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यह पन्ना हिन्दी भाषा के कवि-सम्मेलन के लिए बनाया गया है। उर्दू कवि सम्मेलन के लिए मुशायरा पृष्ठ देखें।
कवि सम्मेलन भारतीय संस्कृति में लोक परंपरागत जनसंचार माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। मनोरंजन और लोकशिक्षण के समन्वय की यह विधा वास्तव में साहित्य, संस्कृति तथा भाषा का संगम है। श्रृंगार, ओज तथा हास्य कवि सम्मेलन के प्रमुख रस हैं। गीत, ग़ज़ल, मुक्तछंद, दोहा, घनाक्षरी, आल्हा तथा रोला छंद कवि सम्मेलनों में पढ़ी जाने वाली कविताओं में प्रमुखता से दिखाई देते हैं।कवि सम्मेलन में अलग-अलग रस के कवि एकत्रित होकर काव्यपाठ करते हैं। त्वरित टिप्पणियाँ तथा बतरस के साथ जुड़कर कविता श्रोताओं का ज्ञानवर्द्धन करने के साथ साथ मनोरंजन का भी कार्य करती है।
कहे कवि कविता से,
तुम मेरी जीवन आधार।
तुम से ही अस्तित्व मेरा,
तुमसे मेरा संसार ॥
कवियों का संसार में एक अलग महत्व है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं में एक कवि है। यह इतिहास उन महान कवियों का सम्मान करता है। जो संसार को ढेरों ज्ञान से भर गये। जो स्वयं का भविष्य रचता है, वह भी एक कवि है। मैं स्वयं को उस पहलू पर न पहुँचा सकी। जिस पहलू पर एक कवि होता है। मेरा परिचय—अनुराधा त्रिपाठी
कवि सम्मेलन का इतिहास बहुत पुराना है। इसलिए कवि-सम्मेलनों के आरम्भ की तिथि ज्ञात करना सम्भव नहीं है। परन्तु 1920 में पहला वृहद कवि सम्मेलन हुआ था जिसमें कई कवि और श्रोता था। उसके बाद कवि सम्मेलन भारतीय संस्कृति का अभिन्न भाग बन गया। आज भारत ही नहीं, वरन पूरे विश्व में कवि सम्मेलनों का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है। भारत में स्वतंत्रता के बाद से 80 के दशक के आरम्भिक दिनों तक कवि सम्मेलनों का 'स्वर्णिम काल' कहा जा सकता है। 80 के दशक के उत्तरार्ध से 90 के दशक के अंत तक भारत का युवा बेरोज़गारी जैसी कई समस्याओं में उलझा रहा। इसका प्रभाव कवि-सम्मेलनों पर भी हुआ और भारत का युवा वर्ग इस कला से दूर होता गया। मनोरंजन के नए उपकरण जैसे टेलीविज़न और बाद में इंटरनेट ने सर्कस, जादू के शो और नाटक की ही तरह कवि सम्मेलनों पर भी भारी प्रभाव डाला। कवि सम्मेलन सख्यां और गुणवत्ता, दोनों ही दृष्टि से कमज़ोर होते चले गए। श्रोताओं की संख्या में भी भारी गिरावट आई। इसका मुख्य कारण यह था कि विभ्न्न समस्याओं से घिरे युवा दोबारा कवि-सम्मेलन की ओर नहीं लौटे। साथ ही उन दिनों भीड़ में जमने वाले उत्कृष्ट कवियों की कमी थी। लेकिन नई सहस्त्राब्दी के आरम्भ होते ही युवा वर्ग, जो कि अपना अधिकतर बचा हुआ समय इंटरनेट पर गुज़ारता था, कवि सम्मेलन को पसन्द करने लगा। इंटरनेट के माध्यम से कई कविताओं की वीडियो उस वर्ग तक पहुंचने लगी। युवाओं ने नय वीडियो तलाशना, उन्हें इंटरनेट पर अपलोड करना, डाउनलोड करना और आपस में बांटना आरम्भ किया। लगभग पांच वर्षों के भीतर लाखों युवा कवि सम्मेलनों को पसन्द करने लगे। इस पीढ़ी की कवि सम्मेलनों की ओर ज़ोरदार वापसी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है, कि यू-ट्यूब नामक वेबसाईट पर एक कवि की प्रस्तुति को साढे मांच लाख से भी अधिक लोगों ने अब तक देखा है।
2004 से ले कर 2010 तक का काल हिन्दी कवि सम्मेलन का दूसरा स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है। श्रोताओं की तेज़ी से बढती हुई संख्या, गुणवत्ता वाले कवियों का आगमन और सबसे बढ़ के, युवाओं का इस कला से वापस जुड़ना इस बात की पुष्टि करता है। पारम्परिक रूप से कवि सम्मेलन सामाजिक कार्यक्रमों, सरकारी कार्यक्रमों, निजी कार्यक्रमों और गिने चुने कार्पोरेट उत्सवों तक सीमित थे। लेकिन इक्कईसवीं शताब्दी के आरम्भ में शैक्षिक संस्थाओं में इसकी बढती संख्या प्रभावित करने वाली है। जिन शैक्षिक संस्थाओं में कवि-सम्मेलन होते हैं, उनमें आई आई टी, आई आई एम, एन आई टी, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन और अन्य संस्थान शामिल हैं। उपरोक्त सूचनाएं इस बात की तरफ़ इशारा करती है, कि कवि सम्मेलनों का रूप बदल रहा है।
हिन्दी प्रेमी पूरी दुनिया में हिन्दी कवि सम्मेलन आयोजित करवाते हैं। विश्व का कोई भी भाग आज कवि सम्मेलनों से अछूता नहीं है। भारत के बाद सबसे अधिक कवि सम्मेलन आयोजित करवाने वाले देशों में अमरीका, दुबई, मस्कट, सिंगापोर, ब्रिटेन इत्यादि शामिल हैं। इनमें से अधिकतर कवि सम्मेलनों में भारत के प्रसिद्ध कवियों को आमंत्रित किया जाता है। भारत में वर्ष भर कवि सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं। भारत में कवि सम्मेलन के आयोजकों में सामाजिक संस्थाएं, सांस्कृतिक संस्थाएं, सरकारी संस्थान, कार्पोरेट और शैक्षिक संस्थान अग्रणी हैं। पुराने समय में सामाजिक संस्थान सबसे ज़्यादा कवि-सम्मेलन करवाते थे, लेकिन इस सहस्त्राब्दी के शुरूआत से शैक्षिक संस्थानों ने सबसे ज़्यादा सम्मेलन आयोजित किए हैं।
कवि सम्मेलनों के आयोजन के ढंग में भी भारी बदलाव आए हैं। यहां तक कि अब कवि सम्मेलन इंटरनेट पर भी बुक किए जाते हैं।
कवि सम्मेलन के पारम्परिक रूप में अब तक बहुत अधिक बदलाव नहीं देखे गए हैं। एक पारम्परिक कवि सम्मेलन में अलग अलग रसों के कुछ कवि होते हैं और एक संचालक होता है। कवियों की कुल संख्या वैसे तो 20 या 30 तक भी होती है, लेकिन साधरणत: एक कवि सम्मेलन में 7 से 12 तक कवि होते हैं। 2005 के आस पास से कवि सम्मेलन के ढांचे में कुछ बदलाव देख्ने को मिले। अब तो एकल कवि सम्मेलन भी आयोजित किए जाते हैं । एक पारम्परिक कवि सम्मेलन में कवि मंच पर रखे गद्दे पर बैठते हैं। मंच पर दो माईकें होती हैं- एक वह, जिस पर खड़े हो कर कवि एक एक कर के कविता-पाठ करते हैं और दूसरा वो, जिसके सामने संचालक बैठा रहता है। संचालक सर्वप्रथम सभी कवियों का परिचय करवाता है और उसके बाद एक एक कर के उन्हें काव्य-पाठ के लिए आमंत्रित करता है। इसका क्रम साधारणतया कनिष्ठतम कवि से वरिष्ठतम कवि तक होता है।
कवि सम्मेलन मंचों पर अब तक हज़ारों कवि धाक जमा चुके हैं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनको मंच पर अपनी प्रस्तुति के लिए सदा याद किया जाएगा। उनमें से रामधारी सिंह 'दिनकर', सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला',हरिवंश राय बच्चन, श्याम नारायण पाण्डेय, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', महादेवी वर्मा, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, बालकवि बैरागी, स्वर्गीय राजगोपाल सिंह, स्वर्गीय डॉ0 उर्मिलेश शंखधार, डा सुरेन्द्र शर्मा, उदय प्रताप सिंह, स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य, स्वर्गीय हुल्लड़ मुरादाबादी, स्वर्गीय अल्हड़ बीकानेरी, स्वर्गीय नीरज पुरी, माया गोविन्द, प्रदीप चौबे, इंदिरा इंदु, माया गोविंद, प्रभा ठाकुर, स्वर्गीया मधुमिता शुक्ला, आशीष अनल, दुर्गादान गौड़, मधुप पाण्डेय, हरिओम पँवार, सूर्यकुमार पांडेय,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, जगदीश सोलंकी, अरुण जैमिनी, विनय विश्वास, विष्णु सक्सेना, संजय झाला, विनीत चौहान, डॉ सरिता शर्मा, डॉ कीर्ति काले, सुरेंद्र दुबे, डॉसुनील जोगी, गजेंद्र सोलंकी, प्रवीण शुक्ल, डॉ सुमन दुबे, आश करण अटल, महेंद्र अजनबी, वेदप्रकाश वेद, स्वर्गीय ओम व्यास 'ओम' डॉ0 कुमार विश्वास, संपत सरल, शैलेश लोढ़ा, चिराग़ जैन, पवन दीक्षित, रमेश मुस्कान, तेज नारायण शर्मा, अर्जुन सिसोदिया, गजेंद्र प्रियांशु, सचिन अग्रवाल, मनीषा शुक्ला, संदीप शर्मा, राहुल व्यास, मनवीर मधुर, वीनू महेंद्र, कृष्णमित्र, स्वर्गीय शरद जोशी, स्वर्गीय आत्मप्रकाश शुक्ल, स्वर्गीय भारत भूषण, स्वर्गीय रमई काका, स्वर्गीय रामवतार त्यागी, स्वर्गीय देवल आशीष, घनश्याम अग्रवाल आदि अग्रणी हैं।
पद्मभूषण गोपालदास नीरज, संतोष आनंद, पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, पद्मश्री अशोक चक्रधर,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, डॉ कुँवर बेचैन, डॉ हरिओम पँवार, सोम ठाकुर, सत्यनारायण सत्तन, माहेश्वर तिवारी, ममता कालिया ,पद्मश्री सुनील जोगी, अरुण जैमिनी, संपत सरल, कुमार विश्वास, रचना अग्रवाल, शैलेश लोढ़ा, महेंद्र अजनबी, बालकवि बैरागी, किशन सरोज, चिराग़ जैन
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