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Sleeping
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[ | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[ज]\nएवं वृष्ण्यन्धककुले शरुत्वा मौसलम आहवम\nपाण्डवाः किम अकुर्वन्त तथा कृष्णे दिवं गते" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 2, | |
"text": "[वै]\nशरुत्वैव कौरवॊ राजा वृष्णीनां कदनं महत\nपरस्थाने मतिम आधाय वाक्यम अर्जुनम अब्रवीत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 3, | |
"text": "कालः पचति भूतानि सर्वाण्य एव महामते\nकर्म नयासम अहं मन्ये तवम अपि दरष्टुम अर्हसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 4, | |
"text": "इत्य उक्तः स तु कौन्तेयः कालः काल इति बरुवन\nअन्वपद्यत तद वाक्यं भरातुर जयेष्ठस्य वीर्यवान" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 5, | |
"text": "अर्जुनस्य मतं जञात्वा भीमसेनॊ यमौ तथा\nअन्वपद्यन्त तद वाक्यं यद उक्तं सव्यसाचिना" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 6, | |
"text": "ततॊ युयुत्सुम आनाय्य परव्रजन धर्मकाम्यया\nराज्यं परिददौ सर्वं वैश्य पुत्रे युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 7, | |
"text": "अभिषिच्य सवराज्ये तु तं राजानं परिक्षितम\nदुःखार्तश चाब्रवीद राजा सुभद्रां पाण्डवाग्रजः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 8, | |
"text": "एष पुत्रस्य ते पुत्रः कुरुराजॊ भविष्यति\nयदूनां परिशेषश च वज्रॊ राजा कृतश च ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 9, | |
"text": "परिक्षिद धास्तिन पुरे शक्र परस्थे तु यादवः\nवज्रॊ राजा तवया रक्ष्यॊ मा चाधर्मे मनः कृथाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 10, | |
"text": "इत्य उक्त्वा धर्मराजः स वासुदेवस्य धीमतः\nमातुलस्य च वृद्धस्य रामादीनां तथैव च" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 11, | |
"text": "मातृभिः सहधर्मात्मा कृत्वॊदकम अतन्द्रितः\nशराद्धान्य उद्दिश्य सर्वेषां चकार विधिवत तदा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 12, | |
"text": "ददौ रत्नानि वासांसि गरामान अश्वान रथान अपि\nसत्रियश च दविजमुख्येभ्यॊ गवां शतसहस्रशः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 13, | |
"text": "कृपम अभ्यर्च्य च गुरुम अर्थमानपुरस्कृतम\nशिष्यं परिक्षितं तस्मै ददौ भरतसत्तमः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 14, | |
"text": "ततस तु परकृतीः सर्वाः समानाय्य युधिष्ठिरः\nसर्वम आचष्ट राजर्षिश चिकीर्षतम अथात्मनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 15, | |
"text": "ते शरुत्वैव वचस तस्य पौरजानपदा जनाः\nभृशम उद्विग्नमनसॊ नाभ्यनन्दन्त तद वचः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 16, | |
"text": "नैवं कर्तव्यम इति ते तदॊचुस ते नराधिपम\nन च राजा तथाकार्षीत कालपर्याय धर्मवित" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 17, | |
"text": "ततॊ ऽनुमान्य धर्मात्मा पौरजानपदं जनम\nगमनाय मतिं चक्रे भरातरश चास्य ते तदा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 18, | |
"text": "ततः स राजा कौरव्यॊ धर्मपुत्रॊ युधिष्ठिरः\nउत्सृज्याभरणान्य अङ्गाज जगृहे वल्कलान्य उत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 19, | |
"text": "भीमार्जुनौ यमौ चैव दरौपदी च यशस्विनी\nतथैव सर्वे जगृहुर वल्कलानि जनाधिप" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 20, | |
"text": "विधिवत कारयित्वेष्टिं नैष्ठिकीं भरतर्षभ\nसमुत्सृज्याप्सु सर्वे ऽगनीन परतस्थुर नरपुंगवाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 21, | |
"text": "ततः पररुरुदुः सर्वाः सत्रियॊ दृष्ट्वा नरर्षभान\nपरस्थितान दरौपदी षष्ठान पुरा दयूतजितान यथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 22, | |
"text": "हर्षॊ ऽभवच च सर्वेषां भरातॄणां गमनं परति\nयुधिष्ठिर मतं जञात्वा वृष्णिक्षयम अवेष्क्य च" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 23, | |
"text": "भरातरः पञ्च कृष्णा च षष्ठी शवा चैव सप्तमः\nआत्मना सप्तमॊ राजा निर्ययौ गजसाह्वयात\nपौरैर अनुगतॊ दूरं सर्वैर अन्तःपुरैस तथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 24, | |
"text": "न चैनम अशकत कश्च चिन निवर्तस्वेति भाषितुम\nनयवर्तन्त ततः सर्वे नरा नगरवासिनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 25, | |
"text": "कृप परब्भृतयश चैव युयुत्सुं पर्यवारयन\nविवेश गङ्गां कौरव्य उलूपी भुजगात्मजा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 26, | |
"text": "चित्राङ्गदा ययौ चापि मणिपूर पुरं परति\nशिष्टाः परिक्षितं तव अन्या मातरः पर्यवारयन" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 27, | |
"text": "पाण्डवाश च महात्मानॊ दरौपदी च यशस्विनी\nकृपॊपवासाः कौरव्य परययुः पराङ्मुखास ततः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 28, | |
"text": "यॊगयुक्ता महात्मानस तयागधर्मम उपेयुषः\nअभिजग्मुर बहून देशान सरितः सागरांस तथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 29, | |
"text": "युधिष्ठिरॊ ययाव अग्रे भीमस तु तदनन्तरम\nअर्जुनस तस्य चान्व एव यमौ चैव यथाक्रमम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 30, | |
"text": "पृष्ठतस तु वरारॊहा शयामा पद्मदलेक्षणा\nदरौपदी यॊषितां शरेष्ठा ययौ भरतसत्तम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 31, | |
"text": "शवा चैवानुययाव एकः पाण्डवान परस्थितान वने\nकरमेण ते ययुर वीरा लौहित्यं सलिलार्णवम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 32, | |
"text": "गाण्डीवं च धनुर दिव्यं न मुमॊच धनंजयः\nरत्नलॊभान महाराज तौ चाक्षय्यौ महेषुधी" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 33, | |
"text": "अग्निं ते ददृशुस तत्र सथितं शैलम इवाग्रतः\nमार्गम आवृत्य तिष्ठन्तं साक्षात पुरुषविग्रहम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 34, | |
"text": "ततॊ देवः स सप्तार्चिः पाण्डवान इदम अब्रवीत\nभॊ भॊ पाण्डुसुता वीराः पावकं मा विबॊधत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 35, | |
"text": "युधिष्ठिर महाबाहॊ भीमसेन परंतप\nअर्जुनाश्वसुतौ वीरौ निबॊधत वचॊ मम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 36, | |
"text": "अहम अग्निः कुरुश्रेष्ठा मया दग्धं च खाण्डवम\nअर्जुनस्य परभावेन तथा नारायणस्य च" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 37, | |
"text": "अयं वः फल्गुनॊ भराता गाण्डीवं परमायुधम\nपरित्यज्य वनं यातु नानेनार्थॊ ऽसति कश चन" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 38, | |
"text": "चक्ररत्नं तु यत कृष्णे सथितम आसीन महात्मनि\nगतं तच चा पुनर हस्ते कालेनैष्यति तस्य ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 39, | |
"text": "वरुणाद आहृतं पूर्वं मयैतत पार्थ कारणात\nगाण्डीवं कार्मुकश्रेष्ठं वरुणायैव दीयताम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 40, | |
"text": "ततस ते भरातरः सर्वे धनंजयम अचॊदयन\nस जले पराक्षिपत तत तु तथाक्षय्यौ महेषुधी" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 41, | |
"text": "ततॊ ऽगनिर भरतश्रेष्ठ तत्रैवान्तरधीयत\nययुश च पाण्डवा वीरास ततस ते दक्षिणामुखाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 42, | |
"text": "ततस ते तूत्तरेणैव तीरेण लवणाम्भसः\nजग्मुर भरतशार्दूल दिशं दक्षिणपश्चिमम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 43, | |
"text": "ततः पुनः समावृत्ताः पश्चिमां दिशम एव ते\nददृशुर दवारकां चापि सागरेण परिप्लुताम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 44, | |
"text": "उदीचीं पुनर आवृत्त्य ययुर भरतसत्तमाः\nपरादक्षिण्यं चिकीर्षन्तः पृथिव्या यॊगधर्मिणः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[वै]\nततस ते नियतात्मान उदीचीं दिशम आस्थिताः\nददृशुर यॊगयुक्ताश च हिमवन्तं महागिरिम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 2, | |
"text": "तं चाप्य अतिक्रमन्तस ते ददृशुर वालुकार्णवम\nअवैक्षन्त महाशैलं मेरुं शिखरिणां वरम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 3, | |
"text": "तेषां तु गच्छतां शीघ्रं सर्वेषां यॊगधर्मिणाम\nयाज्ञसेनी भरष्टयॊगा निपपात महीतले" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 4, | |
"text": "तां तु परपतितां दृष्ट्वा भीमसेनॊ महाबलः\nउवाच धर्मराजानं याज्ञसेनीम अवेक्ष्य ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 5, | |
"text": "नाधर्मश चरितः कश चिद राजपुत्र्या परंतप\nकारणं किं नु तद राजन यत कृष्णा पतिता भुवि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 6, | |
"text": "[य]\nपक्षपातॊ महान अस्या विशेषेण धनंजये\nतस्यैतत फलम अद्यैषा भुङ्क्ते पुरुषसत्तम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 7, | |
"text": "[वै]\nएवम उक्त्वानवेक्ष्यैनां ययौ धर्मसुतॊ नृपः\nसमाधाय मनॊ धीमन धर्मात्मा पुरुषर्षभः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 8, | |
"text": "सहदेवस ततॊ धीमान निपपात महीतले\nतं चापि पतितं दृष्ट्वा भीमॊ राजानम अब्रवीत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 9, | |
"text": "यॊ ऽयम अस्मासु सर्वेषु शुश्रूषुर अनहंकृतः\nसॊ ऽयं माद्रवती पुत्रः कस्मान निपतितॊ भुवि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 10, | |
"text": "[य]\nआत्मनः सदृशं पराज्ञं नैषॊ ऽमन्यत कं चन\nतेन दॊषेण पतितस तस्माद एष नृपात्मजः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 11, | |
"text": "[वै]\nइत्य उक्त्वा तु समुत्सृज्य सहदेवं ययौ तदा\nभरातृभिः सह कौन्तेयः शुना चैव युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 12, | |
"text": "कृष्णां निपतितां दृष्ट्वा सहदेवं च पाण्डवम\nआर्तॊ बन्धुप्रियः शूरॊ नकुलॊ निपपात ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 13, | |
"text": "तस्मिन निपतिते वीरे नकुले चारुदर्शने\nपुनर एव तदा भीमॊ राजानम इदम अब्रवीत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 14, | |
"text": "यॊ ऽयम अक्षत धर्मात्मा भराता वचनकारकः\nरूपेणाप्रतिमॊ लॊके नकुलः पतितॊ भुवि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 15, | |
"text": "इत्य उक्तॊ भीमसेनेन परत्युवाच युधिष्ठिरः\nनकुलं परति धर्मात्मा सर्वबुद्धिमतां वरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 16, | |
"text": "रूपेण मत्समॊ नास्ति कश चिद इत्य अस्य दर्शनम\nअधिकश चाहम एवैक इत्य अस्य मनसि सथितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 17, | |
"text": "नकुलः पतितस तस्माद आगच्छ तवं वृकॊदर\nयस्य यद विहितं वीर सॊ ऽवश्यं तद उपाश्नुते" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 18, | |
"text": "तांस तु परपतितान दृष्ट्वा पाण्डवः शवेतवाहनः\nपपात शॊकसंतप्तस ततॊ ऽनु परवीरहा" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 19, | |
"text": "तस्मिंस तु पुरुषव्याघ्रे पतिते शक्र तेजसि\nमरियमाणे दुराधर्षे भीमॊ राजानम अब्रवीत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 20, | |
"text": "अनृतं न समराम्य अस्य सवैरेष्व अपि महात्मनः\nअथ कस्य विकारॊ ऽयं येनायं पतितॊ भुवि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 21, | |
"text": "[य]\nएकाह्ना निर्दहेयं वै शत्रून इत्य अर्जुनॊ ऽबरवीत\nन च तत कृतवान एष शूरमानी ततॊ ऽपतत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 22, | |
"text": "अवमेने धनुर गराहान एष सर्वांश च फल्गुनः\nयथा चॊक्तं तथा चैव कर्तव्यं भूतिम इच्छता" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 23, | |
"text": "[वै]\nइत्य उक्त्वा परस्थितॊ राजा भीमॊ ऽथ निपपात ह\nपतितश चाब्रवीद भीमॊ धर्मराजं युधिष्ठिरम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 24, | |
"text": "भॊ भॊ राजन्न अवेक्षस्व पतितॊ ऽहं परियस तव\nकिंनिमित्तं च पतितं बरूहि मे यदि वेत्थ ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 25, | |
"text": "[य]\nअतिभुक्तं च भवता पराणेन च विकत्थसे\nअनवेक्ष्य परं पार्थ तेनासि पतितः कषितौ" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 26, | |
"text": "[वै]\nइत्य उक्त्वा तं महाबाहुर जगामानवलॊकयन\nशवा तव एकॊ ऽनुययौ यस ते बहुशः कीर्तितॊ मया" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[वै]\nततः संनादयञ शक्रॊ दिवं भूमिं च सर्वशः\nरथेनॊपययौ पार्थम आरॊहेत्य अब्रवीच च तम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 2, | |
"text": "स भरातॄन पतितान दृष्ट्वा धर्मराजॊ युधिष्ठिरः\nअब्रवीच छॊकसंतप्तः सहस्राक्षम इदं वचः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 3, | |
"text": "भरातरः पतिता मे ऽतर आगच्छेयुर मया सह\nन विना भरातृभिः सवर्गम इच्छे गन्तुं सुरेश्वर" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 4, | |
"text": "सुकुमारी सुखार्हा च राजपुत्री पुरंदर\nसास्माभिः सह गच्छेत तद भवान अनुमन्यताम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 5, | |
"text": "[इन्द्र]\nभरातॄन दरक्ष्यसि पुत्रांस तवम अग्रतस तरिदिवं गतान\nकृष्णया सहितान सर्वान मा शुचॊ भरतर्षभ" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 6, | |
"text": "निक्षिप्य मानुषं देहं गतास ते भरतर्षभ\nअनेन तवं शरीरेण सवर्गं गन्ता न संशयः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 7, | |
"text": "[य]\nअथ शवा भूतभाव्येश भक्तॊ मां नित्यम एव ह\nस गच्छेत मया सार्धम आनृशंस्या हि मे मतिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 8, | |
"text": "[इन्द्र]\nअमर्त्यत्वं मत सामत्वं च राजञ; शरियं कृत्स्नां महतीं चैव कीर्तिम\nसंप्राप्तॊ ऽदय सवर्गसुखानि च तवं; तयज शवानं नात्र नृशंसम अस्ति" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 9, | |
"text": "[य]\nअनार्यम आर्येण सहस्रनेत्र; शक्यं कर्तुं दुष्करम एतद आर्य\nमा मे शरिया संगमनं तयास्तु; यस्याः कृते भक्त जनं तयजेयम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 10, | |
"text": "[इन्द्र]\nसवर्गे लॊके शववतां नास्ति धिष्ण्यम; इष्टापूर्तं करॊधवशा हरन्ति\nततॊ विचार्य करियतां धर्मराज; तयज शवानं नात्र नृशंसम अस्ति" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 11, | |
"text": "[य]\nभक्त तयागं पराहुर अत्यन्तपापं; तुल्यं लॊके बरह्म वध्या कृतेन\nतस्मान नाहं जातु कथं चनाद्य; तयक्ष्याम्य एनं सवसुखार्थी महेन्द्र" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 12, | |
"text": "[इन्द्र]\nशुना दृष्टं करॊधवशा हरन्ति; यद दत्तम इष्टं विवृतम अथॊ हुतं च\nतस्माच छुनस तयागम इमं कुरुष्व; शुनस तयागात पराप्यसे देवलॊकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 13, | |
"text": "तयक्त्वा भरातॄन दयितां चापि कृष्णां; पराप्तॊ लॊकः कर्मणा सवेन वीर\nशवानं चैनं न तयजसे कथं नु; तयागं कृत्स्नं चास्थितॊ मुह्यसे ऽदय" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 14, | |
"text": "[य]\nन विद्यते संधिर अथापि विग्रहॊ; मृतैर मर्त्यैर इति लॊकेषु निष्ठा\nन ते मया जीवयितुं हि शक्या; तस्मात तयागस तेषु कृतॊ न जीवताम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 15, | |
"text": "परतिप्रदानं शरणागतस्य; सत्रिया वधॊ बराह्मणस्व आपहारः\nमित्रद्रॊहस तानि चत्वारि शक्र; भक्त तयागश चैव समॊ मतॊ मे" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 16, | |
"text": "[वै]\nतद धर्मराजस्य वचॊ निशम्य; धर्मस्वरूपी भगवान उवाच\nयुधिष्ठिरं परति युक्तॊ नरेन्द्रं; शलक्ष्णैर वाक्यैः संस्तव संप्रयुक्तैः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 17, | |
"text": "अभिजातॊ ऽसि राजेन्द्र पितुर वृत्तेन मेधया\nअनुक्रॊशेन चानेन सर्वभूतेषु भारत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 18, | |
"text": "पुरा दवैतवने चासि मया पुत्र परीक्षितः\nपानीयार्थे पराक्रान्ता यत्र ते भरातरॊ हताः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 19, | |
"text": "भीमार्जुनौ परित्यज्य यत्र तवं भरातराव उभौ\nमात्रॊः साम्यम अभीप्सन वै नकुलं जीवम इच्छसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 20, | |
"text": "अयं शवा भक्त इत्य एव तयक्तॊ देव रथस तवया\nतस्मात सवर्गे न ते तुल्यः कश चिद अस्ति नराधिप" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 21, | |
"text": "अतस तवाक्षया लॊकाः सवशरीरेण भारत\nपराप्तॊ ऽसि भरतश्रेष्ठ दिव्यां गतिम अनुत्तमाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 22, | |
"text": "ततॊ धर्मश च शक्रश च मरुतश चाश्विनाव अपि\nदेवा देवर्षयश चैव रथम आरॊप्य पाण्डवम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 23, | |
"text": "परययुः सवैर विमानैस ते सिद्धाः कामविहारिणः\nसर्वे विरजसः पुण्याः पुण्यवाग बुद्धिकर्मिणः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 24, | |
"text": "स तं रथं समास्थाय राजा कुरुकुलॊद्वहः\nऊर्ध्वम आचक्रमे शीघ्रं तेजसावृत्य रॊदसी" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 25, | |
"text": "ततॊ देव निकायस्थॊ नारदः सर्वलॊकवित\nउवाचॊच्चैस तदा वाक्यं बृहद वादी बृहत तपाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 26, | |
"text": "ये ऽपि राजर्षयः सर्वे ते चापि समुपस्थिताः\nकीर्तिं परच्छाद्य तेषां वै कुरुराजॊ ऽधितिष्ठति" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 27, | |
"text": "लॊकान आवृत्य यशसा तेजसा वृत्तसंपदा\nसवशरीरेण संप्राप्तं नान्यं शुश्रुम पाण्डवात" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 28, | |
"text": "नारदस्य वचः शरुत्वा राजा वचनम अब्रवीत\nदेवान आमन्त्र्य धर्मात्मा सवपक्षांश चैव पार्थिवान" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 29, | |
"text": "शुभं वा यदि वा पापं भरातॄणां सथानम अद्य मे\nतद एव पराप्तुम इच्छामि लॊकान अन्यान न कामये" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 30, | |
"text": "राज्ञस तु वचनं शरुत्वा देवराजः पुरंदरः\nआनृशंस्य समायुक्तं परत्युवाच युधिष्ठिरम" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 31, | |
"text": "सथाने ऽसमिन वस राजेन्द्र कर्मभिर निर्जिते शुभैः\nकिं तवं मानुष्यकं सनेहम अद्यापि परिकर्षसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 32, | |
"text": "सिद्धिं पराप्तॊ ऽसि परमां यथा नान्यः पुमान कव चित\nनैव ते भरातरः सथानं संप्राप्ताः कुरुनन्दन" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 33, | |
"text": "अद्यापि मानुषॊ भावः सपृशते तवां नराधिप\nसवर्गॊ ऽयं पश्य देवर्षीन सिद्धांश च तरिदिवालयान" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 34, | |
"text": "युधिष्ठिरस तु देवेन्द्रम एवं वादिनम ईश्वरम\nपुनर एवाब्रवीद धीमान इदं वचनम अर्थवत" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 35, | |
"text": "तैर विना नॊत्सहे वस्तुम इह दैत्य निबर्हण\nगन्तुम इच्छामि तत्राहं यत्र मे भरातरॊ गताः" | |
}, | |
{ | |
"book": 17, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 36, | |
"text": "यत्र सा बृहती शयामा बुद्धिसत्त्वगुणान्विता\nदरौपदी यॊषितां शरेष्ठा यत्र चैव परिया मम" | |
} | |
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