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चमार
प्रथम चमार रेजिमेंट द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा गठित एक पैदल सेना रेजिमेंट थी। आधिकारिक तौर पर, यह 1 मार्च 1943 को बनाई गई थी, क्योंकि 27वीं बटालियन दूसरी पंजाब रेजिमेंट को परिवर्तित किया गया था। चमार रेजिमेंट उन सेना इकाइयों में से एक थी, जिन्हें कोहिमा की लड़ाई में अपनी भूमिका के लिए सम्मानित किया गया था। 1946 में रेजिमेंट को भंग कर दिया गया था। 2011 में, कई राजनेताओं ने मांग की कि इसे पुनर्जीवित किया जाए।
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चमार
संत रविदास -- भारत के मध्यकाल के एक महान सन्त, जिनकी वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में भी सम्मिलित की गयी है।
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चमार
भीमराव आम्बेडकर, भारतीय बहुज्ञ, संविधानशिल्पी, समाजसुधारक, प्रथम कानून एवं न्यायमन्त्री ( 1891-1956 )
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चमार
अनिल कुमार दास (1971-2017) -- बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम के नेतृत्व में बिहार प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नींव रखने वाले एक सामाजिक एवं प्रतिष्ठित कार्यकर्ता रहे हैं ।
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मलेरिया
यधपि मलेरिया परजीवी के जीवन के रक्त चरण और मच्छर चरण का पता बहुत पहले लग गया था, किंतु यह 1980 मे जा कर पता लगा कि यह यकृत मे छिपे रूप से मौजूद रह सकता है। इस खोज से यह गुत्थी सुलझी कि क्यों मलेरिया से उबरे मरीज वर्षों बाद अचानक रोग से ग्रस्त हो जाते हैं।
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मलेरिया
मलेरिया प्रतिवर्ष ४० से ९० करोड़ बुखार के मामलो का कारण बनता है, वहीं इससे १० से ३० लाख मौतें हर साल होती हैं, जिसका अर्थ है प्रति ३० सैकेण्ड में एक मौत। इनमें से ज्यादातर पाँच वर्ष से कम आयु वाले बच्चें होते हैं, वहीं गर्भवती महिलाएँ भी इस रोग के प्रति संवेदनशील होती हैं। संक्रमण रोकने के प्रयास तथा इलाज करने के प्रयासों के होते हुए भी १९९२ के बाद इसके मामलों में अभी तक कोई गिरावट नहीं आयी है। यदि मलेरिया की वर्तमान प्रसार दर बनीं रही तो अगले २० वर्षों मे मृत्यु दर दोगुणी हो सकती है। मलेरिया के बारे में वास्तविक आकँडे अनुपलब्ध हैं क्योंकि ज्यादातर रोगी ग्रामीण इलाकों मे रहते हैं, ना तो वे चिकित्सालय जाते हैं और ना उनके मामलों का लेखा जोखा रखा जाता है।
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मलेरिया
मलेरिया और एच.आई.वी. का एक साथ संक्रमण होने से मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। मलेरिया चूंकि एच.आई.वी. से अलग आयु-वर्ग में होता है, इसलिए यह मेल एच.आई.वी. - टी.बी. (क्षय रोग) के मेल से कम व्यापक और घातक होता है। तथापि ये दोनो रोग एक दूसरे के प्रसार को फैलाने मे योगदान देते हैं- मलेरिया से वायरल भार बढ जाता है, वहीं एड्स संक्रमण से व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो जाने से वह रोग की चपेट मे आ जाता है।
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मलेरिया
वर्तमान में मलेरिया भूमध्य रेखा के दोनों तरफ विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है इन क्षेत्रों में अमेरिका, एशिया तथा ज्यादातर अफ्रीका आता है, लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा मौते (लगभग ८५ से ९० % तक) उप-सहारा अफ्रीका मे होती हैं। मलेरिया का वितरण समझना थोडा जटिल है, मलेरिया प्रभावित तथा मलेरिया मुक्त क्षेत्र प्राय साथ साथ होते हैं। सूखे क्षेत्रों में इसके प्रसार का वर्षा की मात्रा से गहरा संबंध है। डेंगू बुखार के विपरीत यह शहरों की अपेक्षा गाँवों में ज्यादा फैलता है। उदाहरणार्थ वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया के नगर मलेरिया मुक्त हैं, जबकि इन देशों के गाँव इस से पीडित हैं। अपवाद-स्वरूप अफ्रीका में नगर-ग्रामीण सभी क्षेत्र इस से ग्रस्त हैं, यद्यपि बड़े नगरों में खतरा कम रहता है। १९६० के दशक के बाद से कभी इसके विश्व वितरण को मापा नहीं गया है। हाल ही में ब्रिटेन की वेलकम ट्रस्ट ने मलेरिया एटलस परियोजना को इस कार्य हेतु वित्तीय सहायता दी है, जिससे मलेरिया के वर्तमान तथा भविष्य के वितरण का बेहतर ढँग से अध्ययन किया जा सकेगा।
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मलेरिया
मलेरिया गरीबी से जुड़ा तो है ही, यह अपने आप में खुद गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास में बाधक है। जिन क्षेत्रों में यह व्यापक रूप से फैलता है वहाँ यह अनेक प्रकार के नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डालता है। प्रति व्यक्ति जी.डी.पी की तुलना यदि १९९५ के आधार पर करें (खरीद क्षमता को समायोजित करके), तो मलेरिया मुक्त क्षेत्रों और मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में इसमें पाँच गुणा का अन्तर नजर आता है (१,५२६ डालर बनाम ८,२६८ डालर)। जिन देशों मे मलेरिया फैलता है उनके जी.डी.पी मे १९६५ से १९९० के मध्य केवल प्रतिवर्ष ०.४% की वृद्धि हुई वहीं मलेरिया से मुक्त देशों में यह २.४% हुई। यद्यपि साथ में होने भर से ही गरीबी और मलेरिया के बीच कारण का संबंध नहीं जोड़ा सकता है, बहुत से गरीब देशों में मलेरिया की रोकथाम करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हो पाता है। केवल अफ्रीका में ही प्रतिवर्ष १२ अरब अमेरिकन डालर का नुकसान मलेरिया के चलते होता है, इसमें स्वास्थ्य व्यय, कार्यदिवसों की हानि, शिक्षा की हानि, दिमागी मलेरिया के चलते मानसिक क्षमता की हानि तथा निवेश एवं पर्यटन की हानि शामिल हैं। कुछ देशों मे यह कुल जन स्वास्थय बजट का ४०% तक खा जाता है। इन देशों में अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में से ३० से ५०% और बाह्य-रोगी विभागों में देखे जाने वाले रोगियों में से ५०% तक रोगी मलेरिया के होते हैं। एड्स और तपेदिक के मुकाबले २००७ के नवंबर माह में मलेरिया के लिए दुगने से भी ज्यादा ४६.९ करोड़ डालर की सहायता राशि खर्च की गई।
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मलेरिया
मलेरिया के लक्षणों में शामिल हैं- ज्वर, कंपकंपी, जोड़ों में दर्द, उल्टी, रक्ताल्पता (रक्त विनाश से), मूत्र में हीमोग्लोबिन और दौरे। मलेरिया का सबसे आम लक्षण है अचानक तेज कंपकंपी के साथ शीत लगना, जिसके फौरन बाद ज्वर आता है। ४ से ६ घंटे के बाद ज्वर उतरता है और पसीना आता है। पी. फैल्सीपैरम के संक्रमण में यह पूरी प्रक्रिया हर ३६ से ४८ घंटे में होती है या लगातार ज्वर रह सकता है; पी. विवैक्स और पी. ओवेल से होने वाले मलेरिया में हर दो दिन में ज्वर आता है, तथा पी. मलेरिये से हर तीन दिन में।
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मलेरिया
मलेरिया के गंभीर मामले लगभग हमेशा पी. फैल्सीपैरम से होते हैं। यह संक्रमण के 6 से 14 दिन बाद होता है। तिल्ली और यकृत का आकार बढ़ना, तीव्र सिरदर्द और अधोमधुरक्तता (रक्त में ग्लूकोज़ की कमी) भी अन्य गंभीर लक्षण हैं। मूत्र में हीमोग्लोबिन का उत्सर्जन और इससे गुर्दों की विफलता तक हो सकती है, जिसे कालापानी बुखार (अंग्रेजी: blackwater fever, ब्लैक वाटर फ़ीवर) कहते हैं। गंभीर मलेरिया से मूर्च्छा या मृत्यु भी हो सकती है, युवा बच्चे तथा गर्भवती महिलाओं मे ऐसा होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। अत्यंत गंभीर मामलों में मृत्यु कुछ घंटों तक में हो सकती है। गंभीर मामलों में उचित इलाज होने पर भी मृत्यु दर 20% तक हो सकती है। महामारी वाले क्षेत्र मे प्राय उपचार संतोषजनक नहीं हो पाता, अतः मृत्यु दर काफी ऊँची होती है और मलेरिया के प्रत्येक 10 मरीजों में से 1 मृत्यु को प्राप्त होता है।
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मलेरिया
मलेरिया युवा बच्चों के विकासशील मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है। बच्चों में दिमागी मलेरिया होने की संभावना अधिक रहती है और ऐसा होने पर दिमाग में रक्त की आपूर्ति कम हो सकती है और अक्सर मस्तिष्क को सीधे भी हानि पहुँचाती है। अत्यधिक क्षति होने पर हाथ-पांव अजीब तरह से मुड़-तुड़ जाते हैं। दीर्घ काल में गंभीर मलेरिया से उबरे बच्चों में अकसर अल्प मानसिक विकास देखा जाता है। गर्भवती स्त्रियाँ मच्छरों के लिए बहुत आकर्षक होती हैं और मलेरिया से गर्भ की मृत्यु, निम्न जन्म भार और शिशु की मृत्यु तक हो सकते हैं। मुख्यतया यह पी. फ़ैल्सीपैरम के संक्रमण से होता है, लेकिन पी. विवैक्स भी ऐसा कर सकता है।
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मलेरिया
पी. विवैक्स तथा पी. ओवेल परजीवी वर्षों तक यकृत मे छुपे रह सकते हैं। अतः रक्त से रोग मिट जाने पर भी रोग से पूर्णतया मुक्ति मिल गई है ऐसा मान लेना गलत है। पी. विवैक्स मे संक्रमण के 30 साल बाद तक फिर से मलेरिया हो सकता है। समशीतोष्ण क्षेत्रों में पी. विवैक्स के हर पाँच मे से एक मामला ठंड के मौसम में छुपा रह कर अगले साल अचानक उभरता है।
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दर्शनशास्त्र
उल्लेखनीय मध्ययुगीन दार्शनिकों में हाइपेशिया (5वीं शताब्दी), बिंगन की सेंट हिल्डेगार्ड (1098-1179) और सिएना की सेंट कैथरीन (1347-1380) प्रमुख हैं।
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दर्शनशास्त्र
हाइपेशिया (ई. 350-370 से 415) एलेक्जेंड्रिया (जो कि उस समय पूर्वी रोमन साम्राज्य का हिस्सा था) की एक यूनानी गणितज्ञ,खगोलशास्त्री और दार्शनिक थी। वह अलेक्जेंड्रिया में नवप्लेटोवादि स्कूल की प्रमुख विचारक थीं, जहाँ उन्होंने दर्शन और खगोल विज्ञान पढ़ाया । हाइपेशिया, अपने जीवनकाल में एक महान शिक्षक और एक बुद्धिमान परामर्शदाता के रूप में प्रसिद्ध थी। रोमन अधिकारी ओरेस्टेस को अलेक्जेंड्रिया के बिशप, सिरिल के विरुद्ध भड़काने के आरोप में मार्च 415 ईस्वी में ईसाइयों की भीड़ द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।
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दर्शनशास्त्र
एमिली डू चेटेलेट (1706-1749) एक फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी और प्रबुद्धता के युग के दौरान लेखक थे । उन्होंने इसाक न्यूटन के सुप्रसिद्ध ग्रंथ "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत" (लैटिन - Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica) का अनुवाद किया और उसपर भाष्य भी लिखा। उन्होंने जॉन लॉक के दर्शन की आलोचना की और अनुभव के माध्यम से ज्ञान के सत्यापन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वतंत्र इच्छा और तत्वमीमांसा की क्रियाविधि के बारे में भी सिद्धांत दिया।
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दर्शनशास्त्र
मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट (1759-1797) एक अंग्रेजी लेखिका, दार्शनिक और महिलाओं के अधिकारों की हिमायती थीं । उन्हें नारीवादी दर्शन की संस्थापकों में से एक माना जाता है। "महिलाओं के अधिकारों की एक पक्षप्रमाणिकता" (अंग्रेजी - A Vindication of the Rights of Woman(1792)) उनका सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली कार्य है, जिसमें उनका तर्क है कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से पुरुषों से कमतर नहीं हैं, बल्कि केवल इसलिए दिखाई देती हैं क्योंकि उनमें शिक्षा की कमी है।
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दर्शनशास्त्र
रोजा लक्जमबर्ग (1871-1919) पोलिश-यहूदी वंश की मार्क्सवादी सिद्धांतकार, दार्शनिक, अर्थशास्त्री और क्रांतिकारी समाजवादी थी। जबकि लक्समबर्ग ने मार्क्स की द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और इतिहास की उनकी अवधारणा का बचाव किया, उन्होंने सहज जमीनी - आधारित वर्ग संघर्ष का आह्वान भी किया।
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दर्शनशास्त्र
समकालीन दर्शन पश्चिमी दर्शन के इतिहास में वर्तमान काल है जो 19वीं शताब्दी के अंत में शैक्षिक दर्शन के व्यावसायीकरण के साथ तथा विश्लेषणात्मक और महाद्वीपीय दर्शन के उदय के साथ शुरू हुआ । इस अवधि की कुछ प्रभावशाली महिला दार्शनिकों में शामिल हैं:
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दर्शनशास्त्र
एलिजाबेथ एंस्कोम्बे (1919-2001), एक ब्रिटिश विश्लेषणात्मक दार्शनिक थीं । एंस्कोम्बे के 1958 के लेख "मॉडर्न मोरल फिलॉसफी " ने विश्लेषणात्मक दर्शन की भाषा में " परिणामीवाद " शब्द की शुरुआत की , और समकालीन सद्गुण नैतिकता पर एक मौलिक प्रभाव डाला। उनके विनिबंध "इन्टेन्शन" को आम तौर पर उनके सबसे महान और सबसे प्रभावशाली कृतियों के रूप में जाना जाता है, जिससे इष्टार्थ, कार्रवाई और व्यावहारिक तर्क की अवधारणाओं में निरंतर दार्शनिक रुचि से मुख्य प्रेरणा मिलती रही है।
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दर्शनशास्त्र
हन्ना अरेंड्ट (1906-1975) जर्मनी में जन्मी, अमेरिका में आत्मसात, एक यहूदी राजनीतिक सिद्धांतकार थी। उनकी रचनाएँ सत्ता की प्रकृति , और राजनीति के विषयों,प्रत्यक्ष लोकतंत्र,अधिकार और अधिनायकवाद से संबंधित हैं। वह समकालीन राजनीतिक दर्शनशास्त्र में एक प्रमुख विद्वान् हैं।
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दर्शनशास्त्र
सिमोन डी बेवॉयर (1908-1986) एक फ्रांसीसी लेखक, बुद्धिजिवी, अस्तित्ववादी दार्शनिक, राजनीतिक कार्यकर्ता, नारीवादी और सामाजिक सिद्धांतकार थी।हालांकि वह खुद को एक दार्शनिक नहीं मानती थी, लेकिन नारीवादी अस्तित्ववाद और नारीवादी सिद्धांत दोनों पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव था। डी बेवॉयर ने दर्शन, राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर उपन्यास, निबंध, आत्मकथाएँ, और प्रबंध लिखे।वह अपने 1949 के ग्रंथ द सेकेंड सेक्स के लिए जानी जाती हैं, जो महिलाओं के उत्पीड़न का विस्तृत विश्लेषण और समकालीन नारीवाद का एक मूलभूत कृति है।
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जनसंख्या
अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की एक ही बच्चे की नीति जिसमें एक से ज्यादा बच्चे होना बहुत बुरा माना जाता है। इस नीति के परिणाम स्वरुप जबरन गर्भपात, जबरन नसबंदी और जबरन शिशु हत्या जैसे आरोपों को बढ़ावा मिला। देश के लिंग अनुपात में ११४ लड़कों की तुलना में सिर्फ १०० लड़कियों का जन्म ये प्रदर्शित करता है कि शिशु हत्या प्रायः लिंग के चुनाव के अनुसार की जाती है।
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जनसंख्या
यह बात उपयोगी होगी अगर प्रजनन नियंत्रण करने को व्यक्ति के व्यक्तिगत निर्णय के रूप में और जनसंख्या नियंत्रण को सरकारी या राज्य स्तर की जनसंख्या वृद्धि की विनियमन नीति के रूप में देखा जाए| प्रजनन नियंत्रण की संभावना तब हो सकती है जब कोई व्यक्ति या दम्पति या परिवार अपने बच्चे पैदा करने के समय को घटाने या उसे नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाये| अन्सले कोले द्वारा दिए गए संरूपण में, प्रजनन में लगातार कमी करने के लिए तीन पूर्वप्रतिबंध दिए गए हैं: (१) प्रजनन के मान्य तत्व के रूप में परिकलित चुनाव को स्वीकृति (भाग्य या अवसर या दैवीय इच्छा की तुलना में), (२) कम किये गए प्रजनन से ज्ञात लाभ और (३) नियंत्रण के प्रभावी तरीकों का ज्ञान और उनका प्रयोग करने का कुशल अभ्यास. प्राकृतिक प्रजनन पर विश्वास करने वाले समाज के विपरीत वो समाज जो कि प्रजनन को सीमित करने की इच्छा रखते हैं और ऐसा करने के लिए उनके पास संसाधन भी उपलब्ध हैं। वो इन संसाधनों का प्रयोग बच्चों के जन्म में विलम्ब, बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने, या उनके जन्म को रोकने के लिए कर सकते हैं। संभोग (या शादी) में देरी, या गर्भनिरोध करने के प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके को अपनाना ज्यादा मामलों में व्यक्तिगत या पारिवारिक निर्णय होता है, इसका राज्य नीति या सामाजिक तौर पर होने वाले अनुमोदनों से कोई सरोकार नहीं होता है। दूसरी ओर, वो व्यक्ति, जो प्रजनन के मामले में खुद पर नियंत्रण रख सकते हैं, ऐसे लोग बच्चे पैदा करने की प्रक्रिया को ज्यादा योजनाबद्ध बनाने या उसे सफल बनाने की प्रक्रिया को और तेज़ कर सकते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जनसंख्या
सामाजिक स्तर पर, प्रजनन में गिरावट होना महिलाओं की बढती हुई धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का एक अनिवार्य परिणाम है। हालाँकि, यह ज़रूरी नहीं है कि मध्यम से उच्च स्तर तक के प्रजनन नियंत्रण में प्रजनन दर को कम करना शामिल हो। यहां तक कि जब ऐसे अलग अलग समाज की तुलना हो जो प्रजनन नियंत्रण को अच्छी खासी तरह अपना चुके है, तो बराबर प्रजनन नियंत्रण योग्यता रखने वाले समाज भी काफी अलग अलग प्रजनन स्तर (जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या के सन्दर्भ में) दे सकते हैं, जो कि इस बात से जुड़ा होता है कि छोटे या बड़े परिवार के लिए या बच्चों की संख्या के लिए व्यक्तिगत और सांस्कृतिक पसंद क्या है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जनसंख्या
प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण के विपरीत, जो मुख्य रूप से एक व्यक्तिगत स्तर का निर्णय है, सरकार जनसँख्या नियंत्रण करने के कई प्रयास कर सकती है जैसे गर्भनिरोधक साधनों तक लोगों की पहुँच बढ़ाकर या अन्य जनसंख्या नीतियों और कार्यक्रमों के द्वारा. जैसा की ऊपर परिभाषित है, सरकार या सामाजिक स्तर पर 'जनसंख्या नियंत्रण' को लागू करने में "प्रजनन नियंत्रण" शामिल नहीं है, क्योंकि एक राज्य समाज की जनसंख्या को तब भी नियंत्रित कर सकता है जबकि समाज में प्रजनन नियंत्रण का प्रयोग बहुत कम किया जाता हो। जनसंख्या नियंत्रण के एक पहलू के रूप में आबादी बढाने वाली नीतियों को अंगीकृत करना भी ज़रूरी है और ज़रूरी है कि ये समझा जाए की सरकार जनसँख्या नियंत्रण के रूप में सिर्फ जनसख्या वृद्धि को रोकना नहीं चाहती| जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार न केवल अप्रवास का समर्थन कर सकती है बल्कि जन्म समर्थक नीतियों जैसे कि कर लाभ, वित्तीय पुरस्कार, छुट्टियों के दौरान वेतन देना जारी रखने और बच्चों कि देख रेख में मदद करने द्वारा भी लोगों को अतिरिक्त बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। उदाहरण के लिए हाल के सालों में इस तरह की नीतियों फ्रांस और स्वीडन में अपनाई गयीं। जनसंख्या वृद्धि बढ़ने के इसी लक्ष्य के साथ, कई बार सरकार ने गर्भपात और जन्म नियंत्रण के आधुनिक साधनों के प्रयोग को भी नियंत्रित करने की कोशिश की है। इसका एक उदाहरण है मांग किये जाने पर गर्भनिरोधक साधनों और गर्भपात के लिए वर्ष १९६६ में रोमानियामें लगा प्रतिबन्ध।
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जनसंख्या
पारिस्थितिकी में, कई बार जनसंख्या नियंत्रण पूरी तरह सिर्फ परभक्षण, बीमारी, परजीवी और पर्यावरण संबंधी कारकों द्वारा किया जाता है। एक निरंतर वातावरण में, जनसंख्या नियंत्रण भोजन, पानी और सुरक्षा की उपलब्धता द्वारा ही नियंत्रित होता है। एक निश्चित क्षेत्र अधिकतम कुल कितनी प्रजातियों या कुल कितने जीवित सदस्यों को सहारा दे सकता है उसे उस जगह की धारण क्षमता कहते हैं। कई बार इसमें पौधों और पशुओं पर मानव प्रभाव भी इसमें शामिल होता है। किसी विशेष ऋतू में भोजन और आश्रय की ज्यादा उपलब्धता वाले क्षेत्र की ओर पशुओं का पलायन जनसंख्या नियंत्रण के एक प्राकृतिक तरीके के रूप में देखा जा सकता है। जिस क्षेत्र से पलायन होता है वो अगली बार के लिए पशुओं के बड़े समूह हेतु भोजन आपूर्ति जुटाने या पैदा करने के लिए छोड़ दिया जाता है। आप्रवासभी देखें
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जनसंख्या
भारत एक और ऐसा उदाहरण है जहाँ सरकार ने देश की आबादी कम करने के लिए कई उपाय किये हैं। तेज़ी से बढती जनसँख्या आर्थिक वृद्धि और जीवन स्तर पर दुष्प्रभाव डालेगी, इस बात की चिंता के चलते १९५० के दशक के आखिर और १९६० के दशक के शुरू में भारत ने एक आधिकारिक परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किया; विश्व में ऐसा करने वाले ये पहला देश था।
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जनसंख्या
सीआईसीआरईडी मुखपृष्ठ अनुसंधान केंद्र और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच संवाद करने का एक मंच जैसे कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग, यूएनएफपीए, डब्ल्यूएचओ और एफएओ.
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जनसंख्या
PopulationData.net - दुनिया भर में आबादी के बारे में सूचना और नक्शे. 4 मार्च 2005 को को पुनः संशोधित. PopulationData.net (2005).
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जनसंख्या
संयुक्त राष्ट्र संघ (2004). जनसंख्या प्रभाग, आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग. 13 फ़रवरी 2004 को पुनः संशोधित.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
अधिगम
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सीखने के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है, व्यवहार में यह परिवर्तन बाह्य एवं आंतरिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। अतः सीखना एक प्रक्रिया है जिसमें अनुभव एवं प्रषिक्षण द्वारा व्यवहार में स्थायी या अस्थाई परिवर्तन दिखाई देता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
अधिगम
ई॰एल॰ थार्नडाइक अमेरिका का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हुआ है जिसने सीखने के कुछ नियमों की खोज की जिन्हें निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है–
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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1. तत्परता का नियम - इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए पहले से तैयार रहता है तो वह कार्य उसे आनन्द देता है एवं शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत जब व्यक्ति कार्य को करने के लिए तैयार नहीं रहता या सीखने की इच्छा नहीं होती हैतो वह झुंझला जाता है या क्रोधित होता है व सीखने की गति धीमी होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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2. अभ्यास का नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति जिस क्रिया को बार-बार करता है उस शीघ्र ही सीख जाता है तथा जिस क्रिया को छोड़ देता है या बहुत समय तक नहीं करता उसे वह भूलने लगताहै। जैसे‘- गणित के प्रष्न हल करना, टाइप करना, साइकिल चलाना आदि। इसे उपयोग तथा अनुपयोग का नियम भी कहते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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3. प्रभाव का नियम - इस नियम के अनुसार जीवन में जिस कार्य को करने पर व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है या सुख का या संतोष मिलता है उन्हें वह सीखने का प्रयत्न करता है एवं जिन कार्यों को करने पर व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है उन्हें वह करना छोड़ देता है। इस नियम को सुख तथा दुःख या पुरस्कार तथा दण्ड का नियम भी कहा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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1. बहु अनुक्रिया नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने किसी नई समस्या के आने पर उसे सुलझाने के लिए वह विभिन्न प्रतिक्रियाओं के हल ढूढने का प्रयत्न करता है। वह प्रतिक्रियायें तब तक करता रहता है जब तक समस्या का सही हल न खोज ले और उसकी समस्यासुलझ नहीं जाती। इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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2. मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम - इस नियम के अनुसार जब आदमी सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार नहीं रहता तो उस कार्य को वह सीख नहीं सकेगा।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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3. आंशिक क्रिया का नियम - इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी समस्या को सुलझाने के लिए अनेक क्रियायें प्रयत्न एवं भूल के आधार पर करता है। वह अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर आंशिक क्रियाओं की सहायता से समस्या का हल ढूढ़ लेता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%AE
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4. समानता का नियम - इस नियम के अनुसार किसी समस्या के प्रस्तुत होने पर व्यक्ति पूर्व अनुभव या परिस्थितियों में समानता पाये जाने पर उसके अनुभव स्वतः ही स्थानांतरित होकर सीखने में मदद​ करते हैं।
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विक्रमादित्य
श्री कृष्ण मिश्रा ने अपनी पुस्तक ज्योतिषफल-रत्नमाला, ज्योतिष पर एक पुस्तक (14 ईस्वी) में अपने राजा को इस प्रकार श्रद्धांजलि दी है - "वह विक्रमार्क, सम्राट, मानुस की तरह प्रसिद्ध, जिसने सत्तर वर्षों तक मेरी और मेरे संबंधों की रक्षा की, मुझे एक करोड़ सोने के सिक्के दिए हैं जो सफलता और समृद्धि के साथ हमेशा के लिए फलते-फूलते हैं। (ज्योतिषफल रत्नमाला का श्लोक 10)
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विक्रमादित्य
कश्मीर का इतिहास - जब कश्मीर के राजाओं की सूची में 82वें राजा, हिरण्य की मृत्यु बिना किसी उत्तराधिकारी को छोड़े हुई थी, तो कश्मीर में मंत्रियों के मंत्रिमंडल ने अपने अधिपति महाराजा विक्रमादित्य को एक संदेश भेजा, और उनसे प्रतिनियुक्ति करने का अनुरोध किया। एक शासक। फिर, दरबार के एक विद्वान-कवि, मातृगुप्त के प्रति अपने पक्ष में, महाराजा विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को 14 सीई में अपने जागीरदार राज्य, कश्मीर की संप्रभुता के साथ स्थापित किया। (कल्हण द्वारा लिखित राजतरंगिणी तीसरी तरंग)
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विक्रमादित्य
संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय दो कथा-श्रृंखलाएं हैं वेताल पंचविंशति या बेताल पच्चीसी ("पिशाच की 25 कहानियां") और सिंहासन-द्वात्रिंशिका ("सिंहासन की 32 कहानियां" जो सिहांसन बत्तीसी के नाम से भी विख्यात हैं)। इन दोनों के संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं में कई रूपांतरण मिल हैं।
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विक्रमादित्य
पिशाच (बेताल) की कहानियों में बेताल, पच्चीस कहानियां सुनाता है, जिसमें राजा बेताल को बंदी बनाना चाहता है और वह राजा को उलझन पैदा करने वाली कहानियां सुनाता है और उनका अंत राजा के समक्ष एक प्रश्न रखते हुए करता है। वस्तुतः पहले एक साधु, राजा से विनती करते हैं कि वे बेताल से बिना कोई शब्द बोले उसे उनके पास ले आएं, नहीं तो बेताल उड़ कर वापस अपनी जगह चला जाएगा| राजा केवल उस स्थिति में ही चुप रह सकते थे, जब वे उत्तर न जानते हों, अन्यथा राजा का सिर फट जाता| दुर्भाग्यवश, राजा को पता चलता है कि वे उसके सारे सवालों का जवाब जानते हैं; इसीलिए विक्रमादित्य को उलझन में डालने वाले अंतिम सवाल तक, बेताल को पकड़ने और फिर उसके छूट जाने का सिलसिला चौबीस बार चलता है। इन कहानियों का एक रूपांतरण कथा-सरित्सागर में देखा जा सकता है।
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विक्रमादित्य
सिंहासन के क़िस्से, विक्रमादित्य के उस सिंहासन से जुड़े हुए हैं जो खो गया था और कई सदियों बाद धार के परमार राजा भोज द्वारा बरामद किया गया था। स्वयं राजा भोज भी काफ़ी प्रसिद्ध थे और कहानियों की यह श्रृंखला उनके सिंहासन पर बैठने के प्रयासों के बारे में है। इस सिंहासन में 32 पुतलियां लगी हुई थीं, जो बोल सकती थीं और राजा को चुनौती देती हैं कि राजा केवल उस स्थिति में ही सिंहासन पर बैठ सकते हैं, यदि वे उनके द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी में विक्रमादित्य की तरह उदार हैं। इससे भोज की 32 कोशिशें (और 32 कहानियां) सामने आती हैं और हर बार भोज अपनी हीनता स्वीकार करते हैं। अंत में पुतलियां उनकी विनम्रता से प्रसन्न होकर उन्हें सिंहासन पर बैठने देती हैं। राजा भोज के बाद कोई भी उस सिंहासन पर नही बैठ पाया। इसका उल्लेख हमें उज्जैन के साहित्य मे मिलता है।
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विक्रमादित्य
शनि से संबंधित विक्रमादित्य की कहानी को अक्सर कर्नाटक राज्य के यक्षगान में प्रस्तुत किया जाता है। कहानी के अनुसार, विक्रम नवरात्रि का पर्व बड़े धूम-धाम से मना रहे थे और प्रतिदिन एक ग्रह पर वाद-विवाद चल रहा था। अंतिम दिन की बहस शनि के बारे में थी। ब्राह्मण ने शनि की शक्तियों सहित उनकी महानता और पृथ्वी पर धर्म को बनाए रखने में उनकी भूमिका की व्याख्या की। समारोह में ब्राह्मण ने ये भी कहा कि विक्रम की जन्म कुंडली के अनुसार उनके बारहवें घर में शनि का प्रवेश है, जिसे सबसे खराब माना जाता है। लेकिन विक्रम संतुष्ट नहीं थे; उन्होंने शनि को महज लोककंटक के रूप में देखा, जिन्होंने उनके पिता (सूर्य), गुरु (बृहस्पति) को कष्ट दिया था। इसलिए विक्रम ने कहा कि वे शनि को पूजा के योग्य मानने के लिए तैयार नहीं हैं। विक्रम को अपनी शक्तियों पर, विशेष रूप से अपने देवी मां का कृपा पात्र होने पर बहुत गर्व था। जब उन्होंने नवरात्रि समारोह की सभा के सामने शनि की पूजा को अस्वीकृत कर दिया, तो शनि भगवान क्रोधित हो गए। उन्होंने विक्रम को चुनौती दी कि वे विक्रम को अपनी पूजा करने के लिए बाध्य कर देंगे। जैसे ही शनि आकाश में अंतर्धान हो गए, विक्रम ने कहा कि यह उनकी खुशकिस्मती है और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए उनके पास सबका आशीर्वाद है। विक्रम ने निष्कर्ष निकाला कि संभवतः ब्राह्मण ने उनकी कुंडली के बारे में जो बताया था वह सच हो; लेकिन वे शनि की महानता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। विक्रम ने निश्चयपूर्वक कहा कि "जो कुछ होना है, वह होकर रहेगा और जो कुछ नहीं होना है, वह नहीं होगा" और उन्होंने कहा कि वे शनि की चुनौती को स्वीकार करते हैं।
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विक्रमादित्य
एक दिन एक घोड़े बेचने वाला उनके महल में आया और कहा कि विक्रम के राज्य में उसका घोड़ा खरीदने वाला कोई नहीं है। घोड़े में अद्भुत विशेषताएं थीं - जो एक छलांग में आसमान पर, तो दूसरे में धरती पर पहुंचता था। इस प्रकार कोई भी धरती पर उड़ या सवारी कर सकता है। विक्रम को उस पर विश्वास नहीं हुआ, इसीलिए उन्होंने कहा कि घोड़े की क़ीमत चुकाने से पहले वे सवारी करके देखेंगे. विक्रेता इसके लिए मान गया और विक्रम घोड़े पर बैठे और घोड़े को दौडाया. विक्रेता के कहे अनुसार, घोड़ा उन्हें आसमान में ले गया। दूसरी छलांग में घोड़े को धरती पर आना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय उसने विक्रम को कुछ दूर चलाया और जंगल में फेंक दिया।
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विक्रमादित्य
विक्रम घायल हो गए और वापसी का रास्ता ढूंढ़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि यह सब उनका नसीब है, इसके अलावा और कुछ नहीं हो सकता; वे घोड़े के विक्रेता के रूप में शनि को पहचानने में असफल रहे। जब वे जंगल में रास्ता ढ़ूढ़ने की कोशिश कर रहे थे, डाकुओं के एक समूह ने उन पर हमला किया। उन्होंने उनके सारे गहने लूट लिए और उन्हें खूब पीटा. विक्रम तब भी हालत से विचलित हुए बिना कहने लगे कि डाकुओं ने सिर्फ़ उनका मुकुट ही तो लिया है, उनका सिर तो नहीं। चलते-चलते वे पानी के लिए एक नदी के किनारे पहुंचे। ज़मीन की फिसलन ने उन्हें पानी में पहुंचाया और तेज़ बहाव ने उन्हें काफ़ी दूर घसीटा.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF
विक्रमादित्य
किसी तरह धीरे-धीरे विक्रम एक नगर पहुंचे और भूखे ही एक पेड़ के नीचे बैठ गए। जिस पेड़ के नीचे विक्रम बैठे हुए थे, ठीक उसके सामने एक कंजूस दुकानदार की दुकान थी। जिस दिन से विक्रम उस पेड़ के नीचे बैठे, उस दिन से दुकान में बिक्री बहुत बढ़ गई। लालच में दुकानदार ने सोचा कि दुकान के बाहर इस व्यक्ति के होने से इतने अधिक पैसों की कमाई होती है और उसने विक्रम को घर पर आमंत्रित करने और भोजन देने का निर्णय लिया। बिक्री में लंबे समय तक वृद्धि की आशा में, उसने अपनी पुत्री को विक्रम के साथ शादी करने के लिए कहा. भोजन के बाद जब विक्रम कमरे में सो रहे थे, तब पुत्री ने कमरे में प्रवेश किया। वह बिस्तर के पास विक्रम के जागने की प्रतीक्षा करने लगी। धीरे- धीरे उसे भी नींद आने लगी। उसने अपने गहने उतार दिए और उन्हें एक बत्तख के चित्र के साथ लगी कील पर लटका दिया। वह सो गई। जागने पर विक्रम ने देखा कि चित्र का बत्तख उसके गहने निगल रहा है। जब वे अपने द्वारा देखे गए दृश्य को याद कर ही रहे थे कि दुकानदार की पुत्री जग गई और देखती है कि उसके गहने गायब हैं। उसने अपने पिता को बुलाया और कहा कि वह चोर है।
0.5
8,140.254718
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
अंग्रेजी- कॉलेज, पेंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लेटर बॉक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइक्ल, बोतल , फोटो, डॉक्टर स्कूल आदि।
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8,130.17096
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
फारसी- अनार, चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बर्फ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।
0.5
8,130.17096
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
इन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है- 1. विकारी 2. अविकारी
0.5
8,130.17096
20231101.hi_5466_12
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
1. विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
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20231101.hi_5466_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
2. अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
समरूप भिन्नार्थक शब्द: वर्तनी में भी सूक्ष्म अंतर के कारण जो शब्द सुनने में एक जैसे लगते हैं, परंतु भिन्न अर्थ देते हैं, वे समरूप-भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
वाक्यांशों के लिए एक शब्द: जिन शब्दों का प्रयोग वाक्यांश अथवा अनेक शब्दों के स्थान पर किया जाता है, वाक्यांश के लिए एक शब्द अथवा अनेक शब्दों के लिए एक शब्द कहलाते हैं;
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
अनेकार्थी शब्द: जो शब्द एक से अधिक अर्थ देते हैं, वे अनेकार्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द संदर्भ या स्थिति के अनुसार अर्थ देते हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6
शब्द
एकार्थक शब्द: जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है, उन्हें एकार्थक शब्द कहते हैं। इनका प्रयोग केवल एक ही अर्थ में किया जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
अजन्‍ता, बाध आदि के गुफा चित्रों की कलाकृतियों पूर्व बौद्धकाल के अन्‍तर्गत आती है। भारतीय कला का उज्‍ज्वल इतिहास भित्ति चित्रों से ही प्रारम्‍भ होता है और संसार में इनके समान चित्र कहीं नहीं बने ऐसा विद्वानों का मत है। अजन्‍ता के कला मन्दिर प्रेम, धैर्य, उपासना, भक्ति, सहानुभूति, त्‍याग तथा शान्ति के अपूर्व उदाहरण है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
मधुबनी शैली, पहाड़ी शैली, तंजौर शैली, मुगल शैली, बंगाल शैली अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण आज जनशक्ति के मन चिन्हित है। यदि भारतीय संस्‍कृति की मूर्त्ति कला व शिल्प कला के दर्शन करने हो तो दक्षिण के मन्दिर अपना विशिष्‍ट स्‍थान रखते हैं। जहाँ के मीनाक्षी मन्दिर, वृहदीश्‍वर मन्दिर, कोणार्क मन्दिर अपनी अनूठी पहचान के लिए प्रसिद्ध है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
यही नहीं भारतीय संस्‍कृति में लोक कलाओं की खुश्बू की महक आज भी अपनी प्राचीन परम्‍परा से समृद्ध है। जिस प्रकार आदिकाल से अब तक मानव जीवन का इतिहास क्रमबद्ध नहीं मिलता उसी प्रकार कला का भी इतिहास क्रमबद्ध नहीं है, परन्‍तु यह निश्चित है कि सहचरी के रूप में कला सदा से ही साथ रही है। लोक कलाओं का जन्‍म भावनाओं और परम्‍पराओं पर आधारित है क्‍योंकि यह जनसामान्‍य की अनुभूति की अभिव्यक्ति है। यह वर्तमान शास्त्रीय और व्‍यावसायिक कला की पृष्‍ठभूमि भी है। भारतवर्ष में पृथ्‍वी को धरती माता कहा गया है। मातृभूति तो इसका सांस्कृतिक व परिष्कृत रूप है। इसी धरती माता का श्रद्धा से अलंकरण करके लोकमानव में अपनी आत्‍मीयता का परिचय दिया। भारतीय संस्‍कृति में धरती को विभिन्‍न नामों से अलंकृत किया जाता है। गुजरात में “साथिया” राजस्‍थान में “माण्‍डना”, महाराष्‍ट्र में “रंगोली” उत्‍तर प्रदेश में “चौक पूरना”, बिहार में “अहपन”, बंगाल में “अल्‍पना” और गढ़वाल में “आपना” के नाम से प्रसिद्ध है। यह कला धर्मानुप्रागित भावों से प्रेषित होती है; जिसमें श्रद्धा से रचना की जाती है। विवाह और शुभ अवसरों में लोककला का विशिष्‍ट स्‍थान है। द्वारों पर अलंकृत घड़ों का रखना, उसमें जल व नारियल रखना, वन्‍दनवार बांधना आदि को आज के आधुनिक युग में भी इसे आदरभाव, श्रद्धा और उपासना की दृष्टि से देखा जाता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
आज भारत की वास्‍तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण “ताजमहल” है, जिसने विश्‍व की अपूर्व कलाकृत्तियों के सात आश्‍चर्य में शीर्षस्‍थ स्‍थान पाया है। लालकिला, अक्षरधाम मन्दिर, कुतुबमीनार, जामा मस्जिद भी भारतीय वास्‍तुकला का अनुपम उदाहरण रही है। मूर्त्तिकला, समन्‍वयवादी वास्‍तुकला तथा भित्तिचित्रों की कला के साथ-साथ पर्वतीय कलाओं ने भी भारतीय कला से समृद्ध किया है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
सत्‍य, अहिंसा, करुणा, समन्‍वय और सर्वधर्म समभाव ये भारतीय संस्‍कृति के ऐसे तत्त्व हैं, जिन्‍होंने अनेक बाधाओं के ‍बीच भी हमारी संस्‍कृति की निरन्‍तरता को अक्षुण्ण बनाए रखा है। इन विशेषताओं ने हमारी संस्कृति में वह शक्ति उत्पन्‍न की है कि वह भारत के बाहर एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी जड़े फैला सके।
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कला
हमारी संस्‍कृति के इन तत्त्वों को प्राचीन काल से लेकर आज तक की कलाओं में देखा जा सकता है। इन्‍हीं ललित कलाओं ने हमारी संस्‍कृति को सत्‍य, शिव, सौन्‍दर्य जैसे अनेक सकारात्‍मक पक्षों को चित्रित किया है। इन कलाओं के माध्‍यम से ही हमारा लोकजीवन, लोकमानस तथा जीवन का आं‍तरिक और आध्‍यात्मिक पक्ष अभिव्‍यक्‍त होता रहा है, हमें अपनी इस परम्‍परा से कटना नहीं है ‍अपितु अपनी परम्‍परा से ही रस लेकर आधुनिकता को चित्रित करना है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
(1) गायन, (2) वादन, (3) नर्तन, (4) नाट्य, (5) आलेख्य (चित्र लिखना), (6) विशेषक (मुखादि पर पत्रलेखन), (7) चौक पूरना, अल्पना, (8) पुष्पशय्या बनाना, (9) अंगरागादि लेपन, (10) पच्चीकारी, (11) शयन रचना, (12) जलतंरग बजाना (उदक वाद्य), (13) जलक्रीड़ा, जलाघात, (14) रूप बनाना (मेकअप), (15) माला गूँथना, (16) मुकुट बनाना, (17) वेश बदलना, (18) कर्णाभूषण बनाना, (19) इत्र या सुगंध द्रव बनाना, (20) आभूषण धारण, (21) जादूगरी, इंद्रजाल, (22) असुंदर को सुंदर बनाना, (23) हाथ की सफाई (हस्तलाघव), (24) रसोई कार्य, पाक कला, (25) आपानक (शर्बत बनाना), (26) सूचीकर्म, सिलाई, (27) कलाबत्, (28) पहेली बुझाना, (29) अंत्याक्षरी, (30) बुझौवल, (31) पुस्तक वाचन, (32) काव्य-समस्या करना, नाटकाख्यायिका-दर्शन, (33) काव्य-समस्या-पूर्ति, (34) बेंत की बुनाई, (35) सूत बनाना, तुर्क कर्म, (36) बढ़ईगिरी, (37) वास्तुकला, (38) रत्नपरीक्षा, (39) धातुकर्म, (40) रत्नों की रंग परीक्षा, (41) आकर ज्ञान, (42) बागवानी, उपवन विनोद, (43) मेढ़ा, पक्षी आदि लड़वाना, (44) पक्षियों को बोली सिखाना, (45) मालिश करना, (46) केश-मार्जन-कौशल, (47) गुप्त-भाषा-ज्ञान, (48) विदेशी कलाओं का ज्ञान, (49) देशी भाषाओं का ज्ञान, (50) भविष्य कथन, (51) कठपुतली नर्तन, (52) कठपुतली के खेल, (53) सुनकर दोहरा देना, (54) आशुकाव्य क्रिया, (55) भाव को उलटा कर कहना, (56) धोखाधड़ी, छलिक योग, छलिक नृत्य, (57) अभिधान, कोशज्ञान, (58) नकाब लगाना (वस्त्रगोपन), (59) द्यूतविद्या, (60) रस्साकशी, आकर्षण क्रीड़ा, (61) बालक्रीड़ा कर्म, (62) शिष्टाचार, (63) मन जीतना (वशीकरण) और (64) व्यायाम।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
"शुक्रनीति" के अनुसार कलाओं की संख्या असंख्य है, फिर भी समाज में अति प्रचलित 64 कलाओं का उसमें उल्लेख हुआ है। "शुक्रनीति" के अनुसार गणना इस प्रकार है :-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE
कला
नर्तन (नृत्य), (2) वादन, (3) वस्त्रसज्जा, (4) रूप परिवर्तन, (5) शैय्या सजाना, (6) द्यूत क्रीड़ा, (7) सासन रतिज्ञान, (8) मद्य बनाना और उसे सुवासित करना, (9) शल्य क्रिया, (10) पाक कार्य, (11) बागवानी, (12) पाषाणु, धातु आदि से भस्म बनाना, (13) मिठाई बनाना, (14) धात्वौषधि बनाना, (15) मिश्रित धातुओं का पृथक्करण, (16) धातु मिश्रण, (17) नमक बनाना, (18) शस्त्र संचालन, (19) कुश्ती (मल्लयुद्ध), (20) लक्ष्य वेध, (21) वाद्य संकेत द्वारा व्यूह रचना, (22) गजादि द्वारा युद्धकर्म, (23) विविध मुद्राओं द्वारा देव पूजन, (24) सारथ्य, (25) गजादि की गति शिक्षा, (26) बर्तन बनाना, (27) चित्रकला, (28) तालाब, प्रासाद आदि के लिए भूमि तैयार करना, (29) घटादि द्वारा वादन, (30) रंगसाजी, (31) भाप के प्रयोग-जलवाटवग्नि संयोगनिरोधै: क्रिया, (32) नौका, रथादि यानों का ज्ञान, (33) यज्ञ की रस्सी बाटने का ज्ञान, (34) कपड़ा बुनना, (35) रत्न परीक्षण, (36) स्वर्ण परीक्षण, (37) कृत्रिम धातु बनाना, (38) आभूषण गढ़ना, (39) कलई करना, (40) चर्मकार्य, (41) चमड़ा उतारना, (42) दूध के विभिन्न प्रयोग, (43) चोली आदि सीना, (44) तैरना, (45) बर्त्तन माँजना, (46) वस्त्र प्रक्षालन (संभवत: पालिश करना), (47) क्षौरकर्म, (48) तेल बनाना, (49) कृषिकार्य, (50) वृक्षारोहण, (51) सेवा कार्य, (52) टोकरी बनाना, (53) काँच के बर्त्तन बनाना, (54) खेत सींचना, (55) धातु के शस्त्र बनाना, (56) जीन, काठी या हौदा बनाना, (57) शिशुपालन, (58) दंडकार्य, (59) सुलेखन, (60) तांबूलरक्षण, (61) कलामर्मज्ञता, (62) नटकर्म, (63) कलाशिक्षण और (64) साधने की क्रिया।
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अंतरजाल
जब वेब १९९० के दशक में विकसित हुआ, तो एक विशिष्ट वेब पेज को वेब सर्वर पर पूरा फ़ॉर्म में संग्रहित किया गया था, जो एचटीएमएल में प्रारूपित है, एक अनुरोध के जवाब में एक वेब ब्राउज़र के संचरण के लिए पूरा किया गया था। समय के साथ, वेब पेज बनाने और पेश करने की प्रक्रिया गतिशील हो गई है, एक लचीली डिजाइन, लेआउट, और सामग्री बना रही है। वेबसाइटों को अक्सर सामग्री प्रबंधन सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, शुरू में, बहुत कम सामग्री के साथ बनाया जाता है। इन सिस्टमों के योगदानकर्ता, जो भुगतान किया जा सकता कर्मचारी, किसी संगठन या जनता के सदस्य, उस प्रयोजन के लिए डिज़ाइन किए गए संपादन पृष्ठों का उपयोग करके अंतर्निहित डाटाबेस को भरें, जबकि कैज़ुअल विज़िटर्स एचटीएमएल प्रपत्र में इस सामग्री को देखने और पढ़ें। नये प्रविष्टि सामग्री को लेने की प्रक्रिया में निर्मित संपादकीय, अनुमोदन और सुरक्षा व्यवस्था हो सकती है या नहीं हो सकती है और इसे लक्ष्य के लिए उपलब्ध कर सकती है।
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अंतरजाल
ईमेल एक महत्वपूर्ण संचार सेवा है जो इंटरनेट पर उपलब्ध है। मेलिंग पत्र या मेमो के समान एक तरह से पार्टियों के बीच इलेक्ट्रॉनिक पाठ संदेश भेजने की अवधारणा इंटरनेट के निर्माण की भविष्यवाणी करती है। चित्र, दस्तावेज, और अन्य फ़ाइलें ईमेल संलग्नक के रूप में भेजी जाती हैं।
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अंतरजाल
इंटरनेट टेलीफोनी इंटरनेट के निर्माण के द्वारा एक और आम संचार सेवा संभव है। वीओआईपी वॉयस-ओवर-इंटरनेट प्रोटोकॉल का अर्थ वह प्रोटोकॉल है जो कि सभी इंटरनेट संचार के अंतर्गत आता है। यह विचार १९९० की शुरुआत में निजी कंप्यूटरों के लिए वॉकी-टॉकी जैसी आवाज अनुप्रयोगों के साथ शुरू हुआ हाल के वर्षों में कई वीओआईपी सिस्टम सामान्य टेलीफोन के रूप में उपयोग करने में आसान और सुविधाजनक हो गए हैं लाभ यह है कि, इंटरनेट आवाज यातायात के रूप में है, वीओआईपी एक पारंपरिक टेलीफोन कॉल की तुलना में बहुत कम या मुफ्त हो सकती है, खासकर लंबी दूरी पर और खासकर उन इंटरनेट कनेक्शन जैसे केबल या एडीएसएल के लिए। वीओआईपी परंपरागत टेलीफोन सेवा के लिए एक प्रतिस्पर्धी विकल्प में परिपक्व हो रहा है। विभिन्न प्रदाताओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी में सुधार हुआ है और पारंपरिक टेलीफोन से कॉल करने या प्राप्त करने की क्षमता उपलब्ध है। सरल, सस्ती वीओआईपी नेटवर्क एडाप्टर उपलब्ध हैं जो एक निजी कंप्यूटर की आवश्यकता को समाप्त करते हैं।
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अंतरजाल
कॉल करने के लिए वॉयस गुणवत्ता अभी भी भिन्न हो सकती है, लेकिन अक्सर पारंपरिक कॉल्स के बराबर होती है और इससे भी अधिक हो सकती है। वीओआईपी के लिए शेष समस्याओं में आपातकालीन टेलीफोन नंबर डायलिंग और विश्वसनीयता शामिल है। वर्तमान में, कुछ वीओआईपी प्रदाता एक आपातकालीन सेवा प्रदान करते हैं, लेकिन यह सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं है। "अतिरिक्त सुविधाओं" वाले पुराने पारंपरिक फोन केवल पावर विफल होने के दौरान ही संचालित होते हैं और संचालित होते हैं; वीओआईपी फोन उपकरण और इंटरनेट एक्सेस डिवाइसेज़ के लिए बैकअप पावर स्रोत के बिना ऐसा कभी नहीं कर सकता है खिलाड़ियों के बीच संचार के एक रूप के रूप में, वीओआईपी गेमिंग अनुप्रयोगों के लिए तेजी से लोकप्रिय हो गया है। गेमिंग के लिए लोकप्रिय वीओआईपी ग्राहकों में वेंत्रिलो और टीमेंपीक शामिल हैं आधुनिक वीडियो गेम कंसोल भी वीओआईपी चैट सुविधाओं की पेशकश करते हैं।
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अंतरजाल
फ़ाइल साझा करना इंटरनेट पर बड़ी मात्रा में डेटा स्थानांतरित करने का एक उदाहरण है एक कंप्यूटर फाइल ग्राहकों, सहयोगियों और मित्रों को एक अनुलग्नक के रूप में ईमेल कर सकती है। यह एक वेबसाइट या फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (एफ़टीपी) सर्वर पर अन्य लोगों द्वारा आसानी से डाउनलोड करने के लिए अपलोड किया जा सकता है। सहकर्मियों द्वारा तत्काल उपयोग के लिए इसे "साझा स्थान" या फ़ाइल सर्वर पर रखा जा सकता है कई उपयोगकर्ताओं के लिए थोक डाउनलोड का लोड "मिरर" सर्वर या पीयर-टू-पीयर नेटवर्क के उपयोग से आसान हो सकता है। इनमें से किसी एक मामले में, फ़ाइल तक पहुँच को उपयोगकर्ता प्रमाणीकरण के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, इंटरनेट पर फ़ाइल का पारगमन एन्क्रिप्शन द्वारा छिपा हुआ हो सकता है, और पैसे फ़ाइल को एक्सेस करने के लिए हाथ बदल सकते हैं। कीमत से धन के रिमोट चार्जिंग द्वारा भुगतान किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, एक क्रेडिट कार्ड जिसका विवरण भी पारित किया जाता है - आमतौर पर पूरी तरह से एन्क्रिप्ट किया गया - इंटरनेट पर प्राप्त फाइल की उत्पत्ति और प्रामाणिकता डिजिटल हस्ताक्षर द्वारा या एमडी ५ या अन्य संदेश डाईजेस्ट्स द्वारा जाँच की जा सकती है। इंटरनेट की ये सरल विशेषताओं, दुनिया भर के आधार पर, संचरण के लिए कंप्यूटर फ़ाइल में कम की जा सकने वाली किसी भी वस्तु का उत्पादन, बिक्री और वितरण बदल रहे हैं। इसमें सभी तरह के प्रिंट प्रकाशन, सॉफ्टवेयर उत्पाद, समाचार, संगीत, फिल्म, वीडियो, फोटोग्राफी, ग्राफिक्स और अन्य कला शामिल हैं। इसके बदले में उन मौजूदा उद्योगों में भूकंपीय बदलाव हुए हैं जो पहले इन उत्पादों के उत्पादन और वितरण को नियंत्रित करते थे।
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अंतरजाल
स्ट्रीमिंग मीडिया अंत उपयोगकर्ताओं द्वारा तत्काल खपत या आनंद के लिए डिजिटल मीडिया का वास्तविक समय वितरण है कई रेडियो और टेलीविज़न ब्रॉडकास्टर्स अपने लाइव ऑडियो और वीडियो प्रस्तुतियों के इंटरनेट फ़ीड प्रदान करते हैं। वे टाइम-शिफ्ट देखने या सुनने जैसे कि पूर्वावलोकन, क्लासिक क्लिप्स और सुनो फिर की सुविधा भी दे सकते हैं। इन प्रदाताओं को एक शुद्ध इंटरनेट "ब्रॉडकास्टर्स" की श्रेणी में शामिल किया गया है, जिनके पास ऑन-एयर लाइसेंस नहीं था। इसका मतलब यह है कि एक इंटरनेट से जुड़े डिवाइस, जैसे कंप्यूटर या अधिक विशिष्ट, का प्रयोग उसी तरह उसी तरह से ऑन-लाइन मीडिया तक पहुँचने के लिए किया जा सकता है जितना पहले संभवतः केवल टेलीविज़न या रेडियो रिसीवर के साथ था उपलब्ध प्रकार की सामग्रियों की श्रेणी, विशेष तकनीकी वेबकास्ट से मांग-लोकप्रिय मल्टीमीडिया सेवाओं के लिए बहुत व्यापक है। ब्रॉडकास्टिंग इस विषय पर एक भिन्नता है, जहाँ आम तौर पर ऑडियो-सामग्री डाउनलोड की जाती है और कंप्यूटर पर वापस खेला जाता है या स्थानांतरित करने के लिए सुने जाने वाले पोर्टेबल मीडिया प्लेयर में स्थानांतरित हो जाता है। साधारण उपकरण का इस्तेमाल करते हुए ये तकनीक दुनिया भर में ऑडियो-विज़ुअल सामग्री को प्रसारित करने के लिए, छोटे सेंसरशिप या लाइसेंस नियंत्रण के साथ किसी को भी अनुमति देती हैं।
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अंतरजाल
डिजिटल मीडिया स्ट्रीमिंग नेटवर्क बैंडविड्थ की मांग को बढ़ाती है उदाहरण के लिए, मानक छवि गुणवत्ता के लिए एसडी ४८० पी के लिए १ एमबीटी / एस लिंक गति की आवश्यकता होती है, एचडी ७२० पी की गुणवत्ता में 2.५ एमबीटी / एस की आवश्यकता होती है, और उच्चतम-एचडीएक्स गुणवत्ता को १०८० पी के लिए ४.५ एमबीटी / एस की आवश्यकता होती है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2
अंतरजाल
वेबकैम इस घटना का एक कम लागत वाला विस्तार है। जबकि कुछ वेबकैम पूरा-फ़्रेम-दर वीडियो दे सकता है, तो चित्र आमतौर पर छोटा होता है या धीरे-धीरे अपडेट होता है इंटरनेट उपयोगकर्ता एक अफ्रीकी वॉटरहो के आसपास पशुओं को देख सकते हैं, पनामा नहर में जहाजों, स्थानीय राउंडअबाउट पर ट्रैफ़िक या अपने स्वयँ के परिसर की निगरानी, लाइव और वास्तविक समय में देख सकते हैं। वीडियो चैट रूम और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी लोकप्रिय हैं, कई व्यक्तिगत वेबकैम के लिए उपयोग किए जा रहे उपयोग के साथ, बिना और बिना दो-तरफ़ा ध्वनि यूट्यूब १५ फ़रवरी २००५ को स्थापित किया गया था और अब एक विशाल संख्या में उपयोगकर्ताओं के साथ मुफ्त स्ट्रीमिंग वीडियो की अग्रणी वेबसाइट है। यह एक फ्लैश आधारित वेब प्लेयर का उपयोग करता है जो वीडियो फ़ाइलों को स्ट्रीम और दिखाती है। पंजीकृत उपयोगकर्ता असीमित मात्रा में वीडियो अपलोड कर सकते हैं और अपनी व्यक्तिगत प्रोफ़ाइल बना सकते हैं। यूट्यूब का दावा है कि इसके उपयोगकर्ता सैकड़ों मिलियन देखते हैं, और हर दिन लाखों वीडियो अपलोड करते हैं। वर्तमान में, यूट्यूब एक एचटीएमएल 5 प्लेयर का उपयोग भी करता है।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2
अंतरजाल
आधुनिक इंटरनेट में बहुत से सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी हैं। यह एक सार्वभौमिक वैश्विक सूचना पर्यावरण है।
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20231101.hi_2194_13
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE
ओडिशा
ओड़िशा की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ओड़िशा की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है, हालांकि यहाँ की अधिकांश भूमि अनुपजाऊ या एक से अधिक वार्षिक फ़सल के लिए अनुपयुक्त है। ओड़िशा में लगभग 40 लाख खेत हैं, जिनका औसत आकार 1.5 हेक्टेयर है, लेकिन प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र 0.2 हेक्टेयर से भी कम है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के लगभग 45 प्रतिशत भाग में खेत है। इसके 80 प्रतिशत भाग में चावल उगाया जाता है। अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें तिलहन, दलहन, जूट, गन्ना और नारियल है।
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ओडिशा
चूंकि बहुत से ग्रामीण लगातार साल भर रोज़गार नहीं प्राप्त कर पाते, इसलिए कृषि- कार्य में लगे बहुत से परिवार गैर कृषि कार्यों में भी संलग्न है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है। भू- अधिगृहण पर सीमा लगाने के प्रयास अधिकांशत: सफल नहीं रहे। हालांकि राज्य द्वारा अधिगृहीत कुछ भूमि स्वैच्छिक तौर पर भूतपूर्व काश्तकारों को दे दी गई है।
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ओडिशा
चावल ओडिशा की मुख्य फ़सल है। 2004 - 2005 में 65.37 लाख मी. टन चावल का उत्पादन हुआ। गन्ने की खेती भी किसान करते हैं। उच्च फ़सल उत्पादन प्रौद्योगिकी, समन्वित पोषक प्रबंधन और कीट प्रबंधन को अपनाकर कृषि का विस्तार किया जा रहा है। अलग-अलग फलों की 12.5 लाख और काजू की 10 लाख तथा सब्जियों की 2.5 लाख कलमें किसानों में वितरित की गई हैं। राज्य में प्याज की फ़सल को बढावा देने के लिए अच्छी किस्म की प्याज के 300 क्विंटल बीज बांटे गए हैं जिनसे 7,500 एकड ज़मीन प्याज उगायी जाएगी। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे के फूलों की 2,625 प्रदर्शनियाँ की गईं। किसानों को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए ओडिशा राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लि. (पी ए सी), मार्कफेड, नाफेड आदि एजेंसियों के द्वारा 20 लाख मी. टन चावल ख़रीदने का लक्ष्य बनाया है। सूखे की आशंका से ग्रस्त क्षेत्रों में लघु जलाशय लिए 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 2,413 लघु जलाशय विकसित करने का लक्ष्य है।
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ओडिशा
बडी, मंझोली और छोटी परियोजनाओं और जल दोहन परियोजनाओं से सिचांई क्षमता को बढाने का प्रयास किया गया है-
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ओडिशा
2005-06 के सत्र में 12,685 हेक्टेयर सिंचाई की छह सिंचाई परियोजनाओं को चिह्नित किया गया है जिसमें से चार योजनाएं लक्ष्य प्राप्त कर चुकी हैं।
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ओडिशा
2005 - 2006 में ओडिशा लिफ्ट सिंचाई निगम ने 'बीजू कृषक विकास योजना' के अंतर्गत 500 लिफ्ट सिंचाई पाइंट बनाये हैं और 1,200 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता प्राप्त की है।
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ओडिशा
2004 - 2005 में राज्य में बिजली की कुल उत्पादन क्षमता 4,845.34 मेगावाट थी तथा कुल स्रोतों से प्राप्त बिजली क्षमता 1,995.82 मेगावाट थी।
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ओडिशा
उद्योग प्रोत्साहन एवं निवेश निगम लि., औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड और ओडिशा राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम ये तीन प्रमुख एजेंसियां राज्य के उद्योगों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इस्पात, एल्यूमीनियम, तेलशोधन, उर्वरक आदि विशाल उद्योग लग रहे हैं। राज्य सरकार लघु, ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए छूट देकर वित्तीय मदद दे रही है। 2004 - 2005 वर्ष में 83,075 लघु उद्योग इकाई स्थापित की गयी।
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ओडिशा
औद्योगिक विकास करने के लिए रोजगार के अवसर और आर्थिक विकास दर को बढाने के लिए ओडिशा उद्योग (सुविधा) अधिनियम, 2004 को लागू किया है जिससे निवेश प्रस्तावों के कम समय में निबटारा और निरीक्षण कार्य हो सके। निवेश को सही दिशा में प्रयोग करने के लिए ढांचागत सुविधा में सुधार को प्राथमिकता दी गई है। सूचना प्रौद्योगिकी में ढांचागत विकास करने के लिए भुवनेश्वर में एक निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क स्थापित किया गया है। राज्य में लघु और मध्यम उद्योगों को बढाने के लिए 2005 - 2006 में 2,255 लघु उद्योग स्थापित किए गये, इन योजनाओं में 123.23 करोड़ रुपये का निवेश किया गया और लगभग 10,308 व्यक्तियों को काम मिला।
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पत्रकारिता
आज स्थिति यह है कि समाचार पत्रों या पत्रिकाआें के अलावा किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्करप तब तक परिपूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसमें खेलों का भरपूर कवरेज नहीं हो। खेलों के प्रति मीडिया का यह रुझान ’डिमांड' और ’सप्लाई' पर आधारित है। आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा वर्ग का है जिसकी पहली पसंद विभिन्न खेल स्पर्धायें हैं, शायद यही कारण है कि पत्र-पत्रिकाआें में अगर सबसे आधिक कोई पन्ने पढ़े जाते हैं तो वह खेल से संबंधित होते है। प्रिंट मीडिया के अलावा टी. वी. चैनलों का भी एक बड़ा हिस्सा खेलों प्रसारण से जुड़ा होता है। खेल चैनल तो चौबीसों घंटे कोई न कोई खेल लेकर हाजिर ही रहते हैं। लाइव कवरेज या सीधा प्रसारण की बात तो छोड़िये रिकॉर्डेड पुराने मैचों के प्रति भी दर्शकों का रझान कहीं कम नहीं दिखाई देता। पाठकों और दर्शकों की खेलों के प्रति दीवनगी का ही नतीजा है कि आज खेल की दुनिया में अकूत धन बरस रहा है। धन, जो विज्ञापन के रप में हो चाहे पुरस्कार राशि के रप में न लुटानेवालों की कमी है न पानेवालों की। यह स्थिति आज की है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब खेलों में धनदौलत को कोई नामोनिशान नहीं था। प्राचीन ओलिम्पिक खेलों जैसी विख्यात खेल स्पर्धा में भी विजेता को जैतून की पत्तियों के मुकुट का पुरस्कार दिया जाता था लेकिन वह ताज भी अनमोल हुआ करता था।
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पत्रकारिता
खेलों में धन-वर्षा का प्रारंभ कार्पोरेट जगत के इसमें प्रवेश से हुआ। कार्पोरेट जगत के प्रोत्साहन से कई खेल और खिलाड़ी प्रोफेशनल होने-लगे और खेल-स्पर्धाआें से लाखों करोड़ो कमाने लगे। आज टेनिस, फुटबॉल, बास्केट बॉल, बॉक्सिंग, स्क्वाश, गोल्फ जैसे खेलों में पैसोंकी बरसात हो रही है।
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पत्रकारिता
खेलों की लोकप्रियता और खिलाड़ियों की कमाई की बात करें तो आज क्रिकेट ने, जो दुनिया के गिने-चुने ही देशों में खेला जाता है, लोकप्रियता की नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। किक्रेट में कारपोरेट जगत के रझान के कारण नवोदित क्रिकेटर भी अन्य खिलाड़ियों की तुलना में अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।
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पत्रकारिता
खेलों में धन की बरसात में कोई बुराई नहीं है। इससे खेलों और खिलाड़ियों के स्तर में सुधार ही होता है, लेकिन उसका बदसूरत पहलू यह भी है कि खेलों में गलाकाट स्पर्धा के कारण इसमें फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराइयों का प्रचलन भी बढ़ने लगा है। फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराईयाँ न खिलाड़ियों के हित में हैं और न खलों के। खेल-पत्रकारिता की यह जिम्मेदारी है कि वह खेलों में पनप रही उन बुराईयों के किरध्द लगातार आवाज उठाती रहे। खेलों में खेल भावना की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए। खेल पत्रकारिता से यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि आम लोगों से जुड़े खेलों को भी उतना ही महत्त्व और प्रोत्साहन मिले जितना अन्य लोकप्रिय खेलों को मिल रहा है।
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पत्रकारिता
पत्रकारिता जैसे व्यापक और विशद विषय में महिला पत्रकारिता की अवधारणा भले ही कुछ अटपटी लगती है, किंतु नारी स्वातंत्र्य और समानता के इस युग में भी आधी दुनिया से जुड़े ऐसे अनेक पहलू हैं जिनके महत्त्व को देखते हुए महिला पत्रकारिता की अलग विधाकी आवश्यकता महसूस होती है।
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पत्रकारिता
पुरुष और नारी के भेद का सबसे बड़ा आधार तो उनकी अलग शारीरिक संरचना है। प्रकृति ने पुरुष को एक सांचे में ढाला है तो नारी को उससे अलग। एक समय था जब समाज पुरुष प्रधान हुआ था। पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सुविधानुसार नारी को अबला बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया था। विकास के निरंतर तेज गति से बदलते दौर ने महिलाआें को प्रगति का समान अवसर दिया और महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और लगन के बलबूते पर समाज के हर क्षेत्र में अपनी आमिट छाप छोड़ने का जो सिलसिला शुर किया वह लगातार जारी है। आज के दौर में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ महिलाआें की सशक्त उपस्थिति नहीं महसूस की जा रही हो। वर्तमान दौर में राजनीति, प्रशासन, सेना, शिक्षण, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीक, उद्योग, व्यापार, समाजसेवा आदि प्रमुख क्षेत्रों में महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और क्षमता के आधार पर अपनी राह खुद बनाई है। कई क्षेत्रों में तो कड़ी स्पर्धा और कठिन चुनौती के बावजूद महिलाआें ने अपना शीर्ष मुकाम बनाया है। भारत की इंदिरा नूई, नैनालाल किद्वाई, चंदा कोचर आदि महिलाआें ने सफलता के जिस शिखर को छुआ है वे सभी कड़ी स्पर्धावाले क्षेत्र माने जाते हैं।
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पत्रकारिता
तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश तथा महिला पुरुष समानता के इस दौर में महिलाएँ अब घर की दहलीज लाँघकर बाहर आ चुकी हैं। प्रायः हर क्षेत्र में महिलाआें की उपस्थिति और भागीदारी नजर आती है। शिक्षा ने महिलाआें को अपने आधिकारों के प्रति जागरक बनाया है। अब महिलायें भी अपने करियर के प्रति सचेत हैं। महिला जागरण की इस नवचेतना के साथ-साथ महिलाआें के प्रति अत्याचार और अपराध के मामले भी बढ़े हैं। महिलाआें की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे कानून बने हैं और आवश्यकतानुसार उसमें समय-समय पर संशेधन भी किये जाते रहे हैं। महिलाआें को सामाजिक सुरक्षा दिलाने में महिला पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। महिला पत्रकारिता की आज अलग से जररत ही इसलिए हैं कि उसमें महिलाआें से जुड़े हर पहलू पर गौर किया जाए और महिलाआें के सर्वांगीण विकास में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। महिला पत्रकारिता की सार्थकता महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से जुड़ी है।
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पत्रकारिता
मृणाल पांडे, विमला पाटील, बरखा दत्त, सीमा मुस्तफा, तवलीन सिंह, मीनल बहोल, सत्या शरण, दीना वकील, सुनीता ऐरन, कुमुद संघवी चावरे, स्वेता सिंह, पूर्णिमा मिश्रा, मीमांसा मल्लिक, अंजना ओम कश्यप, नेहा बाथम, मिनाक्षी कंडवाल आदि। आज भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में महिला पत्रकारों के आने से देश के हर लड़की को अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही है।
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पत्रकारिता
बाल-मन स्वभावतः जिज्ञासु और सरल होता है। जीवन की यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा अपने माता-पिता, शिक्षक और चारो तरफ के परिवेश से ही सीखता है। यही वह उम्र होती है जिसमें बच्चे के मास्तिष्क पर किसी भी घटना या सूचना की आमिट छाप पड़ जाती है। बच्चे के आस-पास की परिवेश उसके व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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सिकंदर
सिकंदर अपनी मां के साथ मेसेडोन से भाग कर, उसे अपने मामा, एपिरस के राजा अलेक्जेंडर प्रथम के पास डोडोना में छोड़ दिया। और खुद इलियारिया चला गया, जहाँ उसने इलियाई राजा से संरक्षण की मांग की। कुछ साल पूर्व सिकंदर से लड़ाई में पराजित होने के बावजूद उसने सिकंदर का अतिथि के तौर पर स्वागत किया। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि फिलिप ने कभी भी अपने राजनीतिज्ञ और सैन्य प्रशिक्षित बेटे को अस्वीकार नहीं करना चाहता था। तदानुसार, सिकंदर एक परिवारिक दोस्त, डेमरातुस के प्रयासों के कारण छह महीने के बाद मकदूनियाँ वापस लौट आता हैं।
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सिकंदर
अगले वर्ष में, पिक्सोडारस, कारिया के फारसी गवर्नर ने अपनी सबसे बड़ी बेटी को सिकंदर के सौतेले भाई, फिलिप एर्हिडियस से विवाह का प्रस्ताव रखा। ओलंपियस और सिकंदर के कई दोस्तों ने सुझाव दिया कि फिलिप ने एर्हिडियस को अपना उत्तराधिकारी बनाने का इरादा किया है। सिकंदर ने पिक्सेलरस को एक दूत थिस्सलुस को भेज यह बतलाय कि उसे अपनी बेटी का हाथ अवैध बेटे को देने के बजाय सिकंदर को देना चाहिये। जब फिलिप ने इस बारे में सुना तो उसने प्रस्ताव वार्ता को रोक दिया और सिकंदर को चिल्लाते हुए कहा कि वह क्यु पिक्सोडारस की बेटी से शादी करना चाहता है, उसने समझाया कि वह उसके लिए बेहतर दुल्हन चाहता था। फिलिप ने सिकंदर के चार मित्रों हर्पालुस, नारकुस, टॉलमी और एरिजियस को निर्वासित कर दिया, और कोरिंथियंस को थिस्सलुस को जंजीरों में लाने के लिये भेज दिया।
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सिकंदर
336 ईसा पूर्व की गर्मियों में, एयगे में अपनी बेटी क्लियोपेट्रा के विवाह में भाग लेते हुए फिलिप को उसके अंगरक्षकों के कप्तान, पॉसनीस द्वारा हत्या कर दी गई। जब पॉसनीस भागने का प्रयास किया, तो सिकंदर के दो साथी, पेर्डिकस और लेओनाटस ने उसका पीछा कर उसे मार डाला। उसी समय, 20 वर्ष की उम्र में सिकंदर को रईसों और सेना द्वारा राजा घोषित कर दिया गया।
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सिकंदर
सिंहासन संभालते ही सिकंदर अपने प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करने लगा। जिसकी शुरुआत उसने अपने चचेरे भाई, पूर्व अमीनटस चौथे की हत्या करवाके की। उसने लैंकेस्टीस क्षेत्र के दो मैसेडोनियन राजकुमारों को भी मार दिया, हलांकि तीसरे, अलेक्जेंडर लैंकेस्टीस को छोड़ दिया। ओलम्पियस ने क्लियोपेट्रा ईरीडिइस और यूरोपा को, जोकि फिलिप की बेटी थी, जिंदा जला दिया। जब अलेक्जेंडर को इस बारे में पता चला, तो वह क्रोधित हुआ। सिकंदर ने अटलूस की हत्या का भी आदेश दिया, जोकि क्लियोपेट्रा के चाचा और एशिया अभियान की सेना का अग्रिम सेनापति था।
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सिकंदर
अटलूस उस समय एथेंस में अपने दोषरहित होने की संभावना के बारे में डेमोथेन्स से बातचीत करने गया था। अटलूस ने सिकंदर का कई बार घोर अपमान कर चुका था, और क्लियोपेट्रा की हत्या के बाद, सिकंदर उसे जीवित छोड़ने के लिए बहुत खतरनाक मानता था। सिकंदर ने एर्हिडियस को छोड़ दिया, जोकि संभवतः ओलंपियास द्वारा जहर देने के परिणामस्वरूप, मानसिक रूप से विकलांग हो चुका था।
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सिकंदर
फिलिप की मृत्यु की खबर से कई राज्यों में विद्रोह होने लगा, जिनमें थीब्स, एथेंस, थिसली और मैसेडोन के उत्तर में थ्रेसियन जनजाति शामिल थे। जब विद्रोह की खबर सिकंदर तक पहुंची, तो उसने तुरंत उस पर ध्यान दिया। कूटनीति का इस्तेमाल करने कि बजाय, सिकंदर 3,000 मैसेडोनियन घुड़सवार सेना का गठन कर, थिसली की तरफ दक्षिण में कूच करने लगा। उसने पाया की थिसली की सेना, ओलम्पियस पर्वत और ओसा पर्वत के बीच के रास्ते पर कब्जा किये हुए है, उसने अपनी सेना को ओसा पर्वत पर चढ़ने का आदेश दिया। दूसरे दिन जब थिसलियन सेना जागी, तो पाया कि सिकंदर अपनी सेना के साथ उनके पीछे खड़ा था, और उन्होंने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया। सिकंदर ने उनकी घुड़सवार सेना को अपनी में मिला कर दक्षिण में पेल्लोपोनिस की ओर कूच करने लगा।
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