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20231101.hi_6283_12
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नाटक
पात्रों का सजीव और प्रभावशाली चरित्र ही नाटक की जान होता है। कथावस्तु के अनुरूप नायक धीरोदात्त, धीर ललित, धीर शांत या धीरोद्धत हो सकता है।
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8,782.34806
20231101.hi_6283_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
नाटक
सामाज के हृदय में रस का संचार करना ही नाटक का उद्देश्य होता है। भारतीय दृष्टिकोण सदा आशावादी रहा है इसलिए संस्कृत के प्रायः सभी नाटक सुखांत रहे हैं। पश्चिम नाटककारों का मत है कि नाटककार पौराणिक या ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करने के उद्देश्य से नाटक नहीं लिखता अपितु उसके मध्यम से वह कुछ मुल्यों एवं आदर्शों को प्रस्तुत करता है तथा पाश्चात्य साहित्यकारों ने साहित्य को जीवन की व्याख्या मानते हुए उसके प्रति यथार्थ दृष्टिकोण को अपनाया है उसके प्रभाव से हमारे यहां भी कई नाटक दुखांत में लिखे गए हैं , किंतु सत्य है कि उदास पात्रों के दुखांत अंत से मन खिन्न हो जाता है। अतः दुखांत नाटको का प्रचार कम होना चाहिए।
0.5
8,782.34806
20231101.hi_6283_14
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
नाटक
नाटक सर्वसाधारण की वस्तु है अतः उसकी भाषा शैली सरल , स्पष्ट और सुबोध होनी चाहिए , जिससे नाटक में प्रभाविकता का समावेश हो सके तथा दर्शक को क्लिष्ट भाषा के कारण बौद्धिक श्रम ना करना पड़े अन्यथा रस की अनुभूति में बाधा पहुंचेगी। अतः नाटक की भाषा सरल व स्पष्ट रूप में प्रवाहित होनी चाहिए।
0.5
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20231101.hi_6283_15
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नाटक
देशकाल वातावरण के चित्रण में नाटककार को युग अनुरूप के प्रति विशेष सतर्क रहना आवश्यक होता है। पश्चिमी नाटक में देशकाल के अंतर्गत संकलनअत्र समय स्थान और कार्य की कुशलता का वर्णन किया जाता है। वस्तुतः यह तीनों तत्त्व ‘ यूनानी रंगमंच ‘ के अनुकूल थे। जहां रात भर चलने वाले लंबे नाटक होते थे और दृश्य परिवर्तन की योजना नहीं होती थी। परंतु आज रंगमंच के विकास के कारण संकलन का महत्त्व समाप्त हो गया है। भारतीय नाट्यशास्त्र में इसका उल्लेख ना होते हुए भी नाटक में स्वाभाविकता , औचित्य तथा सजीवता की प्रतिष्ठा के लिए देशकाल वातावरण का उचित ध्यान रखा जाता है। इसके अंतर्गत पात्रों की वेशभूषा तत्कालिक धार्मिक , राजनीतिक , सामाजिक परिस्थितियों में युग का विशेष स्थान है। अतः नाटक के तत्वों में देशकाल वातावरण का अपना महत्त्व है।
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20231101.hi_6283_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
नाटक
नाटक में नाटकार के पास अपनी और से कहने का समय नहीं रहता। वह संवादों द्वारा ही वस्तु का उदघाटन तथा पात्रों के चरित्र का विकास करता है। अतः इसके संवाद सरल , सुबोध , स्वभाविक तथा पात्रअनुकूल होने चाहिए। गंभीर दार्शनिक विषयों से इसकी अनुभूति में बाधा होती है। इसलिए इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। नीर सत्ता के निरावरण तथा पात्रों की मनोभावों की मनोकामना के लिए कभी-कभी स्वागत कथन तथा गीतों की योजना भी आवश्यक समझी गई है।
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8,782.34806
20231101.hi_934_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
कोलकाता
बहुत से बांग्ला समाचार-पत्र यहां प्रकाशित होते हैं, जिनमें आनंद बाजार पत्रिका, आजकल, बर्तमान, संगबाद प्रतिदिन, गणशक्ति तथा दैनिक स्टेट्स्मैन प्रमुख हैं। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में द टेलीग्राफ, द स्टेट्स्मैन, एशियन एज, हिन्दुस्तान टाइम्स एवं टाइम्स ऑफ इंडिया प्रमुख हैं। कुछ मुख्य सामयिक पत्रिकाओं में से देश, सनंद, उनिश कुरी, किंड्ल, आनंदलोक तथा आनंद मेला प्रमुख हैं। पूर्वी भारत में सबसे बड़े व्यापारिक केन्द्र होने से कई वित्तीय दैनिक जैसे इकॉनोमिक टाइम्स, फाइनेंशियल एक्स्प्रेस तथा बिज़नेस स्टैन्डर्ड आदि के पर्याप्त पाठक हैं। यहां के अन्य भाषाओं के अल्पसंख्यकों के लिए हिन्दी, गुजराती, उड़िया, उर्दु, पंजाबी तथा चीनी पत्र भी प्रकाशित होते हैं।
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8,773.699799
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कोलकाता
यहां सरकारी रेडियो स्टेशन ऑल इंडिया रेडियो से कई ए एम रेडियो चैनल प्रसारित करता है। कोलकाता में ग्यारह एफ़ एम रेडियो स्टेशन प्रसारित होते हैं। इनमें से दो ऑल इंडिया रेडियो के हैं। सरकारी टीवी प्रसारणकर्ता दूरदर्शन से दो टेरेस्ट्रियल चैनल प्रसारित किये जाते हैं। चार बहु-प्रणाली ऑपरेटार (एम एस ओ) द्वारा बांग्ला, हिन्दी, अंग्रेज़ी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के चैनल केबल टीवी द्वारा दिखाए जाते हैं। बांग्ला उपग्रह चैनलों में एबीपी आनंद, २४ घंटा, कोलकाता टीवी, चैनल १० तथा तारा न्यूज़ प्रमुख हैं।
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कोलकाता
कोलकाता में जन यातायात कोलकाता उपनगरीय रेलवे, कोलकाता मेट्रो, ट्राम और बसों द्वारा उपलब्ध है। व्यापक उपनगरीय जाल सुदूर उपनगरीय क्षेत्रों तक फैला हुआ है। भारतीय रेल द्वारा संचालित कोलकाता मेट्रो भारत में सबसे पुरानी भूमिगत यातायात प्रणाली है। ये शहर में उत्तर से दक्षिण दिशा में हुगली नदी के समानांतर शहर की लंबाई को १६.४५ कि.मी. में नापती है। यहां के अधिकांश लोगों द्वारा बसों को प्राथमिक तौर पर यातायात के लिए प्रयोग किया जाता है। यहां सरकारी एवं निजी ऑपरेटरों द्वारा बसें संचालित हैं। भारत में कोलकाता एकमात्र शहर है, जहाँ ट्राम सेवा उपलब्ध है। ट्राम सेवा कैल्कटा ट्रामवेज़ कंपनी द्वारा संचालित है। ट्राम मंद-गति चालित यातायात है, व शहर के कुछ ही क्षेत्रों में सीमित है। मानसून के समय भारी वर्षा के चलते कई बार लोक-यातायात में व्यवधान पड़ता है।
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कोलकाता
भाड़े पर उपलब्ध यांत्रिक यातायात में पीली मीटर-टैक्सी और ऑटो-रिक्शॉ हैं। कोलकाता में लगभग सभी पीली टैक्सियाँ एम्बेसैडर ही हैं। कोलकाता के अलावा अन्य शहरों में अधिकतर टाटा इंडिका या फिएट ही टैसी के रूप में चलती हैं। शहर के कुछ क्षेत्रों में साइकिल-रिक्शा और हाथ-चालित रिक्शा अभी भी स्थानीय छोटी दूरियों के लिए प्रचालन में हैं। अन्य शहरों की अपेक्षा यहां निजी वाहन काफ़ी कम हैं। ऐसा अनेक प्रकारों के लोक यातायात की अधिकता के कारण है। हालांकि शहर ने निजी वाहनों के पंजीकरण में अच्छी बड़ोत्तरी देखी है। वर्ष २००२ के आंकड़ों के अनुसार पिछले सात वर्षों में वाहनों की संख्या में ४४% की बढ़त दिखी है। शहर के जनसंख्या घनत्व की अपेक्षा सड़क भूमि मात्र ६% है, जहाँ दिल्ली में यह २३% और मुंबई में १७% है। यही यातायात जाम का मुख्य कारण है। इस दिशा में कोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है।
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20231101.hi_934_24
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कोलकाता
कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता रेलवे स्टेशन नाम से एक नया स्टेशन २००६ में बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे।
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कोलकाता
शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है। यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है।
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कोलकाता
कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगून, बैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। सड़कों पर नीजी बसों के साथ साथ पश्चिम बंगाल यातायात परिवहन निगम की भी काफी बसें चलती हैं। शहर की सड़कों पे काली-पीली टैक्सियाँ चलती हैं। धुंएँ, धूल और प्रदूषण से राहत शहर के किसी किसी इलाके में ही मिलती है।
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कोलकाता
कोलकाता में कोलकाता विश्वविद्यालय समेत कई नामचीन शैक्षिक संस्थान एवं हमाविद्यालय हैं यहाँ चार मेडिकल कालेज भी हैं। अस्सी के दशकों के बाद कलकत्ता की शैक्षिक हैसियत में गिरावट हुई लेकिन कोलकाता अब भी शैक्षिक माहौल के लिये जाना जाता है। कोलकाता विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय, नेताजी सुभाष मुक्त विश्वविद्यालय, बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय,पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल पशुपालन एवं मतस्य पालन विज्ञान विश्वविद्यालय,
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कोलकाता
पश्चिम बंगाल तकनीकी विश्वविद्यालय कोलकाता के विभिन्न भागों में स्थित हैं। इन विश्वविद्यालयों से सैकड़ो महाविद्यालय संबद्ध एवं अंगीभूत इकाई के रूप में काम करते हैं। एशियाटिक सोसायटी, भारतीय साँख्यिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, मेघनाथ साहा आण्विक भौतिकी संस्थान, सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान राष्ट्रीय महत्व के संस्थान हैं। अन्य उल्लेखनीय संस्थानों मेंरामकृष्ण मिशन संस्कृति संस्थान, एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, बोस संस्थान, बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इनफार्मेशन टेक्नालजी, राष्ट्रीय होमियोपैथी संस्थान, श्रीरामपुर कालेज, प्रेसीडेंसी कालेज, स्काटिश चर्च कालेज प्रमुख हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जयपुर
आमेर मार्ग पर रामगढ़ मार्ग के चौराहे के पास रानियों की याद में बनी आकर्षक महारानी की कई छतरियां है। मानसागर झील के मध्य, सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा निर्मित जल महल, एक मनोहारी स्थल है। परिष्कृत मंदिरों व बगीचों वाले कनक वृंदावन भवन की पुरातन पूर्णता को विगत समय में पुनर्निर्मित किया गया है। इस सड़क के पश्चिम में गैटोर में शाही शमशान घाट है जिसमें जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह के सिवाय समस्त शासकों के भव्य स्मारक हैं। बारीक नक्काशी व लालित्यपूर्ण आकार से युक्त सवाई जयसिंह द्वितीय की बहुत ही प्रभावशाली छतरी है। प्राकृतिक पृष्ठभूमि से युक्त बगीचे आगरा मार्ग पर दीवारों से घिरे शहर के दक्षिण पूर्वी कोने पर घाटी में फैले हुए हैं।
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8,752.805478
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जयपुर
सिसोदिया रानी के बाग में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।
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जयपुर
आमेर और शीला माता मंदिर - लगभग दो शताब्दी पूर्व राजा मान सिंह, मिर्जा राजा जयसिंह और सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है। मावठा झील के शान्त पानी से यह महल सीधा उभरता है और वहाँ सुगम रास्ते द्वारा पहुंचा जा सकता है। सिंह पोल और जलेब चौक तक अक्सर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शिला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर। यहां स्थापित करने के लिए राजा मानसिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय स्तंभों वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दो मंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के प्रांगण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है, जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें। मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।
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जयपुर
पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं।
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जयपुर
मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय तोप - जयबाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते हैं। नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढाती हैं
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जयपुर
सांगानेर - (१२ किलोमीटर) - यह टोंक जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है।
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जयपुर
शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है।
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20231101.hi_1785_30
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जयपुर
गोनेर - दूरी -(17 किलोमीटर) जयपुर की छोटी काशी के उपनाम से विख्यात कस्बा। जयपुर एवं दौसा जिले के ग्रामीण अंचल के आराध्य श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर का भव्य एवं प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक प्राचीन किला, बावड़ियाँ एवं जगन्नाथ सागर तालाब स्थित है। राज्य स्तरीय राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा जिला स्तरीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान स्थित है।
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20231101.hi_1785_31
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0
जयपुर
बगरू - (34 किलोमीटर) - अजमेर मार्ग पर, पुराना किला, अभी भी अच्छी अवस्था में है। यह अपने हाथ की छपाई के हथकरघा उद्योग के लिए उल्लेखनीय है, जहां सरल तकनीको का प्रयोग होता है। इस हथकरघाओं के डिजाइन कम जटिल व मटियाले रंगो के होते है।
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8,752.805478
20231101.hi_39451_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 7 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। कब्ज होने से शौच करने में बाधा उत्पन्न होती है, पाचनतंत्र प्रभावित होता है,जिसके कारण शौच करने में बहुत पीड़ा होती होती है ,किसी को केवल गैस की समस्या होती है. किसी को खाने का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है। और आजकल कब्ज की समस्याओ से बच्चे और युवा पीढ़ी दोनों परेशान हो चुके है। व्यक्ति दो या तीन दिन तक शौच नहीं हो पाता है।तो कब्ज की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
0.5
8,579.047876
20231101.hi_39451_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है।
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8,579.047876
20231101.hi_39451_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
कम चलना या काम करना ; किसी तरह की शारीरिक मेहनत न करना; आलस्य करना; शारीरिक काम के बजाय दिमागी काम ज्यादा करना।
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20231101.hi_39451_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना: खाना खाने के बाद तुरंत पानी पीने से खाना अच्छी तरह से डाइजेस्ट नहीं हो पाता है क्योंकि खाना पचाने के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल होता है और आप अगर तुरंत पानी पी लेंगे तो यह पतला हो जाता है, जिसकी वजह से यह अच्छे से खाने को पचा नहीं पाता है और आपको कब्ज की समस्या हो जाती है।
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20231101.hi_39451_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
कब्ज होने का सबसे बड़ा कारण आपके भोजन में फाइबर की कमी, खराब जीवनशैली और शारीरिक श्रम या तनाव से दूर रहना है।
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8,579.047876
20231101.hi_39451_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
कैल्शियम और पोटेशियम की कम मात्रा या मधुमेह के रोगियों को में पाचन संबंधी समस्या चाय कॉफी बहुत ज्यादा पीना धूम्रपान करना शराब पीना गरिष्ठ पदार्थों का अर्थात देर से पचने वाले पदार्थों का सेवन ज्यादा करना।
0.5
8,579.047876
20231101.hi_39451_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
सही समय पर भोजन ना करना बदहजमी और  भोजन खूब चबा चबाकर ना करना अर्थात जबरदस्ती भोजन ठूसना जल्दबाजी में भोजन करना बगैर भूख के भोजन करना।
0.5
8,579.047876
20231101.hi_39451_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
कब्ज पाचन तंत्र की स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी व्यक्ति का मल बहुत खड़ा हो जाता है. तथा मल त्याग में कठिनाई होती है कब्ज अमाशय की स्वभाविक परिवर्तन की व्यवस्था है जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है. मल खड़ा हो जाता है उसकी आवृत्ति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है।
0.5
8,579.047876
20231101.hi_39451_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C
कब्ज
सामान्य और आवूति और आमाशय व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है. एक सप्ताह में 3 से 12 वार माल निष्कासन की प्र्किर्या को सामान्य माना जाता है।
0.5
8,579.047876
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80
सम्भाजी
छत्रपती संभाजी महाराज (संभाजी) (छत्रपति संभाजी राजे भोसले या शंभूछत्रपती; 1657-1689) मराठा सम्राट और छत्रपती शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी थे। उस समय मराठों के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगज़ेब था। बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही। संभाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये प्रसिद्ध थे।
0.5
8,571.83324
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सम्भाजी
संभाजीराजे ने अपने कम समय के शासन काल में 210 युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर औरंगज़ेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती संभाजीराजे पकड़े नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा। 11 मार्च 1689 को औरंगजेब ने छत्रपती संभाजी महाराज की बड़ी क्रूरता के साथ हत्या कर दी।
0.5
8,571.83324
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सम्भाजी
छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब जयसिंह के साथ संधि की तो उन्हे कहा गया कि औरंगजेब उन्हे पूर्ण सम्मान देगा वे अपने पुत्र संभाजी के साथ औरंगजेब से भेंट करें परंतु कपटी औरंगजेब ने उन्हें और उनके पुत्र को बंधी बना लिया और उन्हें मारने के लिए योजना बनाई।
0.5
8,571.83324
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सम्भाजी
औरंगजेब महान शिवाजी महाराज से इतना घबराता था कि उसने उन्हे कभी अपने नजदीक नहीं आने दिया। शिवाजी महाराज औरंगजेब के चरित्र से अवगत थे कि औरंगजेब उन्हे धोखे से मारने की योजना बना रहा है।
0.5
8,571.83324
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सम्भाजी
वे बीमार होने का प्रपंच कर उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु संतो के लिए मिठाई भिजवाते थे कुछ समय बाद जब औरंगजेब के सैनिक निसंदेह हो गए और मिठाई के बड़े बर्तनों की जांच ढंग से करनी बंद कर दी तब एक दिन छत्रपति शिवाजी अपने पुत्र के साथ वहा से निकल गए जब औरंगजेब को यह बात मालूम हुई उसने उन्हे उन्हे और उनके पुत्र संभाजी को पकड़ने का आदेश दिया।
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8,571.83324
20231101.hi_11571_5
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सम्भाजी
वेष दिया। आगरा से सीधे पूना की तरफ जाने के बजाय वे उत्तर मे मथुरा गए। पिता पुत्र की जोड़ी देखकर पकड़े
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सम्भाजी
जाने की संभावना है, यह जानते हुए संभाजी को मथुरा में कृष्णजी पंत के यहाँ छोड़ दिया,राजे स्वयं एक साधु
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सम्भाजी
का वेष धारण कर मथुरा से काशी की दिशा मे चल पड़े। अगस्त का महीना, घनघोर वर्षा, नदी-नाले पूरे ऊफान पर थे,
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सम्भाजी
ऐसे समय में मात्र 28 दिन में काशी, प्रयाग, गया होते हुए लगभग 2200 किमी की दूरी पार कर लगातार घुड़दौड
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
क्रोमोसोमों की संख्या के अनुसार नर तथा मादा को विषमयुग्मकी (heterogamous) या समयुग्मकी (homogamous) कहा जाता है। किसी प्राणी में नर समयुग्मकी होती है, तो किसी में मादा। पक्षियों, तितलियों, मछलियों, जलस्थलचर (amphibians) आदि में मादा विषमयुग्मकी होती है। इन प्राणियों में लिंगनिर्धारक क्रोमोसोमों को ज़ेड (Z) तथा डब्ल्यू (W) नाम दिया जाता है, जबकि अन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों में इन्हें एक्स (X) तथा वाई (Y) के नाम से संबोधित किया जाता है।
0.5
8,552.2099
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
अनेक प्राणियों में एक्स तथा वाई ही नर या मादा लिंग का निर्धारण करते हैं। जब एक्स वाला शुक्राणु मादा के अंडे से संयुक्त होता है, तब युग्मनज को दो एक्स एक्स (XX) मिलते हैं और वह मादा बनता है। किंतु जब शुक्राणु का वाई मादा के अंडे के एक्स से संयुक्त होता है, तब युग्मनज को एक्स वाई, अर्थात् विषम संख्या प्राप्त होती है और वह नर होता है। मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों के नर तथा मादा के क्रोमोसोमों में जो विभेद पाया जाता है, वह अगले पृष्ठ की सारणी में दिखाया गया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
जिस प्रकार जंतुओं में क्रोमोसोमों का अध्ययन किया गया है, उसी प्रकार वनस्पतियों में भी उनका अध्ययन किया गया है। अधिकतर बीज वाले पौधे उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं, अर्थात् उनमें नर तथा मादा लिंग एक साथ होते हैं। क्रोमोसोमों की गणना होने पर भी लिंग की चर्चा केवल नर-मादा-विश्लेषण के ही सन्दर्भ में की जाती है, क्योंकि लिंग और आनुवंशिकता की समस्या वनस्पति जगत में नहीं है। कुछ जाति में नर तथा मादा पौधे पृथक् होते हैं। ऐसे पौधों के भी एक्स (X) तथा वाई (Y) क्रोमोसोमों का पता चला है, जैसे इलोडिया कैनाडेंसिस (Elodea canadensis), मिलैंड्रियम एल्बम (Milandrium album) आदि। बीजवाला एक पौधा, फ्रेगैरिया इलैटिऑर (Fragaria elatior), चिड़ियों की भाँति क्रोमोसोम वाला (abraxas type) बतलाया जाता है। कुछ अन्य पौधों में नर विषमलिंगी (heterogametic) होते हुए भी दो वाई (Y) तथा एक एक्स (X) धारण करता है। ह्रास विभाजन (meiosis) के समय दोनों वाई (Y) तथा एक्स (X) पृथक् हो जाते हैं और दो वाई (Y) जनन कोशिका से मिलकर नर तथा एक एक्स (X) मादा भ्रूण के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी प्रकार लिंग का निर्धारण अन्य पौधों में भी होता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
प्राणियों के शरीर में कुछ ऐसी ग्रंथियाँ होती हैं जिन्हें वाहिनीहीन या अंत:स्रावी (Ductless, या Endocrine) कहा जाता है। कुछ विकसित विशेषकर कशेरुकी जंतुओं में इन ग्रंथियों के स्रावों का, जिन्हें हॉर्मोन कहते हैं, अध्ययन किया गया है। वनस्पतियों में भी हॉर्मोन होते हैं या नहीं, यह विवादग्रस्त विषय है। जंतुओं के शरीर में पाई जानेवाली ग्रंथियों के नाम हैं : पीयूष (Pituitary, या Hypophysio), पीनियल (Pineal), अवटुग्रंथि (Thyroid), पैराथाइरॉइड (Parathyroid), थाइमस (Thymus), पैक्रिअस या अग्न्याशय (Pancreas), वृक्क (Adrenal); जननग्रंथि (Gonads), नर में वृषण (Testis) तथा मादा में अंडाशय (Ovary)। इन ग्रंथियों से निकलने वाले हॉर्मोनों का अध्ययन विस्तार से किया गया है और यह पाया गया है कि नर प्राणी में पुरुषत्व (maleness) और मादा में स्त्रीत्व (femaleness) संबंधित गौण लैंगिक लक्षणों का अस्तित्व इन्हीं की क्रिया पर निर्भर करता है। जीन और क्रोमोसोम केवल यह निश्चित करते हैं कि युग्मनज नर होगा या मादा। वास्तविक पुरुषत्व और स्त्रीत्व का निर्धारण तथा उचित दिशा में उनका विकास वाहिनीहीन ग्रंथियों के स्रावों की सहायता से ही होता है। जैसे, कोई भ्रूण पुरुष के रूप में जन्म लेने वाला हो तो स्त्री हॉर्मोनों की सूई लगाकर अथवा उसे बधिया कर देने (castration) और उसके स्थान पर अंडाशय ग्रंथियों को आरोपित कर देने पर वह या तो पूर्णरूपेण स्त्री हो जाएगा, या उसमें स्त्रीत्व के लक्षण विकसित हा जाएँगे। ====
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
वनस्पतियों तथा जंतुओं का समुचित अध्ययन करने पर यह पाया गया है कि लिंग का निर्धारण नर और मादा प्रवृत्तियों का ही एकमात्र परिणाम नहीं होता। भ्रूण के विकास के साथ ही साथ नर और मादा निर्धारक तत्व भी समान रूप से ही विकसित होते हैं। कोई प्राणी नर या मादा केवल इसलिए नहीं हो जाता कि उसकी रचना विशेष संख्या वाले क्रोमोसोमों द्वारा हुई होती है, अपितु वह नर या मादा इसलिए भी हो जाता है कि उसने मादा या नर निर्धारक अन्य तत्वों को "दबा" (outweigh) दिया। सभी हॉर्मोनों का उत्पादन शरीर में होता रहता है, अत: जब स्त्रीत्व, या पुरुषत्व निर्धारक हॉर्मोन अधिक शक्तिशाली होंगे तब भ्रूण स्त्री, या पुरुष शरीर तथा प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर होगा। हॉर्मोनों के संतुलन का ही यह परिणाम होता है कि प्राणी नर या मादा के रूप में जन्म लेता है। कर्ट स्टर्न (Curt Stern) ने यह दिखलाया है कि यदि किसी स्त्री में दो एक्स के स्थान पर तीन एक्स हों, तो उसमें अपेक्षाकृत अधिक स्त्रीत्व होगा। किंतु ऐसी स्त्री देर में ऋतुवती, अत्यधिक अल्पायु और सर्वथा वंध्या होगी। इसी प्रकार गोल्डश्मिट (Goldschmidt) ने लिमैट्रिया जैपोनिका नामक (Lymantria japonica) शलभ (moth) का अध्ययन कर यह बतलाया है कि जब बलवान नरों का निर्बल कीटों से संयुग्मन होता है तब 50% सामान्य नर और 50% अंतलिंगी मादा (intersexed femal) की उत्पत्ति होती है। किंतु जब अत्यधिक सशक्त नरों का निर्बल मादाओं से संयोग होता है तब 100% नर कीट उत्पन्न होते हैं। प्रो॰ एफ.ए.ई. क्रिउ (F.A.E. Crew) भी कहते हैं कि भ्रूण के लिंग का निर्धारण केवल क्रोमोसोमों से ही न होकर, उनमें पाए जानेवाले जीनों (genes) की तथा अलिंगसूत्रों (autosomes) में पाए जाने वाले जनकों की अंतक्रिया (interaction) से भी होता है, जैसे पक्षियों में मादा विषमलिंगी एक्स वाई (XY) तथा नर समलिंगी एक्स एक्स (XX) होते हैं। कीटों में लैंगिक विभाजन जनन ग्रंथियों पर निर्भर नहीं करता। उनके मुख्य जनकात्मक लक्षण इस प्रकार होते हैं : नर एक्स ओ (XO), या एक्स वाई (XY); मादा (XX) एक्स एक्स। फिंकलर (Finkler) ने सन् 1923 में कुछ नर कीटों के मस्तक काटकर मादाओं पर तथा मादाओं के मस्तक नरों पर लगा दिए। इन प्रयोगों में यह पाया गया कि कीटों ने अपने शरीर के अनुसार नहीं अपितु मस्तक के अनुसार काम किया, अर्थात् नर मस्तक वाली मादाओं ने नर की भाँति तथा मादा मस्तकवाले नरों ने मादा की भाँति लैंगिक लक्षण प्रकट किए।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
बहुत से जन्तुओं के नर और मादा के आकार एवं स्वरूप में स्पष्ट अन्तर होता है। इसे लैंगिक द्विरूपता कहते हैं।
0.5
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
यह बतलाया जा चुका है कि लैंगिक विकास के तृतीय चरण में नर मादा के भेद प्रकट होने लग गए थे। धीरे-धीरे अंडाशय तथा वृषणों का विकास हुआ और सहायक अंग भी क्रमश: विकसित होते गए। अनेक निम्न जीवों में, तथा वनस्पतियों में भी नर तथा मादा जननांग एक ही शरीर में पाए जाते हैं। ज्यों ज्यों उच्च वर्ग की ओर बढ़ा जाएगा तो यह मिलेगा कि लिंग स्पष्ट ही पृथक् हो गए हैं और नर तथा मादा शरीर की रचना भी पृथक् है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
लैंगिक द्विरूपता का परिचित उदाहरण बोनेलिया विरिडिस (Bonellia viridis) नामक एक समुद्री कृमि है। इसकी मादा हरे रंग की तथा आकृति में बेर जैसी होती है। समुद्र के तल में पत्थरों के नीचे या उनके छिद्रों में, यह कृमि निवास करता है। वहीं से अपनी द्विशाखित (bifurcated) शुंड (proboscis) को बाहर लहराते हुए यह जीव आहार ढूँढता रहता है। नर कृमि अत्यंत सूक्ष्म होता है और जननांगों के अतिरिक्त इसके अन्य सभी अंगों का ह्रास हो गया होता है। मादा के शरीर के भीतर नर कृमि परोपजीवी की भाँति रहता है। निषेचित अंडाशय विकसित होकर जल में स्वतंत्र रूप से तैरते हुए लार्वा की भाँति होते हैं। यदि कोई लार्वा समुद्रतल में बैठ जाता है, अथवा किसी मादा के शुंड में पहुँच नहीं पाता है, तो वह मादा के रूप में विकसित होने लगता है। किंतु यदि किसी प्रकार वह मादा के शुंड में आकर्शित होकर पहुँच जाता है, तो वह नर के रूप में विकसित होता है। मादा के शुंड में बंदी बौना नर, सरकते हुए उसे मुँह में तथा वहाँ से भी धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मादा की जनन नलिका में पहुँचकर, डिंबाशयों को निषेचित करता है। निषेचित अंडाशय पुन: जल में त्याग दिए जाते हैं और स्वतंत्र रूप से लार्वा की भाँति तैरने लग जाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
लिंग
इसी प्रकार सैकुलाइना (Sacculina) नामक एक परजीवी क्रस्टेशिया (crustacea) नर तथा मादा केकड़ों पर आश्रित रहता है। गियार्ड (1887 <Ç.) तथा स्मिथ (1906 ई.) ने लिखा है कि इस क्रस्टेशिया का शरीर केकड़े के उदर में पलता है और कुछ भाग शरीर भेदकर बाहर भी निकल आता है। जिस केकड़े के शरीर में यह घुसता है, उसके जननांगों को यह चूस डालता है। इसके कारण वह वंध्या हो जाता है। अधिकांश केकड़े मर जाते हैं, कुछ नर मादा गुणों से युक्त हो जाते हैं, अथवा मादा केकड़े अंतर्लिंगी बनकर वृषण तथा डिंबाशय दोनों उत्पन्न करने लग जाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
कर्नाटक की लगभग ५६% जनसंख्या कृषि और संबंधित गतिविधियों में संलग्न है। राज्य की कुल भूमि का ६४.६%, यानि १.२३१ करोड़ हेक्टेयर भूमि कृषि कार्यों में संलग्न है। यहाँ के कुल रोपित क्षेत्र का २६.५% ही सिंचित क्षेत्र है। इसलिए यहाँ की अधिकांश खेती दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है। यहाँ भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग स्थापित किए गए हैं, जैसे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़, भारत हैवी एलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज़, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड एवं हिन्दुस्तान मशीन टूल्स आदि जो बंगलुरु में ही स्थित हैं। यहाँ भारत के कई प्रमुख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र भी हैं, जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, केन्द्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड एवं केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान। मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकैमिकल्स लिमिटेड, मंगलोर में स्थित एक तेल शोधन केन्द्र है।
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8,510.042
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
१९८० के दशक से कर्नाटक (विशेषकर बंगलुरु) सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष उभरा है। वर्ष २००७ के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक से लगभग २००० आई.टी फर्म संचालित हो रही थीं। इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। मार्च २००२ के अनुसार, कर्नाटक राज्य में विभिन्न बैंकों की ४७६७ शाखाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक शाखा औसत ११,००० व्यक्तियों की सेवा करती है। ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत १६,००० से काफी कम है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
भारत के ३५०० करोड़ के रेशम उद्योग से अधिकांश भाग कर्नाटक राज्य में आधारित है, विशेषकर उत्तरी बंगलौर क्षेत्रों जैसे मुद्दनहल्ली, कनिवेनारायणपुरा एवं दोड्डबल्लपुर, जहां शहर का ७० करोड़ रेशम उद्योग का अंश स्थित है। यहां की बंगलौर सिल्क और मैसूर सिल्क विश्वप्रसिद्ध हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95
कर्नाटक
कर्नाटक में वायु यातायात देश के अन्य भागों की तरह ही बढ़ता हुआ किंतु कहीं उन्नत है। कर्नाटक राज्य में बंगलुरु, मंगलौर, हुबली, बेलगाम, हम्पी एवं बेल्लारी विमानक्षेत्र में विमानक्षेत्र हैं, जिनमें बंगलुरु एवं मंगलौर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं। मैसूर, गुलबर्ग, बीजापुर, हस्सन एवं शिमोगा में भी २००७ से प्रचालन कुछ हद तक आरंभ हुआ है। यहां चालू प्रधान वायुसेवाओं में किंगफिशर एयरलाइंस एवं एयर डेक्कन हैं, जो बंगलुरु में आधारित हैं।
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8,510.042
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कर्नाटक
कर्नाटक का रेल यातायात जाल लगभग लंबा है। २००३ में हुबली में मुख्यालय सहित दक्षिण पश्चिमी रेलवे के सृजन से पूर्व राज्य दक्षिणी एवं पश्चिमी रेलवे मंडलों में आता था। अब राज्य के कई भाग दक्षिण पश्चिमी मंडल में आते हैं, व शेष भाग दक्षिण रेलवे मंडल में आते हैं। तटीय कर्नाटक के भाग कोंकण रेलवे नेटवर्क के अंतर्गत आते हैं, जिसे भारत में इस शताब्दी की सबसे बड़ी रेलवे परियोजना के रूप में देखा गया है। बंगलुरु अन्तर्राज्यीय शहरों से रेल यातायात द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। राज्य के अन्य शहर अपेक्षाकृत कम जुड़े हैं।
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8,510.042
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कर्नाटक
कर्नाटक में ११ जहाजपत्तन हैं, जिनमें मंगलौर पोर्ट सबसे नया है, जो अन्य दस की अपेक्षा सबसे बड़ा और आधुनिक है। मंगलौर का नया पत्तन भारत के नौंवे प्रधान पत्तन के रूप में ४ मई, १९७४ को राष्ट्र को सौंपा गया था। इस पत्तन में वित्तीय वर्ष २००६-०७ में ३ करोड़ २०.४ लाख टन का निर्यात एवं १४१.२ लाख टन का आयात व्यापार हुआ था। इस वित्तीय वर्ष में यहां कुल १०१५ जलपोतों की आवाजाही हुई, जिसमें १८ क्यूज़ पोत थे। राज्य में अन्तर्राज्यीय जलमार्ग उल्लेखनीय स्तर के विकसित नहीं हैं।
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8,510.042
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कर्नाटक
कर्नाटक के राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों की कुल लंबाइयां क्रमशः एवं हैं। कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (के.एस.आर.टी.सी) राज्य का सरकारी लोक यातायात एवं परिवहन निगम है, जिसके द्वारा प्रतिदिन लगभग २२ लाख यात्रियों को परिवहन सुलभ होता है। निगम में २५,००० कर्मचारी सेवारत हैं। १९९० के दशक के अंतिम दौर में निगम को तीन निगमों में विभाजित किया गया था, बंगलौर मेट्रोपॉलिटन ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन, नॉर्थ-वेस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन एवं नॉर्थ-ईस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन। इनके मुख्यालय क्रमशः बंगलौर, हुबली एवं गुलबर्ग में स्थित हैं।
0.5
8,510.042
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स्वास्थ्य
स्वास्थ्य नहीं सिर्फ रोगों से मुक्त होने का स्थिति होता है, बल्कि यह हमारे जीवन के सभी पहलुओं का प्रत्येक परिपेक्ष्य में सामंजस्यपूर्ण और सुखमय होना चाहिए। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नियमित चेकअप, स्वस्थ जीवनशैली, और सकारात्मक मानसिकता महत्वपूर्ण हैं।
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8,445.437912
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स्वास्थ्य
इसलिए, स्वास्थ्य को सिर्फ रोगों के अभाव में नहीं, बल्कि एक सकारात्मक और सुखमय जीवन के साथ जोड़ना चाहिए। हमें अपने शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए ताकि हम खुश, सकारात्मक, और सुरक्षित जीवन जी सकें।
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स्वास्थ्य
आयुर्विज्ञान एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो भारतीय सभ्यता में हजारों साल से प्रचलित है। इसका नाम "आयुर्वेद" संस्कृत शब्दों "आयुर" (जीवन) और "वेद" (ज्ञान) से मिलकर बना है, जिसका मतलब "जीवन का ज्ञान"।
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स्वास्थ्य
आयुर्विज्ञान का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के स्वास्थ्य और वेलनेस को प्राप्त करना और बनाए रखना है, और इसका दृष्टिकोण सामग्री, आहार, व्यायाम, और योग की बिल्कुल आवश्यकता के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य की देखभाल के तरीकों पर है। आयुर्विज्ञान व्यक्ति के तंतु, मनसिक स्वास्थ्य, और आत्मा के संतुलन को भी महत्वपूर्ण मानता है।
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स्वास्थ्य
इस पद्धति में औषधियों, जड़ी-बूटियों, मिनरल्स, और पौधों के प्रयोग का विशेष महत्व है, और यह इनके स्वास्थ्य पर प्रभाव के आधार पर चिकित्सा करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक (आयुर्वैद) रोग के कारणों की श्रेणीकरण, और उनके इलाज के लिए औषधियों और आहार का सुझाव देते हैं।
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स्वास्थ्य
आयुर्विज्ञान का माध्यम स्वास्थ्य की सदगुणवत्ता और जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एक स्वास्थ्य जीवनशैली की प्रोत्साहना देना है, जिसमें स्वस्थ आहार, योग, ध्यान, और व्यायाम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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स्वास्थ्य
आयुर्विज्ञान आज भी भारत और अन्य कई देशों में चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और लोग इसके द्वारा स्वास्थ्य सुधारने और बनाए रखने के लिए इसका उपयोग करते हैं।
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स्वास्थ्य
"वैश्विक स्वास्थ्य" (Global Health) एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से स्वास्थ्य के क्षेत्र में जानकारी, प्रक्रिया, और नीतियों का अध्ययन करने का क्षेत्र है जिसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर में लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने और सुरक्षित बनाने का प्रयास करना है।
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स्वास्थ्य
1.जीवाणुरोग: विश्वभर में बीमारियों के फैलाव को रोकने और नियंत्रित करने के लिए जीवाणुरोग के क्षेत्र में अध्ययन और प्रयास।
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8,445.437912
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल संघीय शक्ति विभाजन पर आधारित, एक संवैधानिक प्रजातंत्र है। सरकार के संसदीय व्यवस्था के साथ सरकार का जो रूप उपयोग होता है वह ऑस्ट्रेलिया का संवैधानिक राजतंत्र है।क्वीन एलिजाबेथ II ऑस्ट्रेलिया की महारानी है, उनकी भूमिका दुसरे राष्ट्रीय मंडल राज्यों के अधीश्वरो के पदो से अलग है। संघ के स्तर पर गवर्नर-जेनरल के रूप में प्रतिनिधित्व करती है और राज्य स्तर पर गवर्नर के रूप में.जो कुछ भी हो संविधान गवर्नर-जनरल को विस्तृत प्रबंधकारिणी अधिकार देती है, ये सब सामान्यत: प्रधानमंत्री के परामर्श पर ही प्रयोग होते है। प्रधानमंत्री के आदेश के बाहर जो आरक्षित आधिकार गवर्नर-जनरल को प्राप्त है उसका सबसे उल्लेखनीय प्रयोग 1975 के संवैधानिक संकट के समय विटलम सरकार की बर्खास्तगी था।
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8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
विधान सभा: राष्ट्रमंडल संसद, जिसमे महारानी, मंत्री सभा और संसद है। महारानी गवर्नर जनरल के रूप में प्रतिनिधित्व करती है, जो प्रथानुसार प्रधानमंत्री के परामर्श पर कार्यवाही करती है।
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8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
कार्यकारिणी: संघीय परिषद(गवर्नर जनरल जैसा कार्यकारिणी पार्षदों के द्वारा परामर्श दिया जाये); वास्तविकता में, पार्षद प्रधानमंत्री और राज्यमंत्री होते है।
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8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
न्यायपालिका:ऑस्ट्रेलिया उच्च न्यायालय और अन्य संघीय न्यायालये. 1986 में जब ऑस्ट्रेलिया कानून पारित हुआ तब से ब्रिटेन के न्यायिक परिषद के खुफिया समिति में ऑस्ट्रेलियाई न्यायालयों द्वारा निवेदन बंद कर दिया गया।
0.5
8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
राष्ट्रमंडल के दो सदनों के संसद में महारानी, 76 सभासदों की मंत्री सभा (ऊपरी सदन) और 150 सदस्यों की एक प्रतिनिधि सभा (निचली सदन) निहित होते है। निचली सदन के सदस्य एकल सदस्य मतदाता क्षेत्र से चुने जाते है; जिसे सामान्य तौर पर "निर्वाचन क्षेत्रों" या "सीटों" के रूप में जाना जाता है, जिसे जनसंख्या के आधार पर राज्यों को बांटा गया है, साथ में हर मूल राज्य के लिए कम से कम पांच सीटें सुनिश्चित है। मंत्री सभा में, हर राज्य बारह सभासदो द्वारा प्रतिनिधित्व किये गए है और हर प्रदेश (ऑस्ट्रेलिया प्रमुख प्रदेश और उत्तरी प्रदेश) दो के द्वारा b.दोनों सदनों के लिए चुनाव हर तीन साल में होते है, साथ-साथ सांसदों का कार्यकाल अतिव्यापी छ: वर्षो का होता है, जबकि हर चुनाव में आधे सभासदों का चुनाव होता है जब तक कि यह चक्र दोगुनी विलयन द्वारा बाधित न हो। जो पार्टी संसद में बहुमत में होती है सरकार गठन करती है और उसके नेता प्रधानमंत्री बनते है।
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8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
संघीय तौर पर और राज्य में दो मुख्य राजनैतिक दल है जो सरकार गठन करती है, वे है: ऑस्ट्रेलियन लेबर पार्टी और गठबंधन जो औपचारिकत: दो दलों का संगठन होता है: द लिबरल पार्टी और उसके छोटे सहयोगी दल, राष्ट्रीय पार्टी.स्वतंत्र सदस्य और कई छोटी पार्टिया- जिसमे ग्रीन्स और ऑस्ट्रेलियन डेमोक्रेट्स शामिल है-इन्होने ऑस्ट्रेलियाई संसद, अधिकांश: ऊपरी सदन में अपना प्रतिनिधित्व प्राप्त कर लिया है।नवम्बर 2007 चुनाव में लेबर पार्टी प्रधान मंत्री के तौर पर केविन रुड के साथ सत्ता में आई.हर ऑस्ट्रेलियाई संसद (संघीय, राज्य और प्रदेशीय) में उस समय 2008 सितम्बर तक एक लेबर पार्टी की सरकार होती थी जबतक पश्चमी ऑस्ट्रेलिया के नेशनल पार्टी के साथ गठ्संघन करके लेबर पार्टी ने एक अल्पसंख्यक सरकार की स्थापना न कर ली। 2004 के चुनाव में, पिछली जॉन हावर्ड की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने मंत्रीसभा की सत्ता जीती- ऐसा पिछले बीस वर्षो में पहली बार हुआ कि किसी पार्टी (या गठबंधन) ने सरकार में रहते हुए ऐसा किया। हर राज्य और प्रदेश और संघीय स्तर पर 18 और उससे ऊपर के उम्र वालो के लिए मतदान अनिवार्य है. दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर हर जगह मतदान के लिए नामांकन करवाना अनिवार्य है।
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8,423.182277
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के छ: राज्ये और दो मुख्य महाद्वीप प्रदेशे है। साथ ही कुछ छोटे प्रदेशे है जो संघीय सरकार के प्रबंधन के अंतगर्त है।
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ऑस्ट्रेलिया
राज्ये है, न्यू साउथ वेल्स, क्वींसलैंड, साउथ ऑस्ट्रेलिया, तस्मानिया, विक्टोरिया और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया.दो मुख्य महाद्वीप प्रदेश है उत्तरी प्रदेश और ऑस्ट्रेलियाई प्रमुख प्रदेश (ACT).अधिकतर मामलों में, दोनों प्रदेशे राज्यों की तरह कार्य करते है, पर राष्ट्रमंडल संसद इनके सांसदों द्वारा पारित किसी भी कानून की अवहेलना या उसे खारिज कर सकती है। विरोधास्वरूप, संघीय कानून सिर्फ कुछ क्षेत्रों में राज्य कानून की अवहेलना कर सकती है जो ऑस्ट्रेलियाई संविधान के धारा 51 में है; राज्य संसद के पास शेष सभी अधिकार कायम रहते है जिसमे अस्पताल, शिक्षा, पुलीस, न्यायालय, सड़क, जन परिवहन और स्थानीय सरकार पर अधिकार शामिल है।
0.5
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ऑस्ट्रेलिया
हर राज्य या मुख्य महाद्वीप प्रदेश का अपना कानून या संसद है: उत्तरी प्रदेश, द ACT और क्वींसलैण्ड में एक सभा या एक सदन और बाकी राज्यों में दो सदन या सभा है। राज्य प्रभुता सम्पन्न है, यद्यपि राष्ट्रमंडल के कुछ विषय पर अधिकार संविधान में परिभाषित है।निचले सदन को विधान सभा के नाम से जाना जाता है (दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में संयोजन सभा) और ऊपरी सदन को विधान परिषद नाम से जाना जाता है। हर राज्य में सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री (premier) होता है और हर प्रदेश में मुख्य मंत्री.महारानी की कई भूमिका है, प्रत्येक राज्य में गवर्नर द्वारा प्रतिनिधित्व करती है और उत्तरी प्रदेश में प्रबंधक द्वारा और ACT में ऑस्ट्रेलियाई गवर्नर जनरल के रूप में .
0.5
8,423.182277
20231101.hi_38161_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
विशेष: 2212 की चार आवृत्तियों से बना रूप हरिगीतिका छंद का सर्वाधिक व्यावहारिक रूप है जिसे मिश्रितगीतिका कह सकते हैं। वस्तुतः 11212 की चार आवृत्तियों से हरिगीतिका , 2212 की चार आवृत्तियों से श्रीगीतिका तथा दोनों स्वरक स्वैच्छिक चार आवृत्तियों से मिश्रितगीतिका छंद बनता है।
0.5
8,403.41603
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
बरवै अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें प्रथम एवं तृतीय चरण में १२ -१२ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ७-७ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण होता है।उदाहरण-
0.5
8,403.41603
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
छप्पय मात्रिक विषम छन्द है। यह संयुक्त छन्द है, जो रोला (11+13) चार पद तथा उल्लाला (15+13) के दो पद के योग से बनता है।उदाहरण-
0.5
8,403.41603
20231101.hi_38161_27
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
उल्लाला सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 13-13 मात्राओं के हिसाब से 26 मात्रायें तथा 15-13 के हिसाब से 28 मात्रायें होती हैं। इस तरह उल्लाला के दो भेद होते है। तथापि 13 मात्राओं वाले छन्द में लघु-गुरु का कोई विशेष नियम नहीं है लेकिन 11वीं मात्रा लघु ही होती है।15 मात्राओं वाले उल्लाला छन्द में 13 वीं मात्रा लघु होती है। 13 मात्राओं वाला उल्लाला बिल्कुल दोहे की तरह होता है,बस दूसरे चरण में केवल दो मात्रायें बढ़ जाती हैं। प्रथम चरण में लघु-दीर्घ से विशेष फर्क नहीं पड़ता। उल्लाला छन्द को चन्द्रमणि भी कहा जाता है।उदाहरण-
0.5
8,403.41603
20231101.hi_38161_28
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
सवैया चार चरणों का समपद वर्णछंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहा जाता है।सवैये के मुख्य १४ प्रकार हैं:-
1
8,403.41603
20231101.hi_38161_29
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
१. मदिरा, २. मत्तगयन्द, ३. सुमुखी, ४. दुर्मिल, ५. किरीट, ६. गंगोदक, ७. मुक्तहरा, ८. वाम, ९. अरसात, १०. सुन्दरी, ११. अरविन्द, १२. मानिनी, १३. महाभुजंगप्रयात, १४. सुखी।
0.5
8,403.41603
20231101.hi_38161_30
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
कवित्त एक वार्णिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६, १५ के विराम से ३१ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये ८, ८, ८ और ७ वर्णों पर यति रहना चाहिये। इसके दो प्रकार हैं:- 1.मनहरण कवित्त और घनाक्षरी। घनाक्षरी छंद के दो भेद हैं:- 1.रूप घनाक्षरी, 2.देव घनाक्षरी। उदाहरण-
0.5
8,403.41603
20231101.hi_38161_31
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
मधुमालती छंद में प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं, अंत में 212 वाचिक भार होता है, 5-12 वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य होता है।उदाहरण -
0.5
8,403.41603
20231101.hi_38161_32
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
छंद
विजात छंद के प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं, अंत में 222 वाचिक भार होता है, 1,8 वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य होता है। उदाहरण -
0.5
8,403.41603
20231101.hi_8859_28
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9
विवाह
इसका तात्पर्य किसी जाति के एक छोटे समूह से तथा निकट संबंधियों के वर्ग से बाहर विवाह का नियम है। समाज में पहले को असगोत्रता का तथा दूसरे को असपिंडता का नियम कहते हैं। असगोत्रता का अर्थ है कि वधू वर के गोत्र से भिन्न गोत्र की होनी चाहिए। असपिंडता का आशय समान पिंड या देह का अथवा घनिष्ठ रक्त का संबंध न होना है। हिंदू समाज में प्रचलित सपिंडता के सामान्य नियम के अनुसार माता की पाँच तथा पिता की सात पीढ़ियों में होनेवाले व्यक्तियों को संपिड माना जाता है, इनके साथ वैवाहिक संबंध वर्जित है। प्राचीन रोम में छठी पीढ़ी के भीतर आनेवाले संबंधियों के साथ विवाह निषिद्ध था। १२१५ ई. की लैटरन की ईसाई धर्मपरिषद् ने इनकी संख्या घटाकर चार पीढ़ी कर दी। अनेक अन्य जातियाँ पत्नी के मरने पर उसकी बहिन के साथ विवाह को प्राथमिकता देती हैं किंतु कैथोलिक चर्च मृत पत्नी की बहिन के साथ विवाह वर्जित ठहराता है। इंग्लिश चर्च में यह स्थिति १९०७ तक बनी रही। कुछ जातियों में स्थानीय बहिर्विवाह का नियम प्रचलित है। इसका यह अर्थ है कि एक गाँव या खेड़े में रहनेवाले नरनारी का विवाह अर्जित है। छोटा नागपुर के ओरावों में एक ही ग्राम के निवासी युवक युवती का विवाह निषिद्ध माना जाता है, क्योंकि सामान्य रूप स वह माना जाता है कि ऐसा विवाह वर अथवा वधू के लिए अथवा दोनों के लिए अमंगल लानेवाला होता है।
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विवाह
असपिंडता तथा असगोत्रता के नियमों के प्रादुर्भाव के कारणों के संबंध में समाजशास्त्रियों तथा नृवंशशास्त्रियों में बड़ा मतभेद है। एक ही गाँव में रहनेवाले अथवा एक गोत्र को माननेवाले समान आयु के व्यक्ति एक दूसरे को भाई बहिन तथा नजदीकी रिश्तेदार मानते हैं और इनमें प्राय: सर्वत्र विवाह वर्जित होता है। किंतु यहाँ यही प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह निषेध समाज में क्यों प्रचलित हुआ? सर हेनरी मेन, मोर्गन आदि विद्वानों ने यह माना है कि आदिम मनुष्यों ने निकट विवाहों के दुष्परिणामों को शीघ्र ही अनुभव कर लिया था तथा जीवनसंघर्ष में दीर्घजीवी होने की दृष्टि से उन्होंने निकट संबंधियों के घेरे से बाहर विवाह करने का नियम बना लिया। किंतु अन्य विद्वान् इस मत को ठीक नहीं मानते। उनका कहना है कि आदिम मनुष्यों में अंतर्विवाह के दुष्परिणामों जैसी जटिल जीवशास्त्रीय प्रक्रिया को समझने की वुद्धि स्वीकार करना तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता। वैस्टरमार्क और हैवलाक एलिस ने इसका कारण नजदीकी रिश्तेदारों के बचपन से सदा साथ रहने के कारण उनमें यौन आकर्षण उत्पन्न न होने को माना है। अन्य विद्वानों ने इस व्याख्या को सही नहीं माना। ब्रैस्टेड ने यह बताया है कि प्राचीन मिस्र में समाज के सभी भागों में भाई बहिन के विवाह प्रचलित थे। बहिर्विवाह (एक्सोगेमी) शब्द को अंग्रेजी में सबसे पहले प्रचलित करनेवाले विद्वान् मैकलीनान ने यह कल्पना की थी कि आरंभिक योद्धा जातियों में बालिकावध की दारुण प्रथा प्रचलित होने के कारण विवाह योग्य स्त्रियों की संख्या कम हो गई और दूसरी जनजातियों की स्त्रियों को अपहरण करके लाने की पद्धति से बहिर्विवाह के नियम का श्रीगणेश हुआ। किंतु इस कल्पना में बालिकावध एवं अपहरण द्वारा विवाह का अत्यधिक अतिरंजित और अवास्तविक चित्रण है। बहिर्विवाह का नियम प्रचलित होने के कुछ अन्य कारण ये बताए जाते हैं-दूसरी जातियों की स्त्रियों को पकड़ लाने में गर्व और गौरव की भावना का अनुभव करना, गणविवाह (एक समूह में सब पुरुषों का सब स्त्रियों का पति होना) की काल्पनिक दशा के कारण दूसरी जातियों से स्त्रियाँ ग्रहण करना। अभी तक कोई भी कल्पना इस विषय में सर्वसम्मत सिद्धांत नहीं बन सकी।
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विवाह
अंतर्विवाह और बहिर्विवाह के नियमों का पालन करते हुए वधू को प्राप्त करने की विधियों के संबंध में मानव समाज में बड़ा वैविध्य दृष्टिगोचर होता है। भार्याप्राप्ति की विभिन्न विधियों को अपहरण, क्रय और सहमति के तीन बड़े वर्गों में बाँटा जा सकता है। अपहरण की विधि का तात्पर्य पत्नी की तथा उसके संबंधियों की इच्छा के बिना उसपर बलपूर्वक अधिकार करना है। इसे भारतीय धर्मशास्त्र में राक्षस और पैशाच विवाहों का नाम दिया गया है। यह आज तक कई वन्य जातियों में पाई जाती है। उड़ीसा की भुइयाँ जनजाति के बारे में कहा जाता है कि यदि किसी युवक का युवती से प्रेम हो, किंतु युवती अथवा उसके मातापिता उस विवाह के लिए सहमत न हों तो युवक अपनी मित्रमंडली की सहायता से अपनी प्रेमिका का अपहरण कर लेता है और इससे प्राय: भीषण लड़ाइयाँ होती हैं। संथाल, मुंडा, भूमिज, गोंड, भील और नागा आदि आरण्यक जातियों में यह प्रथा पाई जाती है। अन्य देशों और जातियों में भी इसका प्रचलन मिलता है।
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विवाह
पत्नीप्राप्ति का दूसरा साधन क्रय विवाह अर्थात् पैसा देकर लड़की को खरीदना है। हिंदू शास्त्रों की परिभाषा के अनुसार इसे आसुर विवाह कहा जाता है। भारत की संथाल, हो, ओराँव, खड़िया, गोंड, भील आदि जातियों में कन्या के मातापिता को कन्याशुल्क (ब्राइड प्राइस) देकर पत्नी प्राप्त करने की परिपाटी है। हिंदू समाज के उच्च वर्ग में लड़कों का महत्व होने से उनके मातापिता कन्या के मातापिता से दहेज रूप में धन प्राप्त करते हैं, किंतु निम्न वर्ग में वन्य जातियों में कन्या का आर्थिक महत्व होने के कारण कन्या का पिता वर से अथवा वर के मातापिता से कन्या देने के बदले में धनराशि प्राप्त करता है। यदि वर धनराशि देने में असमर्थ होता है तो वह श्वशुर के यहाँ सेवा करके कन्याशुल्क प्रदान करता है। गोंडों और बैगा लोगों में श्वशुर के यहाँ इस प्रकार तीन से पाँच वर्ष तक नौकरी तथा कड़ी मेहनत करने के बाद पत्नी प्राप्त होती है। इसे सेवा विवाह भी कहा जाता है।
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विवाह
पत्नी-प्राप्ति का तीसरा साधन वरवधू के मातापिता की सहमति से व्यवस्थित किया जानेवाला विवाह है। इस शताब्दी के आरंभ तक हिंदू समाज में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित होने के कारण सभी विवाह इसी प्रकार के होते थे, अब भी यद्यपि शिक्षा के प्रसार तथा आर्थिक स्वावलंबन के कारण वरवधू की सहमति से होनेवाले प्रणय अथवा गंधर्व विवाहों की संख्या बढ़ रही है, तथापि अधिकतर विवाह अब भी मातापिता की सहमति से होते हैं।
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विवाह
पत्नी-प्राप्ति के उपर्युक्त साधन आधुनिक समाजशास्त्रीय विद्वानों के वर्गीकरण के आधार पर हैं। प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रकारों ने इन्हीं को ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच नामक आठ प्रकार के विवाहों का नाम दिया था। इनमें से पहले चार प्रकार के विवाह प्रशस्त तथा धर्मानुकूल समझे जाते थे। ये सब विवाह मातापिता की सहमति से किए जानेवाले उपर्युक्त विवाह के अंतर्गत हैं। धार्मिक विधि के साथ संपन्न होनेवाले सभी विवाहों में कन्या को वस्त्राभूषण से अलंकृत करके उसका दान किया जाता था। किंतु पिछले चार विवाहों में कन्या का दान नहीं होता, वह मूल्य से या प्रेम से या बलपूर्वक ली जाती है। आसुर विवाह उपर्युक्त क्रयविवाह का दूसरा रूप है। इसमें वर कन्या के पिता को कुछ धनराशि देकर उसे प्राप्त करता है। इसका प्रसिद्ध उदाहरण पांडु के साथ माद्री का विवाह है। गांधर्व विवाह वर और वधू के पारस्परिक प्रेम और सहमति के कारण होता है। इसका प्रसिद्धतम प्राचीन उदाहरण दुष्यंत और शकुंतला का विवाह था। राक्षस विवाह में वर कन्यापक्ष के संबंधियों को मारकर या घायल करके रोती चीखती कन्या को अपने घर ले आता था। यह प्रथा क्षत्रियों में प्रचलित थी। पैशाच विवाह में सोई हुई, शराब आदि पीने से उन्मत्त स्त्री से एकांत में संबंध स्थापित करके विवाह किया जाता था। मनु ने (३। ३४) इसकी निंदा करते हुए इसे सबसे अधिक पापपूर्ण और अधम विवाह कहा है।
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विवाह
जब एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है तो इसे बहुभार्यता या बहुपत्नीत्व (पोलीजिनी) कहते हैं। एक स्त्री के साथ एक से अधिक पुरुषों के विवाह को बहुभर्तृता या बहुपतित्व कहा जाता है। एक पुरुष के एक स्त्री के साथ विवाह को एक विवाह (मोनोगेमी) या एकपत्नीव्रत कहा जाता है। मानव जाति के विभिन्न समाजों में इनमें से पहला और तीसरा रूप अधिक प्रचलित है। दूसरे रूप बहुभर्तृता का प्रचलन बहुत कम है। समाज में स्त्रीपुरुषों की संख्या लगभग समान होने के कारण इस अवस्था में कुछ पुरुषों द्वारा अधिक स्त्रियों को पत्नी बना लेने पर कुछ पुरुष विवाह से वंचित रह जाते हैं, अत: कुछ वन्य समाजों में एक मनुष्य द्वारा पत्नी बनाई जानेवाली स्त्रियों की संख्या पर प्रतिबंध लगाया जाता है और प्रथा द्वारा इसे निश्चित कर दिया जाता है। भूतपूर्व ब्रिटिश पूर्वी अफ्रीका की वासानिया जाति में एक पुरुष को तीन से अधिक स्त्रियों के साथ, लैंडू जाति में तथा इस्लाम में चार से अधिक स्त्रियों के साथ, उत्तरी नाइजीरिया की कुगंमा जाति में छह से अधिक स्त्रियों के साथ विवाह की अनुमति नहीं दी जाती। राजाओं तथा सरदारों के लिए यह संख्या बहुत अधिक होती है। पश्चिमी अफ्रीका में गोल्डकोस्ट बस्ती के अशांति नामक राज्य के राजा के लिए पत्नियों की निश्चित सख्या, ३,३३३ थी। राजा लोग इन निश्चित संख्याओं का अतिक्रमण और उल्लंघन किस प्रकार करते हैं यह सऊदी अरब राज्य के संस्थापक इब्न सऊद के उदाहरण से स्पष्ट है। इस्लाम में चार से अधिक स्त्रियों से विवाह वर्जित है, अत: इब्न सऊद को जब किसी नवीन स्त्री से विवाह करना होता था तो वह अपनी पहली चार पत्नियों में से किसी एक को तलाक दे देता था। इस प्रकार उसने चार पत्नियों की मर्यादा का पालन करते हुए भी सौ से अधिक स्त्रियों के साथ विवाह किया। कुछ वन्य जातियों में सरदारों द्वारा अपने समाज की इतनी अधिक स्त्रियों पर अधिकार कर लिया जाता है कि कुछ निर्धन युवा पुरुष विवाह के लिए वधू नहीं प्राप्त कर सकते। आस्ट्रेलिया की कुछ जातियों में ऐसे पुरुष को कई स्त्रियाँ रखनेवाले व्यक्ति को चुनौती देकर उससे पत्नी प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है। बहुभार्यता का एक विशेष रूप श्याली विवाह (सोरोरल sororal पोलिजिनी) अर्थात् एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी की बहिनों से विवाह करना है। इसमें बड़ा लाभ संभवत: सौतिया डाह का कम होना तथा बहिनों को प्रेमपूर्वक मिलकर रहना है। यह प्रथा अमरीका के रेड इंडियनों में बहुत मिलती है।
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विवाह
बहुभर्तृता अथवा एक स्त्री से अनेक पुरुषों के विवाह का सुप्रसिद्ध प्राचीन भारतीय उदाहरण द्रौपदी का पाँच पांडवों के साथ विवाह यह परिपाटी अब भी भारत के अनेक प्रदेशों - लद्दाख में, पंजाब के काँगड़ा जिले के स्पीती लाहौल परगनों में, चंबाकु, कुल्लू और मंडी के ऊँचे प्रदेशों में रहनेवाले कानेतों में, देहरादून जिले के जौनसार बाबर में, दक्षिण भारत में मलाबार के नायरो में, नीलगिरि के टोडों, कुरुंबों और कोटों में पाई जाती है। भारत से बाहर यह कुछ दक्षिणी अमरीकन इंडियन जातियों में मिलती है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं। पहले प्रकार में एक स्त्री के आपस में सगे या सौतले होते हैं। इसे भ्रातृक बहुभर्तृता कहते हैं। द्रौपदी के पाँचों पति भाई थे। आजकल इस प्रकार की बहुभर्तृता देहरादून जिले में जौनसार बावर के खस लोगों में तथा नीलगिरि के टोडों में पाई जाती है। बड़े भाई के शादी करने पर उसकी पत्नी सब भाइयों की पत्नी समझी जाती है। इसके दूसरे प्रकार में एक स्त्री के अनेक पतियों में भाई का संबंध या अन्य कोई घनिष्ठ संबंध नहीं होता। इसे अभ्रातृक या मातृसत्ताक बहुभर्तृता कहते हैं। मलावार के नायर लोगों में पहले इस प्रकार की बहुभर्तृता का प्रचलन था।
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विवाह
बहुभर्तृता के उत्पादक कारणों के संबंध में समाजशास्त्रियों तथा नृवंशशास्त्रियों में प्रबल मतभेद है। वैस्टरमार्क ने इसका प्रधान कारण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का संख्या में कम होना बताया है। उदाहरणार्थ नीलगिरि के टोडों में बालिकावध की कुप्रथा के कारण एक स्त्री के पीछे दो पुरुष हो गए, अत: वहाँ बहुभर्तृता का प्रचलन स्वाभाविक रूप से हो गया। किंतु राबर्ट ब्रिफाल्ट ने यह सिद्ध किया कि स्त्रियों की कमी इस प्रथा का एक मात्र कारण नहीं है। तिब्बत, सिक्किम, लद्दाख, लाहौल, आदि बहुभर्तृक प्रथावाले प्रदेशों में स्त्री पुरुषों की संख्या में कोई बड़ा अंतर नहीं है। कनिंघम के मतानुसार लद्दाख में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। अत: सुमनेट, लोर्ड, बेल्यू आदि विद्वानों ने इसका प्रधान कारण निर्धनता को माना है। सुमनेर ने इसे तिब्बत के उदाहरण से पुष्ट करते हुए कहा है कि वहाँ पैदावार इतनी कम होती है कि एक पुरुष के लिए कुटुंब का पालन संभव नहीं होता, अत: कई पुरुष मिलकर पत्नी रखते हैं। इससे बच्चे कम होते हैं, जनसंख्या मर्यादित रहती है और परिवार की भूसंपत्ति विभिन्न भाइयों के बँटवारे से विभक्त नहीं होती।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0
चमार
चमार दक्षिण एशिया का एक वर्ग समुदाय है। इस जाति के लोग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं, मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों तथा पाकिस्तान और नेपाल आदि देशों में निवास करते हैं। चमार समुदाय को आधुनिक भारत की सकारात्मक कार्रवाई प्रणाली के तहत अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। चमार अनेक उपजातियों का समूह है। प्रारंभ केवल चर्म (चमड़ा) से संबंधित व्यवसाय करते थे, परन्तु इसके विपरित समुदाय की अनेक उपजातियों में कृषि व बुनकरी का कार्य भी प्रचलित था। आज के आधुनिक समय में इस मेहनती समुदाय ने काफी प्रगति की है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0
चमार
आईन-ए-अकबरी के अनुसार उत्पल वंश के शासक चमार समुदाय से थे। राजा चंवरसेन चमारों के चंवरवंशी चमार से संबंधित हैं। चमार शब्द की उत्पत्ति चँवर से लिया गया है, जो आम तौर पर अनुसूचित जातियों के लिए अपमानजनक शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0
चमार
किन्तु 'चमार' शब्द को एक अपशब्द के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। अतः इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जातिवादी गाली और अपमानजनक शब्द के रूप में वर्णित किया गया है। इस समुदाय के साथ होने वाले दुराचारों को रोकने के लिए कानून द्वारा उन्हें कई विशेष अधिकार दिये गए हैं, जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0
चमार
चमार पारंपरिक रूप से चमड़े के काम से जुड़े हुए हैं। रामनारायण रावत का मानना ​​है कि चमार समुदाय का जुड़ाव चमड़े के पारंपरिक व्यवसाय से हुआ था, और इसके बजाय चमार ऐतिहासिक रूप से कृषक और बुनकर भी थे। कुछ चमारों ने कपड़ा बुनने का धंधा भी अपना लिया एवं ख़ुद को जुलाहा चमार बुलाने लगे। चमारों का मानना है कि कपड़ा बुनने का काम चमड़े के काम से काफी उच्च दर्जे का काम है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0
चमार
इतिहासकार अबूल फज़ल ने अपनी किताब आईने-ए-अकबरी (16वीं सदी का एक विस्तृत दस्तावेज़ जिसमें सम्राट अकबर के अधीन मुग़ल साम्राज्य के प्रशासन का विवरण दिया गया है) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि उत्पल वंश के शासक चमार जनजाति से थे।
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