पंद्रहवीं सदी तक इस्तांबुल में बना रहा। इस दौरान पूर्वी रोमन साम्राज्यों को अरबों के आक्रमण का सामना करना पड़ा जिसमें उन्हें अपने प्रदेश अरबों को देने पड़े। सन् 1453 में इस्तांबुल के पतन के बाद यूरोप में नए जनमानस का विकास हुआ जो धार्मिक बंधनों से ऊपर उठना चाहता था। इस घटना को पुनर्जागरण (फ़्रेंच में रेनेसाँ) कहते हैं। पुनर्जागरण ने लोगों को पारम्परिक विचारों को त्याग व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक तथ्यों पर विश्वास करने पर जोर दिया। इस काल में भारत तथा अमेरिका जैसे देशों के समुद्री मार्ग की खोज हुई। सोलहवीं सदी में पुर्तगाली तथा डच नाविक दुनिया के देशों के सामुद्रिक रास्तों पर वर्चस्व बनाए हुए थे। इसी समय पश्चिमी य़ूरोप में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हो गया था। सांस्कृतिक रूप से भी य़ूरोप बहुत आगे बढ़ चुका था। साहित्य तथा कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई थी। छपाई की खोज के बाद पुस्तकों से ज्ञानसंचार त्वरित गति से बढ़ गया था। सन् 1781 में फ्रांस की राज्यक्रांति हुई जिसने पूरे यूरोप को प्रभावित किया। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, जनभागीदारी तथा उदारता को बल मिला था। रूसी साम्राज्य धीरे धीरे विस्तृत होने लगा था। पर इसका विस्तार मुख्यतः एशिया में अपने दक्षिण की तरफ़ हो रहा था। इस समय ब्रिटेन तथा फ्रांस अपने नौसेना की तकनीकी प्रगति के कारण डचो तथा पुर्तगालियों से आगे निकल गए। पुर्तगाल पर स्पेन का अधिकार हो गया और पुर्तगाली उपनिवेशों को अंग्रेजों तथा फ्रांसिसियों ने अधिकार कर लिया। रूसी सर्फराज्य का पतन 1761 में हुआ। बाल्कन के प्रदेश उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) से स्वतंत्र होते गए। 1918 तथा 1945 में दो विश्व युद्ध हुए। दोनों में जर्मनी की पराजय हुई। इसके बाद विश्व शीतयुद्ध के दौर से गुजरा। अमेरिका तथा रूस दो महाशक्ति बनकर उभरे। प्रायः पूर्वी य़ूरोप के देश रूस के साथ रहे जबकि पश्चिमी य़ूरोप के देश अमेरिका के। जर्मनी का विभाजन हो गया। सन् 1951 में रूस ने अपने कॉस्मोनॉट यूरी गगारिन को अंतरिक्ष में भेजा। 1969 में अमेरिका ने सफलतापूर्वक मानव को चन्द्रमा की सतह तक पहुँचाने का दावा किया। हथियारों की होड़ बढ़ती गई और अंततः अमेरिका आगे निकल गया। 1989 में जर्मनी का एकीकरण हुआ। 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। रूस सबसे बड़ा परवर्ती राज्य बना। सन् 2007 में यूरोपीय संघ की स्थापना हुई। भूगोल यूरोप में दो पर्वतीय भाग के बीच एक विशाल मैदान है। यूरोप के सबसे बड़े शहर: जलवायु thumb|right|280px|यूरोप का कोप्पेन मानचित्र यूरोप मुख्यतः शीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में से है। यूरोप की जलवायु गल्फ स्ट्रीम नामक इस समुद्री गर्म जलधारा के प्रभाव के कारण विश्व भर में एक ही अक्षांश पर स्थित अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम विषम है। गल्फ स्ट्रीम यूरोप की जलवायु गर्म और नम बनाता है। गल्फ स्ट्रीम न केवल यूरोप के सागर तट को तुलनात्मक रूप से गर्म रखता है बल्कि अटलांटिक महासागर से महाद्वीप की ओर चलने वाली प्रचलित पश्चिमी हवाओं को भी गर्म करता है, इसलिए नेपल्स का साल भर का औसत तापमान १६° सेल्सियस (६०.८°F) है, जबकि लगभग उसी ऊँचाई पर स्थित न्यूयॉर्क सिटी का औसत तापमान केवल १२° सेल्सियस (में ५३.६°F) ही रहता है। प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव frame|यूरोप और आसपास के क्षेत्रों के बायोम: तापमान एवं वर्षा में अन्तर मिलने के कारण यूरोप महाद्वीप की प्राकृतिक वनस्पति में भी काफी अन्तर मिलता है। यूरोप महाद्वीप के उत्तर के आर्कटिक महासागर के तटीय भाग में कठोर शीत के कारण भूमि हिमाच्छादित रहती है। अतः वनस्पति का प्रायः अभाव रहता है। इस भाग की मुख्य वनस्पति काई एवं लाइकेन है। यहाँ गर्मी में बर्फ पिघलने पर सुन्दर-सुन्दर फूलों वाले पौधे उगते हैं। जो अल्पकाल के लिए अपनी छटा दिखाकर समाप्त हो जाते हैं। जीव-जन्तुओं में ध्रुवीय भालू, रेंडियर, लोमड़ी तथा पानी में सील एवं व्हेल पाए जाते हैं। टुण्ड्रा प्रदेश के दक्षिणी भाग नार्वे, स्वीडन, फ़िनलैंड एवं रूस में नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वन पाए जाते हैं जिन्हे टैगा कहते हैं। यहाँ के प्रमुख वृक्ष चीड़, स्प्रूस, सिलवर, फर, बर्च, बलूत आदि हैं। इन वनों में भालू, भेड़िया एवं मिंक आदि पशु पाए जाते हैं। टैगा प्रदेश के दक्षिण में कम वर्षा होती है अतः यहाँ शीतोष्ण घास के मैदान मिलते हैं जिन्हें स्टेपीज कहा जाता है। यह मैदान दक्षिणी रूस, रूमानिया एवं हंगरी के डेन्यूब प्रदेश में विस्तृत है। इस घास प्रदेश में घास खाने वाले जानवर जैसे घोड़ा, बारहसिंगा एवं घास में रेंगने वाले जीव पाए जाते हैं। दक्षिणी यूरोप के भूमध्य सागरीय प्रदेश में जहाँ भूमध्यसागरीय जलवायु पाइ जाती है वहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन मिलते हैं। यहाँ बलूत, जैतून, सीडार, साइप्रस, अखरोट, बादाम, संतरा, अंजीर एवं अंगूर जैसे फलों के वृक्ष खूब पैदा होते हैं। उत्तरी-पश्चिमी मध्य यूरोप में समशीतोष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले पतझड़ के वन पाए जाते हैं। कठोर शीत से सुरक्षा के लिए यहाँ के वृक्ष जाड़े के प्रारम्भ में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। ऐसे वृक्षों में बलूत, ऐश, बीच, बर्च, एल्म, मैपिल, चेस्टनट और अखरोट मुख्य हैं। ऊँचें पर्वतीय भागों में अधिक ठण्डक के कारण नुकीली पत्ती वाले वन पाए जाते हैं। इनके प्रमुख वृक्ष चीड़, फर, सनोवर, लार्च, स्प्रूस, सीडार और हेमलाक हैं। इस प्रकार यूरोप में पतझड़ एवं नुकीली पत्ती के वृक्षों के मिश्रित वन पाए जाते हैं। यूराल एवं काकेशश पर्वत एशिया व यूरोप को अलग करते है। इटली को यूरोप का भारत कहा जाता है (कृषि प्रधान होने के कारण) । पो नदी को इटली की गंगा कहा जाता है। फिनलैंड को झीलों का देश कहा जाता है । इन्हें भी देखें यूरोपीय संघ श्रेणी:महाद्वीप
इरान
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उत्तर प्रदेश
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उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य और क्षेत्रफल की दृष्टि के आधार पर चौथा सबसे बड़ा राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और प्रयागराज न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, अलीगढ़, कानपुर, अंबेडकर नगर, झाँसी,ललितपुर, बरेली, मेरठ, बुलंदशहर वाराणसी, गोरखपुर, बस्ती, संत कबीर नगर मथुरा, मुरादाबाद, प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। 9 नवम्बर 2000 में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। गंगा प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना दोआब क्षेत्र में आता है। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य 2,38,566 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय प्रयागराज में है। कानपुर, आगरा; झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, जौनपुर, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, गाजीपुर, प्रयागराज, मेरठ, गोरखपुर, संत कबीर नगर,नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, संभल,गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, अयोध्या, बरेली, बदायूँ, बुलंदशहर, आज़मगढ़, मऊ, बलिया, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य नगर हैं। उत्तर प्रदेश के 5 सबसे बड़े महानगर लखनऊ, कानपुर, आगरा, गाजियाबाद, वाराणसी है और तेज़ी से जनसंख्या बड़ने वाले शहर लखनऊ और आगरा हैं इन दोनों शहरों की जनसंख्या पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है। इतिहास इसे जानने से पहले हम आपको बता दे की उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से भारत में सबसे बड़ा राज्य है, वही उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले है जिसमें 18 मंडल है। उत्तर प्रदेश का गठन 24 जनवरी 1950 को हुआ था। इसका सबसे बड़ा शहर कानपुर है। उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग ४००० वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक माना जाने वाला वाराणसी नगर यहीं पर स्थित है। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ का चौखंडी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, यदुवंश, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। 7वीं शताब्दी से 11वी शताब्दी तक कन्नौज गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। प्राचीन काल यह उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचन्द्र जी ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जनपद में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मन्दिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी (जन्म - राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज जी। उत्तर प्रदेश में कई देवियों के प्रसिद्ध मंदिर है जैसे मिर्जापुर का विंध्यवासिनी मंदिर, सहारनपुर का शाकंभरी देवी मंदिर जिसकी स्थापना ईसा पूर्व में हुई थी। सातवीं शताब्दी ई॰पू॰ के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में निर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई॰ तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। चन्द्रगुप्त प्रथम (शासनकाल लगभग 330-380 ई॰) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई॰) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई॰ में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे आदि शंकराचार्य थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। यहाँ एक तीर्थ स्थान मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले से पूर्व में 28 किलॉमीटर शुकरताल है मान्यता है कि यहाँ 5000 वर्ष पुराना वट व्रक्ष है जिसके नीचे सूत जी कथा सुनाई थी मध्यकाल इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आगमन हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगज़ेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मकबरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भारत के विभिन्न मत और इस्लाम के मेल ने कई नए मतों का विकास किया, जो भारत की विभिन्न जातियों के बीच साधारण सहमति प्रस्थापित करना चाहते थे। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई॰) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। सभी धर्मों के बीच अनिवार्य एकता की शिक्षा देने वाले कबीर ने उत्तर प्रदेश में मौजूद धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध अपनी लड़ाई केन्द्रित की। 18वीं शताब्दी में मुग़लों के पतन के साथ ही इस मिश्रित संस्कृति का केन्द्र दिल्ली से लखनऊ चला गया, जो अवध के नवाब के अन्तर्गत था और जहाँ साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण में कला, साहित्य, संगीत और काव्य का उत्कर्ष हुआ। आधुनिक काल लगभग 75 वर्ष की अवधि में उत्तर प्रदेश के क्षेत्र का ईस्ट इण्डिया कम्पनी (ब्रिटिश व्यापारिक कम्पनी) ने धीरे-धीरे अधिग्रहण किया। विभिन्न उत्तर भारतीय वंशों 1775, 1798 और 1801 में नवाबों, 1803 में सिन्धिया और 1816 में गोरखों से छीने गए प्रदेशों को पहले बंगाल प्रेसीडेंसी के अन्तर्गत रखा गया, लेकिन 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त (आरम्भ में आगरा प्रेसीडेंसी कहलाता था) गठित किया गया। 1856 ई. में कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा एवं अवध संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के समरूप) के नाम से इसे 1877 ई॰ में पश्चिमोत्तर प्रान्त में मिला लिया गया। 1902 ई॰ में इसका नाम बदलकर संयुक्त प्रान्त कर दिया गया। 1857-1859 ई. के बीच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध हुआ विद्रोह मुख्यत: पश्चिमोत्तर प्रान्त तक सीमित था। 10 मई 1857 ई. को मेरठ में सैनिकों के बीच भड़का विद्रोह कुछ ही महीनों में 25 से भी अधिक शहरों में फैल गया। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और ब्रिटिश सेना के छक्के छुड़ा दिए। 1858 ई॰ में विद्रोह के दमन के बाद पश्चिमोत्तर और शेष ब्रिटिश भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश ताज को हस्तान्तरित कर दिया गया। 1880 ई. के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ संयुक्त प्रान्त स्वतन्त्रता आन्दोलन में अग्रणी रहा। प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी राजनीतिक नेता दिए। 1922 में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए किया गया महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे संयुक्त प्रान्त में फैल गया, लेकिन चौरी चौरा गाँव (प्रान्त के पूर्वी भाग में) में हुई हिंसा के कारण महात्मा गांधी ने अस्थायी तौर पर आन्दोलन को रोक दिया। संयुक्त प्रान्त मुस्लिम लीग की राजनीति का भी केन्द्र रहा। ब्रिटिश काल के दौरान रेलवे, नहर और प्रान्त के भीतर ही संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ। अंग्रेज़ों ने यहाँ आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और यहाँ पर लखनऊ विश्वविद्यालय (1921 में स्थापित) जैसे विश्वविद्यालय व कई महाविद्यालय स्थापित किए। सन 1857 में अंग्रेजी फौज के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह एक वर्ष तक चला और अधिकतर उत्तर भारत में फ़ैल गया। इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। इस विद्रोह का प्रारम्भ मेरठ शहर में हुआ। इस का कारण अंग्रेजों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी से युक्त कारतूस देना बताया गया। इस संग्राम का एक प्रमुख कारण डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति भी थी। यह लड़ाई मुख्यतः दिल्ली,लखनऊ,कानपुर,झाँसी और बरेली में लड़ी गयी। इस लड़ाई में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हज़रत महल, बख्त खान, नाना साहेब, राजा बेनी माधव सिंह कोतवाल धनसिंह गुर्जर और अनेक देशभक्तों ने भाग लिया। सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूपी कहा गया। सन् 1920 में प्रदेश की राजधानी को प्रयागराज से लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय प्रयागराज ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक न्यायपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता पश्चात का काल 1947 में संयुक्त प्रान्त नव स्वतन्त्र भारतीय गणराज्य की एक प्रशासनिक इकाई बना। दो वर्ष बाद इसकी सीमा के अन्तर्गत स्थित, टिहरी गढ़वाल और रामपुर के स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में शामिल कर लिया गया। 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ ही 24 जनवरी सन 1950 को इस संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना। स्वतंत्रता के बाद से भारत में इस राज्य की प्रमुख भूमिका रही है। इसने देश को जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव, जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी (अल्पसंख्यक) दलों के नेता और भारतीय जनसंघ, बाद में भारतीय जनता पार्टी व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता दिए हैं। राज्य की राजनीति, हालाँकि विभाजनकारी रही है और कम ही मुख्यमंत्रियों ने पाँच वर्ष की अवधि पूरी की है। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर १९६३ में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश एवम भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनीं। सन २००० में पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर एक नये राज्य उत्तरांचल का गठन किया गया जिसका नाम बाद में बदल कर 2007 में उत्तराखण्ड कर दिया गया है। उत्तरांचल के प्रथम मुख्यमंत्री एन. डी. तिवारी बने जो अविभाजित उत्तर प्रदेश के भी मुख्यमंत्री रह चुके थे। राज्य का विभाजन उत्तर प्रदेश के गठन के तुरन्त बाद उत्तराखण्ड क्षेत्र (गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र द्वारा निर्मित) में समस्याएँ उठ खड़ी हुईं। इस क्षेत्र के लोगों को लगा कि, विशाल जनसंख्या और वृहद भौगोलिक विस्तार के कारण लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उनके हितों की देखरेख करना सम्भव नहीं है। बेरोज़गारी, गरीबी और सामान्य व्यवस्था व पीने के पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी और क्षेत्र के अपेक्षाकृत कम विकास ने लोगों को एक अलग राज्य की माँग करने पर विवश कर दिया। शुरू-शुरू में विरोध कमज़ोर था, लेकिन 1990 के दशक में इसने ज़ोर पकड़ा व आन्दोलन तब और भी उग्र हो गया, जब 2 अक्टूबर 1994 को मुज़फ़्फ़रनगर में इस आन्दोलन के एक प्रदर्शन में पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में 40 लोग मारे गए। अन्तत: नवम्बर, 2000 में उत्तर प्रदेश के पश्चिमोत्तर हिस्से से उत्तरांचल के नए राज्य का, जिसमें कुमाऊँ और गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र शामिल थे, गठन किया गया। भूगोल उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 9०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य है भूगोलीय तत्त्व उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्त्व इस प्रकार से हैं- भूमि - भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँ उत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना, बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली इन नदियों के उदगम स्थान भी भिन्न-भिन्न है, अतः इनके उदगम स्थलों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ गंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँ दक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैं झील उत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। यहाँ की अधिकांश झीलें कुमाऊँ क्षेत्र में हैं जो कि प्रमुखतः भूगर्भीय शक्तियों के द्वारा भूमि के धरातल में परिवर्तन हो जाने के परिणामस्वरूप निर्मित हुई हैं। नहर नहरों के वितरण एवं विस्तार की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का अग्रणीय स्थान है। यहाँ की कुल सिंचित भूमि का लगभग 30 प्रतिशत भाग नहरों के द्वारा सिंचित होता है। यहाँ की नहरें भारत की प्राचीनतम नहरों में से एक हैं। अपवाह यह राज्य उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वतमाला से उदगमित नदियों के द्वारा भली-भाँति अपवाहित है। गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, यमुना नदी, रामगंगा नदी, गोमती नदी, घाघरा नदी और गंडक नदी को हिमालय के हिम से लगातार पानी मिलता रहता है। विंध्य श्रेणी से निकलने वाली चंबल नदी, बेतवा नदी और केन नदी यमुना नदी में मिलने से पहले राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में बहती है। विंध्य श्रेणी से ही निकलने वाली सोन नदी राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती है और राज्य की सीमा से बाहर बिहार में गंगा नदी से मिलती है। मृदा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई भाग गंगा तंत्र की धीमी गति से बहने वाली नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी की गहरी परत से ढंका है। अत्यधिक उपजाऊ यह जलोढ़ मिट्टी कहीं रेतीली है, तो कहीं चिकनी दोमट। राज्य के दक्षिणी भाग की मिट्टी सामान्यतया मिश्रित लाल और काली या लाल से लेकर पीली है। राज्य के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में मृदा कंकरीली से लेकर उर्वर दोमट तक है, जो महीन रेत और ह्यूमस मिश्रित है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में घने जंगल हैं। जलवायु उत्तर प्रदेश की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है। राज्य में औसत तापमान जनवरी में 12.50 से 17.50 से. रहता है, जबकि मई-जून में यह 27.50 से 32.50 से. के बीच रहता है। पूर्व से (1,000 मिमी से 2,000 मिमी) पश्चिम (610 मिमी से 1,000 मिमी) की ओर वर्षा कम होती जाती है। राज्य में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है, जो जून से सितम्बर तक होती है। वर्षा के इन चार महीनों में होने के कारण बाढ़ एक आवर्ती समस्या है, जिससे ख़ासकर राज्य के पूर्वी हिस्से में फ़सल, जनजीवन व सम्पत्ति को भारी नुक़सान पहुँचता है। मानसून की लगातार विफलता के परिणामस्वरूप सूखा पड़ता है व फ़सल का नुक़सान होता है। वनस्पति एवं प्राणी जीवन राज्य में वन मुख्यत: दक्षिणी उच्चभूमि पर केन्द्रित हैं, जो ज़्यादातर झाड़ीदार हैं। विविध स्थलाकृति एवं जलवायु के कारण इस क्षेत्र का प्राणी जीवन समृद्ध है। इस क्षेत्र में शेर, तेंदुआ, हाथी, जंगली सूअर, घड़ियाल के साथ-साथ कबूतर, फ़ाख्ता, जंगली बत्तख़, तीतर, मोर, कठफोड़वा, नीलकंठ और बटेर पाए जाते हैं। कई प्रजातियाँ, जैसे-गंगा के मैदान से सिंह और तराई क्षेत्र से गैंडे अब विलुप्त हो चुके हैं। वन्य जीवन के संरक्षण के लिए सरकार ने 'चन्द्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य' और 'दुधवा अभयारण्य' सहित कई अभयारण्य स्थापित किए हैं। मण्डल, जनपद व नगर उत्तर प्रदेश को प्रशसनिक कारणों से 75 जिलों में बाँटा गया है, जो कि निम्नलिखित 18 मण्डलों में समूहबद्ध हैं - अंगूठाकार|350px|उत्तर प्रदेश के मण्डल 220x124px|thumb|right मण्डल जनपद मण्डल जनपद मण्डल जनपद आगरा मण्डल आगरा फ़िरोज़ाबाद मैनपुरी मथुराअलीगढ़ मण्डल अलीगढ़ एटा हाथरस कासगंजप्रयागराज मण्डल प्रयागराज फ़तेहपुर कौशाम्बी प्रतापगढ़आज़मगढ़ मण्डल आज़मगढ़ बलिया मऊबरेली मण्डल बदायूँ बरेली पीलीभीत शाहजहाँपुरबस्ती मण्डल बस्ती संत कबीर नगर सिद्धार्थनगरचित्रकूट मण्डल बांदा चित्रकूट हमीरपुर महोबादेवीपाटन मण्डल बहराइच बलरामपुर गोंडा श्रावस्तीअयोध्या मण्डल अंबेडकर नगर अमेठी बाराबंकी अयोध्या सुल्तानपुरगोरखपुर मण्डल देवरिया गोरखपुर कुशीनगर महाराजगंजझांसी मण्डल जालौन झांसी ललितपुरकानपुर मण्डल औरैया इटावा फ़र्रूख़ाबाद कन्नौज कानपुर देहात कानपुर नगरलखनऊ मण्डल हरदोइ लखीमपुर खेरी लखनऊ रायबरेली सीतापुर उन्नावमेरठ मण्डल बाग़पत बुलन्दशहर गौतम बुद्ध नगर ग़ाज़ियाबाद हापुड़ मेरठमिर्ज़ापुर मण्डल मिर्ज़ापुर संत रविदास नगर जिला सोनभद्रमुरादाबाद मण्डल अमरोहा बिजनौर मुरादाबाद रामपुर सम्भलसहारनपुर मण्डल मुज़फ़्फ़रनगर शामली सहारनपुरवाराणसी मण्डल चंदौली ग़ाज़ीपुर जौनपुर वाराणसी उत्तर प्रदेश में अब जिलों की संख्या 75 तथा मण्डल 18 है। भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रदेश, उत्तर प्रदेश है। और सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले महानगर लखनऊ कानपुर आगरा है उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक लोक सभा व राज्य सभा के सदस्‍य चुने जाते हैं। सीटों की संख्या लोक सभा में 80 और राज्य सभा में 31 है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक जिलों वाला प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं। उत्तर प्रदेश में स्थित प्रयागराज उच्‍च न्‍यायालय एशिया का सबसे बड़ा उच्‍च न्‍यायालय है। उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला, देश का एक मात्र ऐसा जिला है, जिसकी सीमाएँ चार प्रदेशों को छूती हैं। आवासीन रचना राज्य की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण आवासों की विशेषताएँ हैं- राज्य के पश्चिमी हिस्से में पाए जाने वाले घने बसे हुए गाँव, पूर्वी क्षेत्र में पाए जाने वाले छोटे गाँव और मध्य क्षेत्र में दोनों का समूह होता है, जिसकी छत फूस या मिट्टी के खपड़ों से बनी होती है। इन मकानों में हालाँकि आधुनिक जीवन की बहुत कम सुविधाएँ हैं, लेकिन शहरों के पास बसे कुछ गाँवों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। सीमेण्ट से बने घर, पक्की सड़कें, बिजली, रेडियो, टेलीविजन जैसी उपभोक्ता वस्तुएँ पारम्परिक ग्रामीण जीवन को बदल रही हैं। शहरी जनसंख्या का आधे से अधिक हिस्सा एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में रहता है। लखनऊ, वाराणसी (बनारस), आगरा, कानपुर, मेरठ, गोरखपुर, और प्रयागराज उत्तर प्रदेश के सात सबसे बड़े नगर हैं। कानपुर उत्तर प्रदेश के मध्य क्षेत्र में स्थित प्रमुख औद्योगिक शहर है। कानपुर के पूर्वोत्तर में 82 किलोमीटर की दूरी पर राज्य की राजधानी लखनऊ स्थित है। हिन्दुओं का सर्वाधिक पवित्र शहर अयोध्या (135 किलोमीटर)और वाराणसी विश्व के प्राचीनतम सतत आवासीय शहरों में से एक है। एक अन्य पवित्र शहर प्रयागराज गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर स्थित है। राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित आगरा में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा ताजमहल स्थित है। यह भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। जनसांख्यिकी अंगूठाकार|उत्तर प्रदेश विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाली उप राष्ट्रीय इकाई है। लाल क्षेत्र की आबादी राज्य से कम है। उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। १ मार्च २०११ को १९,९५,८१,४७७ लोगों के साथ, यह विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाली उप राष्ट्रीय इकाई है। विश्व में केवल पाँच राष्ट्रों चीन, स्वयं भारत, सं॰रा॰अमेरिका, इण्डोनेशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। भारत की कुल जनसंख्या में १६.२% लोग उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। १९९१ से २००१ तक राज्य की जनसंख्या में २६% से अधिक की वृद्धि हुई। राज्य का जनसंख्या घनत्व ८२८ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो इसे देश के सबसे सघन जनसंख्या वाले राज्यों में से एक बनाता है। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की जनसंख्या सबसे अधिक है जबकि अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या के १ प्रतिशत से भी कम है। २०११ में ९१२ महिलाओं प्रति १००० पुरुष का राज्य का लिंगानुपात, ९४३ के राष्ट्रीय आंकड़े से कम था। राज्य की २००१-२०११ की दशकीय विकास दर (उत्तराखण्ड सहित) २०.१% थी, जो १७.६४% की राष्ट्रीय दर से अधिक थी। उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। २०१६ में जारी विश्व बैंक के एक आलेख के अनुसार, राज्य में गरीबी घटने की गति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में धीमी रही है। वर्ष २०११-१२ के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुमानों के अनुसार उत्तर प्रदेश में ५.९ करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, जो भारत के किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक हैं। विशेष रूप से राज्य के मध्य और पूर्वी जिलों में गरीबी का स्तर बहुत अधिक है। राज्य खपत असमानता का भी अनुभव कर रहा है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार की ७ जनवरी २०२० को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य की प्रति व्यक्ति आय ₹८,००० (यूएस$११०) प्रति वर्ष से भी कम है। २०११ की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश भारत में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जहां हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की संख्या सबसे अधिक है। २०११ में राज्य की कुल जनसंख्या में से हिन्दू ७९.७%, मुसलमान १९.३%, सिख ०.३%, ईसाई ०.२%, जैन ०.१%, बौद्ध ०.१% और अन्य ०.३% थे। २०११ की जनगणना में राज्य की साक्षरता दर ६७.७% थी, जो राष्ट्रीय औसत ७४% से कम थी। पुरुषों में साक्षरता दर ७९% और महिलाओं में ५९% है। २००१ में उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर ५६% थी; ६७% पुरुष और ४३% महिलाएं साक्षर थी। केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) के सर्वेक्षण पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार २०१७ -१७ में उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर ७३% है, जो राष्ट्रीय औसत ७७.७% से कम है। इसी रिपोर्ट के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों में साक्षरता दर ८०.५% और महिलाओं में ६०.४% है, जबकि नगरीय क्षेत्रों में पुरुषों में साक्षरता दर ८६.८% और महिलाओं में ७४.९% है। हिन्दी उत्तर प्रदेश की आधिकारिक भाषा है और राज्य की अधिकांश जनसंख्या (८०.१६%) द्वारा बोली जाती है। लेकिन अधिकांश लोग क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं, जिन्हें जनगणना में हिंदी की बोलियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली खड़ी बोली या कौरवी तथा ब्रज क्षेत्र में बोली जाने वाली ब्रजभाषा, मध्य उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में बोली जाने वाली अवधी तथा कन्नौज के आस-पास बोली जाने वाली कन्नौजी, पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बोली जाने वाली भोजपुरी और दक्षिणी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली बुंदेली शामिल हैं। ५.४% जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली उर्दू को राज्य की अतिरिक्त आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। राज्य में बोली जाने वाली अन्य उल्लेखनीय भाषाओं में पंजाबी (०.३%) और बंगाली (०.१%) शामिल हैं। अपराध भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अनुसार, उत्तर प्रदेश मुठभेड़ और पुलिस-हिरासत में हुई मृत्युओं के मामले में राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है। २०१४ में देश में दर्ज कुल १५३० न्यायिक मृत्युओं में से ३६५ मृत्युएं राज्य में हुई थी। एनएचआरसी ने आगे कहा कि २०१६ में देश में दर्ज ३०,००० से अधिक हत्याओं में से, ४,८८९ मामले उत्तर प्रदेश से थे। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बरेली में पुलिस-हिरासत में सर्वाधिक २५ मृत्युऐं दर्ज की गई; आगरा (२१), इलाहाबाद (१९) और वाराणसी (९) इससे अगले स्थान पर थे। राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) के २०११ के आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भारत के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक अपराध होते हैं, लेकिन इसकी उच्च जनसंख्या के कारण, प्रति व्यक्ति अपराध की वास्तविक दर काफी कम है। सांप्रदायिक हिंसा की सर्वाधिक घटनाओं वाली राज्यों की सूची में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर बना हुआ है। गृह राज्य मंत्री के २०१४ के एक विश्लेषण के अनुसार भारत में सांप्रदायिक हिंसा की सभी घटनाओं में से २३% घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटित हुई। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा एकत्र एक शोध के अनुसार, उत्तर प्रदेश २७ वर्षों (१९९०-२०१७) की अवधि में अपनी मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग में सुधार करने में विफल रहा है। १९९० से २०१७ तक भारतीय राज्यों के लिए उप-राष्ट्रीय मानव विकास सूचकांक के आंकड़ों के आधार पर, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक का मूल्य समय के साथ १९९० में ०.३९ से बढ़कर २०१७ में ०.५९ हो गया है। राज्य के गृह विभाग द्वारा शासित उत्तर प्रदेश पुलिस दुनिया की सबसे बड़ी पुलिस बल है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में २०१५ में सड़क और रेल दुर्घटनाओं के कारण सर्वाधिक २३,२१९ मृत्युऐं हुईं। इसमें लापरवाही से वाहन चलाने के कारण हुई ८१०९ मृत्युऐं भी शामिल हैं। २००६ और २०१० के बीच राज्य में तीन आतंकवादी हमले हुए हैं, जिनमें एक ऐतिहासिक पवित्र स्थान, एक अदालत और एक मंदिर में विस्फोट शामिल हैं। २००६ का वाराणसी बम विस्फोट ७ मार्च २००६ को वाराणसी नगर में हुए बम विस्फोटों की एक शृंखला थी, जिसमें कम से कम २८ लोग मारे गए थे और १०१ अन्य घायल हो गए। २३ नवंबर २००७ की दोपहर में, २५ मिनट की अवधि के भीतर, लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद न्यायालयों में लगातार छह सिलसिलेवार विस्फोट हुए, जिसमें २८ लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। ये विस्फोट उत्तर प्रदेश पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के उन आतंकवादियों का भंडाफोड़ करने के एक सप्ताह बाद हुए, जिन्होंने राहुल गांधी का अपहरण करने की योजना बनाई थी। इंडियन मुजाहिदीन ने विस्फोट से पांच मिनट पहले टीवी स्टेशनों को भेजे गए एक ईमेल में इन विस्फोटों की जिम्मेदारी ली थी। एक और धमाका ७ दिसंबर २०१० को वाराणसी के शीतला घाट हुआ, जिसमें ३८ से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। अर्थव्यवस्था कृषि उत्तर प्रदेश में प्रमुख व्यवसाय है और राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निवल देशीय उत्पाद (एनएसडीपी) के सन्दर्भ में, उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसका अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹14.89 लाख करोड़ है, जो भारत के कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 8.4% है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 में देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 19% है। राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक विकास की उच्च दर का अनुभव किया है। राज्य में 2014-15 में खाद्यान्न उत्पादन 47,773.4 हजार टन था। गेहूँ राज्य की प्रमुख खाद्य फसल है, और गन्ना, जो मुख्यतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है, राज्य की मुख्य व्यावसायिक फसल है। भारत की लगभग ७०% चीनी उत्तर प्रदेश से आती है। गन्ना सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है क्योंकि राज्य देश में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, सितम्बर 2015 की वित्तीय तिमाही में भारत में कुल 2.83 करोड़ टन गन्ना उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था, जिसमें से 1.04 करोड़ टन महाराष्ट्र से और 73.5 लाख टन उत्तर प्रदेश से था। वर्तमान कीमतों पर घटक लागत पर निवल देशीय उत्पाद (2011-12 आधार) आँकड़े करोड़ में वर्ष निवल देशीय उत्पाद 2011-12 2,29,074 2012-13 2,56,699 2013-14 2,94,031 2014-15 3,32,352 2015-16 3,84,718 2016-17 4,53,0202017-1814,46,000 राज्य के अधिकतर उद्योग कानपुर क्षेत्र, पूर्वांचल की उपजाऊ भूमि और नोएडा क्षेत्र में स्थानीयकृत हैं। मुगलसराय में कई प्रमुख लोकोमोटिव संयन्त्र हैं। राज्य के प्रमुख विनिर्माण उत्पादों में इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, विद्युत उपकरण, केबल, स्टील, चमड़ा, कपड़ा, आभूषण, फ्रिगेट, ऑटोमोबाइल, रेलवे कोच और वैगन शामिल हैं। मेरठ भारत की खेल राजधानी होने के साथ-साथ ज्वैलरी हब भी है। उत्तर प्रदेश में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सर्वाधिक लघु-स्तरीय औद्योगिक इकाइयाँ स्थित हैं; कुल 23 लाख इकाइयों के 12 प्रतिशत से अधिक। 359 विनिर्माण समूहों के साथ सीमेण्ट उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों में शीर्ष क्षेत्र पर है। उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम (यूपीएफसी) की स्थापना 1954 में एसएफसी अधिनियम 1951 के तहत राज्य में लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों को विकसित करने के लिए की गई थी। यूपीएफसी अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाली वर्तमान इकाइयों तथा नयी इकाइयों को एकल खिड़की योजना के तहत कार्यशील पूँजी भी प्रदान करता था, किन्तु जुलाई 2012 में वित्तीय बाधाओं और राज्य सरकार के निर्देशों के कारण राज्य सरकार की योजनाओं को छोड़कर अन्य सभी ऋण गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया। राज्य में 2012 और 2016 के वर्षों के दौरान 25,081 करोड़ रुपये से अधिक का कुल निजी निवेश हुआ है। भारत में व्यापार करने में आसानी पर विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश को शीर्ष 10 राज्यों में, और उत्तर भारतीय राज्यों में पहले स्थान पर रखा गया था। उत्तर प्रदेश बजट दस्तावेज़ (2019-20) के अनुसार उत्तर प्रदेश पर कर्ज का बोझ जीएसडीपी का 29.8 प्रतिशत है। 2011 में राज्य का कुल वित्तीय ऋण ₹20 खरब (₹2,00,000 करोड़) था। कई वर्षों से लगातार प्रयासों के बावजूद भी उत्तर प्रदेश कभी दोहरे अंकों में आर्थिक विकास हासिल नहीं कर पाया है। 2017-18 में जीएसडीपी ७ प्रतिशत और 2018-19 में 6.5 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमएआई) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 2010-20 के दशक में उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 11.4 प्रतिशत अंक से बढ़ी, जो अप्रैल 2020 में 21.5 प्रतिशत आंकी गयी। उत्तर प्रदेश में राज्य से बाहर प्रवास करने वाले अप्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या है। प्रवास पर 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 1.44 करोड़ (14.7 %) लोग उत्तर प्रदेश से बाहर चले गए थे। पुरुषों में प्रवास का सबसे महत्वपूर्ण कारण कार्य/रोजगार जबकि महिलाओं के बीच प्रवास का प्रमुख कारण अप्रवासी पुरुषों से विवाह उद्धृत किया गया। 2009-10 में, अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, वानिकी और पर्यटन) के राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 44% के योगदान और द्वितीयक क्षेत्र (औद्योगिक और विनिर्माण) के 11.2% के योगदान की तुलना में तृतीयक क्षेत्र (सेवा उद्योग) 44.8% के योगदान के साथ राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ा योगदानकर्ता था। एमएसएमई क्षेत्र उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजनकर्ता है, पहला कृषि है जो राज्य भर में 92 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। ११वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दौरान, औसत सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) की वृद्धि दर 7.3% थी, जो देश के अन्य सभी राज्यों के औसत 15.5% से कम थी। ₹29,417 की राज्य की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी भी राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति जीएसडीपी ₹60.972 से कम थी। हालाँकि, राज्य की श्रम दक्षता 26 थी, जो 25 के राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। कपड़ा और चीनी शोधन, दोनों उत्तर प्रदेश में लम्बे समय से चले आ रहे उद्योग हैं, जो राज्य के कुल कारखाना श्रम के एक महत्वपूर्ण अनुपात को रोजगार देते हैं। राज्य के पर्यटन उद्योग से भी अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। राज्य के निर्यात में जूते, चमड़े के सामान और खेल के सामान शामिल हैं। राज्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने में भी सफल रहा है, जो ज्यादातर सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में आया है; नोएडा, कानपुर और लखनऊ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के लिए प्रमुख केन्द्र बन रहे हैं और अधिकांश प्रमुख कॉर्पोरेट, मीडिया और वित्तीय संस्थानों के मुख्यालय इन्हीं नगरों में हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित सोनभद्र जिले में बड़े पैमाने पर उद्योग हैं, और इसके दक्षिणी क्षेत्र को भारत की ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है। दूरसंचार नियामक, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, मई 2013 में उत्तर प्रदेश में देश में मोबाइल ग्राहकों की सबसे बड़ी संख्या थी; भारत के 86.16 करोड़ मोबाइल फोन कनेक्शनों में से कुल 12.16 करोड़ उत्तर प्रदेश में थे। नवंबर 2015 में शहरी विकास मन्त्रालय ने एक व्यापक विकास कार्यक्रम के लिए उत्तर प्रदेश के इकसठ शहरों का चयन किया, जिसे अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एण्ड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत मिशन) के रूप में जाना जाता है। शहरों में स्थानीय शहरी निकायों के बेहतर कामकाज के लिए एक योजना, सेवा स्तर सुधार योजना विकसित करने के लिए शहरों के लिए ₹260 अरब (₹26,000 करोड़) का पैकेज घोषित किया गया था। परिवहन अंगूठाकार|बाएँ|पूर्वांचल एक्सप्रेसवे लखनऊ को अयोध्या व आजमगढ़ होते हुए गाजीपुर से जोड़ता है। उत्तर प्रदेश का रेलवे नेटवर्क भारत में सबसे बड़ा है, परन्तु राज्य की समतल स्थलाकृति और सर्वाधिक जनसंख्या के बावजूद रेलवे घनत्व केवल छठा-उच्चतम है। २०११ तक, राज्य में ८,५४६ किमी (५,३१० मील) लम्बी रेल लाइनें थी। उत्तर मध्य रेलवे अंचल का मुख्यालय प्रयागराज में, और पूर्वोत्तर रेलवे अंचल का मुख्यालय गोरखपुर में है। इन अंचलीय मुख्यालयों के अतिरिक्त, लखनऊ और मुरादाबाद में उत्तर रेलवे अंचल के मंडलीय मुख्यालय स्थित हैं। भारत की दूसरी सबसे तेज शताब्दी ट्रेन लखनऊ स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस राज्य की राजधानी लखनऊ को भारतीय राजधानी नई दिल्ली से जोड़ती है जबकि कानपुर शताब्दी एक्सप्रेस, कानपुर को नई दिल्ली से जोड़ती है। नए जर्मन एलएचबी कोचों से युक्त यह भारत की पहली ट्रेन थी। प्रयागराज जंक्शन, आगरा कैंट, लखनऊ एनआर, गोरखपुर जंक्शन, कानपुर सेंट्रल, अयोध्या जंक्शन, मथुरा जंक्शन और वाराणसी जंक्शन भारतीय रेलवे की ५० विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशनों की सूची में शामिल हैं। राज्य में देश में एक विशाल और बहुविध परिवहन प्रणाली है, जिसके अंतर्गत देश का सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क भी है। उत्तर प्रदेश अपने नौ पड़ोसी राज्यों और भारत के लगभग सभी अन्य हिस्सों से राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कुल ४२ राष्ट्रीय राजमार्ग राज्य में हैं, जिनकी लंबाई ४,९४२ किमी (भारत में राजमार्गों की कुल लंबाई का ९.६%) है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना १९७२ में राज्य में सस्ती, विश्वसनीय और आरामदायक परिवहन सेवा प्रदान करने के लिए की गई थी, और यह पूरे देश में लाभ में चलने वाला एकमात्र राज्य परिवहन निगम है। राज्य के सभी नगर राज्य राजमार्गों से जुड़े हुए हैं, और सभी जनपद मुख्यालयों को फोर लेन सड़कों से जोड़ा जा रहा है जो राज्य के भीतर प्रमुख केंद्रों के बीच यातायात ले जाती हैं। इन्हीं में से एक है आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे, जो कि पुरानी भीड़ग्रस्त सड़कों पर वाहनों के यातायात को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईआईडीए) द्वारा निर्मित ३०२ किमी (१८८ मील) लम्बा नियंत्रित-पहुंच राजमार्ग है। यह एक्सप्रेसवे देश का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे है, जिसने लखनऊ और आगरा के बीच यात्रा के समय को ६ घंटे से घटाकर ३.३० घंटे कर दिया है। अन्य जिला सड़कें व ग्रामीण सड़कें ग्रामों को उनकी सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पहुँच प्रदान करती हैं और साथ ही कृषि उपज को आस-पास के बाजारों तक पहुँचाने के साधन भी प्रदान करती हैं। प्रमुख जिला सड़कें मुख्य सड़कों और ग्रामीण सड़कों को जोड़ने का एक द्वितीयक कार्य करती हैं। उत्तर प्रदेश में भारत में सबसे अधिक सड़क घनत्व (१,०२७ किमी प्रति १००० वर्ग किमी) और देश में सबसे बड़ा नगरीय-सड़क नेटवर्क (५०,७२१ किमी) है। राज्य में चार अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं – लखनऊ में स्थित चौधरी चरण सिंह अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, अयोध्या में स्थित अयोध्या विमानक्षेत्र वाराणसी में स्थित लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, कुशीनगर मैं स्थित कुशीनगर अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा विमानक्षेत्र। इसके अतिरिक्त आगरा, प्रयागराज, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर व बरेली में घरेलू विमानक्षेत्र हैं। लखनऊ विमानक्षेत्र नई दिल्ली में स्थित इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के बाद उत्तर भारत का दूसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है। इन सब के अलावा एक नया अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र ग्रेटर नोएडा के निकट स्थित जेवर में निर्माणाधीन हैं, जबकि फिरोजाबाद जिले के टुंडला के निकट ताज अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी प्रस्तावित है। लखनऊ मेट्रो ९ मार्च २०१९ से परिचालन में है, जबकि आगरा मेट्रो व कानपुर मेट्रो निर्माणाधीन हैं। राजधानी में अप्रवासियों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है और इस कारण परिवहन के सार्वजनिक साधनों में परिवर्तन पर जोर है। राज्य के आंतरिक परिवहन तंत्र में गंगा, यमुना व सरयू नदियों की अंतर्देशीय जल परिवहन व्यवस्था भी शामिल है। खेल अंगूठाकार|175px|'हॉकी का जादूगर' कहलाने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ था। उत्तर प्रदेश के पारंपरिक खेलों में कुश्ती, तैराकी, कबड्डी और स्थानीय पारंपरिक नियमों के अनुसार आधुनिक उपकरणों के बिना खेले जाने वाले ट्रैक-स्पोर्ट्स या जलक्रीड़ाऐं शामिल हैं, जो अब मुख्यतः मनोरंजन के लिए खेले जाते हैं। कुछ पारम्परिक खेल युद्धकौशल प्रदर्शित करने के लिए खेले जाते थे, जिनमें तलवार या पाटे का उपयोग होता है। संगठित संरक्षण और अपेक्षित सुविधाओं की कमी के कारण, ये खेल ज्यादातर व्यक्तियों के शौक या स्थानीय प्रतिस्पर्धी आयोजनों के रूप में जीवित रहते हैं। आधुनिक खेलों में, मैदानी हॉकी लोकप्रिय है और उत्तर प्रदेश ने भारत के कुछ बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों को जन्म दिया है, जिनमें ध्यानचंद और हाल ही में नितिन कुमार और ललित कुमार उपाध्याय शामिल हैं। अंगूठाकार|बाएँ|उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम का 'होम ग्राउंड' कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम है। हाल के समय में, राज्य में मैदानी हॉकी की तुलना में क्रिकेट अधिक लोकप्रिय हो गया है। उत्तर प्रदेश ने फरवरी २००६ में रणजी ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले में बंगाल को हराकर अपना पहला रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट जीता। राज्य से राष्ट्रीय टीम में भी नियमित रूप से तीन या चार खिलाड़ी होते ही हैं। कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम राज्य का सबसे पुराना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्रिकेट स्टेडियम है, जिसने भारत की कुछ प्रसिद्ध विजयें देखी है। यह उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम का 'होम ग्राउंड' भी है। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) का मुख्यालय भी कानपुर में ही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ५०,००० दर्शकों की क्षमता वाला एक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है। लगभग २०,००० दर्शकों की क्षमता वाला ग्रेटर नोएडा क्रिकेट स्टेडियम एक और नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है। ग्रेटर नोएडा में स्थित बुद्ध अन्तरराष्ट्रीय परिपथ पर ३० अक्टूबर २०११ को भारत की पहली 'फॉर्मूला वन' ग्रैण्ड प्रिक्स का आयोजन हुआ था। ५.१४ किलोमीटर (३.१९ मील) लम्बे इस परिपथ जो जर्मन वास्तुकार और रेसट्रैक डिजाइनर हरमन टिल्के द्वारा अन्य विश्व स्तरीय रेस परिपथों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए डिजाइन किया गया था। हालांकि, दर्शकों की अनुपस्थिति और सरकारी समर्थन की कमी के कारण रद्द होने से पहले यह केवल तीन बार ही आयोजित हो पायी। उत्तर प्रदेश सरकार ने फॉर्मूला वन को खेल का दर्जा न देकर मनोरंजन माना, और इस कारण इसके आयोजन एवं प्रतिभागियों पर अतिरिक्त कर लगाया गया था। शिक्षा अंगूठाकार|बाएँ|चित्रकूट में स्थित जराविवि विश्व में विकलांगों के लिए स्थापित सर्वप्रथम विशिष्टविश्वविद्यालय है। उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो वर्ष के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। अंगूठाकार|लखनऊ में स्थित केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान एक स्वायत्त बहुविषयक अनुसंधान संस्थान है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। १८८९ में स्थापित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान पशुचिकित्सा और संबद्ध विधाओं के क्षेत्र में एक उन्नत अनुसंधान सुविधा है। बड़ी संख्या में भारतीय विद्वानों ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षार्जन किया है। राज्य के भौगोलिक क्षेत्र में जन्म लेने, काम करने या अध्ययन करने वाले उल्लेखनीय विद्वानों में हरिवंश राय बच्चन, मोतीलाल नेहरू, हरीश चंद्र और इंदिरा गांधी शामिल हैं। पर्यटन अपनी समृद्ध और विविध स्थलाकृति, जीवंत संस्कृति, त्योहारों, स्मारकों एवं प्राचीन धार्मिक स्थलों व विहारों के कारण ७.१ करोड़ से अधिक घरेलू पर्यटकों के साथ उत्तर प्रदेश भारत के सभी राज्यों में घरेलू पर्यटकों के आगमन में प्रथम स्थान पर है। राज्य में तीन विश्व धरोहर स्थल भी हैं: ताजमहल, आगरा का किला और फतेहपुर सीकरी। उत्तर प्रदेश भारत में एक पसंदीदा पर्यटन स्थल है, मुख्यतः ताजमहल के कारण, जहाँ २०१८-१९ में लगभग ७९ लाख लोगों ने दौरा किया। यह पिछले वर्ष की तुलना में ६% अधिक था, जब यह संख्या ६४ लाख थी। स्मारक ने २०१८-१९ में टिकटों की बिक्री से लगभग ₹७८ करोड़ की कमाई की। पर्यटन उद्योग राज्य की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जो प्रतिवर्ष २१.६०% की दर से बढ़ रहा है। धार्मिक पर्यटन भी उत्तर प्रदेश पर्यटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि राज्य में कई हिन्दू मन्दिर हैं। हिन्दू धर्म के सात पवित्रतम नगरों (सप्त पुरियों) में से तीन (अयोध्या, मथुरा व वाराणसी) उत्तर प्रदेश में ही स्थित हैं। वाराणसी हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। घरेलू पर्यटक यहाँ आमतौर पर धार्मिक उद्देश्यों के लिए आते हैं, जबकि विदेशी पर्यटक गंगा नदी के घाटों पर घूमने के लिए जाते हैं। वृंदावन को वैष्णव सम्प्रदाय का एक पवित्र स्थान माना जाता है। भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध अयोध्या महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर राज्य भर में असंख्य धार्मिक स्थल व घाट हैं, जहाँ समय-समय पर मेलों का आयोजन होता रहता है। त्रिवेणी संगम पर लगने वाले माघ मेले में भाग लेने के लिए लाखों लोग इलाहाबाद में एकत्र होते हैं। यह उत्सव प्रत्येक १२वें वर्ष में बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है, जब इसे कुम्भ मेला कहा जाता है, और तब १ करोड़ से अधिक हिन्दू तीर्थयात्री इसमें सम्मिलित होने इलाहाबाद आते हैं। गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रान्ति के समय एक माह तक चलने वाला खिचड़ी मेला लगता है। विन्ध्याचल एक अन्य हिंदू तीर्थ स्थल है जहाँ विंध्यवासिनी देवी का मन्दिर स्थित है। उत्तर प्रदेश के बौद्ध आकर्षणों में कई स्तूप और मठ शामिल हैं। सारनाथ एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण नगर है, जहां गौतम बुद्ध ने ज्ञान-प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था और कुशीनगर वह स्थल है, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई थी; दोनों ही बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। इसके अतिरिक्त सारनाथ में स्थित अशोकस्तम्भ और अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष राष्ट्रीय महत्त्व की महत्वपूर्ण पुरातात्विक कलाकृतियाँ हैं। वाराणसी से ८० किमी की दूरी पर स्थित गाजीपुर ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल प्रेसीडेंसी के गवर्नर लॉर्ड कॉर्नवालिस के १८वीं शताब्दी के मकबरे के लिए जाना जाता है, जिसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है। राज्य में एक राष्ट्रीय उद्यान तथा २५ वन्यजीव अभयारण्य हैं। ओखला पक्षी अभयारण्य को ३०० से अधिक पक्षी प्रजातियों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में जाना जाता है, जिनमें से १६० पक्षी प्रजातियां प्रवासी हैं, जो तिब्बत, यूरोप व साइबेरिया से यात्रा करती हैं। एटा जिले में स्थित पटना पक्षी अभयारण्य भी एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। चिकित्सा सुविधाएँ उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक व निजी स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढाँचा विशाल है। यद्यपि पिछले समय में राज्य में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का एक विशाल नेटवर्क बनाया गया है, फिर भी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की माँग को पूरा करने के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है। १९९८ से २०१२-१३ तक १५ वर्षों के अंतराल में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में २५ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र, जो सरकार की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की अग्रिम पंक्ति हैं, में ८ प्रतिशत की कमी आई है। छोटे उप-केंद्र, सार्वजनिक संपर्क का पहला बिंदु, १९९० से २०१५ तक २५ वर्षों में २ प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़े हैं, जबकि इसी अवधि में जनसंख्या ५१ प्रतिशत से भी अधिक बढ़ी है। राज्य को स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी, स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत, निजी स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती संख्या और योजना की कमी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। 2017 तक उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों की संख्या क्रमशः 4442 (39104 बिस्तर) और 193 (37156 बिस्तर) है। उत्तर प्रदेश में एक नवजात शिशु के पड़ोसी राज्य बिहार की तुलना में चार वर्ष कम, हरियाणा की तुलना में पांच वर्ष कम और हिमाचल प्रदेश की तुलना में ७ वर्ष कम तक जीवित रहने की अपेक्षा होती है। उत्तर प्रदेश ने लगभग सभी संचारी और गैर-संचारी रोगों से होने वाली मृत्युओं के सबसे बड़े हिस्से में योगदान दिया, जिसमें टाइफाइड से होने वाली सभी मृत्युओं का 48 प्रतिशत (2014), कैंसर से होने वाली मृत्युओं में से 17 प्रतिशत, और तपेदिक से होने वाली मृत्युओं में 18 प्रतिशत (2015)शामिल है। उत्तर प्रदेश का मातृ मृत्यु अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है, प्रत्येक 1,00,000 जीवित जन्मों (2017) के लिए 258 मातृ मृत्यु दर, 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ न्यूनतम प्रसवपूर्व देखभाल तक पहुँचने में असमर्थ हैं। लगभग 42 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ (15 लाख से अधिक) घर पर ही बच्चों को जन्म देती हैं। उत्तर प्रदेश में घर पर होने वाले लगभग दो-तिहाई (61 प्रतिशत) प्रसव असुरक्षित हैं। राज्य में नवजात मृत्यु दर (एनएनएमआर) से लेकर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए उच्चतम बाल मृत्यु दर संकेतक हैं; प्रति 1,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 64 बच्चों की मृत्यु पाँच वर्ष की आयु से पहले हो जाती है; 35 बच्चे जन्म के पहले महीने के भीतर ही मर जाते हैं, जबकि 50 बच्चे जीवन का एक वर्ष भी पूरा नहीं कर पाते हैं। राज्य में ग्रामीण आबादी का एक तिहाई भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के मानदण्डों के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। कला एवं संस्कृति साहित्य हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। साहित्य और भारतीय रक्षा सेवायेँ, दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें उत्तर प्रदेश निवासी गर्व कर सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, मुँशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानन्दन पन्त, मैथिलीशरण गुप्त, सोहन लाल द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन, महादेवी वर्मा, राही मासूम रजा, अज्ञेय जैसे इतने महान कवि और लेखक हुए हैं उत्तर प्रदेश में कि पूरा पन्ना ही भर जाये। उर्दू साहित्य में भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है उत्तर प्रदेश का। फिराक़, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी, नज़ीर, वसीम बरेलवी, चकबस्त जैसे अनगिनत शायर उत्तर प्रदेश ही नहीं वरन देश की शान रहे हैं। हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही व्यापक रहा है और लुगदी साहित्य भी यहाँ खूब पढ़ा जाता है। संगीत शेख साहिल संगीत उत्तर प्रदेश के व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह तीन प्रकार में बांटा जा सकता है 1- पारम्परिक संगीत एवं लोक संगीत : यह संगीत और गीत पारम्परिक मौकों शादी विवाह, होली, त्योहारों आदि समय पर गाया जाता है 2- शास्त्रीय संगीत : उत्तर प्रदेश में उत्कृष्ट गायन और वादन की परम्परा रही है। 3- हिन्दी फ़िल्मी संगीत एवं भोजपुरी पॉप संगीत : इस प्रकार का संगीत उत्तर प्रदेश में सबसे लोकप्रिय। कथक कथक उत्तर प्रदेश का एक परिष्कृत शास्त्रीय नृत्य है जो कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ किया जाता है। कथक नाम 'कथा' शब्द से बना है, इस नृत्य में नर्तक किसी कहानी या संवाद को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करता है। कथक नृत्य का प्रारम्भ 6-7 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में हुआ था। प्राचीन समय में यह एक धार्मिक नृत्य हुआ करता था जिसमें नर्तक महाकाव्य गाते थे और अभिनय करते थे। 13 वी शताब्दी तक आते-आते कथक सौन्दर्यपरक हो गया तथा नृत्य में सूक्ष्म अभिनय एवं मुद्राओं पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। कथक में सूक्ष्म मुद्राओं के साथ ठुमरी गायन पर तबले और पखावज के साथ ताल मिलाते हुए नृत्य किया जाता है। कथक नृत्य के प्रमुख कलाकार पन्डित बिरजू महाराज हैं। फरी नृत्य, जांघिया नृत्य, पंवरिया नृत्य, कहरवा, जोगिरा, निर्गुन, कजरी, सोहर, चइता गायन उत्तर प्रदेश की लोकसंस्कृतियाँ हैं। लोकरंग सांस्कृतिक समिति इन संस्कृतियों संवर्द्धन, संरक्षण के लिए कार्यरत है। हस्त शिल्प फिरोजाबाद की चूड़ियाँ, सहारनपुर का काष्ठ शिल्प, पिलखुवा की हैण्ड ब्लाक प्रिण्ट की चादरें, वाराणसी की साड़ियाँ तथा रेशम व ज़री का काम, लखनऊ का कपड़ों पर चिकन की कढ़ाई का काम, रामपुर का पैचवर्क, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन औरंगाबाद का टेराकोटा, मेरठ की कैंची आदि। जौनपुर की बेनी साव की इमरती और मूली। मथुरा का पेडा। हिन्दी भाषा की जन्मस्थली उत्तर प्रदेश भारत की राजकीय भाषा हिन्दी की जन्मस्थली है। शताब्दियों के दौरान हिन्दी के कई स्थानीय स्वरूप विकसित हुए हैं। साहित्यिक हिन्दी ने 19वीं शताब्दी तक खड़ी बोली का वर्तमान स्वरूप (हिन्दुस्तानी) धारण नहीं किया था। वाराणसी के भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885 ई.) उन अग्रणी लेखकों में से थे, जिन्होंने हिन्दी के इस स्वरूप का इस्तेमाल साहित्यिक माध्यम के तौर पर किया था। सांस्कृतिक जीवन उत्तर प्रदेश हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का उदगम स्थल है। वैदिक साहित्य मन्त्र, ब्राह्मण, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, मनुस्मृति आदि धर्मशास्त्रौं, आदि महाकाव्य-वाल्मीकि रामायण, और महाभारत (जिसमें श्रीमद् भगवद्गीता शामिल है) अष्टादश पुराणों के उल्लेखनीय हिस्सों का मूल यहाँ के कई आश्रमों में जीवन्त है। बौद्ध-हिन्दू काल (लगभग 600 ई. पू.-1200 ई.) के ग्रन्थों व वास्तुशिल्प ने भारतीय सांस्कृतिक विरासत में बड़ा योगदान दिया है। 1947 के बाद से भारत सरकार का चिह्न मौर्य सम्राट अशोक के द्वारा बनवाए गए चार सिंह युक्त स्तम्भ (वाराणसी के निकट सारनाथ में स्थित) पर आधारित है। वास्तुशिल्प, चित्रकारी, संगीत, नृत्यकला और दो भाषाएँ (हिन्दी व उर्दू) मुग़ल काल के दौरान यहाँ पर फली-फूली। इस काल के चित्रों में सामान्यतः धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रन्थों का चित्रण है। यद्यपि साहित्य व संगीत का उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में किया गया है और माना जाता है कि गुप्त काल (लगभग 320-540) में संगीत समृद्ध हुआ। संगीत परम्परा का अधिकांश हिस्सा इस काल के दौरान उत्तर प्रदेश में विकसित हुआ। तानसेन व बैजू बावरा जैसे संगीतज्ञ मुग़ल शहंशाह अकबर के दरबार में थे, जो राज्य व समूचे देश में आज भी विख्यात हैं। भारतीय संगीत के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध वाद्य सितार (वीणा परिवार का तंतु वाद्य) और तबले का विकास इसी काल के दौरान इस क्षेत्र में हुआ। 18वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश में वृन्दावन व मथुरा के मन्दिरों में भक्तिपूर्ण नृत्य के तौर पर विकसित शास्त्रीय नृत्य शैली कथक उत्तरी भारत की शास्त्रीय नृत्य शैलियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के स्थानीय गीत व नृत्य भी हैं। सबसे प्रसिद्ध लोकगीत मौसमों पर आधारित हैं। त्योहार उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ समय समय पर सभी धर्मों के त्योहार मनाये जाते हैं- अयोध्या-रामनवमी मेला,राम विवाह,सावन झूला मेला, कार्तिक पूर्णिमा मेला प्रयागराज में प्रत्येक बारहवें वर्ष में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रयागराज में प्रत्येक 6 वर्ष बाद अर्द्ध कुंभ मेले का आयोजन भी किया जाता है। प्रयागराज में ही प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में माघ मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां बडी संख्या में लोग संगम में नहाते हैं। दीपावली पर चित्रकूट में दीपदान करने की विशेष मान्यता है। धनतेरस के दिन से शुरू होने वाले दीपमालिका मेले में शामिल होने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और पवित्र मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाते हैं। चित्रकूट भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। यह स्थान जितना शांत है उतना ही आकर्षक भी। प्रकृति और ईश्वर की अनुपम रचना के सुंदर और एक से बढ़कर एक दृश्य यहां देखने मिलते हैं। अन्य मेलों में मथुरा, वृन्दावन में अनेक पर्वों के मेले और झूला मेले लगते हैं, जिनमें प्रभु की प्रतिमाओं को सोने एवं चाँदी के झूलों में रखकर झुलाया जाता है। ये झूला मेले लगभग एक पखवाडे तक चलते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा नदी में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है और इसके लिए गढ़मुक्तेश्वर, सोरों शूकरक्षेत्र का मार्गशीर्ष मेला, राजघाट, बिठूर, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी में बडी संख्या में लोग एकत्र होते हैं। आगरा ज़िले के बटेश्वर कस्बे में पशुओं का प्रसिद्ध मेला लगता है। बाराबंकी ज़िले का देवा मेला मुस्लिम संत वारिस अली शाह के कारण काफ़ी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त यहाँ हिन्दू तथा मुस्लिमों के सभी प्रमुख त्योहारों को पूरे राज्य में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। राष्ट्रीय रामायण मेला इलाहाबाद जिले में गंगा नदी के तट पर श्रृंगवेरपुर में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक हर वर्ष आयोजित किया जाता है। यह वही स्थान है जहाँ त्रेतायुग में निषाद राज ने प्रभु श्रीराम को वनवास जाते समय गंगा नदी पार कराई। टिप्पणियाँ सन्दर्भ इन्हें भी देखें संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के लोकनृत्य उत्तर प्रदेश का इतिहास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के लोकसभा सदस्य Uttar Pradesh Scholarship बाहरी कड़ियाँ उत्तर प्रदेश सरकार का आधिकारिक जालस्थल उत्तर प्रदेश एक आईना (लाइव हिन्दुस्तान) उत्तर प्रदेश के बारे में जानें लोकरंग सांस्कृतिक समिति उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर (गूगल पुस्तक ; डॉ अशोक कुमार सिंह) यूपी पर्यटन श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:उत्तर प्रदेश श्रेणी:गूगल परियोजना
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केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2011 की जनगणना के आधार पर)। * यह यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व का प्रथम शिशु सौहार्द राज्य (Baby Friendly State) है। इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपना परशु समुद्र में फेंका जिसकी वजह से उस आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली और केरल अस्तित्व में आया। यहां 10वीं सदी ईसा पूर्व से मानव बसाव के प्रमाण मिले हैं। केरल शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में एकमत नहीं है। कहा जाता है कि "चेर - स्थल", 'कीचड़' और "अलम-प्रदेश" शब्दों के योग से चेरलम बना था, जो बाद में केरल बन गया। केरल शब्द का एक और अर्थ है : - वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो। समुद्र और पर्वत के संगम स्थान को भी केरल कहा जाता है। प्राचीन विदेशी यायावरों ने इस स्थल को 'मलबार' नाम से भी सम्बोधित किया है। काफी लबे अरसे तक यह भूभाग चेरा राजाओं के अधीन था एवं इस कारण भी चेरलम (चेरा का राज्य) और फिर केरलम नाम पड़ा होगा। केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। इसके इतिहास का प्रथम काल 1000 ईं. पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है। अधिकतर महाप्रस्तर युगीन स्मारिकाएँ पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त हुई। अतः यह सिद्ध होता है कि केरल में अतिप्राचीन काल से मानव का वास था। केरल में आवास केन्द्रों के विकास का दूसरा चरण संगमकाल माना जाता है। यही प्राचीन तमिल साहित्य के निर्माण का काल है। संगमकाल सन् 300 ई. से 800 ई तक रहा। प्राचीन केरल को इतिहासकार तमिल भूभाग का अंग समझते थे। सुविधा की दृष्टि से केरल के इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक कालीन - तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। प्राचीन केरल मध्यकालीन केरल आधुनिक केरल भूगोल विज्ञापनों में केरल को 'ईश्वर का अपना घर' (God's Own Country) कहा जाता है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जिन कारणों से केरल विश्व भर में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है, वे हैं : समशीतोष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ। भौगोलिक दृष्टि से केरल उत्तर अक्षांश 8 डिग्री 17' 30" और 12 डिग्री 47' 40" के बीच तथा पूर्व देशांतर 74 डिग्री 7' 47" और 77 डिग्री 37' 12" के बीच स्थित है। भौगोलिक प्रकृति के आधार पर केरल को अनेक क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। सर्वप्रचलित विभाज्य प्रदेश हैं, पर्वतीय क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, समुद्री क्षेत्र आदि। अधिक स्पष्टता की दृष्टि से इस प्रकार विभाजन किया गया है - पूर्वी मलनाड (Eastern Highland), अडिवारम (तराई - Foot Hill Zone), ऊँचा पहाडी क्षेत्र (Hilly Uplands), पालक्काड दर्रा, तृश्शूर-कांजगाड समतल, एरणाकुलम - तिरुवनन्तपुरम रोलिंग समतल और पश्चिमी तटीय समतल। यहाँ की भौगोलिक प्रकृति में पहाड़ और समतल दोनों का समावेश है। केरल को जल समृद्ध बनाने वाली 41 नदियाँ पश्चिमी दिशा में स्थित समुद्र अथवा झीलों में जा मिलती हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वी दिशा की ओर बहने वाली तीन नदियाँ, अनेक झीलें और नहरें हैं। जलवायु भूमध्यरेखा से केवल 8 डिग्री की दूरी पर स्थित होने के कारण केरल में गर्म मौसम है। लेकिन वन एवं पेड़ पौधों एवं वर्षा की अधिकता के कारण मौसम समशीतोष्ण रहता है। यहाँ की धरती की उच्च-निम्न स्थिति भी जलवायु पर बड़ा प्रभाव डालती है। केरल की जलवायु की विशेषता है शीतल मन्द हवा और भारी वर्षा। प्रमुख वर्षाकाल इडवप्पाति अथवा पश्चिमी मानसून है। दूसरा वर्षाकाल तुलावर्षम अथवा उत्तरी-पश्चिमी मानसून है। प्रत्येक वर्ष करीब 120 से लेकर 140 दिन वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 3017 मिली मीटर मानी जाती है। भारी वर्षा से बाढ़ें आती हैं और जन-धन की हानि भी होती है। दूसरी ओर ऐसी वर्षा के कारण केरल में पर्याप्त कृषि होती है। बिजली का मुख्य उत्पादन भी इस कारण से पनबिजली द्वारा होता है। अर्थ व्यवस्था भारत के एक राज्य के रूप में केरल की आर्थिक व्यवस्था की अपनी विशेषताएँ हैं। मानव संसाधन विकास की आधारभूत सूचना के अनुसार केरल की उपलब्धियाँ प्रशंसनीय है। मानव संसाधन विकास के बुनियादी तत्त्वों में उल्लेखनीय हैं - भारत के अन्य राज्यों की तुलना में आबादी की कम वृद्धि दर, राष्ट्रीय औसत सघनता से ऊँची दर, ऊँची आयु-दर, गंभीर स्वास्थ्य चेतना, कम शिशु मृत्यु दर, ऊँची साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा की सार्वजनिकता, उच्च शिक्षा की सुविधा आदि आर्थिक प्रगति के अनुकूल हैं। वैश्वीकरण के प्रतिकूल प्रभाव ने कृषि तथा अन्य परम्परागत क्षेत्रों को बहुत कम कर दिया है। स्वातंत्र्य पूर्व तिरुवितांकूर, कोच्चि, मलबार क्षेत्रों का विकास आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि है। भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताएँ केरल की आर्थिक व्यवस्था को प्राकृतिक संपदा के वैविध्य के साथ श्रम संबन्धी वैविध्य भी प्रदान करती हैं। केरल में कृषि खाद्यान्न और निर्यात की जानेवाली फसलों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। शासन व्यवस्था तथा व्यापार के कारण निर्यात की जानेवाली फसलों बढ़ोतरी हुई है। कयर (नारियल रेशा) उद्योग, लकडी उद्योग, खाद्य तेल उत्पादन आदि भी कृषि पर आधारित हैं आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था में आप्रवासी केरलीयों का मुख्य योगदान है। केरल की आर्थिक व्यवस्था के सुदृढ आधार हैं - वाणिज्य बैंक, सहकारी बैंक, मुद्रा विनिमय व्यवस्था, यातायात का विकास, शिक्षा - स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में हुई प्रगति, शक्तिशाली श्रमिक आन्दोलन, सहकारी आन्दोलन आदि। उत्सव और त्यौहार केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जाने वाले उत्सवों में दिखाई देती है। केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केरलीय कलाओं का विकास यहाँ मनाये जाने वाले उत्सवों पर आधारित है। इन उत्सवों में कई का संबन्ध देवालयों से है, अर्थात् ये धर्माश्रित हैं तो अन्य कई उत्सव धर्मनिरपेक्ष हैं। ओणम केरल का राज्योत्सव है। यहाँ मनाये जाने वाले प्रमुख हिन्दू त्योहार हैं - विषु, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, तिरुवातिरा आदि। मुसलमान रमज़ान, बकरीद, मुहरम, मिलाद-ए-शरीफ आदि मनाते हैं तो ईसाई क्रिसमस, ईस्टर आदि। इसके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों के देवालयों में भी विभिन्न प्रकार के उत्सव भी मनाये जाते हैं। कला व संस्कृति केरल की कला-सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी हैं। केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कलारूपों में लोककलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेखनीय है। केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं - एक दृश्य कला और दूसरी श्रव्य कला। दृश्य कला के अंतर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्रकला और सिनेमा आते हैं। क्रीड़ा क्षेत्र केरल में क्रीड़ा संस्कार कई शताब्दियाँ पहले रूपायित हुआ था। केरल के क्रीडा जगत के क्षेत्र में लोक क्रीडाएँ, आयोधन कलाएँ, आधुनिक क्रीडाएँ सब एक साथ विद्यमान हैं। 'कळरिप्पयट्टु' केरल की प्रान्तीय आयुधन कला है। पहले केरलीय गाँवों में खेल-कूद को विशिष्ट महत्त्व दिया जाता था किन्तु आधुनिक जीवन शैली तथा आधुनिक खेलों के चलते लोक क्रीडाएँ लुप्तप्राय हो गई हैं। लेकिन आज भी देशी मनोरंजन नौका विहार को महत्त्व दिया जाता है। फुटबॉल, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स इत्यादि आधुनिक खेल कूदों में केरल की भारत पर प्रभुता है। भारत की सबसे बड़ी धावक पी.टी. उषा केरल की सुपुत्री है। पर्यटन केरल प्रांत पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है, इसीलिए इसे 'God's Own Country' अर्थात् 'ईश्वर का अपना घर' नाम से पुकारा जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं - पर्वतीय तराइयाँ, समुद्र तटीय क्षेत्र, अरण्य क्षेत्र, तीर्थाटन केन्द्र आदि। इन स्थानों पर देश-विदेश से असंख्य पर्यटक भ्रमणार्थ आते हैं। मून्नार, नेल्लियांपति, पोन्मुटि आदि पर्वतीय क्षेत्र, कोवलम, वर्कला, चेरायि आदि समुद्र तट, पेरियार, इरविकुळम आदि वन्य पशु केन्द्र, कोल्लम, अलप्पुष़ा, कोट्टयम, एरणाकुळम आदि झील प्रधान क्षेत्र (backwaters region) आदि पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण केन्द्र हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति - आयुर्वेद का भी पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य की आर्थिक व्यवस्था में भी पर्यटन ने निर्णयात्मक भूमिका निभाई है। भाषा केरल की भाषा मलयालम है जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं में एक है। मलयालम भाषा के उद्गम के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। एक मत यह है कि भौगोलिक कारणों से किसी आदि द्रविड़ भाषा से मलयालम एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई। इसके विपरीत दूसरा मत यह है कि मलयालम तमिल से व्युत्पन्न भाषा है। ये दोनों प्रबल मत हैं। सभी विद्वान यह मानते हैं कि भाषायी परिवर्तन की वजह से मलयालम उद्भूत हुई। तमिल, संस्कृत दोनों भाषाओं के साथ मलयालम का गहरा सम्बन्ध है। मलयालम का साहित्य मौखिक रूप में शताब्दियाँ पुराना है। परंतु साहित्यिक भाषा के रूप में उसका विकास 13 वीं शताब्दी से ही हुआ था। इस काल में लिखित 'रामचरितम्' को मलयालम का आदि काव्य माना जाता है। साहित्य देखें मुख्य लेख मलयालम साहित्य मलयालम का साहित्य आठ शताब्दियों से अधिक पुराना है। किन्तु आज तक ऐसा कोई ग्रंथ प्राप्त नहीं हुआ है जो यहाँ के साहित्य की प्रारंभिक दशा पर प्रकाश डालता हो। अतः मलयालम साहित्यिक उद्गम से सम्बन्धित कोई स्पष्ट धारणा नहीं मिलती है। अनुमान है कि प्रारम्भिक काल में लोक साहित्य का प्रचलन रहा होगा। ऐसी कोई रचना उपलब्ध नहीं जिसकी रचना 1000 वर्ष पहले की गई है। दसवीं सदी के उपरान्त लिखे गए अनेक ग्रंथों की प्रामाणिकता को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं। केरलीय साहित्य से सामान्यतः मलयालम साहित्य अर्थ लिया जाता है। लेकिन मलयालम साहित्यकारों का तमिल और संस्कृत भाषा विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। केरल के कुछ विद्वानों ने अंग्रेज़ी, कन्नड़, तुळु, कोंकणी, हिन्दी आदि भाषाओं में भी रचना लिखी हैं। 19 वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक मलयालम साहित्य का इतिहास प्रमुखतया कविता का इतिहास है। साहित्य की प्रारंभिक दशा का परिचय देने वाला काव्य ग्रंथ 'रामचरितम्' है जिसे 13 वीं शताब्दी में लिखा गया बताया जाता है। यद्यपि मलयालम के प्रारंभिक काव्य के रूप में 'रामचरितम्' को माना जाता है फिर भी केरल की साहित्यिक परंपरा उससे भी पुरानी मानी जा सकती है। प्राचीन काल में केरल को 'तमिऴकम्' का भाग ही समझा जाता था। दक्षिण भारत में सर्वप्रथम साहित्य का स्रोत भी तमिऴकम की भाषा प्रस्फुरित हुआ था। तमिल का आदिकालीन साहित्य 'संगम कृतियाँ' नाम से जाना जाता हैं। संगमकालीन महान रचनाओं का सम्बन्ध केरल के प्राचीन चेर-साम्राज्य से रहा है। 'पतिट्टिप्पत्तु' नामक संगमकालीन कृति में दस चेर राजाओं के प्रशस्तिगीत है। 'सिलप्पदिकारं' महाकाव्य के प्रणेता इलंगो अडिगल का जन्म चेर देश में हुआ था। इसके अतिरिक्त तीन खण्डों वाले इस महाकाव्य का एक खण्ड 'वंचिक्काण्डम' का प्रतिपाद्य विषय चेरनाड में घटित घटनाएँ हैं। संगमकालीन साहित्यिकों में अनेक केरलीय साहित्यकार हैं। केरल के लोग केरल के अधिकांश लोगों की मातृभाषा मलयालम है, जो द्रविड़ परिवार की प्रमुख भाषा है। यहाँ आर्य, अरबी, यहूदी तथा मिश्रित वंश के लोग भी रहते हैं। दूसरा प्रमुख वर्ग आदिवासियों का है। ये सभी वर्ग मिलकर आधुनिक केरलीय समाज का निर्माण करते हैं। एक राज्य के रूप में केरल की स्थापना 1961 से ही हुई। किन्तु वर्तमान केरल के अन्तर्गत जितने प्रदेश हैं उन प्रदेशों की जनगणना 1881 में ही तैयार हो पाई। प्रमाणों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि 17 वीं सदी के प्रारंभ में केरल की जनसंख्या लगभग 30 लाख थी। 1850 में यह 45 लाख हो गई। 1881 से जनसंख्या लगातार बढ़ती रही। 1901 में जनसंख्या 64 लाख थी जो 1991 में 291 लाख हो गई। (6) 2001 की जनगणना के अनुसार केरल की जनसंख्या 31841374 है। केरल के प्रमुख धर्म हैं हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म। बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख, बहाई धर्मावलम्बी लोग भी यहाँ रहते हैं। हिन्दू समाज विविध जातियों से बना है। ईस्वी सन् 8 वीं सदी से केरल में जाति-व्यवस्था प्रचलित हुई थी। अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति तक विभिन्न श्रेणी के लोगों को जाति - व्यवस्था के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया। जाति व्यवस्था के कारण समाज में ऊँच - नीच की भावना तथा सामाजिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गईं। 19 वीं शताब्दी के अंत में चलने वाले सामाजिक नवोत्थान अभियानों ने 20 वीं शताब्दी में तथा तत्पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम में जाति व्यवस्था को किसी सीमा तक तोड़ा। वर्तमान केरलीय समाज में यद्यपि ऊँच - नीच का भेदभावना नहीं है, लेकिन जाति - व्यवस्था मौजूद है। विभिन्न धर्मावलम्बी लोगों के देवालयों तथा उनके धार्मिक आचार - अनुष्ठानों ने केरलीय संस्कृति को पुष्ट किया है। साहित्य और कला के विकास में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है। मन्दिरों से जुड़े उत्सवों ने केरलीय संस्कृति की शोभा बढ़ायी है। राजनीति केरल को भारत की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जा सकता है। चुनाव के द्वारा कम्यूनिस्ट पार्टी का सत्ता में आना और विभिन्न पार्टियों के मोर्चों का गठन तथा उनका शासक बनना आदि अनेक राजनीतिक प्रयोग पहली बार केरल में हुए। देश में मशीनी मतपेटी का प्रथम प्रयोग भी केरल में हुआ। केरल में 140 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र और 20 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। विधानसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित किया जाता है। केरल में अनेक राजनीतिक दल तथा उनके संपोषक संगठन भी हैं। यथा- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जनता दल (सेक्युलर), मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), केरल कॉग्रेस (जे) आदि। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के श्रमिक, विद्यार्थी, महिला, युवा, कृषक और सेवा संगठन भी सक्रिय हैं। ट्रेड यूनियनों की संख्या आवश्यकता से अधिक बढ़ रही है। 1973 में केरल की पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की संख्या 1680 थी। यह 1996 में 10326 हो गई। यहाँ सरकारी नौकरी में रत 3000 लोगों के लिए एक ट्रेड यूनियन बनाई गई है। केरल राज्य के आविर्भाव के बाद राज्य में 13 बार चुनाव हुए। बीस मत्रिमंण्डल तथा 12 मुख्यमंत्री हुए हैं। 5 अप्रैल 1957 को ई. एम. एस. नंपूतिरिप्पाड के नेतृत्व में प्रथम मंत्रिमण्डल सत्ता में आया। वर्तमान मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानन्दन ने 18 मई 2006 को शासन संभाला। वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र केरल के पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समृद्ध परंपरा है। गणित, ज्योतिषी, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुकला, धातु विज्ञान आदि क्षेत्रों में केरलीयों ने उल्लेखनीय योगदान किया है। आधुनिक भारत के वैज्ञानिक क्षेत्र में केरल की उपस्थिति उल्लेखनीय है। वैज्ञानिक तकनीकी क्षेत्रों में भी केरल बहुत आगे है। केरल के अनेक वैज्ञानिक विदेशों में कार्यरत हैं। पुराने काल में ज्योतिष, मंत्र-तंत्र आदि विज्ञान के रूप में विकसित हुए थे। मलयालम का वैज्ञानिक साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है। गणित एवं ज्योतिष भारतीय परम्परा के अनुरूप केरल में भी गणित, ज्योतिषी और ज्योतिष का विकास परस्पर सम्बद्ध था। गणित के क्षेत्र में प्राचीन केरल का योगदान विश्व प्रसिद्ध है। समकालीन गणितज्ञों द्वारा प्रयुक्त 'केरल स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स' शब्द इसका प्रमाण है। केरलीय गणित एवं ज्योतिषी का विकास आर्यभट की रचना 'आर्यभटीय' के आधार पर हुआ है और आर्यभट को कतिपय विद्वान केरलीय मानते हैं। केरलीय गणित एवं ज्योतिषी के विकास के परिणाम स्वरूप बनी प्रमुख पद्धतियाँ हैं ईस्वी सन् 7 वीं शती में हरिदत्त द्वारा आविष्कृत 'परहितम्' तथा ईस्वी सन् 15 वीं शती में वडश्शेरी परमेश्वरन द्वारा आविष्कृत 'दृगणितम्'। प्राचीन केरलीय गणितज्ञों की सूची लम्बी है। उनमें से अनेक कृतियाँ ताड़पत्रों में आज भी उपलब्ध हैं। गणित के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम हैं - वररुचि प्रथम, वररुचि द्वितीय, हरिदत्तन, गोविन्दस्वामी, शंकरनारायणन, विद्यामाधवन, तलक्कुलम गोविन्द भट्टतिरि, संगम ग्राम माधवन, वडश्शेरी परमेश्वरन, नीलकंठ सोमयाजी, शंकर वारियर, ज्येष्ठ देवन, मात्तूर नंपूतिरिमार, महिषमंगलम शंकरन, तृक्कण्डियूर अच्युतप्पिषारडी, पुतुमना पोमातिरि (पुतुमना सोमयाजी), कोच्चु कृष्णनाशान, मेलपुत्तूर नारायण भट्टतिरि आदि। आधुनिक गणित का इतिहास यह मानता है कि कलन (Calculus) का आविष्कारक आइज़ेक न्यूटन और लैबनीज़ न होकर केरल के गणित वैज्ञानिक हैं। आयुर्वेद आयुर्वेद दो हज़ार वर्ष पुरानी भारतीय चिकित्सा-पद्धति है। इस पद्धति का विकास स्वास्थ्य, जीवन-शैली एवं चिकित्सा की दृष्टि से हुआ था। इसमें जीवन के समस्त अंगों का अध्ययन तथा परिशीलन निहित है। केरलीय आयुर्वेद परम्परा अत्यन्त प्राचीन एवं समृद्ध है। यही कारण है कि विश्व भर में केरल अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा शैली के कारण प्रसिद्ध है। लेकिन आयुर्वेद मात्र रोग की चिकित्सा तक सीमित नहीं है यह एक विशिष्ट जीवन दर्शन को स्थापित करता है। केरल की आयुर्वेद परंपरा अत्यंत प्राचीन है। यह आज भी विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पर्यटन के क्षेत्र में भी आयुर्वेद पर आधारित पर्यटन (Health Tourism) केरल की विशेषता है। 'पंचकर्म चिकित्सा' जो कि पुनर्यौवन चिकित्सा कहलाती है, इसकेलिए सैकड़ों विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष केरल आते हैं। केरलीय वैद्य परम्परा में परम्परागत आयुर्वेद विद्यालयों के स्तानकों से लेकर परिवारिक परम्परा वाले देशज वैद्य शामिल है। यहाँ एक ऐसा परिवारिक परम्परा वाला वैद्यपरिवार बड़ा प्रसिद्ध है जिसे अष्टवैद्य के नाम से पुकारा जाता है। केरल की आयुर्वेद चिकित्सा परंपरा सदियों से चलती चली आ रही है। केरलीय आयुर्वेद का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ हैं वाग्भट का 'अष्टांगह्रदयम्' और 'अष्टांगसंग्रहम्'। केरलीय वैद्यों ने भी अनेक आयुर्वेद ग्रन्थ रचे हैं। देखें - केरल आयुर्वेद आधुनिक विज्ञान आधुनिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ नवीन वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी केरलीयों ने विशेष योग्यता प्राप्त की। विज्ञान की विविध शाखाओं में केरल के अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए हैं। जैसे कि - के. आर. रामनाथन, सी. आर. पिषारडी, आर. एस. कृष्णन, जी. एन. रामचन्द्रन, गोपीनाथ कर्ता, यू. एस. नायर, के. आर. नायर, ई. सी. जी. सुदर्शन, एम. एम. मत्तायि, के. आई. वर्गीस, एम. एस. स्वामीनाथन, ताणु पद्मनाभन, पी. के. अय्यंगार, एम. जी. रामदास मेनन, के. के. नायर, एन. के. पणिक्कर, एन. बालकृष्णन नायर, के. के. नायर, के. जी. अडियोडी, जी. माधवन नायर आदि लब्ध प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की सूची बहुत लम्बी है। आधुनिक विज्ञान के विकास में योग देने वाली संस्थाएँ हैं विश्वविद्यालय, वैज्ञानिक - प्रौद्योगिकी विद्यालय, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रतिष्ठान आदि। 'केरल शास्त्र साहित्य परिषद' जैसी वैज्ञानिक संस्थाएँ भी जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक बनी हैं। केरल के जिले केरल में 14 जिले हैं: कासरगोड जिला कण्णूर जिला वयनाड जिला कोषि़क्कोड जिला (कालीकट) मलप्पुरम जिला पालक्काड जिला (पालघाट) तृश्शूर जिला एर्नाकुलम जिला इड्डुक्कि जिला कोट्टयम जिला आलप्पुषा़ जिला पत्तनंतिट्टा जिला कोल्लम जिला तिरुवनन्तपुरम जिला (त्रिवेन्द्रम) इन्हें भी देखें केरल के लोकसभा सदस्य बाहरी कड़ियाँ केरल की सांस्कृतिक विरासत (गूगल पुस्तक ; कालीकट विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग) केरल पर्यटन - यहाँ केरल के बारे में बहुत सारी जानकारी हिन्दी में दी गयी है। केरल में पर्यटन - जागरण केरल केरल
गुजरात
https://hi.wikipedia.org/wiki/गुजरात
गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०२४ किलोमीटर है। भूतकाल में इसे गुर्जरत्रा याणी गुर्जर राजाओं ने राज किया था। इसलिए इसको गुर्जर प्रदेश के नाम से जाना जाता था। और राजस्तान को भी राजपूताना काल से पहले गुर्जरत्रा के नाम से जाना जाता था। क्युकि इस हिस्से मै भी गुर्जरो ने राज किया था। गुजरात, भारत का एक राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। इतिहास गुजरात का इतिहास पाषाण युग के बस्तियों के साथ शुरू हुआ, इसके बाद चोलकोथिक और कांस्य युग के बस्तियों जैसे सिंधु घाटी सभ्यता। गुजरात का इतिहास ईसवी पूर्व लगभग २,००० वर्ष पुराना है। माना जाता है कि कृष्‍ण मथुरा छोड़कर सौराष्‍ट्र के पश्चिमी तट पर जा बसे, जो द्वारिका यानी प्रवेशद्वार कहलाया। बाद के वर्षो में मौर्य, गुप्त तथा अन्‍य अनेक राजवंशों ने इस प्रदेश पर राज किया। चालुक्य राजवंश का शासनकाल गुजरात में प्रगति और समृद्ध का युग था। भूगोल स्वतन्त्रता से पहले गुजरात का वर्तमान क्षेत्र मुख्‍य रूप से दो भागों में विभक्त था- एक ब्रिटिश क्षेत्र और दूसरा देसी रियासतें। राज्‍यों के पुनर्गठन के कारण सौराष्‍ट्र के राज्‍यों और कच्‍छ के केन्द्र शासित प्रदेश के साथ पूर्व ब्रिटिश गुजरात को मिलाकर द्विभाषी बम्बई राज्‍य का गठन हुआ। १ मई १९६० को वर्तमान गुजरात राज्‍य अस्तित्‍व में आया। गुजरात भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसके पश्चिम में अरब सागर, उत्तर में पाकिस्‍तान तथा उत्तर-पूर्व में राजस्‍थान, दक्षिण-पूर्व में मध्‍यप्रदेश और दक्षिण में महाराष्‍ट्र है। राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किमी है। गुजरात के जिले जिला कोड जिला नाममुख्यालयक्षेत्रफल AH अहमदाबाद अहमदाबाद ८,७०७ AM अमरेली अमरेली ६,७६० AN आणंद आणंद २,९४२ BK बनासकांठा पालनपुर १२,७०३ BR भरुच भरुच ६,५२४ BV भावनगर भावनगर ११,१५५ DA दाहोद दाहोद ३,६५२ DG डांग आहवा १७६४ GA गांधीनगर गांधीनगर ६४९ JA जामनगर जामनगर १४,१२५ JU जूनागढ जूनागढ ,८८३९ KA कच्छ भुज ४५,६५२ KH खेड़ा नड़ियाद ४,२१५ MA महेसाणा महेसाणा ४,३८६ NR नर्मदा राजपीपळा २,७४९ NV नवसारी नवसारी २,२११ PA पाटण पाटण ५,७६८ PM पंचमहाल गोधरा ५,२१९ PO पोरबंदर पोरबंदर २,२९४ RA राजकोट राजकोट ११,२०३ SK साबरकांठा हिंमतनगर ७,३९० SN सुरेन्द्रनगर सुरेन्द्रनगर १०,४८९ ST सुरत सुरत ७,६५७ TA तापी व्यारा ३,०४० VD वड़ोदरावड़ोदरा ७,७९४ VL वलसाड वलसाड ३,०३४ DD देवभूमि द्वारका खम्भालिया - GS गीर सोमनाथ वेरावल - MR मोरबी मोरबी - BT बोटाद बोटाद - AR अरवल्ली मोड़ासा - MS महीसागर लुणावाड़ा - CU छोटा उदेपुर छोटा उदेपुर - अर्थव्यवस्था कृषि गुजरात कपास, तम्बाकू और मूँगफली का उत्‍पादन करने वाला देश का प्रमुख राज्‍य है तथा यह कपड़ा, तेल और साबुन जैसे महत्‍वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्‍चा माल उपलब्‍ध कराता है। यहाँ की अन्‍य महत्‍वपूर्ण नकदी फसलें हैं - इसबगोल, धान, गेहूँ और बाजरा। गुजरात के वनों में उपलबध वृक्षों की जातियाँ हैं-सागवान, खैर, हलदरियो, सादाद और बाँस। उद्योग राज्‍य में औद्योगिक ढाँचे में धीरे-धीरे विविधता आती जा रही है और यहाँ रसायन, पेट्रो-रसायन, उर्वरक, इंजीनियरिंग, इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स आदि उद्योगों का विकास हो रहा है। २००४ के अन्त में राज्‍य में पंजीकृत चालू फैक्‍टरियों की संख्‍या २१,५३६ (अस्‍थाई) थी जिनमें औसतन ९.२७ लाख दैनिक श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ था। मार्च, २००५ तक राज्‍य में २.९९ लाख लघु औद्योगिक इकाइयों का पंजीकरण हो चुका था। गुजरात औद्योगिक विकास निगम को ढाँचागत सुविधाओ के साथ औद्योगिक सम्पदाओं के वि‍कास की भूमिका सौंपी गई है। दिसंबर, २००५ तक गुजरात औद्योगिक विकास निगम ने २३७ औद्योगिक सम्पदाएँ स्‍थापित की थी। सिंचाई और बिजली राज्‍य में भूतलीय जल तथा भूमिगत जल द्वारा कुल सिंचाई क्षमता ६४.४८ लाख हेक्‍टेयर आंकी गई है जिसमें सरदार सरोवर (नर्मदा) परियोजना की १७.९२ लाख हेक्‍टेयर क्षमता भी सम्मिलित है। राज्‍य में जून २००५ तक कुल सिंचाई क्षमता ४०.३४ लाख हेक्‍टेयर क्षमता भी सम्मिलित है। राज्‍य में जून २००७ तक कुल सिंचाई क्षमता ४२.२६ लाख हेक्‍टेयर तक पहुँच गई थी। जून २००७ तक अधिकतम उपयोग क्षमता ३७.३३ लाख हेक्‍टेयर आँकी गई। परिवहन सड़कें २००५-०६ के अन्त में राज्य में सड़कों की कुल लम्बाई (गैर योजना, सामुदायिक, नगरीय और परियोजना सड़कों के अतिरिक्त) लगभग ७४,०३८ किलोमीटर थी। उड्डयन राज्‍य के अहमदाबाद स्थित मुख्‍य हवाई अड्डे से मुम्बई, दिल्‍ली और अन्‍य नगरों के लिए दैनिक विमान सेवा उपलब्‍ध है। अहमदाबाद हवाई अड्डे को अब अन्तरराष्‍ट्रीय हवाई अड्डे का दर्जा मिल गया हैं। अन्‍य हवाई अड्डे वड़ोदरा, भावनगर, भुज, सूरत, जामनगर, काण्डला, केशोद, पोरबन्दर और राजकोट में है। रेल गुजरात का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन वडोदरा जंक्शन है। यहाँ से हर रोज १५० से भी ज्यादा ट्रेन पसर होती है और भारत के लगभग हर एक कोने में जाने के लिए यहाँ से ट्रेन उपलब्ध होती है। वडोदरा के अलावा गुजरात के बड़े स्टेशनों में अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, भुज और भावनगर का समावेश होता है। गुजरात भारतीय रेल के पश्चिम रेलवे ज़ोन में पड़ता है। बन्दरगाह गुजरात में कुल ४० बन्दरगाह हैं। काण्डला राज्‍य का प्रमुख बन्दरगाह है। वर्ष २००४-०५ के दौरान गुजरात के मंझोले और छोटे बन्दरगाहों से कुल ९७१.२८ लाख टन माल ढोया गया जबकि काण्डला बन्दरगाह से ४१५.५१ लाख टन माल ढोया गया। संस्कृति त्‍योहार भाद्रपद्र (अगस्‍त-सितंबर) मास के शुक्‍ल पक्ष में चतुर्थी, पंचमी और षष्‍ठी के दिवस तरणेतर गांव में भगवान शिव की स्‍तुति में तरणेतर मेला लगता है। भगवान कृष्‍ण द्वारा रुक्‍मणी से विवाह के उपलक्ष्‍य में चैत्र (मार्च-अप्रैल) के शुक्‍ल पक्ष की नवमी को पोरबंदर के पास माधवपूर में माधावराय मेला लगता है। उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले में हर वर्ष मां अंबा को समर्पित अंबा जी मेला आयेजित किया जाता हैं। राज्‍य का सबसे बड़ा वार्षिक मेला द्वारिका और डाकोर में भगवान कृष्‍ण के जन्‍मदिवस जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर बड़े हर्षोल्‍लास से आयोजित होता है। इसके अलावा गुजरात में मकर सक्रांति, नवरात्रि, डांगी दरबार, शामलाजी मेले तथा भावनाथ मेले का भी आयोजन किया जाता हैं। पर्यटन स्‍थल राज्‍य में द्वारका, सोमनाथ, पालीताना, पावागढ़, अंबाजी भद्रेश्‍वर, शामलाजी,बगदाणा,वीरपुर,खेरालु (सूर्यमंदिर),मोढेरा (सूर्यमंदिर) तारंगा,निष्कलंक महादेव,राजपरा (भावनगर),बहुचराजी, और गिरनार जैसे धार्मिक स्‍थलों के अलावा महात्‍मा गांधी की जन्‍मभूमि पोरबंदर तथा पुरातत्‍व और वास्‍तुकला की दृष्टि से उल्‍लेखनीय पाटन, सिद्धपुर, घुरनली, दभेई, बडनगर, मोधेरा, लोथल और अहमदाबाद जैसे स्‍थान भी हैं। अहमदपुर मांडवी, चारबाड़ उभारत और तीथल के सुंदर समुद्री तट, सतपुड़ा पर्वतीय स्‍थल, गिर वनों के शेरों का अभयारण्‍य और कच्‍छ में जंगली गधों का अभयारण्‍य भी पर्यटकों के आकर्षण का केद्र हैं। इसके अलावा गुजरात के स्थानीय व्यंजन के जायके भी गुजरात की खूबसूरती को और बढ़ाते है। गुजरात के पाटण में स्थित रानी की वाव यूनेस्को विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है। प्रशासन सरकार राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल गुजरात के प्रशासन का प्रमुख होता है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल राज्यपाल को उसके कामकाज में सहयोग और सलाह देता है। राज्य में एक निर्वाचित निकाय एकसदनात्मक विधानसभा है। उच्च न्यायालय राज्य की सर्वोपरि न्यायिक सत्ता है, जबकि नगर न्यायालय, ज़िला व सत्र न्यायाधीशों के न्यायालय और प्रत्येक ज़िले में दीवानी मामलों के न्यायाधीशों के न्यायालय हैं। राज्य को 34 प्रशासनिक ज़िलों में बांटा गया है। अहमदाबाद, अमरेली, बनास कंठा, भरूच, भावनगर, डेंग, गाँधीनगर, खेड़ा, महेसाणा, पंचमहल, राजकोट, साबर कंठा, सूरत सुरेंद्रनगर, वडोदरा, महीसागर, वलसाड, नवसारी, नर्मदा, दोहद, आनंद, पाटन, जामनगर, पोरबंदर, जूनागढ़ और कच्छ, प्रत्येक ज़िले का राजस्व और सामान्य प्रशासन ज़िलाधीश की देखरेख में होता है, जो क़ानून और व्यवस्था भी बनाए रखता है। स्थानीय प्रशासन में आम लोगों को शामिल करने के लिए 1963 में पंचायत द्वारा प्रशासन की शुरुआत की गई। स्वास्थ्य स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं में मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ और अन्य संक्रामक रोगों के उन्मूलन के साथ-साथ पेयजल की आपूर्ति में सुधार और खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकने के कार्यक्रम शामिल हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों के विस्तार के लिए भी क़दम उठाए गए हैं। जन-कल्याण बच्चों, महिलाओं और विकलांगों, वृद्ध, असहाय, परित्यक्त के साथ-साथ अपराधी भिखारी, अनाथ और जेल से छुटे लोगों की कल्याण आवश्यकताओं की देखरेख विभिन्न राजकीय संस्थाएं करती हैं। राज्य में तथाकथित पिछड़े वर्ग के लोगों की शिक्षा, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और आवास की देखरेख के लिए एक अलग विभाग है। जनजीवन गुजराती जनसंख्या में विविध जातीय समूह का मोटे तौर पर इंडिक / भारतोद्भव (उत्तरी मूल) या द्रविड़ (दक्षिणी मूल) के रूप में वर्गीकरण किया जा सकता है। पहले वर्ग में नगर ब्राह्मण,राजपूत,दरबार,भरवाड़,आहिर,गढ़वी,रबारी, पाटीदारपटेल और कई जातियां (जबकि दक्षिणी मूल के लोगों में वाल्मीकि, कोली, डबला, नायकदा व मच्छि-खरवा जनजातिया हैं। शेष जनसंख्या में आदिवासी भील मिश्रित विशेषताएं दर्शाते हैं। अनुसूचित जनजाति और आदिवासी जनजाति के सदस्य प्रदेश की जनसंख्या का लगभग पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ डांग ज़िला पूर्णत: आदिवासी युक्त ज़िला है। अहमदाबाद ज़िले में अनुसूचित जनजाति का अनुपात सर्वाधिक है। गुजरात में जनसंख्या का मुख्य संकेंद्रण अहमदाबाद, खेड़ा, वडोदरा, सूरत और वल्सर के मैदानी क्षेत्र में देखा जा सकता है। यह क्षेत्र कृषि के दृष्टिकोण से उर्वर है और अत्यधिक औद्योगीकृत है। जनसंख्या का एक अन्य संकेंद्रण मंगरोल से महुवा तक और राजकोट एवं जामनगर के आसपास के हिस्सों सहित सौराष्ट्र के दक्षिणी तटीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है। जनसंख्या का वितरण उत्तर (कच्छ) और पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों की ओर क्रमश कम होता जाता है। जनसंख्या का औसत घनत्व 258 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी (2001) है और दशकीय वृद्धि दर 2001 में 22.48 प्रतिशत पाई गई। शिक्षा 600 या इससे ज़्यादा जनसंख्या वाले लगभग सभी गाँवों में सात से ग्यारह वर्ष के सभी बच्चों के लिए प्राथमिक पाठशालाएँ खोली जा चुकी हैं। आदिवासी बच्चों को कला और शिल्प की शिक्षा देने के लिए विशेष विद्यालय चलाए जाते हैं। यहाँ अनेक माध्यमिक और उच्चतर विद्यालयों के साथ-साथ नौ विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थान हैं। अभियांत्रिकी महाविद्यालयों और तकनीकी विद्यालयों द्वारा तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। शोध संस्थानों में अहमदाबाद में फ़िज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एशोसिएशन, सेठ भोलाभाई जेसिंगभाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ लर्निंग ऐंड रिसर्च, द इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, द नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन और द सरदार पटेल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक ऐंड सोशल रिसर्च, वडोदरा में ओरिएंटल इंस्टिट्यूट तथा भावनगर में सेंट्रल साल्ट ऐंड मॅरीन केमिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट एवम वङोदरा में देश की पहली रेलवे यूनिवर्सिटी शामिल हैं। भाषा गुजराती और हिन्दी राज्य की अधिकृत भाषाएं हैं। दोनों में गुजराती का ज़्यादा व्यापक इस्तेमाल होता है, जो संस्कृत के अलावा प्राचीन भारतीय मूल भाषा प्राकृत और 10 वीं शताब्दी के बीच उत्तरी और पश्चिमी भारत में बोली जाने वाली अपभ्रंश भाषा से व्युत्पन्न एक भारतीय-आर्य भाषा है। समुद्र मार्ग से गुजरात के विदेशों से संपर्क ने फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पुर्तग़ाली और अंग्रेज़ी शब्दों से इसका परिचय करवाया। गुजराती में महात्मा गांधी की विलक्षण रचनाएं अपनी सादगी और ऊर्जस्विता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन रचनाओं ने आधुनिक गुजराती गद्य पर ज़बरदस्त प्रभाव डाला है। गुजरात में राजभाषा गुजराती भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी का प्रचलन है। गुजराती भाषा नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं के दक्षिण–पश्चिमी समूह से सम्बन्धित है। इतालवी विद्वान तेस्सितोरी ने प्राचीन गुजराती को प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी भी कहा, क्योंकि उनके काल में इस भाषा का उपयोग उस क्षेत्र में भी होता था, जिसे अब राजस्थान राज्य कहा जाता है। धर्म गुजरात में अधिकांश जनसंख्या हिन्दू धर्म को मानती है, जबकि कुछ संख्या इस्लाम, जैन और पारसी धर्म मानने वालों की भी है। संस्कृति गुजरात की अधिकांश लोक संस्कृति और लोकगीत हिन्दू धार्मिक साहित्य पुराण में वर्णित भगवान कृष्ण से जुड़ी किंवदंतियों से प्रतिबिंबित होती है। कृष्ण के सम्मान में किया जाने वाला रासनृत्य और रासलीला प्रसिद्ध लोकनृत्य "गरबा" के रूप में अब भी प्रचलित है। यह नृत्य देवी दुर्गा के नवरात्री पर्व में किया जाता है। एक लोक नाट्य भवई भी अभी अस्तित्व में है। गुजरात में शैववाद के साथ-साथ वैष्णववाद भी लंबे समय से फलता-फूलता रहा है, जिनसे भक्ति मत का उद्भव हुआ। प्रमुख संतों, कवियों और संगीतज्ञों में 15वीं सदी में पदों के रचयिता नरसी मेहता, अपने महल को त्यागने वाली 16वीं सदी की राजपूत राजकुमारी व भजनों की रचनाकार मीराबाई, 18वीं सदी के कवि और लेखक प्रेमानंद और भक्ति मत को लोकप्रिय बनाने वाले गीतकार दयाराम शामिल हैं। भारत में अन्य जगहों की तुलना में अहिंसा और शाकाहार की विशिष्टता वाले जैन धर्म ने गुजरात में गहरी जड़े जमाई। ज़रथुस्त्र के अनुयायी पारसी 17वीं सदी के बाद किसी समय फ़ारस से भागकर सबसे पहले गुजरात के तट पर ही बसे थे। इस समुदाय के अधिकांश लोग बाद में बंबई (वर्तमान मुंबई) चले गए। श्रीकृष्ण, दयानन्द सरस्वती, मोहनदास गांधी, सरदार पटेल तथा सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी रणजी जैसे व्यक्तित्व ने प्रदेश के समाज को गौरवांवित किया। गुजरात की संस्कृति में मुख्यत: शीशे का काम तथा 'गरबा' एवं 'रास' नृत्य पूरे भारत में प्रसिद्ध है। प्रदेश का सर्वप्रमुख लोक नृत्य गरबा तथा डांडिया है। गरबा नृत्य में स्त्रियाँ सिर पर छिद्रयुक्त पात्र लेकर नृत्य करती हैं, जिस के भीतर दीप जलता है। डांडिया में अक्सर पुरुष भाग लेते हैं परंतु कभी-कभी स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर करते हैं। प्रदेश के रहन-सहन और पहनावे पर राजस्थान का प्रभाव देखा जा सकता है। प्रदेश का भवई लोकनाट्य लोकप्रिय है। स्थापत्य शिल्प की दृष्टि से प्रदेश समृद्ध है। इस दृष्टि से रुद्र महालय, सिद्धपुर, मातृमूर्ति पावागढ़, शिल्पगौरव गलतेश्वर, द्वारिकानाथ का मंदिर, शत्रुंजय पालीताना के जैन मंदिर, सीदी सैयद मस्जिद की जालियाँ, पाटन की काष्ठकला इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं। हिन्दी में जो स्थान सूरदास का है गुजराती में वही स्थान नरसी मेहता का है। त्योहार और मेले भारत के पश्चिमी भाग में बसा समृद्धशाली राज्य गुजरात अपने त्योहारों और सांस्कृतिक उत्सवों के लिये विश्व प्रसिद्ध है।भाद्रपद्र (अगस्त-सितंबर) मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी के दिवस तरणेतर गांव में भगवान शिव की स्तुति में तरणेतर मेला लगता है।भगवान कृष्ण द्वारा रुक्मणी से विवाह के उपलक्ष्य में चैत्र (मार्च-अप्रैल) के शुक्ल पक्ष की नवमी को पोरबंदर के पास माधवपुर में माधवराय मेला लगता है।उत्तरी गुजरात के बांसकांठा ज़िले में हर वर्ष मां अंबा को समर्पित अंबा जी मेला आयोजित किया जाता हैं।राज्य का सबसे बड़ा वार्षिक मेला द्वारका और डाकोर में भगवान कृष्ण के जन्मदिवस जन्माष्टमी के अवसर पर बड़े हर्षोल्लास से आयोजित होता है। इसके अतिरिक्त गुजरात में मकरसंक्राति,नवरात्री, डांगी दरबार, शामला जी मेले तथा भावनाथ मेले का भी आयोजन किया जाता हैं। कला गुजरात की वास्तुकला शैली अपनी पूर्णता और अलंकारिकता के लिए विख्यात है, जो सोमनाथ, द्वारका, मोधेरा, थान, घुमली, गिरनार जैसे मंदिरों और स्मारकों में संरक्षित है। मुस्लिम शासन के दौरान एक अलग ही तरीक़े की भारतीय-इस्लामी शैली विकसित हुई। गुजरात अपनी कला व शिल्प की वस्तुओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें जामनगर की बांधनी (बंधाई और रंगाई की तकनीक), पाटन का उत्कृष्ट रेशमी वस्त्र पटोला, इदर के खिलौने, पालनपुर का इत्र कोनोदर का हस्तशिल्प का काम और अहमदाबाद व सूरत के लघु मंदिरों का काष्ठशिल्प तथा पौराणिक मूर्तियाँ शामिल हैं। राज्य के सर्वाधिक स्थायी और प्रभावशाली सांस्कृतिक संस्थानों में महाजन के रूप में प्रसिद्ध व्यापार और कला शिल्प संघ है। अक्सर जाति विशेष में अंतर्गठित और स्वायत्त इन संघों ने अतीत कई विवादों को सुलझाया है और लोकहित के माध्यम की भूमिका निभाते हुए कला व संस्कृति को प्रोत्साहन दिया है। काष्ठ शिल्पकला गुजरात राज्य में की जाने वाली वास्तु शिल्पीय नक़्क़ाशी कम से कम 15वीं शताब्दी से गुजरात भारत में लकड़ी की नक़्क़ाशी का मुख्य केंद्र रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में जिस समय पत्थर का इस्तेमाल अधिक सुविधाजनक और विश्वसनीय था, इस समय भी गुजरात के लोगों ने मंदिरों के मंडप तथा आवासीय भवनों के अग्रभागों, द्वारों, स्तंभों, झरोखों, दीवारगीरों और जालीदार खिड़कियों के निर्माण में निर्माण में बेझिझक लकड़ी का प्रयोग जारी रखा। मुग़ल काल (1556-1707) के दौरान गुजरात की लकड़ी नक़्क़ाशी में देशी एवं मुग़ल शैलियों का सुंदर संयोजन दिखाई देता है। 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध एवं 17वीं सदी के जैन काष्ठ मंडपों पर जैन पौराणिक कथाएँ एवं समकालीन जीवन के दृश्य तथा काल्पनिक बेल-बूटे, पशु-पक्षी एवं ज्यामितीय आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं; आकृति मूर्तिकला अत्यंत जीवंत एवं लयात्मक है। लकड़ी पर गाढ़े लाल रौग़न का प्रयोग आम था। 19वीं सदी के कई भव्य काष्ठ पुरोभाग संरक्षित हैं, लेकिन उनका अलंकरण पहले की निर्मितियों जैसा ललित और गत्यात्मक नहीं है। गुजरात (/ ˌɡʊdʒərɑːt / Gujrāt [ɡudʒ (ə) ɾaːt̪] (इस ध्वनि के बारे में सुनो) पश्चिमी भारत में एक राज्य है, इसका क्षेत्र 1,6,024 किमी 2 (75,685 वर्ग मील) है जिसमें 1,600 किलोमीटर (9 9 0 9 मील), जिनमें से अधिकांश काठियावाड़ प्रायद्वीप पर स्थित है, और 60 मिलियन से अधिक की आबादी है राज्य को राजस्थान से उत्तर की ओर, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में मध्य प्रदेश, और अरब सागर और पश्चिम में सिंध के पाकिस्तानी प्रांत में सीमाएं हैं। इसकी राजधानी गांधीनगर है, जबकि इसका सबसे बड़ा नगर अहमदाबाद है। गुजरात भारत के गुजराती भाषण वाले लोगों का घर है। राज्य में प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ साइटें शामिल हैं, जैसे लोथल और ढोलवीरा लोथल को दुनिया के पहले बंदरगाहों में से एक माना जाता है। गुजरात के तटीय नगरो, मुख्यतः भरूच और खंभात, मोरिया और गुप्त साम्राज्यों में बंदरगाहों और व्यापार केंद्रों के रूप में कार्य करते थे, और पश्चिमी सतराप काल से शाही शक राजवंशों के उत्तराधिकार के दौरान। गुजरात प्राचीन यूनानियों के लिए जाना जाता था, और यूरोपीय मध्य युग के अंत के माध्यम से सभ्यता के अन्य पश्चिमी केंद्रों में परिचित था। गुजरात के 2,000 साल के समुद्री इतिहास का सबसे पुराना लिखित रिकार्ड एक ग्रीक किताब में प्रकाशित किया गया है जिसका नाम पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रेअन सी: ट्रैवल एंड ट्रेड इन हिंद ओन्सन ऑफ द मर्चेंट ऑफ द फर्स्ट सेंचुरी है। प्राचीन लोथल की ढक्कन आज की तरह है ढोलवीरा में प्राचीन जल भंडार गुजरात सिंधु घाटी सभ्यता के मुख्य केंद्रों में से एक था। इसमें सिंधु घाटी से प्राचीन महानगरीय नगरो जैसे लोथल, धौलावीरा और गोला धोरो शामिल हैं। लोथल प्राचीन नगर था जहां भारत का पहला बंदरगाह स्थापित किया गया था। प्राचीन नगर ढोलवीरा, सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित भारत की सबसे बड़ी और सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है। सबसे हालिया खोज गोला धोरो थी। कुल मिलाकर, लगभग 50 सिंधु घाटी स्थितियों के खंडहर गुजरात में खोजे गये है। गुजरात के प्राचीन इतिहास को इसके निवासियों की वाणिज्यिक गतिविधियों से समृद्ध किया गया था। 1000 से 750 ईसा पूर्व के समय के दौरान फारस की खाड़ी में मिस्र, बहरीन और सुमेर के साथ व्यापार और वाणिज्य संबंधों का स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण है। मौर्या राजवंश, पश्चिमी सतराप, सातवाहन राजवंश, गुप्त साम्राज्य, चालुक्य वंश, राष्ट्रकूट साम्राज्य, पाल साम्राज्य के साथ-साथ स्थानीय राजवंशों जैसे मैत्रकस और फिर हिंदू और बौद्ध राज्यों का उत्तराधिकार था। गुजरात के शुरुआती इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य की शाही भव्यता को दर्शाया गया है, जिसने पहले के कई राज्यों पर विजय प्राप्त की जो अब गुजरात है। पुष्यगुप्त, एक वैश्य, को मौर्य शासन द्वारा सौराष्ट्र के राज्यपाल नियुक्त किया गया था। उन्होंने गिरिंगर (आधुनिक दिवस जूनागढ़) (322 ईसा पूर्व से 2 9 4 ईसा पूर्व) पर शासन किया और सुदर्शन झील पर एक बांध बनाया। चंद्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक ने केवल जूनागढ़ में चट्टान पर अपने पदों के उत्कीर्णन का आदेश नहीं दिया, बल्कि राज्यपाल टुशेरफा को झील से नहरों में कटौती करने के लिए कहा, जहां पहले मौर्य राज्यपाल ने बांध बांध दिया था। मौर्य शक्ति की कमी और उज्जैन के सम्प्रति मौर्यों के प्रभाव में सौराष्ट्र आने के बीच, डेमेट्रीयूस के नेतृत्व में गुजरात में एक इंडो-ग्रीक आक्रमण हुआ। 1 शताब्दी ईस्वी के पहले छमाही में, गुजरात गोंडफेयर के एक व्यापारी की कहानी है जो गुजरात में उत्तराधिकारी थॉमस के साथ उतरती है। शेर की हत्या कर रहे कप वाहक की घटना से संकेत हो सकता है कि बंदरगाह नगर का वर्णन गुजरात में है। 1 सदी ईस्वी की शुरुआत से लगभग 300 वर्षों तक, गुजरात शासकों ने गुजरात के इतिहास में एक प्रमुख भूमिका निभाई। जूनागढ़ में मौसम से पीटा हुआ चट्टान शाकाहारी रूद्राद्रमैन I (100 एडी) की सैकड़ों सैक्रापों की एक झलक देता है जिन्हें पश्चिमी सतराप, या क्षत्रप कहा जाता है। जातियां भील : भील भारत देश साथ साथ गुजरात की प्रमुख जनजातियों में से एक है। गुजरात के पूर्वा पट्टी के जिले में भील आदिवासी की संख्या अधिक मात्रा में है। गुजरात के बनासकांठा,साबरकांठा,अरवल्ली महिसागर,दाहोद,पंचमहाल,बड़ोदरा ग्रामीण,छोटाउदयपुर,नर्मदा,भरूच तापी,सूरत,नवसारी,डांग और वलसाड में भील की बस्ती है। कोली : कोली और भील जनजाति इतिहास के कई युद्ध में एक साथ देखी । काठी दरबार : काठी दरबार गुजरात की प्रमुख जातियों में से एक है। राजपूत :राजपूत जाति गुजरात में पाई जाने वाले जातियों में से एक है। रबारी :रबारी समाज मूल मालधारी है ये भेस,बकरी, भेड़, उट, चराते है। रबारी समाज मूल राजस्थान है । इन्हें भी देखें गुजरात के लोकसभा सदस्य धोलावीरा रन ऑफ कच्छ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ गुजरात सरकार का जालस्थल (गुजराती) गुजरात पर्यटन का आधिकारिक जालस्थल गुजरात का नल सरोवर है प्रवासी पक्षियों का स्वर्ग गुजरात के प्रमुख नगरो के व्यंजन गुजरात का प्रसिद्ध व्यंजन खमन ढोकला कैसे बनता हैं। श्रेणी:भारत के राज्य
गोवा
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200px|right गोवा या गोआ (कोंकणी: गोंय), क्षेत्रफल के अनुसार से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के अनुसार चौथा सबसे छोटा राज्य है। पूरी दुनिया में गोवा अपने सुन्दर समुद्र के किनारों और प्रसिद्ध स्थापत्य के लिये जाना जाता है। गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया और 19 दिसंबर 1961 में यह भारतीय प्रशासन को सौंपा गया। गोवा नाम का उद्भव महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गोपालकों के देश के रूप में मिलता है। दक्षिण कोंकण क्षेत्र का उल्लेख गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है। संस्कृत के कुछ अन्य पुराने स्त्रोतों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता है। गोवा को बाद में कहीं कहीं गोअंचल भी कहा गया है। अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन औरगोमंत प्रमुख हैं। टोलेमी ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है। अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद में उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया। जनश्रुति के अनुसार गोवा जिसमें कोंकण क्षेत्र भी शामिल है (और जिसका विस्तार गुजरात से केरल तक बताया जाता है) की रचना भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक यज्ञ के दौरान अपने बाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोवा में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं। उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है। इतिहास गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत् तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरू होता है जब यहाँ मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहाँ से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहाँ शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का यहाँ कब्जा हुआ जिसने गोअ-वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। 1510 में, पुर्तगालियों ने एक स्थानीय सहयोगी, तिमैया की मदद से सत्तारूढ़ बीजापुर सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को पराजित किया। उन्होंने वेल्हा गोवा में एक स्थायी राज्य की स्थापना की। यह गोवा में पुर्तगाली शासन का प्रारंभ था जो अगली साढ़े चार सदियों तक चला। 1843 में पुर्तगाली राजधानी को वेल्हा गोवा से पंजिम ले गए। मध्य 18 वीं शताब्दी तक, पुर्तगाली गोवा का वर्तमान राज्य सीमा के अधिकांश भाग तक विस्तार किया गया था। भारत ने 1947 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की, भारत ने अनुरोध किया कि भारतीय उपमहाद्वीप में पुर्तगाली प्रदेशों को भारत को सौंप दिया जाए।किंतु पुर्तगाल ने अपने भारतीय परिक्षेत्रों की संप्रभुता पर बातचीत करना अस्वीकार कर दिया। पर 19 दिसंबर 1961 को, भारतीय सेना ने गोवा, दमन, दीव के भारतीय संघ में विलय के लिए ऑपरेशन विजय के साथ सैन्य संचालन किया और इसके परिणामस्वरूप गोवा, दमन और दीवभारत का एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना। 30 मई 1987 में केंद्र शासित प्रदेश को विभाजित किया गया था, और गोवा भारत का पच्चीसवां राज्य बनाया गया। जबकि दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश ही रहे। भूगोल गोवा का क्षेत्रफल 3702 वर्ग किलोमीटर है। गोवा का अक्षांश और देशान्तर क्रमश: 14°53'54" और 73°40'33" E है। गोवा का समुद्र तट 132 किलोमीटर लम्बा है। गोआ भारत का सबसे छोटा राज्य है। अर्थ जगत गोवा का प्रमुख उद्योग पर्यटन है। पर्यटन के आलावा गोवा में लौह खनिज भी विपुल मात्रा में पाया जाता है जो जापान तथा चीन जैसे देशों में निर्यात होता है। गोवा मतस्य (मछली) उद्योग के लिए भी जाना जाता है लेकिन यहाँ की मछली निर्यात नहीं की जाती बल्कि स्थानीय बाजारों में बेची जाती है। यहाँ का काजू सउदी अरब, ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय राष्ट्रों को निर्यात होता है। पर्यटन के वज़ह से बाकी उद्योग जो पर्यटन पर निर्भर करते है वो भी यहाँ पर जोर शोर से चालू हैं। गोवा में अभी तक सिर्फ़ एक ही विमानपत्तन है और दूसरा अभी बनने वाला है। लोग और संस्कृति गोवा करीब करीब 450 साल तक पुर्तगाली शासन के अधीन रहा, इस कारण यहाँ यूरोपीय संस्कृति का प्रभाव बहुत महसूस होता है। गोवा की लगभग 60% जनसंख्या हिंदू और लगभग 28% जनसंख्या ईसाई है। गोवा की एक खास बात यह है कि, यहाँ के ईसाई समाज में भी हिंदुओं जैसी जाति व्यवस्था पाई जाती है। गोवा के दक्षिण भाग में ईसाई समाज का ज्यादा प्रभाव है लेकिन वहाँ के वास्तुशास्त्र में हिंदू प्रभाव दिखाई देता है। सबसे प्राचीन मन्दिर गोवा में दिखाई देते है। उत्तर गोवा में ईसाइ कम संख्या में हैं इसलिए वहाँ पुर्तगाली वास्तुकला के नमूने ज्यादा दिखाई देते है। संस्कृति की दृष्टि से गोवा की संस्कृति काफी प्राचीन है। 1000 साल पहले कहा जाता है कि गोवा "कोंकण काशी" के नाम से जाना जाता था। हालाँकि पुर्तगाली लोगों ने यहाँ के संस्कृति का नामोनिशान मिटाने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन यहाँ की मूल संस्कृति इतनी शक्तिशाली थी की वह ऐसा नहीं कर पाए। गोवा की भाषा कोंकणी और लिपि देवनागरी है। हिन्दी का भी अधिकाधिक उपयोग होता है। Goa and the rise of Hindi यातायात बाहरी हवाई: डैबोलिम विमानक्षेत्र यहाँ का घरेलू हवाई अड्डा है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। अभी हाल के वर्षों में गोवा के लिये पणजी हवाई अड्डे से अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने भी शुरू हुई हैं। सड़क: गोवा मुम्बई, बंगलोर से काफी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, इन शह्रों से गोवा के लिये सीधी लक्जरी बसें चलती हैं। इसके अलावा अन्य नजदीक के शहर भी आप सड़क द्वारा यहाँ से जा सकते हैं। रेल: जबसे यहाँ कोंकण रेलवे की शुरुआत हुई है गोवा भारत के पूर्वी तटीय शहरों से जुड़ गया है। कोंकण रेलवे अपनी गति और अच्छी सेवा के लिये पूरे भारत में मशहूर है। इसके अलावा गोवा आने के लिये देश के किसी भी बड़े स्टेशन से आप वास्को द गामा के लिये सीधी रेलगाड़ी पकड़ सकते हैं। आंतरिक टैक्सी बिना मीटर और मीटर वाली टैक्सियाँ यहाँ पर्यटकों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने का सबसे लोकप्रिय साधन है। बिना मीटर वाली टैक्सियों में यात्री पहले से भाड़े के बारे में तय करते हैं। बस गोवा में ज्यादातर बसे प्राईवेट चालकों द्वारा चलाई जाती हैं। आम तौर पर बसों में काफी भीड़ होती है। गोवा सरकार द्वारा यहाँ कदम्ब बस सर्विस चलाई जाती है जिनमें धीरे चलनेवाली बसों से लेकर द्रुत सेवा की लंबी दूरी की बसें शामिल होती हैं। नाव पर्यटन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति गोवा को कुछ ऐसा ही अलग, लेकिन अदभुत स्वरूप प्रदान करती है। यह स्थान शांतिप्रिय पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को बहुत भाता है। गोवा एक छोटा-सा राज्य है। यहां छोटे-बड़े लगभग 40 समुद्री तट है। इनमें से कुछ समुद्र तट अंर्तराष्ट्रीय स्तर के हैं। इसी कारण गोवा की विश्व पर्यटन मानचित्र के पटल पर अपनी एक अलग पहचान है। गोवा में पर्यटकों की भीड़ सबसे अधिक गर्मियों के महीनें में होती है। जब यह भीड़ समाप्त हो जाती है तब यहां शुरू होता है ऐसे सैलानियों के आने का सिलसिला जो यहां मानसून का लुत्‍फ उठाना चाहते हैं। गोवा के मनभावन बीच की लंबी कतार में पणजी से 16 किलोमीटर दूर कलंगुट बीच, उसके पास बागा बीच, पणजी बीच के निकट मीरामार बीच, जुआरी नदी के मुहाने पर दोनापाउला बीच स्थित है। वहीं इसकी दूसरी दिशा में कोलवा बीच ऐसे ही सागरतटों में से है जहां मानसून के वक्त पर्यटक जरूर आना चाहेंगे। यही नहीं, अगर मौसम साथ दे तो बागाटोर बीच, अंजुना बीच, सिंकेरियन बीच, पालोलेम बीच जैसे अन्य सुंदर सागर तट भी देखे जा सकते हैं। गोवा के पवित्र मंदिर जिनसे श्री कामाक्षी, सप्तकेटेश्‍वर, श्री शांतादुर्ग, महालसा नारायणी, परनेम का भगवती मंदिर और महालक्ष्मी आदि दर्शनीय है। गोवा में किराए पर बाइक.Bike rental in goa . bike rentals. मांडवी नदी पणजी गोवा की राजधानी है। यहां के आधुनिक बाजार भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मांडवी नदी के तट पर बसे इस शहर में शाम के समय सैलानी रिवर क्रूज का आनन्द लेने पहुंचते हैं। मांडवी पर तैरते क्रूज पर संगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम में गोवा की संस्कृति की एक झलक देखने को मिलती है। मडगांव Madgaav गोवा की दूसरी सबसे बड़ी सिटी है और साथ ही साथ गोवा की सबसे Old City भी है। पुर्तगालियों के समय में किस शहर का नाम मडगांव हुआ करता था। और यहां पर घूमने के प्रमुख स्थान हैं कैनोपी गोवा, एकुएम की गुफा, वेलसो बीच, कोनिवल स्टाइल विला,टाउन स्क्वायर और मोंटे हिल यहां के प्रमुख स्थान है । विस्तार से जानने के लिए यहाँ दबाये फोर्ट अगोड़ा फोर्ट अगोड़ा नॉर्थ गोवा के Tourist Places में से एक है यहां पर कई सारे किले हैं लेकिन इनमें जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध किला है वह है फोर्ट अगोड़ा। इसका निर्माण पुर्तगालियों ने मराठा और डच सेना से बचने के लिए किया था । इस किले के ऊपर से अगर आप समुद्र देखते हैं तो यहां का नजारा काफी सुंदर होता है। विस्तार से जानने के लिए यहाँ दबाये गोवा के जिले गोवा में दो जिले हैं - उत्तर गोवा जिला दक्षिण गोवा जिला खेल गोवा में सबसे लोकप्रिय खेल फुटबाल है। यहाँ कई लोकप्रिय फुटबाल क्लब हैं। इसके अलावा गोवा के बहुत से खिलाड़ी हाकी में भी दिलचस्पी रखते हैं। गोवा में अनेक समुद्रतट हैं . उन्मे से कुछ हैं बागा समुद्रतट, कलांगुते समुद्रतट, कोला समुद्रतट, इतियादी। सन्दर्भ इन्हें भी देखें गोवा का इतिहास गोवा मुक्ति संग्राम बाहरी कड़ियाँ Government of Goa official website Information on accommodation in hotels and resorts in Goa श्रेणी:भारत में पर्यटन
चण्डीगढ़
https://hi.wikipedia.org/wiki/चण्डीगढ़
चण्डीगढ़, (पंजाबी: ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ), भारत का एक संघ राज्यक्षेत्र है, जो दो भारतीय राज्यों, पंजाब और हरियाणा की राजधानी भी है। इसके नाम का अर्थ है चण्डी का किला। यह हिन्दू देवी दुर्गा के एक रूप चण्डिका या चण्डी के एक मन्दिर के कारण पड़ा है। यह मन्दिर आज भी शहर से कुछ दूर हरियाणा के पंचकुला जिले में स्थित है। इसे सिटी ब्यूटीफुल भी कहा जाता है। चण्डीगढ़ राजधानी क्षेत्र में मोहाली, पंचकुला और ज़ीरकपुर आते हैं, जिनकी २००१ की जनगणना के अनुसार जनसंख्या ११६५१११ (१ करोड़ १६ लाख) है। भारत की लोकसभा में प्रतिनिधित्व हेतु चण्डीगढ़ के लिए एक सीट आवण्टित है। वर्तमान सत्रहवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी की श्रीमती किरण खेर यहाँ से संसद सदस्य हैं। २०२० ईसवी से पूर्व चण्डीगढ में सेक्टर १३ नाम से कोइ सेक्टर नहीं था क्योंकि चण्डीगढ़ शहर के शिल्पकार ली कार्बूजियर इस अंक को अशुभ मानते थे। किन्तु फ़रवरी २०२० में संघ राज्यक्षेत्र प्रशासन द्वारा नगर के ८ क्षेत्रों को क्षेत्रक १३ अधिसूचित किया गया। इस शहर का नामकरण दुर्गा के एक रूप ‘चण्डिका’ के कारण हुआ है और चंडी का मंदिर आज भी इस शहर की धार्मिक पहचान है।चण्डीगढ़ पर हिमाचल का भी बनता है हक नवोदय टाइम्स इस शहर के निर्माण में तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू की भी निजी रुचि रही है, जिन्होंने नए राष्ट्र के आधुनिक प्रगतिशील दृष्टिकोण के रूप में चण्डीगढ़ को देखते हुए इसे राष्ट्र के भविष्य में विश्वास का प्रतीक बताया था। चण्डीगढ़ को तत्कालीन भारत राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद द्वारा १९५३ ई० में किया गया था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शहरी योजनाबद्धता और वास्तु-स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध यह शहर आधुनिक भारत का प्रथम योजनाबद्ध शहर है।भारत का व्यवसाय पोर्टल , चण्डीगढ़ के मुख्य वास्तुकार फ्रांसीसी वास्तुकार ली कार्बूजियर हैं, लेकिन शहर में पियरे जिएन्नरेट, मैथ्यु नोविकी एवं अल्बर्ट मेयर के बहुत से अद्भुत वास्तु नमूने देखे जा सकते हैं। शहर का भारत के समृद्ध राज्यों और संघ शसित प्रदेशों की सूची में अग्रणी नाम आता है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय ९९,२६२ रु (वर्तमान मूल्य अनुसार) एवं स्थिर मूल्य अनुसार ७०,३६१ (२००६-०७) रु है। इतिहास right|thumb|शहर के बाहरी क्षेत्र में स्थित एक हिन्दू मंदिर ब्रिटिश भारत के विभाजन उपरांत १९४७ में पंजाब राज्य को भारत और पाकिस्तान में दो भागों में बाँट दिया गया था। इसके साथ ही राज्य की पुरानी राजधानी लाहौर पाकिस्तान के भाग में चली गयी थी। अब भारतीय पंजाब को एक नई राजधानी की आवश्यकता पड़ी। पूर्व स्थित शहरों को राजधानी बदलने में आने वाली बहुत सी कठिनाईयों के फलस्वरूप एक नये योजनाबद्ध राजधानी शहर की स्थापना का निश्चय किया गया तथा १९५२ में इस शहर की नींव रखी गई। उस समय में भारत में चल रही बहुत सी नवीन शहर योजनाओं में चंडीगढ़ को प्राथमिकता मिली जिसका मुख्य कारण एक तो नगर की स्थिति और दूसरा कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु तथा राज्यपाल सर सी पी एन ( चन्देश्वर प्रसाद नारायण सिंह ) का निजी रुचि का होना था । राष्ट्र के आधुनिक प्रगतिशील दृष्टिकोण के रूप में चंडीगढ़ को देखते हुए उन्होंने शहर को अतीत की परंपराओं से उन्मुक्त, राष्ट्र के भविष्य में विश्वास का प्रतीक बताया। शहर के बहुत से खाके व इमारतों की वास्तु रचना फ्रांस में जन्में स्विस वास्तुकार व नगर-नियोजक ली कार्बुज़िए ने १९५० के दशक में की थी। कार्बुज़िए भी असल में शहर के द्वितीय वास्तुकार थे, जिसका मूल मास्टर प्लान अमरीकी वास्तुकार-नियोजक अल्बर्ट मेयर ने तब बनाया था, जब वे पोलैंड में जन्मे वास्तुकार मैथ्यु नोविकी के संग कार्यरत थे। १९५० में नोविकी की असामयिक मृत्यु के चलते कार्बूजियर को परियोजना में स्थान मिला था। १ नवंबर, १९६६ को पंजाब के हिन्दी-भाषी पूर्वी भाग को काटकर हरियाणा राज्य का गठन किया गया, जबकि पंजाबी-भाषी पश्चिमी भाग को वर्तमान पंजाब ही रहने दिया था। चंडीगढ़ शहर दोनों के बीच सीमा पर स्थित था, जिसे दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी के रूप में घोषित किया गया और साथ ही संघ शासित क्षेत्र भी घोषित किया गया था। १९५२ से १९६६ तक ये शहर मात्र पंजाब की राजधानी रहा था। अगस्त १९८५ में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच हुए समझौते के अनुसार, चंडीगढ़ को १९८६ में पंजाब में स्थानांतरित होना तय हुआ था। इसके साथ ही हरियाणा के लिए एक नई राजधानी का सृजन भी होना था, किन्तु कुछ प्रशासनिक कारणों के चलते इस स्थानांतरण में विलंब हुआ। इस विलंब के मुख्य कारणों में दक्षिणी पंजाब के कुछ हिन्दी-भाषी गाँवों को हरियाणा और पश्चिम हरियाणा के पंजाबी-भाषी गाँवों को पंजाब को देने का विवाद था। १५ जुलाई २००७ को चण्डीगढ़ प्रथम भारतीय गैर-धूम्रपान क्षेत्र घोषित हुआ। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध है और चण्डीगढ़ प्रशासन के नियमों के तहत दण्डनीय अपराध है। इसका बाद २ अक्टूबर २००८ को राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी के जन्म-दिवस पर शहर में पॉलीथीन की थैलियों के प्रयोग पर पूर्ण निषेध लागू हो गया। नए चण्डीगढ़, चण्डीगढ़, के आसपास Mullanpur Garibdass के शहर के पास स्थित एक नए समाधान की पंजाब की पहली 'स्मार्ट शहर के रूप में" डिज़ाइन किया गया है। पहला इको सिटी के पंजाब GMADA, ग्रेटर मोहाली क्षेत्र के स्थानीय योजना प्राधिकरण Mullanpur पहली पारिस्थितिकी & स्मार्ट सिटी पंजाब के रूप में घोषित किया था। Mullanpur नए चण्डीगढ़ का हिस्सा होगा। नए चण्डीगढ़ के 32 गांवों से बना हो जाएगा। इस शहर का पहला चरण पहले से ही घोषित किया गया है और भूमि अधिग्रहण और प्लॉट आवण्टन की प्रक्रिया शुरू की गई है। यह कई पार्कों और पर्यटन स्थल की मेजबानी करेगा। शहर के मास्टर प्लान सिंगापुर स्थित कम्पनी द्वारा Jurong अन्तर्राष्ट्रीय तैयार है। यह शहर मुख्य रूप से आवासीय शहर उच्च रहने के साथ के रूप में होगा। यह शहर सूचना प्रौद्योगिकी और अस्पतालों की तरह nonpolluting उद्योगों की मेजबानी करेगा। प्रमुख खिलाड़ी GMADA, जो पहले से ही भूमि अधिग्रहण और प्लॉट आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, इसके अलावा कई निजी खिलाड़ी हैं। डीएलएफ एक 1,000 एकड़ बस्ती ऊपर सेट करने के लिए योजना बना रहा है। कम्पनी पहले चरण के लिए 400 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया है; दूसरे चरण के लिए अधिग्रहण शीघ्र ही शुरू हो जाएगा। यूनिटेक समूह और Altus अन्तरिक्ष बिल्डर्स भी आवासीय टाउनशिप विकसित कर रहे हैं। अन्य डेवलपर्स रिलायंस अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह (ADAG), Ansals और Rahejas शामिल हैं। चण्डीगढ़ (स्थानीय उच्चारण: [tʃə̃ˈɖiːɡəɽʱ] (यह ध्वनि सुनने के बाद में) एक शहर और एक संघ भारत के राज्यक्षेत्र कि हरियाणा और पंजाब के भारतीय राज्यों की राजधानी के रूप में कार्य करता है। एक केंद्र शासित प्रदेश, के रूप में शहर सीधे केन्द्रीय सरकार द्वारा नियंत्रित होता है और या तो राज्य का हिस्सा नहीं है। चंडीगढ़ पंजाब उत्तर, पश्चिम और दक्षिण के लिए, और हरियाणा राज्य के पूर्व करने के लिए राज्य द्वारा bordered है। चंडीगढ़ चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र या ग्रेटर चंडीगढ़, चंडीगढ़, और शहर के पंचकुला (हरियाणा) में भी शामिल है जो का एक हिस्सा और Kharar, Kurali, मोहाली, (पंजाब) में ज़िरकपुर का शहर माना जाता है। यह शिमला के दक्षिण पश्चिम के अमृतसर और सिर्फ 116 मी (72 मील) दक्षिण-पूर्व स्थित 260 किमी (162 मील) उत्तर न्यू दिल्ली, 229 मी (143 मील) है। चंडीगढ़ आजादी के बाद भारत में प्रारंभिक नियोजित शहरों में से एक था जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी वास्तुकला और शहरी डिजाइन के लिए जाना जाता है। Le Corbusier, जो बदल से पहले की योजना बनाई गई स्विस-फ़्रांसीसी आर्किटेक्ट पोलिश वास्तुकार Maciej Nowicki और अमेरिकी नियोजक अल्बर्ट मेयर द्वारा द्वारा शहर का मास्टर प्लान तैयार किया गया था। अधिकांश सरकारी इमारतों और शहर में आवास चंडीगढ़ राजधानी परियोजना Le Corbusier, जेन आकर्षित और मैक्सवेल तलना द्वारा नेतृत्व टीम द्वारा डिजाइन किए गए थे। 2015 में बीबीसी द्वारा प्रकाशित लेख चंडीगढ़ वास्तुकला, सांस्कृतिक विकास और आधुनिकीकरण के मामले में दुनिया के आदर्श शहरों में से एक के रूप में नाम। चंडीगढ़ के कैपिटल परिसर यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सम्मेलन के 40 वें सत्र में विश्व विरासत के रूप में की घोषणा की जुलाई 2016 में इस्तांबुल में आयोजित किया गया था। यूनेस्को शिलालेख "Le Corbusier आधुनिक आंदोलन करने के लिए एक उत्कृष्ट योगदान के वास्तु काम" के तहत था। कैपिटल परिसर इमारतें स्मारकों खुले हाथ के साथ साथ, शहीद स्मारक, गुणोत्तर हिल और टॉवर की छाया पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा सचिवालय और पंजाब और हरियाणा विधानसभा शामिल हैं। शहर देश में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय में से एक है। शहर एक राष्ट्रीय सरकार अध्ययन पर आधारित सबसे साफ भारत में से एक होने की सूचना दी थी। संघ शासित क्षेत्र भी मानव विकास सूचकांक के अनुसार भारतीय राज्यों की राजधानियां की सूची प्रमुख हैं। २०१५, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, द्वारा एक सर्वेक्षण में चंडीगढ़ खुशी सूचकांक पर भारत में सबसे खुशी का शहर के रूप में रैंक। [15] [16] मेट्रोपोलिटन चंडीगढ़-मोहाली-पंचकूला की सामूहिक रूप से 2 लाख से अधिक की जनसंख् या के साथ मिलाकर एक त्रि-शहर, रूपों। सामग्री 1 व्युत्पत्ति 2 इतिहास 2.1 प्रारंभिक इतिहास 2.2 आधुनिक इतिहास 3 भूगोल और पारिस्थितिकीय 3.1 स्थान 3.2 जलवायु 3.3 पारिस्थितिकी तंत्र 4 जनांकिक 4.1 जनसंख्या 4.2 भाषा 4.3 धर्म 5 अर्थव्यवस्था 5.1 रोजगार 6 राजनीति ब्याज के 7 स्थानों 7.1 सुखना झील 7.2 रॉक गार्डन 7.3 रोज गार्डन 7.4 तोता पक्षी अभयारण्य चंडीगढ़ 7.5 अवकाश घाटी 7.6 अन्य स्थलों 8 शिक्षा 9 परिवहन 9.1 रोड 9.2 हवा 9.3 रेल 10 मनोरंजन 10.1 खेल 10.2 गार्डन चंडीगढ़ से 11 उल्लेखनीय लोग 12 गैलरी 13 यह भी देखें 14 नोट्स 15 संदर्भ 16 आगे पठन 17 बाह्य लिंक व्युत्पत्ति [संपादित करें] नाम चंडीगढ़ चण्डी और गढ़ का एक सूटकेस है। चण्डी हिंदू देवी चण्डी, योद्धा देवी पार्वती का अवतार और गढ़ का मतलब है घर के लिए संदर्भित करता है। [18] नाम चंडी मंदिर, एक प्राचीन मंदिर हिंदू देवी चण्डी, पंचकुला जिले में शहर के पास करने के लिए समर्पित से ली गई है। [19] "सिटी सुंदर" के लोगो कि उत्तरी अमेरिकी शहरी 1890 और 1900s के दौरान योजना में एक लोकप्रिय दर्शन था शहर सुंदर आंदोलन से निकला है। वास्तुकार अल्बर्ट मेयर, चंडीगढ़, के प्रारंभिक योजनाकार शहर सुंदर अवधारणाओं की अमेरिकी अस्वीकृति का कहना था और घोषणा की "हम एक सुंदर शहर बनाने के लिए चाहते हैं" [20] वाक्यांश पर आधिकारिक प्रकाशनों में एक लोगो के रूप में 1970 के दशक में इस्तेमाल किया गया था, और अब है कैसे शहर ही का वर्णन करता है। [21] [22] इतिहास [संपादित करें] प्रारंभिक इतिहास [संपादित करें] शहर के एक पूर्व ऐतिहासिक अतीत है। झील की उपस्थिति के कारण, क्षेत्र जीवाश्म अवशेष निशान जलीय पौधों और पशुओं, और उभयचर जीवन, जो कि पर्यावरण द्वारा समर्थित थे की एक विशाल विविधता के साथ है। यह पंजाब क्षेत्र का एक हिस्सा था के रूप में, यह कई नदियाँ कहाँ शुरू हुआ प्राचीन और आदिम मनुष्य के बसने के पास था। तो, लगभग 8000 साल पहले, क्षेत्र भी एक घर हड़प्पावासियों के लिए किया जा करने के लिए जाना जाता था। [23] आधुनिक इतिहास 1909 में ब्रिटिश पंजाब प्रांत का एक नक्शा। विभाजन के दौरान भारत रेडक्लिफ रेखा पर, पश्चिमी पंजाब, पाकिस्तान में लाहौर, पंजाब प्रांत की राजधानी गिर गया। आवश्यकता है तो, भारत में पूर्वी पंजाब के लिए एक नई राजधानी चंडीगढ़ के विकास के लिए नेतृत्व किया। चंडीगढ़ ड्रीम सिटी के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू था। भारत विभाजन के बाद 1947 में, पंजाब के पूर्व ब्रिटिश प्रांत (ज्यादातर सिखों के बीच) विभाजित था भारत में पूर्वी पंजाब और पाकिस्तान में (अधिकतर मुस्लिम) पश्चिम पंजाब। भारतीय पंजाब लाहौर, जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान का हिस्सा बन गया की जगह एक नई राजधानी की आवश्यकता है। भूगोल तथा जलवायु left|thumb|सुखना झील चंडीगढ़ हिमालय की शिवालिक पर्वतमाला की तराई में भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। शहर का क्षेत्रफ़ल लगभग ४४ वर्ग मील (११४ कि॰मी॰²) है। इसकी सीमाएं पूर्व में हरियाणा, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में पंजाब (भारत) से लगती हैं। शहर के सही सही भूगोलीय निर्देशांक हैं। यहाँ समुद्र-सतह से औसत ऊँचाई ३२१ मी.(१०५३ फीट) है। शहर के समीपस्थ जिलों में हरियाणा के अंबाला और पंचकुला तथा पंजाब के मोहाली, पटियाला और रोपड़ जिले हैं। इसके उत्तरी भाग से हिमाचल प्रदेश की सीमाएं अधिक दूर नहीं हैं। शहर की जलवायु उप-उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय मानसून प्रकार की है; जिसमें ऊष्म ग्रीष्म काल, कुछ शीतल शीतकाल, अविश्वसनीय वर्षा और तापमान में बड़े अंतर (-१ °से. सेo ४१.२ °से.) का अनुमान रहता है। शीतकाल में दिसम्बर व जनवरी के माह में कभी-कभार कोहरा हो सकता है। औसत वार्षिक वर्षा १११०.७ मि.मी होती है। शहर को कई बार पश्चिम से लौटते मानसून की शीतकालीन वर्षा का अनुभव भी मिलता है। औसत तापमान वसंत: वसंत ऋतु (मध्य-फरवरी से मध्य मार्च और फिर मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक) में मौसम सुहावना रहता है। अधिकतम तापमान १६° सेंटीग्रेड से २५° सेंटीग्रेड और न्यूनतम तापमान ९° सेंटीग्रेड से १८° सेंटीग्रेड के बीच रहता है। पतझड़: ऑटम में (मध्य मार्च-अप्रैल), तापमान अधिकतम ३६° सेंटीग्रेड तक पहुंच सकता है। इस समय न्यूनतम तापमान १६° से २७° तक रहता है। वैसे न्यूनतम अंकित तापमान १३°से. है। ग्रीष्म: ग्रीष्म-काल में (मध्य मई से मध्य जून) तापमान ४६.५° सेंटीग्रेड (कदाचित) तक जा सकता है। सामान्यतः तापमान ३५° सेंटीग्रेड से ४०° सेंटीग्रेड के बीच रहता है। वर्षा: मानसून के दौरान (मध्य जून से मध्य सितंबर), शहर को मध्यम से भारी वर्षा मिलती है, जो कभी कभार भारी से अत्यधिक भारी भी हो सकती है (प्रायः अगस्त या सितंबर)। सामान्यतः आर्द्र मानसून वायु दक्षिण-पश्चिम/ दक्षिण-पूर्व से बहती है। शहर को भारी वर्षा दक्षिण वायु से मिलती है, किन्तु मानसून की वर्षा उत्तर-पश्चिम उआ उत्तर-पूर्व दिशा से आती है। मानसून काल में चंडीगढ़ में हुई एकदिवसीय अधिकतम वर्षा १९५.५ मि.मी अंकित है। शीतकाल: यहाँ जाड़े (नवंबर से मध्य मार्च) अच्छे ठंडे होते हैं और ये कई बार बहुत ठंडे भी हो सकते हैं। शीतकालीन औसत तापमान (अधिकतम) ७° सेंटीग्रेड से १५° सेंटीग्रेड एवं (न्यून) -२° सेंटीग्रेड से ५° सेंटीग्रेड तक हो सकता है। इस समय वर्षाएं कम ही होती हैं, किन्तु २-३ दिवसीय वर्षा संभव है, जो ओले और आंधी के संग पश्चिम से आ सकती है। पादप और जन्तु 200px|thumb|वन में सम्भर 200px|thumb|left|कैसिया फिस्टुला चंडीगढ़ में अधिकांश चण्डीगढ़ बरगद और यूकेलिप्टस के बगीचों से भरा हुआ है। अशोक, कैसिया, शहतूत व अन्य वृक्ष भी यहाँ की शोभा बढ़ाते हैं। शहर को घेरे हुए बड़ा वन्य-क्षेत्र है जिसमें अनेक जन्तु व पादप प्रजातियां फलती-फूलती हैं। हिरण, साम्भर, कुत्ता, तोते, कढ़फोड़वे एवं मोर संरक्षित वनों में निवास करते हैं। सुखना झील में बत्तखों और गीज़ प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं, जो जापान और साईबेरिया क्षेत्रों से उड़कर जाड़ों में यहाँ आते हैं व झील की शोभा बढ़ाते हैं। शहर में एक शुक अभयारण्य भी है, जिसमें पक्षियों कि अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। प्रशासन चंडीगढ़ प्रशासन संविधान की धारा २३९ के तहत नियुक्त किये गए प्रशासक के अधीन कार्यरत है। शहर का प्रशासनिक नियंत्रण भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पास है। वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक होते हैं। प्रशासक का सलाहकार एक अखिल भारतीय सेवाओं से नियुक्त अति-वरिष्ठ अधिकारी होता है। ये अधिकारी प्रशासक के बाद सर्वे-सर्वा होता है। इस अधिकारी का स्तर भारतीय प्रशासनिक सेवा में ए.जी.एम.यू कैडर का होता है। thumb|चंडीगढ़ उच्च न्यायालय उपायुक्त: भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी जो चंडीगढ़ के सामान्य प्रशासन की देखरेख करता है। वन उपसंरक्षक: भारतीय वन सेवा का अधिकारी, जो वन्य प्रबंधन, पर्यावरण, वन्य-जीवन एवं प्रदूषण नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होता है। वरिष्ठ अधीक्षक (पुलिस): भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी, जो शहर में विधि एवं न्याय व्यवस्था बनाये रखने एवं संबंधित विषयों के लिए उत्तरदायी होता है। उपरोक्त तीन अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं के ए.जी.एम.यू, हरियाणा या पंजाब कैडर से होते हैं। जनसांख्यिकी २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार, चंडीगढ़ की कुल जनसंख्या ९,००,६३५ है, जिसके अनुसार ७९०० व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰ का घनत्व होता है। इसमें पुरुषों का भाग कुल जनसंख्या का ५६% और स्त्रियों का ४४% है। शहर का लिंग अनुपात ७७७ स्त्रियां प्रति १००० पुरुष हैं, जो देश में न्यूनतम है। औसत साक्षरता दर ८१.९% है, जो राष्ट्रीय औसत साक्षरता दर ६४.८ से अधिक है। इसमें पुरुष दर ८६.१% एवं स्त्री साक्षरता दर ७६.५% है। यहाँ की १२% जनसंख्या छः वर्ष से नीचे की है। मुख्य धर्मों में हिन्दू (७८.६%), सिख (१६.१%), इस्लाम (३.९%) एवं ईसाई (०.८% हैं। चंडीगढ़ में रहने वाले हरियाणा व पंजाब के प्रवासी लोग भी बड़े प्रतिशत में हैं, जो यहाँ की व्यावसायिक रिक्तियों को भरने हेतु व धनोपार्जन में लगे हैं। ये लोग शहर के विभिन्न सरकारी विभागों व निजी व्यवसायों में कार्यरत हैं। भाषाएं हिन्दी एवं पंजाबी चंडीगढ़ की बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएं हैं, हालाँकि आजकल अंग्रेज़ी भी प्रचलित होती जा रही है। अधिकांश आबादी हिंदी (73%) बोलती है जबकि पंजाबी 23% बोली जाती है। तमिल-भाषी लोग तीसरा सबसे बड़ा समूह बनाते हैं। शहर के लोगों का एक छोटा भाग उर्दु भी बोलता है। अर्थ व्यवस्था चंडीगढ़ सॉफ्टवेयर निर्यात वृद्धि उद्यमी विकास केंद्र (EDC) एक जगह है जो चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा राजीव गांधी चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क (RGCTP) में चंडीगढ़ से सॉफ्टवेयर निर्यात के निर्यात को बढ़ाने और युवा पेशेवरों को अपनी उद्यमशीलता स्थापित करने में सहायता करने के लिए प्रदान की गई है। शेल स्पेस या स्पेस एन प्ले फैसिलिटीज इन द स्टेट ऑफ़ द आर्ट एनवायरनमेंट फ्रेंडली और एक इंटेलिजेंट बिल्डिंग। इस परियोजना की कल्पना आईटी सॉफ्टवेयर निर्यात कंपनियों के लिए एक पारगमन बिंदु के रूप में की गई है, जो पार्क में आने के लिए तैयार हैं, लेकिन अभी तक उनकी खुद की पूरी तरह से विकसित इमारत नहीं है, या उनके द्वारा निर्मित स्वीट प्लॉट का निर्माण अभी तक नहीं हुआ है। इसके पास आईटी विभाग के प्रशासनिक कार्यालय भी होंगे जो आसपास के क्षेत्रों में आईटी कंपनियों के लिए अधिक सुलभ और सुलभ होंगे। यह परियोजना आंशिक रूप से निर्यात अवसंरचना और संबद्ध गतिविधियों (ASIDE) योजना के लिए राज्यों को सहायता के माध्यम से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित की जाएगी, जो निर्यात से संबंधित परियोजनाओं के लिए है। EDC कला भवन का एक राज्य होगा जहां छोटे और मध्यम आकार की आईटी कंपनियां सॉफ्टवेयर विकास, आरएंडडी और अन्य उच्च मूल्य सेवाओं के लिए निर्मित स्थान पर कब्जा कर लेंगी, जो निर्यात उद्देश्यों के लिए होगा। यह केंद्र उन सभी युवा आईटी उद्यमियों के लिए ऊष्मायन सुविधाएं भी प्रदान करेगा, जिन्हें प्लग एन प्ले सुविधाएं दी जाएंगी। ईडीसी परियोजना, पीईसी, सेक्टर 12, चंडीगढ़ में स्थित एसपीआईसी इनक्यूबेशन सेंटर की तर्ज पर होगी जहां पहले से ही छोटी आईटी कंपनियां उपलब्ध कराई गई हैं। सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए एसटीपीआई द्वारा एक इंटरनेट बैंडविड्थ कनेक्टिविटी और पहले से ही एसपीआईसी केंद्र रु। में सॉफ्टवेयर निर्यात में योगदान दे रहा है। 5 करोड़ प्रति वर्ष। इस सेगमेंट में बहुत बड़ी संभावनाएं थीं और विकास में तेजी आ सकती है, बशर्ते इस केंद्र की स्थापना से ऐसी सुविधा का निर्माण हो, क्योंकि मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर था। यह अनुमान लगाया जाता है कि EDC परियोजना एक बड़ा सॉफ्टवेयर निर्यात केंद्र बन जाएगा, इसके अलावा युवा उद्यमियों के लिए रेडीमेड स्थान प्रदान करने के अलावा जिनके पास उज्ज्वल विचार हैं, लेकिन बुनियादी ढाँचा बनाने के लिए पूंजी नहीं है। राजीव गांधी चंडीगढ़ प्रौद्योगिकी पार्क में ईडीसी की स्थापना के साथ, शहर को निर्यात के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे के संचयी प्रभाव और रोजगार पर अर्थव्यवस्था में वृद्धि के निर्यात के प्रभाव और सभी समृद्धि पर लाभ होगा। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: परियोजना निदेशक -सीएम- निदेशक आईटी चंडीगढ़ प्रशासन। 5 वीं मंजिल, अतिरिक्त डीलक्स बिल्डिंग, 5th Floor, Additional Deluxe Building, Sector 9 - D, Chandigarh - 160 009 Tel : +91 172 2740641 Fax: +91 172 2740005 Email : dit-chdut AT nic.in शहर से सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं का निर्यात बढ़कर रु। राजीव गांधी चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क (RGCTP) के विकास के साथ अगले तीन वर्षों के भीतर 1000 करोड़। एक आधिकारिक प्रवक्ता ने आज यहां कहा, "चूंकि आरजीसीटीपी का विकास पूरी तरह से हो रहा है और आने वाले वर्षों में प्रशासन की सभी बड़ी पहलें हो रही हैं, इसलिए अकेले चंडीगढ़ से सॉफ्टवेयर निर्यात 1000 करोड़ रुपये के पार पहुंचने की उम्मीद है।" चंडीगढ़ की सॉफ्टवेयर कंपनियां इस वित्तीय वर्ष में तेजी से बढ़ेंगी एक नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) ने अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन में पूरे देश में सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए अच्छी खबरें भेजीं। चंडीगढ़ में भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियां वित्तीय वर्ष से मार्च 2019 तक सॉफ्टवेयर सेवाओं के बढ़ते निर्यात का श्रेय 7-9 प्रतिशत की राजस्व वृद्धि देखेंगी। सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात में अधिक वृद्धि देखी जाएगी क्योंकि उद्योग देश के आईटी क्षेत्र के साथ-साथ अन्य उद्योगों की मांग में बढ़ रहा है जो इन्फो-टेक सेवाएं चाहते हैं। जिसे घोंघा विकास वर्ष कहा जा रहा है, पिछले साल इस क्षेत्र की वास्तविकता थी। यह सर्वर रखरखाव से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैनेजमेंट की विस्तृत अनुमानित पारी का परिणाम है। चंडीगढ़ में, उद्योग में अपने नौसिखिए के कारण, सॉफ्टवेयर कंपनियों का विकास तेजी से देखा जाता है। पिछले वर्ष के स्लग कार्यों के बाद, तेज को बहुत अधिक उत्साह की आवश्यकता है, यहां तक ​​कि भविष्यवाणी भी। ऐसा इसलिए हो सकता है कि अर्थव्यवस्था के समग्र मंदी के कारण बाद के आधे हिस्से में आर्थिक नीतियों को श्रेय दिया जाता है, न कि कई ओलों को। फिर भी, ये नीतियां कई व्यवसायों के लिए एक सकारात्मक परिणाम दिखाना शुरू कर रही हैं जो आईटी सेवाओं की मांग कर रहे हैं। खैर, क्या यह हमारे लिए बहुत अच्छी खबर नहीं है? आप जानते हैं, सॉफ्टवेयर विकास भी 2017 का सबसे पसंदीदा काम है और इस पर सबसे अधिक भुगतान किया जाता है। इसका मतलब है कि, अधिक व्यवसाय ऑनलाइन होंगे, और अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों को चंडीगढ़ में बुलाया जाएगा। क्या आप जानना चाहते हैं कि चंडीगढ़ में सॉफ्टवेयर कंपनियां क्यों गुस्से में हैं? यहाँ क्यों है: 1. सॉफ्टवेयर विश्व खा रहा है- यह प्रसिद्ध मार्क एंथनी बोली जो आज के डिजिटल युग में सच है। अब-एक दिन, हर चीज के लिए एक आवेदन है - क्या यह एक सवारी बुक करना, नौकरी ढूंढना, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन करना या अधिक है। यह वही है जो दुनिया को आज चाहिए, और ऐसी सॉफ्टवेयर कंपनियां हैं जो यह सब शानदार ढंग से पेश करती हैं। चंडीगढ़ में ही सॉफ्टवेयर कंपनियां उन सेवाओं के पैकेज में काम करती हैं, जो न केवल विकास तक सीमित हैं, बल्कि रखरखाव और वितरण तक जाती हैं। यह राष्ट्र का डिजिटलीकरण है कि आईटी क्षेत्र का शाब्दिक रूप से आनन्द हो रहा है। 2. तकनीकीता हर किसी के लिए चाय नहीं है- दुनिया तकनीकी नवाचारों पर आगे बढ़ रही है जो आगे आते रहते हैं। लेकिन, सभी के लिए इन नवाचारों को डिकोड करना और बहुस्तरीय उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करना संभव नहीं है। एक कुशल सॉफ्टवेयर डेवलपर तकनीकी प्रगति से लाभ की कुंजी है। इस क्षेत्र में एक पेशे के रूप में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है। हालांकि सर्वश्रेष्ठ डिजाइनरों को ढूंढना सुनिश्चित करें जो आपके व्यवसाय के विचार को एक सफल उत्पाद में बदल सकते हैं। 3. इंटरनेट की तेजी- वायरलेस सेवाओं के साथ तेज़ और उच्च बैंडविड्थ नेटवर्क हमारे जीवन का एक बड़ा हिस्सा बन चुके हैं। बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 24 बिलियन से अधिक आईटी डिवाइस लगाए जाएंगे और यही कारण है कि सॉफ्टवेयर कंपनियों की बढ़ती मांग के लिए पर्याप्त है। भारत, आईटी क्षेत्र में तेजी से विकास कर रहा देश, चंडीगढ़ में सॉफ्टवेयर कंपनियों की मांग की विस्फोटक वृद्धि का अनुभव करेगा। 4. जीत के लिए डेटा सेंटर- तेजी से उभरती टेक्नोलॉजी की दुनिया में, डेटा सेंटर डार्क हॉर्स हैं। वे डेटा एनालिटिक्स, डेटा इंजीनियरिंग और डेटा साइंस सहित एक प्रमुख विकास क्षेत्र हैं। क्यों? क्योंकि इंटरनेट या ऑफलाइन पर जो कुछ भी हो रहा है, वह डेटा है और हर कंपनी को शोधकर्ताओं, एनालिटिक्स, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की आवश्यकता होती है, जो दिन के समय टेराबाइट्स और पेटाबाइट्स के माध्यम से झारना कर सकते हैं। यह सब उपभोक्ता संबंधी सेवाओं और उत्पादों को बढ़ाने के लिए। 5. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य है- जहां आज डेटा सेंटर और वायरलेस नेटवर्क सत्तारूढ़ हैं, निकट भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बैठेगा। यह पारंपरिक स्वचालन समाधानों के विपरीत काम करता है क्योंकि यह श्रम और पूंजी वृद्धि के साथ बुद्धिमान स्वचालन शक्ति प्रदान करता है। चंडीगढ़ में सॉफ्टवेयर कंपनियां एक भेदी विकास देख रही हैं, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में योगदान देगा। चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र से सॉफ्टवेयर निर्यात, जिसमें चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली शामिल हैं, ने पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले चालू वित्त वर्ष (2008-09) के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर) में मामूली वृद्धि दर्ज की है। आंकड़ों के अनुसार, 2008-09 के पहले छह महीनों में सॉफ्टवेयर निर्यात 322.35 करोड़ रुपये था, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में यह 321.47 करोड़ रुपये था। उद्यमियों का विचार है कि सटीक तस्वीर चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में उभरेगी और अमेरिका में मौजूदा आर्थिक संकट के कारण प्रभाव की किसी भी संभावना से इंकार करेगी। यह ध्यान देने योग्य है कि सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआई), मोहाली, ने चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र से 2008-09 में सॉफ्टवेयर और सेवाओं के निर्यात के कुल मूल्य में 32 प्रतिशत की और वृद्धि का अनुमान लगाया है। 2008-09 में, संयुक्त सॉफ्टवेयर निर्यात को 1,100 करोड़ रुपये, एसटीपीआई इकाइयों से 900 करोड़ रुपये और एसईजेड से 200 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए, एसटीपीआई मोहाली के संयुक्त निदेशक और केंद्र प्रमुख, अजय पी। श्रीवास्तव ने कहा: “फिलहाल, हम यह नहीं कह सकते हैं कि मौजूदा मंदी के कारण चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र से सॉफ्टवेयर निर्यात प्रभावित है। मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में सटीक तस्वीर स्पष्ट होगी क्योंकि अधिकांश कंपनियां उस अवधि में चालान कर रही हैं। ” मोबेरा सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक पुनीत वात्सायन कहते हैं, "वर्तमान में चल रही मंदी ने हमारे व्यवसाय को प्रभावित नहीं किया है, लेकिन हम यह नहीं कह सकते हैं कि निकट भविष्य में क्या होगा।" श्रीवास्तव के अनुसार, 2007-08 में, क्षेत्र में सॉफ्टवेयर और सेवा उद्योग ने मजबूत वृद्धि देखी थी और 2006-07 के दौरान 560.76 करोड़ रुपये के मुकाबले कुल मूल्य 822.27 रुपये तक पहुंच गया था। कीमती विदेशी मुद्रा अर्जित करने के अलावा, इस क्षेत्र के सॉफ्टवेयर उद्योग ने लगभग 10,000 पेशेवरों को प्रत्यक्ष रोजगार भी दिया है। इसके अलावा, इस क्षेत्र ने कई नई स्टार्ट-अप कंपनियों को आकर्षित किया है और कई आईटी / आईटीईएस इकाइयों की संख्या 2002-03 में 145 से बढ़कर 2007-08 में 253 हो गई है। 2008-09 के अंत तक यह आंकड़ा 300 के पार जाने की उम्मीद है। एसटीपीआई का अनुमान है कि 2009-10 तक कुल निर्यात में 1,500 करोड़ रुपये का निर्यात करने वाली 25 नई इकाइयाँ बाजार में आएँगी। श्रीवास्तव ने कहा कि इस क्षेत्र में विकास बड़े पैमाने पर छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) की वृद्धि से हुआ है। इस वित्तीय वर्ष में एसटीपीआई, मोहाली के साथ पंजीकृत 13 नए लघु और मध्यम आईटी उद्यमों, वियना आईटी सॉल्यूशंस (पी) लिमिटेड, ऑप्टिमाइज़ेशन सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीज, ओपीके ई सर्विसेज प्राइवेट। लिमिटेड, इंटेक्स इन्फोकॉम सॉल्यूशंस प्रा। लि।, स्टार्टअप फार्म (I) प्रा। लिमिटेड, एगिलिस्ट कंसल्टिंग प्रा। लिमिटेड, नेटस्मार्टज़ इन्फोटेक प्रा। लिमिटेड आदि STPI एक्सपोर्ट सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट्स को 32% चंदनगढ़ क्षेत्र से प्राप्त करना है अर्चित द्वारा पोस्ट | गुरुवार, 11 सितंबर, 2008 | सॉफ्टवेयर स्वर्णलीन कौर द फाइनेंशियल एक्सप्रेस सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) ने वित्तीय वर्ष 2008-09 के दौरान चंडीगढ़, मोहाली, पंचकुला और पड़ोसी क्षेत्रों से 32% की दर से सॉफ्टवेयर और सेवाओं के निर्यात का अनुमान लगाया है। मोहाली स्थित एसटीपीआई के अनुसार, इस क्षेत्र में इसकी इकाइयों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 1,000 करोड़ रुपये का निर्यात होगा। पिछले वित्त वर्ष में एसटीपीआई इकाइयों का निर्यात 682.67 करोड़ रुपये था, जबकि एसईजेड इकाइयों ने 139.60 करोड़ रुपये का निर्यात किया और कुल 822.27 करोड़ रुपये का निर्यात किया। एसईपीआई के संयुक्त निदेशक और केंद्र के प्रमुख, अजय पी श्रीवास्तव ने एफई से बात करते हुए कहा, “इस क्षेत्र में विकास बड़े पैमाने पर छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) की वृद्धि से हुआ है। यह वित्तीय वर्ष, ओपीके ई सर्विसेज प्राइवेट सहित छह नए छोटे और मध्यम आईटी उद्यम। लिमिटेड, इंटक इन्फोकॉम प्रा। लि।, स्टार्टअप फार्म (I) प्रा। लिमिटेड, एगिलिस्ट कंसल्टिंग प्रा। लिमिटेड, नेटस्मार्टज़ इन्फोटेक (आई) प्रा। लिमिटेड और AAA बेनेफिट्स सर्विसेज बैंडवागन में शामिल हो गए हैं। एसएमई क्षेत्र 32% की वृद्धि हासिल करने में एक बड़ी भूमिका निभाएगा। ” 2007-08 में, चंडीगढ़ की आईटी इकाइयों ने 35,792.68 लाख रुपये का निर्यात किया, आईटीईएस ने 2156.22 लाख रुपये का योगदान दिया, जबकि एसईजेड ने 13,960.00 लाख रुपये का निर्यात किया, जो कुल 51,908.9 लाख रुपये तक पहुंच गया। पंजाब में स्थित आईटी इकाइयों ने 9564.1 लाख रुपये का योगदान दिया, जबकि आईटीईएस इकाइयों ने 19,400.02 लाख रुपये के निर्यात का रिकॉर्ड बनाया, जो कुल 28964.12 लाख रुपये है। हरियाणा में, पंचकुला में कुल निर्यात 8227 लाख रुपये दर्ज किया गया। एसटीपीआई केंद्र सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त समाज है और सॉफ्टवेयर निर्यात कंपनियों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। एसटीपीआई मोहाली के साथ 250 से अधिक इकाइयां पंजीकृत हैं, जिनमें से लगभग 135 इकाइयां सक्रिय रूप से निर्यात में योगदान करती हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में आईटी क्षेत्र में 10,000 पेशेवरों की जनशक्ति है। पिछले 51 वर्षों से एक प्रमुख आईटी गंतव्य शहर   चंडीगढ़, भारत के पहले प्रधान मंत्री के सपनों का शहर, श्री। जवाहर लाल नेहरू, प्रसिद्ध फ्रांसीसी वास्तुकार ले कोर्बुसियर द्वारा योजना बनाई गई थी। शिवालिकों की तलहटी में स्थित, यह शहर भारत में 20 वीं शताब्दी में शहरी नियोजन और आधुनिक वास्तुकला में सर्वोत्तम प्रयोगों के लिए जाना जाता है। 01.11.1966 को शहर का पुनर्गठन, इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया और केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में किया गया। सॉफ्टवेयर उद्योग 1960 तक भारत में कुछ भी नहीं था। 1972 में, सरकार। भारत ने एक सॉफ्टवेयर निर्यात योजना तैयार की। हम कह सकते हैं कि 1972 भारत में सॉफ्टवेयर उद्योग के लिए एक स्थापना वर्ष था, और 1991 के बाद इस उद्योग ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी तस्वीर में प्रवेश किया। उद्योग ने वर्ष 2000 के बाद मजबूत वृद्धि दर्ज की। पिछले 51 वर्षों में, चंडीगढ़ ने भौतिक बुनियादी ढाँचे और व्यावसायिक वातावरण के मामले में उत्कृष्ट प्रगति की है। एक उभरते हुए आर्थिक विकास केंद्र के रूप में, विशेष रूप से भारत के अन्य आईटी शहरों से आईटी हब के रूप में, चंडीगढ़ आईटीईएस कंपनियों के लिए एक पसंदीदा स्थान बन गया है। चंडीगढ़ बनाना, आईटी सक्षम सेवाओं के लिए एक प्रमुख केंद्र; एक पॉलिसी को सेक्टर और सिटी एडमिन उद्देश्यों की वृद्धि को सुविधाजनक बनाने और बढ़ाने के लिए बनाया गया है। सीआईआई द्वारा हाल ही के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2016 (वर्तमान मूल्य) में प्रति व्यक्ति आय 268,656 रुपये थी, जो देश में सबसे अधिक है और बड़ा हिस्सा आईटी और उनकी सेवाओं के बुनियादी ढांचे से आता है। संचार नेटवर्क, तकनीकी संस्थानों और अन्य राज्यों के साथ कनेक्टिविटी के उत्कृष्ट आधार के साथ, भारत के दूसरे हिस्से की तुलना में शहर की तुलना शिक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य, या जीवन प्रत्याशा से बेहतर है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग चंडीगढ़ के मार्गदर्शन में चंडीगढ़ (SPIC) में आईटी को बढ़ावा देने के लिए सोसाइटी की स्थापना की गई है। चंडीगढ़ प्रशासन चंडीगढ़ में आईटी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन की कई योजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है। चंडीगढ़ देश के बढ़ते आईटी शहरों में से एक के रूप में उभर रहा है और कई M.N.Cs बैंगलोर से स्थानांतरित हो रहे हैं। सूचना के युग में नेतृत्व और उत्कृष्टता की स्थिति को पूरा करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए राज्य इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, प्रशासन द्वारा योजनाबद्ध कुछ प्रमुख आईटी पहलों ने उत्कृष्ट परिणाम दिखाए हैं। चंडीगढ़ एक आधुनिक शहर है और दुनिया में शहर को शामिल करने के लिए, विश्व मानक परियोजनाओं की भविष्यवाणी करना महत्वपूर्ण है जो न केवल शहर की आर्थिक रूपरेखा को समृद्ध करते हैं, बल्कि अपने मानव संसाधनों के लिए कई रोजगार के अवसर भी प्रदान करते हैं। उत्तर भारत, एक पूरे के रूप में दक्षिणी राज्यों से पिछड़ गया था। सिंधु उद्यमी, चंडीगढ़, पंचकुला और मोहाली क्षेत्र की उन्नति के लिए एक रोड मैप तैयार करते हैं। रोडमैप को ध्यान में रखते हुए, राजीव गांधी चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क (RGCTP) की एक दूरदर्शी परियोजना की परिकल्पना चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा की गई, जिसका उद्घाटन सितंबर 2005 में डॉ। मनमोहन सिंह, पूर्व पीएम इंडिया ने किया था। यहां राजीव गांधी चंडीगढ़ प्रौद्योगिकी पार्क (आरजीसीटीपी) की स्थापना क्षेत्र के आर्थिक परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई है। इसने न केवल कई सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (आईटी / आईटीईएस) कंपनियों को आकर्षित किया है, बल्कि आस-पास के शहरों जैसे पंजाब में मोहाली और हरियाणा में पंचकुला में आईटी गतिविधियों का विस्तार करने में भी मदद की है। इसने शहर के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया है और अर्थव्यवस्था के विकास को सुविधाजनक बनाकर, विशेषकर सेवा क्षेत्र में। RGCTP को इस उन्नत मानव पूंजी को अपने यहां रोजगार के अवसर प्रदान करके बनाए रखने की योजना बनाई गई है। यहां RGCTP में, चंडीगढ़ प्रशासन और निजी क्षेत्र द्वारा 1500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। आरजीसीटीपी की स्थापना से, हम एक क्षेत्र से कुल निर्यात में जबरदस्त वृद्धि देख सकते हैं, जो 2005-06 में 414.97 करोड़ और 2014-16 में 2890.72 करोड़ थी, (डेटा स्रोत: सूचना प्रौद्योगिकी विभाग चंडीगढ़)। यूटी में तेजी से वृद्धि के कई कारण थे, जैसे कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) से व्यापार के लिए आसान औद्योगिक / आईटी आवास और जिसमें निवेश करने वाली कंपनियों को सिंगल विंडो क्लीयरेंस प्राप्त होगी और एसईजेड की नीति के अनुसार लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे भारत सरकार। भारतीय आईटी-बीपीएम उद्योग 2025 तक $ 350 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है (रिपोर्ट: नैसकॉम)। इस क्षेत्र की वृद्धि के लिए DITC योजनाबद्ध पहल और दृष्टि विश्वसनीय है। शहर इस क्षेत्र में विकास के लिए एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।युवा उद्यमी मोहाली के विकास की कहानी में नया अध्याय लिखते हैं एसटीपीआई, मोहाली में अतिरिक्त निदेशक अजय प्रसाद श्रीवास्तव का कहना है कि स्टार्टअप शुरू करने के पीछे का विचार उन्हें अनुकूल उद्यमी पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना है और साथ ही उन्हें अपने नवाचार और सॉफ्टवेयर उत्पाद विकास को बढ़ावा देने में मदद करना है।औद्योगिक क्षेत्र, मोहाली में एसटीपीआई भवन में अपने उद्यम शुरू करने वाले नवप्रवर्तक। (करुण शर्मा / एचटी)  चंडीगढ़ और इसकी परिधि आईटी / आईटीईएस सेवाओं के लिए गर्म गंतव्य के रूप में उभर रहे हैं। इन्फोसिस, आईबीएम दक्ष, विरसा और आउटरबे जैसे आईटी दिग्गजों ने यहां देश के सबसे महंगे आईटी पार्क राजीव गांधी टेक्नोलॉजी पार्क (आरजीसीटीपी), और विप्रो, टेक महिंद्रा, ई-एसईएस, भारती टेलिवर्क, पाटनी कंप्यूटर्स जैसे कई अन्य कार्यों का संचालन शुरू किया है। , आदि ने शहर के लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाया है। चंडीगढ़, मोहाली और पंचकुला तीन वर्षों में लगभग 1,000 करोड़ रुपये के संयुक्त वार्षिक सॉफ्टवेयर निर्यात की उम्मीद कर रहे हैं। इसके अलावा, क्वार्क, डेल और आईडीएस इन्फोटेक मोहाली से चल रहे हैं। चंडीगढ़ (मोहाली सहित) ने 270 करोड़ रुपये का आईटी निर्यात और पिछले वित्त वर्ष में 416 करोड़ रुपये का निर्यात कारोबार दर्ज किया। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पिछले साल 24 सितंबर को (चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा 2001 में कल्पना की गई), उद्घाटन के पहले चरण में 123 एकड़ क्षेत्र में पार्क का निर्माण शुरू हुआ। इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड को मुख्य एंकर कंपनी के रूप में 30 एकड़ का आवंटन किया गया था और उसने 525,000 वर्ग फुट के अत्याधुनिक परिसर का निर्माण किया है। इसके अलावा, पहले चरण में डीएलएफ लिमिटेड द्वारा विकसित तैयार निर्मित स्थान 12.5 एकड़ में फैला है और इसमें 650,000 वर्ग फुट के छह ब्लॉक शामिल हैं। आईबीएम दक्ष, आउटर बे और नेट सॉल्यूशन कंपनियों में से हैं। 1 से 2 एकड़ में निर्माण करने वाले 42 से बिल्डरों को साइट के लिए Amadeus, KMG Infotech, Microtek, Bebo Technologies, Synapse और Alchemist को आवंटित किया गया है। इन्फोसिस, आईबीएम दक्ष, विरसा और आउटरबे ने पहले चरण में परिचालन शुरू कर दिया है। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर कंपनियों को बढ़ावा देने के रूप में, केंद्र द्वारा विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में पार्क के पहले चरण को मंजूरी दी गई थी। पार्क का दूसरा चरण 250 एकड़ में फैला है। इसमें से 125 एकड़ आईटी / आईटीईएस कंपनियों के लिए और शेष क्षेत्र एक टेक्नोलॉजी हैबिटेट के लिए है, जो 125 एकड़ में फैला है, जिसमें आवासीय फ्लैट, सर्विस अपार्टमेंट, सामुदायिक बुनियादी ढांचा, आदि शामिल हैं। दूसरे चरण में, विप्रो, एक लंगर कंपनी के रूप में। को 30 एकड़, भारती टेली-वेंचर्स को 5 एकड़, ई-सीस 6 एकड़ और टेक महिंद्रा को 10 एकड़ आवंटित किया गया है। आईटी विभाग पहले ही एसईजेड अनुमोदन के लिए अपेक्षित दस्तावेज प्रस्तुत कर चुका है और उम्मीद करता है कि इसे बहुत जल्द ही प्रदान किया जाएगा। आईटी कंपनियों की अपार प्रतिक्रिया को देखते हुए, प्रशासन पार्क के तीसरे चरण के लिए भूमि का अधिग्रहण करने की प्रक्रिया में है, जो 250 एकड़ की अन्य भूमि में फैलेगी और उन्हें उम्मीद है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया 7- के भीतर पूरी हो जाएगी। 8 महीने। इसके अलावा, कोई भी इस तथ्य से अच्छी तरह से अवगत हो सकता है कि यह आईटी कंपनियों के लिए अगले गंतव्य के रूप में उभर रहा है क्योंकि पटनी कंप्यूटर और कई अन्य लोगों ने भूमि के अधिग्रहण से पहले ही तीसरे चरण में जगह के लिए आवेदन किया है। अब तक मोहाली का संबंध है, क्वार्क, डेल और आईडीएस इन्फोटेक पहले ही अपने ऑपरेशन शुरू कर चुके हैं। आईटी / आईटीईएस क्षेत्र को और गति देने के उद्देश्य से, यूटी प्रशासन अब विभिन्न खिलाड़ियों के लिए सही कारोबारी माहौल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, क्योंकि यह ई-क्रांति शिखर सम्मेलन 2006 की मेजबानी के लिए तैयार है। विशेष रूप से, ई-क्रांति 2005 के बाद, राजीव गांधी चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क ने 400 करोड़ रुपये के निवेश को आकर्षित किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड, भारत के सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क से बात करते हुए, अतिरिक्त निदेशक, संजय त्यागी ने कहा, “हमने 1998-99 में निर्यात कारोबार के रूप में लगभग 7.7 करोड़ के साथ शुरुआत की थी, और 2005-06 में 416 करोड़ रुपये को छूते हुए एक बड़ी वृद्धि हासिल की। एक निर्यात कारोबार के रूप में और आगे हम अगले तीन वर्षों में सॉफ्टवेयर निर्यात के रूप में 1000 करोड़ रुपये को छूने के लिए आशान्वित हैं। ” उन्होंने आगे कहा, "यह सम्मेलन क्षेत्र का निर्माण करने के लिए किया गया एक प्रयास है। यह शहर में दूसरा सम्मेलन होगा, जहां तीन राज्य सरकारें (पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़) एक साझा एजेंडा पर एक साथ खड़ी होंगी - व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में मूल्य पैदा करना आईटी-आईटीईएस / बीपीओ उद्योग और राष्ट्रीय ई-शासन पहल में साझा सेवाओं के महत्त्व के लिए। " सम्मेलन का पहला दिन NASSCOM द्वारा आयोजित किया जाएगा और ध्यान उत्तरी राज्यों की क्षमता पर है, विशेष रूप से चंडीगढ़ कैपिटल रीजन (पंचकुला, बद्दी, मोहाली शामिल) में। साझा सेवाओं पर दूसरे दिन के सत्र में परिसंपत्तियों के बंटवारे, सह-स्वामित्व बुनियादी ढांचे, सेवा मानकों को बनाए रखने और लागत-कुशलता से काम करना शामिल होगा। नैसकॉम ने कहा कि 1 अप्रैल से शुरू होने वाले वर्ष के लिए सॉफ्टवेयर निर्यात मौजूदा वित्तीय वर्ष की तुलना में धीमी गति से बढ़ सकता है क्योंकि मुद्रा की अस्थिरता और वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक दबाव है। सॉफ्टवेयर लॉबी बॉडी ने मंगलवार को अनुमान लगाया कि 2015-16 के लिए सॉफ्टवेयर निर्यात 12-14% के बीच बढ़कर 110-112 बिलियन डॉलर हो जाएगा, जबकि चालू वित्त वर्ष के लिए 13-15% की वृद्धि का अनुमान है। नैसकॉम के नवीनतम पूर्वानुमान के अनुसार, 31 मार्च तक आईटी क्षेत्र के लिए कुल राजस्व 13% से $ 146 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है। घरेलू मोर्चे पर, नैसकॉम ने अगले वित्त वर्ष में 15-17% की वृद्धि को 55-57 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया। ई-कॉमर्स ग्रोथ के दम पर चालू वित्त वर्ष में भारतीय घरेलू बाजार 14% बढ़कर 48 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। ई-कॉमर्स, सरकार की पहल और उद्योगों द्वारा प्रौद्योगिकी अपनाने के कारण घरेलू विकास की उम्मीद है। नैसकॉम ने कहा कि 2014-15 में $ 26 बिलियन के सरकारी निवेश ने भी घरेलू राजस्व वृद्धि में मदद की। लॉबी समूह 2020 तक अपने पूरे क्षेत्र में लगातार वृद्धि के बल पर अपने $ 300 बिलियन भारतीय आईटी क्षेत्र के राजस्व लक्ष्य को पूरा करने के लिए आश्वस्त है।   विस्तार “जबकि मौजूदा विकास अनुमान मौजूदा मैक्रो ट्रेंड के पीछे हैं, हमारा मानना ​​है कि उद्योग में लंबे समय तक 13-15% वृद्धि बनाए रखने की क्षमता है। एंजल ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के एक विश्लेषक सरबजीत कौर नंगरा ने कहा कि अब तक के प्रबंधन की टिप्पणी सकारात्मक रही है कि यह क्षेत्र वित्त वर्ष 2015 के विकास के अनुमानों के अनुरूप वृद्धि को बढ़ा सकता है। आईटी उद्योग भारत में सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का नियोक्ता बना हुआ है, 2014-15 में 230,000 कर्मचारियों को जोड़कर, उद्योग में नौकरियों की कुल संख्या को 3.5 मिलियन तक ले गया, जबकि सकल घरेलू उत्पाद का 9.5% हिस्सा है। आईटी उद्योग के पास कुल सेवाओं के निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा 38% है। 2014-15 में $ 5.3 बिलियन से अधिक में 3,100 से अधिक प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप और उद्योग विलय और अधिग्रहण के साथ भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप हब भी है। पूर्वानुमान की घोषणा करते हुए मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन के मौके पर, नासकॉम के अध्यक्ष आर। चंद्रशेखर ने कहा कि भारत अगले दो वर्षों में आसानी से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप हब बन सकता है, जो नए उद्यमों की तीव्र गति को देख रहा है। देश में। अमेरिका में निर्यात, सबसे बड़ा बाजार, ऊपर-उद्योग औसत में वृद्धि हुई, एक आर्थिक पुनरुद्धार और उच्च प्रौद्योगिकी अपनाने के आधार पर। वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान यूरोप से मांग मजबूत रही लेकिन मुद्रा की चाल और आर्थिक चुनौतियों के कारण दूसरी छमाही के दौरान नरम हो गई। भारत की सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात पिछले कुछ वर्षों से बढ़ रहा है लेकिन देर से चिंता करने के कुछ कारण हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर और सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम सेवाओं के निर्यात के साथ-साथ अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में 2015-16 के दौरान व्यापार प्रक्रिया आउटसोर्सिंग कंपनियों में तेजी से वृद्धि हुई है। वैश्विक निकाय और भारतीय आईटी कंपनियों की कमजोर कमाई के बीच उद्योग संगठन नैसकॉम ने पिछले महीने 2016-17 के लिए निर्यात आय के लिए अपने विकास के दृष्टिकोण को 10-12% से 8-10% तक घटा दिया। इसके अलावा, भारतीय आईटी उद्योग अभी भी अमेरिका पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जो कुछ विविधीकरण के बावजूद, सॉफ्टवेयर निर्यात के साथ-साथ स्थानीय कंपनियों के विदेशी सहयोगियों द्वारा सॉफ्टवेयर व्यवसाय के लिए सबसे बड़ा गंतव्य बना हुआ है। यहां भारत की सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात पर त्वरित नज़र है और सबसे अधिक राजस्व के लिए कौन से सेगमेंट और देश हैं 1 - पीगॉन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड - चंडीगढ़ एससीओ -866, एनएसी मणि माजरा, यू.टी. चंडीगढ़ 160,101। चंडीगढ़। चंडीगढ़। Piegon Media Pvt.Ltd चंडीगढ़ स्थित इंटरनेट मार्केटिंग कंसल्टेंट कंपनी है। यह आज चंडीगढ़ में सबसे तेजी से विस्तार करने वाला पेशेवर विशेषज्ञ है। कंपनी की पेशकश ... 2 - चंडीगढ़ में एसी सेवा | मोहाली में एसी मरम्मत सेवा | तत्काल कॉल + 91-7696024044 - चंडीगढ़ चंदीगढ़, चंडीगढ़। चंडीगढ़। चंडीगढ़। चंडीगढ़ में एसी सेवा, चंडीगढ में एसी मरम्मत सेवा, मोहाली में एसी मरम्मत सेवा, अब जस एयर कंडीशनर विशेषज्ञ द्वारा एसी की मरम्मत करवाएं आप बहुत आसानी से संपर्क कर सकते हैं क्योंकि वह है ... 3 - ब्लैकबॉक्स जीपीएस टेक्नोलॉजीज प्रा। लिमिटेड - चंडीगढ़ एससीओ 96-97, सेक्टर 34-ए, चंडीगढ़, भारत, सेक्टर 34. चंडीगढ़। चंडीगढ़। BlackBox GPS Technologies एकमात्र कंपनी है जिसे भारत सरकार द्वारा उनके GPS / GPRS तकनीक के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है। हमें जीपीएस ट्रैकिंग प्रदान करने में व्यापक अनुभव है।  (1 टिप्पणी) 4 - ClicknFile - चंडीगढ़ एससीओ 21,1 वीं मंजिल, सेक्टर 33, चंडीगढ़, 160020, सेक्टर 33. चंडीगढ़। चंडीगढ़। एक प्रा। लिमिटेड कंपनी 10-15 दिनों में। यदि आप प्राइवेट लिमिटेड या LLP के रूप में अपने व्यवसाय पंजीकरण के लिए एक नाम खोजते हैं तो ClicknFile सबसे अच्छा समाधान के लिए खड़ा है। 5 - इंफ्रावेबसॉफ्ट टेक्नोलॉजीज - चंडीगढ़ C-127, इंडस्ट्रियल एरिया, फेज 8, S.A.S नगर, मोहाली। चंडीगढ़। चंडीगढ़। Infrawebsoft Technologies एक ऐसी जगह है जहाँ आपको डिज़ाइनिंग, डेवलपमेंट, इंटरनेट मार्केटिंग, मोबाइल एप्लीकेशन, सर्वर इंप्लीमेंटेशन और माइग्रेशन और बहुत सारे ... 6 - यशिदा टेक्नोलॉजीज - चंडीगढ़ धारा-40। चंडीगढ़। चंडीगढ़। एक पूर्ण सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी, जो वेबसाइट विकास और डिजाइनिंग और सॉफ्टवेयर विकास में विशेषज्ञता रखती है। हम एक पेशेवर वेब डिजाइनिंग कंपनी के नाम पर… 7 - वेबिनलाइन - चंडीगढ़ एससीएफ 387, एमएम मनीमाजरा, चंडीगढ़ (यूटी)। चंडीगढ़। चंडीगढ़। हम विपणन दिमाग के एक समूह हैं जिन्होंने व्यवसायों और पेशेवरों को अपने स्वयं के ब्रांड की उपस्थिति को ऑनलाइन बढ़ाने और हर तरह से अपने व्यवसाय को बढ़ाने में मदद करने के लिए एक एजेंसी बनाने के बारे में सोचा। 8 - ड्रिश इंफोटेक लिमिटेड - चंडीगढ़ एससीओ 104-106, सेक्टर 34-ए, चंडीगढ़, चंडीगढ़। चंडीगढ़। चंडीगढ़। चंडीगढ़ में बेस्ट सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी, ड्रिश इंफोटेक लिमिटेड दुनिया भर में उद्योग क्षेत्रों की एक विस्तृत शृंखला के लिए गुणवत्ता आईटी सेवाएं और समाधान प्रदान कर रहा है। 9 - ब्रिजिंग हेल्थकेयर टेक्नोलॉजीज - चंडीगढ़ एससीओ 169-170, दूसरी मंजिल, सेक्टर 8-सी, चंडीगढ़। चंडीगढ़। चंडीगढ़। ब्रिजिंग हेल्थकेयर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड एक अमेरिकन मल्टीनेशनल हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी कंपनी है जिसका मुख्यालय ऑरेंज काउंटी, कैलिफ़ोर्निया में है, जो विकास, निर्माण, समर्थन करता है। 10 - उक्सोफटेक - चंडीगढ़ S.C.O 52, बेसमेंट केबिन नंबर 8, सेक्टर 9D, चंडीगढ़, 160009, धनास। चंडीगढ़। चंडीगढ़। UKsoftech के पास वेब डिज़ाइन और वेब विकास परीक्षण जैसी सभी सेवाओं की विस्तृत शृंखला है। हम अनुभवी और वेब डिजाइन, कस्टम वेब विकास, Android मोबाइल और एसईओ आदि में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं .. चंडीगढ़ राजधानी क्षेत्र (चंडीगढ़, पंचकूला, मोहाली शामिल है) से सॉफ्टवेयर निर्यात 2010-11 में 1565.33 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में लगभग 31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करता है। 2009-10 में क्षेत्र से कुल निर्यात 1196.58 करोड़ रुपये था। 2010-11 में कुल निर्यात में से 852.33 करोड़ रुपये का निर्यात इकाइयों द्वारा दर्ज किया गया था, जो सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) के साथ पंजीकृत हैं, जबकि एसईजेड में इकाइयों का आंकड़ा 713 करोड़ रुपये के रूप में दर्ज किया गया। इस साल, 10 से अधिक नई सॉफ्टवेयर कंपनियों ने एसटीपीआई के साथ इस क्षेत्र से परिचालन शुरू किया। इंफोसिस लिमिटेड, डेल इंटरनेशन सर्विसेज (पी) लिमिटेड, आईडीएस इन्फोटेक लिमिटेड, एनवीश सॉल्यूशंस (पी) लिमिटेड और एमर्सन डिजाइन इंजीनियरिंग सेंटर शीर्ष पांच कंपनियां हैं जिन्होंने निर्यात के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया है। इस क्षेत्र ने कई नए स्टार्टअप को आकर्षित किया है। इसके अलावा, आईटी / आईटीईएस इकाइयों की संख्या 2002-03 में 145 से बढ़कर 2010-11 में 242 हो गई। इसके अलावा, एसटीपीआई ने पहले कहा था कि इस क्षेत्र में विकास बड़े पैमाने पर छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास से हुआ है। "2010-11 में," एसटीपीआई के संयुक्त निदेशक और केंद्र प्रमुख (मोहाली) अजय पी। सिरवास्तव ने कहा कि इसके शुरू किए गए ऑपरेशन से पंजीकृत 10 नए छोटे और मध्यम आईटी उद्यमों से कम नहीं। उन्होंने IBM Daksh Business Process Services Ltd, Dot Technologies, Credentia Business Process (P) Ltd, Ovirtue INC, Communox Collasist (P) Ltd को शामिल किया, उन्होंने Business Standard को बताया। इकाइयां एसटीपीआई के साथ पंजीकृत हैं और 2010-11 में निर्यात के मामले में शीर्ष तीन पदों पर काबिज हैं: इंफोसिस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (चंडीगढ़ से), डेल इंटरनेशनल सर्विसेज (आई) प्राइवेट लिमिटेड (पंजाब से) और आईडीएस इन्फोटेक लिमिटेड। कुल मिलाकर, 2009-10 में, चंडीगढ़ क्षेत्र से सॉफ्टवेयर निर्यात 1196.58 करोड़ रुपये (एसईजेड से निर्यात सहित) के अनुरूप था। जबकि 2008-09 में एसटीपीआई इकाइयों से सॉफ्टवेयर निर्यात 731.85 करोड़ रुपये और एसईजेड से निर्यात 318.08 करोड़ रुपये था। साथ ही, इसके साथ पंजीकृत आईटी कंपनियों की सुविधा के लिए, एसटीपीआई मोहाली (पंजाब) में 40 करोड़ रुपये के निवेश के साथ एक नया कार्यालय स्थापित कर रहा है। 1 लाख वर्ग फीट में फैले इस कार्यालय में प्रशासनिक कार्यालय के साथ-साथ डेटा और इन्क्यूबेशन के केंद्र होंगे। 60,000 वर्ग फीट में फैली प्रस्तावित सुविधा के दो साल में पूरा होने की संभावना है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग का विकास! सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के दो मुख्य घटक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर हैं। सॉफ्टवेयर इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में प्रमुख उद्योग के रूप में उभरा है। इस उद्योग ने 1970 के दशक में एक मामूली शुरुआत की और 1980 के दशक के मध्य तक, पूर्वानुमानकर्ताओं, विश्लेषकों और नीति नियोजकों ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग की क्षमता को समझना शुरू कर दिया। इस उद्योग ने 1990 के दशक में एक बड़ी सफलता हासिल की और अब यह भारत के महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है। सॉफ्टवेयर उद्योग के तेजी से विकास का मुख्य कारण तकनीकी रूप से कुशल जनशक्ति का विशाल भंडार है जिसने भारत को सॉफ्टवेयर सुपर पावर में बदल दिया है। विज्ञापन: 1991 और 1996 के बीच लगभग 52 प्रतिशत की वार्षिक वार्षिक वृद्धि के साथ, भारतीय सॉफ्टवेयर क्षेत्र ने लगभग दुगुना तेजी से विस्तार किया है, जबकि दुनिया के प्रमुख अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्योग ने समान अवधि के दौरान, समान अवधि के दौरान किया है। अब देश में 500 से अधिक सॉफ्टवेयर फर्मों का एक महत्वपूर्ण द्रव्यमान है और इन कंपनियों के अलावा अतिरिक्त 1,000 स्टार्ट-अप कंपनियां हैं। आज, भारत एक ऐसा देश है जो लागत-प्रभावशीलता, महान गुणवत्ता, उच्च विश्वसनीयता, शीघ्र वितरण और सबसे बढ़कर, सॉफ्टवेयर उद्योग में अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करता है। वर्ष 1995-96 भारतीय कंप्यूटर उद्योग के लिए एक बूम वर्ष था और भारत का सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग वास्तव में उस वर्ष में विस्फोट हो गया। वैश्विक बाजार में जारी प्रौद्योगिकी मंदी, मजबूत बुनियादी बातों और सॉफ्टवेयर और सेवा उद्योग के मूल मूल्य की स्थिति जैसी चुनौतियों के बावजूद देश में अन्य सभी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन हुआ। 2002-03 में इसका निर्यात 26.3 प्रतिशत बढ़ा, जो कि 46,100 करोड़ रुपये का राजस्व था। भारतीय सॉफ्टवेयर और सेवा उद्योग दुनिया भर में बहुत कम क्षेत्रों में से एक है जिसने दोहरे अंक की वृद्धि देखी है (छवि 27.11)। इसने 1997 में अपने कुल निर्यात का 4.9 प्रतिशत से बढ़कर 2002-03 में 20.4 प्रतिशत हो गया। इससे चार मिलियन लोगों के लिए कुल रोजगार (समर्थन सेवाओं सहित) उत्पन्न होने की उम्मीद है, भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 7 प्रतिशत और वर्ष 2008 में भारत के विदेशी मुद्रा प्रवाह का 30 प्रतिशत। सॉफ्टवेयर भारत में निर्यात का एक प्रमुख आइटम बन गया है। वर्ष 2004-05 में, भारत के सॉफ्टवेयर और सेवा निर्यात ने 34.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। 2004-05 में कुल सॉफ्टवेयर और सेवाओं का राजस्व 32 प्रतिशत बढ़कर $ 22 बिलियन और 2005-06 में 28.5 बिलियन डॉलर हो गया (देखें तालिका 27.21)। आईटी उद्योग की तालिका 27.21Progress ($ अरब में आंकड़ा): साल 2003-04 2004-05 2005-06 * आईटी सॉफ्टवेयर और सेवा निर्यात 9.2 12.0 15.2 ITE-BPO निर्यात करता है 3.6 5.2 7.3 घरेलू बाजार 3.9 4.8 6.0 संपूर्ण 16.7 22.0 28.5 नैसकॉम के अनुसार, उद्योग को निकट भविष्य में 30 से 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने की उम्मीद है। नैसकॉम के अनुसार, घरेलू बाजार में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई। नैस्कॉम द्वारा किए गए सर्वेक्षण के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि भारत में आउटसोर्सिंग का कुल मूल्य (2004- 05 में $ 17.2 बिलियन) दुनिया भर के कुल के 44 प्रतिशत के बराबर है। यह मानने का अच्छा कारण है कि वर्तमान मजबूत गति इस उद्योग के विस्तार को आगे बढ़ाएगी। भारतीय कंपनियों ने अब तक केवल दो सबसे बड़े आईटी सेवा बाजारों पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि, यू.एस.ए और यू.के. देश जैसे कनाडा, जापान, जर्मनी और फ्रांस भारी विकास क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। नीदरलैंड, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य देशों में भी काफी संभावनाएं हैं। आईटी कंपनियां आक्रामक रूप से यूरोप, लैटिन अमेरिका और एशिया प्रशांत में अन्य बाजारों की खोज कर रही हैं। हार्डवेयर: विज्ञापन: सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग का हार्डवेयर खंड उत्पादन, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के मामले में सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है और यह नवाचार द्वारा विशेषता है। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, 2010 तक, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग $ 1 ट्रिलियन का आंकड़ा पार कर जाएगा और भारतीय इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उद्योग तब तक $ 73 बिलियन से अधिक हो सकता है। घटक खंड में 2010 तक $ 11 बिलियन तक पहुंचने की क्षमता है। यह 5 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। 1991 में उदारीकरण के बाद, भारत आईटी, दूरसंचार और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की पहुंच के मामले में दुनिया के साथ तेजी से पकड़ बना रहा है। यह इन उत्पादों के लिए एक बड़ी मांग के साथ-साथ वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए आधार प्रदान कर सकता है। "पर्सनल कंप्यूटर (पीसी), टीवी नहीं, 21 वीं सदी का प्रमुख सूचना उपकरण होगा," एक दशक पहले दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता कंपनी इंटेल के सह-संस्थापक एंडी ग्रोव ने कहा। वह 20 वीं शताब्दी की बारी से पहले यू.एस. में सही साबित हुआ जब पहली बार पीसी ने टीवी को बाहर किया। ऐसा भारत में नहीं हुआ है, और हो सकता है कि एक और दशक तक न हो। समय बीतने के साथ टीवी की तुलना में पीसी भारत में अधिक लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। 2004 में निजी कंप्यूटरों (पीसी) की बिक्री में 20% की वृद्धि हुई शिक्षा चंडीगढ़ समस्त उत्तर भारत में एक प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में जाना जाता है। नज़दीकी राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर व उत्तराखण्ड आदि से भारी संख्या में विद्यार्थी पढ़ने के लिए यहाँ आते हैं। पंजाब विश्वविद्यालय पीजीआईएमइआर(PGIMER) पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज यातायात बस सेवाएँ (चण्डीगढ़ परिवहन उपक्रम) चण्डीगढ़ दो बस अड्डे हैं: अन्तः राज्य बस अड्डा १७ (क्षेत्रक १७) एवं अन्तः राज्य बस अड्डा ४३ (क्षेत्रक ४३)। नगर एवं आस पास के क्षेत्रों में परिवहन हेतु चण्डीगढ़ प्रशासन के अधीन चण्डीगढ़ परिवहन उपक्रम (सी०टी०यू०) की बसें हैं। फ़रवरी २०२० के अनुसार ७० मार्गों पर सी०टी०यू० बस सेवाएँ प्रदान करता है। नवम्बर २०२१ में प्रशासन द्वारा विद्युत-बसें शुरू की गई थीं जिनकी संख्या अब १०० से अधिक है। फ़रवरी २०२२ में सी०टी०यू० द्वारा चण्डीगढ़ विमानक्षेत्र हेतु शटल बस सेवाएँ प्रारम्भ की गई थीं। रेल सेवाएँ १९५४ में चण्डीगढ़ जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड CDG) बनाया गया था जिसका अब विद्युतीकरण हो चूका है। यह भारत के शीर्ष १०० रेलवे स्टेशनों में से एक है। यह शहर हरियाणा का महत्वपूर्ण शहर है जो अपने आसपास के बड़े शहर जैसे दिल्ली जयपुर शिमला अमृतसर आगरा अलवर रोहतक गुरुग्राम से जुड़ा हुआ है उड्डयन सेवाएँ १९७० के दशक में चण्डीगढ़ विमानक्षेत्र बनाया गया था। २०१४ में भारत शासन ने इसे एक अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के रूप में स्वीकृति प्रदान की थी। 11 सितम्बर 2015 को इस एअरपोर्ट का संचालन एक अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट के रूप में आरम्भ हुआ। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। विमानक्षेत्र ६ उड्डयन निगमों की सेवा से १७ घरेलु एवं २ अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों को जोड़ता है। विमानक्षेत्र का सैन्य उपयोग भी किया जाता है। विमानक्षेत्र को विमानक्षेत्र परिषद् अंतर्राष्ट्रीय द्वारा स्वच्छता पैमानों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का शीर्ष विमान क्षेत्र का ख़िताब पुरस्कृत किया गया है। नागरिक एवं निजी यातायात चण्डीगढ़ में प्रत्येक १ कि०मी० पर एक चक्रिल परिपथ (राउण्ड-अबाउट) है जहाँ से रिक्शा, ई-रिक्शा, ऑटो-रिक्शा एवं बसें सरलता से मिलती हैं। कई निजी परिवहन कम्पनियों (ओला, ऊबर, इन-ड्राइवर, रैपिडो आदि) की सेवाएँ चण्डीगढ़ में उपलब्ध हैं। thumb|चंडीगढ़ की एक सड़क पर्यटन thumb|रॉकगार्डन पंजाब और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ भारत के सबसे खूबसूरत और नियोजित शहरों में एक है। इस केन्द्र शासित प्रदेश को प्रसिद्ध फ़्रांसीसी वास्तुकार ली कोर्बूजियर ने अभिकल्पित किया था। इस शहर का नाम एक दूसरे के निकट स्थित चंडी मंदिर और गढ़ किले के कारण पड़ा जिसे चंडीगढ़ के नाम से जाना जाता है। शहर में बड़ी संख्या में पार्क हैं जिनमें रोज गार्डन, लेसर वैली, राजेन्द्र पार्क, बॉटोनिकल गार्डन, स्मृति उपवन, तोपियारी उपवन, टेरस्ड गार्डन और शांति कुंज प्रमुख हैं। चंडीगढ़ में ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, प्राचीन कला केन्द्र और कल्चरल कॉम्प्लेक्स को भी देखा जा सकता है। कैपिटल कॉम्प्लैक्स यहाँ हरियाणा और पंजाब के अनेक प्रशासनिक भवन हैं। विधानसभा, उच्च न्यायालय और सचिवालय आदि इमारतें यहाँ देखी जा सकती हैं। यह कॉम्प्लेक्स समकालीन वास्तुशिल्प का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहाँ का ओपन हैंड स्मारक कला का उत्तम नमूना है। 21 जून 2016 को द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रमुख आयोजन करने के लिए इसी स्थान को चुना गया। यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ३०,००० प्रतिभागियों के साथ योग किया। कैपिटल कॉम्प्लेक्स को २०१६ में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। रॉक गार्डन चंडीगढ़ आने वाले पर्यटक रॉक गार्डन आना नहीं भूलते। इस गार्डन का निर्माण नेकचंद ने किया था। इसे बनवाने में औद्योगिक और शहरी कचरे का इस्तेमाल किया गया है। पर्यटक यहाँ की मूर्तियों, मंदिरों, महलों आदि को देखकर अचरज में पड़ जातें हैं। हर साल इस गार्डन को देखने हजारों पर्यटक आते हैं। गार्डन में झरनों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी देखा जा सकता, जहाँ अनेक प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियां होती रहती हैं। रोज़ गार्डन जाकिर हुसैन रोज़ गार्डन के नाम से विख्यात यह गार्डन एशिया का सबसे बड़ा रोज़ गार्डन है। यहाँ गुलाब की 1600 से भी अधिक किस्में देखी जा सकती हैं। गार्डन को बहुत खूबसूरती से डिजाइन किया गया है। अनेक प्रकार के रंगीन फव्वारे इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते हैं। हर साल यहाँ गुलाब पर्व आयोजित होता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोगों का यहाँ आना होता है। सुखना झील यह मानव निर्मित झील 3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसका निर्माण 1958 में किया गया था। अनेक प्रवासी पक्षियों को यहाँ देखा जा सकता है। झील में बोटिंग का आनंद लेते समय दूर-दूर फैले पहाड़ियों के सुंदर नजारों के साथ-साथ सूर्यास्त के नजारे भी यहाँ से बड़े मनमोहक दिखाई देते हैं। संग्रहालय चंडीगढ़ में अनेक संग्रहालय हैं। यहाँ के सरकारी संग्रहालय और कला दीर्घा में गांधार शैली की अनेक मूर्तियों का संग्रह देखा जा सकता है। यह मूर्तियां बौद्ध काल से संबंधित हैं। संग्रहालय में अनेक लघु चित्रों और प्रागैतिहासिक कालीन जीवाश्म को भी रखा गया है। अन्तर्राष्ट्रीय डॉल्स म्युजियम में दुनिया भर की गुडियाओं और कठपुतियों को रखा गया है। सुखना वन्यजीव अभयारण्य लगभग 2600 हेक्टेयर में फैले इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में वन्यजीव और वनस्पतियां पाई जाती हैं। मूलरूप से यहाँ पाए जाने वाले जानवरों में बंदर, खरगोश, गिलहरी, साही, सांभर, भेड़िए, जंगली शूकर, जंगली बिल्ली आदि शामिल हैं। इसके अलावा सरीसृपों की अनेक प्रजातियों भी यहाँ देखी जा सकती हैं। अभयारण्य में पक्षियों की विविध प्रजातियों को भी देखा जा सकता है। राजनीति संघ राज्यक्षेत्र प्रशासक भारतीय संविधान के अनुच्छेद २३९ के अनुसार प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। १९८४ से सामान्यतः राष्ट्रपति द्वारा पंजाब राज्यपाल को ही चण्डीगढ़ प्रशासक नियुक्त किया जाता रहा है। वर्तमान में चण्डीगढ़ के प्रशासक श्री बनवारीलाल पुरोहित हैं, जिन्हें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द ने दिनांक अगस्त २७, २०२० ने संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया था। संघ संसद में प्रतिनिधित्व लोकसभा भारत की लोकसभा में चण्डीगढ़ के लिए एक स्थान आवंटित है। वर्तमान सत्रहवीं लोकसभा में यहाँ का प्रतिनिधित्व श्रीमती किरण खेर कर रही हैं जो कि भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हैं। इससे पहले कांग्रेस के श्री पवन बंसल यहाँ से साँसद थे जो कि एक समय में भारत के रेल मंत्री भी बने। राज्यसभा राज्यसभा में चण्डीगढ़ संघ राज्यक्षेत्र को कोई स्थान आवण्टित नहीं है। चण्डीगढ़ हेतु राज्यसभा में स्थान का उपबन्ध करने हेतु दिसम्बर ०३, २०२१ ई० को लोकसभा सांसद मनीश तिवारी द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक पुरःस्थापित किया गया था। उक्त विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद ८० में संशोधन का प्रस्ताव करता है। चण्डीगढ़ नगर निगम सदन द्वारा इस विधेयक पर विचार किया गया था एवं वर्तमान में मामला संघ गृह मंत्रालय में विचाराधीन है। संघ राज्यक्षेत्रत्व भारतीय संविधान की प्रथम अनुसूची के अनुसार चण्डीगढ़ एक संघ राज्यक्षेत्र है किन्तु हरियाणा एवं पंजाब राज्य नगर पर अपना दावा करते हैं एवं नगर को उनको हस्तान्तरित करने की माँग करते हैं। अप्रैल में चण्डीगढ़ के संघ राज्यक्षेत्रत्व की स्थिति पर चण्डीगढ़, हरियाणा एवं पंजाब आमने-सामने १ अप्रैल २०२२ को पंजाब विधान सभा द्वारा एकमत से चण्डीगढ़ को पंजाब को हस्तान्तरित करने का संकल्प पारित किया था। भाजपा के विधायकों ने आम आदमी पार्टी के बहुमत वाले विधान सभा सदन की बैठक का  बहिष्कार कर दिया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं शिरोमणि अकाली दल ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। ४ अप्रैल २०२२ को पंजाब विस के संकल्प के प्रतिकार में हरियाणा विधानसभा ने एक संकल्प पारित किया जिसमें चण्डीगढ़ पर पंजाब के दावे को नकारा गया था एवं सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण एवं पंजाब के हिन्दी-भाषी क्षेत्रों को हरियाणा को हस्तान्तरित करने की माँग की गई थी। ७ अप्रैल को चण्डीगढ़ नगर निगम सदन ने एकमत से महापौर श्रीमती सरबजीत कौर के नेतृत्व में चण्डीगढ़ को संघ राज्यक्षेत्र रखने के समर्थन में एक संकल्प पारित किया। संकल्प में सदन ने भारत शासन से हरियाणा एवं पंजाब राज्यों हेतु उनकी अलग राजधानियों की माँग की। महापौर ने कहा, "दोनों राज्यों ने चंडीगढ़ पर अपने-अपने दावे के साथ विशेष सत्र बुलाए हैं। हालांकि, चंडीगढ़ वासियों को नहीं सुना गया कि वे क्या चाहते हैं। हमने बैठक इसलिए बुलाई ताकि निर्वाचित प्रतिनिधियों को सुना जा सके।" बैठक का आम आदमी पार्टी, कांग्रेस एवं शिरोमणि अकाली दल ने बहिष्कार किया था। नगर निगम नगर आयुक्त की अध्यक्षता में चण्डीगढ़ नगर निगम है।पदस्थ नगर आयुक्त श्रीमती आनन्दिता मित्रा हैं। नगर निगम की महापौर श्रीमती सरबजीत कौर हैं। श्री दलीप शर्मा वरिष्ठ उपमहापौर हैं एवं श्री अनूप गुप्ता उपमहपौर हैं। नगर निगम सदन में ३५ वार्डों से प्रत्यक्षः निर्वाचित ३५ पार्षद एवं प्रशासक द्वारा ९ पार्षद नामनिर्दिष्ट किए जाते हैं। चण्डीगढ़ का लोक सभा सांसद भी निगम सदन का पदेन सदस्य होता है, जिसके पास मताधिकार भी होता है। नगर निगम सदन में विभिन्न दलों की स्थिति राजनितिक दलSeatsस्थान +/−भारतीय जनता पार्टी१४ ६आम आदमी पार्टी१४१४भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस७२शिरोमणि अकाली दल१सांसद (भाजपा)१नामनिर्दिष्ट९ आवागमन वायु मार्ग चंडीगढ़ एयरपोर्ट सिटी सेंटर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर, दिल्ली मार्ग पर है। देश के प्रमुख शहरों से यहाँ के लिए नियमित उड़ानें हैं। रेल मार्ग चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन सिटी सेंटर से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन शहर को देश के अन्य हिस्सों से रेलमार्ग द्वारा जोड़ता है। दिल्ली से यहाँ के लिए प्रतिदिन ट्रेने हैं। सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 21 और 22 चंडीगढ़ को देश के अन्य हिस्सों से सड़क मार्ग द्वारा जोड़ते हैं। दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर, जम्मू, शिमला, कुल्लू, कसौली, मनाली, अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, हरिद्वार, देहरादून, हल्द्वानी आदि शहरों से यहाँ के लिए नियमित बस सेवाएं हैं। खेलकूद के स्थान मोहाली स्टेडियम,मोहाली चंडीगढ़ क्रिकेट स्टेडियम, (सेक्टर- 16) चंडीगढ़ गोल्फ़ क्लब, सेक्टर 6 पंचकुला गोल्फ़ क्लब, सेक्टर 3 हाकी स्टेडियम, सेक्टर 42 कैरम स्टेडियम, सेंट स्टीफेंस स्कूल, सेक्टर - 46 रोलर स्केटिंग रिंक, सेक्टर 10 बैडमिंटन हाल, सेक्टर 7 स्विमिंग पूल सेक्टर 23 शूटिंग रेंज, पटियाली राव अथलेटिक क्लब, सेक्टर 7 प्रमुख उद्यान रोज गार्डन, सेक्टर 16 बोगनवेलिया गार्डन, सेक्टर 3 जापानी उद्यान, सेक्टर 16 टोपियरी गार्डन, सेक्टर 35 फ्रैगरेंस गार्डन, सेक्टर 36 लीजर वैली, सेक्टर 10 म्यूजिकल फाउंटेन पार्क, सेक्टर 33 सुखना लेक उद्यान, सेक्टर 6 कैक्टस गार्डन पंचकुला राक गार्डन चंडीगढ़, सेक्टर 1 राजेन्द्र उद्यान, सेक्टर 1 सिल्वी पार्क, फेज 10 मोहाली बोटैनिकल गार्डन, खुड्डा लाहोरा चंडीगढ़ से प्रकाशित प्रमुख (दैनिक) समाचारपत्र हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान पंजाब केसरी दैनिक जागरण दैनिक भास्कर अमर उजाला दैनिक ट्रिब्यून : द ट्रिब्यून का हिंदी संस्करण इलेक्ट्रानिक टुडे अंग्रेजी द ट्रिब्यून-पंजाब के सबसे पुराने अखबारों में से एक। द इंडियन एक्सप्रेस हिन्दुस्तान टाईम्स द टाईम्स ऑफ इंडिया, द इकानामिक टाईम्स, द बिजनेस टाईम्स द पायनियर बिजनेस लाईन पंजाबी पंजाबी ट्रिब्यून देशसेवक सीपीआई से संबद्ध समाचारपत्र रोजाना स्पोक्समैन जगबाणी प्रमुख नागरिक नीरजा भनोट, जीव मिल्खा सिंह कपिलदेव, भारतीय क्रिकेटर मिल्खा सिंह, धावक बलबीर सिंह, अंतर्राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी जी एस सरकारिया, पंचकुला कैक्टस गार्डन के जन्मदाता नेकचंद, राक गार्डन के निर्माता युवराज सिंह, भारतीय क्रिकेटर सबीर भाटिया, हॉटमेल के संस्थापक सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ चंडीगढ़ सरकार चंडीगढ़ के बारे में अधिक जानकारी चंडीगढ़ के बारे में चण्डीगढ की शान – सुखना झील (मुसाफिर हूँ यारों) श्रेणी:पंजाब के शहर श्रेणी:चंडीगढ़ श्रेणी:भारत के केन्द्र शासित प्रदेश श्रेणी:हरियाणा के शहर श्रेणी:लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र श्रेणी:भारत में नियोजित नगर 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छत्तीसगढ़
https://hi.wikipedia.org/wiki/छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इसका गठन १ नवंबर २००० को हुआ था और यह भारत का २६वाँ राज्य है। पहले यह मध्य प्रदेश के अंतर्गत था। कहते है कि किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। किंतु गढ़ों की संख्या में वृद्धि हो जाने पर भी नाम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा राज्य है जिसे 'महतारी'(माँ) का दर्जा दिया गया है।भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केंद्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मंदिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है, जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है।छत्तीसगढ़ भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है। नामोत्पत्ति "छत्तीसगढ़" एक प्राचीन नाम नहीं है, इस नाम का प्रचलन १८ सदी के दौरान मराठा काल में शुरू हुआ। प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ "दक्षिण कोशल" के नाम से जाना जाता था।   सभी ऐतिहासिक शिलालेख, साहित्यिक और विदेशी यात्रियों के लेखों में, इस क्षेत्र को दक्षिण कोशल कहा गया है। आधिकारिक दस्तावेज में "छत्तीसगढ़" का प्रथम प्रयोग १७९५ में हुआ था। छत्तीसगढ़ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में कोई एक मत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कलचुरी काल में छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से ३६ गढ़ो में बँटा था, यह गढ़ एक आधिकारिक इकाई थी, नाकि किले या दुर्ग। इन्हीं "३६ गढ़ो " के आधार पर छत्तीसगढ़ नाम कि व्युत्पत्ति हुई। (१ गढ़ = ७ बरहो = ८४ ग्राम) इतिहास छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कौशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालांतर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में 'चित्रोत्पला' था) का मत्स्य पुराण, महाभारत के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे। इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई. में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था। क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख थे: बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा-महल भी कहा जाता है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश के राजा रामचंद्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा। भूगोल छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। यहाँ सबसे ज्यादा मिस्रित वन पाया जाता है। सागौन की कुछ उन्नत किस्म भी छत्तीसगढ़ के वनों में पायी जाती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं, जो लगभग 80 किमी चौड़ा और 322 किमी लंबा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर हैं रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। धान की भरपूर पैदावार के कारण इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र के उत्तर में है मैकल पर्वत शृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि ईशान कोण में है। पूर्व में उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ हैं और आग्नेय में सिहावा के पर्वत शृंग है। दक्षिण में बस्तर भी गिरि-मालाओं से भरा हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं: उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ, खारुन, सोंढूर, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी। छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 1. 2 नवंबर 1861 को मध्य प्रांत का गठन हआ, इसकी राजधानी नागपुर थी। मध्यप्रांत में छत्तीसगढ़ एक जिला था। 2. 1862 में मध्य प्रांत में पाँच संभाग बनाये गये जिसमें छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर था, जिसके साथ ही छत्तीसगढ़ में 3 जिलों (रायपुर, बिलासपुर, संबलपुर) का निर्माण भी हुआ। 3. सन् 1905 में जशपुर, सरगुजा, उदयपुर, चांगभखार एवं कोरिया रियासतों को छत्तीसगढ़ में मिलाया गया तथा संबलपुर को बंगाल प्रांत में मिलाया गया। इसी वर्ष छत्तीसगढ़ का प्रथम मानचित्र बनाया गया। 4. सन् 1918 में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखा चित्र अपनी पांडुलिपि में खींचा अतः इन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा व संकल्पनाकार कहा जाता है। 5. सन् 1924 में रायपुर जिला परिषद ने संकल्प पारित करके पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग की। 6. सन् 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी। 7. सन् 1946 में ठाकुर प्यारेलाल ने पृथक छत्तीसगढ़ माँग के लिए छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन किया जो कि छत्तीसगढ़ निर्माण हेतु प्रथम संगठन था। 8. सन् 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत और बरार का हिस्सा था। 9. सन् 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की माँग की गई। 10. सन् 1955 रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था। 11. सन् 1956 में डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन राजनांदगाँव जिले में किया गया। इसके महासचिव दशरथ चौबे थे। इसी वर्ष मध्यप्रदेश के गठन के साथ छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश में शामिल किया गया। 12. सन् 1967 में डॉक्टर खूबचंद बघेल ने बैरिस्टर छेदीलाल की सहायता से राजनांदगाँव में पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ का गठन किया जिसके उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद तिवारी थे। 13. सन् 1976 में शंकर गुहा नियोगी ने पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन किया। 14. सन् 1983 में शंकर गुहा नियोगी के द्वारा छत्तीसगढ़ संग्राम मंच का गठन किया गया। पवन दीवान द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया गया। 15. सन् 1994 में तत्कालीन साजा विधायक रविंद्र चौबे ने मध्य प्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ निर्माण संबंधी अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किया गया जो सर्वसम्मति से पारित हुआ। 16. 1 मई 1998 को मध्यप्रदेश विधान सभा में छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए शासकीय संकल्प पारित किया गया। 17. 25 जुलाई 2000 को श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया। 31 जुलाई 2000 विधेयक लोकसभा में पारित किया गया। 3 अगस्त 2000 राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया और 9 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया। इसे 25 अगस्त 2000 तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने मध्‍य्रपदेश राज्‍य पुर्नगठन अधिनियम का अनुमोदित किया। 18. 1 नवंबर 2000 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई, छत्तीसगढ़ देश का 26वाँ राज्य बना। 19. छत्तीसगढ़ का निर्माण मध्यप्रदेश के तीन संभाग रायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर के 16 जिलों, 96 तहसीलों और 146 विकासखंडों से किया गया। प्रदेश की राजधानी रायपुर को बनाया गया तथा बिलासपुर में उच्च न्यायालय की स्थापना की गई। 20. छत्तीसगढ़ में विधानसभा की प्रथम बैठक 14 दिसंबर 2000 से 20 दिसंबर 2000 तक रायपुर में राजकुमार कॉलेज के जशपुर हाल में हुई। जिले छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय यहाँ सिर्फ 16 जिले थे, पर 2007 में 2 नए जिलो की घोषणा की गयी जो कि बस्तर संभाग का नारायणपुर व बीजापुर था। 2012 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (भाजपा) ने 9 नये जिलों का निर्माण किया। 15 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (कांग्रेस) ने बिलासपुर जिले से काट कर 1 नए जिले (गौरेला पेंड्रा मरवाही) के निर्माण की घोषणा की। वर्तमान में मुख्यमंत्री श्री बघेल द्वारा और नये 04 जिले का घोषणा किया है इस तरह अब छत्तीसगढ़ में कुल 32 जिले हो गए हैं। कवर्धा जिला कांकेर जिला (उत्तर बस्तर) कोरबा जिला कोरिया जिला जशपुर जिला जांजगीर-चाँपा जिला दंतेवाड़ा जिला (दक्षिण बस्तर) दुर्ग जिला धमतरी जिला बिलासपुर जिला बस्तर जिला महासमुंद जिला राजनांदगाँव जिला रायगढ़ जिला रायपुर जिला सरगुजा जिला नारायणपुर जिला बीजापुर जिला बेमेतरा जिला बालोद जिला बलौदा बाजार जिला बलरामपुर गरियाबंद सूरजपुर कोंडागाँव जिला मुंगेली जिला सुकमा जिला गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला मनेंद्रगढ़ जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला मोहला-मानपुर जिला सक्ती जिला खैरागढ़ जिला कला एवं संस्कृति आदिवासी कला काफी पुरानी है। प्रदेश की आधिकारिक भाषा हिंदी है और लगभग संपूर्ण जनसंख्या उसका प्रयोग करती है। प्रदेश की आदिवासी जनसंख्या हिंदी की एक उपभाषा छत्तीसगढ़ी बोलती है। thumb|महुआ thumb|सल्फी से तैयार प्रसिद्द बस्तर बीयर thumb|छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ता एकत्रण साहित्य छत्तीसगढ़ साहित्यिक परंपरा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिंदी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-सँवारता रहा है।" छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की eeyui3heirnrodbfiसहोदरा है " (पृ 21, प्रकाशक रविशंकर विश्वविद्यालय, 1973)। " छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।"डॉ॰ भोलानाथ तिबारी, अपनी पुस्तक " हिन्दी भाषा" में लिखते है - " छत्तीसगढ़ी भाषा भाषियों की संख्या अवधी की अपेक्षा कहीं अधिक है और इस दृ से यह बोली के स्तर के ऊपर उठकर भाषा का स्वरुप प्राप्त करती है।" भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परंतु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे। इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हजार साल से हुआ है। अनेक साहित्यको ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है : छत्तीसगढ़ी गाथा युग - सन् 1000 से 1500 ई. तक छत्तीसगढ़ी भक्ति युग - मध्य काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग - सन् 1900 से आज तक यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है। लोकगीत और लोकनृत्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्त्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है – भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डंडा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत। इनमें से सुआ, करमा, डंडा व पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं। खेल छत्तीसगढ़ी बाल खेलों में अटकन-बटकन लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आँगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है। घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रूप में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है। गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को आगे बढ़ाता है। इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है। 1) अटकन-बटकन:- अटकन मटकन दही चटाका लौहा लाटा बन में काँटा चल चल बेटी गंगा जाबो गंगा ले गोदावरी पक्का पक्का बेल खाबो बेल के डारा टुट गे बिहाती डोकारी छूट गे। 2) काऊँ माऊँ मेकरा के झाला फुर्र....। फुगड़ी बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है। चार, छः लड़कियाँ इकट्ठा होकर, ऊँखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है। थककर या साँस भरने से जिस खिलाड़ी के पाँव चलने रुक जाते हैं वह हट जाती है। लंगड़ी यह वृद्धि चातुर्थ और चालाकी का खेल है। यह छू छुओवल की भाँति खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी एड़ी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है। जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है। खुडुवा (कबड्डी) खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भाँति खेला जाने वाला खेल है। दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है। दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाड़ियों के पास जाते है - चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है। इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है। डांडी पौहा डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है। गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है। खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है। खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दूसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलती है। JITAN KORWA जातियाँ छत्तीसगढ़ में कई जातियाँ और जनजातियाँ हैं, जिनमें से कुछ हैं गोंड, अमात, हल्बा, कंडरा, कंवर, ठाकुर, बैंगा, मुरिया, माडिया, उरॉव, कमार, भुंजिया, भारिया, सतनामी, और बियार, मौवार । पर्यटन स्‍थल खरसिया रॉक गार्डन राजिम महामाया मंदिर खूँटाघाट बाँध मरी माई मंदिर, भनवारटंक नवागढ़ सेतगंगा चित्रकोट जलप्रपात तीरथगढ़ जलप्रपात इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान गिरौधपुरी रायपुर गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कैलाश गुफा गंगरेल बांध सिरपुर मल्हार भोरमदेव मंदिर मैनपाट बमलेश्वरी मंदिर अमरकंटक मैत्रीबाग भिलाई कानन पेंडारी चिड़ियाघर सर्वमंगला मंदिर, कोरबा गिरौदपुरी (Girodpuri) या गिरोधपुरी (Girodhpuri) - भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदा बाजार जिले में स्थित एक नगर है। जोकि अभी वर्तमान समय में रायपुर जिले में आती है। यही ही कुतुबमीनार से भी ऊँची किला है। जिसे जैतस्तंभ कहा जाता है। जल विहार बुका - हसदेव नदी के चारो तरफ हरे भरे पहाड़ियों से घिरा जलमग्न सुंदर प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण मिनीमाता बांगो बाँध का भराओ वाला जगह है जो कोरबा जिला के मड़ई गाँव से पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां नाविक रहते है जो जल विहार कराते है। केंदई जल प्रपात - केंदई जलप्रपात कोरबा जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर अम्बिकापुर रोड पर स्थित है इस पर सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। जलप्रपात के नीचे जाने पर इंद्रधनुष की सुंदर चित्र बनती है जो मनमोहक है देखा जा सकता है। तथा चारो ओर हरे भरे पहाड़ियों से घिरा हुआ है। गोल्डन आइलैंड - गोल्डन आइलैंड केंदई ग्राम से सात किलोमीटर मीटर दक्षिण में है जहाँ तक सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। जो हसदेव नदी पर एक लैंड बना हुआ है जहाँ नाविक भी रहते है जो कभी भी जल विहार करा सकते है। जो बहुत ही आनंदमय जगह है। तथा पिकनिक स्पॉट भी है। बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल इन्हें भी देखें छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ के लोकसभा सदस्य छत्तीसगढ़ के उत्सव छत्तीसगढ़ के आदिवासी देवी देवता छत्तीसगढ़ का खाना छत्तीसगढ़ के मेले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 छत्तीसगढ़ सरकारी नौकरी टीका टिप्पणी    क.    "मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च। तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।" मत्स्यपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 50/25)    ख.    "चित्रोत्पला" चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा। मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।" - महाभारत - भीष्मपर्व - 9/34    ग.    "चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका। तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।" ब्रह्मपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 19/31) सन्दर्भ श्रेणी:छत्तीसगढ़ श्रेणी:भारत के राज्य
झारखण्ड
https://hi.wikipedia.org/wiki/झारखण्ड
झारखण्ड भारत का एक राज्य है। राँची इसकी राजधानी है। झारखण्ड की सीमाएँ पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार, और दक्षिण में ओड़िशा को छूती हैं। लगभग सम्पूर्ण प्रदेश छोटानागपुर के पठार पर अवस्थित है। सम्पूर्ण भारत में वनों के अनुपात में प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है। बिहार के दक्षिणी भाग को विभाजित कर झारखण्ड प्रदेश का सृजन किया गया था। इस प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में धनबाद, बोकारो एवं जमशेदपुर शामिल हैं। नामकरण विभिन्न इंडो-आर्यन भाषाओं में "झार" शब्द का अर्थ है 'जंगल' और "खण्ड" का अर्थ 'भूमि' है, इस प्रकार "झारखण्ड" का अर्थ वन भूमि है। "छोटानागपुर पठार" में बसा होने के कारण इसे "छोटानागपुर प्रदेश" भी बोलते हैं। झारखण्ड को "जंगलों का प्रदेश" भी कहा जाता है। मुग़ल काल में इस क्षेत्र को कुकरा नाम से जाना था। झारखण्ड के आदिवासियों के अनुसार, झारखण्ड दो शब्द "जाहेर" (सारना स्थल) और "खोण्ड" (वेदी) शब्दों से मिलकर बना है। प्राचीन काल में, सुतिया नामक मुण्डा के शासनकाल में इसे "जाहेरखोण्ड" नाम से जाना जाता था। मध्यकाल में, इस क्षेत्र को झारखण्ड के नाम से जाना जाता था। भविष्य पुराण (1200 CE) के अनुसार, झारखण्ड सात पुण्ड्रा देश में से एक था। यह नाम पहली बार पूर्वी गंगवंश के नरसिंह देव द्वितीय के शासनकाल से ओडिशा क्षेत्र के केन्द्रपाड़ा में 13 वीं शताब्दी की ताम्बे की प्लेट पर पाया गया है। बैधनाथ धाम से पुरी तक की वन भूमि झारखण्ड के नाम से जानी जाती थी। अकबरनामा में, पूर्व में पंचेत से लेकर पश्चिम में रतनपुर तक, उत्तर में रोहतासगढ़ और दक्षिण में ओडिशा की सीमा को झारखण्ड के रूप में जाना जाता था। इतिहास प्राचीन काल झारखण्ड के हजारीबाग जिले में लगभग 5000 साल पुराना गुफा चित्र मिला है। इस राज्य में ईसा पूर्व 1400 काल के लोहे के औज़ार और मिट्टी के बर्तन के अवशेष मिले हैं। 325 ईसा पूर्व में भारत के उत्तरी इलाके बिहार से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया मुण्डा और भूमिज जनजातियों द्वारा शुरू किया गया था। छोटानागपुर में रिसा मुण्डा प्रथम मुण्डा जनजातीय नेता था, जिसने राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू की। उसने सुतिया पाहन को मुण्डाओं का शासक चुना और सुतिया नागखण्ड नामक नये राज्य की स्थापना की। भूमिज जनजाति ने धालभूम, बड़ाभूम, पंचेत, सिंहभूम और मानभूम में भूमिज साम्राज्य की स्थापना की थी, जो झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों तक फैली थी। भूमिजों ने ब्रिटिश शासन के आगमन तक शासन किया। मुण्डा सम्राज्य के अंतिम शासक मदरा मुण्डा थे, जिन्होंने फणि मुकुट राय को गोद लिया था। फणि मुकुट राय ने छोटानागपुर में नागवंशी वंश की स्थापना की थी। मध्यकाल मध्यकाल में इस क्षेत्र में चेरो राजवंश और नागवंशी राजवंश राजाओं का शासन था। मुगल प्रभाव इस क्षेत्र में सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान पहुंचा जब 1574 में राजा मानसिंह ने इस पर आक्रमण किया था। दुर्जन साल मध्य काल में छोटानागपुर महान नागवंशी राजा थे, उनके शासन काल में वे मुगल शासक जहांगीर के समकालीन के सेनापति ने इस क्षेत्र में आक्रमण किया था। राजा मेदिनी राय ने, 1658 से 1674 तक पलामू क्षेत्र पर शासन किया। आधुनिक काल 1765 के बाद यहां ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रभाव पड़ा। ब्रिटिश कंपनी ने सर्वप्रथम धालभूम, बड़ाभूम, मानभूम और झाड़ग्राम के रियासतों पर आक्रमण कर झारखंड में प्रवेश किया। आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद छोटा नागपुर पठार के कई राज्य ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन हो गए। उनमें नागवंश रियासत, रामगढ़ रियासत, गागंपुर, खरसुआं, साराईकेला, जाशपुर, सरगुजा आदि शामिल थे। ब्रिटिश राज में स्थानीय नागरिकों पर काफी अत्याचार हुआ, साथ ही अन्य प्रदेशों से आने वाले प्रवासी का वर्चस्व था। इस कालखंड में इस प्रदेश में ब्रिटिशों के खिलाफ बहुत से विद्रोह हुए, इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोह थे:- 1766–1789: जगन्‍नाथ सिंह पातर और भूमिज सरदार-घटवाल-पाइक के नेतृत्व में भूमिजों का पहला चुआड़ विद्रोह; राजा जगन्नाथ धल का विद्रोह 1769: रघुनाथ महतो का विद्रोह 1770–1771: चेरो बिद्रोह पलामू के जयनाथ सिंह के नेतृत्व में 1772–1780: पहाड़िया विद्रोह 1780–1785: तिलका मांझी के नेतृत्व में मांझी विद्रोह जिसमें भागलपुर में 1785 में तिलका मांझी को फांसी दी गयी थी। 1789-1831: भूमिजों का विद्रोह 1793–1796: मुंडा विद्रोह रामशाही के नेतृत्व में 1795–1821: तमाड़ विद्रोह 1800–1802: मुंडा विद्रोह 1812: बख्तर साय और मुंडल सिंह के नेतृत्य में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बिरुद्ध बिद्रोह 1831–34: भूमिज विद्रोह बड़ाभूम के गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में 1831–32: कोल विद्रोह 1832–33: खेवर विद्रोह भागीरथ, दुबाई गोसाई, एवं पटेल सिंह के नेतृत्व में 1855: लार्ड कार्नवालिस के खिलाफ सांथालों का विद्रोह 1855–1860: सिद्धू कान्हू के नेतृत्व में संथालों का विद्रोह 1857: नीलांबर-पीतांबर का पलामू में विद्रोह 1857: पाण्डे गणपत राय, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, टिकैत उमराँव सिंह, शेख भिखारी एवं बुधु बीर का सिपाही विद्रोह के दौरान आंदोलन 1874: खेरवार आंदोलन भागीरथ मांझी के नेतृत्व में 1880: खड़िया विद्रोह तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में 1895–1900: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा विद्रोह thumb|संथाल विद्रोह का चित्रण thumb|बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी इन सभी विद्रोहों के भारतीय ब्रिटिश सेना द्वारा फौजों की भारी तादाद से निष्फल कर दिया गया था। इसके बाद 1914 में जातरा भगत के नेतृत्व में लगभग छब्बीस हजार आदिवासियों ने फिर से ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया था जिससे प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया था। झारखण्ड राज्य की मांग का इतिहास लगभग सौ साल से भी पुराना है जब 1938 इसवी के आसपास जयपाल सिंह जो भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे और जिन्होंने खेलों में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान का भी दायित्व निभाया था, ने पहली बार तत्कालीन बिहार के दक्षिणी जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य बनाने का विचार रखा था। लेकिन यह विचार 2 अगस्त सन 2000 में साकार हुआ जब संसद ने इस संबंध में एक बिल पारित किया। राज्य की गतिविधियाँ मुख्य रूप से राजधानी राँची और जमशेदपुर, धनबाद तथा बोकारो जैसे औद्योगिक केन्द्रों से सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। सन 2000, 15 नवम्बर को झारखंड राज्य ने मूर्त रूप ग्रहण किया और भारत के 28 वें प्रांत के रूप में प्रतिस्थापित हुआ । भौगोलिक स्थिति एवं जलवायु प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा छोटानागपुर पठार का हिस्सा है, जो कोयल, दामोदर, ब्रम्हाणी, खड़कई, एवं स्वर्णरेखा नदियों का उद्गम स्थल भी है, जिनके जलक्षेत्र ज्यादातर झारखण्ड में है। प्रदेश का बड़ा हिस्सा वन-क्षेत्र है, जहाँ हाथियों की बहुतायत है। उत्तर पूर्व झारखंड में संथाल परगना का कुछ हिस्सा गंगा के मैदान में स्थित है, साहिबगंज झारखंड का एकमात्र जिला है जहां गंगा बहती है। मिट्टी के वर्गीकरण के अनुसार, प्रदेश की ज्यादातर भूमि चट्टानों एवं पत्थरों के अपरदन से बनी है। जिन्हें इस प्रकार उप-विभाजित किया जा सकता है:- लाल मिट्टी, जो ज्यादातर दामोदर घाटी, एवं राजमहल क्षेत्रों में पायी जाती है। माइका युक्त मिट्टी, जो कोडरमा, झुमरी तिलैया, बड़कागाँव, एवं मंदार पर्वत के आसपास के क्षेत्रों में पायी जाती है। बलुई मिट्टी, ज्यादातर हजारीबाग एवं धनबाद क्षेत्रों की भूमि में पायी जाती है। काली मिट्टी, राजमहल क्षेत्र में लैटेराइट मिट्टी, जो राँची के पश्चिमी हिस्से, पलामू, संथाल परगना के कुछ क्षेत्र एवं पश्चिमी एवं पूर्वी सिंहभूम में पायी जाती है। झारखंड के मुख्य खनिज भंडार झारखंड भारत का एक खनिज समृद्ध राज्य है। यह राज्य कोयला, लौह ,अभ्रक, बॉक्साइट, चूना पत्थर, तांबा, ग्रेफाइट, और कई अन्य खनिजों का घर है। कोयला : झारखंड भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 25% पाया जाता है। झारखंड में कोयले के कई प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें झरिया, बोकारो, जामाडोबा, और पकरी बरवाडीह शामिल हैं। लौह अयस्क : झारखंड भारत का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल लौह अयस्क भंडार का लगभग 17% पाया जाता है। झारखंड में लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें नोआमुंडी, लोहरदगा, और मधुपुर शामिल हैं। अभ्रक : झारखंड भारत का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल अभ्रक भंडार का लगभग 80% पाया जाता है। झारखंड में अभ्रक के प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें कोडरमा, गिरिडीह, और रांची शामिल हैं। बॉक्साइट : झारखंड भारत का दूसरा सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल बॉक्साइट भंडार का लगभग 10% पाया जाता है। झारखंड में बॉक्साइट के प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें चाईबासा और खूंटी शामिल हैं। झारखंड के खनिज भंडार राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन खनिजों से राज्य को भारी आय होती है, और ये राज्य के औद्योगिक विकास में भी योगदान देते हैं। वानस्पतिकी एवं जैविकी झारखण्ड वानस्पतिक एवं जैविक विविधताओं का भण्डार कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रदेश के अभयारण्य एवं वनस्पति उद्यान इसकी बानगी सही मायनों में पेश करते हैं। बेतला राष्ट्रीय अभयारण्य (पलामू), जो डाल्टेनगंज से 25 किमी की दूरी पर स्थित है, लगभग 250 वर्ग किमी में फैला हुआ है। विविध वन्य जीव यथा बाघ, हाथी, भैंसे साम्भर, सैकड़ों तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लम्बा अजगर चित्तीदार हिरणों के झुण्ड, चीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढ़ाते हैं। इस पार्क को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। सन 1986 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। जनसांख्यिकी जनगणना 2011 के अनुसार झारखण्ड की आबादी लगभग 3.29 करोड़ है। जो भारत की कुल जनसंख्या का 2.72% हैं। यहाँ का लिंगानुपात 947 स्त्री प्रति 1000 पुरुष है। प्रतिवर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व लगभग 414 है। झारखण्ड क्षेत्र विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों एवं धर्मों का संगम क्षेत्र कहा जा सकता है। आर्य, आस्ट्रो-एशियाई एवं द्रविड़ समूह की भाषायें यहां बोली जाती है। हिन्दी, सन्थाली, बंगाली, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुड़मालि यहाँ की प्रमुख भाषायें हैं। इसके अलावा यहां कुड़ुख , मुण्डारी, हो, भूमिज बोली जाती है। झारखण्ड में बसनेवाले स्थानीय आर्य भाषी लोगों को सादान कहा जाता है। झारखण्ड मॆं कई जातियां और जनजातियां हैं। यहाँ की आबादी में 26% अनुसूचित जनजाति, 12% अनुसूचित जाति शामिल हैं। राज्य की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू धर्म (लगभग 67.8%) मानती है। दूसरे स्थान पर (14.5%) इस्लाम धर्म है। राज्य की लगभग 12.8% आबादी सरना धर्म एवं 4.1% आबादी ईसाइयत को मानती है। यहाँ की साक्षरता दर 64.4%है। जिसमें से पुरुष साक्षरता दर 76.8% तथा महिला साक्षरता दर 55.4% है। सरकार एवं राजनीति झारखण्ड में राज्य स्तर पर सबसे बड़ा पद राज्यपाल का होता हैं, जो भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ मुख्यमन्त्री के हाथों में केन्द्रित होती है, जो अपनी सहायता के लिए एक मन्त्रिमण्डल का भी गठन करता है। राज्य का प्रशासनिक मुखिया राज्य का मुख्य सचिव होता है, जो प्रशासनिक सेवा द्वारा चुनकर आते हैं। न्यायिक व्यस्था का प्रमुख राँची स्थित उच्च न्यायलय के प्रमुख न्यायाधीश होता है। प्रशासनिक जिला इकाइयाँ झारखण्ड राज्य में चौबीस जिले हैं। झारखण्ड के जिले: 1. राँची, 2. लोहरदग्गा, 3. गुमला, 4. सिमडेगा, 5. पलामू, 6. लातेहार, 7. गढ़वा, 8. पश्चिमी सिंहभूम, 9. सराईकेला खरसाँवा, 10. पूर्वी सिंहभूम, 11. दुमका, 12. जामताड़ा, 13. साहेेबगंज, 14. पाकुड़, 15. गोड्डा, 16. हज़ारीबाग, 17. चतरा, 18. कोडरमा, 19. गिरीडीह, 20. धनबाद, 21. बोकारो, 22. देवघर, 23. खूँटी, 24. रामगढ़ अर्थतन्त्र झारखण्ड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खनिज, वन सम्पदा और पर्यटन से निर्देशित है। नीति आयोग के ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक आधार रेखा रिपोर्ट’ के अनुसार, राज्य में 46.16 प्रतिशत लोग गरीब हैं। वर्ष 2018-19 में झारखण्ड का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2011-12 की कीमतों पर 2,29,274 लाख करोड़ रुपए था। उद्योग-धन्धे झारखण्ड में भारत के कुछ सर्वाधिक औद्योगिकृत स्थान यथा - जमशेदपुर, राँची, बोकारो एवं धनबाद इत्यादि स्थित हैं। झारखण्ड के उद्योगों में कुछ प्रमुख हैं : भारत का पहला और विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा इस्पात कारखाना टाटा स्टील जमशेदपुर में। एक और बड़ा इस्पात कारखाना बोकारो स्टील प्लांट बोकारो में। भारत का सबसे बड़ा आयुध कारखाना गोमिया में। मीथेन गैस का पहला प्लांट। कला और संस्कृति पर्व-त्यौहार thumb|पारम्परिक आदिवासी नृत्य झारखण्ड के कुछ प्रमुख त्योहार इस प्रकार हैं:- मागे परब सरहुल (बाः परब/बाहा परब/हादी परब/खाद्यी परब) रहइन परब करम परब जितिया बान्दना/सोहराय टुस पर्व झारखण्ड के लोकनृत्य झुमइर, डमकच, पाइका, छऊ, फिरकल, जदुर, नाचनी, नटुआ, अगनी, चौकारा, जामदा, घटवारी, मतहा, झूमर, आदि। सिनेमा झारखण्ड में अनेक भाषाओं में चलचित्र बनते हैं। इनमें मुख्य रूप से नागपुरी सिनेमा का निर्माण है। इसके अलावा खोरठा भाषा एवं सन्थाली में भी फिल्में बनती हैं। झारखण्ड के सिनेमा को झॉलीवुड कहा जाता है। झारखंड बिहार से 15 नवंबर 2000 को अलग हुआ शिक्षण संस्थान झारखण्ड की शिक्षण संस्थाओं में कुछ अत्यन्त प्रमुख शिक्षा संस्थान शामिल हैं। जनजातिय प्रदेश होने के बावज़ूद यहां कई नामी सरकारी एवं निजी कॉलेज हैं जो कला, विज्ञान, अभियान्त्रिकी, मेडिसिन, कानून और मैनेजमेंट में उच्च स्तर की शिक्षा देने के लिये विख्यात हैं। झारखण्ड की कुछ प्रमुख शिक्षा संस्थायें हैं : विश्वविद्यालय डॉ ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी, राँची राँची विश्वविद्यालय राँची, नीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय,धनबाद सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राँची, बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा राँची, कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा, केन्द्रीय विश्वविद्यालय झारखण्ड अन्य प्रमुख संस्थान राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला जमशेदपुर, राष्ट्रीय खनन शोध संस्थान धनबाद, भारतीय लाह शोध संस्थान राँची, राष्ट्रीय मनोचिकत्सा संस्थान राँची, जेवियर प्रबन्धन संस्थान। एक्स एल आर आई जमशेदपुर आईआईटी (आईएसएम) धनबाद, भारतीय खनि विद्यापीठ विश्वविद्यालय या इंडियन स्कूल ऑफ़ माइन्स भारत के खनन संबंधी शोध संस्थानों में सबसे प्रमुख है। यह संस्थान झारखंड राज्य के धनबाद नामक शहर में स्थित है। इसकी स्थापना 1926 में लन्दन के रॉयल स्कूल ऑफ़ माईन्स के तर्ज पर की गई थी। यातायात झारखण्ड की राजधानी राँची सम्पूर्ण देश से सड़क एवं रेल मार्ग द्वारा काफी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 2, 27, 33 इस राज्य से होकर गुजरती है। इस प्रदेश का दूसरा प्रमुख शहर टाटानगर (जमशेदपुर) दिल्ली कोलकाता मुख्य रेलमार्ग पर बसा हुआ है जो राँची से 120 किलोमीटर दक्षिण में बसा है। राज्य का में एकमात्र अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा राँची का बिरसा मुण्डा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो देश के प्रमुख शहरों; मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता और पटना से जुड़ा है। इण्डियन एयरलाइन्स और एयर सहारा की नियमित उड़ानें आपको इस शहर से हवाई-मार्ग द्वारा जोड़ती हैं। सबसे नजदीकी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता का नेताजी सुभाषचन्द्र बोस हवाई अड्डा है। हाल ही देवघर हवाई अड्डा बन कर तैयार हो गया है और यातायात की शुरुआत हो चुकी हैं। संचार एवं समाचार माध्यम राँची एक्सप्रेस एवं प्रभात खबर जैसे हिन्दी समाचारपत्र राज्य की राजधानी राँची से प्रकाशित होनेवाले प्रमुख समाचारपत्र हैं जो राज्य के सभी हिस्सों में उपलब्ध होते हैं। हिन्दी, बांग्ला एवं अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले देश के अन्य प्रमुख समाचारपत्र भी बड़े शहरों में आसानी से मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक हिन्दुस्तान, खबर मन्त्र, आई नेक्स्ट, उदितवाणी, चमकता आईना, उत्कल मेल, स्कैनर इंडिया, इंडियन गार्ड तथा आवाज जैसे हिन्दी समाचारपत्र भी प्रदेश के बहुत से हिस्सों में काफी पढ़े जाते हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया की बात करें तो झारखण्ड को केन्द्र बनाकर खबरों का प्रसारण ई टीवी बिहार-झारखण्ड, सहारा समय बिहार-झारखण्ड, जी बिहार झारखण्ड, साधना न्यूज, न्यूज 11 कशिश न्यूज आदि चैनल करते हैं। रांची में राष्ट्रीय समाचार चैनलों के ब्यूरो कार्यालय कार्यरत हैं। जोहार दिसुम खबर झारखण्डी भाषाओं में प्रकाशित होने वाला पहला पाक्षिक अखबार है। इसमें झारखण्ड की 10 आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं तथा हिन्दी सहित 11 भाषाओं में खबरें छपती हैं। जोहार सहिया राज्य का एकमात्र झारखण्डी मासिक पत्रिका है जो झारखण्ड की सबसे लोकप्रिय भाषा नागपुरी में प्रकाशित होती है। इसके अलावा झारखण्डी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा और गोतिया झारखण्ड की आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाली महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएं हैं। राँची और जमशेदपुर में लगभग पांच रेडियो प्रसारण केन्द्र हैं और आकाशवाणी की पहुंच प्रदेश के हर हिस्से में है। दूरदर्शन का राष्ट्रीय प्रसारण भी प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में पहुँच रखता है। झारखण्ड के बड़े शहरों में लगभग हर टेलिविजन चैनल उपग्रह एवं केबल के माध्यम से सुलभता से उपलब्ध है। लैंडलाइन टेलीफोन की उपलब्धता प्रदेश में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल), टाटा टेलीसर्विसेज (टाटा इंडिकॉम) एवं रिलायंस इन्फोकॉम द्वारा हर हिस्से में की जाती है। मोबाइल सेवा प्रदाताओं में बीएसएनएल, एयरसेल, वोडाफ़ोन-आइडिया, रिलायंस, यूनिनॉर एवं एयरटेल प्रमुख हैं। झारखण्ड के पर्यटन स्थल देवघर वैधनाथ मन्दिर पारसनाथ, गिरिडीह बासुकीनाथ मन्दिर,दुमका हुण्डरू जलप्रपात,रांची बेतला राष्ट्रीय उद्यान,लातेहार छिनमस्तिके मन्दिर, रजरप्पा श्री बंशीधर स्वामी मन्दिर, गढ़वा श्री माता चतुर्भुजी मन्दिर, गढ़वा लोध जलप्रपात तमासीन जलप्रपात देउड़ी मन्दिर, तामाड़ दलमा अभयारण्य जुबली पार्क, जमशेदपुर पतरातू डैम, पतरातू पंचघाघ जलप्रपात, दशम जलप्रपात। हजारीबाग राष्ट्रीय अभयारण्य मैथन डेम, धनबाद झारखण्ड के प्रसिद्ध व्यक्ति सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ झारखण्ड सरकार श्रेणी:झारखंड श्रेणी:भारत के राज्य
पश्चिम बंगाल
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पश्चिम बंगाल () भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक राज्य है। इसके पड़ोस में नेपाल, सिक्किम, भूटान, असम, बांग्लादेश, ओडिशा, झारखण्ड और बिहार हैं। इसकी राजधानी कोलकाता है। इस राज्य में 23 जनपद है। यहाँ की मुख्य भाषा बांग्ला है। बंगाल का इतिहास बंगाल पर इस्लामी शासन 13वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ तथा 13वीं शताब्दी में मुग़ल शासन में व्यापार तथा उद्योग का एक समृद्ध केन्द्र में विकसित हुआ। 15वीं शताब्दी के अन्त तक यहाँ यूरोपीय व्यापारियों का आगमन हो चुका था तथा 18वीं शताब्दी के अन्त तक यह क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नियन्त्रण में आ गया था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उद्गम यहीं से हुआ। 1947 में भारत स्वतन्त्र हुआ और इसके साथ ही बंगाल, मुस्लिम प्रधान पूर्व बंगाल (जो बाद में बांग्लादेश बना) तथा हिन्दू प्रधान पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) में विभाजित हुआ। भूगोल + पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) के राज्य प्रतीक स्थापना दिवस 18 अगस्त (भारत में विलय) राज्य पशु बंगाल बाघ राज्य पक्षी श्वेतकंठ कौड़िल्ला 50px राज्य वृक्ष चितौन 50px राज्य पुष्प हरसिंगार 50px यह राज्य भारत के पूर्वी भाग में 88,853 वर्ग किमी के भूखण्ड पर फैला है। इसके उत्तर में सिक्किम, उत्तर-पूर्व में असम, पूर्व में बांग्लादेश, दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तथा उड़ीसा तथा पश्चिम में बिहार तथा झारखण्ड है। उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी का पूर्वी हिस्सा से लेकर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक प्रदेश की भौगोलिक दशा में खासी विविधता नजर आती है। उत्तर में दार्जिलिंग के शिखर, हिमालय पर्वतश्रेणी के अंग हैं। इसमें संदक्फू चोटी आती है जो राज्य का सर्वोच्च शिखर है। दक्षिण की ओर आने पर, एक छोटे तराई के बाद मैदानी भाग आरम्भ होता है। यह मैदान दक्षिण में गंगा के डेल्टा के साथ खत्म होता है। यही मैदानी क्षेत्र, पूर्व में बांग्लादेश में भी काफी विस्तृत है। पश्चिम की ओर का भूखण्ड पठारी है। गंगा की धारा मुख्य शाखा यहाँ कई भागों में बँट जाती है - एक शाखा बांग्लादेश में प्रवेश करती है जिसे पद्मा (पॉद्दा) नाम से जाना जाता है, दूसरी शाखाएँ पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) में दक्षिण की ओर भागीरथी तथा हुगली नामों के साथ बहती हैं। उपर्युक्त सभी शाखाएँ दक्षिण की ओर बंगाल की खाड़ी में विसर्जित होती हैं। गंगा नदी का मुहाना (सुंदरवन) विश्व का सबसे बड़ा मुहाना (डेल्टा) है। उत्तरी पर्वतीय भाग में तीस्ता, महानंदा, तोरसा आदि नदियाँ बहती हैं। पश्चिमी पठारी भाग में दामोदर, अजय, कंग्साबाती आदि प्रमुख धाराएं हैं। पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) का मौसम मुख्यतः उष्णकटिबन्धीय है। जनपद right|thumb|पश्चिम बंगाल के जिले पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) के जिलों की कुल संख्या 23 है। नीचे बायीं ओर दी गयी छवि के अनुसार जिलों के नाम सूचीबद्ध हैं। {| |- style="height:100px; vertical-align:top;" | दार्जिलिंग जलपाईगुड़ी कूचबिहार उत्तर दिनाजपुर दक्षिण दिनाजपुर मालदा बीरभूम मुर्शिदाबाद पूर्व बर्धमान नदिया | <ol start="11"> पुरुलिया बांकुड़ा हुगली उत्तर 24 परगना पूर्व मेदिनीपुर हावड़ा कोलकाता दक्षिण २४ परगना पश्चिम मेदिनीपुर अलीपुरद्वार कलिम्पोंग झाड़ग्राम पश्चिम बर्धमान |} संस्कृति नृत्य, संगीत तथा चलचित्रों की यहाँ लम्बी तथा सुव्यवस्थित परम्परा रही है।दुर्गापूजा (बांग्ला: দুর্গাপূজা दुर्गापूजा) यहाँ अति उत्साह तथा व्यापक जन भागीदारी के साथ मनाई जाती है। क्रिकेट तथा फुटबॉल यहाँ के लोकप्रियतम खेलों में से हैं। सौरभ गांगुली जैसे खिलाड़ी तथा मोहन बगान एवं ईस्ट बंगाल जैसी टीम इसी प्रदेश से हैं। अगर आँकड़ों पर जाये तो नक्सलवाद जैसे शब्दों का जन्म यहीं हुआ, पर यहाँ के लोगों की शान्तिप्रियता ही वो चीज है जो सर्वत्र दर्शास्पद (देखने लायक) है। परस्पर बातचीत में तूइ(बांग्ला - তুই) (हिन्दी के तू के लगभग समकक्ष), तूमि (बांग्ला - তুমি) (हिन्दी के तुम के लगभग समकक्ष), तथा आपनि (बांग्ला - আপনি) (हिन्दी के आप के समकक्ष), का प्रयोग द्वितीय पुरूष की वरिष्ठता के आधार पर किया जाता है। शहरों में लोग प्रायः छोटे परिवारों में रहते हैं। यहाँ के लोग मछली-भात (बांग्ला - মাছ ভাত (माछ-भात)) बहुत पसन्द करते हैं। यह प्रदेश अपनी मिठाईयों के लिये काफी प्रसिद्ध है - रसगुल्ले का आविष्कार भी यहीं हुआ था। साहित्य आन्दोलन बांग्ला भाषा में एक ही साहित्य आन्दोलन हुये हैं और वो हैं भूखी पीढ़ी आन्दोलन जिसने साठ के दशक में शक्ति चट्टोपाध्याय, मलय रायचौधुरी, देबी राय, सुबिमल बसाक, समीर रायचौधुरी प्रमुख कविगण बिहार के पटना शहर से शुरू किये थे इस आन्दोलन ने पूरे बंगाल में तहलका मचा दिया था; यहाँ तक की आन्दोलनकारियों के विरुद्ध मुकदमा भी दायर किया गया था। बाद में सब बाइज्जत बरी हो गये थे, परन्तु उन लोगों का ख्याति पूरे भारत में तथा अमेरिका और यूरोप में भी फैल गई थी । राजनीति पश्चिम बंगाल में विधानसभा सीटों की संख्या 294 है। इस उतर- पश्चिम भारतीय राज्य (भारतीय बंगाल) में तृणमूल कांग्रेस सरकार है। पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) की मुख्य मन्त्री ममता बनर्जी हैं। इससे पहले पिछले 35 सालों से (1977 से) यहाँ वाम मोर्चे की सरकार थी। पश्चिम बंगाल कुल लोकसभा सीटें: 42 (टीएमसी(TMC)-22, भाजपा (BJP)-18,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(INC)-2 पश्चिम बंगाल कुल राज्यसभा सीटें: 16 (TMC-13,INC-2,IND-1) प्रसिद्ध व्यक्ति मैजिस्ट्रेट भक्ति विनोद ठाकुर भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज AC भक्तिवेदांत स्वामी महाराज प्रभुपाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जगदीश चन्द्र वसु (बोस) सत्यजित राय बिधान चन्द्र राय श्यामा प्रसाद मुखर्जी शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय रवीन्द्र नाथ ठाकुर (टैगोर) सत्येन्द्र नाथ बोस महाश्वेता देवी राजा राममोहन राय स्वामी विवेकानन्द सौरभ गांगुली शर्मिला टैगोर अमर्त्य सेन प्रणव मुखर्जी खुदीराम बोस ज्योति बसु अभिजीत बनर्जी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पश्चिम बंगाल (भारतीय बंगाल) सरकार भारत के मानिचत्र में बंगाल का स्थान बंगाल के जिला मानिचत्र रेलवे मानिचत्र श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:पश्चिम बंगाल
बिहार
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बिहार भारत के उत्तर-पूर्वी भाग के मध्य में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज्य है और इसकी राजधानी पटना है। यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा सबसे बड़ा प्रदेश है जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बारहवां है। प्रबुद्ध सोसाइटी नेचुआ जलालपुर के अध्यक्ष डा0 श्री प्रकाश बरनवाल का कहना है कि BIHAR में भारत के पांचो नाम है।२००० ई॰ को बिहार के दक्षिणी हिस्से को अलग कर एक नया राज्य झारखण्ड बनाया गया। बिहार के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल, और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। गंगा इसमें पश्चिम से पूर्व की तरफ बहती है। बिहार भारत के सबसे महान् राज्यों मे से एक है। बिहार की जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण है और केवल ११.३ प्रतिशत लोग नगरों में रहते हैं। इसके अलावा बिहार के ५८% लोग २५ वर्ष से कम आयु के हैं। प्राचीन काल में बिहार विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केन्द्रों एवं संस्कृति का गढ़ था। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ। 'बिहार', 'विहार' का अपभ्रंश है।१२ फरवरी वर्ष १९४८ में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन १२ तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है। बिहार का प्राचीन इतिहास विशेष रूप से उदार और गर्वान्वित है। यहां अनेक महत्वपूर्ण साम्राज्यों का केंद्र रहा है, जिनमें मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य, और पाल साम्राज्य शामिल हैं। बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय, बोध गया, और वैशाली जैसे कई ऐतिहासिक धरोहर हैं। बिहार की संस्कृति बहुपरकारी है। यहां के प्रमुख कला-साधनों में मधुबनी पेंटिंग, लोक नृत्य, और लोक गीत शामिल हैं। बिहार का भोजन भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें लिट्टी चोखा, चूड़ा दही, और सत्तू शामिल हैं। बिहार में प्राकृतिक सौंदर्य भी प्रचुर है। यहां के प्रमुख नदियों में गंगा, सोन, और घाघरा शामिल हैं। बिहार के प्रमुख पर्वतारों में हिमालय की तराई की पहाड़ियाँ शामिल हैं। बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां के प्रमुख फसलें में धान, गेहूं, मक्का, और मटर शामिल हैं। बिहार में कई खनिज भंडार भी हैं, जैसे कि कोयला, लौह अयस्क, और चूना पत्थर। बिहार में कई उद्योग भी हैं। यहां के प्रमुख उद्योगों में कृषि उद्योग, कपड़ा उद्योग, और खनिज उद्योग शामिल हैं। बिहार में कई शिक्षण संस्थान भी हैं, जिनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पटना), पटना विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय शामिल हैं। बिहार एक गरीब राज्य है, लेकिन यहां के लोगों में काफी संभावनाएं हैं। बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की जरूरत है, लेकिन यहां के लोग मेहनत और लगन की कमी नहीं है। बिहार में विकास की रफ्तार धीमी है, लेकिन यहां के लोग विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। इतिहास वर्तमान बिहार विभिन्न ऐतिहासिक क्षेत्रों से मिलकर बना है। बिहार के क्षेत्र जैसे-मगध, मिथिला और अंग- धार्मिक ग्रंथों और प्राचीन भारत के महाकाव्यों में वर्णित हैं। प्राचीन काल सारण जिले में गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर चिरांद, नवपाषाण युग (लगभग ४५००-२३४५ ईसा पूर्व) और ताम्र युग ( २३४५-१७२६ ईसा पूर्व) से एक पुरातात्विक रिकॉर्ड है। मिथिला को पहली बार इंडो-आर्यन लोगों ने विदेह साम्राज्य की स्थापना के बाद प्रतिष्ठा प्राप्त की। देर वैदिक काल (सी। १६००-११०० ईसा पूर्व) के दौरान, विदेह् दक्षिण एशिया के प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्रों में से एक बन गया, कुरु और पंचाल् के साथ। विदेह साम्राज्य के राजा यहांजनक कहलाते थे। मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री एक थी सीता जिसका वाल्मीकि द्वारा लिखी जाने वाली हिंदू महाकाव्य, रामायण में भगवान राम की पत्नी के रूप में वर्णित है। बाद में विदेह राज्य के वाजिशि शहर में अपनी राजधानी था जो वज्जि समझौता में शामिल हो गया, मिथिला में भी है। वज्जि के पास एक रिपब्लिकन शासन था जहां राजा राजाओं की संख्या से चुने गए थे। जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथों में मिली जानकारी के आधार पर, वज्जि को ६ ठी शताब्दी ईसा पूर्व से गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया था, गौतम बुद्ध के जन्म से पहले ५६३ ईसा पूर्व में, यह दुनिया का पहला गणतंत्र था। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली में हुआ था। आधुनिक-पश्चिमी पश्चिमी बिहार के क्षेत्र में मगध १००० वर्षों के लिए भारत में शक्ति, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बने। ऋग्वेदिक् काल मे यह बृहद्रथ वंश का शासन था।सन् ६८४ ईसा पूर्व में स्थापित हरयंक वंश, राजगृह (आधुनिक राजगीर) के शहर से मगध पर शासन किया। इस वंश के दो प्रसिद्ध राजा बिंबिसार और उनके बेटे अजातशत्रु थे, जिन्होंने अपने पिता को सिंहासन पर चढ़ने के लिए कैद कर दिया था। अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र शहर की स्थापना की जो बाद में मगध की राजधानी बन गई। उन्होंने युद्ध की घोषणा की और बाजी को जीत लिया। हिरुआँ वंश के बाद शिशुनाग वंश का पीछा किया गया था। बाद में नंद वंश ने बंगाल से पंजाब तक फैले विशाल साम्राज्य पर शासन किया। भारत की पहली साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य द्वारा नंद वंश को बदल दिया गया था। मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म का इस क्षेत्र में उभार रहा है जो अब आधुनिक बिहार को बना देता है। ३२५ ईसा पूर्व में मगध से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य ने स्थापित किया था, जो मगध में पैदा हुआ था। इसकी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में इसकी राजधानी थी। मौर्य सम्राट, अशोक, जो पाटलीपुत्र (पटना) में पैदा हुए थे, को दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा शासक माना जाता है। मौर्य साम्राज्य भारत की आजतक की सबसे बड़ी सम्राजय थी ये पश्चिम मे ईरान से लेकर पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य-एशिया से लेकर दक्षिण मे श्रीलंका तक पूरा भारतवर्ष मे फैला था। इस साम्राज्य के पहले राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने कै ग्रीक् सतराप् को हराकर अफ़ग़ानिस्तां के हिस्से को जीता। इनकी सबसे बड़ी विजय ग्रीस से पश्चिम-एशिय थक के यूनानी राजा सेलेक्यूज़ निकेटर को हराकर पर्शिया का बड़ा हिस्सा जीत लिया था और संधि मे यूनानी राजकुमारी हेलेन से विवाह किये जो कि सेलेक्यूज़ निकटोर कि पुत्री थी और हमेसा के लिए यूनाननियो को भारत से बाहर रखा। इनके प्रधानमंत्री अर्चाय चाणक्य ने अर्थशास्त्र कि रचना कि जो इनके गुरु और मार्गदर्शक थे। इनके पुत्र बिन्दुसार ने इस साम्राज्य को और दूर तक फैलाया व दक्षिण तक स्थापित किया। सम्राट अशोक इस सम्राजय के सबसे बड़े राजा थे। इनका पूरा राज नाम देवानामप्रिय प्रियादर्शी एवं राजा महान सम्राट अशोक था। इन्होंने अपने उपदेश स्तंभ, पहाद्, शीलालेख पे लिखाया जो भारत इतिहास के लिया बहुत महत्वपूर्ण है। येे लेख् ब्राह्मी, ग्रीक, अरमिक् मे पूरे अपने सम्राज्य मे अंकित् किया। इनके मृत्यु के बाद मौर्य सम्राज्य को इनके पुुत्रौ ने दो हिस्से मे बाँट कर पूर्व और पश्चिम मौर्य राज्य कि तरह राज किया। इस साम्राज्य कि अंतिम शासक ब्रिहद्रत् को उनके ब्राह्मिन सेनापति पुष्यमित्र शूंग ने मारकर वे मगध पे अपना शासन स्थापित किया। सन् २४० ए में मगध में उत्पन्न गुप्त साम्राज्य को विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, वाणिज्य, धर्म और भारतीय दर्शन में भारत का स्वर्णिम युग कहा गया। इस वंश के समुद्रगुप्त ने इस सम्राजय को पूरे दक्षिण एशिया मे स्थापित किया। इनके पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भारत के सारे विदेशी घुसपैट्या को हरा कर देश से बाहर किया इसीलिए इन्हे सकारी की उपाधि दी गई। इन्ही गुप्त राजाओं मे से प्रमुख स्कंदगुप्त ने भारत मे हूणों का आक्रमं रोका और उनेे भारत से बाहर भगाया और देश की बाहरी आक्रमण कारी से रक्षा की। उस समय गुप्त साम्राज्य दुनिया कि सबसे बड़ी शक्तिशाली साम्राज्य था। इसका राज्य पश्चिम मे पर्शिया या बग़दाद से पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य एशिया से लेकर दक्षिण मे कांचीपुरम तक फैला था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (पटना वर्तमान में) था। इस साम्राज्य का प्रभाव पूरी विश्व मे था रोम, ग्रीस, अरब से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक था। मध्यकाल मगध में बौद्ध धर्म मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण की वजह से गिरावट में पड़ गया, जिसके दौरान कई बिहार के नालंदा और विक्रमशिला के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया। यह दावा किया गया कि १२ वीं शताब्दी के दौरान हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या हुई थी। डी.एन. झा सुझाव देते हैं, इसके बजाय, ये घटनाएं सर्वोच्चता के लिए लड़ाई में बौद्ध ब्राह्मण की झड़पों का परिणाम थीं। १५४० में, महान पस्तीस के मुखिया, सासाराम के शेर शाह सूरी, हुमायूं की मुगल सेना को हराकर मुगलों से उत्तरी भारत ले गए थे। शेर शाह ने अपनी राजधानी दिल्ली की घोषणा की और ११ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी तक, मिथिला पर विभिन्न स्वदेशीय राजवंशों ने शासन किया था। इनमें से पहला, जहां कर्नाट, अनवर राजवंश, रघुवंशी और अंततः राज दरभंगा के बाद। इस अवधि के दौरान मिथिला की राजधानी दरभंगा में स्थानांतरित की गई थी। आधुनिक काल १८५७ के प्रथम सिपाही विद्रोह में बिहार के बाबू कुंवर सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९०५ में बंगाल का विभाजन के फलस्वरूप बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया। १९३६ में उड़ीसा इससे अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में चंपारण के विद्रोह को, अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत फैलाने में अग्रण्य घटनाओं में से एक गिना जाता है। स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और १५ नवंबर २००० में झारखंड राज्य को इससे अलग कर दिया गया। भारत छोड़ो आन्दोलन में भी बिहार की अहम भूमिका रही थी।यह भी देखें भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार भौगोलिक स्थिति left| बिहार का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र|पाठ=बिहार का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र|अंगूठाकार उत्तर भारत में २४°२०'१०" ~ २७°३१'१५" उत्तरी अक्षांश तथा ८३°१९'५०" ~ ८८°१७'४०" पूर्वी देशांतर के बीच बिहार एक हिंदी भाषी राज्य है। राज्य का कुल क्षेत्रफल ९४,१६३ वर्ग किलोमीटर है जिसमें ९२,२५७.५१ वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार की भूमि मुख्यतः नदियों के मैदान एवं कृषियोग्य समतल भूभाग है। गंगा के पूर्वी मैदान में स्थित इस राज्य की औसत ऊँचाई १७३ फीट है। भौगोलिक तौर पर बिहार को तीन प्राकृतिक विभागो में बाँटा जाता है- उत्तर का पर्वतीय एवं तराई भाग, मध्य का विशाल मैदान तथा दक्षिण का पहाड़ी किनारा। उत्तर का पर्वतीय प्रदेश सोमेश्वर श्रेणी का हिस्सा है। इस श्रेणी की औसत उचाई ४५५ मीटर है परन्तु इसका सर्वोच्च शिखर ८७४ मीटर उँचा है। सोमेश्वर श्रेणी के दक्षिण में तराई क्षेत्र है। यह दलदली क्षेत्र है जहाँ साल वॄक्ष के घने जंगल हैं। इन जंगलों में प्रदेश का इकलौता बाघ अभयारण्य वाल्मिकीनगर में स्थित है। मध्यवर्ती विशाल मैदान बिहार के ९५% भाग को समेटे हुए हैं। भौगोलिक तौर पर इसे चार भागों में बाँटा जा सकता है:- १- तराई क्षेत्र यह सोमेश्वर श्रेणी के तराई में लगभग १० किलोमीटर चौ़ड़ा कंकर-बालू का निक्षेप है। इसके दक्षिण में तराई उपक्षेत्र है जो प्रायः दलदली है। २-भांगर क्षेत्र यह पुराना जलोढ़ क्षेत्र है। समान्यतः यह आस पास के क्षेत्रों से ७-८ मीटर ऊँचा रहता है। ३-खादर क्षेत्र इसका विस्तार गंडक से कोसी नदी के क्षेत्र तक सारे उत्तरी बिहार में है। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण यह क्षेत्र बहुत उपजाऊ है। परन्तु इसी बाढ़ के कारण यह क्षेत्र तबाही के कगार पर खड़ा है। गंगा नदी राज्य के लगभग बीचों-बीच बहती है। उत्तरी बिहार बागमती, कोशी, बूढी गंडक, गंडक, घाघरा और उनकी सहायक नदियों का समतल मैदान है। सोन, पुनपुन, फल्गू तथा किऊल नदी बिहार में दक्षिण से गंगा में मिलनेवाली सहायक नदियाँ है। बिहार के दक्षिण भाग में छोटानागपुर का पठार, जिसका अधिकांश हिस्सा अब झारखंड है, तथा उत्तर में हिमालय पर्वत की नेपाल श्रेणी है। हिमालय से उतरने वाली कई नदियाँ तथा जलधाराएँ बिहार होकर प्रवाहित होती है और गंगा में विसर्जित होती हैं। वर्षा के दिनों में इन नदियों में बाढ़ की एक बड़ी समस्या है। राज्य का औसत तापमान गृष्म ऋतु में ३५-४५ डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े में ५-१५ डिग्री सेल्सियस रहता है। जाड़े का मौसम नवंबर से मध्य फरवरी तक रहता है। अप्रैल में गृष्म ऋतु का आरंभ होता है जो जुलाई के मध्य तक रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा ऋतु का आगमन होता है जिसका अवसान अक्टूबर में होने के साथ ही ऋतु चक्र पूरा हो जाता है। औसतन १२०५ मिलीमीटर वर्षा का का वार्षिक वितरण लगभग ५२ दिनों तक रहता है जिसका अधिकांश भाग मानसून से होनेवाला वर्षण है। उत्तर में भूमि प्रायः सर्वत्र उपजाऊ एवं कृषि योग्य है। धान, गेंहूँ, दलहन, मक्का, तिलहन, तम्बाकू,सब्जी तथा केला, आम और लीची जैसे कुछ फलों की खेती की जाती है। हाजीपुर का केला एवं मुजफ्फरपुर की लीची बहुत ही प्रसिद्ध है। भाषा और संस्कृति हिंदी बिहार की राजभाषा और उर्दू द्वितीय राजभाषा है।मैथिली भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में सम्मिलित एकमात्र बिहारी भाषा है।भोजपुरी, मगही, अंगिका तथा बज्जिका बिहार में बोली जाने वाली अन्य प्रमुख भाषाओं और बोलियों में सम्मिलित हैं।प्रमुख पर्वों में छठ, होली, दीपावली, दशहरा, महाशिवरात्रि, नागपंचमी, श्री पंचमी, मुहर्रम, ईद,तथा क्रिसमस हैं। सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म स्थान होने के कारण पटना सिटी (पटना) में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है। बिहार ने हिंदी को सबसे पहले राज्य की अधिकारिक भाषा माना है। खानपान बिहार अपने खानपान की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनो व्यंजन पसंद किये जाते हैं। मिठाईयों की विभिन्न किस्मों के अतिरिक्त अनरसा की गोली, खाजा, मोतीचूर लड्डू,गया की तिलकुट,थावे(गोपालगंज) के पेरुकिया ,रफीगंज का छेना, यहाँ की खास पसंद है। सत्तू, चूड़ा-दही और लिट्टी-चोखा जैसे स्थानीय व्यंजन तो यहाँ के लोगों की कमजोरी हैं। लहसुन की चटनी भी बहुत पसंद करते हैं। लालू प्रसाद के रेल मंत्री बनने के बाद तो लिट्टी-चोखा भारतीय रेल के महत्वपूर्ण स्टेशनों पर भी मिलने लगा है। सुबह के नास्ते में चूड़ा-दही या पूरी-जलेबी खूब खाये जाते हैं। चावल-दाल-सब्जी और रोटी बिहार का सामान्य भोजन है। बिहार की मालपुआ काफी स्वादिष्ट होता है। यह उत्तर भारत में बनाये जाने वाली डिश है। बिहार की बाकी व्यंजनों में दालपूरी, खाजा, मखाना खीर, पुरूकिया (गुजिया), ठेकुआ, भेलपुरी, खजुरी, बैगन का भरता आदि शामिल है। खाजा बिहार की प्रमुख मिठाई है और यह बारार की विशेषत वस्त्रशिल्प से जुड़ा है। यह मिठाई गुड़ और घी के साथ बनती है। मक्की की रोटी बिहार में मक्की की रोटी भी प्रिय है, जो अक्सर सर्दीयों में खाई जाती है। इसे घी और चना जूस के साथ बनाया जाता है। दाल पीठा: यह एक प्रकार का पकौड़ी है जो चावल के आटे, दाल के पेस्ट, और सब्जियों से बनाई जाती है। दाल पीठा को आमतौर पर स्टीम किया जाता है या तला जाता है। रसिया: यह एक प्रकार की खीर है जो छठ पूजा के दौरान बनाई जाती है। रसिया को दूध, चावल, और मखाने से बनाई जाती है। चूड़ा: यह एक प्रकार का सूखा नाश्ता है जो धान से बनाई जाती है। चूड़ा को आमतौर पर दही, चटनी, या सब्जियों के साथ खाया जाता है। सत्तू शरबत: यह एक प्रकार का ठंडा पेय है जो सत्तू, दूध, और चीनी से बनाई जाती है। सत्तू शरबत को गर्मियों में ठंडक के लिए पिया जाता है। छाछ: यह एक प्रकार का दही का पेय है। छाछ को आमतौर पर भोजन के साथ या अकेले पिया जाता है। गन्ने का रस: यह एक प्रकार का मीठा पेय है जो गन्ने के रस से बनाया जाता है। गन्ने का रस को गर्मियों में ठंडक के लिए पिया जाता है। बिहार में खाने-पीने की इन चीजों को जरूर ट्राई करें। ये चीजें आपको बिहार की संस्कृति और स्वाद का अनुभव करने में मदद करेंगी। खेलकूद भारत के अन्य कई जगहों की तरह क्रिकेट यहाँ भी सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके अलावा फुटबॉल, हाकी, टेनिस, खो-खो और गोल्फ भी पसन्द किया जाता है। कबड्डी: बिहार में एक प्रमुख लोकप्रिय खेल है। यहाँ परंपरागत रूप से कबड्डी खेला जाता है, जिसमें दो टीमें आमने-सामने खड़ी होती हैं और एक टीम के खिलाड़ी दूसरी टीम के खिलाड़ियों को छूकर वापस अपनी बाल को छूने की कोशिश करते हैं। खुदाया खेल: खुदाया बिहार में प्रसिद्ध है, और यह एक प्रकार की रेसिंग है जिसमें दो व्यक्ति या दो टीमें भाग लेती हैं। पारंपरिक खुदाया खेल में पाँवलों को धरातल से छूकर आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है | गुली-डंडा बिहार में बच्चों के बीच एक प्रमुख खेल है। इसमें एक छोटी सी गुली या खड़दर और एक लम्बी सी डंडी का उपयोग किया जाता है। खो-खो भी बिहार में खेला जाता है और यह टीम खेल है जिसमें एक टीम दूसरी टीम के खिलाड़ियों को छूने की कोशिश करती है। इन्हीं के अलावा, खुदाया दौड़, गेंदबाजी, शतरंज आदि भी बिहार में खेले जाते हैं। खेल और खुदाया बिहारी समुदाय के एक महत्वपूर्ण हिस्से को छूने का एक अद्वितीय तरीका है और यहाँ विभिन्न खेलों का आनंद लिया जाता है। बिहार राज्य के प्रमुख् उद्योग राज्‍य के मुख्‍य उद्योग हैं - मुंगेर में सिगरेट कारखाना आई टी सी मुंगेर में आई टी सी के अन्य उत्पाद अगरबत्ती, माचिस तथा चावल-आटा आदि का निर्माण मुंगेर में बंदुक फैक्टरी मुेंगेर के जमालपुर में रेल कारखाना एशिया प्रसिद्ध रेल क्रेन कारखाना जमालपुर भागलपुर में शिल्क उधाेग मुजफ्फरपुर और मोकामा में 'भारत वैगन लिमिटेड' का रेलवे वैगन संयंत्र, बरौनी में भारतीय तेल निगम का तेलशोधक कारख़ाना है। बरौनी का एच.पी.सी.एल. और अमझोर का पाइराइट्स फॉस्‍फेट एंड कैमिकल्‍स लिमिटेड (पी.पी.सी.एल.) राज्‍य के उर्वरक संयंत्र हैं। सीवान, भागलपुर, पंडौल, मोकामा और गया में पांच बड़ी सूत कताई मिलें हैं। उत्तर व दक्षिण बिहार में 13 चीनी मिलें हैं, जो निजी क्षेत्र की हैं तथा 15 चीनी मिलें सार्वजनिक क्षेत्र की हैं जिनकी कुल पेराई क्षमता 45,00 टी. पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर और बरौनी में चमड़ा प्रसंस्‍करण के उद्योग है। कटिहार और समस्‍तीपुर में तीन बड़े पटसन के कारखाने हैं। हाजीपुर में दवाएं बनाने का कारख़ाना ,औरंगाबाद और पटना में खाद्य प्रसंस्‍करण और वनस्‍पति बनाने के कारखाने हैं। इसके अलावा बंजारी के कल्‍याणपुर सीमेंट लिमिटेड नामक सीमेंट कारखाने का बिहार के औद्योगिक नक्‍शे में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। औरंगाबाद का नया श्री सीमेंट का कारखाना रेल इंजन कारखाना, मधेपुरा रेल इंजन कारखाना मढ़ौरा मोकामा के दरियापुर मे बाटा नामक कम्पनी के जुते के कारखाने है । मधेपुरा की यह फैक्ट्री अपने आप में देश में सबसे आधुनिक है. फैक्ट्री के निर्माण में ऑल्स्टम कंपनी ने 74 प्रतिशत राशि का निवेश किया है, वहीं भारतीय रेलवे की इस फैक्ट्री में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है. 260 एकड़ में फैली हुई है यह फैक्ट्री । सिंचाई बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 28.63 लाख हेक्‍टेयर है। यह क्षमता बड़ी तथा मंझोली सिंचाई परियोजनाओं से जुटाई जाती है। यहाँ बड़ी और मध्‍यम सिंचाई परियोजनाओं का सृजन किया गया है और 48.97 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई प्रमुख सिंचाई योजनाओं के माध्‍यम से की जाती है। बिहार में शिचाई नलकूप, कुंआ,और मानसून पर निर्भर करता है शिक्षा एक समय बिहार शिक्षा के सर्वप्रमुख केन्द्रों में गिना जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा ओदंतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन बिहार के गौरवशाली अध्ययन केंद्र थे। १९१७ में खुलने वाला पटना विश्वविद्यालय काफी हदतक अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने में सफल रहा। किंतु स्वतंत्रता के पश्चात शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई। हाल के दिनों में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधरने लगी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति भी अच्छी हो रही है। हाल में पटना में एक भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान और राष्ट्रीय प्राद्यौगिकी संस्थान तथा हाजीपुर में केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्युट तथा केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं शोध संस्थान खोला गया है, जो अच्छा संकेत है। बिहार के सभी जिलों मे 2019 में एक-एक सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज खोला गया है। विश्वविद्यालय भारतीय सूचना प्रोद्योगिकी संस्थान, भागलपुर महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, पूर्वी चम्पारण दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, पंचानपुर, गया बिहार कृषि विशवविधालय सबौर, भागलपुर पटना विश्वविद्यालय, पटना पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना मगध विश्वविद्यालय, बोधगया बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय, पटना मौलाना मजहरुल हक़ अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय, पटना राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना चिकित्सा संस्थान पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पटना इंदिरागाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना नालन्दा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, पटना बुद्धा दंत चिकित्सा संस्थान एवं अस्पताल, पटना श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मुजफ्फरपुर राय बहादुर टुनकी साह होमियोपैथिक कॉलेज और अस्पताल, मुजफ्फरपुर अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, गया दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, लहेरियासराय कटिहार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कटिहार जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज और अस्पताल, भागलपुर वर्धमान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्स, पावापुरी, नालंदा एम्स पटना मधुबनी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मधुबनी नारायण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, रोहतास इंजीनियरी संस्थान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना मुजफ्फरपुर प्रौद्योगिकी संस्थान भागलपुर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग श्री फणीश्वर नाथ रेणु इंजीनियरिंग कॉलेज, अररिया गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), गोपालगंज पूर्णिया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (पीसीई), पूर्णिया सुपौल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग सहरसा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (एससीई), सहरसा कटिहार इंजीनियरिंग कॉलेज, कटिहार गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, लखीसराय गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज ,वैशाली गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, भोजपुर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग,बेगूसराय गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, जहानाबाद दरभंगा इंजीनियरिंग कॉलेज, दरभंगा लोकनायक जय प्रकाश इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी,छपरा राजकीय अभियंत्रण महाविद्यालय, मधुबनी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, किशनगंज बी. पी. मंडल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मधेपुरा नालन्दा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), नवादा गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), जमुई गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), बांका गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज,बक्सर शेरशाह इंजीनियरिंग कॉलेज, सासाराम गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, कैमूर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), सीवान गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), समस्तीपुर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज शेखपुरा (जीईसी शेखपुरा) सीतामढी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एसआईटी), सीतामढी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, खगड़िया गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, मुंगेर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), पश्चिम चंपारण मोतिहारी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मोतिहारी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, अरवल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी), शिवहर अन्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थान शेरिकलचर इंसटीचयूट भागलपुर चाणक्य विधि विश्वविद्यालय, पटना अनुग्रह नारायण सामाजिक परिवर्तन संस्थान, पटना ललितनारायण मिश्रा सामाजिक परिवर्तन संस्थान, पटना केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्युट (सिपेट), हाजीपुर केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं शोध संस्थान (नाइपर), हाजीपुर होटल प्रबंधन, खानपान एवं पोषाहार संस्थान, हाजीपुर प्राकृत जैनशास्त्र एवं अहिंसा संस्थान, वैशाली भर्ती एजेंसी बिहार लोक सेवा आयोग बिहार कर्मचारी चयन आयोग बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग बिहार सरकार बिहार राज्य भारतीय गणराज्य के संघीय ढाँचे में द्विसदनीय व्यवस्था के अन्तर्गत आता है। राज्य का संवैधानिक मुखिया राज्यपाल है लेकिन वास्तविक सत्ता मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद के हाथ में होता है। विधानसभा में चुनकर आनेवाले विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री का चुनाव पाँच वर्षों के लिए किया जाता है जबकि राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। प्रत्यक्ष चुनाव में बहुमत प्राप्त करनेवाले राजनीतिक दल अथवा गठबंधन के आधार पर सरकार बनाए जाते हैं। उच्च सदन या विधान परिषद के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष ढंग से ६ वर्षों के लिए होता है। प्रशासन प्रशासनिक सुविधा के लिए बिहार राज्य को 9 प्रमंडल तथा 38 मंडल (जिला) में बाँटा गया है। जिलों को क्रमश: 101 अनुमंडल, 534 प्रखंड (अंचल), 8,471 पंचायत, 45,103 गाँव में बाँटा गया है। राज्य का मुख्य सचिव नौकरशाही का प्रमुख होता है जिसे श्रेणीक्रम में आयुक्त, जिलाधिकारी, अनुमंडलाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी या अंचलाधिकारी तथा इनके साथ जुड़े अन्य अधिकारी एवं कर्मचारीगण रिपोर्ट करते हैं। पंचायत तथा गाँवों का कामकाज़ सीधेतौर पर चुनाव कराकर मुखिया, सरपंच तथा वार्ड सदस्यों के अधीन संचालित किया जाता है। नगरपालिका आम निर्वाचन 2017 के बाद बिहार में नगर निगमों की संख्या 19, नगर परिषदों की संख्या 49 और नगर पंचायतों की संख्या 80 है।इसके साथ ही बिहार की सरकार अपने नागरिको के लिए सभी सुविधा जनक कार्य भी करते है जैसे की हाल ही में उनके द्वारा online portal rtps जारी किया गया. पटना, तिरहुत, सारण, दरभंगा, कोशी, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर तथा मगध प्रमंडल के अन्तर्गत आनेवाले जिले इस प्रकार हैं: अररिया अरवल औरंगाबाद कटिहार किशनगंज खगड़िया गया गोपालगंज छपरा जमुई जहानाबाद दरभंगा नवादा नालंदा पटना पश्चिम चंपारण पूर्णिया पूर्वी चंपारण बक्सर बाँका बेगूसराय भभुआ भोजपुर भागलपुर मधेपुरा मुंगेर मुजफ्फरपुर मधुबनी सासाराम लखीसराय वैशाली सहरसा समस्तीपुर सीतामढी सुपौल शिवहर शेखपुरा दर्शनीय स्थल त्रिमोहिनी संगमthumb|त्रिमोहिनी संगम पर बन रहा पर्यटकों के लिए पर्यटन स्थल। बिहार के कटिहार जिले के अंतर्गत कुर्सेला प्रखंड के कटरिया गांव के NH-31 से रास्ता त्रिमोहिनी संगम की ओर जाती है।प्रकृति की अनुपम दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ तीन नदियों का संगम है जिसमे प्रमुख रूप से गंगा और कोशी का मिलन है। गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। कलबलिया नदी की एक छोटी धारा इस उत्तरवाहिनी गंगा तट से मिलकर संगम करती है। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है | पटना के पर्यटन स्थल right|thumb|सभ्यता द्वार. पटना राज्य की वर्तमान राजधानी तथा महान ऐतिहासिक स्थल है। अतीत में यह सत्ता, धर्म तथा ज्ञान का केंद्र रहा है। निम्न स्थल पटना के महत्वपूर्ण दार्शनिक स्थल हैं: प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतें: कुम्रहार परिसर, अगमकुआँ, महेन्द्रूघाट, शेरशाह के द्वारा बनवाए गए किले का अवशेष ब्रिटिश कालीन भवन: जालान म्यूजियम, गोलघर, पटना संग्रहालय, विधान सभा भवन, हाईकोर्ट भवन, सदाकत आश्रम धार्मिक स्थल : महावीर मंदिर,बड़ी पटनदेवी,छोटी पटनदेवी,शीतला माता मंदिर,इस्कॉन मंदिर,हरमंदिर(पटना), महाबोधि मंदिर(गया),एनआईटी घाट, माता सीता की जन्मस्थली(सीतामढ़ी), कवि विद्यापति सह उगना महादेव मंदिर(मधुबनी), द•भारत स्थापत्यकला विष्णु मंदिर(सुपौल), सिहेश्वरनाथ मंदिर(मधेपुरा),काली मंदिर रामनगर महेश(कुमारखंड,मधेपुरा),सबसे ऊँची काली मंदिर(अररिया), नृसिंह अवतार स्थल(पूर्णियाँ), सूर्य मंदिर,नवलख्खा मंदिर,थावे(गोपालगंज)माँ दुर्गा माता मंदिर,नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम, दुर्गा मंदिर, अमनौर वैष्णो धाम ,आमी अम्बिका दुर्गा मंदिर,माँ दुर्गा की मंदिर छपरा, सीता जी का जन्म स्थान, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, बेगू ह्ज्जाम की मस्जिद, पत्थर की मस्जिद, जामा मस्जिद, फुलवारीशरीफ में बड़ी खानकाह, मनेरशरीफ - सूफी संत हज़रत याहया खाँ मनेरी की दरगाह, भारत की प्रथम महिला सूफी संत हजरत बीबी कमाल का कब्र (जहानाबाद) mithilanchal ज्ञान-विज्ञान के केंद्र: पटना तारामंडल, पटना विश्वविद्यालय, सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी, संजय गाँधी जैविक उद्यान, श्रीकृष्ण सिन्हा विज्ञान केंद्र, खुदाबक़्श लाइब्रेरी एवं विज्ञान परिसर सारण तथा आसपास प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से लगनेवाला सोनपुर मेला, सारण जिला का नवपाषाण कालीन चिरांद गाँव, कोनहारा घाट, नेपाली मंदिर, रामचौरा मंदिर, १५वीं सदी में बनी मस्जिद, दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल, महात्मा गाँधी सेतु, गुप्त एवं पालकालीन धरोहरों वाला चेचर गाँव वैशाली तथा आसपासछठी सदी इसापूर्व में वज्जिसंघ द्वारा स्थापित विश्व का प्रथम गणराज्य के अवशेष, अशोक स्तंभ, बसोकुंड में भगवान महावीर की जन्म स्थली, अभिषेक पुष्करणी, विश्व शांतिस्तूप, राजा विशाल का गढ, चौमुखी महादेव मंदिर, भगवान महावीर के जन्मदिन पर वैशाख महीने में आयोजित होनेवाला वैशाली महोत्सव राजगीर तथा आसपास राजगृह मगध साम्राज्य की पहली राजधानी तथा हिंदू, जैन एवं बौध धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक स्थल है। भगवान बुद्ध तथा वर्धमान महावीर से जुडा कई स्थान अति पवित्र हैं। वेणुवन, सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत, जरासंध का अखाड़ा, गर्म पानी के कुंड, मख़दूम कुंड आदि राजगीर के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। नालंदा तथा आसपासनालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष, पावापुरी में भगवान महावीर का परिनिर्वाण स्थल एवं जलमंदिर, बिहारशरीफ में मध्यकालीन किले का अवशेष एवं १४वीं सदी के सूफी संत की दरगाह (बड़ी दरगाह एवं छोटी दरगाह), नवादा के पास ककोलत जलप्रपात। :प्राचीन काल का सबसे लोकप्रिय महाविहार, अकादमिक उत्कृष्टता का एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र और आध्यात्मिकता की भावना से ओत-प्रोत एक मामूली तीर्थस्थल, नालंदा वर्तमान में भी समान रूप से समृद्ध स्थान बना हुआ है. यह आध्यात्मिकता, इतिहास, संस्कृति, वास्तुकला और पर्यटन का जीवंत पदार्थ प्रदान करता है। गया एवं बोधगया हिंदू धर्म के अलावे बौद्ध धर्म मानने वालों का यह सबसे प्रमुख दार्शनिक स्थल है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ दुनिया भर से हिंदू आकर फल्गू नदी किनारे पितरों को तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, बोधगया में भगवान बुद्ध से जुड़ा पीपल का वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के अलावे तिब्बती मंदिर, थाई मंदिर, जापानी मंदिर, बर्मा का मंदिर, बौधनी पहाड़ी { इमामगंज } . महाबोधि मंदिर के लिए यह प्रसिद्ध है, माना जाता है कि यहीं बोधि वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. ये जगह बिहार के टूरिस्ट प्लेस में से एक माना गया है.: मधुबनी : बिहार में एक प्राचीन शहर, मधुबनी कला और संस्कृति में समृद्धि के लिए जाना जाता है, जिसके लिए जिला प्रयास करता है. रामायण में उल्लेखित, यह शहर विश्व प्रसिद्ध मधुबनी चित्रों के लिए जाना जाता है, जिनकी उत्पत्ति यहीं हुई थी। भागलपुर तथा आसपासप्राचीन शिक्षा स्थल के अलावे यह बिहार में तसर सिल्क उद्योग केंद्र है। पाल शासकों द्वारा बनवाये गये प्राचीन विश्व विख्यात विक्रमशिला विश्वविद्यालय का अवशेष, वैद्यनाथधाम मंदिर, सुलतानगंज, मुंगेर में बनवाया मीरकासिम का किला और मंदार पर्वत बौंसी बाँका एक प्रमुख धार्मिक स्थल जो तीन धर्मो का संगम स्थल है। विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन यही संपन्न हुआ था और यही पर्वत जिसका प्राचीन नाम मंद्राचल पर्वत( मंदार वर्तमान में) जो मथनी के रूप में प्रयुक्त हुआ था। चंपारण सम्राट अशोक द्वारा लौरिया में स्थापित स्तंभ, लौरिया का नंदन गढ़, नरकटियागंज का चानकीगढ़, वाल्मीकिनगर जंगल, बापू द्वारा स्थापित भीतीहरवा आश्रम, तारकेश्वर नाथ तिवारी का बनवाया रामगढ़वा हाई स्कूल, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी एवं अन्य सेनानियों की कर्मभूमि तथा अरेराज में भगवान शिव का मन्दिर, केसरिया में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध स्तूप जो पूर्वी चंपारण में एक आदर्श पर्यटन स्थल है | . सीतामढी तथा आसपास पुनौरा में देवी सीता की जन्मस्थली, जानकी मंदिर एवं जानकी कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथपाकड़, यहाँ से सटे नेपाल के जनकपुर जाकर भगवान राम का स्वयंवर स्थल भी देखा जा सकता है। सासाराम अफगान शैली में बनाया गया अष्टकोणीय शेरशाह का मक़बरा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। देव - देव सूर्य मंदिर thumb| देव सूर्य मंदिर की तस्वीर अद्भुत शिल्प कला का स्वरूप देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं। परंपरागत रूप से इसे हिंदू मिथकों में वर्णित, कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अतिरिक्त, यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। अतिरिक्त पुरुरवा ऐल, और शिवभक्त राक्षसद्वय माली-सुमाली की अलग-अलग कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं जो इसके निर्माण का अलग-अलग कारण और समय बताती हैं। एक अन्य विवरण के अनुसार देवार्क को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है, अन्य दो लोलार्क (वाराणसी) और कोणार्क हैं। मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा हेतु आते रहते हैं। हालाँकि, यहाँ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष तौर पर मनाये जाने वाले छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है कोकिलचंद बाबा मंदिर, गंगरा जमुई जिले में गंगरा एक गाँव है, जो बाबा कोकिलचंद के पैतृक निवास के लिए प्रसिद्ध है। कोकिलचंद बाबा मंदिर में चारों ओर से लोग पूजा करने आते हैं। यह 700 साल पुराना माना जाता है। इस गाँव के कोई भी लोग शराब नहीं पीते है। यहाँ लगभग 700 वर्षों से शराबबंदी हैं। जीवन उन्नयन के लिऐ बाबा कोकिलचंद का त्रिसूत्रीय संदेश मूल मंत्र के समान है । ये त्रिसूत्र है - 1* शराब से दूर रहना 2*नारी का सम्मान करना 3* अन्न की रक्षा करना जो आज भी प्रासंगिक है । बाबा कोकिलचंद धाम गंगरा सदियों से शराब मुक्त है । इन्हें भी देखें बिहार का इतिहास पटना के पर्यटन स्थल बिहारी खाना सुपर-३० सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ [http://priti kumari bihar.nic.in/ बिहार सरकार का जालस्थल] श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:बिहार
मध्य प्रदेश
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मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश 1 नवंबर 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन मध्यप्रदेश राज्य से 16 जिले अलग कर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पाँच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य ने वर्ष 2010-11 के लिये राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीता था। मध्यप्रदेश मुख्य रूप से अपने पर्यटन के लिए भी जाना जाता है। मांडू, धार, महेश्वर मंडलेश्वर, चोली, भीमबैठका, पचमढी, खजुराहो, साँची स्तूप, ग्वालियर का किला, और उज्जैन रीवा जल प्रपात मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थल के प्रमुख उदाहरण हैं। उज्जैन जिले में प्रत्येक 12 वर्षों में कुंभ (सिंहस्थ) मेले का पुण्यपर्व विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। शिवपुरी मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी है मध्य प्रांत और बरार को छत्तीसगढ़ और मकराइ रियासतों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश का गठन किया गया था। तब इसकी राजधानी नागपुर में थी। इसके बाद १ नवंबर १९५६ को मध्य भारत, विंध्य प्रदेश तथा भोपाल राज्यों को भी इसमें ही मिला दिया गया, जबकि दक्षिण के मराठी भाषी विदर्भ क्षेत्र को (राजधानी नागपुर समेत) बॉम्बे राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया। पहले जबलपुर को राज्य की राजधानी के रूप में चिन्हित किया जा रहा था, परंतु अंतिम क्षणों में इस निर्णय को पलटकर भोपाल को राज्य की नवीन राजधानी घोषित कर दिया गया। जो कि सीहोर जिले की एक तहसील हुआ करता था। १ नवंबर २००० को एक बार फिर मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ, और छ्त्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत का २६वाँ राज्य बन गया। विवरण भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसकी रोशनी की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। यह विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे आकर्षक गुलदस्ता है, मध्यप्रदेश, जिसे प्रकृति ने राष्ट्र की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगन्ध चारों ओर फैल रही है। यहाँ के जनपदों की आबोहवा में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। यहाँ के लोक समूहों और जनजाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य, संगीत, गीत की रसधारा सहज रूप से फूटती रहती है। यहाँ का हर दिन पर्व की तरह आता है और जीवन में आनंद रस घोलकर स्मृति के रूप में चला जाता है। इस प्रदेश के तुंग-उतुंग शैल शिखर विंध्य-सतपुड़ा, मैकाल-कैमूर की उपत्यिकाओं के अंतर से गूँजते अनेक पौराणिक आख्यान और नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, क्षिप्रा, काली सिंध आदि सर-सरिताओं के उद्गम और मिलन की मिथकथाओं से फूटती सहस्त्र धाराएँ यहाँ के जीवन को आप्लावित ही नहीं करतीं, बल्कि परितृप्त भी करती हैं। संस्कृति संगम right|thumb|400px|मध्य प्रदेश के ज़िले मध्यप्रदेश में छह लोक संस्कृतियों का समावेशी संसार है। ये छह सांस्कृतिक क्षेत्र है– निमाड़ मालवा बुंदेलखंड बघेलखंड महाकौशल ग्वालियर (चंबल) रीवा प्रत्येक सांस्कृतिक क्षेत्र या भू-भाग का एक अलग जीवंत लोकजीवन, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, कला, बोली और परिवेश है। मध्यप्रदेश लोक-संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान श्री वसन्त निरगुणे लिखते हैं- "संस्कृति किसी एक अकेले का दाय नहीं होती, उसमें पूरे समूह का सक्रिय सामूहिक दायित्व होता है। सांस्कृतिक अंचल (या क्षेत्र) की इयत्ता इसी भाव भूमि पर खड़ी होती है। जीवन शैली, कला, साहित्य और वाचिक परंपरा मिलकर किसी अंचल की सांस्कृतिक पहचान बनाती है।" मध्यप्रदेश की संस्कृति विविधवर्णी है। गुजरात, महाराष्ट्र अथवा उड़ीसा की तरह इस प्रदेश को किसी भाषाई संस्कृति में नहीं पहचाना जाता। मध्यप्रदेश विभिन्न लोक और जनजातीय संस्कृतियों का समागम है। यहाँ कोई एक लोक संस्कृति नहीं है। यहाँ एक तरफ़ पाँच लोक संस्कृतियों का समावेशी संसार है, तो दूसरी ओर अनेक जनजातियों की आदिम संस्कृति का विस्तृत फलक पसरा है। निष्कर्षत: मध्यप्रदेश छह सांस्कृतिक क्षेत्र निमाड़, मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखंड, महाकौशल और ग्वालियर हैं। धार-झाबुआ, मंडला-बालाघाट, छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम, खंडवा-बुरहानपुर, बैतूल, रीवा-सीधी, शहडोल आदि जनजातीय क्षेत्रों में विभक्त है। निमाड़ निमाड़ मध्यप्रदेश के पश्चिमी अंचल में स्थित है। अगर इसके भौगोलिक सीमाओं पर एक दृष्टि डालें तो यह पता चला है कि निमाड़ के एक ओर विंध्य की उतुंग शैल श्रृंखला और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा की सात उपत्यिकाएँ हैं, जबकि मध्य में है नर्मदा की अजस्त्र जलधारा। पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था। बाद में इसे निमाड़ की संज्ञा दी गयी। फिर इसे पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ के रूप में जाना जाने लगा। मालवा मालवा महाकवि कालिदास की धरती है। यहाँ की धरती हरी-भरी, धन-धान्य से भरपूर रही है। यहाँ के लोगों ने कभी भी अकाल को नहीं देखा। विंध्याचल के पठार पर प्रसरित मालवा की भूमि सस्य, श्यामल, सुंदर और उर्वर तो है ही, यहाँ की धरती पश्चिम भारत की सबसे अधिक स्वर्णमयी और गौरवमयी भूमि रही है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मालवा मे अपने आप को रोक रखा था। मालवा भारत का सबसे बड़ा प्रांत रहा है जहां उज्जैन और शाजापुर एतिहासिक शहर व पुरातात क शहर हैं। बुंदेलखंड एक प्रचलित अवधारणा के अनुसार "वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटों की श्रेणियों, उत्तर-पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना, अजमगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है, बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। इसमें उत्तर प्रदेश के पाँच जिले- जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पाँच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था।" कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश (जो पश्चिम में बेतवा नदी से संलग्न है) पूर्व में चंदेरी, सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मंदिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है।साथ ही विदिशा गुना अशोकनगर दमोह निवाड़ी रायसेन तथा जबलपुर कटनी जिले में बुंदेलखंड की संस्कृति भाषा की गहरी छाप देखने को मिलती है। बघेलखंड बघेलखंड की धरती का संबंध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रांत के अंतर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखंड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव संप्रदाय की परंपरा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँधवगढ़ के निवासी थी। महाकोशल जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहाँ भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है। ग्वालियर right|250px|thumb|ग्वालियर किले का ग्वालियर-गेट नामक द्वार — किले के अंदर से लिया गया चित्र मध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियाँ घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहाँ सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। १८५७ का पहला स्वतंत्रता संग्राम झाँसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने इसी भूमि पर लड़ा था। सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र ग्वालियर अंचल संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, चित्रकला अथवा लोकचित्र कला हो या फिर साहित्य, लोक साहित्य की कोई विधा हो, ग्वालियर अंचल में एक विशिष्ट संस्कृति के साथ नवजीवन पाती रही है। ग्वालियर क्षेत्र की यही सांस्कृतिक हलचल उसकी पहचान और प्रतिष्ठा बनाने में सक्षम रही है। भूगोल भारत में अवस्थिति जैसा की नाम से ही प्रतीत होता हैं यह भारत के बीचो-बीच, अक्षांश 21°6' उत्तरी अक्षांश से 26°30' उत्तरी अक्षांश देशांतर 74°9' पूर्वी देशांतर से 82°48' पूर्वी देशांतर में स्थित हैं। राज्य, नर्मदा नदी के चारो और फैला हुआ है, जोकि विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच पूर्व से पश्चिम की और बहती हैं, जोकि उत्तर और दक्षिण भारत के बीच पारंपरिक सीमा का काम करती हैं। मध्य प्रदेश की उत्तर से दक्षिण की लम्बाई 605 किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व लंबाई 870 किलोमीटर है। मानक रेखा सिंगरौली जिले से गुजरती है तथा पश्चिम से पूर्व मध्य प्रदेश में 32 मिनट का समयांतराल है। राज्य, दक्षिण में महाराष्ट्र से, पश्चिम में गुजरात से घिरा हुआ है, जबकि इसके उत्तर-पश्चिम में राजस्थान, पूर्वोत्तर पर उत्तर प्रदेश और पूर्व में छत्तीसगढ़ स्थित हैं। मध्य प्रदेश में सबसे ऊँची चोटी, धूपगढ़ (पचमढ़ी) की है जिसकी ऊँचाई 1,350 मीटर (4,429 फुट) हैं। जलवायु मध्य प्रदेश में उष्णकटिबंधीय जलवायु है। अधिकांश उत्तर भारत की तरह, यहाँ ग्रीष्म ऋतू (अप्रैल-जून), के बाद मानसून की वर्षा (जुलाई-सितंबर) और फिर अपेक्षाकृत शुष्क शरदऋतु आती है। यहाँ औसत वर्षा 1371 मिमी (54.0 इंच) होती है। इसके दक्षिण-पूर्वी जिलों में भारी वर्षा होती है, कुछ स्थानों में तो 2,150 मिमी (84.6 इंच) तक बारिश होती हैं, पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी जिलों में 1,000 मिमी (39.4 इंच) या कम बारिश होती हैं। पर्यावरण 2011 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में दर्ज वनक्षेत्र 94,689 वर्ग किमी(36,560 वर्ग मील) हैं जोकि राज्य के कुल क्षेत्र का 30.72% हैं, और भारत में स्थित कुल वनक्षेत्र का 12.30% है। मध्य प्रदेश सरकार ने इन क्षेत्र को "आरक्षित वन" (65.3%), "संरक्षित वन" (32.84%) और "उपलब्ध वन" (0.18%) में वर्गीकृत किया गया है। वन राज्य के उत्तरी और पश्चिमी भागों में कम घना है, जहाँ राज्य के प्रमुख शहर हैं, राज्य में पाये जाने वाले मिट्टी के प्रमुख प्रकार हैं: काली मिट्टी, सबसे मुख्य रूप से मालवा क्षेत्र, महाकौशल में और दक्षिणी बुंदेलखंड में लाल और पीली मिट्टी, बघेलखंड क्षेत्र में जलोढ़ मिट्टी, उत्तरी मध्य प्रदेश में लैटराइट मिट्टी, हाइलैंड क्षेत्रों में मिश्रित मिट्टी, ग्वालियर और चंबल संभाग के कुछ हिस्सों में वनस्पति और जीव प्रदेश में सबसे अधिक वनक्षेत्र हैं, इसीलिए यहाँ बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, सतपुड़ा राष्ट्रीय अभ्यारण्य, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान, माधव राष्ट्रीय उद्यान, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान, जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान पेंच राष्ट्रीय उद्यान, डायनासोर राष्ट्रीय उद्यान, पालपुर कुनो राष्ट्रीय उद्यान सहित 11 राष्ट्रीय उद्यान एवं विश्व का प्रथम वाइट टाइगर सफारी और ज़ू मुकुंदपुर सतना में है तथा इसके अलावा यह कई प्राकृतिक संरक्षण उपस्थित हैं जिनमे अमरकंटक, बाग गुफाएँ, बालाघाट, बोरी प्राकृतिक रिजर्व, केन घड़ियाल, घाटीगाँव , कुनो पालपुर, नरवर, चंबल, कुकड़ेश्वर, नरसिंहगढ़, नोरा देही, पचमढ़ी, पनपथा, शिकारगंज, पातालकोट और तामिया सम्मलित हैं सतपुड़ा रेंज में पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व, अमरकंटक बायोस्फियर रिजर्व और पन्ना राष्ट्रीय उद्यान भारत में उपस्थित 18 बायोस्फीयर में से तीन हैं। उदयगिरि गुफा भी मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में स्थित है| कान्हा, बाँधवगढ़, पेंच, पन्ना, और सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान बाघ परियोजना क्षेत्रों के रूप में काम करते हैं। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को, घड़ियाल और मगर, नदी डॉल्फिन, ऊदबिलाव और कई प्रकार के कछुओ के संरक्षण के लिए जाना जाता है। राज्य के जंगलों में सागौन और साल के पेड़ बहुतायत में पाये जाते हैं। नदियाँ नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख और लंबी (1312 कि.मी.http://www.sardarsarovardam.org/the-narmada-river-basin.aspx नर्मदा नदी बेसिन) नदी हैं। यह दरार घाटी के माध्यम से पश्चिम की ओर बहती हैं, इसके उत्तरी किनारे में विंध्य के विशाल पर्वतमाला, जबकि दक्षिण में सतपुड़ा के पहाड़ों की रेंज हैं। इसकी सहायक नदियों में बंजार, तवा, मचना, शक्कर, देनवा और सोनभद्र नदियाँ आदि शामिल हैं। ताप्ती नदी भी नर्मदा के समानांतर, दरार घाटी के माध्यम से बहती हैं। नर्मदा-ताप्ती सिस्टम, राज्य की प्रमुख नदियों में से हैं और मध्य प्रदेश की लगभग एक चौथाई भूमि क्षेत्र को जल प्रदान करती हैं। बाकी की नदियाँ चंबल, क्षिप्रा, काली सिंध, पार्वती, कुनो, सिंध, बेतवा, धसान और केन, जोकि पुर्व की और बहती हैंं, यमुना नदी में जाके मिलती हैंं क्षिप्रा नदी जिसके किनारे प्राचीन शहर उज्जैन बसा हुआ हैंं हिंदू धर्म के सबसे पवित्र नदियों में से एक हैं। यहाँ हर 12 साल में सिंहस्थ कुंभ मेला आयोजित किया जाता हैं। इन नदियों द्वारा बहा के लाई गई भूमि कृषि समृद्ध होती हैंं। गंगा बेसिन के पूर्वी भाग में सोन, टोंस, बीहर, सेलर नदी (मध्यप्रदेश का सबसे ऊँचा बहुटी जलप्रपात इसी नदी में बनता है) तथा रिहंद नदिया हैं। सोन, जो अमरकंटक के पास मैकल पहाड़ो से निकलती हैं, दक्षिणी से गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी हैं जो कि हिमालय से ही नहीं निकलती हैं। सोन और उसकी सहायक नदियों, गंगा में मानसून का अथाह जल प्रवाहित करती हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद, महानदी बेसिन का बड़ा हिस्सा अब छत्तीसगढ़ में प्रवाहित होता हैं। वर्तमान में, अनूपपुर जिले में हसदेव के पास नदी का केवल 154 km² बेसिन क्षेत्र ही मध्य प्रदेश में बहता हैं। वैनगंगा, वर्धा, पेंच, कन्हान नदियाँ, गोदावरी नदी प्रणाली में विशाल मात्रा में पानी का निर्वहन करती हैं। यहाँ कई महत्वपूर्ण राज्य के विकास में सिंचाई परियोजनाएँ कार्यरत हैं, जिसमें गोदावरी नदी घाटी सिंचाई परियोजना भी शामिल हैं। परिक्षेत्र मध्यप्रदेश को निम्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है: कैमूर पठार और सतपुड़ा पहाड़ी विंध्य पठार (पहाड़ी) नर्मदा घाटी वैनगंगा घाटी गिर्द (ग्वालियर) क्षेत्र बुंदेलखंड क्षेत्र सतपुड़ा पठार (पहाड़ी) मालवा पठार निमाड़ पठार झाबुआ पहाड़ी शहर मध्य प्रदेश राज्य में कुल 55 जिले हैं। जनसांख्यिकी 200px|thumb|right|मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के भील जनजाति के प्यारे बच्चे वर्ष 2011 की जनगणना के अंतिम आँकडों के अनुसार मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 72,626,809 है जिसमे 3,76,11,370(51.8%) पुरुष एवं 3,49,84,645(48.2%) महिलाएँ है मध्यप्रदेश का लिंगानुपात 930 है। मध्य प्रदेश की जनसंख्या, में कई समुदाय, जातीय समूह और जनजातियाँ आते हैं जिनमे यहाँ के मूल निवासी आदिवासी और हाल ही में अन्य राज्यों से आये प्रवासी भी शामिल है। राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक बड़े हिस्से का गठन करते हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी समूहों में मुख्य रूप से गोंड, भील, बैगा, कोरकू, भड़िया (या भरिया), हल्बा, कौल, मरिया, मालतो और सहरिया आते हैं। धार, झाबुआ, मंडला और डिंडौरी जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी की है। खरगोन, छिंदवाड़ा, सिवनी, सीधी, सिंगरौली और शहडोल जिलों में 30-50 प्रतिशत आबादी जनजातियों की है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या 15316000 हैं, जोकि कुल जनसंख्या का 21.10% हैं। यहाँ 46 मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजाति हैं और उनमें से तीन को "विशेष आदिम जनजातीय समूहों" का दर्जा प्राप्त हैं।अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग, मध्य प्रदेश सरकार विभिन्न भाषाई, सांस्कृतिक और भौगोलिक वातावरण और अन्य जटिलताओं के कारण मध्य प्रदेश के आदिवासी, बड़े पैमाने पर विकास की मुख्य धारा से कटा हुआ है। मध्य प्रदेश, मानव विकास सूचकांक के निम्न स्तर 0.375 (2011) पर हैं, जोकि राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है।मध्य प्रदेश: आर्थिक और मानव विकास संकेतक , यूएनडीपी (2011) इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स (2008) के अनुसार, मध्य प्रदेश में कुपोषण की स्थिति, 'बेहद खतरनाक' हैं और इसका स्थान इथोपिया और चाड के बीच है। राज्य की कन्या भ्रूण हत्या की स्थिति में भी, भारत में सबसे खराब प्रदर्शन है। राज्य का प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीडीपी)(2010-11), देश के सबसे कम में चौथा स्थान पर है।मौजूदा मूल्यों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) (15-03-2012 को), भारत के योजना आयोग। प्रदेश, भारत के राज्य हंगर इंडेक्स पर भी सबसे कम रैंकिंग वाले राज्य में से है। मध्य प्रदेश कुपोषण के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है। हाल ही के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पन्ना जिले में 43.1 प्रतिशत बच्चे कुपोषित, 24.7 प्रतिशत क्षीण और 40.3 प्रतिशत कम वजन वाले बच्चों की श्रेणी में आते है। इसी तरह का मामला ग्रामीण छतरपुर में भी हैं जहां 44.4 प्रतिशत बच्चे कुपोषित, 17.8 प्रतिशत क्षीण और 41.2 प्रतिशत कम वजन के हैं। धर्म 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रदेश में 90.9% लोग हिंदू धर्म को मानते हैं, जबकि अन्य में मुस्लिम (6.6%), जैन(1%),ईसाई (0.3%), बौद्ध (0.3%), और सिख (0.2%) आदि आते है। प्रदेश के कई शहर अपनी धार्मिक आस्था के केंद्र के लिए जाने जाते रहे हैं। जिनमे से सबसे प्रमुख उज्जैन शहर हैं, जोकि भारत के सबसे प्राचीन शहरो में से एक हैं। यहाँ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक महाकालेश्वर मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। शहर में बहने वाली शिप्रा नदी के किनारे प्रसिध्द कुंभ मेला लगता है। इसके अलावा नर्मदा नदी के तट पर बसा ओम्कारेश्वर भी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के कई धार्मिक केंद्र प्रदेश में उपस्थित हैं। भोपाल का ताज-उल-मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। बड़वानी का बावनगजा, दमोह का कुंडलपुर, दतिया का सोनागिरी, अशोकनगर का निसईजी मल्हारगढ़, बैतूल की मुक्तागिरी जैन धर्मालंबियोंं हेतु प्रसिद्ध है। विदिशा नगरी दशवें तीर्थेंकर भगवान शीतलनाथ की गर्भ जन्म व तप कल्याणक की भूमि है। बुंदेलखंड में दिगंबर जैन एवं मालवा में श्वेतांबर जैन बहूलता से पाये जाते हैं। बुंदेलखंड में दिगंबर जैन समुदाय का एक पंथ और स्थापित हुआ जो तारण पंथ कहलाता है। वही साँची में स्थित साँची का स्तूप, बौद्ध के लिए केंद्र हैं। मैहर जो कि सतना जिले के अंतर्गत आता है माँ शारदा जो बुद्धि एवं विद्या की दायिनी है त्रिकूट पर्वत पर माँ का भव्य मंदिर है जो भारत के ५२ शक्तिपीठ में से एक है। दतिया में स्थित माँ पीतांबरा का मंदिर विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है ऐसी मंदिर में माँ धूमावती की भी स्थापना है। नर्मदापुरम का सेठानी घाट, देवास जिले नेमावर में सिद्धनाथ महादेव, हरदा जिले के हंडिया में कुबेर के द्वारा पूजित रिद्धनाथ महादेव आदि नर्मदा के तट पर विशेष स्थान है इसके साथ ही माँ नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक बहुत ही प्रसिद्द स्थान है। रीवा जिले के देउर कोठार में लगभग 2 हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप और लगभग 5 हजार वर्ष प्राचीन शैलचित्रों की श्रृंखला मौजूद है। यह वर्ष 1982 में प्रकाश में आए थे। ये स्तूप सम्राट अशोक के शासनकाल में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के निर्मित हैं। देउर कोठार नामक स्थान, रीवा-इलाहाबाद मार्ग एचएन-27 पर सोहागी पहाड़ से पहले कटरा कस्बे के समीप स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बड़े स्तूप और लगभग 46 पत्थरों के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ और भगवान बौद्ध के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया। उर कोठार के बौद्ध स्तूपों का समूह सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप समूह है जिसमें पहला बौद्ध स्तूप ईंटों द्वारा बनाया गया था। एक मौर्यकालीन स्तंभ भी है जिसमें एक शिलालेख भी है जिसकी शुरुआत भगवतोष से होती है। यहाँ पर खुदाई के दौरान मौर्य कालीन ब्राही लेख के अभिलेख, शिलापट्ट स्तंभ और पात्रखंड भी प्राप्त हुए हैं। भाषा राज्य की आधिकारिक भाषा हिंदी है। इसके अलावा कई इलाको में संस्कृत, उर्दू और मराठी भाषियों की अच्छी खासी आबादी हैं। क्योंकी ये क्षेत्र कभी मराठा राज्य के अंतर्गत आते थे, बल्कि प्रदेश में महाराष्ट्र के बाहर मराठी लोगों की सबसे ज्यादा आबादी हैं। यहाँ कई क्षेत्रीय बोलियाँ भी बोली जाती हैं, जोकि कुछ लोगों के अनुसार हिंदी ही से निकल कर बनी हुई हैं जबकि कुछ के अनुसार ये अलग या अन्य भाषा से संबंधित हैं। इन बोलियों के अलावा मालवा में मालवी, निमाड़ में निमाड़ी, बुंदेलखंड में बुंदेली, और बघेलखंड और दक्षिण पूर्व में बघेली (रीवा) बोली जाती हैं। इन में से हर एक बोली एक दूसरे से बहुत अलग है। यहाँ की अन्य भाषाओं में तेलुगू, भिलोड़ी (भीली), गोंडी, कोरकू, कळतो (नहली), और निहाली (नाहली) आदि शामिल हैं, जोकि आदिवासी समूहों द्वारा बोली जाती हैं। शिक्षा right|200px|thumb|भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान (IITTM), ग्वालियर 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश की साक्षरता दर 70.60% थी, जिसमे पुरुष साक्षरता 80.5% और महिला साक्षरता 60.0% थी। वर्ष 2017 के आँकड़ों के मुताबिक, राज्य में 114,418 प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय, 3,851 उच्च विद्यालय और 4,765 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं। राज्य में 400 इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कॉलेजों, 250 प्रबंधन संस्थानों और 12 मेडिकल कॉलेज हैं। राज्य में भारत के कई प्रमुख शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान है जिनमे भारतीय प्रबंध संस्थान (IIM) इंदौर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(IIT) इंदौर, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) भोपाल, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) भोपाल, भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान (IITTM) ग्वालियर, आईआईएफएम भोपाल, नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी भोपाल शामिल हैं राज्य में एक पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर) भी हैं जिसके तीन संस्थान जबलपुर, महू और रीवा में है। प्रदेश की पहली निजी विश्वविद्यालय "जेपी अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गुना" एनएच 3 पर खूबसूरत कैंपस के साथ बना हुआ हैं। जोकि एनआईआरएफ (NIRF) के शीर्ष 100 में 86 वें स्थान पर है। |left|200px|thumb|भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), इंदौर यहाँ 500 डिग्री कॉलेज हैं, जोकि राज्य के ही विश्वविद्यालयों से सम्बंधित हैं। जिनमें निम्न शामिल है; जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जबलपुर) मध्यप्रदेश पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (भोपाल) मध्यप्रदेश चिकित्सा विश्वविद्यालय (भोपाल) मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय (भोपाल) राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (भोपाल) अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय (रीवा) बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय (भोपाल) देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (इंदौर) रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (जबलपुर) विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) जीवाजी विश्वविद्यालय (ग्वालियर) डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय (सागर विश्वविद्यालय) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय(अमरकंटक, अनूपपुर) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (भोपाल) वर्ष 1970 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड के लिये व्यावसायिक परीक्षा मंडल गठन किया गया। कुछ वर्ष के बाद 1981 में, प्री-इंजीनियरिंग बोर्ड का गठन किया गया था। फिर उसके बाद, वर्ष 1982 में इन बोर्डों दोनों को समामेलित कर मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (M.P.P.E.B.) जिसे व्यापम के रूप में भी जाना जाता है का गठन किया गया। संस्कृति मध्य प्रदेश के 3 स्थलों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है, जिनमे खजुराहो (1986), साँची बौद्ध स्मारक (1989), और भीमबेटका की रॉक शेल्टर (2003) शामिल हैं। हाल ही में ओरछा को यूनेस्को द्वारा उसकी अस्थायी सूची में सम्मलित किया गया है। अन्य वास्तुशिल्पीय दृष्टि से या प्राकृतिक स्थलों में अजयगढ़, अमरकंटक, असीरगढ़, बाँधवगढ़, बावनगजा, भोपाल, विदिशा, चंदेरी, चित्रकूट, धार, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, बुरहानपुर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मांडू, ओंकारेश्वर, ओरछा, पचमढ़ी, शिवपुरी, सोनागिरि, मंडला और उज्जैन शामिल हैं। मध्य प्रदेश में अपनी शास्त्रीय और लोक संगीत के लिए विख्यात है। विख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों में मध्य प्रदेश के मैहर घराने, ग्वालियर घराने और सेनिया घराने शामिल हैं। मध्यकालीन भारत के सबसे विख्यात दो गायक, तानसेन और बैजू बावरा, वर्तमान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास पैदा हुए थे। प्रशिद्ध ध्रुपद कलाकार अमीनुद्दीन डागर (इंदौर), गुंदेचा ब्रदर्स (उज्जैन) और उदय भवालकर (उज्जैन) भी वर्तमान के मध्य प्रदेश में पैदा हुए थे। माँ विंध्यवासिनी मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। यह अशोक नगर जिले से दक्षिण दिशा की ओर तूमैन (तुम्वन) मे स्थित हैं। यहाँ खुदाई में प्राचीन मूर्तियाँ निकलती रहती है यह राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से जानी जाती है यहाँ कई प्राचीन दार्शनिक स्थलो में बलराम मंदिर, हजारमुखी महादेव मंदिर, त्रिवेणी संगम,वोद्ध प्रतिमाएँ, लाखावंजारा वाखर गुफाएँ आदि कई स्थल है पार्श्व गायक किशोर कुमार (खंडवा) और लता मंगेशकर (इंदौर) का जन्मस्थान भी मध्य प्रदेश में स्थित हैं। स्थानीय लोक गायन की शैलियों में फाग, भर्तहरि, संजा गीत, भोपा, कालबेलिया, भट्ट/भांड/चरन, वसदेवा, विदेसिया, कलगी तुर्रा, निर्गुनिया, आल्हा, पंडवानी गायन और गरबा गरबि गोवालं शामिल हैं। अर्थव्यवस्था मध्य प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वर्ष 2014-15 के लिए 84.27 बिलियन डॉलर था। प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2013-14 में $871,45 था, और देश के अंतिम से छठे स्थान पर हैं। 1999 और 2008 के बीच राज्य की सालाना वृद्धि दर बहुत कम (3.5%) थी। इसके बाद राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में काफी सुधार हुआ है, और 2010-11 और 2011-12 के दौरान 8% एवं 12% क्रमशः बढ़ गया। राज्य में कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था है। मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलों में गेहूँ, सोयाबीन, चना, गन्ना, चावल, मक्का, कपास, राईं, सरसों और अरहर शामिल हैं। प्रदेश में इंदौर, सोयबीन की मंडी के लिए और सीहोर गेहूँ की मंडी के लिए देश भर का केंद्र हैं। लघु वनोपज (एमएफपी) जैसे की तेंदू, जिसके पत्ते का बीड़ी बनाने में इस्तेमाल किया जाता हैं, साल बीज, सागौन बीज, और लाख आदि भी राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए योगदान देते हैं। मध्य प्रदेश में 5 विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) है: जिनमे 3 आईटी/आईटीईएस (इंदौर, ग्वालियर), 1 खनिज आधारित (जबलपुर) और 1 कृषि आधारित (जबलपुर) शामिल हैं। अक्टूबर 2011 में, 14 सेज प्रस्तावित किया गए, जिनमे से 10 आईटी/ आईटीईएस आधारित थे। इंदौर, राज्य का प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र है। इसके राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण, यहाँ कई उपभोक्ता वस्तु कंपनियों ने अपनी विनिर्माण केंद्रों की स्थापना की है।. राज्य में भारत का हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अन्य प्रमुख खनिज भंडार में कोयला, कालबेड मीथेन, मैंगनीज और डोलोमाइट शामिल हैं। मध्य प्रदेश में 6 आयुध कारखाने, जिनमें से 4 जबलपुर (वाहन निर्माणी, ग्रे आयरन फाउंड्री, गन कैरिज फैक्टरी, आयुध निर्माणी खमरिया) में स्थित है, बाकि एक-एक कटनी और इटारसी में हैं। ये कारखाने आयुध कारखाना बोर्ड द्वारा चलाए जाते हैं जिनमे भारतीय सशस्त्र बलों के लिए उत्पादों का निर्माण किया जाता हैं। मध्य प्रदेश, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 में उत्कृष्ट कार्य के लिए 10वें राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीत चुका हैं। राज्य में पर्यटन उद्योग भी जोर-शोर से बढ़ रहा है, वन्यजीव पर्यटन और कई संख्या में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के स्थानों की उपस्थिति इनका मुख्य कारण हैं। साँची और खजुराहो में विदेशी पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। प्रमुख शहरों के अलावा अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में भेड़ाघाट, भीमबेटका, भोजपुर, महेश्वर, मांडू, ओरछा, पचमढ़ी, कान्हा और उज्जैन शामिल हैं। अवसंरचना ऊर्जा राज्य की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 13880 मेगावॉट (31 मार्च 2015) है। सभी राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश बिजली उत्पादन में सबसे ज्यादा वार्षिक वृद्धि (46.18%) दर्ज की हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भारत के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र योजना बनाई गई हैं। संयंत्र की बिजली उत्पादन की क्षमता 750 मेगावाट होगी, तथा इसे लगाने हेतु 4,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के गूढ तहसील में 1,590 हेक्टेयर के क्षेत्र में एक रीवा अल्ट्रा मेगा सौर पार्क प्रस्तावित है। परिवहन मध्य प्रदेश में बस और ट्रेन सेवाएँ चारो तरफ फैली हुई हैं। प्रदेश की 99,043 किमी लंबी सड़क नेटवर्क में 20 राष्ट्रीय राजमार्ग भी शामिल है। प्रदेश में 4948 किलोमीटर लंबी रेल नेटवर्क का जाल फैला हुआ हैं, जबलपुर को भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य रेलवे का मुख्यालय बनाया गया है। मध्य रेलवे और पश्चिम रेलवे व दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे भी राज्य के कुछ हिस्सों को कवर करते हैं। पश्चिमी मध्य प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र पश्चिम रेलवे के रतलाम रेल मंडल के अंर्तगत आते है, जिनमे इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, खंडवा, नीमच, सीहोर और बैरागढ़ भोपाल आदि शहर शामिल हैं। राज्य में 20 प्रमुख रेलवे जंक्शन है। प्रमुख अंतर-राज्यीय बस टर्मिनल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर जबलपुर और रीवा में स्थित हैं। प्रतिदिन 2000 से भी अधिक बसों का संचालन इन पाँच शहरो से होता हैं। शहर के अंदर की आवागमन हेतु, ज्यादातर बसों, निजी ऑटो रिक्शा और टैक्सियों का उपयोग होता है। देश के बीचो-बीच होने के कारण राज्य के पास कोई समुद्र तट नहीं है। अधिकांश समुद्री व्यापार, पड़ोसी राज्यों में कांडला और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह (न्हावा शेवा) के माध्यम से होता है जोकि सड़क और रेल नेटवर्क के माध्यम से प्रदेश से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। संचार माध्यम सरकार और राजनीति मध्य प्रदेश में विधान सभा की 230 सीट है। राज्य से भारत की संसद को 40 सदस्य भेजे जाते है: जिनमे 29 लोकसभा (निचले सदन) और 11 राज्यसभा के लिए (उच्च सदन) के लिए चुने जाते हैं। राज्य के संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता हैं, जोकि भारत के राष्ट्रपति द्वारा केंद्र सरकार की अनुशंसा पर नियुक्त किया जाता है। राज्य का कार्यकारी प्रमुख मुख्यमंत्री होता हैं, जोकि विधानसभा के निर्वाचित सदस्यो में बहुमत के आधार पर चुना नेता होता हैं। वर्तमान में, राज्य के राज्यपाल मंगूभाई छगनभाई पटेल तथा मुख्यमंत्री, भारतीय जनता पार्टी के डॉ. मोहन यादव है। राज्य की प्रमुख राजनीतिक दलों में भाजपा और कांग्रेस हैं। कई पड़ोसी राज्यों के विपरीत, यहाँ छोटे या क्षेत्रीय दलों को विधानसभा चुनावों में ज्यादा सफलता नहीं मिली है। दिसंबर 2018 में राज्य के चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटों में जीत हासिल कर अन्य पार्टीयो की सहायता से 121 सीटों का पूर्ण बहुमत साबित किया, बीजेपी 109 सीटों पर जीत हासिल कर विपक्ष पर जा बैठी। 2 सीटों के साथ बहुजन समाज पार्टी, राज्य में तीसरे स्थान पर हैं समाजवादी पार्टी ने 1 सीट पर जीत हासिल की वही 4 सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीतीं। पुलिस प्रशासन वर्ष 1976 में SBIEO विशेष जाँच सेल अपराध जाँच विभाग (सीआईडी) के अंतर्गत एक शाखा के रूप में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य अपराध अन्वेषण ब्यूरो गठित किया गया था। वर्ष 1989 में इसका नाम बदल कर राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो रखा गया था, जो गृह विभाग के नियंत्रण में कार्य करता था किंतु 1990 में राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो को सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत लाया गया। 22 जून 2013 को राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो नाम बदल कर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ रखा गया। खेल वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने मलखम्ब को राज्य के खेल के रूप में घोषित किया गया। क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, साइकिल चलाना, तैराकी, बैडमिंटन और टेबल टेनिस राज्य में लोकप्रिय खेल हैं। खो-खो, गिल्ली-डंडा, सितोलिया(पिट्ठू), कंचे और लंगड़ी जैसे पारंपरिक खेल ग्रामीण क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हैं। स्नूकर, जिसका आविष्कार ब्रिटिश सेना के अधिकारियों द्वारा जबलपुर में किया हुआ माना जाता है, कई अंग्रेजी बोलने वाले और राष्ट्रमंडल देशों में लोकप्रिय है। क्रिकेट मध्य प्रदेश में सबसे लोकप्रिय खेल है। यहाँ राज्य में तीन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम नेहरू स्टेडियम (इंदौर), रूपसिंह स्टेडियम (ग्वालियर) और होल्कर क्रिकेट स्टेडियम (इंदौर) हैं। मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम का रणजी ट्राफी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1998-99 में किया गया था, जब चंद्रकांत पंडित के नेतृत्व वाली टीम उपविजेता के रूप में रही। इसके पूर्ववर्ती, इंदौर के होल्कर क्रिकेट टीम, रणजी ट्राफी में चार बार जीत हासिल कर चुकी हैं। भोपाल का ऐशबाग स्टेडियम विश्व हॉकी सीरीज की टीम भोपाल बादशाह का घरेलू मैदान है। राज्य में एक फुटबॉल भी टीम है जोकि संतोष ट्राफी में भाग लेता रहता है। इन्हें भी देखें टीन का पुरा मध्य प्रदेश के लोकसभा सदस्य मध्य प्रदेश का पर्यटन मध्य प्रदेश के शहरों की सूची मध्य प्रदेश के जिले संदर्भ बाहरी कड़ियाँ मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश परिचय मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश का इतिहास श्रेणी:मध्य प्रदेश श्रेणी:भारत के राज्य
राजस्थान
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राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टाड ने "एनलस एंड एन्टीक्वीटीज आफ राजस्थान" में इस राज्य का नाम रायथान या राजस्थान रखा। यहां मुख्य क्षत्रिय गुर्जर जाति के लोग है इस राज्य की एक अंतरराष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान के साथ 1070 km जिसे रेड क्लिफ रेखा के नाम से जानते है, तथा 4850 km अंतर्राज्यीय सीमा जो देश के अन्य पाँच राज्यों से भी जुड़ा है।इसके दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132140 वर्ग मील) है। 2011 गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.1 % हैं। राज्य की राजधानी जयपुर हैं। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात देलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। राजस्थान में तीन(रामगढ़ विषधारी के जुड़ने के बाद चार )बाघ अभयारण्य, मुकंदरा हिल्स<ref name="मुकंदरा हिल्स नेशनल पार्क"रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। राजस्थान का सबसे नया संभाग भरतपुर है। राजस्थान का सबसे छोटा जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से दुदू है, धौलपुर का क्षेत्रफल 3034 वर्ग किमी है ।और सबसे बड़ा जिला जैसलमेर हैं। जिसका क्षेत्रफल 38401 वर्ग किमी. है ।भारत का सबसे गर्म स्थान फलोदी जोधपुर है । फलोदी में सौर ऊर्जा संयंत्र बहुत ज्यादा स्थापित हो रहे है । वर्तमान में राजस्थान में 50 जिले और 10 संभाग बनाएं गए है । राजस्थान में भरतपुर जिले से डीग तहसील को जिला बनाया गया ,अब डीग जिला राजस्थान का नया जिला होगा और भी नए जिले बनाए गए । इतिहास प्राचीन काल में राजस्थान प्राचीन समय में राजस्थान में आदिवासी कबीलों का शासन था। 2500 ईसा पूर्व से पहले राजस्थान बसा हुआ था और उत्तरी राजस्थान में सिंधु घाटी सभ्यता की नींव रखी थी। भील और मीना जनजाति इस क्षेत्र में रहने के लिए सबसे पहले आए थे। संसार के प्राचीनतम साहित्य में अपना स्थान रखने वाले आर्यों के धर्मग्रंथ ऋग्वेद में मत्स्य जनपद का उल्लेख आया है, जो कि वर्तमान राजस्थान के स्थान पर अवस्थित था। महाभारत कथा में भी मत्स्य नरेश विराट का उल्लेख आता है, जहाँ पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था। करीब 13 वी शताब्दी के पूर्व तक पूर्वी राजस्थान और हाड़ौती पर गुर्जर सरदारों मीणा तथा दक्षिण राजस्थान पर भील राजाओं का शासन था उसके बाद मध्यकाल में राजपूत जाति के विभिन्न वंशों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना BANAYA, तो उन भागों का नामकरण अपने-अपने वंश, क्षेत्र की प्रमुख बोली अथवा स्थान के अनुरूप कर दिया। ये राज्य थे- चित्तौडगढ, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, (जालोर) सिरोही, कोटा, बूंदी, जयपुर, अलवर, करौली, झालावाड़ , मेरवाड़ा और टोंक(मुस्लिम पिण्डारी) राजा महाराणा प्रतापऔर महाराणा सांगा,महाराजा सूरजमल, महाराजा जवाहर सिंह, वीर तेजाजी अपनी असाधारण राज्यभक्ति और शौर्य के लिये जाने जाते है। पन्ना धाय जैसी बलिदानी माता, मीरां जैसी जोगिन यहां की एक बड़ी शान है।कर्मा बाई जैसी भक्तणी जिसने भगवान जगन नाथ जी को हाथों से खीचड़ा (खिचड़ी) खिलाया था। इन राज्यों के नामों के साथ-साथ इनके कुछ भू-भागों को स्थानीय एवं भौगोलिक विशेषताओं के परिचायक नामों से भी पुकारा जाता रहा है। पर तथ्य यह है कि राजस्थान के अधिकांश तत्कालीन क्षेत्रों के नाम वहां बोली जाने वाली प्रमुखतम बोलियों पर ही रखे गए थे। उदाहरणार्थ ढ़ूंढ़ाडी-बोली के इलाकों को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर) कहते हैं। 'मेवाती' बोली वाले निकटवर्ती भू-भाग अलवर को 'मेवात', उदयपुर क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली 'मेवाड़ी' के कारण उदयपुर को मेवाड़, ब्रजभाषा-बाहुल्य क्षेत्र को 'ब्रज', 'मारवाड़ी' बोली के कारण बीकानेर-जोधपुर इलाके को 'मारवाड़' और 'वागडी' बोली पर ही डूंगरपुर-बांसवाडा आदि को 'वागड' कहा जाता रहा है। डूंगरपुर तथा उदयपुर के दक्षिणी भाग में प्राचीन 56 गांवों के समूह को "छप्पन" नाम से जानते हैं। माही नदी के तटीय भू-भाग को 'कोयल' तथा अजमेर-मेरवाड़ा के पास वाले कुछ पठारी भाग को 'उपरमाल' की संज्ञा दी गई है।गोपीनाथ शर्मा / 'Social Life in Medivial Rajasthan' / पृष्ठ ३ जरगा और रागा के पहाड़ी भाग हमेशा हरे भरे रहते हैं इसलिए इसे देशहरो कहते है। राजस्थान का एकीकरण राजस्थान भारत का एक महत्वपूर्ण प्रांत है। यह 15 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं। राजस्थान के एकीकरण के समय राजस्थान में 19 रियासतें व तीन ठिकाने लावा नीमराणा व कुशलगढ़ थे इसमें से 16 क्षत्रियों (राजपूतों)शासकों की व टोंक मुस्लिम रियासत थी। भरतपुर और धौलपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: 'राजाओं का स्थान' राजाओं से रक्षित भूमि थी। इस कारण इसे राजस्थान कहा गया था। भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नज़रिए से देखें तो इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। इनमें एक रियासत अजमेर-मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था; इस कारण यह तो सीधे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर 'राजस्थान' नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था, क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई। जिसमे राजस्थान में 26 जिले सम्मिलित थे इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी॰ पी॰ मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका। राजस्थान में कुल 21 राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। भूगोल एवं राजस्थान का क्लिक करने योग्य मानचित्र राजस्थान की आकृति लगभग पतंगाकार है। राज्य २३ ३ से ३० १२ अक्षांश और ६९ ३० से ७८ १७ देशान्तर के बीच स्थित है। इसके उत्तर में पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा, दक्षिण में मध्यप्रदेश और गुजरात, पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश एवं पश्चिम में पाकिस्तान हैं। सिरोही से अलवर की ओर जाती हुई ४८० कि॰मी॰ लम्बी अरावली पर्वत शृंखला प्राकृतिक दृष्टि से राज्य को दो भागों में विभाजित करती है। राजस्थान का पूर्वी सम्भाग शुरू से ही उपजाऊ रहा है। इस भाग में वर्षा का औसत ५० से.मी. से ९० से.मी. तक है। राजस्थान के निर्माण के पश्चात् चम्बल और माही नदी पर बड़े-बड़े बांध और विद्युत गृह बने हैं, जिनसे राजस्थान को सिंचाई और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध हुई है। अन्य नदियों पर भी मध्यम श्रेणी के बांध बने हैं, जिनसे हजारों हैक्टर सिंचाई होती है। इस भाग में ताम्बा, जस्ता, अभ्रक, पन्ना, घीया पत्थर और अन्य खनिज पदार्थों के विशाल भण्डार पाये जाते हैं। राज्य का पश्चिमी भाग देश के सबसे बड़े रेगिस्तान "थार" या 'थारपाकर' का भाग है। इस भाग में वर्षा का औसत १२ से.मी. से ३० से.मी. तक है। इस भाग में लूनी, बांड़ी आदि नदियां हैं, जो वर्षा के कुछ दिनों को छोड़कर प्राय: सूखी रहती हैं। देश की स्वतंत्रता से पूर्व बीकानेर राज्य गंगानहर द्वारा पंजाब की नदियों से पानी प्राप्त करता था। स्वतंत्रता के बाद राजस्थान इंडस बेसिन से रावी और व्यास नदियों से ५२.६ प्रतिशत पानी का भागीदार बन गया। उक्त नदियों का पानी राजस्थान में लाने के लिए सन् १९५८ में 'राजस्थान नहर' (अब इंदिरा गांधी नहर) की विशाल परियोजना शुरू की गई। जोधपुर, बीकानेर, चूरू एवं बाड़मेर जिलों के नगर और कई गांवों को नहर से विभिन्न लिफ्ट परियोजनाओं से पहुंचाये गये पीने का पानी उपलब्ध होगा। खारी नदी उदयपुर और अजमेर मेरवाङा की सीमा रेखा थी। पश्चिमी राजस्थान यानी मारवाड़ को मरूकान्इतर भी कहा जाता है। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान का एक बड़ा भाग अन्तत: शस्य श्यामला भूमि में बदल जायेगा। सूरतगढ़ जैसे कई इलाको में यह नजारा देखा जा सकता है। गंगा बेसिन की नदियों पर बनाई जाने वाली जल-विद्युत योजनाओं में भी राजस्थान भी भागीदार है। इसे इस समय भाखरा-नांगल और अन्य योजनाओं के कृषि एवं औद्योगिक विकास में भरपूर सहायता मिलती है। राजस्थान नहर परियोजना के अलावा इस भाग में जवाई नदी पर निर्मित एक बांध है, जिससे न केवल विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई होती है, वरन् जोधपुर नगर को पेयजल भी प्राप्त होता है। यह सम्भाग अभी तक औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पर उम्मीद है, इस क्षेत्र में ज्यो-ज्यों बिजली और पानी की सुविधाएं बढ़ती जायेंगी औद्योगिक विकास भी गति पकड़ लेगा। इस बाग में लिग्नाइट, फुलर्सअर्थ, टंगस्टन, बैण्टोनाइट, जिप्सम, संगमरमर आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। बाड़मेर क्षेत्र में सिलिसियस अर्थ और कच्चा तेल के भंडार प्रचुर मात्रा में हैं। हाल ही की खुदाई से पता चला है कि इस क्षेत्र में उच्च किस्म की प्राकृतिक गैस भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अब वह दिन दूर नहीं, जबकि राजस्थान का यह भाग भी समृद्धिशाली बन जाएगा। राज्य का क्षेत्रफल ३.४२ लाख वर्ग कि.मी है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का १०.४० प्रतिशत है। यह भारत का सबसे बड़ा राज्य है। वर्ष १९९६-९७ में राज्य में गांवों की संख्या ३७८८९ और नगरों तथा कस्बों की संख्या २२२ थी। राज्य में ३३ जिला परिषदें, २३५ पंचायत समितियां और ९१२५ ग्राम पंचायतें हैं। नगर निगम ४ और सभी श्रेणी की नगरपालिकाएं १८० हैं। सन् १९९१ की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या ४.३९ करोड़ थी। जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग कि॰मी॰ १२६ है। इसमें पुरुषों की संख्या २.३० करोड़ और महिलाओं की संख्या २.०९ करोड़ थी। राज्य में दशक वृद्धि दर २८.४४ प्रतिशत थी, जबकि भारत में यह औसत दर २३.५६ प्रतिशत थी। राज्य में साक्षरता ३८.८१ प्रतिशत थी। जबकि भारत की साक्षरता तो केवल २०.८ प्रतिशत थी जो देश के अन्य राज्यों में सबसे कम थी। राज्य में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति राज्य की कुल जनसंख्या का क्रमश: १७.२९ प्रतिशत और १२.४४ प्रतिशत है। राजस्थान की जलवायु राजस्थान की जलवायु शुष्क से उप-आर्द्र मानसूनी जलवायु है। अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं युक्त शुष्क जलवायु है। दूसरी ओर अरावली के पूर्व में अर्धशुष्क एवं उप-आर्द्र जलवायु है। अक्षांशीय स्थिति, समुद्र से दूरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों की स्थिति एवं दिशा, वनस्पति आवरण आदि सभी यहाँ की जलवायु को प्रभावित करते हैं। राजस्थान के प्रथम व्यक्तित्व:- राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री : हीरा लाल शास्त्री (30 मार्च 1948 से 5 जनवरी 1951 तक राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री : टीकाराम पालीवाल (3 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1952 तक) राजस्थान के चौथे मुख्यमंत्री राजस्थान के प्रथम राज्यपाल : श्री गुरुमुख निहाल सिंह (1 नवंबर 1956 से 16 अप्रैल 1962 तक) राजस्थान के प्रथम मुख्य न्यायाधीश : कमलकांत वर्मा राजस्थान के प्रथम सबसे युवा सांसद: सचिन पायलट राजस्थान के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष : नरोत्तम जोशी राजस्थान के प्रथम पुलिस महानिरीक्षक (IGP) : के. बनर्जी राजस्थान के प्रथम पुलिस महानिदेशक (DGP) : रघुनाथ सिंह राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री : वसुन्धरा राजे (8 दिसम्बर 2003 से 11 दिसम्बर 2008 तक) राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल : प्रतिभा पाटिल (8 नवंबर 2004 से 21 जून 2007 तक) राजस्थान की प्रथम महिला विधानसभा अध्यक्ष: सुमित्रा सिंह शिक्षण संस्थान राज ऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर राजस्थान वि. वि जयपुर राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर मोदी प्रौद्योगिकी तथा विज्ञान संस्थान, लक्ष्मणगढ़,सीकर जिला (मानद विश्‍वविद्यालय) वनस्थली विद्यापीठ (मानद विश्‍वविद्यालय),(निवाई) टोंक राजस्थान विद्यापीठ (मानद विश्‍वविद्यालय), उदयपुर बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी (मानद विश्‍वविद्यालय), आई. आई. एस. विश्‍वविद्यालय (मानद विश्‍वविद्यालय) एलएनएम सूचना प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय) मालवीय राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय) जयपुर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर राष्‍ट्रीय विधि विश्‍वविद्यालय, जोधपुर राजस्‍थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर राजस्‍थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय राजस्‍थान संस्‍कृत विश्वविद्यालय जयपुर बीकानेर विश्वविद्यालय, बीकानेर कोटा विश्वविद्यालय कोटा वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर मौलाना अबुल कलाम आजाद विश्वविद्यालय जोधपुर शेखावाटी विश्वविद्यालय सीकर राजस्थान की महत्वपूर्ण कला-संस्कृति इकाइयां मुख्य लेख : राजस्थान की महत्वपूर्ण कला-संस्कृति इकाइयां 500px|centre| राजस्थानी कलाकार आरटीडीसी - राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड राजस्थान की सभी पर्यटन सम्बंधित जानकारी एवं सेवा उपलब्धि कराती है | पूरे भारत वर्ष में सबसे ज्यादा पह्माणे में विदेशी पर्यटन सिर्फ राजस्थान आते है जो की भारत देश की संस्कृति, कला , वेश भूषा , आस्था का रूप है | राजस्थान पर्यटन विभाग राजस्थान के सभी प्रसिद्द राज महल, मंदिर, लोक कला, टाइगर रिसॉर्ट्स , होटल्स जैसी सभी सेवाएं पर्यटकों को उपलब्ध कराती है । चन्द्रशेखर के सुर्जनचरित्र से चौहान वंश के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है। ब्रह्मगुप्त ने ध्यान गृह की रचना थी। अलउतबी के तारीखएयामिनी,मिनहाज उस सिराज के तबकात ए नासिरी मे यमन -राजपूत संघर्ष का वर्णन है। राजस्थान के प्रसिद्ध स्थल जयपुर thumb|हवामहल,जयपुर. जयपुर http://hindi.mapsofindia.com/rajasthan/jaipur/places-of-interest/ जयपुर के दर्शनीय स्थल इसके भव्य किलों, महलों और सुंदर झीलों के लिए प्रसिद्ध है, जो विश्वभर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) महाराजा जयसिंह (द्वितीय) द्वारा बनवाया गया था और मुगल और राजस्थानी स्थापत्य का एक संयोजन है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने हवामहल 1799 ई. में बनवाया जिसके वास्तुकार लालचन्द उस्ता थे। आमेर दुर्ग में महलों, विशाल कक्षों, स्तंभदार दर्शक-दीर्घाओं, बगीचों और मंदिरों सहित कई भवन-समूह हैं। आमेर महल मुगल और हिन्दू स्थापत्य शैलियों के मिश्रण का उत्कृष्ट उदाहरण है। एल्बर्ट हॉल नामक म्यूजियम 1876 में, प्रिंस ऑफ वेल्स के जयपुर आगमन पर सवाई रामसिंह द्वारा बनवाया गया था और 1886 में जनता के लिए खोला गया। गवर्नमेंट सेन्ट्रल म्यूजियम में हाथीदांत कृतियों, वस्त्रों, आभूषणों, नक्काशीदार काष्ठ कृतियों, लघुचित्रों, संगमरमर प्रतिमाओं, शस्त्रों और हथियारों का समृद्ध संग्रह है। सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने अपनी सिसोदिया रानी के निवास के लिए 'सिसोदिया रानी का बाग' भी बनवाया। जलमहल, शाही बत्तख-शिकार के लिए बनाया गया मानसागर झील के बीच स्थित एक महल है। 'कनक वृंदावन' अपने प्राचीन गोविन्देव विग्रह के लिए प्रसिद्ध जयपुर में एक लोकप्रिय मंदिर-समूह है। जयपुर के बाजार जीवंत हैं और दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी है, जिसमें हथकरघा-उत्पाद, बहुमूल्य रत्नाभूषण, वस्त्र, मीनाकारी-सामान, राजस्थानी चित्र आदि शामिल हैं। जयपुर संगमरमर की प्रतिमाओं, ब्लू पॉटरी और राजस्थानी जूतियों के लिए भी प्रसिद्ध है। जयपुर के प्रमुख बाजार, जहां से आप कुछ उपयोगी सामान खरीद सकते हैं, जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ हैं। राजस्थान राज्य परिवहन निगम (RSRTC) की उत्तर भारत के सभी प्रसुख गंतव्यों के लिए बस सेवाएं हैं। जयपुर के निकट विराट नगर (पुराना नाम बैराठ) जहाँ पांडवों ने अज्ञातवास किया था, में पंचखंड पर्वत पर वज्रांग मंदिर नामक एक अनोखा देवालय है जहाँ हनुमान जी की बिना बन्दर की मुखाकृति और बिना पूंछ वाली मूर्ति स्थापित है जिसकी स्थापना अमर स्वतंत्रता सेनानी, यशस्वी लेखक महात्मा रामचन्द्र वीर ने की थी। पन्ना मीणा की बावड़ी : सवाई जयसिंह के शासन काल में बनवाई गई प्रसिद्ध बावड़ी। भरतपुर ‘पूर्वी राजस्थान का द्वार’ भरतपुर, भारत के पर्यटन मानचित्र में अपना महत्त्व रखता है। भारत के वर्तमान मानचित्र में एक प्रमुख पर्यटक गंतव्य, भरतपुर पांचवी सदी ईसा पूर्व से कई अवस्थाओं से गुजर चुका है। 18 वीं सदी का घना पक्षी अभयारण्य , जो केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान के रूप में भी जाना जाता है। लोहागढ़ आयरन फोर्ट के रूप में भी जाना जाता है, लोहागढ़ भरतपुर के प्रमुख ऐतिहासिक आकर्षणों में से एक है। जिसको कोई नहीं जीत पाया भरतपुर संग्रहालय राजस्थान के विगत शाही वैभव के साथ शौर्यपूर्ण अतीत के साक्षात्कार का एक प्रमुख स्रोत है। एक सुंदर बगीचा, नेहरू पार्क, जो भरतपुर संग्रहालय के पास है। डीग जलमहल एक आकर्षक राजमहल है, जो भरतपुर के जाट शासकों ने बनवाया था। जोधपुर राठौड़ों के रूप में प्रसिद्ध एक वंश के प्रमुख, राव जोधा ने जिस जोधपुर की सन 1459 में स्थापना की थी, राजस्थान के पश्चिमी भाग में केन्द्र में स्थित राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और दर्शनीय महलों, दुर्गों औऱ मंदिरों के कारण एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है। शहर की अर्थव्यस्था में हथकरघा, वस्त्र उद्योग और धातु आधारित उद्योगों का योगदान है। मेहरानगढ़ दुर्ग, 125 मीटर ऊंचा और 5 किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ, भारत के बड़े दुर्गों में से एक है जिसमें कई सुसज्जित महल जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल स्थित हैं। अन्दर संग्रहालय में भी लघुचित्रो, संगीत वाद्य यंत्रों, पोशाकों, शस्त्रागार आदि का एक समृद्ध संग्रह है। जोधपुर रियासत, मारवाड़ क्षेत्र में १२५० से १९४९ तक चली रियासत थी। इसकी राजधानी वर्ष १९५० से जोधपुर नगर में रही। सवाई माधोपुर सवाई माधोपुर शहर की स्थापना जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने 1765 ईस्वी में की थी और इन्हीं के नाम पर 15 मई, 1949 ई. को सवाई माधोपुर जिला बनाया गया। मीणा बाहुल्य इस जिले का ऐतिहासिकता के तौर पर काफी महत्त्व है। राजस्थान राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान इसी जिले में स्थित है, जिसे रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। इस उद्यान के कारण सवाई माधोपुर को 'टाइगर सिटी' के नाम से भी राजस्थान में पहचान मिली हुई है। सवाई माधोपुर जिले में चौहान वंश का ऐतिहासिक रणथंभोर दुर्ग विश्व धरोहर में शामिल है, अपनी प्राकृतिक बनावट व सुरक्षात्मक दृष्टि से अभेद्य यह दुर्ग विश्व में अनूठा है। इस दुर्ग का सबसे प्रसिद्ध शासक महाराजा गुर्जर हम्मीर देव चौहान राजस्थान के इतिहास में अपने हठ के कारण काफी प्रसिद्ध रहा है। सवाईमाधोपुर रेलवे स्टेशन पर बाघों की चित्रकारी की विश्व में एक अलग पहचान है, इसलिए इसे वन्यजीव फ्रेंडली स्टेशन कहा जा सकता है। चौथ माता का प्रसिद्ध मंदिर चौथ का बरवाड़ा में स्थित जिसे जयपुर नरेश भीम सिंह के काल में बनाया गया था। मीन भगवान का मंदिर : चौथ का बरवाड़ा में मीणा समाज द्वारा सात करोड़ रुपए से निर्मित महा मंदिर। यहाँ पर चौबीस बगड़ावत प्रसिद्ध है और और आगे चलकर इसी गुर्जर वंश में भगवान् देवनारायण ने जन्म लिया बूंदी 1. इस शहर की स्थापना महाराजा बूंदा मीणा द्वारा की गई थी। 2. जैत सागर झील : बूंदी के शासक जैता मीणा द्वारा बनवाई गई थी। बनवाई गई झील बाड़मेर १. गुर्जर शैली किराडू मंदिर २.जूना ३.विरात्रा माता मंदिर उद्योग सूती वस्त्र उद्योग यह राजस्थान का सबसे प्राचीन एवं सुसंगठित उद्योग है। राजस्थान में सबसे पहले १८८९ में द कृष्णा मिल्स लिमिटेड की स्थापना देशभक्त सेठ दामोदर दास ने ब्यावर नगर में की थी। यह राजस्थान की पहली सूती वस्त्र मिल थी। सार्वजनिक क्षेत्र में तीन मिल है- महालक्ष्मी मिल्स लिमिटेड, ब्यावर अजमेर एडवर्ड मिल्स लिमिटेड, ब्यावर अजमेर विजय काटन मिल्स लिमिटेड, विजयनगर अजमेर राजस्थान में सहकारी सूती मिल है - गंगापुर - भीलवाड़ा में गुलाबपुरा - भीलवाडा में हनुमानगढ़ में प्रमुख निजी सूती मिल द कृष्णा मिल्स लिमिटेड, ब्यावर, अजमेर (राजस्थान की प्रथम सुती मिल, 1889 में) मेवाड़ टैक्सटाइल मिल्स लिमिटेड - भीलवाड़ा(1938) महाराजा उम्मेद मिल्स लिमिटेड - पाली(1942) राजस्थान स्पीनिंग एण्ड विविंग मिल्स लिमिटेड - भीलवाड़ा(1960) चीनी उद्योग राजस्थान में सर्वप्रथम चित्तौड़गढ़ ज़िले में भोपालसागर नगर में चीनी मिल द मेवाड़ सुगर मिल्स के नाम से सन् १९३२ में प्रारम्भ की गई। दूसरा कारखाना सन् १९३७ में श्रीगंगानगर में द श्रीगंगानगर सुगर मिल्स के नाम से स्थापित हुआ। इसमें मिल में शक्कर बनाने का कार्य १९४६ में प्रारम्भ हुआ। १९५६ में इस चीनी मिल को राज्य सरकार ने अधिगृहीत कर लिया तथा यह सार्वजनिक क्षेत्र में आ गई। १९६५ में बूंदी ज़िले के केशोराय पाटन में चीनी मिल सहकारी क्षेत्र में स्थापित की गई। वर्तमान में बंद है सन् १९७६ में उदयपुर में चीनी मिल निजी क्षेत्र में स्थापित की गई। चुकन्दर से चीनी बनाने के लिए श्रीगंगानगर सुगर मिल्स लिमिटेड में एक योजना १९६८ में आरम्भ की गई थी। चीनी उद्योग द मेवाड़ शुगर मिल्स लिमिटेड - भोपाल सागर, चित्तौड़गढ़ निजी क्षेत्र में कार्यरत, राजस्थान की प्रथम चीनी मिल्स - 1932 गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड - कमिनपुरा, गंगानगर केशवरायपाटन सहकारी शुगर मिल्स लिमिटेड - केशवरायपाटन, बूंदी(सहकारी क्षेत्र में) सीमेन्ट उद्योग सीमेन्ट उद्योग की दृष्टि से राजस्थान का पूरे भारत में प्रथम स्थान है। यहां पर सर्वप्रथम १९०४ में समुद्री सीपियों से सीमेन्ट बनाने का प्रयास किया गया था। १९१५ ई. राजस्थान में लाखेरी, बूंदी में क्लिक निक्सन कम्पनी द्वारा सर्वप्रथम एक सीमेन्ट संयंत्र स्थापित किया गया। १९१७ में इस कारखाने में सीमेन्ट बनाने का कार्य प्रारम्भ किया गया। काँच उद्योग राजस्थान में काँच प्राप्ति के मुख्य स्थल जयपुर, बीकानेर, बूंदी तथा धौलपुर ज़िले है जहां उपयुक्त रूप से काँच की प्राप्ति होती है। द हाई टेक्निकल प्रीसीजन ग्लास वर्क्स'' सार्वजनिक क्षेत्र में धौलपुर में राजस्थान सरकार का उपक्रम है जो श्रीगंगानगर सुगर मिल्स के अधीन है। काँच उद्योग के मामले में राजस्थान उत्तर प्रदेश के बाद दुसरे स्थान पर है। ऊन उद्योग संपूर्ण भारतवर्ष में 42% ऊन राजस्थान से उत्पादित होती है। इस कारण राजस्थान भर में कई ऊन उद्योग की मिलें विद्यमान है जिसमें स्टेट वूलन मिल्स (बीकानेर ), जोधपुर ऊन फैक्ट्री, विदेशी आयात - निर्यात संस्था, कोटा इत्यादि है। राजस्थान का भूगोल केंद्र|पाठ=|बॉर्डर|500x500पिक्सेलनामकरण : वाल्मीकि ने राजस्थान प्रदेश को ‘मरुकान्तार‘ कहा है। राजपूताना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1800 ई. में जॉर्ज थॉमस ने किया। विलियम फ्रेंकलिन ने 1805 में ‘मिल्ट्री मेमोयर्स ऑफ मिस्टर जार्ज थॉमस‘ नामक पुस्तक प्रकाशित की। उसमें उसने कहा कि जार्ज थॉमस सम्भवतः पहला व्यक्ति था, जिसने राजपूताना शब्द का प्रयोग इस भू-भाग के लिए किया था। कर्नल जेम्स टॉड ने इस प्रदेश का नाम ‘रायथान‘ रखा क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल में राजाओं के निवास के प्रान्त को ‘रायथान‘ कहते थे। उन्होंने 1829 ई. में लिखित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक 'Annals & Antiquities of Rajas'than' (or Central and Western Rajpoot States of India) में सर्वप्रथम इस भौगोलिक प्रदेश के लिए राजस्थान शब्द का प्रयोग किया। 30 मार्च,1949 से हर वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी, 1950 को इस प्रदेश का नाम राजस्थान स्वीकृत किया गया। यद्यपि राजस्थान के प्राचीन ग्रन्थों में राजस्थान शब्द का उल्लेख मिलता है। लेकिन वह शब्द क्षेत्र विशेष के रूप में प्रयुक्त न होकर रियासत या राज्य क्षेत्र के रूप में प्रयुक्त हुआ है। जैसे :- - राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग ‘राजस्थानीयादित्य‘ वि.सं. 682 में उत्कीर्ण बसंतगढ़ (सिरोही) के शिलालेख में मिलता है। - ‘मुहणोत नैणसी की ख्यात‘ व वीरभान के ‘राजरूपक‘ में राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ। यह शब्द भौगोलिक प्रदेश राजस्थान के लिए प्रयुक्त हुआ नहीं लगता। अर्थात् राजस्थान शब्द के प्रयोग के रूप में कर्नल जेम्स टॉड को ही श्रेय दिया जाता है।स्थिति : उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित। 23(degree)3' उत्तरी अंक्षाश से 30(degree)12' उत्तरी अंक्षाश एवं 69(degree)30' पूर्वी देशान्तर से 78(degree)17' पूर्वी देशान्तर के मध्य। विस्तार - उ. से द. तक लम्बाई 826 कि.मी. तथा विस्तार उतर में कोणा गाँव (गंगानगर) से दक्षिण में बोरकुंड गाँव (बांवाङ़ा) तक है। अक्षांश रेखाएँ- ग्लोब को 180 अक्षांशों में बांटा गया है। \(0^\circ\)  से 90(degree)उत्तरी अक्षांश, उत्तरी गोलार्द्ध तथा \(0^\circ\) से 90(degree)  दक्षिणी अक्षांश, दक्षिणी गोलार्द्ध कहलाते हैं। अक्षांश रेखायें ग्लोब पर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखायें हैं। जो ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची जाती है, ये जलवायु, तापमान व स्थान (दूरी) का ज्ञान कराती है। दो अक्षांश रेखाओं के बीच में 111 km. का अन्तर होता है। देशान्तर रेखाएँ - वे काल्पनिक रेखाएँ जो ग्लोब पर उत्तर से दक्षिण की ओर खींची जाती है। ये 360 होती हैं। ये समय का ज्ञान कराती है। अतः इन्हें सामयिक रेखाएँ 0(degree) देशान्तर रेखा को ग्रीनविच मीन Time/ग्रीन विच मध्या।न रेखा कहते हैं। दो देशान्तर रेखाओं के बीच दूरी सभी जगह समान नहीं होती है, भूमध्य रेखा पर दो देशान्तर रेखाओं के बीच 111.31 किमी. का अन्तर होता है। 180(degree) देशान्तर रेखा को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं जो बेरिंग सागर में से होकर जापान के पूर्व में से गुजरती हुई प्रशांत महासागर को काटती हुई दक्षिण की ओर जाती है। भारत Indian Standard Time (IST)   पूर्वी देशान्तर रेखा को मानता है। यह उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद के पास नैनी से गुजरती है। राजस्थान के देशान्तरीय विस्तार के कारण पूर्वी सीमा से पश्चिमी सीमा में समय का 36 मिनिट (4(degree) × 9 देशान्तर = 36 मिनिट) का अन्तर आता है अर्थात् धौलपुर में सूर्योदय के लगभग 36 मिनिट बाद जैसलमेर में सूर्योदय होता है। कर्क रेखा (21° 30' उत्तरी अक्षांश) राजस्थान के डूंगरपुर जिले के चिखली गांव के दक्षिण से तथा बाँसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ तहसील लगभग मध्य में से गुजरती है। कुशलगढ़ (बाँसवाड़ा) में 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत् पड़ती है। गंगानगर में सूर्य की किरणें सर्वाधिक तिरछी व बाँसवाड़ा में सूर्य की किरणें सर्वाधिक सीधी''' पड़ती है। राजस्थान में सूर्य की लम्बवत् किरणें केवल बाँसवाड़ा में पड़ती है। राजस्थान (जिला) राजस्थान के नए जिलों की सूची अनूपगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन सिटी, दूदू, गंगापुर सिटी, जयपुर शहरी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर शहरी, जोधपुर ग्रामीण, केकड़ी, कोटपुतली- बहरोड़, खैरथल, नीमकाथाना, फलौदी, सलूम्बर, सांचौर, शाहपुरा (भीलवाड़ा)। बांसवाड़ा, पाली, सीकर नए संभाग बनाए गए हैं । दिशावार राजस्थान के जिले उत्तरी राजस्थान के जिले - गंगानगर-हनुमानगढ-चुरू-बीकानेर-अनूपगढ़ दक्षिण राजस्थान के जिले - उदयपुर-डूंगरपुर-बांसवाड़ा-प्रतापगढ-राजसमंद-चितौड़गढ-भीलवाड़ा-सलूम्बर-शाहपुरा पूर्वी राजस्थान के जिले - अजमेर- जयपुर उत्तर-जयपुर दक्षिण-दौसा-सीकर-झुंझुनू-अलवर-भरतपुर-धौलपुर-सवाईमाधोपुर-करौली-टोंक-केकडी-ब्यावर-गंगापुर-डीग-कोटपुतली_बहरोड़,खैरथल-भिवाडी,अलवर पश्चिमी राजस्थान के जिले - जोधपुर-नागौर-पाली-जैसलमेर-बाड़मेर-जालोर-सिरोही दक्षिण-पूर्व राजस्थान के जिले - कोटा-बूंदी-बारां-झालावाड़बेरोजगार सेवा केन्द्र सीकर इन्हें भी देखें टीन का पुरा राजस्थान सरकार जोधपुर राजस्थान के शहर राजस्थान के लोकसभा सदस्य राजस्थानी भाषा भीलवाड़ा उदयपुर पीलीबंगा जयपुर आसींद अनूपगढ़ सन्दर्भ श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:राजस्थान श्रेणी:भारत For secondary data and photo contact [Mob.9414498867]
हिमाचल प्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिमाचल_प्रदेश
हिमाचल प्रदेश (अंग्रेज़ी: Himachal Pradesh, उच्चारण ) उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। यह 21,629 मील² (56019 किमी²) से अधिक क्षेत्र में फ़ैला हुआ है तथा उत्तर में जम्मू और कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में पंजाब (भारत), दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखण्ड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा हुआ है। हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ "बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांत" है। हिमाचल प्रदेश को "देव भूमि" भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पुराना है। आंग्ल-गोरखा युद्ध के बाद, यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार‌ के हाथ में आ गया। सन 1857 तक यह महाराजा रणजीत सिंह के शासन के अधीन पंजाब राज्य (पंजाब हिल्स के सीबा राज्य को छोड़कर) का हिस्सा था। सन 1956 में इसे केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, लेकिन 1971 में इसे, हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम-1971 के अन्तर्गत इसे 25 जनवरी 1971 को भारत का अठारहवाँ राज्य बनाया गया। हिमाचल प्रदेश प्रतिव्यक्ति आय के अनुसार भारत के राज्यों में पन्द्रहवें स्थान पर है। बारहमासी नदियों की बहुतायत के कारण, हिमाचल अन्य राज्यों को पनबिजली बेचता है जिनमे प्रमुख हैं दिल्ली, पंजाब (भारत) और राजस्थान। राज्य की अर्थव्यवस्था तीन प्रमुख कारकों पर निर्भर करती है जो हैं, पनबिजली, पर्यटन और कृषि।हिमाचल प्रदेश में अर्थव्यवस्था विकास yesbank.in अभिगमन तिथी- अप्रैल 2008 हिंदु राज्य की जनसंख्या का 95% हैं और प्रमुख समुदायों में राजपूत, ब्राह्मण, घिर्थ (चौधरी), गद्दी, कन्नेत, राठी और कोली शामिल हैं। ट्रान्सपरेन्सी इंटरनैशनल के 2005 के सर्वेक्षण के अनुसार, हिमाचल प्रदेश देश में केरल के बाद दूसरी सबसे कम भ्रष्ट राज्य है। इतिहास 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं। प्राचीनकाल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी में रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया। जब अंग्रेज यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। शिमला हिल स्टेट्स की स्थापना 1945 ई. तक प्रदेश में प्रजा मंडलों का गठन हो चुका था। 1946 ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई। जनवरी, 1948 ई. में इसका सम्मेलन सोलन में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई। दूसरी तरफ प्रजा मंडल के नेताओं का शिमला में सम्मेलन हुआ, जिसमें यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब शक्ति प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथ सौंप दी जाए। शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में हिमालयन प्लांट गर्वनमेंट की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था। दो मार्च, 1948 ई. को शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए 8 मार्च 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 15 अप्रैल 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया था। उस समय प्रदेश भर को चार जिलों में बांटा गया और पंजाब हिल स्टेट्स को पटियाला और पूर्व पंजाब राज्य का नाम दिया गया। 1948 ई. में सोलन की नालागढ़ रियासत कों शामिल किया गया। अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,000 वर्ग कि॰मी॰ में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। 1950 ई. में प्रदेश का पुनर्गठन 1950 ई. में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिला गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संसोग और भटाड़ जुब्बल तहसील में शामिल कर दिए गए। पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल किए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया। बिलासपुर जिला का विलय बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। यह प्रदेश का पांचवां जिला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया। किन्नौर जिला की स्थापना एक मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस जिला में महासू जिला की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील को 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं। पंजाब का पुनर्गठन वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया तथा पंजाब व हरियाणा दो राज्य बना दिए गए। भाषा तथा तिहाड़ी क्षेत्र के पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। संजौली, भराड़ी, कुसुमपटी आदि क्षेत्र जो पहले पंजाब में थे तथा नालागढ़ आदि जो पंजाब में थे, उन्हें पुनः हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि॰मी॰ हो गया। 1972 ई. में पुनर्गठन हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा २५ जनवरी १९७१ को मिला। 1 नवम्बर 1972 को कांगड़ा ज़िले के तीन ज़िले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू ज़िला के क्षेत्रों में से सोलन ज़िला बनाया गया। भूगोल हिमाचल प्रदेश हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणी का हिस्सा है। शिवालिक पर्वत श्रेणी से ही घग्गर नदी निकलती है। राज्य की अन्य प्रमुख नदियों में सतलुज और व्यास शामिल है। हिमाचल हिमालय का सुदूर उत्तरी भाग लद्दाख के ठंडे मरुस्थल का विस्ता है और लाहौल एवं स्पिति जिले के स्पिति उपमंडल में है। हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत श्रंखलाएँ, बृहत हिमालय, लघु हिमालय; जिन्हें हिमाचल में धौलाधार और उत्तरांचल में नागतीभा कहा जाता है और उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली शिवालिक श्रेणी, इस हिमालय खंड में स्थित हैं। लघु हिमालय में 1000 से 2000 मीटर ऊँचाई वाले पर्वत ब्रिटिश प्रशासन के लिए मुख्य आकर्षण केंद्र रहे हैं। नदियां हिमाचल प्रदेश में पांच प्रमुख नदियां बहती हैं। हिमाचल प्रदेश में बहने वाले पांचों नदियां एवं छोटे-छोटे नाले बारह मासी हैं। इनके स्रोत बर्फ से ढकी पहाडि़यों में स्थित हैं। हिमाचल प्रदेश में बहने वाली पांच नदियों में से चार का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। उस समय ये अन्य नामों से जानी जाती थीं जैसे अरिकरी (चिनाब) पुरूष्णी (रावी), अरिजिकिया (ब्यास) तथा शतदुई (सतलुज) पांचवी नदी (कालिंदी) जो यमुनोत्तरी से निकलती है उसका सूर्य देव से पौराणिक संबंध दर्शाया जाता है। रावी नदीः रावी नदी का प्राचीन नाम ‘इरावती और परोष्णी’ है। रावी नदी मध्य हिमालय की धौलाधार शृंखला की शाखा बड़ा भंगाल से निकलती है। रावी नदी ‘भादल’ और ‘तांतागिरि’ दो खड्डों से मिलकर बनती है। ये खड्डें बर्फ पिघलने से बनती है। यह नदी चंबा से खेड़ी के पास पंजाब (भारत) में प्रवेश करती है और पंजाब से पाकिस्तान में प्रवेश करती है। यह भरमौर और चंबा शहर में बहती है। यह बहुत ही उग्र नदी है। इसकी सहायक नदियां तृण दैहण, बलजैडी, स्यूल, साहो, चिडाचंद, छतराड़ी और बैरा हैं। इसकी लंबाई 720 किलोमीटर है, परंतु हिमाचल में इसकी लंबाई 158 किलोमीटर है। सिकंदर महान के साथ आए यूनानी इतिहासकार ने इसे ‘हाइड्रास्टर और रहोआदिस’ का नाम दिया था। ब्यास नदीः ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, कांढापतन ( मिनी हरिद्धार ), सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है। हिमाचल में इसकी लंबाई 260 कि॰मी॰ है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है। चिनाव नदीः चिनाव नदी जम्मू-कश्मीर से होती हुई पंजाब राज्य में बहने वाली नदी है। पानी के घनत्व की दृष्टि से यह प्रदेश की सबसे बड़ी नदी है। यह नदी समुद्र तल से लगभग 4900 मीटर की ऊँचाई पर बारालाचा दर्रे (लाहौल स्पीति) के पास से निकलने वाली चन्द्रा और भागा नदियों के तांदी नामक स्थान पर मिलने से बनती है। इस नदी को वैदिक साहित्य में ‘अश्विनी’ नाम से संबोधित किया गया है। ऊपरी हिमालय पर टांडी में ‘चन्द्र’ और ‘भागा’ नदियां मिलती हैं, जो चिनाव नदी कहलाती है। महाभारत काल में इस नदी का नाम ‘चंद्रभागा’ भी प्रचलित हो गया था। ग्रीक लेखकों ने चिनाव नदी को ‘अकेसिनीज’ लिखा है, जो अश्विनी का ही स्पष्ट रूपांतरण है। चंद्रभागा नदी मानसरोवर (तिब्ब्त) के निकट चंद्रभागा नामक पर्वत से निस्तृत होती है और सिंधु नदी में गिर जाती है। चिनाव नदी की ऊपरी धारा को चद्रभागा कहकर, पुःन शेष नदी का प्राचीन नाम अश्विनी कहा गया है। इस नदी को हिमाचल से अदभुत माना गया है। इस नदी का तटवर्ती प्रदेश पूर्व गुप्त काल में म्लेच्छों तथा यवन शव आदि द्वारा शासित था। जलवायु हिमाचल में तीन ऋतुएं होती हैं - ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु और वर्षा ऋतु। हिमाचल प्रदेश की समुद्रतल से ऊँचाई की विविधता के कारण जलवायु में भी भिन्नता है। कहीं सारा वर्ष बर्फ गिरती है, तो कहीं गर्मी होती हे। हिमाचल में गर्म पानी के चशमें भी हैं और हिमनद भी है। ऐसा समुद्रतल से ऊँचाई की भिन्नता की वजह से है। कृषि कृषि हिमाचल प्रदेश का प्रमुख व्‍यवसाय है। यह राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह 69 प्रतिशत कामकाजी आबादी को सीधा रोजगार मुहैया कराती है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र से होने वाली आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्‍पाद का 22.1 प्रतिशत है। कुल भौगोलिक क्षेत्र 55.673 लाख हेक्‍टेयर में से 9.79 लाख हेक्‍टेयर भूमि के स्‍वामी 9.14 लाख किसान हैं। मंझोले और छोटे किसानो के पास कुल भूमि का 86.4 प्रतिशत भाग है। राज्‍य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है। लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा-सिंचित है और किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं। बागवानी प्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को व्‍यापक कृषि जलवायु परिस्थितियां प्रदान की हैं जिसकी वजह से किसानों को विविध फल उगाने में सहायता मिली है। बागवानी के अंतर्गत आने वाले प्रमुख फल हैं-सेब, नाशपाती, आडू, बेर, खूमानी, गुठली वाले फल, नींबू प्रजाति के फल, आम, लीची, अमरूद और झरबेरी आदि। 1950 में केवल 792 हेक्‍टेयर क्षेत्र बागवानी के अंतर्गत था, जो बढ़कर 2.23 लाख हेक्‍टेयर हो गया है। इसी तरह,1950 में फल उत्‍पादन 1200 मीट्रिक टन था, जो 2007 में बढ़कर 6.95 लाख टन हो गया है। वानिकी राज्‍य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। वन रिकार्ड के अनुसार कुल वन क्षेत्र 37,033 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 16,376 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जहां पहाड़ी चरागाह वाली वनस्‍पतियां नहीं उगाई जा सकतीं क्‍योंकि यह स्‍थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है। राज्‍य में 5 राष्‍ट्रीय पार्क और 32 वन्‍यजीवन अभयारण्‍य हैं। वन्‍यजीवन अभयारण्‍य के अंतर्गत कुल क्षेत्र 5,562 कि.मी., राष्‍ट्रीय पार्क के अंतर्गत 1,440 कि॰मी॰ है। इस तरह कुल संरक्षित क्षेत्र 7,002 कि॰मी॰ है। सड़कें हिमाचल प्रदेश राज्‍य में यहां की सड़कें ही यहां की जीवन रेखा हैं और ये संचार के प्रमुख साधन हैं। इसके 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 36,700 किलोमीटर में बसाहट है, जिसमें से 16,807 गांव अनेक पर्वतीय श्रृखलाओं और घाटियों के ढलानों पर फैले हुए हैं। जब यह राज्‍य 1948 में अस्तित्‍व में आया, तो यहां केवल 288 कि॰मी॰ लंबी सड़कें थीं जो 15 अगस्‍त 2007 तक बढ़कर 30,264 हो गई हैं। सिंचाई और जलापूर्ति साल 2007 तक हिमाचल प्रदेश में कुल बुवाई क्षेत्र 5.83 लाख हेक्‍टेयर था। गांवों में पीने के पानी की सुविधा उपलब्‍ध कराई गई और अब तक राज्‍य में 14,611 हैंडपंप लगाए जा चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में भूजल की उलब्धता 36,615.92 हैक्टेयर मीटर (है।मी.) है।http://hindi.indiawaterportal.org/ केंद्रीय भूजल बोर्ड पर्यटन 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px 199x70px पर्यटन उद्योग को हिमाचल प्रदेश में उच्‍च प्राथमिकता दी गई है और हिमाचल सरकार ने इसके विकास के लिए समुचित ढांचा विकसित किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र हवाई अड्डे यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं शामिल है। राज्‍य पर्यटन विकास निगम राज्‍य की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। राज्‍य में तीर्थो और नृवैज्ञानिक महत्‍व के स्‍थलों का समृद्ध भंडार है। राज्‍य को व्‍यास, पाराशर, वसिष्‍ठ, मार्कण्‍डेय और लोमश आदि ऋषियों के निवास स्‍थल होने का गौरव प्राप्‍त है। गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक और मानव निर्मित झीलें, उन्‍मुक्‍त विचरते चरवाहे पर्यटकों के लिए असीम सुख और आनंद का स्रोत हैं। पर्यटन आकर्षण चंबा घाटी चंबा घाटी (915 मीटर) की ऊँचाई पर रावी नदी के दाएं किनारे पर है। पुराने समय में राजशाही का राज्‍य होने के नाते यह लगभग एक शताब्‍दी पुराना राज्‍य है और 6वीं शताब्‍दी से इसका इतिहास मिलता है। यह अपनी भव्‍य वास्‍तुकला और अनेक रोमांचक यात्राओं के लिए एक आधार के तौर पर विख्‍यात है। डलहौज़ी पश्चिमी हिमाचल प्रदेश में डलहौज़ी नामक यह पर्वतीय स्‍थान पुरानी दुनिया की चीजों से भरा पड़ा है और यहां राजशाही युग की भाव्‍यता बिखरी पड़ी है। यह लगभग 14 वर्ग किलो मीटर फैला है और यहां काठ लोग, पात्रे, तेहरा, बकरोटा और बलूम नामक 5 पहाडियां है। इसे 19वीं शताब्‍दी में ब्रिटिश गवर्नर जनरल, लॉड डलहौज़ी के नाम पर बनाया गया था। इस कस्‍बे की ऊँचाई लगभग 525 मीटर से 2378 मीटर तक है और इसके आस पास विविध प्रकार की वनस्‍पति-पाइन, देवदार, ओक और फूलों से भरे हुए रोडो डेंड्रॉन पाए जाते हैं डलहौज़ी में मनमोहक उप निवेश यु‍गीन वास्‍तुकला है जिसमें कुछ सुंदर गिरजाघर शामिल है। यह मैदानों के मनोरम दृश्‍यों को प्रस्‍तुत करने के साथ एक लंबी रजत रेखा के समान दिखाई देने वाले रावी नदी के साथ एक अद्भुत दृश्‍य प्रदर्शित करता है जो घूम कर डलहौज़ी के नीचे जाती है। बर्फ से ढका हुआ धोलाधार पर्वत भी इस कस्‍बे से साफ दिखाई देता है। धर्मशाला धर्मशाला की ऊँचाई 1,250 मीटर (4,400 फीट) और 2,000 मीटर (6,460 फीट) के बीच है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां पाइन के ऊंचे पेड़, चाय के बागान और इमारती लकड़ी पैदा करने वाले बड़े वृक्ष ऊंचाई, शांति तथा पवित्रता के साथ यहां खड़े दिखाई देते हैं। वर्ष 1960 से, जब से दलाई लामा ने अपना अस्‍थायी मुख्‍यालय यहां बनाया, धर्मशाला की अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति भारत के छोटे ल्‍हासा के रूप में बढ़ गई है। कुफरी अनंत दूरी तक चलता आकाश, बर्फ से ढकी चोटियां, गहरी घाटियां और मीठे पानी के झरने, कुफरी में यह सब है। यह पर्वतीय स्‍थान शिमला के पास समुद्री तल से 2510 मीटर की ऊँचाई पर हिमाचल प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है। कुफरी में ठण्‍ड के मौसम में अनेक खेलों का आयोजन किया जाता है जैसे स्‍काइंग और टोबोगेनिंग के साथ चढ़ाडयों पर चढ़ना। ठण्‍ड के मौसम में हर वर्ष खेल कार्निवाल आयोजित किए जाते हैं और यह उन पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है जो केवल इन्‍हें देखने के लिए यहां आते हैं। यह स्‍थान ट्रेकिंग और पहाड़ी पर चढ़ने के लिए भी जाना जाता है जो रोमांचकारी खेल प्रेमियों का आदर्श स्‍थान है। मनाली कुल्‍लू से उत्तर दिशा में केवल 40 किलो मीटर की दूरी पर लेह की ओर जाने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर घाटी के सिरे के पास मनाली स्थित है। लाहुल, स्‍पीति, बारा भंगल (कांगड़ा) और जनस्‍कर पर्वत शृंखला पर चढ़ाई करने वालों के लिए यह एक मनपसंद स्‍थान है। मंदिरों से अनोखी चीजों तक, यहां से मनोरम दृश्‍य और रोमांचकारी गतिविधियां मनाली को हर मौसम और सभी प्रकार के यात्रियों के बीच लोकप्रिय बनाती हैं। कुल्‍लू कुल्लू घाटी को पहले कुलंथपीठ कहा जाता था। कुलंथपीठ का शाब्दिक अर्थ है रहने योग्‍य दुनिया का अंत। कुल्‍लू घाटी भारत में देवताओं की घाटी रही है। यहां के मंदिर, सेब के बागान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्‍लू की ओर आकर्षित करते हैं। यहां के स्‍थानीय हस्‍तशिल्‍प कुल्‍लू की सबसे बड़ी विशेषता है। शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी और ब्रिटिश कालीन समय में ग्रीष्‍म कालीन राजधानी शिमला राज्‍य का सबसे महत्‍वपूर्ण पर्यटन केन्‍द्र है। यहां का नाम देवी श्‍यामला के नाम पर रखा गया है जो काली का अवतार है। शिमला लगभग 7267 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और यह अर्ध चक्र आकार में बसा हुआ है। यहां घाटी का सुंदर दृश्‍य दिखाई देता है और महान हिमालय पर्वती की चोटियां चारों ओर दिखाई देती है। शिमला एक पहाड़ी पर फैला हुआ है जो करीब 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इसके पड़ोस में घने जंगल और टेढ़े-मेढे़ रास्ते हैं, जहां पर हर मोड़ पर मनोहारी दृश्य देखने को मिलते हैं। यह एक आधुनिक व्यावसायिक केंद्र भी है। शिमला विश्व का एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। यहां प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग भ्रमण के लिए आते हैं। बर्फ से ढकी हुई यहां की पहाडि़यों में बड़े सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं जो पर्यटकों को बार-बार आने के लिए आकर्षित करते हैं। शिमला संग्रहालय हिमाचल प्रदेश की कला एवं संस्कृति का एक अनुपम नमूना है, जिसमें यहां की विभिन्न कलाकृतियां विशेषकर वास्तुकला, पहाड़ी कलम, सूक्ष्म कला, लकडि़यों पर की गई नक्काशियां, आभूषण एवं अन्य कृतियां संग्रहित हैं। शिमला में दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त कई अध्ययन केंद्र भी हैं, जिनमें लार्ड डफरिन द्वारा 1884-88 में निर्मित भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां कुछ ऐतिहासिक सरकारी भवन भी हैं, जैसे वार्नेस कोर्ट, गार्टन कैसल व वाइसरीगल लॉज ये भी बड़े ही दर्शनीय स्थल हैं। चैडविक झरना भी एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। इसके साथ ही ग्लेन नामक स्थल भी है। इसके समीप बहता हुआ झरना और सदाबहार जंगल बहुत ही आकर्षक हैं। राजनीति 199x70px|कड़ी=Special:FilePath/YS+Parmar.jpg 199x70px 199x70px वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिलने के बाद यहां कांग्रेस और भाजपा की बारी-बारी से सरकारें बनती रही है। विधान सभा हिमाचल प्रदेश विधान सभा शिमला में स्थित है। वर्तमान हिमाचल प्रदेश विधानसभा एकसदनीय है। विधानसभा चुनाव 2017 नवम्बर 2022 में हिमाचल प्रदेश की हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए हुआ चुनाव था। कॉंग्रेस ने इस चुनाव में जीत हासिल की। 68 सीटो में से 40 सीट जीत कर कॉंग्रेस ने सरकार बनाई। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 परिणाम |- ! राजनीतिक दल (संक्षिप्त नाम) || सदस्यों की संख्या |- | bgcolor bgcolor=#FF9900 | कॉंग्रेस || bgcolor=#FF9900 | 40 |- | bgcolor bgcolor=#e4e8ff | भाजपा || bgcolor=#e4e8ff | |- | bgcolor=#AAAAAA | अन्य || bgcolor=#AAAAAA | 3 |- ! bgcolor=#C2D6E5 | कुल || 68 |} सरकारनवम्बर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य का विधानसभा चुनाव प्रो० प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा। 18 दिसम्बर 2017 को घोषित नतीजों में धूमल की हार के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने हिमाचल की बागडोर मण्डी ज़िला के सराज विधानसभा क्षेत्र से पांच बार रहे विधायक जयराम ठाकुर को सौंपी। हिमाचल के इतिहास में यह पहली बार है जब मण्डी ज़िले से कोई मुख्यमंत्री बना है। मुख्यमंत्रीजयराम ठाकुर (जन्म 06 जनवरी 1965) हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। दिसंबर 27, 2017 को उन्होने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लोकसभालोकसभा में हिमाचल प्रदेश के 4 निर्वाचन क्षेत्र हैं। कांगड़ा, मंडी, शिमला और हमीरपुर। हिमाचल प्रदेश से चार सदस्य चुने जाते हैं। प्रदेश विधानसभा में 68 विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं। लोकसभा के चार चुनाव क्षेत्रों के अंतर्गत प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में 17-17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। लाहुल-स्पीति, किन्नौर तथा भरमौर जनजातीय क्षेत्र हैं और ठंडे व दुर्गम क्षेत्र हैं। इस कारण इन क्षेत्रों में चुनाव प्रायः गर्मियों में करवाए जाते हैं। परिवहन सड़क मार्ग इस राज्य की यातायात का मुख्य माध्यम है। परंतु मानसून और ठंड के मौसम में भू-स्खलन और अन्य वजहों से यह काफी बाधित होता है। हिमाचल प्रदेश के जिले 250px|left {| class="wikitable" border="1" align="center" cellpadding="3" cellspacing="1" width="500" style="margin: 0 0 1em 1em; background: #F4F5F6; border: 1px #C6C7C8 solid; border-collapse: collapse; font-size: 100%" | colspan="3" bgcolor="#C2D6E5" align="center" | हिमाचल प्रदेश के जिले काँगड़ा जिला हमीरपुर जिला मंडी जिला बिलासपुर जिला उना जिला चंबा जिला लाहौल और स्पीती जिला सिरमौर जिला किन्नौर जिला कुल्लू जिला सोलन जिला शिमला जिला जनांकिक thumb|right|225px|रिज शिमला thumb|right|225px|लाहौल के निकट गांव भारत की 2011 जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या 68,64,602 है। इनमें पुरुषों की जनसंख्या 34,81,873 तथा महिलाओं की जनसंख्या 33,82,729 है। 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश का लिंग अनुपात 972/1000 और साक्षरता दर 82.8% है। क्र.सं जिला क्षेत्रफल किमी² में जनसंख्या मुख्यालय 1 बिलासपुर 1,167 382,056 बिलासपुर 2 चंबा 6,528 518,844 चंबा 3 हमीरपुर 1,118 454, 293 हमीरपुर 4 काँगड़ा 5,739 1,507,223 धर्मशाला 5 किन्नौर 6,401 84,298 रिकाँग पिओ 6 कुल्लू 5,503 437,474 कुल्लू 7 लाहौल और स्पीती 13,835 31,528 केलोन्ग 8 मंडी 3,950 999,518 मंडी 9 शिमला 5,131 813,384 शिमला 10 सिरमौर 2,825 530,164 नाहन 11 सोलन 1,936 576,670 सोलन 12 उना 1,540 521,057 उना संस्कृति राज्य की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, काँगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी और मंडियाली शामिल हैं। हिन्दू, बौद्ध और सिख यहाँ के प्रमुख धर्म हैं। पश्चिम में धर्मशाला, दलाई लामा की शरण स्थली है। पहाड़ी चित्रकला हिमाचल प्रदेश में चित्रकला का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। प्रदेश की चित्रकला का राष्ट्र के इतिहास में उल्लेखनीय योगदान है। यहां की चित्रकला की संपदा अज्ञात थी। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हिमाचल तथा पंजाब के अनेक स्थानों पर चित्रों के नमूनों की खोज की गई। मैटकाफ प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने कांगड़ा के पुरात्न महलों में चित्रों की खोज की गुलेर, सुजानपुर टीहरा तथा कांगड़ा ऐसे ही स्थान थे, जहां पर यह धरोहर छिपी हुई थी। खनिज संपदा हिमाचल में अनेक प्रकार के खनिज होते है। इनमें चूने का पत्थर, डोलोमाइट युक्त चूने की पत्थर, चट्टानी नमक, सिलिका रेत और स्लेट होते है। यहां लौह अयस्क, तांबा, चांदी, शीशा, यूरेनियम और प्राकृतिक गैस भी पाई जाती है। चट्टानी नमकः चट्टानी नमक में स्थानीय भाषा में लेखन कहा जाता है। यह भारत की एकमात्र चट्टानी नमक की खान है। मैगली में नमकीन पानी को सुखाकर नमक तैयार किया जाता है। चट्टानी नमक दवाइयां और पशु चारे के काम में प्रयुक्त होता है। प्राकृतिक तेल गैसः प्राकृतिक तेल गैस स्वारघाट (बिलासपुर) चौमुख (सुंदरनगर), चमकोल (हमीरपुर) तथा दियोटसिद्ध (हमीरपुर) में पाई जाती है। प्राकृतिक तेल गैस ज्वालामुखी (कांगड़ा) और रामशहर (सोलन) में भी पाई जाती है। स्लेट : प्रदेश में स्लेट की लगभग 222 छोटी व बड़ी खाने हैं। खनियारा (धर्मशाला), मंडी, कांगड़ा और चंबा में अच्छी मात्रा में स्लेट प्राप्त होता है। मंडी में स्लेट से टाइलें बनाने का कारखाना है। स्लेट छत्त और फर्श बनाने में प्रयुक्त होता है। अच्छा स्लेट, भारी हिमपात से भी नहीं टूटता है। सिलिका रेत : सिलिका रेत, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना और मंडी की खड्डों व नालों में पाई जाती है। ऊना जिला के पलकवा, हरोली, बाथड़ी खड्डों में चमकदार पत्थर व रेत पाई जाती है। यह भवन निर्माण, पुल, बांध और सड़कें बनाने में प्रयुक्त होती है। यूरेनियम : छिंजराढा, जरी (बंजार), ढेला, गढ़सा घाटी (कुल्लू) और हमीरपुर में यूरेनियम होने की संभावना का पता चला है। यह नाभिकीय ऊर्जा का स्रोत है। संचार माध्यम प्रदेश के विकास में संचार माध्यम अहम भूमिका निभा रहे है। प्रदेश के दुर्गम इलाकों तक इन संचार माध्यमों का विस्तार हो चुका है। वर्तमान प्रदेश में रेडियो, टेलिविजन, दूरभाष, तार, फैक्स, डाक, ई-मेल, इंटरनेट आदि सुविधाएं उपलब्ध है। 1914 में शिमला में देश का प्रथम स्वचालित दूरभाष केंद्र स्थापित किया गया था। पांच नवंबर, 1983 को लाहुल-स्पीति के हिक्किम क्षेत्र में विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई वाला डाकघर खोला गया था। शिमला में प्रदेश का प्रथम आकाशवाणी केंद्र खोला गया। हमीरपुर, धर्मशाला, कुल्लू, कसौली और किन्नौर में आकाशवाणी केंद, प्रसारण केंद्र स्थापित किए गए है। तरंग टावर मंडी जिला के जोगिंदर नगर तहसील में स्थापित किया गया था। प्रदेश की बिजली परियोजनाएं हिमाचल प्रदेश में कई प्रकार से विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है। यह नाभिकीय स्रोत, जल विद्युत, सौर ऊर्जा, कोयले और पेट्रोलियम पदार्थ आदि से प्राप्त होती है। हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत उत्पादन की अधिक क्षमता है, क्योंकि प्रदेश में पांच प्रमुख नदियां और अनेक सहायक नदियां हैं। नदियों पर बांध बनाकर जल विद्युत उत्पन्न की जाती है। प्रदेश में अनेक परियोजनाएं हैं, जिनमें से कुछ तो पूरी हो चुकी हैं और कुछ निर्माणाधीन हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है। पौंग बांध परियोजना- यह बांध कांगड़ा जिला में व्यास नदी पर देहरा से 35 किलोमीटर दूर पौंग गांव की भूमि पर बना है, जो देश का सबसे ऊंचा राक-फिल डैम है। इसकी ऊँचाई 435 फुट है और इस पर 160 करोड़ रुपए व्यय हुए हैं। इसमें 5.6 मिलियन एकड़ फुट पानी जमा रखा जाता है, हालांकि इसमें कुल 6.6 एकड़ मिलियन फुट पानी जमा किया जा सकता है। भाखड़ा बांध परियोजना-यह बांध सतलुज नदी पर जिला बिलासपुर के भाखड़ा गांव में बना है, जो सन् 1948 में शुरू होकर सन् 1963 में बनकर तैयार हुआ था। इसकी ऊँचाई 226 मीटर है। यह एशिया का सबसे ऊंचा बांध है। इसमें दो विद्युत घर हैं, जिनमें 1200 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। इस बांध के कारण गोविंद सागर झील बनी है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियां हिमाचल सरकार का आधिकारिक जालस्थल 2001 की जनगणना में हिमाचल के आंकड़े हिमाचल विकास रपट-भारतीय योजना आयोग हिमाचल सरकार का पर्यटन जालस्थल हिमाचल पर्यटन विकास निगम का जालस्थल हिमाचल में पर्यटन के बारे में और जानकारी हिमाचल के बारे में समाचार स्थल हिमाचल के विविध पक्षों पर आधारित जालस्थल - देवभूमि हिमाचल हिमाचल मित्र - हिमाचली समाज की रचनात्मक अभिव्यक्ति (हिन्दी वेब-पत्रिका) हिमाचल पर आधारित एक चिट्ठा (ब्लाग) हिमाचल प्रदेश के आर्टिकल्स श्रेणी:हिमाचल प्रदेश श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:पंजाबी-भाषी देश व क्षेत्र
इंडियन
https://hi.wikipedia.org/wiki/इंडियन
पुनर्प्रेषित भारतीय
इण्डिया टुडे
https://hi.wikipedia.org/wiki/इण्डिया_टुडे
इंडिया टुडे एक भारतीय पत्रिका है। यह पत्रिका अंग्रेज़ी ओर हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती है। इतिहास इंडिया टुडे की स्थापना 1975 में विद्या विलास पुरी (थॉम्पसन प्रेस के मालिक) द्वारा की गई थी, जिसमें उनकी बेटी मधु त्रेहन संपादक और उनके बेटे अरुण पुरी इसके प्रकाशक थे। .Bhandare, Namita. "70's: The decade of innocence" .Hindustan Times. Retrieved 29 July 2012. वर्तमान में, इंडिया टुडे हिंदी , तमिल , मलयालम और तेलुगु में भी प्रकाशित होता है। इंडिया टुडे न्यूज चैनल 22 मई 2015 को लॉन्च किया गया था। अक्टूबर 2017 में, अरुण पुरी ने इंडिया टुडे ग्रुप का नियंत्रण अपनी बेटी, कली पुरी को सौंप दिया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:हिन्दी पत्रिकाएँ श्रेणी:अंग्रेजी पत्रिकाएँ श्रेणी:पत्रिकाएँ
शहर
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thumb|मलेशिया में जोहोर बाहरू शहर thumb|फिनलैंड में टाम्परे शहर शहर बड़ी और स्थायी मानव बस्ती होती है। शहर में आम तौर पर आवास, परिवहन, स्वच्छता, भूमि उपयोग और संचार के लिए निर्मित किया गया एक व्यापक सिस्टम होता हैं। ऐतिहासिक रूप से शहरवासियों का समग्र रूप से मानवता में छोटा सा अनुपात रहा है। लेकिन आज दो शताब्दियों से अभूतपूर्व और तेजी से शहरीकरण के कारण, कहा जाता है कि आज आधी आबादी शहरों में रह रही हैं। वर्तमान में शहर आमतौर पर बड़े महानगरीय क्षेत्र और शहरी क्षेत्र के केंद्र होते हैं। सबसे आबादी वाला उचित शहर शंघाई है। एक शहर अन्य मानव बस्तियों से अपने अपेक्षाकृत बड़े आकार के कारण भिन्न होता है। शहर अकेले आकार से ही अलग नहीं है, बल्कि यह एक बड़े राजनीतिक संदर्भ में भूमिका निभाता है। शहर अपने आसपास के क्षेत्रों के लिए प्रशासनिक, वाणिज्यिक, धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में सेवा देता है। एक विशिष्ट शहर में पेशेवर प्रशासक, नियम-कायदे होते हैं और सरकार के कर्मचारियों को खिलाने के लिए कराधान भी। शहर शब्द फारसी से हिन्दी भाषा में आया है। पुराना संस्कृत शब्द नगर भी उपयोग किया जाता विशेषकर सरकारी कार्य में जैसे कि नगर निगम। यह भी देखिए भारत के शहर संदर्भ श्रेणी:सभ्यता श्रेणी:देशीय उपविभागों के प्रकार *
लखनऊ
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लखनऊ (Lucknow) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी है। प्रशासनिक रूप से यह लखनऊ ज़िले के अंतर्गत आता है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 विवरण लखनऊ शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है।आइडेन्टिफिकेशन ऑफ माइनौरिटी कंसन्ट्रेशन डिस्ट्रिक्ट्स पब्लिक इन्फॉर्मेशन ब्यूरो लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को "नवाबों के शहर" के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं।फास्टेस्ट ग्रोइंग सिटीज़ (१ टू १००) | सिटी मेयर्स स्टैटिस्टिक्स | लखनऊ का इतिहास center|thumb|1000px|लखनऊ का बड़े इमामबाड़े से लिया गया एक विहंगम दृष्य, १८५८ ई० लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था। अत: इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या भी मात्र ८० मील दूरी पर स्थित है। लखनऊ का नाम कैसे पड़ा इस पर मतभेद है। मुस्लिम इतिहासकारों के मतानुसार बिजनौर के शेख यहां आये और १५२६ ए डी मे‌ बसे और रहने‌ के लिए उस समय के वास्तुविद लखना पासी की देखरेख में एक किला बनवाया ‌‌‌‌जो लखना किला के‌ नाम से जाना‌ गया।समय‌ के‌ साथ धीरे-धीरे लखना किला लखनऊ में परिवर्तित हो गया।प्राचीन हिन्दू साहित्य के अनुसार यहां भगवान राम के सौतेले भाई लक्ष्मण का‌ जन्म हुआ‌ था जो‌ लाखनपुर से बदलते बदलते लखनऊ हो गया जो अधिक सत्य प्रतीत होता है क्यों कि‌ आज तक किसी‌ वास्तुविद के नाम पर किसी नगर का नाम नहीं रखा गया। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफ़ुद्दौला ने १७७५ ई. में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे सिद्ध हुए। इन नवाबों के काहिल स्वभाव के परिणामस्वरूप आगे चलकर लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध का बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। १८५० में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ। सन १९०२ में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूनाइटेड प्रोविन्स या यूपी कहा गया। सन १९२० में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद १२ जनवरी सन १९५० में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस तरह यह अपने पूर्व लघुनाम यूपी से जुड़ा रहा। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री बने। अक्टूबर १९६३ में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री बनीं। चित्रदीर्घा भूगोल विशाल गांगेय मैदान के हृदय क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर बहुत से ग्रामीण कस्बों एवं गांवों से घिरा हुआ है, जैसे अमराइयों का शहर मलिहाबाद, ऐतिहासिक काकोरी, मोहनलालगंज, गोसांईगंज, चिन्हट और इटौंजा। इस शहर के पूर्वी ओर बाराबंकी जिला है, तो पश्चिमी ओर उन्नाव जिला एवं दक्षिणी ओर रायबरेली जिला है। इसके उत्तरी ओर सीतापुर एवं हरदोई जिले हैं। गोमती नदी, मुख्य भौगोलिक भाग, शहर के बीचों बीच से निकलती है और लखनऊ को ट्रांस-गोमती एवं सिस-गोमती क्षेत्रों में विभाजित करती है। लखनऊ शहर भूकम्प क्षेत्र तृतीय स्तर में आता है।यूएनडीपी रिपोर्ट |अभिगमन तिथि २९ सितंबर, २००६ जनसांख्यिकी लखनऊ की अधिकांश जनसंख्या पूर्वार्ध उत्तर प्रदेश से है। फिर भी यहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के अलावा बंगाली, दक्षिण भारतीय एवं आंग्ल-भारतीय लोग भी बसे हुए हैं। यहां की कुल जनसंख्या का ७७% हिन्दू एवं २०% मुस्लिम लोग हैं। शेष भाग में सिख, जैन, ईसाई एवं बौद्ध लोग हैं। लखनऊ भारत के सबसे साक्षर शहरों में से एक है। यहां की साक्षरता दर ८२.५% है, स्त्रियों की ७८% एवं पुरुषों की साक्षरता ८९% हैं। जलवायु लखनऊ में गर्म अर्ध-उष्णकटिबन्धीय जलवायु है। यहां ठंडे शुष्क शीतकाल दिसम्बर-फरवरी तक एवं शुष्क गर्म ग्रीष्मकाल अप्रैल-जून तक रहते हैं। मध्य जून से मध्य सितंबर तक वर्षा ऋतु रहती है, जिसमें औसत वर्षा १०१० मि.मी. (४० इंच) अधिकांशतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है। thumb|left|300px|लखनऊ में मानसून की उमड़ती घुमड़ती घटाएं शीतकाल का अधिकतम तापमान २१°से. एवं न्यूनतम तापमान ३-४°से. रहता है। दिसम्बर के अंत से जनवरी अंत तक कोहरा भी रहता है। ग्रीष्म ऋतु गर्म रहती है, जिसमें तापमान ४०-४५°से. तक जाता है और औसत उच्च तापमान ३०°से. तक रहता है। शहर और आस-पास thumb|250px|परिवर्तन चौक पुराने लखनऊ में चौक का बाजार प्रमुख है। यह चिकन के कारीगरों और बाजारों के लिए प्रसिद्ध है। यह इलाका अपने चिकन के दुकानों व मिठाइयों की दुकाने की वजह से मशहूर है। चौक में नक्खास बाजार भी है। यहां का अमीनाबाद दिल्ली के चाँदनी चौक की तरह का बाज़ार है जो शहर के बीच स्थित है। यहां थोक का सामान, महिलाओं का सजावटी सामान, वस्त्राभूषण आदि का बड़ा एवं पुराना बाज़ार है। दिल्ली के ही कनॉट प्लेस की भांति यहां का हृदय हज़रतगंज है। यहां खूब चहल-पहल रहती है। प्रदेश का विधान सभा भवन भी यहीं स्थित है। इसके अलावा हज़रतगंज में जी पी ओ, कैथेड्रल चर्च, चिड़ियाघर, उत्तर रेलवे का मंडलीय रेलवे कार्यालय (डीआरएम ऑफिस), लाल बाग, पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय (पीएमजी), परिवर्तन चौक, बेगम हज़रत महल पार्क भी काफी प्रमुख़ स्थल हैं। इनके अलावा निशातगंज, डालीगंज, सदर बाजार, बंगला बाजार, नरही, केसरबाग भी यहां के बड़े बाजारों में आते हैं। अमीनाबाद लखनऊ का एक ऐसा स्थान है जो पुस्तकों के लिए मशहूर है। यहां के आवासीय इलाकों में सिस-गोमती क्षेत्र में राजाजीपुरम, कृष्णानगर, आलमबाग, दिलखुशा, आर.डी.एस.ओ.कालोनी, चारबाग, ऐशबाग, हुसैनगंज, लालबाग, राजेंद्रनगर, मालवीय नगर, सरोजिनीनगर, हैदरगंज, [[ठाकुरगंज एवं सआदतगंज आदि क्षेत्र हैं। ट्रांस-गोमती क्षेत्र में गोमतीनगर,इंदिरानगर, महानगर, अलीगंज, डालीगंज, नीलमत्था कैन्ट, विकासनगर, खुर्रमनगर, जानकीपुरम एवं साउथ-सिटी (रायबरेली रोड पर) आवासीय क्षेत्र हैं। अर्थ व्यवस्था लखनऊ उत्तरी भारत का एक प्रमुख बाजार एवं वाणिज्यिक नगर ही नहीं, बल्कि उत्पाद एवं सेवाओं का उभरता हुआ केन्द्र भी बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी होने के कारण यहां सरकारी विभाग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बहुत हैं। यहां के अधिकांश मध्यम-वर्गीय वेतनभोगी इन्हीं विभागों एवं उपक्रमों में नियुक्त हैं। सरकार की उदारीकरण नीति के चलते यहां व्यवसाय एवं नौकरियों तथा स्व-रोजगारियों के लिए बहुत से अवसर खुल गये हैं। इस कारण यहां नौकरी पेशे वालों की संख्या निरंतर बढ़ती रहती है। लखनऊ निकटवर्ती नोएडा एवं गुड़गांव के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं बीपीओ कंपनियों के लिए श्रमशक्ति भी जुटाता है। यहां के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोग बंगलुरु एवं हैदराबाद में भी बहुतायत में मिलते हैं। शहर में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआईडीबीआई) तथा प्रादेशिक औद्योगिक एवं इन्वेस्टमेंट निगम, उत्तर प्रदेश (पिकप) के मुख्यालय भी स्थित हैं। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम का क्षेत्रीय कार्यालय भी यहीं स्थित है। यहां अन्य व्यावसायिक विकास में उद्यत संस्थानों में कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) एवं एन्टरप्रेन्योर डवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआईआई) हैं। उत्पादन एवं संसाधन thumb|लखनऊ में स्थित हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड की इकाई के पास प्रधान प्रचालन सुविधाएं उपलब्ध हैं। लखनऊ में बड़ी उत्पादन इकाइयों में हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड, टाटा मोटर्स, एवरेडी इंडस्ट्रीज़, स्कूटर इंडिया लिमिटेड आते हैं। संसाधित उत्पाद इकाइयों में दुग्ध उत्पादन, इस्पात रोलिंग इकाइयाँ एवं एल पी जी भरण इकाइयाँ आती हैं। शहर की लघु एवं मध्यम-उद्योग इकाइयाँ चिन्हट, ऐशबाग, तालकटोरा एवं अमौसी के औद्योगिक एन्क्लेवों में स्थित हैं। चिन्हट अपने टेराकोटा एवं पोर्सिलेन उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है। रियल एस्टेट रियल एस्टेट अर्थव्यवस्था का एक सहसावृद्धि वाला क्षेत्र है। शहर में विभिन्न शॉपिंग मॉल्स, आवासीय परिसर एवं व्यावसायिक परिसर बढ़ते जा रहे हैं। पार्श्वनाथ, डीएलएफ़, ओमैक्स, सहारा, युनिटेक, अंसल एवं ए पी आई जैसे इस क्षेत्र के महाकाय निवेशक यहाँ उपस्थित हैं। लखनऊ की प्रगति दिल्ली, मुंबई, सूरत एवं गाजियाबाद से कहीं कम नहीं है। यहां के उभरते क्षेत्रों में गोमती नगर, हज़रतगंज, एवं कपूरथला आदि प्रमुख हैं। यहां बड़े निजी अस्पतालों में से सहारा अस्पताल निर्माणाधीन है, जिसमें २५ तल हैं। इसके बाद मेट्रो, पार्श्वनाथ प्लानेट, ओमेक्स हाइट्स का नंबर आता है। शहर का संपत्ति विस्तार सूचकांक बहुत ऊंचा है। एक अनुमान के अनुसार शहर में २०१० तक २.५ बिलियन डालर की व्यवस्थित रियल एस्टेट होगी। ये उत्तर भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बाद सबसे अधिक है। परम्परागत व्यापार thumb|200px|left|दशहरी आम लखनऊ के निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाया जाता है, व यहां की परंपरागत उपज में से एक है। परंपरानुसार लखनवी आम (खासकर दशहरी आम), खरबूजा एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाये जा रहे अनाज की मंडी रही है। यहां के मशहूर मलीहाबादी दशहरी आम को भौगोलिक संकेतक का विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त हो चुका है। मलीहाबादी आम को यह विशेष दर्जा भारत सरकार के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई ने एक विशेष क़ानून के अंतर्गत्त दिया गया है।मलीहाबादी दशहरी का पेटेंट । बीबीसी-हिन्दी। २७ फ़रवरी २०१० एक अलग स्वाद और सुगंध के कारण दशहरी आम की संसार भर में विशेष पहचान बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मलीहाबादी दशहरी आम लगभग ६,२५३ हैक्टेयर में उगाए जाते हैं और ९५,६५८.३९ टन उत्पादन होता है।मलीहाबादी दशहरी आम को मिला जीआई पेटेंट। बिज़्नेस भास्कर। २ अक्टूबर २००९। प्रेस ट्रस्ट, नई दिल्ली गन्ने के खेत एवं चीनी मिलें भी निकट ही स्थित हैं। इनके कारण मोहन मेकिन्स ब्रीवरी जैसे उद्योगकर्ता यहां अपनी मिलें लगाने के लिए आकर्षित हुए हैं। मोहन मेकिन्स की इकाई १८५५ में स्थापित हुई थी। यह एशिया की प्रथम व्यापारिक ब्रीवरी थी। लखनऊ का चिकन का व्यापार भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक लघु-उद्योग है, जो यहां के चौक क्षेत्र के घर घर में फ़ैला हुआ है। चिकन एवं लखनवी ज़रदोज़ी, दोनों ही देश के लिए भरपूर विदेशी मुद्रा कमाते हैं। चिकन ने बॉलीवुड एवं विदेशों के फैशन डिज़ाइनरों को सदा ही आकर्षित किया है। लखनवी चिकन एक विशिष्ट ब्रांड के रूप में जाना जाये और उसे बनाने वाले कारीगरों का आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की टेक्सटाइल कमेटी ने चिकन को भौगोलिक संकेतक के तहत रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेटर के यहां पंजीकृत करा लिया है। इस प्रकार अब विश्व में चिकन की नकल कर बेचना संभव नहीं हो सकेगा।अब नहीं हो सकेगी लखनवी चिकन की नकल याहू जागरण नवाबों के काल में पतंग-उद्योग भी अपने चरमोत्कर्ष पर था।लखनऊ क्राफ़्ट्स २३ अक्टूबर, २००६ यह आज भी अच्छा लघु-उद्योग है। लखनऊ तम्बाकू का औद्योगिक उत्पादनकर्ता रहा है। इनमें किमाम आदि प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा इत्र, कलाकृतियां जैसे चिन्हट की टेराकोटा, मृत्तिकाकला, चाँदी के बर्तन एवं सजावटी सामान, सुवर्ण एवं रजत वर्क तथा हड्डी-पर नक्काशी करके बनी कलाकृतियों के लघु-उद्योग बहुत चल रहे हैं। अवसंरचना यातायात सड़क यातायात शहर में सार्वजनिक यातायात के उपलब्ध साधनों में सिटी बस सेवा, टैक्सी, साइकिल रिक्शा, ऑटोरिक्शा, टेम्पो एवं सीएनजी बसें हैं। सीएनजी को हाल ही में प्रदूषण पर नियंत्रण रखने हेतु आरंभ किया गया है। नगर बस सेवा को लखनऊ महानगर परिवहन सेवा संचालित करता है। यह उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक इकाई है।उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम | अभिगमन तिथि सितंबर, २००६ शहर के हज़रतगंज चौराहे से चार राजमार्ग निकलते हैं: राष्ट्रीय राजमार्ग २४ – दिल्ली को, राष्ट्रीय राजमार्ग २५ – झांसी और मध्य प्रदेश को, राष्ट्रीय राजमार्ग ५६ – वाराणसी को एवं राष्ट्रीय राजमार्ग २८ मोकामा, बिहार को। प्रमुख बस टर्मिनस में आलमबाग का डॉ॰भीमराव अम्बेडकर बस टर्मिनस आता है। इसके अलावा अन्य प्रमुख बस टर्मिनस केसरबाग, चारबाग आते थे, जिनमें से चारबाग का बस टर्मिनस, जो चारबाग रेलवे स्टेशन के ठीक सामने था, नगर बस डिपो बना कर स्थानांतरित कर दिया गया है। यह रेलवे स्टेशन के सामने की भीड़ एवं कंजेशन को नियंत्रित करने हेतु किया गया है। रेल यातायात thumb|200px|चारबाग रेलवे स्टेशन लखनऊ में कई रेलवे स्टेशन हैं। शहर में मुख्य रेलवे स्टेशन चारबाग रेलवे स्टेशन है। इसकी शानदार महल रूपी इमारत १९२३ में बनी थी। मुख्य टर्मिनल उत्तर रेलवे का है (स्टेशन कोड: LKO)। दूसरा टर्मिनल पूर्वोत्तर रेलवे (एनईआर) मंडल का है। (स्टेशन कोड: LJN)। लखनऊ एक प्रधान जंक्शन स्टेशन है, जो भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां और १३ रेलवे स्टेशन हैं: आलमनगर मल्हौर उत्तरटिया ट्रांस्पोर्ट नगर दिलखुशा गोमतीनगर बादशाह नगर मानक नगर अमौसी ऐशबाग जंक्शन लखनऊ सिटी डालीगंज और मोहीबुल्लापुर </div> अब मीटर गेज लाइन ऐशबाग से आरंभ होकर लखनऊ सिटी, डालीगंज एवं मोहीबुल्लापुर को जोड़ती हैं। मोहीबुल्लापुर के अलावा अन्य स्टेशन ब्रॉड गेज से भी जुड़े हैं। अन्य सभी स्टेशन शहर की सीमा के भीतर ही हैं, एवं एक दूसरे से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़े हैं। अन्य उपनगरीय स्टेशनों में निम्न स्टेशन हैं: बख्शी का तालाब काकोरी मुख्य रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में १५ प्लेटफ़ॉर्म हैं और इसके २००९ तक देश के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक बनने की आशा है। इस स्टेशन के २००९ के अंत तक विश्वस्तरीय स्टेशन बनने की आशा है। अमौसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर का मुख्य विमानक्षेत्र है और शहर से लगभग २० किलोमीटर दूरी पर स्थित है। लखनऊ वायु सेवा द्वारा नई दिल्ली, पटना, कोलकाता एवं मुंबई एवं भारत के कई मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। यह ओमान एयर, कॉस्मो एयर, फ़्लाई दुबई, साउदी एयरलाइंस एवं इंडिगो एयर तथा अन्य कई अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों से जुड़ा हुआ है। इन गंतव्यों में लंदन, दुबई, जेद्दाह, मस्कट, शारजाह, सिंगापुर एवं हांगकांग आते हैं। हज मुबारक के समय यहां से हज-विशेष उड़ानें सीधे जेद्दाह के लिए चलती हैं। लखनऊ मेट्रो लखनऊ के लिए उच्च क्षमता मास ट्रांज़िट प्रणाली यानि लखनऊ मेट्रो महानगर में यातयात का एक प्रमुख साधन है। इसके लिए दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने ही योजनाएं बनाई थी और यह काम श्रेई इंटरनेशनल को दिया था।गाजियाबाद और लखनऊ में मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को मंजूरी| याहू जागरण|३ फरवरी, २००९) मेट्रो रेल के संचालन को मूर्त रूप देने और उस पर आने वाले खर्च को पूरा करने की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार ने कई अधीनस्थ विभागों के प्रमुख सचिवों और लखनऊ के मंडलायुक्तगणों की एक समिति बनाई thumb|250px| दिल्ली की भांति लखनऊ मेट्रो भी चलेगी लखनऊ में मेट्रो रेल शुरु होने के बाद सड़कों पर यातायात काफी कम हो गया है! वर्तमान में लखनऊ एवं कानपुर में हर महीने लगभग १००० नए चौपहिया वाहनों का पंजीकरण कराया जाता रहा है। लखनऊ में सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर बाइपास बना दिए जाने के बावजूद सड़कों पर गाड़ियों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। इस कारण से यहां मेट्रो का त्वरित निर्माण अत्यावश्यक हो गया था । लखनऊ शहर में आरंभ में चार गलियारे निश्चित किये गए हैं: अमौसी से कुर्सी मार्ग,(लखनऊ गेट्स प्रोजक्ट वर्थ २४०० करोड़ टाइम्स ऑफ इंडिया, ६ फरवरी २००९, फ़ैज़ रहमान सिद्दीकी) बड़ा इमामबाड़ा से सुल्तानपुर मार्ग, पीजीआई से राजाजीपुरम एवं हज़रतगंज से फैज़ाबाद मार्ग लखनऊ के अलावा कानपुर, मेरठ और गाजियाबाद शहरों में मेट्रो रेल चलाने की योजना है।मेरठ में मेट्रो की संभावना तलाशेगी डीएमआरसी| ५ जून, २००९|याहू जागरण) इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थानअब जयपुर में भी मेट्रो ट्रेन ५ जून, २००९मेट्रो जयपुर सर्वे शुरु एवं कर्नाटकमुंबई, हैदराबाद, बंगलौर में होगी मेट्रो ७ अप्रैल, २००६ बीबीसी, हिन्दी, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों, में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं। अनुसंधान एवं शिक्षा thumb|right|200px|left|लखनऊ विश्वविद्यालय thumb|right|200px|left|भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ लखनऊ में देश के कई उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान भी हैं। इनमें से कुछ हैं: किंग जार्ज मेडिकल कालेज और बीरबल साहनी अनुसंधान संस्थान। यहां भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की चार प्रमुख प्रयोगशालाएँ (केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, औद्योगिक विष विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान अनुसंधान संस्थान(एनबीआरआई) और केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान(सीमैप)) उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी हैं। लखनऊ में छः विश्वविद्यालय हैं: लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय(यूपीटीयू), राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय(लोहिया लॉ विवि), बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय। यहां कई उच्च चिकित्सा संस्थान भी हैं: संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई), छत्रपति शाहूजी महाराज आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (जिसे पहले किंग जॉर्ज मेडिकल कालिज कहते थे) के अलावा निर्माणाधीन सहारा अस्पताल, अपोलो अस्पताल, एराज़ लखनऊ मेडिकल कालिज भी हैं। प्रबंधन संस्थानों में भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ (आईआईएम), इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़(ल.वि.वि) आते हैं। यहां भारत के प्रमुखतम निजी विश्वविद्यालयों में से एक, एमिटी विश्वविद्यालय का भी परिसर है। इसके अलावा यहां बहुत से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के भी सरकारी एवं निजी विद्यालय हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं: सिटी मॉण्टेसरी स्कूल, ला मार्टिनियर महाविद्यालय, जयपुरिया स्कूल, कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज, एम्मा थॉम्पसन स्कूल, सेंट फ्रांसिस स्कूल, महानगर बॉयज़ आदि। संस्कृति 220px|right|thumb|पान की थाली में कत्था, चूना एवं सुपारी लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही "पहले आप!" वाली शैली समायी हुई है। हालांकि स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है। ये संस्कृति यहां के नवाबों के समय से चली आ रही है। लखनवी पान यहां की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसके बिना लखनऊ अधूरा लगता है। भाषा एवं गद्य लखनऊ में हिन्दी एवं उर्दू दोनों ही बोली जाती हैं किंतु उर्दू को यहां सदियों से खास महत्त्व प्राप्त रहा है। जब दिल्ली खतरे में पड़ी तब बहुत से शायरों ने लखनऊ का रुख किया। तब उर्दू शायरी के दो ठिकाने हो गये- देहली और लखनऊ। जहां देहली सूफ़ी शायरी का केन्द्र बनी, वहीं लखनऊ गज़ल विलासिता और इश्क-मुश्क का अभिप्राय बन गया। जैसे नवाबों के काल में उर्दू खूब पनपी एवं भारत की तहजीब वाली भाषा के रूप में उभरी। यहां बहुत से हिन्दू कवि एवं मुस्लिम शायर हुए हैं, जैसे बृजनारायण चकबस्त, ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी "मीर" तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दू शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दू शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। मर्सिया इमाम हुसैन की कर्बला के युद्ध में शहादत का बयान करता है, जिसे मुहर्रमके अवसर पर गाया जाता है। काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दू शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। कई निकटवर्ती कस्बों जैसे काकोरी, दरयाबाद, बाराबंकी, रुदौली एवं मलिहाबाद ने कई उर्दू शायरों को जन्म दिया है। इनमें से कुछ हैं मोहसिन काकोरवी, मजाज़, खुमार बाराबंकवी एवं जोश मलिहाबादी। हाल ही में २००८ में १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की १५०वीं वर्षगांठ पर इस विषय पर एक उपन्यास का विमोचन किया गया था। इस विषय पर प्रथम अंग्रेज़ी उपन्यास रीकैल्सिट्रेशन, एक लखनऊ के निवासी ने ही लिखा था। लखनऊ जनपद के स्वतंत्रता संग्रामी लखनऊ जनपद के काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। लखनऊ जनपद के कुम्हरावां गांव में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को 13 स्वतंत्रता संग्रामी दिये जिन्होंने अलग अलग समय पर भारतीय जेलों में रहकर भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को आगे बढाया इनके नाम इस प्रकार हैं स्व0 गुरू प्रसाद बाजपेयी ‘वैद्य जी’ स्व0 राम सागर मिश्र ये प्रखर समाजवादी चिंतक थे जो उत्तर प्रदेश की विधान सभा के सदस्य रहे 1976 के आपातकाल में बंदी अवस्था में ही इन्होंने अपना शरीर छोडा लखनऊ में इनके नाम पर रामसागर मिश्र नगर बनाया गया जिसका नाम आगे चलकर इन्दिरानगर कर दिया गया। स्व0 रामदेव आजाद स्व0 फूलकली स्व0 सत्यशील मिश्र स्व0 बाबूलाल स्व0 जगदेव दीक्षित स्व0 श्याम सुन्दर दीक्षित ‘मुन्ने’ स्व0 विश्वनाथ मिश्र ‘डाक्टर साहब’ स्व0 पुत्तीलाल मिश्र स्व0 बद्री विशाल मिश्र श्री राम कुमार बाजपेयी श्री बचान शुक्ल जी नृत्य एवं संगीत thumb|200px|कथक नृत्य करते हुए कलाकार प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कथक ने अपना स्वरूप यहीं पाया था। अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह कथक के बहुत बड़े ज्ञाता एवं प्रेमी थे। लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, शंभु महाराज एवं बिरजू महाराज ने इस परंपरा को जीवित रखा है। thumb|200px|left|कथक नृत्य लखनऊ प्रसिद्ध गज़ल गायिका बेगम अख्तर का भी शहर रहा है। वे गज़ल गायिकी में अग्रणी थीं और इस शैली को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया – उनकी गायी बेहतरीन गज़लों में से एक है। लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय का नाम यहां के महान संगीतकार पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के नाम पर रखा हुआ है। यह संगीत का पवित्र मंदिर है। श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहां नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं। लखनऊ ने कई विख्यात गायक दिये हैं, जिनमें से नौशाद अली(संगीतकार ही नहीं एक अच्छे शायर थे नौशाद|रमेश चंद्र|४ मई,२००९|समय लाइव), तलत महमूद, अनूप जलोटा और बाबा सेहगल कुछ हैं। संयोग से यह शहर ब्रिटिश पॉप गायक क्लिफ़ रिचर्ड का भी जन्म-स्थान है। फिल्मों की प्रेरणा thumb|जावेद जान निसार अख्तर, प्रसिद्ध हिन्दी चलचित्र गीतकार लखनऊ हिन्दी चलचित्र उद्योग की आरंभ से ही प्रेरणा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि लखनवी स्पर्श के बिना, बॉलीवुड कभी उस ऊंचाई पर नहीं आ पाता, जहां वह अब है। अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार हैं, जैसे मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़े आज़मी, जावेद अख्तर, अली रज़ा, भगवती चरण वर्मा, डॉ॰कुमुद नागर, डॉ॰अचला नागर, वजाहत मिर्ज़ा (मदर इंडिया एवं गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी एवं के पी सक्सेना जिन्होंने भारतीय चलचित्र को प्रतिभा से धनी बनाया। लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी। बहू बेगम, मेहबूब की मेहंदी, मेरे हुजूर, चौदहवीं का चांद, पाकीज़ा, मैं मेरी पत्नी और वो, सहर, अनवर और बहुत सी हिन्दी फिल्में या तो लखनऊ में बनी हैं, या उनकी पृष्ठभूमि लखनऊ की है। गदर फिल्म में भी पाकिस्तान के दृश्यों में लखनऊ की शूटिंग ही है। इसमें लाल पुल, लखनऊ एवं ला मार्टीनियर कालिज की शूटिंग हैं। खानपान अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानियां, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा और रोटियां आदि हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख हैं। शहर में बहुत सी जगह ये व्यंजन मिलेंगे। ये सभी तरह के एवं सभी बजट के होंगे। जहां एक ओर १८०५ में स्थापित राम आसरे हलवाई की मक्खन मलाई एवं मलाई-गिलौरी प्रसिद्ध है, वहीं अकबरी गेट पर मिलने वाले हाजी मुराद अली के टुण्डे के कबाब भी कम मशहूर नहीं हैं। इसके अलावा अन्य नवाबी पकवानो जैसे 'दमपुख़्त', लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ परोसे गय सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है। और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध लखनऊ के पान जिनका कोई सानी नहीं है। लखनऊ के अवधी व्यंजन जगप्रसिद्ध हैं। यहां के खानपान बहुत प्रकार की रोटियां भी होती हैं। ऐसी ही रोटियां यहां के एक पुराने बाज़ार में आज भी मिलती हैं, बल्कि ये बाजार रोटियों का बाजार ही है। अकबरी गेट से नक्खास चौकी के पीछे तक यह बाजार है, जहां फुटकर व सैकड़े के हिसाब से शीरमाल, नान, खमीरी रोटी, रूमाली रोटी, कुल्चा जैसी कई अन्य तरह की रोटियां मिल जाएंगी। पुराने लखनऊ के इस रोटी बाजार में विभिन्न प्रकार की रोटियों की लगभग १५ दुकानें हैं, जहां सुबह नौ से रात नौ बजे तक गर्म रोटी खरीदी जा सकती है। कई पुराने नामी होटल भी इस गली के पास हैं, जहां अपनी मनपसंद रोटी के साथ मांसाहारी व्यंजन भी मिलते हैं। एक उक्ति के अनुसार लखनऊ के व्यंजन विशेषज्ञों ने ही परतदार पराठे की खोज की है, जिसको तंदूरी परांठा भी कहा जाता है। लखनऊवालों ने भी कुलचे में विशेष प्रयोग किये। कुलचा नाहरी के विशेषज्ञ कारीगर हाजी जुबैर अहमद के अनुसार कुलचा अवधी व्यंजनों में शामिल खास रोटी है, जिसका साथ नाहरी बिना अधूरा है। लखनऊ के गिलामी कुलचे यानी दो भाग वाले कुलचे उनके परदादा ने तैयार किये थे।।रोटियों का बाज़ार, राष्ट्रीय सहारा हिंदी दैनिक, अविनाश वाचस्पति, अभिगमन तिथि: २४ अगस्त, २००९ thumb|साड़ी के पल्लू पर चिकन की कढाई चिकन की कढाई चिकन, यहाँ की कशीदाकारी का उत्कृष्ट नमूना है और लखनवी ज़रदोज़ी यहाँ का लघु उद्योग है जो कुर्ते और साड़ियों जैसे कपड़ों पर अपनी कलाकारी की छाप चढाते हैं। इस उद्योग का ज़्यादातर हिस्सा पुराने लखनऊ के चौक इलाके में फैला हुआ है। यहां के बाज़ार चिकन कशीदाकारी के दुकानों से भरे हुए हैं। मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि ३६ प्रकार के चिकन की शैलियां होती हैं। इसके माहिर एवं प्रसिद्ध कारीगरों में उस्ताद फ़याज़ खां और हसन मिर्ज़ा साहिब थे। मीडिया प्रेस लखनऊ इतिहास में भी पत्रकारिता का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले आरंभ किया गया समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड लखनऊ से ही प्रकाशित होता था। इसके तत्कालीन संपादक मणिकोण्डा चलपति राउ थे। शहर के प्रमुख अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, द पाइनियर एवं इंडियन एक्स्प्रेस हैं। इनके अलावा भी बहुत से समाचार दैनिक अंग्रेज़ी, हिन्दी एवं उर्दू भाषाओं में शहर से प्रकाशित होते हैं। हिन्दी समाचार पत्रों में स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता एवं आई नेक्स्ट हैं। प्रमुख उर्दू समाचार दैनिकों में जायज़ा दैनिक, राष्ट्रीय सहारा, सहाफ़त, लखनऊ समाचार, क़ौमी खबरें एवं आग हैं। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया एवं यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के कार्यालय शहर में हैं, एवं देश के सभी प्रमुख समाचार-पत्रों के पत्रकार लखनऊ में उपस्थित रहते हैं। रेडियो ऑल इंडिया रेडियो के आरंभिक कुछ स्टेशनों में से लखनऊ केन्द्र एक है। यहां मीडियम वेव पर प्रसारण करते हैं। इसके अलावा यहां एफ एम प्रसारण भी २००० से आरंभ हुआ था। शहर में निम्न रेडियो स्टेशन चल रहे हैं:. - ९१.१  ;मेगा हर्ट्ज़ रेडियो सिटी ९३.५ मेगा हर्ट्ज़ RED एफ़.एम ९८.३ मेगा हर्ट्ज़ रेडियो मिर्ची १००.७ मेगा हर्ट्ज़ एआईआर एफ़एम रेनबो १०५.६ मेगा हर्ट्ज़ ग्यानवाणी-एजुकेशनल इंटरनेट शहर में इंटरनेट के लिए ब्रॉडबैण्ड इंटरनेट कनेक्टिविटी एवं वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध हैं। प्रमुख सेवाकर्ता भारत संचार निगम लिमिटेड, भारती एयरटेल, रिलायंस कम्युनिकेशन्स, टाटा कम्युनिकेशन्स एवं एसटीपीआई का बृहत अवसंरचना ढांचा है। इनके द्वारा गृह प्रयोक्ताओं एवं निगमित प्रयोक्ताओं को अच्छी गति का ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध होता है। शहर में ढेरों इंटरनेट कैफ़े भी उपलब्ध हैं। पर्यटन स्थल thumb|right||बड़ा इमामबाड़ा thumb|right||छोटा इमामबाड़ा thumb|right||छतर मंजिल शहर और आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें ऐतिहासिक स्थल, उद्यान, मनोरंजन स्थल एवं शॉपिंग मॉल आदि हैं। यहां कई इमामबाड़े हैं। इनमें बड़ा एवं छोटा प्रमुख है। प्रसिद्ध बड़े इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस इमामबाड़े का निर्माण आसफउद्दौला ने १७८४ में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल भुलैया है। इस इमामबाड़े में एक अस़फी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं। इसके अलावा छोटा इमामबाड़ा, जिसका असली नाम हुसैनाबाद इमामबाड़ा है मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण १८३७ ई. में किया गया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है। सआदत अली का मकबरा बेगम हजरत महल पार्क के समीप है। इसके साथ ही खुर्शीद जैदी का मकबरा भी बना हुआ है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। मकबरे की शानदार छत और गुम्बद इसकी खासियत हैं। ये दोनों मकबरे जुड़वां लगते हैं। बड़े इमामबाड़े के बाहर ही रूमी दरवाजा बना हुआ है। यहां की सड़क इसके बीच से निकलती है। इस द्वार का निर्माण भी अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत किया गया था। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा १७८२ ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। जामी मस्जिद हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन १८४० ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। मोती महल गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में से प्रमुख है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था। thumb|left||घंटाघर, लखनऊ लखनऊ रेज़ीडेंसी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत हजरतगंज क्षेत्र में राज्यपाल निवास के निकट है। लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप १९वीं शताब्दी में बनी एक पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। कुकरैल फारेस्ट एक पिकनिक स्थल है। यहां घड़ियालों और कछुओं का एक अभयारण्य है। यह लखनऊ के इंदिरा नगर के निकट, रिंग मार्ग पर स्थित है। बनारसी बाग वास्तव में एक चिड़ियाघर है, जिसका मूल नाम प्रिंस ऑफ वेल्स वन्य-प्राणी उद्यान है। स्थानीय लोग इस चिड़ियाघर को बनारसी बाग कहते हैं। यहां के हरे भरे वातावरण में जानवरों की कुछ प्रजातियों को छोटे पिंजरों में रखा गया है। यह देश के अच्छे वन्य प्राणी उद्यानों में से एक है। इस उद्यान में एक संग्रहालय भी है। इनके अलावा रूमी दरवाजा, छतर मंजिल, हाथी पार्क, बुद्ध पार्क, नीबू पार्क मैरीन ड्राइव और इंदिरा गाँधी तारामंडल भी दर्शनीय हैं। लखनऊ-हरदोइ राजमार्ग पर ही मलिहाबाद गांव है, जहां के दशहरी आम विश्व प्रसिद्ध हैं। लखनऊ का अमौसी हवाई अड्डा शहर से बीस किलोमीटर दूर अमौसी में स्थित है। शहर से ९० किलोमीटर की दूरी पर ही नैमिषारण्य तीर्थ है। इसका पुराणों में बहुत ऊंचा स्थान बताया गया है। यहीं पर ऋषि सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को पुराणों का आख्यान दिया था। लखनऊ के निकटवर्ती शहरों में कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, फैजाबाद, बाराबंकी, हरदोई हैं। धार्मिक सौहार्द thumb|हनुमान सेतु मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति|कड़ी=Special:FilePath/Hanuman_setu_idol_lko.jpg thumb||मुहर्रम के दौरान ताजिये के साथ जुलूस लखनऊ में वैसे तो सभी धर्मों के लोग सौहार्द एवं सद्भाव से रहते हैं, किंतु हिन्दुओं एवं मुस्लिमों का बाहुल्य है। यहां सभी धर्मों के अर्चनास्थल भी इस ही अनुपात में हैं। हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में हनुमान सेतु मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, अलीगंज का हनुमान मंदिर, भूतनाथ मंदिर, इंदिरानगर, चंद्रिका देवी मंदिर, नैमिषारण्य तीर्थ और रामकृष्ण मठ, निरालानगर हैं।टेम्पल्स इन लखनऊ यहां कई बड़ी एवं पुरानी मस्जिदें भी हैं। इनमें लक्ष्मण टीला मस्जिद, इमामबाड़ा मस्जिद एवं ईदगाह प्रमुख हैं। प्रमुख गिरिजाघरों में कैथेड्रल चर्च, हज़रतगंज, इंदिरानगर (सी ब्लॉक) चर्च, सुभाष मार्ग पर सेंट पाउल्स चर्च एवं असेंबली ऑफ बिलीवर्स चर्च हैं।चर्चेज़ इन लखनऊ यहां हिन्दू त्यौहारों में होली,हिन्दूज़ मुस्लिम्स सेलिब्रेट लखनऊ’ज़ होली बारात | ब्रेकिंग न्यूज़ २४/७| आइयान्स|११ मार्च २००९ दीपावली, दुर्गा पूजा एवं दशहरा और ढेरों अन्य त्यौहार जहां हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं, वहीं ईद और बारावफात तथा मुहर्रम के ताजिये भी फीके नहीं होते। साम्प्रदायिक सौहार्द यहां की विशेषता है। यहां दशहरे पर रावण के पुतले बनाने वाले अनेकों मुस्लिम एवं ताजिये बनाने वाले अनेकों हिन्दू कारीगर हैं।दूर तक मशहूर है बिसवां के बने ताजिया| याहू जागरण | २८ दिसम्बर २००८ आवागमन वायुमार्ग लखनऊ का अमौसी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, जयपुर, पुणे, भुवनेश्वर, गुवाहाटी और अहमदाबाद से प्रतिदिन सीधी फ्लाइट द्वारा जुड़ा हुआ है। रेलमार्ग चारबाग रेलवे जंक्शन भारत के प्रमुख शहरों से अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से लखनऊ मेल और शताब्दी एक्सप्रेस, मुम्बई से पुष्पक एक्सप्रेस, कोलकाता से दून एक्स्प्रेस और हावड़ा एक्स्प्रेस 3050 के माध्यम से लखनऊ पहुंचा जा सकता है। चारबाग स्टेशन के अलावा लखनऊ जिले में कई अन्य स्टेशन भी हैं:- २ किलोमीटर दूर ऐशबाग रेलवे स्टेशन, ५ किलोमीटर पर लखनऊ सिटी रेलवे स्टेशन, ७ किलोमीटर पर आलमनगर रेलवे स्टेशन, ११ किलोमीटर पर बादशाहनगर रेलवे स्टेशन तथा अमौसी रेलवे स्टेशन हैं। इसके अतिरिक्त मल्हौर में १३ कि.मी, गोमती नगर में १५ कि.मी, काकोरी १५ कि.मी, मोहनलालगंज १९ कि.मी, हरौनी २५ कि.मी, मलिहाबाद २६ कि.मी, सफेदाबाद २६ कि.मी, निगोहाँ ३५ कि.मी, बाराबंकी जंक्शन ३५ कि.मी, अजगैन ४२ कि.मी, बछरावां ४८ कि.मी, संडीला ५३ कि.मी, उन्नाव जंक्शन ५९ कि.मी तथा बीघापुर ६४ कि.मी पर स्थित हैं। इस प्रकार रेल यातायात लखनऊ को अनेक छोटे छोटे गाँवों और कस्बों से जोड़ता है। सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग २४ से दिल्ली से सीधे लखनऊ पहुंचा जा सकता है। लखनऊ का राष्ट्रीय राजमार्ग २ दिल्ली को आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी और कानपुर के रास्ते कोलकाता से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग २५ झांसी को जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग २८ मुजफ्फरपुर से, राष्ट्रीय राजमार्ग ५६ वाराणसी से जोड़ते हैं। भगिनी शहर मॉन्ट्रियल,कनाडा ब्रिस्बेन,ऑस्ट्रेलिया इन्हें भी देखें लखनऊ ज़िला उत्तर प्रदेश लखनऊ विश्वविद्यालय इमामबाड़ा सफ़ेद बारादरी बाहरी कड़ियाँ लखनऊ का आधिकारिक जालस्थल (अँग्रेजी में) लखनऊ का स्थानीय सर्च इंजन पूरी जानकारी लिए *सायबर जॉइंट लखनऊ विश्वविद्यालय अलयुम्नी लखनऊ समाचार लखनऊ सिटी पोर्टल उत्तर प्रदेश एवं लखनऊ पर सूचना *सहयोग गैर-लाभ संस्था, लखनऊ स्थित, मानवाधिकार एवं महिला उत्थान के किए कार्यरत सन्दर्भ श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:लखनऊ ज़िला श्रेणी:लखनऊ ज़िले के नगर *
प्रयागराज
https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रयागराज
प्रयागराज (Prayagraj), जिसका भूतपूर्व नाम इलाहाबाद (Allahabad) था, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है। यह प्रयागराज ज़िले का मुख्यालय है और हिन्दूओं का एक मुख्य तीर्थस्थल है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः यह त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। यहाँ हर छह वर्षों में अर्द्धकुम्भ और हर बारह वर्षों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है जिसमें विश्व के विभिन्न कोनों से करोड़ों श्रद्धालु पतितपावनी गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। अतः इस नगर को संगमनगरी, कुंभनगरी, तंबूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। प्रयागराज के पास मुगल बादशाह अकबर ने एक किला बनवाया और बसाहट बसवाई जिसका नाम इलाहबाद रखा, बाद मे प्रयाग और इलाहबाद एक ही नाम से जाने लगे। अक्टूबर 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बदलकर प्रयागराज कर दिया। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें 'द्वादश माधव' कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। प्रयागराज में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा प्रयागराज को जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। जवाहरलाल शहरी नवीयन मिशन पर मिशन शहरों की सूची व ब्यौरे और यहां पर उपस्थित आनन्द भवन एक दर्शनीय स्थलों में से एक है। नामकरण शहर का प्राचीन नाम "प्रयाग" 'या "प्रयागराज" है। हिन्दू मान्यता है कि, सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सबसे प्रथम यज्ञ यहां किया था। इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ की सन्धि द्वारा प्रयाग नाम बना। ऋग्वेद और कुछ पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख 'प्रयाग' के रूप में किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ "नदियों का संगम" भी है - यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर "पांच प्रयागों का राजा" कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहा जाता रहा है। मुगल काल में, यह कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर जब १५७५ में इस क्षेत्र का दौरा कर रहे थे, तो इस स्थल की सामरिक स्थिति से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहाँ एक किले का निर्माण करने का आदेश दे दिया, और १५८४ के बाद से इसका नाम बदलकर 'इलाहबास' या "ईश्वर का निवास" कर दिया, जो बाद में बदलकर "इलाहाबाद" हो गया। इस नाम के बारे में, हालांकि, कई अन्य विचार भी मौजूद हैं। आसपास के लोगों द्वारा इसे 'अलाहबास' कहने के कारण, कुछ लोगों ने इस विचार पर जोर दिया है कि इसका नाम आल्ह-खण्ड की कहानी के नायक आल्हा के नाम पर पड़ा था। १८०० के शुरुआती दिनों में ब्रिटिश कलाकार तथा लेखक जेम्स फोर्ब्स ने दावा किया था कि अक्षय वट के पेड़ को नष्ट करने में विफल रहने के बाद जहांगीर द्वारा इसका नाम बदलकर 'इलाहाबाद' या "भगवान का निवास" कर दिया गया था। हालाँकि, यह नाम उससे पहले का है, क्योंकि इलाहबास और इलाहाबाद - दोनों ही नामों का उल्लेख अकबर के शासनकाल से ही शहर में अंकित सिक्कों पर होता रहा है, जिनमें से बाद वाला नाम सम्राट की मृत्यु के बाद प्रमुख हो गया। यह भी माना जाता है कि इलाहाबाद नाम अल्लाह के नाम पर नहीं, बल्कि इल्हा (देवताओं) के नाम पर रखा गया है। शालिग्राम श्रीवास्तव ने प्रयाग प्रदीप में दावा किया कि नाम अकबर द्वारा जानबूझकर हिंदू ("इलाहा") और मुस्लिम ("अल्लाह") शब्दों के एकसमान होने के कारण दिया गया था। १९४७ में भारत की स्वतन्त्रता के बाद कई बार उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के प्रयास किए गए। १९९२ में इसका नाम बदलने की योजना तब विफल हो गयी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। २००१ में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार के नेतृत्व में एक और बार नाम बदलने का प्रयास हुआ, जो अधूरा रह गया। २०१८ में नगर का नाम बदलने का प्रयास आखिरकार सफल हो गया, जब १६ अक्टूबर २०१८ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया। इतिहास right|thumb|250px|कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की आनन्द भवन, इलाहाबाद (प्रयागराज) में बैठक में महात्मा गांधी, उनके बायीं ओर वल्लभभाई पटेल एवं विजयलक्ष्मी पंडित उनके दायीं ओर, जनवरी, 1940 प्राचीन काल में शहर को "प्रयाग" (बहु-यज्ञ स्थल) के नाम से जाना जाता था। ऐसा इसलिये क्योंकि सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था, वह उसके बाद यहां अनगिनत यज्ञ हुए। भारतवासियों के लिये प्रयाग एवं वर्तमान कौशाम्बी जिले के कुछ भाग यहां के महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। यह क्षेत्र पूर्व से मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुशान साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से प्रयागराज मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग निर्माण करवाया था। शहर में मराठों के आक्रमण भी होते रहे थे। इसके बाद अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। 1775 में दुर्ग में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागराज भी सक्रिय रहा। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद (प्रयागराज) संयुक्त प्रांतों (अब, उत्तर प्रदेश) की राजधानी था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन यहां दरभंगा किले के विशाल मैदान में 1888 एवं पुनः 1892 में हुआ था।The Congress – First Twenty Years; Page 38 and 39How India Wrought for Freedom: The story of the National Congress Told from the Official records (1915) by Anne Besant. 1931 में प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश पुलिस से घिर जाने पर स्वयं को गोली मार कर अपनी न पकड़े जाने की प्रतिज्ञा को सत्य किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में नेहरु परिवार के पारिवारिक आवास आनन्द भवन एवं स्वराज भवन यहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र रहे थे। यहां से हजारों सत्याग्रहियों को जेल भेजा गया था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु प्रयागराज के ही निवासी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका भारत के स्वतत्रता आन्दोलन में भी प्रयागराज की एक अहम् भूमिका रही। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय प्रयागराज की भूमि पर हुआ तो गाँधी युग में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर लियाक़त अली ख़ाँ ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहाँ पर 1888, 1892 और 1910 में क्रमशः जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं अवस्थित 'मिण्टो पार्क'[5] में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास ' स्वराज भवन' और 'आनन्द भवन' यहीं पर है। नेहरू-गाँधी परिवार से जुडे़ होने के कारण प्रयागराज ने देश को प्रथम प्रधानमंत्री भी दिया। क्रांतिकारियों की शरणस्थली उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ प्रयागराज क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रौलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून, 1920 में प्रयागराज में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी प्रयागराज में ही रखी गयी थी। भूगोल thumb|300px|प्रयागराज के निकटवर्ती क्षेत्र प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में 98 मीटर (322 फ़ीट) पर गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीन वत्स देश कहलाता था। इसके दक्षिण-पूर्व में बुंदेलखंड क्षेत्र है, उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में अवध क्षेत्र एवं इसके पश्चिम में निचला दोआब क्षेत्र। प्रयागराज भौगोलिक एवं संस्कृतिक दृष्टि, दोनों से ही महत्त्वपूर्ण रहा है। गंगा-जमुनी दोआब क्षेत्र के खास भाग में स्थित ये यमुना नदी का अंतिम पड़ाव है। दोनों नदियों के बीच की दोआब भूमि शेष दोआब क्षेत्र की भांति ही उपजाउ किंतु कम नमी वाली है, जो गेहूं की खेती के लिये उपयुक्त होती है। जिले के गैर-दोआबी क्षेत्र, जो दक्षिणी एवं पूर्वी ओर स्थित हैं, निकटवर्ती बुंदेलखंड एवं बघेलखंड के समान शुष्क एवं पथरीले हैं। भारत की नाभि जबलपुर से निकलने वाली भारतीय अक्षांश रेखा जबलपुर से उत्तर में प्रयागराज से निकलती है। इलाहाबाद मंडल का पुनर्गठन इलाहाबाद मंडल एवं जिले में वर्ष 2000 में बड़े बदलाव हुए। इलाहाबाद मंडल के इटावा एवं फर्रुखाबाद जिले आगरा मंडल के अधीन कर दिये गए, जबकि कानपुर देहात को कानपुर जिले में से काटकर एक नया कानपुर मंडल सजित कर दिया गया। पश्चिमी इलाहाबाद के भागों को काटकर नया कौशांबी जिला बनाया गया। वर्तमान में इलाहाबाद मंडल के अंतर्गत प्रयाग-राज, कौशांबी, प्रतापगढ़ एवं फतेहपुर जिले आते हैं। नवंबर २०१८ में योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद मंडल का नाम प्रयागराज मंडल करवा दिया। जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनुसार प्रयागराज शहर की वर्तमान जनसंख्या 1,342,229 है। ये भारत में जनसंख्या के अनुसार 32वें स्थान पर आता है। प्रयागराज जिला 2013 की जनगणना के अनुसार 6010249 जो उत्तर प्रदेश का सबसे जनसँख्या वाला जिला हैं। प्रयागराज का क्षेत्रफल लगभग है और ये [[समुद्र की सतह से ऊंचाई|सागर सतह से ऊंचाई पर स्थित है। हिन्दी-भाषी प्रयागराज की बोली अवधी है, जिसे "इलाहाबादी बोली" भी कहते हैं। जिले के पूर्वी गैर-दोआबी क्षेत्र में प्रायः बघेली बोली का चलन है। प्रयागराज में सभी प्रधान धर्म के लोग निवास करते हैं। यहां हिन्दू कुल जनसंख्या का 85% और मुस्लिम 11% हैं। इनके अलावा सिख, ईसाई एवं बौद्ध लोगों की भी छोटी संख्या है। जलवायु प्रयागराज में तीन प्रमुख ऋतुएं आती हैं: ग्रीष्म ऋतु, शीत ऋतु एवं वर्षा ऋतु। ग्रीष्मकाल अप्रैल से जून तक चलता है, जिसमें अधिकतम तापमान 40°से. (104° फै.) से 45°से. (113°फै.) तक जाता है। मानसून काल आरंभिक जुलाई से सितंबर के अंत तक चलती है। इसके बाद शीतकाल दिसंबर से फरवरी तक रहता है। तापमान यदाकदा ही शून्य तक पहुंचता है। अधिकतम तापमान लगभग 22 °से. (72 ° फा.) एवं न्यूनतम तापमान 10° से. (50° फा.) तक पहुंचता है। प्रयागराज में जनवरी माह में घना कोहरा रहता है, जिसके कारण यातायात एवं यात्राओं में अत्यधिक विलंब भी हो जाते हैं। किंतु यहां हिमपात कभी नहीं होता है। न्यूनतम अंकित तापमान, -2° से. (28.4° फै.) एवं अधिकतम 45° से. (118° फै.) 48 °से. तक पहुंचा है। नगर प्रशासन प्रयागराज नगर निगम, राज्य के प्राचीनतम नगर निगमों में से एक है। निगम 1864 में अस्तित्त्व में आया था, जब तत्कालीन भारत सरकार द्वारा लखनऊ म्युनिसिपल अधिनियम पास किया गया था। नगर के म्युनिसिपल क्षेत्र को कुल 80 वार्डों में विभाजित किया गया है व प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य (कार्पोरेटर) चुनकर नगर परिषद का गठन किया जाता है।. पहले ये कॉर्पोरेटर शहर के महापौर को चुनते थे, लेकिन बाद में इस व्यवस्था को बदल दिया गया। अब नगर निगम क्षेत्र की जनता पार्षद के साथ-साथ अपना महापौर भी चुनती हैं। राज्य सरकार द्वारा चुने गए मुख्य कार्यपालक को प्रयागराज का आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया जाता है। शहर प्रयागराज गंगा-यमुना नदियों के संगम पर स्थित है। ये एक भू-स्थित प्रायद्वीप रूप में देखा जा सकता है जिसे तीन ओर से नदियों ने घेर रखा है एवं मात्र एक ओर ही मुख्य भूमि से जुड़ा है। इस कारण ही शहर के भीतर व बाहर बढ़ते यातायात परिवहन हेतु अनेक सेतुओं द्वारा गंगा व यमुना नदियों के पार जाते हैं। प्रयागराज का शहरी क्षेत्र तीन भागों एं वर्गीकृत किया जा सकता है: चौक, कटरा पुराना शहर जो शहर का आर्थिक केन्द्र रहा है। यह शहर का सबसे घना क्षेत्र है, जहां भीड़-भाड़ वाली सड़कें यातायात व बाजारों का कां देती हैं। नया शहर जो सिविल लाइंस क्षेत्र के निकट स्थित है; ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था। यह भली-भांति सुनियोजित क्षेत्र ग्रिड-आयरन रोड पैटर्न पर बना है, जिसमें अतिरिक्त कर्णरेखीय सड़कें इसे दक्ष बनाती हैं। यह अपेक्षाकृत कम घनत्व वाला क्षेत्र हैजिसके मार्गों पर वृक्षों की कतारें हैं। यहां प्रधान शैक्षिक संस्थान, उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कार्यालय, अन्य कार्यालय, उद्यान एवं छावनी क्षेत्र हैं। यहां आधुनिक शॉपिंग मॉल एवं मल्टीप्लेक्स बने हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-पीवीआर, बिग बाजार, कोलकाता मॉल, यूनिक बाजार ,जालौन,विशाल मेगामार्ट इत्यादि अन्य पाँच माँल पर काम चल रहा हैं। बाहरी क्षेत्र में शहर से गुजरने वाले मुख्य राजमार्गों पर स्थापित सैटेलाइट टाउन हैं। इनमें गंगा-पार (ट्रांस-गैन्जेस) एवं यमुना पार (ट्रांस-यमुना) क्षेत्र आते हैं। विभिन्न रियल-एस्टेट बिल्डर प्रयागराज में निवेश कर रहे हैं, जिनमें ओमेक्स लि. प्रमुख हैं। नैनी सैटेलाइट टाउन में १५३५ एकड़ की हाई-टेक सिटी बन रही है। तहसीलें प्रयागराज जिले में आठ तहसीले हैं, जो निम्नवत है। सदर शहरी क्षेत्र का सभी कार्य सदर द्वारा होता है।यह जिला कचहरी से जुड़ा हुआ है। मेजा प्रयागराज से मिर्ज़ापुर मार्ग स्थित मेजारोड (लगभग दूरी ४०किलोमीटर) चौराहे से तथा मेजारोड रेलवे स्टेशन से १०किलोमीटर दक्षिण स्थित है। मेजा तहसील में तीन ब्लॉक क्रमश: मेजा,उरुवा और मांडा है। भारत के पूर्व-प्रधानमंत्री श्री विश्वप्रताप सिंह मांडा के राजा थे। करछना बारा सोरांव फूलपुर कोरांव हंडिया ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल यहाँ कई क्रीड़ा परिसर हैं, जिनका उपयोग व्यावसायिक एवं अव्यवसायी खिलाड़ी करते रहे हैं। इनमें मदन मोहन मालवीय क्रिकेट स्टेडियम, मेयो हॉल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स एवं बॉयज़ हाई स्कूल एवं कॉलिज जिम्नेज़ियम हैं। जॉर्जटाउन में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का तरणताल परिसर भी है। झलवा (प्रयागराज पश्चिम) में नेशनल स्पोर्ट्स एकैडमी है, जहां विश्व स्तर के जिमनास्ट अभ्यासरत रहते हैं। अकादमी को आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये भारतीय जिमनास्ट हेतु आधिकारिक ध्वजधारक चुना गया है। 250px|thumb|right|संगम प्रयागराज दुर्ग मध्यकालीन इतिहासकार बदायूनी के अनुसार 1575 में सम्राट अकबर ने प्रयाग की यात्रा की और एक शाही शहर इलाहाबाद की स्थापना की 1583 में अकबर ने प्रयागराज में गंगा और यमुना के संगम पर प्रयागराज दुर्ग का निर्माण प्रारम्म करवाया। यह किला चार भागो में बनवाया गया। पहले हिस्से में 12 भवन एवं कुछ बगीचे बनवाये गयें। दूसरे हिस्से में बेगमोँ और शहजादियों के लिऐ महलो का निर्माण करवाया गया। तीसरा हिस्सा शाही परिवार के दूर के रिश्तेदारों और नैकरों के लिऐ बनवाया गया और चौथा हिस्सा सैनिको के लिये बनवाया गया। इस किले में 93 महर, 3 झरोखा, 25 दरवाजें, 277 इमारतें, 176 कोठियाँ 77 तहखानें व 20 अस्तबल और 5 कुएं हैं। उल्टा किला यह किला झूसी में स्थित है। स्वराज भवन स्वराज भवन प्रयागराज में स्थित एक ऐतिहासिक भवन एवं संग्रहालय है। इसका मूल नाम 'आनन्द भवन' था। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण मोतीलाल नेहरु ने करवाया था। 1930 में उन्होंने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसके बाद यहां कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म यहीं पर हुआ था। आज इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। 1899 में मोतीलाल नेहरु ने चर्च लेन नामक मोहल्ले में एक अव्यवस्थित इमारत खरीदी। जब इस बंगले में नेहरु परिवार रहने के लिये आया तब इसका नाम आनन्द भवन रखा गया। पुरानी इमारत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सौंप । 1931 में पं मोतीलाल नेहरु के गुजरने के बाद उनके पुत्र जवाहर लाल नेहरु ने एक ट्रस्ट बना कर स्वाराज भवन भारतीय जनता के ज्ञान के विकास स्वास्थ्य एंव सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। इस इमारत के एक हिस्से में अस्पताल जो की आज कमला नेहरु के नाम से जाना जाता हैं। और शेष अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के उपयोग के लिये था। 1948 से 1974 तक इस भवन का उपयोग बच्चो की शैक्षणिक गतिविधियों विकाय के लिये किया जता रहा और इसमें एक बाल भवन कि स्थापना कि गयी। बाल भवन में शैक्षिक यथा संगीत विग्यान खेल आदि के विषय में बच्चों को सिखाया जाता था। 1974 में इंदिरा गाँधी ने जवाहर लाल मेमोरियल फण्ड बना कर यह इमारत 20 वर्ष के लियें उसे पट्टे पर दे दिया और उस इमारत में बाल भवन चलता रहा। किन्तु अब बाल भवन को स्वराज भवन के ठीक बगल में स्थित एक अन्य मकान स्थापित कर दिया गया। और स्वराज भवन को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया गया। स्वराज भवन एक बड़ा भवन हैं। और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनों का एक जीता जागता धरोहर हैं। यही वह स्थान हैं जहा पं जवाहरलाल नेहरु ने अपना बचपन बिताया। यहीं से वो राजनिति कि प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद में भारतीय स्वाधीनता संग्राम में शामिल हुये। जवाहरलाल नेहरु ने 1916 में अपने वैवाहिक जीवन का शुभ आरम्भ इसी भवन से किया। इसके अतिरिक्त यह राजनिति गतिविधियों का एक मंच भी रहा। 1917 में उत्तर प्रदेश होम रुम लीन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु एवं महामंत्री जवाहरलाल नेहरु थे। 19 नवम्बर 1919 को इंदिरा गाँधी का जन्म भी इसी भवन में हुआ। 1920 में आल इंडिया खिलाफत इसी भवन में बनायी गयी। भारत का संविधान लिखने के लिये चुनी गयी आल पार्टी का सम्मेलन भी इसी स्वराज भवन में हुआ था। आनन्द भवन, प्रयागराज मोतीलाल नेहरु ने इसकी नींव 1926 रखी। वास्तुकला की दृष्टि से यह भवन अपने आप में अनोखा है। यह दो मंजिली इमारत है आनन्द भवन भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की एक ऐतिहासिक यादगार हैं और ब्रिटिश शासन के विरोध में किये गये अनेक विरोधों, कांग्रेस के अधिवेशनों एवं राष्टीय नेताओं के अनेक सम्मेलनों से इसका सम्बन्ध रहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रयागराज यह मूल रूप से भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के सद्र दीवानी अदालत जगह से आगरा में 17 मार्च 1866 को उत्तरी-पश्चिमी प्रांतों के लिए न्यायाधिकरण के उच्च न्यायालय के रूप में स्थापित किया गया था। सर वाल्टर मॉर्गन, बैरिस्टर पर कानून उत्तर - पश्चिमी प्रदेशों के उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। स्थान 1869 में प्रयागराज में स्थानांतरित किया गया और नाम तदनुसार 11 से मार्च 1919 महकमा के उच्च न्यायालय इलाहाबाद में बदल गया था। 2 नवम्बर 1925 को, अवध न्यायिक आयुक्त के न्यायालय लखनऊ में अवध चीफ कोर्ट ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम 1925 की गवर्नर जनरल की मंजूरी के साथ संयुक्त प्रांत विधानमंडल द्वारा अधिनियमित द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। 25 फ़रवरी 1948 को, उत्तर प्रदेश विधान सभा में राज्यपाल का अनुरोध गवर्नर जनरल के लिए विधानसभा के प्रभाव है कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद में महकमा और अवध बुज्मुख्य न्यायालय के समामेलित हो अनुरोध सबमिट संकल्प पारित कर दिया। नतीजतन, अवध के मुख्य न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ समामेलित किया गया था। जब उत्तरांचल के राज्य उत्तर प्रदेश के बाहर 2000 में बना था, इस उच्च न्यायालय उत्तरांचल में पड़ने वाले जिलों पर अधिकार क्षेत्र रह गए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय लोहा मुंडी, आगरा, भारत के खान साहब निजामुद्दीन द्वारा बनाया गया था। उन्होंने यह भी उच्च न्यायालय के लिए पानी के फव्वारे का दान दिया। पातालपुरी मन्दिर किले के अन्दर यह मंदिर भूगर्भ में स्थित हैं। और अछयवट इस मन्दिर के अन्दर ही हैं। यह मंदिर अत्यन्त ही प्राचीन हैं। ऐसा विश्वास किया जाता हैं। कि भगवान राम ने इस मन्दिर कि यात्रा की थी। रानी महल अकबर की राजपूत पत्नी जोधाबाई का महल जो रानी महल के नाम से जाना जाता हैं। यह महल किले में स्थित हैं। आल सेण्ट्स कैथैड्रिल शहर के सिविल लाइन में स्थित यह चर्च पत्थर गिरजाघर के नाम से प्रसिद्द है। इस चर्च को देखने से प्रतित होता हैं। कि मानों हम किसी रोमन साम्राज्य का राजगृह देख रहे हैं। 1879 में बन कर तैयार हुये इस चर्च का नक्शा सुप्रसिद्ध अंग्रेज वास्तुविद विलियन इमरसन ने बनवाया था। यह चर्च चौराहे के बीचो-बीच स्थित हैं।हम लोग यहाँ घूम भी सकते हैं दर्शनीय धार्मिक स्थल संगम प्रयागराज गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित हैं। चूॅंकि यहाँ तीन नदियाँ आकर मिलती हैं। अत: इस स्थान को त्रिवेणी के नाम से भी संबोधित किया जाता हैं। संगम का दृश्य अत्यन्त मनोरम हैं। स्वेत गंगा और हरित यमुना अपने मिलने के स्थान पर स्पष्ट भेद बनाए रखती हैं अर्थात मात्र दृष्टिपात करने से ही यह बताया जा सकता हैं। कि यह गंगा नदी हैं और यह यमुना। हिमालय की गोद से निकल कर प्रयाग तक आते आते गंगा गुम्फिद नदी में बदल जाती हैं परन्तु यमुना के मिलने के उपरान्त इनमे पुन: अथाह जल हो जाता हैं। हनुमान मंदिर संगम के निकट स्थित यह एक अद्भुत एवं अपने प्रकार का अनोखा मन्दिर हैं इस मन्दिर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा हैं। और उनके दर्शनार्थ लोगों को सीढियों से उतर कर नीचे जाना पड़ता हैं। यह प्रतिमा अत्यन्त विशाल एवं भव्य हैं। ऐसा विश्वास किया जाता हैं कि अंग्रेजी शासन ने इस मंदिर को यहाँ से हटवाने के आदेश दिये किन्तु जैसे जैसे मूर्ति को हटाने के लिये खुदाई की जाने लगी वैसे वैसे मूर्ति बाहर आने के बजाय अन्दर धसती गयी। यही कारण हैं कि यह मंदिर गड्ढे में हैं। शंकर विमान मण्डपम् गंगा के तट पर स्थित यह एक आधुनिक मन्दिर हैं। यह मन्दिर चार मंजिलों का हैं। इस मन्दिर की कुल ऊँचाई लगभग 40 मीटर अर्थात 130 फुट हैं। इसकी प्रत्येक मंजिल पर अलग अलग देवताओं का वास स्थान हैं। हनुमत् निकेतन यह मन्दिर सिविल लाइन में स्थित हैं यह एक आधुनिक मन्दिर हैं। जो मुख्य रूप से हनुमान जी को समर्पित हैं। सरस्वती कूप किले के भीतर स्थित इस पवित्र कूप के विषय में विश्वास किया जाता हैं। कि यही अदृश्य सरस्वती नदी का स्रोत हैं। समुद्र कूप गंगा पार स्थित झूँसी में समुद्र कूप स्थित है। यह कूप उल्टा किला के अन्दर स्थित है। यह बहुत ऊॅंचे टिले पर है। माना जाता है कि इस कूप में समुद्र का स्रोत है। इस कूप का पानी खारा हैं। मनकामेश्वर मन्दिर यमुना के तट पर स्थित इस मन्दिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक हैं। इस मन्दिर से चबूतरे से यमुना का नजारा अत्यन्त ही मनोहर हैं। इस मन्दिर की विशेषता यहाँ प्रतिदिन लोने वाला श्रृंगार एवं भगवान शिव की दिव्य आरती हैं। शिवकुटी गंगा नदी के किनार स्थित शिवकुटी भगवान शिव को समर्पित है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के द्वारा संस्थापित कोटिश्वर मंदिर है।जब भगवान रावण को मारकर वनवास के उपरांत गुरुदेव भारद्वाज मुनि के आश्रम आए,उन्होंने कहा ब्रह्म हत्या हुई है।अतः उस दोष की निवृत्ति करोड़ शिवलिंग की स्थापना व पूजन करो।भगवान श्री राम ने कहा कि कलियुग में करोड़ शिवलिंग की पूजा सम्भव नही है।तब गुरुदेव ने दोनों हाथों में जितनी बालू आ जाए,उससे शिवलिंग का निर्माण करके पूजन करो। भगवान ने वैसा ही किया।आज भी श्रावण मास में भक्तजन दूर दूर से आकर अपने पापों मो धोते है। कहा जाता है कि प्रयाग में आकर इनका दर्शन अवश्य करना चाहिए।क्योंकि जन्म जन्मांतर के हत्या रूपी दोष को हटाने के लिए यही भगवान है। शास्त्रों में बताया गया है कि आदि कोटिश्वर भगवान भी यहाँ संस्थापित थे।आजकल वह स्थान धर्म संघ संस्कृत विद्यालय कोटिश्वर धाम से जाना जाता है।ये अति प्राचीन भगवान यह संस्थापित है। आदि गुरू शंकराचार्य भगवान भी यहाँ साधना किये है। धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज ,उनके कृपा पात्र यज्ञ सम्राट श्री प्रबल जी महाराज ने इस मंदिर व आश्रम का जीर्णोद्धार कराकर संस्कृत सेवा हेतु समाज को सौप दिया है। ये कोटिश्वर धाम से जाना जाता है।लोग अपभ्रंश में कोटेश्वर महादेव भी बोलते है। पर कोटि ईश्वर महादेव मंदिर ऐसा प्राचीन नाम है। यहाँ सैकड़ो ब्रह्मचारी वेद वेदांग की शिक्षा ले रहे है। गोशाला संचालित है।अन्नक्षेत्र की व्यवस्था है।आयुर्वेद पद्धति से चिकित्सा भी की जा रही है। यहाँ प्रतिदिन यज्ञ भी होता है। प्रवचन ,संत सम्मेलन भी होते रहते है।वर्तमान में कोटिश्वर धाम गोशाला के वर्तमान स्वामी श्री त्रयंबकेश्वर चैतन्य जी महाराज व परम् तपस्वी युवा संत डॉ गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज की कृपा से पुष्पित पल्लवित हो रहा है। शिव कचहरी बडा ही परम् पवित्र स्थान है। सीताराम धाम भी बहुत सुंदर स्थान है। तथा नारायणी आश्रम अपने आप मे दिव्य झांकी लिए हुए सबके मन को आकृष्ट कर लेता है। ये सभी स्थान गंगा तीर पर ही स्थापित है। प्रयागराज में शिवकुटी अपने आप मे तीर्थ है।क्योंकि यहाँ का दर्शन किये बिना प्रयागराज का फल नही मिलता है। भारद्वाज आश्रम, प्रयागराज आनन्द भवन के सामने स्थित एक मन्दिर हैं। यही भगवान राम के वन गमन काल में महर्षि भारद्वाज का आश्रम हुआ करता था। यह आश्रम संत भारद्वाज से संबंधित है। और जब इसी संगम से आगे बडकर गंगा शिवजी की नगरी काशी में पहुँचती हैं तो यह जल से लबालब भरी रहती हैं। यमुना यमुनोत्री की निर्मल धारा लेकर मथुरा में कृष्ण की लीलाओं को रूप देकर और आगरे में ताजमहल को नहला कर प्रयाग में गंगा में विलिन हो जाती हैं। प्रत्येक वर्ष के जनवरी फरवरी में इसकी महत्ता कई गुना बड जाती हैं। इस मेले में करोड़ों लोग संगम के पावन जल में डुबकी लगा कर पुण्य के भागीदार बनते हैं। कल्पवासी संगम के तट पर टेन्ट के बने घरोँ में निवास करते हैं। भारद्वाज आश्रम कर्नलगंज इलाके में स्थित है। यहाँ ऋषि भारद्वाज ने भार्द्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित किया था और इसके अलावा यहाँ सैकड़ों मूर्तियांहैं उनमें से महत्वपूर्ण हैं: राम लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी, सूर्य, शेषनाग, नर वराह। महर्षि भारद्वाज आयुर्वेद के पहले संरक्षक थे। भगवान राम ऋषि भारद्वाज के आश्रम में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आये थे। आश्रम कहाँ था यह अनुसंधान का एक मामला है, लेकिन वर्तमान में यह आनंद भवन के पास है। यहाँ भी भारद्वाज, याज्ञवल्क्य और अन्य संतों, देवी - देवताओं की प्रतिमा और शिव मंदिर है। भारद्वाज वाल्मीकि के एक शिष्य थे। यहाँ पहले एक विशाल मंदिर भी था और पहाड़ के ऊपर एक भरतकुंड था। नाग वासुकी मंदिर यह मंदिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के उत्तरी कोने में स्थित है। यहाँ नाग राज, गणेश, पार्वती और भीष्म पितामाह की एक मूर्ति हैं। परिसर में एक शिव मंदिर है। नाग- पंचमी के दिन एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। मनकामेश्वर मंदिर यह मिंटो पार्क के पास यमुना नदी के किनारे किले के पश्चिम में स्थित है। यहाँ एक काले पत्थर की शिवलिंग और गणेश और नंदी की प्रतिमाएं हैं। हनुमान की भव्य प्रतिमा और मंदिर के पास एक प्राचीन पीपल का पेड़ है। यह प्राचीन शिव मंदिर प्रयागराज के बर्रा तहसील से 40 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक ८० फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है। कहा जाता है कि शिवलिंग ३.५ फुट भूमिगत है और यह भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ कई विशाल बरगद के पेड़ और मूर्तियाँ हैं गोस्वामी तुलसीदास जी रामकथा का आरंभ त्रिवेणी संगम के समीप स्थित प्रयागराज में भरद्वाज मुनि के आश्रम पर परमविवेकी मुनि याज्ञवल्क्य के पावन संवाद से करते हैं ।यहाँ ‘राम पद’, ‘माधव पद जलजाता’का उल्लेख दो चौपाइयों में हुआ है, जो इस भाष्य से संबद्ध है – 1-भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुराग।।1/44/1 2-पूजहिं माधव पद जलजाता । परसि अखय बटु हरषहिं गाता।। 1/44/5 अर्थात् भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं,उनका श्रीराम जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है । तीर्थराज प्रयाग में आने वाले श्री वेणीमाधवजी के चरण कमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्श कर उनके शरीर पुलकित होते हैं । अन्य दर्शनीय स्थल जवाहर प्लेनेटेरियम आनंद भवन के बगल में स्थित जवाहर प्लेनेटेरियम में खगोलीय और वैज्ञानिक जानकारी हासिल करने के लिए जाया जा सकता है। और यह प्लेनेटेरियम 3 डी है। प्रयागराज संग्रहालय कम्पनी बाग के अन्दर सन् 1931 में प्रयागराज संग्रहालय का निर्माण करवाया गया था। इस सग्रहालय में भारत के प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित अनेक वस्तुएँ रखीँ हुयीं हैं। इन वस्तुओँ में कौशाम्बी के अनेक अवशेष संग्रहीत है। कौशाम्बी में प्राप्त बुद्ध की मुर्तियाँ भी इसमें संरक्षित हैं। इस संग्रहालय में प्राचीन सिक्के का एक अनमोल खजाना हैं। पंचमार्क सिक्के ताबे के सिक्के कुषाणोँ तथा गुप्त शासकोँ द्रारा प्राप्त सिक्कोँ के अतिरिक्त यहाँ कुछ मुगलकालीन सिक्के भी हैं। यहाँ मुगलकाल अनेक पेंटिँग देखने को हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक रुसी चित्रकार द्रारा निर्मित अत्यन्त सुन्दर पेंटिँग भी रखी हुयी हैं। प्रयागराज से सम्बन्धित कुछ लेखकोँ यथा महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा आदि के कुछ हस्तलिखित अभिलेख भी इस संग्रहालय में हैं। इस सबसे बडकर यहाँ पर महान स्वाधिनता संग्राम सेनानी चन्द्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल भी रखी हैं। जिससे उन्होने अंग्रेज़ सिपाहियोँ का मुकाबला किया था। पब्लिक लाइब्रेरी कम्पनी बाग के अन्दर पब्लिक लाइब्रेरी स्थिय है। इसकी इमारत अंग्रजी शासन के समय की है। एवं बडी शानदार है। यह लाइब्रेरी उत्तर प्रदेश की सबसे बडी और सबसे प्राचीन लाइब्रेरी हैं। इसकी इमारत बडी शानदार हैं। प्रवेश द्रार के ठीक सामने के कोरीडोरा में बढे खम्भोँ पर बहुत ही सुन्दर रोमन नक्कासी हैं। चौक घंटाघर चौक घंटाघर उत्तर प्रदेश में स्थित एक घड़ी का टॉवर है। यह चौक भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है और मुगलों की कलात्मक और संरचनात्मक कौशल का एक उदाहरण है। यह 1913 में बनाया गया था और लखनऊ के घंटाघर बाद यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घड़ी का टावर है। इसके खम्भोँ पर बहुत ही सुन्दर रोमन नक्कासी हैं। त्रिवेणी पुष्प अरैल यमुना के तट स्थित यह एक भव्य स्थल हैं। यह सबसे सुन्दर स्थान हैं। यहाँ पर कई एतिहासिक चीजे आपको देखने को मिलेगा। जैसे रामजन्मभूमि, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गौतम बुद्ध, बहुत सी मन्दिर हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा गुम्बज (मिनार) देखने को मिलेगा। अरैल 10 किमी यमुना पार अरैल एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र हैं। जिसका प्राचिन नाम अलकापुरी था। देखने योग्य स्थल बहुत हैं। जैसे- त्रिवेणी पुष्प पुष्प विहार सोमेश्वर नाथ मन्दिर श्री बाला त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर चक्रमाधव मन्दिर आदिवेणी माधव मन्दिर नृसिंह मन्दिर महर्षि महेश योगी आश्रम मन्दिर वल्लभाचार्य जी की बैठक फलाहारी बाबा आश्रम मन्दिर सच्चा बाबा आश्रम कोटिश्वर मंदिर भगवान श्री राम द्वारा संस्थापित आदि कोटिश्वर मंदिर धाम गोशाला आदि शंकराचार्य भगवान द्वारा समर्चित ,धर्म संघ विद्यालय ,प्रबल जी महाराज शिवकुटी नारायणी धाम शिवकुटी शिव कचहरी सीताराम धाम आदि देखने योग्य स्थान है। यहाँ सड़क मार्ग या नाव द्वारा जाया जा सकता है। घाट प्रयागराज में पक्के घाट हैं। जो क्रमश: हैं। सरस्वती घाट यमुना के तट स्थित यह एक नवनिर्मित रमणीय स्थल हैं। तीन ओर से सीढियाँ यमुना के हरे जल तक उतर कर जाती हैं। और ऊपर एक पार्क हैं जो सदैव हरी घास से ढका रहता हैं। यहाँ पर बोँटिग करने की भी सुविधा हैं। यहाँ से नाव द्रारा संगम पहुचने का भी मार्ग हैं। अरैल घाट अरैल यमुना घाट यह प्रयागराज का सबसे बड़ा घाट है और यह सबसे आधुनिक घाट हैं। यह एक भव्य स्थान हैं और टहलने का सबसे अच्छा स्थान हैं। यह एक दशर्नीय स्थल हैं। यहाँ पर बोँटिग करने की भी सुविधा हैं यहाँ पर स्नानार्थियों के लिये सिटिंग प्लाजा भी हैं। संगम घाट बलुआ घाट बरगद घाट बोट क्लब घाट रसूलाबाद घाट छतनाग घाट शंकर घाट दशाश्वमेघ घाट गऊ घाट किला घाट नेहरु घाट चंद्रशेखर आजाद घाट फाफामऊ कुरेशर घाट श्रृंगवेरपुर घाट इनके अतिरिक्त सौ से अधिक कच्चे घाट हैं। प्रयागराज कुंभ मेला प्रयागराज में लगने वाला कुंभ मेला शहर के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र है। अनगिनत श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। यहाँ मेला एक वर्ष माघ मेला तीन वर्ष छः वर्ष अर्द्धकुम्भ और बारह वर्ष महाकुंभ लगता है। भारत में यह धार्मिक मेला चार जगहों पर लगता है। यह जगह नाशिक, प्रयाग, उज्जैन और हरिद्वार में हैं। प्रयागराज में लगने वाला कुंभ का मेला सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। इस मेले में हर बार विशाल संख्या में भक्त आते हैं। यहाँ पर जनवरी फरवरी में विश्व का सबसे बड़ा शहर कहा जाता हैं। यहाँ कि जनसख्या करीब दस करोड में होती हैं। इस मेले में आए लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं। अर्थात गंगा यमुना सरस्वती नदी हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष आने वाले शिवरात्रि के त्योहार को भी यहां बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हजारों की संख्या में आए तीर्थयात्री इस पर्व को भी पूरे उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए राज्य सरकार कुछ विशेष प्रकार का प्रबंध करती है। यहां दर्शन करने आए तीर्थयात्रियों के रहने के लिए बहुत से होटल गेस्ट हाउस और धर्मशाला की सुविधा मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित घाट बहुत ही साफ और सुंदर है। त्योहारों के समय यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। पार्क चंद्रशेखर आजाद पार्क या कम्पनी बाग: अंग्रेजों द्वारा शहर के बीचोँ बीच बसाया गया यह एक अनोखा पार्क है। शायद हा किसी शहर के बीचों बीच इतना बड़ा पार्क मिले। इसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता हैं कि इस बाग के अन्दर एक स्टेडियम, एक म्यूजियम, एक पुस्तकालय, तीन नसरियाँ, एक विश्वविघालय और प्रयाग संगीत समिति भी स्थित हैं विक्टोरिया मेमोरियल: कम्पनी बाग के बीचो बीच सफेद संगमरमर का बना एक स्मारक हैं। इस मेमोरियल के आस पास के नितान्त सुन्दर पार्क है जो सदैव हरी घास से ढका रहता है। मिन्टो पार्क, इलाहाबाद: सफेद पत्थर के इस मैमोरियल पार्क में सरस्वती घाट के निकट सबसे ऊंचे शिखर पर चार सिंहों के निशान हैं। नेहरु पार्क: यह एक आधुनिक पार्क हैं। यह पार्क मैक्फरसन झील के आस पास के स्थान का सौँदर्यीकरण करके बनाया गया हैं। यहाँ पर बोँटिक करने की सुविधा हैं। भारद्वाज पार्क: यह पार्क भी एक भ्रमण करने योग्य स्थान हैं। इसे बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया हैं। हाथी पार्क: चन्द्रशेखर पार्क के पास स्थित हैं। इसमे पत्थर का एक बड़ा हाथी बच्चोँ के मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। यह स्थान बच्चोँ के घुमने के लिये हैं। पीडी टण्डन पार्क: सिविल लाइंस इलाके में एक तिकोने आकार का पार्क। इसके एक कोने पर हनुमान मंदिर चौक है। खुसरो बाग: प्रयागराज शहर के पश्चिम छोर प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास स्थित खुसरो बाग मुगलकालीन इतिहास की एक अमिट धरोहर हैं। यह 17 बीधे के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ हैं। यह चारोँ मोटे मोटे दिवारो से घीरा हैं। इसके चारोँ ओर एक एक दरवाजे हैं। जहागीर ने इसे अपना आरामगाह बनाया था। जहागीर के पुत्र खुसरो के नाम पर ही इसका नाम खुसरो बाग पडा। इस बाग में तीन मकबरे हैं। पहला मकबरा शहजादा खुसरो का हैं। इसका मकबरा खुसरो की राजपूत माक शाँह बेगम के लिये बनाया गया था। खुसरो बाग के अन्दर जाने का मुख्य द्रार अति विशाल हैं। इसमें अनेकोँ घोडोँ की नाली लागी हुयी हैं। ऐसी मान्यता हैं कि अपने मालिक की और अपने मालिक कि जान बचायी थी तभी से लोग बाग के अन्दर बने मकबरे में मन्नत मानते हैं। और कार्य के पूरा होने पर इसी दरवाजे में धोडे के नाल लगवा देते हैं। खुसरो बाग में अमरुद के कई बगीचे हैं। यहाँ के अमरुदोँ को विदेश में निर्यात किया जाता हैं। साथ ही वर्तमान में यहाँ पौधशाला हैं। जिससें हजारोँ पौधोँ की बिक्री की जाती हैं। चित्रदीर्घा शिक्षा प्रयागराज प्राचीन काल से ही शैक्षणिक नगर के रूप में प्रसिद्ध है। प्रयागराज केवल गंगा और यमुना जैसी दो पवित्र नदियों का ही संगम नही, अपितु आध्यात्म के साथ शिक्षा का भी संगम है, जैहा भारत के सभी राज्यो से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जँहा से अनेकानेक विद्वान ने शिक्षा ग्रहण कर देश व समाज के अनेक भागो में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूर्व का आक्सफोर्ड ("Oxford of the East") भी कहा जाता है। प्रयागराज में कई विश्वविद्यालय, शिक्षा परिषद, इंजीनियरी महाविद्यालय, मेडिकल कालेज तथा मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे है। प्रयागराज में स्थापित विश्वविद्यालय के नाम निम्नलिखित हैं- इलाहाबाद विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय इलाहाबाद एग्रीकल्चर संस्थान (मानित विश्वविद्यालय)-(AAI-DU) नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय, जमुनीपुर कोटवा। इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय, सिविल लाइंस, प्रयागराज यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज प्रयागराज में स्थापित इंजीनिरिंग कालेज के नाम निम्नलिखित है- मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान प्रयागराज (MNNIT) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फारमेशन टेक्नालाजी, इलाहाबाद (IIIT-A) हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI) बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी (BIT-Mesra)-(विस्तार पटल) उपर्यक्त के अतिरिक्त अन्य इंजीनिरिंग कालेज प्रयागराज में उच्च गुणवत्ता वाले कोचिंग संस्थान जो सरकारी नौकरीयों की तैयारी करवाते हैं- १. सुपर क्लाइमैक्स अकादमी प्राइवेट लिमिटेड, प्रयागराज २. चंद्रा इंस्टीट्यूट, प्रयागराज ३. दस्तक कैरियर कोचिंग, प्रयागराज ४. धेय आईएएस, प्रयागराज ५. सन्देश अकादमी, प्रयागराज ६. अन्य उद्योग प्रयागराज में शीशा और तार कारखाने काफी हैं। यहां के मुख्य औद्योगिक क्षेत्र हैं नैनी और फूलपुर, जहां कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों की इकाइयां, कार्यालय और निर्माणियां स्थापित हैं। इनमें अरेवा टी एण्ड डी इण्डिया (बहुराष्ट्रीय अरेवा समूह का एक प्रभाग), भारत पंप्स एण्ड कंप्रेसर्स लि. यानी बीपीसीएल) जिसे जल्दी ही मिनिरत्न घोषित किया जाने वाला है, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (आई.टी.आई), रिलायंस इंडस्ट्रीज़-इलाहाबाद निर्माण प्रखंड, हिन्दुस्तान केबल्स, त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लि. (टी.एस.एल. भारत यंत्र निगम की एक गौण इकाई), शीशा कारखाना, इत्यादि। बैद्यनाथ की नैनी में एक निर्माणी स्थापित है, जिनमें कई कुटीर उद्योग जैसे रसायन, पॉलीयेस्टर, ऊनी वस्त्र, नल, पाईप्स, टॉर्च, कागज, घी, माचिस, साबुन, चीनी, साइकिल एवं पर्फ़्यूम आदि निर्माण होते हैं। इंडीयन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स को-ऑपरेटिव इफको फूलपुर क्षेत्र में स्थापित है। यहाम इफको की दो इकाइयां हैं, जिनमें विश्व का सबसे बड़ा नैफ्था आधारित खाद निर्माण परिसर स्थापित है। प्रयागराज में पॉल्ट्री और कांच उद्योग भी बढ़ता हुआ है। राहत इंडस्ट्रीज़ का नूरानी तेल, काफी अच्छा और पुराना दर्दनिवारक तैल है, जिसकी निर्माणी नैनी में स्थापित है। तीन विद्युत परियोजनाएं मेजा, बारा और करछना तहसीलों में जेपी समूह एवं नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन द्वारा तैयार की जा रही हैं। क्रीडा प्रयागराज का भारतीय जिम्नास्टिक्स में प्रमुख स्थान है। यहां की टीम सार्क और एशियाई देशों में अग्रणी रही है। झालवा में खेलगांव पब्लिक स्कूल जिम्नास्टिक्स का प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। यहां के जिम्नास्ट्स को ३३वें ट्यूलिट पीटर स्मारक कप-२००७, हंगरी में २ स्वर्ण पदक मिले हैं। हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म भी प्रयागराज में ही २९ अगस्त १९०६ को हुआ था। उन्होंने तीन लगातार ऑलंपिक खेलों में एम्स्टर्डैम (१९२८), लॉस एंजिलिस (१९३२) और बर्लिन (१९३६) में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किये थे। मोहम्मद कैफ, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी यहीं के हैं। अभिन्न श्याम गुप्ता भी एक उभरते हुए बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने २००२ में राष्ट्रीय पदक प्राप्त किया था। परिवहन right|thumb|रज्जु-आधारित चार-लेन का सेतु प्रयागराज में यमुना नदी पर भारत के सबसे बड़े निर्माणों में से एक हैं। वायुमार्ग प्रयागराज में वायु सेवा का विकास प्रगतिशील हैं। अभी इलाहाबाद विमानक्षेत्र से दिल्ली, कोलकाता, जयपुर, अहमदाबाद, चेन्नई, बैंगलुरू, हैदराबाद के लिए सीधी या वाया उडानें हैं। अभी यहां का हवाई अड्डा एयरफोर्स स्टेशन बमरौली में ही है। उड़ान योजना के तहत लखनऊ और पटना भी इलाहाबाद से जुड़ गए हैं। जनवरी 2019 में होने वाले कुम्भ से पहले एक नया टर्मिनल बनाने की सरकार की योजना है। निकटवर्ती बड़े विमानक्षेत्रों में वाराणसी विमानक्षेत्र ) एवं लखनऊ (अमौसी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं। जलमार्ग प्रयागराज में जलमार्ग का विकास अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में हैं 22 अक्टूबर 1986 ई, राष्ट्रिय जलमार्ग एक, जो कि इलाहाबाद से हल्दिया (पं बंगाल) 1620 KM तक हैं। सड़क प्रयागराज दिल्ली-कोलकाता मार्ग के बीच स्थित है। स्वर्ण चतुर्भुज के मार्गों में से एक, राष्ट्रीय राजमार्ग २ दिल्ली और कोलकाता के लिये उपयुक्त है। राष्ट्रीय राजमार्ग ९६ राष्ट्रीय राजमार्ग २८ से फैजाबाद से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 24B लखनऊ से जोडता हैं राष्ट्रीय राजमार्ग 76 झाँसी,बांदा, से जोडता हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 76E यह मार्ग मिर्जापुर जिला से जोडता हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग २७ लंबा है और इसे मध्य प्रदेश में मंगवान में राष्ट्रीय राजमार्ग ७ से जोड़ता है। विश्व बैंक द्वारा वित्त-पोषित ८४.७ कि॰मी॰ लंबा बायपास मार्ग प्रयागराज एक्सप्रेसवे हाइवे है। contentMDK:20133102~menuPK:64282137~pagePK:41367~piPK:279616~theSitePK:40941,00.html इण्डिया- प्रयागराज बायपास परियोजना इसके द्वारा न केवल राजमार्गों का यातायात ही सुलभ होगा, बल्कि शहर के हृदय से गुजरने वाला यातायात भी हल्का होगा। अन्य कई राज्य-राजमार्ग शहर को देश के अन्य भागों से जोड़ते हैं। प्रयागराज से कुछ महत्वपूर्ण स्थलो की दूरी इस प्रकार हैं - अयोध्या—167 किमी, चित्रकूट—167 किमी, आगरा—433 किमी, अहमदाबाद—1207 किमी, दिल्ली—643 किमी, भोपाल—680 किमी, मुम्बई—1444 किमी, बांदा-195 किमी, कोलकाता—799 किमी, हैदराबाद—1080 किमी, जयपुर—673 किमी, झांसी—375 किमी, लखनऊ—204 किमी, वाराणसी—120 किमी, कानपुर—193 किमी, बस अड्डे प्रयागराज में राज्य परिवन निगम के तीन डिपो (बस-अड्डे) हैं: लीडर रोड (बस अड्डा): यहाँ से कानपुर, आगरा व दिल्ली हेतु बसे उपलब्ध हैं। सिविल लाईन्स (बस अड्डा): यहाँ से लखनऊ फैजाबाद ,जौनपुर,गोरखपुर आदि के लिये बसे उपलब्ध हैं। जीरो रोड (बस अड्डा): यहाँ से रीवा सतना खजुराहो आदि के लिये बसे उपलब्ध हैं। और झूँसी डिपो, नैनी डिपो फाफामऊ डिपो बस स्टैंड सिविल लाइंस और जीरो रोड पर जो विभिन्न मार्गों पर बस-सेवा सुलभ कराते हैं। दोनों नदियों पर बड़ी संख्या में बने सेतु शहर को अपने उपनगरों जैसे नैनी, झूँसी फाफामऊ आदि से जोड़ते हैं। नया आठ-लेन नियंत्रित एक्स्प्रेसवे- गंगा एक्स्प्रेसवे इलाहाबाद से गुजरना प्रस्तावित है। इलाहाबाद जिले में एक नयी ८-लेन मुद्रिका मार्ग सड़क भी प्रतावित है। स्थानीय यातायात हेतु नगर बस सेवा, ऑटोरिक्शा, रिक्शा एवं टेम्पो उपलब्ध हैं। इनमें से सबसे सुविधाजनक साधन साइकिल रिक्शा है। right|thumb|इलाहाबाद रेलवे स्टेशन रेलसेवा thumb|280px|प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन भारतीय रेल द्वारा जुड़ा हुआ, प्रयागराज जंक्शन उत्तर मध्य रेलवे का मुख्यालय है। ये अन्य प्रधान शहरों जैसे कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, छपरा, पटना, भोपाल, ग्वालियर,जौनपुर, जबलपुर, बंगलुरु जयपुर एवं कानपुर से भली भांति जुड़ा हुआ है। कुछ अन्य शहरों जैसे बांदा,फतेहपुर आदि से जुड़ा हुआ है। शहर में 11 रेलवे-स्टेशन हैं: प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन प्रयागराज रामबाग रेलवे स्टेशन प्रयागराज संगम रेलवे स्टेशन प्रयाग रेलवे स्टेशन नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन प्रयागराज छिवकी रेलवे स्टेशन दारागंज रेलवे स्टेशन सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन बमरौली रेलवे स्टेशन फाफामऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन झूसी रेलवे स्टेशन अटरामपुर रेलवे स्टेशन लालगोपालगंज रेलवे स्टेशन प्रयागराज के उल्लेखनीय व्यक्ति मदन मोहन मालवीय (स्वतंत्रता सेनानी) मोतीलाल नेहरु (वकील और राजनीतिज्ञ) उपेन्द्रनाथ अश्क (उपन्यासकार) अक़बर इलाहाबादी (उर्दू कवि) अमिताभ बच्चन (अभिनेता) इंदिरा गांधी (प्रधान मंत्री) जगदीश गुप्त (कवि, कला-इतिहासज्ञ) जवाहरलाल नेहरु (प्रधान मंत्री एवं राजनीतिज्ञ) धर्मवीर भारती (हिन्दी लेखक) ध्यानचन्द (हॉकी खिलाड़ी) पुरुषोत्तमदास टंडन (राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी) फिराक गोरखपुरी (उर्दू कवि) मणीन्द्र अग्रवाल (संगणक वैज्ञानिक) महर्षि महेश योगी (आध्यात्मिक गुरु) महादेवी वर्मा (कवयित्री एवं लेखिका) मुरली मनोहर जोशी (राजनीतिज्ञ, पूर्व कैबिनेट मंत्री) मुहम्मद कैफ (क्रिकेट खिलाड़ी) मृगांक सूर (तंत्रिका वैज्ञानिक) रामकुमार वर्मा (हिन्दी कवि) विभूतिनारायण राय (लेखक) विश्वनाथ प्रताप सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री) वी एन खरे (पूर्व प्रमुख न्यायाधीश, भारत) शुभा मुद्गल (गायिका, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत) सुमित्रानंदन पंत (हिन्दी कवि) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (हिन्दी कवि) हरिप्रसाद चौरसिया (शास्त्रीय वादक) हरिवंशराय बच्चन (कवि) हरीशचन्द्र (भौतिकशास्त्री, गणितज्ञ) राजेंद्र कुमार (साहित्यकार, आलोचक और समाजशास्त्री) भारत के १४ प्रधानमंत्रियों में से ७ का इलाहाबाद से घनिष्ट संबंध रहा है: जवाहर लाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुलजारी लाल नंदा, विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं चंद्रशेखर; यह या तो यहां जन्में हैं, या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं।उत्तर प्रदेश पर्यटन के जालस्थल पर - इलाहाबाद इन्हें भी देखें त्रिवेणी संगम प्रयागराज ज़िला इलाहाबाद उच्च न्यायालय बाहरी कड़ियाँ प्रयागराज विकास प्राधिकरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय इलाहाबाद शिक्षा बोर्ड सन्दर्भ * श्रेणी:प्रयागराज ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:प्रयागराज ज़िले के नगर श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना श्रेणी:प्राचीन भारत के नगर श्रेणी:नदी संगम
आगरा
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आगरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। आगरा शहर यमुना नदी के तट पर स्थित एक महानगर है। यह राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के २०६ किलोमीटर (१२८ मील) दक्षिण में स्थित है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार १५,८५,७०४ की जनसंख्या के साथ आगरा उत्तर प्रदेश का चौथा और भारत का २३वां सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 दिल्ली सल्तनत के उदय से पहले आगरा का इतिहास स्पष्ट नहीं है। १७ वीं शताब्दी के एक वृत्तांत में सिकंदर लोदी (१४८८-१५१७) के समय से पहले आगरा को एक पुरानी बस्ती के रूप में बुलाया था, जो महमूद गजनवी द्वारा इसके विनाश के कारण महज एक गाँव था। ११ वीं सदी के फ़ारसी कवि मासूद सलमान ने आगरा के किले पर गजनवी के आक्रमण का उल्लेख किया है, जो तब राजा जयपाल के शासनाधीन था। जयपाल के आत्मसमर्पण के बावजूद, महमूद ने किले को लूट लिया था। १५०४ में सिकंदर लोदी ने अपनी राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानांतरित किया था। उनके काल में किले में कई महल, कुएँ और एक मस्जिद का निर्माण किया गया। १५२६ में पानीपत के प्रथम युद्ध में हार के बाद यह मुगल शासन के अंतर्गत आया। १५४० और १५५६ के बीच, शेरशाह सूरी ने इस क्षेत्र पर शासन किया। यह १५५६ से १६४८ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा। आगरा पर बाद में मराठों का अधिपत्य रहा, जिनके बाद यह ब्रिटिश राज के अंतर्गत आ गया। आगरा अपनी कई मुगलकालीन इमारतों के कारण एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, विशेषकर ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी के लिये, जो सभी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। दिल्ली और जयपुर के साथ आगरा गोल्डन ट्राइंगल टूरिस्ट सर्किट में शामिल है; और लखनऊ और वाराणसी के साथ यह उत्तर प्रदेश राज्य के एक पर्यटक सर्किट, उत्तर प्रदेश हेरिटेज आर्क का हिस्सा है। सांस्कृतिक रूप से आगरा ब्रज क्षेत्र में स्थित है। आगरा २७.१८° उत्तर ७८.०२° पूर्व में यमुना नदी के तट पर स्थित है। समुद्र-तल से इसकी औसत ऊँचाई क़रीब १७१ मीटर (५६१ फ़ीट) है। यह यमुना एक्सप्रेसवे के माध्यम से दिल्ली से और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के माध्यम से लखनऊ से जुड़ा हुआ है। इतिहास मुगल काल से पूर्व आगरा के दो इतिहास हैं: पहला यमुना नदी के बाएं तट पर पूर्वी दिशा की ओर स्थित कृष्ण और महाभारत की किंवदंतियों में वर्णित प्राचीन नगर का, जिसे सिकंदर लोदी द्वारा १५०४-१५०५ में पुनः स्थापित किया गया था; और दूसरा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित आधुनिक नगर का, जो १५५८ में अकबर द्वारा स्थापित किया गया था, और आज विश्व भर में ताज-नगरी के रूप में जाना जाता है। प्राचीन आगरा की नींव के कुछ निशानों को छोड़कर अब कुछ नहीं बचा है। यह भारत में हुए मुस्लिम आक्रमणों से पहले विभिन्न हिंदू राजवंशों के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण स्थान था, लेकिन इसका इतिहास अस्पष्ट है। १७ वीं शताब्दी के इतिहासकार अब्दुलल्लाह ने लिखा है कि सिकंदर लोदी के शासनकाल से पहले यह एक गांव था और यहाँ के पुराने किले का प्रयोग मथुरा के राजा द्वारा जेल के रूप में किया जाता था। नगर का विनाश १०१७ में महमूद गजनवी द्वारा किए गए विध्वंस के परिणामस्वरूप हुआ।Abraham Eraly, The Age of Wrath: A History of the Delhi Sultanate मसूद साद सलमान ने दावा किया है कि वह वहीं था, जब महमूद ने आगरा पर आक्रमण किया; राजा जयपाल ने स्थिति की भयावहता को देखकर आत्मसमर्पण कर दिया था परन्तु फिर भी महमूद नगर को लूटने के लिए आगे बढ़ गया।Sunil Sharma, Persian Poetry at the Indian Frontier: Masʻŝud Saʻd Salmân of Lahore अंगूठाकार|बाएँ|सिकंदरा में स्थित मरियम मकबरे का निर्माण सिकंदर लोधी ने १४९५ में एक बारादरी के रूप में करवाया था। आगरा का ऐतिहासिक महत्त्व दिल्ली सल्तनत के अफगान शासक सुल्तान सिकंदर लोधी के शासनकाल (१४८९-१५१७) के समय शुरू हुआ। सिकंदर लोधी ने एक नवीन नगर की स्थापना के लिए एक आयोग नियुक्त किया, जिसने दिल्ली से इटावा तक यमुना के दोनों किनारों का निरीक्षण और सर्वेक्षण किया, और अंत में नगर की स्थापना के लिए यमुना के पूर्व दिशा की ओर एक स्थान चुना। १५०४-१५०५ में, सिकंदर लोदी ने आगरा का पुनर्निर्माण किया और इसे सल्तनत की राजधानी बना दिया। यमुना के बाएं किनारे पर स्थित आगरा लोधी शासनकाल में शाही अधिकारियों, व्यापारियों, विद्वानों, धर्मशास्त्रियों और कलाकारों की उपस्थिति के साथ एक बड़े एवं समृद्ध नगर के रूप में विकसित हुआ। यह भारत में इस्लामी शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बन गया। सुल्तान ने नगर के उत्तर में सिकंदरा ग्राम की भी स्थापना की और वहां १४९५ में लाल बलुआ पत्थर की एक बारादरी बनाई, जिसे जहांगीर ने एक मकबरे में बदल दिया था, और अब अकबर की महारानी मरियम-उज़-ज़मानी के मकबरे के रूप में जाना जाता है। १५१७ में सुल्तान की मृत्यु के बाद आगरा उसके पुत्र इब्राहिम लोदी (शासनकाल १५१७-२६) के पास चला गया, जिसने १५२६ में पानीपत के प्रथम युद्ध में मुगल सम्राट बाबर के हाथों अपनी मृत्यु तक आगरा से ही दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। मुगल काल आगरा का स्वर्ण युग मुगलों के साथ शुरू हुआ। १६५८ तक आगरा मुगल साम्राज्य की राजधानी होने के साथ-साथ भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्रमुख शहर था, जिसके बाद औरंगज़ेब ने राजधानी और पूरे दरबार को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। अंगूठाकार|भारत के पहले औपचारिक मुगल उद्यान, आराम बाग की स्थापना बाबर ने यमुना नदी के तट पर की थी। मुगल वंश के संस्थापक बाबर (शासनकाल १५२६-३०) ने १५२६ में पानीपत के प्रथम युद्ध में लोधी और ग्वालियर के तोमरों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया। पानीपत के युद्ध के तुरंत बाद आगरा के साथ बाबर का संबंध शुरू हुआ। उसने अपने बेटे हुमायूँ को आगे भेजा, जिसने निर्विरोध नगर पर अधिकार कर लिया। पानीपत में मारे गए ग्वालियर के राजा ने अपने परिवार और अपने कबीले के मुखियाओं को आगरा में छोड़ दिया था। हुमायूँ ने उनके साथ उदारता से व्यवहार किया और उन्हें लूट से बचाया, जिस कारण उन्होंने श्रद्धांजलि के रूप में मुगलों को बहुत सारे गहने और कीमती रत्न भेंट किए, जिनमें प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी था। बाबर ने यमुना नदी के तट पर भारत के पहले औपचारिक मुगल उद्यान, आराम बाग की स्थापना की। बाबर आगरा में अपनी राजधानी स्थापित करने के लिए दृढ़ था, लेकिन इस क्षेत्र की उजाड़ स्थिति से लगभग निराश था, जैसा कि उसके संस्मरण, बाबरनामा के इस उद्धरण से स्पष्ट है: बाबर के नगर, उसके फलों और फूलों के बगीचों, महलों, स्नानागारों, तालाबों, कुओं और जलकुंडों के बहुत कम अवशेष बचे हैं। बाबर के चारबाग के अवशेष आज यमुना के पूर्व की ओर आराम बाग में देखे जा सकते हैं। बाबर के बाद उसका पुत्र हुमायूँ (शासनकाल १५३०-४० और १५५५-५६) आया, लेकिन ताजपोशी के ठीक नौ साल बाद १५३९ में शेर शाह सूरी ने उसे कन्नौज के युद्ध में पराजित कर दिया। सूरी एक अफगान रईस था, जो बाबर के शासनकाल में बिहार का राज्यपाल था। १५४० और १५५६ के बीच सूरी ने अल्पकालिक सूरी साम्राज्य की स्थापना की। हालाँकि, इस क्षेत्र को अंततः १५५६ में पानीपत के द्वितीय युद्ध में हुमायूँ के पुत्र अकबर द्वारा फिर से जीत लिया गया। अंगूठाकार|left|अकबर ने आगरा को शिक्षा, कला, वाणिज्य और धर्म का केंद्र बनाने के अलावा, आगरा के किले की विशाल प्राचीरों का भी निर्माण करवाया। अकबर (शासनकाल १५५६-१६०५) और उसके बाद उनके पोते शाहजहाँ के शासन काल में आगरा विश्व इतिहास में अमर हो गया था। अकबर ने यमुना के दाहिने किनारे पर आगरा के आधुनिक शहर का निर्माण किया, जहां इसका अधिकांश हिस्सा अभी भी निहित है। उसने नगर को राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व के एक महान केंद्र के रूप में बदल दिया, और इसे अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों से जोड़ा। अकबर ने आगरा को शिक्षा, कला, वाणिज्य और धर्म का केंद्र बनाने के अलावा, आगरा के किले की विशाल प्राचीरों का भी निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त उसने आगरा से लगभग ३५ किमी दूर, फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी भी बसाई, जिसे, हालाँकि, अंततः छोड़ दिया गया। अकबर की मृत्यु से पहले, आगरा पूर्वी विश्व के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया था, जिसके बाज़ारों में बड़ी मात्रा में व्यापार और वाणिज्य होता था। अकबर के जीवन काल में सितंबर १५८५ में आगरा का दौरा करने वाले अंग्रेज यात्री राल्फ फिच ने नगर के बारे में लिखा है: फिच की इन धारणाओं की पुष्टि एक अन्य यूरोपीय यात्री विलियम फिंच ने की, जिसने आगरा के बारे में टिप्पणी की: अंगूठाकार|जहाँगीर के शासनकाल में निर्मित एतमादुद्दौला का मकबरा भारत का पहला ऐसा मकबरा है, जो पूर्णतः श्वेत संगमरमर से बना है। अकबर के उत्तराधिकारी जहांगीर के शासनकाल के दौरान भी आगरा विस्तृत होता और फलता-फूलता रहा, जैसा कि उसने अपनी आत्मकथा तुजक-ए-जहाँगीरी में लिखा है: अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर (शासनकाल १६०५-२७) को वनस्पतियों और जीवों से प्यार था और उसने लाल किले के अंदर कई उद्यान बनाए। सिकंदरा में अकबर का मकबरा जहाँगीर के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ था। आगरा के किले में जहाँगीरी महल और एतमादुद्दौला का मकबरा भी जहाँगीर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। जहांगीर आगरा से अधिक लाहौर और कश्मीर से प्रेम करता था, लेकिन आगरा फिर भी उसके शासनकाल में साम्राज्य का सबसे प्रमुख नगर बना रहा। हालाँकि, वह शाहजहाँ (शासनकाल १६२८-५८) था, जिसकी निर्माण गतिविधि ने आगरा को उसकी महिमा के शिखर तक पहुँचाया। शाहजहाँ, जो वास्तुकला में गहरी रुचि के लिए जाना जाता है, ने आगरा को अपना सबसे बेशकीमती स्मारक, ताजमहल दिया। उसकी पत्नी मुमताज महल की प्रेमपूर्ण स्मृति में निर्मित यह मकबरा १६५३ में बनकर तैयार हुआ था। जामा मस्जिद और किले के अंदर दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद समेत कई अन्य उल्लेखनीय इमारतें भी शाहजहां के आदेश पर ही योजनाबद्ध एवं निष्पादित की गई। शाहजहाँ ने बाद में वर्ष १६४८ में राजधानी को शाहजहानाबाद (अब दिल्ली) में स्थानांतरित कर दिया, और उसके बाद उसके बेटे औरंगजेब (शासनकाल १६५८-१७०७) ने १६५८ में पूरे दरबार को दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया। इसके साथ ही आगरा का पतन तेजी से शुरू हुआ। फिर भी, आगरा का सांस्कृतिक और सामरिक महत्त्व अप्रभावित रहा और आधिकारिक पत्राचार में इसे साम्राज्य की दूसरी राजधानी के रूप में जाना जाता रहा। ब्रिटिश काल अंगूठाकार|बाएँ|आगरा नगर एवं किले का दृश्यआगरा १८३४ से १८३६ तक आगरा प्रेसीडेंसी की और इसके बाद १८३६ से १८६८ तक उत्तर-पश्चिमी प्रान्त की राजधानी रहा। मुगल साम्राज्य के पतन के उपरान्त कई क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, और १८वीं शताब्दी के अंत तक आगरा का नियंत्रण जाटों, मराठों और ग्वालियर के शासकों के हाथों होता हुआ अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास चला गया। भरतपुर के जाटों ने मुगल दिल्ली के विरुद्ध कई युद्ध किए और १७वीं और १८वीं शताब्दी में आगरा सहित समीपवर्ती मुगल क्षेत्रों में कई अभियान चलाए। इसके बाद आगरा मराठों के भी अधीन रहा, हालाँकि द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में मराठों की पराजय के पश्चात १८०३ की सुर्जी-अर्जुनगाँव की सन्धि के अंतर्गत सम्पूर्ण आगरा परिक्षेत्र पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अधिकार कर लिया। १८३४-१८३६ में आगरा एक गवर्नर द्वारा प्रशासित अल्पकालिक आगरा प्रेसीडेंसी की राजधानी बना। इसके बाद १८३६ से १८६८ तक यह एक लेफ्टिनेंट-गवर्नर द्वारा शासित उत्तर-पश्चिमी प्रान्त की भी राजधानी रहा। आगरा १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के केंद्रों में से एक था। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मेरठ में हुए विद्रोह की खबर १४ मई को आगरा पहुंची। ३० मई को ब्रिटिश सरकार द्वारा ४४वीं और ६७वीं नेटिव इन्फैंट्री की कुछ कंपनियों को राजकोष लाने के लिए मथुरा भेजा गया था, परन्तु उन्होंने विद्रोह कर दिया और राजकोष को दिल्ली में विद्रोहियों के पास ले गए। आगरा में भी विद्रोह के फैलने की आशंका के कारण आगरा छावनी में जितनी भी देशी पैदल सेना बटालियनें थी, सभी को ३१ मई को अंग्रेजों द्वारा निरस्त्र कर दिया गया। हालाँकि, जब ग्वालियर की टुकड़ी ने १५ जून को विद्रोह किया, तो अन्य सभी देशी इकाइयों ने भी इसका अनुसरण किया। २ जुलाई को विद्रोही सेना की नीमच और नसीराबाद टुकड़ियाँ फतेहपुर सीकरी पहुँची। विद्रोहियों के आगरा में आगे बढ़ने के डर से, ३ जुलाई को लगभग ६००० यूरोपीय और संबंधित लोग सुरक्षा के लिए आगरा किले में चले गए। ५ जुलाई को वहां तैनात ब्रिटिश सेना ने विद्रोहियों की एक निकट आ रही सेना पर हमला करने का प्रयास किया, जिसमें उन्हें विद्रोहियों के हाथों पराजय प्राप्त हुई, और अंग्रेज वापस किले में लौट आए। लेफ्टिनेंट-गवर्नर, जे.आर. कॉल्विन, की वहीं मृत्यु हो गई, और बाद में उन्हें दीवान-ए-आम के सामने दफना दिया गया। हालाँकि, विद्रोही दिल्ली चले गए, क्योंकि वह विद्रोहियों के लिए एक अधिक महत्वपूर्ण जगह थी। अंगूठाकार|आगरा की मुख्य सड़क, १८५८आगरा १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के केंद्रों में से एक था। विद्रोह के कारण नगर में अव्यवस्था चरम पर थी, लेकिन फिर भी अंग्रेज ८ जुलाई तक आंशिक व्यवस्था बहाल करने में सफल रहे। दिल्ली सितंबर में अंग्रेजों के अधीन हो गई, जिसके बाद ब्रिगेडियर एडवर्ड ग्रेटेड के नेतृत्व में एक पैदल सेना ब्रिगेड विद्रोहियों के विरोध के बिना ११ अक्टूबर को आगरा पहुंची। उनके आगरा आने के कुछ ही समय बाद विद्रोहियों की एक और सेना ने अचानक ब्रिगेड पर हमला कर दिया, जिसमें विद्रोहियों की हार हुई। अंग्रेजों की इस छोटी सी जीत को आगरा की लड़ाई का नाम दिया गया। हालाँकि, दिल्ली, झांसी, मेरठ और अन्य प्रमुख विद्रोही शहरों और क्षेत्रों की तुलना में आगरा में विद्रोह अपेक्षाकृत मामूली था। इसके बाद ब्रिटिश शासन फिर से सुरक्षित हो गया, और ब्रिटिश राज ने १९४७ में भारत की स्वतंत्रता तक नगर पर शासन किया। उत्तर पश्चिमी प्रांत की राजधानी को १८६८ में आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। परिमाणस्वरूप, आगरा मात्र एक प्रांतीय शहर ही रह गया, और धीरे-धीरे इसकी समृद्धि में निरंतर गिरावट आने लगी: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आगरा की भूमिका को अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं किया गया है। हालाँकि, १८५७ के विद्रोह और स्वतंत्रता के बीच के वर्षों में यह नगर हिंदी और उर्दू पत्रकारिता का एक प्रमुख केंद्र था। आगरा में स्थित पालीवाल पार्क (पहले हेविट पार्क) का नाम एसकेडी पालीवाल के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने नगर से हिंदी दैनिक सैनिक का प्रकाशन किया था। स्वतंत्र भारत में अंगूठाकार|left|ताजमहल भारत और उसकी मृदु शक्ति का प्रतीक बन गया है। भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही आगरा उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहा है और धीरे-धीरे एक औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हुआ है, जिसने उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह नगर अब एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और दुनिया भर से पर्यटकों की मेजबानी करता है। ताजमहल और आगरा के किले को १९८३ में, और फतेहपुर सीकरी को १९८६ में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ। ताजमहल में साल भर बड़ी संख्या में पर्यटकों, छायाचित्रकारों, इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का आगमन लगा ही रहता है। ताजमहल भारत और उसकी मृदु शक्ति का प्रतीक बन गया है। स्वतंत्रता के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड आइज़नहावर (१९५९), बिल क्लिंटन (२०००) और डॉनल्ड ट्रम्प (२०२०) जैसे विश्व नेताओं ने ताजमहल का दौरा किया है। यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने १९६१ में अपनी भारत यात्रा पर ताजमहल का दौरा किया था। इनके अतिरिक्त रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (१९९९), चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ (२००६), इजरायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (२०१८) और कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो (२०१८) ने भी ताजमहल का दौरा किया है। आगरा अकबर द्वारा स्थापित (अब विलुप्त) दीन-ए-इलाही नामक धर्म का जन्मस्थान है। यह राधास्वामी पंथ की भी जन्मस्थली है, जिसके दुनिया भर में लगभग बीस करोड़ अनुयायी हैं। आगरा दिल्ली और जयपुर के साथ स्वर्ण त्रिभुज पर्यटन सर्किट में शामिल है, और उत्तर प्रदेश के लखनऊ और वाराणसी के साथ 'उत्तर प्रदेश हेरिटेज आर्क' नामक पर्यटक सर्किट का हिस्सा भी है। भूगोल तथा जलवायु स्थिति अंगूठाकार|आगरा उत्तर भारत के गांगेय मैदानों में यमुना नदी के तट पर बसा हुआ है। आगरा उत्तर भारत के गांगेय मैदानों में यमुना नदी के तट पर बसा हुआ है। यह उत्तर प्रदेश राज्य के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश की अंतर्राज्यीय सीमा के निकट स्थित है। नगर यमुना नदी के दोनों ओर फैला हुआ है। समुद्र तल से आगरा की औसत ऊंचाई १६८ मीटर (५५१ फीट) है। आगरा के आसपास का पूरा क्षेत्र समतल मैदान है, हालाँकि दक्षिण-पश्चिम में कुछ पहाड़ियाँ भी हैं। फतेहपुर सीकरी के आस-पास और आगरा जिले की दक्षिण-पूर्वी सीमाओं पर स्थित बलुआ पत्थर की पहाड़ियाँ मध्य भारत की विंध्य पर्वतमाला की शाखाएँ हैं। आसपास के ग्रामीण इलाकों में रबी और खरीफ दोनों प्रकार की फसलों की खेती की जाती है। बाजरा, जौ, गेहूं और कपास उगाई जाने वाली फसलों में से मुख्य हैं। आगरा सड़क मार्ग से दिल्ली के २३० किलोमीटर (१४० मील) दक्षिण-पूर्व में, लखनऊ के ३३५ किलोमीटर (२०८ मील) पश्चिम में, वाराणसी के ६०० किलोमीटर (३७० मील) उत्तर-पश्चिम में, जयपुर के २३८ किलोमीटर (१४८ मील) पूर्व में और ग्वालियर के १२० किलोमीटर (७५ मील) उत्तर में स्थित है। फतेहपुर सीकरी का परित्यक्त नगर आगरा के ४० किलोमीटर (२५ मील) किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। जलवायु आगरा की जलवायु अर्द्ध शुष्क है जो आर्द्र अर्ध-कटिबन्धीय जलवायु पर सीमा बनाती है। शहर में हल्की सर्दियाँ, गर्म और शुष्क गर्मी और मानसून का मौसम होता है। हालांकि आगरा में पर्याप्त मानसून रहता है, परन्तु यह भारत के अन्य हिस्सों जितना भारी नहीं होता है। जून से सितंबर के दौरान औसत मॉनसून वर्षा ६२८.६ मिलीमीटर है। आगरा भारत के सबसे गर्म और सबसे ठंडे शहरों में से एक है। ग्रीष्मकाल में शहर के तापमान में अचानक वृद्धि देखी जाती है और कई बार बहुत उच्च स्तर की आर्द्रता के साथ पारा ४६ डिग्री सेल्सियस के निशान को भी पार कर जाता है। गर्मियों के दौरान, दिन का तापमान ४०-४५ डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। रातें अपेक्षाकृत ठंडी होती यहीं और तब तापमान ३० डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। सर्दियाँ थोड़ी सर्द होती हैं लेकिन यह आगरा में घूमने के लिए सबसे अच्छा समय है। न्यूनतम तापमान कभी-कभी -२ या -२.५ डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है, लेकिन आमतौर पर ६ से ८ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। वातावरण अंगूठाकार|कीठम झील में स्थित आगरा भालू संरक्षण केन्द्र में ६२० से अधिक नाचने वाले भालुओं का पुनर्वास किया गया है। आगरा जिले का ७% से भी कम भाग वनाच्छादित है। आगरा नगर के समीप स्थित एकमात्र प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य कीठम झील है, जिसे सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य भी कहा जाता है। झील में प्रवासी और निवासी पक्षियों की लगभग दो दर्जन किस्में हैं। सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य के भीतर आगरा भालू संरक्षण केन्द्र है, जो 'नाचने वाले' भालूओं के लिए बना भारत का पहला अभयारण्य है। वाइल्डलाइफ एसओएस, फ्री द बियर्स फंड और अन्य द्वारा संचालित इस संरक्षण केन्द्र में ६२० से अधिक ऐसे स्लोथ रीछों का पुनर्वास किया गया है, जिनका अवैध होने के बावजूद १९७२ से कलंदरों द्वारा 'नाचने वाले भालुओं' के रूप में शोषण किया जाता रहा था। आगरा दिल्ली के बाद यमुना नदी के प्रदूषण में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, जो कि दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। नदी में ९० नाले खुलते हैं। हालांकि नगर पालिका ने इनमें से ४० नालों को बंद करने का दावा किया है, लेकिन भैरों, मंटोला और बल्केश्वर जैसे बड़े नालों द्वारा नदी में बिना किसी जांच के बड़ी मात्रा में अनुपचारित अपशिष्ट जल का निर्वहन जारी है। एतमादुद्दौला और ताजमहल के बीच यमुना नदी का तल प्रदूषकों का डंपिंग ग्राउंड बन गया है, जहाँ पॉलिथीन, प्लास्टिक कचरा, जूता कारखानों से चमड़े की कटाई, निर्माण सामग्री, सभी को नदी में फेंक दिया जाता है। नदी के प्रदूषण ने ताजमहल के लिए भी कई समस्याएं पैदा की हैं जैसे 'कीड़े और उनके हरे कीचड़ के हमले', दुर्गंध, और ताजमहल की नींव का क्षरण। ताजमहल को वायु प्रदूषण और नदी में सीवेज के निर्वहन के कारण भी महत्वपूर्ण क्षति का सामना करना पड़ा है। दुनिया के आठवें सबसे प्रदूषित शहर में सफेद संगमरमर का ताजमहल गंदी हवा के कारण पीला और हरा हो रहा है, और अक्सर धूल और वाहनों से निकलने वाले धुएँ के कारण धुआँसे से ढका रहता है। जनसांख्यिकी लगभग १६ करोड़ निवासियों के साथ, आगरा उत्तर प्रदेश का चौथा तथा भारत का २३वां सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर है। २०११ की भारतीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार आगरा नगर की जनसंख्या १५,८५,७०४ है, जबकि आगरा महानगरीय क्षेत्र की जनसंख्या १७,६०,२८५ है। नगर का लिंगानुपात ८७५ महिलाएं प्रति १००० पुरुष है; कुल जनसंख्या में से ८,४५,९०२ पुरुष और शेष ७,३९,८०२ महिलाएं हैं। नगर में साक्षर लोगों की संख्या १०,१४,८७२ है, और नगर की औसत साक्षरता दर ७३.११% है। ७७.८१% पुरुष और ६७.७४% महिलाऐं साक्षर हैं। नगर में ८७,१५१ झुग्गियाँ हैं जिनमें ५,३३,५५४ लोग निवास करते हैं, जो नगर की कुल जनसंख्या का लगभग ३३.६५% है।http://www.census2011.co.in/census/city/115-agra.html Agra City Population Census 2011 हिंदू धर्म आगरा नगर में सर्वाधिक अनुयायियों द्वारा पालन किया जाने वाला धर्म है; जिसके अनुयायियों की संख्या नगर की कुल जनसंख्या का ८०.६८% है। १५.३७% अनुयायियों के साथ इस्लाम आगरा नगर में दूसरा सबसे अधिक पालन किया जाने वाला धर्म है। इसके बाद जैन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म और बौद्ध धर्म हैं, जिनके अनुयायियों की संख्या क्रमशः १.०४%, ०.६२%, ०.४२% और ०.१९% है। लगभग १.६६% लोग 'कोई विशेष धर्म नहीं' मानते हैं। नगर में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएँ हिन्दी तथा उर्दू हैं, जो कि उत्तर प्रदेश राज्य की आधिकारिक भाषाएँ भी हैं। शेष भारत की ही तरह यहाँ भी अंग्रेजी भाषा अच्छी तरह बोली-समझी जाती है। नगर क्षेत्र में मुख्यतः मानक हिन्दी का ही चलन है, हालाँकि आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रजभाषा बोलचाल की मुख्य बोली है। नगर में अन्य कम बोली जाने वाली भाषाओं में पंजाबी और बंगाली प्रमुख हैं, जो इन क्षेत्रों से आये अप्रवासी समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। प्रशासन, राजनीति तथा सुविधाएं कानून व्यवस्था आगरा नगर की सीमा के भीतर कानून प्रवर्तन और जांच का प्राथमिक दायित्व आगरा पुलिस आयुक्तालय का है। यह उत्तर प्रदेश पुलिस की एक इकाई है, जिसका नेतृत्व पुलिस आयुक्त (पुलिस कमिश्नर) करते हैं, जो आईजीपी रैंक वाले भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी होते हैं। नवम्बर २०२२ से पहले, आगरा जिला आगरा पुलिस जोन और आगरा पुलिस रेंज के अंतर्गत आता था। ६ नवंबर २०२२ को, उत्तर प्रदेश राज्य की कैबिनेट द्वारा आगरा समेत राज्य के ३ नगरों में पुलिस आयुक्तालय बनाने का आदेश पारित किया था। आगरा जोन का नेतृत्व एक अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक वाले भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी करते हैं, जबकि आगरा रेंज का नेतृत्व एक उप महानिरीक्षक (डीआईजी) रैंक वाले आईपीएस अधिकारी करते हैं। नगर प्राशासन आगरा नगर निगम आगरा शहर के बुनियादी नागरिक ढांचे और प्रशासन के लिए उत्तरदायी नगर निकाय है। यह शहर की सार्वजनिक सेवाओं का प्रबंधन करता है। महापौर और नगर निगम पार्षद पांच साल के लिए चुने जाते हैं। आगरा नगर निगम का अधिकार क्षेत्र चार अंचलों (हरिपर्वत, लोहामंडी, ताजगंज और छाता) में विभाजित है, जिन्हें आगे १०० वार्डों में बाँटा गया है। नगर निगम की सीमाएं १२१ वर्ग किमी के क्षेत्रफल तक फैली हैं। इसके अतिरिक्त शहर में नए आवास, बुनियादी ढांचे और कॉलोनियों के विकास का दायित्व आगरा विकास प्राधिकरण का है। दर्शनीय स्थल thumb|240px|आगरा के किले से ताजमहल का दृश्य ताजमहल आगरे का ताजमहल, शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज महल का मकबरा, विश्व की सबसे प्रसिद्ध इमारतों में से एक है। यह विश्व के नये ७ अजूबों में से एक है और आगरा की तीन विश्व सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। अन्य दो धरोहर आगरा किला और फतेहपुर सीकरी jay mahakal हैं। 1653 में इसका निर्माण पूरा हुआ था। यह मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। पूरे श्वेत संगमरमर में तराशा हुआ, यह भारत की ही नहीं विश्व की भी अत्युत्तम कृति है। पूर्णतया सममितीय स्मारक के बनने में बाईस वर्ष लगे (1630-1652) व बीस हजार कारीगरों की अथक मेहनत भी। यह मुगल शैली के चार बाग के साथ स्थित है। फारसी वास्तुकार उस्ताद ईसा खां के दिशा निर्देश में इसे यमुना नदी के किनारे पर बनवाया गया। इसे मृगतृष्णा रूप में आगरा के किले से देखा जा सकता है, जहां से शाहजहाँ जीवन के अंतिम आठ वर्षों में, अपने पुत्र औरंगज़ेब द्वारा कैद किये जाने पर देखा करता था। यह सममिति का आदर्श नमूना है, जो कि कुछ दूरी से देखने पर हवा में तैरता हुआ प्रतीत होता है। इसके मुख्य द्वार पर कुरआन की आयतें खुदी हुई हैं। उसके ऊपर बाइस छोटे गुम्बद हैं, जो कि इसके निर्माण के वर्षों की संख्या बताते हैं। ताज को एक लालबलुआ पत्थर के चबूतरे पर बने श्वेत संगमर्मर के चबूतरे पर बनाया गया है। ताज की सर्वाधिक सुंदरता, इसके इमारत के बराबर ऊँचे महान गुम्बद में बसी है। यह 60 फीट व्यास का, 80 फीट ऊँचा है। इसके नीचे ही मुमताज की कब्र है। इसके बराबर ही में शाहजहाँ की भी कब्र है। अंदरूनी क्षेत्र में रत्नों व बहुमूल्य पत्थरों का कार्य है। खुलने का समय : ६ प्रातः से ७:३० साँयः (शुक्रवार बन्द) आगरा का किला आगरा का एक अन्य विश्व धरोहर स्थल है आगरा का किला। यह आगरा का एक प्रधान निर्माण है, जो शहर के बीचों बीच है। इसे कभी कभार लाल किला भी कहा जाता है। यह अकबर द्वारा 1565 में बनवाया गया था। बाद में शाहजहां द्वारा इस किले का पुनरोद्धार लाल बलुआ पत्थर से करवाया गया, व इसे किले से प्रासाद में बदला गया। यहां संगमरमर और पीट्रा ड्यूरा नक्काशी का क्महीन कार्य किया गया है। इस किले की मुख्य इमारतों में मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जहाँगीर महल, खास महल, शीश महल एवं मुसम्मन बुर्ज आते हैं। मुगल सम्राट अकबर ने इसे 1565 में बनवाया था, जिसमें उसके पौत्र शाहजहाँ के समय तक निर्माण कार्य बढ़ते रहे। इस किले के निषिद्ध क्षेत्रों में अंदरूनी छिपा हुआ स्वर्ग जैसा स्थान है। यह किला अर्ध-चंद्राकार है, जो पूर्व में कुछ चपटा है, पास की सीधी दीवार नदी की ओर वाली है। इसकी पूरी परिधि है 2.4 किलो मीटर, जो दोहरे परकोटे वाली किलेनुमा चहारदीवारी से घिरी है। इस दीवार में छोटे अंतरालों पर बुर्जियां हैं, जिनपर रक्षा छतरियां बनीं हैं। इस दीवार की ओर एक 9 मीटर चौड़ी व 10 मीटर गहरी खाई घेरे हुए है। शिवाजी यहां 1666 में पुरंदर संधि हेतु आये थे। उनकी याद में एक बड़ी मूर्ति यहां स्थापित है। यह किला मुगल स्थापत्य कला का एक जीवंत उदाहरण है। यहीं दिखता है, कैसे उत्तर भारतीय दुर्ग शैली दक्षिण से पृथक थी। दक्षिण भारत में अनेकों दुर्ग हैं, जिनमें से अधिकांश सागर तट पर हैं। आगरा का किला देख फतेहपुर सीकरी मुगल सम्राट अकबर ने फतेहपुर सीकरी बसाई, व अपनी राजधानी वहां स्थानांतरित की। यह आगरा से 35 कि॰मी॰ दूर है। यहां अनेकों भव्य इमारतें बनवायीं। बाद में पानी की कमी के चलते, वापस आगरा लौटे। यहां भी बुलंद दरवाजा, एक विश्व धरोहर स्थल है। बुलंद दरवाजा या 'उदात्त प्रवेश द्वार' मुगल सम्राट द्वारा बनाया गया था, बुलंद दरवाजा 52 कदम से संपर्क किया है। बुलंद दरवाजा 53.63 मीटर ऊँचे और 35 मीटर चौड़ा है। यह लाल और शौकीन बलुआ पत्थर से बना है, नक्काशी और काले और सफेद संगमरमर द्वारा सजाया। बुलंद दरवाजा के मध्य चेहरे पर एक शिलालेख अकबर धार्मिक समझ का दायरा दर्शाता है। एतमादुद्दौला का मकबरा thumb|एतमादुद्दौला का मकबरा सम्राज्ञी नूरजहां ने एतमादुद्दौला का मकबरा बनवाया था। यह उसके पिता घियास-उद-दीन बेग़, जो जहाँगीर के दरबार में मंत्री भी थे, की याद में बनवाया गया था। मुगल काल के अन्य मकबरों से अपेक्षाकृत छोटा होने से, इसे कई बार श्रंगारदान भी कहा जाता है। यहां के बाग, पीट्रा ड्यूरा पच्चीकारी, व कई घटक ताजमहल से मिलते हुए हैं। जामा मस्जिद thumb|जामा मस्जिद thumb|जामा मस्जिद जामा मस्जिद एक विशाल मस्जिद है, जो शाहजहाँ की पुत्री, शाहजा़दी जहाँआरा बेगम़ को समर्पित है। इसका निर्माण १६४८ में हुआ था और यह अपने मीनार रहित ढाँचे तथा विशेष प्रकार के गुम्बद के लिये जानी जाती है। चीनी का रोजा चीनी का रोजा शाहजहाँ के मंत्री, अल्लामा अफज़ल खान शकरउल्ला शिराज़, को समर्पित है और अपने पारसी शिल्पकारी वाले चमकीले नीले रंग के गुम्बद के लिये दर्शनीय है। मेहताब बाग भारत का सबसे पुराना मुग़ल उद्यान, रामबाग, मुग़ल शासक बाबर ने सन् १५२८ में बनवाया था। यह उद्यान ताजम़हल से २.३४ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। स्वामी बाग स्वामीबाग समाधि हुजूर स्वामी महाराज (श्री शिव दयाल सिंह सेठ) का स्मारक/ समाधि है। यह नगर के बाहरी क्षेत्र में है, जिसे स्वामी बाग कहते हैं। वे राधास्वामी मत के संस्थापक थे। उनकी समाधि उनके अनुयाइयों के लिये पवित्र है। इसका निर्माण 1908 में आरम्भ हुआ था और कहते हैं कि यह कभी समाप्त नहीं होगा। इसमें भी श्वेत संगमरमर का प्रयोग हुआ है। साथ ही नक्काशी व बेलबूटों के लिये रंगीन संगमरमर व कुछ अन्य रंगीन पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह नक्काशी व बेल बूटे एकदम जीवंत लगते हैं। यह भारत भर में कहीं नहीं दिखते हैं। पूर्ण होने पर इस समाधि पर एक नक्काशीकृत गुम्बद शिखर के साथ एक महाद्वार होगा। इसे कभी कभार दूसरा ताज भी कहा जाता है। सिकंदरा (अकबर का मकबरा) आगरा किला से मात्र १३ किलोमीटर की दूरी पर, सिकंदरा में महान मुगल सम्राट अकबर का मकबरा है। यह मकबरा उसके व्यक्तित्व की पूर्णता को दर्शाता है। सुंदर वृत्तखंड के आकार में, लाल बलुआ-पत्थर से निर्मित यह विशाल मकबरा हरे भरे उद्यान के बीच स्थित है। अकबर ने स्वयं ही अपने मकबरे की रूपरेखा तैयार करवाई थी और स्थान का चुनाव भी उसने स्वयं ही किया था। अपने जीवनकाल में ही अपने मकबरे का निर्माण करवाना एक तुर्की प्रथा थी, जिसका मुगल शासकों ने धर्म की तरह पालन किया। अकबर के पुत्र जहाँगीऱ ने इस मकबरे का निर्माण कार्य १६१३ में संपन्न कराया। मरियम मकबरा मरियम मकबरा, अकबर की राजपूत (आमेर के राजा भारमल की पुत्री हरखू बाई) बेग़म का मकबरा है, इस बेगम को अकबर ने मरियम मकानी अर्थात् संसार की माँ की उपाधि या उपनाम दिया था । यह मकबरा आगरा और सिकन्दरा के बीच में है। मेहताब बाग thumb|मेहताब बाग मेहताब बाग, यमुना के ताजमहल से विपरीत दूसरे किनारे पर है। पालीवाल पार्क (हीविट पार्क) अर्थव्यवस्था thumb|ताजव्यू होटल शहर में खुले पांच सितारा होटलों में पहला है। left|thumb|एक संगमरमर के मेज पर पर्चिनकारी। यह शिल्प आगरा में मुगलकाल से प्रचलन में है। thumb|आगरे का सदर बजार ताजमहल और अन्य ऐतिहासिक स्मारकों की उपस्थिति के कारण, आगरा में एक समृद्ध पर्यटन उद्योग है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर्चिनकारी, संगमरमर की जड़ों और कालीन संबंधित उद्योग भी हैं। आगरा वित्तीय पैठ सूचकांक, जो एटीएम और बैंक शाखाओं की उपस्थिति पर चीजों को मापता है, और खपत सूचकांक, जो क्षेत्र के नगरीकरण का संकेत देता है, दोनों में भारत में पांचवें स्थान पर है। भारत के शहर प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में, नगर २०१० में २६वें स्थान पर, २०११ में ३२वें स्थान पर, और २०१२ में ३७वें स्थान पर था। आगरा की लगभग ४०% जनसंख्या काफी हद तक कृषि पर, चमड़े और जूते के व्यापार पर, और लोहे की ढलाई पर निर्भर करती है। वाराणसी के बाद २००७ में भारत में आगरा दूसरा सबसे अधिक स्वरोजगार वाला नगर था। राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के अनुसार नगर में १९९९-२००० में प्रत्येक १,००० नियोजित पुरुषों में से स्व-नियोजित पुरुषों की संख्या ४३१ थी, जो २००४–०५ में बढ़कर ६०३ व्यक्ति प्रति १,००० तक हो गयी। आगरा की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का प्रमुख योगदान है। आईएचसीएल द्वारा निर्मित ताजव्यू होटल शहर में खुले पांच सितारा श्रेणी के होटलों में पहला था। एशिया का सबसे बड़ा स्पा काया कल्प - द रॉयल स्पा आगरा के मुगल होटल में है। आगरा में कई उद्योग हैं। उत्तर प्रदेश की पहली प्लांट बायोटेक कंपनी हरिहर बायोटेक ताज के पास स्थित है। लगभग ७,००० लघु उद्योग इकाइयाँ हैं। आगरा शहर अपने चमड़े के सामानों के लिए भी जाना जाता है, सबसे पुराना और प्रसिद्ध चमड़ा फर्म ताज लेदर वर्ल्ड सदर बाजार में है। इसके अतिरिक्त यहाँ कालीन, हस्तशिल्प, जरी और जरदोजी (कढ़ाई का काम), संगमरमर और पत्थर की नक्काशी संबंधित उद्योग भी स्थित हैं। आगरा अपनी मिठाइयों (पेठा और गजक) और स्नैक्स (दालमोठ), कपड़ा निर्माताओं और निर्यातकों और ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए जाना जाता है। मुगल सम्राट बाबर द्वारा नगर के कालीन उद्योग की नींव रखी गई थी और तब से यह कला फल-फूल रही है। आगरा में सिटी सेंटर स्थान पर आभूषण और कपड़ों की दुकानें हैं। सिल्वर और गोल्ड ज्वैलरी हब चौबे जी का फाटक पर है। शाह मार्केट क्षेत्र एक इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार है जबकि संजय प्लेस आगरा का व्यापारिक केंद्र है। शिक्षा मुग़ल काल से ही आगरा इस्लाम की शिक्षा का एक केंद्र रहा है। ब्रिटिश शासन के समय अंग्रेज़ों ने यहाँ आगरा में पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा दिया। वर्ष १८२३ में यहां भारत के प्राचीनतम महाविद्यालयों में प्रमुख आगरा कॉलेज आगरा की स्थापना हुई । अन्य प्रमुख महाविद्यालय हैं राजा बलबंत सिंह महाविद्यालय, जिसे क्षेत्रफल की दृष्टि से एशिया के सबसे बड़े महाविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है, सेंट जोन्स कॉलेज, बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय, तथा बी डी जैन कन्या महाविद्यालय। यह सभी महाविद्यालय बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय ( पूर्व में आगरा विश्वविद्यालय)से सम्बद्ध हैं। आगरा स्थित एक अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय है दयालबाग विश्व विद्यालय ।भारतीय लेखकों में प्रमुख बाबू गुलाबराय की जन्म और कर्म भूमि यही थी। वर्तमान में यहाँ माध्यमिक शिक्षा परिषद् (यू.पी. बोर्ड), इलाहाबाद; केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई. बोर्ड), दिल्ली; और आई.सी.एस.ई. बोर्ड से सम्बद्ध हिन्दी व अंग्रेजी माध्यम के कई विद्यालय हैं: आगरा पब्लिक स्कूल, विजय नगर कॉलोनी एयर फ़ोर्स स्कूल केंद्रीय विद्यालय मुफ़ीद-ए-आम इण्टर कॉलेज, पण्डित मोती लाल नेहरू रोड गायत्री पब्लिक स्कूल, वजीरपुरा सड़क महावीर दिगम्बर जैन इण्टर कॉलेज, अहिंसा चौक, हरीपर्वत चौधरी सीएम पब्लिक स्कूल,दौरेठा नं.2 शाहगंज आगरा दिल्ली पब्लिक स्कूल, दयालबाग राजकीय पॉलीटेक्निक मनकेड़ा, आगरा सरस्वती शिशु मंदिर, उत्तर विजय नगर कॉलोनी सेंट जोसेफ़ गर्ल्स इण्टर कॉलेज, पालीवाल पार्क गेट अंकुर पब्लिक स्कूल, जीवनी मंडी, आगरा सेंट पीटर्स कॉलेज, वजीरपुरा रोड सेंट पॉल्स चर्च कॉलेज, सिविल लाइन्स सेंट फ्राँसिस कान्वेंट स्कूल, वज़ीरपुरा सड़क होली पब्लिक स्कूल, सिकन्दरा सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, विजय नगर राजकीय इंटर कॉलेज, आगरा भीम राव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा प्रिंट मीडिया आगरा जिले में प्रमुख रूप से हिंदी दैनिक जैसे कि अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान (समाचार पत्र), आज, दाता सन्देश, दीपशील भारत, दैनिक दृश्य भारती इत्यादि समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं। आवागमन आगरा शहर प्रमुख शहर दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, हरिद्वार, देहरादून एवं जयपुर आदि शहरों से सीधे रेल एवम् सड़क मार्ग द्वारा चौबीसों घंटे जुड़ा हुआ है। दिल्ली-मुम्बई एवम् दिल्ली-चेन्नई के लिए मध्य-पश्चिम एवम् मध्य-दक्षिण रेलवे नेटवर्क है। दिल्ली से आगरा के लिये रा.राजमार्ग-2 है जिसकी दूरी 200 कि॰मी॰ है जो कि लगभग 4 घंटे में तय की जाती है। रेल मार्ग अंगूठाकार|आगरा का रेलवे मानचित्र आगरा में भारतीय रेलवे द्वारा संचालित ५ रेलवे स्टेशन हैं। ये सभी रेलवे के उत्तर-मध्य अंचल के आगरा मण्डल के अंतर्गत आते हैं। आगरा में उत्तर-दक्षिण दिशा में एक ब्रॉड गेज रेलवे लाइन है, जो पूर्व-पश्चिम दिशा की एक अन्य ब्रॉड गेज लाइन को काटती है। दोनों की क्रॉसिंग रुई की मंडी क्षेत्र के आसपास होती है, जहां पूर्व-पश्चिम लाइन उत्तर-दक्षिण लाइन के नीचे से गुजरती है। उत्तर-दक्षिण दिशा की लाइन उत्तर की ओर से दिल्ली से आती है, और आगरा छावनी रेलवे स्टेशन होते हुए दक्षिण में ग्वालियर की ओर निकल जाती है। इस लाइन पर राजा की मण्डी रेलवे स्टेशन से एक ब्रांच लाइन पूर्व की ओर निकलती है, जिस पर आगरा सिटी रेलवे स्टेशन स्थित है। पश्चिम दिशा से भरतपुर और बयाना से क्रमशः दो ब्रॉड गेज लाइनें आती हैं। ये दोनों लाइनें सिंगल लाइन हैं हालाँकि बाद वाली लाइन विद्युतीकृत है। ये दोनों लाइनें ईदगाह जंक्शन रेलवे स्टेशन से ठीक पहले मिल जाती हैं, और फिर आगरा फोर्ट के रास्ते टुंडला जंक्शन की ओर पूर्व दिशा में आगे बढ़ते हुए दिल्ली - हावड़ा मुख्य लाइन का हिस्सा बनती हैं। वायु मार्ग खेरिया हवाई अड्डा इन्हें भी देखें आगरा उत्तर प्रदेश भारत के शहर बाहरी कड़ियाँ उत्तर प्रदेश के बेहतरीन न्यूज़ चैनल राष्ट्रीय सूचना केंद्र द्वारा बनायी गयी आगरे का आधिकारिक जालस्थल विकिमैपिया पर आगरा सन्दर्भ विस्तृत पठन Agranama: The authentic book about the history of Agra by Mr. Satish Chandra Chaturvedi Ashirbadi Lal Srivastava, History and Culture of Agra (Souvenir), 1956 श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:आगरा ज़िला श्रेणी:आगरा ज़िले के नगर *
उत्तर दिशा
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thumb|right|400px|उत्तर दिशा "उ" अक्षर से संबोधित की जाती हैं। उत्तर दिशा मुख्य चार दिशाओं में से एक है। श्रेणी:दिशाएँ da:Kompasretning#Nord भारत उपमहाद्वीप के उत्तर में हिमालय है
हिंदी फिल्म उद्योग
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अनुप्रेषित हिन्दी सिनेमा
शास्त्रीय संगीत
https://hi.wikipedia.org/wiki/शास्त्रीय_संगीत
भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्यूजिक भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन सुर-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्व सुर का होता है (उसके चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसको जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधना के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है। इतिहास भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा भरत मुनि के नाट्यशास्त्र और उससे पहले सामवेद के गायन तक जाती है। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र, भारतीय संगीत के इतिहास का प्रथम लिखित प्रमाण माना जाता है। इसकी रचना के समय के बारे में कई मतभेद हैं। आज के भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का उल्लेख इस प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। भरत मुनि के नाटयशास्त्र के बाद मतंग मुनि की बृहद्देशी और शारंगदेव रचित संगीत रत्नाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। बारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है। संगीत रत्नाकर में कई तालों का उल्लेख है व इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था मगर मूल तत्व एक ही रहे। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने उत्तर भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। इसी समय कुछ नई शैलियाँ भी प्रचलन में आईं जैसे खयाल, गज़ल आदि और भारतीय संगीत का कई नये वाद्यों से भी परिचय हुआ जैसे सरोद, सितार इत्यादि। भारतीय संगीत के आधुनिक मनीषी स्थापित कर चुके हैं कि वैदिक काल से आरम्भ हुई भारतीय वाद्यों की यात्रा क्रमश: एक के बाद दूसरी विशेषता से इन यंत्रों को सँवारती गयी। एक-तंत्री वीणा ही त्रितंत्री बनी और सारिका युक्त होकर मध्य-काल के पूर्व किन्नरी वीणा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मध्यकाल में यह यंत्र जंत्र कहलाने लगा जो बंगाल के कारीगरों द्वारा आज भी इस नाम से पुकारा जाता है। भारत में पहुँचे मुस्लिम संगीतकार तीन तार वाली वीणा को सह (तीन) + तार = सहतार या सितार कहने लगे। इसी प्रकार सप्त तंत्री अथवा चित्रा-वीणा, सरोद कहलाने लगी। उत्तर भारत में मुगल राज्य ज्यादा फैला हुआ था जिस कारण उत्तर भारतीय संगीत पर मुसलिम संस्कृति व इस्लाम का प्रभाव ज्यादा महसूस किया गया। जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत किसी प्रकार के मुस्लिम प्रभाव से अछूता रहा। बाद में सूफी आन्दोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई नये वाद्य प्रचलन में आए पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। आम जनता में लोकप्रिय आज का वाद्य हारमोनियम, उसी समय प्रचलन में आया। इस तरह भारतीय संगीत के उत्थान व उसमें परिवर्तन लाने में हर युग का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय वाद्य यंत्र आमतौर पर हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत पद्धतियां भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हैं- हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत। हिन्दुस्तानी संगीत यह शास्त्रीय संगीत, उत्तर भारत में प्रचलित हुआ। हिन्दुस्तानी संगीत के प्रमुख रागों की सूची यमन भूपाली बसंत बागेश्री मुल्तानी बसंत बहार हिंडोल काफ़ी कर्नाटक संगीत यह दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में शृंगार रस। कर्नाटक संगीत के प्रमुख रागों की सूची राग हंसध्वनि चित्रवीथिका सन्दर्भ frcrvnutctv। ytcxrx। टीसीटीटीआर टीसीटीटीसीटी टीसीटीटीसी यूफुफ x c ट टीडीटीडी इन्हें भी देखें यूरोपीय शास्त्रीय संगीत बाहरी कड़ियाँ शास्त्रीय संगीत (मानोशी चैटर्जी) शास्‍त्रीय संगीत हिन्दुस्तानी राग संगीत panchamkauns - भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित स्विडी नागरिक श्रेणी:संगीत श्रेणी:भारतीय शास्त्रीय संगीत श्रेणी:संगीत शैलियाँ श्रेणी:हिन्दी सम्पादनोत्सव के अंतर्गत बनाए गए लेख
सार्वभौमिक राष्ट्र
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पुनर्प्रेषित सम्प्रभु राज्य