title
stringlengths
1
112
url
stringlengths
31
142
text
stringlengths
0
172k
अर्जुन मुडा
https://hi.wikipedia.org/wiki/अर्जुन_मुडा
अनुप्रेषितअर्जुन मुंडा
उदितवाणी
https://hi.wikipedia.org/wiki/उदितवाणी
उदितवाणी जमशेदपुर से प्रकाशित पहला हिन्दी दैनिक था। सन्दर्भ श्रेणी:हिन्दी भाषा के समाचार पत्र श्रेणी:जमशेदपुर
उत्तर पूर्वी प्रान्त
https://hi.wikipedia.org/wiki/उत्तर_पूर्वी_प्रान्त
REDIRECTउत्तर-पूर्वी राज्य
केन्द्र-शासित प्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/केन्द्र-शासित_प्रदेश
thumb|350px|right|भारत के केन्द्र शासित प्रदेश केन्द्र शासित प्रदेश या संघ-राज्यक्षेत्र या संघक्षेत्र भारत के संघीय प्रशासनिक ढाँचे की एक उप-राष्ट्रीय प्रशासनिक इकाई है। भारत के राज्यों की अपनी चुनी हुई सरकारें होती हैं, लेकिन केन्द्र शासित प्रदेशों में सीधे-सीधे भारत सरकार का शासन होता है। भारत का राष्ट्रपति हर केन्द्र शासित प्रदेश का एक सरकारी प्रशासक या उप राज्यपाल नामित करता है।केन्द्र शासित प्रदेश भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर। वर्तमान में भारत में 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।केन्द्र शासित प्रदेश भारतीय गृह मन्त्रालय भारत की राजधानी नई दिल्ली जो कि दिल्ली नामक केन्द्र शासित प्रदेश भी था और पुडुचेरी को आंशिक राज्य का दर्जा दे दिया गया है। दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश-1992 के तौर पर पुनः परिभाषित किया गया है। दिल्ली व पुदुचेरी दोनो की अपनी चयनित विधानसभा, मंत्रिमंडल व कार्यपालिका हैं, लेकिन उनकी शक्तियाँ सीमित हैं - उनके कुछ कानून भारत के राष्ट्रपति के "विचार और स्वीकृति" मिलने पर ही लागू हो सकते हैं। भारत में वर्तमान में निम्नलिखित केन्द्र शासित क्षेत्र हैं :- दिल्ली - यह भारत का राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश भी है। अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह चण्डीगढ़ दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव - 26 नवंबर 2019 को घोषित और 26 जनवरी 2020 से प्रभावी। लक्षद्वीप पुडुचेरी जम्मू और कश्मीर - 5 अगस्त 2019 को घोषित और 31 अक्टूबर 2019 से प्रभावी। लद्दाख - 5 अगस्त 2019 को घोषित और 31 अक्टूबर 2019 से प्रभावी। इतिहास यह लेख इस पर एक श्रृंखला का हिस्सा है भारत की राजनीति संविधान और कानून सरकार संसद न्यायतंत्र चुनाव और राजनीतिक दल प्रशासनिक प्रभाग संघवाद भारत पोर्टल अन्य देश वी T ई 1951 और 1956 में भारत के प्रशासनिक प्रभागों की तुलना नवंबर 2019 तक जम्मू और कश्मीर के जिले और लद्दाख के जिलों की सूची। 1949 में जब भारत का संविधान अपनाया गया, तो भारतीय संघीय ढांचे में शामिल थे: भाग सी के राज्य, जो मुख्य आयुक्तों के प्रांत थे और कुछ रियासतें थीं, प्रत्येक का शासन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक मुख्य आयुक्त द्वारा किया जाता था।  भाग सी के दस राज्य अजमेर, भोपाल, बिलासपुर, कूर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा और विंध्य प्रदेश थे। एक भाग डी राज्य (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा प्रशासित होता है। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के बाद, भाग सी और भाग डी राज्यों को "केंद्र शासित प्रदेश" की एक ही श्रेणी में जोड़ दिया गया।  विभिन्न अन्य पुनर्गठनों के कारण, केवल 6 केंद्र शासित प्रदेश रह गए: अंडमान व नोकोबार द्वीप समूह लक्षद्वीप, मिनिकॉय और अमिनदीवी द्वीप समूह (बाद में इसका नाम बदलकर लक्षद्वीप कर दिया गया) दिल्ली मणिपुर त्रिपुरा हिमाचल प्रदेश 1970 के दशक की शुरुआत तक, मणिपुर, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश पूर्ण राज्य बन गए थे, और चंडीगढ़ एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया था।  अन्य तीन (दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव और पुडुचेरी) अधिग्रहीत क्षेत्रों से बने थे जो पहले गैर-ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्तियों (क्रमशः पुर्तगाली भारत और फ्रांसीसी भारत) के थे। अगस्त 2019 में, भारत की संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 पारित किया। इस अधिनियम में 31 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के प्रावधान हैं, एक को उसी नाम से जम्मू और कश्मीर कहा जाएगा, और दूसरे को लद्दाख कहा जाएगा।  2019. नवंबर 2019 में, भारत सरकार ने दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेशों को एक केंद्र शासित प्रदेश में विलय करने के लिए कानून पेश किया, जिसे दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के नाम से जाना जाएगा। प्रशासन भारत की संसद संविधान में संशोधन करने और केंद्र शासित प्रदेश के लिए निर्वाचित सदस्यों और एक मुख्यमंत्री के साथ एक विधानमंडल प्रदान करने के लिए एक कानून पारित कर सकती है, जैसा कि उसने दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और पुडुचेरी के लिए किया है।  आम तौर पर, भारत के राष्ट्रपति प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के लिए एक प्रशासक या उपराज्यपाल नियुक्त करते हैं। दिल्ली, पुडुचेरी, जम्मू और कश्मीर अन्य पांच से अलग तरीके से काम करते हैं।  उन्हें आंशिक राज्य का दर्जा दिया गया और दिल्ली को [राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र] (एनसीटी) के रूप में फिर से परिभाषित किया गया और एक बड़े क्षेत्र में शामिल किया गया जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के रूप में जाना जाता है।  दिल्ली, पुदुचेरी, जम्मू और कश्मीर में एक निर्वाचित विधान सभा और मंत्रियों की एक कार्यकारी परिषद है जिसका कार्य आंशिक रूप से राज्य जैसा है। केंद्र शासित प्रदेशों के अस्तित्व के कारण, कई आलोचकों ने भारत को एक अर्ध-संघीय राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का निर्णय लिया है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों के पास अपने-अपने डोमेन और कानून के क्षेत्र हैं।  भारत के केंद्र शासित प्रदेशों को उनके संवैधानिक गठन और विकास के कारण विशेष अधिकार और दर्जा प्राप्त है।  स्वदेशी संस्कृतियों के अधिकारों की सुरक्षा, शासन के मामलों से संबंधित राजनीतिक उथल-पुथल को टालने आदि जैसे कारणों से "केंद्र शासित प्रदेश" का दर्जा भारतीय उप-क्षेत्राधिकार को सौंपा जा सकता है।  अधिक कुशल प्रशासनिक नियंत्रण के लिए भविष्य में इन केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यों में बदला जा सकता है। संविधान यह निर्धारित नहीं करता है कि राज्यों के विपरीत, केंद्र शासित प्रदेशों को कर राजस्व कैसे हस्तांतरित किया जाएगा।  केंद्र सरकार द्वारा केंद्र शासित प्रदेशों को निधि के हस्तांतरण का कोई मानदंड नहीं है जहां सारा राजस्व केंद्र सरकार को जाता है।  केंद्र सरकार द्वारा मनमाने ढंग से कुछ केंद्र शासित प्रदेशों को अधिक धनराशि प्रदान की जाती है, जबकि अन्य को कम धनराशि दी जाती है।[10]  चूंकि केंद्र शासित प्रदेशों पर सीधे केंद्र सरकार का शासन होता है, इसलिए कुछ केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति और पिछड़ेपन के आधार पर केंद्र सरकार से अधिक धनराशि मिलती है। जीएसटी लागू होने के बाद, यूटी-जीएसटी उन केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होता है जहां विधानसभा नहीं है।  यूटी-जीएसटी देश के बाकी हिस्सों में लागू राज्य जीएसटी के बराबर लगाया जाता है जो केंद्र शासित प्रदेशों में पिछले कम कराधान को खत्म कर देगा। संवैधानिक स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 (1) में कहा गया है कि भारत एक "राज्यों का संघ" होगा, जिसे संविधान के भाग V (संघ) और VI (राज्यों) के तहत विस्तृत किया गया है।  अनुच्छेद 1 (3) कहता है कि भारत के क्षेत्र में राज्यों के क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेश और अन्य क्षेत्र शामिल हैं जिनका अधिग्रहण किया जा सकता है।  केंद्र शासित प्रदेशों की अवधारणा संविधान के मूल संस्करण में नहीं थी, बल्कि इसे संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा जोड़ा गया था।[12]  अनुच्छेद 366(30) केंद्र शासित प्रदेश को पहली अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी केंद्र शासित प्रदेश के रूप में परिभाषित करता है और इसमें भारत के क्षेत्र के भीतर शामिल कोई भी अन्य क्षेत्र शामिल है लेकिन उस अनुसूची में निर्दिष्ट नहीं है।  संविधान में जहां भी यह भारत के क्षेत्रों का उल्लेख करता है, वहां यह केंद्र शासित प्रदेशों सहित पूरे देश पर लागू होता है।  जहां यह केवल भारत को संदर्भित करता है, यह केवल सभी राज्यों पर लागू होता है, केंद्र शासित प्रदेशों पर नहीं।  इस प्रकार, नागरिकता (भाग II), मौलिक अधिकार (भाग III), राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (भाग IV), न्यायपालिका की भूमिका, केंद्र शासित प्रदेश (भाग VIII), अनुच्छेद 245, आदि केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होते हैं क्योंकि यह विशेष रूप से संदर्भित हैं  भारत के क्षेत्र.  संघ की कार्यकारी शक्ति (अर्थात केवल राज्यों का संघ) भारत के राष्ट्रपति के पास है।  अनुच्छेद 239 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य प्रशासक भी हैं। संघ लोक सेवा आयोग की भूमिका भारत के सभी क्षेत्रों पर लागू नहीं होती है क्योंकि यह केवल भाग XIV में भारत को संदर्भित करता है। केंद्र शासित प्रदेश की संवैधानिक स्थिति अनुच्छेद 356 के अनुसार बारहमासी राष्ट्रपति शासन के तहत एक राज्य के समान है, जो विधान सभा वाले कुछ केंद्र शासित प्रदेशों को विशिष्ट छूट के अधीन है।  अनुच्छेद 240 (1) के अनुसार, चंडीगढ़, एनसीटी और पुडुचेरी को छोड़कर सभी केंद्र शासित प्रदेशों के मामलों को विनियमित करने में राष्ट्रपति को सर्वोच्च शक्ति दी गई है, जिसमें संसद और भारत के संविधान द्वारा बनाए गए कानूनों को खत्म करने की शक्तियां भी शामिल हैं।  अनुच्छेद 240 (2) विदेशी टैक्स हेवन देशों पर निर्भर रहने के बजाय भारत में विदेशी पूंजी और निवेश को आकर्षित करने के लिए इन केंद्र शासित प्रदेशों में टैक्स हेवन कानूनों को लागू करने की अनुमति देता है। संविधान की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध राज्यों और विधान सभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के बीच अंतर यह है कि राज्यों को संसद के किसी भी संभावित हस्तक्षेप के बिना संविधान में प्रदान की गई स्वायत्त शक्तियां दी गई थीं, जबकि विधान सभा (भाग VIII) वाले केंद्र शासित प्रदेशों के पास समान शक्तियां हैं।  लेकिन संसद को केंद्र शासित प्रदेश द्वारा बनाए गए कानूनों को संशोधित करने या निरस्त करने या निलंबित करने का अधिकार है (राज्यों की स्वतंत्र प्रकृति के विपरीत संसद द्वारा अंतिम अधिकार)। तीन केंद्र शासित प्रदेशों का भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है: दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और पुदुचेरी।  पुदुचेरी, जम्मू और कश्मीर और एनसीटी दिल्ली केवल तीन केंद्र शासित प्रदेश हैं जो केंद्र शासित प्रदेशों में असाधारण हैं क्योंकि प्रत्येक की अपनी स्थानीय रूप से निर्वाचित विधान सभा है और एक मुख्यमंत्री है। [उद्धरण वांछित] इन्हें भी देखें भारत के राज्य भारत के राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश और उनकी राजधानियाँ सन्दर्भ श्रेणी:भारत के उपविभाग श्रेणी:भारत के केन्द्र शासित प्रदेश
आवाज
https://hi.wikipedia.org/wiki/आवाज
जमशेदपुर एवं धनबाद से प्रकाशित हिन्दी दैनिक। श्रेणी:हिन्दी प्रकाशन
न्यू यार्क
https://hi.wikipedia.org/wiki/न्यू_यार्क
REDIRECT न्यूयॉर्क
नोबेल पुरस्कार
https://hi.wikipedia.org/wiki/नोबेल_पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार पांच भिन्न पुरस्कार हैं, जो आल्फ़्रेद नोबेल की 1895 की वसीयत के अनुसार, "उन लोगों को दिए जाते हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष के दौरान, मानव जाति को सबसे बड़ा लाभ प्रदान किया है।" आल्फ़्रेद नोबेल की 1896 में उनकी मृत्यु हो गई। अपनी वसीयत में, उन्होंने अपनी "शेष वसूली योग्य संपत्ति" को पांच पुरस्कारों को स्थापित करने के लिए उपयुक्त किया, जिसे "नोबेल पुरस्कार" के रूप में जाना जाने लगा। नोबेल पुरस्कार पहली बार 1901 में दिए गए थे। नोबेल पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीरक्रिया विज्ञान या चिकित्सा, साहित्य और शान्ति के क्षेत्र में दिए जाते हैं (नोबेल ने शांति पुरस्कार को "उस व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है जिसने राष्ट्रों के बीच साहचर्य को अग्रसराने के लिए सर्वाधिक या श्रेष्ठ किया है, सेना खड़े होने का उन्मूलन या कमी, और शान्ति सम्मेलन की स्थापना और प्रचार")। 1968 में, स्वीडिश केन्द्रीय बैंक ने आल्फ़्रेद नोबेल की स्मृति में अर्थशास्त्र में पुरस्कार की स्थापना को वित्त पोषित किया, जिसे नोबेल संस्थान द्वारा भी प्रशासित किया जाता है। नोबेल पुरस्कार व्यापक रूप से अपने सम्बन्धित क्षेत्रों में उपलब्ध सबसे सम्मानजनक पुरस्कारों के रूप में माने जाते हैं। पुरस्कार समारोह प्रतिवर्ष होते हैं। प्रत्येक प्राप्तकर्ता (पुरस्कार विजेता) को एक स्वर्ण पदक, एक डिप्लोमा और एक मौद्रिक पुरस्कार प्राप्त होता है। 2021 में, मौद्रिक पुरस्कार 1,00,00,000 SEK है। एक पुरस्कार तीन से अधिक व्यक्तियों के बीच साझा नहीं किया जा सकता है, यद्यपि नोबेल शान्ति पुरस्कार तीन से अधिक लोगों के संगठनों को प्रदान किया जा सकता है। यद्यपि नोबेल पुरस्कार मरणोपरान्त नहीं दिए जाते हैं, यदि किसी व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाता है और प्राप्त करने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है, तो पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इतिहास अल्फ्रेड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को स्टॉकहोल्म के स्वीडन में हुआ था। इनका ताल्लुक एक अभियंता परिवार से था जो बहुत ही समृद्ध था। आप एक रसायनज्ञ,अभियंता व् अविष्कारक है। 1894 में आपने बेफोर्स आयरन और स्टील मील ख़रीदा जिसे आपने एक महत्वपूर्ण हथियार निर्माता का केंद्र बनाया तथा आपने बैल्लेस्टिक मिसाइलो का भी सफल परीक्षण किया। नोबेल फाउंडेशन का प्रारम्भ २९ जून १९०० में हुआ। इसका उद्देश्य नोबेल पुरस्कारों का आर्थिक रूप से संचालन करना है। नोबेल के वसीहतनामे के अनुसार उनकी ९४% से ज्यादा वसीहत के मलिक वो लोग है जिन्होने मानव जाति के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उत्तम कार्य किया है। इसलिए प्रत्येक वर्ष उस वसीहत की ब्याज की राशि उन लोगो को ईनाम के रूप में दी जाती है। नोबेल फाउंडेशन में ५ लोगों की टीम है जिसका मुखिया स्वीडन की किंग ऑफ काउन्सिल द्वारा तय किया जाता है अन्य चार सदस्य पुरस्कार वितरक संस्थान के न्यासी (ट्रस्टियों) द्वारा तय किए जाते हैं। स्टॉकहोम में नोबेल पुरस्कार सम्मान समारोह का मुख्य आकर्षण यह होता है कि सम्मानप्राप्त व्यक्ति स्वीडन के राजा के हाथों पुरस्कार प्राप्त करते है। २०२२ में प्रदान किए गए नोबेल पुरस्कार चिकित्सा- फिजियोलॉजी और मेडिसिन प्रोफेसर स्वंते पाबो इन्होने विलुप्त होमिनी और मानव विकास में जीनोम सम्बंधित खोज की है तथा निएंडरथल के जीनोम सिक्वेंसिंग की है। भौतिकी- एलेन आसपेक्ट, जॉन क्लॉसर, एंटन जिलिंगर इन्होंने क्वांटम यांत्रिकी में प्रयोग किए, कंप्यूटिंग और क्रिप्टोग्राफी में तेजी से विकसित नए एप्लिकेशन के लिए आधार तैयार किया है रसायन- कैरोलिन बर्टोज़ी, मोर्टन मेल्डल और बैरी शार्पलेस क्लिक केमिस्ट्री और बायो-ऑर्थोगोनल केमिस्ट्री के विकास में अहम योगदान दिया है। जो भविष्य में चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक नया रास्ता खोलेगा। साहित्य-एनी एर्नो साहस और नैदानिक तीव्रत के लिए जिसके साथ वह व्यक्तिगत स्मृति की जड़ों, व्यवस्थाओं और सामूहिक प्रतिबंधों को उजागर करती हैं। शांति- एलेस बियालियात्स्की, रूसी मानवाधिकार संगठन मेमोरियल (रूस), मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज (यूक्रेन) एलेस को यह पुरस्कार देश को समर्पित अपना जीवन लोकतंत्र की स्थापना व शांति विकास को बढ़ावा देने को मिला है। रूस- कम्युनिस्ट शासन के दौरान उत्पीड़न का शिकार हुए लोगो को समर्थन देना। अर्थशास्त्र- बेन एस. बर्नान, डगलस डब्ल्यू. डायमंड और फिलिप एच. बेन एस. बर्नान के, डगलस डब्ल्यू. डायमंड और फिलिप एच. को संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया है। इन्हें नोबेल पुरस्कार ‘बैंकों और वित्तीय संकटों पर शोध के लिए’ दिया गया। साहित्य का नोबेल पाने वाले आज तक के सबसे कम उम्र के साहित्यिक रूडयार्ड किपलिंग रहे हैं। वर्ष 1907 में जब उन्हें ‘जंगल बुक’ के लिए नोबेल सम्मान मिला तब वह केवल 42 वर्ष के थे। २००९ में प्रदान किए गए नोबेल पुरस्कार - चिकित्सा- एलिजाबेथ ब्लैकबर्न (आस्ट्रेलियाइ मूल की), जैक जोस्ताक (ब्रिटिश मूल के) तथा कैरोल ग्रेडेर को गुणसूत्रों की प्रतिकृति तथा क्षरण से होने वाले बचाव के तरीके पर शोध के लिए भौतिकी- चार्ल्स के काव, विलियर्ड एस बॉयल और जॉर्ज ई स्मिथ (तीनों अमेरिकी वैज्ञानिक) को डिजीटल फोटोग्राफी में इस्तेमाल की जाने वाली प्रौद्योगिकी के निर्माण और दुनिया को फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क से जोड़ने में कामयाबी के लिए रसायन- वेंकटरामन् रामकृष्णन् (भारतीय मूल के अमेरिकी), टॉमस स्टाइत्स (अमेरिका) और अदा योनाथ (इज़राइल) को जीव कोषिकाओं में पाए जाने वाले अतिसूक्षम कण राइबोसोम संबंधी अनुसंधान के लिए। साहित्य- हर्ता म्यूलर (जर्मन उपन्यासकार) को शांति- बराक ओबामा (अमरीकी राष्ट्रपति) अर्थशास्त्र- ओलिवर विलियमसन और इलिनॉर ऑस्ट्रॉम (अमेरिका) को इथिकल कॉरपोरेट गवर्न्ेस और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर विशद् शोध के लिए सन्दर्भ बाहरी कडियाँ नॉवेल पुरुस्कार की सम्पूर्ण जानकारी 'टेस्ट ट्यूब बेबी' देने वाले को नोबेल नोबल पर चीनी बल नोबेल पुरस्कार विजेताओं की ५१ कहानियाँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - सुरेन्द्र तिवारी) नोबेल पुरस्कार का आधिकारिक जालक्षेत्र नोबेल शताब्दी श्रेणी:सम्मान श्रेणी:नोबेल पुरस्कार श्रेणी:विज्ञान और अभियांत्रिकी पुरस्कार श्रेणी:पुरस्कार
सौराठ सभा
https://hi.wikipedia.org/wiki/सौराठ_सभा
सौराठ सभा बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगने वाला एक विशाल सभा है जिसमें वहाँ आए कन्याओं के पिता योग्य वर का चुनाव करते हैं।यह एक विशाल सांस्कृतिक धरोहर है जिसमें मंडन मिश्र, कवि कोकिल विद्यापति, अयाची मिश्र जैसे कई महान व्यक्तित्व का नाम उल्लेखनीय है। चुनाव से पहले सौराठ सभागाछी में उपस्थित लोगों के बीच बहुत प्रकार के चर्चाओं जिसमें मुख्य रूप से कुल, मूल और पाँजिका होता है; जिनके जितने बड़े कुल-मूल-पाँजि होते हैं उनका पूछ उतना ही अधिक होता है। हालांकि इस आधुनिकता के चमक-दमक ने अब लोगोंको केवल कुल-मूल-पाँजि से कहीं ऊपर लड़कों का व्यक्तिगत गुण, आचरण और रोजगार को मुख्य जाँच का विषय बना दिया है। परम्परानुसार यहाँ पहले (साबिक जमाने से) गुरुकुल से सीधे योग्य युवकोंको सौराठ सभागाछी में लाया जाता था और मैथिल ब्राह्मणों एवं कायस्थों के लिए शुरु किया गया इस सभामें लोग लाखोंके तादाद में पहुँचते थे और गुरुकुलोंके उन योग्य शिक्षित युवकोंके प्रतिभाको जाँच-बुझकर अपने स्वजनों के लायक उचित वर समझकर गुरुजनोंसे आज्ञा लेते थे और फिर विवाह कराने से पूर्व लड़कों के पैतृक परिवार के सात पुश्तों में और मातृक परिवारके पाँच पुश्तों में पहले कभी सीधा रक्त सम्बन्ध नहीं बने होने पर मात्र अधिकार निर्णय करबाते थे, ऐसे अधिकार निर्णय को एक तारके पत्तेपर मिथिलाक्षर में लाल स्याही से लिखवाया जाता था जिसे 'सिद्धान्त' कहा जाता है जिसमें पञ्जीकार स्वर्गीय लक्ष्मीदत्त मिश्र उर्फ भुट्टू मिश्र का नाम उल्लेखनीय है। पंजीकार भुट्टु मिश्र दरभंगा महाराज के सानिध्य में रहते थे। पंजी व्यवस्था की यह परम्परा आज भी मैथिलों में कायम है। इस समूचे संसार में शायद मैथिलों का यह वैवाहिक परंपरा सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि अधिकार निर्णय की अनूठी रीतिको बाद में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से समुचित करार दिया है। इन्हें भी देखें पंजी (मिथिला) विवाह बाहरी कड़ियाँ मिथिला में लगता था विश्व का पहला मेट्रिमोनियल सभा ! Inside a 700-year-old ‘groom market’ in India’s Bihar state श्रेणी:उत्सव
वोल्फ़गांक आमडेयुस मोत्सार्ट
https://hi.wikipedia.org/wiki/वोल्फ़गांक_आमडेयुस_मोत्सार्ट
वोल्फ़गांक आमडेयुस मोत्सार्ट (जर्मन: Wolfgang Amadeus Mozart) (27 जनवरी 1756 - 5 दिसंबर 1791) एक प्रसिद्ध जर्मन पाश्चात्य शास्त्रीय संगीतज्ञ थे। उन्होने लगभग ६०० संगीत रचनाएँ की। शास्त्रीय संगीतकारों में वे सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। श्रेणी:ऑस्ट्रियन संगीतज्ञ श्रेणी:पाश्चात्य शास्त्रीय संगीतकार‎ श्रेणी:१७५६ में जन्म श्रेणी:१७९१ में मृत्यु
ढाका
https://hi.wikipedia.org/wiki/ढाका
ढाका () बांग्लादेश की राजधानी है। बूढ़ी गंगा नदी के तट पर स्थित यह देश का सबसे बड़ा शहर है। राजधानी होने के अलावा यह बांग्लादेश का औद्यौगिक और प्रशासनिक केन्द्र भी है। यहाँ पर धान, गन्ना और चाय का व्यापार होता है। ढाका की जनसंख्या लगभग 1.1 करोड़ है (२००१ की जनसंख्या: ९,०००,०२)) जो इसे दुनिया के ग्यारहवें सबसे बड़ी जनसंख्या वाले शहर का दर्जा भी दिलाता है। ढाका का अपना इतिहास रहा है और इसे दुनिया में मस्जिदों के शहर के नाम से जाना जाता है। मुगल सल्तनत के दौरान इस शहर को १७ वीं सदी में जहांगीर नगर के नाम से भी जाना जाता था, यह न सिर्फ प्रादेशिक राजधानी हुआ करती थी बल्कि यहाँ पर निर्मित होने वाले मलमल के व्यापार में इस शहर का पूरी दुनिया में दबदबा था। आधुनिक ढाका का निर्माण एवं विकास ब्रिटिश शासन के दौरान उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ और जल्द ही यह कोलकाता के बाद पूरे बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन गया। भारत विभाजन के बाद १९४७ में ढाका पूर्वी पाकिस्तान की प्रशासनिक राजधानी बना तथा १९७२ में बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आने पर यह राष्ट्रीय राजधानी घोषित हुआ। आधुनिक ढाका देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था, एवं संस्कृति का मुख्य केन्द्र है। ढाका न सिर्फ देश का सबसे साक्षर (६३%) शहर है- - बल्कि बांग्लादेश के शहरों में सबसे ज्यादा विविधता वाला शहर भी है। हालांकि आधुनिक ढाका का शहरी आधारभूत ढांचा देश में सबसे ज्यादा विकसित है परंतु प्रदूषण, यातायात कुव्यवस्था, गरीबी, अपराध जैसी समस्यायें इस शहर के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। सारे देश से लोगों का ढाका की ओर पलायन भी सरकार के लिए एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है। इतिहास मुगल शासन काल में ढाका को जहांगीर नगर के नाम से जाना जाता था। उस समय यह बंगाल प्रांत की राजधानी था। वर्तमान ढाका का निर्माण 19वीं शताब्‍दी में अंग्रेजों के अधीन हुआ। जल्‍द ही कलकत्ता के बाद ढाका बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा नगर बन गया। बंटवारे के बाद ढाका पूर्वी पाकिस्‍तान की राजधानी बना। 1972 में यह बंगलादेश की राजधानी बना। भूगोल एवं मौसम ढाका की जलवायुMonth जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितंबर अक्तूबर नवंबर दिसंबर औसत तापमान (°F) 76° 80° 87° 89° 89° 88° 87° 88° 87° 87° 83° 77°औसत निम्न तापमान (°F) 58° 63° 72° 77° 79° 81° 81° 81° 80° 77° 69° 61°Average Precipitation (inches) 0.3" 0.8" 2.3" 4.6" 10.5" 14.1" 15.7" 12.5" 10.1" 6.4" 1.2" 0.2"''Source: WeatherBase.Com thumb|300px|right प्रशासन जनसांख्यिकी संस्कृति यातायात पर्यटन स्थल राष्‍ट्रीय स्‍मारक: यह स्‍मारक साभर में स्थित है। यह स्‍थान ढाका शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। इस स्‍मारक का डिजाइन मोइनुल हुसैन ने तैयार किया था। यह स्‍मारक उन लाखो सैनिकों को समर्पित है जिन्‍होंने बंगलादेश की स्‍वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। लालबाग किला: इस किले का निर्माण बादशाह औरंगजेब के पुत्र शाहजादा मुहम्‍मद आजम ने करवाया था। यह किला भारत के प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम (1857) का मूक गवाह है। 1857 में जब स्‍थानीय जनता ने ब्रिटिश सैनिकों के विरुद्ध विद्रोह किया था तब 260 ब्रिटिश सैनिकों ने यहीं शरण लिया था। इस किले में पारी बीबी का मकबरा, लालबाग मस्जिद, हॉल तथा नवाब शाइस्‍ता खान का हमाम भी देखने योग्‍य है। यह हमाम वर्तमान में एक संग्रहालय में तब्‍दील कर दिया गया है। 1857 का स्‍मारक (बहादुर शाह पार्क): 1857 के स्‍मारक स्‍थल को बहादुर शाह पार्क भी कहा जाता है। इस पार्क का निर्माण 1857 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में करवाया गया था। यहीं पर विद्रोही सैनिकों और उनके नागरिक सहयोगियों को ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया था। बंगबंधु स्‍मारक संग्रहालय: यह संग्रहालय धनमोनडी में स्थित है। पहले यह बंगलादेश के राष्‍ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजिबुर रहमान का आवास था। इस संग्रहालय में बंगबंधु के जीवन तथा उनके समय से संबंधित कई दुर्लभ वस्‍तुओं का संग्रह है। 1975 ई. में बंगबंधु की उनके परिवार सहित हत्‍या कर दी गई थी। लिबरेशन बार म्‍युजियम: यह म्‍युजियम सेगुन बगीचा क्षेत्र में स्थित है। इस संग्रहालय में बंगलादेश के स्‍वतंत्रता संग्राम से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। बंगलादेश का यह स्‍वतंत्रता संग्राम नौ महीने चला था। अहसान मंजिल संग्रहालय: यह संग्रहालय ढाका में बुढ़ी गंगा नदी के तट पर स्थित है। गुलाबी रंग का यह संग्रहालय पहले ढाका के नवाब का आवास था। अब इस इमारत का पुनर्निर्माण कर इसे संग्रहालय में तब्‍दील कर दिया गया है। यह संग्रहालय बंगलादेश की सांस्‍कृतिक समृद्धता का प्रतीक है। इस इमारत में 31 कमरें हैं। इसमें एक बड़ा सा गुम्‍बद भी है, जो दूर से ही दिख जाता है। इसमें 23 गैलरियां हैं। इन गैलरियों में चित्र, फर्नीचर तथा नवाब द्वारा उपयोग किए गए सामानों को प्रदर्शित किया गया है। कर्जन हाल: स्‍थापत्‍य की दृष्‍िट से अदभूत इस इमारत का नामाकरण्‍ा लार्ड कर्जन के नाम पर किया गया है। वर्तमान में इसमें ढाका विश्‍वविद्यालय का विज्ञान विभाग चलता है। ओल्‍ड हाई कोर्ट बिल्डिंग: ब्रिटिश काल में यह इमार ब्रिटिश गवर्नर का आवास हुआ करता था। इस इमारत में यूरोपिय और मुगल वास्‍तुशैली का सुंदर सम्मिश्रण है। ढाका जू: इसे मीरपुर जू के नाम से भी जाना जाता है। इस चिडियाघर में विभिन्‍न प्रकार के पशु और पक्षियों को रखा गया है। यहां विदेशी पशु-‍पक्षियों को भी देखा जा सकता है। इस जू में रॉयल बंगाल टाईगर भी है। राष्‍ट्रीय संग्रहालय: यह संग्रहालय शहर के शाहबंग क्षेत्र में स्थित है। इस संग्रहालय में हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रों तथा हस्‍तशिल्‍पों को रखा गया है। इस संग्रहालय के बगल में पब्लिक लाइब्रेरी है। बोटेनिकल गार्डन: यह गार्डन ढाका जू के नजदीक मीरपुर में स्थित है। यह 205 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। नेशनल पार्क: यह पार्क ढाका शहर से 40 किलोमीटर उत्तर में राजेंद्रपुर में है। यह पार्क 1600 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पार्क में पिकनिक मनाने और नौकायन करने की सुविधा है। केंद्रीय शहीद मीनार: यह मीनार बंगाली राष्‍ट्रीयता का प्रतीक है। केंद्रीय शहीद मीनार 1952 में हुए भाषाई आंदोलन को समर्पित है। प्रत्‍येक वर्ष 21 फ़रवरी को हजारों लोग फूल लेकर यहां एकत्र होते हैं। इस दिन यहां उत्‍सव मनाया जाता है। यह उत्‍सव मध्‍य रात्रि तक चलता है। नेशनल पोएटस ग्रेभयार्ड: बंगलादेश के राष्‍ट्रकव‍ि काजी नजरुल इस्‍लाम की मृत्‍यु 29 अगस्‍त 1976 ई. को हुई थी। उनको इसी कब्रिस्‍तान में दफनाया गया था। यह कब्रिस्‍तान ढाका विश्‍वविद्यालय मस्जिद के निकट स्थित है। सुहरावर्दी उद्यान: यह एक एतिहासिक पार्क है। 7 मार्च 1971 को इसी पार्क में बंगलादेश के राष्‍ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजिबुर रहमान ने आजादी का बिगुल फुका था। इस हरे-भरे पार्क में शहीद हुए सैनिकों की याद में अखण्‍ड ज्‍योति जल रही है। राष्‍ट्रीय नेताओं का समाधिस्‍थल: यह समाधिस्‍थल सुहरावर्दी पार्क के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में है। इसी जगह पर बंगलादेश के महान नेताओं शेर-ए-बंगाल ए. के. फजलुल हक, हुसैन शहीद सुहरावर्दी तथा काजी नजीमुद्दीन को दफनाया गया है। बंग भवन: बंगलादेश के राष्‍ट्रपति का यह आवास है। पर्यटक इसे बाहर से देख सकते हैं। thumbnail|right|Bashundhara City; The most luxurious shopping mall of South Asia बलधा बागीचा: यह बागीचा बलधा के जमींदार नरेंद्र नारायण राय का था। उन्‍होंने 1903 ई. में इस पार्क की स्‍थापना की थी। इस पार्क में पौधों की कई लुप्‍तप्राय प्रजातियां विद्यमान है। इस कारण यह पार्क प्रकृति प्रेमियो, वनस्‍पतिशास्‍त्रियों तथा पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र में रहता है। संसद भवन: बंगलादेश में संसद को जातीय संसद कहा जाता है। इस कारण इस इमारत को जातीय भवन भी कहा जाता है। यह इमारत शेर-ए-बंगाल नगर में स्थित है। इस भवन की वास्‍तुशैली अदभूत है। इस भवन का डिजाइन प्रसिद्ध वास्‍तुशास्‍त्री लुईस आई. खान ने तैयार किया था। विज्ञान संग्रहालय: यह संग्रहालय विज्ञान क्षेत्र में हो रहे नए आविष्‍कारों को सीखने का प्रमुख केंद्र है। यह संग्रहालय अगरगांव में स्थित है। इंस्‍टीट्यूट ऑफ आर्ट एंड क्रार्फ्ट: यह इंस्‍टीट्यूट शाहबाग में स्थित है। इसमें लोक कलाओं से संबंधित वस्‍तुओं का अच्‍छा संग्रह है। सोनारगांव: यह ढाका से 29 किलोमीटर की दूरी पर है। यह बंगाल की प्राचीनतम राजधानी है। खेलकूद इन्हें भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ढाका सिटी कॉरपोरेशन ढाका स्टॉक एक्सचेंज ढाका विश्वविद्यालय वर्चुअल बांग्लादेश बांग्लादेश ऑनलाईन जालस्थल पर ढाका श्रेणी:बांग्लादेश श्रेणी:बांग्लादेश के शहर श्रेणी:एशिया में राजधानियाँ
आठवीं अनुसूची
https://hi.wikipedia.org/wiki/आठवीं_अनुसूची
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है । प्रारम्भ में 14 भाषाओ को संवैधानिक मान्यता दी गई थी बाद में इसमें, सिन्धी भाषा को 21वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1967 ,कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा, और नेपाली भाषा को 71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992ई. में जोड़ा गया। हाल में 92 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003 में बोड़ो भाषा, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा, और संथाली भाषा शामिल किए गए। अनुसूची कश्मीरी भाषा सिन्धी भाषा पंजाबी भाषा हिन्दी भाषा बंगाली भाषा असमिया भाषा ओड़िया भाषा गुजराती भाषा मराठी भाषा कन्नड़ भाषा तेलगु भाषा तमिल भाषा मलयालम भाषा उर्दू भाषा संस्कृत भाषा नेपाली भाषा मणिपुरी भाषा कोंकणी भाषा बोडो भाषा डोंगरी भाषा मैथिली भाषा संथाली भाषा माँग वाली अन्य भाषाएँ भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में ४० अन्य भाषाओं को शामिल करने की माँग है। य़े भाषाएँ हैं: अवधी भाषा अंगिका भाषा बुंदेली भाषा बंजारा भाषा बज्जिका भाषा भूमिज भाषा भोजपुरी भाषा भोटी भाषा भोटीया भाषा छत्तीसगढ़ी भाषा धक्ती भाषा अंग्रेज़ी भाषा गढ़वाली भाषा गोंडी भाषा गोजरी भाषा हो भाषा कच्छी भाषा कामतापुरी भाषा कार्बी भाषा खासी भाषा कोडावा भाषा ककबरक भाषा कुमाऊँनी भाषा कुड़ुख भाषा कुड़माली भाषा लेप्चा भाषा लिंबू भाषा मिज़ो भाषा मगही मुंडारी भाषा नागपुरी भाषा निकोबारी भाषा हिमाचली भाषा पालि भाषा राजस्थानी भाषा कोशली / सम्बलपुरी भाषा शौरसेनी भाषा सराइकी भाषा टेनयीडी भाषा तुलू भाषा सन्दर्भ श्रेणी:भारत का संविधान श्रेणी:भारत की भाषाएँ
सुवर्णरेखा नदी
https://hi.wikipedia.org/wiki/सुवर्णरेखा_नदी
सुवर्णरेखा या स्वर्णरेखा भारत के झारखण्ड, पश्चिम बङ्गाल और ओड़िशा राज्यों में बहने वाली एक नदी है। विवरण यह राँची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित नगड़ी गाँव में रानी चुआं नामक स्थान से निकलती है और उत्तर पूर्व की ओर बढ़ती हुई मुख्य पठार को छोड़कर प्रपात के रूप में गिरती है। इस प्रपात (झरना) को हुन्डरु जलप्रपात (hundrughagh) कहते हैं। प्रपात के रूप में गिरने के बाद नदी का बहाव पूर्व की ओर हो जाता है और मानभूम जिले के तीन संगम बिंदुओं के आगे यह दक्षिण पूर्व की ओर मुड़कर सिंहभूम में बहती हुई उत्तर पश्चिम से मिदनापुर जिले में प्रविष्टि होती है। इस जिले के पश्चिमी भूभाग के जंगलों में बहती हुई बालेश्वर जिले में पहुँचती है। यह पूर्व पश्चिम की ओर टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई बालेश्वर नामक स्थान पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस नदी की कुल लंबाई 474 किलोमीटर है और लगभग 28928 वर्ग किलोमीटर का जल निकास इसके द्वारा होता है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ काँची एवं कर्कारी हैं। भारत का प्रसिद्ध एवं पहला लोहे तथा इस्पात का कारखाना इसके किनारे स्थापित हुआ। कारखाने के संस्थापक जमशेद जी टाटा के नाम पर बसा यहाँ का नगर जमशेदपुर या टाटानगर कहा जाता है। अपने मुहाने से ऊपर की ओर यह 16 मील तक देशी नावों के लिए नौगम्य (navigable) है। इन्हें भी देखें खड़कई नदी चौमुखा, ओड़िशा सन्दर्भ श्रेणी:झारखण्ड की नदियाँ श्रेणी:पश्चिम बंगाल की नदियाँ श्रेणी:ओड़िशा की नदियाँ
स्वर्णरेखा
https://hi.wikipedia.org/wiki/स्वर्णरेखा
REDIRECT सुवर्णरेखा नदी
त्रिवेन्द्रम
https://hi.wikipedia.org/wiki/त्रिवेन्द्रम
REDIRECT तिरुवनन्तपुरम
थिरुवनन्तपुरम
https://hi.wikipedia.org/wiki/थिरुवनन्तपुरम
REDIRECT तिरुवनन्तपुरम
अगरतला
https://hi.wikipedia.org/wiki/अगरतला
अगरतला (Agartala) भारत के त्रिपुरा राज्य की राजधानी है। यह पश्चिम त्रिपुरा ज़िले का मुख्यालय भी है। इसकी स्थापना 1850 में महाराज राधा कृष्ण किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा की गई थी। बांग्लादेश से केवल दो किमी दूर स्थित यह नगर सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। अगरतला त्रिपुरा के पश्चिमी भाग में स्थित है और हावड़ा नदी शहर से होकर गुजरती है।"Tripura : A Land of Ethnicity," Pamela Dasgupta, BFC Publications, 2021, ISBN 9789390675203"The Land of Fourteen Gods: Ethno-cultural Profile of Tripura," Gautam Kumar Bera, Mittal Publications, 2010, ISBN 9788183243339 विवरण अगरतला उस समय प्रकाश में आया जब माणिक्य वंश ने इसे अपनी राजधानी बनाया। 19वीं शताब्दी में कुकी के लगातार हमलों से परेशान होकर महाराज कृष्ण माणिक्य ने उत्तरी त्रिपुरा के उदयपुर स्थित रंगामाटी से अपनी राजधानी को अगरतला स्थानान्तरित कर दिया। राजधानी बदलने का एक और कारण यह भी था कि महाराज अपने साम्राज्य और पड़ोस में स्थित ब्रिटिश बांग्लादेश के साथ संपर्क बनाने चाहते थे। आज अगरतला जिस रूप में दिखाई देता है, दरअसल इसकी परिकल्पना 1940 में महाराज वीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर ने की थी। उन्होंने उस समय सड़क, मार्केट बिल्डिंग और नगरनिगम की योजना बनाई। उनके इस योगदान को देखते हुए ही अगरतला को ‘बीर बिक्रम सिंह माणिक्य बहादुर का शहर’ भी कहा जाता है। शाही राजधानी और बांग्लादेश से नजदीकी होने के कारण अतीत में कई प्रसिद्ध व्यक्तियों ने अगरतला का भ्रमण किया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर कई बार अगरतला आए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि त्रिपुरा के राजाओं से उनके काफी गहरे संबंध थे। पर्यटन स्थल 300px|right|thumb|उज्जयंता पैलेस 1901 में निर्मित उज्जयंत पैलेस, अगरतला का मुख्य स्मारक है जो मुगल-यूरोपीय मिश्रित शैली में निर्मित है। 800 एकड़ में फैला यह विशाल परिसर अब राज्य की विधान सभा के रूप में प्रयुक्त होता है। इसमें बगीचे और मानव-निर्मित झीलें है। आमतौर पर इसे जनता के लिए नहीं खोला जाता परंतु यदि आप सायं 3 से 4 बजे के बीत मुख्य द्वार पर जाएं तो आप यहां प्रवेश के लिए प्रवेश-पास प्राप्त कर सकते हैं। 200px|right|thumb|नीरमहल पैलेस के मैदान में नारंगी रंग के दो मंदिर अर्थात् उम्मेनश्वर मंदिर और जगन्नाथ मंदिर स्थित है, जिनमें कोई भी व्यक्ति दर्शानार्थ जा सकता है। एयरपोर्ट रोड पर लगभग 1 कि॰मी॰ उत्तर में वेणुबन विहार नामक एक बौद्ध मंदिर है। गेदू मियां मस्जिद, जो अनोखे तकीके से क्राकरी के टूटे हुए टुकड़ों से बनी है, भी मनोरम दर्शनीय है। एचजीबी रोड पर स्थित स्टेट म्यूजियम में एथनोग्राफिकल और आर्कियोलॉजी संबंधी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यह सोमवार से शनिवार तक प्रात: 10 से सायं 5 बजे तक खुलता है, इसमें प्रवेश निशुल्क है। पर्यटन कार्यालय के पीछे स्थित ट्राइबल म्यूजियम त्रिपुरा के 19 आदिवासी समूहों की स्मृति के रूप में बनाया गया है। पुराना अगरतला पूर्व में 5 कि॰मी॰ दूर है। यहां चौदह मूर्तियों वाला मंदिर है जहां जुलाई माह में श्रद्धालु कड़छी-पूजा के लिए एकत्र होते हैं। यहां आटोरिक्शा, बस और जीप द्वारा पहुंचा जा सकता है। उज्जयन्त महल इस महल को महाराजा राधा किशोर माणिक्य ने बनवाया था। अगरतला जाने पर इस महल को जरूर घूमना चाहिए। इसका निर्माण कार्य 1901 में पूरा हुआ था और फिलहाल इसका इस्तेमाल राज्य विधानसभा के रूप में किया जा रहा है। नीरमहल मुख्य शहर से 53 किमी दूर स्थित इस खूबसूतर महल को महाराजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य ने बनवाया था। रुद्रसागर झील के बीच में स्थित इस महल में महाराजा गर्मियों के समय ठहरते थे। महल निर्माण में इस्लामिक और हिंदू वास्तुशिल्प का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है, जिससे इसे काफी ख्याति भी मिली है। जगन्नाथ मंदिर अगरतला के सर्वाधिक पूजनीय मंदिरों में से एक जन्नाथ मंदिर अपनी अनूठी वास्तुशिल्पीय शैली के लिए जाना जाता है। यह एक अष्टभुजीय संरचना है और मंदिर के पवित्र स्थल के चारों ओर आकर्षक प्रधक्षण पठ है। महाराजा बीर बिक्रम कॉलेज जैसा कि नाम से ही जाहिर है, इस कॉलेज को महाराजा बीर बिक्रम सिंह ने बनवाया था। 1947 में इस कॉलेज को बनवाने पीछे महाराजा कि मंशा स्थानीय युवाओं को व्यवसायिक और गुणवत्तायुक्त शिक्षा उपलब्ध कराना था। लक्ष्मीनारायण मंदिर right|thumb|300px|लक्ष्मीनारायण बाड़ी (लक्ष्मीनारायण मन्दिर) इस मंदिर में हिंदू धर्म को मानने वाले नियमित रूप से जाते हैं। साथ ही यह अगरतला का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है। इस मंदिर को कृष्णानंद सेवायत ने बनवाया था। रवीन्द्र कानन राज भवन के बगल में स्थित रवीन्द्र कानन एक बड़ा सा हरा-भरा गार्डन है। यहां हर उम्र के लोग आते हैं। कुछ तो यहां मौज मस्ती के मकसद से आते हैं, वहीं कुछ इसका इस्तेमाल प्ले ग्राउंड के तौर पर भी करते हैं। पिछले कुछ सालों में चावल, तिलहन, चाय और जूट के नियमित व्यापार से अगरतला पूर्वोत्तर भारत के एक व्यवसायिक गढ़ के रूप में भी उभरा है। शहर में कुछ फलते-फूलते बाजार हैं, जिन्हें घूमना बेकार नहीं जाएगा। इन बाजारों में बड़े पैमाने पर हस्तशिल्प और ऊन से बने वस्त्र आपको मिल जाएंगे। वेणुवन विहार यह अगरतला के केन्द्र से लगभग २ किमी की दूरी पर स्थित एक बौद्ध मन्दिर है। वेणुवन विहार, त्रिपुरा राज्य के सबसे प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस विहार की संरचना में विशिष्ट त्रिपुरी शैली की वास्तुकला का प्रभाव है। इस विहार में लाल रंग का गर्भगृह है जो भगवान बुद्ध को समर्पित है। बहुत पहले वर्मा में बनायी जाने वाली भगवान बुद्ध और बोधिसत्व की विशिष्ट धातु की मूर्तियों के लिए वेणुवन का यह विहार बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बीच जाना जाता है। यह स्थान घने पेड़ों की झाड़ियों से घिरा हुआ है। 'बुद्ध पूर्णिमा' वेणुवन विहार में संपूर्ण उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से 'चकमा' और 'मोग' लोग शामिल हैं। इन्हें भी देखें त्रिपुरा हावड़ा नदी पश्चिम त्रिपुरा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:त्रिपुरा के शहर श्रेणी:पश्चिम त्रिपुरा ज़िला श्रेणी:पश्चिम त्रिपुरा ज़िले के नगर * श्रेणी:भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियाँ
मुजफ़्फ़रपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/मुजफ़्फ़रपुर
पुनर्प्रेषित मुज़फ्फरपुर
मुज़फ्फरपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/मुज़फ्फरपुर
मुज़फ़्फ़रपुर भारत के बिहार राज्य के तिरहुत प्रमण्डल के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यह बूढ़ी गण्डक नदी के किनारे बसा हुआ है।"Bihar Tourism: Retrospect and Prospect," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999"Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810 विवरण मुज़फ़्फ़रपुर उत्तरी बिहार का एक प्रमुख शहर है। अपने सूती वस्त्र उद्योग,लाह (लाख)की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी यहाँ से लीची भेजी जाती है। बिहार के जर्दालु आम, मगही पान और कतरनी धान को जीआइ टैग (ज्योग्रफिकल इंडिकेशन) मिल चुका है। अब शाही लीची को भी जल्द जीआइ मिल जाएगा। 2017 मे मुज़फ़्फ़रपुर स्मार्ट सिटी के लिये चयनित हुआ है। अपने उर्वरक भूमि और स्वादिष्ट फलों के स्वाद के लिये मुज़फ़्फ़रपुर देश विदेश मे "स्वीटसिटी" के नाम से जाना जाता है। मुज़फ़्फ़रपुर थर्मल पावर प्लांट देशभर के सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्रो मे से एक है।http://abpnews.abplive.in/ind/2014/05/24/article329024.ece/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%AC-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%9A#.VHGCK_mSxqg इतिहास प्राचीन काल में मुजफ्फरपुर मिथिला (तिरहुत) राज्य का अंग था। बाद में मिथिला में वज्जि गणराज्य की स्थापना हुई। तीसरी सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र काफी समय तक महाराजा हर्षवर्धन के शासन में रहा। उनकी मृत्यु के बाद स्थानीय क्षत्रपों का कुछ समय शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ जो 1019 तक जारी रहा। तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी में चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। सन 1211 से 1226 बीच गैसुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। चम्पारण के सिमराँव वंश के शासक हरसिंह देव के समय 1323 ईस्वी में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया लेकिन उसने सत्ता मिथिला के शासक कामेश्वर ठाकुर को सौंप दी। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोदी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुग़ल शासकों और बंगाल के नवाबों के प्रतिनिधि इस क्षेत्र का शासन चलाते रहे। पठान सरदार दाऊद खान को हराने के बाद मुगलों ने नए बिहार प्रांत का गठन किया जिसमें तिरहुत को शामिल कर लिया गया। 1764 में बक्सर की लडाई के बाद यह क्षेत्र सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया। सन 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिये तिरहुत का गठन कर मुजफ्फरपुर जिला बनाया गया। मुजफ्फरपुर ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूरण भूमिका निभाई है। महात्मा गाँधी की दो यात्राओं ने इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता के चाह की नयी जान फूँकी थी। खुदीराम बोस, जुब्बा साहनी तथा पण्डित सहदेव झा जैसे अनेक क्रांतिकारियों की यह कर्मभूमि रही है। 1930 के नमक आन्दोलन से लेकर 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय तक यहाँ के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे। मुजफ्फरपुर का वर्तमान नाम ब्रिटिस काल के राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खान के नाम पर पड़ा है। 1972 तक मुजफ्फरपुर जिले में शिवहर, सीतामढी तथा वैशाली जिला शामिल था। मुजफ्फरपुर को इस्लामी और हिन्दू सभ्यताओं की मिलन स्थली के रूप में भी देखा जाता रहा है। दोनों सभ्यताओं के रंग यहाँ गहरे मिले हुये हैं और यही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है। भूगोल क्षेत्रफलः 3172 किमी२ नदियाँ: गंडक, बूढी गंडक, बागमती तथा लखनदेई मौसम मुजफ्फरपुर का मौसम गर्मियों में, अप्रैल से जून, महीनों के बीच अत्यंत गर्म एवं नम रहता है (28/40 °C,90% अधिकतम्)। इसके मुकाबले सर्दियां काफ़ी सुखद एवं शीतल होती हैं। राजनीतिक विभाजन अनुमंडलः पूर्वी अनुमंडल तथा पश्चिमी अनुमंडल प्रखंडः १६ औराई, बोचहाँ, गायघाट, कटरा, मीनापुर, मुरौल, मुसहरी, सकरा, काँटी, कुढनी, बरुराज (मोतीपुर), पारु, साहेबगंज, सरैयाबंदरा मरवां पंचायतों की संख्या: ३८७ गाँवों की संख्या: १८११ भारत के बड़े गाव में से एक जजुआर कटरा ब्लाक में है शिक्षण संस्थान विश्वविद्यालय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय महाविद्यालय लंगट सिंह महाविद्यालय मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी दर्शनीय स्थल right|thumb|मुजफ्फरपुर में लीची गार्डन बसोकुंड: जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान भी है। जुब्बा साहनी पार्क: भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने १६ अगस्त १९४२ को मीनापुर थाने के इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें ११ मार्च १९४४ को फांसी दे दी गयी। जिले के इस महान स्वतंत्रता सेनानी की याद में बनाया गया पार्क दर्शनीय है। बा‍बा गरीबनाथ मंदिर: मुजफ्फरपुर के इस शिव मंदिर को देवघर के समान आदर प्राप्त है। सावन के महीने में यहाँ शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। देवी मंदिर: कोठिया मज़ार (कांटी): दाता कंबल शाह मज़ार: शहीद खुदीराम स्‍मारक: छह्न्न्मास्तिका मन्दिर (कांटी) मां मनोकामना मन्दिर (प्रतापपुर) बाबाजी मनोकामनामहादेव ब्रह्म (प्रतापपुर) आवागमन हवाई मार्ग यहाँ का सबसे नजदीकी पताही हवाई अड्डा जो ४ किलोमीटर पर अवस्थित है लम्बे समय से बंद परा है। सामान्य हवाई अड्डा ८० किलोमीटर दूर पटना में स्थित है। एक अन्य हवाई अड्डा दरभंगा में स्थित है जो सैनिक उद्देश्यों के लिए बना है। रेल मार्ग मुजफ्फरपुर भारतीय रेल के पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण जंक्शन है। यह शहर रेलमार्ग से भारत के महत्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से गोरखपुर और हाजीपुर या मोतिहारी होते हुए मुजफ्फरपुर पहुंचा जा सकता है। मुजफ्फरपुर उतर-पूर्व भारतीय राज्‍यों से भी ट्रेन माध्‍यम से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग मुजफ्फरपुर बिहार के अन्‍य शहरों से सड़क के माध्‍यम से अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। हाजीपुर से प्रारंभ होकर सोनबरसा (सीतामढी) जानेवाली राष्ट्रीय राजमार्ग ७७ मुजफ्फरपुर होकर जाती है। लखनऊ से बरौनी को जोडनेवाली राष्ट्रीय राजमार्ग २८ मुजफ्फरपुर से गुजरती है। इसके अलावे राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ तथा १०२ एवं राजकीय राजमार्ग ४६ तथा ४८ भी यहाँ से गुजरती है। राजधानी पटना से मुजफ्फरपुर (78 कि॰मी॰) के लिए हाजीपुर होकर नियमित बस सेवाएं हैं। पड़ोसी जिलों के लिए भी मुजफ्फरपुर से अच्छी बस सेवा उपलब्ध है। जलमार्ग जिले के पश्चिमी सीमा से गुजरनेवाली गंडक नदी नौका गम्य है लेकिन मानसून के दिनों में यह परिवहन योग्य नहीं रहती। इन्हें भी देखें मैथिली मिथिला मुज़फ्फरपुर ज़िला वातावरण इस शहर मे प्रदूषण एक बड़ी समस्या है इस शहर का नाम देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों मे शुमार है कचड़ा प्रबंधन और जल निकासी एक बड़ी समस्या है बारिश के दिनों मे यहाँ के लोगो को जल जमाव जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है अंग्रेजी में जिले का आधिकारिक जालस्थल मुजफ्फरपुर स संबंधित इतिहास सन्दर्भ श्रेणी:मुज़फ्फरपुर जिला श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:मुज़फ्फरपुर ज़िले के नगर *
मधुबनी
https://hi.wikipedia.org/wiki/मधुबनी
मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन 1972 में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में की गई थी। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। नामाकरण उत्तर बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है मधुरौट शाखा के मधुवंशी यादव क्षत्रियों का नज़रगंज राजघराना जिसका पूरे बंगाल प्रेसिडेंसी में एक अलग रूतबा था।इन यदुवंशियों इतिहास मथुरा से शुरू होने के कारण ही मधुरौट वंश कहलाया, महाराज मधु के नाम से ये मधुवंशी या माधव वंशी भी कहलाते हैं, द्वारकाधीश के पूर्वज और महराज यदु के पीढ़ी में जन्मे महाराज मधु बहुत ही प्रतापी राजा थे। उन्होंने हीं मथुरा शहर की स्थापना की थी तथा इनके प्रताप के कारण हीं द्वारकाधीश भगवान् श्रीकृष्णचंद्र को माधव भी कहा जाता है। कालांतर में यादव राजस्थान तथा मथुरा से विस्थापित होते हुए बिहार में प्रवेश किया अपने पूर्वज महाराज मधु के नाम पर मधुबनी तथा मधेपुरा जैसे इलाके आबाद करते हुए पूर्णियां के नज़रगंज राजघराना का स्थापना कर वहीं बस गए। मधुबनी जिले के प्राचीनतम ज्ञात निवासियों में किरात, भार, थारु जैसी जनजातियाँ शामिल है। वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और इस क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री सीता का जन्म मधुबनी की सीमा पर स्थित सीतामढी में हुआ था। विदेह की राजधानी जनकपुर, जो आधुनिक नेपाल में पड़ता है, मधुबनी के उत्तर-पश्चिमी सीमा के पास है। बेनीपट्टी के पास स्थित फुलहर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ फुलों का बाग था जहाँ से सीता फुल लेकर गिरिजा देवी मंदिर में पूजा किया करती थी। पंडौल के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहाँ पांडवों ने अपने अज्ञातवाश के कुछ दिन बिताए थे। विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं ने मधुबनी के निकट सुगौना को अपनी पहली राजधानी बनायी। १६ वीं सदी में उन्होंने दरभंगा को अपनी राजधानी बना ली। ओईनवार शासकों को इस क्षेत्र में कला, संस्कृति और साहित्य का बढावा देने के लिए जाना जाता है। MP Board 12th Blueprint 2023 Bihar Board 12th Model Paper 2023 MP Board 10th Blueprint 2023 १८४६ इस्वी में ब्रिटिस सरकार ने मधुबनी को तिरहुत के अधीन अनुमंडल बनाया। १८७५ में दरभंगा के स्वतंत्र जिला बनने पर यह इसका अनुमंडल बना। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के खादी आन्दोलन में मधुबनी ने अपना विशेष पहचान कायम की और १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में जिले के सेनानियों ने जी जान से शिरकत की। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में मधुबनी को स्वतंत्र जिला बना दिया गया। भौगोलिक स्थिति मधुबनी के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में दरभंगा, पुरब में सुपौल तथा पश्चिम में सीतामढी जिला है। कुल क्षेत्रफल ३५०१ वर्ग किलोमीटर है जो भूकंप क्षेत्र ५ में पड़ता है। नदियों का यहाँ जाल बिछा है जो बरसात के दिनों में हर साल लोगों के तबाही का कारण बनती है। वर्ष २००७ में आए भीषण बाढ में 331 पंचायत (110 पूर्ण रूप से तथा 221 आंशिक रूप से) तथा 836 गाँवों के 372599 परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। विजन पत्र २०२० में मधुबनी की प्राकृतिक आपदा समूचा जिला एक समतल एवं उपजाऊ क्षेत्र है। औसत सालाना १२७३ मिमी वर्षा का अधिकांश मॉनसून से प्राप्त होता है। नदियाँ: कमला, करेह, बलान, भूतही बलान, गेहुंआ, सुपेन, त्रिशुला, जीवछ, कोशी और अधवारा समूह। अधिकांश नदियाँ बरसात के दिनों में उग्र रूप धारण कर लेती है। कोशी नदी जिले की पूर्वी सीमा तथा अधवारा या छोटी बागमती पश्चिमी सीमा बनाती है। प्रशासनिक विभाजन यह जिला 5 अनुमंडल, 21 प्रखंडों, 399 पंचायतों तथा 1111 गाँवों में बँटा है। विधि व्यवस्था संचालन के लिए 18 थाने एवं 2 जेल है। पूर्ण एवं आंशिक रूप से मधुबनी जिला 2 संसदीय क्षेत्र एवं 11 विधान सभा क्षेत्र में विभाजित है। अनुमंडल- मधुबनी, बेनीपट्टी, झंझारपुर, जयनगर एवं फुलपरास प्रखंड- मधुबनी सदर (रहिका), पंडौल, बिस्फी, जयनगर, लदनिया, लौकहा, झंझारपुर, बेनीपट्टी, बासोपट्टी, राजनगर, मधेपुर, अंधराठाढ़ी, बाबूबरही, खुटौना, खजौली, घोघरडीहा, मधवापुर, हरलाखी, लौकही, लखनौर, फुलपरास, कलुआही कृषि एवं उद्योग मधुबनी मूलतः एक कृषि प्रधान जिला है। यहाँ की मुख्य फसलें धान, गेहूं, मक्का, मखाना आदि है। भारत में मखाना के कुल उत्पादन का 80% मधुबनी में होता है। मधुबनी जिले का विजन २०२० आधारभूत संरचना का अभाव एवं निम्न शहरीकरण (मात्र 3.65%) उद्योगों के विकाश में बाधा है। अभी मधुबनी पेंटिंग की 76 पंजीकृत इकाईयाँ, फर्नीचर उद्योग की 13 पंजीकृत इकाईयाँ, 3 स्टील उद्योग, 03 प्रिंटिंग प्रेस, 03 चूरा मिल, 01 चावल मिल तथा 3000 के आसपास लघु उद्योग इकाईयाँ जिले में कार्यरत है। पशुपालन एवं डेयरी को आधार बनाकर इनपर आधारित उद्योग लगाया जा सकता है लेकिन अभी तक मात्र ३० दुग्ध समीतियाँ ही कार्यरत है। मछली, मखाना, आम, लीची तथा गन्ना जैसे कृषि उत्पाद के अलावे मधुबनी से पीतल की बरतन एवं हैंडलूम कपड़े का राज्य में तथा बाहर निर्यात किया जाता है। शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के प्रसार के मामले में मधुबनी एक पिछड़ा जिला है। साक्षरता मात्र 58.62% है जिसमें स्त्रियों की साक्षरता दर महज 26.54% है। आधारभूत संरचना के अभाव को शिक्षा क्षेत्र में पिछड़ेपन का मुख्य कारण माना जाता है। जिले में शिक्षण संस्थानों की कुल संख्या इस प्रकार है: प्राथमिक विद्यालयः 901 मध्य विद्यालयः 382 माध्यमिक विद्यालयः 119 डिग्री कॉलेजः 27 स्थिति में सुधार हेतु बिहार शिक्षा परियोजना के अधीन अभी 98 प्राथमिक विद्यालय खोले गए हैं तथा 83 प्राथमिक विद्यालयों को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित किया जा रहा है। मधुबनी जिले के तमाम कॉलेज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा से संवद्ध हैं जबकि आबादी को देखते हुए जिले में एक विश्वविद्यालय की सख्त आवश्यकता है। इसके अलावा यहां मेडिकल कॉलेज और अन्य इंजीनियरिंग कॉलेज भी नहीं है। मधुबनी के लोग पढ़ाई लिखाई में काफी जहीन माने जाते हैं और उन्होंने राज्य और देश के अंदर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। कम साक्षरता के बावजूद यहां के लोग बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस और अन्य सेवाओं में चुनकर जाते रहे हैं। लेकिन पढ़ वहीं पाते हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और जुनूनी है साथ ही जिनका जागरुक समाजिक परिवेश है। मधुबनी में वैसे तो एक नवोदय विद्यालय है लेकिन उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। मधुबनी को कम से कम ५ डिग्री कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज और पांच इंजिनयरींग कॉलेजों की सख्त आवश्यकता है। यहां के बच्चे जमीन बेचकर कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य सूबों में डिग्री पाने जाते हैं जिसकी गुणवत्ता भी संदिग्ध होती है साथ ही राज्य का राजस्व भी दूसरे राज्य में चला जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस जिले से इतने कद्दावर नेताओं के संसद और विधानसभा पहुंचने के बाद भी जनता को ठगने का सिलसिला जारी है और शिक्षा अभी तक राजनीतिक एजेंडे पर नहीं आ पाई है। शायद देश के अन्य हिस्सों का भी कमोवेश यहीं हाल है। राम कृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी जगदीश नंदन सिंह महाविद्यालय देवनारायण यादव महाविद्यालय मिथिला चित्रकला संस्थान रमा प्रसाद दत्त जनता उच्च विद्यालय कला एवं संस्कृति मधुबनी मिथिला संस्कृति का अंग एवं केंद्र विंदु रहा है। राजा जनक और सीता का वास स्थल होने से हिंदुओं के लिए यह क्षेत्र अति पवित्र एवं महत्वपूर्ण है। मिथिला पेंटिंग के अलावे मैथिली और संस्कृत के विद्वानों ने इसे दुनिया भर में खास पहचान दी है। प्रसिद्ध लोककलाओं में सुजनी (कपडे की कई तहों पर रंगीन धागों से डिजाईन बनाना), सिक्की-मौनी (खर एवं घास से बनाई गई कलात्मक डिजाईन वाली उपयोगी वस्तु) तथा लकड़ी पर नक्काशी का काम शामिल है। सामा चकेवा एवं झिझिया मधुबनी का लोक नृत्य है। मैथिली, हिंदी तथा उर्दू यहाँ की मुख्‍य भाषा है। यह जिला महाकवि कालीदास, मैथिली कवि विद्यापति तथा वाचस्पति जैसे विद्वानों की जन्मभूमि रही है। मधुबनी पेंटिंगः पर्व त्योहारों या विशेष उत्सव पर यहाँ घर में पूजागृह एवं भित्ति चित्र का प्रचलन पुराना है। १७वीं शताब्दी के आस-पास आधुनिक मधुबनी कला शैली का विकास माना जाता है। मधुबनी शैली मुख्‍य रूप से जितवारपुर (ब्राह्मण बहुल) और रतनी (कायस्‍थ बहुल) गाँव में सर्वप्रथम एक व्‍यवसाय के रूप में विकसित हुआ था। यहाँ विकसित हुए पेंटिंग को इस जगह के नाम पर ही मधुबनी शैली का पेंटिग कहा जाता है। इस पेंटिग में पौधों की पत्तियों, फलों तथा फूलों से रंग निकालकर कपड़े या कागज के कैनवस पर भरा जाता है। मधुबनी पेंटिंग शैली की मुख्‍य खासियत इसके निर्माण में महिला कलाकारों की मुख्‍य भूमिका है। इन लोक कलाकारों के द्वारा तैयार किया हुआ कोहबर, शिव-पार्वती विवाह, राम-जानकी स्वयंवर, कृष्ण लीला जैसे विषयों पर बनायी गयी पेंटिंग में मिथिला संस्‍कृति की पहचान छिपी है। पर्यटकों के लिए यहाँ की कला और संस्‍कृति खासकर पेंटिंग कौतुहल का मुख्‍य विषय रहता है। मैथिली कला का व्‍यावसायिक दोहन सही मायने में १९६२ में शुरू हुआ जब एक कलाकार ने इन गाँवों का दौरा किया। इस कलाकार ने यहां की महिला कलाकारों को अपनी पेंटिंग कागज पर उतारने के लिए प्रेरित किया। यह प्रयोग व्‍यावसायिक रूप से काफी कारगर साबित हुई। आज मधुबनी कला शैली में अनेकों उत्‍पाद बनाए जा रहे हैं जिनका बाजार फैलता ही जा रहा है। वर्तमान में इन पेंटिग्‍स का उपयोग बैग और परिधानों पर किया जा रहा है। इस कला की मांग न केवल भारत के घरेलू बाजार में बढ़ रही है वरन विदेशों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। अन्य उत्पादों में कार्ड, परिधान, बैग, दरी आदि शामिल है। चित्रकला मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। पहले तो सिर्फ ऊंची जाति की महिलाओं (जैसे ब्राह्मणों) को ही इस कला को बनाने की इजाजत थी लेकिन वक्त के साथ ये सीमाएँ भी खत्म हो गईं। आज मिथिलांचल के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। समय के साथ साथ चित्रकार कि इस विधा में पासवान जाति के समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा। इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं। इस चित्र में खासतौर पर कुल देवता का भी चित्रण होता है। हिन्दू देव-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना। चटख रंगों का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला। कुछ हल्के रंगों से भी चित्र में निखार लाया जाता है, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। यह जानकर हैरानी होगी की इन रंगों को घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में काफी चलन है। इसे बैठक या फिर दरवाजे के बाहर बनाया जाता है। पहले इसे इसलिए बनाया जाता था ताकि खेतों में फसल की पैदावार अच्छी हो लेकिन आजकल इसे घर के शुभ कामों में बनाया जाता है। चित्र बनाने के लिए माचिस की तीली व बाँस की कलम को प्रयोग में लाया जाता है। रंग की पकड़ बनाने के लिए बबूल के वृक्ष की गोंद को मिलाया जाता है। समय के साथ मधुबनी चित्र को बनाने के पीछे के मायने भी बदल चुके हैं, लेकिन ये कला अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए हैं कि यह आज भी कला के कद्रदानों की चुनिन्दा पसंद में से है। चित्रण से पूर्व हस्त नर्मित कागज को तैयार करने के लिऐ कागज पर गाय के गोबर का घोल बनाकर तथा इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है। सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगाया जाता है और धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है। मधुबनी चित्रकला दीवार, केन्वास एवं हस्त निर्मित कागज पर वर्तमान समय में चित्रकारों द्वारा बनायी जाती हैं। मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है। गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजास्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्रण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी पेंटिंग बनाई जाती है। पशु-पक्षी, वृक्ष, फूल-पत्ती आदि को स्वस्तिक की निशानी के साथ सजाया-संवारा जाता है। पर्यटन स्थल राजनगर- राजनगर मधुबनी जिले का एक एतिहासिक महत्व जगह है। यह एक जमाने में महाराज दरभंगा की उप-राजधानी हुआ करता था। यह महाराजा रामेश्वर सिंह के द्वारा बसाया गया था। उन्होंने यहां एक भव्य नौलखा महल का निर्माण करवाया लेकिन १९३४ के भूकंप में उस महल को काफी क्षति पहुंची और अभी भी यह भग्नावशेष के रूप में ही है। इस महल में एक प्रसिद्ध और जाग्रत देवी काली का मंदिर है जिसके बारे में इलाके के लोगों में काफी मान्यता और श्रद्धा है। जब इस नगर को रामेश्वर सिंह बसा रहे थे उस वक्त वे महाराजा नहीं, बल्कि परगने के मालिक थे। राजा के छोटे भाई और संबंधियों को परगना दे दिया जाता था जिसके मालिक को बाबूसाहब कहा जाता था। बाद में अपने भाई महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की मृत्यु के बाद, रामेश्वर सिंह, दरभंगा की गद्दी पर बैठे। लेकिन १९३४ के भूकंप ने राजनगर के गौरव को ध्वस्त कर दिया। हलांकि यहां का भग्नावशेष अवस्था में मौजूद राजमहल और परिसर अभी भी देखने लायक है। राजनगर, मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब ७ किलोमीटर उत्तर में है और मधुबनी-जयनगर रेलवे लाईन यहां से होकर गुजरती है। यह मधुबनी-लौकहा रोड पर ही स्थिति है और यातायात के साधनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां प्रखंड मुख्यालय, कॉलेज, हाईस्कूल, पुलिस स्टेशन, सिनेमा हॉल आदि है। एक जमाने में नदी कमला इसके पूरव से होकर बहती थी। अब उसने अपनी धारा करीब ७ किलोमीटर पूरव खिसका ली है और भटगामा-पिपराघाट से होकर बहती है। राजनगर से उत्तर खजौली, दक्षिण मधुबनी, पूरव बाबूबरही और पश्चिम रहिका ब्लाक है। यहां से बलिराजगढ़ की दूरी २० किलोमीटर है, जो मौर्यकाल से भी पुराना ऐतिहासिक किला माना जाता है। सौराठ: मधुबनी-जयनगर रोड पर स्थित इस गाँव में सोमनाथ महादेव का मंदिर है। यहाँ मैथिल ब्राह्मणों की प्रतिवर्ष होनेवाली सभा में विवाह तय किए जाते हैं। इस गाँव में तथा अन्यत्र रहने वाले पंजीकार इस क्षेत्र के ब्राह्मणों की वंशावली रखते हैं और विवाह तय करने में इनकी अहम भूमिका होती है। कपिलेश्वरनाथ: मधुबनी से ९ किलोमीटर दूर इस स्थान पर अति पूज्य कपिलेश्वर शिव मंदिर है। प्रत्येक सोमवार तथा सावन के महीने में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा होती है। महाशिवरात्रि को यहाँ मेला भी लगता है। बाबा मुक्तेश्वरनाथ स्थान: भगवान शिव को समर्पित श्री श्री १०८ बाबा मुक्तेश्वरनाथ (मुक्तेश्वर स्थान) शिव मंदिर एक हिन्दू धर्म - स्थल है जो बिहार राज्य के मधुबनी जिला अन्तर्गत्त अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार ग्राम में स्थित है। बलिराज गढ़ : यहां प्राचीन किला का एक भग्नावशेष है जो करीब ३६५ बीघे में फैला हुआ है। यह स्थान जिला मुख्यालय से करीब ३४ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मधुबनी-लौकहा सड़के के किनारे स्थित है। यह नजदीकी गांव खोजपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा है जहां से इसकी दूरी १। ५ किलोमीटर के करीब है। इसके उत्तर में खोजपुर, दक्षिण में बगौल, पूरब में फुलबरिया और पश्चिम में रमणीपट्टी गांव है। इस किले की दीवार काफी मोटी है और ऐसा लगता है कि इसपर से होकर कई रथ आसानी से गुजर जाते होंगे। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है और यहां उसके कुछ कर्मचारी इसकी देखभाल करते हैं। पुरातत्व विभाग ने दो बार इसकी संक्षिप्त खुदाई की है और इसकी खुदाई करवाने में मधुबनी के पूर्व सीपीआई सांसद भोगेंद्र झा और स्थानीय कुदाल सेना के संयोजक सीताराम झा का नाम अहम है। यहां सलाना रामनवमी के अवसर पर चैती दुर्गा का भव्य आयोजन होता है जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है। इसकी खुदाई में मौर्यकालीन सिक्के, मृदभांड और कई वस्तुएं बरामद हुई हैं। लेकिन पूरी खुदाई न हो सकने के कारण इसमें इतिहास का वहुमूल्य खजाना और ऐतिहासिक धरोहर छुपी हुई है। कई लोगों का मानना है कि बलिराज गढ़ मिथिला की प्राचीन राजधानी भी हो सकती है क्योंकि वर्तमान जनकपुर के बारे में कोई लोगों को इसलिए संदेह है क्योंकि वहां की इमारते काफी नई हैं। दूसरी बात ये कि रामायण अन्य विदेशी यात्रियों के विवरण से संकेत मिलता है कि मिथिला की प्राचीन राजधानी होने के पर बलिराजगढ़ का दावा काफी मजबूत है। इसके बगल से दरभंगा-लौकहा रेल लाईन भी गुजरती है और नजदीकी रेलवे हाल्ट बहहड़ा यहां से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अगल-बगल के गांव भी ऐतिहासिक नाम लिए हुए हैं। रमणीपट्टी के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां राजा का रनिवास रहा होगा। फुलबरिया, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है फूलो का बाग रहा होगा। बगौल भी बिगुल से बना है जबकि कुछ ही दूरी पर नवनगर नामका गांव है। जो गरही गाँव इसके नजदीक में है। बलिराज गढ़ में हाल तक करीब ५० साल पहले तक घना जंगल हुआ करता था और पुराने स्थानीय लोग अभी भी इसे वन कहते हैं जहां पहले कभी खूंखार जानवर विचरते थे। वहां एक संत भी रहते थे जिनके शिष्य से धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने दीक्षा ली थी। कुल मिलाकर, बलिराजगढ़ अभी भी एक व्यापक खुदाई का इंतजार कर रहा है और इतिहास की कई सच्चाईयों को दुनिया के सामने खोलने के लिए बेकरार है। इस के नजदीक एक उच्च विद्यालय नवनगर में है जो इस दश किलो मिटर के अन्तर्गत एक उच्च विद्यालय है जो नवनगर में शिक्षा के लिए जाना जाता है। भगवती स्थान उचैठ: भगवती स्थान उचैठ  मधुबनी जिला के बेनीपट्टी अनुमंडल से मात्र ४ किलोमीटर की दुरी पर पश्चिम दिशा की ओर स्थित है|  यह स्थान मिथिला में एक प्रसिद्द  सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है | भगवती मन्दिर के गर्भगृह में माँ दुर्गा सिंह पर कमल के आसन पर विराजमान हैं | दुर्गा माँ सिर्फ कंधे तक ही दिखाई देती हैं , कंधे से उपर इनका सिर नहीं है | इसलिए इन्हें छिन्नमस्तिका दुर्गा भी कहा जाता है | माँ दुर्गा मन्दिर के पास ही एक बहुत बड़ा स्मशान है , जहां बड़ी संख्या में तन्त्र साधक आज भी साधना में लीन रहते हैं |इस स्थान पर जो साधक जिस मनोकामना से माँ दुर्गा की दर्शन करते हैं , वो वहां से खाली हाथ वापस नहीं आते हैं | कहा जाता है कि भगवान राम जनकपुर की यात्रा के समय यहाँ रुके थे | :-महाकवि कालीदास को दिया था वरदान : कहतें हैं दुर्गा मन्दिर से पूर्व दिशा की ओर एक संस्कृत पाठशाला थी | संस्कृत पाठशाला और मंदिर के बीच एक नदी बहती थी |  कालीदास एक महामूर्ख व्यक्ति था | कालीदास का विवाह राजकुमारी विद्द्योतमा से  छल द्वारा करा दिया गया था  | विद्द्योतमा परम विदुषी महिला थी |  वह ये नहीं जानती थी कि कालीदास महामूर्ख है | जब उसे यह बात मालुम हो गयी तो उसने कालीदास का तिरस्कार किया और ये भी कह  दिया कि जब तक उन्हें  संस्कृत का ज्ञान नहीं हो जाता वापस घर ना आयें |  कालीदास अपनी पत्नी से अपमानित होकर उचैठ भगवती स्थान आ गए और वहां के आवासीय संस्कृत पाठशाला में रशोइया का कार्य करने लगे| समय बीतने लगा | कुछ दिनों के बाद वर्षा ऋतू शुरू हो गयी  | एक दिन घनघोर वर्षा होने लगी रात-दिन वर्षा होने के कारण नदी में बाढ़ आ गयी |फिर भी वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी | नदी में पानी की धारा भी तेज गति से बहने लगी | शाम भी होने वाली थी | मंदिर की साफ़ सफाई , पूजा पाठ , धुप दीप , आरती सारी  व्यबस्था पाठशाला के छात्र ही करते थे | शाम हो गयी थी | मंदिर में दिया भी जलाना था , लेकिन भयंकर वर्षा और नदी में पानी की तेज धारा के कारण वे लोग मंदिर जाने में असमर्थ हो गए थे | सभी छात्रों ने मुर्ख कालीदास  को ही मंदिर में दिया जलाने को कहने लगा , कालीदास मन्दिर जाने के लिए तैयार हो गया | छात्रों ने कालीदास से यह भी कहा कि मंदिर में दिया बाती दिखाने के बाद कोई निशान लगाना नहीं भूलना | कालीदास मंदिर जाने के लिए बिना कुछ सोचे नदी में कूद गया | किसी तरह तैरते डूबते वे मंदिर पहुंच गए | मंदिर के भीतर गए और दीप जलाए | उनहोंने मन में सोचा कि निशान लगाने के लिए तो कुछ लाये नहीं | सोच ही रहा था कि उनकी नजर दीप जलने वाली स्थान पर पड़ी | जलने वाली दीप के उपर काली स्याही उभर गयी थी | उसने सोचा इसी से ही निशान लगाउंगा | फिर उसने अपनी दाहिने हथेली को स्याही पर रगड़ा| अब वह निशान देने के लिए जगह खोजने लगा | मंदिर के चारों ओर सभी जगह काली स्याही का निशान पहले से ही लगा हुआ था | निशान लगाने के लिए कोई स्थान नहीं देख उसने सोचा क्यों न भगवती के मुखमंडल पर ही निशान लगा दिया जाय क्योंकि वहां पहले से कोई निशान नहीं लगा हुआ है | यह सोचकर जैसे ही अपना श्याही लगा हुआ दाहिना हाथ भगवती के मुखमंडल की ओर निशान लगाने के लिए बढ़ाया तो भगवती प्रकट होकर कालीदास के हाथ पकड़ कर कहने लगी अरे महामुर्ख तुझे निशान लगाने के लिए मंदिर के अंदर और कोई स्थान नहीं मिला |  हम तुम पर बहुत प्रसन्न हैं जो तुम इस विकराल समय में नदी तैर कर मंदिर में दिया जलाने के लिए आये हो | मांग कोई वर मुझसे मांग | कालीदास भगवती के  वचन को सुन सोचने लगा कि मुर्ख होने के कारण ही अपनी पत्नी से तिरस्कृत हूँ | अतः उसने भगवती से विद्द्या की याचना की | माँ ने तथास्तु कहते हुए कही कि आज रात भर में जितने भी पुस्तक को तुम छू सकते हो छू लो सभी पुस्तकें  तुम्हे याद हो जायेगी | यह कहते हुए माँ अंतर्ध्यान हो गयी | वह वापस पाठशाला आया | खाना बना कर सभी छात्रों को खिलाया | अब वह छात्रों  के नीचे वर्ग की पुस्तक से लेकर उच्च वर्ग तक सभी पुस्तकों को रात भर में स्पर्श कर  लिया | पुस्तक स्पर्श करते ही माँ की कृपा से सारा पुस्तक उन्हें कंठस्त हो गया | उन्होंने काव्य पुस्तक भी लिखी | यथा कुमार संभव , रघुवंश और मेघदूत आदि | गिरिजा - शिव मंदिर : मधुबनी का प्राचीन नाम ‘मधुवन’ था |त्रेतायुग के राजा जनक जिनका राज्य काफी विस्तारित था ,की राजधानी जनकपुर के नाम से प्रसिद्ध है |कहते भी हैं - ‘मधुवन’में राम खेलत होली | जगत जननी सीता फुल लोढ़ने राजा फुलवाड़ी  गिरजा स्थान जो वर्तमान में फुलहर के नाम से प्रसिद्ध है , नित्य जाया करती थी | जनकपुर राज्य के चारों दिशाओं में चार शिवलिंग (मंदिर ) थे |पूरब में विशौल ,पश्चिम में धनुषा , उत्तर में शिवजनकं मंदिर , और दक्षिण में गिरिजा - शिव मंदिर अवस्थित था जो आज भी मौजूद है | कहा जाता है कि राम-लक्ष्मण को धनुष की शिक्षा विशौल के पास ही जंगल में दिया गया था |विशौल के ठीक १० किलोमीटर पश्चिम में गिरजा स्थान है |राम लक्ष्मण एक दिन फुलवाड़ी का दर्शन गिरजा स्थान आये जहां सीता जी की नजर राम पर और राम की नजर सीता जी पर पड़ी तो गिरजा पूजन के समय जगत-जननी जानकी जी के हाथ से पुष्प माला गिर गया वे लगाकर हंस पड़ी |तुलसी कृत रामायण में वर्णित चौपाई “खसत माल  मुड़त मुस्कानी”साक्षी है |वही राम और सीता एक दुसरे से प्रेमातुर हो गए | पति-पत्नी का मिलन युग युगांतर तक होता रहा | यह प्रमाण रामायण से मिलता है | कल्याणेश्वर महादेव मंदिर : गिरिजास्थान से कुछ ही दूरी पर कल्याणेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। महाशिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां जुटते हैं। डोकहर राज राजेश्वरी मंदिर : मधुबनी से १२ किलोमीटर उत्तर बहरवन बेलाही गाँव मे माता राज राजेश्वरी का मंदिर है। भवानीपुर: पंडौल प्रखंड मुख्यालय से ५ किलोमीटर दूर स्थित इस गाँव में उग्रनाथ महादेव (उगना) शिव मंदिर है। बिस्फी में जन्में मैथिली के महान कवि विद्यापति से यह मंदिर जुड़ा है। मान्यताओं के अनुसार विद्यापति शिव के इतने अनन्य भक्त थे कि स्वयं शिव ने ही उगना बनकर उनकी सेवा करने लगे। कोइलख - कोइलख एक प्रमुख गाँव है जो माँ काली के लिए प्रसिद्ध है यहाँ जो मनोकामना मांगी जाती है वो जरुर पूरी होती है। गोसाउनी घर : मधुबनी के पुलिस लाइन के रूप में राजा माधवन सिंह का गोसाउनी घर भी मौजूद है |मधुबनी जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर की दुरी पर महंथ  भौड़ा  ग्राम स्थान  है |किवदंती है की राजा माधवन भगवती की पूजा अर्चना,साधना में इतने लीन रहते थे की पूजा आसनी, धरती से सवा हाथ ऊपर उठ जाया करती थी |मधुबनी जिला प्राचीन इतिहास की धरोहर है |यह राजा शिवसिंह ,लखिमा रानी विद्यापति , जयदेव् ,अयाची  वाचस्पति जैसे महा पंडितों की जन्म स्थली है | मंगरौनी ग्राम सारे विश्व में तंत्र-मन्त्र  मधुबनी  जिला मुख्यालय से एक किलोमीटर की दुरी पर अवस्थित मंगरौनी गाँव की देन है | मंगरौनी ग्राम में भगवती ‘बुढ़िया माय’का एक मंदिर आज भी मौजूद है | जयदेव का जन्म कवि कोकिल विद्यापति से पूर्व जयदेव का जन्म हुआ |मैथिली एवं संस्कृत साहित्य में मिथिला की गौरवपूर्ण इतिहास की झलक मिलती है |कवि चन्दा झा का रामायण ,वाचस्पति की ‘भवमती’ टीका  प्राचीन गाथा में संस्कृत भाषा में गीत गोविन्द आदि मधुबनी के गौरवमय इतिहास को प्रमाणित करते हैं | बाबा  चन्देश्वरनाथ स्थान: भगवान शिव को समर्पित श्री श्री १०८ बाबा चन्देश्वर नाथ (चन्देश्वर स्थान) शिव मंदिर एक हिन्दू धर्म - स्थल है जो बिहार राज्य के मधुबनी जिला अन्तर्गत्त अंधराठाढ़ी प्रखंड के हररी ग्राम में स्थित है। शिलानाथ धाम (महादेव जी,पार्वती मंदिर सहित अन्य कई देवी देवता) शिलानाथ धाम जयनगर प्रखंड के अंतर्गत पड़ता है,इस स्थान पे दुल्लीपट्टी होकर जाना पड़ता यहां हर साल सावन महिना में लाखों-लाख श्रद्धालुओ की भीड़ आती है,जो जयनगर में कमलानदी घाट पे स्नान करके कांवर पे जल उठाकर भगवान शिव का दर्शन करते है,शिलानाथ धाम पे बारह मास छतीसों दिन भक्त आते है महादेव का पूजा अर्चना करते हैएकादश रुद्र मंगरौनी :- मधुबनी के उत्तर में अवस्थित रूद्र के ग्यारह लिंगो का मंदिर है जो मंगरौनी कुटी के नाम से भी जाना जाता है ! उमानाथ महादेव जितवारपुर :-''' यह कलाग्राम जितवारपुर में मनोकामना लिंग के रुप में विराजमान है आवागमन सड़क मार्ग मधुबनी बिहार के सभी मुख्य शहरों से राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग तथा दो राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। मुजफ्फरपुर से फारबिसगंज होते हुए पूर्णिया जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ मधुबनी जिला होते हुए जाती है। यह सड़क स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का अगल चरण है जिसे ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर कहा जाता है। इसकी योजना वाजपेयी सरकार के वक्त बनी थी। इस सड़क के बन जाने से मधुबनी, दरभंगा बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र की ही तकदीर बदल जाएगी। इस सड़क के तहत कोसी पर बनने वाले पुल की लंबाई (संभवत:इसके साथ रेल पुल भी बनाई जाएगी) करीब २२ किलोमीटर होने की संभावना है जिसमें कोसी के पाट के अलावा उसके पूरव और पश्चिम में निचली जमीन के ऊपर कई-कई किलोमीटर तक वो पुल फैली हुई होगी। यह सड़क चार लेन की बन रही है और इसके बनने से मधुबनी का संपर्क सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और मिथिला के पूर्वी इलाके से एक बार फिर जुड़ जाएगा जो सन १९३४ के भूंकंप से पहले कायम था। पूरा इलाका समाजिक और आर्थिक रूप से एक इकाई में बदल जाएगा। इस पुल के महज बनने मात्र से इस इलाके की राजनीतिक चेतना किस मोड़ लेगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है। कुछ लोगों की राय में इस पुल के बनने से एक अखिल मिथिला राज्य की मांग जोड़ पकड़ सकती है जिसका आन्दोलन अभी खंडित अवस्था में है। मधुबनी से गुजरने वाली दूसरी सड़क ५५ किलोमीटर लंबी राष्ट्रीय राजमार्ग १०५ है जो दरभंगा को मधुबनी के जयनगर से जोड़ता है। राजधानी पटना से सड़क मार्ग के माध्‍यम से अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग मधुबनी भारतीय रेल के पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र के समस्तीपुर मंडल में पड़ता है। दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर स्थित समस्तीपुर जंक्शन से बड़ी गेज की एक लाईन मधुबनी होते हुए नेपाल सीमा पर जयनगर को जोड़ती है। मधुबनी से गुजरने वाली एक अन्य रेल लाईन सकरी से घोघरडिहा होते हुए फॉरबिसगंज को जोड़ती है। १९९६ के बाद रेल अमान परिवर्तन होने से दरभंगा होते हुए दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए यहाँ से सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। इसके अलावा एक रेललाईन दरभंगा से सकरी और झंझारपुर होते हुए लौकहा तक नेपाल की सीमा को जोड़ती है। जिले में सकरी और झंझारपुर दो रेल के जंक्शन हैं। लौकरा रेलवे लाईन के निर्माण में कांग्रेस के वरिष्ट नेता ललित नारायण मिश्र अहम योगदान है जिनका कार्यक्षेत्र मधुबनी ही था। वे झंझारपुर से सांसद हुआ करते थे। हवाई मार्ग यहाँ से सबसे नजदीकी नागरिक हवाई अड्डा दरभंगा में स्थित है। दरभंगा हवाई अड्डा( कोड- DBR) से अंतर्देशीय उड़ाने उपलब्ध है। इंडियन, स्पाइस जेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, कोलकाता। मुंबई औरके लिए उपलब्ध हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें मधुबनी चित्रकला मधुबनी प्रखण्ड (पश्चिमी चंपारण) मधुबनी, अररिया बाहरी कड़ियाँ मधुबनी जिले का आधिकारिक बेवजाल मधुबनी पेंटिंग पर जानकारी श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:मधुबनी जिला श्रेणी:मिथिला श्रेणी:मधुबनी ज़िले के नगर
मिथिला पेंटिंग
https://hi.wikipedia.org/wiki/मिथिला_पेंटिंग
REDIRECTमधुबनी चित्रकला --विजय ठाकुर २१:४५, २३ दिसम्बर २००४ (UTC)
मधुबनी पेंटिंग
https://hi.wikipedia.org/wiki/मधुबनी_पेंटिंग
REDIRECTमधुबनी चित्रकला
मधुबनी चित्रकला
https://hi.wikipedia.org/wiki/मधुबनी_चित्रकला
मधुबनी चित्रकला, जिसे मिथिला चित्रकला भी कहते हैं, बिहार के मिथिला क्षेत्र की एक प्रमुख कला परंपरा है। यह चित्रकला मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।इस कला का आरंभ 1960 में मधुबनी जिले के एक साध्वी, स्वर्गीय महासुन्दरी देवी के साथ हुआ था जीनोने रंगीन चित्रकला का परिचय दिया। इसके बाद से ही महिलाएं इस कला को अपनाने लगीं और आज यह कला पूरी दुनिया में मशहूर है।thumb|मधुबनी चित्रकला thumb|चित्र बनाती कलाकार महिला। बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात् श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। मधुबनी चित्रकला के विशेषता में एक बात यह है कि इसमें लकड़ी के टुकड़ों पर बनाए जाते हैं। मुख्य रूप से खुदाई की जाने वाली रंगों में सामंजस्य, लाल, हरा, नीला, और काला होते हैं जो इस कला को विशेषता प्रदान करते हैं। इतिहास माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। मिथिला क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। समय के साथ साथ चित्रकार कि इस विधा में पासवान जाति के समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा। इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं। विशेषता इस चित्र में खासतौर पर कुल देवता का भी चित्रण होता है। हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना। विधियाँ चटख रंगों का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला। कुछ हल्के रंगों से भी चित्र में निखार लाया जाता है, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। यह जानकर हैरानी होगी की इन रंगों को घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में काफी चलन है। इसे बैठक या फिर दरवाजे के बाहर बनाया जाता है। पहले इसे इसलिए बनाया जाता था ताकि खेतों में फसल की पैदावार अच्छी हो लेकिन आजकल इसे घर के शुभ कामों में बनाया जाता है। चित्र बनाने के लिए माचिस की तीली व बाँस की कलम को प्रयोग में लाया जाता है। रंग की पकड़ बनाने के लिए बबूल के वृक्ष की गोंद को मिलाया जाता है। समय के साथ मधुबनी चित्र को बनाने के पीछे के मायने भी बदल चुके हैं, लेकिन ये कला अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए हैं कि यह आज भी कला के कद्रदानों की चुनिन्दा पसंद में से है। हस्त निर्मित पेपर चित्रण से पूर्व हस्त नर्मित कागज को तैयार करने के लिऐ कागज पर गाय के गोबर का घोल बनाकर तथा इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है। सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगाया जाता है और धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है। प्रकार thumb|300px|right|मधुबनी चित्रकला मधुबनी चित्रकला दीवार, केन्वास एवं हस्त निर्मित कागज पर वर्तमान समय में चित्रकारों द्वारा बनायी जाती हैं। भित्ति चित्र मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है। गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजास्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्रण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी पेंटिंग बनाई जाती है। पशु-पक्षी, वृक्ष, फूल-पत्ती आदि को स्वस्तिक की निशानी के साथ सजाया-संवारा जाता है। आकर्षण एवं उपलब्धियां 27 सितंबर २०१९ को मधुबनी रेलवे स्टेशन पर एक भव्य कार्यक्रम  के अंतर्गत मिथिला पेंटिंग को इसे विश्व कीर्तिमान में शामिल करने का निर्णय किया गया। मधुबनी के रेलवे स्टेशन पर बीते कुछ बर्षों में रेलवे क्राफ्ट वाला समूह एवं स्थानीय कलाकारों द्वारा लार्जेस्ट मिथिला आर्ट गैलरी का निर्माण किया गया हैं जिससे यंहा का सौन्दर्य दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ हैं, यहाँ दुनिया के अलग-अलग  शहरों से लोग इसे देखने आ रहे हैं! जापान में भी मधुबनी पेंटिंग के इतिहास से जुड़ी एक संग्रहालय है। 2018-2019 में भारतीय रेल के समस्तीपुर मंडल में एक ट्रेन पर मधुबनी पेंटिंग कर चलाया गया था ,जिसे विश्व में बहुत प्रसंसा मिली।।दरभंगा मधुबनी के 50-60 कलाकारों ने मिलकर ,अपने अथक मेहनत से इसपे सुंदर पेंटिंग कर सजाया था। इनमे कुछ मुख्य कलाकार खुशबु चौधरी ,प्रीति झा, अंजली झा, अमरज्योति ,रागिनी, मुनकी,आयुषी है। संदर्भ श्रेणी:भारतीय चित्रकला श्रेणी:बिहार श्रेणी:मिथिला
मिथिलांचल क्षेत्र
https://hi.wikipedia.org/wiki/मिथिलांचल_क्षेत्र
REDIRECTमिथिला
साहित्य अकादमी
https://hi.wikipedia.org/wiki/साहित्य_अकादमी
REDIRECT भारतीय साहित्य अकादमी
वैशाली
https://hi.wikipedia.org/wiki/वैशाली
वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। मगही,वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली, अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था, और इस शहर को समृद्ध बनाने में एक बड़ी मदद की।Vin.i.268 आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं। इतिहास वैशाली जन का प्रतिपालक, विश्व का आदि विधाता, जिसे ढूंढता विश्व आज, उस प्रजातंत्र की माता॥रुको एक क्षण पथिक, इस मिट्टी पे शीश नवाओ,राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ|| (रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ) वैशाली का नामाकरण महाभारत काल एक राजा ईक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण में इस क्षेत्र पर राज करने वाले ३४ राजाओं का उल्लेख है, जिसमें प्रथम नमनदेष्टि तथा अंतिम सुमति या प्रमाति थे। इस राजवंश में २४ राजा हुए। राजा सुमति अयोध्या नरेश भगवान राम के पिता राजा दशरथ के समकालीन थे। ईसा पूर्व सातवीं सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए १६ महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्‍छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। विश्‍व को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान करानेवाला स्‍थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्‍तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है, वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। प्राचीन वैशाली नगर अति समृद्ध एवं सुरक्षित नगर था जो एक-दूसरे से कुछ अन्तर पर बनी हुई तीन दीवारों से घिरा था। प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि नगर की किलेबन्दी यथासम्भव इन तीनों कोटि की दीवारों से की जाए ताकि शत्रु के लिए नगर के भीतर पहुँचना असम्भव हो सके। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार पूरे नगर का घेरा १४ मील के लगभग था। मौर्य और गुप्‍त राजवंश में जब पाटलीपुत्र (आधुनिक पटना) राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्‍यापार और उद्योग का प्रमुख केन्द्र था। भगवान बुद्ध ने वैशाली के समीप कोल्‍हुआ में अपना अन्तिम सम्बोधन दिया था। इसकी याद में महान मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व सिंह स्‍तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्‍मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग १०० वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद् का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्‍तूप बनवाये गये। वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें महात्‍मा बुद्ध उपदेश दिया करते थे। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ हाजीपुर (पुराना नाम - उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी। वैशाली को महान भारतीय दरबारी आम्रपाली की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, जो कई लोक कथाओं के साथ-साथ बौद्ध साहित्य में भी दिखाई देती है। आम्रपाली बुद्ध की शिष्या बन गई थी। मनुदेव संघ के शानदार लिच्छवी कबीले के प्रसिद्ध राजा थे, जिन्होंने वैशाली में अपने नृत्य प्रदर्शन को देखने के बाद आम्रपाली के पास रहना चाहा। वैशाली को चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म स्थल का गौरव भी प्राप्त है। जैन धर्मावलम्बियों के लिए वैशाली काफी महत्त्‍वपूर्ण है। यहीं पर ५९९ ईसा पूर्व में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्‍म कुंडलपुर (कुंडग्राम) में हुआ था। वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर यहाँ २२ वर्ष की उम्र तक रहे थे। इस तरह वैशाली हिन्दू धर्म के साथ-साथ भारत के दो अन्य महत्त्वपूर्ण धर्मों का केन्द्र था। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्‍पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्त्‍वपूर्ण है। वैशाली की भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन् कला और संस्‍कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है। वैशाली जिला के चेचर (श्वेतपुर) से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्त्व के हैं। पूर्वी भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के पूर्व वैशाली मिथिला के कर्नाट वंश के शासकों के अधीन रहा लेकिन जल्द ही यहाँ बख्तियार खिलजी का शासन हो गया। तुर्क-अफगान काल में बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने १३४५ ई॰ से १३५८ ई॰ तक यहाँ शासन किया। बाबर ने भी अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट के पार अपनी सैन्य टुकड़ी को भेजा था। १५७२ ई॰ से १५७४ ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। १८वीं सदी के दौरान अफगानों द्वारा तिरहुत कहलानेवाले इस प्रदेश पर कब्जा किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय वैशाली के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। बसावन सिंह, बेचन शर्मा, अक्षयवट राय, सीताराम सिंह, बैकण्ठ शुक्ला, योगेन्द्र शुक्ला जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई के दौरान १९२०, १९२५ तथा १९३४ में महात्मा गाँधी का वैशाली में आगमन हुआ था। वैशाली की नगरवधू आचार्य चतुरसेन के द्वारा लिखी गयी एक रचना है जिसका फिल्मांतरण भी हुआ, जिसमें अजातशत्रु की भूमिका अभिनेता श्री सुनील दत्त द्वारा निभायी गयी है। जलवायु एवं भूगोल वैशाली की जलवायु मानसूनी प्रकार की है। वास्तव में तत्कालीन वैशाली का विस्तार आजकल के उत्तर प्रदेश स्थित देवरिया एवं कुशीनगर जनपद से लेकर के बिहार के गाजीपुर तक था। इस प्रदेश में पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं। जिनमें आम, महुआ, कटहल, लीची, जामुन, शीशम, बरगद, शहतूत आदि की प्रधानता है। भौगोलिक रूप से यह एक मैदानी प्रदेश है जहाँ अनेक नदियाँ बहती हैं, इसका एक बड़ा हिस्सा तराई प्रदेश में गिना जाता है। दर्शनीय स्थल अशोक स्‍तम्भ 200px|thumb|वैशाली में कोल्हुआ के निकट आनंद स्तूप के पास बना अशोक स्तंभ सम्राट अशोक ने वैशाली में हुए महात्‍मा बुद्ध के अन्तिम उपदेश की याद में नगर के समीप सिंह स्‍तम्भ की स्‍थापना की थी। पर्यटकों के बीच यह स्‍थान लोकप्रिय है। दर्शनीय मुख्य परिसर से लगभग ३ किलोमीटर दूर कोल्हुआ यानी बखरा गाँव में हुई खुदाई के बाद निकले अवशेषों को पुरातत्व विभाग ने चारदीवारी बनाकर सहेज रखा है। परिसर में प्रवेश करते ही खुदाई में मिला इँटों से निर्मित गोलाकार स्तूप और अशोक स्तम्भ दिखायी दे जाता है। एकाश्म स्‍तम्भ का निर्माण लाल बलुआ पत्‍थर से हुआ है। इस स्‍तम्भ के ऊपर घण्टी के आकार की बनावट है (लगभग १८.३ मीटर ऊँची) जो इसको और आकर्षक बनाता है। अशोक स्तम्भ को स्थानीय लोग इसे भीमसेन की लाठी कहकर पुकारते हैं। यहीं पर एक छोटा-सा कुण्ड है, जिसको रामकुण्ड के नाम से जाना जाता है। पुरातत्व विभाग ने इस कुण्ड की पहचान मर्कक-हद के रूप में की है। कुण्ड के एक ओर बुद्ध का मुख्य स्तूप है और दूसरी ओर कुटागारशाला है। सम्भवत: कभी यह भिक्षुणियों का प्रवास स्थल रहा है। बौद्ध स्‍तूप left|200px|thumb|भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात लिच्छवी द्वारा वैशाली में बनवाया गया अस्थि स्तूप दूसरे बौद्ध परिषद् की याद में यहाँ पर दो बौद्ध स्‍तूपों का निर्माण किया गया था। इन स्‍तूपों का पता १९५८ की खुदाई के बाद चला। भगवान बुद्ध के राख पाये जाने से इस स्‍थान का महत्त्‍व काफी बढ़ गया है। यह स्‍थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्त्‍वपूर्ण है। बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से एक है। बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात कुशीनगर के मल्ल शासकों प्रमुखत: राजा श्री सस्तिपाल मल्ल जो कि भगवान बुद्ध के रिश्तेदार भी थे के द्वारा उनके शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया तथा अस्थि अवशेष को आठ भागों में बाँटा गया, जिसमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्य, अलकप्प के बुली, रामग्राम के कोलिय, बेटद्वीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे। मूलत: यह पाँचवी शती ई॰ पूर्व में निर्मित ८.०७ मीटर व्यास वाला मिट्टी का एक छोटा स्तूप था। मौर्य, शुंग व कुषाण कालों में पकी इँटों से आच्छादित करके चार चरणों में इसका परिवर्तन किया गया, जिससे स्तूप का व्यास बढ़कर लगभग १२ मीटर हो गया।वैशाली के वैभव तक अभिषेक पुष्‍करणी right|thumb|200px|बुद्ध स्तूप के निकट स्थित अभिषेक पुष्करणी प्राचीन वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया पवित्र सरोवर है। ऐसा माना जाता है कि इस गणराज्‍य में जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था तो उनको यहीं पर अभिषेक करवाया जाता था। इसी के पवित्र जल से अभिशिक्त हो लिच्छिवियों का अराजक गणतांत्रिक संथागार में बैठता था। राहुल सांकृत्यायन ने अपने उपन्यास "सिंह सेनापति" में इसका उल्लेख किया है। विश्व शान्ति स्तूप अभिषेक पुष्करणी के नजदीक ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्‍व शान्तिस्‍तूप स्थित है। गोल घुमावदार गुम्बद, अलंकृत सीढियाँ और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शान्ति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढ़ियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा दिखायी देती है। शान्ति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की भिन्न-भिन्न मुद्राओं की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियाँ ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं। बावन पोखर मंदिर बावन पोखर के उत्तरी छोर पर बना पाल कालीन मंदिर में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित है। राजा विशाल का गढ़ यह वास्‍तव में एक छोटा टीला है, जिसकी परिधि एक किलोमीटर है। इसके चारों तरफ दो मीटर ऊँची दीवार है जिसके चारों तरफ ४३ मीटर चौड़ी खाई है। समझा जाता है कि यह प्राचीनतम संसद है। इस संसद में ७,७७७ संघीय सदस्‍य इकट्ठा होकर समस्‍याओं को सुनते थे और उस पर बहस भी किया करते थे। यह भवन आज भी पर्यटकों को भारत के लोकतांत्रिक प्रथा की याद दिलाता है। कुण्‍डलपुर (कुंडग्राम) यह जगह भगवान महावीर का जन्‍म स्‍थान होने के कारण काफी लोकप्रिय है। यह स्‍थान जैन धर्मावलम्बियों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी ४ किलोमीटर है। इसके अलावा वैशाली महोत्‍सव, वैशाली संग्रहालय तथा हाजीपुर के पास की दर्शनीय स्थल एवं सोनपुर मेला आदि भी देखने लायक है। यातायात सड़क मार्ग पटना, हाजीपुर अथवा मुजफ्फरपुर से यहाँ आने के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्‍त है। वाहनों की उपलब्धता सीमित है इसलिए पर्यटक हाजीपुर या मुजफ्फरपुर से निजी वाहन भाड़े पर लेकर भ्रमण करना ज्यादा पसंद करते हैं। वैशाली से पटना समेत उत्तरी बिहार के सभी प्रमुख शहरों के लिए बसें जाती हैं। रेल मार्ग वैशाली का नजदीकी रेलवे जंक्शन हाजीपुर है जो पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। यह जंक्शन वैशाली से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्‍ली, मुम्बई, चेन्‍नई, कोलकाता, गुवाहाठी तथा अमृतसर के अतिरिक्त भारत के महत्त्वपूर्ण शहरों के लिए यहाँ से सीधी ट्रेन सेवा है। हवाई मार्ग वैशाली का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा राज्य की राजधानी पटना (५५ किलोमीटर) में स्थित है। जय प्रकाश नारायण अन्तर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र के लिए इंडियन, स्पाइस जेट, किंगफिशर, जेटएयरवेज, इंडिगो आदि विमानस ेवाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ आनेवाले पर्यटक दिल्‍ली, कोलकाता, काठमांण्ु, बागडोगरा, राँची, बनारस और लखनऊ से फ्लाइट ले सकते हैं। हवाई अडड्े से हाजीपुर होते हुए निजी अथवा सार्वजनिक वाहन से वैशाली तक जाया जा सकता है। इसके आअावा गोरखपुर से भी ट्रेन आदि द्वारा भी आसानी से वैशाली पंुचँा जा सकता है|। प्रमुख शहर की दूरी पटना- ५५ किलोमीटर, हाजीपुर- ३५ किलोमीटर, मुजफ्फरपुर- ३७ किलोमीटर, बोधगया- १६३ किलोमीटर, राजगीर- १४५ किलोमीटर, नालंदा- १४० किलोमीटर लालगंज एक नजर में जनसंख्‍या :- २७,१८,४२१ (२००१ की जनगनणना अनुसार) पुरुषों की संख्या:- १४,१५,६०३स्त्रियों की संख्या:- १३,०२,८१८ जनसंख्या का घनत्वः- १,३३५ साक्षरता दरः- ५०.४९% समुद्र तल से ऊँचाई- ५२ मीटर तापमान- ४४ डिग्री सेल्सियस-२१ डिग्री सेल्सियस (गर्मियों में), २३ डिग्री सेल्सियस - ६ डिग्री सेल्सियस (सर्दियों में) सालाना वर्षा- १२० से॰मी॰ भ्रमण समय एवं सुझाव वैशाली सालोभर जाया जा सकता है किन्तु सितम्बर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है। वैशाली अपने हस्‍तशिल्‍प के लिए विख्‍यात है। कार्तिक के महीने में लगनेवाले एशिया के सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर मेले से यादगार के तौर पर यहाँ से हस्तशिल्‍प का सामान खरीदा जा सकता है। प्रसिद्ध मधुबनी कला की पेंटिंग भी खरीदी जा सकती है। सन्दर्भ श्रेणी:बिहार श्रेणी:वैशाली जिला
हाजीपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/हाजीपुर
हाजीपुर (Hajipur) भारत के बिहार राज्य के वैशाली ज़िले में स्थित एक नगर(जिला) है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"Bihar Tourism: Retrospect and Prospect ," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999"Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810 विवरण 12 अक्टूबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर(जिला) भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी। ecr.indianrailways.gov.in, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। हाजीपुर एक लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र भी है। नामकरण आज का हाजीपुर शहर महाजनपद काल में गाँव मात्र होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण था। गंगा तट पर स्थित बस्ती का पुराना नाम उच्चकला था। मध्यकाल में बंगाल के गवर्नर‍ हाजी इलियास शाह के 13 वर्षों के शासनकाल में यह कस्बाई का रूप लेने लगा। ऐसा माना जाता है कि गंडक तट पर विकसित हुए शहर का वर्तमान नाम उसी शासक के नाम पर पड़ा है। इतिहास गंगा और गंडक नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है। हिन्दू पुराणों में गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) की लड़ाई में प्रभु विष्णु के स्वयं यहाँ आकर गज को बचाने और ग्राह को शापमुक्त करने का वर्णन है। कौनहारा घाट के पास कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए १६ महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जिसंघ द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर की जन्म स्थली शहर से ३५ किलोमीटर दूर कुंडलपुर (वैशाली) में है। महात्मा बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ था। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ इस शहर (पुराना नाम- उच्चकला) में जमींदोज है। हर्षवर्धन के शासन के बाद यहाँ कुछ समय तक स्थानीय क्षत्रपों का शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरू हुआ। तिरहुत पर लगभग 11वीं सदी में चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। तुर्क-अफगान काल में 1211 से 1226 बीच गयासुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। 1323 में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक का राज आया। इसी दौरान बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने 1345 ई से 1358 ई तक यहाँ शासन किया। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया, जो तब तक जारी रहा जब तक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोधी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। बाबर ने अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट पर एक किला होने का जिक्र 'बाबरनामा' में किया है। 1572 ई॰ से 1542 ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। 18 वीं सदी के दौरान अफ़ग़ानों द्वारा शहर पर कब्जा किया गया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय हाजीपुर के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। वसाबन सिंह, बेचन शर्मा, अक्षयवट राय, सीताराम सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण हिस्सा लिया। ७ दिसम्बर १९२० तथा १५ और १६ अक्टुबर १९२५ को महात्मा गाँधी का हाजीपुर आगमन हुआ था। पुनः बिहार में भीषण भूकम्प के बाद १४ मार्च १९३४ को बापू का तीसरी बार हाजीपुर आना हुआ। जलवायु, भूगोल और जनसांख्यिकी जलवायु वैशाली जिले का यह शहर उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु क्षेत्र में है। ७° से ४५° सेंटीग्रेड वार्षिक तापान्तर तथा १०५० मिलीलीटर सालाना वर्षा के साथ यह आर्द्र क्षेत्र मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी मानसूनी वर्षा पर निर्भर करता है। मई-जून में 'लू' का चलना तथा दिसम्बर-जनवरी के महीनों में 'शीतलहर' का प्रकोप आमतौर पर देखा जाता है। मानसून का आगमन जून के मध्य में होता है। स्थानीय जलवायु धान, गेहूँ के अलावे मक्का, तिलहन तथा दलहन फसलों के लिए उपयुक्त है। भौगोलिक स्थिति दक्षिण में गंगा और पश्चिम में गंडक नदी से घिरा यह स्थान अपनी सामरिक और व्यापारिक गतिविधियों के लिए इतिहास प्रसिद्ध रहा है। वर्तमान शहर पटना से २० कि॰मी॰, मुजफ्फरपुर से ५४ कि॰मी॰ और वैशाली से ३५ कि॰मी॰ की दूरी पर है। उत्तर बिहार को पटना से जोडने वाली गंगा नदी पर सड़क पुल बनने के बाद हाजीपुर का महत्त्व बढ गया। सिवान, छपरा और सारण को हाजीपुर को जोडने के लिए गंडक नदी पर १८१७ में बना सड़क पुल तथा जगजीवन रेल पुल है। एक नये सड़क पुल का निर्माण हाल ही में हुआ है जबकि गंडक पर नये रेल पुल का काम चल रहा है। हाजीपुर को पटना से रेलमार्ग द्वारा जोड़ने के लिए गंगा नदी पर दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल का निर्माण हो चुका है और रेलों का आवागमन भी हो रहा है। पटना, पाटलिपुत्र जंक्शन से पहलेजा ब रास्ता सोनपुर तथा हाजीपुर की ओर रेल मार्ग द्वारा आया-जाया जा सकता है। जलोढ मिट्टी और उर्वर भूमि के कारण यहाँ बागवानी कृषि का अच्छा विकास हुआ है। मालभोग, चीनिया और अलपान केले तथा आम की मालदह, सीपिया, कृष्णभोग, लड़ुई मिठुआ, दसहरी किस्मों के लिए हाजीपुर की अच्छी ख्याति है। इसके अतिरिक्त रसीले शाही लीची का स्वाद यहाँ की गर्मियों को उबाऊ नहीं बनने देता। सोनपुर में लगनेवाले हरिहरक्षेत्र मेले के समय हाजीपुर महत्त्वपूर्ण सम्पर्क शहर बन जाता है। जनसांख्यिकी शहर की आबादी में हिन्दू और मुस्लिम की प्रधानता है। शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी या उर्दू भाषा का प्रयोग होता है। 1901 ई॰ में हाजीपुर की आबादी 21398 थी, जो 2011 में बढ़कर 147,688 हो गयी। वर्तमान में शहर में पुरुषों की संख्या 78,047(53%) तथा स्त्रियों की संख्या 69,641(47%) है। 14.15% जनसंख्या 0-6 आयुवर्ग में है। साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत के करीब (60%) है। 8 सितम्बर 1996 को पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र का मुख्यालय बनने के बाद, रेलवे तथा राष्ट्रीय स्तर के अन्य संस्थानों के सरकारी तथा गैर-सरकारी सेवकों का अस्थायी निवास बनने से हाजीपुर के जनसांख्यीय परिदृश्य में बदलाव आया है। शहर की आबादी में वैशाली तथा पड़ोसी जिले को स्थानीय लोगों की बहुतायत है। हाजीपुर नगर क्षेत्र 39 वार्डों में बँटा है। नागरिक सुविधाओं तथा स्थानीय सड़कों का देखभाल हाजीपुर नगर परिषद् करती है। दर्शनीय स्थल right|thumb|300px|महात्मा गाँधी सेतु, हाजीपुर - एशिया का सबसे लम्बा पुल (५,५७५ मी.) हाजीपुर को पटना से जोड़ता हुआ गंगा नदी पर बना है। महात्मा गाँधी सेतु ५ किलोमीटर ५७५ मीटर लम्बी प्रबलित कंक्रीट से गंगा नदी पर बना महात्मा गाँधी सेतु पुल है जो १९८२ में बनकर तैयार हुआ और भारत की तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था। यह देश का तीसरा सबसे लंबा नदी पुल है। लगभग १२१ मीटर लम्बे स्पैन का प्रत्येक पाया बॉक्स-गर्डर किस्म का प्रीटेंशन संरचना है जो देखने में अद्भुत है। ४६ पाये वाले इस पुल से गंगा को पार करने पर केले की खेती का विहंगम दृश्य दिखायी देता है। इस पुल से पटना महानगर के विभिन्न घाटों तथा भूचिन्ह (लैंडमार्क) का अवलोकन किया जा सकता है। इस पुल को उत्तर बिहार की लाइफ लाइन भी कहा जाता है। उत्तर बिहार को सड़क मार्ग से राजधानी से जोड़ने वाला एक मात्र पुल आज खुद बहुत ही जर्जर स्थिति में है। कौनहारा घाट गंगा और गंडक के पवित्र संगम स्थल की महिमा भागवत पुराण में वर्णित है। गज-ग्राह की लडाई में स्वयं श्रीहरि विष्णु ने यहाँ आकर अपने भक्त गजराज को जीवनदान और शापग्रस्त ग्राह को मुक्ति दी थी। इस संग्राम में कौन हारा? ऐसी चर्चा सुनते सुनाते इस स्थान का नाम 'कौनहारा (कोनहारा)' पड़ गया। बनारस के प्रसिद्ध मनिकर्णिका घाट की तरह यहाँ भी श्मशान की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रह्ती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर शरीर की अंत्येष्टि क्रिया मोक्षप्रदायनी है। नेपाली छावनी मंदिर thumb|मातबर सिंह थापा द्वारा हाजीपुर में निर्मित नेपाली छावनी शिव मंदिर एक नेपाली सेनाधिकारी मातबर सिंह थापा द्वारा १८वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित शिवमंदिर कौनहारा घाट के समीप है। यह अद्वितीय मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। काष्ट फलकों पर बने प्रणय दृश्य का अधिकांश भाग अब नष्टप्राय है या चोरी हो गया है। कला प्रेमियों के अलावे शिव भक्तों के बीच इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है। काष्ठ पर उत्कीर्ण मिथुन के भित्ति चित्र के लिए यह विश्व का इकलौता पुरातात्विक धरोहर है। दुर्भाग्यवश, देखरेख एवं रखरखाव के अभाव में अद्भुत कलाकृतियों को दीमक अपना ग्रास बना रहा है। मंदिर के पूरब में एक मुस्लिम संत हज़रत जलालुद्दीन अब्दुल की मज़ार भी है। thumb|upright|काष्ठ फलकों पर बने प्रणय दृश्य (नेपाली छावनी मंदिर, कौनहारा घाट) रामचौरा मंदिर नगर के दक्षिणी भाग में स्तूपनुमा अवशेष पर बना रामचौरा मंदिर हिन्दू आस्था का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। ऎसी मान्यता है कि अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने यहाँ विश्राम किया था। उनके चरण चिह्न प्रतीक रूप में यहाँ मौजूद है। पुरातत्वविदों का मानना है कि बुद्धप्रिय आनंद की अस्थि को रखे गये स्तूप के अवशेष स्थल पर ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था। पतालेश्वर स्थान नगर के रक्षक भगवान शिव पतालेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। पतालेश्वर स्थान नाम से मशहूर स्थानीय हिन्दुओं का सबसे महत्त्वपूर्ण पूजास्थल शहर के दक्षिण में रामचौरा के पास रामभद्र में स्थित है। १८९५ में धरती से शिवलिंग मिलने के बाद यहाँ मन्दिर निर्माण हुआ। भीड़ भरे माहौल से दूर बने इस शिव मन्दिर का स्थापत्य साधारण लेकिन आकर्षक है। लगभग २२८०० वर्गफ़ीट में बने इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप १९३२-३४ के बीच अस्तित्व में आया। मन्दिर परिसर में बने विवाह मंडप में सालोंभर विवाह-संस्कार संपन्न कराये जाते हैं, जिसकी आधिकारिक मान्यता भी है। संगी जामा मस्जिद thumb|right|300px|अकबर काल में बनी संगी जामा मस्जिद, अंदरकिला, हाजीपुर शेख हाजी इलियास द्वारा निर्मित किले के अवशेष क्षेत्र के भीतर बनी संगी जामा मस्जिद हाजीपुर में मुगलकाल की महत्त्वपूर्ण इमारत है। शहजादपुर अन्दरकिला में जी॰ ए॰ इंटर स्कूल के पास पत्थर की बनी तीन गुम्बदों वाली यह आकर्षक मस्जिद आकार में २५•८ मीटर लम्बी और १०•२ मीटर चौड़ी है। मस्जिद के प्रवेश पर लगे प्रस्तर में इसे अकबर काल में मख्सूस शाह एवं सईद शाह द्वारा १५८७ ई॰ (१००५ हिजरी) में निर्मित बताया गया है। मस्जिद के पास जिलाधिकारी आवास के निकट हाजी इलियास तथा हाजी हरमेन की मज़ार बनी है। मामू-भाँजा की मज़ार मुगलशासक औरंगजेब के मामा शाईस्ता खान ने हज़रत मोहीनुद्दीन उर्फ दमारिया साहेब और कमालुद्दीन साहेब की मज़ार हाजीपुर से ५ किलोमीटर पूरब मीनापुर, जढुआ में बनवायी थी। सूफी संतो की यह मजार स्थानीय लोगों में मामू-भगिना या मामा-भाँजा की मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं बाबा फरीद के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के मज़ार की अनुकृति भी बनी है। सालाना उर्स के मौके पर इलाके के मुसलमानों का यहाँ भाड़ी जमावड़ा होता है। इसके पास ही मुगल शासक शाह आलम ने लगभग १८० वर्ष पूर्व करबला का निर्माण कराया था, जो मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल है। गाँधी आश्रम हाजीपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित गाँधी आश्रम महात्मा गाँधी के तीन बार हाजीपुर पधारने के दौरान उनसे जुड़ी स्मृतियों का स्थल है। एक पुस्तकालय के अतिरिक्त गाँधीजी के चरखा प्रेम और खादी जीवन को बढ़ावा देने हेतु द्वारा संचालित परिसर है।गांधी आश्रम के बारे में जानकारी स्थानीय विक्रय केन्द्र पर खादी वस्त्र, मधु, कच्ची घानी सरसों तेल आदि उपलब्ध है। हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में खादी और ग्रामोद्योग का केन्द्रीय पूनी संयंत्र भी है, जहाँ खादी वस्त्र तैयार किये जाते हैं। हरिहरक्षेत्र मेला गज-ग्राह घटना की याद में कौनहारा घाट के सामने सोनपुर में हरिहरक्षेत्र मेला लगता है। स्थानीय लोगों में 'छत्तर मेला' के नाम से मशहूर है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र गंडक-स्नान से शुरू होनेवाले मेले का आयोजन पक्ष भर चलता है। सोनपुर मेला की प्रसिद्धि एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में है। हाथी-घोड़े से लेकर रंग-बिरंगे पक्षी तक मेले में खरीदे-बेचे जाते हैं। आनेवाले जाड़े के लिए गर्म कम्बल से लेकर लकड़ी के फर्नीचर तक स्थानीय लोगों की जरुरतों को पूरा करती हैं। तमाशे, लोकनृत्य, लोककलाएँ और प्रदर्शनियाँ देशी-विदेशी पर्यटकों की कौतूहल को शान्त करती हैं। मेले के दौरान पर्यटक या तो हाजीपुर के किसी होटल में रुक सकते हैं या बिहार पर्यटन विकास निगम की सुविधाजनक तम्बू को भाड़े पर लेकर गंडक तट की बालूका राशि पर डेरा डाल सकते हैं। वैशाली महोत्सव प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर बैसाख पूर्णिमा को किया जाता है। भगवान महावीर का जन्म वैशाली के वज्जिकुल में बसोकुंड (बसाढ) ग्राम में हुआ था। अप्रैल के मध्य में आयोजित होनेवाले इस राजकीय उत्सव में देशभर के संगीत और कलाप्रेमी हिस्सा लेते हैं। वैशाली में अशोक का स्तम्भ, अभिषेक पुष्करिणी, विश्व शान्ति स्तूप, चौमुखी महादेव मंदिर को भी आयोजन के दौरान देखा जा सकता है। स्थानीय संस्कृति महत्त्वपूर्ण सामरिक अवस्थिति के चलते अतीत में बाहरी लोगों के आकर बसने से यहाँ मिली-जुली स्थानीय संस्कृति पनपी है। हिन्दू और मुसलमान दोनों यहाँ के गौरवशाली अतीत और आपसी सहिष्णुता पर नाज़ करते हैं। कृषियोग्य उर्वर भूमि और मृदु जलवायु के चलते प्राचीन काल से ही यह स्थान सघन आबादी का क्षेत्र रहा है। बिहार की राजधानी पटना से जुड़ाव और भूगोलीय निकटता ने यहाँ की घटनाओं और अवसरों के महत्त्व को कई गुणा बढ़ा दिया है। बोली एवं पहनावा: हिन्दी प्रमुख भाषा है किंतु पश्चिमी मैथिली यहाँ की स्थानीय बोली है, जो मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर और समस्तीपुर के अतिरिक्त नेपाल के सर्लाही जिले में भी बोली जाती है। युवक और युवतियाँ सभी आधुनिक भारतीय पहनावे पहनते हैं, लेकिन गाँव में रहनेवाले अधिकांश व्यस्क स्त्री-पुरुष धोती या साड़ी पहनना ही पसन्द करते हैं। पर्व-त्योहार: हिन्दूओं और मुस्लिमों के सभी पर्व मिलजुल कर मनाये जाते हैं। कई राष्ट्रीय त्यौहार जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयन्ती यहाँ खूब हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं। यहाँ के धार्मिक त्यौहारों में छठ, होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, ईद उल फितर, मुहर्रम, महावीर जयन्ती, महाशिवरात्रि, बुद्ध पूर्णिमा, जितिया,कृष्णाष्टमी, सतुआनी, श्रावणी घड़ी और मकर संक्रांति जैसे पर्व हैं। कार्तिक में चार दिवसीय छठपूजा तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर शहर में शिव और पार्वती की विवाह यात्रा की बड़ी धूम होती है। मुहर्रम के अवसर पर ताजिए के साथ निकलने वाले जुलूस में हिन्दू और मुसलमान दोनों हिस्सा लेते हैं। मनोरंजन के साधन शहर के 5 सिनेमा हॉल मनोरंजन के सबसे बड़े साधन हैं। नेशनल सिनेमा (राजेन्द्र चौक) शहर का सबसे पुराना हॉल है, जो १९४० के दशक में बना था। हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों के अलावे कभी-कभी हॉलीवुड फिल्मों का हिन्दी रुपान्तरण सिनेमा में दिखाये जाते हैं। लोग क्रिकेट और फुटबॉल के शौकीन हैं। स्थानीय अक्षयवट राय स्टेडियम टूर्नामेंट का मुख्य केन्द्र है। टाऊन हॉल में होनेवाले नाटक के मंचन अथवा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम कुछ लोगों के उच्चस्तरीय मनोरंजन का साधन है। हाजीपुर में सिनेमाघरों की संख्या 5 हैं नेशनल सिनेमा गणेश सिनेमा कार्निवाल शंकर सिनेमा एस आर एस सिनेमा हाजीपुर के शिक्षा संस्थान विद्यालय: सरकारी विद्यालय: जी॰ ए॰ इंटर स्कूल, श्री मुल्कजादा सिंह उच्च विद्यालय दीग्घी, राज्य सम्पोषित बालिका उच्च विद्यालय, टाऊन मिडल स्कूल, प्रेम उच्च विद्यालय निजी विद्यालय: गुरु वशिष्ठ विद्याययन, संतपॉल हाईस्कूल (बागमली एवं इज़रा), संत जेवियर स्कूल, इंडियन पब्लिक स्कूल, ज्ञानज्योति उच्च विद्यालय, ऑक्सफोर्ड हाईस्कूल, पी॰ के॰ झा आवासीय विद्यालय, एस॰ के॰ एस॰ सेमिनरी, अक्षरा विद्यालय , संत जॉन्स हाई स्कूल महाविद्यालय राजनारायण महाविद्यालय, देवचंद महाविद्यालय, जमुनीलाल राय महाविद्यालय, वैशाली महिला महाविद्यालय, सतेंद्रनारायण महाविद्यालय, राव विरेंद्र सिंह इंटर महाविद्यालय एकारा, वी॰ एस॰ इंटर महाविद्यालय, सुखलाल मुखलाल महाविद्यालय जढुआ सभी महाविद्यालय बाबासाहब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ्फरपुर की अंगीभूत इकाई है। विश्वविद्यालय डॉ. सी. वी. रमन विश्वविद्यालय, वैशाली, बिहार यह हाजीपुर से 20 किमी एवम सराय से 10 किमी उत्तर राष्ट्रीय राजमार्ग 22 के पास भगवानपुर गांव में स्थित है। यह भारत सरकार की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त है। यह बिहार की निजी विश्वविद्यालय में शुमार है। यह ऐसेक्टस ग्रुप ऑफ यूनिवर्सिटीज, भोपाल का अंग है।] व्यवसायिक संस्थान औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान दिग्घीकला, होटल प्रबंधन, पोषाहार एवं पोषाहार संस्थान राष्ट्रीय राजमार्ग १९, केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग एवं तकनीकि संस्थान औद्योगिक क्षेत्र, केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान औद्योगिक क्षेत्र, कृषि विज्ञान केंद्र जन शिक्षण संस्थान शहीद महेश्वर स्मारक संस्थान यातायात सुविधाएँ सड़क सेवा: हाजीपुर बिहार के सभी मुख्य शहरों से राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग तथा 3 राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। महात्मा गाँधी सेतु पार कर पटना से जुडा़ राष्ट्रीय राजमार्ग 31 हाजीपुर होकर उत्तर प्रदेश के गाजीपुर तक जाती है। हाजीपुर से मुजफ्फरपुर तथा सीतामढी़ होकर सोनबरसा तक जानेवाली 142 किलोमीटर लम्बी सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग 22 है। राष्ट्रीय राजमार्ग 322 शहर को चकसिकन्दर, जन्दाहा, चकलालशाही होते हुए किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित मुसरीघरारी से जोड़ती है। राजकीय राजमार्ग द्वारा यह वैशाली (राजकीय राजमार्ग-74), महुआ (राजकीय राजमार्ग-49) तथा महनार (राजकीय राजमार्ग-93) से जुडा़ है। हाजीपुर का सार्वजनिक यातायात मुख्यतः बसों, ऑटोरिक्शा और साइकिल रिक्शा पर आश्रित है। 20 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी पटना को जोड़नेवाली यातायात की ज़रुरतें बसें और ऑटोरिक्शा पूरा करती हैं। स्थानीय भ्रमण हेतु हाजीपुर स्टेशन से टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है, जो निजी मालिकों द्वारा संचालित हैं। इनका किराया आपसी मोलजोल के आधार पर तय होता है और 10 से 15 रु/कि॰मी॰ तक हो सकता है। लम्बी दूरी की बसें सिलीगुडी, बेतिया, रक्सौल, मोतिहारी, सिवान, छपरा, समस्तीपुर, सीता़मढी़, मुजफ्फरपुर के लिए उपलब्ध हैं। रेल सेवा: हाजीपुर भारतीय रेल के नक्शे का एक महत्त्वपूर्ण जंक्शन है। यहाँ पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर स्थित रेल लाईनें शहर को छपरा, मुजफ्फरपुर और बरौनी से जोड़ती है। वैशाली होते हुए लौरिया (चंपारण) को जोड़नेवाली एक अन्य रेल लाईन प्रस्तावित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अतिरिक्त यहाँ से मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, जम्मू, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्त्वपूर्ण शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। हाजीपुर से पटना को जोड़ने के लिए नदी पर पुल का निर्माण हो चुका है, 8 अगस्त 2015 को पुल पर इंजन परीक्षण सम्पन्न हुआ, अक्टूबर महिना से इस पर सवारी गाड़ी चलने लगी है। दिल्ली के लिए डिब्रुगढ राजधानी एक्सप्रेस (22436), ग़रीबरथ एक्सप्रेस (12203), वैशाली एक्सप्रेस (12553), स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस (12561), लिच्छवी एक्सप्रेस (14005), सद्भावना एक्सप्रेस (14007, 14015), शहीद एक्सप्रेस (14673), लोहित एक्सप्रेस (15621), आम्रपाली एक्सप्रेस (15707) के अतिरिक्त अन्य गाड़ियाँ जाती है। कोलकाता के लिए बाघ एक्सप्रेस (13020), पूर्वांचल एक्सप्रेस (15048), गोरखपुर कोलकाता एक्सप्रेस (15050), बलिया सियालदह एक्सप्रेस (13106) मुम्बई के लिए लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस (11062, 11066), लोकमान्य जनसाधारण एक्सप्रेस (15267) चेन्नई के लिए: राप्ती सागर एक्सप्रेस (12521) अहमदाबाद के लिए: साबरमती एक्सप्रेस (19166), मुज़फ्फरपुर-अहमदाबाद एक्सप्रेस (15269) गुवाहाटी के लिए: डिब्रुगढ राजधानी एक्सप्रेस (12436), अवध-असाम एक्सप्रेस (15610), लोहित एक्सप्रेस (15622) जम्मू के लिए अमरनाथ एक्सप्रेस (15097), लोहित एक्सप्रेस (5622) अमृतसर के लिए ग़रीबरथ एक्सप्रेस (12203), सहरसा-अमृतसर जनसाधारण एक्सप्रेस (14603,15209), आम्रपाली एक्सप्रेस (15707), शहीद एक्सप्रेस (14673), सरयू-यमुना एक्सप्रेस (14649) राँची के लिए मौर्य एक्सप्रेस (15028) पुणे के लिए दरभंगा-पुणे एक्सप्रेस (11034) अंबाला के लिए मुज़फ्फरपुर-अंबालाकैंट एक्सप्रेस (14523) हाजीपुर होकर चलती है। वायु सेवा: निकटस्थ हवाई अड्डा हाजीपुर से 21 किलोमीटर दूर पटना में स्थित है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश हवाईक्षेत्र, पटना (IATA कोड- PAT) अंतरदेशीय तथा सीमित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए बना है। इंडियन, किंगफिशर, जेट एयर, स्पाइस जेट तथा इंडिगो की उड़ानें दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी और राँची के लिए उपलब्ध हैं। हाजीपुर से टैक्सी, बस या ऑटो द्वारा हवाई अड्डा तक कभी भी जाया जा सकता है। इन्हें भी देखें वैशाली ज़िला बाहरी कड़ियाँ वैशाली जिले का अधिकारिक अंतर्जाल पूर्व मध्य रेलवे का अधिकारिक अंतर्जाल बिहार पर्यटन का अधिकारिक अंतर्जाल सिपेट का अधिकारिक अंतर्जाल नाइपर हाजीपुर का अधिकारिक अंतर्जाल होटल प्रबंधन संस्थान हाजीपुर का अधिकारिक अंतर्जाल सन्दर्भ श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:वैशाली जिला श्रेणी:वैशाली ज़िले के नगर *
नागालॅण्ड
https://hi.wikipedia.org/wiki/नागालॅण्ड
REDIRECT नागालैण्ड
नागालैण्ड
https://hi.wikipedia.org/wiki/नागालैण्ड
नागालैण्ड भारत का एक उत्तर पूर्वी राज्य है। इसकी राजधानी कोहिमा है, जबकि दीमापुर राज्य का सबसे बड़ा नगर है। नागालैण्ड की सीमा पश्चिम में असम से, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश से, पूर्व मे बर्मा से और दक्षिण मे मणिपुर से मिलती है। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, इसका क्षेत्रफल 16,579 वर्ग किलोमीटर है, और जनसंख्या 19,80,602 है, जो इसे भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक बनाती है।Census of India 2011 Govt of India नागालैण्ड राज्य में कुल 16 जनजातियाँ निवास करती हैं। प्रत्येक जनजाति अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों, भाषा और पोशाक के कारण दूसरी से भिन्न है।Nagaland – State Human Development Report United Nations Development Programme (2005) हालाँकि, भाषा और धर्म दो सेतु हैं, जो इन जनजातियों को आपस में जोड़ते हैं। अंग्रेजी राज्य की आधिकारिक भाषा है। यह शिक्षा की भाषा भी है, और अधिकाँश निवासियों द्वारा बोली जाती है। नागालैंड भारत के उन तीन राज्यों में से एक है, जहाँ ईसाई धर्म के अनुयायी जनसंख्या में बहुमत में हैं।Population by religious communities Census of India, 2001, Govt of India. The other jurisdictions with Christian majorities are Meghalaya and Mizoram.Gordon Pruett, Christianity, history, and culture in Nagaland, Indian Sociology, January 1974, vol. 8, no. 1, pp 51-65 राज्य ने 1950 के दशक में विद्रोह और साथ ही अंतर-जातीय संघर्ष देखा है। हिंसा और असुरक्षा ने नागालैंड के आर्थिक विकास को सीमित कर दिया था, क्योंकि इसे कानून, व्यवस्था और सुरक्षा के लिए अपने दुर्लभ संसाधनों को प्रतिबद्ध करना था।Charles Chasie (2005), Nagaland in Transition , India International Centre Quarterly, Vol. 32, No. 2/3, Where the Sun Rises When Shadows Fall: The North-east (MONSOON-WINTER 2005), pp. 253-264Charles Chasie, Nagaland , Institute of Developing Economies (2008) हालाँकि पिछले डेढ़ दशक में, राज्य में हिंसा काफी कम हुई है, जिससे राज्य की वार्षिक आर्थिक विकास दर 10% के करीब पहुंची है, और यह पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे तेजी से विकसित होने वाला राज्य बन पाया है। नागालैण्ड की स्थापना 1 दिसम्बर 1963 को भारत के 16वें राज्य के रूप मे हुई थी। असम घाटी के किनारे बसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर राज्य का अधिकतर हिस्सा पहाड़ी है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का केवल 9% हिस्सा समतल जमीन पर है। नागालैण्ड में सबसे उँची चोटी माउंट सरामति है जिसकी समुंद्र तल से उँचाई 3840 मी है। यह पहाड़ी और इसकी शृंखलाएँ नागालैंड और बर्मा के बीच प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती हैं।C.V. Prakash (2006), Encyclopedia of Northeast India, Vol. 5, Atlantic Publishers, , pp. 2180-2181 यह राज्य वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता का घर है। इतिहास इस राज्य का इतिहास बर्मा और असम से मिलता-जुलता है लेकिन कुछ मतों के अनुसार इस राज्य का नाम अंग्रेज़ों ने नागा (यह नाग लोगो की भूमि है हिन्दी मे) के अनुसार रखा था।भारत में नाग लोगो की संख्या बहुमत में है ये नाग लोग वैसे तो पूरे भारत में निवास करते हैं परंतु महाराष्ट्र और नागालैंड में इनके नाम से राज्य एवं जिले का नाम पड़ा है। सन 1832 में कैप्टन जेनकींस और पेंबर्टन के रूप में पहले यूरोपियन नागालैंड में आये थे। नागालैंड भारत का 1 दिसंबर 1963 में सोलवा राज्य बना। राज्य का दर्जा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रज़ो ने बहुत से नागा लोगों को युद्ध में लड़ने के लिए फ्रांस और यूरोप भेजा। जो लोग युद्ध में लड़ने बाहर गये और जब वे लोग भारत वापस आए तो उन्होने नागा नॅश्नलिस्ट मूवमेंट की स्थापना की थी। भारत की आजादी के दौरान नागालेंड असम के अंतर्गत था लेकिन नागा लोग अपना विकास चाहते थे। इसी कारण से वे किसी केन्द्रीय सरकार से जुड़ना चाहते थे। सन् 1955 में भारत सरकार ने भारतीय सेना की एक टुकड़ी नागालेंड भेजी और सन् 1957 में भारत सरकार और नागा लोगों के बीच विलय की बातचीत शुरू हुए जिसके अन्तर्गत नागालैंड 1 दिसम्बर 1963 को भारत का 16वाँ राज्य बना। धर्म जिले thumb| नागालैण्ड के जिले right|thumb|150px|नागा कन्या नागालैंड में 11 जिले हैं - कैफाइर जिला कोहिमा जिला ज़ुन्हेबोटो जिला दीमापुर जिला ट्वेनसांग जिला पेरेन जिला फेक जिला मोकोक्चुुन्ग जिला मोन जिला लॉन्गलेन्ग जिला वोखा जिला रैंक मेट्रोपोलिटन/एग्लोमेरेशन क्षेत्र जिला 2001 की जनगणना 1 दीमापुर जिला दीमापुर जिला 230,106 2 कोहिमा जिला कोहिमा जिला 99,795 3 मोकोक्चुुन्ग मेत्रोपोलितन मोकोक्चुुन्ग जिला 60,161 4 ग्रेटर वोखा वोखा जिला 43,089 संस्कृति right|thumb|300px|कोहिमा में हॉर्नबिल उत्सव नागालैंड मे 16 जनजातियाँ पाई जाती है, अंगामी, आओ, चख़ेसंग, चांग, दिमासा कचारी, खियमनिंगान, कोनयाक, लोथा, फोम, पोचुरी, रेंगमा, संगतम, सूमी, इंचुंगेर, कुकी और ज़ेलियांग। thumb|लोंगवा गाँव में एक प्रधान, नगालैंड बाहरी कड़ियाँ नागालैंड : जिसके सफर में आत्माएं तक ठिठककर रह जाती हैं! (हिन्दी नेस्ट) इन्हें भी देखें नागालैंड का इतिहास सन्दर्भ श्रेणी:भारत के राज्य श्रेणी:नागालैण्ड
मेघालय
https://hi.wikipedia.org/wiki/मेघालय
मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है जिसका शाब्दिक अर्थ है बादलों का घर । 2016 के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 32,11,474 है एवं विस्तार 220 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जिसका लम्बाई से चौड़ाई अनुपात लगभग 3:1 का है।मेघालय इण्डिया ब्राण्ड इक्विटी फ़ाउण्डेशन, भारत (2013) राज्य का दक्षिणी छोर मयमनसिंह एवं सिलहट बांग्लादेशी विभागों से लगता है, पश्चिमी ओर रंगपुर बांग्लादेशी भाग तथा उत्तर एवं पूर्वी ओर भारतीय राज्य असम से घिरा हुआ है। राज्य की राजधानी शिलांग है। भारत में ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन ब्रिटिश शाही अधिकारियों द्वारा इसे "पूर्व का स्काटलैण्ड" संज्ञा दी गयी थी।आर्नोल्ड पी. कामिन्स्की एवं रॉजर डी. लॉन्ग (2011), इण्डिया टुडे: एन एन्साय्क्लोपीडिया ऑफ़ लाइफ़ इन रिपब्लिक [ An Encyclopedia of Life in the Republic,] , पृष्ठ॰ ४५५-४५९ मेघालय पहले असम राज्य का ही भाग था, 21 जनवरी 1972 को असम के खासी, गारो एवं जैन्तिया पर्वतीय जिलों को काटकर नया राज्य मेघालय अस्तित्व में लाया गया। यहाँ की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। इसके अलावा अन्य मुख्यतः बोली जाने वाली भाषाओं में खासी, गारो, प्नार, बियाट, हजोंग एवं बांग्ला आती हैं। इनके अलावा यहाँ हिंदी भी कुछ कुछ बोली समझी जाती है जिसके बोलने वाले मुख्यतः शिलांग में मिलते हैं। भारत के अन्य राज्यों से अलग यहाँ मातृवंशीय प्रणाली चलती है, जिसमें वंशावली माँ (महिला) के नाम से चलती है और सबसे छोटी बेटी अपने माता पिता की देखभाल करती है तथा उसे ही उनकी सारी संपत्ति मिलती है। यह राज्य भारत का आर्द्रतम क्षेत्र है, जहाँ वार्षिक औसत वर्षा दर्ज हुई है। राज्य का 70% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।Meghalaya and Its Forests Government of Meghalaya (2012); Quote – total forest area is 69.5% राज्य में मेघालय उपोष्णकटिबंधीय वन पर्यावरण क्षेत्रों का विस्तार है, यहाँ के पर्वतीय वन उत्तर से दक्षिण के अन्य निचले क्षेत्रों के उष्णकटिबन्धीय वनों से पृथक हैं। ये वन स्तनधारी पशुओ, पक्षियों तथा वृक्षों की जैवविविधता के मामलों में विशेष उल्लेखनीय हैं। मेघालय में मुख्य रूप से कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था(अग्रेरियन) है जिसमें वाणिज्यिक वन उद्योग का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ की मुख्य फसल में आलू, चावल, मक्का, अनान्नास, केला, पपीता एवं दालचीनी, हल्दी आदि बहुत से मसाले, आदि हैं। सेवा क्षेत्र में मुख्यतः अचल संपत्ति एवं बीमा कम्पनियाँ हैं। वर्ष 2012 के लिये मेघालय का सकल राज्य घरेलू उत्पाद अनुमानित था। राज्य भूगर्भ संपदाओं की दृष्टि से खनिजों से सम्पन्न है किंतु अभी तक इससे संबंधित कोई उल्लेखनीय उद्योग चालू नहीं हुए हैं। राज्य में लगभग लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग बने हैं। यह बांग्लादेश के साथ व्यापार के लिए एक प्रमुख लॉजिस्टिक केंद्र भी है। नामकरण मेघालय शब्द का शब्दिक अर्थ है: मेघों का आलय या घर। यह संस्कृत मूल से निकला है। इस शब्द की व्युत्पत्ति कलकत्ता विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्राध्यापक एमेरिटस डॉ॰एस पी॰चटर्जी द्वारा की गई थी। इस नाम पर आरम्भ में इसके नाम पर काफ़ी विरोध हुआ, क्योंकि अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की भांति, जिनके नाम उनके निवासियों से संबंधित थे, जैसे मिज़ोरम: मिज़ो जनजाति, नागालैण्ड: नागा लोग, असम: असोम या अहोम लोग के नाम पर है; किन्तु मेघालय शब्द से स्थानीय गारो, खासी या जयंतिया जनजातियों का नाम कहीं सम्बन्धित नहीं होता है। किन्तु कालान्तर में इसे अपना लिया गया। इतिहास प्राचीन अपने अन्य पड़ोसी पूर्वोत्तर-भारतीय राज्यों के साथ ही, मेघालय भी पुरातात्त्विक रुचि का केन्द्र रहा है। यहाँ लोग नवपाषाण युग से निवास करते आ रहे हैं। अब तक खोजे गए नवपाषाण स्थल प्रायः ऊँचे स्थानों पर मिले हैं, जैसे यहाँ के खासी और गारो पर्वत एवं पड़ोसी राज्यों में भी। यहाँ नवपाषाण शैली की झूम कृषि शैली अभी तक अभ्यास में है। यहाँ के हाईलैंड पठार खनिज संपन्न मृदा के साथ साथ प्रचुर वर्षा होने पर भी बाढ़ से रोकथाम करने में सहायक होते हैं।MANJIL HAZARIKA, Neolithic Culture of Northeast India: A Recent Perspective on the Origins of Pottery and Agriculture, Ancient Asia 1:25-44 मानव इतिहास में मेघालय का महत्त्व धान की फसल के घरेलु व्यवसायीकरण से जुड़ा हुआ है। चावल के उद्गम से जुड़े प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों में आयन ग्लोवर के सिद्धांत के अनुसार, "भारत 20,000 से अधिक पहचान वाली प्रजातियों के साथ घरेलु चावल की सबसे बड़ी विविधता का केंद्र है और पूर्वोत्तर भारत घरेलु चावल की उत्पत्ति का इकलौता क्षेत्र है जो सबसे अनुकूल है।" Glover, Ian C. (1985), Some Problem Relating to the Domestication of Rice in Asia, In Recent Advances in Indo-Pacific Prehistory (Misra, VN. and P. Bellwood Eds.), , Oxford Publishing, pp 265-274 मेघालय की पहाड़ियों में की गयी सीमित पुरातात्विक शोध सुझाती है कि यहाँ मानव का निवास प्राचीन काल से रहा है। भारत 20,000 से अधिक पहचान वाली प्रजातियों के साथ घरेलु चावल की सबसे बड़ी विविधता का केंद्र है और उसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र घरेलु चावल की उत्पत्ति का अकेला सबसे अनुकूल क्षेत्र है। आधुनिक इतिहास मेघालय का गठन असम राज्य के दो बड़े जिलों संयुक्त खासी हिल्स एवं जयन्तिया हिल्स को असम से अलग कर 21 जनवरी, 1972 को किया गया था। इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने से पूर्व 1970 में अर्ध-स्वायत्त दर्जा दिया गया था।History of Meghalaya State Government of India 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के अधीन आने से पूर्व गारो, खासी एवं जयंतिया जनजातियों के अपने राज्य हुआ करते थे। कालांतर में ब्रिटिश ने 1935 में तत्कालीन मेघालय को असम के अधीन कर दिया था।Arnold P. Kaminsky and Roger D. Long (2011), India Today: An Encyclopedia of Life in the Republic, , pp. 455-459 तब इस क्षेत्र को ब्रिटिश राज के साथ एक संधि के तहत अर्ध-स्वतंत्र दर्जा मिला हुआ था। 16 अक्तूबर 1905 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल के विभाजन होने पर मेघालय नवगठित प्रांत पूर्वी बंगाल एवं असम का भाग बना। हालाँकि इस विभाजन के 1912 में वापस पलट दिये जाने पर मेघालय असम का भाग बना। 3 जनवरी 1921 को भारत सरकार के 1919 के अधिनियम की धारा 52ए के अनुसरण में, गवर्नर-जनरल-इन-काउन्सिल ने मेघालय के खासी राज्य के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों को पिछड़े क्षेत्र घोषित कर दिया था। इसके बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने भारत सरकार के अधिनियम 1935 के तहत इसे अधिनियमित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत पिछड़े क्षेत्रों को दो श्रेणियों,- अपवर्जित एवं आंशिक अपवर्जित में पुनर्समूहीकृत किया। 1947 में स्वतंत्रता के समय, वर्तमान मेघालय में असम के दो जिले थे और यह क्षेत्र असम राज्य के अधीन होते हुए भी सीमित स्वायत्त क्षेत्र था। 1960 में एक पृथक पर्वतीय राज्य की मांग उठने लगी। 1969 के असम पुनर्संगठन (मेघालय) अधिनियम के अन्तर्गत मेघालय को स्वायत्त राज्य बनाया गया। यह अधिनियम 2 अप्रैल 1970 को प्रभाव में आया और इस तरह असम से मेघालय नाम के एक स्वायत्त राज्य का जन्म हुआ। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार इस स्वायत्त राज्य के पास एक 37 सदस्यीय विधान सभा बनी। 1971 में संसद ने पूर्वोत्तर पुनर्गठन अधिनियम पास किया जिसके अन्तर्गत्त मेघालय को 21 जनवरी 1972 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और अपनी स्वयं की मेघालय विधान सभा बनी। भूगोल thumb|left|मेघालय भारत का पर्वतीय एवं सर्वाधिक वर्षा वाला राज्य है। मेघालय शब्द का अर्थ ही मेघों का गृह है। ऊपर लाइटमावसियांग भूभाग कोहरे और मेघों में लिपटा दिखाई दे रहा है। मेघालय पूर्वोत्तर भारत की सात बहनों वाले राज्य में से एक है। यह एक पर्वतीय राज्य है जिसमें घाटियों और पठारों तथा ऊँची-नीची भूमि वाले क्षेत्र हैं। यहाँ पर भूगर्भीय सम्पदा भी प्रचुर उपलब्ध है। यहाँ मुख्यतः आर्कियन पाषाण संरचनाएं हैं। इन पाषाण शृंखलाओं में कोयला, चूना पत्थर, यूरेनियम और सिलिमैनाइट जैसे बहुमूल्य खनिजों के भंडार हैं। मेघालय में बहुत सी नदियाँ भी हैं जिनमें से अधिकांश वर्षा आश्रित और मौसमी हैं। गारो पर्वतीय क्षेत्र की कुछ महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं: गनोल, दारिंग, सांडा, बाड्रा, दरेंग, सिमसांग, निताई और भूपाई। पठार के पूर्वी (जयन्तिया) एवं मध्य भागों (खासी) में ख्री, दिगारू, उमियम, किन्शी (जादूकता), माओपा, उम्नगोट और मिन्डटू नदियाँ हैं। दक्षिणी खासी पर्वतीय क्षेत्र में इन नदियों द्वारा गहरी गॉर्ज रूपी घाटियां एवं ढेरों नैसर्गिक जल प्रपात निर्मित हुए हैं। thumb|मेघालय में कृषि भूमि पर्वतीय है। पठार क्षेत्र की ऊँचाई से के बीच है। पठार के मध्य भाग में खासी पर्वतमाला के भाग हैं जिनकी ऊँचाई अधिकतम है। इसके बाद दूसरे स्थान पर जयंतिया पर्वतमाला वाला पूर्वी भाग आता है। मेघालय का उच्चतम स्थान शिलाँग पीक है, जहाँ बड़ा वायु सेना स्टेशन है। यह खासी पर्वत का भाग है और यहाँ से शिलाँग शहर का मनोहारी एवं विहंगम दृश्य दिखाई देता है। शिलांग पीक की ऊँचाई है। पठार के पश्चिमी भाग गारो पर्वत में है और अधिकतर समतल है। गारो पर्वतमाला का उच्चतम शिखर नोकरेक पीक है जिसकी ऊँचाई है। जलवायु कुछ क्षेत्रों में वार्षिक औसत वर्षा के साथ मेघालय पृथ्वी पर आर्द्रतम स्थान अंकित है। पठार का पश्चिमी भाग, जिसमें गारो पर्वतों के निचले भाग आते हैं वर्ष पर्यंत उच्च तापमान में रहता है। ऊँचाईयों वाले शिलाँग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रायः कम तापमान रहता है। इस क्षेत्र का अधिकतम तापमान यदा कदा ही से ऊपर जाता होगा, जबकि शीतकालीन उप-शून्य तापमान यहाँ सामान्य हैं।thumb|170px|left|चेरापुञ्जी में एक साइनबोर्ड। राजधानी शिलाँग के दक्षिण में खासी पर्वत स्थित सोहरा (चेरापूंजी) कस्बा एक कैलेंडर माह में सर्वाधिक वर्षा का कीर्तिमान धारक है, जबकि निकटवर्ती मौसिनराम ग्राम वर्ष भर में विश्व की सर्वाधिक वर्षा का कीर्तिमान धारक है। वन्य जीवन राज्य का लगभग 70% से अधिक भाग वनाच्छादित है, जिसमें से सघन प्राथमिक उपोष्णकटिबंधीय वन हैं। मेघालयी वन एशिया के प्रचुरतम वनस्पति निवासों में से एक हैं। इन वनों को भरपूर वर्षा उपलब्ध रहती है और यहाँ प्रचुर मात्रा में वनस्पति एवं वन्य जीव अपनी विविधता के संग मिलते हैं। मेघालय के वनों का एक लघु भाग भारत के पवित्र वृक्षों (सैक्रेड ग्रोव्स) के नाम से जाना जाता है। प्राचीन वनों के कुछ छोटे भाग हैं जिन्हें समुदायों द्वारा सैंकड़ों वर्षों से धार्मिक एवं सांस्कृत विश्वास के कारण संरक्षित किया जाता रहा है। ये वन भाग धार्मिक कृत्यों हेतु रक्षित रहते हैं और किसी भी प्रकार के शोषण से सुरक्षित रखे जाते हैं। इन पवित्र ग्रोव्स में बहुत से दुर्लभ पादप एवं पशु आते हैं। पश्चिम गारो हिल्स में नोकरेक बायोस्फ़ेयर रिज़र्व एवं दक्षिण गारो हिल्स में बालफकरम राष्ट्रीय उद्यान को मेघालय के सर्वाधिक जैवविविधता बहुल स्थलों में गिना जाता हैं। मेघालय में तीन वन्य जीवन अभयारण्य हैं: नोंगखाईलेम, सिजू अभयारण्य एवं बाघमारा अभयारण्य, जहां कीटभोजी घटपर्णी (पिचर प्लांट) नेपेन्थिस खासियाना का पौधा मिलता है जिसे स्थानीय भाषा में "मे'मांग कोकसी" कहते हैं। यहाँ के मौसम और स्थलीय स्थितियों में विविधता के कारण मेघालय के वनों में पुष्पों की प्रजातियों का बाहुल्य है। इनमें परजीवी, अधिपादप, रसभरे पौधों और झाड़ियों की बड़ी विविध प्रजातियां मिलती हैं। यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष किस्मों में से दो हैं साल का पेड (शोरिया रोबस्टा) और टीक (टेक्टोना ग्रैंडिस) हैं। मेघालय फल, सब्जियों, मसालों और औषधीय पौधों की ढेरों किस्म का घर है। मेघालय अपने विभिन्न प्रकार के 325 से अधिक किस्मों के ऑर्किड्स के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें से सर्वाधिक पाई जाने वाली किस्में खासी पर्वतों के मासस्माई, माल्मलुह और सोहरारीम जंगलों में पाई जाती है। . 170px|thumb|left|नेपेन्थिस खासियाना मेघालय में स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं कीट, कृमियों की भी अनेक किस्में पायी जाती हैं।Choudhury, A. U. (2003) "Meghalaya's vanishing wilderness". Sanctuary Asia 23(5): 30–35 स्तनधारियों की महत्त्वपूर्ण प्रजातियों में हाथी, भालू, लाल पाण्डा,Choudhury, A. U. (1996) "Red panda in Garo Hills". Environ IV(I): 21 सिवेट, नेवले, रासू, कृंतक, गौर, जंगली भैंस,Choudhury, A. U. (2010) The Vanishing Herds: the wild water buffalo. Gibbon Books, Rhino Foundation, CEPF & COA, Taiwan, Guwahati, India हिरण, जंगली सूअर और कई नरवानर गण और साथ ही चमगादड़ की प्रचुर प्रजातियां भी मिलती हैं। मेघालय की चूनापत्थर गुफाएँ जैसे सीजू की गुफाओं में देश की कई लुप्तप्राय एवं दुर्लभ चमगादड़ प्रजातियाँ मिलती हैं। यहाँ के लगभग सभी जिलों में हूलॉक जिब्बन भी दिखाई देता है।Choudhury, A. U. (2006) "The distribution and status of hoolock gibbon, Hoolock hoolock, in Manipur, Meghalaya, Mizoram and Nagaland in Northeast India". Primate Conservation 20: 79–87 यहाँ के सामान्यतया पाये जाने वाले सरीसृपों में छिपकलियाँ, मगरमच्छ और कछुए आते हैं। मेघालय में बड़ी संख्या में सर्पों की प्रजातियाँ मिलती हैं, जिनमें अजगर, कॉपरहैड, ग्रीन ट्री रेसर, नाग, कोरल स्नेक तथा वाइपर्स भी आते हैं।Zoological Survey of India, Fauna of Meghalaya: Vertebrates, Part 1 of Fauna of Meghalaya, Issue 4, Government of India (1995) मेघालय के वनों में पक्षियों की 660 प्रजातियाँ मिलती हैं जिनमें से अधिकाँश हिमालय की तलहटी क्षेत्रों, तिब्बत एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया की स्थानिक हैं। यहाँ पायी जाने वाली पक्षी प्रजातियों में से 34 विश्वव्यापी लुप्तप्राय (एनडेन्जर्ड) प्रजाति सूची एवं 9 लुप्तप्राय प्रजाति सूची में आती हैं।Birds of Meghalaya Avibase (2013) मेघालय में प्रायः दिखाई देने वाली पक्षी प्रजातियों में फैसियनिडी, एनाटिडी, पोडिसिपेडिडी, सिकोनाईडी, थ्रेस्कियोर्निथिडी, आर्डेडी, पेलिकनिडी, फैलाक्रोकोरैसिडी, एन्हिन्जिडी, फ़ैल्कोनिडी, एसिपिट्रिडी, ओटिडिडी, आदि बहुत सी किस्में हैं। इन प्रत्येक किस्म में बहुत सी प्रजातियाँ हैं। ग्रेट इण्डियन हॉर्नबिल मेघालय का सबसे बड़ा पक्षी है। अन्य क्षेत्रीय पक्षियों में सलेटी मयूर-तीतर, बड़े भारतीय तोते (इण्डियन पैराकीट), हरे कबूतर एवं ब्लू जे पक्षी आते हैं। Choudhury, A.U. (1998) Birds of Nongkhyllem Wildlife Sanctuary & adjacent areas. The Rhino Foundation for Nature in North East India, Guwahati, India. 31pp. मेघालय 250 से अधिक तितलियों का भी गृह स्थान है जो भारत में पायी जाने वाली कुल प्रजातियों का लगभग एक-चौथाई है। जनसांख्यिकी जनसंख्या स्थानीय जातियाँ 2011 : खासी: 34% गारो: 30.5% जयन्तिया: 18.5% बंगाली: 7.5% नेपाली: 3.5% हैजोंग: 1.2% बियाट: 1.1% कोच: 1.0% तीवा (लालुंग): 0.9% राभा: 0.8% कूकी: 0.5% शेख: 0.3% अन्य: 0.2% मेघालय की जनसंख्या का अधिकाँश भाग जनजातीय लोग हैं। इनमें खासी सबसे बड़े समूह हैं, इसके बाद गारो और फिर जयंतिया लोग आते हैं। ये उन लोगों में से थे जिन्हें अंग्रेज लोग "पहाड़ी जनजाति" कहा करते थे। इनके अलावा अन्य समूहों में बियाट, कोच, संबंधित राजबोंगशी, बोरो, हाजोंग, दीमासा, कुकी, लखार, तीवा (लालुंग), करबी, राभा और नेपाली शामिल हैं। जनगणना.2011 की प्रावधानिक रिपोर्ट के अनुसार, सभी सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में से मेघालय में 27.82% की उच्चतम, दशक की जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। 2011 तक मेघालय की जनसंख्या 29,64,007 हो जाने का अनुमान है; जिसमें से 14,92,668 महिलाएँ एवं 14,71,339 पुरुष होने का अनुमान है। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 986 महिलाएँ रहा जो राष्ट्रीय औसत 940 से कहीं अधिक है। यहाँ का शहरी महिला लिंगानुपात 985 ग्रामीण लिंगानुपात 972 से अधिक है। कार्मिक जनसंख्या मेघालय की कुल जनसंख्या में से 11,85,619 लोग कार्यसाधक गतिविधियों में संलग्न हैं। 77.7% कार्यकर्त्ता अपने इन कार्यों को मुख्य कार्य बताते हैं (6 माह या अधिक से संलग्न) जबकि 22.3% लोग आंशिक रूप से (6 माह से कम) हैं। इन 11,85,619 कार्यकर्त्ताओं में से 4,11,270 कृषक रूप में (स्वामी या सह-स्वामी) संलग्न हैं, जबकि 1,14,642 कार्यकर्त्ता कृषक मजदूर रूप में संलग्न हैं। कुलपुरुषस्त्रीकुख्य कार्यकर्त्ता921,575585,520336,055कृषक411,2702,805167,465कृषक मजदूर114,64270,46044,182घरेलू उद्योग11,9696,4595,510अन्य मजदूर383,694264,796118,898आंशिक मजदूर264,044118,189145,855अकार्यशील1,781,270788,123993,147 धर्म मेघालय भारत के उन तीन राज्यों में से एक है जहाँ ईसाई बाहुल्य है। यहाँ की लगभग 75% जनसंख्या ईसाई धर्म का अनुसरण करती है जिनमें प्रेस्बिटेरियन, बैपटिस्ट और कैथोलिक आम संप्रदायों में आते हैं। मेघालय में लोगों का धर्म उनकी जाति से निकटता से संबंधित है। गारो जनजाति के 90% और खासी जनजाति के लगभग 80% लोग ईसाई है, जबकि हजोंग जनजाति के 97% से अधिक, कोच के 98.53% और राभा जनजातियों के 94.60% लोग हिंदू हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार मेघालय में रहने वाली 6,89,639 गारो जनसंख्या में से अधिकाँश ईसाई हैं, और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले कुछ लोग ही सोंगसेरेक धर्म का पालन करते हैं। 11,23,490 खासी लोगों में से अधिकाँश ईसाई थे, 2,02,978 स्वदेशी नियाम खासी / शॉनोंग / नियाम्त्रे, 17,641 हिंदू थे और 2,977 मुस्लिम थे। मेघालय में कई कम जनसंख्या वाली जनजातियाँ भी हैं, जिनमें हाजोंग (३१,३८१ - ९७.२३% हिंदू), कोच (३१,३८१ -९८.५३% हिंदू), राभा (२८,१५३ - ९४.६०% हिंदू), मिकिर (११,३९९ - ५२% ईसाई और ३०% हिंदू) शामिल हैं, तीवा (लालंग) (८,८ - ९६.१५% ईसाई) और बियाट (१०,०८५ - ९७.३०% ईसाई)। स्वदेशी से ईसाईयत को धर्मान्तरण ब्रिटिश काल में १९वीं शताब्दी से आरम्भ हुआ। १८३० में अमेरिकन बापटिस्ट फ़ारेन मिशनरी सोसायटी पूर्वोत्तर में सक्रिय हुई और स्वदेशी से इनका धर्मान्तरण ईसाईयत को किये जाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। Johnson, R. E. (2010), A Global Introduction to Baptist Churches, Cambridge University Press, कालान्तर में उन्हें चेरापुञ्जी, मेघालय तक अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का प्रस्ताव भी मिला किन्तु पर्याप्त संसाधनों की कमी के कारण उन्होंने मना कर दिया। वैल्श प्रेसबाईटेरियन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और चेरापुञ्जी मिशन क्षेत्र में कार्य आरम्भ कर दिया। १९०० के आरम्भ तक प्रोटेस्टैण्ट ईसाई मिशन भी मेघालय में सक्रिय होने लगे थे। विश्व युद्ध के आरम्भ होने के कारण यहां के प्रचारकों को इस कार्य को छोड़ कर यूरोप एवं अमेरिका में अपने घरों को लौटने पर बाध्य होना पड़ा। यही वह काल था जब कैथोलिकन मत ने मेघालय व पडोसी क्षेत्रों में अपनी जड़ें फ़ैलानी आरम्भ की थीं। २०वीं श्ताब्दी में यूनियन क्रिश्चियन कालेज ने बड़ापानी, शिलांग में अपना संचालन शुरू किया। वर्तमान में प्रेसबाईटेरियन और कैथोलिक ही यहां के सर्वाधिक प्रचलित ईसाई मत हैं।Amrit Kumar Goldsmith, THE CHRISTIANS IN THE NORTH EAST INDIA: A HISTORICAL PERSPECTIVE, Regional Organizer of Churches' Auxiliary of Social Action, Regional Headquarters at Mission Compound, Satribari, Guwahati भाषाएं राज्य की आधिकारिक एवं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी है। इसके अलावा यहां की अन्य प्रधान भाषाएं हैं खासी और गारो। खासी (जिसे खसी, खसिया या क्यी भी कहते हैं) ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं के मोन-ख्मेर परिवार की एक शाखा है। २००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार खासी भाषा को बोलने वाले ११,२८,५७५ लोग मेघालय में रहते हैं। खासी भाषा के बहुत से शब्द की इण्डो-आर्य भाषाएं जैसे नेपाली, बांग्ला एवं असमिया से लिये गए हैं। इसके अलावा खासी भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है और यह भारत में अभी तक चल रही मोन-ख्मेर भाषाओं में से एक है। गारो भाषा का तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की सदस्य कोच एवं बोडो भाषाओं से निकट सामीप्य है। गारो भाषा अधिकांश जनसंख्या द्वारा बोली जाती है और इसकी कई बोलियां प्रचलित हैं, जैसे अबेंग या अम्बेंग, अटोंग, अकावे (या अवे), मात्ची दुआल, चोबोक, चिसक मेगम या लिंगंगम, रुगा, गारा-गञ्चिंग एवं माटाबेंग। इनके अलावा मेघालय में बहुत सी अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं, जैसे प्नार भाषा पश्चिम एवं पूर्वी जयन्तिया पर्वत पर पर बहुत से लोगों द्वारा बोली ज्ती हैं। यह भाषा खासी भाषा से संबंधित है। अन्य भाषाओं के अलावा वार जयन्तिया (पश्चिम जयन्तिया पर्वत), मराम एवं लिंगंगम (पश्चिम खासी पर्वत), वार पिनर्सिया (पूर्वी खासी पर्वत), के लोगों द्वारा बहुत सी बोलियां भी बोली जाती हैं। री-भोई जिले के तीवा लोगों द्वारा तीवा भाषा बोली जाती है। मेघालय के असम से लगते दक्षिण-पूर्वी भागों में बसने वाले बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बियाट भाषा बोली जाती है। नेपाली भाषा राज्य के लगभग सभी भागों में बोली जाती है। विभिन्न जातीय और जनसांख्यिकीय समूहों में अंग्रेजी एक समान भाषा के रूप में बोली जाती है। शहरी क्षेत्रों में अधिकतर लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं; ग्रामीण निवासियों की क्षमता में भिन्नता मिलती है। मेघालय में भाषाएंPercentages for the India's 2001 census भाषाभाषा परिवारभागखासीऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएं४७.०५%गारोतिब्बती-बर्मी भाषा परिवार३१.४१%बंगालीहिंद-आर्य८.०१%नेपाली/गोरखीहिंद-आर्य२.२५%हिन्दीहिंद-आर्य२.१६%मराठीहिंद-आर्य१.६७%असमियाहिंद-आर्य१.५८%हैजोंगहिंद-आर्य१.०६%बियाटतिब्बती-बर्मी भाषा परिवार१.०१%तीवा (लालंग)तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार१.०२%राभातिब्बती-बर्मी भाषा परिवार०.९७%कोचतिब्बती-बर्मी भाषा परिवार०.९०%कुकीतिब्बती-बर्मी भाषा परिवार०.% जिले कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Aerial_view_of_Shillong_Meghalaya_India.jpg|अंगूठाकार|264x264पिक्सेल|राज्य की राजधानी, शिलांग का विहंगम दृश्य।मेघालय में वर्तमान में ११ जिले हैं।Districts of Meghalaya Government of Meghalaya जयन्तिया हिल्स मंडल: पश्चिम जयन्तिया हिल्स (जोवाई) पूर्व जयन्तिया हिल्स (खलीहृयत)खासी हिल्स मंडल पूर्वी खासी हिल्स (शिलांग) पश्चिम खासी हिल्स (नोंग्स्टोइन) दक्षिण पश्चिम खासी हिल्स (मावकिर्वाट) री भोई जिला (नोंगपोह) गारो हिल्स मंडल: उत्तर गारो हिल्स (रेसुबेलपाड़ा) पूर्वी गारो हिल्स (विलियमनगर) दक्षिण गारो हिल्स (बाघमारा, मेघालय) पश्चिम गारो हिल्स (तुरा) दक्षिण पश्चिम गारो हिल्स (अम्पति जयन्तिया हिल जिला २२ फ़रवरी १९७२ को सृजित किया गया था। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफ़ल है और यहां की जनसंख्या २,९५,६९२ है। यहां का जिला मुख्यालय जोवाई में स्थित है। जयन्तिया हिल्स जिला राज्य में कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक जिला है। जिले भर में कोयले की खानें दिखाई देती हैं। इसके अलावा यहां चूनेपत्थर का खनन भी वृद्धि पर है क्योंकि सीमेण्ट उद्योग यहां जोरों पर है और उसमें चूनेपत्थर की ऊंची मांग है। हाल के कुछ वर्षों में ही इस बड़े जिले को दो छोटे जिलों: पश्चिम जयतिया एवं पूर्वी जयन्तिया हिल्स में बांट दिया गया था। पूर्वी खासी हिल्स जिले को खासी हिल्स में से २८ अक्तूबर १९७६ को निकाल कर नया जिला बनाया गया था। जिले का विस्तार में है और यहां की जनसंख्या ६,६०,९२३ है। ईस्ट खासी हिल्स जिले का मुख्यालय राज्य की राजधानी शिलांग में है। अंगूठाकार|मेघालय से लगे सिल्हट जिले में एक अनानास विक्रेता री-भोइ जिले की स्थापना ईस्ट खासी जिले को विभाजित कर ४ जून १९९२ को हुई थी। री-भोई जिले का कुल क्षेत्रफ़ल है और यहां की कुल जनसंख्या १,९२,७९५ है। जिले का मुख्यालय नोंगपोह में है। यहां की भूमि पर्वतीय है और वनाच्छादित है। री-भोई जिला अपने अनानासों के लिये प्रसिद्ध है और राज्य में अनानास का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है।पश्चिम खासी हिल्स जिला राज्य का सबसे बड़ा जिला है औ इसका क्षेत्रफ़ल है और जिले की जनसंख्या २,९४,११५ है। यह जिला खासी हिल्स जिले से काटकर २८ अक्तूबर १९७६ को बनाया गया था। जिले का मुख्यालय नोंगस्टोइन में है।ईस्ट गारो हिल्स जिले की स्थापना १९७६ में की गयी थी और इसकी जनसंख्या २००१ की जनगणना अनुसार २,४७,५५५ है। इस जिले का विस्तार में है। जिले का मुख्यालय विलियमनगर में है जिसे पहले सिमसानगिरि बोला जाता था। नोंगलबीबरा जिले का एक कस्बा है जहां बड़ी संख्या में कोयले की खानें हैं। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग ६२ द्वारा कोयला ग्वालपाड़ा और जोगीघोपा को भेजा जाता है।पश्चिम गारो हिल्स जिला राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है और इसका भौगोलिक विस्तार में है। २००१ की जनगणनानुसार जिले की जनसंख्या ५,१५,८१३ है और जिले का मुख्यालय तुरा में है।द्क्षिण गारो हिल्स जिला १८ जून १९९२ को तत्कालीन पश्चिम गारो हिल्स जिले को विभाजित कर बनाया गया था। जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्र है और वर्ष २००१ की जनगणनानुसार यहां की जनसंख्या ९९,१०० है। जिले का मुख्यालय बाघमारा में है।वर्ष २०१२ के स्थितिनुसार राज्य में ११ जिले, १६ नगर व कस्बे और अनुमानित ६,०२६ ग्राम थे। शिक्षा पाठ=|अंगूठाकार|भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग मेघालय में विद्यालय राज्य सरकार, निजी संगठनों एवं धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित होते हैं। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है। अन्य भारतीय भाषाएं जैसे असमिया, बंगाली, हिन्दी, गारो, खासी, मीज़ो, नेपाली और उर्दु वैकल्पिक विषयों की श्रेणी में पढ़ाई जाती हैं। माध्यमिक शिक्षा की शिक्षा बोर्ड्स से सम्बद्ध है जैसे काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशंस (आईसीएसई), केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (ओपन स्कूल) और मेघालय शिक्षा बोर्ड। १०+२+३ शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत्त, माध्यमिक शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त विद्यार्थी प्रायः २ वर्ष कनिष्ठ महाविद्यालय (जूनियर स्कूल) में शिक्षण लेते हैं जिसे प्री-युनिवर्सिटी कहते हैं, या फ़िर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा सुविधा वाले किसी मेघालय शिक्षा बोर्ड या केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालय में प्रवेश लेते हैं। विद्यार्थी तीन में से किसी एक विधा को चुनते हैं: कला, वाणिज्य या विज्ञान। दो वर्ष का कार्यक्रम सफ़लतापूर्वक पूर्ण करने के उपरान्त विद्यार्थी किसी सामान्य या व्यावसायिक स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। विश्वविद्यालय सीएमजे विश्वविद्यालय, शिलांग भारतीय चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक संस्थान विश्वविद्यालय, मेघालय महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, मेघालय, नोंगपोह मार्टिन लूथर क्रिश्चियन युनिवर्सिटी, मेघालय पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय (नेहू), शिलांग टेक्नो ग्लोबल युनिवर्सिटी, मेघालय प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन विश्वविद्यालय, मेघालय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेघालय (यूएसटीएम), मेघालय विलियम कैरी युनिवर्सिटी, मेघालय महाविद्यालय अचेंग रांगमानपा कालेज, महेन्द्रगंज डॉन बास्को कालेज, तुरा नार्थ ईस्ट एड्वेण्टिस्ट कालेज, थाडलास्केन कियांग नांगबाह गवर्नमेंट कालेज, जोवाई एड लबान कालेज, शिलांग लेडी कियाने कालेज, शिलांग नोंगतलांग कालेज, नोंगतलांगनोंगस्टोएन कालेज, नोंगस्टोएन री-भोई कालेज, नोंगपोह सेंट एन्थोनी कालेज, शिलांग सेंट एड्मंड कालेज, शिलांग सेंट मैरी कालेज, शिलांग शंकरदेव कालेज, शिलांग सेंग खासी कालेज, शिलांग शिलांग कालेजशिलांग कामर्स कालेज सोहरा गवर्नमेंट कालेज, चेरापुंजीड कालेज, शिलांग टिकरीकिल्ला कालेज तुरा गवर्नमेंट कालेज, तुरा वूमेन्स कालेज, शिलांग </div> अंगूठाकार|पूर्वोत्‍तर पर्वतीय विश्‍वविद्यालय नया परिसर, मवलाई शिलांग इनके अलावा बहुत से अन्य संस्थान जैसे: भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग, रीजनल इन्स्टीट्यूट आफ़ साइंस एण्ड टेक्नोलाजी, नार्थ ईस्ट इंदिरा गांधी रीजनल इन्स्टीट्यूट आफ़ हैल्थ एण्ड मेडिकल साइंसेज, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इंडियन इन्स्टीट्यूट आफ़ प्रोफ़ैशनल स्टडीज, राष्ट्रीय फैशन टेक्नालॉजी संस्थान एवं राष्ट्रीय आयुर्वेद एवं होम्योपैथी संस्थान भी राज्य में स्थित हैं। सरकार एवं राजनीति मेघालय के वर्तमान राज्यपाल गंगा प्रसाद राज्य के प्रमुख हैं। राज्य सरकार मेघालय विधान सभा में वर्तमान में ६० सदस्य होते हैं। मेघालय राज्य के दो प्रतिनिधि लोक सभा हेतु निर्वाचित होते हैं, प्रत्येक एक शिलांग और एक तुरा निर्वाचन क्षेत्र से। यहां का एक प्रतिनिधि राज्य सभा में भी जाता है। राज्य के सृजन से ही यहां गौहाटी उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र रहा है। १९७४ से ही गौहाटी उच्च न्यायालय की एक सर्किट बेञ्च यहां स्थापित है। मार्च २०१३ में मेघालय उच्च न्यायालय को गौहाटी उच्च न्यायालय से विलग कर दिया गया और अब राज्य का अपना उच्च न्यायालय है। स्थानीय स्व-सरकार कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:NE_Autonomous_divisions_of_India.svg|अंगूठाकार|भारत के पूर्वोत्तरीय स्वायत्त मण्डलराष्ट्र की ग्रामीण जनता को स्थानीय स्व-सरकार उपलब्ध कराने हेतु भारतीय संविधान में प्रायोजन किये गये हैं। इनके अनुसार पंचायती राज संस्थान की स्थापना की गयी है। पूर्वोत्तर राज्यों के भिन्न रीति रिवाजों एवं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए, क्षेत्र के लिये एक अलग राजनीतिक एवं प्रशासनिक ढांचे का निर्माण किया गया है क्षेत्र की कुछ जनजातियों की अपनी पारम्परिक राजनीतिक प्रणालियां हैं। इनके चलते यह महसूस किया गया कि पंचायती राज प्रणाली यहां लागू की जाने से विवाद उत्पन्न करेगी। गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता में बनी एक उपसमिति की सिफ़ारिशों को संविधान में संलग्न किया गया। इसके तहत मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों का गठन कर उनका अपना संविधान लागू किया गया। मेघालय में ऐसी एडीसी परिषदें निम्न हैं:खासी हिल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउन्सिलगारो हिल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउन्सिलजयन्तिया हिल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउन्सिल अर्थ व्यवस्था मेघालय में मुख्य रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में ही लगभग मेघालय की दो-तिहाई जनशक्ति कार्यरत है। हालांकि इस क्षेत्र का राज्य की एनएसडीपी में योगदान मात्र एक-तिहाई ही है। राज्य में कृषि की कम उत्पादकता का प्रमुख कारण गैर-टिकाऊ कृषि परम्पराएं हैं। इन्हीं कारणों से कृषि में जनसंख्या के बड़े भाग के संलग्न होने के बावजूद भी राज्य को अन्य भारतीय राज्यों से भोजन आयात करना पड़ता है। बुनियादी ढांचे की बाधाओं ने राज्य की अर्थव्यवस्था को भारत के बाकी भागों के मुकाबले उस तेजी से उच्च आय की नौकरियां सृजित करने से रोक रखा है। मेघालय का वर्ष २०१२ का सकल राज्य घरेलू उत्पाद वर्तमान मूल्यों पर अनुमानित था।मेघालय योजना आयोग, भारत सरकार (मई २०१४) Meghalaya Planning Commission, Govt of India (May 2014) २०१२ में भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, राज्य की लगभग १२% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे थी जिसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में १२.५% एवं शहरी क्षेत्रों में ९.३% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे थी। कृषि कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Tea_Plantation_Agriculture_in_Meghalaya_India_on_the_way_to_Shillong.jpg|अंगूठाकार|मेघालय में शिलांग को जाते मार्ग के निकट चाय के बाग।मेघालय मूलतः एक कृषि प्रधान राज्य है जिसकी ८०% जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु पूर्ण रूपेण कृषि पर ही निर्भर है। मेघालय के कुल भौगोलिक क्षेत्रफ़ल का लगभग १०% कृषि में प्रयोग किया जाता है। राज्य में कृषि प्रायः आधुनिक तकनीकों के अभाव या अति-सीमित प्रयोग के साथ होती है जिसके परिणामस्वरूप कम उत्पादन और कम उत्पादकता ही हाथ आती है। अतः इन कारणों से कृषि में लगी अधिकांश जनसंख्या के बावजूद भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उत्पादन का योगदान कम है, और कृषि में लगी अधिकांश जनसंख्या गरीब ही रहती है। खेती वाले क्षेत्र का एक भाग यहां की परंपरागत स्थानांतरण कृषि, जिसे स्थानीय भाषा में लोग झूम कृषि कहते हैं, के तहत है। मेघालय में वर्ष २००१ में २,३०,००० टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। धान यहां की मुख्य खाद्यान्न फ़सल है जो राज्य के कुल खाद्यान्न उत्पादन का ८०% उत्तरदायी है। इसके अलावा अन्य महत्त्वपूर्ण खाद्यान्नों में मक्का, गेहूं और कुछ अन्य अनाज एवं दालें भी उगायी जाती हैं। इनके अलावा यहां आलू, अदरख, हल्दी, काली मिर्च, सुपारी, तेजपत्ता, पान, शार्ट स्टेपल सूत, सन, मेस्ता, सरसों और कैनोला का भी उत्पादन किया जाता है। धान और मक्का जैसे प्रधान खाद्य फ़सलों के अलाव मेघालय बागों की फ़सलों जैसे सन्तरों, नींबू, अनानास, अमरूद, लीची, केले, कटहल और कई फ़ल जैसे आड़ू, आलूबुखारे एवं नाशपाती के उत्पादन में भी योगदान देता है।Horticulture Crops Department of Agriculture, Govt of Meghalaya (2009)कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Agriculture_in_Kukon_Meghalaya_India.jpg|अंगूठाकार|कुकोन, मेघालय में कृषिअनाज और मुख्य खाद्यान्न उत्पादन यहां की कुल कृषि भूमि का ६०% घेर लेता है। १९७० के दशक के मध्य में उच्चोत्पादन देने वाली फ़सल की किस्मों के प्रयोग आरम्भ किये जाने से खाद्यान उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार आया था। धान की उच्चोत्पादन वाली किस्मों जैसे मसूरी, पंकज, आईआर-८, आरसीपीएलRice Department of Agriculture, Govt of Meghalaya (2009) एवं अन्य बेहतर किस्मों की शृंखला-विशेषकर आईआर-३६ जो रबी के मौसम के अनुकूल है, के प्रयोग से एक बड़ी सफ़लता प्राप्त की गयी, जिसके उप्रान्त वर्ष में तीन फ़सलें बोई जाने लगी थीं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा धान की शीत सहिष्णु किस्मों जैसे मेघा-१ एवं मेघा-२ के विकास कर यहां प्रयोग किये जाने से पुनः बड़ी सफ़लता मिली थी। परिषद के शिलांग के निकट उमरोई स्थित पूर्वोत्तर क्षेत्र केन्द्र द्वारा इन किस्मों को १९९१-९२ में उच्च ऊँचाई क्षेत्रों के लिए विकसित की गयी थी, जहां तब तक कोई उच्चोत्पादन किस्म नहीं होती थीं। आज राज्य यह दावा कर सकता है कि धान उत्पादन के कुल क्षेत्र का लगभग ४२% क्षेत्र उच्चोत्पादन किस्मों द्वारा रोपा जाता है और इनकी औसत उत्पादकता है। ऐसा ही हाल मक्का और धान उत्पादन के लिये भी रहा है जहां एचवाईवी के प्रयोग किये जाने से उत्पादन १९७१-७२ में से मक्का और गेहूं से हो गया।Food grains Department of Agriculture, Govt of Meghalaya (2009) कैनोला, सरसों, अलसी, सोयाबीन,अरण्डी और तिल जैसे तिलहन यहां लगभग पर उगाए जाते हैं। कैनोला और सरसों यहां के सबसे महत्वपूर्ण तिलहन हैं,Oil Seeds Department of Agriculture, Govt of Meghalaya (2009) जो यहां के लगभग ६.५ हजार टन के कुल तिलहन उत्पादन के दो-तिहाई से अधिक भाग देते हैं। कपास, सन और मेस्टा जैसी फ़सलें ही यहां की मुख्य नकदी फसलों में आती हैं और गारो पर्वत में उगाए जाते हैं।Fibre Crops Department of Agriculture, Govt of Meghalaya (2009) हाल के वर्षों में इनके उत्पादन में गिरावट आयी है जो इनको बोई जाने वाली कृषि भूमि में होती कमी से भी दिखाई देता है। मेघालय की जलवायु यहां फ़ल, सब्जियों, पुष्पों, मसालों, मशरूम जैसी फ़लदार फ़सलों के अलावा चिकित्सकीय पौधों की विभिन्न किस्मों की उपज में बहुत सहायक है। ये उच्च मूल्य फ़सल आंकी जाती हैं, किन्तु घरेलु उपयोगी फ़सलों की अत्यावश्यकता यहां के किसानों को इनकी खेती अपनाने से रोकती है। कुछ मुख्य फ़लदार फ़सलों में यहां रसीले फ़ल, अनानास, पपीते और केले आते हैं। इनके साथ साथ ही बड़ी मात्रा में यहां सब्जियां जैसे फ़ूलगोभी, बंदगोभी और मूली, आदि भी उगायी जाती हैं। पूरे राज्य भर में सुपारी के बाग खूब दिखायी देते हैं, विशेषकर गुवाहाटी से शिलांग राजमार्ग के किनारे के क्षेत्र में। इनके अलावा अन्य उद्यान फ़सलें जैसे चाय, कॉफ़ी और काजू यहां काफ़ी समय बाद पहुंचे किन्तु अब इनका प्रचलन भी बढ रहा है। मसालों, पुष्पों और मशरूमों की बड़ी किस्मों का उत्पादन राज्य भर में किया जाता है। उद्योग कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Cement_Plant_MCL.jpg|अंगूठाकार|एमसीएल सीमेण्ट संयंत्र का दृश्य। यह थैंग्स्काई, पोस्ट लुम्श्नौङ्ग, जयन्तिया हिल्स में स्थित है।मेघालय में प्राकृतिक सम्पदा का बाहुल्य है। इनमें कोयला, चूनापत्थर, सिलिमैनाइट, चीनी मिट्टी और ग्रेनाइट आते हैं। मेघालय भर में वृहत स्तर के वनाच्छादन, समृद्ध जैव विविधता और प्रचुर जल सोत हैं। यहां निम्नस्तरीय औद्योगिकीकरण एवं अपेक्षाकृत खराब बुनियादी ढांचा राज्य की अर्थव्यवस्था के हित में इन प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए बाधा के रूप में कार्य करता है। हाल के वर्षों में ९०० एमटीडी(मीट्रिक टन प्रतिदिन) से अधिक उत्पादन क्षमता वाले दो बड़े सीमेंट निर्माण संयंत्र जयन्तिया हिल्स जिले में लुम्श्नौंग और नौङ्ग्स्निङ्ग में लगे हैं एवं इस जिले में उपलब्ध उच्च गुणवत्ता वाले चूना पत्थर के समृद्ध भण्डार का उपयोग करने के लिए कई और निर्माण प्रक्रिया में हैं। विद्युत अवसंरचना कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Mawphlang_Dam_Reservoir_Meghalaya_India.jpg|अंगूठाकार|मेघालय में प्रचुर मात्रा में अविकसित जलविद्युत संसाधन उपलब्ध हैं। ऊपर मावफ़्लांग पनविद्युतबांध जलाशय का चित्र है।मेघालय के ऊंचे पर्वतों, गहरी घाटियों और प्रचुर वर्षा के कारण यहां बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त जलविद्युत क्षमता संचित है। यहां की मूल्यांकित उत्पादन क्षमता ३००० मेगावाट से अधिक है। राज्य में वर्तमान स्थापित क्षमता १८५ मेगावाट है, किन्तु राज्य स्वयं ६१० मेगावॉट का उपभोग करता है, अर्थात् दूसरे शब्दों में, यह बिजली आयात करता है।Demand for power in Meghalaya Meghalaya Energy Corporation Limited राज्य की आर्थिक वृद्धि के साथ साथ ही बिजली की बढ़ती मांग भी जुडी है। राज्य में जलविद्युत से उत्पन्न बिजली निर्यात करने एवं उससे मिलने वाली आय से अपनी आंतरिक विकास योजनाओं के लिए आय अर्जित करने की पर्याप्त क्षमता है। राज्य में भी कोयले के भी बड़े भण्डार हैं, जो कि यहां ताप विद्युत संयंत्र की संभावना को भी बल देते हैं। बहुत सी परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। नंगलबीबरा में प्रस्तावित ताप-विद्युत परियोजना के प्रचालन में आने पर ७५१ मेगावाट विद्युत अतिरिक्त उत्पादन की संभावना है। पश्चिम खासी हिल्स में एक २५० वॉट की परियोजना लगाने का भी प्रस्ताव है। राज्य सरकार अपना विद्युत उत्पादन २०००-२५०० मेगावॉट तक वर्धन करने का लक्ष्य रखता है जिसमें से ७००-९८० मेगावॉट ताप-विद्युत होगी तथा १४००-१५२० मेगावॉट जल-विद्युत होंगीं। राज्य सरकार ने अपने क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी लाने हेतु एक साझा लागत वाले सार्वजनिक-निजी साझेदारी मॉडल की रूपरेखा तैयार की है।State Planning Govt of Meghalaya, pp 129-130 विद्युत उत्पादन, परिवर्तन और वितरण मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड को सौंपा गया है, जिसे बिजली आपूर्ति अधिनियम १९४८ के तहत गठित किया गया था। वर्तमान में पांच जल विद्युत स्टेशन और एक मिनी जल विद्युत संयंत्र हैं जिसमें उमियम हाइडल परियोजना, उमट्रू हाइडल परियोजना, माइंट्डू-लेशका-१ हाइडल परियोजना और सनपानी माइक्रो हाइडल (एसईएसयू) परियोजना सम्मिलित हैं। भारत की १२वीं पंचवर्षीय योजना में, राज्य में अधिक जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित करने का एक प्रस्ताव है जो इस प्रकार से हैं: किन्शी (४५० मेगावॉट), उमंगी -१ (५४ मेगावॉट), उमियम-उमत्रु-वी ३६ मेगावॉट), गणोल (२५ मेगावॉट) , माफू (१२० मेगावॉट), नोंगकोलाइट (१२० मेगावॉट), नोंगना (५० मेगावॉट), रंगमो (६५ मेगावॉट), उमंगोट (२६० मेगावॉट), उमदुना (५७ मेगावॉट), मित्तु-लेशका-२ (६०), सेलिम (१७० मेगावॉट) और मावेली (१४० मेगावॉट)।</div> इनमें से जेपी समूह ने खासी पर्वत में किन्शी और उमंगोट परियोजनाओं के निर्माण के लिए बीड़ा उठाया है।.Hydro Power Jaypee Group (2010) शिक्षा अवसंरचना कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:St_edmunds_school.jpg|अंगूठाकार|सेंट एड्मण्ड्स विद्यालय, शिलांगमेघालय की साक्षरता दर ६२.५६ है जिसके साथ यह भारत का २७वां साक्षर राज्य है। यह दर २०११ में ७५.५ तक पहुंच गयी। वर्ष २००६ के आंकड़ों के अनुसार यहाँ ५८५१ प्राथमिक विद्यालय, १७५९ माध्यमिक विद्यालय एवं ६५५ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं। मेघालयभारतमहिला72.89%64.63%पुरुष75.95%80.88%कुल74.%72.98% २००८ में, ५,१८,००० विद्यार्थी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे थे और २,३२,००० उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे थे। राज्य अपने विद्यालयों में गुणवत्ता, पहुंच, बुनियादी ढांचे और शिक्षकों के प्रशिक्षण का ध्यान रखता है और उत्तरदायी है।State योजना: मेघालय सरकार :[Planning:Govt of Meghalaya], पृ॰ १५४-१५५ (२०१०) (अंग्रेज़ी में) शिलांग स्थित उच्च शिक्षा संस्थान भी हैं जैसे भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) एवं प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्धन विश्वविद्यालय (यूएसटीएम) जो प्रथम भारतीय विश्वविद्यालय है जिसने क्लाउड कम्प्यूटिंग अभियान्त्रिकी को अध्ययन के क्षेत्र में स्थान दिया है। आईआईएम शिलांग राष्ट्र के सर्वोच्च श्रेणी के प्रबन्धन संस्थानों में से एक है। स्वास्थ्य अवसंरचना राज्य में १३ सरकारी औषधालय, २२ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, ९३ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं ४०८ उप-केन्द्र हैं। यहाँ ३७८ चिकित्सक, ८१ भेषजज्ञ, ३३७ स्टाफ़ नर्सें एवं ७७ लैब तकनीशियन हैं। राज्य सरकार द्वारा तपेदिक, कुष्ठ रोग, कैंसर और मानसिक रोग के उपचार हेतु एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया है। हालांकि मृत्यु दर में लगातार गिरावट आयी है किन्तु राज्य के स्वास्थ्य विभाग के स्थिति पत्र (स्टेटस पेपर) के अनुसार जीवन प्रत्याशा में सुधार और स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचे में पर्याप्त वृद्धि के अभाव में राज्य की जनसंख्या का लगभग ४२.३% भाग स्वास्थ्य देखरेख से अभी भी अछूता है। यहां बहुत से अस्पताल निर्माणाधीन हैं, जो सरकारी व निजी दोनों ही प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार से हैं: सिविल अस्पताल, गणेश दास अस्पताल, के जे पी सायनोड अस्पताल, पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थान (एन.ई.आई.जी.आर.आई.एच.एम.एस), नार्थ ईस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद (एनईआईएएच), आर.पी चेस्ट अस्पताल, वुडलैण्ड अस्पताल, नज़ारेथ अस्पताल एवं क्रिश्चियन अस्पताल, आदि। शहरी क्षेत्र नगर पालिकाएं: शिलांग, तुरा, जोवाई नगर बोर्ड:विलियमनगर, रेसुबेलपाड़ा, बाघमारा छावनी बोर्ड: शिलांग छावनी (उमरोई ) कस्बा समितियां: नोंग्सटोइन, नोंगपोह,मैरांग जनगणना नगर: मवलाई , मैडानार्टिंग, नोंगथम्माय, नोंगमइनसोंग, पिन्थोरउम्ख्रा, सोहरा/चेरापुंजी पिनुर्सला छोटे कस्बे: खलीहृयत, मावकिर्वाट, अम्पति शिलांग शहरी समूह के तहत क्षेत्र: शिलांग, शिलांग छावनी/उमरोई, मावलाई, मैडानार्टिंग, नोंगथम्माइ, नोंगमइनसोंग, पिन्थोरुमख्रा। शहरी क्षेत्रों का नया प्रस्ताव नगर महापालिका: 1 शिलांग (शिलांग छावनी,/उमरोई, मवलाई , मदनर्टिंग, नोंगथिम्माई, नोंगमइनसोंग, पिन्थोरुमख्रा सहित)नगरपालिकाएं: 3 तुरा, जोवाई, विलियमनगर।नगर बोर्ड: 9 रेसुबेलपाडा, बाघमारा, नोइंगस्टोइन, नोंगपोह, मैडानार्टिंग, नोंगथाइमाय, नोंगमिनसोंग, पिन्थोरुमख्रा, आदिकस्बा समितियां: 1 पिनुर्स्ला संस्कृति एवं समाज मेघालय की मुख्य जनजातियां हैं खासी, गारो और जयन्तिया। प्रत्येक जनजाति की अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराएं, पहनावा और अपनी भाषाएं हैं। सामाजिक संस्थान कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Khasi_Girls.jpg|अंगूठाकार|खासी कन्याएंमेघालय के अधिकांश लोग और प्रधान जनजातियां मातृवंशीय प्रणाली का अनुसरण करते हैं, जहां विरासत और वंश महिलाओं के साथ चलता है। कनिष्ठतम पुत्री को ही सारी संपत्ति मिलती है और वही बुजुर्ग माता-पिता और किसी भी अविवाहित भाई बहन की देखभाल भी किया करती है। कुछ मामलों में, जहां परिवार में कोई बेटी नहीं है या अन्य कारणों से, माता-पिता किसी और बेटी को नामांकित कर सकते हैं जैसे कि अपनी पुत्रवधू को, और घर के उत्तराधिकार और अन्य सभी संपत्तियों का अधिकार उसे ही मिलता है। खासी और जयन्तिया जनजाति के लोग पारम्परिक मातृवंशीय प्रणाली का पालन करते जिसमें खुन खटदुह (अर्थात कनिष्ठतम पुत्री) घर की सारी सम्पत्ति की अधिकारी एवं वृद्ध माता-पिता की देखभाल की उत्तरदायी होती है। हालांकि पुरुष वर्ग, विशेषकर मामा इस सम्पत्ति पर परोक्ष रूप से पकड बनाए रहते हैं, क्योंकि वे इस सम्पत्ति के फ़ेरबदल, क्रय-विक्रय आदि के सम्बन्ध में लिये जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होते हैं। परिवार में कोई पुत्री न होने की स्थिति में खासी और जयन्तिया (जिन्हें सिण्टेंग भी कहा जाता है) में आइया रैप आइङ्ग का रिवाज होता है, जिसमें परिवार किसी अन्य परिवार की कन्या को दत्तक बना कर अपना लेता है, और इस तरह वह का ट्राई आइङ्ग (परिवार की मुखिया) बन जाती है। इस अवसर पर पूरे समुदाय में धार्मिक अनुष्ठान होते हैं व उत्सव मनाया जाता है।Philip Richard Thornhagh Gurdon (1914), , McMillan & Co., 2nd Edition, pp 85-87 गारो वंश प्रणाली में, सबसे छोटी पुत्री को स्वतः रूप से परिवार की संपत्ति विरासत में मिलती है, यदि एक और पुत्री का नाम माता-पिता द्वारा नहीं निर्धारित किया जाता है। उसके बाद उसे नोकना, अर्थात् "घर के लिए" नामित किया जाता है। यदि किसी परिवार में कोई बेटियां नहीं हैं, तो चुनी हुई पुत्रवधू (बोहारी) या एक दत्तक पुत्री (डरागता) को घर में रखते हैं और उसे ही गृह सम्पत्ति मिल जाती है। मेघालय में विश्व की सबसे बड़ी जीवित मातृवंशीय संस्कृति प्रचलन में है। पारम्परिक राजनीतिक संस्थान तीनों प्रधान जनजातियाँ, खासी, गारो एवं जयन्तिया समुदायों के अपने अपने पारम्परिक राजनीतिक संस्थान हैं जो सैंकड़ों वर्षों से चलते चले आ रहे हैं। ये राजनीतिक संस्थान गांव स्तर, कबीले स्तर और राज्य स्तर जैसे विभिन्न स्तरों पर काफी विकसित और कार्यरत हैं।.Philip Richard Thornhagh Gurdon (1914), , McMillan & Co., 2nd Edition, pp 66-75 खासियों की पारम्परिक राजनीतिक प्रणाली में प्रत्येक कुल या वंश की अपनी स्वयं की परिषद होती है जिसे दोरबार कुर कहते हैं और यह वंश के मुखिया की अध्यक्षता में संचालित होती है। यह परिषद या दोरबार वंश के आंतरिक मामलों की देखरेख करती है। इसी प्रकार प्रत्येक ग्राम की एक स्थानीय सभा होती है जिसे दोरबार श्वोंग कहते हैं, अर्थात् ग्राम परिषद। इसका संचालन भी ग्राम मुखिया कीअध्यक्षता में होता है। अन्तर-ग्राम मुद्दों पर निकटवर्ती ग्राम के लोगों से गठित एक राजनीतिक इकाई निर्णय लेती है। स्थानीय राजनीतिक इकाइयाँ रेड्स कहलाती हैं और ये सर्वोच्च राजनीतिक संस्थान साइमशिप के अधीन कार्य करती हैं। ये साइमशिप बहुत सी रे्ड्स का संघ होती है और इनका साईम या सीईएम (राजा) के नाम से जाना जाने वाला एक निर्वाचित प्रमुख होता है। साइम ने एक निर्वाचित राज्य विधानसभा के माध्यम से खासी राज्य पर शासन करते हैं जिसे दरबार हिमा के नाम से जाना जाता है। सीईएम के पास उनके मंत्रियों से गठित एक मंत्रिमण्डल होता है जिनकी राय व सलाह से वह अपनी कार्यपालक का उत्तरदायित्त्व पूर्ण करता है। । इनके राज्य में कर एवं चुंगियां भी वसूली जाती हैं और करों को पिनसुक तथा टोल को क्रोंग कहा जाता था। क्रोंग राज्य का प्रधान आय स्रोत हुआ करती है। २०वीं शताब्दी के आरम्भ में राजा दखोर सिंह यहां का साइम हुआ करता था। मेघालय उत्सव Festivals of Meghalaya The Department of Arts and Culture, Govt of Meghalaya (2010)स्थानीय कैलेण्डर माहवैदिक कैलेण्डर माहग्रेगोरियाई कैलेण्डर माहDen'bilsiaPolginफाल्गुनफ़रवरीA'sirokaChuetचैत्रमार्चA' galmakaPasakवैशाखअप्रैलMiamuaAsalआषाढजूनRongchugalaBadoभाद्रअगस्तAhaiaAsinअश्विनसितम्बरWangalaGateकार्तिकअक्तूबरक्रिस्मसपोसीपौषदिसम्बरमाघजनवरीजयन्तिया लोगों में भी त्रिस्तरीय राजनीतिक प्रणाली होती है जो खासी लोगों के लगभग समान ही होती है और इसमें भी रेड्स और साइम हुआ करते हैं।Philip Richard Thornhagh Gurdon (1914), , McMillan & Co., 2nd Edition रेड्स की अध्यक्षता डोलोइस करते हैं जो रेड्स स्तर पर कार्यपालक एवं रीति रिवाजों के साथ देख रेख किया करते हैं। प्रत्येक निर्वाचित स्तर की अपनी परिषद या दरबार हुआ करते हैं। गारो समूह परम्परागत राजनीतिक प्रणाली में, गारो ग्रामों के एक समूह का एक राजा हुआ करता है जिसे ए-किंग कहते हैं। ए-किंग निक्माज़ के अधीन कार्य करता है। यह निक्मा गारों लोगों की एकमात्र राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्राधिकारी होता है और यही सब न्यायिक और विधायी कार्य भी किया करता है। ये विभिन्न निक्माज़ विभिन्न ए-किंग्स के मुद्दों को सुलझाने हेतु मुल कर कार्य किया करते हैं। गारो लोगों के बीच कोई सुव्यवस्थित परिषद या दरबार नहीं हुआ करते हैं। उत्सव एवं त्योहार कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Dance_of_Meghalaya.jpg|अंगूठाकार|मेघालय के नृत्य खासी नृत्य खासी जीवन की संस्कृति का मुख्य रिवाज है, और राइट्स आफ़ पैसेज का एक भाग भी है। नृत्यों का आयोजन श्नोंग (ग्राम), रेड्स(ग्राम समूह) और हिमा(रेड्स का समूह) में किया जाता है। इनके उत्सवों में से कुछ हैं: का शाद सुक माइनसिएम, का पोम-ब्लांग नोंगक्रेम, का शाद शाङ्गवियांग, का-शाद काइनजो खास्केन, का बाम खाना श्नोंग, उमसान नोंग खराई और शाद बेह सियर।जयन्तिया जयन्तिया हिल्स के लोगों के उत्सव अन्य जनजातियों की ही भांति उनके जीवन व संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये प्रकृति और अपने लोगों के बीच सन्तुलन एवं एकजुटता को मनाते हैं। जयन्तिया लोगों के उत्सवों में से कुछ हैं: बेहदियेनख्लाम, लाहो नृत्य एवं बुआई का त्योहार। गारो गारों लोगों के लिये उत्सव उनके सांस्कृतिक विरासत का भाग हैं। ये अपने धार्मिक अवसरों, प्रकृति और मौसम और साथ ही सामुदायिक घटनाएं जैसे झूम कृषि अवसरों को मनाते हैं। गारों समुदाय के प्रमुख त्योहारों में डेन बिल्सिया, वङ्गाला, रोंगचू गाला, माइ अमुआ, मङ्गोना, ग्रेण्डिक बा, जमाङ्ग सिआ, जा मेगापा, सा सट रा चाका, अजेयोर अहोएया, डोरे राटा नृत्य, चेम्बिल मेसारा, डो'क्रुसुआ, सराम चा'आ और ए से मेनिया या टाटा हैं जिन्हें ये बडी चाहत से मनाया करते हैं। हैजोंग हैजोंग लोग अपने पारम्परिक त्योहारों के साथ साथ हिन्दू त्योहार भी मनाते हैं। गारो पर्वत की पूरी समतल भूमि में हैजोंग लोगों का निवास है, ये कृषक जनजाति हैं। इनके प्रमुख पारम्परिक उत्सवों में पुस्ने, बिस्वे, काटी गासा, बास्तु पुजे और चोर मगा आते हैं। बियाट बियाट लोगों के कई प्रकार के त्योहार एवं उत्सव होते हैं; नल्डिंग कूट, पम्चार कूट, लेबाङ्ग कूट, फ़वाङ्ग कूट, आदि। हालांकि अपने भूतकाल की भांति अब ये नल्डिंग कूट के अलावा इनमें से कोई त्योहार अब नहीं मनाते हैं। नल्डिंग कूट (जीवन का नवीकरण) हर वर्ष जनवरी के माह में आता है और तब ये लोग गायन, नृत्य और पारम्परिक खेल आदि खेलते हैं। इनका पुजारी - थियांपु चुङ्ग पाठियान नामक देवता की अर्चना कर के उससे इनकी खुशहाली एवं समृद्धि को इनके जीवन के हल पहलु में भर देने की प्रार्थना करता है। आध्यात्मिकता दक्षिण मेघालय में मावसिनराम के निकट मावजिम्बुइन गुफाएं हैं। यहां गुफा की छत से टपकते हुए जल में मिले चूने के जमाव से प्राकृतिक बना हुआ एक शिवलिंग है। १३वीं शताब्दी से चली आ रही मान्यता अनुसार यह हाटकेश्वर नामक शिवलिंग जयन्तिया पर्वत की गुफा में रानी सिंगा के समय से चला आ रहा है। जयन्तिया जनजाति के दसियों हजारों सदस्य प्रत्येक वर्ष यहां हिन्दू त्योहार शिवरात्रि में भाग लेते हैं एवं जोर शोर से मनाते हैं।Sudhansu R. Das, Vibrant Meghalaya The Hindu (2008) जीवित जड सेतु कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Living_root_bridges,_Nongriat_village,_Meghalaya.jpg|बाएँ|अंगूठाकार|278x278पिक्सेल|दोहरा जीवित जड़ सेतु, नोंग्रियाट ग्राम, मेघालय।मेघालय में जीवित जड पुलों का निर्माण भी मिलता है। यहां फ़ाइकस इलास्टिका (भारतीय रबर वृक्ष) की हवाई जडों को धीरे धीरे जोड कर सेतु तैयार किये जाते हैं। ऐसे सेतु मावसिनराम की घाटी के पूर्व में पूर्वी खासी हिल्स के क्षेत्र में एवं पूर्वी जयन्तिया हिल्स जिले में भी मिल जाते हैं। इनका निर्माण खासी एवं जयन्तिया जनजातियों द्वारा किया जाता रहा है ऐसे सेतु शिलांग पठार के दक्षिणी सीमा के साथ लगी पहाडी भूमि पर भी मिल जाते हैं। हालांकि ऐसी संस्कृतिक धरोहरों में से बहुत से सेतु अब ध्वंस हो चुके हैं, जो भूस्खलन या बाढ की भेंट चढ गये या उनका स्थान अधिक मजबूत आधुनिक स्टील सेतुओं ने ले लिया। परिवहन |अंगूठाकार|State Highway 5 near Cherapunjee, Meghalaya अंगूठाकार|शिलांग बायपास मार्ग|220px १९४७ में भारत के विभाजन से पूर्वोत्तर की मूल अवसंरचना को काफ़ी धक्का पहुंचा जिसका एक कारण यह भी था कि इस क्षेत्र का मात्र २% भाग ही देश के शेष हिस्से से लगता था। भूमि का एक बहुत ही संकरा सा भाग पूर्वोत्तर को मुख्यभूमि में सिलिगुड़ी गलियारे के द्वारा पश्चिम बंगाल से जुड़ा हुआ है। मेघालय भूमि से घिरा राज्य है जहां दूर दूर तक छोटी बडी बस्तियां व आबादी बसी हुई है। अतः यहां परिवहन का एकमात्र साधन सडक ही है। हालांकि राजधानी शिलांग सडकों द्वारा भली भांति जुडी हुई है, अधिकांश अन्य भाग इस मामले में पीछे ही हैं। राज्य की सडकों का एक बड़ा भाग अभी भी कच्चा ही है। मेघालय में अधिकांश आवाजाही निकटवर्ती राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी से ही होती है जो शिलांग से १०३ किमी पर स्थित है। गुवाहाटी समूचे देश से नियमित रेल और वायु सेवा द्वारा भली प्रकार से जुडा हुआ है।</p>जब मेघालय को १९७२ में असम से काट कर एक स्वायत्त राज्य के रूप में अलग किया गया था, तब इसे १७४ किमी के राष्ट्रीय राजमार्ग सहित २७८६.६८ किमी की कुल सडकें विरासत में मिली थीं। तब राज्य का सडक घनत्व १२.४२ वर्ग किमी प्रति १०० वर्ग किमी राज्य क्षेत्रफ़ल था। २००४ तक के आंकड़ों के अनुसार कुल सडक लम्बाई ९३५० किमी तक पहुंच गयी थी, जिसमें ५,८५७ किमी पक्की व पेव्ड भी थी। मार्च २०११ तक के आंकडों के अनुसार सडक घनत्व ४१.६९ वर्ग किमी पहुंच चुका था, हालांकि इस मामले में मेघालय राष्ट्रीय औसत ७४ किमी प्रति १०० वर्ग किमी से नीचे ही रहा। राज्य के लोगों को बेहतर सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मेघालय लोक सेवा आयोग (मेघालय पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेण्ट) वर्तमान सडकों एवं सेतुओं के सुधार और उन्नयन हेतु निरन्तर प्रयासरत है एवं अनेक कदम उठा रहा है। सड़क मार्ग मेघालय में सडक जाल की कुल लम्बाई किमी है, जिसमें से किमी तारकोल की सडक है एवं शेष किमी सडक रोड़ी की है। मेघालय राज्य असम में सिल्चर, मिजोरम में आईजोल और त्रिपुरा में अगरतला से राष्ट्रीय राजमार्गों से भली-भांति जुड़ा हुआ है। बहुत सी निजी बसें एवं टैसी संचालक गुवाहाटी से शिलांग यात्रियों को लाते ले जाते हैं। यह मार्ग लगभग ढाई घंटे का है। शिलांग से मेघालय के सभी प्रधान नगरों, पूर्वोत्तर की अन्य राजधानियों एवं असम के नगरों के लिये दिवस एवं रात्रि बस सेवाएं उपलब्ध हैं। रेल मार्ग मेघालय में रेलमार्ग का एकमात्र मार्ग तक है जहां से गुवाहाटी तक नियमित रेल सेवा चलती है। यह सेवा ३० नवंबर २०१४ को आरम्भ हुई थी। राज्य में एक औपचारिक पर्वतीय रेल चेरा कम्पनीगंज स्टेट रेलवे पहले चला करती थी। शिलांग से पर निकटतम रेलवे स्टेशन है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र को ब्रॉडगेज लाइन द्वारा देश के शेष भाग से जोड़ा करता है। गुवाहाटी से रेलवे लाइन को बायर्नीहाट () तक जोड़ने का प्रस्ताव विचाराधीन है जो आगे शिलांग तक विस्तृत की जायेगी। अंगूठाकार|शिलांग विमानक्षेत्र प्रवेश वायु मार्ग राज्य की राजधानी शिलांग का विमानक्षेत्र उमरोई में स्थित है। यह शिलांग मुख्य शहर से पर गुवाहाटी-शिलांग राजमार्ग पर स्थित है। इसका नया टर्मिनल भवन की लागत से बना है जिसका उद्घाटन जून २०११ में हुआ था। एअर इंडिया क्षेत्रीय अपनी उड़ान शिलांग विमानक्श्झेत्र से कोलकता तक प्रतिदिन भरता है। एक हैलीकॉप्टर सेवा भी शिलांग से गुवाहाटी और तुरा के लिये चलती है। तुरा के निकट बाल्जेक विमानक्षेत्र २००८ में प्रचालन में आया था।State Planning Govt of Meghalaya, pp 153-154 (2010) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण इसकी देख रेख कर रहा है। प्राधिकरण विमानक्षेत्र को एटीआर ४२ एवं एटीआर ७२ सीटर के लिये विकसित कर रहा है। असम में अन्य निकटवर्ती विमानक्षेत्रों में बोरझार, गुवाहाटी विमानक्षेत्र(IATA: GAU) शिलांग से लगभग पर स्थित है। पर्यटन बहुत पहले विदेशी पर्यटकों को उन क्षेत्रों में प्रवेश पूर्व अनुमति लेनी होती थी, जिनसे मिल कर अब मेघालय बना है। हालांकि प्रतिबन्ध १९५५ में हटा लिए गए थे। राज्य के पर्वतों, पठारी ऊंची-नीची भूमि, कोहरे व धूंध से भरे इलाकों और नैसर्गिक दृश्यों आदि को देखते हुए मेघालय की तुलना स्कॉटलैण्ड से की जाती रही है और इसे पूर्व का स्कॉटलैण्ड (स्कॉटलैण्ड ऑफ़ द ईस्ट) भी कहा गया है। राज्य में देश के सबसे घने प्राथमिक वन उपस्थित हैं और इस कारण से यह भारत के सबसे महत्त्वपूर्भ पारिस्थित्तिक क्षेत्रों में से एक गिना जाता रहा है। मेघालयी उपोष्णकटिबंधीय वनों में पादप एवं जीव जगत की वृहत किस्में पायी जाती है। राज्य में २ राष्ट्रीय उद्यान एवं ३ वन्य जीवन अभयारण्य हैं।कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Elephanta_Falls.JPG|अंगूठाकार|ऍलीफ़ैण्ट फ़ाल्स प्रपातमेघालय बहुत से साहसिक पर्यटन जैसे पर्वतारोहण, रॉक क्लाइम्बिंग, ट्रेकिंग, हाइकिंग, गुफा भ्रमण एवं जल-क्रीड़ा के अवसर भी प्रदान करता है। राज्य में कई ट्रेकिंग मार्ग भी उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ में तो दुर्लभ जानवरों से भी सामना संभव होता है। उमियम झील में जल क्रीड़ा (वॉटर स्पोर्ट्स) परिसर हैं, जहां रो-बोट्स, पैडलबोट्स, सेलिंग नौकाएं, क्रूज-बोट, वॉटर स्कूटर और स्पीडबोट जैसी सुविधाएं हैं भी मिलती हैं। चेरापुंजी पूर्वोत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल में से एक है। यह राजधानी शिलांग से दक्षिण दिशा में स्थित है तथा एक मनोहारी प्राकृतिक अवलोकन वाले सड़क मार्ग द्वारा यह राजधानी शिलांग से जुड़ा हुआ है। चेरापुंजी के निकटस्थ ही जीवित जड़ सेतु पर्यटकों के लिये आकर्षण हैं। प्रसिद्ध दोहरा जड़ीय सेतु अन्य बहुत से इस प्रकार के सेतुओं सहित पर्यटकों को स्तंभित कर देने वाला आकर्षण है। इस प्रकार के बहुत से सेतु नोंगथिम्मई, माइन्टेंग एवं टाइनरोंग में मिल जाते हैं। जड़ सेतु मिलने वाले अन्य स्थानों में मावैलनोंग के पर्यटन ग्राम के निकट रिवाई ग्राम, पायनर्सिया और विशेषकर पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले के रांगथाइल्लाइंग एवं मावकिरनॉट गाँव हैं, जहाँ निकटवर्ती गांवों में बहुत से जड़ सेतु देखने को मिल जाते हैं।कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Umiam_Lake,_Shillong,_Meghalaya,_India.jpg|अंगूठाकार|पूर्वोत्तर की बड़ी झील, उमियम झील, शिलांग, मेघालय।जलप्रपात एवं नदियाँराज्य के प्रमुख एवं प्रसिद्ध जलप्रपातों में एलिफ़ैण्ट फ़ॉल्स, शाडथम प्रपात, वेइनिया प्रपात, बिशप प्रपात, नोहकालिकाई प्रपात, लांगशियांग प्रपात एवं स्वीट प्रपात, क्रिनोलाइन जलप्रपात, काइनरेम जलप्रपात, नोहस्गिथियांग जलप्रपात, बीदों जलप्रपात, मार्गरेट जलप्रपात और स्प्रैड इगल जलप्रपात कुछ हैं। इनके अलावा यहाँ विशेषकर मॉनसून के काल में ढेरों झरने मिलते हैं। मावसिनराम के निकट स्थित जकरेम के गर्म जल के झरने में औषधीय एवं चिकित्सकीय गुण पाये जाने की मान्यता है।पश्चिम खासी हिल्स जिले में स्थित नोंगखनम द्वीप मेघालय का सबसे बड़ा एवं एशिया का दूसरा सबसे बड़ा नदी द्वीप है। यह नोंगस्टोइन से १४ किमी॰ दूर स्थित है। यह द्वीप किन्शी नदी के फान्लियान्ग और नाम्लियान्ग नदियों में विभाजित हो जाने से बना है। रेतीली तटरेखा वाली फान्लियान्ग नदी बहुत ही सुन्दर झील बनाती है। इसके आगे आगे जाते हुए फान्लियान्ग नदी एक गहरी घाटी में गिरने से पूर्व एक ६० मी॰ ऊँचे जलप्रपात से गिरती है। यह प्रपात शादथम फ़ॉल्स नाम से प्रसिद्ध है। अंगूठाकार|पवित्र वन में पुरातन काल में धार्मिक आयोजन पूर्व तैयारी का स्थल। पवित्र वृक्ष मेघालय अपने पवित्र वृक्षों के लिये भी प्रसिद्ध है। ये वन, उद्यान या प्राकृतिक सम्पदा का छोटा या बड़ा भाग होते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग कई पीढियों से किसी स्थानीय देवता को समर्पित कर उसके प्रतीक के रूप में पूजते रहे हैं। ये प्राचीन काल से मान्यता रही है और इनके अनुसार इन वृक्षों में पवित्र आत्मा का निवास होता है। ऐसे स्थान भारत पर्यन्त मिल जाएंगे और इनका अनुरक्षण एवं देखभाल स्थानीय लोग करते हैं, तथा इनकी पत्तियों व अन्य भागों को या इनमें निवास करने वाले जीव जन्तुओं को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाना या तोड़ना निषेध होता है। मावफ्लांग सैकरेड फ़ॉरेस्ट (मावफलांग पवित्र वन) जिसे "लॉ लिंगडोह" भी कहा जाता है, मेघालय के सैकरेड फ़ॉरेस्ट्स में से एक है। यह शिलाँग से लगभग २५ कि॰मी॰ पर मावफलांग में स्थित है। यह एक नैसर्गिक दश्य वाला पवित्र स्थान है जहां पवित्र रुद्राक्ष भी मिल जाते हैं।List of Sacred Groves in Meghalaya Government of Meghalaya (2011) ग्रामीण क्षेत्र मेघालय का ग्रामीण जीवन एवं ग्राम पूर्वोत्तर की पर्वतीय जीवनशैली का दर्शन कराते हैं। ऐसा एक गांव भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित है, जिसे मावलिन्नॉंग कहते हैं। इसके बारे में पत्रिका डिस्कवर इण्डिया में विस्तृत लेख निकला था।Eco Destination , Department of Tourism, Government of Meghalaya यह गांव पर्यटन के लिये जाना जाता है और यहां एक जीवित जड़ सेतु, हाइकिंग ट्रेल और चट्टान संरचनाएं हैं। झील मेघालय में बहुत से प्राकृतिक एवं कृत्रिम झीलें व सरोवर हैं। गुवाहाटी-शिलाँग राजमार्ग पर स्थित उमियम झील (जिसे बड़ापानी झील भी कहते हैं: उम=बड़ा+यम =पानी) यहां आने वाले पर्यटकों के लिये एक बड़ा आकर्षण है। मेघालय में बहुत से उद्यान भी हैं, थांगखरान्ग पार्क, ईको पार्क, बॉटैनिकल गार्डन एवं लेडी हैदरी पार्क इनमें से कुछ हैं। शिलांग से ९६ कि॰मी॰ दूर स्थित डॉकी बांग्लादेश का द्वार है। यहां से मेघालय और बांग्लादेश सीमा के कुछ सर्वोच्च पर्वतों के नैसर्गिक दृश्य दिखाई देते हैं। बलफकरम राष्ट्रीय उद्यान अपने प्राचीन आवास और दृश्यों के साथ यहां का एक प्रमुख आकर्षण है।Choudhury, A.U. (2008) Balpakram –Meghalaya's heritage IBA. Mistnet 10 (4): 11–13 गारो पर्वत पर स्थित नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान में भरपूर वन्य जीवन मिलता है जिसकाअपना ही आनन्द है।चौधरी, ए.यू. (2010) नोकरेक नेशनल पार्क – an IBA in Meghalaya. Mistnet 11 (1): 7–8 गुफाएं मेघालय में अनुमानित ५०० प्राकृतिक चूनापत्थर एवं बलुआपत्थर की गुफाएं हैं, जो राज्य भर में फ़ैली हुई हैं। इनमें से उपमहाद्वीप की अधिकांश सबसे लम्बी और सबसे गहरी गुफाएं हैं। इनमें क्रेम लियाट प्रा सबसे लम्बी और सायन्रियांग पामियंग सबसे गहरी गुफा है। ये दोनों ही जयन्तिया पर्वत में स्थित है। बहुत से देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड एवं संयुक्त राज्य से ढेरों गुफा प्रेमी यहां दशकों से आते रहते हैं और इन गुफाओं में अन्वेषण करते रहते हैं। जीवित जड़ सेतु मेघालय अपने जीवित जड़ सेतुओं के लिये भी प्रसिद्ध है। ये एक प्रकार के निलंबन सेतु होते हैं जिनका निर्माण रबड़ के पेड़ की जड़ों एवं मूलों को आपस में गूंथ कर आमने सामने के नदी तटों के आरपार किया जाता है। ऐसे सेतु चेरापुंजी, नोंगतलांग, कुडेंग रिम एवं कुडेंग थिम्माई गांवों में देखने को मिल जाते हैं। इस प्रकार का एक दोहरा सेतु नोंग्रियाट ग्राम में मिलता है।कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Living_root_bridge_HS.jpg|अंगूठाकार|मेघालय के नोंग्रियाट में एक दोहरे तल वाला जीवित जड़ सेतु।|पाठ=मेघालय में अन्य पर्यटक आकर्षण इस प्रकार से हैं:जाकरेम: शिलाँग से ६४ कि॰मी॰ दूर गंधक मिश्रित गर्म जल के स्रोतों वाला स्वास्थ्य लाभाकारी एक रिज़ॉर्ट है। इसके जल में आयूष्य गुण बताये जाते हैं।रानीकोर: शिलाँग से १४० कि॰मी॰ दूर यह नैसर्गिक दृश्यों की भूमि है। रानीकोर मेघालय का मछली पकड़ने का प्रसिद्धतम स्थान है जहाँ कार्प एवं मीठे जल की अन्य मछलियां प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।डॉकी: शिलाँग से ९६ कि॰मी॰ दूर यह सीमावर्ती क्षेत्र है जहाम से बांग्लादेश अवलोकन किया जा सकता है। वसंत ऋतु में यहां की उम्नगोट नदी में रंगीन नाव उत्सव भी यहां का एक आकर्षण है। क्शाएद डैन थ्लेन प्रपात: यह सोहरा के निकट स्थित है। खासी भाषा में इसका शाब्दिक अर्थ है वह स्थान जहाँ एक कल्पित दैत्य को मार दिया गया था। इस थ्लेन नामक दैत्य को मारे जाने के कुल्हाड़ी के चिह्न आज भी जैसे के तैसे दिखाई देते हैं। डियेनजियेई शिखर: शिलाँग पठार के पश्चिम में स्थित डियेंगजियेई शिखर शिलाँग पीक से मात्र २०० मी॰ ही छोटा है। इस पर्वत के शिखर पर एक बड़ा प्याले के आकार का गड्ढा है जिसे एक विलुप्त प्रागैतिहासिक ज्वालामुखी का क्रेटर बताया जाता है। ड्वार्कसुइड: पथरीले व रेतीले तटों वाला एक चौड़ा सुन्दर सरोवर है जो उमरोई-भोरिम्बॉन्ग मार्ग पर चलने वाली जलधारा के निकट बना है। इसे ड्वार्कसुइड या डेविल्स डोरवे अर्थात् शैतान का द्वार भी कहा जाता है। कायलांग रॉक: मैरांग से ११ कि॰मी॰ पर स्थित लाखों वर्ष पुराना एक सीधा सपाट लाल पत्थर का शिखर है। इसकी ऊँचाई सागर सतह से ५४०० फ़ीट है। सैकरेड फ़ॉरेस्ट मावफ़लांग': शिलाँग से २५ कि॰मी॰ दूर स्थित मावफ़्लांग में पवित्रतम सैकरेड ग्रोव है। प्राचीन काल से संजोये व सुरक्षित रखे गये इस ग्रोव में पादप जगत की प्रचुर किस्में, शताब्दियों से जमी हुई धरण की मोटी पर्तें एवं वृक्षों पर अधिपादपों(एपिफ़ाइट्स) की भारी वृद्धि मिलती हैं। इन अधिपादपों में सूरण कुल, पाइपर्स, फ़र्न एवं ऑर्किड्स की किस्में मिलती हैं। प्रमुख मुद्दे राज्य के प्रमुख मुद्दों में बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों का प्रवेश, हिंसा की घटनाएं, राजनीतिक अस्थिरता, खेतों के लिये काट कर जलाने की प्रथा के चलते वनों की अवैध कटाई आते हैं। स्थानीय निवासी खासियों और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच झड़पों एवं हिंसा की अनेक वारदातें होती रहती हैं। अवैध आप्रवासन बांग्लादेश की सीमा से लगते हुए राज्यों में अवैध अप्रवासन एक प्रमुख मुद्दा बन गया है - पश्चिम में पश्चिम बंगाल, उत्तर में मेघालय और असम, पूर्व में त्रिपुरा, मणिपुर एवं मिज़ोरम। भारतीय अर्थ-व्यवस्था के उन्नत होने के कारण लाखों बांग्लादेशी यहां घुसपैठ करते रहे हैं।इन बांग्लादेशी प्रवासियों का यहां घुसपैठ करने का मुख्य उद्देश्य वहां की हिंसा, गरीबी, बेरोजगारी और साथ ही इस्लामिक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे धार्मिक अत्याचार से बचाव ही होता है। मेघालय में दर्जनों राजनीतिक एवं नागरिक स्मूहों व दलों की लम्बे समय से यह मांग रही है कि इस घुसपैठ पर रोक लगायी जाए या कम से कम इसे नियन्त्रित स्तर तक ही अनुमत किया जाए अन्यथा इससे इन राज्यों की अर्थ एवं कानून व्यवस्था पर बुरा प्रभाव व अवांछित भार पड़ता है।Palash Ghosh, India's 2014 Elections: Narendra Modi Says Some Illegal Immigrants From Bangladesh Are Better Than Others International Business Times, NY Times, (2014) बांग्लादेश और मेघालय की सीमा लगभग ४४० किलोमीटर लम्बी है जिसमें से ३५० कि॰मी॰ पर बाड़ लगी हुई है, किन्तु सीमा की लगातार अन्वरत गश्त संभव नहीं है अतः इसमें घुसपैठ की संभावनाएं हैं। इसे पूर्णतया बाड़ लगाने एवं प्रवेश को अनुमति या अनुज्ञा पत्र द्वारा नियन्त्रित करने के प्रयास जारी हैं।V Singh, MHA asks Meghalaya to speed up border fencing work Indian Express (April 16, 2014) तत्कालीन मुख्य मंत्री मुकुल संगमा ने अगस्त २०१२ में केन्द्र सरकार को पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हो रही अवैध घुसपैठ को नियन्त्रण से बाहर होने से पूर्व पर्याप्त प्रयास करने की मांग की थी। हिंसा वर्ष २००६ से २०१३ के अन्तराल में शून्य से २८ नागरिक प्रतिवर्ष मेघालय( या शून्य से १ व्यक्ति प्रति १ लाख व्यक्ति) में मारे गये थे, जिन्हें राज्य के प्राधिकारियों द्वारा आतंक-संबंधी साभिप्राय हिंसा ्में वर्गीकृत किया गया है।Meghalaya Violence Statistics, India Fatalities 1994-2014 SATP (2014) विश्व की साभिप्राय हिंसा के कारण होने वाली मत्यु की औसत वार्षिक दर हाल के वर्षों में ७.९ प्रति १ लाख व्यक्ति रही है।Global Burden of Armed Violence Chapter 2, Geneva Declaration, Switzerland (2011) आतंक-संबन्धी हत्याएं प्रायः जनजातीय समूहों में और बांग्लादेशी प्रवासियों का विरोध करते हुए होती रही हैं। राजनीतिक संकल्प और वार्ता के साथ-साथ, विभिन्न ईसाई संगठनों ने भी हिंसा को रोकने और समूहों के बीच चर्चा की प्रक्रिया में सहायक होने के लिए पहल की है।SNAITANG, R. (2009), Christianity and Change among the Hill Tribes of Northeast India, Christianity and Change in Northeast India (Editors: Subba et al), , Chapter 10कड़ी=https://en.wikipedia.org/wiki/File:Jhum_cultivation_in_Nokrek_Biosphere_Reserve_Meghalaya_India_Northeast_India_2004.jpg|अंगूठाकार|Jhum cultivation, or cut-and-burn shift farming, in Nokrek Biosphere Reserve of Meghalaya. राजनीतिक अस्थिरता राज्य की स्थापना के बाद से यहां २३ सरकारें बन चुकी हैं, जिनका औसत कार्यकाल १८ माह से कम ही है। मात्र ३ सरकारें ३ वर्ष से अधिक चली हैं। इस राजनीतिक अस्थिरता का दुष्प्रभाव राज्य की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ता रहा है। हालांकि हाल के वर्षों में राजनीतिक स्थिरता में वृद्धि दिखाई दे रही है और आशा है कि ये राज्य के लिये लाभदायक होगी। २००८ में चुनी गयी सरकार के ५ वर्ष पूरे होने पर अन्तिम विधान सभा २०१३ में चुनी गयी थी जिसका कार्यकाल प्रगति पर है। झूम कृषि मेघालय में झूम कृषि अर्थात् वृक्ष काटो एवं जलाओ और कृषि भूमि पाओ -- का अभ्यास पुरातन समय से चलता आ रहा है।SANKAR KUMAR ROY, Aspects of Neolithic Agriculture and Shifting Cultivation, Garo Hills, Meghalaya, Asian Perspectives, XXIV (2), 1981, pp 193-221 यह यहां की लोककथाओं के द्वारा सांस्कृतिक रूप से स्थानीय लोगों की कृषि शैली में बस चुका है। इस लोककथा के अनुसार वायु के देवता ने ओलावृष्टि एवं तूफ़ान के देवता के साथ मिलकर आकाशीय वृक्ष (देवताओं के वृक्ष) को झकझोड़कर हिला दिया जिससे उसके बहुत से बीज पृथ्वी पर आ गिरे और एक दो’ अमिक नामक पक्षी ने उन्हें खेतों में बो दिया। ये असल में धान के बीज थे। ईश्वर ने इस तरह से मानव को धान के बीज देकर इन्हें झूम कृषि के निर्देश दिये, साथ ही ये भी कहा कि प्रत्येक फसल पर अपनी उपज का एक भाग मुझे समर्पित किया करोगे। मेघालय के गारो पर्वतों की एक अनु लोककथा के अनुसार बोने-निरेपा-जाने-नितेपा नामक व्यक्ति ने मिसि-कोकडोक नामक एक शिला के निकट की भूमि को साफ़ करके वहां धान और बाजरे की खेती की और अच्छी उपज पायी। तब उसने यह तकनीक अन्य लोगों को भी बतायी, और वर्ष के प्रत्येक माह का नाम इस कृषि के एक चरण के नाम पर रख दिया, इससे स्थानीय लोगों को इसके नाम का अभ्यास सरल रूप से सुलभ हो जाये।Mazumdar, Culture Change in Two Garo Villages, Calcutta: Anthropological Survey of India (1978)आधुनिक काल में यह स्थानांतरण वाली कृषि परम्परा मेघालय की जैवविविधता के लिये बड़ा खतरा बन गयी है।Ramakrishnan, P. S. (1992), Shifting agriculture and sustainable development: an interdisciplinary study from north-eastern India, Parthenon Publishing Group, २००१ के एक उपग्रह चित्र के चित्र से ज्ञात होता है कि ये स्थानांतरण कृषि जारी है और सघन वनों के क्षेत्र, संरक्षित जीवमंडलों से भी इसके कारण छंटते जा रहे हैं। Roy, P. S., & Tomar, S. (2001), Landscape cover dynamics pattern in Meghalaya, International Journal of Remote Sensing, 22(18), pp 3813-3825 झूम कृषि न केवल प्राकृतिक जैवविविधता के लिये खतरा है, बल्कि ये कृषि का न्यून-उपज वाला हानिकारक तरीका है। मेघालय में अधिकांश जनसंख्या के कृषि पर आधारित होने के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ये माना जा रहा है कि ये यहां के लिये एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।Saha, R., Mishra, V. K., & Khan, S. K. (2011), Soil erodibility characteristics under modified land-use systems as against shifting cultivation in hilly ecosystems of Meghalaya India, Journal of Sustainable Forestry, 30(4), 301-312Pakrasi, K., Arya, V. S., & Sudhakar, S. (2014), Biodiversity hot-spot modeling and temporal analysis of Meghalaya using Remote sensing technique, International Journal of Environmental Sciences, Vol 4, Number 5, pp 772-785 स्थानांतरण कृषि केवल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में ही नहीं की जाती, वरन दक्षिण-पूर्व एशिया में भर में इसका चलन है।Spencer, J. E. (1966), Shifting cultivation in southeastern Asia (Vol. 19), University of California Press, मीडिया राज्य में कुछ प्रमुख मीडिया पत्र इस प्रकार से हैं:मेघालय टाइम्स: मेघालय टाइम्स अभी नया नया आरम्भ हुआ अंग्रेज़ी समाचार पत्र है। यह तेजी से बढ़ता हुआ पत्र है और इसकी लोकप्रियता राज्य भर में बहुत कम समय में ही फ़ैल गयी है।सालन्टेनी जानेरा: सालन्टेनी जानेरा राज्य का प्रथम गारो दैनिक समाचार पत्र है।शिलाँग समय: ्शिलाँग समय राज्य का प्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र है। शिलाँग टाइम्स: शिलाँग टाइम्स राज्य के सबसे पुराने अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में से एक है।द मेघालय गार्जियन: द मेघालय गार्जियन राज्य के सबसे पुराने समाचार पत्रों में से एक है। पिछले कई वर्षों में राज्य में बहुत से सामयिक, साप्ताहिक और दैनिक पत्र आरम्भ हुए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार से हैं: द तुरा टाइम्स: द तुरा टाइम्स तुरा से प्रकाशित होने वाला प्रथम अंग्रेज़ी दैनिक है। सालन्टिनी कु’रान्ग: सालन्टिनी कु’रान्ग तुरा टाइम्स का गारो संस्करण है। प्रिंगप्रांगिनी आस्की गारो भाषा का नवीनतम प्रकाशित समाचार पत्र है। यू नोंगसैन हिमा:यू नोंगसैन हिमा खासी भाषा का सबसे पुराना प्रकाशित पत्र है। इसकी स्थापना १९६० में हुई थी। वर्तमाण में यह राज्य का सर्वाधिक परिचालित दैनिक पत्र है। (एबीसी जुलाई - दिसम्बर २०१३) राज्य में प्रकाशित साप्ताहिक रोजगार समाचार पत्र: शिलाँग वीकली एक्स्प्रेस: साप्ताहिक समाचार पत्र जिसका आरम्भ २०१० में हुआ था। एक्लेक्टिक नॉर्थईस्ट'' इन्हें भी देखें पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन पूर्वोत्तर भारत पूर्वोत्तर भारतीय खाना सन्दर्भ Ya बाहरी कड़ियाँ सरकारी मेघालय सरकार आधिकारिक जालस्थल मेघालय पर्यटन विभाग: आधिकारिक जालस्थल सामान्य जानकारी मेघालय ब्रिट्टैनिका विश्वकोश में प्रविष्टि श्रेणी:मेघालय श्रेणी:भारत के राज्य
राजधानी
https://hi.wikipedia.org/wiki/राजधानी
thumb|upright=1.5| thumb|upright=1.5| राजधानी वह नगरपालिका होती है, जिसे किसी देश, प्रदेश, प्रान्त या अन्य प्रशासनिक ईकाई अथवा क्षेत्र में सरकार की गद्दी होने का प्राथमिक दर्जा हासिल होता है। राजधानी मिसाली तौर पर एक शहर होता है, जहाँ संबंधित सरकार के दफ़्तर और सम्मेलन -ठिकाने स्थित होते हैं और आम तौर पर अपने क़ानून या संविधान द्वारा निर्धारित होती है। परिभाषाएँ शब्द राजधानी संस्कृत से आया है। राजधानी आम तौर पर संघटक क्षेत्र का सब से बड़ा शहर होता है परन्तु लाज़िमी तौर पर नहीं। अनोखे राजधानी इंतज़ाम बहुत सारे सूबों की दो से ज़्यादा राजधानियाँ हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन की कोई राजधानी नहीं है। चिली: चाहे देश का राष्ट्रिय महा-सम्मेलन बालपारायसो में होता है परन्तु राजधानी सैन्टियागो है। चेक गणराज्य: प्राग एक ही संवैधानिक राजधानी है। ब्रनो में देश की तीनों इचाचासर्व-उच्च अदालतों स्थित हैं जो इसको चेक अदालती शाखा की यथार्थ राजधानी बनाते हैं। फ़िनलैंड: गर्मियाँ के दौरान पर राष्ट्रपति नानतली में कुलतारांता में निवास करता है और सरकार की सभी राष्ट्रपति बैठकों भी वहाँ ही होती हैं। फ़्रांस: फ़्रांसीसी संविधान किसी भी शहर को राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं देता। क़ानून मुताबिक़''Ordonnance n° 58-1100 du 17 novembre 1958 relative au fonctionnement des assemblées parlementaires'' article 1 पैरिस संसद के दोनों सदनों (राशटरी सभा और सैनेट) का ठिकाना है लेकिन उनके सांझे महांसंमेलन "वरसेये के शाही-महल में होते हैं। संकट की घड़ी में संवैधानिक ताकतों किसी ओर सहर में बदली जा सकतीं हैं जिससे संसदों के टिकाने राष्ट्रपती और मंत्री-मंडल वाले स्थानों पर ही रह सकें। सन्दर्भ *
गैंगटोक
https://hi.wikipedia.org/wiki/गैंगटोक
redirect गान्तोक
प्रभात खबर
https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रभात_खबर
प्रभात खबर झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में दैनिक रूप से प्रकाशित होने वाला एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है। यह अखबार भारत के कई राज्यों में प्रसारित होता है, जिनमें बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसकी स्थापना अगस्त 1984 में झारखंड की राजधानी रांची में हुई थी। अखबार सामाजिक मुद्दों की रिपोर्टिंग और चारा घोटाला जैसे घोटालों का खुलासा करने के लिए उल्लेखनीय है। अखबार ने 1992 में चारा घोटाले की रिपोर्ट करना शुरू किया। धमकियां मिलने के बावजूद, अखबार ने घोटाले पर 70 रिपोर्टें लिखीं और चार या पांच पत्रकारों ने कहानी की रिपोर्टिंग की। इतिहास 1984 में झारखंड की राजधानी रांची में गायन रंजन द्वारा प्रभात खबर का पहला संस्करण लॉन्च किया गया था। 1989 में वायर रोप बनाने वाली अग्रणी कंपनी उषा मार्टिन ग्रुप ने प्रभात खबर का अधिग्रहण किया। अखबार ने 1992 में चारा घोटाले की रिपोर्ट करना शुरू किया। धमकियां मिलने के बावजूद, अखबार ने घोटाले पर 70 रिपोर्टें लिखीं और चार या पांच पत्रकारों ने कहानी की रिपोर्टिंग की। 1995 में प्रभात खबर ने झारखंड के इस्पात शहर जमशेदपुर में लॉन्च के साथ अपनी महत्वाकांक्षी विस्तार योजना शुरू की। प्रभात खबर का 1996 में पटना, 1999 में धनबाद, 2000 में कोलकाता, 2004 में देवघर, 2006 में सिलीगुड़ी, 2010 में मुजफ्फरपुर, 2011 में भागलपुर और गया संस्करण लॉन्च किया गया। 2001 में प्रभात खबर ने गुणवत्तापूर्ण पत्रकारों को विकसित करने के लिए प्रभात खबर इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया स्टडीज नाम से मीडिया संस्थान शुरू किया। 2008 में प्रभात खबर ने रांची और जमशेदपुर में एफएम रेडियो चैनल 104.8 रेडियो धूम के लॉन्च के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया में प्रवेश किया। प्रभात खबर ने 2012 में ग्रामीण आबादी को लक्षित एक साप्ताहिक समाचार पत्रिका पंचायतनामा का शुभारंभ किया। प्रभात खबर रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, कोलकाता और सिलीगुड़ी से छपी और प्रसारित होती है। इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) 2017 के अनुसार, 13.49 मिलियन की पाठक संख्या के साथ, प्रभात खबर सभी भाषाओं में दसवां सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है, और भारत में छठा सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला हिंदी समाचार पत्र है। उपलब्धि +वर्षउपलब्धि1984प्रभात खबर के पहले संस्करण का शुभारंभ श्री गायन रंजन ने बिरसा मुंडा की धरती रांची में किया था।1989उषा मार्टिन ग्रुप द्वारा प्रभात खबर का अधिग्रहण - एक अग्रणी तार रस्सी बनाने वाली कंपनी ।1993प्रभात खबर ने अपनी दीपावली पत्रिका लॉन्च की ।1995प्रभात खबर ने अपनी महत्वाकांक्षी विस्तार योजना की शुरुआत झारखंड की इस्पात नगरी जमशेदपुर से की ।1996गौतम बुद्ध की धरती पटना, बिहार में प्रभात खबर का शुभारंभ ।1999काले हीरे की धरती धनबाद, झारखंड में प्रभात खबर का शुभारंभ ।2000प्रभात खबर ने पश्चिम बंगाल में अपना कोलकाता संस्करण लॉन्च किया, प्रभात खबर ने अपने पोर्टफोलियो में एक इंटरनेट प्रदाता सेवा भी जोड़ी । इस क्षेत्र में कलर प्रिंटिंग भी शुरू की, झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर 76 पृष्ठों का विशेष परिशिष्ट निकाला ।2001गुणवत्तापूर्ण पत्रकारों को विकसित करने के लिए प्रभात खबर इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया स्टडीज नामक मीडिया संस्थान का शुभारंभ किया।2004प्रभात खबर ने अपना देवघर संस्करण लॉन्च किया, जिससे यह झारखंड में 4 संस्करणों वाला एकमात्र अखबार बन गया ।2006पश्चिम बंगाल के मिनी मेट्रो सिटी सिलीगुड़ी में संस्करण का शुभारंभ । प्रभात खबर ने अपने सभी 6 संस्करणों के लिए ई-पेपर सेवा को जोड़ा, इंडिकस एनालिटिक्स, नई दिल्ली और रांची के सहयोग से दो पत्रिकाएं झारखंड डेवलपमेंट रिपोर्ट प्रकाशित कीं येलो पेज "मैं हूं रांची" ।2007प्रभात खबर ने मोबाइल सेवा प्रदाता को अपने पोर्टफोलियो में शामिल किया है, झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर 100 पेज का विशेष परिशिष्ट लायें । प्रकाशित जमशेदपुर येलो पेज "मैं हूं जमशेदपुर"।2008प्रभात खबर ने रांची और जमशेदपुर में एफएम रेडियो चैनल 104.8 रेडियो धूम के लॉन्च के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया में प्रवेश किया ।2009इस क्षेत्र के छात्रों के लिए "उच्च शिक्षा मार्गदर्शिका" पत्रिका लॉन्च की गई।2010बिहार में इसके समग्र 8वें और दूसरे संस्करण को मुजफ्फरपुर में लॉन्च किया गया । इंडिकस एनालिटिक्स, नई दिल्ली के साथ बिहार विकास रिपोर्ट लॉन्च की गई, झारखंड में पहली बार कवर मूल्य कम किया गया, रांची और जमशेदपुर संस्करणों में सभी पेजों का रंग मुद्रित किया गया, भारत के बाहर वार्षिक विपणन सेमिनार का आयोजन किया गया।2011बिहार में इसके 9वें और तीसरे संस्करण को भागलपुर में लॉन्च किया गया, बिहार में पहली बार कवर कीमत कम की गई, पहले दिन ही सभी पेजों का रंग प्रिंट किया गया, भागलपुर में लॉन्चिंग ।2011बिहार में इसका 10वां और चौथा संस्करण गया में लॉन्च किया गया ।2012पंचायतनामा नाम से साप्ताहिक पत्रिका लॉन्च की गई, जो ग्रामीण आबादी पर लक्षित एक साप्ताहिक समाचार पत्र है - झारखंड फरवरी 2012 और बिहार जुलाई 2012। बिभिन्न पत्रिकाएं उच्च शिक्षा गाइड :- 2009 में लॉन्च किया गया, एक वार्षिक अंक, जिसमें हाल ही में 10वीं और 12वीं पास करने वाले छात्रों के लिए करियर आधारित जानकारी शामिल है। मैं हूं रांची :- 2006 में लॉन्च किया गया, एक वार्षिक अंक जो झारखंड की राजधानी का संपूर्ण शहर गाइड है। मैं हूं जमशेदपुर :- 2007 में लॉन्च किया गया, एक वार्षिक अंक जो झारखंड के इस्पात शहर की एक संपूर्ण सिटी गाइड है। झारखंड विकास रिपोर्ट :- 2006 में लॉन्च की गई, झारखंड पर इंडिकस एनालिटिक्स द्वारा आयोजित एक वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट। बिहार विकास रिपोर्ट:- 2010 में लॉन्च किया गया,बिहार पर इंडिकस एनालिटिक्स द्वारा आयोजित एक वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट। पंचायतनामा :- 2012 में ग्रामीण पाठकों के लिए झारखंड और बिहार साप्ताहिक टैब्लॉयड से लॉन्च किया गया। हमारा विज़न और मिशन मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने और समाज को रहने के लिए बेहतर जगह बनाने के लिए देश में सबसे प्रभावशाली, सम्मानित और भरोसेमंद समाचार बिजनेस हाउस बनना। संपादकीय उत्कृष्टता और स्वतंत्रता के माध्यम से अभिनव मल्टीमीडिया समाधान प्रदान करके एक विश्व स्तरीय समाचार पत्र बनाना। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची । सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रभात खबर श्रेणी:हिन्दी भाषा के समाचार पत्र
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला
https://hi.wikipedia.org/wiki/राष्ट्रीय_धातुकर्म_प्रयोगशाला
राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की भारत में फैली ३८ प्रयोगशालाओं में से एक है। इस प्रयोगशाला की आधारशिला २१ नवम्बर १९४६ को भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा रखी गयी थी। प्रयोगशाला का उद्घाट्न २६ नवम्बर १९५० को जवाहर लाल नेहरु ने किया था। यह जमशेदपुर के बर्मामाइन्स क्षेत्र में स्थित है। राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला ने खनिज प्रसंस्करण, लोहा और इस्पात बनाने, लौह धातुओं और गैर-लौह धातुओं के निष्कर्षण (विशेष रूप से मैग्नीशियम) के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1970 के दशक की शुरुआत में CSIR-NML में एशिया की सबसे बड़ी विसर्पण-परीक्षण (क्रीप टेस्ट) सुविधा भी स्थापित की गई थी और आज भी यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रीप-परीक्षण प्रयोगशाला है। बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला - आधिकारिक जालस्थल श्रेणी:सरकारी संस्थान श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:झारखंड श्रेणी:विज्ञान श्रेणी:प्रयोगशाला
नेशनल मेटलर्जिकल लैब
https://hi.wikipedia.org/wiki/नेशनल_मेटलर्जिकल_लैब
REDIRECTराष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला
साक्ची
https://hi.wikipedia.org/wiki/साक्ची
अनुप्रेषित जमशेदपुर
हो भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/हो_भाषा
हो आस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार की मुंडा शाखा की एक भाषा है, जो भूमिज और मुण्डारी भाषा से संबंधित हैं। हो भाषा झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, असम, एवं उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्रों में लगभग १०,७७,००० हो (कोल) आदिवासी समुदाय द्वारा बोली जाती है। विशेषकर यह भाषा झारखण्ड के सिंहभूम इलाके में बोली जाती है । झारखंड में इस भाषा को द्वितीय राज्य भाषा के रूप में शामिल किया गया है। हो भाषा को लिखने के लिए वारंग क्षिति लिपि का उपयोग किया जाता है, जिसका आविष्कार ओत् गुरु कोल लको बोदरा द्वारा किया गया था ओट कोल लाको बोदरा खुद को कोल मानते थे इसीलिए उनके नाम के आगे कोल शब्द जुड़ा है। इसका प्रमाण आपको उनकी लिखी गई बहुत सी किताबो में मिल जायेगा। इसे लिखने के लिए देवनागरी, रोमन, उड़िया और तेलुगु लिपि का भी उपयोग किया जाता है। इन्हें भी देखें ह्वारङ क्षिति (हो भाषा की लिपि) हो (जनजाति) मुण्डा भाषाएँ ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ बाहरी कड़ियाँ हो-हिन्दी शब्दकोश सन्दर्भ श्रेणी:मुण्डा भाषाएँ श्रेणी:ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ श्रेणी:भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ
युरेनियम
https://hi.wikipedia.org/wiki/युरेनियम
पुनर्प्रेषित यूरेनियम
टाटा समूह
https://hi.wikipedia.org/wiki/टाटा_समूह
टाटा ग्रुप एक निजी व्यवसायिक समूह है जिसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। वर्तमान में इसके अध्यक्ष रतन टाटा हैं। टाटा ग्रुप के चेयरमेन रतन टाटा ने 28 दिसम्बर 2012 को सायरस मिस्त्री को टाटा समूह का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। रतन टाटा पिछले 50 सालों से टाटा समूह से जुड़े हैं वे 21 सालों तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे। रतन टाटा ने जे आर डी टाटा के बाद 1991 में कार्यभार संभाला। टाटा परिवार का एक सदस्य ही हमेशा टाटा समूह का अध्यक्ष रहा है। इसका कार्यक्षेत्र अनेक व्यवसायों व व्यवसाय से सम्बंधित सेवाओं के क्षेत्र में फैला हुआ है - जैसे: अभियांत्रिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, वाहन, रासायनिक उद्योग, ऊर्जा, सॉफ्टवेयर, होटल, इस्पात एवं उपभोक्ता सामग्री। नमक से एयरलाइन समूह टाटा ग्रुप की सफलता को इसके आंकडे बखूबी बयां करते हैं। 2005-06 में इसकी कुल आय $967229 मिलियन थी। ये समस्त भारत कि GDP के 2.8 % के बराबर है। 2004 के आंकड़ों के अनुसार टाटा ग्रुप में करीब 2 लाख 46 हज़ार लोग काम करते हैं। market capitalization का आंकड़ा $57.6 बिलियन को छूता है। टाटा समूह कि कुल 96 कम्पनियां 7 अलग अलग व्यवसायिक क्षेत्रों में सक्रिय हैं। इन 96 में से केवल 28 publicly listed कम्पनियाँ हैं। टाटा ग्रुप ६ महाद्वीपों के 40 से भी अधिक देशों में सक्रिय है। टाटा समूह दुनिया के 140 से भी अधिक देशों को उत्पाद व सेवाएँ निर्यात करता है। इसके करीब 65.8% भाग पर टाटा के Charitable Trust का मालिकाना हक है। टिस्को (TISCO), जिसे अब टाटा स्टील (Tata steel) के नाम से जाना जाता है, की स्थापना 1907 में भारत के पहले लोहा व इस्पात कारखाने के तौर पर हुई थी। इसकी स्थापना जमशेदपुर में हुई थी जिसे लोग टाटा नगर भी पुकारते हैं। इस्पात (steel) व लोहे का असल उत्पादन 1912 में शुरू हुआ। यह दुनिया में सबसे किफायती दरों पर इस्पात का निर्माण करता है। इसका मुख्य कारण है कि समूह की ही एक अन्य कंपनी इसे कच्चा माल, जैसे कोयला और लोहा आदि, उपलब्ध कराती है। 1910 में टाटा जलविद्युत शक्ति आपूर्ति कम्पनी (Tata Hydro-Electric Power Supply Company) की स्थापना हुई। 1917 में टाटा आईल मिल्स (Tata Oil Mill) की स्थापना के साथ ही समूह ने घरेलू वस्तुयों के क्षेत्र में कदम रखा और साबुन, कपडे धोने के साबुन, डिटर्जेंट्स (detergents), खाना पकाने के तेल आदि का निर्माण शुरू किया। 1932 में टाटा एयरलाइन्स (Tata Airlines) की शुरुआत हुई। टाटा केमिकल्स (Tata Chemicals) का आगमन 1939 में हुआ। टेल्को (TELCO), जिसे अब टाटा मोटर्स (TataMotors) के नाम से जाना जाता है, ने 1945 में रेल इंजनों और अन्य मशीनी उत्पादों का निर्माण शुरू किया। जनवरी 2007 का महीना टाटा ग्रुप के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया जाएगा। टाटा स्टील ने यूनाइटेड किंगडम (UK) में स्थित कोरस समूह (Corus Group) की सफल बोली लगा कर उसे हासिल किया। कोरस समूह दुनिया की सबसे बड़ी लोहा व इस्पात निर्माण कंपनी है। बोली के अप्रत्याशित 9 दौर चले जिसके अंत में टाटा ग्रुप ने कोरस का 100 प्रति शत हिस्सा 608 पाउंड प्रति शेयर (नकद) के हिसाब से कुल 12. 04 बिलियन डालर में खरीदने में सफलता पाई। यह किसी भी भारतीय कंपनी के द्वारा किया गया सबसे बड़ा अधिग्रहण है। टाटा पावर भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है। यह मुंबई एवं दिल्ली के कुछ हिस्सों को बिजली प्रदान करती है। टाटा केमिकल्स और टाटा पिगमेन्ट्स (Tata Pigments) का भी अपने अपने क्षेत्रों में काफी नाम है। सेवा क्षेत्र में भी टाटा ग्रुप की कई कम्पनियां होटल, बीमा व जीवन बीमा उद्योग में सक्रिय हैं। टाटा समूह प्रबंधन व आर्थिक सलाहकार सेवाओं में भी काफी सफल साबित हुआ है। शेयरों व निवेष की दुनिया में भी टाटा का खासा नाम है। जहाँ तक शिक्षा का सवाल है, तो इस के लिए तो केवल टाटा मैक्ग्रा (Tata Mcgraw) का नाम लेने मात्र से ही इस क्षेत्र में टाटा ग्रुप की सफलता को बयां किया जा सकता है। पर टाटा का शिक्षा से जुड़ाव केवल इस मशहूर प्रकाशन कंपनी तक ही सीमित नहीं है। अनेक सरकारी संस्थानों व कम्पनियों की शरुआत टाटा द्वारा ही की गयी, जैसे - भारतीय विज्ञाना संस्थान (Indian Institute of Science), टाटा मूलभूत अनुसंधान केन्द्र (Tata Institute of Fundamental Research), टाटा समाज विज्ञान संस्थान (Tata Institute of Social Sciences) और टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (Tata Energy Research Institute)। यहाँ तक की भारत की आधिकारिक विमान सेवा एयर इन्डिया का भी जन्म टाटा एयरलाइन्स के रूप में हुआ था। इसके अलावा टाटा मैनेजमेन्ट ट्रेनिंग सेन्टर, पुणे और नेशनल सेन्टर फार पर्फार्मिंग आर्ट्स भी ऐसे संस्थान हैं जिनका श्रेय टाटा ग्रुप को दिया जाना चाहिए। टाटा का नाम चाय में टाटा चाय (Tata Tea) और घड़ियों में टाइटन (Titan) से जुड़ा है। Tata Trent (Westside) और टाटा स्काय (Tata Sky) भी अपने अपने क्षेत्रों के ऐसे नाम हैं जो टाटा समूह का ही हिस्सा हैं। सूचना व संचार के क्षेत्र में भी टाटा का नाम INCAT, Nelco, Nelito Systems, TCS और Tata Elxsi से जुड़ा है। इसके अलावा साफ्टवेयर बनाने वाली भी कम्पनियां हैं जो टाटा का हिस्सा हैं- जैसे - टाटा इंटरैक्टिव सिस्टम्स (Tata Interactive Systems), टाटा इन्फोटेक (Tata Infotech), टाटा टटेक्नालोजीज लि (Tata Technologies Ltd), टाटा टेलीसर्विसेस, टाटानेट (Tatanet) आदि। टाटा ने 2005 में बरमूडा से संचालित कनेडियन कंपनी टेलीग्लोब (Teleglobe) से भारतीय दूरसंचार क्षेत्र की विशाल कंपनी विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) को हासिल किया। टाटा ग्रुप का उद्देश्य समझदारी, जिम्मेदारी, एकता और बेहतरीन काम से समाज में जीवन के स्तर को उंचा उठाना है। टाटा समूह (Tata Group) के नाम से जाने जाने वाले इस परिवार का हर सदस्य इन मूल्यों का अनुसरण करता है। भारत के शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में टाटा का योगदान अति महत्वपूर्ण है। इसके बारे में विस्तार से लिखा जा चुका है और लगभग हर भारतीय इस बात का सम्मान करता है। टाटा का नीले रंग का चिन्ह (Logo) निरंतर प्रवाह की और तो इशारा करता ही है, यह कल्प-तरु या बोधि वृक्ष (Tree of Knowledge) का भी प्रतीक है। इसे एक ऐसा वृक्ष भी माना जा सकता है जिसके नीचे हर कोई शरण पा सकता है, सकून पा सकता है। टाटा परिवार का विदेशों में प्रसार right|thumb|300px|टाटा ग्रुप के दो ट्रक मार्च २००८ टाटा मोटर्स ने फोर्ड से जैगुआर और लैंड रोवर को ख़रीदा। जनवरी २००७ टाटा स्टील ने कोरस स्टील को ख़रीदा। जून २००६ अमरीकी कंपनी ८ ओक्लॉक कॉफी कंपनी का क़रीब १००० करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया। अगस्त २००६ अमरीकी कंपनी ग्लेसॉ (उर्जा कंपनी) के ३० प्रतिशत शेयर खरीदे जुलाई २००५ टेलीग्लोब इंटरनेशनल को २३.९ करोड़ डॉलर में अधिग्रहित किया। अक्टूबर २००५ टाटा टी ने तीन करोड़ २० लाख डॉलर में गुड अर्थ क्राप का अधिग्रहण किया। अक्टूबर २००५ ब्रिटेन के आईएनसीएटी इंटरनेशनल को ४११ करोड़ रुपए में खरीदा। अक्टूबर २००५ सिडनी स्थित कंपनी एफएनएस को अधिग्रहित किया। नवंबर २००५ बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनी कोमीकॉर्न को क़रीब १०८ करोड़ में खरीदा। दिसम्बर २००५ थाईलैंड की मिलेनियम स्टील का अधिग्रहण १८०० करोड़ रुपए में किया। दिसम्बर २००५ ब्रिटेन की ब्रूनर मोंड ग्रुप के ६३.५ प्रतिशत शेयर ५०८ करोड़ रुपए में लिए। मार्च २००४ कोरियाई कंपनी देवू कमर्शियल वेहिकल्स का ४५९ करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया। अगस्त २००४ सिंगापुर की नैटस्टील को १३०० करोड़ रुपए में खरीदा। फरवरी २०००''' १८७० करोड़ रुपए में ब्रिटेन की टेटली टी को खरीदा इतिहास टाटा ग्रुप एक भारतीय बहुराष्ट्रीय संगठन होल्डिंग कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में है। यह जमशेदजी टाटा द्वारा 1868 में स्थापित किया गया था और कई वैश्विक कंपनियों को खरीदने के बाद अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई थी। यह भारत का सबसे बड़ा समूह है 2015-2016 में, टाटा कंपनियों का राजस्व 103.51 अरब डॉलर था। [3] ये कंपनियां 660,000 लोगों को सामूहिक रूप से रोजगार देती हैं। [3] प्रत्येक टाटा कंपनी या उद्यम अपने स्वयं के बोर्ड निदेशक और शेयरधारकों के मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से संचालित होता है मार्च 2016 तक लगभग 116 अरब डॉलर के संयुक्त बाजार पूंजीकरण के साथ 30 सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध टाटा उद्यम हैं। [3] टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर, टाटा केमिकल्स, टाटा ग्लोबल बेवरिजेज, टाटा टेलीसर्विसेज, टाइटन, टाटा कम्युनिकेशंस और ताज ग्रुप शामिल हैं। टाटा ग्रुप ने 2.20 बिलियन (5 करोड़ डॉलर) का दान किया बोस्टन, मैसाचुसेट्स में संस्थान के परिसर में शैक्षिक और आवासीय भवन बनाने के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एचबीएस) नई इमारत को टाटा हॉल कहा जाता है और इसका उपयोग संस्थान के कार्यकारी शिक्षा कार्यक्रमों के लिए किया जाता है। [15] यह राशि अंतरराष्ट्रीय दाता से हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को सबसे बड़ी दी गई राशि है। रतन टाटा- रतन टाटा, टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष [16] एक टाटा प्रोजेक्ट ने कॉम्पैक्ट, इन-होम वाटर-शुिफिकेशन डिवाइस विकसित करने में टाटा समूह की कंपनियों (टीसीएस, टाइटन इंडस्ट्रीज और टाटा केमिकल्स) को एक साथ लाया। इसे टाटा स्काच कहते हैं, जिसका अर्थ है "हिंदी में स्वच्छ", और 1000 रुपये से कम (यूएस $ 21) का खर्च आएगा। हिंद महासागर में 2004 के सुनामी से उत्पन्न विचार, जो बिना स्वच्छ पेयजल के हजारों लोगों को छोड़ देता है इस उपकरण में फिल्टर हैं, जो पांच साल के परिवार के लिए लगभग एक वर्ष तक रहता है। यह उन लोगों के लिए एक कम लागत वाले उत्पाद उपलब्ध है जिनके पास अपने घरों में सुरक्षित पेयजल तक पहुंच नहीं है। [17] इस डिवाइस का लाभ यह है कि इसे बिजली के उपयोग की आवश्यकता नहीं है। [18] टीसीएस ने भी एक अभिनव सॉफ्टवेयर पैकेज का डिज़ाइन किया और दान किया, जो कि अशिक्षित वयस्कों को सिखाने का दावा करता है कि 40 घंटों में कैसे पढ़ा जाए। टीसीएस के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के वैश्विक प्रमुख पंकज बलिगा ने कहा, "जो लोग हमारे साक्षरता कार्यक्रम के माध्यम से रहे हैं, वे सभी स्कूल में हैं।" [17] 1 9 12 में टाटा समूह ने कार्यस्थल में शामिल करने के लिए सामुदायिक परोपकार के अपने सीईओ की अवधारणा का विस्तार किया उन्होंने दुनिया में लगभग किसी भी अन्य कंपनी से पहले, आठ घंटे का कार्यदिवस लगाया। 1 9 17 में, उन्होंने टाटा कर्मचारियों के लिए एक चिकित्सा-सेवा नीति की सिफारिश की। आधुनिक पेंशन प्रणाली, श्रमिक मुआवजा, मातृत्व लाभ, और लाभ-साझाकरण योजनाओं को व्यवस्थित करने के लिए कंपनी दुनिया भर में पहली बार थी। [17] टाटा समूह के धर्मार्थ ट्रस्ट विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं को निधि देते हैं, उदाहरण के लिए, टाटा स्काच और टीसीएस परियोजना। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के रूप में ऐसे पोषित संस्थानों की स्थापना की और अभी भी समर्थन किया। प्रत्येक टाटा समूह की कंपनी अपने ऑपरेटिंग आय से 4 प्रतिशत से ज्यादा ट्रस्टों को चैनल देती है, और टाटा परिवार के हर पीढ़ी ने अपने लाभ का बड़ा हिस्सा उन्हें छोड़ दिया है। [17] मुंबई के हमलों के बाद, पुनर्निर्माण के लिए होटल बंद होने के बावजूद हमला हुआ ताज होटल कर्मचारियों के वेतन का भुगतान किया गया। लगभग 1600 कर्मचारियों को कर्मचारी, आउटरीच केन्द्रों के माध्यम से भोजन, पानी, स्वच्छता और प्राथमिक चिकित्सा प्रदान की गई। रतन टाटा व्यक्तिगत रूप से प्रभावित सभी कर्मचारियों के परिवारों का दौरा किया। कर्मचारियों के रिश्तेदारों को बाहर के क्षेत्रों से मुंबई भेजा गया था और सभी को तीन हफ्तों तक इंतजाम किया गया था। टाटा ने रेलवे कर्मचारियों, पुलिस कर्मचारी और पैदल चलने वालों के लिए मुआवजा भी शामिल किया। हमले के बाद बाजार विक्रेताओं और दुकान के मालिकों को देखभाल और सहायता दी गई थी टाटा समूह के सोशल साइंस के साथ एक मनश्चिकित्सीय संस्था की स्थापना की गई थी, जो उन लोगों से परामर्श करने की जरूरत थी जो मददगार थे और मदद की ज़रूरत थी। टाटा ने आतंकवादी हमलों के पीड़ितों के 46 बच्चों की शिक्षा भी दी। [1 9] [20] 2013 में, टाटा रिलीफ कमेटी और सर रतन टाटा ट्रस्ट के सहयोगी संगठन, हिमोत्तोटन सोसायटी के माध्यम से, राज्य के तीन जिलों में प्रभावित स्थानीय समुदायों को राहत देने के लिए उत्तराखंड सरकार के करीबी सहयोग में काम किया। राहत गतिविधियों, जिसमें भोजन और घरेलू सामग्री का प्रावधान शामिल था, 65 से अधिक गांवों और 3,000 परिवारों को शामिल किया गया था। राहत के पहले चरण में समूह 100 से अधिक गांवों तक पहुंचने की उम्मीद कर रहा है। टाटा समूह प्रभावित समुदायों और क्षेत्रों के आर्थिक, पारिस्थितिकी और संसाधनों की स्थिरता के लिए दीर्घकालिक उपायों को भी लागू करने की योजना बना रहा है। यह योजना टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस), मुंबई में स्थित स्थानीय संगठनों और समुदायों के सहयोग से प्रभावित क्षेत्रों के सर्वेक्षणों पर आधारित होगी। [21] [22] 2017 में, टाटा फुटबॉल अकादमी ने फुटबॉल क्लब बनाने की बोली जीती है इन्हें भी देखें जमशेदजी टाटा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज टाटानगर टाटा मोटर्स सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ टाटा : एक कॉरपोरेट ब्राण्ड का विकास टाटा समूह की कम्पनियाँ टाटा समूह के बारे में एशिया की दस प्रमुख कंपनियों में टाटा समूह Fortune Magazine 2002 profile Jamsetji Tata A section of the Tata family Tree Information about holding by Pallonji in Tata sons PUCL Report on Kalinganagar भारतीयों के जीवन में रचा बसा टाटा श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:उद्योग श्रेणी:टाटा समूह श्रेणी:व्यापार श्रेणी:भारतीय उद्यमी समुह
पुणे
https://hi.wikipedia.org/wiki/पुणे
पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।. यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मुठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। )अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आन्तरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आईबीएम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेन्द्र के रूप मे विकसित हुआ। नाम पुणे यह नाम 'पुण्यनगरी' नाम से आया समझा जाता है। यह शहर ई.स. 8 के शतक मे 'पुन्नक' (या 'पुण्यक') नाम से जाना जाता था, ऐसा सन्दर्भ मिलता है। ई.स. 11 के शतक मे 'कसबे पुणे' या 'पुनवडी' नाम से जाना जाने लगा। मराठा साम्राज्य के काल खण्ड मे शहर का नाम 'पुणे' मे रूप मे उपयोग मे लाया जाने लगा। ब्रिटिश ने उसे 'पूना' कह कर सम्बोधित करने की शुरूवात की। अब यह पुणे, इस आधिकारिक नाम से जाना जाता है। इतिहास आठवी शताब्दी मे पुणे को "पुन्नक " नाम से जाना जाता था। शहर का सबसे पुराना वर्णन ई.स. 758 का है, जब उस काल के राष्ट्रकूट राज मे इसका उल्लेख मिलता है। मध्ययुग काल का एक प्रमाण जंगली महाराज मार्ग पर पाई जाने वाली पातालेश्वर गुफा है, जो आठ्वी सदी की मानी जाती है। 17वीं शताब्दी मे यह शहर निजामशाही, आदिलशाही, मुगल ऐसे विभिन्न राजवंशो का अंग रहा। सतरहवी शताब्दी में शहाजीराजे भोसले को निजामशाहा ने पुणे की जमीनदारी दी थी। इस जमींदारी मे उनकी पत्नी जिजाबाई ने ई.स. 1627 में शिवनेरी किले पर छत्रपति शिवाजीराजे भोसले को जन्म दिया। शिवाजी महाराज ने अपने साथियों के साथ पुणे परिसर में मराठा साम्राज्य की स्थापना की। इस काल मे पुणे में शिवाजी महाराज का वर्चस्व था। आगे पेशवा के काल मे ई.स. 1749 सातारा को छत्रपति की गद्दी और राजधानी बना कर पुणे को मराठा साम्राज्य की 'प्रशासकीय राजधानी' बना दी गई। पेशवा के काल मे पुणे की काफी तरक्की हुई। ई.स. 1818 तक पुणे मे मराठों का राज्य था। मराठा साम्राज्य पुणे छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन व मराठा साम्राज्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग है। ई.स. 1635-36 के दरमयान जब जिजाबाई व शिवाजी महाराज पुणे आवास के लिए आए, तबसे पुणे के इतिहास में एक नए पर्व का जन्म हुआ। शिवाजी महाराज व जिजामाता पुणे में लाल महल मे रहते थे। पुणे के ग्रामदेवता- कसबा गणपती की स्थापना जिजाबाई ने की थी। 17वीं शतब्दी के प्रारम्भ में, छत्रपती शाहू के प्रधानमन्त्री, थोरले बाजीराव पेशवे को पुणे को अपना स्थाई आवास बनाना था। छत्रपति शाह महाराज ने इसकी अनुमति दी व पेशवा ने मुठा नदी के किनारे शनिवार वाड़ा बनाया। खरडा इस ऐतिहासिक किले पर मराठों एवं निज़ाम के बीच ई.स. 1795 के बीच युध्द हुआ। ई.स. 1817 को पुणे के पास खडकी ब्रिटिश व मराठों में युध्द हुआ। मराठो को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा व ब्रिटिश ने पुणे को अपने कबजे में कर लिया। ब्रिटिश ने पुणे के महत्व को समझते हुए शहर के पूर्व मे खडकी कँटोन्मेंट (लष्कर छावनी) की स्थापना की। ई.स. 1858 में पुणे महानगरपालिका की स्थापना हुई। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुणे मे अनेक नामांकित शिक्षण संस्थाओ की स्थापना हुई। स्वातन्त्रा संग्राम भारतीय स्वातन्त्रा संग्राम में पुणे के नेताओं और समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा ज्योतिबा फुले और सावरकर जैसे नेताओं के कारण पुणे राष्ट्र के नक्शे पर अपने महत्व को दर्शाता रहा। महादेव गोविन्द रानडे, रा.ग. भाण्डारकर, विठ्ठल रामजी शिन्दे, गोपाल कृष्ण गोखले, लोखण्डे जैसे समाजसुधारक व राष्ट्रीय ख्याती के नेता पुणे से थे। भूगोल पुणे का स्थान 18°31'22.45" उत्तर अक्षांश, 73° 52' 32.69 पूर्व रेखांश है। पुणे का मध्यबिन्दु (Zero milestone) पुणे जी.पी.ओ पोस्ट ऑफिस के बाहर है। जी.पी.ओ. पुणे सह्याद्रि पर्वत के पूर्व और समुद्रतल से 560 मी (1,837 फूट) की ऊचाँई पर है। भीमा नदीकी उपनदियाँ मुला व मुठा के संगम पर यह शहर बसा है। पवना व इन्द्रायणी ये नदियाँ पुणे शहर के उत्तर-पश्चिम दिशा मे बहती है। शहर का सर्वोच्च बिन्दु वेताल टेकडी (समुद्रतल से 800 मी) है और शहर के पास का सिंहगड किले की ऊचाँई 1300 मी. है। पुणे शहर कोयना भूकम्प क्षेत्र मे आता है जो पुणे शहर से 100 कि॰मी॰ दक्षिण दिशा मे है। पुणे में मध्यम व छोटे भूकम्प आए है। कात्रज, में 17 मई, 2004 को 3.2 रि. स्केल का भूकंप आया था। पेठ पुणे शहर के पूर्व में नदी किनारे पेठ के अनुसार बढता गया, जो नए उपनगर है और जुडते हुए शहर का विस्तार करते चले गए है। पेठ के नाम सप्ताह के दिनो के नाम और ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम पर रखे गए। पुणे के पेठ के नाम इस प्रकार हैं: पुणे ये १७ पेठ का शहर है। कसबा पेठ, रविवार पेठ, सोमवार पेठ, मंगलवार पेठ, बुधवार पेठ, गुरुवार पेठ, शुक्रवार पेठ, शनिवार पेठ, गंज पेठ (महात्मा फुले पेठ), सदाशिव पेठ, नवी (सदाशिव) पेठ, नारायण पेठ, भवानी पेठ, नाना पेठ, रास्ता पेठ, गणेश पेठ, घोरपडे पेठ। वातावरण पुणे शहर मे गर्मी, (मौनसून) वर्षा व शीत ऋतु होती है। मार्च से मई (तापमान 25°- 29° से.) सबसे गर्म महीने हैं। मई महीने में बारिश शुरु होती है। जून महीने मे अरब सागर से मानसून की हवाएँ शुरू होती है। पुणे में वार्षिक 722 मि.मी. बारिश होती है। जुलाई महिने में सबसे ज्यादा बारिश होती है। बारिश मे तापमान 20°- 28° से. होता है। मानसून के बाद अक्तूबर महीने मे दिन मे तापमान बढ़ता है मगर रात को ठंढ़ होती है। सर्दी नवंबर से फरवरी महीनों मे रहती है। इस समय पुणे भेट करने के लिए सर्वोत्तम समय है। इस समय दिन का तापमान 29°से तो रात्रि का तापमान 10°से नीचे होता है। दिसंबर व जनवरी महीनों में तापमान 5-6°से तक नीचे जाता है। पुणे का अधिकतम तापमान 43.3°से, 20 अप्रैल, 1987/7 मई, 1889 को और (1781-1940 के बीच के वर्षो मे) न्यूनतम तापमान 1.7°से 17 जनवरी 1935 को दर्ज किया गया। जनवरी 1991 मे पुणे का तापमान 2.8°से था। जैवविविधता पुणे शहर के डाक कार्यालय से 25 कि॰मी॰ दूर त्रिज्या के परिसर मे साधारणतः 1,000 पुष्प-वनस्पति की प्रजातियाँ, १०४ फुलपाखर की प्रजातियाँ, 350 पक्षियो की प्रजातियाँ और 64 स्तनधारी प्राणियों की प्रजातियाँ पाई गई है। अर्थव्यवस्था पुणे एक महत्वपुर्ण औद्योगिक केंद्र है। महाराष्ट्र राज्य मे मुंबई महानगर के बाद पुणे ही सर्वाधिक औद्योगिक शहर है। विश्व मे सर्वाधिक दुपहिए बनाने वाली कंपनी बजाज ऑटो पुणे मे है। भारत मे सर्वाधिक प्रवासी वाहन और औद्योगिक वाहन बनाने वाली कंपनी टाटा मोटर्स, कायनेटिक, डाइमलर-क्रायस्लर (मर्सिडिस-बेंज), फोर्स मोटर्स (बजाज टेंपो) जैसे उद्योग पुणे मे स्थित है। पुणे के अभियांत्रिकी उद्योग - भारत फोर्ज (विश्व की दुसरी सबसे बडी फोर्जिंग कंपनी), कमिन्स इंजिन्स, अल्फा लव्हाल, सँडविक एशिया, थायसन ग्रुप (बकाऊ वूल्फ),केएसबी पंप, फिनोलेक्स, ग्रीव्हज् इंडिया, फोर्ब्स मार्शल, थर्मेक्स इत्यादी। विद्युत व गृहपयोगी वस्तू निर्माता व्हर्लपूल और एल.जी. के उत्पादन कारखाने, फ्रिटो-लेज, कोका-कोला के अन्न प्रक्रिया उद्योग पुणे मे स्थित है। अनेक मध्यम व छोटे उद्योग पुणे मे है। अन्तरराष्ट्रीय हवाईमार्ग से पुणे को जोडने के बाद से जिले मे अनेक उद्योग निर्यात करने लगे है। पुणे मे सूचना प्रौद्योगिकी के प्रतिष्ठान भी काफी है। 2022 तक, पुणे में आईटी क्षेत्र लगभग 4-5 लाख लोगों को रोजगार देता है। हिंजवडी स्थित राजीव गांधी आय.टी पार्क, मगरपट्टा सायबरसिटी, तलवडे एम.आय.डी.सी. सॉफ्टवेर पार्क, मॅरिसॉफ्ट आय.टी. पार्क (कल्याणीनगर), आय.सी.सी. इत्यादी आय.टी पार्क्स मे आय.टी उद्योग भरपूर चालू है। महत्वपूर्ण भारतीय सॉफ्टवेर कंपनियाँ - इन्फोसिस, टाटा, फ्ल्युएंट, क्सांसा, टी.सी.एस., टेक महिंद्रा, विप्रो, पटनी, सत्यम, सायबेज, के.पी.आय.टी. कमिन्स, दिशा, पर्सिस्टंट सिस्टम्स, जियोमेट्रिक सॉफ्टवेयर, नीलसॉफ्ट व कॅनबे पुणे मे है। महत्वपूर्ण बहुराष्ट्रीय सॉफ्टवेर कंपनियाँ -बी.एम.सी. सॉफ्टवेयर, एनव्हिडिया ग्राफिक्स, एच.एस.बी.सी. ग्लोबल टेक्नोलॉजिस, आय.बी.एम., रेड हॆट, सिमेन्स, ई.डी.एस., युजीएस, आयफ्लेक्स, कॉग्नीझंट, सिमांटेक, सनगार्ड, वर्संट, झेन्सार टेक्नालॉजीस, टी-सिस्टम और एसएएस, आयपीड्रम। कई कंपनियों ने युवा पेशेवरों के उच्च घनत्व, सौहार्दपूर्ण मौसम और मुंबई में इसकी निकटता के कारण पुणे में अपने कार्यालय स्थापित किए हैं: इंफोसिस टीसीएस टेक महिंद्रा विप्रो Amdocs एक्सेंचर एटोस सिंटेल कैपजेमिनी iNautix / BNY मेलन ज़ेनसर टेक Synechron आईबीएम सिमेंटेक एल एंड टी इन्फोटेक साइबेज सॉफ्टवेयर पीटीसी आईटी कंपनी प्यून टीसीएस इन्फोसिस भारत की सबसे बड़ी आईटी फर्मों में से एक है और कई लोगों द्वारा इसे पहली कंपनी माना जाता है जिसने देश में प्रौद्योगिकी / आईटी क्रांति को गति दी। इन्फोसिस के पास 10.93 बिलियन डॉलर का राजस्व है और भारत और दुनिया भर में 200,000 से अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करता है। इन्फोसिस के 89% कर्मचारी भारत से बाहर हैं, जिनमें से 79% सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं। पुणे में इन्फोसिस का मुख्य कार्यालय राजीव गांधी इन्फोटेक पार्क में स्थित है और यह पुणे के हिंजेवाड़ी में सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है। प्रशासन नागरिक प्रशासन thumb|पीएमसी बिल्डिंग पुणे शहर की व्यवस्था पुणे महानगरपालिका करती है। महानगरपालिका का कार्य नागरिक प्रशासन व मूलभूत सेवा-सुविधा प्रदान करना है। प्रशासकीय प्रमुख के कार्यकारी अधिकार महाराष्ट्र सरकार द्वारा नांमांकित आय. ए. एस्‌. अधिकारी दर्जा के महापालिका आयुक्त के पास होता है। महानगरपालिका मतदान द्वारा चुनी गए नगरसेवक बनाते है। नगरसेवकों का नेतृत्व महापौर के पास होता है। महापौर केवल एक नाममात्र का पद है, इस पद का अधिकार कम ही रहता है। पुणे में 48 महापालिका प्रभाग के विभाग है, प्रत्येक विभाग के कामकाज सहायक आयुक्त देखते है। राज्य के सभी छोटे-बडे राजकीय पक्ष अपने उम्मीदवारो को निर्वाचित पद के लिए नामांकित करते है। जिला प्रशासन पुणे शहर पुणे जिले का मुख्यालय भी है। जिले का प्रमुख जिलाधिकारी होता है व उसका काम सातबारा, जमीन जायदाद के नामकरण का रखरखाव, राज्य सरकार के लिए सारावसूली, करवसुली व चुनावो की व्यवस्था करना होता है। महानगर पुलिस तंत्र पुणे पुलिस का प्रमुख पोलिस आयुक्त होता है; जो राज्य के गृह मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया गया एक आय. पी. एस्‌. अधिकारी होता है। पुणे पुलिस व्यवस्था महाराष्ट्र राज्य के गृहमंत्रालय के अंतर्गत आती है। यातायात व्यवस्था 180px|left|thumbnail|पुणे का एक मार्ग पुणे शहर भारत के अन्य महत्वपूर्ण शहरो से सड़्क, रेल्वे व हवाईमार्ग से जुडा हुआ है। पुणे का विमानतल से पहले केवल देश के अन्य शहरो के लिए उडाने थी, मगर सिंगापूर व दुबई के लिए उडाने आने के बाद इसे अन्तरराष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ है। नया ग्रीनफिल्ड पुणे अन्तरराष्ट्रीय विमानतल प्रकल्प महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू करने पर यह चाकण व राजगुरुनगर गाँवो के बीच चांदूस व शिरोली के पास (पुणे से ४० कि॰मी॰) होने की संभावना है। इस परियोजना की जिम्मेदारी महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल को सौपी गई है। शहर मे पुणे व शिवाजीनगर यह दो महत्वपूर्ण रेल्वे स्थानक है। पुणे व लोणावला के बीच उपनगरी रेल है जिससे पिंपरी, खडकी व चिंचवड यह उपनगर शहर से जुड़्ते है। पुणे की उपनगरी रेल लोणावला तक और मुंबई की कर्जत तक चलती है। रेल्वे प्रशासन लोणावला व कर्जत/खोपोली शहर को जोडने की योजना बना रहा है। जिससे पुणे-मुंबई के दरम्यान आने वाले सभी स्थानो को एक्साथ जोडा जाएगा। कर्जत-पनवेल रेलवे बनने के बाद पुणे-मुंबई शहरो के बीच का अंतर 29 कि॰मी॰ से कम हो जाएगा। पुणे व मुंबई के बीच मुंबई-पुणे द्रुतगती महामार्ग बनाया गया है। जिससे दोनो शहरो के दरमयान केवल तीन घंटे का अंतर रह गया है। शासकीय व निजी बससेवा पुणे को मुंबई, हैदराबाद, नागपुर व बंगलूरू शहरो से जोड़्ती है। महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल (एस.टी) की बससेवा पुणे को महाराष्ट्र के ग्रामीण भागो से जोडती है। पुणे शहर 2010 तक महत्वपूर्ण आई.टी केंद्र बनने के मार्ग पर है। पुणे की चक्रमाती बढत के साथ यहाँ वाहनो की संख्या मे भी काफी बढत हुई है। 2005 मे पुणे मे 146 वर्ग कि.मी क्षेत्रफल मे 2,00,000 कार (मोटारगाडिया) व 10,00,000 दुपहिए वाहन थे, ऐसा एक अभ्यास से पता किया गया। पुणे के उपनगर कल्याणीनगर, विमाननगर, मगरपट्टा, पिंपरी, चिंववड, बाणेर, वाकड, औंध, हिंजेवाडी, बिबवेवाडी, वानवडी, निगडी-प्राधीकरण काफी तेजी से बढ रहे है पर अंदरूनी रास्ते उतने तेजी से नही बढ रहे है। सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के लिए पुणे व पिंपरी-चिंचवड महापालिका द्वारा नियंत्रित पी.एम.टी. व पी.सी.एम.टी. उपकरण है। रिक्शा शहर मे यातायात का प्रमुख साधन है। जनजीवन पुणे शहर भारत का सबसे तेज विकसित होने वाला शहर है। पुणे कि जनसंख्या बडी तेजी से बढ रही है। सन १९९१ कि जनगणना के अनुसार पुणे कि जनसंख्या ११ लाख थी। सन २००१ के अनुसार २५ लाख हुई। अब २०११ के अनुसार जनसंख्या ५० लाख के उपर जाने कि संभावना है। पुणे शहर मे सॉफ्टवेयर व वाहननिर्मिती के व्यवसायो के निरंतर विकास से नोकरी की तलाश मे भारत के अन्य प्रांत के लोगो यहाँ बसते आए है। २००३ से यहाँ निर्माण-क्षेत्र के काफी तेजी आई है। पुणे भारत का सातवां सबसे बडा शहर है। भारत में पुणे से बडे शहर मुंबई, कोलकत्ता, दिल्ली, चेनई, बेंगलोर, हैदराबाद और अहमदाबाद है। पुणे के बाद सूरत, जयपुर, लखनऊ और कानपुर यह शहर आते है। पुणे मे रहने वालो को पुणेकर कहकर भी संबोधित किया जाता है। शहर की मुख्य भाषा मराठी है और अंग्रेजी व हिंदी भाषा बोलते हुए अकसर लोग मिलते है। पुणे के भगिनी शहर यह शहर पुणे के भगिनी शहर है - त्रोम्सो, नॉर्वे ब्रेमेन, जर्मनी सान होज़े, संयुक्त राज्य अमेरिका फेरबँक्स, अलास्का, संयुक्त राज्य अमेरिका usa पर्यटन यहां कई पर्यटक आकर्षण हैं। जिनमें से कुछ हैं:- शनिवार वाड़ा आगाखान महल पार्वती हिल मंदिर कटराज सर्प उद्यान कोणार्क ओशो आश्रम संस्कृति पुणे को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। पुणे की मराठी को मराठी भाषा का मानक-रुप (standard) माना जाता है। पुणे मे वर्ष भर सांस्कृतिक कार्यक्रम के रेलचेल होते रहते है। पुणे मे संगीत, कला, साहित्य की भरमार है। गणेशोत्सव 1894 मे लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरु किया। भाद्रपद (अगस्त नही तो सितंबर) महीने मे आने वाले इन दस दिनो की अवधि मे पुणे शहर चैतन्यमय होता है। देश-परदेश से लोग इस उत्सव मे भाग लेने पुणे आते है। जगह-जगह छोटे-बडे गणेश मंडल के मंडपो को सजाया जाता है। इस उत्सव के दरमयान महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामण्डल पुणे उत्सव नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराता है, जिसमे संगीत, नृत्य, मैफिली, नाटक और खेल समाविष्ट होते है। दस दिवस चलने वाला यह उत्सव गणेश विसर्जन के साथ समाप्त होता है। अनन्त चतुरदशी के सुबह शुरु होने वाला विसर्जन अगले दिन तक चलता रहता है। प्रमुख पाँच मण्डल है - thumb|Dhols कसबा गणपती (यह पुणे के ग्राम देवता है) ताम्बडी जोगेश्वरी गुरूजी तालीम तुलशीबाग केसरी वाडा (यह मण्डल तिलक पंचांग के अनुसार गणेशोत्सव को सजाता है) ये पांच गणपतियों के साथ साथ दगडूशेठ हलवाई गणपती को भी पुणे का प्रमुख गणपति माना जाता है। पुणे मे गणेशोत्सव मण्डल प्राणप्रतिष्ठा की गई मूर्ति विसर्जीत कर के उत्सव मूर्ति वापस ले जाते है। विसर्जन के दरमयान ढोल, लेझीम जैसे अनेक पथके होते है। अनेक विद्यालय अपने पथके सिखाते है। सवाई गन्धर्व संगीत महोत्सव दिसम्बर महिने मे अभिजात संगीत मैफली का कार्यक्रम पुणे मे होता है जिसे सवाई गन्धर्व संगीत महोत्सव कह कर सम्बोधित किया जाता है। तीन रातो तक चलने वाला इस उत्सव मे सुप्रसिध्द हिन्दुस्तानी व कर्नाटक संगीतज्ञ भाग लेते है। शास्त्रीय संगीत प्रेमियो के लिए उत्सव एक पर्व के समान होता है। रंगभूमि मराठी रंगभूमि मराठी संस्कृति का अविभाज्य भाग है। मराठी नाटक प्रायोगिक व व्यावसायिक दोनो होते है। पुणे मे मराठी नाटक काफी लोकप्रिय है। टिलक स्मारक मन्दिर, बालगंधर्व रंगमन्दिर, भरत नाट्य मन्दिर, यशवन्तराव चव्हाण नाट्यगृह, सुदर्शन रंगमंच व पिम्परी चिंचवड नाट्यगृह पुणे व आसपास के महत्वपूर्ण नाट्यगृह है। फिल्म पुणे मे अनेक मल्टिप्लेक्स है जिसमे मराठी, हिंदी व हॉलीवूड फिल्मे दिखाई जाती है। पुणे रेलवे स्थानक के पास आयनॉक्स, विद्यापीठ रास्ते पर ई-स्क्वेअर, सातारा रस्ता व कोथरूड के पास सीटीप्राईड, कल्याणीनगर के पास गोल्ड ऍडलॅब्स और आकुर्डी के पास फेम गणेश विजन है। मराठी फिल्मे मुख्यतः प्रभात और सीटीप्राईड चित्रपटगृह मे प्रदर्शित होती है। धर्म-अध्यात्म चतु:श्रृंगी मन्दिर शहर के उत्तर-पश्चिम डोंगर-उतार पर है। मन्दिर 90 फुट ऊँचा 125 फुट लम्बा है व इसका व्यवस्थापन चतु:श्रृंगी देवस्थान करता है। नवरात्री के दरमयान मन्दिर मे विशेष भीड़ होती है। शहर मे पर्वती देवस्थान भी काफी प्रसिध्द है। पुणे के पास आलन्दी व देहू देवस्थान काफी प्रसिध्द है। आलन्दी में सन्त ज्ञानेश्वर की समाधि और देहू पर सन्त तुकाराम का वास्तव्य है। हर वर्ष वारकरी सम्प्रदाय के लोग इन सन्तो की पालखी लेकर पण्ढरपुर जाते है। आषाढी एकादशी के मुहूर्त पर पण्ढरपुर पहुँचते है। पुणे में भारतीय ज्यु लोगो की बडी बसती है। ओहेल डेविड इस्त्राएल के बाहर एशिया का सबसे बडा सिनेगॉग (ज्यु का प्रार्थनास्थल) है। पुणे मेहेरबाबा का जन्मस्थान और रजनीश के रहने का स्थान था। रजनीश के आश्रम मे देश-परदेश के पर्यटक आते है। आश्रम मे ओशो झेन बाग व बडा ध्यानगृह है। पुणे मे पाषाण नामक गाव है। जहा सोमेशवर का प्राचीन मन्दिर है जिसका निर्माण जिजामाता ने किया था। इन्हें भी देखें पुणे महानगर क्षेत्र पुणे ज़िला बाहरी कड़ियाँ पुणे शहर के प्रसिद्ध मंदिर पुणे प्राइम ‘महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे - भाग १ सन्दर्भ श्रेणी:पुणे ज़िला श्रेणी:महाराष्ट्र के शहर श्रेणी:पुणे ज़िले के नगर * श्रेणी:भारत के महानगर श्रेणी:भारत में भूतपूर्व राजधानियाँ
भारत के शहरों की सूची वर्णक्रमानुसार
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारत_के_शहरों_की_सूची_वर्णक्रमानुसार
अनुप्रेषित भारत के शहरों की सूची
रायगढ़, छत्तीसगढ़
https://hi.wikipedia.org/wiki/रायगढ़,_छत्तीसगढ़
रायगढ़ (Raigarh) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है, जो ज़िले का मुख्यालय भी है। यह ओड़िशा की सीमा के पास स्थित है।"Inde du Nord - Madhya Pradesh et Chhattisgarh ," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172"Pratiyogita Darpan ," July 2007 नामोत्पत्ति रायगढ़ राजा मदनसिंह चाॅदा ने महानदी के पार बूनगा के पास "राय" नामक गढ़ की स्थापना की। यहीं से रायगढ़ की उत्पत्ती हुई। and raigarh is famous city. इन्हें भी देखें रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ सन्दर्भ श्रेणी:रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर श्रेणी:रायगढ़ ज़िले, छत्तीसगढ़ के नगर
चेन्नई
https://hi.wikipedia.org/wiki/चेन्नई
चेन्नई () (पूर्व नाम मद्रास) बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित यह दक्षिण भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक केंद्रों में से सबसे प्रमुख है। चेन्नई भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजधानी है। 2011 की भारतीय जनगणना (चेन्नई नगर की नई सीमाओं के लिए समायोजित) के अनुसार, यह चौथा सबसे बड़ा नगर है और भारत में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला नगरीय ढांचा है। आस-पास के क्षेत्रों के साथ नगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया है, जो दुनिया की जनसंख्या के अनुसार 36 वां सबसे बड़ा नगरीय क्षेत्र है। [ चेन्नई विदेशी पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा जाने-माने भारतीय नगरो में से एक है यह वर्ष 2015 के लिए दुनिया में 43 वें सबसे अधिक का दौरा किया गया था। लिविंग सर्वेक्षण की गुणवत्ता ने चेन्नई को भारत में सबसे सुरक्षित नगर के रूप में दर्जा दिया। चेन्नई भारत में आने वाले 45 प्रतिशत स्वास्थ्य पर्यटकों और 30 से 40 प्रतिशत घरेलू स्वास्थ्य पर्यटकों को आकर्षित करती है। जैसे, इसे "भारत का स्वास्थ्य पूंजी" कहा जाता है एक विकासशील देश में बढ़ते महानगरीय नगर के रूप में, चेन्नई पर्याप्त प्रदूषण और अन्य सैन्य और सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करता है। चेन्नई में भारत की तीसरी सबसे बड़ी प्रवासी जनसंख्या 2009 में 35 लाख थी, 2011 में 85 लाख थी और 2018 तक डेढ़ करोड से अधिक का अनुमान है। राजस्थान का मारवाड़ी समुदाय यहाँ व्यापारी वर्ग में मुखत: हे चेन्नई में मारवाड़ी समुदाय की 50000 से अधिक दुकान हे , मारवाड़ीयो का रामदेवजी का वरघोड़ा मुख्य पर्व हे जिसमें प्रतिवर्ष २ लाख से ज़्यादा मारवाड़ी लोग एकत्रित होते हे ये मिंट स्ट्रीट ,आदियाप्पा, गोविंदप्पा, nsc बोस रोड ओर नेनियप्पा से गुज़रते हे 2015 में यात्रा करने के लिए पर्यटन गाइड प्रकाशक लोनली प्लैनेट ने चेन्नई को दुनिया के शीर्ष दस नगरो में से एक का नाम दिया है। चेन्नई को ग्लोबल सिटीज इंडेक्स में एक बीटा स्तरीय नगर के रूप में स्थान दिया गया है और भारत का 2014 का वार्षिक भारतीय सर्वेक्षण में भारत टुडे द्वारा भारत का सबसे अच्छा नगर रहा। 2015 में, चेन्नई को आधुनिक और पारंपरिक दोनों मूल्यों के मिश्रण का हवाला देते हुए, बीबीसी द्वारा "सबसे गर्म" नगर (मूल्य का दौरा किया, और दीर्घकालिक रहने के लिए) का नाम दिया गया। नेशनल ज्योग्राफिक ने चेन्नई के भोजन को दुनिया में दूसरा सबसे अच्छा स्थान दिया है; यह सूची में शामिल होने वाला एकमात्र भारतीय नगर था। लोनाली प्लैनेट द्वारा चेन्नई को दुनिया का नौवां सबसे अच्छा महानगर भी नामित किया गया था। चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया भारत की सबसे बड़ी नगर अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। चेन्नई को "भारत का डेट्रोइट" नाम दिया गया है, जो नगर में स्थित भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग का एक-तिहाई से भी अधिक है। जनवरी 2015 में, प्रति व्यक्ति जीडीपी के संदर्भ में यह तीसरा स्थान था। चेन्नई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत एक स्मार्ट नगर के रूप में विकसित किए जाने वाले 100 भारतीय नगरो में से एक के रूप में चुना गया है। भारत में ब्रिटिश उपस्थिति स्थापित होने से पहले ही मद्रास का जन्म हुआ। माना जाता है कि मद्रास नामक पुर्तगाली वाक्यांश "मैए डी डीस" से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है "भगवान की मां", बंदरगाह नगर पर पुर्तगाली प्रभाव के कारण। कुछ स्रोतों के अनुसार, मद्रास को फोर्ट सेंट जॉर्ज के उत्तर में एक मछली पकड़ने वाले गांव मद्रासपट्टिनम से लिया गया था। हालांकि, यह अनिश्चित है कि क्या नाम यूरोपियों के आने से पहले उपयोग में था। ब्रिटिश सैन्य मानचित्रकों का मानना ​​था कि मद्रास मूल रूप से मुंदिर-राज या मुंदिरराज थे। वर्ष 1367 में एक विजयनगर युग शिलालेख जो कि मादरसन पट्टणम बंदरगाह का उल्लेख करता है, पूर्व तट पर अन्य छोटे बंदरगाहों के साथ 2015 में खोजा गया था और यह अनुमान लगाया गया था कि उपर्युक्त बंदरगाह रोयापुरम का मछली पकड़ने का बंदरगाह है। चेन्नई नाम की जन्मजात, तेलुगू मूल का होना स्पष्ट रूप से इतिहासकारों द्वारा साबित हुई है। यह एक तेलुगू शासक दमारला चेन्नाप्पा नायकुडू के नाम से प्राप्त हुआ था, जो कि नायक शासक एक दमनदार वेंकटपति नायक था, जो विजयनगर साम्राज्य के वेंकट III के तहत सामान्य रूप में काम करता था, जहां से ब्रिटिश ने नगर को 1639 में हासिल किया था। चेन्नई नाम का पहला आधिकारिक उपयोग, 8 अगस्त 1639 को, ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस डे से पहले, सेन्नेकेसु पेरुमल मंदिर 1646 में बनाया गया था। 1 99 6 में, तमिलनाडु सरकार ने आधिकारिक तौर पर मद्रास से चेन्नई का नाम बदल दिया। उस समय कई भारतीय नगरो में नाम बदल गया था। हालांकि, मद्रास का नाम नगर के लिए कभी-कभी उपयोग में जारी है, साथ ही साथ नगर के नाम पर स्थानों जैसे मद्रास विश्वविद्यालय, आईआईटी मद्रास, मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास मेडिकल कॉलेज, मद्रास पशु चिकित्सा कॉलेज, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज। चेन्नई (तमिल: சென்னை ), भारत में बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित तमिलनाडु की राजधानी, भारत का चोथा बड़ा नगर तथा तीसरा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। इसकी जनसंख्या ८३ लाख ४० हजार है। यह नगर अपनी संस्कृति एवं परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। ब्रिटिश लोगों ने १७वीं शताब्दी में एक छोटी-सी बस्ती मद्रासपट्ट्नम का विस्तार करके इस नगर का निर्माण किया था। उन्होंने इसे एक प्रधान नगर एवं नौसैनिक अड्डे के रूप में विकसित किया। बीसवीं शताब्दी तक यह मद्रास प्रेसिडेंसी की राजधानी एवं एक प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र बन चुका था। चेन्नई में ऑटोमोबाइल, प्रौद्योगिकी, हार्डवेयर उत्पादन और स्वास्थ्य सम्बंधी उद्योग हैं। यह नगर सॉफ्टवेयर, सूचना प्रौद्योगिकी सम्बंधी उत्पादों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक नगर है। चेन्नई एवं इसके उपनगरीय क्षेत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग विकसित है। चेन्नई मंडल तमिलानाडु के जीडीपी का ३९% का और देश के ऑटोमोटिव निर्यात में ६०% का भागीदार है। इसी कारण इसे दक्षिण एशिया का डेट्रॉएट भी कहा जाता है। चेन्नई सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, यहाँ वार्षिक मद्रास म्यूज़िक सीज़न में सैंकड़ॊ कलाकार भाग लेते हैं। चेन्नई]] में रंगशाला संस्कृति भी अच्छे स्तर पर है और यह भरतनाट्यम का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। यहाँ का तमिल चलचित्र उद्योग, जिसे कॉलीवुड भी कहते हैं, भारत का द्वितीय सबसे बड़ा फिल्म उद्योग केन्द्र है। नामकरण मद्रास नाम मद्रासपट्नम से लिया गया है। मद्रासपट्नम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा सन् १६३९ में चुना गया स्थायी निवास स्थल है। इसके दक्षिण में चेन्नपट्नम नामक गाँव स्थित था। कुछ समय बाद इन दोनों गाँवों के संयोग से मिलकर बने नगर को "मद्रास" नाम दिया गया। परन्तु उसी जगह के निवासी इसे "चेन्नपट्नम" या "चेन्नपुरी" कहते थे। सन् १९९६ में नगर का नाम बदल कर "चेन्नै" रखा गया (हिन्दी में "चेन्नई" भी लिखा जाता है), क्योंकि "मद्रास" शब्द को पुर्तगी नाम माना जाता था। यह माना जाता है कि इस नगर का पुर्तगी नाम "माद्रे-डि-सॉइस" नामक पुर्तगी सरकारी अफ़सर के नाम से लिया गया था, जो लगभग सन् १५५० में इस जगह को अपने स्थायी निवास बनाने वाले पहले लोगों में शामिल थे। पर कुछ लोग यह मानते हैं कि "मद्रास" शब्द ही तमिल मूल का है, तथा "चेन्नई" शब्द किसी अन्य भाषा का हो सकता है। इतिहास thumb|right|200px|पार्क टाउन, चेन्नई स्थित विक्टोरिया पब्लिक हॉल - चेन्नई में ब्रिटिश स्थापत्य कला के सबसे उत्कृष्ट नमूनों में से एक चेन्नई एवं आस-पास का क्षेत्र पहली सदी से ही महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक, सैनिक, एवं आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा है। यह दक्षिण भारत के बहुत से महत्त्वपूर्ण राजवंशों यथा, पल्लव, चोल, पांड्य, एवं विजयनगर इत्यादि का केन्द्र बिन्दु रहा है। मयलापुर नगर जो अब चेन्नई नगर का हिस्सा है, पल्लवों के जमाने में एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह हुआ करता था। आधुनिक काल में पुर्तगालियों ने १५२२ में यहाँ आने के बाद एक और बंदरगाह बनाया जिसे साओ तोमे कहा गया। पुर्तगालियों ने अपना बसेरा आज के चेन्नई के उत्तर में पुलीकट नामक स्थान पर बसाया और वहीं डच इस्ट इंडिया कंपनी की नींव रखी। २२ अगस्त १६३९, को संत फ्रांसिस दिवस के मौके पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने विजयनगर के राजा पेडा वेंकट राय से कोरोमंडल तट चंद्रगिरी में कुछ जमीन खरीदी। इस इलाके में दमरेला वेंकटपति, जो इस इलाके के नायक थे, उनका शासन था। उन्होंने ब्रितानी व्यापारियों को वहाँ एक फैक्ट्री एवं गोदाम बनाने की अनुमति दी। एक वर्ष वाद, ब्रितानी व्यापारियों ने सेंट जॉर्ज किला बनवाया जो बाद में औपनिवेशिक गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु बन गया। १७४६ में, मद्रास एवं सेंट जॉर्ज के किले पर फ्रासिंसी फौजों ने अपना कब्जा जमा लिया। बाद में ब्रितानी कंपनी का इस क्षेत्र पर नियंत्रण पुनः १७४९ में एक्स ला चैपल संधि (१७४८) की बदौलत हुआ। इस क्षेत्र को फ्रांसिसियों एवं मैसूर के सुल्तान हैदर अली के हमलों से बचाने के लिए इस पूरे क्षेत्र की किलेबंदी कर दी गयी। अठारहवीं सदी के अंत होते-होते ब्रिटिशों ने लगभग पूरे आधुनिक तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक के हिस्सों को अपने अधीन कर लिया एवं मद्रास प्रेसिडेंसी की स्थापना की जिसकी राजधानी मद्रास घोषित की गयी। ब्रिटिशों की हुकुमत के अधीन चेन्नई नगर एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक नगरीय क्षेत्र एवं जलसेना केन्द्र बनकर उभरा। भूगोल thumb|कामाराजार सलाई जो मरीना बीच के साथ साथ चलने वाली एक सड़क हैचेन्नई भारत के दक्षिण पूर्वी तट पर तमिलनाडु प्रदेश के उत्तरी पूर्वी तटीय क्षेत्र में स्थित है। इस तटीय क्षेत्र को पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र भी कहा जाता है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊँचाई ६.७ मीटर है और सबसे ऊँचा स्थान ६० मीटर की ऊँचाई पर है। मरीना बीच के नाम से प्रसिद्ध चेन्नई के समुद्र तट का विस्तार १२ किलोमीटर तक है। नगर के मध्य में बहने वाली कूवम नदी और दक्षिण से बहने वाली अड्यार नदी आज की तारीख में बहुत ही ज्यादा प्रदूषित हो चुकी हैं। अड्यार नदी कूवम से कम प्रदूषित है और इसके तट पर अनेक पशु-पक्षियों का बसेरा है। इन दोनों नदियों को बकिंघम नहर के द्वारा जोड़ा गया है। यह नहर अपनी ४ किलोमीटर की दूरी सागर तट के सामानान्तर तय करती है। नगर के पश्चिमी भाग में कई झीलें हैं, जिनमें से रेड हिल्स, शोलावरम और चेम्बरामबक्क्म से पेय जल की आपूर्ति होती है। चेन्नई का भूमिगत जल भी प्रदूषित होता जा रहा है। thumb|left|चेन्नई में बहने वाली कूवम नदी। प्रदूषण के कारण इस नदी पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। चेन्नई नगर को उत्तर, मध्य, दक्षिण और पश्चिमी चेन्नई नामक चार भागों में बँटा है। है। उत्तरी चेन्नई एक औद्योगिक क्षेत्र है। मध्य चेन्नई नगर का व्यावसायिक केंद्र है। यहाँ पर स्थित पेरिज कार्नर, जिसे स्थानीय लोग पेरिज भी कहते हैं, एक प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र है। दक्षिण और पश्चिमी चेन्नई सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र बनता जा रहा है। बढ़ती आबादी के कारण नगर विभिन्न दिशाओं में बढ़ता जा रहा है। जिन क्षेत्रों में सर्वाधिक विकास हो रहा है वह हैं- पुराना महाबलीपुरम रोड, दक्षिणी ग्रांड ट्रंक रोड और पश्चिम में अंबात्तुर, कोयमबेडु और श्रीपेरम्बदूर की दिशा के क्षेत्र। चेन्नई की नगर सीमा में एक राष्ट्रीय उद्यान भी है, जिसे गुंडी राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। चेन्नई में वार्षिक तापमान लगभग एक समान होता है। इसका कारण चेन्नई का सागर तट पर एवं थर्मल इक्वेटर पर स्थित होना है। वर्ष भर मौसम आम तौर पर गर्म एवं उमस भरा होता है। मई एवं जून का प्रथम सप्ताह वर्ष का सबसे गर्म समय होता है। इस समय जब तापमान ३८-४२ डिग्री सेल्सियस के आस-पास पहुँच जाता है, तो स्थानीय लोग इसे अग्नि नक्षत्रम या कथिरि वेय्यी कहते है। वर्ष का सबसे ठंडा महीना जनवरी का होता है, जब न्यूनतम तापमान १८-२० डिग्री सेल्सियस तक पँहुच जाता है। अब तक यहाँ का सबसे न्यूनतम तापमान १५.८ डिग्री सेल्सियस और उच्चतम तापमान ४५ डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। चेन्नई में वर्ष में औसतन १,३०० मिलीमीटर वर्षा होती है। मुख्यतः वर्षा सितम्बर से दिसम्बर के मध्य होती है। देश के अन्य भागों से विपरीत चेन्नई में वर्षा मानसून के लौटने के दौरान उत्तर-पूर्वी हवाओं के चलते होती है। बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवात कई बार चेन्नई भी पहुँच जाते है। सन २००५ में आज तक की सबसे ज्यादा वर्षा २,५७० मिलीमीटर दर्ज की गई थी। नवम्बर २, २०१७ को श्रीलंका के नजदीक बंगाल की खाड़ी में कम दबाव के कारण चेन्नई में लगातार पांच घंटे बारिश हुई थी जिसके कारण अनेक इलाकों में पानी भर गया था। प्रशासनिक एवं उपयोगी सेवाएं नगर के अधिकारीगण, (सितं. ०७) महापौरमा. सुब्रह्मानियम</div> |- |उप-महापौर |<div style="text-align: center;">आर सत्यभामा नगर निगम आयुक्तराजेश लखोनीपुलिस आयुक्तके राधाकृष्णन चेन्नई नगर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय नगर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय नगर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। thumb|left|चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस पैट्रोल चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। नगर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण (सी.एम.डी.ए) ने नगर के निकट उपग्रह-नगरो के विकास के उद्देश्य से एक द्वितीय मास्टर प्लान का ड्राफ़्ट तैयार किया है। निकटस्थ उपग्रह नगरो में महाबलिपुरम (दक्षिण में), चेंगलपट्टु और मरियामलै नगर दक्षिण-पश्चिम में, श्रीपेरंबुदूर, तिरुवल्लुर और अरक्कोणम पश्चिम में आते हैं। ग्रेटर चेन्नई पुलिस विभाग तमिल नाडु पुलिस का ही एक अनुभाग है, जो नगर में कानून एवं सुरक्षा व्यवस्था की देखरेख में संलग्न है। नगर की पुलिस के अध्यक्ष पुलिस आयुक्त, चेन्नई हैं और प्रशासनिक नियंत्रण राज्य गृह मंत्रालय के पास है। इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। नगर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। thumb|राइपन बिल्डिंग, १९१३ में निर्मित, चेन्नई नगर निगम का मुख्यालय तत्कालिण वाइसरॉय लॉर्ड राइपन के नाम पर है। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। नगर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है,, Annexure I lists these six entities as the licensed cellular operators for the Chennai circle. The CDMA Development Group's official website lists Tata Teleservices and Reliance Communications as the only operators to have deployed CDMA on cellular systems in India. और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। नगर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। नगर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण नगर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। हाल के वर्षों में भारी मानसीनी वर्षाओं के चलते अन्ना नगर में जल पुनर्चक्रीकरण को सहारा मिला है और इससे नगर में जलाभावों की काफ़ी कमी आयी है। इसके साथ साथ तेलुगु गंगा परियोजना जैसे नई परियोजनाओं द्वारा आंध्र प्रदेश से कृष्णा नदी का जल भी पहुचाया जा रहा है, जिसने इस संकट को लगभग समाप्त ही कर दिया है। नगर में सागरीय जल के अलवणीकरण-संयंत्र की स्थापना भी प्रगति पर है, जिससे सागर के जल को भी जलापूर्ति में प्रयोग किया जा सकेगा। संस्कृति 150px|thumb|एक भरतनाट्यम नर्तकी चेन्नई भारत की सांस्कृतिक एवं संगीत राजधानी है।द हिन्दू पर चेन्नै नगर शास्त्रीय नृत्य-संगीत कार्यक्रमों और मंदिरों के लि प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष चेन्नई में पंच-सप्ताह मद्रास म्यूज़िक सीज़न कार्यक्रम का आयोजन होता है। यह १९२७ में मद्रास संगीत अकादमी की स्थापना की वर्षगांठ मानने के साथ आयोजित होता है। इसमें नगर और निकट के सैंकड़ों कलाकारों के शास्त्रीय कर्नाटक संगीत के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। एक अन्य उत्सम चेन्नई संगमम प्रत्येक वर्ष जनवरी में तमिल नाडु राज्य की विभिन्न कलाओं को दर्शाता है। चेन्नई को भरतनाट्यम के लिए भी जाना जाता है। यह दक्षिण-भारत की प्रसिद्ध नृत्य शैली है। नगर के दक्षिणी भाग में तटीय क्षेत्र में कलाक्षेत्र नामक स्थान भरतनाट्यम का प्रसिद्ध सांस्कृतिक केन्द्र है। चेन्नई में भारत के कुछ सर्वोत्तम कॉयर्स हैं, जो क्रिसमस के अवसर पर अंग्रेज़ी और तमिल में विभिन्न कैरल कार्यक्रम करते हैं। मद्रास म्यूज़िकल असोसियेशन भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठावान क्वायर्स में से एक हैं और इन्होंने विश्व भर में कार्यक्रम दिये हैं। चेन्नई तमिल चलचित्र उद्योग, जिसे कॉलीवुड भी कहते हैं, का आधार नगर है। यह उद्योग कोडमबक्कम में स्थित है, जहां अधिकांश फिल्म स्टूडियों हैं। इस उद्योग के द्वारा आजकल १५० से अधिक फिल्में वार्षिक बनायी जाती हैं और इनके साउण्डट्रैक के एल्बम भी नगर को संगीतमय करते हैं। इस उद्योग से जुड़े कुछ व्यक्तियों के नामों में इलैयाराजा, के बालाचंदर, शिवाजी गणेशन, एम जी रामचंद्रन, रजनीकांत, कमल हसन, मणि रत्नम और एस शंकर हैं। thumb|200px|तरह तरह के तमिल व्यंजन ए आर रहमान ने चेन्नई को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलायी है। रहमान को २००९ में स्लमडॉग मिलेनियर के लिए दो ऑस्कर सम्मान मिले थे। चेन्नई में रंगमंच पर तमिल नाटक मंचित किये जाते हैं, जिनमें राजनीतिक, व्यंग्य, हास्य, पौराणिक, आदि सभी रसों का मिश्रण होता है। इनके अलावा अंग्रेज़ी नाटकों का भी मंचन आयोजित होता है। नगर के उत्सवों में जनवरी माह में आने वाला पंच-दिवसीय पोंगल प्रमुख है। इसके अलावा सभी मुख्य त्यौहार जैसे दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि भी हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं। तमिल व्यंजनों में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही व्यंजनों का सम्मिलन है। नगर में विभिन्न स्थानों पर अल्पाहार या टिफिन भी उपलब्ध है, जिसमें पोंगल, दोसा, इडली, वड़ा, आदि मिलते हैं, जिसको गर्मा गर्म या ठंडी कॉफी के साथ परोसा जाता है। अर्थव्यवस्था thumb|Tidel Park चेन्नई दक्षिण भारत के प्रमुख व्यवसाय-वाणिज्य एवं यातायात का केन्द्र है। १९वीं शताब्दी के अन्त में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना चेन्नई में हुई। चेन्नई के निकट पेराम्बूर में भारत सरकार द्वारा एशिया का सबसे विशाल रेलवे डिब्बा निर्माण का कारखाना इन्टीग्रल कोच बिल्डिंग फैक्टरी स्थापित किया गया है। यहाँ के उद्योगों में सूती वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज एवं कागज से निर्मित वस्तुओं के उद्योग, मुद्रण यंत्र एवं इससे सम्बन्धित उद्योग, चमड़ा, डीजल इंजन, मोटरगाड़ी, साइकिल, सीमेन्ट, चीनी, दियासलाई, रेल के डिब्बे तैयार करने के उद्योग आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा संचालित विभिन्न प्रकार के उद्योग एवं कारखाने चेन्नई में अवस्थित हैं। इनमें इण्टिग्रल कोच फैक्टरी, हिन्दुस्तान टेलीप्रिन्टर, चेन्नई रिफाईनरी एवं चेन्नई फर्टिलाइजर आदि प्रमुख हैं। मद्रास पेट्रोकेमिकल्स में पेट्रो-रसायन पदार्थ का उत्पादन होता है। जनसांख्यिकी thumb|right|रंगनाथन स्ट्रीट टी नगर में पटरी पर खरीदने बेचने वालों की भीड़ लगी रहती है। चेन्नई के वासी को अंग्रेज़ी में चेन्नैयाइट और हिन्दी में प्रायः मद्रासी कह दिया जाता है। २००१ में भारत की जनगणना के अनुसार चेन्नई नगर की जनसंख्या ४३.४ लाख थी जबकि कुल महानगरीय जनसंख्या ७०.४ लाख थी। The population density for Chennai city and the metropolitan area have been calculated using the population figures and the total area of the respective regions, mentioned in the Second Master Plan. The conversion rate of = 1.609 km. has been used to compute the density per sq. mile. २००६ की अनुमानित महानगरीय जनसंख्या ४५ लाख आयी है। २००१ में नगर का जनसंख्या घनत्व २४,६८२ वर्ग कि॰मी॰ (६३,९२६ प्रति वर्ग मील) था, जबकि महानगरीय क्षेत्र का घनत्व ५,९२२ प्रति वर्ग कि॰मी॰ था, जिससे यह विश्व के सर्वोच्च जनसंख्या वाले नगरो में गिना जाने लगा। In terms of population density, Chennai was ranked 51st among all urban agglomerations in the world with over 500,000 people. यहां का लिंग अनुपात ९५१ स्त्रियां/१००० पुरुष है, जो राष्ट्रीय औसत ९४४ से कुछ अधिक ही है। नगर की औसत साक्षरता दर ८०.१४% है, जो राष्ट्रीय औसत दर ६४.५% से कहीं अधिक है। नगर में झुग्गी-झोंपड़ी निवासियों की जनसंख्या भारत के अन्य महानगरों के मुकाबले चौथे स्थान पर आती है, जिसमें ८,२०,००० लोग (कुल जनसंख्या का १८.६%) लोग हैं। यह संख्या भारत की कुल जनसंख्या का ५% है। २००५ में नगर में अपराध दर ३१३.३ प्रति १ लाख व्यक्ति थी, जो भारत के सभी प्रधान नगरो में हुए अपराधों का ६.२% है। ये आंकड़े २००४ से ६१.८% बढ़े हैं। चेन्नई में तमिल लोग बहुसंख्यक हैं। यहां की मुख्य भाषा तमिल ही है। व्यापार, शिक्षा और अन्य अधिकारी वर्ग के व्यवसायों एवं नौकरियों में अंग्रेज़ी मुख्यता से बोली जाती है। इनके अलावा कम किंतु गणनीय संख्या तेलुगु तथा मलयाली लोगों की भी है। चेन्नई में तमिल नाडु के अन्य भागों व भारत के सभी भागों से आये लोगों की भी अच्छी संख्या है। २००१ के आंकड़ों के अनुसार नगर के ९,३७,००० प्रवासियों (चेन्नई की कुल जनसंख्या का २१.५७%) में से; ७४.५% राज्य के अन्य भागों से आये थे, २३.८% देश के अन्य भागों से तथा १.७% विदेशियों की जनसंख्या थी। कुल जनसंख्या में ८२.२७% हिन्दू, ८.३७% मुस्लिम, ७.६३% ईसाई और १.०५% जैन हैं। यातायात thumb|300px|चेन्नई में आई.टी हाइवे, जिसके शिरोपरि एम आर टी एस (चेन्नई) निकलता हुआ दिखाई दे रहा है चेन्नई दक्षिण भारत के प्रवेशद्वार की भांति प्रतीत होता है, जिसमें अन्ना अन्तर्राष्ट्रीय टर्मिनल एवं कामराज अन्तर्देशीय टार्मिनल सहित चेन्नई अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भारत का तीसरा व्यस्ततम विमानक्षेत्र है। चेन्नई नगर दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप एवं उत्तरी अमरीका के प्रधान बिन्दुओं पर ३० से अधिक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं से जुड़ा हुआ है। यह विमानक्षेत्र देश का दूसरा व्यस्ततम कार्गो टर्मिनस है। वर्तमान विमानक्षेत्र में अधिक आधुनिकीकरण और विस्तार कार्य प्रगति पर हैं। इसके अलावा श्रीपेरंबुदूर में नया ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट लगभग २००० करोड़ रु. की लागत से बनना तय हुआ है। नगर में दो प्रधान सागरपत्तन (बंदरगाह) हैं, चेन्नई पोर्ट जो सबसे बड़े कृत्रिम बंदरगाहों में एक है, तथा एन्नोर पोर्ट। चेन्नई पोर्ट बंगाल की खाड़ी में सबसे बड़ा बंदरगाह और भारत का दूसरा सबसे बड़ा सागरीय-व्यापार केन्द्र है, जहां ऑटोमोबाइल, मोटरसाइकिल, सामान्य औद्योगिक माल और अन्य थोक खनिज की आवाजाही होती है। मुम्बई के बाद भारत का यही सबसे बड़ा पत्तन है। इस कृत्रिम बन्दरगाह में जलयानों के लंगर डालने के लिए कंक्रीट की मोटी दीवारें सागर में खड़ी करके एक साथ दर्जनों जलयानों के ठहराने योग्य पोताश्रय बना लिया गया है। दक्षिणी भारत का सारा दक्षिण-पूर्वी भाग (तमिलनाडु, दक्षिणी आन्ध्रप्रदेश तथा कर्नाटक राज्य) इसकी पृष्ठभूमि है। यहाँ मुख्य निर्यात मूँगफली और इसका तेल, तम्बाकू, प्याज, कहवा, अबरख, मैंगनीज, चाय, मसाला, तेलहन, चमड़ा, नारियल इत्यादि हैं तथा आयात में कोयला, पेट्रोलियम, धातु, मशीनरी, लकड़ी, कागज, मोटर-साइकिल, रसायन, चावल और खाद्यान्न, लम्बे रेशे वाली कपास, रासायनिक पदार्थ, प्रमुख हैं। एक छोटा बंदरगाह रोयापुरम में भी है, जो स्थानीय मछुआरों और जलपोतों द्वारा प्रयोग होता है। पूर्वी तट पर चेन्नई की महत्त्वपूर्ण स्थिति ने प्राकृतिक सुविधा के अभाव में भी कृत्रिम व्यवस्था द्वारा एक पत्तन का विकास पाया है। एक बन्दरगाह होने के कारण कोलकाता, विशाखापट्टनम, कोलम्बों, रंगून, पोर्ट ब्लेयर आदि स्थानों से समुद्री मार्ग द्वारा सम्बद्ध है। thumb|left|चेन्नई में एम.आर.टी.एस ट्रेन का स्टेशन आज रेलमार्गों और सड़कों का मुख्य जंक्शन होने के कारण यह नगर देश के विभिन्न नगरो से जुड़ा हुआ है। यह वायु मार्ग द्वारा बंगलोर, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद आदि देश के विभिन्न नगरो से जुड़ा हुआ है। चेन्नई देश के अन्य भागों से रेल द्वारा भी भली-भांति जुड़ा हुआ है। यहां से पाँच मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग नगर को मुंबई, कोलकाता, तिरुचिरापल्ली, तिरुवल्लुर, तिंडिवनम और पुदुचेरी को जोड़ते हैं। चेन्नई मोफस्सिल बस टर्मिनस, चेन्नई से सभी अन्तर्राज्यीय बस सेवाओं का अड्डा है। यह एशिया का सबसे बड़ा बस-अड्डा है। सात सरकारी यातायात निगम अन्तर-नगरीय और अन्तर्राज्यीय बस सेवाएं संचालित करते हैं। बहुत सी निजी बस सेवाएं भी चेन्नई को अन्य नगरो से सुलभ कराती हैं। चेन्नई दक्षिण रेलवे का मुख्यालय है। नगर में दो मुख्य रेलवे टार्मिनल हैं। चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन, जहां से सभी बड़े नगरो जैसे मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद, कोच्चि, कोयंबतूर, तिरुवनंतपुरम, इत्यादि के लिए रेल-सुविधा उपलब्ध हैं। चेन्नई एगमोर रेलवे स्टेशन से प्रायः तमिलनाडु के नगरो की रेल सेवाएं ही उपलब्ध हैं। कुछ निकटवर्ती राज्य के नगरो की भी रेलगाड़ियां यहां से चलती हैं। thumb|एम.टी.सी की वॉल्वो बस नगर में लोक यातायात हेतु बस, रेल, ऑटोरिक्शा आदि सर्वसुलभ यातायात हैं।चेन्नई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क भारत में सबसे पुराना है। इसमें चार ब्रॉड गेज रेल क्षेत्र हैं जो नगर में दो स्थानों चेन्नई सेंट्रल और चेन्नई बीच रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। इन टर्मिनल से नगर में निम्न सेक्टरों के लिए नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं: चेन्नई सेंट्रल/चेन्नई बीच - अरक्कोणम - तिरुट्टनी (चेन्नई उपनगरीय रेलवे – पश्चिम लाइन) चेन्नई सेंट्रल/ चेन्नई बीच – गुम्मिडीपूंडी - सुलुरपेट (चेन्नई उपनगरीय रेलवे) चेन्नई बीच – तांबरम - चेंगलपट्टू - तिरुमलैपुर (कांचीपुरम) (चेन्नई उपनगरीय रेलवे – दक्षिण लाइन) चौथा सेक्टर भूमि से उच्च स्तर पर है और चेन्नई बीच को वेलाचेरी से जोड़ता है और शेष जाल से भी जुड़ा हुआ है। चेन्नई मेट्रो चेन्नई मेट्रो चेन्नई के लिए अनुमोदित एक त्वरित यातायात सेवा है। इसके प्रथम चरण में दो लाइने प्रयोग में है एवम् अन्य लाइनों का कार्य निर्माणाधीन है यह पूरी परियोजना पहले चरण के दो गलियारों की लागत १४,६०० करोड़ रुपये है। जो ५०.१ कि॰मी॰ लंबे है २००७ के अनुंआन से ९५९६ करोड लागत आयी थी।[3]. मेट्रोपॉलिटन ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन (MTC) नगर में बस यातायात संचालित करता है। निगम का २७७३ बसों का बेड़ा २८८ मार्गों पर ३२.५ लाख यात्रियों को दैनिक परिवहन उपलब्ध कराता है। नगर के बहुत से मार्गों पर मैक्सी कैब नाम से वैन और सवारी भाड़े पर ऑटोरिक्शा भी चलते हैं, जो बस सेवा का विकल्प देते हैं। चेन्नई की यातायात संरचना अच्छा संपर्क उपलब्ध कराती है, किंतु बढती हुई जनसंख्या को देखते हुए यातायात संकुलन (कंजेशन) और प्रदूषण की समस्याएं भी खड़ी हो गयी हैं। प्रशासन ने इन समस्याओं के समाधान स्वरूप फ्लाईओवर तथा ग्रेड-सेपरेटर निर्माण किये हैं, जिसका शुभारंभ १९७३ में जेमिनी फ्लाईओवर से नगर की सबसे महत्त्वपूर्ण सड़क अन्ना सालै से हुआ था। और हाल ही में तैयार हुआ इस शृंखला की नवीनतम कड़ी काठीपाड़ा फ़्लाईओवर है। शिक्षा thumb|चेन्नई में स्थित अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई में सरकारी एवं निजी दोनो प्रकार के विद्यालय है। शिक्षा का माध्यम तमिल अथवा अंग्रेजी होता है। अधिकांश विद्यालय तमिलनाडु राज्य शिक्षा मंडल या केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से जुड़े है। नगर में कुल १,३८९ विद्यालय है जिस में से ७३१ प्राथमिक, २३२ माध्यमिक और ४२६ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है। इंजीनियरिंग शिक्षा के लिये चेन्नई में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, १७९४ में स्थापित कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग गिन्डी, १९४९ में स्थापित मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान (Madras Institute of Technology) और एस आर एम विश्वविद्यालय जाने माने संस्थान है। अधिकांश इंजीनियरिंग महाविद्यालय अन्ना विश्वविद्यालय से संबंधित है। मद्रास मेडिकल कॉलेज, स्तेनली मेडिकल कॉलेज, किलपौक मेडिकल कॉलेज और एस आर एम मेडिकल कॉलेज एवं अनुसंधान संस्थान चेन्नई के प्रमुख चिकित्सीय महाविद्यालय है। विज्ञान, कला एवं वाणिज्य क्षेत्र में शिक्षा प्रदान कराने वाले अधिकांश महाविद्यालय मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्धित है। मद्रास विश्वविद्यालय की नगर में तीन परिसर है। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, लोयोला कॉलेज, द न्यू कॉलेज और पेट्रीसियन कॉलेज कुछ प्रसिद्ध स्वशासी महाविद्यालय है। चेन्नई में कई अनुसंधान केन्द्र भी है। खेल-कूद thumb|एम ए चिदंबरम स्टेडियम चेन्नई नगर विविध खेलो के लिये प्रसिद्ध है। नगर ने भारत को कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी दिये हैं। एस वेन्कट राघवन और कृष्णम्माचारी श्रीकांत ने क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इंगलैंड के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी नासिर हुसैन का जन्म भी चेन्नई में हुआ था। एम आर एफ़ पेस फ़ाउंडेशन एक प्रसिद्ध तेज गेंदबाजी सिखाने की संस्था है जो सन १९८७ से चेन्नई में संचालित हो रही है। इंडियन प्रीमियर लीग में चेन्नई के स्थानीय टीम का नाम चेन्नई सुपर किंग्स है जिसके कप्तान महेन्द्र धोनी है। चेपुक में स्थित एम ए चिदंबरम स्टेडियम भारत के सबसे पुराने क्रिकेट के मैदानो में से एक है। मेयर राधाकृष्णन स्टेडियम हॉकी का एक लोकप्रिय मैदान है। यहां एशिया कप एवं चैम्पियन ट्रॉफ़ी जैसी प्रमुख हॉकी प्रतियोगिताएं आयोजित हो चुकीं है। प्रिमियर हॉकी लीग में चेन्नई का प्रतिनिधि चेन्नई वीरन्स नामक टीम करती है। thumb|चेन्नई में आयोजित होने वाली चेन्नई ओपन प्रतियोगिताचेन्नई ओपन चेन्नई में आयोजित होने वाली एक प्रसिद्ध टेनिस प्रतियोगिता है। यह भारत की एक मात्र ए टी पी प्रतियोगिता है। विजय अमृतराज और रमेश कृष्णन प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी है जो चेन्नई से संबंध रखते है। सन १९९५ में चेन्नई दक्षिण एशियन गेम्स का मेजबान रहा है। जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम फ़ुटबॉल एवं एथलेटिक स्पर्धाओं के लिये उपयोग होता है। कई अंतरंग स्पर्धाए जैसे वॉलीबॉल, बास्केटबॉल और टेबल टेनिस का आयोजन इसी स्टेडियम में होता है। जल क्रीड़ा स्पर्धाओं का आयोजन वेलाचेरी अक्वेटिक कॉम्पलेक्स में होता है। कार दौड़ प्रतियोगिताओं में चेन्नई का नाम भारत में सर्वप्रथम लिया जाता है। श्रीपेरम्बदूर में स्थित इरुन्गट्टुकोट्टाइ में एक रेस ट्रेक जो अन्तराष्ट्रीय कार दौड़ प्रतियोगिता के लिये उपयोग में लिया जाता है। घुड़दौड़ गिंडी रेस कोर्स में आयोजित होती है। मद्रास बोट क्लब नौकायान प्रतियोगिता का आयोजन करता है। चेन्नई में दो गोल्फ़ के मैदान है: कॉस्मोपालिटन क्लब और जिमखाना क्लब। विश्वप्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथ आनंद का बचपन भी चेन्नई में बीता है। २००६ के राष्ट्रमंडल खेलो में टेबल टेनिस में स्वर्ण जीतने वाले शरथ कमाल और दो बार की विश्व कैरम विजेता मारिया इरुदयम भी चेन्नई के निवासी है। पर्यटन चेन्नई को सुपर प्रसारित नगर कहते हैं यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें मद्रास विश्वविद्यालय, चेपॉक महल, मत्स्य पालन केन्द्र, कपिलेश्वर और पार्थसारथी का मंदिर, अजायबघर और चिड़ियाघर आदि प्रमुख हैं। चेन्नई का एक अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण है सेंट जॉर्ज फोर्ट। इसे सन्‌ १६४० में ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिंस डे ने बनाया था। यह किला ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक केंद्र था। १५० वर्षों तक यह युद्धों और षड्यंत्रों का केंद्र बना रहा। इस किले में पुरानी सैनिक छावनी, अधिकारियों के मकान, सेंट मेरी गिरजाघर एवं रॉबर्ट क्लाइव का घर है। सेंट मेरी गिरजाघर अँगरेजों द्वारा भारत में बनवाया गया सबसे पुराना चर्च माना जाता है। चेन्नई का मरीना बीच पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण है। यह विश्व का दूसरा सबसे लंबा समुद्र तट है। इसके दो सौ से तीन सौ गज चौड़े रेतीले तट पर शाम को इतनी अधिक भीड़ होती है कि लगता है मानो सारा नगर वहीं आ गया है। सारे दिन की थकान को चेन्नई वासी शाम को मरीना बीच की अथाह जल राशि में बहा देना चाहते हों। पर्यटकों की सुविधा के लिए मेरीना बीच पर एक स्वीमिंग पूल है जो दुर्घटनाओं को घटने से रोकता है क्योंकि यहाँ समुद्र की गहराई और लहरों का तेज प्रवाह खतरनाक है। शार्क मछलियों की अधिकता भी है, अतः स्नान या तैरने के लिए स्वीमिंग पूल का ही लाभ लेना चाहिए। इसी के पास एक मछलीघर भी है, जिसमें तरह-तरह की देशी-विदेशी मछलियाँ दर्शनार्थ रखी गई हैं। मरीना तट का उत्तरी भाग पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरै के समाधि-स्थल के रूप में विकसित किया गया है। यहाँ लोगों को श्रद्धानवत होते देखा जा सकता है। साथ ही एम.जी.आर. स्मारक भी है जिसका प्रवेश द्वार दो विशाल हाथी दाँत के रूप में बनाया गया है। यहाँ एक मशाल हमेशा प्रज्वलित रहती है। चेन्नई का स्नेक पार्क भी पर्यटकों को प्रभावित करता है। यह अपनी तरह का एक अलग ही पार्क है जिसका निर्माण रोमुलस व्हिटेकर नामक अमेरिकी ने किया था। यह पाँच सौ से भी ज्यादा खतरनाक भारतीय साँपों का जीवित संग्रहालय कहा जा सकता है। रेंगते हुए ये विषधर भय मिश्रित रोमांच पैदा करते हैं। यहाँ पर साँपों के अलावा सरीसृप वर्ग के अन्य जीव जैसे मगरमच्छ, घड़ियाल इत्यादि भी रखे गए हैं। चेन्नई महानगर की कलात्मक संस्कृति के दर्शन पैंथियान रोड स्थित नेशनल आर्ट गैलरी में सहज ही किए जा सकते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से संपूर्ण दक्षिण भारत एक तीर्थ है जहाँ वास्तुकला और मूर्तिकला के अद्वितीय उदाहरण हैं। इन मंदिरों में भव्यता और कलाशिल्प देखने योग्य है। उत्तर भारत से एकदम अलग शैली के मंदिर होने के बावजूद श्रद्धा और भक्ति में ये समस्त भारतीय आस्तिकों को आकर्षित करते हैं। तिरुषैलिफेनी स्थित पार्थ सारथि मंदिर के लिए उल्लेख है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में राजा पल्लव ने करवाया था। इस देवस्थान की दीवारों पर सुंदर कलाकृतियाँ अंकित हैं। दूसरा आकर्षक मंदिर है द्रविड़ शिल्पकला में निर्मित मिलापोर स्थित कालीश्वर मंदिर। यहाँ माता पार्वती की उपासना की गाथा अंकित है। समुद्र की रेत से तपता यह क्षेत्र अत्यंत गरम जलवायु लिए हुए है जो केले, नारियल और पाम के पेड़ों से खूबसूरत लगता है। चित्र दीर्घा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ चेन्नई पर्यटन चेन्नई प्रशासन का आधिकारिक जालस्थल चेन्नई नगर निगम - आधिकारिक जालस्थल चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण का जालस्थल . श्रेणी:चेन्नई श्रेणी:तमिलनाडु श्रेणी:भारत के महानगर श्रेणी:तमिल नाडु के शहर श्रेणी:कॉमन्स पर निर्वाचित चित्र युक्त लेख श्रेणी:चेन्नई ज़िला श्रेणी:कोरोमंडल तट
नयी दिल्ली
https://hi.wikipedia.org/wiki/नयी_दिल्ली
REDIRECTनई दिल्ली
वर्जिन एटलान्टिक
https://hi.wikipedia.org/wiki/वर्जिन_एटलान्टिक
thumb|right|वर्जिन एटलान्टिक लका मुख्यालय वर्जिन एटलान्टिक ऐरवेज़, सामान्य तौर पर वर्जिन एटलान्टिक, एक हवाई सेवा है जो ग्रेट ब्रिटेन से अन्य जगहों पर अन्तरमहाद्वीप उडानें चलाती है। इसका मुख्यालय ग्रेट ब्रिटेन के क्रॉले में है। बहरी कड़ियाँ वर्जिन एटलान्टिक ऐरवेज़ (EN)
रीवा
https://hi.wikipedia.org/wiki/रीवा
रीवा (Rewa) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रीवा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और राज्य की राजधानी, भोपाल, से पूर्वोत्तर में और जबलपुर से उत्तर में स्थित है। इस से दक्षिण में कैमूर पर्वतमाला है और इस क्षेत्र में विन्ध्याचल की पहाड़ियाँ भी स्थित हैं।"Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh ," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172"Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293 विवरण right|thumb|280px|रीवा का अरविन्द आश्रम रीवा शहर मध्य प्रदेश प्रांत के विंध्य पठार का एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस,बीहर.,बिछिया नदी एवं उसकी सहायता नदियों द्वारा सिंचित है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में सतना, पूर्व में मऊगंज एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिले स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल २,५०९ वर्ग मील है। यह पहले एक बड़ी बघेल वंश की रियासत थी। यहाँ के निवासियों में गोंड एवं कोल ब्राह्मण विभिन्न क्षत्रिय वैश्य जाति के लोग भी शामिल हैं जो पहाड़ी भागों के साथ-साथ मुख्य नगर में रहते हैं। जिले में जंगलों की अधिकता है, जिनसे लाख, लकड़ी एवं जंगली पशु प्राप्त होते हैं। रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ की नस्ल पाई गई हैं। जिले की प्रमुख उपज धान है। जिले के ताला नामक जंगल में बांधवगढ़ का ऐतिहासिक किला है। रीवा मूल रूप से गोंड,कोल आदिवासियों का निवास स्थान रहा है।बाद में जब बाहरी गुजरात से सोलंकी राजपूत मध्य प्रदेश आयें,तब इनके साथ कुछ परिहार राजपूत एवं कुछ मुस्लिम भी आये परन्तु कुछ समय पश्चात सोलंकी राजा व्याघ्र देव ने सोलंकी से बघेल तथा परिहार से वरग्राही (श्रेष्ठता को ग्रहण करने वाला) वंश की स्थापना की। बघेल तथा वरग्राही परिहार आज बड़ी संख्या में संपूर्ण विंध्य क्षेत्र में पाए जाते हैं, जो प्रारंभ से एक दूसरे के अति विश्वस्त हैं। प्राचीन इतिहास के अनुसार रीवा राज्य के वर्ग्राही परिहारो ने रीवा राज्य के लिए अनेक युद्ध लड़े जिनमें- नएकहाई युद्ध, बुंदेलखंडी युद्ध, लाहौर युद्ध, चुनार घाटी मिर्जापुर युद्ध, कोरिया युद्ध, मैहर युद्ध, कृपालपुर युद्ध, प्रमुख हैं। बघेल वंश की स्थापना व्याघ्र देव ने की जिसके कारण इन्हें व्याघ्र देव वंशज भी कहा जाता है। चूँकि इन दोनों वंश की स्थापना होने के बाद इन दोनों राजपूतो का ज्यादा विस्तार नही हो पाया, जिसके कारण इन वंशो के बारे में ज्यादा जानकरी प्राप्त नही हुई। इन्हें अग्निकुल का वंशज माना जाता है। भूतपूर्व रीवा रियासत की स्थापना लगभग १४०० ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी। मुगल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया और १५९७ ई, में इसे भूतपूर्व रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन १९१२ ई. में यहाँ के स्थानीय शासक ने ब्रिटिश सत्ता से समझौता कर अपनी सम्प्रभुता अंग्रेज़ों को सौंप दी। यह शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की राजधानी भी रहा।यहाँ विश्व का सबसे पहला सफेद शेर मोहन पाया गया। जिसकी मृत्यु हो चुकी है। रीवा जिले के निकट 13 किलोमीटर (निपानिया-तमरा मार्ग) महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर का निर्माण किया गया है- जहाँ सफेद शेरों को संरक्षण दिया जा रहा है। रीवा जिले में बघेली एक प्रमुख भाषा है। हाल ही में यहाँ पर कृष्णा राज कपूर ऑडीटोरियम का निर्माण कराया गया है । रीवा के पर्यटन एवं दार्शनिक स्थल गोविंदगढ़ का किला, रीवा रीवा का किला, रीवा बघेल संग्रहालय, रीवा किला रानीपुर करचुलियाँ, रीवा पुरवा जलप्रपात, रीवा गोविंदगढ़ झील, रीवा भैरोबाबा की प्रतिमा, गुढ़, रीवा सिटी संग्रहालय, रीवा वेंकट भवन, रीवा चिराहुलानाथ मंदिर, रीवा रानी तलाब, रीवा मुकुंदपुर जंगल सफारी, रीवा रीवा जिले मे पर्यटन की डदृष्टि से काफी संभावनाए हैं, और सरकार लगातार इस क्षेत्र मे अपना प्रयास कर रही हैं, जिससे रीवा मे पर्यटन स्थलो को बढ़ाए जाए। यातायात thumb|280px|इन्दौर-रीवा रेलमार्ग रेल रीवा रेल मार्ग से देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा है जिससे की रीवा आसानी से पंहुचा जा सकता है। जैसे- दिल्ली,राजकोट, सूरत,नागपुर,जबलपुर,कानपुर,प्रयागराज,इंदौर,भोपाल,मैहर,बिलासपुर इत्यादि। रीवा रेेेेल्वे स्टेशन हैं, जहा सेे भोपाल, इंदौर,दिल्ली,जबलपुर,बिलासपुर,चिरमिरी,राजकोट,नागपुर केे लिए ट्रेन चलती हैै| सड़क रीवा सड़क मार्ग से निम्न शहरों से आसानी से पहुँचा जा सकता है और नियमित बसों का संचालन: भोपाल,इंदौर,जबलपुर,नागपुर,बिलासपुर,रायपुर,ग्वालियर,इलाहाबाद(प्रयागराज),बनारस,अमरकंटक,शहडोल,मैहर, सतना आदि शहरों से है। वायु रीवा में एक हवाईपट्टी है जहाँ से भोपाल के लिए फ्लाइट चलती है इसको हवाई अड्डा बनाने के घोषणा हो चुकी है जिससे विंध्य क्षेत्र भी व्यापार और पर्यटन स्थलों को टूटिस्ट आसानी से दर्शन कर सकेंगे। रीवा गान "रीवा गान" अरिन कुमार शुक्ला द्वारा लिखा गया गीत है। अरिन कुमार शुक्ला रीवा के ही निवासी है तथा उनकी उम्र 15 वर्ष है। अरिन कुमार शुक्ला इस छोटी उम्र मे भी 9 पुस्तकों का लेखन कर चुके है। उनकी सभी पुस्तके अमेज़न पर विक्रय हो रही है। रीवा गान - बिछिया-बीहड़-महिरा की कल कल मे है, घंटाघर-घोडा चौक की पल पल मे है। बघेली की मीठी सी धानी मे है, विंध्य की हस्ती, पुरानी राजधानी मे है। चचाई-पुरवा-कयोटि की आबरू, विंध्य की उचाइयों से हुई रूबरू। और रीवा की तारीफ मे क्या कहूँ क्या कहूँ। महामृत्युंजय के मंत्रोंच्चारण मे है, राम-हर्षण की स्तुति के कारण मे है। गोविंदगढ़ी के घुमड़ते तालाबों मे है, माँ मैहर मे उमड़ते सैलाबों मे है। बीरबल ने पाया है जिसे, तानसेन ने गाया है जिसे। और रीवा की तारीफ मे क्या कहूँ क्या कहूँ। चिराहुलनाथ स्वामी की ध्वजा मे है, चित्रकूट-गुप्त काशी की रजा मे है। रानी तालाब की मस्त मस्ती मे है, देउर कोठर की मिटती हस्ती मे है। दहाड़ मोहन की हमेशा ज़िंदा रहे, रीवा तारों मे हमेशा चुनिंदा रहे। और रीवा की तारीफ मे क्या कहूँ क्या कहूँ। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें रीवा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर श्रेणी:रीवा ज़िला श्रेणी:रीवा ज़िले के नगर *
अलवर
https://hi.wikipedia.org/wiki/अलवर
अलवर भारत के राजस्थान राज्य का एक नगर है।अलवर नगर दिल्ली से 150 किमी  दक्षिण में और जयपुर से 150 किमी उत्तर में स्थित है। यह भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है व राजस्थान में अलवर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। अलवर कई किलों, झीलों, हेरिटेज हवेलियों और प्रकृति भंडार के साथ पर्यटन का एक केंद्र है । यह नगर राजस्थान के जयपुर अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर के प्राचीन नाम 'मत्स्यनगर', 'अरवलपुर', 'उल्वर', ' शालवापुर', 'सलवार', 'हलवार ' रहे हैं। यह चारदीवारी और खाई से घिरे नगर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औधोगिक नगर हैं तथा आठवाँ बड़ा नगर हैं। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं। अलवर क्षेत्र का इतिहास अलवर एक ऐतिहासिक नगर है और इस क्षेत्र का इतिहास महाभारत से भी अधिक पुराना है। लेकिन महाभारत काल से इसका क्रमिक इतिहास प्राप्त होता है। महाभारत युद्ध से पूर्व यहाँ राजा विराट के पिता वेणु ने मत्स्यपुरी नामक नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। राजा विराट ने अपनी पिता की मृत्यु हो जाने के बाद मत्स्यपुरी से ३५ मील पश्चिम में विराट (अब बैराठ) नामक नगर बसाकर इस प्रदेश की राजधानी बनाया। इसी विराट नगरी से लगभग ३० मील पूर्व की ओर स्थित पर्वतमालाओं के मध्य सरिस्का में पाण्डवों ने अज्ञातवास के समय निवास किया था। तीसरी शताब्दी के आसपास यहाँ प्रतिहार वंशीय क्षत्रियों का अधिकार हो गया। इसी क्षेत्र में राजा बाधराज ने मत्स्यपुरी से ३ मील पश्चिम में एक नगर तथा एक गढ़ बनवाया। वर्तमान राजगढ़ दुर्ग के पूर्व की ओर इस पुराने नगर के चिह्न अब भी दृष्टिगत होते हैं। पाँचवी शताब्दी के आसपास इस प्रदेश के पश्चिमोत्तरीय भाग पर राज ईशर चौहान के पुत्र राजा उमादत्त के छोटे भाई मोरध्वज का राज्य था जो सम्राट पृथ्वीराज से ३४ पीढ़ी पूर्व हुआ था। इसी की राजधानी मोरनगरी थी जो उस समय साबी नदी के किनारे बहुत दूर तक बसी हुई थी। इस बस्ती के प्राचीन चिह्न नदी के कटाव पर अब भी पाए जाते हैं। छठी शताब्दी में इस प्रदेश के उत्तरी भाग पर भाटी क्षत्रियों का अधिकार था। राजौरगढ़ के शिलालेख से पता चलता है कि सन् ९५९ में इस प्रदेश पर गुर्जर प्रतिहार (राजपूत) वंशीय सावर के पुत्र मथनदेव का अधिकार था, जो कन्नौज के भट्टारक राजा परमेश्वर क्षितिपाल देव के द्वितीय पुत्र श्री विजयपाल देव का सामन्त था। पृथ्वीराज चौहान और मंगल निकुम्भ ने ब्यावर के राजपूतों की लड़कियों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। सन् १२०५ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से यह देश छीन कर पुन: निकुम्भ राजपूतों को दे दिया। १ जून १७४० रविवार को मौहब्बत सिंह की रानी बख्त कुँवर ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया। इसके पश्चात् सन् १७५६ में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी विशाल छतरी बनी हुई है। मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र प्रतापसिंह ने १७७५ ई. को अलवर राज्य की स्थापना की। अलवर को मेव नाहर खा के वंसज अलावल खां ने अपनी राजधानी बनाया था, उसके नाम पर ही इसका नाम अलवर पडा! ब्रिटिश गैज़ेटर के अनुसार अलवर का क्षेत्र इन निम्नलिखित मुस्लिम शाखाओ के प्रभुत्व के अनुसार बटा हुआ था। 1. वई क्षेत्र - इस क्षेत्र पर शेखावत राजपूतो का प्रभुत्व था आज का थाना गाज़ी का क्षेत्र कहलाता है। 2. नरुखंड़ - इस क्षेत्र पर नरुका और राजावत राजपूतो का प्रभुत्व हुआ करता था। अलवर के सभी राजा इस क्षेत्र से थे और इस क्षेत्र के अधिकांस युवा फौज बन कर देश की सेवा कर रहे हैं 3. मेवात क्षेत्र - इस क्षेत्र पर मेव जाति(मुस्लिम), मेव जाति अधिक पाई जाती है। । मेवो में जाट राजपूत समेत मिणाओ का मिश्रण है। राजा नाहर खां के वंसजो का काफी समय तक अलवर पर शासन रहा। हसन खां मेवाती इनमे प्रमुख नाम है। जिन्होंने अलवर के किले का निर्माण कराया। राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मेदान पर बाबर से टकराया और 12 हजार मेवो के साथ शहीद हो गया। सन 1716 में सौंख के एक शक्तिशाली जाट राजा हठी सिंह तोमर ने संपूर्ण मेवात क्षेत्र को जीतकर मुगल सत्ता का दमन किया और हिंदुओं की रक्षा करी । राजा हठी सिंह ने ब्रज से मुगलों को जड़ से समाप्त कर दिया था । अलवर के पर्यटन स्थल पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पड़ा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है नगर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्राहलय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है। इसी झगडे के कारण यह बंद पड़ा है, बाला किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है, सब कुछ गार्डो के हाथों में है, वे चाहें तो आपको घूमने दें, या मना कर दें। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं, पर अलवर का सौन्दर्य पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करता है। यह गुज्जर किला है। फतहगंज गुम्बद फतहगंज का मकबरा पाँच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमाँयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। यह प्राय ९ बजे से पहले भी खुल जाता है। इसे देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी जा सकते हैं। मोती डुंगरी का निर्माण १८८२ में हुआ था। यह १९२८ तक अलवर के शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुड़वाकर यहां इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था, वह डूब गया। जहाज डूबने पर महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत न बनने से यह फायदा हुआ कि पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ़ सकते हैं और नगर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं। पुर्जन विहार यह एक खूबसूरत बाग है, जिसके बीच में एक बड़ा हरित हाऊस है जिसे शिमला कहा जाता है। महाराज शियोधन सिंह ने १८६८ में इस बगीचे को बनवाया और महाराज मंगल सिंह ने १८८५ में शिमला का निर्माण कराया। इस बगीचे में अनेक छायादार मार्ग हैं और कई फव्वारे लगे हुए हैं। आगे दिया शीर्षक कंपनी बाग़ इसी का वर्णन है। कम्पनी बाग कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। शिमला (हरित हाउस) में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह नगर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और बीच में ऊपर एक शिव मंदिर है। होप सर्कल से सात सड़के विभिन्न स्थलों तक जाती है। एक घंटाघर तक जाती है जहाँ पर कलाकंद बाजार भी है। एक सड़क त्रिपोलिया गेट से सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। त्रिपोलिया में कई छोटे-मोटे मंदिर हैं। सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाजा बाजार पड़ते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। सिटी पैलेस सिटी पैलेस एक खूबसूरत परिसर है: गेट के पीछे एक मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। इस महल का निर्माण १७९३ में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। पूरी इमारत में जिलाधीश और पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट आदि के सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है। वैसे इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर तीन हॉल्स में विभक्त संग्रहालय भी है जिसे देखने का समय सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक है, शुक्रवार को अवकाश रहता है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखे हैं, दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगज़ेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री प्रदर्शित है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। इसी संग्रहालय की 'एक मियान में दो तलवार' यहाँ का विशेष आकर्षण है। सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक छोटा खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर कहते हैं। इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के पानी तक सीढियाँ बनी हैं। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। यहां कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा है। जलाशय के साथ मंदिरों की एक शृंखला भी है। दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बना संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी। विजय मंदिर झील महल यह खूबसूरत महल १९१८ में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवास था। इसका ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो वाले इन दोनों स्थलों तक पहुंचाने के लिए २०० रु लेते हैं। पारिवारिक ङागडे के कारण यह महल आजकल बंद है, यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है। बाला किला, अलवर सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके ऊपर अरावली की पहाड़ियाँ हैं, जिन पर बाला किला बना है। बाला किले की दीवार पूरी पहाड़ी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर नगर में यह सबसे पुरानी इमारत है, जो लगभग ९२८ ई० में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देख नहीं सकते, क्योंकि इसमे पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अलवर अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक अच्छा सड़क मार्ग है। दोनों तरफ छायादार पेड़ लगे हैं। रास्ते में पत्थरों की दीवारें दिखाई देती हैं, जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह ६ बजे से शाम ७ बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता का मंदिर इसी के रास्ते में है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को ९ बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए तब पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं। जय समन्द झील हरी-भरी पहाडियां केवल अलवर में ही नहीं है, इसके पास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। नगर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने १९१० में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर नजारा है। जय समन्द रोड बहुत ही परेशान करने वाला है। अत: जय समन्द, सिलीसेड और अलवर घूमने के लिए ऑटो के स्थान पर टैक्सी लीजिए। यह चार-पांच घंटे में आपको अंतर्राज्यीय बस अड्डे से अलवर पहुंचा देगी। इसके लिए टैक्सी वाले पर्यटकों से ४००-५०० रु लेते हैं। झील के पास रूकने की कोई व्यवस्था नहीं है। सिलीसेढ झील सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने १८४५ में करवाया था। इस झील से रूपारल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढ़कर १०.५ वर्ग किमी हो जाता है। झील के चारों ओर हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस झील को राजस्थान का नंदनकानन भी कहते हैं इस झील की भराव क्षमता लगभग २८ फीट हैं। वर्षा ऋतु में यहाँ पर बहुत पर्यटक आते हैं। इस झील के पूर्व दिशा में एक अन्य झील जयसमंद स्थित है। कुंडला कुण्डला गाँव चारों ओर से पर्वत से घिरा हुआ है। यहाँ का दृष्य बहुत हरा-भरा रहता है। इस स्‍थान को गरबा जी भी कहा जाता है । यह स्‍थाना पर्वतारोहियों के लिये भी विख्‍यात है । विभिन्‍न प्रकार की कैडैट्स यहां पर पर्वत रोहण के लिए आते हैं । यहां पर एक झरना भी है । जिसमें नहा कर लोग आनंद की अनुभूति करते हैं । झिलमिलदेह झील अजबगढ दौसा अलवर वाया अजबगढ थानागाजी रोड़ पर यह झील चारों ओर से अरावली श्रृंखलाओं से घिरे अजबगढ बाँध के एकदम निचे ( नहर क्षेत्र में ) स्थित है यहाँ पर एक छोटा सा घाट बना हुआ है जहाँ पर लोग कूद कूद कर नहाने का मोका नहीं गवाँते है। लेकिन वर्तमान में वर्षा के अभाव की वजह से यह झील अपना अस्तित्व बचाने की मुश्किल में है। इस झील के एक तरफ भारत की जानी पहचानी पाँच सीतारा होटल अम्नबाघ होटल है जो विदेशी पर्यटकों को अजबगढ भानगढ की ऐतिहासिक धरा पर बुलाने के लिए विश्व विख्यात है। वर्षाती दिनों में यदि अजबगढ बाँध पूर्ण रूप से भर जाए तो यहाँ का दृश्य मुम्बई और शिमला दोनों के मिश्रण जैसा हो जाता है क्योंकि अजबगढ बाँध समुद्र जैसा दृश्य दिखाने व इसके अन्दर पुरानी छत्तरीयाँ टापू की तरह और बाँध के ऊपरी छोर पर अजबगढ के 27 गुवाड़ा (गाँव) बसे हुए है जिसमें गुवाड़ा बिरकड़ी की सीमाओं में पाँच सीतारा होटल अमनबाग है जो प्रकृति की छँटाओं का आनंद लेने का अनोखा स्थान है। इसके अलावा अलवर में नैहड़ा की छतरी जिसमें मुख्यतः अजबगढ प्रतापगढ व थानागाजी के ऐतिहासिक खण्डर व किले महल शामिल है, ऐतिहासिक नगर भानगढ, पवित्र पूजनिय धाम नारायणी माता व ऋषि पाराशर महाराज का मंदिर है जो एक आस्था के साथ प्रकृति के सोन्द्रय लिय क्षेत्रीय लोगों के दिलों में बसा हुआ है। यहाँ का सुप्रसिद्ध नारायणी माता का मंदिर सती धाम है जिसकी शक्ति का आभास वहाँ जाते ही हो जाता है क्योंकि माँ की शक्ति की वजह से मंदिर के आगे आज भी पवित्र जल धारा बहती है जो नदी नाले से नहीं बल्कि समतल धरा से अपने आप निकल रही है, खास बात यह है कि यह धारा रूकी हुई नहीं बल्कि लगातार गतिशील है राजस्थान में यह धाम श्रद्धा के लिए व मनोकामना के लिए सुप्रसिद्ध है। अलवर की संस्कृति पहनावा अलवर में धोती- कुर्ता तथा साफा (सिर पे पहनने का) पुरुषों का पहनावा है जो कि एक रौबदार पहनावा है। तथा स्त्रीयां लहंगा-लूगड़ी पहनती हैं। संगीत अलवर में भपंग वाद्ययंत्र राजस्थानी लोकगीत की पहचान है। यह मेवाती संगीत संस्कृति की धरोहर है। इस वाद्ययंत्र के उस्ताद जहुर खान मेवाती माने जाते हैं। इनकी कहानी बहुत ही रोचक है। सालों पहले एक दिन मेवाती जी बीडी बेच रहे थे और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भपंग बजा रहे थे। उस समय अभिनेता दिलीप कुमार अलवर में शूटिंग कर रहे थे। उन्होंने मेवाती जी को भपंग बजाते हुए सुन लिया। उनसे प्रभावित होकर दिलीप जी उन्हें बॉलीवुड ले गए। वहां उन्होंने अनेक फिल्मों का पार्श्‍व संगीत तैयार किया जिनमें गंगा-जमुना, नया दौर और आंखे प्रमुख हैं। उन्होंने देश से बाहर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। अब वह अलवर में ही रहे हैं और वहीं भपंग बजाने की शिक्षा देते रहे। भपंग बजाने वाले सभी कलाकार मुस्लिम होते हुए भी शिव भक्त हैं: वह यह मानते हैं कि इस वाद्ययंत्र की उत्पति शिव के डमरू से हुई है। मानसून का जादू मानसून में अलवर की पहाडियां हरियाली से भर जाती हैं, झील पानी से भरी होती हैं और पहाडियों से गिरते जल स्रोत अलवर की निराली छटा पेश करते हैं। अलवर से दक्षिण-पश्चिम की तरफ 45 किलोमीटर दूर तालवृक्ष नाम की जगह है। वर्षा ऋतु के समय यहां घूमने का अपना ही आनंद है। सरिस्का-अलवर रोड पर कुशलगढ से 10 किलोमीटर का रास्ता प्राकतिक सौन्दर्य से भरा पड़ा है। इसी रास्ते पर गंगा-मन्दिर है और गर्म-ठंडे पानी के जलस्त्रोत है। अलवर से 25 किलोमीटर दूर नतनी का बरन गांव हैं। यहां से 6 किलोमीटर दूर नालदेश्वर नामक जगह है। यह दोनों जगह अपनी हरियाली के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर प्राकृतिक रूप से बना हुआ शिवलिंग भी है। सिलीसेड झील से 10 किलोमीटर दूर गर्भ जी और डेहरा गांव के निकट चुहाड सिद्ध नाम के ङारने हैं। इनसे थोडी ही दूरी पर विजय मंदिर पैलेस स्थित है। ठहरने का स्थान अलवर में रूकने के लिए बहुत सारे होटल हैं और यह सस्ते भी हैं। लेकिन इनमें से परिवारों के रूकने के लिए कुछ ही होटल उपयुक्त हैं। अलवर में रूकने के लिए अनेक वैभवशाली होटल भी हैं जहां ज्यादा पैसे देकर अनेक और भव्य सुविधाओं का लाभ लिया जा सकता है। यह सभी होटल अलवर के कुछ किलोमीटर के दायर में ही हैं। विरासत अलवर की सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक विरासत नीमराना-रन द हिल फोर्ट केसरोली अलवर से १२ किमी दूर है। इस किले का निर्माण १४वीं सदी में किया गया था। अब यह एक होटल में बदल चुका है, इसमें २१ कमरें हैं। इन कमरों के नाम बड़े ही राजसी शैली में रखे गए हैं जसे हिंडोला महल और सितारा महल। जब अलवर में पर्यटकों की संख्या कम होती है तो १ मई से ३१ अगस्त तक यहां आने वालों को २०-४० प्रतिशत की छुट दी जाती है। इस समय कमरे को सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक के लिए किराए पर लिया जा सकता है और इस पर होटल ६० प्रतिशत की छूट भी देता है। होटल ऊंटो की सवारी के लिए भी प्रबन्ध करता है। इसे भारत की सबसे पुरानी ऐतिहासिक विरासत कहा जाता है जहां आप रूक सकते हैं। यह होटल एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इसका परकोटा २१४ फुट ऊंचा है। इसका निर्माण यदुवंशी राजाओं ने१४वीं सदी में करवाया था। अलवर से लगभग ७ किलोमीटर दूर होटल बुर्ज हवेली है। यह हवेली अलवर की सबसे नवीन विरासतों में से एक है। इस हवेली को जून २००५ में होटल में परिवर्तित का दिया गया। यह २४० वर्ष पुरानी है और अलवर-राजगढ मार्ग पर बुर्ज गांव में स्थित है। इस होटल में सभागार, तरणताल और रेस्तरां आदि सुविधाएं दी जाती है। इसके अलावा यहां पर राजस्थानी, भारतीय, चाइनीज और कॉन्टिनेंटल व्यंजन परोसे जाते हैं। इनके अलावा सर्किट हाऊस भी एक विकल्प है जहां पर ठहरा जा सकते हैं। यह महाराज जयसिंह की विरासत है, सर्किट हाऊस अलवर की दक्षिण दिशा में रघु मार्ग और नेहरू मार्ग के बीच में स्थित है। यहां ठहरने के लिए आपको जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति की आवश्यकता पडती है। अनुमति प्राप्त करने के लिए आपको जिला मजिस्ट्रेट को फैक्स करना होता है। इसका फैक्स न. है २३३६१०१, टेलिफोन न. है २३३७५६५, इसके अलावा सिलीसेड में आर.टी.डी.सी. का होटल लेक पैलेस भी अच्छा विकल्प है। इसके अलावा और भी विकल्प है। खानपान नगर में खाने के बहुत सारे विकल्प है। बेकरी की कुछ दुकानें है लेकिन वहां पर केवल आईसक्रीम, पेस्ट्री और पिज्जा ही मिलते हैं। जिनका सेवन सब लोग नहीं कर सकते। नगर में बहुत से अच्छे रेस्तरां है।जिनमें से एक है प्रेम पवित्र भोजनालय। यह अपने राजस्थानी व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है विशेष तौर पर पालक पनीर कढी-पकौडी, गट्टे की सब्‍जी और मिस्सी रोटी के लिए। भोजन की विविधता इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप कहां ठहरते हैं। मोती डुंगरी बस टर्मिनल के पास अच्छे भोजनालय है। यहां पर अनेक व्यंजनों का आनंद लिया जा सकता है। इन सबके अलावा अलवर का मिल्क केक भी बहुत प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग इसे कलाकंद के नाम से पुकारते हैं। कलाकंद के लिए ठाकुर दास एण्ड सन्स की दुकान पूरे अलवर नगर में प्रसिद्ध है।अलवर का कलाकंद पूरे देश में बहुत पसंद किया जाता है। खरीदारी फोर्ट-पैलेस की अपनी दुकान है। इसका नाम नीमराना शॉप है। इस दुकान पर आप कपड़े, मोमबत्तियां आदि वस्तुएं खरीद सकते हैं। फोर्ट पैलेस के बिल्कुल नीचे दो दुकानें हैं। एक का नाम अमिका आर्टस है और दूसरी का श्याम सिल्वर क्राफ्ट। इन दुकानों से राजस्थानी स्मारिकाओं की खरीदारी की जा सकती है। अगर आप परंपरागत आभूषणों की खरीदारी करना चाहते हैं तो पुराने बाजार चले जाइए। यहां ३५-४० दुकानें हैं। यहां से मनपसंद आभूषणों की खरीदारी की जा सकती हैं। इन दुकानों की हाथ की बनी हुई पायल बहुत ही प्रसिद्ध है। स्थिति अलवर राजस्थान के उतर-पूर्व में अरावली की पहाडियों के बीच में स्थित है और दिल्ली के पास है। दूरी अलवर जयपुर से १४८ किलोमीटर और दिल्ली से १५६ किलोमीटर दूर है। यात्रा में लगने वाला समय: जयपुर से तीन घंटे, दिल्ली से साढे तीन घंटे मार्ग जयपूर से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ द्वारा शाहपूरा और अमेर होते हुए अलवर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ द्वारा धारूहेडा और मानेसर होते हुए अलवर पहुंचा जा सकता है। भ्रमण समय अलवर घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च का है लेकिन मानसून के समय भी अलवर घूमने जाया जा सकता है। उस समय अलवर की छटा देखने लायक होती है। आवागमन वायु मार्ग अलवर के सबसे नजदीक हवाई अड्डा सांगनेर है। यहां से अलवर पहुंचाने के लिए टैक्सी वाले ७००-८०० रू लेते हैं। रेल मार्ग रेलमार्ग द्वारा भी आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से दिल्ली-जयपुर, अजमेर-शताब्दी, जम्मू-दिल्ली और दिल्ली-जैसलमेर एक्सप्रेस द्वारा आसानी से अलवर रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है। यहां से आगे की यात्रा आप टैक्सी द्वारा कर सकते हैं। अगर आपने होटल में आरक्षण करवा रखा है तो होटल की गाडी आपको स्टेशन पर लेने आएगी। सडक मार्ग दिल्ली से अलवर (राष्ट्रीय राजमार्ग ८ से) धारूहेडा पहुँच कर बाएं भिवाडी की ओर मुडिए, थोड़ा आगे दायें भिवाडी-अलवर टोल मार्ग से आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। टॉल रोड पर चलने के लिए राजस्व नहीं देना पड़ता है। दिल्ली से गुड़गाँव, सोहना, फिरोजपुर झिरका, नौगाँव होकर भी अलवर पहुंचा जा सकता है। हालांकि यह दोनों राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं हैं, पर दोनों ही मार्ग अब अच्छे हैं। दोनों ही से दूरी लगभग समान १६० कि॰मी॰है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ राजस्थान में अलवर का अतीत भी बड़ा भव्य है (प्रभासाक्षी) अलवर श्रेणी:अलवर ज़िला श्रेणी:अलवर ज़िले के नगर
कलाहांडी
https://hi.wikipedia.org/wiki/कलाहांडी
कालाहांडी उड़ीसा के कलाहान्डी जिले का एक शहर है। ओड़िशा का वर्तमान कलाहान्डी जिला प्राचीन काल में दक्षिण कोसल का हिस्सा था। आजादी के बाद इसे ओड़िशा में शामिल कर लिया गया। उत्तर दिशा से यह नवपाडा और बालंगीर, दक्षिण में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और पूर्व में बूध एवं रायगढ़ जिलों से घिरा हुआ है। पूर्वी सीमा पर स्थित भवानीपटना जिला मुख्यालय है। 8197 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले इस जिले में जूनागढ़, करलापट, खरियर, अंपानी, बेलखंडी, योगीमठ और पातालगंगा आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। आकर्षण अमाथागुडा अमाथागुडा किला तेल नदी के दाएं तट पर स्थित है। यह क्षतिग्रस्त किला कितना पुराना है और कब बना था, इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इसकी स्थिति देखकर इतना जरूर कहा जा सकता है कि इसका अपने काल में बहुत अधिक सामरिक महत्व रहा होगा। किले के निकट ही तेल नदी पर एक पुराना पुल बना है। पुल से कुछ मीटर दूर एक नया पुल है जिसका एक हिस्सा 1977 में तेल नदी में आने वाली बाढ़ से बह गया था। असुरगढ़ किला असुरगढ़ के बाहरी हिस्से में स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि एक जमाने में यह गोसिंहा दैत्य का निवास स्थल था। इस असुर के कारण ही इस स्थान का नाम असुरगढ़ पड़ा था। त्रिभुजाकार में बना यह किला वर्तमान में क्षतिग्रस्त अवस्था में है। इसके पूर्वी द्वार पर देवी गंगा को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है। इसी प्रकार अन्य द्वारों पर काला पहाड़, वैष्णवी और बुद्धराजा को समर्पित मंदिर बने हुए हैं। किले के भीतर देवी डोकरी मंदिर है। देवी डोकरी किले की मुख्य देवी है। असुरगढ़ जिला मुख्यालय भवानीपटना से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। श्री रामकृष्ण आश्रम यह आश्रम कालाहांडी के मदनपुर-रामपुर ब्लॉक में स्थित है। आश्रम में रामकृष्ण परमहंस और उनकी पत्‍नी शारदामनी देवी व स्वामी विवेकानंद के विचारों की शिक्षा दी जाती है। आश्रम में बताया जाता है कि किस प्रकार मोक्ष प्राप्त किया जाए और जनसमुदाय के कल्याण हेतु किस प्रकार कार्य किया जाए। आश्रम दो हिस्सों में बंटा हुआ है। मुख्य आश्रम में एक मंदिर, आदिवासी छात्रों का हॉस्टल, वृद्धाश्रम, डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और साधुओं और कर्मचारियों के लिए कमरे बने हुए हैं। आश्रम ध्यान लगाने के लिए एक आदर्श स्थान है। जूनागढ़ कालाहांडी से 26 किलोमीटर दूर स्थित जूनागढ़ एक जमाने में कालाहांडी रियासत की राजधानी थी। यह स्थान अपने किले और मंदिरों के लिए खासा चर्चित है। यहां के मंदिरों में उडिया भाषा में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं। सती स्तंभ यहां का मुख्य आकर्षण है। जूनागढ़ राउरकेला से 180 किलोमीटर दूर है और भुवनेश्वर में यहां का करीबी एयरपोर्ट है। बेलखंडी यह स्थान तेल और उत्तेई नदी के संगम पर स्थित है। यह स्थान धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ पुरातत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां होने वाली खुदाई से 12वीं शताब्दी की एक इमारत का पता चला है। साथ ही सप्‍त मातृका और उमाशंकर महेश्वर की प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं। इस स्थान से प्राप्त अनेक बहुमूल्य और प्राचीन वस्तुओं को मंदिर परिसर के साथ बने एक संग्रहालय में रखा गया है। बेलखंडी भवानीपटना से 67 किलोमीटर की दूरी पर है। अंपानी जिला मुख्यालय से 77 किलोमीटर दूर स्थित अंपानी हिल्स से प्रकृति के सुंदर नजार देखे जा सकते हैं। यहां का जंगली वातावरण पर्यटकों को काफी लुभाता है। यहां की हलादीगुंदी घाटी पहाड़ियों की सुंदरता को और बढ़ा देती है। हिरण, सांभर, पेंथर आदि जानवरों को यहां उन्मुक्त विचरण करते हुए देखा जा सकता है। अंपानी से 5 किलोमीटर दूर स्थित गुडाहांडी में प्रागैतिहासिक कालीन गुफाओं को देखा जा सकता है। फुरली झरना यह खूबसूरत झरना भवानीपटना से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 30 फीट की ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल बेहद आकर्षक प्रतीत होता है। झरने के चारों तरफ की हरियाली इसे पिकनिक के लिए एक बेहतरीन जगह बनाती है। आवागमन वायु मार्ग जिला मुख्यालस से 25 किलोमीटर दूर उत्केला में एक वायुपट्टी है। भुवनेश्वर एयरपोर्ट यहां से 418 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग दक्षिण पूर्व रेलवे का राजपुर-विजियानगरम ब्रोड गैज रेलमार्ग इस जिले के 5 रेलवे स्टेशनों को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ता है। रायपुर, विजियानगर, राउरकेला, बालांगीर, संभलपुर, केसिंगा, नरला रोड और खरियर रोड आदि रेलवे स्टेशनों से कालाहांडी जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग भवानीपटना जिला मुख्यालय राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है। कटक, भुवनेश्वर, राउरकेला, संभलपुर आदि शहरों से यहां के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Blog of Kalahandia Kalahandia, an e-Group Club Map of Kalahandi Map of Kalahandi Important Phone Numbers Antodaya Kalahandi Indravati Project Sahabhagi Vikash Abhiyan श्रेणी:ओड़िशा के शहर श्रेणी:भारत की रियासतें श्रेणी:कलाहांडी ज़िला
रेलवे स्टेशन
https://hi.wikipedia.org/wiki/रेलवे_स्टेशन
thumb|कटरा रेल स्टेशन thumb|लखनऊ चारबाग रेल स्टेशन रेलवे स्टेशन, रेलगाड़ियों के रुकने का एवं यात्रियों के लिए ट्रेन या रेल पर चढ़ने उतरने का स्थान होता है। एक ट्रेन स्टेशन, रेलवे स्टेशन, रेलरोड स्टेशन या डिपो एक रेलवे सुविधा या क्षेत्र है जहाँ ट्रेनें नियमित रूप से यात्रियों, माल या दोनों को भरने अथवा उतारने के लिए रुकती हैं। इसमें आम तौर पर कम से कम एक प्लेटफॉर्म, एक ट्रैक और एक स्टेशन भवन होता है जो टिकट बिक्री, प्रतीक्षा गृह और सामान/माल सेवा जैसी सहायक सेवाएँ प्रदान करती है। यदि कोई स्टेशन सिंगल-ट्रैक लाइन पर है, तो ट्रैफिक की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए इसमें अक्सर एक पासिंग लूप होता है। ऐसे स्थान जहां यात्री कभी-कभी ट्रेन में चढ़ते या छोड़ते हैं, कभी-कभी एक छोटा प्लेटफॉर्म और एक प्रतीक्षा शेड होता है, लेकिन कभी-कभी एक संकेत से अधिक नहीं दर्शाया जाता है, उन्हें विभिन्न रूप से "स्टॉप", "फ्लैग स्टॉप", "हॉल्ट्स" कहा जाता है। या "अनंतिम रुकने वाले स्थान"। स्टेशन जमीनी स्तर पर, भूमिगत या ऊँचे हो सकते हैं। रेल लाइनों या अन्य परिवहन साधनों जैसे बसों, ट्रामों या अन्य रैपिड ट्रांजिट सिस्टम को इंटरसेक्ट करने के लिए कनेक्शन उपलब्ध हो सकते हैं। सन्दर्भ श्रेणी:रेलवे Railway Station को हिंदी में क्या कहते हैं? रेलवे स्टेशन को हिंदी में "लौह पथ गामिनी विराम बिंदु" और "लौह पथ गामिनी विश्राम स्थल" कहा जाता है। देशी भाषा में इसे कई बार "रेलगाड़ी पड़ाव स्थल" भी कहा जाता है। रेलवे का इतिहास (Railway’s History) भारतीय रेलवे का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह देश की विकास की गति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रेलवे का विकास 16 वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासनकाल में शुरू हुआ था। 1853 में भारत की पहली रेलगाड़ी बॉम्बे (आज के मुंबई) और ठाणे के बीच 34 किलोमीटर की दूरी पर चलने लगी। इस रेलगाड़ी का नाम "विक्टोरिया" रखा गया था। इसके बाद, अन्य शहरों में भी रेलवे लाइनें बनीं और रेलगाड़ियां चलने लगीं। यह ब्रिटिश शासनकाल में रेलवे का निर्माण मुख्य रूप से व्यापार, शिक्षा, स्थानीय प्रशासन और सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से हुआ। रेलवे ने लोगों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए, उन्हें अधिक यात्रा सुविधाएं प्रदान कीं और व्यापार को बढ़ावा दिया। समय के साथ, रेलवे का नेटवर्क और रेलगाड़ीयों की संख्या बढ़ती गई। नई लाइनें खोली गईं और अधिक शहरों को रेलवे से जोड़ा गया। भारतीय रेलवे ने तकनीकी उन्नति की और इलेक्ट्रिक इंजनों का उपयोग किया। आज, भारतीय रेलवे विश्व की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है जिसमें लाखों किलोमीटरों की लंबाई पर रेलगाड़ियां चलती हैं। रेलवे के माध्यम से लोग दूर दराज के स्थानों तक जा सकते हैं और अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकते हैं। भारतीय रेलवे ने अपनी सेवाएं और सुविधाएं भी मोडर्नीज़ेशन की हैं। ऑनलाइन टिकट बुकिंग, मोबाइल एप्लिकेशन, इलेक्ट्रॉनिक बोर्डिंग पास जैसी तकनीकी सुविधाएं लागू की गई हैं। इस प्रकार, भारतीय रेलवे का इतिहास एक गर्वनिदेश है जो देश के परिवहन के क्षेत्र में विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
राँची एक्सप्रेस
https://hi.wikipedia.org/wiki/राँची_एक्सप्रेस
राँची एक्सप्रेस झारखंड प्रान्त से प्रकाशित हिन्दी दैनिक है। बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:समाचार पत्र
हॉन्ग कॉन्ग
https://hi.wikipedia.org/wiki/हॉन्ग_कॉन्ग
हॉङ्कॉङ (), आधिकारिक तौर पर हॉङ्कॉङ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है इसके उत्तर में गुआङ्दोङ और पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में दक्षिण चीन सागर मौजूद है। हॉङ्कॉङ एक वैश्विक महानगर और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र होने के साथ-साथ एक उच्च विकसित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। "एक देश, दो नीति" के अंतर्गत और बुनियादी कानून के अनुसार, इसे सभी क्षेत्रों में "उच्च स्तर की स्वायत्तता" प्राप्त है, केवल विदेशी मामलों और रक्षा को छोड़कर, जो जनवादी गणराज्य चीन सरकार की जिम्मेदारी है। हॉङ्कॉङ की अपनी मुद्रा, कानून प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था, अप्रवास पर नियंत्रण, सड़क के नियम हैं और मुख्य भूमि चीन से अलग यहां की रोजमर्रा के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलु हैं। एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में आबाद होने के बाद हॉङ्कॉङ १८४२ में यूनाइटेड किंगडम का विशेष उपनिवेश बन गया। १९८३ में इसे एक ब्रिटिश निर्भर क्षेत्र के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया। १९९७ में जनवादी गणराज्य चीन को संप्रभुता हस्तांतरित कर दी गई। अपने विशाल क्षितिज और गहरे प्राकृतिक बंदरगाह के लिए प्रख्यात, इसकी पहचान एक ऐसे महानगरीय केन्द्र के रूप में बनी जहां के भोजन, सिनेमा, संगीत और परंपराओं में जहां पूर्व में पश्चिम का मिलन होता है। शहर की आबादी ९५% हान जाति के और अन्य ५% है। ७० लाख लोगों की आबादी और १,०५४ वर्ग किमी (४०७ वर्ग मील) जमीन के साथ हॉङ्कॉङ दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। इतिहास हॉङ्ग कॉङ्ग को ब्रिटेन से चीन ने सन् १८४३ मे खरीदा गया था। चीन ने हॉङ्ग कॉङ्ग को ब्लैक वार जीतने के बाद लिया था। उसके बाद न्यू कोव लंच और लैंडो ने उसे ९९ वर्ष कि लीस पर छोड़ा था। उसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान ने उसे ले लिया था। बाद मे जापानी सैनिक मारे गये थे। जापान हार गया था व हॉङ्ग कॉङ्ग मे क्रांति आ गयी थी। चीन में, युद्ध के बाद, कुओमिंटैंग और कम्युनिस्ट हॉङ्ग कॉङ्ग प्रवासन के खिलाफ लड़े थे। बाद में कई कम्युनिस्ट सरकार में हॉङ्ग कॉङ्ग स्थानांतरित हो गया। १९ दिसंबर, १९८४ को चीन और ब्रिटेन के बीच हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज (चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा) पर हस्ताक्षर किए गए। हॉङ्ग कॉङ्ग में हिंसक प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। विवादित प्रत्यर्पण बिल विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों को दो महीने से ज्यादा का वक्त हो का है। अब लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। दो दिन से प्रदर्शनकारियों हॉङ्ग कॉङ्ग एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले रखा है। उधर चीन की सरकार प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं बैठेगा। हालांकि, यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो दशकों पुराने हैं। ९९ साल की लीज पर किया गया था चीन के हवाले वास्तव में, हॉङ्ग कॉङ्ग अन्य चीनी शहरों से काफी अलग है। १५० साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हॉङ्ग कॉङ्ग को ९९ साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हॉङ्ग कॉङ्ग द्वीप पर १८४२ से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और १९५० में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा उछाल आया। चीन में अस्थिरता, गरीबी या उत्पीड़न से भाग रहे लोग इस क्षेत्र की ओर रुख करने लगे। १९८४ में हुआ था सौदा पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे ९९ साल की लीज की समयसीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हॉङ्ग कॉङ्ग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हॉङ्ग कॉङ्ग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने १९८४ में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हॉङ्ग कॉङ्ग को १९९७ में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हॉङ्ग कॉङ्ग ५० वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा। विवाद की जड़ १९९७ में जब हॉङ्ग कॉङ्ग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम २०४७ तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन २०१४ में हांगकांग में ७९ दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बीजिंग का कब्जा हॉङ्ग कॉङ्ग का अपना कानून और सीमाएं हैं। साथ ही खुद की विधानसभा भी है। लेकिन हांगकांग में नेता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को १,२०० सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। समिति में ज्यादातर बीजिंग समर्थक सदस्य होते हैं। क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी ७० सदस्य, विधान परिषद, सीधे हॉङ्ग कॉङ्ग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं। बिना चुनाव चुनी गईं सीटों पर बीजिंग समर्थक सांसदों का कब्जा रहता है। चीनी पहचान से नफरत हॉङ्ग कॉङ्ग में ज्यादातर लोग चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हॉङ्ग कॉङ्ग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल ११ फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि ७१ फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक होने पर गर्व महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि हॉङ्ग कॉङ्ग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन की नाक में दम कर रखा है। हॉङ्गकॉङ्ग में हिंसक प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। विवादित प्रत्यर्पण बिल विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों को दो महीने से ज्यादा का वक्त हो का है। अब लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। दो दिन से प्रदर्शनकारियों हॉङ्ग कॉङ्ग विमानपत्तन को अपने कब्जे में ले रखा है। उधर चीन की सरकार प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं ठेगा। हालांकि, यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो दशकों पुराने हैं। ९९ साल की लीज पर किया गया था चीन के हवाले वास्तव में, हॉङ्ग कॉङ्ग अन्य चीनी शहरों से काफी अलग है। १५० साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हॉङ्ग कॉङ्ग को ९९ साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हॉङ्ग कॉङ्ग द्वीप पर १८४२ से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और १९५० में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा उछाल आया। चीन में अस्थिरता, गरीबी या उत्पीड़न से भाग रहे लोग इस क्षेत्र की ओर रुख करने लगे। १९८४ में हुआ था सौदा पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे ९९ साल की लीज की समयसीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हॉङ्ग कॉङ्ग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हॉङ्ग कॉङ्ग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने १९८४ में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हॉङ्ग कॉङ्ग को १९९७ में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हॉङ्ग कॉङ्ग ५० वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा। विवाद की जड़ १९९७ में जब हॉङ्ग कॉङ्ग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम २०४७ तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन २०१४ में हॉङ्ग कॉङ्ग में ७९ दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बीजिंग का कब्जा हॉङ्ग कॉङ्ग का अपना कानून और सीमाएं हैं। साथ ही खुद की विधानसभा भी है। लेकिन हांगकांग में नेता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को १,२०० सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। समिति में ज्यादातर बीजिंग समर्थक सदस्य होते हैं। क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी ७० सदस्य, विधान परिषद, सीधे हॉङ्ग कॉङ्ग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं। बिना चुनाव चुनी गईं सीटों पर बीजिंग समर्थक सांसदों का कब्जा रहता है। चीनी पहचान से नफरत हॉङ्ग कॉङ्ग में अधिकतर लोग चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हॉङ्ग कॉङ्ग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल ११ फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि ७१ फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक होने पर गर्व महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि हॉङ्ग कॉङ्ग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन की नाक में दम कर रखा है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ चीन हॉङ्ग कॉङ्ग के साथ अपनी सीमा मिटा रहा है श्रेणी:चीनी जनवादी गणराज्य के विशेष प्रशासनिक क्षेत्र श्रेणी:हाँगकाँग
टाटा घराना
https://hi.wikipedia.org/wiki/टाटा_घराना
REDIRECT टाटा समूह
बरेली
https://hi.wikipedia.org/wiki/बरेली
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित बरेली जनपद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक के राष्ट्रीय राजमार्ग के बीचों-बीच स्थित है। प्राचीन काल से इसे बोलचाल में बांस बरेली का नाम दिया जाता रहा और अब यह बरेली के नाम से ही पहचाना जाता है। इस जनपद का शहर महानगरीय है। यह उत्तर प्रदेश में आठवां सबसे बड़ा नगर और भारत का ५०वां सबसे बड़ा शहर है। बरेली उत्तराखंड राज्य से सटा जनपद है। इसकी बहेड़ी तहसील उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर की सीमा के निकट है।रामगंगा नदी के तट पर बसा यह शहर प्राचीन रुहेलखंड का राजधानी मुख्यालय रहा है। बरेली का राज्य दर्जा प्राप्त महात्मा ज्योतिबा फूले रुहेलखंड विश्विद्यालय होने की वजह से उच्च शिक्षा के लिए इस विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र बरेली और मुरादाबाद मंडल के जिन नौ जिलों तक विस्तारित है, वे जिले ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौर में रुहेलखंड का हिस्सा रहे। ऐसे में आज भी बरेली को रुहेलखंड का मुख्यालय ही माना जाता है।महाभारत काल में बरेली जनपद की तहसील आंवला का हिस्सा पांचाल क्षेत्र हुआ करता था। ऐसे में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है। धार्मिक महत्व के चलते बरेली का खास स्थान है। नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन मंदिरों से आच्छादित होने के कारण बरेली को नाथ नगरी भी कहा जाता है। शहर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत स्थापित है,जो सुन्नी बरेलवी मुसलमानों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।इसलिए बरेली को "बरेली शरीफ"/शहर ए आला हज़रत भी कहते हैं।बरेली में एक और विश्व प्रिसिद्ध दरगाह शाह सकलैन मियाँ खानकाहे सकलैनिया शराफतिया भी हैं जिनके पूरे विश्व में लाखों मुरीद हैं जिनके जनाज़े में लाखों की तादाद में लोग मौजूद थे ख्वाजा क़ुतुब भी यहीँ है। और खानकाह नियाजिया भी इसी शहर में है। राधेश्याम रामायण के प्रसिद्ध रचयिता पंडित राधेश्याम शर्मा कथावाचक इसी शहर के थे। मठ तुलसी स्थल भी इसी शहर में है। देश-प्रदेश के प्राचीन और प्रमुख महाविद्यालयों में शुमार बरेली कॉलेज का भी ऐतिहासिक महत्व है। देश के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इस शहर के इज्जतनगर में बड़े कैंपस में स्थापित हैं। बॉलीवुड फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री प्रियंका चौपड़ा और पर्दे की कलाकर दिशा पाटनी बरेली से ही हैं।चंदा मामा दूर के...जैसी बाल कविता के रचयिता साहित्यकार निरंकार देव सेवक भी बरेली के ही थे। बरेली पत्रकारिता के शीर्ष स्तम्भ चन्द्रकान्त त्रिपाठी की कर्मस्थली है। वर्तमान में बरेली से संतोष गंगवार सांसद है। संतोष गंगवार 8वी बार सांसद बने है। वही आंवला से विधायक धर्मपाल सिंह यूपी की योगी सरकार में पशुधन कल्याण मंत्री है। इसके अलावा धर्मपाल जी के पास अल्पसंख्यक और हज विभाग भी है। यहां मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार अनूप कुमार मिश्रा है जो पिछले 16 सालो से एबीपी नेटवर्क में कार्य कर रहे है। बरेली में प्रमुख समाचार पत्रों में अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमृत विचार, आज, जनमोर्चा है। इसके अलावा डिजिटल प्लेटफार्म में दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, स्वाभिमान टीवी, डेली इनसाइडर, न्यूज टुडे नेटवर्क है। बरेली में कई निजी मेडिकल कालेज है। जिसमे श्री राम मूर्ति मेडिकल कालेज, रुहेलखंड मेडिकल कालेज, राजश्री मेडिकल कालेज, गंगाचरण आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज के अलावा बांस मंडी में।सरकारी मेडिकल कालेज भी है। इसके अलावा यहां के मेयर डॉ उमेश गौतम है, जिनका अपना मिशन अस्पताल है और इनवर्तिज यूनिवर्सिटी है। आने वाले वक्त में बरेली को महानगर का दर्जा प्राप्त होगा। बरेली शहर कि जनसंख्या करीब 15 लाख के करीब है। इतिहास प्राचीन इतिहास वर्तमान बरेली क्षेत्र प्राचीन काल में पांचाल राज्य का हिस्सा था। महाभारत के अनुसार तत्कालीन राजा द्रुपद तथा द्रोणाचार्य के बीच हुए एक युद्ध में द्रुपद की हार हुयी, और फलस्वरूप पांचाल राज्य का दोनों के बीच विभाजन हुआ। इसके बाद यह क्षेत्र उत्तर पांचाल के अंतर्गत आया, जहाँ के राजा द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा मनोनीत हुये। अश्वत्थामा ने संभवतः हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ राज्य पर शासन किया। उत्तर पांचाल की तत्कालीन राजधानी, अहिच्छत्र के अवशेष बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित रामनगर के समीप पाए गए हैं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार गौतम बुद्ध ने एक बार अहिच्छत्र का दौरा किया था। यह भी कहा जाता है कि जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अहिच्छत्र में कैवल्य प्राप्त हुआ था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, बरेली अब भी पांचाल क्षेत्र का ही हिस्सा था, जो कि भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था।Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.85 चौथी शताब्दी के मध्य में महापद्म नन्द के शासनकाल के दौरान पांचाल मगध साम्राज्य के अंतर्गत आया, तथा इस क्षेत्र पर नन्द तथा मौर्य राजवंश के राजाओं ने शासन किया।Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.206 क्षेत्र में मिले सिक्कों से मौर्यकाल के बाद के समय में यहाँ कुछ स्वतंत्र शासकों के अस्तित्व का भी पता चलता है।Lahiri, B. (1974). Indigenous States of Northern India (Circa 200 B.C. to 320 A.D.) , Calcutta: University of Calcutta, pp.170-88Bhandare, S. (2006). Numismatics and History: The Maurya-Gupta Interlude in the Gangetic Plain in P. Olivelle ed. Between the Empires: Society in India 300 BCE to 400 CE, New York: Oxford University Press, , pp.76,88 क्षेत्र का अंतिम स्वतंत्र शासक शायद अच्युत था, जिसे समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, जिसके बाद पांचाल को गुप्त साम्राज्य में शामिल कर लिया गया था।Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.473 छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में गुप्त राजवंश के पतन के बाद इस क्षेत्र पर मौखरियों का प्रभुत्व रहा। सम्राट हर्ष (६०६-६४७ ई) के शासनकाल के समय यह क्षेत्र अहिच्छत्र भुक्ति का हिस्सा था। चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग ने भी लगभग ६३५ ई में अहिच्छत्र का दौरा किया था। हर्ष की मृत्यु के बाद इस क्षेत्र में लम्बे समय तक अराजकता और भ्रम की स्थिति रही। आठवीं शताब्दी की दूसरी तिमाही में यह क्षेत्र कन्नौज के राजा यशोवर्मन (७२५- ५२ ईस्वी) के शासनाधीन आया, और फिर उसके बाद कई दशकों तक कन्नौज पर राज करने वाले अयोध राजाओं के अंतर्गत रहा। नौवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों की शक्ति बढ़ने के साथ, बरेली भी उनके अधीन आ गया, और दसवीं शताब्दी के अंत तक उनके शासनाधीन रहा। गुर्जर प्रतिहारों के पतन के बाद क्षेत्र के प्रमुख शहर, अहिच्छत्र का एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रभुत्व समाप्प्त होने लगा। राष्ट्रकूट प्रमुख लखनपाल के शिलालेख से पता चलता है कि इस समय तक क्षेत्र की राजधानी को भी वोदमायुत (वर्तमान बदायूं) में स्थानांतरित कर दिया गया था। स्थापना तथा मुगल काल लगभग १५०० ईस्वी में क्षेत्र के स्थानीय शासक राजा जगत सिंह कठेरिया ने जगतपुर नामक ग्राम को बसाया था, जहाँ से वे शासन करते थे - यह क्षेत्र अब भी वर्तमान बरेली नगर में स्थित एक आवासीय क्षेत्र है। १५३७ में उनके पुत्रों, बांस देव तथा बरल देव ने जगतपुर के समीप एक दुर्ग का निर्माण करवाया, जिसका नाम उन दोनों के नाम पर बांस-बरेली पड़ गया। इस दुर्ग के चारों ओर धीरे धीरे एक छोटे से शहर ने आकार लेना शुरू किया। १५६९ में बरेली मुगल साम्राज्य के अधीन आया, और अकबर के शासनकाल के दौरान यहाँ मिर्जई मस्जिद तथा मिर्जई बाग़ का निर्माण हुआ। इस समय यह दिल्ली सूबे के अंतर्गत बदायूँ सरकार का हिस्सा था। १५९६ में बरेली को स्थानीय परगने का मुख्यालय बनाया गया था।लाल १९८७, पृ - ६ इसके बाद विद्रोही कठेरिया राजपूतों को नियंत्रित करने के लिए मुगलों ने बरेली क्षेत्र में वफादार अफगानों की बस्तियों को बसाना शुरू किया। शाहजहां के शासनकाल के दौरान बरेली के तत्कालीन प्रशासक, राजा मकरंद राय खत्री ने १६५७ में पुराने दुर्ग के पश्चिम में लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर एक नए शहर की स्थापना की।लाल १९८७, पृ - ६ इस शहर में उन्होंने एक नए किले का निर्माण करवाया, और साथ ही शाहदाना के मकबरे, और शहर के उत्तर में जामा मस्जिद का भी निर्माण करवाया।लाल १९८७, पृ - ६ मकरंदपुर, आलमगिरिगंज, मलूकपुर, कुंवरपुर तथा बिहारीपुर क्षेत्रों की स्थापना का श्रेय भी उन्हें, या उनके भाइयों को दिया जाता है। १६५८ में बरेली को बदायूँ प्रांत की राजधानी बनाया गया। औरंगजेब के शासनकाल के दौरान और उसकी मृत्यु के बाद भी क्षेत्र में अफगान बस्तियों को प्रोत्साहित किया जाता रहा। इन अफ़गानों को रुहेला अफ़गानों के नाम से जाना जाता था, और इस कारण क्षेत्र को रुहेलखण्ड नाम मिला। रुहेलखण्ड राज्य औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दिल्ली के मुगल शासक कमजोर हो गये तथा अपने राज्य के जमींदारों, जागीरदारों आदि पर उनका नियन्त्रण घटने लगा। उस समय इस क्षेत्र में भी अराजकता फैल गयी तथा यहाँ के जमींदार स्वतन्त्र हो गये। इसी क्रम में, रुहेलखण्ड भी मुगल शासन से स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा, और बरेली रुहेलखण्ड की राजधानी बनी। १७४० में अली मुहम्मद रुहेलखण्ड शासक बने, और उनके शासनकाल में रुहेलखण्ड की राजधानी बरेली से आँवला स्थानांतरित की गयी। १७४४ में अली मुहम्मद ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया, और राजधानी अल्मोड़ा पर कब्ज़ा कर लिया, और सात महीनों तक उनकी सेना अल्मोड़ा में ही रही। इस समय में उन्होंने वहां के बहुत से मंदिरों को नुकसान भी पहुंचाया। हालाँकि अंततः क्षेत्र के कठोर मौसम से तंग आकर, और कुमाऊँ के राजा द्वारा तीन लाख रुपए के हर्जाने के भुगतान पर, रुहेला सैनिक वापस बरेली लौट गये। इसके दो वर्ष बाद मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह ने क्षेत्र पर आक्रमण किया, और अली मुहम्मद को बन्दी बनाकर दिल्ली ले जाया गया। एक वर्ष बाद, १७४८ में अली मुहम्मद वहां से रिहा हुए, और वापस आकर फिर रुहेलखण्ड के शासक बने, परन्तु इसके एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी, और उन्हें राजधानी आँवला में दफना दिया गया। अंगूठाकार|बरेली में स्थित हाफिज रहमत खान का मकबरा, मई १७८९ अली मुहम्मद के पश्चात उनके पुत्रों के संरक्षक, हाफ़िज़ रहमत खान रुहेलखण्ड के अगले शासक हुए। इसी समय में फर्रुखाबाद के नवाब ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया, परन्तु हाफ़िज़ रहमत खान ने उनकी सेना को पराजित कर नवाब को मार दिया। इसके बाद वह उत्तर की ओर सेना लेकर बढ़े, और पीलीभीत और तराई पर कब्ज़ा कर लिया। फर्रुखाबाद के नवाब की मृत्यु के बाद अवध के वज़ीर सफदरजंग ने उनकी संपत्ति को लूट लिया, और इसके कारण रुहेलखण्ड और फर्रुखाबाद ने एक साथ संगठित होकर सफदरजंग को हराया, इलाहाबाद की घेराबन्दी की, और अवध के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। इसके परिमाणस्वरूप वजीर ने मराठों से सहायता मांगी, और उनके साथ मिलकर आँवला के समीप स्थित बिसौली में रुहेलाओं को पराजित किया। उन्होंने चार महीने तक पहाड़ियों की तलहटी में रुहेलाओं को कैद रखा; लेकिन अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमण के समय उपजे हालातों में दोनों के बीच संधि हो गयी, और हाफिज खान पुनः रुहेलखण्ड के शासक बन गये। १७५४ में जब शुजाउद्दौला अवध के अगले वज़ीर बने, तो हाफिज भी रुहेलखण्ड की सेना के साथ उन पर आक्रमण करने निकली मुगल सेना में शामिल हो गये, लेकिन वज़ीर ने उन्हें ५ लाख रुपये देकर खरीद लिया। १७६१ में हाफ़िज़ रहमत खान ने पानीपत के तृतीय युद्ध में अफ़ग़ानिस्तान तथा अवध के नवाबों का साथ दिया, और उनकी संयुक्त सेनाओं ने मराठों को पराजित कर उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य के विस्तार को अवरुद्ध कर दिया। अहमद शाह के आगमन, और शुजाउद्दौला के ब्रिटिश सत्ता से संघर्षों का फायदा उठाकर हाफ़िज़ ने उन वर्षों के दौरान इटावा पर कब्ज़ा किया, और लगातार अपने शहरों को मजबूत करने के साथ-साथ और नए गढ़ों की स्थापना करते रहे। १७७० में, नजीबाबाद के रुहेला शासक नजीब-उद-दौला सिंधिया और होल्कर मराठा सेना के साथ आगे बढ़े, और उन्होंने हाफ़िज़ खान को हरा दिया, जिस कारण हाफ़िज़ को अवध के वज़ीर से सहायता मांगनी पड़ी। शुजाउद्दौला ने मराठों को ४० लाख रुपये का भुगतान किया, और वे रुहेलखण्ड से वापस चले गए। इसके बाद, अवध के नवाब ने हाफ़िज़ खान से इस मदद के लिए भुगतान करने की मांग की। जब हाफ़िज़ उनकी यह मांग पूरी नहीं कर पाए, तो उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स और उनके कमांडर-इन-चीफ, अलेक्जेंडर चैंपियन की सहायता से रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया। १७७४ में दौला और कंपनी की संयुक्त सेना ने हाफ़िज़ को हरा दिया, जो मीराँपुर कटरा में युद्ध में मारे गए, हालाँकि अली मुहम्मद के पुत्र, फ़ैजुल्लाह ख़ान युद्ध से बचकर भाग गए। कई वार्ताओं के बाद उन्होंने १७७४ में ही शुजाउद्दौला के साथ एक संधि की, जिसके तहत उन्होंने सालाना १५ लाख रुपये, और ९ परगनों को अपने शासनाधीन रखा, और शेष रुहेलखण्ड वज़ीर को दे दिया। १७७४ से १८०० तक रुहेलखण्ड प्रांत अवध के नवाब द्वारा शासित था। अवध राज में सआदत अली को बरेली का गवर्नर नियुक्त किया गया था। १८०१ तक, ब्रिटिश सेना का समर्थन करने के लिए संधियों के कारण सब्सिडी बकाया हो गई थी। कर्ज चुकाने के लिए, नवाब सआदत अली खान ने १० नवंबर १८०१ को हस्ताक्षरित संधि में रुहेलखण्ड को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। कम्पनी शासन १८०१ में बरेली समेत पूरा रुहेलखण्ड क्षेत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिपत्य में आया था, और तत्कालीन गवर्नर जनरल के भाई हेनरी वेलेस्ली को बरेली में स्थित आयुक्तों के बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। १८०५ में एक पिंडारी, अमीर खान ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, लेकिन उसे बाहर खदेड़ दिया गया। इसके बाद इस क्षेत्र को दो जिलों में व्यवस्थित किया गया - मुरादाबाद तथा बरेली, जिनमें से बाद वाले जिले का मुख्यालय बरेली नगर में था। नगर में इस समय कई नए आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों का गठन किया गया, और इसे नैनीताल, पीलीभीत, मुरादाबाद तथा फर्रुखाबाद से जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण हुआ। १८११ में नगर के दक्षिण की ओर नकटिया नदी के पश्चिम में बरेली छावनी की स्थापना की गयी, जहाँ एक छोटे से दुर्ग का निर्माण किया गया था। छावनी क्षेत्र में उस समय पूरे नगर से कहीं अधिक भवन थे। कम्पनी शासनकाल के दौरान, जिले भर में कम्पनी के विरुद्ध असंतोष की भावना थी। १८१२ में राजस्व की मांग में भारी वृद्धि, और फिर १८१४ में एक नए गृह कर के लागू होने से अंग्रेजों के खिलाफ काफी आक्रोश हुआ। "व्यापार अभी भी ठप्प पड़ा था, दुकानें बंद हो गईं और कई लोग करों के उन्मूलन की मांग के साथ न्यायालय के पास इकट्ठे हुए।" मजिस्ट्रेट डेम्बलटन, जो पहले से ही अलोकप्रिय थे, ने एक कोतवाल को मूल्यांकन करने का आदेश देकर स्थिति को और बिगाड़ दिया। फलस्वरूप कैप्टन कनिंघम के नेतृत्व में सिपाहियों और विद्रोही जनता के बीच हुई झड़प में, लगभग तीन से चार सौ लोग मारे गए। १८१८ में ग्लिन को बरेली के मजिस्ट्रेट और कार्यवाहक न्यायाधीश, और साथ ही बुलंदशहर के संयुक्त मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात किया गया था। बरेली जिले के कुछ हिस्सों से १८१३-१४ में शाहजहाँपुर जिले का, जबकि १८२४ में बदायूँ जिले का गठन किया गया। १८५७ का विद्रोह बरेली १८५७ के विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र था। मेरठ से शुरू हुए विद्रोह की खबर १४ मई १८५७ को बरेली पहुंची। इस समय उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में दंगे हुए, और बरेली, बिजनौर और मुरादाबाद में मुसलमानों ने मुस्लिम राज्य के पुनरुद्धार का आह्वान किया। ३१ मई को जब अंग्रेज सिपाही चर्च में प्रार्थना कर रहे थे, तब तोपखाना लाइन में सूबेदार बख्त खान के नेतृत्व में १८वीं और ६८वीं देशज रेजीमेंट ने विद्रोह कर दिया, और सुबह ११ बजे कप्तान ब्राउन का मकान जला दिया गया। इसके बाद ६८वीं पैदल सेना ने अपनी लाइन के पास के यूरोपियनों पर आक्रमण किया। छोटी-छोटी टुकड़ियां अलग-अलग बंगलों की ओर चल पड़ीं जबकि बाकी बचे सिपाहियों ने इधर-उधर भागना चाहने वाले अंग्रेजों को पकड़ने का प्रबंध किया। इस हमले से डरे-सहमे यूरोपियन लोग घुड़सवारों की लाइन की ओर दौड़े और वहां जाते ही नेटिव घुड़सवार रेजिमेंट को विद्रोहियों पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया, पर उस रेजिमेंट ने भी विद्रोह कर दिया। छावनी में विद्रोह सफल होने की सूचना शहर में फैलते ही जगह-जगह अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए, और शाम चार बजे तक बरेली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था। इस दिन १६ अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिनमें ब्रिगेडियर सिवाल्ड, कप्तान ब्राउन, सार्जेंट वाल्डन, कैप्टन कर्बी, लेफ्टिनेंट फ्रेजर, सेशन जज रेक्स, कर्नल ट्रूप, कैप्टन रॉबर्टसन और जेलर हैंस ब्रो आदि शामिल थे। बचे हुए लोग नैनीताल की तरफ भाग गए, जिनमें से लगभग बत्तीस अधिकारी नैनीताल तक सही-सलामत पहुंच सके। अंग्रेजी निशान उतार फेंककर बरेली में स्वतंत्रता का हरित ध्वज फहराते ही नेटिव तोपखाने के मुख्य सूबेदार बख्त खान ने सारी नेटिव सेना का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। फिर उन्होंने अंतिम रुहेला शासक हाफ़िज़ रहमत खान के पोते, खान बहादुर खान के नाम का जयघोष करके दिल्ली के बादशाह के सूबेदार की हैसियत से रुहेलखंड का शासन भी अपने हाथ में लिया। बरलेी में स्थित यूरोपियनों के घर-द्वारो को जलाकर, लूटकर भस्म करने के बाद फिर कैद किए गए यूरोपियनों को खानबहादुर ने अपने सामने बुलवायां और उनकी जांच के लिए एक कोर्ट नियुक्त किया। इन अपराधियों में बदायूँ प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर के दामाद- डाॅ ‘हे’, बरेली के सरकारी काॅलेज के प्रिंसिपल डाॅ. कर्सन और बरेली के जिला मजिस्ट्रेट भी थे। अलग-अलग आरोपों के कारण इन सभी को फांसी का दंड सुनाया गया और छह यूरोपियन लोगों को तुरंत फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस तरह अपना सिंहासन पक्का जमाने के बाद खान बहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र होने का समाचार दिल्ली भेजा और फिर बख्त खान के नेतृत्व में सभी सैनिक दिल्ली की ओर चल दिए। विद्रोह के सफल होने के बाद पहली जून को विजय जुलूस निकाला गया और कोतवाली के समीप एक ऊंचे चबूतरे पर खान बहादुर खान को बैठाकर उनकी ताजपोशी की गई, और जनता की उपस्थिति में उन्हें बरेली का नवाब घोषित कर दिया गया। इसके बाद खानबहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र हो जाने का समाचार दिल्ली भेजा। ११ माह तक बरेली आजाद रहा। इस अवधि के दौरान खान बहादुर खां ने शोभाराम को अपना दीवान बनाया, १ जून १८५७ को बरेली में फौज का गठन किया गया, और स्वतंत्र शासक के रूप में बरेली से चांदी के सिक्के जारी किए। १३ मई १८५८ को ब्रिटिश सेना की ९वीं रेजिमेंट ऑफ़ फुट के कमांडर, कॉलिन कैंपबेल, प्रथम बैरन क्लाइड ने बरेली पर आक्रमण कर दिया, और ९३ वीं (सदरलैंड) हाईलैंडर्स के कप्तान विलियम जॉर्ज ड्रमंड स्टुअर्ट की सहायता से लड़ाई में विजय प्राप्त कर ब्रिटिश शासन बहाल किया। कुछ विद्रोहियों को पकड़ लिया गया और उन्हें मौत की सजा दी गई। परिमाणस्वरूप १८५७ का विद्रोह बरेली में भी विफल हो गया। खान बहादुर खान नेपाल भाग निकले, लेकिन नेपाल नरेश जंग बहादुर ने उन्हें हिरासत में लेकर अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया। 1 जनवरी 1858 को उन्हें मुकदमे के लिए बरेली लाकर छावनी में रखा गया। मुकदमा 1 फरवरी को शुरू हुआ, जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और २४ फरवरी १८६० को कोतवाली में फांसी दे दी गई। उन्हें पुरानी जिला जेल के सामने दफन किया गया जहां आज भी उनकी मजार है। खान बहादुर खान के अतिरिक्त २५७ अन्य क्रांतिकारियों को भी कमिश्नरी के समीप एक बरगद के पेड़ के नीचे फांसी दे दी गयी। ब्रिटिश राज १८५८ में जब बरेली पुनः ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, तो छावनी क्षेत्र में नियमित ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों की तैनाती की गयी। छावनी तब मुख्य रूप से तीन भागों में बंटी हुई थी; पूर्वी भाग में भारतीय इन्फैंट्री लाइनें स्थित थी, मध्य भाग में ब्रिटिश इन्फैंट्री लाइनें और एक भारतीय बटालियन थी, जबकि अर्टिलरी लाइनों को पश्चिमी भाग में तैनात किया गया था। छावनी तथा नगर के बीच काफी खली क्षेत्र था, जिस पर रेस कोर्स या पोलो ग्राउंड में अतिक्रमण किये बिना २ या अधिक बटालियनें रह सकती थी। अगले कुछ सालों में इस क्षेत्र पर सिविल लाइन्स क्षेत्र बसाया गया, जिसमें तब केवल ब्रिटिश अफसर रहा करता थे।लाल १९८७, पृ - ८ राम मंदिर निर्माण में संघर्षशील हस्तियां बरेली का एक बहादुर श्री हरिओम सिंह चौहान पुत्र स्व.हेती सिंह निवासी ग्राम शिवपुरी तहसील आंवला जनपद बरेली का था इस एवज में लगभग 19 दिनों के जेल प्रताड़ना पर भी श्री चौहान जी रहे, लेकिन हरिओम सिंह चौहान जी को न ही कोई पद न प्रतिष्ठा प्राप्त हुआ बल्कि फलस्वरूप बरेली के माननीयों द्वारा षड्यंत्ररूपी राजनीति का शिकार होना पड़ा।आज पेशे के रूप में खेती करने के सिवा दूसरा कोई श्रोत नहीं है, सरकार को ऐसे विभूतियों को अच्छे प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजना चाहिए । हालांकि उनकी पुत्री संध्या चौहान राज्य की सेवा में उत्तर प्रदेश पुलिस में कार्यरत हैं। भूगोल जलवायु बरेली की जलवायु आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु (कोपेन जलवायु वर्गीकरण: सीएफए) है। यहाँ का वार्षिक औसत तापमान २५°C है। वर्ष के सबसे गर्म माह, जून में औसत तापमान ३२.८°C रहता है, जबकि १५°C औसत तापमान के साथ जनवरी वर्ष का सबसे ठंडा महीना होता है। बरेली में औसतन १०३८.९ मिमी वर्षा होती है। जुलाई में सर्वाधिक - औसतन ३०७.३ मिमी औसत वर्षा होती है, जबकि नवंबर में सबसे कम - लगभग ५.१ मिमी औसत वर्षा होती है। वर्ष भर में औसतन ३७.७ दिन वर्षा होती है - सबसे अधिक १०.३ दिनों तक अगस्त में, और सबसे कम ०.५ दिनों तक नवंबर में। हालांकि पूरे साल बारिश होती है, परन्तु फिर भी गर्मियों में सर्दियों की तुलना में वर्षा अधिक होती है। जनसांख्यिकी २०११ की भारत की जनगणना के अनुसार बरेली नगर की जनसंख्या ९,०३,६६८ है, जिसमें नगर निगम के अधिकार क्षेत्र के बाहर स्थित कुछ हिस्सों की जनसंख्या जोड़ने पर यह ९,०४,७९७ हो जाती है। २००१ में नगर की जनसंख्या ७,२०,३१५ थी तथा २००१-२०११ के दशक में नगर की जनसंख्या वृद्धि दर २.३१ % रही। बरेली नगर, बरेली छावनी तथा इसके आस-पास बसे कुछ छोटे-मोटे नगर मिलकर बरेली महानगर क्षेत्र का निर्माण करते हैं, २०११ की जनगणना के अनुसार जिसकी जनसंख्या ९,८५,७५२ है। जनसंख्या के आधार पर बरेली राज्य का आठवाँ तथा देश का ५०वां सबसे बड़ा नगर है। कुल १०६.४३ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बरेली नगर में २०११ की जनगणना के अनुसार १,६६,४४७ परिवार निवास करते हैं, तथा नगर का जनसंख्या घनत्व ८५०१ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो कि राज्य के औसत घनत्व – ८२८ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक है। कुल जनसंख्या में से पुरुषों की संख्या ४,७७,५१५ (कुल जनसंख्या का ५२.८ %) है, जबकि महिलाओं की संख्या ४,२७,२८२ (कुल जनसंख्या का ४७.२ %) है, और इस प्रकार नगर का लिंगानुपात ८९५ महिलाएं प्रति १००० पुरुष है, जो कि राज्य के औसत लिंगानुपात – ९१२ महिलाएं प्रति १००० पुरुष से कम है। २००१ में नगर का लिंगानुपात ८९६ महिलाएं प्रति १००० पुरुष था तथा २००१-२०११ के दशक में नगर में इसमें एक अंक की गिरावट आयी। शहर में ० से ६ वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या १,०७,३२३ है, जो नगर की कुल जनसंख्या का ११.८८ % है। कुल बच्चों में से ५६,५२३ लड़के हैं, जबकि शेष ५०,८०० लड़कियां हैं। २०११ की जनगणना के अनुसार नगर की कुल जनसंख्या में से ७१,२१६ लोग (कुल जनसंख्या का ०.८ %) अनुसूचित जातियों से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें ३७,७६३ पुरुष हैं, और ३३,४५३ महिलाएं हैं। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जनजातियों से सम्बन्ध रखने वाले लोगों की संख्या २,७७१ (कुल जनसंख्या का ०.००३ %) है; पुरुषों की संख्या १,४५८ है, जबकि महिलाओं की संख्या १,३५३ है। नगर में स्थित झुग्गियों की संख्या २४,९११ है। इन झुग्गियों में १,४४,०९७ लोग निवास करते हैं, जो शहर की कुल जनसंख्या का लगभग १५.९३ % है। बरेली में साक्षर लोगों की संख्या ५,४३,५१५ हैं जिनमें ३,०५,८०५ पुरुष हैं जबकि २,३७,७१० महिलाएं हैं, और इस प्रकार नगर की औसत साक्षरता दर ६८.२५ % है, जो कि राज्य की औसत साक्षरता दर – ७९ % से कम है। पुरुष और महिला साक्षरता दर क्रमशः ७२.७४ % और ६३.२३ % है। २०११ की जनगणना के अनुसार बरेली की कुल जनसंख्या में से ३,०३,३९२ लोग कार्य गतिविधियों में संलग्न हैं, जिनमें १,९७,९२५ पुरुष और ३७,८११ महिलाएं हैं। इनमें से २,३५,७३६ लोगों ने (कुल क्रमिकों का ७७.७ %) अपने काम को मुख्य कार्य (६ महीने से अधिक समय तक रोजगार या कमाई प्रदान करने वाले कार्य) के रूप में वर्णित किया, जबकि शेष ६७,६५६ लोग (कुल क्रमिकों का २२.३ %) ६ महीने से कम समय के लिए आजीविका प्रदान करने वाली सीमांत गतिविधि में शामिल हैं। नगर में १३,९४९ लोग कृषि से जुड़े हुए हैं - ४,७६६ लोग कृषक (भूमि मालिक या सह-स्वामी) हैं, जबकि ९,१७३ लोग इनके खेतों में काम करने वाले मजदूर हैं। इसके अतिरिक्त २७,८५५ लोग घरेलू उद्योग में लिप्त हैं, जबकि १,९३,९३२ लोगों ने अन्य कार्यों को अपनी आजीविका का साधन बताया। ५८.५८ % अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म बरेली शहर में बहुसंख्यक धर्म है। इस्लाम धर्म शहर में दूसरा सबसे लोकप्रिय धर्म है, जिसके लगभग ३८.८० % अनुयायी हैं। बरेली में, ईसाई धर्म का ०.७८ % लोगों द्वारा, जैन धर्म का ०.०५ % लोगों द्वारा, सिख धर्म का ०.९० % लोगों द्वारा और बौद्ध धर्म का ०.९० % लोगों द्वारा द्वारा पालन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, शहर की कुल जनसंख्या में से लगभग ०.०३ % लोग उपरोक्त से अलग किसी 'अन्य धर्म' का, जबकि लगभग ०.८१ % लोग किसी विशेष धर्म का पालन नहीं करते हैं। नगर में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएँ हिन्दी तथा उर्दू हैं, जो कि उत्तर प्रदेश राज्य की आधिकारिक भाषाएँ भी हैं। शेष भारत की ही तरह यहाँ भी अंग्रेजी भाषा अच्छी तरह बोली-समझी जाती है। नगर क्षेत्र में मुख्यतः मानक हिन्दी का ही चलन है, हालाँकि आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में खड़ीबोली तथा कुछ हद तक ब्रजभाषा का भी प्रभाव मिलता है। नगर में अन्य कम बोली जाने वाली भाषाओं में पंजाबी और कुमाऊँनी प्रमुख हैं, जो इन क्षेत्रों से आये अप्रवासी समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। परिवहन बरेली नगर रेलवे तथा सड़क मार्ग द्वारा देश के महत्त्वपूर्ण भागों से सम्बद्ध है। ये भारत की राजधानी नई दिल्ली से 265km है और उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से 256km है। यह शहर आसपास के बड़े शहरों से अच्छे से जुड़ा हुआ है यहां से बस व रेल से निम्न शहरों मे आसानी से पहुंचा जा सकता है यथा दिल्ली लखनऊ कानपुर वाराणसी नोयडा गाजियाबाद अलवर जयपुर आगरा मुंबई कोलकाता पटना चेन्नई बेंगलोर हैदराबाद आदि रेल मार्ग बरेली में छह रेलवे स्टेशन हैं:- बरेली जंक्शन (स्टेशन कोड: बीई) बरेली सिटी (स्टेशन कोड: बीसी) इज्जतनगर (स्टेशन कोड: आईज़ेडएन) चनेहटी / बरेली कैंट (स्टेशन कोड: सीएचटीआई) रामगंगा (स्टेशन कोड: आरजीबी) सी॰ बी॰ गंज (स्टेशन कोड: सीबीजे) इनमें से चार स्टेशन - बरेली जंक्शन, रामगंगा, चनेहटी तथा सी॰ बी॰ गंज उत्तर रेलवे के मुरादाबाद मण्डल के अंतर्गत, जबकि शेष दो उत्तर-पूर्व रेलवे के इज्जतनगर मण्डल के अंतर्गत आते हैं, जिसका मुख्यालय इज्जत नगर में ही स्थित है। बरेली जंक्शन, तथा सी॰ बी॰ गंज लखनऊ-मुरादाबाद रेलवे लाइन पर, रामगंगा बरेली-चंदौसी लूप पर जबकि बरेली सिटी तथा इज्जतनगर बरेली-काठगोदाम रेलवे लाइन पर स्थित हैं। बरेली जंक्शन नगर का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है। वाराणसी को लखनऊ से जोड़ने के बाद अवध व रुहेलखण्ड रेलवे ने लखनऊ के पश्चिम में रेलवे सेवाओं का विस्तार करना शुरू किया। इसी क्रम में लखनऊ से संडीला और फिर हरदोई तक रेलवे लाइन का निर्माण १८७२ में पूरा हुआ। १८७३ में बरेली तक की लाइन पूरी हुई, और उसी वर्ष इस रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ। इससे पहले १८७२ में मुरादाबाद से चंदौसी को जोड़ने वाली एक लाइन भी बन चुकी थी, और फिर १८७३ में ही इसे भी बरेली तक बढ़ा दिया गया। रामपुर होते हुए बरेली-मुरादाबाद कॉर्ड १८९४ में बनकर तैयार हुआ था। कालांतर में इसे मुख्य लाइन, तथा पुरानी लाइन को चंदौसी लूप कहा जाने लगा। १८९४ में एक ब्रांच लाइन चंदौसी से अलीगढ़ तक बनाई गयी थी। १८८४ में दो मीटर गेज सेक्शन बनाए गए; भोजीपुरा से बरेली (१२ मील लम्बा) १ अक्टूबर १८८४ को खोला गया, और पीलीभीत से भोजीपुरा (२४ मील) १५ नवंबर १८८४ को खोला गया। ये दोनों बरेली-पीलीभीत प्रांतीय राज्य रेलवे का हिस्सा थे। १ जनवरी १८९१ को इसका विलय लखनऊ-सीतापुर प्रांतीय राज्य रेलवे के साथ कर लखनऊ-बरेली रेलवे की स्थापना की गयी थी। सन् १८८३-८४ में भोजीपुरा और काठगोदाम के बीच भी रेलमार्ग बिछाया गया था। ६६ मील लंबा यह रेलमार्ग "रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे" द्वारा संचालित एक निजी रेलमार्ग था। रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे द्वारा बरेली से दक्षिण की ओर भी रेलमार्ग बिछाया गया - कासगंज एक्सटेंशन लाइन नामक यह रेलमार्ग १८८५ में सोरों तक, और १९०६ में कासगंज तक बनकर तैयार हुआ था। "Administration Report on the Railways in India – corrected up to 31st March 1918"; Superintendent of Government Printing, Calcutta; page 196 ; Retrieved 8 December 2016 वायु मार्ग बरेली में एक विमानक्षेत्र स्थित है; नैनीताल रोड पर इज्जत नगर में स्थित त्रिशूल वायुसेना बेस नामक यह विमानक्षेत्र वास्तव में भारतीय वायु सेना द्वारा नियंत्रित एक सैन्य हवाई अड्डा है। इस विमानक्षेत्र का एक सिविल एन्क्लेव पीलीभीत बाय-पास रोड पर मयूर वन चेतना केंद्र के पास बनाया गया है, जहाँ से केंद्र सरकार की उड़ान योजना के तहत लखनऊ और दिल्ली व [मुंबई] और बेंगलुरु के लिए उड़ानों का संचालन है। एएआई और डीजीसीए के निर्देशानुसार, हवाई अड्डे पर एटीआर के साथ ७२ सीटर और एयरबस विमान संचालित है बरेली विमानक्षेत्र का उद्घाटन उत्तर प्रदेश राज्य के नागरिक उड्डयन मंत्री नंद गोपाल नंदी और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार द्वारा १० मार्च २०१९ को किया गया था। आंतरिक परिवहन बरेली नगर में सिटी बस सेवा शुरुआत उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा कुतुबखाना - रेलवे जंक्शन मार्ग पर की गई थी। वर्ष १९६० में कुल ४ बसें नगरीय मार्गों पर चलती थी, और १९६४ में ६ नयी बसें लायी गयी, जिससे इनकी कुल संख्या बढ़कर १० हो गयी। १९६३-६४ तक बस सेवाओं का विस्तार कोहाड़ापीर से भोजीपुरा और फतेहगंज तक किया जा चुका था। १९७० के दशक के अंत तक छह निजी बसें यूपीएसआरटीसी के नियंत्रण में चल रही थी, जिनमें प्रतिदिन औसतन ५००० यात्री सफर करते थे। परन्तु धीरे-धीरे शहर की सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ने और छोटे वाहनों के आ जाने से रोडवेज की यह बस सेवा घाटे में जाने लगी, और फिर वर्ष १९९० में इसे बन्द कर दिया गया। बन्द होने से पहले इस सेवा के अंतर्गत बसें कुतुबखाना से जंक्शन, सदर कैंट, सेंथल, नवाबगंज, फरीदपुर और फतेहगंज पश्चिमी को संचालित होती थीं। सरकार, प्रशासन तथा सुविधाएं नगर प्रशासन बरेली के नगरपालिका बोर्ड का गठन २४ जून १८५८ को १८५० के उत्तर-पश्चिम प्रांत और अवध अधिनियम XXVI के तहत किया गया था। तब यह एक नगरपालिका समिति थी, जिसका गठन जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में मनोनीत सदस्यों द्वारा होता था। नौ मनोनीत सदस्यों में से सात ब्रिटिश होते थे। जिलाधिकारी भी एक अंग्रेज ही होते थे। बाद में, १८६८ के उत्तर-पश्चिम प्रांत और अवध नगर सुधार अधिनियम ('६८ का अधिनियम VI) ने वैकल्पिक सिद्धांत की सिफारिश की। यह विधिवत लागू किया गया था। हालाँकि, जिला मजिस्ट्रेट फिर भी इस समिति के अध्यक्ष बने रहे। वर्ष १८६८ तक सदस्यों को सरकार द्वारा नामित किया जाता रहा था, जब वैकल्पिक सिद्धांत को आंशिक रूप से अपना नहीं लिया गया / २७ सदस्य चुनाव प्रक्रिया द्वारा आते थे, और ९ को नामांकित किया जाता था। यह प्रणाली १९०० तक जारी रही जब १९०० के अधिनियम के तहत, नामित सदस्यों की संख्या ६ हो गई और निर्वाचित सदस्य १८ हो गए। १९१६ के नगरपालिका अधिनियम द्वारा नामांकित सदस्यों को घटाकर ३ किया गया और निर्वाचित सदस्यों को बढ़ाकर १९ किया गया। १९६३ में इसमें फिर फेरबदल हुए; कुल ४८ सदस्यीय समिति के सभी सदस्य अब निर्वाचित होकर आते थे, और नामांकन की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। आम तौर पर बोर्ड का कार्यकाल ४ वर्ष का होता है।। बैंकिंग का व्यवसाय १८८२ में शुरू हुआ था, भारतीय स्टेट बैंक की तीन शाखाएं (पूर्व में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया) १९२३ में खोली गई थीं, शहर के स्वामित्व वाले 'बरेली कॉर्पोरेशन बैंक' की स्थापना १९२८ में हुई थी और इसे आसपास के शहरों जैसे शाहजहांपुर, पीलीभीत और आगरा में भी खोला गया था। इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक की शाखाएं बाद में आईं। कानून व्यवस्था अंगूठाकार|बरेली कोतवाली बरेली नगर बरेली पुलिस ज़ोन और बरेली पुलिस रेंज के अंतर्गत आता है। बरेली ज़ोन का नेतृत्व एक अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) के स्तर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी करते हैं, जबकि बरेली रेंज के मुखिया एक पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) रैंक के आईपीएस अधिकारी होते हैं। बरेली जिला पुलिस का नेतृत्व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) करते हैं, जो जिले की कानून और व्यवस्था के लिए उत्तरदायी हैं। इस कार्य में एसएसपी की सहायता चार अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी करते हैं - एसपी सिटी नगरीय क्षेत्रों में थानों के कामकाज और कानून-व्यवस्था की देखभाल करते हैं, जबकि एसपी रूरल ग्रामीण क्षेत्रों में थानों की कार्यप्रणाली और कामकाज के साथ-साथ कानून व्यवस्था की देखभाल करते हैं। एसपी ट्रैफिक पूरे जिले में ट्रैफिक व्यवस्था का ध्यान रखते हैं और एसपी क्राइम उन जघन्य आपराधिक जांच की देखरेख करते हैं, जिनके लिए गहन विश्लेषण की आवश्यकता हो। इन चारों के तहत, पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) स्तर के सर्कल अधिकारी (सीओ) आते हैं जो उनके अधीन आवंटित थानों की जिम्मेदारियों का ख्याल रखते हैं। ५ सर्किल अधिकारी एसपी रूरल के अंतर्गत आते हैं, ४ सर्किल अधिकारी एसपी सिटी के अंतर्गत आते हैं। सीओ ट्रैफिक एसपी ट्रैफिक के तहत आता है। इसके अतिरिक्त बरेली में एक सीओ लाइंस भी हैं। बरेली कोतवाली में एक एसएचओ तैनात हैं और अन्य थाने एसओ द्वारा संचालित हैं। थानों में उनके तहत विभिन्न चौकियां हैं जहां हेड कॉन्स्टेबल और कांस्टेबल अपने अधीन क्षेत्रों में राउंड पर रहने के लिए बीट अधिकारियों के साथ तैनात हैं। बरेली जिले में कुल २९ थाने हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस लाइन या रिजर्व लाइनों में, पुलिस के रिजर्व बल रिजर्व उपकरणों के साथ तैनात रहते हैं। वे सीधे एसएसपी को रिपोर्ट करते हैं। सीओ एलआईयू द्वारा स्थानीय इंटेलिजेंस का ध्यान रखा जाता है, और इनकी पुलिस और मजिस्ट्रेटी को नियमित रूप से इनपुट देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बरेली में दो पुलिस कंट्रोल रूम हैं - डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम बरेली के ग्रामीण क्षेत्रों की और सिटी कंट्रोल रूम शहरी क्षेत्रों की देखभाल करता है। इसके अतिरिक्त वे पूरे जिले में समन्वय और संचार माध्यमों को पूरा करने में मदद करते हैं। महिलाओं से संबंधित अपराधों और मुद्दों पर त्वरित कार्यवाही के लिए बरेली में सीओ १ के तहत एक महिला थाना भी है। चिकित्सा बरेली में ३४३ निजी अस्पातल है, जबकि १५ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, और १८ अर्बन हेल्थ पोस्ट है और तीन मेडिकल कॉलेज है। इनके अतिरिक्त नगर में एक जिला अस्पताल, एक जिला महिला अस्पताल और एक मानसिक चिकित्सालय भी है। संस्कृति बरेली कथावाचक राधेश्याम की जन्मस्थली है, जिन्होंने अपनी राधेश्याम रामायण यहीं लिखी थी। बरेली में जन्मे अन्य लोगों में शायर वसीम बरेलवी, कवि धीरेन्द्र वर्मा, पाकिस्तानी लेखिका खादिजा मस्तूर, उपन्यासकार खालिद जावेद तथा कवियित्री डोरोथी बनर्जी प्रमुख हैं। पर्व / त्यौहार अंगूठाकार|उत्तरायणी मेला बरेली, २०१९ बरेली में लगने वाले प्रमुख मेलों में रामगंगा का चौबारी मेला, बरेली क्लब में लगने वाला उत्तरायणी मेला, नरियावल का मेला और कैण्ट का दशहरा मेला इत्यादि प्रमुख हैं। चौबारी मेला प्रतिवर्ष चौबारी ग्राम के समीप रामगंगा तट पर लगता है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा-स्नान के अवसर पर लगता है। इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण नखाड़ घोड़ो का बाजार होता है, जिसमें दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग अपने घोड़ों का सौदा करने और खरीदने आते हैं। तीन दिवसीय उत्तरायणी मेला भी प्रतिवर्ष बरेली क्लब मैदान में 'उत्तरायणी जनकल्याण समिति' द्वारा आयोजित किया जाता है। मेला १३ से १५ जनवरी तक मकर संक्रान्ति के अवसर पर लगता है। मेले का मुख्य आकर्षण यहाँ कुमाऊँनी तथा गढ़वाली भाषा में होने वाले सांस्कृतिक आयोजन हैं, जिनमें पहाड़ी क्षेत्र के कई प्रमुख कलाकार प्रदर्शन देते हैं। चौबारी मेले के बाद नगर का दूसरा सबसे बड़ा मेला नरियावल स्थित माता शीतला के मंदिर परिसर में गुप्त नवरात्र के अवसर पर लगता है। यह मेला लगभग १५ दिनों तक चलता है, जिसमें आस पास के गांवों के ग्रामीणों के अतिरिक्त दूर-दराज के जनपदों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन और पूजन को आते हैं। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव कुंती के साथ एक रात्रि यहां पर पहुंचे थे। उस समय गांव का नाम नरबलगढ़ था तथा नरबलि नामक एक दैत्य यहाँ निवास करता था, जो प्रतिदिन गांव से एक मानव की बलि लेता था। यह बात जब पांडवों को पता चली, तो भीम ने इसका विरोध कर दैत्य को युद्ध के लिए ललकारा, जिसने भीम की चुनौती को स्वीकार कर लिया। युद्ध से पहले भीम ने अपने भाइयों के साथ यहां माता शीतला की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया, और फिर युद्ध में नरबल को मार दिया। अर्थव्यवस्था अंगूठाकार|आँवला में स्थित इफको प्लांट। यह शहर कृषि उत्पादों का व्यापारिक केंद्र है और यहाँ कई उद्योग, चीनी प्रसंस्करण, कपास ओटने और गांठ बनाने आदि भी हैं। लकड़ी का फ़र्नीचर बनाने के लिए यह नगर काफ़ी प्रसिद्ध है। इसके निकट दियासलाई, लकड़ी से तारपीन का तेल निकालने के कारख़ाने हैं। यहाँ पर सूती कपड़े की मिलें तथा गन्धा बिरोजा तैयार करने के कारख़ाने भी है। १८२० के दशक में बरेली के तत्कालीन मजिस्ट्रेट ग्लिन ने गुलाम याह्या को बरेली के 'कारीगरों, निर्माण और उत्पादन के उनके साधनों के नाम, और उनकी पोशाक और शिष्टाचार' के बारे में लिखने के लिए कहा था। याह्या के शोध के अनुसार बरेली और उसके आसपास रहने वाले लोगों की आजीविका के सबसे लोकप्रिय साधन थे - कांच का निर्माण, कांच की चूड़ियों का निर्माण, लाख की चूड़ियों का निर्माण, क्रिम्पिंग, चने भूनना, तारें बनाना, चारपाइयां बुनना, सोने और चांदी के धागों का निर्माण, किराने की दुकानें चलाना, आभूषण बनाना और कबाब बेचना। अंगूठाकार|left|परसाखेड़ा में एक कारखाना। परसाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना यूपीएसआईडीसी ने १९८० में की थी। शहर में व्यापार और वाणिज्य, परिवहन और अन्य सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों का त्वरित विकास बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में रुहेलखण्ड व कुमाऊँ रेलवे के निर्माण के बाद हुआ।लाल १९८७, पृ - १० सदी के पहले दशक में ही नगर में नेशनल ब्रेवरी कम्पनी, एक माचिस की फैक्ट्री, एक बर्फ की फैक्ट्री और एक भाप-चालित आटा चक्की की स्थापना हुई।लाल १९८७, पृ - १० १९१९ में इज्जत नगर में इंडियन वूल प्रोडक्ट्स लिमिटेड की स्थापना हुई, जहाँ बड़े स्तर पर कत्था निकाला जाता था। नगर के केन्द्र से ८ किमी दूर स्थित सी॰ बी॰ गंज में भी इंडियन टरपेंटाइन & रोजिन (१९२४ में स्थापित) और वेस्टर्न इंडियन मैच कम्पनी (विमको; १९३८ में स्थापित) जैसे कई उद्योग स्थापित हुए थे। नेकपुर में १९३२ में एचआर शुगर फैक्ट्री की स्थापना हुई थी। इस सब की बदौलत बरेली १९४० के दशक में क्षेत्र का एक प्रमुख औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्र बनकर उभरा, शहर के कोने-कोने में कई बैंकों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई।लाल १९८७, पृ - ११ भारत की स्वतन्त्रता के बाद बरेली का औद्योगिक विकास जारी रहा, और शहामतगंज तथा नई बस्ती में खांड़सारी, फर्नीचर, अभियंत्रण, तेल निष्कर्षण तथा बर्फ से संबंधित लघु उद्योग आकार लेने लगे। १९५६ में सी॰ बी॰ गंज, १९६० में परसाखेड़ा और १९६४ में भोजीपुरा में यूपी स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (यूपीएसआइडीसी) द्वारा औद्योगिक क्षेत्र बसाए गए। सी॰ बी॰ गंज और इज्जत नगर इस समय तक क्रमशः नगर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र तथा औद्योगिक-सह-परिवहन केन्द्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे, जबकि शहामतगंज तथा किले की मंडियां बरेली तथा आस-पास के क्षेत्र की सबसे बड़ी मंडियां थी।लाल १९८७, पृ - ११ १९६० और १९७० के दशक तक कुतुबखाना-रेलवे जंक्शन रोड पर स्थित आवासीय क्षेत्रों के इर्द-गिर्द कई बाज़ार बनने लगे, जिनमें सुभाष मार्किट, चौपुला, पंजाबी तथा किशोर मार्किट प्रमुख थे।लाल १९८७, पृ - १३ १९७१ की जनगणना के अनुसार बरेली प्रथम श्रेणी का सिटी बोर्ड था, और महत्व के आधार पर इसे राज्य में ९वें स्थान पर रखा गया था। यहाँ की अर्थव्यवस्था औद्योगिक सह-सेवा क्षेत्र पर निर्भर थी; बड़ी संख्या में श्रमिक उन गतिविधियों में लगे हुए थे, जो उद्योग या तृतीयक क्षेत्रों से निकटता से संबंधित थे। अंगूठाकार|फतेहगंज में परित्यक्त रबर फैक्ट्री परिसर। १५ जुलाई १९९९ को कारखाना बंद हो गया था। १९९० के दशक का अंत होते होते नगर में कई उद्योग बन्द हो गए। अप्रैल १९९८ में इंडियन टरपेंटाइन & रोजिन फैक्ट्री (आइटीआर) और सितंबर १९९८ में नेकपुर की चीनी मिल बंद हो गई। उप्र. शुगर कारपोरेशन के अधीन इस गन्ना फैक्ट्री को वर्ष १९९६ में ही लक्ष्य से अधिक उत्पादन करने के लिए गोल्ड मेडल मिला था। १५ जुलाई १९९९ फतेहगंज पश्चिमी स्थित रबड़ फैक्ट्री भी बंद हो गई। फैक्ट्री के उत्पाद पूरे एशिया के देशों में प्रसिद्ध थे, और लगभग दो हजार लोग इस फैक्ट्री में सेवाएं दे रहे थे। सीबीगंज स्थित विमको फैक्ट्री, जहां से पूरे देश भर में माचिस की सप्लाई होती थी, वर्ष २०१४ में बंद हो गई। शिक्षा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही, बरेली राजनीतिक जागरूकता और राजनीतिक प्रेरणा का केंद्र रहा है। नगर में ३ विश्वविद्यालय हैं: महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय और इन्वर्टिस विश्वविद्यालय। इसके अतिरिक्त मार्च २०२० में तीन अन्य संस्थानों को (सिद्घि विनायक, फ्यूचर इंस्टीट्यूट और एसआरएमएस को) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निजी विश्वविद्यालय का प्रमाणपत्र दिया गया, जिससे यहाँ स्थित विश्वविद्यालयों की संख्या ६ हो गयी। बरेली में स्थित उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों में इज्जतनगर में स्थित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान तथा केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान शामिल हैं। नगर में तीन निजी मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें राजश्री, एसआरएमएस और रुहेलखंड शामिल हैं। इसके अलावा गंगाशील आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी है, लेकिन कोई भी सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं है। बरेली में करीब दो दर्जन प्रबन्धन तथा प्रौद्योगिकी महाविद्यालय हैं। २८९४ बेसिक स्कूल, ४१६ माध्यमिक विद्यालय, ५२ सीबीएसई, ७ आईसीएससी स्कूल हैं। १९७५ में स्थापित महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय नगर का एकमात्र राजकीय विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र बरेली और मुरादाबाद मंडल के नौ जिलों तक विस्तारित है; इन ९ जिलों के सभी राजकीय महाविद्यालय इसी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हैं। अंगूठाकार|बरेली कॉलेज की स्थापना १८३७ में हुई थी। बरेली कॉलेज नगर का सबसे पुराना महाविद्यालय है। १८३७ में स्थापित इस महाविद्यालय को १८५० में राजकीय महाविद्यालय का दर्जा दिया गया था। अपनी स्थापना के समय यह कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था, बाद में आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गया। वर्तमान काल में यह रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। पर्यटन माना जाता है कि बरेली के पास स्थित प्राचीन दुर्ग नगर अहिच्छत्र में बुद्ध का आगमन हुआ था। यह जगह बरेली शहर से लगभग 40 किमी है। यहीं पर एक बहुत पुराना किला भी है। बरेली के मन्दिरों, मस्जिदो,दरगाहो की सूची 1 धोपेश्वर नाथ यह मन्दिर सदर बाजार में स्थित बहुत खूबसूरत है एवं यह भगवान शिव को समर्पित है 2 तपेश्वरनाथ भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर रेलवे स्टेशन के नजदीक है 3 त्रिवटीनाथ तीन वट वृक्षों के बीच शिवलिंग निकलने से इस मंदिर का नाम त्रिवटीनाथ पड़ा। यह मंदिर बरेली शहर के बीचोबीच स्थित है जो अपने सुंदर परिवेश से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। 4 मणिनाथ यह भी 2 किमी पर स्थित है 5 वनखण्डीनाथ 6अलखनाथ भगवान शिव को समर्पित यह शहर का सबसे बड़ा मंदिर है इस मंदिर में कई बगीचे एवं मुख्य द्वार पर भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा लगी हुई है 7 पशुपति नाथ यह है मंदिर छोटा सा परंतु देखने में बहुत खूबसूरत है इस मंदिर की खास बात यह है कि यह बीच तालाब में बना हुआ है 8.दरगाह आला हजरत दरगाह-ए-अला हज़रत अहमद रजा खान (1856-1921) की दरगाह है,जो 19वीं शताब्दी के हनीफी इस्लामी विद्वान दरगाह का गुंबद हजरत अल्लामा शाह महमूद जान कादरी द्वारा मैचस्टिक्स के उपयोग के साथ तैयार किया गया था[4] सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बरेली जिले का आधिकारिक जालघर विस्तृत पठन श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:बरेली श्रेणी:बरेली ज़िला श्रेणी:बरेली ज़िले के नगर
जमशेदपुर महिला महाविद्यालय
https://hi.wikipedia.org/wiki/जमशेदपुर_महिला_महाविद्यालय
जमशेदपुर महिला महाविद्यालय () जमशेदपुर का एक कालेज है। यह शहर के बिष्टुपुर क्षेत्र में गोपाल मैदान (जिसे पहले रीगल ग्राउंड के नाम से जाना जाता था), के पास स्थित है। यह महाविद्यालय रांची विश्वविद्यालय से संबद्ध है। प्रमुख विभाग विज्ञान नामांकन प्रक्रिया महाविधालय प्रशासन प्राचार्या श्रीमति श्रीलता मोहंती श्रेणी:जमशेदपुर श्रेणी:झारखंड श्रेणी:शिक्षण संस्थान
कीनन स्टेडियम
https://hi.wikipedia.org/wiki/कीनन_स्टेडियम
REDIRECTकीनॉन स्टेडियम
सरहुल
https://hi.wikipedia.org/wiki/सरहुल
प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है।right|thumb|350px|सरहुल के अवसर पर राँची के पास पवित्र सरना वृक्ष के नीचे पूजा करते हुए लोग सरहुल (संताली: ᱵᱟᱦᱟ) मध्य-पूर्व भारत के आदिवासी समुदायों का एक प्रमुख पर्व है, जो झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस पर्व को मुख्य रूप से मुण्डा, भूमिज, हो, संथाल और उराँव आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है, और यह उनके महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है। यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन, चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह नए साल की शुरुआत की निशानी है। हालांकि इस त्योहार की कोई निश्चित तारीख नहीं होती क्योंकि विभिन्न गांवों में इसे विभिन्न दिनों पर मनाया जाता है। इस वार्षिक उत्सव को बसंत ऋतु के दौरान मनाया जाता है और इसमें पेड़ों और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा शामिल होती है। इस समय, साल ("सरई" रोबस्टा) पेड़ों में फूल आने लगते हैं। झारखण्ड में, इससे एक राजकीय अवकाश घोषित किया गया है। झारखंड के स्थानीय जनजातियां नए साल के आगमन पर 'सरहुल' पर्व पूरे धूम-धाम के साथ मनाते है। जो हिंदू महीने चैत्र में अमावस्या के तीन दिन बाद मनाया जाता है। सरहुल एक राज्य स्तरीय सार्वजनिक अवकाश है और वसंत ऋतु के आगमन का उत्सव भी है। इस पर्व में साल अर्थात सखुआ वृक्ष का खास महत्व होता है। आदिवासियों की परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद नई फसल की कटाई शुरू हो जाती है। परिचय सरहुल का शाब्दिक अर्थ है 'साल वृक्ष की पूजा', सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है - इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है। आदिवासियों का मानना ​​है कि वे इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फलों का उपयोग कर सकते हैं। भूमिज इस पर्व को 'हादी बोंगा' के नाम से और संथाल इसे 'बाहा बोंगा' के नाम से मनाते हैं। इसे 'बा: परब' और 'खाद्दी परब' के नाम से भी जाना जाता है। त्योहार की क्रिया त्योहार के दौरान साल के फूलों, फलों और महुआ के फलों को जायराथान या सरनास्थल पर लाए जाते हैं, जहां पाहान या लाया (पुजारी) और देउरी'' (सहायक पुजारी) जनजातियों के सभी देवताओं की पूजा करता है। "जायराथान" पवित्र सरना वृक्ष का एक समूह है जहां आदिवासियों को विभिन्न अवसरों में पूजा होती है। यह ग्राम देवता, जंगल, पहाड़ तथा प्रकृति की पूजा है जिसे जनजातियों का संरक्षक माना जाता है। नए फूल तब दिखाई देते हैं जब लोग गाते और नृत्य करते हैं। देवताओं की साल और महुआ फलों और फूलों के साथ पूजा की जाती है। आदिवासी भाषाओं में साल (सखुआ) वृक्ष को 'सारजोम' कहा जाता है। thumb|जायराथान में पूजा करता लाया और देउरी देवताओं की पूजा करने के बाद, गांव के पुजारी (लाया या पाहान) एक मुर्गी के सिर पर कुछ चावल अनाज डालता है स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि यदि मृगी भूमि पर गिरने के बाद चावल के अनाज खाते हैं, तो लोगों के लिए समृद्धि की भविष्यवाणी की जाती है, लेकिन अगर मुर्गी नहीं खाती, तो आपदा समुदाय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके अलावा, आने वाले मौसम में पानी में टहनियाँ की एक जोड़ी देखते हुए वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है। ये उम्र पुरानी परंपराएं हैं, जो पीढ़ियों से अनमोल समय से नीचे आ रही हैं। सभी झारखंड में जनजाति इस उत्सव को महान उत्साह और आनन्द के साथ मनाते हैं। जनजातीय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रंगीन और जातीय परिधानों में तैयार करना और पारंपरिक नृत्य करना। वे स्थानीय रूप में चावल से बनाये गये 'हांडिया' पीते हैं। आदिवासी पीसे हुए चावल और पानी का मिश्रण अपने चेहरे पर और सिर पर साल फुल (सारजोम बाहा) लगाते हैं, और फिर जायराथान के आखड़ा में नृत्य करते हैं। thumb|सरहुल नृत्य करते आदिवासी महिला पुरुष हालांकि एक आदिवासी त्योहार होने के बावजूद, सरहुल भारतीय समाज के किसी विशेष भाग के लिए प्रतिबंधित नहीं है। अन्य विश्वास और समुदाय जैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई लोग नृत्य करने वाले भीड़ को बधाई देने में भाग लेते हैं। सरहुल सामूहिक उत्सव का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां हर कोई प्रतिभागी है। आदिवासी मुंडा, भूमिज, हो और संथाल लोग इस त्योहार को हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। इन्हें भी देखें सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासी त्योहार सरहुल नृत्य सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड श्रेणी:लोकपर्व श्रेणी:पर्व
मकर संक्रांति
https://hi.wikipedia.org/wiki/मकर_संक्रांति
redirectमकर संक्रान्ति
दक्षिण एशिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/दक्षिण_एशिया
right|thumb दक्षिण एशिया एक अनौपचारिक शब्दावली है जिसका प्रयोग एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग के लिये किया जाता है। सामान्यतः इस शब्द से आशय हिमालय के दक्षिणवर्ती देशों से होता है। भारत, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश को दक्षिण एशिया के देश या भारतीय उपमहाद्वीप के देश कहा जाता है जिसमें नेपाल और भूटान को भी शामिल कर लिया जाता है। सन् (2007) अफगानिस्तान भी इसका सदस्य देश बन चुका है। अब दक्षिण एशिया में आठ देश अवस्थित हैं। दक्षिण एशिया के देशों का एक संगठन दक्षेस भी है जिसके सदस्य देश निम्नवत हैं: जलवायु thumb|दक्षिण एशिया कोपेन का जलवायु वर्गीकरण (direct: Final Revised Paper ) thumb|दक्षिण एशिया का नगरीय मानचित्र इस विशाल क्षेत्र की जलवायु उत्तर में शीतोष्ण करने के लिए दक्षिण में उष्णकटिबन्धीय मानसून से इस क्षेत्र के लिए क्षेत्र से काफी भिन्न है। विविधता भी है लेकिन इस तरह के समुद्र तट से निकटता और मानसून एस के मौसमी प्रभाव जैसे कारकों से, ऊँचाई न केवल से प्रभावित है।Anita M. Weiss and Muhammad Aurang Zeb Mughal (2012). 'Pakistan' . Kotzé, Louis and Morse, Stephen (eds), Berkshire Encyclopedia of Sustainability, Vol. 9. Great Barrington, Mass.: Berkshire, pp. 236-240. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। संगठन के सदस्य देशों की जनसंख्या (लगभग १.५ अरब) को देखा जाए तो यह किसी भी क्षेत्रीय संगठन की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली है। इसकी स्थापना 8 दिसम्बर 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान द्वारा मिलकर की गई थी। अप्रैल [[२००७|2007 में संघ के 14 वें शिखर सम्मेलन में अफ़गानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य बन गया। यह भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:दक्षिण एशिया
जयनगर
https://hi.wikipedia.org/wiki/जयनगर
जयनगर निम्न में से कोई हो सकता है: जयनगर, बिहार - बिहार के मधुबनी जिले का एक शहर। जयनगर मजिलपुर - कोलकाता नगर का एक क्षेत्र।
औरंगाबाद
https://hi.wikipedia.org/wiki/औरंगाबाद
औरंगाबाद – महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर है। यह अजंता की गुफाओं के लिये दुनिया भर में मशहूर है। औरंगाबाद बिहार प्रान्त में भी एक शहर है जो राजधानी पटना से कुछ ही दूरी पर है।
जयपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/जयपुर
जयपुर शहर भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। जयपुर राजस्थान का जोधपुर महानगर के बाद दूसरा बड़ा शहर है। जयपुर को पिंक सिटी अथवा गुलाबी नगरी भी कहते है, इसको सबसे पहले स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था । जयपुर की स्थापना आमेर के मुगल सामंत सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने की थी। यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है{{cite news|url=https://aajtak.intoday.in/story/rajasthan-pink-city-jaipur-world-heritage-site-unesco-prime-minister-narendra-modi-chief-minister-ashok-gehlot-atrc-1-1099225.html|title=पिंक सिटी जयपुर को UNESCO ने घोषित किया वर्ल्ड हेरिटेज, मोदी-गहलोत गदगद|accessdate=9 जुलाई 2019 जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन ब्रिटिश जमींदार सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। मुगल सामंत जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। संघीय राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह 111 फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शहर के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वैधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत जमींदारो का नियंत्रण था। जयपुर का सामंत/ जमींदार परिवार जिन्हें जयपुर रजवाड़ा कहा जाता है, हमेशा ही विदेशी मुगलों और अंग्रेजों के प्रति वफादार रहा था। 19वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या 1,80,000 थी जो अब बढ़ कर 2001 के आंकड़ों के अनुसार 13,7,119 और 2012 के बाद 20 लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। इस प्रकार के धरोहर होना हमारे भारत देश के लिए एक गर्व की बात है । भारत सरकार को ऐसे धरोहरों को साज सजावट का पूरा ख्याल रखना चाहिए इतिहास सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी, ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत, जिसके सामंत भारमल "भारत के प्रथम गद्दार जयचंद" के पौत्र थे, एक बडी ताकत के रूप में उभरी। जाहिर है कि सामंत सवाई जयसिंह जो भारमल के पुत्र थे को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी विरासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई। इस शहर की नींव पहले पहल कहां रखी गई, इसके बारे में मतभेद हैं, किंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार तालकटोरा के निकट स्थित शिकार की होदी से इस शहर के निर्माण की शुरुआत हुई। कुछ इसे ब्रह्मपुरी और कुछ आमेर के पास एक स्थान 'यज्ञयूप' स्थल से मानते हैं। पर ये निर्विवाद है संबसे पहले चन्द्रमहल बना और फिर बाज़ार और साथ में तीन चौपड़ें | सवाई जयसिंह ने यह शहर बसाने से पहले इसकी सुरक्षा की भी काफी चिंता की थी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही सात मजबूत दरवाजों के साथ किलाबंदी की गई थी। जयसिंह ने हालाँकि मराठों के हमलों की चिंता से अपनी राजधानी की सुरक्षा के लिए चारदीवारी बनवाई थी, लेकिन उन्हें शायद मौजूदा समय की सुरक्षा समस्याओं का भान नहीं था। इतिहास की पुस्तकों में जयपुर के इतिहास के अनुसार यह देश का पहला पूरी योजना से बनाया गया शहर था और स्थापना के समय राजा जयसिंह ने अपनी राजधानी आमेर में बढ़ती आबादी और पानी की समस्या को ध्यान में रखकर ही इसका विकास किया था। नगर के निर्माण का काम १७२७ में शुरू हुआ और प्रमुख स्थानों के बनने में करीब चार साल लगे। यह शहर नौ खंडों में विभाजित किया गया था, जिसमें दो खंडों में राजकीय इमारतें और राजमहलों को बसाया गया था। प्राचीन भारतीय शिल्पशास्त्र के आधार पर निर्मित इस नगर के प्रमुख वास्तुविद थे एक बंगाली ब्राह्मण विद्याधर (चक्रवर्ती), जो आमेर दरबार की 'कचहरी-मुस्तफी' में आरम्भ में महज़ एक नायब-दरोगा (लेखा-लिपिक) थे, पर उनकी वास्तुकला में गहरी दिलचस्पी और असाधारण योग्यता से प्रभावित हो कर महाराजा ने उन्हें नयी राजधानी के लिए नए नगर की योजना बनाने का निर्देश दिया। यह शहर प्रारंभ से ही 'गुलाबी' नगर नहीं था बल्कि अन्य सामान्य नगरों की ही तरह था, लेकिन 1876 में जब वेल्स के राजकुमार आए तो जमींदार रामसिंह (द्वितीय) के आदेश से पूरे शहर को गुलाबी रंग से जादुई आकर्षण प्रदान करने की कोशिश की गई थी। उसी के बाद से यह शहर 'गुलाबी नगरी' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सुंदर भवनों के आकर्षक स्थापत्य वाले, दो सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में फैले जयपुर में जलमहल, जंतर-मंतर, आमेर महल, नाहरगढ़ का किला, हवामहल और आमेर का किला राजपूतों के वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने हैं। स्थापत्य नियोजित तरीके से बसाये गये इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे, ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाये गये। गलियों का और सडकों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया,नगर को सुरक्षित रखने के लिये, इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया। पश्चिमी पहाडी पर नाहरगढ का किला बनवाया गया। पुराने दुर्ग जयगढ में हथियार बनाने का कारखाना बनवाया गया, जिसे देख कर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं, इस कारखाने और अपने शहर जयपुर के निर्माता सवाई जयसिंह की स्मृतियों को संजोये विशालकाय जयबाण तोप आज भी सीना ताने इस नगर की सुरक्षा करती महसूस होती है। महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों में बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमे सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल,रानिवास,जंतर मंतर,गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं, शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये। प्रजा को अपना परिवार समझने वाले सवाई जयसिंह ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने आदि के साथ वर्षाजल का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवाया.सवाई जयसिंह ने लम्बे समय तक जयपुर में राज किया, इस शहर में हस्तकला,गीत संगीत,शिक्षा और रोजगार आदि को उन्होने खूब प्रोत्साहित किया। अलग २ समय में वास्तु के अनुरुप ईसरलाट,हवामहल,रामनिवास बागऔर विभिन्न कलात्मक मंदिर, शिक्षण संस्थानों आदि का निर्माण करवाया गया। बाजार- जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पल भर में इसका सौन्दर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है। लम्बी चौडी और ऊंची प्राचीर तीन ओर फ़ैली पर्वतमाला सीधे सपाट राजमार्ग गलियां चौराहे चौपड भव्य राजप्रसाद, मंदिर और हवेली, बाग बगीचे,जलाशय और गुलाबी आभा से सजा यह शहर इन्द्रपुरी का आभास देने लगता है,जलाशय तो अब नहीं रहे, किन्तु कल्पना की जा सकती है, कि अब से कुछ दशक पहले ही जयपुर परकोटे में ही सिमटा हुआ था, तब इसका भव्य एवं कलात्मक रूप हर किसी को मन्त्र-मुग्ध कर देता होगा। आज भी जयपुर यहां आने वाले सैलानियों को बरसों बरस सहेज कर रखने वाले रोमांचकारी अनुभव देता है। जयपुर का बदलाव जयपुर की रंगत अब बदल रही है। हाल ही में जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। महानगर बनने की ओर अग्रसर जयपुर में स्वतन्त्रता के बाद कई महत्वाकांक्षी निर्माण हुए। एशिया की सबसे बडी आवासीय बस्ती मानसरोवर, राज्य का सबसे बड़ा सवाई मानसिंह चिकित्सालय, विधानसभा भवन, अमर जवान ज्योति, एम.आई.रोड, सेन्ट्रल पार्क और विश्व के प्रसिद्ध बैंक इसी कड़ी में शामिल हैं। पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कॄति के दर्शन होने लगे हैं। चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं। पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कॄति के दर्शन जैसे इस शहर के विकास और इतिहास दोनों को स्पष्ट करते हैं। जयपुर कितना भी बदले पर इसके व्यंजनों का जायका बदस्तूर कायम है। जयपुर के व्यंजन में प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा, केर सांगरिया की सब्जी, मालपुआ इत्यादि है। दर्शनीय स्थल शहर में बहुत से पर्यटन आकर्षण हैं, जैसे जंतर मंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, गोविंददेवजी का मंदिर, [[श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर|श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर, बी एम बिड़ला तारामण्डल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि। जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी हैं, जिनमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरा-मोजरी जूतियाँ, ब्लू पॉटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियां आदि शामिल हैं। प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ लगे बाजार हैं। सिटी पैलेस राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना एक पूर्व शाही निवास जो पुराने शहर के बीचोबीच है। भूरे संगमरमर के स्तंभों पर टिके नक्काशीदार मेहराब, सोने व रंगीन पत्थरों की फूलों वाली आकृतियों से अलंकृत है। संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी प्रवेश द्वार पर प्रहरी की तरह खड़े है। जिन परिवारों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजाओं की सेवा की है। वे लोग गाइड के रूप में कार्य करते है। पैलेस में एक संग्रहालय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं। इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ की तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ाऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं। महल में एक कलादीर्घा भी हैं जिसमें लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजों सामान और अरबी, फारसी, लेटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है जो सवाई जयसिंह द्वितीय ने विस्तृत रूप से खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्राप्त की थी। जंतर मंतर, वेधशाला एक पत्थर की वेधशाला। यह जयसिंह की पाँच वेधशालाओं में से सबसे विशाल है। इसके जटिल यंत्र, इसका विन्यास व आकार वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया है। यह विश्वप्रसिद्ध वेधशाला जिसे २०१२ में यूनेस्को ने विश्व धरोहरों में शामिल किया है, मध्ययुगीन भारत के खगोलविज्ञान की उपलब्धियों का जीवंत नमूना है! इनमें सबसे प्रभावशाली रामयंत्र है जिसका इस्तेमाल ऊंचाई नापने के लिए (?) किया जाता है। हवा महल ईसवी सन् 1799 में निर्मित हवा महल राजपूत स्थापत्य का मुख्य प्रमाण चिन्ह। पुरानी नगरी की मुख्य गलियों के साथ यह पाँच मंजिली इमारत गुलाबी रंग में अर्धअष्टभुजाकार और परिष्कृत छतेदार बलुए पत्थर की खिड़कियों से सुसज्जित है। शाही स्त्रियां शहर का दैनिक जीवन व शहर के जुलूस देख सकें इसी उद्देश्य से इमारत की रचना की गई थी। हवा महल में कुल 953 खिड़कियां हैं| इन खिडकियों से जब हवा एक खिड़की से दूसरी खिड़की में होकर गुजरती हैं तो ऐसा महसूस होता है जैसे पंखा चल रहा हैं| आपको हवा महल में खड़े होकर शुद्ध और ताज़ी हवा का पूर्ण एहसास होगा| गोविंद देवजी का मंदिर भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध, बिना शिखर का मंदिर। यह चन्द्रमहल के पूर्व में बने जय-निवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था। सरगासूली (ईसरलाट) - त्रिपोलिया बाजार के पश्चिमी किनारे पर उच्च मीनारनुमा इमारत जिसका निर्माण ईसवी सन् 1749 में सवाई ईश्वरी सिंह ने अपनी मराठा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। रामनिवास बाग एक चिड़ियाघर, पौधघर, वनस्पति संग्रहालय से युक्त एक हरा भरा विस्तृत बाग, जहाँ खेल का प्रसिद्ध क्रिकेट मैदान भी है। बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत ईसवी सन् 1865 में सवाई राम सिंह द्वितीय ने इसे बनवाया था। सर विंस्टन जैकब द्वारा रूपांकित, अल्बर्ट हाल जो भारतीय वास्तुकला शैली का परिष्कृत नमूना है, जिसे बाद में उत्कृष्ट मूर्तियों, चित्रों, सज्जित बर्तनों, प्राकृतिक विज्ञान के नमूनों, इजिप्ट की एक ममी और फारस के प्रख्यात कालीनों से सुसज्जित कर खोला गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेक्षागृह के साथ रवीन्द्र मंच, एक आधुनिक कलादीर्घा व एक खुला थियेटर भी इसमें बनाया गया हैं। गुड़िया घर (समयः 12 बजे से सात बजे तक)- पुलिस स्मारक के पास मूक बधिर विद्यालय के अहाते में विभिन्न देशों की प्यारी गुड़ियाँ यहाँ प्रदर्शित हैं। बी एम बिड़ला तारामण्डल (समयः 12 बजे से सात बजे तक)- अपने आधुनिक कम्पयूटरयुक्त प्रक्षेपण व्यवस्था के साथ इस ताराघर में श्रव्य व दृश्य शिक्षा व मनोरंजनों के साधनों की अनोखी सुविधा उपलब्घ है। विद्यालयों के दलों के लिये रियायत उपलब्ध है। प्रत्येक महीने के आखिरी बुधवार को यह बंद रहता है। गलता तीर्थ एक प्राचीन तीर्थस्थल, निचली पहाड़ियों के बीच बगीचों से परे स्थित। मंदिर, मंडप और पवित्र कुंडो के साथ हरियाली युक्त प्राकृतिक दृश्य इसे आनन्ददायक स्थल बना देते हैं। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित उच्चतम चोटी के शिखर पर बना सूर्य देवता का छोटा मंदिर शहर के सारे स्थानों से दिखाई पड़ता है। चूलगि‍र‍ि जैन मंदिर - जयपुर-आगरा मार्ग पर बने इस उत्कृष्ट जैन मंदिर की दीवारों पर जयपुर शैली में उन्नीसवीं सदी के अत्यधिक सुंदर चित्र बने हैं मोती डूंगरी और लक्ष्मी नारायण मंदिर मोती डूंगरी एक छोटी पहाडी है इस पर एक छोटे महल का न‍िर्माण क‍िया गया है इसके चारों और क‍िले के समान बुर्ज हैं । यहां स्थ‍ित प्राचीन श‍िवालय है जो वर्ष में केवल एक बार श‍िवरात्रि के द‍िन आमजन के ल‍िए पूजा के ल‍िए खोला जाता है । यह क‍िला स्कॉटलैण्ड के किले की तरह निर्मित है। इसकी तलहटी में जयपुर का सर्वपूजनीय गणेश मंदिर और अद्भुत लक्ष्मी नारायण मंदिर भी जयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं । स्टैच्यू सर्किल - चक्कर के मध्य सवाई जयसिंह का स्टैच्यू बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से बना हुआ है। इसे जयपुर के संस्थापक को श्रद्धांजलि देने के लिए नई क्षेत्रीय योजना के अंतर्गत बनाया गया है। इस में स्थापित सवाई जयसिंह की भव्यमूर्ति के मूर्तिशिल्पी स्व.महेंद्र कुमार दास हैं। अन्य स्थल आमेर मार्ग पर रामगढ़ मार्ग के चौराहे के पास रानियों की याद में बनी आकर्षक महारानी की कई छतरियां है। मानसागर झील के मध्य, सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा निर्मित जल महल, एक मनोहारी स्थल है। परिष्कृत मंदिरों व बगीचों वाले कनक वृंदावन भवन की पुरातन पूर्णता को विगत समय में पुनर्निर्मित किया गया है। इस सड़क के पश्चिम में गैटोर में शाही शमशान घाट है जिसमें जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह के सिवाय समस्त शासकों के भव्य स्मारक हैं। बारीक नक्काशी व लालित्यपूर्ण आकार से युक्त सवाई जयसिंह द्वितीय की बहुत ही प्रभावशाली छतरी है। प्राकृतिक पृष्ठभूमि से युक्त बगीचे आगरा मार्ग पर दीवारों से घिरे शहर के दक्षिण पूर्वी कोने पर घाटी में फैले हुए हैं। गैटोर सिसोदिया रानी के बाग में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था। आमेर पाठ=यह कभी सात सदी तक ढूंडार के पुराने राज्य के कच्छवाहा शासकों की राजधानी थी।|केंद्र|अंगूठाकार|आमेर महल आमेर और शीला माता मंदिर - लगभग दो शताब्दी पूर्व राजा मान सिंह, मिर्जा राजा जयसिंह और सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है। मावठा झील के शान्त पानी से यह महल सीधा उभरता है और वहाँ सुगम रास्ते द्वारा पहुंचा जा सकता है। सिंह पोल और जलेब चौक तक अक्सर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शिला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर। यहां स्थापित करने के लिए राजा मानसिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय स्तंभों वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दो मंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के प्रांगण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है, जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें। मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है। पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं। जयगढ़ किला मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय तोप - जयबाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते हैं। नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढाती हैं सांगानेर - (१२ किलोमीटर) - यह टोंक जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है। शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है। गोनेर - दूरी -(17 किलोमीटर) जयपुर की छोटी काशी के उपनाम से विख्यात कस्बा। जयपुर एवं दौसा जिले के ग्रामीण अंचल के आराध्य श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर का भव्य एवं प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक प्राचीन किला, बावड़ियाँ एवं जगन्नाथ सागर तालाब स्थित है। राज्य स्तरीय राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा जिला स्तरीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान स्थित है। बगरू - (34 किलोमीटर) - अजमेर मार्ग पर, पुराना किला, अभी भी अच्छी अवस्था में है। यह अपने हाथ की छपाई के हथकरघा उद्योग के लिए उल्लेखनीय है, जहां सरल तकनीको का प्रयोग होता है। इस हथकरघाओं के डिजाइन कम जटिल व मटियाले रंगो के होते है। रामगढ़ झील - (32 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - पेड़ो से आच्छादित पहाड़ियो के बीच एक ऊंचा बांध बांध कर एक विशाल कृत्रिम झील की निर्माण किया गया है। यद्यपि जमवा माता का मंदिर व पुराने किले के खंडहर इसके पुरावशेष है। विशेषकर बारिश के मौसम में इसके आकर्षक प्राकृतिक दृश्य इसको एक बेहतर पिकनिक स्थल बना देते है। सामोद - (40 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - सुन्दर सामोद महल का पुनर्निमाण किया गया है तथा यह राजपूत हवेली वास्तुकला का बेहतर नमूना है व पर्यटन लिए उत्तम स्थल। चौमू तहसील के पास गोविंदगढ़ कस्बे में "तोरण बावडी" अपनी कलात्मक वास्तुकला के लिए जानी जाती है एवं सिंगोद कला गांव में पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं यहां पर प्राचीनतम वैष्णव जैन मंदिर एवम ग्रामीण पर्यटन देखने को मिलता है । विराट नगर- (शाहपुरा - अलवर मार्ग 86 किलोमीटर दूर) - खुदाई करने पर निकले एक वृत्ताकार बुद्ध मंदिर के अवशेषों से युक्त एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है जो राजस्थान का असाधारण व भारत का आरंभिक प्रसिद्ध मंदिर है। बैराठ में मौर्य, मुगल व राजपूत समय के स्मृतिचिन्ह भी हैं। अकबर द्वारा निर्मित एक खान (?), एक रमणीय मुगल बगीचा और जहांगीर द्वारा निर्मित चित्रित छतरियों व दीवारों से युक्त असाधारण इमारत अन्य आकर्षण हैं। सांभर (पश्चिम से 14 किलोमीटर) - नमक की विशाल झील, पवित्र देवयानी कुंड, महल और पास ही स्थित नालियासार के प्रसिद्ध है। जयसिंहपुरा खोर - (अजमेर मार्ग से 12 किलोमीटर) - मीणा कबीले के इस आवास में एक दुर्गम किला, एक जैन मंदिर और हरे भरे वृक्षों के बीच एक बावड़ी है। माधोगढ़ - तुंगा (बस्सी लालसोट आगरा मार्ग से 40 किलोमीटर) - जयपुर व मराठा सेना के बीच हुए एतिहासिक युग का तुंगा गवाह है। सुंदर आम के बागों के बीच यह किला बसा है। चाकसू—चाकसू से 2 किमी पूर्व में शीतला माता का मंदिर है जिसमे प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा अष्टमी को यहां मेला भरता है जिसमे लाखो की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। जयपुर में आतंकवाद - १३ मई २००८ को जयपुर में श्रृंखलाबद्ध सात बम विस्फोट किए गए। विस्फोट १२ मिनट की अवधि के भीतर जयपुर के विभिन्न स्थानों पर हुए‍। आठवाँ बम निष्क्रिय पाया गया। घटना में ८० से अधिक लोगों कि मृत्यु व डेढ़ सौ से अधिक घायल हुए। जयपुर (सुइसी / डीएपीपीएएआर /) [2] [3] [4] उत्तरी भारत में राजस्थान और राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है। यह 18 नवंबर 1726 को महाराजा जय सिंह द्वितीय, आमेर के शासक द्वारा स्थापित किया गया था जिसके बाद शहर का नाम लिया गया था। [5] 2011 तक, शहर की आबादी 3.1 मिलियन है, जिससे देश में यह दसवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन गया है। जयपुर को भी भारत के गुलाबी शहर के रूप में जाना जाता है। [6] जयपुर भारतीय राजधानी नई दिल्ली से 260 किलोमीटर (162 मील) स्थित है। जयपुर आगरा (240 किमी, 14 9 मील) के साथ पश्चिमी स्वर्ण त्रिभुज पर्यटन सर्किट का एक हिस्सा है। [7] जयपुर भारत में लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और राजस्थान के अन्य पर्यटन स्थलों जैसे जोधपुर (348 किमी, 216 मील), जैसलमेर (571 किमी, 355 मील), उदयपुर (421 किमी, 262 मील) के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। और माउंट आबू (520 किमी, 323 मील) विषय वस्तु [छिपाएं] 1 इतिहास 2 जलवायु 3 वास्तुकला 4 जनसांख्यिकी 5 प्रशासन और राजनीति 6 अर्थव्यवस्था 7 मीडिया 8 संस्कृति 8.1 भोजन 8.2 बोली 9 रुचि के स्थान 10 खेल 11 शिक्षा 12 परिवहन 12.1 रोड 12.2 रेल 12.3 एयर 13 संचार 14 आगे पढ़ने 15 भी देखें 16 सन्दर्भ 17 बाहरी लिंक इतिहास [संपादित करें] मुख्य लेख: जयपुर का इतिहास जय सिंह द्वितीय, जयपुर के संस्थापक जयसिंह शहर की स्थापना जयसिंह द्वितीय, आमेर के राजा ने की थी, जो 1688 से 1758 तक शासन कर रही थी। उन्होंने अपनी राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर (7 मील), आमेर से बढ़ती जनसंख्या को समायोजित करने और उनकी कमी को कम करने की योजना बनाई। पानी। [5] जय सिंह ने जयपुर के लेआउट की योजना बनाते समय आर्किटेक्चर और आर्किटेक्ट्स पर कई किताबों से परामर्श किया। विद्याधर भट्टाचार्य के स्थापत्य मार्गदर्शन के तहत, जयपुर वास्तुशास्त्र और शिल्पा शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर योजना बनाई गई थी। [8] शहर का निर्माण 1726 में शुरू हुआ और प्रमुख सड़कों, कार्यालयों और महलों को पूरा करने में चार साल लगे। शहर को 9 ब्लॉकों में विभाजित किया गया था, जिनमें से दो में राज्य की इमारतों और महलों में निहित है, शेष सात लोगों को जनता के लिए आवंटित किया गया था। विशाल गगनचुंबी इमारतों का निर्माण, सात गढ़वाले गेटों से छेड़ा गया। [5] जयपुर भारत के सबसे अधिक सामाजिक समृद्ध विरासत शहरी इलाकों में एक असाधारण है। वर्ष 1727 में स्थापित, शहर का नाम महाराजा जय सिंह द्वितीय है, जो इस शहर के प्राथमिक आयोजक थे। वह एक कच्छवाहा राजपूत था और 16 99 और 1744 के आसपास के क्षेत्र में इस क्षेत्र पर शासन किया था। सवाई राम सिंह के शासन के दौरान, शहर को 1876 में राजकुमार ऑफ वेल्स, बाद में एडवर्ड VII, का स्वागत करने के लिए गुलाबी चित्रित किया गया था। [8] कई रास्ते गुलाबी रंग में पेंट किए गए, जयपुर को एक विशिष्ट रूप दिया गया और गुलाबी शहर का नाम दिया गया। [10] 1 9वीं सदी में, शहर तेजी से बढ़ गया और 1 9 00 तक इसकी आबादी 160,000 थी। विस्तृत बुलेवार्ड्स को पक्का किया गया था और इसके मुख्य उद्योग धातुओं और संगमरमर का काम थे, 1868 में स्थापित कला विद्यालय द्वारा विकसित किया गया था। इस शहर में तीन कॉलेज थे, जिनमें संस्कृत कॉलेज (1865) और लड़कियों के स्कूल (1867) के दौरान खोला गया था महाराजा राम सिंह II का शासनकाल। [11] [12] जलवायु जयपुर में गर्म रेगिस्तान की जलवायु और एक गर्म अर्ध शुष्क जलवायु के बीच की सीमा पर स्थित है कोपेन जलवायु वर्गीकरण "बीडब्ल्यूएच / बीएएस" [13] में सालाना 650 मिलीमीटर (26 इंच) से अधिक बारिश होती है, लेकिन मानसून के महीनों में ज्यादातर बारिश होती है जून और सितंबर के बीच गर्मियों के दौरान अप्रैल से लेकर शुरुआती जुलाई तक तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस (86 डिग्री फारेनहाइट) का औसत दैनिक तापमान रहता है। मानसून के दौरान बार-बार, भारी बारिश और झंझट पड़ते हैं, लेकिन बाढ़ आम नहीं है नवंबर से फरवरी के सर्दियों के महीनों हल्के और सुखद होते हैं, औसत तापमान 10-15 डिग्री सेल्सियस (50-59 डिग्री फारेनहाइट) से लेकर थोड़ा और नमी और ठंडे लहरों से ठंड के पास तापमान बढ़ जाता है। [14] वास्तुकला केंद्र|हवामहल|पाठ=|अंगूठाकार नहरगढ़ किले से देखा जाने वाला आइम किला 1727 में विद्याधर भट्टाचार्य ने भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार शहर की योजना बनाई थी। [17] पूर्व, पश्चिम, ए का सामना कर रहे तीन गेट हैं इन्हें भी देखें टीन का पुरा राजस्थान राजस्थान के शहर सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत के किन किन जगह को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों की पद दिया है http://www.nvacreator.online/2024/03/Indias-haritage-sites.html India's Treasures: Exploring the Magnificence of UNESCO World Heritage Sites http://www.nvacreator.online/2024/03/indias-treasures-exploring-magnificence.html राजस्थान विश्वविद्यालय का जालस्थल - अंग्रेजी में Building Jaipur: The Making of an Indian City (गूगल पुस्तक ; By Vibhuti Sachdev, Giles Henry Rupert Tillotson] राजस्थान कि राजधानी जयपुर जयपुर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य श्रेणी:शहर श्रेणी:जयपुर ज़िला श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना श्रेणी:जयपुर ज़िले के नगर
थाबो म्बेकि
https://hi.wikipedia.org/wiki/थाबो_म्बेकि
REDIRECT थाबो म्वूयेलवा म्बेकी
वल्लभ भाई पटेल
https://hi.wikipedia.org/wiki/वल्लभ_भाई_पटेल
वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (३१ अक्टूबर १८७५ – १५ दिसम्बर १९५०) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता तथा राजनेता थे। उन्हें लोग सरदार पटेल के नाम जानते हैं। 'सरदार' का अर्थ है "प्रमुख"। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत में देशी रियसतों के एकीकरण की महान चुनौती को उन्होंने सफलतापूर्वक हल किया। 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। जीवन परिचय पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार)] जाति में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। खेड़ा संघर्ष स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। बारडोली सत्याग्रह बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया । उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं। right|thumb|250px|बारडोली के किसानों के साथ (1928) आजादी के बाद यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी। गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन १९५० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा। देसी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का अखण्ड भारत बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है। भारत को एकजुट करने वाले सरदार पटेल (प्रभासाक्षी) गांधी, नेहरू और पटेल right|thumb|200px|गांधीजी, पटेल और मौलाना आजाद (1940) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था। जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।" यद्यपि विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परन्तु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे। लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं। 1945 से 1950 ई० की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं। उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण इस प्रकार है:- हिन्दी में right|350px|thumb|"एकता की प्रतिमा" सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) - दो खंडों में, संपादक- वी० शंकर, प्रथम संस्करण-1976, (नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद) सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) - दो खंडों में, संपादक- गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-1981 (वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद) भारत विभाजन (प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली) गांधी, नेहरू, सुभाष आर्थिक एवं विदेश नीति मुसलमान और शरणार्थी कश्मीर और हैदराबाद अंग्रेजी में Sardar Patel's correspondence, 1945-50. (In 10 Volumes), Edited by Durga Das [Navajivan Pub. House, Ahmedabad.] The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel (In 15 Volumes), Ed. By Dr. P.N. Chopra & Prabha Chopra (Konark Publishers PVT LTD, Delhi) पटेल का सम्मान right|thumb|300px|सरदार पटेल राष्ट्रीय स्मारक का मुख्य कक्ष अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है। गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय सन १९९१ में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित अन्य संस्थान एवं स्मारक सरदार पटेल स्मारक ट्रस्ट सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक, अहमदाबाद सरदार सरोवर बाँध, गुजरात सरदार पटेल पुलिस, सुरक्षा एवं आपराधिक न्याय विश्वविद्यालय, जोधपुर सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद सरदार वल्लभभाई पटेल पुलिस संग्रहालय, कोल्लम सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत सरदार पटेल प्रौद्योगिकी संस्थान, वसाड सरदार पटेल प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई सरदार पटेल इंजीनियरिंग कॉलेज, मुम्बई सरदार पटेल विद्यालय, नयी दिल्ली सरदार वल्लभभाई पटेल चौक (उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कटरा गुलाब सिंह में) सरदार पटेल स्टेडियम सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेडियम, अहमदाबाद वल्लभभाई पटेल वक्ष संस्थान स्टैच्यू ऑफ यूनिटी इसकी ऊँचाई 240 मीटर है, जिसमें 58 मीटर का आधार है। मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है। 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयन्ती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। यहाँ लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है। प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप 'साधू बेट' पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है। 2018 में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें भारत का राजनीतिक एकीकरण बारडोली सत्याग्रह एन. गोपालस्‍वामी अयंगर सोमनाथ मन्दिर वी पी मेनोन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बाहरी कड़ियाँ एकता की ब्रह्ममूर्ति सरदार वल्लभभाई पटेल (गूगल पुस्तक) पटेल ने कैसे किया रियासतों को एक करने का करिश्मा (प्रभासाक्षी) गांधीजी ने नेहरू को ही देश का नेतृत्व क्यों सौंपा? (डॉ॰ सतीश चन्द्र मित्तल) देसी रियासतों को भारत में मिलाने वाले लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को नमन श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्रेणी:गुजरात के लोग श्रेणी:गुजरात श्रेणी:१८७५ जन्म श्रेणी:१९५० में निधन श्रेणी:भारत के गृह मंत्री श्रेणी:भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष श्रेणी:भारत के उप प्रधानमंत्री
सरदार पटेल
https://hi.wikipedia.org/wiki/सरदार_पटेल
REDIRECT वल्लभ भाई पटेल
ब्रह्मा
https://hi.wikipedia.org/wiki/ब्रह्मा
ब्रह्मा सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव है। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके पाँच मुख थे, लेकिन पांचवा मुख भगवान शिव ने भैरव रूप में काट दिया क्योंकि ब्रह्मा जी द्वारा असत्य बोला गया था तब भैरव को ब्रह्महत्या का दोष भी लगा था यह मुख भैरव से काशी में गिरा और आज वहाँ कपालमोचन भैरव का मंदिर है। इसके बाद से उनके चार मुख ही है जो चार दिशाओं में देखते हैं।Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86 ब्रह्मा जी ब्रह्म का ही एक स्वरूप है । हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था।Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89 सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। ब्रह्मा के सर्वप्रथम 4 मानस पुत्र हुए - सनकादिक ऋषि,फिर 10 अंगों से 10 ऋषि मानस पुत्र हुए नारद दक्ष वशिष्ठ अत्रि आदि। मैथुनी सृष्टि को बनाने के लिए आधे अंग से मनु और आधे अंग से शतरूपा को उत्पन्न किया जो सृष्टि के आदि पुरुष व महिला है।। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव (ब्रह्म) की मौजूदगी और शक्ति (देवी दुर्गा) पर निर्भर करती है। ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol. 1: A–M, Rosen Publishing. ISBN 978-0823931798, page 122PT Raju (2006), Idealistic Thought of India, Routledge, ISBN 978-1406732627, page 426 and Conclusion chapter part XII ब्रह्मन् लिंगहीन हैं परन्तु ब्रह्मा पुलिंग हैं। प्राचीन ग्रंथों में इनका सम्मान किया जाता है पर इनकी पूजा बहुत (श्राप के कारण) कम होती है।Brian Morris (2005), Religion and Anthropology: A Critical Introduction, Cambridge University Press, ISBN 978-0521852418, page 123 भारत और थाईलैण्ड में इन पर समर्पित मंदिर हैं। राजस्थान के पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर SS Charkravarti (2001), Hinduism, a Way of Life, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120808997, page 15 और बैंकॉक का इरावन मंदिर ()Ellen London (2008), Thailand Condensed: 2,000 Years of History & Culture, Marshall Cavendish, ISBN 978-9812615206, page 74 इसके उदाहरण हैं। ब्रह्मा जी आयु श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा जी का 51 वां वर्ष चल रहा है, 100 वर्ष आयु भगवान ब्रह्मा की बताई गई है। संसार में तीनों देवताओं को अजर-अमर बताया गया है जबकि वास्तविकता कुछ ओर है, ब्रह्मा जी कुल आय (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग बताई गई है, ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इंद्र का शासन काल बहत्तर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72 गुणा 14) = 1008 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्रि, परन्तु इस को एक हजार चतुर्युग मानकर चलते हैं। 1 महीना = 30 गुणा 2000 = 60000 (साठ हजार) चतुर्युग. 1 वर्ष = 12 गुणा 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार) चतुर्युग की। 100 वर्ष = 100 गुण 720000 = 72000000 (सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग) इस प्रकार जब ब्रह्मा जी के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं तब वे अपना शरीर छोड़ देते हैं ब्रह्मा जी की आयु पूरी होने पर उनकी मृत्यु हो जाती है अत: फिर ब्रह्मा के पद पर ब्रह्म द्वार किसी और को नियुक्त किया जाता है अंगूठाकार व्युत्पत्ति thumb|कर्नाटक के सोमनाथपुरा में १२ वीं शताब्दी के चेनाकेस्वा मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति। हिंदू त्रिमूर्ति में भगवान ब्रह्मा इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी है। भगवान ब्रह्मा,सृष्टि के तीन गुणों सत्व रजस् और तमस् में से रजस् गुण प्रधान है। इसी प्रकार, भगवान विष्णु सतोगुण और भगवान शिव तमोगुण प्रमुख हैं। हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने मन से १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुरान के अनुसार ये मानसपुत्र ये हैं- अत्रि, अंगरिस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं। इतिहास वैदिक साहित्य विष्णु और शिव के साथ ब्रह्मा के सबसे पुराने उल्लेखों में से एक पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लिखित मैत्रायणी उपनिषद् के पांचवे पाठ में है। ब्रह्मा का उल्लेख पहले कुत्सायना स्तोत्र कहलाए जाने वाले छंद ५.१ में है। फिर छंद ५.२ इसकी व्याख्या करता है।Maitri Upanishad - Sanskrit Text with English Translation EB Cowell (Translator), Cambridge University, Bibliotheca Indica, page 255-256 सर्वेश्वरवादी कुत्सायना स्तोत्र कहता है कि हमारी आत्मा ब्रह्मन् है और यह परम सत्य या ईश्वर सभी प्राणियों के भीतर मौजूद है। यह आत्मा का ब्रह्मा और उनकी अन्य अभिव्यक्तियों के साथ इस प्रकार समीकरण करता है: तुम ही ब्रह्मा हो, तुम ही विष्णु हो, तुम ही रूद्र (शिव) हो, तुम ही अग्नि, वरुण, वायु, इंद्र हो, तुम सब हो।Max Muller, The Upanishads, Part 2, Maitrayana-Brahmana Upanishad , Oxford University Press, pages 303-304 छंद ५.२ में विष्णु और शिव की तुलना गुण की संकल्पना से की गई है। यह कहता है कि ग्रन्थ में वर्णित गुण, मानस और जन्मजात प्रवृत्तियां सभी प्राणियों में होती हैं।Jan Gonda (1968), The Hindu Trinity, Anthropos, Vol. 63, pages 215-219 मैत्री उपनिषद का यह अध्याय दावा करता है कि ब्रह्माण्ड अंधकार (तमस) से उभरा है। जो पहले आवेग (रजस) के रूप में उभरा था पर बाद में पवित्रता और अच्छाई (सत्त्व) में बदल गया। फिर यह ब्रह्मा की तुलना रजस से इस प्रकार करता है:Paul Deussen, Sixty Upanishads of the Veda, Volume 1, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120814684, pages 344-346 हालांकि मैत्री उपनिषद ब्रह्मा की तुलना हिन्दू धर्म के गुण सिद्धांत के एक तत्व से करता है, पर यह उन्हें त्रिमूर्ति का भाग नहीं बताता है। त्रिमूर्ति का उल्लेख बाद के पुराणिक साहित्य में मिलता है।GM Bailey (1979), Trifunctional Elements in the Mythology of the Hindu Trimūrti , Numen, Vol. 26, Fasc. 2, pages 152-163 पौराणिक साहित्य भागवत पुराण में कई बार कहा गया है कि ब्रह्मा वह है जो "कारणों के सागर" से उभरता है।.Richard Anderson (1967), Hindu Myths in Mallarmé: Un Coup de Dés , Comparative Literature, Vol. 19, No. 1, pages 28-35 यह पुराण कहता है कि जिस क्षण समय और ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था, उसी क्षण ब्रह्मा हरि (विष्णु, जिनकी प्रशंसा भागवत पुराण का मुख्य उद्देश्य है) की नाभि से निकले एक कमल के पुष्प से उभरे थे। यह पुराण कहता है कि ब्रह्मा निद्रा में हैं, गलती करते हैं और वे ब्रह्माण्ड की रचना के समय अस्थायी रूप से अक्षम थे। जब वे अपनी भ्रान्ति और निद्रा से अवगत हुए तो उन्होंने एक तपस्वी की तरह तपस्या की, हरि को अपने हृदय में अपना लिया, फिर उन्हें ब्रह्माण्ड के आरंभ और अंत का ज्ञान हो गया, और फिर उनकी रचनात्मक शक्तियां पुनर्जीवित हो गईं। भागवत पुराण कहता है कि इसके बाद उन्होंने प्रकृति और पुरुष: को जोड़ कर चकाचौंध कर देने वाली प्राणियों की विविधता बनाई। भागवत पुराण माया के सृजन को भी ब्रह्मा का काम बताता है। इसका सृजन उन्होंने केवल सृजन करने की खातिर किया। माया से सब कुछ अच्छाई और बुराई, पदार्थ और आध्यात्म, आरंभ और अंत से रंग गया।Richard Anderson (1967), Hindu Myths in Mallarmé: Un Coup de Dés , Comparative Literature, Vol. 19, No. 1, page 31-33 पुराण समय बनाने वाले देवता के रूप में ब्रह्मा का वर्णन करते हैं। वे मानव समय की ब्रह्मा के समय के साथ तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि महाकल्प (जो कि एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय अवधि है) ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है। ब्रह्मा के बारे में विभिन्न पुराणों की कथाएँ विविध और विसंगत हैं। उदाहरण के लिए स्कन्द पुराण में पार्वती को "ब्रह्माण्ड की जननी" कहा गया है। यह ब्रह्मा, देवताओं और तीनों लोकों को बनाने का श्रेय भी पार्वती को देता है। यह कहता है कि पार्वती ने तीनों गुणों (सत्त्व, रजस और तपस) को पदार्थ (प्रकृति) में जोड़ कर ब्रह्माण्ड की रचना की।Nicholas Gier (1997), The Yogi and the Goddess, International Journal of Hindu Studies, Vol. 1, No. 2, pages 279-280 पौराणिक और तांत्रिक साहित्य ब्रह्मा के रजस गुण वाले देव के वैदिक विचार को आगे बढ़ाता है। यह कहता है कि उनकी पत्नी सरस्वती में सत्त्व (संतुलन, सामंजस्य, अच्‍छाई, पवित्रता, समग्रता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, शांतिपूर्णता, नेकता गुण) है। इस प्रकार वे ब्रह्मा के रजस (उत्साह, सक्रियता, न अच्छाई न बुराई पर कभी-कभी दोनों में से कोई एक, कर्मप्रधानता, व्यक्तिवाद, प्रेरित, गतिशीलता गुण) को अनुपूरण करती हैं।H Woodward (1989), The Lakṣmaṇa Temple, Khajuraho and Its Meanings, Ars Orientalis, Vol. 19, pages 30-34Alban Widgery (1930), The principles of Hindu Ethics, International Journal of Ethics, Vol. 40, No. 2, pages 234-237Joseph Alter (2004), Yoga in modern India, Princeton University Press, page 55 ब्रह्मा के अवतार विष्णुपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में ब्रह्मा के सात अवतारों का वर्णन है और रामायण के जामवंत जी को भी ब्रह्मा का अंश कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि महर्षि कश्यप महर्षि बछेस चंद्रदेव बृहस्पति कालिदास महर्षि खट जामवंत इन्हें भी देखें ब्रह्म पुराण श्रेणी:हिन्दू देवता श्रेणी:सृष्टा देवता
भाषाविज्ञान
https://hi.wikipedia.org/wiki/भाषाविज्ञान
भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है।Halliday, Michael A.K.; Jonathan Webster (2006). On Language and Linguistics. Continuum International Publishing Group. p. vii. ISBN 978-0-8264-8824-4. भाषाविज्ञान, भाषा के स्वरूप, अर्थ और सन्दर्भ का विश्लेषण करता है। Martinet, André (1960). Elements of General Linguistics. Studies in General Linguistics, vol. i. Translated by Elisabeth Palmer Rubbert. London: Faber. p. 15. भाषा के दस्तावेजीकरण और विवेचन का सबसे प्राचीन कार्य ६ठी शताब्दी के महान भारतीय वैयाकरण पाणिनि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ अष्टाध्यायी में किया है।Rens Bod (2014). A New History of the Humanities: The Search for Principles and Patterns from Antiquity to the Present. Oxford University Press. ISBN 978-0-19-966521-1.Chapter VI: Sanskrit Literature. The Imperial Gazetteer of India. 2. 1908. p. 263. भाषा विज्ञान के अध्येता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। भाषाविज्ञान, भाषा को भाषा ही जानकर उसका वैज्ञानिक अध्ययन करता है। भाषा विज्ञान के अनेक नाम भाषा-सम्बन्धी इस अध्ययन को यूरोप में आज तक अनेक नामों और संज्ञाओं से अभिहित किया जाता रहा है। सर्वप्रथम इस अध्ययन को फिलोलॉजी (Philology) शब्द के आगे विशेषण के रूप में एक शब्द जोड़ा गया- (Comparative) तब इसे ‘‘कम्पैरेटिव फिलोलॉजी’’ (Comparative Philology) कह कर पुकारा गया। उन्नीसवीं शताब्दी तक व्याकरण तथा भाषा-विषयक अध्ययन को प्रायः एक ही समझा जाता था। अतः इसे विद्वानों ने 'कम्पैरेटिव ग्रामर' नाम भी दिया। फ्रांस में इसको लैंगिस्तीक् (Linguistique) नाम दिया गया। फ्रांस में भाषा सम्बन्धी कार्य अधिक होने के कारण उन्नीसवीं सदी में सम्पूर्ण यूरोप में ही "Linguistique" अथवा "Linguistics" नाम ही प्रचलित रहा है। इसके अतिरिक्त 'साइंस ऑफ लैंग्वेज', ‘ग्लौटोलेजी’ (Glottology) आदि अन्य नाम भी इस विषय को प्रकट करने के लिए काम में आये। आज इन सभी नामों में से ‘‘लिंग्विस्टिक्स’’, ‘‘फिलोलॉजी’’ (Philology) मात्र ही प्रयोग में लाए जाते हैं। भारतवर्ष में इन सभी यूरोपीय नामों के अतिरिक्त हिन्दी भाषा में जो नाम प्रयोग में लाए जाते हैं वे इस प्रकार हैं- ‘‘भाषा-शास्त्र’’, ‘‘भाषा-तत्त्व’’, ‘‘भाषा-विज्ञान’’, तथा ‘‘तुलनात्मक भाषा-विज्ञान’’ आदि। इन सभी नामों में से सर्व प्रचलित नाम ‘‘भाषा-विज्ञान’’ है। इन नाम में प्राचीन और नवीन सभी नामों का समाहार-सा हुआ जान पड़ता है। अतः यही नाम इस शास्त्र के लिए सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। इतिहास अपने वर्तमान स्वरूप में भाषा विज्ञान पश्चिमी विद्वानों के मस्तिष्क की देन कहा जाता है। अति प्राचीन काल से ही भाषा-सम्बन्धी अध्ययन की प्रवृत्ति साहित्य में पाई जाती है। ‘शिक्षा’ नामक वेदांग में भाषा सम्बन्धी सूक्ष्म चर्चा उपलब्ध होती है। ध्वनियों के उच्चारण, अवयव, स्थान, प्रयत्न आदि का इन ग्रन्थों में विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। ‘प्रातिशाख्य’ एवं निरूक्त में शब्दों की व्युत्पत्ति, धातु, उपसर्ग-प्रत्यय आदि विषयों पर वैज्ञानिक विश्लेषण भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन कहा जा सकता है। भर्तृहरि के ग्रन्थ ‘वाक्यपदीय’ के अन्तर्गत ‘शब्द’ के स्वरूप का सूक्ष्म, गहन एवं व्यापक चिन्तन उपलब्ध होता है। वहाँ शब्द को ‘ब्रह्म’ के रूप में परिकल्पित किया गया है और उसकी ‘अक्षर’ संज्ञा बताई गई है। प्रकारान्तर से यह एक भाषा-अध्ययन समबन्धी ग्रन्थ ही है। साहित्य में दर्शन एवं साहित्यशास्त्रीय ग्रन्थों में भी हमें ‘शब्द’ ’अर्थ’, ‘रस’ ‘भाव’ के सूक्ष्म विवेचन के अन्तर्गत भाषा वैज्ञानिक चर्चाओं के ही संकेत प्राप्त होते हैं। संस्कृत-साहित्य में यत्र-तत्र उपलब्ध होने वाली भाषा-विचार-विषयक सामग्री ही निश्चित रूप से वर्तमान भाषा-विज्ञान की आधारशिला कही जा सकती है। आधुनिक विषय के रूप में भाषा-विज्ञान का सूत्रपात यूरोप में सन 1786 ई0 में सर विलियम जोन्स नामक विद्वान द्वारा किया गया माना जाता है। संस्कृत भाषा के अध्ययन के प्रसंग में सर विलियम जोन्स ने ही सर्वप्रथम ग्रीक और लैटिन भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए इस संभावना को व्यक्त किया था कि संभवतः इन तीनों भाषाओं के मूल में कोई एक भाषा रूप ही आधार बना हुआ है। अतः इन तीनों भाषाओं (भाषा, ग्रीक और लैटिन) के बीच एक सूक्ष्म संबंध सूत्र अवश्य विद्यमान है। भाषाओं का इस प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन ही आधुनकि भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का पहला कदम बना। सामान्य परिचय 'भाषा-विज्ञान' नाम में दो पदों का प्रयोग हुआ है। 'भाषा' तथा 'विज्ञान'। भाषा-विज्ञान को समझने से पूर्व इन दोनों शब्दों से परिचित होना आवश्यक प्रतीत होता है। ‘भाषा’ शब्द संस्कृत की ‘‘भाष्’’ धातु से निष्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ है-व्यक्त वाक् (व्यक्तायां वाचि)। ‘विज्ञान’ शब्द में ‘वि’ उपसर्ग तथा ‘ज्ञा’ धातु से ‘ल्युट्’ (अन) प्रत्यय लगाने पर बनता है। सामान्य रूप से ‘भाषा’ का अर्थ है ‘बोलचाल की भाषा या बोली’ तथा ‘विज्ञान’ का अर्थ है ‘विशेष ज्ञान’, किन्तु ‘भाषा-विज्ञान’ शब्द में प्रयुक्त इन दोनों पदों का स्पष्ट और व्यापक अर्थ समझ लेने पर ही हम इस नाम की सारगर्भिता को जानने में सफल होंगे। अतः हम यहाँ इन दोनों पदों के विस्तृत अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज में अपने भावों और विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाने की आवश्यकता चिरकाल से अनुभव की जाती रही है। इस प्रकार भाषा का अस्तित्त्व मानव समाज में अति प्राचीन सिद्ध होता है। मानव के सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान का प्रकाशन करने के लिए, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास को जानने के लिए भाषा एक महत्त्वपूर्ण साधन का कार्य करती है। हमारे पूर्वपुरुषों से सभी साधारण और असाधारण अनुभव हम भाषा के माध्यम से ही जान सके हैं। हमारे सभी सद्ग्रन्थों और शास्त्रों से मिलने वाला ज्ञान भाषा पर ही निर्भर है। महाकवि दण्डी ने अपने महान ग्रन्थ ‘काव्यादर्श’ में भाषा की महत्ता सूचित करते हुए लिखा हैः- इदधतमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम्। यदि शब्दाह्नयं ज्योत्तिरासंसारं न दीप्यते॥ अर्थात् यह सम्पूर्ण भुवन अन्धकारपूर्ण हो जाता, यदि संसार में शब्द-स्वरूप ज्योति अर्थात् भाषा का प्रकाश न होता। स्पष्ट ही है कि यह कथन मानव भाषा को लक्ष्य करके ही कहा गया है। पशु-पक्षी भावों को प्रकट करने के लिए जिन ध्वनियों का आश्रय लेते हैं वे उनके भावों का वहन करने के कारण उनके लिए भाषा हो सकती हैं किन्तु मानव के लिए अस्पष्ट होने के कारण विद्वानों ने उसे ‘अव्यक्त वाक्’ कहा है, जो भाषा-विज्ञान की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखती। क्योंकि ‘अव्यक्त वाक्’ में शब्द और अर्थ दोनों ही अस्पष्ट बने रहते हैं। मनुष्य भी कभी-कभी अपने भावों को प्रकट करने के लिए अंग-भंगिमा, भ्रू-संचालन, हाथ-पाँव-मुखाकृति आदि के संकेतों का प्रयोग करते हैं परन्तु वह भाषा के रूप में होते हुए भी ‘व्यक्त वाक्’ नहीं है। मानव भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वह ‘व्यक्त वाक्’ अर्थात् शब्द और अर्थ की स्पष्टता लिए हुए होती है। महाभाष्य के रचयिता पतंजलि के अनुसार ‘व्यक्त वाक्’ का अर्थ भाषा के वर्णनात्मक होने से ही है। यह सत्य है कि कभी-कभी संकेतों और अंगभंगिमाओं की सहायता से भी हमारे भाव और विचारों का प्रेषण बड़ी सरलता से हो जाता है। इस प्रकार वे चेष्टाएँ भाषा के प्रतीक बन जाती हैं किन्तु मानव भावों को प्रकट करने का सबसे उपयुक्त साधन वह वर्णनात्मक भाषा है जिसे ‘व्यक्त वाक्’ की संज्ञा प्रदान की गई है। इस में विभिन्न अर्थों को प्रकट करने के लिए कुछ निश्चित् उच्चरित या कथित ध्वनियों का आश्रय लिया जाता है। अतः भाषा हम उन शब्दों के समूह को कहते हैं जो विभिन्न अर्थों के संकेतों से सम्पन्न होते हैं। जिनके द्वारा हम अपने मनोभाव सरलता से दूसरों के प्रति प्रकट कर सकते हैं। इस प्रकार भाषा की परिभाषा करते हुए हम उसे मानव-समाज में विचारों और भावों का आदान-प्रदान करने के लिए अपनाया जाने वाला एक माध्यम कह सकते हैं जो मानव के उच्चारण अवयवों से प्रयत्नपूर्वक निःसृत की गई ध्वनियों का सार्थक आधार लिए रहता है। वो ध्वनि-समूह शब्द का रूप तब लेते हैं जब वे किसी अर्थ से जुड़ जाते हैं। सम्पूर्ण ध्वनि-व्यापार अर्थात् शब्द-समूह अपने अर्थ के साथ एक ‘यादृच्छिक’ सम्बंध पर आधारित होता है। ‘यादृच्छिक’ का अर्थ है पूर्णतया कल्पित। संक्षेप में विभिन्न अर्थों में व्यक्त किये गए मुख से उच्चरित उस शब्द समूह को हम भाषा कहते हैं जिसके द्वारा हम अपने भाव और विचार दूसरों तक पहुँचाते हैं। भाषा-विज्ञान के अध्ययन के लाभ भाषा-विज्ञान के अध्ययन से हमें अनेक लाभ होते हैं, जैसे- 1. अपनी चिर-परिचित भाषा के विषय में जिज्ञासा की तृप्ति या शंकाओं का निर्मूलन। 2. ऐतिहासिक तथा प्रागैतिहासिक संस्कृति का परिचय। 3. किसी जाति या सम्पूर्ण मानवता के मानसिक विकास का परिचय। 4. प्राचीन साहित्य का अर्थ, उच्चारण एवं प्रयोग सम्बन्धी अनेक समस्याओं का समाधान। 5. विश्व के लिए एक भाषा का विकास। 6. विदेशी भाषाओं को सीखने में सहायता। 7. अनुवाद करने वाली तथा स्वयं टाइप करने वाली एवं इसी प्रकार की मशीनों के विकास और निर्माण में सहायता। 8. भाषा, लिपि आदि में सरलता, शुद्धता आदि की दृष्टि से परिवर्तन-परिवर्द्धन में सहायता। इन सभी लाभों की दृष्टि से आज के युग में भाषा-विज्ञान को एक अत्यन्त उपयोगी विषय माना जा रहा है और उसके अध्ययन के क्षेत्र में नित्य नवीन विकास हो रहा है। भाषाविज्ञान : कला है या विज्ञान? भाषा एक प्राकृतिक वस्तु है जो मानव को ईश्वरीय वरदान के रूप में मिली हुई है। भाषा का निर्माण मनुष्य के मुख से स्वाभाविक रूप में निःसृत ध्वनियों (वर्णों) के द्वारा होता है। भाषा का सामान्य ज्ञान इसके बोलने और सुनने वाले सभी को हो जाता है। यही भाषा का सामान्य ज्ञान कहलाता है। इसके आगे, भाषा कब बनी, कैसे बनी ? इसका प्रारम्भिक एवं प्राचीन स्वरूप क्या था ? इसमें कब-कब, क्या-क्या परिवर्तन हुए और उन परिवर्तनों के क्या कारण हैं ? अथवा कुल मिलाकर भाषा कैसे विकसित हुई ? उस विकास के क्या कारण हैं ? कौन सी भाषा किस दूसरी भाषा से कितनी समानता या विषमता रखती है ? यह सब भाषा का विशेष ज्ञान या ‘भाषा-विज्ञान’ कहा जाएगा। इसी भाषा-विज्ञान के विशेष रूप अर्थात् भाषा विज्ञान को आज अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण विषय मान लिया गया है। भाषा-विज्ञान जब अध्ययन के विषयों में बड़ी-बड़ी कक्षाओं के पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया तो सर्वप्रथम यह एक स्वाभाविक प्रश्न उत्पन्न हुआ कि भाषा-विज्ञान को कला के अन्तर्गत गिना जाए या विज्ञान में। अर्थात् भाषा-विज्ञान कला है अथवा विज्ञान है। अध्ययन की प्रक्रिया एवं निष्कर्षों को लेकर निश्चय किया जाने लगा कि वस्तुतः उसे भौतिक विज्ञान, एवं रसायन विज्ञान आदि की भाँति विशुद्ध विज्ञान माना जाए अथवा चित्र, संगीत, मूर्ति, काव्य आदि कलाओं की भाँति कला के रूप में स्वीकार किया जाए। भाषा-विज्ञान कला नहीं है कला का सम्बन्ध मानव-जाति वस्तुओं या विषयों से होता है। यही कारण है कि कला व्यक्ति प्रधान या पूर्णतः वैयक्तिक होती है। व्यक्ति सापेक्ष होने के साथ-साथ किसी देश विशेष और काल-विशेष का भी कला पर प्रभाव रहता है। इसका अभिप्राय यह है कि किसी काल में कला के प्रति जो मूल्य रहते हैं उनमें कालान्तर में नये-नये परिवर्तन उपस्थित हो जाते हैं तथा वे किसी दूसरे देश में भी मान लिए जाएँ, यह भी आवश्यक नहीं है। एक व्यक्ति को किसी वस्तु में उच्च कलात्मक अभिव्यक्ति लग रही है। किन्तु दूसरे को वह इस प्रकार की न लग रही हो। अतः कला की धारणा प्रत्येक व्यक्ति की भिन्न-भिन्न हुआ करती है। कला का सम्बन्ध मानव हृदय की रागात्मिक वृत्ति से होता है। उसमें व्यक्ति की सौन्दर्यानुभूति का पुट मिला रहता है। कला का उद्देश्य भी सौन्दर्यानुभूति कराना, या आनन्द प्रदान करना है, किसी वस्तु का तात्विक विश्लेषण करना नहीं। कला के स्वरूप की इन सभी विशेषताओं की कसौटी पर परखने से ज्ञात होता है कि भाषा-विज्ञान कला नहीं है। क्योंकि उसका सम्बन्ध हृदय की सरसता-वृत्ति से न होकर बुद्धि की तत्त्वग्राही दृष्टि से होता है। भाषा-विज्ञान का उद्देश्य सौन्दर्यानुभूति कराना या मनोरंजन कराना भी नहीं है। वह तो हमारे बौद्धिक चिन्तन को प्रखर बनाता है। भाषा के अस्तित्व का तात्त्विक मूल्यांकन करता है। उसका दृष्टिकोण बुद्धिवादी है। भाषा-विज्ञान के निष्कर्ष किसी व्यक्ति, राष्ट्र या काल के आधार पर परिवर्तित नहीं होते हैं तथा भाषा-विज्ञान के अध्ययन का मूल आधार जो भाषा है वह मानवकृत पदार्थ नहीं है। अतः भाषा-विज्ञान को हम कला के क्षेत्र में नहीं गिन सकते। भाषा-विज्ञान की उपयोगिता इसमें है कि वह भाषा सिखाने की कला का ज्ञान कराता है। इसी कारण स्वीट ने व्याकरण को भाषा को कला तथा विज्ञान दोनों कहा है। भाषा का शुद्ध उच्चारण, प्रभावशाली प्रयोग कला की कोटि में रखे जा सकते हैं। भाषाविज्ञान : विज्ञान है भाषा-विज्ञान को कला की सीमा में नहीं रखा जा सकता, यह निश्चय हो जाने पर यह प्रश्न उठता है कि क्या भाषा-विज्ञान, भौतिक-शास्त्र, रसायन-विज्ञान आदि विषयों की भाँति पूर्णतः विज्ञान है ? अनेक विद्वानों की धारणा में भाषा-विज्ञान विशुद्ध विज्ञान नहीं है। उनकी धारणा के अनुसार अभी भाषा-विज्ञान के सभी प्रयोग पूर्णता को प्राप्त नहीं हुए हैं और उसके निष्कर्षों को इसीलिए अंतिम निष्कर्ष नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही भाषा-विज्ञान के सभी निष्कर्ष विज्ञान की भाँति सार्वभौमिक और सार्वकालिक भी नहीं है। जिस प्रकार गणित शास्त्र में 2 + 2 = 4 सार्वकालिक, विकल्परहित निष्कर्ष है जो सर्वत्र स्वीकार किया जाता है, भाषा-विज्ञान के पास इस प्रकार के विकल्प-रहित निर्विवाद निष्कर्ष नहीं है। विज्ञान में तथ्यों का संकलन और विश्लेषण होता है और ध्वनि के नियम अधिकांशतः विकल्परहित ही हैं, अतः कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा-विज्ञान को मानविकी (कला) एवं विज्ञान के मध्य में रखा जा सकता है। विचार करने पर हम देखते हैं कि विज्ञान की आज की दु्त प्रगति में प्रत्येक विशेष ज्ञान अपने आगामी ज्ञान के सामने पुराना और अवैज्ञानिक सिद्ध होता जा रहा है। नित्य नवीन आविष्कारों के आज के युग में वैज्ञानिक दृष्टि नित्य सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और नवीन से नव्यतर होती चली जा रही है। आज के विकसित ज्ञान-क्षेत्र को देखते हुए कई वैज्ञानिक मान्यताएँ पुरानी और फीकी पड़ गई है। न्यूटन का प्रकाश सिद्धान्त भी अब सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा है। इससे यह सिद्ध होता हो जाता है कि नूतन ज्ञान के प्रकाश में पुरातन ज्ञान भी विज्ञान के क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। अतः विशुद्ध ज्ञान की दृष्टि से विचार करने पर भाषा-विज्ञान को हम विज्ञान के ही सीमा-क्षेत्र में पाते हैं। भाषा-विज्ञान निश्चय ही एक विज्ञान है जिसके अन्तर्गत हम भाषा का विशेष ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सही है कि अभी तक भाषा-विज्ञान का वैज्ञानिक स्तर पर पूर्णतः विकास नहीं हो पाया है। यही कारण है कि प्रसिद्ध ग्रिम-नियम के आगे चल कर ग्रासमान और वर्नर को उसमें सुधार करना पड़ा है। उक्त सुधारों से पूर्व ग्रिम का ध्वनि नियम निश्चित् नियम ही माना जाता था और सुधारों के बाद भी वह निश्चित् नियम ही माना जाता है। इस प्रकार नये ज्ञान के प्रकाश में पुराने सिद्धान्तों का खण्डन होने से विज्ञान का कोई विरोध नहीं है। वास्तव में यही शुद्ध विज्ञान है। सन् 1930 के बाद जहाँ वर्णनात्मक भाषा-विज्ञान को पुनः महत्त्व प्राप्त हुआ, वहाँ तब से लेकर आज तक द्रुत गति में विकास हुआ है। जब से ध्वनि के क्षेत्र में यंत्रों की सहायता से नये-नये परीक्षण प्रारम्भ हुए हैं तथा प्राप्त निष्कर्ष पूरी तरह नियमित होने लगे हैं, तब से ही भाषा-विज्ञान धीरे-धीरे प्रगति करता हुआ विज्ञान की श्रेणी में माना जाने लगा है। विज्ञान की एक बड़ी विशेषता है उसका प्रयोगात्मक होना। अमेरिकी विद्वान् बलूम फील्ड़ (सन् 1933 ई0) के बाद अमेरिकी भाषा विज्ञानियों ने ध्वनि-विज्ञान एवं रूप-विज्ञान आदि के साथ भाषा-विज्ञान की एक नवीन पद्धति के रूप में प्रायोगिक भाषा-विज्ञान का बड़ी तीव्रता के साथ विकास किया है। इस पद्धति के अन्तर्गत भाषा-विज्ञान प्रयोगशालाओं का विषय बनता जा रहा है और उसके लिए अनेक यंत्रों का अविष्कार हो गया है। यह देख कर निश्चित रूप में इस विषय को विज्ञान ही कहा जाएगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आजकल जबकि समाज-विज्ञान, मनोविज्ञान आदि शास्त्रीय विषयों के लिए जहाँ विज्ञान शब्द का प्रयोग करने की परम्परा चल पड़ी है तब शुद्ध कारण-कार्य परम्परा पर आधारित भाषा-विज्ञान को विज्ञान कहना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं ठहराया जा सकता। भाषा-विज्ञान की परिभाषा डॉ॰ श्यामसुन्दर दास ने अपने ग्रन्थ भाषा रहस्य में लिखा है- भाषा-विज्ञान भाषा की उत्पत्ति, उसकी बनावट, उसके विकास तथा उसके ह्रास की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। मंगल देव शास्त्री (तुलनात्मक भाषाशास्त्र) के शब्दों में- भाषा-विज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं जिसमें (क) सामान्य रूप से मानवी भाषा (ख) किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का और अन्ततः (ग) भाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं के वर्गों की पारस्परिक समानताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक विचार किया जाता है। डॉ॰ भोलानाथ तिवारी के ‘भाषा-विज्ञान’ ग्रन्थ में यह परिभाषा इस प्रकार दी गई है- जिस विज्ञान के अन्तर्गत वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा की उत्पत्ति, गठन, प्रकृति एवं विकास आदि की सम्यक् व्याख्या करते हुए, इन सभी के विषय में सिद्धान्तों का निर्धारण हो, उसे भाषा विज्ञान कहते हैं। ऊपर दी गई सभी परिभाषाओं पर विचार करने से ज्ञात होता है कि उनमें परस्पर कोई अन्तर नहीं है। डॉ॰ श्यामसुन्दर दास की परिभाषा में जहाँ केवल भाषाविज्ञान पर ही दृष्टि केन्द्रित रही है वहीँ मंगलदेव शास्त्री एवं भोलानाथ तिवारी ने अपनी परिभाषाओं में भाषा विज्ञान के अध्ययन के प्रकारों को भी समाहित कर लिया है। परिभाषा वह अच्छी होती है जो संक्षिप्त हो और स्पष्ट हो। इस प्रकार हम भाषा-विज्ञान की एक नवीन परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं- “जिस अध्ययन के द्वारा मानवीय भाषाओं का सूक्ष्म और विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाए, उसे भाषा-विज्ञान कहा जाता है।” दूसरे शब्दों में भाषा-विज्ञान वह है जिसमें मानवीय भाषाओं का सूक्ष्म और व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। व्याकरण और भाषा-विज्ञान में अन्तर (क) व्याकरण शास्त्र में किसी भाषा विशेष के नियम बताए जाते हैं अतः उसका दृष्टिकोण एक भाषा पर केन्द्रित रहता है किन्तु भाषा-विज्ञान में तुलना के लिए अन्य भाषाओं के नियम, अध्ययन का आधार बनाए जाते हैं। इस प्रकार व्याकरण का क्षेत्र सीमित है और भाषा-विज्ञान का व्यापक। (ख) व्याकरण वर्णन-प्रधान है। वह किसी भाषा के नियम तथा साधु रूप सामने रख देता है। व्याकरण भाषा के व्यावहारिक पक्ष का संकेत करता है उसके कारण व इतिहास की कोई विवेचना नहीं करता। संस्कृत की गम् धातु (गतः) से हिन्दी में गया बना है। परन्तु ‘जाना’, ‘जाता’ आदि शब्द ‘या’ धातु से बने हैं। इसी कारण गया शब्द को भी इसी के साथ जोड़ दिया गया है। व्याकरण की दृष्टि से कभी ‘एक दश’ शुद्ध शब्द रहा होगा परन्तु कालान्तर में ‘द्वादश’ की नकल पर ‘एकादश’ का प्रचलन हो गया। व्याकरण तो प्रचलित रूप बतला कर चुप हो जाएगा पर भाषा-विज्ञान इससे भी आगे जाएगा, वह बताएगा कि इसके पीछे मुण्डा आदि आसपास की भाषाओं का प्रभाव है। इस प्रकार भाषा-विज्ञान व्याकरण का भी व्याकरण है। (ग) भाषा-विज्ञान जहाँ भाषा के विकास का कारण समझाता है वहाँ व्याकरण प्रचलित शब्द को ‘साधु प्रयोग’ कहकर भाषा-विज्ञान का अनुगमन करता जाता है। इस प्रकार व्याकरण भाषा विज्ञान का अनुगामी है। भाषा-विज्ञान में ध्वनि-विचार के अन्तर्गत हिन्दी के अधिकांश शब्द व्यंजनांत माने जाने लगे हैं जैसे ‘राम’ शब्द का उच्चारण ‘राम’ न होकर राम् है किन्तु व्याकरण अभीतक अकारांत मानता चला आ रहा है। (घ) भाषा-विज्ञान में भाषा के जो परिवर्तन उसका विकास माने जाते हैं वे व्याकरण में उसकी भ्रष्टता कहे जाते हैं। यही कारण है कि संस्कृत के बाद प्राकृत (= बिगड़ी हुई) आदि नाम दिये गये। भाषा-विज्ञान ‘धर्म’ शब्द के ‘धम्म’ या ‘धरम’ हो जाने को उसका विकास कहता है और व्याकरण उसे विकार कहता है। साहित्य और भाषा-विज्ञान भाषा के प्रचलित वर्तमान स्वरूप को छोड़ कर शेष सारी अध्ययन सामग्री भाषा-विज्ञान को साहित्य से ही उपलब्ध होती है। यदि आज हमारे सामने संस्कृत, ग्रीक और अवेस्ता साहित्य न होता तो भाषा-विज्ञान कभी यह जानने में सफल न होता कि ये तीनों भाषाएँ किसी एक मूल भाषा से निकली हैं। इसी प्रकार आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का हिन्दी साहित्य हमारे सामने न होता तो भाषा-विज्ञान हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन किस प्रकार कर पाता। भाषा-विज्ञान किसी प्रकार से भी भाषा का अध्ययन करे उसे पग-पग पर साहित्य की सहायता लेनी पड़ती है। बुन्देलखण्ड के नटखट बालकों के मुंह से यह सुन कर- ओना मासी धम बाप पढ़े ना हम व्याकरण कहता है कि यह क्या बला है, प्राचीन साहित्य का अध्ययन ही उसे बतलाएगा कि शाकटायन के प्रथम सूत्र ‘ऊँ नमः सिद्धम्’ का ही यह बिगड़ा हुआ रूप है। साहित्य भी भाषा-विज्ञान की सहायता से अपनी अनेक समस्याओं का समाधान खोजने में सफल हो जाता है। डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल ने भाषा-विज्ञान के सिद्धान्तों के आधार पर जायसीकृत ‘पद्मावत’ के बहुत से शब्दों को उनके मूल रूपों से जोड़ कर उनके अर्थों को स्पष्ट किया है। साथ ही शुद्ध पाठ के निर्धारण में भी इससे पर्याप्त सहायता ली है। अतः साहित्य और भाषा-विज्ञान दोनों एक दूसरे के सहायक हैं। मनोविज्ञान और भाषा-विज्ञान भाषा हमारे भावों-विचारों अर्थात् मन का प्रतिबिम्ब होती है अतः भाषा की सहायता से बहुत से समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। विशेष रूप से अर्थविज्ञान तो मनोविज्ञान पर पूरी तरह से आधारित है। वाक्य-विज्ञान के अध्ययन में भी मनोविज्ञान से पर्याप्त सहायता मिलती है। कभी-कभी ध्वनि-परिवर्तन का कारण जानने के लिए भी मनोविज्ञान हमारी सहायता करता है। भाषा की उत्पत्ति तथा प्रारम्भिक रूप की जानकारी में भी बाल-मनोविज्ञान तथा अविकसित लोगों का मनोविज्ञान हमारी सहायता करता है। मनोविज्ञान को भी अपनी चिकित्सा-पद्धति में रोगी की ऊलजलूल बातों का अर्थ जानने के लिए भाषा-विज्ञान से सहायता लेनी पड़ती है। अतः भाषा-विज्ञान की सहायता से एक मनोविज्ञानी रोगी की मनोग्रन्थियों का पता लगाने में सफल हो सकता है। भाषा-विज्ञान और मनोविज्ञान के घनिष्ठ सम्बन्धों के कारण ही आजकल भाषा मनोविज्ञान (Linguistic Psychology) या साइकोलिंगिंवस्टिक्स (Psycholinguistics) नामक एक नयी अध्ययन-पद्धति का विकास हो रहा है। शरीर-विज्ञान और भाषा-विज्ञान भाषा मुख से निकलने वाली ध्वनि को कहते हैं अतः भाषा-विज्ञान में हवा भीतर से कैसे चलती है, स्वरयंत्र, स्वरतंत्री, नासिकाविवर, कौवा, तालु, दाँत, जीभ, ओंठ, कंठ, मूर्द्धा तथा नाक के कारण उसमें क्या परिवर्तन होते हैं तथा कान द्वारा कैसे ध्वनि ग्रहण की जाती है, इन सबका अध्ययन करना पड़ता है। इसमें शरीर-विज्ञान ही उसकी सहायता करता है। लिखित भाषा का ग्रहण आँख द्वारा होता है और इस प्रक्रिया का अध्ययन भी भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत ही होता है। इसके लिए भी उसे शरीर विज्ञान का ऋणी होना पड़ता है। भूगोल और भाषा-विज्ञान भाषा-विज्ञान और भूगोल का भी-गहरा सम्बन्ध है। कुछ लोगों के अनुसार किसी स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों का उसकी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसी स्थान में बोली जाने वाली भाषा में वहाँ के पेड़-पौधे, पक्षी, जीव-जन्तु एवं अन्न आदि के लिए शब्द अवश्य मिलते हैं परन्तु यदि उनमें से किसी की समाप्ति हो जाए तो उसका नाम वहाँ की भाषा से भी जुदा हो जाता हैं। ‘सोमलता’ शब्द का प्रयोग आज हमारी भाषा में नहीं होता। इस लोप का कारण सम्भवतः भौगोलिक ही है। किसी स्थान में एक भाषा का दूर तक प्रसार न होना, भाषा में कम विकास होना तथा किसी स्थान में बहुत सी बोलियों का होना भी भौगोलिक परिस्थितियों का ही परिणाम होता है। दुर्गम पर्वतों पर रहने वाली जातियों का परस्पर कम सम्पर्क होने के कारण उनकी बोली प्रसार नहीं कर पाती। नदियों के आर-पार रहने वाले लोगों की बोली-भाषा सामान्य भाषा से हट कर भिन्न होती है। देशों, नगरों, नदियों तथा प्रान्तों आदि के नामों का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन करने में भूगोल बड़ी मनोरंजक सामग्री प्रदान करता है। अर्थ-विचार के क्षेत्र में भी भूगोल भाषा-विज्ञान की सहायता करता है। ‘उष्ट्र’ का अर्थ भैंसा से ऊँट कैसे हो गया तथा ‘सैंधव’ का अर्थ घोड़ा और नमक ही क्यों हुआ, आदि समस्याओं पर विचार करने में भी भूगोल सहायता करता है। भाषा-विज्ञान की एक शाखा भाषा-भूगोल की अध्ययन-पद्धति तो ठीक भूगोल की ही भाँति होती है। इसी प्रकार किसी स्थान के प्रागौतिहासिक काल के भूगोल का अध्ययन करने में भाषा-विज्ञान भी पर्याप्त सहायक होता है। इतिहास और भाषा-विज्ञान इतिहास का भी भाषा-विज्ञान से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इतिहास के तीन रूपों (१) राजनीतिक इतिहास, (२) धार्मिक इतिहास, (३) सामाजिक इतिहास-को लेकर यहाँ भाषा-विज्ञान से उसका सम्बन्ध दिखलाया जा रहा है- (क) राजनीतिक इतिहास : किसी देश में अन्य देश का राज्य होना उन दोनों ही देशों की भाषाओं को प्रभावित करता है। हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के कई हजार शब्दों का प्रवेश तथा अंग्रेजी भाषा में कई हजार भारतीय भाषाओं के शब्दों का प्रवेश भारत की राजनीतिक पराधीनता या दोनों देशों के परस्पर सम्बन्ध का परिणाम है। हिन्दी में अरबी, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली शब्दों के आने के कारणों को जानने के लिए भी हमें राजनीतिक इतिहास का सहारा लेना पड़ता है। (ख) धार्मिक इतिहास : भारत में हिन्दी-उर्दू-समस्या धर्म या साम्प्रदायिकता की ही देन है। धर्म का भाषा से घनिष्ठ सम्बन्ध है। धर्म का रूप बदलने पर भाषा का रूप भी बदल जाता है। यज्ञ का लोक-धर्म से उठ जाना ही वह कारण है जिससे आज हमारी भाषा से यज्ञ-सम्बन्धी अनेक शब्दों का लोप हो चुका है। व्यक्तियों के नामों पर भी धर्म का प्रभाव पड़ता है। हिन्दू की भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुलता होगी तो एक मुसलमान की भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों की प्रचुरता देखने को मिलेगी। इसी प्रकार बहुत-सी प्राचीन धार्मिक गुत्थियों को भाषा-विज्ञान की सहायता से सुलझाया जा सकता है। धर्म के बल पर कभी-कभी कोई बोली अन्य बोलियों को पीछे छोड़कर विशेष महत्त्व पा जाती है। मध्य युग में अवधी और ब्रज के विशेष महत्त्व का कारण हमें धार्मिक इतिहास में ही प्राप्त होता है। (ग) सामाजिक इतिहास : सामाजिक व्यवस्था तथा हमारी परम्पराएँ भी भाषा को प्रभावित करती हैं। भाषा की सहायता से किसी जाति के सामाजिक इतिहास का ज्ञान भी सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय समाज में पारिवारिक सम्बन्धों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इसलिए भारतीय भाषाओं में, माँ-बाप, बहन-भाई, चाचा, मौसा, फूफा, बुआ, मौसी, साला, बहनोई, साढ़ू, साली, सास-ससुर जैसे अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है किन्तु यूरोपीय समाज में इन सभी सम्बन्धों के लिए केवल अंकल, आंट, मदर, फादर, ब्रदर, सिस्टर जैसे शब्द ही है जिनमें कुछ ‘इन लॉ’ आदि शब्द जोड़ जाड़ कर अभिव्यक्ति की जाती है। अतः भाषा-विज्ञान के अध्ययन में सामाजिक इतिहास पूरी सहायता करता है। इसी प्रकार सामाजिक व्यवस्था में शब्दों का किस प्रकार निर्माण हो जाया करता है इस पर भाषा-विज्ञान प्रकाश डालता है। किसी समाज की भाषा में मिलने वाले शब्दों से उसकी समाज-व्यवस्था का परिचय प्राप्त होता है। समाज में संयुक्त-परिवार व्यवस्था है, विशाल कुटुम्ब व्यवस्था है या एकल परिवार व्यवस्था है इस बात का उसमें व्यवहार किए गए शब्दों से पता चलता है। भाषाविज्ञान तथा ज्ञान के अन्य क्षेत्र भाषाविज्ञान के अध्ययन में तर्कशास्त्र, भौतिकशास्त्र एवं मानव-शास्त्र जैसे अन्य ज्ञान के क्षेत्र भी बड़ी सहायता पहुंचाते हैं। मनुष्य में अनेक प्रकार के अंधविश्वास घर कर लेते हैं जिनका उसकी भाषा पर प्राभाव पड़ता है। भारतीय सामज में स्त्रियाँ अपने पति का नाम घुमा-फिराकर लेती है, सीधा-स्पष्ट नहीं। रात्रि में विशाल कीड़ों का नाम नहीं लिया जाता है। वे अपने लड़के का नाम मांगे (मांगा हुआ), छेदी (उसकी नाक छेद कर), बेचू (उसे दो-चार पैसे में किसी के हाथ बेच कर), घुरहू (कूड़ा), कतवारू (कूड़ा) अलिचार (कूड़ा) या लेंढ़ा (रड्डी), आदि रखते हैं। अंधविश्वासों के अतिरिक्त अन्य बहुत सी सामाजिक-मनोविज्ञान से सम्बद्ध गुत्थियों के स्पष्टीकरण के लिए मानव-विज्ञान की शाखा-प्रशाखाओं का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार ज्ञान के अनेक क्षेत्र- संस्कृति-अध्ययन, शिक्षाशास्त्र, सांख्यिकी, पाठ-विज्ञान - आदि भाषा विज्ञान से गहरा सम्बन्ध रखते हैं। भाषाविज्ञान के क्षेत्र मानव की भाषा का जो क्षेत्र है वही भाषा-विज्ञान का क्षेत्र है। संसारभर के सभ्य-असभ्य मनुष्यों की भाषाओं और बोलियों का अध्ययन भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार भाषा-विज्ञान केवल सभ्य-साहित्यिक भाषाओं का ही अध्ययन नहीं करता अपितु असभ्य-बर्बर-असाहित्यिक बोलियों का, जो प्रचलन में नहीं है, अतीत के गर्त में खोई हुई हैं, उन भाषाओं का भी अध्ययन इसके अन्तर्गत होता है। भाषा-विज्ञान के अध्ययन के विभाग विषय-विभाजन की दृष्टि से भाषाविज्ञान को भाषा-संरचना (व्याकरण) एवं 'अर्थ का अध्ययन' (semantics) में बांटा जाता है। इसमें भाषा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण और वर्णन करने के साथ ही विभिन्न भाषाओं के बीच तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाता है। भाषाविज्ञान के दो पक्ष हैं- तात्त्विक और व्यवहारिक। तात्त्विक भाषाविज्ञान में भाषा का ध्वनिसम्भार (स्वरविज्ञान और ध्वनिविज्ञान (फ़ोनेटिक्स)), व्याकरण (वाक्यविन्यास व आकृति विज्ञान) एवं शब्दार्थ (अर्थविज्ञान) का अध्ययन किया जाता है। व्यवहारिक भाषाविज्ञान में अनुवाद, भाषा शिक्षण, वाक-रोग निर्णय और वाक-चिकित्सा, इत्यादि आते हैं। इसके अतिरिक्त भाषाविज्ञान का ज्ञान-विज्ञान की अन्यान्य शाखाओं के साथ गहरा संबंध है। इससे समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान, गणनामूलक भाषाविज्ञान (computational lingustics), आदि इसकी विभिन्न शाखाओं का विकास हुआ है। भाषाविज्ञान के गौण क्षेत्र निम्नलिखित हैं- 1. भाषा की उत्पत्ति : भाषा-विज्ञान का सबसे प्रथम, स्वाभाविक, महत्त्वपूर्ण किन्तु विचित्र प्रश्न भाषा की उत्पत्ति का है। इस पर विचार करके विद्वानों ने अनेक सिद्धान्तों का निर्माण किया है। यह एक अध्ययन का रोचक विषय है जो भाषा के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। 2. भाषाओं का वर्गीकरण : भाषा के प्राचीन विभाग (वाक्य, रूप, शब्द, ध्वनि एवं अर्थ) के आधार पर हम संसार भर की सभी भाषाओं का अध्ययन करके उन्हें विभिन्न कुलों या वर्गों में विभाजित करते हैं। 3. अन्य क्षेत्र : भाषा के अध्ययन के भाषा-भूगोल, भाषा-कालक्रम विज्ञान, भाषा पर आधारित प्रागैतिहासिक खोज, लिपि-विज्ञान, भाषा की प्रकृति, भाषा के विकास के कारण आदि अन्य अनेक क्षेत्र हैं। तात्त्विक भाषाविज्ञान के प्रक्षेत्र स्वनविज्ञान (Phonetics) : मानव के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पन्न स्वनियों का अध्ययन स्वनिमविज्ञान (Phonology) : किसी भाषा के स्वनिमों का अध्ययन रूपविज्ञान (morphology) : शब्दों के आन्तरिक संरचना का अध्ययन वाक्यविन्यास या वाक्यविज्ञान (syntax) : वाक्य का निर्माण करने वाली शाब्दिक इकाइयों (lexical units) के बीच परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन अर्थविज्ञान (semantics) : शब्दों एवं कथनों के अर्थ का अध्ययन शैली (style) प्रायोगिक भाषाविज्ञान (pragmatics) वाक्य-विज्ञान : भाषा में सारा विचार-विनिमय वाक्यों के आधार पर किया जाता है। भाषा-विज्ञान के जिस विभाग में इस पर विचार किया जाता है उसे वाक्य-विचार या वाक्य-विज्ञान कहते हैं। इसके तीन रूप हैं- (१) वर्णनात्मक (descriptive) (२) ऐतिहासक वाक्य-विज्ञान (Historical) (३) तुलनात्मक वाक्य-विज्ञान (Comparative) वाक्य-रचना का सम्बंध बोलनेवाले समाज के मनोविज्ञान से होता है। इसलिए भाषा-विज्ञान की यह शाखा बहुत कठिन है। रूप-विज्ञान : वाक्य की रचना पदों या रूपों के आधार पर होती है। अतः वाक्य के बाद पद या रूप का विचार महत्त्वपूर्ण हो जाता है। रूप-विज्ञान के अन्तर्गत धातु, उपसर्ग, प्रत्यय आदि उन सभी उपकरणों पर विचार करना पड़ता है जिनसे रूप बनते हैं। शब्द-विज्ञान : रूप या पद का आधार शब्द है। शब्दों पर रचना या इतिहास इन दो दृष्टियों से विचार किया जा सकता है। किसी व्यक्ति या भाषा का विचार भी इसके अन्तर्गत किया जाता है। कोश-निर्माण तथा व्युत्पत्ति-शास्त्र शब्द-विज्ञान के ही विचार-क्षेत्र की सीमा में आते हैं। भाषा के शब्द समूह के आधार पर बोलने वाले का सांस्कृतिक इतिहास जाना जा सकता है। ध्वनि-विज्ञान : शब्द का आधार है ध्वनि। ध्वनि-विज्ञान के अन्तर्गत ध्वनियों का अनेक प्रकार से अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत ध्वनि-शास्त्र (Phonetics) एक अलग से उपविभाग है जिसमें ध्वनि उत्पन्न करने वाले अंगों-मुख-विवर, नासिका-विवर, स्वर तंत्री, ध्वनि यंत्र के साथ-साथ सुनने की प्रक्रिया का भी अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन के दो रूप हैं-ऐतिहासिक और दूसरा तुलनात्मक। ग्रिम नियम का सम्बन्ध इसी से है। अर्थ-विज्ञान : वाक्य का बाहरी अंग ध्वनि पर समाप्त हो जाता है यह भाषा का बाहरी कलेवर है इसके आगे उसकी आत्मा का क्षेत्र प्रारम्भ होता है जिसे हम अर्थ कहते हैं। अर्थ-रहित शब्द आत्मारहित शरीर की भाँति व्यर्थ होता है। अतः अर्थ भाषा का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। अर्थ-विज्ञान में शब्दों के अर्थों का विकास तथा उसके कारणों पर विचार किया जाता है। भाषाविज्ञान के अध्ययन की पद्धतियाँ अथवा प्रकार किसी भी अध्ययन को हम वैज्ञानिक तब कहते हैं जब उसमें एक निश्चित प्रक्रिया को अपना कर चलते हैं। भाषा विज्ञान भी किसी भाषा के कारण-कार्यपरक युक्तिपूर्ण विवेचन-विश्लेषण के लिए कुछ निश्चित प्रक्रियाओं में बंध कर चलता है। इन्हीं प्रक्रियाओं के आधार पर अभी तक भाषा-विज्ञान के पाँच प्रकार के अध्ययन हमें प्राप्त होते हैं- सामान्यतया भाषा का अध्ययन निम्नांकित दृष्टियों से किया जाता है : वर्णनात्मक पद्धति वर्णात्मक पद्धति द्वारा एक ही काल की किसी एक भाषा के स्वरूप का विश्लेषण किया जाता है। इसके लिए इसमें उन सिद्धांतों पर प्रकाश डाला जाता, जिनके आधार पर भाषा-विशेष की रचनागत विशेषताओँ को स्पष्ट किया जा सके। ध्यातव्य है कि इस पद्धति में एक साथ विभिन्न कालों को भाषा का समावेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर काल की भाषा के विश्लेषण के लिए पृथक्-पृथक् सिद्धांतों का प्रयोजन पड़ेगा। पाणिनि न केवल भारत के, अपितु संसार के सबसे बड़े भाषाविज्ञानी हैं, जिन्होंने वर्णनात्मक रूप में भाषा का विशद एवं व्यापक अध्ययन किया। कात्यायन एवं पतंजलि भी इसी कोटि में आते हैं। ग्रीक विद्वानों में थ्रैक्स, डिस्कोलस तथा इरोडियन ने भी इस क्षेत्र में उल्लेख्य कार्य किया था। पाणिनि से पूर्ण प्रभावित होकर ब्लूमफील्ड (अमरीका) ने सन् १९३२ ई. में 'लैंग्वेज' नामक अपना ग्रन्थ प्रकाशित करवाकर वर्णनात्मक भाषाविज्ञान के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। इधर पश्चिमी देशों - विशेषकर अमरीका में वर्णनात्मक भाषाविज्ञान का आशातीत विकास हुआ है। ऐतिहासिक पद्धति या कालक्रमिक पद्धति (diachronic linguistics) किसी भाषा मे विभिन्न कालों में परिवर्तनों पर विचार करना एवं उन परिवर्तनों के सम्बन्ध में सिद्धांतो का निर्माण ही ऐतिहासिक भाषाविज्ञान (Historical linguistics) का उद्देश्य होता है। वर्णनात्मक पद्धति का मूल अन्तर यह है कि वर्णनात्मक पद्धति जहाँ एककालिक है, वहाँ ऐतिहासिक पद्धति द्विकालिक। संकृत भाषा की प्राचीनता ने ऐतिहासिक पद्धति की ओर भाषाविज्ञानियों का ध्यान आकृष्ट किया। 'फिलॉलोजी' का मुख्य प्रतिपाद्य प्राचीन ग्रन्थों की भाषाओं का तुलनातमक अध्ययन ही था। मुख्यतः संस्कृत, जर्मन, ग्रीक, लॉतिन जैसी भाषाओं पर ही विद्वानों का ध्यान केन्द्रित रहा। फ्रेडरिक औगुस्ट वुल्फ ने सन् १७७७ ई. में ही ऐतिहासिक पद्धति की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया था। वस्तुतः, किसी भी भाषा के विकासात्मक रूप को समझने के लिए ऐतिहासिक पद्धति का सहारा लेंना ही पड़ेगा। पुरानी हिन्दी अथवा मध्यकालीन हिन्दी और आधुनिक हिन्दी में क्या परिवर्तन हुआ है, इसे ऐतिहासिक पद्धति द्वारा ही स्पष्ट किया जा सकता है। तुलनात्मक पद्धति तुलनात्मक पद्धति द्वारा दो या दो से अधिक भाषाओं की तुलना की जाती है। इसे मिश्रित पद्धति भी कह सकते हैं, क्योंकि विवरणात्मक पद्धति तथा ऐतिहासिक पद्धति दोनों का आधार लिया जाता है। विवरण के लिए किसी एक काल को निश्चित करना होता है और तुलना के लिए कम-से-कम दो भाषाओं की अपेक्षा होती है। इस प्रकार, तुलनात्मक पद्धति को वर्णनात्मक पद्धति और ऐतिहासिक पद्धति का योग कहा जा सकता है। तुलनात्मक पद्धति किन्हीं दो भाषाओं पर लागू हो सकती है। जैसे, भारतीय भाषाओं - भोजपुरी आदि में भी परस्पर तुलना की जाती है या फिर हिन्दी-अंगरेजी, हिन्दी-रूसी, हिन्दी-फारसी का भी तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। अर्थात् इसमें क्षेत्रगत सीमा नहीं है। विलियम जोन्स (१७४६-१७९४तक), फ्रांस बॉप्प (१७९१-१८६७), मैक्समूलर (१८२३-१९००), कर्टिअस (१८२०-१८८५), औगुस्ट श्लाइखर (१८२३-१८६८) प्रभृति विद्वानों ने तुलनात्मक भाषाविज्ञान के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। पर, अबतक तुलनात्मक भाषाविज्ञान में उन सिद्धांतों की बड़ी कमी है, जिनके आधार पर दो भिन्न भाषाओं का वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं बन सका। संरचनात्मक (गठनात्मक) पद्धति संरचनात्मक पद्धति वर्णनात्मक पद्धति की अगली कड़ी है। अमरीका में इस पद्धति का विशेष प्रचार हो रहा है। इसमें यांत्रिक उपकरणों को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है, जिससे अनुवाद करने में विशेष सुविधा होगी। जैलिग हैरिस ने 'मेथेड्स इन स्ट्रक्चरल लिंग्युस्टिक्स ' नामक पुस्तक लिखकर इस पद्धति को विकसित किया। भाषाविज्ञान का प्रयोगात्मक पक्ष विज्ञान की अन्य शाखाओं के समान भाषाविज्ञान के भी प्रयोगात्मक पक्ष हैं, जिनके लिये प्रयोग की प्रणालियों और प्रयोगशाला की अपेक्षा होती है। भिन्न-भिन्न यांत्रिक प्रयोगों के द्वारा उच्चारणात्मक स्वनविज्ञान (articulatory phonetics), भौतिक स्वनविज्ञान (acoustic phonetics) और श्रवणात्मक स्वनविज्ञान (auditory phonetics) का अध्ययन किया जाता है। इसे प्रायोगिक स्वनविज्ञान, यांत्रिक स्वनविज्ञान या प्रयोगशाला स्वनविज्ञान भी कहते हैं। इसमें दर्पण जैसे सामान्य उपकरण से लेकर जटिलतम वैद्युत उपकरणों का प्रयोग हो रहा है। परिणामस्वरूप भाषाविज्ञान के क्षेत्र में गणितज्ञों, भौतिकशास्त्रियों और इंजीनियारों का पूर्ण सहयोग अपेक्षित हो गया है। कृत्रिम तालु और कृत्रिम तालु प्रोजेक्टर की सहायता से व्यक्तिविशेष के द्वारा उच्चारित स्वनों के उच्चारण स्थान की परीक्षा की जाती है। कायमोग्राफ स्वानों का घोषणत्व और प्राणत्व निर्धारण करने अनुनासिकता और कालमात्रा जानने के लिये उपयोगी है। लैरिंगो स्कोप से स्वरयंत्र (काकल) की स्थिति का अध्ययन किया जाता है। एंडोस्कोप लैरिंगोस्कोप का ही सुधरा रूप है। ऑसिलोग्राफ की तरंगें स्वनों के भौतिक स्वरूप को पर्दे पर या फिल्म पर अत्यंत स्पष्टता से अंकित कर देती है। यही काम स्पेक्टोग्राफ या सोनोग्राफ द्वारा अधिक सफलता से किया जाता है। स्पेक्टोग्राफ जो चित्र प्रस्तुत करता है उन्हें पैटर्न प्लेबैक द्वारा फिर से सुना जा सकता है। स्पीचस्ट्रेचर की सहायता से रिकार्ड की हुई सामग्री को धीमी गति से सुना जा सकता है। इनके अतिरिक्त और भी छोटे बड़े यंत्र हैं, जिनसे भाषावैज्ञानिक अध्ययन में पर्याप्त सहायता ली जा रही है। फ्रांसीसी भाषावैज्ञानिकों में रूइयो ने स्वनविज्ञान के प्रयोगों के विषय में (Principes phonetique experiment, Paris, 1924) ग्रंथ लिखा था। लंदन में प्रो॰ फर्थ ने विशेष तालुयंत्र का विकास किया। स्वरों के मापन के लिये जैसे स्वरत्रिकोण या चतुष्कोण की रेखाएँ निर्धारित की गई हैं, वैसे ही इन्होंने व्यंजनों के मापन के लिये आधार रेखाओं का निरूपण किया, जिनके द्वारा उच्चारण स्थानों का ठीक ठीक वर्णन किया जा सकता है। डेनियल जांस और इडा वार्ड ने भी अंग्रेजी स्वनविज्ञान पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। फ्रांसीसी, जर्मन और रूसी भाषाओं के स्वनविज्ञान पर काम करने वालों में क्रमश: आर्मस्ट्राँग, बिथेल और बोयानस मुख्य हैं। सैद्धांतिक और प्रायोगिक स्वनविज्ञान पर समान रूप से काम करनेवाले व्यक्तियों में निम्नलिखित मुख्य हैं: स्टेटसन (मोटर फोनेटिक्स 1928), नेगस (द मैकेनिज्म ऑव दि लेरिंग्स,1919) पॉटर, ग्रीन और कॉप (विजिबुल स्पीच), मार्टिन जूस (अकूस्टिक फोनेटिक्स, 1948), हेफनर (जनरल फोनेटिक्स 1948), मौल (फंडामेंटल्स ऑव फोनेटिक्स, 1963) आदि। इधर एक नया यांत्रिक प्रयास आरंभ हुआ है जिसका संबंध शब्दावली, अर्थतत्व तथा व्याकरणिक रूपों से है। यांत्रिक अनुवाद के लिए वैंद्युत कम्प्यूटरों का उपयोग वैज्ञानिक युग की एक विशेष देन है। यह अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान का अत्यंत रोचक और उपादेय विषय है। भौगोलिक भाषाविज्ञान नृजातीय भाषाविज्ञान अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान विस्तृत विवेचन के लिये अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान''' देखें। सन्दर्भ इन्हें भी देखें उपभाषा विज्ञान समाजभाषाविज्ञान भाषा-परिवार भाषा दर्शन बाहरी कड़ियाँ भाषाविज्ञान की शब्दावली (अंग्रेजी से हिन्दी) भाषाविज्ञान परिभाषा-कोश, प्रथम खण्ड (वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग) भाषाविज्ञान परिभाषा-कोश, द्वितीय खण्ड (वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग) आधुनिक भाषा विज्ञान (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ राजमणि शर्मा) भाषाविज्ञान की भूमिका (गूगल पुस्तक; लेखक - देवेन्द्रनाथ शर्मा) - इसके अन्त में बहूपयोगी "भाषाविज्ञान की शब्दावली" दी हुई है। भाषा विज्ञान : सैद्धान्तिक चिन्तन (गूगल पुस्तक ; लेखक - रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव) भाषा विज्ञान प्रवेशिका एवं हिन्दी भाषा (गूगल पुस्तक ; जयन्ती प्रसाद नौटियाल) भाषा अध्ययन (गूगल पुस्तक ; लेखक - शिवेन्द्र किशोर वर्मा, दिलिप सिंह) भाषा का संसार (गूगल पुस्तक ; लेखक - दिलिप सिंह) भारतीय भाषाविज्ञान (गूगल पुस्तक ; लेखक-आचार्य किशोरीलाल वाजपेयी) भाषाविज्ञान, हिन्दी भाषा और लिपि (गूगल पुस्तक; लेखक - डॉ रामकिशोर शर्मा) भाषाविज्ञान (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक) कॉर्पस भाषाविज्ञान (डॉ॰ काजल बाजपेयी) भारतीय भाषाओं के संसाधन के स्रोत भारतीय भाषाओं के संसाधन उपकरण sem project/project/hin_corp_unicode/hin_corp_unicode/910_utf.txt भाषाविज्ञान के अध्ययन की पद्धतियाँ अथवा प्रकार Glossary Of Hindi Urdu & English Linguistic Terminology 2 Vol (Google Books By Umberto Nardella) An Academic Linguistics Forum Glottopedia, MediaWiki-based encyclopedia of linguistics, under construction The Virtual Linguistics Campus Linguistic sub-fields - according to the Linguistic Society of America The Linguist List, a global online linguistics community with news and information updated daily. Glossary of linguistic terms "Linguistics" section - A Bibliography of Literary Theory, Criticism and Philology, ed. J. A. García Landa (University of Zaragoza, Spain) Linguistics and language-related wiki articles on Scholarpedia and *Citizendium तुलनात्मक भाषाविज्ञान (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी, पांडुरंग दामोदर गुणे) द्वितीय भाषा-शिक्षण में भाषाविज्ञान की भूमिका Pseudolinguistics श्रेणी:भाषा-विज्ञान
प्रेमचन्द
https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रेमचन्द
REDIRECTप्रेमचंद
मैथिली साहित्य
https://hi.wikipedia.org/wiki/मैथिली_साहित्य
मैथिली मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व बिहार ,झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा, असाम और नेपाल देश के साथ विभिन्न देश की भाषा है।Yadava, Y. P. (2013). Linguistic context and language endangerment in Nepal. Nepalese Linguistics 28: 262–274. बिहार के 21 जिलों में (मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर,खगड़िया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा, मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, सीतामढ़ी, शिवहर, वैशाली, बाँका, लखीसराय, जमुई और बेगूसराय) और नेपाल के सात जिलों में (धनुषा जिला, महोत्तरी जिला, सिराहा जिला, सर्लाही जिला, सप्तरी जिला, सुनसरी जिला और मोरंग जिला) यह प्रमुख रूप से बोली जाती है। इसका क्षेत्र लगभग 30,000 वर्गमील में व्याप्त है। मैथिली भाषा का सांस्कृतिक केंद्र भारत में मधुबनी, दरभंगा,सितामढ्ढी, सहरसा, मुज्जफपुर, देवघर,भागलपुर और नेपाल में जनकपुर है। बांग्ला भाषा, असमिया और उड़िया के साथ-साथ इसकी उत्पत्ति मागधी प्राकृत से हुई है। कुछ अंशों में ये बंगला और कुछ अंशों में हिंदी से मिलती जुलती है। मैथिली लिपि अन्य स्वतंत्र साहित्यिक भाषाओं की तरह मैथिली की अपनी प्राचीन लिपि है जिसे "तिरहुता" या मिथिलाक्षर कहते हैं। इसका विकास नवीं शताब्दी ईo में शुरू हो गया था। आजकल छपी हुई पुस्तकों में अधिकांश देवनागरी का ही प्रयोग होने लगा है। मैथिली साहित्य का काल विभाजन मैथिली के साहित्य को तीन कालों में विभक्त किया जाता है - आदिकाल (1000 ई. - 1600 ई.), मध्यकाल (1600 ई. -1860 ई.), और आधुनिक काल (1860 ई. से ........)। प्रथम काल में गीतिकाव्य, द्वितीय में नाटक और तृतीय में गद्य की प्रधानता रही है। आदिकाल मैथिली का सबसे प्राचीन साहित्य बौद्ध तांत्रिकों के अपभ्रंश दोहों और भाषा गीतों में पाया जाता है। इनकी भाषा मिथिला के पूर्वीय भाग की बोली का प्राचीन रूप है तथापि बँगला, उड़िया और असमिया भी अपना आदि-साहित्य इन्हीं को मानती हैं। इसके बाद इसवीं शताब्दी ईसवी के लगभग मिथिला में कार्णाट राजाओं का उदय हुआ। उन्होंने मैथिल संगीत की परंपरा स्थापित की जिसके कारण काणाटिवंश के हरसिंह देव का काल स्वर्णयुग (लगभग 1324 ई0) कहलाया। उनके समकालीन ज्योतिरीश्वर ठाकुर का "वर्णन-रत्नाकर" नामक एक महान गद्यकाव्य मिलता है। इसमें विभिन्न विषयों पर कवियों के उपयोगार्थ उपमाओं और वर्णनों को सजाकर रखा गया है। (हाल ही में उन्हीं का "धूर्तसमागम" नामक नाटक और मैथिली गीत भी उपलब्ध हुए हैं।) ज्यातिरीश्वर के उपरांत विद्यापति ठाकुर का युग आता है (1350-1450)। इस युग में मिथिला में ओइनिवार वंश का राज्य था। बंगाल में जयदेव ने जिस कृष्ण प्रेम के संगीत की परंपरा चलाई, उसी में मैथिल कोकिल विद्यापति ने हजारों पदों में अपना सुर मिलाया और उसी के साथ मैथिली काव्यधारा की विशेषत: गीतिकाव्य की एक अनोधी परंपरा चल पड़ी जिसने तीन शताब्दियों तक पूर्वीय भारत में मैथिली का सिक्का जमा दिया। विद्यापति की प्रसिद्धि बंगाल में, उड़ीसा में और असम में खूब हुई। इन देशों में विद्यापति को वैष्णव माना गया और उनके अनुकरण में अनेक कवियों ने मैथिली में पदावलियाँ रचीं। इस साहित्य की परंपरा आधुनिक काल तक चली आई है। 20वीं शताब्दी में विश्वकवि रवींद्र ने "भानुसिंहेर पदावली" के नाम से कई सुंदर ब्रजबुलीद पद लिखे। विद्यापति की परंपरा मिथिला में भी चली। न केवल इनके राधाकृष्ण संबंधी श्रृंगारिक गीत, किंतु शक्ति और शिव विषयक कविताओं का भी (जिनहें क्रमश: गोसाउनिक गीत और नचारी कहते हैं) लोग अभ्यास करने लगे। विद्यापति के समकालीन कवियों में अमृतकर, चंद्रकला, भानु, दशावधान, विष्णुपुरी, कवि शेखर यशोधर, चतुर्भुज और भीषम कवि उल्लेखनीय हैं। विद्यापति के परवर्ती कवियों में, महाराज कंसनारायण (लगभग 1527 ई0) के दरबार में रहनेवाले कवियों का नाम लिया जाता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध लोकप्रिय कवि गोविंद हुए। ये गोविंददास से भिन्न थे और इनकी पदावली "कंसनारायण पदावली" में मिलती है। विद्यापति परंपरा के परकालीन कविर्यो में महिनाथ ठाकुर, लोचन झा, हर्षनाथ झा और चंदा झा के नाम गिनाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नेपाल में तीन कवि प्रसिद्ध हुए जिन्होंने विद्यापति के शिव और शक्ति विषयक पदों का विशेष अनुकरण किया। उनके नाम हैं सिंह नरसिंह, भूपतींद्र मल्ल और जगतप्रकाश मल्ल। मध्य काल मध्यकाल में मुसलमानों के आक्रमणों के कारण मिथिला में कई वर्षो तक अराजकता रही। ओइनिवार वंश के नष्ट होने के बाद मिथिला के अधिकतर विद्वान कवि और संगीतज्ञ नेपाल के राजदरबारों में संरक्षण के लिये चले गए। वहाँ के मल्ल राजाओं की काव्य और नाटक का बड़ा शौक था। इसलिए मध्ययुगीन मैथिली साहित्य का एक बड़ा अंश नेपाल में ही लिखा गया। नेपाल में रचित साहित्य में नाट्य साहित्य मुख्य था। पहले संस्कृत के नाटकों में मैथिली गानों का संनिवेश करना आरंभ हुआ। क्रमश: उनमें संस्कृत और प्राकृत का व्यवहार कम होने लगा और मैथिली में ही संपूर्ण नाटक लिखे जाने लगे। अंत में संस्कृत नाटक की भी रूपरेखा छोड़ दी गई और एक अभिनव गीतिनाट्य की परंपरा स्थापित हुई। इनमें संगीत की प्रधानता रहती थी। अधिकांश कथानक संकेत में ही व्यक्त होता था और गद्य का व्यवहार नहीं होता था। राजसभाओं में ही ये नाटक अभिनीत होते थे। रंगमंच खुला रहता था और अभिनय दिन में होता था। कथानक नवीन नहीं हुआ करते थे- बहुधा पुराने पौराणिक आख्यान या नाटक को ही फिर से गीतिनाट्य का रूप देकर अथवा केवल संशोधन करके ही उपस्थित कर देते थे। नेपाली नाटककारों की कार्यभूमि मुख्यत: तीन स्थानों में रही- भक्तपुर, काठमांडू और पाटन। भक्तपुर में सबसे अधिक नाटक लिखे गए और अभिनीत हुए। मुख्य नाटककार पाँच हुए- जगज्योतिर्मल्ल, जगत्प्रकाश मल्ल, जितामित्र मल्ल, भूपतींद्र मल्ल और रणजित मल्ल। इनमें सबसे अधिक नाटक रणजित मल्ल ने लिखे। इनके बनाए 19 नाटकों का पता अब तक लगा है। काठमांडू में सबसे प्रसिद्ध नाटककार वंशमणि झा हुए। पाटन में सबसे बड़े कवि और नाटककार सिद्धिनरसिंह मल्ल (1620-1657) हुए। नेपाली नाटकों की परम्परा 1768 ईस्वी में नष्ट हो गई जब महाराज पृथ्वीनारायण शाह ने वहाँ के मल्ल राजाओं को हराकर गुरखों का राज्य स्थापित किया। मध्यकाल-2 (1600-1660) मैथिली नाटक मिथिला के राजदरबारों में गीतिनाट्य परंपरा बन रही थी जिसको 'कीर्तनिया नाटक' कहते हैं। कीर्तनिया नाटक का आरम्भ प्राय: शिव या कृष्ण के चरित्र का कीर्तन करने से हुआ। परंतु वे धार्मिक नाटक नहीं होते थे। कीर्तनिया का अभिनय रात को होता था तथा इसका अपना विशेष संगीत हुआ करता था जिसे नादी कहते हैं। कीर्तनिया नाटकों के आरंभ में भी केवल मैथिली गानों को संस्कृत नाटकों में रखा जाता था। ये गान संस्कृत श्लोंकों या वाक्यों का अर्थमात्र ललित भाषा में स्पष्ट करते थे। हाँ, कभी कभी स्वतंत्र गान का भी उपयोग होता था। क्रमश: लगभग संपूर्ण नाटक मैथिली गानमय होने लगा। कीर्तनिया नाटककारों को तीन कालों में विभक्त किया जा सकता हैं-1350-1700 तक, 1700-1900 तक और 1900-1950 तक। पहले काल में विद्यापति का गोरक्षविजय, गोविंद कवि नलचरितनाट, रामदास का अनंदविजय, देवानन्द का उषाहरण, उमापति का पारिजातहरण और रमापति का रुकमणि परिणय गिने जा सकते हैं। इसमें सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध उमापति उपाध्याय (18वीं शताब्दी) हुए। दूसरे काल के मुख्य नाटककार हैं- लाल कवि, नंदीपति, गाकुलानंद, जयानंद कान्हाराम, रत्नपाणि, भानुनाथ और हर्षनाथ। इनमें लाल कवि का गौरी स्वयंवर और हर्षनाथ का उषाहरण तथा माघवानंद अधिक प्रसिद्ध और साहित्यक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। तीसरे काल के लेखक विश्वनाथ झा, "बालाजी", चंदा झा और राजपंडित बलदेव मिश्र हैं। इनके नाटकों में प्राचीन कवियों के गानों और पदों की ही पुनरुक्ति अधिक हैं, नाटकीय संघर्ष का नितांत अभाव है। मध्यकाल-3 (1600-1690ई.) मैथिली नाटक (असम में) सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में मैथिली नाटक का एक रूप असम में भी विकसति हुआ, सुखन जिसे अंकिया-नाट कहते हैं। यह उपर्युक्त दोनों नाटकों की परंपराओं से भिन्न प्रकार का हुआ। इसमें लगभग संपूर्ण नाटक गद्यमय ही होता था। सूत्रधार पूरे पूरे नाटक में अभिनय करता था। अभिनय से अधिक वर्णनचमत्कार या पाठ की ओर ध्यान था। इन नाटकों का उद्देश्य मनोविनोद मात्र नहीं था, वरन् वैष्णव धर्म का प्रचार करना था। अधिकतर ये नाटक कृष्ण की वात्सल्यमय लीलाओं का वर्णन करते थे। इनमें एक ही अधिक अंकर नहीं होते थे। अंकिया नाटककारों में शंकरदेव (1449-1558), माधवदेव और गोपालदेव के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध शंकर देव हुए। इनका रुक्मणीहरण नाटक असम में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। मध्यकाल-4 (1600-1890) गद्य साहित्य- इस काल के प्राचीन दानपत्र एवं पत्रों से मैथिली गद्य के स्वरूप का विकास जाना जा सकता है। इनसे उस समय के दास प्रथा संबंधी विषयों का पूर्ण ज्ञान होता हैं। विद्यापति परंपरा के अतिरिक्त जो गीतिकाव्यकार हुए उनमें भज्जन कवि, लाल कवि, कर्ण श्याम प्रभृंति मुख्य हैं। पद्य का एक नया विकास लंबे काव्य, महाकाव्य, चरित और सम्मर के रूप में हुआ इनके लेखकों में कृष्णजन्म कर्ता मनवोध, नंदापति रतिपति और चक्रपाणि उल्लेखनीय हैं। तीसरी धारा काव्यकर्ताओं की वह हुई जिसमें संतों ने (विशेषकर वैष्णव संतों ने) गीत लिखे। इनमें सबसे प्रसिद्ध साइब रामदास हुए। इनकी 'पदावली' का रचनाकाल 1746 ई. है। आधुनिक काल सन् 1860 ई में मिथिला में आधुनिक जीवन का सूत्रपात हुआ। सिपाही विद्रोह से जो अराजकता छा गई थी वह दूर हुई। पश्चिमी शिक्षा का प्रचार होने लगा, रेल और तार का व्यवहार आरंभ हुआ, स्वायत्त शासन की सुविधा हुई तथा मुद्रणालयों की स्थापना होने लगी। इसी समय कतिपय साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं की स्थापना हुई जो नव जाग्रति के कार्य को पूर्ण करने में संलग्न हुई। फलस्वरूप लोगों की अभिरुचि प्राचीन साहित्य के अन्वेषण और अध्ययन की और गई और नवीन युग के अनुरूप साहित्य की नींव पड़ी। नवयुग के निर्माण में कवीश्वर चंदा झा (मृत्यु 1907 ई।) का नाम सबसे महत्वपर्ण है। इनके महाकाव्य "रामायण" की रचना से मैथिली भाषा का गौरव ऊँचा हुआ। आधुनिक युग गद्य का युग है। मैथिली समाचारपत्रों ने गद्य के विकास में महत्वपूर्ण सहायता दी। इसीलिये मैथिलहितसाधन, मिथ्थिलामोद, मिथिलामिहिर और मिथिला के नाम मैथिली गद्य के इतिहास में अमर हैं। मैथिली लेखशैली की वैज्ञानिक पद्धति का निर्ण म0 भ0 डॉ॰ श्री उमेश मिश्र, रमानाथ झा और वैयाकरणों के द्वारा (विशेषत: दीनबंधु झा द्वारा) हो जाने से आधुनिक गद्य का रूप परिपक्व हो गया है। किन्तु मैथिली के सर्वांगीण विकास मे बाबू भोलालाल दास का जो योगदान है वह अप्रतिम है। उन्होने न केवल मैथिली को विश्वविद्यालय के अध्यापन क्षेत्र मे प्रवेश दिलवाया अपितु मैथिली मे लिखने हेतु अन्यान्य लेखको को प्रेरित किया और मैथिली मे अनेक कथाकारो और निबन्धकारो के जन्मदाता साबित हुए। मैथिली के प्रथम व्याकरणाचार्य और बाल साहित्यकार अगर बाबू भोलालाल दास को माना जाय तो कोइ अतिशयोक्ति नही होगी। यह भी उन्ही की देन है कि मैथिली भारतीय सन्विधान की ८वीं अनुसूची मे स्थान प्राप्त कर सका। उपन्यास और कहानी आधुनिक युग की प्रमुख देन है। इन क्षेत्रों में पहले अनुवाद अधिक हुए, जिनमें परमेश्वर झा के सामंतिनी आख्यान का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आरम्भ में रासबिहारीलाल दास, जनार्दन झा, भोला झा और पुण्यानंद झा की कृतियों प्रसिद्ध हुईं। इधर आकर हरिमोहन झा ने "कन्यादान" और "द्विरागमन" में मैथिली उपन्यास को पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया। व्यंग्य, चामत्कारिक भाषा और सजीव चित्रण इनकी विशेषताएँ हैं। "सरोज यात्री", "व्यास", झा प्रभृति गत दशक के प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। इन्होंने सामाजिक जीवन के निकटतम पहलुओं को दिखलाने की चेष्टा की है। 21 वीं सदी में गौरीनाथ का उपन्यास दाग खासा चर्चित रहा है। "गल्पलेखकों में विद्यासिंधु", "सरोज", "किरण", "भुवन" आदि उल्लेखनीय कलाकर (हरिमोहन झा हास्य रस की अत्यंत ह्रदयग्राही कहानियाँ लिखते हैं)। यंगानंद सिंह, नगेंद्रकुमार, मनमोहन, उमानाथ झा और उपेंद्रनाथ झा हमारे उच्च श्रेणी के कहानीकार है। रमाकर, शेखर, यात्री और अमर कल्पनाशील कहानियाँ लिखते हैं। निबंध के स्वरूप आदि में देशोन्नति की भावना व्याप्त है। गंगानंद सिंह, भुवन जी, उमेंश मिश्र प्रभृति गंभीर लेख लिखते हैं। भाषा और साहित्य पर लिखनेवालों में दीनबंधु झा, डॉ॰ सुभद्र झा, गंगापति सिंह, नरेंद्रनाथ दास प्रभृति अग्रगझय हैं। दार्शनिक गद्य क्षेमधारी सिंह, डॉ॰ सर गंगानाथ झा आदि ने लिखा है। आधुनिक मैथिली काव्य की दो मुख्य धाराएँ है, एक प्राचीनतावादी और दूसरी नवीनतावादी। प्राचनतावादी कवि महाकाव्य, खंडकाव्य, परंपरागत गीतिकाव्य, मुक्तक काव्य आदि लिखते हैं। इनमें मुख्य कवि चंदा झा, रघुनंवदनदास, लालदास, बदरीनाथ झा, दत्तबंधु, गणनाथ झा, सीताराम झा, ऋद्धिनाथ झा और जीवन झा हैं। नवीन धारा में देशभक्ति का काव्य, आधुनिक गतिकाव्य, वर्णनात्मक और हास्यत्मक काव्य गिनाए जा सकते हैं। इनमें यदुवर और राधवाचार्य, भुवन, सुमन, मोहन और यात्री, एवं अमर तथा हरिमोहन झा उल्लेखनीय हैं। मैथिली के गौरवर्पूण इतिहास में पध के साथ साथ गध साहित्य का अनुपम योगदान है। यहाँ के ग्रामीणोँ में गोनु झा के चतुराई की कहानियाँ अत्यन्त लोकप्रिय है। यहाँ की भुमि देवस्पर्श की धनी है। यहाँ की भुमि राम सिया के पावन विवाह की साक्षी बनी। यहाँ इस विवाह से संबंधित लोक गीत अति लोकप्रिय हैं। नाटक की पुरानी परंपराएँ समाप्त हो गई हैं और जीवन झा ने प्रचुर आधुनिक गद्य का समावेश कर नवीन नाटक की नींव डाली है। आनन्द झा और ईशनाथ झा के नाटकों का स्थान आधुनिक काल में महत्वपूर्ण है। इधर एकांकी नाटकों का विशेष प्रचार हुआ है। इनके लेखकों में तंंत्रनाथ झा और हरिमोहन झा के नाम प्रमुख हैं। मैथिली के अन्य आधुनिक साहित्यकार अमृतकर बिष्णुपुरी गोविन्द दास नृपति जगज्योतिर्मल्ल उमापति नरसिंह लोचन चतुर चतुर्भुज रघुनाथदास महाकवि मनबोध लक्ष्मीनाथ गोसाई भानुनाथ झा चन्दा झा रामजी चौधरी हर्षनाथ झा लालदास कविवर जीवन झा कुमार गंगानन्द सिंह मुन्शी रघुन्दन झा जनार्दन झा,जनसीदन ललित नारायण मिश्र भवप्रीतनन्द ओझा रामवृक्ष बेनीपुरी त्रिपुरारि कुमार शर्मा कुशेश्वर कुमर सीता राम झा कविवर बदरीनाथ झा पुलकित लाल दास मधुर छेदी लाल द्विजवर बाबू छेमधारी सिंह अच्युतानन्द दत्त भोला लाल दास महावीर झा वीर श्रीवल्लभ झा    श्यामनन्द झा जयनारायण झा डा० कांचीनाथ झा बाबू भुवनेश्वर सिंह भुवन बाबू लझ्मी सिंह ईशनाथ झा काशीकान्त मधुप हरिमोहन झा राजकमल चौधरी कविचूड़ामणि मधुप रामधारी सिंह दिनकर तंत्रनाथ स्नेहलता कालीकान्त झा बूच शिवकुमार झा टिल्लू चंद्रशेखर कामति बाल मुकुन्द जीवनाथ झा सुरेन्द झा सुमन रमेश चन्द्र झा वैधनाथ मिश्र यात्री,नागार्जुन आरसी प्रसाद सिंह वैध नाथ मल्लिक उपेन्द ठाकुर राम इकबाल सिंह ,राकेश, आनन्द झा जयनारायण मल्लिक राजलछ्मी राघवाचार्य उपेन्द नाथ व्यास ब्रजकिशोर सिंह रमाकर रामचरित्र पाण्डे फणीश्वर नाथ "रेणु सुधांशु शेखर गोविन्द झा रामाकृष्ण किशुन चन्दर मिश्र अमर चन्दभानु सिंह दीनानाथ पाठक भवनाथ दीपक मधुरानन्द चौधरी दुर्गानाथ झा राजकमल चौधरी गोपाल गोपेश केदारनाथ लाभ भोलानाथ झा धुमकेतु मायानन्द धीरेश्वर धीरेन्द सोमन डोम सोमदेव रामानन्द रेणु मन्नत नाथ हंसराज रवीन्द्र नाथ ठाकुर कीतिनारायण जीवकान्त मैथिली पुत्र प्रदीप गौरीकान्त चौधरी गनेश गुंजन कुलानन्द मिश्र मो. फजलुर रहमान हाशमी विलट पासवान विहंगम मार्कण्डेय प्रवासी विधानाथ विदित बुध्दिनाथ पधनारायण मोहन भारद्वाज उदय चन्द विनोद कलानन्द भट्ट डा.अमरेश पाठक मंत्रेश्वर झा उपेन्द दोसी शान्ति सुमन डॉ. भीमनाथ झा इलारानी सिंह गौरीनाथ ठाकुर विरेन्द मल्लिक जगदीश प्रसाद मण्डल डॉ. बचेश्वर झा महाप्रकाश डॉ. योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’ डॉ. जयनारायण गिरी सुकान्त सोम उदय नारायण सिंह नचिकेता रामभरोस कापड़ि लक्ष्मण झा सागर कपिलेश्‍वर राउत रामदेव भावुक रबीन्द्र नारायण मिश्र विभूति आनंद अच्‍छेलाल शास्‍त्री- नारायण यादव डॉ. शिव कुमार प्रसाद नन्द विलास राय राम विलास साहु महेन्द्र नारायण राम राजदेव मण्डल मो. सद्रे आलम गौहर अरविन्द श्रीवास्तव लालदेव कामत जय प्रकाश मण्डल सुरेश पासवान दुर्गा नन्‍द मण्‍डल रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ बेचन ठाकुर रघुनाथ मुखिया संजय भागलपुरी उदय शंकर राज सिंह बनारसी शरदिन्दु चौधरी महावीर उतराचंली प्रदीप कुमार राम नरेश दीनानाथ प्रसाद ‘जुवराज’ श्री मनोज रामसिफित पासवान डा० मो० जियाउर रहमान जाफरी डॉ. उमेश मण्डल प्रदीप पुष्प किशन कारीगर (यादव) मुन्नी कामत काशीकान्त मिश्र'मधुप' मणिपद्म हरे कृष्ण झा तारानंद वियोगी कृष्ण मोहन झा अविनाश रमण कुमार सिंह कामिनी रामभरोस कापड़ी भ्रमर दिनेश यादव श्रीहर्ष आचार्य दिपक वत्स निशांत सिंह रामजी चौधरी (१८७८-१९५२) बिनोद बिहारी वर्मा नागार्जुन उग्रनारायण मिश्र "कनक" आरसी प्रसाद सिंह त्रिपुरारि विनीत ठाकुर संतोष कुमार मिश्रा चन्दा झा जीवन झा सीताराम झा बाबू भोलालाल दास सुरेन्द्र झा सुमन काशीकान्त मिश्र मधुप मणिपद्म राजकमल चौधरी हरिमोहन झा ललित सोमदेव चन्द्र्नाथ मिश्र 'अमर' रामदेव झा भीमनाथ झा धीरेन्द्र बलराम राज मोहन झा प्रभास कुमार चौधरी धूमकेतु जीवकान्त गंगेश गुंजन महाप्रकाश डॉ. तारानंद वियोगी अशोक शिवशंकर श्रीनिवास प्रदीप बिहारी विभूति आनंद नारायण जी डॉ. सुरेंद्र लाल दास उदय चंद्र झा विनोद दिलीप कुमार झा डॉ. शेफालिका वर्मा जगदीश प्रसाद कर्न उषा किरण खान गजेन्द्र ठाकुर बेचन ठाकुर राम विलास साहु दुर्गानन्द मण्डल धीरेन्द्र कुमार डॉ. बिभा कुमारी नारायण यादव मुन्नी कामत कपिलेश्वर राउत शिव कुमार प्रसाद : डॉ.बचेश्वर झा गौरीनाथ श्रीधरम शुभेंदु शेखर कुणाल गौतम गोविन्द (1995 से वर्तमान) डॉ. शिव कुमार प्रसाद धीरेन्द्र कुमार प्रदीप पुष्प लालदेव कामत दीनानाथ प्रसाद 'जुवराज' किशन कारीगर जय प्रकाश मण्डल उमेश पासवान मो. सद्रे आलम गौहर रघुनाथ मुखिया बद्रनाथ राय रबीन्द्र नारायण मिश्र पं. बाल गोविन्द आर्य जगदीश प्रसाद मण्डल मन्त्रेश्वर झा प्रीतम कुमार निषाद डॉ. योगेन्द्र पाठक 'वियोगी' सुशान्त भास्कर नाटक ओकरा आंगनक बारहमासा : यह नाटक मैथिली का सबसे प्रसिद्ध नाटक है। इसके नाटककार महेन्द्र मलन्गिया जी हैं। ओ खाली मुँह देखै छै गाम नै सुतैये खिच्चैर कमला कातक राम, लक्ष्मण आ सीता देह पर कोठी खसा दिअ चीनिक लड्डू बसात भफाइत चाहक जिनगी : एहि नाटकक रचयिता- शुधांशु शेखर चौधरी छैथ छुतहा घैल ओरिजनल काम काठक लोक डाक बाबू काजे तोहर भगवान विदापत मिथिलाक बेटी : नाटकार- जगदीश प्रसाद मण्डल स्वयंवर : नाटककार- जगदीश प्रसाद मण्डल झमेलिया बिआह : नाटककार- जगदीश प्रसाद मण्डल पंचवटी एकांकी संचयन : नाटककार- जगदीश प्रसाद मण्डल बाप भेल पित्ती : एहि नाटकक रचयिता छैथ- बेचन ठाकुर पत्रिका अंतिका - सं. अनलकांत आरंभ - सं. राज मोहन झा शिखा - सं. अग्निपुष्प, कुणाल गामघर (साप्ताहिक) - सम्पादक : राम भरोस कपारी भ्रमर आँजुर (मासिक) - सम्पादक : राम भरोस कपारी भ्रमर कोसी सन्देश- सं. अर्द्धनारीश्वर विदेह-सदेह- सं. गजेन्द्र ठाकुर समय साल- घर-बाहर मिथिला दर्शन सन्दर्भ इन्हें भी देखें मैथिली कविता बाहरी कड़ियाँ विदेह - प्रथम मैथिली पाक्षिक इ पत्रिका श्रेणी:मैथिली श्रेणी:मैthhथिली साहित्य
महादेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/महादेश
REDIRECTमहाद्वीप
माध्यम
https://hi.wikipedia.org/wiki/माध्यम
redirect माध्यम (सम्पादित्र)
रामायण
https://hi.wikipedia.org/wiki/रामायण
रामायण (संस्कृत : रामायणम् = राम + आयणम् ; शाब्दिक अर्थ : 'राम की जीवन-यात्रा'), वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य इतिहास है जिसमें श्रीराम की गाथा है। इसे आदिकाव्य'रामायणमादिकाव्यम्', श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे रामायणमाहात्म्ये- १-३५ तथा ५-६१, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण भाग-१, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-१९९६ ई०, पृष्ठ-९ एवं २५. तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि'ध्वन्यालोकः, १-५ (कारिका एवं वृत्ति) तथा ४-५ (वृत्ति), ध्वन्यालोक, हिन्दी व्याख्याकार- आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणि, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, संस्करण-१९८५ ई०, पृष्ठ-२९-३० एवं ३४५ तथा ध्वन्यालोकः (लोचन सहित) हिन्दी अनुवाद- जगन्नाथ पाठक, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, संस्करण-२०१४, पृष्ठ-८६ एवं ८९ तथा पृ०-५७०. भी कहा जाता है। संस्कृत साहित्य परम्परा में रामायण और महाभारत को इतिहास कहा गया है और दोनों सनातन संस्कृति के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रन्थ हैं। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। इसमें कुल लगभग २४,००० श्लोक हैं।इस रचना के अंतगर्त सूर्यवंशी क्षत्रिय राजपुत् का उल्लेख मिलता है अधिकांश क्षत्रियो के कुलदेवता और देव के रूप में सूर्यदेव और श्रीराम को पूजा जाता है| तत्वकान्ड में भी उत्तरकांड को प्रक्षिप्त माना गया है । उसके बाद की संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य पर इस महाकाव्य का बहुत अधिक प्रभाव है तथा रामकथा को लेकर अनेकों 'रामायण' रचे गये। रचनाकाल मान्यतानुसार रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती प्रभृति संतों के अनुसार श्रीराम अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था जिसके अनुसार श्रीरामचंद्र जी का काल लगभग पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का है। इसके सन्दर्भ में विचार पीयूष, भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, संजीवनी रामायण एवं पुराणों से प्रमाण दिया जाता है। इस महाकाव्य के ऐतिहासिक विकास और संरचनागत परतों को जानने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। आधुनिक विद्वान इसका रचनाकाल ७ वीं से ४ वीं शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं। कुछ विद्वान तो इसे तीसरी शताब्दी ई तक की रचना मानते हैं। कुछ भारतीय कहते हैं कि यह ६०० ईपू से पहले लिखा गया। उसके पीछे तर्क यह है कि महाभारत, बौद्ध धर्म के बारे में मौन है जबकि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। महाभारत, रामायण के पश्चात रचित है, अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा-शैली के अनुसार भी रामायण, पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये। “ रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवतः बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु के अवतार थे। कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादास्पद है। ६०० ईपू से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है। „ संक्षेप में रामायण-कथा हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, विष्णु के मानवरूपी क्षत्रिय(राजपुत्)अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की। रामायण में सात काण्ड हैं - बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड और उत्तरकाण्ड। बालकाण्ड अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ १६३ जिसे कि ऋंगी ऋषि ने सम्पन्न किया। thumb| देवदूत द्वारा दशरथ को खीर देना , चित्रकार हुसैन नक्काश और बासवान , अकबर की जयपुर रामायण से भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (खीर, पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। thumb|right|300px|सीता स्वंयवर (चित्रकार: रवि वर्मा) राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ १८० से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमन्त्रण मिलने पर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहल्या का उद्धार किया। मिथिला में आकर जब राम शिवधनुष को देखकर उठाने का प्रयत्न करने लगे तब वह बीच से टूट गया और जनकप्रतिज्ञा के अनुसार राम ने सीता से विवाह किया। राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से करवा दिया।‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ ९२-९३ अयोध्याकाण्ड राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा।तब मंथरा,जो कैकेयी की दासी थी,उसने कैकेयी की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 120-128 मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये। राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा। प्रयाग पहुंच कर राम ने भारद्वाज मुनि से भेंट की। वहां से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुंचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे। अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यन्त पश्चाताप हुआ। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया। भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 554-557 अरण्यकाण्ड कुछ काल के पश्चात राम ने चित्रकूट से प्रयाण किया तथा वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहाँ से फिर राम ने आगे प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल राम के दर्शन की कामना से वहाँ निवास कर रहे थे अतः राम के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया। और आगे बढ़ने पर राम को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने राम को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस पर राम ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया। thumb|left|300px|सीता हरण (चित्रकार: रवि वर्मा) पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन-किया। राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे राजपुत्र लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला।‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 251-263 शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच राम के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने तलवार के प्रहार से उसे अधमरा कर दिया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 603-606 सीता को न पा कर राम अत्यन्त दुःखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अन्तिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये जूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया। इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये। किष्किन्धाकाण्ड राम ऋष्यमूक पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने मन्त्रियों सहित सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में कि कहीं बालि ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों को न भेजा हो, हनुमान को राम और लक्ष्मण के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बालि ने नहीं भेजा है हनुमान ने राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बालि के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय में बताया। राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज का पद दे दिया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 634-638 राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। राम की नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुंचा दिया जहां पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया। सुन्दरकाण्ड हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान किया। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 658-659 और उसे योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया। उनकी विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवाटिका में पहुँचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को सान्तवना दी। एकान्त होने पर हनुमान जी ने सीता माता से भेंट करके उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोकवाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 668-672 रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूँछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांध कर आग लगा दिया इस पर हनुमान ने लंका का दहन कर दिया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 678-679 हनुमान सीता के पास पहुँचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गये। हनुमान के कार्य से राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुँचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की। विनती न मानने पर राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत होकर समुद्र ने स्वयं आकर राम की विनती करने के पश्चात् नल और नील के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया। लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 709-711 श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ मेरु पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना। शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 751-759 रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया।‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 802-807 विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 455-459 उत्तरकाण्ड उत्तरकाण्ड राम कथा का उपसंहार है। सीता, लक्ष्मण और समस्त वानरसेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुँचे। राम का भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ राम का राज्याभिषेक हुआ। अभ्यागतों की विदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये। रामराज्य एक आदर्श बन गया। उपरोक्त बातों के साथ ही साथ गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में श्री राम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी का अयोध्या आकर रामचन्द्र जी की स्तुति करना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह तथा गरुड़ जी का काकभुशुण्डि जी से रामकथा एवं राम-महिमा सुनना, काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा, ज्ञान-भक्‍ति निरूपण, ज्ञानदीपक और भक्‍ति की महान महिमा, गरुड़ के सात प्रश्‍न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन किया है। जहाँ तुलसीदास जी ने उपरोक्त वर्णन लिखकर रामचरितमानस को समाप्त कर दिया है वहीं आदिकवि वाल्मीकि अपने रामायण में उत्तरकाण्ड में रावण तथा हनुमान के जन्म की कथा,‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 463-475 सीता का निर्वासन,‘वाल्मीकीय रामायण’‘, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 480-483 राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति तथा रामराज्य में कुत्ते का न्याय की उपकथायें,‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 485-491 लवकुश का जन्म,‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 495-496 राम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान तथा उस यज्ञ में उनके पुत्रों लव तथा कुश के द्वारा महाकवि वाल्मीकि रचित रामायण गायन, सीता का रसातल प्रवेश,‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 508-512 लक्ष्मण का परित्याग,‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 515-518 ५१५ ५१८ का भी वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड का समापन राम के महाप्रयाण के बाद ही हुआ है।‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 518-520 उत्तरकांड को लेकर कई तरह के विवाद भी है। ऐसा माना जाता हैं की उत्तरकांड मूल वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं हैं। और इसमें कई कहानियां बाद में जोड़ी गई जो अलग अलग लेखकों द्वारा लिखी गई कहानियों को जोड़ कर तैयार किया गया हैं। उत्तरकांड मूल रामायण का हिस्सा नहीं हैं इसको लेकर कई विद्वान एकमत हैं। आदर्श पुरुष के गुण वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के सत्रह गुण बताए गए हैं, जो लोगों में नेतृत्व क्षमता बढ़ाने व किसी भी क्षेत्र में अगुवाई करने के अहम सूत्र हैं। वाल्मीकि जी ने नारद जी से प्रश्न किया कि सम्प्रति इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है जो गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ साथ सदाचार से युक्त हो। जो सब प्राणियों का हितकारक हो, साथ ही विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन हो। कोऽन्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान्। धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः॥१-१-२ चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः। विद्वान् कः कस्समर्थश्च कैश्चैकप्रियदर्शनः॥१-१-३ आत्मवान् को जितक्रोधो द्युतिमान् कोऽनसूयकः। कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे॥१-१-४ उत्तर में नारद जी कहते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्री राम में ये सभी गुण हैं। इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः। नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान धृतिमान वशी॥ बुद्धिमान नीतिमान वाग्मी श्रीमान शत्रुनिबर्हणः। धर्मज्ञस्सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः॥ यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यस्समाधिमान। रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता॥ सर्वदाऽभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्दुभिः। आर्यस्सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः॥ स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्द्धनः। समुद्र इव गाम्भीर्ये स्थैर्ये च हिमवानिव॥ विष्णुना सदृश्यो वीर्ये सोमवत प्रियदर्शनः। धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः॥ श्रीराम के सोलह गुण, जो आदर्श पुरुष में होने चाहिए- गुणवान् वीर्यवान् ( वीर ) धर्मज्ञ ( धर्म को जानने वाला) कृतज्ञ ( दूसरों द्वारा किये हुए अच्छे कार्य को न भूलने वाला) सत्यवाक्य ( सत्य बोलने वाला) दृढव्रत ( दृढ व्रती ) चरित्रवान् सर्वभूतहितः ( सभी प्राणियों के हित करने वाला) विद्वान् समर्थ सदैक प्रियदर्शन ( सदा प्रियदर्शी ) आत्मवान् ( धैर्यवान ) जितक्रोध (जिसने क्रोध को जीत लिया हो) द्युतिमान् (कान्तियुक्त ) अनसूयक (ईर्ष्या को दूर रखने वाला) बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे ( जिसके रुष्ट होने पर युद्ध में देवता भी भयभीत हो जाते हैं) रामायण की टीकाएँ वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ प्राप्त होते हैः- (१) दाक्षिणात्य पाठ (२) गौडीय पाठ (३) पश्चिमोत्तरीय पाठ या काश्मीरिक संस्करण (अमृत कतक टीका) इन तीन पाठों में केवल पाठभेद ही नहीं प्राप्त होते अपितु कहीं-कहीं इसके सर्ग भी भिन्न-भिन्न हैं। रमायण की ३० टीकाएँ प्राप्त होती है। प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं- टीका का नाम टीकाकार रामानुजीयम् सर्वार्थसार रामायणदीपिका बृहदविवरण लघुविवरण रामायणतत्वदीपिका (महेश्वरतीर्थी) महेश तीर्थ भूषण (गोविन्दराजीय ) गोविन्दराज वाल्मीकिहृदय अहोबल अमृतकतक माधवयोगी रामायणतिलक रामायणशिरोमणि मनोहर धर्माकूतम् त्र्यम्बक मखिन् तनिश्लोकी पेरियर वाचाम्बिल्लै विषमपदविवृति रामायणभूषण प्रबल मुकुन्दसूरि रामायण की सीख रामायण के सारे चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं। राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि है। पति के रूप में राम ने सदैव एकपत्नीव्रत का पालन किया। राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं। विलक्षण व्यक्तित्व है उनका। वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं। सीता का पातिव्रत महान है। सारे वैभव और ऐश्वर्य को ठुकरा कर वे पति के साथ वन चली गईं। रामायण भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राज गद्दी पर, बड़े भाई का अधिकार होने के कारण, स्वयं न बैठ कर राम की पादुका को प्रतिष्ठित कर देते हैं। कौशल्या एक आदर्श माता हैं। अपने पुत्र राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भूला कर वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती हैं जितनी कि अपने पुत्र राम पर। हनुमान एक आदर्श भक्त हैं, वे राम की सेवा के लिये अनुचर के समान सदैव तत्पर रहते हैं। शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को उनकी सेवा के कारण ही प्राणदान प्राप्त होता है। रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार नाश का कारण होता है। रामायण द्वारा प्रेरित अन्य साहित्यिक महाकाव्य वाल्मीकि रामायण से प्रेरित होकर सन्त तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की जो कि वाल्मीकि के द्वारा संस्कृत में लिखे गये रामायण का हिंदी संस्करण है। रामचरितमानस में हिंदू आदर्शों का उत्कृष्ट वर्णन है इसीलिये इसे हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ होने का श्रेय मिला हुआ है और प्रत्येक हिंदू परिवार में भक्तिभाव के साथ इसका पठन पाठन किया जाता है। रामायण से ही प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने पंचवटी तथा साकेत नामक खंडकाव्यों की रचना की। रामायण में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के उल्लेखनीय त्याग को शायद भूलवश अनदेखा कर दिया गया है और इस भूल को साकेत खंडकाव्य रचकर मैथिलीशरण गुप्त जी ने सुधारा है। राम सम्बन्धी कथानक से प्रेरित होकर श्रीभागवतानंद गुरु ने संस्कृत महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् की रचना की जो अद्भुत एवं गुप्त कथाप्रसंग से भरा हुआ है। इस ग्रंथ में 20 से अधिक प्रकार के रामायणों की कथा का समावेश है। नेपाल के राजदरबार से सम्मानित कविवर श्री राधेश्याम जी की राधेश्याम रामायण, प्रेमभूषण जी की प्रेम रामायण, महर्षि कम्बन की कम्ब रामायण के अलावा और भी अनेक साहित्यकारों ने रामायण से प्रेरणा ले कर अनेक कृतियों की रचना की है। इन्हें भी देखें श्रीराम विभिन्न भाषाओं में रामायण रामायण और चित्रकला श्री रामचरित मानस महाभारत महाकाव्य श्रीरामवंसज टीका-टिप्पणी    क.    ‘रामायण’ का संधि विच्छेद करने है ‘राम’ + ‘अयन’। ‘अयन’ का अर्थ है ‘यात्रा’ इसलिये रामायण का अर्थ है राम की यात्रा।    ख.    इसमें ४,८०,००२ शब्द हैं जो महाभारत का चौथाई है।    ग.    पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित एवं रामचरितमानस में राम के विष्णु का अवतार होने का स्पष्ट उल्लेख है, किन्तु वाल्मीकि रामायण में केवल इसका संकेत मात्र ही है।    घ.    काकभुशुण्डि की विस्तृत कथा का वर्णन तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड के दोहा क्रमांक ९६ से दोहा क्रमांक ११५ तक में किया है।    ङ.    रामचरितमानस = राम + चरित + मानस, रामचरितमानस का अर्थ है राम के चरित्र का सरोवर। रामचरितमानस के बालकाण्ड के दोहा क्रमांक ३५ से दोहा क्रमांक ४२ में तुलसीदास जी ने इस सरोवर के स्वरूप का वर्णन किया है।    च.    “आचार्य चतुरसेन” ने अपने ग्रंथ ‘वयं रक्षामः’ में राक्षसजाति एवं राक्षस संस्कृति का विस्तृत वर्णन किया है। संदर्भ ग्रन्थसूची रामचरितमानस, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण (प्रथम एवं द्वितीय खंड), सचित्र, हिंदी अनुवाद सहित, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर कवितावली, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर रामायण के कुछ आदर्श पात्र, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर वाल्मीकीय रामायण, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली बाहरी कड़ियाँ विकिस्रोत से रामायण वाल्मीकि रामायण श्रेणी:धर्मग्रन्थ श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:रामायण श्रेणी:उत्तम लेख श्रेणी:महाकाव्य
संथाली
https://hi.wikipedia.org/wiki/संथाली
पुनर्प्रेषित संथाली भाषा
अवधी
https://hi.wikipedia.org/wiki/अवधी
thumb|right|250px|अवधी भाषी क्षेत्र का भौगोलिक विस्तार अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश के "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, अयोध्या, जौनपुर, प्रतापगढ़,अमेठी प्रयागराज, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा,बस्ती, बहराइच,बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती तथा फतेहपुर) में बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी एक शाखा बघेलखंड में बघेली नाम से प्रचलित है। 'अवध' शब्द की व्युत्पत्ति "अयोध्या" से है। इस नाम का एक सूबा के राज्यकाल में था। तुलसीदास ने अपने "मानस" में अयोध्या को 'अवधपुरी' कहा है। इसी क्षेत्र का पुराना नाम 'कोसल' भी था जिसकी महत्ता प्राचीन काल से चली आ रही है। भाषा शास्त्री डॉ॰ सर "जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन" के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार अवधी बोलने वालों की कुल आबादी 1615458 थी जो सन् 1971 की जनगणना में 28399552 हो गई। मौजूदा समय में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 6 करोड़ से ज्यादा लोग अवधी बोलते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त के 19 जिलों- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, अयोध्या व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 7 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांपुर, आजमगढ़,सिद्धार्थनगर, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार प्रांत के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के कई जिलों - बांके जिला, बर्दिया जिला, दांग जिला, कपिलवस्तु जिला, पश्चिमी नवलपरासी जिला, रुपन्देही जिला, कंचनपुर जिला आदि में यह काफी प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड (नीदरलैंड) में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। अवधी भाषी क्षेत्र का भौगोलिक विस्तार अवधी प्रमुख रूप से भारत, नेपाल और फिजी में बोली जाती है। भारत में अवधी मुख्यतः उत्तर प्रदेश राज्य में बोली जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार के कुछ जिलों में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश के अवधी भाषी जिले: अमेठी, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, प्रयागराज, कौशांबी, अम्बेडकर नगर, सिद्धार्थ नगर, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, अयोध्या, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, बस्ती एवं फतेहपुर। नेपाल के अवधी भाषी जिले कपिलवस्तु, बर्दिया, डांग, रूपनदेही, नवलपरासी, कंचनपुर, बांके आदि तराई नेपाल के जिले। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड (नीदरलैंड) में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। परिचय गठन की दृष्टि से हिंदी क्षेत्र की उपभाषाओं को दो वर्गों-पश्चिमी और पूर्वी में विभाजित किया जाता है। अवधी पूर्वी के अंतर्गत है। पूर्वी की दूसरी उपभाषा छत्तीसगढ़ी है। अवधी को कभी-कभी बैसवाड़ी भी कहते हैं। परंतु बैसवाड़ी अवधी की एक बोली मात्र है जो उन्नाव, लखनऊ, रायबरेली,फतेहपुर और सिंगरौली जिले के कुछ भागों में बोली जाती है। तुलसीदास कृत रामचरितमानस एवं मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत सहित कई प्रमुख ग्रंथ इसी बोली की देन है। इसका केन्द्र अयोध्या है। अयोध्या लखनऊ से १२० किमी की दूरी पर पूर्व में है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', पं महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, राममनोहर लोहिया, कुंवर नारायण, दिवाकर द्विवेदी की यह जन्मभूमि है। उमराव जान, आचार्य नरेन्द्र देव और राम प्रकाश द्विवेदी की कर्मभूमि भी यही है। रमई काका की लोकवाणी भी इसी भाषा में गुंजरित हुई। हिंदी के रीतिकालीन कवि द्विजदेव के वंशज अयोध्‍या का राजपरिवार है। इसी परिवार की एक कन्‍या का विवाह दक्षिण कोरिया के राजघराने में अरसा पहले हुआ था। हिंदी के वरिष्‍ठ आलोचक विश्‍वनाथ त्रिपाठी ने अवधी भाषा और व्‍याकरण पर महत्‍त्‍वपूर्ण पुस्‍तक लिखी है। फाह्यान ने भी अपने विवरण में अयोध्‍या का जिक्र किया है। आज की अवधी प्रवास और संस्‍कृतिकरण के चलते खड़ी बोली और अंग्रेजी के प्रभाव में आ रही है। अवधी के पश्चिम में पश्चिमी वर्ग की बुंदेली और ब्रज का, दक्षिण में छत्तीसगढ़ी का और पूर्व में भोजपुरी बोली का क्षेत्र है। इसके उत्तर में नेपाल की तराई है । व्याकरण हिंदी खड़ीबोली से अवधी की विभिन्नता मुख्य रूप से व्याकरणात्मक है। इसमें कर्ता कारक के परसर्ग (विभक्ति) "ने" का नितांत अभाव है। अन्य परसर्गों के प्राय: दो रूप मिलते हैं- ह्रस्व और दीर्घ। (कर्म-संप्रदान-संबंध : क, का; करण-अपादान : स-त, से-ते; अधिकरण : म, मा)। संज्ञाओं की खड़ीबोली की तरह दो विभक्तियाँ होती हैं- विकारी और अविकारी। अविकारी विभक्ति में संज्ञा का मूल रूप (राम, लरिका, बिटिया, मेहरारू) रहता है और विकारी में बहुवचन के लिए "न" प्रत्यय जोड़ दिया जाता है (यथा रामन, लरिकन, बिटियन, मेहरारुन)। कर्ता और कर्म के अविकारी रूप में व्यंजनान्त संज्ञाओं के अंत में कुछ बोलियों में एक ह्रस्व "उ" की श्रुति होती है (यथा रामु, पूतु, चोरु)। किंतु निश्चय ही यह पूर्ण स्वर नहीं है और भाषाविज्ञानी इसे फुसफुसाहट के स्वर-ह्रस्व "इ" और ह्रस्व "ए" (यथा सांझि, खानि, ठेलुआ, पेहंटा) मिलते हैं। संज्ञाओं के बहुधा दो रूप, ह्रस्व और दीर्घ (यथा नद्दी नदिया, घोड़ा घोड़वा, नाऊ नउआ, कुत्ता कुतवा) मिलते हैं। इनके अतिरिक्त अवधी क्षेत्र के पूर्वी भाग में एक और रूप-दीर्घतर मिलता है (यथा कुतउना)। अवधी में कहीं-कहीं खड़ीबोली का ह्रस्व रूप बिलकुल लुप्त हो गया है; यथा बिल्ली, डिब्बी आदि रूप नहीं मिलते बेलइया, डेबिया आदि ही प्रचलित हैं। सर्वनाम में खड़ीबोली और ब्रज के "मेरा तेरा" और "मेरो तेरो" रूप के लिए अवधी में "मोर तोर" रूप हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वी अवधी में पश्चिमी अवधी के "सो" "जो" "को" के समानांतर "से" "जे" "के" रूप प्राप्त हैं। क्रिया में भविष्यकाल रूपों की प्रक्रिया खड़ीबोली से बिलकुल भिन्न है। खड़ीबोली में प्राय: प्राचीन वर्तमान (लट्) के तद्भव रूपों में- गा-गी-गे जोड़कर (यथा होगा, होगी, होंगे आदि) रूप बनाए जाते हैं। ब्रज में भविष्यत् के रूप प्राचीन भविष्यत्काल (लट्) के रूपों पर आधारित हैं। (यथा होइहैंउ भविष्यति, होइहोंउ भविष्यामि)। अवधी में प्राय: भविष्यत् के रूप तव्यत् प्रत्ययांत प्राचीन रूपों पर आश्रित हैं (होइबाउ भवितव्यम्)। अवधी की पश्चिमी बोलियों में केवल उत्तमपुरुष बहुवचन के रूप तव्यतांत रूपों पर निर्भर हैं। शेष ब्रज की तरह प्राचीन भविष्यत् पर। किंतु मध्यवर्ती और पूर्वी बोलियों में क्रमश: तव्यतांत रूपों की प्रचुरता बढ़ती गई है। क्रियार्थक संज्ञा के लिए खड़ीबोली में "ना" प्रत्यय है (यथा होना, करना, चलना) और ब्रज में "नो" (यथा होनो, करनो, चलनो)। परंतु अवधी में इसके लिए "ब" प्रत्यय है (यथा होब, करब, चलब)। अवधी में निष्ठा एकवचन के रूप का "वा" में अंत होता है (यथा भवा, गवा, खावा)। भोजपुरी में इसके स्थान पर "ल" में अंत होनेवाले रूप मिलते हैं (यथा भइल, गइल)। अवधी का एक मुख्य भेदक लक्षण है अन्यपुरुष एकवचन की सकर्मक क्रिया के भूतकाल का रूप (यथा करिसि, खाइसि, मारिसि)। य-"सि" में अंत होनेवाले रूप अवधी को छोड़कर अन्यत्र नहीं मिलते। अवधी की सहायक क्रिया में रूप "ह" (यथा हइ, हइं), "अह" (अहइ, अइई) और "बाटइ" (यथा बाटइ, बाटइं) पर आधारित हैं। ऊपर लिखे लक्षणों के अनुसार अवधी की बोलियों के तीन वर्ग माने गए हैं : पश्चिमी, मध्यवर्ती और पूर्वी। पश्चिमी बोली पर निकटता के कारण ब्रज का और पूर्वी पर भोजपुरी का प्रभाव है। इनके अतिरिक्त बघेली बोली का अपना अलग अस्तित्व है। विकास की दृष्टि से अवधी का स्थान ब्रज, कन्नौजी और भोजपुरी के बीच में पड़ता है। ब्रज की व्युत्पत्ति निश्चय ही शौरसेनी से तथा भोजपुरी की मागधी प्राकृत से हुई है। अवधी की स्थिति इन दोनों के बीच में होने के कारण इसका अर्धमागधी से निकलना मानना उचित होगा। खेद है कि अर्धमागधी का हमें जो प्राचीनतम रूप मिलता है वह पाँचवीं शताब्दी ईसवी का है और उससे अवधी के रूप निकालने में कठिनाई होती है। पालि भाषा में बहुधा ऐसे रूप मिलते हैं जिनसे अवधी के रूपों का विकास सिद्ध किया जा सकता है। संभवत: ये रूप प्राचीन अर्धमागधी के रहे होंगे। अवधी साहित्य प्राचीन अवधी साहित्य की दो शाखाएँ हैं : एक भक्तिकाव्य और दूसरी प्रेमाख्यान काव्य। भक्तिकाव्य में गोस्वामी तुलसीदास का "रामचरितमानस" (सं. 1631) अवधी साहित्य की प्रमुख कृति है। इसकी भाषा संस्कृत शब्दावली से भरी है। "रामचरितमानस" के अतिरिक्त तुलसीदास ने अन्य कई ग्रंथ अवधी में लिखे हैं। इसी भक्ति साहित्य के अंतर्गत लालदास का "अवधबिलास" आता है। इसकी रचना संवत् 1700 में हुई। इनके अतिरिक्त कई और भक्त कवियों ने रामभक्ति विषयक ग्रंथ लिखे। संत कवियों में बाबा मलूकदास भी अवधी क्षेत्र के थे। इनकी बानी का अधिकांश अवधी में है। इनके शिष्य बाबा मथुरादास की बानी भी अधिकतर अवधी में है। बाबा धरनीदास यद्यपि छपरा जिले के थे तथापि उनकी बानी अवधी में प्रकाशित हुई। कई अन्य संत कवियों ने भी अपने उपदेश के लिए अवधी को अपनाया है। प्रेमाख्यान काव्य में सर्वप्रसिद्ध ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित "पद्मावत" है जिसकी रचना "रामचरितमानस" से 34 वर्ष पूर्व हुई। दोहे चौपाई का जो क्रम "पद्मावत" में है प्राय: वही "मानस" में मिलता है। प्रेमाख्यान काव्य में मुसलमान लेखकों ने सूफी मत का रहस्य प्रकट किया है। इस काव्य की परंपरा कई सौ वर्षों तक चलती रही। मंझन की "मधुमालती", उसमान की "चित्रावली", आलम की "माधवानल कामकंदला", नूरमुहम्मद की "इंद्रावती" और शेख निसार की "यूसुफ जुलेखा" इसी परंपरा की रचनाएँ हैं। शब्दावली की दृष्टि से ये रचनाएँ हिंदू कवियों के ग्रंथों से इस बात में भिन्न हैं कि इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की उतनी प्रचुरता नहीं है। प्राचीन अवधी साहित्य में अधिकतर रचनाएँ देशप्रेम, समाजसुधार आदि विषयों पर और मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक हैं। कवियों में प्रतापनारायण मिश्र, बलभद्र दीक्षित "पढ़ीस", वंशीधर शुक्ल, चंद्रभूषण द्विवेदी "रमई काका", गुरु प्रसाद सिंह "मृगेश" और शारदाप्रसाद "भुशुंडि" विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रबंध की परंपरा में "रामचरितमानस" के ढंग का एक महत्वपूर्ण आधुनिक ग्रंथ द्वारिकाप्रसाद मिश्र का "कृष्णायन" है। इसकी भाषा और शैली "मानस" के ही समान है और ग्रंथकार ने कृष्णचरित प्राय: उसी तन्मयता और विस्तार से लिखा है जिस तन्मयता और विस्तार से तुलसीदास ने रामचरित अंकित किया है। मिश्र जी ने इस ग्रंथ की रचना द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि प्रबंध के लिए अवधी की प्रकृति आज भी वैसी ही उपादेय है जैसी तुलसीदास के समय में थी। अवधी लोक साहित्य अवधी लोक साहित्य की एक समृद्ध परम्परा है। अवधी लोक साहित्य पर कई शोध हुए हैं। इनमें कुछ प्रमुख हैं- अवधी लोक साहित्य -डा॰ सरोजिनी रोहतगी (१९७१) अवधी लोक गायन प्राचीन काल में अवधी साहित्य केवल पद्द के रूप में फला फूला है। अतः अवधी लोक गायकी भी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। अवधी कलाकारों को बिरहा, नौटंकी नाच, अहिरवा नृत्य, कंहरवा नृत्य, चमरवा नृत्य, कजरी आदि नाट्य विधाओं का आविष्कारक माना जाता है तथा इसमें इन्हे अभी भी महारत हासिल है। अवधी की गारी तो पूरे अवध में प्रसिद्ध है, इसे शादी-ब्याह में महिलाओं द्वारा गाया जाता है।अवधी के सुप्रसिद्ध गायक दिवाकर द्विवेदी है। अवधी भाषा का संघर्ष विश्व भर में 6 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा अवधी को अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिल सकी है। इसी प्रकार फिजी में अवधी भाषा को फिजी हिंदी के रूप में प्रस्तुत करके भारत सरकार ने फिजी में भी अवधी के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया है। अवधी भाषा को अब हिन्दी के साथ साथ भोजपुरी से भी खतरा बढ़ रहा है। किन्तु इन्हीं सब के बीच नेपाल ने प्रांत संख्या ५ में अवधी को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्रदान करके अवधी साहित्यकारों की कलम में जान फूंकने का कार्य किया है। इससे भारत के अवधी भाषी भी काफी उत्साहित हैं। इन्हें भी देखें अवधी साहित्य अवधी दिवस सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अवधी कविता कोश अवधी ग्रन्थावली (गूगल पुस्तक) अवधी ग्रन्थावली, भाग - २ (गूगल पुस्तक ; लेखक - जगदीश पीयूष) एसआईएल इंटरनेशनल पर अवधी की प्रविष्टि अवधी किताबें श्रेणी:विश्व की भाषाएँ श्रेणी:हिन्दी की बोलियाँ श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ श्रेणी:उत्तर प्रदेश की भाषाएँ
सांथाली
https://hi.wikipedia.org/wiki/सांथाली
पुनर्प्रेषित संथाली भाषा
नवीन पटनायक
https://hi.wikipedia.org/wiki/नवीन_पटनायक
नवीन पटनायक (जन्म 16 अक्टूबर 1946) भारतीय राज्य ओडिशा के १४वें और वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। वे बीजू जनता दल के संस्थापक मुखिया हैं और वे लेखक भी हैं। व्यक्तिगत जीवन नवीन पटनायक का जन्म ओडिशा के कटक नगर में 16 अक्टूबर 1946 को कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक तथा माँ ज्ञान पटनायक थे। उनकी शिक्षा दून विद्यालय में हुई और बाद में उन्होंने किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली से कला में स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। नवीन पटनायक एक लेखक भी हैं और उन्होंने अपना युवाकाल लगभग रजनीति और ओडिशा से दूर ही व्यतीत किया। वर्ष 1997 में नवीन पटनायक ने उनके पिता का निधन होने के बाद राजनीति में कदम रखा और एक वर्ष बाद ही अपने पिता बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल की स्थापना की। बीजू जनता दल ने उसके बाद विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और भाजपा के साथ सरकार बनाई जिसमें वे स्वयं मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 'भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई' और 'गरीब समर्थक नीतियां' अपने ही ढ़ंग से आरम्भ किया। उन्होंने नौकरशाही का ठीक से प्रबन्धन कर राज्य के विकास के अपने पिता के सपने को अपने विकास का आधार बनाया। इसी तरह उन्होंने ओडिशा में लोकप्रियता हासिल की और लगातार चार बार पूर्ण जनाधार के साथ मुख्यमंत्री बनने में सफल हुये। नवीन पटनायक का नाम ओडिशा के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान है। वो अभी तक अविवाहित हैं। राजनैतिक जीवन नवीन पटनायक ने सन् 1999 में जनता दल के नेता और उनके पिता बीजू पटनायक के निधन के बाद ओडिशा की राजनीति में कदम रखा। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ओडिशा डायरी पर नवीन पटनायक सहित ओडिशा के प्रसिद्ध लोग ओडिशा सरकार के आधिकारीक जालस्थल पर ओडिशा के प्रसिद्ध लोग बीबीसी के अनुसार ओडिशा के आकस्मिक राजनीतिज्ञ। श्रेणी:1946 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:ओड़िशा के मुख्यमंत्री श्रेणी:११वीं लोक सभा के सदस्य
भारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्रियों की सूची
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_राज्यों_के_वर्तमान_मुख्यमंत्रियों_की_सूची
thumb|250x250px|भारत में वर्तमान में सत्ताधारी पार्टियाँ भारतीय गणराज्य में अठाईस राज्यों और आठ में से तीन केन्द्र-शासित प्रदेशों की प्रत्येक सरकार के मुखिया मुख्यमन्त्री कहा जाता है। भारत के संविधान के अनुसार राज्य स्तर पर राज्यपाल कानूनन मुखिया होता है लेकिन वास्तव में कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमन्त्री ही होता है। राज्य विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल सामान्यतः सरकार बनाने के लिए बहुमत वाले दल (अथवा गठबन्धन) को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करता है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है जिसकी कैबिनेट विधानसभा के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होती है। यदि विधानसभा में विश्वासमत प्राप्त हो तो मुख्यमन्त्री का कार्यकाल सामान्यतः अधिकतम पाँच वर्ष का होता है; इसके अतिरिक्त मुख्यमन्त्री के कार्यकाल की संख्याओं की कोई सीमा नहीं होती।दुर्गा दास बसु (अंग्रेजी में), Introduction to the Constitution of India [भारत के संविधान से परिचय], 1960, 20वाँ संस्करण, 2011 पुनः मुद्रित, पृ॰ 241, 245, लेक्सिसनेक्सिस बट्टरवर्थ्स वाध्वा नागपुर, । वर्तमान में जम्मू और कश्मीर के मुख्यमन्त्री का कार्यालय रिक्त है। वर्तमान में पदस्थ 30 मुख्यमन्त्रियों में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं। मार्च 2000 से ( ओडिशा के नवीन पटनायक सबसे लम्बे समय से पदस्थ मुख्यमन्त्री हैं। सबसे अधिक 8 बार बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (आयु वर्ष) सबसे बुजुर्ग और अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू (जन्म 1979) सबसे युवा मुख्यमन्त्री हैं। भारतीय जनता पार्टी के 12 पदस्थ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 3 पदस्थ है। इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य दल के पदस्थ मुख्यमन्त्रियों की संख्या एक से अधिक नहीं है। वर्तमान भारतीय मुख्यमंत्री राज्य<small>(पूर्व मुख्यमंत्री) नाम चित्र पद ग्रहण<small>(कार्यकाल अवधि) दल सन्दर्भ अरुणाचल प्रदेश<small>(सूची) पेमा खांडू 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी असम<small>(सूची) हिमंता बिस्वा सरमा100px <small>() भारतीय जनता पार्टी आन्ध्र प्रदेश<small>(सूची वाई एस जगनमोहन रेड्डी 100px<small>() वाईएसआर कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश<small>(सूची) योगी आदित्यनाथ 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी उत्तराखण्ड<small>(सूची) पुष्कर सिंह धामी 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी ओडिशा<small>(सूची) नवीन पटनायक 100px <small>() बीजू जनता दल कर्नाटक<small>(सूची) सिद्दारमैया 100px <small>() भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस केरल<small>(सूची) पिनाराई विजयन 100px <small>() मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी गुजरात<small>(सूची) भूपेंद्रभाई पटेल 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी गोवा<small>(सूची) प्रमोद सावंत 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़<small>(सूची) विष्णुदेव साय 100x100px <small>() भारतीय जनता पार्टी जम्मू और कश्मीर<small>(सूची) रिक्त(राष्ट्रपति शासन) 60px <small>() लागू नहीं झारखण्ड<small>(सूची) चंपई सोरेन <small>() झारखंड मुक्ति मोर्चा तमिल नाडु<small>(सूची) एम॰ के॰ स्टालिन 100px <small>() द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम तेलंगाना<small>(सूची) रेवंत रेड्डी 100px <small>() भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नागालैण्ड<small>(सूची) नेफियू रियो 100px <small>() नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी पंजाब<small>(सूची) भगवंत मान 100px <small>() आम आदमी पार्टी पश्चिम बंगाल<small>(सूची) ममता बनर्जी 100px <small>() सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस पुदुच्चेरी<small>(सूची) एन॰ रंगास्वामी 100px <small>() ऑल इंडिया एन॰आर॰ कांग्रेस बिहार<small>(सूची) नितीश कुमार 100px <small>() जनता दल (यूनाइटेड) मणिपुर<small>(सूची) एन बीरेन सिंह 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश<small>(सूची) मोहन यादव 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र<small>(सूची) एकनाथ शिंदे 100px <small>() शिव सेना मिज़ोरम<small>(सूची) लालदुहोमा 100px <small>() जोरम पीपुल्स मूवमेंट मेघालय<small>(सूची) कॉनराड संगमा <small>() नेशनल पीपल्स पार्टी राजस्थान<small>(सूची) भजन लाल शर्मा 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली<small>(सूची) अरविंद केजरीवाल 100px <small>() आम आदमी पार्टी सिक्किम<small>(सूची) प्रेम सिंह तमांग 100px <small>() सिक्किम क्रन्तिकारी मोर्चा हरियाणा<small>(सूची) नायब सिंह सैनी 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी हिमाचल प्रदेश<small>(सूची) सुखविंदर सिंह सुक्खू 100px <small>() भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस त्रिपुरा<small>(सूची) माणिक साहा 100px <small>() भारतीय जनता पार्टी सन्दर्भ इन्हें भी देखें भारतीय राज्यों के वर्तमान उपमुख्यमंत्रियों की सूची श्रेणी:भारत से सम्बन्धित सूचियाँ श्रेणी:भारतीय राजनीति श्रेणी:भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्री
हैदराबाद
https://hi.wikipedia.org/wiki/हैदराबाद
यह लेख भारत के एक नगर के बारे में है, अन्य के लिये देखें हैदराबाद (बहुविकल्पी) हैदराबाद (तेलुगु: హైదరాబాదు, उर्दू: حیدر آباد) भारत के राज्य तेलंगाना कि राजधानी है। यह नगर दक्कन के पठार पर मूसी नदी के किनारे स्थित है। की औसत ऊंचाई के साथ, हैदराबाद का अधिकांश भाग कृत्रिम झीलों के आसपास पहाड़ी इलाके में स्थित है, जिसमें हुसैन सागर झील भी शामिल है, जो शहर के केंद्र के उत्तर में शहर की स्थापना से पहले की है। हैदराबाद शहर की आबादी 6.9 मिलियन है, हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन रीजन में लगभग 9.7 मिलियन के साथ, यह भारत का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और भारत में छठा सबसे अधिक आबादी वाला शहरी समूह है। 74 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उत्पादन के साथ, हैदराबाद भारत के समग्र सकल घरेलू उत्पाद में पांचवां सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। 1956 से, हैदराबाद शहर ने भारत के राष्ट्रपति के शीतकालीन कार्यालय को रखा है। 20वीं शताब्दी के दौरान दक्कन का पठार और पश्चिमी घाट के बीच हैदराबाद के केंद्रीय स्थान और औद्योगिकीकरण ने प्रमुख भारतीय अनुसंधान, विनिर्माण, शैक्षिक और वित्तीय संस्थानों को आकर्षित किया। 1990 के दशक के बाद से, शहर फार्मास्यूटिकल्स और जैव प्रौद्योगिकी के भारतीय केंद्र के रूप में उभरा है। सूचना प्रौद्योगिकी के लिए समर्पित विशेष आर्थिक क्षेत्रों और हाईटेक सिटी के गठन ने अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हैदराबाद में परिचालन स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया है। शहर में स्थित तेलुगु फिल्म उद्योग देश का दूसरा सबसे बड़ा चलचित्र निर्माता है। कहा जाता है कि किसी समय में इस ख़ूबसूरत शहर को क़ुतुबशाही परम्परा के पांचवें शासक मुहम्मद कुली क़ुतुबशाह ने अपनी प्रेमिका भागमती को उपहार स्वरूप भेंट किया था। हैदराबाद को 'निज़ाम का शहर' तथा 'मोतियों का शहर' भी कहा जाता है। यह भारत के सर्वाधिक विकसित नगरों में से एक है और भारत में सूचना प्रौधोगिकी एवं जैव प्रौद्यौगिकी का केन्द्र बनता जा रहा है। हुसैन सागर से विभाजित, हैदराबाद और सिकंदराबाद जुड़वां शहर हैं। हुसैन सागर का निर्माण सन १५६२ में इब्राहीम कुतुब शाह के शासन काल में हुआ था और यह एक मानव निर्मित झील है। चारमीनार, इस क्षेत्र में प्लेग महामारी के अंत की यादगार के तौर पर मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने १५९१ में, शहर के बीचों बीच बनवाया था। गोलकुंडा के क़ुतुबशाही सुल्तानों द्वारा बसाया गया यह शहर ख़ूबसूरत इमारतों, निज़ामी शानो-शौक़त और लजीज खाने के कारण मशहूर है और भारत के मानचित्र पर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में अपनी अलग अहमियत रखता है। निज़ामोन के इस शहर में आज भी हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द्र से एक-दूसरे के साथ रहकर उनकी खुशियों में शरीक होते हैं। अपने उन्नत इतिहास, संस्कृति, उत्तर तथा दक्षिण भारत के स्थापत्य के मौलिक संगम, तथा अपनी बहुभाषी संस्कृति के लिये भौगोलिक तथा सांस्कृतिक दोनों रूपों में जाना जाता है। यह वह स्थान रहा है जहां हिन्दू और मुसलमान शांतिपूर्वक शताब्दियों से साथ साथ रह रहे हैं। निजामी ठाठ-बाट के इस शहर का मुख्य आकर्षण चारमीनार, हुसैन सागर झील, बिड़ला मंदिर, सालार जंग संग्रहालय आदि है, जो देश-विदेश इस शहर को एक अलग पहचान देते हैं। यह भारतीय महानगर बंगलौर से 574 किलोमीटर दक्षिण में, मुंबई से 750 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में तथा चेन्नई से 700 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। किसी समय नवाबी परम्परा के इस शहर में शाही हवेलियां और निज़ामों की संस्कृति के बीच हीरे जवाहरात का रंग उभर कर सामने आया तो कभी स्वादिष्ट नवाबी भोजन का स्वाद। इस शहर के ऐतिहासिक गोलकुंडा दुर्ग की प्रसिद्धि पार-द्वार तक पहुंची और इसे उत्तर भारत और दक्षिणांचल के बीच संवाद का अवसर सालाजार संग्रहालय तथा चारमीनार ने प्रदान किया है। भारत की जनगणना २०११ के अनुसार इस महानगर की जनसंख्या ६८ लाख से अधिक है।हैदराबाद के भारत में विलय के लिए भारतीय सेना ने आपरेशन पोलो चलाया था।सरदार पटेल की ढृढता,दूरदर्शी सोच एवं साहस से हैदराबाद का भारत में विलय हुआ। स्थापना thumb|200px|निज़ाम का राज्य - चिह्न thumb|200px|हैदराबाद राज्य का असफ़िया झंडा thumb|200px|(1910) हैदराबाद, चारमीनार की मुख्य सड़क गोलकोंडा का पुराना क़िला राज्य की राजधानी के लिए अपर्याप्त सिद्ध हुआ और इसलिए लगभग 1591 में क़ुतुबशाही वंश में पांचवें, मुहम्मद कुली क़ुतुबशाह ने पुराने गोलकोंडा से कुछ मील दूर "मूसा नदी" {जो आज मूसी नदी के नाम से जाना जाता है} के किनारे हैदराबाद नामक नया नगर बनाया। चार खुली मेहराबों और चार मीनारों वाली भारतीय-अरबी शैली की भव्य वास्तुशिल्पीय रचना चारमीनार, क़ुतुबशाही काल की सर्वोच्च उपलब्धि मानी जाती है। यह वह केंद्र है, जिसके आसपास बनाई गई मक्का मस्जिद 10 हज़ार लोगो को समाहित कर सकती है। हैदराबाद अपने सौंदर्य और समृद्धि के लिए जाना जाता है। चारमीनार के बगल में लाड-बाजार, गुलजार हौज, मशहूर विक्रय केंद्र है। इतिहास right|thumb|पुराने शहर,हैदराबाद का नक्शा नामंकरण हैदरबाद नाम के पीछे कई धारणायें हैं। एक प्रसिद्ध धारणा है कि इस शहर को बसाने के बाद मुहम्मद कुली कुतुब शाह एक स्थानीय बंजारा लड़की भागमती से प्रेम कर बैठा। लड़की से विवाह के बाद लड़की को इस्लाम स्वीकार कराया गया और इस्लामी संस्कृति के अनुसार उसका नया नाम भागमती से बदल कर हैदर महल कर दिया गया - और शहर का भी नया नाम हैदराबाद (अर्थात : "हैदर के नाम पर बसाया गया शहर") प्रारंभिक और मध्यकालीन इतिहास 1851 में हैदराबाद के उपनगरों में मेगालिथिक दफन स्थलों और केयर्न सर्कल की खोज, निज़ाम की सेवा में एक पॉलीमैथ फिलिप मीडोज टेलर ने इस बात का सबूत दिया था कि जिस क्षेत्र में शहर खड़ा है वह पाषाण युग से बसा हुआ है। पश्चिम हैदराबाद के रायदुर्ग में बीएन रेड्डी हिल्स में प्राकृतिक चट्टान निर्माण के नीचे नवपाषाण काल ​​(6000 वर्ष पुराने) के उपकरण खोजे गए हैं। शहर के पास खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों ने 500 ईसा पूर्व के लौह युग के स्थलों का पता लगाया है। आधुनिक हैदराबाद और उसके आसपास के क्षेत्र में चालुक्य वंश का शासन 624 ई. से 1075 ई. तक था। 11 वीं शताब्दी में चालुक्य साम्राज्य के चार भागों में विघटन के बाद, गोलकुंडा-अब हैदराबाद का हिस्सा- 1158 से काकतीय वंश के नियंत्रण में आ गया, जिसकी सत्ता का स्थान वारंगल में था- आधुनिक के उत्तर-पूर्व में 148 किमी (92 मील) हैदराबाद। काकतीय शासक गणपतिदेव 1199-1262 ने अपने पश्चिमी क्षेत्र की रक्षा के लिए एक पहाड़ी की चोटी पर चौकी का निर्माण किया- जिसे बाद में गोलकोण्डा किला के नाम से जाना गया। गोलकुंडा सल्तनत के शासक परिवार, "कुतुब शाही" राजवंश का संस्थापक मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह था। १५१२ में स्वतंत्र सल्तनत बनने से पहले यह राजवंश बहमनी सल्तनत के आधीन था। १५९१ में इस राजवंश के एक शासक मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने मूसी नदी के तट पर हैदराबाद शहर की स्थापना की। यह स्थान परिवर्तन, पुराने मुख्यालय गोलकोण्डा में राजवंश को हो रही पानी की कमी के कारण करना पड़ा । कहा जाता है कि, इससे पहले कि प्लेग की महामारी उसकी नये बसाये शहर में फैल पाती, उस पर काबू पाया जा सका, इसलिये उसने उसी साल, चारमीनार बनवाने का भी आदेश दिया। १६वीं शताब्दी और शुरुआती १७वीं शताब्दी में, जैसे जैसे कुतुब शाही राजवंश की शक्ति और सत्ता बढ़ती गई, हैदराबाद हीरों के व्यापार का केंद्र बनता गया। महारानी एलीजाबेथ के राजमुकुट में जड़ा विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध कोह-ए-नूर, गोलकुंडा की हीरों की खानें से ही निकला है। कुतुब शाही राजवंश ने हैदराबाद में हिन्दुस्तानी - फ़ारसी और हिन्दुस्तानी-इस्लामी साहित्य के विकास में भी सहयोग किया। कुछ सुल्तान स्थानीय तेलगू संस्कृति के संरक्षक भी माने जाते हैं। १६वीं शताब्दी में शहर गोलकुंडा की जनसंख्या के बसने के लिये बढ़ा और फलतः कुतुब शाही शासकों की राजधानी बन गया। हैदराबाद अपने बागों और सुखद मौसम के लिये जाना जाने लगा। कुतुब शाही काल में प्रधान मंत्री मीर मोमिन अस्टाराबादी ने चारमीनार और चार कमान के स्थान सहित हैदराबाद शहर की योजना विकसित की। १६८७ में, मुगल शासक औरंगजेब ने हैदराबाद पर अधिकार कर लिया। इस कम समय के मुगल शासन के दौरान, हैदराबाद का सौभाग्य क्षय होने लगा। जल्द ही, मुगल शासक के द्वारा नियुक्त शहर के सूबेदार ने अधिक स्वायत्ता पा ली। आधुनिक इतिहास १७२४ में असफ़ जाह प्रथम, जिसे मुगल सम्राट ने "निज़ाम-उल-मुल्क" का खिताब दिया था, ने एक विरोधी अधिकारी को हैदराबाद पर अधिकार स्थापित करने में हरा दिया। इस तरह आसफ़ जाह राजवंश का प्रारंभ हुआ, जिसने हैदराबाद पर भारत की अंग्रेजों से स्वतंत्रता के एक साल बाद तक शासन किया। आसफ़ जाह के उत्तराधिकारीयों ने हैदराबाद स्टेट पर राज्य किया, वे निज़ाम कहलाते थे। इन सात निजामों के राज्य में हैदराबाद सांस्कृतिक और आर्थिक दोनों भांति विकसित हुआ। हैदराबाद राज्य की आधिकारिक राजधानी बन गया और पुरानी राजधानी गोलकुंडा छोड़ दी गयी। बड़े बड़े जलाशय जैसे कि निज़ाम सागर, तुंगबाद्र, ओसमान सागर, हिमायत सागर और भी कई बनाये गये। नागार्जुन सागर परियोजना के लिये सर्वे भी इसी समय शुरु किया गया, जिसे भारत सरकार ने १९६९ में पूरा किया। हैदराबाद के लगभग सभी प्रमुख सार्वजनिक इमारतों और संस्थानों, जैसे उस्मानिया जनरल अस्पताल, हैदराबाद उच्च न्यायालय, जुबली हॉल, गवर्नमेंट निज़ामिआ जनरल हॉस्पिटल, मोजाम जाही बाजार, कचिगुडा रेलवे स्टेशन, असफिया लाइब्रेरी (राज्य केंद्रीय पुस्तकालय), निज़ाम शुगर फैक्ट्री, टाउन हॉल (असेंबली हॉल), हैदराबाद संग्रहालय अब राज्य संग्रहालय के रूप में जाना जाता है और कई अन्य स्मारक इस शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। आजादी के बाद जब १९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ, ब्रिटिश शासन से हुई शर्तों के तहत हैदराबाद ने; जिसका प्रतिनिधित्व मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल और 'निज़ाम' कर रहे थे, स्वतंत्र होने को चुना, एक मुक्त शासक की भांति या ब्रिटिश साम्राज्य की रियासत की भांति भारत ने हैदराबाद स्टेट पर आर्थिक नाकेबंदी लगा दी। परिणामतः हैदराबाद स्टेट को एक विराम समझौता करना पड़ा | भारत की स्वतंत्रता के करीब एक साल बाद, १७ सितम्बर १९४८ के दिन निज़ाम ने अधिमिलन प्रपत्र पर हस्ताक्षर किये। १ नवम्बर १९५६ को भारत का भाषायी आधार पर पुर्नसंगठन किया गया। हैदराबाद स्टेट के प्रदेश नये बने आन्ध्र प्रदेश, मुंबई (बाद में महाराष्ट्र) और कर्नाटक राज्यों में तेलुगुभाषी लोगों के अनुसार बांट दिये गये। इस तरह हैदराबाद नए बने राज्य आंध्र प्रदेश की राजधानी बना। भारत का संविधान, जो 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ, ने हैदराबाद राज्य को भारत के भाग बी राज्यों में से एक बना दिया, जिसमें हैदराबाद शहर राजधानी बना रहा। अपनी 1955 की रिपोर्ट में भाषाई राज्यों पर विचार, भारतीय संविधान की मसौदा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष बी आर अम्बेडकर ने अपनी सुविधाओं और रणनीतिक केंद्रीय स्थान के कारण हैदराबाद शहर को भारत की दूसरी राजधानी के रूप में नामित करने का प्रस्ताव दिया। भूगोल और पर्यावरण हैदराबाद शहर दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य में स्थित है। यह देक्कन क्षेत्र में है जो, समुद्र तट से ५४१ मीटर, ६२५किमी२ क्षेत्र ऊपर स्थित है। ग्रेटर हैदराबाद को कवर करता है, जो इसे भारत के सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों में से एक बनाता है। की औसत ऊंचाई के साथ, हैदराबाद मुख्य रूप से भूरे और गुलाबी ग्रेनाइट के ढलान वाले इलाके में स्थित है, जो छोटी पहाड़ियों से युक्त है, सबसे ऊंची बंजारा हिल्स है। शहर में कई झीलें हैं जिन्हें कभी सागर कहा जाता है, जिसका अर्थ है "समुद्र"। उदाहरणों में मुसी पर बांधों द्वारा बनाई गई कृत्रिम झीलें शामिल हैं, जैसे हुसैन सागर (शहर के केंद्र के पास 1562 में निर्मित), उस्मान सागर और हिमायत सागर। 1996 तक, शहर में 140 झीलें और 834 पानी के टैंक (तालाब) थे। thumb|300px|कुतुब शाही राजवंश के शासनकाल के दौरान बनी हुसैन सागर झील कभी हैदराबाद के लिए पीने के पानी का स्रोत थी। मूल हैदराबाद शहर मूसी नदी के किनारे स्थापित हुआ था। इसे अब ऐतिहासिक पुराना शहर कहा जाता है, जहां चारमीनार, मक्का मस्जिद आदि बने हैं, वह नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा है। नगर का केन्द्र नदी के उत्तर में स्थानांतरित हो गया है। यहां कई सरकारी इमारतें व मुख्य स्थल बने हैं, खासकर हुसैन सागर झील के दक्षिण में। इस नगर की त्वरित प्रगति साथ जुड़े सिकंदराबाद व अन्य पड़ोसी क्षेत्रों सहित हुई है, जिससे यह महानगरों की श्रेणी में आ गया है। यहां का मौसम इस प्रकार से है: ग्रीष्म काल (मई): औसत अधिकतम तापमान: 40 डिग्री से० औसत न्यूनतम : 25 डिग्री से० हेमन्त काल (दिसंबर): औसत अधिकतम तापमान 28 डिग्री से०, औसत न्यूनतम: 13 डिग्री से० अधिकतम अंकित : 45.6 शिग्री से०, न्यूनतम अंकित:6.1 डिग्री से० वार्षिक वर्षा: 79 से.मी. भुगर्भीय प्रणाली: आर्कियन मृदा: लाल बलुआ, साथ ही काली कॉटन मृदा के क्षेत्र भि हैं। निकटवर्ती भूभाग: पथरीला/पहाड़ी (हैदराबाद के निकटवर्ती क्षेत्र अपनी संदर पाषाण बनावट के लिये प्रसिद्ध हैं।) जलवायु: उष्णकटिबन्धीय नम एवं शुष्क स्वास्थ्य पर्यटन यदि किसी को कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, तो हैदराबाद, उभरता हुआ सर्वश्रेष्ठ स्थानों में से एक है, उपचार हेतु। नगर पहले ही औषधि का केन्द्र है, जहां औषधियों का कई करोड़ का व्यापार है। यहां कई सस्ते व अच्छे अस्पताल भी हैं। नागरिक प्रशासन हैदराबाद का प्रशासन District Magistrate या Collector द्वारा प्रशासित है जो एक IAS अधिकारी होते हैं। इसके अलावा शहर के साफ - सफाई के लिए एक नगरपालिका भी है जिसे ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम कहते हैं। इस पालिका के अध्यक्ष यहां के महापौर हैं, जिन्हें कई कार्यपालक क्षमताएं निहित हैं। पालिका की मुख्य क्षमता नगरमहापालिका आयुक्त, एक आइ ए एस के पास है, जो तेलंगाना सरकार द्वारा नियुक्त होता है। thumb|right|जीएचएमसी को छह नगरपालिका क्षेत्रों में बांटा गया है हैदराबाद एक सौ 50 म्युनिसिपल वार्ड्स में बंटा हुआ है। प्रत्येक वार्ड का एक कॉर्पोरेटर होता है, जो पालिका के चुनावों में चयनित होता है। हैदराबाद में एक जिला है, जो जिला मैजिस्ट्रेट के अधीन आता है। इन्हें कलेक्टर भी कहा जाता है। कलेक्टर संपत्ति आंकड़ों व राजस्व संग्रहण का प्रभारी होता है। यही नगर में होने वाले चुनावों की प्रक्रिया का निरीक्षण भी करता है। महानगरीय क्षेत्र में रंगारेड्डी जिला भी आता है, जो पूर्व हैदराबाद में से काट कर बना था। अन्य महानगरों की भांति, यहां भी एक पुलिस आयुक्त, आई पी एस होता है। हैदराबाद पुलिस राज्य गृह मंत्रालय के अधीन आती है। हैदराबाद में पांच पुलिस मंडल हैं, प्रत्येक का एक पुलिस उपायुक्त है। यहां की यातायात पुलिस भी हैदराबाद पुलिस के अधीन, अर्ध-स्वायत्तता प्राप्त संस्था है। यहां एक राज्य उच्च न्यायालय है। इसके साथ ही दो निचले न्यायालय भी हैं। ये हैं: स्मॉल कॉज़ेज़ कोर्ट: नागरिक (दीवानी) मामलों हेतु, व सैशन कोर्ट: आपराधिक (फौजदारी) मामलों हेतु। जीएचएमसी क्षेत्र में 24 राज्य विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं, जो लोकसभा के पांच निर्वाचन क्षेत्रों (भारत की संसद का निचला सदन) का निर्माण करते हैं। हैदराबाद लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अलावा, हैदराबाद की राजधानी और उसके आसपास चार अन्य लोकसभा क्षेत्र हैं - मल्काजगिरि, सिकंदराबाद, चेवेल्ला और मेदक। आधिकारिक रूप से भारत सरकार हैदराबाद को महानगर मानती है। अर्थ व्यवस्था right|thumb|हाईटेक सिटी, हैदराबाद का प्रमुख टॉउनशिप क्षेत्र हैदराबाद आंध्र प्रदेश की वित्तीय एवं आर्थिक राजधानी भी है। यह शहर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद, कर एवं राजस्व का सर्वाधिक अंशदाता है। 1990 के दशक से इस शहर का आर्थिक प्रारूप बदल कर, एक प्राथमिक सेवा नगर से बहु-सेवा वर्णक्रम स्वरूप हो गया है, जिसमें व्यापार, यातायात, वाणिज्य, भण्डारण, संचार, इत्यादि सभी सम्मिलित हैं। सेवा उद्योग मुख्य अंशदाता है, जिसमें शहरी श्रमशक्ति कुल शक्ति का 90% है। thumb|सुरम्य हुसैन सागर झील के किनारे पीपुल्स प्लाजा में 'लव हैदराबाद' मूर्तिकला हैदराबाद को मोतीयों का नगर भी कहा जाता है। और सूचना प्रौद्योगिकी में तो इसने बंगलौर को भी पछाड़ दिया है। मोतिओं का बाजार चार मीनार के पास स्थित है। मोतिओं से बने आभूषण चारकमान बाज़ार से या अन्य मुख्य बाज़ारों से भी लिये जा सकते हैं। चांदी के उत्पाद (बर्तन व मूर्तियां, इत्यादि), साड़ियां, निर्माल एवं कलमकारी पेंटिंग्स व कलाकृतियां, अनुपम बिदरी हस्तकला की वस्तुएं, लाख की रत्न जड़ित चूड़ियां , रेशमी व सूती हथकरघा वस्त्र यहां बनते हैं, व इनका व्यापार सदियों से चला आ रहा है। आंध्र प्रदेश को पूर्व हैदराबाद राज्य से कई बड़े शिक्षण संस्थान, अनुसंधान प्रयोगशालाएं, अनेकों निजी एवं सार्वजनिक संस्थान मिले हैं। मूल शोध हेतु अवसंरचना सुविधाएं यहां देश की सर्वश्रेष्ठ हैं, जिसके कारण ही एक बड़ी संख्या में शिक्षित लोग देश भर से यहां आकर बसे हुए हैं। हैदराबाद औषधीय उद्योग का भी एक प्रमुख केन्द्र है, जहां डॉ० रेड्डीज़ लैब, मैट्रिक्स लैबोरेटरीज़, हैटरो ड्रग्स लि०, डाइविस लैब्स औरोबिन्दो फार्मा लि० तथा विमता लैब्स जैसी बड़ी कम्पनियां स्थापित हैं। जीनोम वैली एवं नैनोटैक्नोलॉजी पार्क, जैसी परियोजनाओं द्वारा, जैव प्रौद्योगिकी की अत्यधिक संरचनाएं यहां स्थापित होने की भरपूर आशा है। हैदराबाद में भी, भारत के कई अन्य शहरों की ही भांति, भू-संपदा व्यापार (रियल एस्टेट) भी खूब पनपा है। इसके लिये सूचना प्रौद्योगिकी को धन्यवाद है, जिसके कारण यहां की प्रगति कुछ ही वर्षों में चहुमुखी हो गयी है। शहर में कई बड़े शॉपिंग मॉल भी बने हैं। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग हैदराबाद शहर, अपनी सूचना प्रौद्योगिकी एवं आई टी एनेबल्ड सेवाएं, औषधि, मनोरंजन उद्योग (फिल्म) के लिये प्रसिद्ध है। कई कॉल सेंटर, बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बी पी ओ) कम्पनियां, जो सूचना प्रौद्योगिकी व अन्य तकनीकी सेवाओं से संबंधित हैं, यहां 1990 के दशक में स्थापित की गयीं, जिन्होंने इसे भारत क्के कॉल सेंटर सेटप शहरों में से एक बनाया। thumb|निर्माण के बाद दुर्गम चेरुवु पुल एक उप-शहर भी बसाया गया है- हाईटेक सिटी, जहां कई सू.प्रौ, एवं आई टी ई एस कम्पनियों ने अपने प्रचालन आरम्भ किये। सूचना प्रौ. के इस त्वरित विस्तार की कारण कभी-कभी इस शहर को साइबराबाद भि कहा गया है। साथ ही इसे बंगलौर के बाद द्वितीय साइबर वैली भी कह जाता है। इस शहर में डिजिटल मूलसंरचना में काफी निवेश हुआ है। इस निवेश से कई बड़ी कंपनियों ने अपने परिसर भी बसाये हैं। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने केन्द्र शहर में खोले हैं। ऐसे मुख्य केन्द्र माधापुर व गाचीबावली में अधिक हैं। हैदराबाद से आईटी का निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 में ₹ 128,807 करोड़ (यूएस $ 15 बिलियन) भारत में दूसरे स्थान पर रहा, जो वित्त वर्ष 2018-19 में ₹ 109,219 करोड़ ($ 14 बिलियन, 17% सीएजीआर) से बेहतर है। 2020 तक, हैदराबाद में आईटी क्षेत्र में छह लाख कर्मचारी हैं। हैदराबाद विश्व की फॉर्चून 500 कम्पनियों को भी आकर्षित कर यहां निवेश करा चुका है। इंटलेक्ट इंकॉ, की सेमिइंडिया में अच्छी डिल होने के बाद से हैदराबाद एक वैश्विक शहर बन गया है। यहीं पर भारत की प्रथम फैब सिटी, जिसमें सिलिकॉन चिप उत्पादन सुविधा हो, 3 बिलियन डॉलर के ए॰ एम॰ डी॰-सेमीइंडिया कॉनसॉर्शियम के निवेश से स्थापित हो रही है भू सम्पदा thumb|हैदराबाद, भारत में आईकेईए स्टोर यहां के शहरीकरण, व लोगों के छोटे शहरों को व्यवसाय के लिये छोड़कर यहां बसने से, यहां की जनसंख्या में एक बड़ी वृद्धि हुई है। इसी का परिणाम है ग्रेटर हैदराबाद, जिसमें पड़ोसी गांव भी शामिल हैं। इनके साथ ही यहां एक मुद्रिका मार्ग, बाहरी मुद्रिका मार्ग, कई सेतु व नीःशुल्क-पथ भी हैं। इस कारण कई बाहरी क्षेत्र अपनी सीमाएं खोते जा रहे हैं, व भू संपदा के भाव ऊंचे उठते जा रहे हैं। साथ ही यहां अनेकों गगन चुंबी अट्टालिकाएं उठतीं जा रहीं हैं। आवागमन thumb|एम एम टी एस नैकलेस रोड मैट्रो स्टेशन सड़क हैदराबाद शेष भारत से राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। मुख्य राजमार्ग हैं:- एन एच 7, एन ए 9 एवं एन एच 202 (आंध्र प्रदॆश सड़क राज्य परिवन निगम) आदि। 1932 में निज़ाम राज्य रेल-सड़क यातायात प्रभाग की इकाई के रूप में स्थापित हुआ था, जिसमें आरंभिक 27 बसें थीं, जो अब बढ़कर 19,000 का आंकड़ा पार कर चुकी है। यहां एशिया का तीसरा सबसे बड़ा बसों का बेड़ा है। इसमें 72 बस प्लेटफॉर्म हैं, जहां इतनी ही बसें एक ही समय में यात्रियों को चढ़ा सकतीं हैं। इसका आधिकारिक नाम है महत्मा गांधी बस स्टेशन, जिसे स्थानीय लोग इमलीवन बस स्टेशन कहते हैं। राज्य परिवहन निगम पॉइंट से पॉइंट बस सेवा प्रदान करता है, जो सभी मुख्य नगरों को जोड़ती है। शहर में निगम की 4000 से अधिक बसें दौड़तीं हैं। पीले रंग का ऑटोरिक्शा, जिसे ऑटो कहा जाता है, अधिकतर प्रयुक्त टैक्सी सेवा है। हाल ही में कार व मोटरसाइकिल टैक्सी सेवाएं भी आरंभ हुईं हैं। रेल सेवा right|thumb|हैदराबाद मेट्रो सार्वजनिक परिवहन के लोकप्रिय तरीके के रूप में उभरा है यहां लाइट रेल यातायात प्रणाली है, जिसे मल्टी मॉडल टआंस्पोर्ट सिस्टम (एम एम टी एस) कहते हैं। यह रेल व सड़क यातायात को जोड़ता है। दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्यालय सिकंदराबाद में स्थित है। तीन मुख्य रेलवे स्टेशन हैं:- सिकंदराबाद जंक्शन, हैदराबाद डेकन रेलवे स्टेशन (या नामपल्ली) और काचिगुडा रेलवे स्टेशन। नवंबर 2017 के बाद से हैदराबाद मेट्रो, एक नई तेजी से पारगमन प्रणाली शुरू हुई। 2012 तक, शहर में 3.5 मिलियन से अधिक वाहन चल रहे हैं, जिनमें से 74% दोपहिया वाहन, 15% कारें और 3% तीन-पहिया हैं। शेष 8% में बसों, माल वाहन और टैक्सी शामिल हैं। अपेक्षाकृत कम सड़क कवरेज के साथ वाहनों की बड़ी संख्या-सड़कों पर कुल शहर क्षेत्र का केवल 9 .5% हिस्सा है : 79-ने व्यापक यातायात की भीड़ का नेतृत्व किया है, खासकर जब से 80% यात्रियों और 60% माल ढुलाई जाती है सड़क से। : 3 इनर रिंग रोड, बाहरी रिंग रोड, हैदराबाद एलिवेटेड एक्सप्रेसवे, भारत का सबसे लंबा फ्लाईओवर, और विभिन्न इंटरचेंज, ओवरपास और अंडरपास को भीड़ को कम करने के लिए बनाया गया था। शहर के भीतर अधिकतम गति सीमा दोपहिया वाहनों और कारों के लिए 50 किमी / घंटा (31 मील प्रति घंटे), ऑटो रिक्शा के लिए 35 किमी / घंटा (22 मील प्रति घंटे) और हल्के वाणिज्यिक वाहनों और बसों के लिए 40 किमी / घंटा (25 मील प्रति घंटे) है। वायु सेवा पहले बेगमपेट हवाई अड्डा अन्तर्देशीय व अन्तर्राजीय विमान सेवा देता था। एक नया विमानक्षेत्र राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शम्साबाद में बन चुका है। पहले सभी बड़े शहरों की भांति यहां वयु यातायात संकुलन समस्या होती थी, परंतु नया हवाई अड्डा बन जाने से वह दूर हो चुकी है। यहां ट्रैफिक संकुलन की समस्या सड़कों पर बहुत दिखायी देती है। यह ऑटो, कार, इत्यादि की अत्यधिक संख्या के कारण होती है। इससे निबटाने के लिये अनेकों सेतु, फ्लाईओवर निर्माण हुए, परंतु यह वैसी की वैसी बनी हुई है। आंध्र प्रदेश सरकार ने इससे निबटने के लिये दिल्ली व कोलकाता की भांति ही यहां भी मैट्रो ट्रेन शुरु करने की मंजूरी दे दी है। इसके पूर्ण हो जाने पर आशा है, कि यह समस्या काफी हद तक सुलझ जाये गी। जनसांख्यकी जब जीएचएमसी 2007 में बनाया गया था, तो नगरपालिका के कब्जे वाला क्षेत्र 175 किमी 2 (68 वर्ग मील) से बढ़कर 625 किमी 2 (250 वर्ग मील) हो गया था। नतीजतन, जनसंख्या में 87% की वृद्धि हुई, 2001 की जनगणना में 3,637,483 से, 2011 की जनगणना में 6,809,970 तक, जिनमें से 24% भारत में कहीं और से प्रवासी हैं, : 2 हैदराबाद देश का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। 2011 तक, जनसंख्या घनत्व 18,480 / km2 (47,900 / वर्ग मील) है। [106] उसी 2011 की जनगणना में, हैदराबाद अर्बन एग्रीग्लोमेशन की आबादी 9,700,000 थी, जो इसे देश का छठा सबसे अधिक आबादी वाला शहरी समूह बना रहा था। 2006 में नगर की जनसंख्या 36 लाख आकलित की गयी थी जबकि बृहत्तर महानगरीय क्षेत्र की जनसंख्या 61 लाख से अधिक आकलित की गयी है। धार्मिक तथा सांस्कृतिक रूप से यह शहर हिन्दू, मुस्लिम व ईसाइयों से जुड़ा हुआ है। यहां बोली जाने वाली मुख्य भाषाएं हैं- तेलुगु, हिन्दी, उर्दू व दक्कनी। यहां जनजातीय मूल के लोगों की भी खासी जनसंख्या है, जो कि काम की तलाश में यहां आव्रजित हुए हैं। यहां बनजारे भी मिलते हैं, जो अपनी एक भिन्न संस्कृति व भाषा वाले हैं। उनकी भाषा को Gorboli कहा जाता है, जो यूरोप में रोमा लोगों द्वारा बोली जाने वाली रोमा भाषा से निकट संबंध रखती है। तेलुगु, हिन्दी व दक्कनी मूल जनसंख्या की स्थानीय भाषाएं हैं। व्यापार में पर्याप्त मात्रा में अंग्रेज़ी भी बोली जाती है। भारत के विभिन्न भागों के लोगों ने हैदराबाद को अपना गृहनगर बनाया है। भाषा और धर्म "हैदराबादी" के रूप में संदर्भित, हैदराबाद के निवासी मुख्य रूप से तेलुगु और उर्दू बोलने वाले लोग हैं, जिनमें अल्पसंख्यक बंगाली, गुजराती (मेमन सहित), कन्नड़ (नावाथी सहित), मलयालम, मराठी, मारवाड़ी, ओडिया, पंजाबी, सिंधी, तमिल और उत्तर हैं। परदेशी समुदाय। हैदराबाद उर्दू की एक अनूठी बोली का घर है, जिसे हैदराबादी उर्दू कहा जाता है, जो एक प्रकार की दखिनी है, और अधिकांश हैदराबादी मुसलमानों की मातृभाषा है, एक अद्वितीय समुदाय, जो हैदराबाद के इतिहास, भाषा, व्यंजन और संस्कृति का बहुत अधिक सम्मान करता है, और विभिन्न राजवंश जिन्होंने पहले शासन किया था। हिंदू बहुसंख्यक हैं। मुसलमान बहुत बड़े अल्पसंख्यक हैं, और पूरे शहर में मौजूद हैं और पुराने शहर में और उसके आसपास हैं। यहां ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय और प्रतिष्ठित मंदिर, मस्जिद और चर्च भी देखे जा सकते हैं। भारत की जनगणना २०११ के अनुसार, ग्रेटर हैदराबाद का धार्मिक मेकअप था: हिंदू (64.9%), मुस्लिम (30.1%), ईसाई (2.8%), जैन (0.3%), सिख (0.3%) और बौद्ध (0.1%) ); 1.5% किसी भी धर्म का वर्णन नहीं करता है। On this page, select "Andhra Pradesh" from the download menu. Data for "GHMC (M Corp. + OG)" is at row 11 of the downloaded excel file. संस्कृति right|अंगूठाकार|ख़ुबानी का मीठा हैदराबाद अनेक विभिन्न संस्कृतियों व परंपराओं का मिलन-स्थल है। ऐतिहासिक रूप से यह वह शहर रहा है, जहां उत्तर व दक्षिण भारत की भिन्न सांस्कृतिक व भाषिक परंपराएं मिश्रित होती हैं। अतः यह दक्षिण का द्वार या उत्तर का द्वार कहा जाता है। यहां दक्षिण भारतीय संस्कृति के बीच हैदराबाद की मुस्लिम संस्कृति भी अंतर्विष्ट है। यह एक अनुपम विश्वबन्धु नगर (कॉस्मोपॉलिटन) है, जहां ईसाइयत, हिन्दू धर्म, इस्लाम, जैनधर्म व जरथुष्ट्र धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। हैदराबादियों ने अपनी खुद की एक भिन्न संस्कृति विकसित कर ली है, जिसमें प्राचीन तेलुगु लोगों की हिन्दू परंपराओं तथा सदियों पुरानी इस्लामी परंपराओं का मिश्रण है। तेलुगु, उर्दू व हिन्दी यहां की प्रमुख भाषाएं हैं (यद्यपि बाद की दो अपने मानक स्वरूप में नहीं पायी जातीं और दक्कनी बोली की ओर अग्रसर रहती हैं)। यहां बोली जाने वाली तेलुगु भाषा में अनेक उर्दू शब्द भी मिल सकते हैं। तथा यहां बोली जाने वाली उर्दू भी मराठी व तेलुगु से प्रभावित है, जिससे एक बोली बनी है जिसे हैदराबादी उर्दू या दक्कनी कहा जाता है। यहां का प्रसिद्ध उस्मानिया विश्वविद्यालय भारत का पहला उर्दू माध्यम विश्वविद्यालय है। यहां की एक बड़ी जनसंख्या अंग्रेजी बोलने में भी कुशल है। हैदराबाद की लगभग सभी संस्कृतियों की महिलाएं या तो परंपरागत भारतीय परिधान साड़ी पहनती हैं, या सलवार कमीज़ (विशेषकर युवा जनसंख्या)। मुस्लिम महिलाओं का एक बड़ा भाग बुरका या हिजाब पहनता है। पुरुष प्रायः आज का सुविधा का परिधान पैंट-शर्ट पहनते हैं, परंतु लुंगी व शर्ट, धोती कुर्ता (दोनों हिन्दू) तथा कुर्ता पाजामा (प्रायः मुस्लिम) भी बहुत पहना जाता है। प्रमुख व्यंजन thumb|हैदराबादी बिरयानी।|alt=मसालेदार भारतीय खाद्य युक्त तीन बर्तन अपने लजीज मुगलई भोजन के साथ-साथ हैदराबाद निजामी तहजीब के कारण भी दुनिया भर में मशहूर है। स्वादप्रेमियों के लिए तो हैदराबाद जन्नत के समान है। यहां की लजीज बिरयानी और पाया की खूशबू दूर-दूर से पर्यटकों को हैदराबाद खींच लाती है। इस पर हैदराबाद के नवाबी आदर-सत्कार व खान-पान को देखकर आपको भी लगेगा कि वाकई में आप किसी निजाम के शहर में आ गए हैं। हैदराबादी व्यंजन में परंपरागत आंध्र और तेलंगाना व्यंजन पर व्यापक इस्लामी प्रभाव है। हैदराबादी व्यंजनों के यहां कई रेस्त्रां हैं। शहर के सभी होटलों में एक या इससे ज्यादा रेस्त्रां हैं जो लोकप्रिय है। बावर्ची, पाराडाइड, हैदराबाद हाउस हैदराबादी व्यंजनों को उपलब्ध कराने वाले कुछ मशहूर रेस्त्रां हैं। हैदराबाद का सबसे प्रमुख व्यंजन हैदराबादी बिरयानी है। अन्य व्यंजनों में ख़ुबानी का मीठा, फेनी, पाया नाहरी और हलीम (रमजान के महीने का प्रमुख मांसाहारी व्यंजन)। भारतीय मिठाई की दुकानें घी की मिठाइयों के लिए मशहूर हैं। पुल्ला रेड्डी मिठाइयां शुद्ध घी की मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध है। नामपल्ली का कराची बेकरी फल बिस्कुटों, ओस्मानिया बिस्कुट और दिलखुश के लिए मशहूर हैं। पुराने शहर के अजीज बाग पैलेस में रहने वाला परिवार बादाम की जैली बनाता है। शिक्षा और शोधकार्य आरंभ में हैदराबाद में मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध दो महाविद्यालय थे। लेकिन 1918 में निज़ाम ने उस्मानिया विश्वविद्यालय की स्थापना की और अब यह भारत के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक है। हैदराबाद विश्वविद्यालयों की स्थापना 1974 में हुई। एक कृषि विश्वविद्यालय और कई ग़ैर सरकारी संस्थान, जैसे अमेरिकन स्टडीज़ रिसर्च सेंटर और जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल रिसर्च भी हैं। हैदराबाद में सार्वजनिक व निजी सांस्कृतिक संगठन बड़ी संख्या में हैं, जैसे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त नाट्य, साहित्य व ललित कला अकादमियां । सार्वजनिक सभागृह रबींद्र भारती नृत्य व संगीत महोत्सवों के लिए मंच प्रदान करता है और सालार जंग संग्रहालय में दुर्लभ वस्तुओं का संगृह है, जिनमें संगेयशब, आभूषण, चित्र और फ़र्नीचर शामिल हैं। क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद क्षेत्रीय केन्द्र की स्थापना जनवरी, 1987 में की गई थी। दो उत्तरी तटीय ज़िले श्रीकाकुलम और विजयनगरम को छोड़कर यह क्षेत्रीय केन्द्र पूरे आंध्र प्रदेश को समाहित करता है। इस क्षेत्रीय केन्द्र का औपचारिक उद्घाटन इग्नू के संस्थापक वी. सी प्रोफ़ेसर जी. रामा रेड्डी द्वारा 2 फ़रवरी 1987 को किया गया था। कुछ ही वर्षों में इसने 60 अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की और 120 से ज़्यादा कार्यक्रम अध्ययन केन्द्रों में उपलब्ध कराने लगा। हिन्दी संस्थान हैदराबाद केंद्र की स्थापना वर्ष 1976 में हुई। शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अंतर्गत यह केंद्र स्कूलों/कॉलेजों एवं स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के हिन्दी अध्यापकों के लिए 1 से 4 सप्ताह के लघु अवधीय नवीकरण कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिसमें हिन्दी अध्यापकों को हिन्दी के वर्तमान परिवेश के अंतर्गत भाषाशिक्षण की आधुनिक तकनीकों का व्यावहारिक ज्ञान कराया जाता है। वर्तमान में हैदराबाद केंद्र का कार्यक्षेत्र आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र एवं केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी एवं अण्डमान निकोबार द्वीप समूह हैं। हैदराबाद केंद्र पर हिन्दी शिक्षण पारंगत पाठ्यक्रम भी संचालित किया जाता है। thumb|सालार जंग संग्रहालय मीडिया हैदराबाद ऑप्टिकल फाइबर केबल के एक बड़े नेटवर्क द्वारा कवर किया जाता है। शहर के टेलीफोन प्रणाली चार लैंडलाइन कंपनियों द्वारा सेवित है, यथा: बीएसएनएल, टाटा इंडिकॉम, रिलायंस और एयरटेल। कई कंपनियों के द्वारा ब्रॉडबैंड इंटरनेट का उपयोग प्रदान किया जाता है। शहर में प्रसारित एफएम रेडियो चैनल क्रमश: रेडियो मिर्ची, आकाशवाणी इंद्रधनुष एफएम, विविध भारती, आकाशवाणी, रेडियो सिटी, बिग एफएम, एस एफएम और एयर ज्ञानवाणी एफएम आदि है। राज्य के स्वामित्व वाली दूरदर्शन दो स्थलीय टेलीविजन चैनलों और हैदराबाद से एक उपग्रह टेलीविजन चैनल प्रसारित करता है। साथ ही सन नेटवर्क के मिथुन, तेजा के अलावा मां टीवी, ईटीवी उर्दू, ईटीवी (भारत) सहित हैदराबाद से प्रसारित कई कई अन्य निजी क्षेत्रीय टेलीविजन चैनलों में प्रमुख है राज नेटवर्क का वीसा, ज़ी टीवी का ज़ी तेलुगु, सन नेटवर्क का मिथुन संगीत, मिथुन समाचार चैनल, टी वी 5, आप तक आदि है। हैदराबाद से अंग्रेजी, तेलुगू और उर्दू भाषाओं में कई अखबारों और पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। तेलुगु दैनिक समाचार पत्रों में प्रमुख है एनाडु, वार्ता, आंध्र ज्योति, प्रजाशक्ति, आंध्र भूमि और आंध्र प्रभा। यहाँ से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों में प्रमुख हैं डेक्कन क्रॉनिकल, बिजनेस स्टैंडर्ड, हिंदू, टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस आदि। जबकि यहाँ से प्रकाशित प्रमुख उर्दू दैनिक समाचार पत्रों में सियासत दैनिक, मुंसिफ दैनिक, एत्तेमाद उर्दू दैनिक, रहनुमाई, डेक्कन और दैनिक मिलाप आदि। इन प्रमुख समाचार पत्रों के अलावा, वहां से कई प्रमुख पत्रिकाएं प्रकाशित होती है, जिसमें प्रमुख है- चंदामामा, वनिता, विपुला, चतुरा, नव्या, आंध्र प्रभा, आंध्र ज्योति, स्वाति आदि तथा फिल्मी पत्रिकाओं में ज्योति चित्रा संतोषम, सुपरहिट, चित्रांजलि, सितारा आदि शामिल हैं। हैदराबाद तेलुगू फिल्म उद्योग की मातृभूमि है। सरधी स्टूडियो, अन्नपूर्णा स्टूडियो, रामानायिडु स्टूडियो, रामकृष्ण स्टूडियो, पदमालया स्टूडियो, रामोजी फिल्म सिटी इस शहर का उल्लेखनीय फिल्म स्टूडियो हैं। सिनेमा हैदराबाद भारत के दूसरे सबसे बड़े चलचित्र उद्योग का गृह भी है:- तेलुगु सिनेमा। यहां प्रतिवर्ष सैंकडों फिल्में बनायीं जातीं हैं। खेलकूद thumb|250px|इन्डोर स्टेडियम हैदराबाद में अन्य खेलों की तुलना में क्रिकेट सर्वाधिक लोकप्रिय खेल हैं। क्रिकेट के साथ-साथ हॉकी की भी लोकप्रियता यहाँ कम नहीं है। 2005 में प्रीमियर हॉकी लीग में हैदराबाद सुल्तान्स विजयी हुये थे। हैदराबाद को हाल ही में एक नया क्रिकेट स्टेडियम विशाखा इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम मिला है, जिसका नाम परिवर्तित करके राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम रखा गया है। इन्डोर खेलों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से यहाँ एक इन्डोर स्टेडियम भी बनाया गया है। वर्ष 2002 में 'राष्ट्रीय खेल' के मेजबान के रूप में इस शहर का चयन किया गया था और देश में विश्व स्तरीय स्टेडियम हेतु पहल की गई थी। बाद में इस स्टेडियम को 2003 में आयोजित एफ्रो एशियाई खेलों की मेजबानी का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज हैदराबाद में अंतरराष्ट्रीय मानक के कई बड़े और विविध स्टेडियम हैं। इंडियन प्रीमियर लीग में शहर की टीम हैं सनराइजर्स हैदराबाद। हैदराबाद के प्रसिद्ध खिलाड़ी thumb|right|टेनिस स्टार सानिया मिर्जा|200px thumb|2012 में बैटिंग करती हुई मिताली राज अब्बास अली बेग, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी सी॰ के॰ नायडू, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी आबिद अली, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी अबू तय्यब यह्या मोहम्मद, जूनियर टेबल टेनिस खिलाड़ी अरशद अय्यूब, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी गगन नारंग, विश्व स्तर के निशानेबाज ग़ुलाम अहमद , पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान मीर कासिम अली , पूर्व भारतीय टेबल टेनिस चैंपियन मिताली राज, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ी मोहम्मद अजहरुद्दीन, पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान नंदानूरी मुकेश कुमार, ओलंपियन और पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद, बैडमिंटन खिलाड़ी पी॰ कृष्णा मूर्ति, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी साइना नेहवाल, बैडमिंटन खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा, टेनिस खिलाड़ी शिव लाल यादव, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी और क्रिकेट टीम के चयनकर्ता सैयद मोहम्मद हादी, ओलंपिक टेनिस खिलाड़ी वी वी एस लक्ष्मण, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी वेंकटपति राजू, पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी कोनेरु हम्पी, अंतर्राष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी स्टेडियम हैदराबाद शहर में बनाया गया प्रारंभिक स्टेडियम लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम है, जो पूर्व में फतेह मैदान के रूप में जाना जाता था और यह हाल तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का संचालन करता रहा है। इस मैदान पर पहला क्रिकेट मैच 19 नवम्बर 1955 को खेला गया था। उप्पल में राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के साथ अब इस मैदान पर क्रिकेट मैच आयोजित किए जाने की संभावना नहीं है किन्तु हैदराबादी लोगों की प्रबल इक्षा है कि यहां पर क्रिकेट मैच का आयोजन किया जाना चाहिए, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। आकर्षण thumb| हुसैन सागर में बुद्ध प्रतिमा right|thumb|एन टी आर बाग चार मीनार – नगर का मुख्य चिन्ह, जिसमें चार भव्य मीनारें हैं। शहर के बीचोंबीच बनी इस भव्य इमारत का निर्माण कुली कुतुब शाही नवाब ने कराया था। यह कहा जाता है कि हैदराबाद में प्लेग जैसी भयानक महामारी पर विजय पाने की खुशी में नवाब ने चारमीनार का निर्माण कराया था। चारमीनार से लगा हुआ ही एक प्रसिद्ध चूड़ी बाजार है, जहां आपको अनगिनत वैरायटियों की सुंदर चूड़ियां देखने को मिल जाएगी। फलकनुमा पैलेस – नवाब विकार-अल-उमरा द्वारा बनवाया हुआ, स्थापत्यकला का अनोख उदाहरण है। गोलकुंडा किला – शहर के किनारे स्थित, गोलकुंडा का किला, भारत के प्रसिद्ध व भव्य किलों में से एक है। चौमोहल्ला पैलेस- यह आसफ जाही वंश का स्थान था, जहां निज़ाम अपने शाही आगन्तुकों का सत्कार किया करते थे। 1750 में निज़ाम सलाबत जंग ने इसे बनवाया था, जो इस्फहान शहर के शाह महल की तर्ज़ पर बना है। यहां एक महलों का समूह है, जो दरबार हॉल के रूप में प्रयुक्त होते थे। सलारजंग संग्रहालय – यह पुरातन वस्तुओं का एक व्यक्ति संग्रह वाला सबसे बड़ा संग्रहालय है। कई शताब्दियों के संग्रह यहां मिलते हैं। मक्का मस्जिद – यह पत्थर की बनी है, व चारमीनार के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह अपने आकार, स्थापत्य एवं निर्माण में अद्वितीय है। बिडला मंदिर (हैदराबाद, तेलंगाना) – यह हिन्दू मंदिर, नगर में एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है, जहां से नगर का नज़ारा दिखाई देता है, व पूरे नगर से यह दिखाई देता है। यह श्वेत संगमर्मर का बना है। बिडला तारामंडल – नगर के बीच में नौबत पहाड पर स्थित, तारामंडल खगोल विज्ञान को नगर का नमन है। चिलकुर बालाजी – श्री वेंकटेश्वर स्वामी को समर्पित यह मंदिर मेहंदीपटनम से 23 कि॰मी॰ दूर है। इसे वीसा-बालाजी भी कहते हैं, क्योंकि लोगों की यह मान्यता है, कि अमरीकी वीज़ा का इंटरव्यू इनकी कृपा से सकारात्मक परिणाम देता है। नेहरू प्राणी संग्रहालय- हैदराबाद के इस प्राणी संग्रहालय की विशेषता है इसकी लॉयन सफारी तथा सफेद शेर, इसके अलावा यहां आपको अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया के भी कई वन्य प्राणी देखने को मिल जाएंगे। कई एकड़ में फैले इस प्राणी संग्रहालय में आप अपने वाहन से भी घूम सकते हैं। हैदराबाद की बुद्ध प्रतिमा – यह हुसैन सागर नामक कृत्रिम झील हैदराबाद को सिकंदराबाद से अलग करती है। इसके अंदर, बीच में गौतम बुद्ध की एक 18 मी. ऊंची प्रतिमा स्थापित है। इस द्वीप पर जिस पत्थर पर यह बनी है, उसे स्थानीय लोग जिब्राल्टर का पत्थर कहते हैं। लाड बाजार - यहां चूड़ी बाज़ार है, जो चार मीनार के पश्चिम में है। कमल सरोवर - जुबली हिल्स पर स्थित, तालाब के चारों ओर बना एक सुंदर बगीचा है, जिसे एक इतालवी अभिकल्पक द्वारा बनाया हुआ बताया जाता है। यह वर्तमान में हैदराबाद नगरपालिक निगम द्वारा अनुरक्षित है। यह कुछ दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों का घर भी है। पुरानी हवेली - निज़ाम का आधिकारिक निवास। क़ुतुब शाही मक़बरे - कुतुबशाही वंश के शासकों के मकबरे यहां स्थित हैं, यह गोलकोंडा किले के निकट शाइकपेट में है। पैगाह मक़बरे - पैगाह मकबरा का संबंध पैगाह के शाही परिवार से है, जिसे शम्स उल उमराही परिवार के नाम से भी जाना जाता है। हैदराबाद के उपनगर पीसाल बंदा में स्थित इस मकबरे को मकबरा शम्स उल उमरा के नाम से भी जाना जाता है। इस मकबरे के निर्माण का काम 1787 में नवाब तेगजंग बहादुर ने शुरू करवाया था और फिर बाद में इसके निर्माण कार्य में उनके बेटे आमिर ए कबीर प्रथम ने हाथ बंटाया। संघी मंदिर - भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित एक मंदिर है। स्नो वर्ल्ड - यह एक मनोरंजन पार्क है, जो कि इस उष्णकटिबंधीय शहर में लोगों बहुत कम तापमान व हिम का अनुभव देता है। वर्गल सरस्वती देवी मंदिर - यह हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूरी पर मेडचल महामार्ग पर स्थित मंदिर है। यह एक बड़ी शिला पर स्थित है। इस मार्ग पर आरटीसी बसें उपलब्ध हैं। माधापुर - हैदराबाद के अनेक सूचना-प्रौद्योगिकी तथा सूचना-प्रौद्योगिकी-समर्थीकृत-सेवाओं संबधित कार्यालयों का स्थान है। रामोजी फिल्म सिटी संसार का सबसे बड़ा समाकलित फ़िल्म स्टूडियो सम्मिश्र है जो लगभग 2000 एकड़ में फैला है। यह एशिया के सबसे लोकप्रिय पर्यटन एवं मनोरंजन केंद्रों में से एक है। 1996 में उद्घाटित यह हैदराबाद से 25 किलोमीटर दूर विजयनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-9) पर स्थित है। इन्हें भी देखें हैदराबाद राज्य नानकरामगुडा फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट् हाईटेक सिटी खाजागुडा सन्दर्भ बाहरी कड़ियां हैदराबाद के लिए एक गाइड(अंग्रेजी में) हैदराबाद गाइड हैदराबाद मेट्रो हैदराबाद मानचित्र श्रेणी:हैदराबाद श्रेणी:तेलंगाना के नगर श्रेणी:हैदराबाद के निज़ाम श्रेणी:हैदराबाद ज़िला
आंध्रप्रदेश
https://hi.wikipedia.org/wiki/आंध्रप्रदेश
REDIRECT आन्ध्र प्रदेश
रायपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/रायपुर
thumb|280px|पलारी का ऐतिहासिक सिद्धेश्वर मंदिर thumb|280px|स्वामी विवेकानन्द एअरपोर्ट स्थिति thumb|280px|ऍनआइटी रायपुर रायपुर (Raipur) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक नगर है। यह राज्य की राजधानी है और रायपुर ज़िले का मुख्यालय है। रायपुर छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ राज्य का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक और व्यापारिक केन्द्र है।"Inde du Nord - Madhya Pradesh et Chhattisgarh ," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172"Pratiyogita Darpan ," July 2007 छत्तीसगढ़ के विभाजन के पूर्व रायपुर मध्य प्रदेश राज्य का अंग था। रायपुर को स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 मे भारत का 6वां सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया है। रायपुर को व्यापार के लिए देश के सबसे अच्छे शहरों मे से एक माना जाता है। रायपुर खनिज संपदा से भरपूर है। यह देश मे स्टील एवं लोहे के बड़े बाजारों मे से एक है। लगभग 200 स्टील रोलिंग मिल, 195 स्पन्ज आयरन प्लांट, कम से कम 6 स्टील प्लांट, 60 प्लाइवुड कारखाने, 35 फेरो-अलॉय प्लांट, और 500 कृषि उद्योग हैं। रायपुर मे 800 से अधिक राइस मिल प्लांट हैं। इतिहास पुराने भवन एवं किलों के अवशेष पर आधारित कुछ इतिहासविदों की मान्यतानुसार यह शहर ९वीं सदी से अस्तित्व में है।यहां प्राचीन गोंड राजाओं का शासन था, ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह १४ वीं सदी में बसा था। जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनुसार: जनसंख्या - 10,10,087 लिंगानुपात - 946 साक्षरता दर - 86.90% पुरुष साक्षरता दर 92.39% महिला साक्षरता दर 81.10% भूगोल एवं जलवायु रायपुर खारुन नदी के तट में बसा छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा शहर है। रायपुर एक बड़े मैदान (छत्तीसगढ़ का मैदान) के मध्य में स्थित है जो "धान का कटोरा" भी कहा जाता है। रायपुर के पूर्व में महानदी नदी बहती है। उत्तर-पश्चिम में मैकाल की पहाड़ियां हैं। उत्तरी ओर छोटा नागपुर का पठार और दक्षिण में बस्तर का पठार है। रायपुर मुम्बई-हावड़ा रेल लाइन पर है और यह सभी मह्त्वपूर्ण शहरों से जुड़ा है। राष्ट्रीय राजमार्ग ६ शहरो से गुज़रता है और ४३ शहर को विशाखापट्नम से जोड़ता है। रायपुर मुम्बई, दिल्ली एव्म अन्य शहरों से हवाई मा‍र्ग से जुड़ा हुआ है। रायपुर का हवाई अड्डा 'माना में है। तापमान: गर्मी में ४५ से २९ सेल्सिअस सर्दी में २७ से १० सेल्सिअस वर्षा लगभग १२० से मी (जुलाई से सितम्बर) नवा रायपुर 01 नवंबर सन् 2000 में बने छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर का प्रशासनिक केन्द्र 'नया रायपुर' हैं। यह एक विश्व स्तरीय परियोजना है जिसमे कि वर्तमान रायपुर से 25 किमी दूर एक नए शहर का सृजन किया गया है। इस के लिए एक बड़े क्षेत्र की भूमि का अर्जन या अधिग्रहण किया गया है। नया रायपुर का कुल क्षेत्रफल 80,000 हेक्टेयर है। नये रायपुर में 225 किमी पक्की सड़क है। नया रायपुर के परसदा क्षेत्र मेंअन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनाया गया है। अर्थव्यवस्था रायपुर संपूर्ण छ्त्तीसगढ़ एवं उड़ीसा के लिये थोक की मंडी है। इसके अलावा यह एक औद्योगिक नगर है। शिक्षा रायपुर में मुख्य विश्वविद्यालय: पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय हिदायतुल्ला विधि विश्वविद्यालय एवं कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय नय आयुष्य एवं चिकित्सा विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए NIT राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान सहित चार अभियांत्रिकी महाविद्यालय हैं : शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय, रायपुर इंस्टीट्यूट आफ़ टेक्नॉलाजी, दिशा इंस्टीट्यूट आफ़ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट नए चिकित्सा विश्वविद्यालय के अधीन रायपुर के चार चिकित्सा महाविद्यालय है: जवाहर लाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय होम्योपैथिक महाविद्यालय शासकीय दंत चिकित्सा महविद्यालय इसके अलावा विज्ञान, कला, वाणिज्य के अध्ययन हेतु कई महाविद्यालय है। शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, शासकीय छ्त्तीसगढ महाविद्यालय है। भविष्य में इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट भी केन्द्र सरकार द्वारा प्रारंभ किया जाना है। रायपुर में अधिकांश शासकीय विद्यालय राज्य परीक्षा बोर्ड से और निजी विद्यालय सी बी एस ई से सम्बद्ध हैं। यहां एक शासकीय मुक्त विश्व विद्यालय भी है जिसे पंडित सुंदर लाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। पर्यटन स्थल रायपुर के पर्यटन स्थलों में नगरघड़ी है। यह हर घंटे छत्तीसगढ़ी लोक धुनें सुनाती है। बूढ़ा तालाब, यह शहर का सबसे बड़ा तालाब है जिसे स्वामी विवेकानंद सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, इस तालाब के बीचोबीच एक छोटे से द्वीप पर उद्यान है। माता कौशल्या मंदिर भारत में इकलौता मंदिर है जो श्री राम की माता कौशल्या जी के नाम से है, ये रायपुर के चंदखुरी में स्थित हैं,दूधधारी मंदिर हिन्दूओं के आराध्य भगवान राम का करीब ५०० साल पुराना मंदिर है। महंत घासी दास संग्रहालय तथा राजीव गांधी ऊर्जा पार्क जो एक नागरिक वन है, यहां के अन्य दर्शनीय स्थल हैं। यहां सभी झूले सौर ऊर्जा से संचालित हैं। यहां माता कौशल्या का मंदिर भी स्थित है । यह मंदिर रायपुर में चंद्रखुरी में स्थित है जिसमें माता कौशल्या की मूर्ति भी स्थित है । चारों ओर से सरोवर से घिरे इस मंदिर को लोग दूर दूर से देखने आते हैं । वर्ष 2021 में इसका नवीनीकरण भी किया गया जिसके बाद दर्शकों की मानो भीड़ सी लग गई। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का बहुत महत्व है , यह मंदिर लोगों को आनन्द और शांति प्रदान करती है । माता कौशल्या से जुड़ी एक बात तथ्य यह भी है की चूंकि माता कौशल्या श्री राम जी के माता हैं और श्री राम जी को लोग स्वयं ईश्वर मानते हैं , ऐसा माना जाता है की माता कौशल्या का जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ है , माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की बेटी हुई अर्थात छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायके माना जाता है , अतः भगवान श्री राम छत्तीसगढ़ वासियों के लिए भांजा हैं । इसलिए छत्तीसगढ़ में लोग अपने भांजे - भांजियों को भगवान स्वरूप मानते हैं और मामा - मामी अपने भांजे- भांजी के चरण स्पर्श करते हैं । उनसे कोई काम नहीं कराते। लोगों की मान्यता है की ऐसा करने से पुण्य प्राप्त होता है। मनोरंजन रायपुर में मनोरंजन के लिए पुराने सिनेमाघरों के साथ मल्टीप्लेक्स थियेटर भी हैं। आकाशवाणी का मीडियम वेव पर एक रेडियो स्टेशन २ अक्टूबर १९६४ से कार्य कर रहा है। नई पीढ़ी के लिये ऐफ ऐम बैंड पर नए चैनल्स लाये गए हैं, जिनमें विविध भारती या विज्ञापन प्रसारण सेवा १ जनवरी २००१ को शुरू हुई है। तीन नए रेडियो स्टेशन सन् २००७ में शुरू हुए हैं; इनमें रेडियो मिर्ची, रेडियो रंगीला तथा रेडियो माई एफ एम का चैनल हैं। वर्ष २००९ में बिना किसी औपचारिक उद्घाटन के एक और नया रेडियो चैनल रेडियो तड़का भी आ गया है। सभी का प्रसारण रायपुर से होता है। टेलीविजन चैनलों में १९७७ में शुरू हुआ, दूरदर्शन का चैनल सर्व प्रथम है। अब तो दूरदर्शन का डीडी न्यूज़ चैनल भी रायपुर में देखा जा सकता है। सहारा समय, ई टीवी न्यूज, जी छत्तीसगढ़ २४ घंटे, वॉच न्यूज के साथ केबल टीवी के एम० चैनल और ग्रैन्ड चैनल है। इसके अलावा एयरपोर्ट रोड पर एक उर्जा पार्क तथा जी० ई० रोड पर ग्राम सरोना में स्थित नंदन वन है यहां जंगली जानवरों को भी देखा जा सकता है। वर्ष २००९ व २०१० में मेट्रो शहरों के अनुसार शॉपिंग मॉल भी बने हैं। तेलीबांधा में सिटी मॉल व तेलीबांधा के आगे जी.ई. रोड पर मैग्नेटों मॉल, आमानाका के आगे जी.ई. रोड पर आर. के. मॉल तथा देवेन्द्र नगर में छत्तीसगढ़ सिटी सेन्टर बना है। परिवहन रेलवे रायपुर भारतीय रेलवे के हावड़ा-नागपुर-मुंबई मार्ग पर स्थित है। यह भारत के सभी मुख्य शहरों (नई दिल्ली, मुंबई, पुणे, भोपाल, कोलकाता, बैंगलोर, चेन्नई, अमृतसर, इंदौर, रांची, पटना, लखनऊ, बनारस, सूरत, भुवनेश्वर आदि) शहरों से रेलवे मार्ग के द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डा स्वामी विवेकानन्द एअरपोर्ट (माना एअरपोर्ट) रायपुर का निकटतम हवाई अड्डा है। रोचक तथ्य 1995 में स्थापित की गई रायपुर नगर की नगरघड़ी में छत्तीसगढ़ की 24 लोकधुनों को संयोजित कर लोक संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में किया गया प्रयास शायद पूरे विश्व में एक अनूठा है। रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री श्याम बैस के प्रयासों से शुरू की गई नगरघड़ी ग्लोबल एक्सेस पोजिशिन तकनीक से समय बताती है। नगरघड़ी में हर घंटे बजनेवाली लोकधुन पूरे छत्तीसगढ़ राज्य की लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति है। ११ सितंबर २००८ को छत्तीसगढ़ के पहले अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का शुभारंभ किया गया। ६० हजार की क्षमता वाला यह स्टेडियम कोलकात्ता ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा बड़ा स्टेडियम है। यह स्टेडियम रायपुर से लगभग २० किलोमीटर दूर ग्राम परसदा, मंदिरहसौद में है। इसकी लागत १०० करोड़ आंकी गई है। रायपुर बिलासपुर मार्ग पर डॉ॰ खूबचंद बघेल ट्रांसपोर्टनगर नगर विकसित किया गया है। ९८ एकड़ क्षेत्र में विकसित किए गया यह ट्रांसपोर्टनगर बहुत ही योजनाबध्द ढ़ग से विकसित किया गया है। यहां एक साथ ३००० ट्रकों की पार्किंग की जा सकती है। यही कारण है कि इसे देश के सर्वसुविधायुक्त ट्रांसपोर्टनगर के रूप में माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ के पुरखों की संस्कृति और लोकाचार के सबंध में एक खुले संग्रहालय का नाम है पुरखौती मुक्तांगन। छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा, पुरातत्व, पर्यावरण और जीव-सृष्टि की सन्निधि में विकास की कल्पना को साकार करने हेतु पुरखौती मुक्तांगन रायपुर से लगभग 20 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित ग्राम-उपरवारा की लगभग 200 एकड़ भूमि में स्थित है। इन्हें भी देखें नया रायपुर रायपुर ज़िला बाहरी कड़ियाँ रायपुर ज़िला प्रशासन Raipur का इतिहास सन्दर्भ श्रेणी:रायपुर ज़िला श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर श्रेणी:रायपुर ज़िले के नगर *
सुभद्रा कुमारी चौहान
https://hi.wikipedia.org/wiki/सुभद्रा_कुमारी_चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। झाँसी की रानी (कविता) उनकी प्रसिद्ध कविता है। वे राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं। स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। जीवन परिचय उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। इलाहाबाद के क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल में महादेवी वर्मा उनकी जूनियर और सहेली थीं। १९१९ में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। १९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तक में लिखी है। इसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। डॉo मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है। साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है। १५ फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया था। कथा साहित्य 'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंछलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम्ब के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा। इस में उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की कुल ९ कहानियां हैं। इन सब कहानियों का मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है। 'सीधे साधे चित्र' सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है। इसमें कुल १४ कहानियां हैं। रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला - ८ कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें हैं। हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। सम्मान सेकसरिया पारितोषिक (१९३१)मुकुल तथा अन्य कविताएँ, सुभद्राकुमारी चौहान, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण-१९९६, पृष्ठ-४. 'मुकुल' (कविता-संग्रह) के लिए सेकसरिया पारितोषिक (१९३२) 'बिखरे मोती' (कहानी-संग्रह) के लिए (दूसरी बार)https://www.kobo.com/in/en/ebook/mukul-tatha-anya- kavitayein-hindi-poetry भारतीय डाकतार विभाग ने ६ अगस्त १९७६ को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में २५ पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है। भारतीय तटरक्षक सेना ने २८ अप्रैल २००६ को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। कृतियाँ कहानी संग्रह बिखरे मोती -१९३२ उन्मादिनी -१९३४ सीधे-साधे चित्र -१९४७ सीधे-साधे चित्र -१९८३ (पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कहानियों का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) कविता संग्रह मुकुल त्रिधारा मुकुल तथा अन्य कविताएँ - (बाल कविताओं को छोड़कर पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कविताओं का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) प्रसिद्ध कविताएं - स्वदेश के प्रति, झंडे की इज्जत में, झांसी की रानी, सभा का खेल, बोल उठी बिटिया मेरी, वीरों का कैसा हो बसंत, जलियांवाला बाग में बसंत इत्यादि। बाल-साहित्य झाँसी की रानी कदम्ब का पेड़ सभा का खेल सुभद्रा जी पर केन्द्रित साहित्य मिला तेज से तेज (सुधा चौहान लिखित लक्ष्मण सिंह एवं सुभद्रा कुमारी चौहान की संयुक्त जीवनी; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) प्रसिद्ध पंक्तियाँ यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥  सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।  मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन सुख या शान्ति नहीं होगी  यही बात तुम भी कहते थे  सोचो, भ्रान्ति नहीं होगी। आ रही हिमाचल से पुकार, है उदधि गरजता बार-बार, प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार, सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत, वीरों का कैसा हो वसंत? मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी॥ नंदन वन-सी फूल उठी, वह छोटी-सी कुटिया मेरी॥ इन्हें भी देखें महादेवी वर्मा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ कविता कोश में सुभद्रा कुमारी चौहान विकिस्रोत पर खूब लड़ी मर्दानी वह की रचयिता की कविताई (दैनिक जागरण) राष्ट्र-प्रेम का पर्याय : सुभद्रा कुमारी चौहान (देशबन्धु) श्रेणी:हिन्दी कथाकार श्रेणी:हिन्दी कवयित्रियाँ श्रेणी:भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के कवि श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना श्रेणी:भारतीय महिला साहित्यकार श्रेणी:1904 में जन्मे लोग श्रेणी:१९४८ में निधन
इम्फाल
https://hi.wikipedia.org/wiki/इम्फाल
इम्फाल (ꯏꯝꯐꯥꯜ) भारत के मणिपुर राज्य की राजधानी है। इस ऐतिहासिक नगर के केन्द्र में भूतपूर्व मणिपुर राज्य की गद्दी, कंगला महल, के खण्डहर उपस्थित हैं। इम्फाल नगर इम्फाल पश्चिम ज़िले और इम्फाल पूर्व ज़िले दोनों में विस्तारित है, और शहर की अधिकांश आबादी इसके पश्चिमी भाग में निवास करती है। इम्फाल भारत सरकार द्वारा अनुसूचित स्मार्ट नगरों में से एक है।"Manipur: Geography and Regional Development," Vedaja Sanjenbam, Rajesh Publications, 1998, ISBN 9788185891194"Census of India, 1991: Manipur," Census of India, 1991, Manipur, India पर्यटन श्री गोविन्ददेव जी मन्दिर thumb|center|upright=2.5|इम्फाल में "पैलेस कम्पाउण्ड" में श्री गोविन्दजी मन्दिर, आधुनिक मणिपुरी दुनिया में मणिपुरी हिन्दुओं के मणिपुरी वैष्णववाद का केन्द्र था । यह मन्दिर मणिपुर के पूर्व शासकों के महल के निकट ही है, व वैष्णवों का पावन तीर्थ स्थल है। यह दो स्वर्ण गुम्बदों सहित एक सरल किन्तु सुन्दर निर्माण है। इसमें एक पक्का प्रांगण तथा सभागार भी है। यहां के मुख्य देवता श्री राधा-कृष्ण हैं, जिनके साथ ही बलराम और कृष्ण के मन्दिर एक ओर हैं, तो दूसरी ओर जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा के मन्दिर हैं। शहीद मीनार thumb इम्फाल के पोलोग्राउण्ड के पूर्वी ओर यह मीनार बीर टिकेन्द्रजीत पार्क में खड़ी है। यह ब्रिटिश सेना के विरुद्ध १८९१ के युद्ध के मणिपुरी शहीदों की याद में बनी है। यह मीनार फोटो खींचने वालों का मुख्य आकर्षण है। युद्ध स्मारक thumb द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय व ब्रिटिश सैनिकों की समाधियाँ व कब्रें। मणिपुर ज़ू thumb इम्फाल का चिड़ियाघर। सिंगदा ९२१ मीटर की ऊंचाई पर यह सुन्दर पिकनिक स्थल इम्फाल से १६ किलोमीटर दूर है। लांगथबल thumb|center|लांगथबल (कांचीपुर) में पुराने लंगथबल पैलेस के प्रवेश द्वार की जीर्ण-शीर्ण संरचना। यह भारत-बर्मा सीमा से ६ किलोमीटर दूर है। इन्हें भी देखें इम्फाल पश्चिम ज़िला इम्फाल पूर्व ज़िला सन्दर्भ * श्रेणी:मणिपुर के शहर श्रेणी:इम्फाल पश्चिम ज़िला श्रेणी:इम्फाल पश्चिम ज़िले के नगर श्रेणी:इम्फाल पूर्व ज़िला श्रेणी:इम्फाल पूर्व ज़िले के नगर श्रेणी:मणिपुर में पर्यटन श्रेणी:भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियाँ
अइज़ोल
https://hi.wikipedia.org/wiki/अइज़ोल
अइज़ोल (Aizawl) भारत के मिज़ोरम राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है। यहाँ पर राज्य के सभी प्रशासनिक भवन जैसे महत्वपूर्ण सरकारी भवन, विधानसभा तथा सचिवालय स्थित है।"Mizoram: Past and Present," Hargovind Joshi, Mittal Publications, 2005, ISBN 9788170999973."A Sociological Understanding of North East India," Dr. Karabi Konch, Notion Press, 2019, ISBN 9781646787593. इतिहास १८७१-७२ के दौरान मिज़ो मुखिया खालकोम के उपद्रवी व्यवहार के कारण ब्रिटिश लोगों ने एक चौकी बनायी जो कि बाद में अइज़ोल ग्राम कहलायी। मिज़ो आदिवासियों के विरुद्ध ब्रिटिश सैन्य अभियान के दौरान १८९० में असम पुलिस के अधिकारी डेैली ने ४०० जवानों के साथ ब्रिटिश टुकड़ी को मदद भेजी। डेैली की अनुशंसा पर अइज़ोल की चौकी को और अधिक मजबूत बनाया गया। टुकड़ी ने यहाँ पर सुदृढ़ घेरेबंदी की तथा भवन बनवाये।The Making of Aijal मेजर लोच के नेतृत्व में १८९२-९५ में अइज़ोल से सिलचर तक सड़क मार्ग बनावाया गया। भारतीय वायु सेना ने मार्च १९६६ में मिज़ो नेशनल फ्रण्ट विद्रोह के दौरान नगर में हवाई हमलें किये जिसके कारण विद्रोहियों को लुंगलेई तक पीछे हटना पड़ा। १९६६ तक अइज़ोल एक बड़ा गाँव था मगर विदोह के बाद मिज़ो गाँवों का पुनर्गठन हुआ जिसके फलस्वरूप यह पहले कस्बा फिर एक नगर बना। १९७२ तक यह नगर असम का भाग था मगर मिज़ोरम के पहले केन्द्र शासित प्रदेश तत्पश्चात 20 फरवरी १९८७ को भारतीय संविधान के ५३वें संशोधन, १९८६ के फलस्वरूप राज्य बनने पर नगर यहाँ की राजधानी बना। भूगोल यह नगर कर्क रेखा के उत्तर में स्थित है। यह नगर समुद्र तल से ११३२ मीटर (३७१५ फीट) की ऊँचाई पर स्थित है तथा त्लावंग नदी घाटी पश्चिम में तथा तुईरिअल नदी घाटी पूर्व में स्थित है। जलवायु अइज़ोल की स्थिति व ऊँचाई के कारण यहाँ पर उपोष्णकटिबन्धीय जलवायु पायी जाती है। कोपेन जलवायु वर्गीकरण के अनुसार यहाँ पर आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है मगर वर्षा बहुत होती है। ग्रीष्मकाल में तापमान के मध्य रहता है तथा शीतकाल में यह के मध्य रहता है। नगर दृश्य जनसांख्यिकी २०११ की जनगणना के अनुसार अइज़ोल नगर की जनसंख्या २९३,४१६ है, जिसमें पुरुष १४४,९१३ (४९.३९%) तथा महिलाएँ १४८,५०३ है। साक्षरता दर ९८.३६% तथा लिंगानुपात १०२५ महिला प्रति १००० पुरुष है। ६ वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मध्य लिंगानुपात ९८३ महिला प्रति १००० पुरुष है। विभिन्न आदिवासी समूहों के मिज़ो लोग नगर की जनसंख्या में बहुसंख्यक हैं। नगर में ईसाई धर्म के अनुयायी बहुसंख्यक हैं। ये कुल जनसंख्या का ९३.६३% बनाते हैं। इसके बाद हिन्दू हैं जो कि कुल जनसंख्या के ४.१४% हैं। तत्पश्चात मुस्लिम १.५२%, बौद्ध ०.४५%, अन्य ०.०९%, सिक्ख ०.०३% तथा जैन ०.०२% हैं। ०.११% लोगों ने अपने धर्म का उल्लेख नहीं किया है। इनर लाइन परमिट सरकारी कर्मचारी के अतिरिक्त मिज़ोरम में प्रवेश हेतु घरेलू पर्यटकों को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की आवश्यकता पड़ती है। आईएलपी को सम्बन्धित अधिकारियों से नयी दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, गुवाहाटी, शिलांग तथा सिलचर में प्राप्त किया जा सकता है। यह अइज़ोल के निकटतम लेंगपुई विमानक्षेत्र पर पधारने के बाद भी प्राप्त किया जा सकता है। विदेशी नागरिकों को अपने आगमन से २४ घण्टे के अंदर मिज़ोरम के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में पंजीकरण करवाना पड़ता है। परन्तु चीन, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के नागरिकों को राज्य में प्रवेश से पूर्व भारत के गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। यातायात हवाई मार्ग अइज़ोल हवाई मार्ग द्वारा लेंगपुई विमानक्षेत्र से जुड़ा है, जो कि इसका निकटतम विमानक्षेत्र है। यह विमानक्षेत्र कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई अन्तरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र, शिलांग विमानक्षेत्र तथा इम्फ़ाल विमानक्षेत्र द्वारा जुड़ा है। तीन विमान कम्पनियाँ एयर इण्डिया, जेट एयरवेज तथा स्पाइस जेट लेंगपुई विमानक्षेत्र से नियमित रूप से हवाई सेवा का संचालन करती है। २०१२ में पवन हंस नामक हेलिकॉप्टर सेवा प्रारम्भ हुई जो नगर को लुंगलेई, लॉङ्गतलाई, सइहा, चॉङ्गते, सेरछिप, चम्फाई, कोलासिब, खवज़ोल, नगोपा तथा ह्नाहथिआल को जोड़ती है। रेलमार्ग अइज़ोल का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बैराबी है। भारत सरकार ने बैराबी-सैरंग रेलमार्ग पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है जिससे अइज़ोल सहित पूरे राज्य को बेहतर रेल सम्पर्क सुविधा प्राप्त होगी। इस परियोजना को २०२० तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही नगर में बेहतर सम्पर्क हेतु ज़ेमबाक से कुलिकावन तक ५ किमी लम्बी अइज़ोल मोनोरेल का भी प्रस्ताव है। सड़क मार्ग अइज़ोल असम के सिलचर से राष्ट्रीय राजमार्ग ५४ द्वारा, त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से राष्ट्रीय राजमार्ग ४० द्वारा तथा मणिपुर की राजधानी इम्फाल से राष्ट्रीय राजमार्ग १५० द्वारा जुड़ा है। मीडिया समाचारपत्र मिज़ो और अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले अइज़ोल कुछ समाचारपत्र निम्नलिखित हैं: वनग्लैनी द ज़ोज़म टाइम्स द अइज़ोल पोस्ट खापुई अव मिज़ो अर्सी मिज़ो एक्सप्रेस ज़ावलैदी ज़ोज़म वीकली ज़ोरम थलिर्तु सकेइबनेइ एंटलंग रेडियो आकाशवाणी अपने स्टूडियो से नियमित रूप से कार्यक्रम प्रसारित करता है। एफएम ज़ोअवी यहाँ का प्रसिद्ध रेडियो स्टेशन है। दर्शनीय स्थल अइज़ोल के प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्न हैं: बड़ा बाज़ार मिज़ोरम राज्य संग्रहालय रिएक दुर्तलांग पहाड़ियाँ हमुइफांग बेरावातलंग बकतवांग गाँव सोलोमन मन्दिर खुआंगचेरा पुक फॉकलैण्ड अमयुज़मेंट पार्क शिक्षा thumb|200px|मिज़ोरम विश्विद्यालय प्रवेशद्वार यहाँ पर सरकारी व निजी दोनों ही विद्यालय हैं। उच्च शिक्षा के लिये भी कई कॉलेज हैं। २००१ में स्थापित मिज़ोरम विश्विद्यालय से यहाँ के सभी कॉलेज सम्बद्ध हैं। पछुंगा विश्वविद्यालय कॉलेज यहाँ का सबसे पुराना शिक्षण संस्थान है जो कि १९५८ में स्थापित हुआ था। इसके पश्चात १९७५ में अइज़ोल कॉलेज की स्थापना हुई। मिज़ोरम विधि कॉलेज यहाँ के विद्यार्थियों को कानून की शिक्षा उपलब्ध करवाता है।The Mizoram University Act of 25 अप्रैल 2000 भारतीय पत्रकारिता संस्थान तथा राष्ट्रीय प्रौद्यिगिकी संस्थान मिज़ोरम भी यहाँ के प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं। फल्कावन में चिकित्सा कॉलेज भी खोलने का प्रस्ताव है। खेल thumb|200px|लाममुआल स्टेडियम फुटबॉल यहाँ का सर्वप्रिय खेल है। यहाँ के कई खिलाड़ी राष्ट्रीय लीगों में खेलते हैं। यहाँ के प्रसिद्ध खेल मैदान व क्लब निम्नलिखित हैं: खेल मैदान राजीव गाँधी स्टेडियम, मुआलपुई में स्थित २०,००० दर्शक क्षमता वाला स्टेडियम हवला इण्डोर स्टेडियम: यहाँ का सबसे बड़ा इण्डोर स्टेडियम है, जहाँ बास्केटबॉल, बैडमिण्टन और बॉक्सिंग के लिये सुविधा उपलब्ध है। लाममुआल स्टेडियम एक मंजिला खेल मैदान है जहाँ ५००० दर्शकों के बैठने के लिये स्थान है। क्लब टीम खेल लीग आयोजक मिज़ोरम फुटबॉल टीम फुटबॉल संतोष ट्रॉफी राजीव गाँधी स्टेडियम, मुआलपुई अइज़ोल एफसी फुटबॉल आई-लीग राजीव गाँधी स्टेडियम, मुआलपुई चनमारी एफसी फुटबॉल मिज़ोरम प्रीमियर लीग लाममुआल स्टेडियम दिनथर एफसी फुटबॉल मिज़ोरम प्रीमियर लीग लाममुआल स्टेडियम सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अइज़ोल विकास प्राधिकरण अइज़ोल का आधिकारिक जालस्थल रीजेंसी अइज़ोल का आधिकारिक जालस्थल श्रेणी:अइज़ोल श्रेणी:अइज़ोल ज़िला श्रेणी:मिज़ोरम के नगर श्रेणी:अइज़ोल ज़िले के नगर श्रेणी:मिज़ोरम में हिल स्टेशन
मिजोरम
https://hi.wikipedia.org/wiki/मिजोरम
REDIRECT मिज़ोरम
आसनसोल
https://hi.wikipedia.org/wiki/आसनसोल
आसनसोल (Asansol) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के पश्चिम बर्धमान ज़िले में स्थित एक शहर है। यह कोलकाता के बाद राज्य का सबसे बड़ा शहर है। छोटानागपुर पठार के मध्य में राज्य की झारखण्ड से सटी पश्चिमी सीमा पर स्थित यह नगर खनिज पदार्थों में धना है। आसनसोल दामोदर नदी के किनारे बसा हुआ है और बहुत समय से एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन रहा है।"Lonely Planet West Bengal: Chapter from India Travel Guide," Lonely Planet Publications, 2012, ISBN 9781743212202"Kolkata and West Bengal Rough Guides Snapshot India," Rough Guides, Penguin, 2012, ISBN 9781409362074 विवरण आसनसोल भारत के उन 11 शहरों में से एक है जो विश्व के 100 सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों की सूची में हैं। प्रदेश की राजधानी कोलकाता से 200 किलोमीटर दूर दामोदर नदी की घाटी में स्थित इस नगर के अर्थव्यवस्था का आधार कोयला एवं स्टील हैं। यहाँ कार्यबल की संख्या अधिक है और, मामूली प्रति व्यक्ति आय के उच्च शैक्षिक संस्थानों, अच्छी परिवहन कनेक्शन, कई आवास परिसरों और उद्योग, संस्थाओं, परिवहन और वाणिज्य के लिए उपयुक्त भूमि है। इसका भीतरी भाग बांकुरा और पुरुलिया जिलों और उत्तर बंगाल, ओड़िशा और झारखण्ड राज्यों के कुछ हिस्सों से जुड़ा हुआ है। यहाँ सेनेरैल साइकिल का भारत प्रसिद्ध कारखाना है। भारतीय रेल ने आसनसोल जंक्शन रेलवे स्टेशन पर अपने यात्रियों और वहां के आम लोगों के उपयोग के लिए अपना पहला रेल भोजनालय "रेस्टोरेंट ऑन व्हील्स" शुरू किया। नामोत्पत्ति आसनसोल का नाम दो शब्दों को जोड़कर बना है। "आसन" एक तीस मीटर ऊँचा वृक्ष है जो दामोदर नदी के तट पर पाया जाता है और "सोल" का अर्थ "भूमि" है। इन्हें भी देखें पश्चिम बर्धमान ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:पश्चिम बर्धमान ज़िला श्रेणी:पश्चिम बंगाल के शहर श्रेणी:पश्चिम बर्धमान ज़िले के नगर *
विलियमनगर
https://hi.wikipedia.org/wiki/विलियमनगर
विलियमनगर (Williamnagar), जिसे पहले सिमसांग्रे (Simsanggre) के नाम से जाना जाता था, भारत के मेघालय राज्य के पूर्व गारो हिल्स ज़िले में स्थित एक शहर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"The Beautiful India - Meghalaya," Syed Amanur Rahman and Balraj Verma, Reference Press, 2006, ISBN 9788184050233"Geographical identity of Meghalaya," D. T. Zimba, Anju Zimba, 1983"Meghalaya, Land and People," Ramamoorthy Gopalakrishnan, Omsons Publications, 1995, ISBN 9788171171460 इन्हें भी देखें पूर्व गारो हिल्स ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:मेघालय के शहर श्रेणी:पूर्व गारो हिल्स ज़िला श्रेणी:पूर्व गारो हिल्स ज़िले के नगर
मोकोकचुआंग
https://hi.wikipedia.org/wiki/मोकोकचुआंग
पुनर्प्रेषितमोकोकचुंग
तुएनसांग
https://hi.wikipedia.org/wiki/तुएनसांग
तुएनसांग (Tuensang) भारत के नागालैण्ड राज्य के तुएनसांग ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"Mountains of India: Tourism, Adventure and Pilgrimage," M.S. Kohli, Indus Publishing, 2002, ISBN 9788173871351 विवरण यह पूर्व में स्थित बर्मा देश से कुछ ही दूरी पर है। नागालैण्ड का सबसे ऊँचा पहाड़, सारामाती पर्वत, तुएनसांग के काफ़ी पास है और भारत-बर्मा सीमा पर स्थित है।B. Datta-Ray, S. P. Agrawal (1996). Reorganization of North-East India since 1947. Concept. p. 6. ISBN 978-81-7022-577-5. ट्वेनसांग शहर की स्थापना १९४७ में की गई थी और इसका नाम पास में बसे हुए इसी नाम के ट्वेनसांग गाँव पर रखा गया। इन्हें भी देखें सारामाती पर्वत तुएनसांग ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:तुएनसांग ज़िला श्रेणी:नागालैण्ड के नगर श्रेणी:तुएनसांग ज़िले के नगर *
प्रांत
https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रांत
प्रान्त एक प्रादेशिक इकाई है, जो कि लगभग हमेशा ही एक देश या राज्य के अन्तर्गत एक प्रशासकीय खण्ड होता है। शब्द व्युत्पत्ति अंग्रेजी शब्द "प्रान्त" लगभग 1330 से साक्ष्यांकित है और इसकी व्युत्पत्ति तेरहवीं शताब्दी के प्राचीन फ़रासी शब्द "province" से हुई जो कि स्वयं लातिन शब्द "प्रोविन्सिया" से लिया गया है, जिसका अभिप्राय, विशेष रूप से, किसी विदेशी प्रदेश में एक मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से है। एक सम्भावित लातिन व्युत्पत्ति "प्रो (Pro-)" ("की ओर से") और "विन्सियर (vincere)" ("विजय के लिए" अथवा "नियन्त्रण लेना") हो सकती है। इस प्रकार एक "प्रान्त" एक क्षेत्र या ऐसा प्रकार्य होता था जिसे अपनी सरकार की ओर से एक रोमन मजिस्ट्रेट अपने नियन्त्रण में ले लेता था। यह हालाँकि, रोमन क़ानून के अन्तर्गत अधिकार क्षेत्र के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले इस लातिन शब्द के प्रारम्भिक प्रयोग से मेल नहीं खाता। भूविज्ञान भूविज्ञान में शब्द "प्रान्त" का प्रयोग ऐसे भौतिक-भौगोलीय क्षेत्र के लिए किया जाता है जो वर्तमान जल-स्तरीय अथवा ऐतिहासिक जल-स्तरीय (जो अब तलछट स्तर से ऊपर हो) रूप में अपने आस-पास के क्षेत्रों अथवा "प्रान्तों" से स्पष्ट रूप से अलग हो। यह शब्द आम तौर से किसी क्रेटन के खण्डों या क्षेत्रों, जो किसी काल विशेष की स्ट्रेटीग्राफी से पहचानी जाये, से सम्बन्ध रखता है, उदाहरण के लिए, जिसे किसी प्रमुख भूगर्भीय काल खण्ड से पहचाना जा सके। इतिहास और संस्कृति फ्रांस में अभी भी "एन प्रोविंस " उक्ति का अर्थ अब तक "पेरिस क्षेत्र के बाहर" से ही निकाला जाता है। समतुल्य उक्तियाँ इस्तेमाल की जाती हैं, पेरू में ("ऍन प्रौविन्सियस " "लीमा शहर से बाहर"), मेक्सिको में ("ला प्रोविन्सिया, " "मेक्सिको शहर से बाहर की भूमि"), रोमानिया में ("इन प्रोविन्सी " "बुकारेस्ट क्षेत्र से बाहर"), पोलैंड में ("prowincjonalny " "प्रांतीय") तथा बुल्गारिया में ("в провинцията, " "v provintsiyata " "провинциален, " "provintsialen, " "प्रान्तों में")। फ्रांसीसी क्रांति से पहले फ्रांस कई शासन क्षेत्रों में बँटा हुआ था (उदाहरण के लिए केप्शीयन की शाही संपदा के चारों ओर बना आइल-डि-फ्रांस), इनमें से अनेक को "प्रान्त" माना जाता था, हालाँकि इस शब्द का प्रयोग बोल-चाल की भाषा में ऐसे क्षेत्रों के लिए भी किया जाता था जो मात्र किसी जमींदारी (châtellenie) जितने ही होते थे। हालाँकि साधारणत: "प्रान्त" द्वारा सांकेतिक क्षेत्र ग्रैन्ड्स गवर्नमेंट्स की जातीं थीं जो आम तौर पर मध्यकालीन सामंतों की रियासतें अथवा भूमि संकलन होते थे। आजकल "प्रान्त " शब्द के स्थान पर कई बार एन रीजन (en région), शब्द का प्रयोग होने लगा है, "रीजन " (région) शब्द का प्रयोग अब शासन के द्वितीय स्तर पर आधिकारिक रूप से किया जाने लगा है। इटली में "इन प्रोविन्सिया " (in provincia) का अर्थ साधारणत: (रोम, मिलान, नेपल्स आदि जैसे) "बड़े राजधानी क्षेत्रों से बाहर के क्षेत्र" से होता है। ऐतिहासिक यूरोपीय प्रान्त - जो कई छोटे क्षेत्रों से मिल कर बनते थे, उन्हें फ्रांसीसियों द्वारा पेस (pays) और स्विस लोगों द्वारा कैनटांस (cantons) कहा जाता था और जिनमें से हरेक की स्थानीय सांस्कृतिक पहचान और केंद्रीय बाज़ार का क़स्बा होता था - इन्हें पूर्व औद्योगिक, पूर्व आधुनिक यूरोप में फ़र्नांड ब्रौडेल द्वारा उचित आकार की राजनीतिक इकाई के रूप में व्यक्त किया जाता था। वह पूछते थे "क्या यह प्रान्त इसके वासियों की सच्ची जन्मभूमि थी?"द पर्सपेकटिव ऑफ़ द वर्ल्ड, 1984, पृष्ठ. 284. यहाँ तक कि केंद्रीय रूप से संगठित फ्रांस, जो एक प्रारंभिक राष्ट्र राज्य था, दबाव में स्वायत्त प्रांतीय टुकड़ों में टूट सकता था, जैसा कि अनवरत फ्रांसीसी धर्म-युद्ध (1562-98) में हुआ। 19वीं और 20वीं सदी के इतिहासकारों की दृष्टि में, यूरोप में केन्द्रीय शासन आधुनिकता और राजनीतिक परिपक्वता के चिन्ह थे। 20वीं शताब्दी के अंत में, जब यूरोपीय संघ ने राष्ट्रों-राज्यों को साथ ले लिया तो, अभिकेन्द्रीय शक्तियों के कारण देशों के लिए अधिक स्थानीय और समस्त यूरोपीय संघ के विभिन्न घटकों को समाहित करने वाले प्रांतीय रूप से शासित इकाई की अधिक लचीली प्रणालियों को अपनाना आवश्यक हो गया। फ्रांसिस्को फ्रांको के पश्चात् स्पेन "स्वायत्तता का राज्य" बन गया, जो औपचारिक रूप से तो एक इकाई के रूप में है परन्तु वास्तव में वह स्वायत्त संप्रदायी राज्यों के संघ के रूप में कार्य करता है, जिसमें से प्रत्येक, अपने भिन्न अधिकारों का प्रयोग करते हैं। (देखें: स्पेन की राजनीति) जहाँ सर्बिया, जो कि भूतपूर्व युगोस्लाविया का हिस्सा था, ने कोसोवो प्रान्त में अलगाववादियों से युद्ध किया, वहीं यूनाइटेड किंगडम ने "शक्ति हस्तांतरण" के राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत स्कॉट्लैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में स्थानीय संसदों की व्यवस्था करवाई। ब्रिटेन के कॉर्नवाल, फ्रांस के ब्रिटनी, लेंग्युडॉक एवं कोर्सिका, स्पेन के कटालोनिया एवं बास्क देश, इटली के लोम्बार्डी, बेल्जियम के फ्लेंडर्स तथा पूर्वी यूरोप के अब्खाज़िया, चेचन्या एवं कुर्दिस्तान में सशक्त स्थानीय राष्ट्रवाद उभर आया अथवा विकसित हो गया। कानूनी पहलू कई राज्य-संघों एवं महा-संघों में प्रान्त अथवा राज्य स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय या केन्द्रीय सरकारों के अधीन नहीं होते हैं। दरअसल अपने कुछ विशिष्ट संवैधानिक कार्यों में प्रान्तों को ही प्रमुख माना गया है। संविधान में केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के कार्य अथवा अधिकार क्षेत्र स्पष्ट रूप से पहचाने जाते हैं। वे कार्य जो स्पष्ट रूप से नहीं पहचाने जाते हैं, "अवशिष्ट शक्तियाँ अथवा अधिकार" कहे जाते हैं। एक विकेन्द्रीकृत संघीय प्रणाली (उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया) में इन अवशिष्ट शक्तियों पर प्रान्त अथवा राज्य का अधिकार होता है, पर केंद्रीकृत संघीय प्रणाली में (उदाहरण के लिए कनाडा) वे केंद्र शासन में रहती हैं। इनमे से कुछ विशेष अधिकार वास्तव में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कनाडा के प्रान्त कुछ महत्वपूर्ण मामलों, जैसे संपत्ति, नागरिक अधिकार, शिक्षा, सामाजिक जनकल्याण एवं चिकित्सा सेवाओं में प्रभुसत्ता रखते हैं। संघों के विकास ने केंद्रीय प्रभुत्व एवं "राज्यों" के अधिकारों के बीच एक अपरिहार्य रस्सा-कशी प्रारंभ कर दी है। संघीय संविधानों में उत्तरदायित्वों का ऐतिहासिक विभाजन अनिवार्य रूप से अनेकों अतिव्यापनों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, जब केंद्रीय सरकारें, जो कि विदेशी मामलों के लिए जिम्मेदार होती हैं, ऐसे क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध करती हैं जो राज्यों अथवा प्रान्तों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जैसे कि पर्यावरण या चिकित्सा मानक, तब राष्ट्रीय स्तर पर किये गए ऐसे अनुबंध अधिकार-क्षेत्र की अतिव्याप्ति एवं विरोधाभासी कानूनों का कारण बनते हैं। यह अतिव्याप्ति आंतरिक विवादों की सम्भावना बनाती है तथा ऐसे संवैधानिक संशोधनों तथा न्यायिक निर्णयों का कारण बनती है जिनसे शक्ति-संतुलन में परिवर्तन आता है। हालाँकि विदेश नीति से सम्बन्धित मामले साधारणत: प्रान्त अथवा राज्य की क्षमता से बाहर होते हैं, फिर भी कुछ राज्य संवैधानिक विशिष्टाधिकार एवं आधारभूत हितों के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध स्थापित करने की क़ानूनी रूप से आज्ञा देते हैं। उप-राष्ट्रीय सत्ताओं की रूचि परम-कूटनीति में बढ़ती जा रही है, फिर चाहे वह किसी क़ानूनी रूप-रेखा में की जाने वाली हो अथवा केंद्रीय शासन द्वारा अनौपचारिक रूप से स्वीकार किये जाने से। फ्रांस एवं चीन जैसे एकल राज्यों में प्रान्त राष्ट्रीय एवं केंद्रीय सरकारों के अधीन हैं। सिद्धांत रूप में, केंद्र सरकार को अपने अधीन प्रान्तों को बनाने अथवा समाप्त करने का अधिकार है। वर्तमान प्रान्त सभी दूसरे स्तर की राजनीतिक इकाइयों को "प्रान्त" नहीं कहा जाता है। अरब देशों में दूसरे स्तर की सरकार को मुहाफ़ज़ाह कहा जाता है जिसका अभिप्राय राज्यपाल द्वारा शासित क्षेत्र अथवा "गवर्नरेट" होता है। पोलैंड में, "प्रान्त" के समकक्ष रूप को "województwo ", जिसे अंग्रेजी में "वाइवोदेशिप (voivodeship)" उच्चरित करते हैं। पेरू में प्रान्त सरकार की क्षेत्रीय इकाइयाँ होती हैं, देश पच्चीस क्षेत्रों में बँटा है जो कि 194 प्रान्तों में प्रविभाजित हैं। चिली में भी इससे मिलता जुलता स्वरुप अपनाया गया है, यह 15 क्षेत्रों में विभाजित और 53 प्रान्तों में प्रविभाजित है जिसमें से हर एक राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल द्वारा शासित है। ऐतिहासिक दृष्टि से, न्यूजीलैंड भी प्रान्तों में विभाजित था जिनमे से हर एक का अपना अधीक्षक एवं प्रांतीय परिषद थीं और उनके द्वारा महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निर्वाहित की जाती थीं। हालाँकि, जब यह एक उपनिवेश के रूप में था तब यह कभी राज्य-संघ के रूप में विकसित नहीं हो पाया; इसके विपरीत, 1876 में प्रान्तों की समाप्ति कर दी गयी। पुरानी प्रान्तीय सीमाओं का प्रयोग अभी भी कुछ सार्वजनिक अवकाशों का निर्धारण करने में किया जाता है। इन वर्षों में, जब भी केन्द्रीय सरकार ने उप-राष्ट्रीय स्तर पर विशेष उद्देश्य के लिए एजेंसियों को बनाया है, इसके लिए अक्सर पुरानी प्रान्तीय सीमाओं का ही प्रयोग किया जाता है। वर्तमान उदाहरण में वे 16 क्षेत्र शामिल हैं जिनमें न्यूज़ीलैंड विभाजित है और साथ ही 21 जिला स्वास्थ्य बोर्ड भी हैं। कई बार प्रान्त शब्द का प्रयोग सम्मिलित रूप से उन ग्रामीण और आँचलिक भागों के लिए किया जाता है जो "मुख्य केन्द्रों" - ऑकलैंड, वेलिंगटन, क्राइस्टचर्च, हैमिल्टन तथा डुनेडिन - से बाहर हैं। आधुनिक प्रान्त कई देशों में, एक प्रान्त अपेक्षाकृत छोटे, असंवैधानिक स्तर के उप राष्ट्रीय स्तर की सरकार वाले स्थान होते हैं, जिनका आकार यूनाइटेड किंगडम की काउंटी से लेकर संयुक्त राज्य अमरीका के राज्य[2 ] तक हो सकता है, इनमें एक स्वायत्त सरकार तथा राज्य-संघ अथवा महा-संघ के मूल तत्व होते हैं, अक्सर इनका आकार बड़ा होता है। चीन में, एक प्रान्त एकात्मक राज्य के भीतर एक उप राष्ट्रीय क्षेत्र है, इसका मतलब है कि एक प्रान्त केन्द्र सरकार द्वारा बनाया या समाप्त किया जा सकता है। फिलीपींस, बेल्जियम, स्पेन एवं इटली में "प्रान्त" सरकार की एक स्पष्ट इकाई है और कनाडा, कांगो और अर्जेंटीना में एक बड़ा स्वायत्त क्षेत्रीय घटक है। इटली और चिली में, प्रान्त किसी क्षेत्र का एक प्रशासनिक उप-मण्डल है, जो राज्य का प्रथम स्तरीय प्रशासनिक उप-सम्भाग होता है। इतालवी प्रान्त में कम्यूनी (कम्युन्स) नामक कई प्रशासनिक उप-मण्डल शामिल होते हैं। चिली में उनको कॉम्यूनस (comunas) कहा जाता है। पांच कनाडियन प्रान्त ओंटारियो, क्युबेक, न्यू ब्राउनश्विक, नोवा स्कोटिया और प्रिंस एडवर्ड आइलैंड के प्रशासनिक उप-मंडलों के रूप में "काउंटी" हैं। कनाडियन प्रान्त ब्रिटिश कोलम्बिया के पास "क्षेत्रीय जिले" हैं जो पूर्वोक्त के समकक्ष के रूप में कार्य करते हैं। आयरलैंड 4 ऐतिहासिक प्रान्तों (आयरलैंड के प्रान्त देखें) में विभाजित है जिनमें से प्रत्येक काउंटियों में प्रतिविभाजित हैं। ये प्रान्त हैं कॉनाक्ट (पश्चिम में), लिएंस्टर (पूर्व में), मुंस्टर (दक्षिण में) और शायद सबसे प्रसिद्ध (मुसीबतों के कारण), उल्स्टर (उत्तर में). आजकल इन प्रांतों में प्रशासनिक कार्य कम हैं, अथवा नहीं है, हालाँकि इनका महत्व खेल के कारण है। ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ विदेशी भागों को "प्रान्त" (रोमन अर्थ के साथ) का औपनिवेशिक नाम मिला था, उदाहरण के लिए कनाडा का प्रान्त या दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया का प्रान्त (इसे ऑस्ट्रेलिया में अन्यत्र दण्डात्मक "कालोनी" से अलग समझा जाये)। इसी तरह, मोजाम्बिक पुर्तगाली उपनिवेश के रूप में एक "प्रान्त" था। रूस कभी-कभी शब्द "प्रान्त" का प्रयोग रूस के ऐतिहासिक गवर्नरेट (राज्यपाल द्वारा शासित क्षेत्र) (गुबेर्नियास) के लिए भी किया जाता है। इस मामले में भी इस शब्द को प्रान्तों () को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जो गुबेरनियास के उपखंडों के रूप में लाये गए थे और 1719 से 1775 तक अस्तित्व में थे। आधुनिक उपयोग में शब्द "प्रान्त" का प्रयोग रूस के ओब्लास्ट्स (oblasts) तथा क्रेस (krais) के लिए किया जाता है। सबसे बड़ा दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला प्रांत चीन का हेनान है जिसकी आबादी 93000911 है। दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाला प्रांत क्यूबेक, कनाडा है (1500000 किमी²). राज्यतंत्र द्वारा "प्रांत" का अनुवाद देश स्थानीय नाम भाषा इकाइयों की संख्या अफगानिस्तान के प्रांत विलाया अरबी से 34 अल्जीरिया के प्रांत विलाया अरबी 48 अंगोला के प्रांत प्रोविंसिया पुर्तगाली 18 अर्जेंटीना के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 23 आर्मेनिया के प्रांत मार्ज़ अर्मेनियन 11 बेलारूस के प्रांत वोब्लास्ट बेलारूसी 7 बेल्जियम के प्रांत (फ्लेमिश क्षेत्र) प्रोविंसी डच 5 बेल्जियम के प्रांत (वैलून क्षेत्र) प्रोविंस फ़्रेंच 5 बोलीविया के प्रांत प्रोविंसीया स्पैनिश 100 बुल्गारिया के प्रांत ओब्लास्ट बल्गारियाई 28 बुर्किना फासो के प्रांत प्रोविंस फ़्रेंच 45 बुरुंडी के प्रांत प्रोविंस फ़्रेंच 17 कंबोडिया के प्रांत खैट 20 कनाडा के प्रांत प्रोविंस अंग्रेज़ी, फ़्रेंच 10 चिली के प्रांत प्रोविंसीया स्पैनिश 53 चीन के प्रांत शेंग (省) मैंडारिन चाइनीज़ 22 + 1पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) का दावा है उसके 23 प्रान्तें हैं, जिनमें से ताइवान एक है, जो पी॰आर॰सी॰ (PRC) के नियंत्रण में नहीं है। रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (जिसे अक्सर ताइवान उल्लिखित करते हैं) फ्युजियन प्रांत के सारे ताइवान प्रांत और कई छोटे द्वीपों को नियंत्रण करता है। कोस्टा रिका के प्रांत प्रोविंसीया स्पैनिश 7 कोलंबिया के प्रांत प्रोविंसीया स्पैनिश क्यूबा के प्रांत प्रोविंसीया स्पैनिश 15 कांगो के लोकतांत्रिक गणराज्य के प्रांत प्रोविंस फ़्रेंच 26 डोमिनिकन गणराज्य के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 33 इक्वाडोर के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 24 इक्वेटोरियल गिनी के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 7 फिजी के प्रांत यसाना फिजीयन 14 फिनलैंड के प्रांत läänit या län फिनिश, स्वीडिश 6 गैबॉन के प्रांत प्रोविंस फ़्रेंच 9 ग्रीस के प्रांत επαρχία (एपार्चिया) यूनानी 73 इंडोनेशिया के प्रांत प्रोविंसी (प्रोपिंसी) बहासा इंडोनेशिया 33 ईरान के प्रांत ओसटन फारसी 30 आयरलैंड के प्रांत cúige गेलिक 4 इटली के प्रांत प्रोविंसिया इटालियन 110 कज़खस्तान के प्रांत ओब्लैसी कज़ाख 14 केन्या के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 8 किर्गिस्तान के प्रांत ओब्लैस्टी किर्गिज़ियन 7 लाओस के प्रांत खोएंग लाओ 16 मेडागास्कर के प्रांत फैरिटैनी 6 मंगोलिया के प्रांत ऐमाग या अय्माग (Аймаг) मंगोलियन 6 मोजाम्बिक के प्रांत प्रोविंसिया पुर्तगाली 10 नीदरलैंड के प्रांत प्रोविंसी डच 12 उत्तर कोरिया के प्रांत करते हैं या करने के लिए (도) कोरियाई 10 ओमान के प्रांत विलाया अरबी अनुचित रूप से 60 पाकिस्तान के प्रांत सूबा ; बहुवचन: सूबाइ उर्दू 5 पनामा के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 9 पापुआ न्यू गिनी के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 19 पेरू के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 195 फिलीपींस के प्रांत लालाविगन या प्रोबिन्स्या फिलिपिनो 80 रवांडा के प्रांत इंटारा फ़्रेंच 5 साओ टोम और प्रिंसिपे के प्रांत प्रोविंसिया पुर्तगाली 2 सऊदी अरब के प्रांत मिन्टाकाह अरबी 13 सिएरा लियोन के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 3 सोलोमन द्वीप के प्रांत 9 दक्षिण अफ्रीका के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 9 दक्षिण कोरिया के प्रांत करते अथवा करने के लिए (도/道) कोरियाई 10 स्पेन के प्रांत प्रोविंसिया स्पैनिश 50 श्रीलंका के प्रान्त 9 ताजिकिस्तान के प्रांत अरबी विलाया से वेलोयाटी ताजिक 3 थाईलैंड के प्रांत चंगवत (จังหวัด) थाई 76 तुर्की के प्रांत इल टर्किश 81 तुर्कमेनिस्तान के प्रांत विलाया से वेलायत (बहुवचन: वेलायतलर) तुर्कमेनी 5 यूक्रेन के प्रांत ओब्लास्ट यूक्रेनी 24 उजबेकिस्तान के प्रांत विलोयत (बहुवचन: विलोयतलर) अरबी से विलाया 12 वानुअतु के प्रांत 6 वियटनाम के प्रांत टिन वियटनामी 58 ज़ाम्बिया के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 9 जिम्बाब्वे के प्रांत प्रोविंस अंग्रेजी 8 ऐतिहासिक प्रान्त प्राचीन, मध्ययुगीन और सामन्ती खलीफा और बाद में सल्तनत: अमीरात देखें खानैत का अर्थ प्रान्त के साथ साथ स्वतन्त्र राज्य भी हो सकता है, क्योंकि दोनों ही एक खान के द्वारा शासित हो सकते हैं। बीजान्टिन साम्राज्य देखें: एक्ज़र्खट, थेमा फ़राओ-शासित मिस्र: देखें नोम (मिस्र) फ्रंकिश (कारोलिंगियन) 'पुनः स्थापित' पवित्र रोमन साम्राज्य: काउंटी और गऊ देखें हैबस्बर्ग क्षेत्रों में, पारम्परिक प्रान्त को आंशिक रूप से 19वीं सदी के ऑस्ट्रिया-हंगरी लैंडर से व्यक्त किया जाता था। मुग़ल साम्राज्य: सुबह ओट्टोमैन साम्राज्य में कई प्रकार के राज्यपाल होते थे (आमतौर से पाशा), परन्तु अधिकांश वाली कहलाते थे, इसीलिए एक मुख्य शब्द विलायत प्रयोग में आया, जो अक्सर एक गवर्नर-जनरल के अधीन बँटा होता था (अधिकांशतः बेयलिक्स अथवा संजक्स), या कभी-कभी जुड़ा भी होता था (जिसे बेयलरबेय कहते थे)। अकेमेनिद फारस (और इससे पहले शायद मीडिया में, फिर से अलेक्जेंडर महान द्वारा विजय और विस्तार के बाद और अपेक्षाकृत बड़े हेलेनिस्टिक उत्तराधिकारी राज्यों में: देखें सत्रापी. *रोमन साम्राज्य प्रान्तों में बँटा था प्रोविन्सिये। काज़ान के तर्तर खनाते में: पाँच दिशायें (daruğa) औपनिवेशिक और पूर्व आधुनिक स्पैनिश साम्राज्य कई स्तरों पर: वाइसराय के शासन का क्षेत्र वाइसरौयल्टी इंटेंडेन्सिया (intendencia) ब्रिटिश उपनिवेश: कनाडा के प्रान्त (1840-1867) भारत के प्रान्त न्यूजीलैंड के प्रान्त (1841-1876) नाइजीरिया के प्रान्त दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई प्रान्त (अब एक ऑस्ट्रेलियाई राज्य) पूर्व में ब्राजील के प्रान्त पूर्व में फ़्रांस के प्रान्त पूर्व में आयरलैंड के प्रान्त पूर्व में जापान के प्रान्त प्रुसिया के प्रान्त, पूर्व जर्मन राजशाही/गणतंत्र का भाग पूर्व में स्वीडेन के प्रान्त पूर्व में गणराज्य के सात संयुक्त प्रान्त (नीदरलैंड) पूर्व में मध्य अमेरिका के संयुक्त प्रान्त पूर्व में रिओ डि ला प्लाटा के संयुक्त प्रान्त इन्हें भी देखें राज्यपाल क्षेत्र प्रान्तीयता क्षेत्रवाद (राजनीति) टिप्पणियाँ सन्दर्भ व्युत्पत्ति ऑनलाइन वर्ल्डस्टेट्समेन बाहरी कड़ियाँ शहर मार्गदर्शन और अधिक के साथ इंटरएक्टिव चीन प्रांत का नक्शा. श्रेणी:प्रांत श्रेणी:प्रशासनिक विभाग
सेनापति (शहर)
https://hi.wikipedia.org/wiki/सेनापति_(शहर)
सेनापति भारत के मणिपुर प्रान्त का एक शहर है। भूगोल इतिहास जनसांख्यिकी यातायात आदर्श स्थल शिक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:मणिपुर श्रेणी:मणिपुर के शहर
चांगलांग
https://hi.wikipedia.org/wiki/चांगलांग
चांगलांग (Changlang) भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के चांगलांग ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग २१५ यहाँ से गुज़रता है। विवरण चांगलांग की खूबसूरती को निहारने के लिए हर वर्ष यहां पर हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। कृषि यहां के लोगों का मुख्य काम-धंधा है। इसी पर इसकी अर्थव्यवस्था भी टिकी हुई है। इसकी अधिकतर जनंसख्या गांवों में वास करती है। यहां के प्रत्येक गांव में अलग-अलग प्रकार से खेती की जाती है। इन गांवों में हर वर्ष अनेक उत्सव भी मनाए जाते हैं। चांगलांग में अनेक जातियां रहती हैं। इनमे तांग्सा, मुकलोम, हावी, लोंगचांग, जुगली, किमसिंग, मुगरी, रोंरांग, मोसोंग और लांगफी प्रमुख हैं। इन जातियों की संस्कृति अलग-अलग और बहुत रंग-बिरंगी है। यहां आने वाले पर्यटकों को इनकी संस्कृति बहुत पसंद आती हैं। यह विविधताओं भरा क्षेत्र है क्योकि यहां कहीं खुले मैदान हैं तो कहीं ऊंचे-ऊंचे पहाड़। इस कारण यहां पर वर्षा भी असमान होती है। संस्कृति चांगलांग में अनेक जातियां रहती हैं। अनेक जातियां होने के कारण इनकी संस्कृति भी अलग-अलग और रंग-बिरंगी हैं। इनमें तांग्सा और तुतसास प्रमुख हैं। यह रंगफराह देवता की पूजा करते हैं। यहां रहने वाली अधिकतर जातियों ने ईसाई और बौद्ध धर्म अपना लिया है। चांगलांग में सबके घर लगभग एक जैसे ही होते हैं। स्थानीय निवासी इन घरों को मचांग पुकारते हैं। यह जमीन से 5-6 फीट की ऊंचाई पर होते है और इनमें केवल एक ही कमरा होता है जिसमें दो चूल्हे होते हैं। यहां के लोगों का मुख्य काम-धंघा कृषि है और इसी से इनकी आजीविका चलती है। स्थानीय निवासी सुअर, बकरी और मुर्गे भी पालते हैं। मुख्य आकर्षण चांगलांग में वर्ष में कई त्यौहार और उत्सव मनाए जाते हैं। स्थानीय लोगों में यह उत्सव बहुत लोकप्रिय हैं। स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक भी इन उत्सवों में भाग ले सकते हैं। इन उत्सवों में पर्यटक चांगलांग की संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं को काफी नजदीक से देख सकते हैं। मोह-मोल उत्सव मोह-मोल उत्सव चांगलांग का प्रसिद्ध उत्सव है। चांगलांग के अधिकतर निवासी कृषि कार्यों से जुडे हुए हैं। यह उत्सव भी कृषि से जुडा हुआ है। इस उत्सव को फसल की बुवाई शुरू होने से पहले मनाया जाता है। स्थानीय निवासी इस उत्सव को बडी धूमधाम से मनाते हैं। इस उत्सव में वह अपने पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहनते हैं और लोकगीत गाते हुए नृत्य करते हैं। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति आकर्षित करना है। चांगलांग के गांवों में विभिन्न प्रकार से खेती की जाती है। इसलिए उत्सव भी अलग-अलग समय पर मनाए जाते हैं। यह सभी उत्सव अप्रैल-जुलाई माह में मनाए जाते हैं। स्थानीय निवासी इन उत्सवों में अपने पूर्वजों को पिंडदान भी करते हैं। अंत में फसल की देवी तुगजा चमजा और सम्पन्नता की देवी नोंग की पूजा की जाती है। पोंगतू कुह यह तुतसास जाति का सबसे पुराना कृषि उत्सव है। इस उत्सव को वर्षा ऋतु में मनाया जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार पोंगतू कुह पोंग तू और कुह से मिलकर बना है। इसका अर्थ होता है वायु, एकांत वास और उत्सव। इस उत्सव का आयोजन बाजरे की फसल की कटाई के बाद किया जाता है। इसमें चांगलांग के सबसे बड़े देवता रंगकठोक की पूजा की जाती है। पूजा करने का सबसे बड़ा कारण है कि रंगकठोक देवता उनकी फसलों की रक्षा करें और संपन्नता दें। इस उत्सव का आयोजन अप्रैल माह में किया जाता है। स्थानीय निवासी इस उत्सव को बडी धूमधाम से मनाते हैं। इस उत्सव में पर्यटक स्थानीय आदिवासियों का नाच-गाना भी देख सकते हैं। शाप्वंग यांग मानु पोई यह शिंगफो गांव का प्रमुख उत्सव है। शिंगफो की संस्कृति बहुत खूबसूरत है और पर्यटकों को बहुत पसंद आती है। शाप्वंग यांग मानु पोई फरवरी माह में मनाया जाता है। इस उत्सव में मुख्य रूप से युवक-युवतियां भाग लेते हैं। वह अपने पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहनकर सुन्दर नृत्य पेश करते हैं। यह नृत्य पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। नाच-गाने के बाद चांगलांग के देवता की पूजा-अर्चना भी की जाती है। वन चांगलांग में अनेक पहाड़ियां हैं और इन पहाड़ियों के वन बहुत ही खूबसूरत हैं। यहां सदाबहार और ऊष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। लेकिन स्थानीय निवासियों ने कृषि कार्यो के लिए बडे़ पैमाने पर वनों को काट दिया। इसके बावजूद पर्यटक यहां पर अनेक खूबसूरत पेड-पौधों और फल-फूलों के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। यहां पर बांस की भी कई प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हैल्लोक, होलोंग, मेकाई, जुतूली, धूना, मिशेलिया चम्पक और बेटुला प्रमुख हैं। इसके अलावा नामदाफ में ब्लु वान्डा भी देखा जा सकता है। यह बांस की लुप्त प्राय: जाति है। वन्य जीवन चांगलांग में अनेक जंगल हैं। इन जंगलों में पर्यटक चांगलांग के वन्य जीवन के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। यहां पर पर्यटक तेंदुआ, हाथी, गौर, साम्भर, मलायन साम्भर, हिरण, भालु और पांडा देख सकते हैं। इन जंगली जानवरों के अलावा पर्यटक यहां पर कई खूबसूरत पक्षियों को भी देख सकते हैं। पक्षियों में पर्यटक मोर, बुलबुल, कठफोड़ा, पेडुकी, बतख और कबूतर देख सकते हैं। सर्दियों में पर्यटक यहां पर प्रवासी पक्षियों को भी देख सकते हैं। इन्हें भी देखें चांगलांग ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:चांगलांग ज़िला श्रेणी:अरुणाचल प्रदेश के नगर श्रेणी:चांगलांग ज़िले के नगर
अंक
https://hi.wikipedia.org/wiki/अंक
right|thumb|400px|हिन्दू-अरबी अंक पद्धति; प्रथम सहस्राब्दी ईसापूर्व के अशोक के शिलालेखों पर इन अंकों का प्रयोग देखने को मिलता है। अंक ऐसे चिह्न हैं जो संख्याओं के लिखने के काम आते हैं। दासमिक पद्धति में शून्य से लेकर नौ तक (० से ९ तक) कुल दस अंक प्रयोग किये जाते हैं। इसी प्रकार षोडश आधारी (hexadecimal system) में शून्य से लेकर ९ तक एवं A से लेकर F कुल १६ अंक प्रयुक्त होते हैं। द्विक पद्धति में केवल ० और १ से ही सारी संख्याएँ अभिव्यक्त की जातीं हैं। हिन्दी भाषा में अंकों एवं बड़ी संख्याओं का उच्चारण नीचे दिया गया है। शून्य ० एक १ दो २ तीन ३ चार ४ पांच ५ छ:/छह ६ सात ७ आठ ८ नौ ९ दश १० अंकों द्वारा लिखीं बड़ी संख्याएँ (दाशमिक पद्धति) ग्यारह ११ बारह १२ तेरह १३ चौदह १४ पंद्रह १५ सोलह १६ सत्रह १७ अठारह १८ उन्नीस १९ बीस २० इक्कीस २१ बाइस २२ तेइस २३ चौबीस २४ पच्चीस २५ छब्बीस २६ सत्ताइस २७ अट्ठाइस २८ उनतीस २९ तीस ३० इक्कतीस ३१ बत्तीस ३२ तैंतीस ३३ चौंतीस ३४ पैंतीस ३५ छत्तीस ३६ सैंतीस ३७ अँड़तीस ३८ उंचालीस ३९ चालीस ४० इकतालीस ४१ बयालीस ४२ तैंतालीस ४३ चौवालिस ४४ पैंतालिस ४५ छयालिस ४६ सैंतालिस ४७ अड़तालीस ४८ उंचास ४९ पचास ५० इक्यावन ५१ बावन ५२ तिरेपन ५३ चौवन ५४ पचपन ५५ छप्पन ५६ सत्तावन ५७ अट्ठावन ५८ उन्सठ ५९ साठ ६० इकसठ ६१ बासठ ६२ तिरेसठ ६३ चौंसठ ६४ पैंसठ ६५ छियासठ ६६ सड़सठ ६७ अड़सठ ६८ उन्नहत्तर ६९ सत्तर ७० इकहत्तर ७१ बहत्तर ७२ तिहत्तर ७३ चौहत्तर ७४ पिचहत्तर ७५ छिहत्तर ७६ सतहत्तर ७७ अठहत्तर ७८ उनासी ७९ अस्सी ८० इक्यासी ८१ बयासी ८२ तिरासी ८३ चौरासी ८४ पिच्चासी ८५ छियासी ८६ सतासी ८७ अठासी ८८ नवासी ८९ नब्बे ९० इक्यानवे ९१ बानवे ९२ तिरानवे ९३ चौरानवे ९४ पिच्चानवे ९५ छियानवे ९६ सत्तानवे ९७ अठानवे ९८ निन्यानवे ९९ (एक) सौ/(एक) शत १०० (एक) हज़ार/(एक) सहस्र १,००० दश हज़ार/दस सहस्र १०,००० (एक) लाख १,००,००० दश लाख १०,००,००० (एक) करोड़ १,००,००,००० दश करोड़ १०,००,००,००० (एक) अरब १,००,००,००,००० दश अरब १०,००,००,००,००० (एक) खरब १,००,००,००,००,००० दश खरब १०,००,००,००,००,००० (एक) नील १,००,००,००,००,००,००० दश नील १०,००,००,००,००,००,००० (एक) पद्म १,००,००,००,००,००,००,००० दश पद्म १०,००,००,००,००,००,००,००० (एक) शंख १,००,००,००,००,००,००,००,००० दश शंख १०,००,००,००,००,००,००,००,००० महाशंख १,००,००,००,००,००,००,००,००,००० श्रेणी:गणित श्रेणी:संख्या
भारतीय खाना
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_खाना
भारतीय भोजन एवं भारतीय खाना अपने भीतर भारत के सभी क्षेत्र, राज्य के अनेक भोजनों का नाम है। जैसे भारत मैं सब कुछ अनेक और विविध है, भारतीय भोजन भी वैैसे ही विविध है। पूरब पश्चिम, उत्तर और दक्षिण भारत का आहार एक दूसरे से थोड़ा बहुत ही अलग है। भारतीय भोजन पर अनेक तत्वों का प्रभाव पड़ा है। सभी क्षेत्रों का खाना दुसरे क्षेत्र से कुुछ-कुुछ अलग हौता है, यह भरतीय भोजन को अपनी एक निराला व अनोखा रूप देती है। पूरन पूरी हो व दाल बाटी, अङ्गारकी/तन्दूरी रोटी हो व राजसी पुलाव, बंंगाली खाना हो व मारवाड़ी खाना, भारतीय भोजन की अपनी एक विशिष्टता है और इसी कारण से आज संसार के सभी बड़े देशों में भारतीय भोजनालय पाये जाते हैं जो कि अत्यन्त लोकप्रिय हैं। विदेशों में प्रायः सप्ताहान्त अथवा अवकाशों पर भोजन के लिये लोग भारतीय भोजनालयों में ही जाने को अधिक अधिमान देते हैं। स्वादिष्ट खाना बनाना एक कला है, इसी कारणवश भारतीय संस्कृति में इसे पाक कला कहा गया है। भारतीय भोजन विभिन्न प्रकार की पाक कलाओं का संगम है। इसमें बंगाली खाना, मारवाड़ी खाना, दक्षिण भारतीय खाना, शाकाहारी खाना, मांसाहारी खाना आदि सभी सम्मिलित हैं। भारतीय "ग्रेव्ही", जिसे करी (कढ़ी), तींवण (तेमन), झोल आदि कहा जाता है, का अपना अलग ही इतिहास है। भारतीय करी का इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। प्राचीन काल में, जब भारत आने के लिये केवल खैबर-दर्रा ही एकमात्र मार्ग था क्योंकि उन दिनों समुद्री मार्ग की खोज भी नहीं हुई थी। उन दिनों में भी यहाँ आने वाले विदेशी व्यापारियों को भारतीय भोजन इतना अधिक भाता था कि वे इसे पकाने की विधि सीख कर जाया करते थे और भारत के मोतियों के साथ ही साथ विश्‍वप्रसिद्ध घर्म सम्बार/मसाला मोल लेकर अपने साथ ले जाना कभी भी नहीं भूलते थे। करी शब्द तमिल के कैकारी, जिसका अर्थ होता है विभिन्न सम्बारों/मसालों के साथ पकाई गई भाजी, से बना है। ब्रिटिश शासनकाल में कैकारी अंग्रेजों को इतना भाया कि उन्होंने उसे काट-छाँट कर छोटा कर दिया और करी बना दिया। आज तो यूरोपियन देशों में करी भारतीय पकवानों का पर्याय बन गया है। सामग्री भारतीय भोजन में बहुत सारे सामग्रीयों का उपयोग होता है, जैसे की दालचीनी, काली मिर्च, लौंग, इलायची का प्रयोग होता है। लहसुन और कान्दे का भी प्रयोग होता है, पर सात्विक भोजन में इनका प्रयोग नहीं होता है। जैन धर्म के अनुयायी जड़ वाले शाक को भी नहीं खाते। ऋतु-अनुकूल सामग्री के प्रयोग को अधिमान दिया जाता है। अलग -अलग प्रकार के दाल का भी उपयोग होता है जैसे मसूर, तूर/अरहर, उड़द, मूँग दाल जैसे भिन्न-भिन्न दालो का प्रयोग होता है। उत्तर भारतीय खाना उत्तर भारत का खाना दक्षिण भारत के खाने समान पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उत्तर भारत गेहूँ और चावल दोनों ही मुख्य अनाज है। इनको छोड़ मोटे अनाज जैसे- बाजरा, ज्वार, जई, मक्की/मकई का भी प्रयोग किया जाता है। नित्य के खाने में भाँति-भाँति की दालें जैसे- उड़द, मूँग, चना, तूवर, मसूर आदि का उपयोग होता है। इन दालों के अतिरिक्त राजमा, छोले/चने, लोबिया पूरे ही उत्तर भारत में बरते जाते है। पर राजमा की सर्वोत्तम उपज जम्मू संभाग में होती है, इसलिए जम्मू राजमा पूरे भारत में प्रसिद्ध है। विभिन्न प्रकार के शाक-फलियाँ नित्य खाई जाती है। रोटियोँ के प्रकार गेहूँ से कई प्रकार की रोटियाँ पूरे ही भारत देश में बनाई जाती है, जैसे- सामान्य रोटी (चपाती/फुल्का), पराँठा, पूरी, सुहारी, लुचुई, भटूरा, बाटी/लिट्टी। इसके अतिरिक्त गेहूँ को दाल व शाक आदि से मिलाकर कई प्रकार के व्यञ्जन बनाये जाते है। जैसे- बेसन और गेहूँ के आटे के मेल से मिस्सी रोटियाँ। भिन्न-भिन्न शाक-भाजियों व छेना/पनीर को पराँठे में भरकर भरवाँ पराँठे बनाये जाते है। दाल को गेहूँ में गूँथ व पिट्ठी के रूप में भरकर दाल पराँठा बनाया जाता है। ऐसे ही दाल को पूरी में भरकर दालपूरी बनती है जो बिहार में बहुत प्रचलित है। इसी प्रकार कड़़े आटे मेें दाल, मटर, आलू भरकर कचौरियाँ बनाई जाती है। शीतकाल में मोटे अनाजों से नाना प्रकार की रोटियाँ जैैैसे- बाजरे की रोटी, मक्की की रोटी आदि बनाई जाती है। इनके अतिरिक्त तन्दूर/भट्ठी में पकी मैदे की रोटी जिसे तन्दूरी रोटी व अङ्गारकी रोटी कहते है। कुछ लोग इसके लिये फ़़ारसी शब्द नान भी उपयोग करते है । नान फ़़ारसी मूल का शब्द जिसका अर्थ रोटी/ब्रेड होता है। इसी प्रकार तन्दूर में पकी किण्वनित रोटी के लिये फ़़ारसी शब्द क़ुल्चा बरतते है। चावल वाले व्यञ्जन गेहूँ और मोटे अनाजों के अतिरिक्त चावल भी नित्य खाये जाते है । चावल से कई ढंग के भात और पुलाव बनाये जाते है जैसे- साधारण भात, जीरा भात, बैंगन भात, मटरों वाले चावल, आदि। उत्तर भारत में मुख्यतः बासमती व परमल चावल का प्रयोग होता है। कई बार दाल और चावल के मेल से खिचड़ी बनाई जाती है। दैनिक खाने में साधारण भात और रोटी को अलग-अलग दालों व शाक-फलियों के साथ खाया जाता है। अत: दाल रोटी और दाल चावल पूरे भारत का मुख्य भोजन है। बहुत बार गुुुड़ और शक्कर को चावल और मेवों के साथ पकाकर मीठा भात बनाया जाता है। चावल को दूध में उबाल कर खीर बनाई बहुत प्रचलित है। खीर के लिये दक्षिण भारत में पायसम् और मुस्लिम घरों में फ़ारसी शब्द फ़िरनी अधिक प्रचलित है। मिष्ठान उत्तर भारत में वही सब मिष्ठान प्रचलित जो पूरे भारत में प्रचलित है जैसे लड्डू, खीर, सेवियाँ, पेड़ा/पिन्नी, जलेबी, अमरती, गुलाब जामुन और लप्सी। thumbnail|जलेबी अल्पाहार उत्तर भारत मेें प्रचलित अल्पाहार: आलू टिक्की, पानी पूरी (गोल गप्पे), बृजवासी चाट पापड़ी, तिकोने (समोसे/ सिंघाड़े पूर्वी भारत में बोलते है)। दही/छाछ से बने व्यञ्जन दही से विविध प्रकार के व्यञ्जन बनते है। दही में वड़े डालकर, नून (लवण), जीरा, काली मिर्च आदि मिलाकर " दही वड़े" बनाए जाते है।इसी प्रकार बेसन की बूँदी डालकर बूँदी रायता बनाया जाता है। भाँति-भाँति के शाक डाल के विभिन्न प्रकार के रायते बनाए जाते है। दही-छाछ को बेसन में मिलाकर और काढ़कर कढ़ी बनती है। यह पूरे भारत में प्रचलित है। इसमें पकौड़े, दाल वड़े, शाक आदि भी डाले जाते है। कढ़ी पकौड़ा का सबसे पहला वर्णन मध्यप्रदेश के उज्जैन के क्षेमकुतूहल नामक ग्रंथ में मिलता है। माँसाहारी व्यञ्जन उत्तर भारत में पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़ माँसाहारी खाने का प्रचलन बहुत नहीं है क्योंकि जितने भी माँसाहारी व्यञ्जन है, उनका छेना (पनीर), खुंब (मशरूम) व सोया के रूप में कोई न कोई वैकल्पिक व्यञ्जन होता है। माँस के लिये मुस्लिम घरों में फ़ारसी शब्द गोश्त व मुर्ग़ और अंग्रेजी में मटन व चिकन शब्द का प्रयोग होता है। thumbnail|माँस मक्खनी (बटर चिकन) उत्तर भारत में कुछ माँसाहारी व्यञ्जन : भुना माँस (चिकन/मटन रोस्ट), तलित माँस (चिकन फ्राई), तन्दूरी माँस (ग्रिल्ड चिकन), माँस मसाला (चिकन/मटन मसाला), हरियाली माँस/ साग माँस (साग गोश्त), और माँस का शोरबा। डंडी पर पकाये माँस के टुकड़ों को टिक्का व शूल्य माँस कहते हैं। इन्हें फ़ारसी में कबाब भी कहते हैं। आधुनिक भारतीय खान-पान आधुनिकता के युग में भारतीय खाने में बहुत से परिवर्तन आ गये है जैसे - सोया और विविध प्रकार की खुम्ब (मशरूम) का प्रयोग। आजकल आलू के स्थान पर छेना (पनीर) को महत्व दिया जाता है। रेस्तरां की रोटियों में आटे के स्थान पर मैदा का उपयोग किया जाता है। यूरोपीय खाने के प्रभाव से आजकल प्रत्येक व्यञ्जन में टमाटर का "प्यूरी" डाला जाता है। पारम्परिक घी के स्थान पर मक्खन का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं दो नये परिवर्तनों से आधुनिक व्यञ्जन जैसे पाव भाजी (बची कुची भाजी को मक्खन टमाटर प्यूरी में पकाकर), दाल मक्खनी (उड़द दाल को मक्खन टमाटर प्यूरी में पकाकर), बटर चिकन ( ग्रिल्ड चिकन को मक्खन टमाटर प्यूरी में पकाकर), बटर पनीर (पनीर को मक्खन टमाटर प्यूरी में पकाकर) बनाए जाते है। यह सभी व्यञ्जन परम्परागत नहीं और ना ही किसी प्रान्त से सम्बन्धित है। यह सभी व्यञ्जन आधुनिकता के युग में रेस्तरां में पनपे। वास्तव में इन में से कोई भी व्यञ्जन आविष्कार नहीं है, केवल वयञ्जनों को प्रस्तुत करने का एक ढंग है। उत्तर भारतीय खाना कश्मीर, जम्मू (डोगरा), हिमाचल (डोगरा), पंजाब, उत्तर प्रदेश (ब्रज, कौरवी, अवधी, बुन्देली, भोजपुरी) हरियाणा, राजस्थान (मारवाड़ी, बीकानेरी, मेवाड़ी), मध्य प्रदेश ( बुन्देली, निमाड़ी, मालवी) उत्तराखण्ड (कुमाऊँनी, गढ़वाली, जौनसारी) जैसे राज्यों को अपने अन्दर लेता है। उत्तर भारतीय भोजन- अवधी व्यंजन बिहारी व्यंजन भोजपुरी व्यंजन कुमाऊँनी व्यंजन कश्मीर का भोजन डोगरी व्यञ्जन और पाक कला पंजाबी व्यंजन उत्तर प्रदेश के भोजन कश्मीरी खाना कश्मीरी खाना इस क्षेत्र की प्राचीन परम्परा पर आधारित है। इस क्षेत्र में प्रसिद्ध सामग्री माँस है। इस क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यञ्जन है - दम आलू; रोगन ज़ोश एक माँस आधारित पकवान है। इस पकवान में बहुत सारा तेल का उपयोग होत है, इसे तीव्र गर्मी पर पकाया जाता है। इस पकवान के मुख्य सामग्री है- कश्मीरी लाल मिर्च, माँस, दही, सोंठ आदि का प्रयोग होता है। विभिन्न प्रकार के साग जिन्हें कश्मीरी में हाक कहते हैं भी बनाये जाते है। डोगरा खाना डोगरा खाना मुख्यतः जम्मू में बनाया जाता है। निचले हिमाचल का खाना भी इससे मिलता जुलता है। जम्मू के पहाड़ी क्षेत्रों में उपजे राजमाँह अपने स्वाद के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। वहीं जम्मू के कण्डी क्षेत्रों का रणबीर बासमती अपनी सुगन्ध और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इन्हीं राजमाँह चावल को जम्मू के स्थानिय टिम्बरू और दड़ूनी (अनारदाना) की चटनी साथ परोसा जाता है। डोगरा खाने का मुख्य अङ्ग है मन्दिरों की धाम (सदाव्रत) परम्परा । मन्दिर की धाम में काशीफल का अम्बल एक प्रमुख व्यञ्जन है। यह दाल-भात सङ्ग परोसा जाता है। धाम में विभिन्न प्रकार के मद्धरे जिनमें मुख्यतः दाल मद्धरा (माँह की दाल से बनता है) और रौङ्गी मद्धरा होते है। सरसों और दही से आलू का औहरिया भी बनाया जाता है। मिट्ठा भत्त, मिट्ठा मद्धरा, बब्बरू, रूट्ट, सीरि पलाऽ धाम के मीठे व्यञ्जन है। right|thumb|300px|पारम्परिक डोगरी धाम का भोजन विवाह पर्व में घ्यूर, चरोलियाँ, सस्सरूट्ट, गुलरा आदि बनता है। शीतकाल में रेढ़ू, ढोडे, भाँति-भाँति के साग बनते है। वहीं ग्रीष्म काल में मिर्च से सलाटू मद्धरा और कच्चे आम से म्हाणी बनता है। अल्पाहार में लखनपुरी भल्ले/लड्डू , आलू दबारे, नंदरू पकौड़े, बेथ (पत्रौड़ू) आदि खाये जाते है। यहाँ का स्थानीय आमिक्षा (cheese) जिसे कलाड़ी कहते है, बहुत ही लोकप्रिय है। जो भी जम्मू आता है यहाँ कलाड़ी कुल्चा और कलाड़ी पराँठे अवश्य चखता है। इसके अतिरिक्त यहाँ विश्व की सबसे महँगी खुम्ब (मशरूम) : गुच्छी से पुलाव बनाया जाता है। कसरोड़ और ढिंगरी खुम्ब से भी कई प्रकार के अचार और स्लूणे बनते है। पंजाबी खाना यह अपने मसालो व पकवानो के रंगो के लिए प्रसिद्ध है। पंजाबी खाना न केवल भारत मै, पर पुरी दुनीया बहुत जाना माना है। पंजाबी खाने मैं घी, दही, मक्खन, पूरी गेहूं का उपयोग होता है। पंजाबी खाने के मसाला ज्यादा तर अदरक -लहसुन प्याज का अप्रमाद होता है। हम सर्सोन का साग पंजाबी खाने के माशुर खान है। तंदूरी खाना यहाँ की विशेषता है। विशिष्ट व्यंजन पल्स, सेम और / या मसूर की तैयारी: सरसों दा साग (हरे सरसों के पत्तों से तैयार एक डिश) और मक्की दी रोटी, मकई का आटा द्वारा किए गए एक रोटी के साथ मशरूम और सेम सब्जी छोले (नान या कुल्छा के साथ खाया) आलू (पुरी के साथ खाया) दक्षिण भारतीय खान दक्षिण भारतीय खाना भारत के द्रविड़ राज्यों के खाने को कहा जाता है। इसमें मुख्यतः तमिल नाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल राज्य गिने जाते है। प्रसिद्ध पकवाने है- पेरुगु पुरी, इडली, डोसा, सांभर, पोंगल आदि। यहाँ का प्रमुख भोजन चावल है। नारियल, इमली, हरी मिर्च का प्रयोग होता है। प्रकार right|thumb|300px|तमिलनाडु का शाकाहारी भोजन प्रायः केले के पत्ते पर परोसा जाता है। तमिल खाना तमिल खाना मैं चावल, फलियां और मसूर की दाल का प्रयोग होता है। अपनी विशिष्ट सुगंध और स्वाद करी पत्ते, सरसों के बीज, धनिया, अदरक, लहसुन, मिर्च, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, हरी इलायची, जीरा, जायफल, नारियल और गुलाब जल हर एक पकवान को सुगंधित और स्वादिष्ट बनाते है। चेट्टीनाद व्यंजन पूरे दुनीया मैं प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध खान है- मीन कोज़हमबु, पोलि, पोगल, इड्डीअपम, इडली, रस्म, पारुपु डोसा। मलयाली खाना मलयाली खाना बहुत विविध है। शाकाहारी व मांसाहरी पकवाने यहाँ मिलती है। प्रसिद्ध पकवान है-पुटू, आपम, इडीआपम, अवीयल, अलग- अलग प्रकार के मछली करी, मालाबार बिरयानी, पेडी, चिकन स्टू, पायसम। मलयाली खाने मैं केरल (चोर) चावल पसंद करते हैं। यहाँ का सबसे प्रसिद्ध पकवान सादया है। कन्नड़ खाना केरला के पकवान के तरह हि कन्नड़ पकवान मैं शाकाहारी व मांसाहरी पकवाने मिलती है। दक्षिण राज्यों का प्रभाव कन्नड़ खाने पर बहुत पड़ा है। प्रसिद्ध पकवान है - कोसमबारी, बिसी बेले बाथ, अक्कि रोटी, रागी मुद्दे, कायी चटनी, नुपुत्तु, टमाटर बाथ, मैसूर पाक, पानदि करी, अलग- अलग प्रकार के अचार। उडुपी व्यंजन पूरे राज्य व दुनीया मैं प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश का खाना आंध्र खाना अपने नोंकदार, मसालेदार खाने के लिए जाना जाता है। दल, टमाटर और इमली इनके प्रमुक सामग्रीया है। प्रसिद्ध पकवान है- पेरुगु पुरी, पाचहि पुलुसु, बदाम हलवा, बिरयानी। इस राज्य के अन्दर बहुत सारे व्यंजन मिलेगे जैसे- हैदराबादी व्यंजन तेलंगाना के खान- पान रायलसीमा के खान- पान हर एक व्यंजन अपनी विशेषता बानाए रकता है। पश्चिम भारतीय खाना thumbnail|खान्डवी thumbnail|ढोकला गुजराती खाना गुजराती खाना मैं लग-भग सारे पकवान शाकाहारी है। गुजराती खाने एक साथ मीठे, नमकीन वह मसालेदार होते है। प्रधान पकवान खिचड़ी, अचार, छाछ है। प्रसिद्ध खाने है- ब्रेड/रोटी- पूरन पोली, थेपला, पोडा, बाकरी। चावल-खिचड़ी, पुलाव, खट्टे और मीठे चावल सब्जी-कढ़ी, सेव टमेटा, उन्धियो। साइड डिश/फारस्न- पकोड़ा, ढोकला, बटाका पौंआ, हांडवो, दाळ ठोकळी, दही वड़ा, कहान्डवी, कच्होरी, सेव, मालपुआ। राजस्थानी खाना दाल बाटी, चूरमा, वैसे तो दाल बाटी एक राजस्थानी व्यंजन है, किन्तु आजकल यह संपूर्ण भारत में पसंद की जाने लगी है। राजस्थान में छुट्टी हो या घर में मेहमान आए हों, बारिश ने दस्तक दी हो या कोई भी मंगल त्यौहार हो, दाल बाटी का कोई विकल्प नहीं। राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल की सब्जी (कैर सांगरी) के बारे में तो यहाँ तक कहा गया है कि- " कैर, कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर | तीनूं लोकां नह मिलै, तरसै देव अखीर ॥ " कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर, बेर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है इनके स्वाद के लिए तो देवता भी तरसतें रहते है। मराठी खाना पुरण पोळी, आंबट वरण, पुरण पोळी महाराष्ट्र का सांस्क्रुतिक मिष्टान्न हैं। हर मंगल प्रसंग पुरण पोळी के बिना अधुरा हैं। चनेकी दाल, गुड और गेंहुका आटा ये पुरण पोळी बनानेकी सामग्री हैं। चनेकी दाल उबालके गुडके साथ मिलाके पिस ले। फिर ये मिश्रण परोंठेके तरह गुंदेहुए आटेंमें भरके सेंक ले।इसके अलावा झुणका भाकरी यह महाराष्ट्र का प्रसिद्ध और लोकप्रिय ख़ाना है जो लोग बहोत पसंद करते है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में मुबई का वडापाव बहुत पसंद किया जाता है। पूर्व भारतीय खाना right|thumb|300px|बंगाल का सम्पूर्ण भोजन बंगाली खाना मैथिल खाना डालना,माछ भात,बओरी,मखानक खीर,सक्रोरी,दहीमाछ, दही चुरा, तिलकोर उत्तर पूर्व का खाना मोमो, थुपका, तुंगतप, आंरी पारम्परिक क्षेत्रीय खनपान कश्मीरी यखनी कश्मीरी पुलाव गुश्तावा डोगरी राजमा चावल काशीफल का अम्बल दाल मद्धरा रौंगी मद्धरा औहरिया आलू टिम्बरू चटनी कलाड़ी कुल्चा सरियाँ का साग रेढ़ू ढोडा खमीरे-भट्ठोरू कत्तरैड़ आसरा कसरोड़ गुच्छी पुलाव घ्यूर गुलरा पत्त्रोड़ू पंजाबी तंदूरी चिकन सरसों का साग मक्खदाल नी छोले भटूरे अवधी खाना दम पुख्त बिरयानी काकोरी कबाब शामी कबाब मलाई गिलौरी राजस्थानी दाल बाटी चूरमा लापसी घेवर कैर की सब्जी कड़ी मावा कचौरी गट्टे की सब्जी हल्दी की सब्जी मंगोड़ी और पिथोड़ी की सब्जी मूंग दाल, आटे और सिंगोड़े का हलवा गुंद के लड्डू पंचमेल सब्जी सांगरी की सब्जी कुमटिया की सब्जी गुजराती ढोकला खांडवी लापसी बाफला थेपला भाखरी श्रीखण्ड खमण उधिया फाफडा गोटा महाराष्ट्री वड़ा पाव श्रीखंड भेलपूरी पुरण पोळी झुणका भाकर गुर्जर वाल भाजी गुर्जरोयनी वरण बट्टी गुर्जरी सफेद कढ़ी गुर्जरी वाल ना दाना अनं वांगु गुर्जरी तोर ना दाना अनं वांगु गुर्जरी वांगा नी घोटेल भाजी गुर्जरी सग्गा वांगा गुर्जरी पातोडे नी भाजी गुर्जर दराबा ना लाडू कोंकणी/गोआनी धनसाक विंडालू केरल अप्पम अवियल फिश मोली दक्षिण भारतीय इडली सांभर मैसूर पाक हैदराबादी 300px|thumb|right|प्रमुख अवसरों पर परोसा जाने वाला आन्ध्र प्रदेश का पारम्परिक शाकाहारी भोजन हैदराबादी बिरयानी हलीम दाल गोश्त पूर्वी right|thumb|300px|असम की थाली भाप्पा इलिश माछ झोल रॉसोगुल्ला संदेश (मिठाई) पूर्वोत्तर मोमो थुपका फिश टेंगा इन्हें भी देखें All indian foods recipes in hindi मिठाई चित्रदालन बाहरी कड़ियाँ भारतीय व्यंजन सन्दर्भ श्रेणी:भारतीय खाना श्रेणी:खान पान
भारतीय पोशाक
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_पोशाक
धोती कुर्ता शेरवानी साड़ी दुपट्टा सलवार लहँगा श्रेणी:भारतीय पहनावा
पोशाक
https://hi.wikipedia.org/wiki/पोशाक
REDIRECTवेशभूषा
कपड़े
https://hi.wikipedia.org/wiki/कपड़े
REDIRECT परिधान
भूटान
https://hi.wikipedia.org/wiki/भूटान
भूटान का राजतंत्र (भोटान्त) हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है। यह चीन (तिब्बत) और भारत के बीच स्थित भूमि आबद्ध देश है। इस देश का स्थानीय नाम ड्रुग युल है, जिसका अर्थ होता है अझ़दहा का देश। यह देश मुख्यतः पहाड़ी है और केवल दक्षिणी भाग में थोड़ी सी समतल भूमि है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से तिब्बत से जुड़ा है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर वर्तमान में यह देश भारत के करीब हैतथा भारत के परम् -मित्रों में से एक है। भूटान का धरातल विश्व के सबसे ऊबड़ खाबड़ धरातलों में से एक है, जो 100 किमी की दूरी के बीच में 150 से 7000मी की ऊँचाई पायी जाती है ! भूटान पहले भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा मालदीव से कोई प्रवेश कर नहीं लेता था, पर अब लेना शुरू कर दिया है। नाम कुछ लोगों के अनुसार भूटान संस्कृत के भू-उत्थान से बना शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ऊंची भूमि. कुछ के अनुसार यह भोट-अन्त (भोटान्त) (यानि तिब्बत का अन्त) का बिगड़ा रूप है। यहां के निवासी भूटान को ड्रुग-युल (अझ़दहा का देश) तथा इसके निवासियों को ड्रुगपा कहते हैं। इसके अलावा भी भूटान के कई नाम रहे हैं पूर्व में। इतिहास सत्रहवीं सदी के अंत में भूटान ने बौद्ध धर्म को अंगीकार किया। 1865 में ब्रिटेन और भूटान के बीच सिनचुलु संधि पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके तहत भूटान को सीमावर्ती कुछ भूभाग के बदले कुछ वार्षिक अनुदान के करार किए गए। ब्रिटिश प्रभाव के तहत 1907 में वहाँ राजशाही की स्थापना हुई। तीन साल बाद एक और समझौता हुआ, जिसके तहत ब्रिटिश इस बात पर राजी हुए कि वे भूटान के आंतरिक मामलों में हस्त्क्षेप नहीं करेंगे लेकिन भूटान की विदेश नीति इंग्लैंड द्वारा तय की जाएगी। बाद में 1947 के पश्चात यही भूमिका भारत को मिली। दो साल बाद 1949 में भारत भूटान समझौते के तहत भारत ने भूटान की वो सारी जमीन उसे लौटा दी जो अंग्रेजों के अधीन थी। इस समझौते के तहत भारत का भूटान की विदेश नीति एवं रक्षा नीति में काफी महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। राजनीति thumb|200px|भूटान की राजनीति का केंद्र शोगडू भूटान का राजप्रमुख राजा अर्थात द्रुक ग्यालपो होता है, जो वर्तमान में जिग्मे खेसर नामग्याल वांग्चुक हैं। हालांकि यह पद वंशानुगत है लेकिन भूटान के संसद शोगडू के दो तिहाई बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। शोगडू में 154 सीटे होते हैं, जिसमे स्थानीय रूप से चुने गए प्रतिनिधि (105), धार्मिक प्रतिनिधि (12) और राजा द्वारा नामांकित प्रतिनिधि (37) और इन सभी का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है। राजा की कार्यकारी शक्तियाँ शोगडू के माध्यम से चुने गए मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं। मंत्रिपरिषद के सदस्यों का चुनाव राजा करता है और इनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। सरकार की नीतियों का निर्धारण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि इससे पारंपरिक संस्कृति और मूल्यों का संरक्षण हो सके। हालांकि भूटान में रहने वाले नेपाली मूल के अल्पसंख्यक समुदायों में कुछ असंतोष है, जो अपनी संस्कृति पर भूटानी संस्कृति लादे जाने के खिलाफ हैं। इस व्यवस्था का विरोध करने वाले नेपाली भूटानी नेपाल तथा भारत के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थी बनने को विवश हैं। पूर्वी नेपाल में करीब एक लाख से ज्यादा व भारत में ३० हजार के करीब भूटानी नेपाली शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। उनकी देखभाल शरणार्थी संबंधी राष्ट्रसंघीय उच्चायुक्त से मिलकर नेपाल सरकार कर रही है। जिले भूटान बीस जिलों (ज़ोंगखाग) में विभाजित है। बुमथङ छुखा दगाना गासा हा ल्हुनचे मोंगार पारो पद्म गछाल पुनाखा जिला समड्रुब जोङखर सम्चे सरपङ थिम्फू जिला ट्राशीगङ ट्राशी याङचे ट्रोङसा शिरांग वाङदुस फोड्रङ शेमगङ </div> भूगोल thumb|right|200px|भूटान का उपग्रह द्वारा लिया गया। चित्र में उत्तर की और हिमालय की बर्फीली चोटियां तथा दक्षिण की ओर ब्रह्मपुत्र का मैदान नजर आ रहा है। भूटान चारों तरफ से स्थल से घिरा हुआ पर्वतीय क्षेत्र है। उत्तर में पर्वतों की चोटियाँ कहीं-कहीं 7000 मीटर से भी ऊँची हैं, सबसे ऊँची चोटी कुला कांगरी जो 7553 मीटर है। गांगखर पुएनसुम की ऊँचाई 6896 मीटर है, जिस पर अभी तक मानवों के कदम नहीं पहुँचे हैं। देश का दक्षिणी हिस्सा अपेक्षाकृत कम ऊँचा है और यहाँ कई उपजाऊ और सघन घाटियाँ हैं, जो ब्रह्मपुत्र की घाटी से मिलती है। देश का लगभग 70% हिस्सा वनों से आच्छादित है। देश की ज्यादातर आबादी देश के मध्यवर्ती हिस्सों में रहती है। देश का सबसे बड़ा शहर, राजधानी थिम्फू है, जिसकी आबादी 50,000 है, जो देश के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। यहाँ की जलवायु मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय है। अर्थव्यवस्था thumb|200px|भूटान में हिमालय की ऊंची पर्वतमाला से घिरे ग्लेशियर हैं। विश्व के सबसे छोटी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भूटान का आर्थिक ढाँचा मुख्य रूप से कृषि और वन क्षेत्रों और अपने यहाँ निर्मित पनबिजली के भारत को विक्रय पर निर्भर है। ऐसा माना जाता है कि इन तीन चीजों से भूटान की सरकारी आय का 75% आता है। कृषि जो यहाँ के लोगों का आधार है, इस पर 90% से ज्यादा लोग निर्भर हैं। भूटान का मुख्य आर्थिक सहयोगी भारत हैं क्योंकि तिब्बत से लगने वाली भूटान की सीमा बंद है। भूटान की मुद्रा ङुल्ट्रम है, जिसका भारतीय रुपया से आसानी से विनिमय किया जा सकता है। औद्योगिक उत्पादन लगभग नगण्य है और जो कुछ भी है, वे कुटीर उद्योग की श्रेणी में आते हैं। ज्यादातर विकास परियोजनाएँ जैसे सड़कों का विकास इत्यादि भारतीय सहयोग से ही होता है। भूटान की पनबिजली और पर्यटन के क्षेत्र में असीमित संभावनाएँ हैं। लोग एवं धर्म भूटान की लगभग आधी आबादी भूटान के मूलनिवासी हैं, जिन्हें गांलोप कहा जाता है और इनका निकट का संबंध तिब्बत की कुछ प्रजातियों से है। इसके अलावा अन्य प्रजातियों में नेपाली है और इनका सम्बन्ध नेपाल राज्य से है। उसके बाद शरछोगपा और ल्होछमपा हैं। यहाँ की आधिकारिक भाषा जोङखा है, इसके साथ ही यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर हैं। भूटान में आधिकारिक धर्म बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा है, जिसका अनुपालन देश की लगभग ७५% जनता करती है। भूटान की अतिरिक्त २५ प्रतिशत जनसंख्या हिंदू धर्म की अनुयायी है। भूटान के हिंदू धर्मी नेपाली मूल के लोग है, जिन्हे ल्होछमपा भी कहा जाता है। भूटान, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भारत के सर्वाधिक करीब है। संस्कृति भूटान दुनिया के उन कुछ देशों में है, जो खुद को शेष संसार से अलग-थलग रखता चला आ रहा है और आज भी काफी हद तक यहाँ विदेशियों का प्रवेश नियंत्रित है। देश की ज्यादातर आबादी छोटे गाँव में रहते हैं और कृषि पर निर्भर हैं। शहरीकरण धीरे-धीरे अपने पाँव जमा रहा है। बौद्ध विचार यहाँ की ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं। तीरंदाजी यहाँ का राष्ट्रीय खेल है। यह भी देखिए भूटान का इतिहास भूटान में यातायात भूटान की सेना थिम्पू जोङखा (भूटान की भाषा) wikt:भूटान (विक्षनरी) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भूटान पर्यटन श्रेणी:हिमालय श्रेणी:राजतंत्र श्रेणी:एशिया के देश श्रेणी:दक्षिण जंबुद्वीप श्रेणी:जंबुद्वीप श्रेणी:दक्षिण एशिया के देश श्रेणी:स्थलरुद्ध देश
पारो
https://hi.wikipedia.org/wiki/पारो
देवदास पारो: बांग्ला उपन्यास देवदास की एक पात्रा। पारो-भूटान: भूटान की राजधानी है।
चैत
https://hi.wikipedia.org/wiki/चैत
REDIRECT चैत्र
अमिताभ बच्चन
https://hi.wikipedia.org/wiki/अमिताभ_बच्चन
bio बच्चन (जन्म-11 अक्टूबर, 1942) भारतीय फिल्म जगत बॉलीवुड के अभिनेता और प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के सुपुत्र हैं। 1970 के दशक के दौरान उन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की और तब से भारतीय सिनेमा के इतिहास में प्रमुख व्यक्तित्व बन गए। अमिताभ ने अपने करियर में अनेक पुरस्कार जीते हैं, जिनमें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और बारह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार सम्मिलित हैं। उनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फ़िल्मफेयर अवार्ड का रिकार्ड है। अभिनय के अलावा बच्चन ने पार्श्वगायक, फ़िल्म निर्माता, टीवी प्रस्तोता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में 1984 से 1987 तक भूमिका निभाई है। भारतीय टीवी का लोकप्रिय शो "कौन बनेगा करोड़पति" में कई वर्षों से मेज़बान की भूमिका भी ये निभाते आए हैं। इस शो में उनके द्वारा किया गया 'देवियों और सज्जनों' संबोधन बहुचर्चित रहा। अमिताभ बच्चन का विवाह अभिनेत्री जया भादुड़ी से हुआ और इनकी दो संतानें हैं, श्वेता नंदा और अभिषेक बच्चन। अभिषेक बच्चन सुप्रसिद्ध अभिनेता हैं, जिनका विवाह पूर्व विश्वसुन्दरी और अभिनेत्री ऐश्वर्या राय से हुआ है। बच्चन पोलियो उन्मूलन अभियान के बाद अब तंबाकू निषेध परियोजना पर काम करेंगे। अमिताभ बच्चन को अप्रैल 2005 में एचआईवी/एड्स और पोलियो उन्मूलन अभियान के लिए यूनिसेफ के द्वारा सद्भावना राजदूत नियुक्त किया गया था। आरंभिक जीवन इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, कायस्थ परिवार में जन्मे अमिताभ बच्चन के पिता, डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन प्रसिद्ध हिन्दी कवि थे, जबकि उनकी माँ तेजी बच्चन अविभाजित भारत के कराची शहर से सम्बन्ध रखती थीं जो कि अब पाकिस्तान में है। आरंभ में अमित जी का नाम इंकलाब रखा गया था जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयोग किए गए प्रेरक वाक्यांश 'इंकलाब जिंदाबाद' से लिया गया था। लेकिन बाद में प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने इनका नाम 'अमिताभ' रखा। 'अमिताभ' का अर्थ है, "शाश्वत प्रकाश"। यद्यपि इनका उपनाम श्रीवास्तव था व वह कायस्थ जाति से सम्बन्ध रखते हैं फिर भी इनके पिता ने इस उपनाम को अपने कृतियों को प्रकाशित करने वाले बच्चन नाम से उद्धृत किया। यह उनका उपनाम ही है जिसके साथ उन्होंने फ़िल्मों में एवं सभी सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किया। अब यह उनके परिवार के समस्त सदस्यों का उपनाम बन गया है। अमिताभ, हरिवंश राय बच्चन के दो बेटों में सबसे बड़े हैं। उनके दूसरे बेटे का नाम अजिताभ है। इनकी माता तेजी बच्चन की थिएटर में गहरी रुचि थी और उन्हें फ़िल्म में रोल की पेशकश भी की गई थी किंतु इन्होंने गृहिणी बनना ही पसंद किया। अमिताभ के करियर के चुनाव में इनकी माता का भी कुछ योगदान था क्योंकि वे हमेशा इस बात पर भी जोर देती थी कि उन्हें सेंटर स्टेज को अपना करियर बनाना चाहिए। बच्चन के पिता का देहांत २००३ में हो गया था जबकि उनकी माता की मृत्यु २१ दिसंबर २००७ को हुई थीं। बच्चन ने दो बार एम. ए. की उपाधि ग्रहण की है। मास्टर ऑफ आर्ट्स (स्नातकोत्तर) इन्होंने इलाहाबाद के ज्ञान प्रबोधिनी और बॉयज़ हाई स्कूल (बीएचएस) तथा उसके बाद नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ाई की जहाँ कला संकाय में प्रवेश दिलाया गया। अमिताभ बाद में अध्ययन करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज चले गए जहां इन्होंने विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपनी आयु के २० के दशक में बच्चन ने अभिनय में अपना कैरियर आजमाने के लिए कोलकता की एक शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी में किराया ब्रोकर की नौकरी छोड़ दी। ३ जून, १९७३ को इन्होंने बंगाली संस्कार के अनुसार अभिनेत्री जया भादुड़ी से विवाह कर लिया। इस दंपती को दो बच्चों: बेटी श्वेता और पुत्र अभिषेक पैदा हुए। कैरियर आरंभिक कार्य 1969 -1972 right|thumb|200px|युवा अमिताभ अमिताभ ने फ़िल्मों में अपने कैरियर की शुरुआत ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी फिल्म सात हिन्दुस्तानी के सात कलाकारों में एक कलाकार के रूप में की, उत्पल दत्त, मधु और जलाल आगा जैसे कलाकारों के साथ अभिनय कर के। फ़िल्म ने वित्तीय सफ़लता प्राप्त नहीं की पर बच्चन ने अपनी पहली फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ नवागंतुक का पुरूस्कार जीता।इस सफल व्यावसायिक और समीक्षित फ़िल्म के बाद उनकी एक और आनंद (१९७१) नामक फ़िल्म आई जिसमें उन्होंने उस समय के लोकप्रिय कलाकार राजेश खन्ना के साथ काम किया। डॉ॰ भास्कर बनर्जी की भूमिका करने वाले बच्चन ने कैंसर के एक रोगी का उपचार किया जिसमें उनके पास जीवन के प्रति वेबकूफी और देश की वास्तविकता के प्रति उसके दृष्टिकोण के कारण उसे अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद अमिताभ ने (१९७१) में बनी परवाना में एक मायूस प्रेमी की भूमिका निभाई जिसमें इसके साथी कलाकारों में नवीन निश्चल, योगिता बाली और ओम प्रकाश थे और इन्हें खलनायक के रूप में फ़िल्माना अपने आप में बहुत कम देखने को मिलने जैसी भूमिका थी। इसके बाद उनकी कई फ़िल्में आई जो बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं हो पाई जिनमें रेशमा और शेरा भी शामिल थी और उन दिनों इन्होंने गुड्डी फ़िल्म में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई थी। इनके साथ इनकी पत्नी जया भादुड़ी के साथ धर्मेन्द्र भी थे। अपनी जबरदस्त आवाज के लिए जाने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने कैरियर के प्रारंभ में ही उन्होंने बावर्ची फ़िल्म के कुछ भाग का बाद में वर्णन किया। १९७२ में निर्देशित एस. रामनाथन द्वारा निर्देशित कॉमेडी फ़िल्म बॉम्बे टू गोवा में भूमिका निभाई। इन्होंने अरुणा ईरानी, महमूद, अनवर अली और नासिर हुसैन जैसे कलाकारों के साथ कार्य किया है। अपने संघर्ष के दिनों में वे ७ (सात) वर्ष की लंबी अवधि तक अभिनेता, निर्देशक एवं हास्य अभिनय के बादशाह महमूद साहब के घर में रूके रहे। स्टारडम की ओर उत्थान 1973 -1983 १९७३ में जब प्रकाश मेहरा ने इन्हें अपनी फ़िल्म ज़ंजीर (१९७३) में इंस्पेक्टर विजय खन्ना की भूमिका के रूप में अवसर दिया तो यहीं से इनके कैरियर में प्रगति का नया मोड़ आया। यह फ़िल्म इससे पूर्व के रोमांस भरे सार के प्रति कटाक्ष था जिसने अमिताभ बच्चन को एक नई भूमिका एंग्री यंगमैन में देखा जो बॉलीवुड के एक्शन हीरो बन गए थे, यही वह प्रतिष्‍ठा थी जिसे बाद में इन्हें अपनी फ़िल्मों में हासिल करते हुए उसका अनुसरण करना था। बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाने वाले एक जबरदस्त अभिनेता के रूप में यह उनकी पहली फ़िल्म थी, जिसने उन्हें सर्वश्रेष्‍ठ पुरूष कलाकार फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए मनोनीत करवाया। १९७३ ही वह साल था जब इन्होंने ३ जून को जया से विवाह किया और इसी समय ये दोनों न केवल जंजीर में बल्कि एक साथ कई फ़िल्मों में दिखाई दिए जैसे अभिमान जो इनकी शादी के केवल एक मास बाद ही रिलीज़ हो गई थी। बाद में हृषिकेश मुखर्जी के निदेर्शन तथा बीरेश चटर्जी द्वारा लिखित नमक हराम फ़िल्म में विक्रम की भूमिका मिली जिसमें दोस्ती के सार को प्रदर्शित किया गया था। राजेश खन्ना और रेखा के विपरीत इनकी सहायक भूमिका में इन्हें बेहद सराहा गया और इन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। १९७४ की सबसे बड़ी फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान में सहायक कलाकार की भूमिका करने के बाद बच्चन ने बहुत सी फ़िल्मों में कई बार मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई जैसे कुँवारा बाप और दोस्त। मनोज कुमार द्वारा निदेशित और लिखित फ़िल्म जिसमें दमन और वित्तीय एवं भावनात्मक संघर्षों के समक्ष भी ईमानदारी का चित्रण किया गया था, वास्तव में आलोचकों एवं व्यापार की दृष्टि से एक सफल फ़िल्म थी और इसमें सह कलाकार की भूमिका में अमिताभ के साथी के रूप में मनोज कुमार स्वयं और शशि कपूर एवं जीनत अमान थीं। बच्चन ने ६ दिसंबर १९७४ की बॉलीवुड की फ़िल्में|१९७४ को रिलीज़ मजबूर फ़िल्म में अग्रणी भूमिका निभाई यह फ़िल्म हालीवुड फ़िल्म जिगजेग की नकल कर बनाई थी जिसमें जॉर्ज कैनेडी अभिनेता थे, किंतु बॉक्स ऑफिसबॉक्स ऑफिस भारत. पर यह कुछ खास नहीं कर सकी और १९७५ में इन्होंने हास्य फ़िल्म चुपके चुपके, से लेकर अपराध पर बनी फ़िल्म फ़रार और रोमांस फ़िल्म मिली में अपने अभिनय के जौहर दिखाए। तथापि, १९७५ का वर्ष ऐसा वर्ष था जिसमें इन्होंने दो फ़िल्मों में भूमिकाएं की और जिन्हें हिंदी सिनेमा जगत में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इन्होंने यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फ़िल्म दीवार में मुख्‍य कलाकार की भूमिका की जिसमें इनके साथ शशि कपूर, निरूपा रॉय और नीतू सिंह थीं और इस फ़िल्म ने इन्हें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिलवाया। १९७५ में यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रहकर चौथे स्थान पर रही और इंडियाटाइम्स की मूवियों में बॉलीवुड की हर हाल में देखने योग्य शीर्ष २५ फिल्मों में भी नाम आया। १५ अगस्त, १९७५ को रिलीज़ शोले है और भारत में किसी भी समय की सबसे ज्यादा आय अर्जित करने वाली फिल्‍म बन गई है जिसने २,३६,४५,००,००० रू० कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद ६० मिलियन अमरीकी डालर के बराबर हैं। बच्चन ने इंडस्ट्री के कुछ शीर्ष के कलाकारों जैसे धर्मेन्‍द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया बच्चन और अमज़द ख़ान के साथ जयदेव की भूमिका अदा की थी। १९९९ में बीबीसी इंडिया ने इस फ़िल्म को शताब्दी की फ़िल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडियाटाइम्‍ज़ मूवियों में बालीवुड की शीर्ष २५ फिल्‍मों में शामिल किया। उसी साल ५० वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम ५० सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फिल्मफेयर पुरूस्कार था। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फ़िल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बच्चन ने अब तक अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था और १९७६ से १९८४ तक उन्हें अनेक सर्वश्रेष्ठ कलाकार वाले फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और अन्य पुरस्कार एवं ख्याति मिली। हालांकि शोले जैसी फ़िल्मों ने बालीवुड में उसके लिए पहले से ही महान एक्शन नायक का दर्जा पक्का कर दिया था, फिर भी बच्चन ने बताया कि वे दूसरी भूमिकाओं में भी स्वयं को ढाल लेते हैं और रोमांस फ़िल्मों में भी अग्रणी भूमिका कर लेते हैं जैसे कभी कभी (१९७६) और कामेडी फ़िल्मों जैसे अमर अकबर एन्थनी (१९७७) और इससे पहले भी चुपके चुपके (१९७५) में काम कर चुके हैं। १९७६ में इन्हें यश चोपड़ा ने अपनी दूसरी फ़िल्म कभी कभी में साइन कर लिया यह और एक रोमांस की फ़िल्म थी, जिसमें बच्चन ने एक अमित मल्‍होत्रा के नाम वाले युवा कवि की भूमिका निभाई थी जिसे राखी गुलजार द्वारा निभाई गई पूजा नामक एक युवा लड़की से प्रेम हो जाता है। इस बातचीत के भावनात्मक जोश और कोमलता के विषय अमिताभ की कुछ पहले की एक्शन फ़िल्मों तथा जिन्हें वे बाद में करने वाले थे की तुलना में प्रत्यक्ष कटाक्ष किया। इस फिल्‍म ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया और बॉक्स ऑफिस पर यह एक सफल फ़िल्म थी। १९७७ में इन्होंने अमर अकबर एन्थनी में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीता। इस फ़िल्म में इन्होंने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ एनथॉनी गॉन्सॉलनेज़ के नाम से तीसरी अग्रणी भूमिका की थी। १९७८ संभवत: इनके जीवन का सर्वाधिक प्रशंसनीय वर्ष रहा और भारत में उस समय की सबसे अधिक आय अर्जित करने वाली चार फ़िल्मों में इन्होंने स्टार कलाकार की भूमिका निभाई। इन्‍होंने एक बार फिर कस्मे वादे जैसी फ़िल्मों में अमित और शंकर तथा डॉन में अंडरवर्ल्ड गैंग और उसके हमशक्ल विजय के रूप में दोहरी भूमिका निभाई.इनके अभिनय ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिलवाए और इनके आलोचकों ने त्रिशूल और मुकद्दर का सिकन्दर जैसी फ़िल्मों में इनके अभिनय की प्रशंसा की तथा इन दोनों फ़िल्मों के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। इस पड़ाव पर इस अप्रत्याशित दौड़ और सफलता के नाते इनके कैरियर में इन्हें फ्रेन्‍काइज ट्रूफोट नामक निर्देशक द्वारा वन मेन इंडस्ट्री का नाम दिया। १९७९ में पहली बार अमिताभ को मि० नटवरलाल नामक फ़िल्म के लिए अपनी सहयोगी कलाकार रेखा के साथ काम करते हुए गीत गाने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करना पड़ा। फ़िल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पुरुष पार्श्‍वगायक का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार मिला। १९७९ में इन्हें काला पत्थर (१९७९) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया और इसके बाद १९८० में राजखोसला द्वारा निर्देशित फ़िल्म दोस्ताना में दोबारा नामित किया गया जिसमें इनके सह कलाकार शत्रुघन सिन्हा और जीनत अमान थीं। दोस्ताना वर्ष १९८० की शीर्ष फ़िल्म साबित हुई। १९८१ में इन्होंने यश चोपड़ा की नाटकीयता फ़िल्म सिलसिला में काम किया, जिसमें इनकी सह कलाकार के रूप में इनकी पत्नी जया और अफ़वाहों में इनकी प्रेमिका रेखा थीं। इस युग की दूसरी फ़िल्मों में राम बलराम (१९८०), शान (१९८०), लावारिस (१९८१) और शक्ति (१९८२) जैसी फिल्‍में शामिल थीं, जिन्‍होंने दिलीप कुमार जैसे अभिनेता से इनकी तुलना की जाने लगी थी। 1982 के दौरान कुली की शूटिंग के दौरान चोट १९८२ में कुली फ़िल्म में बच्चन ने अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट की शूटिंग के दौरान अपनी आंतों को लगभग घायल कर लिया था। बच्चन ने इस फ़िल्म में स्टंट अपनी मर्जी से करने की छूट ले ली थी जिसके एक सीन में इन्हें मेज पर गिरना था और उसके बाद जमीन पर गिरना था। हालांकि जैसे ही ये मेज की ओर कूदे तब मेज का कोना इनके पेट से टकराया जिससे इनके आंतों को चोट पहुंची और इनके शरीर से काफी खून बह निकला था। इन्हें जहाज से फोरन स्पलेनक्टोमी के उपचार हेतु अस्पताल ले जाया गया और वहां ये कई महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहे और कई बार मौत के मुंह में जाते जाते बचे। यह अफ़वाह भी फैल भी गई थी, कि वे एक दुर्घटना में मर गए हैं और संपूर्ण देश में इनके चाहने वालों की भारी भीड इनकी रक्षा के लिए दुआएं करने में जुट गयी थी। इस दुर्घटना की खबर दूर दूर तक फैल गई और यूके के अखबारों की सुर्खियों में छपने लगी जिसके बारे में कभी किसने सुना भी नहीं होगा। बहुत से भारतीयों ने मंदिरों में पूजा अर्चनाएं की और इन्हें बचाने के लिए अपने अंग अर्पण किए और बाद में जहां इनका उपचार किया जा रहा था उस अस्पताल के बाहर इनके चाहने वालों की मीलों लंबी कतारें दिखाई देती थी। तिसपर भी इन्होंने ठीक होने में कई महीने ले लिए और उस साल के अंत में एक लंबे अरसे के बाद पुन: काम करना आरंभ किया। यह फ़िल्म १९८३ में रिलीज़ हुई और आंशिक तौर पर बच्चन की दुर्घटना के असीम प्रचार के कारण बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। निर्देशक मनमोहन देसाई ने कुली फ़िल्म में बच्चन की दुर्घटना के बाद फ़िल्म के कहानी का अंत बदल दिया था। इस फ़िल्म में बच्चन के चरित्र को वास्तव में मृत्यु प्राप्त होनी थी लेकिन बाद में स्क्रिप्‍ट में परिवर्तन करने के बाद उसे अंत में जीवित दिखाया गया। देसाई ने इनके बारे में कहा था कि ऐसे आदमी के लिए यह कहना बिल्‍कुल अनुपयुक्त होगा कि जो असली जीवन में मौत से लड़कर जीता हो उसे परदे पर मौत अपना ग्रास बना ले। इस रिलीज़ फ़िल्म में पहले सीन के अंत को जटिल मोड़ पर रोक दिया गया था और उसके नीचे एक केप्‍शन प्रकट होने लगा जिसमें अभिनेता के घायल होने की बात लिखी गई थी और इसमें दुर्घटना के प्रचार को सुनिश्चित किया गया था। बाद में ये मियासथीनिया ग्रेविस में उलझ गए जो या कुली में दुर्घटना के चलते या तो भारीमात्रा में दवाई लेने से हुआ या इन्हें जो बाहर से अतिरिक्त रक्त दिया गया था इसके कारण हुआ। उनकी बीमारी ने उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर महसूस करने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने फ़िल्मों में काम करने से सदा के लिए छुट्टी लेने और राजनीति में शामिल होने का निर्णन किया। यही वह समय था जब उनके मन में फ़िल्म कैरियर के संबंध में निराशावादी विचारधारा का जन्म हुआ और प्रत्येक शुक्रवार को रिलीज़ होने वाली नई फ़िल्म के प्रत्युत्तर के बारे में चिंतित रहते थे। प्रत्येक रिलीज़ से पहले वह नकारात्मक रवैये में जवाब देते थे कि यह फिल्म तो फ्लाप होगी।. राजनीति : 1984-1987 १९८४ में अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र राजीव गांधी की सपोर्ट में राजनीति में कूद पड़े।https://hindi.theindianwire.com/अमिताभ-बच्चन-राजनीति-17667/ दा इंडियन वायर उन्होंने इलाहाबाद लोक सभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को इन्होंने आम चुनाव के इतिहास में (६८.२ %) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था। हालांकि इनका राजनीतिक कैरियर कुछ अवधि के लिए ही था, जिसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनीतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा। इस मामले में बच्चन को दोषी नहीं पाया गया। उनके पुराने मित्र अमरसिंह ने इनकी कंपनी एबीसीएल के फेल हो जाने के कारण आर्थिक संकट के समय इनकी मदद कीं। इसके बाद बच्चन ने अमरसिंह की राजनीतिक पाटी समाजवादी पार्टी को सहयोग देना शुरू कर दिया। जया बच्चन ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली और राज्यसभा की सदस्या बन गई।hindu.com चुनाव लड़ने की बच्चन की कोई योजना नहीं थी। बच्चन ने समाजवादी पार्टी के लिए अपना समर्थन देना जारी रखा जिसमें राजनीतिक अभियान अर्थात् प्रचार प्रसार करना शामिल था। इनकी इन गतिविधियों ने एक बार फिर मुसीबत में डाल दिया और इन्हें झूठे दावों के सिलसिलों में कि वे एक किसान हैं के संबंध में कानूनी कागजात जमा करने के लिए अदालत जाना पड़ा I बहुत कम लोग ऐसे हैं जो ये जानते हैं कि स्‍वयंभू प्रैस ने अमिताभ बच्‍चन पर प्रतिबंध लगा दिया था। स्टारडस्ट और कुछ अन्य पत्रिकाओं ने मिलकर एक संघ बनाया, जिसमें अमिताभ के शीर्ष पर रहते समय १५ वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इन्होंने अपने प्रकाशनों में अमिताभ के बारे में कुछ भी न छापने का निर्णय लिया। १९८९ के अंत तक बच्चन ने उनके सेटों पर प्रेस के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन, वे किसी विशेष पत्रिका के खिलाफ़ नहीं थे।indiafm.com १५ वर्ष तक प्रैस पर प्रतिबंध ऐसा कहा गया है कि बच्चन ने कुछ पत्रिकाओं को प्रतिबंधित कर रखा था क्योंकि उनके बारे में इनमें जो कुछ प्रकाशित होता रहता था उसे वे पसंद नहीं करते थे और इसी के चलते एक बार उन्हें इसका अनुपालन करने के लिए अपने विशेषाधिकार का भी प्रयोग करना पड़ा। मंदी के कारण और सेवानिवृत्ति : 1988 -1992 १९८८ में बच्चन फ़िल्मों में तीन साल की छोटी सी राजनीतिक अवधि के बाद वापस लौट आए और शहंशाह में शीर्षक भूमिका की जो बच्चन की वापसी के चलते बॉक्स आफिस पर सफल रही। इस वापसी वाली फिल्म के बाद इनकी स्टार पावर क्षीण होती चली गई क्योंकि इनकी आने वाली सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल होती रहीं। १९९१ की हिट फिल्म हम से ऐसा लगा कि यह वर्तमान प्रवृति को बदल देगी किंतु इनकी बॉक्स आफिस पर लगातार असफलता के चलते सफलता का यह क्रम कुछ पल का ही था। उल्लेखनीय है कि हिट की कमी के बावजूद यह वह समय था जब अमिताभ बच्चन ने १९९० की फिल्‍म अग्निपथ में माफिया डॉन की यादगार भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, जीते। ऐसा लगता था कि अब ये वर्ष इनके अंतिम वर्ष होंगे क्योंकि अब इन्हें केवल कुछ समय के लिए ही परदे पर देखा जा सकेगा I१९९२ में ख़ुदागवाह के रिलीज़ होने के बाद बच्चन ने अगले पांच वर्षों के लिए अपने आधे रिटायरमेंट की ओर चले गए। १९९४ में इनके देर से रिलीज़ होने वाली कुछ फिल्मों में से एक फिल्म इन्सान्यित रिलीज़ तो हुई लेकिन बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। निर्माता और अभिनय की वापसी 1996 -1999 अस्थायी सेवानिवृत्ति की अवधि के दौरान बच्चन निर्माता बने और अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की। ए;बी;सी;एल;) १९९६ में वर्ष २००० तक १० बिलियन रूपए (लगभग २५० मिलियन अमरीकी डॉलर) वाली मनोरंजन की एक प्रमुख कंपनी बनने का सपना देखा। एबीसीएल की रणनीति में भारत के मनोरंजन उद्योग के सभी वर्गों के लिए उत्पाद एवं सेवाएं प्रचलित करना था। इसके ऑपरेशन में मुख्य धारा की व्यावसायिक फ़िल्म उत्पादन और वितरण, ऑडियो और वीडियो कैसेट डिस्क, उत्पादन और विपणन के टेलीविजन सॉफ्टवेयर, हस्ती और इवेन्ट प्रबंधन शामिल था। १९९६ में कंपनी के आरंभ होने के तुरंत बाद कंपनी द्वारा उत्पादित पहली फिल्म तेरे मेरे सपने थी जो बॉक्स ऑफिस पर विफल रही लेकिन अरशद वारसी दक्षिण और फिल्मों के सुपर स्टार सिमरन जैसे अभिनेताओं के करियर के लिए द्वार खोल दिए। एबीसीएल ने कुछ फिल्में बनाई लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी। १९९७ में, एबीसीएल द्वारा निर्मित मृत्युदाता, फिल्म से बच्चन ने अपने अभिनय में वापसी का प्रयास किया। यद्यपि मृत्युदाता ने बच्चन की पूर्व एक्शन हीरो वाली छवि को वापस लाने की कोशिश की लेकिन एबीसीएल के उपक्रम, वाली फिल्म थी और विफलता दोनों के आर्थिक रूप से गंभीर है। एबीसीएल १९९७ में बंगलौर में आयोजित १९९६ की मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता, का प्रमुख प्रायोजक था और इसके खराब प्रबंधन के कारण इसे करोड़ों रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था। इस घटनाक्रम और एबीसीएल के चारों ओर कानूनी लड़ाइयों और इस कार्यक्रम के विभिन्न गठबंधनों के परिणामस्वरूप यह तथ्य प्रकट हुआ कि एबीसीएल ने अपने अधिकांश उच्च स्तरीय प्रबंधकों को जरूरत से ज्यादा भुगतान किया है जिसके कारण वर्ष १९९७ में वह वित्तीय और क्रियाशील दोनों तरीके से ध्वस्त हो गई। कंपनी प्रशासन के हाथों में चली गई और बाद में इसे भारतीय उद्योग मंडल द्वारा असफल करार दे दिया गया। अप्रेल १९९९ में मुबंई उच्च न्यायालय ने बच्चन को अपने मुंबई वाले बंगला प्रतीक्षा और दो फ्लैटों को बेचने पर तब तक रोक लगा दी जब तक कैनरा बैंक की राशि के लौटाए जाने वाले मुकदमे का फैसला न हो जाए। बच्चन ने हालांकि दलील दी कि उन्होंने अपना बंग्ला सहारा इंडिया फाइनेंस के पास अपनी कंपनी के लिए कोष बढाने के लिए गिरवी रख दिया है। बाद में बच्चन ने अपने अभिनय के कैरियर को संवारने का प्रयास किया जिसमें उसे बड़े मियाँ छोटे मियाँ (१९९८) से औसत सफलता मिली और सूर्यावंशम (१९९९), से सकारात्मक समीक्षा प्राप्त हुई लेकिन तथापि मान लिया गया कि बच्चन की महिमा के दिन अब समाप्त हुए चूंकि उनके बाकी सभी फिल्में जैसे लाल बादशाह (१९९९) और हिंदुस्तान की कसम (१९९९) बॉक्स ऑफिस पर विफल रही हैं। टेलीविजन कैरियर right|thumb|200px|'कौन बनेगा करोड़पति-५' के प्रेस सम्मेलन के समय अमिताभ बच्चन वर्ष २००० में, अमिताभ बच्चन ने ब्रिटिश टेलीविजन शो के खेल, हू वाण्टस टु बी ए मिलियनेयर को भारत में अनुकूलन हेतु कदम बढाया। शीर्ष‍क कौन बनेगा करोड़पति, जैसा कि यह अधिकांशत: अन्य देशों में चला था, कार्यक्रम को तत्काल और गहरी सफलता मिली जिसमें बच्चन के करिश्मे का भी छोटे रूप में योगदान था। यह माना जाता है कि बच्चन ने इस कार्यक्रम के संचालन के लिए साप्ताहिक प्रकरण के लिए अत्यधिक २५ लाख रुपए (२,५ लाख रुपए भारतीय, अमेरिकी डॉलर लगभग ६००००) लिए थे, जिसके कारण बच्चन और उनके परिवार को नैतिक और आर्थिक दोनों रूप से बल मिला। इससे पहले एबीसीएल के बुरी तरह असफल हो जाने से अमिताभ को गहरे झटके लगे थे। नवंबर २००० में केनरा बैंक ने भी इनके खिलाफ अपने मुकदमे को वापस ले लिया। बच्चन ने केबीसी का आयोजन नवंबर २००५ तक किया और इसकी सफलता ने फिल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए।। सत्ता में वापस लौटे: 2000 - वर्तमान मोहब्बतें (२०००) फ़िल्म में स्क्रीन के सामने शाहरुख खान के साथ सह कलाकार के रूप में वापस लौट आए। thumb|right|250px|प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने हिंदी फ़िल्म ब्लैक में अमिताभ के अभिनय के लिए वर्ष २००५ का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया। सन् २००० में अमिताभ बच्चन जब आदित्य चोपड़ा, द्वारा निर्देशित यश चोपड़ा' की बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फ़िल्म मोहब्बतें में भारत की वर्तमान घड़कन शाहरुख खान.के चरित्र में एक कठोर की भूमिका की तब इन्हें अपना खोया हुआ सम्मान पुन: प्राप्त हुआ। दर्शक ने बच्चन के काम की सराहना की है, क्योंकि उन्होंने एक ऐसे चरित्र की भूमिका निभाई, जिसकी उम्र उनकी स्वयं की उम्र जितनी थी और अपने पूर्व के एंग्री यंगमैन वाली छवि (जो अब नहीं है) के युवा व्यक्ति से मिलती जुलती भूमिका थी। इनकी अन्य सफल फ़िल्मों में बच्चन के साथ एक बड़े परिवार के पितृपुरुष के रूप में प्रदर्शित होने में एक रिश्ता:द बॉन्ड ओफ लव (२००१), कभी ख़ुशी कभी ग़म (२००१) और बागबान (२००३) हैं। एक अभिनेता के रूप में इन्होंने अपनी प्रोफाइल के साथ मेल खाने वाले चरित्रों की भूमिकाएं करनी जारी रखीं तथा अक्स (२००१), आंखें (२००२), खाकी (२००४), देव (२००४) और ब्लैक (२००५) जैसी फ़िल्मों के लिए इन्हें अपने आलोचकों की प्रशंसा भी प्राप्त हुई। इस पुनरुत्थान का लाभ उठाकर, अमिताभ ने बहुत से टेलीविज़न और बिलबोर्ड विज्ञापनों में उपस्थिति देकर विभिन्न किस्मों के उत्पाद एवं सेवाओं के प्रचार के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया। २००५ और २००६ में उन्होंने अपने बेटे अभिषेक के साथ बंटी और बबली (२००५), द गॉडफ़ादर श्रद्धांजलि सरकार (२००५), और कभी अलविदा ना कहना (२००६) जैसी हिट फ़िल्मों में स्टार कलाकार की भूमिका की। ये सभी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर अत्यधिक सफल रहीं। २००६ और २००७ के शुरू में रिलीज़ उनकी फ़िल्मों में बाबुल (२००६), औरएकलव्य , निशब्द|निःशब्द (२००७) बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं किंतु इनमें से प्रत्येक में अपने प्रदर्शन के लिए आलोचकों से सराहना मिली। इन्होंने चंद्रशेखर नागाथाहल्ली द्वारा निर्देशित कन्नड फ़िल्म अमृतधारा में मेहमान कलाकार की भूमिका की है। मई २००७ में, इनकी दो फ़िल्मों में से एक चीनी कम और बहु अभिनीत शूटआउट एट लोखंडवाला रिलीज़ हुईशूटआउट एट लोखंडवाला बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छी रही और भारत में इसे हिट घोषित किया गया और चीनी कम ने धीमी गति से आरंभ होते हुए कुल मिलाकर औसत हिट का दर्जा पाया। अगस्त २००७ में, (१९७५) की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म शोले की रीमेक बनाई गई और उसे राम गोपाल वर्मा की आग शीर्षक से जारी किया गया। इसमें इन्होंने बब्बन सिंह (मूल गब्बर सिंह के नाम से खलनायक की भूमिका अदा की जिसे स्वर्गीय अभिनेता अमजद ख़ान द्वारा १९७५ में मूल रूप से निभाया था। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर बेहद नाकाम रही और आलोचना करने वालो ने भी इसकी कठोर निंदा की। उनकी पहली अंग्रेजी भाषा की फ़िल्म रितुपर्णा घोष द लास्ट ईयर का वर्ष २००७ में टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ९ सितंबर, २००७ को प्रीमियर लांच किया गया। इन्हें अपने आलोचकों से सकारात्मक समीक्षाएं मिली हैं जिन्होंने स्वागत के रूप में ब्लेक. में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद से अब तक सराहना की है। बच्चन शांताराम नामक शीर्षक वाली एवं मीरा नायर द्वारा निर्देशित फ़िल्म में सहायक कलाकार की भूमिका करने जा रहे हैं जिसके सितारे हॉलीवुड अभिनेता जॉनी डेप हैं। इस फ़िल्म का फ़िल्मांकन फरवरी २००८ में शुरू होना था, लेकिन लेखक की हड़ताल की वजह से, इस फ़िल्म को सितम्बर २००८ में फ़िल्मांकन हेतु टाल दिया गया। ९ मई २००८, भूतनाथ (फिल्म) फ़िल्म में इन्होंने भूत के रूप में शीर्षक भूमिका की जिसे रिलीज़ किया गया। जून २००८ में रिलीज़ हुई उनकी नवीनतम फ़िल्म सरकार राज जो उनकी वर्ष २००५ में बनी फ़िल्म सरकार का परिणाम है। स्वास्थ्य 2005अस्पताल में भर्ती नवंबर 2005 में, अमिताभ बच्चन को एक बार फिर लीलावती अस्पताल की आईसीयू में विपटीशोथ के छोटी आँत की सर्जरी लिए भर्ती किया गया। उनके पेट में दर्द की शिकायत के कुछ दिन बाद ही ऐसा हुआ। इस अवधि के दौरान और ठीक होने के बाद उसकी ज्यादातर परियोजनाओं को रोक दिया गया जिसमें कौन बनेगा करोड़पति का संचालन करने की प्रक्रिया भी शामिल थी। भारत भी मानो मूक बना हुआ यथावत जैसा दिखाई देने लगा था और इनके चाहने वालों एवं प्रार्थनाओं के बाद देखने के लिए एक के बाद एक, हस्ती देखने के लिए आती थीं। इस घटना के समाचार संतृप्त कवरेज भर अखबारों और टीवी समाचार चैनल में फैल गए। अमिताभ मार्च २००६ में काम करने के लिए वापस लौट आए। आवाज बच्चन अपनी जबरदस्त आवाज़ के लिए जाने जाते हैं। वे बहुत से कार्यक्रमों में एक वक्ता, पार्श्वगायक और प्रस्तोता रह चुके हैं। बच्चन की आवाज से प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक सत्यजीत रे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शतरंज के खिलाड़ी में इनकी आवाज़ का उपयोग कमेंटरी के लिए करने का निर्णय ले लिया क्योंकि उन्हें इनके लिए कोई उपयुक्त भूमिका नहीं मिला था।hindustantimes.in में शतरंज के खिलाड़ी के लिए अमिताभ की आवाज। फ़िल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले, बच्चन ने ऑल इंडिया रेडियो में समाचार उद्घोषक, नामक पद हेतु नौकरी के लिए आवेदन किया जिसके लिए इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था। विवाद और आलोचना बाराबंकी भूमि प्रकरण के लिए भागदौड़ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, २००७, अमिताभ बच्चन ने एक फ़िल्म बनाई जिसमें मुलायम सिंह सरकार के गुणगाणों का बखान किया गया था। उसका समाजवादी पार्टी मार्ग था और मायावती सत्ता में आई। २ जून, २००७, फैजाबाद अदालत ने इन्हें आदेश दिया कि इन्होंने भूमिहीन दलित किसानों के लिए विशेष रूप से आरक्षित भूमि को अवैध रूप से अधिग्रहीत किया है। जालसाजी से संबंधित आरोंपों के लिए इनकी जांच की जा सकती है। जैसा कि उन्होंने दावा किया कि उन्हें कथित तौर पर एक किसान माना जाए यदि वह कहीं भी कृषिभूमि के स्वामी के लिए उत्तीर्ण नहीं कर पाते हैं तब इन्हें 20 एकड़ फार्महाउस की भूमि को खोना पड़ सकता है जो उन्होंने मावल पुणे. के निकट खरीदी थी। १९ जुलाई २००७ के बाद घेटाला खुलने के बाद बच्चन ने बाराबंकी उत्तर प्रदेश और पुणे में अधिग्रहण की गई भूमि को छोड़ दिया। उन्होंने महाराष्ट्र, के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को उनके तथा उनके पुत्र अभिषेक बच्चन द्वारा पुणे में अवैध रूप से अधिग्रहण भूमि को दान करने के लिए पत्र लिखा। हालाँकि, लखनऊ की अदालत ने भूमि दान पर रोक लगा दी और कहा कि इस भूमि को पूर्व स्थिति में ही रहने दिया जाए। १२ अक्टूबर २००७ को, बच्चने ने बाराबंकी जिले के दौलतपुर गांव की इस भूमि के दावे को छोड़ दिया। ११ दिसम्बर २००७ को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनव खंडपीठ ने बाराबंकी जिले में इन्हें अवैध रूप से जमीन आंवटित करने के मामले में हरी झंडी दे दी। बच्चन को हरी झंडी देते हुए लखनऊ की एकल खंडपीठ के न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनसे प्रमाणित हो कि अभिनेता ने राजस्व अभिलेखोंअमिताभ बच्चन को उत्तर प्रदेश में हो जमीन घोटाला -- AllBollywood.com में हरी झंडी मिली। में स्वयं के द्वारा कोई हेराफेरी अथवा फेरबदल किया हो। बाराबंकी मामले में अपने पक्ष में सकारात्मक फैसला सुनने के बाद बच्चन ने महाराष्ट्र सरकार को सूचित किया कि पुणे जिले की मारवल तहसील में वे अपनी जमीन का आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं। राज ठाकरे की आलोचना जनवरी 2008 में राजनीतिक रैलियों पर, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन को अपना निशाना बनाते हुए कहा कि ये अभिनेता महाराष्ट्र की तुलना में अपनी मातृभूमि के प्रति अधिक रूचि रखते हैं। उन्होंने अपनी बहू अभीनेत्री एश्वर्या राय बच्चन के नाम पर लड़कियों का एक विद्यालय महाराष्‍ट्र के बजाय उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में उद्घाटन के लिए अपनी नामंजूरी दी.मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमिताभ के लिए राज की आलोचना, जिसकी वह प्रशंसा करते हैं, अमिताभ के पुत्र अभिषेक का ऐश्वर्या के साथ हुए विवाह में आमंत्रित न किए जाने के कारण उत्पन्न हुई जबकि उनसे अलग रह रहे चाचा बाल और चचेरे भाई उद्धव को आमंत्रित किया गया था। राज के आरोपों के जवाब में, अभिनेता की पत्नी जया बच्चन जो सपा सांसद हैं ने कहा कि वे (बच्चन परिवार) मुंबई में एक स्कूल खोलने की इच्छा रखते हैं बशर्ते एमएनएस के नेता उन्हें इसका निर्माण करने के लिए भूमि दान करें.उन्होंने मीडिया से कहा, " मैंने सुना है कि राज ठाकरे के पास महाराष्ट्र में मुंबई में कोहिनूर मिल की बड़ी संपत्ति है। यदि वे भूमि दान देना चाहते हैं तब हम यहां ऐश्वर्या राय के नाम पर एक स्कूल चला चकते हैं। इसके आवजूद अमिताभ ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। बाल ठाकरे ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि अमिताभ बच्चन एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति है और महाराष्ट्र के लिए उनके मन में विशेष प्रेम है जिन्हें कई अवसरों पर देखा जा चुका है।इस अभिनेता ने अक्सर कहा है कि महाराष्ट्र और खासतौर पर मुंबई ने उन्हें महान प्रसिद्धि और स्नेह दिया है। .उन्होंने यह भी कहा है कि वे आज जो कुछ भी हैं इसका श्रेय जनता द्वारा दिए गए प्रेम को जाता है। मुंबई के लोगों ने हमेशा उन्हें एक कलाकार के रूप में स्वीकार किया है। उनके खिलाफ़ इस प्रकार के संकीर्ण आरोप लगाना नितांत मूर्खता होगी। दुनिया भर में सुपर स्टार अमिताभ है। दुनिया भर के लोग उनका सम्मान करते हैं। इसे कोई भी नहीं भुला सकता है। अमिताभ को इन घटिया आरोपों की उपेक्षा करनी चाहिए और अपने अभिनय पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।" कुछ रिपोर्टों के अनुसार अमिताभ की राज के द्वारा की गई गणना के अनुसार जिनकी उन्हें तारीफ करते हुए बताया जाता है, को बड़ी निराश हुई जब उन्हें अमिताभ के बेटे अभिषेक की ऐश्वर्या के साथ विवाह में आमंत्रित नहीं किया गया जबकि उनके रंजिशजदा चाचा बाल और चचेरे भाई उद्धव को आमंत्रित किया गया था। मार्च २३, २००८ को राज की टिप्पणियों के लगभग डेढ महीने बाद अमिताभ ने एक स्थानीय अखबार को साक्षात्कार देते हुए कह ही दिया कि, अकस्मात लगाए गए आरोप अकस्मात् ही लगते हैं और उन्हें ऐसे किसी विशेष ध्यान की जरूरत नहीं है जो आप मुझसे अपेक्षा रखते हैं। इसके बाद २८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी के एक सम्मेलन में जब उनसे पूछा गया कि प्रवास विरोधी मुद्दे पर उनकी क्या राय है तब अमिताभ ने कहा कि यह देश में किसी भी स्थान पर रहने का एक मौलिक अधिकार है और संविधान ऐसा करने की अनुमति देता है। उन्होंने यह भी कहा था कि वे राज की टिप्पणियों से प्रभावित नहीं है। पनामा पेपर्स के बाद पैराडाइज़ पेपर्स में भी अमिताभ बच्चन का नाम, KBC-1 के बाद विदेशी कंपनी में लगाया था पैसा पुरस्कार, सम्मान और पहचान अमिताभ बच्चन को सन २००१ में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। 2002 - किशोर कुमार सम्मान 2019 – दादा साहब फाल्के अमिताभ बच्चन की फिल्में अभिनेता वर्ष फ़िल्म भूमिका नोट्स१९६९ सात हिंदुस्तानीअनवर अलीविजेता, सर्वश्रेष्ठ नवागंतुक राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भुवन सोम कमेन्टेटर (स्वर)१९७१ परवाना कुमार सेनआनंद डॉ॰ कुमार भास्करबनर्जी / बाबू मोशायविजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्काररेश्मा और शेरा छोटू गुड्डी खुदप्यार की कहानी राम चन्द्र१९७२ संजोग मोहनबंसी बिरजू बिरजूपिया का घर अतिथि उपस्थितिएक नज़रमनमोहन आकाश त्यागीबावर्ची वर्णन करने वाला रास्ते का पत्थर जय शंकर रायबॉम्बे टू गोवा रवि कुमार१९७३ बड़ा कबूतर अतिथि उपस्थितिबंधे हाथ शामू और दीपक दोहरी भूमिकाज़ंजीर इंस्पेक्टर विजय खन्नामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारगहरी चाल )रतनअभिमान सुबीर कुमारसौदागर )मोतीनमक हराम विक्रम (विक्की)विजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार१९७४ कुँवारा बाप ऍगस्टीनअतिथि उपस्थितिदोस्त आनंदअतिथि उपस्थितिकसौटी अमिताभ शर्मा (अमित)बेनाम अमित श्रीवास्तवरोटी कपड़ा और मकानविजयमजबूर रवि खन्ना१९७५ चुपके चुपकेसुकुमार सिन्हा / परिमल त्रिपाठीफरार राजेश (राज)मिली शेखर दयालदीवार विजय वर्मामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारज़मीरबादल / चिम्पूशोले जय (जयदेव)१९७६ दो अनजाने अमित रॉय / नरेश दत्तछोटी सी बात विशेष उपस्थितिकभी कभीअमित मल्होत्रामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारहेराफेरी विजय / इंस्पेक्टर हीराचंद१९७७ आलाप आलोक प्रसादचरणदास कव्वाली गायकविशेष उपस्थितिअमर अकबर एन्थोनी एंथोनी गॉन्सॉल्वेज़विजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारशतरंज के खिलाड़ीवर्णन करने वाला अदालत धर्म / व राजूमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार. दोहरी भूमिकाइमान धर्म अहमद रज़ाखून पसीना शिवा/टाइगरपरवरिश अमित१९७८ बेशरम राम चन्द्र कुमार/प्रिंस चंदशेखर गंगा की सौगंध जीवाकसमें वादे अमित / शंकरदोहरी भूमिकात्रिशूल विजय कुमारमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारडॉन डॉन / विजयविजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार. दोहरी भूमिकामुकद्दर का सिकन्दर सिकंदरमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार१९७९ द ग्रेट गैम्बलरजय / इंस्पेक्टर विजयदोहरी भूमिकागोलमाल खुदविशेष उपस्थितिजुर्माना इन्दर सक्सेनामंज़िल अजय चन्द्रमि० नटवरलाल नटवरलाल / अवतार सिंहमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार और पुरुष पार्श्वगायक का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार काला पत्थर विजय पाल सिंहमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारसुहाग अमित कपूर१९८० दो और दो पाँच विजय / रामदोस्ताना विजय वर्मामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारराम बलराम इंस्पेक्टर बलराम सिंहशान विजय कुमार१९८१ चश्मेबद्दूर विशेष उपस्थितिकमांडर अतिथि उपस्थितिनसीब जॉन जॉनी जनार्दनबरसात की एक रात एसीपी अभिजीत रायलावारिस हीरामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारसिलसिला (फिल्म)अमित मल्होत्रामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारयाराना किशन कुमारकालिया कल्लू / कालिया१९८२ सत्ते पे सत्ता रवि आनंद और बाबूदोहरी भूमिकाबेमिसाल डॉ॰ सुधीर रॉय और अधीर रायमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार. दोहरी भूमिकादेश प्रेमी मास्टर दीनानाथ और राजूदोहरी भूमिकानमक हलाल अर्जुन सिंहमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारखुद्दार गोविंद श्रीवास्तव / छोटू उस्तादशक्ति विजय कुमारमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार१९८३ नास्तिक शंकर (शेरू) / भोलाअंधा क़ानून जान निसार अख़्तर खानमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार. अतिथि उपस्थितिमहान राणा रनवीर, गुरु, और इंस्पेक्टर शंकरट्रिपल भूमिकापुकार रामदास / रोनी कुली इकबाल ए॰ खान१९८४ इंकलाब'||अमरनाथ|| |- |शराबी ||विक्की कपूर ||मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार |- |rowspan = " 2 "|१९८५ ||गिरफ्तार ||इंस्पेक्टर करण कुमार खन्ना|| |- |मर्द ||राजू " मर्द " तांगेवाला||मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार |- |rowspan = " 2 "|१९८६ ||एक रूका हुआ फैसला ||||अतिथि उपस्थिति |- |आखिरी रास्ता ||डेविड / विजय||दोहरी भूमिका |- |rowspan = " 2 "|१९८७ ||जलवा ||खुद||विशेष उपस्थिति |- |कौन जीता कौन हारा ||खुद||अतिथि उपस्थिति |- |rowspan = " 4 "|१९८८ ||सूरमा भोपाली ||||अतिथि उपस्थिति |- |शहंशाह ||इंस्पेक्टर विजय कुमार श्रीवास्तव / शहंशाह||मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार |- |हीरो हीरालाल ||खुद||विशेष उपस्थिति |- |गंगा जमुना सरस्वती||गंगा प्रसाद|| |- |rowspan = " 4 "|१९८९ ||बंटवारा 'वर्णन करने वाला तूफान (फिल्म)|तूफान तूफान और श्यामदोहरी भूमिकाजादूगर गोगा गोगेश्‍वरमैं आज़ाद हूँआज़ाद१९९० अग्निपथ विजय दीनानाथ चौहानविजेता,सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और मनोनीत फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार,क्रोध विशेष उपस्थितिआज का अर्जुन भीमा१९९१ हम टाइगर / शेखरविजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारअजूबा अजूबा / अलीइन्द्रजीत इन्द्रजीतअकेला इंस्पेक्टर विजय वर्मा१९९२ खुदागवाह बादशाह खानमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार१९९४ इन्सानियत इंस्पेक्टर अमर१९९६ तेरे मेरे सपने वर्णन करने वाला १९९७ मृत्युदाता डॉ॰ राम प्रसाद घायल१९९८ मेजर साब मेजर जसबीर सिंह राणाबड़े मियाँ छोटे मियाँइंस्पेक्टर अर्जुन सिंह और बड़े मियाँदोहरी भूमिका१९९९ लाल बादशाह लाल " बादशाह " सिंह और रणबीर सिंहदोहरी भूमिकासूर्यवंशम भानु प्रताप सिंह ठाकुर और हीरा सिंहदोहरी भूमिकाहिंदुस्तान की कसम कबीरा कोहराम कर्नलबलबीर सिंह सोढी (देवराज हथौड़ा) और दादा भाईहैलो ब्रदर व्हाइस ऑफ गोड २००० मोहब्बतेंनारायण शंकरविजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार२००१ एक रिश्ता विजय कपूरलगानवर्णन करने वाला अक्स मनु वर्माविजेता, फ़िल्म समीक्षक पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारकभी ख़ुशी कभी ग़मयशवर्धन यश रायचंदमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार२००२ आंखेंविजय सिंह राजपूतमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कारहम किसी से कम नहींडॉ॰ रस्तोगीअग्नि वर्षा इंद्र (परमेश्वर)विशेष उपस्थितिकांटे यशवर्धन रामपाल / " मेजर "मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार२००३ खुशी वर्णन करने वाला अरमान डॉ॰ सिद्धार्थ सिन्हामुंबई से आया मेरा दोस्त वर्णन करने वाला बूमबड़े मियाबागबान राज मल्होत्रामनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारफ़नटूश वर्णन करने वाला २००४ खाकी डीसीपीअनंत कुमार श्रीवास्तव मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारएतबार डॉ॰रनवीर मल्होत्रारूद्राक्ष वर्णन करने वाला इंसाफ वर्णन करने वाला देवडीसीपीदेव प्रताप सिंहलक्ष्य कर्नलसुनील दामलेदीवार मेजर रणवीर कौलक्यूं...!हो गया नाराज चौहानहम कौन है जॉन मेजर विलियम्स और फ्रैंक जेम्स विलियम्सदोहरी भूमिकावीर - जारासुमेर सिंह चौधरीमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार. विशेष उपस्थितिअब तुम्हारे हवाले वतन साथियो मेजर जनरल अमरजीत सिंह२००५ ब्लैक देवराज सहायदोहरे विजेता, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार & फ़िल्म समीक्षक पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन विजेता, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेतावक़्त ईश्‍वरचंद्र शरावत बंटी और बबली डीसीपी दशरथ सिंहमनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कारपरिणीता वर्णन करने वाला पहेली गड़रिया विशेष उपस्थितिसरकार सुभाष नागरे / " सरकार "मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कारविरूद्ध विद्याधर पटवर्धन रामजी लंदनवाले खुदविशेष उपस्थितिदिल जो भी कहे शेखर सिन्हाएक अजनबीसूर्यवीर सिंहअमृतधाराखुदविशेष उपस्थिति कन्नड़ फ़िल्म२००६ परिवार वीरेन साहीडरना जरूरी है प्रोफेसरकभी अलविदा न कहना समरजित सिंह तलवार (आका.सेक्सी सैम)मनोनीत, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कारबाबुल बलराज कपूर२००७ एकलव्य: द रॉयल गार्ड एकलव्यनिशब्द विजयचीनी कमबुद्धदेव गुप्ताशूटआऊट ऍट लोखंडवाला डिंगरा विशेष उपस्थितिझूम बराबर झूम सूत्रधारविशेष उपस्थितिराम गोपाल वर्मा की आगबब्बन सिंहओम शांति ओमखुदविशेष उपस्थितिद लास्ट इयऱ हरीश मिश्रा२००८ यार मेरी जिंदगी४ अप्रैल, २००८ को रिलीज़भूतनाथ(कैलाश नाथ)सरकार राज सुभाष नाग्रेगोड तुस्सी ग्रेट होसर्वशक्तिमान ईश्वर२००९दिल्ली -6दादाजीअलादीनजिनपाऑरो२०१०रणविजय हर्षवर्धन मालिकतीन पत्तीप्रो वेंकट सुब्रमण्यमकंधारलोकनाथ शर्मा२०११बुड्ढा...होगा तेरा बापविजय मल्होत्राआरक्षण प्रभाकर आनंद२०१२मि० भट्टी ऑन छुट्टी स्वयंडिपार्टमेंट गायकवाड़ बोल बच्चन स्वयं इंग्लिश विंग्लिश सहयात्री २०१३बॉम्बे टॉकीज़ स्वयं अतिथि उपस्थिति सत्याग्रह द्वारका आनंद बॉस सूत्रधार कृश-३ सूत्रधार महाभारत भीष्म (आवाज़) द ग्रेट गैट्सबी (अंग्रेजी फ़िल्म) विशेष भूमिका२०१४ भूतनाथ रिटर्न्स भूतनाथ मनम (तेलुगु फ़िल्म)२०१५ शमिताभ अमिताभ सिन्हा (शमिताभ) हे ब्रो पीकू भास्कर बनर्जी२०१६ वज़ीर पंडित ओंकारनाथ धर की एण्ड का टी३न पिंक दीपक सहगल२०१७ द ग़ाज़ी अटैक सरकार ३ अलादीन जिन तालिसमान अपवर्जन शांतारामखादर भाई ठग्स ऑफ हिंदोस्तान खुदाबक्श 2022ब्रह्मास्त्रगुरु अरविंद निर्माता तेरे मेरे सपने (2015) उलासाम (तमिल) (१९९७) मृत्युदाता (१९९७) मेजर साब (१९९८) अक्स(२००१) विरूद्ध (२००५) परिवार -- टायस ऑफ़ ब्लड (२००६) पार्श्व गायक द ग्रेट गैम्बलर मि० नटवरलाल लावारिस (१९८१) नसीब (१९८१) सिलसिला (१९८१) महान (१९८३) पुकार (१९८३) शराबी (१९८४) तूफान (१९८९) जादूगर (१९८९) खुदागवाह (१९९२) मेजर साब (१९९८) सूर्यवंशम (१९९९) अक्स (२००१) कभी ख़ुशी कभी ग़म (२००१) आंखें (२००२ फ़िल्म) (२००२) अरमान (२००३) बागबान (२००३) देव (२००४) एतबार (२००४) बाबुल (२००६) निशब्द (२००७) चीनी कम (२००७) भूतनाथ (२००८) इन्हें भी देखें अमिताभ बच्चन का परिवार- १. हरिवंश राय बच्चन (पिताजी) २. तेजी बच्चन (माता) ३. अभिषेक बच्चन (पुुत्र) ४. जया बच्चन (पत्नी) ५. श्वेता बच्चन (पुुुुुत्री) ६. आराध्या बच्चन (नात) ७. ऐश्वरया राय (पुुत्र वधू) ८. अजिताभ बच्चन बाहरी कड़ियाँ अमिताभ बच्चन अमिताभ बच्चन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी अमिताभ बच्चन के जीवन की कहानी सुनें तस्वीरों से... (दैनिक भास्कर) सदी के महानायक अमिताभ बच्चन आज 69 साल के हो गए (प्रवासी दुनिया) अमिताभ बच्चन हैं भारत रत्न के असली हकदार: ठाकरे (नवभारत टाइम्स) अमिताभ बच्चन जीवनी आवाज के जादू से राज कायम है अमिताभ का सन्दर्भ श्रेणी:1942 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता श्रेणी:पद्म विभूषण धारक श्रेणी:२००१ पद्म भूषण श्रेणी:फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता श्रेणी:श्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार विजेता श्रेणी:भारतीय फ़िल्म अभिनेता श्रेणी:हिन्दी अभिनेता श्रेणी:भारतीय पुरुष आवाज अभिनेताओं
सिनेमा
https://hi.wikipedia.org/wiki/सिनेमा
REDIRECT फ़िल्म
मधुशाला
https://hi.wikipedia.org/wiki/मधुशाला
मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। प्रसिद्धि मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। Sharma, Rajendra (February 1, 2003). "The romantic rebel. Harivansh Rai Bachchan, 1907-2003 (Obituary)" . मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है। मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है। उमर खैय्याम की रूबाइयां को हरिवंश राय बच्चन मधुशाला के प्रकाशन से पहले ही हिंदी में अनुवाद कर चुके थे। मधुशाला की रचना के कारण श्री बच्चन को " हालावाद का पुरोधा " भी कहा जाता है। मीडिया में मधुशाला बाद के दिनों में मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया। मधुशाला की चुनिंदा रूबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया। इस एलबम की पहली स्वयं बच्चन ने गायी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने न्यूयार्क के लिंकन सेंटर सहित कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया। हरिवंश राय बच्चन ने हालावाद के परमूख कवि माने जाते हैं हखलावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंश राय बच्चन शुष्क विषयो को भी सरस ढग से प्रस्तुत करने में शिधस्त थे वे छायावाद युग के प्रख्यात कवि है हरिवंश राय बच्चन जैसे महान और उच्चकोटि की विचारधारा वाले कवि सदियों जन्म लेते हैं मधुशाला के कुछ पद्य मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।। १। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।। २। प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला, मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता, एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।। ३। भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।। ४। मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला, भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला, उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ, अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।। ५। मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, 'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - 'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६। चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला! 'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला, हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे, किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।। ७। मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला, हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला, ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का, और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८। मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला, अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला, बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे, रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९। सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला, सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला, बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है, चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०। विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला, शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई, जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।। १३४। बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला, किलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला, मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को, विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।। १३५। पठनीय मधुशाला, हरिवंशराय बच्चन, हिंदी में, हिंद पाकेट बुक, 1999. ISBN 81-216-0125-8. मधुशाला, हरिवंशराय बच्चन. पेंगुइन बुक्स, 1990. ISBN 0-14-012009-2. सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मधुशाला (कविताकोश) मधुशाला (हिन्दी समय) मशुशाला (विकिस्रोत) मधुशाला का अपनापन (अशोक चक्रधर) श्रेणी:हिन्दी साहित्य