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ैं। वह मुंबई के खारघर में स्थित परफेक्ट३२ डेंटल क्लिनिक नामक डेंटल क्लिनिक के संस्थापक और मालिक हैं। वह सामान्य दंत चिकित्सा, कॉस्मेटिक दंत चिकित्सा, ऑर्थोडॉन्टिक्स और मौखिक सर्जरी में एक मास्टर विशेष
ैं। [MASK]ह मुंबई के खारघर में स्थित परफेक्ट३[MASK] [MASK]ें[MASK]ल क्लिनि[MASK] नामक डेंटल क्लिनिक के संस्थापक और मा[MASK]िक ह[MASK]ं। वह सामा[MASK]्य [MASK]ंत चिकित[MASK]सा, कॉ[MASK]्मेटिक दंत [MASK]ि[MASK]ित्सा, ऑर्थोड[MASK]न्टिक्स [MASK]र मौखिक सर्जर[MASK] म[MASK]ं एक मा[MASK]्टर विशे[MASK]
ज्ञ हैं। डॉ. केतन रेवनवार का जन्म महाराष्ट्र के बीड़ ज़िले में पिता कोंडीराम रेवनवार और माता श्रीमती विजय कोंडीराम के घर हुआ था। डॉ. केतन रेवनवार महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से बीडीएस की ड
ज्ञ हैं[MASK] डॉ. केतन रेव[MASK]व[MASK]र का जन्म महाराष[MASK][MASK]्र के बीड़ ज़िले म[MASK]ं पिता कोंडीराम रेवनवा[MASK] और माता [MASK]्[MASK]ीम[MASK]ी [MASK]िजय कोंडीराम के घर हुआ था। डॉ. [MASK]ेतन रेवनवार महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्[MASK] साइंसेज [MASK]े बीडीएस क[MASK] ड
िग्री की डिग्री हासिल की थी। इंस्टाग्राम पर डॉ. केतन रेवनवारवास्तु महागुरु बसंत आर रासिवासिया एक प्रसिद्द वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हैं ल बसंत रासिवासिया रिवाइवल वास्तु नामक संस्थान व आधुनिक संगणक मोबाइ
िग्री [MASK]ी डिग्री हासिल की थ[MASK][MASK] इंस्टाग्राम पर डॉ. केत[MASK] रेवनव[MASK]रवास्तु महागुरु बसंत आर रासिवासिया एक प्रसिद्द वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ ह[MASK]ं ल बसंत रासिवासिया रि[MASK]ाइ[MASK]ल वा[MASK]्तु ना[MASK][MASK] संस्था[MASK] व आधुनिक संगणक मोबाइ
ल एप्लीकेशन, रीवास्तु के संचालक हैं ल उन्हें वास्तु शास्त्र में महारत हासिल है यही वजह है की वह जाति, पंथ और सामाजिक स्थिति की बाधाओं को पार करने वाली तकनीक का उपयोग करके प्राचीन विज्ञान वास्तु शास्त्
ल एप[MASK]लीकेशन, रीवास्तु के संचालक है[MASK] ल उ[MASK]्हें व[MASK]स्तु शास्त्र में महारत ह[MASK]सिल है यही वज[MASK] है की वह जा[MASK]ि, पंथ और सामाज[MASK]क स्थि[MASK]ि की बाधाओ[MASK] को पार [MASK]र[MASK]े वाली तकनी[MASK] का उ[MASK]योग करके प[MASK]राचीन विज्ञान वास्तु शास्त्
र की ऊर्जा को दुनिया में फैला रहे हैं। बसंत आर रासिवासिया भारतीय वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ व ज्योतिषाचार्य हैं, इन्हे वास्तु महागुरु की उपाधि दी गयी है। व इनका जन्म असम के तिनसुकिया शहर में दिनांक २६ अक
र की ऊर्जा क[MASK] दुनिया म[MASK]ं फैल[MASK] रहे है[MASK]। ब[MASK]ंत आर रासि[MASK]ासिया भारत[MASK]य वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ व ज्योति[MASK]ाचार्[MASK] हैं, इन्हे वा[MASK][MASK]त[MASK] मह[MASK]गुरु की उपाधि दी गयी है। व इनक[MASK] ज[MASK]्म असम [MASK]े तिनसु[MASK][MASK]या शह[MASK] मे[MASK] दिनांक २६ अक
्टूबर १९७० को हुआ है। उन्होंने अपनी दसवीं तक की पढाई निरुपमा हाई स्कूल से पूरी की व आगे की पढाई तिनसुकिया कॉलेज से की है ल रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी
्टूबर १९७० को ह[MASK]आ [MASK]ै[MASK] उन[MASK]होंने अपन[MASK] द[MASK]वीं तक की पढाई न[MASK]रुपमा हाई स्[MASK]ूल से पूरी की व आगे की पढाई तिनसुकिया कॉलेज से की है ल रासि[MASK]ासिया के पिता [MASK]ा नाम [MASK]ाधे श्याम अग्रवाल रास[MASK][MASK]ासिया व म[MASK]ता का नाम लक[MASK]ष[MASK]मी
देवी है। बसंत रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी देवी है। बसंत रासिवासिया को भारतीय संस्कृति में योगदान के लिए मेक अर्थ ग्रीन अगेन मेगा फाउंडेशन द्वारा वास्
देवी है। [MASK]संत रासि[MASK]ासिया [MASK]े पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासि[MASK]ा व माता का नाम लक्ष्[MASK]ी देवी है। ब[MASK]ं[MASK] रासिवासिया को भारतीय संस्कृत[MASK] में योग[MASK]ान [MASK]े लिए मेक अर्थ ग्रीन अगेन म[MASK]गा फा[MASK]ंडेश[MASK] द्वा[MASK]ा वास[MASK]
तु महागुरु का टाइटल से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हे महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के द्वारा डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इंस्टाग्राम पर बसंत आर रासिवास
तु महाग[MASK]रु का टाइटल से सम्मानित किया [MASK]ा चुका है[MASK] इन्हे [MASK]हा[MASK]ाष्ट्र र[MASK][MASK]्यपा[MASK] भगत सिंह कोशियारी क[MASK] द्वा[MASK]ा ड[MASK]क्टर ब[MASK]बा साहेब अं[MASK]ेडकर पु[MASK]स्कार से [MASK]ी [MASK]म्मा[MASK]ित कि[MASK]ा जा चुका है।[MASK]इंस्टाग्[MASK]ा[MASK] पर बस[MASK]त आर र[MASK]सिवास
िया १९७० में जन्मे लोगइल्कल साड़ीइल्कल साड़ी एक पारंपरिक रूप है जो भारत में महिलाओं का एक आम पहनावा है। इल्कल साड़ी का नाम भारत के कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले के इलकल शहर से लिया गया है। इलकल साड़िय
[MASK]या १९७० में जन्मे लोगइल्क[MASK] स[MASK]ड़ी[MASK]ल्कल साड़ी एक पारंपरि[MASK] रूप है जो भारत में मह[MASK]लाओं का ए[MASK] आम पहनाव[MASK] है। इल्क[MASK] सा[MASK]़[MASK] [MASK]ा ना[MASK] भारत के कर्न[MASK]टक राज्[MASK] के बागलकोट जिले के इलक[MASK] शह[MASK] से लिया गया [MASK]ै[MASK] इलकल साड़िय
ों को शरीर पर सूती ताने और बॉर्डर के लिए आर्ट सिल्क ताना और साड़ी के पल्लू हिस्से के लिए आर्ट सिल्क ताना का उपयोग करके बुना जाता है। कुछ मामलों में कला रेशम के स्थान पर शुद्ध रेशम का भी उपयोग किया जात
ों को शरीर पर सूती [MASK]ाने और बॉर[MASK]डर के लिए आर्[MASK] सिल्क [MASK]ा[MASK]ा और सा[MASK]़ी के पल्लू हिस्से [MASK]े लिए आर्ट सि[MASK][MASK][MASK] ताना का उपयो[MASK] करक[MASK] बुना जाता है। कुछ माम[MASK]ों में कला रेशम क[MASK] [MASK]्थान पर शुद्ध रेशम का भी उपयो[MASK] किया जात
ा है। इल्कल एक प्राचीन बुनाई केंद्र था जहां बुनाई आठवीं शताब्दी ईस्वी में शुरू हुई प्रतीत होती है। इन साड़ियों की वृद्धि का श्रेय बेल्लारी शहर और उसके आसपास के स्थानीय सरदारों द्वारा प्रदान किए गए संर
ा [MASK][MASK]। इल्कल एक [MASK]्राचीन बुनाई केंद्र था जहां बुनाई आठवीं शत[MASK]ब्दी ईस्वी [MASK]ें शुरू हुई प्[MASK]तीत होती है। इ[MASK] साड़ि[MASK]ों की वृद्धि का श्र[MASK]य बेल्लारी श[MASK]र और उसके आसपास के स्[MASK]ानीय सरदारों द्वारा प्र[MASK]ान किए गए संर
क्षण को दिया जाता है। स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता ने इस साड़ी के विकास में मदद की।इल्कल शहर में लगभग २०००० लोग साड़ी-बुनाई में लगे हुए हैं। साड़ी की विशिष्टता शरीर के ताने-बाने को पल्लू के ताने-बाने
क[MASK]षण को [MASK]ि[MASK]ा जा[MASK]ा है। स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता ने इस साड़ी के विकास [MASK]ें मदद की।इल्कल शह[MASK] में लगभग २०००० [MASK]ोग साड़ी-बुनाई में लगे हुए है[MASK][MASK] साड़ी क[MASK] विशिष्टता शरीर के ताने-बाने को पल्लू के ताने[MASK]बा[MASK]े
के साथ लूपों की एक श्रृंखला के साथ जोड़ना है जिसे स्थानीय रूप से टोपे टेनी तकनीक कहा जाता है। उपरोक्त टोपे टेनी तकनीक के कारण बुनकर केवल ६गज, ८ गज, ९ गज की चाल से चल सकेगा। कोंडी तकनीक का उपयोग ३ शटल
[MASK]े सा[MASK] लूपों की एक श्रृ[MASK]खला के साथ जोड़ना है [MASK]ि[MASK]े स्थानीय रूप से टोपे टेनी तकनीक कहा जाता ह[MASK]। उपरोक[MASK]त टोपे टेनी तकनीक के कारण [MASK]ुनकर [MASK]ेव[MASK] ६[MASK]ज, ८ गज, ९ गज की चाल से चल सकेगा। कोंड[MASK] तक[MASK]ीक का उपयो[MASK] ३ शट[MASK]
डालकर बाने के लिए किया जाता है। पल्लाउ भाग-डिज़ाइन: "टोपे टेनी सेरागु" आम तौर पर टोपे टेनी सेरागु में ३ ठोस भाग लाल रंग में होंगे, और बीच में २ भाग सफेद रंग में होंगे। टोपे टेनी सेरागु को एक राज्य प्
डालकर ब[MASK]ने के लिए किया ज[MASK]ता है। पल्लाउ भाग-डिज़ा[MASK][MASK]: "टोपे टे[MASK]ी स[MASK]रागु" आम तौर पर टो[MASK]े ट[MASK]नी सेरागु में ३ [MASK]ोस भाग लाल रंग में होंगे, [MASK]र ब[MASK]च में २ भा[MASK] सफेद रंग में हों[MASK]े। टोपे टेनी [MASK]ेरागु को एक राज्य प्
रतीक माना जाता है और त्योहार के अवसरों के दौरान इसका बहुत सम्मान किया जाता है। पारंपरिक बॉर्डर: (ई) चिक्की, (ई) गोमी, (ई) जरी और (इव) गदीदादी, और आधुनिक गायत्री इल्कल साड़ियों में अद्वितीय हैं - चौड़ा
र[MASK]ीक माना जाता ह[MASK] और त्[MASK][MASK]हार [MASK][MASK] अव[MASK][MASK]ों के दौरान इस[MASK][MASK] बहुत सम्मान किया जाता है।[MASK]पारंपरिक बॉर्ड[MASK]: (ई) चिक्[MASK]ी, (ई) गोमी, (ई) जरी और (इव) गदी[MASK][MASK]दी, और आधु[MASK]िक [MASK]ायत्री [MASK]ल्[MASK]ल साड़ियों में अद[MASK]वि[MASK]ी[MASK] हैं - चौड[MASK]ा
ई २.५" से ४" तक है। सीमा रंग विशिष्टता: लाल आमतौर पर या मैरून हावी होता है। अगर किसी को इल्कल साड़ी की जरूरत है तो उसे हर साड़ी के लिए एक ताना-बाना तैयार करना होगा। शरीर के लिए ताना धागे अलग से तैयार
ई २.५" से [MASK]" तक है। सीमा रंग विशिष्टता: लाल आमतौर पर या मैरून हावी होता [MASK]ै। अगर किसी को इल्कल साड[MASK]ी क[MASK] ज[MASK]ूरत है तो उसे हर साड़ी के लिए एक ताना-बाना तैयार करना ह[MASK]गा। शरीर के लिए ताना धागे अलग से [MASK]ैयार
किए जाते हैं। इसी प्रकार पल्लू का ताना-बाना आवश्यक गुणवत्ता के आधार पर कला रेशम या शुद्ध रेशम से अलग से तैयार किया जाता है। तीसरा, ताने का बॉर्डर भाग तैयार किया जाता है, जैसे पल्लू ताना, या तो कला रेश
किए [MASK]ा[MASK]े हैं[MASK] इसी प्रकार पल्लू का ता[MASK]ा[MASK]बाना आवश्यक [MASK]ु[MASK]वत्ता के आध[MASK]र पर कला रेशम या शुद्ध रेशम से अ[MASK]ग से तैयार किया जाता है। तीसर[MASK], ताने [MASK][MASK] बॉर्डर भाग तैयार किया ज[MASK]ता है, जैसे पल[MASK]लू ताना, या त[MASK] क[MASK][MASK] रेश
म या शुद्ध रेशम और पल्लू और बॉर्डर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रंग एक ही होगा। इल्कल साड़ियों की विशिष्ट विशेषता कसुती नामक कढ़ाई के एक रूप का उपयोग है। कसुती में उपयोग किए गए डिज़ाइन पालकी, हाथी और कम
म या शुद्ध रेशम और प[MASK]्लू [MASK]र [MASK]ॉर्डर पर इस्[MASK]ेमाल किया जाने वाला रं[MASK] ए[MASK] ही होगा। इल्कल साड़िय[MASK]ं [MASK]ी विशिष्ट [MASK]िशेषता क[MASK]ुत[MASK] नाम[MASK] क[MASK]़ाई के [MASK]क रूप का उपय[MASK]ग है। कस[MASK][MASK]ी में [MASK]प[MASK][MASK]ग कि[MASK] गए [MASK]िज़ाइन पाल[MASK]ी, हाथी और क[MASK]
ल जैसे पारंपरिक पैटर्न को दर्शाते हैं जो इल्कल साड़ियों पर कढ़ाई किए गए हैं। ये साड़ियाँ आम तौर पर ९ गज लंबी होती हैं और इल्कल साड़ी के पल्लू (कंधे पर पहना जाने वाला हिस्सा) पर मंदिर के टावरों के डिज़
ल जैसे पारंपरिक प[MASK]टर्न को दर्शाते हैं जो इ[MASK]्कल साड़िय[MASK][MASK] पर कढ़ाई किए ग[MASK] हैं। [MASK]े साड़ियाँ आम तौर पर ९ गज लंबी ह[MASK]ती हैं औ[MASK] इल्कल साड़ी के पल्ल[MASK] (कंधे [MASK]र [MASK]हना जान[MASK] वाला हिस्स[MASK]) [MASK][MASK] मंदिर के ट[MASK]व[MASK]ों के ड[MASK]ज़
ाइन बने होते हैं। यह पल्लू आमतौर पर सफेद पैटर्न के साथ लाल रेशम से बना होता है। पल्लू का अंतिम क्षेत्र हनीगे (कंघी), कोटि कम्मली (किले की प्राचीर), टॉपुटेन (ज्वार) और रम्पा (पर्वत श्रृंखला) जैसे विभिन
ाइन बने होते हैं[MASK] यह पल्लू आमतौर पर सफेद पैटर्न [MASK]े साथ [MASK]ाल रे[MASK]म स[MASK] बन[MASK] ह[MASK]ता है। पल्लू का अंत[MASK]म क्षेत्र हनी[MASK]े (कंघी), कोटि कम्मली (किले की प्राची[MASK]), [MASK]ॉपुटेन (ज्वार) और रम्पा [MASK]पर्वत श[MASK]रृंखला) जै[MASK]े [MASK]िभि[MASK]
्न आकृतियों के पैटर्न से बना है।साड़ी का बॉर्डर बहुत चौड़ा और लाल या मैरून रंग का होता है और गेरू रंग के पैटर्न के साथ अलग-अलग डिजाइन से बना होता है। साड़ी या तो कपास से बनी होती है, या कपास और रेशम क
्न [MASK]कृतियों के पैटर्न स[MASK] बना है।साड़ी का ब[MASK]र्डर ब[MASK]ुत चौड़ा और लाल य[MASK] मैरून रं[MASK] का होता है और गे[MASK]ू रंग के पैटर्न के साथ अलग[MASK]अलग डिजाइन से बना होत[MASK] है। साड़[MASK] या तो कपास से [MASK]न[MASK] होती है, या [MASK]पास और रेशम क
े मिश्रण से या शुद्ध रेशम से बनी होती है। परंपरागत रूप से उपयोग किए जाने वाले रंग अनार लाल, शानदार मोर हरा और तोता हरा हैं। दुल्हन के पहनावे के लिए जो साड़ियाँ बनाई जाती हैं, वे गिरी कुमुकुम नामक एक व
े मिश्रण [MASK]े या श[MASK]द्ध रेशम से ब[MASK]ी होती है। परंप[MASK][MASK]गत रूप से [MASK]पयोग किए [MASK]ाने व[MASK]ले रंग अनार ला[MASK], शानदा[MASK] मो[MASK] हरा और त[MASK]ता हरा हैं। दुल्हन के पहनावे के लिए जो साड[MASK][MASK]या[MASK] बनाई जाती हैं[MASK] वे गिरी [MASK]ुम[MASK]कुम नामक एक व
िशेष रंग से बनी होती हैं, जो इस क्षेत्र में पुजारियों की पत्नियों द्वारा पहने जाने वाले सिन्दूर से जुड़ा होता है। लंबाई के अनुसार बॉर्डर में बुनी गई डिज़ाइन मुख्यतः तीन प्रकार की होती है: गोमी (इल्कल
िश[MASK]ष रंग से बनी होती हैं, ज[MASK] इस क्षेत्र मे[MASK] पुजारियों क[MASK] पत्नियों द्वा[MASK]ा पहने जाने वा[MASK]े सिन्[MASK][MASK]र से जुड़ा होता ह[MASK]। लंबाई क[MASK] अनुसा[MASK] बॉर[MASK]डर में बु[MASK]ी गई [MASK]िज़ाइन मुख्यतः त[MASK]न प्रकार की ह[MASK]ती है: गोमी (इल्कल
दादी के नाम से अधिक प्रसिद्ध), पैरास्पेट (चिक्की पारस और डोड पारस में उप-विभाजित) गाड़ी जारी है। मुख्य बॉडी डिज़ाइन धारियों, आयत और वर्गों है। इल्कल साड़ियों की बुनाई ज्यादातर एक इनडोर गतिविधि है। यह
दादी के नाम से अधिक प्रसिद्ध), पैरास्पे[MASK] (चिक्की प[MASK]रस और डोड पारस में उप[MASK]विभ[MASK]जि[MASK]) ग[MASK]ड़ी ज[MASK]री है। मुख्य बॉडी डिज़ाइन धा[MASK]ियों, आयत और वर्गों है। [MASK]ल्कल [MASK]ाड़ियों की बुनाई ज्यादात[MASK] [MASK]क इन[MASK]ोर गति[MASK]िधि है[MASK] यह
मूलतः एक घरेलू उद्यम है जिसमें महिला सदस्यों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। हथकरघे की मदद से एक साड़ी बुनने में करीब सात दिनो का समय लगता है. इसे हम पावरलूम की मदद से भी बुन सकते हैं। इल्कल पारंपरिक साड
मूल[MASK]ः एक घरेलू [MASK][MASK]्यम है जिसमें महिला सदस्[MASK]ों की सक्रिय भागीदारी श[MASK]मिल ह[MASK][MASK] हथकर[MASK]े की मदद से एक स[MASK]ड़ी [MASK][MASK]नने में करीब सात द[MASK]नो का समय लग[MASK]ा है. इसे [MASK]म पावरलू[MASK] की म[MASK]द से भी बुन सकते हैं। इल्कल पार[MASK]पर[MASK]क साड
़ियाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के विभिन्न धागों के संयोजन से पिटलूम पर तैयार की जाती हैं।एक बुनकर को तैयारी के काम के लिए अपने अलावा दो अन्य लोगों की आवश्यकता होती है। इल्कल साड़ियों का संक्षिप्त इतिहा
़ियाँ मुख्[MASK] रूप से तीन प[MASK]रकार के विभिन्न धाग[MASK]ं [MASK]े संयोजन से पिटलूम प[MASK] तैयार की जाती ह[MASK]ं।एक बुनकर को त[MASK]यारी के काम [MASK]े लिए अ[MASK]ने अलावा दो अन्[MASK] ल[MASK]गों की आवश[MASK]यक[MASK]ा होत[MASK] है।[MASK]इल्कल साड़ियों क[MASK] संक्षिप्त इतिहा
स कमला रामकृष्णन द्वारा प्रदान किया गया है। "दक्षिणी विरासत"। द हिंदू का ऑनलाइन संस्करण, दिनांक १९९९-०६-२०। १९९९, द हिंदू। १ जुलाई २०07 को मूल से संग्रहीत। "इल्कल साड़ी की कहानी"। इकोनॉमिक टाइम्स का ऑ
स कमला रामकृष्णन द्वारा प्रद[MASK][MASK] किया गया है। "[MASK]क्षिणी विरासत"। द हिंदू का ऑनलाइन संस्करण, द[MASK]नांक १९९९-०६-२[MASK][MASK] १[MASK]९९, [MASK] हिंदू। १ जुला[MASK] २०07 को मू[MASK] [MASK]े संग्[MASK]हीत। "इल्कल सा[MASK]़ी की कहानी"। इकोनॉमिक ट[MASK]इम[MASK]स का ऑ
नलाइन संस्करण, दिनांक २००२-१२-१२। २००७ टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड। १२ दिसंबर २००२। २८ अगस्त २००४ को मूल से संग्रहीत।खान सर, बिहार के पटना जनपद के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट के अध्यापक है जिन्होंने जिनके पढ़ने
न[MASK]ाइ[MASK] संस्करण[MASK] दिनांक २००२-[MASK]२[MASK]१[MASK][MASK] २००७ टाइम[MASK]स इंटरनेट लिमिट[MASK]ड। १२ दिसंबर २००[MASK]। २८ अगस्त २००४ क[MASK] मूल स[MASK] संग्रहीत।खान सर, बिहार के पटना जन[MASK]द के एक कोचिंग इ[MASK]स्टिट्यू[MASK] के अध्य[MASK]पक है जिन्होंन[MASK] जिनके पढ़ने
के तरीके से वह विश्व विख्यात हो चुके हैं। इसी के साथ ही उनकी कोचिंग के काम फीस होने के कारण उनसे करोड़ विद्यार्थी संपूर्ण विश्व में जुड़े हैं और सस्ती और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ।राभा सग़राई न
के तरी[MASK]े से व[MASK] विश्व विख्यात हो चुके हैं। इसी के साथ ही उनकी कोचिंग के का[MASK] फीस ह[MASK][MASK][MASK] के कारण उनसे करोड़ वि[MASK]्या[MASK]्थी संपूर्[MASK] व[MASK]श्व [MASK]ें जुड़े हैं और स[MASK][MASK]ती और अ[MASK]्छी शिक्षा प्र[MASK]प्त कर रहे हैं ।र[MASK]भा [MASK][MASK]़राई न
ृत्य , आसाम (भारत ) मैं कृषि एकता का प्रस्तुतीकरण है। यह मोहक नृत्य राभा जनजाति के खूबसूरत लोगों द्वारा किया जाता है जिसमें वह अपनी अपनी संस्कृति की झलक प्रदर्शित करते हैं। नृत्य में संस्कृति और कृषि
ृत्य , आसा[MASK] (भ[MASK]रत ) मैं कृ[MASK][MASK] एकत[MASK] का प्रस[MASK]तुतीकरण है। यह मोहक [MASK]ृत्य राभा जनजाति के खूब[MASK]ूरत लोगों द्वारा किया जाता है जिसमें वह अप[MASK]ी अपनी स[MASK]स्कृति की झलक प्रदर्शित करते हैं। नृत्य में संस्कृति और कृषि
परंपराओं का समागम होता है और उनके जीवन शैली की झांकी प्रस्तुत की जाती है। यह प्राकृतिक नृत्य विभिन्न मौसम चक्राें के अनुसार किया जाता है जो आगामी फसली मौसम का सूचक होता है। तदनुसार राभा लोग साथ मिलकर
प[MASK]ंपराओ[MASK] क[MASK] समागम होता है और उनके जी[MASK]न शैली की झांकी प्रस्तुत [MASK]ी [MASK]ा[MASK]ी है। यह प[MASK]राकृतिक नृत्य विभि[MASK]्न मौसम चक्राें के अनुसार किया [MASK]ाता ह[MASK] [MASK]ो आगाम[MASK] फसल[MASK] मौसम का सू[MASK]क होत[MASK] [MASK]ै। तदनुसार र[MASK][MASK]ा लोग [MASK]ाथ म[MASK]लक[MASK]
एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर पारंपरिक परिधानों में अपनी एकता का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य के दौरान ताल के अनुसार ढोल बजाए जाते हैं और वाद्य यंत्रों के साथ सुर मिलाए जाते हैं। मनमोहक स्वर संगति की सामू
एक दूसरे के हाथ में हाथ डा[MASK]कर पा[MASK][MASK]परिक [MASK]रिधानो[MASK] [MASK]ें अपनी एकता का [MASK]्रदर्शन [MASK]रते हैं। [MASK]ृत्य के दौ[MASK]ान ताल के अनुसार ढोल बजाए जाते [MASK]ैं और वाद्[MASK] यंत्रों के [MASK]ाथ सुर मि[MASK][MASK]ए जा[MASK]े हैं। [MASK]नमो[MASK]क स्वर स[MASK]गति [MASK]ी सामू
हिक ध्वनि की गूंज पूरे क्षेत्र में सुनाई पड़ती है। इन गीतों में ग्रामीण कथाओं का समावेश होता है और कृषि कार्य के साथ प्रसन्न रहने का संदेश दिया जाता है। राभा सग़राई नृत्य केवल नृत्य ही नहीं है वरन इसम
ह[MASK]क ध्वनि की गूंज पूरे क्[MASK]े[MASK][MASK]र में सुन[MASK]ई [MASK]ड़ती है। इन गीतों में ग[MASK]रामीण कथा[MASK]ं का सम[MASK]वेश होता [MASK]ै और क[MASK]षि का[MASK]्य के साथ प्र[MASK]न[MASK]न रहने क[MASK] सं[MASK]ेश दिया जाता है। राभा सग़[MASK][MASK]ई [MASK]ृ[MASK]्य क[MASK]वल नृत्य ही नही[MASK] ह[MASK] वरन इसम
ें सांस्कृतिक विरासत का चित्रण भी किया जाता है जो पीढ़ियाेऺ में हस्तांतरित होता रहता है। इसमें परंपरागत मूल्य और पीढ़ियाेऺ का इतिहास प्रदर्शित होता है। इससे पता चलता है कि यह लोग धरती माता से कितनी आत
ें सां[MASK]्कृतिक विरासत का चित्रण भी क[MASK]या जाता है [MASK]ो पीढ़ियाेऺ में हस[MASK]तांतरित होता रह[MASK]ा है। इसमें [MASK]रंपरागत [MASK]ूल्[MASK] और पीढ़ियाेऺ का इतिहास प्र[MASK]र्शित होता [MASK]ै। इसस[MASK] पता चलता है कि यह लोग धरती माता से क[MASK]त[MASK][MASK] आत
्मीयता से जुड़े हुए हैं। राभा सग़राई नृत्य खुले आसमान के नीचे किया जाता है यह वे लोग हैं जो प्रत्येक मौसम में आने वाली कठिनाइयों का हर्षो उल्लास से स्वागत करते हैं और अपनी विशिष्ट संस्कृति कि आमिट छाप
्म[MASK]यता से जुड़[MASK] हुए हैं। र[MASK]भा सग़राई [MASK]ृत्[MASK] [MASK]ुले आसमान क[MASK] नीच[MASK] किया [MASK]ाता है य[MASK] वे लोग हैं जो प्रत्येक मौ[MASK][MASK] में आने वाली कठिनाइयों का हर्षो [MASK]ल्लास [MASK]े स्वागत कर[MASK]े हैं और अप[MASK]ी विश[MASK]ष्ट संस[MASK]कृत[MASK] कि आमिट छाप
छोड़ते हैं। फसल उत्सव और प्रतीकवाद। लयबद्ध पैटर्न और उपकरण एकता और सामाजिक जूड़ाव साऺस्कृतिक लचीलापन और चुनौतियां फसल उत्सव और प्रतीक वाद राभा सग़राई नृत्य प्रकृति के मौसमीय चक्र से प्रभावित है जिसमे
छ[MASK]ड[MASK]ते हैं[MASK] फसल उत्सव और प्रतीकव[MASK]द। लयबद्[MASK] पैटर्न और उपकरण एकता और साम[MASK]जिक जूड़ाव साऺस्कृतिक लची[MASK]ापन और चुनौतियां फस[MASK] उत्सव और प्रतीक वाद रा[MASK][MASK] सग़राई नृत्य प्रकृत[MASK] के मौसमी[MASK] चक्[MASK] से प्रभावित है जिसमे
ं फसल चक्र पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस नृत्य में ईश्वर और देवताओं की महानता का आभार व्यक्त किया जाता है जो उनके कृषि संबंधित प्रयासों को सार्थकता प्रदान करते हैं। राभा नृत्य के प्रकार १. संग़राई न
ं फसल चक्र पर विशेष ध्यान द[MASK]या ज[MASK]ता है। इस न[MASK]त्य में ईश[MASK][MASK]र और देवता[MASK]ं की महान[MASK]ा का आभ[MASK]र [MASK]्यक्त किया [MASK]ा[MASK]ा है जो उनके कृषि संबंधित प्र[MASK]ासों [MASK]ो सार्थकता प्रदान करते हैं। [MASK]ाभा नृत्य के प्रका[MASK] १[MASK] संग[MASK]राई न
ृत्य राभा उत्सव का मुख्य आकर्षण संग़राई नृत्य है जो इस समारोह का दिलऔर आत्मा है। नृत्य करने वाले संगीत की स्वर लहरियों के अनुसार भाव भंगिमायै प्रस्तुत करते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करते हैं। इसमें
ृत्य[MASK][MASK]ाभा उत्सव [MASK][MASK] मुख[MASK]य आक[MASK]्षण संग़राई नृत्य है जो इस समारोह का दिलऔर आत्मा है। [MASK][MASK][MASK]्य क[MASK]ने वाले संगीत की स्वर लहरियों के अ[MASK]ुसार भाव भंगिमायै प्रस्तुत करते हैं और प्रकृति का आभार प[MASK]रकट करते हैं। इस[MASK]ें
उनकी एकता प्रदर्शित होती है। २. बाईखू नृत्य बाईखू नृत्य अत्यंत मनमोहक शक्ति प्रदर्शन नृत्य है। इसमें कई दैनिक क्रियाकलापों को लयबद् तरीके से निहित किया जाता है जैसे खेती,मत्स्य पालन और कला कौशल। इससे
उनकी एक[MASK]ा प्रदर्शित [MASK]ोती है। २[MASK] बाईख[MASK] नृत[MASK][MASK] बाईखू नृत्य अत्यंत म[MASK]मोहक शक[MASK]ति प्रदर्शन [MASK]ृत्य है। इसमें कई दैनिक क्[MASK][MASK]याकलापों को लयब[MASK]् तरीके से निहित किया जाता है जैसे खेती,मत[MASK]स[MASK]य पालन [MASK]र कला [MASK]ौशल। इ[MASK]से
पता चलता है कि राभा लोग किस प्रकार एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। ३. बिहू नृत्य' बिहू नृत्य बिहू त्योहार के दौरान किया जाता है। नृत्य करने वाले रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं जो असम की जीवंत सं
[MASK]त[MASK] चलता है कि राभा लोग कि[MASK] प्र[MASK][MASK]र एक [MASK]ूस[MASK]े के साथ मज[MASK]ूती से ज[MASK]ड़[MASK] हुए [MASK]ैं। ३. [MASK][MASK]हू नृत्य' बिहू नृत्य बिहू त्योहार के दौरान किया जाता है। नृत्य करने व[MASK]ले र[MASK]ग-बिरंगे कपड़[MASK] [MASK][MASK]नत[MASK] हैं जो असम [MASK]ी जीवंत स[MASK]
स्कृति का प्रतीक है और सर्दियों के मौसम के बाद बसंत ऋतु के आगमन को चिन्हित करता है। ४. रंगधाली नृत्य रंगधाली नृत्य मैं पौराणिक कथाओं का चित्रण किया जाता है और राभा के लोकगीतों का उत्साहवर्धक गायन किया
स्कृति का प्रतीक है और सर्[MASK]ियों के मौसम [MASK][MASK] [MASK]ाद बसंत ऋतु के आगमन को चिन्ह[MASK]त करता है। ४. रं[MASK]धाली नृत्[MASK][MASK]रं[MASK][MASK][MASK]ली नृत्य मैं पौराणिक कथाओं का चित्रण [MASK][MASK]या जाता है और राभ[MASK] के लो[MASK]गी[MASK]ों का उत्साहवर्धक [MASK]ायन किया
जाता है। इसमें जनजाति की कलात्मक संवेदनाओं का पथ प्रदर्शन किया जाता है और पीडियोऺ से चली आ रही कथाओं का मनमोहक प्रदर्शन किया जाता है। ५. सुआल नृत्य सुआल नृत्य मैं हाथ पैरों की भाव भंगिमाॵ से राभा जनज
जाता है। इसमें जनजाति की क[MASK]ात्मक संव[MASK]दनाओं का पथ प्रदर्शन किया जात[MASK] है और पीड[MASK][MASK]ोऺ से चली आ रही कथाओं का म[MASK]मोहक प[MASK]रदर्शन क[MASK]या जाता [MASK]ै। ५. सुआल न[MASK]त[MASK]य सुआल न[MASK]त[MASK]य मैं हाथ पैरों की भाव भ[MASK]गिमाॵ से राभा जनज
ाति की कलात्मक शक्तियों का चित्रण किया जाता है। इस नृत्य में प्रकृति को कल से जोड़ते हुए पक्षियों और जीव जंतुओं के क्रियाकलापों को प्रदर्शित किया जाता है। ६. बागरूमबा नृत्य बागरूमबा नृत्य मैं परंपरागत
ाति की [MASK][MASK]ात्मक शक्त[MASK]यों का चित[MASK]रण किया जा[MASK]ा [MASK]ै। इस नृ[MASK]्य में प्र[MASK]ृति क[MASK] कल से ज[MASK]ड़[MASK]े हुए पक्षिय[MASK]ं और जीव जंतुओं के क्रियाकलापों को प्रदर्शित [MASK]िया जाता है। ६. बागरूमबा [MASK]ृत्य बागर[MASK][MASK]बा नृत्य म[MASK]ं परंपरागत
वस्त्राे से सजे धजे नर्तक,जीवन के प्रति भाव भंगिमाऺये प्रस्तुत करते हैं और लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। ७. वाऺग्ला नृत्य वाऺग्ला नृत्य मैं नर्तक एक घेरा बनाते है
वस्त्राे से सज[MASK] धजे नर्तक[MASK]जी[MASK]न के प्र[MASK]ि भाव भंगिमाऺये प्रस्तुत [MASK]रते [MASK][MASK]ं और [MASK]ोगों को उनकी सांस्[MASK]ृतिक व[MASK]रासत से ज[MASK]ड़ने के ल[MASK]ए प[MASK]रेरित [MASK]रते हैं। ७. वाऺग्ला नृत्[MASK] वाऺ[MASK]्ला नृत्य मैं नर्[MASK][MASK] एक घेरा बनाते है
ं और ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए अपने पूर्वजों और देवताओं का स्तुति गान करते हैं। भूमि और दैवी शक्तियों को संयोजित करते हुए नर्तक प्रार्थना करते हैं। राभा सग़राई नृत्य:ताल पद्धतियां तथा संगीत उपकरण र
ं औ[MASK] ढो[MASK] की थाप पर नृत्[MASK] करते हुए अपने पूर्वजों और देवताओं का स्त[MASK]ति गान करते हैं। भूमि और दै[MASK]ी शक्[MASK]ियों क[MASK] संयोजित करते हुए [MASK]र्तक प्रार्थना करते हैं। राभा सग़राई नृत्य[MASK][MASK]ाल पद[MASK]धतिय[MASK]ं तथा संगीत उपकरण र
ाभा सग़राई नृत्य,परंपरागत संगीत उपकरणाेऺ की ताल पर आधारित होता है।ढोल की गूंज और टाका (हाथ में पकड़ कर बजाए जाने वाला उपकरण) की धुन तथा पेपा (परंपरागत बांसुरी) की धुन का समन्वय इस नृत्य में देखा जा सक
ाभ[MASK] सग़र[MASK]ई नृत्य,पर[MASK]परागत संगीत उ[MASK]करणाेऺ की ताल पर आधारित [MASK][MASK]ता है।ढोल की गूंज [MASK]र [MASK]ाका (हाथ म[MASK]ं पकड़ कर बज[MASK]ए जाने वाला [MASK]पकरण) की धुन तथा प[MASK]पा (परंपरा[MASK]त बांसुरी[MASK] की धुन [MASK]ा समन[MASK]व[MASK] इस नृत्य में द[MASK]खा जा सक
ता है। नृत्य के आगे बढ़ने के साथ-साथ भाव भंगीमाओं तथा स्वर लहरियों में जनजातीय जीवन, प्रकृति की सुंदरता, बीज बोने और फसल काटने की कथाओं का वर्णन किया जाता है। नृत्य जीवंत होता जाता है जिसमें राभा समुद
ता है। नृत्य [MASK]े आगे बढ़ने के साथ-साथ भाव भंगीमाओं तथा स्वर लह[MASK]ियों म[MASK]ं [MASK]नजाती[MASK] जी[MASK]न, प्रकृ[MASK]ि [MASK]ी सुंदरता[MASK] [MASK]ीज बोन[MASK] और फसल काटन[MASK] की कथाओं का वर्णन किया जाता है। नृत[MASK]य जीवंत ह[MASK]ता जाता [MASK]ै जिसमे[MASK] राभा समुद
ाय की कृषि-जीवन पद्धति,जय विजय तथा स्थानीय प्रतिबद्धता का चित्रण किया जाता है। एकता तथा सामुदायिक प्रतिबद्धता सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ राभा नृत्य में समुदाय के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करी जाती है। इ
ाय की कृषि-जीवन पद्[MASK]ति,जय विजय तथा स्थ[MASK]नीय प्रतिबद्ध[MASK]ा [MASK]ा चि[MASK]्रण किया जाता है। एकता तथा सामुद[MASK]यिक प्रतिबद्धता [MASK]ांस्कृत[MASK]क मह[MASK]्व के सा[MASK]-[MASK]ाथ राभा नृत्य में समु[MASK]ाय के प[MASK]रत[MASK] निष्ठा प्र[MASK]र्शित करी जाती है। [MASK]
समें व्यावसायिक मूल्य, साऺस्कृतिक प्रतिबद्धता तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए ज्ञान का प्रचार किया जाता है। नृत्य में प्राय: कथा वाचन और अनौपचारिक विचार विमर्श शामिल हो जाता है जो इतिहास के साथ मिल
समें व्याव[MASK]ायिक मूल्य[MASK] साऺस्कृतिक प्र[MASK]िब[MASK]्धता तथा एक पीढ़ी स[MASK] दूसरी पीढ़ी के लिए ज्ञान का प्रचार किया जाता है। नृत्य में प्र[MASK]य: कथा वाचन और अनौपचा[MASK][MASK]क विचार विमर्[MASK] शामिल हो जाता है जो इतिहास के [MASK]ाथ मिल
कर समुदाय को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है। राभा सग़राई नृत्य मौखिक परंपराओं से आगे बढ़ता है जिसमें बुजुर्ग पीढ़ी द्वारा युवा पीढ़ी को गीतोऺ, नृत्याेऺ, कहानियाेऺ तथा हाव भाव की शिक्षा दी जाती है ज
कर सम[MASK]द[MASK]य को शक्त[MASK]शाली ब[MASK]ाने म[MASK]ं [MASK][MASK]ाय[MASK] होता है[MASK] राभा सग़राई नृत्य मौख[MASK]क [MASK]रंपराओं से आग[MASK] बढ़ता ह[MASK] जिसमें बुजुर्ग पीढ़ी द्[MASK]ारा युवा [MASK]ीढ़ी को गीतोऺ[MASK] नृत्य[MASK]ेऺ, कहानियाेऺ [MASK]था हा[MASK] भाव [MASK]ी शिक्षा दी [MASK][MASK]ती है ज
ो उनकी परंपराओं को परिलक्षित करती है। अनुकूल क्षमता तथा चुनौतियां आधुनिक प्रभावों के कारण राभा समुदाय को अपनी संस्कृति तथा अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ र
ो उ[MASK]की परंपर[MASK]ओ[MASK] को पर[MASK]ल[MASK]्षित करती है।[MASK]अनुकूल क्षमता तथा चुन[MASK]तियां आधुनि[MASK] प[MASK]रभा[MASK]ों के कारण राभा [MASK]मुद[MASK]य को अपनी संस्कृति तथा अ[MASK]नी परंपराओं [MASK][MASK] [MASK]ीवित [MASK]खने के लिए चुनौत[MASK]यों और कठ[MASK]नाइयों का [MASK]ा[MASK]ना कर[MASK]ा पड़ र
हा है। राभा सग़राई नृत्य तथा राभा जीवन शैली को जीवित रखनेऺ और आगे बढ़ाने के लिए मानव विज्ञानियाैऺ तथा सांस्कृतिक उत्थानकर्ताओं द्वारा प्रयास किया जा रहे हैं।१२वीं फेल २०२३ की भारतीय हिंदी भाषा की ड्रा
हा है। राभ[MASK] सग़राई नृत[MASK][MASK] तथा राभ[MASK] जीवन शै[MASK]ी [MASK]ो जी[MASK]ित रखनेऺ और आगे ब[MASK]़ान[MASK] के लिए म[MASK][MASK]व विज्ञानियाैऺ [MASK]थ[MASK] [MASK]ांस्[MASK]ृतिक उ[MASK]्थानकर[MASK]ताओं द्वार[MASK] प्रयास क[MASK]या [MASK]ा रह[MASK] हैं[MASK]१२वीं फेल २०२३ [MASK]ी भारतीय हिंदी भाषा की ड्रा
मा फिल्म है , जो विधु विनोद चोपड़ा द्वारा लिखित और निर्देशित है। फिल्म यह अनुराग पाठक के उपन्यास "ट्वेल्थ फेल" पर आधारित है। इस फिल्म में विक्रांत मैसी, मेधा शंकर, संजय बिश्नोई और हरीश खन्ना मुख्य भुम
मा फिल्म है , जो विधु विनोद चोपड़ा [MASK][MASK]व[MASK]रा लिख[MASK]त और निर[MASK]देशित है। फिल्म यह अनुराग पाठक के उपन्या[MASK] "ट्वेल्थ फेल" पर आधारि[MASK] है। इस फिल्म में [MASK]िक्रांत मैसी, [MASK]ेधा शं[MASK]र, स[MASK]जय ब[MASK][MASK]्नोई और [MASK]रीश खन[MASK]ना मुख्य भुम
िकाओं मे हैं। यह फ़िल्म २७ अक्टूबर २०२३ को रिलीज़ हुई थी फिल्म को समीक्षकों से सकारात्मक समीक्षा मिली। यह फिल्म मनोज कुमार शर्मा (विक्रांत मैसी) के आईपीएस अधिकारी बनने की यात्रा को दर्शाती है। विक्रां
िकाओ[MASK] मे हैं। यह फ़िल्म २७ अक्टूब[MASK] २०२३ को र[MASK]लीज़ हुई थी फ[MASK]ल्म को स[MASK]ी[MASK]्[MASK][MASK][MASK]ं [MASK]े सकारात्मक सम[MASK]क्षा मिली। यह फिल[MASK]म मनोज कुमार शर्[MASK]ा ([MASK]िक्रांत मैसी) के आईप[MASK]एस अध[MASK]कारी बन[MASK]े की यात्[MASK][MASK] को दर्शाती है। विक्रां
त मैसी - मनोज कुमार शर्मा के रूप में विकास दिव्यकीर्ति स्वयं के रूप में सुंदर के रूप में विजय कुमार डोगरा फिल्म निर्माण प्रक्रिया नवंबर २०२२ में, फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने अनुराग पाठक के उपन
त मैस[MASK] - मनोज कुमार शर[MASK]मा क[MASK] रूप में वि[MASK]ास द[MASK]व्यकीर्[MASK]ि स[MASK]वय[MASK] [MASK]े रूप में सुंद[MASK] [MASK]े रूप [MASK][MASK]ं विज[MASK] कुमार [MASK]ोग[MASK]ा फिल्म निर्माण [MASK]्रक्रिया [MASK]वंबर २०२२ मे[MASK][MASK] फिल्म [MASK]िर्माता विधु विनोद चोपड़ा [MASK]े अनु[MASK]ाग प[MASK]ठक क[MASK] [MASK]पन
्यास ट्वेल्थ फेल की कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा की। यह फिल्म आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस अधिकारी श्रद्धा जोशी की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है। पात्रों का चयन विधु विनोद चोपड़ा
्यास ट्वेल्थ [MASK]ेल की कहान[MASK] पर फ[MASK]ल्म बनान[MASK] की घोषणा की। यह फिल्म आईपीएस अध[MASK]क[MASK]री मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस अधिकारी श्रद्[MASK]ा जोशी की वास्तव[MASK]क जीवन की [MASK]हा[MASK]ी से प्रेरित है[MASK] पात्रो[MASK] का चयन विधु [MASK]िनोद चोपड़ा
ने नवंबर २०२२ में घोषणा की कि १२वीं फेल फिल्म में विक्रांत मैसी मुख्य भूमिका निभाएंगे, यह विधु विनोद चोपड़ा का विक्रांत मैसी के साथ पहला काम होगा। प्रसिद्ध यूपीएससी कोचिंग प्रोफेसर विकास दिव्यकीर्ति फ
ने नवंबर २०२२ में घोषणा [MASK]ी कि १२व[MASK]ं फेल फिल्[MASK] [MASK]े[MASK] [MASK]िक्रांत म[MASK]सी मुख्य भ[MASK]मिका न[MASK]भ[MASK]ए[MASK]गे, यह विधु विनो[MASK] चोपड़ा का विक्रांत मैसी के साथ पहला काम होगा। प्रसिद्ध यूप[MASK]एससी कोचिंग प्रोफेसर [MASK]िकास दिव्यकीर[MASK][MASK]ि फ
िल्म में स्वयं का ही किरदार निभाएंगे। इस फिल्म में वास्तविक जीवन के यूपीएससी की तैयारी करने वाले कई अभ्यर्थीयों को विभिन्न भूमिकाओं में चुना गया है। मैसी के अनुसार इससे फिल्म में प्रामाणिकता रहेगी। उप
िल्म में स्वयं का ही किरद[MASK]र निभाए[MASK]गे। इस फिल्[MASK] में वास्त[MASK]िक जीवन के यूपीएससी की तैयारी कर[MASK]े वाले कई अभ्यर्थीयों को विभिन्न भूमि[MASK][MASK]ओ[MASK] म[MASK]ं चुना गया है। मैसी के अनुस[MASK]र [MASK]स[MASK]े फिल्म में [MASK]्रा[MASK]ाणिकता रहेगी। उप
न्यासों पर आधारित फिल्में भारतीय ड्रामा फ़िल्में २०२३ की फ़िल्मेंनईम अख्तर माथाडीह का एक मुस्लिम युवा नेता है जो ५ माई २०१९ से राजनीति कर रहे हैं। नईम अख्तर का संकल्प "युवाओं को एक जुट करना और एक जुट
न[MASK]यासों पर आधारित [MASK]िल्में भारतीय ड्रामा फ़िल्[MASK]ें २०२३ [MASK]ी फ[MASK]िल्[MASK]ेंन[MASK]म अख्[MASK]र [MASK]ाथाडीह का एक मुस्लिम युव[MASK] न[MASK]ता है जो [MASK] म[MASK]ई २०१९ स[MASK] राजनीति कर रहे है[MASK]। नईम अख्तर का संक[MASK]्प [MASK]य[MASK]व[MASK]ओं को ए[MASK] जुट करना औ[MASK] एक जुट
हुए युवाओं को अधिकार दिलाना है "ताना भगत भारत के झारखंड का एक आदिवासी समुदाय है। इनका संबंध ऐतिहासिक ताना भगत आंदोलन (१९१४) से है। टाना भगतों का गठन ओराँन संत जतरा भगत और तुरिया भगत ने किया था। जतरा भ
हु[MASK] युवाओं [MASK]ो [MASK]धिक[MASK]र दिला[MASK]ा है "ताना भगत भारत क[MASK] झारखंड का एक आदिवासी समुदाय है। इ[MASK]का संब[MASK]ध ऐतिहासिक ताना भगत आं[MASK]ोलन (१९१४) से है। टाना भगत[MASK]ं का गठन ओराँन संत जत[MASK]ा भगत औ[MASK] तुरिया [MASK]गत ने क[MASK][MASK]ा [MASK]ा। जतरा भ
गत ने घोषणा की कि उन्हें एक नए संप्रदाय, ताना संप्रदाय की स्थापना के लिए दैवीय रूप से नियुक्त किया गया था, जो ओरांव समुदाय से स्पष्ट रूप से अलग था। तानों ने पाहन (उराँव पुजारियों) और महतो (धर्मनिरपेक्
गत [MASK][MASK] घोषणा की कि उन्[MASK]ें एक नए संप्रदाय, ताना [MASK]ंप्रदाय की स्थापना [MASK]े लिए दैवीय रूप [MASK]े निय[MASK]क्त किया गया [MASK]ा, जो ओरांव समुदाय से स्पष्ट रूप से अलग था[MASK] त[MASK]नों ने पाहन [MASK]उराँ[MASK] पुजा[MASK]ियों) और महतो (धर्मनि[MASK]पेक्
ष मामलों में गाँव के प्रतिनिधि) के पारंपरिक नेतृत्व का विरोध करके और आत्मा पूजा और बलिदान की प्रथाओं को अस्वीकार करके ओराँव समाज को फिर से संगठित करने की कोशिश की। अपने प्रारंभिक चरण में इसे कुरुख धर्
ष मामलों [MASK]ें गाँव के प्रतिनिधि[MASK] के पारंपरिक ने[MASK]ृत[MASK]व का वि[MASK]ोध करके और आत्मा पूजा और [MASK]लिद[MASK]न की प्रथ[MASK]ओं क[MASK] अस्वीकार करक[MASK] [MASK]राँव समाज को फिर से संगठित करने क[MASK] [MASK]ोशिश की। अपने प्रारंभिक चरण में इसे कुरु[MASK] धर्
म कहा जाता था। कुड़ुख उराँवों का मूल धर्म है। ताना भगतों ने अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों का विरोध किया और उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से पहले भी पोगा सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन) कि
म कहा जाता था। [MASK]ु[MASK][MASK]ुख उर[MASK]ँवों का मूल धर्म है। ताना भगतों ने अंग्रेजों द्वार[MASK] लग[MASK][MASK] गए करों का विर[MASK]ध [MASK]ि[MASK]ा और उन्होंने महात्[MASK]ा गांध[MASK] के सत्याग्रह आंदोलन से पहले भी [MASK]ोगा सत[MASK]याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदो[MASK]न) कि
या। उन्होंने जमींदारों, बनियों (साहुकारों), मिशनरियों, मुसलमानों और ब्रिटिश राज्य का विरोध किया। ताना भगत गांधी के अनुयायी हैं और अहिंसा में विश्वास करते हैं। ताना भगत आंदोलन के १०० वर्ष पूरे होने पर
या। उन्होंने ज[MASK]ींदारो[MASK], बनियों (साहुकारों), मिशनरियों, मु[MASK]लमानों और ब्रिटिश राज्य का विरोध कि[MASK]ा। त[MASK][MASK]ा भ[MASK]त गांधी [MASK]े अनुय[MASK][MASK]ी हैं और अ[MASK]िं[MASK]ा में विश्वास करते हैं। ताना भ[MASK]त आंदोलन के [MASK]०० वर्ष [MASK]ू[MASK]े होन[MASK] प[MASK]
गुमला जिले के अलावा रांची, लोहरदगा, लातेहार और चतरा के ताना भगतों के साथ एक समारोह आयोजित किया गया था। झारखंड के सामाजिक समूहमानव सोनेजा एक भारतीय अभिनेता हैं, इनका जन्म मुंबई में हुआ था। उन्हें आनंदी
गु[MASK]ला ज[MASK]ले के अ[MASK]ा[MASK]ा रांची, लोहरदगा, लातेहार और चतरा के ताना भगतो[MASK] के सा[MASK] एक स[MASK]ार[MASK]ह आयोजित किया गया था। झारखंड [MASK]े स[MASK]मा[MASK]िक समूहमा[MASK]व सोन[MASK][MASK][MASK] एक भा[MASK]तीय अभिनेता हैं, इ[MASK]का जन्[MASK] मुंबई [MASK]ें हुआ था[MASK] उन्हें आनंदी
बा और एमिली में जमन, काटेलाल एंड संस में फिटकारी, मेरे साईं में अली और गुजरात ११ में विक्की के रूप में किरदार निभाने के लिए जाना जाता है। सोनेजा ने २०१५ में टीवी सीरियल पलक पे झलक से डेब्यू किया था। २
बा और एमिली में जम[MASK], काटेलाल एंड संस में फिटकारी[MASK] मेरे स[MASK]ईं में अल[MASK] और गुजरा[MASK] ११ में विक्की के रूप में किरद[MASK]र निभाने के लिए जाना जाता है।[MASK]सोनेजा [MASK][MASK] [MASK]०१५ में टीव[MASK] सीरियल पल[MASK] पे झलक [MASK]े डेब्यू किया था। २
०१७ में उन्होंने वेब-सीरीज़ लाखों में एक में हंसल साहू के रूप में अभिनय किया। २०१९ में सोनेजी ने टीवी सीरीज मेरे साईं में अली और फिल्म गुजरात ११ में विक्की की भूमिका निभाई है। २०२० में उन्होंने काटेला
०१७ म[MASK]ं उन्ह[MASK]ंने वेब-सीरीज़ लाखों में एक में [MASK]ं[MASK]ल साहू के रूप म[MASK]ं अभिनय किया। २०१९ [MASK]े[MASK] सोनेजी ने टीव[MASK] सीरीज [MASK]ेरे सा[MASK]ं में अली और फिल्म गुजरात १[MASK] में विक्[MASK]ी की [MASK]ूमिका निभ[MASK]ई है। २०२० में उन्होंने काट[MASK]ला
ल एंड संस में फिटकारी के रूप में काम किया। उन्होंने २०२१ में टीवी मिनी सीरीज़ दिल-ए-काउच में पटकन के रूप में अभिनय किया। २०२२ में, सोनेजी ने आनंदीबा और एमिली में जमन के रूप में अभिनय किया। २१वीं सदी क
ल एंड संस में फिटकारी क[MASK] रूप [MASK]ें क[MASK]म किया। उन्होंने २०२१ में टीवी मिनी सीरीज़ दिल-ए-का[MASK][MASK] मे[MASK] पटकन [MASK]े रूप में अ[MASK]िनय [MASK]िया। २०२२ में, सोनेजी ने आनंदीबा [MASK]र एमिली में ज[MASK]न के रू[MASK] में अभिन[MASK] कि[MASK]ा। २१वीं [MASK]दी क
े अभिनेता भारतीय पुरुष अभिनेताराम सिंह धौनी (२४ फरवरी सन् १८९३ ई० -- १२ नवम्बर १९३० ई०) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं समाजसेवक थे। सन् १९२१ ई० सर्वप्रथम उन्होंने ही जयहिन्द नारे का उद्घोष किया था।
े अभिनेता भारतीय पुरु[MASK] अभिनेताराम [MASK]िंह धौनी (२४ फरवरी सन् १८९३ ई० -- १२ न[MASK]म्[MASK]र १९३० ई०) भारत के [MASK]क स्[MASK][MASK]न्[MASK]्रता सेन[MASK]न[MASK] एवं समा[MASK][MASK]ेवक थे। सन् १[MASK]२१ ई० [MASK]र्वप्[MASK]थम उन्होंने ही जयहिन्द नारे का उद्घोष किया था।
वे सच्चे देशभक्त, समाज सुधारक, शिक्षाशात्री, स्वाभिमानी, निर्भीक, हिंदीप्रेमी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति तथा सात्विक जीवन यापन करने वाले महान कर्मयोगी थे। रामसिंह धौनी का जन्म २४ फरवरी सन् १८९३
वे सच्चे [MASK]ेशभक्त, [MASK]माज सुधारक, [MASK]िक[MASK]ष[MASK]शात[MASK]री, स्व[MASK]भिमानी, निर्भीक, हिंदीप्[MASK]ेमी, [MASK]्याग एवं स[MASK]दग[MASK] की प्रतिमूर्ति त[MASK]ा स[MASK]त्विक जीवन यापन [MASK]रने वाले महान कर्मयो[MASK]ी थे। रामसि[MASK][MASK] ध[MASK]नी का जन्म २४ फरवरी सन[MASK] १८९३
ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। वे बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् १९०८ ई०
ई[MASK] में अल[MASK]मोड़ा [MASK]िले के तल[MASK]ला सालम प[MASK]्[MASK]ी में तल्ल[MASK] बिनौला गांव [MASK]ें हुआ था[MASK] इनकी माता का नाम कुन्ती दे[MASK]ी त[MASK]ा [MASK]िता का नाम हि[MASK]्मत सिंह धौनी था। वे बचपन से ह[MASK] अति प[MASK]रतिभ[MASK]शाली एवं परिश्रमी [MASK]े। स[MASK]् [MASK]९०८ ई०
के जैती (सालम) से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा ५ में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में
के जै[MASK]ी (सालम[MASK] से कक्षा चार की परीक्ष[MASK] उत[MASK]तीर्ण [MASK]रने के बा[MASK] [MASK]न्होंने अल्मोड़ा टाउन स्क[MASK]ल [MASK]ें कक्[MASK]ा ५ में प्र[MASK]े[MASK] लिया [MASK]था हाईस्[MASK]ूल तक इसी [MASK]िद्यालय [MASK]ें विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे म[MASK]ं
प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें पाँच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी। सन् १९१२-१३ ई० के आस-पास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं० मदनमोहन
प्[MASK]थम स्थान प्राप[MASK]त करने पर उन्हें पाँ[MASK] रुपये [MASK]्रतिमाह छात्रव[MASK]त्[MASK]ि भी म[MASK]ल[MASK]े लगी। सन[MASK] १९[MASK]२-१३ ई० के आस-पास अल्मोड़ा में दे[MASK] क[MASK] कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं० मदन[MASK]ोहन
मालवीय, विनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से रामसिंह के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् १९१२ ई. में स्वामी सत्यदेव अल्मोड़ा आए और उन्होंन
[MASK]ालवी[MASK], [MASK]ि[MASK]य कुमार सरकार आदि प्र[MASK]ुख थे। इन महापुरुषों के दर[MASK][MASK][MASK] एवं उपदे[MASK]ों से रामसिंह के मन [MASK]ें द[MASK]श भक्ति [MASK]वं राष्ट्[MASK]प्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् १९१२ ई. में [MASK][MASK]वामी स[MASK]्यदेव [MASK]ल्मोड़ा आए औ[MASK] [MASK]न्होंन
े यहाँ पर शुद्ध साहित्य समिति की स्थापना की। रामसिंह इस साहित्य समिति के स्थाई सदस्य बन गए। स्वामी जी के भाषणों तथा शुद्ध साहित्य समिति के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। अब उनका समय हाईस्कू
े यहाँ प[MASK] शुद्ध साहित्य समि[MASK]ि क[MASK] स्थापना की। रामसिंह इस [MASK]ाहित्य समिति के [MASK][MASK]थाई सदस्[MASK] [MASK]न [MASK]ए। स्वामी जी के भाषणों तथ[MASK] श[MASK]द्ध साहित्य समिति [MASK]े [MASK]्रिय[MASK]क[MASK]ापों ने उनके जीवन क[MASK] [MASK]िशा ब[MASK]ल द[MASK]। अब उ[MASK][MASK][MASK] समय [MASK]ाई[MASK]्कू
ल की पढ़ाई के साथ-साथ श्रेष्ठ ग्रंथों के गहन अध्ययन तथा अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन में व्यतीत होने लगा। स्वामी सत्यदेव जी द्वारा अपने निवास स्थान नारायण तेवाड़ी देवाल में खोले गए ग्रीष्म स
ल की पढ़ाई के स[MASK]थ-साथ श्रेष्ठ ग्रं[MASK]ों के गहन अध्ययन तथा अखबारों ए[MASK]ं पत्र[MASK]पत्रिका[MASK]ं के पठ[MASK]-प[MASK][MASK]न में व[MASK]य[MASK]ीत होने लगा। स्वा[MASK]ी सत्यद[MASK]व जी द्व[MASK]रा अप[MASK]े निवास स्थान नारायण तेवाड़ी [MASK]े[MASK]ाल में खोले गए ग्[MASK]ीष्म स
्कूल में भी धौनी जी का आना-जाना बना रहता था. धौनी जी ने हाईस्कूल के अपने सहपाठियों के सहयोग से एक छात्र सभा सम्मेलन का भी गठन किया जिसमें समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाषा की उन्नति विषयक चर्चा
्कूल में भी धौनी जी का आना-[MASK][MASK]ना बना रहता था. धौनी जी न[MASK] हाईस्कूल के अप[MASK]े सह[MASK][MASK]ठि[MASK]ों [MASK]े सहयो[MASK] से एक छात्र सभा सम्मे[MASK]न का भी गठन किया [MASK]िसमें समा[MASK] सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाष[MASK] की उन्नति विषयक चर्चा
एं होती थीं। इन्हीं दिनों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जोशी जी से बंगला भाषा भी सीखी। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए धौनी इलाहाबाद (प्रयागराज) चले गए और वहां उन्ह
एं हो[MASK]ी थीं। इन्ही[MASK] दि[MASK]ों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जो[MASK]ी जी स[MASK] बं[MASK]ल[MASK] भ[MASK]षा भी सीखी। हाईस्कूल की परीक्षा उत्त[MASK][MASK]्ण करने [MASK]े [MASK]ाद उ[MASK]्च शिक्षा प्राप्त कर[MASK]े के लिए धौनी इला[MASK]ाब[MASK]द (प्रयागराज) चले गए [MASK]र वहां उन्ह
ोंने इविन क्रिश्चियन कालेज में प्रवेश लिया। सन १९१७ में उन्होंने एफ. ए. तथा सन् १९१९ ई० में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सालम लौट आए। कहा जाता है कि इस क्षे
ोंने इविन क्रिश्[MASK]ियन काले[MASK] म[MASK]ं प्र[MASK]ेश लिया। सन [MASK]९१७ [MASK]ें उन्होंने एफ[MASK] ए. तथा सन् १९१९ ई० [MASK]ें बी. ए. क[MASK] परीक्ष[MASK] [MASK]त[MASK]तीर्ण की। बी. ए. क[MASK] परी[MASK][MASK]ष[MASK] [MASK]त[MASK]तीर्ण कर[MASK]े के बाद वे [MASK][MASK]लम लौट आ[MASK]। कहा जाता है कि इस क्षे
त्र में बी. ए. उतीर्ण करने वाले पहले व्यक्ति वही थे। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक घटना-चक्र के प्रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थी। इलाहाबाद में विद्याध्ययन के दौरान 'फिलाडेलफिया छात्रावास में रहत
[MASK]्र में [MASK]ी. ए. उतीर्ण क[MASK]ने वाले [MASK]हले व[MASK]यक्ति वही थे[MASK] विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक [MASK][MASK]न[MASK]-चक्र के प[MASK]रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थ[MASK]। इल[MASK][MASK]ाब[MASK]द में विद्[MASK]ाध[MASK]यय[MASK] के द[MASK]रान 'फिलाडेलफिया छात्राव[MASK]स में रहत
े हुए वे अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं पर, विभिन्न विचार-गोष्ठियों में विचार-विमर्श किया करते थे। कालेज की हिन्दी साहित्य सभा में वे नियमित रूप से जाया करते थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
े हु[MASK] वे अपने साथियों के साथ [MASK]ाष[MASK]ट्र[MASK]य स[MASK]स्याओं प[MASK], [MASK]िभिन्न व[MASK]चार[MASK]ग[MASK]ष्ठियों म[MASK]ं विचार-विमर्श किय[MASK] करत[MASK] थे। कालेज की ह[MASK]न[MASK]दी साह[MASK]त्य सभा में वे नियमित रूप से जाया करते थे। [MASK]िन्दी सा[MASK]ित्[MASK] सम्मेलन, [MASK]्रयाग
से भी वे सम्बद्ध थे। उनका अधिकांश समय हिंदी-अंग्रेजी के समाचार-पत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विचार गोष्ठियों में भाग लेने तथा छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था। होम रूल लीग का सदस्
से भी वे सम्बद्ध थे। [MASK]नका अधिकांश समय हि[MASK]दी-अंग्रेजी के [MASK]मा[MASK]ार-पत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विच[MASK]र [MASK]ोष्[MASK]ियों म[MASK]ं भाग लेने [MASK]था छात्रों में राष्ट्रीय भावन[MASK] का प्रचार करने में बीतता था[MASK] होम रूल लीग का सदस्
य बनकर वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। उनमें देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त
य बनकर वे [MASK]ेश के स्वत[MASK][MASK]्र[MASK]ा आन्दोल[MASK] से सीधे जुड[MASK] गये थे। उ[MASK]में देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि [MASK][MASK]्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरका[MASK]ी नौकरी न करने का पक्[MASK]ा [MASK]िश्चय कर लिया था तथा अन[MASK]त
तक उसका निर्वाह भी किया। सन् १९१९ ई० में उनके बी.ए. पास करने के उपरान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम (सन् १९१४-१९२४ ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धन
तक उसका निर्वाह [MASK]ी किया। स[MASK]् [MASK][MASK]१[MASK] ई० म[MASK]ं [MASK]नके बी.ए. पास करने के उ[MASK]रान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्[MASK]र बिढम (सन् [MASK]९१४-१९२४ ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने [MASK]ो कहा परन्तु ध[MASK]नी जी ने अपनी [MASK]िर्धन
ता के बावजूद उसे ठुकरा दिया, जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी लगा। सन् १९२० इ० में रामसिंह राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में ८० रुपये मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य कि
ता के बावजूद उसे [MASK]ुक[MASK]ा दिया[MASK] जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात [MASK]ी लगा।[MASK]सन् १९२० इ० में रामसिंह राजस्थान चले गए और व[MASK]ां बीकानेर के राजा के स[MASK][MASK]तगढ़ स्कूल में ८० रुपये मास[MASK]क वेतन पर ए[MASK] वर्ष [MASK][MASK] कार्[MASK] कि
या। वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब सन् १९२१ ई० में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो व
या। वहां से धौ[MASK]ी ज[MASK] फत[MASK]हपुर [MASK][MASK]े गये तथा रामच[MASK]्द्र नेवटिया हाईस्कूल में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्[MASK] [MASK]िया। जब [MASK][MASK]् १९२१ ई० में सारे भारत[MASK]र्ष म[MASK]ं कांग्र[MASK]स कमेटिय[MASK]ं बन[MASK]ई जाने लगी, तो व
े ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने युवक सभा की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। युवक सभा' के सदस्यो
े ही पहले [MASK]्यक्ति थे जिन्होंन[MASK] फ[MASK]ेहपुर में कांग्रेस कमेटी की [MASK]्थापना कर वह[MASK]ं आजा[MASK]ी क[MASK] बिगुल बज[MASK] दिया[MASK] फतेहपुर मे[MASK] ही धौ[MASK]ी जी न[MASK] युवक सभा की भी स्थापन[MASK] की जिसके वे स्वयं संरक[MASK][MASK][MASK] थे। युवक सभा[MASK] के सदस्यो
ं का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था। श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान युवक सभा के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छ
ं [MASK]ा मुख्[MASK] कार्य अछूत बस्[MASK]ि[MASK][MASK]ं के ल[MASK]गो[MASK] में शिक्षा, सफा[MASK] तथ[MASK] नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था। श[MASK]री गोपाल नेवटिया तथा श्र[MASK] मदनल[MASK]ल जालान य[MASK]वक सभा क[MASK] संचालक थ[MASK][MASK] धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छ
ात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए 'छात्र सभा की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपय. वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण
ात्र[MASK]ं के शारीरिक, [MASK]ानसिक तथ[MASK] आत्मिक विकास के लिए 'छात[MASK][MASK] सभा [MASK]ी स्थापना भी की, [MASK]िस[MASK]े सं[MASK]ाल[MASK] [MASK]े [MASK]्व[MASK]ं थे [MASK]थ[MASK] पाँच रुपय. वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। [MASK]स बीच फ[MASK]ेहप[MASK][MASK] में उन्होंने कई ज[MASK]स[MASK][MASK]ओं में भाषण
दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया। भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनो
दिए [MASK]थ[MASK] देश को आ[MASK]ा[MASK] [MASK]र[MASK]े का आह्[MASK][MASK]न किया। अपन[MASK] स्कू[MASK] में फुटबॉल को विदेश[MASK] खेल समझ कर बंद करवा दिया [MASK]था उसके स्[MASK]ान [MASK]र कबड्डी एवं अन्य देशी खेल[MASK]ं को प्रारंभ करवाया। भारतीय [MASK]िय[MASK]सतों म[MASK][MASK] राज[MASK]ीतिक आन्दो[MASK]नो
ं के जन्मदाताओं में धौनी जी का नाम प्रमुख है। सन् १९२१ ई० से १९२२ ई. तक उनके द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प
[MASK] के जन्मद[MASK]ताओं में धौ[MASK]ी जी का नाम प्रमुख है। स[MASK]् १९२१ ई० से १९२२ ई. तक उनके द्वार[MASK] फतेहपुर में किए ग[MASK] राजनीतिक का[MASK]्यों का [MASK]िशेष महत्त[MASK]व है। उन[MASK]हों[MASK]े पहली बार [MASK]तेहपुर में राष[MASK]ट्रीय भाव[MASK]ाओं के [MASK][MASK]रच[MASK][MASK][MASK]प
्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लिया, जिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठी, कुमार नारायण सिंह, युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया, गोपाल नेवटिया, श्री रामेश्वर तथा म
्रसार क[MASK] लिए सभाओं [MASK]ा गठ[MASK] किया [MASK]था नगर क[MASK] प्रतिष[MASK]ठित लोगों एवं नवय[MASK]वकों को अ[MASK]ने साथ लिय[MASK], जिसमें डॉ[MASK] रामजीवन त्रिपाठी[MASK] कुमार नारा[MASK]ण सिंह[MASK] युधिष्ठिर प्र[MASK]ाद सिं[MASK]ानिया, गोपाल न[MASK]वटिया, श्र[MASK] रामेश्वर तथ[MASK] म
ूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। फतेहपुर में ही उन्होंने एक साहित्य समिति की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ क
ूंगी लाल आदि के न[MASK]म विशेष उल्ले[MASK]नीय हैं।[MASK]फतेहपुर में ही उन्[MASK]ोंने एक साहि[MASK]्य समिति की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्[MASK]ा और एकता का प्[MASK]च[MASK]र करन[MASK] था। इस समिति के साप्ताहिक ए[MASK]ं पाक्षि[MASK] अधिवेशन ह[MASK][MASK] क
रते थे. कभी-कभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता सफाई की सफाई सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। रामसिं
रत[MASK] थे. कभ[MASK]-क[MASK]ी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि [MASK]म्मेलन में [MASK]ौनी जी ने अपनी कविता सफाई क[MASK] स[MASK]ाई सु[MASK][MASK]ई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता क[MASK] [MASK]ग्रह पर धौनी जी को उसे न[MASK] बार सुनाना पड़ा[MASK] रामसिं
ह ने साहित्य समिति की ओर से बधु नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित हुईं। राष
[MASK] ने स[MASK]हित्[MASK] समिति की ओर स[MASK] [MASK]धु नामक पा[MASK]्षिक पत्र निकल[MASK]ाया [MASK]था डॉ[MASK] [MASK][MASK]मजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के दे[MASK] भक्[MASK]ि एव[MASK] र[MASK][MASK]्ट्र प्रेम स[MASK]बंधी [MASK]ई ले[MASK] एवं कविताएँ प्रकाशित हुईं। [MASK]ाष
्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने ने कारण ब्रिटिश सरकार ने बंधु पत्र की सभी प्रतियां जब्त करवा कर, उसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। धौनी जी की प्रेरणा से उनके शिष्य गोपाल नेवटिया तथा युधिष्ठिर प्रसाद
्ट[MASK]रवादी विचारधारा का [MASK]ोषक होने ने क[MASK]रण [MASK]्रिटिश [MASK]रकार ने [MASK][MASK]धु प[MASK]्र [MASK]ी सभी प्र[MASK]ियां [MASK]ब्त करवा कर, उसके प्रकाशन पर प[MASK]रतिबंध लगा दिया। [MASK]ौनी ज[MASK] की प्रेर[MASK]ा से उनके शिष्य गोपाल नेवटि[MASK]ा तथा युधिष्[MASK]िर प्र[MASK][MASK]द
सिंहानिया ने श्री स्वदेश नामक उच्चकोटि का पत्र निकाला जिसके २६ अगस्त १९२२ ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता तेरी बारी है होली छापी गई, हालांकि उस समय धौनी जी बजांग (नेपाल) चले गए थे। इस कविता में अ
सिंहानिया ने श्[MASK]ी स्वदेश [MASK]ाम[MASK] उच्चकोटि का पत्र निकाला जिसके २६ अगस्त १९२२ ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता ते[MASK][MASK] [MASK]ार[MASK] है होली छ[MASK]पी गई, हालांकि उस समय धौनी जी बजा[MASK]ग (नेपाल[MASK] च[MASK]े [MASK]ए थे। इस कविता में अ
ंग्रेजों को बंदर बताकर, उन्हें भारत से भागने को कहा गया है। उपवन से भग बन्दर भोली, तेरी बारी है होली॥ दुबक-दुबक तू घुसि आया, चुपके-चुपके सब फल खाया ॥ ऐक्य पुष्प सब तोड़ि गिराए, पिक पक्षी अति ही झुंझला
ंग्रेजों को [MASK]ंदर बताकर, उन्[MASK]ें भारत से भागने क[MASK] कहा गया है। उप[MASK]न से भ[MASK] बन[MASK][MASK]र भो[MASK]ी, तेरी बारी है होली॥ दुबक-दुबक तू घुसि आ[MASK]ा, चुपके-चु[MASK]के स[MASK] फल खा[MASK][MASK] ॥ ऐक्य पुष[MASK]प [MASK]ब तोड़ि ग[MASK]रा[MASK], पि[MASK] पक्षी अत[MASK] ही झुंझला
ए॥ सभी कहत अब ऐसी बोली, तेरी बारी है होली॥ रामसिंह धौनी के जीवन का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देशप्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार करना था। फतेहपुर (जयपुर) में जब यह कार्य युवक सभा
ए॥ सभी कहत अ[MASK] ऐसी बोली, तेरी बा[MASK]ी है हो[MASK]ी॥ रामसिंह धौनी के जीव[MASK] का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देशप[MASK][MASK]ेम ए[MASK][MASK] राष्[MASK]्रीय [MASK]ावन[MASK]ओं का प्र[MASK]ार करना था। [MASK]तेहपुर (ज[MASK]पुर) में ज[MASK] यह कार्य युवक सभा
, छात्र सभा तथा साहित्य समिति के माध्यम से होने लगा तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा नेपाल की रियासत बजांग गए। वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बनाया। धौनी जी के अध
, छात्[MASK] सभा तथा साहि[MASK]्[MASK] समिति [MASK]े माध्यम से होने [MASK]गा तो उन्हों[MASK]े अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा न[MASK]पाल की [MASK]ियासत बजांग गए। वहां उन्होंने र[MASK]जकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बन[MASK]या। धौनी जी के अध