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'सात अजूबे इस दुनिया में, आठवीं अपनी जोड़ी... तोड़े से भी टूटे न, ये धरम वीर की जोड़ी...' 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे... तोड़ेंगे दम मगर, तेरा साथ न छोड़ेंगे...' हिन्दी फिल्मों ने दोस्ती को बहुत बार सबसे कीमती, सबसे करीबी रिश्ता बताया है, और दोस्त सचमुच ऐसे-ऐसे कारनामे कर जाते हैं, जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता... इसी हफ्ते फेसबुक पर एक ऐसा वीडियो हमारी नज़र में आया, जिसने 'धरम वीर' और 'जय वीरू' की दोस्ती के रंगों को भी फीका कर डाला... 26 जून को जोलिन पेट हाउस (JoLinn Pet House) के फेसबुक पेज पर अपलोड किया गया यह वीडियो अब तक 27 लाख से भी ज़्यादा बार देखा जा चुका है, और इसमें दिखाई दे रहे दोस्त हैं एक प्यारी-सी बिल्ली, और उसका वैसा ही प्यारा-सा दोस्त एक पिल्ला... वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि बिल्ली अपने दोस्त के पास पहुंचने के लिए कुछ भी कर गुज़रने पर आमादा है... वीडियो का अंत भी सुखद है, और कांच की 'जेल' में बंद बिल्ली आखिरकार अपने दोस्त की बांहों में पहुंच ही जाती है...टिप्पणियां ताइवान के ताइपेई शहर में स्थित जोलिन पेट हाउस में शूट किए गए इस वीडियो में बिल्ली और पिल्ला कांच से बने अपने-अपने बक्से में हैं... पिल्ला पूरी तरह आराम फरमाने के मूड में दिख रहा है, लेकिन बिल्ली कुछ करने की तैयारी में है... अचानक बिल्ली छलांग लगाकर कांच की दीवार पर चढ़कर लटक जाती है... ऐसा लगता है, जैसे वह 'जेल' तोड़कर भागने की कोशिश कर रही है, लेकिन तभी पिल्ला भी जागकर अपनी 'जेल' के किनारे पर पहुंचकर उछलने लगता है... बस, फिर क्या था... कुछ ही सेकंड बाद बिल्ली के इरादे साफ-साफ समझ आ जाते हैं, जब वह अपनी दिशा बदल लेती है, और अपने दोस्त वाली जेल में ही कूद जाती है... अपनी 'जेल' से दोस्त की 'जेल' तक पहुंचने में बिल्ली को जो कुछ सेकंड का वक्त लगा, उस पूरे वक्त में पिल्ला भी पूरे उत्साह से अपने पंजों पर खड़ा होकर अपनी सहेली के चेहरे को चाट-चाटकर उसका उत्साह बढ़ाता रहा...   ...और फिर अंत में, जब बिल्ली अपने दोस्त वाली 'जेल' में पहुंच जाती है, तब उसके स्वागत के लिए पिल्ले का जोश और दोस्त के लिए अपनापन देखते ही बनता है, जिसे आप खुद ही देखें, तो बेहतर होगा...    (function(d, s, id) {var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0];if (d.getElementById(id)) return;js = d.createElement(s); 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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की अपनी धार्मिक यात्रा पूरी करने के बाद इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के प्रचार में जुटेंगे. प्रचार के दौरान ही राहुल गांधी दो दिवसीय मिडिल ईस्ट के दौरे पर भी जाएंगे. उच्चपदस्त सूत्रों के मुताबिक राहुल पहले मिडल ईस्ट के दौरे पर बहरीन गए थे लेकिन तब संयुक्त अरब अमीरात नहीं जा सके थे. इसलिए इस बार राहुल के दौरे के केंद्र में दुबई होगा. दरअसल, दुबई में भारत से नाता रखने वाले करीब 34 लाख लोग रहते हैं, जिनके काफी रिश्तेदार भारत में हैं. इस लिहाज से ही इस दौरे की रूप रेखा तैयार की जा रही है. सूत्रों का कहना है कि अमेरिका से शुरू हुआ राहुल के विदेश दौरे का सफर हाल में जर्मनी और इंग्लैंड पहुंचा था और अब दुबई की तैयारी है. राहुल का ये दौरा अक्टूबर के आखिर में प्रस्तावित है. कांग्रेस अध्यक्ष इस दौरे में भी बाकी विदेशी यात्राओं की तरह बेबाक तरीके से अपनी राय रखेंगे. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राहुल के इस दौरे को ऐतिहासिक बनाने के लिए ऐसे स्टेडियम की भी बुकिंग कराने की कोशिश की जा रही है, जिसकी क्षमता 50000 लोगों की हो. क्योंकि वहां 34 लाख भारतीय हैं, इसलिए 50 हज़ार की क्षमता वाले स्टेडियम को भरकर राहुल की लोकप्रियता को दिखाने की भी कोशिश रहेगी. इसके लिए क्रिकेट के लिए मशहूर शारजाह स्टेडियम को भी एक विकल्प माना जा रहा है और उसकी बुकिंग की कोशिश भी की जा रही है. गौरतलब है कि चुनाव की तैयारियों में जुटे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विदेशों में भी भारतीय प्रवासियों से संवाद करने और समाज के हर वर्ग को साधने में जुटे हैं. अब राहुल गांधी हर वर्ग के साथ जुड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
दिल्ली से सटे फरीदाबाद में होंडा सिटी गाड़ी से आए हथियारबंद चोरों ने रेस्टोरेंट में घुसकर लाखों रुपये के सामान पर हाथ साफ कर दिया. चोरी की यह वारदात रेस्टोरेंट में लगे सीसीटीवी में कैद हो गई. पुलिस फुटेज के आधार पर चोरों की तलाश में जुटी है. शुक्रवार सुबह चोरों ने फरीदाबाद के सूरजकुंड रोड स्थित शिबिया रेस्टोरेंट को अपना निशाना बनाया. हथियारबंद चोर ताला तोड़कर रेस्टोरेंट में दाखिल हुए. जिसके बाद चोर कैश काउंटर से 30 हजार रुपये समेत वहां रखा लाखों रुपये का सामान ले उड़े. 20 मिनट तक चोरों ने बड़े ही आराम से रेस्टोरेंट में जमकर लूटपाट की. जाते-जाते चोर वहां लगे एलईडी भी अपने साथ ले गए. रेस्टोरेंट मालिक अंकित अरोड़ा ने बताया कि शुक्रवार सुबह जब वह रेस्टोरेंट खोलने आए तो अंदर का मंजर देख वो सन्न रह गए. उन्होंने फौरन पुलिस को इसकी सूचना देते हुए सीसीटीवी फुटेज खंगाला. सीसीटीवी फुटेज में खुलासा हुआ कि चोरों ने सुबह 4 से 5 बजे के बीच रेस्टोरेंट में धावा बोला था. अंकित अरोड़ा की मानें तो चोरों ने 5 से 6 लाख रुपये के सामान पर हाथ साफ किया है. सीसीटीवी में नजर आ रही गाड़ी का नंबर दिल्ली आरटीओ में रजिस्टर्ड है. यह कार पहले भी चोरी की वारदातों में इस्तेमाल की जा चुकी है. एसीपी (क्राइम) राजेश चेची ने बताया कि चोरों को पकड़ने के लिए एक टीम बनाई गई है. उनकी तलाश में टीम जगह-जगह दबिश दे रही है.
हॉलीवुड सुपरहीरो फिल्म एवेंजर्स इन्फिनिटी वॉर का देश-विदेश के बॉक्स ऑफिस पर शानदार कलेक्शन जारी है. मूवी को जबरदस्त कहानी के लिए अलावा इसके क्रिएटिव आर्टवर्क के लिए भी सराहा जा रहा है. फिल्म के पोस्टर्स से लेकर करेक्टर्स के कॉस्टयूम तक में इस्तेमाल की गई क्रिएटिविटी की सिनेप्रेमियों ने तारीफ की है. लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि एवेंजर्स का पोस्टर पॉपुलर जापानी एनिमेटेड टीवी सीरीज ड्रैगन बॉल सुपर से कॉपी है. फेसबुक पर Badtrip नाम के अकाउंट से एक तस्वीर शेयर कर दावा किया गया है कि मार्वल स्टूडियो ने पॉपुलर एनिमेटेड सीरीज ड्रैगन बॉल सुपर का पोस्टर अपनी फिल्म के लिए कॉपी किया है. बॉलीवुड Box office पर Avengers का धमाल, 2 दिन में कमाई 80 करोड़ चोरी करने का ये आरोप मार्वल फैंस को नागवार गुजरा. फैंस का कहना है कि ड्रैगन बॉल सुपर का आर्ट इन्फिनिटी के पोस्टर से इंस्पायर है. एक यूजर ने दावा किया कि ड्रैगन बॉल सुपर का ये पोस्टर 23 मार्च को सामने आया था. जबकि मार्वल ने 17 मार्च को ही इन्फिनिटी का पोस्टर रिलीज कर दिया था. कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर कई आर्टिस्ट ऐसे हैं जो मूवी के पोस्टर से इंस्पायर होकर आर्ट बनाते हैं. फिर उसे सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. इसे फैनमेड पोस्टर बताया जा रहा है. यूजर्स ने इसे फैनआर्ट बताते हुए कहा है कि लोग असल में ऐसे पोस्टर पर यकीन करने लगते हैं. IPL का खौफ नहीं: भारत में इस डेट पर रिलीज फिल्में बनती ही हैं ब्लॉकबस्टर हॉलीवुड की साल की पहली धमाकेदार शुरुआत एवेंजर्स इन्फिनिटी वॉर बॉक्स ऑफिस पर कमाई के सारे पुराने रिकॉर्ड्स ध्वस्त कर रही है. 27 अप्रैल को रिलीज हुई इस फिल्म ने भारत में 80 करोड़ (ग्रॉस) रुपये की कमाई कर ली है. पद्मावत का रिकॉर्ड तोड़ सबसे बड़ी ओपनर बन एवेंजर्स ने एक बार फिर बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस पर अपना परचम लहरा दिया है.
अरविंद केजरीवाल 'इंडिया टुडे न्यूजमेकर ऑफ द ईयर 2013' हैं. इसके लिए आप 6 जनवरी 2014 के इंडिया टुडे मैग्जीन का अंक आप देख सकते हैं. इंडिया टुडे के मैनेजिंग एडिटर एस प्रसन्नाराजन ने आम आदमी पार्टी के इस नेता से बातचीत की. अरविंद ने सरकार को लेकर अपने विचार और योजनाएं बताईं. सवाल: एक स्ट्रीट फाइटर से सत्ता में आ गए हैं आप. इस बदलाव को आप किस तरह देखते हैं? जवाब: जिंदगी मेरे लिए एक समान रहती है. अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहने को ही मैंने जीवन समझा है. यह लड़ाई जारी है. हां, इसके तरीके जरूर बदल रहे हैं. पहले हमने सूचना का अधिकार के लिए अभियान चलाया, फिर हमने लोकपाल मूवमेंट किया और उसके बाद एक राजनीतिक दल बना लिया. इस तरह रणनीति बदल रही है, लेकिन अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी है. सवाल: पावर में आने के बाद भी आपका संघर्ष जारी रहने वाला है? जवाब: हां. जब आप पावर में होते हैं तो इस पर निर्भर करता है कि आप उसे किस नजरिए से देखते हैं. अगर पावर एक जिम्मेदारी है तो फिर अन्याय के खिलाफ जंग जारी रहती है. लेकिन अगर पावर से अकड़ आ जाए तो फिर वह समस्या बन जाती है. फिर आप दूसरे के लिए समस्याएं पैदा करते हैं और दूसरे आपके खिलाफ लड़ने के लिए उतर आते हैं. सवाल: स्ट्रीट फाइटर का रोमांस अब पूरा हो चुका है. क्या अब आप असली राजनीति की कड़वी सच्चाई के लिए तैयार हैं? जवाब: हमारे लिए यह कभी रोमांस नहीं था. हर कदम पर जिम्मेदारी की भावना थी. अगर यह हमारे लिए एंटिक एक्स्पीरिएंस होता तो हम लोगों ने मूवमेंट के खत्म होने के साथ ही सब कुछ छोड़ दिया होता. जब हमने राजनीतिक दल बनाया तो कई लोगों ने समझा कि हम सत्ता के लालची हैं. तब हमारी छवि दांव पर लगी थी. यह कहना गलत होगा कि तब रोमांस था और अब जिम्मेदारी. सवाल: विकेंद्रीकरण अपने विचार का मूल है. ऐसा करने के लिए आप क्या करने जा रहे हैं. बदहाल संस्थाओं को ठीक करने वाले हैं या उन्हें हटा देने वाले हैं. जवाब: कुछ संस्थानों को मजबूत करने की जरूरत है, कुछ संस्थाओं के निर्माण किए जाने की आवश्यकता है. और कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जिन्हें हटाना पड़ेगा. सवाल: क्या आप विस्तार से बताए पाएंगे? जवाब: CAG और न्यायपालिका बहुत जरूरी संस्थाएं हैं, इन्हें मजबूत करने की जरूरत है. कुछ नए संस्थान जैसे कि लोकपाल, मोहल्ला सभाएं, वार्ड सभाएं बनाए जाने की आवश्यकता है. और अगर कोई संस्था है जो बेकार हो चुकी है, उसे हटाया जाना चाहिए. फिलहाल किसी विशेष के बारे में मैं नहीं सोच रहा. सवाल: विकेंद्रीकरण का विचार आपको कहां और कब मिला? जवाब: यह एक धीमा प्रोसेस है. जब मैं अरुणा जी (अरुणा रॉय) से मिला तब मैंने 'सूचना का अधिकार' के बारे में जाना. तब 2001 था. हम RTI पर काम कर रहे थे. उसी दौरान हमारे सामने भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए. हम जब भी किसी काम के लिए सरकार के पास जाते थे, सरकार कहती थी कि इसके लिए फंड नहीं है. हमने फिर देखा कि कई पश्चिमी देशों में आम आदमी की भागीदारी सरकार में सीधे तौर पर है और बहुत ज्यादा है. अंतिम फैसला जनता ही लेती है. इसके बाद यह पूरा विचार मेरे मन में आया. सवाल: मैंने आपकी किताब 'स्वराज' पढ़ी. क्या विकेंद्रीकरण और स्वराज दोनों समान हैं? जवाब: हां, लगभग समान हैं. स्वराज का मतलब है कि लोगों के पास खुद पर शासन करने की शक्ति हो, यही डायरेक्ट डेमोक्रेसी है. विकेंद्रीकरण (Decentralisation) का इस्तेमाल करना गलत होगा. इससे लगता है कि पावर केवल ऊपरी स्तर पर है. वास्तव में पावर नीचले स्तर पर होती है. अब समय आ गया है कि टॉप के हाथ से पावर ले ली जाए. सवाल: क्या आपका स्‍वराज का विचार गांधी से प्रेरित है? जवाब: बेशक, हमने गांधी को पढ़ा है. हमने बहुत से देशों के अनुभव से सीखा है. यही नहीं प्राचीन और मध्य भारत के युग से भी कई रोचक अनुभव हमारे सामने हैं. देखा जा सकता है कि प्राचीन भारत में (ब्रिटिश राज से पहले) भी छोटे-छोटे स्तरों पर डायरेक्ट लोकतंत्र काम करता था. सवाल: 21वीं सदी के भारत के बारे में आपका क्या विजन है? जवाब: ऐसा समाज, जहां हर धर्म और जाति के लोग एक साथ शांति और समानता से रहते हों. वे एक दूसरे की इज्जत करते हों. सभी लोग अच्छे शिक्षित हों. हर कोई इस काबिल हो कि वह कमा सके और अपने परिवार का गुजारा आसानी से कर पाए. मैं यह नहीं कर रहा कि हर कोई बहुत ज्यादा अमीर हो, लेकिन इतना हो होनी ही चाहिए कि उसे अच्छी शिक्षा और खाना उपलब्ध हो सके. सवाल: अब आप सत्ता में आ रहे हैं, तो अब आप प्रतिरोध के विचार और सरकार की वास्तविकता के बीच संतुलन कैसे साधेंगे? जवाब: मैं आयकर विभाग में काम कर चुका हूं. हमारे साथ कई लोग हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर चुके हैं. हमारे पास बहुत अच्छे लोगों का मिश्रण है. तो ऐसा नहीं है कि ये लोग सारी जिंदगी प्रतिरोध ही करते रहे हैं. सही कहूं तो हम ये भी नहीं सोचते कि हमारे पास ही पूरा दिमाग है और हम सब कुछ बदल देंगे. हमारे पास जादू की छड़ी नहीं है. लेकिन हमें विश्वास है कि जब दिल्ली में रहने वाले डेढ़ करोड़ लोग एक साथ आएंगे तो हर समस्या का समाधान संभव होगा. हम सरकार की परिभाषा बदल देंगे. अब दिल्ली का हर आदमी सरकार होगा. सवाल: अगर आप स्‍वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को भी देखें तो आजादी के लिए लड़ने से मुश्किल आजादी को बनाए रखना है. क्‍या आपको लगता है कि आपके लिए मुश्किल समय आगे आने वाला है? जवाब: यह एक बड़ी जिम्‍मेदारी है. यह सिर्फ जिम्‍मेदारी नहीं बल्कि जिस तरह की उम्‍मीदें लोगों को हमसे हैं वे बहुत बड़ी हैं और कभी-कभी वास्‍तव में मुझे डर लगता है. मैंने अपने सभी विधायकों से कहा है कि पूरी दुनिया की नजरें उन पर हैं, अगर उन्‍होंने छोटी सी भी गलती की तो इतिहास उन्‍हें कभी माफ नहीं करेगा. सवाल: एक व्‍यक्ति के नेतृत्‍व में चलने वाले ज्‍यादातर आंदोलनों में जब भी वे सत्ता में आते हैं तो हमेशा सर्वोच्‍च नेता के सर्वेसर्वा बनने का खतरा रहता है. उम्‍मीद करते हैं कि आपके साथ ऐसा न हो. जवाब: विकेन्‍द्रीकरण ही इसका उत्तर है. अगर मेरे पास ही बहुत सारी ताकत होगी तो मुझे लगता है कल को मैं अभिमानी हो सकता हूं, सबकी पहुंच से दूर हो सकता हूं. शायद में भ्रष्‍ट नहीं हो सकता, लेकिन और भी कई व्‍यक्तित्‍व से जुडी कमियां हो सकती हैं. चुनौती यही है कि सारी शक्तियां मेरे पास नहीं होनी चाहिए, शक्ति जनता के पास होनी चाहिए. सवाल: अब तक तो सत्ता विकेन्‍द्रीकरण और स्‍वराज जैसे बड़े-बड़े विचार थे. लेकन प्रशासन में सब कुछ धरातल पर होता है. जवाब: मैं पूरी तरह से आपके साथ सहमत हूं. और मैं आपको बता दूं कि हमने भी कुछ हद तक डिटेल में काम किया है. इसके लिए हमने कुछ बहुत ही वरिष्‍ठ सेवानिवृत नौकरशाहों की मदद ली है. लेकिन अब सब कुछ झाड़ने की जरूरत है और हम भरोसा दिलाते हैं कि दिल्‍ली प्रशासन में अच्‍छे अधिकारी सिस्‍टम को डिजाइन करने में मदद करेंगे. ऐसा नहीं है कि हम बिल्‍कुल परफेक्‍ट सिस्‍टम बना देंगे, बल्कि हमें इसमें लगातार बदलाव लाने होंगे. यह एक निरंतर गतिशील प्रक्रिया होगी. सवाल: क्‍या आपने कभी इस तरह के लम्‍हे की कल्‍पना की थी? जवाब: मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि मैं चुनाव लडूंगा और एक राजनीतिक पार्टी बनाऊंगा. सवाल: क्‍या आप धर्म में विश्‍वास रखते हैं, क्‍या आपको कर्म में विश्‍वास है? जवाब: हां मैं कर्म में विश्‍वास रखता हूं. अपने बचपन में मैं आस्तिक था, जब आईआईटी गया तो नास्तिक हो गया. लेकिन पिछले तीन सालों में मैं एक बार फिर से ईश्‍वर में विश्‍वास करने लगा हूं. क्‍योंकि एक आंदोलन जो काफी बड़ा आंदोलन बन गया, तब मुझे एहसास हुआ कि हम कितने छोटे थे. ये हमारी वजह से नहीं था, जरूर कोई पारलौकिक शक्तियां इसके पीछे थीं. सवाल: तो आपमें भी कुछ बदलाव आए हैं? जवाब: बिल्‍कुल, हमारे लिए यह एक निरंतर यात्रा है. यह एक आध्‍यात्मिक यात्रा है. सवाल: आप किस स्‍वभाव के व्‍यक्ति हैं प्रकृति, प्रेरणा या तार्किक जवाब: आप सिर्फ प्रेरणा या उमंग के भरोसे नहीं चल सकते और आप हमेशा तार्किक भी नहीं हो सकते क्‍योंकि जिस तरह का काम हम कर रहे हैं वह उमंग और प्रेरणा से होता है और प्रकृति व भावनाओं की इसमें अहम भूमिका होती है. जब आप चीजों की योजना बनाते हैं तो तर्क काम करते हैं. सवाल: एक बहुत व्‍यस्‍त दिन के बाद आप किस तरह की किताब बढ़ना पसंद करते हैं? जवाब: पिछले कुछ सालों से मैंने कोई किताब नहीं पढ़ी है. मैंने आखिरी बार भागवद् गीता पढ़ी थी. मेरे पास बिल्‍कुल भी समय नहीं है. सुबह जब मैं मॉर्निंग वॉक के लिए जाता था तो भजन सुनता था, लेकिन अब तो वह भी छूट गया है. सवाल: जनमत संग्रह के लिए आपके जुनून को देखते हुए, क्‍या ये आने वाली चीजों का संकेत है? जब भी कुछ बड़े निर्णय लेने होंगे तो क्‍या आप हर बार जनमत संग्रह कराएंगे? जवाब: जाहिर से आप जनमत संग्रहों से सरकार नहीं चला सकते. लेकिन साल में एक बार, दो साल में एक बार जब कभी कोई बड़ा निर्णय लेना होगा, मुझे लगता है जनता से राय जरूर लेनी चाहिए. सवाल: आप लोकतंत्र में आम सहमति को महत्‍वपूर्ण निर्णय लेने के लिए सबसे अच्‍छा तरीका मानते हैं? लेकिन एक नेता जनता की भलायी के लिए अलोकप्रिय निर्णय भी ले सकता है. तो क्‍या आप ऐसे जरूरी निर्णय नहीं लेंगे. जवाब: कुछ लोगों का मानना है कि जनमत संग्रह या जनता की राय से अलोकप्रिय निर्णय नहीं लिए जा सकते. मैं इससे सहमत नहीं हूं. उन्‍हें पता ही नहीं है कि जनता कैसे काम करती है. हमने ऐसी कई सार्वजनिक बैठकों का आयोजन किया है और उनमें बेहद अलोकप्रिय फैसले लिए गए हैं. इसकी एक ही शर्त है कि ईमानदारी से मुद्दे की सभी अच्‍छाईयां और बुराईयां लोगों के सामने पेश करें. सवाल: कभी आप गांधीवादी की तरह बात करते हैं और कभी कम्‍यु‍निस्‍ट लगते हैं. जवाब: असल में हम बहुत साधारण लोग हैं. हम समाधान चाहते हैं. हमारी अपनी समस्‍याएं हैं. हमें पानी की समस्‍या है, बिजली की समस्‍या है, सड़क की समस्‍या है, शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य की भी समस्‍या है. अगर साम्‍यवादी तरीके से हमारी समस्‍याओं का हल निकलता है तो हम वहां से समाधान निकालेंगे और अगर समाजवादी तरीके से हमारी समस्‍याएं हल होंगी तो हम वहां से हल ढूंढेंगे. हम किसी भी तरह से समस्‍याओं का समाधान चाहते हैं. सवाल: आप एक साधारण व्‍यक्ति के प्रतीक रहे हैं. क्‍या अब साधारण व्‍यक्ति बने रहना एक बोझ जैसा होगा. जवाब: मुझे नहीं लगता कि यह कोई बोझ है. मुझे लगता है आप क्‍या हैं यह आपके अंदर है. मेरे लिए कोई और बन जाना नामुमकिन है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का दक्षिण भारत के राज्य  केरल के वायनाड  से लड़ने का फैसला का कितना असर रहा है यह तो 23 मई को आने वाले नतीजे बताएंगे लेकिन एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस को फायदा होता दिखाई दे रहा है. हालांकि यह असर केरल और तमिलनाडु तक ही सीमित है. एनडीटीवी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक आंध्र प्रदेश की 25 सीटों में टीडीपी को 10, वाईएसआर कांग्रेस को 15, कांग्रेस और बीजेपी को कोई भी सीट मिलती नहीं दिखाई दे रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में टीडीपी को 15, वाईएसआर कांग्रेस को 8, बीजेपी को 2 और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी.  दक्षिण के इस राज्य में कांग्रेस को फायदा होते नहीं दिखाई दे रहा है. अब बात करें कर्नाटक की तो एनडीटीवी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक राज्य की 28 सीटों में से सत्तारूढ़ कांग्रेस-जेडीएस को 9, बीजेपी को 19 और अन्य के खाते में एक भी सीट नहीं जा रही है. साल 2014 के आंकड़ों से देखें तो इस चुनाव में बीजेपी को 17 और कांग्रेस को 9 औ जेडीएस को 2 सीटें मिली थीं. अब बात करें केरल की जहां के वायनाड सीट से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा था. एनडीटीवी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक कांग्रेस गठबंधन को 14, वामदलों को 4, बीजेपी को 1 और अन्य के खाते में 1 सीट जाते दिखाई दे रही है. वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11, वामदलों को 7 और अन्य के खाते में एक सीट गई थी.  तमिलनाडु में इस बार दो दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और करुणानिधि के बिना लोकसभा चुनाव हुआ है. जयललिता और करुणानिधि के न रहने से एआईएडीएमके और डीएमके में अंदरुनी खींचतान जारी है. बीजेपी ने सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के साथ गठबंधन किया है और कांग्रेस ने डीएमके के साथ. एनडीटीवी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक राज्य की 39 सीटों में से एआईएडीएमके+बीजेपी को 11, डीएमके+कांग्रेस को 27 और अन्य के खाते में एक भी सीट जाते नहीं दिखाई दे रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एआईएडीएमके को 37, बीजेपी को 2 और पीएमके को 1 सीट मिली थी.  आंध्र प्रदेश से अलग हुए तेलंगाना की 17 सीटों में एनडीटीवी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक से सत्तारूढ़ टीआरएस को 12, कांग्रेस को 2, बीजेपी को 1 और अन्य के खाते में 1 सीट जाते दिखाई दे रही है.  साल 2014 के लोकसभा चुनाव में टीआरएस को 11, बीजेपी को 1, कांग्रेस को 2  और अन्य के खाते में 3 सीटें गई थीं. अगर नतीजे यही रहते हैं तो तमिलनाडु और केरल को छोड़कर कांग्रेस को किसी भी राज्य में कोई बहुत फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है. कर्नाटक की 28,  आंध्र प्रदेश की 25, केरल की 20, तेलंगाना की 17,  पुदुच्चेरी की 1, तमिलनाडु की 39 सीटें मिलाकर यहां पर कुल 130 सीटे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी  के वायनाड में चुनाव लड़ने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि कांग्रेस का अब पूरा फोकस दक्षिण के राज्यों में पैठ बनाने की है क्योंकि उत्तर भारत में उसे क्षेत्रीय दलों जैसे उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और बिहार में आरजेडी सहित कई अन्य पार्टियां तो दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में टीएमसी और ओडिशा में बीजू जनता दल से पार पाना इतना आसान नहीं होगा और उसे इन राज्यों में बीजेपी के साथ-साथ इन पार्टियों के बराबर वोटबैंक बढ़ाना होगा जो कि इतना आसान नहीं है. लेकिन दक्षिण की राजनीति में उसे संभवाना दिख रही है और यह कांग्रेस के लिए 'एक तीर से 130 निशाने' लगाने वाला दांव था.
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भद्रवती और शिमोगा में जमीनों की अधिसूचना अवैध रूप से रद्द किए जाने के आरोप को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और उनके बेटे बीवाई राघवेंद्र तथा 5 अन्य लोगों को अग्रिम जमानत दे दी. न्यायमूर्ति केएन केशवनारायण ने इन लोगों को अग्रिम जमानत दी. बीते 15 नवंबर को शिमोगा स्थित वकील बी विनोद ने लोकायुक्त अदालत के न्यायाधीश के समक्ष एक मेमो सौंपा था. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा को लिखे पत्र की प्रति भी दी थी.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह दो साल पहले कांग्रेस के साथ मतभेदों के चलते अपनी खुद की पार्टी बनाना चाहते थे, लेकिन भाजपा में शामिल होने के बारे में कभी सोचा नहीं था.   यह पूछे जाने पर कि क्या वह भाजपा में शामिल होने के बारे में सोच रहे थे तो उन्होंने कहा, ‘यह पूरी तरह बकवास है.’ उन्होंने कहा, ‘दो साल पहले कांग्रेस में मतभेद हो गया और मैंने कहा कि मैं अपनी खुद की पार्टी बनाऊंगा. भाजपा में शामिल होने का सवाल कहां से आ गया? मेरा मानना है कि बहुत सारे चैनल हैं और बहुत कम खबरे हैं.’ वह अपनी जीवनी ‘द पीपुल्स महाराजा’ के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा कि बिहार का विकास केन्द्र के नहीं बल्कि राज्य के पैसे से हुआ है. राजगीर में जनता दल (युनाइटेड) के दो दिवसीय कार्यकर्ता सम्मेलन के दूसरे दिन कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा उन्होंने कहा, 'सोनिया गांधी कहती हैं कि केन्द्र सरकार के पैसे से बिहार का विकास हुआ है. वह बताएं कि केन्द्र सरकार के कौन से पैसे से बिहार का विकास हुआ है.' नीतीश ने कहा कि राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गो की भी मरम्मत राज्य के पैसे से करवाई गई है. उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस के लोग केवल मनरेगा की बात करते हैं कि जबकि राज्य में सरकार द्वारा 40 योजनाएं चलाई जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री को बिहार आने के लिए कई बार निमंत्रण दिया गया परंतु वे कुछ देने के डर से यहां नहीं आए. उन्होंने कहा कि अगामी विधानसभा चुनाव में लोग काम के आधार पर मतदान करेंगे ना कि जाति के आधार पर. नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद पर भी निशाना साधते हुए कहा, 'वह (लालू) तो 'मिस्टर टर्न अराउंड' हो गए हैं. वह कब कहां टर्न कर जाएं कोई नहीं जानता.'
यह लेख है: छात्रावास के मेस में खाना खाने के बाद करीब 40 छात्राएं बीमार हो गईं और उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। स्कूल और अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि बीमार पड़ी इन लड़कियों की उम्र 10 और 16 साल के बीच है और वे ‘सेवासदन’ की छात्राएं हैं। शनिवार रात में खाना खाने के बाद उन्होंने पेट में दर्द और जी मिचलाने की शिकायत की। इसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया।टिप्पणियां उन्होंने बताया कि इलाज के बाद इन में से 17 लड़कियों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। शेष छात्राओं की हालत स्थिर है और वे खतरे से बाहर हैं। स्कूल प्रशासन ने बताया कि संदिग्ध विषाक्त भोजन को लेकर उन्होंने जांच शुरू की है। इस बीच, इस घटना की जांच कर रहे इंस्पेक्टरर हेमंत भट ने बताया कि मेस में छात्राओं को दिये गये भोजन का नमूना जांच के लिए एकत्र कर लिया गया है। इसमें बीन्स और करी शामिल है। उन्होंने बताया कि इलाज के बाद इन में से 17 लड़कियों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। शेष छात्राओं की हालत स्थिर है और वे खतरे से बाहर हैं। स्कूल प्रशासन ने बताया कि संदिग्ध विषाक्त भोजन को लेकर उन्होंने जांच शुरू की है। इस बीच, इस घटना की जांच कर रहे इंस्पेक्टरर हेमंत भट ने बताया कि मेस में छात्राओं को दिये गये भोजन का नमूना जांच के लिए एकत्र कर लिया गया है। इसमें बीन्स और करी शामिल है। इस बीच, इस घटना की जांच कर रहे इंस्पेक्टरर हेमंत भट ने बताया कि मेस में छात्राओं को दिये गये भोजन का नमूना जांच के लिए एकत्र कर लिया गया है। इसमें बीन्स और करी शामिल है।
भूपृष्ठीय परिवर्तनों के अध्ययन को बहुधा गतिकीय भूविज्ञान (dynamical geology) भी कहते हैं। स्पष्ट है कि यह नाम पृष्ठीय वातावरण की गतिशील स्थिति की ओर संकेत करता हैं, किन्तु आजकल यह नाम कुछ विशेष प्रचलित नहीं हें और इसके स्थान पर भौतिक भूविज्ञान (Physical geology) अधिक प्रचलित है। इस विज्ञान के तीन मुख्य अंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं : (1) प्राकृतिक कारकों द्वारा पृष्ठीय शैलों का क्षय (decay), अपरदन (erosion) एवं अनाच्छादन (denudation) तथा उससे उत्पन्न अवसाद इत्यादि का परिवहन (transport), (2) अवसाद का संचयन (accumulation) तथा (3) संचित अवसाद का संयोजन (cementation) और दृढ़ीभवन प्राकृतिक कारकों द्वारा क्षय जो प्राकृतिक कारक पृष्ठीय पदार्थ को प्रभावित करते हैं, वे अपने क्रीडाक्षेत्र की परिस्थिति के अनुसार दो वर्गां में विभाजित किए जा सकते हैं : (अ) धरातलीय (surface) और (ब) आंतभौम (subgterranean) इनमें धरातलीय कारकों की क्रियात्मक ऊर्जा प्रधानतया एवं चरमत: सूर्य से उत्पन्न होती हैं। इस वर्ग में (क) वायुमंडल के विभिन्न अवयव, वर्षा इत्यादि, (ख) आंतभौम जल और सोते, (ग) नदी तथा (घ) हिमनदी, समुद्र तथा झील विशेष उल्लेखनीय हैं। इनका क्रीड़ाक्षेत्र मुख्यत: भुमंडल का थल भाग होता हैं, जिसमें समुद्री तट भी सम्मिलित होंगे। समुद्र के नितल पर इनका कुछ प्रभाव नहीं पड़ता और पृष्ठ के गहरे भागों में भी इनकी प्रवेश्यता अपेक्षाकृत अति सूक्ष्म होती हैं। आंतभौम कारकों की ऊर्जा का प्रधान स्रोत पृथ्वी की आंतरिक उष्णता ही है। इस वर्ग में पटलविरूपण (diastrophism) ज्वालामुखी क्रीड़ा, उष्ण और भूकंप इत्यादि आते हैं। स्पष्ट है कि इनका मूल क्रीड़ाक्षेत्र धरातल के नीचे है और उनसे उत्पन्न प्रभाव धरातल के ऊपर कभी आ जाते हैं और कभी नहीं आ पाते। वायुमंडल के विभिन्न अवयव वायुमंडल में चार ऐसे मुख्य अवयव हैं जो भूपृष्ठ के प्रति कार्यशील रहते हैं: (1) वर्षा, (2) ताप परिवर्तन, (3) तुषार और (4) वायु। वर्षा वर्षा एक बहुत सामान्य, किंतु अत्यंत शक्तिमान कारक है। इसके कार्य की विधि कुछ रासायनिक और कुछ बलकृत (mechanical) होती है। पूर्णतया शुद्ध जल में रासायनिक क्रिया करने की क्षमता प्राय: बिल्कुल नहीं होती। यद्यपि वर्षाजल पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व अधिकांश शुद्ध होता है, फिर भी आकाशमार्ग से आते समय उसमें वायुमंडलीय ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड दोनों ही पर्याप्त मात्रा में विलीन हो जाते हैं। आक्सीकृत और कार्बनीकृत वर्षाजल की अभिक्रिया से पृष्ठीय शैलों के अनेकानेक खनिज अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार ऑक्साइडों और कार्बनेटों में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ खनिज, अथवा अनके अणु, जल के साथ रासायनिक यौगिक हाइड्रेट भी बना लेते हैं। इस प्रकार वर्षालय की रासायनिक क्रिया द्वारा शिलाएँ अपघटित (decomposed) हो जाती हैं। नए बने हुए पदार्थों में कुछ विलेय होते हैं और कुछ अविलेय। विलेय अंश बनने के साथ ही जल में विलीन होकर बह जाते हैं और अविलेय अंश जहाँ के तहाँ छूट जाते हैं। अविलेय भाग में मिट्टी के अणु और बालू इत्यादि होते हैं, जो कालांतर में संचित होकर विविध भाँति की मिट्टी के स्तर बनाते हैं। कभी कभी अविलेय पदार्थ को संचित होने का अवसर ही नहीं मिल पाता, अपितु वर्षा का जल धरातल पर बहते हुए उसे भी पूर्णतया अथवा अंशत:, अपने साथ बहाकर ले जाता है। जब तक जल में पदार्थ को बहा ले जाने की शक्ति रहती है, तब तक वह बहता चला जाता है और शक्ति के क्षीण होने पर वह जहाँ तहाँ बैठ जाता है। इस प्रकार वर्षा के जल द्वारा बहाए हुए पदार्थ को (rain wash) कहते हैं। इसकी मात्रा धरातल की ढाल और वर्षा की गति पर निर्भर होती है। ढाल की प्रवणता और वर्षा की तीव्रता दोनों ही वर्षा के जल के बहाने की शक्ति को वर्द्धित करती हैं। वर्षा की क्रिया के परिणामों पर स्थानीय जलवायु का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, यदि दो प्रदेशों में वार्षिक वर्षा की मात्रा प्राय: समान हो, किंतु एक में हलके हलके छींटे बार बार पड़ते हों और दूसरे में कभी कभी किंतु बहुत तीव्र वर्षा होती हो, तो इन दोनों प्रदेशों में वर्षा का प्रभाव भिन्न भिन्न होगा। इसी प्रकार सूखे और बरसाती मौसमों के एकांतरणवाले प्रदेशों में भी वर्षा का प्रभाव एकदम भिन्न हो जाता है। ताप की विभिन्नता का भी वर्षा की क्रियाशीलता पर प्रभाव पड़ता है। उष्णताप्रधान देशों में वर्षा के जल में अपघटन करने की शक्ति, शीतप्रधान देशों की अपेक्षा, कहीं अधिक होती हैं। तापपरिवर्तन बारी बारी से गरमी और सर्दी के प्रभाव में पड़कर चट्टानें शनै: शनै: छिन्न भिन्न होकर मोटे या महीन चूरे के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। द्रव्य का यह साधारण गुण है कि गरमी के प्रभाव से फैलता है और सर्दी पाने पर सिकुड़ता है। फैलने एवं सिकुड़ने की मात्रा द्रव्यविशेष पर निर्भर होती है, अर्थात् कोई द्रव्य अधिक फैलता है और कोई कम। बहुत सी शिलाएँ दो, तीन या और अधिक खनिजों की बनी होती हैं। अत: दिन की गरमी में ये सब खनिज अपने अपने गुणों के अनुसार फैलते हैं और रात्रि में ठंढे होते हुए सिकुड़ते हैं। काई खनिज कम फैलता है, काई अधिक। जो खनिज अधिक फैलता है, वह दूसरों पर एक प्रकार का दबाव डालता है जिससे कण छिन्न भिन्न होने लगते हैं। दिन प्रति दिन इस प्रक्रम के चलते रहने से प्रभाव बढ़ता जाता है और कालांतर में शैलों की ऊपरी परतें चूर्णप्राय हो जाती है। प्रत्यक्ष है कि दिन और रात के ताप में जितना ही अधिक अंतर होगा, उतने ही अधिक वेग से शिलाएँ छिन्न भिन्न होंगी। इस क्रियामें खनिजों के रासायनिक संघटन में प्राय: बिल्कुल ही परिवर्तन नहीं होता, केवल खनिजों के पारस्परिक बंधन इतने ढीले पड़ जाते हैं कि वे एक दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। इसी से इस क्रिया को विघटन (Disintegration) कहते हैं। वर्षा और तापपरिवर्तन दोनों की सम्मिलित क्रिया से, जो बहुधा प्रकृति में होती है, शिलाओं के अपघटन और विघटन दोनों को प्रोत्साहन मिलता है। तुषार तुषार की क्रिया भी केवल बलकृत ही होती है। इस कारक की शक्ति का स्रोत यह सामान्य वृत्त है कि 4 डिग्री सें0 (प्राय: 39 डिग्री फा0) पर जल का आपेक्षिक घनत्व अधिकतम होता है। इससे और अधिक ठंढा होने पर घनत्व कम होने लगता है, अर्थात् दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि जल के आयतन में वृद्धि हो जाती है। 0 डिग्री सें0 (32 डिग्री फा0) पर जब जल बर्फ में रूपांतरित होता है, तब उसका आयतन प्राय: दशमांग बढ़ जाता है। अत: कृत्रिम विधि से बर्फ जमाने में इस बात का ध्यान रखना नितांत आवश्यक होता है कि बर्फ के बढ़े हुए आयतन के लिये पात्र में रिक्त स्थान होना चाहिए। इस स्थान के अभाव में फैलती हुई बर्फ के दबाव से पात्र के फूट जाने की आशंका हाती है। इसी वृत के अनुसार शीतप्रधान देशों में जब शिलाएँ तुषार के प्रभाव में आती हैं, तो उनके अंग अंग छिन्न भिन्न हो जाते हैं। शिलाओं के छिद्रों और विदरों में जल घुस जाता है और वह प्रति दिन सर्दी पाने पर जमता है और गरमी पाने पर पिघलता है। इससे कुछ ही काल में चट्टानों की ऊपरी परतों के अवयव कमजोर और प्राय: असंबद्ध हो जाते हैं। बाद में वर्षा तथा वायु आदि के आघात से वे सहज ही चूर चूर हा जाते हैं। बहुधा तुषार का यह प्रभाव विस्फोटी होता है। शीतप्रधान दशों के उन भागों में जहाँ वनस्पति कम हो, खुली, अनाच्छादित चट्टाने इस प्रकार टूटे हुए शैल खंडों से ढकी रहती हैं एवं पहाड़ियों के तलों में इस प्रकार से बने खंडों की बड़ी राशियाँ एकत्रित हो जाती हैं, जिसे शैलमलबा (Talus) कहते हैं। इन खंडों का कोई निश्चित आकार नहीं होता और इनके कोने बहुधा नुकीले एवं पैने होते हैं। शैल विघटन के लिये तुषार बहुत ही शक्तिशाली कारक है, किंतु इसका कार्यक्षेत्र केवल शीतप्रधान प्रदेश ही है। वायु वायु के विशिष्ट क्रीड़ाक्षेत्र रेगिस्तान और ऊँचे पार्वत्य प्रदेश हैं, जहाँ यह बहुधा तीव्र गति से बहती है। अनुकूल परिस्थितियों में इसमें बलकृत अपरदन करने की अपूर्व क्षमता होती है। इसकी शक्ति का मुख्य रहस्य इस बात में है कि यह अनगिनती छोटे बड़े बालू और मिट्टी के कणों को बड़ी तीव्र गति से उड़ा ले जाती है। प्रचंड वात में बहते हुए ये कण बारंबार एक दूसरे से टकराते हैं, जिससे अपघर्षण होता है और शनै: शनै: कण लघुतर होते जाते हैं। साथ ही झंझावात के मार्ग में जो पहाड़, चट्टानें एवं पत्थर के खंड आ जाते हैं, उन सबके उपर भी ये बालू झोंका (sand blast) की भाँति आघात करते हैं, जिससे वे सभी अपघर्षित होते रहते हैं। साधारणतया बालू धरातल से अधिक ऊँचाई तक नहीं उठ पाती। इस कारण वायु की अपरदन-क्रिया-क्षेत्र की ऊँचाई भी उसी अनुपात से सीमित रह जाती है। फलत: बहुधा रेगिस्तानी प्रदेशों में पहाड़ियों और चट्टानों के निचले भाग तो अपघर्षित हो पतले एवं संकीर्ण हो जाते हैं, किंतु ऊपर का धड़ अप्रभावित छूट जाता है। इस प्रकार के अधोरदन (undercutting) से कुकुरमुत्ता आदि सद्दश कुछ विलक्षण आकृतियाँ बन जाती हैं। रेगिस्तानी प्रदेशों में वायु की दिशा प्राय: बहुत समय तक समान बनी रहती है, जिससे इनकी अपघर्षण और अपरदन की दिशा भी बहुत समय तक अपरिवर्तित रहती है। इस कारण रेगिस्तानों में वायुत्पन्न गोलाश्म (boulder) गोल मटोल न होकर, कोणीय और फलकीय होते हैं। वस्तुत: इनके लिये गोलाश्म शब्द अनुपयुक्त है और उसके स्थान पर जर्मन शब्द ड्रीकैंटर (dreikanter) का प्रयोग करना चाहिए। वायु में अपरदन के साथ साथ परिवहन की भी विलक्षण शक्ति है। महीन बालू और धूल के कणों को बड़े विशाल परिमाण में वायु वर्ष प्रति वर्ष रेगिस्तानी प्रदेशों से उड़ाकर ले जाती है और ऐसे स्थानों में निक्षेपित कर देती है जहाँ उसका वेग कम हो जाता है और घास एवं झाड़ियाँ उसके मार्ग में रुकावट डालती हैं। इस प्रकार से परिवाहित पदार्थ के निक्षेपों को वायूढ़ बालू (aeolian sand) और वायूढ़ मृत्तिका कहते हैं। उत्तरी चीन में इस प्रकार से बनी वायूढ़ मृत्तिका का एक बड़ा विशाल निक्षेप हैं, जिसकी मोटाई 300 से 450 मीटर तक है और जिसे वायु मध्य एशिया के रेगिस्तानों से उड़ा कर यहाँ ले आई है। आंतर्भौंम जल ओर सोते वर्षा द्वारा लाए हुए जल का कुछ भाग वाष्पीकरण से पुन: वायुमंडल में चला जाता है, कुछ धरातल पर बहता हुआ नदियों के मार्ग से समुद्र में पहुँच जाता है और कुछ पृथ्वी में अंत:स्रवित हो जाता है। जो भाग धरातल पर बह जाता है, उसे अपवाह (run off) कहते हैं और जो पृष्ठ में अंत:स्रवित होता है, उसे भूमिगत अथवा आंतभौंम जल (Ground water or Vadose water) कहते हैं। इन तीनों भागों का पारस्परिक अनुपात स्थानीय जलवायु, स्थलाकृति और भौमिकी पर निर्भर रहता है। आद्र्र जलवायु के प्रदेशों में वाष्पीकरण की मात्रा प्रबल होती है। समान जलवायु के प्रदेशों मे स्थलाकृति की विषमता के साथ अपवाहित जल की मात्रा अधिक होती जाती है। भौमिकी का वृत्त भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि कुछ शिलाएँ बहुत रंध्री तो होती हैं, पर साथ ही उनकी प्रवेश्य (perviousness) बहुत अल्प होती है, जेसे शैल और मृत्तिका। इनके अतिरिक्त एक तीसरी श्रेणी की शिलाएँ न तो रंध्री होती और न प्रवेश्य, जेसे ग्रैनाइट। अत: अंत:स्रवित जल की मात्रा स्थानविशेष के शैलों के भौतिक लक्षणों पर निर्भर होती हैं। धरातल में कुछ गहराई पर पहुँचने पर, भूमि और शैल जल से संतृप्त हो जाते हैं। संतृप्ति की सतह को भौंमलज स्तर (Water table) कहते हैं। इस स्तर की गहराई क्षेत्रविशेष की वाÐषक वर्षा की मात्रा, स्थालाकृति और स्थानीय भौमिकीय संरचना पर निर्भर होती हैं। साधारणतया भौमजलांतर सूखे प्रदेशों की अपेक्षा आद्र्र क्षेत्रों में धरतल के समीप होता है। समुद्र, झील, सरोवर एवं बड़ी नदियों के समीपस्थ भागों में भी यह स्तर अपेक्षाकृत धरातल के समीप होता है। सूखा पड़ जाने से यह गहराई में चला जाता है और अति वृष्टि होने पर ऊपर आ जाता है। आंतभौंम जल पृष्ठ में कितनी गहराई तक समा सकता है, यह बात भी स्थानीय शैलों की संरचना पर निर्भर है। जल शैलकणों के बीच के रंध्री स्थानों और विवरों में समा जाता है, अत: जितनी गहराई तक शैलों में रंध्र, अथवा विदर होंगे, उतनी ही दूर तक आंतभौंम शैलों के दबाव के कारण अधिकांश विदर में संधितल बंद हो जाते हैं। रंध्रावकाश भी अल्प हो जा सकता है। ऐसी स्थिति में आंतभौंम जल अधिक गहराई में न जाकर पाश्र्व की ओर अग्रसर होने लगता है। अंतत: इसका लक्ष्य समुद्र है। कभी तो यह भूमिगत मार्गो से ही वहाँ पहुँच जाता है और कभी उसे ऐसे मार्ग मिल जाते हैं, जिनसे वह पुन: धरातल पर सोतों के रूप में पहुँच जाता है। खुले हुए तथा चौड़े विदरों और संधितलों के अतिरिक्त, अन्यत्र आंतभौंम जल की प्रवाहगति साधाणया अति मंद होती है। इसी कारण उसमें किसी प्रकार की बलकृत क्रिया करने की शक्ति नहीं होती, किंतु अनुकूल परिस्थितियों में यह रासायनिक क्रिया अवश्य कर सकता है। विदर और संधितलों के अनुप्रस्थ आगे बढ़ते हुए यह, वर्षाजल की ही भाँति, दीवारों के शैलों के खनिजों को ऑक्सीकृत, कार्बनीकृत, अथवा जलयोजित कर देता है और इस प्रकार शैल का अपघटन हो जाता है। जिस भूभाग में चूनापत्थर के शैल हों, वहाँ आंतभौंम जल को कार्य करने का बहुत बड़ा क्षेत्र मिल जाता है। कार्बनीकृत जल में चूनापत्थर विलीन हो जाता है। अत: चूनापत्थर के स्त्तरों में से बहता हुआ जल उसके अनेकानेक भागों को विलीन कर गुफाएँ बना डालता है। कभी कभी इस प्रकर बनी गुफाओं का आकार बड़ा, कई सौ मीटर तक लंबा और 4-5 मीटर गहरा हो जाता है और इनमें से बहता हुआ जल आंतभौंम नदी बना देता है। कहीं कहीं कार्बोनेटयुक्त जल गुफा की छत से टपकने लगता है। टपकते पानी की कुछ भाग वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है और उसमें विलेय कैल्सियम कार्बोनेट टपकनेवाले स्थान पर अवक्षेपित हो जाता है। एक ही स्थान पर बूँदों के बारंबार टपकने ओर उसी स्थान पर कैल्सियम कार्बोनेट के निरंतर अवक्षेपण से एक स्तंभाकर राशि बन जाती है, जिसे स्टैलेक्टाइट (Stal actite) कहते हैं। इसी प्रकार की क्रिया गुफा के फर्श पर टपके हुए जल के वाष्पकरण से भी होती है और उससे भी अवक्षेपित कार्बोनेट से ऐसी स्तंभाकर आकृति बनती है जो फर्श से छत की ओर बढ़ती है। इन आकृतियों की स्टैलेग्माइट (stalgmite) कहते है। कभी कभी स्टैलेग्माइट एक दूसरे की ओर बढ़ते हुए मिलकर गुफा की छत से फर्श तक का सतत स्तंभ बना देते हैं। कभी इस प्रकार अवक्षेपित कार्बोनेट की राशि का कोई विशिष्ट रूप नहीं होता। ऐसी अवस्था में उसे कैल्क निसाद (calc sinter), टूफा (tufa) या ट्रैवर्टाईन (travertine) कहते हैं। किन्हीं किन्हीं गुफाओं में इस प्रकार अवक्षेपित कार्बोनेट की मात्रा इतनी विशाल हो जाती है कि ऐसे कार्बोनेट से व्यवसाय चल सकता है। सोते ऊपर यह उल्लेख किया गया है कि कभी कभी आंतभौंम जल सोतों के रूप में पुन: धरातल पर लौट आता है। यह घटना स्थानीय शैलों के विशिष्ट विन्यास के ऊपर निर्भर करती है। यदि कोई बालूपत्थर का रंध्री शैल, र, इस प्रकार विन्यस्त हो कि उसके ऊपर और नीचे पूर्णतया अथवा प्राय: अपारगम्य शैल, मृत्तिका, शेल (shale) या अन्य कोई उसी गुण की शिलाएँ स्थित हों, तो आंतभैंम जल रंध्री शैल में रिसता हुआ, अपारगम्य शिला के ऊपरी संस्पर्श तल तक पहुँचने के बाद, स्तरों की ढाल के अनुसार पाश्र्ववर्ती दिशा में बढ़ने लगेगा। उसी दिशा में जहाँ कहीं वह शैल किसी प्राकृतिक काट (नाला, खड्ड इत्यादि) में अनाच्छादित हो प्रगट होगा, तो उस स्थान पर आंतभौंम जल सोतों के रूप में बहने लगेगा। बहुधा शैलों में उपस्थित भ्रंशतल भी सोतों के बनने में सहायता देते हैं। यदि किसी भ्रंश के कारण काई अपारगम्य शैल विस्थापित होकर रंध्री और पारगम्य शैल के सान्निध्य में अवस्थित हो जाय तो उस स्थान पर जहाँ भ्रंशतल किसी प्राकृतिक काट (नाला, इत्यादि) के अनुप्रस्थ अनाच्छादित होगा, वहाँ सोते फूटने लगेंगे। सोतों के पानी में प्राय: सदैव खनिज पदार्थ थोड़ी बहुत मात्रा में विलीन होते हैं। जब इनकी मात्रा भार के अनुसार 1 प्रति शत से अधिक हो, तब उसे खनिज सोता कहते हैं। पर सर्वसाधारण व्यवहार में किसी भी ऐसे सोते को, जिसके पानी में विलीन खनिज पदार्थ के कारण कुछ विशिष्ट स्वाद हो, खनिज सोता कहते हैं। पर सर्वसाधारण व्यवहार में किसी भी ऐसे सोते को, जिसके पानी में विलीन खनिज पदार्थ के कारण कुछ विशिष्ट स्वाद हो, खनिज सोता कहते हैं; किंतु कैल्सियम कार्बोनेट जैसे खनिज बहुत प्रचुर मात्रा में होने पर भी कुछ स्वाद नहीं देते और मैग्नीशियम के लवण अति अल्प मात्रा में भी स्वाद देने लगते हैं। सोतों का पानी बहुधा दबाव के अधीन होता है। पानी के बाहर आते ही दबाव में कमी हो जाती है और उसके साथ पानी की विलेयता में भी ह्रास हो जाता है। अत: सोतों के उद्गम स्थान पर बहुधा खनिज पदार्थ अवक्षेपित हो जाता है। इस पदार्थ का संघटन प्राय: चूर्णिक अथवा सिलिकीय होता है और ये निक्षेप संघटन के अनुसार, कैल्क निसाद (calc sinter), अथवा सिलिकीय निसाद (siliceous sinter) कहलाते हैं। कभी कभी लौह कार्बोनेट, अथवा अन्य लवण, या गंधक भी अवक्षेपित हो जाते हैं। किसी किसी सोते का पानी बहुत गरम होता है और कभी कभी पानी रेडियोएक्टिव भी होता है। बिहार राज्य में राजगिरि के गरम पानी के सोते बहुत प्रसिद्ध हैं। इन सोतों का पानी प्रायय: पृष्ठ के बहुत गहरे भागों से आता है। कुछ सोतों का पानी आंतभौंम न होकर मैग्मीय उत्पत्ति का भी होता है, अर्थात् ऐसा जल जो सुदूर गर्भ में मैग्मीय पदार्थ (द्रवीभूत शैल पदार्थ) से निकले हुए वाष्प से युक्त होता है। ऐसे सोते को मैग्मीय (magmatic) सोता कहते हैं। उत्स्रुत (Artesian) कूप कहीं कहीं आंतभौंम जल ऐसी विशिष्ट परिस्थिति में विद्यमान होता है कि उस स्थान पर कुआँ बनाने से पानी स्वत: ऊपर चढ़ आता है और कहीं कहीं तो पानी की धार फौवारे की भाँति धरातल से कई मीटर तक ऊपर उछलती हुई निकलती है। इन्हें उत्स्रुत कूप कहते हैं। इनके बनने के लिये अनिवार्य प्रवेश्य प्रतिबंध ये हैं: (1) आंतभौंम जल एक ऐसे रंध्रमय और अप्रवेश्य शैल के अंदर संचित हो जिसके ऊपर और नीचे दोनों ओर अपारगम्य शैल अवस्थित हों, (2) स्तरों के प्रवण की दिशा में जल के बहकर निकल जाने का मार्ग अवरूद्ध हो और (3) जल का मूल स्रोतस्थान, कुँआ बनाने के स्थान से इतनी ऊँचाई पर हो कि वांछनीय तरल स्थैतिक दाब उत्पन्न हो, जिसके प्रभाव से कुआँ बनने पर जल स्वत: धरातल तक ऊपर उठ जाय। मद्रास प्रांत के दक्षिण आर्कट जिले में नैवेली स्थान पर, जहाँ पीट (peat) के विशाल निक्षेप मिले हैं, बहुत ही उल्लेखनीय उत्स्रुत स्थिति पाई गई है। वहाँ उत्स्रुत जल की दाब और मात्रा दोनों ही इतनी अधिक हैं कि पीट के उत्खनन में बहुत कठिनाई हुई है, तथा जल को नियंत्रित करने के लिये विशेष साधन प्रयुक्त करने पड़े हैं। नदी प्राकृतिक कारकों में नदी बहुत ही प्रभावी तथा कार्यशील है। यह अपरदन, परिवहन और निक्षेपण, तीनों ही प्रकार के कार्य अत्यधिक परिमाण में करती है। यद्यपि वर्षाजल के कार्य का महत्व कुछ कम नहीं है, फिर भी नदी की क्रिया लंबी एवं अपेक्षाकृत संकीर्ण घाटियों में संकेंद्रित होने के कारण, इसका प्रभाव व फल अधिक स्पष्ट प्रतीत होता है। अपरदन वर्षाजल की भाँति ही नदी का जल भी अपनी घाटी के तल और किनारों के शैलों को रासायनिक क्रिया द्वारा अपघटित कर सकता है। इस प्रकार उत्पन्न अपघटित पदार्थ का विलेय अंश नदी के जल में घुल जाता है और अविलेय भाग भी धार के साथ बह जाता है। यह क्रिया नदी अपने पर्वतीय प्रदेश के मार्ग में सुगमता से करती है, क्योंकि वहाँ घार इतनी वेगवान होती है कि प्राय: सदैव नए, अनपघटित शैलों की स्तरें अनाच्छादित होती रहती हैं जिससे कि वे सहज ही क्रिया के प्रभाव में आती रहती हैं। किंतु मैदानी प्रदेश में धार का वेग कम हो जाने पर, घाटी का तल मृत्तिका और बालू के आवरण से आच्छादित हो जाता है। फलत: अनपघटित शैलों से संपर्क भी कम हो जाता है। जिन प्रदेशों में चूनापत्थर के शैल अधिक हों, वहाँ रासायनिक क्रिया बहुत प्रचुर परिमाण में होती रहती है, क्योंकि कार्बोनेटी जल में चूनापत्थर सहज ही विलीन हो जाता है। रासायनिक की अपेक्ष बलकृत अपरदन करने की शक्ति नदी में बहुत अधिक होती है। साधारणतया शुद्ध जल शैलों को अपघर्षित नहीं कर सकता, किंतु जब उसमें बालू और बजरी मिली हो तो स्थिति बदल जाती है, क्योंकि वे दोनों एक दूसरे को संबलित करते हैं। नदी का का जल शक्ति प्रदान करता है और बालू एवं बजरी अपघर्षण करते हैं, जिसके प्रभाव से तह और किनारे शनै: शनै: छोटे होते जाते हैं। साथ ही वे स्वयं भी तह के शैलों को अपघर्षित करने में भाग लेते हैं। नदी की अपघर्षण शक्ति घार की तीव्रता पर निर्भर है और धार की तीव्रता स्थलाकृति पर आधारित है। ढाल जितनी ही प्रवण होती है, धार भी उसी के अनुसार तीव्र होती है। साथ ही जल की मात्रा भी धार की गति को प्रभावित करती है। जल् की मात्रा के साथ धार की गति उसके घनमूल के अनुपात से बढ़ती है, अर्थात् यदि जल की मात्रा आठगुनी हो जाय, तो धार की तेजी दुगुनी हो जाती है। फलत:, जिन देशों में सूखे और बरसाती मौसम पृथक् पृथक् होते हैं, वहाँ नदियों की अपरदन शक्ति बरसात के दिनों में बहुत बढ़ जाती है। आरंभ में, विशेषकर कठोर चट्टानों के प्रदेश में, नदी के तट प्राय: एकदम खड़े और प्रपाती होते हैं। किंतु वायुमंडलीय कारकों के प्रभाववश, किनारों के ऊपरी भाग शनै: शनै: अपक्षीण होने लगते हैं। इससे उत्पन्न अपघटित और खंडित पदार्थ नदी बहा ले जाती है। इसके फलस्वरूप कालांतर में नदी की घाटी का परिच्छेद ज् आकार का हो जाता है अर्थात् उसके दोनों किनारे तल की ओर ढालू हो जाते हैं। नदी ऊँचे स्थान से बहकर समुद्र की ओर जाती है, अत: उसका प्रयत्न सदैव यही होता है कि वह थल भाग को काटकर इतना नीचा कर दे कि वह समुद्रतल के बराबर हो जाय। इस तरह नदी के शीर्ष से संगम तक के अनुदैध्र्य परिच्छेद की प्रवणता शीर्ष की ओर सबसे अधिक और संगम के समीप सबसे कम होती है। दूसरे शब्दों में, नदी का ऊध्र्वाधर कटाव घाटी के ऊपरी भागों में सबसे अधिक होता है और समुद्र की ओर बढ़ने पर कम होता जाता है। जब नदियों की घाटी ऐसी स्थित में पहुँच जाती कि ऊध्र्वाधर कटाव एक दम बंद हो जाय और उसकी घाटी का तल समुद्रतल के समान हो जाय, तो वह अपरदन के चरम स्तर (level erosion) पर पहुँच जाती है। वह घाटी, जिसमें ऊध्र्वाधर कटाव तीव्रता से प्रगतिशील हो, तरूण कहलाती है, जो चरमस्तर पर पहुँच चुकी हो उसे वृद्ध एवं इनकी अंतस्थ अवस्था को प्रौढ़ कहते हैं। एक ही घाटी के विभिन्न भागों में तीनों अवस्थाएँ विद्यमान हो सकती हैं। यदि किसी वृद्ध सरिता की घाटी के प्रदेश में विवेनिक (tectonic) शक्तियों के प्रभाव से स्थलाकृतिक परिवर्तन हो जाए तथा स्थल वैषम्य पुन: उत्पन्न हो जाए तो नदी का पुनर्युक्त हो जाता है और वह एक बार फिर ऊध्र्वाधर कटाई आरंभ कर देती है। साधारणतया नदी की घाटी की प्रवणता (gradient) क्रमिक हाती है, यद्यपि प्रवणता की मात्रा स्थान स्थान पर घट बढ़ सकती है। किंतु कभी कभी प्रवणनता अक्रमिक भी हो जाती है और जल प्रपात बन जाते हैं। यह स्थिति विशेषकर ऐसे प्रदेशों में होती जहाँ कठोर और मृदु शिलाओं का एकांतरण होता है। मृदु जल सुगमता से अपरदित होकर बह जाता है, जिससे वहाँ घाटी के उत्कीर्णन अधिक मात्रा में हो जाता है। कठोर स्तर अवरोधी है और जहाँ का तहाँ खड़ा रह जाता है। पानी उसके ऊपर से बहता हुआ घाटी के मृदु स्तरवाले अधिक उत्कीर्ण भाग में गिरने लगता है। इस प्रकार घाटी की प्रवणता अक्रमिक हो जाती है और जल प्रपात बन जाते हैं। बहुधा कालांतर में इन प्रपातों का स्थान भी क्रमश: नदी के शीर्ष की ओर हटता जाता है। होता यह है कि प्रपात के स्थान पर पानी के ऊँचाई से गिरने के कारण नदी की धार में तेजी आ जाती है, जिससे उसकी अपरदन शक्ति और बढ़ जाती है। प्रपात के ठीक नीचे एक प्रकार का दह बन जाता है, जिसमें भँवर पड़ने लगते हैं तथा उनमें तीव्रता से घूमता हुआ पानी प्रपात की दीवार को काटने लगता है। इस प्रकार नीचेवाला मृदू स्तर और भी तेजी से कटता जाता है और एक प्रकार का तलोच्छेदन होने लगता हैं, जिससे कठोर स्तर निरवलंब होकर बाहर को निकल आता है। कालांतर में तलोच्छेदन के और बढ़ जाने पर, कठोर स्तर का सबसे अग्रिम भाग अबलंब के अभाव में टूटकर गिर पड़ता है और प्रपात का स्थान गिरे हुए शैल की नाप के बराबर पीछे हट जाता है। यह क्रिया बारंबार होती रहती है और प्रति बार प्रपात का स्थान क्रमश: पीछे हट जाता है। इस प्रकार के अपरदन के कारण कड़ी चट्टान के टूटने से, प्रपात के प्रारंभिक स्थान से पीछे की ओर एक गहरी धाटी बनती चली जाती है। जबलपुर के सीप नर्मदा नदी की संगमर्मर के शैलों में उत्कीर्ण घाटी और भेड़ाघाट का जलप्रपात इस घटना का सुंदर द्दष्टांत है। विश्वविख्यात न्यागरा नदी का प्रपात इसी प्रकार बना है। वहाँ की गई मापों से मालूम होता है कि प्रपात प्रति वर्ष अपने स्थान से प्राय: डेढ़ मीटर पीछे हट जाता है। अनुमानत: इसी गति से प्राय: 11 किलोमीटर लंबी न्यागरा की घाटी को बनने में 20 से 35 हजार वर्ष तक लगे होंगे। और भी कई परिस्थितियों में जलप्रपात बन सकते हैं, किंतु मूलत: हर अवस्था में घाटी के विभिन्न अवयवों के अपरदन की गति में अंतर होना आवश्यक है। ये जलप्रपात घाटी की तरूण अवस्था के उपलक्षक होते हैं। अपरदन की चरम स्तर अवस्था में पहुँचने पर नदी की शक्ति अपने पाश्र्वो को काटने में लग जाती है। जब घाटी एकदम सीधी हो, तो दोनों पाश्र्व एक से कटते हैं, किंतु थोड़ी भी वक्रता आ जाने से असमानता उत्पन्न हो जाती है। घाटी के अवतल (concave) पाश्र्व की ओर धार में अधिक तीव्रता होती है और इसलिये उधर कटाव अधिक मात्रा में होता है। इसलिए विपरीत उत्तल (convex) पाश्र्व की ओर धार का वेग कम हो जाने से, न केवल कटाव बंद हो जाता है बल्कि नदी द्वारा विषमता और बढ़ जाती है और नदी का मार्ग अधिकाधिक वक्र होता जाता है। इस प्रकार विसर्पी मोड़ (meander) की उत्पत्ति होती है। बहुधा इन मोड़ों का आयाम (amplitude) अत्यधिक बढ़ जाता है और मोड़ भी बहुत जटिल हो जाते हैं। कभी कभी दो मोड़ एक दुसरे के इतने पास आ जाते है कि उनके बीच की एकदम सीधी दूरी, नदी के अनुप्रस्थ मार्ग की दूरी का दशमांश या और भी कम होती है। ऐसी अवस्था में कभी कभी दो मोड़ों के बीच संकीर्ण ग्रीवा को काटकर, सीधे मार्ग से बहने लगती है और एक या अधीक विसर्पी मोड़ परित्यक्त हो जाते हैं, जिन्हें छाड़न (ox-bow) कहते हैं। परिवहन नदी का परिवहन कार्य, प्राय: सभी प्राकृतिक कारकों की अपेक्षा अधिक प्रभावी होता है। निजी अपरदन से उत्पन्न जो शैल चूर्ण, बजरी, बालू और मिट्टी उत्पन्न होती है, वह सब नदी बहाकर समुद्र की ओर ले जाती है, साथ ही वायुमंडलीय कारकों, विशेष कर वर्षा जल द्वारा उत्पन्न शैल चूर्ण तथा खण्ड भी, कालांतर में किसी न किसी मार्ग से नदी की घाटी में पहुँच जाते हैं और उसकी धार में पकड़कर वे सब समुद्र की ओर धीरे धीरे आगे बढ़ते जाते हैं। जिन बड़े बड़े खण्डों को नदी की धार उठाने में असमर्थ होती है, वे तह के अनुप्रस्थ लुढकते हुए चलते हैं और छोटे कण निलंबित बढ़ते हुए चले जाते है। परिवहन की शक्ति धार की गति पर निर्भर है। यदि गति में वृद्धि की मात्रा व हो, तो परिवहन शक्ति व6 हो जायेगी। अर्थात् यदि गति बढ़कर दुगनी हो जाय, तो परिवहन शक्ति 64 गुणी हो जाएगी। इससे स्पष्ट है कि वर्षाती बाढ़ के समय नदियों की परिवहन शक्ति और साथ साथ विनाश शक्ति की मात्रा बहुत भयानक हो जाती है। गंगा, ब्रहापुत्र इत्यादि बड़ी नदियों के तटवर्ती निवासी इस विनाशकारी शक्ति से भलि भांति परिचित हैं। निलंबित बालू और मिट्टी के अतिरिक्त अनेकानेक पदार्थ नदियाँ अपने जल में विलीन कर, महादेशीय भागों से समुद्र की ओर ले जाती हैं। जैसा वर्षा जल और आंतभौम जल के प्रकरणों में बताया जा चुका हें, उनकी रासायनिक क्रिया प्रचुर परिमाण में होती हैं, जिससे विलेय पदार्थ भी उसी अनुपात में बनता हैं। यह सभी पदार्थ कालांतर में नदियों में पहुँच जाते हैं। नदियाँ स्वयं भी अपनी क्रिया से कुछ विलेय पदार्थ उत्पन्न करती हैं और यह सब क्रमश: समुद्र में पहुँच जाता हैं। गणना कर यह अनुमान किया गया है कि गंगा और ब्रहम्पुत्र अपने सम्मिलित मार्ग से प्राय: 1100 न् 106 घन मीटर मिट्टी और बालू प्रति वर्ष बंगाल की खाड़ी में पहुँचा देती है अमरीका की मिसिसिपी नदी द्वारा प्रति वर्ष परिवहित पदार्थ की मात्रा 200न्106 घन मीटर हैं। चीन की ह्वांगहो नदी इतने विशाल परिमाण में मिट्टी ले जाती हैं कि उसके मुहाने के पास का समुद्र मीलों दूर तक पीला बना रहता हैं और इसी से वह पीत सागर (Yellow sea) कहलाता हैं। दक्षिणी अमरीका में अमेजॉन नदी द्वारा बहाई मिट्टी और बालू से उसके मुहाने के सामने समुद्र के तल में जो डेल्टा सद्दश भूमि बन गई हैं, वह प्राय: 200 किलोमीटर लंबी है। अनुमानत:, विश्व की समस्त नदियों द्वारा प्रति वर्ष परिवहित पदार्थ की मात्रा 16 घन किलोमीटर आँकी गई हैं। निक्षेपण जैसा पूर्ववर्ती खंड में बताया गया हैं, नदी की परिवहन शक्ति उसकी धार की गति पर निर्भर होती है। अत: ज्योंही उसकी धार की गति में ह्ास होता है, उसकी लाद का कुछ अंश तुरंत निक्षेपित होने लगता है। नदी के मार्ग में सबसे पहला महत्वपूर्ण निक्षेपण केंद्र पहाड़ के तल में उस स्थान पर होता है जहाँ वह पार्वत्य प्रदेश छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है। काफी बड़े बड़े गोलाश्यम और छोटी बड़ी बटियाँ, जो घाटी में पार्वत्य भाग में सुगमता से लुढ़कती हुई चली आती है, नदी के मैदान में प्रवेश करते ही तल में बैठ जाती हैं। इस प्रकार पहाड़ों के तल भाग में एक निक्षेप बन जाता है, जिसे जलोढ शंकु, अथवा पंखा (alluvialo cone or fan) कहते हैं। दूसरा महत्वपूर्ण गति परिवर्तन का स्थान नदी के संगम के समीप होता है। एक तो घाटी की ढाल वहाँ पहुँचते पहुँचते यों ही बहुत कम हो जाती है, दूसरे समुद्र व झील का पानी भी बहाव को रोकता है। बहुधा धार का वेग इतना कम हो जाता है कि ज्वार का वेग नदी के वेग से अधिक होता है, जिसे ज्वार के समय नदी की धार उल्टी बहने लगती हैं। इसका फल यह है कि संगम के पास के प्रदेश में नदी बड़ी तीव्रता से अवसाद और तलछट निक्षेपित करने लगती है और उसकी अपनी बनाई हुई घाटी ही भरने लगती हैं। अवसाद के जमा होने से नदी का बहना और भी कठिन हो जाता है और नदी कट कटकर कई छोटी धाराओं में विभक्त हो जाती है। कालांतर में इस निक्षेपित अवसाद में एक चौरस मैदान सा बन जाता है, जिसमें से अनेक छोटी धाराएँ अति मंथर गति से बहती हुई समुद्र की ओर जाती हैं। यह मैदान त्रिभुजाकार होता है, जिसका एक शीर्ष नदी की घाटी के उस स्थान पर होता है जहाँ से धारा का विभाजन आरम्भ होता है और उसके सामने वाली आधार रेखा समुद्र के तट के अनुप्रस्थ होती है। इस प्रकार के प्रदेश को डेल्टा कहते हैं। नदी के संगम पर गति के अवरूद्ध होने से बहुधा बालू दीर्धाकार राशियों में निक्षेपित हो जाता है, जिसे बालुकाभित्ति, अथवा रोधिका (sand bar) कहते हैं। जलोढ़ शंकु और डेल्टा के बीच के भाग में नदी बहुधा मौसमी बाढ़ और उतार से प्रभावित होती रहती है। बाढ़ के समय नदी में इतना पानी आ जाता है जो उसकी घाटी में नहीं समा सकता। फलत: वह दोनों किनारों के ऊपर से होता हुआ कुछ दूर तक फैल जाता है। जो प्रदेश इस प्रकार बाढ़ के प्रभाव में आ जाता है, उसे बाढ़ मैदान (flood plain) कहते हैं। उस भाग में नदी की धार की गति मुख्य धार की अपेक्षा बहुत कम हो जाती है, जिससे वहाँ प्रचुर मात्रा में मिट्टी और बालू निक्षेपित हो जाती है। इसके विपरीत बाढ़ के समय मुख्य धार की गति साधारण समय की गति से बहुत अधिक होती है, इसलिये वहाँ अपरदन बढ़ जाता है और नदी पहले जमा की हुई बालू और मिट्टी को काटकर ले जाती है। जैसा पहले उल्लेख किया जा चुका है, नदी की चेष्टा अपनी घाटी को निरंतर गहरा कर, अपरदन के चरमस्तर पर पहुँचाने की होती है। घाटी की गहराई बढ़ जाने पर बहुधा ऐसी स्थिति आ जाती है कि बाढ के समय भी पहले वाली बाढ़ के मैदान तक न पहुँचने पाए। ऐसी दशा में नदी एक नया बाढ़-मैदान बनाती है। पुरानावाला बाढ़-मैदान नदी वेदिका (river terrace) कहलाता है। बहुधा नदी की घाटियों में अभिनव तल से काफी ऊपर दोनों किनारों पर, अथवा एक ही ओर, इस प्रकार की वेदिकाएँ दिखाई पड़ती है। कहीं कहीं तो 2-3 या और भी अधिक वेदिकएँ क्रमश: एक दूसरी के ऊपर विभिन्न तलों पर मिलती हैं। उनके अध्ययन से नदी की घाटी के विकास का इतिहास जाना जा सकता है। हिमनदी आदि ऊँचे पर्वतीय भागों और शीतप्रधान देशों में ठंडे मौसम में जल के बदले हिम वर्षा होती है। जिन प्रदेशों में हिम-वर्षा उस मात्रा में अधिक हो जितना गर्मी के समय में हिम पिघलता है, वे प्रदेश सदैव हिमाच्छादित रहते हैं। जिस ऊँचाई पर ऐसा होता है, उसे हिम रेखा कहते है। यह ऊँचाई विभिन्न विभिन्न अक्षांशों और प्रदेशों में विभिन्न होती है, यथा हिमालय में इसकी ऊँचाई प्राय: 4,500 से 5,500 मीटर तक है, आल्प्स पर्वत 2,400 मीटर और नॉर्वे में केवल 1,500 मीटर है। ध्रुवों के पास, विशेष कर दक्षिणी ध्रुव पर तो समुद्र का बहुत बड़ा भाग सदैव हिमाच्छादित रहता है। आकाश से आते समय हिम रूई के गालों के समान कोमल होता है। वस्तुत: उसमें प्रचुर मात्रा में वायु मिली होती है। जब एक बड़ी राशि एकत्रित हो जाती है, तो ऊपरी स्तरों की दाब से नीचे की स्तरों में से हवा निकल जाती है और हिमकण आपस में मिलकर कठोर बर्फ के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। बहुत विशाल परिमाण में एकत्रित होने पर गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से, अनुकूल स्थलाकृत्ति प्रदेशों में बर्फ की राशि धीरे धीरे नीचे की ओर खिसकने लगती है और इस प्रकार एक नदी सी बन जाती है, जिसे हिमनदी (glacier) कहते हैं। कालांतर में नदी की भाँति वह भी अपने लिये एक घाटी बना लेती है। जिसे वह शनै: शनै: अधिकाधिक गहरा करती जाती है। ठोस बर्फ से उत्कीर्ण होने के कारण हिमनदी की घाटियों के कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं, जिनमें से तीन प्रमुख है: (1) उनका नितल चौड़ा और किनारे प्रपाती होते हैं, जिससे उनका ऊध्र्व परिच्छेद छ आकार का होता है, (2) उनकी घाटियाँ सर्पिल न होकर बहुत दूर तक एकदम सीधी चली जाती है और (3) मुख्य हिमनदी और सहायक हिमनदी के संगम के स्थान पर दोनों घाटियों का तल क्रमिक न होकर प्रपाती होता है। इस कारण सहायक नदियों की घाटी निलंबी घाटी (hanging valley) कहलाती है। ठोस होने कारण हिमनदी की गति बहुत कम होती है। कहीं कहीं तो दिनभर में केवल 30 सेंटीमीटर ही आगे बढ़ती है। कभी कभी वेग अपेक्षाकृत अधिक भी होता है। अलास्का में कुछ हिमनदियाँ एक दिन में प्राय: ढाई तीन मीटर बढ़ जाती है। यह गति, नदी की गति के समान ही, बर्फ की मात्रा और प्रादेशिक ढाल की प्रवणता पर निर्भर होती है। हिमरेखा के नीचे पहुँचने पर बर्फ पिघलने लगती है और साधारण नदी का रूप धारण कर लेती है। हिमालय से आने वाली प्राय: समस्त नदियों के जल का मूल स्रोत यह पिघलती हुई हिमनदियाँ ही हैं। जिन प्रदेशों में हिमरेखा समुद्रतल में प्राय: बराबर ही होती है, वहाँ हिमनदी स्वयं समुद्र में गिर जाती है। ऐसे संगमों पर बहुधा बर्फ की बड़ी बड़ी राशियाँ पीछे से आनेवाली बर्फ के दबाव से मूल नदी से टूटकर पृथक् हो समुद्र में प्रवाहित हो जाती है और बहते बहते काफी दूर निकल जाती हैं। इन राशियों को प्लावी हिमशैल (iceberg) कहते हैं। प्लावी हिमशैल अन्य कारणों से भी बन सकते हैं। बहुत ठंढे प्रदेशों में कभी कभी ऐसा भी होता है कि समुद्र के पास जाने पर भी हिमनदी अपना रूप बनाये रहती है और तट के समीप की समुद्र तह को भी उत्त्कीर्ण कर अपनी घाटी काफी दूर तक आगे बढ़ाती चली जाती है। नार्वे और स्वीडेन में इस प्रकार से बनी घाटियों के बहुत उदाहरण हैं एवं उन्हें फियर्ड (fiord) कहते हैं। नदी की भाँति, हिमनदी भी चट्टानों को अपरदित तथा उनसे टूटे हुए खंडों का परिवहन करती है। किंतु दोनों की क्रिया विधि में बहुत अंतर है। जहाँ नदी की तह में अनेक छोटे-बड़े रोड़े धार के वेग से लुढ़कते हुए आगे बढ़ते हैं, हिमनदी में उनके लुढ़कने के लिये कोई अवसर नहीं। जो टुकड़ा जिस दशा में बर्फ में फँस जाता है उसी अवस्था में आगे बढ़ता है। यत्र तत्र चट्टानों के बहुत से टुकड़े टूटकर हिमनदी के ऊपर गिर जाते हैं। ज्यों ज्यों हिमधार आगे बढ़ती है, ये खंड भी ज्यों के त्यों पड़े हुए आगे बढ़ते हैं। इस भिन्नता के फलस्वरूप जहाँ नदी द्वारा परिवहित पत्थर कुछ काल लुढ़कते हुए तथा आपस में टकराते हुए गोल मटोल बटिया स्वरूप हो जाते हैं, हिमधार द्वारा ले जाये गये खंड अंत तक कोणीय व नुकीले ही बने रहते हैं। इसके अतिरिक्त धार की सहायता से नदी अपने परिवहित पदार्थ को आकार और घनत्व के आधार पर पृथक पृथक भागों में विभक्त कर देती है, यथा तेज धार की जगहों पर केवल मोटी बजरी, उससे कम तेज धार में मोटी बालू एवं गति के क्रमश: और कम होने पर महीन बालू और मिट्टी बारी बारी से घाटी की तह में जमा होती है। इसके विपरीत हिमनदी पदार्थ को इसप्रकार छाँट नहीं सकती, अपितु उसकी लाद में बड़े रोड़े, महीन बालू और मिट्टी, विभिन्न आकारों के खंड, सब एक साथ मिले हुए आगे बढ़ते हैं। और जहाँ हिमनदी का पिघलना आरम्भ होता है उसका सबका सब बिना किसी विभाजन के एक साथ निक्षेपित हो जाता है। हिमनदी में पदार्थ के परिवहन की शक्ति अपरिमित है। शिलाओं के बड़े खंड़ों को भी हिमधार उसी सुगमता से परिवहित कर सकती है जिससे कि छोटे कणों को। इस प्रकार जहाँ नदी की घाटी में मात्र शैल से पृथक् कृत बड़ी बड़ी राशियाँ बिना छोटे खंडों में टूटे हुए विशेष दूर तक आगे नहीं जा सकती, हिमनदी की घाटी में वे निरंतर आगे परिवहित होती रहती है। हिमनदी का जहाँ अंत होता है और बर्फ पिघलती है, वहीं ये बड़े बड़े खंड गिर पड़ते हैं। स्थानीय प्रादेशिक शैलों से इनका कोई मातृ संबंध नहीं होता, इसलिए वे विस्थापित (erratic) खंड कहलाते हैं। हिमनदी से धरातल पर गिरते समय जिस पहल पर भी ये टिक जायँ, उसी पर टिके हुए अनेक काल तक खड़े रह जाते हैं। कभी कभी ये केवल एक छोटे से कोने के बल गिरते हैं और उसी के बल खड़े रह जाते हैं। ऐसी स्थिति में इनका संतुलन बड़ा स्थिर सा दिखाई पड़ता है और इन्हें दु:स्थित (perched) खंड कहते हैं। घाटी की तह के पास बर्फ में फँसे हुए खंड अपने नुकीले कोनों से तह की शिलाओं को खरोंच डालते हैं। बर्फ के दबाव और शिलाओं की कठोरता के अनुसार, ये खरोंचें कम या अधिक गहरी होती हैं। कभी कभी बहुत से छोटे छोटे खंड पास पास होते हैं। उन सबकी रगड़ से एक ही शिला में अनेक खरोंचें बन जाती हैं। इन खंडों की रगड़ हिमनदी की प्रवाह की दिशा में ही लगती है, इसलिए सब खरोंचे एक दूसरे के समांतर होती है। इस प्रकार खरोंची हुई शिलाओं को रेखान्वित (striated) कहतें हैं। इस विपरीत कभी कभी ऐसा भी होता हैं कि हिमनदी में नितिल के पास फँसा हुआ कोई शैलखंड घाटी की तह की कठोर शिलाओं सें रगड़ खाता हुआ आगे बढ़ता है, जिससे तह से सटा हुआ उसका पाश्र्व चिकना और फलदार हो जाता हैं और अन्य पाश्र्व पूर्ववत् कोणीय व नुकीले छूट जाते है। इस प्रकार हिमनदीरंजित (glaciaed) पहलदार (facetted) खंड बनते हैं। कभी कभी हिमनदी की घाटी में अवस्थित शैलों के टीले, बर्फ के अपघर्षण से काफी चिकने हो जातें हैं और उनके पाश्वीर्य कोने झड़ जाते हैं। अधिकांश चिकनाहट टीले के उस भाग में होती है जो धार की विपरीत दिशा में होता हैं, क्योंकि बर्फ आगे की ओर रगड़ देती हुई बढ़ती हैं। जो भागपाश्र्व की दशा में होता हैं, वह ज्यों का त्यों खुदरा और नुकीला छुट जाता है। इस प्रकार के टीलो को राश मुहाने (rocks montonnecs) कहते हें। अधिकांशत: हिमनदी चट्टानों के खंडों को अपने ऊपरी तल पर ही परिवहित करती हंै। घाटी के कगारों की चट्टानों तुषार आदि के प्रभाववश समय पर टूटती रहती हैं, जिससे शैलखंड एवं चूर्ण हिमनदी के ऊपर उसके किनारों के पास गिरते रहते हैं और इस तरह हिमनदी के दोनों किनारों पर परिवहित पदार्थ को पाश्र्व मोरेन (lateral moraine) कहते हैं। हिमनदी के मध्य भाग के ऊपर आरंभ में शैलखंड प्राय: बिल्कुल नहीं होते, क्योंकि वह भाग घाटी के किनारों से दूर होता है। पर दो हिम-नदियों का संगम होने पर एक के दाहनी ओर तथा दूसरी के बाई ओर के मोरे न परस्पर मिल जाते हैं और संगम के आगे से मध्य मोरेन बन जाता है। अंत में जहाँ हिमनदी समाप्त होती है और बर्फ के पिघलने से जल बनता है, वहाँ बर्फ की सतह पर और बीच में लाया हुआ समस्त पदार्थ गिरकर एकत्रित हो जाता है। इसे अग्रांतस्थ मोरेन कहते हैं। इसमें स्तरीकरण का नितांत अभाव होता है। यदि जलवायु में परिवर्तन, या किसी और कारण से हिमनदी अपनी पहली सीमा से अग्रगामी होने लगे, तो बर्फ पहले बने हुए अग्रांतस्थ मोरेन की समस्त राशि को आगे ढकेलती हुई चलेगी। इसके विपरीत यदि हिमनदी शीर्ष की ओर हटती हो, तो अग्रांतस्थ मोरेन का एक आस्तर पीछे की ओर बनता चला जाएगा। समुद्र तथा झील धरातल के तीन चौथाई भाग पर आधिपत्त्य होते हुए भी समुद्र अपना विस्तार बढ़ाने के लिये निरंतर प्रयत्नशील रहता है। प्रत्यक्षत: उसका कार्यक्षेत्र तटस्थ प्रदेश है, जहाँ वह अपनी प्रबल तरंगों द्वारा चट्टानों को छिन्न भिन्न कर भूमि के ऊबड़ खाबड़पन को नष्ट करता हुआ महादेश को अपनी सतह के बराबर चौरस बनाने का प्रयत्न करता है। यों तो शांत मौसम में भी लहरें बार बार चट्टानों से टकराकर उन्हें आघात पहुँचाती हैं, पर तूफान के समय तो उनकी शक्ति सहस्त्रों गुना अधिक हो जाती है। बड़े बड़े तूफानों की लहरें प्राय: 14-15 मीटर ऊँची उठती हैं। उनके द्वारा फेंका हुआ फेन, बजरी और छोटे रोड़े 40-50 मीटर ऊँचे उछलते हुए देखे गए हैं। प्रत्येक लहर अपनी समस्त जलराशि के भार से तट पर आघात करती है और ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति बहुत बड़े घन से तटस्थ प्रदेश को पीट रही हो। लहरें परोक्ष ढंग से भी अपनी अपरदी क्रिया में सहायता लेती हें। सभी चट्टानों में महीन दरारें और छोटे छोटे छिद्र होते हैं। जब लहरें जोर से आकर अचानक चट्टानों से टकराती हैं, तब इन दरारों और छिद्रों में भरी हुई हवा को बाहर निकलने का अवसर नहीं मिल पाता और वह जहाँ की तहाँ दबकर संकुचित हो जाती है। लहरों की वापसी के समय पानी का दबाव हटने पर हवा फिर फैल जाती है। यह क्रिया इतनी शीध्रता से होती है कि अचानक फैली हुई हवा को बाहर निकलने का मार्ग भी नहीं मिल पाता और वह एक प्रकार से विस्फोटक शक्ति का कार्य करती है। क्रिया के बार बार दुहराने से दरारों और छिद्रों के चारों ओर की चट्टाने फटकर टूटने लगती हैं और छिद्र क्रमश: बड़े होते जाते हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि दरारें समुद्र और महादेश दोनों की ओर खुली होती हैं। ऐसी अवस्था में लहरों द्वारा दबाव पड़ने पर दरार की हवा तेजी से जमीन की ओर निकल भागती है और लहरों की वापसी पर उतनी ही तेजी से फिर दरार में घुस जाती है। बार बार ऐसा होने से महीन छिद्र बड़े होते जाते हैं और क्रमश: सुरंगें बन जाती हैं, जिन्हें फ़धमिछिद्रफ़ (blow hole) कहते हैं। इस प्रकार तटस्थ चट्टानें लहरों की पहुँच की ऊँचाई पर धीरे-धीरे खेखली होने लगती हैं, जिससे ऊपरवाली चट्टानों का अबलंब भी कमजोर होता जाता है और वे भी शनै: शनै: टूटकर गिरने लगतती हैं। गुरूत्वाकर्षण भी इस क्रिया में बहुत कुछ भाग लेता है। जहाँ चट्टानें कई प्रकार की हों, कुछ कमजोर और कुछ कड़ी, वहाँ लहरों को, वस्तुत: किसी भी प्राकृतिक अभिकत्र्ता को अपना कार्य करने में अधिक सुविधा होती है; क्योंकि जब कमजोर चट्टान कट जाती है, तब उससे संपर्कवाली कड़ी चट्टान का आधार भी कमजोर हो जाता है और उसकी निजी कड़ाई का महत्व कम हो जाता है। लहरों के प्रभाववश चट्टानों के टूटने से विविध आकार के टुकड़ों को तो लहरें तेजी से लुढ़काकर चट्टानों पर दे मारती हैं, जिससे वे स्वयं भी टूटकर छोटे तथा गोलमटोल हो जाते हैं। इससे समुद्र की आघात करने की शक्ति और भी बढ़ जाती है। कालांतर में टुकड़े बजरी में परिवर्तित हो जाते हैं। उसके बाद लहरें उन्हें पल भर भी विश्राम नहीं लेने देतीं, निरंतर अपने साथ आगे पीछे धसीटती फिरती हैं। फलत: कुछ समय बाद बजरी के टुकड़े बहुत महीन और एकदम गोलाकार हो जाते हैं, कभी कभी इतने छोटे कि तह में बैठ भी नहीं पाते और पानी में लटके रह जाते हैं। कणों के इस प्रकार छोटा व गेलमटोल करने की लहरों की शक्ति नदी की अपेक्षा कहीं अधिक होती है, क्योंकि एक तो नदी की तह में रगड़वाली गति केवल एक ही दिशा में, नदी के बहाव की ओर होती है, दूसरे नदी की घाटी के निचले भाग में धार के कम हो जाने पर बड़े बड़े कण ज्यों के त्यों पड़े रह जाते हैं और इस प्रकार उनकी उत्तरोत्तर छोटे होने की क्रिया बंद हो जाती है। ज्वारभाटा तथा समुद्री धाराएँ ज्वारभाटा और अन्य प्रकार से उत्पन्न हुई समुद्री धाराएँ भी लहरों के काम में सहयोग देती हैं। इनका विशेष उल्लेखनीय प्रभाव संगम के पास नदियों की सँकरी घाटियों में होता है, जहाँ ज्वारभाटे के कारण तेज धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो बलुई किनारों और पानी में निमग्न चट्टानों को क्षय करने का प्रयास करती हैं। ये धाराएँ मिट्टी और बालू को नदी के मुहाने तथा समस्त समुद्रतट के पास से बीच समुद्र की ओर बहुत दूर तक बहा ले जाती हैं। समुद्री अनाच्छादन का मैदान लहरों के आघात का प्रभाव पानी की सतह से ऊपर निकली हुई भूमि तक ही सीमित नहीं रहता, वरन् समुद्र के छिछले भागों की तह पर भी पड़ता है। अनुभव से मालूम होता है कि प्राय: 30 मीटर की गहराई तक उनकी क्षय करने की शक्ति कार्यशील रहती है। सतह के नीचे लहरों का कार्य प्राय: वैसा ही होता है जैसा बढ़ी हुई घास को हँसिए से काटने का, अर्थात् यों समझना चाहिए कि लहरें अपने आघात से समुद्र में डूबे हुए शैलों की ऊँचाई में असमानता दूर कर एक चौरस स्थान बनाने का प्रयास करती हैं। स्थान स्थान पर समुद्र की गहराई नापने से मालूम होता है कि समस्त भूभाग के चारों ओर प्राय: 30 मीटर की गहराई पर एक चौरस मैदान सा है। इस मैदान की समुद्री अनाच्छादन का मैदान (plain of marine denudation) कहते हैं। झील समुद्र और झीलों के प्राकृतिक गुणों में केवल आकार का ही अंतर है। समुद्र जहाँ अति विशाल एवं अथाह जलराशि है, झील अपेक्षाकृत बहुत छोटा जलाशय है। इसी से झील में उठी तरंगों का वेग एवं ज्वारभाटे का परिमाण समुद्र की अपेक्षा अति लघु होता है। फलत: भूपृष्ठ के प्रति झील की अपरदी क्रिया प्राय: समुद्र के समान ही होती है, केवल उसकी मात्रा झील के आकार के अनुरूप लघु हो जाती है। अवसाद् का संचयन उपर्युक्त विवरण में विभिन्न प्राकृतिक कारकों की अपरदी और अनाच्छादी क्रिया एवं उससे उत्पन्न अवसाद इत्यादि के परिवहन का वृत बताया गया है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि प्रत्येक कारक का कार्यक्षेत्र विशिष्ट है। वह अपनी क्रिया से उत्पन्न अपरदित एवं अपघटित पदार्थ को अपने क्रियाक्षेत्र के सबसे निचले स्थान तक ले जाता है, जहाँ से समय एवं वातावरण के अनुसार दूसरा कारक उसे अपने प्रभाव में लेकर अपने क्रियाक्षेत्र की सबसे नीचे की सतह तक ले जाता है। उदाहरणार्थ, वर्षाजल की क्रिया से उत्पन्न अपघटित पदार्थ जल की छोटी छोटी धाराओं एवं नालियों द्वारा नदी में पहुँच जाती हैं और फिर नदी उसे समुद्र अथवा झील में पहुँचा देती है। इस प्रकार तुषार द्वारा उत्पन्न शैलखंड गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से पहाड़ी के तल में पहुँचते हैं और फिर जब तक वह किसी अन्य कारक के प्रभाव में न आ जायँ, वहीं संचित पड़े रहते हैं। हिमनदी अपनी क्रिया से उत्पन्न अवसाद को परिवहित कर अपने गलने के स्थान तक ले जाती है। वहाँ उसका प्रभावक्षेत्र समाप्त हो जाता है और फिर वह अवसाद नदी के प्रभाव में आ जाता है। भूपृष्ठ का सबसे निचला स्थान समुद्र है। अत: शैलों के अपरदन और अपघटन से उत्पन्न अवसाद का अंतिम ठिकाना समुद्र ही है। अवस्थाविशेष के कारण यह हो सकता है कि यह पदार्थ मार्ग में किसी किसी स्थान पर कुछ काल तक रूकता हुआ आगे बढ़े; फिर भी, देर सबेर, कभी मंद गति से, कभी तेज गति से, वह समुद्र की ओर यात्रा करता ही रहता है। अवसाद को समुद्र तक पहुँचने का सबसे अधिक भार नदी के ऊपर है। इस बात का पहले उल्लेख किया जा चुका है कि नदी में अपने परिवहित पदार्थ को उसके आकार के आधार पर बजरी, बालू, मिट्टी इत्यादि में वर्गीकृत करने की शक्ति है। अत: अधिकांश अवसाद मोटा, मध्यम और महीन तीन वर्गों में विभक्त हो जाता है, जो क्रमश: तट से अधिकाधिक दूरी पर जाकर निक्षेपित होते हैं, अर्थात् एक ही स्तर के तट के निकटवाले भाग में कण बड़े और दूरवाले भाग में महीन और छोटे होंगे। किसी भी एक स्थान पर ज्यों ज्यों अवसाद अधिक मात्रा में संचित होगा, वहाँ का जल भी अपेक्षाकृत छिछला होता जाएगा और इसके फलस्वरूप धार का वेग भी कुछ बढ़ जाएगा। अत: समस्त अवसाद पहले की अपेक्षा कुछ दूरी पर जाकर अवक्षेपित होगा और प्रत्येक स्थान पर संचित अवसाद कुछ मोटा हो जाएगा, यथा छोटे कंकड़ों तथा बजरी के ऊपर मोटी बालू, मोटी के ऊपर महीन बालू और महीन बालू के ऊपर मिट्टी जमा होगी। कुछ काल के उपरांत और अधिक अवसाद के संचित होने से समस्त प्रदेश फिर और छिछला हो जाएगा और तब अवसाद का निक्षेपण पुन: एक एक पग और आगे पहुँचने लगेंगे। यदि किसी कारण उपर्युक्त निक्षेपण केंद्र में समुद्र की तह धीरे धीरे खिसककर नीची होने लगे और खिसकने की गति अवसाद के संचित होने की गति के बराबर हो तो अधिकाधिक अवसाद के संचित होने के बाद भी समुद्र की अंतत: गहराई ज्यों की त्यों बनी रहेगी और प्रत्येक स्थान पर एक ही आकार के कणों का निक्षेपण चिरकाल तक अविराम होता रहेगा। एक और दशा ऐसी भी हो सकती है जब समुद्र की तह के खिसकने की गति अवसाद के संचित होने की गति से अधिक हो जाय। उस अवस्था में प्रभाव उल्टा होगा और अवसाद के संचित होने पर भी समुद्र अधिकाधिक गहरा होता जाएगा। फलत: विभिन्न आकार के कणों के निक्षेपण का स्थान क्रमश: एक एक पग तट की ओर बढ़ता जाएगा। उपर्युक्त पहली और तीसरी स्थितियों में विभिन्न आकार की राशियों का एकांतरण होता है और दूसरी स्थिति में समान आकार का अवसाद मोटी मोटी राशियों में संचित हो जाता है। स्तरिकाभवन (Lamination) अधिकांश नदियों द्वारा लाए हुए अवसाद की मात्रा वर्षा ऋतुओं में बहुत कम होती है। अत: वर्षाकाल में अवसाद बहुत प्रचुर मात्रा में समुद्र में निक्षेपित होता है। बहुधा दो उत्तरोत्तर वर्षा ऋतुओं के बीच की अवधि में संचित अवसाद की मात्रा नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में अवसाद संचयन रूक रूककर होता है और एक वर्षा ऋतु में आए हुए अवसाद को दूसरी ऋतु के अवसाद के आने के पूर्व कुछ कड़ा होने तथा दब जाने का अवसर मिल जाता है। उपरिशायी जल के भार से अवसाद को दबने में सहायता मिलती है। फलत: उत्तरोत्तर वर्षा ऋतुओं में आए हुए अवसाद पहले आए हुए अवसादों से एकदम मिश्रित नहीं होते, अपितु पृथक् पृथक् स्तरिकाओं में संचित होते हैं। इस क्रिया को स्तरिकाभवन कहते हैं। प्रतयेक स्तरिका की मोटाई एक वर्षा ऋतु में आए हुए अवसाद की मात्रा पर निर्भर होगी। औसत में यह 2 से 4 मिलीमीटर तक होती है। स्तरीभवन (Stratification) यदि अवसाद का निक्षेपण कई वर्षों तक सतत होता रहे, तो स्पष्टतया पतली पतली स्तरिकाओं में स्थान पर कुछ मोटे स्तरों में अवसाद संचित होगा और इन स्तरों की मोटाई अवसाद आने की गति एवं उस अवधि पर निर्भर होगी जिसमें अवसाद का निक्षेपण अविराम होता रहे। आभासी संस्तरण (False bedding) स्तरों में संचित अवसाद के कणों की व्यवस्था पर बहाव की गति और दिशा की स्थिरता का प्रभाव भी पड़ता है। महीन मिट्टी और महीन बालू के कण जल में बहुत देर तक निलंबित रहते हैं और बहुत ही शनै: शनै: तह में बैठते हैं। उनका निक्षेपण भी अपेक्षाकृत गहरे पानी में होता है, जहाँ धार एकदम शिथिल पड़ जाती है। ऐसी अवस्था में कणों के संचित होने की व्यवस्था निरंतर एक सी बनी रहती है और स्तर सुव्यवस्थ्ति और नियमित बनते हैं। कणों को जमने के लिये पर्याप्त समय मिलता है और स्तर समुद्रतह के समांतर बनते चले जाते हैं। इसके विपरीत मोटी बालू और बजरी इत्यादि के संचित होने का स्थान अपेक्षाकृत छिछला होता है। ऐसे स्थानों में धार की गति बहुधा परिवर्तनशील होती है, कभी मंद हो जाती है और कभी तीव्र। मंद अवस्था में संचित अवसाद का ऊपरी भाग, तीव्र गति की अवस्था में अपरिदित होकर बहने लगता है और जहाँ धार मंद हो वहाँ पुन: निक्षेपण हो जाता है। इस प्रकार पुन: निक्षेपित पदार्थ पहले स्तर के समांतर नहीं होता। इसके अतिरिक्त छिछले पानी में, जहाँ इन मोटे कणों का निक्षेपण होता है, बहुधा धार की दिशा भी बदलती रहती है। यह परिवर्तन ज्वारभाटा और प्रचंड पवन इत्यादि के कारण होता रहता है। अत: धार की दिशा के साथ साथ अवसादीय स्तरों की दिशा भी स्थानीयत: बदलती रहती है। इस प्रकार छिछले पानी में संचित अवसादीय शैलों के स्तर बहुधा समांतर न होकर एक दूसरे से कोण बनाते हैं, जिनकी माप स्थान स्थान पर भिन्न भिन्न हो सकती है। इस घटना को आभासी संस्तरण कहते हैं। तरंगचिन्ह (ripple marks) पादचिन्ह (foot prints) इत्यादि कभी कभी अवसाद क्षेत्रों में ऐसी स्थिति होती है कि जल की तरंगों की छाप भी अवसादीय स्तरों में मुद्रित हो जाती है। छिछले प्रदेशों में, विशषकर ज्वारभाटांतर (littoral) कटिबंध में, तरंगों का वेग इतना अधिक हाता है कि वहाँ निक्षेपित बालू और मिट्टी उनके संकेतों पर नाचती फिरती हैं और बहुधा उन्हें भी तरंग रूप दे देती हैं। नए अवसाद के आने से पूर्व यदि इस तरंगित बालू को सूखकर कुछ द्दढ़ होने का अवसर मिल जाय, तो यह तरंग रूप सुरक्षित रह जाता है। भाटे की अवस्था में अवसाद को सूखने एवं द्दढ़ हो जाने का अवसर बहुधा मिल जाता है। इसी प्रकार केकड़ों, कीड़ों मकोड़ों तथा अन्य जंतुओं के पादचिन्ह भी ज्वारभाटांतर प्रदेश में संचित अवसाद में सुरक्षित रह जा सकते हैं। कभी कभी वर्षाजल की बूँदों से बने आघातचिन्ह भी इन अवसादों में सुरक्षित हो जाते हैं। चूनेदार अवसाद समुद्र में रहनेवाले नाना प्रकार के शल्कधारी जंतुओं के मरने के उपरांत उनके शल्क समुद्रतह में संचित होने लगते हैं। तरंगों के प्रवाह से बहुधा ये शल्क इधर उधर लुढ़कते रहते हैं, जिससे कालांतर में वे टूटकर चूर हो जाते हैं और नदी द्वारा लाई हुई बालू और मिट्टी में मिल जाते हैं। अधिकांश शल्क कैल्सियम कार्बोनेट के बने होते हैं और इस प्रकार कैल्सियममय (अर्थात् चूनेदार) अवसाद, बालू और मिट्टी बनती है। शुद्ध मिट्टी, अथवा बालू, के स्तर केवल उन्हीं स्थानों में संचित हो पाते हैं जहाँ शल्कधारी जीव प्राय: अनुपस्थित हों। कभी कभी शल्क टूटने से पूर्व ही अवसाद में दब जाते हैं और उस अवस्था में वे ज्यों के त्यों सुरक्षित हो जाते हैं। इस प्रकार सुरक्षित शल्कों को जीवाश्म (फासिल) कहते हैं। समुद्र के गहरे भागों में, जहाँ नदी द्वारा लाई हुई बालू और मिट्टी का अवसाद नहीं पहुँच पाता है, शल्कों के चूरे का शुद्ध अवसाद निक्षेपित होता है, जिसकी राशि कालांतर में बहुत प्रचुर हो सकती है। इस प्रकार बालू के स्तर छिछले पानी में, मिट्टी के स्तर अपेक्षाकृत कुछ गहरे पानी में और चूनेदार अवसाद के शैल अधिक गहरे समुद्री भागों में संचित होते हैं। लवणीय स्तर शुष्क एवं उष्णताप्रधान देशों में जलवाष्पन बहुलता से होता है। इन प्रदेशों में यदि कोई ऐसी झील हो जिसमें नदियों एवं वर्षावाह द्वारा लाए हुए जलन की मात्रा भाप बनकर उड़ जानेवाले जल की अपेक्षा कम हो, तो वह झील शनै: शनै: सूखने लगती है और कालांतर में पूर्णतया विनष्ट हो जा सकती है। नदियों के पानी और वर्षावाह में साधारणतया कुछ न कुछ लवण घुले रहते हैं। अत: झील में नदियों द्वारा नित्य प्रति नया लवण पदार्थ आता रहता है। उष्णता के प्रभाव से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, परंतु लवण पीछे ही छूट जाता है। अत: झील का पानी उत्तरोत्तर अधिक लवणीय अथवा खारा होता जाता है। कालांतर में लवण इतनी अधिक मात्रा में संचित हो सकता है कि झील का जल उससे संतृप्त हो जाए। इससे अधिक वाष्पन से लवण अवक्षिप्त होने लगेगा, जिससे अवसाद लवणीय हो जाएगा। यदि लवण के अवक्षेपण के समय नदियों द्वारा लाए हुए अवसाद की मात्रा बहुत कम हो, तो प्राय: विशुद्ध लवणीय स्तर अवक्षेपित हो सकते हैं। तिब्बत की अनेकों झीलें इस क्रिया की उदाहरण हैं। वहाँ वर्षा बहुत कम होती है, जिससे झीलें उत्तरोत्तर सूखती जा रही हैं और इनकी तहों में लवणीय स्तर अवक्षेपित हो रहे हैं। पाकिस्तान के सॉल्ट रँज पर्वत में, खेवड़ा के प्रदेश में सँधा नमक तथा जिप्सम के निक्षेप इसी प्रकार किसी प्राचीन सागर की शाखा के सूखने से बने होंगे। अवसाद का संयोजन एवं दृढ़ीभवन इसी प्रकार विभिन्न प्राकृतिक अभिकर्ताओं की क्रिया से भू-पृष्ठीय शैलों का क्षय एवं अपरदन निरंतर हो रहा है और उससे उत्पन्न अवसाद अंतत: समुद्र के गर्त में संचित होता जा रहा है। ज्यों ज्यों अवसाद के स्तरों में वृद्धि होती है, नीचेवाले स्तरों के ऊपर नए आए हुए पदार्थ की दाब बढ़ती जाती है। प्राय: 300 मीटर मोटे अवसादीय स्तरों की दाब 80 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है। अत: केवल 60 मीटर मौटे स्तरों के संचित होने पर, सबसे नीचे के स्तरों पर प्राय: 13 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दाब पड़ने लगेगी। जलाशय के पानी की दाब भी कुछ कम नहीं होती। प्रति एक मीटर पानी की दाब 100 ग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है। इन सभी दाबों के प्रभाव से अवसाद के गुण निकटतम आकर आपस में एक दूसरे से गुँथ जाते हैं। इनके बीच का पानी निकल जाता है और वे शुष्कप्राय हो जाते हैं। जल की पतली पतली झिल्लियाँ कणों से फिर भी चिपकी रह जा सकती हैं और उनका तनाव कणों को परस्पर जुड़ा रखने में सहायता देता है। संयोजन जलाशयों अथवा आंतर्भोम जल में साधारणतया कुछ न कुछ लवण विलीन होते हैं1 जब यह जल रिसता हुआ अवसाद में से बहता है, तो कुछ विभिन्न कारणों से (यथा, दाब अथवा कार्बोंलिक अम्ल गैस की मात्रा में हाउस से अथवा अवसादीय पदार्थ और विलीन लवण में पारस्परिक रासायनिक क्रिया होने से) इसमें का कुछ लवण अवसाद के कणों के बीच में अवक्षेपित होकर, उसके मुक्त कणों को आपस में द्दढ़ रूप से संयोजित कर देता है और अवसाद कठोर, सुबद्ध पाषाण में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार संयोजन करनेवाले लवणों में कैल्सियम कार्बोनेट, लौह ऑक्साइड, एवं सिलिका विशेष उल्लेखनीय है। इनमें से सिलिका का बंधन सबसे सुद्दढ़ होता है। इस प्रकार बने हुए पाषाण की जाति अवसाद के पदार्थ पर निर्भर होगी। यथा बालू के अवसाद से बना शैल (मिट्टी प्रस्तर, mud stone) अथवा शेल (shale), बटियों के समूह के संयोजन से संगुटिकाश्म (conglomerate) इत्यादि बनेंगे। यदि मिट्टी में थोड़ी बालू हो, तो बलुआ शैल इत्यादि शैल बनेंगे। समुद्र वा अन्य जलाशयों में अवसाद स्तरों अथवा परर्तो में शनै: शनै: संचित होता है। दाब के प्रभाव से उनके संपीडित होने एवं किसी न किसी लवण तथा अन्य आधारक की सहायता से अवसाद के कण संयोजित हो जाते हैं। इस क्रिया में भी अवसाद का स्तरभाव बना रहता है। अवसाद से उत्पन्न होने के कारण इन्हें अवसादीय शैल भी कहते हैं। अवसादीय शैल पदार्थ समुद्र अथवा अन्य जलाशयों की तह में बहुत काल तक संचित होता रहता है। कालांतर में भूसंचलन आदि किसी वृत के प्रभाव से वह सागर की तह में से ऊपर उठकर, पर्वत का रूप धारण कर, महादेश का भाग बन सकता है। यह एक प्रलयकारी परिवर्तन होता है। ऐसा होने से अवसादीय पदार्थ पुन: प्राकृतिक अभिकर्ताओं की क्रिया की पृष्ठभूमि बनाता है और उनके प्रभाव में आकर फिर से क्षय होता हुआ नए अवसाद को जन्म देता है, जो तत्कालीन सागर की तह में जाकर निक्षेपित होने लगता है। इस प्रकार भूपृष्ठ का पदार्थ निंरतर एक अवसादीय चक्र में भाग लेता रहता है। प्रत्येक चक्र के अंत में सागर और महादेशों का पुनस्संस्थान होता है और इनमें नए थल और जल भागों का निर्माण होता है। इस प्रकार के प्राय: 4 बृहत् और 14 लघु चक्र पृथ्वी के संपूर्ण इतिहास में हो चुके हैं। इन्हें भी देखें भारत का भूविज्ञान भौमिकी का इतिहास भूवैज्ञानिक समय-मान (geological time scale) जीवाश्मिकी आर्थिक भौमिकी खनि भौमिकी बाहरी कड़ियाँ भूविज्ञान
ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (AIMA) ने मैनेजमेंट एप्टीट्यूड टेस्ट(MAT) 2015 के लिए शेड्यूल जारी कर दिया है. यह एग्‍जाम सितंबर में आयोजित होगी. उम्‍मीदवार 18 अगस्‍त 2015 तक आवेदन कर सकते हैं. योग्‍यता: मान्‍यता प्राप्‍त संस्‍थान से ग्रेजुएट पेपर पैटर्न: परीक्षा में 200 सवाल पूछे जाएंगे. इनके 200 अंक होंगे. टेस्ट की समयसीमा 150 मिनट होगी. एग्जाम पांच सेक्शन (लैंगुएज, कॉम्प्रिहेंशन, मैथमैटिकल स्किल्स, डाटा एनालिसिस एंड सफीसिएंसी, इंटेलिजेंसी एंड क्रिटिकल रीजनिंग, इंडिया ग्लोबल इन्वायर्नमेंट) में आयोजित होगा. आवेदन फीस: 1200 रुपये महत्‍वपूर्ण तारीख: आवेदन करने की आखिरी तारीख: 18 अगस्त कम्प्यूटर बेस्ड एग्जाम तारीख: 6 सितंबर 2015 पेपर बेस्ड एग्जाम तारीख: 12 सितंबर 2015
लेख: रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूएस मिलिट्री ने गुरुवार को ड्रोन हमले को अंजाम देते हुए एक नकाबपोश इस्‍लामिक स्‍टेट आतंकी को मार गिराया, जिसने सीरिया में कई बंधकों का सिर कलम किया था। हालांकि पेंटागन ने जिहादी जॉन के मारे जाने के बाबत कोई पुष्टि नहीं की है। 'जिहादी जॉन' सीरिया में कम से कम सात बंधकों (जिनमें ब्रिटेन के दो लोग भी शामिल रहे) के विभत्‍स तरीके से सिर कलम किए जाने की घटनाओं में शामिल रहा। मीडिया द्वारा फरवरी में जिहादी जॉन की पहचान 27 वर्षीय ब्रिटेन निवासी मोहम्‍मद एमवाज़ी के रूप में की गई थी। टिप्पणियां एक हालिया वीडियो में वह ब्रिटिश लहजे (British accent) में सिर कलम करने की धमकी देता हुआ दिखाई दिया था। अगस्‍त 2014 से इस्‍लामिक स्‍टेट द्वारा जारी सात वीडियो में एमवाज़ी को दिखाया गया था, जब वह अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स फोली का सिर कमल करते हुए दिखाई दिया था। सितंबर 2014 में एक वीडियो में वह एक और अमेरिकी पत्रकार स्‍टीव सोटलॉफ और ब्रिटिश सहायता कार्यकर्ता डेविड हैंस का सिर कलम करते वीडियो में भी दिखाई दिया था। 'जिहादी जॉन' सीरिया में कम से कम सात बंधकों (जिनमें ब्रिटेन के दो लोग भी शामिल रहे) के विभत्‍स तरीके से सिर कलम किए जाने की घटनाओं में शामिल रहा। मीडिया द्वारा फरवरी में जिहादी जॉन की पहचान 27 वर्षीय ब्रिटेन निवासी मोहम्‍मद एमवाज़ी के रूप में की गई थी। टिप्पणियां एक हालिया वीडियो में वह ब्रिटिश लहजे (British accent) में सिर कलम करने की धमकी देता हुआ दिखाई दिया था। अगस्‍त 2014 से इस्‍लामिक स्‍टेट द्वारा जारी सात वीडियो में एमवाज़ी को दिखाया गया था, जब वह अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स फोली का सिर कमल करते हुए दिखाई दिया था। सितंबर 2014 में एक वीडियो में वह एक और अमेरिकी पत्रकार स्‍टीव सोटलॉफ और ब्रिटिश सहायता कार्यकर्ता डेविड हैंस का सिर कलम करते वीडियो में भी दिखाई दिया था। मीडिया द्वारा फरवरी में जिहादी जॉन की पहचान 27 वर्षीय ब्रिटेन निवासी मोहम्‍मद एमवाज़ी के रूप में की गई थी। टिप्पणियां एक हालिया वीडियो में वह ब्रिटिश लहजे (British accent) में सिर कलम करने की धमकी देता हुआ दिखाई दिया था। अगस्‍त 2014 से इस्‍लामिक स्‍टेट द्वारा जारी सात वीडियो में एमवाज़ी को दिखाया गया था, जब वह अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स फोली का सिर कमल करते हुए दिखाई दिया था। सितंबर 2014 में एक वीडियो में वह एक और अमेरिकी पत्रकार स्‍टीव सोटलॉफ और ब्रिटिश सहायता कार्यकर्ता डेविड हैंस का सिर कलम करते वीडियो में भी दिखाई दिया था। एक हालिया वीडियो में वह ब्रिटिश लहजे (British accent) में सिर कलम करने की धमकी देता हुआ दिखाई दिया था। अगस्‍त 2014 से इस्‍लामिक स्‍टेट द्वारा जारी सात वीडियो में एमवाज़ी को दिखाया गया था, जब वह अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स फोली का सिर कमल करते हुए दिखाई दिया था। सितंबर 2014 में एक वीडियो में वह एक और अमेरिकी पत्रकार स्‍टीव सोटलॉफ और ब्रिटिश सहायता कार्यकर्ता डेविड हैंस का सिर कलम करते वीडियो में भी दिखाई दिया था। अगस्‍त 2014 से इस्‍लामिक स्‍टेट द्वारा जारी सात वीडियो में एमवाज़ी को दिखाया गया था, जब वह अमेरिकी पत्रकार जेम्‍स फोली का सिर कमल करते हुए दिखाई दिया था। सितंबर 2014 में एक वीडियो में वह एक और अमेरिकी पत्रकार स्‍टीव सोटलॉफ और ब्रिटिश सहायता कार्यकर्ता डेविड हैंस का सिर कलम करते वीडियो में भी दिखाई दिया था।
यह लेख है: नाइजीरिया के उत्तरी हिस्से में एक बस स्टेशन को निशाना बनाकर किए गए शृंखलाबद्ध कार बम विस्फोटों में कम से कम 25 लोग मारे गए हैं। ये विस्फोट कानो प्रांत के एक बस स्टेशन पर हुए। तीन संदिग्ध आत्मघाती हमलावर वोक्सवैगन गोल्फ कार से वहां आए और बसों में टक्कर मार दी। विस्फोटों के तत्काल बाद सैनिकों और पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि विस्फोट साबोन गरी इलाके के एक बस स्टेशन पर उस वक्त किए गए जब वहां खड़ी कई बसें यात्रियों को लेकर रवाना होने वाली थीं।टिप्पणियां प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विस्फोटों में करीब 25 लोग मारे गए हैं। कानो प्रांत में पुलिस के प्रवक्ता मागाजी माजिया ने घटना की पुष्टि की है, लेकिन हताहतों की संख्या बताने से इनकार कर दिया। किसी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन यहां इस तरह के हमले कट्टरपंथी संगठन बोको हरम करता है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस हमले की भर्त्सना की है। ये विस्फोट कानो प्रांत के एक बस स्टेशन पर हुए। तीन संदिग्ध आत्मघाती हमलावर वोक्सवैगन गोल्फ कार से वहां आए और बसों में टक्कर मार दी। विस्फोटों के तत्काल बाद सैनिकों और पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि विस्फोट साबोन गरी इलाके के एक बस स्टेशन पर उस वक्त किए गए जब वहां खड़ी कई बसें यात्रियों को लेकर रवाना होने वाली थीं।टिप्पणियां प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विस्फोटों में करीब 25 लोग मारे गए हैं। कानो प्रांत में पुलिस के प्रवक्ता मागाजी माजिया ने घटना की पुष्टि की है, लेकिन हताहतों की संख्या बताने से इनकार कर दिया। किसी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन यहां इस तरह के हमले कट्टरपंथी संगठन बोको हरम करता है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस हमले की भर्त्सना की है। विस्फोटों के तत्काल बाद सैनिकों और पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि विस्फोट साबोन गरी इलाके के एक बस स्टेशन पर उस वक्त किए गए जब वहां खड़ी कई बसें यात्रियों को लेकर रवाना होने वाली थीं।टिप्पणियां प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विस्फोटों में करीब 25 लोग मारे गए हैं। कानो प्रांत में पुलिस के प्रवक्ता मागाजी माजिया ने घटना की पुष्टि की है, लेकिन हताहतों की संख्या बताने से इनकार कर दिया। किसी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन यहां इस तरह के हमले कट्टरपंथी संगठन बोको हरम करता है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस हमले की भर्त्सना की है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विस्फोटों में करीब 25 लोग मारे गए हैं। कानो प्रांत में पुलिस के प्रवक्ता मागाजी माजिया ने घटना की पुष्टि की है, लेकिन हताहतों की संख्या बताने से इनकार कर दिया। किसी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन यहां इस तरह के हमले कट्टरपंथी संगठन बोको हरम करता है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस हमले की भर्त्सना की है। किसी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन यहां इस तरह के हमले कट्टरपंथी संगठन बोको हरम करता है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस हमले की भर्त्सना की है।
द काउंसिल फॉर द इंडियन सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (CISCE) ने के 12वीं (ISC) क्लास के नतीजे में मुंबई की आद्या मदी ने टॉप किया है. इस परीक्षा के नतीजे शुक्रवार को घोषित कर दिए गए थे. वो मुंबई के गोरेगांव स्थित Vibgyor स्कूल में स्टूडेंट थीं. आद्या ने मेहनत को कामयाबी का मूलमंत्र बताया. 2015 स्कूलों के कुल 1,68,591 छात्रों ने आईसीएसई की परीक्षा दी थी. जिनमें 92,900 लड़के और 75,691 लड़कियां शामिल थीं. कुल 91,172 लड़कों ने आईसीएसई की परीक्षा पास की जबकि 1728 लड़के आईसीएसई परीक्षा में असफल हुए हैं. वहीं 74,885 लड़कियों ने परीक्षा पास की और 806 लड़कियां परीक्षा में असफल हुई हैं. आईसीएसई (10वीं) परीक्षा में कुल 98.50 फीसदी विद्यार्थी पास हुए हैं. जो पिछले साल के मुकाबले 0.01 फीसदी ज्यादा हैं. शुक्रवार को घोषित हुए आईसीएसई परीक्षा परिणाम के अनुसार लड़कियों ने एक बार फिर लड़कों से आगे बढ़कर बाजी मारी है.
यूपी विधानसभा 2017 में मिली करारी शिकस्त के बाद अब समाजवादी पार्टी के हारे हुए विधायक धीरे धीरे अपना सरकारी आवास खाली करते जा रहे हैं. आगे बढ़ने से पहले बताते चलें कि इस विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था और 403 विधानसभा सीटों में दोनों पार्टियां मिलकर सिर्फ 56 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इनमें से कांग्रेस के हाथ सिर्फ 7 सीटें आई. खैर, तो चुनावी नतीजे सामने आने के बाद अब नई सरकार के बाशिंदों के कुर्सी संभालने का वक्त आ गया है. चुनाव में पराजित हुए सपा समेत अन्य पार्टियों के हारे हुए विधायक अपने सरकारी आवास खाली कर रहे हैं ताकि नए लोग कार्यभार और 'घर-बार' दोनों संभाल सकें. ऐसी ही कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें विधायक अपना घर खाली करते नज़र आ रहे हैं.   चुनाव हारने के बाद विधायक और मंत्री रह चुके रविदास महरोत्रा ने भी अपना घर खाली किया जहां 'मोदी मैजिक' नाम की कंपनी का ताला लगा गया नज़र आया.   दिलचस्प बात यह है कि ताले की कंपनी का नाम 'मोदी मैजिक' है जो कि एक विधायक के घर पर लगा हुआ पाया गया.   समाचार एजेंसी ANI द्वारा ट्वीट की गई इस तस्वीर पर कई ट्विटर यूज़र्स ने टिप्पणी की है. @ANINewsUP@ShefVaidya maybe the locks are tampered too. #JustSaying — Manoj (@manojwashere) March 17, 2017   @ANINewsUP MADE in Aligarh... — anurag kumar (@Kumar56Anurag) March 17, 2017 @ANINewsUP@ANI_news indeed Modi magic has put a lock on him — sanjeev rao (@rao_sanjeev) March 17, 2017 यूपी में फिलहाल सीएम पद को लेकर अटकलें जारी हैं और अब 18 मार्च को ही साफ होगा कि कौन बनेगा यूपी का मुख्यमंत्री. googletag.cmd.push(function() { googletag.display('adslotNativeVideo'); }); खैर, तो चुनावी नतीजे सामने आने के बाद अब नई सरकार के बाशिंदों के कुर्सी संभालने का वक्त आ गया है. चुनाव में पराजित हुए सपा समेत अन्य पार्टियों के हारे हुए विधायक अपने सरकारी आवास खाली कर रहे हैं ताकि नए लोग कार्यभार और 'घर-बार' दोनों संभाल सकें. ऐसी ही कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें विधायक अपना घर खाली करते नज़र आ रहे हैं.   चुनाव हारने के बाद विधायक और मंत्री रह चुके रविदास महरोत्रा ने भी अपना घर खाली किया जहां 'मोदी मैजिक' नाम की कंपनी का ताला लगा गया नज़र आया.   दिलचस्प बात यह है कि ताले की कंपनी का नाम 'मोदी मैजिक' है जो कि एक विधायक के घर पर लगा हुआ पाया गया.   समाचार एजेंसी ANI द्वारा ट्वीट की गई इस तस्वीर पर कई ट्विटर यूज़र्स ने टिप्पणी की है. @ANINewsUP@ShefVaidya maybe the locks are tampered too. #JustSaying — Manoj (@manojwashere) March 17, 2017   @ANINewsUP MADE in Aligarh... — anurag kumar (@Kumar56Anurag) March 17, 2017 @ANINewsUP@ANI_news indeed Modi magic has put a lock on him — sanjeev rao (@rao_sanjeev) March 17, 2017 यूपी में फिलहाल सीएम पद को लेकर अटकलें जारी हैं और अब 18 मार्च को ही साफ होगा कि कौन बनेगा यूपी का मुख्यमंत्री. googletag.cmd.push(function() { googletag.display('adslotNativeVideo'); }); @ANINewsUP@ShefVaidya maybe the locks are tampered too. #JustSaying @ANINewsUP MADE in Aligarh... @ANINewsUP@ANI_news indeed Modi magic has put a lock on him
यह एक लेख है: इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की फ्रेंचाइजी-कोलकाता नाइट राइडर्स बंगाल के खिलाड़ी और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की सेवाएं लेने पर विचार कर रही है। बेंगलुरू में जारी आईपीएल-4 की नीलामी में गांगुली के लिए किसी टीम ने बोली नहीं लगाई लेकिन नाइट राइर्ड्स उन्हें मेंटर या फिर बोर्ड के सदस्य के तौर पर अपने साथ जोड़ना चाहती है। गांगुली आईपीएल-1 और आईपीएल-3 में नाइट राइर्ड्स के कप्तान रहे थे लेकिन इस बार इस टीम ने गांगुली के लिए बोली नहीं लगाई। गांगुली की आधार कीमत 400,000 डॉलर है। नाइट राइडर्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वेंकी मैसूर ने कहा है कि उनका टीम प्रबंधन गांगुली को वही भूमिका देने पर विचार कर रहा है, जो भूमिका बेंगलोर रॉयल चैलेंजर्स ने अनिल कुम्बले को दी है। वेंकी ने कहा, "मैं गांगुली का बहुत सम्मान करता हूं। वह देश में क्रिकेट के महान दूत रहे हैं। हम चाहते हैं कि वह हमारे साथ किसी न किसी रूप में जुड़े रहें।" यह पूछे जाने पर कि क्या नाइट राइडर्स गांगुली को कुम्बले सरीखी भूमिका देने पर विचार कर रहा है। वेंकी ने कहा, "हमें इस सम्भावना पर विचार करना है। अगर वह इस भूमिका में खुश रहेंगे तो निश्चित तौर पर हम भी उन्हें यह भूमिका देना चाहेंगे।"
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीजिंग में चीन के उपराष्ट्रपति वांग चिशान से सोमवार को मुलाकात की. वांग चिशान के साथ जयशंकर की यह मुलाकात काफी अहम है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी चीन पहुंचे थे. जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर कई देशों ने विरोध किया था वहीं, कुछ देश भारत के साथ खड़े नजर आए. पाकिस्तान सरकार कश्मीर पर लिए गए भारत के निर्णय पर बौखलाया हुआ है. इस बीच रविवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर तीन दिवसीय यात्रा पर चीन पहुंचे. माना जा रहा है कि पाकिस्तान के साथ गहराए तनाव को लेकर ये बैठक काफी महत्वपूर्ण है. इस मुलाकात के दौरान कश्मीर पर भी बातचीत होगी. पद संभालने के बाद विदेश मंत्री जयशंकर की चीन की ये पहली यात्रा है. हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर 1 जून 2009 से 1 दिसंबर 2013 तक चीन में भारतीय राजदूत के रूप में काम कर चुके हैं. वह 1977 में भारतीय विदेश सेवा में भर्ती हुए थे. जयशंकर चीन के आलावा अमेरिका, चेक गणराज्य राजदूत और सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में भी कार्य कर चुके हैं. External Affairs Minister, S Jaishankar meets Vice President of China, Wang Qishan, in Beijing. EAM Jaishankar is on a three-day visit to China to co-chair the second meeting of the India-China 'High-Level Mechanism' on cultural and people-to-people exchanges. pic.twitter.com/pLrrUwEiuw — ANI (@ANI) August 12, 2019 विदेश मंत्रालय (MEA) का कहना है कि एचएलएम की इस बैठक में दो देशों के बीच अधिक से अधिक तालमेल बनाए रखने के लिए पर्यटन, कला, फिल्मों, मीडिया, संस्कृति और खेल जैसे क्षेत्रों में बढ़ावा मिलेगा, साथ ही संस्कृति के आदान-प्रदान का एक बेहतर माध्यम साबित हो सकता है.
नई दिल्लीः साहित्य का सबसे बड़ा महाकुंभ ' साहित्य आजतक 2019 ' सजने को तैयार है. इस साल भी यह मेला 1 नवंबर से 3 नवंबर तक राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में लग रहा है. ' साहित्य आजतक 2019 ' के बड़े स्वरूप व भव्यता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आमंत्रित अतिथियों की संख्या तीन सौ के पार है. जिनमें कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की ऐसी शख्सियतें यहां जुट रहीं कि आपके लिए नाम गिनना जहां मुश्किल होगा, वहीं यह तय कर पाना भी कि आप कहां, किस मंच पर बैठें. जाहिर है तीनों दिन के कार्यक्रमों का आकर्षण आपको यहीं पर रोके रखेगा. इस बार साहित्य आजतक में कई और भारतीय भाषाओं के दिग्गज लेखक भी आ रहे हैं, जिनमें हिंदी, उर्दू, भोजपुरी, मैथिली, अंग्रेजी के अलावा, राजस्थानी, पंजाबी, ओड़िया, गुजराती, मराठी, छत्तीसगढ़ी जैसी भाषाएं और कई बोलियां शामिल हैं. साहित्य आजतक 2019 की शुरुआत सूफी संगीत के दिग्गज कैलाश खेर के गायन से होगी. इसके बाद कवि अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन और गगन गिल हमारे दौर के प्रतिष्ठित आलोचक नामवर सिंह और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका कृष्णा सोबती को याद करेंगे. पद्म विभूषण पंडित जसराज , निज़ामी बंधु की कव्वाली, रेखा भारद्वाज का संगीत, विद्या शाह का बापू के नाम, मैथिली ठाकुर की तान, उस्ताद शुजात हुसैन खान का गायन, रुहानी सिस्टर्स की कव्वाली, सलमान अली के सुर, मालिनी अवस्थी की लोक गायिकी, हंस राज हंस की का सूफियाना कलाम, शुभा मुद्गल का गायन, रवि किशन व मनोज तिवारी की भोजपुरिया बातें, गीतकार समीर के किस्से, अनूप जलोटा की गज़लें, पंकज उधास के गानें, इरशाद कामिल का बैंड, मनोज मुंतशिर के गीत, फैशन का जलवा वाले गीतकार संदीपनाथ और शैली के अलावा स्वानंद किरकिरे भी अपनी उपस्थिति से इस आयोजन को खास बनाएंगे. फिल्म और विज्ञापन जगत को अपने शब्दों से चमकाने वाले गीतकार प्रसून जोशी के अलावा हिंदी साहित्य के सुनाम दिग्गजों में पद्मा सचदेव, उदय प्रकाश, असगर वजाहत, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, चंद्रकांता, आशुतोष, सबा नकवी, राकेश सिन्हा, विजय त्रिवेदी, हिमांशु बाजपेयी, सुधीश पचौरी, सच्चिदानंद जोशी, अनंत विजय, निलोत्पल मृणाल, रत्नेश्वर सिंह, उमा शंकर चौधरी, योगिता यादव, जयनंदन, कुलदीप राघव, नीलिमा चौहान, शशांक भारतीय, कुशल सिंह, भालचंद्र जोशी, उर्मिला शिरीष, मधु कांकरिया, सत्य व्यास, दिव्य प्रकाश दुबे, विजयश्री तनवीर, प्रिया मलिक, रवि राय, प्रोफेसर सविता सिंह, इरा टाक, आकांक्षा पारे काशिव आदि शामिल हैं. इनके अलावा प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह, डॉ लीलाधर मंडलोई, संदीप भुतोरिया, डॉ रमा शर्मा, वागीश सारस्वत, राकेश कायस्थ, नवीन चौधरी प्रत्यक्षा सिन्हा, राहुल चौधरी नील, अंकिता जैन, भगवान दास मोरवाल, निर्मला भुराड़िया, शरद सिंह, गीता श्री, जयंती रंगनाथन, नीरज मुसाफिर, उमेश पंत, यतींद्र मिश्र, राहुल देव, पुष्पेश पंत, अरुणिमा सिन्हा, तेजेंद्र शर्मा, मृदुल कीर्ति, संदीप नैयर, मनोज शर्मा, ललित कुमार, डॉ अनिर्बान गांगुली, शिवानंद द्विवेदी, नलिन वर्मा, गौतम चिंतामणि, डॉ सदानंद शाही, रश्मि भारद्वाज, अणुशक्ति सिंह, नवीन चौधरी, अनामिका, निर्मला गर्ग, बाबुशा कोहली आदि भी साहित्य आजतक के मंच पर होंगे. कुमार विश्वास , शैलेष लोढ़ा, आशुतोष राणा, वरुण ग्रोवर, अशोक चक्रधर, सुरेंद्र शर्मा, अरुण जेमिनी, सुनील जोगी, प्रताप सोमवंशी, संजय कुंदन, निधीश त्यागी, कविता किरण, चेतन आनंद, पंकज शर्मा, अंकुर शर्मा के जिम्मे कविता का मंच होगा, तो नरेंद्र कोहली, आनंद नीलकंठन के अलावा मुशायरा के तहत शायर वसीम बरेलवी, राहत इंदौरी, नवाज देवबंदी, अभिषेक शुक्ला, एस आर जीशान नियाजी, कुंवर रंजीत चौहान, तो अरविंद गौड़ के नुक्कड़ के अलावा सौरभ शुक्ला का चर्चित नाटक 'बर्फ' और नाटक 'अकबर द ग्रेट नहीं रहे' रंग मंच की खास प्रस्तुतियां होंगी. क्षेत्रीय भाषाओं के वे तमाम नाम भी यहां उपस्थित होंगे, जिनके बारे में हिंदी जगत उनके हिंदी में लिखने या फिर उनकी पुस्तकों के अनुवाद के चलते पहले से ही भिज्ञ है. इनमें ओड़िया साहित्य से डॉ सुभाष पाणी, पारमिता सत्पथी, असित मोहंती; मराठी साहित्य से भारत सासणे, मिलिंद बोकिल, सानिया; पंजाबी साहित्य से प्रोफेसर सतीश कुमार वर्मा, प्रोफेसर कृपाल कजाक व नछत्तर; राजस्थानी साहित्य से हेमंत शेष, त्रिभुवन, रीना मेनारिया; असमिया साहित्य से कुला सैकिया, बिपाशा बोरा, रीता चौधरी; गुजराती साहित्य से दीपक मेहता, दिलीप झवेरी और एषा दादावाला जैसे प्रतिष्ठित और युवा नाम शामिल हैं. साहित्य आजतक 2019 में भाग ले रहे अतिथियों की पूरी सूची साहित्य आजतक प्रोग्राम के इस लिंक पर क्लिक करते ही आप देख सकेंगे. इसके अलावा हम हर दिन अतिथियों से संबंधित सूचनाएं भी उनके या उनके सत्र के परिचय के साथ अपडेट कर रहे. साल दर साल दर्शकों की बढ़ती गिनती के मद्देनजर इस साल रजिस्ट्रेशन लाइंस काफी पहले ही खोल दी गई थीं. दर्शकों के उत्साह के चलते कई मंच बढ़ा भी दिए गए हैं. याद रखें कि 'साहित्य आज तक ' दूसरे साहित्यिक आयोजनों से पूरी तरह से अलग है और अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है. देश के सबसे तेज और सर्वाधिक लोगों द्वारा देखे जाने वाले हिंदी समाचार चैनल 'आज तक' की ओर से हर साल साहित्य के इस महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. अगर आपने अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, तो मौका न चूकें. इससे पहले की देर हो जाए, साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ ' साहित्य आजतक 2019 ' के लिए अभी रजिस्ट्रेशन कराएं. इससे पहले की देर हो, फ्री रजिस्ट्रेशन का लाभ उठाएं. तुरंत यहां दिए लिंक साहित्य आजतक 2019 पर क्लिक करें, और रजिस्ट्रेशन करा लें या फिर हमें 8512007007 नंबर पर मिस्ड काल करें.
रियो के कार्निवाल में साफ-सफाई में जुटे अधिकारियों ने 214 लोगों को यहां-वहां पेशाब करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। सफाई मामलों के प्रभारी अधिकारी एलेक्स कोस्टा ने जी-1 न्यूज वेबसाइट को बताया, इस सप्ताहांत के दौरान 214 लोगों को गिरफ्तार किया गया। जो लोग सड़कों पर पेशाब करेंगे, हम उन पर लगातार निगरानी रखते रहेंगे। शहर और इसके नागरिकों के प्रति इस तरह असम्मान प्रकट करने की प्रवृत्ति को स्वीकार नहीं किया जाएगा। रियो में 2016 के ओलिंपिक खेल होने वाले हैं। अधिकारियों ने सफाई के लिए पिछले साल से अभियान शुरू किया हुआ है, जिसके तहत शहर में विभिन्न स्थानों पर पोर्टेबल शौचालय बनाए हैं। इसके बाद भी लोग इन शौचालयों की लंबी लाइनों में लगने से बचने के लिए यहां-वहां पेशाब करते रहते हैं, जिस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए अधिकारियों ने लोगों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया है।
लेख: गुजरात में 5 लाख 51 हज़ार 605 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है. करीब साढ़े पांच लाख मतदाताओं ने बीजेपी या कांग्रेस में से किसी को वोट देने लायक नहीं समझा. अगर इतने मत किसी एक पार्टी की तरफ पड़ते तो उसके खाते में 25 सीटें और जुड़ जातीं. राजनीतिक दलों को नोटा के खाते में जाने वाले इन मतदाताओं के बारे में सोचना चाहिए, हो सकता है उन्हें उम्मीदवार पसंद नहीं आया हो, भाषण पसंद नहीं आया हो, राजनीति का तरीका ही पसंद न आया हो. गुजरात के नतीजों को देखें तो बीजेपी हारते हारते जीत गई है और कांग्रेस जीतते जीतते हार गई है. 22 साल बाद बीजेपी फिर से सरकार बना रही है. जीत भले सामान्य अंतरों से हो मगर यह जीत ऐतिहासिक भी है. लगातार छठी बार सरकार बना लेना आसान नहीं होता है. क्यों बनी, कैसे बनी यह सब विश्लेषण के विषय है. नतीजों के दिन एक बार नतीजों को भी समग्र रूप से देख लेना चाहिए. चर्चाएं बहुत हो चुकी हैं. होती भी रहेंगी. - गुजरात ने बीजेपी को सरकार दिया है तो ख़ुद को एक विपक्ष भी दिया है. - गुजरात ने मोदी को रोका तो नहीं मगर उनके रथ की रफ्तार को धीमा कर दिया है. - गुजरात ने राहुल के रथ को मंज़िल नहीं दी मगर उसकी रफ़्तार को तेज़ कर दिया है. - गुजरात ने जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे नए युवा नेताओं को भी चुना है. गुजरात ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जो सुंदर संतुलन बनाया है वह बहुत कमाल का है. यह एक ऐसा नतीजा है जिससे किसी का दिल नहीं जला होगा. भले किसी के सारे सपने पूरे न हुए हों. बीजेपी को संदेश दिया कि आप ख़ुद को ठीक कीजिए और कांग्रेस को संदेश दिया कि आप थोड़ी और कोशिश कीजिए. राहुल गांधी इस चुनाव से नेता बनकर उभरे हैं तो नरेंद्र मोदी इस चुनाव से अपराजेय बनकर निकले हैं कि वो आख़िरी गेंद पर छक्का मार कर मैच जिता सकते हैं. 18 दिसंबर के नतीजे का यादगार पल रहा सुबह 9 से 10 बजे के बीच जब अचानक रुझानों में कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे आगे पीछे होने लगे. हमने अपने कार्यक्रम की शुरुआत एक ऐसे ग्राफिक्स से की थी जो बता रहा था कि बीजेपी के सरकार बनाने के 90 फीसदी चांस हैं और कांग्रेस के 10, रुझानों ने उस ग्राफिक्स को कुछ वक्त के लिए बदल दिया और एक वक्त पर दिखाने लगा कि कांग्रेस और बीजेपी के सरकार बनाने के चांस 50-50 परसेंट है. फिर ये ग्राफिक्स बदलने लगा कि बीजेपी के सरकार बनाने के चांस का प्रतिशत बढ़ने लगा. करीब एक घंटे का यह लम्हा बेहद तनाव और रोमांच भरा था. दोनों के लिए, बीजेपी के लिए भी और कांग्रेस के लिए भी. दोनों दलों के नेताओं और पत्रकारों की सांसे अटक गईं. लगने लगा कि नतीजा कुछ भी हो सकता है. मगर अंत में बीजेपी के लिए सब अच्छा हुआ. रुझान अब बीजेपी की तरफ मुड़ चुके थे. इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा था जीएसटी और उसका गढ़ था सूरत जहां के टेक्सटाइल व्यापारियों ने महीनों आंदोलन चलाया. उनके आंदोलन में भीड़ भी हुआ करती थी, इससे कांग्रेस को उम्मीद हुई होगी कि जीएसटी और हार्दिक के प्रति बढ़ते पटेलों के आकर्षण के कारण बीजेपी यहां हार सकती है. सूरत बीजेपी का गढ़ रहा है. हाल के कई चुनावों में बीजेपी जमकर जीतती रही है. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. - गुजरात ने बीजेपी को सरकार दिया है तो ख़ुद को एक विपक्ष भी दिया है. - गुजरात ने मोदी को रोका तो नहीं मगर उनके रथ की रफ्तार को धीमा कर दिया है. - गुजरात ने राहुल के रथ को मंज़िल नहीं दी मगर उसकी रफ़्तार को तेज़ कर दिया है. - गुजरात ने जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे नए युवा नेताओं को भी चुना है. गुजरात ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जो सुंदर संतुलन बनाया है वह बहुत कमाल का है. यह एक ऐसा नतीजा है जिससे किसी का दिल नहीं जला होगा. भले किसी के सारे सपने पूरे न हुए हों. बीजेपी को संदेश दिया कि आप ख़ुद को ठीक कीजिए और कांग्रेस को संदेश दिया कि आप थोड़ी और कोशिश कीजिए. राहुल गांधी इस चुनाव से नेता बनकर उभरे हैं तो नरेंद्र मोदी इस चुनाव से अपराजेय बनकर निकले हैं कि वो आख़िरी गेंद पर छक्का मार कर मैच जिता सकते हैं. 18 दिसंबर के नतीजे का यादगार पल रहा सुबह 9 से 10 बजे के बीच जब अचानक रुझानों में कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे आगे पीछे होने लगे. हमने अपने कार्यक्रम की शुरुआत एक ऐसे ग्राफिक्स से की थी जो बता रहा था कि बीजेपी के सरकार बनाने के 90 फीसदी चांस हैं और कांग्रेस के 10, रुझानों ने उस ग्राफिक्स को कुछ वक्त के लिए बदल दिया और एक वक्त पर दिखाने लगा कि कांग्रेस और बीजेपी के सरकार बनाने के चांस 50-50 परसेंट है. फिर ये ग्राफिक्स बदलने लगा कि बीजेपी के सरकार बनाने के चांस का प्रतिशत बढ़ने लगा. करीब एक घंटे का यह लम्हा बेहद तनाव और रोमांच भरा था. दोनों के लिए, बीजेपी के लिए भी और कांग्रेस के लिए भी. दोनों दलों के नेताओं और पत्रकारों की सांसे अटक गईं. लगने लगा कि नतीजा कुछ भी हो सकता है. मगर अंत में बीजेपी के लिए सब अच्छा हुआ. रुझान अब बीजेपी की तरफ मुड़ चुके थे. इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा था जीएसटी और उसका गढ़ था सूरत जहां के टेक्सटाइल व्यापारियों ने महीनों आंदोलन चलाया. उनके आंदोलन में भीड़ भी हुआ करती थी, इससे कांग्रेस को उम्मीद हुई होगी कि जीएसटी और हार्दिक के प्रति बढ़ते पटेलों के आकर्षण के कारण बीजेपी यहां हार सकती है. सूरत बीजेपी का गढ़ रहा है. हाल के कई चुनावों में बीजेपी जमकर जीतती रही है. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. गुजरात ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जो सुंदर संतुलन बनाया है वह बहुत कमाल का है. यह एक ऐसा नतीजा है जिससे किसी का दिल नहीं जला होगा. भले किसी के सारे सपने पूरे न हुए हों. बीजेपी को संदेश दिया कि आप ख़ुद को ठीक कीजिए और कांग्रेस को संदेश दिया कि आप थोड़ी और कोशिश कीजिए. राहुल गांधी इस चुनाव से नेता बनकर उभरे हैं तो नरेंद्र मोदी इस चुनाव से अपराजेय बनकर निकले हैं कि वो आख़िरी गेंद पर छक्का मार कर मैच जिता सकते हैं. 18 दिसंबर के नतीजे का यादगार पल रहा सुबह 9 से 10 बजे के बीच जब अचानक रुझानों में कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे आगे पीछे होने लगे. हमने अपने कार्यक्रम की शुरुआत एक ऐसे ग्राफिक्स से की थी जो बता रहा था कि बीजेपी के सरकार बनाने के 90 फीसदी चांस हैं और कांग्रेस के 10, रुझानों ने उस ग्राफिक्स को कुछ वक्त के लिए बदल दिया और एक वक्त पर दिखाने लगा कि कांग्रेस और बीजेपी के सरकार बनाने के चांस 50-50 परसेंट है. फिर ये ग्राफिक्स बदलने लगा कि बीजेपी के सरकार बनाने के चांस का प्रतिशत बढ़ने लगा. करीब एक घंटे का यह लम्हा बेहद तनाव और रोमांच भरा था. दोनों के लिए, बीजेपी के लिए भी और कांग्रेस के लिए भी. दोनों दलों के नेताओं और पत्रकारों की सांसे अटक गईं. लगने लगा कि नतीजा कुछ भी हो सकता है. मगर अंत में बीजेपी के लिए सब अच्छा हुआ. रुझान अब बीजेपी की तरफ मुड़ चुके थे. इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा था जीएसटी और उसका गढ़ था सूरत जहां के टेक्सटाइल व्यापारियों ने महीनों आंदोलन चलाया. उनके आंदोलन में भीड़ भी हुआ करती थी, इससे कांग्रेस को उम्मीद हुई होगी कि जीएसटी और हार्दिक के प्रति बढ़ते पटेलों के आकर्षण के कारण बीजेपी यहां हार सकती है. सूरत बीजेपी का गढ़ रहा है. हाल के कई चुनावों में बीजेपी जमकर जीतती रही है. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. 18 दिसंबर के नतीजे का यादगार पल रहा सुबह 9 से 10 बजे के बीच जब अचानक रुझानों में कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे आगे पीछे होने लगे. हमने अपने कार्यक्रम की शुरुआत एक ऐसे ग्राफिक्स से की थी जो बता रहा था कि बीजेपी के सरकार बनाने के 90 फीसदी चांस हैं और कांग्रेस के 10, रुझानों ने उस ग्राफिक्स को कुछ वक्त के लिए बदल दिया और एक वक्त पर दिखाने लगा कि कांग्रेस और बीजेपी के सरकार बनाने के चांस 50-50 परसेंट है. फिर ये ग्राफिक्स बदलने लगा कि बीजेपी के सरकार बनाने के चांस का प्रतिशत बढ़ने लगा. करीब एक घंटे का यह लम्हा बेहद तनाव और रोमांच भरा था. दोनों के लिए, बीजेपी के लिए भी और कांग्रेस के लिए भी. दोनों दलों के नेताओं और पत्रकारों की सांसे अटक गईं. लगने लगा कि नतीजा कुछ भी हो सकता है. मगर अंत में बीजेपी के लिए सब अच्छा हुआ. रुझान अब बीजेपी की तरफ मुड़ चुके थे. इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा था जीएसटी और उसका गढ़ था सूरत जहां के टेक्सटाइल व्यापारियों ने महीनों आंदोलन चलाया. उनके आंदोलन में भीड़ भी हुआ करती थी, इससे कांग्रेस को उम्मीद हुई होगी कि जीएसटी और हार्दिक के प्रति बढ़ते पटेलों के आकर्षण के कारण बीजेपी यहां हार सकती है. सूरत बीजेपी का गढ़ रहा है. हाल के कई चुनावों में बीजेपी जमकर जीतती रही है. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा था जीएसटी और उसका गढ़ था सूरत जहां के टेक्सटाइल व्यापारियों ने महीनों आंदोलन चलाया. उनके आंदोलन में भीड़ भी हुआ करती थी, इससे कांग्रेस को उम्मीद हुई होगी कि जीएसटी और हार्दिक के प्रति बढ़ते पटेलों के आकर्षण के कारण बीजेपी यहां हार सकती है. सूरत बीजेपी का गढ़ रहा है. हाल के कई चुनावों में बीजेपी जमकर जीतती रही है. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. राहुल गांधी ने जीएसटी को लेकर व्यापारियों तक पहुंचने के लिए गब्बर सिंह टैक्स का नारा गढ़ा. राहुल गांधी टैक्सटाइल फैक्ट्री में गए, व्यापारियों से संवाद कायम किया तब भी किसी को नहीं लग रहा था कि सूरत के व्यापारी बीजेपी का साथ छोड़ देंगे. जीएसटी को लेकर नाराज़गी इस उम्मीद को हवा देती रही. अंत में जब नतीजा आया तो यही निकला कि व्यापारियों ने अपने धंधे में लाखों करोड़ों का नुकसान तो सहा मगर बीजेपी को राजनीतिक नुकसान नहीं होने दिया. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी ने चुनाव के बीच जीएसटी को लेकर कई सुधार कर दिए थे. हमारे सहयोगी महावीर रावत ने बताया कि सूरत में नारा चलाया गया कि व्यापारी नाराज़ हो सकता है मगर गद्दार नहीं हो सकता है. सूरत के व्यापारियों ने अपने ही आंदोलनों और नाराज़गी को हरा दिया और बीजेपी को जिता दिया. ऐसा बहुत कम होता है, तभी होता है जब नेता और पार्टी के प्रति राजनीतिक निष्ठा आर्थिक नुकसान से बहुत ऊपर हो. ऐसी किस्मत शायद ही किसी पार्टी को हासिल होती है. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. सूरत ज़िले में 16 सीटें हैं. सूरत शहर में तीन सीटें हैं. सूरत में बीजेपी जीतती रही है. कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली हैं. सूरत में कांग्रेस पिछली बार से सिर्फ एक सीट ज़्यादा हासिल कर पाई है. 2012 में बीजेपी ने मंगरोल सीट 15,714 वोटों के अंतर से जीती थी. 2017 में बीजेपी यह सीट 13,914 वोटों के अंतर से हार गई. 2012 में मांडवी में कांग्रेस जीती थी 24,394 मतों से. 2017 में मांडवी में कांग्रेस ने 50,776 वोटों से जीत हासिल की है. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. मांडवी में कांग्रेस ने अपना मत डबल तो कर लिया मगर सूरत में वह बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई. सूरत ने कांग्रेस के रथ को रोक दिया. बीजेपी को यहां 14 सीटों पर जीत हासिल हुई है. सूरत की कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट में बहुत कमी भी नहीं आई, कुछ सीटों पर उसकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बढ़ गया. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. चौरयासी सीट पर बीजेपी ने 67,638 वोट से जीता था, इस बार 1,10,819 वोट से जीत हासिल की है. 2012 में माजुरा सीट पर 71,556 से जीत मिली थी, इस बार 85,827 वोटों से जीत हुई है. 2012 में उधना सीट पर बीजेपी 32,754 वोटों से जीती थी, इस बार 42,528 वोटों से जीती है. सूरत पश्चिम में 69,721 से जीती थी, इस बार 77,882 वोटों से जीती है. सूरत पूर्व और सूरत उत्तर में बीजेपी के वोट कम हुए मगर जीत उसे ही मिली. सूरत में जीएसटी का मुद्दा नहीं चला. सूरत ज़िला बीजेपी के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. गुजरात में शहरी सीटों की संख्या 59 मानी जाती है. यहां बीजेपी के पक्ष में 1 प्रतिशत का स्विंग हो गया यानी उसका वोट बढ़ गया. बीजेपी ने शहरों में अपना नुकसान रोक लिया. सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर राहत की सांस ली और हिमाचल प्रदेश और गुजरात की जीत का जश्न मनाने पार्टी मुख्यालय आए. इस बात से बेफिक्र कि सीटों का अंतर कम हुआ है, दरअसल ये विषय विश्लेषकों के होते हैं, राजनेता के लिए सिर्फ जीत होती है और जीत हो चुकी थी. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. क्या कांग्रेस ने जीएसटी के मसले को गलत समझा. राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि उन्होंने गुजरात के लोगों से बात कर मुद्दे तय किए हैं. जीएसटी के मसले पर तकलीफ के बाद भी सूरत ने जिस तरह से बीजेपी का साथ दिया है वह अभूतपूर्व है. कांग्रेस ने सिर्फ सौराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. सौराष्ट्र इलाके में 56 सीटें हैं, यहां कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 23 मिली हैं. सौराष्ट्र में बीजेपी को 15 सीट का फायदा हुआ है और बीजेपी को 13 सीट का नुकसान हुआ है. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. कांग्रेस सौराष्ट्र की बढ़त बाकी क्षेत्रों में नहीं बना सकी. उसके तीनों प्रमुख चेहरे शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल चुनाव हार गए. बीजेपी सरकार बनाने की ट्रॉफी लेकर जा चुकी है. कांग्रेस चाहे तो इस बात से संतोष कर सकती है कि प्रधानमंत्री के जन्मस्थान वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में है, ऊंझा विधानसभा से बीजेपी हार गई है. 1995 के बाद पहली बार यहां से हारी है. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. 1995 - 121 1998 - 117 2002 - 127 2007 - 117 2012 - 115 2017 में 99 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. 1995 से लेकर पांच चुनावों तक बीजेपी ने गुजरात जीता है और हर बार 100 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है. 2017 में पहली बार 100 से कम सीटें आई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 1995 के 121 का तो ज़िक्र तो किया मगर बाकी का सिर्फ ज़िक्र किया, सीटों की संख्या का ज़िक्र नहीं किया. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता, नेता सबको बधाई भी दी. गुजरात की जनता को भी बधाई. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. 2017 में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत मत मिला है. सीटें कम हुई हैं मगर बीजेपी ने मत प्रतिशत में वृद्धि की है. वोट प्रतिशत कांग्रेस का भी बढ़ा है और सीटें बढ़ी हैं. कांग्रेस ने 1990 के बाद पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस को 1990 में 33 सीटें मिली थीं, उसके बाद के चार चुनावों में 45 से 61 के बीच ही सीटें मिलती रहीं. 2017 में पहली बार कांग्रेस को 80 सीटें मिली हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी मौका था कि वे जवाबी भाषण देते मगर उन्होंने सिर्फ ट्वीट किया. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. प्रधानमंत्री मोदी जीत के बाद अपने कार्यकर्ताओं के बीच आकर संबोधित कर रहे थे, प्रदर्शन राहुल की पार्टी का भी खराब नहीं था, वह भी इस मौके पर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकते थे. प्रधानमंत्री ने फिर से कहा कि एक भी गुजराती उनसे अलग नहीं हो सकता है. उन्होंने आहवान किया कि फिर से मिलजुल कर काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने अमित शाह की भी जमकर तारीफ की. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. बीजेपी नतीजा आने के बाद कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाती रही मगर आप टिकटों का बंटवारा देखें तो दोनों दलों ने जाति के हिसाब से टिकट दिए. पटेल आंदोलन के कारण एक बार लगा कि बीजेपी का आधार खिसक रहा है. पटेल बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ तो हुआ मगर बीजेपी ने भी अच्छा किया है. हार्दिक पटेल भले ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ होने की बात कर रहे हैं मगर नतीजे बता रहे हैं कि पटेलों ने हार्दिक का साथ नहीं दिया. विसनगर जहां से पटेल आंदोलन शुरू हुआ था वहां से बीजेपी जीती है. घाटोल्डिआ सीट आनंदीबेन पटेल की थी, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा मगर उनकी सीट पर भी बीजेपी भारी मतों से जीती है. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. घटोल्डिया से बीजेपी के भूपेदरभाई पटेल ने कांग्रेस के शशिकांत पटेल को 1,17,750 वोटों से हराया. चोरयासी से हितेश पटेल ने कांग्रेस के योगेश पटेल को 1,10819 वोटों से हराया. मणिनगर से बीजेपी के सुरेश पटेल ने कांग्रेस के ब्रह्मभट्ट श्वेताबेन नरेन्द्र भाई को 75,199 वोट से हराया. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. चुनाव आयोग ने कहा है कि तीन करोड़ मतदाताओं ने वीवीपैट से वोट दिया है. सबने देखा था कि उनका वोट किसे पड़ा है तो ईवीएम से छेड़छाड़ कैसे हो सकती है. गुजरात चुनाव ने किसी को निराश नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता दी है तो कांग्रेस के रूप में विपक्ष. यही नहीं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को भी विधानसभा भेज दिया है. जिग्नेश निर्दलीय उम्मदीवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जिग्नेश ने लोगों से चंदा लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है. बनासकांठा के वड़गाम सीट से जिग्नेश ने बीजेपी के विजयकुमार को करीब 20,000 वोटों से हरा दिया. राधनपुर से अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के लविंग जी ठाकोर को 15000 वोटों से हराया है. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. कांग्रेस के कई बड़े नेता हारे हैं तो बीजेपी के नेताओं में शंकर चौधरी, दिलीप सांघनी, आत्माराम परमार, चिमन भाई सापरिया और जयनारायण व्यास हार गए हैं. इस चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं, जहां हार जीत का फासला बहुत कम वोटों से हुआ. 22 सीटों पर 3000 से कम पर फैसला हुआ है. वैसे हर चुनाव में होता है फिर भी आज जीतने वालों का दिन है, जितने का ज़िक्र हो जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. गोधरा से बीजेपी के सी के राउलजी ने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह परमार को 258 वोटों से हराया. मोदसा से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ठाकोर ने बीजेपी के भिखूसिंह जी परमार को 147 वोटो से हराया. कापर्डा से कांग्रेस के जीतुभाई चौधरी ने बीजेपी के उम्मीदवार को 170 वोट से हराया. ढोलका से बीजेपी के भूपेन्द्र सिंह चुदास्मा ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोटों से हराया. मनसा में कांग्रेस के सुरेश पटेल ने बीजेपी के अमित भाई चौधरी को 524 वोटो से हराया.टिप्पणियां गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. गुजरात में इस बार महिला विधायकों की संख्या 11 होगी. बीजेपी के हर्ष श्याम जी सबसे कम उम्र के विधायक होंगे. कई बार लगता है कि प्रधानमंत्री के आक्रामक कैंपेन से नतीजों पर फर्क पड़ा. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर. एग्ज़िट पोल की भी पोल खुली है इसी बार. किसी भी एग्ज़िट पोल में बीजेपी के लिए सबसे अधिक टुडे चाणक्या ने 135 का अनुमान बताया था, सबसे कम सी-वोटर ने 108, इंडिया टीवी ने 104-114 दिया था, यानी किसी भी एग्ज़िट पोल ने बीजेपी के लिए 100 से कम सीट का अनुमान नहीं बताया था. सरकार बनने का ट्रेंड ज़रूर सही साबित हुआ मगर नंबर के मामले में एग्ज़िट पोल फेल रहे. इस वक्त जब मैं प्राइम टाइम पढ़ रहा हूं बीजेपी को सौ से कम सीटें आईं हैं. एग्जिट पोल में कांग्रेस को 42, 47, 64, 65, 66, 68 सीटें दी थीं. सब ग़लत साबित हुए. गुजरात चुनाव की शुरुआत कांग्रेस के विकास पागल हो गया है से शुरू हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव का समापन विकास के नारे से किया. अपने कार्यकर्ताओं से नारा लगवाकर.
दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने सरकारी आवास पर गाय पाली थी. सरकारी आवास पर गाय लाने और पालने के अपने व्यक्तिगत अनुभव को उन्होंने एक ब्लॉग के जरिए साझा किया है. पढ़िए कपिल ने अपने ब्लॉग में क्या लिखा. सरकारी आवास में जगह थी और मन मे इच्छा और संस्कार दोनों. तो घर मे दो गाय पाल ली गई. दो गाय और उनके दो बच्चे. एक बछड़ा और एक बछिया. बरसो बाद दिल्ली के मंत्री आवास में किसी ने गाय पाली थी. शायद साहब सिंह वर्मा जी के आवास में गाय जरूर होती थी. जब लगभग डेढ़ बरस पहले इन गायो को घर लाया गया तब चुटकियों में सब हो गया. गाय और उनके बच्चे कैसे आएंगे ये कोई मुद्दा ही नही था. पर आज घर खाली करते समय गायो को लेकर जाना एक विकट समस्या बन चुका है. कोई टेम्पो वाला ले जाने को तैयार नहीं. पुलिस से स्पेशल लेटर लिखवाना, पशु पालन विभाग से भी एक पत्र कहते है जरूरी होगा. सब हो जाने के बाद भी सब के सब डरे हुए. एक भाई जो गाय की पूरी देखभाल करता था, उसकी इच्छा थी गाय को अपने घर ले जाने की. हमे भी लगा कि यही सही होगा. गाय इनसे परिचित भी है और ये देखभाल भी पूरे मन से करते हैं. पर वो भी लेकर जाने को हिम्मत नहीं कर पा रहे. पता नही, इस प्रकार के डर से गाय का भला होगा या बुरा. ये सही है या गलत. शायद गाय का गैर कानूनी व्यापार करने वाले भी डर गये होंगे तो अच्छा है. पर ऐसे महौल में कोई गाय रखने या पालने की हिम्मत कैसे करेगा? एक तरीका किसी ने सुझाया, गाय को ले जाते हुए, खूब भजन कीर्तन करते हुए, रास्ते मे हो भी मिले उसे गौ माता का आशीर्वाद दिलवाने व बदले में चंदा लेते हुए लेकर जाया जाए तो शायद कोई डर न हो. खैर गौ माता के जाने की कोई न कोई व्यवस्था तो हो ही जाएगी, आज उनके पैर छूकर इतने दिनों में उनके मन सम्मान में कोई कमी रह गयी हो तो उसकी माफी भी मांगनी बाकि है. इसी बीच में मेरी विधानसभा से कुछ लोगों के फ़ोन आये है, शायद आज फिर किसी परिवार की बच्ची को कोई उठा कर ले गया है. पुलिस में शिकायत करवाने जाना होगा.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ‘सेंटर फॉर रिमोट सेंसिंग’ के अध्यक्ष कुलदीप उज्ज्वल के पिता द्वारा बागपत में पुलिसकर्मियों से बदसलूकी को गंभीरता से लेते हुए शनिवार को उन 82 अध्यक्षों और सलाहकारों को बर्खास्त कर दिया, जिन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त था. सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री ने विभिन्न संगठनों और संस्थाओं के 82 अध्यक्षों और सलाहकारों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है. प्रवक्ता ने बताया कि हालांकि, हिन्दी भाषा संस्थान के अध्यक्ष गोपाल दास नीरज, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष यूपी सिंह और उत्तर प्रदेश योजना आयोग के उपाध्यक्ष एनसी बाजपेयी अपने पद पर बने रहेंगे, क्योंकि तीनों संवैधानिक पद हैं और इन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल है. कुलदीप उज्ज्वल के पिता धरमपाल चौधरी ने एक पुलिस सब इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल को वर्दी उतरवा लेने की कथित रूप से धमकी दी थी. पुलिसकर्मी गोहत्या के आरोपी चार व्यक्तियों को गिरफ्तार करने बुधवार को बलौनी थाना क्षेत्र के मावीकला गांव गए थे. मामला तब सामने आया, जब एक गांव वाले ने पूरी घटना अपने मोबाइल फोन के कैमरे में कैद कर ली और ये ‘क्लिपिंग’ स्थानीय मीडिया में पहुंच गई. - इनपुट भाषा से
संरक्षण कृषि (Conservation tillage), खेती का एक बिल्कुल ही नया मॉडल है, जिसकी मदद से पर्यावरण का ख्याल रखा जाता है। इस अनोखी तरह की खेती में जमीन को या तो बिल्कुल भी नहीं जोता जाता (जुताई रहित कृषि) या फिर कम से कम जुताई होती है। इसमें फसल के पौधों को शुरू में नर्सरी में उगाया जाता है। साथ ही, लेजर की मदद से जमीन को जबरदस्त तरीके से समतल किया जाता है। ऊपर से, इसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर्स जैसे सिंचाई के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल होता है। इन तरीकों का इस्तेमाल करके खेती में काफी मुनाफे का सौदा बन सकती है। साथ ही, इससे कृषि में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कार्यकुशलता में जबरदस्त इजाफा होता है। इससे लागत कम आती है और पैदावार में काफी बढ़ोतरी होती है। इस सबका फायदा किसानों को मोटे मुनाफे के रूप में होता है। गंगा के मैदानों के किसानों के बीच खेती का यह नया तरीका काफी मशहूर हो रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह है, इसका काफी अच्छा और फायदेमंद होना। इतिहास एक जमाना था, जब खेती की विकास गाथा में पानी के ज्यादा इस्तेमाल, उर्वरक और ऊर्जा का अधिक इस्तेमाल करने वाली तकनीकों की अहम भूमिका हुआ करती थी। लेकिन अब वक्त बदल रहा है। आज कृषि के विकास के साथ-साथ इस बात का भी खास ख्याल रखा जा रहा है कि इनका इस्तेमाल कम से कम हो, ताकि लागत कम होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सेहत पर भी इसका बुरा असर न हो। इस नई खेती की शुरुआत 2000 के आसपास हुई थी। विधि हालांकि, पारंपरिक रूप से यह सोचा जाता है कि जितने अच्छी तरीके से खेतों को जोता जाता है, फसल उतने ही अच्छी होती है। लेकिन इस नई तरह की खेती में पिछली बार की फसल को काटने के बाद जमीन को वैसे का वैसा ही छोड़ दिया जाता है। नई फसल के लिए एक खास तरीके के बोवाई-यन्त्र (सीड-ड्रिल्स) की मदद से खेतों में छेद करके बीजों को एक निश्चित गहराई में बो दिया जाता है। इससे न केवल मेहनत बचती है, बल्कि इससे खेतों की बार-बार जुताई में खर्च होने वाली ऊर्जा भी बचती है। इस वजह से काफी समय भी बचता है। इससे अगली फसल की तैयारी करने के लिए भी काफी वक्त मिल जाता है। इसकी वजह से खर-पतवारों का खतरा भी काफी कम हो जाता है। उचित गहराई में बीज बोने और उनके आस-पास मौजूद छोटी-छोटी नालियों की वजह से पानी अच्छी तरह से उन तक पहुंच पाता है। इससे पानी की बर्बादी तो कम होती ही है। साथ ही, पैदावार में भी अच्छा खासा इजाफा हो सकता है। लेजर से जमीन को समतल करना काफी आधुनिक तकनीक सही, लेकिन यह पिछले कुछ सालों में आई काफी फायदेमंद तकनीकों में से एक है। इसमें एक खास तरीके की मशीन की मदद ली जाती है, जो लेजर किरणों का इस्तेमाल करके खेत को बिल्कुल ही समतल कर देता है। एक बिल्कुल समतल जमीन पर पानी, हर पौधे तक समुचित मात्रा में जाता है। यह एक तरह से पूरे खेत में अच्छी फसल की गारंटी के बराबर है। इस वजह से पानी की भी काफी ज्यादा बचत होती है। खरीफ की फसल के मामले में इस प्रकार की खेती 20 सेमी तक पानी बचत कर सकती है। रबी फसलों के मामले में यह बचत पांच सेमी तक की होती है। लाभ संरक्षण खेती की वजह से जमीन की उत्पादकता में काफी इजाफा होता है। साथ ही, यह पानी, ऊर्जा और जमीन की उर्वरता का भी पूरा संरक्षण करती है। इस वजह से लागत में 20 से 30 फीसदी तक की कमी होती है। इसकी वजह से प्रति हेक्टयर औसतन 2500 रुपये की बचत होती है। अहम बात यह भी है कि यह पर्यावरण के लिए भी काफी अच्छा है। साथ ही, यह ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण में आ रहे बदलावों को भी रोक सकता है। अगर इस नई तरह की खेती को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया तो यह कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा को कम करने में मदद कर सकती है। असल में बिना जुते खेत कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद मिलती है। इन्हें भी देखें जुताई रहित कृषि Conservation tillage बाहरी कड़ियाँ संरक्षण खेती बन सकती है लाख दुखों की एक दवा (बिजनेस स्टैण्डर्ड) कृषि संरक्षण अक्षय कृषि
विपक्षी पार्टियों ने टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सीएजी के आकलन पर दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के रूख को विचित्र और त्रुटिपूर्ण करार दिया। कपिल सिब्बल ने कहा था कि आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रुपये का सीएजी का अनुमान गलत है और इसमें कोई हानि नहीं हुई। पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी सहित विपक्षी नेताओं ने सीएजी की आलोचना को लेकर सिब्बल पर कड़ा प्रहार किया और कहा कि यह काफी आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा एवं अन्य को बचाने का यह प्रयास है जिन्हें टू जी घोटाले के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस ने अपनी तरफ से सिब्बल का बचाव किया और कहा कि सरकारी लेखा परीक्षक की आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है और कोई भी सांसद या मंत्री सीएजी रिपोर्ट पर सवाल उठा सकता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता जोशी ने कहा कि सिब्बल का रूख अनुचित है और वह काफी लापरवाही वाला रूख अपना रहे हैं। जोशी ने कहा, मेरे विचार से यह काफी अनुचित है। कैग ने कभी नहीं कहा कि यह निश्चित राशि है। सिब्बल को सावधानी से रिपोर्ट पढ़नी चाहिए। सिब्बल ने कहा था कि सीएजी की अनुमानित हानि गलत है। माकपा ने सिब्बल के रूख को विचित्र बताते हुए कहा कि लगता है कि घोटाले के लाभार्थियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी ने सिब्बल के तर्क को त्रुटिपूर्ण बताया। बेंगलूर में येचुरी ने कहा, लगता है कि लाभार्थियों को बचाने के लिए यह सब किया जा रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने प्रेट्र से कहा, कैग रिपोर्ट की छानबीन होगी। कोई भी सांसद या मंत्री कैग की रिपोर्ट पर सवाल उठा सकता है। अगर सिब्बल ने दस्तावेजों के आधार पर कुछ कहा है तो हम नहीं मानते कि वह गलत हैं। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने दूरसंचार मंत्री के बयानों पर कहा, सिब्बल की निराधार टिप्पणियों से संसदीय प्रक्रिया की भी अवहेलना हुई है जब पीएसी मामले पर गौर कर रही है।
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: आंध्रप्रदेश को अखंड रखने को लेकर हो रहे सख्त विरोध के बावजूद विभाजन को लेकर आगे बढ़ने के केंद्र की प्रतिबद्धता को देखते हुए बताया जाता है कि राज्य मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफे के साथ ही कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया है। आज उनके एक मंत्री ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। कहा जा रहा है कि रेड्डी की सरकार में मंत्री ईपी रेड्डी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मुख्यमंत्री कैंप के सूत्रों ने बताया कि किरण राज्यपाल ई एस एल नरसिम्हन से दिन में 3 बजे मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं। लोकसभा में आज आंध्रप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2014 के पारित किये जाने के मजबूत संकेतों के साथ अभी तक ‘वेट एंड वाच’ की नीति अपना रहे किरण ने कथित तौर पर अपने सहयोगियों से कहा है कि वह और इंतजार नहीं कर सकते। बताया जाता है कि इस्तीफा मुद्दे पर उनके साथ तीन या चार कैबिनेट सहयोगी और उनका समर्थन कर रहे कुछ विधायक ही हैं। विभाजन मुद्दे पर लड़ाई को किसी अंजाम तक नहीं पहुंचता देख उन्होंने इस्तीफा देने का मन बनाया है। कल रात में प्रशासनिक फेरबदल में अपने दो विशेष सचिवों को उनकी ड्यूटी से मुक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने बड़ा संकेत दिया है कि वह अपनी राह पर बढ़ चुके हैं। उनके प्रधान सचिव और अन्य विशेष सचिव के भी आज तबादले की उम्मीद है, जिससे सीएमओ खाली हो जाएगा। अभी यह साफ नहीं है कि किरण नई पार्टी बनाएंगे अथवा नहीं। वहीं, आंध्र प्रदेश सरकार में मंत्री ईपी रेड्डी ने कहा कि मुख्यमंत्री इस्तीफे के बाद नई पार्टी बनाएंगे।
दिल्ली में एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उसकी लाश उसके घर से कुछ दूर लावारिस हालत में पड़ी थी. जिसके बारे में किसी ने पुलिस को सूचना दी. तब जाकर पुलिस ने शव को कब्जे में लिया. जांच में पता चला कि युवक को गोली मारी गई थी. हत्या की यह सनसनीखेज वारदात महरौली इलाके की है. जहां मृदुल नामक एक युवक अपनी बुजुर्ग मां के साथ रहता था. पुलिस के मुताबिक मृदुल को नशे की लत लग गई थी. इसके चलते वह कोई काम नहीं करता था. मंगलवार की देर शाम मृदुल ने पैसे को लेकर घर में अपनी मां की पिटाई की थी. इसके बाद वह अपने घर से निकल गया था और फिर लौटकर घर नहीं आया. उसकी मां और कुछ अन्य लोगों ने उसे तलाश भी किया. लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला. गुरुवार की सुबह पुलिस को किसी ने सूचना दी कि इलाके में एक युवक की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही अल सुबह पुलिस ने मौके पर जाकर उसकी लाश बरामद कर ली. पुलिस का कहना है किसी ने उसे गोली मारी है. युवकी पहचान मृदुल के रूप में हुई. पुलिस ने पंचनामे की कार्रवाई के बाद उसका शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. फिलहाल, पुलिस कातिल की तलाश और पहचान करने में जुटी है.
Tiger Power.@TigerZindaHai | @BeingSalmanKhan | #KatrinaKaifpic.twitter.com/95zAD37lHH अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी यह फिल्म 2012 में आई सलमान-कैटरीना की 'एक था टाइगर' की सीक्वल है. 'एक था टाइगर' का डायरेक्शन कबीर खान ने किया था, वहीं 'टाइगर जिंदा है' के निर्देशन की कमान सलमान की सुपरहिट फिल्म 'सुल्तान' के डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने संभाली है. टाइगर जिंदा है इसी महीने 23 दिसंबर को रिलीज होने वाली है और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह भी है कि इसी महीने सलमान खान का बर्थडे भी है.
यदि किसी घर में पति-पत्नी के बीच छोटी-मोटी बातों को लेकर लगातार झगड़े हो रहे हैं और उससे बच्चों के साथ संबंधों पर असर पड़ रहा है, तो ऐसी स्थिति में थोड़ा ठहरकर विचार करना चाहिए कि आखिर किन कारणों से ऐसी स्थिति पैदा हो रही है. विशेषज्ञों ने चेताया है कि पिताओं की नकारात्मक भावनाएं और तनाव उनकी शादी पर भारी हैं और बच्चों के साथ उनके रिश्ते को नुकसान पहुंचती है. डलास स्थित दक्षिणी मेथोडिस्ट युनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक क्रिस्टिना डी. कुरोज ने कहा, ‘नतीजों से यह निष्कर्ष निकलता है कि शादी की गुणवत्ता प्रत्येक मां-बाप के बच्चों संग उनके रिश्ते से जुड़ी हुई है.’ इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए टीम ने 203 परिवारों का विश्लेषण किया, जहां परिजनों ने 15 दिनों तक दैनिक डायरी प्रविष्टियां पूरी कीं. माताओं और पिताओं ने हर दिन के आखिर में उनकी शादी की गुणवत्ता और बच्चों संग उनके रिश्ते को नंबर दिए. शोधकर्ताओं ने पाया कि अभिभावकों ने जिस दिन अपनी शादी में तनाव और कहासुनी दर्ज की, उसी दिन बच्चों के साथ उनकी बातचीत तनावपूर्ण रही. कुरोज ने उल्लेख किया, ‘जिन परिवारों में माताएं अवसाद का संकेत दे रही थीं और पिताओं ने वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ने दिया, वहां नतीजे बच्चों के साथ कम या खराब बातचीत के रूप में सामने आए, यहां तक कि अगले दिन भी.’ कुरोज ने 'फैमिली साइकोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित शोध में निष्कर्ष निकाला कि परिवार के लिए शादी एक 'रिश्ता केंद्र' है.
स्वप्नवासवदत्ता इससे भिन्न नाटक है। वासवदत्ता एक अलंकारिक संस्कृत नाटक (आख्यायिका) है। वासवदत्ता नामक राजकुमारी इसकी प्रमुख पात्र है। इसके रचयिता सुबन्धु हैं। सुबन्धु के बारे में ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है किन्तु विद्वान मानसिंह ने पता लगाया है कि सुबन्धु गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम (414-455) और स्कन्दगुप्त (455-467) के दरबार में थे। कथानक इस काव्य का कथानक बहुत ही साधारण है। राजा चिन्तामणि के पुत्र युवराज कन्दर्पकेतु ने स्वप्न में एक अति सुन्दर युवती को देखा और उसके सौन्दर्य से इतना आकृष्ट हुआ कि राजकुमारी (वासवदत्ता) को ढूँढ़ने के लिए अपनी राजधानी से चल पड़ा। अपने मित्र मकरन्द के साथ वह विन्ध्य प्रदेश में पहुंचा। रात्रि में उसने एक शुक-दम्पत्ति के वार्तालाप को सुना और उसे ज्ञात हुआ कि उसके स्वप्न की राजकुमारी पाटलिपुत्र के राजा शृंगार-शेखर की पुत्री वासवदत्ता है और वह भी उससे (कन्दर्पकेतु से) प्रेम करती है और उसी को ढूढ़ने के लिए उसने तमालिका नाम की मैना को भेजा है। पक्षी से निर्दिष्ट दोनों प्रेमी-प्रेमिका पाटलिपुत्र में मिले। चूंकि वासवदत्ता के पिता ने उसका विवाह किसी विद्याधर से निश्चित कर रखा था, इसलिए दोनों ने अज्ञात पलायन का निश्चय किया। एक मायावी घोड़े से विन्ध्यपर्वत में पहुँचे। कंदर्पकेतु अभी सो ही रहा था कि वासवदत्ता भ्रमण के लिए वन में गई जहाँ किरातों के दो गणों ने उसका पीछा किया। किरातों के दोनों गण वासवदत्ता को प्राप्त करने के लिए आपस में झगड़ पड़े। वासवदत्ता भाग निकली और उसे एक आश्रम के बीच से निकलना पड़ा जहाँ संन्यासी ने उसे शाप दिया और वह पत्थर में परिवर्तित हो गई। निराश हुए कंदर्पकेतु ने आत्महत्या करनी चाही परन्तु एक आकाश-ध्वनि ने इसका निवर्तन किया। अन्त में वह आश्रम में पहुँचा और उसके स्पर्श से राजकुमारी पुनः जीवित हो उठे। यद्यपि कथानक बहुत ही छोटा है तथापि लेखक की यह स्वकल्पित कृति है। इसका साम्य नहीं है। वार्तालाप करते हुए पक्षी, जादू के घोड़े, संन्यासियों का शाप एवं आकाशध्वनियां इत्यादि कई विषयों को लेखक ने प्रस्तावित किया है जो साधारणतः भारतीय लोक साहित्य में पाया जाता है। लेखक का उद्देश्य अपनी अलंकार-प्रतिभा का प्रदर्शन करना था न कि उपन्यास लिखने की शक्ति का। जैसा कि डॉ॰ सुशील कुमार दे का कहना है : कथा की रोचकता घटनाओं में न होकर प्रेमियों के वैयक्तिक सौन्दर्य के चित्रण, उसकी उदारहृदयता, पारस्परिक निरतिशय अनुराग, इच्छापूर्ति का बाधक दुर्भाग्य, खण्डित-प्रेम की वेदना एवं सब परीक्षाओं और कठिनाइयों में भी मिलन तक प्रेम की सुरक्षा में ही होती है। काव्यगत विशेषताएँ वासवदत्ता संस्कृत काव्यशास्त्रियों से अभिहित गौड़ी शैली में लिखी गई है। गौड़ी का लक्षण विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में ‘‘श्लिप्ट शब्दयोजना, कठोरध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग एवं समास बहुलता’’ दिया है। सुबन्धु ने अपनी रचना को कई साहित्यक अलंकारों से विभूषित किया है जिनमें से श्लेष प्रधान हैं। सुबन्धु का स्वयं कहना है कि उसका काव्य : प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रबन्धविन्यासवैदग्ध्यनिधिः। (प्रत्येक अक्षर में श्लेष होने के कारण वैदग्ध्य प्रतिभा की निधि है।) वस्तुतः श्लेष को प्रस्तुत करने का उद्देश्य वक्रोक्ति की शोभा बढ़ाना है। उदाहरणतः एक युवती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सुबन्धु कहते हैं : वानरसेनामिव सुग्रीवांगदोपशोभिताम्। अर्थात् वानरों की सेना के समान सुग्रीव (युवतीपक्ष में सुन्दरग्रीव) और अंगद (युवतीपक्ष में अंगद नामक आभूषण विशेष) से सुशोभित थी। श्लेष के पश्चात् विरोधाभास (विरोध के समान प्रतीति) अलंकार का प्रयोग आधिक्य से पाया जाता है। विरोधाभास में श्लेष की सहायता से वास्तविक अर्थ की प्रतीति होती है। उदाहरतः ‘अग्रहेणापि काव्यजीवज्ञेन’। अर्थात् यद्यपि वह ‘ग्रह’ नहीं था तो भी काव्य शुक्र (जीव) बुध का ज्ञाता था। इस विरोधाभास का परिहार इस अर्थ से होता है : यद्यपि वह चोरी इत्यादि से मुक्त था तो भी काव्य के सार को जानने में निष्णात था। परिसंख्या, मालादीपक, उत्प्रेक्षा, प्रौढ़ोक्ति, अतिशयोक्ति तथा काव्य-लिंग आदि दूसरे अलंकारों का भी सुबन्धु ने प्रयोग किया है। शब्दालंकारों में से अनुप्रास एवं यमक का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास का उदाहरण दृष्टव्य है : ‘मदकलकलहंससरसरसितोदभ्रान्तम्’’ अथवा ‘‘उपकूलस×जातनलिनिकु×जपुंजितकुलायकुक्कुट घटद्यूत्कारभैरवातिशयम्’’ लगभग समान रूप से ही प्रयुक्त यमक का उदाहरण इस प्रकार है : आनन्दोलितकुसुमकेसरे केसररेणुमुषि रणितमधुरमणीनां रमणीनां सिकचकुमुदाकारे मुदाकारे। पाश्चात्य आलोचक डाक्टर ग्रे ने वासवदत्ता के बारे में कहा है : विलोल-दीर्घ समासों में वस्तुतः रमणीयता है एवं अनुप्रासों में अपना स्वतः का ललित संगीत। श्लेषों में सुश्लिष्ट संक्षिप्तता है। यद्यपि श्लेषों के द्वारा दो या दो से अधिक दुरूह अर्थों को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है तथापि वे दोनों पक्षों में घटने वाले वास्तविक रत्न हैं। सुबन्धु द्वारा किये गये वर्णन अधिक प्रशंसनीय है परन्तु उनके आधिक्य से प्रयुक्त होने के कारण कभी-कभी उद्वेजक से प्रतीत होते हैं। सम्पूर्ण आख्यान का अधिकतम भाग ये वर्णन ही हैं और कथानक इनके नीचे लुप्तप्राय हो जाते हैं। पर्वत, वन, नदियों अथवा नायिका आदि का भी वर्णन क्यों न हो उनके सर्वतोमुखी बाहुल्य के होने पर भी, सौन्दर्य एवं संगति का नितान्त अभाव है। शून्यबिन्दु गणित के इतिहास की दृष्टि से यह नाटक इस कारण महत्वपूर्ण है कि इसमें सुबन्धु ने "शून्यबिन्दु" शब्द का प्रयोग किया है, जो दर्शाता है कि (उनके) पहले से ही शून्य को एक बिन्दु के रूप में दर्शाया जाता रहा होगा। शून्य के स्वरूप (आकार) के विषय में ऐसा उल्लेख सबसे पहली बार इसी ग्रन्थ में मिलता है। विश्वं गणयतो विधातुः शशिकठिनीखण्डेन तमोमषीश्यामेऽजिन इव वियति संसारस्यातिशून्यत्वात् शून्यबिन्दव इव विततास् तारा व्यराजन्तेति। अर्थ - विधाता विश्व की गणना करते हैं। उनके पास चाँदरूपी सुधाखण्ड है। अन्धकाररूपी स्याही से काला आकाशरूपी मृगचर्म है। गणना करते हुए विधाता को लगता है कि संसार शून्य है। इसमें कुछ नहीं रखा। तब वे सुधाखण्ड की मदद से मृगचर्म पर तारों के रूप में शून्यबिन्दु बना देते हैं। वही तारे उस कालविशेष में प्रकाशित हो रहे थे। सन्दर्भ इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियाँ वासवदत्ता (संस्कृत विकिस्रोत) Vasavadatta: A Sanskrit Romance by Subandhu. पौराणिक चरित्र कथा सरित्सागर
रिजर्व बैंक गवर्नर डी. सुब्बाराव ने आज कहा, शायद सीआरआर एवं एसएलआर में कटौती करने की जरूरत है। इससे पहले सुब्बाराव ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और एसएलआर में कटौती करने की बैंकों की मांग से असहमति जताई थी।टिप्पणियां आरबीआई गवर्नर ने यहां वार्षिक बैंकिंग सम्मेलन ‘फिबैक समिट’ के दौरान कहा, मैं यह बात समझता हूं कि इसकी मांग है और इनमें (सीआरआर व एसएलआर) और कटौती करने की जरूरत है। पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सुब्बाराव 4 सितंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनकी जगह नए गवर्नर रघुराम राजन लेंगे। वर्तमान में सीआरआर 4 प्रतिशत पर है, जबकि एसएलआर 23 प्रतिशत है। भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष प्रतीप चौधरी ने कुछ समय पहले कहा था कि सीआरआर ‘सुसुप्त धन है’। उन्होंने कहा था कि यदि आरबीआई इसे कम नहीं करता है तो कम से कम इसके तहत जमा धन पर ब्याज तो दिया ही जाना चाहिए। आरबीआई गवर्नर ने यहां वार्षिक बैंकिंग सम्मेलन ‘फिबैक समिट’ के दौरान कहा, मैं यह बात समझता हूं कि इसकी मांग है और इनमें (सीआरआर व एसएलआर) और कटौती करने की जरूरत है। पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सुब्बाराव 4 सितंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे और उनकी जगह नए गवर्नर रघुराम राजन लेंगे। वर्तमान में सीआरआर 4 प्रतिशत पर है, जबकि एसएलआर 23 प्रतिशत है। भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष प्रतीप चौधरी ने कुछ समय पहले कहा था कि सीआरआर ‘सुसुप्त धन है’। उन्होंने कहा था कि यदि आरबीआई इसे कम नहीं करता है तो कम से कम इसके तहत जमा धन पर ब्याज तो दिया ही जाना चाहिए। भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष प्रतीप चौधरी ने कुछ समय पहले कहा था कि सीआरआर ‘सुसुप्त धन है’। उन्होंने कहा था कि यदि आरबीआई इसे कम नहीं करता है तो कम से कम इसके तहत जमा धन पर ब्याज तो दिया ही जाना चाहिए।
झारखंड के आदिवासियों और लोकजीवन की कहानियां कुछ दिलचस्प कहानियां बयां करती हैं. ऐसी ही कहानियों पर केंद्रित किताब 'सरई के फूल’ 30 सितम्बर 2015 से सभी ऑनलाइन स्टोर्स पर रिलीज होगी. 'सरई के फूल’ किताब को लिखा है अनिता रश्मि ने. किताब की प्रीबुकिंग शुरू हो गई है. आगे पढ़िए 'सरई के फूल' किताब की एक कहानी 'तिकिन उपाल का छैला' का ये दिलचस्प अंश. कहानी: तिकिन उपाल का छैला संताल मा दिसोमरे अर्थात- संथालों के देश में संथाल परगना का छोटा-सा इलाका ‘बरहरवा’. जंक्शन होने के कारण अच्छा व्यापारिक केंद्र. खूबसूरत मंदिरों के कारण काफी लोकप्रिय. सबसे फेमस तो पहाड़ी के विस्तृत इलाके में स्थित वह मंदिर, क्या नाम बताया आपने? अरे! बिंदुधाम. वही जहां देवाधिपति शिव के तांडव नृत्य के समय मां सती की आंख का बिंदु गिरा था. इसी से नाम हो गया बिंदुधाम. पूरी पहाड़ी इस बिंदुधाम मंदिर के नाम. एक तरफ सिद्धो-कान्हो कॉलेज तो दूसरी तरफ छोटी-छोटी कुटियाएं. विभिन्न पर्वों-मेलों के समय होनेवाले यज्ञ से जब-तब भीड़ से भर उठती पूरी पहाड़ी. मंदिर परिसर इतना बड़ा और खूबसूरत कि देखते नहीं अघाते देशी-भक्तजन. विदेशी भी. सब कहते हैं- ‘‘असली भगत त छैला है. छैला और उ स्वान...बाकी त बस दिखावा करता है.’ एक श्वान बरसों-बरस मंदिर के मुख्य द्वार पर बैठा अपना जलवा दिखलाता रहा. छैला की नजर में वही सबसे बडा़ और सच्चा भक्त है. पुजारी जी पूजा करने पहुंचे नहीं कि वह हाजिर और तब तक हाजिरी दे, जब तब पूजा खत्म न हो जाए. शाम ढले भी वही किस्सा. आरती प्रारंभ होने से लेकर खत्म होने तक माता के द्वार पर डटा रहे. चुपचाप चांय-चुपुड़ किए बिना. मुंड़ी गाड़ के. जैसे आरती खत्म हो, चुपचाप एक किनारे जा बैठे. वह ठहरा कुकुर जात. लेकिन कभी जो कुकुर माफिक छीन-झपट किया हो. कभी पहाड़ी की सीढ़ि़यों के नीचे भी कदम नहीं रखा. जब से आया, वहीं का होकर रह गया. उसकी भक्ति नए भक्तों, पर्यटकों के बीच चर्चा का विषय बन गई. उसी से प्रेरित हुआ छैला. उसके बाबा का अच्छा-भला भांति चलता था. उस आस-पास के इलाके में वह अकेला बचा था, जिसने अपना पुश्तैनी धंधा नहीं छोड़ा था. छोटी-सी झोपड़ी के बाहर ही लगाया था उसने भांति. भट्ठे की आग से क्या चमचमाता लोहा निकालता उसका बाबा! लोहे से चमचम चमकता फाल बनाता. माय भी भर दिन खटती. सवेरे झरने से पानी लाने जाती. उधरे निहा-धोकर आती. आते बखत भर गगरी या भर डेगची पानी लाती. कभी-कभार बाबा के संग भट्ठी के पास जम जाती. वह चपुआ चलाती. सोते बखत अक्सर वह असुरों के नाश की कथा कहती. छैला हुंकारी मारता रहता. पग-पग पर किस्से असुर, इधर की प्राचीनतम जाति. लोहे को गलाकर खेती के विभिन्न औजार, तरह-तरह के हथियार बनाना ही उनका काम. लोक-कथा के अनुसार एक बेर एक असुर बूढ़े ने एक मजबूर, खसरे से पीड़ित लड़के को अगोरिया रखा. अगोरिया धांगर मेहनत से उपजाए धान को सुखाते समय अगोरता पर वह धान को पंछियों से बचाने में सफल नहीं हो पाता. उसके घाव में टीसें उठती रहतीं. वह उन्हें सहलाने और उन पर बैठनेवाली मक्खियों को भगाने में लगा रह जाता. कौव्वे, सूअरों की बन आती. बुढ़िया गुस्सा! लेकिन शाम को धान जब ढेकी में कूटती, वह पूरा मिलता. जरा भी कम नहीं. माय बताती रहती, छैला हुँकारी मारकर सुनता रहता. ‘‘बूढ़ा फाल पजाता था, बुढ़िया चपुआ चलाती. अब यहां चमत्कार! लड़का का फाल तेज....चमचम चमकता हुआ. बाकी का भोथड़ और छोटा. सब बहुत नाराज!’’ ‘‘ई धांगर है? खसरा धांगर नय, ई कोय जादूगर है.’’ ‘‘पंचायत बैठाकर फैसला. पंचायत का फैसला सदा से अजब-गजब....का रे छैला! सो गया? सुत मत, किस्सा सुन.’’ पंचायत का फैसला हुआ, “झोंइक दो इसको भट्ठा में’’ बेचारे नौकर को झोंक दिया गया. उसके इच्छानुसार भट्ठे की आग बुझाने के लिए आम की डाली से नए घड़े का पानी छिड़का गया. अरे! चमत्कार, घनघोर चमत्कार! खसरे से भरा धांगर सोने-सा चमकता बाहर आया. चमचम चमकीला तन! सबको उत्सुकता हुई-‘‘भट्ठा में सोना है का?’’ भट्ठे का सोना लेने की लालच में बहुत सारे नर-असुर कूदते गए भट्ठे में. स्त्रियां झोंकती रहीं आग. सारे असुर जल मरे. एकदम स्वाहा! लालच ने कर दिया सब खत्म. अनाथ स्त्रियां लटक गईं सुनहरे लड़के से. वह उनको लेकर आकाश में उड़ गया. उड़ते हुए, जगह-जगह झटकता जाता. सब इधर-उधर छिटककर गिरीं. कुछ स्त्रियां दलदल में, कुछ चट्टानों पर, कुछ पहाड़ों पर, कुछ नदी में. सब हो गईं असुरों की देवी. माय भी उन्हीं की पूजा करतीं. वह कहानी सुनता और सर को झटक देता. उसके पढ़े-लिखे दिमाग में एकदम नहीं समाती यह कथा. ना ही पढ़ने-लिखने के बाद उसे पुश्तैनी काम भाता. दिन-रात हाड़ तोड़ते, आंख फोड़ते बाबा से वह नाराज रहता. उसे चपुआ में बाबा की मौत नजर आती। कई बेर उनके भांति के पास जम गया. ‘‘यह काम अब छोड़ो बाबा! थोड़ी जमीन है. लोन लेकर थोड़ी और खरीद लेते हैं. खेती पर ध्यान दो. वही सोना उगलेगा.’’ बाबा को सोना उगलाना आता भी नहीं, वह चाहता भी नहीं. ‘‘हम अपना पुसतइनी धंधा को कभी नय छोड़ेंगे.’’ ‘‘का सोचते हैं, हम ई काम को आगे ले जा पारेंगे? असंभव!’’ ‘‘हम तुमको करने के लिए तो नय बोले हैं. हम नय छोड़ेंगे. बस्स!’’ वह मिचमिची आंखों से छोटे-से भट्ठे में टकटकी गड़ाए रहता. आस-पास रखे खुरपी, फाल, दराँती देखता रहता। उसे बहुत संतुष्टि मिलती। झोपड़ा ‘टूट टाट, घर टपकत...’ की चुगली करता हुआ. और कोने का वह भट्ठा भीग-भीग जाए बरसात में। बुझ-बुझ जाएं कोयले. पर नहीं. एक जिद जो तारी है उस पर, वह छूटे ही नहीं. धोती को जांघ तक चढ़ाए हुए देह गलाता रहता लोहे के साथ-साथ. सदियों से वही तो करते रहे हैं उसके पूर्वज. छैला सिद्धो-कान्हो कॉलेज का होनहार छात्र. हाफ फीस माफ, सर की सहायता अलग से। स्वाभाविक है, सपने भी बड़े। शिव लोहार बाप-दादा के जमाने की बात, खिस्सा-कहनी, पुश्तैनी काम में आनंद की बात कह-कह कर बेटे का मुंह बंद करा दे, बेटे की इच्छाओं के लदे फूलों को महकने से रोक न सके. माय जोबा भी वैसी ही है. शिव लोहरा के बातों पर आंख मुंदकर चलनेवाली. जोबा भी उस यज्ञ की समिधा. बस! उसके पिता का एके सौक- कैसे उसका बेटा उ धांगर की तरह सोने-सा चमकने लगे.....चमचम! मां का भी. एक मीठे सपने को रोम-रोम में सहेजती, सिहरती रहती माय, ‘‘ उ खसरावाला धाँगर चमक सकता है तो का उसका सोना जैसा जनमल बेटा क्यों नय?’’ माय तालाब, नदी, पहाड़ पर गिर पड़नेवाले आराध्यों को प्रणाम करने लगती। जन्म से ही छैला गोरा-चिट्टा। हाथ लगाते मैला हो जाए, ऐसा. शिव लोहरा भी वैसने था, जोबा थोड़ा दब। शिव लोहरा भट्ठी की आग में झोंकाते-झोंकाते पड़ गया साँवला फिर काला. जोबा भी फसलों को रोपते-कोड़ते, धान को मसलते-फटकते पकल धूप में दूर पहाड़ी के पासवाले झरना से पानी ढोते-ढाते, हो गई साँवली। फिन एकदम काली. ऐसा नहीं कि उसके इलाके में चापानल नय लगाया गया. उ तो कबे से लगा है. पूरा इलाका में जगह-जगह गड़ल है. लेकिन कुछे महीना में सूं...सूं करने लगता. उसके कमर, माथे पर लदी रहती एक-एक डेगची. हाथ में टांगे गए कपड़ों से चूता रहता पानी- टप टप टप!और वह बौखती रहती. साथ की संथाली महिलाओं से कहते नहीं थकती यह बात- ‘‘नय छोड़ेंगे हम ई धंधा.’’ उसकी संथाली साथिनें भी निहाते-धोते कहानियां कहतीं-सुनतीं. चिकने पत्थर से रगड़तीं रहतीं वे एड़ि़यां, काली मिट्टी से धोती रहतीं केश और किस्सा परवान चढ़ता रहता. अक्सर सोनी हांसदा भी कहती छः भाय और एक बहिन का खिस्सा- पुराने जमाने में एक आदमी की एक बेटी, छः बेटा. एक बार पानी के लिए छहो भाय तालाब खोदने लगे. गहरा कोड़ने पर भी पानी निकसा नहीं. वे निराश हों, उससे पहले ही भीख माँगते हुए एक बाबा आ पहुँचे... मारांड बुरु. बाबा ने पानी के निकलने का उपाय बताया- ‘‘ अपनी बहन उपाल को दान कर दो.’’ छहो भाइयों ने दूसरे दिन बासयाम दाका अर्थात जलपान लेकर बहन को बुलाया. उपाल को खेत का रस्ता नय मालूम. भाइयों के कहने पर हल से खिंचे गए चिन्ह को देखते हुए वह उनके पास पहुंची. जलपान के बाद पानी पिलाने की बारी. उपाल चली तालाब से पानी लाने. छहो भाय के कहने से सूखे तालाब में घुस गई. चमत्कार! पानी निकल आया. मारांड बुरु का कहा सच?लेकिन पाँव के पंजे तक ही पानी निकला. उपाल अब कैसे भाइयों की प्यास बुझाए? एक गीत उसके होठों पर खिल आया- सोना किरी सुपाड़ी आयो सुपतिच् भारी पानी यो सुपाड़ी नायो नाही डुबाय हे भईया! पाँव के पंजे तक ही पानी आया. सोने का घड़ा नहीं डूब रहा है. थोड़ी देर में ही घुटने तक पानी. फिर पानी बढ़ता गया, बढ़ता गया. वह तालाब के पानी में समा गई. समाकर आंख को चौंधियानेवाले कमल फूल में बदल गई। गुलाबी, बहुत सुंदर. जोबा का बेटा छैला सोने का बना. लंबा, भरे बदन का. पैंट-शर्ट में उसकी खूबसूरती उभर उठती. सोनी हांसदा की बेटी कमल फूल के समान सुंदर! एकदम चौंधियाती काली खूबसूरती। खिस्सा-कहानी सुन वह हंसती खूब...खूब. जोबा नहीं जानती थी, उकर बेटा के साथ ही पढ़ती है सोनी और मतला की बेटी. पेट का चक्र ही इतना तगड़ा कि गोल-गोल उसी के भँवर में घूमते हुए दिन गुजरते जा रहे थे. किसी और तरफ ध्यान देने की फुरसत कहां! ऊ पर से बेटे को पढ़ाने का शौक. दुगुनी मेहनत. सोने-सा चौंधियाता उसका बेटा, कमल-सी चौंधियाती उसकी साथिन की बेटी. बेटी का नाम भी उपाल. पानी की चिंता में घुलता उनका जीवन. पानी-सी बहती सबकी जिनगी. उपाल और छैला वाद-विवाद से पढ़ाई तक में एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी. एक फॉर में जीत ले डिबेट तो दूसरा अगेंस्ट में. लेकिन बहुत दिन तक पढ़ाई में साथ-साथ चलनेवाले दोनों एक-दूसरे के अगेंस्ट न रह सके. कब मन मिले, उन्हें एहसास नहीं. बिंदुधाम मंदिर में अक्सर साथ-साथ दिखने लगे. कभी सीढ़ियों पर, कभी पीछे के बड़े से गेट के पास. छतनार पेड़ की छाया में चबूतरे पर बैठकर सती को कांधे पर लादे शंकर भगवान की विशाल तस्वीर को ताकते हुए. कभी दूसरे कोने में अंकित अर्धनारीश्वर की वंदना करते हुए. कभी माता बिंदेश्वरी की आराधना में लीन. कभी मंदिर की परिक्रमा में, पिछवाड़े की कैंटीन में चाय सुड़कते या छोला खाते भी. स्नेह की डोर मजबूत और मजबूत होती हुई. अपनी-अपनी बंद पलकों-अलकों पर कस्तूरी गंध संजोए भटकते रहते. जितना पाते, उतनी प्यास बढ़ती जाती. ‘‘हमने जो यह बीज बोया है, उसका क्या हो....” ‘‘...होगा क्या, भरपूर फसल से खलिहान भर लेंगे और क्या? ’’ आशंकित उपाल को छैला अक्सर समझाता- ‘‘ घबराती काहे है! हमको जरा कहीं लग जाने दो!’’ सुनहरे लड़के को एकदम एहसास नहीं; इन सुनहरे दिन, सुनहरी रातों के पल कितने कम हैं! जब वे हजारों बार गिनी गईं मंदिर की सीढ़ियों को गिनते हुए उतरते, तो उनके गालों पर कमल खिले होते। रातें, रातरानी की खुशबू से सराबोर रातें, आँखों में रातरानी....मह-मह महकती होती। उन्हें एहसास नहीं, सवेरा होनेवाला है, रातरानी अपनी खुशबू समेटनेवाली है. उपाल ने सोचा, अपनी मां से बात करेगी. रास्ते के कांटों को बीनने की विनती लेकिन अपने छैला पर उसे पूरा विश्वास है.विश्वास तो देवी मां पर भी है. दशहरे का समय पूजा-अर्चना से गमगमाया हुआ. धूप-अगरबती से पूरा परिसर सुवासित. यज्ञ-वेदिकाओं में अभी भी पत्थर से रगड़कर अग्नि प्रज्वलित. यज्ञ की समिधाएं कई हाथों से हवन कुंड के हवाले. चिड़चिड़ की आवाज! उपर-ही-उपर उठती ललहुन, पीली लपटें.लोगों की समवेत ध्वनि से पूरी पहाड़ी गूंजित- “स्वाहा! स्वाहा!! स्वाहा!!” कॉलेज में सप्तमी से छुट्टी. वे दोनों नित्य वहां जाते. उपाल का मन होता- वह भी यज्ञ में शामिल हो. सामने के भित्तिचित्रों से झाँकते हैं देवी-देवतागण. कहां-कहां से लोग जुट आए हैं! वह चाहती है, यहीं की कुटिया में रहकर वह छैला के साथ यज्ञ, पूजा-पाठ में डूबकर मांग ले उसे. नहीं! नहीं! छीन ले समाज से. नहीं देगा समाज, बैठाएगा पंचायत तो वह देवी का आशीर्वाद, यज्ञ की भभूति और सामने के दीवार के ब्रह्मा के अनूठे भित्तिचित्र से आशीर्वाद लेकर निकल जाए कहीं. दूर...बहुत दूर...दूर देश. नवमी के दिन गिरा...लग्न...करने आ रहे हैं लड़केवाले. उसे नहीं बंधना किसी और से. उपाल आज बहुत उद्विग्न, जानती है घर की दीवारों को भनक लग गई। पानी की तरह बहती रही इतने दिन. ध्यान ही नहीं गया, हजारों आंखें लग गईं हैं. माय-बाबा हजार आंखों से देखने लगे हैं. माय का झरने में नहाने, पानी लाने, खेतों में रोपा करने, फसलों को मसलने-कूटने सब में व्यवधान आने लगा है. अब, जब समझ में आया, सामने गिरा का फंदा. “किसी और से गिरा?” दोनों चीख पड़े. कल्पनातीत! भूल का गहरा एहसास. शिव लोहरा के बेटे से मतला की बेटी का लग्न!...असंभव...अब वह क्या करे? रातरानी बनी रातें, कमल बने दिन का भेद समय से पहले खुल गया. उसे पता है, समाज के लोगों से लेकर राजनीति तक गर्मा जाएगी. छुटभैये नेताओं की बन आएगी. गांव-गिरांव के अगुआ और पंच नाग बन फुफकारेंगे।. “एनजीओ-उनजीओ भी कुछ काम नहीं आएगा. ढंग से पानी, बिजली का इंतजाम तो कर नहीं सके, जिंदगी का कहां से करेंगे?” “सब खाने-कमाने के शॉर्टकट रास्ते हैं. सबको अपनी फिक्र है जितनी, हमारी नहीं. कितने बेरोजगारों का सहारामात्र है यह!” कई बेर उसका क्लासमेट दिगड़ा मरांडी कह चुका है. “कुछ तुम्हें ही सोचना-करना पड़ेगा.” दिगड़ा ने अच्छी तरह समझा दिया.“अकेला रास्ता...”, दिगड़ा ने कई बार दुराग्रही परंपराओं से परे हो यहां से बाहर जाकर सम्मानपूर्वक जिंदगी गुजारने का लालच दिया है कि छैला का दिमाग कुंद. किताब का नाम : सरई के फूल (पेपरबैक, कहानियां) लेखक : अनिता रश्मि पेज : 208 कीमत: 150 रुपये प्रकाशन : हिंद युग्म, दिल्ली साभार: हिंद युग्म प्रकाशन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब एनएसजी के सुरक्षा घेरे में रहेंगे. गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को यह अहम फैसला किया है. योगी को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और मायावती की तर्ज पर ही NSG का सुरक्षा कवच मिलेगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को NSG कवर देने के लिए उनको पहले से मिली हुए Y श्रेणी की सुरक्षा को अब Z+ में तब्दील किया जा रहा है. यूपी की गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद और अब राज्य के मुख़्यमंत्री को इससे पहले केंद्र की तरफ से सीआईएसएफ की सुरक्षा मिली हुई थी. उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य के मुख्यमंत्री योगी की सुरक्षा में राज्य पुलिस के ट्रेंड कमांडो के साथ-साथ आतंकियों से निपटने में सबसे सक्षम NSG के कमांडो तैनात किए जाने का फैसला किया गया है. गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक NSG के 28 जवान हर वक्त योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा में तैनात रहेंगे. इन NSG के एलीट कमांडो के पास आतंकियों से निपटने के लिए आधुनिक हथियार भी मौजूद रहेंगे. हाल ही में लखनऊ में खुरासान मॉड्यूल के आतंकियों का खुलासा हुआ था, जिनमें से एक सैफ़ुल्लाह को यूपी एटीएस ने लखनऊ में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था. इससे पहले भी यूपी आतंकियों की हिट लिस्ट में रहा है.
वेस्टइंडीज ने खराब फॉर्म से जूझ रहे अनुभवी बल्लेबाज रामनरेश सरवन को भारत के खिलाफ बुधवार से शुरू हो रहे तीसरे टेस्ट के लिए 13 सदस्यीय टीम से बाहर कर दिया है। सरवन की जगह कीरोन पावेल को टीम में शामिल किया गया है। बायें हाथ का यह 21 वर्षीय बल्लेबाज वेस्टइंडीज की ए टीम का नियमित सदस्य है। वेस्टइंडीज ने बारबाडोस में ड्रॉ समाप्त हुए दूसरे टेस्ट की टीम में इसके अलावा और कोई बदलाव नहीं किया है। भारत तीन मैचों की शृंखला में 1-0 से आगे चल रहा है। पावेल ने वेस्टइंडीज की ओर से दो एकदिवसीय मैच खेले हैं। उन्होंने ये दोनों मैच दक्षिण अफ्रीका में चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान खेले। उन्होंने भारत के खिलाफ पांच रन बनाए थे, जबकि बांग्लादेश के खिलाफ खाता भी नहीं खोल पाए थे। मौजूदा सत्र में सरवन का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। उन्होंने भारत के खिलाफ पहले दो टेस्ट की चार पारियों में केवल 29 रन बनाए हैं। वह पाकिस्तान के खिलाफ भी दो टेस्ट की चार पारियों में 54 रन ही बना पाए थे। तीसरा टेस्ट विंडसर पार्क में 6 जुलाई से खेला जाएगा। डोमीनिका में पहली बार किसी टेस्ट का आयोजन किया जा रहा है। यह मैदान हालांकि इससे पहले बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो दो एकदिवसीय मैचों की मेजबानी कर चुका है। टीम इस प्रकार है:- डेरेन सैमी (कप्तान), एड्रियन बराथ, कार्लटन बा, देवेंद्र बीशू, डेरेन ब्रावो, शिवनारायण चंद्रपाल, फिडेल एडवर्ड्स, कीरोन पॉवेल, रवि रामपाल, केमार रोच, मार्लन सैमुअल्स और लेंडल सिमन्स।
पेरिटोनियम सीरस झिल्ली है जो पेट की गुहा या एमनियोट्स और कुछ अकशेरूकीय, जैसे एनेलिड्स में सीलोम का अस्तर बनाती है।  यह अधिकांश इंट्रा-एब्डॉमिनल (या सीलोमिक) अंगों को कवर करता है, और संयोजी ऊतक की एक पतली परत द्वारा समर्थित मेसोथेलियम की एक परत से बना होता है।  गुहा की यह पेरिटोनियल परत पेट के कई अंगों को सहारा देती है और उनकी रक्त वाहिकाओं, लसीका वाहिकाओं और तंत्रिकाओं के लिए एक नाली के रूप में कार्य करती है। उदर गुहा (कशेरुकाओं, पेट की मांसपेशियों, डायाफ्राम, और श्रोणि तल से घिरा स्थान) इंट्रापेरिटोनियल स्पेस (उदर गुहा के भीतर स्थित लेकिन पेरिटोनियम में लिपटे) से अलग है।  इंट्रापेरिटोनियल स्पेस के भीतर की संरचनाओं को "इंट्रापेरिटोनियल" (उदाहरण के लिए, पेट और आंतों) कहा जाता है, इंट्रापेरिटोनियल स्पेस के पीछे स्थित उदर गुहा की संरचनाओं को "रेट्रोपेरिटोनियल" (जैसे, गुर्दे) कहा जाता है, और उन संरचनाओं को  इंट्रापेरिटोनियल स्पेस को "सबपेरिटोनियल" या "इन्फ्रापेरिटोनियल" (जैसे, मूत्राशय) कहा जाता है।
कांग्रेस भले ही नीतीश कुमार के साथ लंबे समय से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रही हो लेकिन ऐसा लगता है कि वह इस तथ्य को भूल गई है कि बिहार के मुख्यमंत्री राजनीति में इस जख्म के साथ आए हैं कि पार्टी ने उनके पिता के साथ सही बर्ताव नहीं किया था। यह दावा हाल में ही जारी एक पुस्तक में किया गया है। इसमें कहा गया है कि कांग्रेस ने कुमार के स्वतंत्रता सेनानी पिता रामलखन सिंह को बिहार विधानसभा के 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव और 1957 के चुनाव में बख्तियारपुर सीट से टिकट देने से मना कर दिया था। इससे आहत कुमार के पिता ने आखिरकार कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया और कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली थी। यह दावा नीतीश के बचपन के मित्र अरुण सिन्हा द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘नीतीश कुमार एंड द राइज ऑफ बिहार’’ में किया गया है। पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘नीतीश के दिमाग में कहीं न कहीं यह बात घर कर गयी कि उनके पिता के साथ कांग्रेस ने सही सलूक नहीं किया। उनके पिता अपने राजनैतिक जख्म की विरासत उन्हें सौंप गए।’’ नीतीश के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। वह पटना के बाहरी हिस्से में स्थित बख्तियारपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने 1942 में अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और गंभीर आरोपों के साथ जेल भेज दिया गया। कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद 1951-52 के चुनाव में रामलखन को सूची से हटा दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के नेतृत्व वाले कांग्रेस के दो समूहों में से किसी ने भी सभी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व देने की अपनी समूची रणनीति में उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। रामलखन पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ यह दावा हाल में ही जारी एक पुस्तक में किया गया है। इसमें कहा गया है कि कांग्रेस ने कुमार के स्वतंत्रता सेनानी पिता रामलखन सिंह को बिहार विधानसभा के 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव और 1957 के चुनाव में बख्तियारपुर सीट से टिकट देने से मना कर दिया था। इससे आहत कुमार के पिता ने आखिरकार कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया और कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली थी। यह दावा नीतीश के बचपन के मित्र अरुण सिन्हा द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘नीतीश कुमार एंड द राइज ऑफ बिहार’’ में किया गया है। पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘नीतीश के दिमाग में कहीं न कहीं यह बात घर कर गयी कि उनके पिता के साथ कांग्रेस ने सही सलूक नहीं किया। उनके पिता अपने राजनैतिक जख्म की विरासत उन्हें सौंप गए।’’ नीतीश के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। वह पटना के बाहरी हिस्से में स्थित बख्तियारपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने 1942 में अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और गंभीर आरोपों के साथ जेल भेज दिया गया। कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद 1951-52 के चुनाव में रामलखन को सूची से हटा दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के नेतृत्व वाले कांग्रेस के दो समूहों में से किसी ने भी सभी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व देने की अपनी समूची रणनीति में उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। रामलखन पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ इससे आहत कुमार के पिता ने आखिरकार कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया और कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। हालांकि, उन्हें जीत नहीं मिली थी। यह दावा नीतीश के बचपन के मित्र अरुण सिन्हा द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘‘नीतीश कुमार एंड द राइज ऑफ बिहार’’ में किया गया है। पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘नीतीश के दिमाग में कहीं न कहीं यह बात घर कर गयी कि उनके पिता के साथ कांग्रेस ने सही सलूक नहीं किया। उनके पिता अपने राजनैतिक जख्म की विरासत उन्हें सौंप गए।’’ नीतीश के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। वह पटना के बाहरी हिस्से में स्थित बख्तियारपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने 1942 में अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और गंभीर आरोपों के साथ जेल भेज दिया गया। कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद 1951-52 के चुनाव में रामलखन को सूची से हटा दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के नेतृत्व वाले कांग्रेस के दो समूहों में से किसी ने भी सभी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व देने की अपनी समूची रणनीति में उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। रामलखन पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘नीतीश के दिमाग में कहीं न कहीं यह बात घर कर गयी कि उनके पिता के साथ कांग्रेस ने सही सलूक नहीं किया। उनके पिता अपने राजनैतिक जख्म की विरासत उन्हें सौंप गए।’’ नीतीश के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। वह पटना के बाहरी हिस्से में स्थित बख्तियारपुर में आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने 1942 में अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और गंभीर आरोपों के साथ जेल भेज दिया गया। कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद 1951-52 के चुनाव में रामलखन को सूची से हटा दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के नेतृत्व वाले कांग्रेस के दो समूहों में से किसी ने भी सभी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व देने की अपनी समूची रणनीति में उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। रामलखन पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने 1942 में अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और गंभीर आरोपों के साथ जेल भेज दिया गया। कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य होने के बावजूद 1951-52 के चुनाव में रामलखन को सूची से हटा दिया गया क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह के नेतृत्व वाले कांग्रेस के दो समूहों में से किसी ने भी सभी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व देने की अपनी समूची रणनीति में उन्हें उपयुक्त नहीं पाया। रामलखन पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ दोनों गुटों के बीच एक ‘समझौते’ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा (भूमिहार) को पटना पूर्व (बाद में बाढ़) सीट से टिकट दिया गया और एक कायस्थ उम्मीदवार सुंदरी देवी (दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बहन) को बख्तियारपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया। उन्होंने सुंदरी देवी की जीत के लिए कठोर प्रयास किया।टिप्पणियां रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ रामलखन की अनदेखी करते हुए दोनों सीटों से 1957 में फिर उन्हीं दोनों उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। हालांकि, रामलखन को 1957 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया गया था लेकिन टिकट नहीं मिलने से वह काफी आहत हुए। पुस्तक में कहा गया है, ‘‘उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने दोनों गुटों को सबक सिखाने का फैसला किया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’ पुस्तक में कहा गया है कि रामलखन सिंह कांग्रेस छोड़कर रामगढ़ के राजा आचार्य जगदीश के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हुए और 1957 में बख्तियारपुर सीट से मैदान में उतरे। हालांकि, वह खुद पर्याप्त वोट नहीं हासिल कर सके लेकिन वह सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के हाथों कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित कर गए क्योंकि कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच वोट बंट गए। पुस्तक में दावा किया गया है कि ‘‘राजनीति की ओर नीतीश का आकर्षण कांग्रेस के प्रति नफरत से ही हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में उसके मंत्रियों को अपना प्रभुत्व बढ़ाते और जनहित का बेहद कम खयाल रखते देखा गया।’’
राज्यसभा में खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के पक्ष में मतदान के बावजूद निवेशकों की उच्च स्तर पर मुनाफा वसूली से शेयर बाजार में तीन दिन से जारी तेजी शुक्रवार को थम गई और बीएसई सेंसेक्स 63 अंक टूट गया। पिछले तीन कारोबारी सत्रों में 182 अंक की बढ़त हासिल करने वाला सेंसेक्स आज 62.70 अंक की गिरावट के साथ 19,424.10 अंक पर बंद हुआ। इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 23.50 अंक नीचे 5,907.40 अंक पर आ टिका। कारोबार के दौरान निफ्टी 5,949.85 अंक तक ऊपर चला गया था। ब्रोकरों ने कहा कि निवेशकों ने उच्च स्तर पर मौजूद शेयरों में मुनाफा वसूली की जिससे बाजार में तेजी कायम न रह सकी। आईटी शेयरों पर दबाव बना हुआ है।टिप्पणियां सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के अपने विवादित निर्णय पर आज संसद की मंजूरी हासिल कर ली। बसपा द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से यह प्रस्ताव राज्यसभा में भी पारित हो गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। पिछले तीन कारोबारी सत्रों में 182 अंक की बढ़त हासिल करने वाला सेंसेक्स आज 62.70 अंक की गिरावट के साथ 19,424.10 अंक पर बंद हुआ। इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 23.50 अंक नीचे 5,907.40 अंक पर आ टिका। कारोबार के दौरान निफ्टी 5,949.85 अंक तक ऊपर चला गया था। ब्रोकरों ने कहा कि निवेशकों ने उच्च स्तर पर मौजूद शेयरों में मुनाफा वसूली की जिससे बाजार में तेजी कायम न रह सकी। आईटी शेयरों पर दबाव बना हुआ है।टिप्पणियां सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के अपने विवादित निर्णय पर आज संसद की मंजूरी हासिल कर ली। बसपा द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से यह प्रस्ताव राज्यसभा में भी पारित हो गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 23.50 अंक नीचे 5,907.40 अंक पर आ टिका। कारोबार के दौरान निफ्टी 5,949.85 अंक तक ऊपर चला गया था। ब्रोकरों ने कहा कि निवेशकों ने उच्च स्तर पर मौजूद शेयरों में मुनाफा वसूली की जिससे बाजार में तेजी कायम न रह सकी। आईटी शेयरों पर दबाव बना हुआ है।टिप्पणियां सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के अपने विवादित निर्णय पर आज संसद की मंजूरी हासिल कर ली। बसपा द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से यह प्रस्ताव राज्यसभा में भी पारित हो गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। ब्रोकरों ने कहा कि निवेशकों ने उच्च स्तर पर मौजूद शेयरों में मुनाफा वसूली की जिससे बाजार में तेजी कायम न रह सकी। आईटी शेयरों पर दबाव बना हुआ है।टिप्पणियां सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के अपने विवादित निर्णय पर आज संसद की मंजूरी हासिल कर ली। बसपा द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से यह प्रस्ताव राज्यसभा में भी पारित हो गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के अपने विवादित निर्णय पर आज संसद की मंजूरी हासिल कर ली। बसपा द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से यह प्रस्ताव राज्यसभा में भी पारित हो गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। उन्होंने कहा कि यूरोपीय बाजारों से कमजोर रुख से भी निवेशकों ने सतर्कता का रुख अपनाया। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 19 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए।
अगस्त 2000 में, माइक्रोसॉफ्ट, हेवलेट-पेकार्ड (Hewlett-Packard) और इंटेल ने सीएलआई (CLI) मानकीकृत और सी प्रोग्रामिंग भाषा में कार्य किया। दिसम्बर 2001 तक, दोनों ECMA (ECMA 335 और ECMA 334 मानकों का अनुमोदन किया गया। अप्रैल 2003 में आईएसओ - आईएसओ (ISO) मानकों की मौजूदा संस्करण आईएसओ / आईईसी और आईएसओ 23271:2006 / 23270:2006 आईईसी हैं।जब माइक्रोसॉफ्ट और उनके सहयोगी पार्टनर सीएलआई (CLI) और सी# के लिए पेटेंटों को होल्ड करते हैं तो ईसीएमए (ECMA) और आई एस ओ (ISO) की जरूरत पड़ती है क्योंकि सभी पेटेंटों को लागू करने के लिए उचित और भेदभाव रहित शर्तों के अंतर्गत आवश्यक रूप से कार्यान्वित करना पड़ता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] इन शर्तों की बैठक के अलावा, कंपनियों को पेटेंट रॉयल्टी मुक्त उपलब्ध कराने पर सहमति जताई गयी है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]बहरहाल, यह. NET फ्रेमवर्क का हिस्सा नहीं है, जो ईसीएमए (ECMA)/ आईएसओ (ISO) मानक द्वारा कवर नहीं है, इसमें विण्डोज़ फोर्म्ज़ (Windows Forms), ADO.NET, ASP.NET भी शामिल है। पेटेंट की माइक्रोसॉफ्ट धारण[कृपया उद्धरण जोड़ें] के क्षेत्रों में गैर-रोक ढांचे के माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) कार्यान्वयन हो सकते हैं।3 अक्टूबर 2007 को, माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) ने घोषणा की कि.NET फ्रेमवर्क (.NET Framework) बेस कक्षा लाइब्रेरी के लिए 0}साझा स्रोत माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) संदर्भ लाइसेंस के तहत 2007 के अंत स्रोत कोड (ASP.NET, ADO.NET और विण्डोज़ (Windows) प्रस्तुति फाउंडेशन) कि जगह दृश्य 2008 स्टूडियो के अंतिम रिलीज के साथ उपलब्ध कराया जा रहा है। भविष्य के रिलीज में विंडोज संचार फाउंडेशन (डबल्यू सी एफ (WCF)) सहित अन्य पुस्तकालयों के लिए स्रोत कोड, विण्डोज़ (Windows) कार्यप्रवाह फाउंडेशन (डबल्यू एफ (WF)) और भाषा समन्वित क्वेरी (एलआईएनक्यू (LINQ)) शामिल हो गए॰ माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) संदर्भ लाइसेंस का गैर ओपन स्रोत होने के नाते इस स्रोत कोड का उद्देश्य है केवल डिबगिंग, जो मुख्य रूप से बी सी एल (BCL) के दृश्य स्टूडियो में बीसीएल के एकीकृत डिबगिंग का समर्थन करने के लिए उपलब्ध है।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में दोहरी हत्या का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है. जहां एक अधेड़ उम्र की महिला और पुरुष की गला रेतकर हत्या कर दी गई. मामला प्रेम प्रसंग का बताया जा रहा है. डबल मर्डर की यह वारदात चंदवक थानाक्षेत्र की है. जहां जमुआ गांव में रहने वाले 56 वर्षीय बलवंत यादव का वहीं रहने वाली 55 वर्षीय इंद्रावती के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. दोनों छिप छिप कर मिलते थे. कई बार दोनों को साथ साथ घूमते हुए भी देखा जाता था. बताया जाता है कि कुछ दिन बाद बात इंद्रावती के बेटे को पता चल गई. उसे इस बात पर यकीन नहीं हुआ. मगर वह अपनी मां पर नजर रखने लगा. शुक्रवार को इंद्रावती का बेटा किसी काम से बाहर गया हुआ था. लेकिन रात को जब वह वापस घर लौटा तो उसने अपनी मां इंद्रावती को बलवंत यादव के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया. मां को किसी गैरमर्द के साथ देखकर उसका खून खोल उठा. इसी दौरान उस बेटे ने एक तेजधार हथियार से बलवंत और इंद्रावती का गला रेतकर उनकी हत्या कर दी. और इसके बाद वह चुपचाप बाहर निकल गया ताकि किसी को शक न हो. शनिवार की सुबह दोनों की लाश मिलने पर पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने दोनों की लाशें कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने बताया कि बलवंत यादव और इंद्रावती के बीच लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था. इसी के चलते उनकी हत्या की गई है. जौनपुर के पुलिस अधीक्षक आर.पी. सिंह ने बताया कि इंद्रावती के बेटे को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है. हालांकि अभी तक पुलिस उसे दोषी नहीं बता रही है. पूरा मामला पूछताछ और छानबीन के बाद ही साफ होगा.
अपनी पहली फिल्म 'कयामत से कयामत तक' के साथ बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले सुपरस्टार आमिर खान ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सफलतापूर्वक अपने तीन दशक पूरे कर लिए हैं. इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म की सफलता ने देश को आमिर खान का दीवाना बना दिया था. लेकिन 30 साल बाद आमिर खान ने बताया है कि वो अपनी डेब्यू फिल्म में किए गए काम से खुश नहीं थे. हाल ही में एक इंटरव्यू में एक्टर ने बताया कि मैं आज भी उस काम से खुश नहीं हूं. मैंने डायरेक्टर को ये भी कहा था कि फिल्म दोबारा शूट की जाए. आमिर ने बताया कि मुझे लगता था सब जूही के काम को पसंद करेंगे, कोई मेरे काम को पसंद नहीं करेगा. जब फिल्म हिट हो गई तो आमिर ने कहा कि मैं हैरान था. ये मेरा भाग्य था, लोगों ने मेरा काम पसंद किया. बता दें बॉलीवुड की रोमांटिक फ‍िल्मों में से एक 'कयामत से कयामत तक' को 30 साल पहले 29 अप्रैल 1988 में रिलीज किया गया था. इस फिल्म में उनके साथ लीड रोल में जूही चावला भी थीं. जब आमिर को Kiss करने से जूही ने किया इंकार, रुकी थी शूटिंग बीते दिनों इस फिल्म से जुड़े कई मजेदार किस्से डायरेक्ट मंसूर ने खोले. उन्होंने बताया कि फिल्म की शूटिंग के दौरान आमिर खान और जूही चावला के बीच एक किसिंग सीन शूट होना था. दरअसल फिल्म के गाने 'अकेले हैं तो क्या गम है' की शूटिंग के दौरान जूही चावला को आमिर को गाल और माथे पर किस करना था. लेकिन जूही ने किस करने से मना कर दिया था. जूही के इंकार के बाद फिल्म के डायरेक्टर मंसूर खान ने शूटिंग करीब 10 मिनट के लिए रोक दी थी. वो इतना परेशान हो गए कि पूरी यूनिट से बोल दिया कि कोई काम नहीं होगा, सब रोक दो. शूटिंग रुकने के बाद जूही को सीन के बारे में समझाया गया. आखिरकार थोड़ी देर बाद जूही को समझ आया कि ये स्क्रिप्ट की डिमांड है और उन्होंने सीन के लिए हां कह दिया.
महाराष्ट्र में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां मुंबई में एक मरीज ने इलाज मे देरी होने के कारण डॉक्टर पर ब्लेड से जानलेवा हमला कर दिया. फिलहाल डॉक्टर खतरे से बाहर है. पुलिस ने आरोपी मरीज को गिरफ्तार कर लिया है. आरोपी से पूछताछ जारी है. घटना मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल की है. अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक, आरोपी मरीज का नाम सुनील भाम्बले है, जिसकी उम्र लगभग 22 वर्ष है. सोमवार की देर रात आरोपी नशे के हालत में ईएम अस्पताल में इलाज के लिए आया था. आरोपी सुनील के शरीर पर चोट के काफी निशान थे. डॉक्टरों ने सुनील को प्रारंभिक जांच के बाद एक्स-रे करने के लिए दूसरे वार्ड में भेज दिया था. पीड़ित डॉ तरुण शेट्टी के मुताबिक जब भम्बाले रिपोर्ट के साथ अंदर आया तो उसे डॉक्टर ने बैठने के लिए कहा. क्योंकि तरुण उस वक्त अन्य मरीजों का इलाज कर रहे थे, जो ज्यादा गंभीर थे. बस यही बात सुनील को इतनी नागवार गुजरी की उसने सर्जिकल ट्रे से ब्लेड उठाकर डॉक्टर पर जानलेवा हमला कर दिया. इस घटना में डॉक्टर तरुण बुरी तरह से घायल हो गए. डॉक्टर की तहरीर पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. बाद में पुलिस ने दबिश देकर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.
भारत दुनिया में अवैध सिगरेट की छठी बड़ी मंडी बन गया है. एक अनुमान के मुताबिक देश में इसका करीब 2000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है. एसोचैम द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि अवैध सिगरेट के कारोबार से जहां एक तरफ सरकार को राजस्व की क्षति होती है, वहीं करीब 50 लाख तंबाकू उत्पादक किसानों की रोजी-रोटी प्रभावित होती है. अध्ययन में संदेह जताया गया है कि इस कारोबार से होने वाली आय का इस्तेमाल आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने में भी किया जाता है. नामी अनुसंधान संगठन यूरोमॉनिटर ने हाल ही में किए गए अपने अध्ययन में कहा है कि ऐसे सिगरेट उत्पाद कर, वैट, सीमा शुल्क या अन्य करों का भुगतान नहीं करते, इसलिए सस्ते और आकर्षक मूल्य पर उपलब्ध होते हैं. वर्ष 2006-7 में 109 अरब सिगरेट का उत्पादन हुआ था. 2010-11 में यह संख्या घटकर करीब 101 अरब रह गई. यूरोमॉनिटर ने भारत में अवैध सिगरेट कारोबार का आकार और बढ़ने का अनुमान जाहिर किया है. अध्ययन के मुताबिक भारत में अवैध सिगरेट का प्रतिवर्ष करीब 2000 रुपए का करोबार होता है. ऐसी सिगरेट में भारत में उत्पादित तंबाकू का इस्तेमाल नहीं होता है जिससे पहले से ही विपरीत परिस्थितियों की मार झेल रहे देश के तंबाकू किसानों की रोजीरोटी पर खतरा मंडराने लगा है. अवैध सिगरेट की समस्या खास तौर से शहरी क्षेत्र में गंभीर है, लेकिन पूरा देश इसकी जद में आ चुका है. सबसे खास यह है कि तस्करी के जरिए आने वाले सिगरेट पर सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) के तहत अनिवार्य रूप से दी जाने वाली आरेख चेतावनी भी नहीं होती है, जिससे सरकार की तंबाकू नियंत्रण नीति भी खटाई में पड़ती दिखाई देती है. ऐसी सिगरेट के डिब्बों पर खुदरा बिक्री मूल्य नहीं होने से तस्करों और बाजार में इसका करोबार करने वालों को अच्छी आमदनी होती है. भारतीय बाजार में ऐसी सिगरेट चीन, म्यामार, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, खाड़ी देशों, दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और यहां तक कि यूरोपीय देशों से तस्करी होती है.
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता को लेकर चीन लगातार अड़ंगा डाल रहा है. चीन ने सोमवार को यहां तक कह दिया कि सोल बैठक में भारत की एनएसजी सदस्यता बहस के एजेंडे में नहीं है. एनएसजी यह बैठक 24 जून को होनी है. इससे पहले 23 जून को पीएम मोदी उज्बेकिस्तान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे. लेकिन जहां चाह वहां राह, भारत के लिए रास्ता उसके चाहने वालों ने निकाल ही लिया. आइए जानें अब किस तरीके से भारत के मुरीद देश एनएसजी में करवाएंगे एंट्री. 1. इकोनॉमिक टाइम्‍स में छपी रिपोर्ट की मानें तो 9 जून को विएना में एक बैठक हुई. इसमें भारत की एप्‍लीकेशन स्‍वीकार कर ली गई थी. जिसका मतलब ये हुआ कि इंडिया की सदस्‍यता पर सोल बैठक में डिस्कशन हो सकता है. 2. हालांकि 9 जून की इस बैठक में चीन ने भारत की एंट्री पर यह कहकर अड़ंगा लगा दिया कि एनएसजी पहले उन देशों को इसमें शामिल करने पर सहमति बनाए जिन देशों ने एनपीटी (नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी) पर साइन नहीं किए हैं. 3. भारत की एनएसजी में एंट्री को लेकर अर्जेंटीना इस ग्रुप के अन्‍य देशों के साथ प्‍लान बी डिसकस कर रहा है. मालूम हो कि मौजूदा दौर में अर्जेंटीना एनएसजी ग्रुप की अगुवाई कर रहा है. 4. मीटिंग में इस ग्रुप के 48 देशों में से 29 ने भारत की एंट्री का समर्थन किया. इस प्‍लान के तहत एक वर्किंग ग्रुप बनाया जाएगा, जो एनपीटी पर साइन न करने वालों को एनएसजी में एंट्री के लिए खाका तैयार करेगा. 5. इस प्‍लान के पीछे मकसद यह है कि सोल में कम से कम भारत की सदस्‍यता को लेकर चर्चा तो हो ही सकती है. यहां ये जानना जरूरी है कि एनएसजी में वोटिंग के बजाय सभी की आम सहमति से ही अब तक काम होता आया है.
दिवंगत निरंकारी संत बाबा हरदेव सिंहजी की सहधर्मिणी माता सविंदर कौर संत निरंकारी मिशन की पहली महिला गुरु के तौर पर मिशन के कामकाज का नेतृत्व करेंगी। वे आधिकारिक रूप से इस गुरु-पद के लिए चुनी गईं हैं।   हालांकि गुरुपद के लिए उनकी बेटी सुदीक्षा को भी संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन संत निरंकारी मिशन मंडल ने निर्णायक रूप से माताजी के नाम की घोषणा की।   संत निरंकारी मिशन मंडल के प्रमुख जेआरडी सत्यार्थी ने उन्हें सद्गुरु के शक्तियों का प्रतीक एक सफेद दुपट्टा अर्पित कर इस महती कार्य के निर्वहन का दायित्व उनके कंधे पर डाला। जानिए उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें:   -- मिशन के अनुयायी उन्हें माताजी के नाम से संबोधित करते हैं। वे उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मी और पली हैं। वे मसूरी के जीसस एंड मैरी स्कूल की एलुमिनाई हैं।   -- माता सविंदर कौर का विवाह संत बाबा हरदेव सिंहजी के साथ सन 1975 में हुआ था। इसके बाद से वे सदैव बाबाजी के साथ रहीं और सत्संगों और समागमों में उनके बगल में विराजमान दिखती रहीं।   -- निरंकारी मिशन के अनुयायियों के अनुसार, माताजी कभी भी अपने आपको बाबाजी की पत्नी नहीं कहती थीं। वे कहती हैं कि ‘वे बाबा की शिष्या हैं और बाबा उनके गुरु हैं’।   -- अनुयायियों के अनुसार, वे माताजी बेहद शांत स्वभाव की हैं और उन्हें किसी बात का गर्व या घमंड नहीं है।   गौरतलब है कि जबसे संत निरंकारी मिशन की स्थापना (सन 1929) हुई है, इस संस्था के इतिहास में पहली बार गुरु की गद्दी किसी महिला को सौंपने का निर्णय लिया गया है। दिवंगत बाबा हरदेव सिंहजी महाराज की तीन बेटियां हैं। उनके कोई बेटा नहीं है, इसलिए निरंकारी मंडल ने गद्दी माताजी को सौंपने का फैसला लिया गया है।
राहुल गांधी के पीएम नरेंद्र मोदी पर 'गंगा' की सफाई नहीं होने के आरोपों का जवाब केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने दिया है. उन्‍होंने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए सलाह देते हुए कहा,''मैं यूपी चुनावों के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी से थाइलैंड नहीं जाने का आग्रह करुंगी क्‍योंकि नतीजे आने के बाद ऐसी ही संभावना है. उनको मेरे साथ गंगा की सफाई का काम देखने आना चाहिए और यदि इसकी सफाई का अभियान नहीं शुरू हुआ है तो या तो उनको गंगा में कूदना चाहिए नहीं तो मैं कूद जाऊंगी.'' सिर्फ इतना ही नहीं उमा भारती ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान अखिलेश यादव पर भी निशाना साधा. उल्‍लेखनीय है कि यूपी चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन है. इस लिहाज से उमा भारती ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि वह उनका विभाग तो गंगा की साफ-सफाई के अभियान में लगा है लेकिन सपा नेता और यूपी के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव 'गंगा के सबसे बड़े शत्रु' हैं.टिप्पणियां उमा भारती ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा,''पांच में से चार राज्‍यों में स्‍वच्‍छ गंगा अभियान का काम शुरू हो गया है लेकिन यूपी सरकार ने सभी गंगा जिलों को एनओसी(अनापत्ति प्रमाणपत्र) नहीं देने का आदेश दिया है...मैं इस ऑर्डर की कॉपी दे सकती हूं.'' इसके साथ ही राहुल गांधी को सलाह देने के अंदाज में उमा भारती ने कहा, ''या तो राहुल गांधी को अखिलेश से पीछा छुड़ा लेना चाहिए या खुद गठबंधन से दूर हट जाना चाहिए.'' उल्‍लेखनीय है कि पिछले दिनों राहुल गांधी ने वाराणसी में चुनाव अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था, ''मोदी जी कहते हैं कि मैं यूपी का बेटा हूं और गंगा मेरी मां है और मां गंगा ने मुझे गुजरात से बुलाया है...मोदी जी गंगा मां के पास आए और सौदा किया...गंगा मां पहले मुझे प्रधानमंत्री बनाओ और उसके बाद मैं सब कुछ देखूंगा...'' इस पर उमा भारती ने कहा कि यह वास्‍तव में राहुल गांधी की 'संकीर्ण सोच' को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा, ''केवल गुजरात के लोग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग गंगा को मां कहकर पुकारते हैं...उनकी मां राहुल गांधी गंगा के बारे में बेहद भावुक होकर बात करती हैं, उनको कम से कम राहुल को इसके बारे में बताना चाहिए.'' सिर्फ इतना ही नहीं उमा भारती ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान अखिलेश यादव पर भी निशाना साधा. उल्‍लेखनीय है कि यूपी चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन है. इस लिहाज से उमा भारती ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि वह उनका विभाग तो गंगा की साफ-सफाई के अभियान में लगा है लेकिन सपा नेता और यूपी के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव 'गंगा के सबसे बड़े शत्रु' हैं.टिप्पणियां उमा भारती ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा,''पांच में से चार राज्‍यों में स्‍वच्‍छ गंगा अभियान का काम शुरू हो गया है लेकिन यूपी सरकार ने सभी गंगा जिलों को एनओसी(अनापत्ति प्रमाणपत्र) नहीं देने का आदेश दिया है...मैं इस ऑर्डर की कॉपी दे सकती हूं.'' इसके साथ ही राहुल गांधी को सलाह देने के अंदाज में उमा भारती ने कहा, ''या तो राहुल गांधी को अखिलेश से पीछा छुड़ा लेना चाहिए या खुद गठबंधन से दूर हट जाना चाहिए.'' उल्‍लेखनीय है कि पिछले दिनों राहुल गांधी ने वाराणसी में चुनाव अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था, ''मोदी जी कहते हैं कि मैं यूपी का बेटा हूं और गंगा मेरी मां है और मां गंगा ने मुझे गुजरात से बुलाया है...मोदी जी गंगा मां के पास आए और सौदा किया...गंगा मां पहले मुझे प्रधानमंत्री बनाओ और उसके बाद मैं सब कुछ देखूंगा...'' इस पर उमा भारती ने कहा कि यह वास्‍तव में राहुल गांधी की 'संकीर्ण सोच' को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा, ''केवल गुजरात के लोग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग गंगा को मां कहकर पुकारते हैं...उनकी मां राहुल गांधी गंगा के बारे में बेहद भावुक होकर बात करती हैं, उनको कम से कम राहुल को इसके बारे में बताना चाहिए.'' उमा भारती ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा,''पांच में से चार राज्‍यों में स्‍वच्‍छ गंगा अभियान का काम शुरू हो गया है लेकिन यूपी सरकार ने सभी गंगा जिलों को एनओसी(अनापत्ति प्रमाणपत्र) नहीं देने का आदेश दिया है...मैं इस ऑर्डर की कॉपी दे सकती हूं.'' इसके साथ ही राहुल गांधी को सलाह देने के अंदाज में उमा भारती ने कहा, ''या तो राहुल गांधी को अखिलेश से पीछा छुड़ा लेना चाहिए या खुद गठबंधन से दूर हट जाना चाहिए.'' उल्‍लेखनीय है कि पिछले दिनों राहुल गांधी ने वाराणसी में चुनाव अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था, ''मोदी जी कहते हैं कि मैं यूपी का बेटा हूं और गंगा मेरी मां है और मां गंगा ने मुझे गुजरात से बुलाया है...मोदी जी गंगा मां के पास आए और सौदा किया...गंगा मां पहले मुझे प्रधानमंत्री बनाओ और उसके बाद मैं सब कुछ देखूंगा...'' इस पर उमा भारती ने कहा कि यह वास्‍तव में राहुल गांधी की 'संकीर्ण सोच' को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा, ''केवल गुजरात के लोग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग गंगा को मां कहकर पुकारते हैं...उनकी मां राहुल गांधी गंगा के बारे में बेहद भावुक होकर बात करती हैं, उनको कम से कम राहुल को इसके बारे में बताना चाहिए.'' उल्‍लेखनीय है कि पिछले दिनों राहुल गांधी ने वाराणसी में चुनाव अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था, ''मोदी जी कहते हैं कि मैं यूपी का बेटा हूं और गंगा मेरी मां है और मां गंगा ने मुझे गुजरात से बुलाया है...मोदी जी गंगा मां के पास आए और सौदा किया...गंगा मां पहले मुझे प्रधानमंत्री बनाओ और उसके बाद मैं सब कुछ देखूंगा...'' इस पर उमा भारती ने कहा कि यह वास्‍तव में राहुल गांधी की 'संकीर्ण सोच' को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा, ''केवल गुजरात के लोग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग गंगा को मां कहकर पुकारते हैं...उनकी मां राहुल गांधी गंगा के बारे में बेहद भावुक होकर बात करती हैं, उनको कम से कम राहुल को इसके बारे में बताना चाहिए.''
उत्तराखंड के उभरते कलाकार विनोद फोंदणी ने 27 मई को पुरानी टिहरी की गाथा और कबीर के विचारों को अपने गायन के जरिए पेश किया तो श्रोताओं पर जादू-सरीखा असर हुआ. उन्होंने करतल ध्वनि के साथ इसका स्वागत किया. दरअसल, मौका था टिहरी झील महोत्सव का, जो 25 मई से 27 मई तक एशिया से दूसरे सबसे ऊंचे टिहरी बांध की झील में आयोजित किया गया. इसी तरह मशहूर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कुमाऊनी, भोजपुरी और हिंधदी गीतों पर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया. आयोजन के आखिरी दिन ही बॉलीवुड के मशहूर पार्श्व गायक जुबिन नौटियाल ने ‘मैं तेरे काबिल हूं या तेरे काबिल नहीं’ जैसे अपने हिट गीत गाकर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया तो ‘बोल चिट्ठी किलै नि भेजी’ जैसी गढ़वाली गीत पर स्थानीय छटा भी बिखेरी. यह आयोजन देश-प्रदेश की सांस्कृतिक परंपराओं और रुझानों का गवाह बना. इतना ही नहीं, बल्कि इसने प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश में भी सफल नजर आया. प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंटह रावत ने भी इसकी मुनादी करते हुए कहा कि टिहरी झील में पर्यटन को लेकर काफी संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा, ‘‘टिहरी झील महोत्सव जैसे आयोजन से टिहरी झील वैश्विक स्तर पर पर्यटन का प्रमुख स्थान बनकर उभरेगा. वेलनेस, योग टूरिज्म, एडवेंचर, फिल्म आदि के क्षेत्र में यहां अपार संभावनाएं हैं.’’ इस महोत्सव के लिए प्रशासन ने भी खूब तैयारियां की थी. टिहरी झील क्षेत्र में टेंट की कॉलोनी बसाकर करीब 500 लोगों के रहने की व्यवस्था की गई थी. पर्यटकों के लिए 50 से अधिक स्विस कॉटेज बनाए गए थे. इसका आयोजन भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार ने संयुक्त रूप से किया था. इसमें उत्तराखंड के अलावा 13 राज्यों की टीमों ने शिरकत की. महोत्सव के दूसरे दिन फैशन शो का आयोजन हुआ तो बैंड की धुन पर देर रात तक लोग थिरकते रहे. फैशन कैटवॉक में दिल्ली की मॉडल्स के अलावा स्थानीय महिलाओं ने भी गढ़वाली वेशभूषा में अपना जलवा बिखेरा. इसमें स्थानीय सांस्कृतिक दलों ने अपने लोक कला से समा बांधा, तो राजस्थान और कर्नाटक के कलाकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियों से तालियां बटोरी. सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के अलावा लेजर शो, पैराग्लाइंडिग, वाटर स्कीइंग, सर्फिंग, पैरा सीलिंरग, पैरा जंपिंैग जैसे साहसिक खेल आयोजन के खास आकर्षण रहे. 2006 में बनी टिहरी झील पर इससे पहले तक वाटर स्पोर्ट्स और बोटिंपग का संचालन ही होता था पर इस बार स्कूबा डाइविंनग का आयोजन भी हुआ. दिल्ली से यहां आए स्कूबा डाविंतग के विशेषज्ञ गौतम कहते हैं, ‘‘स्कूबा डाइविंग के लिए यहां अपार संभावनाएं हैं. झील में डूबे शहर के अवशेष पर्यटकों को रोमांचित करता है. टिहरी झील वाटर स्पोर्ट्स का देश में सबसे बड़ा हब बन सकता है.’’ यहां मास्टर शेफ प्रतियोगिता भी आकर्षण का केंद्र रहा. हालांकि टिहरी की सांसद महारानी राज्य लक्ष्मी शाह ने यह भी कहा कि टिहरी बांध के कारण विस्थापित हुए कुछ लोगों का पुनर्वास अब तक नहीं हो पाया है, जिस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. मुख्यमंत्री रावत ने अगले साल टिहरी झील में सी-प्लेन उतारने की व्यवस्था करने की घोषणा की है. जाहिर है, सरकार राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है और यह महोत्सव ऐसी ही एक कोशिश है. ***
बर्फी! 2012 में प्रदर्शित रोमेंटिक हास्य-नाटक हिन्दी फ़िल्म है जिसके लेखक, निर्देशक व सह-निर्माता अनुराग बसु हैं। 1970 के दशक में घटित फ़िल्म की कहानी दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी "बर्फी" जॉनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और मंदबुद्धि के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डी'क्रूज़ हैं तथा सहायक अभिनय करने वाले सौरभ शुक्ला, आशीष विद्यार्थी और रूपा गांगुली हैं।
सुप्रीम कोर्ट आज दिल्ली को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाला है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के बीच अधिकारों की लड़ाई चल रही है. अगर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला अरविंद केजरीवाल के पक्ष में आता है तो केजरीवाल को वो तीन बड़े अधिकार मिल जाएंगे, जिसके लिए वे काफी समय से मांग करते आ रहे हैं. पहला अधिकार- सलाह मानने के लिए बाध्य होंगे LG अभी तक अरविंद केजरीवाल कोई भी फैसला खुद नहीं ले सकते हैं. उन्हें अपने हर फैसले के बाद उसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होती है. अगर आज सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया तो केजरीवाल स्वयं फैसले लेने में सक्षम होंगे. उप राज्यपाल के पास उन्हें फाइल भेजने की जरूरत नहीं होगी. दरअसल संविधान के आर्टिकल 239A के तहत केंद्र शासित दिल्ली में विधानसभा, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की व्यवस्था की गई है. इसी आर्टिकल में 239AA (4) के तहत व्यवस्था दी गई है कि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करेंगे. लेकिन संविधान में कहीं भी इसकी व्याख्या नहीं की गई है कि उप राज्यपाल सीएम के फैसले को मानने के लिए बाध्य हैं या नहीं. पूरा पेंच यहीं फंसा है.  इसके उलट अन्य राज्यों में राज्यपाल सीएम के फैसलों को मानने के लिए बाध्य होते हैं. दूसरा अधिकार- ट्रांसफर-पोस्टिंग कर सकेंगे केजरीवाल मौजूदा वक्त में अरविंद केजरीवाल दिल्ली में किसी भी कर्मचारी की ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं कर सकते. केंद्र सरकार दिल्ली में कर्मचारियों के स्थानांतरण के फैसले पर अपना हक जताती है. केजरीवाल इसका शुरू से विरोध कर रहे हैं. केजरीवाल दुहाई देते रहे हैं कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार की कोई नहीं सुनता. उनका कहना है कि दिल्ली के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक उनकी बात नहीं मानते. इसके चलते उन्होंने एलजी हाउस में 9 दिन तक धरना भी दिया था. अगर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला केजरीवाल के हक में आता है तो दिल्ली के अधिकारियों-कर्मचारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार भी केजरीवाल को मिल जाएगा. तीसरा अधिकार- ACB दिल्ली सरकार के अधीन आएगी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर ही आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनाने के बाद सबसे जोर-शोर से जो काम किया, उसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई रही है. केजरीवाल ने सरकार बनाते ही फौरन एंटी करप्शन ब्रांच का गठन किया. ब्रांच ने ताबड़तोड़ कई छापे भी मारे. लेकिन यहां फिर से उपराज्यपाल का दखल हुआ. तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने जून 2015 में ACB में अपनी पसंद का अधिकारी बैठा दिया, जिसका केजरीवाल सरकार ने जमकर विरोध किया. यहीं से उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री में ‘ठन’ गई. इस घटना के बाद से केजरीवाल उपराज्यपाल के विरोध में और मुखर हो गए. अगर आज केजरीवाल के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता है तो ACB में केजरीवाल फिर से अपनी पसंद का अधिकारी नियुक्त कर सकेंगे और भ्रष्टाचार विरोधी अपनी मुहिम को और तेज कर सकेंगे.
राजस्थान के पंचायती राज मंत्री भरत सिंह ने बाबा रामदेव पर प्रहार करते हुए कहा, 'पेट हिलाने से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा, हम और आप सुधरेंगे तभी भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकेगी। सिंह डाबी कस्बे में नानक भील विकास मेले के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि योग करने से अधिक, ईमानदारी से राजनीति करने में पसीना आता है। ईमानदार लोग गरीबों की सेवा में जुटें तो राजनीति में शुद्धता आ सकती है। सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को ईमानदारी से गरीब पिछडों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए तभी गरीबों को अपने अधिकारों का लाभ मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के बिना प्रगति का लाभ आम आदमी को नहीं पहुंच पाएगा क्योंकि प्रजातंत्र में आम आदमी के पास बड़ी ताकत है और यह ताकत शिक्षा के माध्यम से आती है। उन्होंने आहवान किया कि भील आदिवासी समाज को शिक्षा को अपनाना ही होगा।
भारतीय टीम ने बुधवार को मोहाली में खेले गए दूसरे टी-20 मैच में दक्षिण अफ्रीका को 7 विकेट से मात देकर तीन मैचों की सीरीज में 1-0 से अजेय बढ़त हासिल कर ली है. टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी साउथ अफ्रीका की टीम ने 20 ओवर में 5 विकेट गंवा कर 149 रन बनाए और भारत को जीत के लिए 150 रनों का टारगेट दिया. जवाब में भारत ने 19 ओवर में 3 विकेट गंवा कर 151 रन बना लिए और यह मैच जीत लिया. भारत के लिए कप्तान विराट कोहली ने 52 गेंदों पर चार चौके और तीन छक्कों की मदद से नाबाद 72 रनों की पारी खेली. सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ने 31 गेंदों पर 40 रन बनाए. उनकी पारी में चार चौके और एक छक्का शामिल रहा. पहली बार कप्तानी कर रहे क्विंटन डी कॉक अर्धशतक लगाने के बाद भी अपनी टीम दक्षिण अफ्रीका को जीत नहीं दिला सके. कप्तान विराट कोहली ने बेहतरीन पारी खेल उनकी मेहनत पर पानी फेर भारत को जीत दिलाई. कोहली को उनकी पारी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया. आसान से लक्ष्य का पीछा करने उतरे भारत को चौथे ओवर की पांचवीं गेंद पर रोहित शर्मा के रूप में पहला झटका लगा. 12 रन बनाने वाले रोहित 33 रनों के कुल स्कोर पर पवेलियन लौटे. धवन और कोहली ने फिर दूसरे विकेट के लिए 61 रनों की साझेदारी की. धवन अर्धशतक की ओर बढ़ रहे थे लेकिन डेविड मिलर के एक बेहतरीन कैच ने उनकी पारी का अंत कर दिया. उन्होंने अपनी पारी में चार चौके और एक छक्का मारा. ऋषभ पंत एक बार फिर अपना बल्ला नहीं रोक पाए. पदार्पण मैच खेल रहे बीजरेन फॉट्यून की गेंद पर तबरेज शम्सी ने उनका कैच पकड़ा. कोहली ने इस बीच अपना अर्धशतक पूरा किया. इसी के साथ कोहली टी-20 में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बन गए हैं. इस मामले में उन्होंने रोहित शर्मा की पीछे छोड़ा है. कोहली के अब टी-20 में 2440 रन हो गए हैं. वहीं रोहित के 2434 रन हैं. श्रेयस अय्यर 16 रन बनाकर नाबाद रहे और कप्तान के साथ टीम को जीत दिला कर लौटे. अय्यर ने ही भारत के लिए विजयी चौका मारा. साउथ अफ्रीका ने दिया 150 रनों का टारगेट साउथ अफ्रीका ने पांच विकेट पर 149 रनों का स्कोर बनाया और भारत को जीत के लिए 150 रनों का टारगेट दिया. मेहमान टीम के लिए कप्तान क्विंटन डि कॉक ही अर्धशतक जमा सके. तेम्बा बावुमा एक रन से अर्धशतक से चूक गए. डि कॉक ने 37 गेंदों पर आठ चौकों की मदद से 52 रनों की पारी खेली. बावुमा ने 43 गेंदों पर तीन चौके और एक छक्के की सहायता से 49 रन बनाए. भारत के लिए दीपक चहर ने दो विकेट लिए. नवदीप सैनी, रवींद्र जडेजा, हार्दिक पंड्या को एक-एक सफलता मिली. साउथ अफ्रीका की शुरुआत ठीक-ठाक रही और पहले विकेट के लिए कप्तान क्विंटन डि कॉक और रीजा हेंड्रिक्स के बीच 31 रनों की साझेदारी हुई. चौथे ओवर में दीपक चाहर ने साउथ अफ्रीका को पहला झटका दिया. चाहर ने हेंड्रिक्स को वॉशिंगटन सुंदर के हाथों कैच आउट करा कर पवेलियन लौटा दिया. हेंड्रिक्स 6 रन बनाकर आउट हुए. Deepak Chahar picks up the 1st wicket, Reeza Hendricks goes for 6. Live - https://t.co/IApWLYsXvx #INDvSA pic.twitter.com/LOsWr0N4sK — BCCI (@BCCI) September 18, 2019 साउथ अफ्रीका के कप्तान क्विंटन डि कॉक ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर रहे थे. उन्हें नवदीप सैनी ने 12वें ओवर में विराट कोहली के हाथों कैच आउट करा कर साउथ अफ्रीका को दूसरा झटका दे दिया. डि कॉक 52 रन बनाकर आउट हुए. रासी वान डेर डुसेन को जडेजा ने अपनी ही गेंद पर कैच आउट कर साउथ अफ्रीका को तीसरा झटका दे दिया. तेम्बा बावुमा को दीपक चाहर ने 18वें ओवर में जडेजा के हाथों कैच आउट करा कर साउथ अफ्रीका को चौथा झटका दे दिया. तेम्बा बावुमा 49 रन बनाकर आउट हुए. डेविड मिलर को बोल्ड करते हुए हार्दिक पंड्या ने साउथ अफ्रीका को पांचवां झटका दे दिया.  डेविड मिलर 18 रन बनाकर आउट हुए. टीम इंडिया ने जीता टॉस टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने टॉस जीतकर गेंदबाजी का फैसला किया और साउथ अफ्रीका को पहले बल्लेबाजी का न्योता दिया. भारतीय टीम में कोई बदलाव नहीं हुआ. दक्षिण अफ्रीका की तरफ से तीन खिलाड़ी टी-20 में डेब्यू कर रहे हैं. टीम के नए कप्तान क्विंटन डि कॉक ने ब्योर्न फोर्टिन, एनरिच नोर्टीज और तेम्बा बावुमा को प्लेइंग इलेवन में मौका दिया है. #TeamIndia Captain @imVkohli wins the toss and elects to bowl first against South Africa in the 2nd T20I. #INDvSA pic.twitter.com/s45E7rhz4f — BCCI (@BCCI) September 18, 2019 A look at the Playing XI for the 2nd T20I #INDvSA https://t.co/RrrjwXOFZB pic.twitter.com/OUqNdBSbLF — BCCI (@BCCI) September 18, 2019 Who will take this 🏆 home? #INDvSA pic.twitter.com/bYtNNQSQYY — BCCI (@BCCI) September 18, 2019 खेलिए और जीतिए नकद इनाम, लॉग इन करें https://aajtak11.in प्लेइंग इलेवन- भारत: विराट कोहली (कप्तान), रोहित शर्मा, शिखर धवन, लोकेश राहुल, श्रेयस अय्यर, मनीष पांडे, ऋषभ पंत, हार्दिक पंड्या, रवींद्र जडेजा, क्रुणाल पंड्या, वॉशिंगटन सुंदर, राहुल चाहर, खलील अहमद, दीपक चाहर और नवदीप सैनी. दक्षिण अफ्रीका : क्विंटन डि कॉक (कप्तान), रीजा हेंड्रिक्स, तेम्बा बावुमा, रासी वान डेर डुसेन, डेविड मिलर, एंडिल फेहलुक्वायो, ड्वाइन प्रिटोरियस, ब्योर्न फोर्टिन, कैगिसो रबाडा, एनरिच नोर्टीज और तबरेज शम्सी.
लेख: जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में मंगलवार रात संदिग्ध आतंकवादियों ने एक पुलिस चौकी पर गोली चलाई, लेकिन इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि रात करीब साढ़े नौ बजे आतंकवादियों ने कुलगाम के मुतलहामा कोईमोह स्थित पुलिस चौकी के निर्माणाधीन परिसर के पास मौजूद एक बागान से 10 राउंड गोलियां चलाईं।टिप्पणियां उन्होंने बताया कि वहां तैनात एक पुलिसकर्मी ने भी जवाबी गोलीबारी की। लेकिन घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। उन्होंने बताया कि इलाके को चारों ओर से घेर लिया गया है और तलाश जारी है। (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है) पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि रात करीब साढ़े नौ बजे आतंकवादियों ने कुलगाम के मुतलहामा कोईमोह स्थित पुलिस चौकी के निर्माणाधीन परिसर के पास मौजूद एक बागान से 10 राउंड गोलियां चलाईं।टिप्पणियां उन्होंने बताया कि वहां तैनात एक पुलिसकर्मी ने भी जवाबी गोलीबारी की। लेकिन घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। उन्होंने बताया कि इलाके को चारों ओर से घेर लिया गया है और तलाश जारी है। (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है) उन्होंने बताया कि वहां तैनात एक पुलिसकर्मी ने भी जवाबी गोलीबारी की। लेकिन घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। उन्होंने बताया कि इलाके को चारों ओर से घेर लिया गया है और तलाश जारी है। (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है) (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केजरीवाल और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस अवसर पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दी. केजरीवाल नीत सरकार और नौकरशाही के संबंध हमेशा ही खराब रहे हैं, हमेशा ही इनमें बहस होती रही है क्योंकि शहर के प्रशासन की संरचना ऐसी है कि उप राज्यपाल को प्राथमिकता मिलती है. ऐसा भी मौका आया था जब बड़े पैमाने पर अधिकारी दो डीएएनआईसीएस-कैडर (दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह सिविल सर्विसेज) को साल 2015 में निलंबित करने के सरकार के फैसले के खिलाफ छुट्टी पर चले गए थे.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
दिल्ली समेत एनसीआर में पराली जलाने से प्रदूषण स्तर का बढ़ना सामान्य बात है. चुनाव के पहले दिल्ली से लेकर हरियाणा, पंजाब तक यह मुद्दा गरमाया हुआ था. लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद इसे किसी दल ने मुद्दा नहीं बनाया है. आज के हालात ऐसे हैं कि पंजाब में पराली जलाई जाने लगी है और दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खराब हो गया है, लेकिन चुनाव से यह मुद्दा पूरी तरह गायब है. राज्य पार्टियों से लेकर राष्ट्रीय पार्टियों तक हर कोई इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बच रहा है. पंजाब में किसानों ने पराली जलानी शुरू भी कर दी है. बावजूद इसके पंजाब में इसका कोई शोर नहीं सुनाई दे रहा है. 2017 में दिल्ली के वायु प्रदूषण का स्तर सबसे खराब स्तर पर पहुचंने के बाद सियासी गलियारों में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठने लगी थी. इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब और हरियाणा से इसे रोकने की अपील की थी. केजरीवाल की अपील का विरोध करते हुए तत्तकालीन आप नेता सुखपाल सिंह खैरा ने लुधियाना में किसानों के समर्थन में पराली जलाई थी. तब पंजाब के मुख्यमंत्री ने पराली जलाने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और इस पर अंकुश लगाने में असमर्थता जताई थी. उन्होंने कहा था कि किसान पहले ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं और पराली नष्ट करने के उपकरण इस्तेमाल करने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. पंजाब और हरियाणा में किसानों का सबसे ज्यादा वोट है और कोई भी पार्टी इस मुद्दे को छूने से डर रही है क्योंकि इस मुद्दे को उठाने का सीधा असर वोट पर पड़ेगा. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पंजाब के कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू ने कहा 'ज्यादातर अधिकारी जो इसे रोकने के लिए जिम्मेदार हैं चुनाव में व्यस्त हैं. हम कैसे आदेश का पालन कर सकते हैं. जागरूकता अभियान जारी है और किसानों को पराली से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है.' पंजाब और हरियाणा में अगर खेतों में आग लगाई जाती है तो वहां न ही दिल्ली की तरह बिल्डिंग हैं, न ही वहां इतना कंस्ट्रक्शन चलता है, न ही वहां प्रदूषण का स्तर पहले से ही खराब है. ये तीनों बातें दिल्ली को इसलिए भी खतरे में डालती हैं क्योंकि पंजाब से डाउनविंड यानी दक्षिण-पूर्व की ओर बहने वाली हवा असल में दिल्ली से होकर जाती है. यानी पंजाब का धुआं उड़कर दिल्ली आ जाता है. दिल्ली की हवा वैसे ही भारी है क्योंकि यहां प्रदूषण ज्यादा है और यहां आने के बाद हवा ठहर जाती है क्योंकि दिल्ली की हवा में धूल के कण ज्यादा हैं. इससे एक कोहरे जैसी परत बनती है जो असल में कोहरा नहीं बल्कि प्रदूषण होता है. सूत्रों ने बताया कि नेताओं ने अधिकारियों को किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने से मना कर दिया है क्योंकि चुनावी मौसम में कोई भी किसानों को नाराज करना नहीं चाहता है. फतेहाबाद के किसान जोगिंदर ने बताया कि पराली जलाना बेहद जरूरी है. जबतक हम पराली नहीं जलाएंगे हमें अच्छी फसल नहीं मिलेगी. सरकार हमारी मदद करने के लिए कभी आगे नहीं आती. पराली काटने की मशीनें बहुत महंगी आती हैं जिन्हें किसान खरीद नहीं सकता. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन किसानों को मुआवजा देने के लिए कहा था जो मशीन या उपकरण खरीदने में असमर्थ हैं. एनजीटी ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से पराली जलाने के मामले पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. देश में लोकसभा की 543 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. अब तक 6 चरणों के मतदान हो चुके हैं और आखिरी चरण के मतदान 19 मई को होंगे. इसी चरण में पंजाब में भी चुनाव होना है, लेकिन क्या नेताओं की चुप्पी का असर जनता को पड़ेगा? चुनाव की हर ख़बर मिलेगी सीधे आपके इनबॉक्स में. आम चुनाव की ताज़ा खबरों से अपडेट रहने के लिए सब्सक्राइब करें आजतक का इलेक्शन स्पेशल न्यूज़ लेटर
कश्मीर घाटी में पिछले 51 दिनों से हिंसा के माहौल को शांत करने में जुटी केंद्र सरकार अब कश्मीर के लिए ऑल पार्टी डेलिगेशन पर कदम बढ़ाते हुए काम शुरु कर दिया है. 3 सितंबर को घाटी जा सकते हैं राजनाथ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक गृहमंत्री राजनाथ सिंह खुद इस ऑल पार्टी डेलिगेशन को लीड कर सकते हैं. साथ ही यह डेलीगेशन 3 सितंबर को कश्मीर घाटी में जा सकता है. रविवार को राजनाथ सिंह ने जहां कश्मीर घाटी की सुरक्षा और वहां पर चल रहे कामों की समीक्षा की तो वहीं बीजेपी के नेताओं से मिलकर ऑल पार्टी डेलिगेशन को लेकर रोड मैप तैयार किया. पीएम भी घाटी के हालात पर चिंतित सरकार ने अलग-अलग दलों के नेताओं के डेलिगेशन की लिस्ट भी तैयार कर ली है. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मन की बात' में कश्मीर का जिक्र किया. इससे पहले महबूबा मुफ्ती भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर कश्मीर घाटी में फैली हिंसा की विस्तृत जानकारी प्रधानमंत्री को दे चुकी हैं. दो बार कश्मीर जा चुके हैं गृह मंत्री आपको बता दें कि राजनाथ सिंह दो बार पहले ही कश्मीर घाटी जा चुके हैं और कश्मीर में हिंसा को कम करने के लिए राजनीतिक पार्टियों के लोगों से मुलाकात कर चुके हैं. मीटिंग के दौरान गृहमंत्री ने कहा था कि जो लोग इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत पर विश्वास करते हैं, उनके लिए सारे दरवाजे खुले हुए हैं. सरकार उनसे बातचीत के लिए तैयार है.
रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान भूटान का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान है। रॉयल सरकार इसे मूल्यवान पौधों के लिए "किंगडम का संरक्षण शोपीस" और "जेनेटिक डिपॉजिटरी" मानती है। 1,057 वर्ग किलोमीटर (408 वर्ग मील) विस्त्रिथ् ये उद्यान में पूर्वी सरपांग जिला, ज़ेमगांग जिले का पश्चिमी आधा और पश्चिमी पेमागात्शेल जिला शामिल है। यह "जैविक गलियारे" के माध्यम से फिब्सो वन्यजीव अभयारण्य (दक्षिण पश्चिम), जिग्मे सिंगे वांगचुक राष्ट्रीय उद्यान (उत्तर पश्चिम), थ्रुमशिंगला राष्ट्रीय उद्यान (उत्तरी केंद्र), और खलिंग वन्यजीव अभयारण्य (दक्षिण पूर्व) से जुड़ा हुआ है। रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान को भूटान की राष्ट्रीय विरासत माना जाता है, जिसे 1996 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) स्थानीय वन्यजीव अधिकारियों के साथ इस राष्ट्रीय विरासत को संरक्षित करने के लिए एक संरक्षण प्रबंधन योजना पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। मौसम रॉयल मानस में व्यापक जलवायु परिवर्तन हैं। मई-सितंबर मानसून 5000 मिलीमीटर बारिश लाता है। सर्दियों में बारिश नगण्य है और जलवायु नवंबर से मार्च तक बेहद सुखद है। वनस्पति और जीव रॉयल मानस खाद्य, वाणिज्य, चिकित्सा और धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग की जाने वाली कई पौधों की प्रजातियां भी पैदा करता है। उद्यान के भीतर दूरस्थ गांवों में लगभग 5,000 लोग रहते हैं। रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान भूटान में उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र के सबसे बड़े उदाहरण का प्रतिनिधित्व करता है। यहां पक्षियों की 365 से अधिक प्रजातियों और 59 स्तनपायी प्रजातियां (राय, डीएस 2006) को आधिकारिक तौर पर दर्ज किया गया है। 13 प्रजातियों को पूरी तरह संरक्षित स्तनधारियों के नीचे रखा जाता है। रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान हाथि, बंगाल बाघ, गौर के साथ-साथ दुर्लभ सुनहरा लंगूर (प्रेस्बिटीस जीई), सानो बनैल, कैप्रोलैगस हेपिडस, डॉल्फ़िन (प्लाटानिस्टा) का घर है। यह एकमात्र भूटानी उद्यान भी है जो एक सींग वाले गैंडों और जंगली भैंसा (बुबलास अर्नी) से घिरा हुआ है। पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां में धनेश की चार प्रजातियां (लाल गर्दन वाला धनेश, ॠदेड धनेश, पूर्वी धब्बेदार धनेश और विशाल धनेश) भी रहते हैं। संदर्भ भूटान के राष्ट्रीय उद्यान
पिछले कई दिनों से मुश्किलों में घिरती दिख रही राधे मां के लिए ये खबरह राहत भरी हो सकती है. मुंबई पुलिस के सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक दहेज उत्पीड़न के लिए भड़काने के मामले में राधे मां के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं. अब तक जिन लोगों के बयान दर्ज किए हैं उससे राधे मां के खिलाफ सबूत नहीं मिलता. इस मामले में पुलिस शुक्रवार को राधे मां का बयान दर्ज करेगी. इसके साथ ही दहेज उत्पीड़न मामले में राधे मां की गिरफ्तारी की संभावना बेहद कम हो गई है. राधे मां ने अपने उपर लगे आरोपों की सफाई में कहा था कि वो सीबीआई जांच के लिए भी तैयार हैं. उन्होंने कहा था कि वो बेकसूर हैं और किसी भी तरह की जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं. उनका कोई कसूर नहीं है. कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया है. बताते चलें कि राधे मां उर्फ सुखविंदर के खिलाफ अब तक छह से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. उनके खिलाफ मंगलवार को मुंबई की वकील फाल्गुनी ब्रह्मभट्ट ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कराई है. इसमें उन पर अश्लीलता और पाखंड फैलाने का आरोप लगाया गया है. मुंबई के कांदिवली में राधे मां के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का जो केस दर्ज किया गया है, उसमें वह सातवें नंबर की आरोपी हैं. उनको मुंबई पुलिस ने इस केस में समन भी भेजा है. उन्हें 14 अगस्त तक थाने में आकर बयान पक्ष रखने को कहा गया है.
देश, दुनिया, महानगर, खेल, आर्थिक और बॉलीवुड में क्‍या कुछ हुआ. जानने के लिए यहां पढ़ें समय के साथ साथ खबरों का लाइव अपडेशन...... 10.45 PM : सिंगापुर से गैंगरेप पीड़िता का पार्थिव शरीर लेकर दिल्‍ली के लिए विमान रवाना . 09.25 PM : गैंगरेप पीड़ित का शव, राजकीय सम्मान के साथ हो सकती है अंत्येष्टि. 08.55 PM : दिल्‍ली: पीएम निवास पर कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक खत्‍म, इंडिया गेट पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए मिल सकती है मंजूरी, रात 9 बजे फिर होगी कोर ग्रुप की बैठक. 08.19 PM : ओम पुरी: ये बहुत खौफनाक घटना है. 07.38 PM : मंदिरा बेदी: आवाज दबनी नहीं चाहिए. 07.17 PM : शबाना आजमी: बहादूर लड़की ने समाज को जगाया. 07.06 PM : हेमा मालिनी: ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए, जल्‍द कार्रवाई करने की जरुरत. 07.05 PM :  मुंबई में कई बॉलीवुड सितारे प्रदर्शन में शामिल, जया बच्‍चन बोलते वक्‍त रो पड़ी, प्रदर्शन में हेमा मालिनी, जावेद अख्‍तर, शबाना आजमी, मंदिरा बेदी, ओम पुरी सहित कई सितारे शामिल. 06.21 PM : पीएम निवास पर कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक, गृहराज्‍य मंत्री आरपीएन सिंह बैठक में बुलाए गए. 06.20 PM : सिंगापुर में भारतीय उच्‍चायुक्‍त का बयान, आधी रात को रवाना होगा गैंगरेप पीड़ित का परिवार, रात 3 बजे तक भारत पहुंच सकता है परिवार. 05.50 PM: बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान ने गैंगरेप पीड़िता की मौत पर दुख जताया और कहा, रेप के खिलाफ लड़ाई लड़ूंगा. 05.30 PM: कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा, गैंगरेप पीड़ित के परिवार के साथ हैं, महिलाओं का सम्‍मान करना चाहिए, देश के कानून का भी सम्‍मान हो. 04.50 PM: पटियाला रेप-सुसाइड केस में ASI गिरफ्तार. 04.15 PM: बलात्‍कारियों के खिलाफ कड़ा कानून बने: अन्‍ना हजारे 02.52 PM: गैंगरेप पीड़िता का शव लेने सिंगापुर पहुंचा विमान. 02.23 PM: दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जंतर-मंतर पहुंची, प्रदर्शनकारियों ने की शीला के खिलाफ नारेबाजी, शीला का घेराव. 01.23 PM: दिल्‍ली पुलिस ने गैंगरेप के आरोपियों पर हत्‍या का केस दर्ज किया. 01.13 PM: दिल्‍ली गैंगरेप के आरोपियों पर अगले हफ्ते चार्जशीट संभव. 12.53 PM: गैंगरेप पीड़िता की मौत पर युवराज सिंह ने दुख जताया. 12.11 PM: महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बने: मायावती. 11.50 AM: दिल्ली में दो जगहों को छोड़कर धारा 144 लागू. 11.34 AM: गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गैंगरेप पीड़िता की मौत पर गहरा दुख जताया है. मोदी ने कहा कि देश की एक बहादुर बेटी चली गई. 11.25 AM: 2 जगह छोड़कर नई दिल्‍ली में धारा 144 लागू. 10.24 AM: कल होगा पीड़ित लड़की का अंतिम संस्कार: दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष. 10.08 AM: सरकार दोषियों को सजा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध: गृहमंत्री 09.50 AM: गैंगरेप पीड़िता की मौत पर राष्ट्रपति ने जताया शोक. 09.16 AM: शिन्दे ने गैंगरेप पीड़िता की मौत पर व्यक्त किया शोक. 08.44 AM: दिल्ली: 10 मेट्रो स्टेशनों को बंद किया गया. 08.22 AM: शीला दीक्षित ने की शांति बनाए रखने की अपील. 08.21 AM: परिवार के साथ हमारी पूरी संवेदनाएं है: शीला दीक्षित. 08.20 AM: लड़की की मौत ने सिस्टम को हिलाया: शीला दीक्षित. 08.14 AM: लड़की को बचाने की बहुत कोशिशें हुईं: भारतीय उच्चायुक्त, सिंगापुर. 07.50 AM: 12 बजे सिंगापुर से रवाना होगा शव: विजेंद्र गुप्ता. 07.40 AM: हम सभी मौत के लिए जिम्मेदार: जावेद अख्तर. 07.30 AM: सजा के लिए जल्‍द काम करेगी सरकार: कृष्‍णा तीरथ 07.06 AM: गैंगरेप के आरोपियों के लिए फांसी की मांग करेगी सरकार 06.53 AM: गैंगरेप पीड़ित की मौत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शोक जताया 05.42 AM: गैंगरेप के आरोपियों पर हत्या का मुकद्दमा चलेगा. 05.36 AM: गैंगरेप पीड़ित की मौत के बाद सुरक्षा के मद्देनजर इंडिया गेट के चारों तरफ बेरिकेटिंग की गई है. 05.30 AM: लड़की की मौत पर हमारे भीतर दुख है: कृष्णा तीरथ 04.46 AM: गैंगरेप पीड़ित की मौत के बाद दिल्ली पुलिस ने शांति बनाए रखने की अपील की है. 04.18 AM: मौत की खबर मिलने के बाद दिल्ली में सुरक्षा चौकस कर दी गई है, ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना न हो सके. 04.15 AM: गैंगरेप पीड़ित की मौत पर अमिताभ बच्चन ने दुख जताया है. 04.05 AM: 13 दिनों से मौत से लड़ रही गैंगरेप पीड़िता की मौत 04.00 AM: कई अंगों के फेल हो जाने से गैंगरेप पीड़िता की मौत. 03.50 AM: भारतीय समयानुसार 2.15 बजे हुई दिल्ली गैंगरेप पीड़िता की मौत . 03.41 AM: सिंगापुर में गैंगरेप पीड़ित छात्रा ने तोड़ा दम.
कोडियाक भालू (उर्सस आर्कटोस मिडेंडॉर्फी), जिसे कोडियाक भूरा भालू, कभी-कभी अलास्का भूरा भालू भी कहा जाता है, दक्षिण पश्चिम अलास्का में कोडियाक द्वीपसमूह के द्वीपों में निवास करता है। यह भूरे भालू की सबसे बड़ी मान्यता प्राप्त उप-प्रजाति है, और आज जीवित दो सबसे बड़े भालूओं में से एक है, दूसरा ध्रुवीय भालू है। शारीरिक रूप से, कोडियाक भालू अन्य भूरे भालू उप-प्रजातियों के समान है, जैसे कि मुख्य भूमि ग्रिजली भालू (उर्सस) आर्कटोस हॉरिबिलिस) और अब विलुप्त कैलिफोर्निया ग्रिजली भालू (यू. ए. कैलिफ़ोर्निकस†), जिनमें मुख्य अंतर आकार में है। जबकि विभिन्न क्षेत्रों में भूरे भालूओं के आकार में आम तौर पर बहुत भिन्नता होती है, अधिकांश का वजन आमतौर पर 115 से 360 किलोग्राम (254 और 794 पाउंड) के बीच होता है। दूसरी ओर, कोडियाक भालू आमतौर पर 300 से 600 किलोग्राम (660 से 1,320 पाउंड) के आकार तक पहुंचता है, और यहां तक ​​कि इसका वजन 680 किलोग्राम (1,500 पाउंड) से अधिक होने के लिए भी जाना जाता है। आकार में इतनी बड़ी भिन्नता के बावजूद, कोडियाक भालू का आहार और जीवनशैली अन्य भूरे भालूओं से बहुत अलग नहीं है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एग्जाम में एक बार फिर गड़बड़ी का मामला सामने आया है. दरअसल डीयू को संदेह है कि व्हाट्सएप की मदद से एग्जाम लीक किया गया है. यह बात तब सामने आई जब एक संबद्ध कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स के स्मार्टफोन पर जीव विज्ञान के प्रश्न पत्र की तस्वीरें पाई गईं. श्री गुरू तेगबहादुर खालसा कॉलेज के छह छात्रों को कॉलेज परिसर में उनके फोन में प्रश्न पत्र की तस्वीरों के साथ उस समय पकड़ा गया जब जीव विज्ञान की परीक्षा चल रही थी. एक निरीक्षक ने कहा, ‘निरीक्षकों ने छात्रों को एग्जाम रूम के बाहर मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए देखा. इसकी जांच करने पर यह पाया गया कि उनके पास व्हाट्सऐप्प पर प्रश्नपत्र की तस्वीरें मौजूद हैं. बहरहाल एसजीटीबी खालसा कॉलेज के प्राचार्य डाक्टर जसविंदर सिंह ने कहा, ‘हमने इस बारे में पुलिस और डीयू की केन्द्रीय परीक्षा शाखा को जानकारी दे दी है. यह अनुचित तरीके अपनाने का मामला है. हम स्वच्छ और पारदर्शी तरीके से परीक्षाएं आयोजित करने में विश्वास रखते हैं.’ हालांकि सिंह ने इस बारे में टिप्पणी नहीं की कि परीक्षा फिर से होगी या नहीं. इस बीच, मौरिस नगर पुलिस थाने के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें इस संबंध में एक शिकायत मिली है लेकिन अभी प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है. प्रशासन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर इसकी जांच करेगा.
घटना में मरने वाले ज़्यादातर लोग मजदूर फैक्ट्री में सुबह करीब 5 बजे के लगी आग दिल्ली में रविवार सुबह ज़्यादातर लोग रज़ाई में दुबक कर सो रहे थे. उसी वक़्त रानी झांसी रोड पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो सोते-सोते मौत के आगोश में समा गए. दिल्ली के रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी स्थित फैक्ट्री के लोग जब शनिवार रात खा-पीकर सोने गए थे तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि वो रविवार की सुबह देख ही नहीं पाएंगे. सुबह 5 बजे के क़रीब अनाज मंडी स्थित एक फैक्ट्री में आग लगी . संकरी और तंग गलियों के बीच किसी तरह राहत और बचाव का काम शुरू हुआ. देखते ही देखते मरने वाले लोगों का आंकड़ा 43 पर पहुंच गया. बिहार और यूपी से आए कई मज़दूर इस फैक्ट्री में काम करते थे और रात में यहीं सोते भी थे. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि लोग फैक्ट्री में देर रात काम करने के बाद सो रहे थे. घटना के बाद इलाक़े में हड़कंप मच गया. लोग इधर उधर भागने लगे. आग इतनी भयानक थी कि क़ाबू पाने के लिए दमकल की 30 गाड़ियां मैके पर पहुंची. हालांकि देखते ही देखते आग बढ़ती चली गई. घटना के बाद घायल लोगों को पास के अस्पतालों में पहुंचाया गया. चश्मदीद के मुताबिक़ 150 के क़रीब लोग यहीं रह रहे थे. उनका काम, खाना-पीना और सोना सब कुछ यहीं होता था. उनके परिवारवाले गांव में ही रहते थे. तीन मंज़िल के इस इमारत में सिलाई और पैकिंग का काम होता था. आग पहले कहां लगी यह स्पष्ट नहीं है लेकिन यह तेज़ी से फैलने लगी. बाद में धुआं इतना बढ़ा कि ऊपर के मंज़िलों में सो रहे लोगों का दम भी घुटने लगा. रविवार की यह घटना 1997 के दिल्ली उपहार कांड से भी ज़्यादा ख़तरनाक लग रही है. जिसमें 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. सुबह 9 बजे तक यह ख़बर आग की तरह फैल गई. जिसके बाद इस इलाक़े में काम करने वाले मज़दूर और मालिकों के परिजन उनकी खोजबीन के लिए झांसी रोड पहुंचे. तीन मंजिला इमारत नें फंसे अताबुल के भाई उन्हें ढूंढने LNJP (लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल) अस्पताल पहुंचे. वे बिहार के रहने वाले हैं. आजतक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे अपने भाई को ढूंढ रहे हैं लेकिन उन्हें कोई जानकारी नहीं दी जा रही है और न ही अंदर जाने दे रहे हैं. एक महीने पहले ही वो दिल्ली काम करने आया था. एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि मेरा तीन भतीजा यहीं पर अपनी फैक्ट्री चलाता था. उसके साथ 15 अन्य लोग भी काम कर रहे थे. सबका काम बैग सिलाई और पैकिंग का था. समझ नहीं आ रहा मैं उसे कहां ढूंढ़ू. कैसे लगी आग, कितनों की हुई मौत? बता दें कि दिल्ली के रानी झांसी रोड बाजार में रविवार को आग लगने से कम से कम 43 लोगों की मौत हो गई , जबकि एक दर्जन से अधिक लोग घायल हुए हैं. यह जानकारी राष्ट्रीय राजधानी के अग्निशमन विभाग ने दी है. घटना में मरने वाले ज़्यादातर लोग मजदूर हैं, जो कारखाने में रविवार सुबह 4.30-5.00 बजे के आस पास लगी आग के दौरान सो रहे थे. घटना के बाद अब तक 60 से अधिक लोगों को वहां से निकाला जा चुका है और उन्हें लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल और लेडी हॉर्डिग हॉस्पिटल में ले जाया गया है. एलएनजेपी अस्पताल में 34 और लेडी हार्डिंग अस्पताल में नौ लोगों के मरने की सूचना मिली है. अग्निशमन विभाग ने बताया कि बाजार में आग लगने की सूचना उन्हें सुबह करीब 5.22 पर मिली, जिसके बाद 30 दमकल गाड़ियां मौके पर पहुंच गईं. आग लगने की सही वजह का पता नहीं चल पाया है लेकिन अधिकारियों का कहना है कि आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लग सकता है. दिल्ली अग्निशमन विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा कि आग लगने से करीब 40 लोगों की मौत हो गई, आग एक बैग बनाने वाले कारखाने में लगी है, वहीं आग आसपास की दो अन्य इमारतों में फैल गई है. मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है. वहीं पुलिस ने बताया कि कारखाने के मालिक के खिलाफ आवासीय क्षेत्र से बैग बनाने के कारखाने के संचालन और सुरक्षा मापदंडों का पालन न करने को लेकर मामला दर्ज कर लिया गया है. क्या है उपहार अग्निकांड? ऐसा कहा जा रहा है कि यह अग्निकांड, दिल्ली में आग लगने की बड़ी घटनाओं में से एक है. इससे पहले 13 जून, 1997 को दक्षिणी दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा में ऐसी ही घटना घटी थी, जिसमें 59 लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे.
सिद्धांत (सिद्धांत भी लिखा गया है, अनुवाद: सिद्धांत) एक भारतीय टीवी शो है जिसमें पवन शंकर शीर्षक भूमिका में हैं, जो 1 दिसंबर 2004 से 9 नवंबर 2005 तक अब समाप्त हो चुके स्टार वन चैनल पर प्रसारित होता है। यह अनुराधा प्रसाद (बीएजी फिल्मों) द्वारा निर्मित किया गया था और इसे अंतर्राष्ट्रीय एमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। कलाकार पवन शंकर एडवोकेट सिद्धांत मेहरा के रूप में श्रीमती देशपांडे (सिद्धांत की मकान मालकिन) के रूप में सुहिता थट्टे श्रुति सक्सेना के रूप में तस्नीम शेख पत्रकार हेमांगी माथुर के रूप में साई देवधर अश्विनी कालसेकर एसीपी नेत्रा मेनन के रूप में अनामिका अरेकर के रूप में पूजा घई रावल नव्या के रूप में रवी गुप्ता, सिद्धांत के सहायक टॉम आल्टर मिस्टर अरेकर के रूप में तन्मय बख्शी के रूप में गौरव खन्ना गृह मंत्री सक्सेना के रूप में शिशिर शर्मा दीपास के रूप में कीर्ति गायकवाड़ केलकर एडवोकेट आनंद के रूप में बकुल ठक्कर सुजाता सहगल श्री कुरैशी के रूप में अरुण बाली बॉबी परवेज अधिवक्ता के रूप में नसीर खान राजीव कुमार मुरली शर्मा अधिवक्ता के रूप में आसिफ शेख संदर्भ बाहरी संबंध स्टार वन के धारावाहिक भारतीय वास्तविकता टेलीविजन श्रृंखला
आजतक-एक्सिस माय इंडिया के लोकसभा चुनाव-2019 पर सबसे सटीक, सबसे विश्वसनीय और सबसे बड़े एग्जिट पोल के नतीजों में केरल में कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) गठबंधन को फायदा होता दिख रहा है. उसे यहां इस बार 15 से 16 सीटें मिलने की उम्मीद है. बता दें कि साल 2014 के आम चुनाव में यूडीएफ ने केरल की 20 लोकसभा सीटों में से 12 सीट पर कब्जा किया था. अगर विधानसभा चुनाव 2016 की बात करें तो यूडीएफ को इस बार यहां 9 सीटें मिलने की उम्मीद थी. एग्जिट पोल के मुताबिक केरल में सीपीआई/सीपीएम के लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सीटें घट सकती हैं. एलडीएफ को यहां 3 से 5 सीटें मिलने की आशा है. बता दें कि लोकसभा चुनाव-2014 में एलडीएफ ने यहां 8 जीते पर परचम लहराया था. अगर विधानसभा चुनाव 2016 का जिक्र करें तो यहां एलडीएफ को 11 सीटें मिलने की आशंका थी. लेकिन एग्जिट पोल में एलडीएफ को झटका लगता दिख रहा है. Exit Poll 2019 LIVE: एग्जिट पोल में फिर दिख रही मोदी लहर, 6 राज्यों में क्लीन स्वीप वहीं एनडीए का केरल में खाता खुल सकता है. एग्जिट पोल में बीजेपी नीत एनडीए को 0 से एक सीट मिलने की आशंका जताई है. गौर करने वाली बात ये है कि 2014 के आम चुनाव में केरल में एनडीए को एक भी सीट नहीं मिली थी. तो वहीं 2016 विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर भी एनडीए को शून्य सीट मिलने को अनुमान था. तो वहीं अन्य को 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी कोई शीट नहीं मिलने की आशा जताई गई है. Bihar Exit Poll 2019 Live: बिहार में NDA करेगा सूपड़ा साफ अगर पार्टी वाइज वोट शेयर प्रतिशत के आधार पर बात करें तो एग्जिट पोल में यूडीएफ को 46 फीसदी वोट शेयर मिलने की उम्मीद जताई है जोकि पिछले चुनाव से 4 फीसदी ज्यादा है. 2014 के आम चुनाव में यूडीएफ को 42 फीसदी मतदान मिले थे. तो वहीं विधानसभा चुनाव 2016 के आधार पर यूडीएफ को इस बार 38 फीसदी वोट शेयर मिलने की आशंका थी. एलडीएफ को 2014 के लोकसभा चुनाव में 31 फीसदी वोट शेयर मिला था. लेकिन एग्जिट पोल में इस बार उसे 38 फीसदी वोट शेयर मिलने की बात कही गई है. अगर 2016 विधानसभा चुनाव की बात करें तो एलडीएफ को इस बार 40 फीसदी वोट शेयर मिलता लेकिन इस आधार पर एलडीएफ के वोट शेयर में कमी होती दिख रही है. Exit Poll 2019: महाराष्ट्र में NDA को 38 से 42 सीटें वहीं, बीजेपी नीत एनडीए का वोट शेयर केरल में बढ़ा है. एग्जिट पोल के आंकड़ों में एनडीए को केरल में 13 फीसदी वोट शेयर मिलने की उम्मीद है. वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को यहां 11 फीसदी वोट शेयर मिला था. हालांकि 2016 विधानसभा चुनाव के आधार पर एनडीए को केरल में इस 11 फीसदी वोट शेयर मिलने की आशंका जताई गई थी. EXIT POLL RESULT: राजस्थान फिर बोला बम-बम मोदी, कांग्रेस पूरी तरह साफ! हालांकि एग्जिट पोल में अन्य के वोट शेयर में भारी कमी आने का जिक्र है. 2014 के लोकसभा चुनाव में केरल में अन्य पार्टियों का वोट शेयर 16 फीसदी थी लेकिन इस बार उसका वोटर घटकर 3 फीसदी रहने की आशंका है. तो वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव के आधार पर बात करें तो अन्य दलों को केरल में इस बार 11 फिसदी वोट शेयर मिलने की आशा थी.
नेताओं के रिटायर होने की उम्र नहीं होती. ऐसा भारत की सियासत के बारे में कहा जाता है लेकिन अब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी इस मंत्र को अपना सकते हैं. अमेरिकी मैगजीन 'पोलिटिको' के मुताबिक 56 साल के ओबामा सियासत में दोबारा कदम रख सकते हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी में नई भूमिका? मैगजीन का दावा है कि ओबामा की दिलचस्पी डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए काम करने की है. वो पार्टी के भीतर फायदे के लिए सीटों के बंटवारे के चलन को रोकना चाहते हैं जिससे आखिर में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों को फायदा होता है. इसके लिए डेमोक्रेटिक पार्टी ओबामा को नेशनल डेमोक्रेटिक रिडिस्ट्रिक्टिंग कमेटी (एनडीआरसी) में अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. एनडीआरसी डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों को चुनने के अलावा फंड जुटाने का भी काम करती है. फिलहाल एनडीआरसी की तवज्जो राज्यों में खोई सियासी जमीन को वापस पाने की है. सहयोगी ने दिये संकेत ओबामा के अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर ने भी कहा है कि लोग ओबामा को जल्द ही दोबारा सियासत में देख सकते हैं. उन्होंने ट्रंप के चुनाव से पहले ही इस बात के संकेत दिये थे कि ओबामा रिटायरमेंट के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी में सीटों के बंटवारे की प्रक्रिया को सुधारना चाहते हैं. एनडीआरसी में जिम्मेदारी निभाने के साथ ही ओबामा डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े कानूनी संगठनों की भी मदद कर सकते हैं.
ऐमेजॉन, गूगल और ऐपल के बाद अब Facebook पर भी यूजर्स के वॉयस कॉन्वर्सेशन सुनने का इल्जाम है. तीनों कंपनियों ने इसे एक तरह से ही डिफेंड किया है. इन कंपनियों का मोटे तौर पर ये कहना है कि यूजर्स की वॉयस रिकॉर्डिंग सुनने का मकसद सर्विस को बेहतर करना है. Facebook ने कॉन्ट्रैक्टर्स को मैसेंजर में की गई वॉयस चैट को सुनने और ट्रांस्क्राइब करने के लिए पैसे भी दिए हैं. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन कॉन्ट्रैक्टर्स को ये नहीं बताया जाता था कि ये ऑडियो क्लिप्स कहां से आते हैं. Facebook ने इन कॉन्ट्रैक्टर्स को ये चेक करने के लिए कहा था कि आर्टफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर मैसेज को इंटरप्रेट करने के लिए सही से काम करता है या नहीं. हालांकि रिपोर्ट आने के बाद Facebook की तरफ से ये बयान आया है कि कंपनी ने हफ्ते भर पहले इस प्रोग्राम को बंद कर दिया है. क्या आपके वॉयस मैसेज भी सुने गए? Facebook ने कहा है कि इससे सिर्फ वो यूजर्स प्रभावित हैं जिन्होंने मैसेंजर ऐप के ऑप्शन में Voice Chat transcribed का ऑप्शन सेलेक्ट किया है. इसे कंपनी ने 2015 में लॉन्च किया था. हालांकि यूजर्स को कभी ये नहीं बताया गया कि इस वॉयस चैट्स को ट्रांस्क्राइब करने के लिए कॉन्ट्रैक्टर्स रखे गए हैं. Facebook ने कहा है कि ऐपल और गूगल की तरह ऑडियो ह्यूमन रिव्यू को हफ्ते भर पहले ही बंद कर दिया गया है. गौरतलब है कि कैंब्रिज अनालिटिका डेटा स्कैंडल के दौरान करोड़ों Facebook यूजर्स का डेटा लीक हुआ और इसके लिए अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन ने Facebook पर हाल ही में 5 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगाय है. Facebook सीईओ मार्क जकरबर्ग ये जुर्माना भरने के लिए राजी हुए और  कहा कि Facebook की प्राइवेसी और पॉलिसी में बड़े बदलाव दिखेंगे, लेकिन यहां तो सीन उल्टा ही दिख रहा है. क्योंकि यूजर्स के वॉयस चैट्स सुनना ये गंभीर समस्या है. भले ही इसके लिए Facebook ये दलील दे कि इसे सर्विस को बेहतर करने के लिए किया जा रहा था. ऐसे करें अपना बचाव आप चाहते हैं कि Facebook आपके मैसेंजर में किए गए वॉयस चैट को न सुने तो आप Facebook की सेटिंग्स में बदलाव कर सकते हैं या तरीका बदल सकते हैं. ---  Facebook मैसेंजर में वॉयस रिकॉर्डिंग को ट्रांस्क्राइब न करें.  वॉयस चैट करते वक्त एक ऑप्शन मिलता है जहां आपसे पूछा जाता है कि क्या आप इस वॉयस चैट को टेक्स्ट में ट्रांस्क्राइब करना चाहते हैं. आप यहां No पर क्लिक करें. --- दूसरे ऑप्शन के तौर पर आप Facebook मैसेंजर पर बातचीत के लिए Facebook मैसेंजर के सीक्रेट चैट का इस्तेमाल कर सकते हैं. सीक्रेट चैट Facebook मैसेंजर में काफी पहले से दिया जाता है. यहां मैसेज से जुड़े कई ऑप्शन मिलते हैं जिनमें से एक मैसेज ड्रिस्ट्रॉय करने का भी फीचर है.
यह लेख है: PMC बैंक घोटाले में एक अहम जानकारी सामने आ रही है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक जबसे उन्होंने (पुलिस द्वारा) FIR दर्ज किया है तबसे प्रशासन बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) जॉय थॉमस की तलाश में हैं, लेकिन जॉय थॉमस नहीं मिल रहे. पुलिस जॉय थॉमस के बेटे से उनका ठिकाना जानने की कोशिश में है, लेकिन खबर है कि थॉमस का बेटा भी पुलिस को भ्रमित करने में लगा हुआ है. सूत्रों के मुताबिक बेटे ने पुलिस को पिता का मोबाइल नंबर दिया. उस नम्बर का लोकेशन बार-बार बदल रहा था. पुलिस को लगा कि थॉमस पुलिस से बचने के लिए जगह बदल रहे हैं, पर जब वो उस मोबाइलधारक तक पहुंचे तो पता चला वो तो एक ऑटो ड्राइवर का नम्बर है जो किराया लेकर इधर-उधर जा रहा था. FIR के मुताबिक PMC बैंक को कर्ज में डुबाने वाले 44 बड़े अकाउंटों में 10 खाते HDIL और वाधवा से जुड़े हैं. उन 10 खातों में से एक सारंग वाधवा और दूसरा राकेश वाधवा का निजी खाता है और एक HDIL कंपनी का है जबकि 7 HDIL ग्रुप से जुड़े हैं. जांच में पता चला है कि उन 7 कंपनियों में से 5 का दफ्तर एक ही पते पर है, जो बांद्रा पूर्व में SRA की इमारत में है. इमारत का नाम कैपरी है. कैपरी इमारत वाधवा परिवार की HDIL कंपनी के SRA प्रोजेक्ट की है. स्लम रिडेवलपमेंट की इमारत में दफ़्तर होने के बावजूद इन कंपनियों को बड़े कर्ज दिए गए, जो अगस्त 2019 तक 796.65 करोड़ बकाया है. पुलिस को शक है कि बाकी के 34 अकाउंट भी HDIL और वाधवा के ही हैं लेकिन बेनामी, क्योंकि उन 34 अकाउंटों में से HDIL और वाधवा को पैसे ट्रांसफर हुए हैं. मतलब PMC से कर्ज 34 दूसरे खातों पर लिए गए फिर उन्हें HDIL और वाधवा से जुड़े खातों में ट्रांसफर कर दिए गए.
बड़ा परिवार, बढ़ती महंगाई, चौपट कारोबार और बढ़ते कर्ज ने रविवार को गाजियाबाद में एक की जान ले ली. 45 साल के वसीम की चार बीवियां हैं और वह 20 बच्‍चों का पिता था. बताया जाता है कि महंगाई और बढ़ते कर्ज से तंग आकर उसने खुद को गोली मार ली. खास बात यह भी है कि ऐसा करने से पहले उसने पूरे परिवार के साथ मीटिंग भी की. गाजियाबाद के लोनी इलाके में हर किसी के जुबान पर वसीम की चर्चा है. वसीम पूजा कॉलोनी का निवासी था. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, वसीम का परिवार बड़ा था और ज्‍यादा कर्ज होने की वजह से उसका धंधा भी चौपट हो गया था. वह प्रोपर्टी का बिजनेस करता था, लेकिन बीते कुछ समय से उसकी आमदनी परिवार के लिए नाकाफी थी. एक दिन पहले सभी से मिला परिवार वालों से मिली जानकारी के अनुसार, महंगाई के इस दौर में वसीम घर में अकेला कमाने वाला था. बीते कुछ समय से परिवार पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा था. हैरानी की बात यह है कि वसीम ने सुसाइड करने से एक दिन पहले परिवार के सभी लोगों से बारी-बारी मुलाकात की थी. यही नहीं, उसने सभी को एक जगह बिठाकर कर्ज और परिवार की स्थिति पर चिंता भी जताई थी. एसपी देहात जगदीश शर्मा कहते हैं, 'बताया जा रहा है कि परिवार पर कर्ज बहुत अधिक था और कोई रास्‍ता नहीं मिलने के कारण उसने खुद को गोली मार ली. हालांकि पुलिस मामले के सभी पक्षों की जांच कर रही है.' एक गोली से बात नहीं बनी तो दूसरी चलाई परिवार वालों ने बताया कि घटना के वक्‍त वसीम की दो बीवी और उसका एक भाई उसके पास ही खड़े थे. जब उसने पहली गोली चलाई तो वह घर के बाहर लगी. इसके बाद उसने फिर से दूसरी गोली चलाई और खुदकुशी कर ली. गोली उसके सिर में लगी. गोली लगने के बाद उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी.
बंबई शेयर बाजार में लगातार छठे दिन तेजी का सिलसिला जारी रहा और बाजार का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 380.36 अंक की बढ़त के साथ तीन सप्ताह के उच्च स्तर 27,887.9 अंक पर पहुंच गया। उत्साहजनक विनिर्माण आंकड़ों तथा बैंकिंग शेयरों में लाभ से सेंसेक्स में तेजी आई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 111 अंक की मजबूती के साथ 8,395.45 अंक पर पहुंच गया। एचएसबीसी के सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश के विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर दिसंबर, 2014 में दो साल में सबसे अधिक रही है। इससे पूंजीगत सामान, बिजली, रीयल्टी व धातु कंपनियों के शेयरों में भारी लिवाली देखने को मिली। बैंकिंग व वित्तीय क्षेत्र के शेयर भी लाभ में रहे। एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक व एसबीआई के शेयरों में लाभ रहा। वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र व यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के शेयरों में भी लाभ दर्ज हुआ। बोनान्जा पोर्टफोलियो के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राकेश गोयल ने कहा, पुणे में दो दिन के 'ज्ञान संगम' से बैंकिंग उद्योग के अनुकूल नतीजे निकलने की उम्मीद में बैंकिंग शेयरों में तेजी रही। बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 380.36 अंक या 1.38 फीसदी की बढ़त के साथ 27,887.90 अंक पर पहुंच गया। यह तीन सप्ताह में इसका उच्च स्तर है। कारोबार के दौरान यह 27,937.47 अंक के उच्चस्तर तक भी गया। पिछले छह सत्रों में सेंसेक्स 679.29 अंक की बढ़त दर्ज कर चुका है। साप्ताहिक आधार पर सेंसेक्स में 646 अंक का लाभ दर्ज हुआ। इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 111.45 अंक या 1.35 फीसदी की बढ़त के साथ 8,395.45 अंक पर पहुंच गया। कारोबार के दौरान यह 8,400 अंक के स्तर को पार कर 8,410.60 अंक पर पहुंचा था।
विराट और अनुष्‍का की शादी पर अमूल ने यह विज्ञापन दिया (Amul twitter)
दिवंगत बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी उम्र की दहलीज का 50वां पड़ाव पार करने के बाद भी काफी फिट और एक्टिव रहा करती थीं. हालांकि एक वक्त के बाद वह कभी-कभार ही पर्दे पर नजर आती थीं लेकिन 'मॉम' और 'इंग्लिश विंग्लिश' जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने यह साबित किया कि यदि फिल्मों का चयन सही हो और अभिनय में जान हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखता. श्रीदेवी को श्रद्धांजलि, जन्मदिन पर फिल्म डिविजन दिखाएगा ये 6 फिल्में 13 अगस्त को श्रीदेवी का 55वां जन्मदिन है. इस मौके पर उनका एक पुराना वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है. यह वीडियो एक अवॉर्ड शो का है जिसमें श्रीदेवी ने शाहिद कपूर के साथ डांस किया था. Hamari Chandni dancing with @shahidkapoor 😍 A post shared by Sridevi Kapoor Fanpage (@sridevikapoorx) on Aug 10, 2018 at 7:14am PDT वीड‍ियो में श्रीदेवी-शा‍ह‍िद संग प्रभु देवा भी दिख रहे हैं. वो शाहिद और श्रीदेवी को नाचते देख वियर्ड एक्सप्रेशन्स दे रहे हैं. इन तीनों की परफॉर्मेंस सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. बता दें कि श्रीदेवी 54 साल की थीं. उन्होंने इसी साल दुबई के एक होटल में आखिरी सांस ली. श्रीदेवी शादी समारोह में शामिल होने दुबई गई थीं. बाथटब में उनकी मौत हो गई थी.
क़ादियां भारत के पंजाब राज्य के गुरदासपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का चौथा बड़ा शहर और नगर निगम है, और अमृतसर से पूर्वोत्तर दिशा में स्थित है। यह स्थान पंडित लेखराम नगर के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास सन् 1530 में मिर्ज़ा हादी बेग़ ने इस नगर को बसाया था, जिनका परिवार मुग़ल शासक बाबर के काल में समरक़न्द से भारता आया था। संस्था के संस्थापक ने 13 मार्च 1903 में इसकी नींव रखी। क़ादियाँ को अहमदिय्या मुस्लिम जमात की नींव रखने वाले मिर्ज़ा हादी बेग़ का जन्मस्थान होने पर यह वैश्विक स्तर पर पहचान रखता है। अहमदिया जमात मुख्य दफ़्तर यहाँ है। आर्य समाज का इतिहास यह नगर आर्य समाज के कारण भी प्रमुख रहा है। पंडित लेखराम जी ने इस नगर मे आर्यसमाज की स्थापना की थी और साथ ही साथ गौ रक्षा के लिए बहुत कार्य किया और यहीं उनका बलिदान हुआ. इन्हें भी देखें अहमदिया धर्म मिर्ज़ा हादी बेग़ गुरदासपुर ज़िला सन्दर्भ पंजाब के शहर गुरदासपुर ज़िला गुरदासपुर ज़िले के नगर अहमदिया धर्म
यह एक लेख है: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रंगनाथ पांडेय ने अपने रिटायमेंट से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति बंद कमरों में चाय पर चर्चा करते-करते हो जाती है. यहां कोई पारदर्शिता नहीं है. नियुक्ति में भाई-भतीजावाद और जातिवाद हावी है. जिसका मतलब है कि जजों के बच्चे या रिश्तेदार ही जज बनते हैं. परिवारों के सर्किल से बाहर के लोगों के लिए संभावनाएं नहीं के बराबर होती हैं. हिंदी में लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) से न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता की आशा जगी थी. लेकिन जजों ने दुर्भाग्यवश इसे असवैंधानिक घोषित कर दिया क्योंकि इससे उन्हें अपने पारिवारिक सदस्यों की नियुक्ति में बाधा नज़र आने लगी थी. यह पहली बार नहीं है जो किसी जज ने इस तरह के आरोप लगाए हैं. हम थोड़ी सी मेहनत करें तो ऐसा कहने वालों की लिस्ट बहुत लंबी है. रंगनाथ पांडेय की इस चिट्ठी के बाद उनके रिटायरमेंट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही दिए जाने वाले 'फुल कोर्ट रेफरेंस' (एक तरह की फेयरवेल पार्टी) को बिना किसी कारण से रद्द कर दिया गया. अब वो रिटायर जज हो चुके हैं लेकिन उन्होंने जिस मसले की याद दिलाई वह कभी रिटायर नहीं होगा. उन जैसों की आवाज़ इस बहस को फिर से शुरू कर देगी. जब हम किसी चीज़ का विरोध करते हैं तो उसे केंद्र बनाकर एक घेरा खींच देते हैं. इस घेरे की त्रिज्या (Radius) तन्य (स्ट्रेचेबल) होती है. जितना मन आए, उतना खींच लो और घेरे को बड़ा करते जाओ. ऐसे में आप इस घेरे में हर उस मसले को डाल सकते हैं, जो उसके केंद्र से संबद्ध है. इसे सिद्धांत मानकर अब हम कहानी पर आते हैं. समझने में आसानी हो तो हम इसे बिंदुओं में देखेंगे. इसमें सबसे पहले मूल मसले को संक्षिप्त में समझ लेते हैं. जजों की नियुक्ति के लिए भाजपा नेतृत्व वाली (पिछली) NDA सरकार ने संसद से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का क़ानून पास कराया. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर वाले इस आयोग में 6 सदस्य होने थे जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को अध्यक्ष बनाया गया था, उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जजों, विधि मंत्री और दो जानेमाने लोगों से मिलकर बनना था. इन दो लोगों का चयन CJI, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता से बनी एक चयन समिति को करना था. 99वां संविधान संसोधन कर आगे बढ़ने वाले इस बिल को संसद को दोनों सदनों से दो-तिहाई बहुमत से पास कराया था. यानी सत्ताधारी दल के साथ-साथ विपक्ष भी इसमें साथ था. इतना ही नहीं, यह संविधान संशोधन 368 के तहत तीसरे तरह का संसोधन था जिसमें दो-तिहाई के विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे से अधिक राज्यों की सहमति भी चाहिए होती है. इसमें 20 राज्यों की सहमति ली गई थी. लेकिन संसद को दोनों सदनों से पास होने और 20 राज्यों की सहमति होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने इसे असवैंधानिक घोषित कर दिया. आसान भाषा में समझा जाए तो इस बिल के पीछे कितना बड़ा जनमत था, जिसे नकार दिया गया. - हम संविधान का पहला पन्ना नहीं पढ़ना चाहते लेकिन जजों की नियुक्ति पर ओपिनियन रखते हैं. "मोदी सरकार न्यायपालिका की शक्तियां कम करने पर आमादा है", ऐसा कहते हुए NJAC को असंवैधानिक घोषित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 'खुशियां' मनाई गईं. - हम नहीं सोचते कि NJAC जैसी पहल UPA-दो (कांग्रेस) ने भी की थी, वह इसके लिए विधेयक भी लाई, उसी के कार्यकाल में इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया. - हम नहीं जानना चाहते कि UPA के बिल में भी लगभग वही प्रावधान थे, जो NDA के बिल में थे. जजों की नियुक्ति को न्यायपालिका और कार्यपालिका की सम्मिलित भागीदारी से करने की योजना थी. बस उसका नाम थोड़ा अलग न्यायिक नियुक्ति आयोग (JAC) था. - हम नहीं जानना चाहते कि संविधान में कहीं भी 'कॉलेजियम' की व्यवस्था नहीं है. व्यवस्था छोड़िए, कॉलेजियम जैसा कोई शब्द ही संविधान में नहीं है. - जजों की नियुक्ति न्यायपालिका और कार्यपालिका 'संयुक्त रूप' से करेंगे, यह संविधान के मूल में है. सविंधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार “उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्‌, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझें, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा.'' जजों की नियुक्ति वाले इस अनुच्छेद में साफ लिखा है कि राष्ट्रपति ‘परामर्श करना आवश्यक समझे', यानी नियुक्ति राषट्रपति को करनी है, मुख्य न्यायाधीश सिर्फ परामर्श देंगे. लेकिन परामर्श का मतलब क्या होगा? क्या वह बाध्यकारी होगा या सिर्फ सलाहकारी, इसका फैसला फर्स्ट जजेज केस में हुआ जब तीन जजों वाली बेंच ने निर्णय दिया कि परामर्श का मतलब सहमति नहीं है. इसका मतलब राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं और वे सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नहीं हैं. इस केस तक जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की प्रभावी भूमिका थी. हम इसे बराबर हिस्सेदारी वाली भूमिका भी कह सकते हैं. देखा जाए तो यह फैसला एक तरह से न्यायपालिका ने अपनी शक्तियों के विरुद्ध ही दिया था. लेकिन दूसरे केस के बाद कहानी 180 डिग्री बदल गई. - Second और फिर Third Judges Case में संविधान की इस मूल आत्मा से आपने आप को न सिर्फ दूर किया, बल्कि आत्मा को 'दफ़्न' कर दिया. 2nd जजेस केस में जजों की नियुक्ति में राष्ट्रपति को दी जाने वाली 'सलाह' को 'बाध्यकारी' बना दिया गया. इस केस ने 9 जजों की पीठ ने फर्स्ट जजेज केस को 7:2 से पलट दिया. - संविधान निर्माताओं ने जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका और न्यायपालिका के जिस 'बैलेंस' की बात की थी, इस केस ने न सिर्फ तराजू के दूसरे पलड़े को तोड़ा बल्कि उसके ऊपर अपनी सर्वोच्चता स्थापित कर ली. - First Judges Case तक जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका थी लेकिन Second Judges Case से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं रही इसमें 9 जजों वाली पीठ ने निर्णय दिया कि सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट, किसी भी जज की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय के अनुरूप ही की जा सकती है, अन्यथा नहीं. - Third Case में मुख्य न्यायाधीश की इसी राय को 'कॉलेजियम' का रूप दे दिया गया और अब मुख्य न्यायाधीश को 4 अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करना था और बहुमत के आधार पर चयन करना था. यहीं से उस कॉलेजियम का जन्म हुआ, जो आज तक चला आ रहा है. - साल 2013 में UPA सरकार ने न्यायायिक नियुक्ति आयोग (JAC) के गठन के लिए विधेयक पेश किया गया था, उसकी संरचना हूबहू NDA जैसी थी. वह भी छ: सदस्यों वाला आयोग बनना था, अंतर बस इतना था कि UPA-2 द्वारा लाए गए विधेयक से आगे जाकर NDA के विधेयक में जानेमाने व्यक्तियों में से एक को अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला में से चुनना था. दरअसल, यह प्रावधान भी पिछले (UPA के) विधेयक पर स्टैंडिंग कमेटी के सुझाव पर शामिल किया गया था. - अगर हम NDA-UPA को छोड़ और पीछे जाएं तो साल 1987 में विधि आयोग ने आज के NJAC जैसा ही न्यायिक आयोग बनाने का सुझाव दिया था. 1990 में इस राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन के लिए फिर से विधेयक लाया गया. - 2002 में बने नेशनल कमीशन टू रिव्यू द वर्किंग ऑफ द कॉन्स्टीट्यूशन, जिसे सरल हिंदी में संविधान समीक्षा आयोग भी कहा जाता है, ने भी जजों की नियुक्ति के लिए आयोग के गठन का सुझाव दिया था. - साल 2005 में UPA प्रमुख सोनिया गांधी के नेतृत्व में बनने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) ने भी इसी तरह के एक आयोग के लिए सुझाव दिया. - सबसे अंत में, साल 2007 में बने द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने भी अपनी रिपोर्ट में इसे दोहराया. - इन सभी आयोगों/परिषदों ने जिस नियुक्ति आयोग का सुझाव दिया, उन सभी में कार्यपालिका को शामिल किया गया था. संविधान समीक्षा आयोग को छोड़ दिया जाए तो सभी ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री को भी शामिल करने का सुझाव दिया था.  सोनिया गांधी वाली NAC और 2nd ARC में तो विधायिका को भी इसमें शामिल किया गया था. - सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 4:1 से NDA सरकार द्वारा लाए गए NJAC को असंवैधानिक करार दिया. (इस पीठ में शामिल जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने इससे सहमति जताई थी). सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भागीदारी, न्यायपालिका के अधिकारों का अतिक्रमण जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत है. चूंकि संविधान के तीनों अंगों (कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका) के बीच शक्ति पृथक्करण का यह सिद्धांत संविधान का मूल लक्षण है और यह आयोग इसका उल्लंघन करता है तो यह असंवैधानिक घोषित कर दिया गया. - अब अगर हम फिर से First Judges Case पर जाएं तो देखते हैं कि मूल संविधान में जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका भी थी. UPA सरकार के JAC विधेयक पर बनने वाली स्टैंडिंग कमेटी ने भी यही पाया था कि जजों की नियुक्ति प्राथमिक रूप से कार्यपालिका का कार्य है. कार्यपालिका इसे राष्ट्रपति के माध्यम से करती है, जिसमें न्यायपालिका से सलाह ली जाती है. ऐसा न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिहाज़ से किया जाता है, जो संविधान की मूल आत्मा में शामिल है. इस तरह देखा जाए तो पहले केस और (साल 2013 में बनी) इस स्टैंडिंग कमेटी की व्याख्या तक हम संविधान के मूल लक्षण को कुछ और पाते हैं. जबकि 2nd Case से कहानी पलटने लगती है और इसे पलटने वाला कोई और नहीं बल्कि स्वयं न्यायपालिका भी है. देखा जाए तो न्यायपालिका ने उसी केस से नैसर्गिक न्याय (Rule of Natural Justice) के सिद्धांत का भी उल्लंघन किया है, क्योंकि वह स्वयं पक्षकार है और स्वयं की शक्तियों के बारे में ही वादों को सुनती है और अपने पक्ष में निर्णय देती है. आज की राजनीति को देखकर हमें कार्यपालिका की भागीदारी पर संदेह हो सकता है लेकिन असंवैधानिक ठहराए गए आयोग की संरचना को अगर हम बारीकी से देखें तो पाएंगे कि यह चीजों को सुधारने में निश्चित मदद करता. दुनिया के प्रमुख देशों का अगर उदाहरण लिया जाए तो अमेरिका हो या कनाडा अथवा यूरोप से यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी या फ्रांस, इन देशों में जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भी भूमिका है. इन देशों में जज ही जजों की नियुक्ति नहीं करते. लेकिन हम इस मामले में अनोखे बने हुए हैं. अब चूंकि कोई भी क़ानून न्यायपालिका के पुनर्रीक्षण से नहीं बच सकता तो NJAC जैसा कोई आयोग कभी बन भी पाएगा, यह दूर की कौड़ी लगती है. इसलिए हमें चाय की चुस्कियों पर होने वाली नियुक्तियों से ही काम चलाना होगा. अब इसमें परिवादवाद आए या जातिवाद, आपको इसका पक्ष लेना ही होगा क्योंकि आप तो वैचारिक विरोध से ऊपर उठकर चीजों को देखना ही नहीं चाहते.
डेल स्टेन दक्षिण अफ्रीका के सबसे सफल टेस्ट गेंदबाज बन गए हैं. स्टेन ने यह उपलब्धि बुधवार को पाकिस्तान के खिलाफ सेंचुरियन में जारी टेस्ट मैच के पहले दिन हासिल की. स्टेन को अपने ही देश के शॉन पोलॉक के 421 विकेटों के रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए एक विकेट की दरकार थी. स्टेन ने सेंचुरियन टेस्ट के पहले दिन फखर जमान का विकेट लेते हुए उन्होंने यह रिकॉर्ड कायम कर लिया. स्टेन ने 89वां टेस्ट मैच खेलते हुए 422 विकेट अपने नाम किए हैं, जबकि पोलॉक ने 108 टेस्ट मैचों में 421 विकेट चटकाए हैं. स्टेन ने 26 बार पारी में पांच विकेट और पांच बार मैच में 10 विकेट लिए हैं. पोलॉक 16 बार पारी में पांच विकेट ले चुके हैं तथा एक बार मैच में 10 विकेट लिए हैं. इस तरह स्टेन दक्षिण अफ्रीका के सफलतम टेस्ट गेंदबाज बनने के अलावा विश्व क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों की सूची में 11वें स्थान पर हैं. DALE STEYN MAKES HISTORY! 🙌 With Fakhar Zaman's wicket, his 422nd, the South Africa paceman becomes his country's most successful Test bowler. READ ⬇️ https://t.co/kxEmcEVuqo pic.twitter.com/4u9liXGqbK — ICC (@ICC) December 26, 2018 डेल स्टेन ने इसी साल जुलाई में श्रीलंका के खिलाफ गॉल क्रिकेट मैदान पर पोलॉक की बराबरी की थी और अब जाकर साल खत्म होने से ठीक पहले डेल स्टेन ने आखिरकार यह उपलब्धि हासिल कर ली. इस लिस्ट में तेज गेंदबाज स्टेन से ऊपर रिचर्ड हेडली (431), स्टुअर्ट ब्रॉड (433), कपिल देव (434), कर्टनी वाल्श (519), ग्लेन मैक्ग्रा (563), जेम्स एंडरसन (565), अनिल कुंबले (619), शेन वॉर्न (708) और मुथैया मुरलीधरन (800) हैं. स्टेन टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले तेज गेंदबाजों की सूची में सातवें स्थान पर हैं.
कश्मीर घाटी के चर्चित शोपियां मामले में सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों को निर्दोष करार देते हुए दोनों युवतियों की मौत को महज एक हादसा करार दिया है. साथ ही जांच एजेंसी ने अन्य सुरक्षा एजेंसियों को भी निर्दोष माना है. ज्ञात हो कि 29 मई 2009 की रात शोपियां के रहने वाले शकील अहंगर की बीबी नीलोफर और उसकी बहन आसिया के शव रहस्यमय हालात में एक नाले में मिले थे. स्थानीय लोगों ने दोनों युवतियों से सामूहिक दुष्कर्म और उसके बाद हत्या की आशंका जताते हुए पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद पूरी वादी में लोग सड़कों पर उतर आए थे. आंदोलन का संचालन करने के लिए शोपियां के लोगों ने हुर्रियत कांफ्रेंस के सहयोग से मजलिस-ए-मशावरत कमेटी गठित की थी. बाद में राज्य सरकार ने जस्टिस मुजफ्फर जान की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया और उसकी सिफारिशों पर शोपियां के तत्कालीन एसपी समेत चार पुलिस अधिकारियों को हिरासत में भी लिया गया. इसके बाद हाईकोर्ट की मंजूरी के बाद जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया. आखिरकार सीबीआई ने 14 दिसंबर को हाईकोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट दाखिल कर दी. सूत्रों के अनुसार अपने रिपोर्ट में सीबीआई ने दोनों युवतियों की मौत को महज हादसा माना है और उनके साथ दुष्कर्म की संभावना को नकारते हुए पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेसियों को निर्दोष ठहराया है.
बात जातिगत समीकरण की करें तो वाराणसी में बनिया मतदाता करीब 3.25 लाख हैं जो कि बीजेपी के कोर वोटर हैं. अगर नोटबंदी और जीएसटी के बाद उपजे गुस्से को कांग्रेस भुनाने में कामयाब होती है तो यह वोट कांग्रेस की ओर खिसक सकता है. वहीं ब्राह्मण मतदाता हैं जिनकी संख्या ढाई लाख के करीब है. माना जाता है कि विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने में जिनके घर सबसे ज्यादा हैं उनमें ब्राह्मण ही हैं और एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर भी नाराजगी है. यादवों की संख्या डेढ़ लाख है. इस सीट पर पिछले कई चुनाव से यादव समाज बीजेपी को ही वोट कर रहा है. लेकिन सपा के समर्थन के बाद इस पर भी सेंध लग सकती है. वाराणसी में मुस्लिमों की संख्या तीन लाख के आसपास है. यह वर्ग उसी को वोट करता है जो बीजेपी को हरा पाने की कुवत रखता हो. इसके बाद भूमिहार 1 लाख 25 हज़ार, राजपूत 1 लाख, पटेल 2 लाख, चौरसिया 80 हज़ार, दलित 80 हज़ार और अन्य पिछड़ी जातियां 70 हज़ार हैं. इनके वोट अगर थोड़ा बहुत भी इधर-उधर होते हैं तो सीट का गणित बदल सकता है. आंकड़ों के इस खेल को देखने के बाद अगर साझेदारी पर बात बनी और जातीय समीकरण ने साथ दिया तो प्रियंका गांधी मोदी को टक्कर दे सकती हैं. हालांकि मोदी ने जिस तरह से पिछले साढ़े चार सालों में वाराणसी में विकास के जो काम किया है क्या उसे नजरंदाज किया जा सकता है, यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है. लेकिन अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो हार जीत से पहले कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक बड़ा संदेश में कामयाब हो जाएगी.
पाकिस्तानी सैनिक युद्धविराम का उल्लंघन कर मंगलवार को भारतीय सीमा में घुस आए और जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले स्थित नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट एक चौकी पर तैनात दो भारतीय जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा एक के शव को क्षत-विक्षत कर दिया। केंद्र सरकार ने इस कार्रवाई को भड़काने वाला करार देते हुए इसकी निंदा की है। इस हमले में 29 बलूच रेजीमेंट के शामिल होने का अंदेशा है। पाकिस्तानी सैनिक घने कोहरे का फायदा उठाते हुए सीमा पर लगे कंटीले तारों को काटकर समीवर्ती पुंछ जिले के सोना गली इलाके में बनी भारतीय चौकी पर पहुंच गए। इस कार्रवाई को भड़काने वाला करार देते हुए केंद्र सरकार ने इसकी निंदा की है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सितांशु कर की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दोनों देशों के सैन्य अभियान के महानिदेशक (डीजीएमओ) इसे लेकर बातचीत कर रहे हैं। कहा गया है कि सरकार इस मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के समक्ष रखेगी। सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस्लामाबाद युद्धविराम समझौते का सम्मान करेगा। इससे पहले रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भरतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "जवान के शव के साथ की गई क्रूरता की हम कड़ा निंदा करते हैं।" पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। इस हमले में 29 बलूच रेजीमेंट के शामिल होने का अंदेशा है। पाकिस्तानी सैनिक घने कोहरे का फायदा उठाते हुए सीमा पर लगे कंटीले तारों को काटकर समीवर्ती पुंछ जिले के सोना गली इलाके में बनी भारतीय चौकी पर पहुंच गए। इस कार्रवाई को भड़काने वाला करार देते हुए केंद्र सरकार ने इसकी निंदा की है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सितांशु कर की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दोनों देशों के सैन्य अभियान के महानिदेशक (डीजीएमओ) इसे लेकर बातचीत कर रहे हैं। कहा गया है कि सरकार इस मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के समक्ष रखेगी। सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस्लामाबाद युद्धविराम समझौते का सम्मान करेगा। इससे पहले रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भरतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "जवान के शव के साथ की गई क्रूरता की हम कड़ा निंदा करते हैं।" पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। इस कार्रवाई को भड़काने वाला करार देते हुए केंद्र सरकार ने इसकी निंदा की है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सितांशु कर की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दोनों देशों के सैन्य अभियान के महानिदेशक (डीजीएमओ) इसे लेकर बातचीत कर रहे हैं। कहा गया है कि सरकार इस मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के समक्ष रखेगी। सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस्लामाबाद युद्धविराम समझौते का सम्मान करेगा। इससे पहले रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भरतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "जवान के शव के साथ की गई क्रूरता की हम कड़ा निंदा करते हैं।" पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। कहा गया है कि सरकार इस मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के समक्ष रखेगी। सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस्लामाबाद युद्धविराम समझौते का सम्मान करेगा। इससे पहले रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भरतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "जवान के शव के साथ की गई क्रूरता की हम कड़ा निंदा करते हैं।" पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। इससे पहले रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भरतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "जवान के शव के साथ की गई क्रूरता की हम कड़ा निंदा करते हैं।" पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा किया और सेना को 'सतर्क तथा शांत' रहने को कहा। उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि 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जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। पुंछ के उपायुक्त एके साहू ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने चौकी पर तैनात दो जवानों की गला रेतकर हत्या कर दी तथा तीसरे को घायल कर दिया। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। सेना के सूत्रों ने कहा कि छापेमारी करने आए पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए भारतीय जवानों के हथियार भी उठा ले गए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपुताना राइफल्स से संबद्ध थे। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को जब भारतीय चौकी कंटीले घेरे के बिल्कुल करीब दिखी तो वे वहां पहुंच गए। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। सेना ने घुसपैठ रोकने के लिए नियंत्रण रेखा से लगते भारतीय क्षेत्र में त्रिस्तरीय बाड़बंदी कराई है। भारतीय क्षेत्र में दो किलोमीटर तक लगभग 500 मीटर चौड़ी बाड़बंदी कराई गई है। लेकिन घुसपैठियों ने घने कोहरे का फायदा उठाया। वे जंगली इलाके में लगे कंटीले बाड़ को काटकर भारत की सीमा में घुस आए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों के इस हमले को लेकर आधिकारिक स्तर पर कड़ा रुख अपनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी। इस घटना के बाद भारत और पकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई गई है। मंगलवार को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा किया और सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले 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छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस आरोप का खंडन किया कि भारतीय सैनिकों ने रामपुर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण या 2003 से लागू युद्धविराम का उल्लंघन किया।   विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "भारत नियंत्रण रेखा की पवित्रता के प्रति बचनबद्ध है।" उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।टिप्पणियां प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। प्रवक्ता ने कहा, "हम पाकिस्तान का आह्वान करते हैं कि वह नियंत्रण रेखा की पवित्रता सुनिश्चित करे.. और अकारण गोलीबारी की ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।" उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने पाकिस्तानी सैनिकों ने अकारण गोलीबारी कर भारत के सीमावर्ती चुरुं डा गांव में एक घर की छत को ध्वस्त कर दिया था। जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी गोलीबारी की थी।
गुजरात में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां एक 14 साल के बच्चे पर मगरमच्छ ने हमला कर दिया. इस दौरान बच्चे को कई गंभीर चोटें आईं. गुजरात के साबरकांठा जिले में 14 साल के एक लडके को मगरमच्छ ने पकड़ लिया. गनीमत ये रही कि वहीं पास में खेल रहे उसके दोस्तों को उसके चिल्लाने कि आवाज आई तो वो तुंरत वहां पहुंचे और अपने दोस्त को सतर्कता से बचा लिया. दरअसल, संदीप कमलेश परमार और उसके दोस्त साबरकांठा के गुणभखारी गांव में एक नदी में तैरने गए थे. तभी एक मगरमच्छ ने संदीप के पैर को अपने जबड़े में दबोच लिया. जिंदगी की जद्दोजहद कर रहा संदीप मदद के लिए चीखा तो उसके दोस्त उसकी ओर दौड़े. उसके दोस्तों ने देखा की मगरमच्छ ने संदीप को पकड़ रखा है. जिसके बाद उसके दोस्तों ने संदीप को बचाने की कोशिश की. इस दौरान दोस्तों ने मगरमच्छ पर पत्थर फेंकने शुरू किए. जिसके बाद मगरमच्छ ने संदीप का पैर छोड़ दिया और उसके दोस्त उसे नदी किनारे लाए. मगरमच्छ के जरिए पकड़े जाने पर संदीप को पैर में काफी चोटें आई हैं. जिसके बाद संदीप को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. संदीप को खेड़ब्रह्म शहर में सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां उसकी हालत पहले से सही बताई जा रही है. अस्पताल में संदीप का ट्रीटमेंट करने वाले डॉ. अश्विन गढवी का कहना है कि संदीप के घुटने के नीचे की हड्डी बुरी तरह टूट गई है. साथ ही उन्होंने संदीप की जान बचाने के लिए उसके सतर्क दोस्तों की तारीफ की. वहीं इस पूरे मामले में संदीप के दोस्तों के हौसले को हर कोई सलाम कर रहा है क्योंकि मगरमच्छ के सामने जिस तरह से उसके दोस्तों ने हिम्मत दिखाते हुए संदीप की जान बचा ली, वह वास्तव में काबिले तारीफ है.
यह एक लेख है: कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितता को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में केंद्रीय मंत्रियों- पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार- के इस्तीफे की मांग पर अड़ी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को भी संसद में हंगामा किया, जिसके कारण दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित हुई और दोनों सदनों की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। लोकसभा की कार्यवाही पूर्वाह्न् 11 बजे शुरू होते ही भाजपा सदस्य अपनी मांगों के पक्ष में अध्यक्ष के आसन के पास जाकर नारेबाजी करने लगे। अध्यक्ष मीरा कुमार ने हालांकि उन्हें शांत कराने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहीं। राज्यसभा में भी यही स्थिति रही। भाजपा सदस्य प्रधानमंत्री के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। हंगामे के बीच सभापति हामिद अंसारी ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक और उसके बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी। लोकसभा की कार्यवाही पूर्वाह्न् 11 बजे शुरू होते ही भाजपा सदस्य अपनी मांगों के पक्ष में अध्यक्ष के आसन के पास जाकर नारेबाजी करने लगे। अध्यक्ष मीरा कुमार ने हालांकि उन्हें शांत कराने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहीं। राज्यसभा में भी यही स्थिति रही। भाजपा सदस्य प्रधानमंत्री के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। हंगामे के बीच सभापति हामिद अंसारी ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक और उसके बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी।
पद्मावत की रिलीज डेट को ले करके कंफ्यूजन बना हुआ है . सूत्रों के मुताबिक इस फिल्म को 25 जनवरी या 26 जनवरी में किसी एक दिन रिलीज किया जाएगा. हालांकि वायकॉम 18 से इस बारे में बातकरने के बाद रिलीज डेट को लेकर कोई कंफर्म डेट नहीं बताई गई है. इसी के साथ अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन भी चर्चा में बनी हुई है. इन दोनों फिल्मों पर बिग बी ने भी इसे लेकर पहली बार सोशल मीडिया पर ट्विट किया है. उन्होंने लिखा है कि सभी पैडमैन और पद्मावती की चर्चा कर रहे हैं. इन दोनों में सबसे कॉमन चीज है PADMAvat & PADMAn. PADMA को अमिताभ बच्चन ने 26 जनवरी को रिलीज होने वाली फिल्मों का ऑपरेटिव की वर्ड बताया है. T 2526 - 'PADMA' the operative key word for film release on 26th Jan 2018 : PADMAvat & PADMAn .. !! pic.twitter.com/pY4onjDEic — Amitabh Bachchan (@SrBachchan) January 9, 2018 क्या बॉक्स ऑफिस के लिए मुश्किल? रिलीज होंगी 3 बड़ी फिल्में एक दिन रिलीज होने वाली इन दोनों फिल्में को बॉक्स ऑफिस का सबसे बड़ा क्लैश बताया जा रहा है. बता दें इसी दिन पहले से तय अक्षय कुमार की पैडमैन और ठीक दूसरे दिन 26 जनवरी को नीरज पांडे की अय्यारी को रिलीज होना है. इस लिहाज से देखे तो यह बॉक्स ऑफिस का सबसे मुश्किल हफ्ता साबित होने वाला है. हालांकि ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने एक ट्वीट में बताया कि अय्यारी के निर्माताओं ने फिल्म की रिलीज आगे बढ़ाकर 9 फरवरी कर दिया है. चर्चा पैडमैन की डेट बदलने की भी है. कहा यह जा रहा है कि फिल्म 25 जनवरी की तय तारीख से पहले ही रिलीज होगी. जो भी हो यह तय है कि तीन बड़ी फिल्मों के आस-पास रिलीज होने की वजह से बॉक्स ऑफिस पर जमकर मारामारी होगी. इस दिन रिलीज होगी 'पद्मावती', हो सकता है 'पैडमैन' को नुकसान पद्मावती के साथ होने वाली क्लैश पर अक्षय कुमार का कहना था कि उन्हें पद्मावती की रिलीज डेट क्रैश होने का कोई डर नहीं हैं. वो इस चुनौती के लिए तैयार हैं. उन्होंने बताया कि पैडमैन एक अच्छे कॉन्सेप्ट पर आधारित है. मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी फिल्म पर पद्मावती की रिलीज का कोई असर नहीं पड़ेगा. अक्षय कुमार ने कहा कि पैडमैन अपनी पटकथा की वजह से जरूर सक्सेस होगी. चाहें कितनी भी बड़ी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उसके सामने हो. पद्मावती करीब 180 करोड़ के भारी-भरकम बजट में बनी है. ये फिल्म काफी वक्त से विवादों में भी है. संजय लीला भंसाली की इस मल्टी स्टारर फिल्म में रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं. ट्रेलर के मुताबिक़ सभी के किरदार की प्रशंसा की जा रही है. पैडमैन में अक्षय की मुख्य भूमिका के साथ राधिका आप्टे और सोनम कपूर हैं.
निवेशकों ने वित्त वर्ष 2017-18 में इक्विटी से संबद्ध म्यूचुअल फंड योजनाओं में 1.7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है. निवेश के लिहाज से म्यूचुअल फंड के लिए यह लगातार चौथा अच्छा साल रहा है. म्यूचुअल फंड कंपनियों के संगठन भारतीय म्यूचुअल फंड संघ (एएमएफआई) के आंकड़ों से यह बात स्पष्ट होती है. आंकड़ों के अनुसार समीक्षावधि में अच्छे निवेश प्रवाह के चलते इस तरह की म्यूचुअल फंड योजनाओं का परिसंपत्ति आधार 38% बढ़कर 7.5 लाख करोड़ रुपये हो गया. टिप्पणियां ऑनलाइन म्यूचुअल फंड निवेश कंपनी ग्रो के मुख्य परिचालन अधिकारी हर्ष जैन ने कहा कि म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश बढ़ने की अहम वजह इस उद्योग और इसका वितरण करने वाले मंचों द्वारा जागरुकता अभियान चलाया जाना है. इसके अलावा खुदरा निवेशकों विशेषकर छोटे शहरों की ओर से निवेश बढ़ने और नोटबंदी के प्रभाव से भी इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा है.  जैन ने कहा कि इसके अलावा नियमित निवेश योजनाओं (एसआईपी) में लोगों का रुझान बढ़ने से भी इस क्षेत्र में सतत वृद्धि देखी गई है. एएमएफआई के आंकड़ों के अनुसार शेयर आधारित म्यूचुअल फंड योजनाओं में इस अवधि में 1,71,069 करोड़ रुपये का निवेश हुआ. इस अवधि में इन योजनाओं का परिसंपत्ति आधार 7.5 लाख करोड़ रुपये हो गया जो पिछले वित्त वर्ष में 5.43 लाख करोड़ रुपये था. ऑनलाइन म्यूचुअल फंड निवेश कंपनी ग्रो के मुख्य परिचालन अधिकारी हर्ष जैन ने कहा कि म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश बढ़ने की अहम वजह इस उद्योग और इसका वितरण करने वाले मंचों द्वारा जागरुकता अभियान चलाया जाना है. इसके अलावा खुदरा निवेशकों विशेषकर छोटे शहरों की ओर से निवेश बढ़ने और नोटबंदी के प्रभाव से भी इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा है.  जैन ने कहा कि इसके अलावा नियमित निवेश योजनाओं (एसआईपी) में लोगों का रुझान बढ़ने से भी इस क्षेत्र में सतत वृद्धि देखी गई है. एएमएफआई के आंकड़ों के अनुसार शेयर आधारित म्यूचुअल फंड योजनाओं में इस अवधि में 1,71,069 करोड़ रुपये का निवेश हुआ. इस अवधि में इन योजनाओं का परिसंपत्ति आधार 7.5 लाख करोड़ रुपये हो गया जो पिछले वित्त वर्ष में 5.43 लाख करोड़ रुपये था. जैन ने कहा कि इसके अलावा नियमित निवेश योजनाओं (एसआईपी) में लोगों का रुझान बढ़ने से भी इस क्षेत्र में सतत वृद्धि देखी गई है. एएमएफआई के आंकड़ों के अनुसार शेयर आधारित म्यूचुअल फंड योजनाओं में इस अवधि में 1,71,069 करोड़ रुपये का निवेश हुआ. इस अवधि में इन योजनाओं का परिसंपत्ति आधार 7.5 लाख करोड़ रुपये हो गया जो पिछले वित्त वर्ष में 5.43 लाख करोड़ रुपये था.
गदीर की ईद (अरबी: ईद अल-ग़दीर ; फारसी : ईद-ए-गदीर) शिया मुसलमानों का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार उस घटना की स्मृति में किया जाता है जिसमें कहते हैं कि इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद ने अपने चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। यह त्यौहार १८ धू अल-हिज्जा को मनाया जाता है। हदीथ के अनुसार इस ईद को सर्वश्रेष्ठ ईद माना गया है। दुनिया भर के शिया मुसलमान इस उत्सव को प्रतिवर्ष विविध रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। यह विभिन्न देशों में आयोजित होता है, जिसमें ईरान, भारत, पाकिस्तान, अजरबैजान, इराक, यूएई, यमन, अफगानिस्तान, लेबनान, बहरीन और सीरिया शामिल हैं। शिया मुसलमान यूरोप और अमेरिका में भी ग़दीर की ईद मनाते हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें ग़दीर ए ख़ुम की घटना बाहरी कड़ियाँ ईद-ए-ग़दीर: इस्लामिक इतिहास का वो दिन, जिस आधार पर शिया-सुन्नी में बंटे मुसलमान इस्लामी त्यौहार
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में शुक्रवार को भूकंप के झटके महसूस किए गए. प्रशासन ने इस भूकंप की पुष्टि की. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.3 दर्ज की गई. समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के हवाले से भूकंप का केंद्र दजाल शहर से 11 किलोमीटर दूर बताया है. इनपुट: IANS
गैसधानी या 'गैस होल्डर' उस विशाल पात्र (container) को कहते हैं जिसमें प्राकृतिक गैस या टाउन गैस को वायुमण्डलीय दाब और सामान्य ताप पर पर संग्रहित रखा जाता है। परिचय उपभोक्ताओं के बीच गैस वितरण के पहले गैस का संग्रह करने की आवश्यकता पड़ती है। गैससंग्रह की साधारणतया तीन रीतियाँ प्रचलित हैं : 1. जलसंमुद्रित टंकियाँ, 2. जलरहित टंकियाँ और 3. गैस के सिलिंडर जल संमुद्रित टंकियाँ जलसंमुद्रित टंकियों का उपयोग बहुत दिनों से होता आ रहा है। आज भी इनका उपयोग व्यापक रूप से होता है। इसमें एक बड़ी टंकी रहती है जिसमें जल भरा रहता है। जल पर इस्पात का एक ढाँचा तैरता रहता है। जल के ऊपर गैस इकट्ठी होती है। टंकी में एक नल रहता है जो पेंदे से शिखर तक, अर्थात्‌ नीचे से ऊपर तक, जाता है। इसी नल द्वारा गैस प्रविष्ट करती अथवा बाहर निकलती है। जब गैस प्रविष्ट करती है तब ढाँचा धीरे धीरे ऊपर उठता है। जब गैस बाहर निकलती है तब ढाँचा धीरे धीरे नीचे गिरता है। ढाँचा दीवार पर स्थित झझंरी द्वारा ऊपर नीचे खिसकता है। छोटी छोटी टंकियों के ढाँचे इस्पात के एक टुकड़े से बने होते हैं। बड़ी बड़ी टंकियों के ढाँचे दो से चार भागों में बनाकर जोड़े जाते हैं। जब टंकी में गैस नहीं रहती तब ढाँचा टंकी के पेंदे में स्थित रहता है। जैसे जैसे गैस प्रवेश करती है, ढाँचा ऊपर उठता जाता है। जब गैस से टंकी भर जाती है तब वह जलसंमुद्रित हो जाती है। संमुद्रण के जल के ठंढे देशों में बर्फ बनने से बचाने के लिये भाप से गरम रखते हैं। भारत ऐसे उष्ण देश में यह स्थिति साधारणतया नहीं आती। भारत की प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होनेवाली गैस ऐसी ही टंकियों में संगृहीत रहती है। जलरहित टंकी जलरहित टंकी जलवाली टंकी सी ही देख पड़ती है। इसमें एक पिस्टन होता है, जो गैस के आयतन के अनुसार ऊपर नीचे जाता आता रहता है। टंकी पर छप्पर होता है, जो पिस्टन को पानी से सुरक्षित रखता है। टंकी का आधार वृत्तकार या बहुभुजाकार हो सकती है। भुजाएँ 10 से 28 तक रह सकती हैं। गैस सिलिण्डर गैस सिलिंडर इस्पात के बने होते हैं। इनमें प्रति वर्ग इंच पर कई सौ पाउंड दबाव में गैस रखी जाती है। ऐसे मजबूत बने सिलिंडर का मूल्य अधिक होता है, पर इसका बार बार उपयोग किया जा सकता है। दबाव में गैस रखने के लिये ये सिलिंडर बड़े आवश्यक होते हैं। वस्तुत: गैस सिलिंडर उसी प्रकार के होते हैं जैसे सिलिंडरों में, क्लोरीन, आक्सीजन, कार्बन डाइ-आक्साइड, ऐसीटिलीन आदि औद्योगिक महत्व की गैसें रखी जाती हैं। ऊर्जा भण्दारण पेट्रोलियम उत्पादन गैस प्रौद्योगिकी
वेस्टमिंस्टर ब्रिज थेम्स नदी पर मिडिलसेक्स बैंक के वेस्टमिंस्टर और सरे बैंक के लैम्बेथ के बीच निर्मित एक सड़क और पैदल यातायात पुल है जो आज के इंग्लैण्ड के ग्रेटर लन्दन क्षेत्र में स्थित है।
कर्नाटक में पहले से संकट का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी को रविवार को उस समय विचित्र स्थिति का सामना करना पड़ा जब संप्रग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को 117 विधायकों के मत हासिल हुए जबकि भाजपा समर्थित पीए संगमा को 103 मतों से संतोष करना पड़ा। स्पष्ट है कि राज्य में प्रणब को ‘‘क्रास वोटिंग’’ का फायदा मिला। प्रणब को वैसे तो केवल 98 विधायकों के मत हासिल होने थे, जिनमें से कांग्रेस के 71 और जद-एस के 27 विधायक शामिल थे लेकिन उन्हें 19 और विधायकों का समर्थन हासिल हो गया।टिप्पणियां कर्नाटक विधानसभा में सत्ताधारी भाजपा के 119 विधायक हैं लेकिन संगमा को केवल 103 मत मिल पाये। 19 जुलाई को हुए मतदान में एक विधायक ने मतदान नहीं किया। राज्य में भाजपा की स्थिति वैसे ही असमंजस वाली है क्योंकि दो साल में उसे तीन मौकों पर मुख्यमंत्री बदलने पड़े। मुखर्जी को कर्नाटक में मिले मतों का मूल्य 15327 है जबकि संगमा के मतों का मूल्य 13493 है। गुजरात में भी भाजपा के एक विधायक ने मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया। प्रणब को वैसे तो केवल 98 विधायकों के मत हासिल होने थे, जिनमें से कांग्रेस के 71 और जद-एस के 27 विधायक शामिल थे लेकिन उन्हें 19 और विधायकों का समर्थन हासिल हो गया।टिप्पणियां कर्नाटक विधानसभा में सत्ताधारी भाजपा के 119 विधायक हैं लेकिन संगमा को केवल 103 मत मिल पाये। 19 जुलाई को हुए मतदान में एक विधायक ने मतदान नहीं किया। राज्य में भाजपा की स्थिति वैसे ही असमंजस वाली है क्योंकि दो साल में उसे तीन मौकों पर मुख्यमंत्री बदलने पड़े। मुखर्जी को कर्नाटक में मिले मतों का मूल्य 15327 है जबकि संगमा के मतों का मूल्य 13493 है। गुजरात में भी भाजपा के एक विधायक ने मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया। कर्नाटक विधानसभा में सत्ताधारी भाजपा के 119 विधायक हैं लेकिन संगमा को केवल 103 मत मिल पाये। 19 जुलाई को हुए मतदान में एक विधायक ने मतदान नहीं किया। राज्य में भाजपा की स्थिति वैसे ही असमंजस वाली है क्योंकि दो साल में उसे तीन मौकों पर मुख्यमंत्री बदलने पड़े। मुखर्जी को कर्नाटक में मिले मतों का मूल्य 15327 है जबकि संगमा के मतों का मूल्य 13493 है। गुजरात में भी भाजपा के एक विधायक ने मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया। राज्य में भाजपा की स्थिति वैसे ही असमंजस वाली है क्योंकि दो साल में उसे तीन मौकों पर मुख्यमंत्री बदलने पड़े। मुखर्जी को कर्नाटक में मिले मतों का मूल्य 15327 है जबकि संगमा के मतों का मूल्य 13493 है। गुजरात में भी भाजपा के एक विधायक ने मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया।
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यह एक लेख है: दलितों पर हाल ही में हुए हमलों के मद्दनेजर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज कहा कि आजादी कभी भी केवल चुनिंदा लोगों के लिए नहीं हो सकती. उन्होंने देशवासियों से ऐसे देश की अभिलाषा रखने को कहा जहां घृणित और हीन ताकतें विचारों को ‘हिंसक रूप से नहीं कुचल सकें.’’ स्वंतत्रता दिवस पर अपने संबोधन में राहुल ने कहा, ‘‘जब अनैतिक ताकतें हममें से कुछ की आजादी के लिए खतरा पैदा करती हैं, जैसा कि हाल के दिनों में हमने देखा भी है, तब हमें याद रखना चाहिए कि आजादी केवल कुछ लोगों के लिए ही नहीं हो सकती..यह सबके लिए होनी चाहिए. भारत के हर व्यक्ति को आत्मसम्मान, जीने और खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने की आजादी और अधिकार होना चाहिए.’’ राहुल ने कहा कि भारतीयों को ऐसे देश की अभिलाषा रखने का अधिकार है जहां कोई भी खौफ में नहीं जीता हो और ‘‘जहां विचार का मुक्त प्रवाह हो और जहां उन्हें घृणा और हीनता की ताकतें हिंसक रूप से कुचलती नहीं हों. हमें सच्चाई पर जोर देना चाहिए और सच्चाई के लिए हमेशा लड़ते रहना चाहिए.’’ राहुल ने तीन साल पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष पद का प्रभार संभाला था तब से लेकर यह पहली बार है जब उन्होंने पार्टी मुख्यालय में तिरंगा फहराया है. पार्टी कार्यालय में आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तिरंगा फहराती हैं. उन्हें एक निजी अस्पताल से कल ही छुट्टी मिली है. इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे. राहुल ने कहा कि जिस पीढ़ी ने हमें आजादी दिलाई है, वे लोग आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी ओर से दिया गया संविधान का बहुमूल्य तोहफा हमारे पास है.टिप्पणियां उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) स्वंतत्रता दिवस पर अपने संबोधन में राहुल ने कहा, ‘‘जब अनैतिक ताकतें हममें से कुछ की आजादी के लिए खतरा पैदा करती हैं, जैसा कि हाल के दिनों में हमने देखा भी है, तब हमें याद रखना चाहिए कि आजादी केवल कुछ लोगों के लिए ही नहीं हो सकती..यह सबके लिए होनी चाहिए. भारत के हर व्यक्ति को आत्मसम्मान, जीने और खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने की आजादी और अधिकार होना चाहिए.’’ राहुल ने कहा कि भारतीयों को ऐसे देश की अभिलाषा रखने का अधिकार है जहां कोई भी खौफ में नहीं जीता हो और ‘‘जहां विचार का मुक्त प्रवाह हो और जहां उन्हें घृणा और हीनता की ताकतें हिंसक रूप से कुचलती नहीं हों. हमें सच्चाई पर जोर देना चाहिए और सच्चाई के लिए हमेशा लड़ते रहना चाहिए.’’ राहुल ने तीन साल पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष पद का प्रभार संभाला था तब से लेकर यह पहली बार है जब उन्होंने पार्टी मुख्यालय में तिरंगा फहराया है. पार्टी कार्यालय में आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तिरंगा फहराती हैं. उन्हें एक निजी अस्पताल से कल ही छुट्टी मिली है. इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे. राहुल ने कहा कि जिस पीढ़ी ने हमें आजादी दिलाई है, वे लोग आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी ओर से दिया गया संविधान का बहुमूल्य तोहफा हमारे पास है.टिप्पणियां उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) राहुल ने कहा कि भारतीयों को ऐसे देश की अभिलाषा रखने का अधिकार है जहां कोई भी खौफ में नहीं जीता हो और ‘‘जहां विचार का मुक्त प्रवाह हो और जहां उन्हें घृणा और हीनता की ताकतें हिंसक रूप से कुचलती नहीं हों. हमें सच्चाई पर जोर देना चाहिए और सच्चाई के लिए हमेशा लड़ते रहना चाहिए.’’ राहुल ने तीन साल पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष पद का प्रभार संभाला था तब से लेकर यह पहली बार है जब उन्होंने पार्टी मुख्यालय में तिरंगा फहराया है. पार्टी कार्यालय में आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तिरंगा फहराती हैं. उन्हें एक निजी अस्पताल से कल ही छुट्टी मिली है. इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे. राहुल ने कहा कि जिस पीढ़ी ने हमें आजादी दिलाई है, वे लोग आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी ओर से दिया गया संविधान का बहुमूल्य तोहफा हमारे पास है.टिप्पणियां उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) पार्टी कार्यालय में आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तिरंगा फहराती हैं. उन्हें एक निजी अस्पताल से कल ही छुट्टी मिली है. इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे. राहुल ने कहा कि जिस पीढ़ी ने हमें आजादी दिलाई है, वे लोग आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी ओर से दिया गया संविधान का बहुमूल्य तोहफा हमारे पास है.टिप्पणियां उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) राहुल ने कहा कि जिस पीढ़ी ने हमें आजादी दिलाई है, वे लोग आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी ओर से दिया गया संविधान का बहुमूल्य तोहफा हमारे पास है.टिप्पणियां उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) उन्होंने कहा, ‘‘इसमें वे मूल्य, आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं जिनके लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और जिनके बारे में उनका मानना था कि ये हमारे साहसी युवा देश का मार्गदर्शन करेंगे.’’(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
बॉलीवुड में 'मुल्क', 'पिंक', 'बदला' और 'जुड़वा-2' जैसी शानदार फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म 'गेम ओवर' (Game Over) की शूटिंग में बिजी हैं. फिल्म 'मुल्क' और 'पिंक' में तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) की एक्टिंग को काफी सराहा गया है. इसके साथ ही तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) ने हाल ही में आई फिल्म 'बदला' में भी काफी अच्छा किरदार निभाया था.  'गेम ओवर' (Game Over) की शूटिंग में बिजी तापसी पन्नू (Taapsee Pannu)  की एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. इस वीडियो में तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) 'गेम ओवर' के ही सेट पर लूडो खेलते दिखाई दे रही हैं. तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) की फिल्म  'गेम ओवर' (Game Over) दुनियाभर में 14 जून को रिलीज होगी.  Night shoots, bruises on face, fractured legs, low metabolism, chennai heat but it's this ‘Ludo' that can leave us in splits! #GameOver #BTS #HappinessInSmallThings #IWon #JustSaying A post shared by Taapsee Pannu (@taapsee) on Jun 7, 2019 at 10:22pm PDT फिल्म  'गेम ओवर' (Game Over) की तैयारियों में बिजी बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर की है. इस वीडियो में तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) व्हील चेयर पर बैठकर सेट पर मौजूद अन्य लोगों के साथ लूडो खेल रही हैं. अपनी वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) ने लिखा 'रात की शूटिंग, चेहरे पर खरोचें, टूटी हुई टांगें, भूख भी नहीं लग रही है और चैन्नई की गर्मी, लेकिन यह 'लूडो' ही है जो हमें मजे दिला रहा है.' वीडियो में एक्ट्रेस तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) के साथ सेट पर मौजूद और लोग भी लूडो गेम का लुत्फ उठाते दिखाई दे रहे हैं. वीडियो देखकर ऐसा लग रहा है मानो तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) स्ट्रेस दूर करने और मस्ती करने के लिए लूडो गेम का सहारा ले रही हैं.  बता दे कि तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत तेलुगु फिल्म से 2010 में की थी. इसके बाद बॉलीवुड में भी तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) ने कई हिट फिल्में कीं. तापसी पन्नू  (Taapsee Pannu) की अपकमिंग फिल्म  'गेम ओवर' (Game Over) में वह 'स्वप्ना' का किरदार निभाती दिखाई देंगी. इसके साथ ही फिल्म में तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) के अलावा विनोधिनी वैद्यनाथन, अनीश कुरुविल्ला, संचना नटराजन और राम्या सुब्रमण्यम जैसे कलाकार नजर आएंगे. फिल्म 'गेम ओवर' (Game Over) को अश्विन सरवनन ने डायरेक्ट किया है. इसका प्रोडक्शन वाई नॉट स्टूडियोज और रिलायंस एंटरटेनमेंट के बैनर तले किया जा रहा है.
भारतीय बाजार में एंड्रॉयड स्मार्टफोन की काफी पकड़ है. एप्पल के मुकाबले एंड्रॉयड को कम सिक्योर माना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक गूगल प्ले स्टोर पर 400 ऐप्स हैं जिनमें DressCode नाम के खतरनाक मैलवेयर पाए गए हैं. इस ड्रेसकोड मैलवेयर के से यूजर नेटवर्क को भेदकर हैकर्स अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं. एक बार इस मैलवेयर वाला ऐप अपने स्मार्टफोन में इंस्टॉल करते हैं तो अटैकर नेटवर्क के सहारे स्मार्टफोन तक पहुंच सकता है. इसके बाद आपकी डिवाइस से संवेदनशील जानकारियां, महत्वपूर्ण डेटा और दूसरे डेटा चुरा सकते हैं. गौरतलब है कि इस ड्रेसकोड नाम कै मैलवेयर का पता सबसे पहले इसी साल अप्रैल में लगाया गया था. ट्रेंड माइक्रो के साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर्स ने गूगल प्ले स्टोर के कई कैटिगरी जैसे- गेम्स, स्किन्स, थीम्स और फोन बूस्टर्स में हैं. हालांकि यह ऐप के अंदर एक छोटे से पार्ट की तरह मौजूद होते हैं, इसलिए इनहें डिटेक्ट कर पाना एंटीवायरस के लिए भी मुश्किल होता है. इस सिक्योरिटी फर्म का दावा है कि उन्होंने कई ऐप मार्केट प्लेस से लगभग 3000 ट्रोजन वाले खतरनाक ऐप ढूंढे हैं जिनमें से 400 ऐप एंड्रॉयड के गूगल प्ले स्टोर प्लैटफॉर्म पर मौजूद हैं. ग्लोबल सिक्योरिटी फर्म ट्रेंड माइक्रो के मुताबिक कंपनी ने इस सिक्योरिटी थ्रेट के बारे में गूगल प्ले को जानकारी दे दी गई है ताकि वो इसे ठीक कर सकें. हमारी सलाह है कि आप गूगल प्ले स्टोर से कोई भी ऐस डाउनलो करते समय सावधानी बरतें और बिना वेरिफाइड पब्लिशर्स वाले ऐप डाउनलोड करने से परहेज करें.
सुशांत कुमार एक राजनेता और उत्तर प्रदेश की 17वीं विधान सभा के सदस्य हैं। ये उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के बढ़ापुर विधान सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजनीतिक करियर सुशांत कुमार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी हुसैन अहमद को 9,824 मतों से पराजित कर जीत दर्ज की। पदभार सन्दर्भ उत्तर प्रदेश के विधायक उत्तर प्रदेश 17वीं विधान सभा के सदस्य भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ 1988 में जन्मे लोग जीवित लोग
अरुंधति 2009 की भारतीय तेलुगू भाषा की डरावनी फंतासी फिल्म है। यह फ़िल्म कोडी रामकृष्ण द्वारा निर्देशित और मल्लेमाला एंटरटेनमेंट्स के बैनर तले श्याम प्रसाद रेड्डी द्वारा निर्मित है। फिल्म में अनुष्का शेट्टी के साथ सोनू सूद, दीपक, सयाजी शिंदे, मनोरमा और कैकला सत्यनारायण मुख्य भूमिका में हैं। फ़िल्म का संगीत कोटी ने दिया है, छायांकन के.के. सेंथिल कुमार द्वारा और संपादन मार्तंड के. वेंकटेश द्वारा किया गया है। 16 जनवरी 2009 को रिलीज़ हुई इस फिल्म को बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली थी और उस समय के इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली तेलुगू फिल्मों में से एक बन गई। फिल्म की सफलता ने अनुष्का को तेलुगु सिनेमा में रातों-रात एक प्रमुख फिल्म स्टार बना दिया। फिल्म को 2014 में इसी नाम से बंगाली में बनाया गया था। कहानी अरुंधति जो कि गढ़वाल के शाही कबीले की एक युवती है, जिसे उसकी परदादी अरुंधति (जैजम्मा) का पुनर्जन्म माना जाता है। उसके रिश्तेदार: रमना और सुशीला, गढ़वाल की सैर के लिए निकलते हैं लेकिन एक रहस्यमय तरीके से हुई कार दुर्घटना से वे बच जाते हैं। थोड़ी दूरी पर सजी हुई एक जागीर उनका ध्यान खींचती है, जिसके बारे में एक बूढ़ा व्यक्ति उन्हें चेतावनी देता है की वे उसके पास न जाएं लेकिन वे उसकी उपेक्षा करते हुए जागीर के पास जाने की लिए इच्छा रखते हैं। वहां उनका स्वागत एक महिला द्वारा किया जाता है, जो स्पष्ट रूप से मकान मालकिन है, और वह उन्हें "अपने बेटे को मुक्त करने" के लिए धमकाती है। इसी बीच सुशीला गायब हो जाती है। सुशीला को जागीर में ढूंढते हुए रमना ऊपर के कमरे में यंत्रों द्वारा सील की गई कब्र के पास आता है। कब्र रमना को यंत्रों को तोड़ने के लिए कहती है, रमना भागने का प्रयास करता है और देखते ही देखते सजी हुई जागीर एक बर्बाद और जीर्ण-शीर्ण खंडहर में बदल जाती है। वो सजी हुई जागीर कब्र द्वारा बनाया गया भ्रम था। कलाकार अनुष्का शेट्टी गढ़वाल की रानी अरुंधति/जैजम्मा के रूप में तथा अरुंधति (जेजम्मा की परपोती) के रूप में सोनू सूद पशुपति के रूप में सयाजी शिंदे अनवर के रूप में चंद्रम्मा के रूप में मनोरमा अर्जन बाजवा राहुल (अरुंधती के मंगेतर) के रूप में कैकला सत्यनारायण भूपति राजा के रूप में तथा जैजम्मा के छोटे बेटे (अरुंधति के दादा) के रूप में जलजम्मा के रूप में सुभाशिनी अरुंधती के पिता के रूप में आहुति प्रसाद निर्माण विकास श्याम प्रसाद रेड्डी ने खुलासा किया कि फिल्म 'अंजी' (2004) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करते समय उन्हें 'अरुंधति' का विचार आया। चंद्रमुखी और द एक्सॉर्सिस्ट जैसी फिल्मों से प्रेरित होकर, उन्होंने इसे "एक बड़ी अपील के लिए" एक महिला-प्रमुख कहानी बनाया ताकि पूरा परिवार इसे देख सके। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
यह एक लेख है: चोटों से परेशान और विश्व कप में अब तक लय हासिल करने में नाकाम रही न्यूजीलैंड की टीम ने रविवार को मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम में अभ्यास करने के लिये नहीं आई और उसने विश्राम करना उचित समझा। अनुभवी तेज गेंदबाज काइल मिल्स पीठ दर्द के कारण टीम के पहले दो मैच में नहीं खेल पाई थी, जबकि कप्तान डेनियल विटोरी के घुटने के नीचे की नस खिंची हुई है और अनुभवी आलराउंडर स्काट स्टायरिस की उंगली चोटिल है। पिछले चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के हाथों नागपुर में हार झेलने के बाद न्यूजीलैंड की टीम चार मार्च को जिम्बाब्वे के खिलाफ होने वाले मैच के लिये यहां पहुंची है। टीम को अभ्यास करना था लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया। न्यूजीलैंड टीम के मीडिया मैनेजर एलेरी टैपिन ने बताया कि अभ्यास सत्र रद्द करन का फैसला किया गया है लेकिन उन्होंने इसका कोई कारण नहीं बताया। उन्होंने हालांकि कहा कि टीम सोमवार शाम को अभ्यास करेगी। मिल्स के बारे में टैपिन ने कहा, वह अच्छी प्रगति कर रहा है। उन्होंने कहा कि मिल्स और विटोरी सहित सभी खिलाड़ी सोमवार को अभ्यास करेंगे।
पाड्डर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश के किश्तवाड़ ज़िले में एक दूरस्थ दर्शनीय घाटी है। यह ज़िले के पूर्वोत्तरी भाग में विस्तारित है। उत्तर में ज़ांस्कर (लद्दाख) की सीमा पर है, पूर्व में पांगी, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम में मारवाह-वदवान है। यह घाटी नीलम खानों के लिए प्रसिद्ध है। यह चनाब नदी जलसम्भर और हिमालय में स्थित है। यह जम्मू और कश्मीर के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में से एक है। पाडडर में विभिन्न उप-घाटियाँ हैं जैसे मचैल, घंडारी, कबन, ओंगई, भुजुनु, बरनाज, भुजस, किजई नाला और धारलांग। इतिहास पाडडर के प्रारंभिक इतिहास के बारे में कोई ठोस सामग्री उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यह कहा जाता है कि 8 वीं शताब्दी तक पाडडर में कोई नहीं था। यह सिर्फ एक घास का मैदान था। आसपास के इलाकों जैसे भद्रवाह, लाहौल और लद्दाख के लोग चराई की जमीनों को देखने के लिए आकर्षित हुए। वे यहां अपने मवेशियों को चराने आते थे। समय बीतने के साथ, वे स्थायी रूप से वहीं बस गए पाडडर 10 वीं शताब्दी के दौरान गुगे शासन के अधीन था।यह 14 वीं शताब्दी तक उनके शासन में रहा। 14 वीं शताब्दी के बाद, पाडडर गूगाय शासन से अलग हो गया और छोटे भागों में विभाजित हो गया। इन हिस्सों पर शासन किया गया, छोटे पेटी रानास द्वारा (राणा एक शासक के लिए एक पुराना हिंदू शब्द है जो पावर में राजा से कम है)। पाडडर के रान राजपूत थे, हर गाँव या हर दो या तीन गाँवों में एक राणा हुआ करता था जो अक्सर अगले गाँव राणा के खिलाफ लड़ता था। यह क्षेत्र ज्यादातर ठाकुर समुदाय द्वारा बसा हुआ था लोग नाग पूजक थे लेकिन उन्होंने अन्य हिंदू संस्कारों और अनुष्ठानों का भी पालन किया। कई नागदेवता या नाग देवता के मंदिर देख सकते हैं जो कई रूपों के नक्काशी की लकड़ी की नक्काशी से सुशोभित हैं। हिंदुओं के अलावा मुस्लिम और बौद्ध भी हैं। दोस्त मिखाइल, काबन और गांधारी घाटी और गुलाबगढ़ शहर में ऊपरी इलाकों में फैले हुए हैं। चंबा से शांता कंतार राणा के काल में पहला मुसलमान पाडडर आया था जो मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता था। उन मुसलमानों के वंशज अब भी अठोली और किजई में रह रहे हैं। 17 वीं शताब्दी के मध्य में, ए.डी. चत्तर सिंह, चम्बा के राजा ने भी पाडडर पर हमला किया। उन्होंने सबसे पहले पांगी पर विजय प्राप्त की, जहाँ से उन्होंने लगभग 200 आदमियों को पाडडर तक पहुँचाया और उसे वापस ले लिया उन्होंने अपने नाम के साथ ही एक किले का भी निर्माण किया। स्थानीय रण राजा चतर सिंह के हमले का सामना नहीं कर सके। उन्होंने उसकी आत्महत्या स्वीकार कर ली और उसकी सहायक नदियाँ बन गईं और उसके कर्दार के रूप में काम करने लगे। चतर सिंह की विजय का प्रभाव लंबे समय तक चला और पाडडर क्षेत्र 1836 तक चम्बा का हिस्सा बना रहा। चत्तर सिंह के बाद से पद्दर पांच से छह पीढ़ियों तक चंबा के राजाओं के अधीन आराम से रहा। रत्नु ठाकुर के नेतृत्व में पाडडर के लोगों ने 1820 या 1825 में ज़ांस्कर पर हमला किया (ज़ांस्कर लद्दाख के अधीन एक भोट राजा के साथ था)। उन्होंने इसे अपनी सहायक नदी बनाया। भोट राजा 1000 रुपये, कस्तूरी की थैलियों और अन्य चीजों के अलावा, सालाना (वर्तमान) चम्बा राजा को देने को तैयार हो गया। जैसे ही जनरल जोरावर सिंह किश्तवाड़ पहुंचे, उन्होंने लद्दाख में विद्रोह की बात सुनी और इसलिए ज़ांस्कर के माध्यम से लद्दाख के लिए रवाना हुए। इस मार्ग से लेह किश्तवाड़ से 275 मील की दूरी पर है, जो इन दो स्थानों के बीच सबसे छोटा मार्ग है। जांस्कर क्षेत्र में भोट नाले का मार्ग पड़ता है। जनरल जोरावर सिंह की सेना ने पाडडर के माध्यम से जांस्कर (लद्दाख) में प्रवेश किया इस बार गुलाब सिंह के भरोसेमंद अधिकारी रहे वजीर लखपत राय पडियार भी लद्दाख के दूसरे हमले में जोरावर सिंह में शामिल हो गए। लद्दाख को जीतने के बाद सेना का एक हिस्सा वजीर लखपत राय और कर्नल मेहता बस्ती राम की कमान में कारगिल और ज़ांस्कर को भेजा गया क्योंकि ज़ांस्कर तब तक उनके अधीन नहीं था। ज़ांस्कर को जीतने के बाद, सेना पाडडर के माध्यम से जम्मू लौट गई।डोगरा सेना के 30 जवानों को चतरा गढ़ किले में रखा गया था ताकि वे जांस्कर में गढ़ गए सैनिकों के संपर्क में रहें। इस अवधि के दौरान ज़ांस्कर में विद्रोह शुरू हो गया और वहां मौजूद डोगरा सैनिकों का नरसंहार किया गया। खबर सुनकर रत्ना ठाकुर, जो चंबा सरकार के सर्वोच्च कर्मचारी थे, लोगों को उकसाया और डोगरा सैनिकों को पकड़ लिया उनमें से कुछ को कैदी बनाकर चंबा भेज दिया गया। इससे जनरल जोरावर सिंह गुस्से से पागल हो गए। उसने गद्दी पर हमला करने का इरादा किया। 1836 में जनरल जोरावर सिंह ने 3000 सैनिकों के साथ, भोंड नाले के रास्ते से पद्सार पर जांस्कर से हमला किया। हमले से बचने के लिए भयभीत रत्नु ने चिनाब पर पुल को ध्वस्त कर दिया। इस कारण से, डोगरा सेना को तीन महीने तक इंतजार करना पड़ा। कुछ स्थानीय किसानों की मदद से उन्होंने रोपवे पुल बनाया और भोट नाले को पार किया और चत्तर गढ़ पर एक उग्र हमले का नेतृत्व किया। पूरे शहर में आग लगा दी गई। चारों तरफ पत्थर के ढेर थे। कई लोगों को फाँसी दी गई, कुछ लोगों को निर्वस्त्र किया गया। चतर गढ़ के स्थान पर एक नया किला बनाया गया था। किले की निगरानी के लिए कुछ सैनिकों के साथ एक अधिकारी वहाँ तैनात था और पाडडर डोगरा राज्य का हिस्सा बन गया। रत्नु को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जम्मू भेज दिया गया, जहाँ वह तीन से चार साल तक हिरासत में रहा इसके बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और किश्तवाड़ में एक संपत्ति दे दी गई उन दिनों पाडडर भदरवाह के तहसीलदार के अधीन था पाडडर जनरल पर विजय प्राप्त करने के बाद, ज़ोरावर सिंह वहां से विद्रोह को समाप्त करने के लिए समुद्र-स्तर से लगभग 17,370 फीट की दूरी पर उमासी ला (धार्लंग) के माध्यम से ज़ांस्कर गए। वह शांति स्थापित करने में सफल रहे। 1837 में लेह और जनरल में एक भयंकर विद्रोह शुरू हो गया। ज़ोरावर सिंह ने किश्तवार से लेह की यात्रा को लगभग दस दिनों में कवर किया। मई 1838 में जोरावर सिंह को किश्तवाड़ के रास्ते में चिसोती (पाडडर) में एक किला मिला। 1845 में महाराजा गुलाब सिंह के शासन के दौरान, पाडडर और ज़ांस्कर दोनों को तहसील का दर्जा दिया गया था। बाद में, जब लेह को जिला का दर्जा मिला, तो महाराजा रणबीर सिंह के काल में ज़ांस्कर का विलय लेह और पाडडर का किश्तवाड़ तहसील में विलय कर दिया गया। 1963 में, पाडडर को जम्मू और कश्मीर की सरकार द्वारा ब्लॉक का दर्जा दिया गया था। अब, इसे तहसील का दर्जा प्राप्त है। हाल ही में पाडडर को गुलाबगढ़ में उप-मंडल मुख्यालय के साथ उप-मंडल का दर्जा दिया गया है। अब इसमें दो तहसील शामिल हैं: अथोली और मचेल। पाडडर के गांव कारथी - यह पहला गाँव है, जब आप पाडडर में प्रवेश करते हैं, एक सुंदर गाँव जिसमें हरे-भरे धान के खेत होते हैं जो एक तरफ चिनाब नदी से घिरा होता है और दूसरी तरफ घने जंगल हैं यह 58 किमी का डिस्टार्ट है। मुख्यालय और उपरिकेंद्र सांस्कृतिक लोकाचार का एक प्रतीक है। गुलाबगढ़ - यह पाडडर का महत्वपूर्ण गाँव है। यह क्षेत्र में होने वाली सभी गतिविधियों का केंद्र है। यहाँ से चलने वाली सभी परिवहन सेवाएँ किश्तवाड़ शहर या हिमाचल प्रदेश के पांगी की ओर जाती हैं। यह यहां आयोजित होने वाले सभी स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंटों की मेजबानी भी करता है, इसके अलावा कई सरकारी कार्यालय,जम्मू और कश्मीर बैंक, पुलिस थाना और रेस्ट हाउस हैं अठोली - यह तहसील की स्थिति के लिए जाना जाता है। तहसीलदार का कार्यालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और बालिका उच्च विद्यालय यहाँ के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान हैं। इस गाँव में एक झरना भी है, एक बहुत ही दर्शनीय स्थल जिसे पठाल और एक जल मिल (स्थानीय रूप से घियात के नाम से जाना जाता है) कहा जाता है। तत्ता पानी - यह गांव अपने प्राकृतिक गर्म झरनों के लिए जाना जाता है सोहल - यह गांव ऑफ-रोडर्स के बीच प्रसिद्ध है। गांधारी - यह स्थान पर्वतारोहियों, पैदल यात्रियों और पर्वतारोहियों के बीच प्रसिद्ध है और हरे-भरे चरागाहों के लिए जाना जाता है। गांधरी ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर है, 25 किमी सड़क प्रेरणादायक है और शेष को पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यहाँ से ट्रेक मार्ग लद्दाख, मचैल और पांगी हिमाचल प्रदेश में जांस्कर से मिलता है। यहाँ गाँव छह गांव है जिसमे दो मुख्य धर्म हिन्दु और बौद्ध धर्म के लोग मिलजुल कर और आपसी भाईचारे मे रहते है यहाँ की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 1500 के करीब है। यह घाटी इसके प्राकृतिक सौन्दर्य के लिऐ प्रसिद्ध हे हरे-भरे देवदार ओर चीड़ के ऊँचे-ऊँचे पेड़ो से घिरी ओर समतल मैदानी धरती इस घाटी की शोभा बढ़ाते है। हलोटि और हंगू - यह प्रसिद्ध मचैल माता मंदिर का निकटतम राजस्व गांव है। यहां की अधिकांश बस्ती बौद्ध समुदाय की है। यह स्थान याक के लिए जाना जाता है, जो लद्दाख के बाद केवल इस क्षेत्र में देखा जाता है। ये जानवर स्थानीय आबादी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे खेतों को हल करने के लिए दूध देने और यहां तक कि खेती के उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं। कई बौद्ध मठ भी यहां पाए जाते हैं। मचैल - यह गांव चंडी माता मंदिर और वार्षिक माचेल यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, जिसके दौरान लाखों श्रद्धालु मंदिर में आते हैं। हाल ही में मचैल को तहसील का दर्जा दिया गया है। लोस्सानि - यह प्रसिद्ध मिखाइल चंडी माता मंदिर का निकटतम राजस्व गांव है। यहाँ की बस्ती एक बौद्ध समुदाय है। यह स्थान याक और घोड़े के लिए जाना जाता है, जो लद्दाख और कारगिल जिले के बाद केवल इसी क्षेत्र में देखा जाता है। ये जानवर स्थानीय आबादी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल खेतों को जोतने के लिए किया जाता है और यहाँ तक कि खेतों की जुताई करने के लिए भी किया जाता है। बौद्ध मठ यहाँ पाए जाते हैं। लौसानी गाँव सपेरे भूमि के पास स्थित है। ओमासला जैसे कई ट्रेकिंग राउट्स , काब्बनला, पोतला, टुंडुपला, मौनला, सरसंगला और कई और ट्रेकिंग मार्ग। लोसानी बौद्ध समुदाय का सबसे बड़ा गाँव है। त्योहार पाडडर में मनाए जाने वाले कुछ उल्लेखनीय त्योहार हैं: माघ मेला - ग्राम लिगरी में तीन दिनों तक मनाए जाने वाले इस क्षेत्र में यह सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है जिसमें सभी गाँवों के हजारों लोग भाग लेते हैं। यह त्योहार एक वर्ष के अंतराल के बाद मनाया जाता है। स्थानीय रूप से बने घास के जूतों के साथ स्थानीय ऊनी (पट्टू) परिधानों में सजे देवी-देवताओं के शिष्य (चेला) विशिष्ट ईश्वर भक्ति नृत्य करते हैं। अगस्त मेला तीन दिनों के लिए गांव शील, लिगरी में मनाया जाता है और तीसरे दिन क्रमशः मुहाल ढार की ऊपरी पहुंच में पवित्र अभाव की यात्रा होती है।. जागरा - रात के समय भगवान / देवी के मंदिर के सामने एक विशाल अग्नि जलाई जाती है और ढोल और बांसुरी की आवाज पर अन्य स्थानीय लोग आग के चारों ओर नृत्य करते हैं। लोसर - यह ज्यादातर बौद्ध समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला तिब्बती नया साल है। हारे के दौरान सभी घर एक साथ आते हैं और जश्न मनाते हैं, लोग स्थानीय काढ़ा छांग पीते हैं और जश्न हफ्तों तक चल सकता है। लोसार ज्यादातर जनवरी और फरवरी के महीने में आता है। नाग़ोई - हर साल अगस्त के मध्य में गांधारी में नागोही मेला मनाया जाता है। पाडडर और पांगी (एचपी) के लोग चंडी माता मंदिर गांधारी में त्योहार मनाने के लिए यहां आए थे। मिथ्याग - यह त्यौहार वसंत की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है, जिसके दौरान बेहतर फसल की पैदावार के लिए मातृ भूमि की पूजा की जाती है। लोग एक विशेष स्थान पर इकट्ठा होते हैं और सामूहिक रूप से देवताओं के पवित्र हथियारों के आसपास नृत्य करते हैं। मचैल माता ( पारंपरिक यात्रा) भारत में जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ जिले के माचेल गांव में स्थित एक देवी दुर्गा तीर्थस्थल है, जिसे मैकहेल माता के नाम से जाना जाता है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि देवी दुर्गा को काली या चंडी के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से जम्मू क्षेत्र से हर साल हजारों लोग मंदिर आते हैं। तीर्थयात्रा हर साल अगस्त के महीने में होती है। इस मंदिर का दौरा 1981 में भदरवाह, जम्मू क्षेत्र के ठाकुर कुलवीर सिंह ने किया था। 1987 के बाद से, ठाकुर कुलवीरसिंह ने 'छडी यात्रा शुरू नहीं की और हर साल हजारों लोग तीर्थ यात्रा पर जाते हैं। तीर्थयात्रियों के अनुभव और रिपोर्ट में बहुत सारी अलौकिक घटनाएं होती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए, कई ट्रैवल एजेंट जम्मू, उधमपुर, रामनगर, भद्रवाह से बसों की व्यवस्था करते हैं। साथ ही एक कैब भी किराए पर ले सकता है। जम्मू से गुलाबगढ़ तक सड़क मार्ग से लगभग 10 घंटे लगते हैं। गुलाबगढ़ बेस कैंप है। गुलाबगढ़ से, पैदल यात्रा शुरू होती है, यानी 32 किमी। आमतौर पर लोगों को पैदल मार्ग से मंदिर तक पहुंचने में 2 दिन लगते हैं। रास्ते में कई गाँव हैं, जहाँ कोई रात में रुक सकता है। मैक्सी पहुंचने में चड्डी को तीन दिन लगते हैं। बहुत से लोग गुलाबगढ़ के रास्ते पर सड़क के किनारे 'लैंगर्स' (मुफ्त भोजन बिंदु) का आयोजन करते हैं। जम्मू और कश्मीर सरकार तीर्थयात्रियों के लिए बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था भी करती है। तीर्थस्थल तक पहुँचने का अन्य साधन जम्मू और गुलाबगढ़ से हेलीकाप्टर द्वारा है। हेलीपैड धर्मस्थल से केवल 100 मीटर की दूरी पर है। लेकिन अगर कोई हेलीकॉप्टर से जाता है, तो वह प्रकृति की कई सुंदरियों को याद कर रहा होगा। माता के दरवार तक पहुँचने में हेलीकाप्टर को कम से कम 7-8 मिनट लगते हैं। अवांस :- एक मंदिर के सामने एक बहुत बड़ी आग जलाई जाती है जिसमें आसपास के गाँवों के सभी धार्मिक पुजारी पारंपरिक पोशाक पहनकर आते हैं और करथि (कधेल) के स्थानीय ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया जाता है। यह तीन साल में एक बार होता है और पूरे पदारथ से लोग यहाँ आते हैं जिसमें लोगों द्वारा नृत्य, गायन और आनंद भी शामिल है। यह पाडडर की समृद्ध और विविध संस्कृति का प्रतीक है जो जाति, रंग और वस्तुओं के बावजूद लोगों के लिए प्यार और सम्मान को गले लगाता है। इन्हें भी देखें किश्तवाड़ ज़िला सन्दर्भ किश्तवाड़ ज़िला जम्मू और कश्मीर की घाटियाँ
यह एक लेख है: लगातार दो शर्मनाक हार के साथ वन-डे शृंखला गंवाने वाली भारतीय टीम दो टेस्ट मैचों की शृंखला से पहले अपना खोया आत्मविश्वास लौटाने के लिए बुधवार को तीसरा और आखिरी वन-डे मैच जीतने के इरादे से मैदान में उतरेगी। दरअसल, पहले दोनों मैचों की हार ने दक्षिण अफ्रीका की तेज और उछालभरी पिचों पर भारत के बल्लेबाजी कौशल की कलई खोल दी है। वांडरर्स पर पहले वन-डे में भारत को 141 रनों से पराजय झेलनी पड़ी थी, जबकि किंग्समीड में दूसरे मैच में उसने 136 रन से हार झेली। भारत की गेंदबाजी पर सवालों के साथ शुरू हुई शृंखला में दो मैचों के बाद युवा बल्लेबाजी क्रम पर भी अंगुलियां उठने लगीं। पहले वन-डे में गेंदबाजों के खराब प्रदर्शन से बल्लेबाजों पर दबाव बना था, लेकिन दूसरे वन-डे में ये बहाने नहीं चल सके, क्योंकि अपेक्षाकृत धीमी पिच पर भी नतीजा समान रहा। दोनों वन-डे मैचों में डेल स्टेन का शुरुआती स्पैल भारत के लिए कहर साबित हुआ और उनके पांच ओवर पूरे होते-होते मैच का नतीजा दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हो गया। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस शृंखला से पहले भारत के शीर्षक्रम के सभी बल्लेबाज फॉर्म में थे और इस साल 1,000 से भी अधिक वन-डे रन बना चुके थे। चाहे वह रोहित शर्मा हों, शिखर धवन हों या विराट कोहली हों, लेकिन दो ही मैचों के बाद स्पष्ट हो गया कि रन बनाने का जिम्मा अब उन्हीं पर होगा, और आखिरी ओवरों में हालात के अनुसार महेंद्र सिंह धोनी की बल्लेबाजी भी अहम होगी। भारतीय टीम पर तीसरे मैच में काफी दबाव होगा, क्योंकि एक तरफ तो उनका सामना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज से है और दूसरी ओर भारत के मध्यक्रम के बल्लेबाज चल नहीं पा रहे हैं। अभी तक वे नाकाम रहे हैं। कप्तान धोनी ने पिछली हार के बाद यह स्वीकार भी किया था। सुरेश रैना और युवराज सिंह का खराब फॉर्म भी चिंता का सबब बना हुआ है। इस शृंखला से ठीक पहले भी दोनों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था। ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज के खिलाफ भारत में नौ वन-डे मैचों में उनका निजी औसत 20 के करीब रहा था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शृंखला में टीम प्रबंधन ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी क्रम में प्रयोग किया। बल्लेबाजी क्रम बदलने से युवराज के फॉर्म पर असर पड़ा, हालांकि खराब प्रदर्शन के लिए इसे बहाना नहीं माना जा सकता। वेस्ट इंडीज के खिलाफ फिर चौथे नंबर पर उतरे युवराज सिंह ने कानपुर मैच में 55 रन की पारी खेली थी, लेकिन वांडरर्स पर पहले वन-डे में वह सिर्फ दो गेंद तक टिक सके। युवराज और रैना के पक्ष में यह दलील दी जा सकती है कि अनियमित स्पिन गेंदबाजों के तौर पर वे उपयोगी साबित होते हैं। दूसरे वन-डे में जब दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज सभी भारतीय गेंदबाजों की धुनाई कर रहे थे, तब रैना और विराट कोहली के नौ ओवर किफायती साबित हुए।
पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में असिस्‍टेंट फाइनेंस के पद पर वैकेंसी निकली है. इच्‍छुक उम्‍मीदवार 30 अप्रैल 2015 तक आवेदन कर सकते हैं. पद का नाम: असिस्‍टेंट फाइनेंस पदों की संख्‍या: 4 पद योग्‍यता: मान्‍यता प्राप्‍त संस्‍थान से ग्रेजुएट (b.com) उम्र सीमा: 18-28 वर्ष पे स्‍केल: 12500-27500 उम्‍मीदवार www.powergridindia.com वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. ONGC में कई पदों पर वैकेंसी ज्‍यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.
यूपी के अमरोहा जिले में सैदनगली थाना क्षेत्र में सोमवार को एक अजब नजारा सामने आया. यहां प्यार में पागल एक युवती घर के पास स्थित मोबाइल टावर पर चढ़ गई. इस तमाशे को देख हर कोई हतप्रभ रह गया. करीब पांच घंटे की मशक्कत के बाद उसे नीचे उतारा गया. पुलिस उससे पूछताछ कर रही है. जानकारी के मुताबिक, जिले के कस्बा उझारी निवासी एक युवती का गैर संप्रदाय के पड़ोसी युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा है. इश्क में पागल युवती परिजनों द्वारा संभल में शादी के लिए लग्न तय किए जाने से नाराज होकर सोमवार तड़के घर के नजदीक मोबाइल टावर पर चढ़ गई. ऊपर से चिल्लाना शुरू कर दिया. उसने कहा कि यदि उसकी शादी उसके प्रेमी से नहीं करवाई गई तो वह ऊपर से कूद जाएगी. परिजनों ने उसे उतारने का भरसक प्रयास किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. सूचना पर चौकी पुलिस मौके पर पहुंची और कई लोगों को टावर पर चढ़ाकर युवती को जबरन नीचे उतरवाया. उससे परिजनों के सामने पूछताछ की गई. पूछताछ में युवती ने चौकी इंचार्ज राम सिंह को बताया कि वह घर के सामने रहने वाले दूसरे संप्रदाय के युवक से प्यार करती है. परिजनों ने उसकी मर्जी जाने बगैर संभल में शादी तय कर दी है. रविवार को लग्न की रस्म भी अदा कर दी. उसने परिजनों पर यह भी आरोप लगाया कि नौवीं क्लास में उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई.
लेख: जानें पीएम नरेंद्र मोदी क्यों बोले- लोगों ने तो मेरे बाल नोंच लिए मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के त्रस्त और सताए गए लोगों को शरण दी है. मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था. और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी. मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है.125 साल पहले भी 9/11 हुआ था : स्वामी विवेकानंद पर पीएम मोदी की कही 10 रोचक बातेंटिप्पणियां भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है - 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम... नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव...' इसका अर्थ है - जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. वर्तमान सम्मेलन, जो आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है - 'ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम... मम वत्मार्नुवर्तते मनुष्या: पार्थ सर्वश:...' अर्थात, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के त्रस्त और सताए गए लोगों को शरण दी है. मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था. और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी. मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है.125 साल पहले भी 9/11 हुआ था : स्वामी विवेकानंद पर पीएम मोदी की कही 10 रोचक बातेंटिप्पणियां भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है - 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम... नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव...' इसका अर्थ है - जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. वर्तमान सम्मेलन, जो आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है - 'ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम... मम वत्मार्नुवर्तते मनुष्या: पार्थ सर्वश:...' अर्थात, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा. 125 साल पहले भी 9/11 हुआ था : स्वामी विवेकानंद पर पीएम मोदी की कही 10 रोचक बातेंटिप्पणियां भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है - 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम... नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव...' इसका अर्थ है - जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. वर्तमान सम्मेलन, जो आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है - 'ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम... मम वत्मार्नुवर्तते मनुष्या: पार्थ सर्वश:...' अर्थात, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा. भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है - 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम... नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव...' इसका अर्थ है - जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. वर्तमान सम्मेलन, जो आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है - 'ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम... मम वत्मार्नुवर्तते मनुष्या: पार्थ सर्वश:...' अर्थात, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा. सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा.
पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अबेश के शामिल होने की खासी चर्चा हो रही है. अबेश बनर्जी उन जूनियर डॉक्टरों में रहे, जिन्होंने केपीसी मेडिकल कॉलेज से एनआरएस मेडिकल कॉलेज तक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया. अबेश भी केपीसी मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई कर रहे हैं. जूनियर चिकित्सकों का यह विरोध ममता बनर्जी सरकार के रवैये को लेकर था. ऐसे में उनके भतीजे के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने पर चर्चा लाजिमी है. दरअसल, बीते सोमवार को इलाज के दौरान नील रतन सिरकार मेडिकल कॉलेज (एनआरएसएमसी) में 75 साल के एक मरीज की मौत हो गई थी. उसके बाद परिजनों ने दो जूनियर डॉक्टरों की पिटाई कर दी. जिसके बाद जूनियर चिकित्सक भड़क उठे. उन्होंने अगले दिन मंगलवार को हड़ताल पर जाकर स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया. बात तब और बढ़ गई, जब  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने डॉक्टरों को हड़ताल वापस लेने के लिए चार घंटे का अल्टीमेटम दिया और ऐसा न करने पर एक्शन की धमकी दी. जूनियर डॉक्टर्स का कहना है कि एक तो पश्चिम बंगाल सरकार चिकित्सकों की सुरक्षा नहीं सुनिश्चित कर रही है और उल्टे विरोध प्रदर्शन पर धमका भी रही है. चिकित्सकों की हड़ताल का यह मुद्दा शुक्रवार को राष्ट्रव्यापी हो गया. दिल्ली में एम्स सहित देश के कई हिस्सों के डॉक्टर विरोध अपने कार्यस्थल पर विरोध जताना शुरू कर दिया. रद्द हो सकता है रजिस्ट्रेशन पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष निर्मल माजी के हवाले से न्यूज एजेंसी IANS की रिपोर्ट के मुताबिक हड़ताली डॉक्टर अगर काम पर वापस नहीं लौटे तो उनका रजिस्ट्रेशन कैंसल हो सकता है. साथ ही उनका इंटर्नशिप पूरा होने का लेटर भी रोक दिया जाएगा. माजी ने विपक्षी दलों पर जूनियर डॉक्टरों को भड़काने का आरोप लगाया. कहा कि वे ममता सरकार की फ्री चिकित्सा सेवा योजना को बंद कराना चाहते हैं.
लेख: रिलायंस इंडस्ट्रीज का चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2012) का शुद्ध लाभ एक साल पहले इसी अवधि से 21 प्रतिशत की गिरावट के साथ 4,473 करोड़ रुपये रह गया है। आंध्र प्रदेश तट के पास पश्चिम बंगाल की खाड़ी के कृष्णा गोदावरी बेसिन क्षेत्र की मुख्य गैस परियोजना में उत्पादन गिरने से मुनाफा प्रभावित हुआ है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बताया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उसने 4,473 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के 5,661 करोड़ रुपये से 21 फीसद कम है। हालांकि, कंपनी का शुद्ध लाभ बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च, 2012) से 5.6 प्रतिशत अधिक रहा है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनी ने 4,236 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था।टिप्पणियां कंपनी ने पहली तिमाही के शुद्ध लाभ को ‘बाजार की उम्मीद से बेहतर ’ बताया है। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। आंध्र प्रदेश तट के पास पश्चिम बंगाल की खाड़ी के कृष्णा गोदावरी बेसिन क्षेत्र की मुख्य गैस परियोजना में उत्पादन गिरने से मुनाफा प्रभावित हुआ है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बताया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उसने 4,473 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के 5,661 करोड़ रुपये से 21 फीसद कम है। हालांकि, कंपनी का शुद्ध लाभ बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च, 2012) से 5.6 प्रतिशत अधिक रहा है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनी ने 4,236 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था।टिप्पणियां कंपनी ने पहली तिमाही के शुद्ध लाभ को ‘बाजार की उम्मीद से बेहतर ’ बताया है। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बताया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उसने 4,473 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के 5,661 करोड़ रुपये से 21 फीसद कम है। हालांकि, कंपनी का शुद्ध लाभ बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च, 2012) से 5.6 प्रतिशत अधिक रहा है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनी ने 4,236 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था।टिप्पणियां कंपनी ने पहली तिमाही के शुद्ध लाभ को ‘बाजार की उम्मीद से बेहतर ’ बताया है। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। हालांकि, कंपनी का शुद्ध लाभ बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च, 2012) से 5.6 प्रतिशत अधिक रहा है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनी ने 4,236 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था।टिप्पणियां कंपनी ने पहली तिमाही के शुद्ध लाभ को ‘बाजार की उम्मीद से बेहतर ’ बताया है। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। कंपनी ने पहली तिमाही के शुद्ध लाभ को ‘बाजार की उम्मीद से बेहतर ’ बताया है। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। पहली तिमाही में कंपनी की आमदनी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 91,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान उसकी अन्य आय लगभग दोगुना होकर 1,904 करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
अयोध्या मामले की 31वें दिन की सुनवाई बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जारी रही. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अब अपने बयान से यू-टर्न ले लिया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि वो राम चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान नहीं मानते. बोर्ड का कहना है कि वह अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है. वह बस 1885 के कोर्ट का आदेश बता रहे हैं. सुन्नी वक्फ बोर्ड का स्टैंड भी वही है जो मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने रखा है. मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने कहा कि वो मानते है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था, लेकिन कहां वो नहीं बता सकते. वहीं, जिलानी ने 1862 की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें जन्मस्थान को एक अलग मंदिर बताया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि राम कोट भगवान राम का जन्मस्थान है. जस्टिस बोबड़े ने कहा, ''उनके गजेटियर में कहा गया है कि राम चबूतरा ही राम का जन्म स्थान है और केंद्रीय गुम्बद से 40 से 50 फ़ीट दूर है.'' जिलानी ने कहा कि ये उनका विश्वास है हमारा नहीं. जस्टिस भूषण ने कहा, ''अंग्रेजों ने इस जगह को दो हिस्सों में बांटा- अंदरूनी और बाहरी कोटयार्ड. इसलिए उन्होंने बाहरी कोटयार्ड में पूजा करना शुरू किया.'' जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी गेजेटियर इस बात का इशारा करते है कि राम चबूतरे पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था.
यह लेख है: 'मिशन शक्ति' को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का राष्ट्र के नाम संबोधन चुनाव आचार संहिता (Election Commission) के उल्लंघन के दायरे में आएगा या नहीं, इसका फैसला आज हो सकता है. चुनाव आयोग ने दूरदर्शन और आकाशवाणी से प्रसारण की फीड का स्रोत एवं अन्य जानकारियां मांगी हैं. उप चुनाव आयुक्त संदीप सक्सेना ने बताया कि पीएम के संबोधन से आचार संहिता का उल्लंघन हुआ या नहीं, इसकी जांच के लिये आयोग द्वारा गठित समिति सभी पहलुओं की विस्तृत जांच कर रही है.  संदीप सक्सेना ने कहा कि दूरदर्शन और आकाशवाणी से पीएम के संबोधन के प्रसारण की फीड के स्रोत और अन्य तथ्यों से आयोग को अवगत कराने के लिये कहा गया है. इस पर दूरदर्शन और आकाशवाणी ने इस बारे में अपना पक्ष रख दिया है. सक्सेना ने कहा,‘संबोधन के बाद यह मामला विभिन्न माध्यमों से आयोग के संज्ञान में आया था. इससे चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का पता लगाने के लिये गठित समिति की अब तक दो बैठकें हो चुकी हैं'.   इस मामले में आचार संहिता और कानून के उल्लंघन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिये दूरदर्शन और आकाशवाणी सहित अन्य संबद्ध पक्षकारों से भी तथ्य और जानकारियां मांगी गयी हैं. पीएम मोदी के संबोधन से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से आयोग को इस मामले में सूचित करने या अनुमति अनुमति मांगने के सवाल पर सक्सेना ने कहा, ‘नहीं, इस बारे में न तो सूचित किया गया, ना ही अनुमति मांगी गयी थी'यह पूछे जाने पर कि जांच पूरी होने में कितना समय लगेगा, सक्सेना ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि जांच जल्द पूरी हो जायेगी, हमारी कोशिश है कि शुक्रवार तक हम जांच पूरी कर किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकेंगें.