text
stringlengths
60
141k
कुमैल अली नानजियानी ( प्रॉनोंस्ड ; ; (जन्म २१ फरवरी १ ९ १९७८ फेब्रुवारी) एक पाकिस्तानी-अमेरिकी कॉमेडियन, अभिनेता, पटकथा लेखक और पॉडकास्टर हैं जिन्हें एचबीओ की कॉमेडी श्रृंखला सिलिकॉन वैली (२०१४-२०१९) में दिनेश के रूप में जाना जाता है और सह-लेखन और अभिनीत के लिए। रोमांटिक कॉमेडी द बिग सिक (२०१७)। अपनी पत्नी, एमिली वी। गॉर्डन के साथ उत्तरार्द्ध के सह-लेखन के लिए, उन्हें सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा के लिए अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। २०१८ में, टाइम ने उन्हें दुनिया के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक का नाम दिया। १९७८ में जन्मे लोग
सुखपाल वीर सिंह हसरत पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कवितासंग्रह सूरज ते कहकशां के लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत पंजाबी भाषा के साहित्यकार
पहलू (पहलू) भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश के कुलगाम ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले में तहसील का दर्जा रखता है। शहर १,५६८ मीटर (५,१44 फ़ुट) की ऊँचाई पर बसा हुआ है। इन्हें भी देखें जम्मू और कश्मीर के शहर कुलगाम ज़िले के नगर
क्लियोपाट्रा ७ (यूनानी: ; जनवरी ६९ इसा पूर्व नवंबर ३०, ३० इसा पूर्व) पुरातन मिस्र में यूनान के टोलेमी वंश की रानी थीं। क्लियोपाट्रा सप्तम, मिस्र की प्रभावशाली औरतो में से एक थीं। जिसने ५१ ईसा पूर्व से ३० ईसा पूर्व तक मिस्र पर शासन किया। वह मिस्र के प्टोलोमी शासकों के वंश की थीं। इसका पूरा नाम क्लियोपाट्रा सप्तम सिया फ्लोर पैटर्न था, जन्म ६९ ईसा पूर्व में मिस्र के अलेक्जेंड्रिया में हुआ था और उसके पिता प्टोलोमी १२ तथा माता क्लियोपैट्रा पंचम थी। वह प्राचीन मिस्र पर शासन करने वाली अंतिम औरत फैरोह थी। वह प्टोलोमी वंश की सदस्य थीं जो यूनान के निवासी थे, उन्होंने नेपोलियन की मृत्यु के पश्चात हेलो निकल काल में मिस्र पर शासन किया था टॉलेमी अपने शासनकाल के समय मिस्र में ग्रीक भाषा का व्यवहार करते थे तथा उन्होंने मिस्र की भाषा को व्यवहार में लाने से मना कर दिया था परंतु क्लियोपाट्रा ने मिस्र की भाषा को बोलना सीखा उसने राजकाज में मिस्र की भाषा का प्रसार किया तथा अपने आप को वह मिस्र की देवी इसीस का पूर्ण अवतार मानती थीं। परन्तु क्लियोपाट्रा वास्तव में किसी ना किसी के साथ संयुक्त रूप से मिलकर शासन किया आरंभ में अपने पिता के साथ और बाद में अपने भाइयों के साथ मिलकर। उसका विवाह मिस्र में सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार अपने भाइयों के साथ ही हुआ था जिसमें पुत्रियों को पिता की चल संपत्ति में अधिकार मिलता था परंतु राज्य के पुत्र एवं पुत्री के बीच बँटवारे के भय से उनके बीच विवाह संपन्न करा दिया जाता था परंतु विवाह के उपरांत भी क्लियोपैट्रा ने अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने दिया। उसने रोमन सेनापति जुलियस सीज़र के साथ संपर्क स्थापित किया जिससे मिस्र के सिंहासन पर उसकी पकड़ और अधिक दृढ़ हो गई। उन्होंने अपने पुत्र को भी जन्म दिया जिसे सीजीरियन नाम दिया गया । जूलियस सीज़र की हत्या के पश्चात ४४ ईसा पूर्व में मार्क एंटोनी जो जूलियस सीजर के वैधानिक उत्तराधिकारी आक्टेवियन का विरोधी था, से क्लियोपाट्रा का नया संबंध बना। मार्क एंटोनी के शारिरिक संबंधो से क्लियोपाट्रा ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, सेलीन द्वितीय और एलेग्जेंडर एलिसन। उन्हें एक पुत्र और हुआ जिसका नाम टाइटल ओं मी फ्लड एक्स रखा गया। क्लियोपैट्रा के भाई के साथ संबंध से कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। आक्टेवियन ने सैन्य बल के साथ अंत में कई को युद्ध में हराने के बाद मार्क एंटोनी ने आत्महत्या कर ली। क्लियोपैट्रा ने भी परंपरा का निर्वाह करते हुए आत्महत्या कर ली। अपने अल्पकालीन शासन काल में क्लियोपाट्रा ने बहुत कुछ किया। वह पश्चिमी संस्कृति में विशेषकर चित्र कला एवं साहित्य के केंद्र बिंदु में रहे विलियम शेक्सपियर के एंटोनी और क्लियोपाट्रा नामक एक नाट्य की पात्र बनीं। क्लियोपाट्रा अपनी सुंदरता एवं कुशलता में आज भी पश्चिमी सभ्यता की औरतो का आदर्श बनी हुई हैं। क्लियोपेट्रा, मिस्र की टालमी वंश की यवन रानियों का सामान्य प्रचलित नाम। मूलत: यह सिल्युक वंशी अंतियोख महान की पुत्री टालमी (पंचम) की पत्नी का नाम था। किंतु इस नाम की ख्याति ११वें तालेमी की पुत्री ओलीतिज़ के कारण है। उसका जन्म लगभग ६९ ई. में हुआ था। उससे पूर्व इस वंश में इस नाम की छह रानियाँ हो चुकी थीं। इस कारण उसे क्लियोपेट्रा (सप्तम) कहते हैं। जब क्लियोपट्रा १७ वर्ष की थी तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की वसीयत के अनुसार उसे तथा उसके छोटे तोलेमी दियोनिसस को संयुक्त रूप से राज्य प्राप्त हुआ और वह मिस्री प्रथा के अनुसार अपने इस भाई की पत्नी होने वाली थी। किंतु राज्याधिकार के लिये कश्मकश के परिणामस्वरूप उसे राज्य से हाथ धोकर सीरिया भाग जाना पड़ा। फिर भी उसने साहस नहीं त्यागा। उसी समय जूलियस सीज़र पोंपे का पीछा करता हुआ मिस्र आया। वहाँ वह क्लियोपेट्रा पर आसक्त हो गया और उसकी ओर से युद्ध करने को तत्पर हो गया। फलस्वरूप तोलेमी मारा गया और क्लियोपेट्रा मिस्र के राजसिंहासन पर बैठी। मिस्र की प्राचीन प्रथा के अनुसार वह अपने एक अन्य छोटे भाई के साथ मिलकर राज करने लगी। किंतु शीघ्र ही उसने अपने इस छोटे भाई को विष देकर मार डाला और रोम जाकर जूलियस सीज़र की रखेल के रूप में रहने लगी। उससे उसके एक पुत्र भी हुआ किंतु रोमवालों को यह संबंध किसी प्रकार न भाया। अत: सीज़र की हत्या (४४ ई. पूर्व) कर दी गई। तब वह मिस्र वापस चली आई। ४१ ई. पू. मार्क अंतोनी भी क्लियोपेट्रा की सुंदरता का शिकार हुआ। दोनों ने शीत ऋतु एक साथ सिकंदरिया में व्यतीत की। रोमनों ने उनका विरोध किया। ओक्तावियन (ओगुस्तस) ने उसपर आक्रमण कर २ सितंबर ३१ ई. पू. को आक्तियम के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। क्लियोपेट्रा अपने ६० जहाजों के साथ युद्धस्थल से सिकंदरिया भाग आई। अंतानी भी उससे आ मिला किंतु सफलता की आशा न देख ओक्तावियन के कहने पर अंतोनी की हत्या करने पर तैयार हो गई और अंतोनी को साथ साथ मरने के लिये फुसलाकर उस समाधि भवन में ले गई जिसे उसने बनवाया था। वहां अतानी ने इस भ्रम में कि क्लियोपेट्रा आत्महत्या कर चुकी है, अपने जीवन का अंत कर लिया। ओक्तावियन क्लियोपेट्रा के रूप जाल में न फँसा। जनश्रुति के अनुसार उसने उसकी एक डंकवाले जंतु के माध्यम से हत्या कर दी। इस प्रकार २९ अगस्त ३० ई. पू. उसकी मृत्यु हुई और टालेमी वंश का अंत हो गया। मिस्र रोमनों के अधीन हो गया। क्लियोपेट्रा का नाम आज तक प्रेम के संसार में उपाख्यान के रूप में प्रसिद्ध है। वह उतनी सुंदर न थी जितनी कि मेधाविनी। कहते हैं वह अनेक भाषाएँ बोल सकती थी और एक साथ अन्यवेशीय राजदूतों से एक ही समय उनकी विभिन्न भाषाओं में बात किया करती थी। उसकी लोंबड़ी जैसी चतुराई से एक के बाद एक अनेक रोमन जनरल उसके आश्रित और प्रियपात्र हुए। अंतोनी के साथ तो उसने विवाह कर उसके और अपने संयुक्त रूप के सिक्के भी ढलवाए। उससे उसके तीन संतानें हुई। अनेक कलाकारों ने क्लियोपेट्रा के रूप अनुकरण पर अपनी देवीमूर्तियाँ गढ़ीं। साहित्य में वह इतनी लोकप्रिय हुई कि अनेक भाषाओं के साहित्यकारों ने उसे अपनी कृतियों में नायिका बनाया। अंग्रेजी साहित्य में तीन नाटककारों- शेक्सपियर, ड्राइडन और बर्नाड शा- ने अपने नाटकों को उसके व्यक्तित्व से सँवारा है। मिस्र का इतिहास
तेलुगु लिपि, ब्राह्मी से उत्पन्न एक भारतीय लिपि है जो तेलुगु भाषा लिखने के लिये प्रयुक्त होती है। अक्षरों के रूप और संयुक्ताक्षर में ये अपने पश्चिमी पड़ोसी कन्नड़ लिपि से बहुत मेल खाती है। तेलुगु अंक और संख्याएँ तेलुगू लिपि के लिए यूनिकोड उ+०च०० से उ+०च७फ तक है। ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
सुस (सुस) समखुरीय स्तनधारियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है जिसमें जंगली सूअर और पालतू सूअर आते हैं। यह वंश सूइडाए कुल का भाग है, जो सुइना उपगण में सम्मिलित है। सभी सूइडाए जातियों की तरह सुस जातियाँ भी यूरेशिया और अफ्रीका के मूलनिवासी हैं। इन्हें भी देखें
अति प्राचीन काल में मनुष्य ने सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार प्रात:, दोपहर, संध्या एवं रात्रि की कल्पना की। ये समय स्थूल रूप से प्रत्यक्ष हैं। तत्पश्चात् घटी पल की कल्पना की होगी। इसी प्रकार उसने सूर्य की कक्षागतियों से पक्षों, महीनों, ऋतुओं तथा वर्षों की कल्पना की होगी। समय को सूक्ष्म रूप से नापने के लिए पहले शंकुयंत्र तथा धूपघड़ियों का प्रयोग हुआ। रात्रि के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। तत्पश्चात् पानी तथा बालू के घटीयंत्र बनाए गए। ये भारत में अति प्राचीन काल से प्रचलित थे। इनका वर्णन ज्योतिष की अति प्राचीन पुस्तकों में जैसे पंचसिद्धांतिका तथा सूर्यसिद्धांत में मिलता है। पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था। उसके बाहरी भाग पर पल अंकित कर दिए जाते थे। इसलिए पलों को पानीय पल भी कहते हैं। बालू का घटीयंत्र भी पानी के घटीयंत्र सरीखा था, जिसमें छिद्र से बालू के गिरने से समय ज्ञात होता था। किंतु ये सभी घटीयंत्र सूक्ष्म न थे तथा इनमें व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी थीं। विज्ञान के प्रादुर्भाव के साथ लोलक घड़ियाँ तथा तत्पश्चात् नई घड़ियाँ, जिनका हम आज प्रयोग करते हैं, अविष्कृत हुई। जैसा पहले बता दिया गया है, समय का ज्ञान सूर्य की दृश्य स्थितियों से किया जाता है। सामान्यत: सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन तथा सूर्यास्त से पुन: सूर्योदय तक रात्रि होती हैं, किंतु तिथिगणना के लिए दिन-रात मिलकर दिन कहलाते हैं। किसी स्थान पर सूर्य द्वारा याम्योत्तर वृत्त के अधोबिंदु की एक परिक्रमा को एक दृश्य दिन कहते हैं, तथा सूर्य की किसी स्थिर नक्षत्र के सापेक्ष एक परिक्रमा को नाक्षत्र दिन कहते हैं। यह नक्षत्र रूढ़ि के अनुसार माप का आदि बिंदु अर्थात् क्रांतिवृत्त तथा विषुवत् वृत्त का वसंत संपात बिंदु लिया जाता है। यद्यपि नाक्षत्र दिन स्थिर है, तथापि यह हमारे व्यवहार के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि यह दृश्य दिन से ३ मिनट ५३ सेकंड कम है। दृश्य दिन का मान सदा एक सा नहीं रहता। अत: किसी घड़ी से दृश्य सूर्य के समय का बताया जाना कठिन है। इसके दो कारण हैं : एक तो सूर्य की स्पष्ट गति सदा एक सी नहीं रहती, दूसरे स्पष्ट सूर्य क्रांतिवृत्त में चलता दिखाई देता है। हमें समयसूचक यंत्र बनाने के लिए ऐसे सूर्य की आवश्यकता होती है, जो मध्यम गति से सदा विषुवत्वृत्त में चले। ऐसे सूर्य को ज्योतिषी लोग ज्योतिष-माध्य-सूर्य अथवा केवल माध्य सूर्य कहते हैं। विषुवत्वृत्त के मध्यम सूर्य तथा क्रांतिवृत्त के मध्यम सूर्य के अंतर को भास्कराचार्य ने उदयांतर तथा क्रांतिवृत्तीय मध्यम सूर्य तथा स्पष्ट सूर्य के अंतर को भुजांतर कहा है। यदि ज्योतिष-माध्य सूर्य में उदयांतर तथा भुजांतर संस्कार कर दें, तो वह दृश्य सूर्य हो जाएगा। आधुनिक शब्दावली में उदयांतर तथा भुजांतर के एक साथ संस्कार को समय समीकार कहते हैं। यह हमारी घड़ियों के समय (माध्य-सूर्य-समय) तथा दृश्य सूर्य के समय के अंतर के तुल्य होता है। समय समीकार का प्रति दिन का मात्र गणित द्वारा निकाला जा सकता है। आजकल प्रकाशित होनेवाले नाविक पंचांग में, इसका प्रतिदिन का मान दिया रहता है। इस प्रकार हम अपनी घड़ियों से जब चाहें दृश्य सूर्य का समय ज्ञात कर सकते हैं। इसका ज्योतिष में बहुत उपयोग होता है। विलोमत: हम सूर्य के ऊध्र्व याम्योत्तर बिंदु के लंघन का वेध करके, उसमें समय समीकार को जोड़ या घटाकर, वास्तविक माध्य-सूर्य का समय ज्ञात करके अपनी घड़ियों के समय को ठीक कर सकते हैं। हमने समय नापने के लिए आधुनिक घड़ियाँ बनाईं, तब यह पाया गया कि सर्दी तथा गर्मी के कारण घड़ियों के धातुनिर्मित पुर्जों के सिकुड़ने तथा फैलने के कारण ये घड़ियाँ ठीक समय नहीं देतीं। अब हमारे सामने यह समस्या थी कि हम अपनी यांत्रिक घड़ियों की सूक्ष्म अशुद्धियों को कैसे जानें? यद्यपि सूर्य के ऊध्र्व याम्योत्तर लंघन की विधि से हम अपनी घड़ियों की अशुद्धि जान सकते थे, तथापि सूर्य के ऊध्र्व याम्योत्तर लंघन का वेध स्वयं कुछ विलष्ट हैं तथा सूर्य के बिंब के विशाल होने के कारण उसमें वेधकर्ता की व्यक्तिगत त्रुटि (पर्सनल एरोर) की अधिक संभावना है। दूसरी कठिनाई यह थी कि हमारी माध्य-सूर्य-घड़ी के समय का आकाशीय पिंडों की स्थिति से कोई प्रत्यक्ष संबंध न था। इसी कमी की पूर्ति के लिए नक्षत्र घड़ी (साइदेरियल क्लॉक) का निर्माण किया गया, जो नक्षत्र समय बताती थी। इसके २४ घंटे पृथ्वी की अपने अक्ष की एक परिक्रमा के, अथवा वसंतपात बिंदु के ऊध्र्व याम्योत्तर बिंदु की एक परिक्रमा के, समय के तुल्य होते हैं। २१ मार्च के लगभग, बसंतपात बिंदु हमारे दृश्य-सूर्य के साथ ऊध्र्व याम्योत्तर लंघन करता है। उस समय नाक्षत्र घड़ी का समय शून्य घंटा, शून्य मिनिट, शून्य सेकंड होता है। हमारी घड़ियों में उस समय १२ बजते हैं। दूसरे दिन दोपहर को नाक्षत्र घड़ी का समय ४ मिनट होगा। अन्य किसी भी निचित दिन माध्य-सूर्य के समय को हम अनुपात से नाक्षत्र सम में, या नाक्षत्र समय को माध्य सूर्य के समय में, परिवर्तित कर सकते हैं। नाविक पंचांगों में इस प्रकार के समयपरिवर्तन की सारणियाँ दी रहती हैं। इस प्रकार यदि हमें किसी प्रकार शुद्ध समय देनेवाली नाक्षत्र घड़ी मिल जाए, ते हमें अपनी माध्य घड़ी के समय को शुद्ध रख सकते हैं। यद्यपि नाक्षत्र घड़ी भी यांत्रिक होती है तथा उसमें भी यांत्रिक त्रुटि हो जाती है, तथापि इसे प्रतिदिन शुद्ध किया जा सकता है, क्योंकि इसका आकाशीय पिंडों की स्थिति से प्रत्यक्ष संबंध है। वह इस प्रकार है : कोई ग्रह व तारा ऊध्र्व याम्योत्तर बिंदु से पचिम की ओर खगोलीय ध्रुव पर जो कोण बनाता है, उसे कालकोण कहते हैं। इस प्रकार नक्षत्र सम बसंतपात का कालकोण है। किसी तारा वा ग्रह का विषुवांश बसंतपात से उसकी विषुवत्वृत्तीय दूरी (अर्थात् ग्रह या तारे या ध्रुव से जानेवाला बृहत वृत्त जहाँ विषुवत वृत्त को काटे, वहाँ से वसंतपात तक की दूरी) होती है। चूँकि कालकोण विषुवद्वृत्त के चाप द्वारा ही जाना जाता है, इसलिए जब ग्रह या तारा ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु पर होगा, उस समय उसका विषुवांश नाक्षत्र समय के तुल्य होगा। प्रौद्योगिकी का इतिहास
तत्काल सकल निपटान अथवा वास्तविक समय सकल भुगतान प्रणाली (अंग्रेजी: रियल टाइम ग्रॉस सेटलीमेंट (र्टग्स)), या आर टी जी एस एक ऐसी निधि अंतरण पद्धति है जिसमें एक बैंक से दूसरे बैंक में मुद्रा का अंतरण 'वास्तविक समय' और 'सकल' आधार पर होता है। यह किसी बैंकिंग चैनल द्वारा मुद्रा अंतरण का सबसे तेज माध्यम है। 'वास्तविक समय' में भुगतान से तात्पर्य है कि भुगतान लेनदेनों (संव्यवहारों) के लिए कोई प्रतीक्षा अवधि नहीं होती। जैसे ही कोई लेनदेन प्रसंस्कृत होता है ठीक उसी समय उसका निपटान हो जाता है। 'सकल भुगतान' से तात्पर्य लेनदेनों का किसी अन्य लेनदेन जैसे कि बंचिंग या नेटिंग आदि के लिए प्रतीक्षा किए बिना, एक के लिए एक आधार पर निपटान होना है। किसी लेनदेन के प्रसंस्कृत होने के बाद भुगतान अंतिम और अप्रतिसंहरणीय हो जाता है। तत्काल सकल निपटान दो माध्यम से किया जाता है : ऑनलाइन : अगर आपके पास इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध है तो आप घर बैठे ऑनलाइन ही मोबाइल बैंकिंग या नेट बैंकिंग के माध्यम से किसी भी र्टग्स इनेबल्ड बैंक में पैसे का ट्रांसफर कर सकते है। नेट बैंकिंग या मोबाइल बैंकिंग से र्टग्स द्वारा पैसे भेजने के लिए आपको जिसे पैसे भेजने हैं उसे लाभार्थी या बेनेफिश्री के रूप में जोड़ना होता है। इसके लिए आपको लाभार्थी का बैंक खाता नम्बर, बैंक का नाम और शाखा और आईएफएससी संख्या भर कर एक बार लाभार्थी को जोड़ना होता है। इसके बाद आप जब भी पैसे ट्रान्सफर करना चाहें अपने नेट बैंकिंग में पहले से जुड़े हुए लाभार्थी को चुन कर उसे पैसे भेज सकते हैं। ऑफलाइन : आप अपने बैंक में जाकर र्टग्स कर किसी भी र्टग्स इनेबल्ड बैंक में पैसे ट्रान्सफर करवा सकते हैं। ग्राहक जिसे पैसे भेजना है उसके नाम, बैंक, शाखा का नाम, आईएफएससी, खाता प्रकार और खाता संख्या का विवरण अपने बैंक को उपलब्ध कराता हैं और भेजे जाने वाली राशि बताता है। साथ ही ग्राहक अपनी बैंक शाखा को अपने खाते को डेबिट करने और राशि भेजने के लिए अधिकृत करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में भुगतान और निपटान प्रणालियाँ भारत में बैंकिंग
मीरसराइ उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह चट्टग्राम विभाग के चट्टग्राम ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल २२ उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पूर्व की दिशा में चट्टग्राम नगर के निकट अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। चट्टग्राम विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८६.९८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है, तथा, चट्टग्राम विभाग के पार्वत्य इलाकों में कई बौद्ध जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। मीरसराइ उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में, चट्टग्राम विभाग के चट्टग्राम जिले में स्थित है। यहाँ से स्थित निकटतम् बड़ा नगर चट्टग्राम यानी चटगाँव है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल उपज़िला निर्वाहि अधिकारी उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश श्रेणी:चट्टग्राम विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
टिलकथ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
ब्यन्दूर (बिन्दूर) भारत के कर्नाटक राज्य के उडुपी ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह बंगाल की खाड़ी से तटस्थ है। राष्ट्रीय राजमार्ग ६६ यहाँ से गुज़रता है और इसे कई स्थानों से जोड़ता है। इन्हें भी देखें कर्नाटक के गाँव उडुपी ज़िले के गाँव
नियुक्ति और कार्मिक विभाग (डोप) उत्तर प्रदेश सरकार का एक विभाग है। नियुक्ति विभाग भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) और प्रांतीय सिविल सेवा-न्यायिक (के लिए स्थानांतरण पोस्टिंग, प्रशिक्षण, विदेशी असाइनमेंट, विदेशी प्रशिक्षण और शिकायत की निगरानी और निपटान से संबंधित मामलों के लिए जिम्मेदार है) केवल इलाहाबाद उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद), जबकि, कार्मिक विभाग अधीनस्थ सेवाओं में भर्ती के लिए सेवा और विनियमन की स्थिति के मामले में सचिवालय प्रशासन विभाग और अन्य विभागों को राय प्रदान करता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विभागीय मंत्री के रूप में कार्य करते हैं, और अतिरिक्त मुख्य सचिव (नियुक्ति और कार्मिक), एक इयास अधिकारी, विभाग का प्रशासनिक प्रमुख होता है। नियुक्ति और कार्मिक विभाग सरकारी अधिकारियों के लिए सेवा नियमों से संबंधित नियमों और विनियमों के गठन और विनियमन के लिए जिम्मेदार है। विभाग विधान सभा और विधान परिषद में सवालों के जवाब देता है, नीतियों और मानदंडों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करता है - जैसा कि इसके द्वारा निर्धारित किया गया है - भर्ती में सभी विभागों द्वारा पीछा किया जाता है, सेवा की शर्तों का विनियमन, स्थानांतरण-पोस्टिंग और कर्मियों की प्रतिनियुक्ति और अन्य संबंधित मुद्दे। यह पूर्व-सशस्त्र बल कर्मियों की सिविल सेवा में नियुक्ति के मामले में नीति निर्धारण और सलाह देने और विभिन्न सेवाओं की संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के लिए भी जिम्मेदार है। कार्मिक विभाग अधिकारियों की विभागीय परीक्षा, अधीनस्थ सेवा बोर्ड के गठन और वहाँ संबंधित नियमों की भी देख-रेख कर रहा है। विभाग भारतीय प्रशासनिक सेवा और प्रांतीय सिविल सेवा का कैडर नियंत्रण प्राधिकरण भी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय उच्च न्यायिक सेवा और प्रांतीय सिविल सेवा-न्यायिक अधिकारियों पर प्रभावी नियंत्रण रखता है। पोस्टिंग की शक्ति हस्तांतरित करने, छोड़ने, दक्षता बार पार करने, सभी अधिकारियों के संबंध में पेंशन के शेख़ी और सिविल जजों के रूप में मुंसिफों को बढ़ावा देने के लिए भी भारत के संविधान के अनुच्छेद २३५ के आधार पर उच्च न्यायालय में निहित है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ, नियुक्ति और कार्मिक विभाग के लिए जिम्मेदार मंत्री हैं। विभाग के प्रशासन का नेतृत्व अतिरिक्त मुख्य सचिव करते हैं, जो एक इयास अधिकारी होता है, जिसे दो विशेष सचिवों, चार संयुक्त सचिवों और नौ उप / अवर सचिवों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। वर्तमान [कब?] अतिरिक्त मुख्य सचिव (डोप) दीपक त्रिवेदी हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश राज्य
कदिअहि कलां में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
रांथी, धारचुला तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा रांथी, धारचुला तहसील रांथी, धारचुला तहसील
रेओ पुरग्यिल (रियो पुर्गिल) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के किन्नौर ज़िले और तिब्बत की सीमा पर खड़ा हिमालय का एक पर्वत है। यह हिमालय की ज़ंस्कार पर्वतश्रेणी के दक्षिणी अंत में स्थित है। रेओ पुरग्यिल हिमाचल प्रदेश राज्य का सर्वोच्च स्थान है। इन्हें भी देखें किन्नौर ज़िले का भूगोल हिमालय के पर्वत हिमाचल प्रदेश के पर्वत राज्यानुसार भारत के सर्वोच्च बिन्दु तिब्बत के पर्वत
प्रियंवद (जन्मः २२ दिसम्बर १९५२, कानपुर) एक हिन्दी साहित्यकार हैं। वे प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में एम ए हैं। १. वे वहाँ कैद हैं २. परछाईं नाच ३. छुट्टी के दिन का कोरस २. आईनाघर (दो खण्डों मे २007 तक की सम्पूर्ण कहानियाँ) ३. कश्कोल (२००८ से २०१५ तक की सम्पूर्ण कहानियाँ ) १. भारत विभाजन की अन्तः कथा (१7०7 से १947 ई० तक) २. भारतीय राजनीति के दो आख्यान (19२० से १९५० ई० तक) ३. पाँच जीवनियाँ (ब्रूटस ,रासपुतिन ,दाराशुकोह ,चेल्लीनी और नीरो ) ४. इकतारा बोले (बाल पुस्तक) (भारत आने वाले दस प्रसिद्ध यात्रियों व उनकी पुस्तकों पर केन्द्रित) (१) दो कहानियों पर अनवर व खरगोश फिल्में। खरगोश की स्क्रिप्ट स्वयं लिखी। अधेड़ औरत का प्रेम पर शॉर्ट फिल्म ट्रेन क्रैश । (२) 'अकार पत्रिका का विगत १७ वर्षों से नियमित प्रकाशन। वर्तमान संपादक। (३) पिछले २२ कथाकार सम्मेलन संगमन के संयोजक। १. ७ जिल्दों में चाँद व माधुरी पत्रिका के १929 ई० से १933 ई० तक के अंकों से विशेष सामग्री का चयन व सम्पादन। २. बाल उपन्यास 'नाचघर' ३. गुफ़्तगू ( प्रो. इरफ़ान हबीब, कृष्ण बलदेव वैद, डा. नामवर सिंह, गुलज़ार , गिरिराज किशोर व प्रो.शमीम हनफ़ी से लिए गए साक्षात्कारों की पुस्तक) १९५२ में जन्मे लोग कानपुर के लोग
कास्टिंग काउच उस अनैतिक और गैर कानूनी आचार को कहते हैं जिसमें कोई उम्मीदवार या किसी जूनियर से किसी व्यवसाय में प्रवेश करने या किसी संगठन के भीतर कैरियर की उन्नति के लिए सेक्स की मांग की जाती है। शब्द कास्टिंग काउच चलचित्र फिल्म उद्योग में उत्पन्न हुआ। काउच का मतलब सोफा होता है। ये निर्देशक और निर्माताओं के कार्यालय में रखे सोफे की ओर इंगित करता है जहाँ महत्वाकांक्षी अभिनेताओं का साक्षात्कार होता है। इस शब्द का उपयोग प्रायः मनोरंजन के अलावा अन्य उद्योगों में भी होने लगा है। ऐसा आचार शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है और अगर उसे समाचार योग्य माना जाता है तो वह व्यापक सेक्स स्कैंडल बन सकता है।
कुम्भीचौड-सनेह, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा कुम्भीचौड-सनेह, यमकेश्वर तहसील कुम्भीचौड-सनेह, यमकेश्वर तहसील
रोबिन हुड (अंग्रेजी; रॉबिन हूड) वर्ष २०१० की ऐतिहासिक एक्शन एडवेंचर प्रधान फ़िल्म हैं जिसका निर्देशन रिड्ली स्काॅट ने किया है। २०१० की फ़िल्में
कनारागूंठ, गंगोलीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा कनारागूंठ, गंगोलीहाट तहसील कनारागूंठ, गंगोलीहाट तहसील
१ अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 2१3वॉ (लीप वर्ष मे 2१4 वॉ) दिन है। साल मे अभी और १52 दिन बाकी है। १८३१ - लंदन ब्रिज को यातायात के लिए खोल दिया गया। १८८३ - ग्रेट ब्रिटेन में अंतर्देशीय डाक सेवा शुरु की गई। १९१४ - जर्मनी द्वारा रूस पर हमले के साथ प्रथम विश्वयुद्ध की शरुआत। १९१६ - महिला अधिकारों की समर्थक तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने होम रूल लीग की शुरुआत की। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। महात्मा गांधी ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त केसर-ए-हिंद की उपाधि लौटाा दी। भारत में सभी एयरलाइंसों का हवाई निगम अधिनियम के तहत राष्ट्रीयकरण किया गया। क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो को गिरफतार कर लिया गया। १९५७ - नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना हुई। १९६० - इस्लामाबाद को पाकिस्तान की संघीय राजधानी घोषित किया गया। १९७५ - भारत की दर्बा बनर्जी व्यावसायिक यात्री विमान उड़ाने वाली विश्व की पहली महिला पायलट बनीं। २००६ - जापान ने दुनिया की पहली भूकम्प पूर्व चेतावनी सेवा शुरू की। २०१०- अनुषा रिजवी द्वारा निर्देशित किसानों की आत्महत्या और मीडिया तथा राजनीतिक ड्रामे पर आधारित पीपली लाइव को ३१वें डरबन अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार प्रदान किया गया। २०१८ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद में विशेष समारोह में वर्ष २०१३ से २०१७ के लिए उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार प्रदान किए। यह पुरस्कार २०१३ के लिए नजमा हेबतुल्ला, २०१४ के लिए हुक्मदेव नारायण यादव, २०१५ के लिए गुलाम नबी आज़ाद, २०१६ के लिए दिनेश त्रिवेदी और २०१७ के लिए भर्तृहरि मेहताब को दिए गए। १८८२ - पुरुषोत्तम दास टंडन - स्वतंत्रता सेनानी १८९९ - कमला नेहरू (भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी) भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी मुहम्मद निसार का जन्म १ अगस्त १9१0 को हुआ था. प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक भगवान दादा का जन्म १ अगस्त १9१3 को हुआ था. १९२१ - जैक क्रेमर - अमरीकी टेनिस खिलाड़ी १९३२ - मीना कुमारी १९७२ - मार्टिन डैम - युगल टेनिस खिलाड़ी १९५५ - अरुण लाल - पूर्व भारतीय क्रिकेटर १९३९ - गोविन्द मिश्र -प्रसिद्ध साहित्यकार १९३२ - मीना कुमारी - फ़िल्म अभिनेत्री १९२४ - फ्रैंक वोरेल - वेस्ट इंडीज के पूर्व क्रिकेटर * १९२४ - शाह अब्दुल्ला - सऊदी अरब के राजा। १९१० - मुहम्मद निसार - भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी १८६९ - हरकोर्ट बटलर - उत्तर प्रदेश के प्रथम राज्यपाल थे। १९१३ - देवकीनन्दन खत्री (हिन्दी के महान और प्रथम तिलस्मी लेखक) १९२० - बाल गंगाधर तिलक (भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी) प्रसिद्ध तबला वादक पंडित कण्ठे महाराज का निधन १ अगस्त १970 को हुआ था. १९९९ - एन.सी. चौधरी (बंगाली तथा अंग्रेजी लेखक) ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध शायर अली सरदार जाफ़री का निधन १ अगस्त २००० को हुआ था. भारतीय राजनेता हरकिशन सिंह सुरजीत का निधन १ अगस्त २००८ को हुआ था. २०२० - अमर सिंह(राजनेता) - भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिनका सम्बंध समाजवादी पार्टी से था। २०१८ - भीष्म नारायण सिंह - भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो असम और मेघालय के राज्यपाल रहे। २००८ - हरकिशन सिंह सुरजीत, भारतीय राजनेता। २००१ - बेगम ऐज़ाज़ रसूल - भारतीय संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। २००० - अली सरदार जाफ़री, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध शायर। १९९९ - नीरद चन्द्र चौधरी - भारत में जन्मे प्रसिद्ध बांग्ला तथा अंग्रेज़ी लेखक और विद्वान। १९६९ - कांठे महाराज - भारत के प्रसिद्ध तबला वादकों में से एक थे। १९२० - बाल गंगाधर तिलक, विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और भारतीय राष्ट्रवादी नेता १९१३ - देवकीनन्दन खत्री - हिन्दी के महान् और प्रथम तिलिस्मी लेखक। १८६३ - ज़िन्दाँ रानी - सरदार मन्ना सिंह औलख जाट की पुत्री थी। पंजाब के महाराज रणजीत सिंह की पाँचवी रानी तथा उनके सबसे छोटे बेटे दलीप सिंह की माँ थी। १५९१ - उर्फ़ी शीराजी - मुग़ल दरबार में बादशाह अकबर के प्रसिद्ध कवियों में से एक था। आज का दिन विश्व स्तनपान दिवस (सप्ताह)
नियाग्रा जलप्रपात संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की सीमा पर स्थित एक जलप्रपात है। यह प्रपात सेंट लारेंस नदी पर स्थित है। नियाग्रा जलप्रपात कनाडा के ओन्टारियो और अमेरिका के न्यूयॉर्क राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा स्थित नियाग्रा नदी में बना है। यह जलप्रपात न्यूयॉर्क के बफेलो से २७ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और कनाडा के टोरंटो (ओन्टारियो) से १२० किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है। नियाग्रा जलप्रपात अमेरिका के न्यूयॉर्क और कनाडा के ओंटारियो प्रांतों के मध्य अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बहने वाली नियाग्रा नदी पर स्थित है।
सागरघास (सीग्रस) या समुद्री घास सपुष्पक पौधों के चार जीववैज्ञानिक कुलों की कुछ जातियों का समूह है जिसकी सदस्य जातियाँ सागरतह पर उगती हैं। यह चार कुल पोसाइडनिएसिए (पॉसिडोनिएसीए), ज़ोस्टेरेसिए (जोस्टरैसीए), हाइड्रोचैरिटेसिए (हाइड्रोचरितसे) और साएमोडोसिएसिए (सिमोडोस्से) हैं - ध्यान दें कि इन कुलों की सभी जतियाँ सागरघास नहीं हैं। यह सभी अलिस्मातालेस गण में सम्मिलित हैं। इन्हें भी देखें
२४ मई १९५५ को जन्मे राजेश रोशन सुप्रसिद्ध संगतकार रौशनलाल नागरथ (रौशन) के सुपुत्र हैं। उनक बड़े भाई राकेश रोशन प्रसिद्ध निर्माता और निर्माता हैं और ऋतिक रोशन इनका भतीजा है। सन १९७५ से अपना कैरियर शुरू करने वाले राजेश रौशन ने लगभग सभी बड़े निर्देशकों के साथ काम कर लिया है। ७०-८० के दशक में जब संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल, आर. डी. बर्मन और कल्याण जी आनंदी जी जैसी जोड़ियों का बोलबाला था, उस दौर में एक नए संगीतकार ने बॉलीवुड में एंट्री की थी. उसने अपनी मंत्र मुग्ध कर देने वाली धुनों से न सिर्फ़ दर्शकों का दिल जीता, बल्कि इंडस्ट्री में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई. बात हो रही है मशहूर संगीतकार राजेश रोशन की. वो पिछले ५ दशकों से इंडस्ट्री में सक्रीय हैं. इस बीच राजेश रोशन ने कर्ज़, कोयला, जूली, करन-अर्जुन, पापा कहते हैं, कहो ना प्यार है, कृष, काब़िल जैसी सैंकड़ों फ़िल्मों में बतौर म्यूज़िक डायरेक्टर काम किया. फ़िल्मों में बेहतरीन संगीत देने के लिए उन्हें दो बार फ़िल्म फ़ेयर के बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर के अवॉर्ड से भी सम्मानित जा चुका है. यूं तो उनके पिता रोशन लाल नागरथ भी एक जाने-माने संगीतकार थे. मगर राजेश रोशन बचपन में संगीतकार नहीं, बल्कि एक सरकारी नौकर बनना चाहते थे. पर पिता के देहांत के बाद उन्होंने संगीत में रूची लेना शुरू कर दिया. राजेश रोशन की पहली गुरू उनकी मां इरा रोशन थीं. पिता की मौत के बाद उनके परिवार वालों ने अपने नाम के पीछे नागरथ सरनेम लगाना छोड़ दिया. उन्होंने अपने पिता को याद रखने के लिए उनके ही नाम को अपना सरनेम बना लिया. राजेश रोशन, राकेश रोशन और ऋतिक रोशन. ये तीनों आज फ़िल्म इंडस्ट्री के बहुत बड़े नाम हैं. मशहूर कॉमेडियन और एक्टर महमूद साहब ने राजेश रोशन को पहला मौक़ा दिया था. फ़िल्म का नाम था 'कुंवारा बाप'. इस फ़िल्म के एक गाने 'सज रही गली' के लिए धुन की तलाश में थे महमूद साहब. तब किसी ने राजेश रोशन का नाम सुझाया. महमूद साहब ने उन्हें बुलाया और धुन बनाने को कहा. राजेश रोशन ने ऐसी धुन बनाई की उसे सुनते ही महमूद जी ने उन्हें गले लगा लिया. इस तरह उन्हें अपनी पहली फ़िल्म मिली. फ़िल्म 'नटवर लाल' का संगीत राजेश रोशन ने दिया था. इस फ़िल्म में पहली बार अमिताभ बच्चन ने गाना गया था. ये मौक़ा उन्हें राजेश रोशन ने ही दिया था. गाना था 'मेरे पास आओ मेरे दोस्तों', जो आज भी अमिताभ बच्चन के सुपरहिट सॉन्ग में से एक है. हिन्दी फ़िल्म संगीतकार
इस भाषा को भारत के उत्तराखंड राज्य में उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक(पट्टी बंगान) में बोला जाता है ।यह बहुत ही अच्छी भाषा है । यह भाषा इस ब्लॉक में बहुत ही पहले से बोली जाती है। सभी बड़े और बच्चें इसे अपने गांव में बोला करते है। यह भाषा बहुत ही लोकप्रिय है । इसी भाषा के नाम से वहां के लोगो को बंगानी भी बोला जाता है । और यहां के रहने वाले लोगों को बंगाण के लोग कहा जाता है। यह भाषा उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की बॉर्डर की तरफ में जो भी गांव है वहां पर बोली जाती है। इस भाषा को लगभग १० से १२ गांव में बोला जाता है। इनमे से कोई कोई इस प्रकार से है यह मैंजनी, भूतानु, किरोली, आराकोट, और कलीच और भी बहुत से गांवों में बोला जाता है। बन्गानी भाषा भारत की संकटग्रस्त भाषाओं में से एक है। यह अत्यधिक गंभीर रूप से खतरे में है। आईएसओ कोड: गम इस भाषा में कुछ वाक्य इस प्रकार से है। हिंदी भाषा (बंगाणी भाषा) कहां जा रहे हो।( केतके लाग: डेई।) कैसे हो आप।(केशे तूमे।) क्या कर रहे हो। (का ला करि।) तुम क्या करते हो।(तुमे का करेन।) खाना बना लिया। ( खाण चाणी गो।) नमस्ते भाईयों। (डाल बाइयो) हाथ पैर धो लिए। (हाथ बांगने धोई गौ।) आग जला दी ।(आग जाड़ी गोई) आज खाने में क्या है ।(इतरा खाणे दी का।) हमारे यहां पर सेब की खेती की जाती है। (आमकाई सेब री खेती केरेन।) कुछ महत्व पूर्ण चीजें जो की काम में उपयोग होती है । (कुछ जरूरी चीज जुंजी कामे दी उपयोग हए।) इस प्रकार से बैंगनी भाषा को बोला जाता है। इन्हें भी देखें भारत में संकटग्रस्त भाषाओं की सूची भारत की भाषाएँ भारत में स्थानीय वक्ताओं की संख्यानुसार भाषाओं की सूची भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ
चिंचणी (चिंचनी) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पालघर ज़िले में स्थित एक शहर है। इन्हें भी देखें महाराष्ट्र के शहर पालघर ज़िले के नगर
डोंट वरी चाचू एक भारतीय सिटकॉम है जिसका प्रीमियर ३ अक्टूबर २०११ को सब टीवी पर हुआ था। श्रृंखला में मुख्य भूमिका में आसिफ शेख और सुगंधा मिश्रा थे। चिंतन देसाई के रूप में आसिफ शेख सुगंधा मिश्रा भावना सी. देसाई के रूप में पोपटलाल देसाई के रूप में अनंग देसाई चिराग देसाई के रूप में सचिन पारिख आयुषी के रूप में दीप्ति देवी संगीत दिया है सब टीवी पर चाचू की आधिकारिक साइट की चिंता न करें सब टीवी के कार्यक्रम भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
इरुम्पनम (इरुम्पनम) भारत के केरल राज्य के एर्नाकुलम ज़िले के कोच्चि शहर का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है। इन्हें भी देखें केरल के शहर एर्नाकुलम ज़िले के नगर कोच्चि में मुहल्ले
शेखपुर खजूरी फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
सुल्तान () शब्द अरबी भाषा से आता है। मूल रूप से, यह एक अमूर्त संज्ञा थी जिसका अर्थ था 'ताक़त', 'अधिकार', 'शासन'। आम तौर पर यह उपाधि मुस्लमान शासकों के लिए इस्तेमाल की जाती है। यह उन शासकों के शीर्षक के रूप में इस्तेमाल की जाती थी जिनके पास व्यावहारिक रूप से लगभग पूर्ण संप्रभुता थी (यानी वे किसी भी उच्च शासक को जवाबदेह नहीं थे) मगर वे ख़लीफ़ा होने का दावा नहीं करते थे। एक सुल्तान द्वारा शासित राजवंश और भूमि को सल्तनत कहा जाता है। भारतीय सुल्तानों को संस्कृत में सुरत्राण कहा जाता है। यह सुल्तान शब्द का लिप्यंतरण है। नवीं सदी में ख़िलाफ़ते-अब्बासिया के समय ख़लीफ़ा की ताक़त घटनी शुरू हो गयी तथा उनके राज्यपाल लगातार और भी ज़्यादा शक्तिशाली होने लगे। चूँकि इस्लाम के अनुसार ख़लीफ़ा ही सारे राजनीतिक अधिकारों का स्त्रोत होता है, ये राज्यपाल (जो वास्तव में संप्रभु राजा बन चुके थे) ख़ुदको अब्बासी ख़िलाफ़त का प्रतिनिधि कहने लगे ताकि उनका राज्य धर्मानुसार वैध कहा जाए। और बदले में ख़लीफ़ा उन्हें शासन करने का मंशूर (अधिकार पत्र) देने लगे। महमूद ग़ज़नवी सुल्तान की उपाधि का इस्तेमाल करने वाले दुनिया के पहले स्वतंत्र मुसलमान शासक थे। पूर्व सुल्तान एवं सल्तनतें अनातोलिया व मध्य एशिया लेवंट व अरबी प्रायद्वीप ओमान: ओमान सुलतान दक्खिन की सल्तनतें: अहमदनगर, बरार, बीदर, बीजापुर और गोलकोंडा सल्तनत शाह मीर राजवंश दक्षिण-पूर्व एवं पूर्वी एशिया रजवाड़ों व अभिजातीय पदवी पश्चिमी सभ्यताओं में इन्हें भी देखें स्रोत व सन्दर्भ
उलियाना सिनेट्स्काया ( २९.०३.१९९६) - रूसी गायक, महिला पॉप संगीत समूह कैश के पूर्व एकल कलाकार। सितंबर २०१८ से, वह वीआईए ग्रे समूह की एकलौती सदस्य रही हैं. २९ मार्च, १९९६ को युगोर्स्क में जन्म । छोटी उम्र में, अपने परिवार के साथ येकातेरिनबर्ग चले गए । पांच साल की उम्र से वह स्वरों में व्यस्त थी. २००६ में वह संगीत प्रतियोगिता "जूनियर यूरोविज़न" फाइनलिस्ट बनीं। २००८ में, वह "लिटिल वाइस-मिस ऑफ़ द वर्ल्ड" शीर्षक की मालिक बनीं, और उन्हें पॉप आर्ट में उपलब्धियों के लिए गोल्डन सिलिंडर अवार्ड भी मिला। २०१२ में, उसने प्राग में आयोजित तृतीय अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रिय गीत प्रतियोगिता में भाग लिया, जहाँ उसने १ स्थान प्राप्त किया । २०१३ में, उन्होंने क्रेमलिन पैलेस के मंच पर, अलेक्जेंडर नोविकोव की सालगिरह की शाम में, यूराल स्टेट वैरायटी थियेटर के प्रमुख, जिसका एकल कलाकार था, की प्रस्तुति दी। २०१४ में, उन्होंने म्यूजिक शो " वॉयस " में भाग लिया। संरक्षक अलेक्जेंडर ग्राडस्की थे । सितंबर २०१७ में, वह विक्टर ड्रोबिश के नेतृत्व में न्यू स्टार फैक्ट्री की सदस्य बनीं । २१ अक्टूबर, २०१७ को रिपोर्टिंग कॉन्सर्ट के परिणामों के अनुसार, इस परियोजना को छोड़ना चाहिए था, लेकिन फिलिप किर्कोरोव को एक अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया, जिसमें जोर दिया गया कि लड़की को छोड़ दिया जाए। । दिसंबर २०१७ से, वह महिला पॉप समूह कैश की एकलौती कलाकार हैं, जिनकी पहली प्रस्तुति न्यू स्टार फैक्ट्री के अंतिम पर्व समारोह में हुई। सितंबर २०१८ से, वह विया ग्रा समूह की एकल कलाकार रही हैं। समूह के भाग के रूप में "विया ग्रा" समूह के भाग के रूप में "विया ग्रा" १९९६ में जन्मे लोग
वालीद अल-हुसेनी एक फिलिस्तीनी, निबंधकार, लेखक और ब्लॉगर है। अक्टूबर २०१० में, फिलीस्तीनी अथॉरिटी ने उन्हें फेसबुक पर और ब्लॉग पोस्ट में इस्लाम के खिलाफ कथित रूप से निंदा करने के लिए गिरफ्तार किया; उनकी गिरफ्तारी ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। बाद में वह फ्रांस से बच निकला, जहां उन्होंने सफलतापूर्वक शरण के लिए आवेदन किया। २०१३ में, उन्होंने फ्रांस के पूर्व मुसलमानों की परिषद की स्थापना की, और २०१५ में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक, ब्लैस्फेमेटर लिखा! : अपने अनुभवों के बारे में लेस प्रिसन डी अल्लाह।
पहला गिरमिटिया, गिरिराज किशोर द्वारा रचित एक हिन्दी उपन्यास है जो महात्मा गांधी पर आधारित है। इसके नायक "मोहनदास" हैं अर्थात गांधीजी का आरम्भिक रूप। इन्हें भी देखें काला पानी (भारत के श्रमिक विस्थापितों पर विस्तृत ब्लाग; अंग्रेजी में)
जर्गा, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा जर्गा, रानीखेत तहसील जर्गा, रानीखेत तहसील
यदि पूड़ी आटे के स्थान पर मैदे से बनाई जाये तो यह लूची/लुचई कहलाती है। लूची विशेष रूप से पूर्वी भारतीय राज्यों जैसे कि पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा और असम में प्रचलित है। इसे बनाने के लिए मैदे में घी का मोयन मिलाकर पानी अथवा दूध में गूंधा जाता है और फिर इसे घी या तेल में तल लिया जाता है। इसे अक्सर तरी वाली सब्जियों के साथ परोसा जाता है। यह भी देखिये
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम ने ९ अक्टूबर से १० नवंबर २००८ तक भारत का दौरा किया और बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए चार टेस्ट मैचों में खेले। दूसरे टेस्ट मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट क्रिकेट में १२,००० रन बनाने वाले पहले व्यक्ति बने, ब्रायन लारा के ११,९53 रन का रिकॉर्ड तोड़ा। सचिन ने कहा, "जिस दिन उन्होंने रिकॉर्ड हासिल किया था, उस दिन" यह निश्चित रूप से मेरे कैरियर के १९ वर्षों में सबसे बड़ी उपलब्धि है "। दूसरे टेस्ट मैच में भारत की ३२० रन की जीत ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रनों के मुकाबले उनकी सबसे बड़ी जीत थी, जो मेलबर्न में १९77 में हुई २२२ रनों की जीत थी और रनों के मामले में उनकी सबसे बड़ी जीत थी। तीसरे टेस्ट मैच की पहली पारी में, गौतम गंभीर और वी वी एस लक्ष्मण एक टेस्ट पारी में दोहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। इस श्रृंखला में दो भारतीय क्रिकेटरों - अनिल कुंबले और सौरव गांगुली के अंतिम टेस्ट भी देखे गए। ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के भारत दौरे
रेंरिया में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
पर्ल टावर एक ७० तलीय २७४ मीटर ऊँची एक गगनचुम्बी इमारत है, जो पनामा नगर, पनामा में निर्माणाधीन है। इसका निर्माण कार्य दिसम्बर २००९ तक पूरा होना था।
हेल्मा ओरोज़ (जन्म: ११ मई १९५३ में ) एक जर्मन राजनीतिज्ञ और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियनकी सदस्य हैं। वह २००३ से २००८ के बीच सामाजिक मामलों के लिए सैक्सन राज्य मंत्री और जून २००८ के बाद से ड्रेसडेन के ओबेरबर्गर्मिस्टर (मेयर) थी। ओरोज़ ने १९७० के दशक से वेइवासेर में एक नर्सरी स्कूल के सहायक निदेशक के रूप में काम किया। १९८९ में वह जिला नर्सरी स्कूल एसोसिएशन की नेता बनीं, और १९९० में उन्हें वेयवासेर जिले के स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं के विभाग का प्रमुख नियुक्त किया गया। उसने उस स्थिति को बनाए रखा जब जिले को नीडेरस्लेस्किशर ओबरलौसिट्ज़क्रेइस में मिला दिया गया था। २००८ में ओरोस को उस समारोह में पहली महिला के रूप में ड्रेसडेन का मेयर चुना गया था। वह पहले मतपत्र पर मतदान का ४७.६१% प्राप्त और दूसरे मतपत्र पर ६४%। ओरोज़ ने सीडीयू के प्रगतिशील "अर्बन" विंग के प्रतिनिधि के रूप में प्रचार किया, फ्रैंकफर्ट के मेयर पेट्रा रोथ और हैम्बर्ग के ओले वॉन बेस्ट के साथ। ऑरोज़ ने वाल्ड्सच्लोस्चेन ब्रिज के निर्माण का समर्थन किया, जिसने ड्रेसडेन को एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में दर्जा दिया। २००९ में ब्रिज आर्टिस्ट एरिका लस्ट के विरोध के रूप में, एक पेंटिंग बनाई गई, जिसमें ब्रिज के सामने एक नंगे स्तन वाले इरोज़ का चित्रण किया गया था। ओरोसज़ ने पेंटिंग के सार्वजनिक प्रदर्शन के खिलाफ एक प्रारंभिक निषेधाज्ञा प्राप्त की, लेकिन ओबरलैंडसेगरिच ("हायर रीजनल कोर्ट") ने कलात्मक स्वतंत्रता और कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ऑरोज़ के व्यक्तिगत अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण माना। ऑरोज़ ने संघीय संवैधानिक न्यायालय में अपील नहीं की। १९५३ में जन्मे लोग
भोकहा डुमरिया, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
पाकिस्तान महिला क्रिकेट टीम ने मई २०१९ में दक्षिण अफ्रीका महिला क्रिकेट टीम के खिलाफ खेलने के लिए दक्षिण अफ्रीका का दौरा किया। इस दौरे में तीन महिला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (मवनडे) शामिल थे, जिसने २०१७-२० आईसीसी महिला चैम्पियनशिप, और पांच महिला ट्वेंटी-२० अंतर्राष्ट्रीय (मटी२०ई) मैचों का हिस्सा बनाया। दक्षिण अफ्रीका के नियमित कप्तान डेन वैन नीकेर चोट के कारण इस दौरे के लिए अनुपलब्ध थे, जिसमें सुने लुस उनकी अनुपस्थिति में टीम में थे। तीसरे और अंतिम मैच के बाद टाई के रूप में महिला वनडे श्रृंखला १-१ से ड्रॉ रही। केवल छह महिला वनडे मैच टाई में समाप्त हुए हैं, जिसमें पहला पाकिस्तान है, और तीसरा दक्षिण अफ्रीका को शामिल करना है। दक्षिण अफ्रीका ने महिला टी२०ई श्रृंखला ३-२ से जीती। ५० ओवर का मैच: उत्तर पश्चिम अंडर-१७ बनाम पाकिस्तान महिला ५० ओवर का मैच: उत्तर पश्चिम अंडर-१७ बनाम पाकिस्तान महिला महिला वनडे सीरीज पहला महिला वनडे दूसरा महिला वनडे तीसरा महिला वनडे महिला टी२०ई सीरीज पहला महिला टी२०ई दूसरा महिला टी२०ई तीसरा महिला टी२०ई चौथा महिला टी२०ई पांचवां महिला टी२०ई
मैग्नेटाइट एक लौह अयस्क है। इसमें लोहा ऑक्साइड रूप में मिलता है। यह फेरिमैग्नेटिक है। इसमें चुंबक को आकर्षित करने की क्षमता होती है। इसे कला अयस्क भी कहते है इसमें धातु का अंश ६०_७२ % पाया जाता ह भारत में मुख्यतः तामिलनाडु कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान व धारवाड़,कुड्डपा शैलो में पाया जाता है। सर्वाधिक उत्पादन- ओड़िसा,छत्तीसगढ़,कर्नाटक,झारखंड
नौगांव, चौखुटिया तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा नौगांव, चौखुटिया तहसील नौगांव, चौखुटिया तहसील
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील मुरादाबाद, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१९ उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा) मुरादाबाद तहसील के गाँव
फ़्रांसीसी भाषा (फ़्रांसीसी: फ्रान्य्स उच्चारण: [फ्स]) एक रोमन भाषा है जो विश्वभर में लगभग ९ करोड़ लोगों द्वारा प्रथम भाषा के रूप में बोली जाती है। मूल रूप से इस भाषा को बोलने वाले अधिकांश लोग फ़्राँस में रहते हैं जहाँ इस भाषा का जन्म हुआ था। इस भाषा को बोलने वाले अन्य क्षेत्र ये हैं- अधिकांश कनाडा, बेल्जियम, स्विटज़रलैंड, अफ़्रीकी फ़्रेंकोफ़ोन, लक्ज़म्बर्ग और मोनाको। फ्रांसी भाषा १९ करोड़ लोगों द्वारा दूसरी भाषा के रूप में और अन्य २० करोड़ द्वारा अधिग्रहित भाषा के रूप में बोली जाती है। विश्व के ५४ देशों में इस भाषा को बोलने वालों की अच्छी भली संख्या है। फ़्रांसीसी रोमन साम्राज्य की लैटिन भाषा से निकली भाषा है, जैसे अन्य राष्ट्रीय भाषाएँ - पुर्तगाली, स्पैनिश, इटालियन, रोमानियन और अन्य अल्पसंख्यक भाषाएँ जैसे कैटेलान इत्यादि। इस भाषा के विकासक्रम में इसपर मूल रोमन गौल की कैल्टिक भाषाओं और बाद के रोमन फ़्रैकिश आक्रमणकारियों की जर्मनेक भाषा का प्रभाव पड़ा। यह २९ देशों में एक आधिकारिक भाषा है, जिनमें से अधिकांशतः ला फ़्रेंकोफ़ोनी नामक फ़्रांसीसी भाषी देशों के समुह से हैं। यह सयुंक्त राष्ट्र की सभी संस्थाओं की और अन्य बहुत से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भी आधिकारिक भाषा है। यूरोपीय संघ के अनुसार, उसके २७ सदस्य राष्ट्रों के १२.९ करोड़ (४९,७१,९८,७४० का २६%) लोग फ़्रांसीसी बोल सकते हैं, किसमें से ६.५ करोड़ (१२%) मूलभाष्ई हैं और ६.९ करोड़ (१४%) इसे दूसरी भाषा के रूप में बोल सकते हैं, जो इसे अंग्रेज़ी और जर्मन के बाद संघ की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बनाता है। इसके अतिरिक्त २० वीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेज़ी के अधिरोहण से पहले, फ़्रांसीसी यूरोपीय और औपनिवेशिक शक्तियों के मध्य कूटनीति और संवाद की प्रमुख भाषा थी और साथ ही साथ यूरोप के शिक्षित वर्ग की बोलचाल की भाषा भी थी। लिखी हुई फ़्रांसीसी में अगर शब्द के अंत में अगर ये व्यंजन आते हैं : स, त, फ, च, क, (र), क्स, प, न, म, तो साधारणतया इनका उच्चारण नहीं होता। इसलिये अगर वर्तनी (स्पेलिंग) है फ्रान्य्स, तो उसका उच्चारण होगा फ़्राँसे, न कि फ़्रान्सेस्। "न" और "म" स्वरों को नासिक्य बना सकते हैं। अन्य व्यंजन जब शब्द के अंत में आते हैं तो ज़्यादातर उनका उच्चारण होता है। पर अगर कोई फ़्रांसिसी के अपने उच्चारण नियमों को अच्छी तरह समझ जाये तो वो मान जायेगा कि इसमें अंग्रेज़ी से बेहतर नियमबद्धता है। इन्हें भी देखें फ्रांसीसी-हिन्दी शब्दकोश (केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय) विश्व की प्रमुख भाषाएं
जटलैण्ड प्रायद्वीप ( ) या अन्य ऐतिहासिक नाम सिम्ब्रियन प्रायद्वीप ( ) यूरोप का एक प्रायद्वीप है और जर्मनी एवं डेनमार्क के बीच बंटा हुआ है। इसके नाम ज्यूट्स एवं सिम्ब्री से व्युत्पन्न हैं। प्राचीन भूगोल में इसे करसोनीज (चेर्सनसे) या किमब्रिक प्रायद्वीप कहते थे। बृहत्तर अर्थ में इस भूभाग में जर्मनी का श्लेसविरा होल्सटाइन क्षेत्र भी सम्मिलित है। जटलैंड, ३१ मई, १९१६ को हुए ब्रिटिश तथा जर्मन नौसेनाओं के युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। जर्मन निवासी इसे 'स्टॉगटेक का युद्ध' कहते हैं। डेनमार्क के समुद्रतट से ११५ किमी दूरी पर यह युद्ध हुआ था। प्रथम महायुद्ध के समय यह एकमात्र संग्राम रहा, जिसमें दो नौसेनाएँ आमने-सामने मोर्चे पर लड़ीं। इस युद्ध के बाद जर्मनी के आत्मसमर्पण तक ब्रिटिश नौसेना, जर्मनी की नौसेना पर पूर्णतया हावी रही। डेनमार्क के प्रायद्वीप जर्मनी के प्रायद्वीप यूरोप के प्रायद्वीप बाल्टिक सागर के प्रायद्वीप
यह विश्व का एक प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन हैं | प्रमुख आतंकवादी गतिविधियाँ विश्व के प्रमुख आतंकवादी संगठन
उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग २९ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। २१४.८७ किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग लिपुलेख से शुरू होकर इटावा तक जाता है। इसे लिपुलेख-पीलीभीत-शाहजहाँपुर-इटावा मार्ग भी कहा जाता है। यह पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फ़र्रूख़ाबाद और मैनपुरी जिलों से होकर गुजरता है। इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्गों की सूची उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग प्राधिकरण का मानचित्र उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्ग
शिवालिक पहाड़ियाँ (शिवालिक हिल्स) या बाह्य हिमालय (आउटर हिमालय) हिमालय की एक बाहरी पर्वतमाला है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग तक चलती है। यह लगभग १०५० किमी (६.२३१.१ मील) चौड़ी है और इसके शिखरों की औसत ऊँचाई १,५००२,००० मीटर (४,900६,६00 फुट) है। असम में तीस्ता नदी और रायडाक नदी के बीच लगभग का गलियारा है, जहाँ शिखर कम ऊँचाई के हैं। "शिवालिक" का अर्थ "शिव की जटाएँ" है। शिवालिक से उत्तर में उस से ऊँची हिमाचल पर्वतमाला है, जो मध्य हिमालय भी कहलाती है। शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय भी कहा जाता है। हिमालय पर्वत का सबसे दक्षिणी तथा भौगोलिक रूप से युवा भाग है जो पश्चिम से पूरब तक फैला हुआ है। यह हिमायल पर्वत प्रणाली के दक्षिणतम और भूगर्भ शास्त्रीय दृष्टि से, कनिष्ठतम पर्वतमाला कड़ी है। इसकी औसत ऊंचाई ८५०-१२०० मीटर है और इसकी कई उपश्रेणियां भी हैं। यह १६०० कि॰मी॰ तक पूर्व में तीस्ता नदी, सिक्किम से पश्चिमवर्त नेपाल और उत्तराखंड से कश्मीर होते हुए उत्तरी पाकिस्तान तक जाते हैं। शाकंभरी देवी की पहाडियों से सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से देहरादून और मसूरी के पर्वतों में जाने हेतु मोहन दर्रा प्रधान मार्ग है। पूर्व में इस श्रेणी को हिमालय से दक्षिणावर्ती नदियों द्वारा, बड़े और चौड़े भागों में काटा जा चुका है। मुख्यत यह हिमालय पर्वत की बाह्यतम, निम्नतम तथा तरुणतम श्रृंखला हैं। उत्तरी भारत में ये पहाड़ियाँ गंगा से लेकर व्यास तक २०० मील की लंबाई में फैली हुई हैं और इनकी सर्वोच्च ऊंचाई लगभग ३,५०० फुट है। गंगा नदी से पूर्व में शिवालिक सदृश संचरना पाटली, पाटकोट तथा कोटह को कालाघुंगी तक हिमालय को बाह्य श्रृंखला से पृथक् करती है। ये पहाड़ियाँ पंजाब में होशियारपुर एवं अंबाला जिलों तथा हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले को पार कर जाती है। इस भाग की शिवालिक श्रृंखला अनेक नदियों द्वारा खंडित हो गई है। इन नदियों में पश्चिम में घग्गर सबसे बड़ी नदी है। घग्गर के पश्चिम में ये पहाड़ियाँ दीवार की तरह चली गई हैं और अंबाला को सिरसा नदी की लंबी एवं तंग घाटी से रोपड़ तक, जहाँ पहाड़ियों को सतलुज काटती है, अलग करती हैं। व्यास नदी की घाटी में ये पहाड़ियाँ तरंगित पहड़ियों के रूप में समाप्त हो जाती हैं। इन पहड़ियों की उत्तरी ढलान की चौरस सतहवाली घाटियों को दून कहते हैं। ये दून सघन, आबाद एवं गहन कृष्ट क्षेत्र हैं। सहारनपुर और देहरादून को जोड़नेवाली सड़क मोहन दर्रे मे शाकंभरी देवी की पहाडियों से होकर जाती है। शिवालिक पर्वत श्रेणियों में बहुत से पर्यटन स्थल हैं जिनमें शिमला, चंडीगढ़, पंचकूला मोरनी पहाड़ियां, नैना देवी,पौंटा साहिब, आदि बद्री यमुनानगर, कलेसर नेशनल पार्क, शाकम्भरी देवी सहारनपुर, त्रिलोकपुर मां बाला सुंदरी मंदिर, हथिनी कुंड बैराज, आनंदपुर साहिब आदि प्रसिद्ध है। भूवैज्ञानिक दृष्टि से शिवालिक पहाड़ियाँ मध्य-अल्प-नूतन से लेकर निम्न-अत्यंत-नूतन युग के बीच में, सुदूर उत्तर में, हिमालय के उत्थान के समय पृथ्वी की हलचल द्वारा दृढ़ीभूत, वलित एवं भ्रंशित हुई हैं। ये मुख्यत: संगुटिकाश्म तथा बलुआ पत्थर से निर्मित है और इनमें स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रचुर जीवाश्म मिले हैं हिमाद्री हिमालय का उत्तरी भाग में स्तिथ है और दक्षिण में सिबालिक स्थित है। शिवालिक के गिरी पद अथवा हिमालय क्षेत्र के पश्चिम में सिंधु से पूरब और तीस्ता के बीच फैला क्षेत्र फल भाबर का मैदान कहलाता है । शिवालिक पर्वत प्रायः बलुआ पत्थर और कॉन्ग्लोमरेट निर्माणों द्वारा निर्मित है। यह कच्चे पत्थरों का समूह है। यह दक्षिण में एक मेन फ़्रंटल थ्रस्ट नामक एक दोष प्रणाली से ग्रस्त हैं। उस ओर इनकी दुस्सह ढालें हैं। शिवापिथेकस (पूर्वनाम रामापिथेकस) नामक वनमानुष/ आदिमानव के जीवाष्म शिवालिक में मिले कई जीवाश्मों में से एक हैं। जलोढ़ी या कछारी (एल्यूवियल) भूमि के भभ्भर क्षेत्रों की दक्षिणी तीच्र ढालों को लगभग समतल में बदल देते हैं। ग्रीष्मकालीन वर्षाएं तराई क्षेत्रों की उत्तरी छोर पर झरने और दलदल पैदा करती है। यह नमीयुक्त मंडल अत्यधिक मलेरिया वर्ती था, जब तक की डी.डी.टी का प्रयोग मच्छरों को रोकने के लिये आरम्भ नहीं हुआ। यह क्षेत्र नेपाल नरेश की आज्ञानुसार जंगल रूप में रक्षित रखा गया। इसे रक्षा उद्देश्य से रखा गया था और चार कोस झाड़ी कहा जता था। शिवालिक पट्टी के उत्तर में १५००-३००० मीटर तक का महाभारत लेख क्षेत्र है, जिसे छोटा हिमालय, या लैस्सर हिमालय भी कहा जाता है। कई स्थानों पर यह दोनों मालाएं एकदम निकटवर्ती हैं और कई स्थानों पर १०-२० की। मी. चौड़ी हैं। इन घाटियों को ब्न्हारत में दून कहा जाता है। (उदा० दून घाटी जिसमें देहरादून भी पतली दून एवं कोठरी दून के साथ (दोनों उत्तराखंड के कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में,) तथा हिमाचल प्रदेश में पिंजौर दून भी आते हैं। नेपाल में इन्हें आंतरिक तराई भी कहा जाता है, जिसमें चितवन, डांग-देउखुरी और सेरखेत आते हैं। शिवालिक की प्रसरणशील कणों की अविकसित मिट्टी जल संचय नहीं करती है, अतएव खेती के लिये अनुपयुक्त है। यह कुछ समूह, जैसे वन गुज्जर, जो कि पशु-पालन से अपनी जीविका चलाते हैं, उनसे वासित है। ये वनगूजर अधिकतर उत्तराखण्ड के दक्षिण भाग मे तथा सहारनपुर जिले के उत्तर की और पहाडियों मे रहते हैं श्री शाकम्भरी देवी रेंज और सहंश्रा ठाकुर खोल के अलावा बडकला, रेंज और मोहंड रेंज के आसपास अधिक वासित है शिवालिक एवं महाभारत श्रेणी की दक्षिणी तीव्र ढालों में कम जनसंख्या घनत्व एवं इसके तराई क्षेत्रों में विषमय मलेरिया ही उत्तर भारतीय समतल क्षेत्रों एवं घनी आबादी वाले कई पर्वतीय क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक, भाषा आधारित और राजनैतिक दूरियों का मुख्य कारण रहे हैं। इस ही कारण दोनों क्षेत्र विभिन्न तरीकों से उभरे हैं। इन्हें भी देखें मध्य हिमालय (हिमाचल पर्वतमाला) हिमालय की पर्वतमालाएँ एशिया की पर्वतमालाएँ भूटान की पर्वतमालाएँ भारत की पर्वतमालाएँ नेपाल की पर्वतमालाएँ पाकिस्तान की पर्वतमालाएँ जम्मू और कश्मीर के पर्वत उत्तराखण्ड के पर्वत हिमाचल प्रदेश के पर्वत सिक्किम के पर्वत
पुदिय दरिशनंगळ तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९९४ में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत तमिल भाषा की पुस्तकें
रेशियाँ (अंग्रेज़ी: रेशियान, उर्दु: ) पाक-अधिकृत कश्मीर के हट्टियाँ बाला ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यह लीपा घाटी का द्वार माना जाता है और मुज़फ़्फ़राबाद से ६७ किमी दूर १,६७४ मीटर (५,४९२ फ़ुट) की ऊँचाई पर बसा हुआ है। यहाँ से ५०० मीटर दूर ३,२०० मीटर (१०,५०० फ़ुट) ऊँचा रेशियाँ दर्रा है जहाँ से लीपा वादी में प्रवेश किया जा सकता है। मुज़फ़्फ़राबाद से यहाँ के लिये रोज़ बस-सेवा चलती है। इन्हें भी देखें हट्टियाँ बाला ज़िला हट्टियाँ बाला ज़िला पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर
फौज में मौज २००७ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। नामांकन और पुरस्कार २००७ में बनी हिन्दी फ़िल्म
नरोत्तमदास ठाकुर (सं. १५८५ की माघ पूर्णिमा -- सं. १६६८ की कार्तिक कृष्ण ४) भक्त कवि तथा संगीतज्ञ थे। उन्होने ओड़ीसा तथा बंगाल में गौडीय भक्ति का प्रसार किया। नरोत्तमदास ठाकुर, राजा कृष्णनन्ददत्त के पुत्र थे। इनका जन्मस्थान परगना गोपालपुरा था जो वर्तमान समय में बांग्लादेश के राजशाही जिला के अंतर्गत आता है। माता का नाम नारायणीदेवी था। ये कायस्थ जाति के थे तथा पद्मा नदी के तटस्थ खेतुरी इनकी राजधानी थी। इनका जन्म सं. १५८५ की माघ पूर्णिमा को हुआ था। यह जन्म से ही विरक्त स्वभाव के थे। १२ वर्ष की अवस्था ही में इन्हें स्वप्न में श्री नित्यानन्द के दर्शन हुए और उसी प्रेरणानुसार यह पद्मा नदी में स्नानार्थ गए। यहीं इन्हें भगवत्प्रेम की प्राप्ति हुई। पिता की मृत्यु पर यह अपने चचेरे भाई संतोषदत्त को सब राज्य सौंपकर कार्तिक पूर्णिमा को वृन्दावन चल दिए। यह वृंदावन में श्री जीव गोस्वामी के यहाँ बहुत वर्षों तक भक्तिशास्त्र का अध्ययन करते रहे। यहीं इन्होंने श्री लोकनाथ गोस्वामी से श्रावणी पूर्णिमा को दीक्षा ली और उनके एकमात्र शिष्य हुए। सं. १६३९ में श्रीनिवासाचार्य तथा श्यामानंद जी के साथ ग्रंथराशि लेकर यह भी बंगाल लौटे। विष्णुपुर में ग्रंथों के चोरी जाने पर यह खेतुरी चले आए। यहाँ से एक कोस पर इन्होंने एक आश्रम खोला, जिसका नाम 'भजनटूली' था। इसमें श्री गौरांग तथा श्रीकृष्ण के छह श्रीविग्रह प्रतिष्ठापित कर सं. १६४० में महामहोत्सव किया। इन्होंने संकीर्तन की नई प्रणाली निकाली तथा "गरानहाटी" नामक सुर का प्रवर्तन किय। यह भक्त सुकवि तथा संगीतज्ञ थे। 'प्रार्थना', 'प्रेमभक्ति चंद्रिका' आदि इनकी रचनाएँ हैं। इनका शरीरपात सं. १६६८ की कार्तिक कृ. ४ को हुआ और इनका भस्म वृंदावन लाया गया, जहाँ इनके गुरु लोकनाथ गोस्वामी की समाधि के पास इनकी भी समाधि बनी। इनके तथा इनके शिष्यों के प्रयत्न से उत्तर बंग में गौड़ीय मत का विशेष प्रचार हुआ। नरोत्तम दास (हिन्दी कवि)
किशनपुर पौडिया, हल्द्वानी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा पौडिया, किशनपुर, हल्द्वानी तहसील पौडिया, किशनपुर, हल्द्वानी तहसील
यह आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी २०१३ के चयनित खिलाड़ियों की सूची है। प्रशिक्षक: मिकी आर्थर प्रशिक्षक: एशले जाइल्स प्रशिक्षक: माइक हेसन प्रशिक्षक: ग्राहम फोर्ड प्रशिक्षक: डंकन फ्लेचर प्रशिक्षक: डेव वॉटमोर प्रशिक्षक: गैरी किर्स्टन प्रशिक्षक: ओट्टिस गिब्सन आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी
साकार होने का अर्थ है (सपनों, इरादों, आदि) का पूरा होना। यह शब्द हिंदी में काफी प्रयुक्त होता है, यदि आप इसका सटीक अर्थ जानते है तो पृष्ठ को संपादित करने में संकोच ना करें (याद रखें - पृष्ठ को संपादित करने के लिये रजिस्टर करना आवश्यक नहीं है)। दिया गया प्रारूप सिर्फ दिशा निर्देशन के लिये हैं, आप इसमें अपने अनुसार फेर-बदल कर सकते हैं। मुंबई में एक नए मकान और रोज़गार के साथ सह-परिवार बस जाना उसके लिए अपने सपनों का साकार होना था। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द
कुकाठला किरौली, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। आगरा जिले के गाँव
नल्लमला पहाड़ियाँ (नल्लामला हिल्स) भारत के दक्षिणी भाग में पूर्वी घाट पर्वतमाला का भाग है जो आन्ध्र प्रदेश राज्य के रायलसीमा क्षेत्र और तेलंगाना के महबूबनगर और नल्गोंडा ज़िलों की पूर्वी सीमा पर स्थित है। इसकी पहाड़ियाँ लगभग १४० किमी तक उत्तर-दक्षिण दिशा में कोरोमंडल तट से समानांतर और कृष्णा नदी और पेन्ना नदी के बीच खड़ी हैं। ११०० मीटर (३६०८ फुट) ऊँचा भैरानी कोंडा इसका सबसे ऊँचा पर्वत है। इन्हें भी देखें आन्ध्र प्रदेश के पर्वत तेलंगाना के पर्वत
आंध्र प्रदेश संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस २७०७ (ट्रेन कोड: २७०७) भारतीय रेल द्वारा संचालित एक संपर्क क्रांति गाड़ी है। यह गाड़ी तिरुपति रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: त्प्टी) से ०५:४५आम बजे छूटती है और ह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: न्ज़्म) पर ०५:५५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३६ घंटे १० मिनट। यह ट्रेन सप्ताह में सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को चलती है। २७०७, आंध्र प्रदेश संपर्क क्रांति एक्स्प्रेस
राष्ट्रीय राजमार्ग १२६ए (नेशनल हाइवे १२६आ) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह पूरी तरह ओड़िशा में है और उत्तर में बरपाली से दक्षिण में सुबर्णपुर तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग २६ का एक शाखा मार्ग है। इस राजमार्ग पर कुछ मुख्य पड़ाव इस प्रकार हैं: बरपाली,रामपुर, सिंघीजुबा, सुबर्णपुर। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग २६ (भारत)
मनीमाजरा (पंजाबी: , अंग्रेज़ी: मनिमाजरा) भारत के उत्तर में स्थित चंडीगढ़ केन्द्र शासित प्रदेश में स्थित एक छोटा-सा क़स्बा है। यहाँ सिख साम्राज्य काल का एक ऐतिहासिक क़िला है जिसके कारण यह जगह मनीमाजरा क़िला भी कहलाती है। हरियाणा का पंचकुला शहर इसी के पास स्थित है। मनीमाजरा में एयरटेल, इन्फ़ोसिस और टेक महिन्द्रा जैसी कुछ कम्पनियों ने अपने कार्यालय बनाए हैं। लोकप्रिय मनसा देवी मंदिर का निर्माण मनीमाजरा के महाराजा गोपाल सिंह ने किया था इन्हें भी देखें चंडीगढ़ के नगर भारत में दुर्ग
हसनल बोल्कियाह (पूरा नाम:हाजी हसनल बोल्कियाह मुइज़्ज़दिन वाद्दौल्लाह; जन्म:१५ जुलाई १९४६) ब्रुनेई के २९वें तथा वर्तमान सुल्तान तथा यांग-दी पेरतुआन हैं। वह ब्रुनेई के प्रथम तथा पदस्थ प्रधानमंत्री भी हैं। उमर अली सैफ़ुद्दीन तृतीय तथा राजा इस्तेरी (रानी) पेंगिरन अनक दमित के सबसे बड़े पुत्र होने के नाते अपने पिता के सिंघासन त्याग करने के बाद उन्होंने ५ अक्टूबर १९६७ को ब्रुनेई के सुल्तान का सिंघासन संभाला। वे २००१ व २०१३ में दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) के सम्मेलन के मेजबान होने के नाते इसके अध्यक्ष भी रहे। फोर्ब्स पत्रिका ने उस$२० बिलियन की सम्पत्ति के अनुमान के साथ सुल्तान को विश्व के सबसे अधिक दौलतमंद लोगों की सूची में भी जगह दी है। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बाद सुल्तान हसनल बोल्कियाह का सबसे लम्बा राजवंशीय शासनकाल है। ५ अक्टूबर २०१७ को सुल्तान ने अपने शासनकाल के ५० वर्ष पूरा होने पर स्वर्ण जयंती मनायी थी। प्रारम्भिक जीवन तथा शिक्षा सुल्तान का जन्म १५ जुलाई १९५६ को ब्रुनेई कस्बे (अब बंदर सेरी बेगवान) के इस्ताना दारुस्सलाम में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम पेंगिरान मुदा (राजकुमार) हसनल बोल्कियाह था। उन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा विक्टोरिया इंस्टिट्यूट, कुआलालम्पुर से पूर्ण की। इसके बाद उन्होंने स्नातक की डिग्री यूनाइटेड किंगडम के रॉयल मिलिट्री एकेडमी सैंडहर्स्ट से प्राप्त की। अपने पिता के सुल्तान के पद त्यागने के बाद उन्होंने ५ अक्टूबर १९६७ को ब्रुनेई का सिंघासन संभाला। उनका राज्याभिषेक १ अगस्त १९६८ को हुआ तथा उन्हें ब्रुनेई का यांग-दी पेरतुआन (राष्ट्रप्रमुख) बना दिया गया। अपने पिता के समान उन्हें भी यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने नाइट की उपाधि प्रदान की, जिनके अधीन ब्रुनेई १९८४ तक रहा। सुल्तान के रूप में राजनैतिक भूमिका ब्रुनेई के १९५९ के संविधान के अनुसार सुल्तान राष्ट्रप्रमुख होता है, जिसके पास आपातकालीन शक्तियों सहित सभी कार्यकारी शक्तियाँ होती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार सुल्तान ने ९ मार्च २००६ को ब्रुनेई के संविधान में संशोधन करके अपने आप को कभी न हटाये जाने का प्रावधान जोड़ दिया। प्रधानमंत्री होने के नाते बोल्कियाह सरकार के भी प्रमुख हैं। इसके अतरिक्त वर्तमान में वे रक्षा तथा वित्त दोनों ही मंत्रालय संभाल रहे हैं। रक्षा मंत्री होने के नाते वे शाही ब्रुनेई सशस्त्र सेना के सर्वोच्च कमांडर होने के साथ साथ उन्हें ब्रिटिश व इण्डोनेशियाई सेना में जनरल की तथा रॉयल नेवी में एडमिरल ऑफ़ द फ्लीट की मानद उपाधि भी मिली है। उन्होंने स्वयं को शाही ब्रुनेई पुलिस बल का महानिदेशक भी नियुक्त किया है। बोल्कियाह ने १९८४ में ब्रुनेई दारुस्सलाम के संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया था। सन १९९१ में उन्होंने मेलयु इस्लाम बेराजा (मलय इस्लामी राजवंश) जैसी रुढ़िवादी विचारधारा को प्रस्तुत किया जिसमे राजवंश को भाग्यविधाता घोषित कर दिया गया। उन्होंने हाल ही में ब्रुनेई के जनतंत्रिकरण का समर्थन किया स्वयं को देश का प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति घोषित कर दिया। २००४ में १९६२ से भंग विधानसभा को पुनर्गठित किया गया। उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र राजकुमार अल-मुह्तादी बिल्लाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। सुल्तान वर्तमान में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री, इस्लाम प्रमुख (खलिफा), विदेश तथा वाणिज्य मंत्री, प्रथा प्रमुख, शाही ब्रुनेई सशस्त्र सेना के सर्वोच्च कमांडर तथा शाही ब्रुनेई पुलिस बल के महानिदेशक हैं। मलय में सुल्तान का पूरा नाम केबावाह दुली यांग महा मुलिया पादुका सेरी बागिन्दा सुल्तान हाजी हसनल बोल्कियाह मुइज़्ज़दिन वाद्दौल्लाह इब्नी अल-मरहूम सुल्तान हाजी उमर अली सैफ़ुद्दीन सादुल खैरी वाद्दियेन, सुल्तान दन यांग-दी पेरतुआन नेगारा ब्रुनेई दारुस्सलाम है। इसका हिन्दी अनुवाद हिज़ मेजेस्टी सुल्तान हाजी हसनल बोल्कियाह मुइज़्ज़दिन वाद्दौल्लाह स्वर्गीय सुल्तान हाजी उमर अली सैफ़ुद्दीन सादुल खैरी वाद्दियेन के पुत्र, संप्रभु राष्ट्र ब्रुनेई दारुस्सलाम, शांतिपूर्ण वास के सुल्तान है। १९४६ में जन्मे लोग ब्रुनेई के सुल्तान हिन्दी दिवस लेख प्रतियोगिता २०१८ के अन्तर्गत बनाये गये लेख
१९८४ में ब्रुनेई ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की घोषणा की, जैसे ही ब्रुनेई के मेन्तेरी बेसार या ब्रुनेई के मुख्यमंत्री कीजगह लेने के लिए कार्यालय बनाया गया।
नई दिल्ली में इंडोनेशियाई दूतावास (नई दिल्ली में इंडोनेशियाई दूतावास) भारत गणराज्य के लिए इंडोनेशिया का राजनयिक मिशन है और यह भूटान साम्राज्य के लिए इंडोनेशिया के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। भारत में एक अन्य इंडोनेशियाई राजनयिक कार्यालय मुंबई में एक महावाणिज्य दूतावास है। वर्तमान राजदूत इना हेगनिंग्यास कृष्णमूर्ति हैं जिन्हें १७ नवंबर २०२१ को राष्ट्रपति जोको विडोडो द्वारा नियुक्त किया गया था। वर्तमान राजदूत इना हंगिनीनिनतयस कृष्णामूरथी हैं। अधिक जानकारी हेतु इंडोनेशियाई विकिपिडिया के इस पृष्ट को देखें: (इंडोनेशियाई भाषा में) यह भी देखें इण्डोनेशिया का महावाणिज्य दूतावास, मुंबई भारत में राजनयिक मिशनों की सूची भारत के विदेश संबंध भारत में राजनयिक मिशन नई दिल्ली में राजनयिक मिशन इंडोनेशिया के राजनयिक मिशन
हडुग लगा सैंजी, चमोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) सैंजी, हडुग लगा, चमोली तहसील सैंजी, हडुग लगा, चमोली तहसील सैंजी, हडुग लगा, चमोली तहसील
कलियाबोर कॉलेज भारत के असम के नगाँव जिले के कलियाबोर शहर में स्थित एक प्रसिद्ध उच्च शिक्षा संस्थान है। यह १९६९ में स्थापित किया गया था और गौहाटी विश्वविद्यालय से संबद्ध है। कॉलेज को "आ" ग्रेड के साथ राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (नाक) द्वारा मान्यता प्राप्त है। कलियाबोर शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों के लोगों के प्रयासों के परिणामस्वरूप १९६९ में कलियाबोर कॉलेज की स्थापना की गई थी। कॉलेज ने मुट्ठी भर छात्रों और कुछ शिक्षकों के साथ अपनी यात्रा शुरू की, और वर्षों से यह इस क्षेत्र के सबसे सम्मानित संस्थानों में से एक बन गया है। कॉलेज अपने उच्च शैक्षणिक मानकों और अपने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है। कलियाबोर कॉलेज कला, विज्ञान और वाणिज्य में स्नातक कार्यक्रम प्रदान करता है। कॉलेज चुनिंदा विषयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है। कॉलेज के शिक्षक अपने-अपने क्षेत्र में अत्यधिक योग्य और अनुभवी हैं, और वे छात्रों को एक उत्तेजक और चुनौतीपूर्ण शैक्षणिक वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कॉलेज में एक सुसज्जित पुस्तकालय है जिसमें पुस्तकों, पत्रिकाओं और पत्रिकाओं का विशाल संग्रह है। पुस्तकालय उन छात्रों के लिए एक उत्कृष्ट संसाधन है जो अपने ज्ञान और अपने विषयों की समझ का विस्तार करना चाहते हैं। कलियाबोर कॉलेज पाठ्येतर गतिविधियों पर बहुत जोर देता है और छात्रों को कई तरह के आयोजनों और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। कॉलेज में कई क्लब और सोसायटी हैं जो अपने छात्रों के विविध हितों को पूरा करते हैं। कॉलेज सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेल प्रतियोगिताओं और अन्य गतिविधियों का भी आयोजन करता है जो छात्रों को अपनी प्रतिभा और कौशल दिखाने के अवसर प्रदान करते हैं। कलियाबोर कॉलेज में अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ एक विशाल परिसर है। कॉलेज में अच्छी तरह से सुसज्जित कक्षाएं, प्रयोगशालाएं और कंप्यूटर केंद्र हैं। कॉलेज में खेल गतिविधियों के लिए खेल का मैदान भी है। कॉलेज में छात्र और छात्राओं दोनों के लिए छात्रावास की सुविधा है। छात्रावास सभी आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित है और छात्रों को रहने के लिए एक आरामदायक और सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है। कलियाबोर कॉलेज इस क्षेत्र का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है और इसने अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता और अपने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की है। कॉलेज में एक जीवंत शैक्षणिक और पाठ्येतर वातावरण है जो छात्रों को उनकी रुचियों का पता लगाने और उनके कौशल को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक समग्र शैक्षिक अनुभव प्रदान करने पर कॉलेज के ध्यान ने इसे ऐसे स्नातक तैयार करने में मदद की है जो न केवल जानकार हैं बल्कि अच्छी तरह से विकसित व्यक्ति भी हैं जो समाज में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं। असम में कॉलेज कलियाबोर कालेज का जालस्थल] असम में विश्वविद्यालय और कॉलेज
घोघरडीहा (घोघार्डिहा) भारत के बिहार राज्य के मधुबनी ज़िले में स्थित एक शहर है। घोघरडीहा का दुर्गा पूजा बहुचर्चित है जमाने से। यहां पे दुर्गा पूजा देखने के लिए लोग बहुत दूर से आते हैं। इसके अलावा यहाँ पर आई टी आई संस्थान है ओर +२ भोला उच्च हाई स्कूल, चंद्र मुखी भोला महाविद्यालय भी है। यहाँ का बाजार बहुत बड़ा है आस-पास के गाँव के लोग यहीं पर खरीदारी करने के लिए आते है। इन्हें भी देखें बिहार के शहर मधुबनी ज़िले के नगर
विकिलीक्स (वीकीलेंक) एक जालस्थल (वेबसाइट) है जो अनाम रूप से प्रदान किये गये संवेदनशील दस्तावेजों को प्रकाशित करती है। ये दस्तावेज किसी सरकार के, कम्पनी के, संस्था के या किसी धार्मिक संगठन के हो सकते हैं। यह दस्तावेज को लीक करके उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति या स्रोत का नाम गुप्त रखने की पूरी कोशिश करती है। यह २००६ के दिसम्बर मास में आरम्भ हुई थी। अब तक (नवम्बर, २००९) इसमें लगभग १२ लाख प्रपत्र उपलब्ध हैं क्या है विकीलीक्स, कौन हैं असांजे और कैसे हुआ खुलासा? (भास्कर)
ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार का एक मंत्रालय है। वर्तमान केंद्रीय कैबिनेट मंत्री राज कुमार सिंह हैं। मंत्रालय बिजली उत्पादन और बुनियादी ढांचे के विकास की देखरेख करता है, जिसमें उत्पादन, पारेषण और वितरण, साथ ही साथ रखरखाव परियोजनाएं भी शामिल हैं। मंत्रालय केंद्र सरकार और राज्य बिजली संचालन के साथ-साथ निजी क्षेत्र के बीच एक संपर्क के रूप में कार्य करता है। मंत्रालय ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजनाओं की भी देखरेख करता है। भारत सरकार के मंत्रालय
बिक्रमपुर फतुहा, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
अइसी कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
यह इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का प्रमुख विद्यापीठ हैं। इग्नू के विभिन्न विद्यापीठ
वरदान संस्कृत भाषा का शब्द है,जिसका अर्थ है ईश्वर अथवा देवी देवताओं द्वारा किया गया अनुग्रह। हिन्दू वेद, पुराणों एवं अन्य स्मृति ग्रंथों में देवताओं द्वारा साधारण मनुष्यों,दैत्यों एवं राक्षसों की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान (अभिलाषित वस्तु अथवा सिद्धि) दिए जाने का उल्लेख मिलता है।
चौधरी बंसीलाल (२६ अगस्त १९२७-२८ मार्च २००६)() एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रहे। उनका जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के गोलागढ़ गांव के जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने ४ अलग-अलग अवधियों: १९६८-७२ ,19७२-७५, १९८६-८७ एवं १९९६-९९ तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। बंसीलाल को 19७५ में आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का एक करीबी विश्वासपात्र माना जाता था। उन्होंने दिसंबर 19७५ से मार्च १९७७ तक रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी एवं 19७५ में केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री के रूप में उनका एक संक्षिप्त कार्यकाल रहा। उन्होंने रेलवे और परिवहन विभागों का भी संचालन किया। लगातार सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, पहली बार १९६७ में. उन्होंने १९९६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की।। बंशीलाल एक विकास पुरुष माने जाते है, और अपने तानाशाही व्यक्तित्व के लिए भी जाने जाते है। बंसीलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज, जालंधर में अध्ययन किया। १९७२ में, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें क्रमशः विधिशास्त्र एवं विज्ञान की मानद उपाधि से विभूषित किया। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, वे १९४३ से १९४४ तक लोहारू राज्य में परजा मंडल के सचिव थे। बंसी लाल १९५७ से १९५८ तक- बार एसोसिएशन भिवानी के अध्यक्ष थे। वह १९५९ से १९६२ तक जिला कांग्रेस कमेटी हिसार के अध्यक्ष थे और बाद में वे कांग्रेस कार्यकारिणी समिति तथा कांग्रेस संसदीय बोर्ड के सदस्य बने। वे १९५८ से १९६२ के बीच पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के सदस्य थे। वे २१ दिसंबर १९७५ से २४ मार्च १९७७ तक केंद्रीय रक्षा मंत्री रहे| वे १९८०-८२ के बीच संसदीय समिति और सरकारी उपक्रम समिति के सदस्य रहे | १९८२-८४ के बीच प्राक्कलन समिति(एस्टिमट्स कमित्ती) के भी अध्यक्ष थे। ३१ दिसम्बर १९८४ को वे रेल मंत्री और बाद में परिवहन मंत्री बने। दिसंबर १९७५ से २० दिसंबर १९७५ तक केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री थे | वे सात बार १९६७ ,१९६८ ,१९७२ ,१९८६ ,१९९१ ,१९९६ ,२००० में हरियाणा विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए | वह दो बार १९६० से २००६ और १९७६ से १९८० तक राज्य सभा के सदस्य थे। वे तीन बार १९८० से १९८४, १९८५ से १९८६ और १९८९ से १९९१ तक लोक सभा के सदस्य थे। १९९६ में कांग्रेस से अलग होने के बाद, बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की एवं शराबबंदी के उनके अभियान ने उन्हें उसी वर्ष विधान सभा चुनाव में सत्ता में स्थापित कर दिया। हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल १९६८, १९७२ १९८६ और १९९६ में में चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वे भगवत दयाल शर्मा एवं राव बीरेंद्र सिंह के बाद हरियाणा के तीसरे मुख्यमंत्री थे। वे ३१ मई १९६८ को पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और उस पद पर १३ मार्च १९७२ तक बने रहे। १४ मार्च १९७२ को, उन्होंने दूसरी बार राज्य में शीर्ष पद धारण लिया और ३० नवम्बर १९७५ तक पद पर बने रहे। उन्हें ५ जून १९८६ से १९ जून १९87 तक एवं ११ मई १९९६ से २३ जुलाई १९99 तक तीसरी और चौथी बार मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। बंसीलाल राज्य विधानसभा के लिए सात बार चुने गए, पहली बार १९६७ में कुछ समय के लिए चुने गए। १९६६ में हरियाणा के गठन के बाद राज्य का अधिकांश औद्योगिक और कृषि विकास, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे का निर्माण लाल की अगुआई के कारण ही हुआ। साठ के दशक के अंत में और सत्तर के दशक में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वे हरियाणा में सभी गांवों में बिजलीकरण के लिए जिम्मेदार थे। वे राज्य में राजमार्ग पर्यटन के अग्रदूत थे - यह वह मॉडल था जिसे बाद में कई राज्यों के द्वारा अपनाया गया। कई लोगों द्वारा उन्हें एक "लौह पुरुष" माना जाता है जो हमेशा वास्तविकता के करीब थे और जिन्होंने समुदाय के उत्थान में गहरी दिलचस्पी ली। बंसीलाल ने २००५ में विधानसभा चुनावों में भाग नहीं लिया लेकिन उनके पुत्र सुरेंद्र सिंह एवं रणवीर सिंह महेंद्र राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. सुरेन्द्र सिंह की २००५ में उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के पास एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई। आपात स्थिति में भूमिका जब निवर्तमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा १९७५ में आपातकाल लगाया गया तो बंसीलाल सुर्खियों में आए। वे १९७५ में आपातकाल के विवादास्पद दिनों में इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के एक करीबी विश्वासपात्र थे। संजय गांधी के साथ उन्हें आपातकाल के दौरान विभिन्न कदमों के लिए जिम्मेदार कहा जाता था। वे २१ दिसम्बर १९७५ से २४ मार्च १९७७ तक रक्षा मंत्री और १ दिसम्बर १९७५ से २० दिसम्बर १९७५ तक केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री रहे। दूर-दूर तक यात्रा करने वाले व्यक्ति बंसीलाल ने म्यानमार, अफगानिस्तान, पूर्व सोवियत संघ, मॉरिशस, तंजानिया, जाम्बिया, सेशेल्स, यूनाइटेड किंगडम, कुवैत, ग्रीस, पश्चिम जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, फ्रांस एवं इटली सहित कई देशों की यात्रा की। बंसीलाल की २८ मार्च २००६ को नई दिल्ली में मृत्यु हो गई। वे कुछ समय से बीमार थे। उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह जिनकी २००५ में एक विमान हादसे में मृत्यु हो गई थी पत्नी किरण चौधरी उनकी परम्परागत सीट तोशाम से २००६ के उपचुनाव व २००९ के आम चुनाव में विजयी हो हरियाणा की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी । किरण चौधरी २०१४ में विजयी हो हरियाणा प्रतिपक्ष की नेता बनी व २०१९ के आम चुनाव में भी इसी सीट से कांग्रेस की विधायक है। चौ बंसीलाल की पौत्री व सुरेंद्रसिंह व किरण की पुत्री स्वाति चौधरी२००९ के लोकसभा चुनाव में भिवानी - महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की सांसद निर्वाचित हुई थी, हालांकि वो इस सीट से २०१४ व २०१९ में मोदी लहर के चलते इस सीट से परिवार के पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी धरमवीर से चुनाव हार गई। चौधरी बंसी लाल के बड़े बेटे चौधरी रणबीर सिंह महेंद्र, मुंढाल निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा (२००५) सदस्य रहे है। चौधरी रणबीर सिंह बीसीसीआई (ब्क्सी) के एक एक पूर्व अध्यक्ष भी हैं एवं चौधरी बंसीलाल के ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते, उन्हें स्वाभाविक रूप से चौधरी बंसीलाल की राजनीतिक विरासत के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है। २००६ में निधन हरियाणा के राजनीतिज्ञ हरियाणा के लोग भिवानी के लोग हरियाणा के मुख्यमंत्री भारत के रेल मंत्री १९२७ में जन्मे लोग
मुत्हा; मुटा: (अरबी: ) जॉर्डन के कराक प्रांत में एक शहर है। इस्लामिक इतिहास में यह ६२९ ईस्वी की मुत्हा की लड़ाई के लिए जाना जाता है, जो अरब मुस्लिम सेना और बीजान्टिन साम्राज्य के बीच पहली सैन्य लड़ाई लड़ी थी। और जार्डन का प्रसिद्ध मुत्हा विश्वविद्यालय शहर में स्थित है।
| नामी = गंगा एवं सिंधु नदी डॉल्फिन गंगा नदी डॉल्फिन (प्लेटनीता गंगेटिका गंगेटिका) व सिंधु नदी डॉल्फिन (प्लेटनीता गंगेटिका मिनोर'') मीठे पानी की डॉल्फिन की दो प्रजातियां हैं। ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल तथा पाकिस्तान में पाई जाती हैं। ये मुख्यतः गंगा नदी में तथा सिंधु नदी, पाकिस्तान के सिंधु नदी के जल में पाई जाती हैं। केंद्र सरकार ने १८ मई २००९ को गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। गंगा नदी में पाई जाने वाली गंगा डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसकी घ्राण शक्ति अत्यंत तीव्र होती है। विलुप्त प्राय इस जीव की वर्तमान में भारत में २००० से भी कम संख्या रह गयी है जिसका मुख्य कारण गंगा का बढ़ता प्रदूषण, बांधों का निर्माण एवं शिकार है। इनका शिकार मुख्यतः तेल के लिए किया जाता है जिसे अन्य मछलियों को पकड़ने के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। एस समय उत्तर प्रदेश के नरोरा और बिहार के पटना साहिब भागलपुर से सुल्तानगंज के बहुत थोड़े से क्षेत्र में गंगा डॉल्फिन बचीं हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश में इसे 'सोंस' जबकि आसामी भाषा में 'शिहू' के नाम से जाना जाता है। यह इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती है। यह मांसाहारी जलीय जीव है। यह प्राचीन जीव करीब १० करोड़ साल से भारत में मौजूद है। यह मछली नहीं दरअसल एक स्तनधारी जीव है। मादा की औसत लम्बाई नर डोल्फिन से अधिक होती है। इसकी औसत आयु २८ वर्ष रिकार्ड की गयी है। 'सन ऑफ़ रिवर' कहने वाले डोल्फिन के संरक्षण के लिए सम्राट अशोक ने कई सदी पूर्व कदम उठाये थे। केंद्र सरकार ने १९७२ के भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून के दायरे में भी गंगा डोल्फिन को शामिल किया था। १९९६ में ही इंटर्नेशनल यूनियन ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर भी इन डॉल्फिनों को विलुप्त प्राय जीव घोषित कर चुका था। गंगा में डॉल्फिनों की संख्या में वृद्धि 'मिशन क्लीन गंगा' के प्रमुख आधार स्तम्भ में होगी, क्योंकि केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश के अनुसार जिस तरह बाघ जंगल की सेहत का प्रतीक है उसी प्रकार डॉल्फिन गंगा नदी के स्वास्थ्य की निशानी है।
पी. सुब्बरामय्या तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानीसंग्रह पेद्दीबोटला सुब्बरामय्या कथाळु के लिये उन्हें सन् २०१२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत तेलुगू भाषा के साहित्यकार
कारीगांव, देवलथल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा कारीगांव, देवलथल तहसील कारीगांव, देवलथल तहसील
पिपरा हलसी, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। लखीसराय जिला के गाँव
गुलाब मौहम्मद,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की सिवाल खास विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-४३)से चुनाव जीता। उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य सिवाल खास के विधायक
छिलिया जगदीशपुर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
२०१३ इंडियन प्रीमियर लीग का संस्करण इंडियन प्रीमियर लीग का ६वाँ संस्करण था जिसे आईपीएल ६ भी कहा जाता है। इस संस्करण के मैच भारत में ही आयोजित किये गए थे। इसका संस्थापन भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड था। २०१३ इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत ०३ अप्रैल २०१३ से हुई थी और इसका फाइनल मैच २६ मई २०१३ को खेला गया था। इस संस्करण का रंगारंग कार्यक्रम कोलकाता के साल्ट लेक स्टेडियम में २ अप्रैल २०१३ को रखा गया था। इसका फाइनल मैच मुम्बई इंडियन्स ने जीता था जो कि मुम्बई इंडियन्स के लिए पहली बार आईपीएल का खिताब रहा था। इस इंडियन प्रीमियर लीग में कुल ९ फ्रेंचाइज ने हिस्सा लिया था और कुल ७६ मैच राउंड रॉबिन और प्लेऑफ के नियमो के हिसाब से खेले गए थे जिसमें पहला मुकाबला दिल्ली डेयरडेविल्स और कोलकाता नाईट राइडर्स के बीच खेला गया था उसमें कोलकाता ने दिल्ली को ६ विकेटों से हराया था। इस संस्करण का फाइनल मैच कोलकाता के ईडन गार्डन्स क्रिकेट स्टेडियम पर २६ मई २०१३ को खेला गया था जिसमें मुम्बई इंडियन्स ने चेन्नई सुपर किंग्स को १४९ रनों का लक्ष्य दिया था जवाब में सुपर किंग्स १२५ रन ही बना पायी थी और मुम्बई इंडियन्स पहली बार इंडियन प्रीमियर लीग का खिताब जीतने में कामयाब हुई थी ,मुम्बई ने चेन्नई को २४ रनों से हराया था। इंडियन प्रीमियर लीग
मोइरांथेम बरकन्या मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास लौक्ङला के लिये उन्हें सन् २०१० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मणिपुरी भाषा के साहित्यकार
सिमलना विचला-अ०प०-१, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा विचला-अ०प०-१, सिमलना, यमकेश्वर तहसील विचला-अ०प०-१, सिमलना, यमकेश्वर तहसील
तेनजिंग नॉर्गे राष्ट्रीय साहसिक कार्य पुरस्कार, जिसे पहले राष्ट्रीय साहसिक कार्य पुरस्कार के रूप में जाना जाता था, यह भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च साहसिक खेल सम्मान है। इस पुरस्कार का नाम तेन्जिंग नॉरगे के नाम पर रखा गया है, जो १९५३ में एडमंड हिलेरी के साथ माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले दो व्यक्तियों में से एक थे। यह खेल एवं युवा मंत्रालय द्वारा हर साल दिया जाता है। इसके प्राप्तकर्ताओं को पिछले तीन वर्षों में भूमि, जल अथवा हवा में साहसिक खेल के क्षेत्र में "उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए सम्मानित किया जाता है। जबकि लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड उन व्यक्तियों को प्रदान की जाती है जिन्होंने साहसिक खेल के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया है और साहसिक खेल के प्रचार में खुद को समर्पित किया है। सन् २०२० तक, इस पुरस्कार में के नकद राशि पुरस्कार के साथ तेन्जिंग नॉरगे की एक कांस्य प्रतिमा दि जाती है।" वर्ष १९९३-१९९४ में स्थापित, यह पुरस्कार पहलीबार १९९४ मे दिए गए थे। इस पुरस्कार को खेल के क्षेत्र में सम्मानित अर्जुन पुरस्कार के बराबर माना जाता है। वर्ष २००४ के बाद से, अन्य सभी छह राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के साथ यह पुरस्कार आम तौर पर प्रत्येक वर्ष २९ अगस्त को राष्ट्रपति भवन में एक ही समारोह में प्रदान किया जाता है। हर वर्ष इसके नामांकन २० जून तक स्वीकार किए जाते हैं। आमतौर पर चार श्रेणियों में से प्रत्येक में एक पुरस्कार: भूमि, जल, हवा और लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए दी जाती है। किसी विशेष कारणों के लिए किसी विशेष वर्ष में अनुमोदन के बाद इसकी संख्या बढ़ाई जा सकती है। एक पांच सदस्यीय समिति किसी व्यक्ति की उपलब्धियों का मूल्यांकन एक विशेष श्रेणी में साहसिक कार्य में करती है, जो पहले तीन श्रेणियों के लिए उनके अंतिम तीन वर्षों के प्रदर्शन को ध्यान में रखती है। समिति इसे केंद्रीय युवा मामलों और खेल मंत्री को आगे की मंजूरी के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है। सन् २०२० तक, १३९ व्यक्तियों को यह पुरस्कार दिया गया हैं। प्रथम वर्ष १९९४ में, २२ जनों को यह पुरस्कार दिए गए थे, जिनमें से १९ जनों को १९93 के इंडो-नेपाली महिला एवरेस्ट अभियान के भारतीय सदस्यों के रूप में दिया गया था। २०१७ में, १० पुरस्कार दिए गए थे, जिनमें से ६ को नवीका सागर परिक्रम के लिए दिया गया था, जो दुनिया के चक्कर लगाने वाली एक सभी महिला नौकायन टीम थी। चंद्रप्रभा ऐतवाल इस पुरस्कार को दो बार पाने वाली एकमात्र प्राप्तकर्ता हैं, उन्हे एक बार १९९४ में लैंड एडवेंचर के लिए और दूसरी बार २००९ में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए यह पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार से पहले, अर्जुन पुरस्कार साहसिक खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया गया था। १९६५ से १९८६ में या तो पर्वतारोहण या साहसिक खेलों के क्षेत्र में दस व्यक्तिगत और एक टीम को अर्जुन अवार्ड्स दिए गए थे। आज तक की एकमात्र टीम जिसे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, १९६५ के सफल भारतीय एवरेस्ट अभियान के बीस पर्वतारोहियों को दिया गया था। व्यक्तिगत रूप से, १९८१ में चार पर्वतारोही, १९८४ में दो पर्वतारोही, जिसमें बछेंद्री पाल, भारत की पहली महिला को माउंट एवरेस्ट पर चड़ने के लिए, और १९८६ में तीन साहसी लोगों को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। । १९९३ में, केंद्रीय युवा मामलों और खेल राज्य मंत्री, मुकुल वासनिक ने एक अलग राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कारों के निर्माण की घोषणा की, जिसे "भूमि, जल और हवा में साहसिक खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए उच्चतम राष्ट्रीय मान्यता के रूप में स्थापित किया जाना था। अपनी स्थापना के बाद से, इसे अर्जुन पुरस्कारों के साथ समान नकद पुरस्कार राशि से मेल खाते हुए माना गया है। पुरस्कार चार श्रेणियों में दिया गया है; भूमि, पानी, हवा और जीवन भर की उपलब्धि। उन्हें पहली बार १९९४ वर्ष के लिए पुरस्कार, १९९५ में दिए गए था। भारत में एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में इसे सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। वर्ष १९९७ और १९९८ के पुरस्कार २००१ में एक साथ दिए गए, १९९९, २००० और २००१ के पुरस्कार २००३ में दिए गए , और २००३ और २००४ वर्षों के लिए २००५ में पुरस्कार दिए गए। एवरेस्ट की पहली चड़ाई की गोल्डन जुबली को याद करते हुए । २००३ में पुरस्कारों को तेन्जिंग नॉरगे के नाम बदल दिया गया जो १९५३ में एडमंड हिलेरी के साथ माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले दो व्यक्तियों में से एक नेपाली-भारतीय शेरपा पर्वतारोही थे। वर्ष २००२ के बाद से, राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार राष्ट्रपति भवन में एक ही राष्ट्रपति समारोह में अन्य सभी राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के साथ दिए जाते हैं। १९९४ में ५०,००० के साथ नकद पुरस्कार शुरू हुआ, जिसको १९९९ में १.५ लाख , से २००२ में ३ लाख , और २००८ में ५ लाख से संशोधित किया गया था। पुरस्कृत प्रतिमा को २००९ में फिर से डिज़ाइन किया गया था, जो ऊंचाई में १५ इंच (३8 सेमी) और लगभग १.५ किलोग्राम (३.३ पाउंड) का वजन होता है। यह कांस्य से बना है, और जिसे पॉलिश की गई हैं, जो कि बर्फ की कुल्हाड़ी के साथ तेन्जिंग नॉरगे की उम्र को उजागर करने के लिए है, जो उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ते समय इस्तेमाल किया था। २०२० तक, इस पुरस्कार में "तेन्जिंग नॉरगे की एक कांस्य प्रतिमा, सर्टिफिकेट, ब्लेज़र और सिल्केन टाई/साड़ी के साथ एक रंगीन जाकेट और १५ लाख रुपये की पुरस्कार राशि शामिल।" पुरस्कार के लिए नामांकन एक ऑनलाइन आवेदन पत्र के माध्यम से भरे जाते हैं। मरणोपरांत पुरस्कार देने का प्रावधान मौजूद है, लेकिन एक ही व्यक्ति को एक ही श्रेणी में एक से अधिक बार कोई पुरस्कार नहीं दिया जा सकता है। आवेदन को या तो राज्य सरकारों के युवा या खेल विभाग द्वारा या किसी मान्यता प्राप्त साहसिक संस्थानों द्वारा सिफ़ारिश किया जाना चाहिए, जिसमें विशिष्ट श्रेणी का प्रतिनिधित्व किया जाता है जिसमें आवेदन किया जाता है। आवेदन को विभिन्न भारतीय सशस्त्र बलों, इंडो-तिब्बती सीमा पुलिस या अन्य अर्धसैनिक बलों के साहसिक पदोन्नति सेल द्वारा भी अनुशंसित किया जा सकता है। सशस्त्र बलों में सभी सेवारत कर्मियों: सेना, नौसेना और वायु सेना को अपने निदेशालय या साहसिक कोशिकाओं के माध्यम से सीधे सिफारिश की जानी है। युवा मामलों और खेल मंत्रालय भी विभिन्न संगठनों से नामांकन की तलाश कर सकते हैं और अपने दम पर नामांकित कर सकते हैं। एक विशेष वर्ष में नामांकन २० जून तक स्वीकार किए जाते हैं। भूमिगत साहसिक खेल श्रेणी में मान्यता प्राप्त संस्थान हैं इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन, हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट और जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग और शीत कालीन खेल, जल साहसिक खेल श्रेणी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर स्पोर्ट्स और आकाशीय साहसिक खेल श्रेणी में एयरो क्लब ऑफ इंडिया है । सभी नामांकन उनके संबंधित श्रेणियों में उनके मुख्य निकायों को भेजे जाते हैं: इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन भूमिगत साहसिक खेल के लिए, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर स्पोर्ट्स जलगत साहसिक खेल के लिए , और एयरो क्लब ऑफ इंडिया आकाशीय साहसिक खेल के लिए। ये निकाय आवेदकों की उपलब्धियों को सत्यापित करते हैं और नामांकन प्राप्त होने के एक महीने के भीतर, उनके आधिकारिक रिकॉर्ड से उनकी पुष्टि करते हैं। लाइफटाइम उपलब्धि को छोड़कर सभी श्रेणियों के पिछले तीन कैलेंडर वर्षों की उपलब्धियों को ध्यान में रखा जाता है। मान्य नामांकन पत्र सरकार द्वारा गठित चयन समिति द्वारा जांचे और परखे जाती है। इस पांच सदस्य समिति में एक अध्यक्ष, आमतौर पर युवा मामलों के सचिव, युवा मामलों के संयुक्त सचिव और प्रत्येक तीन श्रेणियों में से एक प्रतिनिधि शामिल हैं: भूमि, जल (समुद्र) और वायु। चयन समिति की सिफारिशें केंद्रीय युवा मामलों और खेल मंत्री को आगे की मंजूरी के लिए प्रस्तुत की जाती हैं। यह प्रावधान आमतौर पर प्रत्येक श्रेणी में एक पुरस्कार के लिए होता है, लेकिन मंत्री की मंजूरी के साथ मंत्रालय एक विशेष वर्ष में पुरस्कार विजेताओं को बढ़ा सकता है। प्राप्तकर्ताओं को एक समिति द्वारा चुना जाता है और उनके "उत्कृष्ट प्रदर्शन, नेतृत्व के उत्कृष्ट गुणों, साहसिक अनुशासन की भावना और साहसिक कार्य के एक विशेष क्षेत्र में निरंतर उपलब्धि के लिए सम्मानित किया जाता है। पिछले तीन वर्षों में भूमि, वायु या पानी (समुद्र)" । लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्तकर्ताओं को दिया जाता है, जो "व्यक्तिगत उत्कृष्टता के अलावा खुद को साहसिक कार्य को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर चुके हैं।" मोटे तौर पर भूमिगत साहसिक खेल श्रेणी में पर्वतारोहण, जलगत साहसिक खेल श्रेणी में ओपन वॉटर तैराकी और सेलिंग और आकाशीय साहसिक खेल में स्काईडाइविंग को पुरस्कार दिए गए हैं। अपवादों में कैविंग, क्रॉस-कंट्री स्कीइंग शामिल हैं, जिनमें रीना कौशल धर्मशक्तु, दक्षिण ध्रुव पर स्की करने वाली पहली भारतीय महिला, हैंग ग्लाइडिंग, माइक्रोलाइट एविएशन, जिसमें व्यवसायी विजयपत सिंघानिया शामिल हैं, जो यूके से भारत, विश्व रिकॉर्ड-सेटिंग उड़ान के पायलट हैं। और व्हाइट वाटर राफ्टिंग। . आमतौर पर, पुरस्कार एक वर्ष में तीन से छह लोगों को प्रदान किया जाता है, कुछ अपवाद वर्ष १९९४, १९९५, २०१७ और २०१९ में किए गए हैं, जब एक वर्ष में छह से अधिक प्राप्तकर्ताओं को सम्मानित किया गया था। अपने प्रारंभिक वर्ष में, बाईस पुरस्कार प्रदान किए गए, जो एक वर्ष के लिए अब तक का सबसे अधिक पुरस्कार है। इनमें से उन्नीस पुरस्कार बछेंद्री पाल के नेतृत्व में १९९३ के भारत-नेपाली महिला एवरेस्ट अभियान को दिए गए थे। इस अभियान ने उस समय चार विश्व रिकॉर्ड बनाए, जिसमें एक ही अभियान से सबसे अधिक संख्या में पर्वतारोही (अठारह) और एवरेस्ट फतह करने के लिए किसी एक देश से सबसे अधिक संख्या में महिलाएं (सात) शामिल हैं। २०१७ में, दस पुरस्कार प्रदान किए गए, जिनमें से छह नविका सागर परिक्रमा (विश्व की परिक्रमा) के सदस्यों को दिए गए। लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी के नेतृत्व में भारतीय नौसेना के सेलिंग वेसल तारिणी (चित्रित) में बोर्ड पर, वे सभी महिला भारतीय नौसेना अधिकारी थीं, जो विश्व की परिक्रमा के लिए नौकायन करने वाली टीम थीं। चंद्रप्रभा ऐटवाल (चित्रित) एकमात्र एसे प्राप्तकर्ता हैं जिन्हे यह दो बार पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं, १९९४ में एक बार भूमिगत साहसिक श्रेणी में, १९९३ के भारत-नेपाली महिला एवरेस्ट अभियान का हिस्सा होने के लिए और दूसरी बार २००९ में पर्वतारोहण का आजीवन उपलब्धि की श्रेणी में। इस पुरस्कार की शुरुआत से पहले, अर्जुन पुरस्कार साहसिक खेलों और पर्वतारोहण के लिए भी दिया जाता था; आठ एसे लोग हैं जिन्हे दोनों पुरस्कार मिले हैं। १९६५ में माउंट एवरेस्ट पर भारत की पहली सफल चड़ाई के पांच अभियान सदस्यों, नवांग गोम्बू, गुरदयाल सिंह, मोहन सिंह कोहली, एच. पी. एस. अहलूवालिया और सोनम वांग्याल को, इन्हे २००५ में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, २००६, २००७, २००८, और २०१७ क्रमशः। इन सभी को १९६५ में टीम अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बुला चौधरी को तैराकी के क्षेत्र में १९९० में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और तैराकी में आजीवन उपलब्धि के लिए २००२ में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कुछ वर्षों में, साहसिक गतिविधियों में कई प्रथम और रिकॉर्ड बनाए गए हैं। पर्वतारोहण के क्षेत्र में, लव राज सिंह धर्मशक्तु (१९९९ में सम्मानित) एवरेस्ट पर सात बार चढ़ चुके हैं, जो एक भारतीय के लिए सबसे अधिक है। अरुणिमा सिन्हा (२०१४ में सम्मानित) एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला बनीं। जुड़वाँ बहने ताशी और नुंग्शी मलिक (२०१५ में सम्मानित) सेवन समिट्स (जिसमे सातों महादीप के उच्चतम बिन्दु पर पहुचना) और एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम (दोनों ध्रुवों पर पहुचना) पूरा करने वाले दुनिया के पहले जुड़वां बहने बनी । अंशु जमसेनपा (२०१७ में सम्मानित) एवरेस्ट की सबसे तेज महिला डबल समिटर हैं, जिन्होंने पांच दिनों में ऐसा किया है। नौकायन के क्षेत्र में, दिलीप डोंडे (२०१० में सम्मानित) अकेले और बिना सहायता के दुनिया का चक्कर लगाने वाले पहले भारतीय बने। अभिलाष टॉमी (२०१२ में सम्मानित) ने इसे बिना रुके करने वाले पहले भारतीय बनकर रिकॉर्ड को बेहतर बनाया। स्काइडाइविंग के क्षेत्र में, रेचल थॉमस (१९९४ में सम्मानित) भारत की पहली महिला स्काईडाइवर बनीं और शीतल महाजन (२००५ में सम्मानित) दोनों ध्रुवों पर कूदने वाली सबसे कम उम्र की महिला थीं। २०१९ पुरस्कार विजेताओं की सूची मे २१ अगस्त २०२० को प्रारंभिक प्रकाशन में भूमिगत् साहसिक श्रेणी में पर्वतारोही नरेंद्र सिंह यादव का नाम था। पुरस्कार विजेताओं की सूची में उनके नाम ने भारत और विदेशों में पर्वतारोहण हलकों में विवाद पैदा कर दिया। २३ अगस्त को, काठमांडू स्थित दैनिक कांतिपुर ने उस तस्वीर को प्रकाशित किया जिसे सिंह ने २०१६ में एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने के प्रमाण के रूप में नेपाल में अधिकारियों को प्रस्तुत किया था। लेख में बताया गया है कि उनके शिखर दिवस पर किस तरह से फोटो को बद्ला गया था। कई पर्वतारोहियों ने फोटो में गलतियों की ओर इशारा किया, जिसमें ऑक्सीजन मास्क में पाइप नहीं होना, उनके धूप के चश्मे पर कोई प्रतिबिंब नहीं होना, तेज हवाओं के बावजूद उनके द्वारा लहराए गए झंडे, उनके सिर पर कोई हेडलैंप नहीं होना और उनका एक हेलमेट पहनना शामिल है जो पर्वतारोहियों द्वारा नहीं पहना जाता है। उनकी टीम के नेता नबा कुमार फुकोन, बचाव दल के सदस्य लखपा शेरपा और वरिष्ठ पर्वतारोही देबाशीष विश्वास ने इस तथ्य की पुष्टि की कि सिंह ने कभी भी एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई नहीं की और ८,४०० मीटर (२७,६०० फीट) पर बालकनी में फंसे होने के बाद उन्हें मदद करनी पड़ी। . तेनजिंग नोर्गे के बेटे जैमलिंग नोर्गे ने इस मामले को उठाया और इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन के सामने इस मुद्दे को उठाया। इसके तुरंत बाद, खेल मंत्रालय ने दावों की जांच शुरू की, 2८ अगस्त को पुरस्कार रोक दिया और अगले दिन के समारोह में भाग लेने वाले पुरस्कार विजेताओं की सूची में सिंह का नाम हटा दिया गया। जैमलिंग नोर्गे और बछेंद्री पाल ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि इस तरह के व्यक्ति को पहले स्थान पर पुरस्कार के लिए भी माना जाता था। जैमलिंग ने आगे कहा कि यह पुरस्कार केवल एवरेस्ट पर्वतारोहियों को नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए जो नई चोटियों पर चढ़ाई करके, नए मार्गों की खोज करके और सामान्य रूप से रोमांच को बढ़ावा देकर अन्य साहसिक साधकों को प्रेरित करते हैं। भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सम्मान
रोजर फ़ेडरर ने जेम्स ब्लेक को ६-१, ६-४ से हराया। जोनाथन एलरिच / एंडी रैम ने बॉब ब्रायन / माइक ब्रायन को ४-६, ६-३, [1३-११] से हराया। २००६ सिनसिनाटी मास्टर्स
धोलासर एक छोटा सा गांव है जो भारतीय राज्य राजस्थान तथा जोधपुर ज़िले के लोहावट तहसील में स्थित है। धोलासर में राजस्व ग्राम लक्ष्मणपुरा, महर्षि गौतमनगर स्थित है। धोलासर गांव के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर करते हैं इस कारण रोजगार का साधन ही वही है। यहाँ ट्यूबवेल से सिंचाई की जाती हैं। मुख्यतः कृषक समाज यहाँ बाजरा, ज्वार, गेहूँ, सरसों, रायड़ा, मेथी, जीरा, मूँगफली, जौ, ग्वार, अरण्डी, प्याज ईसबगोल आदि फसलों की खेती करता हैं। २०११ की भारतीय राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार ग्राम पंचायत धोलासर की कुल जनसंख्या ३,७१९ है। धोलासर = १४६९ लक्ष्मणपुरा = १२७१ महर्षि गौतम नगर = ९७९ जोधपुर ज़िले के गाँव
नागौद रियासत (जिसे 'नागोड`' और 'नागौद' के नाम से भी जाना जाता है), मध्य प्रदेश के आधुनिक सतना जिले में स्थित ब्रिटिशकालीन भारत का एक रियासत था। १८वीं शताब्दी तक रियासत को उसकी राजधानी उचेहरा के मूल नाम 'उचेहरा' से भी जाना जाता था। १४७८ में, राजा भोजराज जूदेव ने उचेहराकल्प (वर्तमान में उचेहरा शहर) की स्थापना की थी जिसे उन्होंने तेली राजाओं से नारो के किले पर कब्जा कर प्राप्त की थी। १७२० में रियासत को अपनी नई राजधानी के नाम पर नागौद नाम दिया गया। १८०७ में नागौद, पन्ना रियासत के अन्तर्गत आता था और उस रियासत को दिए गए सनद में शामिल था। हालांकि, १८०९ में, शिवराज सिंह को उनके क्षेत्र में एक अलग सनद द्वारा मान्यता प्राप्ति की पुष्टि हुई थी। नागौद रियासत, १८२० में बेसिन की संधि के बाद एक ब्रिटिश संरक्षक बन गया। राजा बलभद्र सिंह को अपने भाई की हत्या के लिए १८३१ में पदच्युत कर दिया गया था। फिजुलखर्ची और वेबन्दोबस्ती के कारण में रियासत पर बहुत कर्ज हो गया और १८४४ में ब्रिटिश प्रशासन ने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया। नागौद के शासक १८५७ के भारतीय विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के वफादार बने रहे फलस्वरूप उन्हें धनवाल की परगना दे दी गई। १८६२ में राजा को गोद लेने की अनुमति देने वाले एक सनद प्रदान किया गया और १८६५ में वहाँ का शासन पुनः राजा को दे दिया गया। नागौद रियासत १८७१ से १९३१ तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। नागौद के अंतिम राजा, एच.एच. श्रीमंत महेंद्रसिंह ने १ जनवरी १950 को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए। भौगोलिक और आर्थिक स्थिती नागौद रियासत की राजधानी "नागौद" सतना जिला मुख्यालय से २५ किमी दूर अमरन नदी के किनारे स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल ५०१ वर्गमील है। रियासत का सम्पूर्ण भाग, विन्ध्याचल पठार पर स्थित है। रियासत में मुख्य रूप से टौंस, सतना, अमरन, महानदी आदि नदियाँ है। रियासत तीन तहसिलों में बटा हुआ था नागौद, उचेहरा, और धनवाही। राज्य का एक तिहाई भाग पवाई और जांगीरों में बटा हुआ था। रियासत में कुल ४०१ मौजे थी। रियासत की सम्पूर्ण आय लगभग रू० ४०००००.०० थी। नगौद रियासत में परिहार राजपूतों का शासन था और उन्हैं ९ बंदूकों की एक वंशानुगत सलामी प्रदत्त थी। इस वंश के राजा इस प्रकार थे- भोजराज जू देव - (१४९२ - १५०३ ई०) नरेन्द्रसिंह (निर्णयसिंह) - (१५६० - १६१२ ई०) भारत शाह - (१६१२ - १६४८ ई०) पृथ्वीराज - (१६४९-१६८५ ई०) फकीरशाह -(१६८६-१७२० ई०) चैनसिंह - (१७२०-१७४८ ई०) अहलादसिंह - (१७४८-१७८० ई०) शिवराजसिंह - (१७८०-१८१८ ई०) बलभद्रसिंह - (१८१८-१८३१ ई०) राघवेन्द्रसिंह -(१८३१-१८७४ ई०) यादवेन्द्रसिंह - (१८७४ - १९२२ ई०) नरहेन्द्रसिंह - (१९२२ - १९२६ ई०) महेन्द्रसिंह - (१९२६ - १५ अगस्त १९४७ ई०) इन्हें भी देखें ब्रिटिशकालीन भारत के रियासतों की सूची "प्रतिहार राजपुतों का इतिहास", लेखक रामलखन सिंह। मध्य प्रदेश की रियासतें
बिस्मिल्लाह जन शिनवारी (जन्म १७ मार्च १९८४) एक अफगान क्रिकेट अंपायर है। वह 20१७ के गाजी अमानुल्लाह खान क्षेत्रीय एक दिवसीय टूर्नामेंट और 20१७-१८ के अहमद शाह अब्दाली ४-दिवसीय टूर्नामेंट में अफगानिस्तान में मैचों में खड़े हुए हैं। वह ५ फरवरी २०१८ को अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे के बीच अपने पहले ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) मैच में खड़े हुए थे। वह ११ फरवरी २०१८ को अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे के बीच अपने पहले एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच में खड़ा था।
कनचीरा धरमजयगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
महुधा (महुधा) भारत के गुजरात राज्य के खेड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें गुजरात के शहर खेड़ा ज़िले के नगर
कृष्ण मोहन बनर्जी (२४ मई १८१३ - ११ मई १८८५) एक १ ९वीं शताब्दी के भारतीय विचारक थे जिन्होंने ईसाई विचारों के प्रोत्साहन के जवाब में हिंदू दर्शन, धर्म और नैतिकता पर पुनर्विचार करने का प्रयास किया था। वह खुद ईसाई बन गए और बंगाल क्रिश्चियन एसोसिएशन के पहले अध्यक्ष थे, जिन्हें भारतीयों द्वारा प्रशासित और वित्तपोषित किया गया था। वह हेनरी लुई विवियन डारोजोओ (१808-१83१) के एक प्रमुख सदस्य थे, बंगाल समूह, शिक्षाविद, भाषाविद् और ईसाई मिशनरी जीबोन कृष्ण बनर्जी और श्रीमती देवी के पुत्र, कृष्ण मोहन का जन्म २४ मई १८१३ को कोलकाता के श्यामपुर, बंगाल में, उनके नाना के घर रामजय विद्याभुसन, जोरसांको के संतराम सिंह के न्यायालय के पंडित में हुआ था। १८१ ९ में, कृष्ण मोहन कोमुटाला में डेविड हरे द्वारा स्थापित स्कूल सोसाइटी इंस्टीट्यूशन (बाद में इसे हरे स्कूल के रूप में बदल दिया गया) में शामिल हो गए। उनकी प्रतिभा से प्रभावित, हरे ने उन्हें अपने स्कूल को पाटलडंगा में ले लिया, बाद में १८२२ में हरे स्कूल के रूप में प्रसिद्ध। बनर्जी एक छात्रवृत्ति के साथ नवनिर्मित हिंदू कॉलेज में शामिल हो गए। १८३१ में, धार्मिक सुधारक और साहित्यिक ने द इन्क्वायरर को प्रकाशित करना शुरू कर दिया। उसी वर्ष उनकी नाटक, द सताया हुआ: या, कलकत्ता में वर्तमान हिंदू समाज की नाटकीय दृश्यों का चित्रण किया गया था। यह कुछ प्रचलित सामाजिक प्रथाओं के मोनोटोनिक रूप से महत्वपूर्ण था। महाविद्यालय में वे स्कॉटिश ईसाई मिशनरी, अलेक्जेंडर डफ के व्याख्यान में शामिल थे, जो १८३० में भारत आए थे। उनके पिता १८२८ में हैजा से मर गए ईसाई धर्म के लिए रूपांतरण १८२९ में अपने अध्ययन के पूरा होने पर, बनर्जी एक सहायक शिक्षक के रूप में पातालडंगा स्कूल में शामिल हो गए १८३२ में, वह सिकंदर डफ के प्रभाव में, ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया। अपने रूपांतरण के परिणामस्वरूप, उन्होंने डेविड हैरे के विद्यालय में अपनी नौकरी खो दी और उनकी पत्नी, बिन्दोबाशिनी बनर्जी को अपने पिता के घर लौटने के लिए मजबूर किया गया, केवल बाद में उनके जीवन में शामिल होने के लिए। फिर भी, वह बाद में चर्च मिशनरी सोसायटी स्कूल के हेडमास्टर बने। जब मिशनरी समाज ने कोलकाता में अपनी परोपकारी गतिविधियों को शुरू किया था, तो बनर्जी मसीह चर्च का पहला बंगाली पुरूष बने जहां उन्होंने बंगाली में उपदेश देने का प्रयोग किया उन्होंने अपनी पत्नी, उनके भाई काली मोहन और प्रसन्न कुमार टैगोर के पुत्र गणेंद्र मोहन टागोर को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया। इसके बाद, गणेंद्र मोहन ने अपनी बेटी कमलाणी से शादी की और एक बैरिस्टर के रूप में अर्हता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बन गए। वह माइकल मधुसूदन दत्त के रूपांतरण में भी सहायक थे। बाद का जीवन १८५२ में, कृष्ण मोहन को कोलकाता के बिशप कॉलेज में ओरिएंटल अध्ययन के प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। उन्होंने १८३६ और १८३ ९ के बीच एक ही कॉलेज के छात्र के रूप में ईसाई धर्म के पहलुओं का अध्ययन किया था। १८६४ में उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर के साथ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी का सदस्य चुना गया। १८७६ में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की डिग्री के साथ सम्मानित किया। सम्मानित कृष्ण मोहन बनर्जी का कोलकाता में ११ मई १८८५ को निधन हो गया, और शिबपुर में दफनाया गया। उन्होंने एक १३-खंड अंग्रेजी-बंगाली रूपांतरण, एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, विद्याकालपद्रम या ऐन्सायक्लोपीडिया बंगालसिस (१८४६-५१) प्रकाशित किया। उन्होंने १८३७ में एक भारतीय अंग्रेजी नाटक "द सताते हुए" लिखा। उनके अन्य कार्यों में द एरियन गेट्स (१८७५), हिंदू दर्शनशास्त्र (१८६१) पर संवाद, और ईसाई धर्म और हिंदू धर्म के बीच संबंध (१८८१) शामिल हैं। सियालदह दक्षिण लाइनों में कृष्णमोहन हॉल्ट नामक एक स्टेशन बरूईपुर - लक्ष्मीकांतपुर मार्ग रेव कृष्ण मोहन बनर्जी के यादों में चिह्नित है। त. व. फिलिप, कृष्ण मोहन बनर्जिया, ईसाई धर्ममण्डक (१९८२) लालकृष्ण बागों, के अग्रदूतों में स्वदेशी ईसाई धर्म (१९६९) संसद बंगाली चरितभिधान (जीवनी शब्दकोश) बंगाली में संपादित सुबोध चन्द्र सेनगुप्ता और अंजली बोस तट्वाबोधिनी पत्रिका और बंगाल पुनर्जागरण के द्वारा अमिय कुमार सेन १८८५ में निधन
मोहनपुर नाथनगर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
सक्सिनिक अम्ल (सुक्सिनिक एसिड) ऐवर में यह अम्ल तीन से चार प्रतिशत तक पाया जाता है। सक्सिनिक शब्द लैटिन के सक्सिनम (सुक्सिनम) से निकला है, जिसका अर्थ होता है ऐबर। इसका इउपाक नाम है ब्यूतेनिडिओइक अम्ल (ब्युटानेडियोइक एसिड)। ऐतिहासिक रूप से इसे 'स्पिरिट ऑफ ऐम्बर (स्पिरिट ऑफ आम्बर) कहा जाता रहा है। वस्तुत: यह एक डाइकार्बोजिलिक अम्ल (डिकार्बॉक्सिलिक एसिड) है। साइट्रिक अम्ल-चक्र में सक्सिनेट एक जैवरासायनिक भूमिका अदा करता है। अन्य रेज़िनों, लिग्नाइट, काष्टाश्म और अनेक पेड़ों में यह पाया जाता है। अंगूर, चुकंदर, गूजंकेरी तथा रेवंद चीनी के रसों में भी यह रहता है। प्राणी जगत् में भी यह थाइमस ग्रंथि (थाइमस ग्लैंड) और प्लीहा (स्प्लीन) में पाया जाता है। अनेक पदार्थो से, जैसे अमोनियम टाट्रेंट व कैल्सियम मैलेट के जीवाणु किण्वन से तथा वसा या वसाम्लों के ऑक्सीकरण से भी यह बनता है। एथिलीन गैस से इसका संश्लेषण हुआ है। बेंजीन के ऑक्सीकरण से मैलेइक अम्ल बनता है और मैलेइक अम्ल के ऑक्सीकरण से सक्सिनिक अम्ल प्राप्त हो सकता है। सक्सिनिक अम्ल द्विक्षारक अम्ल है। इसका संरचनासूत्र निम्नलिखित है : यह संतृप्त ठोस अम्ल है। इसका प्रिज़्म के आकार का रंगहीन क्रिस्टल बनता है, जो १८३ डिग्री सें. पर पिघलता है और जिसका द्रव २३५ डिग्री सें. पर उबलता है। इसमें बंद श्रृंखला यौगिक बनने की प्रवृति है। इसके वाष्प से जल निकल जाने पर, यह सक्सिनिक ऐनहाइड्राइड बनाता है। इसके अमोनियम लवण को तपाने से सक्सिनिमाइड प्राप्त होता है। सविसनिमाइड को जस्ते की धूल के साथ आसुत करने से पाइरोल बनता है। सक्सिनिक अम्ल को फ़ॉस्फ़ोरस ट्राइसल्फाइड के साथ गरम करने से थोयोफ़ोन बनता है। सक्सिनिक अम्ल जल में विलेय होता है। इसकी क्षारीय धातुओं और क्षारीय मृत्तिका धातुओं के लवण भी जल में विलेय होते हैं। बेरियम लवण ऐल्कोहॉल में अविलेय होता है। लोहे का लवण जल में अविलेय होता है।
एक सह्न (सेहन), (अरबी: ), इस्लामी वास्तुकला में एक आंगन है। अधिकांश पारंपरिक मस्जिदों में एक बड़ा केंद्रीय साहन होता है, जो चारों तरफ से एक रिवाक या आर्केड से घिरा होता है। पारंपरिक इस्लामी डिजाइन में, निवास और पड़ोस में निजी सह्न हो सकते हैं। इस्लामिक और अरब वास्तुकला में, साहन प्रांगण धार्मिक इमारतों और पूरे अरब दुनिया में और उससे परे, शहरी और ग्रामीण सेटिंग्स में उपयोग किया जाने वाला एक सामान्य तत्व है। क्लोइस्ट यूरोपीय मध्ययुगीन वास्तुकला और इसकी धार्मिक इमारतों में इसके समकक्ष है। मूल रूप से, सहन आवास के लिए उपयोग किया जाता था, एक निवास परिसर की दीवारों के भीतर एक सुरक्षित और निजी सेटिंग के रूप में। सहर के साथ सुमेरियन उर में घरों के अवशेष उर के तीसरे राजवंश (२१००२००० ईसा पूर्व) से पाए गए हैं। ऐतिहासिक फ़ारसी उद्यान डिजाइन में सह्न निजी स्वर्ग उद्यान के लिए स्थान थे। पारंपरिक फ़ारसी वास्तुकला में, आंगन में आमतौर पर एक हाउज़ या सममितीय पूल होता था, जहाँ वुडू (इस्लामिक अभ्यारण) किया जाता था। इस्लामी वास्तुकला में सह्न का उपयोग बीसवीं सदी के मध्य तक जारी रहा, जब आधुनिकतावादी वास्तुकला ने इस्लामी संस्कृतियों के आवासीय और सार्वजनिक भवनों के डिजाइनों को प्रभावित करना शुरू कर दिया। लगभग हर ऐतिहासिक या पारंपरिक मस्जिद में एक साहन है। मध्य पूर्वी देशों की मस्जिदों में सेहन का उपयोग अधिकांश इस्लामी देशों की मस्जिद वास्तुकला के लिए किया गया था। पारंपरिक मस्जिद साहेबों को चारों तरफ से रिवाज आर्केड से घिरा हुआ है। वे फव्वारे के पानी के घाटियों, जैसे कि एक हॉज, अनुष्ठान शुद्धि के लिए वुडू (इस्लामिक एबुलेंस ) की सफाई और प्रदर्शन करते हैं, और पीने के पानी के लिए फव्वारे बहते हैं। आंतरिक प्रांगण एक धार्मिक रूप से समृद्ध वास्तुशिल्प विशेषता नहीं है, और कुछ मस्जिदें, विशेष रूप से बीसवीं शताब्दी के बाद से, एक सेहन नहीं है। आवासीय घर, एक आंगन घर का हिस्सा, सबसे निजी हैं। पैमाने और डिजाइन विवरण भिन्न होते हैं: शहरी से ग्रामीण स्थानों तक; विभिन्न क्षेत्रों और जलवायु, और विभिन्न युग और संस्कृतियां - लेकिन सुरक्षा और गोपनीयता का मूल कार्य समान हैं। साहन एक निजी उद्यान, एक सेवा यार्ड और परिवार या मनोरंजन के लिए गर्मियों के मौसम में रहने का कमरा हो सकता है। आमतौर पर घर का मुख्य द्वार सीधे साहन की ओर नहीं जाता है। यह एक टूटे या घुमावदार गलियारे के माध्यम से पहुंचा है जिसे मजाज़ कहा जाता है (अरबी:)। यह निवासियों को मेहमानों को मजलिस (अरबी: ), एक सैलून या रिसेप्शन रूम में, सेहन में देखे बिना स्वीकार करता है। यह तब एक संरक्षित और अभिलषित जगह है जहां घर की महिलाओं को सार्वजनिक रूप से आवश्यक रूप से हिजाब कपड़ों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। शहरी सेटिंग में, सह्न आमतौर पर एक रिवाक़ से घिरा होता है, और बीच में एक हौज़, या पानी का पूल होता है। निवास का इवान, तीन दीवारों का एक निजी परिवार का कमरा 'बरामदा, आमतौर पर साहन को अनदेखा करता है और इसे सीधे या सीढ़ी तक पहुंच प्रदान करता है। ऊपरी मंजिल के कमरे मशरबिया, लकड़ी की जाली से ढकी खिड़कियों के माध्यम से भी देख सकते हैं। वर्तमान स्पेन में, अल- अंदलुस के मूरिश सहन, विश्व धरोहर स्थल जैसे कि शेरों का दरबार और अल्हम्बरा महल में कोर्ट ऑफ़ मायर्टल्स शामिल हैं। पारंपरिक इस्लामिक पड़ोस में एक समर्पित केंद्रीय खुली जगह हो सकती है, एक सांप्रदायिक रूप से निजी सेहन, जिसे साहा (अरबी: ) कहा जाता है, केवल पड़ोस के निवासियों के लिए, आमतौर पर एक ही जनजाति के सदस्यों से मिलकर। सार्वजनिक खुली जगह का विचार, एक शहर के बीच में केंद्रीय, एक शहर का वर्ग या केंद्रीय मैदान, दुनिया भर की कई संस्कृतियों में ऐतिहासिक और समकालीन शहरी डिजाइन का हिस्सा है। प्राचीन उदाहरण ग्रीक एगोरा और रोमन फोरम हैं । वे विभिन्न नागरिक उपयोगों के लिए एक स्थान प्रदान कर सकते हैं, जैसे: सार्वजनिक समारोहों, समारोहों और विरोध प्रदर्शन; शहर के पार्क; खुली हवा के बाजार और त्योहार; और परिवहन लिंक। यह भी देखें इस्लामी वास्तुशिल्प तत्व इस्लामी स्थापत्य तत्व
विश्व डाक दिवस ९ अक्टूबर को मनाया जाता है। ९ अक्टूबर १८७४ को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में २२ देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था इसीकारण विश्व डाक दिवस मनाने के लिए यह दिन चुना गया।१ जुलाई, १८७6 को भारत यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना तथा भारत में पहली बार वर्ष १766 में डाक व्यवस्था की शुरूआत की गई, वर्तमान में भारतीय डाक विभाग की स्थिति इस प्रकार से है १50 वर्षों से अधिक पुरानी इस संस्था में डेढ़ लाख से अधिक पोस्ट ऑफिस है जिनमें से ८९.८७% ग्रामीण क्षेत्रों में है तथा औसतन 2१.२३ वर्ग किलोमीटर में यह लगभग ८०८६ जनसंख्या को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना १ अक्तूबर, १854 को हुई।भारतीय डाक विभाग ९ से १4 अक्टूबर के बीच विश्व डाक सप्ताह मनाता है।वर्ष १766 में भारत में पहली बार डाक व्यवस्था का प्रारंभ हुआ,वारेन हेस्टिंग्स में कोलकाता में प्रथम डाकघर वर्ष १774 को स्थापित किया। भारत में सन १852 में प्रथम बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरुआत हुई तथा महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला डाक टिकट १ अक्टूबर सन १854 को जारी किया गया। भारत में अब तक का सबसे बड़ा डाक टिकट पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर २० अगस्त सन १९९१ को जारी किया गया था। ब्रिटेन में डाक विभाग की स्थापना वर्ष १५१६ में हुई थी ब्रिटेन में इसे रॉयल मेल के नाम से जाना जाता है जिसका मुख्यालय इंग्लैंड में बनाया गया है। अमेरिकी डाक विभाग को यूएस मेल के नाम से जाना जाता है जिसकी स्थापना वर्ष १७७५ में हुई थी। फ्रांस के डाक विभाग को ला पोस्ट ए के नाम से जाना जाता है वर्ष १५७६ में स्थापित डाक विभाग का मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है। डूटस्चे पोस्ट के नाम से जानी जाने वाली जर्मन डाक विभाग का हेड क्वार्टर बॉन में बना हुआ है। दक्षिणी एशियाई देशों में स्थित [[श्रीलंका\\ के डाक विभाग का नाम श्रीलंका पोस्ट है वर्ष १८८२ में बने इस डाक विभाग का मुख्यालय श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में है इसी तरह पाकिस्तान में स्थित डाक विभाग जिसे वर्ष १९४७ में प्रारंभ किया गया था इसे पाकिस्तान पोस्ट कहा जाता है एवं इसका मुख्यालय इस्लामाबाद में है. विश्व डाक दिवस सबंधित जानकारी विश्व डाक दिवस प्रत्येक वर्ष ९ अक्टूबर को मनाया जाता है। विश्व डाक दिवस को स्विट्जरलैंड के बर्न में १८७४ ईस्वी में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की याद में मनाया जाता है। विश्व डाक दिवस का उद्देश्य लोगों और व्यवसायों के रोजमर्रा के जीवन में पोस्ट की भूमिका के साथ-साथ वैश्विक, सामाजिक और आर्थिक विकास में इसके योगदान के लिए जागरूकता लाना है। विश्व डाक दिवस को १९६९ ईस्वी में जापान के टोकियो में आयोजित यूपीयू कांग्रेस में विश्व पोस्ट दिवस के रूप में आयोजित किए जाने के लिए चुना गया था। यपीयू पूरी दुनिया में संचार क्रांति के उद्देश्यों पर यह ध्यान में रखते हुए केन्द्रित रहता है की लोग एक-दूसरे को पत्र लिखें और अपने विचारों को साझा कर सकें। यपीयू के सदस्य देशों को इस समारोह का जश्न मनाने के लिए अपनी खुद की राष्ट्रीय गतिविधियों को आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसमें डाकघरों, मेल केंद्रों और डाक संग्रहालयों में खुले दिनों के संगठन के लिए नए डाक उत्पादों और सेवाओं के परिचय या प्रचार आदि सब कुछ शामिल है। यपीयू दुनिया भर में प्रदर्शन के लिए पोस्टर और डिजाइन वितरित करके अपने विश्व डाक दिवस के साथ जागरूकता की सुविधा प्रदान करता है। विश्व डाक दिवस एक विशेष विषय द्वारा निर्देशित नहीं है, लेकिन उपू के नवीनतम पोस्टर डिजाइन उपू के तीन रणनीतिक स्तंभों:- नवाचार, एकीकरण और समावेश का प्रतीक हैं। १ जुलाई, १876 में भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था। इस सदस्यता को लेने वाला भारत एशिया का पहला देश है। १ अक्टूबर, १854 में भारत सरकार ने डाक के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की थी। भारत में पहला पोस्ट ऑफिस कोलकाता में १७७४ में खोला गया था, भारत में स्पीड पोस्ट की शुरूवात १९८६ में की गई थी। भारत में मनी आर्डर सिस्टम की शुरूवात १८८० हुई। दक्षिण गंगोत्री अंटार्कटिका भारत का पहला डाकघर है जो भारतीय सीमा के बाहर है जिसकी स्थापना १९८३ में की गई थी।
तिप्पू एक्स्प्रेस २६१४ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन बंगलौर सिटी जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:सब) से ०२:१५प्म बजे छूटती है और मैसूर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:मिस) पर ०४:४५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है २ घंटे ३० मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
तरसारा इगलास, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
२०१४ आईसीसी महिला ट्वेंटी-२० विश्व कप के चौथे आईसीसी महिला ट्वेंटी-२० विश्व कप प्रतियोगिता थी, २३ मार्च से ६ अप्रैल २०१४ बांग्लादेश में हो रहे। टूर्नामेंट सिलहट और ढाका के शहरों में खेला गया था - कॉक्स बाजार मूल रूप से भी मैचों की मेजबानी करने का इरादा था, लेकिन समारोह स्थल में चल रहे विकास के कारण उपलब्ध नहीं था। टूर्नामेंट में १० टीमों के बजाय पिछले टूर्नामेंट में आठ विशेषताओं, टूर्नामेंट दी महिलाओं की टी-२० इंटरनेशनल (टी२०ई) की स्थिति में सभी मैचों के साथ। बांग्लादेश और आयरलैंड घटना है, जो पुरुषों के टूर्नामेंट के साथ समवर्ती चलाया जा रहा है पर उनकी पहली दिखावे बनाया है। ऑस्ट्रेलिया टूर्नामेंट जीता, छह विकेट से फाइनल में इंग्लैंड को हराने। पहली बार इस टूर्नामेंट में १० टीमें थे। २०१२ आईसीसी विश्व ट्वेंटी-२० और मेज़बान बांग्लादेश से शीर्ष छह टीमों के टूर्नामेंट के लिए स्वचालित रूप से योग्य। तीन अतिरिक्त टीमों आईसीसी महिला ट्वेंटी-२० विश्व कप क्वालीफायर २०13 के जरिए टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई किया। २०१२ आईसीसी विश्व ट्वेंटी-२० से शीर्ष ६ आईसीसी महिला ट्वेंटी-२० विश्व कप क्वालीफायर २०1३ से शीर्ष ३
ब्रुशरहित डीसी मोटर (ब्रुश्लेस द्क इलेक्ट्रिक मोटर या ब्ल्डक मोटर्स, ब्ल मोटर्स या )इलेक्ट्रॉनिकली कम्यूटेटेड मोटर्स (एकम्स, एक मोटर्स)) एक प्रकार के तुल्यकालिक मोटर हैं जिसमें कॉम्युटेशन के लिये ब्रुश नहीं होते बल्कि यह कार्य इन्वर्टर या स्विचिंग पॉवर सप्लाई द्वारा किया जाता है। इस मोटर का रोटर पर एक स्थायी चुम्बकीय फिल्ड लगा होता है तथा स्टेटर पर वाइंडिंग होती है जिसको इन्वर्टर/स्विचिंग पावर सप्लाई द्वारा विद्युत प्रत्यावर्ती धारा देते हैं जो जरूरी नहीं कि साइनस्वायडल हो। इस मोटर के अन्दर एक सेन्सर भी लगा होता है जो रोटर के ध्रुवों की स्थिति बताता है जिससे इस मोटर को चलाने और कन्ट्रोल करने में सहायता मिलती है। इन्हें भी देखें