Story_no
int32 0
7.77k
| Sentence
stringlengths 1
710
| Discourse Mode
class label 6
classes |
---|---|---|
2 | " क्या तखल्लुस रखते हो"" अवस"" अवस"! सचिव जोर से चीखा। | 2Dialogue
|
2 | क्या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है। | 2Dialogue
|
2 | दबे हुए शायर ने इस बात पर सिर हिलाया। | 4Narrative
|
2 | " क्या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?" सचिव ने पूछा। | 2Dialogue
|
2 | " नहीं"" हैरत है!" सचिव जोर से चीखा। | 2Dialogue
|
2 | इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक !! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ उफ कैसी गलती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है! | 2Dialogue
|
2 | " गुमनामी के अंधेरे में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे दबा हुआ … | 2Dialogue
|
2 | भगवान के लिए मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।"" अभी बंदोबस्त करता हूं।" | 2Dialogue
|
2 | सचिव फौरन बोला और फौरन जाकर उसने अपने विभाग में रिपोर्ट पेश की। | 4Narrative
|
2 | दूसरे दिन सचिव भागा भागा शायर के पास आया और बोला" मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी साहित्य समिति का सदस्य चुन लिया है। | 4Narrative
|
2 | ये लो आर्डर की कॉपी।"" मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।" दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा। | 2Dialogue
|
2 | उसकी सांस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आंखों से मालूम होता था कि वह बहुत कष्ट में है। | 1Descriptive
|
2 | " यह हम नहीं कर सकते" सचिव ने कहा।" जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है। | 2Dialogue
|
2 | बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को पेंशन दिला सकते हैं। | 2Dialogue
|
2 | अगर तुम आवेदन दो तो हम यह भी कर सकते हैं।"" मैं अभी जिंदा हूं।" शायर रुक रुक कर बोला। | 2Dialogue
|
2 | " मुझे जिंदा रखो।"" मुसीबत यह है" सरकारी अकादमी का सचिव हाथ मलते हुए बोला," हमारा विभाग सिर्फ संस्कृति से ताल्लुक रखता है। | 2Dialogue
|
2 | आपके लिए हमने वन विभाग को लिख दिया है। | 2Dialogue
|
2 | अर्जेंट लिखा है।" शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी। | 4Narrative
|
2 | माली बहुत खुश था। | 1Descriptive
|
2 | हालांकि दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी। | 1Descriptive
|
2 | मगर वह किसी न किसी तरह अपनी जिंदगी के लिए लड़े जा रहा था। | 1Descriptive
|
2 | कल तक… सुबह तक… किसी न किसी तरह उसे जिंदा रहना है। | 1Descriptive
|
2 | दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी आरी, कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्हें पेड़ काटने से रोक दिया गया। | 1Descriptive
|
2 | मालूम हुआ कि विदेश मंत्रालय से हुक्म आया है कि इस पेड़ को न काटा जाए। | 1Descriptive
|
2 | वजह यह थी कि इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था। | 1Descriptive
|
2 | अब यह पेड़ अगर काटा गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे। | 2Dialogue
|
2 | " मगर एक आदमी की जान का सवाल है" एक क्लर्क गुस्से से चिल्लाया। | 2Dialogue
|
2 | " दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताल्लुकात का सवाल है" दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। और यह भी तो समझ लो कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद देती है। | 2Dialogue
|
2 | क्या हम इनकी दोस्ती की खातिर एक आदमी की जिंदगी को भी कुरबान नहीं कर सकते। | 2Dialogue
|
2 | " शायर को मर जाना चाहिए? | 2Dialogue
|
2 | "" बिलकुल" अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया। | 2Dialogue
|
2 | आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। | 2Dialogue
|
2 | आज चार बजे विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करेगा। | 2Dialogue
|
2 | वो जो फैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा। | 2Dialogue
|
2 | शाम चार बजे खुद सुपरिन्टेंडेंट शायर की फाइल लेकर उसके पास आया। | 4Narrative
|
2 | " सुनते हो?" आते ही खुशी से फाइल लहराते हुए चिल्लाया" प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया है। | 2Dialogue
|
2 | और इस मामले की सारी अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है। | 2Dialogue
|
2 | कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा पा लोगे।"" सुनते हो आज तुम्हारी फाइल मुकम्मल हो गई।" | 2Dialogue
|
2 | सुपरिन्टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। | 1Descriptive
|
2 | आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी। | 1Descriptive
|
2 | उसकी जिंदगी की फाइल मुकम्मल हो चुकी थी। | 1Descriptive
|
3 | जब मैं पेशावर से चली तो मैंने छका छक इत्मिनान का सांस लिया। | 4Narrative
|
3 | मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे। | 1Descriptive
|
3 | ये लोग पेशावर से हुई मरदान से, कोहाट से, चारसदा से, ख़ैबर से, लंडी कोतल से, बन्नूँ नौशहरा से, मांसहरा से आए थे और पाकिस्तान में जानो माल को महफ़ूज़ न पाकर हिन्दोस्तान का रुख कर रहे थे, स्टेशन पर ज़बरदस्त पहरा था और फ़ौज वाले बड़ी चौकसी से काम कर रहे थे। | 1Descriptive
|
3 | इन लोगों को जो पाकिस्तान में पनाह गजीं और हिन्दोस्तान में शरणार्थी कहलाते थे उस वक़्त तक चैन का सांस न आया जब तक मैंने पंजाब की रूमानख़ेज़ सरज़मीन की तरफ़ क़दम न बढ़ाए, ये लोग शक्ल-ओ-सूरत से बिल्कुल पठान मालूम होते थे, गोरे चिट्टे मज़बूत हाथ पांव, सिर पर कुलाह और लुंगी, और जिस्म पर क़मीज़ और शलवार, ये लोग पश्तो में बात करते थे और कभी कभी निहायत करख़्त क़िस्म की पंजाबी में बात करते थे। | 1Descriptive
|
3 | उनकी हिफ़ाज़त के लिए हर डिब्बे में दो सिपाही बंदूक़ें लेकर खड़े थे। | 1Descriptive
|
3 | वजीह बल्लोची सिपाही अपनी पगड़ियों के अक़ब मोर के छत्तर की तरह ख़ूबसूरत तुर्रे लगाए हुए हाथ में जदीद राइफ़लें लिए हुए उन पठानों और उनके बीवी बच्चों की तरफ़ मुस्कुरा मुस्कुरा कर देख रहे थे जो एक तारीख़ी ख़ौफ़ और शर के ज़ेर-ए-असर उस सरज़मीन से भागे जा रहे थे जहां वो हज़ारों साल से रहते चले आए थे जिसकी संगलाख़ सरज़मीन से उन्होंने तवानाई हासिल की थी। | 1Descriptive
|
3 | जिसके बर्फ़ाब चश्मों से उन्होंने पानी पिया था। | 1Descriptive
|
3 | आज ये वतन यकलख़्त बेगाना हो गया था और उसने अपने मेहरबान सीने के किवाड़ उन परबंद कर दिए थे और वो एक नए देस के तपते हुए मैदानों का तसव्वुर दिल में लिए बादिल-ए-नाख़्वासता वहां से रुख़्सत हो रहे थे। | 1Descriptive
|
3 | इस अमर की मसर्रत ज़रूर थी कि उनकी जानें बच गई थीं। | 1Descriptive
|
3 | उनका बहुत सा माल-ओ-मता और उनकी बहुओं, बेटीयों, माओं और बीवीयों की आबरू महफ़ूज़ थी लेकिन उनका दिल रो रहा था और आँखें सरहद के पथरीले सीने पर यों गड़ी हुई थीं | 1Descriptive
|
3 | गोया उसे चीर कर अंदर घुस जाना चाहती हैं और उसके शफ़क़त भरे मामता के फ़व्वारे से पूछना चाहती हैं, बोल माँ आज किस जुर्म की पादाश में तू ने अपने बेटों को घर से निकाल दिया है। | 1Descriptive
|
3 | अपनी बहुओं को इस ख़ूबसूरत आँगन से महरूम कर दिया है। | 1Descriptive
|
3 | जहां वो कल तक सुहाग की रानियां बनी बैठी थीं। | 1Descriptive
|
3 | अपनी अलबेली कुँवारियों को जो अंगूर की बेल की तरह तेरी छाती से लिपट रही थीं झिंझोड़ कर अलग कर दिया है। | 1Descriptive
|
3 | किस लिए आज ये देस बिदेस हो गया है। | 1Descriptive
|
3 | मैं चलती जा रही थी और डिब्बों में बैठी हुई मख़लूक़ अपने वतन की सतह-ए-मुर्तफ़े उसके बुलंद-ओ-बाला चटानों, उसके मर्ग़-ज़ारों, उसकी शादाब वादियों, कुंजों और बाग़ों की तरफ़ यूं देख रही थी, जैसे हर जाने-पहचाने मंज़र को अपने सीने में छिपा कर ले जाना चाहती हो जैसे निगाह हर लहज़ा रुक जाये, और मुझे ऐसा मालूम हुआ कि इस अज़ीम रंज-ओ-अलम के बारे मेरे क़दम भारी हुए जा रहे हैं और रेल की पटरी मुझे जवाब दिए जा रही है। | 1Descriptive
|
3 | हुस्न अबदाल तक लोग यूँही मह्ज़ुं अफ़्सुर्दा यासो नकबत की तस्वीर बने रहे। | 1Descriptive
|
3 | हुस्न अबदाल के स्टेशन पर बहुत से सिख आए हुए थे। | 1Descriptive
|
3 | पंजा साहिब से लंबी लंबी किरपानें लिए चेहरों पर हवाईयां उड़ी हुई बाल बच्चे सहमे सहमे से, ऐसा मालूम होता था कि अपनी ही तलवार के घाव से ये लोग ख़ुद मर जाऐंगे। | 1Descriptive
|
3 | डिब्बों में बैठ कर उन लोगों ने इत्मिनान का सांस लिया और फिर दूसरे सरहद के हिंदू और सिख पठानों से गुफ़्तगु शुरू हो गई। | 1Descriptive
|
3 | किसी का घर-बार जल गया था कोई सिर्फ़ एक क़मीज़ और शलवार में भागा था, किसी के पांव में जूती न थी और कोई इतना होशयार था कि अपने घर की टूटी चारपाई तक उठा लाया था। | 1Descriptive
|
3 | जिन लोगों का वाक़ई बहुत नुक़्सान हुआ था वो लोग गुम-सुम बैठे हुए थे। | 1Descriptive
|
3 | ख़ामोश, चुप-चाप और जिसके पास कभी कुछ न हुआ था वो अपनी लाखों की जायदाद खोने का ग़म कर रहा था और दूसरों को अपनी फ़र्ज़ी इमारत के क़िस्से सुना सुना कर मरऊब कर रहा था और मुसलमानों को गालियां दे रहा था। | 1Descriptive
|
3 | बल्लोची सिपाही एक पर वक़ार अंदाज़ में दरवाज़ों पर राइफ़लें थामें खड़े थे और कभी कभी एक दूसरे की तरफ़ कनखियों से देखकर मुस्कुरा उठते। | 1Descriptive
|
3 | तकशीला के स्टेशन पर मुझे बहुत अर्से तक खड़ा रहना पड़ा, ना जाने किस का इंतिज़ार था, शायद आस-पास के गांव से हिंदू पनाह गज़ीं आरहे थे, जब गार्ड ने स्टेशन मास्टर से बार-बार पूछा तो उसने कहा ये गाड़ी आगे न जा सकेगी। | 4Narrative
|
3 | एक घंटा और गुज़र गया। | 1Descriptive
|
3 | अब लोगों ने अपना सामान ख़ुर्द-ओ-नोश खोला और खाने लगे, सहमे सहमे बच्चे क़हक़हे लगाने लगे और मासूम कुंवारियां दरीचों से बाहर झाँकने लगीं और बड़े बूढ़े हुक़्क़े गुड़गुड़ाने लगे। | 1Descriptive
|
3 | थोड़ी देर के बाद दूर से शोर सुनाई दिया और ढोलों के पीटने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। | 4Narrative
|
3 | हिंदू पनाह गज़ीनों का जत्था आ रहा था शायद, लोगों ने सर निकाल कर इधर उधर देखा। | 4Narrative
|
3 | जत्था दूर से आ रहा था और नारे लगा रहा था। | 1Descriptive
|
3 | वक़्त गुज़रता था जत्था क़रीब आता गया, ढोलों की आवाज़ तेज़ होती गई। | 1Descriptive
|
3 | जत्थे के क़रीब आते ही गोलियों की आवाज़ कानों में आई और लोगों ने अपने सर खिड़कियों से पीछे हटा लिए। | 4Narrative
|
3 | ये हिंदूओं का जत्था था जो आस-पास के गांव से आ रहा था, गांव के मुसलमान लोग उसे अपनी हिफ़ाज़त में ला रहे थे। | 1Descriptive
|
3 | चुनांचे हर एक मुसलमान ने एक काफ़िर की लाश अपने कंधे पर उठा रखी थी जिसने जान बचा कर गांव से भागने की कोशिश की थी। | 4Narrative
|
3 | दो सौ लाशें थीं। | 1Descriptive
|
3 | मजमें ने ये लाशें निहायत इत्मिनान से स्टेशन पहुंच कर बल्लोची दस्ते के सपुर्द कीं और कहा कि वो इन मुहाजिरीन को निहायत हिफ़ाज़त से हिन्दोस्तान की सरहद पर ले जाये, चुनांचे बल्लोची सिपाहियों ने निहायत ख़ंदापेशानी से इस बात का ज़िम्मा लिया और हर डिब्बे में पंद्रह बीस लाशें रख दी गईं। | 4Narrative
|
3 | इसके बाद मजमा ने हवा में फ़ायर किया और गाड़ी चलाने के लिए स्टेशन मास्टर को हुक्म दिया। | 4Narrative
|
3 | मैं चलने लगी थी कि फिर मुझे रोक दिया गया और मजमा ने सरग़ने में हिंदू पनाह गज़ीनों से कहा कि दो सौ आदमीयों के चले जाने से उनके गांव वीरान हो जाऐंगे और उनकी तिजारत तबाह हो जाएगी | 4Narrative
|
3 | इसलिए वो गाड़ी में से दो सौ आदमी उतार कर अपने गांव ले जाऐंगे। | 4Narrative
|
3 | चाहे कुछ भी हो। | 4Narrative
|
3 | वो अपने मुल्क को यूं बर्बाद होता हुआ नहीं देख सकते। | 1Descriptive
|
3 | इस पर बल्लोची सिपाहियों ने उनके फ़हम-ओ-ज़का और उनकी फ़िरासत तबा की दाद दी और उनकी वतन दोस्ती को सराहा। | 4Narrative
|
3 | चुनांचे इस पर बल्लोची सिपाहियों ने हर डिब्बे से कुछ आदमी निकाल कर मजमा के हवाले किए। | 4Narrative
|
3 | पूरे दो सौ आदमी निकाले गए। | 4Narrative
|
3 | एक कम न एक ज़्यादा। | 4Narrative
|
3 | लाइन लगाओ काफ़िरों! सरग़ने ने कहा। | 2Dialogue
|
3 | सरग़ना अपने इलाक़े का सबसे बड़ा जागीरदार था और अपने लहू की रवानी में मुक़द्दस जिहाद की गूंज सुन रहा था। | 1Descriptive
|
3 | काफ़िर पत्थर के बुत बने खड़े थे। | 1Descriptive
|
3 | मजमा के लोगों ने उन्हें उठा उठा कर लाइन में खड़ा किया। | 1Descriptive
|
3 | दो सौ आदमी, दो सौ ज़िंदा लाशें, चेहरे सुते हुए। | 1Descriptive
|
3 | आँखें फ़िज़ा में तीरों की बारिश सी महसूस करती हुई। | 1Descriptive
|
3 | पहल बल्लोची सिपाहियों ने की। | 4Narrative
|
3 | पंद्रह आदमी फ़ायर से गिर गए। | 4Narrative
|
3 | ये तक्षिला का स्टेशन था। | 1Descriptive
|
3 | बीस और आदमी गिर गए। | 4Narrative
|
3 | यहां एशिया की सबसे बड़ी यूनीवर्सिटी थी और लाखों तालिब-इल्म उस तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के गहवारे से कस्ब-ए-फ़ैज़ करते थे। | 1Descriptive
|
3 | पच्चास और मारे गए। | 1Descriptive
|
3 | तक्षिला के अजाइबघर में इतने ख़ूबसूरत बुत थे, इतने हुस्न संग तराशी के नादिर नमूने, क़दीम तहज़ीब के झिलमिलाते हुए चिराग़। पच्चास और मारे गए। | 4Narrative
|
3 | पस-ए-मंज़र में सरकोप का महल था और खेलों का एमफ़ी थेटर और मेलों तक फैले हुए एक वसीअ शहर के खन्डर, तक्षिला की गुज़श्ता अज़मत के पुर शिकोह मज़हर। | 1Descriptive
|