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20231101.hi_824_11
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गुजरात
भाद्रपद्र (अगस्‍त-सितंबर) मास के शुक्‍ल पक्ष में चतुर्थी, पंचमी और षष्‍ठी के दिवस तरणेतर गांव में भगवान शिव की स्‍तुति में तरणेतर मेला लगता है। भगवान कृष्‍ण द्वारा रुक्‍मणी से विवाह के उपलक्ष्‍य में चैत्र (मार्च-अप्रैल) के शुक्‍ल पक्ष की नवमी को पोरबंदर के पास माधवपूर में माधावराय मेला लगता है। उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले में हर वर्ष मां अंबा को समर्पित अंबा जी मेला आयेजित किया जाता हैं। राज्‍य का सबसे बड़ा वार्षिक मेला द्वारिका और डाकोर में भगवान कृष्‍ण के जन्‍मदिवस जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर बड़े हर्षोल्‍लास से आयोजित होता है। इसके अलावा गुजरात में मकर सक्रांति, नवरात्रि, डांगी दरबार, शामलाजी मेले तथा भावनाथ मेले का भी आयोजन किया जाता हैं।
0.5
10,340.167295
20231101.hi_824_12
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गुजरात
राज्‍य में द्वारका, सोमनाथ, पालीताना, पावागढ़, अंबाजी भद्रेश्‍वर, शामलाजी,बगदाणा,वीरपुर,खेरालु (सूर्यमंदिर),मोढेरा (सूर्यमंदिर) तारंगा,निष्कलंक महादेव,राजपरा (भावनगर),बहुचराजी, और गिरनार जैसे धार्मिक स्‍थलों के अलावा महात्‍मा गांधी की जन्‍मभूमि पोरबंदर तथा पुरातत्‍व और वास्‍तुकला की दृष्टि से उल्‍लेखनीय पाटन, सिद्धपुर, घुरनली, दभेई, बडनगर, मोधेरा, लोथल और अहमदाबाद जैसे स्‍थान भी हैं। अहमदपुर मांडवी, चारबाड़ उभारत और तीथल के सुंदर समुद्री तट, सतपुड़ा पर्वतीय स्‍थल, गिर वनों के शेरों का अभयारण्‍य और कच्‍छ में जंगली गधों का अभयारण्‍य भी पर्यटकों के आकर्षण का केद्र हैं। इसके अलावा गुजरात के स्थानीय व्यंजन के जायके भी गुजरात की खूबसूरती को और बढ़ाते है। गुजरात के पाटण में स्थित रानी की वाव यूनेस्को विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है।
0.5
10,340.167295
20231101.hi_824_13
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गुजरात
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल गुजरात के प्रशासन का प्रमुख होता है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल राज्यपाल को उसके कामकाज में सहयोग और सलाह देता है। राज्य में एक निर्वाचित निकाय एकसदनात्मक विधानसभा है। उच्च न्यायालय राज्य की सर्वोपरि न्यायिक सत्ता है, जबकि नगर न्यायालय, ज़िला व सत्र न्यायाधीशों के न्यायालय और प्रत्येक ज़िले में दीवानी मामलों के न्यायाधीशों के न्यायालय हैं। राज्य को 34 प्रशासनिक ज़िलों में बांटा गया है। अहमदाबाद, अमरेली, बनास कंठा, भरूच, भावनगर, डेंग, गाँधीनगर, खेड़ा, महेसाणा, पंचमहल, राजकोट, साबर कंठा, सूरत सुरेंद्रनगर, वडोदरा, महीसागर, वलसाड, नवसारी, नर्मदा, दोहद, आनंद, पाटन, जामनगर, पोरबंदर, जूनागढ़ और कच्छ, प्रत्येक ज़िले का राजस्व और सामान्य प्रशासन ज़िलाधीश की देखरेख में होता है, जो क़ानून और व्यवस्था भी बनाए रखता है। स्थानीय प्रशासन में आम लोगों को शामिल करने के लिए 1963 में पंचायत द्वारा प्रशासन की शुरुआत की गई।
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10,340.167295
20231101.hi_824_14
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गुजरात
स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं में मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ और अन्य संक्रामक रोगों के उन्मूलन के साथ-साथ पेयजल की आपूर्ति में सुधार और खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकने के कार्यक्रम शामिल हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों के विस्तार के लिए भी क़दम उठाए गए हैं।
0.5
10,340.167295
20231101.hi_824_15
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
गुजरात
बच्चों, महिलाओं और विकलांगों, वृद्ध, असहाय, परित्यक्त के साथ-साथ अपराधी भिखारी, अनाथ और जेल से छुटे लोगों की कल्याण आवश्यकताओं की देखरेख विभिन्न राजकीय संस्थाएं करती हैं। राज्य में तथाकथित पिछड़े वर्ग के लोगों की शिक्षा, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और आवास की देखरेख के लिए एक अलग विभाग है।
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10,340.167295
20231101.hi_824_16
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
गुजरात
गुजराती जनसंख्या में विविध जातीय समूह का मोटे तौर पर इंडिक / भारतोद्भव (उत्तरी मूल) या द्रविड़ (दक्षिणी मूल) के रूप में वर्गीकरण किया जा सकता है। पहले वर्ग में नगर ब्राह्मण,राजपूत,दरबार,भरवाड़,आहिर,गढ़वी,रबारी, पाटीदारपटेल और कई जातियां (जबकि दक्षिणी मूल के लोगों में वाल्मीकि, कोली, डबला, नायकदा व मच्छि-खरवा जनजातिया हैं। शेष जनसंख्या में आदिवासी भील मिश्रित विशेषताएं दर्शाते हैं। अनुसूचित जनजाति और आदिवासी जनजाति के सदस्य प्रदेश की जनसंख्या का लगभग पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ डांग ज़िला पूर्णत: आदिवासी युक्त ज़िला है। अहमदाबाद ज़िले में अनुसूचित जनजाति का अनुपात सर्वाधिक है। गुजरात में जनसंख्या का मुख्य संकेंद्रण अहमदाबाद, खेड़ा, वडोदरा, सूरत और वल्सर के मैदानी क्षेत्र में देखा जा सकता है। यह क्षेत्र कृषि के दृष्टिकोण से उर्वर है और अत्यधिक औद्योगीकृत है। जनसंख्या का एक अन्य संकेंद्रण मंगरोल से महुवा तक और राजकोट एवं जामनगर के आसपास के हिस्सों सहित सौराष्ट्र के दक्षिणी तटीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है। जनसंख्या का वितरण उत्तर (कच्छ) और पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों की ओर क्रमश कम होता जाता है। जनसंख्या का औसत घनत्व 258 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी (2001) है और दशकीय वृद्धि दर 2001 में 22.48 प्रतिशत पाई गई।
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10,340.167295
20231101.hi_824_17
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4
गुजरात
600 या इससे ज़्यादा जनसंख्या वाले लगभग सभी गाँवों में सात से ग्यारह वर्ष के सभी बच्चों के लिए प्राथमिक पाठशालाएँ खोली जा चुकी हैं। आदिवासी बच्चों को कला और शिल्प की शिक्षा देने के लिए विशेष विद्यालय चलाए जाते हैं। यहाँ अनेक माध्यमिक और उच्चतर विद्यालयों के साथ-साथ नौ विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थान हैं। अभियांत्रिकी महाविद्यालयों और तकनीकी विद्यालयों द्वारा तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। शोध संस्थानों में अहमदाबाद में फ़िज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एशोसिएशन, सेठ भोलाभाई जेसिंगभाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ लर्निंग ऐंड रिसर्च, द इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, द नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन और द सरदार पटेल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक ऐंड सोशल रिसर्च, वडोदरा में ओरिएंटल इंस्टिट्यूट तथा भावनगर में सेंट्रल साल्ट ऐंड मॅरीन केमिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट एवम वङोदरा में देश की पहली रेलवे यूनिवर्सिटी शामिल हैं।
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10,340.167295
20231101.hi_899_18
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
हिमाली क्षेत्र में संसार की सबसे ऊँची हिम शृंखलाएँ पड़ती हैं। इस क्षेत्र की उत्तर में चीन की सीमा के पास में संसार का सर्वोच्च शिखर, ऐवरेस्ट (सगरमाथा) 8,848 मीटर (29,035 फुट) अवस्थित है। संसार की 8,000 मीटर से ऊँची 14 चोटियों में से 8 नेपाल की हिमालयी क्षेत्र में पड़ती हैं। संसार का तीसरा सर्वोच्च शिखर कंचनजंघा, भी इसी हिमालयी क्षेत्र मे पड़ता है।
0.5
10,319.608282
20231101.hi_899_19
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
नेपाल मे पाँच मौसमी क्षेत्र है जो ऊंचाई के साथ कुछ मात्रा में मेल खाते हैं। उष्णकटिबन्धीय तथा उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र 1,200 मीटर (३,९४० फ़ी) से नीचे, शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र 1,200 लेकर 2,400 मीटर (३,९००–७,८७५ फ़ी), ठण्डा क्षेत्र 2,400 से लेकर 3,600 मीटर (७,८७५–११,८०० फ़ी), उप-आर्कटिक क्षेत्र ३,६०० से लेकर ४,४०० मीटर (११,८००–१४,४०० फ़ी), व आर्कटिक क्षेत्र ४,४०० मीटर (१४,४०० फ़ीट) से ऊपर। नेपाल मे पाँच ऋतुएँ होती हैं: उष्म, मनसून, अटम, शिषिर व बसन्त। हिमालय मध्य एशिया से बहने वाली ठण्डी हवा को नेपाल के अन्दर जाने से रोकता है तथा मानसून की वायु का उत्तरी परिधि के रूप में पानी काम करताहै।
0.5
10,319.608282
20231101.hi_899_20
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
नेपाल व बांग्लादेश की सीमा नहीं जुड़ती है फिर भी ये दोनों राष्ट्र 21 किलोमीटर (13 मील) की एक सँकरी चिकेन्स् नेक (मुर्गे की गर्दन) कहे जाने वाले क्षेत्र से अलग है। इस क्षेत्र को स्वतन्त्र-व्यापार क्षेत्र बनाने का प्रयास हो रहा है।
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20231101.hi_899_21
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
संसार का सर्वोच्च शिखर सगरमाथा (एवरेस्ट) नेपाल व तिब्बती सीमा पर अवस्थित है। इस हिमालकी नेपाल में पडने वाले दक्षिण-पूर्वी रिज (ridge) प्राविधिक रूपमे चढना सहज माना जाता है। जिसकी वजहसे प्रत्येक वर्ष इस स्थान मे बहुत पर्यटक जाते है। अन्य चढ़े जाने वाले हिमशिखर मे अन्नपूर्णा (१,२,३,४) अन्नपूर्णा श्रखला मे पड़ता है।
0.5
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20231101.hi_899_22
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
कृषि जनसंख्या के ७६% रोज़गार का स्रोत है और कुल ग्राह्यस्थ उत्पादन का ३९% योगदान करता है और सेवा क्षेत्र ३९% साथ में उद्योग २१% आय का स्रोत है। देश की उत्तरी दो-तिहाई भाग में पहाडी और हिमालयी भूभाग सडकें, पुल तथा अन्य संरचना निर्माण करने में कठिन और महंगा बनाता है। सन् २००३ तक पिच -सडकों की कुल लम्बाई ८,५०० किमी से कुछ ज़्यादा और दक्षिण में रेल्वे-लाइन की कुल लम्बाई ५९ किमी मात्र है। ४८ धावनमार्ग और उनमे से १७ पिचहोनेसे हवाईमार्गकी स्थिति बहुत अच्छी है। यहाँ ज़्यादा में प्रति १२ व्यक्तिके लिए १ टेलिफ़ोन सुविधा उपल्ब्ध है; तारजडित सेवा देशभर में है लेकिन शहरों और जिला मुख्यालयों में ज़्यादा केन्द्रित है; सेवामें जनताकी पहुँच बढने और सस्ता होते जानेसे मोबाइल (या तार-रहित) सेवाकी स्थिति देशभर बहुत अच्छा है। सन् २००५ मे १,७५,००० इन्टरनेट जडाने (connections) थे, लेकिन "संकटकाल" लागू होनेकेपश्चात् कुछ समय सेवा अवरूद्ध होगयी था। कुछ अन्योल बाद नेपालकी दुसरी बृहत जनआन्दोलनने राजाकी निरंकुश अधिकार समाप्त करनेके पश्चात सभी इन्टरनेट सेवाए बिना रोकटोक सुचारू होगएहैं।
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10,319.608282
20231101.hi_899_23
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
नेपालकी भूपरिवेष्ठित स्थिति, प्राविधिक कमज़ोरी और लम्बे द्वन्द ने अर्थतन्त्र को पूर्ण रूपमे विकासशील होने नहीं दिया है। नेपाल भारत, जापान, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन, स्विट्ज़रलैंड और स्कैंडिनेवियन राष्ट्रों से वैदेशिक सहयोग पाता है। वित्तीय वर्ष २००५/०६में सरकार का बजट क़रीब १.१५३ अरब अमेरिकी डालर था, लेकिन कुल खर्च १.७८९ अरब हुआ था। १९९० दशक की बढती मुद्रा स्फीति दर घटकर २.९% पहुंची है। कुछ वर्षों से नेपाली मुद्रा रूपैयाँ को भारतीय रूपैया के साथ का सटहीदर १.६ मा स्थिर रखा गया है। १९९० दशकमे खुली बनायीगयी मुद्रा बिनिमय दर निर्धारण नीतिके कारण विदेशी मुद्रा की कालाबाजारी लगभग समाप्त हो चुकी है। एक दीर्घकालीन आर्थिक समझौते ने भारत के साथ अच्छे संबन्ध में मदद दी है।
0.5
10,319.608282
20231101.hi_899_24
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
जनता बीच का सम्पत्ति वितरण अन्य विकसित और विकासोन्मुख देशों के तुलना में ही है: ऊपरवाले १०% गृहस्थी के साथ कुल राष्ट्रिय सम्पत्ति का ३९.१% पर नियन्त्रण है और निम्नतम १०% के साथ केवल २.६%।
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10,319.608282
20231101.hi_899_25
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
नेपाल की १ करोड़ जितने का कार्यबलमे दक्ष कामदारका कमी है। ८१% कार्यबलको कृषि, १६% सेवा और ३% उत्पादन/कला-आधारित उद्योग रोज़गार प्रदान करता है।
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10,319.608282
20231101.hi_899_26
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2
नेपाल
20 सितम्बर 2015 के अनुसार नेपाल को भारतीय राज्य प्रणाली की तरह ही सात राज्यों (प्रदेशों) में विभाजित किया गया है। नये संविधान के अनुसूची 4 के अनुसार मौजूदा जनपदों को एक साथ समूहों में गठित कर इन्हें परिभाषित किया गया है और दो ऐसे भी जनपद थे जिन्हें तोड़कर दो अलग-अलग राज्यों में गठित किया गया।
0.5
10,319.608282
20231101.hi_10454_3
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नन्दन" (हवा का बेटा) हैं।
0.5
10,303.893861
20231101.hi_10454_4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"
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10,303.893861
20231101.hi_10454_5
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।
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10,303.893861
20231101.hi_10454_6
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत: में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि। नाम त्रेतायुग में रामायण के समय भगवान श्री राम की सहायता, राक्षसों का वध तथा अपने भक्तों के संकट हरने पर उनको इन नामों से पुकारा गया।
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10,303.893861
20231101.hi_10454_7
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
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10,303.893861
20231101.hi_10454_8
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
रामायण की पांचवीं पुस्तक, सुंदरकांड, हनुमान पर केंद्रित है। असुरराज रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, जिसके बाद 14 साल के वनवास के आखिरी साल में हनुमान राम से मिलते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के साथ, राम अपनी पत्नी सीता को खोज रहे हैं। यह और संबंधित राम कथाएं हनुमान के बारे में सबसे व्यापक कहानियां हैं।
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10,303.893861
20231101.hi_10454_9
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
रामायण के कई संस्करण भारत के भीतर मौजूद हैं। ये हनुमान, राम, सीता, लक्ष्मण और रावण के रूपांतर प्रस्तुत करते हैं। वर्ण और उनके विवरण अलग-अलग हैं, कुछ मामलों में काफी महत्वपूर्ण हैं।
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10,303.893861
20231101.hi_10454_10
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
महाभारत एक और प्रमुख महाकाव्य है जिसमें हनुमान का संक्षिप्त उल्लेख है। पुस्तक 3 में, महाभारत के वाना पर्व, उन्हें भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो उनसे कैलाश पर्वत पर जाने के दौरान गलती से मिलते हैं। असाधारण ताकत का आदमी भीम, हनुमान की पूंछ को हिलाने में असमर्थ है, जिससे उसे एहसास होता है और हनुमान की ताकत को स्वीकार करता है। यह कहानी हनुमान चरित्र के प्राचीन कालक्रम से जुड़ी है। यह कलाकृति और राहत का एक हिस्सा भी है जैसे विजयनगर खंडहर।
0.5
10,303.893861
20231101.hi_10454_11
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
हनुमान
हनुमान जी राम जी को सुप्रीम मानकर भक्ति करते थे, कबीर के अनुसार जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें आदिराम के बारे में पता चला तब गुरू शरण में जाकर भक्ति की और कल्याण कराया।
0.5
10,303.893861
20231101.hi_26198_1
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5
यादव
महाभारत काल के यादवों को वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी के रूप में जाना जाता था, श्री कृष्ण इनके नेता थे: वे सभी पेशे से गोपालक थे। तथा गोप नाम से प्रसिद्ध थे लेकिन साथ ही उन्होंने कुरुक्षेत्र की लड़ाई में भाग लेते हुए क्षत्रियों की स्थिति धारण की। वर्तमान अहीर भी वैष्णव मत के अनुयायी हैं।
0.5
10,269.408794
20231101.hi_26198_2
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5
यादव
महाकाव्यों और पुराणों में यादवों का आभीरों के साथ जुड़ाव इस सबूत से प्रमाणित होता है कि यादव साम्राज्य में ज्यादातर अहीरों का निवास था।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5
यादव
महाभारत में अहीर, गोप, गोपाल और यादव सभी पर्यायवाची हैं। आभीर क्षत्रियों को↵गायों की रक्षा व पालन के कारण गोप व गोपाल की संज्ञा दी गयी। उस अवधि में (500 ईसा पूर्व से 1 ईसा पूर्व तक) जब भारत में पालीभाषा प्रचलित थी, गोपाल शब्द को संशोधित किया गया था एवं गोपाल' शब्द को 'गोआल' में बदल दिया गया और आगे संशोधन करके इसे 'ग्वाल' का रूप दे दिया गया। एक अज्ञात कवि ने एक श्लोक में इसका उपयुक्त वर्णन किया है कि गौपालन के कारण यादव को 'गोप' कहा गया हैं और 'गोपाल' कहलाने के बाद, वे 'ग्वाल' कहलाते हैं।
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यादव
यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर हैं। यादवों को हिंदू में क्षत्रिय वर्ण के तहत वर्गीकृत किया गया है, और मध्ययुगीन भारत में कई शाही राजवंश यदु के वंशज थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने से पहले, वे 13-14वी सदी तक भारत और नेपाल में सत्ता में रहे। दक्षिण भारत मे विजय नगर जैसे शक्तिशाली सम्राज्य स्थापित किया l
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यादव
यादव शब्द की व्याख्या 'यदु के वंशज' होने के लिए की गई है, जो कि एक पौराणिक राजा है। "बहुत व्यापक सामान्यताओं" का उपयोग करते हुए, जयंत गडकरी कहते हैं कि पुराणों के विश्लेषण से यह "लगभग निश्चित" है कि अंधका, वृष्णि, सातवात और आभीर को सामूहिक रूप से यादवों के रूप में जाना जाता था और वह कृष्ण की पूजा करते थे। गडकरी ने इन प्राचीन रचनाओं के आगे लिखा है कि "यह विवाद से परे है कि प्रत्येक पुराण में किंवदंतियां और मिथक हैं"।
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यादव
पी. एम. चंदोरकर जैसे इतिहासकारों ने उत्कीर्ण लेख-संबंधी और इसी तरह के साक्ष्य का उपयोग यह तर्क देने के लिया किया है कि अहीर और गवली प्राचीन यादवों और आभीरों के प्रतिनिधि हैं जो संस्कृत रचनाओं में वर्णित हैं ।
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यादव
हालाँकि, जाफरलॉट ने यह भी कहा है कि अधिकांश आधुनिक यादव खेती करने वाले हैं और एक तिहाई से भी कम आबादी मवेशियों या दूध के व्यवसाय में लिप्त है।
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यादव
एम. एस. ए. राव ने भी जाफरलॉट के जैसी ही राय व्यक्त की और कहा कि मवेशियों के साथ पारंपरिक जुड़ाव, यदु के वंश का होने में विश्वास, यादव समुदाय को परिभाषित करता है। डेविड मंडेलबौम के अनुसार मवेशियों के साथ यादव (और उनकी घटक जातियाँ, अहीर और ग्वाला) की संगति ने उन्हें सामान्य रूप से शूद्र के रूप में परिभाषित किया है। हालांकि समुदाय के सदस्य अक्सर क्षत्रिय के उच्च दर्जे का दावा करते हैं।
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यादव
यादव ज्यादातर उत्तरी भारत में रहते हैं और विशेष रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहते हैं। परंपरागत रूप से, वे एक गैर-कुलीन चरवाहे जाति थे। समय के साथ उनके पारंपरिक व्यवसाय बदल गए और कई वर्षों से यादव मुख्य रूप से खेती में जुड़े हैं,हालांकि मिचेलुत्ती ने 1950 के दशक के बाद से एक "आवर्तक पैटर्न" का उल्लेख किया है, जिसमें आर्थिक उन्नति, मवेशी से जुड़े व्यवसाय में परिवहन और निर्माण से संबंधित है। सेना और पुलिस उत्तर भारत में अन्य पारंपरिक रोजगार के अवसर रहे हैं और हाल ही में उस क्षेत्र में सरकारी रोजगार भी महत्वपूर्ण हो गए हैं। उनका मानना ​​है कि भूमि सुधार कानून के परिणामस्वरूप सकारात्मक भेदभाव के उपाय और लाभ कम से कम कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कारक हैं।
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मनोविज्ञान
तीसरी श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं।
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मनोविज्ञान
इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र है—शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्यक्षेत्रों से सम्बन्धित मुख्य तथ्यों का वर्णन निम्नांकित है—
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मनोविज्ञान
शिक्षण तथा शोध मनोविज्ञान का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के तहत निम्नांकित शाखाओं में मनोविज्ञानी अपनी अभिरुचि दिखाते हैं—
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मनोविज्ञान
बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास के अध्ययन से था परंतु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञान में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे 'जीवन अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान' कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञान मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे—बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे—आनुवांशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों का 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
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मनोविज्ञान
मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना सम्भव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परंतु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिन्तन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक मशहूर हैं।
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मनोविज्ञान
यह कथन एक महान विद्वान के द्वारा संचालित किया गया था,जो की चिंतन मनन के बाद भी आज तक वह प्रशंसनीय माना जाता है।
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मनोविज्ञान
मनोविज्ञान का यह क्षेत्र मानव प्रयोगात्मक विज्ञान (Human experimental Psychology) के समान है। सिर्फ अन्तर इतना ही है कि यहाँ प्रयोग पशुओं जैसे—चूहों, बिल्लियों, कुत्तों, बन्दरों, वनमानुषों आदि पर किया जाता है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में अधिकतर शोध सीखने की प्रक्रिया तथा व्यवहार के जैविक पहलुओं के अध्ययन में किया गया है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्कीनर, गथरी, पैवलव, टॉलमैन आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। सच्चाई यह है कि सीखने के आधुनिक सिद्घान्त तथा मानव व्यवहार के जैविक पहलू के बारे में हम आज जो कुछ भी जानते हैं, उसका आधार पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ही है। इस मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहारों को समझने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों का मत है कि यदि मनोविज्ञान का मुख्य संबंध मानव व्यवहार के अध्ययन से है तो पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन करना कोई अधिक तर्कसंगत बात नहीं दिखता। परंतु मनोविज्ञानियों के पास कुछ ऐसी बाध्यताएँ हैं जिनके कारण वे पशुओं के व्यवहार में अभिरुचि दिखलाते हैं। जैसे पशु व्यवहार का अध्ययन कम खर्चीला होता है। फिर कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो मनुष्यों पर नैतिक दृष्टिकोण से करना संभव नहीं है तथा पशुओं का जीवन अवधि (life span) का लघु होना प्रमुख ऐसे कारण हैं। मानव एवं पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ मनोविज्ञानियों की संख्या का करीब 14% मनोविज्ञानी कार्यरत है।
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मनोविज्ञान
दैहिक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानियों का कार्यक्षेत्र प्राणी के व्यवहारों के दैहिक निर्धारकों (Physical determinants) तथा उनके प्रभावों का अध्ययन करना है। इस तरह के दैहिक मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो जैविक विज्ञान (biological science) से काफी जुड़ा हुआ है। इसे मनोजीवविज्ञान (Psychobiology) भी कहा जाता है। आजकल मस्तिष्कीय कार्य (brain functioning) तथा व्यवहार के संबंधों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे एक नयी अन्तरविषयक विशिष्टता (interdisplinary specialty) का जन्म हुआ है जिसे ‘न्यूरोविज्ञान’ (neuroscience) कहा जाता है। इसी तरह के दैहिक मनोविज्ञान हारमोन्स (hormones) का व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन में भी अभिरुचि रखते हैं। आजकल विभिन्न तरह के औषध (drug) तथा उनका व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन दैहिक मनोविज्ञान में किया जा रहा है। इससे भी एक नयी विशिष्टता (new specialty) का जन्म हुआ है, जिसे मनोफर्माकोलॉजी (Psychopharmacology) कहा जाता है तथा जिसमें विभिन्न औषधों के व्यवहारात्मक प्रभाव (behavioural effects) से लेकर तंत्रीय तथा चयापचय (metabolic) प्रक्रियाओं में होने वाले आणविक शोध (molecular research) तक का अध्ययन किया जाता है।
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मनोविज्ञान
मनोविज्ञान के सम्प्रदाय एवं इतिहास (The History And Systems Of Psychology) (गूगल पुस्तक; लेखक - अरुण कुमार सिंह)
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फुटबॉल
इन चल रहे प्रयासों ने 1863 में फुटबॉल असोसिएशन/संस्थाओं (The Football Association) के निर्माण में योगदान दिया, जो सबसे पहले 26 अक्टूबर (26 October) 1863 के सुबह में ग्रेट कुईन स्ट्रीट (Great Queen Street) के फ्री मेसन, तवेर्ण लन्दन में आयोजन हुआ। इस अवसर पर प्रतिनिधित्व करने वाला चार्टर हाउस (Charterhouse) एकमात्र स्कूल था। फ्री मेसन तवेर्ण ने अक्टूबर और दिसम्बर के बीच पाँच और बैठकों का आयोजन किया जो अंततः पहला नियमों का जत्था बनाया। अन्तिम बैठक में पहला ऍफ़ ऐ कोषाध्यक्ष, ब्लैकहिथ (Blackheath) के प्रतिनिधि ने पिछले बैठक में दो प्रारूप नियमों को हटाने के कारण ऍफ़ ऐ से अपना क्लब वापस ले लिया, पहला जो हाथ में गेंद लेकर दौड़ने की अनुमति तथा दूसरा अनधिकृत प्रवेश, ठोकर मारना तथा पकड़ते हुए दौड़ना में प्रतिबन्ध लगाना। अन्य इंग्लिश रग्बी फुटबॉल क्लब ने इस नेतृत्व (English rugby football clubs followed this lead) का पालन किया और ऍफ़ ऐ में सम्मिलित नहीं हुए, या ऍफ़ ऐ को छोड़ दिया और 1871 में रग्बी फुटबॉल संघ (Rugby Football Union) का गठन किया। शेष के ग्यारह क्लब जो एबेनेज़र कब मोर्ले (Ebenezer Cobb Morley) के तहत थे, वे खेल के मूल तेरह नियमों की पुष्टि करने के लिए चले गए। गेंद को चिह्न के स्थान से हाथ से फेंकने का नियम विक्टोरियन फुटबॉल नियम (Victorian rules football) के समान ही नियम बनाया गया जो उस समय ऑस्ट्रेलिया में विकसित था। शेफिल्ड ऍफ़ ऐ ने 1870 तक अपने नियमों के आधार पर खेलते रहे, ऍफ़ ऐ ने इसके कुछ नियम आत्मसात कर लिए जिससे खेल में थोड़ा ही अन्तर रह गया।
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फुटबॉल
वर्तमान में खेल के नियम अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (International Football Association Board) के द्वारा निर्धारित है।मेनचेस्टर (Manchester) फुटबॉल असोसिएशन, स्कॉटिश फुटबॉल असोसिएशन (Scottish Football Association), वेल्स फुटबॉल असोसिएशन (Football Association of Wales) और आयरिश फुटबॉल असोसिएशन (Irish Football Association) के आपसी बैठक के बाद 1886 में इस बोर्ड का गठन हुआ।ऍफ़ ऐ कप (FA Cup) विश्व की सबसे पुरानी प्रतियोगिता है जिसकी स्थापना सी डब्लू अल्कोक्क (C. W. Alcock) ने किया था और 1872 से इंग्लिश टीमों में यह प्रतियोगिता हो रही है पहला आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच (first official international football match) फिर से सी डब्लू अल्कोक्क के परिक्षण में 1872 में स्कॉट्लैंड और इंग्लैंड के बीच ग्लासगो में खेला गया। इंग्लैंड दुनिया में पहला फुटबॉल लीग (football league) का घर है जिसकी स्थापना 1888 में अस्तों (Aston Villa) विल्ला निर्देशक विलियम मक ग्रेजोर (William McGregor) द्वारा बिर्मिन्ग्हम (Birmingham) में हुई थी। मूल स्वरुप मिडलैंड और उत्तरी इंग्लैंड के बारह क्लब में अंतर्विष्ट है। फेडरेशन इंटरनेशनल द फुटबॉल असोसिएशन (फीफा), अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संस्था का गठन 1904 में पेरिस में हुआ था और घोषणा की गई थी कि फुटबॉल असोसिएशन खेल के नियमों का पालन करना होगा। 1913 में फीफा अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल असोसिएशन बोर्ड (International Football Association Board) के प्रतिनिधित्व के प्रवेश के कारण अंतरराष्ट्रीय खेल में लोकप्रियता बढ़ी। वर्तमान में फीफा के चार प्रतिनिधि और चारों ब्रिटिश असोसिएशन्स का एक प्रतिनिधि, बोर्ड में शामिल है।
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फुटबॉल
आज फुटबॉल व्यवसायिक स्तर पर पूरी दुनिया में खेला जाता है। अपनी पसंदीदा टीमों का अनुकरण करने के लिए लाखो लोग नियमित रूप से फुटबॉल मैदान जाते हैं, जबकि अरबों लोग टेलिविज़न पर इस खेल को देखते हैं। लोगों की एक बड़ी संख्या शौंक के तौर पर फुटबॉल खेलती है। फीफा के द्वारा आयोजित एक सर्वेक्षण में तक़रीबन दो सौ देशों के दो सौ चालीस से भी ज्यादा लोग नियमित रूप से फुटबॉल खेलते हैं जो 2001 में प्रकाशित हुई थी। इसमें कोई संदेह नहीं इसके साधारण नियम तथा कम उपकरणों की आवश्यकताओं के कारण इसके प्रसार तथा लोकप्रियता में वृद्धि हुई है।
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फुटबॉल
विश्व के अनेक भागों में फुटबॉल व्यक्ति के जीवन, प्रशंसक (fan), स्थानीय समुदायों और देशों में भी एक जूनून पैदा करता है तथा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है; इसीलिए इसे दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल माना जाता है।इएसपीएन (ESPN) ने यह डेव के साथ कहा था कि कोटे देल्वोइरे राष्ट्रीय फुटबॉल टीम (Côte d'Ivoire national football team) ने थोड़े समय के लिए 2005 में देश की नागरिक युद्ध को विराम देने में मदद की थी। इसके विपरीत, 1969 में एल सल्वाडोर और होंदुरास के बीच जो फुटबॉल युद्ध (Football War) हुआ था उसे फुटबॉल जो व्यापक तौर पर फैला हुआ है, अन्तिम आसन्न कारण माना जाता है। इस खेल ने 1990 के युगोस्लाव युद्ध (Yugoslav wars) के शुरुआत में तनाव पैदा कर दिया था, जब दिनमो ज़गरेब (Dinamo Zagreb) और रेड स्टार बेलग्रेड (Red Star Belgrade) के मध्य मैच खेला जा रहा था जिसके कारण मार्च 1990 में दंगा हुआ।
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फुटबॉल
आधिकारिक खेल के नियमों (Laws of the Game) में सत्रह नियम हैं। फुटबॉल के सभी स्तर में वही नियम लागू होते हैं जबकि कुछ समूहों जैसे जूनियर, बुजुर्ग या महिलाओं के लिए कुछ संशोधन की अनुमति दी जाती है। अक्सर नियम व्यापक दृष्टि के लिए बने होते हैं, जो खेल के स्वरुप के आधार पर लचीलापन प्रदान करते हैं। सत्रह नियमों के अलावा आईऍफ़ऐबी के कई फैसलें और अन्य निर्देश फुटबॉल के नियमन में योगदान देते हैं। फीफा के द्वारा खेल के नियम प्रकाशित किए गए हैं लेकिन फीफा के द्वारा ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल असोसिएशन बोर्ड (International Football Association Board) के द्वारा बनाये रखा गया है
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फुटबॉल
प्रत्येक टीम में अधिकतम ग्यारह खिलाड़ी होते हैं (अतिरिक्त खिलाड़ी (substitute) को छोड़कर) उसमें से एक खिलाड़ी गोलकीपर (goalkeeper) होना चाहिए। प्रतियोगिता कानून बता सकता है कि एक टीम को बनाने में कितने खिलाड़ियों की आवश्यकता होती है; आमतौर पर सात होते हैं। गोल कीपर एकमात्र ऐसा खिलाड़ी होता है जिसे अपने हाथ या बाँह में गेंद पकड़ कर खेलने की अनुमति होती है लेकिन वह अपने गोल के सामने पेनाल्टी क्षेत्र (penalty area) तक ही ऐसा कर सकता है। यद्यपि इसमें कई पोजीशन (positions) होती हैं जिसमें कोच के द्वारा रणनीति के अनुसार उनको वह पोजीशन मिलती है। किसी कानून में इन पोजीशनों का उल्लेख नहीं है और न उसकी आवश्यकता है।
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फुटबॉल
बुनियादी उपकरण या किट (kit) की जो आवश्यकता है उसमें शर्ट्स, शोर्ट्स, मोजे, जूते और पिंडली गार्ड (shin guard) आदि इसमें शामिल हैं। बुनियादी उपकरणों में सर गार्ड (Headgear) की आवश्यकता नहीं है, लेकिन खिलाड़ी अपने सर की चोट से सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। खिलाड़ी को ऐसा कुछ पहनने या इस्तेमाल करना वर्जित है जो उसके ख़ुद या अन्य खिलाडियों के लिए खतरनाक साबित हो जैसे गहने या घड़ी। गोल कीपर को ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिससे वह अन्य खिलाड़ियों तथा अधिकारियों द्वारा आसानी से अलग पहचाना जा सके।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%81%E0%A4%9F%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%B2
फुटबॉल
अनेक खिलाड़ी खेल के बीच में स्थानापन्न के द्वारा बदले जा सकते हैं। अधिकतर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और घरेलू लीग खेलों में अधिकतम तीन खिलाड़ीयों को बदलने की अनुमति प्राप्त है, हालाँकि अन्य प्रतियोगिताओं या दोस्ताना मैचों में इसकी संख्या अलग हो सकती है। खिलाड़ी को बदलने के पीछे सामान्यतः कारण चोट, थकान, युद्ध क्षमता कम हो जाना, तकनीकी, या असमंजस खेल के अंत में समय की व्यर्थता (timewasting) आदि के लिए होते हैं। आदर्श व्यस्क मैचों में जो खिलाड़ी एक बार बदल जाते हैं वे मैच का हिस्सा नहीं रहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%81%E0%A4%9F%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%B2
फुटबॉल
मैच के लिए जिस रेफरी (referee) को नियुक्त किया जाता है उस मैच में उसके पास खेल के नियमों को लागू करने का पूर्ण अधिकार होता है (नियम 5) और उसका निर्णय अन्तिम होता है। रेफरी दो सहायक रेफरी (assistant referee) के द्वारा सहायता ग्रहण करता है। उच्च स्तरीय खेलों में एक चौथा अधिकारी (fourth official) भी होता है जो रेफरी को सहायता प्रदान करता है और जरूरत के अनुसार उसके बदले दूसरा अधिकारी भी आ सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%80
कबड्डी
कबड्डी एक खेल है, जो मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में खेली जाती है। कबड्डी नाम का प्रयोग प्राय: उत्तर भारत में किया जाता है, इस खेल को दक्षिण में चेडुगुडु और पूर्व में हु तू तू के नाम से भी जानते हैं। यह खेल भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी उतना ही लोकप्रिय है। तमिल, कन्नड़ और मलयालम में ये मूल शब्द, (கை-பிடி) "कै" (हाथ), "पिडि" (पकडना) का रूपान्तरण है, जिसका अनुवाद है 'हाथ पकडे रहना'। कबड्डी, बांग्लादेश का राष्ट्रीय खेल है
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कबड्डी
साधारण शब्दों में इसे ज्यादा अंक हासिल करने के लिए दो टीमों के बीच की एक स्पर्धा कहा जा सकता है। अंक पाने के लिए एक टीम का रेडर (कबड्डी-कबड्डी बोलने वाला) विपक्षी पाले (कोर्ट) में जाकर वहाँ मौजूद खिलाडियों को छूने का प्रयास करता है। इस दौरान विपक्षी टीम के स्टापर (रेडर को पकड़ने वाले) अपने पाले में आए रेडर को पकड़कर वापस जाने से रोकते हैं और अगर वह इस प्रयास में सफल होते हैं तो उनकी टीम को इसके बदले एक अंक मिलता है। और अगर रेडर किसी स्टापर को छूकर अपने पाले में चला जाता है तो उसकी टीम के एक अंक मिल जाता और जिस स्टापर को उसने छुआ है उसे नियमत: कोर्ट से बाहर जाना पड़ता है।
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कबड्डी
कबड्डी में 12 खिलाड़ी होते हैं जिसमें से 7 कोर्ट में होते हैं और 5 रिज़र्व होते हैं। कबड्डी कोर्ट डॉज बॉल गेम जितना बड़ा होता है। कोर्ट के बीचोबीच एक लाइन खिंची होती है जो इसे दो हिस्सों में बाँटती है। कबड्डी महासंघ के हिसाब से कोर्ट का माप 13 मीटर × 10 मीटर होता है।
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कबड्डी
खिलाडियों के पाले में आने के बाद टॉस जीतने वाली टीम सबसे पहले कोर्ट की साइड या रेड करना चुनती हैं। फिर रेडर कबड्डी-कबड्डी बोलते हुए जाता है और विपक्षी खिलाडियों को छूने का प्रयास करता हैं। वह अपनी चपलता का उपयोग कर विपक्षी खिलाडियों (स्टापरों) को छूने का प्रयास कर सकता है। इस प्रक्रिया में अगर वह विपक्षी टीम के किसी भी स्टापर को छूने में सफल होता है तो उस स्टापर को मरा हुआ (डेड) समझ लिया जाता है। ऐसे में उस स्टापर को कोर्ट से बाहर जाना पड़ता है। और अगर स्टापरों को छूने की प्रक्रिया में रेडर अगर स्टापरों की गिरफ्त में आ जाता है तो उसे मरा हुआ (डेड) मान लिया जाता है। यह प्रक्रिया दोनों टीमों की ओर से बारी-बारी चलती रहती है।
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कबड्डी
यह खेल आमतौर पर 20-20 मिनट के दो हिस्सों में खेला जाता है। हर हिस्से में टीमें पाला बदलती हैं और इसके लिए उन्हें पाँच मिनट का ब्रेक मिलता है। हालाँकि आयोजक इसके एक हिस्से की अवधि 10 या 15 मिनट की भी कर सकते हैं। हर टीम में 5-6 स्टापर (पकड़ने में माहिर खिलाड़ी) व 4-5 रेडर (छूकर भागने में माहिर) होते हैं। एक बार में सिर्फ चार स्टापरों को ही कोर्ट पर उतरने की इजाजत होती है। जब भी स्टापर किसी रेडर को अपने पाले से बाहर जाने से रोकते हैं उन्हें एक अंक मिलता है लेकिन अगर रेडर उन्हें छूकर भागने में सफल रहता है तो उसकी टीम को अंक मिल जाता है।
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कबड्डी
मैचों का आयोजन आयु और वजन के आधार पर किया जाता है, परन्तु आजकल महिलाओं की भी काफी भागेदारी हो रही है।
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कबड्डी
पूरे मैच की निगरानी आठ लोग करते हैं: एक रेफ़री, दो अम्पायर, दो लाइंसमैन, एक टाइम कीपर, एक स्कोर कीपर और एक टीवी अम्पायर।
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कबड्डी
पिछले तीन एशियाई खेल में भी कबड्डी को शामिल करने से जापान और कोरिया जैसे देशों में भी कबड्डी की लोकप्रियता बढ़ी है।
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कबड्डी
कबड्डी का विश्वकप सबसे पहले 2004 में खेला गया था। उसके बाद 2007, 2010, 2012 और 2016 में हुआ। अभी तक भारत सभी में विजेता रहा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A4%BF
कृषि
1950 के दशक के दौरान एक पराबैंगनी व्यापक X-रे के द्वारा प्रेरित उत्परिवर्तजन प्रभाव (आदिम आनुवंशिक अभियांत्रिकी) ने गेहूं, मकई (मक्का) और जौ जैसे अनाजों की आधुनिक किस्मों का उत्पादन किया।
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कृषि
हरित क्रांति ने "उच्च-उत्पादकता की किस्मों" के निर्माण के द्वारा उत्पादन को कई गुना बढ़ाने के लिए पारंपरिक संकरण के उपयोग को लोकप्रिय बना दिया।
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कृषि
उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में मकई (मक्का) की औसत पैदावार 1900 में 2। 5 टन प्रति हेक्टेयर (t/ha) (40 बुशेल्स प्रति एकड़) से बढ़कर 2001 में 9। 4 टन प्रति हेक्टेयर (t/ha) (150 बुशेल्स प्रति एकड़) हो गयी।
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कृषि
इसी तरह दुनिया की औसत गेंहू की पैदावार 1900 में 1 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ कर 1990 में 2। 5 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है। सिंचाई के साथ दक्षिण अमेरिका की औसत गेहूं की पैदावार लगभग 2 टन प्रति हेक्टेयर है, अफ्रीका की 1 टन प्रति हेक्टेयर से कम है, मिस्र और अरब की 3। 5 से 4 टन प्रति हेक्टेयर तक है। इसके विपरीत, फ़्रांस जैसे देशों में गेंहू की पैदावार 8 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है। पैदावार में ये भिन्नताएं मुख्य रूप से जलवायु, आनुवांशिकी और गहन कृषि तकनीकों (उर्वरकों का उपयोग, रासायनिक कीट नियंत्रण, अवांछनीय पौधों को रोकने के लिए वृद्धि नियंत्रण) के स्तर में भिन्नताओं के कारण होती हैं।
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कृषि
आनुवांशिक रूप से परिष्कृत जीव (GMO) वे जीव हैं जिनके आनुवंशिक पदार्थ को आनुवंशिक अभियांत्रिकी तकनीक के द्वारा बदल दिया गया है, इसे सामान्यतया पुनः संयोजक DNA प्रौद्योगिकी के रूप में जाना जाता है।
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कृषि
आनुंशिक अभियांत्रिकी ने प्रजनकों को अधिक जीन उपलब्ध कराये हैं जिनका उपयोग करके वे नयी फसलों के लिए इच्छित जीन सरंचना का निर्माण कर सकते हैं।
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कृषि
1960 के प्रारंभ में यांत्रिक टमाटर -हार्वेस्टर के विकास के बाद, कृषि विज्ञानियों ने टमाटर की यांत्रिक सम्भाल हेतु इसे अधिक संशोधित बनाने के लिए आनुवंशिक रूप से परिष्कृत किया।
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कृषि
अभी हाल ही में, आनुवंशिक अभियांत्रिकी का उपयोग दुनिया के विभिन्न भागों में किया जा रहा है ताकि बेहतर विशेषताओं से युक्त फसलों का निर्माण किया जा सके।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A4%BF
कृषि
राउंडअप रेडी बीज में एक शाक प्रतिरोधी जीन होता है, जो पौधे में ग्लाइफोसेट के प्रति सहनशीलता के लिए इसके जीनोम में डाल दिया गया है। राउंडअप एक व्यापारिक नाम है जो ग्लाइफोसेट आधारित उत्पाद को दिया गया है, जो कृत्रिम है और खर पतवार को नष्ट करने के लिए काम में लिया जाने वाला अचयनित शाक विनाशी है। राउंडअप रेडी बीज किसान को ऎसी फसल देता है जिस पर खर पतवार नष्ट करने के लिए ग्लाइफोसेट का छिडकाव किया जा सकता है और प्रतिरोधी फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। शाक विनाशी-सहिष्णु फसलों को दुनिया भर के किसानों के द्वारा उपयोग किया जाता है। आज, अमेरिका में सोयाबीन का 92% भाग आनुवंशिक रूप से संशोधित शाक विनाशी-सहिष्णु पौधों के साथ उगाया जाता है। शाक विनाशी-सहिष्णु फसलों के बढ़ते हुए उपयोग के साथ, ग्लाइफोसेट आधारित शाक विनाशी छिडकाव के उपयोग में वृद्धि हुई है। कुछ क्षेत्रों में ग्लाइफोसेट विरोधी खरपतवार विकसित हो गए हैं, जिसके कारण किसानों ने किसी अन्य शाक विनाशी का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। कुछ अध्ययन ग्लाइफोसेट के अधिक उपयोग को कुछ फसलों में लौह तत्व की कमी के साथ सम्बंधित करते हैं, जो आर्थिक क्षमता और स्वास्थ्य निहितार्थ, फसल उत्पादन और पोषण गुणवत्ता दोनों की दृष्टि से एक विचारणीय विषय है। [79]
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
भारत में जातियों और उपजातियों की निश्चित संख्या बताना कठिन है। श्रीधर केतकर के अनुसार केवल ब्राह्मणों की 800 से अधिक अंतर्विवाही जातियाँ हैं। और ब्लूमफील्ड का मत है कि ब्राह्मणों में ही दो हजार से अधिक भेद हैं। सन्‌ 1901 की जनगणना के अनुसार, जो जातिगणना की दृष्टि से अधिक शुद्ध मानी जाती है, भारत में उनकी संख्या 2378 है। डॉ॰ जी. एस. घुरिए की प्रस्थापना है कि प्रत्येक भाषाक्षेत्र में लगभग दो सौ जातियाँ होती हैं, जिन्हें यदि अंतर्विवाही समूहों में विभक्त किया जाए तो यह संख्या लगभग 3,000 हो जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
जाति की परिभाषा असंभव मानते हुए अनेक विद्वानों ने उसकी विशेषताओं का उल्लेख करना उत्तम समझा है। डॉ॰ जी. एस धुरिए के अनुसार जाति की दृष्टि से हिंदू समाज की छह विशेताएँ हैं -
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
परंपरागत रूप में जातियाँ स्वायत्त सामाजिक इकाइयाँ हैं जिनके अपने आचार तथा नियम हैं और जो अनिवार्यत: बृहत्तर समाज की आचारसंहिता के अधीन नहीं हैं। इस रूप में सब जातियों की नैतिकता और सामाजिक जीवन न तो परस्पर एकरस है और न पूर्णत: समन्वित। फिर भी, भारतीय जातिपरक समाज का समन्वित तथा सुगठित सामुदायिक जीवन है, जिसमें विविधताओं तथा विभिन्नताओं को सामाजिक मान्यता प्राप्त है। क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा कुछ वैश्य जातियों को छोड़कर प्राय: प्रत्येक जाति की नियमित तथा आचारों का उल्लंघन करने पर उन्हें दंडित करती है। क्षत्रिय तथा ब्राह्मण जातियाँ भी जातीय जनमत के दबाव से और यदाकदा जातीय बंधुओं की तदर्थ पंचायत द्वारा उल्लंघनकर्ताओं को अनुशासित और दंडित करती हैं। उच्च जातीयों का यह अनुशासन राज्यतंत्र द्वारा भी होता रहा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
जातियाँ एक दूसरे की तुलना में ऊँची या नीची हैं। एक ओर क्षत्रिय से पहले धार्मिक रूप से पवित्र मानी जानेवाली ब्राह्मण जातियाँ हैं और दूसरी ओर सबसे नीचे अंत्यज श्रेणी की 'अपवित्र' और 'अछूत' कही जानेवाली जातियाँ हैं। इनके बीच अन्य सभी जातियाँ हैं जो सामाजिक मर्यादा की दृष्टि से उच्च, मध्यम और निम्न श्रेणी में रखी जा सकती हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों ने पूरे समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णो में विभक्त किया है। किंतु अनेक जातियों की वर्णगत स्थिति अनिश्चित है। कायस्थ जाति के वर्ण के विषय में अनेक धारणाएँ हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
एक पंक्ति में बैठकर किसके साथ भोजन किया जा सकता है और किसके हाथ का छुआ हुआ या बनाया हुआ कौन सा भोजन तथा जल आदि स्वीकार्य या अस्वीकार्य है, इसके अनेक जातीय नियम हैं जो भिन्न भिन्न जातियों और क्षेत्रों में भिन्न भिन्न हैं। इस दृष्टि से ब्राह्मण को केंद्र में रखकर उत्तर भारत में जातियों को पाँच समूहों में विभक्त किया जा सकता है। एक समूह में ब्राह्मण जातियाँ है जिनमें स्वयं एक जाति दूसरी जाति का कच्चा भोजन स्वीकार नहीं करती और न एक पंक्ति में बैठकर भोजन कर सकती है। ब्राह्मणों को कुछ जातियाँ इतनी निम्न मानी जाती हैं कि उच्चजातीय ब्राह्मणों से उनकी कभी कभी सामाजिक दूरी बहुत कुछ उतनी ही होती है। जितनी उच्च ब्राह्मण जाति और किसी शूद्र जाति के बीच होती है। दूसरे समूह में वे जातियाँ आती हैं जिनके हाथ का पका भोजन ब्राह्मण स्वीकार कर सकता है। तीसरे समूह की जातियों से ब्राह्मण केवल जल ग्रहण कर सकता है। चौथे समूह की जातियाँ यद्यपि अछूत नहीं, तथापि ब्राह्मण उनके हाथ का जल ग्रहण नहीं कर सकता। पाँचवे समूह में वे सब जातियाँ हैं जिनके छूने मात्र से ब्राह्मण तथा अन्य शुद्ध जातियाँ अशुद्ध हो जाती हैं और अशुद्धि दूर करे के लिये वस्त्रों एवं शरीर को धोने तथा अन्य शुद्धिक्रियाओं को आवश्यकता होती है। हिंदू समाज में भोजन संबंधी एक जातीय आचार यह है कि कच्चा भोजन अपनी जाति के हाथ का ही स्वीकार्य होता है। दूसरी परंपरा यह है कि ब्राह्मण के हाथ का भी कच्चा भोजन ग्रहण किया जाता है। तीसरी परंपरा यह है कि अपने से सभी ऊँची जातियों के हाथ का कच्चा भोजन स्वीकार किया जाता है। सभी जातियाँ पहली परंपरा में हैं और अन्य जातियाँ सामान्यत: बाद के नियमों का अनुसरण करती हैं। एक अछूत जाति दूसरी अछूत जाति के हाथ से न तो कच्चा और न पक्का भोजन स्वीकार करती है, यद्यपि शुद्ध जातियों के हाथ का दोनों प्रकार का भोजन उन्हें स्वीकार्य है। पूर्वी तथा दक्षिणी बंगाल, गुजरात तथा समस्त दक्षिणी भारत में कच्चे तथा पक्के भोजन का यह भेद नहीं है। गुजरात तथा दक्षिणी भारत में ब्राह्मण किसी अब्राह्मण जाति के हाथ से न तो भोजन और न जल ही ग्रहण करता है। उत्तर भारत में अस्पृश्य जातियों से छू जाने पर छूत लगती है किंतु दक्षिण में अछूत व्यक्ति की छाया और उसके निकट जाने से ही छूत लग जाती है। ब्राह्मण को तमिलाडू में शाणान जाति के व्यक्ति द्वारा 24 पग से, मालाबार में तियाँ से 36 पग और पुलियाँ से 96 पग की दूरी से छूत लग जाती है। महाराष्ट्र में अस्पृश्य की छाया से उच्चजातीय व्यक्ति अशुद्ध हो जाता है। केरल में नायर जैसी सुसंस्कृत जाति के छूने से नंबूद्री ब्राह्मण अशुद्ध हो जाता है। तमिलाड में पुराड बन्नान नाम की एक जाति के दर्शन मात्र से छूत लग जाती है।
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जाति
भारतीय जातिव्यवस्था में कुछ जातियाँ उच्च, पवित्र, शुद्ध और सुविधाप्राप्त हैं और कुछ निकृष्ट, अशुद्ध, अस्पृश्य और असुविधाप्राप्त हैं। क्षत्रिय( ठाकुर) Brown एवं ब्राह्मण पवित्र हैं और उन्हें अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा नगारिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इनके विपरीत अस्पृश्य जातियाँ हैं। धार्मिक दृष्टि से ये जातियाँ शास्त्रों के पठनपाठन तथा श्रवण के अधिकार से वंचित हैं। इनका उपनयन संस्कार नहीं होता। इनके धार्मिक कृत्यों में पौरोहित्य नहीं करता। देवालयों में इनका प्रवेश निषिद्ध है। ये अशुद्ध और अशुद्धिकारक हैं। आर्थिक और व्यावसायिक क्षेत्र में गंदे और निकृष्ट समझे जानेवाले कार्य इनके सुपुर्द हैं जिनसे आय प्राय: अत्यल्प होती है। इनकी बस्तियाँ गाँव से कुछ हटकर होती हैं। ये अनेक सामाजिक और नागरिक अनर्हताओं के भागीदार हैं। नाई और धोबी की शारीरिक सेवाएँ इन्हें उपलब्ध नहीं हैं। ये सार्वजनिक तालाबों, धर्मशालाओं और शिक्षासंस्थाओं का उपयोग नहीं कर सकते। अंत्यजों की दशा उत्तर की अपेक्षा दक्षिण भारत में अधिकहीन है। 18 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक महाराष्ट्र में महार जाति के लोगों को दिन में दस बजे के बाद और 4 बजे के पहले ही गाँव और नगर में घुसने की आज्ञा थी। उस समय भी उन्हें गले में हाँडी और पीछे झाड़ू बाँधकर चलना होता था। दक्षिण भारत में पूर्वी और पश्चिमी घाट के शाणान और इड़वा कुछ काल पूर्व तक दुतल्ला मकान नहीं बनवा सकते थे। वे जूता, छाता और सोने के आभूषणों का उपयोग नहीं कर सकते थे। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक तियाँ और अन्य अछूत जाति की नारियाँ शरीर का ऊर्ध्व भाग ढककर नहीं चल सकती थीं। नाई, कुम्हार, अहिर, कलवार, तमोडी, तांती-तत्वा,बढ़ई, सोनार,लोहार, ठठेरा, तेली, हलवाई, कानू, दांगी, अदरखी, नोनिया, बिंद, बेलदार, मलाह, माली, कहार, कोइरी जैसी जातियाँ भी वैदिक संस्कारों और शास्त्रीय ज्ञान के अधिकार से वंचित रही हैं। इसके विपरीत क्षत्रियों एवं ब्राह्मणों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। मनुस्मृति के अनुसार क्षत्रियों द्वारा ब्राह्मणों को मृत्युदंड से मुक्ति दी गयी थी। हिंदू राजाओं के शासनकाल में ब्राह्मणों को दंड तथा करसंबंधी अनेक रियायतें प्राप्त थीं। धार्मिक कर्मकांडों में पौरोहित्य का अधिकार क्षत्रिय एवं ब्राह्मण को है। क्षत्रिय भी विशेष सम्मान के अधिकारी हैं। शासन करना उनका अधिकार है। छुआछूत का दायरा बहुत व्यापक है। अछूत जातियाँ भी एक दूसरे से छूत मानती हैं। मालाबार में पुलियन जाति के किसी व्यक्ति को यदि कोई परहिया छू ले तो पुलियन पाँच बार स्नान करके और अपनी एक अँगुली के रक्त निकाल देने के बाद शुद्धिलाभ करता है। श्री ई. थर्स्टन के अनुसार यदि नायादि जाति का व्यक्ति एक सौ हाथ की दूरी पर आ जाए तो सभी अपवित्र हो जाते हौं। उन्हीं के अनुसार यदि ब्राह्मण किसी परहिया अथवा होलिया के घर या मुहल्ले में भी चला जाए तो उससे उनका घर और बस्ती अपवित्र हो जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
प्रत्येक जाति का एक या अधिक परंपरागत धंधा है। कुछ विभिन्न जातियों के समान परंपरागत धंधे भी हैं। आर. वी. रसेल (R.V. Russel) ने मध्यभारत के बारे में बताया है कि वहाँ कृषकों की 40, बुनकरों की 11 और मछुओं की सात भिन्न भिन्न जातियाँ हैं। कृषि, व्यापार और सैनिक वृत्ति आदि कुछ ऐसे पेशे हैं जो प्राय: सभी जातियों के लिये खुले रहे हैं। अछूत इसमें अपवाद हैं, यद्यपि कृषि अनेक अछूत जातियाँ भी करती हैं। आज ईसा की 20 वीं शताब्दी के मध्य तक अधिकांश जातियों के अधिकतर लोग अपने परंपरागत पेशों में लगे हैं। चमड़ा कमाना, जूते बनाना, विष्टा की सफाई आदि कुछ ऐसे गंदे तथा निकृष्ट समझे जानेवाले कार्य हैं। जिन्हें करने की अनुमति अन्य उच्च जातियाँ अपने सदस्यों को नहीं देतीं। इसके विपरीत बुनाई का धंधा अनेक छोटी जातियों ने अपना लिया है। जजमानी व्यवस्था से संबंधित नाई, धोबी, बढ़ई, लोहार, आदि के कुछ ऐसे धंधे हैं जिनपर संबंधित जातियाँ अपना अधिकार मानती हैं। पौरोहित्य पर ब्राह्मण जातियों का एकाधिकार है। यज्ञ कराना, अध्ययन अध्यापन और दान दक्षिणा लेना ब्राह्मणों का जातीय कर्म तथा वृत्ति है। क्षत्रियों का परंपरागत कार्य शासन और सैनिक वृत्ति है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
गाँव में विभिन्न जातीय समूह सेवा की एक ऐसी व्यवस्था में गठित हैं जिसमें अधिकांश जातियाँ दूसरे की परंपरागत रूढ़ियों पर आधारित आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन के लिये उपयोगी, निश्चित तथा विशिष्ट सेवा देती हैं1 इसे कुछ विद्वानों ने जजमानी व्यवस्था कहा है। जजमानी व्यवस्था का विस्तार आर्थिक जीवन के साथ साथ सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में भी है और अनेक सेवक जातियाँ अपने सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में भी है और अनेक सेवक जातियाँ अपने जजमानों से आर्थिक सेवा के अतिरिक्त सामाजिक उत्सवों और धार्मिक संस्कारों के आधार पर भी संबद्ध हो गई। ब्राह्मण तथा अनेक सेवक जातियों का संबंध तो अपने जजमानों केवल धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन से है। भाट, नट आदि और ब्राह्मणों की अनेक जातियों की गणना इस श्रेणी में की जा सकती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
जाति
सजातीय विवाह जातिप्रथा की रीढ़ माना जाता है। वास्तव में बहुधा एक जाति में भी अनेक अंतर्विवाही समूह होते हैं जो एक प्रकार से स्वयं जातियाँ हैं और जिनकी पृथक्‌ जातीय पंचायतें, अनुशासन और प्रथाएँ हैं। इन्हें उपजातियों का नाम भी दिया जाता है। सजातीय अथवा अंतर्विवाह के कुछ अपवाद भी हैं। पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च जाति का व्यक्ति छोटी जाति की स्त्री से विवाह कर सकता है। मालाबार में नंबूद्री ब्राह्मण मातृस्थानीय नायर नारी से वैवाहिक संबंध करता है।
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एशिया
विश्व के कुल भू-भाग का लगभग 1/10 वां भाग का 30% एशिया में है और इस महाद्वीप की जनसंख्या अन्य सभी महाद्वीपों की संयुक्त जनसंख्या से अधिक लगभग 3/5वां भाग का 60% है। उत्तर में बर्फ़ीले आर्कटिक से लेकर दक्षिण में ऊष्ण भूमध्य रेखा तक यह महाद्वीप लगभग 4,45,70,000 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है और अपने में कुछ विशाल, रिक्त रेगिस्तानों, विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतों और कुछ सबसे लंबी नदियों को समेटे हुए है। एशिया दुनिया के अधिकांश धर्मों का हिंदू धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, सिख धर्म और साथ ही कई अन्य धर्मों का जन्म स्थान है।
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एशिया
एशिया के इतिहास को कई परिधीय तटीय क्षेत्रों के रूप में देखा जा सकता है :— पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व पश्चिम एशिया, जो मध्य एशियाई मैदानों के आर्द्र द्रव्यमान वाले भाग से जुड़ा हुआ है। तटीय परिधि वाली भाग दुनिया की कुछ शुरुआती अज्ञात सभ्यताओं की पहचान थी, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक उपजाऊ भूमि, नदी घाटियों के आसपास मेसोपोटामिया, सिंधु घाटी और पीली नदी जैसी कई सभ्यताएं विकसित हुई। इन्हीं सभ्यताओं में गणित और पहिया जैसी प्रौद्योगिकियों का अविष्कार हुआ। एशिया के इतिहास के अध्ययन से प्रतीत होता है कि एशिया के इन्हीं तराई क्षेत्रों में लेखन, हस्त कलाये, और नगर, राज्य और बड़े-बड़े साम्राज्य का विकास हुआ है। एशिया के केंद्रीय स्टेपी क्षेत्र में लंबे समय से घोड़े पर सवार खानाबदोशों का निवास स्थल हुआ करता था, जिनका समुह स्टेपी से लेकर एशिया के सभी क्षेत्रों तक शिकार के लिए जाते थे। भाषा के संबंध में देखा जाय तो सर्वप्रथम इंडो-यूरोपीय भाषाओं की खोज इसी क्षेत्र में हुई, जो बाद में मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और चीन की सीमाओं तक विकसित होने लगी। एशिया का सबसे उत्तरी भाग साइबेरिया, जहां घने जंगलों, जलवायु और टुंड्रा के कारण स्टेपी खानाबदोशों के लिए काफी हद तक यह क्षेत्र दुर्गम बना रहता था। जिसके कारण इस क्षेत्र में बहुत कम आबादी निवास करती थी। अधिकतर पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्र जैसे काकेशस और हिमालय पर्वत और काराकुम और गोबी रेगिस्तान इत्यादि स्टेपी निवासियों के लिए ख़तरनाक क्षेत्र माना जाता था जबकि शहरी निवासी तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक रूप से अधिक उन्नत थे। 7वीं शताब्दी की विजय के दौरान बीजान्टिन और फारसी साम्राज्यों की इस्लामिक खलीफा की हार के कारण पश्चिम एशिया और मध्य एशिया के दक्षिणी हिस्से और दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से उसके नियंत्रण में आ गए। 13वीं सदी में मंगोल साम्राज्य ने एशिया के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो चीन से लेकर यूरोप तक फैला हुआ क्षेत्र था। मंगोल आक्रमण से पहले, सांग राजवंश में कथित तौर पर लगभग 120 मिलियन आबादी थी; आक्रमण के बाद हुई 1300 की जनगणना में लगभग 60 मिलियन आबादी की सूचना दी गई। 17वीं शताब्दी से एशिया में रूसी साम्राज्य का विस्तार होना शुरू हुआ, और अंततः 19वीं शताब्दी के अंत तक पूरे साइबेरिया और अधिकांश मध्य एशिया पर कब्ज़ा कर लिया। 16वीं शताब्दी के मध्य से ओटोमन साम्राज्य ने अनातोलिया, अधिकांश मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और बाल्कन को नियंत्रित किया। 17वीं शताब्दी में मांचू नामक राजा ने चीन पर विजय प्राप्त की और चिंग राजवंश की स्थापना की। 16वीं और 18वीं शताब्दी में इस्लामिक मुगल साम्राज्य और हिंदू मराठा साम्राज्य ने क्रमशः भारत के अधिकांश हिस्से पर अपना अपना साम्राज्य स्थापित किया।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
एशिया
एशिया पृथ्वी पर सबसे बड़ा महाद्वीप है। पृथ्वी के कुल सतह क्षेत्र का 9% या इसके भूमि क्षेत्र का 30% भाग अनावरण करता है, और इसकी तटरेखा 62,800 किलोमीटर (39,022 मील) सबसे लंबी है। एशिया को आम तौर पर यूरेशिया के पूर्वी चौथे-पांचवें हिस्से के रूप में जाना जाता है। यह स्वेज़ नहर और यूराल पर्वत के पूर्व में और काकेशस पर्वत और काला सागर के दक्षिण में स्थित है यह पूर्व में प्रशांत महासागर, दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में आर्कटिक महासागर से घिरा है।
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एशिया
एशिया को 49 देशों में विभाजित किया गया है, उनमें से जॉर्जिया, अजरबैजान, रूस, कजाकिस्तान और तुर्की अंतरमहाद्वीपीय देश हैं जो आंशिक रूप से यूरोप में स्थित हैं। भौगोलिक दृष्टि से, रूस एशिया में है, लेकिन सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से इसे एक यूरोपीय राष्ट्र के रूप में जाना जाता है।
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एशिया
एशिया की जलवायु विशेषताएँ अत्यंत विविध हैं। एशिया की जलवायु साइबेरिया में आर्कटिक से लेकर दक्षिणी भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में उष्णकटिबंधीय तक फैला है। यह दक्षिण-पूर्वी भागों में नम पाये जाते है, और अधिकांश आंतरिक भाग शुष्क पाये जाते हैं। हिमालय की उपस्थिति के कारण मानसून परिसंचरण दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में हावी रहता है, जिससे तापीय न्यून दाब का निर्माण होता है जो गर्मियों के दौरान नमी को सुखा देता है। इसी कारण एशिया महाद्वीप का दक्षिणी-पश्चिमी भाग गर्म होता है। साइबेरिया का उत्तरी गोलार्द्ध सबसे ठंडे स्थानों में से एक माना जाता है, इसका प्रभाव मुख्यतः उत्तरी अमेरिका के निम्न द्रव्यमान वाले क्षेत्रों देखा जा सकता है। फिलीपींस के उत्तर-पूर्व और जापान के दक्षिण में उष्णकटिबंधीय चक्रवात के सक्रियता का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है।एशिया महाद्वीप के कई देशों पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा प्रभाव देखने को मिलता है। वैश्विक जोखिम विश्लेषण फार्म मेपलक्रॉफ्ट द्वारा 2010 में किए गए एक सर्वेक्षण में 16 ऐसे देशों की पहचान की गई जहां जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशीलता देखने को मिलता हैं। प्रत्येक राष्ट्र की भेद्यता की गणना 42 सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकेतकों को ध्यान में रख करके की गई, जिसमें अगले 30 वर्षों के दौरान संभावित जलवायु परिवर्तन प्रभावों की पहचान की जाने की संभावना है। और इन देशों के अन्तर्गत भारत, वियतनाम, थाईलैंड, पाकिस्तान, चीन और श्रीलंका के एशियाई देश जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक जोखिम का सामना करने वाले 16 देशों में से माने जाते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि कुछ बदलाव पहले से ही हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, अर्ध-शुष्क जलवायु वाले भारत के उष्णकटिबंधीय भागों में, 1901 और 2003 के बीच तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई।
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एशिया
एशिया की अर्थव्यवस्था यूरोप के बाद विश्व की, क्रय शक्ति के आधार पर, दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। एशिया की अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत लगभग 4 अरब लोग आते हैं, जो विश्व जनसंख्या का 80% है। ये 4 अरब लोग एशिया के 46 विभिन्न देशों में निवास करते है। छः अन्य देशों के कुछ भूभाग भी आंशिक रूप से एशिया में पड़ते हैं, लेकिन इन देशों का बहुत ही कम भाग एशिया में है इसलिए इन्हें गिना नहीं जाता। वर्तमान में विश्व का सबसे ते़ज़ी उन्नति करता हुआ क्षेत्र है और चीन इस समय एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो कई पूर्वानुमानों के अनुसार अगले कुछ वर्षों में विश्व की भी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। एशिया काफी हद तक दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और यह पेट्रोलियम, जंगल, मछली, पानी, चावल, तांबा और चांदी जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। एशिया में विनिर्माण परंपरागत रूप से पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे मजबूत रहा है, विषेशकर चीन, ताइवान , दक्षिण कोरिया, जापान, भारत, फिलीपींस और सिंगापुर में। बहुराष्ट्रीय निगमों के क्षेत्र में जापान और दक्षिण कोरिया का दबदबा कायम है, लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण भारत में भी चीन के जैसा प्रगति हो रही हैं। सस्ते श्रम की प्रचुर आपूर्ति और अपेक्षाकृत विकसित बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने के लिए यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान की कई कंपनियां एशिया के विकासशील देशों में परिचालन कर रही हैं।
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एशिया
एशिया महाद्वीप पृथ्वी के 29.4% भूमि क्षेत्र का अनावरण करता है और इसकी आबादी लगभग 4.75 बिलियन (2022 तक) है, जो विश्व की आबादी का लगभग 60% है। 2022 तक चीन और भारत दोनों की संयुक्त जनसंख्या 2.8 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है। 2055 तक एशिया की जनसंख्या 5.25 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है, या उस समय अनुमानित विश्व जनसंख्या का लगभग 54%। 2022 तक एशिया में जनसंख्या वृद्धि अत्यधिक असमान दरों के साथ 0.55% प्रति वर्ष के करीब थी। कई पश्चिमी एशियाई और दक्षिण एशियाई देशों की विकास दर विश्व औसत से ऊपर है, विशेष रूप से पाकिस्तान में 2% प्रति वर्ष, जबकि चीन में -0.06% की मामूली कमी हुई और भारत में 2022 में 0.6% की वृद्धि हुई।
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एशिया
एशिया की संस्कृति रीति-रिवाजों और परंपराओं का एक विविध मिश्रण है जो सदियों से महाद्वीप के विभिन्न जातीय समूहों द्वारा प्रचलित है। महाद्वीप को छह भौगोलिक उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:—
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
एशिया
इन क्षेत्रों को उनकी सांस्कृतिक समानताओं से परिभाषित किया जाता है, जिसमें सामान्य धर्म, भाषाएं और जातीयताएं शामिल हैं। पश्चिम एशिया, जिसे दक्षिण-पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व के रूप में भी जाना जाता है, की सांस्कृतिक जड़ें उपजाऊ क्रिसेंट और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताओं में हैं, जिन्होंने फारसी, अरब, ओटोमन साम्राज्यों के साथ-साथ यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इब्राहीम धर्मों को जन्म दिया। इस्लाम। ये सभ्यताएं, जो पहाड़ी किनारों में स्थित हैं, दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से हैं, जिनमें खेती के प्रमाण लगभग 9000 ईसा पूर्व के हैं। महाद्वीप के विशाल आकार और रेगिस्तान और पर्वत शृंखलाओं जैसी प्राकृतिक बाधाओं की उपस्थिति से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में एशिया की छवि सुदृढ़ बनाने में मदद की है जो पूरे क्षेत्र में साझा की जाती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
कुछ पश्चिम अफ्रीकी समूहों, जैसे डोगॉन और डोवायो में, खतने को पुरूष के “जनाना” पहलू को हटाए जाने का प्रतिक माना जाता है, जिससे लड़के पूर्णतः मर्दाना पुरूषों में रूपांतरित हो जाते हैं। दक्षिणी नाइजेरिया के उर्होबो लोगों में यह एक लड़के के पुरुषत्व में प्रवेश का प्रतीक है। रस्मी अभिव्यक्ति, ऑमो ते ऑशारे (Omo te Oshare) ("यह लड़का अब पुरुष है”), एक आयु-वर्ग से दूसरे में पारगमन की रस्म से मिलकर बनती है। नीलनदीय लोगों, जैसे कलेंजिन और मसाई, के लिये खतना पारगमन का एक संस्कार है, जो अनेक लड़कों द्वारा एकत्रित रूप से कुछ वर्षों में एक बार मनाया जाता है और जिन लड़कों का खतना एक साथ किया गया हो, उन्हें एक एकल आयु-वर्ग के सदस्य माना जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
जिन पुरुषों का खतना हुआ है, वैश्विक रूप से उनके अनुपात का आकलन में छठे भाग से लेकर एक-तिहाई तक का अंतर है। डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि 15 वर्ष और इससे अधिक आयु के 664,500,000 पुरुषों (वैश्विक प्रचलन का 30%) का खतना हो चुका है, जिनमें से लगभग 70% मुसलमान हैं। मुस्लिम विश्व, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमरीका, फिलीपीन्स, इसरायल और दक्षिण कोरिया में खतने का प्रचलन सबसे ज़्यादा है। यूरोप, लैटिन अमरीका, दक्षिणी अफ्रीका के भागों और अधिकांश एशिया व महासागरीय द्वीपों में यह अपेक्षाकृत दुर्लभ है। मध्य-पूर्व और मध्य एशिया में इसका प्रचलन लगभग सर्वव्यापी है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार "एशिया में सामान्यतः खतने की बहुत थोड़ी घटनाएं ही गैर-धार्मिक हैं, कोरियाई गणराज्य व फिलीपीन्स इसके अपवाद हैं। डब्लूएचओ (WHO) ने अनुमानित प्रचलन का एक मानचित्र, जिसमें इसका स्तर पूरे यूरोप में सामान्यतः निम्न (< 20%) है, और क्लाव्स व अन्य (Klavs et al.) की रिपोर्ट का निष्कर्ष प्रस्तुत किया है जो "इस धारणा का समर्थन करता है कि यूरोप में खतने का प्रचलन कम है "। लैटिन अमरीका में, इसका प्रचलन सार्वभौमिक रूप से कम है। एकल देशों के अनुमानों में स्पेन, कोलम्बिया और डेनमार्क 2% से कम, फिनलैंड और ब्राज़ील 7%, ताइवान 9%, थाईलैंड 13% और ऑस्ट्रेलिया 58.7% शामिल हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा में खतने का प्रचलन क्रमशः 75% और 30% है। अफ्रीका में इसके प्रचलन में अंतर है, जिसके अनुसार कुछ दक्षिणी अफ्रीकी देशों में यह 20% से कम है, जबकि पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में सर्वव्यापी है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
यदि असंवेदनता (anesthesia) का प्रयोग किया जाना है, तो इसके अनेक विकल्प हैं: स्थानीय असंवेदनता क्रीम (एम्ला (EMLA) क्रीम) को इस विधि के 60-90 मिनटों पूर्व शिश्न के छोर पर लगाया जा सकता है; शिश्न की पृष्ठ-शिरा (dorsal penile nerve) को बाधित करने के लिये शिश्न के मूल में स्थानीय असंवेदक का इंजेक्शन लगाया जा सकता है; शिश्न के मध्यम में स्थित एक घेरा, जिसे प्रत्युपयाजक घेरे का क्षेत्र (subcutaneous ring block) कहते हैं, में भी स्थानीय असंवेदक का इंजेक्शन लगाया जा सकता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
नवजात शिशुओं के खतने के लिये, आमतौर पर अवरोधक उपकरणों के साथ गॉम्को कीलक (Gomco clamp), प्लास्टिबेल (Plastibell) और मॉगेन कीलक (Mogen clamp) जैसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
इन सभी उपकरणों के साथ एक ही बुनियादी विधि का पालन किया जाता है। सबसे पहले अग्र-त्वचा की उस मात्रा का आकलन किया जाता है, जिसे निकाला जाना है। इसके बाद खलड़ी के विवर (preputial orifice) के माध्यम से अग्र-त्वचा को खोलकर इसके नीचे स्थित शिश्न-मुण्ड को उजागर किया जाता है और सुनिश्चित किया जाता है कि यह सामान्य है। इसके बाद अग्र-त्वचा की आंतरिक परत (खलड़ी की उपकला (preputial epithelium)) को शिश्न-मुण्ड पर इसके जोड़ से रुखाई से अलग कर दिया जाता है। इसके बाद यह उपकरण रखा जाता है (कभी-कभी इसके लिये एक पृष्ठ-चीरा (dorsal slit) लगाना पड़ता है) और यह तब तक वहां रहता है, जब तक कि रक्त का प्रवाह बंद न हो जाए। अंततः अग्र-त्वचा का उच्छेदन कर दिया जाता है। कभी-कभी, फ्रेनुलम (frenulum) बैण्ड को तोड़ने या कुचलने और मूत्रमार्ग के पास स्थित परिमण्डल से काटने की आवश्यकता भी हो सकती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिश्न-मुण्ड मुक्त रूप से और पूरी तरह उजागर हो रहा है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
प्लास्टिबेल (Plastibell) के साथ, जब एक बार शिश्न-मुण्ड मुक्त कर दिया जाता है, तो प्लास्टिबेल शिश्न-मुण्ड के पर रखी जाती है और अग्र-त्वचा को प्लास्टिबेल पर रखा जाता है। इसके बाद हेमोस्टैसिस (hemostasis) प्राप्त करने के लिये अग्र-त्वचा पर एक मज़बूत बन्ध लगाया जाता है और इसे प्लास्टिबेल के खांचे में बांध दिया जाता है। पट्टी से सर्वाधिक अंतर पर स्थित अग्र-त्वचा को पूर्ण रूप से काट कर फेंक दिया जाता है और हैंडल को प्लास्टिबेल उपकरण से तोड़कर हटा दिया जाता है। घाव भर जाने पर, विशिष्ट रूप से चार से छः दिनों में, प्लास्टिबेल शिश्न से नीचे गिर जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
एक गॉम्को कीलक (Gomco clamp) के साथ, त्वचा के एक भाग को एक हेमोस्टैट (hemostat) के साथ पृष्ठीय रूप से कुचला जाता है और फिर इसे कैंची से चीरते हैं। अग्र-त्वचा को कीलक के घंटी जैसे आकार वाले भाग के ऊपर लाया जाता है और कीलक की तली में स्थित एक छिद्र के माध्यम से प्रविष्ट किया जाता है। “अग्र-त्वचा को घंटी और आधार-प्लेट के बीच कुचलकर” कीलक को बांध दिया जाता है। कुचली हुई रक्त शिरायें हेमोस्टौसिस (hemostasis) प्रदान करती हैं। घंटी की चमकीली तली आधार-प्लेट के छिद्र में सख्ती से समा जाता है, ताकि आधार-प्लेट के ऊपर से अग्र-त्वचा को एक छुरी से काटा जा सके।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE
खतना
एक मॉगेन कीलक (Mogen clamp) के साथ, अग्र-त्वचा को एक सीधे हेमोस्टैट (hemostat) के साथ पृष्ठीय रूप से खींचा और फिर उठाया जाता है। इसके बाद मोगेन कीलक को शिश्न-मुण्ड और हेमोस्टैत के बीच, परिमण्डल के कोण का पालन करते हुए, सरकाया जाता है, ताकि गॉम्को या प्लास्टिबेल खतने की तुलना में “एक बेहतर कॉस्मेटिक परिणाम प्राप्त किया जा सके और पेट की ओर से अत्यधिक त्वचा को हटाने से बचा जा सके”। कीलक को बंद किया जाता है और कीलक के सपाट (ऊपरी) छोर से त्वचा को काटने के लिये एक छुरी का प्रयोग किया जाता है।
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बैडमिंटन
बैडमिंटन में बहुत सारे बुनियादी स्ट्रोक हैं और प्रभावी ढंग से प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को बहुत ही उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता है। सभी स्ट्रोक या तो फोरहैंड या बैकहैंड से खेले जा सकते हैं। एक खिलाड़ी का फोरहैंड साइड उसके खेलने वाले हाथ का ही साइड होता है: दाएं हाथ के खिलाड़ी के लिए फोरहैंड साइड उसका दाहिना साइड होता है और बैकहैंड साइड उसका बायां साइड होता है। प्रमुख हथेली से फोरहैंड स्ट्रोक दाहिने हाथ के सामने से मारा जाता है (जैसे हथेली से मारा जाये), जबकि बैकहैंड स्ट्रोक दाहिने हाथ के पीछे से मारा जाता है (जैसे हाथ के जोड़ों से मारा जाये)। खिलाड़ी अक्सर फोरहैंड साइड की ओर से बैकहैंड मारने के साथ कुछ स्ट्रोक खेलते हैं और इसका उल्टा भी.
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बैडमिंटन
सामने के कोर्ट और मध्य कोर्ट में, या तो फोरहैंड या फिर बैकहैंड साइड से समान प्रभावी तरीके से ज़्यादातर स्ट्रोक खेले जा सकते हैं; लेकिन कोर्ट के पिछले भाग से ख़िलाड़ी अपने फोरहैंड से जितना संभव हो उतने स्ट्रोक खेलने का प्रयास करता है, प्रायः बैकहैंड ओवरहेड के बजाए सिर के पास से फ़ोरहैंड ओवरहेड (फोरहैंड "बैकहैंड की तरफ से") खेलना पसंद करता है। एक बैकहैंड ओवरहेड खेलने के दो मुख्य नुकसान हैं। सबसे पहले, खिलाड़ी अपने विरोधियों की ओर अपनी पीठ जरूर करता है, इससे वह उन्हें और कोर्ट को नहीं देख पाता है। दूसरे, बैकहैंड ओवरहेड्स उतनी ताकत के साथ नहीं मारा जा सकता जितना कि फ़ोरहैंड: कंधे के जोड़ के कारण मारने की कार्यवाही सीमित हो जाती है, जो बैकहैंड के बजाए फ़ोरहैंड ओवरहेड संचालन के बहुत बड़े रेंज की अनुमति देता है। खेल में अधिकांश ख़िलाड़ी और कोच बैकहैंड क्लियर को कठिन बुनियादी स्ट्रोक मानते हैं, क्योंकि शटलकॉक कोर्ट की पूरी लंबाई में यात्रा करे इसके लिए पर्याप्त शक्ति बटोरने के क्रम में सटीक तकनीक की ज़रुरत होती है। उसी कारण से, बैकहैंड स्मैश कमजोर हो जाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%A8
बैडमिंटन
स्ट्रोक का चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि शटलकॉक नेट के कितने नजदीक है, कहीं यह नेट की ऊँचाई से ऊपर तो नहीं है और विरोधी की वर्तमान स्थिति कहां है: अगर वे नेट की ऊँचाई के ऊपर शटलकॉक तक पहुंच सकते हैं तो खिलाड़ी बेहतर हमले की स्थिति में होते हैं। फोरकोर्ट में, एक ऊंचा शटलकॉक नेट किल से मिलेगा, इसे नीचे की ओर तेज़ी से हिट करते हुए रैली को तुरंत जीतने की कोशिश की जाएगी. इसी कारण यह बेहतर है कि इस स्थिति में शटलकॉक को नेट पर ही गिरने दिया जाए. मिडकोर्ट में, ऊंचा शटलकॉक आमतौर पर एक शक्तिशाली स्मैश बना दिया जाता है, यह नीचे की ओर हिट करता है और इससे एक संपूर्ण जीत या एक कमजोर जवाब की उम्मीद की जाती है। कसरती कूद स्मैश, जहां खिलाड़ी नीचे की ओर स्मैश कोण के लिए ऊपर की ओर उछलता है, यह एलीट पुरुषों के डबल्स खेल का एक आम और शानदार तत्त्व है। रिअरकोर्ट में, शटलकॉक को नीचे की ओर आने देने के बजाए खिलाडी उस समय मारने के लिए बेकरार होता है जब वह उनके ऊपर होता है। यह ओवरहेड आघात उन्हें कई तरह के स्मैश, क्लियर्स (शटलकॉक को ऊँचाई से और विरोधी कोर्ट के पीछे मारना) और ड्रॉपशॉट्स (ताकि शटलकॉक विरोधियों के फोरकोर्ट में धीरे से नीचे गिरे) खेलने की अनुमति देता है। अगर शटलकॉक थोडा नीचे आता है, तो स्मैश असंभव है और संपूर्ण लंबाई, ऊंचा क्लियर मुश्किल है।
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