doc_id
stringlengths
40
64
type
stringclasses
3 values
text
stringlengths
6k
1.05M
1df213fe3a7884dbfbede2b6abdcfaf662cc6e542352ad126ff6e357761d8438
pdf
(तिब्बकवर ) और दूसरे पर्दों में उत्पन्न नहीं होती सो वह तशन्नुन और तकल्लुम अर्थात् इस दर्द में खिचजाना और सिमटना उत्पन्न होता है उसका चिन्ह यह है कि दृष्टेि निर्वल होजाय और आंख फिरने लगे तथा बीमार पह जाने कि अखि में कांटा चुभता है या कोई चीज आंख को खींचती है और भूख की दशा में आर सूरज के प्रकाश में और दुपहर के समय अधिक होजाती है ( इलाज ) जो तशन्नुज खुश्की के कारण होतो प्रकृति म तरी पहुचाने के लिये लडकी वाली स्री का दूध, वनफशा का तेल और लवी घीया का तेल माक में डालें और जो चीजें तर और अगों को नर्म करती हों जैसे धनफशा, सित मी, कदू और तिल के पत्ते पानी में औटाकर उससे भफारा देवे और सव तरी करने वाले उपाय जिनका बहुषण वर्णने होचुका है काम में लाने । और जो तशन्नुज भरजाने से उत्पन्न हुआ होतो यारजात का सेवन पर और खुश्की लाने वाले कुलों का प्रयोग करे और सफाई के पीछे आंसू निफालन वाला सुरमा आंख में लगावे । रतूवत बैजिया अर्थात् आख की रतूवत के रोगों का वर्णन यह रतूवत रंग सफाई और असलियतमें अडे की सफेदी की सूरत की है इस लिये इसका नाम वैजिया रक्खा है और इस रतूत का रतवत जलीदिया के आगे उत्पन्न होने का यह लाभ है कि तेज प्रकाश रावत जुलैदिया पर २ पड़े और उसके कारण रतूव्रत जुलैदिया कष्ट से और ती क्षण प्रकाश सुश्वी और गम दवा के कष्ट और खुश्की स बच्ची रहे और इस रतूत में तीन रोग उत्पन्न होते हैं एक यह कि रहवत ममाण में बढ जावे । दूसरे यह कि प्रमाण में कम होजाय । तीसरे यह कि उसमें गदला पन और गाढापन आजाय इस लिये इन तीनों को तीन भेदों में वणन घरवदं । पहला भद-प्रमाण के बढ जाने का वर्णन । • इसके वह जाने की हानि प्रगट है यद्यपि धाडीसी अधिकता हो पर च इस कारण से कि भाग घटजाने से सफाई नहीं रहती है इसलिये स्तूवत जली दिया पर सुरतों के छपने में हनि होती है और सूर्य की पिग्णों के निपल ने पर प्राकृतिक मार्ग से उपद्रव आता है इस में आश्चर्य नहीं कि प्रमाण बहुत वरलाप क्योंकि इस दशा में तो दृष्टि विस्कुल जाती रहती है और अधेरा आजाता है और सुरतोंमें और रक्त और जलीदिया के बीच में इस रतूवतर्क दिन वा और दूसरे पदों में उत्पन्न नहीं होती सौ वह तशन्नुन और तकल्लुम अर्थात् इस दर्द में खिचजाना और सिमटना उत्पन्न होता है उसका चिन्ह यह है कि दृष्टि निर्वल होजाय और आंख फिरने लगे तथा बीमार यह जाने कि आंख में कांटा चुभता है या कोई चीज आंख को खींचती है और भूस की दशा में आर सूरज के प्रकाश में और दुपहर के समय अधिक होजाती है ( इलाज ) जो तशन्नृज खुश्की के कारण होतो प्रकृति म तरी पहुचाने के लिये लडकी वाली स्री का दूध, वनफशा का तेल और लवी धीया का तेल माक में डालें और जो चीजें तर और अगों को नर्म करती हों जैसे धनफशा, सित मी, कद्दू और तिल के पत्ते पानी में औटाकर उससे भफारा देवे और सव तरी करने वाले उपाय जिनका बहुषा वर्णन होचुका है काम में लाने । और जो तशन्नुज भरजाने से उत्पन्न हुआ होतो यारजात का सेवन पर और खुश्की लाने वाले कुल्हों का प्रयोग करे और सफाई के पीछे आंसू निकालन वाला सुरमा आंख में लगावै ।। रतूवत बैजिया अर्थात् आख की रतूवत के रोगों का वर्णन यह रतूवत रंग सफाई और असलियतमें अड़े की सफेदी की सूरत की है इस लिये इसका नाम वैजिया रक्खा है और इस रक्त का रतुवत जलीदिया के आगे उत्पन्न होने का यह लाभ है कि तेज प्रकाश रखवत जुलैदिया पर धीरे २ पड़े और उसके कारण रतूचत जुलैदिया कष्ट से और ती क्षण प्रकाश सुश्वी और गम दवा के कष्ट और खुश्की स बची रहे और इस रतूत में तीन रोग उत्पन्न होते हैं एक यह कि रक्त प्रमाण में बढ जावे । दूसरे यह कि प्रमाण में कम होजाय । तीसरे यह कि उसमें गदला पन और गाढापन आजाय इस लिये इन तीनों को तीन भेदों में वणन घरवदें। पहला भद-प्रमाण के बढ जाने का वर्णन । इस के वढ जाने की हानि प्रगट है यद्यपि धाडीसी अधिकता हो पर च इस कारण से कि भाग घटजाने से सफाई नहीं रहती है इसलिये स्तूवत जली दिया पर सुरतों के छपने में हानि होती है और सूर्य की पिरणों के निपल ने पर प्राकृतिक मार्ग से उपद्रव आता है इस में आश्चर्य नहीं कि प्रमाण बहुत वडलाप क्योंकि इस दशा में तो दृष्टि विल्कुल जाती रहती है और अधेरा आजाता हूँ और सूरतोंमें और रक्त और नलीदिया के बीच में इस रतूवतर्क निका में इसका वर्णन कियागया है इस किताब का बनाने वाला लिखता है कि सच तो यह है कि जिस समय वैजिया कम होजाती है तो मुश्की के कारण इकठ्ठी होजाती है और इस में दो बातें अवश्य होजाती हैं एक यह कि वर्णन की हुई रहूवत के सच भाग इकठ्ठे होजातें है इस दशा में दृष्टि बिलकुल जाती रहती है और कुछ नहीं दिखलाई देता । दूसरे यह कि सब इकट्ठे न हों किन्तु पुछ इकट्ठे हों और कुछ न हों और यह भी दो प्रकार पर है कि उसकी एक ज गह में हों दूसरे यह कि कई जगह में हों जो रहूवत के भाग एक ही जगह इकठे होगये हैं तो वीमार को प्रत्येक वस्तु में गढ़ा और अधेरा दीसताहै और जो रतूवत के भाग कई जगह में सुकडगये हों तो जिस रीति पर भाग इफ् हुए है उसी के अनुसार प्रत्येक वस्तु में गढे २ दिसलाई देते है और ये वांत इस रतृवत के गदलेपनमें भी दिसलाई देती है जैसा आंख में पानी उत्तर आ ने के वर्णन में कहेंगे परन्तु भागों का इकट्ठा होना और बात है क्योंकि व खुश्की के भाग इकट्ठे नहीं होते इस वास्तें आंख का छोटा होजाना और प्रकृति के अनुसार नींद में कष्ट आना इस रहनत के भागों के इक्ट्ठे हाने में हुआ करता है इस कारण से भी इन दोनों में अन्तर कर सकते है यद्यपि सरे अन्तर भी बहुत हैं ( इलाज ) देह को पुष्ट करने का यत्न करें और जो वस्तु खुश्की को नष्ट करे और रहनत उत्पन्न करे उसको काम में लावे उत्तम उत्तम भोजन करे और परिश्रम और मिहनत छोउदे तथा तरी पहचाने वाले पानी से हमेशा न्हाय और लडकी वालियों का दूध और अह का सफेदी नाक में डालें । और चनफमा तथा नीलोफर सूघे और सिरको तरी प हुयाने वाले तेलों से तर रक्खे और दिमाग में बढ़ाने वाली वस्तु पाम में लाव तीसरा भेद रतूचते वैजिया के गदला और गाढ़ा होजाने का वर्णन । इसकी यह हानि है कि दृष्टि के काम में फष्ट आजाता है मी पौठासा गदुलापन होगा तो दरकी वस्तु कभी दिसलाई नहीं देंगी और जा गाढापन और गदलापन अधिकता से दो तो पास की चरतु भी दिसलाई न दगी और यह दो धारण से साली नहीं एक यह कि इस स्तूचत के राच भाग गए के होजाय इस दशामें दृष्टि बिलकुल जाती रहेगी। दूसरे यह कि इस स्तूचत क कुछ भाग गदले होजोय यद चार मजार पर है एक यह कि इस रचत के तीच में जो साम्हने हे गदली दोनाय और यह गदलापन आंसपी पुतली में इसका वर्णन कियागया है इस किताब का बनाने वाला लिखता है कि सच तो यह है कि जिस समय वैजिया कम होजाती है तो खुश्की के कारण इकठ्ठी होजाती है और इस में दो बातें अवश्य होजाती है एक यह कि वर्णन की हुई रहूवत के सच भाग इकठ्ठे होजातें है इस दशा में दृष्टि बिलकुल जाती रहती है और कुछ नहीं दिखलाई देता । दूसरे यह कि सब इकट्ठे न हॉ किन्तु पुण् इकट्ठे हों और कुछ न हों और यह भी दो मकार पर है कि उसकी एक ज गह में हों दूसरे यह कि कई जगह में हों जो रतूवत के भाग एक ही जगह इकठे होगये हैं तो वीमार को प्रत्येक वस्तु में गडा और अधेरा दीखताहै और जो रहूवत के भाग कई जगह में सुकडगये हों तो जिस रीति पर भाग इफ्टूट्ठे हुए है उसी के अनुसार प्रत्येक वस्तु में गढे २ दिसलाई देते है और ये बात इस रतृवत के गदलेपनमें भी दिसलाई देती है जैसा आंख में पानी उत्तर आ ने के वर्णन में कहेंगे परन्तु भागों का इकट्ठा होना और बात है क्योंकि व खुश्की के भाग इकट्ठे नहीं होते इस वास्तें आंख का छोटा होजाना और प्रकृति के अनुसार नींद में कष्ट आना इस रतृरत के भागों के इस हाने में हुआ करता है इस कारण से भी इन दोनों में अन्तर कर सकते है यद्यपि द सरे अन्तर भी बहुत हैं ( इलाज ) देह को पुष्ट करने का यत्न करें और जो वस्तु खुश्की को नष्ट करे और रहनत उत्पन्न करै उसको काम में लावे उत्तम उत्तम भोजन करे और परिश्रम और मिहनत छोउदे तथा तरी पहुचाने वाले पानी से हमेशा न्हाय और लडकी वालियों का दूध और अह का सफेदी नाक में डालें । और चनफमा तथा नीलोफर सूधे और सिरको तरी प हुयाने वाले तेलों से तर रक्खै और दिमाग में बढ़ाने वाली वस्तु पाम में लावे तीसरा भेद रतूचते वैजिया के गदला और गाढ़ा होजाने का वर्णन । इसकी यह हानि है कि दृष्टि के काम में कष्ट आजाता है मी पौठासा गद्लापन होगा तो दरकी वस्तु कभी दिसलाई नहीं देंगी और जा गाटापन और गदलापन अधिकता से ही तो पास की चरतु भी दिसलाई न दगी और यह दो पारण से साली नहीं एक यह कि इस स्तूचत के सच भाग गदके होजाप इस दशामें दृष्टि बिलकुल जाती रहेगी। दूसरे यह कि इस रसूक्त फ कुछ भाग गदले होजोय यद चार मजार पर है एक पद्द कि इस सूचत के बीच में जो साम्हने है गदली दोनाप और यह गदलापन आंसपी पुतली
8079f7a272d95963a741bd6191da3a2f90333a0931efdd9befb6016d8fa6119c
pdf
Oral Answers one person at a time and I cannot bear all the persons. SHRI VAYALAR RAVI: I will give you one example. The other day, I put a simple question via, how many agents are there for STC and they said that they are collecting the information. How can they say like that? MR. SPEAKER: That is a different matter. PROF. P. G. MAVALANKAR: You are right when you said that the answers come to you only the previous day. But my only point is.... MR. SPEAKER: Please come and discuss the matter with me in the Chamber. I am at your service. What is the point in doing like this ? Question Hour is a very important hour. श्री हुकम चन्य कछवाय : अध्यक्ष महोदय, इस सवाल का नोटिस 21 दिन पहले दिया गया है } 21 दिन का समय इसीलिए रखा गया है और 21 दिन के बाद भी अगर जानकारी नहीं मिलती है तो बड़े आश्चर्य की बात है. अध्यक्ष महोदय : आप भी चैम्बर में या कर बात कर लीजिए । श्री राज नारायण : श्रीमन् मैं एक निवेदन करना चाहता हूं। सदन के सम्मानित सदस्य जरा कृपा कर के क्वेश्चयन पढ़ें तब जो रूल मावलंकर जी ने पढ़ा है उस को ध्यान में लाएं । वह रूल हम ने भी पड़ा है, कई बार उसे हम कोट कर चुके हैं, मुसीबत है कि अब नहीं कर पाते हैं। क्वेश्चन क्या है यह देखें-MR. SPEAKER: If you are not ready, I will hold ever the question. SHRI RAJ NARAIN: and fully ready. क्वेश्चन यह है कि"क्या स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि मार्च सन Oral Anaspers 1978 के अन्त तक ऐसे कितने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र थे जिन में डाक्टर नहीं थे ?" मार्च 1978 तक सवाल में पूछा गया है, 77 नहीं पूछा गया है । अगर सदन 77 तक जानना चाहता है तो वह मैं बता सकता हूं । 77 तक की सूचना मेरे पास भाई है । 78 के मार्च तक की नहीं भाई हैं। मगर 77 तक सम्मानित सदस्य पूछेंगे तो मैं बता दूंगा । एक माननीय सदस्य : बता दीजिए । श्री राज नारायण : हां, तो ले लें । (व्यवधान) Just hear me. Don't make noise. I heard you: Now you should hear me. देखिए, 31 मार्च, सन् 77 तक बिना डाक्टर वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र थे 49 । MR. SPEAKER: This question is very difficult to answer because it is about the end of March 1978. That question need not be gone into now. We shall go to Question No. 809. (Interruptions). am holding cver that question because it is about March 1978 and information cannot be collect.. ed. Cataract Operations *809. SHRI D. B. CHANDRE GOwDA : Will the Minister of HEALTH AND FAMILY WELFARE be pleas ed to state: (a) whether it is possible to cure all cataract patients in India if the services of about 3,500 eye surgeons are properly utilised; (b) whether Government would like to strengthen facilities in eye camps and set up camps throughout the country particularly in villages, as cataract survey does not take much time and one surgeon with proper facilities can perform 100 operations a day; and (c) if so, the steps Government have taken in this regard? Oral Answers. CHAITRA 30, 1900 (SAKA)" Oral Answers स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री (भी राज नारायण) : (क) जी हां, सैद्धान्तिक रूप में तो किया जा सकता है किन्तु वित्तीय और भौतिक कठिनाइयों के कारण व्यावहारिक रूप से ऐसा करना सम्भव नहीं हो सकता हैं 1 (ख) मीर (ग). सरकार ने देश भर में नेत्र शिविर बोलने सम्बन्धी सुविधाओं को सुदृढ़ करने के लिए पहले ही उपाय कर लिए हैं। इस सम्बन्ध में एक विवरण सभा पटल पर रख दिया गया हैं । यद्यपि, एक सर्जन के लिए एक दिन में 100 प्रापरेशन करना सम्भव हो भी सकता है किन्तु यदि उन्हें विज्ञानसम्मत तरीके से किया जाए तो उसे एक दिन में 30-40 ग्रापरेशनों से अधिक करना वांछनीय नहीं है । सरकार ने एक "राष्ट्रीय दृष्टि विकार निवारण एवं अंधता नियंत्रण कार्यक्रम प्रारम्भ किया है जिसके अन्तर्गत 5 वर्ष की अवधि के अन्दर 80 गश्ती यूनिटें खोली जानी हैं। उनमें से 15 यूनिट पहले ही खोल दी गयी है और 15 यूनिटें 1978-79 में खोली जाएंगी। शेष 50 यूनिटें 1982 तक खील दी जाएंगी। प्रत्येक गश्ती यूनिट 5.5 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों को सेवाएं प्रदान करेगी । इस प्रकार 80 गश्ती यूनिटें सम्पूर्ण देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान कर सकेंगी । इन गश्ती यूनिटों का उपयोग चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने में विशेषकर नेत्र शिवरों में मोतियाबिन्द और ग्लोकोमा का आपरेशन करने में किया जाएगा । इन गश्ती यूनिटों के अतिरिक्त सरकार नेत्र शिविरों का प्रायोजन करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता दे रही है । इसके अलावा विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय एजेन्सियां केवल नेत्र शिविरों को पायोजित करने में ही नहीं लगी हुई हैं बल्कि वे उन स्वेच्छिक संगठनों को भी वित्तीय सहायता दे रहीं हैं जो नेव शिविरों के लगाने में सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं । लोगों को तेंव उपचार की विस्तृत सामुदायिक सेवाएं प्रदान करने के लिए इस राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत प्राइमरी हैल्थ सेंटरों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कालेजों को की सुदृढ़ किया जा रहा है । SHRI D. B. CHANDRE GOWDA: Sir, in.vlew of the recent conference of World Health Organisation on restoration of sight to the curable blind, this cataract is placed on the list of curable blind. This is one of the major causes for blindness in India which, of course, the hon. Minister ought not to have taken so lightly to say that it is only in theory. In fact, it is being put into practice in India by voluntary organisations to which I come later. I would like to know from the hon. Minister whether this cataract is placed as curable blind. If so, the reasons for this, and also what steps the Minister is going to tako to involve voluntary organisations and in what manner voluntary organisations being financed by the Government of India. श्री राज नारायण : श्रीमन, अपने देश में जितनी वालन्ट्री-प्रार्गेनिजेशेन्ज हैं, शायद ही कोई ऐसी हो जो मेरी दृष्टि में न पहुंची हो और जो सम्मानित सदस्य की दृष्टि में पहुंच गई हो, जिस को सरकार सहायता न देती हो । सरकार सभी स्वयंसेवी संगठनों को सहायता देती है । यदि, प्रध्यक्ष महोदय, अनुमति दें तो मैं पूरा विवरण सदन के सम्मानित सदस्यों के सामने पढ़ कर सुना सकता हूं । SHRI D. B. CHANDRE GOWDA: Sir, may I know from the hon. Minister whether he is aware of voluntary organisations run by an eminent personality and internationally famous person like Dr. Modi, who is not only doing operations, but also conducting camps. The hon. Minister in his reply says that it is not advisable for a doctor to perform more than 30 to 40 operations in a day. Does the hon. Oral Annors Minister know that in Dr. Modi's camp, an average of 100 operations are per formed by a single man? MR. SPEAKER: Exceptions prove the rule. SHRI D. B. CHANDRE GOWDA: Yes, that is the reason why I am bringing it to the notice of the Minister. If one single individual can take up cataract operations internationally also, why can't the 350 eye doctors who are available under the Central Government service take up this issue, and in what way he has failed to recognise this voluntary assistance of Dr. Modi, and what financial assistance he is going to give for the betterment of the nation in so far as the cataract problem is concerned? श्री राज नारायण : श्रीमन् मैं अपने सम्मानित सदस्य को यह प्राश्वासन दे देना चाहता हूं कि सरकार डा० मोदी को जो भी सहायता से मागेंगें, देने के लिए तैयार है । अभी तक पोजीशन यह है कि जिस संगठन से वे सम्बन्धित हैं, उस से उन को पैसा मिलता है और मोबाइल वैन भी मिली हुई है जोकि एअर कंडिशन्ड है और अनेक प्रकार की दूसरी सुविधाएं उन को मिलती हैं जिस से भारत सरकार से कोई सहायता लेने की उन्हें प्रावश्यकता नहीं पड़ी मगर भारत सरकार, प्रगर उन को आवश्यकता प्रतीत होगी, सर्वदा हाथ जोड़ कर सहायता देने के लिए खड़ी रहेगी । मैं माननीय सदस्य को यह जानकारी भी दे कि हमारे राज्य मंत्री उन के केन्द्र पर गये थे और उन को कह भी भाए हैं कि अगर उन्हें किसी भी प्रकार की कमी महसूस हो, तो वे भारत सरकार को लिखे और हमारा स्वास्थ्य मंत्रालय उनकी सहायता करने के लिए बराबर खड़ा रहेगा । -Oral Ans हम को यहां तक जानकारी मिली है कि डा० मोदी कभी कभी 400, 500 और यहां तक कि 1000 मापरेशन्स एक दिन में करते हैं और उस तक में चले जाते हैं। बसन्स साडे : एक दिन में ? श्री राज नारायण : एक दिन में ऐसी खबर हम को मिली है । एक दूसरी बात मैं और बता दूं और वह यह है कि हमारे सम्मानित सदस्य ने जो डा० मोदी के आपरेशन्स के फोगर्स यहां दिये है, वे उन के महत्व को कम करते हैं। में भाप को यह भी बता दूं कि इस बारे हम ने डा० राजेन्द्र प्रसाद सेन्टर फार प्रोपीलमिक साइसेंज के डा० एल० पी० प्रग्रवाल से बात की है कि डा० मोदी किस तरीके से आपरेशन करते हैं क्योंकि एक दिन में वे इतनं सारे आपरेशन कर लेते हैं। उस तरीके का वे पता लगाएं क्योंकि समय का जो एक्सेप्शन इस मामले में है, उस से अगर काम बन सकता है तो वह तरीका अपनाया जाए । हमारा जो स्वास्थ्य मंत्रालय है, वह नेत्र रोग हो या कुष्ठ रोग हो या किसी भी प्रकार का रोग हो, उस के निवारण के लिए वह कोई कोताही नहीं करेगा । श्री राम कबार बेरवा : मोतियाबिन्द 50 साल की उम्र वाले जो लोग हैं उन्हें विशेषकर होता है । इसलिए मैं मंत्री महोदय से यह जानना चाहता हूं कि इसके इलाज के लिए मापने कोई और ऐसा उपाय निकाला है जैसे कि चेचक के लिए चेचक का टीका निकाला है और उस के लगाने के बाद वह नहीं होता, तो क्या इस के लिए कोई आप ने ऐसी योजना बनाई हैं जिस के लागू करने से यह न हो सके ओ राज नारायण : मैंने इसीलिए पहले ही निवेदन किया था कि अभी जो एक सम्मेलन बुलाया गया था और जिस की यहां पर बैठकें हुई थीं, उस का पूरा का पूरा मेमोरेण्डम मेरे पास है और भाप यदि मुझे प्राशा दें, तो मैं उस को पढ़ दूं क्योंकि हमारे सम्मानित सदस्य बार बार हम से पूछते हैं कि यह मेल
3a7d80ae92b99e47f4dac3f6ad87d92f7dd36b0ebd70fc961492125e9ac5beb1
pdf
अभय कुमार ने कोषाध्यक्ष को भी आठ डिब्यों सहित राजा के सामने उपस्थित किया । कोषाध्यक्ष की धूर्त्तता और व्यापारी की सत्यपरायणता देख राजा ने कोपाध्यक्ष को तो वम्दी गृह भेजा और व्यापारी को कोषाध्यक्ष नियुक्त किया । राजाने व्यापारी को सत्य बोलने के कारण अपराधी होते हुये भी उक्त अपराध का कोई दण्ड देने के बदले उसे कोषाध्यक्ष नियुक्त किया। इसका प्रभाव लोगों पर क्या पड़ा होगा यह विचारणीय बात है। अपराध तो व्यापारी और कोषाध्यक्ष का लगभग समान ही था। लेकिन व्यापारी सत्य बोला था और कोपाध्यक्ष झूठ । मूंठ के कारण ही कोषाध्यक्ष अपने पद से हटाया जा कर जेल भेजा गया और सत्य के कारण ही व्यापारी को अपराध का दण्ड मिलने के बदले कोषाध्यक्ष का पद प्राप्त हुआ राजा के ऐसा करने से लोगों के हृदय में उसके न्याय और सुप्रबन्ध में कितनी दृढ़ता हुई होगी। व्यापारी जब कोपाध्यक्ष पद पर पहुँच गया तब उसने अपने दूसरे दुर्गुण भी त्याग दिये और वह धर्मात्मा बन गया । अब उसकी भावना ऐसी होगई कि उसने पहले जिस जिस के यहां श्वोरी की थी उन सब का माल उन्हें लौटा दिया । इस दृष्टान्त से स्पष्ट है कि प्राचीन समय में राजा किस प्रकार प्रजा की देखभाल किया करते थे और लोगों के भाव तथा बिचार देख कर दण्ड दिया करते थे- न कि आज कल के अनुसार केवल वन्दी गृह भर देने के लिये । भारतवर्ष में एक से एक बड़े बड़े राजा, महाराजा और सम्राट् होगये हैं जिनका राज करीब सारे भारतवर्ष, अफगानिस्तान विलोचिस्तान और तिव्वत आदि देशों तक था । ( बुद्धकालीन भारत में छोटे २ प्रजातन्त्र राज्य भी थे ) इनमें दो मुख्य सम्राट् चन्द्र गुप्त और अशोक होगये हैं। अंग्रेजो के आने से पहले भारतवर्ष भिन्न २ बादशाहों, राजे, महाराजो के हाथ में बटा हुआ था । जैसे मुग़ल बादशाह, मरहठे, राजपूत, सिक्ख इत्यादि । वर्तमान समय में भारतवर्ष में अंग्रेजों का राज्य है। इनके अलावा यहाँ छोटी बड़ी कई सौ देशी रियासतें हैं। इन में से कई रियासतों के अधिकारी अपने आन्तरिक राज्य कार्य में बिलकुल स्वतन्त्र हैं जैसे मैसोर, बरोदा, इन्दौर, ग्वालियर, हैदराबाद, भूपाल और जयपुर इत्यादि । वर्तमान समय में इन देशी रियासतों की हालत अंग्रेजी राज्य के मुक़ाबिले कहीं पीछे है। अगर देशी रजवाड़ों ने उद्योग और परिश्रम किया होता तो वे उन्नति क्षेत्र में कहीं आगे होते । इस समय संसार में जो तरक्की देखते हैं वह पिछले डेढ़ सौ वर्ष में ही हुई है। जो शक्तियां निरन्तर उद्योग और प्रयत्न शील रहीं उन्होंने आज आश्चर्यजनक उन्नति करली है, जैसे अमेरिका, फ्रान्स, जर्मनी, कैनेडा, जापान, इत्यादि । यह कहावत मशहूर है किःजिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठि । हौं बौरी ढूंढ़न गई, रही किनारे बैठि ॥ अर्थात् जिन्होंने जी तोड़ परिश्रम किया उन्होंने हर प्रकार की उन्नति अथवा तरक्की की है, पर जो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे या ऐशो-आराम में व्यस्त हो रहे हैं वे जहाँ के तहाँ हैं। उन्होंने बजाय उन्नति के अवनति ही को है । जिन रियासतों ने परिश्रम किया उन्होंने बहुत कुछ तरक्की करली है, जैसे ट्रावनकोर, मैसूर इत्यादि । स्वतन्त्र शक्तियों को तो सदा अपनी स्वतन्त्रता कायम रखने और अनापसनाप खर्चे फौज व लड़ाई के समान तैयार रखने में करने पड़ते हैं। जब कि हमारे देशी रजवाड़ों को किसी क़िस्म की लड़ाई वरौरः की फिक्र नहीं होती उनको अपने धन को प्रजा केहि में लगाने का अच्छा सुभीता रहता है । स्वतन्त्र शक्तियों को तो अपनी सारी आमदनी का पच्चीस से लेकर पचास फीसदी तक खर्च केवल फौज वगैरः पर करना पड़ता है किन्तु हमारे यहाँ के देशी रजवाड़ों को फ़ौज के लिये मुश्किल से दो चार फी सदी खर्च करना पड़ता होगा, क्योंकि बाहरी रक्षा का भार इङ्गरेजी सरकार पर है । अगर कोई यह कह कि ये देशी रियासतें परतन्त्र है अर्थात्अंग्रेजों के आधीन हैं इस कारण कुछ तरक्को नहीं कर सकतीं तो उनका यह कहना सत्य नहीं है। देशी रियासतें अपने अन्दरूनी मामलों में बिल्कुल स्वतन्त्र हैं। वे जी चाहे जो स्कीम अर्थात् वाणिज्य, व्यवसाय या दस्तकारी का कार्य जारी कर सकती हैं। यह दूसरी बात है कि अपनी काहिली और कमजोरी को दूसरे के सिर मढ़ा जाय । अगर सच पूंछो तो जितना तरक्की का मौक़ा देशी रियासतों में राजाओ को है उतना वृटिश राज्य की प्रजा को नहीं हो सकता । कारण बड़े बड़े जंगल, बड़ी बड़ी खनिज पदार्थों की खानें, हर प्रकार की पत्थर की खानें और नाना प्रकार की वस्तुओं की उपज मुख्तलिफ रियासतों में होती है जैसे लोहा, कोयला, गेरू, खड़िया, इमारती पत्थर, चूना, अवरक, जस्ता, सोना इत्यादि इसके अलावा इमारती लकड़ी, हर्र, वहेरा, आंवला, महुआ, ईंधन की लकड़ी और मुख्तलिफ किस्म के सब्जी वगैरः के जंगल के जंगल पड़े हुये हैं। अगर कोशिश और परिश्रम किया जाय तो नाना प्रकार के पदार्थ खोदकर निकाले जा सकते 'सफल साधना । हैं । अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि देशो ने जो उन्नति की है वह निरन्तर परिश्रम और उद्यम का ही फल है । यह मानी हुई बात है कि परिश्रम का फल निष्फल नहीं होता । हमारे देशी रजवाड़ों के वास्ते तो वर्तमान समय एक स्वर्णहै। वे यदि अपना थोड़ा सा ध्यान रियासत को उन्नति की और दें तो बहुत कुछ कर सकते हैं। हमारे बहुत से राजा, महाराजा पढ़े लिखे व सभ्य व्यक्ति हैं। हर दूसरे चौथे वर्ष उनको यूरोप भ्रमण करने का शौक़ है पर वहाँ जाकर क्या वे खें बन्द कर लेते हैं या उनके हृदय नहीं है कि जिससे इस बात का अनुमान नहीं करते कि उनकी रियासतो की हालत एक बड़े सजे महल के मुक़ाबिले में एक टूटे फूटे झोंपड़े के सदृश हो रही है। यदि वे लोग यूरोप से कुछ सीख कर भी आते हैं तो अपने ऐश और आराम की बातें । प्रजा के हित की बातों की ओर बहुत ही कम ध्यान देते हैं। यह दूसरी बात है कि वे लोग अपनी आयु के मूल्य समय को और प्रजा के कठिन कमाई के धन को खो कर बाहरी ठाट बाट चाहे जैसा बनालें किन्तु प्रजा के लिये ठोस सुधार की योजना करना वे नहीं जानते। हमारे देशी राज्यों का कर्त्तव्य यद्यपि देशी राज्यों में उत्तरदायित्त्व पूर्ण प्रजातंत्र राज्य नहीं है और न वे पूर्णतया स्वतंत्र ही कहे जा सकते हैं तथापि एक अंश में हम उनको स्वराज्य के उदाहरण कह सकते हैं और जहां तक यह उदाहरण अच्छे बनाए जा सकते हैं वहाँ तक वे देश के लिये गौरव का विषय है । देशी राज्यों में देशी ही राजा होने के कारण शासकगरण प्रजा के रीति रिवाज, बोल चाल और रहन सहन को अच्छी तरह से समझ सकते हैं । यद्यपि देशी राज्य की प्रजा एक व्यक्ति के राज्यशासन मे होने के कारण कभी कभी यथोचित न्याय से वंचित रहती है तथापि वहाँ पर इस बात की आशा रहती है कि राजा तक यदि पहुँच हो जाय और उसकी समझ में श्रा जावे तो वह कर्मचारियों के अन्याय एक क़लम से ठीक करा सकती है। अस्तु जो कुछ भी हां देशी राजागरण यदि चाहें तो अपने अपने राज्यों में बहुत जल्दी सुधार करके सुधार के फल को वृटिश इण्डिया के सामने नमूना के तौर पर रख सकते हैं। हर्ष की बात है कि ट्रावन्कोर, बड़ौदा आदि राज्यों में ऐसा ही हुआ है । बड़ौदा मे प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य और निःशुक्ल कर दी गई है । वहाँ पर चलते फिरते पुस्तकालय आदि कई शिक्षा सम्बन्धी और भी प्रयोग हुए हैं जो कि दूसरे राज्यो के लिये आदर्श हो सकते हैं। देशी राज्यो को चाहिये कि वह अपने न्याय निष्पक्षता और उदारता से इस बात को बतला दें कि देशी शासन कितना उत्तम हो सकता है। अपने देशी रजवाड़ो के रईसों से मैं तो अनुरोधपूर्वक यही निवेदन करूँगा कि वे अपने कर्तव्य का स्मरण करें और उस पर चले अर्थात् रियासतों की हर प्रकार से उन्नति व तरक्की करें । उसी अवस्था मे वे आदर्श पुरुष कहलाये जा सकते हैं । वर्तमान समय मे तीन प्रकार की रियासतें हैं एक तो जिनके रईस यथार्थ मे उन्नति के वास्ते परिश्रम कर रहे हैं। दूसरे वे जो बाहरी दुनियाँ के वास्ते दिखावटी काग्रजी उन्नति करते हैं। तीसरे वे जिनकी अवस्था पहिले से भी खराब होती जाती है। ज्यादातर भारतवर्ष के देशी रजवाड़े काफ़ी कर्ज से दबे हुये हैं, यद्यपि उन्हें कोई बड़ी या छोटी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी है, जिसमें उनका अनाप सनाप रुपया खर्च होगया हो, उन्हें कोई बड़ी स्कीम नहीं
4082bf93fdbdd3ffc2f3889247929ab075a0afef
web
यह संपादकीय विश्लेषण Parliament stifled, business, and a word of advice लेख पर आधारित है जिसे 5 सितंबर 2020 को PRS Blog में प्रकाशित किया गया था। यह लोकतंत्र में संसद की भूमिका के संकुचन का विश्लेषण करता है। 14 सितंबर से जारी संसद का मानसून सत्र, कोरोना वायरस महामारी के दौरान विधायिका द्वारा विचारणीय मुद्दों का द्योतक है। विधि निर्माताओं और विधायिका में काम करने वाले कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को बनाए रखते हुए ये निकाय लोकतंत्र में अपनी केंद्रीय भूमिका कैसे निभाते हैं? कई राज्यों ने बहुत कम सत्र आयोजित किये हैं - कुछ सिर्फ एक दिन के लिये आयोजित हुए हैं- जिसमें उन्होंने कई अध्यादेशों को मंज़ूर किया है और शायद ही पिछले कुछ महीनों में कार्यपालिका के किन्हीं भी कार्यों पर प्रश्न उठाए गए हैं। संसद शारीरिक दूरी की पालन करेगी, शून्य काल (जिसमें सदस्य अपने निर्वाचकों एवं व्यापक जनहित के मुद्दे उठाते हैं) को रद्द कर दिया गया है और प्रश्न काल (जिसमें मंत्रियों को सदस्यों द्वारा उठाये गए प्रश्नों का उत्तर देना होता है) को भी रद्द कर दिया गया है। सरकार के पास निर्णय लेने एवं विभिन्न सार्वजनिक कार्यों को करने का जनादेश होता है। यह विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है जो इस पर सवाल उठा सकती है और एक विशेष स्थिति में, यहाँ तक कि इसे परिवर्तित भी कर सकती है। विधायिका नियमित चुनावों के माध्यम से नागरिकों के प्रति जवाबदेह होती है और यदि इसके कानून एवं नीतियाँ जनता के लिये लाभकारी नहीं समझी जाती हैं तो इसे मतदान के माध्यम से हटाया जा सकता है। अंत में, संवैधानिक न्यायालयों से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि सभी कार्य संविधान की सीमाओं के भीतर किये गए हैं और विधायिका द्वारा बनाए गए कानून भी संविधानसम्मत हैं। एक उदाहरण ब्रिटिश संसद के कार्यों और हमारी संसद के मध्य अंतरों का वर्णन करता है। जब एक कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग एप्लिकेशन के विचार की कल्पना की गई थी, तब ब्रिटेन की मानवाधिकारों पर संयुक्त संसदीय समिति ने प्रस्तावों की जाँच की। मई की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट "मानवाधिकार और COVID-19 पर सरकार की प्रतिक्रियाः डिज़िटल कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग" में, इसने सिफारिश की कि एक ऐप का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब इसे सक्षम बनाने के लिये एक विशिष्ट प्राथमिक कानून हो, और ऐसा कानून यह सुनिश्चित करे कि डेटा केवल COVID-19 के प्रसार को रोकने के सीमित उद्देश्य के लिये एकत्र किया गया है, डेटा को तृतीय-पक्ष के साथ साझा करने पर रोक लगाई जाए, डेटा को केवल एक केंद्रीय डेटाबेस में तभी अपलोड किया जाए जब व्यक्ति की कोरोना जाँच पॉज़िटिव हो अथवा पॉजिटिव होने का संदेह हो और डेटा संग्रहित करने के लिये समय सीमित किया जाए। इसका उत्तरदायित्व संभालने वाले मंत्री को प्रत्येक 21 दिनों में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की प्रभावकारिता के साथ-साथ डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसके विपरीत, भारत ने कार्यकारी निर्णय के माध्यम से आरोग्य सेतु एप की शुरुआत की, और इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की कि क्या यह अनिवार्य है (उदाहरण के लिये, हवाई यात्रा के दौरान, या मेट्रो रेल यात्रा के दौरान)। यह सब एक विशिष्ट कानून या किसी संसदीय निरीक्षण के बिना किया गया है। वास्तव में, संसदीय निरीक्षण पिछले छह महीनों के दौरान बड़े पैमाने पर हुआ ही नहीं हैं। 175 दिनों के बाद संसद की बैठक होगी, आम चुनाव के हस्तक्षेप के बिना संसदीय बैठक न होने की यह सबसे लंबी अवधि है और छह महीने की संवैधानिक सीमा से बस थोड़ी ही कम है। संसदीय समितियों की लगभग चार महीने तक बैठक नहीं हुई थी, और उसके बाद केवल व्यक्तिगत बैठकें हुईं हैं जिनमें जोखिम और यात्रा प्रतिबंध को देखते हुए कम उपस्थिति दर्ज़ हुई है। वहीँ इसके विपरीत कई अन्य देशों में अधिवेशनों एवं समितियों दोनों ने सदस्यों को घर से ही इनमें भाग लेने में सक्षम बनाने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाया है। इस अवधि में, 900 से अधिक केंद्रीय एवं लगभग 6,000 राज्य सरकार की अधिसूचनाएँ जारी की गई हैं जो महामारी के प्रबंधन से संबंधित हैं। यह अन्य विषयों पर सूचनाओं के अतिरिक्त है। एक कामकाजी संसद या समितियों की अनुपस्थिति का अर्थ है कि सरकारी कार्यों की कोई जाँच या मार्गदर्शन नहीं किया गया है। जब संसद की बैठक हो तो संसद को संकट के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया को देखना चाहिये। हालाँकि, ऐसा करना एक सतत् मार्गदर्शन तंत्र के बजाय पोस्टमार्टम विश्लेषण अधिक होगा। यह "कम कीमत पर खरीदें, उच्च कीमत पर बेचें" की पुरानी स्टॉक मार्केट की सलाह की तरह है, जो कि निवेश निर्णय लेने में किसी का उचित मार्गदर्शन नहीं करती है। चीजें अनुरूप नहीं होती हैं तो किसी के पास नुकसान उठाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता है। कई नीतिगत मुद्दों में न्यायिक हस्तक्षेप से संसदीय निरीक्षण की कमी को पूर्ण किया गया है। उदाहरण के लिये, सरकार द्वारा लॉकडाउन से संबंधित कार्यों और प्रवासियों को होने वाली कठिनाइयों पर संसद द्वारा प्रश्न उठाये जाने चाहिये थे। संसदीय मंचों की चर्चाओं से सरकार को देश भर में ज़मीनी हालात पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने और सरकार को उनके अनुरूप कार्य करने में सहायता मिलती। हालाँकि, इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया, जो नीतिगत विकल्पों को संतुलित करने के लिये प्रथम स्थान नहीं है। हालाँकि न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाना चाहिये जो कार्यान्वयन के साथ विकासशील मुद्दों से निपटने के लिये आवश्यक कमियों को दूर करते हैं। एक और उदाहरण लेते हैं जिसमें न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को सरकार को बकाया चुकाने की अवधि को सीमित करने का फैसला किया है और कैबिनेट के एक फैसले को खारिज कर दिया। यह एक नीतिगत मामला है जो दूरसंचार कंपनियों, उपभोक्ताओं (जो मूल्य वृद्धि या संभावित एकाधिकार होने से प्रभावित होते हैं), और बैंकों (जो दूरसंचार कंपनियों द्वारा डिफॉल्ट का सामना कर सकते हैं) के हितों को संतुलित करता है। इस मुद्दे को सरकार द्वारा संसद के निरीक्षण के साथ सबसे अच्छी तरह से निपटाया जा सकता है। हाँ लेकिन यदि यह अवैध ( या इसमें भ्रष्टाचार कहें) है, तो इस मामले को अदालतों द्वारा निपटान किया जाना चाहिये। संसद को अपनी संवैधानिक रूप से अनिवार्य भूमिका को पुनः प्राप्त करना चाहिये। इसके पास 18 दिन के छोटे सत्र में चर्चा करने के लिये बड़ी संख्या में मुद्दे हैं। दोनों सदन एक ही भौतिक स्थान का उपयोग करने के लिये पालियों में काम कर रहे हैं जो किसी दिन विस्तारित बैठक के दायरे को सीमित करता है। अंतिम सत्र के बाद की अवधि में, सरकार ने 11 अध्यादेश जारी किये हैं। इनमें से पाँच COVID-19 संकट और लॉकडाउन से संबंधित हैंः कर देने की की तारीखों का आगे बढ़ाने, नए दिवालिया मामलों पर स्थगन, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये सुरक्षा, संसद सदस्यों एवं मंत्रियों के वेतन और भत्तों में अस्थायी कटौती। अन्य छह में से, दो होम्योपैथी और चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों को विनियमित करने वाली परिषदों के बोर्डों के अधिपत्य से संबंधित हैं, एक भारतीय रिज़र्व बैंक को सहकारी बैंकों को विनियमित करने की अनुमति देता है (एक समान विधेयक संसद में लंबित है), और तीन कृषि बाज़ारों से संबंधित हैं (अनुबंध खेती और मंडियों के बाहर व्यापार की अनुमति)। हालाँकि COVID-19 से संबंधित अध्यादेशों का एक अस्थायी अनुप्रयोग है, संसद को विस्तृत जाँच के लिये संबंधित समितियों को दीर्घकालिक निहितार्थ वाले (जैसे कि कृषि एवं बैंकिंग से संबंधित) मुद्दों को संदर्भित करना चाहिये। पिछले छह महीनों में कई आयोजन हुए हैं, जिन पर गहन चर्चा की आवश्यकता है। इसमें कोरोना वायरस के प्रसार से निपटने और मृत्यु दर को सीमित करने के तरीके शामिल हैं और आने वाले महीनों में संभावित मार्ग जो विशेष कार्रवाई को निर्देशित कर सकते हैं। आर्थिक वृद्धि, जो पिछले दो वर्षों से घट रही है, इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसमें भारी गिरावट आई है। इससे रोज़गार सृजन, बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और सरकारी वित्त के लिये दूरगामी प्रभाव पड़े हैं। सरकार के अनुपूरक बजट लाने की संभावना है; वास्तव में, जनवरी से बुनियादी पूर्वानुमानों में परिवर्तनों को देखते हुए केंद्रीय बजट पर एक नई दृष्टि डालने की आवश्यकता है। चीन सीमा पर स्थिति की भी चर्चा किये जाने की भी आवश्यकता है। प्रश्न काल की अनुपस्थिति और एक लघु शून्य काल संसद सदस्यों को सरकार की जवाबदेही रखने और सार्वजनिक हित का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता को प्रतिबंधित करता है। संसद के सदस्यों को अन्य उपलब्ध विकल्पों का उपयोग यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नए कानूनों और व्यय प्रस्तावों को विस्तृत चर्चा के बाद ही पारित किया जाए। सांसदों का कर्तव्य है कि वे भारतीय नागरिकों के प्रति सरकार के काम की जाँच करने और नीति का मार्गदर्शन करने में अपनी भूमिका को पूर्ण करें। कोरोना वायरस की वजह से लघु सत्र एवं बाधाओं के बावज़ूद, उन्हें ऐसा करने के लिये सीमित समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना चाहिये। उन्हें हमारे लोकतंत्र में अपनी सही भूमिका वापस लाने की आवश्यकता है। मुख्य परीक्षा प्रश्नः COVID-19 महामारी ने किस प्रकार लोकतंत्र में संसद की भूमिका को प्रभावित किया है? COVID-19 के परिप्रेक्ष्य में संसद के विधायी अधिकारों की महत्ता को बनाए रखने के लिये कुछ नवाचारी कदमों की चर्चा करें।
843c221f65574474fb34ee6c8cc2d612bafaf6e0adf535b18ffefc80ce23a65e
pdf
निर्जरा मोह मार्ग है, और सम्पूर्ण निर्मल पयायका प्रगट होना सो मोक्ष है। ऐसे नवतत्व के विकल्प राग मिश्रित हैं, तथापि ऐसे मेद करके, व्यवहार धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति के लिये समझाया जाता है। रूप को समझते हुए और उसमें स्थिर होते हुए बीच में शुभविकल्प का व्यवहार आता है, सो वह व्यवहार धर्मतीर्थ है, इतना ही नहीं, किंतु समझकर स्वरूप में स्थिर होना मी व्यवहार धर्मतीर्थ है। किन्तु वह व्यवहार परिपूर्ण निर्मल पयाय प्रगट होनेसे पूर बीचमें आता अवश्य है, इसलिये व्यवहार समझाया जाता है। परिपूर्ण अखड द्रव्य दृष्टिके विषय में ऐसे भेद नहीं होते। व्यवहार है तो अवश्य, यदि वह न हो तो उपदेश देना ही व्यर्थ सिद्ध होगा । आत्मामें मलिन अवस्था होती है, उसे दूर किया जा सकता है। साधक व्यवस्था है, धक अवस्था है, और अपूर्ण अवस्था है, उसे पूर्ण किया जा सकता है। अशुभ परिणामको दूर करने के दिये निम्न भूमिका में शुभ परिणाम आते हैं, कि शुद्ध दृष्टि के बल से रूप में स्थिर होने पर शुभ परिणाम भी दूर हो जाते हैं। पुरुषार्थ के द्वारा मोक्ष मार्ग में ज्ञान, दर्शन, चारित्र की व्यवस्था साधी जाती है, इत्यादि भेदोंको व्यवहारनय बताता है, इसलिये व्यवहारनयका बताना याय सगत है । व्यवहार है अवश्य, किंतु वह वर्तमान मात्रके लिये है, निकाल नहीं है। अनन्त गुर्गोंसे परिपूर्ण आत्मा निकाल है, निकाली अर्थात् समस्त नय एकत्रित करके त्रिकाली अखण्ड हो हो ऐसा नहीं है वह जैसे वर्तमान में परिपूर्ण अखड है वैसा ही त्रिकाल परि पूर्ण अखण्ड है, इसलिये श्रात्मा त्रिकाल है, आत्मा वर्तमान में ही परिपूर्ग अखण्ड है, ऐसा विषय करने वाली दृष्टि परमार्थदृष्टि है। जो व्यवहार है सो वर्त मान एक समय पर्यंत ही है, वह बदल जाता है, इसलिये अभूतार्थ है, इसलिये व्यवहारनय आदरणीय नहीं है । व्यवहारनय, व्यवहारनयसे आदरणीय है, किंतु वह आत्मामें निकाल स्थायी भान नहीं है। यह व्यवहारनय परमार्थ दृष्टिसे चादरणीय नहीं है। मलिन अवस्था और निमल अवस्था तथा अपूर्ण अवस्था और पूर्ण व्यवस्थाका परिपूर्ण दृष्टि में स्वीकार नहीं है, वह दृष्टि उसे स्वीकार नहीं करती, उसका आदर नहीं करती। व्यवहार है वैसा ज्ञान में ओबाजीबाधिकार गाया ४६ जानना सो यवहारमय है । निम्न भूमिका में बीच में निमित्त आये बिना नहीं रहते, अशुभ परिणामों को दूर करने के लिये शुभ परिणाम आये बिना नहीं रहते, भपूर्ण अवस्था और पूर्ण व्यवस्था का भेद हुए बिना नहीं रहता, इसलिये व्यवहार है, अवश्य । अनादिमिथ्यादृष्टि को सम्यक् दर्शन प्राप्त करने के लिये साक्षात् चैत यमूर्ति देवगुरु के अपून वचन एकबार कान में पड़ना चाहिये, ऐसा निमित्त नैमित्तिक सम्ब व है । जहाँ सत् को समझने की जिज्ञासा जागृत होती है, वहाँ ऐसे निमित्त मिल जाते हैं । जो निमित्त मिलते हैं सो निमित्त के कारण मिलते हैं, और जो समझता है सो अपने कारण से समझता है । निमित्त विना समझा नहीं जाता, किन्तु वह मी सच है कि निमिचसे समझा नहीं जाता । एकवार सत्वचन कान में पड़ना चाहिये । सम्यकुदर्शन प्राप्त करने के बाद भी जबतक अपूर्ण अवस्था है, तब तक साधक जीवों के वर्म मिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं इसलिये उनके उदय मी मिन्न प्रकार के होते हैं । राग मिन्न २ प्रकार का होता है और राग के निमित्त भी भिन्न प्रकार के होते हैं। राग के अनुसार निमित्त का सयोग हो तो रागके निमित्त मी मिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे प्रतिमा, दर्शन, स्वाध्याय, दान, पूजा, मक्ति इत्यादि । चतुर्थ पचम और छुटे गुणस्थान के अनुसार अमुक मर्यादा तक राग का उदय होता है। उसमें चतुर्थ पचम गुणस्थानवर्ती समस्त साधक जीनों के राग का उदय एकसा नहीं होता, किन्तु अनेक प्रकार का होता है, और निमित्त मी अनेक प्रकार के होते हैं । तथा छठे गुणस्थानवर्ती समस्त साधक मुनियोंके रागवा उदय एक्सा नहीं होता किंतु अनेक प्रकारका होता है और उनके निमित्त भी अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे स्वाध्याय, उपदेश, शास्त्र रचना, भगवानका दर्शन, स्तुति, अभिग्रह ( वृत्तिपरिसरया) इत्यादि मिन्न २ प्रकार के शुभभाव होते हैं और तदनुसार उसके उदय के अनुकूल बाह्य निमित्त भी मिन्न २ प्रकार के होते हैं । चैतय की अवस्था में शुभराम १८४ ] का उदय खाता है किन्तु उस शुभराग के अनुसार निमित्त का सयोग होना या न होना पुण्याधीन रहता है। जैसे साक्षात् सीमघर भगवान के दर्शन करने की भावना है, किन्तु उसका सयोग मिलना पुण्याधीन है। ज्ञानी के निमित्त है, राग है, उसका ज्ञान है, किंतु वह आदरणीय नहीं है । यदि कोई कहे कि यात्मा अरेला ही है और कर्म सर्वथा पृथक् ही है, कर्म और आत्मा का कोई भी सम्बन्ध नहीं है, तो फिर बध मोक्ष कहाँ रहा ? विकार कहाँ रहा है और उसे नाश करना भी कहाँ रहा ? इसलिये आत्मा और कर्म का सम्बन्ध है । आत्मा के साथ कर्मका निमित्त है --कर्मका व्यवहार है, किन्तु उसे आदरणीय माने या लाभदायक माने तो वह मिथ्यादृष्टि है। यदि व्यवहारनय से भी आत्मा के साथ कर्म का सबध न हो तो दुग्न कहाँ रहा है और दुख को दूर करने के लिये पुरुषार्थ करने की भी आवश्यकता कहाँ रही है इसलिये यदि सबध न माना जाये तो वह कुछ भी नहीं रहता। पराश्रय भाव के होने में निमित रूपसे कर्म का सबध है किन्तु निथय से कर्म का सबध आत्मा में नहीं है। और ऐसा मी नहीं है कि कर्म भात्माको रागद्वेष कराते हैं। यदि कर्म आत्मा को राग द्वेष कराते हो तो कर्म और आत्मा दोनों एक हो जायें, किन्तु ऐसा नहीं होता । स्वय विपरीत दृष्टि के द्वारा राग द्वेषरूप विकार भाव में युक्त हो तच कर्म निमित्त रूप होते हैं, इसे जानना सो व्यवहारनय है । यदि व्यवहारनय न दिखाया जाये तो परमार्थत जीव शरीर से मिन्न बताया जाता है, इसलिये जिस प्रकार भस्म को मसल देने में हिंसा का समाव है उसी प्रकार यस स्थावर जीनोंको भस्मकी भाँति नि शकतया मर्दन कर देने में भी हिंसा का अभाव सिद्ध होगा, और इससे बधका ही भाव हो जायेगा । परमार्थ की भाँति व्यवहार से भी आत्मा और शरीर से कोई सम्बध न हो तो फिर जैसे राख को मसल देने से हिंसा नहीं होती इसी प्रकार यस स्थावर जीपों को भी मसल देने से हिंसा नहीं होगी, किन्तु ऐसा नहीं है । शरीर में रोग होता है सो उस रोग का दुख नहीं होता, किन्तु उस रोग के प्रति जो द्वषभाव है उसका दुख होता है, उस द्वेष का जीवापीवाधिकार गाया ४६ ओर रोगका निमित्त सैनित्तिक सबध है । जैसे परमार्थन शरीर से आत्मा सर्वथा भिन्न है, उसी प्रकार यदि व्य इसे भी शरीर और कोई भी ध न माना जाये और शरीर तथा आत्मा सन्था सम्बन्ध रहित मिन हो तो नम स्थानर जीवों को मार डालने के भाव और प्रस्तुत मरनेवाले वस स्यावरrा निमित्त दोनों सिद्ध नहीं होते। मरनेवाल जीत्रको शरीर पर राग है, इसलिये उस राग करया शरीर के अलग होने समय दुग्व होता है। यदि शरी के साथ यात्माकी वैमानिक पर्यायका कोई सम्बन्ध न हो तो शुगरत्रे मनग होते समय दुख न हो, इसलिये संग्ध न माने तो निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध सिद्ध नहीं होना । जैसे परमाथत शरीर और आला भिन्न हैं, कम और आत्मा मिन है इसीप्रकार यदि व्यवहारसे मी शरीर और आत्मा तथा कम और मामाका कोइ भी सधन हो तो मारनेवाल जीनकी जीवको मारने या दुःख देने के मार ही न हो। मरनेवाले जीवो अपने शरीर पर राग है, इसलिये यदि कोई उसे मारता है तो उसे दुग्व होता है, इसलिये रागमें और दु खमें शरीरका निमित्त है, और राग होता है इसलिये कर्मका मी निमित्त है । यदि कर्मा निमित्त न हो तो राम श्रम स्वमाव हो जाये इसलिये रागके होने की उपस्नेि होती है । यदि रागमान और शरीर तथा कर्म और रागा निमित्त -नैमित्तिक मध ही न हो, तो मरन्याले जीवको दुःख ही न हो 1 मारनेवाल जीनोमी द्वेष भाव और अपने शरीरका तथा द्वेषभाव और धर्मका व्यवहार से भी पोइन हो तो दूसरे जीवको मारनेका मात्र ही न हो । मारनवाले जीवके उसके द्वेषभाव थोर शरीरका सम्बन्ध है, तथा उसके मात्रै प्रदेशोंके ग्न और शरीरका कक्षेवगाह सम्बध है, इसीप्रकार मरनेवाले जीतके भी रागमात्र और शरीका सवध है, उसने आत्मा प्रदेशोंके कम्पन और शरीरका भी एक्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध है, जब तू ऐसे सम्बधको लक्ष लेना दे तर मारनेकी वृत्ति उत्पन होती है । मारनेवाले को सका ज्ञान नहीं है, यह तो शरीरको ही भात्मा १८६ ] मानता है, किंतु मारनेकी जो वृत्ति होती है, उसमें सबध था जाता है । उपरोक्क सबके व्यवहार सम्बन अर्थात् निमित्त नैमित्तिक साध है तो मारनेके भार होते हैं, इसलिये बन्ध भी होता है। जैसे भस्मको मसल देनेमें ब धका श्रमार है वैसे वे नहीं है, कितु वध होता है, और इसलिये ससारमें परिभ्रमण करता है। यदि ऐसा व्यवहार सबध न माने तो संसार, मोक्ष, मोक्षमार्ग इत्यादि कुछ भी सिद्ध नहीं होगा। यदि परमार्थ दृष्टि से देखा जाये तो शरीर और आमा वस्तुत मिन्न २ ह, रस्तुस्वभावसे राग द्वेष और आत्मा भिन्न भिन्न हैं, कर्म और आत्मा भिन्न मिन हैं, किन्तु यदि कोई भी सबध न हो तो उसका शरीर पर लक्ष न जाये और राग द्वेष न हो । यदि कर्म और आत्माकी पयायका व्यवहारसे भी कोई सब धन हो, तो राग द्वेप और कर्मका निमित्त - नैमित्तिक मंचन भी न हो, और उसमे सिजनके मारनेके विकारी भाव भी न हों, तथा बध भी न हो । भार डालनेका जो भाव होता है सो कर्मके अश्र से होता है। किसी जीत्रको मार डालू और उसे दुग्व होता है, ऐसी पना हुए बिना मारनेके भाव होंगे ही नहीं । यदि आत्मा में राग द्वेष सर्वथा होते ही न हों तो आत्मा सर्वथा निमल हो, किंतु ऐसा नहीं है, क्योंकि मलिनता तो दिखाई देती है, इसलिये आत्मा राग द्वेष करता है। राग द्वप और आत्माका वर्तमान पर्याय से सम्बध है । यदि सम्ब व ही न हो तो किसी जीव को मारने से उसे दुख न हो, और अपना मार डालने का मात्र भी न हो । शास्त्रों में पराश्रय का कथन मी है और स्वाश्रय का मी कथन है । यदि उन दोनों की सघि करके दोनों में विनेक न करे तो समझ में नहीं आ सकता । यदि दोनों के अतर का अभ्यास करके विवेक न करे तो समझ में नहीं सकता । वास्तव में तो उपकार अपनी यथार्थ समझका है, निमित्त का उपकार कहना तो व्यहार से है। यदि विपरीत भाव में कर्मकी उपस्थिति न हो तो दुख नहीं हो सकता । यदि दुख के समय शरीर में रोग न हो तो दुख और द्वेप नहीं हो सकता है ऊपर जैसे हिंसा की बात कही है, उसी प्रकार झूठ, चोरी, कुशील थोर परिग्रह, इत्यादि के भात्रों के सम्बन्ध में मी समझ लेना चाहिये । शरीर, वाणी, कम और आत्मा की वैभाविक पर्याय का निमित्त नैमित्तित्र सम्बध है। यदि सत्य बोलने के भाव हों तो वाणी सत्य बोलने में निमित्त होती है, किन्तु ऐसा नहीं हो सकता कि सत्य बोलने के मात्र हो और वाणी असत्य बोलन के रूप में निमित्त हो । जैसे भाव होते हैं, उसी प्रकार निमित्त परिणमित होता है । जिसने वास्तव में माँस का त्याग कर दिया है, उसके शरीर की किया मांस खाने की नहीं हो सकती- एसा सम्बध है, कहे कि हमारे अमुरवस्तुका त्याग है, कि तु उसके खाने की किया बना हुई है, तो यह बात साधा मिथ्या है, वह वस्तुस्वरूप को नहीं समझा है, और मात्र बातें बताना जानता है, उसे धर्म प्रगट नहीं हुआ है वितु वह मिथ्या प्रकार से यह बताता है कि मुझे धर्म प्रगट हुआ है । जिसके ब्रह्मचर्य का भार प्रगट हुआ है, उसके पास रूपसे शरीर का निमित्त नहीं हो सकता ऐसा सम्बध है । अतरग में तो ब्रह्मचर्य का भाव प्रगट हो गया हो और बाहर से विषय सेवन करता हो ऐसा नहीं हो सकता। यदि कोई यह कहे कि हमें अतरग में तो ब्रह्मचर्य का भाव प्रगट हो गया है, किंतु बाहर से विषय सेवन करते हैं तो ऐसा बहने वाले सर्वथा झूठे हैं, उहें धर्म प्रगट नहीं हुआ, किन्तु वे मिथ्या प्रकार से अपने को धर्म प्रगट होना बतलाते हैं। शुभाशुभ भाव के साथ शरीर वाणी और कमका निमित्त नैमित्तिक सबध है । गृहस्थाश्रम में स्थित चक्रवर्ती के श्रद्धा और ज्ञान से सर्व विषयों का त्याग है । पर पदार्थ में कहीं भी सुखनुद्धि भासित नहीं होती । सुख हो तो मेरे आत्मा में हैं, एक रजकण भी मेरा नहीं है, यदि इसी क्षण वीतराग हुआ जाता हो तो मुझे यह कुछ नहीं चाहिये, एसी भावना विद्यमान है । क्या किया जाये पुरुषार्थ की शक्ति के कारण यहाँ रह रहा हूँ, यदि इसी क्षण पुरपार्थ जागृत हो जाये तो मुझे कुछ नहीं चाहिये, एसी भावना करता हुआ वह राजनैभव में बैठा हुआ अपने यो विष्टा के ढेर पर बैठा हुआ
67ff244a7e977081342e8dd11916522a5cff16b8
web
भाई के कहे शब्दों से मुझे लोगों से घुटन होने लगी, ऐसा लगने लगा मानो जैसे यह जिंदगी चुभ सी रही हो, इसलिए में क्लास से जितना तेज़ चल सकता था उतनी तेज़ से चलते हुए में कॉरिडोर से निकला और सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर जाने लगा।मै तब तक सीढ़िया चढता गया जब तक मुझे सामने गेट नहीं दिख गया, मैंने गेट खोला और कुछ कदम बड़ा की में उस सुकुन में आ गया जो सुकुन मुझे ये कुदरत देती थी। मेने एक लंबी सांस छोडी, ठंडा हवा मेरे चेहरे पे पढ़ रही थी, में धीरे धीरे चलता हुआ आगे बड़ा और हर बार की तरह छत पे पैर लटकाकर बैठ गया और सामने आंखों से बहुत दूर......पर दिल के बेहद पास उन कुदरत के नजारे को देखने लगा। क्यूं वो अपने ही हमें अपनी जिंदगी से बेगाने कर जाते हैं?" मैं बस इतना ही लिखा पाया, इतना ही... पेन को वही डायरी के बिच में रखा और उसे बैग में डाल दिया।सामने धीरे-धीरे पहाड़ों के ऊपर चढ़ी बादल की परत हवा से आगे बढ़ रही थी, उसे देखते हुए आभास हो रहा था कि धीरे-धीरे वक्त बढ़ रहा था, पर मेरी जिंदगी नहीं,जैसे जिंदगी आज भी कही वक्त के उन अतीत के पन्नो में रुकी हुई है जिसे मैं अभी तक नही जानता। घर पहुंचते पहले शाम हो गई ,जब अंदर हॉल में पहुंचा तो वहां कोई नहीं था। मैं भी चुप - चाप अपने कमरे में चला गया। बैग टेबल पे रखते हुए कुर्सी पे अपना चश्मा उतार कर आंखें बंद कर के बैठ गया। भाई की कही बातें अभी तक मेरे कानो में गूंज रही थी तभी मुझे अपने सर पर कोमल हाथ महसूस हुआ़ जो मेरे सर को प्यार से सहला रहा था "अपको कैसे पता में आ गया..." में सीधे बैठते हुए कहा। "तुम्हे पहचाने के लिए मुझे आंखो ज़रूरत नही है बस एहसास ही काफी है " कहते हुए शिल्पा श्रेयस के बगल में बैठ गई और उसे खाने से भरी प्लेट सामने टेबल पे रख दी,शिल्पा की बात सुनकर श्रेयस ने कुछ नहीं कहा बस एक गहरी सोच में डूब गया। शिल्पा कुछ देर तक श्रेयस के चेहरे को देखती रही उसके बाद श्रेयस के सर पर हाथ रखते हुए कहा "क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान लग रहा है" शिल्पा की बात सुनकर श्रेयस होश में आया और उसे देखने लगा,शिल्पा इस वक्त उसकी आँखों के पीछे छुपी हुई परेशानी देख रही थी और ये बात श्रेयस अच्छी तरह समझता था इसलिए उसे फौरन अपनी नजरें हटा ली "ना...नहीं मां.....कुछ नहीं...." वो कुछ देर पल मेरे चेहरे को देखती रही "हम्म ठीक है.....खाना खा ले फिर" मां ने प्लेट हटाते हुए कहा। "नहीं.....माँ आज भूख नहीं है" कहते हुए में बैग से समान निकलने लगा, क्यूं की में मां से ज्यादा बात नहीं करना चाहता था वजह सिरफ यही थी की वो सब कुछ समझ जाएगी और उसके बाद मैं उनको तकलीफ में नहीं देख पाऊंगा "क्या हुआ है श्रेयस?" शिल्पा ने आखिर श्रेयस को यूं बेचेन होते हुए देखा तो वो समझ गई की कोई बात है जो वो उससे नहीं बता रहा "कुछ भी तो नहीं माँ, वो बस मेरी स्केच वाली पेंसिल नहीं मिल रही तो वही ढूंढ रहा हूं,पता नहीं कहा रख दी मेने "इतना कहते हुए मेरा गला साथ छोड़ रहा था और मेरी आंखे भी भारी हो रही थी "अब तू अपनी मां से भी झूठ बोलेगा" जैसे ही मां की ये बात कानो में पड़ी तो मैंने अपने बैग से नज़र हटा के उनकी तरफ देखा, तो उनके हाथ में वही पेंसिल थी। पर मेरी नज़र उस पेंसिल पे नहीं उनकी चेहरे पे गई, उनकी आँखों पे गई जिसमे मुझे दुख साफ दिखा दे रहा था....में कुछ कहता उससे पहले मां ने वो पेंसिल टेबल पे रख दी और उठ के जाने लगी..... में कुछ पल उस पेंसिल को देखता रहा लेकिन अपने आप को नहीं रोक पाया में अपनी आंखें बंद कर ली और ना में गर्दन हिलाने लगा। "क्या अनाथ होना इतना बड़ा गुना है माँ?" श्रेयस ने काफी मुश्किल से बैठे गले से अपनी बात कही, उसकी बात सुनते ही शिल्पा के कदम वही रुक गए वो एक दम से मुड़ी और श्रेयस को देखने लगी और देखते ही देखते उसकी आंखों से आंसू ऐसे छलक आया जैसे उनके दिल को बहुत बड़ी ठेस पहुंची हो शिल्पा धीरे धीरे चलते हुए श्रेयस के पास आई और उसके सिर पर अपना हाथ रख दिया, शिल्पा के हाथ का स्पर्श होते ही श्रेयस ने अपनी आंखें खोली और उसकी तरफ देखा, तो उसकी आंखों से भी आंसु का एक कतरा निकला, जो उसके चेहरे से फिसलते हुए नीचे गिर गया। "अगर में अनाथ हुं तो इसमे मेरा क्या कसूर है मां, मेरी क्या ग़लती है?" कहते हुए मेरी सांसें भारी हो रही थी, में मां से नजर नहीं मिला पा रहा था लेकिन इस बात का जो एक गम था वो आंखों से निकल के पलकों को भीगो रहा था......मेरी बात सुनते ही मां ने अपने दोनो हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और उप्पर की तरफ उठा के मेरी आंखों में देखने लगी। "किसने कहा तुझसे श्रेयस बता मुझे" कहते हुए मां की आंखों में दर्द और गुस्सा एक साथ दिख रहा था और वो दर्द आंसू के रूप में छलक आया। में अच्छी तरह समझ रहा था,जितनी तकलीफ मुझे हो रही है उससे कहीं ज्यादा तकलीफ इस वक्त मां को हो रही होगी, मैं उन्हें ऐसे रोते नहीं देख पाया और अपनी नजरें झूका ली। "हर्ष ने कहा है ना?" उन्होंने थोड़ी रूखी आवाज़ में कहा तो मेंने ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा "नहीं... मां... भाई ने कुछ नहीं कहा" मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाकर मां के चेहरे पे आए आंसू हटा दिया, "आप मत रोइए प्लीज" में खड़ा हुआ और मां को कुर्सी पर बैठाकर घुटनो के बल जमीन पर बैठा और उनकी की गोद में अपना सर रख दिया। "मेने तुझे इन्हीं हाथों से पाला है, तुम्हें मेरे प्यार में कभी कोई फर्क दिखाई दिया तो तू यह बात कैसे कह सकता है? "कहते हुए माँ मेरे बालो को सहलाने लगी, में कुछ नहीं बोला बस ऐसे ही बैठा रहा, आंखों से ना जाने क्यों खुद ब खुद आंसू निकलकर मां की गोद में गिर रहे थे। "तू मेरा बेटा है, मेरी जिंदगी का वो हिस्सा जो मुझे अपनी जिंदगी से भी प्यारा है" शिल्पा ने रुआंसे गाले से कहा और उसके बालों को सहलाने लगी, उसकी आँखों में एक अज़ीब से दर्द की तकलीफ़ थी,जो उसकी आँखें में भरी थी पर बहार नहीं आ रही थी। "माँ......क्या में थोड़ी देर ऐसे ही बैठा रहूँ" में हटना नहीं चाहता था। मां की गोद से क्यों की में जनता था बहुत कम होते हैं ऐसे जो मां के इस प्यारे एहसास को अपनी जिंदगी में बटोर पत्ते हैं, मां तो कुदरत का वो तोहफ़ा है जो शायद खुद कुदरत के पास नहीं है ,आज एक बार फिर मां के इस सुकुन भरे एहसास ने दिल के सभी गमो को बटोर लिया और मुझे अपनी ममता की चादर में ढक दिया पता ही नहीं चला की कब तक में ऐसे उनकी गोद में ऐसे ही सर रखके बैठा रहा। कुछ देर तक मैं ऐसे ही बैठा रहा, उसके बाद उठकर बेड पर जाकर सो गया मां कुछ देर तक ऐसे मेरे माथे को सहलाती रही और मैं कब नींद के आगोश में को गया मुझे पता ही नही चला। "उन्न...उन क्या हुआ" मिलन की तरफ देखते हुए मेने उससे पूछा... लेकिन उसने आंखों से इशारा किया की सामने देख, जब मैंने सामने देखा तो मिस. मुझे ही देख रही थी। "श्रेयस आर यू ओके?" उन्होंने मुझसे पूछा तो मेने हां में गर्दन हिला दी.... "अच्छा तो श्रेयस Answer दो मेरे Question का"मिस. के कहते ही में ब्लूप्रिंट की तरफ कुछ मिनट तक देखता रहा। "मिस लेफ्ट कॉर्नर का जो रूम है वहां पर" मैंने अपना जवाब दिया.. "नहीं.....मिलन तुम" डायना ने सवाल को मिलने की तरफ फॉरवर्ड किया। "मिस. उप्पर राइट कॉर्नर" मिलन के आंसर देते ही डायना के चेहरे पे स्माइल आ गई, "राइट, एब्सोल्यूटली राइट, एक्सीलेंट मिलन" डायना के कहते ही मिलन के चेहरे पे एक बड़ी सी स्माइल आ गई।मैं कभी मिलन की तरफ देखता तो कभी ब्लू प्रिंट की तरफ, ये एक ऐसी चीज जिसको में कैच अप नहीं कर पा रहा था, मैं इस पॉइंट में थोड़ा वीक था। आख़िर एक और दिन कॉलेज का ख़तम हो गया, मैं मिलन और श्रुति के साथ मेट्रो स्टेशन तक आ गया फिर वो दोनो अपने अपने प्लेटफॉर्म की तरफ निकल गए और में अपनी मेट्रो लाइन की तरफ चल दिया, चलते हुए में सोच में डूबा हुआ था की तभी मैंने सामने देखा की भीड़ सी लगी है... में अपनी सोच से बहार आया और तेज़ से चलते हुए उस भीड़ के पास जा पहुंचा, लोगों को थोड़ा साइड करते हुए भीड के अंदर घुसने लगा ये देखने के लिए आखिर सब ऐसे क्या देख रहे हैं,आख़िर जब लोगों के बीच में से होते हुए उस में घेरे के अंदर पहुंचा तो सामने देखते ही में चौंक उठा। एक लड़की अपनी आंखे बंध किए हुए बेहोश पड़ी थी और उसके इर्द गिर्द कुछ लोग बैठे उसे उठाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन को लड़की आंखे नही खोल रही थी, मेरी नज़र उसकी बंद आँखों पर थी, उन बंद आँखों को देख दिल घबरा रहा था और सांसे तेज चल रही थी की मन में एक ही सवाल चल रहा था कि आखिर क्या हुआ आंशिका को?,मैं तेज़ कदमों से आगे बढ़ा और उसके आसपास जितने लोग बैठे थे उन्हें हटा दिया।मेने फौरन उसके सर के नीचे हाथ लगा और उसका सर उठा के अपनी गोद में रख लिया। मेरी सांसें ज़ोरों से चल रही थी, घबराहट के मारे हाथ कांप रहे थे,मुश्किल से मेने अपना बैग खोला और उसमें से पानी की बोतल निकली,हाथ में हल्का सा पानी लिया और उसके चेहरे पर छिड़का, जिससे उसकी हल्की सी आंखें हिली जिसको देख दिल में ऐसा लगा मानो एक नई धड़कन ने जन्म लिया हो, मैंने हल्का सा पानी ओर छिड़का जिससे उसकी पलकें हिलने लगी, जिसे देखकर मेरे चेहरे पर हल्की सी रौनक बढ़ गई। "आंशिका.....आंशिका....... "कहते हुए मैंने अपने हाथ ले जाके उसके माथे पे रख दिए और उसे सहलाने लगा, उसका नाम पुकारने लगा,पानी की बूंदों ने अपना काम कर दिया, आंशिका की आंखें धीरे धीरे हिलती हुई खुलने लगी, जब उसकी पलकें उपर उठी तो श्रेयस के चेहरे पे वो सुकून भर्री मुस्कान छा गई।आंशिका ने आंखें खोली तो धीरे-धीरे उसे दिखती दुनिया धुंधलेपन से साफ साफ नजर आने लगी और तभी उसकी नजरों ने उससे वो चेहरा साफ - साफ दिखाया जो उसका नाम पुकार रहा था। "आंशिका......" मेने उसका नाम पुकारा तो वो मेरी गोद से खड़ी होने लगी, मेने उससे हल्का सा सहारा दिया और उसके पीछे दीवार के सहारे बैठा दिया, "आंशिका क्या तुम ठीक हो?"मेने उसकी तरफ देखते हैं हुए कहा क्यों की वो अपनी सर को दबा रही थी, जिसे देख में समझ गया की उसके सर में अभी भी दर्द हो रहा है। "चलो भाई चलो.. लगता है ये दोनो जानते हैं एक दूसरे को" वहां खड़े एक आदमी ने कहा और फिर धीरे धीरे भीड़ हटनी लगी। "आंशिका , पानी......" मेने पानी की बोतल उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा, मेरी आंखें उसके चेहरे को देखने के लिए तरस रही थी जो इस वक्त उसके हाथों के पीछे छुपा हुआ था"आंशिका" मेने जब इसबार आवाज़ लगाई तो उसके अपने हाथ अपने चेहरे से हटाएं और मेरी तरफ देखने लगी और मैं उसके चेहरे पर छाई तकलीफ को देखने लगा, उसकी आंखे हल्की सी नम थी और थोड़ा परेशान लग रही थी। "आंशिका, पानी" मैंने पानी की बोतल को खोलते हुए कहा, तो उसकी नजर इधर उधर घूमने लगी। "मेरी मेडिसिन.... वो पर्स" अंशिका ने बेहद धीमे आवाज़ में अपनी बात कही जिसे सुन के मेंने उसका पर्स उठाया, "किस में है मेडिसिन" मेरे पूछने पर उसे अपनी उंगली से इशारा करके बता दिया, मेने जल्दी से मेडिसिन निकली और उससे दे दी। दवाई खाकर वो आंखें बंद कर के दीवार से टेक लगा के बैठ गई, उसके चेहरे पे हल्की सी तकलीफ थी जिसे देखकर मेरा दिल बार-बार बैचेन हो रहा था, मेरी नज़र उसी पर टिक्की हुई थी, तभी उसे अपनी आंखें खोली और मेरी तरफ देखने लगी, मैं भी उसी को देख रहा था, न जाने पर मन ही नहीं कर रहा था अपनी नज़रे हटाने का उसके ऊपर से। "क्या तुम ठीक हो आंशिका" मेने एक बार फिर पूछा मेरी बात सुन के उसने हां में गर्दन हिलाई, जिसे देख में हल्का सा मुस्कुराया "थोड़ी देर यहीं बैठते हैं फिर घर चलेंगे "मेने बेहद प्यार से कहा और मैं वहीं बैठा गया। "थैंक यू श्रेयस" उन कोमल होठों से उसने मेरा नाम लिया तो मेरे दिल की धड़कने इतनी तेज चलने लगी की मानो हर धड़कन रेस लगा रही हो की कौन पहले उन अल्फाजों को सुनेगा।आज ये पहला मौका था मेरे लिए जो में उस चेहरे को इतने नजदीक से देख रहा था,3 साल बीत गए थे पर आज तक आंशिका से बात करने की हिम्मत नही कर पाया था। "श्रेयस" उसने जब दुबारा मेरा नाम लिया तो में होश में आया... "हां" में बस इतना ही कहा पाया। "थैंक यू" आंशिका ने जब दोबारा थैंक यू कहा तो मेंने मुस्कुराते हुए कहा "जी नहीं इसमें थैंक यू कैसा वैसे क्या हुआ था तुम्हें, आज अपने सुबह ब्रेकफास्ट नहीं किया था क्या, मां कहती है सुबह ब्रेकफास्ट न करो तो अक्सर चक्कर आ जात्ते हैं " मेने एक सांस में अपनी बात कहीं तो वो मेरी तरफ देखती हुई हल्का सा मुस्करा पड़ी, उसकी मुस्कान देख में बस उसे देखता ही रह गया। "नही...नही वो तो दरअसल मुझे माइग्रेन की problem है, तो कई बार मुझे चकर आ जाते हैं " इसके आगे हम दोनों में से कोई कुछ बोलता उसके पहले आंशिका का फोन बजने लगा, उसे पर्स से फोन निकला और जवाब दिया "हां मां... नहीं बस आ रही हूं, हां वो कार खराब हो गई थी तो मेट्रो से आ राही हूं, नहीं मॉम कुछ नहीं हुआ है... मेरी आवाज तो बिलकुल ठीक है " कुछ देर बाद आंशिका बात करते हुए खड़ी हो गई "उफ्फ ये मां भी ना..." कहते हुए हमने फोन कट किया और मेरी तरफ देखने लगी। "Thank you एक बार फिर श्रेयस तुमने आज मेरी बहुत मदद की" इसके आगे आंशिका कुछ कहती मेने उससे बीच में रोक दिया... "थैंक यू तब कहना जब में तुम्हे तुम्हारे घर सही सलामत छोड़ दूँ" मेने बिना झिझके अपनी बात कहीं, वो तो कहने के बाद एहसास हुआ की ये बात में इतनी आसानी से कैसे कह दी। "नहीं श्रेयस इसकी जरूरत नहीं है, मैं चली जाऊंगी" "नहीं आंशिका, बिलकुल नहीं,तुम्हारी तबियत अभी भी पूरी तरह से ठीक नही लग रही है अगर रास्ते मैं फिर तुम्हे कुछ हुआ तो Uncle Aunty परेशान हो जायेंगे इसलिए मैं अब तुम्हे घर छोड़ के ही अपने घर जाउंगा "मैं अपनी बात पे अड़ा रहा। "so, kind of you shreyas but now I'm obsoletly fine ,मैं चली जाऊंगी तुम प्लीज मेरे लिए परेशान मत हो " आंशिका की उस प्यारी आवाज़ को सुन के कुछ नहीं कह पाया बस उससे खड़ा देखता रहा। "bye" इतना कहकर वो मुडके जाने लगी और में बस उससे ऐसे ही जाते हुए देख रहा था।आंशिका प्लेटफॉर्म पे खड़ी मेट्रो का इंतजार कर रही थी, तभी मेट्रो आई और वो उसमे चढ़ गई। मेट्रो में चढ़ते ही उसका दिमाग दिन भर की चीजों के बार में सोचने लगा।वो सीट पर बैठने जा रही थी की तभी फिर से उसके सिर में दर्द शुरू हो गया,धीरे धीरे करते हुए उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा,उसका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरने ही वाली थी की तभी फिर उन हाथो ने आंशिका को थाम लिया और सीट पर लाकर बिठा दिया। कुछ देर तक श्रेयस आंशिका के सर को दबाता रहा ताकि उसका सिरदर्द कम हो जाए।आंशिका कुछ देर तक श्रेयस के कंधे पर सिर रखकर बैठी रही। थोड़ी देर बाद जब आंशिका ने श्रेयस की और देखा जो उसे serious face बनाते हुए घुर रहा था।आंशिका बात समझ गई इसलिए उसके अपने कानो को पकड़कर cute सा मुंह बनाते हुए सॉरी कहा। एक दो पल की इशारों में हुई बात पर दोनो मुस्कुराने लगे तभी फोन की रिंग सुनाई दी आंशिका ने फोन की स्क्रीन पर देखा तो अभिनव का नाम दिख रहा था। यह नाम देखकर आंशिका के चेहरे की वो मुस्कान गायब हों गई,उसने फोन कट किया और ट्रेन की खिड़की के बाहर देखने लगी।अभिनव शहर के जाने माने Builder का बेटा था इसीलिए वो कॉलेज मैं सबसे ज्यादा popular था और कॉलेज मैं कोई भी उसके खिलाफ बात करने या बोलने की हिम्मत नही करता था,जिसकी वजह से उसका ego और Attitude बहुत बढ़ गया था। आंशिका अभिनव की गर्लफ्रेंड थी इसलिए कोई लड़का उसे बात या दोस्ती करने की हिम्मत नही करता था और शायद मुझे भी कही इसी बात का डर था,पर आंशिका को इस तरह परेशान देखकर मैं समझ गया की ज़रूर अभिनव की वजह से आंशिका परेशान है,पर इस वक्त मुझे उसके बारे मै बात करना सही नहीं लगा। "श्रेयस" मेरे कानो में आवाज पड़ी। "जी" मैंने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा। "मेने तुमसे कभी बात नहीं की, यहां तक की मैं तुम्हारे नाम के अलावा में कुछ भी नहीं जानती फिर भी तुमने मेरी मदद की और अभी तक कर रहे हो.....क्यों?" उससे इतने प्यार से पूछा की बस मन कर रहा था की बस वो बोलती रहे और में यूं ही सुनता रहूं और उसकी आवाज को मेरे वक्त के खाली पन्ने में सज़ाता जाऊं। "बात करने से कोई अपना नहीं होता, अपना बनाने से अपना होता है" इतना कहने के में रुक गया, क्यों की आंशिका की आँखों मेरी आँखों में झलक रही थी। "wow...so pure" आंशिका ने अपने चेहरे को प्यार से भरते हुए कहा।"माँ कहती है" में हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा तो वो मेरी बात सुन के मुस्करा पडी "Honest Too" उससे मुझसे कहा और अपने फोन में लग गई लेकिन मेरी नजर उसी पर से नहीं हटी। थोड़ी देर बाद स्टेशन आ गया तो हम दोनों उतर गए, दोनो स्टेशन से बहार निकल के रास्ते पे चल रहे थे, ना तो आंशिका ने कुछ कहा और ना ही श्रेयस की हिम्मत हुई कुछ कहने की। उसे चलते हुए होश ही नहीं था कि वो कहां चल रहा है उससे बस ये एहसास हो रहा था कि आज जो भी वक्त उनसे कह रहा हो कि वो उन्हें अलग नहीं करना चाहता है। "इट्स ओके, वो मेरा घर आ गया" उसने अपनी उंगली से इशारा करते हुए कहा, "ओह... अच्छा" ना जाने क्यों इस बात को सुनते ही थोड़ा जी बैठा गया। "आओ श्रेयस अंदर चलो मॉम को तुमसे मिल के अच्छा लगेगा" आंशिका ने गेट खोलते हुए कहा। " नही.....नहीं आंशिका फिर कभी वो मां मेरा इंतजार कर रही होगी " "ओह....चलते तो अच्छा लगता मुझे भी, तुम मेरे लिए इतनी दूर हो" आंशिका ने इतना ही कहा की मेने उससे रोक दिया... "इस बात को लेकर मन मैं कोई भी Guilt मत रखना,हो सकता है आज शाम का यह सफर तुम्हारे साथ लिखा हो, वैसे भी इन सब मैं फायदा तो देखो मेरा ही हुआ ना" मेरी बात सुनकर सवाल भरी नजरो से मुझे देखने लगी मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा "मुझे तुम्हारे जैसी एक दोस्त मिल गई।"मेरी बात सुन के उसका चेहरा एक नए फुल की तरह खिल उठा, "बाय श्रेयस" कहते हुए वो मुडकर जाने लगी, मैं उससे जाता हुआ देख रहा था। "आंशिका" मेरी आवाज़ सुनते ही वो रुक गई और मेरी तरफ देख के मुस्कराती हुई बोली "हां" लेकिन में कुछ नहीं कहा पाया और अपनी गर्दन ना में हिलाने लगा, जिसे देखते ही उसे अपनी आइब्रो छोटी कर ली और मुस्कुराए हुए मुझे हाथ से इशारा करते हुए बाय किया और मुडकर घर के अंदर जाने लगी। मैने कदम पीछे लिए और मुडकर अपने घर की और बढ़ने लगा। "नही यह रास्ता मेरा नही है और ना ही वो मंजिल है जो मुझे मिलेगी, अपने प्यार को दिल मै दबाए एक जूठी मुस्कान लिए वो आगे बढ़ रहा था।आंशिका ने पीछे मुड़कर देखा तो श्रेयस धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था,उसे वो सारी बाते याद आने लगी जो हर्ष ने श्रेयस को क्लास के सामने कही थी "कोई भला कैसे इतने अच्छे और सच्चे दिल वाले इंसान से इतनी बेरुखी से कैसे बात सकता है?" यह सब सोचते हुए आंशिका अपने घर के अंदर चली गई।
bc1ef52ee1d6c7108d8f269efd1c49b9b7ad0826
web
आसाम-अर्थात पूर्वी भारत का अंतिम छोर। जी हां, ये वही पुराना कामरूप है जहां कभी सूर्य सबसे पहले आकर अपनी किरणें बिखेरता था, आज यह सौभाग्य चाहे अरूणांचल प्रदेश को मिल रहा है, पर हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज का अरूणांचल प्रदेश भी पुराने आसाम का ही एक भाग है। पूर्व दिशा प्रकाश की दिशा मानी जाती है, और पूरब ने पश्चिमी देशों को सदा ज्ञान का प्रकाश बांटा है। जहां तक आसाम की बात है तो यहां की 'अ' सम भूमि = ऊंची नीची, पर्वतीय भूमि की मां भारती के प्रति, यहां के निवासियों मे देशभक्ति के जज्बे को कभी कम नही कर पायी। देश का एकमात्र यही भूभाग है जो कभी भी पराधीन नही रहा। यहां मां भारती की स्वतंत्रता की स्वतंत्र लौ सदा प्रदीप्त रही और स्वतंत्रता की यह लौ पूरब से सूर्य की किरणों के साथ एकाकार होकर पूरे देश में स्वतंत्रता की देवी की आराधना के लिए वीणा के तारों को झंकृत करती रही। स्वतंत्रता की लौ को पूरे देश में जलाये रखने के लिए मानो तेल यहीं से मिलता रहा। आसाम तेल और भारत के तेज का अजस्र स्रोत बना रहा। पूरा देश इस संदर्भ में आसाम का ऋणी है। इस आलेख में हम आसाम के एक ऐसे ही नरपुंगव का परिचय देने का प्रयास करेंगे, जिसके बलिदानी जीवन ने 'आसाम' का नाम ऊंचा किया और भारत का सम्मान बढ़ाया। लेखनी बेचने वालों ने उसका नाम इतिहास से चाहे हटा दिया हो, पर उसके समुज्ज्वल जीवन के समुज्ज्वल और स्वर्णिम पृष्ठों को भारत के देशभक्तों के हृदय से कोई नही हटा सकता। आसाम की भूमि का कण कण उस नरपुंगव का वंदन कर रहा है, जिसे इतिहास के उड़ते पृष्ठों में वीर राय का नाम दिया गया है। बात उस समय की है जब देश को एक मौ. बिन बख्तियार खिल्जी नाम का विदेशी डाकू लूट रहा था, और इस देश की सांस्कृतिक धरोहरों को जला-जलाकर नष्ट कर रहा था। आगे बढऩे से पूर्व हम खिल्जी के दुष्टकृत्यों का संक्षिप्त परिचय देना उचित समझते हैं। खिल्जी मौहम्मद गोरी का एक गुलाम था। कहा जाता है कि उसे पहले पहल गोरी ने अपने प्रार्थना कार्यालय में रखा था, परंतु उसकी अयोग्यता के कारण उसे वहां से हटा दिया गया था। यह 'अयोग्य' व्यक्ति हताशा और निराशा में तब दिल्ली की ओर चल दिया। संयोग से यहां भी उसे एक मुस्लिम सैनिक बस्ती में वही नौकरी मिल गयी जो गोरी के यहां मिली थी। परंतु दुर्भाग्य ने उसका पीछा नही छोड़ा और उसे इस नौकरी से भी निकाल दिया गया। तब वह बदायूं की ओर चला गया। पी. एन. ओक महोदय हमें बताते हैं कि यहां के एक मुस्लिम लुटेरे दलपति हिजबरूद्दीन हसन के यहां उसने नौकरी कर ली, और साथ ही हिंदू हत्या अभियान में भी बढ़ चढ़कर भाग लेने लगा। इस अभियान में उसे सफलता मिलने लगी और उसकी अयोग्यता योग्यता में परिवर्तित होने लगी। किसी भी मुस्लिम आक्रांता या सेनापति या किसी लुटेरे की योग्यता इसी में मानी जाती रही है कि उसने कितने काफिरों का वध किया, या कितने काफिरों के घर में घुसकर हत्या, लूट, डकैती और बलात्कार किये? जितना ही कोई मुस्लिम आक्रांता या सेनापति या कोई लुटेरा अपनी इस कला में निखरा उसे उतना ही बड़ा सम्मान इतिहास के पृष्ठों पर मिला। हिंदू-हत्या अभियान में खिल्जी अपनी योग्यता का प्रदर्शन करने लगा। 'इलियट एण्ड डाउसन' ग्रंथ से हमें पता चलता है कि हिंदू हत्या अभियान में उसने कई स्थानों पर बड़ी लगन और फुर्ती दिखायी। वह हत्या अभियानों के साथ लूट, डकैती, बलात्कार में भी इतिहास रच रहा था। खिल्जी ने सबसे घृणित कार्य किया, नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने का। नालंदा विश्वविद्यालय उस समय का सबसे बड़ा वैश्विक स्तर का शिक्षा केन्द्र था। इस शिक्षा केन्द्र में विभिन्न विषयों के बहुत ही विद्वान शिक्षक और आचार्य नियुक्त थे। देश विदेश से शिक्षार्थ यहां हजारों शिक्षार्थी आया करते थे। यह वो समय था जब भारत के ज्ञान-विज्ञान का लोहा सारा विश्व-समाज मानता था। निस्संदेह यह सत्य है कि नालंदा विश्वविद्यालय भारत के ज्ञान गौरव का प्रतीक था। जो लोग मौहम्मद बिन कासिम (712ई. ) के आक्रमण के समय से ही भारत को पराधीन हुआ मानते हैं, या ऐसी मान्यता को स्थापित करने का प्रयास करते हैं, उन्होंने कभी नालंदा की महानता को भारत के गौरव के रूप में स्थापित करने का कोई प्रयास नही किया। यदि ऐसा होता या किया जाता तो भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास के साथ जो विकृतीकरण का अभियान चलाया गया है, उसे सुधारने में बहुत बड़ी सहायता मिल सकती थी। इस विश्वविद्यालय के खण्डहर आज भी पड़े हुए हैं, जिन पर भारत के ज्ञान वैभव की प्राचीन परंपरा का स्मारक स्वरूप नालंदा विश्वविद्यालय खड़ा करने की बाट देश का राष्ट्रवादी मानस जोह रहा है। प्रश्न है कि जब सरदार पटेल जैसे ओजस्वी नेता के रहते सोमनाथ के मंदिर का जीर्णोद्घार हो सकता था तो इस विश्वविद्यालय का जीर्णोद्घार क्यों नही हो सकता? इस अनुपम शिक्षा केन्द्र को बख्तियार खिल्जी ने समाप्त करने का अभियान चलाया। अनेक मुस्लिम लेखकों ने उसके इस अभियान में मिली सफलता को उसकी योग्यता के रूप में महिमामंडित किया है, और इस घृणित अभियान में मारे गये हजारों शिक्षकों और शिक्षार्थियों को निरपराध जानते हुए भी यूं उपेक्षित कर दिया है कि जैसे कुछ हुआ ही नही। क्योंकि इन लेखकों की दृष्टि में निरपराध काफिरों को मारना भी इस्लाम की सेवा में सम्मिलित है। यद्यपि शिक्षा केन्द्रों का विनाश और निरपराधों का वध करने वाले को इतिहास घृणा की दृष्टि से देखता है, क्योंकि इन बातों से इतिहास बनता नही है, अपितु इतिहास विकृत हुआ करता है और विकृतीकरण इतिहास निर्माण नही है। इतिहास निर्माण है सृजनात्मकतापूर्ण सोच, मानवता वादी चिंतन और वैश्विक मानस को अपनाने से। भारतीय इतिहास लेखन की परंपरा में इतिहास नायकों में इन्हीं गुणों की प्रधानता होनी चाहिए। खिल्जी ने नालंदा विश्वविद्यालय में इतने लोगों का वध किया कि कोई ये बताने वाला भी नही रहा था कि विश्वविद्यालय में बने ढेरों पुस्तकों के पुस्तकालय में रखी पुस्तकें कौन से विषय की हैं? खिल्जी ने उन पुस्तकों के विशाल ढेर को ये कहकर जलाने की आज्ञा दे दी कि यदि इनमें दिया गया ज्ञान कुरान के विरूद्घ है, तो इन्हें रखना व्यर्थ है और यदि ये कुरान संगत है तो उस परिस्थिति में अकेले कुरान का रह जाना ही पर्याप्त है। इसलिए इन्हें जला डालो। बस, पुस्तकालय जला दिया गया। कहते हैं कि इस पुस्तकालय की आग निरंतर छह माह तक जलती रही थी। इसकी पुस्तकों से अशिक्षित और अयोग्य विदेशी आक्रांता अपने चूल्हे जलाते रहे और इस प्रकार भारत की ही नही अपितु विश्व की अप्रतिम ज्ञान धरोहर का नाश एक अज्ञानी और क्रूर व्यक्ति के द्वारा कर दिया गया। इस पुस्तकालय में भारत के बड़े बड़े ज्ञानियों, ऋषियों और चिंतनशील लोगों के अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित भारी भारी ग्रंथ और शोधपत्र रखे थे। जो सारे ही अग्नि की भेंट चढ़ गये। नालंदा का पुस्तकालय एक पुस्तकालय ही नही था, अपितु एक संग्रहालय भी था और एक ऐसा स्मारक भी था जिसमें हमारे प्राचीन ऋषियों की स्मृतियां उनके स्मारक ग्रंथों के माध्यम से सुरक्षित रखी थीं। उन सबको एक ही झटके में नष्ट करने वाला था-बख्तियार खिल्जी। नालंदा के विनाश ने एक असफल व्यक्ति को सफल बना दिया। जो प्रार्थना कार्यालयों तक में एक साधारण नौकरी करने योग्य नही समझा गया, वह व्यक्ति रातों रात नायक बन गया। क्योंकि उसके सम्प्रदाय की मान्यता ही यह थी कि विधर्मियों के विरूद्घ कोई कितना आतंक मचा सकता है? उसी में उसकी सफलता छिपी है। .... और आज खिल्जी इसी कसौटी पर खरा उतर चुका था। इसलिए उसकी जय जयकार करके उसके लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया था। तब इस देश में खिल्जी की चुनौती को दिल्ली से तो नही पर आसाम से अवश्य चुनौती मिली। भारत का भोर आसाम से होता है, इसलिए उस भोर के प्रकाश को दूर दूर तक फेेलाने का संकल्प आसाम ने अपने ऊपर लिया। खिल्जी बिहार से अगले प्रांतों की ओर बढ़ा। उसने अपने आतंक से कितने ही भव्य मंदिरों को नष्ट कर, वहां मस्जिदों का निर्माण करा दिया और कितने ही निरपराधों को मृत्यु का ग्रास बना दिया। तब आसाम के राजा वीर राय ने इस विदेशी आतंकी आक्रांता को घेरने की सफल योजना बनायी। उसने बड़ी बुद्घिमत्ता से कार्य किया और अपनी सेना की ऐसी व्यूह रचना की कि शत्रु सेना का सफाया करने में तथा उसके अहंकार को तोडऩे में उसे सफलता ही मिली। राजा वीर राय ने खिल्जी को उसी की भाषा में उतर दिया और जब खिल्जी कुछ भारतीय जयचंदों की सहायता लेकर आसाम में घुस गया, तब उसकी सेना ने एक दिन प्रातः काल में सोते हुए विदेशी शत्रुओं पर अचानक हमला बोल दिया। खिल्जी और उसकी सेना इस अचानक किये गये हमले से संभल नही पाए और आसाम के वीर राय और उसकी सेना शत्रुओं को गाजर, मूली की भांति काटने लगी। दोपहर तक खिल्जी की सेना का बड़ी संख्या में सफाया कर दिया गया। खिल्जी को अभी तक भारत में ऐसी चुनौती नही मिली थी और ना ही उसे भारतीयों से ऐसी आशा थी कि ये लोग भी अचानक इस प्रकार का हमला बोल सकते हैं। वीर राय ने इतिहास लेखकों को समझने के लिए बहुत कुछ दिया। उसके अचानक बोले गये हमले से मिली उसकी सफलता इस बात का ्रप्रमाण है कि जब शत्रु को उसी की भाषा में भारत के किसी राजा ने उत्तर दिया तो वह पराजित हुआ और जब भारतीय अपने आदर्शों से बंध कर रहे तो कई बार पराजय का मुंह देखना पड़ा। जैसे पृथ्वीराज चौहान मातृभूमि की रक्षा को सदा प्राथमिकता देता रहा, परंतु मातृभूमि की रक्षा में जब गायें आड़े आ गयीं तो उसने गायों को बचाने के आदर्श के चक्कर में सबसे बड़ी गाय अर्थात मातृभूमि को भुला दिया। जबकि उस समय यदि कुछ गायें सबसे बड़ी गाय के लिए भेंट चढ़ जातीं तो अधिक बड़ा पाप नही होता। आदर्श निश्चित रूप से वंदनीय होते हैं, परंतु जहां बड़ा आदर्श दांव पर लगा हो, वहां छोटे आदर्शों को तिलांजलि दे देनी चाहिए। आसाम के वीर राय ने बता दिया कि हम कच्चे आदर्शों के चक्कर में फंसने वाले नही हैं। इसलिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय में मारकाट मचाने वाले तथा उसके पुस्तकालय में आग लगाने वाले खिल्जी को बता दिया कि भारतीय अपनी पराजय का प्रतिशोध लेने में कितने सिद्घहस्त हैं। 'तबकात-ए-नासिरी' से हमें ज्ञात होता है-"आश्चर्य है कि शत्रुओं (अर्थात हिंदुओं) के पास बांस के भाले थे, और उनकी ढाल, कवच तथा शिरस्त्राण सिर्फ कच्चे रेशम के ही बने थे, जो आपस में एक दूसरे में बंधे हुए और सिले हुए थे। सभी के पास लंबे लंबे धनुष और बाण थे। " इतना ही नही, स्वतंत्रता प्रेमी और देशभक्त राजा वीर राय ने अपनी 35000 सेना अलग से सुरक्षित रखी, जो आवश्यकता पडऩे पर तुरंत बुलायी जा सकती थी। उक्त पुस्तक से हमें ज्ञात होता है कि वीर राय से मिली पराजय के घावों को देखकर और अपनी सेना के भारी विनाश को देखकर खिल्जी बहुत अधिक निराश हो गया था। उसने अपने सेनानायकों से परामर्श लिया और वीर राय की 35000 की सुरक्षित सेना से घबराकर अपने देश के लिए लौट जाना ही उसने श्रेयस्कर समझा। छोडऩे पर मौन को वाचाल होते देखा है, तोडऩे पर आईने को काल होते देखा है। मत करो ज्यादा हवन तुम आदमी के खून से, भारत का आदर्शवादी मौन स्वतंत्रता के लिए व्याकुल था, इसलिए वह वीर राय के नेतृत्व में वाचाल हो उठा था, शीशे की भांति पारदर्शी भारत का हृदय आज टूटा हुआ आईना बन चुका था, जो साक्षात काल की साक्षी दे रहा था। फलस्वरूप अभी तक 'आदमी के खून से यज्ञ करने वालों को' जले हुए कोयलों ने अपना लाल रंग दिखा दिया। वीर राय ने अपने कुशल सैन्य संचालन की इतिश्री इतने से ही नही की अपितु उसने भागते हुए शत्रु का पीछा करने की ठानी और उसे देश की सीमाओं में ही भूखा प्यासा मारने की योजना पर कार्य किया। क्योंकि वह पृथ्वीराज चौहान की भांति शत्रु को जीवित छोडऩा अच्छा नही समझता था। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि वीर राय की वीरता पृथ्वीराज चौहान की पराजय की प्रतिक्रिया थी। जिसने वीर राय को ये समझने के लिए प्रेरित किया कि शत्रु को छोड़ा जाना अनुचित होता है और यह भी कि संस्कृति नाशक इन शत्रुओं के लिए युद्घ उन्हीं की शैली में किया जाना ही उचित होगा। वीर राय ने भागते हुए मुस्लिम सैनिकों के लिए रास्ते की सारी फसल उजाडऩी आरंभ करा दी, यहां तक कि घास को भी घोड़ों के खाने के लिए नही छोड़ा गया। यह रणनीति सचमुच बड़ी कारगर सिद्घ हुई। कहा जाता है कि अपने लिए खाने को कुछ भी न मिलने पर मुस्लिम सैनिकों ने अपने घोड़ों को ही मारकर खा लिया था। शत्रु के लिए वीर राय की यह योजना बड़ी ्रघातक सिद्घ हुई। जब खिल्जी ने आसाम पर चढ़ाई की थी तो रास्ते में ब्रह्ममपुत्र नदी पर बंगमती नामक (वर्धानकोट) एक प्राचीन नगर स्थित था। जिसके निकट नदी पर एक संकरा पुल बना हुआ था। इस पुल पर खिल्जी ने अपना नियंत्रण स्थापित किया और एक सैन्य दल को इसकी सुरक्षा हेतु इसलिए छोड़कर आगे बढ़ गया कि लौटने पर इन सैनिकों की सहायता से यह पुल सहजता से पार कर लिया जाएगा। परंतु जब वह लौटकर यहां आया तो यह देखकर उसे असीम पीड़ा हुई कि इस पुल पर जिस सैन्य दल को वह छोड़कर गया था, उसे भी हिंदू वीरों ने समाप्त कर दिया है और पुल को भी तोड़ दिया गया है। अब शत्रु के पास भागने के लिए कोई सुरक्षित रास्ता नही था। हिंदू वीरों की हर योजना सफल सिद्घ हो रही थी और शत्रु अपने ही बुने जाल में फंसकर रह गया था। आसाम की ओर बढ़ते खिल्जी को आसाम अपने देश से चाहे भले ही दूर ना लगा हो पर अब आसाम से अपना देश तो इतनी दूर लग रहा था कि संभवतः वह पूरे जन्म भागकर भी उसकी दूरी को नाप न सकेगा। इस प्रकार खिल्जी असहायावस्था में इधर उधर सिर मारने के लिए विवश हो गया। उसकी इस भटकनपूर्ण अवस्था में किसी मुस्लिम शासक ने भी सहायता नही की। सामान्यतः हमारी पराजय के कारणों में एक कारण हमारे हिंदू राजाओं की पारस्परिक एकता का न होना भी गिनाया जाता है, परंतु ऐसा गिनाने वाले लेखकों या इतिहासकारों को यह भी ध्यान देना चाहिए कि मुस्लिमों ने किसी हिंदू शासक से पराजित होने पर या खिल्जी की सी अवस्था में पहुंचने पर क्या कभी किसी अपने मुस्लिम शासक की सहायता की? जबकि हिंदुओं के ऐसे उदाहरण बहुत हैं कि जब उन्होंने विदेशी आक्रांताओं के विरूद्घ 'राष्ट्रीय हिंदू सेना' का गठन किया। ऐसे ही एक आहत मुस्लिम युवा मरदान (जिसका अपना कोई संबंधी भी आसाम में मारा गया था) ने घृणावश खिल्जी को मारने की योजना बनायी। 1205 ई. में उसने एक दिन अचानक बख्तियार खिल्जी के शिविर में प्रवेश किया। खिल्जी असहायावस्था में चुप पड़ा था, अली मरदान ने शीघ्रता से अपना चाकू निकाला और गालियां देते हुए खिल्जी पर तब तक हमला करता रहा जब तक कि उसे विश्वास न हो गया कि अब वह इस संसार में नही रहा है। यह ठीक है कि बख्तियार खिल्जी का अंत एक मुस्लिम ने किया परंतु यह भी सत्य है कि खिल्जी से नालंदा का प्रतिशोध वीर राय ने लिया। हमें नालंदा के उजडऩे की कहानी तो पढ़ायी जाती है परंतु इस पीड़ा दायक कहानी का प्रतिशोध लेकर भारत के पौरूष की धाक जमाने वाले वीर राय के विषय में कुछ नही बताया जाता। जबकि आसाम की धरती राजा वीर राय का एक ऐसा मौन स्मारक है, जो इस हिंदू वीर का यशोगान कर रहा है। ऐसे यशस्वी शासक के साथ इतिहास में अन्याय किया गया है तो यह कितना उचित है? आसाम-अर्थात पूर्वी भारत का अंतिम छोर। जी हां, ये वही पुराना कामरूप है जहां कभी सूर्य सबसे पहले आकर अपनी किरणें बिखेरता था, आज यह सौभाग्य चाहे अरूणांचल प्रदेश को मिल रहा है, पर हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज का अरूणांचल प्रदेश भी पुराने आसाम का ही एक भाग है। पूर्व दिशा प्रकाश की दिशा मानी जाती है, और पूरब ने पश्चिमी देशों को सदा ज्ञान का प्रकाश बांटा है। जहां तक आसाम की बात है तो यहां की 'अ' सम भूमि = ऊंची नीची, पर्वतीय भूमि की मां भारती के प्रति, यहां के निवासियों मे देशभक्ति के जज्बे को कभी कम नही कर पायी। देश का एकमात्र यही भूभाग है जो कभी भी पराधीन नही रहा। यहां मां भारती की स्वतंत्रता की स्वतंत्र लौ सदा प्रदीप्त रही और स्वतंत्रता की यह लौ पूरब से सूर्य की किरणों के साथ एकाकार होकर पूरे देश में स्वतंत्रता की देवी की आराधना के लिए वीणा के तारों को झंकृत करती रही। स्वतंत्रता की लौ को पूरे देश में जलाये रखने के लिए मानो तेल यहीं से मिलता रहा। आसाम तेल और भारत के तेज का अजस्र स्रोत बना रहा। पूरा देश इस संदर्भ में आसाम का ऋणी है।
0e97740720fd50939916859b4556f3acacc361ea
web
प्यार की स्थिति कैसे व्यक्त करें? शब्दों का वर्णन नहीं किया जा सकता है। लेकिन हल्की चक्कर आना, "पेट में तितलियों," अनियंत्रित खुशी और दुनिया भर में, जैसे नृत्य में तैराकी, फैशन हाउस "लंकम" को व्यक्त करने की कोशिश की। उनके परफ्यूम पोएम लैनकम - एक असली कविता, सुगंध के बुनाई में व्यक्त की गई। हम इस लेख में इन आत्माओं का परीक्षण करेंगे। निर्माता अपने इत्र के बारे में क्या कहता है उसका विश्लेषण और तुलना करेगा, और उपयोगकर्ता कैसे प्रतिक्रिया देंगे, हम कई उभरते मुद्दों का उत्तर देने का प्रयास करेंगे। उदाहरण के लिएः उसकी रचना के घटक क्या हैं? इस कविता को अरोमा की भाषा में किसके लिए लिखा गया है, किसके लिए यह समर्पित है? इस इत्र पहनने के साथ कब और किसके साथ? यह अपनी सुगंध कितनी देर तक स्टोर करता है? और मूल इत्र "लंकम" कितने हैं? यह सारी जानकारी आपको नीचे मिलेगी। कई प्रसिद्ध फर्म स्वयं को जारी करते हैंएक विशेष उत्पाद की सालगिरह। इसमें, एक नियम के रूप में, निर्माता की सभी बेहतरीन उपलब्धियों को एकत्रित किया जाता है। यह "खुद को उपहार" सीमित पार्टी द्वारा जारी किया जाता है। लेकिन जो भी जुबली उत्पाद - आत्माओं या शराब - इसमें विशिष्ट विशेषताएं हैं। पहला पहचान है। कोई भी जो इस उत्पाद को आजमाता है, तुरंत कहता है कि यह एक या दूसरे निर्माता से संबंधित है। और दूसरी सुविधा विशिष्टता है। इस उत्पाद में, कंपनी द्वारा उत्पादित किए गए सभी बेहतरीन एकत्र किए गए हैं। यह वास्तव में Lancome कविता की आत्माओं के लिए डिजाइन किया गया था। वे फ़ैशन हाउस लैनकम की साठवीं सालगिरह के लिए बनाए गए थे। अरोमा की त्यौहार रचना पर, प्रसिद्ध फ्रांसीसी परफ्यूमर जैक्स कैवेलियर ने काम किया। मूल बोतल फैबियन बैरन द्वारा डिजाइन की गई थी। आत्माओं ने 1995 में प्रकाश देखा। स्पष्ट ओरिएंटल अभिविन्यास के साथ पुष्प कामुक सुगंध वहां है और फिर फैशन हाउस की रचनात्मकता के प्रशंसकों के दिल जीते हैं। जब सीमित लॉट बेचा गया, तो फर्म ने इस मुद्दे को दोहराया। कन्वेयर पर रखो, परफ्यूम केवल लाइटर बॉक्स में जयंती रिलीज से अलग होता है (पूर्व लाल सोने का रंग था), लेकिन सुगंध बिल्कुल वही बना रहा। यह प्रेम पहचान और प्रलोभन की गंध है। एक बूंद - और आप नृत्य में कताई लगते हैं। और छुट्टी का माहौल आपको लंबे समय तक नहीं छोड़ेगा। बेशक, जब आप दुकान में जाते हैंसुगंध, यह सुरुचिपूर्ण मूल बोतल तुरंत ध्यान आकर्षित करती है। डिजाइनर फैबियन बैरन की बोतल द्वारा डिज़ाइन की गई एक महिला के स्टाइलिज्ड बस्ट जैसा दिखता है, जो गेंद की पोशाक के एक कॉर्सेट में कड़ा होता है। चिकना ग्लास पहलू प्रकाश को प्रतिबिंबित करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि पानी बोतल के माध्यम से चल रहा है। और अंदर सूर्य का एक टुकड़ा है। वह इस रोजमर्रा की दुनिया को छुट्टियों की खुशी और उत्थान लाने के लिए बाहर जाने के लिए कह रही है। शायद, इसलिए बोतल टोपी कॉर्कस्क्रू के हैंडल के नीचे शैलीबद्ध है। तो आप स्वाद के पहले नोटों को सांस लेने के लिए इत्र "Lancome कविता" uncork करना चाहते हैं। लेकिन हम थोड़ा और पीड़ित होंगे। आइए शीशी पर नज़र डालें। वह अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता। यह पूर्णता ही है। थोड़ी सी जानकारी के लिए यहां तक कि एक छोटी सी छोटी बोतल भी काम की जाती है। पहले से ही बोतल को देखकर, आप महसूस करते हैं कि ये आत्माएं हर दिन नहीं होती हैं। वे एक गेंद के लिए या दिमाग की विशेष स्थिति के लिए बनाए जाते हैं। अंदर एक सुनहरा तरल है, जैसे सूरज की रोशनी की उत्कृष्टता। शिलालेख के साथ बोतल अधिभारित नहीं है। ऊपर आत्माओं का नाम है, नीचे वह फर्म है जिसने इसे और "होम पोर्ट" पेरिस बनाया है। लंकम से कविता की सामान्य आत्माएं स्प्रे बंदूक से लैस होती हैं। विंटेज श्रृंखला शास्त्रीय भावना (बिना स्प्रेयर के) में बनाई जाती है। ऐसी आत्माओं का रंग गहरा होता है, अनुभवी कोग्नाक की याद दिलाता है। आइए अब कैप को हटा दें और इसमें डुबकी लेंएक शानदार सुगंध। इत्र के निर्माता, जैक्स कैवेलियर, इसे कामुक, ओरिएंटल गंध के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सुगंधित संरचना बनाने वाले घटकों की सूची बस विशाल है। परफ्यूम ओवरचर के पहले नोट्स से पहले से ही शक्तिशाली ध्वनि शुरू होता है। यह एक जटिल और बहुआयामी सुगंध है। गहरे काले currant बास की पृष्ठभूमि के खिलाफ ऊपरी नोट्स में हम रसदार टेंगेरिन स्प्रे सुनते हैं, मीठे आड़ू और बेर द्वारा पूरक। लेकिन यह ओवरचर कोई फल नहीं है। मिठास एक नरम daffodil और बर्गमोट के रंग के संयोजन के साथ जड़ी बूटी के हरे रंग के नोट ताज़ा करता है। लेकिन यह निर्माता थोड़ा लग रहा था। आखिरकार, "कविता" एक जयंती, उत्सव इत्र है। बहुत ही शीर्ष नोट्स से इत्र अपने सिर मीठे डोप और नीले हिमालयी पोस्पी को घुमाता है। अत्याधुनिक के रूप में शक्तिशाली, सुगंधित संरचना के मुख्य संगीत को प्रकट करता है और कैप्चर करता है। घटकों की समृद्धि के बावजूद, यह विवादित नहीं है। सब कुछ मुख्य घटक के आसपास बनाया गया है - सुस्त और सुरुचिपूर्ण ट्यूबरोज़। बाकी का गुलदस्ता केवल फूलों की रानी की बहुमुखी प्रकृति की इस या उस गुणवत्ता पर जोर देना है। इसकी महिमा चाय गुलाब की सुगंध पर जोर देती है। जुनून की शक्ति हेलीओट्रॉप और चमेली द्वारा बनाई गई है। कोमलता और स्त्रीत्व पर फ्रीसिया और मिमोसा द्वारा जोर दिया जाता है। गुलदस्ता में एक नारंगी खिलना शुरू करके मासूमियत की सुगंध हासिल की जाती है। मुझे कहना होगा कि इत्र सुंदर विंटेज लगता है। संरचना के दिल में आप गुणवत्ता वाले चमड़े की गंध कर सकते हैं। उन्मुखता का एक स्पर्श आत्माओं को विदेशी यलंग-यलंग और मीठे वेनिला का रंग देता है। आधार का आकर्षक आधार किसी को उदासीन नहीं छोड़ेगा। एक मुलायम, गर्म ट्रेन वेनिला, कस्तूरी, एम्बर, सेम पतली के बेहतरीन धागे से बुनाई जाती है। नारंगी रंग के मूल नोट्स को ताज़ा करता है, और देवदार से क्रोकेट का स्पर्श संलग्न होता है। और जैसे ही वे सुगंध के पिरामिड को सरल सुनते हैंउपयोगकर्ताओं? स्पिरिट्स "लैनकम कविता" मादक नशा और निस्तेज ध्वनि अफीम के साथ उन्हें बताया। शायद, यही वजह है कि कई समीक्षा इस रचना को "अफीम" कहते हैं। गैर-पेशेवरों की नाक के लिए फल नोट लगभग अश्रव्य हैं। जब तक काला currant एक विशेषता ध्वनि देता है। इत्र की संरचना के "दिल" जैसे सभी उपयोगकर्ता। रजनीगंधा की नाजुक सुगंध masterfully एक अमीर पुष्प गुलदस्ता में बुना। मोहक छुई मुई, उज्ज्वल और नाजुक freesia, चमेली सुगंधित सफेद एक कीमती फ्रेम की तरह एक अमूल्य कृति बनाने के लिए। कई उपयोगकर्ता दिल और नरसंहार में पाते हैं। लेकिन चाय की सुगंध के साथ उनकी narcissistic सौंदर्य vies गुलाब। संरचना का शिखर वेनिला है। लापरवाह, असीम मिठाई, वह उसकी बाहों में lures और अब पैदा करता है। वह पूरी संरचना की मातृभाषा गर्मी और स्त्रीत्व प्रदान करती है। लांग ट्रेन, समीक्षाएँ, उदारता प्राच्य नोटों के साथ स्वाद का कहना है। एक ही वेनिला की पृष्ठभूमि के खिलाफ चंदन, कस्तूरी और एम्बर हैं। सामान्य तौर पर, उन एक ओरिएंटल इत्र, मिठाई और फूलों के रूप में वर्णन करते हैं। Poeme Lancome एक उदार उज्ज्वल और uninhibited की तरह लगता हैऔरत। वह स्वतंत्र, भावनात्मक है। अगर वह किसी चीज़ के लिए चाहती है, तो वह किसी भी कीमत पर वह चाहती है। यह महिला दूसरों पर एक अविश्वसनीय प्रभाव डालती है। उसी समय, उसके अनियंत्रित ardor के पीछे फूलों की सुगंध से बुना हुआ एक subtly संवेदनशील आत्मा निहित है। इत्र के सुनहरे किनारे जुनून और वासना के बारे में बोलते हैं, रचना की उन्मुखता इन भावनाओं को गुप्त रखती है, और फ्रांसीसी ठाठ पेरिस परफ्यूम आकर्षण और आकर्षण की मालकिन देता है। यह मौका नहीं था कि जूलियट बिनोच कविता का "चेहरा" बन गया। यह उसकी तरह एक औरत के लिए है कि यह ओदे प्यार कलम के साथ लिखा गया है। एक किशोर लड़की पर, शायद, यह सुगंधित पानी थोड़ा सा झगड़ा दिखाई देगा। पच्चीस के बाद महिलाओं के लिए आत्माएं अधिक उपयुक्त हैं। उन लोगों के लिए जो जानते हैं कि अपने दिल की आग को कैसे रोकें, और इसे अनुमति दें जब इसे अनुमोदित माना जाए। सुगंध आधुनिक सुंदरियों, निर्विवाद, अपमानजनक, सभ्यता के सार्वजनिक मानदंडों की आवश्यकताओं के ऊपर खड़े होने के लिए बनाई गई है। ऐसी महिला किसी व्यक्ति को ध्यान देने के लिए इंतजार नहीं करती है। वह रहस्य और प्रलोभन की खुशबू के साथ इसे arcanizes। और वह, कमजोर, शांतिपूर्वक अपनी मां के वेनिला गले में सो जाता है। नारीत्व की यह सुगंध आपको अधिक परिपक्व महिलाओं के लिए सुगंधित पानी "कविता" ("लैनकम") बनाने का मौका देती है। "कविता" युवा और बेवकूफ नाइट्स के लिए उपयुक्त नहीं है। छात्रों पर गंध भी थोड़ी सी जगह होगी। इन आत्माओं के लिए उनके लिए बहुत जटिल है। इत्र भी एक व्यवसायी, उद्देश्यपूर्ण और मुक्त नहीं है। उपयोगकर्ता अपनी सुंदरता के प्रमुख में एक महिला के रूप में सही सुगंध वाहक देखते हैं। वह उग्र नहीं है, वह मामूली लगती है। लेकिन उसकी नारीत्व में एक चुंबकीय ताकत और दिल को गुरु बनाने और विचारों को आकर्षित करने की क्षमता है। लेकिन इसमें सूर्य, जीवन देने और साथ ही सुखदायक ऊर्जा भी है। कई उपयोगकर्ता इस बात पर सहमत हुए कि उन्होंने सैंड्रो बोटीसेली द्वारा चित्रकला "वसंत" के मुख्य चरित्र में इन आत्माओं की दृश्य छवि देखी। और कुछ का मानना है कि सुगंध का "चेहरा" थोड़ा कामुक और अनंत रूप से युवा इसाबेल अदजानी है। इस परफ्यूम की क्या गंध आती है, उसके गुणक के लिए? रेट्रो? बेशक, हाँ। संरचना, वेनिला और एम्बर ट्रफल की विचारशीलता और पूर्णता हमें हमारी दादी की आत्माओं की याद दिलाती है। लेकिन सुगंधित संरचना में और क्लासिक्स से बहुत कुछ है। यह एक कालातीत उदाहरण है, जिसमें से परफ्यूमर की कई पीढ़ियां प्रेरणा आकर्षित करती हैं। किसी भी तरह से आत्माओं को पुराने ढंग से बुलाया जा सकता है। वे आधुनिक महिलाओं के लिए बहुत प्रासंगिक और उपयुक्त हैं। लेकिन जो सुगंध पसंद नहीं कर सकता है, तो यह ठंडा, जलीय गंध के गुणकों के लिए है। डेटा के लिए उपयुक्त वर्ष के बारे मेंआत्माओं, उपयोगकर्ताओं की राय विभाजित हैं। कुछ कहते हैं कि गर्म कनिला, जो "कविता" को प्रभावित करती है, ठंड के मौसम के लिए अधिक उपयुक्त है। दूसरों का तर्क है कि उस समय यह अच्छा है जब हवा गिरने वाली पत्तियों की गंध करता है। परफ्यूम "Lancome कविता" न केवल वेनिला के साथ सुगंधित, लेकिन मिमोसा के साथ। नाज़ुक पीले रंग के फूलों के साथ यह पौधा 8 मार्च को हमारे साथ जुड़ा हुआ है। और अंत में, एक राय है कि इत्र, जिस रंग का सूर्य सूर्य की किरणों से बुना जाता है, गर्मी के लिए सबसे उपयुक्त है। फूल गुलदस्ता इस समय सबसे सामंजस्यपूर्ण रूप से दिखता है। उपभोक्ताओं के बीच एक ही असहमतिइस परफ्यूम पहनने के लिए दिन के किस समय के सवाल के सवाल में यह भी देखा जाता है। अधिकांश इत्र के शाम के उपयोग के लिए जाते हैं। बहुत काम करने के लिए वे पहनने के लिए शानदार हैं। बेशक, जींस और स्वेटर के लिए, इस तरह के इत्र का उपयोग करने के लिए एक दयालुता है। हालांकि, अगर आप इस सुगंध के गर्मियों के उपयोग के बारे में संस्करण स्वीकार करते हैं, तो यह हल्के कपड़े और शिफॉन कपड़े के लिए बहुत आसानी से जाता है। वेनिला बिल्कुल उलझन में नहीं है। यह पूरी संरचना को एक आकर्षक मिठास देता है। गर्म मौसम में, उपयोगकर्ता आश्वासन देते हैं, दैवीय ट्यूबरोज़ अपने उपग्रहों के फूलों के टुकड़े में फ्रिंज में दिखाई देता है। शुरुआत में, "कविता" के रूप में प्रस्तुत किया गया थामहिलाओं के सुगंधित पानी। लेकिन चूंकि ये आत्माएं सफल रहीं, फैशन हाउस लंकोम ने अन्य सांद्रता में बाजार में एक ही सुगंध जारी करने का फैसला किया। यह सब से ऊपर है, शौचालय का पानी "कविता कोलोन लंकम पार"। एक समृद्ध और व्यावहारिक रूप से संतुलित स्वाद के साथ एक पुरानी श्रृंखला भी है। इस रिलीज के नमूने 7.5 और 15 मिलीलीटर की छोटी बोतलों में बेचे जाते हैं। और यद्यपि विंटेज लैनकम पेरिस पोएम को "डी डी परफ्यूम" के रूप में भी जाना जाता है, इसकी छोटी बोतलों में एक अनसुलझा टोपी है। एक स्प्रे के साथ आम परफ्यूम पीले रंग की हल्की छाया होती है। विंटेज श्रृंखला का तरल गहरा, कॉग्नाक का रंग है। एक स्प्रे के रूप में सुगंधित पानी कई खंडों में उपलब्ध है। यह 30, 50 और 100 मिलिलिटर्स की एक बोतल है। शौचालय के पानी की एकाग्रता में "कविता" 5 मिलीलीटर की छोटी जांच-जांच के साथ-साथ 30 और 50 मिलीलीटर की बोतलों में भी बनाई जाती है। लेकिन इस तरह के उत्पाद को खोजने के लिए काफी मुश्किल है, साथ ही साथ एक पुरानी श्रृंखला के नमूने भी हैं। इत्र की लागत, इसे हल्के ढंग से रखने के लिए, कम नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ, यह कपड़े कज़हाल के नीचे हर दिन शौचालय के पानी-यूनिसेक्स नहीं है। यदि आप "कविता" खरीदते हैं, तो केवल विशेष अवसरों के लिए। सभी अधिकतम छूट के साथ, यह इत्र 30 मिलीलीटर के लिए 2800 रूबल की कीमत पर खरीदा जा सकता है। और मानक रूप से ये इत्र एक ही मात्रा के लिए 3260 rubles पर इत्र की दुकानों में हैं। 5050 rubles के लिए 50 मिलीलीटर की एक बोतल खरीदी जा सकती है, और 100 मिलीलीटर की मात्रा - 5770 रूबल के लिए। आश्चर्यजनक पानी और विंटेज इत्र के बीच कीमत में आश्चर्यजनक अंतर है। तो, 10 600 rubles के लायक 7.5 मिलीलीटर मापने वाला एक छोटा बीकर। और रूसी उत्पाद में यह उत्पाद खोजना मुश्किल है। एक बोतल के साथ एक बोतल की कीमत 21 470 rubles है। कर्तव्य मुक्त दुकानों में सुगंध की भी अत्यधिक सराहना की जाती है। लंकोम से कविता की सौ लीटर की बोतल 94 यूरो से है।
8b5573dbf80cd3c7701afb1bc0654d6de3919842
web
रूसी में चीनी मिट्टी के बरतन की रोजमर्रा की जिंदगी अपने शासन के तहत पीटर प्रथम के शाही हाथ पेश किया गया था, बर्तन यूरोप से आयात किया गया, उपलब्ध ऐसी खुशी केवल अमीर लोग थे। एक छोटी सी बाद में, चीनी मिट्टी के बरतन सेट एक मूल्यवान उपहार के रूप में प्रस्तुत किए गए। बाद चीन, सबसे अधिक मूल्यवान थे यूरोपीय ब्रांडों (Sevres, Meysensy) अपनी खरीद के लिए धन की भारी मात्रा में खर्च किया गया, कि पूरी तरह से अनुचित था। 1744 में महारानी एलिजाबेथ, एक "मिट्टी के बरतन कारख़ाना" सेंट पीटर्सबर्ग के पास निर्माण करने के लिए रूसी चीनी मिट्टी के बरतन के युग के रूप का आदेश दिया। मास्को में चीनी मिट्टी फैक्टरी पहली निजी कारखाने के रूप में इतिहास रच दिया। एक लंबे समय के लिए चीनी मिट्टी के बरतन उत्पादन केवल राज्य के अधिकार क्षेत्र में था, लेकिन वहाँ हमेशा एक निजी मालिक जो प्रतिस्पर्धा करने के लिए यदि आप नहीं है, तो कंपनी संप्रभु उद्यमों कर सकता हूँ चाहता है। 1766 में अंग्रेज फ्रैंट्स याकोव्लेविच गार्डनर, मौजूदा Urusova कारखाने के आधार पर अपने स्वयं के संयंत्र खोला। एक उद्यमी के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्हें बाजार से ड्राइव, घरेलू गुणवत्ता वाले उत्पादों की जगह चीनी मिट्टी के बरतन के यूरोपीय नमूना के साथ प्रतिस्पर्धा करने, और इच्छा थी। आधुनिक बयानबाजी में बोलते हुए, उन्होंने करने के लिए "importozamestit" यूरोपीय माल का फैसला किया और प्रयास सफल रहा था। पहले स्थान पर आवश्यक कच्चे माल में व्यापार के संगठन, और गार्डनर के लिए, वह लगभग पूरे देश का दौरा किया, चेर्निहाइव (लिटिल रूस) में एक मिट्टी जमा पाया। फ्रांज Gattenberga (जिनेवा प्रोफेसर विश्वविद्यालय) - promashek ऐसा करने के लिए और पहिया बदलने नहीं, वह बात विशेषज्ञ आकर्षित किया। और यह इतनी अच्छी तरह से चला गया है कि कारखाने में 1777 से 1783 को महारानी कैथरीन द्वितीय की सेवा के लिए चार पदक रिहा कर दिया गया है और उसे करने के लिए प्रस्तुत किए गए। अनुभव एक सफलता थी, कारखाने के मालिक शाही महल में सबसे ज्यादा दर्शकों, जिसके बाद उन्होंने मास्को के राज्य-चिह्न है, जो गुणवत्ता चिह्न के लिए समान था की छवि के साथ मुहर लगा करने के लिए हकदार था का दौरा किया। फ्रांज गार्डनर, टुकड़ा माल के साथ साथ, चीनी मिट्टी के बरतन मेज के बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया है। पहले कार्यकर्ताओं यूरोपीय विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकी, संख्या प्रसिद्ध Meissen से तैयार हुए। रूसी चीनी मिट्टी के बरतन गुणवत्ता और कलात्मक प्रदर्शन में यूरोपीय से अलग नहीं है, लेकिन कीमत बहुत अधिक किफायती था। रूस अत्यधिक उत्पादों कारखाने और उन सभी यूरोपीय निर्माताओं के लिए खर्च नहीं उठा सकते हैं, जो खरीदने के लिए खुश मूल्यवान। 1771 में, लगभग सत्तर कार्यकर्ताओं विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत थे, उनकी संख्या 10 वर्षों में दोगुनी हो गई है। सभी नौकरियों रूसी विशेषज्ञों का कब्जा था, केवल एक कलाकार के प्रबंधन और विदेशों से छुट्टी दे दी गई है। फ्रांज गार्डनर चीनी मिट्टी के बरतन के उत्पादन में अपनी खुद की शैली, सैकड़ों में कास्टिंग के नमूनों की संख्या को खोजने के लिए सक्षम था। व्यंजन के अलावा डाला और पेंट चीनी मिट्टी के बरतन सैलून अद्वितीय मूर्तियां हैं, जिनमें से लेखकों प्रसिद्ध थे कलाकारों थे। संस्थापक की मृत्यु के बाद, मास्को में चीनी मिट्टी के बरतन कारखाने सभी निजी रूसी कारखानों का सबसे अच्छा माना जाता था। मामले उत्तराधिकारियों को लिया गया थाः अपनी मृत्यु से पहले थोड़े समय, कंपनी के संस्थापक के ज्येष्ठ पुत्र में अपनी पत्नी लगी हुई थी, और उसके बाद। उसके हाथ में कारखाना अपने पदों में से लगभग सभी को खो दिया है, लेकिन उसके बाद मामला उसके बच्चों को ले लिया, उत्पादन पुनर्जीवित किया गया था। यह विनिर्माण प्रौद्योगिकी मिट्टी के बरतन में महारत हासिल किया गया था। सन 1829 में, सोने उत्पादन प्रथम औद्योगिक प्रदर्शनी प्राप्त हुआ है। 1855 में वह करने के लिए दो सिरों ईगल के सार्वजनिक कलंक पर डाल उत्पादों का निर्माण सही प्राप्त किया। पूरे के दौरान 19 वीं सदी मास्को में चीनी मिट्टी फैक्टरी के शाही अदालत के आपूर्तिकर्ताओं में से एक व्यापार शो में उत्पादों की गुणवत्ता की पुष्टि करता है, 1856 के बाद से हो जाता है। सदी के अंत में वारिस कंपनी मात्वे कुज़्नेत्सोव बेच दिया। उन्होंने न केवल उत्पादन सुविधाओं, लेकिन यह भी सभी आकृति, पैटर्न और क्लासिक garderovskih चित्र का एक विशाल संग्रह हासिल कर ली। मास्को में चीनी मिट्टी फैक्टरी (Verbilki) में कुछ के साथ कुजनेत्सोवा थैलीशाह मिला महिमा फीका है, लेकिन एक ठोस कारोबार के साथ। कारखाने उत्पादित माल 208 हजार रूबल एक साल, और 700 आत्माओं की तुलना में अधिक कर्मचारियों की संख्या के अधिग्रहण के समय तक। कुज़्नेत्सोव इसकी महिमा का पूरा पुनरुद्धार के लिए, अपनी सारी विरासत में मिला धन और एक शतक और इतिहास का एक आधा इस्तेमाल किया। बात सभी उत्पादों पर मास्को में संयंत्र के एक ब्रांड का उपयोग करने के बुद्धिमान निर्णय करने के लिए ग्राहक आधार पूरी तरह से संरक्षित किया गया है धन्यवाद विस्तार किया गया है,। नए मालिक उत्पादों है कि सच नहीं थे की सीमा को नवीनीकृत नहीं करना चाहता था। माल की मदों की संख्या लोकप्रिय व्यंजन और मूर्तियों के 4 से अधिक लाख यूनिट थी। संयंत्र में वर्षगांठ विशेष संग्रह की रिहाई के निशान। तो यह Borodino, रोमानोव के शासनकाल की 300 वीं वर्षगांठ की लड़ाई की 100 वीं वर्षगांठ सील किया गया था। राष्ट्रीयकरण के बाद, निर्माण आधिकारिक तौर पर मास्को में चीनी मिट्टी फैक्टरी के रूप में जाना जाने लगा। बाद क्रांतिकारी अवधि में उत्पादन में काफी गिरावट आई, और जो उत्पादन किया जाता है, विनय decals (डीकल) या प्रतिनिधित्व किया प्रचार लेख के साथ सजाया गया था। सबसे प्रसिद्ध, 1930 में, मैं एक सेवा मास्को में चीनी मिट्टी "कुबड़ा हार्स" संयंत्र के, और साथ ही अन्य कार्यों के प्रतिभावान मूर्तिकार एसएम ओर्लोव ब्रश से प्राप्त हुआ है महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध के चीनी मिट्टी के बरतन रिलीज होने के दौरान काफी कमी आई है, लेकिन अवधि उज्ज्वल काम करता है द्वारा चिह्नित किया गया। सेवा "मातृभूमि के लिए लड़ाई" (ए Chechulina द्वारा) महान जनरलों "Suvorov" के साथ छवियों का एक सेट जारी किया है, "अलेक्जेंडर नेव्स्की", "Kutuzov", सोवियत सैन्य नेतृत्व पुरस्कार की छवि (प्रमाणन। Demorrey टी) बनाया गया था के साथ सेट। CJSC "चीनी मिट्टी Verbilok": 1991 में दिमित्रोव चीनी मिट्टी के बरतन कारखाने एक संयुक्त स्टॉक कंपनी, आधिकारिक नाम बन गया। 1995 के बाद से, ऑपरेटिंग सहायक 'Verbilok कटाई करने के लिए "। नई सुविधा प्रशासन और कर्मचारियों के संयंत्र के संस्थापकों द्वारा निर्धारित परंपराओं के व्यस्त पुनरुद्धार कर रहे हैं। 1996 में, कंपनी के रूप में अच्छी तरह से मेक्सिको में के रूप में बर्मिंघम में अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में पुरस्कार प्राप्त,। 2007 के बाद से, संयंत्र पैरोकार के गिल्ड में सदस्यता के हिस्से के रूप क्रेमलिन के लिए अपने उत्पादों की आपूर्ति। कंपनी अब "गार्डनर कारख़ाना" कहा जाता है, लेकिन मास्को में चीनी मिट्टी के बरतन कारखाने के पुराने नाम के साथ कई के लिए अधिक परिचित। उत्पाद कई संग्रहणीय लाइन का उत्पादन किया। संग्रह "फ्रैंट्स गार्डनर" परंपरागत रूपों उम्र 19-20 चीनी मिट्टी के बरतन जान। कंपनी जादूगर उपहार वस्तुओं पर वास्तव में शिलालेख करता है (चाय जोड़े, सेट, मूर्तियों)। इसके अलावा परिवार व्यंजन जिस पर कलाकारों परिवार चढाई की, मोनोग्राम या चयनित पैटर्न बारे में उपलब्ध है। कंपनी विभिन्न प्रयोजनों, चाय और कॉफी जोड़े, फल, फूलदान, बच्चों के सेट के लिए के लिए सेट पैदा करता है।
6ef8582982aed9a058955c2e5de0cbdb2340fc24
web
असाध्य रोग- एड्स-क्या वास्तव में असाध्य यौन रोग है? असाध्य रोग- एड्स-क्या वास्तव में असाध्य यौन रोग है? एलोपैथिक पद्धति से ग्रंथि रोगों के इलाज़ के बाद 95% रोगी जीवन भर के लिए स्थाई रोगी बन गये। जिनमें अस्सी प्रतिशत लोग तड़प कर प्राण त्याग किये। होम्योपैथिक पद्धति से तीस प्रतिशत लोग स्थाई ग्रंथि रोगों से मुक्ति नहीं पा सके। तथा वे स्थाई रोगी बन गये. जिनमें चालीस प्रतिशत लोग तड़प कर मरे। बायोकेमिक पद्धति से ग्रंथि रोगों के इलाज़ में मात्र तेरह प्रतिशत लोगो का इलाज़ हुआ. जिनमें तीस प्रतिशत बड़े कष्ट में मरे। प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा इन ग्रंथि रोगों का कोई इलाज़ नहीं हो सका। यूनानी पद्धति से चौवन प्रतिशत लोग इलाज़ कराये। किन्तु स्थाई इलाज़ नहीं मिल पाया। यह अवश्य रहा कि किसी को तड़प कर प्राण नहीं त्यागने पड़े। आयुर्वेदिक पद्धति से ग्रंथि रोगों का जितने भी लोगो ने इलाज़ कराया उनमें शत प्रतिशत लोग सफल हुए। और पूरी जिंदगी जीये। एड्स- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे इम्यून डेफिशियेंसी सीरम को एड्स कहा जाता है। इस रोग में कोशिकीय द्रव्य (Cellulozyme) में जीव द्रव्य या नाभिकीय द्रव्य (Nucleic Acid) अपने घनत्व को 1900 से घटाकर 80 से कम कर देता है। तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता (Metabolization Efficiency) समाप्त हो जाती है। शास्त्रीय भाषा में इसे दो नामो से जाना जाता है। प्रथम कोशिकाघात तथा दूसरा पुन्सार्बुद। यदि जीवमूल के अभिद्रव्य का क्षरण अधोगामी होकर त्रिनाड़ी चक्र के विपरीत दिशा में निकल जाता है तो कोशिकाघात होता है। ज्योतिषीय मतानुसार जब कोई कुंडली का कारक शुभ ग्रह किसी बलवान अशुभ भावेश के साथ छठे, आठवें या द्वादश भाव में बैठ जाय, तथा द्विस्वभाव राशि का लग्न या चर राशि का छठा भाव या चर राशि का आठवाँ भाव या चर राशि का बारहवाँ भाव परस्पर कोई एक दूसरे से किसी केंद्र में युति बना ले तो कोशिकाघात होता है। जब श्वेत रक्त कणिका (WBC) को जीव द्रव्य या RNA या Ribo Nucleic एसिड स्वयं पचाना शुरू कर देता है (Delusion of WBC) तो पुन्शार्बुद होता है। ज्योतिषीय मतानुसार लग्नेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में तथा षष्ठेश, अष्टमेश या व्ययेश में से कोई दो लग्न में युति करें, तथा मंगल, शनि या राहु से गुरु इन तीनो स्थानों में से किसी एक में हो तो पुन्सार्बुद होता है। ध्यान रहे यदि उपरोक्त स्थितियों में किसी तरह भी केंद्र या कोण में लग्नेश को त्रिषडायेष से चार बल ज्यादा मिलते हैं तो रोग नहीं होने देगा। चूंकि जीवमूल संचय-संरक्षण की यह अत्यंत धीमी एवं परारासायनिक प्रक्रिया है। अतः इससे मुक्ति में उतना समय लग जायेगा। जितना मूल नाभिकीय द्रव्य का घनत्व (Dense gravity of Nuclear Fusion) घट गया होगा। इसके सम्बन्ध में विद्रांकू, हर्यद्रथ, पुदुमलोचि आदि प्रसिद्द अरण्य साधको ने दिशा निर्देश दिये हैं। अर्थात खदिर, मजीठ, कुटकी, दारुहल्दी, सैलावर, प्राचिरंग, मरैता, धायफूल, किरौंची, नागकेशर, विडाल राग, माक्षिक भष्म, पन्नग भष्म, वज्र भष्म, रौप्य भष्म, हरिशंकरी का स्राव, नीमातकी, हर्यवर, कंकोल, दधिकेशर, नागकेशर एवम शुद्ध गन्धक का वर्धक क्रम परिपाक कोशिकाघात को समूल नष्ट करने में पूर्णतया सक्षम है। ऊपर के वर्णन में गुडूची, कज्जली, बंघोरा, सुर्खी एवं जानु रोचन मिला देने से पुन्शार्बुद को समूल नष्ट कर देता है। किन्तु ध्यान रहे, यदि पुन्शार्बुद न हो तो इन द्रव्यों को न मिलायें। अन्यथा विष्फोटक उपद्रव हो सकता है। बड़े अफसोस की बात है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इस रोग की उत्पत्ति अनधिकृत/अनियंत्रित/असुरक्षित यौन सम्बन्ध से घोषित कर दी है। दूसरी तरफ यह भी घोषित कर दिया है कि एड्स पीड़ित माता पिता के द्वारा गर्भस्थ शिशु को भी यह रोग हो जायेगा। तो फिर उस गर्भस्थ शिशु ने कौन सा असुराक्षित यौन सम्बन्ध बनाया जिससे उसे हो गया? इसके अलावा क्लोम से एक व्यक्ति की जीवित प्रतिकृति तैयार करने में सक्षम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कारण जानने के बावजूद भी आज तक इस रोग का इलाज़ क्यों नहीं ढूंढ लिया? बहुत घटिया बात है कि इस रोग को यौन जनित करार देकर आज का चिकित्सा विज्ञान इस रोग से पीड़ित रोगी को शर्म और घृणा के भयंकर मानसिक दबाव में मार रहा है। बेचारा रोगी समाज से मुँह छिपाते घुट घुट कर मर जाता है। जब की इन रोगियों में अस्सी प्रतिशत रोगी प्राकृतिक रूप से स्नायु मंडल के विकृत रक्त उत्सर्जन के कारण होते है। केवल बीस प्रतिशत ही असुरक्षित यौन संबंधो के कारण इस रोग के शिकार होते है। उपर्युक्त औषधि योग से नीरोग होकर सामान्य जीवन जी रहे एक सौ पचासी रोगियों में मात्र तीस रोगी ही यौन संबंधो के कारण इस रोग से पीड़ित हुए थे। चूंकि यह एक घृणित सामाजिक रोग के रूप में जाना जाता है। अतः ऐसे रोगी जो नीरोग हुए है वे अपना वास्तविक परिचय देने से भी कतराते है। तथा चिकित्सको से अपना नाम गुप्त ही रखने की प्रार्थना करते है। अन्यथा समाज में जान जाने पर लोग उसे तिरस्कृत कर देगें। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में चीन देश एवं भूटान के सीमावर्ती क्षेत्र जो ऋषि ब्रिज के पश्चिम में स्थित है, उस पूरे क्षेत्र को चिकित्सको ने समग्र रूप से एड्स पीड़ित घोषित कर रखा है। अर्थात सौ प्रतिशत लोग एड्स के मरीज है। दक्षिण-पश्चिम नागालैंड, पूर्वी आसाम एवं मणिपुर भी लगभग इसी श्रेणी में रखा गया है। दक्षिण अफ्रिका का रवान्डा, मोजाम्बिया, नामीबिया, सूडान का दक्षिण-पूर्वी भाग भी लगभग शत प्रतिशत इसी श्रेणी में रखा गया है। किन्तु ऊपर के वर्णित सारे देशो-प्रान्तों के निवासियों की औसत उम्र सत्तर वर्ष है। अफ्रिका में इस रोग को मुझे जहां तक याद है, स्थानीय भाषा में "र्ह्यामडीन" और भारत के ऊपर बताये पूर्वोत्तर राज्यों में इसे स्थानीय भाषा में "मिचांग" कहते है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे एड्स के नाम से जाना जाता है। भारत के उपरोक्त राज्यों में इस रोग के उपचार करने वाले चिकित्सक को स्थानीय भाषा में "आमची" कहा जाता है। अफ्रिका में पता नहीं क्या कहते है? हमारे भारत के "कुटजालता" की तरह अफ्रिका में एक पौधा होता है जिसे "वर्सिनिया" कहते है। "गुडूची" के सामान झाड वाले पौधे को वहाँ "सार्डिलोन" कहते है। ये दोनों वनस्पतियाँ अफ्रिका में नरभक्षी के रूप में जानी जाती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण एवं जलवायु की भिन्नता के कारण इनकी बनावट एवं क्रिया शैली में थोड़ी बहुत भिन्नता नैसर्गिक रूप से आ जाती है। और यहाँ के स्थानीय चिकित्सक इनकी सहायता से ही "र्ह्यामडीन" की चिकित्सा करते है। पता नहीं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसके ऊपर क्यों नहीं खोज करा रहा है। या किसी सशक्त माफिया की प्रतीक्षा कर रहा है। साक्षात जीव निर्माण करने में अपने आप को सक्षम कहने वाला विज्ञान कारण जानने के बावजूद भी जीव के इस रोग का इलाज़ आज तक क्यों नहीं ढूँढ पाया? या केवल शेखी बघारने में ही अपनी पीठ थपथपा कर ज्ञान की शेष विधाओं को अपने नीचे पैरो तले रखना चाहता है। अस्तु, जो भी हो, उपरोक्त औषधियों के अन्दर निहित अति उग्र रासायनिक यौगिक इस वर्त्तमान असाध्य एड्स रोग को समूल नष्ट करने में सक्षम है। सहायता की दृष्टि से इस औषधि निर्माण की संक्षिप्त एवं सरल विधि जो हो सकती है, जन समुदाय के लाभार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। उपरोक्त औषधि पदार्थों में तीन प्रकार की वस्तुएं हैं। काष्ठ, द्रव एवं शिला। काष्ठ औषधियों, द्रव एवं शिला में २ः५ः१० का अनुपात होना चाहिये. अर्थात यदि दो सेर काष्ठ है तो पांच सेर द्रव एवं दस सेर शिला या पाषाण द्रव्य होना चाहिए। काष्ठ औषधियों को पीतल या ताम्बे के खरल में इतना कूटें कि सब बारीक चूर्ण बन जाय। फिर बार बार छनकर आये मोटे अवशेष को पुनः कूटें। इतनी बार कूटें कि दो सेर में मोटा हिस्सा अंत में एक तोला से ज्यादा न बचे। इसके बाद द्रव पदार्थो को एक में मिलाकर तब तक हलकी आँच पर गर्म करें जब तक कि द्रव पदार्थ एक चौथाई न बच जाय। इसी प्रकार पाषाणीय औषधियों को खरल में खूब महीन कूट लें। अब तीनो को एक में मिलाकर मिटटी की हांडी में रख कर ऊपर मिटटी के ढक्कन को रख कर गीली मिटटी से मुंह बंद कर दें। पांच-पांच सेर भांगरा, अडुलसा और सहिजन की पत्ती लेकर पीड़ित व्यक्ति के पूरे हाथ की गहराई एवं उतनी ही चौड़ाई का गड्ढा खोद कर पत्तियों में हांडी को लपेट कर उस गड्ढे में रख कर साफ़ मिटटी से ढक दें। एक बड़े मिटटी के सकोरे में तिल का तेल भरकर उसमें खड़ी बत्ती जला दें। तथा उस ढके गड्ढे के ऊपर रख दें। सात दिन बाद रात के अँधेरे में उस हंडिया को गड्ढे से बाहर निकालें। उसमें के सारे पदार्थ को किसी बर्तन में निकाल कर छाया में तब तक सुखाएं जब तक वह गोली बनाने योग्य न हो जाय। उसके बाद दस-दस रत्ती की गोली बनाकर रख लें। एक-एक गोली त्रिभष्म (वज्र,प्रवाल एवं पन्नग भष्म) के साथ दिन रात मिल कर तीन बार लें। तीसरे सप्ताह परिणाम सामने होगा। इनमें कुछ औषधियों के अनेक नाम हैं। जो विविध स्थान पर विविध नाम से प्राप्त होती हैं। यथा मरैता -इसे भरोय, ग्रीष्म बेल, तिखदोहना, रौन्ठ, निमकाजू तथा बनशतावरि आदि नामो से जाना जाता है। इनके विविध नामो की सूची भैषज्य पार्थक्यम (स्वामी अनन्य वर्धन कृत), दिव्य वसुंधरा, भाव विभावरी, भैषज्य रत्नावली, भावार्थ रत्नाकर, भाव प्रकाश, शारंगधर संहिता, चरक संहिता तथा सुश्रुत उपाख्यानम आदि अनेक ऐसे ही ग्रंथो से प्राप्त किये जा सकते है। एक दैव प्रकोप अवश्य है कि जो बेचारा निर्धन होगा वह इसे नहीं कर पायेगा। कारण यह है की ये औषधियाँ बहुत ही मंहंगी मिल रही है। इसका कुछ कारण इन अमोघ प्राकृतिक वनस्पतियो की कालाबाजारी है। तथा दूसरा कुछ का विलुप्त प्राय हो जाना है।
2ae43836138360d297831891ab7feb4f7b4d6eb4
web
Afganistan : पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में 23 हज़ार करोड़ का बड़ा निवेश किया है। लेकिन अफगानिस्तान अब पूर्ण रूप से तालिबान के कब्जे में आ चुका है। Afganistan : अफगानिस्तान अब पूर्ण रूप से तालिबान के कब्जे में आ चुका है। कल तालिबान प्रमुख अपने लड़ाकों साथ राष्ट्रपति भवन में पहुंचे। जिसके बाद वह की राजनीतिक पार्टियां अब तालिबान के आक़ाओं से वार्ता स्थपित करने को तैयार हो गयी हैं। अफगानिस्तान तेज़ी से हालात बिगड़ रहे हैं। कुछ दिन पहले अफगानिस्तान के वित्त मंत्री ने देश छोड़ दिया था। कल की खबरों से ज्ञात है कि अब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी देश छोड़ दिया है । जिस्क्स बाद अमेरिकी और यूएन ने चिंता व्यक्त की है। इस बीच तालिबान ने पूरे देश में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। तालिबान ने पिछले कुछ सप्ताह में कई रणनीतिक जिलों में नियंत्रण हासिल किया है, जिनमें विशेष रूप से ईरान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमाओं से लगे इलाके हैं। इस बीच वहां राजनयिक स्तर पर भारत के लिए भी हालात ठीक नहीं है। मौजूदा हालात में भारत को यहां अपनी कोई भूमिका नहीं दिख रही है। हम जानते हैं कि तालिबान हमेशा से भारत विरोधी रहा है। अब अफगानिस्तान में भारत का प्रवेश मुश्किल ही है। पर हमने तालिबान के खात्मे के बाद पिछले करीब 20 सालों से अफगानिस्तान से रिश्ते बेहद मजबूत किये थे। । पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में 23 हज़ार करोड़ का बड़ा निवेश किया है। भारत ने यहां महत्वपूर्ण सड़कों, बांधों, बिजली लाइनों और सब-स्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण किया है। लेकिन भारत के इस निवेश का भविष्य क्या होगा इस पर गौर किया जाना जरूरी है। साल 2011 के भारत-अफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते के तहत बुनियादी ढांचे और संस्थानों के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए सिफारिश की गई थी। लिहाज़ा कई क्षेत्रों में अफगानिस्तान में निवेश को बढ़ावा दिया गया। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब एक अरब डॉलर का है। नवंबर 2020 में जिनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन में बोलते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा आज भारत के प्रोजेक्ट से अछूता नहीं है। उन्होंने कहा था कि यहां के 34 प्रांतों में 400 से अधिक प्रोजेक्ट्स हैं। सलमान डैम अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में है। यहां भारत ने 42 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट लगाया गया है। कई मुश्किलों के बाद इस प्रोजेक्ट को पूरा किया गया। साल 2016 में इसका उद्घाटन किया गया। इसे अफगान-भारत मैत्री डैम के रूप में जाना जाता है। ये दूसरा हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट है, जिसे सीमा सड़क संगठन ने तैयार किया था। 218 किलोमीटर लंबे इस राजमार्ग का ज़रांज इलाका ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा के करीब स्थित है। 150 मिलियन डॉलर का राजमार्ग खश रुड नदी के साथ जरंज के उत्तर-पूर्व में डेलाराम तक जाता है, जहां यह एक रिंग रोड से जुड़ता है, जो दक्षिण में कंधार, पूर्व में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है। पाकिस्तान के रास्ते भारत का अफगानिस्तान के साथ व्यापार नहीं होता है, इसलिए इस हाइवे का नई दिल्ली के लिए काफी रणनीतिक महत्व का है। ये ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान में एक वैकल्पिक रास्ता देता है। काबुल में अफगान संसद का निर्माण भारत ने 90 मिलियन डॉलर में किया था। इसे 2015 में खोला गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भवन का उद्घाटन किया। इमारत के एक ब्लॉक का नाम पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है। साल 2016 में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और प्रधानमंत्री मोदी ने काबुल में स्टोर पैलेस का फिर से उद्घाटन किया। ये मूल रूप से 19वीं शताब्दी के आखिर में बनाया गया था। इस इमारत में 1965 तक अफगान विदेश मंत्री और मंत्रालय के कार्यालय थे। 2009 में, भारत, अफगानिस्तान और आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क ने इसकी बहाली के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर ने 2013 और 2016 के बीच परियोजना को पूरा किया। भारत ने एक बच्चों के अस्पताल का पुनर्निर्माण किया है, जिसे उसने 1972 में काबुल में बनाने में मदद की थी। इसका नाम 1985 में इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान रखा गया था। बाद में ये युद्ध के दौरान जर्जर हो गया था। भारत ने सीमावर्ती प्रांतों बदख्शां, बल्ख, कंधार, खोस्त, कुनार, नंगरहार, निमरूज, नूरिस्तान, पक्तिया और पक्तिका में भी क्लीनिक बनाए हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने शहरी परिवहन के लिए 400 बसें और 200 मिनी बसें, नगर पालिकाओं के लिए 105 उपयोगिता वाहन, अफगान राष्ट्रीय सेना के लिए 285 सैन्य वाहन और पांच शहरों में सार्वजनिक अस्पतालों के लिए 10 एम्बुलेंस उपहार में दीं। अफगानिस्तान में अन्य भारतीय परियोजनाओं में राजधानी काबुल को बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के पावर इन्फ्रा प्रोजेक्ट पर काम किया। बघलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी से काबुल के उत्तर में 220kV डीसी ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण भारत की तरफ से किया गया। नवंबर में जिनेवा सम्मेलन में जयशंकर ने घोषणा की थी कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौता किया है। इससे 20 लाख लोगों को सुरक्षित पेयजल का लाभ मिलेगा। उन्होंने 80 मिलियन डॉलर की लगभग 100 सामुदायिक विकास परियोजनाओं की शुरुआत की भी घोषणा की थी। पिछले साल नवंबर में जिनेवा सम्मेलन में, जयशंकर ने घोषणा की कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौता किया है। इस प्रोजेक्ट से 20 लाख लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। जयशंकर ने 80 मिलियन डॉलर की लगभग 100 कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत की भी घोषणा की। तालिबान से भारत को क्या खतरा है? अफगानिस्तान में ऊर्जा संयंत्र, बांध का निर्माण, राजमार्ग के निर्माण, स्कूल, भवन, संसद भवन के निर्माण में भारत ने अहम भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान के सैनिकों को ट्रेनिंग समेत अन्य तमाम सुविधाएं प्रदान की हैं। भारत की योजना अफगानिस्तान में सड़क और रेल लाइन बिछाने तथा मध्य एशिया तक फर्राटा भरने की थी। ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद इन सभी कोशिशों को करारा झटका लग सकता है। सबसे बड़ा खतरा भारत के सामने तालिबान में अस्थिरता फैलने के बाद आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद फैलने का है। इससे वहां अस्थिरकारी ताकतें हावी हो सकती हैं और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन इसके सहारे भारत में अस्थिरता की गतिविधियां बढ़ा सकते हैं। भारत के माथे पर क्यों हैं चिंता की लकीरें? भारत सरकार ने पिछले 20 साल में तालिबान और इसके नेताओं से कभी कोई संपर्क नहीं साधा। यहां तक कि 2008-09 में पाकिस्तान की तालिबान के नेताओं से अमेरिकी प्रतिनिधियों की बातचीत जैसे प्रयास का विरोध किया था। भारत ने अच्छे और बुरे तालिबान के तर्क को भी खारिज कर दिया था। भारत सरकार ने अफगानिस्तान में अपने हित और अफगानिस्तान के निर्माण का रास्ता वहां की सरकार के माध्यम से तय किया। भारत की इस कोशिश के सामानांतर पाकिस्तान तालिबान की सरकार को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में शामिल था। पाकिस्तान ने ही सबसे अंत में तालिबान सरकार के साथ अपने राजनयिक रिश्ते समाप्त किए। विदेश, रक्षा, खुफिया जानकारों की मानें तो तालिबान के तमाम सैन्य कमांडरों और कई शीर्ष नेताओं को पाकिस्तान से सहायता मिलती है। चीन ने भी अफगानिस्तान में अपनी योजना को साकार करने के लिए पाकिस्तान का सहारा लिया है। बताते हैं कि चीन के ही प्रयास से रूस ने पाकिस्तान के साथ संबंध ठीक किए हैं और चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान अपना हित साधने का रोडमैप बना रहे हैं। तुर्की ने अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के प्रयासों को तेज कर दिया है। उसने एक तरफ अमेरिका तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को साधने की भी कोशिशें तेज की हैं। इस रोडमैप में भारत के पास सबसे विश्वस्त सामरिक साझीदार सहयोगी देश केवल रूस है। बताते हैं कि यह चिंता केवल भारत की नहीं है। उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान की भी है। हालांकि ये अफगानिस्तान के पड़ोसी देश हैं। भारत के हाथ में क्या है? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की टीम इसी का जवाब तलाशने में लगी है। अफगानिस्तान भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हमेशा बहुत महत्वपूर्ण रहा है। अफगानिस्तान में अस्थिरता बढ़ने पर जिहादी और कट्टरपंथी ग्रुप कश्मीर में सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में भारत की रणनीति रही है कि अफगानिस्तान की उस राजनीतिक सत्ता से नजदीकी रखी जाए, जो वहां के कट्टरपंथी समूहों को काबू में रख सके। इसके अलावा ईरान जैसे देशों के साथ व्यापारिक लिहाज से भी अफगानिस्तान भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। इस टीम को पता है कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज हुआ तो हालात 90 के दशक से कई गुना अधिक खराब हो सकते हैं। अफगानिस्तान और तालिबान से संबंधों तथा हितों के मामले में भारत को ऐसी स्थिति में दूसरे देशों पर अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है। सऊदी अरब, यूएई, रूस, ईरान अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
92e708a99d412a909dcbb60c4667eb01813ccae1
web
5. नौवहन कार्यवाही की स्वतंत्रता (FONOP) विषयः सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय। (Places of Worship Act) विशेषज्ञों के अनुसार, उपासना स्थल अधिनियम (Places of Worship Act), 1991 के अंतर्गत काशी और मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों की जाँच करना प्रतिबंधित है। संबंधित प्रकरणः - यह मामला, हाल ही में वाराणसी की एक अदालत द्वारा 'काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद' परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को जांच करने का आदेश जारी करने के बाद सामने आया है। - विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया है, कि क्या सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा उचित ठहराए गए कानून के खिलाफ, सिविल कोर्ट के न्यायाधीश को इस तरह का निर्देश जारी करने की शक्ति हासिल है? उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के बारे मेंः - अधिनियम में यह घोषणा की गयी है, कि किसी भी उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही रहेगा जैसा 15 अगस्त 1947 को था। - इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल को अलग संप्रदाय या वर्ग में नहीं बदलेगा। - इस क़ानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को विद्यमान किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप के संपरिवर्तन के संदर्भ में किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही इस अधिनियम के प्रारंभ पर उपशमित हो जाएगी और इसं पर आगे कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। अधिनियम के उद्देश्यः - इस अधिनियम का उद्देश्य, किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप को, उसकी 15 अगस्त 1947 को विद्यमान स्थिति में स्थिर रखना है। - अधिनियम में, उपासना स्थल के उक्त तिथि को विद्यमान धार्मिक स्वरूप के रखरखाव का भी प्रावधान किया गया है। - इसका उद्देश्य किसी भी समूह द्वारा उपासना स्थल की पूर्व स्थिति के बारे में, तथा उस संरचना अथवा भूमि पर नए दावे करने से रोकने हेतु पहले से उपाय करना था। - इस क़ानून से दीर्घकालीन सांप्रदायिक सद्भाव के संरक्षण में मदद करने की अपेक्षा की गयी थी। अधिनियम के प्रावधान निम्नलिखित संदर्भों में लागू नहीं होंगेः - उक्त उपधाराओं में निर्दिष्ट कोई उपासना स्थल, जो प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अन्तर्गत आने वाला कोई प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक या कोई पुरातत्वीय स्थल या अवशेष है। - इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा, उपरोक्त मामलों से संबंधित कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही, जिसका अंतिम रूप से विनिश्चय, परिनिर्धारण या निपटारा कर दिया गया है। - इस अधिनियम की कोई बात उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में सामन्यतः ज्ञात स्थान या उपासना स्थल से संबंधित किसी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही पर लागू नहीं होगी। इस अधिनियम के उपबंध, किसी अन्य लागू क़ानून के ऊपर प्रभावी होंगे । प्रीलिम्स लिंकः मेंस लिंकः 'उपासना स्थल अधिनियम' से संबंधित मुद्दों पर एक टिप्पणी लिखिए। विषयः भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि जम्मू में बंद अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को कानून का पालन किए बगैर वापस म्यांमार नहीं भेजा जाएगा। केंद्र सरकार ने, अदालत को आश्वासन देते हुए कहा है कि रोहिंग्या प्रवासियों को देश से निर्वासित करने में कानून का निष्ठापूर्वक पालन किया जाएगा। संबंधित प्रकरणः कुछ समय पूर्व, अदालत में रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित एक याचिका दायर की गई थी, जिसमे, हिरासत में लिए गये रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल तुरंत रिहा करने तथा केंद्र शासित प्रदेश सरकार और गृह मंत्रालय को अनौपचारिक शिविरों में रोहिंग्याओं के लिए शीघ्र ही 'शरणार्थी पहचान पत्र' जारी करने हेतु निर्देश देने की मांग की गयी है। अदालत की टिप्पणीः हालांकि, संविधान में प्रतिष्ठापित 'समता का अधिकार' (अनुच्छेद 14) और 'विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया' (अनुच्छेद 21) का अधिकार भारत के नागरिकों तथा प्रवासियों, दोनों को प्राप्त है, तथा 'निर्वासित नहीं किए जाने का अधिकार' नागरिकता के आनुषंगिक है। - 'निर्वासित नहीं किए जाने का अधिकार', संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(e) के तहत प्रद्दत 'भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने या बसने के अधिकार' के 'आनुषांगिक' या 'सहवर्ती' है। - संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(e), भारत के प्रत्येक नागरिक को, देश के संपूर्ण राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध रूप से भ्रमण करने, निवास करने और बसने का अधिकार प्रदान करता है। भारत में शरणार्थियों पर लागू होने वाले कानून और नियमः भारत में, विशेष रूप से शरणार्थियों से संबंधित कोई कानून पारित नहीं किया गया है। - इसलिए, रोहिंग्या शरणार्थियों को अक्सर 'विदेशियों विषयक अधिनियम' (Foreigners Act), 1946 तथा 'विदेशियों विषयक आदेश' (Foreigners Order), 1948 के तहत सरकार द्वारा निर्वासित किये जाने वाले अवैध आप्रवासियों के वर्ग में शामिल कर लिया जाता है। - हालांकि, एक विधिक रूप से, शरणार्थी, अप्रवासियों की एक विशेष श्रेणी होते है और उन्हें 'अवैध अप्रवासियों के वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता है। प्रीलिम्स लिंकः - रोहिंग्या कौन हैं? - 'रखाइन प्रदेश' की अवस्थिति। - अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में। - अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) बनाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय। मेंस लिंकः रोहिंग्या संकट पर एक टिप्पणी लिखिए। विषयः भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध। भूटान और चीन, दोनों देश, शीघ्र ही सीमा-वार्ता आयोजित करने तथा सीमा-विवाद संबंधी समाधान प्रक्रिया को तेज करने हेतु रोडमैप पर चर्चा करने के लिए सहमत हो गए हैं। आगामी वार्ता, दोनों देशों के मध्य सीमा वार्ता प्रक्रिया का 25 वां दौर होगा। वर्ष 2017 में हुए डोकलाम गतिरोध, तथा अरुणाचल प्रदेश के साथ लगने वाली भूटान की पूर्वी सीमा पर जून 2020 में चीन के द्वारा अपना दावा करने के बाद यह पहली वार्ता होगी। विवादित क्षेत्रः अब तक, इन वार्ताओं में दो विवादित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया हैः भूटान के उत्तर में अवस्थित 'पसामलंग घाटी' (Pasamlung Valley) तथा 'जकरलंग घाटी' (Jakarlung Valley) और भूटान के पश्चिम में भारत के साथ त्रिकोणीय जंक्शन पर अवस्थित 'डोकलाम'। हालांकि, जून 2020 में संयुक्त राष्ट्र की एक पर्यावरणीय बैठक में, चीन ने भूटान के पूर्वी क्षेत्र में अवस्थित 'सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य' (Sakteng Wildlife sanctuary) को भी विवादित बताते हुए, अभयारण्य को दिए जा रहे अनुदान पर आपत्ति जताई थी। भारत के लिए चिंता का विषयः - चीन द्वारा किये जाने वाले क्षेत्रीय दावे, भारत के छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव डालने तथा इन देशों को भारत के साथ किसी प्रकार की निकटता रखने के लिए दंडित करने हेतु, चीनी रणनीति का एक हिस्सा है। - वर्ष 2017 में चीन ने 'डोकलाम पठार' में घुसपैठ की थी, जिस पर भूटान अपना दावा करता है, जिससे भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 'गतिरोध' की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। प्रीलिम्स लिंकः - मानचित्र पर निम्नलिखित को खोजेंः सकतेंग, डोकलाम, जकरलंग, चुम्बी घाटी और डोकलाम। - भारत, भूटान और चीन के मध्य त्रि-पक्षीय संधि-स्थल सीमा। मेंस लिंकः डोकलाम स्टैंड-ऑफ पर एक टिप्पणी लिखिए। विषयः भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध। चीन और पाकिस्तान ने संयुक्तराष्ट्र संबंधी मामलों पर द्विपक्षीय विमर्श करने के बाद, संयुक्त राष्ट्र में एक-दूसरे के "मूल एवं प्रमुख हितों" का समर्थन करने का वादा किया है। बीजिंग, 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करेगा और इस्लामाबाद, चीन को हांगकांग और शिनजियांग मुद्दों पर समर्थन देगा। भारत के लिए चिंता का विषयः - चीन और पाकिस्तान, अपने संबंधों को आधिकारिक तौर पर 'हर-मौसम के साथी' (all-weather partners) तथा दोनों देशों को 'आयरन ब्रदर्स' बताते हैं। हाल ही के महीनों में, दोनों देशों ने अपने लिए संवेदनशील समझे जाने वाले मुद्दों पर एक दूसरे को अत्यंत महत्वपूर्ण समर्थन देने संबंधी समझौता किया है। - दोनों देशों के मध्य रिश्तों में यह विकास, विशेषकर भारत, यू.एस., ऑस्ट्रेलिया और जापान के चतुर्पक्षीय फ्रेमवर्क तथा 'नियम-आधारित व्यवस्था', जिसे 'क्वाड' भी कहा जाता है, को लक्षित करते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले "चयनात्मक बहुपक्षवाद" (Selective Multilateralism) की चीन द्वारा कड़ी आलोचना के दौरान हुआ है। - वर्ष 2019 और 2020 में, चीन ने 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' में कम से कम तीन मौकों पर कश्मीर मुद्दे को उठाया था, जिसमे चीन ने, भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरसित करने, जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन तथा इसके विशेष दर्जे को रद्द करने संबंधी मामलों पर चर्चा करने का प्रस्ताव किया था। विषयः महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश। नौवहन कार्यवाही की स्वतंत्रता (FONOP) (Freedom of Navigation Operation) हाल ही में, अमेरिकी नौसेना ने सार्वजनिक रूप जारी एक बयान में कहा है, कि उसने, इसी सप्ताह की शुरुआती दिनों में भारत के 'विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र' (Exclusive Economic Zone- EEZ) में लक्षद्वीप के निकट, जानबूझ कर, नई दिल्ली की पूर्व सहमति के बिना, 'नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही' अर्थात 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' (FONOP) को अंजाम दिया है। अमेरिका ने दावा किया है, कि भारत के समुद्री कानून, अंतर्राष्ट्रीय कानून- 'संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि' (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) - के अनुरूप नहीं है। भारत ने अमेरिका के इस दावे को खारिज करते हुए इस फैसले का विरोध किया है । - भारत के समुद्री कानून के अनुसार, किसी भी देश को उसके 'विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र' (EEZ) में सैन्य अभ्यास करने से पहले उसकी सहमति लेना आवश्यक है। - हालांकि किसी देश की, अपने तट से 12 समुद्री मील की दूरी तक क्षेत्रीय-जल पर 'पूर्ण संप्रभुता' होती है, किंतु उसके लिए, आधाररेखा से 200 समुद्री मील तक विस्तारित 'विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र' में केवल समुद्री संसाधनों की खोज और उपयोग संबंधी विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। संबंधित प्रकरणः अमेरिका का कहना है, कि, भारत की पूर्व सहमति लेने की आवश्यकता, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' (FONOP) से असंगत है। भारत, चीन और कई अन्य देशों के विपरीत, अमेरिका द्वारा 'संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि' (UNCLOS) की अभिपुष्टि नहीं की गई है। तथा अमेरिका, चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दावों को चुनौती देने के लिए विवादित दक्षिण चीन सागर तथा हिंद महासागर क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में, नियमित रूप से 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' (FONOP) करता रहता है। वर्तमान में चिंता का विषयः ऐसे समय में जब अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक 'विश्वसनीय निवारण' तैयार करने हेतु 'क्वाड' तथा अन्य तंत्रों के माध्यम से भारत का नजदीकी सहयोग हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है, तब भारत के 'विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र' में अमेरिका द्वारा 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' की 'आक्रामक रूप से सार्वजनिक घोषणा का लहजा और तेवर' भारतीय सुरक्षा संस्थानों के कान खड़े करता है। 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' क्या है? 'नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही' अर्थात 'फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन' (FONOP) में अमेरिकी नौसेना द्वारा तटवर्ती देशों के विशिष्ट क्षेत्रों के जल में मार्ग बनाना शामिल है। - इस प्रकार के अभिकथन इस बात का संकेत देते हैं, कि संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य देशों के अत्यधिक समुद्री दावों को चुपचाप स्वीकार नहीं करता है, और इस प्रकार, यह, इन देशों द्वारा किए गए दावों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में स्वीकार किए जाने से रोक देता है। प्रीलिम्स लिंकः - UNCLOS क्या है? - EEZ क्या है? मेंस लिंकः विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के महत्व पर चर्चा कीजिए। विषयः संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन। (Ken-Betwa project) कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के लिए, 'केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना' (Ken-Betwa river linking project) लागू नहीं करने के लिए एक पत्र लिखा है। क्योंकि, इस 'नदी जोड़ो परियोजना' से 'पन्ना टाइगर रिजर्व' को काफी नुक्सान होगा। राज्य सरकार का खुला अनुमान है कि इस परियोजना से बाघ अभ्यारण्य का लगभग 40 प्रतिशत इलाक़ा नष्ट हो जाएगा। - केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा 'विश्व जल दिवस' के अवसर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के साथ भारत की पहली प्रमुख नदी-जोड़ो परियोजना पर काम शुरू करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत केन और बेतवा नदियों को परस्पर जोड़ा जाएगा। - जल के बंटवारे को लेकर दो राज्यों के बीच असहमति के कारण, इस परियोजना के विचार को मंजूरी मिलने के लगभग 18 साल बाद इस समझौता ज्ञापन (MoA) पर हस्ताक्षर किए गए थे। केन-बेतवा परियोजना के बारे मेंः दो-भागों में पूरी की जाने वाली परियोजना के रूप में परिकल्पित 'केन-बेतवा परियोजना' देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना है। - इसे अंतरराज्यीय नदी स्थानांतरण मिशन हेतु एक मॉडल परियोजना के रूप में माना जाता है। - इस परियोजना का उद्देश्य, मध्य प्रदेश में केन नदी से अधिशेष जल को उत्तर प्रदेश की बेतवा नदी में स्थानांतरित करना है, जिससे सूखा-प्रवण बुंदेलखंड क्षेत्र के उत्तरप्रदेश में झांसी, बांदा, ललितपुर और महोबा जिलों और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर जिलों को सिंचित किया जा सकेगा। प्रमुख तथ्यः - केन और बेतवा नदियों का उद्गम मध्यप्रदेश में होता है और ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं। - केन नदी, उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में और बेतवा नदी हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती हैं। - राजघाट, परीछा और माताटीला बांध, बेतवा नदी पर स्थित हैं। - केन नदी, पन्ना बाघ अभ्यारण्य से होकर गुजरती है। प्रीलिम्स लिंकः - केन और बेतवा- सहायक नदियाँ और संबंधित राज्य। मेंस लिंकः 'केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना' के महत्व पर चर्चा कीजिए। - यह एक 'माइक्रोसेंसर-आधारित विस्फोटक ट्रेस डिटेक्टर' (Microsensor based explosive trace detector- ETD) है। - यह आईआईटी बॉम्बे इनक्यूबेटेड स्टार्टअप नैनोस्निफ टेक्नोलॉजीज (IIT Bombay Incubated Startup Nanosniff Technologies) द्वारा विकसित किया गया विश्व का पहला माइक्रोसेन्सर आधारित एक्सप्लोसिव ट्रेस डिटेक्टर (ETD) है। - 'नैनोस्निफर', अनुसंधान, विकास और विनिर्माण के मामले में 100% 'मेड इन इंडिया उत्पाद' है। 'नैनोस्निफर' की मुख्य तकनीक अमेरिका और यूरोप में पेटेंट द्वारा संरक्षित है। - यह उपकरण, 10 सेकंड से भी कम समय में विस्फोटक का पता लगा सकता है और यह विस्फोटको की विभिन्न वर्गों में पहचान और वर्गीकरण भी करता है।
6913c5c9baf4ea12bef3c41699537a779f1bff80
web
अक्टूबर का महीना त्यौहारों व उल्लास का समय है। चारों तरफ आस्था- पूजा संबंधी आयोजन हो रहे हैं और पूरा समाज भक्तिभाव में डूबा हुआ है। न केवल मंदिरों में बाजारों और मोहल्लों में भी स्थान-स्थान पर नवरात्रों के उपलक्ष्य में दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती की आराधना से वातावरण चौबीसों घंटे गूंजता है। समाज का लगभग हर व्यक्ति, कुछ कम कुछ ज्यादा इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है। सामाजिक उल्लास व सार्वजनिक सहभागिता का ऐसा उदाहरण और कहीं मिलता नहीं है। बच्चे, किशोर, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरूष, मजदूर, किसान, व्यापारी, व्यवसायी सभी इन सामाजिक व धार्मिक कार्यों में स्वयं प्रेरणा से जुड़े हैं। इन कार्यक्रमों के आयोजन के लिए और लोगों की सहभागिता के लिए कोई बहुत बड़े विज्ञापन अभियान नहीं चलते, छोटे या बड़े समूह इनका आयोजन करते है और स्वयं ही व्यक्ति और परिवार दर्शन-पूजन के लिए आगे आते हैं। कहीं भी न तो सरकारी हस्तक्षेप है और ना ही प्रशासन का सहयोग। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सभी महानगरों, नगरों और गांवों में धार्मिक अनुष्ठानों की गूंज है। केवल यह अक्टूबर में होता है ऐसा नहीं है, पूरे वर्ष छोटे या बड़े अंतराल से कुछ न कुछ आस्था व पूजा संबंधी कार्यक्रम पूरे देश में चलते रहते हैं। वर्ष में दो बार तो रोजों का ही चलन है, दो बार नवरात्रों में 20 दिन के लिए समारोह होते हैं। अक्टूबर के नवरात्रों का अन्त दशहरे के विशाल आयोजन से होता है और दिवाली के 20 दिनों की गिनती प्रारंभ हो जाती है। ईदज्जुहा पर भी सामूहिकता का परिचय होता है। बीच में करवा चौथ का त्यौहार पड़ता है जो कहने के लिए तो महिलाओं के लिए है परन्तु पूरा परिवार ही उसमें उत्साहित होता है। हर पति करवा चौथ के दिन सामान्य से अधिक प्रेम व महत्व प्राप्त करता है, जिससे पारिवारिक संबंध दृढ़ होते हैं। दिसम्बर में क्रिसमस, जनवरी में लोहड़ी, फरवरी में शिवरात्रि, मार्च में फिर से नवरात्र व होली, अप्रैल में वर्ष प्रतिप्रदा, गुड फ्रायडे व बाद में जन्माष्टमी, रक्षाबंधन और इसी तरह सिलसिला चलता रहता है। संक्रांति, अमावस्या, पूर्णिमा यह सभी हमारे समाज में कुछ न कुछ महत्व रखते हैं और अनुष्ठान, सरोवरों में नहाने आदि की अपेक्षा रखते है। इन पारंपरिक उत्सवों का रूप और भव्यता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और विशेष कर युवा वर्ग तो इनका आनंद सर्वाधिक लेता है। इसकी तुलना में स्वतंत्रता के बाद तीन राष्ट्रीय पर्वों में जनता की सहभागिता लगभग नगण्य है। गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) तो केवल सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गया है। स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में दिल्ली व अन्य प्रान्तों की राजधानियों में झांकियों आदि के कार्यक्रम होते थे और उसमें लोग उत्साह से जाते थे परन्तु वह उत्साह लगभग समाप्त हो गया है और ये कार्यक्रम केवल प्रशासनिक स्तर पर मनाये जाते हैं और जिनको उनमें होना आवश्यक है वही जाते है। इनमें आम जनता की उपस्थिति कम होती जा रही है। स्वतंत्रता दिवस यानि 15 अगस्त का भी यही हाल है। गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त के दिन राष्ट्रीय ध्वज यदि घर-घर पर दिखता, तो कह सकते थे कि आम व्यक्ति की भावना इन उत्सवों से जुड़ी है परन्तु ये दोनों दिन एक अवकाश के रूप में तो स्वागत योग्य होते है, परन्तु इनके महत्व को जानकर सामूहिक कार्यक्रमों का ना होना चिन्ता का विषय है। इसी प्रकार गांधी जयन्ती के दिन औपचारिक कार्यक्रम तो गांधी जी से संबंधित संस्थानों में हो जाते हैं परन्तु आम व्यक्ति गांधी को स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करे ऐसा होता नहीं है। 30 जनवरी को प्रातः 11. 00 बजे सायरन तो बजता है परन्तु कितने लोग उस समय मौन होकर गांधीजी को श्रृद्धांजलि देते हैं, यह सब जानते ही हैं। राष्ट्रीय उत्सवों में सहभागिता नहीं होने का अर्थ यह नहीं है कि समाज में राष्ट्रभाव की कमी है, परन्तु इन उत्सवों का सामाजिक चेतना से सम्बन्ध नहीं बन पाया है। इनके कारण एकता और समरसता का वातावरण नहीं हुआ है। हमारे समाज के पारंपरिक उत्सवों में भी बहुत परिवर्तन आये हैं, झांकियों में आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उनको अधिक आकर्षक बनाया जाता है, कलाकार मूर्तियों को गढ़ने में नित नए-नए प्रयोग करते हैं, गीतकार नए शब्दों, भावों व धुनों से खेलते हैं, गायक गीतों को आम आदमी के गुनगुनाने वाले गानों में बदलते हैं। अब तो इवेन्ट प्रबंधन के कई व्यवसायी संस्थान इन कार्यक्रमों का दायित्व लेते हैं। दांडियां व गरबा जिस प्रकार गुजरात से निकलकर पूरे देश में प्रचलित हो रहा है यह इस बात का द्योतक है कि आम भारतीय उत्सव प्रिय है व समारोहों में स्वप्रेरणा से सहभागिता करने का उसे शौक है। ऐसा इसलिए है कि हर त्यौहार व पूजन का कहीं न कहीं आम आदमी से जीवन की अपेक्षाओं से संबंध है। हर त्यौहार का कोई न कोई सामाजिक उद्देश्य भी है जो कहीं न कहीं इतिहास और परम्पराओं से भी जुड़ता है। जहां होली पूरे समाज को एक रस करती है उसमें सत्य की विजय का भी भाव है। दशहरा समाज की विध्वंसकारी शक्तियों के नाश का द्योतक है और दिवाली परिवारों में वापसी का त्यौहार। इन सभी त्यौहारों का संबंध भूतकाल में होते हुए भी इनकी प्रासंगिकता वर्तमान की परिस्थितियों से भी है। हजारों या सैकड़ों वर्ष पूर्व समाज में जो घटा उससे मिलता जुलता आज के समाज में भी हो रहा है। दशरथ के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रावण ने वनों में आश्रमों पर आक्रमण करने के लिए अपने साथियों को भेजा, जिससे दशरथ के राज्य का संबंध उन ऋषि- मुनियों से टूट जाए जहां से राज्य की नीतियों का निर्धारण होता था। आज का आतंकवाद और माओवाद भी इसी श्रेणी में आते हैं। विश्वामित्र सरीखे न तो बुद्धिजीवी आज हैं और न ही अपने प्रिय पुत्रों को राक्षसों के संहार के लिए भेजने का का साहस करने वाले प्रशासक। वास्तव में तो संकल्प शक्ति ही नहीं है। विजयादशमी को आतंक के विरोध में दृढ़ संकल्प का रूप दिया जा सकता है। ऐसा करने से समाज का सहयोग देश के अंदर की अराष्ट्रीय शक्तियों से निपटने के लिए किया जा सकता है। केवल भावनात्मक संवेदनाओं को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार होली को सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास होना चाहिए जिससे कि जाति, वर्ण व गरीबी अमीरी का भेद मिटकर समाज राष्ट्र बोध के रंग में ही रंग जाए। पश्चिम व कई अन्य प्रभावों के कारण आज देश में परिवारों का विघटन हो रहा है और सामाजिक भीड़ में व्यक्ति अकेला होता जा रहा है। सर्वमान्य है कि यह समाज के लिए घातक है। करवाचौथ, रक्षाबंधन व भाईदूज जैसे त्यौहार है जिनको फिर से परिवार, विशेषकर संयुक्त, परिवार की स्थापना के लिए प्रयोग किया जा सकता है। रोजे व नवरात्र व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के साधन हैं, उन्हें इस रूप में और प्रचारित करने की भी आवश्यकता है। स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस राष्ट्र के प्रति बार-बार समर्पण के त्यौहार होने चाहिए जहां व्यक्ति प्रान्त और क्षेत्र से ऊपर उठकर राष्ट्र की सोच से जुड़े। गांधी जयंती के दिन समाज अहिंसा का पाठ तो पढ़े ही, परन्तु गांधी द्वारा स्वदेशी के आग्रह को वैश्वीकरण के संदर्भ में व्यवहारिक रूप में लाने की प्रेरणा भी ले। त्यौहारों के इस देश में उत्सव न केवल सामाजिक परिवर्तन के द्योतक है परन्तु वे सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास के साधन भी हैं। करोड़ों के विज्ञापनों के द्वारा जो मानसिक परिवर्तन नहीं हो पाता है वह इन त्यौहारों के माध्यम से सहज ही होगा। इस बात के प्रमाण भी हैं, देश के पश्चिमी भाग में गणेश पूजन के कारण सामाजिक क्रांति लाई गई थी। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मार्केटिंग के प्रयास इन त्यौहारों में बखूबी होते है और वस्तुओं व सेवाओं को बेचने का काम प्रभावी रूप से होता है। यदि ये व्यापारिक कार्य हो सकता है तो सामाजिक कार्य इन त्यौहारों के माध्यम से अवश्य ही हो सकता है। केवल मन बनाकर योजनाबद्ध प्रयास करने की आवश्यकता है।
44630551f1902d903a4bb0efef6c28717f8fc016
web
सर्गेई अक्सेनोव का नाम एक दिन में सचमुच ज्ञात हो गया, यह वह था जिसे क्रीमिया के मंत्रिपरिषद का नया प्रमुख चुना गया था। इससे पहले, सर्गेई को क्रीमिया में रूस समर्थक पार्टी के नेता और नेता के रूप में जाना जाता था। उनकी नियुक्ति ने तुरंत कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया। वह कौन है, किस तरह का व्यक्ति है, जो इस कठिन और मुश्किल क्षण में क्रीमिया के मुख्य पद पर आसीन हुआ इतिहास प्रायद्वीप? . . चलो सर्गेई Aksenov की जीवनी का पता लगाने की कोशिश करते हैं। वह काफी युवा है, 41 एक वर्ष है, एक राजनेता के लिए यह एक युवा उम्र है, एक आदमी के लिए यह पहले से ही काफी अनुभवी है। सेर्गेई अक्सोनोव का जन्म, मालती के एसएसआर में, बलटी शहर में हुआ था, तब, जैसा कि कई के लिए सामान्य है, उन्होंने स्कूल से स्नातक किया, जबकि एक रजत पदक प्राप्त किया, फिर अगला अध्ययन, उन्होंने सिम्फ़रोपोल मिलिट्री-पॉलिटिकल कंस्ट्रक्शन स्कूल में दाखिला लिया, जो कि 1993 में समाप्त हुआ और पढ़ाई शुरू की। व्यापार। बाद के सभी समय, सर्गेई व्यावसायिक गतिविधियों में लगे हुए थे। एक सैन्य कैरियर क्यों नहीं चुना? यह सरल है। 1993 वर्ष। मुझे रूस और अपने मूल क्रीमिया में सेवा के बीच चयन करना था। अक्सेनोव ने क्रीमिया को चुना। लगता है दोनों जीत गए। 1993-1998 में - सहकारी "हेलस" के उप निदेशक। वह भोजन, संरक्षण के क्षेत्र में निजी व्यवसाय में लगे थे। वर्ष के अक्टूबर 1998 से 2001 के मार्च तक, Asterix LLC के उप निदेशक। अप्रैल से, 2001, Firma Escada LLC के उप निदेशक। फिर दो हज़ार के बीच में, वह राजनीति में भी शामिल हो गया। यह किसी भी व्यक्ति के लिए एक निश्चित सीमांत है, जब आप अपने व्यक्तिगत प्रश्नों को समाज के रूप में प्रभावित करने और अधिक सटीक रूप से प्रभावित करने और भाग लेने के लिए समाज के किन रूपों की दिशा में देखना शुरू करते हैं। 2008 के बाद से, वह क्रीमिया के रूसी समुदाय के सक्रिय सदस्य बन गए हैं, साथ ही साथ सार्वजनिक संगठन "क्रीमिया के नागरिक संपत्ति" के सदस्य भी हैं। वर्ष के 2009 से, वह पहले से ही "क्रीमिया के नागरिक संपत्ति" के बोर्ड का सदस्य है और समन्वय परिषद "क्रीमिया में रूसी एकता के लिए! ", अखिल-क्रीमियन सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन के नेता "रूसी एकता" के सदस्य हैं। 2010 के बाद से, क्रीमिया के Verkhovna Rada के डिप्टी। 27 फरवरी 2014 वर्ष की सुप्रीम काउंसिल ने सेर्गेई अक्सेनोव को मंत्रिपरिषद का प्रमुख नियुक्त किया। 27 फरवरी 2014, Crimea के सुप्रीम काउंसिल की इमारत को छलावरण वर्दी में अज्ञात हथियारबंद लोगों की टुकड़ी द्वारा जब्त कर लिया गया था। यूक्रेन के आंतरिक मामलों के मंत्रालय के अधिकारी, जो इमारत की रखवाली कर रहे थे, उन्हें निष्कासित कर दिया गया और इमारत के ऊपर रूसी संघ का झंडा बुलंद कर दिया गया। पूर्व में मोबाइल संचार के अपने साधनों का चयन करते हुए, विदेश मामलों के सर्वोच्च कमिश्ररिटी के कर्तव्यों के समूह के अंदर जब्त की गई अनुमति। डेप्युटी ने नई सरकार के प्रधान मंत्री (No. 1656-6 / 14) के रूप में अक्षोनोव की नियुक्ति के लिए मतदान किया और क्रीमिया की स्थिति पर जनमत संग्रह कराने का फैसला किया। VSK प्रेस सेवा के आधिकारिक बयान के अनुसार, 53 डिप्टी ने इस निर्णय के लिए मतदान किया। वीएसके के अध्यक्ष वी। ए। कॉन्स्टेंटिनोव के अनुसार, वीएफ यानुकोविच (जो यूक्रेन के राष्ट्रपति के रूप में संसद द्वारा माने जाते हैं) ने उन्हें फोन किया और टेलीफोन द्वारा अक्षोनोव की उम्मीदवारी का समन्वय किया। यूक्रेन के संविधान के आर्टिकल 136 द्वारा इस तरह के समन्वय की आवश्यकता है। 1 मार्च और। के बारे में। यूक्रेन के राष्ट्रपति ए. वी. तुरचिनोव ने चुनावों की अवैधता पर एक फरमान जारी किया, यह देखते हुए कि चुनाव यूक्रेन के संविधान, स्वायत्त गणराज्य के संविधान के उल्लंघन और यूक्रेन के कानूनों के तहत किया गया था। यूक्रेन के आपराधिक संहिता के 1 के लेख 109 के भाग X में Aksyonov के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत की गई थी (हिंसक परिवर्तन या संवैधानिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकना या राज्य सत्ता की जब्ती)। मार्च 4 पर, कीव जिला प्रशासनिक न्यायालय ने सर्गेई अक्सेनोव की नियुक्ति पर क्रीमिया के Verkhovna Rada के फैसले को रद्द करने और याचिका को मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष के पद के लिए मंजूरी दे दी, और मार्च 5 पर, कीव Shevchenko जिला न्यायालय ने सर्गेई अक्सेनोव को हिरासत में लेने का फैसला किया। रूसी महासंघ के अध्यक्ष वी. वी. पुतिन ने मार्च 3 पर एक संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए घोषणा की कि वह सर्गेई अक्सोनोव के चुनाव को वैध मानते हैं। मार्च 1 Aksyonov ने क्रीमिया की सभी बिजली संरचनाओं को खुद को आश्वस्त करते हुए एक आदेश जारी किया। उस दिन से उन्होंने स्वायत्त गणराज्य क्रीमिया और सेवस्तोपोल के सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर-इन-चीफ के कर्तव्यों को ग्रहण किया, जो उन्होंने क्रीमिया गणराज्य के रूस में प्रवेश से पहले किया था। उन्होंने क्रीमिया को सहायता के अनुरोध के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी अपील की, जिसमें उन्हें विक्टर Yanukovych द्वारा समर्थित किया गया था। एक्सएनयूएमएक्स मार्च ने क्रीमिया की नौसेना के निर्माण की घोषणा की। मार्च 4 Aksyonov ने यूक्रेन के अन्य क्षेत्रों की कीमत पर क्रीमियन स्वायत्तता के विस्तार की संभावना के बारे में बयान दिए, अगर इन क्षेत्रों के निवासी ऐसी इच्छा व्यक्त करते हैं और क्रीमिया गणराज्य की रक्षा मंत्रालय बनाने की आवश्यकता है। 5 मार्च कीव के शेवचेंको जिला अदालत ने सर्गेई अक्सोनोव और व्लादिमीर कोंस्टेंटिनोव को हिरासत में लेने के लिए प्रारंभिक जांच अधिकारियों के अनुरोध को मंजूरी दे दी, जो कला के तहत एक आपराधिक अपराध के आरोपी हैं। 109, यूक्रेन की आपराधिक संहिता का हिस्सा 1 (संवैधानिक आदेश को जबरन बदलने या उखाड़ फेंकने या राज्य सत्ता को जब्त करने के उद्देश्य से कार्रवाई)। एक्सएनयूएमएक्स मार्च अक्स्योनोव ने कहा कि क्रीमिया में तीन आधिकारिक भाषाएं होंगी - रूसी, यूक्रेनी और क्रीमियन तातार। 11 मार्च को यूक्रेनी के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की बेड़ा सेवस्तोपोल में। 17 मार्च अक्षोनोव को उन लोगों की सूची में जोड़ा गया था जिनके लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाए थे। मार्च 18 क्रीमिया गणराज्य के मंत्री सेर्गेई अक्स्योनोव की मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष, सेवस्तोपोल शहर प्रशासन के संगठन के लिए समन्वय परिषद के अध्यक्ष के साथ सेवस्तोपोल एलेक्सी चैली के जीवन समर्थन के लिए और क्रीमिया गणराज्य के स्टेट काउंसिल के अध्यक्ष व्लादिमीर कोन्स्टेंटिनोव ने रूसी गणराज्य के प्रवेश पर समझौते पर हस्ताक्षर किए। क्रीमिया गणराज्य को संधि पर हस्ताक्षर करने की तिथि से रूसी संघ में अपनाया जाता है। क्रीमिया गणराज्य को रूसी संघ में अपनाने के दिन से, रूसी संघ के भीतर नए विषयों का गठन किया जा रहा है - क्रीमिया गणराज्य और संघीय महत्व के शहर सेवस्तोपोल। 22 मार्च अक्सोनोव ने यूक्रेन के लोगों को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने उनसे कीव में अधिकारियों के कार्यों का पालन न करने का आग्रह किया। एक्सएनयूएमएक्स मार्च अक्सियनोव को रूसी संघ के नागरिक का पासपोर्ट मिला। मार्च 26 पर, क्रीमिया गणराज्य की राज्य परिषद ने प्रधान मंत्री सर्गेई अक्स्योनोव की अध्यक्षता वाले रूसी संघ के एक विषय के रूप में क्रीमिया गणराज्य के मंत्रियों की कैबिनेट को मंजूरी दी। अप्रैल 9 के बाद से - रूसी संघ के राज्य परिषद के प्रेसिडियम के सदस्य। अप्रैल 11 पर, क्रीमिया गणराज्य की राज्य परिषद ने रूसी संघ के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को क्रीमिया गणराज्य के कार्यवाहक प्रमुख के रूप में नियुक्ति के लिए अक्स्योनोव की उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया। पुरस्कारः - ऑर्डर "फादरलैंड के लिए सेवाओं के लिए" I डिग्री (2014 वर्ष) - रूसी राज्य के सुदृढ़ीकरण में उनके योगदान के लिए, क्रीमिया और सेवस्तोपोल के रूसी संघ में प्रवेश पर जनमत संग्रह की तैयारी और पकड़; - मेडल "क्रीमिया की वापसी के लिए" (मार्च 25 2014, रूस के रक्षा मंत्रालय)। स्वायत्तता में स्टेट टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन के उप प्रमुख अक्सेनोव निकोले कोचानोव पर प्रतिक्रियाः समय के साथ, हमने अपना स्वयं का सामाजिक दायरा विकसित किया है, हमें एक-दूसरे पर भरोसा है। उसके पास गुरुत्वाकर्षण का एक निश्चित केंद्र है, ऐसा श्रम विनिमयः कितने लोग उसे यह कहने के लिए धन्यवाद देते हैं कि उसने मुश्किल क्षण में मदद की और शांति से स्थायी नौकरी खोजने का अवसर दिया! वह जानता है कि लोगों को कैसे सुनना है। उसके लिए मुख्य बात खुद को साबित करना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि एक व्यक्ति क्या चाहता है। अगर आप क्या लेते हैं - इसका पूरी तरह से अध्ययन करें। एक स्पंज की तरह, सब कुछ अवशोषित होता है, हर समय सीखता है। वह व्यवसाय में बिल्कुल भी शामिल नहीं होने वाला थाः स्कूल से मास्को में वितरण प्राप्त हुआ था। लेकिन देश अलग हो गया, यह चुनना जरूरी था कि कहां रहना है। क्रीमिया को चुना। मुझे लगता है कि पछतावा नहीं हुआ। यह व्यापक रूप से विकसित है - बौद्धिक रूप से, शारीरिक रूप से। आइडिया जनरेटर। वह टीम के खेल - बास्केटबॉल, वॉलीबॉल पसंद करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने रणनीतिक सोच विकसित की है, और यही वह विशेषता है जो लोगों को उसकी ओर आकर्षित करती है। अगर वह कहता है कि - उसके हर शब्द के पीछे यही बात है। आप खाली नारे पर सर्गेई को नहीं पकड़ सकते। यदि वह राजनीति में चले गए, तो वे उसमें चले गए, जैसा कि वे कहते हैं, अपने सिर के साथः वह इसे अपनी सारी शक्ति, समय, ऊर्जा, संसाधन देता है, जिसमें वित्तीय भी शामिल हैं। और लोग उसका अनुसरण करते हैं। व्यवसाय समुदाय में उनकी बहुत अच्छी प्रतिष्ठा है, और यह बहुत कुछ के लायक है। वह बहुत मदद करता है, और न केवल पैसे से। यानी वह पूरी तरह से आत्मनिर्भर व्यक्ति है। राजनीति में, सर्गेई निश्चित रूप से अपने व्यवसाय की रक्षा के लिए गया था। राजनीति - एक केंद्रित अर्थव्यवस्था। और अर्थव्यवस्था में आज हमारे देश में अनुचित प्रतिस्पर्धा का शासन है - और वास्तव में एक सीमा है जब राज्य, कानून, को आर्थिक संबंधों में हस्तक्षेप करना चाहिए। हालांकि, यह हस्तक्षेप नहीं करता है, क्योंकि अधिकारी पूरी तरह से अलग चीजों में लगे हुए हैं, सरकार नहीं। इसलिए, आपको सभी को समान परिस्थितियों में रखने के लिए राज्य को मजबूर करने की आवश्यकता है। क्रीमिया राज्य को सौतेला बेटा क्यों पसंद है? सर्गेई कई कीव अधिकारियों, यूक्रेन के लोगों के कर्तव्यों से परिचित है, क्रीमियन सांसदों का उल्लेख नहीं करने के लिए। उन्होंने गणना की कि क्रीमिया एक "आर्थिक स्वर्ग" बन सकता है, इसके लिए सब कुछ है लेकिन काम की पारदर्शी योजनाएं जो केवल राज्य प्रदान कर सकते हैं। उनका एक सामान्य सामान्य परिवार है। लीना, पत्नी - एक मामूली आदमी, मेहनती, और बच्चों को यह सिखाती है। उन्होंने कुछ साल पहले एक सभ्य कार भी खरीदी थी और उसी समय घर का निर्माण किया था। यही है, उसका व्यवसाय केवल एक उपकरण है, एक समर्थन है। मुझे नहीं लगता कि सर्गेई ने इस पृथ्वी पर अपने कार्य को स्पष्ट रूप से महसूस किया है। लेकिन मुझे पता है कि वह उन लोगों के जीवन को बनाने के लिए बहुत कुछ देगा जो उसके साथ एक ही समय में बेहतर और सुरक्षित रहते हैं। यह शब्द - "विश्वसनीयता", मेरी राय में, सर्गेई और फिट के लिए सबसे अच्छा है। और फिर भी - शालीनता . . . "
08f219e2a126813b3ff7505ac3a589e9750343da
web
और वह कमरे से बाहर चला गया। और दूसरे ही क्षण फिर अंदर आया। आ कर विनोदिनी से कहा - मुझे माफ कर दो! विनोदिनी बोली - क्या कुसूर किया है तुमने, लालाजी? महेंद्र बोला - तुम्हें यों जबरदस्ती यहाँ रोक रखने का हमें कोई अधिकार नहीं। विनोदिनी हँस कर बोली - जबरदस्ती कहाँ की है? प्यार से सीधी तरह ही तो रहने को कहा - यह जबरदस्ती थोड़े है। आशा सोलहों आने सहमत हो कर बोली - हर्गिज नहीं। विनोदिनी ने कहा - भाई साहब, तुम्हारी इच्छा है, मैं रहूँ। मेरे जाने से तुम्हें तकलीफ होगी- यह तो मेरी खुशकिस्मती है। क्यों भई किरकिरी, ऐसे सहृदय दुनिया में मिलते कितने हैं? और दुःख में दुखी, सुख में सुखी भाग्य से कोई मिला, तो मैं ही उसे छोड़ कर जाने को क्यों उतावली होऊँ? पति को चुप रहते देख आशा जरा खिन्न मन से बोली - बातों में तुमसे कौन जीते? मेरे स्वामी तो हार मान गए, अब जरा रुक भी जाओ। महेंद्र फिर तेजी से बाहर हो गया। उधर बिहारी कुछ देर राजलक्ष्मी से बातचीत करके महेंद्र की ओर आ रहा था। दरवाजे पर ज्यों ही बिहारी पर नजर पड़ी, महेंद्र बोल उठा- भाई बिहारी, मुझ-सा नालायक दुनिया में दूसरा नहीं। उसने कुछ ऐसे कहा कि वह बात कमरे में पहुँच गई। अंदर से उसी दम पुकार हुई - बिहारी बाबू? बिहारी ने कहा - अभी आया, विनोद भाभी! कमरे में जाते ही बिहारी ने तुरंत आशा की तरफ देखा - घूँघट में से जितना-भर दिखाई पड़ा, उसमें विषाद या वेदना की कोई निशानी ही न थी। आशा उठ कर जाने लगी। विनोदिनी उसे पकड़े रही। कहा - यह तो बताएँ भाई साहब, मेरी आँखों की किरकिरी से आपका सौत का नाता है क्या? आपको देखते ही वह भाग क्यों जाना चाहती है? आशा ने शर्मा कर विनोदिनी को झिड़का। बिहारी ने हँस कर कहा - इसलिए कि विधाता ने मुझे वैसा खूबसूरत नहीं बनाया है। विनोदिनी - देख लिया भई किरकिरी, बिहारी बाबू किस कदर बचा कर बात करना जानते हैं! इन्होंने तुम्हारी पसंद को दोष नहीं दिया, दिया विधाता को। लक्ष्मण-जैसे सुलक्षण देवर को पा कर तुझे आदर करना न आया, तेरी ही तकदीर खोटी है। बिहारी - इस पर तुम्हें अगर तरस आए विनोद भाभी, तो फिर मुझे शिकवा ही क्या रहे! विनोदिनी - समुद्र तो है ही, फिर भी बादलों के बरसे बिना चातक की प्यास क्यों नहीं मिटती? आशा को आखिर रोक कर न रखा जा सका। वह जबरदस्ती हाथ छुड़ा कर चली गई। बिहारी भी जाना चाह रहा था। विनोदिनी ने कहा - महेंद्र बाबू को क्या हुआ है, कह सकते हैं आप? बिहारी ठिठक पड़ा। बोला - मुझे तो कुछ पता नहीं, कुछ हुआ है क्या? विनोदिनी - पता नहीं, मुझे तो ठीक नहीं दीखता। उत्सुक हो कर बिहारी कुर्सी पर बैठ गया। पूरी तरह सुन लेने के खयाल से वह उन्मुख हो कर विनोदिनी की ओर ताकता रहा। विनोदिनी कुछ न बोली। मन लगा कर चादर सीने लगी। कुछ देर रुक कर वह बोला, तुमने महेंद्र में खास कुछ गौर किया क्या? विनोदिनी बड़े सहज भाव से बोली - क्या जानें, मुझे तो ठीक नहीं दीखता। मुझे तो अपनी किरकिरी के लिए फिक्र होती है। - और एक लंबी उसाँस ले कर वह सिलाई छोड़ कर जाने लगी। बिहारी ने व्यस्त हो कर कहा - जरा बैठो, भाभी! विनोदिनी ने कमरे के सारे खिड़की-किवाड़ खोल दिए। लालटेन की बत्ती बढ़ा दी और सिलाई का सामान लिए बिस्तर के उस छोर पर जा बैठी। बोली - मैं तो यहाँ सदा रहूँगी नहीं- मेरे चले जाने पर मेरी किरकिरी का खयाल रखना- वह बेचारी दुखी न हो। कह कर मन के उद्वेग को जब्त करने के लिए उसने मुँह फेर लिया। बिहारी बोल पड़ा- भाभी, तुम्हें रहना ही पड़ेगा। तुम्हारा अपना कहने को कोई नहीं- इस भोली लड़की को सुख-दुःख में बचाने का भार तुम लो- कहीं तुम छोड़ गई, तो फिर कोई चारा नहीं। विनोदिनी - भाई साहब, दुनिया का हाल तुमसे छिपा नहीं, मैं यहाँ सदा कैसे रह सकता हूँ? लोग क्या कहेंगे? बिहारी - लोग जो चाहें कहें, तुम ध्यान ही मत दो! तुम देवी हो, एक असहाय लड़की को दुनिया की ठोकरों से बचाना तुम्हारे ही योग्य काम है। विनोदिनी का रोआँ-रोआँ पुलकित हो उठा। बिहारी के इस भक्ति-उपहार को वह मन से भी गलत मान कर ठुकरा न सकी, हालाँकि वह छलना कर रही थी। ऐसा व्यवहार उसे कभी किसी से न मिला था। विनोदिनी के आँसू देख कर बिहारी मुश्किल से अपने आँसू जब्त करके महेंद्र के कमरे में चला गया। बिहारी को यह बात बिलकुल समझ में न आई कि महेंद्र ने अचानक अपने आपको नालायक क्यों कह दिया। कमरे में जा कर देखा, महेंद्र नहीं था। पता चला, वह टहलने निकल गया है। पहले बे-वजह वह घर से कभी बाहर नहीं जाया करता था। जाने-पहचाने लोगों के घर से बाहर उसे बड़ी परेशानी होती। बिहारी सोचता हुआ धीरे-धीरे अपने घर चला गया। विनोदिनी आशा को अपने कमरे में ले आई। उसे छाती से लगा कर छलछलाई आँखों से कहा - भई किरकिरी, मैं बड़ी अभागिन हूँ, बड़ी बदशकुन। आशा दुखी मन से बोली - ऐसा क्यों कहती हो, बहन? सुबकते बच्चे की तरह वह आशा की छाती में मुँह गाड़ कर बोली - मैं जहाँ भी रहूँगी, बुरा ही होगा। मुझे छोड़ दे बहन, छुट्टी दे! मैं अपने जंगल में चली जाऊँ। महेंद्र से बिहारी की मुलाकात न हो सकी, इसलिए कोई बहाना बना कर फिर वह वहाँ आया ताकि आशा और महेंद्र के बीच की आशंका वाली बात को और कुछ साफ तौर से जान सके। वह विनोदिनी से यह अनुरोध करने का बहाना लिए आया कि कल महेंद्र को अपने यहाँ भोजन के लिए आने को कहे। उसने आवाज दी - विनोद भाभी! और बाहर से ही बत्ती की मद्धम रोशनी में गीली आँखों वाली दोनों सखियों को आलिंगन में देख कर वह ठिठक गया। अचानक आशा के मन में हुआ कि हो न हो, आज बिहारी ने जरूर विनोदिनी से कुछ निंदा की बात कही है, तभी वह जाने की बात कर रही है। यह तो बिहारी बाबू की बड़ी ज्यादती है। ऊँहू, अच्छे मिजाज के नहीं हैं। कुढ़ कर आशा बाहर निकल आई और बिहारी भी विनोदिनी के प्रति मन की भक्ति की ओर बढ़ कर बैरँग वापस हो गया। रात को महेंद्र ने आशा से कहा - चुन्नी, मैं सुबह की गाड़ी से बनारस चला जाऊँगा। आशा का कलेजा धक से रह गया। पूछा, क्यों? महेंद्र बोला - काफी दिन हो गए, चाची से भेंट नहीं हुई। महेंद्र की यह बात सुन कर आशा शर्मिंदा हो गई। उसे यह इससे भी पहले सोचना चाहिए था। अपने सुख-दुःख के आकर्षण में वह अपनी स्नेहमयी मौसी को भूल गई। महेंद्र ने कहा - अपने स्नेह की एकमात्र थाती को वह मेरे ही हाथों सौंप गई हैं - उन्हें एक बार देखे बिना मुझे चैन नहीं मिलता। कहते-कहते महेंद्र का गला भर आया। स्नेह-भरे मौन आशीर्वाद और अव्यक्त मंगल-कामना से वह बार-बार अपना दायाँ हाथ आशा के माथे पर फेरने लगा। अचानक ऐसे उमड़ आए स्नेह का मर्म आशा न समझ सकी। उसका हृदय केवल पिघल कर आँखों से बहने लगा। आज ही शाम को स्नेहवश विनोदिनी ने उसे जो कुछ कहा था, याद आया। इन दोनों में कहीं योग भी है या नहीं, वह समझ न सकी। लेकिन उसे लगा, यह मानो उसके जीवन की कोई सूचना है। अच्छी बुरी, कौन जाने! भय से व्याकुल हो कर उसने महेंद्र को बाँहों में जकड़ लिया। महेंद्र उसके नाहक संदेह के आवेश को समझ गया। बोला - चुन्नी, तुम पर तुम्हारी पुण्यवती मौसी का आशीर्वाद है। तुम्हें कोई खतरा नहीं। तुम्हारी ही भलाई के लिए वह अपना सर्वस्व छोड़ कर चली गई - तुम्हारा कभी कोई बुरा नहीं हो सकता। इस पर आशा ने निडर हो कर अपने मन के भय को निकाल फेंका। पति के इस आशीर्वाद को उसने अक्षय कवच के समान ग्रहण किया। मन-ही-मन उसने मौसी के चरणों की धूल को बार-बार अपने माथे से लगाया और एकाग्र हो कर बोली - तुम्हारा आशीर्वाद सदा मेरे स्वामी की रक्षा करे। दूसरे दिन महेंद्र चला गया। विनोदिनी ने जाते समय कुछ न बोला। विनोदिनी मन में कहने लगी - गलती खुद की और गुस्सा मुझ पर! ऐसा साधु पुरुष तो मैंने नहीं देखा। लेकिन ऐसी साधुता ज्यादा दिन नहीं टिकती! बहुत दिनों के बाद अचानक महेंद्र को आते देख कर एक ओर तो अन्नपूर्णा गदगद हो गईं और दूसरी ओर उन्हें यह शंका हुई कि शायद आशा की माँ से फिर कुछ चख-चख हो गई है - महेंद्र उसी की शिकायत पर दिलासा देने आया है। छुटपन से ही महेंद्र मुसीबत पड़ने पर अपनी चाची की शरण में जाता रहा है। कभी किसी पर उसे गुस्सा आया, तो चाची ने उसे शांत कर दिया और कभी उसे कोई तकलीफ हुई तो चाची ने धीरज से सहने की नसीहत दी। लेकिन विवाह के बाद से जो सबसे बड़ा संकट महेंद्र पर आ पड़ा, उसके प्रतिकार की कोशिश तो दूर रही - सांत्वना देने तक में वह असमर्थ रहीं। इसके बारे में जब वह यह समझ गईं कि चाहे जैसे भी वह हाथ डालें, घर की अशांति दुगुनी हो जाएगी, तो उन्होंने घर ही छोड़ दिया। बीमार बच्चा जब पानी के लिए चीखता-रोता है और पानी देने की मनाही होती है, तो दुखिया माँ जैसे दूसरे कमरे में चली जाती है, अन्नपूर्णा ठीक वैसे ही काशी चली गई थीं। सुदूर तीर्थ में रह कर धर्म-कर्म में ध्यान-मन लगा कर दीन-दुखिया को कुछ भुलाया था - महेंद्र क्या फिर उन्हीं झगड़े-झंझटों की चर्चा से उनके छिपे घाव पर चोट करने आया है? लेकिन महेंद्र ने आशा के संबंध में अपनी माँ से कोई शिकायत नहीं की। फिर तो उनकी शंका दूसरी ओर बढ़ी। जिस महेंद्र के लिए आशा को छोड़ कर कॉलेज तक जाना गवारा न था, वह चाची की खोज-खबर लेने के लिए काशी कैसे आ पहुँचा? तो क्या आशा के प्रति उसका आकर्षण ढीला पड़ रहा है? उन्होंने पूछा - मेरे सिर की कसम महेंद्र, ठीक-ठीक बताना, चुन्नी कैसी है? महेंद्र बोला - वह तो खासे मजे में है, चाची! आजकल वह करती क्या है, बेटे! तुम लोग अभी तक वैसे ही बच्चों-जैसे हो या घर-गिरस्ती का भी ध्यान रखते हो अब? महेंद्र ने कहा - बचपना तो बिलकुल बंद है, चाची! सारे झंझटों की जड़ तो किताब थी - चारुपाठ - वह जाने कहाँ गायब हो गई, अब ढूँढ़े भी नहीं मिलती, कहीं। - अरे, बिहारी क्या कर रहा है? महेंद्र ने कहा - अपना जो काम है, उसे छोड़ कर वह सब कुछ कर रहा है। पटवारी-गुमाश्ते उसकी जायदाद की देख-भाल करते हैं। वे क्या देख-भाल करते हैं, खुदा जाने। बिहारी का हमेशा यही हाल रहा। उसका अपना काम दूसरे लोग देखते हैं, दूसरों का काम वह खुद देखता है। अन्नपूर्णा ने पूछा - विवाह नहीं करेगा क्या? महेंद्र जरा हँस कर बोला - कहाँ, ऐसा कुछ तो दिखाई नहीं पड़ता। अन्नपूर्णा को अंतर के गोपन स्थान में एक चोट-सी लगी। महेंद्र ने कभी मजाक से, कभी गंभीर हो कर अपनी गिरस्ती का मौजूदा हाल उन्हें सुनाया, केवल विनोदिनी का कोई जिक्र उसने नहीं किया। कॉलेज अभी खुला था। महेंद्र के ज्यादा दिन काशी में रहने की गुंजाइश न थी। लेकिन सख्त बीमारी के बाद अच्छी आबोहवा में सेहत सुधारने की जो तृप्ति होती है, काशी में अन्नपूर्णा के पास महेंद्र को हर रोज उसी तृप्ति का अनुभव हो रहा था - लिहाजा दिन बीतने लगे। अपने आप ही से विरोध की जो स्थिति हो गई थी, वह मिट गई। इन कई दिनों तक धर्मप्राण अन्नपूर्णा के साथ रह कर दुनियादारी के फर्ज़ ऐसे सहज और सुख देने वाले लगे कि महेंद्र को उनके हौआ लगने की पिछली बात हँसी उड़ाने-जैसी लगी। उसे लगा - विनोदिनी कुछ नहीं। यहाँ तक कि उसकी शक्ल भी वह साफ-साफ याद नहीं कर पाता। आखिरकार बड़ी दृढ़ता से महेंद्र मन-ही-मन बोला - आशा को मेरे हृदय से बाल-भर भी खिसका सके, ऐसा तो मैं किसी को, कहीं भी नहीं देख पाता। उसने अन्नपूर्णा से कहा - चाची, मेरे कॉलेज का हर्ज हो रहा है, अब इस बार तो मैं चलूँ! तुम संसार की माया छोड़ कर यहाँ आ बसी हो अकेले में, फिर भी अनुमति दो कि बीच-बीच में तुम्हारे चरणों की धूल ले जाया करूँ!
b6c2ae992570984db16470ddadf051c4ce08e9430da76c833cec3666960e1ede
pdf
पने मुझे ब्रह्मचर्य व्रत दिया था न ? फिर यह व्याहका आयोजन आप किस लिये करते हैं ? उत्तरमें प्रियदत्तने कहा- पुत्री, मैंने तो तुझे जो व्रत दिलवाया था वह केवल मेरा विनोद था । क्या तूं उसे सच समझ बैठी है ? अनन्तमती बोली- पिताजी, धर्म और व्रतमें हँसी विनोद कैसा, यह मैं नहीं समझी ? प्रियदचने फिर कहा- मेरे कुलकी प्रकाशक प्यारी पुत्री, मैंने तो तुझे ब्रह्मचर्य केवल विनोदसे दिया था। और तू उसे सच ही समझ बैठी है, तो भी वह आठ ही दिनके 'लिये था । फिर अव तू व्याहसे क्यों इन्कार करती है ? अनन्तमतीने कहा- मैं मानती हूं कि आपने अपने भावाँसे मुझे आठ ही दिनका ब्रह्मचर्य दिया होगा; परन्तु न तो आपने उस समय मुझसे ऐसा कहा और न मुनि महाराजने ही, तब मैं कैसे समझें कि वह आठ ही दिनके लिये था । इसलिये अव जैसा कुछ हो, मैं तो जीवन पर्यन्त ही उसे पालूंगी। मैं अव व्याह नहीं करूंगी। अनन्तमतीकी बातोंसे उसके पिताको बड़ी निराशा हुई; पर वे कर भी क्या सकते थे। उन्हें अपना सव आयोजन समेट लेना पड़ा । इसके बाद उन्होंने अनन्तमतीके. • जीवनको धार्मिक-जीवन वनानेके लिये उसके पठनपाठनका अच्छा प्रवन्ध कर दिया । अनन्तमती भी निराकुलतासे शास्त्रोंका अभ्यास करने लगी । UVI LIN इस समय अनन्तमती पूर्ण युवती है। उसकी सुन्दरताने स्वर्गीय सुन्दरता धारण की है। उसके अंग अंगसे लावण्यसुधाका झरना वह रहा है । चन्द्रमा उसके अप्रतिम मुखकी शोभाको देखकर फीका पड़ रहा है और नखोंके प्रतिविम्बके बहानेसे उसके पावोंमें पड़कर अपनी इज्जत वचालेनेके लिये उससे प्रार्थना करता है। उसकी बड़ी बड़ी और मफुलित आँखोंको देखकर वेचारे कमलोंसे भुख भी ऊँचा नहीं किया जाता है। यदि सच पूछो तो उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करना मानो उसकी मर्यादा बांध देना है, पर वह तो अमर्याद है, स्वर्गकी सुन्दरियोंको भी दुर्लभ है। चैत्रका महिना था । एक दिन अनन्तमती विनोदवश हो, अपने बगीचे में अकेली झूलेपर झूल रही थी। इसी समय एक कुण्डलमंडित नामका विद्याधरोंका राजा, जो कि विद्याधरोंकी दक्षिणश्रेणीके किन्नरपुरका स्वामी था, इधर ही होकर अपनी प्रियाके साथवा युयान में बैठा हुआ जा रहा था । एकाएक उसकी दृष्टि झूलती हुई अनन्तमतीपर पड़ी। उसकी स्वर्गीय सुन्दरताको देखकर कुंडलमंडित कामके वाणोंसे बुरी तरह वींधा गया । उसने अनंतमतीकी प्राप्तिके विना अपने जन्मको व्यर्थ समझा । वह उस वेचारी वालिकाको उड़ा तो उसी वक्त ले जाता, पर साथ में प्रियाके होनेसे ऐसा अनर्थ करनेके लिये उसकी हिम्मत न पड़ी । पर उसे विना अनन्तमतीके कप चैन पड़ सकता था ? इसलिये वह अपने विमानको शीघ्रतासे घर लौटा ले गया और वहाँ अपनी प्रियाको रखकर उसी समय अनंतमतीके वगीचेमें आ उपस्थित हुआ और वड़ी फुर्तीसे उस भोली वालिकाको उठा ले चला। उधर उसकी प्रियाको भी इसके कर्मका कुछ कुछ अनुसंधान लग गया था। इसलिये कुण्डलमंडित तो उसे घरपर छोड़ आया था, पर वह घरपर न ठहर कर उसके पीछे पीछे हो चली । जिस समय कुण्डलमण्डित अनन्तमतीको लेकर आकाशकी ओर जा रहा था, कि उसकी दृष्टि अपनी प्रिया पर पड़ी । उसे क्रोधके मारे लाल मुख किये हुई देखकर कुण्डलमंडितके प्राणदेवता एक साथ शीतल पड़ गये। उसके शरीरको काटो तो खून नहीं। ऐसी स्थिति में अधिक गोलमाल होनेके भयसे उसने वड़ी फुर्तीके साथ अनन्तमतीको एक पर्णलध्वी नामकी विद्याके आधीन कर उसे एक भयंकर बनीमें छोड़ देनेकी आज्ञा दे दी और आप पत्नीके साथ घर लौट गया और उसके सामने अपनी निर्दोपताका यह सार्टिफिकट पेश कर दिया कि अनन्तमती न तो विमानमें उसे देखनेको मिली और न विद्याके सुपुर्द करते समय कुण्डलमंडितने ही उसे देखने दी । www. www. w JSTORA उस भयंकर वनीमें अनन्तमती बड़े जोर जोरसे रोने लगी, पर उसके रोनेको सुनता भी कौन ? वह तो कोसोंतक मनुष्योंके पदचारसे रहित थी। कुछ समय बाद एक भीलोंका राजा शिकार खेलता हुआ उधर आ निकला । उसने अनन्तमतीको देखा। देखते ही वह भी कामके वाणोंसे घायल हो गया और उसी समय उसे उठाकर अपने गांवमें ले गया । अनन्तमती तो यह समझी कि दैवने मुझे इसके हाथ सौंपकर मेरी रक्षाकी है और अब मैं अपने घर पहुँचा दी जाऊँगी । पर नहीं, उसकी यह समझ ठीक नहीं थी । वह छुटकारेके स्थानमें एक और नई विपत्तिके मुखमें फँस गई है। राजा उसे अपने महल लेजाकर वोलावाले, आज तुम्हें अपना सौभाग्य समझना चाहिये कि एक राजा तुमपर मुग्ध है, और वह तुम्हें अपनी पट्टरानी बनाना चाहता है । प्रसन्न होकर उसकी प्रार्थना स्वीकार करो और अपने स्वर्गीय समागमसे उसे सुखी करो। वह तुम्हारे सामने हाथ जोड़े खड़ा है तुम्हें वनदेवी समझकर अपना मन चाहा वर माँगता है । उसे देकर उसकी आशा पूरी करो। बेचारी भोली अनन्तमती उस पापीकी बातोंका क्या जवाव देती ? वह फूट फूटकर रोने लगी और आकाश पाताल एक करने लगी। पर उसकी सुनता कौन ? वह तो राज्य ही मनुष्यजातिके राक्षसोंका था । भीलराजाके निर्दयी हृदय में तव भी अनन्तमतीके लिये कुछ भी दया नहीं आई। उसने और भी बहुत बहुत प्रार्थना की, विनय अनुनय किया, भय दिखाया, पर अनन्तमतीने उसपर कुछ ध्यान नहीं दिया । किन्तु यह सोचकर, कि इन नारकियोंके सामने रोने धोनेसे कुछ काम नहीं चलेगा, उसने उसे फटकारना शुरू किया। उसकी आँखोंसे क्रोधकी चिनगारियाँ निकलने लगीं, उसका चेहरा लालसुर्ख पड़ गया । सव कुछ हुआ, पर उस भीम राक्षसपर उसका कुछ प्रभाव न पड़ा । उसने अनन्तमतीपर वलात्कार करना चाहा। इतने में उसके पुण्यप्रभावसे, नहीं, शीलके अखंड वलसे वनदेवीने आकर अनन्तमतीकी रक्षा की और उस पापीको उसके पापका खूब फल दिया और कहानीच, तू नहीं जानता यह कौन है ? याद रख यह संसारकी पूज्य एक महादेवी है, जो इसे तूने सताया कि समझ तेरे जीवनकी कुशल नहीं है । यह कहकर वनदेवी अपने स्थानपर चली गई। उसके कहनेका भीलंराजपर बहुत असर पड़ा और पढ़ना चाहिये ही था। क्योंकि थी तो वह देवी ही न १ देवीके डरके मारे दिन निकलते ही उसने अनन्तमतीको एक साहूकारके हाथ सौंपकर उससे कह दिया कि इसे इसके घर पहुँचा दीजियेगा । पुष्पक सेठने उस समय तो अनन्तमतीको उसके घर पहुँचा देनेका इकरार कर भीलराजसे लेली । पर यह किसने जाना कि उसका हृदय भी भीतरसे पापपूर्ण होगा । अनन्तमतीको पाकर वह समझने लगा कि मेरे हाथ अनायास स्वर्गकी सुन्दरी लग गई । यह यदि मेरी बात प्रसन्नता पूर्वक मानले तव तो अच्छा ही है, नहीं तो मेरे पंजेसे छूट कर भी तो यह नहीं जा सकती । यह विचारकर उस पापीने अनन्तमतीसे कहा- सुन्दरी, तुम वड़ी भाग्यवती हो, जो एक नरपिशाचके हाथ से छूटकर पुण्यपुरुषके सुपुर्द हुई । कहाँ तो यह तुम्हारी अनिन्द्य स्वर्गीय सुन्दरता और कहाँ वह भीमराक्षस, कि जिसे देखते ही हृदय कांप उठता है ? मैं तो आज अपनेको देवोंसे भी कहीं बढ़कर भाग्यशाली समझता हूं, जो मुझे अनमोल स्त्रीरत्न सुलभताके साथ प्राप्त हुआ। भला, विना महाभाग्यके कहीं ऐसा रत्न मिल सकता है ? सुन्दरी, देखती हो, मेरे पास अटूट धन है, अनन्त वैभव है, पर उस सवको तुमपर न्यौछावर करने को तैयार हूं और तुम्हारे चरणोंका अत्यन्त दास वनता हूं । कहो, मुझपर प्रसन्न हो ? मुझे अपने हृदय में जगह दोगी न ? दो, और मेरे जीवनको, मेरे धन वैभवको सफल करो । अनंतमतीने समझा था कि इस भले मानसकी कृपासे मैं सुखपूर्वक पिताजीके पास पहुंच जाऊंगी, पर वह बेचारी पापियोंके पापी हृदयकी बातको क्या जाने ? उसे जो मिलता था, उसे वह भला ही समझती थी । यह स्वाभाविक वात है कि अच्छेको संसार अच्छा ही दिखता है । अनन्तमतीने पुष्पक सेठकी पापपूर्ण बातें सुनकर बड़े कोमल शब्दोंमें कहामहाशय, आपको देखकर तो मुझे विश्वास हुआ था कि अव मेरे लिये कोई डरकी वात नहीं रही- मैं निर्विघ्न अपने घरपर पहुँच जाऊंगी । क्योंकि मेरे एक दूसरे पिता मेरी रक्षाके लिये आगये हैं । पर मुझे अत्यन्त दुःखके साथ कहना पड़ता है कि आप सरीखे भले मानसके मुहँसे और ऐसी नीच वातें ? जिसे मैंने रस्सी समझकर हाथमें लिया था, मैं नहीं समझती थी कि वह इतना भयंकर सर्प होगा । क्या यह वाहरी चमक दमक और सीधापन केवल दाम्भिकपना है ? केवल बगुलोंकी हंसोंमें गणना करानेके लिये है ? यदि ऐसा है तो मैं तुम्हें, तुम्हारे इस ठगी वेषको, तुम्हारे कुलको, तुम्हारे धन - वैभवको और तुम्हारे जीवनको धिकार देती हूंअत्यन्त घृणाकी दृष्टि से देखती हूं । जो मनुष्य केवल संसारको उगानेके लिये ऐसे मायाचार करता है, वाहर धर्मा६
385918c7697459ce2825a5494ee29b7a39691c19
web
भारत और अफगानिस्तान के बीच ऐतिहासिक टेस्ट मैच बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेला जा रहा है. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया ने अपनी पहली पारी में अफगानिस्तान के सामने 474 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया. जवाब में अफगानिस्तान की टीम अपनी पहली पारी में 109 रन पर ढेर हो गई और भारत ने पहली पारी के आधार पर अफगानिस्तान पर 365 रनों की बढ़त ले ली. भारत के कप्तान अजिंक्य रहाणे ने अफगानिस्तान को फोलोऑन दिया. जिसके बाद दूसरी पारी में भी अफगानिस्तान ने 8 विकेट गंवा कर महज 92 रन बनाए. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया ने अपनी पहली पारी में अफगानिस्तान के सामने 474 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया. जवाब में अफगानिस्तान की टीम अपनी पहली पारी में 109 रन पर ढेर हो गई. टीम इंडिया के लिए रविचंद्रन अश्विन ने सबसे ज्यादा 4 विकेट लिए जबकि रवींद्र जडेजा और ईशांत शर्मा ने 2-2 और उमेश यादव ने एक विकेट लिया. अफगानिस्तान की टीम के कप्तान असगर स्टेनिकाजई ने मैच से पहले कहा था कि उनके स्पिनर भारतीय स्पिनरों से ज्यादा बेहतर हैं, जिसका जवाब अश्विन ने 4 विकेट लेकर दिया है. भारत ने मैच के दूसरे दिन दूसरे सत्र में ही उसे सिर्फ 27. 5 ओवरों में अफगानिस्तान को पवेलियन पहुंचा दिया. भारत ने पहली पारी के आधार पर अफगानिस्तान पर 365 रनों की बढ़त ले ली. अफगानिस्तान की तरफ से मोहम्मद नबी ने सबसे ज्यादा 24 रन बनाए. मुजीब उर रहमान ने नौ गेंदों में दो चौके और एक छक्की मदद से 15 रनों की पारी खेली. टीम इंडिया ने अपनी पहली पारी में अफगानिस्तान के सामने 474 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया. टीम इंडिया के लिए पहली पारी में शिखर धवन ने सिर्फ 96 गेंद में 107 रन बनाए वहीं विजय ने 153 गेंद में 105 रन बनाए. इसके अलावा हार्दिक पंड्या ने 94 गेंदों में 71 रनों की पारी खेली और टीम को 450 रन के पार पहुंचने में मदद की. उमेश यादव ने भी आखिर में कुछ करारे शॉट जमाए और 21 गेंदों पर नाबाद 26 रन बनाए जिससे भारत इस स्कोर तक पहुंचने में सफल रहा. अफगानिस्तान की ओर से यामिन अहमदजई ने 3, राशिद खान और वफादार ने 2-2, मोहम्मद नबी और मुजीब उर रहमान ने 1-1 विकेट लिए. जबकि एक खिलाड़ी रन आउट हुआ. टेस्ट मैच के पहले दिन भारतीय बल्लेबाजों ने अफगानिस्तान के स्पिनरों को जम कर थकाया और रन भी बटोरे. हालांकि अफगानी गेंदबाजों ने दिन के आखिरी सत्र में वापसी करते हुए भारत के चार विकेट चटका दिए. मेजबान टीम ने दिन का अंत 78 ओवरों में छह विकेट के नुकसान पर 347 रनों के साथ किया. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम के बल्लेबाजों ने अफगानिस्तान की स्पिन तिगड़ी- राशिद खान, मुजीब उर रहमान और मोहम्मद नबी की जमकर धुनाई की उनके टेस्ट क्रिकेट में अनुभवहीन होने का फायदा उठाया. धवन ने सिर्फ 96 गेंद में 107 रन बनाकर पहले सत्र में अफगान गेंदबाजों को नाकों चने चबवा दिए. वहीं विजय ने 153 गेंद में 105 रन बनाए. दोनों ने मिलकर 28. 4 ओवर में 168 रन जोड़े. दुनिया की नंबर एक टेस्ट टीम ने आखिरी सत्र में 32 ओवर में 99 रन के भीतर पांच विकेट गंवा दिए. पहले दो सत्र में लग रहा था कि अफगान गेंदबाज मेजबान की मजबूत बल्लेबाजी के सामने नहीं टिकेंगे, लेकिन आखिरी सत्र में उन्होंने उम्मीद जगाई. आखिरी सत्र अफगान गेंदबाजों के नाम रहा. विजय और के एल राहुल (64 गेंद में 54 रन) को यामिन अहमदजई और वफादार ने आउट किया. अहमदजई ने 13 ओवर में 32 रन देकर दो और वफादार ने 15 ओवर में 53 रन देकर एक विकेट लिया. विजय और राहुल ने दूसरे विकेट के लिए 112 रन की साझेदारी की लेकिन उनके आउट होने के बाद भारत के विकेट जल्दी गिर गए. कप्तान अजिंक्य रहाणे 45 गेंद में 10 और चेतेश्वर पुजारा 35 रन बनाकर आउट हो गए. रहाणे को राशिद खान ने पवेलियन भेजकर पहला टेस्ट विकेट लिया जबकि मुजीब रहमान ने पुजारा को लेग गली में लपकवाया. टीम में वापसी करने वाले दिनेश कार्तिक चार रन बनाकर रन आउट हो गए. शीर्षक्रम से मिली अच्छी शुरूआत का मध्यक्रम के बल्लेबाज फायदा नहीं उठा सके. राशिद ने 26 ओवरों में 120 रन दे डाले और उन्हें एक ही विकेट मिला. आखिरी सत्र में हालांकि उसने बेहतर गेंदबाजी की और नौ ओवर में 15 रन देकर एक विकेट लिया. दूसरे दिन हार्दिक पंड्या (71) और रविचंद्रन अश्विन (18) ने सातवें विकेट के लिए 35 रन जोड़े और टीम को 369 के स्कोर पर पहुंचाया. इसी स्कोर पर यामिन अहमदजाई ने अश्विन को विकेट के पीछे खड़े अफसर जजाई के हाथों कैच आउट कर भारतीय टीम को दिन का पहला झटका दिया. हार्दिक ने इसके बाद रवींद्र जडेजा (20) के साथ मिलकर 67 रनों की शानदार अर्धशतकीय पारी खेली और भारतीय टीम को 436 के मजबूत स्कोर तक पहुंचाया. इस साझेदारी को अफगानिस्तान के स्पिन गेंदबाज मोहम्मद नबी ने तोड़ा. जडेजा इसी स्कोर पर नबी की गेंद पर रहमत शाह के हाथों लपके गए. अफगानिस्तान के गेंदबाज वफादार ने इसके बाद पंड्या को भी ज्यादा देर तक मैदान पर नहीं टिकने दिया और जजाई के हाथों कैच आउट करा भारतीय टीम का नौंवां विकेट भी गिरा दिया. इसके बाद उमेश ने ईशांत शर्मा (8) के साथ 10वें विकेट के लिए 34 रन जोड़े और टीम को 474 के स्कोर तक पहुंचाया. इसी स्कोर पर राशिद ने ईशांत को एलबीडब्ल्यू आउट कर पवेलियन भेजा. ईशांत खुद को आउट नहीं मान रहे थे और इस कारण उन्होंने रिव्यू की अपील की. गेंद सीधे उनके पैर पर लगी और ऐसे में उन्हें पगबाधा करार दे दिया गया. इसके साथ ही 474 रनों के स्कोर पर भारतीय टीम के पारी का समापन हो गया. इस पारी में अफगानिस्तान के लिए अहमदजाई ने सबसे अधिक तीन विकेट लिए, वहीं वफादार और राशिद को दो-दो विकेट मिले. मुजीब उर-रहमान और नबी को एक-एक सफलता हासिल हुई. शिखर धवन के बाद मुरली विजय ने भी शानदार शतक लगा दिया है. यह मुरली विजय का टेस्ट क्रिकेट में 12वां शतक है. उन्होंने 50वें ओवर में अफगान गेंदबाज वफादार की गेंद पर चौका लगाते हुए अपना शतक पूरा किया. मुरली विजय 105 रन बनाकर आउट हुए. उन्होंने अपनी पारी में 15 चौके और एक छक्का लगाया. धवन जब तक थे विजय शांत थे, लेकिन उनके जाने के बाद विजय ने भी थोड़ा तेज खेला खेला. शतक पूरा करने के बाद हालांकि वह ज्यादा देर रुक नहीं सके और वफादार की गेंद पर 280 के कुल स्कोर पर एलबीडब्ल्यू हो गए. भारत की ओर से शिखर धवन और मुरली विजय ने भारत को शानदार शुरुआत दिलाई. शिखर धवन ने लंच से पहले ही शतक जड़ दिया. यह उनका टेस्ट क्रिकेट में सातवां शतक था. इसके अलावा वह लंच से पहले एक सेशन में शतक जड़ने वाले पहले भारतीय और दुनिया के छठे बल्लेबाज बन गए. शिखर धवन ने पहले सेशन में 91 गेंदों पर ताबड़तोड़ 104 रन ठोक दिए. धवन ने अपनी इस पारी में 19 चौके और 3 छक्के लगाए. शिखर धवन सर डॉन ब्रैडमैन जैसे महान क्रिकेटर के क्लब में शामिल हो गए हैं. यह उपलब्धि हासिल करने वाले धवन दुनिया के छठे बल्लेबाज हैं. इस सूची में ऑस्ट्रेलिया के विक्टर ट्रंपर, उनके हमवतन चार्ली मैकार्टनी, डॉन ब्रैडमैन, पाकिस्तान के मजीद खान और ऑस्ट्रेलिया के डेविड वॉर्नर का नाम शामिल है. लंच से पहले सबसे ज्यादा रन बनाने का भारतीय रिकॉर्ड पूर्व बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग के नाम था. जिन्होंने साल 2006 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सेंट लूसिया में 99 रन बनाए थे. लंच के बाद शिखर धवन अपने खाते में 3 रन और जोड़कर आउट हो गए. 29वें ओवर में शिखर धवन यामिन अहमदजई की गेंद पर मोहम्मद नबी को कैच दे बैठे और 107 रन बनाकर पवेलियन लौट गए. उन्होंने मुरली विजय के साथ मिलकर पहले विकेट के लिए 168 रनों की ओपनिंग पार्टनरशिप की थी. भारत के टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी के फैसले के बाद इन दोनों ने टीम को मजबूत शुरुआत दिलाई. धवन ने अफगानिस्तान के अनुभवहीन गेंदबाजों के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाए और केवल 87 गेंदों पर शतक पूरा किया. टी-20 के स्टार राशिद खान को धवन ने शुरू से निशाने रखा. उन्होंने इस लेग स्पिनर पर तीन चौके लगाकर अपना पचासा पूरा किया. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने राशिद पर ही कवर ड्राइव से चौका जड़कर अपना सातवां टेस्ट शतक पूरा किया. दूसरे छोर पर विजय ने अपनी रक्षात्मक तकनीक से भी अपना पहला टेस्ट खेल रहे अफगानिस्तान को हताश किया. धवन ने आईपीएल में खेलने वाले अफगानिस्तान के तीनों खिलाड़ियों राशिद, मोहम्मद नबी और मुजीब उर रहमान पर छक्के जड़े. धवन ने कुल मिलाकर 19 चौके और तीन छक्के लगाये जबकि विजय ने छह चौके और एक छक्का लगाया है. टीम इंडिया ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी का फैसला किया है और अफगानिस्तान की टीम को पहले गेंदबाजी दी है. टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में दिलचस्प बदलाव हुए हैं. शिखर धवन और मुरली विजय के ओपनिंग कॉम्बिनेशन को बरकरार रखा गया है. लोकेश राहुल को मिडिल आर्डर में मौका दिया गया है, जबकि विकेटकीपिंग का जिम्मा दिनेश कार्तिक के कंधो पर है. करुण नायर को टीम में जगह नहीं मिली है. आठ साल बाद टेस्ट में वापसी करने वाले दिनेश कार्तिक को भी टीम में शामिल किया गया है. मैदान पर यह केवल एक अन्य टेस्ट मैच है, लेकिन इसका महत्व इससे भी बढ़कर है. अफगानिस्तान इसके साथ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाला 12वां देश बन गया और इस ऐतिहासिक मैच में राशिद खान, मुजीब जादरान और मोहम्मद शहजाद जैसे खिलाड़ी अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. टेस्ट में अपना पहला मैच खेलने वाली टीमों में सिर्फ ऑस्ट्रेलिया ने अपना पहला मैच जीता है. उसने 1877 में इंग्लैंड को हराया था. उसके बाद 10 देशों ने डेब्यू किया, जिनमें से 9 को हार का सामना करना पड़ा. वहीं, जिम्बाब्वे ने अपना पहला टेस्ट मैच भारत के खिलाफ खेला था, जो ड्रॉ हुआ. प्लेइंग इलेवन इस प्रकार हैंः भारतः शिखर धवन, मुरली विजय, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे (कप्तान), लोकेश राहुल, दिनेश कार्तिक (विकेटकीपर), हार्दिक पंड्या, रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा, ईशांत शर्मा, उमेश यादव. अफगानिस्तानः मोहम्मद शहजाद, जावेद अहमदी, रहमत शाह, असगर स्टेनिकाजई (कप्तान), अफसर जजाई (विकेटकीपर), मोहम्मद नबी, हशमतुल्ला शाहिदी, राशीद खान, मुजीब उर रहमान, यामिन अहमदजई, वफादार.
6d49f4afe5aa25fcf7835f16deb0904614b4cf8b7fbad9b0a467fa2ba3096310
pdf
कारण आधुनिक यूरोपकी दशा रोमन साम्राज्य के अधीन पश्चिमीय यूरोपकी दशासे बहुत बदल गयी। इन परिवर्तनों में से कुछ एक यह हैं(१) कुछ राष्ट्रोंने एक संघ स्थापित किया जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकारकी राष्ट्रीयताओं का प्रादुर्भाव हो रहा था । उस संघने रोम साम्राज्यका स्थान ग्रहण किया । इन लोगोंने अपने शासनमें इटली, गाल, जर्मनी तथा ब्रिटनके मतभेदोंको स्थान नहीं दिया। अनवस्थित मनसबदारी जो गत अन्धकारयुग में शासन कर रही थी, राजशक्तिके आधिपत्य के नीचे झुक गयी। जर्मनी और इटली इस राजशक्ति के नीचे न थे और पश्चिमी यूरोप में एक साम्राज्य स्थापित करने की कोई आशा भा न थो । ( २ ) एक प्रकार से धर्म संस्था भी रोम साम्राज्यका अधिकार हथिया रही थी । पोपने पश्चमी यूरोपके बहुत से लोगोंको अपने अधीन कर लिया था और सामन्त । कोण न्याय तथा शान्तिके स्थापन में समर्थ न थे, इस कारण उसने राज्यका भी समस्त कार्य अपने हाथ में ले लिया । स्वच्छन्द राजाकी भाँति मध्ययुगकी धर्मसंस्था सबसे अधिक शक्तिशाली हो गयी थी। इसकी राजनीतिक दशा तेरहवीं शदाब्दीके आरम्भमें तृतीय इनोसेन्टके समय उच्च शिखर पर पहुँच गयी थी । तेरहवीं शताब्दी - के समाप्ति के पूर्व ही संगठन इतना शक्तिशाली हो गया था कि देखने से प्रतीत होता था कि वह पोन तथा पादरियों के हाथ से शंघ्र शासन अधिकार छीन लेगा और उनके हाथ में केवल धर्मकर्य रह जायगा । (३) पादरी तथा नाइट लोगोंके संघके साथ-साथ एक नयी सामाजिक संस्था और उत्पन्न हुई । इससे कृषक दासोंको सुधार, नगरोंकी स्थापना और व्यवसायको उन्नति हुई और वणिकों तथा कारीगरों को भी अवसर मिला कि वे भी द्रव्योपार्जन कर विख्यात तथा प्रभावशाली हो जायँ। आधुनिक विद्वानोंका यहीं से प्रादुर्भाव होना प्रारम्भ होता है । (४) नाना प्रकारकी आधुनिक भाषाओंका प्रयोग लेख में होने लगा । जर्मनों के आक्रमणके ६ सौ वर्ष पर्यन्त लैटिनका प्रयोग होता रहा, परन्तु ग्यारहवीं तथा बादकी शताब्दियोंमें बोल-चालकी भाषाने पुरानी भाषाओंका स्थान ले लिया । इसका परिणाम यह हुआ कि वे साधारण लोग भी जो प्राचीन रोमन भाषाकी गूढ़ताको नहीं समझते थे, अब फेन्च, प्रोवॅकल, जर्मन, अंग्रेजी, स्पेनिश तथा इटली भाषा में लिखी कथाओंका आस्वाद भी लेने लगे । यद्यपि शिक्षाका प्रबन्ध अब भी पादरियोंके ही हाथमें था और साधारण लोग लिखने-पढ़ने लगे थे, तथापि वाङ्मय-साहित्य परसे पादरियोंका एकाधिकार धीरे-धीरे लुप्त होने लगा । (५) संवत् ११५७ ( सन् ११००ई० ) से ही छात्र लोग शिक्षकों के निकट एकत्र होने लगे और रोमकी धर्म-व्यवस्था, तर्क, दर्शन तथा धर्म शास्त्रकी शिक्षा भी लेने लगे । अरस्तू के ग्रन्थ एकत्र किये गये और छात्रवर्ग विद्याकी समस्त शाखाओं में उत्साह के साथ उसके ग्रन्थोंका मनन करने लगे। उसी समय में आधुनिक सभ्यता के विशेष अंगरूप विद्यापीठोंका भी प्रादुर्भाव हुआ था । (६) अब शिक्षक लोग केवल अरस्तूके प्राप्त निबन्धोसे ही सन्तुष्ट न हो सके इससे उन्होंने स्वयं अपने प्रयत्नसे विद्याकी उन्नति करनी चाही। रोजर वेकन तथा उसके समकालिक विद्वान् एक वैज्ञानिक वर्ग के अंग थे। इस वर्गने विज्ञानकी सभी शाखाओं में उन्नतितक पहुँचनेका मार्ग तैयार कर दिया । वे आधुनिक समयकी भो एक मान प्रतिष्ठा हैं । (७) बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी के गिरजोंका शिल्प देखकर उस समयकी कलाभिरुचिका पता चलता है। यह सब किसी प्राचीन कलाका अनुकरण नहीं था, परन्तु उस समय के शिल्पी तथा मूर्तिकारोंकी स्वमूलक रचना थी । अध्याय १९ चौदहवीं तथा पन्द्रहवी शताब्दी के यूरोपीय इतिहासका वर्णन निम्नलिखित क्रमसे किया गया है । ( १ ) आंग्लं देश तथा फ्रांसका वर्णन एक साथ किया गया है, क्योंकि आंग्ल देशके राजा लोग फ्रांस के राज्यपर भी अपना अधिकार जतल ते थे । दोनों प्रदेशों के बीच शतवर्षीय युद्धसे प्रथम दोनों देशों में दुर्व्यवहार और कलह उत्पन्न होता है और पश्चात् इनकी सुलह होती है । ( २ ) दूसरे पोपके अधिकार तथा कान्स्टेन्सकी सभा धर्म संस्थाकी उन्नति के प्रयत्नके इतिहासका वर्णन है । (३) इसके बाद जागृतेकी उन्नतिका वर्णन है । विशेषतः इटलीके उन नगरोंका संक्षेपतः वर्णन है जो उस समय में विज्ञान वृद्धि के अग्रसर नेता थे। इसके साथ-साथ पन्द्रहवीं शताब्दी के बाद के भाग में छापाखाना तथा भूगोल - विद्या की नवीन खोजें और उनसे हुई उन्नतिका वर्णन है । ( ४ ) चतुर्थ भाग में सोलहवीं शताब्दी के यूरोपका वर्णन है। इससे मार्टिन लूथरके नेतृत्व में हुए धर्म संस्था के नवीन आन्दोलनको पाठक भली भांति समझ सकेंगे । सबसे पहले आंग्ल देशकी दशा देखना उचित है। प्रथम शासकों का ग्रेट ब्रिटेन के एक अंशपर ही शासन था, उनके राज्य के पहाड़ी प्रान्त था । इस प्रान्तमें आदि ब्रिटन जातिके वे लोग बसे थे जिनको जर्मन आक्रामक लोग परास्त नहीं कर सके थे। इसके उत्तर में स्काटलैण्डका राज्य था । यह राज्य भी स्वतन्त्र था। वह केवल कभी-कभी आंग्लदेशीय शासकको अधिपति मानकर उच्च श्रेणीका सामन्तराज्य मान लिया जाता था। प्रथम एडवर्डने वेलजको सर्वदाके लिए तथा स्काटलैण्डको कुछ समयके लिए जीत लिया था । कई शताब्दियों-पर्यन्त आंग्ल देश तथा वेल्जकी सीमाओपर लड़ाई होती रही । विजयी विलियमुने आवश्यक समझकर वेल्जकी सीमापर "अर्लंडम" स्थापित किया था और चेस्टर श्रृजवरी तथा मन्मथ नार्मन लोगोंके लिए अच्छी रोक थी । वेल्जचालोंकी लगातार आक्रान्तिसे अंग्रेजी राजा क्रुद्ध होकर वेल्जपर चढ़ाई करना चाहते थे, परन्तु शत्रुपर विजय पाना सरल नहीं था, क्योंकि वे लोग स्नोडानके समीप बर्फीली पहाड़ी कन्दराओं में छिप जाते थे और अंग्रेजी सैनिकोंको वहाँकी जंगलो भूमिमें भूखों मरना पड़ता था। वेल्जवासी सफलता के साथ इतने अधिक समयतक शक्तिशाली अंग्रेजी सेनाओंका सामना करते रहे; इससे वेल्ज केवळ उनके रक्षास्थान ही नहीं थे, परन्तु वहाँके भाटोंने भी अपने उत्साइभरे कवित्तोंसे वहाँके लोगोंको उत्तेजित किया था। इन लोगोंको विश्वास था कि जो आंग्ल देश एंगल तथा सैक्सनोंके आगमनके पूर्व इनके अधिकार में था उसको ये लोग पुनः जीत लेंगे । सिंहासनारूढ़ होते ही प्रथम एडवर्डने आज्ञापत्र भेजा कि वेल्ज जातिका अधिपति लूएलिन जो वेल्जका युवराज कहलाता है हमारे दरबार में आकर सिर झुकावे । लुएलिन प्रभावशाली तथा योग्य पुरुष था। उसने राजाकी आज्ञा न मानी। इसपर एडवर्डने वेल्ज देशपर आक्रमण किया। लगातार दो युद्धों के बाद वेल्जका दम उखड़ गया। लूएलिन युद्ध में मारा गया और उसके साथ वेल्जकी स्वतन्त्रता भी सदाके लिए लुप्त हो गयी। एडवर्डने सम्पूर्ण देशको शहरों में बाँट दिया और आंग्ल देशके नियम तथा प्रथाओं का प्रचार किया। उसको साम-उपायसे इतनी सफलता हुई कि एक शताब्दी - पर्यन्त उस देश में आकान्ति हुई ही नहीं । पश्चात् उसने अपने पुत्रको वेल्जका युवराज बनाया और उसी समयसे आंग्ल देशके राज्य के उत्तराधिरीको 'वेजके युवराज' ( प्रिंस आव वेल्स ) की उपाधि मिलती है । स्काटलैण्डका जीतना वेल्जके जीतनेसे भी अधिक कठिन था। स्काटलैण्डका प्राचीन इतिहास बड़ा जटिक है । जिस समय एंगल तथा सैकसन लोग आंग्ल देश में आये, उस समय फोर्थ के मुहानेके उत्तरके पहाड़ी प्रदेश में पिक्टनामी केल्टिके जाति बसी हुई थी। पश्चिमीय तटपर एक छोटासा राज्य आयरिश केल्ट लोगोंका था जो स्काट कहाते थे । दशवीं शताब्दी के आरम्भमें पिक्ट लोगोंने स्काट लोगोंको अपना शासक मान लिया था और इतिहास लेखकोंने हाईलैण्ड नामका प्रदेशको स्काट लोगोंका देश लिखना प्रारम्भ कर दिया था। समयके परिवर्तनके साथ-साथ आंग्ल देश के राजाओंने अपने लाभार्थं सीमापरके कुछ नगर स्काटवालोंको दे दिये, जिसमें ट्वीड् तथा फोर्थ नदीकी खाड़ी के मध्यका लोलैंण्ड बामक प्रदेश भी था । इसके निवासी अंग्रेज थे और वे लोग आंग्ल भाषा बोलते थे परन्तु हाईलैण्डवाले अगतक भी गेलिक भाषा बोलते हैं । स्काटलैण्ड के इतिहास में यह एक बड़े महत्वकी घटना थी कि उसके रराजा लोग हाईलैण्डमें न रहकर कोलॅण्डमें रहे और उन्होंने अपनी राजधानी दुर्भेद्य दुर्गान्वित एडिनवराको नियत किया था। विजयी विलियमके सिंहासनपर बैठते ही अनेक अग्ल देशीय तथा असन्तुष्ट नार्मन अमीर लोग भी इंगलैंण्डकी सीमाको पार कर लोलैण्ड में आ बसे । इन्होंने बड़े-बड़े कुटुम्ब स्थापित किये। इनमें वेलियल तथा ब्रूस अत्यन्त विख्यात हैं जिन्होंने बादको स्काटलैण्डकी स्वतन्त्रता के लिए भीषण युद्ध भी किये । बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी में यह देश, विशेषतः इसके दक्षिणी प्रान्त इन ऍग्लो
998a05af59387ba5c1299b0f0a769c347f596e99
web
बेलारूसी समाज के पश्चिमीकरण और शासक वर्ग के लिए सबसे प्रभावशाली ताकतों में से एक वेटिकन है। हाल ही में, बेलारूसी अधिकारियों के निमंत्रण पर, वेटिकन के राज्य सचिव, कार्डिनल पिएत्रो पेरोलिन ने मिन्स्क की आधिकारिक यात्रा का भुगतान किया। कार्डिनल की यात्रा के बारे में एपोस्टोलिक संज्ञा के संदेश में, यह नोट किया गया था कि इस तरह से पोप फ्रांसिस "बेलारूसी लोगों के प्रति अपने गहन सम्मान और अपने निकटतम सहयोगी के माध्यम से प्रार्थना और दिलों की एकता में बेलारूस के कैथोलिकों के साथ मिलने की इच्छा रखते हैं"। पवित्र राज्य के सचिव ने राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको, विदेश मंत्री व्लादिमीर मेकी के साथ-साथ बेलारूस के कैथोलिक बिशप सम्मेलन के सदस्यों के साथ मुलाकात की। पिएत्रो पारोलिना और अलेक्जेंडर लुकाशेंको के बीच मुलाकात के हिस्से के रूप में, बेलारूस के प्रमुख ने कहा कि उन्हें सीधे पोप गणराज्य में आने में खुशी होगी। और बेलारूस गणराज्य के विदेश मंत्रालय के प्रमुख ने कहा कि कार्डिनल का आगमन बेलारूस के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसके बीच वेटिकन और "समझ और विश्वास का एक विशेष संबंध विकसित किया। " उद्धरणः "वेटिकन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हमारे लिए एक विशेष भागीदार है, और आधुनिक समाज की समस्याओं को हल करने के लिए वेटिकन के दृष्टिकोण बेलारूसी लोगों के करीब और समझने योग्य हैं। " बदले में, पवित्र राज्य के सचिव ने कहा कि वेटिकन बेलारूस के राष्ट्रपति की यात्रा को प्राप्त करने के लिए तैयार था, उसने बेलारूस और यूरोपीय संघ के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक तरह का मंच बनने की घोषणा की, और विश्वास व्यक्त किया कि बेलारूस और वेटिकन के बीच संबंध सक्रिय रूप से विकसित होंगे। अपनी यात्रा के दौरान, पिएत्रो पेरोलिन ने कहा कि होली सी बेलारूस और पश्चिम के बीच संबंधों की स्थापना का समर्थन कर सकती है। इस तरह का समर्थन, बेलारूस में माल्टा के संप्रभु सैन्य आदेश के प्रतिनिधित्व द्वारा प्रदान किया गया समर्थन - अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने सीधे आदेश राजदूत पॉल फ्रेडरिक वॉन फुरहर के साथ एक बैठक में कहा कि उन्हें बेलारूस और यूरोप के बीच संबंधों के निर्माण में कैथोलिक चर्च की एक अधिक सक्रिय भूमिका की उम्मीद है - पहले से ही कुछ निश्चित फल हैं। आज, राष्ट्रपति लुकाशेंको के न्यायालय सेवकों की वैचारिक और विश्वव्यापी प्राथमिकताएं और बेलारूसी अधिकारियों के सबसे विचित्र रुझानों के प्रति संवेदनशील वैटिकन के पोलैंड के माध्यम से चुपचाप बंद हैं। बेलारूस गणराज्य के सांस्कृतिक और अर्थपूर्ण परिदृश्य के साथ-साथ कुछ अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के कैथोलिक प्रोफेसरों-पोल्स से प्रेरित होने वाले आंकड़ों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल है। इस और पोलैंड की प्रासंगिक संरचनाओं और सेवाओं के "धर्मनिरपेक्ष" काम में योगदान देता है। शुरुआती 2000 में वापस। कजाकिस्तान में डंडे के जातीय प्रवासी के प्रत्यावर्तन पर बिल (12 मिलियन डॉलर से अधिक के बजट आवंटन के साथ पांच साल के लिए डिज़ाइन किया गया) को अपनाया गया था। बेलारूस (और यूक्रेन) के लिए, इस तरह के बिल जमे हुए थे। इसके बजाय, 2000 की शुरुआत से। उपायों को गवर्निंग बॉडीज ("कुलीन वर्ग") में, और 2000 के अंत में जातीय डंडे के प्रवेश को प्रोत्साहित करने के लिए विकसित किया जा रहा है। ध्रुव मानचित्र को अपनाया गया (जनता के लिए)। आधिकारिक तौर पर, बेलारूस के राज्य के अधिकारियों को बर्खास्तगी के खतरे के तहत "पोल कार्ड" सौंपने के लिए मजबूर किया जाता है - बेलारूस गणराज्य के कानून "सार्वजनिक सेवा" में संशोधन के अनुसार जो कि फरवरी NNUMX पर फरवरी 11 पर लागू हुआ था। इसके अलावा, कार्यकर्ता के बयान और बेलारूस के नेताओं में से एक के अनुसार बेलारूस में आंद्रेज पोकज़ोबुत के संघ के नेता, "बहुत कुछ संस्था के प्रमुख पर निर्भर करता है। कुछ लोग कानून को सख्ती से लागू करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो आंखें बंद कर लेते हैं। " पोलिश राजनयिक संस्थानों का आश्वासन है कि उन्हें इस बारे में किसी को भी जानकारी नहीं दी जाती है कि विदेशी नागरिक के पास "ध्रुव कार्ड" है या नहीं। पोलैंड प्रतिवर्ष $ 500 हजार से अधिक की राशि में बेलारूसी विरोध के सूचना संसाधनों का वित्तपोषण करता है। मार्च 2012 के लिए पोलैंड के विदेश मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, "बेलारूस की लोकतांत्रिक ताकतों" को सहायता से संबंधित गतिविधियों के लिए धन चार्टर 97 पोर्टल ($ 100 से अधिक) के रूप में ऐसी संरचनाओं तक फैला है, बेलारूसी ऐतिहासिक समाज "(लगभग 70 हजार डॉलर), फाउंडेशन फॉर फ्रीडम एंड डेमोक्रेसी" (लगभग 140 हजार डॉलर), कंपनी "ईस्ट यूरोपियन डेमोक्रेटिक सेंटर" (लगभग 130 हजार डॉलर), "रॉबर्ट स्कूमन का बेलारूसी समाज" (लगभग 70 हजार डॉलर) और "ब्यूरो" लोकतांत्रिक बेलारूस के साथ एकजुटता "(लगभग 85 हजार डॉलर)। यह तथ्य कि "बेलारूस पोलिश राजनीति के हितों के घेरे में लौट रहा है", बेलारूसी विपक्षी सदस्यों ने 4 दिसंबर 2014 को पूरी दुनिया के लिए खुशी की घोषणा की, जब इतिहास में पहली बार, बेलारूस की विशेष सुनवाई पोलिश संसद में आयोजित की गई थी। (पार्टियों ने सहमति व्यक्त की कि इस तरह की बैठकें निरंतर आधार पर आयोजित की जाएंगी, एक अनुमोदित दिन आदेश और कुछ मुद्दे होंगे)। पोलैंड के सेजम के विदेश मामलों की समिति की बैठक में, पोलिश अधिकारियों द्वारा वित्तपोषित मीडिया के नेताओं और प्रतिनिधियों (जैसे बेलसैट टीवी चैनल एग्निज़स्का रोमास्ज़ेस्का के निदेशक), पोलैंड में बेलारूसी प्रवासी, साथ ही बेलारूसी समर्थक पश्चिमी विपक्षी दलों और संगठनों को बेलारूसी पक्ष को चित्रित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। जिसमें आंद्रेई सनिकोव, बेलारूस गणराज्य के विदेश मामलों के मंत्रालय के एक पूर्व उप प्रमुख, जो लंदन में रहते हैं। पोलिश पक्ष का प्रतिनिधित्व विदेशी मामलों की समिति के प्रमुख रॉबर्ट टिसकज़िविक्ज़, पोलिश संसदीय दल "लॉ एंड जस्टिस" के उपाध्यक्ष, प्रवासन संबंधों पर आयोग के अध्यक्ष एडम लिपिंस्की, विदेश मामलों पर सेज़म समिति के उपाध्यक्ष, तेदुस्स इविंस्की, विदेश मंत्रालय के पूर्वी विभाग के प्रमुख के मंत्रालय के विदेश विभाग में किया जाता है। बेलारूस में लेस्ज़ेक शेरेपका, इंटरनेशनल सॉलिडेरिटी फंड के प्रमुख क्रिज़सटेस्टो स्टैनोव्स्की, नाटो संसदीय असेंबली के सदस्य विटोल्ड वाशिकोवस्की, सेजम और राजनयिकों के अन्य सदस्य। (प्रतिनिधित्व का स्तर अन्य बातों के अलावा गवाही देता है, सोवियत-सोवियत अंतरिक्ष के यूरोपीय भाग में नेतृत्व के लिए पोलैंड और लिथुआनिया के बीच अनिर्दिष्ट प्रतिद्वंद्विता में असली नेता कौन है)। "बेलारूसी मुद्दा पोलिश राजनीति का एक महत्वपूर्ण तत्व है," पैन Tyszkiewicz ने कहा। सीमास विदेश मामलों की समिति के प्रमुख ने कहा, "बेलारूस में लोकतांत्रिक विपक्ष के साथ संबंधों के उच्चतम स्तर तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक धारणा में बेलारूसी सवाल को भी अनसुना करना चाहिए," हमने कहा, "हम चाहते हैं कि बेलारूस हमारे यूरोपीय पड़ोस का हिस्सा बने। "। एक दिलचस्प बिंदु - पोलिश पक्ष पर, बहुत अलग राजनीतिक संरचनाओं के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लिया। फिर भी, बेलारूसी सवाल राजनीतिक विरोधियों और विरोधियों को भी एकजुट करता है! इसके अलावा, पोलिश राजनेताओं और राजनयिकों को तथाकथित बेलारूसी की वास्तविक क्षमता के बारे में अच्छी तरह पता है विपक्षी, उनकी राजनीतिक नपुंसकता, नीरसता और तुच्छता। और चुनावी रेटिंग, जो सांख्यिकीय त्रुटि के क्षेत्र में लगातार तीसरी बार उतार-चढ़ाव कर रही है। यही कारण है कि वे बेलारूसी अधिकारियों के साथ सक्रिय रूप से संपर्क विकसित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, बेलारूस के प्रति पोलिश नीति के सवाल पर एक ही घटना में, आधिकारिक वारसॉ के प्रतिनिधियों ने कहा कि यह "सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में संपर्कों के संदर्भ में सभी उपलब्ध अवसरों का उपयोग करने" पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। इसके बाद डंडे न केवल अधिकारियों के प्रतिनिधियों के साथ, बल्कि इसी तरह के विरोध के साथ भी विश्वास करने का नाटक करते हैं? और फिर उन्हें भी उसकी आवश्यकता क्यों है? कारण को पंजीकृत विपक्षी पश्चिमी देशों और शासन के पदाधिकारियों के बीच वैचारिक भिन्नता के क्रमिक रूप से गायब होने की मांग की जानी चाहिए, जो पहले से ही खुले तौर पर और बिना अतिशयोक्ति के बेलारूस में राज्य स्तर पर खून की बदबू पैदा कर रहे हैं। यह निश्चित रूप से एक यूरोपीय सफलता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। मौजूदा परिस्थितियों में, पश्चिम को बेलारूसी विपक्ष का समर्थन करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है - यदि संभव हो तो, सीधे अधिकारियों के साथ सहयोग करें, जिनकी समर्थक पश्चिमी स्थिति वास्तव में विपक्ष के पश्चिम की तुलना में बहुत अलग नहीं है। - लेखकः - मूल स्रोतः
68fa00a2ce5451b1cac1015f32c70ec4055356c0
web
कोन्स्टेंटिन मिखाइलोविच कुकीन का जन्म 23 के 1897 पर कुर्स्क शहर में एक श्रमिक वर्ग के परिवार में हुआ था। 1916 में, उन्होंने कॉलेज से स्नातक किया और 12 वें Kalishsky रेजिमेंट में एक स्वयंसेवक के रूप में दाखिला लिया। प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया, अधिकारी के पद तक पहुंचे। कॉन्स्टेंटिन कुकिन - 1918 वर्ष में बेलारूसी पक्षपातपूर्ण टुकड़ी के सेनानी। सेना से विमुद्रीकरण के बाद, कुकीन अपने मूल कुर्स्क में लौट आया। वहां उन्हें अक्टूबर क्रांति की जीत की खबर मिली, जो उन्होंने खुशी से मुलाकात की और तुरंत लाल सेना में शामिल होने के लिए स्वेच्छा से मिले। इसमें उन्होंने आठ साल सेवा की। 1918 में, उन्हें CPSU (b) के रैंक में भर्ती किया गया था। ऐसा हुआ कि सोवियत सत्ता के लिए संघर्ष के बहुत भंवर में कुकीन था। ब्रेस्ट-लिटोव्स्क में जर्मनी के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए ट्रॉट्स्की के इनकार के बाद, कैसर सेना ने बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू किया। यूक्रेन और बेलारूस पर कब्जा कर लिया गया, जहां कब्जा करने वालों ने अपने नियम बनाए। फरवरी में, आक्रमणकारियों 1918 को नरवा और प्सकोव के पास मुश्किल से रोका गया था। रूस के क्षेत्र में, ब्रायंस्क से 100 किमी में जर्मन कब्जे की रेखा आयोजित की गई थी। जर्मन आक्रमणकारियों के खिलाफ खण्डन आयोजित करने के लिए कुकिन को सेनानियों के एक टुकड़ी के साथ बेलारूसी शहर भेजा गया था। चूंकि रेड आर्मी अभी भी कमजोर थी और जर्मन लोगों के साथ नियमित लड़ाई नहीं कर सकती थी, कब्जे वाले क्षेत्रों में पक्षपातपूर्ण कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई थी। कुकीन ने सशस्त्र प्रतिरोध इकाइयों और पक्षपातपूर्ण टुकड़ियों के निर्माण में भाग लिया, जिन्होंने आक्रमणकारियों के अलग-अलग डिवीजनों पर हमला किया, ब्रायोस-गोमेल रेलवे में तोड़फोड़ की और दुश्मन के परिवहन को नष्ट कर दिया। नवंबर में, जर्मनी में एक्सएनयूएमएक्स में एक क्रांति हुई, कैसर विल्हेम द्वितीय को त्यागने के लिए मजबूर किया। सोवियत सरकार ने तुरंत शिकारी ब्रेस्ट शांति को रद्द कर दिया। रूस के उदाहरण के बाद, जर्मन सर्वहारा ने बर्लिन, हैम्बर्ग, कोलोन और अन्य जर्मन शहरों में श्रमिकों और सैनिकों की प्रतिनियुक्तियों की परिषदें बनाईं। एक ही सलाह कब्जे वाले बेलारूस के क्षेत्र में पैदा हुई। जर्मन सैनिकों ने रूस के खिलाफ सभी शत्रुता को रोकने का फैसला किया और अपनी मातृभूमि में शीघ्र वापसी की मांग की। दिसंबर 1918 में, बेलारूस के क्षेत्र से जर्मन सेना की निकासी शुरू हुई। 25 मार्च 1919, रेचेसा एक्स्ट्राऑर्डिनरी मिलिट्री रेवोल्यूशनरी हेडक्वार्टर, कुचिन को रेचेटा गार्ड कंपनी के कमांडर के रूप में नियुक्त करता है, जिसे वह बनाने के लिए कमीशन भी देता है। बेलारूस में, कुकीन "ग्रीन" के गिरोह से लड़ रहा है। सितंबर 1919 में, कुकिन को 53 कैवलरी रेजिमेंट का उप राजनीतिक आयुक्त नियुक्त किया गया था। बाद में वह 9 कैवलरी डिवीजन के राजनीतिक विभाग के प्रमुख के सहायक बन गए। वह दिसंबर 1919 के अंत तक इस स्थिति में था। एक्सएनयूएमएक्स में, कुकीन को क्रीमिया के बखचीसराय क्रांतिकारी समिति का अध्यक्ष और विशेष उद्देश्य इकाइयों (चोन) की टुकड़ी का कमांडर नियुक्त किया जाता है, और सक्रिय रूप से गैंगस्टर से लड़ रहा है। साहस और वीरता के लिए ऑर्डर ऑफ द रेड बैनर से सम्मानित किया गया। अक्टूबर में, CHN टुकड़ी के कमांडरों की एक बैठक के लिए 1920 को कुर्स्क भेजा गया था। यह जानकर कि उनके हमवतन बच्छिसराय की विद्रोह समिति के अध्यक्ष हैं, कूरियन उन्हें अपने गृहनगर लौटने के लिए आमंत्रित करते हैं, जहां वह डिप्टी कुर्स्क प्रांतीय सैन्य कमिश्रर बन जाते हैं और उसी समय उनका राजनीतिक सचिवालय प्रमुख होता है। 1923 में, कुकिन को कुर्स्क का सैन्य कमिश्नर नियुक्त किया गया और उन्हें 1 शहरी जिले की पार्टी की जिला समिति के ब्यूरो का सदस्य चुना गया। लेकिन यहां तक कि उन्होंने केवल एक्सएनयूएमएक्स तक काम किया, जब उन्हें मास्को प्रांत के ज़ारई जिले का सैन्य कमिसर नियुक्त किया गया। इस स्थिति में, कॉन्स्टेंटिन ने डेढ़ साल काम किया। USSR रिवोल्यूशनरी मिलिट्री काउंसिल कुकीन के आदेश से वर्ष के 20 मार्च 1926 को लाल सेना से हटा दिया गया और खुद को पूरी तरह से पार्टी के काम में लगा दिया। उन्हें मास्को में कसीनी बोगाटियर संयंत्र की पार्टी समिति का सचिव और सोकोनिकी जिला पार्टी समिति के ब्यूरो का सदस्य चुना गया है। उनके जीवन की बड़ी घटना आरसीपी (X) के 16 पार्टी सम्मेलन और 1929 में मास्को सिटी पार्टी समिति के एक सदस्य के लिए एक प्रतिनिधि का चुनाव था। यहां उन्होंने पार्टी बिल्डिंग सेक्टर के प्रमुख का पद संभाला। उच्च शिक्षा पूरी करने के लिए, वह इंस्टीट्यूट ऑफ रेड प्रोफेसरशिप में अध्ययन करने के लिए जाता है, जहां वह सफलतापूर्वक अंग्रेजी भाषा में महारत हासिल करता है। अध्ययन करते हुए, कॉन्स्टेंटिन ने खुद को सकारात्मक पक्ष में स्थापित किया और एक्सएनयूएमएक्स में स्नातक होने के बाद, उन्हें विदेशी मामलों के कमिश्रिएट को सौंपा गया। पीपुल्स कमिश्रिएट कुकिन के केंद्रीय कार्यालय में एक छोटी इंटर्नशिप के बाद, उन्हें संयुक्त स्टॉक कंपनी आर्कोस में रेजिनोइमपोर्ट विभाग के प्रबंधक के रूप में इंग्लैंड भेजा गया था। कुछ समय बाद, उसी 1931 वर्ष में, कुकीन गलती से लंदन में अपने पुराने दोस्त के साथ रेचित्सा में सैन्य सेवा में आए, येवगेनी पेत्रोविच मिकिविक्ज़, एक अवैध खुफिया अधिकारी जो पहले जर्मनी और इटली में काम कर चुके थे। इंग्लैंड में, मिकीविक्ज़ ने एक अवैध निवास का नेतृत्व किया और एक विदेशी नागरिक के नाम पर एक पासपोर्ट था। अचानक हुई बैठक में प्रसन्न होकर, उन्होंने बेलारूस में अपने साथियों, उनके साथियों के साथ संयुक्त संघर्ष को याद किया, वे एक-दूसरे के मामलों में रुचि रखते थे। यह जानने के बाद कि इंग्लैंड में, कुकीन रेजिनिमपोर्ट में काम करता है, मित्सकेविच ने अप्रत्याशित रूप से उसे विदेशी खुफिया काम करने के लिए जाने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कोनोस्टिन को व्यक्तिगत रूप से INO के प्रमुख अर्तुर अर्तुजोव की सिफारिश करने के लिए तैयार थे। इस प्रस्ताव ने कुकीन को आश्चर्यचकित रूप से कहा, और उसने उत्तर दिया कि वह अभी भी बुद्धि में काम करने के लिए तैयार नहीं था। हालांकि, कुछ प्रतिबिंब के बाद, वह सहमत हुए और पूछा कि उन्हें ओजीपीयू में काम करने के लिए क्या करना चाहिए। "कुछ भी नहीं," मिकिविक्ज़ ने तुरंत जवाब दिया। - मुख्य बात यह है कि आप किसी को भी मेरे प्रस्ताव के बारे में नहीं बताएंगे, और फिर हम आपको पाएंगे। एक्सएनयूएमएक्स के अंत में, कुकीन को विदेशी खुफिया संवर्ग में नामांकित किया गया था और लंदन में INO कानूनी निवास में शामिल किया गया था। इस तरह की एक त्वरित नियुक्ति विदेशी खुफिया के पुनर्गठन के कारण हुई, जिसे एक्सन्यूएक्स के जनवरी एक्सएनयूएमएक्स से पोलित ब्यूरो के निर्णय द्वारा किया गया था। जर्मनी में नाज़ीवाद के विकास के संबंध में, इस डिक्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि सोवियत संघ एक नए विश्व युद्ध के खतरे का सामना कर रहा था, जिसे खुफिया कार्यों में वृद्धि की आवश्यकता थी। खुफिया विनियोजन बढ़ाए गए, इसके राज्यों का विस्तार किया गया। कुकीन बुद्धिमत्ता के लिए आदर्श रूप से अनुकूल था, जिसकी पुष्टि उन्होंने अपने आगे के काम से की। 1932 में, उन्होंने इंग्लैंड में अपना काम पूरा किया और मास्को लौट आए। खुफिया प्रबंधन ने उन्हें अपने सबसे सक्रिय बिंदुओं में से एक हार्बिन रेजिडेंसी में काम करने के लिए भेजने का फैसला किया। हार्बिन में काम के महत्व को इस तथ्य से समझाया गया था कि चीन के उत्तर-पूर्व में व्हाइट गार्ड उत्प्रवास का एक महत्वपूर्ण उपनिवेश था, जो जापानी और ब्रिटिश खुफिया सेवाओं के साथ निकटता से जुड़ा था। विदेशी राज्यों की विशेष सेवाओं ने सक्रिय रूप से एजेंटों को भेजा, उनके द्वारा सोवियत संघ के क्षेत्र में भर्ती किया गया। हार्बिन में, कॉन्स्टेंटिन मिखाइलोविच गोस्त्राख के सामान्य प्रतिनिधि की स्थिति में थे। वह स्टेशन के काम में सक्रिय रूप से शामिल था, कई दिलचस्प लिंक शुरू किए। हालांकि, एक्सएनयूएमएक्स में, वह गंभीर रूप से बीमार हो गया और यूएसएसआर में वापस जाने के लिए मजबूर हो गया। कुकिन एक वर्ष तक बीमार रहा, और फिर एक्सएनयूएमएक्स में, उसे तथाकथित यशा समूह में भर्ती कराया गया, जिसकी अध्यक्षता जैकब सेरेब्रांस्की ने की, जो एक सैन्य खुफिया एजेंसी थी। जापानी खुफिया के खिलाफ विशेष संचालन समूह का नेतृत्व करने के लिए कुकिन को नियुक्त किया गया था और ट्रांसबाइकलिया के लिए छोड़ दिया गया था। उनके समूह का कार्य यूएसएसआर टोही के क्षेत्र में भेजे गए जापानी खुफिया सेवाओं और रूसी व्हाइट गार्ड आव्रजन के तोड़फोड़ समूहों के साथ लड़ना था। एक्सएनयूएमएक्स में, बकाया विदेशी खुफिया प्रमुख आर्थर आर्टुज़ोव को गिरफ्तार किया गया और फिर गोली मार दी गई। पीपुल्स कमिसार निकोलाई येझोव के आदेश से, कोन्स्टेंटिन मिखाइलोविच को "लोगों के दुश्मन के साथ संबंध" के बारे में गवाही देने के लिए मास्को वापस बुलाया गया था। हालांकि, एनकेवीडी जांचकर्ता उनसे पूछताछ करने में विफल रहेः कुकीन की दिल की बीमारी लंबे समय तक खराब रही, और उन्हें स्वास्थ्य कारणों से राज्य सुरक्षा निकायों से बर्खास्त कर दिया गया। उस समय चेकिस्ट कुकिन केवल 40 वर्ष का था। वह शादीशुदा था, उसके दो बच्चे थे, एक अच्छी शिक्षा, कई पेशे, लेकिन उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। जैसे ही कार्मिक अधिकारियों को पता चला कि उसे एनकेवीडी से निकाल दिया गया था "लोगों के दुश्मनों से संपर्क करने के लिए," किसी भी संस्थान के दरवाजे उसके सामने पटक दिए। केवल अब्राम स्लुटस्की के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद, जिन्होंने आर्टुजोव को विदेशी खुफिया विभाग के प्रमुख के रूप में प्रतिस्थापित किया और जो कि पार्टी के सोकोनिकी जिला समिति में संयुक्त कार्य के लिए कुकिन को जानते थे, कोनस्टेंटिन मिखाइलोविच अपने रैंकों में बहाल थे। ताकि उत्साही जांचकर्ताओं को फिर से एक स्काउट में दिलचस्पी न हो, स्लटस्की ने तुरंत उसे यूएसए के लिए एक विदेशी मिशन पर जारी करने के निर्देश दिए, जहां कोन्स्टेंटिन मिखाइलोविच नवंबर 7 में 1937 के बाद वाशिंगटन में यूएसएसआर दूतावास के दूसरे सचिव के पद के तहत छोड़ दिया था। मई 1941 तक, विदेश में USSR के राजनयिक संस्थानों को क्रमशः उनके सहायक उपकरणों की अध्यक्षता वाले, plenipotentiaries कहा जाता था। मई में, दूतावासों को एक्सएनयूएमएक्स कहा जाने लगा, जैसा कि दुनिया भर में प्रथागत है, जैसे राजदूतों के नेतृत्व में दूतावास। कवर के लिए इस स्थिति में, उन्हें व्यक्तिगत मामलों के लिए कमिसार द्वारा व्यक्तिगत रूप से व्याचेस्लाव मिखाइलोविच मोलोतोव द्वारा अनुमोदित किया गया था, जिसके साथ भविष्य में उन्हें आधिकारिक व्यवसाय पर एक से अधिक बार संवाद करना होगा और यहां तक कि एक्सएनयूएमएक्स में अमेरिका की यात्राओं पर भी उनके साथ जाना होगा। इस बीच, आंतरिक मामलों के कमांडर येझोव को पद से हटा दिया गया और उन्हें मार दिया गया। उन्हें इस पद पर लॉरेंस बेरिया द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिन्होंने बुद्धि को पुनर्गठित करना शुरू कर दिया था। उनके आदेश से, कुकीन को न्यूयॉर्क स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां हॉक होवाकिमियन खुफिया निवासी था। न्यूयॉर्क में पहुंचते ही, कोंस्टेंटिन मिखाइलोविच जल्दी से स्थिति से परिचित हो गए और छह महीने के भीतर वह राजनीतिक जानकारी के दो स्रोतों को काम में लाने में सक्षम हो गए, जिससे हमारे देश के प्रति अमेरिकी शासक हलकों की नीतियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी आना शुरू हो गई। निवासी होवाकिमान ने इगोर (कोंस्टेंटिन मिखाइलोविच कुकीन का परिचालन छद्म नाम) को एक और सात मोथबॉल एजेंटों से संपर्क करने के लिए भेजा, जिनके साथ निवासी पीटर गुत्ज़ायत ने पहले काम किया था (वह मास्को को याद किया गया था, ट्रॉटस्कीवाद के अभियुक्त और निष्पादित)। केंद्र ने इन एजेंटों में से आधे को "संदिग्ध स्रोत" के लिए जिम्मेदार ठहराया और उनके साथ काम करना बंद करने का सुझाव दिया। हालांकि, कुकिन ने उनसे मिलना जारी रखा और राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर उनसे बहुमूल्य जानकारी प्राप्त की। इन स्रोतों के साथ काम महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध के दौरान जारी रहा और बहुत उत्पादक था। निवासी होवाकीमान ने काम में इगोर की गतिविधि की बहुत सराहना की और सुझाव दिया कि केंद्र उन्हें उप निवासी के रूप में नियुक्त करेगा। हालांकि, केंद्र में ही अनुभवी कर्मियों की कमी के कारण, खुफिया नेतृत्व ने कुकीन को मास्को वापस लेने और उसे एक नेतृत्व की स्थिति में नियुक्त करने का फैसला किया। इसलिए कॉन्स्टेंटिन मिखाइलोविच एक्सएनयूएमएक्स-वें विदेशी खुफिया विभाग (यूएसए और कनाडा) के उप प्रमुख बने। लेकिन स्काउट के केंद्र में एक और मुसीबत के लिए इंतजार कर रहा था। एक निश्चित आप्रवासी ने उस पर "काउंटर-क्रांतिकारी संगठन" से संबंधित होने का आरोप लगाया, जिसे कथित रूप से लंदन में आर्कोस संयुक्त स्टॉक कंपनी के तहत बनाया गया था। हालांकि, परीक्षण में उत्प्रवासी के बयानों की बेरुखी का पता चला, और कुकिन को अकेला छोड़ दिया गया। फिर भी, खुफिया प्रमुख ने कहा कि कैसे स्काउट को झटका से बाहर निकालना है। जल्द ही युद्ध शुरू हो गया। जुलाई में 16 के पत्र में निवासी गोर्सकी के बाद से उसे लंदन निवास में भेजने का फैसला किया गया था, 1941 में XNUMX ने अतिरिक्त अनुभवी कार्यकर्ताओं को भेजने के लिए कहा। सोवियत दूतावास में एक स्वागत समारोह में। यूएसएसआर राजदूत कोंस्टेंटिन कुकिन और फील्ड मार्शल बर्नार्ड मोंटगोमरी, लंदन, एक्सएनयूएमएक्स वर्ष। और फिर से मामले में हस्तक्षेप किया। 20 जुलाई 1941, USSR के सुप्रीम सोवियत के प्रेसिडियम के फरमान से, पीपुल्स कमिसरीएट ऑफ इंटरनल अफेयर्स (NKVD) और पीपुल्स कमिश्रिएट ऑफ स्टेट सिक्योरिटी (NKGB) यूएसएसआर के आंतरिक मामलों के सिंगल पीपुल्स कमिश्रिएट में एकजुट हो गए, लावेरी का नेतृत्व किया। नए लोगों के कमिसार ने "ट्रॉट्सकी संगठन" की गतिविधियों में उनकी भागीदारी का सत्यापन पूरा होने तक कुकीन की लंदन की व्यापार यात्रा पर रिपोर्ट को स्थगित कर दिया। तब एनकेवीडी की बुद्धि के प्रमुख पावेल मिखाइलोविच फिटिन ने जर्मन के जासूसों और तोड़फोड़ करने वालों की पहचान करने के लिए फ्रंटलाइन और फ्रंट-लाइन क्षेत्रों में कमांड के काम को अंजाम देने वाले लोगों के कमिश्नरों के कर्मचारियों के एक विशेष समूह को तत्काल कुकीन को छोड़ दिया। कॉन्स्टेंटिन मिखाइलोविच इस काम के साथ सफलतापूर्वक मुकाबला कर रहा था, और जल्द ही उसके खिलाफ सभी बेतुके आरोप पूरी तरह से गायब हो गए और वह केंद्रीय खुफिया तंत्र में लौट आया, जहां युद्ध के वर्षों के दौरान ऑपरेटिव सक्षम कर्मी सोने में अपने वजन के लायक थे। जुलाई एक्सएनयूएमएक्स में कुकीन को विदेशी काम के लिए तैयार करने के लिए, वह कमिसार के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर गए। खुफिया प्रबंधन ने अप्रैल 1943 में केवल लंदन रेजिडेंसी में काम करने के लिए कुकिन के निर्देश पर रिपोर्ट पर वापस लौटा, जब NKGB को फिर से स्थापित किया गया था। पीपुल्स कमिसार Vsevolod मर्कुलोव ने रिपोर्ट के साथ खुद को परिचित किया, सुझाव दिया कि फिटिन को गोर्की के बजाय कुकीन को एक निवासी नियुक्त करना चाहिए। फिटिन ने बुरा नहीं माना। कोंस्टेंटिन मिखाइलोविच दूतावास के सलाहकार के रूप में लंदन गए। उनके जाने की पूर्व संध्या पर, वेसेवोलॉड निकोलायेविच मर्कुलोव, पीपुल्स कमिसर ऑफ़ स्टेट सिक्योरिटी द्वारा प्राप्त किया गया, जिन्होंने इंग्लैंड में निवास के कार्यों को संक्षेप में बतायाः पीपुल्स कमिसार कुकिन के साथ बातचीत के बाद, वह उसी दिन लंदन के लिए रवाना हो गए। वह अपने परिवार के साथ रेल से मुरमांस्क गए और वहां से समुद्र के रास्ते इंग्लैंड गए। वह मई 1943 के मध्य में ब्रिटिश राजधानी में पहुंचे, और तुरंत काम में शामिल हो गए। उन्होंने "कैम्ब्रिज फाइव" के सदस्यों के साथ संपर्क किया। मॉस्को मुख्य रूप से इस सवाल में दिलचस्पी रखता था कि चर्चिल के वादे अगस्त - सितंबर 1943 में दूसरा मोर्चा खोलने के लिए कितने गंभीर थे। 15 мая Кукин направляет в Центр добытые агентурным путем в Министерстве авиации сведения о военно-стратегическом плане Великобритании на 1943 год. В нем не было ни слова о высадке англо-американских войск в Европе. Из документа следовало, что англичане намерены изгнать немецко-итальянские войска из Туниса, оккупировать Сицилию и Сардинию, а основные сухопутные операции против нацистской Германии перенести на 1944 год. लंदन रेजिडेंसी के प्रयासों के लिए धन्यवाद, कुकीन के साथ-साथ अन्य विदेशी खुफिया एजेंसियों के नेतृत्व में, स्टालिन को सहयोगियों की योजनाओं के बारे में पता था। नवंबर में बिग थ्री 30 के तेहरान सम्मेलन में, उन्होंने मई 1944 में दूसरा मोर्चा खोलने के लिए इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका से लिखित प्रतिबद्धता हासिल की। वास्तव में, ऑपरेशन ओवरलॉर्ड ने नॉरमैंडी में मित्र राष्ट्रों की लैंडिंग केवल 6 पर 1944 पर शुरू की, जब यह पूरी दुनिया के लिए पहले से ही स्पष्ट था कि यूएसएसआर नाजी जानवर की पीठ को तोड़ने में सक्षम था। तब मित्र राष्ट्रों ने जर्मन पाई को विभाजित करने के लिए जल्दबाजी की। कोंस्टेंटिन कुकिन और उनके नेतृत्व वाले स्काउट्स ने लंदन में फ्रंट-लाइन वालों के करीब की स्थितियों में काम किया। ब्रिटिश राजधानी ने लगभग रोज जर्मन लूफ़्टवाफे़ पर बमबारी की। ऐसा हुआ कि एक ऑपरेटर उस क्षेत्र से एक बैठक से वापस नहीं लौट सकता है जिसने छापा मारा था। तब निवासी खुद एक कार के पहिए के पीछे बैठ गया, अपने साथी के बचाव के लिए दौड़ा और उसे दूतावास में ले गया। कुकिन ने एजेंटों के साथ काम करने के लिए बहुत प्रयास और ध्यान समर्पित किया। 1943 के अंत में, एन्क्रिप्शन मास्को में उनके नाम से आया था, जिसने उन्हें आठ नए गुर्गों के अपने निवास की दिशा की जानकारी दी थी। उसी समय, निवासी को केंद्र को रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था कि टीम का सामना करने वाले कार्यों को करने में उनका उपयोग कैसे करें। कॉन्स्टेंटिन मिखाइलोविच उस समय गंभीर रूप से बीमार थे और समय पर केंद्र को जवाब नहीं दे सकते थे। एक स्काउट को पेप्टिक अल्सर की बीमारी थी जिसने उसे बिस्तर पर जकड़ लिया था। उन्होंने घर में काम किया, बिस्तर पर लेटे रहे। तीव्र दर्द के हमलों से, वह बैठ भी नहीं सकता था। केवल वर्ष के 1944 की शुरुआत में, अपनी बीमारी के बारे में एक शब्द का उल्लेख किए बिना, निवासी ने बिंदु की गतिविधियों में प्रत्येक ऑपरेटिव का उपयोग करने की योजना पर रिपोर्ट की और केंद्र से कहा कि वह डिप्टी कमिशर फॉर फॉरेन अफेयर्स आंद्रेई विन्हिन्स्की से बात करे और उसे राजनयिक लाइन के माध्यम से अत्यधिक भार से राहत देने के बारे में बताए। हालाँकि, जल्द ही केंद्र से इन प्रस्तावों पर अप्रत्याशित प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। केंद्र में क्यूरेटर कुकिना ने उन्हें इस बारे में सूचित करने के लिए कहा कि कैसे वे खुफिया के हितों में दूतावास के माध्यम से विभिन्न समितियों में अपनी भागीदारी का उपयोग करते हैं। निवासी को अपने कार्यालय में आने वाले प्रत्येक नए कर्मचारी के काम पर विस्तृत रिपोर्ट भेजने के लिए भी कहा गया था। बिस्तर पर रहने वाले निवासी ने केंद्र को पत्र लिखाः - "केंद्र की योजनाओं के अनुसार एक नए तरीके से कार्य हमारे द्वारा विकसित किया गया है। यह अधिक तेजी से युद्ध से बाधित हैः हम जर्मन विमानों से गोले और मिसाइलों के गोले के नीचे काम करते हैं। लगातार बमबारी के कारण, एजेंटों के साथ संवाद करना मुश्किल है। उनमें से कुछ ने इस वजह से लंदन छोड़ दिया। जो लोग इसमें बने रहे, अनिच्छा से और अपने जीवन के लिए आशंका के साथ मतदान के लिए जाते हैं। यदि वे आते हैं, तो बातचीत हमेशा नहीं होती हैः लोग V-1 के उड़ान भरने के शोर को अधिक सुनते हैं। संक्षेप में भर्ती के बारे में। यूरोप में अपने सफल मुक्ति मिशन के संबंध में सोवियत संघ के लिए आम अंग्रेजों की सहानुभूति में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, राज्य में परिचालन संपर्क और हमारे लिए सामान्य राजनीतिक वातावरण का पता लगाना अधिक कठिन हो गया। तथ्य यह है कि यूएसएसआर के प्रति संदेह यूरोप में अपने महान प्रभाव के कारण अंग्रेजी समाज के उच्चतम क्षेत्रों में बढ़ रहा है। यह सब आपको हमारी कठिनाइयों को दिखाने के लिए है, न कि हमारे कथित कमजोर काम को सही ठहराने के लिए। मुझे आपको सीधे बताना होगाः हम आपके आकलन से सहमत नहीं हैं। पिछले वर्ष में, हमने बीस एजेंटों की भर्ती की, छह स्रोतों के साथ संचार बहाल किया। "कैम्ब्रिज फाइव" के काम से प्राप्त उच्च प्रतिफल। स्टेशन ने लगातार सैन्य, राजनीतिक, आर्थिक और वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी प्रदान की, विशेष रूप से यूरेनियम समस्या पर। "इगोर"। वर्ष का फरवरी 1945। " कुकिन के पत्र की सूचना तुरंत विदेशी खुफिया प्रमुख फिटिन को दी गई। इसे पढ़ने के बाद, उन्होंने एक अलग कागज़ पर लिखा और दस्तावेज़ को निम्न सामग्री के समाधान के लिए पिन कियाः "कॉमरेड। क्लैर। 1। किसी भी विदेशी निवासी और उसके कर्मचारियों की गतिविधियों का मूल्यांकन मामलों के ज्ञान पर आधारित होना चाहिए, न कि भावनाओं पर। इसलिए, मेरी जानकारी के बिना, मैं आपसे यह नहीं करने के लिए कहता हूं। 2. Тов. Кукин, к вашему сведению, сумел не только сохранить достигнутый высокой уровень оперативной работы, но и обеспечить получение важных документальных материалов по всем интересующим Центр вопросам. Из лондонской резидентуры мы постоянно получали и сейчас получаем ценнейшую политическую развединформацию, а также сведения о ведущихся в Великобритании работах по созданию ядерного оружия. Руководимая Кукиным резидентура регулярно информировала наше правительство о послевоенных планах Англии и США в отношении мирного устройства в Европе. 3। यह सब देखते हुए, मैं आपसे व्यक्तिगत रूप से सरकारी पुरस्कार देने के लिए कुकीन और उनके कर्मचारियों पर एक प्रस्तुति तैयार करने के लिए कहता हूं। पी। फिटिन। वर्ष का फरवरी 1945। " लंदन निवास के क्यूरेटर, निश्चित रूप से, अपने काम की सभी बारीकियों को नहीं जानते थे, क्योंकि उनकी कई सामग्री, विशेष रूप से जो कैम्ब्रिज फाइव से प्राप्त हुई थीं, सीधे केंद्र के सामान्य कर्मचारियों को दरकिनार करते हुए "ऊपर" बताए गए थे। खुफिया प्रमुख के संकल्प ने इस तथ्य में सकारात्मक भूमिका निभाई कि लंदन रेजीडेंसी के क्यूरेटरों ने उनकी छोटी हिरासत को रोक दिया, और इससे उनके काम पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। क्यूरेटर, निश्चित रूप से, खुफिया प्रमुख के निर्देशों का अनुपालन करता है, और जल्द ही एक बधाई टेलीग्राम लंदन रेजीडेंसी में गया, जिसमें कहा गया कि कोन्स्टेंटिन कुकिन, अलेक्जेंडर बर्कोवस्की और कई अन्य खुफिया अधिकारियों को सैन्य आदेश दिए गए थे। दो महीने बाद, लंबे समय से प्रतीक्षित विजय आई, जिसमें निवासी और उनके कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। युद्ध के वर्षों के दौरान लंदन निवास के काम को केंद्र द्वारा बहुत सराहना मिली। कोई आश्चर्य नहीं, पहले से ही 1960-ies में, सीआईए के पूर्व निदेशक एलेन डुल्ल्स ने युद्ध के वर्षों के दौरान कैम्ब्रिज फाइव से प्राप्त "दुनिया की किसी भी खुफिया जानकारी का अंतिम सपना" कहा था। यह निश्चित रूप से, खुद कॉन्स्टेंटिन मिखाइलोविच कुकीन की काफी योग्यता थी, जिन्होंने 1949 वर्ष तक सफलतापूर्वक लंदन में काम किया था। 30 मई 1947, वह प्रमुख निवासी खुफिया नियुक्त किया गया था और एक ही समय में यूके में USSR के असाधारण और बहुपक्षीय राजदूत। मई 1949 में एक व्यापारिक यात्रा पूरी करने के बाद, कुकीन मास्को लौट आया और USSR विदेश मंत्रालय की सूचना समिति के 1 (एंग्लो-अमेरिकन) विभाग का प्रमुख बन गया, क्योंकि तब विदेशी खुफिया विभाग को बुलाया गया था। इस स्थिति में, उन्होंने नवंबर 1951 तक काम किया, जब सूचना समिति को समाप्त कर दिया गया था और विदेशी सुरक्षा राज्य सुरक्षा एजेंसियों के ढांचे में लौट आई थी। दुर्भाग्य से, कॉन्स्टेंटिन कुकिन ने नई संरचना में लंबे समय तक काम करने का प्रबंधन नहीं किया। एक्सएनयूएमएक्स में, उनके पुराने रोग खराब हो गए, और उन्हें एक्सएनयूएमएक्स की उम्र में स्वास्थ्य कारणों से सेवानिवृत्त होने के लिए मजबूर किया गया। 1952 नवंबर 55, Konstantin मिखाइलोविच कुकीन का निधन। राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सफल काम के लिए, कर्नल कुकिन को ऑर्डर ऑफ लेनिन, रेड बैनर के दो आदेश, देशभक्ति युद्ध के दो आदेश, द स्टार ऑफ़ द रेड स्टार और कई पदक दिए गए।
987a55ae14cc61f22729eab34ee20c474934f0c0
web
चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को छज्जूबाग में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में वरिष्ठ साहित्यकार यादवेंद्र, फिल्मोत्सव की संयोजक प्रीति प्रभा और हिरावल के संयोजक संतोष झा ने बताया कि 13वाँ पटना फिल्मोत्सव 19 दिसंबर से 21 दिसंबर तक पटना में मनाया जाएगा। - कालिदास रंगालय में आयोजित होने वाले इस फिल्मोत्सव में एक दर्जन फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जिन्हें दर्शक निःशुल्क देख सकेंगे। - फिल्मोत्सव में मुंबई, केरल, कोलकाता, दिल्ली, अलीगढ़ और राँची से कुल आठ फिल्मकार अपनी फिल्मों के साथ आ रहे हैं। एक सेक्शन स्थानीय युवा फिल्मकारों का भी होगा। - 13वें फिल्मोत्सव का उद्घाटन हिन्दी के वरिष्ठ कवि और आईआईटी, हैदराबाद में प्रोफेसर हरजिंदर सिंह लाल्टू करेंगे। पहले दिन दो साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जिनमें संवदिया (फणीश्वर नाथ रेणु) और लौट रही है बेला एक्का (अरुण प्रकाश) शामिल हैं। फिल्म के प्रदर्शन के बाद उपस्थित निर्देशकों के साथ दर्शकों के संवाद का भी सत्र होगा। - फिल्मोत्सव में दिखाई जानेवाली आखिरी फिल्म "मट्टो की साइकिल' होगी। जाने-माने फिल्म निर्देशक प्रकाश झा ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। इस फिल्म का प्रीमियर बुसान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में हुआ था। इसके निर्देशक मो. गनी भी फिल्मोत्सव में शिरकत करेंगे। चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में दवाओं के वितरण को लेकर नया गाइडलाइन जारी किया है। नये नियम के मुताबिक अब सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीजों को 611 प्रकार की दवाएँ मुफ्त में मिलेंगी। - नयी-नयी बीमारियाँ सामने आने के बाद सरकार ने सरकारी अस्पतालों में दवाओं के वितरण को लेकर नया गाइडलाइन जारी किया है। इसके तहत अब मरीजों को निजी दुकानों से दवा नहीं खरीदनी पड़ेगी। - सरकार की ओर से जारी नये संकल्प में मेडिकल कॉलेज से लेकर ज़िला अस्पताल व स्वास्थ्य उपकेंद्र तक के अस्पतालों में ओपीडी और आईपीडी में कुल 611 प्रकार की दवाओं के वितरण करने का निर्णय लिया गया है। चर्चा में क्यों? 15 दिसंबर, 2022 को राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव माइंस व पेट्रोलियम, डॉ. सुबोध अग्रवाल ने राज्य में कार्यरत सभी 14 संस्थाओं के प्रतिनिधियों की समीक्षा बैठक में बताया कि सीएनजी गैस वितरण के लिये 1187 स्टेशन स्थापित किये जाएंगे, वहीं 37824 इंच किमी. पाईपलाइन बिछाई जाएगी। - एसीएस डॉ. सुबोध अग्रवाल ने बैठक में बताया कि सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत 8 साल में 96 लाख पाईपलाइन से घरेलू गैस कनेक्शन उपलब्ध करा दिये जाएंगे। - उन्होंने राज्य की 33 ज़िलों में कार्यरत 14 गैस कंपनियों को तय समय सीमा में पाईपलाइन से गैस वितरण व्यवस्था और सीएनजी वितरण व्यवस्था को प्रभावी करने के निर्देश दिये। - उन्होंने बताया कि जयपुर के कालवाड़ रोड़, झोटवाड़ा, विद्याधर नगर और महेंद्र सेज में 10 हजार कनेक्शन मार्च 2023 तक जारी कर दिये जाएंगे। - एसीएस डॉ. सुबोध अग्रवाल ने बताया कि राज्य में इस समय पाईपलाइन से एक लाख 877 घरेलू गैस कनेक्शन जारी किये जा चुके हैं। वहीं 221 सीएनजी स्टेशन की स्थापना के साथ ही 7767 इंच किमी. पाईपलाइन बिछाने का काम हो चुका है। - डॉ. सुबोध अग्रवाल ने बताया कि जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, भरतपुर, सिरोही, जालौर, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, अलवर, जयपुर, धौलपुर, कोटा, रावतभाटा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर, पाली, जयसमंद में कार्य आरंभ हो चुका है। - एमडी आरएसजीएल रणवीर सिंह ने बताया कि राज्य में बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में एजएपी, अलवर (भिवाड़ी को छोड़कर), जयपुर (कोटा शहर को छोड़कर) बारां और चित्तौड़गढ़ (केवल रावतभाटा) में टोरेंट, भीलवाड़ा, बूंदी, रावतभाटा को छोड़कर चित्तौड़गढ़, उदयपुर और प्रतापगढ़ में अडानी गैस, धौलपुर में एस्सेल, अजमेर, पाली, राजसमंद में इंद्रप्रस्थ गैस, जालौर, सिरोही, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, में गुजरात गैस, कोटा में राजस्थान गैस, भरतपुर में गैल गैस, भिवाड़ी में हरियाणा गैस, बीकानेर, चुरु, में दिनेश इंजीनियरिंग, झुंझुनूं, सीकर, नागौर में इंडियन ऑयल, दौसा, करौली, सवाई माधोपुर व टोंक में हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, गंगानगर व हनुमानगढ़ में भारत पेट्रोलियम, झालावाड़ में मेघा इंजीनियिंरंग द्वारा आधारभूत संरचना, व पाईप लाइन से गैस वितरण और सीएनजी का कार्य किया जा रहा है। चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित बुंदेलखंड की 18 हज़ार 500 से अधिक महिला डेयरी किसानों की दुग्ध उत्पादक कंपनी मुक्ता ने अपना ब्रांड 'मुक्ता घी'विधिवत लॉन्च किया। - प्रदेश की महिला दुग्ध उत्पादक कंपनी की यह बड़ी उपलब्धि है। प्रदेश की 4 दुग्ध उत्पादक कंपनियाँ प्रतिदिन 2 लाख लीटर दुग्ध उत्पादन करती हैं, जिनमें अकेली मुक्ता कंपनी एक लाख लीटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन कर रही है। कंपनी का वार्षिक टर्न-ओवर 65 करोड़ रुपए से अधिक है। - इस अवसर पर मध्य प्रदेश राज्य आजीविका मिशन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एल.एम. बेलवाल ने कहा कि यह एक प्रेरणादायक स्टार्ट-अप है, जो महिलाओं के सशक्तीकरण का प्रतीक है। - मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत प्रदेश में 4 लाख 12 हज़ार स्व-सहायता समूह गठित हैं, जिनसे 46 लाख ग्रामीण महिलाओं का आजीविका संवर्धन किया जा रहा है। - प्रदेश में 88 किसान उत्पादक कंपनियाँ भी बनाई गई हैं, जिनके एक लाख 79 हजार सदस्य प्रमुख रूप से कृषि आधारित गतिविधियाँ कर रहे हैं। इन कंपनियों का वर्ष 2022-23 में नवंबर माह तक 529 करोड़ रुपए टर्न ओवर हो चुका है। गत वर्ष अकेली मुक्ता महिला दुग्ध उत्पादक कंपनी ने 65 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार किया, जिसमें 85 प्रतिशत बिक्री से आय का भुगतान सदस्यों को दूध के रूप में किया गया। - कंपनी द्वारा प्रत्येक गाँव में दूध की खरीदी के लिये उन्नत स्व-चलित दूध संग्रहण प्रणाली स्थापित की गई है, जिसमें दूध बेचने वाले सदस्य दूध की मात्रा, गुणवत्ता और मूल्य की जाँच स्वयं कर सकते हैं। उन्हें मुद्रित पावती पर्ची भी मिलती है और उनके मोबाइल पर बेचे गए दूध का पूरा विवरण आ जाता है। - कंपनी का मोबाइल एप दूध के लेन-देन की जानकारी देता है। कंपनी पशुओं में दूध की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कृत्रिम गर्भाधान, खनिज मिश्रण, फर्टिलिटी केंप, अवेयरनेस जैसे कार्य कर रही है। - उल्लेखनीय है कि मुक्ता कंपनी ने इंडिया डेयरी अवार्ड-2021 में डेयरी एक्सटेंशन पुरस्कार भी प्राप्त किया है। कंपनी ने 4 साल की अल्प अवधि में यह सफलता पाई है। आगामी 2 वर्ष में प्रदेश में दुग्ध उत्पादक कंपनियों से 5 लाख लीटर प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन का लक्ष्य है। चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को झारखंड के गोड्डा में बने देश के अब तक के सबसे उत्कृष्ट थर्मल पावर प्लांट में से एक अडाणी पावर प्लांट से पहले चरण में 800 मेगावाट बिजली का उत्पादन शुरू हो गया। पहले चरण में 800 मेगावाट का उत्पादन कर बांग्लादेश को बिजली पहुँचाया गया। इस पावर प्लांट से झारखंड सरकार को 25 प्रतिशत बिजली मिलेगी। - दो यूनिट वाले अडाणी पावर प्लांट के पहले फेज में 800 मेगावाट बिजली का उत्पादन का ट्रायल दिसंबर में हो जाने के बाद बांग्लादेश को तय तिथि 16 दिसंबर को पावर ट्रांसमिट किया गया। दूसरे यूनिट के अप्रैल तक चालू होने की बात बताई जा रही है। उस समय कंपनी की ओर से कुल 1600 मेगावाट का उत्पादन शुरू हो जाएगा। - बांग्लादेश तक बिजली पहुँचाने के लिये गोड्डा से मुर्शिदाबाद तक 105 किमी. ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण भी अडानी ने करवाया है। इसके अलावा पानी की ज़रुरत को पूरा करने के लिये साहिबगंज से गोड्डा तक वाटर पाइपलाइन बिछाई गई है। - गौरतलब है कि भारत सरकार और बांग्लादेश के बीच हुए समझौते के तहत यह पावर प्लांट बनाया गया है। यह अल्ट्रा सुपर थर्मल पावर प्लांट है। इस पावर प्लांट के निर्माण पर कुल 15000 करोड़ रुपए की लागत आई है। - अडाणी पावर प्लांट का काम साल 2016 में भूमि अधिग्रहण के साथ शुरू हुआ। मोतिया और आसपास के कई गाँव एवं मौजा की करीब 650 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया गया। इसके बाद 2018 में कंपनी ने निर्माण कार्य शुरू किया। - इस प्लांट में नवीन तकनीक का प्रयोग किया गया है। देश भर में लगे अब तक के लेटेस्ट चिमनी जिसकी ऊँचाई 275 मीटर है, यहाँ बनाया गया है। वहीं, पावर उत्पादन के साथ पर्यावरण की रक्षा के लिये इको फ्रेंडली एफडीजी एवं एससीआर केमिकल रिएक्शन का इस्तेमाल का यंत्र लगाया गया है। - एससीआर नामक तकनीक के माध्यम से गैसीय प्रदूषण को रोकने का काम किया गया है। साथ ही इएसपी यानी इलेक्ट्रो स्टेटिक प्रेसीप्रेटर सिस्टम का उपयोग किया गया है। इससे सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्बन के उत्सर्जन को परिमार्जित कर प्रदूषण क्षमता को कम करता है। इस यंत्र और मशीन के इंस्टॉलेशन में कंपनी को करीब 2200 करोड़ रुपए अतिरिक्त राशि खर्च करना पड़ा है। - अडाणी संयंत्र में उच्च तापीय एवं क्वालिटी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जा रहा है। यह कोयला अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण बताया जा रहा है। चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को विधानसभा स्थित कार्यालय में उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी की अध्यक्षता में उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड की 35वीं बैठक में किसानों के हित में कई फैसले लिये गए। कृषि कार्य के दौरान दुर्घटना में किसान की मृत्यु होने पर मिलने वाली मुआवज़ा राशि को एक लाख से बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपए कर दिया गया है। - इसके अलावा दुर्घटना से दोनों हाथ या दोनों पैर या फिर एक हाथ और एक पैर से दिव्यांग होने पर मुआवज़े को 60 हज़ार से बढ़ाकर एक लाख और एक अंग से दिव्यांग होने पर मुआवज़े को 30 हज़ार से बढ़ाकर 50 हज़ार रुपए करने का निर्णय लिया गया। - व्यत्तिगत दुर्घटना की पात्रता में 18 से 60 वर्ष की आयु की शर्त को समाप्त किया गया है, जिससे अब दुर्घटना होने पर सभी किसानों को मुआवज़ा दिया जाएगा। - कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि बोर्ड के माध्यम से किसानों के मेधावी बच्चों के लिये छात्रवृत्ति योजना शुरू की गई है। इस योजना में पात्रता के लिये आय सीमा दो लाख रुपए रखी गई थी। इसे बढ़ाकर तीन लाख रुपए प्रति वर्ष किया गया है। चर्चा में क्यों? 16 दिसंबर, 2022 को विजय दिवस पर गांधी पार्क में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के वीरता चक्र विजेता सैनिक और वीर नारियों को उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में निशुल्क यात्रा सुविधा देने की घोषणा की। - मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रदेश में शहीद द्वार और स्मारकों का निर्माण कार्य अब सैनिक कल्याण विभाग के जरिये होगा। पहले यह संस्कृति विभाग के माध्यम से होता था। - उन्होंने कहा कि वर्ष 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के 255 जवानों ने भारत माँ की रक्षा के लिये प्राणों का बलिदान दिया था। युद्ध में अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देने वाले प्रदेश के 74 सैनिकों को विभिन्न वीरता पदकों से नवाज़ा गया था। - मुख्यमंत्री ने कहा कि सैन्य परिवारों के लिये राज्य सरकार विशेष योजनाएँ बना रही है ताकि एक सैनिक को युद्ध लड़ते समय परिवार की चिंता न हो। सैनिकों या उनके आश्रितों को मिलने वाली अनुदान राशि बढ़ाने से लेकर शहीदों के आश्रितों को राज्य सरकार की नौकरियों में वरीयता के आधार पर नियुक्ति देने का निर्णय लिया गया है। - सैनिक कल्याण विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, उत्तराखंड में 1727 सैनिकों और सेना के अधिकारियों को वीरता चक्र मिला है। इनमें एक परमवीर चक्र, छह अशोक चक्र, 13 महावीर चक्र, 32 कीर्ति चक्र, चार उत्तम युद्ध सेवा मेडल, 102 वीर चक्र, 188 शौर्य चक्र, 36 युद्ध सेवा मेडल, 847 सेना मेडल (वीरता), 198 मेंशन इन डिस्पैच, 70 सेना मेडल, 45 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 56 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 129 विशिष्ट सेवा मेडल विजेता शामिल हैं। वहीं, प्रदेश में वीर नारियों की संख्या वर्तमान में करीब 1100 है। - गौरतलब है कि विजय दिवस भारतीय सेना के वीर जवानों के अदम्य साहस, शौर्य का प्रतीक है। इसी दिन वर्ष 1971 में पाकिस्तान के 93,000 से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी सेना का यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था।
ea01ec993c36ac1a01d6b44512dfa6491bfec31860c7909e12002cf8755bfb18
pdf
चार्य ने महाकवियों की उक्ति में श्रभिधेवार्थ के प्रतिरिक्त प्रतीयमानार्थ को आवश्यकता मानी है। उन्होंके व्याख्याता अभिनव गुप्त ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए प्रतीयमानार्थ के नियोजन की क्षमता रखने वाले कवि को महाकवि कह दिया है। यहाँ पर इन प्राचार्यों का अभिप्राय इसमें नहीं हूँ कि मुक्तक रचना करनेवाला भी महाकवि हो सकता है। इन दोनों ने तो काव्य में ध्वनि और रस की प्रधानता का प्रतिपादन भर किया है। उसका तात्पर्य तो केवल इतने से हो प्रतीत होता है कि केवल शास्त्रीय नियमों के निर्वाह-मात्र से महाकवि पद का अधिकारी नहीं हो सकता। उसे अपने काव्य में 'प्रतीयमानायें' की, जो इन दोनों प्राचार्यों को दृष्टि से काव्य को प्रात्मा है, प्रतिष्ठा करने की भी नितान्त आवश्यकता है। ध्वनिकार और अभिनव गुप्त ने महाकवि होने के लिए प्रबन्ध-काव्य की रचना श्रावश्यक नहीं मानी है । पर यह तो कवित्व-शक्ति का सामान्य परिचय है । इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनको यह भेद मान्य नहीं । यह भी हो सकता है कि ऐसा भेद परवर्तीहै काल में अधिक मान्य रहा हो और यही परम्परा हिन्दी में मान्य हो गई हो । पर इस रूढ़िवादिता का खंडन समयानुकूल ही था । आचार्य पद्मसिंह को इस धारणा के पीछे युग को धारणा है। कुछ दिन पूर्व चाहे उसे सूर को भी महाकवि कहने में हिचकिचाहट का अनुभव होता रहा हो। पर पन्त, निराला श्रादि को महाकवि पद से अलंकृत करने के मोह का आज का आलोचक नहीं कर पा रहा है। संस्कृत के कुछ प्राचार्यों ने चाहे महाकवि शब्द को कुछ नियमों में जकड़ दिया हो, पर जन-साधारण तथा कतिपय प्रगति प्रिय प्राचार्यों को यह कैद कभी स्वीकृत नहीं रही है । अपने प्रिय कवियों को महाकवि कहने के अधिकार को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। 'गीत गोविन्द', 'अमर शतक', 'श्रार्यासप्तशती', 'गाथा सप्तशती -जैसी रचनाओं के प्रणेता प्रबन्धकार न होते हुए भो महाकवि माने जाते रहे होंगे। रीति-काल में यह भेद व्यवहार में स्वीकृत नहीं हुआ है। आधुनिक युग भी इस भेद को मानकर नहीं चल सकता है । इस प्रकार प्राचार्य पद्मसिंह जी को यह धारणा युग की प्रेरणा का प्रतिनिधित्व करने वाली है। इतना ही नहीं बिहारी तथा अन्य मुक्तक काव्य के रचयिताओं का सम्यक् अध्ययन र महत्त्व दर्शन के लिए ऐसी धारणा नितान्त आवश्यक भी थी । मुक्तक और प्रबन्ध के आधार पर फैली हुई इस भ्रान्त धारणा का निवारण करके प्राचार्य ने आलोचक रूप की महत्ता का परिचय दिया है । हिन्दी का प्राधुनिक साहित्य बहुत कुछ रीतिकालीन काव्य-परम्पराओं को का परिणाम है । रीति-काल में शृंगार रस के चित्ररण की नग्नता और अतिशयता के प्रति श्राज के समाज में एक तीव्र प्ररुचि जागृत हो गई घो। लोग उसकी कविता को अश्लील फहफर उससे नाक-भौं सिकोड़ने लगे घे । बिहारी को कविता के सम्बन्ध में प्रालोचकों को जो धारणा बन गई थी, उनके काव्य-सौष्ठव का मूल्य इन छालोचकों की दृष्टि में कम हो गया था ; इसका एक फारण प्रभिसार, रति श्रादि के वन को प्रश्लील मानना भी था । बिहारो की कविता के वास्तविक महत्व को समझने के लिए शृंगार सम्बन्धी इस भ्रान्त धारणा का निवारण करना भी बहुत आवश्यक था। इसी उद्देश्य से प्राचार्य ने शृंगार रस के महत्त्व का भी प्रतिपादन किया है। उनका कहना है कि इस विश्व में शृंगार सम्बन्धी सामग्री उपलब्ध होती है और फवि उसको ओर से प्रांख बन्द नहीं कर सकता है । इस तथाकथित अश्लीलता का वर्णन वेदों तक में मिलता है। इस सम्बन्ध में पंडितजी ने राजशेखर को प्रमाण रूप में उद्धृत किया है ।" शर्माजी को परकीयादि के चित्रण अश्लील तो प्रतीत होते हैं पर कवि का उद्देश्य पाठक को ऐसे वनों द्वारा नीति-भ्रष्ट करना न होकर यदि इन धूर्त सौतामों से उन्हें परिचित कराके सभ्य समाज की इन दुर्गुणों से रक्षा करना हो तो वे उसे भी इलील मानते है । शर्मा जी ने अपने इस मत की पुष्टि के लिए भी द्रंट के काव्यालंकार के मत का श्राश्रय लिया है । बिहारी के फाव्य-सौष्ठव के सम्बन्ध में मिश्रवन्धुत्रों की श्रालोचना ने कतिपय भ्रान्त धाररात्रों को प्रोत्साहन दे दिया था। ऐसो धारणाओं का उच्छे• दन करना किसी भी सच्चे समालोचक का कार्य था। बिहारी के मान, गौरव, प्रतिष्ठा और यश की दृष्टि से हो नहीं श्रपितु साहित्य-जगत् को प्रमूल्य निधि के संरक्षरण तथा सहृदय पाठकों को बिहारी के कला-सौन्दर्य से परिचित कराकर शर्माजी ने श्रालोचना - क्षेत्र का एक महान कार्य किया है । कतिपय कटु, पक्षपात और प्रसहृदयतापूर्ण श्रालोचनाओं के घटाटोप को हटाने के लिए तीव्र पवन वेग की श्रावश्यकता थी और इसकी पूर्ति श्राचार्य ने कर दी है। उनके इस प्रयास से बिहारी के चन्द्र का पुनः सहृदयों को सुवा-पान का अवसर प्राप्त हो गया था। इस कार्य के लिए साहित्य को कतिपय सामान्य भ्रान्त धारणाओं का उन्मूलन भी बहुत श्रावश्यक था, इसीलिए मौलिकता, महाकवि और शृंगार रस की उपादेयता के सम्बन्ध में विशद और बहुत कुछ प्रगतिवादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए शर्माजो बाध्य हुए थे । १. 'बिहारी सतसई', पृष्ठ ६ । २ वही प ७ । चार्य ने महाकवियों को उक्ति में श्रभिधेयायें के अतिरिक्त प्रतीयमानाय की आवश्यकता मानी है । उन्होंके व्याख्याता अभिनय गुप्त ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए प्रतीयमानार्य के नियोजन की क्षमता रखने वाले कवि को महाकवि कह दिया है। यहाँ पर इन श्राचार्यो का अभिप्राय इसमें नहीं है कि मुक्तक रचना करनेवाला भी महाकवि हो सकता है। इन दोनों प्रशाओं ने तो काव्य ध्वनि और रस को प्रधानता का प्रतिपादन भर किया है। उसका तात्पर्य तो केवल इतने से हो प्रतीत होता है कि केवल शास्त्रीय नियमों के निर्वाह-मात्र से महाकवि पद का अधिकारी नहीं हो सकता। उसे अपने काव्य में प्रतोयमानायें' की, जो इन दोनों प्राचार्यों की दृष्टि से काव्य की आत्मा है, प्रतिष्ठा करने की भी नितान्त श्रावश्यकता है। ध्वनिकार और अभिनव गुप्त ने महाकवि होने के लिए प्रबन्ध-काव्य की रचना श्रावश्यक नहीं मानी है । पर यह तो कवित्व-शक्ति का सामान्य परिचय है । इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनको यह भेद मान्य नहीं। यह भी हो सकता है कि ऐसा भेद परवर्तीकाल में अधिक मान्य रहा हो और यही परम्परा हिन्दी में मान्य हो गई हो । पर इस रूढ़िवादिता का खंडन समयानुकूल हो था। प्राचार्य पद्मसिंह की इस धारणा के पीछे युग की धारणा है। कुछ दिन पूर्व चाहे उसे सूर को भी महाकवि कहने में हिचकिचाहट का अनुभव होता रहा हो। पर पत्त, निराला श्रादि को महाकवि पद से अलंकृत करने के मोह का संवरण श्राज का आलोचक नहीं . कर पा रहा है । संस्कृत के कुछ प्राचार्यों ने चाहे महाकवि शब्द को कुछ नियमों में जकड़ दिया हो, पर जन-साधारण तथा कतिपय प्रगति प्रिय प्राचार्यों को यह कैद कभी स्वीकृत नहीं रही है। अपने प्रिय कवियों को महाकवि कहने के अधिकार को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। 'गीत गोविन्द', 'अमरु शतक', 'थार्यासप्तशती', 'गाथा सप्तशती -जैसी रचनाओं के प्ररणेता प्रबन्धकार न होते हुए भी महाकवि माने जाते रहे होंगे । रीति-काल में यह भेद व्यवहार में स्वीकृत नहीं हुआ है। आधुनिक युग भी इस भेद को मानकर नहीं चल सकता है । इस प्रकार प्राचार्य पद्मसिंह जो की यह धारणा युग की प्रेरणा का प्रतिनिधित्व करने वाली है। इतना ही नहीं बिहारी तथा अन्य मुक्तक काव्य के रचयिताओं का सम्यक अध्ययन और महत्त्व- दर्शन के लिए ऐसी धारणा नितान्त आवश्यक भी थी । मुक्तक और प्रबन्ध के आधार पर फैली हुई इस भ्रान्त धारणा का निवारण करके प्राचार्य ने आलोचक रूप को महत्ता का परिचय दिया है । हिन्दी का श्राधुनिक साहित्य बहुत कुछ रीतिकालीन काव्य-परम्पराओं की प्रतिक्रियाओं का परिणाम है । रीति-काल में शृंगार रस के चित्ररण की नग्नता और अतिशयता के प्रति श्राज के समाज में एक तीव्र प्रदचि जागृत हो गई थी। लोग उसको कविता को प्रश्लील कहकर उससे नाक-भौं सिकोड़ने लगे थे। बिहारी को कविता के सम्बन्ध में प्रालोचकों की जो धारणा बन गई थी, उनके काव्य-सौष्ठव का मूल्य इन झालोचकों की दृष्टि में कम हो गया था ; इसका एक कारण अभिसार, रति श्रादि के वरन को अश्लील मानना भी था। बिहारी की कविता के वास्तविक महत्व को समझने के लिए शृंगार सम्बन्धो इस भ्रान्त धारणा का निवारण करना भी बहुत आवश्यक था। इसी उद्देश्य से प्राचार्य ने शृंगार रस के महत्त्व का भी प्रतिपादन किया है। उनका कहना है कि इस विश्व में शृंगार सम्बन्धी सामग्री उपलब्ध होती है और कवि उसकी ओर से प्रांस बन्द नहीं कर सकता है । इस तथाकथित प्रश्लीलता का वर्णन वेदों तक में मिलता है। इस सम्बन्ध में पंडितजी ने राजशेखर को प्रमारण रूप में उद्धृ त किया है ।" शर्माजी को परकीयादि के चित्रण प्रश्लील तो प्रतीत होते हैं पर कवि का उद्देश्य पाठक को ऐसे वनों द्वारा नीति- भ्रष्ट करना न होकर यदि इन धूर्त लीलामों से उन्हें परिचित कराके सभ्य समाज को इन दुर्गुणों से रक्षा करना हो तो वे उसे भो श्लोल मानते है । शर्मा जी ने अपने इस मत की पुष्टि के लिए भी रुद्रट के काव्यालंकार के मत का श्राश्रय लिया है । बिहारी के काव्य-सौष्ठव के सम्बन्ध में मिश्रवन्धुत्रों को श्रालोचना ने कतिपय भ्रान्त धारणाओं को प्रोत्साहन दे दिया था। ऐसो धारणाओं का उच्छे• दन करना किसी भी सच्चे समालोचक का कार्य था । बिहारी के मान, गौरव, प्रतिष्ठा और यश की दृष्टि से हो नहीं अपितु साहित्य जगत् को प्रमूल्य निधि के संरक्षण तथा सहृदय पाठकों को बिहारी के फला-सौन्दर्य से परिचित कराकर शर्माजी ने श्रालोचना क्षेत्र का एक महान कार्य किया है । कतिपय कटु, पक्षपात और प्रसहृदयतापूर्ण प्रालोचनाओं के घटाटोप को हटाने के लिए तीव्र पवन वेग को श्रावश्यकता यो प्रौर इसको पूर्ति प्राचार्य ने कर दी है। उनके इस प्रयास से बिहारी के चन्द्र का पुनः सहृदयों को सुवा-पान का अवसर प्राप्त हो गया था। इस कार्य के लिए साहित्य को कतिपय सामान्य भ्रान्त धारणाओं का उन्मूलन भी बहुत श्रावश्यक था, इसीलिए मौलिकता, महाकवि और शृंगार रस की उपादेयता के सम्बन्ध में विशद और बहुत कुछ प्रगतिवादी दृष्टिकोरण अपनाने के लिए शर्माजो बाध्य हुए थे । १. 'बिहारी सतसई', पृष्ठ ६ । २. वही, पृष्ठ ७ । जैसा कि ऊपर निर्देश हो चुका है, शर्माजो को तुलनात्मक समालोचना की एक शास्त्रीय पद्धति को जन्म देने का श्रेय है। मौलिकता के वास्तविक अर्य के स्पष्टीकरण के श्रनन्तर दो कवियों के विभिन्न स्वरूपों का शास्त्रीय प्राधार पर विभाग करना अपेक्षित था । कवियों के भाव-साम्य के सिद्धान्त को स्वीकार कर लेने के बाद हमारे प्राचीन श्राचार्य का उसके स्वरूप व उपभेद प्रादि का शास्त्रीय निरूपण न करना और पंडित जो-जैसे प्रकांड विद्वान् का उस विश्लेषरण से परिचित रह जाना कभी संभव ही नहीं था। पंडित जी ने यहां पर भी अपना उपजीव्य प्राचीन प्रलंकार-शास्त्र को ही बनाया है। प्रानन्दवर्द्धनाचार्य ने अपहरण के तीन भेदों की कल्पना की है --१. प्रतिविम्वित २. श्रालेख्यवत् ३. तुल्यदेहिवत् । राजशेखर ने इनमें 'परपुरप्रवेशप्रतिम्' नामक एक और भेद बढ़ा दिया है। इन भेदों की उपादेयता और हेयता पर भी विचार हुआ है । शर्माजी ने बिहारी के दोहों से 'गाया-सप्तशती' श्रादि के छन्दों से तुलना करते समय इन भेदों का उल्लेख किया है। बिहारी का दोहा 'में मिसहा सोचा समुझि मुँह चूम्यो ढिंग जाय' श्रमरुक के प्रसिद्ध श्लोक, 'शून्यं वासगृहे विलोक्य' का तुल्यदेहितुल्य है ।' पंडित जो का उद्देश्य बिहारी को अन्य कवियों से श्रेष्ठता प्रतिपादित करना है। हिन्दी के प्रत्य कवियों से बिहारी भाव-सौन्दर्य में कहीं अधिक बढ़े हुए हैं, इसमें तो लेखक को कहीं संदेह ही नहीं है। उन्होंने संस्कृत कवियों से भी बिहारी को बढ़ा-चढ़ा हो बताया है । पंडित जो ने बिहारी और संस्कृतकवियों के सम्बन्ध को उपमान श्रौर उपमेय का सम्बन्ध बताया है। उनका कहना है कि संस्कृत के इन महाकवियों से बिहारी का भाव साम्य ही उसके काव्योत्कर्ष का परिचायक है । ऊपर जिस उपमेयोपमान के सम्बन्ध का निर्देश हुआ है, उससे संस्कृत के कवियों में बिहारी से कहीं अधिक सौन्दर्य है और अधिक सुन्दर वस्तु से साम्य का निरूपण करने का उद्देश्य बिहारी के भाव-सौन्दर्य की श्रुतिशयता प्रकट करने का ही है । वस्तुतः पंडितजी को 'व्यतिरेक' सम्बन्ध ही अभीप्सित है। इसमें 'मतिभ्रम' हो सकता है, पर पक्षपात नहीं । 3 संभव है कि यह पक्षपातपूर्ण न हो, पर उन्हें यह मतिभ्रममूलक भी नहीं प्रतीत होता है। बिहारी के श्रेष्ठत्व को वे हृदय से अनुभव १. 'बिहारी सतसई', पृष्ठ ६३ । २. वही, पृष्ठ २७३ । ३, वही, पृष्ठ २७३ । तुलनात्मकं आलोचना करते हुए प्रतीत होते है । व्यतिरेक में उपमान का अपकर्ष भी कल्पित होता है और उसका उद्देश्य केवल उपमेय के सौन्दर्य की प्रतिशयता का प्रतिपादनमात्र रहता है । पर संस्कृत कवियों को दोनता तो पंडितजी अनुभव करते हुए प्रतीत होते हैं। उन्होंने कहीं भी पंस्कृत कवियों में बिहारी मे उत्कृष्टता नहीं देखी है । इस सारे प्रत्य में उन्होंने जितने भी साम्य के उदाहरण दिये हैं उन सभीमें बिहारो को श्रेष्ठता हो प्रतिपादित हुई है। इतना ही नहीं, दोहा छन्द के निर्वाचन ने तो पंडितजी को धारणा में बिहारी को और भी ऊंचे स्थान पर बैठा दिया है। उनका कहना है कि भाव-गंगा शिव-जटा को तरह बिहारी के दोहों में तो समाई रहती है, पर उससे निकलने के उपरान्त उसके प्रवाह को एक स्थान पर रोके रस देने की क्षमता किसी में भी नहीं है । शिव-जटा के साथ बिहारी के दोहों की तुलना का यही अभिप्राय है। बिहारी को श्रेष्ठता का प्रतिपादन इस आलोचना का प्रधान उद्देश्य होने के कारण इसको हम निर्णयात्मक प्रालोचना मानते हैं । यही इस प्रालोचना को मुख्य भित्ति है । मालोचना की अन्य पद्धतियों का उपयोग हुग्रा है, पर उन सबका उद्देश्य भी निर्णय ही है । रोति-काल में काव्य को मूल प्रेरणा शब्द-चमत्कार, उक्ति-वैचित्र्य और कल्पना को सजीवता थी । वैसे रीतिकालीन प्राचार्यों ने प्रायः सभी काव्यांगों का निस्परण किया है और संस्कृत-प्राचार्यो द्वारा मान्य मतों का समर्थन करते हुए रस को ही फाव्य को श्रात्मा भी कहा है, पर रस, भाव, जीवन-दर्शन श्रादि युग की प्रेरणा नहीं थे । कवि लोग रसोषित और स्वभावोक्ति को केवल काव्य-परम्परा से वाध्य होकर हो काव्य कहते थे । वस्तुतः उनके हृदय प्रतिशयोक्ति को श्रेष्ठता को मुक्तकण्ठ से स्वीकार कर चुके थे । कवि के समक्ष यहो श्राव था। सहृदय समाज में इन वक्रोक्तिपूर्ण कविताओं का ही आदर था । बिहारी के प्रादर का भी मूल कारण यही है । रीतिकालीन काव्य-धारणा का श्रादर्श रूप बिहारी में उपलब्ध होता है । उनके समान उक्ति-वैचित्र्य, ऊहोक्तिपूर्ण कल्पना और विशेषतः इन्होंसे पुष्ट भाव-सौंदर्य अन्यत्र दुलभ है । ये हो बिहारी को श्रष्ठता के कारण है। बिहारी के आलोचक पंडित पद्मसिंह जी ने भी युग की इस सामान्य विशेषता की अवहेलना नहीं की है । वे एक युग के मानदण्डों के आधार पर अन्य युगों की कला-कृतियों को श्रालोचना के पक्ष नहीं थे । यही कारण है कि उन्होंने स्वभावोक्ति के मानदण्ड से बिहारी १. 'विहारी सतसई', पृष्ठ ३१-३२। हिन्दी-श्रालोचना : उन और विकास के फाव्य को भालोचना करना अनुपयुक्त समझा है ।' पण्डितजी प्राचार्य भामह के शब्दों में अपने मानदण्ड का स्पष्ट कर रहे हैं। ये सब प्रलंकारों के प्राण प्रतिशयोषित या वक्रोषित को हो मानते हैं। उन्होंने भामह के इस मत का प्रतिपादन करने वाला प्रसिद्ध लोक भी उद्घृत किया है। अपनी काव्य-धारणा का उन्होंने केवल संद्धान्तिक निरूपण ही नहीं किया है, परन्तु व्यवहार में इसका पूरा निर्वाह भी किया है। बिहारी की अन्य कवियों से श्रष्ठता स्थापित करते समय उनको दृष्टि में काव्य का मही स्वरूप है। उन्होंने बिहारी के जिन दोहों को विशद व्याख्या की है। ये सभी किसी-न-किसी प्रकार के चमत्कार से अनुप्राणित है । घालोचक जिस पदावली का प्रयोग अपने श्रालोच्य को प्रशंसा में करते है, उससे भी उनका यह दृष्टिकोण अत्यन्त स्पष्ट है। 'भजमून छीन लिया' श्रादि चाययों का यही अभिप्राय है । विहारी के काव्य सौष्ठव का प्रतिपादन करने के लिए लेखक ने नालोच्य कवि के इन दोहों को चुना है और भाव तथा वर्ण्य विषय को दृष्टि से साम्प रखने वाले 'गाथा सप्तशती', 'आर्या सप्तशती', 'विकटनितम्बा' श्रादि के मुक्तक छन्दों से उनकी तुलना की है। कवि अपने उद्देश्य में कितना सफल हुआ है। उसी भाव तथा वस्तु को सहृदय पाठकों के समक्ष उपस्थित करने १. आजकल सम्भ्रात शिक्षित समाज कोरी स्वभावोक्ति पर फ़िदा है। अन्य अलंकारों की सत्ता इसकी परिष्कृत रुचि की आँखों में काँटा-सी खटकती है, विशेष अतिशयोक्ति से तो उसे कुछ चिढ़-सी है। प्राचीन साहित्य-विधाताओं के मत में जो चीज कविता-कामिनी के लिए नितान्त उपादेय थी, वही इसके मत में सर्वथा हेय है। यह भी एक रुचि वैचित्र्य का दौरात्म्य है। जो कुछ भी हो, प्राचीन काव्य वर्तमान परिष्कृत सुरुचि' के आदर्श पर नहीं रचे गए। उन्हें इस नये गज से नापना चाहिए, प्राचीनता की दृष्टि से परखने पर ही उनकी खूबी समझ में आ सकती है। 'सतसई' भी एक ऐसा ही काव्य है, बिहारी उस प्राचीन मत के अनुयायी थे जिसमें अतिशयोक्ति-शून्य अलंकार चमत्कार-रहित माना गया है उपमा, उत्प्रेक्षा, पर्याय और निदर्शना दियो से अनुप्राणित होकर ही जीवन-लाभ करते हैं अतिशयोक्ति ही उन्हें जिलाकर चमकाती है, मनमोहक बनाती है, उनमें चारुता लाती है, यह न हो तो वे कुछ भी २. 'विहारी सतसई', पृष्ठ २१७-२१८ । में बिहारी ने क्या विशेषता ला दो है ? उसमें अभिव्यंजना का कौन-सा सौंदर्य है, शब्द प्रयोग का क्या चमत्कार और बारोको है, कल्पना को क्या सजीवता है, जिनके कारण उनकी रचना अपने पूर्ववर्ती तथा समकालीन कवियों की रचनामों से इतनी बढ़ गई है ? बिहारी के काव्य-सौष्ठव का प्रतिपादन लेखक ने इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देते हुए किया है। इस प्रकार पंडितजी के लिए सहृदयता हो झालोचना का एक मान मानदण्ड हुँ । प्रभिव्यंजना की सूक्ष्म बातों और कल्पना को बारीको पर ध्यान जाने के लिए साधारण प्रतिभा और सहृदयता से काम नहीं चल पाता है। फिर पंडितजी के समक्ष प्राचीन लब्धप्रतिष्ठ ग्रन्थों के वे उत्कृष्ट छन्द्र थे जिनके काव्य सौंदर्य की उत्कृष्टता के प्रमाण-पत्र संस्कृत के श्रानन्दवनाचार्य, मम्मट आादि श्राचार्यो द्वारा मिल चुके थे । अनेक छन्द प्राज से कई शताब्दी पूर्व ही उत्तम-काव्य के उदाहरण घोषित हो गए थे । इनके छन्दों को श्रेष्ठता को गहरी छाप सहृदय समाज पर लग गई थी। सहृदय-समाज चिर काल से इन छन्दों को भाव-विभोर होकर गुनगुनाता और इनका रसास्वाद लेता चला था रहा था । ऐसे छन्दों की तुलना में भाषा के दोहों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन कर देना कोई साधारण कार्य नहीं है । इस कार्य में प्रसाधारण पांडित्य के प्रतिरिक्त उच्च कोटि को सहृदयता भी अपेक्षित है । छन्द के भाव-सौंदर्य, उसके ग्रन्तः स्तल में प्रवाहित रस-धारा वर्ण्य - विषय तथा भाव के अनुरूप शैली शब्दार्थ के विलक्षण चमत्कार और प्र गाम्भोयं का साक्षात्कार करने वाला घालोचकही इस सूक्ष्म अन्तर को समझ सकता है । शर्मा जी में हमें ऐसी ही प्रतिभा और सहृदयता के दर्शन होते हैं । पण्डित जो इस सूक्ष्म अन्तर को स्पष्ट अनुभव करते हुए प्रतीत होते हैं । अन्य पाठकों के लिए इसी श्रन्तर का स्पष्ट कर देना उनकी श्रालोचना का उद्देश्य है । इस प्रकार सहृदयता हो उनको श्रालोचना का प्रधान मानदण्ड है । पण्डितजी के प्रालोचक स्वरूप को अमरीका के प्रसिद्ध प्रालोचक जे० ई० स्पिनगार्न के शब्दों में स्पष्ट किया जा सकता है । वे प्रभाववादी श्रालोचक के. कार्य को बतलाते हुए कहते हैं : To have sensations in the presence of a work of art and to exepress them, that is the function of criticism for the impressionist critic." पंडितजी ने अपनी प्रलोच्य रचनाओं के सौंदर्य से प्रानन्द-विभोर होकर उनको प्रशंसा करने लगते है । 'वाह उस्ताद क्या कहने है', 'कितना माधुर्य है' श्रादि वाक्य उनको श्रानन्दानुभूति को स्पष्ट कर रहे हैं । इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग उनको श्रालोचना में सर्वत्र ही मिलता है। ये वाक्य, निरर्णयात्मक
c4db3e8144cb1a0741be8d2eac3294f5fec9ad6aef41086590c21d130cb7506d
pdf
यह तो एक पुरानी कल्पित कथा मात्र है । चुपचाप होकर रहो, और 'अहं ब्रह्मास्ति' यह अनुभव करो । केवल वर्तमान काल ही विद्यमान है । हम चिन्तन द्वारा भी भूत और भविष्यत् की धारणा नहीं कर सकते; क्योंकि चिन्तन करने के लिये उद्यत होते ही भूत और भविष्यत् को वर्तमान में खड़ा करना पड़ता है। सब कुछ छोड़ दो, उसे जहाँ जाना है, जाने दो । यह समग्र जगत् एक भ्रममात्र है, यह तुम्हें और फिर प्रतारित न कर पावे । तुम जगत् को जो वह नहीं है वही समझते हो, अवस्तु में वस्तु - ज्ञान करते हो, अब वह वास्तव में जो हैं केवल उसे ही जानो । यदि शरीर कहीं चला जाता है, तो जाने दो; शरीर कहीं भी क्यों न जाय, कुछ भी परवाह मत करो । कर्तव्य नामक कोई एक वस्तु है, और उसका पालन करना ही होगा इस प्रकार की धारणा भयंकर कालकूटस्वरूप है, इसने जगत् को नष्ट कर डाला है । पाऊँगा और उसे बजाकर यथासमय इस बात की अपेक्षा मत करो । इसी जगह एक वीणा लेकर क्यों न बजाना आरम्भ कर दो ? स्वर्ग के लिये राह देखने की क्या आवश्यकता है? इस लोक को ही स्वर्ग बना लो । तुम लोगों की पुस्तक में है, स्वर्ग में विवाह नहीं होता यदि ऐसा है, तो यहीं पर अभी से विवाह क्यों न बन्द कर दो ? संन्यासियों का गैरिक यस्त्र मुक्त पुरुषों का चिह्न है। संसारित्वरूपी भिक्षुकों का वेष छोड दो, मुक्ति की पताका गैरिक वस्त्र धारण करो। ४ अगस्त, रविवार अज्ञ लोग बिना समझे जिनकी उपासना करते हैं, मैं तुम्हारे निकट उन्हींका प्रचार करता हूँ । यह एक अद्वितीय ब्रह्म ही सभी ज्ञात वस्तुओं की अपेक्षा हमारे लिये अधिक ज्ञात है । वही एक ऐसी वस्तु है, जिसे हम सर्वत्र देखते हैं । सभी अपनी आत्मा को जानते हैं, इतना ही नहीं, पशु भी जानता है कि मैं हूँ । हम जो कुछ जानते हैं, सब आत्मा का ही बहिः प्रसारण है, विस्तारस्वरूप है। छोटे छोटे बच्चों को यह तत्व सिखाओ, वे भी इस तत्व की धारणा कर सकते हैं। प्रत्येक धर्म ( किसी किसी स्थल में अज्ञात रूप से भी ) इसी आत्मा की उपासना करता आ रहा है, क्योंकि आत्मा के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं । हम लोग इस जीवन को यहाँ पर जिस भाव से जानते हैं, उसके प्रति ऐसे घृणित रूप से आसक्त होकर रहना ही समस्त अनिष्ट का मूल है । उसी से प्रतारणा, चोरी आदि सब कुछ होता है। उसीसे लोग रुपये को देवता का स्थान देते हैं, और उसी से ही समस्त पाप तथा भय की उत्पत्ति होती है। किसी जड़ वस्तु को मूल्यवान मत समझो और उसमें आसक्त मत होओ। तुम किसी भी वस्तु में, इतना ही नहीं, जीवन में भी आसक्त मत होओ, फिर कोई भी भय न रहेगा। 'मृत्योः स मृत्युमाप्नोति य इह नानेव पश्यति ।' जो इस जगत् में अनेकता देखता है, वह मृत्यु के बाद मृत्यु को प्राप्त होता है । हम जब सर्वत्र एकल का दर्शन करते हैं, तब हमारे शरीर की भी मृत्यु नहीं होती, और न मन की ही । जगत् के सभी शरीर हमारा शरीर हैं, अतएव हमारा शरीर भी नित्य है; क्योंकि पेड़-पत्ते, जीव-जन्तु, चन्द्र-सूर्य, इतना ही नहीं, यह सम्पूर्ण जगत् ब्रह्माण्ड ही हमारा शरीर है -- तो फिर इस शरीर का नाश होगा ही कैसे ? प्रत्येक मन, प्रत्येक चिन्ता ही हमारी है फिर मृत्यु आएगी ही कैसे ? आत्मा न कभी जन्म लेती है, न उसकी कभी मृत्यु होती है - • जब हम यह प्रत्यक्ष उपलब्धि कर लेते हैं, तब हमारा सभी सन्देह नष्ट हो जाता है। मैं हूँ', 'मैं अनुभव करता हूँ', 'मैं सुखी होता हूँ' अस्ति, भाति, इन सब बातों पर कभी भी संदेह नहीं किया जा सकता । मेरी क्षुवा' नाम की कोई वस्तु हो ही नहीं सकती, क्योंकि जगत में जो कोई जो कुछ खाता है, वह मैं ही खाता हूँ । यदि हमारे एक मुट्ठी बाल उखड जाते हैं, तो हम ऐसा नहीं सोचते कि हम मर गये । इसी प्रकार एक देह की यदि मृत्यु होती है, तो वह एक मुट्टी बाल उखड जाने के ही सदृश है । वह ज्ञानातीत वस्तु ही ईश्वर है वह वाक्यातीत, चिन्तातीत एवं ज्ञानातीत है ।... तीन अवस्थायें हैं, - पशुत्व (तम ) , मनुष्यत्व ( रज) और देवत्व ( सत्व ) । जो सर्वोच्च अवस्था प्राप्त करते हैं, वे अस्तिमात्र या सत्स्वरूपमात्र हो जाते हैं। उनका कोई भी कर्तव्य शेष नहीं रहता, वे मनुष्यों के प्रति केवल प्रेमान्चित रहते हैं और चुम्बक के समान दूसरों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। इसी का नाम मुक्ति है । उस समय चेष्टापूर्वक कोई सत्कार्य नहीं करना होता, उस समय जो कुछ कार्य होते हैं वे सब सत्कार्य ही होते हैं । जो ब्रह्मविद् हैं, वे सभी देवताओं से बड़े हैं । ईसा मसीह ने जिस समय मोह को जीतकर यह कहा, 'शैतान, मेरे सामने से दूर हो' उसी समय देवता उनकी पूजा करने के लिये आये । कोई भी व्यक्ति ब्रह्मविद् की कुछ भी सहायता करने में समर्थ नहीं हो सकता, समग्र जगत्प्रपञ्च ही उनके सामने प्रणत रहता है, उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो चुकती हैं, उनकी आत्मा दूसरों को पवित्र करती है । अतएव यदि ईश्वरलाभ की कामना करो, तो ब्रह्मविद् की पूजा करो । जब हम देवानुग्रहस्वरूप मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व और महापुरुष - संश्रय लाभ करते हैं, तभी समझना चाहिये कि मुक्ति हमारे करतलगत है । चिरकाल के लिये देह की मृत्यु का नाम ही निर्वाण है । यह निर्वाणतत्व की निषेधात्मक अर्थात् 'नेति नेति' दिशा है । इसमें केवल यही कहा जाता है 'मैं यह नहीं, मैं वह नहीं ।' वेदान्त कुछ और आगे बढ़कर उसकी स्वीकारात्मक अर्थात् ' इति इति' दिशा बतलाता है उसीका नाम है मुक्ति ।' मैं अनन्त सत्ता, अनन्त ज्ञान, अनन्त आनन्द हूँ, मैं वही हूँ' यह है वेदान्त वह मानो पूर्ण रूप से निर्दोष मेहराव का बीचवाला पत्थर है । बौद्ध धर्म के उत्तर विभागवाले बहुसंख्यक अनुयायी मुक्ति में विश्वास रखते हैं - वे यथार्थतः वैदान्तिक ही हैं । केवल सिंहलवासी लोग निर्वाण को विनाश के समानार्थक रूप में ग्रहण करते हैं । किसी प्रकार का विश्वास या अविश्वास 'मैं' का नाश नहीं कर सकता । जिसका अस्तित्व विश्वास के ऊपर निर्भर रहता है और जो अविश्वास से उड जाता है, वह भ्रममात्र है । आत्मा को कोई भी स्पर्श नहीं कर सकता । मैं अपनी आत्मा को नमस्कार करता हूँ। 'स्वयंज्योति मैं अपने को ही नमस्कार करता हूँ, मैं ब्रह्म हूँ ।' यह शरीर मानो एक अंवेरा घर है; हम जब इस घर में प्रवेश करते हैं, तभी वह आलोकित हो उठता है, तभी वह जीवन्त होता है । आत्मा की इस स्वयंप्रकाश ज्योति को कोई भी स्पर्श नहीं कर सकता । इसे किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं किया जा सकता । इसे आवृत किया जा सकता है, किन्तु नष्ट कभी भी नहीं किया जा सकता । वर्तमान युग में भगवान् की अनन्त शक्तिस्वरूपिणी जननी के रूप में उपासना करना कर्तव्य है। इसमें पवित्रता का उदय होगा और इस मातृपूजा से अमेरिका में महाशक्ति का विकास होगा । यहाँ पर ( अमेरिका में ) कोई मन्दिर ( पौरोहित्य शक्ति ) हमारा गला नहीं दबाता और अपेक्षाकृत गरीब देशों के समान यहाँ कोई कष्ट भी नहीं भोगता। स्त्रियों ने सैकड़ों युगों तक दुःख कष्ट सहन किये हैं, इसीसे उनके भीतर असीम धैर्य और अध्यवसाय का विकास हुआ है । वे किसी भी भाव को सहज ही छोड़ना नहीं चाहतीं। इसी हेतु कुसंस्कारपूर्ण धर्मसमूहों एवं सभी देशों के पुरोहितों का मानो आधारस्वरूप हो जाती हैं; यही बाद में उनकी स्वाधीनता का कारण होगा। हमें पैदान्तिक होकर वेदान्त के इस महान् भाव को जीवन में परिणत करना होगा । निम्न श्रेणी के मनुष्यों में भी यह भाव वितरित करना होगा • यह केवल स्वाधीन अमेरिका में ही कार्यरूप में परिणत किया जा सकता है। भारत में बुद्ध, शंकर तथा अन्यान्य महामनीषी व्यक्तियों ने इन सभी भावों का लोगों में प्रचार किया था, किन्तु निम्न श्रेणी के लोग उन भावों को धारण नहीं कर सके। इस नूतन युग में निम्न जाति के लोग वेदान्त के आदर्शानुसार जीवन यापन करेंगे, और यह स्त्रियों के द्वारा ही कार्यरूप में परिणत होगा । हृदय में सहेज रखो आदरणीया श्यामा माँ को, हृदय ! उसे केवल तुम देखो, और मैं । कामादिकों को दूर कर, आओ माँ को एकान्त में देखें, रसना अपने साथ रहे, जिससे वह माँ कहकर पुकार सके । कुबुद्धि कुमन्त्री जितने हैं, उन्हें अपने पास न आने दो । ज्ञा ननयन को पहरेदार रखो, पर वह भी सावधान रहे । " "जितने प्राणी जीवनधारण करते हैं, तुम उन सब से परे हो । तुम मेरे जीवन के सुधाकरस्वरूप हो, मेरी आत्मा की भी आत्मा हो । " रविवार, अपराह देह मानो मन के हाथ का एक यन्त्रविशेष है, मन भी उसी प्रकार आत्मा के हाथ का एक यन्त्रस्वरूप है । जड़ है बाहर की गति, मन है भीतर की गति । समस्त परिणाम का आरम्भ और समाप्ति 'काल' में ही होती है । आत्मा यदि अपरिणामी है, तो वह निश्चित पूर्णस्वरूप है, तो अनन्तरवरूप है; और अनन्तस्वरूप होने से वह अवश्य ही द्वितीयरहित है; क्योंकि दो अनन्त तो हो नहीं सकते, अतएव आत्मा एकमात्र ही है । यद्यपि आत्मा अनेक प्रतीत होती है, तथापि वास्तव में वह एक है । यदि कोई व्यक्ति सूर्य की ओर चलता है, तो प्रति पदक्षेप में वह एक एक विभिन्न सूर्य को देखेगा, किन्तु वास्तव में सभी तो केवल वह एक ही सूर्य हैं । 'अस्ति' ही सभी प्रकार के एकत्व की भित्तिस्वरूप है, और इसमें पहुँचने पर ही पूर्णता प्राप्त होती है। यदि सभी रङ्गों को एक रङ्ग में परिणत करना सम्भव होता, तो चित्रविद्या ही लुप्त हो जाती । सम्पूर्ण एकत्ल है विश्राम या लयस्वरूप; सभी अभिव्यक्तियों को हम एक ईश्वर से ही निकली हुई कहते हैं । 'ताओ' वादी, * कम्फ्यूछ ( Confucius ) मतत्रादी, बौद्ध, हिन्दू, यहूदी, मुसलमान, ईसाई और जरथुस्त्र के शिष्यगणं ( Zoroastrians ) इन सभों ने प्रायः समान रूप से, " तुम दूसरों से जिस प्रकार का व्यवहार चाहते हो, ठीक उसी तरह का व्यवहार दूसरों के प्रति भी करो", इस अपूर्व नीति का प्रचार किया है । किन्तु केवल हिन्दुओं ने ही इस नीति की व्याख्या दी है, क्योंकि वे इसका कारण देख पाये थे । मनुष्य को अन्य सभों के प्रति प्रेम करना होगा; क्योंकि उसमें और उनमें कोई भेद नहीं है। एक ही अनेक हुए हैं । जगत् में जितने बड़े बड़े धर्माचार्य हुए हैं, उनमें केवल लाओ जे ( Laotze ), बुद्ध और ईसा ही उपरोक्त नीति के भी परे जाकर शिक्षा दे गये हैं, 'तुम लोग अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो', 'जो तुमसे घृणा करते हैं, उनसे भी प्रेम करो।' तत्वसमूह पहले से ही विद्यमान है; हम उसकी सृष्टि नहीं करते, केवल उसका आविष्कार करते हैं । . धर्म केवल प्रत्यक्षानुभूति मात्र है। विभिन्न मतवाद विभिन्न पथरवरूप - प्रणालीवरूप मात्र हैं, वे धर्म नहीं हैं। जगत् के जितने धर्म हैं, सभी विभिन्न जाति के विभिन्न प्रयोजनों के अनुसार एक ही धर्म के विभिन्न प्रकाश मात्र हैं। मतवाद * ईसा के पूर्व छठी शताब्दि में लाओत्से द्वारा चीन देश में स्थापित धर्म-सम्प्रदाय । इस सम्प्रदाय का मत प्रायः वेदान्तसदृश है । 'ताओ' की धारणा अधिकांश बेदान्त के निर्गुण ब्रह्मसदृश है। केवल विरोध का निर्माण करता है । देखो न, वास्तव में ईश्वर के नाम से लोगों को शान्ति मिलनी चाहिये, परन्तु ऐसा न होकर जगत् में जितना रक्तपात हुआ है, उसमें से आधा से अधिक ईश्वर के नाम पर ही हुआ है। बिलकुल मूल तक पहुँचो; स्वयं ईश्वर से ही पूछो कि उनका स्वरूप कैसा है । यदि वे उत्तर नहीं देते हैं, तो समझना होगा कि वे नहीं हैं। किन्तु जगत् के सभी धर्म कहते हैं कि उन्होंने उत्तर दिया है । तुम्हारे स्वयं के कुछ विचार चाहिये; यदि ऐसा नहीं होगा तो दूसरों ने क्या कहा है, उसकी किसी भी प्रकार की धारणा तुम कैसे कर सकोगे ? पुरातन कुसंस्कारों को लेकर मत पड़े रहो, सर्वदा नूतन सत्यसमूह के लिये प्रस्तुत रहो । मूर्ख वे हैं, जो अपने पूर्वपुरुषों के खुदे हुए कुएँ का पानी खारा होने पर भी पीते रहेंगे, किन्तु दूसरों के कुएँ का विशुद्ध जल भी पीने से इनकार करेंगे । " जब तक हम ईश्वर को प्रत्यक्ष नहीं करते, तब तक उनके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जान सकते । प्रत्येक व्यक्ति स्वभावतः पूर्णस्वरूप है । अवतारों ने अपने इस पूर्णस्वरूप को प्रकाशित किया है, और हमारे भीतर अभी भी वह अव्यक्त रूप में विद्यमान है । यदि हम भी ईश्वर को नहीं देख सकते तो कैसे जान सकेंगे कि मूसा ने ईश्वर का दर्शन किया था ? यदि ईश्वर कभी किसी के समीप आये हैं, तो हमारे समीप भी आयेंगे । मैं एकदम उनके पास जाऊँगा, वे मुझसे बातचीत करेंगे। विश्वास को भित्तिरूप में मै ग्रहण नहीं कर सकता यह नास्तिकता और घोर ईश्वर निन्दा मात्र है । यदि ईश्वर ने दो हजार वर्ष पहले अरब की मरुभूमि में किसी व्यक्ति के साथ वार्तालाप किया है, तो वे आज मेरे साथ भी वार्तालाप कर सकते है । यदि वे न कर सकते हैं तो हम क्यों न कहें कि वे मर गये हैं ? जैसे भी हो ईश्वर के निकट आओ आना ही चाहिये । किन्तु आते समय किसी को ढकेलना मत । ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानियों के प्रति करुणा रखेंगे । जो ज्ञानी हैं, वे एक चींटी के लिये भी अपना शरीर त्याग करने को प्रस्तुत रहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं, देह कुछ नहीं है । ५ अगस्त, सोमवार प्रश्न यह है कि सर्वोच्च अवस्था लाभ करने के लिये क्या सभी निम्नतर सोपानों से होकर जाना होगा, या एकदम छलांग मारकर उस अवस्था में पहुँचा जा सकता है ? आधुनिक अमेरिका का बालक आज जिस विषय को पचीस वर्ष के भीतर सीख लेता है, उसके पूर्व पुरुषों को उस विषय के सीखने में सौ वर्ष लग जाते। एक आधुनिक हिन्दू अभी बीस वर्ष में उस अवस्था में पहुँच जाता है, जिसे पाने में उसके पूर्वपुरुषों को आठ हजार वर्ष लगे थे । जड़ दृष्टि द्वारा देखने पर पता चलता है कि गर्भ में भ्रूण (Embryo ) उस प्राथमिक जीवाणु -- कोष ( Amoeba ) की अवस्था में आरम्भ होकर अनेक अवस्थाओं में ( मे गुज़रकर अन्त में मनुष्य स्वरूप धारण करता है। यह हुई आधुनिक विज्ञान की शिक्षा । वेदान्त और भी आगे बढ़कर कहता है - हमारे लिये समग्र मानव जाति का केवल अतीत जीवन यापन करना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि समग्र मानव जाति का भविष्यत् जीवन भी यापन करना होगा । जो प्रथमोक्त बात कर पाते हैं, वे शिक्षित व्यक्ति हैं; जो दूसरी बात कर पाते हैं, वे जीवन्मुक्त हैं । काल केवल हम लोगों की चिन्ता का परिमापक ( Measure ) मात्र है, और चिन्ता की गति अभावनीय रूप से द्रुत होने के कारण हम कितने शीघ्र भावी जीवन यापन कर सकते हैं, उसका कोई सीमानिर्देश नहीं किया जा सकता । अतएव मानव जाति के समग्र भविष्यत् - जीवन को अपने जीवन में अनुभव करने में कितने दिन लगेंगे, यह निर्दिष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता । किसी किसी को उस अवस्था का लाभ एक क्षण में भी हो सकता है, और किसी को पचास जन्म भी लग सकते हैं । यह इच्छा की तीव्रता के ऊपर निर्भर है। अतएव शिष्यों की आवश्यकतानुसार उपदेश भी विभिन्नरूप होना आवश्यक है। जलती हुई आग सभी के लिये है - वह केवल जल को ही नहीं, वरन् बरफ के टुकड़ों को भी नष्ट कर डालती है । बन्दूक में से सैकड़ों छर्रे छोड़ो, कम से कम एक छर्रा तो लगेगा ही। लोगों के लिये सत्य का भण्डार खोल दो, उनमें से जितना उनके लिये उपयोगी है, उतना वे ले लेंगे । अतीत अनेकानेक जन्म के फलस्वरूप जिसके हृदय में जैसा संस्कार गठित हुआ है, उसे तदनुसार उपदेश दो । ज्ञान, योग, भक्ति और कर्म - इनमें से चाहे जिस भाव को मूल भित्ति बनाओ, किन्तु अन्यान्य भावों की भी साथ ही साथ शिक्षा दो । ज्ञान के साथ भक्ति का सामञ्जस्य करना होगा, योगप्रवण प्रकृति का युक्ति विचार के साथ सामञ्जस्य करना होगा, और कर्म मानो सभी पथों का अङ्गस्वरूप है। जो जहाँ पर है, उसे वहाँ से ठेलकर आगे बढाओ । धर्मशिक्षा विनष्टकारी न होकर सर्वदा सृजनकारी ही होनी चाहिये । मनुष्य की प्रत्येक प्रवृत्ति उसकी अतीत कर्मसमष्टि की परिचायक है। यह मानो वह रेखा या व्यासार्ध है, जिसका अनुसरण कर उसे चलना ही होगा । इस प्रकार के सब व्यासार्थों का अनुसरण करके ही हम केन्द्र में पहुँच सकते हैं। दूसरों की प्रवृत्ति को पलट देने का नाम तक मत लो, उससे गुरु और शिष्य दोनों को क्षति पहुँचती है। जब तुम ज्ञान की शिक्षा देते हो, तो तुम्हें ज्ञानी होना होगा, और जो अवस्था शिष्य की होती है, तुम्हें मन ही मन ठीक उसी अवस्था में पहुँचना होगा । अन्यान्य योगों में भी तुम्हें ठीक ऐसा ही करना होगा। प्रत्येक वृत्ति का विकास साधन इस रूप में करना होगा कि उस वृत्ति को छोड़ अन्य कोई वृत्ति मानो हमारे लिये है ही नहीं यह है तथाकथित सामञ्जस्यपूर्ण उन्नतिसाधन का यथार्थ रहस्य अर्थात् गम्भीरता के साथ उदारता का अर्जन करो, किन्तु उसे खो मत दो । हम अनन्तस्वरूप हैं - हम सभी किसी भी प्रकार की सीमा के अतीत हैं। अतएव हम सर्वापेक्षा निष्ठावान् आदर्श मुसलमान के समान गम्भीर, और फिर भी सर्वापेक्षा घोर नास्तिक के समान उदारभावापन्न हो सकते हैं । इसे कार्य में परिणत करने का उपाय है मन का किसी विषयविशेष में प्रयोग न करके यथार्थ मन का ही विकास करना और उसका संयम करना । ऐसा करने पर तुम उसे चाहे जिस ओर घुमा सकोगे। इससे तुम्हें गम्भीरता और उदारता दोनों ही प्राप्त होंगी । ज्ञान की उपलब्धि इस भाव से करो कि ज्ञान छोडकर मानो और कुछ ही नहीं; उसके बाद भक्तियोग, राजयोग और कर्मयोग को भी लेकर इसी भाव से साधना करो । तरङ्ग को छोड़कर समुद्र की ओर जाओ, तभी तुम स्वेच्छानुसार विभिन्न प्रकार की तरङ्गों का उत्पादन कर सकोगे । तुम अपने मनरूपी ह्रद को संयत रखो, ऐसा किए बिना तुम दूसरों के मनरूपी हद का तत्व कभी न जान सकोगे। वे ही प्रकृत आचार्य हैं, जो अपने शिष्य की प्रवृत्ति या रुचि के अनुसार अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं। प्रकृत सहानुभूति के बिना हम कभी भी ठीक ठीक शिक्षा नहीं दे सकते । मनुष्य एक दायित्वपूर्ण प्राणी है, इस धारणा को छोड़ दो; केवल पूर्णताप्राप्त व्यक्ति को ही दायित्व-ज्ञान है । सब अज्ञानी व्यक्ति मोहमदिरा पीकर मत्त हुए हैं, उनकी स्वाभाविक अवस्था नहीं है। तुम लोगों ने ज्ञानलाभ किया है - तुम्हें उनके प्रति अनन्त - धैर्यसम्पन्न होना होगा। उनके प्रति प्रेमभाव छोड़कर अन्य किसी प्रकार का भाव मत रखो; वे जिस रोग से प्रसित होकर जगत् को भ्रान्त दृष्टि से देखते हैं, पहले उसी रोग का निर्णय करो, उसके बाद उनकी उस रीति से सहायता करो जिससे उनका वह रोग मिट सके और वे ठीक ठीक देख सकें । सर्वदा स्मरण रखो कि मुक्त या स्वाधीन पुरुषों की ही केवल खाधीन इच्छा होती हैशेष सभी बन्धन के भीतर रहते हैंअतएव वे जो कुछ करते हैं उसके लिए वे उत्तरदायी नहीं हैं। इच्छा जब इच्छारूप में रहती है, उस समय वह बद्ध है। जल जब हिमालय के शिखर पर पिघलता है, तब स्त्राधीन या उन्मुक्त रहता है, किन्तु नदी रूप धारण करते ही किनारे की भूमि द्वारा आबद्ध हो जाता है; तथापि उसका प्राथमिक वेग ही उसे अन्त में समुद्र में ले जाता है, और वहाँ यह जल फिर से उस पूर्वकालीन स्वाधीनता को प्राप्त करता है। प्रथम अवस्था अर्थात् नदी रूप में आबद्ध होने को ही बाइबिल ने मानव का पतन (Fall of Man) और द्वितीय को पुनरुत्थान ( Resurrection ) कहा है। एक परमाणु भी जब तक उस मुक्तावस्था का लाभ नहीं करता है तब तक वह स्थिर होकर नहीं रह सकता । बहुतसी कल्पनायें अन्य कल्पनाओं का बन्धन नष्ट करने में
775adad1288461b519526ce859db3241a84c3448d23f9e36d6bf703d8783dab5
pdf
समय हममें और मृत्यु में केवल एक इंच का अन्तर रह जाता था । यदि हममें से किसी का पैर ज़रा भी फिसलता तो उसका यथायोग्य स्वागत करने के लिये एक बड़ा गहरा गढ़ा यमुना की घाटी में बर्फ़ का शीतल बिस्तर विछाये हुए, क़वर की तरह मुंह खोले खड़ा था। नीचे से यमुना का कल कक्ष करता हुआ शब्द मन्द २ सुनाई देता था मानो ढकी हुई ढोलक से शोकगीत की ध्वनि श्रा रही है। इस तरह से पौन घंटे के लगभग हम को मौत के जावड़े में चलना पड़ा । सचमुच वह एक विलक्षण ही स्थिति थी । एक तरफ़ तो मृत्यु मुंह खोले खड़ी थी और दूसरी ओर प्रफुल्लित और उल्लसित करने वाली सुगंधयुक्त वायु थी । इस विकट और विचित्र साहस से हम अन्त में उस प्रचंड बर्फ़ के ढेर के पार पहुंचे। यहां से यमुना का साथ छूट गया और सारी मंडली ने एक सीधे पर्वत पर चढ़ाई की । न वहां कोई रास्ता था नं पगडन्डी । एक खूब घने वन से होकर निकले । वहां पर हम वृक्ष की लकड़ियों को भी नहीं देख सकते थे। राम की देह कई जगह खुरच गई । इस श्रोक और वर्च वृक्षों के बन में एक घंटा दौड़धूप करने के पश्चात् हम लोग खुले मैदान में पहुंचे, जहां छोटे २ वृक्ष उगे हुये थे । हवा बदली हुई थी परन्तु मधुर सुवास से भरी हुई थी। इस चढ़ाई से पहाड़ी लोग हांपने लग । राम के लिय भी वह एक अच्छा व्यायाम हो गया। अस्सी फुट या उससे भी अधिक उतार चढ़ाव चढ़ना पड़ा । ज़मीन बहुत करके फिसलनी थी । परन्तु चारों श्रोर के सुन्दर दृश्य, मनोहर पुष्प समूह और हरियाली कॉ भरमार ने मार्ग की कठिनता को भुला दिया । यूरोपियन बागवान, कम्पनी वाग़ों को सुशोभित करने के लिये यहां से फूलों के बीज ले जाते हैं। और अंग्रेजी बोलने वाले अज्ञान हिन्दुस्तानी तरुण इनको विलायती फूल कहते हैं । परन्तु अधिकांश फूलों में एक अद्भुत बात यह है कि जब यह किसी दूसरे स्थान पर लगाये जाते हैं, तो उनमें सुगन्ध नहीं रहती यद्यपि उनका रंग पूर्ववत् ही बना रहता है । यूरोपीय शिक्षा में चूर तरुण गण अपने यूरोपीय अध्यापकों के लिखे हुए ग्रन्थों में वेदान्त का प्रतिध्वनि मात्र पढ़ कर यह समझ लेते हैं कि ये पाश्चात्य कल्पना है । और उन पर हो जाते हैं परन्तु इन बेचारों को यह मालूम ही नहीं है कि वह कल्पनारूपी कुसुम जिन पर वे इतने मोहित हो गये हैं, उनकी ही मातृभूमि से ले जाकर वहां लगाये गये हैं । अन्तर केवल इतना है कि यूरोपीय अध्यापकों के हाथ में जाने से इन दिव्य फूलों में त्याग रूपी वैरागसुगंध नहीं रहती। यूरोपियन लोगों के प्रतिपादित किये हुए वेदान्त में तत्वज्ञान की बाहरी रंग और आकरतो अवश्य रहता है परन्तु अनुभव रूपी सुगंध नहीं रहती। "अक्से गुल में रंग है गुल का व लेकिन वू नहीं" राम की अस्वस्थता का क्या हाल हुआ ? राम उस दिन बिलकुल अच्छा हो गया । न कोई बीमारी थी, न थकावट थी, न और किसी प्रकार की शिकायत थी। उन पहाड़ियों में से कोई भी राम से आगे न जा सका । हम सब बगवर चढ़ते चले गये । और मंडली के प्रत्येक मनुष्य को खूब क्षुधा लगी । इस समय हम लोग ऐसे प्रदेश में पहुंच गये थे जहां मेघ जलरूप वृष्टि कभी नहीं करता, परन्तु यथेच्छ बर्फ रूप से गिरता है । इस ऊंचे, ठण्डे और रुक्ष पर्वत पर वनस्पति का नाम तक न था । हमारे आने के ज़रा पहले वहां पर नवीन बर्फ की वृष्टि हुई थी । राम के बैठने के लिये एक बड़ी शिला पर एक लाल कम्बल बिछाया गया, और रात्रि के उबाले हुए आलू उसको खाने के लिये दिये गये । संगी साथियों ने अपने सादे भोजन को बड़ी कृतज्ञता से खाया । बर्फ़ के (चम चमाते ) हुए और हलके हलके टुकड़ों ने खूब अच्छा ( ठोस) पानी का काम दिया । भोजन करने के पश्चात् हम लोग फिर चल पड़े । धीरे धीरे हम लोग आगे और ऊपर चढ़ते ही गये । हम में से एक जवान थक कर गिर पड़ा । उसका दम फूल गया और उसके पेरों ने उसे आगे ले जाने से इनकार किया । वह कहने लगा कि मुझे चक्कर आता है । उस समय उसे वहीं छोड़ दिया । थोड़ी ही दूर आगे गये थे कि एक साथी और मूर्छित होकर गिर पड़ा और कहने लगा कि मेरा सिर बड़े ज़ोर से घूमता है । कुछ काल के लिये उसे भी वहीं छोड़ा और शेप सब लोग आगे बढ़े । थोड़ी देर के पश्चात् तीसरा साथी भी घर रहा । उसकी नाक से खून निकलने लगा । दो बचे हुये साथियों को लेकर राम फिर आगे बढ़ा । तीन सुन्दर 'बरार' ( पहाड़ी हरिण ) हमारे सामने से जाते हुए दिखाई दिये। चौथा साथी किंचित् पीछे चलने लगा और अन्त में एक बर्फ से श्राच्छादित पत्थर पर गिर पड़ा। श्रास पास कहीं पतला (Flnid) पानी नहीं दिखाई देता था परन्तु जहां वह मनुष्य पड़ा था वहां पत्थरों के नीचे से वड़े ज़ोर की घड़घड़ाहट सुनाई देती थी । राम के साथ इस समय भी ब्राह्मण था । वह एक लाल कम्बल, एक दुर्बीन, एक हरा चश्मा और एक कुल्हाड़ी लिये हुए था । श्वासोच्छ्वास करने को वायु बहुत सूक्ष्म होगई थी। जिस समय यहां पर दो गरुड़ पक्षी हमारे सिर के ऊपर उड़ते हुए निकल गये तो हमें बड़ा आश्चर्य मालूम हुआ । अभी हमें एक गहरे नीले रंग की, पुरानी बर्फ से ढकी हुई, दुःखदायी शिला चढ़ना बाकी था । उस फिसलनी बर्फ़ में पांव टेकने का आधार मिलने के लिये मेरा साथी सीढ़ियां बनाने लगा । परन्तु वह पुरानी बर्फ़ इतनी कड़ी थी कि उस बेचारे की कुल्हाड़ी टूट गई। उसी समय हमें एक बर्फ के तूफ़ान ने श्रा घेरा । राम ने अपने साथी को यह कह कर धैर्य धराया कि 'इस बर्फ़ के गिरने से हमारा अहित होने की अपेक्षा हित होना ही ईश्वरीय उद्देश है' । और ऐसा ही हुआ भी । उस भयंकर बर्फ़ की वर्षा ने हमारे मार्ग को सुगम बना दिया । नोकदार जंगली लकड़ियों की सहायता से हम उस ढालू चट्टान पर चढ़ गये । और फिर जो कुछ हमने देखा उसका क्या कहना है । बस हमारे सामने एक खूब लम्बा चौड़ा सपाट और विस्तीर्ण मैदान बर्फ से ढका हुआ उपस्थित था, जिसे देख कर आंखें चौंधियाती थीं और चारों ओर रुपैहली बर्फ की शुभ्र ज्यौति जगमगाती थी । श्रानन्द ! श्रानन्द ! क्या यह ! देदीप्यमान भासवत् दिव्य और अद्भुत क्षीरसागर तो नहीं है ? राम के अद्भुत श्रानन्द की कुछ सीमा न रही । बस, कन्धे पर लाल कम्वल और पांव में कानविस का जूता पहने हुए राम बड़े बेग से वर्फ पर दौड़ने लगा । इस समय राम के साथ कोई भी नहीं है । ( "आखिर के तई हंस अकेला ही सिधारा " ) लगभग तीन मील के वह वर्फ पर बड़े वेग से चला गया । कभी कभी पांव फल जाते थे और विशेष कष्ट उठाये विना बाहर नहीं निकलते थे । अन्त में एक बर्फ के ढेर पर वह लाल कम्बल बिछाया और संसार के गड़बड़ व उत्पात से मुक्ल, जनसमूह के कोलाहल और क्षोभ से दूर 'अलिप्त' अकेला, राम उस पर विराजमान हुआ । वहां पर बिलकुल बन्नाटा था । पूर्ण शांति का वहां पर साम्राज्य था । घनघोर अनाहद ध्वनि के अतिरिक्त वहां पर कोई शब्द नहीं सुनाई देता था । धन्य है वह शान्ति और एकान्त ! मेघपटल कुछ कुछ खुल चले । महीन बादलों से छुन छन कर सूर्य की किरणे उस दृश्य पर पड़ने लगीं । और रुपैहली बर्फ अब तप्त सुवर्ण सी दिखाई देने लगी । इस स्थान का जो सुमेरुया हेमाद्रि नाम है वह बिलकुल यथार्थ है । ए सांसारिक मनुष्यो ! यह अच्छी तरह समझ लो कि तरुण युवतियों के कपोलों की आरक्क छटा, या दिव्य रत्नों और सुन्दर आभूषणों अथवा बड़े बड़े प्रासादों में सुमेरु की कल्पनातीत रमणीयता और मोहकता का यत्किचित् अंश भी नहीं मिल सकता । और जब तुम अपने आत्मस्वरूप का अनुभव कर लोगे तो ऐसे २ असंख्य सुमेरु तुम्हे अपने आप में दिखाई देंगे। सम्पूर्ण सृष्टि तुम्हारी सेवा करेगी । मेघों से लेकर एक साधारण कंकड़ तक, श्याम रंग श्राकाश से लेकर हरी भरी पृथ्वी पर्यन्त, और गरुड़ से लेकर छछूंदर तक, जितने जीव संसार में है सब तुम्हारी श्राज्ञा मानने को तत्पर रहेंगे। कोई देवता भी तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन न कर सकेगा । ए नभ ! अब तू निर्मल हो जा। ए भारतवर्ष पर अज्ञान के श्राच्छादित मेघो ! दूर हो जाओ । इस पवित्र भूमि पर अव अधिक मत मंडलाओ । ए हिमालय की बर्फ ! तुम्हारा स्वामी तुम्हें यह श्राज्ञा देता है कि तुम अपनी पवित्रता और सत्य निष्ठा (ज्ञानमिष्ठा) को क़ायम रक्खो । द्वैतभाव से कलुषित जल कभी इस क्षेत्र - मैदान में मत भेजो !
ddd1628d95838a1d4184cdd17a1847eae3cf5ef4
web
हिंदुत्व की बात शुरू होते ही सबसे पहले जिस सन्यासी का नाम याद आता है वो नाम अधिकांश लोगों के लिए स्वामी विवेकानंद का होगा। उन्हें ख़ास तौर पर उनके "शिकागो व्याख्यान" के लिए याद किया जाता है। ये जो सर्व धर्म सम्मलेन हो रहा था, वो शिकागो के एक वकील चार्ल्स कैर्रोल बोन्नी ने 1889 में शुरू किया था। ये कोलंबस के अमेरिका के खोज के 1893 में 500 वर्ष होने के उपलक्ष्य में होने वाले उत्सवों के पूर्व में शुरू किया गया था। आश्चर्यजनक रूप इसे कोलंबस के आने की वर्षगाँठ मनाने के लिए शुरू किया गया था, जो मुख्यतः स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने और सोना लूटने आया था। उसका "सर्व धर्म समभाव" से क्या लेना देना था, ये हमें मालूम नहीं। इस सर्व धर्म संसद में जॉन हेनरी बर्रोव्स ने कहा था कि एक इसाई और अमीर, अमेरिका जैसा देश ही ऐसा कोई आयोजन कर सकता था। ये वो दौर था जब इसाई लोग दूसरे मजहब के लोगों की गुलामों की तरह खरीद-बिक्री चोरी-छुपे जारी रखे हुए थे। हाँ, बड़ी-बड़ी घोषणाओं और दस्तावेजों के तौर पर जरूर उन्हें "सर्व धर्म सम्मेलनों" की बात शुरू करने के लिए श्रेय दिया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने इस सम्मलेन में एक से ज्यादा भाषण दिए थे। उन्हें अपने पहले भाषण की शुरुआत "अमेरिका के मेरे बहनों और भाइयों..." से शुरू करने के लिए जाना जाता है। उनके बाकी के भाषण उतने प्रसिद्ध नहीं। हो सकता है कि आप सोचें कि जहाँ 11 सितम्बर 1893 में जहाँ स्वामी विवेकानंद ने अपना भाषण दिया था, वो जगह अब कैसी है? शिकागो आर्ट इंस्टिट्यूट की सीढ़ियों पर अभी वो 473 शब्द चमकते हैं जो उन्होंने कभी सवा सौ साल से भी पहले कहे थे! शिकागो_धर्मसभा ....जहाँ सभी विद्वान् दुनिया भर के चोटी के विद्वानों, वैज्ञानिकों और चिंतकों की उक्तियों के साथ अपने उद्बोधन दे रहे थे वहीं जब आप स्वामी विवेकानंद द्वारा उस धर्म-सम्मेलन में दिए गये भाषण को पढ़ेंगे तो आपको दिखेगा कि अपने पूरे भाषण में उन्होंने किसी आधुनिक वैज्ञानिक, आधुनिक चिंतन का जिक्र नहीं किया, किसी पश्चिम के बड़े विद्वान्, किसी मानवतावादी, किसी नारी-मुक्ति का लट्ठ भांजने वाले का भी जिक्र नहीं किया, मज़े की बात ये भी है कि जिनके प्रेरणा से स्वामी विवेकानंद वहां बोल रहे थे वो उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस उन अर्थों में अनपढ़ थे जिन अर्थों में आज साक्षरता को लिया जाता है. वहां सवामी जी जितना बोले वो केवल वही था जो हमारे बचपन में हमारी दादी-नानी और माँ हमें किस्से-कहानियों के रूप में सुनाती थी यानि राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर की कहानियां और हमारे उपनिषदों और पुराणों से ली गई बातें. क्या पढ़ा था रामकृष्ण परमहंस ने और क्या कह रहे थे वहां विवेकानंद , केवल वही जिसे मिथक कहकर प्रगतिशील लोग खिल्ली उड़ाते हैं, वहीँ जिसकी प्रमाणिकता को लेकर हम खुद शंकित रहते हैं और वही जिसे गप्प कहकर हमारे पाठ्यक्रमों से बाहर कर दिया गया पर इन्हीं बातों को शिकागो धर्मसभा में रखने वाले विवेकानंद को सबसे अधिक तालियाँ मिली, बेपनाह प्यार मिला और सारी दुनिया में भारत और हिन्दू धर्म का डंका बज गया. अपने ग्रन्थ, अपनी विरासत, अपने पूर्वज और अपने अतीत पर गर्व कीजिये. आधुनिक और रोजगारपरक शिक्षा के साथ-साथ अपने बच्चों को राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर की कहानियाँ सुनाइए..उपनिषद, रामायण, महाभारत और पुराणों की बातें बताइए फिर देखिए उसकी मानसिक चेतना और उत्थान किस स्तर तक पहुँचता है. ये घटना विश्व-विख्यात 'शिकागो धर्म सम्मलेन' के बाद का है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे. एक बार किसी रेलवे स्टेशन से उतरने के दौरान एक नीग्रो कुली जल्दी से उनके पास आया है हाथ मिलाकर कहने लगा- बधाई हो ! मुझे बड़ी ख़ुशी है कि मेरी जाति का एक व्यक्ति इतना सम्मानित किया गया है. इस देश के सारे नीग्रो लोगों को आप पर गर्व है. स्वामी जी ने बड़े उत्साह से उससे हाथ मिलाया और कहा- धन्यवाद बंधु, धन्यवाद बंधु. उन्होंने वहां किसी को भी ये जाहिर न होने दिया कि वो कोई नीग्रो नहीं बल्कि भारतवासी हैं. कई बार उन्हें अमेरिकी होटलों में नीग्रो होने के संदेह में घुसने नहीं दिया गया तब भी उन्होंने नहीं कहा कि वो नीग्रो नहीं हैं. उनके किसी अमेरिकी शिष्य ने इन घटनाओं पर उनसे पूछा कि आपने उन्हें बताया क्यूँ नहीं बताया कि आप नीग्रो नहीं हैं? स्वामी जी का जबाब था, किसी दूसरे की कीमत पर क्या बड़ा बनना. इस हेतू मैं धरती पर नहीं आया. उन्होंने आगे कहा, ये नीग्रो भी इन्सान है जिनके रंग के कारण अमेरिकी उनसे घृणा करते हैं, अगर वो नीग्रो मुझे नीग्रो समझते हैं तो मेरे लिए ये गर्व की बात है क्योंकि अगर इससे उनमें स्वाभिमान भाव जागृत होता है तो मेरा उद्देश्य सफल हो जाता है. इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में स्थित एक देश है जो करीब सत्रह हज़ार द्वीपों का समूह है. इस देश में आज दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है. भारत की तरह ही यह देश भी तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय तक डचों के अधीन थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डचों से आजादी मिली. डचों से आजादी के लिये इण्डोनेशियाई लोगों के संघर्ष के दौरान एक बड़ी रोचक घटना हुई. इंडोनेशिया के कई द्वीपों को आजादी मिल गई थी पर एक द्वीप पर डच अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं थे. डचों का कहना था कि इंडोनेशिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं दे पाया है कि यह द्वीप कभी उसका हिस्सा रहा है, इसलिये हम उसे छोड़ नहीं सकते. जब डचों के तरफ से ये बात उठी तो इंडोनेशिया यह मामला लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चला गया. संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इंडोनेशिया को सबूत पेश करने को कहा तो इंडो लोग अपने यहाँ की प्रचलित रामकथा के दस्तावेज लेकर वहां पहुँच गये और कहा कि जब सीता माता की खोज करने के लिये वानरराज सुग्रीव ने हर दिशा में अपने दूत भेजे थे तो उनके कुछ दूत माता की खोज करते-करते हमारे इस द्वीप तक भी पहुंचे थे पर चूँकि वानरराज का आदेश था कि माता का खोज न कर सकने वाले वापस लौट कर नहीं आ सकते तो जो दूत यहाँ इस द्वीप पर आये थे वो यहीं बस गए और उनकी ही संताने इन द्वीपों पर आज आबाद है और हम उनके वंशज है. बाद में उन्हीं दस्तावेजों को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वो द्वीप इंडोनेशिया को सौंप दिया. इसका अर्थ ये है कि हिन्दू संस्कृति के चिन्ह विश्व के हर भूभाग में मिलते हैं और इन चिन्हों में साम्यता ये है कि श्रीराम इसमें हर जगह हैं. भारत के सुदुर पूर्व में बसे जावा, सुमात्रा, मलेशिया और इंडोनेशिया हो या दक्षिण में बसा श्रीलंका या फिर चीन, मंगोलिया या फिर मध्य-पूर्व के देशों के साथ-साथ अरब-प्रायद्वीप के देश, राम नाम और रामकथा का व्याप किसी न किसी रूप में हर जगह है. अमेरिका और योरोप की माया, इंका या आयर सभ्यताओं में भी राम हैं तो मिश्री लोककथायें भी राम और रामकथा से भरी पड़ी हैं. इटली, तुर्की, साइप्रस और न जिनके कितने देश हैं जहाँ राम-कथा आज भी किसी न किसी रूप में सुनी और सुनाई जाती है. भारतीय संस्कृति के विश्व-संचार का सबसे बड़ा कारण राम हैं. राम विष्णु के ऐसे प्रथम अवतार थे जिनके जीवन-वृत को कलम-बद्ध किया गया ताकि दुनिया उनके इस धराधाम को छोड़ने के बाद भी उनके द्वारा स्थापित आदर्शों से विरत न हो और मानव-जीवन, समाज-जीवन और राष्ट्र-जीवन के हरेक पहलू पर दिशा-दर्शन देने वाला ग्रन्थ मानव-जाति के पास उपलब्ध रहे. इसलिये हरेक ने अपने समाज को राम से जोड़े रखा. आज दुनिया के देशों में भारत को बुद्ध का देश तो कहा जाता है पर राम का देश कहने से लोग बचते हैं. दलील है कि बुद्ध दुनिया के देशों को भारत से जोड़ने का माध्यम हैं पर सच ये है कि दुनिया में बुद्ध से अधिक व्याप राम का और रामकथा का है. भगवान बुद्ध तो बहुत बाद के कालखंड में अवतरित हुए पर उनसे काफी पहले से दुनिया को श्रीराम का नाम और उनकी पावन रामकथा ने परस्पर जोड़े रखा था और चूँकि भारत-भूमि को श्रीराम अवतरण का सौभाग्य प्राप्त था इसलिये भारत उनके लिये पुण्य-भूमि थी. राम भारत भूमि को उत्तर से दक्षिण तक एक करने के कारण राष्ट्र-नायक भी हैं. आज जो लोग राम को छोड़कर भारत को विश्वगुरु बनाने का स्वप्न संजोये बैठे हैं उनसे सीधा प्रश्न है राम के बिना कैसा भारत और कैसी गुरुता ? राम को छोड़कर किस आदर्श-राज्य की बात ? राम की अयोध्या को पददलित और उपेक्षित कर भारत के कल्याण की कैसी कामना ? राम का नाम छोड़कर वंचितों और वनवासियों के उद्धार का कैसा स्वप्न ? स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। उन्होंने जो 11 से 27 सितम्बर 1893 के बीच के अपने भाषणों में कहा, उसे हर वर्ष याद कर ही लिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये "मान लिया जाता है" कि इन्हीं भाषणों से हिंदुत्व का पश्चिमी देशों में परिचय हुआ था। हालाँकि दूसरे कई मिथकों की ही तरह इस सेक्युलर मान्यता का भी जमीनी सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है। इससे कई वर्षों पहले से ही पत्र-पत्रिकाओं और अख़बारों में भारत और हिन्दुओं के बारे में छपता रहा था। जैसा कि अपेक्षित ही था, इसमें से कुछ भी हिन्दुओं के पक्ष नहीं जाता था। अधिकांश ऐसे प्रकाशनों में हिन्दुओं को पिछड़ा हुआ, कुत्सित मानसिकता का गिरा हुआ प्राणी ही घोषित किया जाता था। इसलिए अगर स्वामी विवेकानंद के भाषण को महत्वपूर्ण कहना ही हो तो उसे इस वजह से महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि पहली बार किसी बड़े मंच से एक हिन्दू स्वयं हिन्दुओं के पक्ष में बोल रहा था। ये वो दौर था जब आज सुनाई देने वाला "हिन्दूफोबिया" शब्द प्रचलन में आ चुका था। जी हाँ, हिन्दू-फोबिया कोई आज का शब्द नहीं है, इसके पास करीब डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास है। जहाँ तक उस दौर में हिन्दुओं के बारे में लिखे-छापे गए का सवाल है, उसमें से काफी कुछ "हीदेन, हिन्दू, हिन्दूः अमेरिकन रिप्रजेंटेशन्स ऑफ़ इंडिया" में संकलित मिल जाता है। ये आश्चर्य का विषय हो सकता है कि हिन्दुफोबिया शब्द के जन्म के इतने वर्षों बाद भी इस विषय पर कम किताबें क्यों लिखी गयीं। संभवतः इसका एक कारण इस विषय पर किताबों के लिखे जाने पर भी प्रकाशित न होना रहा होगा। कभी-कभी प्रचार न मिलने के कारण भी ऐसा लेखन समय के साथ भुला दिया जाता है। इन सब के अलावा इतिहास को लिखित रूप में रखने की आदत हिन्दुओं में हाल के दौर में कम हो गयी है।
99dbfd1cc019128b81e5c112376c8710d37e9b03
web
पहली बार मैंने उसे एक फिजियोथेरेपी क्लिनिक में देखा था, जो उपनगरों में सर्वश्रेष्ठ में से एक है (जो कि एकमात्र ऐसी जगह है जिसे मैं वास्तव में जानता हूं) बहु-प्रतिभाशाली डॉक्टर इंदु टंडन द्वारा संचालित, जो मदन प्रकाश की बेटी हैं, जो सबसे अधिक में से एक हैं। मैं उद्योग में विनम्र और सौम्य तकनीशियनों को जानता हूं, एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष हिंदी फिल्मों की दुनिया को दिए हैं। वह उन सभी लोगों के बीच एक आकर्षक और लगभग देवदूत दिखने वाली आकृति थी, जिनका विभिन्न प्रकार की बीमारियों और गंभीर दुर्घटनाओं, टूटी हड्डियों और परिणामी अवसाद के परिणामों के लिए इलाज चल रहा था, उनमें से अधिकांश युवा थे। उसकी पीठ में कुछ समस्या थी और यह आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि वह अब अपने शुरुआती अस्सी के दशक में थी। दर्द और अन्य प्रकार के दुखों के कारण वह जिस दर्द से गुजर रही थी, उसके बावजूद उसके चेहरे पर लगातार मुस्कान थी। उसके भूरे बाल शानदार लग रहे थे, उसके कार्यवाहक द्वारा पूर्णता के साथ कंघी की गई, जिसे कभी महाराष्ट्र के एक गाँव का मुखिया कहा जाता था और जो स्थानीय नृत्य और संगीत के विशेषज्ञ थे और मुझे अभी यह कहना होगा कि उसकी कुछ धुनें और मराठी गीतों ने कुछ बहुत लोकप्रिय गीतों का आधार भी बनाया है। वह ग्रे के शुक्रवार, शनिवार और रविवार की महिला की तरह थे और पूरे प्यार और सम्मान के साथ ग्रे महिला की देखभाल करती थी। मैं अपने टूटे पैर के लिए फिजियोथेरेपी के एक सत्र से गुजर रहा था और कुछ व्यायाम जो मुझे करने के लिए किए गए थे, वे बहुत दर्दनाक थे, लेकिन इस महिला में कुछ जादू था जिसने मुझे उसकी ओर देखा और अपना दर्द भूल गया।श्री मदन प्रकाश ने उनसे मेरा परिचय कराया और हमने एक त्वरित और सहज बातचीत शुरू की, जिससे एक बहुत ही मधुर संबंध बन गया जो डॉ. टंडन के क्लिनिक में अभ्यास के दिन के साथ ही मजबूत होता गया। वह 83 वर्ष की थीं और मुझे उनकी युवावस्था के सबसे अच्छे वर्षों को याद करने के दुख, अफसोस और दर्द के बारे में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। मैंने उसे अपनी "गर्लफ्रेंड" कहने के बाद ही वो खुश दिखी और वो शायद नहीं जानती थी कि डॉ. टंडन के क्लिनिक में हम एक साथ कम समय में मुझे कितनी खुशी दे रहे थे। हर शाम, वह क्लिनिक में सभी के लिए गर्म चाय से भरे अपने फ्लास्क और कुछ स्नैक्स लेकर आती थी और जब उसे चाय के लिए मेरी कमजोरी का पता चला, तो उसने सुनिश्चित किया कि मेरे पास गर्म चाय के कम से कम दो बड़े मग हों। बहुत बाद में मुझे बताया गया कि वह लीला थी, संजय लीला भंसाली के नाम पर लीला, हमारे सबसे महान फिल्म निर्माताओं में से एक और जिसने उन्हें, उनकी मां को प्रेरणा के प्रमुख स्रोत के रूप में लिया था और यही कारण था कि क्यों उन्होंने अपने पिता का नाम अपने मध्य नाम के रूप में नहीं लिया था, बल्कि अपनी मां के नाम के रूप में लिया था और इसी तरह उन्हें अपना नाम संजय लीला भंसाली मिला, जो अब भारतीय सिनेमा में अच्छा, महान और गौरवशाली नाम का पर्याय बन गया है। वह 83 वर्ष की थी और 84 वर्ष की हो रही थी जब उसे लगा कि, मैं उसे अपनी "प्रेमिका" कहना बहुत तुच्छ है और उसने मुझे एक बड़ा आश्चर्य तब दिया जब उसने मुझे मदन प्रकाश के कमरे में आमंत्रित किया जो उसके स्वीकृत भाईयों में से एक था और अब उसने मुझसे अनुमति मांगी कि क्या वह मुझे अपना भाई बना सकती है, और क्या मैं खुश था!मेरी कभी कोई सगी बहन नहीं थी। मेरी कई "मुंहबोली" बहनें थीं जो रक्षाबंधन के दिन मेरे लगभग दोनों हाथों को राखी से भर देती थीं और उनमें से एक को भी नहीं पता था कि, एक ऐसे भाई की बहन होने के नाते जो वास्तव में उनका भाई नहीं था। मुझे इस बात का अफ़सोस था कि मेरी ऐसी बहनें थीं जो मुझे अपना भाई बनाने में केवल अपना स्वार्थ रखती थीं। भगवान ने मेरी हालत को एक ऐसे भाई के रूप में देखा होगा जो सचमुच बहनों द्वारा लूट लिया गया था, जो कि बहन कहलाने के लायक नहीं थे, असली या अन्यथा .... और यहाँ था सबसे अनमोल भगवान उपहार मेरी उम्र, एक बहन जिसका एक मुस्कान और एक उड़ान चुंबन और मेरे कंधे पर एक हाथ कई लाख करोड़ रुपए, असीमित प्यार और बिना शर्त प्यार के लायक हो सकता है पर मुझे देने के लिए योजना बनाई थी, वह थी। पिछले रक्षाबंधन दिवस के दौरान जब उसने मेरे लिए पूजा की और जब उसने चावल के कुछ दानों के स्पर्श से अपनी पुरानी लेकिन बहुत मजबूत उंगलियों के साथ मेरे माथे पर टीके के निशान को छुआ और मुझे बर्फी का एक टुकड़ा खिलाया, तो मैं अभिभूत हो गया, मैं उनके आशीर्वाद और प्रार्थनाओं को अपने पूरे अस्तित्व में रिश्ता हुआ महसूस कर सकता था। हमने पूजा के बाद बहुत देर तक बात की और मैंने उसे 83 साल की उम्र में पाया, जिसमें अभी भी एक 23 साल की लड़की की आत्मा थी और अपने तरीके से जो किसी भी चीज़ की तुलना में विनम्रता से अधिक थी, उसने मुझे कहानी सुनाई अपने संघर्ष के दिनों में और कैसे उन्होंने एक गायिका और नर्तकी के रूप में अपने जुनून को एक पेशे में अपना, अपने बेटे, संजय और अपनी बेटी, बेला के लिए एक अच्छा जीवनयापन करने के लिए अपनाया। और क्या मैं इस महिला से प्रभावित था, जो निश्चित रूप से कोई साधारण महिला नहीं थी और यहां तक कि एक असाधारण महिला भी नहीं थी, बल्कि एक ऐसी महिला थी जो सीधे अच्छे भगवान की कृपा और छाया में थी ...उस रक्षाबंधन दिवस को एक साल बीत चुका था और यह एक और रक्षाबंधन दिवस था, मैंने अपने पागल और अस्पष्ट कारणों के लिए डॉ टंडन के क्लिनिक में जाना बंद कर दिया था, भूरे रंग की महिला भी रुक गई थी और बीच में हल्का दिल का दौरा पड़ा था, दुनिया में और विशेष रूप से उसकी दुनिया में बहुत कुछ बदल गया था। उनके बेटे ने कुछ बड़ी समस्याओं को दूर किया था और "पद्मावत" जैसी बड़ी हिट थी और उनकी बेटी शेरविन की बेटी ने "मलाल" में एक अभिनेत्री के रूप में अपनी शुरुआत की थी और भले ही फिल्म ने बॉक्स-ऑफिस पर इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। जावेद जाफरी के बेटे शर्मिन और मीज़ान, जिन्होंने फिल्म में अपनी शुरुआत की थी, दोनों की सराहना की गई थी और सभी की सराहना की गई थी ... ग्रे रंग की महिला ने मुझे इस रक्षाबंधन दिवस से एक सप्ताह पहले (अपने दूसरे भाई मदन प्रकाश के माध्यम से) फोन किया और मुझे 15 अगस्त को मुक्त होने के लिए कहा था, रक्षाबंधन पूजा के लिए वह प्रदर्शन करना चाहती थी, मैं हिल गया और मैं अगस्त की प्रतीक्षा करता रहा 15 कई अन्य कारणों से होने वाला है, स्वतंत्रता दिवस उनमें से एक है, लेकिन किसी भी चीज़ से अधिक मैंने उस महिला को ग्रे रंग में देखने का इंतजार किया जिसे मैंने एक साल में देखा था। मैं अभी-अभी 84 की धूसर रंग की महिला द्वारा की गई पूजा के बाद लौटा हूं और उसके बालों में सफेदी और भी शानदार हो गई है और उसके चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ कई अन्य कहानियाँ बताती हैं जो केवल वह जानती है, यह वही पूजा थी। टीके का निशान और चावल के दाने और वह लगभग चीख पड़ी जब चावल का सिर्फ एक दाना मेरे माथे से फिसल गया और उसने सुनिश्चित किया कि चावल का दाना मेरे माथे पर वापस आ गया है। मैंने किसी भी प्रकार के अनुष्ठानों में जाना लगभग बंद कर दिया है और किसी अन्य स्थान पर पूजा की है, मुझे तब तक नहीं है जब तक मेरे पास ऐसे लोग हैं जो मुझे शुभकामनाएं देते हैं और मुझे अपनी प्रार्थनाओं में रखते हैं जिसके साथ वे मुझे आशीर्वाद देते हैं और निश्चित रूप से जब तक मैं एक बड़ी बहन के रूप में भगवान का यह उपहार और मेरे साथ उनका आशीर्वाद है।वे कहते हैं कि, एक आदमी या औरत चीजों और घटनाओं को भूल जाते हैं, लेकिन लीला, बड़ी बहन कुछ भी नहीं भूलती है और अगर वह करती भी है, तो उसका एक कार्यवाहक होता है जो वह सब कुछ याद रखता है जिसे वह भूल सकती है। जब हम बात कर रहे थे, तब लीला, मेरी बड़ी बहन को भी कुछ जानकारी मिली जैसे "मलाल" का "आइची शपथ" गाना हिट हो गया और उसने मेरे शाश्वत आनंद के लिए मेरे लिए पहली कुछ पंक्तियाँ भी गाईं। वह एक रिपोर्टर की तरह थी जो मुझे अपने बेटे, संजय के बारे में जानकारी दे रही थी कि वह अपनी अगली फिल्म "इंशाअल्लाह" पर बहुत मेहनत कर रहे हैं, जिसमें उसने मुझे बताया कि सलमान खान, संजय के साथ "हम दिल दे चुके सनम" के बाद काम कर रहे थे (भले ही उन्होंने एक "सांवरिया" में अतिथि भूमिका)। मिठाई से भरा एक डिब्बा मेरा इंतजार कर रहा था और मैंने दो स्वादिष्ट टुकड़े करके इसे सबसे अच्छा बनाया, भले ही मुझे कुछ भी मीठा नहीं खाना चाहिए था। लीला भंसाली के साथ यह मेरा सबसे यादगार रक्षाबंधन अनुभव था, एक बहन जिसे मैं अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकता हूं कि जब तक मैं जीवित हूं, हमेशा मेरे लिए भगवान का अनमोल उपहार रहेगा।बहन, लीला तेरी लीला गजब की है और मैं कितना खुशनसीब हूं कि तेरी लीला मेरी जिंदगी का अमूल्य हिस्सा बन चुकी है और बनी रहेगी, जब तक है जान।
9afb148a1ef36007a085b3aec3107bdf754f634b
web
इस पर वह बोला, 'फालतू बात नहीं कर रहा हूं, जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं। इतना कह कर उसने अपना सिर मेरी गोद में रख दिया। फिर रो पड़ा। उसके दोनों हाथ अब मेरी कमर के गिर्द लिपटे थे। उसके गर्म आंसू मेरे पेट को गीला किए जा रहे थे। मैं इस अप्रत्याशित घटना से एकदम हतप्रभ थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा है। ये नई मुशीबत क्या है ? इस लड़के को क्या हो गया है ? पगला गया है, मुझ से शादी करने के लिए बोल रहा है। काफी सोचती-विचारती रही। वह मेरे पेट को गीला किए जा रहा था। कुछ देर में अपने को सम्हालने के बाद मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया। आंसूओं से तरबतर था चेहरा। मुझे लगा मामला बहुत गंभीर है। इसे गुस्से नहीं प्यार से समझाना होगा। यह भ्रमित है। उसका भ्रम दूर करना ज़रूरी है। नहीं तो यह कुछ गलत क़दम भी उठा सकता है। यह बातें कुछ ही सेकेण्ड में मेरे दिमाग में कौंध गईं। मैंने उससे बाथरूम में जाकर मुंह धोकर आने को कहा। लेकिन वह नहीं उठा तो मैं खुद जग में पानी ले आई और अपने हाथ से उसका मुंह धोकर तौलिए से पोंछा। फिर चाय, नमकीन, बिस्कुट ले आई। उसे खिला-पिला कर जब कुछ शांत कर पाई तो कहा, "क्या आपके मन में मेरे लिए कोई प्यार नहीं है ?" उसकी यह बात सुन कर मैं फिर हड़बड़ा गई। किसी तरह अपने पर काबू पा कर उससे कहा, 'देखो चीनू हम दोनों के बीच जो वास्तविक रिश्ता है वह सिर्फ़ चाची-भतीजे का है। जिस संबंध की तुम बात कर रहे हो वह तो एक विकृति है। गलत है उसमें कोई प्यार नहीं है। वह तो सिर्फ़ दैहिक आकर्षण है। देह की भूख है। परस्पर विपरीत लिंग के देह का आकर्षण। और यह हम दोनों के बीच जो हुआ यह एकदम गलत है। समाज को पता चल गया तो लोग हम पर थूकेंगे भी नहीं। हां यह जो गलत हुआ इसके लिए मैं अपने को ज़िम्मेदार मानती हूं। पूरी तरह से मैं ज़िम्मेदार हूं। एक अजीब सी स्थिति में न जाने किस भावना में मैं बह गई उस दिन। और वह पापपूर्ण क़दम उठा बैठी। मैं तुम्हें ज़िम्मेदार कहीं से नहीं मानती। एक किशोर विपरीत लिंग के प्रति जैसे आकर्षित होता तुम भी उन दिनों उसी तरह स्त्री शरीर के दीवाने थे। तुम जो बराबर मेरे शरीर की ताक- झांक करते रहते थे वह मुझ से छिपा नहीं था। मैं तुम्हारी हर हरकत के मर्म को समझती थी। कहते हैं औरत बहुत भावुक होती हैं। भावुक क्षणों में वह बड़ी जल्दी बिखर जाती हैं। या वह एक ऐसे पके फल के समान होती है जो मर्द का हल्का शीतल स्पर्श पाते ही उसकी गोद में गिर जाती है। उस दिन मैं भी भावनात्मक स्तर पर इतना टूट चुकी थी कि तुम्हारे जैसे लड़के मतलब की भतीजे के स्पर्श से ही बिखर गई। मेरी जिंदगी का यह सबसे पापपूर्ण कृत्य है जिसकी मुझे जो सजा मिले वह कम है। मेरे तुम्हारे बीच रिश्ता प्रेमी-प्रेमिका का नहीं है, न ही हो सकता है। और पति-पत्नी की बात तो सोची ही नहीं जा सकती। तुम अपने दिलो-दिमाग से यह फितूर निकाल दो और जो लड़की पसंद हो उससे शादी कर के अपना जीवन संवारो। "मुझे आपकी यह सारी बातें बकवास लगती हैं। अरे! जब इतना ही अपमानपूर्ण लगता है तो इतने बरसों से मुझ से बार-बार संबंध क्यों बनाती आ रहीं हैं। माना पहली बार आप भटक गईं। पर दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार और फिर इतने सालों से बार-बार। ये क्या तमाशा है। चाची जिसे भटकाव या जो तुम बोल रही हो कि पका फल हो टूट कर गिर जाती हो मेरी गोद में सब बकवास है झूठ है। चीनू ने बड़े सख्त लहजे में कही थीं ये बातें। उसकी आवाज़़ उसके एक-एक शब्द से मैं अंदर तक सिहर जा रही थी। मगर मैंने सोचा कि अगर इस समय दिमाग से काम न लिया तो यह बात बहुत बड़ा बवंडर पैदा कर देगी। सो मैंने संतुलन बनाए रखा। धैर्य नहीं खोया। बड़े प्यार से कहा, 'चीनू मेरी बात को पहले ध्यान से सुनो। स्थिति को ठीक से समझो। इसके बाद कुछ बोलो। ये सब फ़िल्मों में बड़ा आसान लगता है कि चलो भाग चलें। या हीरो पूरी दुनिया को ठेंगे पर रख कर कुछ भी कर डालता है। हक़ीक़त में यह सब नहीं होता। ज़िंदगी बहुत कठोर है। आज तुम सिर्फ इसलिए इतने उतावले हो मेरे साथ शादी करने और जीवन भर साथ रहने के लिए क्यों कि एक खा़स किस्म के शरीर का स्वाद जो तुम्हारे दिलो-दिमाग पर चढ़ गया है उसके तुम दीवाने हो। "मुझे यह सारी दलीलें बिल्कुल समझ में नहीं आतीं। मैं सिर्फ़ इतना जानता हूं कि मैं सिर्फ तुमसे ही शादी कर सकता हूं। क्योंकि दुनिया में मुझे आज तक केवल तुम्हारे पास आने पर ही सैटिसफैक्शन मिलता है। कहने को यूनिवर्सिटी लाइफ और उसके बाद भी तरह-तरह की करीब एक दर्जन लड़कियों से संबंध बने मगर मुझे हर जगह एक खालीपन-अधूरापन ही मिला। हर लड़की के साथ लगता अरे! यहां यह कमी है। अरे! यह तो मेरे लिए है ही नहीं। कौन है मेरे लिए किसकी बाहों में मुझे संतुष्टि मिलती है। कई बरसों तक मैं समझ ही नहीं पाया। इस प्रश्न पर बड़ी मगजमारी करता रहा। फिर धीरे-धीरे यह महसूस किया कि यह स्थिति उस दिन नहीं होती जिस दिन तुम मेरी बाहों में होती हो। इस बात पर मैंने बहुत गहराई से सोचा, बराबर सोचा, हर बार निष्कर्ष यही निकला कि मुझे कंप्लीट सैटिसफैक्शन तुम्हारे साथ वक़्त बिता कर ही मिलता है। 'चीनू पहले मेरी बात ध्यान सुनो। न मैं इनसे ऊबी हूं न ये मुझ से। पति-पत्नी में झगड़े का मतलब यह नहीं कि रिश्ते सड़ गए। जब रिश्ते सड़ जाते हैं तो एक छत के नीचे वह रह ही नहीं पाते। तुम्हारे मां-बाप के बीच भी झगड़े होते हैं, तुम खुद बता चुके हो। तो क्या उसका मतलब यह है कि वह दोनों अलग हो जाएं। मैं बार-बार कह रही हूं कि तुम एक सुंदर लड़की से शादी कर लो। पहली रात तुम उसे पत्नी के रूप में अपनी बांहों में लोगे तो तुम्हारा सारा भ्रम दूर हो जाएगा। अभी तक तुम जिन लड़कियों की बातें कर रहे हो वह केवल वासना की भूख शांत करने का रिश्ता था। वहां भावना नहीं है। इमोशनल अटैचमेंट नहीं है। इसलिए तुम भ्रमित हो। रही बात मेरे लिए कि मेरे साथ संबंध बना कर ही तुम्हें संतुष्टि मिलती है तो यह भी एक भ्रम है। होता यह है कि हम सब कोई चीज पहली बार देखते हैं और यदि वह हमारी नजरों को भा जाता है तो उसका एक स्थाई भाव उसकी एक स्थाई तस्वीर हमारे दिलो-दिमाग पर बैठ जाती है। फिर उसके बाद जब हम कुछ और देखते हैं तो हमें पहले वाली तस्वीर ही बेहतर लगती है। दूसरी सारी तस्वीरों में हम पहली वाली तस्वीर का ही अक्स ढूढ़ने लगते हैं। बस यहीं सारी समस्या खड़ी होती है। तुम्हारे साथ वास्तव में यही हुआ है। जब तुम अश्लील किताबों में औरतों के साथ खुले सेक्स संबंधों के बारे में पढ़ते थे उनके चित्र देखते थे तो मन में वही सब करते थे। तुम्हारा मन जैसे-तैसे तुरंत एक संबंध या सेक्स करने के लिए एक औरत पाने के लिए तड़प उठता था। तुम व्याकुल रहते थे एक औरत पाने के लिए। यही वजह थी कि तुम जैसे-तैसे किसी औरत के शरीर को देखने की कोशिश में लगे रहते थे। इस बीच दुर्भाग्य से वह मनहूस काली रात भी आ गई जब तुम्हें वह मिल गया जिसकी तुमने कल्पना तक न की थी। तुम्हें एक भरीपूरी औरत मिल गई जो बिना किसी प्रयास के खुद ही आ कर तुम्हारे आगे लेट गई। पूरी तरह समर्पण कर दिया। सोने पे सुहागा यह कि जिस औरत को तुम छिप-छिप कर झांका करते थे। जिसके एक-एक अंग को अंदर तक नग्न देखने के लिए लालायित रहते थे वह सारे अंग तुम्हारे आगे खुद ही बिना प्रयास के आ गए। उन नग्न अंगों की चमक़, उनकी गर्मी, स्पर्श एवं घर्षण का अहसास तुम्हारे दिलो-दिमाग पर एक स्थाई भाव बन कर बैठ गया।
cb1277b3e6a949743cf999ecaec67d44dd583f97cdcb23e8a567db6855308623
pdf
पंचेंद्रिय वमन करें महान, वे सतत बढ़ावें आत्म ज्ञान । संसार देह सब भोग त्याग, वे शिव-पथ साधे सतत जाग ॥ "कुमरेश" साधु वे हैं महान, उनसे पाये जग नित्य त्राण । मैं करू वंदना बार बार, वे करें भवार्णव मुझे पार । मुनिवर गुण-धारक पर उपकारक, भव दुखकारक सुख-कारी । वे करम नशायें सुगुण दिलायें, मुक्ति मिलायें भग-हारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीअकम्पनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्यो महार्घं निर्व० । श्रद्धा भक्ति समेत, जो जन यह पूजा करे । वह पाये निज ज्ञान, उसे न व्यापे जगत दुख ॥ इत्याशीर्वादः श्री विष्णुकुमार महामुनि पूजा (लाबनी छन्द) श्री योगो विष्णुकुमार बाल बैरागी । पाई वह पावन ऋद्धि विक्रिया जागी ।। सुन मुनियों पर उपसर्ग स्वयं अकुलाये । हस्तिनापुर वे वात्सल्य भरे हिय आये ॥ कर दिया दूर सब कष्ट साधना-बल से । पा गये शान्ति सब साधु अग्निके झुलसे ॥ जन जन ने जय-जयकार किया मन भाषा । मुनियों को दे आहार स्वयं भी पाया ।। हैं वे मेरे आदर्श सर्वदा स्वामी । मैं उनको पूजा करू बनूं अनुगामी ॥ वे दें मुझमें यह शक्ति भक्ति प्रभु पाऊं । मैं कर आतम कल्याण मुक्त हो जाऊं ॥ ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमारमुने अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् । (चाल जोगीरासा) श्रद्धा की वापी से निर्मल, भावभक्ति जल लाऊं । जनम मरण मिट जाये मेरे इससे विनत चढ़ाऊं ॥ विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दूं यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमारमुनये जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ मलयागिरि धीरज से सुरभित समता चन्दन लाऊं । भव-भवकी आताप न हो यह इससे विनत चढ़ाऊं ॥ विष्णुकुमार मुनौश्वर वन्दूं यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्रीं श्री विष्णुकुमारमुनये संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि० ।।२।। चन्द्रकिरण सम आशाओं के अक्षत सरस नवीने । अक्षय पद मिल जाये मुझको गुरु सन्मुख धर दीने ॥ विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्यूँ यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्य० ।।३।। जबूडीप पूजांजलि उर उपवनसे चाह सुमन चुन विविध मनोहर लाऊं । व्यथित करे नहि काम वासना इससे विनत चढ़ाऊं ।। विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दू यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये । ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमार मुनये कामबाणविनाशनाय पुष्पं नि० ।।४।। नव नव व्रत के मधुर रसीले मै पकवान बनाऊं । क्षुधा न बाधा यह दे पाये इससे विनत चढ़ाऊं ।। विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दूँ यति रक्षा-हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमार मुनये क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि० ।।५।। मैं मन का मणिमय दीपक ले ज्ञान-वातिका जारू । मोह-तिमिर मिट जाये मेरा गुरु सन्मुख उजिय । ।। विष्णुकुमार मुनीश्वर बन्दूँ यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमार मुनये मोह तिमिरविनाशनाय दीपं नि० ।।६।। ले विराग को धूप सुगन्धित त्याग धूपायन खेऊं । कर्म आठ का ठाठ जलाऊ गुरु के पद नित सेऊ ॥ विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दूँ यति रक्षा हित आये । यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमार मुनये अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व० ॥७॥ पूजा सेवा दान और स्वाध्याय विमल फल लाऊ । मोक्ष विमल फल मिले इसी से विनत गुरू पद ध्याऊ ।। विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दूं यति रक्षा हित आयें। यह वात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये । ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनये मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्ब० 11८11 यह उत्तम वसु द्रव्य संजोये हर्षित भक्ति बढ़ाऊ । मैं अनर्धपद को पाऊं गुरुपद पर बलि बलि विष्णुकुमार मुनीश्वर वन्दुं यति रक्षा हित यह बात्सल्य हृदय में मेरे अभिनव ज्योति जगाये ॥ ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनये अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घं निर्ब० ॥६॥ श्रावण शुक्ला पूर्णिमा, यति रक्षा दिन जान । रक्षक विष्णु मुनीश की, यह गुणमाल महान । पछड़ी छन्द जय योगिराज श्रीविष्णु धीर, आकर तुम हर दी साधु-पीर । हस्तिनापुर में आये तुरन्त कर दिया बिपतका शीघ्र अन्त ।। वे ऋद्धि सिद्धि-साधक महान्, वे वयावान वे ज्ञानवान । घर लिया स्वयं वामन सरूप, चल दिये विप्र बनकर अनूप ॥ पहुंचे बलि नृप के राजद्वार, वे तेज-पुञ्ज धर्मावतार । आशीष दिया आनन्दरूप, हो गया मुक्ति सुन शब्द भूप ॥ बोला वर मांगो विप्रराज, दूंगा मनवांछित द्रव्य आज । पग तोन भूमि याची दयाल, बस इतना ही तुम दो नृपाल । नृप हँसा समझ उनको अजान, बोला यह क्या, लो और दान । इससे कुछ इच्छा नहीं शेष, बोले वे ये ही दो नरेश ॥ संकल्प किया दे भूमिवान, ली वह मन में अति मोद मान । प्रगटाई अपनी ऋद्धि सिद्धि हो गई देह की विपुल वृद्धि । दो पग में नापा जग समस्त हो गया भूप बलि अस्त-व्यस्त । इक पग को दो अब भूमिदान, बोले बलि से करुणा-निधान ।। नत मस्तक बलि ने कहा अन्य, है भूमि न मुझ पर हे अनन्य । रख लें पन मुझ पर एक नाथ, मेरी हो जाये पूर्ण बात । कहकर तथास्तु पग दिया आप, सह सका न बलि वह भार-ताप । बोला तुरन्त हो कर विलाप, करदें अब मुझको क्षमा आप ।। मैं हूँ दोषी मैं हूँ अजान, मैंने अपराध किया महान् । ये दुखित किये सब साधु-सन्त, अब करो क्षमा हे दयावन्त ।। तब को मुनिवर ने दया दृष्टि, हो उठी गगन से महावृष्टि । पा गये दग्ध वे साधु-त्राण, जन-जन के पुलकित हुए प्राण ॥ घर घर में छाया मोद-हास, उत्सब मे पाया नव प्रकाश । पोड़ित मुनियों का पूर्णमान, रख मधुर दिया आहार दान । युग युग तक इसको रहे याद, कर सूत्र बंधाया साह्लाद । बन गया पर्व पावन महान, रक्षाबन्धन सुन्दर निधान ।। ॥ वे विष्णु मुनीश्वर परम सन्त, उनकी गुणगरिमाका न अन्त । वे करें शक्ति मुझको प्रदान, 'कुमरेश' प्राप्त हो आत्मज्ञान ।। श्री मुनि विज्ञानी आतम-ध्यानी । मुक्ति-निशानी सुख-दानी । भव-ताप विनाशे सुगुण प्रकाशे । उनकी करुणा कल्यानी ॥ * ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमुनये महार्घं निर्वपामीति स्वाहा । विष्णुकुमार मुनीशको, जो पूजे धर प्रोत । वह पावे 'कुमरेश' शिव, और जगत में जीत ॥ इत्याशीर्वादः श्री रविव्रत पूजा यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन कही । भव्यजन सर्व, सुमन देके सही । पूजो पार्श्व जिनेन्द्र, त्रियोग लगायके । मिटं सकल सन्ताप, मिले निधि मतिसागर इक सेठ, सुग्रन्थन में उनने भी यह पूजा कर आनन्द तातें रविव्रत सार, सो भविजन कीजिये । सुख सम्पति संतान, अतुल निधि लीजिये । प्रणमों पार्श्व जिनेश को, हाथ जोड़ सिर नाय । परभव सुख के कारने, पूजा करूं बनाय ।। रवीवार व्रत के दिना, येही पूजन ठान । ता फल सम्पति को लहैं, निश्चय लीजे मान ॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । उज्जल जल भरके अतिलायो, रतन कटोरन माहीं । धार देत अति हर्ष बढ़ावत, जन्म जरा मिट जाहीं ॥ पारसनाथ जिनेश्वर पूजो, रचिव्रत के दिन भाई । सुख सम्पत्ति बहु होय तुरतही, आनन्द मंगल बाई ॥१॥ * ही श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् ॥१॥ मलयागिर केशर अतिसुन्दर, कुंकुम रङ्ग बनाई । धार देत जिन चरनन आगे, भव आताप नशाई ॥ पारस ० ॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दन ।।२।। मोतीसम अति उज्ज्वल तंदुल, लावो नीर पखारो । अक्षयपद के हेतु भावसों, श्री जिनवर ढिग धारो ॥ पारस ० ॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् ।।३।। बेला अरु मचकुंद चमेली, पारिजात के ल्यायो । चुनचुन श्रीजिन अग्र चढ़ाऊ, मनवांछित फल पावो ।। पारस ० ।। ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वसनाय पुष्पम् ।।४।। बावर फैनी गुजिया आदिक, घृत में लेत पकाई । कंचन थार मनोहर भरके, चरनन देत चढ़ाई ।। पारस० ।। ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् ॥५॥ मणिमय दीप रतनमय लेकर, जगमग जोति जगाई । जिनके आगे आरति करके, मोहतिमिर नश जाई ।। पारस० ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् ।।६।। चूरन कर मलयागिर चंदन, धूप दशांग बनाई। तट पावक में खेय भाव सों, कर्मनाश हो जाई ।। पारस०॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् ॥७॥ श्रीफल आदि बदाम सुपारी, भांति भांति के लावो । श्रीजिन चरन चढ़ाय हरषकर, ताते शिव फल पावो ।। पारस ० ।। ॐ ह्रीं श्रोपार्श्वनाथजनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् ॥८॥
696a465098502e9333b5d0c7e407f07271b7fcf7
web
- Travel आखिर क्यों कोई नहीं कर पाया कैलाश पर्वत की चढ़ाई? क्या है इसका वैज्ञानिक कारण? बुध ग्रह आकार में भले ही सबसे छोटा ग्रह है, मगर गति के लिहाज से यह चंद्रमा के बाद दूसरा सबसे तेज ग्रह है। यह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह को संचार, बुद्धि और सजगता का कारक माना जाता है। आमतौर पर बैंकिंग, मीडिया, शिक्षा और रचनात्मक क्षेत्र इस ग्रह से जुड़े हुए हैं। बुध ग्रह 16 मार्च 2023 को भारतीय समयानुसार 6 बजकर 13 मिनट पर मीन राशि में प्रवेश कर जाएंगे। आइए जानते हैं कि बुध के मीन राशि में प्रवेश से सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा और चुनौतियों से पार पाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। आपके लिए ये समय कुछ कठिन रहेगा हालांकि आप चिंता और तनाव से निपटने में कामयाब रहेंगे। कई सारी मुश्किलें आपके रास्ते में आ सकती हैं लेकिन आप स्वयं पर विश्वास रखकर इससे पार पा लेंगे। आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। अच्छी सेहत के लिए खुद पर नियंत्रण रखने तथा ध्यान और योग करने की सलाह दी जाती है। जो लोग सर्विस सेक्टर में हैं उनके लिए समय अच्छा रहेगा। परिवार के सदस्यों के साथ आपके संबंध खराब रहेंगे और एक-दूसरे के लिए आपसी सम्मान की कमी हो सकती है, इसलिए बोलने से पहले अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करें। उपाय- भगवान गणेश की पूजा करना लाभकारी रहेगा, उन्हें दूर्वा अर्पित कर सकते हैं। इस दौरान आपकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी इसलिए बचत करना बहुत जरूरी है। इस अवधि में निवेश का विचरर अच्छा नहीं है। पैसे लगाने से बचें। अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करें अन्यथा आप मुश्किल में पड़ सकते हैं। अपने सामाजिक दायरे में ठीक से संवाद करें। छात्र इस अवधि में अच्छा प्रदर्शन करेंगे। जो लोग अविवाहित हैं उनके जीवनसाथी की तलाश पूरी हो सकती है। जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उन्हें अच्छी खबर मिल सकती है। उपाय- आप अपनी जेब में अथवा बटुए में हरे रंग का रूमाल रखें। काम को लेकर अपना बर्ताव ठीक रखें। इस अवधि में आपके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। आप बेहद उदास महसूस कर सकते हैं। आप अपने काम के प्रति काफी प्रयासरत रहेंगे। आपको वांछित परिणाम भी प्राप्त होने की उम्मीद है। आप इस अवधि में अपने परिवार का पूरा समर्थन प्राप्त करेंगे। आपको अपने इस समय का आनंद लेना चाहिए। उपाय- आप घर और दफ्तर में बुध यंत्र की स्थापना कर सकते हैं। इस दौरान भाग्य आपके पक्ष में रहेगा। यात्रा का योग बन सकता है। आप इस दौरान तीर्थ यात्रा या लंबी दूरी की यात्रा पर जा सकते हैं। आपके पिता को कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उनका विशेष ख्याल रखें। इस अवधि में आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा। आप अपने सपनों को पूरा करने का काम करेंगे। उपाय- आप अपने पिता को कोई हरी वस्तु भेंट कर सकते हैं। पैसों की बात करें तो बीते समय में आपने जो भी किया उसका उचित परिणाम आपको नहीं मिल पाया है। इस गोचर के दौरान किसी भी वित्तीय जोखिम से बचना ही आपके लिए बेहतर होगा। किसी भी तरह के आर्थिक लेन-देन से बचें। व्यापारियों को किसी भी डील के दौरान सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है। आप गले से संबंधित किसी समस्या से पीड़ित हो सकते हैं। आपके ससुराल वालों के साथ कुछ गलतफहमी हो सकती है। इस तरह की स्थिति को धैर्य के साथ हैंडल करें। उपाय - आपको किन्नरों का सम्मान करने की आवश्यकता है। संभव हो तो उन्हें हरे रंग के कपड़े दान करें। कन्या राशि के जातकों के लिए ये समय ठीक नहीं रहेगा। आपके जीवन में उतार-चढ़ाव की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। वैवाहिक रिश्ते में अनबन पैदा हो सकती है। किसी भी तरह का निवेश करने से बचें, नुकसान की आशंका ज्यादा है। व्यवसायियों के लिए भी समय अनुकूल नहीं है। आपको इस अवधि में धैर्य से काम लेना होगा तभी अपनी बुद्धिमता से चीजों का हल निकाल पाएंगे। उपाय- आप 5-6 कैरेट का पन्ना धारण कर सकते हैं। इसे चांदी या सोने की अंगूठी में जड़वाकर बुधवार के दिन धारण करने से लाभ होगा। आपको कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है इसलिए बेहतर होगा कि आप नियमित चेकअप कराएं। आपके बातचीत करने के तरीके की वजह से आपके दुश्मन बढ़ सकते हैं। पैसों की बात करें तो जरूरत से ज्यादा खर्च न करें, नहीं तो आप गहरे संकट में पड़ सकते हैं। क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से बचें। अपना मनोबल ऊंचा रखें। इस दौरान आप कुछ ज्यादा ही यात्राएं कर सकते हैं। यदि आप इस दौरान कड़ी मेहनत करते हैं तो आपको मनचाहा परिणाम मिलेगा। उपाय- आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिला सकते हैं। इस दौरान आप निवेश कर सकते हैं और परिणाम आपके पक्ष में रहेंगे। आपको एकाग्रता की कमी का सामना करना पड़ सकता है। जीवनसाथी के साथ संबंधों की बात करें तो अनबन की संभावना नजर आ रही है। नौकरी को लेकर आप थोड़ा असुरक्षित महसूस कर सकते हैं, लेकिन आप अपने आत्मविश्वास से इस स्थिति को संभाल सकते हैं। आप अपने जीवन में कुछ प्रभावशाली संपर्क जोड़ने में कामयाब रहेंगे जो आपके भविष्य में काम आएंगे। उपाय- ज़रूरतमंद बच्चों और विद्यार्थियों को किताबें दान करना फ़ायदेमंद साबित होगा। आपके घर का माहौल अशांत रहेगा। इस दौरान घर पर कुछ इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स खराब हो सकते हैं। आपको अपने निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन बनाने की जरूरत है। आपकी माता जी को स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानी हो सकती है, उनका ख़ास ख्याल रखें। आपको समय की अहमियत समझनी होगी। आप कड़ी मेहनत करेंगे और मनचाहा परिणाम प्राप्त करेंगे। करियर की बात करें तो वर्तमान में चीजें भले ही थोड़ी अनिश्चित महसूस हो रही हों लेकिन स्थिति जल्द ही सही हो जाएगी। उपाय- प्रतिदिन तेल का दीपक जलाएं और तुलसी के पौधे की पूजा करें। आप बहुत अच्छी तरह से संवाद करते हैं और इस कारण आप अधिकांश परिस्थितियों को संभालने में सक्षम रहते हैं। पारिवारिक जीवन की बात करें तो भाई बहनों के साथ आपके संबंध थोड़े तनावपूर्ण रह सकते हैं। आपको सलाह दी जाती है कि अपने शब्दों का चयन सोच समझ कर करें। अक्सर झगड़े और गलतफहमी हो सकती है। आपको अपने गैजेट्स की ठीक से देखभाल करने की आवश्यकता है ताकि कोई नुकसान न हो। आप जो भी काम करेंगे उसमें आपको अपने पिता का आशीर्वाद प्राप्त होगा। उपाय- इस दौरान आप अपने छोटे भाई या कज़िन को कोई उपहार दे सकते हैं। आपके संवाद से गलतफ़हमी की स्थिति पैदा हो सकती है। इस अवधि में निवेश से बचें अन्यथा आपका पैसा डूब सकता है। आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं रहेगी। अपने सेहत के प्रति लापरवाही न बरतें। छात्र स्वयं में आत्मविश्वास की कमी महसूस कर सकते हैं। ससुराल पक्ष का सहयोग आपको मिलेगा। उपाय- आप प्रतिदिन तुलसी के पौधे को जल दें और प्रतिदिन 1 तुलसी का पत्ता खा सकते हैं। व्यवसायियों के लिए यह गोचर बहुत अच्छा रहेगा। हालांकि साझेदारी वाले व्यापार में उन्हें थोड़ा संभल कर रहना होगा। यदि वे सावधान नहीं रहेंगे तो इसका उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आपको अपने निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन बनाने की जरूरत है, नहीं तो आपके सभी रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जो लोग अविवाहित हैं उन्हें विवाह के कई प्रस्ताव मिलेंगे और इस अवधि में वो अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम होंगे। आपके जीवनसाथी के साथ कुछ अनबन होगी इसलिए बेहतर होगा कि मुद्दों पर चर्चा करें और उनका निपटारा करें। उपाय- आप प्रतिदिन बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करें। नोटः यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
5d4a3eb5ae475ac25d87360581d79e64299b4668
web
एक्सपर्ट्स के अनुसार बरसात में कुछ खास तरह की ही सब्जियां खानी चाहिए। क्योकि, ज्यादातर सब्जियों के सेवन से बीमारियां और इंफेक्शन बढ़ सकता है। Maida foods at home: मैदे से बनी चीजें सेहत को लगातार अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचा रही होती हैं और इसलिए इनका सेवन बंद कर देना चाहिए। जानें घर पर मौजूद प्योर मैदे से बनी चीजें, जिनका सेवन तुरंत बंद कर देना चाहिए। foods not to eat at morning : आइए आपको बताते हैं ऐसी चीजों के बारे में, जिनका सेवन आपको सुबह उठने के बाद भूलकर भी नहीं करना चाहिए। हाई कोलेस्ट्रॉल एक ऐसी स्थिति है, जो हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्याओं की वजह बन सकती है। दूध पीना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इसमें ढेर सारे जरूरी पोषक तत्व पाएं जाते हैं। गाउट यानि गठिया आपके खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने पर होती है, जिसके पीछे वजह है आपका खान-पान। आप जो खाते हैं वो आपके शरीर पर दिखता है, ठीक यही हाल कुछ आपके बालों के साथ भी है। शरीर में ऐसे कई सारे न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जिनकी कमी हमारे लिए घातक हो सकती है। शराब पीने के शौकीन अक्सर चखने में अलग-अलग तरीके की चीजें खाना पसंद करते हैं लेकिन कुछ चीजें अनहेल्दी होती हैं। Foods to avoid in Blood sugar : आइए आपको बताते हैं गर्मी के दिनों में ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ाने वाले ऐसे फूड्स के बारे में, जिन्हें आपको नहीं खाना चाहिए। मसल्स बनाने के लिए आप क्या करते हैं? जिम, एक्सरसाइज लेकिन कुछ फूड्स इन्हें बूढ़ा यानि कमजोर बनाने का काम करते हैं। Unhealthy foods in Kitchen : जाने-अनजाने में आप कुछ ऐसी चीजों का इस्तेमाल करने लगते हैं, जो आपको बीमार बनाने का काम करती हैं। ये चीजें आपकी रसोई में मौजूद हैं। Foods to avoid in summer for kids: देखा गया है कि कई बार हम बदलते मौसम में छोटे बच्चों की डाइट में जरूरी बदलाव नहीं करते हैं और इस कारण से बच्चों के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। एक्सपर्ट से जानें ऐसे फूड्स के बारे में जिनका रात में सेवन आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। Worst Foods for Kidney : अगर आप चाहते हैं कि आपकी किडनी खराब न हो तो आपको कुछ ऐसे फूड्स से दूरी बनाने की जरूरत है, जो आपके गुर्दों को नुकसान न पहुंचाएं। यूरिक एसिड की परेशानी से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने खान-पान की आदतों को बदलिए क्योंकि ये आपके शरीर में परेशानी पैदा करते हैं। जानिए 5 फूड्स। foods not to eat at morning : आइए आपको बताते हैं ऐसी चीजों के बारे में, जिनका सेवन आपको सुबह उठने के बाद भूलकर भी नहीं करना चाहिए। Unhealthy foods in Kitchen : जाने-अनजाने में आप कुछ ऐसी चीजों का इस्तेमाल करने लगते हैं, जो आपको बीमार बनाने का काम करती हैं। ये चीजें आपकी रसोई में मौजूद हैं। Foods to avoid in summer for kids: देखा गया है कि कई बार हम बदलते मौसम में छोटे बच्चों की डाइट में जरूरी बदलाव नहीं करते हैं और इस कारण से बच्चों के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। यूरिक एसिड की परेशानी से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने खान-पान की आदतों को बदलिए क्योंकि ये आपके शरीर में परेशानी पैदा करते हैं। जानिए 5 फूड्स। Worst food for Heart : अमेरिका के NYU Langone में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. हार्मोनी रेनॉल्ड्स का कहना है कि आपको अपने दिल को हेल्दी रखने के लिए कुछ फूड्स से बिल्कुल दूरी बना लेनी चाहिए। शरीर सुचारू रूप से चले इसकी जिम्मेदारी किडनी की होती है. किडनी को स्वस्थ्य रहने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. लेकिन हम जाने अनजाने में ऐसी चीजों का सेवन कर लेते हैं, जो किडनी को दिन पर दिन बीमार कर रही हैं. foods to avoid In Monsoon : मानसून के मौसम में अक्सर लोगों के जहन में ये सवाल उठता है कि किन फूड्स का सेवन किया जाए और किन फूड्स से दूरी बनाई जाए। जानिए इस सवाल का जवाब। यहां पढ़ें ऐसे फूड्स के बारे में जिनका सेवन गर्मियों के मौसम में करने से आपको नुकसान पहुंच सकता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके गुर्दे सुरक्षित रहें तो आपको अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने की जरूरत है। आइए जानते हैं कैसे आप अपने गुर्दों को सेफ रख सकते हैं। Stress relieving foods in Hindi: यदि आपको तनाव रहता है, तो आप तुरंत फील गुड करने के लिए डाइट में उन चीजों को शामिल करें, जो स्ट्रेस बस्टर का काम करते हैं। जानें, ऐसे ही कुछ एंटी-स्ट्रेस फूड्स के बारे में यहां, जो स्ट्रेस को कम करने में मदद कर सकते हैं। अगर आप भी अपने रोजाना के जीवन में बेचैनी और घबराहट जैसी परेशानी का सामना कर रहे हैं तो ये लेख आपके लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। जानें क्या न करें। foods to avoid for immunity in hindi : गर्मी के दिनों में इम्यूनिटी को बढ़ाने के चक्कर में कुछ चीजें स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। आइए जानते हैं ऐसी कुछ चीजों के बारे में, जो आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा हाई हो जाने पर आपको इन फूड्स का सेवन तुरंत बंद कर देना चाहिए क्योंकि इन फूड के लगातार सेवन से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। सोरायसिस को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस समस्या को आप काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही टिप्स बताने जा रहे हैं, जिससे आप अपनी स्किन की अच्छी तरह देखभाल कर (Psoriasis Problem Increases in Winter ) सकते हैं। इस बीमारी के लक्षण के रूप में चेहरे पर तितली जैसे लाल रंग के रेशेज हो जाते हैं, जबकि इसके प्रभाव बहुत ही कष्टकर हैं। चेहरे पर दिखने वाले ल्यूपस के बटरफ्लाई रेशेज धूप में ज्यादा उभर आते हैं। Maida foods at home: मैदे से बनी चीजें सेहत को लगातार अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचा रही होती हैं और इसलिए इनका सेवन बंद कर देना चाहिए। जानें घर पर मौजूद प्योर मैदे से बनी चीजें, जिनका सेवन तुरंत बंद कर देना चाहिए। Foods to avoid in Blood sugar : आइए आपको बताते हैं गर्मी के दिनों में ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ाने वाले ऐसे फूड्स के बारे में, जिन्हें आपको नहीं खाना चाहिए। एक्सपर्ट से जानें ऐसे फूड्स के बारे में जिनका रात में सेवन आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। Worst Foods for Kidney : अगर आप चाहते हैं कि आपकी किडनी खराब न हो तो आपको कुछ ऐसे फूड्स से दूरी बनाने की जरूरत है, जो आपके गुर्दों को नुकसान न पहुंचाएं। foods to avoid for Healthy brain : आइए आपको बताते हैं कुछ ऐसे फूड्स के बारे में, जो आपके दिमागी स्वास्थ्य को बिगाड़ने का काम करते हैं और आपके लिए चीजों को याद रख पाना मुश्किल हो जाता है। Aging foods : कुछ चीजों का सेवन आपको बहुत तेजी से बूढ़ा बनाने का काम करता है। आइए आपको बताते हैं कि किन चीजों का सेवन किस उम्र के बाद आपको बूढ़ा बनाने का काम करता है। आप अपनी डेली डाइट से ऐसी चीजों को बाहर कर दें, जो इस परेशानी की सबसे बड़ी वजह होती हैं। आइए आपको बताते हैं ऐसे 5 तरह के फूड्स के बारे में, जो पाइल्स (foods to avoid in piles) की वजह बन सकते हैं। High sugar foods to avoid : डायबिटीज मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल और हार्ट डिजीज जैसे बीमारियों का कारण बन सकती है। इसलिए आपको ऐसे फूड्स से दूर रहने की जरूरत है, जो आपके ब्लड शुगर लेवल को तुरंत बढ़ाने का काम करती है। foods to avoid in diabetes : टाइप -1 डायबिटीज की तो ये एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जिसमें हमारा पैंक्रियाज इंसुलिन का उत्पादन करने में असमर्थ होता है। वहीं टाइप-2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंस का काम करता है। Vegetables to avoid in kidney stone : आप जो सब्जियां खाते हैं, उनसे भी आपको पथरी हो सकती है। आइए आपको बताते हैं ऐसी सब्जियों के बारे में, जिनका सेवन आपको गुर्दे की पथरी का शिकार बना सकती हैं। Cheap Foods to lower blood sugar: आइए जानते हैं ऐसे 5 सस्ते फूड्स के बारे में जो आपको अपना ब्लड शुगर कंट्रोल रखने में मदद कर सकते हैं। अगर आप भी हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हैं तो नमक के अलावा आपको इन 5 चीजों के सेवन से भी दूरी बनानी चाहिए। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये चीजें। इस लेख में हम आपको पोषण विशेषज्ञ लवनीत बत्रा के सुझाए कुछ ऐसे फूड्स के बारे में बता रहे हैं जिन्हें अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाने से आपको चिंता और तनाव को नेचुरली प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है। सर्दियों में जहां लोग पारम्परिक तरीके से तैयार कई हेल्दी चीज़ों का सेवन करते हैं। लेकिन, यही हेल्दी चीज़ें हाई ब्लड शुगर (Diet Tips for Diabetics) वाले मरीज़ों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। यहां पढ़ें कुछ ऐसे ही हेल्दी फूड्स के बारे में जो डायबिटीज में नहीं खाना चाहिए। (Healthy Winter foods to avoid in Diabetes) अगर आप माइग्रेन की बीमारी से ग्रस्त हैं तो सबसे पहले आप रेड वाइन और बियर के सेवन से एकदम परहेज करें। कई तरह के भोजन माइग्रेन से संबंधित सिरदर्द को और ज्यादा खतरनाक बना देते हैं। बिगड़ी हुई और थकान भरी जीवनशैली के चलते लोग अपने खान-पान पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसकी वजह से वो कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं वहीं थाइराइड आज के समय में होने वाली सबसे आम बीमारी से एक है। ऐसे में इस वीडियो में हम आपको बताएंगे की थाइराइड को कंट्रोल करने के लिए अपको कौन-सी चीजों से दूरी कर लेनी चाहिए। नमक- हाई ब्लड प्रेशर वाले को नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए। इसके साथ ही प्रिजर्व करने वाले फूड्स में नमक अधिक मात्रा में मिलाया जाता है इसलिए ऐसे खाने का सेवन भी कम करें। ब्रेड के सेवन से बचें। ब्रेड मैदा से बनती है और मैदा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। वहीं मैदा के सेवन से आपका वज़न बढ़ता है और शुगर को भी बढ़ता है, इन्ही कारणों से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगती है। डिनर में पौष्टिक खाने का सेवन करना चाहिए जिससे आपका वजन भी सही रहता है और लाइफस्टाइल भी सुधार आता है. आज हम लेकर आए है यह विडियो जिसमे हम आपको बताएंगे की सोने से पहले आपको किन खानों को अवॉइड करना चाहिए . एक्सपर्ट्स के अनुसार बरसात में कुछ खास तरह की ही सब्जियां खानी चाहिए। क्योकि, ज्यादातर सब्जियों के सेवन से बीमारियां और इंफेक्शन बढ़ सकता है। हाई कोलेस्ट्रॉल एक ऐसी स्थिति है, जो हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्याओं की वजह बन सकती है। दूध पीना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इसमें ढेर सारे जरूरी पोषक तत्व पाएं जाते हैं। गाउट यानि गठिया आपके खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने पर होती है, जिसके पीछे वजह है आपका खान-पान। आप जो खाते हैं वो आपके शरीर पर दिखता है, ठीक यही हाल कुछ आपके बालों के साथ भी है। शरीर में ऐसे कई सारे न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जिनकी कमी हमारे लिए घातक हो सकती है। शराब पीने के शौकीन अक्सर चखने में अलग-अलग तरीके की चीजें खाना पसंद करते हैं लेकिन कुछ चीजें अनहेल्दी होती हैं। मसल्स बनाने के लिए आप क्या करते हैं? जिम, एक्सरसाइज लेकिन कुछ फूड्स इन्हें बूढ़ा यानि कमजोर बनाने का काम करते हैं। सर्दी में चिलचिलाती ठंड और ऊपर से हवा आपको बीमार बनाने का काम करती है और इस दौरान आपको कई सारी समस्याएं हो सकती हैं।
6f5f6e65f0478749311897dcef36339aef48db31d6a54f6ef23b6d633a71f3c3
pdf
आराध्य आत्मा - - इस ग्रन्तरतत्वको प्रात्मा भी कहा है । यह तस्तत्व है, जो निरन्तर चले, निरन्तर जाने उसे कहते है आत्मा । निरन्तर चले, अपनी पर्यायोको प्राप्त करता रहे, इन अर्थो वाला प्रात्मा तो सभी पदार्थ है । कितने प्रात्मा है जगतमे ? ? उनकी ६ जातियाँ है - जीव, पुद्गल, धर्म, धर्म, आकाश और काल । ये सब प्रात्मा है, क्योकि ये निरन्तर चलते रहते है अपनी यात्रामे । अतति सततं गच्छति, अन्वरतरूपसे निरन्तर जो अपनी गुण पर्यायोमे चलता रहे उसको कहते है आत्मा । उसकी बात यहाँ नही कह रहे है किन्तु गमनार्थक धातुयें जितनी है उनका ज्ञान अर्थ भी होता है । तब ज्ञानार्थकमे इस धातुको ले लीजिए । जो निरन्तर जानता रहे उसे आत्मा कहते है । तो इसमे निरन्तर जाननेका स्वभाव पड़ा हुआ है । और जितने ज्ञान होते हैं उन सब ज्ञानोमे रहकर भी किसी एक ज्ञानरूप ही स्वभाववाला नही बनता है, किन्तु जो सहज ज्ञानस्वभाव है ऐसा यह आत्मा अन्तस्तत्व कहलाता है । लोग बडे प्यासेमाको बोलते हैं, जैसे यह बच्चा तो मेरा आत्मा है। परिवारमे कोई बडा ही प्यारा बालक गुजर गया तो उसको लोग कहते कि वह तो मेरा आत्मा था । देखिये - - कितना प्रियताका रूप दिखाते हैं - मेरा आत्मा । अरे इस समूचे आत्मामे भी देखो मेरा आत्मा क्या ? यहाँ पर भी आत्मा के दो रूप रख लीजिए (१) बाह्यरूप (२) तस्तत्व। इस मेरे आत्मा, और अनेक प्रकारके परिगमन कर रहे इस आत्मामे मेरा आत्मा तो यह सहजज्ञानस्वभाव है और सब नही है । जिसको आध्यात्मिक महर्षियोने स्पष्टरूपसे बताया है कि सयम स्थान आदि तक भी ये सब मैं नही हू । है वह सब आत्माका विस्तार पर इस समूचे प्रात्मामे तो मेरा श्रात्मा यह ज्ञानभावमात्र है उस आत्माकी बात कह रहे है । तो सर्व पदार्थोंसे हट कर और आत्मामे रहनेवाले इन सब साधनोसे हटकर जो एक शुद्ध ज्ञानमात्र है उसे आत्मारूपसे पुकारो । मेरा आत्मा तो यह है, मेरा प्रारण तो यह है, अन्य कुछ यह नहीं है, यह मेरी बरबादी है । तो इस आत्माकी दृष्टिके प्रसादसे यह जीव सदाके लिए संकटमुक्त हो जाता है । तो इन सबके परिचयमे हमारा निर्णय यह होना चाहिए कि बस मेरेको काम अन्त करने का एक ही पड़ा है। इस सहज अपने सत्वके कारण जो कुछ होता हो विना बनावटके, बिना सजावटके जो कुछ इसमे पडा हुआ हो बस वही दृष्टिमे रहे और उसके रूप ही परिगमन बने । देखिये - इसके दर्शनमे वे सब गाँठें, शल्य, गुत्थियाँ सब खुल जाती । और इसका मार्ग इतना स्पष्ट हो जाता है कि अन्त उसको फिर अप्रसन्नता नही आ पाती । लोग तो अप्रसन्नता बाह्य परिरणमनोमे ही हिसाब लगाकर करते है, लेकिन यह तत्वज्ञानी जीव तो अपनेमे ही हिसाब बनाता है, इस कारण यह कभी प्रसन्न नहीं होता । परिणामिक भाव और परमपारियामिक भाव - जो परमार्थतया मंगल है, लोको१०८ त्तम है, शरणभूत है उस तस्तत्त्वकी पहिचान बिना जीव निरन्तर दुखी रहता है, ऐसे अज्ञानी जीवको सन्तोषका कोई आधारभूत ही नहीं होता । समझते तो है ये भौतिक पदार्थोके प्रति कि मेरे सन्तोषका यह आधार है लेकिन वह सन्तोषका आधार हो ही नहीं सक्ता । जो मेरे लिए ध्रुव रूप हो वह मेरा आधार, शरण, लोकोत्तम और मगल हो सकता है, ऐसे उस तस्तत्वके सम्बधमे इस परिच्छेद मे वर्णन किया जायगा और उसकी विशेषतायें कही जायेगो । उससे पहिले उस अन्तस्तत्व के कुछ नाम बताये जा रहे हैं। इसका एक नाम है पारिणामिक भाव । परिणामका अर्थ है स्वभाव । स्वभाव ही जिसका प्रयोजन है अर्थात् स्वभावको ही स्वभावके लिए दृष्टिमे रखकर जो भाव विदित होता है उसे कहते हैं पारिणामिक भाव । यह पारिणामिक भाव यद्यपि समस्त पदार्थोमे रहता है, कोई चेतन से ही सम्बंध रखनेवाली मात्र बात नही है, फिर भी चूकमका प्रकरण है एव पारिग़ामिक भावसे अर्थ उस ज्ञायकस्वभाव, चैतन्यस्वभावका ही ग्रहण करना चाहिए । यद्यपि आत्मा अनेक परिणामिक है - अस्तित्व, वस्तुत्व आदिक, केवल जीवत्व, भव्यत्व और प्रभव्यत्व ये तीन ही नहीं है, अनन्त हैं, विन्तु वे सव एक इस जीवत्वभावमे ही अन्तर्भावी हो जाते है और इन तीनोमे भी विशुद्धतया तो एक जीवत्व भाव है, उस पारिरणामिक भावकी बात बतायेंगे कि वह बधा कि नही वधा है ? आदि अनेक प्रश्नोमे उसकी चर्चा की जायगी । इसको ही वहते है पारिणामिक भाव । जब इसकी उत्कृष्टतापर और विशेषदृष्टि गयी अथवा जगत के अन्य समस्त पदार्थोसे विशेषतया जब यह निहारा गया तो यही भाव कहलाता है परमपारिणामिक भाव । जो स्वभावभाव है वह शाश्वत है, अनाद्यनत रहता है अन्त प्रकाशमान है। शुद्ध अवस्थामे इसकी व्यक्ति भी स्वभावके अनुरूप ही हुई है और जहाँ व्यक्ति स्वभावके अनुरूप नहीं है वहाँ भी यह स्वभाव पडा है, ऐसे सहज शाश्वत निज भावको परमपारिणामिक भाव कहते है । अखण्डात्मा - इस अन्तस्तत्वका नामः खण्डमा भी है। यह स्वय अपना आत्मा अनेक अर्थ होते है - प्रात्माका स्वरूप अर्थ है । आत्मा इस तरह भी अर्थ है जैसे स्वय सहज जिसका नाम लेकर चर्चा करे और श्रात्म शब्द जोडे तो उससे उसका हो अर्थ होगा, और आत्माका अर्थ चेतन पदार्थ भी है, और इस चेतन पदार्थमे जो है, सारभूत है, जैसे लकडीमे जो भीतर ठोस कुछ हिस्सा रहता है उसे कहते हैं लकडोका सार, लकडीका आत्मा । बाकी तो सब फोकस है । तो लकडीका आत्मा जैसे उसके अन्त प्रविष्ट है यो ही इस आत्मामे भी देखो -- यह आत्मा अखण्ड है, इसका खण्ड नही है । खण्ड तो व्यवहारदृष्टिसे प्रयोजनके लिए किया गया है समझने के लिए । जीव दो प्रकारके हैं - रासारी और मुक्त । ससारी जीव - - त्रस, स्थावर जैसे दो प्रकारके हैं । उनमे भी भेद प्रभेद करना यह सब प्रयोजनके लिए है । लोग कैसे समझे कि इस इस प्रकारके जीव होते है और ऐसे इन पदार्थोमे रहा करते है । इनमे भी वही चैतन्यस्वरूप है जो मुझमे है, इनकी हिसा न करें, बल्कि इनके उस स्वभावकी भावना बनायें आदिक जो कार्यकारी कर्तव्य हैं उनको समझने के लिए भेदपूर्वक समझना होता है । तो जीवके भेद द्वैत तो व्यवहारसे किए गए हैं । वस्तुत यह तो अपने आपमे अखण्ड है । प्रत्येक अद्वैत, विशिष्ट अद्वैत, प्रत्येक आत्मा अपने खण्ड है। कही सब मिलकर एक हो जाये यह बात नहीं होती । बात हो जायगी। अरे प्रत्येक जीव अखण्ड है, जो है सो है । उसके खण्ड होते है प्रयोजनवश । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे पदार्थकी परख हुआ करती है । लोकमे भी परख करनेका यही उपाय है और परमार्थ तत्त्वमे भी परखका यही उपाय है, और उस परखके लिए द्रव्यसे जब भेद किया, परख किया तो गुरगरूप है । पर्यायरूप है, यह भेद निकला। क्षेत्रसे जब परख की तो इसमे असंख्यात प्रदेश है, यह विदित हुआ । कालसे परख की तो यह कषायवान है, अप्रमत्त है, प्रमत्त है, यो गुरणस्थान भेद समझ मे आये और भावसे परख की तो उसमे अनन्त गुरग नजर आ रहे है । इसमे ज्ञान है, दर्शन है, श्रद्धा है, चारित्र है तो परखके लिए यह भेद बना करता है । वस्तुतः आत्मामे खण्ड नही है और आत्मा ही क्या, जो भी सत् होता है प्रत्येक पदार्थ अखण्ड ही होता है। ऐसा यह मैं प्रखण्ड आत्मा नहीं समझा गया था, इस कारण जगतमे अब तक रुलता आया । उस अखण्ड आत्मरूपको मै जानू, वैसे जानते सभी लोग है अपनेको, कोई किसी रूपमे परखता है कोई किसी रूपमे, लेकिन इस मोही जीवने अपने आपको उस अखण्ड रूपमे नही निरखा और नाना रूपोमे अपनेको माना तब उनके आधारसे अनेक विकलतायें इसे सहनी पडी । आराध्य ज्ञायकभाव - इस ग्रन्तस्तत्त्वका नाम ज्ञायकभाव भी है । ज्ञायकका अर्थ जाननहार है । शब्दश तो जाननहार अर्थ होनेसे एक ज्ञानको ही इसने ग्रहण किया, लेकिन ऐसे भेद बुद्धि से परखे हुए धात्वर्थको न लेना अन्यथा तब कोई किसी पदार्थ का सही नाम ले न सकेगा और इसी कारण पदार्थ प्रवक्तव्य बताया गया है। जो कोई कुछ कहेगा पदार्थ के सम्बन्धमे वह अपूर्ण कह सकेगा । पूर्ण पदार्थको बतानेवाला कोई नाम ही नही है। तो ज्ञायकभावका अर्थ लेना है, सहज ज्ञानस्वभावमय वह परिपूर्ण आत्मा । वह ज्ञानमात्र है ज्ञायकभाव है । ज्ञायकभाव शब्द इस स्वभावपर ले जाता है कि वह सर्वत्र ज्ञानघन है। कही भी प्रदेशमे अन्तर न आयगा कि चलो सारा ज्ञानघन है तो बीचका प्रदेश या अगल बगलके कहीका भी एक प्रदेश वह ज्ञायकतासे शून्य हो, सो नही है, वह तो पूर्ण अखण्ड है, सर्वत्र ज्ञानरसमे मग्न है, ऐसे ज्ञायकभाव शब्दसे उसे पूर्ण ज्ञानमात्र जाने । जिस से प्रतिक्षण ज्ञान निकल रहे है उन अनन्तोके निकलने पर भी वह ज्ञायकभाव परिपूर्ण का त्यो बना हुआ है । यद्यपि जिस समय जो ज्ञान प्रकट हुआ है वह वहाँ उस पर्यायमे पूरा ही है, श्रवरा कभी परिगमन होता नही है । कभी किसीके कैसा ही ज्ञानपरिगमन हो तो वह भी ज्ञानघनका पूरा परिगमन है । मिथ्यादृष्टि जीवनपरिगमन चल रहा है लेकिन वह ज्ञानस्वभावका एक देश परिगमन नही, किन्तु उस ज्ञानगुरणका पूरा ही परिगमन है । उस रूरूप है, वे परिस्थितयां ऐसी है । तो इस ज्ञायकस्वभावसे प्रतिक्षण परिपूर्ण परिणमन निकलता है और पूराका पूरा बहनेपर भी पूराका पूरा ही रह जाता है । वहाँ कही पूर्णपना नहीं आता । ऐसा ज्ञानमग्न ज्ञायकस्वभावरूप यह अन्तस्तत्व है । ध्रुव श्रात्मा - इस अन्तस्तत्वका नाम ध्रुवात्मा भी है, यह ध्रुव, सदाकाल रहने वाला है । कोई उसकी सुध ले रहा हो तब भी है, न ले रहा हो तब भी है, निगोद जीवो की क्या अवस्था है ? लेकिन वहाँ यह ध्रुव आत्मा सतत प्रकाशमान है, और जहाँ स्वभाव पूर्ण व्यक्त हो गया है ऐसी शुद्ध अवस्थामे भी यह ध्रुव आत्मा सतत् प्रकाशमान है । इसकी यह तो है रीति, परन्तु व्यवहारमे कितना अन्तर पड गया ? सदा है, समीप है, खुद है, निरन्तर है, लेकिन सुध न लेनेसे यह पूरा गरीव बना हुआ है । जगतमे अमीर केवल समयदृष्टि ही कहा जा सकता है, जिसके अमीरीका अनुभव है । अमीरी उसे कहते है कि जिसमे ऐसी दृष्टि हो, साधन हो कि वह कह उठे कि हमे अब कुछ न चाहिए । मेरे पास सब कुछ है । श्रमीर नाम लोकमे भी उसे कहते है कि जिसके प्रति लोगोकी यह धारणा बन जाय कि इसके पास तो सब कुछ है । चाहे वह अमीर ऐसा कुछ नही मान रहा है कि मेरे पास सब कुछ है लेकिन अमीरका लक्षण तो यही बनेगा कि जिसको यह अनुभव हो कि सब कुछ है, अब बुछ नही चाहिये। दूसरे लोग समझ रहे है कि इसके पास तो सब कुछ है, क्या कमी है, तो वह लौकिक अमीरी है। परमार्थकी मीरी तो विलक्षण ही है । ऐसी अमीरी तो तत्वज्ञानी जीवके ही हो सकती है उसके पास तो सब कुछ है । सब कुछ का क्या लक्षरण है ? सब कुछ कितना कहलाता है कि जिससे माना जाय कि इसके पास सब कुछ है ? इसका नाम अमीर है। बतलाओ सब कुछ कितने को कहते हैं ? कितने धन वालोको अमीर कहते है ? इसकी कुछ सीमा तो बताओ क्या करोडपति अमीर है ? अरे । करोडपति, अरबपति खरबपति आदि ये कोई अमीर नही हैं । अमीर तो वही है जो अपने को ऐसा माने कि मेरे पास तो सब कुछ है । अगर कोई बहुत कुछ पासमे होते हुए भी माने कि मेरे पास कुछ नही है तो वह काहेका श्रमीर ? तो मेरे पास सब कुछ है, ऐसा कहनेमे उस सब कुछका क्या अर्थ है ? सो सुनो - जिसे अब कुछ न चाहिए वस यह स्वरूप हे सब युद्धका । जो अपने पास बहुत कुछ होने पर भी माने कि मेरे पास कुछ नहीं है उसे सब कुछ नहीं कहा जा सकता । तो ज्ञानी पुरपने अपने आपमे उम ध्रुव श्रात्माका दर्शन किया है, जो ज्ञानानन्दस्वभावमय है तो उसे ऐसी दृष्टि हुई है कि मेरे पास सब कुछ है तो इसकी निगाहमें यह जीव भरापूरा है, अमीर है । जैसे किसी पुरुषके घर में लाख रुपये गडे है, पर उसे गडे धन का भी पता नही है, तो वह तो गरीवीका ही अनुभव करता है, तो देखिये - एक दृष्टिसे वह है तो भरापूरा, पर पता न होने से वह प्रवरा है, गरीब है, कष्टमे है, भटकता है, डोलता है । ऐसे ही अपने पास अपनेमे यह ध्रुव श्रात्मद्रव्य ज्ञानानन्दसे परिपूर्ण है, यह श्रानन्दमय प्रात्मा है, पर इसका पता ही नहीं है तो वह तो गरीब है, डोलता है, तृष्णा करता है, भटकता है, दुखी होता है । ज्यो ही उसे पता पडा कि श्रोह ! यह हू मैं, वह गया कही न था । था, पर दिख न रहा था । जैसे मुट्ठी मे कोई स्वर्णकी डली लिए हो औौर भूल जाय कि कहाँ रख दिया तो वह वाहरमे ढूंढता फिरता है और दुखी होता है, ज्यो ही उसने अपनी मुट्ठीमे देखा त्यो ही उसे देखकर वह तृप्त हो जाता है, लो यह यहाँ ही तो था, वह कहीं बाहर न था, पास वह थी, मगर उस थोर दृष्टि न थी । तो समझलो सबसे बड़ा राजा, गुरु, देव, सर्वस्व, शरण, ईश्वर आदि किन्ही भी शब्दोसे कह लो, जो मेरा पूर्ण अधिकारी है, स्वामी है वह तो यही पडा है, मुझमे ही पडा है लेकिन उसकी सुध न होनेसे वह दरिद्रता भोगता है । तो उस ध्रुव ग्रात्माके सम्बन्ध में प्रश्नपूर्वक समझा जायगा कि इसकी विशेषताये क्या है ? संयोग हुए, अचलात्मा - इस अंतस्तत्वका नाम अचल आत्मा भी है। बहुत हुए अर्थात् विविध भाव संयुक्त हुए, वहुत सी बातें वियुक्त हुईं, इस जीवमे कितनी बातें गुजरी, कितना यह दला गया, कितना ही इसका संघर्ष लदा, कितना श्राने जानेका ऊधम मचा ? कर्म, शरीर परमाणु इनमे जो यहाँ बन्ध हो रहा और ये रागादिक भाव, क्रोध, मान, माया, लोभादिक अनेक प्रकार के कषायभाव, विषय, इनमे होड लगी, क्षुव्व हुए, अति हल्ला मचाया, यो कितनी ही बातें हुईं, परिगमन हुआ, अग चले, विभाव हुए, च्युत हुए, इतना सब कुछ होने पर भी यह अंतस्तत्व अपने आपमे अचल ही बना रहा, इसका स्वभाव चलित नही हो सकता, नही तो परेशान होकर लोग अपने स्वभावकी बात छोड देते । जैमे बहुत ही सरलपरिणामी व्यक्ति है, वह अनुचित कार्य नहीं करता है, तो यहाँ दिखना है कि उसपर बडी परेशानियां आती हैं, छोटे वड़े सभी आफीसर लोग उसे हैरान करते है, और जब अन्य लोगोको देखते हैं कि वे तो वडे-बडे अनुचित कार्य करके दो चार साल मे ही धनिक वन जाते है, तो इस घटनाको देखकर वह तरलपरिणामी भी व्यक्ति अपनी ईमानदारीको छोड़ देता है । वह सोचने लगता है कि क्या रखा है ईमानदारी ? एन ईमानदारीमें तो कष्ट ही कष्ट भरे है··· । नाना पर्यायोमे अनादिकाल से अब तक अपनेको दिन गुजारा, संघर्षो मे गुजारा। इतने संघर्ष
04d7807658249d688ca03c0c93986ade155181e0
web
बुल्गारिया एक बहुत ही सुंदर धूप देश है इधर, एक अद्भुत वातावरण, सुंदर प्रकृति, अद्भुत दृश्यों के अलावा पूरे, बहुत गर्म मेहमाननवाज लोग, जो मुस्करा कर सभी आगंतुकों का स्वागत किया। यह मिश्रित पर्यटन के लिए एकदम सही हैः समुद्र तट और पर्यटन स्थलों का भ्रमण, पाक और कल्याण, साथ ही चरम। पूर्व के लिए, तो सब कुछ स्पष्ट है, क्योंकि बुल्गारिया का तट वास्तव में प्रशंसा से परे है। और के बाद वहाँ कई आधुनिक होटल और सेवा के आरामदायक स्तर बनाया गया था उच्चतम दर हासिल की है, बल्गेरियाई रिसॉर्ट्स कई प्रसिद्ध यूरोपीय रिसॉर्ट्स के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। वैसे, लगभग सभी होटलों जो यहाँ भी समाजवाद के तहत खोले गए थे, हाल ही में एक गहरी पुनर्निर्माण से गुजर चुके हैं वे आंतरिक और बाहरी अद्यतन किया गया है, और कुछ, उदाहरण के लिए, Park Hotel महाद्वीपीय 2 * नया आधुनिक इमारतों का निर्माण किया गया है। निर्देशित पर्यटन, भी बहुत प्रासंगिक हैं के बाद से बुल्गारिया, ऐतिहासिक स्थापत्य और प्राकृतिक आकर्षणों में समृद्ध है, लेकिन स्पा रिसॉर्ट, जो थर्मल स्नान के निकट स्थित हैं, वर्ष दौर के लिए तैयार पूरे यूरोप में से पर्यटकों को प्राप्त करने के लिए। वैसे, बुल्गारिया के ब्लैक सागर तट के कोमल समुद्र तटों के बच्चों के साथ मनोरंजन के लिए बहुत सुविधाजनक हैं। स्कूल की छुट्टियों के दौरान आप बच्चों को पूरे समूह है, जो खेल या समुद्र तट पर या एक विशेष रूप से सुसज्जित खेल के मैदान में पूरा कर सकते हैं। प्रत्येक होटल में मिनी पूल, प्लेरूम, मिनी क्लब और अन्य मनोरंजन शामिल हैं। देश के समुद्र तट को सशर्त रूप से विभाजित किया गया हैबहुत सारे रिसॉर्ट क्षेत्र हैं, लेकिन उनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं Albena, गोल्डन सैंड्स, सनी बीच। उनके लिए छुट्टी की कीमत लगभग हर जगह समान है अगर हम उनसे पश्चिमी यूरोपीय के साथ तुलना करते हैं, तो वे अधिक लोकतांत्रिक होते हैंः वे हमारे काले सागर तट पर समान हैं लेकिन बुनियादी ढांचे, चाहे कितना भी इसकी समीक्षा में "रेसेंस टूरिस्ट्स" की आलोचना की जा रही है, यह अधिक विकसित है। और बल्गेरियाई रिसॉर्ट्स का एक बड़ा हिस्सा यह है कि उन में होटल क्षेत्र निजी क्षेत्र और औद्योगिक उद्यमों से अलग है। प्रत्येक रिसॉर्ट्स एक विशाल होटल शहर जैसा दिखता है, जिसमें आपके पास एक अच्छा आराम की आवश्यकता हैः होटल, रेस्तरां, कैफे, कैबरे, दुकानें, नाइट क्लब, डिस्को, खेल के मैदान, मनोरंजन पार्क आदि। उनका क्षेत्र खूबसूरत है और स्वच्छ है। सब कुछ एक शांत और आरामदायक बाकी है। इसके अलावा लेख में, हम आपको सनी बीच के रिसोर्ट क्षेत्र से परिचित करना चाहते हैं, जो उपर्युक्त होटल पार्क होटल कॉन्टिनेंटल 2 * (बुल्गारिया / बर्गास) है। जिस समुद्र तट पर स्थित है, वह एक अर्धचंद्र रूप है और बच्चों के साथ आराम करने के लिए बहुत सुविधाजनक है। यह रिसोर्ट (40 किमी) के पास स्थित हैबर्गास का एक बड़ा बंदरगाह समुद्र तट की लंबाई लगभग 8 किलोमीटर है, और शानदार रेतीले समुद्र तटों की चौड़ाई 50 मीटर तक पहुंचती है। वे अपनी सफाई और अच्छी तरह से तैयार हैं, इसलिए उन्हें सालाना यूरोपीय संघ के नीले झंडे से सम्मानित किया जाता है। इस तट पर बड़ी लहरें अत्यंत दुर्लभ हैं। समुद्र पर मौसम ज्यादातर शांत होता है। सूरज साल में 300 से अधिक दिन चमकाता है। शायद ही कभी यह हवा है, हालांकि कभी-कभी समुद्र तटों पर यह एक काला झंडा दिखाना संभव होता है जो यह साबित करता है कि समुद्र पर तैरने के लिए इसे कड़ाई से मना किया जाता है। तैराकी का मौसम मध्य मई से लेकर मध्य अक्टूबर तक रहता है, जो कि 5 महीने तक है। वैसे, कोई थकाऊ गर्मी नहीं हैः गर्मी में भी हवा 27-28 डिग्री तक पहुंचती है, और रात भी गर्म होती है, और पानी का तापमान 26 डिग्री तक पहुंच जाता है यह युवा लोगों के हाथों में खेलता है, जो छुट्टियों और छुट्टियों के दौरान तट पर झुंडते हैं। बेशक, सबसे पहले, वे कमजोरी से आकर्षित होते हैं, और दूसरी, कई डिस्को, नाइट क्लब, विविध शो, आदि। जैसा कि आप जानते हैं, एक सुंदर हैछुट्टी। सनी बीच हमेशा बल्गेरियाई रिसॉर्ट्स का सबसे बड़ा रहा है और जारी रहा है। आज तक, इसमें 800 से अधिक होटल हैं। हर दिन नई इमारतों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें से कई बड़े होटल श्रृंखलाओं के स्वामित्व में हैं। यही कारण है कि न केवल राज्य के कर्मचारियों, बल्कि सम्मानित मनोरंजन के प्रेमी, हाल ही में "सनी बीच" में आराम करने के लिए खींच रहे हैं। आपके आने से पहले खरीदा गया गांव नक्शा, उदाहरण के लिए हवाई अड्डे पर, आपको कई होटल और रेस्तरां में नेविगेट करने में मदद करेगा। आखिरकार, सड़कों के अतिरिक्त, (मानचित्र) पर, सभी होटलों का स्थान भी संकेत दिया जाता है। यह विशेष रूप से रात में बहुत सुविधाजनक है, क्योंकि लगभग सभी संकेत नीयन प्रकाश के साथ चमकीले चमकते हैं और अतिरिक्त पॉइंटर्स बन सकते हैं। वैसे, अधिकांश होटल समुद्र तट रेखा के साथ स्थित हैं। बेशक, इस तरह के पार्क होटल महाद्वीपीय (बुल्गारिया) है, जो समुद्र तट से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है के रूप में जो लोग दूसरे या तीसरे पृष्ठ पर हैं, कर रहे हैं। हालांकि, इन होटलों के मेहमानों को पहली लाइन पर लेटे हुए होटलों के बीच सुविधाजनक पास का उपयोग करके समुद्र तट पर अपना रास्ता कम करने का अवसर मिला है। तो उपरोक्त होटल के मेहमानों को करो। वैसे, अगले अनुच्छेद में हम अपने डिवाइस की अधिक जानकारी में वर्णन करेंगे। इस होटल परिसर में तीन इमारतें हैंअलग-अलग श्रेणियोंः 2 सितारे, तीन सितारों और 3+ सितारों। वे एक आम पार्क, देवदार के जंगलों और एक गुलाब बगीचा, बच्चों और वयस्क स्विमिंग पूल, खेल के मैदानों और रेस्तरां से एकजुट हो रहे हैं। उनमें से ज्यादातर सरल, ज़ाहिर है, पार्क होटल महाद्वीपीय 2 * है। हाँ, आवास के लिए और कीमतों बहुत कम हैं। मरम्मत सोवियत काल में बनाया गया था, लेकिन यह थोड़ा 2003 में सुधार किया जाए जब पूरे परिसर पूरी तरह से मरम्मत आया है। हालांकि, होटल की स्थिति सरल यात्रियों ने, आवास पर बचाने के लिए के रूप में परिसर के भीतर अन्य सेवाओं तीनों इमारतों के लिए आम हैं चाहते हैं के साथ काफी संतुष्ट हैं। अधिक अनुकूल परिस्थितियों पार्क होटल महाद्वीपीय 3 * + में पाया जा सकता। बुल्गारिया, वैसे, इस तथ्य से होती है कि देश के तीन सितारा होटल में सेवा के स्तर काफी उच्च पश्चिमी यूरोप की तुलना में है। लेकिन 4-और 5 सितारा होटल, इसके विपरीत, उनमें से हीन उनकी सेवा में पर। पार्क होटल कॉन्टिनेंटल 2 * दक्षिणी भाग में स्थित हैसहारा। पास के शहर बर्गस के हवाई अड्डे से, आप यहां केवल आधे घंटे में कार (टैक्सी या बस द्वारा) प्राप्त कर सकते हैं। होटल से समुद्र तट तक दूरी 200 मीटर है। लेकिन हर बार जब आप अच्छी तरह से तैयार गली के साथ चल सकते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। इस दो सितारा मामले का इंटीरियर कुछ भी नहीं हैneprimechatelen। एक लंबा गलियारा, बहुत सारे लापरवाह दरवाजे और असबाबवाला फर्नीचर और एक टीवी के साथ एक लाउंज। वहां, फर्श व्यवस्थापक पर, आप क़ीमती सामान और मिनी फ्रिज को स्टोर करने के लिए एक सुरक्षित किराए पर ले सकते हैं। उनकी छुट्टियों में से कुछ छुट्टियों में लिखा है कि पार्क होटल कॉन्टिनेंटल 2 * की इमारत इसकी संरचना में एक अग्रणी शिविर जैसा दिखता है। कमरों में कुछ विशेष नहीं हैः बिस्तर, एक अतिरिक्त बिस्तर के रूप में एक क्लैमशेल, एक प्राथमिक सुसज्जित बाथरूम, प्लास्टिक कुर्सियों वाली एक छोटी बालकनी। यह सभी डिवाइस नंबर है। होटल में निर्धारित नियमों के अनुसार इस मामले में, लिनन बदल जाना चाहिए साप्ताहिक दौरा है, लेकिन पर्यटकों को जो यहाँ लंबे समय तक इस अवधि की तुलना में रह रहे हैं, यह कहा गया है कि कर्मचारियों को इस पर्चे के बारे में भूल गया था। कमरे की सफाई पर भी यही लागू होता है। यदि आप मांग नहीं करते हैं, तो कोई भी बाकी अवधि के दौरान कमरे में प्रवेश नहीं करेगा और इसे खाली नहीं करेगा। एक शब्द में, वे पर्यटक जो स्वच्छता के बारे में विनम्र हैं, यह बेहतर नहीं है कि यहां आएं। इस इमारत के विपरीत, अन्य दो में सब कुछ अधिक नागरिक है, और सेवा उच्चतम स्तर पर है। वे निश्चित रूप से अपने सितारों की संख्या के अनुरूप हैं। और इंटीरियर के साथ, और यहां कमरों की सेवा के साथ सब कुछ ठीक हैः इस तरह के होटल के पास होना चाहिए. सनी समुद्र तट, जैसा कि जाना जाता है, होटल के वर्गीकरण के मामले में सभी यूरोपीय मानदंडों का पालन करता है। जैसा कि पहले से ही उल्लेख किया गया है, सभी तीन कोर एकजुट हो जाते हैंकुल क्षेत्र। नतीजतन, अपनी यात्रा (2 *, 3 *, 3 * +), की परवाह किए बिना सभी कैम्पर सभी सेवाओं है कि होटल के परिसर के भीतर उपलब्ध हैं का उपयोग करने का अधिकार है। होटल के बुनियादी ढांचे में शामिल हैंः क्षेत्र में बाहरी गतिविधियों के प्रेमियों के लिएहोटल कॉम्प्लेक्स में स्पोर्ट्स ग्राउंड, टेनिस कोर्ट, बिलियर्ड्स, पिंग-पोंग, साइकिलें (किराए पर), डिस्को इत्यादि हैं। लेकिन विश्राम के प्रेमी मालिश और अन्य आराम प्रक्रियाओं का आनंद ले सकते हैं। नाश्ता, जो केंद्रीय में परोसा जाता हैहोटल के परिसर के रेस्तरां, कोई फर्क नहीं पड़ता जो इमारत में वे रह रहे थे सभी अतिथियों के लिए आम है। हालांकि, पर्यटकों दौरे के डिजाइन भोजन एचबी (आधा बोर्ड) या "सभी समावेशी" के प्रकार पर सहमत हो सकता है में अब भी कर रहे हैं। बाद के मामले में वे न केवल चरणों में होटल में खाने के लिए, लेकिन पूरे दिन सलाखों के सेवाओं का आनंद करने के लिए सक्षम हो जाएगा। इन पर्यटन मुख्य रूप से खरीदे जाते हैं आवास से मिलकर बनता है "3+"। कुछ समीक्षाएँ इस होटल और अल्प neraznoobraznoe में है कि भोजन में लिखा था। बहरहाल, यह सच नहीं है। शायद, तुर्की होटल के साथ तुलना में ऐसी कोई बहुतायत है, लेकिन स्थानीय शेफ महिमा के लिए काम कर रहे और मेहमानों के लिए तैयार करते हैं, केवल पौष्टिक नहीं, लेकिन यह भी दोनों स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों का एक बहुत ही विविध मेनू। इस होटल में अपना निजी समुद्र तट नहीं है,इसलिए पर्यटकों को पास के सार्वजनिक समुद्र तट का उपयोग करना पड़ता है। इसका प्रवेश मुक्त है, लेकिन सूची (सनबेड और छतरियों) को किराए पर लिया जाना चाहिए। समुद्र तट, जहां "महाद्वीपीय" के मेहमान आराम करना पसंद करते हैं, अपने क्षेत्र से 200-300 मीटर की दूरी पर स्थित है। वह काफी व्यापक और अच्छी तरह से तैयार है। पानी मोटरसाइकिल (स्कूटर), पैरासेलिंग, कटमरैन, वाटर स्कीइंग, विंडसर्फिंग, आदिः वहाँ एक समुद्र तट वालीबाल कोर्ट, बच्चों के स्लाइड और झूलों, कैफे और बार, बिलियर्ड्स, साथ ही पानी की गतिविधियों की एक विस्तृत विविधता है वैसे, 2003 से, वयस्कों और बच्चों दोनों के लिए बहुत सारे पानी के आकर्षण के साथ एक अद्भुत जल पार्क रिसॉर्ट "सनी बीच" में खोला गया है।
337fe30436e2200c308b42aa450e0777c277ea09
web
प्रिलिम्स के लियेः मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? हाल ही में खाड़ी क्षेत्र के दो देशों बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने इज़राइल के साथ 'अब्राहम एकॉर्ड' (Abraham Accord) पर हस्ताक्षर किये हैं। प्रमुख बिंदुः - 'अब्राहम एकॉर्ड (Abraham Accord) इज़राइल और अरब देशों के बीच पिछले 26 वर्षों में पहला शांति समझौता है। - गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 1994 में इज़राइल और जॉर्डन के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। - अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, यह समझौता पूरे अरब क्षेत्र में व्यापक शांति स्थापना के लिये एक नींव का काम करेगा, हालाँकि इस समझौते में इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में कोई बात नहीं की गई है। - ध्यातव्य है कि 13 अगस्त, 2020 को इज़राइल-यूएई शांति समझौते की घोषणा के बाद 11 सितंबर को बहरीन-इज़राइल समझौते की घोषणा की गई थी। - अमेरिकी राष्ट्रपति ने अन्य अरब देशों के भी इस समझौते में शामिल होने के संकेत दिये हैं। - इस समझौते के अनुसार, यूएई और बहरीन द्वारा इज़राइल में अपने दूतावास स्थापित करने के साथ पर्यटन, व्यापार, स्वास्थ्य और सुरक्षा सहित कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। - साथ ही इस समझौते के तहत इज़राइल ने वेस्ट बैंक की बस्तियों को इज़राइल में जोड़ने की अपनी योजना को 'स्थगित' कर दिया है। - इज़राइल के प्रधानमंत्री के अनुसार, तीनों देशों द्वारा कोरोनावायरस की महामारी से निपटने के लिये सहयोग प्रारंभ कर दिया गया है। - अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, इस समझौते के माध्यम से पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिये इज़राइल में ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करने और जेरूसलम में अल-अक्सा मस्जिद (इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल) में शांतिपूर्वक प्रार्थना करने का रास्ता साफ होगा। - इज़राइल के साथ अरब देशों की बढ़ती नज़दीकी का एक बड़ा कारण ईरान से इन देशों की शत्रुता को भी माना जा रहा है। - हाल के कुछ वर्षों में खाड़ी देशों और इज़राइल के बीच संबंधों में कुछ सुधार देखने को मिला था, ध्यातव्य है कि इसी माह सऊदी अरब ने यूएई और इज़राइल के बीच विमान सेवाओं को अपने वायु क्षेत्र से होकर जाने की अनुमति दी थी। - इज़राइल तथा अरब देशों के बीच इस समझौते के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रही है। अरब-इज़राइल विवादः - वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य से फिलिस्तीन को अपने कब्जे में लिया और 2 नवंबर, 1917 की बॅल्फोर घोषणा (Balfour Declaration) के तहत यहूदियों को इस स्थान पर एक 'राष्ट्रीय घर' (National Home) देने का वचन दिया। - नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र संकल्प-181 के तहत फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्य में विभाजित कर दिया गया तथा जेरूसलम को अंतराष्ट्रीय नियंत्रण में रखा गया। - इस विभाजन में पूर्वी जेरूसलम सहित वेस्ट बैंक का हिस्सा जॉर्डन के पास और गाजापट्टी का क्षेत्र मिस्र (Egypt) के पास चला गया, इसमें इज़राइल की सेना से बचते हुए लगभग 760,000 फिलिस्तीनी शरणार्थियों ने वेस्ट बैंक, गाजापट्टी तथा अन्य अरब देशों में जाकर शरण ली। - 14 मई, 1948 को इज़राइल की स्थापना हुई जिसके बाद लगभग 8 महीनों तक इज़राइल और अरब देशों में युद्ध चला। - वर्ष 1967 की प्रसिद्ध 'सिक्स डे वॉर' (Six-Day War) के दौरान इज़राइल ने जॉर्डन, सीरिया और मिस्र को परास्त कर पूर्वी यरुशलम, वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और गोलन हाइट्स (Golan Heights) पर कब्जा कर लिया। - वर्ष 1967 में अरब देशों ने खार्तूम बैठक में 'तीन नकारात्मक सिद्धांत (Three Nos)' का प्रस्ताव पेश किया जिसके अंतर्गत 'इज़राइल के साथ कोई शांति नहीं, इज़राइल के साथ कोई वार्ता नहीं और इज़राइल को किसी प्रकार की मान्यता नहीं' का प्रावधान किया गया। - हालाँकि इस सिद्धांत से हटते हुए वर्ष 1979 में मिस्र ने तथा जॉर्डन ने वर्ष 1994 में इज़राइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया था। - अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों को उम्मीद है कि इस समझौते के माध्यम से एक राजनेता के रूप में ट्रंप की छवि मज़बूत होगी। - गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अब लगभग दो माह से भी कम का समय बचा है और अब तक चुनाव प्रचार में कोरोनावायरस, नस्लभेद और अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे ही हावी रहें हैं, जबकि विदेशी नीति की कोई बड़ी भूमिका नहीं रही है। - विशेषज्ञों के अनुसार, यह समझौता अरब क्षेत्र में सक्रिय युद्धों को नहीं समाप्त करेगा परंतु यह दशकों से चल रही शत्रुता के बाद एक व्यापक अरब-इज़राइल मैत्री का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। - इज़राइल के प्रधानमंत्री ने इस समझौते को नई सुबह की शुरुआत बताया है, यह समझौता इज़राइली प्रधानमंत्री को देश की स्थानीय राजनीति में अपनी छवि मज़बूत करने में सहायता प्रदान कर सकता है। - यूएई के विदेश मंत्री ने इस समझौते को क्षेत्र की शांति के लिये महत्त्वपूर्ण बताया है, उनहोंने कहा कि यह समझौता राजनीतिक लाभ की भावना से परे है और शांति के अलावा और कोई भी विकल्प विनाश, गरीबी और मानव पीड़ा को ही बढ़ावा देगा। - यह समझौता यूएई को अपनी रूढ़िवादी छवि से बाहर आने में सहायता करेगा। - बहरीन के विदेशमंत्री ने इज़राइल और बहरीन के बीच हुए समझौते को 'वास्तविक और स्थायी सुरक्षा तथा समृद्धि की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया है। फिलिस्तीन की प्रतिक्रियाः - फिलिस्तीन ने इस समझौते का विरोध किया है, बहरीन द्वारा इस समझौते की घोषणा के बाद फिलिस्तीनी नेतृत्त्व ने इसे वापस लेने की मांग की थी। इस समझौते के बाद गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी कार्यकर्त्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। - एक सर्वेक्षण के अनुसार, 86% फिलिस्तीनी लोगों ने का मानना है कि यह समझौता इज़राइल के हितों को पूरा करता है फिलिस्तीन के नहीं। सऊदी अरब की भूमिका : - विशेषज्ञों के अनुसार, सऊदी अरब की सहमति के बगैर बहरीन इस समझौते के लिये आगे नहीं बढ़ सकता। - सऊदी अरब पर इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य करने का दबाव के बावज़ूद वह इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल का संरक्षक होने की वजह से वह अभी इस समझौते में शामिल नहीं हो सकता। - हालाँकि बहरीन को इज़राइल के साथ समझौते की अनुमति देकर सऊदी अरब अमेरिकी राष्ट्रपति से अपने अच्छे संबंधों को बनाए रख सकेगा। - गौरतलब है कि वर्ष 2011 में बहरीन में उठे जन-विद्रोह को नियंत्रित करने के लिये सऊदी अरब ने कुवैत और यूएई के साथ अपनी सेना भेजी थी। - इसके साथ ही वर्ष 2018 में सऊदी अरब ने बहरीन को 10 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई थी। भारत पर प्रभावः - हाल के वर्षों में भारत और खाड़ी के देशों के संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिला है, साथ ही इज़राइल के साथ भी रक्षा सहित कई अन्य क्षेत्रों में भारत ने बड़ी साझेदारी की है। - खाड़ी क्षेत्र के देश, ऊर्जा (खनिज तेल) और प्रवासी कामगारों के लिये रोज़गार की दृष्टि से भारत के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, इस समझौते से क्षेत्र में स्थिरता के प्रयासों को बल मिलेगा जो भारत के लिये एक सकारात्मक संकेत है। - इस समझौते से खाड़ी क्षेत्र के देशों में भारत की राजनीतिक पकड़ और अधिक मज़बूत होगी। - इस समझौते में फिलिस्तीन समस्या पर कोई बात नहीं की गई, जिससे भविष्य में फिलिस्तीन का संकट और भी बढ़ सकता है। - इस समझौते पर इज़राइल में व्यापक समर्थन देखने को मिला है परंतु इज़राइल में ऐसी चिंताएँ बनी हुई हैं कि इस समझौते के परिणामस्वरूप बहरीन और यूएई के लिये अमेरिका से परिष्कृत हथियारों की खरीद संभव हो सकती है, जो क्षेत्र में इज़राइल की सैन्य बढ़त को प्रभावित कर सकता है। - इस बात का भी अनुमान है कि बहरीन और यूएई में इस समझौते को इज़राइल की तरह व्यापक जन-समर्थन नहीं प्राप्त हुआ है, गौतलब है कि दोनों देशों ने इस समझौते के लिये अपने राज्य या सरकार के प्रमुखों को नहीं बल्कि विदेश मंत्रियों को भेजा था। - बहरीन के शिया बाहुल्य विपक्षी समूह ने इस समझौते का विरोध किया है, गौरतलब है कि बहरीन में शिया मुस्लिमों की आबादी अधिक है परंतु बहरीन के वर्तमान राजा एक सुन्नी मुसलमान हैं। - इस समझौते से अरब देशों के बीच शिया और सुन्नी का मतभेद और अधिक बढ़ सकता है। आगे की राहः - इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिये शिया और सुन्नी तथा फारसियों (Persian) एवं अरब के बीच संतुलन को बनाए रखना बहुत ही आवश्यक होगा। - हाल के वर्षों में अरब देशों में बड़े आर्थिक और राजनीतिक बदलाव देखने को मिले हैं, वर्तमान में क्षेत्र के अधिकाँश देशों ने खनिज तेल और इस्लामिक कट्टरपंथ से हटकर एक आधुनिक तथा प्रगतिशील देश के रूप में स्वयं को प्रकट करने का प्रयास किया है। - भारत को इस क्षेत्र के उभरते बाज़ार में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
c65ec6970ed1ce6bf845fb7bb1253a5a703e3b8f
web
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार 29 श्रम कानूनों को चार संहिता में तब्दील करने की महत्त्वाकांक्षी योजना पूरी करने में सफल रही है। श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने इंदिवजल धस्माना और सोमेश झा को एक साक्षात्कार में बताया कि श्रम संहिता के कारण लालफीताशाही खत्म होगी और बड़ी फैक्टरियां लगाने में मदद मिलेगी क्योंकि श्रम कानूनों की सख्ती को कम कर दिया गया है। बातचीत के संपादित अंशः नया कानून रोजगार सृजन को किस तरह बढ़ावा देगा? श्रम संहिता नियुक्ति पत्र जारी करने, सामाजिक सुरक्षा के दायरे का विस्तार करने और न्यूनतम मजदूरी के माध्यम से श्रमिकों के अधिकार को सुरक्षित रखने के प्रावधानों के जरिये रोजगार के औपचारिक स्वरूप को बढ़ावा देगा। असंगठित क्षेत्रों और रोजगार के नए प्रारूपों मसलन ठेका और प्लेटफॉर्म वर्कर पर कानून में विशेष रूप से जोर दिया गया है। श्रम कानूनों की सख्ती खत्म करने, अनुपालन की जरूरतों को कम करने के साथ-साथ समयसीमा के भीतर सेवाएं देना बड़े उद्योग लगाने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में होगा जो रोजगार सृजन में भी कारगर होगा। आईआर संहिता के प्रावधान नौकरी पर रखने या हटाने को बढ़ावा नहीं देते हैं बल्कि इसका इरादा श्रम कानून प्रशासन में लालफीताशाही को खत्म करना है। छंटनी या बंदी से पहले अनुमति लेने की प्रक्रिया से कोई मकसद पूरा नहीं होता है बल्कि इसके विपरीत बंद होने के कगार पर कंपनियों का नुकसान और देनदारियां ही बढ़ती हैं। प्रक्रियात्मक जटिलताओं की वजह से वित्तीय रूप से संकटग्रस्त प्रतिष्ठानों को बंद करने में देरी से कामगारों किसी भी तरह की मदद नहीं मिलेगी। हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी नियोक्ता अपनी मर्जी से अपने प्रतिष्ठान को बंद नहीं करना चाहता है। इसके अलावा कम से कम 100 की सीमा की वजह से कंपनियां अपने आकार का विस्तार करने में हिचकती हैं और कई दफा वे अपने भुगतान रजिस्टर पर कर्मचारियों का नाम तक शामिल नहीं करती हैं। इस कदम से श्रमिक आधारित उत्पादन को मिलेगा और बड़े उद्यम लगाने को भी बढ़ावा मिलेगा। हमने यह सुनिश्चित किया कि छंटनी वाले कर्मचारियों के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। लेकिन सरकार ने छंटनी के मुआवजे में बढ़ोतरी नहीं की। क्या इसकी कोई वजह है? औद्योगिक संबंध संहिता में छंटनी मुआवजे को बढ़ाने के लिए संबंधित सरकार को छूट दी गई है। इसलिए हमने इस विकल्प को संबंधित सरकार पर छोड़ दिया है कि वे सही समय पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। क्या हम नए कानून के तहत ज्यादा औद्योगिक सद्भाव वाली स्थिति देखेंगे? हमारी सरकार ने श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और औद्योगिक सद्भाव बनाए रखने में श्रमिक संगठनों को अधिक महत्त्व दिया है। हमने पहली बार कानूनी रूप से श्रमिक संगठनों की तीन स्तरीय मान्यता की अवधारणा को पेश किया है जैसे कि इकाई स्तर, राज्य स्तर और केंद्रीय स्तर। हमारा यह मानना है कि ये कदम श्रमिकों, कारोबारों के हितों की रक्षा करेंगे और औद्योगिक शांति एवं सद्भाव को भी बढ़ावा देंगे। इसके अलावा कानूनों में विवादों के शीघ्र और निश्चित समयावधि में समाधान सुनिश्चित करने के प्रावधान भी औद्योगिक शांति और सद्भाव में योगदान देंगे। कामगारों के हड़ताल पर जाने के अधिकार की रक्षा की गई है और उन्हें किसी भी तरह से दूर नहीं किया गया है। कामगारों की शिकायतों के समाधान के लिए या विवाद के मुद्दे को आपसी बातचीत या विचार-विमर्श के माध्यम से सुलझाने के लिए 14 दिनों की नोटिस अवधि इसी वजह से अनिवार्य की गई है। लेकिन श्रमिक संगठनों का कहना है कि हड़ताल का नोटिस देने पर ही सुलह की कोशिशें शुरू होती हैं लेकिन नए कानून में बातचीत के दौरान हड़ताल पर जाने की इजाजत नहीं दी गई है। क्या उनका यह आकलन सही नहीं है? पहली बात, हमें यह समझने की जरूरत है कि विवाद निपटान व्यवस्था का मकसद कामगारों के हित में ही इसे जल्द-से-जल्द संभव कर दिखाना है। इसका मकसद हड़ताल या तालाबंदी कर कारखाने में उत्पादन ठप करना नहीं है। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेलमिलाप की प्रक्रिया हड़ताल का नोटिस मिलने के साथ ही शुरू नहीं होती है बल्कि बातचीत के लिए हुई पहली बैठक से इसका आगाज होता है। दूसरी बात, हड़ताल का नोटिस मिलने के बाद होने वाली सुलह की प्रक्रिया 14 दिनों में पूरी करनी होगी। अगर बातचीत से मसला सुलझ नहीं पाता है और मेलमिलाप की कोशिश नाकाम हो जाती है तो फिर श्रमिक हड़ताल पर जा सकते हैं। इस तरह यह भय निराधार नहीं है कि मेलमिलाप या बातचीत की प्रक्रिया शुरू होने पर श्रमिक हड़ताल नहीं कर सकेंगे। अगर इस नोटिस के दौरान मसले का समाधान नहीं निकल पाता है तो श्रमिक हड़ताल करने के लिए स्वतंत्र हैं। नोटिस अवधि का यह प्रावधान नियोक्ताओं पर भी लागू होता है जब वे कारखाने को बंद करने जा रहे हों। ऐसा इसलिए कि कामगारों को नियोक्ता के फैसले से अचानक झटका न लगे। इस तरह 14 दिनों की यह नोटिस अवधि हड़ताल या तालाबंदी दोनों ही वजहों से अचानक काम ठप होने से राहत देकर श्रमिकों के हित में ही होगी। क्या ये श्रम कानून कार्यपालिका के जरिये किए गए बदलावों के जरिये राज्यों को अधिक शक्तियां देते हैं, जैसा कि संसद की स्थायी समिति ने कहा है? हम सभी जानते हैं कि भारत एक विशाल देश है जिसमें स्थानीय परिस्थितियों, कामगारों के जनांकिकीय स्वरूप एवं आर्थिक विकास के अलग स्तरों के आधार पर गहरी विविधता होती है। श्रम संबंधी मामला संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने से केंद्र एवं राज्यों दोनों को ही अपने अधिकार-क्षेत्र में कानूनी बदलाव करने के अधिकार मिले हुए हैं। यह संविधान में निहित संघवाद की भावना के अनुरूप ही है। हमारी मंशा श्रम कानूनों को लचीला एवं गतिशील बनाने की है ताकि पारिश्रमिक संबंधी सीमाएं एवं सुरक्षा मानदंडों को हालात के हिसाब से बदला जा सके। क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि श्रम कानूनों के दायरे में अधिक कारखानों एवं प्रतिष्ठानों को शामिल करना कहीं बेहतर होता क्योंकि श्रमिकों के कल्याण पर नजर रखना कहीं अधिक मुश्किल हो जाएगा? हमने कामगारों के लिए श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में समाविष्ट करने की कोशिश की है। पारिश्रमिक संहिता और औद्योगिक संबंध संहिता सभी तरह के प्रतिष्ठानों पर लागू होगी। हमने श्रमिक को न्यूनतम मजदूरी पाने एवं समय पर भुगतान का सार्वभौम अधिकार दिया है। इसी तरह पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता का दायरा भी बढ़ाया गया है। प्रवासी मजदूरों, सिनेमा कामगार एवं श्रमजीवी पत्रकार की परिभाषाओं में बदलाव कर इसका दायरा बढ़ाया गया है। इतना ही नहीं, इस संहिता के प्रावधान अब सभी तरह के प्रतिष्ठानों पर लागू होंगे, खास क्षेत्र के कारखानों एवं खदानों तक ही नहीं। जहां तक कारखाने का सवाल है तो हम एक श्रमिक वाले कारखाने पर भी इन प्रावधानों को लागू कर सकते हैं। संबंधित सरकार यह तय करेगी कि किसी स्थान पर विनिर्माण गतिविधियों में लगी इकाइयों पर कौन-कौन प्रावधान लागू होंगे? इसी तरह सामाजिक सुरक्षा संहिता में भी कई बदलाव किए गए हैं ताकि ईएसआईसी एवं ईपीएफओ का दायरा बढ़ाया जा सके और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी सामाजिक सुरक्षा मिल सके। लिहाजा विश्लेषण करें तो आपको पता चलेगा कि कामगारों को मजदूरी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए श्रम कानूनों का दायरा काफी बढ़ाया गया है।
1632c68c7a44837f82077834cf2e0448ffc6785c
web
संगठन और कर्मियों के रिकॉर्ड प्रबंधन के रखरखाव- कर्मियों ने सेवा कर्मचारियों की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी। परिस्थितियों में एक नया संगठन बनाने, पुराने, या अन्य पुनर्गठन विकल्पों में से परिवर्तन, और विभाग प्रबंधन कर्मचारियों के काम का मुख्य बिंदु जानने की जरूरतः प्रशिक्षण और कर्मियों खोज, स्वागत, अनुवाद, बर्खास्तगी कर्मियों की है, साथ ही संग्रह और दस्तावेजों के ऑनलाइन भंडारण के लिए नियम। किसी भी संगठन में, फ़ॉर्म की परवाह किए बिनासंपत्ति, वहाँ एक कर्मचारी है कार्य और योग्यता के मामले में यह संख्या और रचना में भिन्न है। मानव संसाधन विभाग का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उद्यम के कर्मचारियों से संबंधित सभी मुद्दों और समस्याओं को जल्दी और सक्षम रूप से संभवतः हल किया जाए। संगठन का स्थिर संचालन इस पर निर्भर करता हैइसके कर्मचारियों कर्मियों की सेवा का पहला कार्य कर्मचारी की सक्षम और समय पर चयन, कानून के अनुसार कर्मियों के रिकॉर्ड का रखरखाव और संग्रह को दस्तावेजों के समय पर वितरण के लिए है। यह किसी भी उद्यम के स्थिर संचालन का आधार है। कर्मचारी प्रबंधन पर निर्देश स्पष्ट रूप सेकर्मियों के विशेषज्ञों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता को इंगित करता है हालांकि, व्यवहार में, वांछित प्रोफ़ाइल के कर्मचारियों के प्रशिक्षण में अक्सर एक समस्या होती है। उच्च और माध्यमिक विशेष शैक्षिक संस्थान नहीं हैंवे ऐसे विशेषज्ञों का उत्पादन "कर्मियों के रिकॉर्ड प्रबंधन" जैसी संकीर्ण योग्यता के साथ करते हैं। प्रशिक्षण आमतौर पर जगह पर या प्रोफ़ाइल पाठ्यक्रमों पर होता है। सलाहकार द्वारा किसी कर्मचारी को सीधे कार्यस्थल पर प्रशिक्षित करना संभव है। एचआर प्रबंधन प्रशिक्षण विशेषज्ञ निम्नलिखित तरीकों से सुझाव देते हैंः कार्मिक विभाग और सामान्य संगठन की गतिविधियांकर्मियों के अभिलेख प्रबंधन बहुत ज्यादा वर्तमान कानून और आंतरिक नियामक दस्तावेजों पर निर्भर करता है। यह सुविधा निजी दस्तावेजों की एक बड़ी संख्या के साथ काम करने की बारीकियों से संबंधित है, जो अक्सर गोपनीय होती है। कार्मिक सेवा में कार्यालय का काम निम्न कृत्यों द्वारा नियंत्रित किया जाता हैः कर्मचारी सेवा के कर्मचारी मानक अधिनियमों के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने के लिए बाध्य हैं और सबसे ऊपर, श्रम संहिता। कर्मियों के रिकॉर्ड के रखरखाव कर्मियों के खोज और डिजाइन के साथ शुरू होता है। सबसे पहले, आपको नए कर्मचारियों को खोजने के लिए विकल्पों का निर्धारण करना होगा। उनमें से, निम्नलिखित हैंः कर्मचारी खोजने के लिए सभी विकल्प अपने स्वयं के गुण और दोष हैं, कर्मियों विभाग के कर्मचारी को रिक्ति को बंद करने के लिए सभी अवसरों का अधिक से अधिक होना चाहिए। जब कोई आवेदक मिल जाता है, तो यह आयोजित किया जाता हैसाक्षात्कार। यह वांछनीय है कि उनकी चाल का दस्तावेज हैः इसलिए भर्ती या इनकार करने के लिए एक मापा निर्णय करना आसान है। बाद के मामले में, किसी व्यक्ति को पांच कार्य दिवसों के भीतर कारण के लिखित रूप में सूचित किया जाता है। यदि आवेदक खाली स्थान के लिए उपयुक्त है, तो उसे श्रेय दिया जाना चाहिए। इस से किसी विशेष कर्मचारी के लिए कर्मियों के दस्तावेज का डिजाइन शुरू होता है। रोजगार के पंजीकरण के चरणोंः कार्मिक प्रबंधन के रखरखाव में शामिल हैलेखा रिकॉर्ड के अनिवार्य पंजीकरण, विशेष रूप से, स्टाफिंग और व्यक्तिगत कार्ड ये दस्तावेज़ स्वामित्व के सभी प्रकार के संगठनों के लिए अनिवार्य हैं। स्टाफिंग और संख्या प्रासंगिक होनी चाहिए और संगठन की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। इसमें सभी पदों के नाम शामिल हैं, इस अवधि के लिए रिक्तियों का संकेत करने वाले दांव की संख्या। व्यक्तिगत कार्ड एकीकृत दस्तावेज़ हैं,कर्मचारी की कार्यकलाप और व्यक्तिगत जानकारी के बारे में संक्षिप्त जानकारी शामिल है वे कठोर लेखांकन और विशेष भंडारण की स्थिति के अधीन हैं, उन जगहों पर जहां उनके विकृति और चोरी को रोकते हैं। अधिकांश आदेश और आदेशकर्मचारी के साथ विशिष्ट कार्य, एक एकीकृत रूप है वे सभी इच्छुक व्यक्तियों के साथ अनिवार्य समझौते के अधीन हैं और एक रसीद के साथ कर्मचारी के परिचित हैं। कर्मियों के आदेश की प्रतियां व्यक्तिगत फाइल में संग्रहीत की जाती हैं, और अलग फ़ोल्डरों में मूल हैं। दस्तावेजों के आंदोलन को रिकॉर्ड करने के लिए,कर्मियों की सेवा विशेष पत्रिकाओं के रखरखाव को मानती है ये बहु-पृष्ठ प्रारूप के सारणीबद्ध दस्तावेज़ हैं, जो अक्सर एकीकृत होते हैं। आम तौर पर वे बड़ी नोटबुक में या विशेष स्टोर में खरीदे जाते हैं। कर्मियों के पत्रिकाओं के प्रकारः सभी लॉग अनिवार्य रूप से सिले और सील किए जाने चाहिए, और शीट्स गिने। उन्हें सभी दस्तावेजों से अलग से स्टोर करें अधिमानतः एक सुरक्षित या विशेष कैबिनेट में। एक निजी मामला कर्मचारी के बारे में दस्तावेज की व्यक्तिगत जानकारी का संकलन है, जिसे एक निश्चित क्रम में एकत्र और गठित किया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार के दस्तावेज़ और प्रतियां शामिल हो सकती हैंः व्यक्तिगत मामलों में निजी शामिल हैंजानकारी, उन्हें अन्य दस्तावेजों से दूर रखा जाना चाहिए। उन तक पहुंच सीमित अधिकारियों की संख्या सीमित है। कर्मचारियों की बर्खास्तगी के साथ, व्यक्तिगत फ़ाइलों को अभिलेखीय भंडारण के लिए सौंप दिया जाता है। सभी संगठनों को कार्य पुस्तकें आयोजित करने के लिए बाध्य हैंइसके कर्मचारियों, अपवाद - कर्मचारियों, अंशकालिक लिया। प्राथमिक रिसेप्शन पर नियोक्ता स्वतंत्र रूप से शुद्ध रूप प्राप्त करता है और उनको पहला रिकॉर्ड बनाता है। शीर्षक पृष्ठ पर कर्मचारी के बारे में प्रासंगिक डेटा बनाते हैं। इसके बाद, उनकी प्रासंगिकता पर नजर रखने और समय पर परिवर्तन करने के लिए आवश्यक है। के बारे में रिकॉर्ड के मुख्य भाग को चालू करने के लिएकर्मचारी के श्रम और सामाजिक गतिविधियों, स्थायी अनुवादों का स्वागत, बर्खास्तगी। सभी प्रविष्टियां सामान्य क्रम में गिने जा चुकी हैं और ऑर्डर के आधार पर दर्ज की जाती हैं। बर्खास्तगी का रिकॉर्ड संगठन के मुहर और सिर के हस्ताक्षर की छाप के साथ है। कार्यपुस्तिका में रिकॉर्ड्स हाथ, नीले द्वारा बनाई गई हैंबॉलपेप पेन, स्पष्ट और समझदार लिखावट दर्ज किए गए डेटा की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता की निगरानी करें यदि आपको जानकारी को सही करने की आवश्यकता है, तो उन्हें ध्यान से एक पंक्ति और अपडेट की गई जानकारी के साथ पार कर लिया जाना चाहिए। इस कार्रवाई को सिर के हस्ताक्षर और सील द्वारा जरूरी पुष्टि की गई है। सुरक्षित रूप से अन्य दस्तावेजों से अलग से श्रम की पुस्तकें स्टोर करें जिम्मेदार निकायों के विशेष समाधान के बिना कर्मचारियों या तीसरे पक्ष के हाथों को उन्हें देने के लिए मना किया जाता है। कर्मियों के दस्तावेजों का संग्रहण उनके द्वारा निर्धारित किया जाता हैविशेष महत्व वे व्यक्तिगत जानकारी रखते हैं और गोपनीय हैं। ऐसा डेटा अनधिकृत प्रकटीकरण के अधीन नहीं है अन्यथा, कर्मियों के विभाग के कर्मियों और संगठन के प्रमुख पर जुर्माना लगाया जाता है। कर्मियों के उचित भंडारण को व्यवस्थित करने के लिएकर्मियों की सेवा में दस्तावेज यह एक अलग कमरे के लिए वांछनीय है इसका प्रवेश द्वार एक होना चाहिए और अलार्म के साथ एक धातु के दरवाजे से सुसज्जित होना चाहिए।
976737b26b24137bcbc8d2edc0390f1e6a7a49b1
web
महराजगंज : आश्रम पद्धति विद्यालय प्रवेश परीक्षा की तैयारी बैठक में डीएम का निर्देश- 'निष्पक्ष एवं पारदर्शी ढंग से कराएं परीक्षा' महराजगंज : समाज कल्याण जनजाति विकास विभाग द्वारा संचालित आश्रम पद्धति स्कूलों में कक्षा छह के प्रवेश के लिए परीक्षा 14 फरवरी को जिले के पांच विद्यालयों पर होगी। परीक्षा में 70 सीटों के लिए 334 परीक्षार्थी शामिल होंगे। पर्यवेक्षक एवं केन्द्र व्यवस्थापक परीक्षा की पूरी पारदर्शिता, शुचिता एवं निर्विघ्न रूप से सम्पादित करने का निर्देश डीएम सुनील कुमार श्रीवास्तव ने दिया। डीएम ने यह निर्देश कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित परीक्षा के तैयारी बैठक में दिया। खबर साभार : 'दैनिक जागरण' महराजगंज : सदर ब्लॉक के ग्राम प्रधानों ने गुरुवार को अध्यक्ष अजय धर दूबे के नेतृत्व में डीएम कार्यालय के समक्ष नारेबाजी, प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद पांच सूत्रीय मांगों का ज्ञापन डीएम को सौंपा। ब्लॉक अध्यक्ष ने कहा कि रोक लगे खातों का संचलन शुरू कराया जाए, एमडीएम कनवर्जन कास्ट एवं रसोइया मानदेय हर महीने खातों में भेजा जाए, एमडीएम खाते का संचालन ग्राम प्रधान एवं प्रधानाध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर से ही कराया जाए। ग्राम पंचायतों में विद्यालयों के प्रबंध समिति को समाप्त कर पूर्व की भांति शिक्षा समिति को बहाल किया जाए। खबर साभार : 'दैनिक जागरण' महराजगंज : बृजमनगंज ब्लॉक के जूनियर विद्यालय इलाहाबास में ब्लॉक स्तरीय खेल के लिए पिछले माह दो जनवरी को तैयारी के दौरान सातवीं का छात्र मोहम्मद एहसान का बायां पैर टूट गया था। अध्यापकों ने अभिभावकों को सूचना देकर उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बहदुरी बाजार भेज दिया था । वहाँ से जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया । जिला अस्पताल में शासन-प्रशासन का कोई भी अधिकारी-कर्मचारी उसे झांकने तक नहीं आया। बाद में उसे इलाज के लिए निजी अस्पताल ले जाया गया। जहाँ गरीब घर वाले खेत गिरवी रखकर चालीस हजार से अधिक खर्च कर इलाज की व्यवस्था कर रहे हैं। खबर साभार : 'हिन्दुस्तान' देवरिया : खेल न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, बल्कि बच्चों के अंदर नैतिक मूल्यों के विकास का प्रमुख माध्यम है । बच्चे खेलकूद के मैदान में आपसी समन्वय, सदभाव, अनुशासन एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना को अपने जीवन में उतारते हैं। यह बातें पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी ने कही। वह गुरुवार को स्व.रवींद्र किशोर शाही स्टेडियम में जनपदीय बेसिक शिक्षा क्रीड़ा प्रतियोगिता के समापन कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह अतिश्योक्ति नहीं होगा कि खेल के मैदान में न सिर्फ प्रतिभावान खिलाड़ी निखरकर बाहर आता है, बल्कि खेल के मैदान में देश का जिम्मेदार नागरिक निर्मित होता है। जिला बेसिक शिक्षाधिकारी मनोज कुमार मिश्र ने कहा कि इस दो दिवसीय प्रतियोगिता में प्रतिभागी बच्चों का प्रदर्शन सराहनीय है। इसके लिए संबंधित विद्यालय के शिक्षक, ब्लाक व्यायाम शिक्षक और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बच्चों को तराशने में जिसने भी अपना योगदान दिया है वह सभी लोग बधाई के पात्र हैं । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी पीके सिंह ने कहा कि ग्रामीण परिवेश के इन बच्चों की खेल प्रतिभा भविष्य के लिए शुभ संकेत है। इसके पूर्व मुख्य अतिथि का बीएसए ने बुके देकर स्वागत किया। तत्पश्चात छात्राओं ने सरस्वती वंदना, स्वागत गीत व रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति कर सबका मन मोह लिया। देवरिया : दो दिवसीय क्रीड़ा प्रतियोगिता में तहसील देवरिया सदर ओवल आल चैंपियन रहा। जबकि सलेमपुर उप विजेता रहा। प्राथमिक संवर्ग बालक वर्ग में बाल्मीकि रुद्रपुर तहसील, प्राथमिक बालिका वर्ग में शांति देवरिया, पूमावि संवर्ग बालक वर्ग में राहुल सलेमपुर, पूमावि संवर्ग बालिका वर्ग में प्रियंका यादव बरहज तहसील व्यक्तिगत चैंपियन रहे। प्रतियोगिता में सफल सभी प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि एसपी प्रभाकर चौधरी ने पुरस्कृत किया। सरकार की नीतियों के खिलाफ बीएसपी के सदस्यों ने नारेबाजी की। सूत्रों के मुताबिक 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल के लिए वेतन व पेंशन मद में फिलहाल 15% से ज्यादा की बढ़ोतरी बजट में की जा रही है। इसका मतलब सभी विभागों को अपने यहां इस मद में इतनी बढ़ोतरी करानी है। इससे सरकार के खजाने पर खासा बोझ पड़ना तय है। मुख्य सचिव आलोक रंजन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अंदाजा लगाया है कि इन नई सिफारिशों को लागू करने पर करीब 25 हजार करोड़ का खर्च अतिरिक्त करना पड़ेगा। सरकार के लिए मुश्किल यह भी है कि इसी साल के बजट में 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों में वेतन बढ़ोतरी में 10% का अनुमान लगाया था पर आयोग की ताजा सिफारिशें तो 23 प्रतिशत से ज्यादा तक बढ़ोतरी की हैं। चूंकि यूपी सरकार की वेतन आयोग की सिफारिशों के मामले में केंद्र सरकार के साथ प्रतिबद्धता है। इसलिए केंद्र सरकार जब इन सिफारिशों को अपने यहां लागू करने के लिए अधिसूचना जारी करेगी तब यूपी सरकार को भी एक-दो महीने में इसे लागू करना होगा। अब अगले वर्ष के शुरू में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार कर्मचारियों को खुश करने के लिए यह तोहफा जल्द देना चाहेगी। जितनी देर से यह तोहफा मिलेगा सरकार को उतना ही एरियर देना होगा। यह बढ़ोतरी इस साल जनवरी से ही लागू होनी है। इलाहाबाद । प्राथमिक विद्यालयों में 72825 शिक्षकों की भर्ती में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 12091 अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के लिए सचिव बेसिक शिक्षा परिषद कार्यालय पर चल रहा धरना प्रदर्शन बृहस्पतिवार को भी जारी रहा। अभ्यर्थियों का कहना है कि कोर्ट की ओर से तय गाइड लाइन के आधार पर समय सीमा बीत जाने केबाद भी उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई। नियुक्ति की मांग को लेकर अभ्यर्थियों ने बृहस्पतिवार से अनशन शुरू कर दिया। अभ्यर्थियों ने सचिव कार्यालय पर शुक्रवार को भी धरने का ऐलान किया है। इलाहाबाद । उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गणित-विज्ञान के 29334 पदों के सापेक्ष काउंसलिंग करवा चुके 82 अंक प्राप्त अभ्यर्थियों ने नियुक्ति पत्र की मांग को लेकर बृहस्पतिवार को सचिव बेसिक शिक्षा परिषद के कार्यालय पर धरना शुरू कर दिया। अभ्यर्थियों ने नियुक्ति पत्र की मांग को लेकर सचिव बेसिक शिक्षा परिषद कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन के बाद बृहस्पतिवार देर शाम को शहर की सड़क पर कैंडल मार्च निकालकर सरकार को जगाने का काम किया। नियुक्ति की मांग कर रहे अभ्यर्थियों का कहना था कि मांगे पूरी होने तक उनका धरना जारी रहेगा। अंबेडकरनगर : जिलाधिकारी विवेक ने परिषदीय स्कूलों के मंडलीय प्रतियोगिता का शुभारंभ करते हुए कहा कि छात्रों के सर्वांगीण विकास में आधार की भूमिका खेल प्रतियोगिताएं निभाती हैं। मन और मस्तिष्क के अलावा शरीर को स्वस्थ रखने में खेलों का अहम योगदान रहता है। इसके अलावा अनुशासन की गजब की सीख खेलों में मिलती है। वहीं विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए इसे कॅरियर के तौर पर निखारने का मौका मिलता है। जिलाधिकारी ने इसके लिए ग्रामीण स्तर पर छात्रों को विविध खेल विधाओं में जोड़ने की महती जरूरत पर बल दिया। जिला मुख्यालय के एकलव्य स्पोटर्स स्टेडियम पर आयोजित प्रतियोगिता में जिलाधिकारी ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए दीप प्रज्वलित किया। यहां उपस्थित बेसिक के सहायक शिक्षा निदेशक रामशंकर ने जिलाधिकारी को बुके देते हुए बैज अलंकरण कर स्वागत किया। इसी क्रम में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ. आरबी मौर्य ने एडी बेसिक रामशंकर तथा उर्दू के उप निरीक्षक शिवभूषण लाल श्रीवास्तव समेत फैजाबाद के बीएसए प्रदीप कुमार द्विवेदी, बाराबंकी के बीएसए प्रताप नारायण ¨सह, सुल्तानपुर के बीएसए रमेश यादव तथा अमेठी के बीएसए आनंद कुमार पांडेय का बैज अलंकरण करते हुए माल्यापर्ण कर स्वागत किया। प्रतियोगिता की कमान संभाल रहे खंड शिक्षा अधिकारी मुख्यालय चंद्रभूषण पांडेय तथा भीटी के खंड शिक्षा अधिकारी केपी ¨सह के साथ जनपद के खंड शिक्षा अधिकारी सुरेश कुमार, आरपी राम, अशोक गौतम, अरुण यादव, रामचंदर मौर्य, बड़कऊ वर्मा, शैलेंद्र त्रिपाठी से विभिन्न जिले से आए खंड शिक्षाधिकारियों का माल्यापर्ण कर स्वागत किया। यहां मोहम्मद हसन, सुधीर चतुर्वेदी, दिनेश नारायण ¨सह व रामपलट ¨सह के अलावा शिक्षक संगठनों के मंडलीय एवं जनपदीय पदाधिकारी भी उपस्थित रहे। मंडलीय प्रतियोगिता के आगाज से पहले उक्त जनपदों से प्रतिभाग को आए खिलाड़ियों ने मुख्य अतिथि को बैंडबाजे के साथ सलामी देते हुए जनपद का झंडा थाम मार्च पास्ट निकाला। प्राथमिक विद्यालय एनटीपीसी की छात्राओं ने स्वागतगीत में उपस्थित लोगों को प्रतियोगिता में पधारने के लिए आभार जताया। तदुपरांत नौनिहालों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति कर सभी का मन मोह लिया। वहीं प्रतियोगिता से पहले छात्रों ने मार्चपास्ट और पीटी में जमकर पसीना बहाया। इलाहाबाद : 72,825 शिक्षक भर्ती के तहत काउंसिलिंग करा चुके अभ्यर्थियों के शैक्षिक अभिलेखों की जांच शुरू हो गई है। तीन चार दिन के अंदर मेरिट सूची जारी की जाएगी। इसके बाद नियुक्ति पत्र बांटा जाएगा। सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय में अभिलेखों की जांच व मेरिट सूची बनाने के लिए आधा दर्जन से अधिक कर्मचारी लगाए गए हैं। मालूम हो कि 283 पदों के सापेक्ष सैकड़ों की संख्या में अभ्यर्थियों ने काउंसिलिंग कराई थी। बीएसए राजकुमार ने बताया कि जिन अभ्यर्थियों ने काउंसिलिंग करा ली है। उन्होंने अपने मूल अभिलेख नहीं जमा किए हैं। उनकी काउंसिलिंग पर विचार नहीं किया जाएगा। इलाहाबादः आदर्श शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन के बैनर तले शिक्षामित्रों ने एरियर व वेतन भुगतान समय से न होने के चलते वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय पर ताला जड़ दिया। पंद्रह फरवरी तक भुगतान का आश्वासन मिलने के बाद ताला खोल दिया। दरअसल, बेसिक शिक्षा परिषद सचिव संजय सिन्हा का निर्देश था कि दस फरवरी तक समायोजित शिक्षामित्रों का एरियर व वेतन का भुगतान उक्त तिथि कर लेखाधिकारी कर दें। बावजूद, लेखा विभाग ने द्वितीय बैच में समायोजित 1823 शिक्षामित्रों का वेतन व एरियर नहीं दिया। जबकि, विभागीय अधिकारी अभिलेखों को पूर्ण कराने की बात कर रहे हैं। गुरुवार को मंडलीय मंत्री शारदा शुक्ला के नेतृत्व में शिक्षामित्रों ने लेखाधिकारी कार्यालय पर ताला जड़ दिया। फोन पर लेखाधिकारी विमलेश यादव ने मंडलीय मंत्री को आश्वासन दिया कि पंद्रह फरवरी तक द्वितीय बैच के समायोजित शिक्षामित्रों के वेतन व एरियर का भुगतान करा दिया जाएगा। इसके बाद समायोजित शिक्षामित्रों ने कार्यालय का ताला खोल दिया। इस अवसर पर समायोजित शिक्षामित्र मनीष पांडेय, पीयूष गुप्ता, टीपू जायसवाल, अरुण सिंह, दीप माला पांडेय, शबीना अख्तर, पूर्णिमा जायसवाल, उषा केसरवानी, विनय पांडेय, राज कुमार मिश्र मौजूद रहे। महराजगंज : काउंसिलिंग के बाद डायट पहुंचे प्रशिक्षु शिक्षकों भर्ती प्रक्रिया के अभ्यर्थियों को जनपदीय चयन समिति ने बुधवार को नियुक्ति पत्र देने से इंकार कर दिया। इस पर अभ्यर्थियों ने डायट परिसर में बैठक कर सुप्रीम कोर्ट में आगामी 24 फरवरी को होने वाली सुनवाई में इस मुद्दे को रखने का निर्णय लिया। इससे पूर्व बुधवार को ही डायट पर काउंसिलिंग प्रक्रिया के दौरान 32 अभ्यर्थियों ने काउंसिलिंग कराई। इस दौरान डायट परिसर में काफी गहमा-गहमी रही। खबर साभार : 'दैनिक जागरण' तथा 'हिन्दुस्तान' महराजगंज : जिले की प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में बुधवार को बच्चों को दूध पिलाने की योजना धड़ाम हो गई है। प्रधानाध्यापकों का कहना है कि जब से दूध पिलाने की एक-दो घटनाएं हो गयी हैं तब से ग्वाला भी दूध देने से कतरा रहे हैं। उधर कुछ अन्य प्रधानाध्यापकों का कहना है कि जब अपने घर में चाय पीने को दूध नहीं मिलता तो बच्चों को कहां से पिलाया जाए, सरकार को दूध पिलाने की योजना बंद कर देनी चाहिए। खबर साभार : 'दैनिक जागरण' : 14 से 21 मार्च तक संचालित होने वाली परिषदीय विद्यालयों के कक्षा 5 व 8 की वार्षिक परीक्षाओं में बोर्ड व्यवस्था की झलक मिलेगी। इन दोनों कक्षाओं के विद्यार्थियों की कॉपियां उसी विद्यालय के शिक्षक नहीं जांच सकेंगे। नई व्यवस्था के तहत कक्षा 5 की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन न्याय पंचायत स्तर पर होगा जबकि कक्षा 8 की कॉपियां ब्लॉक स्तर पर जांची जाएंगीं। कक्षा 8 तक की सभी परीक्षाओं के लिए परिषद से प्राप्त आदर्श प्रश्न पत्रों की सीडी के आधार पर प्रश्न पत्रों का निर्माण होगा, जिन्हें सीलबंद पैकेटों में विद्यालयों में परीक्षा के दिन ही खोला जाएगा। इस वर्ष नए प्रावधान के अनुसार कक्षा एक के बच्चों की लिखित परीक्षा नहीं होगी, उनकी मौखिक परीक्षा ली जाएगी। वहीं कक्षा 5 की वार्षिक परीक्षाओं का मूल्यांकन न्याय पंचायत स्तर पर होगा। इस व्यवस्था में कक्षा 5 के छात्र की कॉपी उसी के विद्यालय के अध्यापक या हेड मास्टर नहीं जांच पाएंगे। इसी प्रकार कक्षा 8 के परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ब्लॉक स्तर पर होगा और इनको भी दूसरे विद्यालय के शिक्षक जांचेंगे। राज्य शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद लखनऊ से प्राप्त सीडी को प्रश्न पत्र निर्माण समिति (अध्यक्ष डायट प्राचार्य, सचिव बीएसए, वरिष्ठ एबीएसए सदस्य, जिला समन्वयक प्रशिक्षण सर्व शिक्षा अभियान सदस्य) द्वारा गोपनीय रूप से देखने के बाद उसमें आवश्यक संशोधन कर 20 फरवरी तक जनपद स्तर पर प्रश्न पत्रों का निर्माण होगा और 5 मार्च तक प्रश्न पत्रों का मुद्रण कर सीलबंद पैकेट में डायट प्राचार्य की संरक्षा में रखवा दिया जाएगा। परीक्षा प्रारंभ होने के तीन दिन पहले (10 मार्च तक) ये पैकेट सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को उपलब्ध कराए जाएंगे जिन्हें वे परीक्षा तिथि से दो दिन पूर्व (अथवा 12 मार्च तक) केंद्रीय विद्यालय (संकुल का विद्यालय) में पहुंचाएंगे। संकुल विद्यालय के प्रधान अध्यापक द्वारा परीक्षा तिथि को विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को उपलब्ध कराएंगे। प्राथमिक कक्षाओं के प्रश्नपत्रों की लागत दर 2.5 रुपये प्रति बच्चा और उच्च प्राथमिक की 5 रुपये प्रति बच्चा है। इसमें सी¨लग व पैके¨जग का भी व्यय शामिल है। मुद्रण कमेटी की देखरेख में गोपनीय तरीके से प्रश्न पत्रों की छपाई होगी। इस समिति के अध्यक्ष डायट प्राचार्य, सचिव बीएसए व सदस्य लेखाधिकारी होंगे। इसी प्रकार उत्तर पुस्तिकाओं के लिए प्राथमिक स्तर तक 7.50 रुपये प्रति बच्चा और जूनियर स्तर तक 15 रुपये प्रति बच्चा की दर से विद्यालय प्रबंधन कमेटी के खाते में धनराशि पहुंचा दी जाएगी।-डा. सर्वेश यादव, जिला समन्वयक, सर्व शिक्षा अभियान। फ्लाइंग एस्कॉर्ट करेगा निगरानीबोर्ड परीक्षाओं की तर्ज पर ब्लॉक में खंड शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व में उड़न दस्ता बनाए जाएंगे जो परीक्षा की निगरानी करेंगे और जिला स्तर पर भी फ्लाइंग एस्कॉर्ट बनाया जाएगा जो प्रश्न पत्रों के रख रखाव, नकल, परीक्षा व्यवस्था आदि की निगरानी करेगा। शासन की मंशा है कि इस नई व्यवस्था से अच्छे छात्र सामने निकल कर आएंगे और परीक्षा पारदर्शिता से संपन्न होगी।-जेपी राजपूत, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, इटावा।
4d6818cc2ce447597a6477307afe758fc057b8d66bba834c99c43cc0bb681ed9
pdf
पितृ शासन है और तीसरा पति द्वारा पत्नी का शासन है । यद्यपि गृहपति, पत्नी और सन्तान दोनों पर शासन करता है, तथा दोनों पर स्वतंत्र जनों के समान शासन करता है, तथापि दोनों पर शासन करने का प्रकार एक ही नहीं होता। पत्नी पर शासन करने का प्रकार वैध शासन' का प्रकार होता है तथा सन्तान पर शासन का प्रकार राजकीय शासन का प्रकार होता है । यदि प्रकृति के नियम में अपवाद न हो तो पुरुष स्त्री की अपेक्षा शासन के लिये अधिक उपयुक्त होता है तथा अधिक अवस्थावाला एवं पूर्ण विकसित कम अवस्थावाले तथा अविकसित की अपेक्षा अधिक योग्य होता है। अधिकांश ऐसे प्रसंगों में, जहाँ कि वैध-शासन चलता है, शासन करना और शासित होना पर्यायक्रम से हुआ करता है ; ( क्योंकि वैधशासन की भावना में ही यह बात सन्निहित होती है कि ) किसी भी राजनीतिक परिषद् के सदस्य प्रकृत्या एक बराबर होते हैं और उनमें कुछ भी अन्तर नहीं होता । परन्तु फिर भी, जब कोई एक व्यक्ति शासन करता होता है (अथवा नागरिकों की कोई एक परिषद् शासन करती होती है) तथा अन्य लोग शासित होते हुए होते हैं तब शासक ( अथवा शासकमंडल) बाह्याचार, संबोधन- पद्धति, सम्मानसूचक पदों में भेद की स्थापना करने की चेष्टा करता है, जैसा कि अपने पैरधोने की परात के विषय में अमासिस के कथन से स्पष्ट प्रकट है । पति का पत्नी के प्रति स्थायी रूप से वही संबंध होता है जो वैध-शासक का शासितों के प्रति ( अस्थायी रूप से ) होता है । पिता का सन्तान पर जो शासन होता है वह ऐसा होता है जैसा कि राजा का अपनी प्रजा पर ; क्योंकि वह प्रेम और आयु के सम्मान के आधार पर शासक की स्थिति में होता है तथा यह स्थिति वैसी ही होती है जैसी कि राजकीय शासन की । इसलिए जियुस ( द्यौस् ) को संबोधन करते हुए होमेर ने ठीक ही कहा -- "पिता मानवों का, देवों क्योंकि वह इन सबका राजा है। राजा प्रकृति से ही अपने प्रजाजनों से श्रेष्ठ होना चाहिये पर जाति अथवा कुल में उन्हीं के समान होना चाहिये तथा गुरुजनों और छोटों एवं पिता और सन्तान का संबंध इसी प्रकार का होता है । १. वैध शासन से तात्पर्य उस शासन से है जो किसी संविधान के नियमों का अनुसरण करता है तथा जिसमें सब प्रजाजनों को पर्याय से शासन करने तथा शासित होने का अवसर प्राप्त होता है। यह तानाशाही शासन से भिन्न है जिसमें शासक स्वेच्छा से शासन करता है तथा शासितों को शासन में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता। अरिस्तू के मतानुसार पति पत्नी पर जो शासन करता है वह बहुत कुछ वैधानिक प्रकार का होता है। अन्तर केबल इतना ही है कि इस व्यवस्था में शासक और शासित की स्थिति में पर्यायक्रम से परिवर्तन नहीं होता। २. अमासिस एक साधारण प्रजाजन था; आगे चलकर वह राजा हो गया। उसने एक स्वर्ण देव-प्रतिमा को गलवाकर अपने पैर धोने के लिये परात बनवाई। मिस्र देश के रहनेवाले इस परात का भी अत्यधिक सम्मान करने लगे। अमासिस् ने एक बार अपने प्रजाजनों को उपदेश करते हुए उस परात का दृष्टान्त देकर समझाया कि मेरी अपनी स्थिति बहुत कुछ इस परात के समान है; पर मेरे प्रति तुम लोगों का व्यवहार जो मेरी वर्तमान स्थिति है उसके अनुरूप होना चाहिये न कि मेरी भूतकालिक स्थिति के अनुरूप । ३. राजा का शासन प्रजा के प्रति प्रेम और सद्भावना से पूर्ण होना चाहिये । ऐतिहासिक वृष्टि से अरिस्तू राजा को एक बड़े कुटुम्ब के ज्येष्ठ श्रेष्ठ पुरुष से विकसित हुआ मानता है। आगे चलकर वह राजकीय शासन का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह राजकीय शासन को उत्तम प्रकार का शासन मानता । तुलना कीजिये सं० -- "राजा प्रकृतिरञ्जनात् ।" ४. द्यौस के लिए मूल में "जियुस्" का कर्म कारक का रूप "दिया" प्रयुक्त हुआ है । यह शब्द संस्कृत के द्यौस का सजातीय है। भारतीय एवं ग्रीक दोनों धर्मों में द्यौस सबका पिता एवं शासक है। शासक तथा शासित के गुणों में अंतर इसलिये यह स्पष्ट है कि गृह-प्रबन्ध-कला निर्जीव सम्पत्ति की अपेक्षा मनुष्यों के प्रति, धन ( जिसको हम सम्पदा कहते हैं ) की उत्तमता की अपेक्षा मनुष्यों की उत्तमता के प्रति और ( मनुष्यों में भी ) दासों की अपेक्षा स्वतंत्र पुरुषों के प्रति अधिक ध्यान देती है। इस संबंध में सर्वप्रथम यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या किसी दास में उपकरणात्मक तथा (निम्न कोटि के ) सेवात्मक गुणों के अतिरिक्त अथवा इनसे ऊँची और कोई उत्तमता किचिन्मात्र भी हो सकती है ? क्या उसमें संयम, साहस, न्याय एवं इसी प्रकार की अन्य सद्वृत्तियाँ हो सकती हैं अथवा उसमें कठोर शारीरिक सेवा की वृत्ति को छोड़कर और कोई भी गुण नहीं होता ? दोनों प्रकार के उत्तरों (हाँ अथवा नहीं) में कठिनाई का सामना है। यदि दासों में उच्च कोटि के गुण माने जायँ तो वे स्वतंत्र मनुष्यों से किस प्रकार भिन्न होंगे? यदि यह कहें कि उनमें यह गुण नहीं हैं तो यह एक अनोखी बात होगी कि मनुष्य होने के कारण विवेक के भागीदार होते हुए भी ( वे विवेकजन्य सद्गुणों से वंचित हैं ) । लगभग इसी से मिलता-जुलता प्रश्न स्त्रियों और बच्चों के विषय में भी पूछा जा सकता है कि क्या उनमें सद्गुण होते हैं ; क्या स्त्री को भी संयत, साहसी और न्यायी होना चाहिये; और क्या कोई बच्चा असंयत, अथवा संयत हो सकता है या नहीं ? यही प्रश्न सामान्यरूपेण पूछा जाना चाहिये और वह इस प्रकार कि जो प्रकृत्या शासक हैं तथा जो प्रकृत्या शासित हैं उनके गुण एक ही हैं अथवा एक दूसरे से पृथक् हैं ? यदि यह कहो कि दोनों में समान रूप से उदार स्वभाव होना चाहिये तो ऐसा क्यों होना चाहिये कि उनमें से एक तो सर्वदा शासन करे और दूसरा नित्य शासित हो । और न यह अन्तर अधिक या अल्प मात्रा के अन्तर के समान है; क्योंकि शासक और शासित का अन्तर तो प्रकारगत अन्तर है, एवं अधिक और अल्प ( मात्रा का ) इससे कोई संबंध नहीं है । यदि, दूसरी ओर यह कहें कि उनमें से एक में तो सद्गुण होने चाहिये तथा दूसरे में नहीं होने चाहिये तो यह बड़ी अनोखी सम्मति होगी। क्योंकि यदि शासक संयमी और न्यायी न हो तो वह अच्छे प्रकार से शासन कैसे कर सकेगा एवं यदि शासित संयमी और न्यायी न हो तो वह भले प्रकार शासित कैसे हो सकता है ? कोई भी ऐसा व्यक्ति जो उच्छृङ्खल अथवा कायर हो, अपने कर्तव्य का पालन निश्चयमेव नहीं कर सकता । अतएव यह स्पष्ट है कि सद्गुणों में तो दोनों का भाग अवश्य होना चाहिये, पर ( दोनों के -- अर्थात् शासक और शासितों के ) सद्गुण भिन्न प्रकार के होने चाहिये, ठीक जिस प्रकार कि प्रकृत्या शासितव्य प्रजाजनों के सद्गुणों में भी प्रकार - भेद होता है । और यह विचार ( कि शासक और शासितों के गुण पृथक् पृथक् होते हैं) हमको सीधे आत्मा (साक्षी) के स्वरूप की ओर ले जाता है। आत्मा में स्वाभाविकतया एक अंश शासक है तथा दूसरा शासित ; एवं इनमें से प्रत्येक का अपना पृथक् गुण है, एकगुणका संबंध शासक एवं विवेकयुक्त अंश से है तथा दूसरेका शासित एवं अविवेकयुक्त अंश से। और फिर यह तो स्पष्ट ही है कि जो बात प्रस्तुत प्रकरण में ठीक बैठती है वह अन्य स्थलों में भी लागू होती है; अतएव हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह एक सामान्य नियम है कि शासक और शासित अंशों की सत्ता स्वभाव से ही है। पर एक ही नियम क्षेत्र-भेद के अनुसार भिन्न प्रकार से काम करता है। स्वतंत्र पुरुष जिस प्रकार दास पर शासन करता है वह उस प्रकार से भिन्न होता है जिस प्रकार से पुरुष स्त्री पर शासन करता है अथवा बड़ा मनुष्य बच्चे पर । आत्मा के (उपर्युक्त) अंश तो इन ( स्वतंत्र पुरुष, दास, स्त्री, पुरुष, एवं बड़े और बालक ) सब में ही विद्यमान रहते हैं पर उनकी स्थिति इनमें से प्रत्येक में पृथक् प्रकार से होती है । " दास में विचार करने की क्षमता बिलकुल नहीं होती' ; स्त्री में यह क्षमता होती तो है पर अधिकारशून्य ( अथवा अकिंचित्कर) ही रहती है, एवं होती बच्चों में भी है पर अपरिपक्व ( अविकसित ) रूप में ही । तथा जैसा (आत्मा के अंशों के विषय में समझा जाता है) वैसा ही अवश्यमेव सदाचार संबंधी सद्गुणों की स्थिति के विषय में भी समझा जाना चाहिये । ( उपर्युक्त ) सब व्यक्ति इन सद्गुणों में भागीदार होते हैं, पर एक ही प्रकार से नहीं प्रत्युत प्रत्येक व्यक्ति उसी प्रकार और उतनी ही मात्रा में उनका भाजन होता है जो उसके अपने कार्य को पूर्ण करने के लिये उपयुक्त हों । अतः शासक को सदाचार-संबंधी पूर्ण विकसित सद्गुण प्राप्त होना चाहिये; क्योंकि यदि उसके कार्य के पूर्ण स्वरूप का निरपेक्ष भाव से विचार करें तो उसके लिये श्रेष्ठ निर्माता की आवश्यकता प्रतीत होगी तथा ऐसा उत्तम निर्माता विवेक ही है । शेष अन्य व्यक्तियों को सदाचार संबंधी सद्गुण की आवश्यकता उतनी ही मात्रा में होती है जितनी उनमें से प्रत्येक की स्थिति के लिये अपेक्षित है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आचार-संबंधी सद्गुण तो उपर्युक्त सभी व्यक्तियों में उपलब्ध होता है तथापि, जैसा कि सॉस' का मत है, स्त्री और पुरुष का संयम एक-सा नहीं होता और न उनमें पाये जानेवाले साहस और न्याय ही एक समान होते हैं । उदाहरणार्थ पुरुष में पाया जानेवाला साहस शासकोचित होता है एवं स्त्री में पाया जानेवाला सेवकोचित । यही बात अन्य सब सद्गुणों के संबंध में भी लागू होती है । जब हम इस विषय पर अधिक विस्तार के साथ दृष्टिपात करेंगे और इसके पृथक् पृथक् विभागों का विचार करेंगे तो यही निष्कर्ष और भी अधिक स्पष्टतया निष्पन्न हो जायगा । सामान्य शब्दों का प्रयोग करते हुए यह मत प्रकट करना कि सद्गुण ( अथवा सद्वृत्ति ) "आत्मा की स्वस्थता है" (अच्छी अवस्था है) अथवा "उचित कर्म" है अथवा ऐसी ही अन्य कोई बात है, तो अपने ही को धोखा देना होगा। इस प्रकार की सामान्य परिभाषाओं की अपेक्षा तो सद्गुण अथवा भलाई के प्रकारों की गिनती गिना देने की पद्धति कहीं अधिक अच्छी है, जिसका अनुसरण गौर्गियास के द्वारा किया गया है । अतः सब वर्गों के विषय में यह समझा जाना चाहिये कि उनके अपने अपने भलाई के विशेष लक्षण होते हैं; एवं यह जो सौफौक्लेस् ने स्त्रियों के विषय में कहा है कि "नारी की सुषमा है मौन" इसमें भी सामान्य सत्य निहित है, पर यह सत्य पुरुष के विषय में लागू नहीं होता । ( इसी प्रकार यदि बालकों के उदाहरण को लें तो) बच्चा जो अपरिपक्व होता है तो यह स्पष्ट ही है कि उसकी सद्वृत्ति (अथवा भलाई) केवल अपने वर्तमान स्वरूप की अपेक्षा ऐसी ( अर्थात् अपरिपक्व ) नहीं होती प्रत्युत उसकी भावी परिणति एवं उस परिणति की ओर उसका नेतृत्व करनेवाले गुरु ( पिता ) की अपेक्षा अपरिपक्व होती है। ऐसे ही दास की सद्वृत्ति ( = भलाई ) प्रभु-संबंध सापेक्ष्य है । हम यह निर्णय तो स्थापित कर चुके कि दास को जीवन की आवश्यकताओं के लिये उपयोगी होना चाहिये । अतएव ( उक्त निर्णय से ) यह स्पष्ट ही है कि उनको थोड़े से ही सद्गुण की आवश्यकता है; और वह वास्तव में बस इतना होना चाहिये कि जिससे वह कहीं असंयम अथवा भीरुता के कारण अपने कर्त्तव्य से च्युत न हो जाय । इस पर यह प्रश्न हो सकता है कि जो बात हम कह रहे हैं यदि वह सत्य हो तो क्या शिल्पकारों में भी सद्गुण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये ; क्योंकि वे भी तो प्रायः असंयम के कारण अपने काम में त्रुटि किया करते हैं । परन्तु क्या इन दोनों उदाहरणों में बहुत अधिक अन्तर नहीं है ? दास तो अपने स्वामी के जीवन में भागीदार होता है, पर शिल्पकार का स्वामी के साथ संबंध इतना समीप का नहीं, अपेक्षाकृत दूर का होता है । उससे अपेक्षित (दास की) भलाई की मात्रा उतनी ही होती है जितनी मात्रा में वह दासत्व के अन्तर्गत रहता है, क्योंकि निचले प्रकार के शिल्पी की दासता सीमित प्रकार की ( अथवा केवल सीमित प्रयोजन के निमित्त ) होती है । और फिर (दास और शिल्पकार में एक अन्तर यह भी है कि ) दास तो उस वर्ग में से है जो प्रकृति से ही दासवर्ग है पर न तो कोई मोची इस वर्ग के अन्तर्गत है और न अन्य कोई शिल्पी । अतएव यह स्पष्ट है कि दास में इस उपर्युक्त नैतिक उत्तमता को उत्पन्न करने का मूल कारण गृहपति होना चाहिये, पर उसको ऐसा (नैतिक ) संरक्षक के रूप में होना चाहिये न कि उस स्वामित्वकला को धारण करनेवाले के रूप में जो सेवक को विशिष्ट कर्तव्यों के पालन करने का निर्देश करती है। इसलिए जो लोग कहते हैं कि दासों से विवेक को ( विवेकपूर्ण शिक्षण को ) दूर रखना चाहिये और उनके प्रति केवल आदेश का ही प्रयोग करना चाहिये, वे ठीक नहीं कहते।" नैतिक शिक्षा ( अथवा चेतावनी ) तो दासों को बच्चों की अपेक्षा कहीं अधिक दी जानी चाहिये । इस विषय का इतना विवेचन पर्याप्त होगा। पति और पत्नी का संबंध, माता-पिता तथा संतान का संबंध, इन संबंधों के घटकों की पृथक् पृथक् उत्तमता, घटकों के पारस्परिक सम्पर्क का स्वरूप, उसके गुण एवं दोष, इन गुणों की प्राप्ति किस प्रकार की जाय तथा इन दोषों से किस प्रकार दूर भागा जाये (इत्यादि) विषयों का विवेचन ( शेष रह गया है)। इन सबका विवेचन ( आगे चलकर ) विभिन्न प्रकार की शासन व्यवस्थाओं का वर्णन करते समय अवश्यमेव किया जायगा। प्रत्येक गृहस्थी राष्ट्र का ( घटक) अंग है । यह ( पति पत्नी का समाज एवं माता-पिता एवं सन्तान का समाज ) गृहस्थी का अंग है । प्रत्येक अवयव की उत्तमता का विचार अवयवी की उत्तमता पर दृष्टि रखते हुए किया जाना चाहिये । अतएव यदि बच्चों और स्त्रियों की उत्तमता के होने से नगर की उत्तमता में कोई अन्तर पड़ता हो तो बच्चों और स्त्रियों की शिक्षा का विचार आरंभ करने के पूर्व हमको (समग्र-) नगर के शांसन पर अवश्य दृष्टिपात कर लेना चाहिये बच्चों और स्त्रियों की उत्तमता के कारण नगर की ( अथवा शासन की) उत्तमता में तो अवश्यमेव अन्तर पड़ना चाहिये क्योंकि नारियाँ स्वतंत्र व्यक्तियों की संख्या का आधा भाग होती हैं, एवं बालक बड़े होकर राष्ट्र के शासन में भागीदार बनते । (अतः उपर्युक्त विषयों का विवेचन इस समय स्थगित कर दिया गया है । ) क्योंकि प्रस्तुत विषय ( अर्थात् गृहस्थी) के कुछ अंगों (दासता एवं साधनोपलब्धि ) का विवेचन हो चुका तथा अन्य अंगों ( विवाह, प्रजोत्पादन एवं शिक्षा इत्यादि ) का विचार आगे किया जायगा " अतएव इस विषय को समाप्त हुआ मानकर अब हम नये विषय का विवेचन आरंभ करें, एवं सर्वप्रथम उन मनीषियों के सिद्धान्तों की समीक्षा करें जिन्होंने श्रेष्ठ ( = आदर्श ) शासन-पद्धतियों के विषय में विचार प्रस्तुत किये हैं। " ) अर्थात् गृह-प्रबन्ध-कला आर्थिक की अपेक्षा नैतिक अधिक है। उसका उद्देश्य गृहपति, पत्नी, सन्तान एवं दासों के पारस्परिक संबंध को अधिक से अधिक उत्तम बनाना है। २. ग्रीक लोगों में चार नैतिक गुण सर्वोपरि माने जाते थे। यह चार गुण धृति अथवा साहस, संयम, न्याय एवं प्रज्ञा । यहाँ अरिस्तू ने दास के संबंध में प्रज्ञा का उल्लेख नहीं किया है क्योंकि वह वास में विवेक की बहुत थोड़ी सी मात्रा को स्वीकार करता है। ३. सामान्य प्रकार से सभी शासक और शासितों के विषय में पूछा जाना चाहियेकेवल दास, अथवा स्त्री अथवा बालक के विषय में विशेष रूप से नहीं। ४. 'उदार स्वभाव' के लिये मूल ग्रीक भाषा में "कलोकागाथिया" शब्द आया
84f9e02f18eb0a6d38fb5ab47cfda264bb73be53
web
(कम से कम 64 फीसदी हिंदुओं ने कहा कि 'सच्चा' भारतीय होने के लिए हिंदू होना बहुत जरूरी है, और उनमें से 80 फीसदी का कहना है कि 'सच्चे' भारतीय होने के लिए हिंदी बोलना बहुत जरूरी है।) जनज्वार। प्यू रिसर्च सेंटर की सर्वेक्षण रिपोर्ट में पाया गया है कि धर्मों के बीच सहिष्णुता पर राय धार्मिक समुदायों को अलग रखने की प्राथमिकता के साथ है। प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक नए सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय धार्मिक सहिष्णुता और अलगाव दोनों को महत्व देते हैं। देश में धार्मिक पहचान, राष्ट्रवाद और सहिष्णुता पर करीब से नज़र डालने के लिए 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत के बीच 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि 84 प्रतिशत लोगों का मानना था कि 'सच्चे भारतीय' होने के लिए अन्य धर्म का सम्मान करना महत्वपूर्ण है। लगभग 80% ने कहा कि दूसरे धर्मों का सम्मान करना किसी के धर्म का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। लगभग 91% ने कहा कि वे और अन्य अपने धर्मों का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालाँकि, सहिष्णुता पर राय धार्मिक समुदायों को अलग रखने की प्राथमिकता के साथ है। परिणामों से पता चला कि भारतीय आमतौर पर कहते हैं कि अन्य धार्मिक समूहों के साथ उनका बहुत कुछ समान नहीं है। छह धर्मों के भीतर एक बड़े बहुमत ने कहा कि उनके करीबी दोस्त मुख्य रूप से या पूरी तरह से उनके धर्म से आते हैं (हिंदुओं में 86%, सिखों में 80% और जैनियों में 72%)। रिपोर्ट अंतरधार्मिक विवाह पर राय की ओर भी इशारा करती है, जिसमें लगभग दो-तिहाई हिंदुओं का कहना है कि हिंदू महिलाओं (67%) या पुरुषों (65%) को उनके धर्म से बाहर शादी करने से रोकना बहुत महत्वपूर्ण है।मुसलमानों के लिए, 80% उत्तरदाताओं ने महिलाओं को उनके धर्म से बाहर शादी करने से रोकने और पुरुषों के लिए 76% का समर्थन किया। प्यू रिसर्च सेंटर ने 18 से अधिक वयस्कों और 26 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में रहने वाले वयस्कों के साथ 17 भाषाओं में साक्षात्कार आयोजित किए। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कई हिंदुओं के लिए, राष्ट्रीय पहचान, धर्म और भाषा निकटता से जुड़ी हुई हैं। कम से कम 64 फीसदी हिंदुओं ने कहा कि 'सच्चा' भारतीय होने के लिए हिंदू होना बहुत जरूरी है, और उनमें से 80 फीसदी का कहना है कि 'सच्चे' भारतीय होने के लिए हिंदी बोलना बहुत जरूरी है। अन्य 51% का मानना है कि 'वास्तव में' भारतीय होने के लिए दोनों मानदंड महत्वपूर्ण हैं। हिंदू और भारतीय पहचान को मजबूती से जोड़ने वाले हिंदुओं ने भी धार्मिक अलगाव और अलगाव की इच्छा व्यक्त की। इसमें पाया गया कि 76 प्रतिशत हिंदू जो कहते हैं कि हिंदू होना 'सच्चे' भारतीय होने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, उन्हें भी लगता है कि हिंदू महिलाओं को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना बहुत महत्वपूर्ण है। यह, भारतीय पहचान में धर्म की भूमिका को कम महत्व देने वाले 52% हिंदुओं की तुलना में, धार्मिक अंतर्विवाह के बारे में यह दृष्टिकोण रखते हैं। देश के उत्तरी (69%) और मध्य (83%) हिस्सों में हिंदुओं की राष्ट्रीय पहचान के साथ हिंदू पहचान को जोड़ने के लिए दक्षिण में 42% की तुलना में अधिक संभावना है। उत्तरी और मध्य क्षेत्र देश के 'हिंदी बेल्ट' को कवर करते हैं जहां हिंदी, कई भाषाओं में से एक, प्रचलित है; इस क्षेत्र के अधिकांश हिंदू भी भारतीय पहचान को भाषा बोलने की क्षमता से जोड़ते हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि हिंदुओं के बीच, राष्ट्रीय पहचान के विचार राजनीति के साथ-साथ चलते हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का समर्थन उन हिंदुओं के बीच अधिक है जो अपनी धार्मिक पहचान और हिंदी भाषा को 'सच्चे' भारतीय होने के साथ जोड़ते हैं। 2019 के चुनावों में, इन दो मानदंडों को मानने वाले 60% हिंदू मतदाताओं ने 33% हिंदू मतदाताओं की तुलना में भाजपा को वोट दिया, जिन्होंने राष्ट्रीय पहचान के दोनों पहलुओं के बारे में कम दृढ़ता से महसूस किया। यह क्षेत्रीय समर्थन में भी परिलक्षित होता है, क्योंकि भाजपा के लिए समर्थन दक्षिण की तुलना में देश के उत्तर और मध्य भागों में अधिक है। अध्ययन में पाया गया कि आहार संबंधी नियम भारतीय धार्मिक पहचान के केंद्र में हैं। हिंदू पारंपरिक रूप से गायों को पवित्र मानते हैं, और देश में गोहत्या पर कानून विवाद में रहे हैं। कम से कम 72 फीसदी हिंदुओं ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति बीफ खाता है तो वह हिंदू नहीं हो सकता। अन्य 49% ने कहा कि जो लोग भगवान में विश्वास नहीं करते वे हिंदू नहीं हो सकते, 48% ने कहा कि वे हिंदू के रूप में पहचान नहीं कर सकते हैं जो मंदिर नहीं जाते हैं या पूजा नहीं करते हैं। इसी तरह, 77% मुसलमानों ने कहा कि सूअर का मांस खाने से कोई व्यक्ति मुस्लिम नहीं हो सकता। एक और 60% ने कहा कि अगर वे भगवान में विश्वास नहीं करते तो वे मुस्लिम नहीं हो सकते, जबकि 61% ने कहा कि अगर वे मस्जिद नहीं जाते हैं तो वे मुस्लिम नहीं हो सकते। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसलमान अपने धार्मिक दरबार में जाने के पक्ष में हैं, जबकि अन्य धर्म ऐसा नहीं करते हैं। 1937 के बाद से, उनके पास इस्लामी अदालतों को आधिकारिक रूप से मान्यता देने का विकल्प है जो धार्मिक मजिस्ट्रेटों द्वारा देखे जाते हैं और शरिया सिद्धांतों के तहत काम करते हैं, हालांकि उनके फैसले कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इस विषय पर अत्यधिक बहस होती है, और अध्ययन में पाया गया कि 74% मुसलमान इन अदालतों तक जाने का समर्थन करते हैं, लेकिन अन्य धर्म नहीं करते हैं - सबसे कम 25% सिख हैं और सबसे अधिक 33% बौद्ध और जैन हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि मुसलमानों के यह कहने की अधिक संभावना है कि 1947 के देश के विभाजन ने हिंदुओं की तुलना में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों को नुकसान पहुंचाया। प्यू सर्वेक्षण में कहा गया है कि 48 फीसदी ने कहा कि विभाजन उपमहाद्वीप के लिए एक बुरी बात थी। इसके विपरीत, हिंदुओं का कहना है कि इसके विपरीत, 43% ने इसे सांप्रदायिक संबंधों के लिए फायदेमंद बताया और 37% ने इसे हानिकारक बताया। लेकिन 66% सिखों ने विभाजन को हानिकारक बताया। अध्ययन ने यह भी बताया कि जाति व्यवस्था की व्यापकता भारतीय समाज को और विभाजित करती है। अधिकांश भारतीय, धर्म की परवाह किए बिना, एक जाति के साथ पहचान रखते हैं। निचली जातियों ने भेदभाव और बड़ी असमानताओं का सामना किया है और ऐसा करना जारी रखा है। फिर भी, सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश लोग कहते हैं कि भारत में जातिगत भेदभाव बहुत अधिक नहीं है। भारतीय कानून अस्पृश्यता सहित जाति-आधारित भेदभाव (जातिवाद) को प्रतिबंधित करता है, और कई वर्षों से सकारात्मक नीतियां लागू हैं। लेकिन लगभग 70% भारतीयों का कहना है कि उनके अधिकांश या सभी करीबी दोस्त एक ही जाति के हैं और 64% कहते हैं कि महिलाओं को उनकी जाति से बाहर शादी करने से रोकना बहुत महत्वपूर्ण है, और 62% पुरुषों के लिए ऐसा ही कहते हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि भारत में धार्मिक परिवर्तन बहुत कम हैं और नगण्य है क्योंकि जो धर्म धर्मान्तरित होते हैं वे कुछ अनुयायियों को खो सकते हैं। लेकिन धार्मिक समूहों के आकार पर धार्मिक परिवर्तन का कम से कम प्रभाव पड़ता है। देश भर में, 98% ने वही प्रतिक्रिया दी, जब उनसे उनके बचपन के धर्म और उनके वर्तमान धर्म की पहचान करने के लिए कहा गया। हिंदुओं के लिए, 0.7% हिंदू के रूप में पाले गए लेकिन धर्म छोड़ दिया जबकि 0.8 धर्म में शामिल हो गए। ईसाइयों के लिए, 0.4 % पूर्व हिंदू थे, जिन्होंने 0.1%की तुलना में धर्मांतरण किया था, जिन्हें ईसाई बनाया गया था लेकिन धर्म छोड़ दिया। लगभग सभी भारतीय, 97%, कहते हैं कि वे ईश्वर में विश्वास करते हैं, और अधिकांश धार्मिक समूहों में लगभग 80% व्यक्ति निश्चित हैं कि ईश्वर का अस्तित्व है। सबसे बड़ा अपवाद बौद्ध हैं, जिनमें से एक तिहाई कहते हैं कि वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते क्योंकि यह धर्म की शिक्षाओं का केंद्र नहीं है। भारतीयों की ईश्वर के बारे में अलग-अलग धारणाएँ हैं क्योंकि अधिकांश हिंदुओं का मानना है कि एक ईश्वर है जिसमें कई अभिव्यक्तियाँ या अवतार हैं। इसके विपरीत, मुसलमानों और ईसाइयों के यह कहने की अधिक संभावना है कि केवल एक ही ईश्वर है। हालाँकि, सभी धर्मों में, भारतीयों का कहना है कि धर्म उनके जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें कई लोग प्रतिदिन प्रार्थना करते हैं और अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। जैसा कि भारत विविध है और पीढ़ियों से रहा है, देश के अल्पसंख्यक समूह समान प्रथाओं में संलग्न हैं या अन्य देशों की तुलना में हिंदू परंपराओं से निकटता से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, 29% सिख, 22% ईसाई और 18% मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि वे बिंदी पहनती हैं, भले ही एक्सेसरी में हिंदू मूल हो। 77% मुसलमान और हिंदू कर्म में विश्वास करते हैं, जैसा कि 54% ईसाई करते हैं। विभिन्न धर्मों के विभिन्न सदस्य एक दूसरे की छुट्टियां मनाते हैं; 7% हिंदुओं ने कहा कि वे ईद मनाते हैं, और 17% ने कहा कि वे क्रिसमस मनाते हैं। (अंग्रेजी से हिन्दी अनुवादः एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट)
d0752a94bdefa09fe86484322ff7b5b4306e92935b3fc82dfb49d492bf30602c
pdf
माथे पर शिकन पड़ गई । बोली - "मेरी जगह पर आप होतीं, तो ऐसा न कहतीं । आखिर क्या आप अपने धार्मिक विचारों को छोड़ बैठतीं ?" इंदु- - "यह तो नहीं कह सकती कि क्या करती; पर घरवालों को प्रसन्न रखने की चेष्टा किया करती ।" सोफिया - "आपकी माताजी अगर आपको जबरदस्ती कृष्ण की उपासना करने से रोकें, तो आप मान जायँगी ?" इंदु- -"हाँ, मैं तो मान जाऊँगी । अम्माँ को नाराज न करूँगी । कृष्ण तो अंतर्यामी हैं, उन्हें प्रसन्न रखने के लिए उपासना की जरूरत नहीं । उपासना तो केवल अपने मन के संतोष के लिए है ।" सोफिया - ( आश्चर्य से ) "आपको जरा भी मानसिक पीड़ा न होगी ?" इंदु- "अवश्य होगी; पर उनकी खातिर मैं सह लूँगी ।" सोफिया - "अच्छा, अगर वह आपकी इच्छा के विरुद्ध आपका विवाह करना चाहें तो ?" इंदु - ( लजाते हुए ) "वह समस्या तो हल हो चुकी । माँ-बाप ने जिससे उचित समझा, कर दिया । मैंने जबान तक नहीं खोली ।" सोफिया - "अरे, यह कब ?" इंदु - " इसे तो दो साल हो गये । ( आखें नीची करके ) अगर नेरा अपना वश होता, तो उन्हें कभी न वरती, चाहे कुँवारी ही रहती । मेरे स्वामी मुझसे प्रेम करते हैं, धन की कोई कमी नहीं । पर मैं उनके हृदय के केवल चतुर्थांश की अधिकारिणी हूँ, उसके तीन भाग सार्वजनिक कामों को भेंट होते हैं। एक के बदले चौथा पाकर कौन संतुष्ट हो सकता है । मुझे तो बाजरे की पूरी बिस्कुट के चौथाई हिस्से से कहीं अच्छी मालूम होती है । क्षुधा तो तृप्त हो जाती है, जो भोजन का यथार्थ उद्देश्य है । " सोफिया - "आपकी धार्मिक स्वाधीनता में तो बाधा नहीं डालते ?" इंदु - "नहीं । उन्हें इतना अवकाश कहाँ है ? " सोफिया - "तब तो मैं आपको मुबारकबाद दूँगी । " इंदु - "अगर किसी कैदी को बधाई देना उचित हो, तो शौक से दो ।" सोफिया - "बेड़ी प्रेम की हो, तो ?" इंदु - "ऐसा होता, तो मैं तुमसे बधाई देने को आग्रह करती। मैं बँध गई, वह मुक्त हैं । मुझे यहाँ आये तीन महीने होने आते हैं; पर तीन बार से ज्यादा नहीं आये, और वह भी एक-एक घंटे के लिए। इसी शहर में रहते हैं, दस मिनट में मोटर आ सकती है; पर इतनी फुर्सत किसे है। हाँ, पत्रों से अपनी मुलाकात का काम निकालना चाहते हैं, और वे पत्र भी क्या होते हैं, आदि से अंत तक अपने दुखड़ों से भरे हुए । आज यह काम है, कल वह काम है; इनसे मिलने जाना है, उनका स्वागत करना है। म्युनिसिपैलिटी के प्रधान क्या हो गये, राज्य मिल गया। जब देखो, वही धुन सवार ? और सब कामों के लिए फुर्सत है। अगर फुर्सत नहीं है, तो सिर्फ यहाँ आने की । मैं तुम्हें चिताये देती हूँ, किसी देश सेवक से विवाह न करना, नहीं तो पछताओगी । तुम उसके अवकाश के समय की मनोरंजन सामग्री मात्र रहोगा ।" सोफिया - "मैं तो पहले ही अपना मत स्थिर कर चुकी ; सबसे अलग-ही-अलग रहना चाहती हूँ, जहाँ मेरी स्वाधीनता में बाधा डालनेवाला कोई न हो। मैं सत्पथ पर हूँगी, या कुपथ पर चलूँगी, यह जिम्मेदारी भी अपने ही सिर लेना चाहती हूँ। मैं बालिग हूँ, और अपना नफा-नुकशन देख सकती हूँ । आजन्म किसी की रक्षा में नहीं रहना चाहती ; क्योंकि रक्षा का अर्थ पराधीनता के सिवा और कुछ नहीं ।" इंदु - "क्या तुम अपने मामा और पापा के अधीन नहीं रहना चाहती ?" सांफिया - "न, पराधीनता में प्रकार का नहीं, केवल मात्राओं का अंतर है। " इंदु - " तो मेरे ही घर क्यों नहीं रहतीं ? मैं इसे अपना सौभाग्य समझँ गी । और अम्माँजी तो तुम्हें आँखों की पुतली बनाकर रखेंगी। मैं चली जाती हूँ, तो वह अकेले घबराया करती हैं। तुम्हें पा जायँ, तो फिर गला न छोड़ें। कहो, तो अम्माँ से कहूँ । यहाँ तुम्हारी स्वाधीनता में कोई दखल न देगा । बोलो, कहूँ जाकर अम्माँ से ?" सोफिया - "नहीं, अभी भूलकर भी नहीं । आपकी अम्माँजी को जब मालूम होगा कि इसके माँ-बाप इसकी बात नहीं पूछते, तो मैं उनकी आँखों से भी गिर जाऊँगी । जिसकी अपने घर में इज्जत नहीं, उसकी बाहर भी इज्जत नहीं होती।" इंदु - "नहीं सोफो, अम्माँजी का स्वभाव बिलकुल निराला है। जिस बात से तुम्ह अपने निरादर का भय है, वही बात अम्माँजी के आदर की वस्तु है, वह स्वयं अपनी माँ से किसी बात पर नाराज हो गई थीं, तब से मैके नहीं गई । नानी मर गईं : पर अम्माँ ने उन्हें क्षमा नहीं किया । सैकड़ों बुलावे आये ; पर उन्हें देखने तक न गईं । उन्हें ज्योंही यह बात मालूम होगो, तुम्हारी दूनी इज्जत करने लगेंगी ।" सोफ़ो ने आँखों में आँसू भरकर कहा - "बहन, मेरी लाज अब आप ही के हाथ है । " इंदु ने उसका सिर अपनी जाँव पर रखकर कहा - "वह मुझे अपनी लाज से कम प्रिय नहीं है। " उधर मि० जॉन सेवक को कुँवर साहब का पत्र मिला, तो जाकर स्त्री से बोले" देखा, मैं कहता न था कि सोफी पर कोई संकट आ पड़ा । यह देखो, कुँवर भरतसिंह का पत्र है । तोन दिनों से उनके घर पड़ी हुई है । उनके एक झोपड़े में आग लग गई थी, वह भी उसे बुझाने लगी । कहीं लपट में आ गई । " मिसेज सेवक - "ये सब बहाने हैं। मुझे उसकी किसी बात पर विश्वास नहीं रहा । जिसका दिल खुदा से फिर गया, उसे झूठ बोलने का क्या डर ? यहाँ से बिगड़कर गई थी, समझा होगा, घर से निकलते ही फूलों की सेज बिछी हुई मिलेगी। जब कहीं शरण न मिली, तो यह पत्र लिखवा दिया। अब आटे-दाल का भाव मालूम होगा। यह भी संभव है, खुदा ने उसके अविचार का यह दंड दिया हो ।" मि० जॉन सेवक - "चुप भी रहो, तुम्हारी निर्दयता पर मुझे आश्चर्य होता है । मैंने तुम जैसी कठोर हृदया स्त्री नहीं देखी । " मिसेज़ सेवक -"मैं तो नहीं जाती । तुम्हें जाना हो, तो जाओ।" जॉन सेवक - "मुझे तो देख रही हो, मरने की फुरसत नहीं है। उसी पाँडेपुरवाली जमीन के विषय में बातचीत कर रहा हूँ । ऐसे मूजी से पाला पड़ा है कि किसी तरह चंगुल ही में नहीं आता। देहातियों को जो लोग सरल कहते हैं, बड़ी भूल करते हैं । इनसे ज्यादा चालाक आदमी मिलना मुश्किल है। तुम्हें इस वक्त कोई काम नहीं है, मोटर मँगवाये देता हूँ, शान से चली जाओ, और उसे अपने साथ लेती आओ ।" ईश्वर सेवक वहीं आराम-कुरसी पर आँखें बंद किये ईश्वर-भजन में मग्न बैठे थे । जैसे बहरा आदमी मतलब की बात सुनते ही सचेत हो जाता है, मोटरकार का जिक्र सुनते ही ध्यान टूट गया । बोले - "मोटरकार की क्या जरूरत है ? क्या दर्स- पाँच रुपये काट रहे हैं ? यों उड़ाने से तो कारूँ का खजाना भी काफी न होगा । क्या गाड़ी पर जाने से शान में फर्क आ जायगा ? तुम्हारी मोटर देखकर कुँवर साहब रोब में न आयेंगे, उन्हें खुदा ने बहुतेरी मोटरें दी हैं। प्रभु, दास को अपनी शरण में लो, अब देर न करो, मेरी सोफ़ी बेचारी वहाँ बेगानों में पड़ी हुई है, न जाने इतने दिन किस तरह काटे होंगे। खुदा उसे सच्चा रास्ता दिखाये । मेरी आँखें उसे ढूँढ़ रही हैं । जब से वह गई है, कला मे पाक सुनने की नौबत नहीं आई। ईसू, मुझ पर सायां कर । वहाँ उस बेचारी का कौन पुछत्तर होगा, अमीरों के घर में गरीबों का कहाँ गुजर ! " जॉन सेवक - "अच्छा ही हुआ, यहाँ होती, तो रोजाना डॉक्टर की फीस न देनी पड़ती ?" ईश्वर सेवक - "डॉक्टर का क्या काम था । ईश्वर की दया से मैं खुद थोड़ी-बहुत डॉक्टरी कर लेता हूँ । घरवालों का स्नेह डॉक्टर की दवाओं से कहीं ज्यादा लाभदायक होता है। मैं अपनी बच्ची को गोद में लेकर कलामे-पाक सुनाता, उसके लिए खुदा से दुआ माँगता।" मिसेज सेवक - "तो आप ही चले जाइए !" ईश्वर सेवक - "सिर और आँखों से; मेरा ताँगा मँगला दो। हम सबों को चलना चाहिए । भूले-भटके को प्रेम ही सन्मार्ग पर लाता है। मैं भी चलता हूँ । अमीरों के सामने दीन बनना पड़ता है। उनसे बराबरी का दावा नहीं किया जाता ।" जॉन सेवक - "मुझे अभी साथ न ले जाइए, मैं किसी दूसरे अवसर पर जाऊँगा । इस वक्त वहाँ शिष्टाचार के सिवा और कोई काम न होगा। मैं उन्हें धन्यवाद दूँगा, वह मुझे धन्यवाद देंगे । मैं इस परिचय को दैवी प्रेरणा समझता हूँ । इतमीनान से मिलूँगा । कुँवर साहब का शहर में बहुत दबाव है। म्युनिसिपैलिटी के प्रधान उनके दामाद हैं । उनकी सहायता से मुझे पाँड़ेपुरवाली जमीन बड़ी आसानी से मिल जायगी। संभव है, वह कुछ हिस्से भी खरीद लें। मगर आज इन बातों का मौका नहीं है । " ईश्वर सेवक - " मुझे तुम्हारी बुद्धि पर हँसी आती है। जिस आदमी से राह रस्म पैदा करके तुम्हारे इतने काम निकल सकते हैं, उससे मिलने में भी तुम्हें इतना संकोच । तुम्हारा समय इतना बहुमूल्य है कि आध घंटे के लिए भी वहाँ नहीं जा सकते ? पहली ही मुलाकात में सारी बातें तय कर लेना चाहते हो ? ऐसा सुनहरा अवसर पाकर भी तुम्हें उससे फायदा उठाना नहीं आता । " जॉन सेवक - "खैर, आपका अनुरोध है, तो मैं ही चला जाऊँगा। मैं एक जरूरी काम कर रहा था, फिर कर लूँगा । आपको कष्ट करने की जरूरत नहीं । ( त्री ने तुम तो चल रही हो ?" मिसेज सेवक - "मुझे नाहक ले चलते हो; मगर खैर, चलो । " भोजन के बाद चलना निश्चित हुआ । अँगरेजी प्रथा के अनुसार यहाँ दिन का भोजन एक बजे होता था। बीच का समय तैयारियों में कटा । मिसेज सेवक ने अपने आभूषण निकाले, जिनसे वृद्धावस्था ने भी उन्हें विरक्त नहीं किया था। अपना अच्छेसे अच्छा गाउन और ब्लाउज निकाला। इतना शृंगार वह अपनी बरस-गाँठ के सिवा और किसी उत्सव में न करती थीं । उद्देश्य था सोफिया को जलाना, उसे दिखाना कि तेरे आने से मैं रो-रोकर मरी नही जा रही हूँ । कोचवान को गाड़ी धोकर साफ करने का हुक्म दिया गया। प्रभु सेवक को भी साथ ले चलने की राय हुई। लेकिन जॉन सेवक ने जाकर उसके कमरे में देखा तो उसका पता न था । उसकी मेज पर एक दर्शन - ग्रंथ खुला पड़ा था । मालूम होता था, पढ़ते-पढ़ते उठकर कहीं चला गया है । वास्तव में यह ग्रंथ तीन दिनों से इसी भाँति खुला पड़ा था । प्रभु सेवक को उसे बंद करके रख देने का भी अवकाश न था । वह प्रातःकाल से दो घड़ी रात तक शहर का चक्कर लगाया करता । केवल दो बार भोजन करने घर पर आता था । ऐसा कोई स्कूल न था, जहाँ उसने सोफी को न ढूँढ़ा हो । कोई जान-पहचान का आदमी, कोई मित्र ऐसा न था, जिसके घर जाकर उसने तलाश न की हो । दिन-भर की दौड़-धूप के बाद रात को निराश होकर लौट आता, और चारपाई पर लेटकर घंटों सोचता और रोता । कहाँ चली गई ? पुलिस के दफ्तर में दिन-भर में दस-दस बार जाता और पूछता, कुछ पता चला ? समाचार पत्रों में भी सूचना दे रखी थी । वहाँ भी रोज कई बार जाकर दरियाफ्त करता । उसे विश्वास होता जाता था कि सोफी हमसे सदा के लिए बिदा हो गई। आज भी, रोज की भाँति, एक बजे थका-माँदा, उदास और निराश लौटकर आया, तो जॉन सेवक ने शुभ-सूचना दी- "सोफिया का पता मिल गया ।" प्रभु सेवक का चेहरा खिल उठा । बोला - "सच ! कहाँ है ? क्या उसका कोई पत्र आया है ?" जॉन सेवक - "कुँवर भरतसिंह के मकान पर है। जाओ, खाना खा लो । भी वहाँ चलना है ।"
72a87050005b0be2945ea51f374b687bc93d19925e0f6ce97698b962790fed9f
pdf
ई० स० १८६६ ता० १६ फ़रवरी (वि० सं० १९२५ फाल्गुन सुदि ८ ) को फ़ोर्ट विलियम (कलकत्ता) में भारत के वाइसरॉय और गवर्नर जेनरल ने इस अहदनामे की तस्दीक़ की' । ( दस्तखत ) डवल्यू० एस० सेटनकर, सेक्रेटरी, भारत गवर्नमेंट, वैदेशिक विभाग । अट्ठारह वर्ष बाद इस अनामे की एक शर्त में परिवर्त्तन हुआ, जो नीचे लिखे अनुसार हैई० स० १८६६ ता० १६ फ़रवरी को अपराधियों के सौंपने के संबंध में अंग्रेज सरकार एवं प्रतापगढ़ राज्य के बीच जो अहदनामा हुआ था, उसमें अंग्रेज़ी इलाक़े से भागकर प्रतापगढ़ राज्य में शरण लेने वाले अपराधियों को सौंप देने के लिए जो तजवीज़ हुई थी, वह अनुभव से वृटिश भारत में प्रचलित क़ानूनी अमल से कम आसान और कम कारगर पाई गई । इसलिए इस इक़रारनामे के द्वारा अंग्रेज़ सरकार तथा प्रतापगढ़ राज्य के बीच स्थिर हुआ है कि भविष्य में श्रहदनामे की शर्तें, जिनमें अभियुक्तों की सुपुर्दगी की बाबत तजवीज़ हुई है, वह वृटिश भारत से भागकर प्रतापगढ़ राज्य में आश्रय लेनेवाले अपराधियों की सुपुर्दगी के विषय में लागू न होंगी और इस समय ऐसे प्रत्येक मामले में अपराधियों को सौंपने के संबंध में वृटिश भारत में जो क़ानूनी श्रमल जारी है, उसकी पाबंदी करनी होगी। ई० स० १८८७ ता० २६ अगस्त (वि० सं० १९४४ भाद्रपद सुदि ११) को प्रतापगढ़ में दस्तखत हुए । ( दस्तखत, हिन्दी भाषा में ) महाराषत उदयसिंह महारावत प्रतापगढ़ । ( दस्तखत ) ए० एफ० पिन्हे, लेफ्टनेन्ट, असिस्टेन्ट पोलिटिकल एजेंट, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ । ई० स० १८८८ ता० २८ मार्च (वि० सं० १६४५ द्वितीय चैत्र वदि १) ( १ ) पुचिसन, ट्रीटीज़, एंगेजमेंट्स एण्ड सनद्ज्ञ, जि० ३, पृ० ४६३-२ । । को फ़ोर्ट विलियम में हिन्दुस्तान के वाइसरॉय और गवर्नर जेनरल ने इस अहदनामे को मंजूर कर इसकी तसदीक़ की' । ( दस्तखत ) एचू० एम्० डयूरंड, सेक्रेटरी, भारत गवर्नमेंट, फ़ॉरेन विभाग । प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा राज्य की सीमाएं मिली हुई होने से कभीकभी इन दोनों राज्यों के बीच सीमा संबंधी झगड़े और उपद्रव होकर विरोध हो जाया करता था। उन दिनों (बांसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह के राज्य समय ) बांसवाड़ावालों ने प्रतापगढ़ राज्य के रायपुर ठिकाने के चोरी, रीछड़ी आदि गांवों का नवीन झगड़ा उठाया, जो प्रतापगढ़ राज्य के अधिकार में बहुत वर्षों से चले आते थे । इस झगड़े ने बड़ा भीषण रूप धारण किया और वि० सं० १९२३ आश्विन सुदि ६ ( ई० स० १८६६ ता० १४ टोवर) को रात्रि के समय वांसवाड़ावालों ने एक बड़ी सेना के साथ जाकर रायपुर के ठाकुर पर, जो उस समय वहां के थाने पर सीमा की रक्षा के लिए प्रतापगढ़ की तरफ़ से नियत था, आक्रमण कर दिया । रायपुर के ठाकुर और उसके साथी ( प्रतापगढ़ के सरदार ) उस समय श्रावधान थे, इसलिए वांसवाड़ावालों का आक्रमण वे सह न सके और उनके श्रादमियों में से श्रीराम के ठाकुर का पुत्र केसरीसिंह, रायपुर का अजीतसिंह, हिम्मतसिंह चौहान लक्ष्मणसिंह, हम्मीरसिंह आदि ३५ व्यक्ति मारे गये और ५६ घायल हुए तथा बांसवाड़ावाले वहां से कई हज़ार रुपयों का माल भी लूट ले गये । इस झगड़े में बांसवाड़ा राज्य के दो आदमी मारे गये और चार घायल हुए । फिर पोलिटिकल अफ़सरोंद्वारा इस मुकदमे की तहक़ीक़ात होने पर चांसवाड़ा राज्य की ज्यादती प्रमाणित हुई और बांसवाड़ा राज्य के कामदार कोठारी चिमनलाल पर एक हज़ार रुपये जुरमाना होकर वह दस वर्ष के लिए बांसवाड़ा राज्य से निर्वासित कर दिया गया एवं पांच दूसरे अहलकार, जो इस झगड़े में ( १ ) एचिसन, टीटीज़, एंगेजमेट्स एण्ड सनद्ज्ञ, जि० ३, पृ० ४६५ । महागवत उदयसिंह शामिल थे, पांच-पांच वर्ष के लिए क़ैद कर उदयपुर के जेलखाने में रखे गये । अंत में मेवाड़ भील कोर के कमांडेंट मेजर गर्निग ने मौके पर जाकर वि० सं० १९३१ ( ई० स० १८७५) में उचित फ़ैसला कर दोनों राज्यों की सीमा पर मीनारे खड़े करवा दिये । इस फ़ैसले से तनाज़े की ३६ वर्ग मील भूमि पर प्रतापगढ़ राज्य का अधिकार बहाल रहा और इस मुकदमे में प्रतापगढ़ राज्य के कामदार ओंकारलाल व्यास, मोतमिद अमृतराव दक्षिणी तथा बड़ा सेलारपुरा के ठाकुर विशनसिंह की कारगुज़ारी अच्छी रही, जिसकी मेंजर गनिंग ने महारावत के पास प्रशंसा लिख भेजी । इसी प्रकार एक दूसरा झगड़ा प्रतापगढ़ राज्य के सांडनी गांव के नील के पठार नामक खेतों के सम्बन्ध में बांसवाड़ा राज्य के सेमलिया पट्टे के सूरजपुरा गांव के वीच वि० सं० १९२६ ( ई० स० १८७२ ) में उत्पन्न हुआ । उसमें भी बांसवाड़ावालों ने अपनी सेना भिजवाकर प्रतापगढ़ राज्य के दो आदमियों को मार डाला । उसका फ़ैसला ई० स० १८७४ ता० १६ सितम्बर (वि० सं० १९३१ भाद्रपद सुदि ५) को मेवाड़ के असिस्टेन्ट पोलि टिकल एजेंट पारसी फ़्रामर्जी भीकाजी ने, जो वांसवाड़ा में नियत था, किया । उसके अनुसार नील के पठार के क्षेत्रों का अधिकार प्रतापगढ़ राज्य का स्वीकार किया गया और सांडनी तथा सूरजपुरा गांव की सीमाएं निर्धारित कर मीनारे खड़े करवा दिये गये। इस मुकदमे में महारावत के कामदार ओंकारलाल व्यास, मोतमिद शाह जोधकरण और अर्जुनसिंह की कारगुज़ारी अच्छी रही । वांसवाड़ा राज्य ने प्रतापगढ़ राज्य के अजंदा गांव को वि० सं० १६१७ ( ई० स० १८६० ) में बलपूर्वक दवा लिया था, जिसका मुकदमा में महारावत दलपतसिंह के समय से ही चल रहा था। उसका भी उन्हीं दिनों ( १ ) ज्वालासहाय, वक़ाये राजपूताना, जि० १, पृ० २२८ तथा ३४७ । ठक्क पुस्तक में प्रतापगढ़ राज्य की तरफ़ से इस झगड़े में मारे जानेवाले व्यक्ति की संख्या २६ औौर घायलों की ५४ दी है। "वीरविनोद" (द्वितीय भाग, पृ० १०३६) में बांसवाड़ा के कामदार चिमनलाल कोठारी पर दस हजार रुपये जुरमाना होने का उल्लेख है । फ़ैसला हुआ, जिसमें उक्त गांव पर प्रतापगढ़ राज्य का अधिकार कराया गया और बांसवाड़ा राज्य की ओर से सुबूत में जो पत्र आदि पेश किये गये वे जाली माने गये । इस घटना से अंग्रेज़ सरकार का बांसवाड़ा के महारावल लक्ष्मणसिंह के प्रति विलकुल विश्वास उठ गया और उसकी बहुत बदनामी हुई । फलस्वरूप अंग्रेज़ सरकार ने छः वर्ष तक के लिए उसकी सलामी की चार तोपें घटा दीं, जो पीछी ई० स० १८७६ ( वि० सं० १६३६ ) तक न बढ़ीं । वि० सं० १९३२ ( ई० स० १८७५ नवंबर ) में भारत का वाइसरॉय और गवर्नर जेनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक बम्बई से मालवे की तरफ़ होकर उदयमहारावत का नीमच जाकर पुर गया । उस समय नीमच के मुक़ाम पर महावाइसरॉय लॉर्ड नॉर्थब्रुक से रावत उदयसिंह ने जाकर उक्त वाइसरॉय से मुलाक़ात की और फ़रवरी ई० स० १८७६ ( वि० सं० १६३२ ) में उसने राजपूताना के एजेंट गवर्नर-जेनरल सर ए० सी० लॉयल से भी नीमच जाकर मुलाकात की । मेवाड़ तथा टोंक राज्य के नींबाहेड़ा परगने में बसनेवाले मोधिये बड़े जरायम पेशा थे । उन दिनों वे अवसर पाकर प्रतापगढ़ राज्य में जा घुसे और वहां श्रवाद होने का विचार कर कुछ चौकीदारों में नौकर हो गये । इसकी इत्तला महारावत को मिलने पर उसने ऐसे जरायम पेशा लोगों को अपने राज्य में आबाद करने में हानि समझ, वहां उनको न ठहरने दिया, जिससे उसके राज्य में चोरी-धाड़ों का भय कम हो गया । ( १ ) ज्वालासहाय, वक़ाये राजपूताना; जि० १, पृ० ५५० । वीरविनोद, द्वितीय भाग, पृ० १०३६ । चर्सकिन, गैजेटियर भव् घांसवाड़ा स्टेट; पृ० १६५ । एचिसन ; ट्रीटीज़, एंगेजमेंट्स एण्ड सनद्ज्ञ, जि० ३, पृ० ४४५-६ । ( २ ) ज्वालासहाय, वक्काये राजपूताना, जि० १, पृ. २६४ । महारावत का कामदार ओंकारलाल व्यास कारगुज़ार व्यक्ति था । वि० सं० १६३२ ( ई० स० १८७५ ) में उसको एक बदमाश सिपाही ने तलवार का प्रहार कर घायल कर दिया, जिससे वह कुछ दिनों पीछे मर गया । घातक उसी समय मार डाला गया और उसके शामिल रहनेवाले व्यक्तियों को क़ैद की सज़ा दी गई । महारावत ने उस ( ओंकारलाल ) के पुत्र कोमलराम के प्रति सहानुभूति प्रकट कर उसको अपने यहां ही रक्खा और उससे राज्य का काम लेने लगे, किन्तु वस्तुतः राज्य का सब कार्य महारावत की श्राज्ञानुसार ही होता था' । प्रतापगढ़ राज्य की अधिकांश ज़मीन पैदावार के लिए बहुत ही उपयोगी है। वहां पहले अफ़ीम की काश्त अधिकता से होती थी, जो श्रच्छी जात की होती थी एवं अनाज की पैदावारी भी अच्छी थी । महारावत के उदार विचार और प्रयत्न से वहां के ऊजड़ गांव फिर बस गये और काश्तकारों को रियायतें और तसल्ली देने से वहां की तमाम ज़मीन में खेती होने लगी तथा कृषि योग्य भूमि में से कुछ भी खाली न बची । केवल एक गांव बांसवाड़ा के भीलों की ज्यादती से वीरान था । बांसघाड़ा के भील प्रतापगढ़ की प्रजा से चौथ लेने का दावा करते थे । ई० स० १८७४ ( वि० सं० १९३१ ) में मेवाड़ राज्य के धरियावद पट्टे की तरफ़ के गांगा की पाल के मीणों ने कप्तान चार्ल्स स्ट्रेटन पर हमला भी किया; किंतु महारावत के अच्छे प्रबन्ध से प्रतापगढ़ राज्य के निवासी भील-मीणे ( १ ) ज्वालासहाय, चक़ाये राजपूताना, जि० १, पृ० १६०, २६२-४ ओंकारलाल व्यास जाति का श्रौदीच्य ब्राह्मण था। उसने कई वर्षों तक रतलाम राज्य में काम किया था, जिससे उसको अच्छा अनुभव हो गया था । वि० सं० १६३२ वैशाख यदि ३ ( ई० स० १८७५ ता० २३ अप्रैल ) को महारावत ने उसको बांसलाही गांव प्रदान किया, जो अद्यावधि उसके वंशजों के पास विद्यमान है । किसी भी उपद्रव में सम्मिलित न हुए और वे शांतिप्रिय बने रहे । श्रीमती महाराणी विक्टोरिया ने भारत का राज्याधिकार अपने हाथ में लेने के पीछे "सम्राची" (Empress of India) पदवी धारण की । दिल्ली दरवार के उपलक्ष्य उस सम्बन्ध में ई० स० १८७७ ता० १ जनवरी में महारावत को झंडा ( वि०सं० १९३३ माघ वदि २ ) सोमवार को भारत मिलना के तत्कालीन गवर्नर जेनरल और वाइसरॉय लॉर्ड लिटन ने दिल्ली नगर में एक वृहत् दरबार करना निश्चित किया । इस अवसर पर भारत के नरेशों को भी दरबार में सम्मिलित होने के लिए निमन्त्रण पत्र भेजे गये । तदनुसार भारत के कई नरेश दिल्ली जाकर उक्त दरवार में सम्मिलित हुए । कारण विशेष से महारावत उदयसिंह दरबार में सम्मिलित नहीं हुआ, उसके लिए वाइसरॉय लॉर्ड लिटन ने शाही झंडा ( निशान ) भेजना स्थिर किया, जो वि० सं० १९३६ ( ई० स० १८७६ ) में मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट मेजर टी० केडिल प्रतापगढ़ लेकर गया और एक बड़े दरवार में वह महारावत को दिया गया । वि० सं० १९३७ ( ई० स० १८८१ ) के शीतकाल में इस राज्य में प्रथम वार मनुष्य - गणना हुई। इस अवसर पर उदयपुर राज्य में भीलों का उपद्रव हो गया था। प्रतापगढ़ राज्य, मेवाड़ राज्य से मिला हुआ है और वहां के अधिकांश निवासी भील, मीरो हैं, जिससे वहां भी उपद्रव हो जोन की आशंका हुई; परन्तु महारावत उत्तम प्रबन्ध से प्रतापगढ़ राज्य में ऐसा उपद्रव न हुआ और शांतिपूर्वक मनुष्य गणना का कार्य होकर वहां की जन संख्या में ७६५६८ व्यक्तियों की गणना हुई। इसके दो वर्ष पीछे वि० सं० १६३६ ( ई० स० १८८३) में महारावत नीमच की छावनी गया, जहां उस समय इंदौर का भूतपूर्व महाराजा ( १ ) अर्सकिन; गैजेटियर ऑॉव् प्रतापगढ़ स्टेट; पृ० २०१ । तुकोजीराव होल्कर ( द्वितीय ) भी गया हुआ था । वहां उपर्युक्त नरेश से उसकी कई मुलाकाते हुई। फिर महाराजा के वहां से लौटने पर महारावत अपनी राजधानी में दाखिल हुआ । वि० सं० १९४३ ( ई० स० १८८६) में महारावत ने मन्त्री पद पर पारसी फ्रामजी भीकाजी को नियत किया, जिसने कई वर्षों तक अंग्रेज़ सरकार के राजनैतिक विभाग में दायित्वपूर्ण पदों पर रहकर सेवाएं की थीं तथा मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट के असिस्टेंट के पद पर रहकर बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ राज्यों के बीच होनेवाले सीमा संबंधी झगड़ों को निपटाया था। उसके और महारावत के बनी नहीं, जिससे उसकी जगह मिर्ज़ा मुहम्मदी वेग वहां का कामदार बनाया गया । उसी वर्ष फाल्गुन सुदि ६ ( ई० स० १८८७ ता० १ मार्च) मंगलवार को सैलानेवाली मंझली महाराणी जुहारकुंवरी के उदर से महाराजकुमार अर्जुनसिंह का जन्म हुआ । महारावत के प्रथम राजकुमार का परलोकवास हो जाने के पीछे १७ वर्ष तक कोई संतान न होने से उत्तराधिकारी के विषय में वहां की प्रजा चिंतित थी । अतएव राजकुमार का जन्म होने से उनकी प्रसन्नता का पारावार न रहा। महारावत उक्त राजकुमार के उत्पन्न होने की प्रसन्नता में सहस्रों रुपये व्यय किये और अपने सगे संबंधी नरेशों में से सैलाना और सीतामऊ के राजाओं तथा कानोड़, आसींद (मेवाड़ राज्य) और कुशलगढ़ के सरदारों को अपने यहां निमंत्रित कर पुत्र जन्मोत्सव मनाया; किंतु वह राजकुमार केवल डेढ़ वर्ष की आयु में ही काल कवलित हो गया, जिसका उक्त महारावत के शरीर पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा और संसार से उसको एकवार ही विरक्ति हो गई। वि० सं० १९४४ में महाराणी विक्टोरिया को शासन सूत्र हाथ में लिये पचास वर्ष पूरे हो गये, जिसके उपलक्ष्य में इंग्लैंड और भारत मे स्वर्ण जयंती मनाना निश्चित हुआ । तदनुसार महारावत ने भी अपने यहां दरबार कर स्वर्ण जयन्ती महोत्सव मनाया और इस शुभ दिवस के स्मार्थ राजधानी प्रतापगढ़ में आबादी से पूर्व की तरफ़ मंदसोर जानेचाले मार्ग में एक नाले पर पक्का पुल बनवाया । उसी वर्ष महाराणी विक्टोरिया के तृतीय शाहजादे ड्यूक कनाट का नीमच में आगमन हुआ । उस अवसर पर महारावत ने नीमच जाकर उक्त शाहज़ादे से मुलाक़ात की । महारावत उदयसिंह के समय वि० सं० १९२४ ( ई० स० १८६७ ) में प्रतापगढ़ में रोगियों की चिकित्सा के लिए डिस्पेंसरी खोली गई' । महारावत का नीमच जाकर ड्यूक ऑव् कनाट से मुलाकात शीतला रोग से बचने के लिए उक्त महारावत के समय वि० सं० १९२७ ( ई० स० १८७० ) में टीका लगवाने की व्यवस्था हुई । बालकों की शिक्षा के लिए वि० सं० १९३२ ( ई० स० १८७५ ) में वहां पाठशाला की स्थापना की गई । स्टांपोर्ट फ़ीस का कायदा बनाया जाकर वि० सं० १९४० ( ई० स० १८८३) में वहां जारी किया गया। उसने अपने यहां सेना को बाकायदा क़वायद सिखलाने की भी व्यवस्था की थी। बांसवाड़ा राज्य और प्रतापगढ़ राज्य के सीमा संबंधी मुकदमे भी उसके समय में तय हुए, जिससे झगड़े मिट गये । पुलिस और गिराई की भी उसके समय में वहां कुछ-कुछ व्यवस्था हुई और वि० सं० १९४१ ( ई० स० १८८४ ) में वहां अंग्रेज़ी डाकखाना भी खोला गया । ( १ ) अर्सकिन, गैजेटियर ऑष् प्रतापगढ़ स्टेट, पृ० २२१ । ( ४ ) ज्वालासहाय; वनाये राजपूताना; जि० १, पृ० ५६४ । ( ५ ) असेकिन, गैजेटियर ऑव् प्रतापगढ़ स्टेट, पृ० २१२ ।
28949506d930679757a4abbf9f3fc71c823c87512eefe9ce55377b195f9941b3
pdf
सज्ञाहरण तीन प्रकार का होता है । आधुनिक शल्य क्रिया में सबसे बड़ा योगदान है संज्ञाहरण अथवा एनेस्थीसिया का। आधुनिक शल्य क्रिया चाहे छोटी हो जैसे फोड़े फुंसी अथवा परिवार नियोजन के लिए नसबन्दी या मस्तिष्क और दिल का आपरेशन, मनुष्य की आदि काल से ही ये इच्छा रही है कि उसका जीवन पीड़ा रहित रहे और शल्य क्रिया भी पीड़ा रहित हो । आरम्भ में शल्य क्रिया के लिए आज के मापदण्डों के अनुसार बड़े ही विचित्र तरीके अपनाये जाते थे। सभ्यता के आरम्भ में मनुष्य को भोजन पाने के लिए जंगलो मे शिकार अथवा आखेट करना पड़ता था। इसी प्रकार अन्य पशुओ से रक्षा के लिए उसे प्रयत्न करना पड़ता था और इससे स्वाभाविक था चोट का लग जाना। फिर सभ्यता के साथ-साथ ही मानव ने कुटुम्ब, कबीला, जाति आदि बनाई और फिर उसी के साथ इसमे जुड़े-लड़ाई, युद्ध इत्यादि। इन सब में भी मनुष्यों को चोटें लगती थी। इसके साथ ही मनुष्य ने ढूंढ़ी व पाईं पेड़ की पत्तियाँ, छाले, जड़े तथा पशु जीवन से प्राप्त अनेक पदार्थ जिनमें से कुछ में पायी जाती थी पीड़ा हरने की शक्ति । पुराने ग्रन्थों के अनुसार इन वस्तुओं मे आते हैं, भांग व उससे संबन्धित अन्य पदार्थ । तेरहवीं शताब्दी तक भांग, अफीम तथा इनसे संबंधित वस्तुओं को संज्ञाहरण के काम में लाया जाता रहा है। भांग के नशे में या अफीम के नशे मे अधिकांश शल्य कर्म सम्पादित किये जाते थे। चूंकि इन वस्तुओं की शल्य क्रिया और आप / 23 दी जाने वाली मात्रा के मापन (Standardization) की कोई विधि नहीं थी अतः या तो मात्रा कम होने के कारण पीड़ा होती थी या मात्रा अधिक होने पर रोगी को लम्बे समय के लिए नींद या बेहोशी होती थी इसमें कभी-कभी रोगी की मृत्यु होने की सम्भावना रहती थी। ( 1 ) स्थानीय संज्ञाहरण अथवा सुन्न करना (Local Anaesthesia) कोकीन या उसके नवनिर्मित पदार्थ अपना असर शरीर के अंगों में सुई द्वारा प्रविष्ट कराने पर करते हैं और उनका असर उसी स्थान पर होता है अथवा उस क्षेत्र की स्नायु नलिका को अवरुद्ध करके उसके क्षेत्र को सुन्न कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ रोगी को अपनी स्वाभाविक अवस्था में रखना है, केवल वह क्षेत्र ही जिसको सुन्न किया गया है प्रभावित रहता है और इसलिए इसमें अधिक सावधानी रखने की आवश्यकता नहीं होती है। इतना अवश्य है कि सुन्न होने में कुछ समय लगता है। इसलिए शल्य चिकित्सक को दवा का असर आने के लिए 10-15 मिनट तक रुकना पड़ता है। यहाँ यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि यह संज्ञाहरण केवल उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जिन्हें यह दवा माफिक हो और जो स्वभाव से कुछ दृढ़ हों और ये दृढ़ता शरीर की दृढ़ता से कोई सम्बन्ध नहीं रखती है। हो सकता है कि शरीर से कमजोर दिखने वाला व्यक्ति मन से बहुत दृढ़ हो और वह स्थानीय संज्ञाहरण से अपना बड़ा से बड़ा आपरेशन करा ले। वहीं पर मैं काफी ऐसे व्यक्तियों को जानता हूँ जो शरीर से पूर्ण हृष्ट-पुष्ट होते हुए भी एक सुई लंगवाने से डरते हैं और अगर उन्हें अपना दाँत भी निकलवाना हो तो वे पूर्ण संज्ञाहरण ही चाहेंगे। जहाँ तक हो सके इसे बच्चों और स्त्रियों में नहीं करना चाहिए। बच्चों से यह आशा करना कि वे 24 / शल्य क्रिया और आप स्थानीय संज्ञाहरण में अपनी शल्य क्रिया करा लेंगे बड़ी असंभव सी बात है। स्त्रियाँ भी स्वभाव से बहुत भावुक होती हैं और अधिकांशत इस प्रकार के संज्ञाहरण में शल्य क्रिया नहीं करा पाती हैं। स्थानीय संज्ञाहरण (Local Anaesthesia) के बारे में एक चुटकुला चिकित्सकों के बीच बड़े प्रसन्न हुए अपने भाषण में कहा कि यहाँ के चिकित्सक बड़े अच्छे हैं क्योंकि वे लोकल चीजों का ही प्रयोग करते है बाहर से नहीं मँगाते तथा (Foreign) विदेशी चीजों की तो कोई आवश्यकता है ही नहीं, यही अस्पताल ऐसा है वरना हर जगह तो डाक्टर बाहर की दवा और विदेशी उपकरणो की ही बात करते हैं। उनके लिए लोकल या स्थानीय का मतलब था - उसी नगर या शहर की वस्तुएँ --- जबकि चिकित्सक का आशय शरीर के भाग विशेष से था। ( 2 ) क्षेत्रीय संज्ञाहरण (Regional Anaesthesia) यह अधिकांशतः रीढ़ की हड्डियों में कटि या कमर के बीच मे प्रतिष्ठित सुषुम्ना नाड़ी में कोकेन वर्गीय पदार्थों के प्रवेश के कारण होता है जो क्षेत्रीय संज्ञाहरण कहलाता है। इस संज्ञाहरण मे शरीर के निम्न भाग अर्थात् दोनों पैर तथा पेट के समस्त शल्य कर्म किये जा सकते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ है कि रोगी पूर्ण चेतन अवस्था में रहता है और यदि वह चाहे तो अपना आपरेशन होता हुआ देख सकता है। प्रायः तीव्र इच्छा शक्ति वाले लोग ही अपना आपरेशन देख सकते हैं। वैसे सामान्यतया संज्ञाहरण विशेषज्ञ रोगी की आँख बन्द कर देते हैं। मजेदार बात यह है कि कुछ रोगियो से जब संज्ञाहरण के बाद पूर्ण आपरेशन के बारे में पूछा गया तो उन्हे विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका आपरेशन हो गया है। यदि रोगी और शल्य चिकित्सक चाहे तो आपरेशन के समय पूर्ण वार्तालाप शल्य क्रिया और आप / 25 का आनन्द उठा सकत है और रोगी पूर्ण चेतन अवस्था मे अपनी हड्डियों पर लगी हथौड़ी की चोटों को भी उसी प्रेम से मान लेता है कि हथौड़ी न होकर किसी फूल से उसे छुआ गया हो। श्रीमती कमला देवी की जांघ की हड्डी टूट गई थी तथा डाक्टरों के बार-बार प्रयत्न करने पर भी हड्डी के भाग यथा स्थान नहीं आ रहे थे और फिर प्लास्टर लगाने से भी उन्हें कष्ट होता। 'डाक्टरों ने निर्णय किया कि आपरेशन करके उनकी जांघ की हड्डी में विशेष प्रकार की लौह धातु की नली डाल दी जाय । क्षेत्रीय संज्ञाहरण में उनका आपरेशन हुआ। शल्य चिकित्सक तथा रोगी आपस में बात चीत करते रहे; घर गृहस्थी, सामयिक राजनीति तथा ईश्वर नाम की चर्चा होती रही तथा हड्डी के ऊपर हथौड़ी भी चलती रही, सब प्रसन्न । कहाँ तो कमला जी को डर था कि पता नहीं क्या होगा और कहां ऐसा वातावरण ? रात्रि का सारा भय जाता रहा था तथा आपरेशन कक्ष की रोशनी में कमला सब देख रही थी अन्त में जब शल्य चिकित्सक ने पूछा कि क्या आपरेशन शुरू करें तो कमला हँस कर बोली, "डाक्टर साहब, आपरेशन तो हो चुका है।" यह सब क्षेत्रीय संज्ञाहरण का कमाल था। आपरेशन समाप्त कर पट्टी बांध दी गई और कमला आपरेशन कक्ष के बाहर। 3-4 घंटों के बाद ही पैरों मे पुनः पूरी ताकत आ गई। श्रीमती कमला के टांके जब 10 दिन बाद काटे गये तो उन्हें लगा कि इसमें आपरेशन से अधिक पीड़ा हुई। हालांकि टाँके काटने में कोई पीड़ा नहीं होती है और बिना किसी संज्ञाहरण के ही टांके निकाले जाते हैं। अब तो इस विधि में इतने परिवर्तन आ गये हैं कि दवा की किस्म (Type) तथा उसकी मात्रा के हिसाब से यह निश्चित हो जाता है कि क्षेत्रीय संज्ञाहरण कितने घंटे तक किस भाग पर प्रभावी रहेगा। 26 / शल्य क्रिया और आप संज्ञाहरण के कारण ही आधुनिक शल्य क्रिया उतनी कष्टदायक नहीं रह गई है। व्यक्ति के अन्तर्मन की भावना के कारण ही दर्द अधिक महसूस होता है। ( 3 ) सम्पूर्ण संज्ञाहरण (General Anaesthesia) प्रायः इस प्रकार के संज्ञाहरण के बारे में जनसमुदाय मे सबसे अधिक भ्रांतियाँ हैं। अमुक रोगी की मृत्यु इसलिए हुई कि उसे उसकी ताकत से अधिक क्लोरोफार्म दे दिया गया। अधिकांश रोगी एव उनके सम्बन्धी शायद आपरेशन से उतना नहीं डरते, जितना कि सम्पूर्ण संज्ञाहरण से । अक्सर वे पूछते हैं कि डाक्टर साहब क्लोरोफार्म देगे क्या? आज के युग में क्लोरोफार्म से सम्पूर्ण संज्ञाहरण समाप्त हो गया है और इस देश में शायद ही किसी चिकित्सालय में यह इस्तेमाल किया जाता हो । फिर भी शायद जन मानस में क्लोरोफार्म से उत्पन्न हुई भ्रांतियाँ अभी भी नहीं निकल पायी हैं। क्लोरोफार्म की जगह अब पूर्ण निश्चेतना ईथर तथा अन्य दवाओं या गैसों द्वारा पैदा की जाती है और अब तो केवल निश्चेतना ही नहीं बल्कि श्वांस को भी कृत्रिम रूप से चालू रखा जा सकता है ताकि शरीर के अंगों पर आपरेशन की समस्त क्रियाओं का कम से कम बुरा असर पड़े। इस युग में केवल श्वांस प्रक्रिया ही कृत्रिम नहीं की जाती है, वरन् हृदय एव फुफ्फुस दोनो की क्रियाओं को भी अलग रूप से चालू रखा जाता है। यह एक बड़ा ही रोचक और लोमहर्षक कार्य है जिसमे अब अपने देश के इसी विधि में पारंगत विशेषज्ञ कार्य कर रहे है। पहले शल्य चिकित्सक ही प्रायः सब काम किया करता था; पहले उसने स्थानीय या क्षेत्रीय संज्ञाहरण किया और फिर आपरेशन शुरू किया अथवा सम्पूर्ण संज्ञाहरण किया और यह काम किसी नर्स या कम्पाउन्डर को देकर शल्य कर्म आरम्भ कर दिया। इसमे शल्य क्रिया और उगप 27 जीवन हानि के तथा कष्ट के काफी मौके रहते थे। शल्य चिकित्सक शल्य कर्म के दौरान पूछता रहता था कि 'सब ठीक है' परन्तु अब यह कार्य विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। वे पूरा प्रयत्न करते हैं कि शल्य कर्म बिना किसी खतरे या कष्ट के ठीक प्रकार से सम्पन्न हो 28 / शल्य क्रिया और आप शल्य कर्म कब? शल्य कर्म तीन प्रकार के होते हैं-(अ) पूर्व निश्चित शल्य कर्म (Planned or Cold Surgery) (ब) आकस्मिक शल्य कर्म । (Emergency Surgery) (स) इन दोनों के बीच की स्थिति। ( अ ) पूर्व निश्चित शल्य कर्म कुछ रोगों में शल्य कर्म आवश्यक होता है पर यह अनिवार्य नहीं कि रोग की जानकारी होते ही तत्काल शल्य कर्म कर दिया जाय। जैसे हाइड्रोसील, साधारण हार्निया, टॉन्सिल की सूजन, प्रोस्टेट ग्रन्थि बढ़ना आदि। इन रोगों में यदि रोगी की आंतरिक शारीरिक स्थिति सामान्य नहीं है तो उसके सामान्य हो जाने की प्रतीक्षा की जा सकती है। परन्तु इसके विपरीत बिना किसी विशेष कारण के शल्य कर्म में देर करने से खतरे उत्पन्न हो सकते हैं जिन पर पहले ही प्रकाश डाला जा चुका है। शल्य कर्म का मौसम के साथ जोडा जाना बिल्कुल तर्क संगत नहीं है। किसी भी मौसम में कोई भी शल्य क्रिया की जा सकती है। पर लोग सोचते हैं कि शल्य कर्म जाड़ों मे ठीक रहता है। शायद वे सोचते हैं कि इस मौसम में शरीर की शक्तियाँ तेज रहती हैं, भूख भी अधिक लगती है और पलंग पर लेटे रहने में भी कोई अधिक कष्ट नहीं होता है। जहाँ तक लेटने का प्रश्न है वह सुख तो जाड़ों में नहीं होता है। गर्मी व बरसात में ( वह भी बिना बिजली के ) पलंग पर लेटना बड़ा ही कष्टकारक होता है। यदि इन कारणों से जाड़ों में आपरेशन कराना है तो ठीक है लेकिन शल्य क्रिया और आप/29 इस कारण से आपरेशन को अधिक समय तक नहीं टालना चाहिए (ब) आकस्मिक शल्य कर्म कुछ रोग या परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं कि शल्य क्रिया अविलम्ब आवश्यक हो जाती है। किसी भी कारण से शल्य कर्म मे देर करने से रोगी विकलांग हो सकता है या जीवन खतरे में पड़ सकता है। उदाहरण के लिए उलझी या फटी हुई आँत, आमाशय से रक्तस्राव, घाव का फटना, स्वाँस नली में फँसा पैसा या अन्य पदार्थ, अन्दर या बाहर के रक्तस्राव, फँसा हुआ हर्निया, पथरी के कारण मूत्र मार्ग में रक्त का आना, प्रसव के समय फँसा हुआ शिशु अस्थिभंग के साथ घाव (Compound Fracture ) आदि। इन परिस्थितियों में शीघ्रातिशीघ्र शल्य क्रिया आवश्यक है। हाँ इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि शल्य क्रिया की तैयारी कर लेनी चाहिए। जैसे यदि रोगी कुछ समय पूर्व भोजन कर चुका है तो कुछ समय के लिए शल्य क्रिया स्थगित कर दी जाती है। शरीर से अधिक रक्त निकलने पर शल्य चिकित्सक इस कमी को उसी वर्ग के रक्त आरोहण (Blood Transfusion) द्वारा पूरा करने की कोशिश करते हैं। अगर जल्दी है तो रक्त के विकल्प प्लाज्मा (Plasma, Devtravan, Haemocele) अथवा नमक अथवा नमक-शर्करा (Saline या Glucose Saline) का घोल देकर रोगी की शल्य क्रिया को निरापद बनाने का प्रयत्न किया जाता है। (स) पूर्व निश्चित व आकस्मिक के बीच की स्थिति इस बीच की स्थिति में शल्य क्रिया आवश्यक तो होती है परन्तु इसके तुरन्त किये जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। जैसे वृद्धावस्था में कूल्हे की हड्डी का टूटना। इसमें रोगी को कुछ दिनो में शल्य क्रिया के लिए तैयार कर लिया जाता है। यहाँ यह बात भी 10 / शल्य क्रिया और आप
096b3f3654c8aac80ad8493e44e5136a19639749e91d66d320ff7781493dbf34
speech
एक वर्ष या एक वर्ष या एक महीने के लिए हो सकता है। इसलिए, एक बैलेंस शीट के विपरीत, मान लें कि पिछले वर्ष की बिक्री या पिछले वर्ष के खर्चों को पी और एल खाते में नहीं दिखाया जा सकता है, जो भी आपने लाभ अर्जित किया है वह विशेष अवधि के लिए एक लाभ है। मुझे आशा है कि आप पी और एल को समझ गए हैं, यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया उन्हें हमारे चर्चा मंच पर चर्चा करें। अब, हम केवल एक या दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर विचार करेंगे। एक महत्वपूर्ण अवधारणा आय है क्योंकि हमने यहां राजस्व कहा था; हमने कहा था कि परिचालन से राजस्व मिलता है। (Refer Slide Time: 10:48) Income is the increase in economic benefits during the accounting period in the form of inflows or enhancement of asset or decreases of the liability. The definition of income encompasses revenue and gains. Revenue is an income that arises in the ordinary course of activities. e.g. sales Gains are income, which may or may not arises in the ordinary course of activities. e.g. profit on sale of fixed asset इसलिए, सबसे पहले हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि आय क्या है। अब, एक विशेष लेखांकन अवधि के दौरान आर्थिक लाभ में वृद्धि के रूप में आय को परिभाषित किया गया है। आम तौर पर यह आमदनी या संपत्ति में वृद्धि को दर्शाता है या तो आपको नकदी मिलती है या आपकी कुछ संपत्तियां बढ़ जाती हैं या आपकी देनदारियां कम हो जाती हैं, तो इसे आय कहा जाता है। प्रत्येक आय राजस्व नहीं है, आय दो प्रकार की है। यह राजस्व हो सकता है या यह लाभ हो सकता है। आय जो आपको एक सामान्य व्यावसायिक गतिविधि से या एक दिन से दिन की व्यावसायिक गतिविधि से प्राप्त होती है, उसे राजस्व और आय कहा जाता है, जो एक सामयिक गतिविधि के कारण होता है, क्योंकि एक जीवन भर की गतिविधि को लाभ के रूप में कहा जाता है। इसलिए, हमने पहले से ही एक उदाहरण देखा था कि आपके पास 10 से 15 या 20 वर्षों के बाद जमीन का एक टुकड़ा है। यह आपका सामान्य व्यवसाय नहीं है, आप एक डेवलपर या एक बिल्डर के रूप में नहीं हैं। एक बिल्डर के लिए ज़मीन खरीदना और बेचना सामान्य कोर्स होगा जो राजस्व होगा, लेकिन किसी भी अन्य कंपनी के लिए जमीन की बिक्री या अचल संपत्ति की बिक्री एक जीवन भर की गतिविधि होगी; यह कोई सामान्य या सामान्य गतिविधि नहीं है। तो, अचल संपत्ति की बिक्री से किसी भी लाभ को एक लाभ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। इसलिए, सभी आय राजस्व में हैं और लाभ पी और एल में ध्यान में रखते हैं कि आइटम संख्या मैं राजस्व है, इसलिए आप वहां कोई लाभ नहीं लिखते हैं। क्या मेरी बात तुम्हारी समझ में आ रही है? तो, जो भी आपके सामान्य ऑपरेशन हैं; यदि सेवाओं के प्रावधान से कोई बिक्री या कोई राजस्व होता है, जो कि आपका सामान्य व्यवसाय होगा। इसके अलावा अन्य आय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, तो आप सोचेंगे कि इसे राजस्व कहा जाता है, लेकिन यहां इसे आय कहा जाता है। क्योंकि यहां आप राजस्व के साथ-साथ लाभ भी दिखा सकते हैं जो सामान्य व्यवसायों से नहीं हैं। इसलिए, उदाहरण के लिए, यदि आपके पास शेयरों की खरीद है, तो आपको इस पर कुछ लाभांश मिलेगा या यदि आप बेचकर लाभ कमाते हैं, तो लाभांश के साथ-साथ बिक्री से प्राप्त लाभ दोनों अन्य आय के रूप में दिखाए जाएंगे। उसी तरह, अन्य लाभ भी हैं जिन्हें हमने एक बड़ी भूमि की बिक्री से असाधारण या असाधारण वस्तुओं के रूप में वर्गीकृत किया था। क्या मेरी बात तुम्हारी समझ में आ रही है? (Refer Slide Time: 13:36) Expense is the decrease in economic benefits during the accounting period in the form of outflows or depletion of asset or incurrence of the liability. Expense arises in the ordinary course of activities. e.g. wages Losses may or may not arises in the ordinary course of activities. e.g. loss on sale of fixed asset तो, यहाँ सिर्फ एक वैचारिक समझ है कि आय क्या है। अन्य एक व्यय है। अब लगभग हर कोई खर्च जानता है क्योंकि हर अब और फिर हम कुछ खर्चों पर खर्च करते रहते हैं। तो, व्यय का अर्थ है कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए क्या होगा यदि उसकी नकदी कम हो जाती है तो वह व्यक्ति व्यय के रूप में कहता है क्योंकि नकदी का बहिर्वाह होता है। कभी-कभी परिसंपत्ति के मूल्य में कमी होती है जैसे कि संपत्ति में कमी या कभी-कभी अचानक एक नई देनदारियों का निर्माण। यह सब एक साथ आर्थिक लाभ में कमी का कारण बनता है जिसे व्यय के रूप में कहा जाता है। अब, खर्च भी दो प्रकार के होते हैं। जब यह सामान्य पाठ्यक्रम में होता है, तो हम इसे खर्च के रूप में कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप वेतन का भुगतान करते हैं यदि आप किराया देते हैं, यदि आप बिजली का शुल्क देते हैं, यदि आप यात्रा व्यय का भुगतान करते हैं; यह सब खर्चों के उदाहरण हैं। एक अजीब प्रकार का खर्च भी है जिसे नुकसान के रूप में जाना जाता है, इसलिए यह एक सामान्य पाठ्यक्रम में नहीं है । इसलिए, यदि आपके पास खरीद मशीनरी जीवन 5 वर्ष होने की उम्मीद है, तो हर साल आप मूल्यह्रास करेंगे; मूल्यह्रास आपका खर्च है। लेकिन अचानक मशीनरी एक खराब मशीनरी साबित होती है, यह आपके उद्देश्य की सेवा नहीं करती है या तो यह एक पुरानी तकनीक का है या मशीनरी के चलने में कुछ समस्याएं हैं, इसलिए आपको शून्य मूल्य के लिए दूसरे वर्ष में मशीनरी का निपटान करना होगा । तो, पूरी राशि खो जाती है, फिर हम इसे दिन-प्रतिदिन के खर्च के रूप में नहीं कहेंगे, हम इसे मशीनरी की बिक्री पर नुकसान के रूप में कहेंगे और इसे नुकसान के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। क्या आप समझ रहे हैं? तो, ऐसे प्रकार का कोई भी व्यय जो दिन-प्रतिदिन या सामान्य नहीं है, क्या आप इस तरह के किसी भी नुकसान का कोई अन्य उदाहरण दे सकते हैं? तो, मान लीजिए कि आपने एक पेटेंट खरीदा है; पेटेंट में 4 साल का जीवन है, आप उम्मीद कर रहे थे कि प्रौद्योगिकी 4 वर्षों के लिए उपयोग करने योग्य है, लेकिन अगले साल के भीतर एक बेहतर तकनीक आ गई है; मुझे लगता है कि हम सभी ज्ञान युग में हैं। तो, आप जानते हैं कि पिछले साल आपने एक नया मोबाइल खरीदा था, लेकिन इस साल अब आपके पास एक बेहतर मोबाइल उपलब्ध है, इसलिए आपको लगता है कि पुराना मोबाइल पुराना है। इसलिए, उस विशेष पेटेंट को खरीदने में जो भी खर्च होता है, वह किसी काम का नहीं है, आपको इसे लिखना पड़ सकता है, तो यह भी नुकसान का एक उदाहरण है। इसलिए, जैसा कि आपको खर्च मिला है, हम दो प्रकारों में विभाजित हैं। यदि आप P और L पर वापस जाते हैं, तो आप आइटम IV में देख सकते हैं कि जिस शब्द का उपयोग किया गया है वह खर्च है। इसलिए, राजस्व से हम केवल उन वस्तुओं को काटते हैं जो प्रकृति में सामान्य हैं। जो सामान्य नहीं थे, हम उन्हें ज्यादातर असाधारण या कभी-कभी असाधारण और कुछ मामलों में बंद परिचालन से संबंधित के रूप में वर्गीकृत कर रहे हैं, लेकिन आम तौर पर IV में आइटम, इस IV में आइटम दिन के प्रकार के ख़र्चों के दिन हैं। क्या आप समझ रहे हैं? तो, यह ऐसा था जैसे पी और एल अनिवार्य रूप से आय और व्यय की एक सूची है। (Refer Slide Time: 17:03) Matching Concept The matching concept is an accounting practice whereby expenses are recognized in the same accounting period when the related revenues are recognized. The matching concept thus helps avoid misstating earnings for a period. Reporting revenues for a period without reporting the costs of producing those revenues would result in overstated profits. अब, अंतिम भाग में, हम एक महत्वपूर्ण अवधारणा को देखेंगे जिसे मिलान अवधारणा के रूप में जाना जाता है। अब, आय और व्यय को सूचीबद्ध करने की आवश्यकता क्यों है? एक लेखांकन सिद्धांत के कारण की आवश्यकता है जिसे मिलान के रूप में जाना जाता है। इसलिए, लेखांकन मानदंडों के अनुसार या लेखांकन आवश्यकता के अनुसार वर्ष के अंत में, आपको सभी आय और सभी ख़र्चों की एक सूची बनानी होगी। ऐसी आवश्यकता क्यों है? क्योंकि जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे कि आप लाभ या यानि नहीं जान पाएंगे, इसीलिए एकाउंटेंट ने यह नियम बनाया है कि आय और व्यय को अवधि के अंत में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और यह शुद्ध परिणाम पी और एल खाते में उपलब्ध होना चाहिए। अब, मिलान अवधारणा कमाई में ग़लतफहमी से बचती है। तो, क्या होता है मान लीजिए कि आपने वर्तमान अवधि में राजस्व उत्पन्न किया है, जो व्यय उस से संबंधित है उसे भी उसी अवधि में मान्यता दी जानी चाहिए। यदि आप अब राजस्व रिकॉर्ड करते हैं, तो आप इस वर्ष में बहुत अधिक मुनाफा दिखाएंगे; व्यय अगले वर्ष में आ जाएगा, लेकिन राजस्व में वह वर्ष नहीं है क्योंकि आप फिर से अगले वर्ष में बहुत अधिक नुकसान दिखाएंगे, जिससे गलत स्थिति पैदा हो जाएगी। इसलिए, मिलान अवधारणा कहती है कि जब भी आप राजस्व को पहचानते हैं, तो उससे संबंधित व्यय को भी पहचानते हैं। तो, न तो पहले वर्ष में अत्यधिक लाभ होता है और अगले वर्ष अचानक होने वाले नुकसान से बचा जाता है। इसी तरह, ऐसा नहीं होना चाहिए कि अब आप व्यय रिकॉर्ड करते हैं, लेकिन आप अगले वर्ष में अचानक राजस्व रिकॉर्ड करते हैं जो एक गलत विवरण भी है। क्या आप इस तरह की घटना का उदाहरण दे सकते हैं कि राजस्व अभी दर्ज किया गया है, लेकिन व्यय बाद में अचानक आता है? मान लें कि आप कुछ आइटम बेच रहे हैं और आप ग्राहक को 5 साल की गारंटी देते हैं, आप अभी राजस्व रिकॉर्ड करते हैं, अब लाभ भी दिखाते हैं, लेकिन गारंटी अगले 5 वर्षों के लिए है; इसका मतलब है, अगले 5 वर्षों में जो भी बेची गई वस्तु पर मरम्मत वगैरह है, हमें वर्ष 2, 3, 4 और 5 में व्यवसाय द्वारा खर्च करना होगा। लेकिन वर्ष 1 में आप सभी राजस्व दर्ज किए जाते हैं। तो, आप इससे कैसे बचेंगे? यदि आप हमारी पिछली कक्षा में याद करते हैं, तो हमने चर्चा की थी कि हम एक प्रावधान बनाते हैं कि गारंटी के कारण कितना खर्च होगा, किसी को पता नहीं है, लेकिन हम वर्ष 2, 3, 4 और 5 के लिए एक उचित प्रावधान बनाएंगे और इसे वर्ष में लिखेंगे। 1. यह मिलान अवधारणा के कारण है। क्या आप किसी अन्य उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं? मुझे लगता है कि आपने पिछली दो कक्षाओं में मूल्यह्रास के बारे में सुना है, मूल्यह्रास पर होने वाली थोड़ी चर्चा। उदाहरण के लिए, यदि आप 5 वर्ष की आयु वाले 5 लाख की मशीनरी खरीदते हैं। अब, आपने वर्ष 1 में पूरे 5 लाख का भुगतान किया है, लेकिन आप वर्ष 5 तक लिखी मशीनरी का उपयोग करेंगे। क्या यह सही है कि पूरा व्यय केवल 1 वर्ष में दिखाया गया है? इसका उत्तर नहीं है क्योंकि आप वर्ष 1, 2, 3, 4 और 5 में उस मशीनरी का उपयोग करने जा रहे हैं। इसलिए, उस मशीनरी का उपयोग करके जो राजस्व उत्पन्न होता है, वह 5 वर्षों में फैलता है, इसलिए हम जो करते हैं, उस पर क्या खर्च होता है 5 साल में भी फैल गया। इसलिए, हम जो करते हैं वह विभिन्न प्रकार के प्रावधानों का निर्माण करता है। यदि आपको याद है कि हमने बैलेंस शीट में एक अवधारणा पर चर्चा की थी जिसे प्रावधान कहा जाता है तो प्रावधान की क्या आवश्यकता है क्योंकि मिलान अवधारणा है। उसी तरह से क्यों आपको मूल्यह्रास के लिए प्रदान करना है यह मिलान अवधारणा के कारण भी है; मैं सिर्फ मिलान अवधारणा पर चर्चा कर रहा हूं क्योंकि यह पी और एल के लिए एक आधार है। P और L खाता क्यों तैयार किया गया? यह इस तरह की मिलान अवधारणा के कारण था कि वास्तव में लेखांकन में कई सिद्धांत और अवधारणाएं हैं। इसलिए, जब मैं संबंधित कथन चित्र में आता हूं, तब मैं चर्चा करने जा रहा हूं, ताकि आप अचानक बोर्ड न हों और आप संबंधित विवरण को अवधारणा से संबंधित कर सकें, मुझे आशा है कि आपको मिल रहा है। इसलिए, इस चर्चा के साथ हमने पी पर चर्चा पूरी कर ली है और हमने पहले से ही बैलेंस शीट पर चर्चा की थी, इसलिए अब आप बुनियादी बातों को समझ गए हैं। मुझे पता है कि हमने बाद के सत्रों में कोई केस या समस्याएं नहीं की हैं, लेकिन बयानों की समग्र समझ आपको हो गई है आप इस बयान को पढ़ सकते हैं और एक बार फिर आपको याद दिलाएंगे कि आपको अपनी कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट डाउनलोड करनी है, जिसे आप शुरू करते हैं मेरे व्याख्यान के साथ उनके पी और एल खाते और बैलेंस शीट को पढ़ना। इसलिए, कि आप केवल सैद्धांतिक चर्चा के बजाय वास्तविक वक्तव्य भी देखें, आने वाले सत्रों में हम कुछ प्रासंगिक अवधारणाओं पर चर्चा करेंगे। उदाहरण के लिए, मूल्यह्रास क्या है, आप सूची की गणना कैसे करते हैं और महत्वपूर्ण लेखा नियम क्या हैं। हम इस तरह की कुछ अवधारणाओं पर चर्चा करेंगे और फिर हम पी और एल और बैलेंस शीट की वास्तविक तैयारी करेंगे। उस समय तक उन पी और एल और बैलेंस शीट को पढ़कर अपने आप को तरोताजा रखें। इसलिए, इसके साथ हम यहां रुकेंगे। English Word balance sheet Financial Accounting फाइनेंसियल एकाउंटिंग वित्तीय लेखांकन
4fc3b33803b1a26727e216bb6e3ac09d24b3ac852997733eff809971a0cb2444
pdf
सामने वह उलझ गया । अतः उन उस्तादों ने दिल्ली के तबले में आवश्यक परिवर्तन किये । तबले प्रसिद्ध लखनऊ घराने के जन्म के विषय में उपलब्ध इतिहास के अनुसार जिन दिनों लखनऊ की गद्दी पर नवाव आमुफुद्दौला आसीन थे, उ० मोदू खाँ क्या उनके कुछ वर्षो पश्चात् उनके अनुज उ० बख्शु खाँ, जो दिल्ली के उस्ताद सिद्धार सौ के पौत्र थे, दिल्ली से लखनऊ आकर वस गये । कुछ विद्वानों को मान्यता है कि मोदू सौ नवाव हशमत जंग बहादुर के शासन काल में आये थे । यद्यपि नवाब आसफुद्दीना का समय अधिक तर्कसंगत लगता है । लखनऊ के चौक में स्थित लाल हवेली की कोठी नवाब साहब ने उ० मोदू खाँ को उपहार स्वरूप दी थी । आज वह फोठी उनके वंशजों के हाथ से निकल चुकी है। वहाँ याज पुलिस विभाग (कोतवाली) का एक कार्यालय है। किन्तु इस कोठी के कारण लखनऊ घराने वाले आज भी अपने आपको कोठीवाल अथवा लाल कोठो को परम्परा वाले कहलाने में बड़े गौरव का अनुभव करते हैं । उ० मोदू खाँ तथा उ० बख्य खाँ ने लखनऊ आकर वहाँ की तत्कालीन सागोठिक परिस्थितियों का निरीक्षण किया और तदनुसार परिवर्तन करना आवश्यक समझा। उन दिनों लखनऊ में फत्थक नृत्य का प्रचलन बढ़ रहा था। सगीत की इस विद्या के साथ सुगति के लिये शुद्ध दिल्ली का बन्द बाज उपयुक्त न था । अतः उन्होंने पखावज की वादन शैली एवं रचनाओ का आधार लेकर परिवर्तन करना प्रारम्भ किया। उन्होंने अपनी नवीन वादन शैली में घॉटी से अधिक स्याही को तथा दो उँगलियों के स्थान पर पांचों उँगलियों का प्रयोग शुरू किया । बोलों के निकास में परिवर्तन किये, चॉटी की जगह स्वाही और लव से नाद उत्पन्न करने का प्रयत्न किया तथा गत, परन, टुकड़े, चक्रशर आदि का उसमें समावेश करके एक स्वतन्त्र बाज का निर्माण किया, जो न तो दिल्ली के समान बन्द बाज था और न ही पखावज की भांति थापिया वाला खुला धाज। इस प्रकार देश के पूर्वी भाग में सर्वप्रथम लखनऊ घराना और पूरव बाज अस्तित्व में आये । ज्ञातव्य है कि पूरव के अन्य घराने इसी घराने से विकसित हुये हैं । पूरव बाज पूर्व में इसकी चर्चा की जा चुकी है कि वदला सर्वप्रथम दिल्ली से लखनऊ आया । चूंकि भौगोलिक दृष्टि से यह दिल्ली के पूर्व की ओर स्थित है अतः इस घराने को पूरब का घराना और उसकी वादन शैली को पूरव बाज कहा गया । उल्लेखनीय है कि इसके बाद विक सित फरक्खाबाद और बनारस घराने इसी घराने की देन हैं। अतः ये भी पूरव घराने के अन्तर्गत आते हैं । पूरव का याज लव और स्याही प्रधान बाज है। यह अधिक जोरदार और गूंज युक्त वादन शैली है। इसमें दिल्ली के समान दो उँगलियों के स्थान पर सभी उँगलियों का प्रयोग प्रचलित है। इसमें गठ, टुकड़े, परन, चदार आदि सो बजाये हो जाते हैं और नृत्य के साथ बजाने के लिये विशेष रचनाओं का समावेश किया गया है। संक्षेप में हम यह रह सकते हैं कि पूरव का मात्र सर्वाङ्गीय याज है जो संगीत के लिये उपयुक्त है। यही कारण है कि आज पूर के सबला वादक अधिक धमक रहे हैं । लखनऊ घराने की परम्परा सबसे के इस घराने की उत्पत्ति और प्रगति के पीछे के कलाप्रेमी नया का विशेष सहयोग रहा है। नवाब आसुकुद्दौला के शासन काल में उ० मोदू खाँ साहब लखनऊ और उनके आने के कुछ वर्ष पश्चात् उनके अनुज उ० बख्सु खाँ भी यहाँ आ गये। उन दिनो लखनऊ में संगीत का उच्च स्तरीय वातावरण था। देश के प्रमुख संगीतज्ञ एवं नृत्यकारों ने लखनऊ को ही अपनी कर्मभूमि बना रखा था, जिनमें गुलाम रसूल जैसे खयालिये और गुलाम नबी शोरी जैसे टप्पा गायक लखनऊ दरबार की शोभा बढ़ाते थे । ठुमरी का भी विशेष प्रचलन हो चुका था। फिर भी अभी तक पखावज का ही चलन था । नवाब आसुफुद्दौला के पश्चात् नवाब नासिरुद्दीन हैदर का समय आया । नासिरुद्दीन भी संगीत के प्रेमी एवं पोषक थे। उस समय तक उ० बख्तू खां लखनऊ आ चुके थे । वे अपने भाई मोदू खाँ से उम्र में काफी छोटे थे । ऐसा प्रमाण मिलता है कि इन दोनों भाइयों के स्वभाव में बहुत अन्तर था । बडे भाई मोदू र्खा सरल एव उदार हृदयी व्यक्ति थे जब कि छोटे भाई बख्श खाँ अभिमानी एव कठोर स्वभाव के व्यक्ति थे । वे बहुत अच्छा तबला बजाते थे अतः उसका उन्हें बहुत गर्व था। कहते हैं कि उन दोनो में मधुर सम्बन्ध नही थे । सागीतिक दृष्टि से नवाब वाजिद अली शाह का समय (सन् १८४७ ई० से सन् १८५७ ई० तक) लखनऊ के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है। उनके दरबार में सैकड़ों गायक वादक तथा नृत्यकार थे। नवाब वाजिद अली शाह केवल कला, प्रेमी ही नहीं स्वयं भी कुशल कलाकार थे। उनके समय में लखनऊ का वातावरण अत्यन्त रंगीन, विलासी तथा फलामय था । कत्थक नृत्य के लिये तो वह महत्वपूर्ण समय था, क्योंकि नृत्य के लखनऊ घरानें के शिरोमणि महाराज कालकादीन तथा महाराज बिन्दादीन नवाब वाजिद अली शाह की दरबार के कलारत्तों में से थे । हकीम मोहम्मद करम इमाम ने मजदन-उल-मूसिक़ो में ऐसा उल्लेख किया है कि कालकाबिन्दा के नृत्य के मोदू-वख्श के प्रपौत्र मुन्ने खाँ तबले को सगत किया करते थे । नवाब साहब को तबले के प्रति भी काफी रुचि थी। अतः उनके दरबार में तबले के विद्वानों एवं कलाकारों का भी आदर-सम्मान होता था । इस प्रकार आसुफुद्दौला, नासिरुद्दीन हैदर, हशमत-जंग बहादुर शुजातुद्दौला तथा वाजिद अली शाह जैसे कला-प्रेमी नवाबो की कला परस्ती के कारण लखनऊ में संगीत तथा नृत्य कला को विकसित होने का अवसर मिला । सैकड़ो कलाकार जीवनोपार्जन की चिन्ता से मुक्त होकर कला साधना में लीन हो सके तथा इन्ही की छत्र छाया में तवले के लखनऊ घरानें को उदित तथा विकसित होने का सौभाग्य मिला । उ० मोदू खाँ के पुत्र जाहिद खाँ अच्छे फलाकार थे । उनको मोहम्मद करम इमाम ने 'अच्छा तबला वादक' कहा है जो उनके श्रेष्ठ कलाकार होने का प्रमाण हे । दुर्भाग्य से वे कम अवस्था में हो स्वर्गवासी हुये । मोदू खाँ के प्रमुख शिष्यों में पं० राम सहाय मिश्र का नाम विशेष उल्लेखनीय है । कहते हैं कि उ० मोदू खाँ अपने छोटे भाई उ० बख्शु खाँ के व्यवहार से क्षुब्ध रहा करते थे अतः उन्होंने बनारस से आये कत्थक परिवार के प्रतिभाशाली किशोर राम सहाय मिश्र को तैयार करने की ठानी। मिश्र जी ने बारह वर्ष तक उस्ताद के घर रह कर तबले की पूर्ण शिक्षा प्राप्त की । गुरु तथा गुरु-पत्नी उन्हे पुत्रवत् प्रेम करते थे । गुरु-पत्नी जिनके विषय में प्रचलित है कि वे पंजाब के किसी वडे उस्ताद की पुत्री थी तथा तबले की जानकार थी, रामसहाय को उनके उस्ताद को अनुपस्थिति में तबला सिखाया करती थीं। इस प्रकार गुरु तथा गुरु-पत्नी दोनों ओर से लखनऊ तथा पंजाब धरानें को विपुल विद्या रामसहाय को प्राप्त हुई । मोदू साँ के शिष्यों में दूसरा नाम उनके भतीजे मम्मन सौ उर्फ मम्मू सौ का माता है । उ० बरसू खां के तीन पुत्र थे - मम्मन उर्फ मम्मु सौ सनारी सांता केसरी साँ ( कुछ लोग केसरी खाँ को शिष्य मानते हैं) । उनके दामाद तथा शिष्य हाजी विलायत अली रा थे । वे अपने युग के उत्कृष्ट तबला वादक थे । उ० मम्मू खाँ अपने चाचा उ० मौदू सौ की विद्वत्ता से बहुत प्रभावित थे । अतः अपने पिता बस्स के होते हुये भी उनकी अधिकतर शिक्षा अपने चाचा मोह सौ से सम्पन्न हुयी थी । उस्ताद मम्मू सौ लखनऊ घराने के सलोफा माने गये। तबले में घिरकिट शब्द की निकारा को स्माही से सरका करके पूरे पंजे से बजाने का प्रचलन उन्होंने आरम्भ किया। उ० वस्तू सौ के दूसरे पुत्र सलारी मिया गत यादन मे अत्यंत प्रवीण तथा रंग भरने में बड़े कुशल थे । वे इतना खूबसूरत और सुन्दर बजाते थे कि लोग कहा करते थे कि रावला वादन में सलारी मियां की दसों उँगलियाँ रोशन है। उनकी प्रशंसा मोहम्मद फरम इमाम ने भी को है । बस्यू सौ के दामाद तथा शिष्य हाजी विलायत अली साँथे जो फरवगाबाद के निवासी थे । हाजी साहय को विद्वता के लिये दो मत नहीं है। उनके जैसा कलाकार फदाभिद ही पैदा होता है । हाजी साहब की पत्नी भी तबले को अच्छी ज्ञाता थी। फरसगाबाद लौटने के पश्चात् हाजी साहब ने अपनी पृथक् शैली का निर्माण किया जो सत्पश्चात् फरवताबाद बाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ । हाजी साहब तथा उनके बाज की विस्तृत चर्चा करावाद घराने में की जायेगी । कुछ लोगो में यह धारणा व्याप्त है कि सलारी मिया हाजी साहब के शिष्य थे। किन्तु वास्तव में वे दोनो गुरु भाई भी ये । संभव है कि गुरुतुन होते हुये भी समारी मियां छात्रो साहब से उम्र में छोटे होंगे और उन पर हाजी विलायत अली का बहुत प्रभाव रहा होगा । क्योंकि हाजी साहब की अनेक गठों के जवावी जोडे समारी मियां ने तैयार किये थे। आज भो तबला वादको में सलारी मिया की जवाबी गर्ने और चलत अत्यन्त से पड़ जाती है । उनकी यादन शैली पर लखनऊ से अधिक फरसाबाद घराने की दोसी का प्रभाव सगठा था. जो उनकी रचनाओं से स्पष्ट होता है । उ० वस्तू साँ के एक शिष्य बेचाराम चट्टोपाध्याय थे। उन्होंने अपने गुम स्थान विष्णु. पुर सोट कर लखनऊ घराने की दशैली का प्रचार किया। आगे चल कर यह दोनो परम्परा कहलाने लगी। तत्पश्चात् इम परम्पग को उ० मम्मू रा के एक शिष्य राम प्रगत मन्दोपाध्याय ने भी आगे बढ़ाया। उ० मम्मू व के पुत्र का नाम उ० भाँति यशस्वी कलाकार थे। मोहम्मद फरम मोहम्मद सौ था। मोहम्मद नोभी अपने विद्या की इमाम ने मम्मू माँ के सड़के को गम्मू मे भी मे ने लिया है। मोहम्मद नौ मे दो पुत्र मे । मुन्ने सो तथा आयीद हुमेन तो दोनों नृत्य की संगठि में भी अद्वितीय थे। उन दोनों ने अपने समय में कारी सोनिया भए उ० मोहम्मद सौ नवाय गुजामुद्दीना के दरबारी हसार में जब कि 30 ने माँ नगर अली शाह के दरबार के कारन मे। मोहम्मद कम इमाम है कि महाराज का
044975406d691b1810df1b7cba1fa0dd54742203306c5fde9766229e5b40fd1e
pdf
परमात्मा की प्रार्थना से श्रात्मा में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं । वे भाव किस प्रकार के होते हैं, यह बात अनुभव के द्वारा ही जानी जा सकती है और श्रात्मा स्वयं ही उसे जान सकता है। जैसे सूर्य के प्रकाश को नेत्र द्वारा सूर्य के प्रकाश से हो जाना जा सकता है, उसी प्रकार परमात्मा की प्रार्थना की महिमा श्रगम द्वारा आत्मा से ही जानी जा सकती है। उसे जानकर ज्ञानी पुरुषों के मुख से अनायास यह ध्वनि निकल पड़ती है :सुज्ञानी जीवा ! भज लो रे जिन इक्वीसवां । कहा जा सकता है कि यहाँ ज्ञानी को भगवान का भजन करने की प्रेरणा की गई है, किन्तु ज्ञानी को भजन की क्या आवश्यकता है ? ऐसा कहना कृतज्ञता नहीं, कृतन्त्रता है। पिता से धन ले लेने के पश्चात् यदि पुत्र यह विचार करता है कि श्रथ पिता की सेवा करने से क्या लाभ हैं, तो ऐसे पुत्र को क्या कहना चाहिए ? 'कृवन्न !" इसी प्रकार ज्ञान प्राप्त हो जाने पर परमात्मा के भजन की क्या आवश्यकता है. ऐसा कहने वाला भी कृतन है । सोचना चाहिए कि ज्ञान की प्राप्ति हुई कहाँ से है ? ज्ञान की प्राप्ति परमात्मा की कृपा का ही फल है । अतः उसकी प्रार्थना में मग्न होकर स्तुति करना चाहिए, जिससे ज्ञान पतित न होकर धीरे-धीरे उसी परमात्मा के रूप में पहुँच जाए। यह भी कहा जा सकता है कि ज्ञानी भजन करें ठो ठीक है, परन्तु जो लोग अज्ञान में पड़े हैं चे भजन करने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं ? चोरी, व्यभिचार, घालहत्या आदि सरीखे घोर अपराध करने वाले पापी हैं, उन्हें परमात्मा का भजन करने का क्या अधिकार है ? इसका उत्तर यह है कि औषध रोगी के लिए ही होती है । जिस औषध का सेवन रोगी न कर सके उसका कोई महत्व नहीं, उसकी कोई उपयोगिता नहीं हूँ। परमात्मा का नाम पतितपावन है। अगर पतित लोगो को परमात्मा के भजन से अलग रक्खा जाय तो उसके पतितपावन नाम की महिमा कैसे रहेगी ? अतएव पापी को भी पर मात्मा का भजन करने का अधिकार है। अलवत्ता, यह ध्यान रखना चाहिए कि भजन पापों को काटने के लिए, पापों से मुक्त होने के लिए किया जाना चाहिए, पापों को बढ़ाने के लिए नहीं । ठीक उसी प्रकार जैसे रोगों से मुक्त होने के लिए दवा का सेवन किया जाता है, रोग बढ़ाने के लिए नहीं । तत्त्व की सिद्धि के लिए ज्ञानी, अज्ञानी, पण्डित, मूर्ख आदि सच को परमात्मा का भजन करके पवित्र होना चाहिए । प्रश्न किया जा सकता है कि परमात्मा की भक्ति से क्या प्राप्त होगा ? इस प्रश्न का उत्तर देने में कारण, कार्य और भाव की घटना समझाना आवश्यक है। यह सब बातें बहुत सूक्ष्म हैं। इन्हें समझाने के लिए बहुत समय अपेक्षित है। फिर भी संक्षेप में कहने का प्रयत्न करूंगा । भजन करने से क्या लाभ है, इस प्रश्न का उत्तर इसी प्रार्थना में छा गया है। प्रार्थना में काम क्रोध मद मत्सर तृष्णा दुर्मति निकट न आवे । जिस भजन के करने से काम, क्रोध, मद, मत्सर आदि दुर्भाव नष्ट हो जाते हैं, उसी को वास्तविक भजन समझना चाहिए । अथवा यों कहा जा सकता है कि इन दुर्भावों को नष्ट करने के लिए भजन किया जाता है। ईश्वर के भजन या नामस्मरण में ऐसा क्या चमत्कार है, जिससे आत्मा के समस्त दुर्भाव नष्ट हो जाते हैं ? यह भी समझ लेने की आवश्यकता है। लोग दूसरे कामों की खटपट में पड़े रहते हैं, ईश्वर के नाम से प्रेम नहीं करते। इससे यही निष्कर्प निकलता है कि उन्होंने ईश्वर के नाम की महिमा नहीं जानी । जो लोग अपना समय व्यर्थ नष्ट करते हैं, वे भी उस समय को परमात्मा का स्मरण करके सार्थक नहीं करते । परमात्मा का स्मरण करने वाले का चेहरा भव्य और नेत्र तेजस्वी होते हैं। उसके पास पाप टिक नहीं सकता । भक्त और भक्त में क्या अन्तर है, इसे भक्ति करने वाला ही भलीभाँति समझ सकता है। अत परमात्मा के नाम का घोष हृदय में श्वास की तरह निरन्तर होता रहना चाहिए। आपके हृदय में परमात्मा के नाम का घोप अगर निरन्तर चलता रहेगा तो निश्चित रूप से आपके समस्त पाप भयभीत होकर भाग जाएँगे। संभव है, को इस कथन पर विश्वास न आता हो। इसके लिए एक उदाहरण लो-क्या दीपक के पास अँधेरा आता है ? 'दीपक के प्रकाश से वह दूर ही रहता है।" 'और दीपक यदि वुझ जाए तो ?' प्रार्थना-प्रबोध 1. 'अधेरा घेर लेगा ।' 'इस वात पर पूरा विश्वास है ?' 'हाँ ! मित्रो ! आपको दीपक पर इतना भरोसा है किन्तु परमात्मा के नाम पर नहीं ! आपने परमात्मा के नाम को दीपक के बराबर भी नहीं समझा ! भाइयो, जैसे दीपक के प्रकाश से अंधेरा माग जाता है उसी प्रकार परमात्मा के नाम के अलोकिक प्रकाश से पाप भागेंगे। आप दीपक पर जैसा विश्वास रखते हैं, उसी प्रकार परमात्मा के नाम पर भी विश्वास रखिए । ईश्वर भीतर और बाहर-सव जगह प्रकाश देता है। उसके प्रकाश से कोई जगह खाली नहीं है। यह सत्र जगह देखता है । चाहे आपकोठरी में छिपकर कुछ करें चाहे प्रकट में करें, या मन में सोचें, पर उससे कुछ भी छिप नहीं सकता। आपके भीतर क्या है, यह परमात्मा को भलीभांति विदित है। अगर आपको यह प्रतीति हो जाय कि ईश्वर सब जगह देखता है तो मन नीच या बुरी वांसना की ओर कैसे जाएगा ? आप जानते हो कि आपके साथ राजा है तो क्या आप चोरी करने का साहस करेंगे ? 'नहीं " 'उनसे डरेंगे !" आप सोचेंगे कि राजा के राज्य में रहते हैं, फिर उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य कैसे करें ? इसी तरह जो परमात्मा सर्वत्र है जिसे सर्वत्र जानकर भजते हैं, उसका निरन्तर ध्यान रहने से आपके हृदय में वुरी वासना उत्पन्न नहीं होगी। हृदय में परमात्मा होगा तो आप यही सोचेंगे कि मेरी प्रत्येक भावना का, मेरे प्रत्येक कार्य और संकल्प का भगवान् साक्षी है। मैं कुमार्ग की ओर कैसे जाऊँ ? सोचेंगे कि ऐसा तो साधु ही कर सकते हैं, हम गृहस्थों से ऐसी सावधानी नहीं निभ सकती। गृहस्थ तो जितनी देर साधु के पास बैठे या धर्मक्रिया करे उतना ही धर्म है। बाकी संसार में तो सब पाप ही पाप है। आपकी ऐसी हो भावना रहती है। पर आपको सोचना चाहिए कि यह भावना शास्त्र के अनुकूल है या प्रतिकूल है ? भगवान् ने उन लोगों को भी श्रावक कहा है जो संग्राम करने गये थे । क्या संग्राम में गया हुआ श्रावक अपना श्रावकपन भूल गया था ? या संग्राम में जाने से उसका आचकपन नष्ट हो गया था ? फिर क्यों सोचते हो कि मकान और दुकान में तुम अपने धर्म का पालन नहीं कर सकते ? आप कहेंगे- 'हम संसार में जितने काम करते हैं, कुटुम्व-परिवार का पालन-पोषण करने के लिए करते हैं । विना पाप किये काम नहीं चलता ।' यह कहना किसी अश में सत्य हो सकता है, सवाश में नहीं। गृहस्थ अगर अपनी मर्यादा में रहकर कार्य करे तो वह धर्म का उपार्जन भी कर सकता है। परिवार का भरण-पोषण करने के लिए छल कपट, दुगावाजी, बेईमानी और अनीति करना आवश्यक नहीं है। न्याय-नीति से और प्रामाणिकता से व्यवहार करने वाले का परिवार भूखा नहीं रहता । श्राप गृहस्थी में एकान्त अधर्म मान कर व्यापार में अनीति और प्रामाणिकता को आश्रय देते हैं, यह उचित नहीं है। प्रत्येक स्थिति में मनुष्य अपने धर्म का यथायोग्य पालन कर सकता है। अतएव साधु-संतों के समागम से अन्त. करण मे जो धर्म-भावना श्राप ग्रहण करते हैं, उसका व्यवहार संसार के प्रत्येक कार्य के समय होना चाहिए। जो भी कार्य करो, धर्म को स्मरण करके करो । अपने अन्तकरण को ऐसा साध लो कि वह प्रत्येक दशा में तुम्हारा मार्ग दर्शक न सके । सत्य को सदैव अपने सन्मुख रक्खो । मित्रो ! सत्य पर विश्वास बैठ जाना बड़ा दुर्लभ है। इस विश्वास की प्राप्ति के लिए परमात्मा का भजन करो । काम, क्रोध, मोह कपाय को जीतने का प्रयत्न करो तो हृदय में कभी पाप नहीं जागेगा । भगवान् के भजन से काम, क्रोध, मद, मत्सरता का नाश होता है। अतएव इनका नाश करने के लिए परमात्मा का भजन करना आवश्यक है। करट करने के लिए जो भजन किया जाता है, वह भजन नहीं है। बिना किसी कामना के आत्मा को पवित्र करने के लिए किया गया भजन ही सच्चा भजन है । होंगे कि प्रार्थना तो आप बोलते हैं पर वह चमत्कार, जो प्रार्थना में हम बतलाते हैं, क्यों दिखाई नहीं देता ? प्रार्थना करने पर काम क्रोध आदिका नाश हो जाना चाहिए था, पर वह सब तो अब भी मौजूद है। इसका क्या कारण है ? इस विषय को साकार करके समझाना कठिन है परन्तु यह देखना चाहिए कि प्रार्थना में यह त्रुटि किस ओर से होती है ? प्रार्थना करते समय हमें मलीभांति समझना चाहिए कि जिसकी प्रार्थना की जा रही है वह कौन है ? और इस प्रार्थना का उद्देश्य क्या है ? आपस में लड़ाई करने काले दो मित्रों में से एक ईश्वर से प्रार्थना करता है - 'तू इस लड़ाई में मेरी मदद कर' जिससे न्याय मेरे पक्ष में हो और प्रतिपक्षी का पतन हो जाय ॥ क्या ऐसी प्रार्थना करने वाले ने ईश्वर का स्वरूप समझा है ? उससे पूछा जाय-तू ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है, परन्तु तेरा पक्ष सच्चा है या झूठा ? तब वह कहेगा - झूठा है, इसीलिए तो प्रार्थना कर रहा हूँ । अब जरा विचार कीजिए। एक वकील अगर सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा सावित करता है तो वह झूठ में शरीक हुआ कहलायगा या नहीं ? 'अवश्य कहलाएगा ! ' उस वकील के लिए कहा जायगा कि उसने पैसों के लिए धर्म बेच दिया । उसने पैसे के लोभ में पड़कर सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा बना दिया ! हम उसे सलाह देंगे कि क्या सत्य से तुम्हारा पेट नहीं भरता जो झूठ को अपनाते हो ? जब एक वकील से हम ऐसा कहते हैं तब ईश्वर को सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा बनाने के लिए याद करना क्या ईश्वर को पहचानना है ? ऐसा करने वाला क्या ईश्वर को न्यायी समझता है ? मित्रो ! आप ईश्वर को बनाते हो और फिर कहते हो कि उसकी प्रार्थना से काम-क्रोध आदि का नाश नहीं हुआ, यह कहाँ तक उचित है ? आप उलटा काम-क्रोध की मात्रा को बढ़ाने के लिए प्रार्थना करते हैं और फिर कहते हैं कि ईश्वर - प्रार्थना से काम-क्रोध का नाश क्यों नहीं होता ? भाइयो ! ईश्वर की प्रार्थना में कितना गुण है, यह वात जो अच्छी तरह समझ लेगा, वह राग-द्वेष को बढ़ाने के लिए, तुच्छ लौकिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए या किसी दूसरे को हानि पहुंचाने के लिए उससे प्रार्थना कदापि नहीं करेगा। पर आज लोग चक्कर में पड़े हैं। वे ईश्वर को तभी मानना चाहते हैं जब वह सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा बना दे ! तो फिर ईश्वर की प्रार्थना किस प्रकार करनी चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर में मैं कहता हूँ कि ईश्वर की प्रार्थना इसप्रकार करनी चाहिए कि - 'हे प्रमो ! क्रोध, लोभ, मोह आदि मेरे शत्रु हैं । तेरी शरण लिये बिना इन शत्रुओं का विनाश नहीं हो सकता । श्रतएव मुझे ऐसा बल दीजिए कि मैं कभी झूठ न बोलूँ, किसी पर क्रोध न करूँ और अपने हृदय में लोभ, मोह, मात्सर्य आदि उत्पन्न न होने दूं। अगर आप इस प्रकार की प्रार्थना करते हुए ईश्वर तथा धर्म पर विश्वास रक्जेंगे तो आप को तीन लोक का राज्य भी तुच्छ दिखाई देगा, उस पर भी आपका मन नहीं ललचाएगा । मित्रो ! इस प्रकार अपने दृष्टिकोण को शुद्ध और भावना को पुनीत करके परमेश्वर की प्रार्थना करो। आपका कल्याण होगा ।
96800dc47299ec30ec8223839efde8d9ac02877c
web
सेकीगराख के प्रसिद्ध युद्ध में नोबरी प्रतिभागी - "देशद्रोही" और सेना के कमांडर "पश्चिमी" हैं। सेकिगारा के प्रसिद्ध युद्ध में नोबरी प्रतिभागी - "गद्दार" और दूत इयासु तोकुगावा। अशिगुरु सशिमोनो बहुत सरल थे। उदाहरण के लिए, वंश यी के अश्वगुरु के पास एक साधारण लाल कपड़ा है। बहुत जल्द, हालांकि, सामान्य झंडों को समुराई की पीठ के पीछे पहना जाता था . . . "किसी तरह दिलचस्प नहीं। " उन्हें अपनी उपस्थिति सहित हर कीमत पर बाहर खड़े रहने की जरूरत थी। इसलिए, उनके शशिमोनो ने पूरी तरह से असाधारण उपस्थिति हासिल कर ली। सबसे पहले, वे वॉल्यूमेट्रिक बन गए। लेकिन चूंकि ऐसा कोई संकेत परिभाषा के अनुसार नहीं हो सकता है, तो उन्होंने उन्हें कागज, पंख और फर से बनाना शुरू कर दिया। यह एक अलग रंग के एक बांस की छड़ पर दो या तीन फर गेंदें हो सकती हैं, एक पोल, ईएमए की प्रार्थना प्लेटें या एक आकृति . . . उन पर एक भालू या एक क्रेन लटका हुआ है। शशिमोनो को "चावल मूसल", "लंगर", "दीपक", "छाता", "पंखा", "खोपड़ी" के रूप में जाना जाता है। अर्थात्, उनके रचनाकारों की कल्पना वास्तव में असीम थी। इसके अलावा, बहुत बार समुराई सोम एक था, लेकिन शशिमोनो ने कुछ पूरी तरह से अलग चित्रित किया। मानक कबीले मोरी नागत्सुगु (1610 - 1698) डेम्यो, अगर वे लड़ाई में जाने वाले थे, तो अक्सर जिन्बाओरी को तुरंत हटा देते थे और शशिमोनो के कवच से जुड़ जाते थे, क्योंकि एक ही समय में दोनों को पहनना असंभव था। उदाहरण के लिए, डेम्यो हीरादो ने काले क्षेत्र पर एक सुनहरी डिस्क के रूप में सासोमोनो किया था। ससीमोनो ताकेदा सिंगेन। पुनर्निर्माण। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में झंडे के उभरने के साथ ही दिम्यो की पहचान करने की समस्या, उनके कर्मचारी और उनका दल फिर से गंभीर हो गया है। और 17 वीं शताब्दी की शुरुआत तक, तथाकथित "बड़े मानक" और "छोटे मानक" के उपयोग की शुरुआत के साथ इसे हल करना संभव था - क्रमशः - ओ-दिमाग-जिरुशी और को-माइंड जिरुशी। बहुत बार ये नोबोरी के समान झंडे होते थे, लेकिन केवल एक चौकोर आकार के पैनल के साथ। लेकिन अधिक बार, उन्होंने विभिन्न वस्तुओं का रूप भी लिया - बौद्ध घंटियाँ, छतरियाँ, पंखे, सौर डिस्क। ओसाका कैसल की घेराबंदी में नोबोरी प्रतिभागी। इयासु तोकुगावा के पास एक साधारण सफेद कपड़ा था। कुछ मानक बहुत बड़े और भारी थे। इस तरह के मानक को ले जाना सबसे मजबूत आम लोगों के लिए विश्वसनीय था, और यह उनके लिए एक बड़ा सम्मान था। कभी-कभी उन्हें अपनी पीठ के पीछे मजबूत किया जाता था, जैसे शशिमोनो, लेकिन मानक-वाहक ने खुद को खिंचाव के निशान के एक जोड़े के लिए शाफ्ट का समर्थन किया, और दो और लोगों ने उन्हें पक्षों से खिंचाव के निशान द्वारा पकड़ लिया। लेकिन सबसे कठिन और मुश्किल काम फुकिनुकी पहनना था - लड़कों के महोत्सव में कार्प प्रतीक के समान एक लंबा पेनेंट। हवा ने इसे एक विशाल स्टॉकिंग की तरह उड़ा दिया, और यह बहुत सुंदर था, लेकिन इसे गिरने से रोकना वास्तव में कठिन था। जापानी जापानी नहीं होते अगर वे शशिमोनो और नोबोरी पहनने के लिए बहुत सारे उपकरणों का आविष्कार नहीं करते थे और उन्हें एक समाप्त और सुरुचिपूर्ण रूप देने की कोशिश करते थे। इस तस्वीर में हम उन सभी बुनियादी विवरणों को देखते हैं जिनके साथ साशिमोनो अपनी पीठ पर समुराई के कवच से जुड़ा हुआ था। साशिमोनो शाफ्ट को एक पेंसिल केस में डाला गया था, जो क्रॉस सेक्शन में चौकोर और गोल दोनों हो सकता है और जिसे uke-zutsu कहा जाता है। इसे वार्निश करने का निर्णय लिया गया था, इसलिए यद्यपि यह संबद्धता विशुद्ध रूप से उपयोगितावादी थी, लेकिन इसमें कला के वास्तविक कार्य की उपस्थिति थी। चूंकि दो या तीन झंडे हो सकते हैं, और उनके पीछे पांच झंडे भी हो सकते हैं, इसलिए मामलों की संख्या उनकी संख्या के अनुरूप है। खोल के ऊपरी भाग में, uke-zutsu को गट्टारी ब्रैकेट के साथ रखा गया था। इसमें एक और दो भाग शामिल हो सकते हैं, और एक लकड़ी की प्लेट से गटारों को भी जाना जाता है, फिर से झंडे की संख्या के अनुसार एक या कई उद्घाटन के साथ। यह विवरण कवच के पीछे टिका हुआ था। इससे सशिमोनो माउंट के साथ पृष्ठीय डिजाइन को अलग करना और एक बॉक्स में भंडारण के लिए कवच को स्वयं निकालना आसान हो गया, और इसके साथ इसमें अपने सभी सामान डाल दिए। बेल्ट के स्तर पर कनस्तर की "एड़ी" तय की गई थी - माटी-उके (uketsudo)। आमतौर पर यह आइटम धातु था और कवच के रंग में वार्निश होता था। यह तस्वीर पूरी तरह से इकट्ठे किए गए साशिमोनो के लिए एक मामला दिखाती है। एशिगुरु के लिए गोल कोनों के साथ त्रिकोण के आकार में लकड़ी से बना एक मानक स्थिरता प्रदान की गई थी। इसे बैकपैक की तरह संबंधों पर पहना। उसी समय, इसे कवच की आवश्यकता नहीं थी, जिसने दुश्मन को अपने सैनिकों की संख्या के साथ भी मामले में प्रभावित करना संभव बना दिया, जब उनमें से अधिकांश के पास कोई भी कवच नहीं था। (टोक्यो राष्ट्रीय संग्रहालय) कंस गटारी। एक युद्ध की स्थिति में जापानियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई पहचान चिह्न थे। ये मैका या इबाकु के क्षेत्र स्क्रीन हैं, जिसके साथ कमांड पोस्ट को सभी पक्षों से निकाल दिया गया था। एक नियम के रूप में, उन्होंने एक बहुत बड़े मोन कमांडर को चित्रित किया। कमांड पोस्ट के पास दूतों की टुकड़ी - तस्कई-प्रतिबंध स्थित था, जिसके साथ कमांडर ने आदेश दिए। और यहाँ उनका सबसे महत्वपूर्ण मानक था, दूर से दिखाई देने वाला। यह अजीब लगता है, लेकिन जैसा कि उन्होंने सभी को आज्ञा दी, पर्दे के पीछे बैठे, लेकिन सामान्य तौर पर, दुश्मन की दिशा में समीक्षा उनके लिए छोड़ दी गई थी। लेकिन मुख्य बात यह थी कि सभी जापानी कमांडरों को पूरी तरह से पता था कि नक्शे को कैसे पढ़ना है, स्काउट्स की सेना में shinobi था, और सबसे महत्वपूर्ण बात, वे अपने कमांडरों की निर्विवाद आज्ञाकारिता पर भरोसा नहीं कर सकते थे। यही है, जहां उन्हें डाल दिया गया था, नक्शे पर स्थान का संकेत देते हुए, वहां उन्हें खड़ा होना था, और केवल एक क्रम में वापस जाना था, जो दूतों द्वारा स्थानांतरित किया गया था। इस सब के ढांचे के भीतर, एक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत साहस को दिखा सकता है जितना वह चाहता था, उतने सिर काट सकता है जितना वह चाहता था और उन्हें युद्ध के मैदान में इकट्ठा कर सकता था। लेकिन आदेश को तुरंत निष्पादित किया जाना था। आर्मर मॉडलिंग पत्रिका से अच्छा। कभी-कभी यह अच्छी तरह से डिजाइन की अद्भुत जटिलता का प्रतिनिधित्व करता था! वैसे, दूतों को एक और बहुत ही मनोरंजक स्थिरता द्वारा पहचाना गया था - रंगीन कपड़े का एक बड़ा बैग, एक विशाल बुलबुले की तरह। उनके पास लचीली छड़ों का एक आधार था, ताकि हवा के दबाव में भी कूदने के साथ, उन्होंने अपना रूप नहीं खोया। होरोस ने न केवल दूतों, बल्कि अंगरक्षक टुकड़ी के सैनिकों को भी पहना था। इसे उसी तरह से फास्ट किया गया था जैसे कि शशिमोनो। इसके लिए, इसमें uke-zutsu में पिन डाला गया था। लेकिन हमेशा की तरह, मूल थे, जो अकेले बहुत अच्छा नहीं था। एक शशिमोनो ट्यूब या कोसी-साशी अधिकारियों का बिल्ला इसके साथ जुड़ा हुआ था। "टोकरी" का रूप अच्छी तरह से सबसे विविध हो सकता है। उदाहरण के लिए - एक गुंबद या . . . यूरोपीय महिलाओं की क्रिनोलीन जैसी! चूँकि हॉरर की एक बहुत बड़ी मात्रा थी, जो कि स्पष्ट रूप से यहाँ दिखाई गई आर्मर मॉडलिंग पत्रिका के आंकड़ों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, इसके कंधे पर अच्छे के साथ समुराई की आकृति ने भड़काऊ आयाम हासिल किए, जिसे दुश्मन घोड़ों का बिजूका माना जाता है! क्षैतिज रूप से, वे आमतौर पर चमकीले रंग के कपड़े से बने होते थे, और इसके अलावा, उन्होंने मोन डेम्यो को भी चित्रित किया, जिसने दूत की तत्काल पहचान की अनुमति दी। लेकिन अच्छा सेवा और अन्य उद्देश्यों के लिए कर सकता था। तो, जापानी पांडुलिपियों में से एक में, यह कहा गया था कि होरो और शशिमोनो दोनों अपने मालिकों के सिर को उनमें लपेटने की सेवा कर सकते हैं। "होरो पहनने वाले योद्धा के सिर को हटाने के बाद, उसे एक रेशम की टोपी में लपेटें, और अगर यह एक साधारण योद्धा का सिर है, तो इसे रेशम साशिमोनो में लपेटें। " ये निर्देश हमें न केवल बताते हैं कि रेशम को शशिमोनो और होशो के लिए एक कपड़े के रूप में इस्तेमाल किया गया था, बल्कि यह भी कि जिन सैनिकों ने अच्छी तरह से पहना था उनकी एक विशेष स्थिति थी जो दूसरों की तुलना में अधिक थी। दिलचस्प बात यह है कि जापानियों ने तर्कसंगत रूप से उसी साशिमोनो के निर्माण के लिए संपर्क किया। और अगर समुराई के लिए उन्होंने उन्हें करने की कोशिश की, तो सरल एसिगारू के लिए वे कभी-कभी क्रॉस-पीस के लिए एक अतिरिक्त छड़ी भी महसूस करते थे, लेकिन बस एक बांस के खंभे को झुकाते हैं और उस पर एक संकीर्ण कपड़े डालते हैं। इस मामले में मुख्य भूमिका निभाई गई थी . . . इसकी लंबाई!
20dc51f267383cd7791842655fa671b9bb67db3fd726b7f30919a1b9b7955b18
pdf
झारखण्ड विधान सभा की त्रैमासिक पत्रिका, सितम्बर 2021 प्रथम झारखण्ड विधान सभा वास्तविक रूप से जिसका गठन अविभाजित बिहार में हुआ था, के कार्यकाल में ही झारखण्ड विधान सभा में संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत् दल बदल के मामले आने लगे और यह अब तक अनवरत् जारी है। दल बदल के ऐसे सारे मामले जो अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा के समक्ष उपस्थित हुए या जिसका अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा ने स्वतः संज्ञान लिया, का निष्पादन कालक्रम में हुआ। ऐसे मामलों में जिसका निर्णय अध्यक्ष द्वारा किया गया, कई मामले ऐसे रहे जिसमें झारखण्ड विधान सभा से सदस्यों की सदस्यता समाप्त हुई या सम्बन्धित याचिका को खारिज करते हुए सदस्यों की सदस्यता बनी रही। कई मामले ऐसे आये जो 10वीं अनुसूची के तहत् न्यायाधिकरण के समक्ष लाये गये लेकिन सम्बन्धित सदस्यों, जिनके विरूद्ध याचिका दी गई थी, ने झारखण्ड विधान सभा से अपना त्याग पत्र दे दिया और अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा द्वारा उनके त्याग पत्र को स्वीकार कर लिया गया। अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा के न्यायाधिकरण ने ऐसे मामलों को जिनमें माननीय सदस्यों द्वारा अपना त्याग पत्र दिया गया था और अध्यक्ष द्वारा उसे स्वीकार कर लिया गया, को सदस्य के त्याग के उपरान्त अप्रासंगिक करार देते हुए याचिका को न्यायाधिकरण द्वारा निष्पादित मान लिया गया। एक मामले को छोड़ ऐसे किसी भी मामले में न्यायाधिकरण ने यद्यपि न्याय निर्णय जारी नहीं किये तथापि ये याचिकाएँ निष्पादित मानी गयीं । ऐसा मामला सर्वप्रथम पहली विधान सभा में तत्कालीन अध्यक्ष, श्री मृगेन्द्र प्रताप सिंह के समक्ष उपस्थित हुआ जब जनता दल यूनाईटेड के 4 सदस्य, श्री लाल चन्द महतो, श्री राम चन्द्र केसरी, श्री दल-बदल के मामले में सदस्य का त्याग-पत्र मधुकर भारद्वाज संयुक्त सचिव, झारखण्ड विधान सभा मधु सिंह एवं श्री बच्चा सिंह अपने राजनीतिक दल को छोड़ कर अन्य राजनीतिक दल में शामिल हुए। ये सभी माननीय सदस्य जो जनता दल यूनाईटेड के सदस्य थे, ने स्वेच्छा से राष्ट्रीय जनता दल की सदस्यता दिनांक 28.12.2004 को ग्रहण कर ली। इन चार सदस्यों में से श्री बच्चा सिंह ने अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा को सम्बोधित अपने पत्र में यह उल्लेख करते हुए कि उन्होंने जनता दल यूनाईटेड से अपने मतभेद के कारण जनता दल यूनाईटेड की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली है, दिनांक 31.12.2004 को झारखण्ड विधानसभा की सदस्यता से अपना त्याग पत्र अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा के समक्ष उपस्थित होकर दिया जिसे अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया गया। इस मामले का निष्पादन करते हुए अध्यक्ष के न्यायाधिकरण ने दिनांक 03.01.2005 को अपना निर्णय दिया जिसके तहत् श्री लाल चन्द महतो, श्री मधु सिंह, श्री राम चन्द्र केसरी की सदस्यता झारखण्ड विधान सभा से समाप्त कर दी गई है और श्री बच्चा सिंह का त्याग पत्र स्वीकृत किये जाने के कारण उनके विरूद्ध सदस्यता निर्हरित किये जाने से सम्बन्धित कार्रवाई को समाप्त कर दिया गया। द्वितीय विधान सभा में श्री विष्णु प्रसाद भैया जो भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न से निर्वाचित हुए थे किन्तु श्री बाबूलाल मराण्डी जो उस समय भारतीय जनता पार्टी से अलग हो चुके थे और झारखण्ड विकास मोर्चा का गठन किया था, में घोषित रूप से शामिल हो गये थे। इनके विरूद्ध श्री अर्जुन मुंडा और श्री सैमुएल पॉल केरकेट्टा ने पृथक-पृथक अर्जी दायर की। इन्होंने झारखण्ड विधान सभा की सदस्यता से निर्हरित करने के लिए अपना आवेदन झारखण्ड विधान सभा की त्रैमासिक पत्रिका, सितम्बर 2021 नवम्बर 2021 NAWWW दिनांक 01.03.2007 को अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया। तत्कालीन अध्यक्ष श्री आलमगीर आलम के द्वारा श्री विष्णु प्रसाद भैया को नोटिस जारी किया गया और उन्हें अपना पक्ष रखने का समय दिया गया किन्तु इस पत्राचार और श्री विष्णु प्रसाद भैया द्वारा बार-बार समय की माँग किये जाते रहने के कारण यह मामला लगभग दो वर्षों तक चला और दिनांक 09.01.2009 को श्री विष्णु प्रसाद भैया ने विधान सभा की सदस्यता से अपना त्याग पत्र दे दिया। अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा ने कार्य संचालन के नियम 316 के तहत् उनके त्याग पत्र को स्वीकार लिया । श्री विष्णु प्रसाद भैया के विरूद्ध दर्ज सदस्यता से निर्हरित करने से सम्बन्धित अर्जी को अप्रासंगिक मानते हुए माननीय अध्यक्ष ने इस विषय का पटाक्षेप कर दिया। द्वितीय विधान सभा के कार्यकाल में एक माननीय सदस्य श्री प्रदीप यादव के विरूद्ध भी 10वीं अनुसूची के आलोक में विधान सभा की सदस्यता के निर्हरित करने का विषय अध्यक्ष, विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत हुआ। उनके विरूद्ध दिनांक 26.08.2008 को श्री सैमुएल पॉल केरकेट्टा द्वारा एक अर्जी अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा को दी गई थी। श्री प्रदीप यादव भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में द्वितीय झारखण्ड विधान सभा में निर्वाचित हुए थे और अपनी इच्छा से भारतीय जनता पार्टी से पृथक हुए। श्री बाबूलाल मराण्डी के प्रति सदभाव रखने और उनकी पार्टी में शामिल होने के आधार पर श्री प्रदीप यादव को विधान सभा से उनकी सदस्यता समाप्त करने का अनुरोध आवेदन में किया गया। श्री प्रदीप यादव को झारखण्ड विधान सभा की ओर से नोटिस जारी किया गया। कालान्तर में श्री प्रदीप यादव ने भी दिनांक 16.02.2009 को झारखण्ड विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया और उनके त्याग पत्र दिये जाने के कारण इस विषय को अप्रासंगिक मानते हुए तत्कालीन अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा ने इसका भी पटाक्षेप कर दिया। श्री विष्णु प्रसाद भैया और श्री प्रदीप यादव दोनों ने ही अपना इस्तीफा लोक सभा के निर्वाचन से पूर्व दिया और वे निर्वाचन में नामांकन की तिथि को भारतीय जनता पार्टी के सदस्य नहीं थे। द्वितीय विधान सभा में ही इसके अतिरिक्त 10 मामले विधान सभा अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित हुए जिनमें एक मामले पर निर्णय तत्कालीन अध्यक्ष श्री इन्दर सिंह नामधारी ने लिया और शेष 9 मामलों पर निर्णय श्री आलमगीर आलम, अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा ने लिया । इसी प्रकार तृतीय विधान सभा में भी दल बदल के कई मामले उपस्थित हुए। इनमें सबसे पहला विषय श्री निजामुद्दीन अंसारी के विरूद्ध अध्यक्ष, श्री शशांक शेखर भोक्ता के समक्ष उपस्थित हुआ। श्री अंसारी के विरूद्ध श्री फूलचन्द मंडल ने याचिका दायर की। श्री फूलचन्द मंडल झारखण्ड विकास मोर्चा के सचेतक थे। दिनांक 18.07.2013 को उनकी ओर से याचिका दायर की गई थी। उसमें यह आधार बनाया गया था कि पार्टी के सचेतक द्वारा श्री निजामुद्दीन अंसारी को दिनांक 28.7.2013 को झारखण्ड विधान सभा में नई सरकार द्वारा विश्वास मत प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने के लिए ह्वीप ारी किया गया था किन्तु विधान सभा की कार्यवाही में उपस्थित नहीं होकर पार्टी हवीप का उल्लंघन किया था इसलिए श्री फूलचन्द मंडल द्वारा श्री निजामुद्दीन अंसारी को विधान सभा की सदस्यता से निर्हरित करने के लिए याचिका दी गई। श्री निजामुद्दीन अंसारी को नोटिस जारी किया गया और झारखण्ड विकास मोर्चा के अध्यक्ष श्री बाबूलाल मराण्डी, नेता विधायक दल और श्री प्रदीप यादव, सचेतक, श्री फूलचन्द मंडल से भी पक्ष लिया गया। अपनी अस्वस्थता के कारण श्री फूलचन्द मंडल द्वारा लगाये गये आरोप का उत्तर श्री निजामुद्दीन अंसारी द्वारा नहीं दिया गया बल्कि अपनी पार्टी के सचेतक से यह जानकारी मांगी कि उन्हें यदि ह्वीप जारी किया गया हो तो इसकी जानकारी दी जाए। कालान्तर में श्री निजामुद्दीन अंसारी ने दिनांक 10.11.2014 को अपना इस्तीफा दे दिया और इस आधार पर उनके विरूद्ध 10वीं झारखण्ड विधान सभा की त्रैमासिक पत्रिका, सितम्बर 2021 NWZKT अनुसूची का मामला अप्रासंगिक हो गया। इसके साथ ही इस विषय का पटाक्षेप कर दिया गया। तृतीय विधान सभा की अवधि में ही झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के केन्द्रीय अध्यक्ष श्री बाबूलाल मराण्डी ने दिनांक 02.08.2014 को अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा को एक पत्र के माध्यम से सूचित किया कि तृतीय झारखण्ड विधान सभा के चार विधायक जो झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के चुनाव चिह्न पर निर्वाचित हुए थे, भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये हैं जिसके सम्बन्ध में सभी अखबारों में खबर प्रकाशित हुई है और टी.वी. चौनलों पर इसकी पुष्टि भी की गई है, इसलिए इन सभी विधान सभा सदस्यों के विरूद्ध 10वीं अनुसूची के तहत् कार्रवाई की जाय। जिन चार विधायकों के सम्बन्ध में झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के अध्यक्ष श्री बाबूलाल मराण्डी ने सूचना दी थी वे थे दृ श्री समरेश सिंह (बोकारो), श्री निर्भय कुमार शाहाबादी (गिरिडीह), श्री जय प्रकाश सिंह भोक्ता (सिमरिया) और श्री चन्द्रिका महथा ( जमुआ)। इस तरह की सूचना झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के विधायक दल के नेता श्री प्रदीप यादव ने भी विधान सभा अध्यक्ष को दिया और उन्होंने भी झारखण्ड विधानसभा से इन चार विधायकों की सदस्यता समाप्त करने हेतु अनुरोध किया। दिनांक 02.08.2014 को ही सभी संबंधित चार माननीय सदस्यों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए अध्यक्ष की ओर से पत्र भेजा गया जिसमें इस विषय पर कारण - पृच्छा पूछते हुए कि क्यों नहीं भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत् दल परिवर्तन के आधार पर वर्तमान झारखण्ड विधान सभा की सदस्यता से उन्हें निर्धारित किया जाये, संबंधित सदस्यों को यह भी सूचित किया गया कि इस मामले के निर्णय होने तक झारखण्ड विधान सभा के भीतर होने वाले सभी मत विभाजनों में मताधिकार से वंचित रहेंगे। इस प्रकरण का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि दिनांक 02.08.2014, जिस तिथि को श्री बाबूलाल मराण्डी, केन्द्रीय अध्यक्ष, झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) और श्री प्रदीप यादव, नेता, विधायक दल ने अध्यक्ष को इस सम्बन्ध में कार्रवाई करने का अनुरोध किया उस तिथि को विधान सभा में वर्ष 2014 - 15 के अनुपूरक अनुदान पर चर्चा होनी थी और झारखण्ड विनियोग विधेयक को पारित किया जाना था। दिनांक 02.08.2014 को सभा में बजट कार्य के मध्य ही अध्यक्ष द्वारा यह घोषणा की गई कि श्री बाबूलाल मराण्डी, केन्द्रीय अध्यक्ष, झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) एवं श्री प्रदीप यादव, नेता, विधायक दल, झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) द्वारा झारखण्ड विकास मोर्चा के चार सदस्य श्री समरेश सिंह, श्री निर्भय कुमार शाहाबादी, श्री जय प्रकाश सिंह एवं श्री चन्द्रिका महथा द्वारा भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के कारण इनके विरूद्ध भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है। प्राप्त तथ्यों के अनुसरण में सम्बन्धित सभी चार माननीय सदस्यों को दिनांक 04.08.2014 के 2 बजे अप0 तक स्थिति स्पष्ट करने हेतु पत्र प्रेषित किया गया है तथा उन्हें यह भी अवगत करा दिया गया है कि इस मामले के निर्णय तक उन्हें सदन में होने वाले मतदान से विरत किया जाता है किन्तु ये माननीय सदस्य का सभा की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार बना रहेगा। श्री प्रदीप यादव द्वारा प्रस्तुत कटौती का प्रस्ताव अस्वीकृत हुआ और झारखण्ड विनियोग विधेयक, 2014 पुरःस्थापित और पारित हुआ। झारखण्ड विधान सभा में यह एक महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि माननीय सदस्य जो सभा में उपस्थित थे उन्हें मत देने से विरत किया गया था। इस विषय पर सभा के किसी भी सदस्य द्वारा नियमापत्ति नहीं की गई। इन चारों माननीय सदस्यों के मामले में पृच्छा स्पष्टीकरण एवं उत्तर प्रत्युत्तर के माध्यम से समय बढ़ता गया और अंततः दिनांक 21.08.2014 को सुनवाई हुई जिसमें यह स्पष्ट हुआ कि श्री समरेश सिंह, श्री निर्भय कुमार शाहाबादी, श्री जय प्रकाश झारखण्ड विधान सभा की त्रैमासिक पत्रिका, सितम्बर 2021 नवम्बर 2021 । AAMNAUKAV ।। सिंह भोक्ता और श्री चन्द्रिका महथा दिनांक 20.08. 2014 को भारतीय जनता पार्टी में विधिवत शामिल हो गये। इस सम्बन्ध में दिनांक 25.08.2014 को अन्तिम अवसर देते हुए सम्बन्धित माननीय सदस्यों को अवगत कराया गया कि यदि सम्बन्धित सदस्य 5 बजे अप० तक सशरीर उपस्थित होकर अपना त्याग पत्र सौंप देते हैं तो उनके त्याग पत्र को झारखण्ड विधान सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियम के तहत् एवं संविधान के प्रावधान के तहत् स्वीकार कर लिया जायेगा। इस अवसर का लाभ उठाते हुए तीनों माननीय सदस्य श्री निर्भय कुमार शाहाबादी, श्री जय प्रकाश सिंह भोक्ता तथा श्री चन्द्रिका महथा ने निर्धारित समय सीमा के अन्दर सशरीर उपस्थित होकर झारखण्ड विधान सभा को सदस्यता से अपना त्याग पत्र दे दिया। एक माननीय सदस्य, श्री समरेश सिंह ने दूरभाष पर माननीय अध्यक्ष को सूचित किया कि उनका उपस्थित हो पाना संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि वे अपनी आँख की इलाज के लिए कोलकाता में अवस्थित हैं। इस प्रकार इन चारों माननीय सदस्य जिनके विरूद्ध दल बदल के सम्बन्ध में दिनांक 02.08. 2014 को याचिका दी गई थी, 25.08.2014 को इनके त्याग पत्र के साथ ही समाप्त हो गई यद्यपि दल बदल के आधार पर सभा से निर्हरित किये जाने हेतु ये चारों सदस्य सर्वथा योग्य पाये गये थे। तृतीय झारखण्ड विधानसभा में झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के 11 सदस्य थे और 4 सदस्य प्रमाणिक रूप से दो तिहाई सदस्य संख्या से कम थे। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के मुख्य सचेतक, श्री नलिन सोरेन द्वारा दिनांक 13.08.2014 को अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा को यह लिखित रूप से सूचित किया गया कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सदस्य श्री साईमन मरांडी ने अपनी पार्टी को छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर लिया है और इस प्रकार उन्होंने अपनी पार्टी स्वेच्छा से छोड़ी है इसलिए भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत् दल परिवर्तन के आधार पर वर्तमान झारखण्ड विधान सभा की सदस्यता से इन्हें निर्हरित किया जाय। इस सम्बन्ध में अध्यक्ष, झारखण्ड विधान सभा द्वारा श्री साईमन मरांडी को अपना पक्ष रखने हेतु कई अवसर दिये गये और इस मामले की अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में सुनवाई हुई। न्यायाधिकरण के निर्णय से पूर्व ही श्री साईमन मरांडी ने दिनांक 09.09.2014 को झारखण्ड विधान सभा की सदस्यता से अपना त्याग पत्र दे दिया जिसे अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया गया और इस प्रकार यह मामला उनके त्याग पत्र के साथ ही समाप्त हो गया। तृतीय विधान सभा में एक ऐसा अवसर आया जब झारखण्ड विकास मोर्चा के सचेतक, श्री फूलचन्द मंडल ने ही अपनी पार्टी को छोड़ दिया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। श्री फूलचन्द मंडल ने अपने विधायक दल के नेता एवं श्री बाबूलाल मराण्डी को पत्र लिख कर सूचित किया कि उन्होंने दिनांक 01.08.2014 को ही झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया है। उनके विरूद्ध झारखण्ड विकास मोर्चा विधायक दल के नेता, श्री प्रदीप यादव और श्री बाबूलाल मराण्डी ने दिनांक 04.08.2014 को सूचित किया कि श्री मंडल अपनी पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये हैं इसलिए इनकी सदस्यता 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत् समाप्त कर दी जाये। इस प्रसंग में अध्यक्ष, श्री शशांक शेखर भोक्ता द्वारा कई बार उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए अवसर दिया गया। श्री फूलचन्द मंडल ने दिनांक 25.08.2014 को झारखण्ड विधान सभा से अपना स्थान त्याग कर दिया। विधान सभा अध्यक्ष द्वारा निर्णय लिए जाने से पूर्व ही विधान सभा के सदस्य नहीं रहने के कारण यह मामला उनके त्याग पत्र की स्वीकृति के साथ ही समाप्त हो गया।
79eb6545f0cbf597901a1f947f05b92b71cfa0d3
web
भोजन का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून (International Human Rights) द्वारा स्थापित सिद्धांत है। यह सदस्य राज्य के लिये खाद्य सुरक्षा के अधिकार के सम्मान, संरक्षण और पूर्ति हेतु दायित्व का निर्धारण करता है। खाद्य सुरक्षा के सामान्य सिद्धांत के अंतर्गत चार प्रमुख आयामों यथा - पहुँच, उपलब्धता, उपयोग और स्थिरता को शामिल किया जाता है। सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights) और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights) के सदस्य के रूप में भारत पर भूख से मुक्त होने और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का दायित्व है। 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया गया। इस घोषणा से राष्ट्रों को मानवाधिकारों के संबंध में न केवल प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, बल्कि वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने तथा क्रियान्वित करने के लिये भी अग्रसर हुए। - संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 25 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर को प्राप्त करने का अधिकार है जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त हो। - इसके अंतर्गत खाना, कपड़ा, मकान, चिकित्सा-संबंधी सुविधाएँ और आवश्यक सामाजिक सेवाओं को शामिल किया गया है। - सभी को बेकारी, बीमारी, असमर्थता, वैधव्य, बुढ़ापे या अन्य ऐसी किसी परिस्थिति में आजीविका का साधन न होने पर जो उसके काबू के बाहर हो, सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। - इसके अनुसार, जच्चा और बच्चा को खास सहायता एवं सुविधा प्राप्त करने का अधिकार है। प्रत्येक बच्चे को चाहे वह विवाहित माता से जन्मा हो या अविवाहित से, समान सामाजिक संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है। - भारत में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को दो पीढ़ियों में विभाजित किया जा सकता है। इस संबंध में किया गया सीमांकन सटीकता से बहुत दूर है, जो इस बात को इंगित करता है कि किस प्रकार समय के साथ खाद्य सुरक्षा के विभिन्न तत्त्वों को दिये जाने वाले महत्त्व में परिवर्तन होता गया। - जैसा कि हम सभी जानते हैं कि स्वतंत्रता के बाद के वर्ष भारत के लिये बेहद अशांत रहे। जहाँ एक ओर बंगाल अकाल की यादें ताज़ा थी वहीं दूसरी ओर खाद्यान्न की कमी का डर निरंतर बना हुआ था। भूख को अपर्याप्त खाद्य उत्पादन का पर्याय माना जाता था। - यही कारण रहा कि वर्ष 1974 में विश्व खाद्य सम्मेलन (World Food Conference-WFC) द्वारा उत्पादन के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा को परिभाषित किया गया। डब्लूएफसी के अनुसार, विश्व खाद्य आपूर्ति की हर समय पर्याप्त उपलब्धता ही खाद्य सुरक्षा होती है। - स्पष्ट रूप से इन सभी परिस्थितियों ने भारत को खाद्य उत्पादन की दर में बढ़ोत्तरी करने के लिये विवश किया। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत ने हरित क्रांति को शुरू करने का दृढ़ संकल्प लिया। लेकिन इस निर्णय ने तब एक अजीब स्थिति को जन्म दिया, जब यह कार्यक्रम देश के कुछ हिस्सों में चावल और गेहूँ के उत्पादन में नाटकीय वृद्धि हासिल करने में सफल हो गया और इसके विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव के चलते इसकी बहुत अधिक आलोचना की गई। - वर्तमान की खाद्य सुरक्षा की स्थितियों को समझने और उसके संदर्भ में कार्यवाही करने का आधार 1980 और 1990 के दशक की दो घटनाओं ने प्रदान किया। सर्वप्रथम, जब सुप्रीम कोर्ट ने नाटकीय रूप से उन अधिकारों के दायरे में विस्तार करने का निर्णय लिया जो नागरिक को राज्य के खिलाफ दावा करने में सक्षम बनाते हैं। - हालाँकि इसके अंतर्गत 'भोजन के अधिकार' को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया तथापि इसमें मानव गरिमा के अभिन्न अंग के रूप में मूल अधिकारों में भोजन का उल्लेख किया गया। दूसरी घटना, पहुँच की समस्या के स्थान पर अब उपलब्धता की समस्या मुख्य मुद्दा बनकर उभरी। - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश एक ऐतिहासिक पहल है जिसके ज़रिये जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। खाद्य सुरक्षा विधेयक का खास ज़ोर गरीब-से-गरीब व्यक्ति, महिलाओं और बच्चों की जरूरतें पूरी करने पर है। - इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है। अगर कोई जनसेवक या अधिकृत व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ शिकायत कर सुनवाई का प्रवधान किया गया है। - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया। - समाज के अति निर्धन वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना में इस कानून के तहत सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो क्रमशः चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है। - पूरे देश में यह कानून लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है। - 1980 और 1990 के दशक में खाद्य सुरक्षा का एक दूसरा पक्ष सामने आया जिसके अनुसार, खाद्य आपूर्ति में वृद्धि पर ध्यान दिये जाने के बाद भी भूख को कम करने में भारत सफल नहीं हो सका। इस संबंध में प्राप्त आँकड़ों के अनुसार भारत खाद्य घाटे वाले देश से एक खाद्य अधिशेष वाले देश के रूप में परिवर्तित हो गया है, लेकिन भूख की समस्या जस-की-तस बनी हुई है। - अमर्त्य सेन जैसे आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा किये गए मौलिक शोधों से यह पता चला है कि भूख और खाद्य सुरक्षा मुख्य रूप से 'पहुँच' के मुद्दे से संबद्ध थे, अर्थात् पर्याप्त मात्रा में अनाज और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे विभिन्न सरकारी प्रयासों के बावजूद लोग भुखमरी से मर रहे थे क्योंकि वे शारीरिक रूप से अथवा वित्तीय रूप से (या दोनों) इस भोजन तक पहुँचने में असमर्थ थे। - खाद्य सुरक्षा के इस दृष्टिकोण को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिबिंबित किया गया। वर्ष 1996 में आयोजित विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन में भी इस मुद्दे पर प्रकाश डाला गया। सम्मेलन में स्पष्ट किया गया कि जब सभी लोगों की हर समय पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन तक शारीरिक और आर्थिक पहुँच सुनिश्चित होगी तभी खाद्य सुरक्षा की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। - वर्ष 2001 में एक मामला प्रकाश में आया जब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज द्वारा दाखिल एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 'भोजन के अधिकार' के रूप में एक नए मौलिक अधिकार को प्रस्तुत करते हुए इसे संविधान के जीवन के अधिकार के साथ पढ़ा। - इसके बाद कोर्ट द्वारा जारी आदेशों और निर्देशों के परिणामस्वरूप वर्ष 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) को प्रस्तुत किया गया, जिसके अंतर्गत सभी भारतीयों को मात्रात्मक "भोजन के अधिकार" की गारंटी प्रदान की गई। - यहाँ एक और बात पर गौर किये जाने की आवश्यकता है कि NFSA को उस रूप में पेश नहीं किया जा सका जिस रूप में इससे उपेक्षा की गई थी। इसके मसौदे में गंभीर खामियाँ व्याप्त थीं, जो भारत में भोजन के अधिकार को कानूनी रूप देने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में कमज़ोर साबित हुईं। - आश्चर्यजनक रूप से एनएफएसए भोजन के सार्वभौमिक अधिकार की गारंटी नहीं देता है। इसके बजाए यह कुछ मानदंडों के आधार पर पहचाने गए लोगों के लिये भोजन के अधिकार को सीमित करता है। - साथ ही, इसके अंतर्गत यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि यह अधिनियम "युद्ध, बाढ़, सूखा, आग, चक्रवात या भूकंप" की स्थिति में लागू नहीं होगा (विशेष रूप से, यह केंद्र सरकार के अनुमोदन के अंतर्गत आता है कि वह ऐसी किसी स्थिति के होने की घोषणा करे)। - यह देखते हुए कि उपरोक्त परिस्थितियों में भोजन का अधिकार सबसे अधिक मूल्यवान हो जाता है, यह संदिग्ध प्रतीत होता है कि यह अधिनियम उस अधिकार की गारंटी देने में प्रभावी है या नहीं। - एनएफएसए का एक और समस्याग्रस्त पहलू यह है कि इसके अंतर्गत कुछ ऐसे उद्देश्यों को शामिल किया गया है जिनके संबंध में प्रगतिशील रूप से कार्य किया जाना चाहिये। - इन उद्देश्यों अथवा प्रावधानों में कृषि सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और विकेंद्रीकृत खरीद को शामिल किया गया है, लेकिन इन उद्देश्यों अथवा प्रावधानों में हमारी कृषि प्रणालियों के बारे में मौलिक धारणाओं पर पुनर्विचार करने और खाद्य सुरक्षा को अधिक व्यापक तरीके से देखने की आवश्यकता का कोई जिक्र नहीं किया गया है। - सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ता खाद्यान्न आम लोगों तक पहुँचाया जाता है, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी है। - भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्यान्न वितरण के लिये विश्व में सबसे बड़ा नेटवर्क है। - केंद्र सरकार सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराती है और उसका वितरण स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा आवंटित उचित दर की दुकानों (राशन की दुकान) के द्वारा किया जाता है। - मूल रूप से यह योजना उस धन का दुरुपयोग रोकने के लिये है, जिसे किसी भी सरकारी योजना के लाभार्थी तक पहुँचने से पहले ही बिचौलिये तथा अन्य भ्रष्टाचारी हड़पने की जुगत में रहते हैं। - प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से जुड़ी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी बिचौलिये का कोई काम नहीं है और यह योजना सरकार एवं लाभार्थियों के बीच सीधे चलाई जा रही है। - इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार लाभार्थियों को विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी का भुगतान सीधे उनके बैंक खाते में कर देती है। लाभार्थियों को भुगतान उनके आधार कार्ड के ज़रिये भी किया जा रहा है। - यह तर्कसंगत है कि "प्रगतिशील प्राप्ति" का मुद्दा खाद्य सुरक्षा में सुधार को अवरुद्ध करता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि इसके तहत वर्णित कुछ तत्त्व पहले से ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कानूनों और नीतियों में शामिल हैं। - उन्हें "प्रगतिशील प्राप्ति" के दायित्व के रूप में वर्णित करने से विपरीत परिणाम सामने आएंगे, इसके परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर राज्य एनएफएसए में वर्णित आवश्यक कार्यवाहियों को करने से बचेंगे वहीं, दूसरी ओर जिस उद्देश्य के साथ इस अधिनियम को लाया गया है उसे प्राप्त करना और अधिक कठिन हो जाएगा। - विचारणीय पक्ष यह है कि एनएफएसए को यदि केवल नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये सरकारी प्रतिबद्धता के रूप में स्थापित किया जाता है तो यह अदालतों की कार्रवाई को सीमित कर सकता है। - ऐसे में अधिनियम के तहत नागरिक अधिकारों को किस सीमा तक विस्तृत किया जा सकता है यह चिंता का विषय है। हाल ही में स्वराज अभियान के मामलों में यह डर सामने आया जब भारत में लगातार सूखे की स्थिति से निपटने में सरकारी विफलताओं के प्रभाव स्पष्ट हुए। - हालाँकि एनएफएसए के प्रावधानों को लागू करने के लिये अदालत ने कार्यकारी को आदेश भी जारी किया, लेकिन नागरिकों को क्या दिया जाना चाहिये इस सबका निर्धारण न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता है। - यह देखते हुए कि एनएफएसए में मुख्य रूप से चावल और गेहूँ का उल्लेख किया गया है जो कि केवल कुछ नागरिकों के लिये ही है, इस चिंता को बढ़ावा प्रदान करता है। - अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि जब एनएफएसए के अंतर्गत पहुँच, उपलब्धता और यहाँ तक कि सामंजस्यपूर्ण रूप से उपयोग के मुद्दों को गहनता से संबोधित किया गया है, तो भी इसके अंतर्गत खाद्य आपूर्ति की स्थिरता के मुद्दे पर काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है। - वस्तुतः हमें एक "तीसरी पीढ़ी" के खाद्य सुरक्षा कानून को बनाने की आवश्यकता पर बल देना चाहिये जिसके अंतर्गत प्राकृतिक आपदाओं तथा जलवायु अनुकूलन सहित बहुत-से अन्य मुद्दों को शामिल करते हुए खाद्य सुरक्षा की समस्या को हल किया जाना चाहिये। - इस तरह का ढाँचा सभी चार आयामों में देश की खाद्य सुरक्षा का सामना करने वाली चुनौतियों का समाधान करेगा और इस तरह की विशेषता वाले छोटे-छोटे प्रयास करने की बजाय एक समन्वित प्रयास के तहत इन समस्याओं का हल किया जाना चाहिये। खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत बहुत से अन्य मुद्दे जैसे-असमानता, खाद्य विविधता, स्वदेशी अधिकार और पर्यावरण न्याय भी सम्मिलित होते हैं। कृषि और खाद्य सुरक्षा में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिये हर महीने अनाज की विशेष मात्रा प्रदान करने की बजाय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि गाँव खुद अपनी अवश्यकताओं की पूर्ति करें, जिससे भोजन के अभाव को दूर करने में सहायता मिलेगी। पूर्वोत्तर भारत को खाद्य उत्पादन में सक्षम बनाने के लिये रणनीतिक योजनाएँ और उनके समुचित कार्यान्वयन की आवश्यकता है। यह काम समेकित अनुसंधान और कार्यक्रम विस्तार के ज़रिये ही संभव होगा। 'मोदी सरकार के चार साल' खंड के संदर्भ में अन्य पक्षों को जानने के लिये पढ़ें :
0820a17f49a92df155fa1e653ea1c6e6a5fa92de34763284cc71cd52bcc2620b
pdf
ओङ्कारेणान्तरितं ये जपन्ति गोविन्दस्य पञ्च पदं मनुम् । दर्शयेदात्मरूपं तस्मान्मुमुक्षुरभ्यसेन्नित्यशान्त्यै ।। 'जो लोग सर्वदा यत्नपूर्वक श्रीविष्णुके इस परमपदकी आराधना करते हैं और विषयवासनासे प्रीति नहीं रखते, उनके पुरुषार्थके कारण श्रीविष्णुभगवान् गोपवेषमें उन लोगोंके निकट अपना स्वरूप प्रकाश करते हैं । जो कोई ओंकारयुक्त श्रीगोविन्दके पञ्चपदी मन्त्रका जप करते हैं, उनको श्रीगोविन्द अपना रूप दिखलाते हैं, अतएव मुमुक्षुको शान्ति प्राप्त करनेके निमित्त गोविन्द मन्त्रका बार-बार जप करना चाहिये ।' श्रीभगवान् के आकारमें और मनुष्यके आकारमें यह भेद है कि मनुष्यके आकार मूल प्रकृतिके विकारोंके ( शरीर पञ्चमहाभूतके और अन्तःकरण मलिन सत्त्वगुणके ) बने हुए हैं और कर्माधीन हैं किन्तु ईश्वरका आकार उनकी शक्ति, दैवी प्रकृति ( जो विशुद्ध विद्यारूपिणी है ) का बना हुआ है और उनकी इच्छाके अधीन है । जिस उपास्य देवपर जिसकी रुचि हो उसको उसी देवकी भक्ति करनी चाहिये, अन्तिम परिणाम सत्रका एक ही है, क्योंकि यथार्थमें भिन्न-भिन्न उपास्यदेव ( जैसे विष्णु, शिव, शक्ति, सूर्य, * * उपास्यसूर्य इस प्रकाशसूर्यके अन्तरमें हैं जिनकी यह दृश्यमान मूर्ति केवल आवरण है । आदित्यहृदयमें लिखा है'ध्येयः सदा संवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः । गणपति आदि ) एक ही परम पुरुपके नाना रूप हैं, अतएव सत्र एक ही हैं, भिन्न-भिन्न नहीं है, जैसा पहले भी कहा जा चुका है। उपासकका सम्बन्ध श्रीउपास्यदेवके साथ कृत्रिम नहीं है किन्तु स्वयंसिद्ध, स्वाभाविक और अनादि है । प्रत्येक जीवको उपास्यदेवमेंसे एक-न-एकसे सनातन सम्बन्ध रहता है जो उस जीवका आवश्यक रक्षण और निरीक्षण करते हैं, यद्यपि अज्ञानवश वह उनको न जानता और न मानता हो । यथार्य दीक्षा वही है जब कि परम गुरुदेव शिष्यको उसके इष्टदेवके साथ प्रकटरूपमें सम्बन्ध करवा देते हैं । ध्यानके निमित्त हृदयमें सांगोपांग मूर्ति श्रीइष्टदेवताको ऐसी बनानी अत्यन्तावश्यक है जो अधिक कालतक ज्यों-की-यों बनी रहे जिसका होना बिना किसी आदर्शके सहाराके कठिन है अतएव व्यानके समय हृदय में सांगोपांग मूर्ति बनाने में सहायता पाने के लिये इष्टदेवताका एक सुन्दर चित्ताकर्षक चित्र सामने रखना चाहिये और उसी चित्रकी-सी मूर्ति हृदयमें वनानी चाहिये और उस हृदयस्थ मूर्तिपर मनको बाँधना चाहिये । अभ्यासके प्रारम्भमें ऐसी मूर्ति पूर्णरूपसे बनाने में और उसको ज्यों-की-त्यों बनाये रखने में बहुत कठिनाई जान पड़ेगी, सर्वाग एकाएक बनना और वैसे ही वना रहना कठिन होगा । जैसे कभी पग नहीं दीख पड़ेगा, यदि पग बनाया जायगा, तो बाहु नहीं दीख पड़ेगा इत्यादि, इत्यादि । किन्तु इस कठिनाईको दूर करनेमें 'सूर्यमण्डलके भीतर रहनेवाला कमलासनस नारायणका सदा ध्यान करना चाहिये ।' चित्रको देख लेने से बड़ी सहायता मिलेगी और कुछ कालके अभ्यासके बाद यह कठिनाई जाती रहेगी। पहले यह कार्य सुन्दर प्रतिमाद्वारा लिया जाता था किन्तु चित्र प्रतिमासे अधिक सुन्दर और मनोहर होनेके कारण और सुगमतासे प्राप्य और रखने और अन्यत्र ले जानेमें सुलभ होनेके कारण अब चित्रका व्यवहार करना उचित है और किया जाता है । ध्यानकी प्रथम अवस्था यथार्थ में चित्राङ्कित करना अथवा मूर्तिको हृदयमें चित्रित करना है । जैसा चित्रकार अथवा शिल्पी चित्र बनानेका कार्य सावधानीसे मनको एकाग्र करके करता है उसी प्रकार ध्यान में मूर्तिको, चित्रकी सहायतासे, हृदय-पटमें अंकित करना पड़ता है । क्रम यह है कि पहले हृदयमें श्रीउपास्यदेवके चरणकमलको बनावे, फिर जंघा, फिर कटि, उदर, वक्षःस्थल, मुख आदि क्रमशः बनावे और सर्वांग वन जानेपर तीव्र धारणाके बलसे उस मूर्तिको स्थिर रखे । और उसीपर मन संलग्न करे और साथ-साथ मानसिक जप भी हृदयक्षेत्रमें ही होता रहे । श्रीमद्भागवत पुराणमें लिखा हैएकैकशोऽङ्गानि धियानुभावयेत् पादादि यावद्धसितं गदाभृतः । जितं जितं स्थानमपोह्य धारयेत् परं परं शुद्धयति धीर्यथा यथा ॥ ( २ । २ । १३ ) 'तदनन्तर उन श्रीभगवान्के चरणकमलसे लेकर हास्ययुक्त मुखपर्यन्त प्रत्येक अङ्गका बुद्धिसे ध्यान करे, चरण आदि जो-जो अङ्ग विना यतके ध्यानमें आ जाय उन-उनको त्यागकर आगेआगेके जंघा, जानु आदि अङ्गोंका ध्यान करे, अपनी बुद्धि जिस प्रकार भगवत्स्वरूपमें स्थित रहे उसी रीतिसे करे ।' जिस रूप और भावमें श्रीउपास्यदेवके ध्यान करनेकी रुचि हो उसी रूप और भावमें ध्यान करना चाहिये । क्योंकि वे सर्वत्र हैं । यथाभिमत ध्यानका उल्लेख पहले भी हो चुका है। श्रीभगवान् जिस रूप और भावद्वारा साधकके चित्तको आकर्षण करें उसीमें शुद्ध निष्कामभावसे उसके अभ्यन्तरमें श्रीभगवान्को जान ध्यान करना चाहिये जो स्वाभाविक होनेके कारण शीघ्र फलीभूत होगा । श्रीमद्भागवत पुराण, स्क० ११ अ० २७ का वचन है --- अर्चादिपु यदा यत्र श्रद्धा मां तत्र चार्चयेत् । सर्वभूतेप्वात्मनि च सर्वात्माहमवस्थितः ॥ ४८ ॥ जब और जहाँसे उपासककी श्रद्धा हो तत्र और उसीमें मेरी उपासना- ध्यान करे । क्योंकि मैं सम्पूर्ण प्राणियों में और अपने स्वरूप सर्वात्मभावसे विराजमान हूँ । प्रथम अवस्थामें चित्तको श्रीउपास्यदेवके सांगोपांग (अर्थात् सत्र अवयवयुक्त) मूर्तिपर सन्निवेशित करे और उसमें संलग्न करे और ध्यानद्वारा देखता रहे । किन्तु जब यह ध्यान दृढ़ हो जाय तो एक-एक अङ्गके ध्यान में क्रमशः नीचेके असे प्रवृत्त हो । इसमें प्रथम चरणका ध्यान है । इसी कारण इस साधनाका नाम चरणसेवा है। श्रीमद्भागवत पुराणका वचन हैस्थितं व्रजन्तमासीनं शयानं वा गुहाशयम् । प्रेक्षणीयेहितं ध्यायेच्छुद्धभावेन चेतसा ।। तस्मिन् लब्धपदं चित्तं सर्वावयवसंस्थितम् । विलक्ष्यैकत्र संयुज्यादङ्गे भगवतो मुनिः सञ्चिन्तयेद्भगवतश्चरणारविन्द वज्राङ्कुशध्वजसरोरुहलाञ्छनाढ्यम् । उत्तुङ्गरक्तविलसन्नखचक्रवालज्योत्स्नाभिराहतमहद्धृयान्धकारम् । तीर्थेन मूर्त्यधिकृतेन शिवः शिवोऽभूत् । ध्यातुर्मनःशमलशैलनिसृष्टवज्रं ध्यायेश्चिरं भगवतश्चरणारविन्दम् ।। 'अपनेको जैसा प्रिय हो वैसे, खड़े हुए, चलते हुए, सिंहासनपर बैठे हुए, शेषशय्यापर शयन करते हुए, अनेकों प्रकारकी देखने योग्य लीलाएँ करते हुए और हृदयगुहामें विराजमान श्रीइष्टदेवका शुद्ध भक्तियुक्त अन्तःकरणसे ध्यान करे । तदनन्तर उन श्रीभगवान्के खरूपपर चित्त स्थिर होनेपर तथा उनके सकल अवयव एक साथ चित्तमें चित्रित होने लगे तब वह ध्यान करने - वाला योगी, अपने मनको श्रीभगवान्के एक-एक अवयवमें लगावे । प्रथम तो उत्तमतासे श्रीभगवान्के चरणकमलका ध्यान करे, जो चरणकमल वज्र, अङ्कुश, ध्वजा और कमलके चिह्नोंसे युक्त है तथा जो ऊँचे, रक्तवर्ण और शोभायमान नखोंकी पाँतिकी किरणोंसे, ध्यान करनेवाले सत्पुरुषोंके हृदयके अज्ञानरूप अन्धकारका नाश करता है । जिसके धोनेसे उत्पन्न हुई भागीरथीके जलको जो संसारको तारनेवाला है, मस्तकपर धरकर श्रीशङ्करभगवान् शिवरूप हुए हैं और जो चरणकमल, ध्यान करनेवाले पुरुषोंके मानसिक पापरूप पर्वतपर वज्रके समान छूटता है उस श्रीभगवान्के चरणकमलका चिरकाल पर्यन्त ध्यान करे ।' श्रीमद्भागवत पुराणमें यों आदेश हैनियच्छेद्विपयेभ्योऽक्षान्मनसा बुद्धिसारथिः । मनः कर्मभिराक्षिप्तं शुभार्थे धारयेद्धिया ।। तत्रैकावयवं ध्यायेदव्युच्छिन्नेन चेतसा । मनो निर्विषयं युङ्क्त्वा ततः किञ्चन न स्मरेत् । पदं तत्परमं विष्णोर्मनो यत्र प्रसीदति ॥ (२।१।१८ १९ ) 'निश्चयात्मक बुद्धिको सहायतासे मनके द्वारा इन्द्रियोंको विषयोंसे हटाकर अन्तर्मुख करे, कर्मवासनासे विषयों में दौड़नेवाले मनको निश्रयात्मक बुद्धिसे भगवत् खरूपमें लगावे । तदनन्तर ध्यानगत मूर्तिके प्रत्येक अङ्गका ध्यान करे, ऐसे विषयवासनारहित अपने मनको श्रीभगवान्के स्वरूप - चिन्तनमें लगाकर अन्य किसी वस्तुका भी स्मरण न करे; जहाँ मन प्रसन्न होता है वही विष्णुभगवान्का उत्तम स्थान है ।' हृदयके चिदाकाशमें जो चिन्मय कमल है उसमें इष्टदेवको विराजमान जान ध्यान करना चाहिये । साधारण लोगोंमें उस कमलका नाल ऊपर है और दल नीचे किन्तु व्यान करते समय चिन्तन करना चाहिये कि कमलका दल ऊपर है नाल नीचे, ऐसे अष्टदल कमलमें इष्टदेव हैं। श्रीमद्भागवत पुराण, स्कं० ११ अ० १४ में इस कमलका उल्लेख यों है - हृत्पुण्डरीकमन्तस्थमूर्ध्वनालमधोमुखम् ध्यात्वोर्ध्वमुखमुन्निद्रमपत्रं सकर्णिकम् ॥ ३६॥ श्रीभगवान्की प्रतिमा अथवा चित्रका पूजन भी इसी अवस्थाके अन्तर्गत है । विग्रहमूर्ति अथवा चित्रपटको दीर्घकालतक श्रद्धा और प्रेमसे पूजा करनेसे उसमें ऐसी शक्ति आ जाती है कि उसके दर्शनसे ही पूजा करनेवालेके मनकी अवस्था बदल जाती है और श्रीउपास्यदेवका हृदय में स्फुरण होता है और उनके निमित्त प्रेम उत्पन्न होनेपर चित्त स्वभावतः श्रीउपास्यदेवमें संलग्न और लीन हो जाता है। स्वयं श्रीउपास्यदेवके निमित्त शारीरिक सेवा करनेकी अभिलाषा जो उपासकमें रहती है जो प्रारम्भिक अवस्था में खाभाविक और आवश्यक है उसकी पूर्ति मूर्तिपूजाद्वारा होती है । श्रीउपास्यदेव भक्तके अधीनमें ऐसे रहते हैं कि जिस-जिस प्रकारसे उपासक उनकी पूजा करना चाहता है, उसी उसी प्रकार से वह उसको स्वीकार करते हैं। किन्तु मूर्तिपूजाका मुख्य आधिदैविक तात्पर्य साक्षात् सेवा अथवा ध्यानद्वारा भगवान्की सेवा करना है । जिसकी सिद्धिमें सुन्दर मनोहर चित्ताकर्षक मूर्ति अथवा चित्र परमावश्यक है, बल्कि यों कहना चाहिये कि बिना इनके आश्रयके ध्यानकी सिद्धि होना बहुत ही कठिन है । चित्तका स्वभाव है कि सुन्दर और मनोहरपर आसक्त हो और यथार्थ में श्री उपास्यदेवकी मूर्ति ही परम सुन्दर और मनोहर उपासकके निमित्त है । अतएव श्रीउपास्यदेवकी विग्रह मूर्ति अथवा चित्र सब प्रकारसे परम सुन्दर और चित्ताकर्षक लब्ध की जाय और सुन्दर स्थानमें आदरसे रहे और पूजित हो जिसके होनेसे और जिसकी सहायतासे ध्यानमें सुगमता होगी । अनेक साघक वाह्य पूजा न कर केवल मानसिक पूजा करते हैं और उनको उसीसे लाभ भी होता है। भक्तिमार्गमें विग्रहमूर्तिकी पूजा-सेवासे अनेक सहायता मिलती है और संसारका भी उपकार होता है, क्योंकि साधारण लोगोंके चित्तमें श्रीभगवान्का भाव प्रायः केवल विग्रहमूर्तिहीके देखनेसे होता है और विग्रहकी सेवा-पूजासे उनमें भक्तिभावका सञ्चार होता है। प्रतिमा और उनकी पूजाका स्थान भी, यदि भक्ति-भावसे सेवा हो तो, तेजपुञ्जका केन्द्र ( खजाना ) हो जाता है जहाँसे उक्त तेज सर्वत्र फैलता है और संसारका उपकार करता है । जहाँ भक्तिभावसे प्रतिमाकी पूजा होती हैं, उस तेजपूरित प्रतिमाके भक्तिभावसे दर्शन करनेसे जो तात्कालिक चित्तमें शान्ति प्राप्त होती है वह प्रत्यक्ष ही है । प्रतिमाकी पूजाके निमित्त जो सुगन्ध द्रव्यादि व्यवहार होते, शङ्ख आदि बजाये जाते, धूप-दीप दिये जाते, स्तुति- पाठ-भजन किये जाते, उन सत्रले आधिदैविक उपकारके सिवा संसारका आधिभौतिक उपकार भी होता है । प्रतिमापूजा सत्र साधकोंके लिये अत्यन्तावश्यक नहीं है, क्योंकि किसी-किसीको मानसिक पूजाद्वारा भी उद्देश्यसाधन हो जाता है । मूर्तिपूजा मुख्य करके साधकके लिये प्रेमके उपजानेमें सहायता देनेके निमित्त हैं जिसमें उत्कृष्ट सहायता उसके द्वारा मिलती हैं । किन्तु यदि प्रेम और अनुरागके सञ्चार करनेका उद्देश्य न रखकर ऐसी पूजा केवल राजसिक भावसे की जाय तो वह भक्तिमार्गक साधकको विशेष उपकारी नहीं है । सेवासाधनमें उन्नति करनेपर साधक ऐसी अवस्था में प्राप्त होता है जब कि उसको यथार्थ अदृश्य श्रीसद्गुरुके अस्तित्व में तनिक भी सन्देह नहीं रहता और किसी सत्पुरुषके सत्संगसे श्रीसद्गुरुका ज्ञान उसको प्राप्त हो जाता है । श्रीउपास्यदेवकी कृपासे साधक श्रीसद्गुरुको जानता है और उनके प्रति उसके चित्तमें प्रेम उत्पन्न होता है । वह तब श्रीसद्गुरुका आश्रय लेता है और उनको अपना सद्गुरु करके वरण करता है और जानता है कि बिना श्रीसद्गुरुकी कृपाके श्रीउपास्य देवकी प्राप्ति उसको हो नहीं सकती है । वह दोनों ( श्रीसद्गुरु और श्रीउपास्यदेव ) में अभेद समझता है और दोनों की सेवामें सदा प्रवृत्त होता है । ध्यानके प्रथम भागमें वह श्रीसद्गुरुका ध्यान करता है और जबतक किसी प्रकार श्रीसद्गुरुके रूपका ज्ञान उसको नहीं होता ( जो उपयुक्त समयपर अवश्य होता है ) तबतक वह श्रीसद्गुरुके केवल चरणका ध्यान हृदयमें करता है । वह अपने हृदय में श्रीसद्गुरुके चरणकमलको अङ्कितकर उसीमें चित्तको संलग्नकर प्रेमसे उसी चरणकमलका ध्यान करता है । श्रीसद्गुरुके ध्यानके बाद श्रीउपास्यदेवका ध्यान किया जाता है । चूँकि श्रीसद्गुरु श्री उपास्य देवके साथ साधकको युक्त कर देते हैं, अतएव साधककी दृष्टि में श्रीसद्गुरुका स्थान ऊँचा है और इसी कारण उनकी पूजा और ध्यान पहले किये जाते हैं, पश्चात् श्रीउपास्य देवकी । जब श्रीउपास्यदेव कृपाकर श्रीसद्गुरुके रूपको साधकके हृदयमें अथवा पाढ़सेवा अथवा ध्यान अन्य प्रकार दृष्टिगोचर करा देते हैं तबसे साधक श्रीसद्गुरुके उसी रूपका ध्यान करता है । भक्तिमार्गके ध्यानके लक्ष्य केवल श्रीसद्गुरु और श्रीउपास्य देव हैं, अन्य कोई नहीं और यह ध्यान हृदयका कार्य है, केवल बुद्धिका कार्य नहीं । स्मरणादि निःस्वार्थ सेवाद्वारा हृदयके शुद्ध होनेसे जब प्रेमका अङ्कुर हृदयमें जागृत होता है तभी यथार्थ ध्यानको प्राप्ति सम्भव है जो हृदयमें बिना अनुराग और स्नेहके उत्पन्न हुए हो नहीं सकता । इस अवस्थाका ध्यान स्मरणकी अवस्थाके ध्यानसे अवश्य उच्च है और इसमें हार्दिक प्रेमले ध्यान में प्रवृत्त होना मुख्य है । यह वही अवस्था है जब कि साधकमें श्री उपास्यदेवके प्रति ऐसा प्रगाढ़ प्रेम उत्पन्न होता है कि वह उनसे पृथक् रहना नहीं चाहता, किन्तु अत्यन्त समीप होना चाहता है ताकि वह श्रीभगवान्के तेजःपुलको कणमात्रको भी प्रथम अपने हृदय में धारण करे, फिर वहाँसे बाह्य जगत्में फैलाकर संसारका उपकाररूप भगवत् - सेवा कर सके । भक्तिमार्गका ध्यान ही प्राण है और यही श्रीउपास्यदेवकी प्राप्ति करानेवाला है । ध्यान ध्येय वस्तुके लगातार स्मरण - चिन्तनको कहते हैं जिसका प्रवाह तेलकी अखण्ड धाराके समान (जब कि एक पात्रसे दूसरे पात्र में डाला जाता है) अपरिच्छिन्न होना चाहिये । ध्यानके समय श्रीउपास्यदेवके मन्त्रका जप करना परम आवश्यक है । मूर्तिका ध्यान मनके विक्षेप ( चञ्चलता ) को नाश करेगा और मन्त्र जप मनको लय होनेसे अर्थात् निद्रितावस्था में जानेसे रोकेगा । व्यानकालमें मन जब कभी ध्येयको छोड़कर अथवा अन्य प्रकारसे दूसरी ओर जाय, जो अभ्यासके प्रारम्भमें अवश्य होगा, तो मनको ध्येयसे अन्य किसी ओर जाने न देना चाहिये और मनमें आयी हुई भावनासे शीघ्र मनको हटाकर मन्त्र और देवतापर एकाग्रभावसे लगाना चाहिये, और सतत ऐसी सावधानी रखनी चाहिये कि मन उस कालमें मन्त्र और देवतासे हटके अन्य किसी वस्तु अथवा विषयपर न चला जाय अर्थात् कोई अन्य भावना मनमें न आ जाय । श्रीमद्भागवत पुराण स्क० ११, अ० १४ में कथन है-- सुकुमारमभिध्यायेत्सर्वाङ्गेषु मनो दधत् । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यो मनसाकृष्य तन्मनः । बुद्धया सारथिना धीर प्रणयेन्मयि सर्वतः ॥ तत्सर्वव्यापकं चित्तमाकृप्यैकत्र धारयेत् । नान्यानि चिन्तयेद्भूयः सुस्मितं भावयेन्मुखम् ॥ ( ४२-४३ ) 'मेरे सम्पूर्ण अङ्गोंमें मनको स्थिर करते हुए मेरी सुकुमार मूर्तिका ध्यान करे । मनके द्वारा इन्द्रियोंको उनके विषयोंसे खींचकर, उस मनको धीर पुरुष बुद्धिरूपी सारथिकी सहायतासे सर्वथा केवल मुझमें ही लगा दे । सत्र ओर फैले हुए चित्तको खींचकर एक स्थानमें स्थिर करे और फिर कुछ और चिन्तन न करता हुआ मेरे मधुर मुसकानयुक्त मुखका ही ध्यान करे ।' विना मनके निग्रहके ध्यानकी सिद्धि हो नहीं सकती है । वैराग्य और अभ्याससे मनिग्रह होता है । वैराग्य, आत्मा और अनात्माके ज्ञानद्वारा, अनात्मामें आसक्ति छोड़ने से प्राप्त होता है । है यह ज्ञान-वैराग्य भी भगवत्कृपासे भक्तिकी साधनासे प्राप्त होता है । अतएव मन-निग्रह मुख्य है । श्रीमद्भागवत पुराण स्क० ११ में लिखा है कि मनका निग्रह परम योग है और दान, स्वधर्म, यम, नियम, वेदाध्ययन, शुभ व्रत तथा अन्य उत्तमोत्तम कर्मोका फल मननिग्रह ही है और उसीसे समाधि मिलती है। जैसा किएप चै परमो योगो मनसः संग्रहः स्मृतः । दानं स्वधर्मो सर्वे मनो नियमो यमञ्च श्रुतानि कर्माणि च सतानि । निग्रह लक्षणान्ताः परो हि योगो मनसः समाधिः ॥ यह मन-निग्रह मनके प्रवाहको एकदम रोकनेसे कठिन है किन्तु उपयुक्त भाव-भक्तिसे श्रीभगवान्में, उनकी असीम अकारण कृपा और जीवात्माके मूल कारण और परम सुहृढ़ होनेके ज्ञानके कारण, मनको सन्निवेशित और अर्पित करनेसे मनका निग्रह सहज है । मनके प्रवाहको श्रीभगवान्की ओर कर उन्होंमें संन्यस्त करना ही मुख्य ध्यान है और यही परम भगवत्सेवा हैं। जिसमें मन-बुद्धिका अर्पण मुख्य है । इस प्रकार सदा मनको एकाग्र ही रखनेका यत्न करना और किसी दूसरी ओर नहीं जाने देना, यदि जाय तो वहाँ से हटाकर फिर पूर्ववत् एकाग्र ही रखना, एकहीमें लगाये रखना, अर्थात् किसी अन्य भावनाको मनमें नहीं आने देना, आवे तो उसे स्थान नहीं देकर शीघ्र बाहर कर देना, ऐसा बार-बार करते रहनेको अभ्यास कहते हैं । ऐसा ही अभ्यास अनेक कालतक करनेसे मनको एकाग्र रखनेकी शक्ति प्राप्त होती है । महाभारतमें कहा हैसमाहितं क्षणं किञ्चिद्धयानवर्त्मनि तिष्ठति । पुनर्वायुपथं भ्रान्तं मनो धावति वायुवत् ।। अनिर्वेदो गतक्लेशो गततन्द्रो ह्यमत्सरी । समादध्यात् पुनश्चेतो ध्यानेन ध्यानयोगवित् ॥ ( शान्तिपर्व अध्याय १९५ । १३-१४ ) 'जब मन समाहित होता है तो किञ्चित् कालके लिये ध्यानमार्गमें स्थित रहता है; किन्तु जब कि वह फिर वायुमार्गमें विक्षेप - के कारण जाता है तब वायुसमान द्रुतगामी हो जाता है । ध्यानयोगकी साधनाओंको जाननेवाले पुरुषको उस ( विक्षेप ) से हतोत्साह न होकर कुछ कष्ट न मान आलस्य और द्वेषको त्यागकर अपने मनको ध्यानावस्थित करना चाहिये ।' । जब साधकको प्रेम और अभ्यासद्वारा मनके एकाग्र रखनेकी शक्ति प्राप्त हो * ऐसा नहीं कि सर्वदा एक ही वस्तुपर चित्तको रखना चाहिये किन्तु जब कोई भावना करना अथवा कोई कर्म करना तो उस समय उसी भावना अथवा कर्ममें चित्तको एकाग्र किये रहना चाहिये, अन्य ओर जाने नहीं देना चाहिये । प्रत्येक व्यावहारिक और पारमार्थिक कर्मको एकाग्रभावसे ही करना चाहिये । + इस वाक्यसे यह सिद्ध होता है कि जो साधक कुछ समयतक चित्तके एकाग्र होनेमें कृतकार्य न होनेपर भी यदि अभ्यासमें शिथिलता न कर उसमें प्रवृत्त ही रहेगा तो कभी-न-कभी अवश्य कृतकार्य होगा । जाय जिसके कारण श्री उपास्यदेव में मन ऐसा संलग्न हो जाय कि उनको छोड़कर और किसी वस्तुका ज्ञान नहीं रहे, बल्कि अपनेको भी भूल जाय, केवल एक ध्येयहीका ज्ञान रह जाय, ज्ञाता, ज्ञान, ज्ञेय तीनों एक हो जायँ, तत्र समझना चाहिये कि वह ध्यानकी पराकाष्ठाको पहुँचा है और तत्र ही ध्येयकी प्राप्ति होती है। लिखा हैध्येये सक्तं मनो यस्य ध्येयमेवानुपश्यति । नान्यं पदार्थ जानाति ध्यानमेतत्प्रकीर्त्तितम् ॥ ( गरुडपुराण) 'जिसका मन ध्येयमें ऐसा संलग्न हो कि केवल ध्येयहीको देखे और सिवा उसके किसी अन्य पदार्थकी भावना उस समय चित्तमें न आवे और न जान पड़े तो ऐसी अवस्थाको ध्यान कहते हैं ।' यथार्थ ध्यान वही है जिसमें हृदय प्रेमसे पूर्ण होकर स्वभावतः श्रीउपास्यकी ओर प्रवृत्त होने और लगातार उन्होंमें अविच्छिन्नभावसे लगा रहे । इस प्रकार मनको एकाग्र रखनेका अभ्यास ध्यानकाळके सिवा अन्य कर्मोंके करते समयमें भी करना चाहिये अर्थात् जो काम किया जाय उसीमें भलीभाँति मनको एकाग्र रख किया जाय, जैसा कि नोटमें कहा गया है । ध्यानमें ऐसी शक्ति है कि अन्ततोगत्वा व्याताको ध्येयसे युक्त कर देती है। लिखा हैध्यायन्ति पुरुपं दिव्यमच्युतञ्च स्मरन्ति ये । लभन्ते तेऽच्युतस्थानं श्रुतिरेपा पुरातनी ॥ ( पद्मपुराणान्तर्गत वैशाखमाहात्म्य) यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं घिया । स्नेहाद् द्वेषाद्भयाद्वापि याति तत्तत्स्वरूपताम् ॥ कीटः पेशस्कृतं ध्यायन् कुड्यां तेन प्रवेशितः । याति तत्साम्यतां राजन् पूर्वरूपमसन्त्यजन् ॥ ( श्रीमद्भा० ११ । ९ । २२ २३ ) 'जो व्यक्ति दिव्यपुरुष श्रीभगवान्का ध्यान और स्मरण करते हैं वे श्रीभगवान्के स्थानको प्राप्त करते हैं यह प्राचीन श्रुति है । देही जिस-जिसपर स्नेहसे, द्वेषसे अथवा भयसे जिस किसीमें भी सम्पूर्णरूपसे अपना मन लगा देता है अन्तमें वह तद्रूप हो जाता है । हे राजन् ! इसका दृष्टान्त यह है कि भ्रमरके द्वारा दीवार आदिमें छिद्र करके उसमें बन्द किया हुआ एक प्रकारका कीड़ा भयसे उस भ्रमरका ध्यान करता हुआ पहले रूपको छोड़कर उसीके समान रूपको प्राप्त होता है ।' यह प्रसिद्ध है कि श्रीभगवान्का साक्षात् मिलन ध्यानद्वारा ही होता है । अष्टाङ्गयोगमें भी ध्यानका फल समाधि ( साक्षात् प्राप्ति ) है । गीताके भी अन्तिम अठारह अध्यायको अन्तिम साधनामें भी, जिससे पराभक्ति और ब्रह्मकी साक्षात् प्राप्ति कथित है ध्यान-योग ही मुख्य है ( १८ । ५२ ) और भी उसमें साथ-साथ सद्गुणोंका अनुष्ठान और दुर्गुणोंका त्याग कथित है। उपनिषदोंमें भी ब्रह्मप्राप्तिका साक्षात् साधन ध्यान ही कहा गया है। जैसा किस्वदेहमरणि कृत्वा प्रणवञ्चोत्तरारणिम् । ध्याननिर्मथनाभ्यासाद्देवं पश्येन्निगूढवत् ।।
ce36f90edb8bb2f1edf468cd28ad2998518c9200
web
सीखने के सिद्धांत और उनकी व्यावहारिकता पर एक लेख पढ़ते हुए नरोत्तम दास जी ने जब अखबार में यह पंक्ति पढ़ी, तो जैसे उन्हें कुछ याद हो आया। विश्वविद्यालय वार्षिकोत्सव के मौके पर अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन था। उस दिन वाद-विवाद प्रतियोगिता में नरोत्तम दास के साथ परास्रातक में उन्हीं की कक्षा में पढ़ रही दो और छात्राएं भी उनकी टीम में थीं। विगत दो-तीन वर्षों में अंतर-विभागीय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर समय-समय पर जितनी भी छोटी-बड़ी वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित हुई होंगी, उनमें एक-दो मौकों को छोड़ कर नरोत्तम दास सदा अव्वल रहे। ऐसे में विश्वविद्यालय वार्षिकोत्सव के मौके पर आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी उन्हीं की टीम के जीतने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। अगले दिन स्थानीय अखबारों में यह खबर प्रमुखता से शाया हुई। खबर में नरोत्तम दास की टीम की जीत का सचित्र उल्लेख किया गया था। पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रही टीम में नरोत्तम दास और अन्य दोनों छात्राओं की तस्वीरों के नीचे लिखे नामों को अखबार में पढ़ते ही अचानक उनका माथा ठनका। तस्वीरों के नीचे अन्य प्रतिभागियों के नाम में उन दोनों छात्राओं का नाम तो सही था, लेकिन उनकी तस्वीर के नीचे नाम नरोत्तम दास की जगह नरोत्तम प्रसाद प्रकाशित हो गया था। जबकि उनका नाम तो नरोत्तम दास है। उस खबर को पढ़ कर उन्हें जो खुशी हुई थी, उसमें अपने नाम के आगे छपे त्रुटिपूर्ण उपनाम को देखते ही वह काफूर हो गई। हालांकि उपनाम में इस तरह की सामान्य-सी त्रुटि पर तत्काल उनका ध्यान नहीं गया। कारण कि अखबार में छपी सभी तस्वीरें बहुत साफ नहीं थीं। मगर, जैसे ही उन्हें याद आया कि राजनीति शास्त्र विभाग में उन्हीं की नामराशि का एक और छात्र पढ़ता है, जिसका नाम नरोत्तम प्रसाद है, तो उनके मन में एक अजीब किस्म की चिंता, आशंका-सी हुई। आखिर यह मान-सम्मान, प्रतिष्ठा का भी तो सवाल था। प्रतियोगिता उन्होंने और उनकी टीम ने जीती, लेकिन समाचार में नाम उस नरोत्तम प्रसाद का लिखा है, यह बात नरोत्तम दास को थोड़ी नागवार भी लगी। साथ ही यह अजीब-सी आशंका उनके दिलो-दिमाग में यह भी उत्पन्न हुई कि हालांकि कालेज के संगी-साथी तो जानते ही हैं कि वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजेता, नरोत्तम दास की टीम ही है। लेकिन अगले कुछ वर्षों बाद अगर वे उस अखबार की कटिंग किसी को दिखाना चाहें, जिसमें किसी का भी चेहरा स्पष्ट नहीं दिख रहा है, तो सामने वाला यही समझेगा कि यह विजयी टीम में छात्र नरोत्तम दास के बजाय कोई नरोत्तम प्रसाद है। नरोत्तम दास तो खामखाह ही इस उपलब्धि का श्रेय ले रहे हैं। छोटे से शहर के लिए तो यह खासतौर पर उल्लेखनीय प्रसंग था। ये सब बातें दिलोदिमाग में आते ही वाद-विवाद प्रतियोगिता में उनकी टीम के अव्वल आने का उत्साह ठंडा पड़ जाना स्वाभाविक था। बहरहाल, बावजूद तमाम शंकाओं-आशंकाओं के, भविष्य में सनद के लिए नरोत्तम दास ने अखबार की वह कटिंग अपने पास सुरक्षित रख ली थी। यादगार चीजें, अखबारी कतरनें आदि सहेजने की उनकी आदत जो रही है। हां, उन्होंने इतना जरूर किया कि अपने नाम के आगे छपे गलत उपनाम को काली स्याही से रंग कर इस प्रकार ढंक दिया कि भविष्य में अगर कोई उस खबर को पढ़े या तस्वीर देखे तो उसे उनका नाम ही दिखे। उपनाम न भी दिखे, तो कोई परवाह नहीं। फिर, जरूरी भी तो नहीं कि कालांतर में इस खबर को पढ़ने-देखने वालों का ध्यान इस तरफ जाए ही। इस प्रकार कह सकते हैं कि उचित-अनुचित निर्णय के द्वंद्व में नरोत्तम दास जी ने एक सामान्य-सी त्रुटि, जो उनकी नहीं थी, को अपनी समझ से ठीक करने का प्रयास भर किया था। फिर 'आगे नाथ न पीछे पगहा' जैसी उम्र में, या दुनियावी अनुभव की कमी के चलते उचित-अनुचित निर्णय लिए जाने के दबाव का द्वंद्व भी तो दिलोदिमाग पर कम ही रहता है। इधर कोई धड़ाम-धकेल विचार मन में आया, उधर कार्यरूप में परिणत। आखिर, बाईस-तेईस साल की उम्र में किसी को दुनियावी समझ ही कितनी होती होगी? यद्यपि वे इस तथ्य को स्वीकार करते भी हैं। आखिर हम गलतियों से ही तो सीखते हैं, जो हमारे जीवन में लैंप-पोस्ट सरीखे होती हैं। यही वक्त-जरूरत हमें आगे की राह दिखाती हैं। हालांकि, आज की तारीख में नरोत्तम दास गौरव के उस पल से लगभग तटस्थ, निस्संग हो चुके हैं। खैर, अखबार में छपे उस त्रुटिपूर्ण उपनाम को लेकर एक खलिश तो नरोत्तम दास के दिलो-दिमाग में बनी ही रही। वे जब भी वह खबर पढ़ते या तस्वीर देखते, तो उन्हें इस बात पर गर्व अवश्य होता था कि विश्वविद्यालयी दिनों में वे एक प्रतिभाशाली छात्र रहे थे, पर, साथ ही अखबार में छपे अपने नाम के आगे उस त्रुटिपूर्ण उपनाम को काली स्याही से रंगा, ढंका हुआ दिखने पर गौरवान्वित महसूस करने के बजाय उनका मन खिन्न हो उठता। ये अखबार वाले भी अजीब होते हैं। ऐसी खबरें छापने से पहले कम-अज-कम नाम आदि के बारे में तो ठीक से तस्दीक कर ही लेना चाहिए। पता नहीं उन्हें मालूम है या नहीं कि कुछ खबरें, तस्वीरें लोगों के लिए कितनी अनमोल और महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं? हालांकि, संज्ञान में आने पर अखबार वाले खेद व्यक्त करके भूल-सुधार भी छापते हैं, लेकिन नरोत्तम दास के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। वैसे उन्होंने तत्समय किसी स्तर पर आपत्ति भी तो दर्ज नहीं कराई। शायद संकोच कर गए या नियति मानकर उसे यों ही चुपचाप स्वीकार कर लिया। नरोत्तम दास को तो यह भी याद है कि उन्होंने अखबार की इस त्रुटि पर अपनी टीम के अन्य प्रतिभागियों का भी ध्यान आकृष्ट कराने की जरूरत नहीं समझी। उन्हें शक था कि वे सब इस मामूली-सी त्रुटि को देखकर, कहीं उनकी हंसी न उड़ाने लगें। आखिर उन सभी का नाम और उपनाम तो सही ही छपा था। फिर नरोत्तम दास जी के उपनाम को दुरूस्त करने में भला उनकी टीम के सदस्यों या किसी और की क्या रुचि होगी? कह सकते हैं कि उस समय नरोत्तम दास जी इस उपलब्धि का जश्न उल्लासपूर्वक नहीं मना सके थे। आज वर्षों बाद जब किसी वजह से वे अपनी हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की सनदें खोज रहे थे तो अखबार की वही कटिंग उनके फोल्डर में पड़ी मिली। उसे देखते ही लगभग तीस-बत्तीस साल पुरानी याद फिर से ताजा हो आई, और उससे जुड़ी वह टीस भी। वैसे, नरोत्तम दास जी का भी मानना है कि जीवन में सुधार की गुंजाइश रहती है। हां, इसमें कमी-बेशी हो सकती है। ऐसे में किसी त्रुटि पर सुधार करने का अवसर है या नहीं, इस बात पर मंथन अवश्य हो सकता है, पर समय रहते। 'कहां खोए हैं? अपनी अलमारी के सामने से हटिए। यहां कमरे में झाड़ू लगाना है। ' काफी देर तक उस खबर को पढ़ते, अखबार की कटिंग हाथ में लिए नरोत्तम दास जी खुद से बड़बड़ाते, कुछ देर यों ही उस तस्वीर में खोए रहे। उन्हें यों इस कदर खोए देख उनकी पत्नी ने कमरे में आते उनकी तंद्रा भंग की, तो उन्होंने पहली बार पत्नी को पूरा वाकया एक पल में ही कह सुनाया। 'लेकिन, ये आपके नाम के आगे काली स्याही से रंगा हुआ क्यों है? आपका उपनाम सहित पूरा नाम नहीं छपा है। अखबार में छपी इस तस्वीर में तो आपका चेहरा भी साफ नहीं दिख रहा है। कहीं यह आपकी जगह किसी और का नाम तो नहीं? ' मानो पत्नी ने तंज किया हो। हालांकि, ये बातें कहते पत्नी की आवाज तनिक लरज उठी थी। अब वे पत्नी को क्या समझाते कि यह गलती अखबार वालों की है, उनकी नहीं। उन्होंने तो उस त्रुटि को सही करने के प्रयोजन से ही अपने नाम के आगे उपनाम को काली स्याही से रंग दिया था। जाहिर है, पत्नी द्वारा असमय ही की गई इस अरुचिकर पृच्छा से खिन्न हो, बिना कोई स्पष्टीकरण दिए, नरोत्तम दास जी ने अनमने ढंग से वह फोल्डर बंद करके, अलमारी में रख दिया। नरोत्तम दास जी का मानना रहा है कि समय रहते अपनी बात न कह पाने या विरुदावलियां, लच्छेदार भाषा न सीख पाने वालों के लिए दुनिया चुनौतीपूर्ण ही रही है। अब तो यह वाकया लगभग तीस-बत्तीस वर्ष पुराना हो गया है। अखबार की वह कटिंग भी कई जगह से तुड़-मुड़ और जर्जर हो गई है। लेकिन, नरोत्तम दास जी की आंखों के सामने वर्षों पुराना वही मंजर अब भी ताजा है। देखा जाए तो किसी प्रसंग में जल्दबाजी या अनिर्णय की स्थिति में कार्य को अंजाम दिए जाने से हो जाने वाली त्रुटि पर फुर्सत में किये जाने वाले अफसोस का यह सटीक उदाहरण हो सकता है। खैर, बाजदफे नरोत्तम दास जी के जेहन में यह खयाल भी आया कि अखबार में छपी उस तस्वीर के नीचे उनके नाम के आगे लिखे उस त्रुटिपूर्ण उपनाम को उन्हें बने रहने देना चाहिए था। काली स्याही से रंगना या ढंकना नहीं चाहिए था। अखबार की वह कटिंग देखते, लोगों के मन में जब-तब उठते सवालों के तर्इं उन्हें बार-बार लोगों को खामखाह स्पष्टीकरण तो न देना पड़ता। गोया, उन्होंने कोई बहुत गंभीर त्रुटि कर दी हो।
c8a0bbe228401ba43b2ef8c0728c6922e9dca2ac6085709f381daad03fe7f7da
pdf
भेरियोंके बड़ेशब्द १५ और शूरोंके सिंहनादोंसे सेब दिशा पूर्ण हुई और थोड़ेही समयमें वह नरोत्तम कुरुक्षेत्र में पहुंचे १६ वहां जैसे आपके पुत्रने बतलाया उसी प्रकार जाकर वह पश्चिम ओरका देश चारोंओर सब दिशाओं में युक्त होकर परिधिरूपहुआ १७ जोकि सरस्वती के दक्षिण ओरसे दूसरा उत्तमतीर्थ है वहां हरित भूमियुक्त देश में युद्ध करना स्वीकार करके नियत किया १८ इसके पीछे कवचधारी भीमसेन ने वड़ी कोटिवाली गदाको लेकर गरुड़के समान रूपको. धारण किया ९६ युद्ध में शिरस्त्राण और सुवर्णका कवचधारी आपका पुत्र सु. वर्षके गिरिराजके समान शोभायमान हुआ २० वह कवचधारी भीमसेन और दुर्योधन दोनोंबीर युद्ध में कोषयुक्त हाथियों के समान दिखाई पड़े २१ हे महाराज युद्धमण्डल में नियत दोनों नरोत्तम भाई उदयमान सूर्य और चन्द्रमाके समान शोभायमान हुये २२ हे राजा परस्पर मारने के अभिलाषी नेत्रोंसे भस्म करनेवाले बड़े हाथियों के समान क्रोध में पूर्णहोकर दोनों ने परस्पर देखा २३ तव अत्यन्त प्रसन्नचित्त कौरव दुर्योधन गदा को लेकर होठों को चाबता और क्रोधसे रक्तनेत्र श्वासको लेता गदालेकर नियतहुआ २४ तदनन्तर पराक्रमी दुर्योधन ने गदाको लेकर भीमसेनको देखकर बुलाया जैसे हाथीहाथी को २५ बुलाता है उसी प्रकार - पराक्रमी भीमसेनने गदाको लेकर राजा को ऐसे बुलाया जैसे कि बनमें सिंहको सिंहबुलाता है २६ वह हाथ में गदा उठाने वाले दुर्योधन और भीमसेन युद्ध में ऐसे दिखाई पड़े जैसे कि दो शिखरघारी पर्वत होते हैं. २७ वह दोनों अत्यंत क्रोधयुक्त भयानक पराक्रमी गदायुद्ध में वड़े कुशल और.. बलदेवजी के शिष्यथे २८ यमराज और इन्द्रकी समान कम करनेवाले दोनों महावली वरुणके समान कर्मकर्ता थे २६ हे महाराज इसीप्रकार वह दोनों वासुदेवजी परशुरामजी कुवेर देवता और मधुकैटभ दैत्योंके समान होकर ३० दोनों सुंद, उपसुंद, राम, रावण और बालि, सुग्रीव के समान कर्म करनेवालेथे ३१ वैसेही शत्रुओं के तपानेवाले वह दोनों कालमृत्युकी समान मतवाले बड़े हाथियों के समान परस्पर सम्मुख दौड़नेवाले थे ३२ वह भरतवंशियों में श्रेष्ठ शरदऋतुके मध्य में हथिनीके मिलापमें मत्त अहंकारी मतवाले बिजयाभिलाषी हाथियोंके स मान थे ३३ फिर वह दोनों शत्रुसंतापी परस्पर क्रोधयुक्त देखनेवाले और सर्पो के समान क्रोधके प्रकाशित विषों के उगलनेवालेथे ३४ दोनों भरतर्षभ पराक्रमों से भरे सिंहों के समान अजेय और गदायुद्ध में कुशलथे ३५ दोनों नख दंष्ट्रा रूप शस्त्र रखने वाले बीर व्याघ्रों के समान दुःखदायी उत्सववाले सृष्टिके नाशमें क्रोधभरे दो समुद्रों के समतुल्यथे ३६ जैसे पूर्व पश्चिमकी बायुसे उत्पन्न होने वाली वायु से चलायमान दोबादल होते हैं उसीप्रकार वह दोनों महारथी भी क्रोधसंयुक्त होकर दौड़नेवालेथे ३७ वर्षाऋतु में कठिन गर्जना करते किरणों से युक्त दोबादलकेसमान तेजस्वी पराक्रमीहोकर महासाहसी थे ३८ कौरवोंमें श्रेष्ठ वह दोनों उदयहुये दोकालरूपी सूर्यकेसमान अत्यन्त क्रोधी व्याघ्रोंके समान गर्जनेवाले दोबादल के रूप दिखाईपड़े ३६ केसरी सिंहोंकेसमान महाक्रोधी हा.. थियों के समान और ज्वलितअग्नि के समान दोनों महाबाहु ने आनन्द को • पाया ४० क्रोधसे चलायमान दोनोंहोठ परस्पर देखनेवाले दोनों महात्मा शि• खरवारी पतसमान दृष्टिगोचरहुये ४९ वह दोनोंमहात्मा नरोत्तम गदाओं को हाथ में लेकर सम्मुख हुये दोनों अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर परस्पर अङ्गीकृत थे ४२ वह दुर्योधन और भीमसेन हिंसने वाले उत्तमघोड़े चिंग्घाड़नेवालेहाथी और डकारनेवाले बैलोंके समान दिखाई दिये ४३ वह पराक्रमसे मतवाले दोनों नरोत्तम दैत्यों के समान शोभायमान हुये हे राजा इसके पीछे दुर्योधनने 'महात्मा श्रीकृष्ण और बड़े पराक्रमी बलदेवजी और भाइयोसमेत नियत युधि•ष्ठिरसे बड़े अहङ्कारियों के समान यह वचन कहा ४४ । ४५ कि जो बड़ेसाहसी पाञ्चाल सृञ्जी और कैकय देशियों से अपने को बड़ा अहंकारी मानता था उस • भीमसेन से मेरा युद्ध निश्चय हुआ ४६ हे युधिष्ठिर तुम इन उत्तम राजाओं सं मेत इस मेरे और भीमसेन के युद्ध को देखो तब युधिष्ठिर ने दुर्योधन के बचन को सुनकर वैसाहीकिया ४७ इसके अनंन्तर वह सब राजमण्डल वहां बैठ गया और बैठकर ऐसा शोभायमान हुआ जैसे कि आकाश में सूर्य्यमण्डल शोभित होता है ४८ हे महाराज उन सबके बीच में केशवजी के बड़े भाई महाबाहु श्री • मान बलदेवजी भी बैठगये ४६ उज्ज्वल वर्ण नीलाम्बरधारी बलदेवजी उन राजाओं के मध्य में ऐसे शोभायमान हुये जैसे कि रात्रि में नक्षत्रों से संयुक्त पूर्ण 'चन्द्रमा होता है ५० हे महाराज उसीप्रकार वह दोनों गदा हाथमें लिये कठिन - तासे सहने के योग्य परस्पर उग्रवचनों से घायल करते नियंतहुये ५१ अर्थात् वह कौरवों में श्रेष्ठ वहां अयोग्य अप्रिय बचनों को परस्पर कहकर ऊपर को देखते ऐसे नियत हुये जैसे कि युद्ध में इन्द्र और वृत्रासुर नियत हुये थे ५२ ॥ इतिश्रीमहाभारतेगदापर्व्वणिगदायुद्धेषविंशोऽध्यायः २६ ॥ बैशंपायन बोले हे जनमेजय इसके पीछे प्रथम तो वार्त्तालापकाही कठिनयुद्ध हुआ उससमय वहां दुःखित होकर राजाधृतराष्ट्रने यहवचनकहा १ कि निश्चय करके इस मनुष्य शरीरको धिक्कार है जिसकी कि ऐसी दशा है हे निष्पाप जिस स्थानपर ग्यारह अक्षौहिणी का स्वामी मेरापुत्र २ सब राजाओं पर शासन करके इस पृथ्वीको भोगकर गदाको लेकर बड़ी तीव्रतासे युद्ध में पैदलचला जो मेरा पुत्र जगत्का स्वामीहोकर अनाथकेसमान गदाको उठाकर चला इसमें प्रारब्ध से दूसरी बात क्या है ३ । ४ हे सञ्जय मेरे पुत्रने बड़े दुःखकोपाया दुःखित पीड़ित राजा धृतराष्ट्र इसप्रकार कहकर मौन होगया ५ सञ्जय बोले कि तब प्रसन्न चित्त वैलकेसमान गर्जते उस पराक्रमी वादलकेसमान शब्दायमान दुर्योधनने पार्थ भीमसेन को युद्धके निमित्त बुलाया हे महात्मा कौरवराज दुर्योधनकी ओरसे भीमसेन के बुलाने पर नानाप्रकार के घोररूप उत्पात जारीहुये ६ । ७ परस्पर आघातित शब्दों समेत वायुचलीं धूलकी वर्षा हुई सव दिशा अन्धकार से पूर्ण हुई ८ शरीरके रोमांचोंकी खड़ीकरनेवाली बायुओंके कठिन आघात बड़े शब्दों के करनेवाले हुये पृथ्वीपर बड़ी शब्दायमान सैकड़ों उल्का आकाशसे गिरी ह हे राजा पर्व्व के विनाही राहुने सूर्यकोग्रसा अर्थात् विनापर्व के ग्रहण पड़ा और पृथ्वी वनके सब वृक्षोंसमेत कंपायमानहुई १० नीचे से कंकड़ पत्थर खँचनेवाली बड़ी घोर और प्रकाशित बायुचलीं और पर्वतों के शिखर पृथ्वी पर गिरे ११ अनेकरूपवाले मृग दशदिशाओंको दौड़े और घोररूप ज्वलित भयानक शृगालभी शब्द करनेलगे १२ महाघोर निर्घातभी शरीरके रोमांच खड़े करनेवाले हुये हे राजा ज्वलितरूप दिशाओं में अशुभसूचक मृग महाघोर अशुभके प्रकट करनेवाले हुये १३ उस समय कूपों के जलभी चारोंओर को अत्यन्त वृद्धियुक्त हुये आकाशवाणी भी सुनीगई १४ भीमसेनने इसप्रकार के उत्पातों को देखकर अपने बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर से यह वचनकहा १५ कि यह अभागा दुर्योधन युद्धमें मेरे विजयकरनेको समर्थ नहीं है अब मैं अपने बहुतकालकें संचित क्रोध को ९६ कौरवराज दुर्योधन पर ऐसे छोडूंगा जैसे कि खाण्डव वनमें अग्निको छोड़ाथा हे पाण्डव अब मैं तेरे हृदय के बड़े शूलको उखाडूंगा १७ अर्थात् में गंदासे इसकौरवों के कुलमें महानीच पापीको मारकर कीर्तिरूप मालाको आप के शरीर में धारण करूंगा १८ अब में इस युद्ध में इस पापकर्मीको मारकर इसके शरीरको इसगदासे खंड २ करूंगा १६ यह अब दुबारा हस्तिनापुर नगरमें प्रवेश न करेगा हे भरतर्षभ अब मैं उनसव आगेलिखे दुःखोंके अन्तको प्राप्तहूंगा जैसे कि शयन पर सर्पका छोड़ना, भोजनमें विषदेना, प्रमाण कोटी में गिराना, लाक्षा गृह में जलाना, सभा में हास्यकरना, सर्वस्वहरण २० । २१ एकवर्ष अज्ञात होकर बनमेंबास २२ इन सबदुःखरूपी ऋणोंसे एकहीदिन में इसको मारकर अऋणहूंगा हे भरतर्षभ अब दुर्बुद्धी म्लान अन्तःकरण वाले दुर्योधन की आयु पूर्ण हुई २३ माता पिताका दर्शनभी समाप्त हुआ हे महाराजेन्द्र अब दुर्बुद्धी कौरवराज का सुख २४ और स्त्रियोंका दर्शनभी सम्पूर्ण हुआ अब यह शन्तनु के कुलको कलंक लगानेवाला दुर्योधन २५ लक्ष्मी, राज्य और प्राणों को त्यागकर पृथ्वीपर सोवेगा अब राजा धृतराष्ट्र मरेहुये अपने पुत्रको सुनकर २६ अपने उसदुष्टकर्मको यादकरेगा जो कि शकुनीकी बुद्धि से उत्पन्न हुआ हे राजाओं में श्रेष्ठ प्राक्रमीभीमसेन ऐसीबातें कहकर गदाको हाथ में लेकर २७ युद्ध के निमित्त दुर्योधनको ऐसे बुलाता हुआ सम्मुख नियतहुआ जैसे कि इन्द्र वृत्रासुरको बुलाता हुआ नियत हुआाथा शिखरधारी कैलास के समान उस गदा उठाने वाले दुर्योधन को देखकर ·२८ क्रोषयुक्त भीमसेनने फिर कहा कि हे दुर्योधन राजा धृतराष्ट्र समेत तुम अपने उन पापकर्मों को स्मरणकरो जो कि बारणावंतनगर में हुये और सभामें रजस्वला द्रौपदीको दुःख दिया २६/३० और जो तैंने और शकुनीने राजायुधिष्ठिरको द्यूतमें ठगा और हमसबने महावनों में जिस तेरेकारण से बड़े२ दुःखों को पाया ३१ और योन्यन्तरके समानहोकर हमलोगों ने जिस दुःखको विराटनगरमें पाया अव मैं उन सबदुःखों के कारण रूपको मारताहूं हे दुर्बुद्धी तुझको प्रारब्ध से देखा है और तेरेही कारण से शिखण्डी के हाथसे मारेहुये यह रथियों में श्रेष्ठ श्रीगंगाजी के पुत्र प्रतापवान् कौरवों के पितामह भीष्मजी शरशय्यापर सोते हैं ३२ । ३३ द्रोणाचार्य कर्ण और प्रतापवान् शल्यमारागया और शत्रुता की अग्निका उ त्पन्न करनेवाला सौबलका पुत्र शकुनी मारागया ३४ फिर द्रौपदीका क्लेश उत्पन्न करनेवाला पापी प्रातिकामी मारागया सिंहकेसमान युद्ध करनेवाले शूरवीर तेरे सबभाई मारेगये ३५ तेरेही कारण से यहसव और अन्य बहुतसे राजा मारेगये अब मैं तुझको निस्सन्देह गदासे मारूंगा ३६ हे राजेन्द्र सत्यपराक्रमी और निर्भय आपका पुत्र इस प्रकार बड़े उच्चस्वरसे वार्तालाप करनेवाले भीमसेनसे बोला ३७ कि हे कुलमें महानीच भीमसेन बहुत बातोंसे क्यायोजन है तुम युद्ध करो अब मैं तेरे युद्ध के उत्साहको भंगकरूंगा ३८ हे नीच मैं दुर्योधन तुझ सरीखे किसीमनुष्यके वचनसे डरनेकेयोग्य नहीं हूं बहुतकालसे चाहता हृदय में नियंत तेरे साथ मेरा यह गदायुद्ध प्रारब्धकेही द्वारा देवताओं से प्राप्त हुआ है ३६।४० हे दुर्बुद्धी बहुत बार्तालाप और अपनी प्रशंसाकरने से क्या लाभ है यह वचन कर्मकेही द्वारा प्राप्तकरना योग्य है बिलम्ब मतकरो ४१ उसके उस वचनको सुतः कर उन राजालोगों ने और सोमकों ने जो वहां इकट्ठे थे उसकी प्रशंसाकी ४२ इसकेपीछे वह शरीरके रोम २ से प्रसन्न सबसे स्तूयमान वह कौरवनन्दन दुर्योधन युद्धके लिये बुद्धिकेद्वारा फिर धैर्थ्य में प्रवृत्त हुआ ४३ राजाओंने क्रोधयुक्त उस दुर्योधन को जो कि मतवालेहाथी के समानथा तलकेशब्दों से फिर प्रसन्न किया ४४ महात्मा पांडव भीमसेन अपनी गदाको उस करतीव्रता से उस बड़े साहसी दुर्योधन के सम्मुखगया ४५ उसके जातेही वहां हाथी चिग्घाड़े वारंवार घोड़ेहींसे और विजयाभिलाषी पाण्डवों के शस्त्रभी प्रकाशित हुये ४६ ॥ इतिश्रीमहाभारतेगदापर्व्वणित विशोऽध्यायः २७ ॥ वां अध्याय । संजयवोले कि इसके पीछे बड़ा साहसी दुर्योधन बड़ी तीव्रता से गर्जता उसप्रकारसे आते हुये भीमसेन को देखकर सम्मुखगया १ और शृंगधारी बैलों के समान परस्परमें दोनों दौड़े और गदा के प्रहारों के बड़े शब्द उत्पन्न हुये उन दोनों विजयाभिलाषियों का युद्ध महाकठोर और रोमहर्षण करनेवाला ऐसा हुआ जैसे कि युद्ध से परस्पर विजयाभिलाषी इन्द्र और प्रह्लादका हुआ था ३ रुधिरसे लिप्त सव शरीर गदा हाथों में लिये बड़े साहसी दोनों महात्माः फूले हुये किंशुक वृक्षके समान दिखाई पड़े ४ इसप्रकार उस बड़े भयानक घोर युद्धके वर्त्तमान होनेपर आकाश दर्शनीय होकर ऐसा शोभायमान हुआ जैसे कि पटवीजनों के समूहों से होता है ५ इसप्रकार उस कठिनतर संकुलनाम युद्ध के वर्त्तमान होने पर वह शत्रुओं के बिजय करनेवाले दोनों शूरभी थकगये ६ शत्रु सन्तापी उनदोनोंने एक मुहूर्त्त समाखांसित होकर शुभगदाओंको पकड़ कर परस्पर विश्राम किया ७ फिर उन महापराक्रमी विश्राम किये हुये नरोत्तमोंको हथिनी के लिये मतवाले बलवान हाथियों के समान एक से पराक्रमी गंदा पकड़ने वाले दोनों को अच्छीरीतिसे देखकर देवता मनुष्य और गन्धर्वोने बड़े आश्च को पाया & गंदा पकड़नेवाले उन दुर्योधन और भीमसेन को देखकर विजय होने में सबजीवोंको संदेह प्राप्त हुआ १० इसके पीछे बलवानों में श्रेष्ठ परस्पर अन्तर चाहनेवाले दोनों भाई भिड़ंकर प्रत्यन्तर के समान भ्रमण करने लगे १९ हे राजा अवलोकन करनेवालोंने उसरौद्री मारनेवाली भारी और इन्द्रवज्रकेसमान उठाई हुई यमराज के दण्डकी समान गदाको देखा १२ युद्ध में भीमसेन के हाथसे मारती हुई गदाका एक मुहूर्त्त बड़ा कठिन और घोरशब्द वर्त्तमानहुआ १३ इसके अनन्तर वह दुर्योधन उस कठिन ः तीव्रता रखनेवाली गदा के मारनेवाले अपने शत्रु भीमसेन को देखकर आश्चर्ययुक्तहुआ १४ हे भरतवंशी उससमय भीमसेन नानाप्रकारके मार्ग और मण्डलोंको घूमताहुआ शोभायमान हुआ १५. परस्पर अपनी २ रक्षा में सावधान उन दोनोंने अन्योन्य सम्मुखहोकर बारम्बार ऐसे प्रहार किये जैसे खानेकी वस्तु केलिये दोबिलार परस्पर प्रहार करते हैं १६ भीमसेन इसप्रकार के बहुत से मार्गोंको घूमा फिर सम्मुख तिर्थक् विचित्रमण्डल १७ अपूर्व्व अस्त्रान्तर बहुत प्रकारके दाहिने बायें प्रहारस्थानोंका छोड़ना बचाना दाहिने बायें करना १८ तीव्रता से सम्मुखजाना गिराना और अचल होना शत्रुके उठनेपर फिर युद्धकरना शत्रुके मारनेको चारोंओर जाना शत्रु के हटजानेका स्थानरोकना प्रहार बचानेकेलिये झुककर हटजाना मध्यगति ९६. समीप जाकर शस्त्रका मारना चारों ओरको घूमकर पीछे की ओर बर्त्तमान होके हाथसे शत्रुको घायल करना इन मार्गों में घूमते उन गदायुद्ध में कुशल दोनों ने अनेकप्रकार से परस्पर घायल किया २० फिर धोखा देनेवाले होकर वह कोखोत्तम दोनों भ्रमण करने लगे और क्रीड़ा करनेवाले वह दोनों पराक्रमी म एडलोंको घूमे २९ युद्ध में चारोंओरसे युद्ध की क्रीड़ा को दिखलाते उन दोनों शत्रु. सन्तापियोंने गदाओं से अकस्मात् ऐसे घायल किया २२ जैसे कि दांतोंसे दो
bb3e9153972938b5a240729ffc4bb380012d268db1600833d1f9997856f61a9b
pdf
प्रमुख संक्रामक ब्याभियाँ चर्मपत्र ( Parchment ) सरश विकार विकृति का रोपण होने पर त्वचा चर्म पत्र के समान पतली, चमकदार तथा चिकनी हो जाती है । वात नाडियों की विकृतिविकृत वात नाडियों रज्जु के समान मोटी तथा वेदनायुक्त हो जाती हैं, दबाने से सुनभुनाहट (Tingling ) के साथ चमक-सी पैदा होती है। कभी-कभी बात नाडियों में कुष्ठज विद्रधि भी उत्पन्न होती है। परिसरीय वात नाडियों का कुछ समय बाद अपजनन हो जाता है, जिससे सम्बद्ध पेशी समूह का शोष या क्षय हो जाता है। बहिःप्रकोष्टिका ( Radial ) वात नाडी मणिबन्ध के समीप, अन्तःप्रकोष्ठिका ( Ulner ) बात नाडी कूर्पर संधि के ऊपर बाहु के भीतरी पार्श्व में तथा उत्तानपादा ( Superficial peroneal) वात नाडी गुल्फ संधि के समीप विकृत रूप में स्पर्शलभ्य होती है। नेत्र विकृति - स्वच्छमण्डल व्रण ( Corneal uloer ), तारामण्डल शोध एवं नेत्र की मांसपेशियों का अंगघात आदि अनेक विकार नेत्र में कुष्ठ दण्डाणुओं का अधिष्ठान होने पर उत्पन्न होते हैं । नासा विकृतिप्रारम्भ में नासा की श्लेष्मल कला में विकृति होती है । निरन्तर जीर्ण प्रतिश्याय के समान नासा स्राव होता रहता है। कुछ काल बाद नाक से काफी दुर्गन्ध आने लगती है। जीर्ण स्वरूप में नासापुट की मध्यमिति ( Septum ) तथा तालु की अस्थि गल जाती है। स्वर तंत्रिकाओं (Vocal chords ) की विकृति के कारण ध्वनि सानुनासिक हो जाती है । नख तथा रोमनख मोटे, चिपटे तथा नौका के समान हो जाते हैं। नखों पर चौड़ाई में विदार उत्पन्न होने से स्वाभाविकता का नाश होता है। बाल हल्के रंग के, कुछ पतले और कम बढ़ने वाले तथा संख्या में भी कम हो जाते हैं। विकृति की अधिष्ठानगत प्रधानता के आधार पर कुछ के तीन मुख्य वर्ग किए जाते हैं -- १. यथम प्रकार ( Tuberouloid ) - त्वचागत विशिष्ट लक्षणों के आधार पर इसके २ उपविभाग किए जाते हैं । क-वर्णिक ( Macular ) विकृति - त्वचा पर एक या अनेक गोल अण्डाकृतिक या अस्पष्ट आकृतिबाले धब्बे उत्पन्न होते हैं। इनमें रंजकता की न्यूनता से हीनवर्णता, स्पर्श की मन्दता, विकृत त्वचा से सम्बद्ध बात नाडी की स्थूलता या मोटाई में वृद्धि, त्वचा की - विशेष कर धब्बे के किनारों की त्वचा की- स्थूलता तथा रक्तवर्णता और - स्वेद न होने के कारण त्वचा की रक्षता या पर्तदार स्थिति, रोमनाश या रोमों की विवर्णता या भूरापन तथा उनमें वृद्धि का अभाव तथा कभी-कभी धब् के स्थानों पर व्रणों की उत्पत्ति आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं । इस वर्ग में विकृति बहुत चिरकालीन स्वरूप की होती है। तीनों भागों में विभक्त-सा ज्ञात होता है। धब्बे के केन्द्रीय भाग की त्वचा वर्मत्र ( Parchment ) के समान पतली, चमकदार, चिकनी तथा पाण्डु वर्ण की हो जाती है। स्वेद के अभाव से रूक्षता तथा स्पर्श ज्ञान न होने से शून्यता प्रतीत होती है। मध्यवर्ती भाग में अनेक छोटी-छोटी आलपीन के समान प्रन्थियों ( Tuberoles ) के सम्मिलित रूप में रहने के कारण त्वचा कुछ उमड़ी हुई सी तथा कुछ रक्काम या गहरे रंग की होती है। बाह्य भाग में क्षुद्र प्रन्थियों कम संख्या में तथा कुछ दूरी पर एक दूसरे से पृथक् रहती ख-स्पर्शनाश या शून्यता का प्रकार ( Anaesthetic form ) - इस वर्ग में त्वचीय स्पर्शज्ञान की विकृति होती है। सबसे प्रारम्भ में उष्णता की संवेदना का नाश होता है और उसके बाद स्पर्शज्ञान नष्ट हो जाता है और अन्त में वेदनाशून्यता उत्पन्न होती है। कभी-कभी वेदना-ज्ञान आशिक रूप में बना रहता है। शाखाओं के धब्बे पूर्ण रूप से संवेदना-रहित होते हैं, किन्तु मध्य शरीर के विकृतस्थलों पर मुख्य रूप से लाप-ज्ञान का नाश होता है तथा आकृति पर उत्पन्न हुए धब्बों में संवेदना की मन्दता हो सकती है, पूर्ण नाश नहीं होता। स्वेद का पूर्ण रूप से प्रभाव हो जाता है। विकृति के कारण नाडियों का अपजनन होने से सम्बद्ध मांसपेशिय सिकुड़ कर क्षीण हो जाती हैं। आक्रान्त बात नाडियाँ मोटी तथा वेदनायुक्त होती हैं। स्थानीय कोषाओं में जीवनी शक्ति का ह्रास होने के कारण व्रण ( Trophic aloers ) उत्पन्न होते हैं। शाखाओं की अस्थियों विशेष कर अङ्गुलियों में कैलसियम की कमी के कारण विकृति उत्पन्न होती है तथा विकृत स्थलों पर व्रण भी उत्पन्न होते हैं। इस वर्ग में त्वचा तथा बात नाडियों में उपसर्ग की तीव्रता कम होती है, किन्तु वातनाडियों की विकृति के लक्षण अधिक मिलते हैं। व्याधि के प्रकोप के पूर्व मानसिक अवसाद, हल्की सर्दी एवं थकान का अनुभव तथा बात नाडियों में शूल के लक्षण उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी बात नाडियों के ऊपर की त्वचा में दनु के समान विस्फोट उत्पन्न होते हैं। बात नाडियों धीरे-धीरे स्थूल हो जाती हैं तथा अंगुष्ठमूल के इस्ततलीय भाग को पेशियों का क्षय हो जाता है और अनामिका एवं कनिष्ठिका अंगुलि में संकोच उत्पन्न होता है। छोटी अस्थियों का शोषण होने के कारण अंगूठा तथा अँगुलियाँ नष्ट हो जाती है। नाखून में विकृति होती है तथा त्वचा पर निच्छिद्रित व्रण ( Perforated nloers ) उत्पन्न होते हैं। कुष्ठीय प्रकार ( Lepromatous ) - रोगी की दुर्बलता तथा उपसंर्ग की उम्रता के कारण कुष्ठ का प्रकोप व्यापक रूप का होता है । इस प्रकार में वर्णिक, कर्णिक तथा ग्रन्थिक प्रकार के विस्फोट, निच्छिद्रित व्रण ( Perforated ulcer ) तथा कोषाओं का व्यापक अन्तराभरण (Infiltration) आदि त्वचा के विकार एवं अनेक व्रात नाडियों को विकृति उत्पन्न होती है। प्रन्थियों भी यत्र-तत्र उत्पन्न होती हैं तथा उनमें व्रण हो जाते हैं। आक्रमण के प्रारंभ में कुष्ठीय ज्वर, कम्प, प्रस्वेद, वर्द्धमानस्वरूप की दुर्बलता, अतिसार, नासालाव या नासा श्लेष्मलकला को शुष्कता तथा नासा से रक्तस्राव आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। प्रायः इन्हीं लक्षणों के साथ आकृति, नितम्ब, जंघा तथा अग्रबाहु पर हल्के रुधिर वर्ण के विस्फोट निकलते हैं । शीघ्र ही इनमें संवेदना की न्यूनता तथा स्वेदाभाव के लक्षण उत्पन्न होते हैं। ज्वरादि लक्षणों का शमन होने पर विस्फोटों का रंग कुछ श्यावारुण सा होता है, किन्तु शीघ्र ही ज्वर का पुनरावर्त्तन होता है और विस्फोट-स्थल पर पूर्ववत् उत्कर्णिक रूप उत्पन्न हो जाता है। दो-तीन बार इस प्रकार की प्रतिक्रिया होने के बाद इन्हीं स्थलों पर छोटो-छोटी ग्रन्थियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। व्यापक प्रसार की स्थिति में हाथ तथा पैर के बाहरी भाग पर इस प्रकार की प्रन्थियाँ अधिक उत्पन्न होती हैं। भ्रू के बाहरी भाग के रोम नष्ट हो जाते हैं, स्तन चूचुक बड़ा तथा मोटा हो जाता है, स्त्रियों के स्तन भी बढ़ जाते हैं। नासा, प्रसनिका, स्वरयंत्र, नेत्र आदि अवयवों पर भी व्याधि का प्रसार हो सकता है तथा इन पर व्रण उत्पन्न हो जाते हैं । नासिका बढ़ी हुई, कर्णपालो मोटी तथा लटकी हुई और कपोल फूले हुए से होने के कारण आकृति सिंह के समान हो जाती है। प्रन्थियों में व्रणोत्पत्ति तथा द्वितीय उपसर्गों के कारण पूयस्राव होता रहता है । अविशिष्ट प्रकार ( Atypical leproma ) - धब्बों के किनारे अस्पष्ट तथा उनमें उभाड़ का अभाव तथा स्वल्प संख्या में विस्फोटों की उत्पत्ति और कुष्ठ के दूसरे लक्षण होते हैं । इन वर्गों के अतिरिक्त केवल वात नाडी में विकृति वाले रोगी भी मिलते हैं। इनमें शरीर पर कहीं धब्बे या विस्फोट नहीं रहते, केवल परिसरीय वात नाडियों में विशेषकर बड़ी वात नाडियों में - तन्तूत्कर्ष के लक्षण उत्पन्न होते हैं । वात नाडियों काफी कड़ी तथा मोटी हो जाती हैं। जोर्ण स्वरूप के परिसरीय वात नाडी शोथ के लक्षण प्रतीत होते हैं। मांस पेशियों का अत्यधिक क्षय होता है तथा स्थानिक अंगघात के लक्षण उत्पन्न होते हैं। बाहु के आन्तरिक भाग या जंघा के बहिर्भाग में शून्यता उत्पन्न होती है । कुष्ठ के कई वर्गों के मिले-जुले लक्षण उत्पन्न होकर मिश्र स्वरूप ( Mixed type ) का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसलिए निदान करते समय वर्गों की सीमा में ही निर्णय की चेष्टा न करनी चाहिए । लक्षणविशेष प्रकार के विस्फोट त्वचा की विवर्णता, संज्ञा नाश - विशेष करताप एवं स्पर्शज्ञान का अभाव, भ्रू-प्रान्त के रोमों का नाश, विकृति-स्थल में रोमों का नाश, हीनवर्णता या पतले और स्वल्प संख्या में रोमों की उपस्थिति, कर्णपाली का मोटापन एवं सिंहवत् आकृति, स्वेद का अभाव, बात नाडियों की स्थूलता तथा स्पर्श में रज्जु के समान कठोर प्रतीति, दुगंधित नासास्राव, नासा की मिति एवं तल का निच्छद्रण तथा सानु - नासिक ध्वनि, परिसरीय बात नाडी शोध या बात नाडियों का आयात और उससे उत्पन्न मांस-पेशियों का अपचय, आकुचन, निच्छिद्रित व्रण एवं अस्थियों का विनाश आदि कुष्ठ के महत्त्वपूर्ण लक्षण माने जाते हैं। कुष्ठ दरडाणुओं का वृषण प्रन्थियों पर प्रसार हो जाने पर पौरुष शक्ति का नाश हो जाता है। प्रायोगिक परीक्षानासाखाव या नासा की श्लेष्मलकला के रण्ड की परीक्षा, विस्फोट स्थलों की त्वचा के ऊपरी पर्त को खुरच कर परीक्षा एवं कुष्ठ व्रणों के तल से प्राप्त कोषाओं की विशेष पद्धति से परीक्षा करने पर कुष्ठ दण्डाणुओं की उपलब्धि हो सकती है। अभी तक कुष्ठ दण्डाणुओं का प्राणिरोरण या प्रयोगशालीय सम्बर्द्धन संभव नहीं हो सका। व्याधि की सक्रिय अवस्था में प्रायः रक्ताबसादनगति बढ़ी हुई मिलती है। सापेक्ष्यनिदानफिर, यक्ष्मजत्वक् पिडिका (Lupus vulgaris ), परङ्गी (Xaws), प्राज्यव्रण ( Oriental sore ), त्वक् लिशमन्यता ( Dermal leismsniesis ), परिसरीय बातनाडी शोथ (Peripheral neuritis ), बर्द्धमान मांसक्षय ( Progressive musoular atrophy ), सिरिंगोमायलिया ( Syringomyelia ), सोरिएसिस (Psoriesis ) तथा श्वेत कुष्ठ (Leukoderma ) आदि से इसका पार्थक्य करना चाहिए । त्वचा में रंजक तत्व की न्यूनता के कारण वर्णपरिवर्तन, स्वेद तथा रोमों की कमी, संज्ञानाश या कचित् परम स्पर्शज्ञता ( Hyperaesthesis ), वातनाडियों का रज्जुबत मोटापन, मांसपेशियों का स्थानिक रूप में क्षय तथा मुख्य रूप से कुष्ठ दण्डाणु की उपलब्धि से रोग का सापेक्ष निदान होता है । रोग विनिश्चियसामान्य विकृत स्थलों के स्राव से दण्डाणुओं के न मिलने पर कुष्ठमंथि के भीतर से साब या उरःफलकवेष (Sternal puncture ) के द्वारा प्राप्त स्राव की विशेष परीक्षा की जाती है। कुष्टि कसौटी ( Lepromin test ) यदमप्रकार ( Tuberouloid ) कुष्ठ में अस्त्यात्मक, किन्तु कुष्ठीय प्रकार (Lepromatous) में नास्त्यात्मक रहती है। कुष्ठाकान्त व्यक्ति के साथ दीर्घकाल तक सम्पर्क का इतिहास भी कभी-कभी निदान में सहायक होता है। उपद्रव तथा अनुगामी विकारवृषण प्रन्थियों का अपंजनन तथा नपुंसकता, नेत्रव्रण तथा दृष्टिनाश, अपोषणजव्रण ( Trophic ulcers ), अस्थिनाश तथा हस्त - पादागुलियों का पूर्ण विनाश, मांसक्षय एवं शाखाओं की विकलांगता आदि कुष्ठ में उपद्रव एवं अनुगामी विकार उत्पन्न होते हैं। कुष्ठीय प्रकार हीन प्रतिक्रिया के कारण उत्पन्न होता है तथा उसमें उपद्रव अधिक होते हैं । जीर्ण रोगियों में, विशेषकर कुष्ठीय प्रकार में पूर्ण लाभ नहीं हो पाता। यदिम प्रकार में क्षय, फुफ्फुसपाक तथा वृक्क विकारों का उपद्रव होने पर असाध्यता बढ़ती है । कुष्ठ की साध्यता रोगी की विशिष्ट ओषधियों की सात्म्यता, रक्तावसादन गति की स्वाभाविक मर्यादा तथा शारीरिक पुष्टि पर निर्भर करती है । चिकित्सासामान्यक्षय के समान कुष्ठ की चिकित्सा की सफलता भी रोगी की शारीरिक क्षमता एव बल-पुष्टि पर निर्भर करती है । पोषक आहार, शुद्ध जलवायु एवं स्वास्थ्यकर स्थानों में निवास तथा नियमित व्यायाम से शारीरिक क्षमता की वृद्धि होकर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। कुष्ठपीडित जनपदों में अंकुशमुखकृमिविकार, विषमञ्चर, कालञ्चर, आमप्रवाहिका, श्लीपद, फिरङ्ग एवं हीन पोषण के रोग - बेरी-बेरी, स्कर्वी आदि - प्रायः मिलते हैं। कुष्ठप्रस्त रोगियों में इन व्याधियों का अनुसंधान करके उनकी समुचित चिकित्सा व्यवस्था करनी चाहिए । इस रोग की विशिष्ट ओषधियों का प्रयोग शारीरिक पुष्टि एवं क्षमता की वृद्धि होने पर ही लाभकर होता है। रक्तावसादन गति की वृद्धि व्याधि की सक्रियता का परिचय देती है। जब तक कुष्ठी प्रतिक्रिया ( Lepra reation ) होगी, ओषधियों सात्म्य न होंगी तथा व्याधि का प्रसार होता जायगा। रोगी की मानसिक प्रसनता, रोगमुक्ति का विश्वास तथा चिकित्सा के प्रति पूर्ण आस्था रहने से शीघ्र लाभ होता है। 'रोग पूर्व जन्म के पापों का फल है यह भावना निर्मूल कराना आवश्यक है - अन्यथा रोगी में हीनतामूलक विचार उत्पन्न होंगे तथा पर्याप्त समय तक चिकित्सा व्यवस्था चला पाना संभव न होगा। रोगी सामाजिक अवमानना के भय से रोग की प्रारम्भिक अवस्था में चिकित्सक से परामर्श लेना नहीं चाहता तथा कुटुम्बियों से छिपाकर थोड़ी बहुत उपचार को व्यवस्था करता है। इससे पूर्ण लाभ नहीं होता तथा रोग का प्रसार भी बढ़ जाता है। इस विषय में प्रचारात्मक शिक्षण की व्यवस्थां लाभप्रद सिद्ध होगी ।
01b233fec6a48da2865159123e112213b70dc134
web
विशेष रिपोर्टः वसुंधरा सरकार कौशल विकास, मुद्रा योजना और सरकारी नौकरी के ज़रिये कुल 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का दावा कर रही है, लेकिन इन लोगों की जानकारी उसके पास नहीं है. राजस्थान सरकार के रोज़गार संबंधी दावों पर कैग भी सवाल उठा चुका है. राजस्थान में भाजपा को फिर से सत्ता में लाने की जद्दोजहद में जुटीं वसुंधरा राजे पूरे प्रदेश में तूफानी प्रचार कर रही हैं. इस फेहरिस्त में मुख्यमंत्री बीते 24 नवंबर को जोधपुर ज़िले के भोपालगढ़ पहुंचीं. भाषण में अपनी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करने के बाद वसुंधरा जब सभा में आए लोगों से मिलने मंच से नीचे उतरीं तो एक महिला ने उनसे ऐसी बात कही कि वे निरुत्तर हो गईं. महिला ने मुख्यमंत्री से कहा- 'टाबर तो घरां बेरोजगार बैठ्या, काईं मुंह से वोट मांगबा आई हो (बच्चे तो घर पर बेरोज़गार बैठे हैं. आप किस मुंह से वोट मांगने आई हो). ' इस तंज़ को सुनकर वसुंधरा के क़दम एक पल के लिए ठिठक गए. हालांकि वे महिला को जवाब दिए बिना ही हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गईं. वसुंधरा ने महिला से तो पीछा छुड़ा लिया, लेकिन चुनावी मौसम में बेरोज़गारी का मुद्दा उनका पीछा नहीं छोड़ रहा. इस वाकये का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. प्रदेश कांग्रेस के आला नेता अपने भाषणों में इस घटना का ज़िक्र कर भाजपा को घेर रहे हैं. वहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी के दूसरे नेताओं को इस मामले में जवाब देते नहीं बन रहा. वैसे तो बेरोज़गारी का मुद्दा हर चुनाव में उठता है, लेकिन राजस्थान में भाजपा इस पर घिरी हुई इसलिए नज़र आ रही है, क्योंकि 2013 के विधानसभा चुनाव के समय पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में 15 लाख युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था. हालांकि वसुंधरा राजे ने 'सुराज संकल्प यात्रा' के दौरान 'रोज़गार' की बजाय बार-बार 'नौकरी' शब्द का प्रयोग किया. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का यह दांव कारगर रहा. युवाओं ने पार्टी के पक्ष में जमकर मतदान किया. वसुंधरा राजे 200 में से 163 सीटें जीतकर सत्ता में लौटीं. युवाओं को उम्मीद थी कि भाजपा की तरह उनके भी 'अच्छे दिन' आएंगे और उन्हें नौकरी मिलेगी. सरकार के अलग-अलग विभागों में नौकरियों की भर्तियां निकलीं भी, लेकिन इनमें से ज़्यादातर कानूनी दांव-पेंचों में उलझ गईं. इस बीच 12 फरवरी को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मौजूदा कार्यकाल के आख़िरी बजट में यह आंकड़ा देकर सबको चौंका दिया कि उनकी सरकार अब तक 15 लाख से ज़्यादा रोज़गार दे चुकी है. हालांकि उन्होंने यह ब्योरा नहीं दिया कि किन लोगों को कहां पर रोज़गार मिला है. असल में सरकार के पास सरकारी नौकरियों के अलावा रोज़गार मिलने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है. जब सरकार के पास रोज़गार प्राप्त लोगों का विवरण ही नहीं है तो मुख्यमंत्री ने विधानसभा में 15 लाख का आंकड़ा किस आधार पर दिया? भाजपा इस सवाल का जवाब देने से बचती तो समझ में आता, लेकिन पार्टी के नेताओं की ओर से रोजगार के अलग-अलग आंकड़े सामने आने के बाद मामला और उलझ गया. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 11 सितंबर को जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में शक्ति केंद्रों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए दावा किया कि राजस्थान सरकार अब तक 26 लाख लोगों को रोज़गार दे चुकी है. शाह का कहा तभी सही हो सकता है जब सरकार ने 12 फरवरी से 11 सितंबर की अवधि में 11 लाख लोगों को रोज़गार दिया हो. सूबे के भाजपा नेता अमित शाह की ओर से दिए गए आंकड़े को सही साबित करते उससे पहले ही पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी ने नई संख्या बता दी. उन्होंने कहा कि राजस्थान की भाजपा सरकार अब तक 35 लाख लोगों को रोज़गार दे चुकी है. रोज़गार के आंकड़ों का यह उछाल यही नहीं रुका. वसुंधरा राजे ने 9 नवंबर को एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि भाजपा ने 15 लाख नौकरियों का वादा किया था जबकि 44 लाख से अधिक लोगों को नौकरियां दीं. मुख्यमंत्री के इस दावे को राजस्थान भाजपा के अधिकृत ट्विटर हैंडल से ट्वीट भी किया गया. महज नौ महीने में रोज़गार का आंकड़ा 15 लाख से 44 लाख कैसे हो गया? इस गणित को समझाने के लिए प्रदेश भाजपा का कोई नेता तैयार नहीं है. हालांकि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने घोषणा-पत्र जारी करते हुए मीडिया को 44 लाख नौकरियों का गणित समझाया. उन्होंने कहा कि सरकार ने 2. 25 लाख सरकारी और कौशल विकास व मुद्रा योजना के ज़रिये 44 लाख नौकरियां दीं. मुख्यमंत्री के दावों की पोल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट खोल देती है. रिपोर्ट में राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (आरएसएलडीसी) की ओर से चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों के आंकड़ों को संदेहास्पद बताया गया है. आरएसएलडीसी ने नियोजन के जो आंकड़े जारी किए उनसे में से महज़ 37. 45 प्रतिशत ही सही मिले. कैग की रिपोर्ट में आरएसएलडीसी की ओर से चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार का भी खुलासा हुआ है. कैग की की टीम ने जयपुर, अलवर व कोटा में संचालित 18 कौशल विकास केंद्रों पर जांच की तो सामने आया कि जो छात्र केंद्र पर आए ही नहीं, उनकी हाज़िरी लगाकर सरकार से करोड़ों रुपये का भुगतान उठाया गया. नियमानुसार कौशल विकास केंद्रों पर छात्रों की हाज़िरी के लिए न सिर्फ जीपीएस से जुड़ी बायोमेट्रिक मशीन से होना ज़रूरी है, बल्कि इसका आरएसएलडीसी सर्वर पर मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (एमआईएस) से ऑनलाइन जुड़ना आवश्यक है, लेकिन कैग की टीम को 11 केंद्रों पर बायोमेट्रिक मशीन तक नहीं मिली. जबकि इन केंद्रों पर रोज़ाना सैकड़ों छात्रों को ट्रेनिंग लेते हुए दिखाया जा रहा था. मुद्रा योजना में ऋण से लाखों नौकरियां पैदा होने का दावा सरसरी तौर पर देखने से ही हवा-हवाई लगता है. सरकार के अनुसार इस योजना के अंतर्गत प्रदेश में 50 लाख से ज़्यादा लाभार्थी हैं, लेकिन उसके पास इसका कोई आंकड़ा नहीं हैं कि इनमें से कितनों ने काम-धंधा शुरू किया और कितने लोगों को रोज़गार दिया. चार्टर्ड अकाउटेंट हेमेंद्र चौधरी राजस्थान में मुद्रा योजना से लाखों की संख्या में नौकरियां मिलने के दावे को हास्यास्पद मानते हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से 44 लाख युवाओं को नौकरी देने के दावों को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बेरोज़गारों के साथ मज़ाक क़रार देते हैं. गौरतलब है कि अक्टूबर महीने में तृतीय श्रेणी अध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी. कांग्रेस ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा. आयोग इस पर कोई कार्रवाई करता इससे पहले ही राजस्थान उच्च न्यायालय ने नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी. प्रदेश कांग्रेस की मीडिया चेयरपर्सन डॉ. अर्चना शर्मा के मुताबिक भाजपा चुनाव आयोग को लिखे पत्र की आड़ में अपनी नाकामी छिपा रही है. राजस्थान उच्च न्यायालय में इस प्रकार के मामलों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता तनवीर अहमद के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक तकनीकी कारणों से लगी है. राजस्थान बेरोज़गार एकीकृत महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव की मानें तो राजस्थान में एक लाख छह हज़ार सरकारी नौकरियां कानूनी झमेलों में फंसी हुई हैं. बीते पांच साल में 44 लाख नौकरियां देने का सरकारी दावा बेरोज़गारी दर की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता. अक्टूबर 2018 में जहां देश में बेरोज़गारी 6. 6 प्रतिशत थी वहीं राजस्थान में यह 13. 7 प्रतिशत थी. बेरोज़गारी के मामले में राजस्थान देश में चौथे स्थान पर है. पहला स्थान त्रिपुरा, दूसरा जम्मू कश्मीर और तीसरा स्थान हरियाणा का है. पांच साल में 44 लाख नौकरियां देने का दावा कर रही भाजपा का ताज़ा वादा और रोचक है. पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में सरकार बनने पर अगले पांच साल में 50 लाख युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया है. पार्टी ने हर साल 30 हज़ार सरकारी नौकरियां देने और बेरोज़गारों को पांच हज़ार रुपये तक बेरोजगारी भत्ता देने का वादा भी घोषणा पत्र में किया है. (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. )
21bfb60faede12d95ff560c65def0bbb341b08049b0b16a86c864d59e28249a1
pdf
सूची कहीं दी है और उसमें मॉरिशस सबसे ऊपर है। मॉरिशस में पैसा कहां से आता है। टोटल जो डायरेक्ट इंवेस्टमेंट से पैसा इस देश में आता है उसमें से 42.15 परसेंट मॉरिशस से आता है। यह कहना मेरा नहीं है, यह सरकार का ही आंकड़ा है कि यह मॉरिशस से आता है। यह पैसा क्यों आता है। माननीय वित्त मंत्री जी ने अपने भाषण में कहा है कि हम दो समझौते विदेशों से करेंगे, डीआईए और डीटीए क्योंकि बगैर एग्रीमेंट के आदान-प्रदान नहीं होगा। वे देश कौन हैं जहां से पैसा आता है, बहामास, बरमुडा, ब्रिटिश वर्जिन आईलेंड्स, आईल ऑफ मैन, कैरीमैन आईलैंड, जरसी, मोनाको, सेंटर किट्स एंड नेविस, अर्जेंटिणा एंड मार्शल आईलेंड्स, ऐसे असंख्य देश हैं। इन देशों में पैसा जाकर छुपाया जाता है और पीआईएल के चलते सरकार ने कार्रवाई की है। सुप्रीम कोर्ट को हम धन्यवाद देना चाहते हैं क्योंकि जो सदन नहीं कर सका, वह न्यायालय ने कर दिया। जर्मन सरकार ने वर्ष 2008 जब सूचना दी थी तो इतने दिनों तक जिन लोगों ने करवंचना की, पैसा चुराया था, उनके बारे में सरकार ने जानकारी क्यों नहीं ली? सरकारी दस्तावेजों में बीजेपी के बारे में उल्लेख किया है। कहा है कि आम चुनाव 2009 के दौरान कथित बीजेपी कार्यदल की अंतरिम सिफारिश में 500 बिलियन डालर यानी 25 लाख करोड़ रुपया और 1400 बिलियन डालर यानी 70 लाख करोड़ रुपये के बीच राशि का अनुमान लगाया गया। A study titled 'The Drivers and Dynamics of Illicit Financial Flows from India 1948-2008' was released by the Global Financial Integrity (GFI). जीआईएफ के बारे में कहा गया है कि वर्ष 2008 में स्वतंत्रता के बाद यह अनुमान लगाया कि 2213 बिलियन डालर का नुकसान हुआ है। फिर कहा है कि वर्तमान में यह 400 बिलियन डालर कहा जा सकता है। सरकार कहती है कि हमारे पास कोई ऐसा मैकेनिज्म नहीं है कि हम पता लगा सकें। सभापति महोदयः आप अपनी बात समाप्त कीजिए श्री मंगनी लाल मंडल : काले धन के बारे में मंत्री जी मैं ही नहीं कहता, बल्कि देश की जनता जानती है कि आपके समय में अगर काला धन नहीं निकलेगा और जिन्होंने काला धन छुपा कर रखा है, अगर उन्हें जेल नहीं भेजा जाएगा, तो आने वाले समय में कांग्रेस सरकार के पास काला धन निकालने वाले वित्त मंत्री होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। सभापति महोदय : आप अपनी बात समाप्त कीजिए । श्री मंगनी लाल मंडलः हसन अली को आपने गिरफ्तार किया। आज समाचार में आ रहा था कि 500 बिलियन डालर उसके पास विदेशों में जमा है। हमारे रिजर्व में जो पैसा है, उससे ज्यादा पैसा उसके पास है। वह पैसा एक दिन में जमा नहीं किया गया है। अगर सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर प्रहार नहीं होता, तो शायद यह बात कभी सामने नहीं आती। इसलिए मैं इस बजट का विरोध करता हूं। सभापति महोदय : मंगनी लाल जी, आप बैठ जाएं। श्री मंगनी लाल मंडल : यह बजट गरीब विरोधी है। यह बजट गैर-बराबरी बढ़ाने वाला बजट है। यह बजट रोजगार विरोधी है। यह बजट गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की परवाह करने वाला नहीं है । सभापति महोदय : माननीय सदस्य की बात रिकार्ड में नहीं जाएगी। श्री मंगनी लाल मंडल : मैं इस बजट का विरोध करता हूं.... ( व्यवधान) Not recorded. DR. RATNA DE (HOOGHLY): Sir, thank you. I am grateful to you for allowing me to speak. I welcome the Budget presented by the hon. Finance Minister, Shri Pranab Mukherjee. The Budget of 2011-2012 needed a great balancing act. On one hand, there is challenge of sustaining growth momentum at the rate of nine per cent and on the other the UPA's supreme objective of inclusiveness had to be taken care of. Over and above, this year, there remained an added responsibility of containing inflation, which is a matter of great concern for all of us. And to top it all, the Finance Minister had to balance all these three objectives under the strict condition of fiscal consolidation. Now, the question is: Had he succeeded in doing so? To my mind, he has not only succeeded, but he has also displayed great pragmatism in doing so. This was not an easy task at all. Now, coming to the growth, there is no doubt that this year's Budget is one for "Growth". Amidst the real concern of inflation and fiscal consolidation, it is nice to see the Finance Minister not compromising on this front at all. The great care which he has taken to boost infrastructure and education is most welcome. While infrastructure investment would ease supply bottlenecks on the physical front, a 24 per cent rise in education expenditure would meet the gap of much needed human-capital formation and Skill building. Needless to say, these two together would create a firm foundation for long-term growth story of India. With this, one has to add his promise to introduce two path-breaking Bills, that is, GST and Direct Tax Code (DTC) in the next Parliament Session. These two, while implemented, would stimulate growth both from supply and demand sides. Heartening to see that he has kept his commitment towards fiscal consolidation, and reduced fiscal deficit to 4.6 per cent of the GDP in the current fiscal. If the geo-political situation doest not create havoc with oil prices, then I do hope that he would be able to keep his commitments and thus encourage growth further. The only area of concern is high Current Account deficit which, I am sure, he will find means in course of time this year to tackle. Inclusiveness: UPA's overriding objectives of inclusiveness and rural development is a continuous process. It got its reflection in last two Budgets as well as in the present one. A staggering Rs. 58,000 crore had been allocated for 'Bharat Nirman', that is, rural infrastructure building, despite fiscal constraints. This is a rise of Rs. 10,000 crore as compared to last Budget. This money will go to rural roads, rural electrification, accelerated irrigation programme, drinking water, sanitation, and housing scheme in rural India. This may be considered "Investment for agriculture", if not strictly Investment in agriculture." And in Indian context, it has been seen that it is such investment for agriculture by the Government which in turn encourage." Investment in agriculture by the private sector. Thus, much has been done for agricultural growth through such huge spending. Needless to say, such spending would boost rural empowerment and rural demand even in the short-term. Empowering rural India does not stop here. The Budget also declares to provide rural broadband connectivity to all 2,50,000 village Panchayats in rural India. This is a step which can empower rural people to great extent and save them from misinformation and exploitation. UPA Government's flagship programme of employment guarantee of one person per family for 100 days goes unabated. A sum of Rs. 40,000 crore had been allocated again for MGNREGA this year. This not only creates the safety net against high food inflation, but also intends to protect their real wage by linking nominal wage to Consumer Price Index. This is extremely heartening. I do hope all administrative lacunae in the delivery system will be taken care of this time so that real needy gets the benefit. The increase of remuneration of Anganwadi workers and helpers was long pending. By doubling their remuneration from Rs. 1500 to Rs. 3000, the Finance Minister had benefited 22-lakh Anganwadi workers most of whom are women. This brings immediate cheer to all of us. The increased coverage of National Health Insurance to cover mining workers and other associated unorganized industry is an excellent step; so is the empowerment of women through Self-Help Women's Development Fund of Rs. 500 crore this year. UPA's commitment to Social Empowerment gets its reflection in its "Right to Education". Allocation was increased by 40 per cent this year. And a pre-matric scholarship scheme being introduced for four million needy students belonging to Scheduled Caste and Scheduled Tribe categories in Class IX and X is extremely welcome. I would like to see more quality upgradation and teachers which should mean real empowerment. Heartening to see, Finance Minister's efforts did not stop only at allocation of fund. He at least had ventured into the improvement of the delivery by introducing Direct Cash Transfer System in place of "subsidy in fertilizer and food." I would urge necessary administrative steps in this regard so that these schemes reach the real beneficiaries and do not get misused like in MGNREGA. Now, I come to Inflation, as we all know is a matter of major concern for all of us, especially food inflation because it is food inflation which affects the poor relatively more. Now the question is, had the Finance Minister addressed this issue sufficiently? To my mind, within the limited scope of budget-making he tried his best. It is true that all these measures are not sufficient to tackle inflation. Much also would depend on RBI's monetary management. To that extent. Inflation still remains a matter of worry. To ease supply bottlenecks in Agriculture, several measures have been taken. I have already mentioned how the huge allocation for Bharat Nirman will ease bottlenecks in agriculture by encouraging of private investment. Moreover, all previous schemes relating to bringing Green Revolution to Eastern India, development of 60,000 arid villages for pulses and oilseeds, still continue with further allocation of Rs.400 crore and Rs.300 crore respectively. Rs.300 crore have been allocated for promotion of Bajra, Jwar, Ragi and other millets. On the credit front, additional amount has been made available to agriculture. Plus, Interest Rate Subvention had been hiked thereby reducing the effective Interest rate to four per cent for short-term crop loans. Enough has been provided to encourage cold storage which would take care of distribution efficiency. It is true that all these measures would ease production and distribution efficiency in case of food and other agricultural crops. But much more needs to be done to make agriculture productive and a viable job option for today's Indian youth. Funds sent by the Central Government to the State of West Bengal are not utilised because the West Bengal Government is not in a position to contribute its share for implementation of the Central Government schemes and programmes. Financial position of the West Bengal Government is very poor. There cannot be two opinions about it. For example the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission where the State Government of West Bengal is not in a position to contribute its share. The JNNURM is not being implemented properly with the result that development is retarded and the ultimate losers are the people. Before I finish I would like to congratulate the hon. Finance Minister for some of his touching efforts to Bengal. I will also urge upon him to roll back the five per cent service tax on healthcare. As a Doctor, I find it difficult to swallow. The allocation of Rs.3000 crore to NABARD or Rs.15,000 crore for revival of cooperative societies in handloom sector is a relief for three lakh handloom weavers as well as for me. His special thought about Senior Citizens over 80 years of age for whom tax exemption limit rises to Rs.5 lakh is really touching. Allocation of Special Education Grant to IIT Kharagpur and IIM Kolkata make all of us in Bengal happy. Grant of Rs.50 crore to Aligarh Muslim University at Murshidabad was much needed. Last but not least, declaring the prize money of Rs.1 crore in the name of Gurudev Rabindranath Tagore reminds whole of India the need for universal brotherhood, a value all of us cherish in Bengal since childhood. Thank you again, sir, for allowing me to express my general view on the General Budget in this august House. श्री लालू प्रसाद (सारण) : महोदय, सरकार जो बजट लाई है, मैंने उसका मोटा-मोटा अध्ययन किया है और देखा है कि इसमें कृषि पर और अन्य चीजों पर बहुत कम टैक्स लगाने का प्रयास प्रणब दा ने किया है, मैं इसकी सराहना करता हूं। ऊंट के मुंह में जीरे की तरह देश की गरीबी, गुरबत, लाचारी और बेबसी है। इस देश में एक श्रेणी के लोग फैशन में बहस करते हैं कि जातपात और बिरादरी मिटनी चाहिए । लेकिन यह जात-पात, बिरादरी मिटने का नाम नहीं लेती है। जब तक इस देश में चंद हाथों में नौकरियां हैं, शिक्षा चंद हाथों में कैद है और आज राजनीति में भी इसी तरह के लोग आ रहे हैं, जो कानून बनाते हैं, जो सुप्रीमेसी ऑफ पार्लियामैन्ट, जो हायर लेजिस्लेचर की पावर है, लेकिन जब हम कानून बनाने लगते हैं तो हमारा ध्यान हर इनडिविजुअल पर पड़ता है कि इन इंटरैस्ट ऑफ दि स्ट्रांगर पीपुल हम जो कानून बनाने जा रहे हैं, इससे हम प्रभावित होते हैं कि नहीं, यह हम पर लागू होता है कि नहीं, यह परख लेते हैं, तभी इसमें लोग भाग लेते हैं। यह देश का दुर्भाग्य है। अगर इस देश की गरीबी, गुरबत और समाजवाद का मतलब, समतामूलक समाज का मतलब, गैर बराबरी का मतलब गैर बराबरी मिटे, सभी पंथ, सभी धर्मों में सभी भाई और बहन हैं, उधर हमारा ध्यान नहीं जाता है। महोदय, इस देश की रीढ़ एग्रीकल्चर और पशुपालन है। पशुपालन के अलावा जो कृषि है, इसी सदन में कृषि मंत्री जी ने कहा था कि नॉर्थ इंडिया खासकर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और कोलकाता पर ग्लोबल वार्मिंग का असर पड़ने वाला है। हमारी पैदावार कम होने वाली है, बारिश कम होने वाली है। आज बिहार के समाचार पत्र को मैंने देखा, उसमें लिखा था कि 17 जिलों में पीने के पानी का अभाव है। वहां की सरकार ने वहां के मुख्य मंत्री ने भी कबूल किया है, जो मैंने पढ़ा है। वहां जो वाटर लैवल है, वह पाताल लोक में जा रहा है। प्रणव बाबू आप पता कर लें कि आखिर हम शुरू से ही बिहार के लोग माइग्रेट क्यों करते हैं। एक तरफ उत्तर बिहार, जहां हमारी बैस्ट फर्टाइल लैंड है और डेन्सिटी ऑफ पापुलेशन बहुत थिक है। वहां अंतर्राष्ट्रीय नदियां हर साल नेपाल से होकर निकलती हैं और हमारी जो टूटीफूटी जैसी भी व्यवस्था है, वह उनके कारण चरमरा जाती है। कोसी नदी की पिछले साल की बाढ़ इसका उदाहरण है कि उसके कारण बिहार की क्या हालत हुई थी। जो मध्य बिहार है, जमींदार और सामंतों की वजह से मध्य बिहार में नक्सलवाद आया। मेरे शासनकाल में ये सब झारखंड में चले गये और आपस में लड़ते रह गये। हम लोग जिस बिहार से आते हैं, उस बिहार की उपेक्षा, बिहार पर ध्यान नहीं देना, उसके साथ भेदभाव करना, हमेशा से होता रहा है। मैं समझता हूं कि जब तक बिहार नहीं उठेगा, बिहार के लोग नहीं उठेंगे, तब तक देश की उन्नति नहीं हो सकती है। बिहार के मुख्य मंत्री, नीतीश जी ने कहा है कि हम बिहार को 2015 तक विकसित राज्य बना देंगे। उनके पास मशीन है, वे देखते रहते हैं। इस पर हमने कहा कि छः महीने के बाद ही बोलेंगे। प्रणव बाबू ज्ञानी आदमी हैं, जानकार आदमी हैं, उनके पास काफी अनुभव है, उनके सामने हम लोगों की उम्र भी बहुत कम है। लेकिन भारत सरकार का ग्रोथ रेट क्या है, आप जो पैसा देते हैं, बांटते हैं। जो मालिक हैं, जिसके पास रिसोर्सेज हैं, जो राज्यों को पैसे पम्प करता है। यूपीए-1 सरकार में हमने जो पैसा पम्प किया। भारत निर्माण के तहत नरेगा से लेकर सर्व शिक्षा अभियान, अस्पताल, प्रधान मंत्री सड़क योजना, हाईवे, नेशनल हाईवे उन दिनों में राज्य सरकारों के पास अपने कर्मियों को तनख्वाह देने का भी पैसा नहीं था। उनमें महाराष्ट्र भी एक राज्य था, जो अपने कर्मियों को तनख्वाह भी नहीं दे पाता था। यूपीए-1 सरकार में मैं भी आपके साथ में था। उस समय दुनिया में जो इकोनोमी बूम हुई थी, उसका लाभ भारत को भी मिला । हमारे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और वही पैसा हम लोगों ने हर राज्य सरकार को पम्प किया और पम्प करने का नतीजा क्या हुआ कि आप यहां से जो चावल, गेहूं देते हैं। लेकिन हर राज्य सरकार को मैं देखता हूं कि जब चुनाव आता है तो कहते हैं कि हम दो रुपये किलो चावल बेचेंगे। आप भी बेचते हैं और बीजेपी भी बेचने लगती है। सरकार का सामान ही बेचने लगती हैं। यह समस्या का इलाज नहीं है, निदान नहीं है। हम बिहारी लोग, बिहार के लोग, कई अवसरों पर चर्चा हुई थी कि नेपाल से बात कीजिये । हमारे महरूम नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने बार-बार कहा था कि बिहार तब तक उठने वाला नहीं है, हमारा किसान, उत्तर बिहार गार्डन ऑफ बिहार कहा जाता था, लेकिन उत्तर बिहार की क्या हालत है ? नक्सलपंथ, पीपुल्स वार ग्रुप ईस्ट जिले में फैल गया है। चारों तरफ गांव से शहर को घेरो, गांव से शहर को घेरो, वे आपके और हमारे सिस्टम को स्वीकार नहीं करते हैं। महोदय, जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा था कि नेपाल से बात कीजिए। जब तक नेपाल से बात नहीं होगी, जब तक बिहार की नदियों का रख-रखाव, रैगयुलराइज, वहां डैम हों, वहां बिजली पैदा हो, बिहार मामूली राज्य नहीं है, ईस्ट बिहार का कायाकल्प तब होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हम जब यूपीए वन में थे तो हम लोगों ने बात की थी और उसके लिए पैसा भी दिया था। मिनिमम कॉमन प्रोग्राम में इन सब बातों का जिक्र है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पायी है। बाढ़ के बाद, बाढ़-सुखाड़, नदियों का कटाव, माननीय प्रधानमंत्री जी ने ऐलान किया था, गंगा नदी नेशनल रीवर है, हम इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन क्या एक पैसा, एक छटांक पैसा भी नदियां के रख-रखाव के लिए है। गंगा नदी जो डिवाइड करती है, राइट, लेफ्ट इरोजन करती है, मिट्टी काटकर लेकर चली जाती है, गांव को डुबो देती है, उसके लिए एक पैसे का जिक्र नहीं है। फिर यह बिहार कैसे बढ़ने वाला है, कौन करने वाला है? सिर्फ बिहार ही नहीं, ईस्टर्न यूपी से लेकर सेवन सिस्टर्स, उड़ीसा से लेकर झारखंड का जो इलाका है, पूर्वांचल, पूर्वोत्तर जो राज्य हैं, उनका कायाकल्प होने वाला नहीं है। हम बिहार के लोग मेहनत करके, रिक्शा चलाकर, ठेला चलाकर, मॉरीशस में जाकर, लीबिया में जाकर दुनिया में जाकर, सिंगापुर में जाकर पैसा लाते हैं, हम अरब देशों में जाते हैं। हम मजदूर के रूप में जाते हैं और मुद्रा लेकर आते हैं। पैसा कहां जमा होता है, किसकी तरक्की में पैसा जाता है? जो हमारे बिहारियों का क्रेडिट है, जो हमारा पैसा बैंकों में, रिजर्व बैंक में डिपोजिट है, यह जो पैसा है, आप बताइये कि क्या उसकी बराबरी में एक भी पैसा बिहार को मिला है? क्रेडिट डिपोजिट रेश्यो पर कई बार आते-जाते वित्त मंत्री जी मुंह खोलते हैं, मैं भी था, 33 परसेंट हैव बीन इनवेस्टमेंट, जितना क्रेडिट बिहारी लोग करते हैं, जमा करते हैं, हम बिहार में खर्चा करेंगे, लेकिन कुछ नहीं है। आज बिहार को वर्ल्ड बैंक से लोन लेना पड़ रहा है, बिहारियों को कर्जे में डाला जा रहा है। इसीलिए हमारी लड़ाई थी। आरबीआई का महाराष्ट्र में जो हैडक्वार्टर है, जहां हमारे देश का कामर्शियल सेंटर है, सारा मुख्यालय बंबई में हैं। उसे डी-सेंट्रलाइज कीजिए और हमारा जो क्रेडिट है, उसके अनुरूप पैसा बिहारियों को दीजिए, हमें भीख नहीं मांगनी है। बिहार सरकार बार-बार कहती है, हम लोग भी कहते हैं, लेकिन आप कहते हैं कि स्पेशल कैटेगरी नहीं होगा, राज्य को स्पेशल कैटेगरी का दर्जा नहीं दोगे तो बिहार आगे बढ़ने वाला नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री जी ने भी कह दिया। सभापति महोदय : अब आपको कंक्लूड करना पड़ेगा। श्री लालू प्रसाद : महोदय, स्पेशल कैटेगरी, हम लोग माननीय प्रधानमंत्री जी से भी मिले थे, सबसे मिले थे, लेकिन आखिर क्या एक भी पैसे का इन्वेस्टमेंट बिहार में हुआ? क्या एक भी इंडस्ट्री बिहार में है, क्या एक भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट बिहार में है, नहीं है, आज से नहीं, शुरू से ही नहीं है। जब तक हमारा किसान, बिहार में हमारी कृषि की उपज सड़-गल जाती है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। रीजनल इनबैलेंस को मिटाना पड़ेगा और यही नहीं अगर बिहार के मुख्यमंत्री जी का सपना है कि वर्ष 2015 तक हम बिहार को विकसित राज्य बना देंगे, आप कहां से बना दोगे? कैसे बना देंगे? कोई मशीन है जो बना देंगे? कैसे बनाएँगे? हम लोग देहात में गाय, बकरी चराते थे तो बोलते थे,... (व्यवधान) MR. CHAIRMAN : Please conclude now. श्री लालू प्रसाद : अरे सुनिये ना पहले आप । सभापति महोदय : आप बहुत अच्छा बोल रहे हैं। श्री लालू प्रसादः तो सुन तो लीजिए । सभापति महोदय : मैं तो सुन रहा हूँ।
d9c1be6f4d6ce1d4bfdb2eb3122f3cd6d6e856d4
web
26 संबंधोंः चित्तौड़गढ़, झुन्झुनू, नाहरगढ़ दुर्ग, नागौर, बालसमंद झील, बीकानेर, भरतपुर, मेहरानगढ़, रामबाग महल, राजस्थान, लक्ष्मणगढ़ दुर्ग, लेक पैलेस, शिव निवास पैलेस, शेखावत, सिटी पैलेस, उदयपुर, संग्रहालय, सीकर, हवामहल, होटल, जयपुर, जल महल, जैसलमेर, जैसलमेर दुर्ग, जोधपुर, उदयपुर, उम्मैद भवन पैलेस। पद्मिनी महल का तैलचित्र चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किन्तु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वे अपना लक्ष्य नहीं पा सके और प्रचण्ड गुस्से में आकर उसने अपना पाँव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहाँ पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी के इस कुण्ड को भीम-ताल कहा जाता है; बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। यहाँ पर रोड वंशी राजपूतों ने बहुत समय राज किया। यह माना जाता है गुलिया वंशी बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था। अजमेर से खण्डवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल (ह्वेल मछ्ली) आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त यह दुर्ग लगभग ३ मील लम्बा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा है। चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं। . भारत के राजस्थान प्रान्त में झुन्झुनू नगर के संस्थापक जुझारसिंह नेहरा की मूर्ती झुन्झुनू राजस्थान राज्य में एक शहर और जिला है। इतिहासकारों के अनुसार झुंझुनू को कब और किसने बसाया, इसका स्पष्ट विवरण नही मिलता है। उनके अनुसार पांचवी-छठी शताब्दी में गुर्जर काल में झुंझुनू बसाया गया था। आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों के काल का अध्ययन करते हैं तो उसमे झुंझुनू के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है। डॉ. नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन १७३४ में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी। अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी। १९ वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं। यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं। इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी। किले के पश्चिम भाग में "पड़ाव" नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है। यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है। . नागौर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह नागौर जिला मुख्यालय है। नागौर राजस्थान का एक छोटा सा शहर है। ऐतिहासिक रूप से भी यह जगह काफी महत्वपूर्ण है। नागौर बलबन की जागीर थी जिसे शेरशाह सूरी ने 1542 ने जीत लिया था। इसके अलावा महान मुगल सम्राट अकबर ने यहां मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद का नाम अकबरी जामा मस्जिद है। यह मस्जिद शहर के बीचों बीच दड़ा मोहल्ला गिनाणी तालाब के पास स्थित है। इस मस्जिद के दो ऊंचे मीनार गुंबद मुगलकालीन निर्माण कला के गवाह हैं। इसके अलावा गिनाणी तालाब की उत्तरी दिशा की तरफ ही आलिशान दरगाह बनी हुई है। इस दरगाह को हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह शरीफ कहा जाता है। इस दरगाह में ख्वाजा गरीब नवाज हजरत मइनुद्दीन चिश्ती के खास खलीफा हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी की मजार शरीफ है। नागौर विशेष रूप में प्रत्येक वर्ष लगने वाले पशु मेले के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस मेले में हर साल काफी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर और स्मारक भी है। . बालसमंद झील जोधपुर-मंडोर मार्ग पर जोधपुर से पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित एक झील है। इसका निर्माण सन् ११५९ में बलक राव परिहार ने किया था। . बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति गड़रिया था, जब राव बीका ने नेरा से एक शुभ जगह के बारे में पूछा तो उसने इस जगह के बारे में एक जवाब दिया उसने कहा की इस जगह पर मेरी एक भेड़ का मेमना ३ दिन तक भेड़ के साथ ७ सियारों के बीच एकला रहा और सियारों ने भेड़ और उसके बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुचायां और उसने इस बात के साथ एक शर्त रख दी की उसके नाम को नगर के नाम के साथ जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के ५ द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांस २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है . भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथ-साथ देश का सबसे प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है। 29 वर्ग कि॰मी॰ में फैला यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। विश्व धरोहर सूची में शामिल यह स्थान प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है। भरतपुर शहर की बात की जाए तो इसकी स्थापना जाट शासक राजा सूरजमल ने की थी और यह अपने समय में जाटों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के मंदिर, महल व किले जाटों के कला कौशल की गवाही देते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहाँ अनेक जगह हैं इसका नामकरण राम के भाई भरत के नाम पर किया गया है। लक्ष्मण इस राज परिवार के कुलदेव माने गये हैं। इसके पूर्व यह जगह सोगडिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था जिसको महाराजा सूरजमल ने जीता और 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली . मेहरानगढ़ दुर्गचामुंडा माता मंदिर मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने १२ मई १४५९ को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में करवाया था। राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी (पट्टा सहित), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था। . रामबाग महल राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित एक महल है लेकिन वर्तमान में यह एक होटल है। यह पहले जयपुर के महाराजा का घर था। . राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। . लक्ष्मणगढ़ दुर्ग (अंग्रेजीःLaxmangarh Fort) बहुत पुराना पहाड़ी दुर्ग है यह राजस्थान के सीकर ज़िले के लक्ष्मणगढ़ गाँव में स्थित है। लक्ष्मणगढ़ दुर्ग सीकर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण लक्ष्मणसिंह तथा सीकर के राव राजा ने 1805 में करवाया था इसके अलावा 1805 में इन्होंने लक्ष्मणगढ़ गाँव की भी स्थापना की थी। . लेक पैलेस जिसे कि पहले जग निवास के नाम से जाना जाता था, ८३ कमरों तथा सुइट्स का एक होटल है जिसका निर्माण सफ़ेद पत्थर से हुआ है। यह चार एकड़ के एक नैसर्गिक आधार पर पिछोरा झील में उदयपुर राजस्थान में जग निवास द्वीप पर बना हुआ है। होटल अपने अतिथियों के लिए एक स्पीड बोट की सुविधा प्रदान करता है जो कि अतिथियों को शहर से होटल तक पहुंचाती है। अपनी विशिष्ट स्तिथि के कारण इस होटल को भारत तथा दुनिया के सबसे अधिक रोमांटिक होटल के रूप में चिन्हित किया गया है। . शिव निवास पैलेस उदयपुर के महाराणा का पूर्व निवास है। अत्यंत ही खुबसुरत दिखने वाला यह महल पिछोला झील के तट पर बसा है। यह सिटी पैलेस, उदयपुर के दक्षिण में बसा हुआ एवं इसपर काम की शुरुआत महाराणा सज्जन शम्भू सिंह (१८८७-१८८४) के द्वारा की गयी थी। जिसका समापन उनके उत्तराधिकारी महाराणा फतेह सिंह के २०वी सदी के आरम्भ में किया गया। अपने अतिथिशाला के दिनों में इसकी भव्यता देखते बनती थी एवं इसने कई पार्टिया आयोजित होती थी। इन शाही दावतों में विश्व के महत्वपूर्ण व्यक्ति सम्मिलत होते थे, जिसमे यूनाइटेड किंगडम के जॉर्ज व् एवं प्रिंस ऑफ़ वेल्स एडवर्ड्स भी थे। १९५५ में जब भागवत सिंह मेवाड़ के राजा बने, तब उस समय इसको भव्यता को बनाये रखना शाही परिवार के लिए ये काफी मुश्किल सिद्ध हो रहा था। शाही परिवार के स्वामित्व में उस समय कई महल थे एवं उन सबकी भी भव्यता को कायम रखने में काफी परेशानी हो रही थी। उसी दौरान उन्होंने लेक पैलेस को उन्होंने होटल में परिवर्तित किया था जो अच्छी आय का माध्यम बन रहा था। इसको देखते हुए उन्होंने शिव निवास एवं फ़तेह प्रकाश पैलेस को विलासिता (लक्ज़री) होटल में बदलने का निर्णय लिया १९८२ में ४ वर्षों के लम्बी मेहनत के बाद शिव निवास पैलेस को होटल के तौर पर परिवर्तित कर दिया गया। शुरू से ही इसकी भव्यता लोगों को आकर्षित करती थी इसलिए जब इसे होटल के तौर पर खोला गया तब इसकी लोकप्रियता बढ़ने में ज्यादा दिन नहीं लगे। यहाँ पर रुकना एक राजसी अहसास के जैसा हैं और इतिहास के उन पलो में लौटना है। जब यहाँ राजा या रानी रहा करते थे, यही बात व्यक्ति को यहाँ वापस लौटने के लिए मजबूर करती है। इन सबके बाद पिछोला झील के तट पर बसा होना इसकी खूबसुरती में चार चाँद लगाता हैं। . शेखावत (क्षत्रिय) राजपूत वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,गढ़ गंगियासर,सुरजगढ़,नवलगढ़, खोटिया मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है। . सिटी पैलेस की स्थापना १६वीं शताब्दी में आरम्भ हुई। इसे स्थापित करने का विचार एक संत ने राजा उदयसिंह द्वितीय को दिया था। इस प्रकार यह परिसर ४०० वर्षों में बने भवनों का समूह है। यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में २२ राजाओं का योगदान था। इस परिसर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। बादी पॉल से टिकट लेकर आप इस परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य त्रिपोलिया गेट' दिखेगा। इसमें सात आर्क हैं। ये आर्क उन सात स्मवरणोत्सैवों का प्रतीक हैं जब राजा को सोने और चांदी से तौला गया था तथा उनके वजन के बराबर सोना-चांदी को गरीबों में बांट दिया गया था। इसके सामने की दीवार 'अगद' कहलाती है। यहां पर हाथियों की लड़ाई का खेल होता था। इस परिसर में एक जगदीश मंदिर भी है। इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय है। इसे अब सरकारी संग्रहालय घोषित कर दिया गया है। वर्तमान में शम्भूक निवास राजपरिवार का निवास स्थानन है। इससे आगे दक्षिण दिशा में 'फतह प्रकाश भ्ावन' तथा 'शिव निवास भवन' है। वर्तमान में दोनों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। . फ्रांस के लूव्र संग्रहालय में स्कूल के विद्यार्थी। लंदन में प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय टर्की के इस्तांबूल नगर में तोपकी संग्रहालय। संग्रहालय एक ऐसा संस्थान है है जो समाज की सेवा और विकास के लिए जनसामान्य के लिए खोला जाता है और इसमें मानव और पर्यावरण की विरासतों के संरक्षण के लिए उनका संग्रह, शोध, प्रचार या प्रदर्शन किया जाता है जिसका उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिए होता है। . सीकर भारत के राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह शहर शेखावाटी के नाम से जाना जाता है। सीकर एक एतिहासिक शहर है जहाँ पर कई हवेलियां (बड़े घर जो कि मुग़लकालीन वास्तुकला द्वारा बनाए गए हैं) है जो कि मुख्य पर्यटक आकर्षण हैं। . हवामहल हवा महल भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक राजसी-महल है। इसे सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी 'राजमुकुट' की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें ९५३ बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन करतीं राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें। इसके अतिरिक्त, "वेंचुरी प्रभाव" के कारण इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है। चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित यह महल जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह सिटी पैलेस का ही हिस्सा है और ज़नाना कक्ष या महिला कक्ष तक फैला हुआ है। सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है। . होटल एक इमारत है जिसमें कमरे होते हैं तथा कमरे किराये पर दिए जाते हैं। होटल में कई सुविधाएँ और हो सकती हैं। उनमें से भोजन की व्यवस्था, कसरत की व्यवस्था (जिम), तैराकी की व्यवस्था (स्वीमिंग पूल), दावतों, कॉन्फ़्रेन्सों के लिए अलग स्थान की व्यवस्था, आदि शामिल हैं। श्रेणीःव्यापार श्रेणीःआतिथ्य उद्योग * श्रेणीःप्रकारानुसार स्थापत्य. जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली,आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ और २०१२ के बाद ३५ लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। . जलमहल राजस्थान (भारत) की राजधानी जयपुर के मानसागर झील के मध्य स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक महल है। अरावली पहाडिय़ों के गर्भ में स्थित यह महल झील के बीचों बीच होने के कारण 'आई बॉल' भी कहा जाता है। इसे 'रोमांटिक महल' के नाम से भी जाना जाता था। जयसिंह द्वारा निर्मित यह महल मध्यकालीन महलों की तरह मेहराबों, बुर्जो, छतरियों एवं सीढीदार जीनों से युक्त दुमंजिला और वर्गाकार रूप में निर्मित भवन है। जलमहल अब पक्षी अभ्यारण के रूप में भी विकसित हो रहा है। यहाँ की नर्सरी में 1 लाख से अधिक वृक्ष लगे हैं जहाँ राजस्थान के सबसे ऊँचे पेड़ पाए जाते हैं। . जैसलमेर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित धार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में ११७८ ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए ७७० वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग ३०० वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग ३०० वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल १६,०६२ वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र ७६,२५५ थी। जैसलमेर जिले का भू-भाग प्राचीन काल में 'माडधरा' अथवा 'वल्लभमण्डल' के नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के युद्ध के बाद बड़ी संख्या में यादव इस ओर अग्रसर हुए व यहां आ कर बस गये। यहां अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। . जैसलमेर दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि की विशुद्ध स्थानीय दुर्ग रचना है। ये दुर्ग २५० फीट तिकोनाकार पहाडी पर स्थित है। इस पहाडी की लंबाई १५० फीट व चौडाई ७५० फीट है। रावल जैसल ने अपनी स्वतंत्र राजधानी स्थापित की थी। स्थानीय स्रोतों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण ११५६ ई. में प्रारंभ हुआ था। परंतु समकालीन साक्ष्यों के अध्ययन से पता चलता है कि इसका निर्माण कार्य ११७८ ई. के लगभग प्रारंभ हुआ था। ५ वर्ष के अल्प निर्माण कार्य के उपरांत रावल जैसल की मृत्यु हो गयी, इसके द्वारा प्रारंभ कराए गए निमार्ण कार्य को उसके उत्तराधिकारी शालीवाहन द्वारा जारी रखकर दुर्ग को मूर्त रूप दिया गया। रावल जैसल व शालीवाहन द्वारा कराए गए कार्यो का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता है। मात्र ख्यातों व तवारीखों से वर्णन मिलता है। . जोधपुर भारत के राज्य राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या १० लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा "महानगर " घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की इसी नाम की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी" भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं, हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र का कार्य करता है। वर्ष २०१४ के विश्व के अति विशेष आवास स्थानों (मोस्ट एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेसेज़ ऑफ़ द वर्ल्ड) की सूची में प्रथम स्थान पाया था। एक तमिल फ़िल्म, आई, जो कि अब तक की भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्मशोगी, की शूटिंग भी यहां हुई थी। . उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है। . उम्मैद भवन पैलेस उम्मैद भवन पैलेस राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित एक महल है। यह दुनिया के सबसे बड़े निजी महलों में से एक है। यह ताज होटल का ही एक अंग है। इसका नाम महाराजा उम्मैद सिंह के पौत्र ने दिया था जो वर्तमान में मालिक है। अभी वर्तमान समय में इस पैलेस में ३४७ कमरे है। इस उम्मैद भवन पैलेस को चित्तर पैलेस के नाम से भी पहले जाना जाता था जब इसका निर्माण कार्य चालू था। यह पैलेस १९४३ में बनकर तैयार हुआ था। .
30696d4ffc46672809ccca56da00c199bf67b8c9107a1c74f123a465eee9baa1
pdf
भगवान महावीर या उनके सच्चे शिष्योंने बनवास स्वीकार किया हो, नग्नत्व धारण किया हो, गुफा पसंद की हो, घर तथा परिवारका त्याग किया हो, धन सम्पत्तिकी तरफ बैपर्वाही दिखलाई हो, ये सब प्रान्त रिक विकासमेंसे उत्पन्न होकर जरा भी विरुद्ध मालूम नहीं होते। परन्तु गले तक भोगतृष्णा में डूबे हुए तथा सच्चे जैनत्वकी साधना के लिये जरा भी सहनशीलत न रखनेवाले तथा उदारदृष्टि रहित मनुष्य जब घरबार छोड़ जंगल में दौड़ें; गुफावास स्वीकार करें, मा-बाप या आश्रितोंकी जवाबदारी फेंक दें तब तो उनका जीवन विसंवादी होवे ही और पीछे बदलते हुए नये 'संयोगांकैसाथ नया जीवन घड़ने की अशक्तिके (लोकवृत्तिके) कारण उनके जीवनमें विरोध मालूम पड़े, यह स्पष्ट है [वर्ष १, किरण ११, १२ और परिस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय अस्मिता (अहंकृति)जैसी कोई वस्तु ही न थी ? क्या उस वक्त के राज्यकर्ता मात्र वीतराग दृष्टि से और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना से राज्य करते थे ? यदि इन सब प्रश्नोंका उत्तर यही हो कि जैसे साधारण कुटुम्बी गृहस्थ जैनत्व धारण करने के साथ अपने साधारण गृहव्यवहार चला सकता है तो प्रतिष्ठित तथा वैभवशाली गृहस्थ भी इसी प्रकार जैनत्वके साथ अपनी प्रतिष्ठाको सँभाल सकता है और इसी न्यायसे राजा तथा राजकर्मचारी भी अपने कार्यक्षेत्र में रहते हुए सचा जैनत्व, पाल सकते हैं, तब आजकी राजप्रकरणी समस्या का उत्तर भी यही है । अर्थात् राष्ट्रीयता और राजेप्रकरण के साथ सधे जैनत्व का ( यदि हृदय में प्रकटा हो तो ) कुछ भी विरोध नहीं । निःसन्देह यहाँ त्यागी वर्गमें गिने जाने वाले जैनकी बात विचारनी बाक़ी रहती है। त्यागीवर्गका राष्ट्रीय क्षेत्र और राजप्रकरण के साथ सम्बंध घटित नहीं हो सकता ऐसी कल्पना उत्पन्न होनेका कारण यह है कि राष्ट्रीय प्रवृत्तिमें शुभ द्धत्व जैसा तत्व ही नहीं और राजप्रकरण भी समभाव-वाला हो नहीं सकता ऐसी मान्यता रूढ हो गई है। परन्तु अनुभव हमको बतलाता है कि सभी इक्कीक़त ( यथार्थ वस्तुस्थिति ) ऐसी नहीं । यदि प्रवृत्ति करनेवाला स्वयं शुद्ध है वह हरेक जगह शुद्धिको ला सकता तथा सुरक्षित रख सकता है और यदि वह खुद ही शुद्ध न हो तो त्यागीवर्ग में रहते हुए भी सदा मैल तथा भ्रमणामें पड़ा रहता है। हमारे त्यागी माने जानेवाले जैनोंको खटपट, प्रपंच और अशुद्धिमें लिपटा हुआ क्या नहीं देखते ? यदि तटस्थ जैसे बड़े त्यागी वर्गमें एकाध व्यक्ति सचमुच जैन मिलनेका संभव हो तो आधुनिक राष्ट्रीय प्रवृत्ति और राजकीय क्षेत्र में कूदने 'राष्ट्रीय क्षेत्र और राजप्रकरण जैनोंके भाग लेने · ग्रा. न. लेने " विषयक पहले प्रश्न के सम्बन्ध में जानना चाहिये कि जैनत्वं व्यागों और गृहस्थ ऐसे दो वर्गों में विभाजित है। गृहस्थ जैनत्व यदि राजकर्ताओं तथा राज्य के मन्त्री, सेनाधिपति वगैरह अमलदारोंमें खुद "भगवान महावीर के समय में ही उत्पन्न हुआ था और इसके बारके २३०० वर्ष तक राजाओं तथा राज्य के "मुख्य अंमलदारों ( कर्मचारियों ) में जैनत्व लानेका "अथवा चले आते जैनत्वको स्थिर रखनेका भगीरथ * प्रयत्न जैनाचार्यों ने किया था तो फिर आज राष्ट्रीयता 'और जैनत्व के मध्य में विरोध किस लिये दिखाई देता है ? क्या में पुराने जमाने के राजा, राजकर्मचारी और उनका राजप्रकरण यह सब कुछ मनुष्यातीत या लोकोत्तर भूमि का था ? क्या उसमें राजखटपट, 'प्रपंच, या वासनाओंको जरा भी स्थान नहीं था या उस बर्फ के राजप्रकरण में उस वक्त की भावना के आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] वाले बड़े वर्ग में उससे अधिक श्रेष्ट गुणजैनत्वको धारण करने वाली अनेक व्यक्तियाँ क्या नहीं मिलतीं? जो जन्मसे भी जैन हैं । फिर त्यागी माने जानेवाले जैनवर्गमें भी राष्ट्रीयता और राजकीय क्षेत्र में समयोचित भाग लेने के उदाहरण जैन साधुसंघके इतिहास में क्या कमती हैं ? फेर हो तो वह इतना ही है कि उस वक्तकी भाग लेनेकी प्रवृत्तिमें साम्प्रदायिक भावना और नैतिक भावना साथ ही काम करती थीं; जब कि आज साम्प्रदायिक भावना जरा भी कार्यसाधक या उपयोगी हो सके ऐसा नहीं। इससे यदि नैतिक भावना और अर्पण वृत्ति हृदय में हो ( जिसका शुद्ध जैनत्वके साथ संपूर्ण मेल है ) तो गृहस्थ या त्यागी किसी भी जैनको, जैनत्वको जरा भी बाधा न आए तथा उलटा अधिक पोषण मिले इस रीतिसे, काम करनेका राष्ट्रीय तथा राजकीय क्षेत्र में पूर्ण अवकाश है। घर तथा व्यापार के क्षेत्रकी अपेक्षा राष्ट्र और राजकीय क्षेत्र बड़ा है, यह बात ठीक; परन्तु विश्वकी साथ अपना मेल होनेका दावा करने वाले जैनधर्मके लिये तो राष्ट्र और राजकीय क्षेत्र यह भी एक घर जैसा ही छोटासा क्षेत्र है। उलटा आज तो इस क्षेत्र में ऐसे कार्य शामिल हो गये हैं जिनका अधिकसे अधिक मेल जैनत्व (समभाव और सत्यदृष्टि ) के साथ ही है। मुख्य बात तो यह है कि किसी कार्य अथवा क्षेत्र के साथ जैनत्वका तादात्म्य संबंध नहीं । कार्य और क्षेत्र तो चाहे जो हो परंतु यदि जैनत्व की दृष्टि रखकर उसमें प्रवृत्ति होतो वह सब शुद्ध ही होगा । योग्य जान पड़ा था वह तो एकान्तिक त्याग ही था; परन्तु ऐसे त्यागके इच्छुकों तक सब एकाएक ऐसी भूमिका पर पहुँच नहीं सकते। इस लोकमानस से भगवान अनभिज्ञ न थे, इसी लिये वे उम्मीदवार के कमती या बढ़ती त्यागमें सम्मत होकर"मा पड़िबंध कुणड" - 'विलम्ब मत कर' ऐसा कह कर सम्मत होते गये । और बाकी की भोगवृत्ति तथा सामाजिक मर्यादाओंका नियमन करने वाले शाख उस वक्त भी थे और आगे भी रचे जायेंगे । 'स्मृति' जैसे लौकिक शास्त्र लोग आज तक घड़ते आए हैं और आगे भी घड़ेंगे। देश-कालानुसार लोग अपनी भोगमर्यादा के लिये नये नियम-नये व्यवहार घड़ेंगे, पुरानो में फेरफार करेंगे और बहुतोंको फेंक भी देंगे । इन लौकिक स्मृतियोमें भगवान पड़े ही नहीं। भगवान का ध्रुव सिद्धान्त त्यागका है । लौकिक नियमोंका चक्र उसके आस-पास उत्पाद व्ययकी तरह ध्रुव सिद्धान्तको बाधा न आए ऐसी रीतिसे फिरा करे, इतना ही देखना रहता है। इसी कारणसे जब कुलधर्म पालनेवालेके तौर पर जैनसमाज व्यवस्थित हुआ और फैलता गया तब उसने लौकिक नियमोंवाले भोग और सामाजिक मर्यादाका प्रतिपादन करने वाले अनेक शास्त्र रचे । जिस न्यायने भगवान के पीछे हजार वर्षों में समाजको जीता रक्खा वही न्याय समाजको जीता रहने के लिये हाथ ऊँचा करके कहना है कि 'तू सावधान हो, अपने निकट विस्तारको प्राप्त हुई परिस्थितिको देख और फिर समयानुसारिणी स्मृतियाँ रच । तू इतना ध्यान में रखना कि त्याग ही सपा लक्ष्य है; परंतु साथमें यह भी ध्यान में रखना कि त्यागविना त्यागका ढौंग तू करेगा तो जरूर मरंमा । और अपनी भोगमर्यादाको अनुकूल पड़े ऐसी रीति से दूसरा प्रश्न बिबाह प्रथा और जातपाँस आदिके सम्बंध-विषयका है। इस विषय में जानना चाहिये कि जैनत्वका प्रस्थान एकान्त त्यागवृत्तिमेंसे हुआ है। भगवान महावीरको जो कुछ अपनी साधनामेंसे देने सामाजिक जीवन की घटना करना; मात्र स्त्रीत्वके कारण या पुरुषत्व के कारण एककी भोगवत्ति अधिक है और दूसरेकी भोगवृ त्त कम है अथवा एकको अपनी वृत्तियाँ तृप्त करनेका चाहे जिस रीतिसे हक़ है और दूसरेको वृत्तियों भांग बननेका जन्मसिद्ध हक़ है, ऐसा कभी न मानना । समाजधर्म समाजको यह भी कहताहैकि सामाजिक स्मृतियाँ सदा काल एक जैसी होती ही नहीं। त्याग के अनन्य पक्षपाती गुरु ने भी जैनसमाजका बचाने के लिये अथवा उस वक्त की परिस्थिति के वश होकर आश्चर्य प्रदान करें ऐसे भोगमर्यादा वाले विधान किये हैं। वर्तमानकी नई जैन स्मृतियों में ६४ हजार या ९६ हजार तो क्या, बल्कि एक साथ दो स्त्रियां रखने वालेकी प्रतिष्ठाका प्रकरणभी नाशको प्राप्त होगा तब ही जैनसमाज सम्मानित धर्मसमाजोमें मुँह दिखा सकेगा। आजकल की नई स्मृतिके प्रकरणमं एक साथ पाँच पति रखने वाली द्रौपदा के सतीत्वकी प्रतिष्ठा नहीं हो; तो भी प्रामाणिक रूपमे पुनर्विवाह करने वाली स्त्रीके सतीत्वकी प्रतिष्ठाको दर्ज कियेही छुटकारा है। आजकल की स्मृतिमें चालीस वर्ष से अधिकी उम्रवाले व्यक्तिका कुमारी कन्या के साथ विवाह बलात्कार या व्यभिचार ही दर्ज किया जायगा। एक स्त्रीकी मौजूदगीमें दूसरी स्त्री करने वाले आजकल की जैनस्मृतिमे स्त्रीघातकी गिने जायँगे; क्योंकि आज नैतिक भावनाका बल जो चारों तरफ फैल रहा है उसकी अवगणना करके जैनसमाज सबके बीच मानपूर्वक रह ही नहीं सकता । जातपातक बन्धन कठोर करने या ढीले करने * देताम्बर समाजमें हिन्दुओं की तरह के पांच पति माने गये हैं, उसीको लक्ष्य करके यह कथन जान पड़ता है [ वर्ष १, किरण ११, १२ · यह भी व्यवहारकी अनुकूलता का ही प्रश्न होने से उसके विधान नये सिरेसे ही करने पड़ेंगे। इस विषय में प्राचीन शास्त्रों का आधार शोधन ही हो तो जैनसाहित्य में से मिल सके ऐसा है; परन्तु इस शोधकी मेहनत करनेकी अपेक्षा " ध्रुव जैनत्व" समभाव और सत्यदृष्टि क़ायम रखकर उसके ऊपर व्यवहारके अनुकूल पड़े ऐसी रीतिस जैनसमाजको जीवन अर्पण करने वाली लौकिक स्मृतियाँ रच लेनेमें ही अधिक श्रेय है । गुरु संस्थाको रखने या फेंक देने के प्रश्न विषयमें कहना यह है कि आज तक बहुत बार गुरुसंस्था फेंक दी गई है और तो भी वह खड़ी है। पार्श्वनाथ के पश्चात्मे विकृत होने वाली परम्पराको महावीरने फेंक दिया इससे कुछ गुरु संस्थाका अन्त नहीं आया। चैत्यवामी गये परन्तु समाजने दूसरी संस्था माँग ही ली । जतियोंके दिन पूरे होते गये उधर संवेगी साधु खड़े ही रहे । गुरुसंस्थाको फेंक देना इसका अर्थ यह नहीं कि मचे ज्ञान और सच्चे त्यागको फेंक देना । सदा ज्ञान और मचा त्याग यह ऐसी वस्तु है कि उसको प्रलय भी नष्ट नहीं कर सकता, तब गुरुसस्थाको फेंक देनका अर्थ क्या ? इसका अर्थ इतना ही है कि आजकल जो अज्ञान गुरुओंके कारण पुष्ट होता है, जिस विक्षेपसे समाज शोषित होता है उस अज्ञान तथा विक्षेप से बचने के लिये समाजको गुरुसंस्थाकं साथ असहकार करना । इस असहकार के अग्नितापके समय सच्चे गुरु जैसे होकर आगे निकल आवेंगे, जो मैले होगे वे या तो शुद्ध हो कर आगे आवेंगे और या जल कर भस्म हो जायंगे; परन्तु आजकल समाजको जिस प्रकारके ज्ञान और त्यागवाले गुरुओंकी जरूरत है ( सेवा लेनेवाले नहीं किन्तु संवा देनेवाले मार्गदर्श कोंकी जरूरत है) उस प्रकार के ज्ञान और त्यागवाले विविध वाहनोंकी मर्यादित भोगतृष्णा रखने वाले भगवान् के मुख्य उपासक अन्न, वस्त्र वगैरह सभी उत्पन्न करते और उनका व्यापार करते थे। जो मनुष्य दूसरेकी कन्याको विवाह कर घर रक्खे और अपनी कन्या दूसरेको विवाहन में धर्मनाश देखे वह मनुष्य या तो मूर्ख होना चाहिये और या चतुर हो तो जैनसमाजमें प्रतिष्ठित स्थान भोगने वाला नहीं होना हिये । जो मनुष्य कोयला, लकड़ी, चमड़ा और यंत्रोंका थोक उपयोग करे वह मनुष्य प्रकट रूपसे यदि बेंसे व्यापारका त्याग करता होगा तो इसका अर्थ यही है कि वह दूसरोंके पास वैसे व्यापार कराता है । करने में ही अधिक दोष है और कराने में तथा सम्मति देनमें कम दोप है ऐसा कुछ एकान्तिक कथन जैन शास्त्र में नहीं। अनेक बार करने की अपेक्षा कराने तथा सम्मति देनमें अधिक दोष होनेका संभव जैनशास्त्र मानता है। जो बौद्ध मांसका धंधा करने में पाप मान कर वैसा धंधा खुद न करते हुए मांस मात्र भोजनको निष्पाप मानते हैं उन बौद्धों को यदि जैनशास्त्र ऐसा कहता हो कि " तुम भले ही धंधा न करो परन्तु तुम्हारे द्वारा उपयोग में आते हुए मांसको तथ्यार करने वाले लोगों के पाप में तुम भागीदार हो हो," तो क्या वेही निष्पक्ष जैनशास्त्र केवल कुलधर्म होने के कारण जैनोंका यह बात कहते हुए हिचकेंगे ? नहीं, कभी नहीं। वे लो खुल्लमखुल्ला कहेंगे कि या तो भाग्य चीजांका त्याग करो और त्याग न करो तो जैसे उनके उत्पन्न करने और उनके व्यापार करने में पाप समझते हो वैसे दूसरों द्वारा तय्यार हुई और दूसरों के द्वारा पूरी की जाती उन चीजोके भांग में भी उतना ही पाप समझो। जैनशास्त्र तुमको अपनी मर्यादा बतलाएगा कि दोष या पापका सम्बन्ध भांगवृत्तिके साथ है। मात्र चीजोंके सम्बंध के साथ नहीं। जिस जमाने (काल) में मजदूरी ही रोटी है ऐसा सूत्र जगद्व्यापी होता होगा उस जमाने में समाज की अनिवार्य जरूरियात बाला मनुष्य अन्न, वस्त्र, रस, मकान, आदिको खुद उत्पन्न करने में और उनका खुद धंधा करनेमें दोष मानने वालेका या तो अविचारी मानेगा या धर्ममूद । गुरु उत्पन्न करने के लिये उनकी विकृत गुरुत्ववाली संस्था के साथ आज नहीं तो कल समाजको असहकार किये ही छुटकारा है। हाँ, गुरु संस्था में यदि कोई एकाध माईका लाल सच्चा गुरु जीवित होगा तो ऐसे कठोर प्रयोग के पहले ही गुरुसंस्थाको बर्बादी से बचा लेगा । जो व्यक्ति आन्तरराष्ट्रीय शान्तिपरिषद-जैसी परिषदों में उपस्थित हो कर जगतका समाधान हो सके ऐसी रीतिसे अहिंसाका तत्व समझा सकेगा, अथवा अपने अहिंसाबल पर वैसी परिषदोंके हिमायतियोंको अपने उपाश्रयमें आकर्षित कर सकेगा वही इस समय पीछे सच्चा जैनगुरु बन सकेगा । इस समयका एक साधारण जगत प्रथमकी अल्पता में से मुक्त हो कर विशालता में जाता है, वह कोई जातपाँत, सम्प्रदाय, परम्परा, वेप या भाषाकी खास पर्वाह किये बिना ही मात्र शुद्धज्ञान और शुद्ध त्यागका मार्ग देखता हुआ खड़ा है। इससे यदि वर्तमानकी गुरुसंस्था हमारी शक्तिवर्धक होने के बदल शक्तिबाधक ही होती हो तो उसकी और जैन समाजकी भलाई के लिये पहलेसे पहले अवसर पर समझदार मनुष्यको उसकी साथ असहकार करना यही एक मार्ग रहता है । यदि ऐसा मार्ग पकड़ने की परवानगी जैनशास्त्र मेसे ही प्राप्त करनी हो तो भी वह सुलभ है। गुलामीवृत्ति नवीन रचती नहीं और प्राचीन को सुधारती या फेंकती नहीं । इस वृत्ति के साथ भय और लालचकी सेना होती है। जिसे मद्गुणोंकी प्रतिष्ठा करनी होती है उसे गुलामी वृत्तिका बरक्का फेंक करके भी प्रेम तथा नम्रता कायम रखते हुए ही विचार करना उचित मालूम होता है। धंधा-विषयक अन्तिम प्रश्न के सम्बंध मे जैनशास्त्र की मर्यादा बहुत ही संक्षिम तथा स्पर्शरूप होते हुए भी सच्चा खुलासा करती है और वह यह कि जिस चीज का धंधा धर्मविरूद्ध या नीतिविरुद्ध हो तो उस चीज का उपभोग भी धर्म और नीतिविरुद्ध है। जैसे मांस और मद्य जैनपरम्परा के लिये वर्ज्य बतलाये गये हैं तो उनका व्यापार भी उतना ही निषेधपात्र है । अमुक वस्तुका व्यापार समाज न करे तो उसे उसका उपयोग भी छोड़ देना चाहिये । इसी कारण से अन्न, वस्त्र और उपसंहार धारणाकी अपेक्षा शास्त्रमर्यादा का लेख अधिक लम्बा हो गया है परन्तु मुझे जब स्पष्ट मालूम पड़ा कि इसके संक्षेप में स्पष्टता रहेगी इससे थोड़ा लम्बा करने की ज़रूरत पड़ी है । इस लेखमें मैंने शास्त्रोंके आधार जान कर ही उद्धृत नहीं किये; क्योंकि किसी भी विषयसम्बंध में अनुकुल और प्रतिकूल दोनों प्रकारके शास्त्रवाक्य मिल सकते हैं। अथवा एक वाक्यमें से दो बिरोधी अर्थ घटित किये जा सकते हैं। मैंने सामान्य तौर पर बुद्धिगम्य हो ऐसा ही प्रस्तुत करनेका प्रयत्न किया है; तो भी मुझे जो कुछ अल्पस्वल्प जैनशास्त्रका परिचय हुआ है, और वर्तमान समयका अनुभव मिला है उन दोनों की एक वाक्यता मनमें रखकर ही ऊपर की चर्चा की है। फिर भी मेरे इस विचारको विचारनेकी और उसमेंसे निरर्थकको छोड़ देनेकी सबको छूट है । जो मुझे मेरे विचार में भूल समझाएगा वह वयमें तथा जातिमें चाहे जो होते हुए भी मेरे आदरका पात्र अवश्य होगा । सम्पादकीय नोट श्रद्धा तथा मिथ्यात्वादिका आरोप लगा सकते हैं और ऐसा होना बहुत कुछ स्वाभाविक है; क्योंकि चिरकालीन संस्कार किसी भी नई बातके सामने आने पर उसे फेंका करते हैं - भले ही वह बात कितनी ही अच्छी क्यों न हो । जो लोग वर्तमान जैनशास्त्रोंको सर्वज्ञकी वाणीद्वारा भरे हुए रिकार्डो-जैसा समझते हैं और उनकी सभी बातोंको त्रिकालाबाधित अटल सत्य-जैसी मानते हैं उनके सामने यह लेख एक भिन्न ही प्रकार का विचार प्रस्तुत करता है और इस लिये इससे उस प्रकार के श्रद्धालु जगत में हलचलका पैदा होना कोई अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। जिस साधुसंस्था पर, उसके सुधारकी दृष्टि से, लेख में भारी आक्रमण किया गया है उसके कुछ कर्णधार अथवा वे व्यक्ति तो, जिनके स्वार्थमें इस लेखके विचारोंसे बाधा पड़ती है, और भी अधिक रोष धारण कर सकते हैं और अपनी सत्ताको लेखकके विरुद्ध प्रयुक्त करनेका जघन्य प्रयत्न भी कर सकते हैं; परन्तु जो विचारक हैं उनकी ऐसी प्रवृत्ति नहीं हो सकती। वे धैर्य के साथ, शान्तिके साथ, संस्कारोंका पर्दा उठा कर और अच्छा समय निकाल कर इसकी प्रत्येक बातको तोलेंगे, जाँच करेंगे और गंभीरता के साथ विचार करने पर जो बात उन्हें अनुचित अथवा बाधित मालूम पड़ेगी उसके विरोधमें, हो सकेगा तो, कुछ युक्ति पुरस्सर लिखेंगे भी । लेखक महादयने, लेखके अन्त में खुद ही इस बात के लिये इच्छा व्यक्त की है कि विद्वान् लोग उन्हें उनकी भूल सुझाएँ - जो सुझाएँगे वे अवश्य उनके आदरके पात्र बनेंगे । वे विरोधसे डरने अथवा अप्रसन्न होने वाले नहीं हैं - उन्हें तो विरोधमें ही विकासका मार्ग नज़र आता है। अतः विद्वानोंको चाहिये कि वे इस विषय पर अथवा लेख में प्रस्तुत किये हुए सभी प्रश्नों पर ग हरा विचार करनेका परिश्रम उठाएँ । 'अनेकान्त' ऐसे सभी युक्ति पुरस्सर लेखोंका अभिनन्दन करनेके लिये तय्यार है जो इस विषय पर कुछ नया तथा गहरा प्रकाश डालते हों। परन्तु उनमेंसे कोई भी लेख-अनुकूल हो या प्रतिकूल- क्षोभ, कोप या साम्प्रदायिककट्टरता के प्रदर्शनको लिये हुए न होना चाहिये । यह लेख लेखक महोदयके कोई दो-चार-दस वर्ष के ही नहीं किन्तु जीवनभर के अध्ययन, मनन और अनुभवनका प्रतिफल जान पड़ता है; इससे आपके अध्ययनकी विशालता तथा गहराईका ही पता नहीं चलता बल्कि इस बातका भी बहुत कुछ पता चल जाता है कि आपकी दृष्टि कितनी विशाल है, विचार है स्वातंत्र्य तथा स्पष्टवादिताको लिये हुए निर्भीकताको आपने कहाँ तक अपनाया है और साम्प्रदायिक कट्टरता के आप कितने विरोधी हैं। यह लेख आपके शास्त्रीय तथा लौकिक दोनों प्रकार के अनुभव के साथ अनेकान्त के कितनेही रहस्यको लिये हुए है और इस लिये एक प्र कारका मार्मिक तथा विचारणीय लेख है। अभी तक इस प्रकारका लेख किसी दूसरे जैन विद्वानकी लेखनीसे प्रसूत हुआ हो, मुझे मालूम नहीं। परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी इस लेख में कुछ त्रुटियाँ न हों- कोई भ्रान्ति न हो, यह नहीं कहा जा सकता। इसे पढ़ कर पढ़ कितने ही लोग भड़क सकते हैं, चिढ सकते हैं, अ
9bf356db0aa72af0290c2e0c59dc26c11542512a
web
चर्चा में क्यों? वर्ष 2005 में लागू सूचना के अधिकार अधिनियम (Right to Information-RTI) ने अब 15 वर्ष पूरे कर लिये हैं, इस संबंध में जारी एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में अभी तक लगभग 2.2 लाख मामले लंबित हैं। - सूचना के अधिकार अधिनियम की 15वीं वर्षगांठ पर 'सतर्क नागरिक संगठन' और 'सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज़' (Centre for Equity Studies) द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया है कि महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति काफी चिंताजनक है, और वहाँ तकरीबन 59,000 मामले अभी लंबित हैं, जो कि अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं। - महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है, जहाँ अभी कुल 47,923 मामले लंबित हैं। इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में कुल 35,653 मामले लंबित हैं। - रिपोर्ट बताती है कि यदि मामलों के निपटान की यही दर रहती है तो ओडिशा को सभी लंबित शिकायतों को निपटाने में 7 वर्ष से भी अधिक का समय लग सकता है। - कारणः रिपोर्ट के अनुसार, इतनी अधिक मात्रा में लंबित मामलों का मुख्य कारण है कि देश में अधिकांश सूचना आयोग अपनी पूर्ण क्षमता के साथ कार्य नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनमें सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ही नहीं की जा रही है। - रिपोर्ट में कहा गया है कि ओडिशा केवल 4 सूचना आयुक्तों के साथ कार्य कर रहा है, जबकि राजस्थान में केवल 3 सूचना आयुक्त हैं। वहीं झारखंड और त्रिपुरा में कोई भी सूचना आयुक्त कार्य नहीं कर रहा है। - वहीं केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) बीते कुछ वर्षों से बिना मुख्य सूचना आयुक्त के कार्य कर रहा है। वर्तमान में केंद्रीय सूचना आयुक्त (CIC) में केवल 5 सदस्य कार्य कर रहे हैं। - जबकि नियम कहते हैं कि प्रत्येक आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 आयुक्त होने अनिवार्य हैं। - विश्लेषण में पाया गया है कि सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत शायद ही कभी कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को सज़ा दी गई हो। - रिपोर्ट में पाया गया है कि सभी सूचना आयोगों द्वारा निपटाए गए कुल मामलों में से केवल 2.2 प्रतिशत मामलो में ही सज़ा/दंड दिया गया है। इस प्रकार सज़ा संबंधी प्रावधानों का सही ढंग से पालन न करना यह नकारात्मक संदेश पहुँचता है कि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर किसी भी प्रकार की सज़ा नहीं मिलती है। - सूचना के अधिकार का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार कम करना और सही अर्थों में जीवंत लोकतंत्र विकसित करना है, किंतु इस अधिनियम के सही ढंग से कार्यान्वित न होने के कारण इस उद्देश्य को प्राप्त करना काफी मुश्किल हो गया है। - सूचना के अधिकार यानी RTI का अर्थ है कि कोई भी भारतीय नागरिक राज्य या केंद्र सरकार के कार्यालयों और विभागों से किसी भी जानकारी (जिसे सार्वजनिक सूचना माना जाता है) को प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है। - इसी अवधारणा के मद्देनज़र भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया था। - विशेषज्ञ इस अधिनियम को भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखते हैं। - इस अधिनियम में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सार्वजानिक अथवा सरकारी प्राधिकरण से किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिये स्वतंत्र है, साथ ही इस अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना को आवेदन की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। - हालाँकि अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत सूचना से संबंधित नहीं होनी चाहिये। - इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे। - इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है। - इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा। क्यों महत्त्वपूर्ण है सूचना का अधिकार? - असल में सूचना उस मुद्रा की तरह होती है, जो कि प्रत्येक नागरिक के लिये समाज के शासन में हिस्सा लेने हेतु आवश्यक होती है। - कार्यपालिका के प्रत्येक स्तर नियंत्रण, संरक्षण और शक्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से सूचना को काफी सीमित कर दिया जाता है। - इसलिये प्रायः यह माना जाता है कि कार्यपालिका में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये नियमों और प्रक्रिया की स्पष्टता, पूर्ण पारदर्शिता और आम जनता के बीच प्रासंगिक जानकारी का प्रसार काफी महत्त्वपूर्ण हैं। - इसलिये अंततः भ्रष्टाचार को समाप्त करने की सबसे प्रभावी प्रणाली वही होगी, जिसमें नागरिकों को राज्य से प्रासंगिक सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा। - हम कह सकते हैं कि सरकार की प्रणाली और प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करना एक आवश्यक कदम है। जब सरकार की प्रणाली और प्रक्रिया पारदर्शी होती है तो वहाँ भ्रष्टाचार कीसंभावना काफी कम हो जाती है। - सूचना के अधिकार से संबंधित पहला कानून वर्ष 1766 में स्वीडन द्वारा लागू किया गया था, इसके बाद वर्ष 1966 में अमेरिका ने भी इस संबंध में एक कानून अपना लिया, वर्ष 1990 आते-आते सूचना के अधिकार से संबंधी कानून लागू करने वाले देशों की संख्या बढ़कर 13 हो गई थी। - भारत में इस संबंध में कानून बनाने के लिये आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1987 में तब हुई जब राजस्थान के कुछ मज़दूरों को उनके असंतोषजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए वेतन देने से इनकार कर दिया। - भ्रष्टाचार की आशंका को देखते हुए मज़दूरों के हक में लड़ रहे मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने स्थानीय अधिकारियों से संबंधित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की मांग की। - सार्वजानिक विरोध प्रदर्शन के बाद जब प्रासंगिक दस्तावेज़ उपलब्ध कराए गए तो सरकारी अधिकारियों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार भी सामने आ गया। - समय के साथ यह आंदोलन और ज़ोर पकड़ता गया और जल्द ही सूचना के अधिकार (RTI) की मांग करते हुए इस आंदोलन ने देशव्यापी रूप ले लिया। - आंदोलन को बड़ा होते देख सरकार ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 पारित कर दिया, जिसने आगे चलकर वर्ष 2005 में सूचना के अधिकार अधिनियम का रूप लिया। - वर्ष 2005 में पुणे पुलिस स्टेशन को RTI के तहत पहली याचिका प्राप्त हुई थी। - यह अधिनियम आम लोगों को प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, किंतु निरक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण भारत में अधिकांश लोग इस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। - कई लोग मानते हैं कि इस अधिनियम में प्रावधानों का उल्लंघन करने की स्थिति में जो जुर्माना/दंड दिया गया है वह इतना कठोर नहीं है कि लोगों को इस कार्य से रोक सके। - इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त जन जागरूकता का अभाव, सूचनाओं को संग्रहीत करने और प्रचार-प्रसार करने हेतु उचित प्रणाली का अभाव, सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (PIOs) की अक्षमता और नौकरशाही मानसिकता आदि को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के कार्यान्वयन में बड़ी बाधा माना जाता है। - सरकार के कार्यालयों और विभागों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भ्रष्टाचार से निपटने के लिये सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 एक मज़बूत उपाय साबित हुआ है। - यह कानून स्वतंत्र भारत मे पारित सबसे सशक्त और प्रगतिशील कानूनों में से एक है। - भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिये एक कारगर उपाय होने के बावजूद यह कानून कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रहा है, और इस कानून की प्रभावशीलता बनाए रखने के लिये इन समस्याओं और चुनौतियों को जल्द-से-जल्द संबोधित करना आवश्यक है।
8d985fb00614f2bb919df2ad11a52b7e7181862b200427884368018200e2d840
pdf
प्रारूप अधिसूचना नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान पूर्व गारो पहाड़ी, पश्चिमी गारो पहाड़ी और दक्षिणी गारो पहाड़ी जिलों के त्रि-जंक्शन पर स्थित है और 47.48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यह अक्षांश 25° 30' 26.681" उ से 25° 24' 17.417" उ और देशांतर 90° 14' 35.600" पू से 90° 33' 55.695" पू के बीच स्थित है। यह संपूर्ण क्षेत्र पहाड़ी भू-भाग है जो मेघालय के पश्चिम भाग में तूरा पर्वत श्रृंखला पर स्थित है और इसके चारों ओर का क्षेत्र उक्त तीनों जिलों के लिए प्रमुख वाटर शेड है; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान मुख्य नदी प्रणालियों का महत्त्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र है जो गारों पहाड़ी के निम्न क्षेत्रों का पोषण करता है और इस क्षेत्र से तीन मुख्य नदियां सिमसंग, गनोल और दरेंग उत्पन्न होती हैं जिससे इस राष्ट्रीय उद्यान का महत्त्व बढ जाता है। निताई, भुगई, दिदारी, मंडल, रोमबोंग, कम्पील, सोबोक, चीबे आदि अन्य महत्त्वपूर्ण जल प्रणालियां है। इस क्षेत्र की मिट्टी लाल दुम्मटी है और यह उष्णकटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र हैं जिसमें अधिक वर्षा होती है तथा उच्च आर्द्रता रहती है सर्दी में साधारण ठंड पडती है तथा ग्रीष्म ऋतु सुहावनी रहती है; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान में निम्न ऊंचाई पर बांस के लट्ठों सहित चौंडी पत्तियों वाले सदाहरित और अर्ध सदाहरित वन पाए जाते हैं और यह क्षेत्र जैव-भौगोलिक प्रदेश, बर्मा मानसून वन (4.09.04) के अंतर्गत आता है और यह उत्तर-पूर्व भारत में जैव भौगोलिक इकाई 9बी मेघालय पहाड़ी का प्रतिनिधित्व करता है। यहां के वनों में उष्ण कटिबंधी अर्ध-सदाहरित वनों के अंतर्गत समूहित पूर्वी उप-पर्वतीय अर्द्ध-सदाहरित वन (उप-प्रकार 26/सी 16) प्रकार के वन पाए जाते हैं; और, राष्ट्रीय उद्यान और इसके चारों ओर (जैवमंडल रिजर्व के बफर और संक्रमण जोन) की वनस्पति को सरसरी तौर पर ऊंचाईयों के आधार पर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णटिबंधीय क्षेत्रों की वनस्पतियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। उष्णकटिबंधीय वनस्पति समुद्र स्तर से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई तक के क्षेत्र में पायी जाती है। यहां की वनस्पति में सदाहरित, अर्ध सदाहरित, आर्द्र पर्णपाती प्रकार की वनस्पति और बांस की झाड़ियां सम्मिलित हैं; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान के साथ नोकरेक जैवमंडल रिज़र्व में गारो पहाड़ी के कुछ अद्वितीय क्षेत्रों के अंतर्गत कोर क्षेत्र शामिल हैं और यह जैव-विविधता का एक वैश्विक हॉटस्पाट है जो अछूते वन क्षेत्रों में प्राकृतिक सुंदरता, शांत विविधता पूर्ण वनस्पति, जीवजंतुओं और मानव संस्कृति के विविध रूपों का प्रतिनिधित्व करता है; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान, वनस्पति और जीवजंतु जैवविविधता का संरक्षण करता है और यहां वनस्पति की लगभग 75 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें सेचीमा वाल्लीचि, टर्मिनलिया बेलेरिका, टर्मिनलिया चेबुला, अल्बिजिया लेब्बक, सिजिगियम स्प, अलुकीडा स्प., ग्लायकोडियम स्प., कस्टानोपिस हायस्ट्रीक्स, लिट्सिया नापालेंसिस, अकरोकारपस फ्राक्सीनिफोलियस, रहुस जवानीका, फिकुस स्प., जिजिफुस रुगोसा, परेमना मल्टीफ्लोरा, मिटराफोरा टोमेंटोसा, अगलाटा रूक्बुरघि, ल्लेलिकिया रूबुस्टा, क्यूइरकुस सेमीसेराटा, इरयोबूटयरा बेंगलेसिस, बरेयनिया पटेंस, इंगेल हंदिया, दीलेनियापेंटगयना, क्ल्लेकापुस फ्लोरीबंडस, गिमेलीना अरबोरिया, गोरोइनिया अल्फिनिस, गलोचीदीओन स्प., किटसिया स्प., होलाराहाइना अंटीयसेंटरीका, लेगरसटोमिया स्प., कादिया कैलीसीना, सल्मालिया मालाबरिका, स्ट्रेकुलिया विलोसा, अपोरोसा दिओकिया, मैलोटस फीलीपेंसिस, बयहुनिया स्प., कलिकारपा अरबोरिया, इम्बिलिका ओफ्फिकिनालिस, सिन्नामोमुम स्प., हीबिस्कुस मक्रोफयलुस, आदि शामिल हैं। यहां की वानस्पतिक संरचना में मिचेलिया स्प., अपोरोसा वाल्लिचि, करयपटोकेरा अंदेर्सोनि, मेसुआ फेर्रा, कस्टनोपिस हायस्ट्रीक्स, केस्टनापोसिस अमाटा, बेटुला कुलींदरीस्टाचीस आदि शामिल है। इन क्षेत्रों का तल 1 से 2 मीटर की लम्बाई की कुछ झाड़ियां जैसे मुंरोनिया पिन्नाटा, इरयोबोटरा अंगुस्टीस्सिमा, अंटीस्ट्रोफे, ओक्सयंथा, स्ट्रराबिलांथुस गलोमेराटुस और इरिअंथुस स्प. से आच्छादित हैं। वन क्षेत्रों के बीच वन रहित क्षेत्रों में खरपतवार जैसे कि इयपथोरियम अडोराटीओन, मिचेनिया मिचरांटा, करोटो स्प. पाए जाते हैं। बांस प्रजातियों में दीनोचलोअ मैकेल्लोअंदी और मेलाकाना बेम्बोसोइदेस शामिल हैं। अधिजीविक विकास भी इन वनों में खूब हुआ है और लगभग प्रत्येक वृक्ष में अधिजीविक ऑर्किड, फर्न का और अन्य पौधों का घना विकास हुआ है। भू-वनस्पति के अंतर्गत अल्पिनिया स्प., अमोमुम स्प., कोलोकसिया स्प., कोस्टरूस स्प., हेडेयचीयम स्प., चीतरूस इंडिका, चीतरूस लेपटीस, सिटरूस रेटीक्यूलेट, सिटरूस अयरानटीफोलिया स्विंगले, सिटरूस ग्रांदीस, सिटरूस जामबिरी और सिटरूस लिमोन आदि जैसी प्रजातियां शामिल है; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रमुखः जीवजंतु प्रजातियाँ रहती है जिनमें हूलॉक गिब्बन (हुलॉक हूलॉक), रेसुस बंदर (मकाका मुलाटा), स्टम्प टेल्ड मैकाक (मकाका आर्कटाइड्स), पिग टेल्ड मैकाक (मकाका लियोनिना), कैप्ड लंगूर (ट्रेचीपिथेकस पाइलेटस), हिमालयन ब्लैक बियर (उर्सस थिबेटनस लैनिगर), सन बियर (हेलारक्टोस मलायनस), साल (मैनिस क्रैसिकौडाटा), लजीला वानर (निक्टिसेबस एसपी.), बोनट मंकी (मकाका रेडियाटा), मलायन जायंट गिलहरी (रतुफा बाइकलर), हिमालयन गिलहरी (ड्रेमोमिस लोकरिया), उड़ने वाली गिलहरी (पेटौरिस्टा एसपी.), बिंदुरोंग (आर्कटिक्टिस बिंटुरोंग), लमचित्ता (नियोफेलिस नेबुलोसा), सांभर (रूसा यूनीकलर), मुंजक (मुंटियाकस मुंटजैक), सेरो (कैपरीकोर्निस एसपी.), जंगली हाथी (एलिफस मैक्सिमस), बनैला सूअर (सुस स्क्रोफा), भैसा (बॉस गौरस), भारतीय लोमडी (वुल्प्स बेंगालेंसिस), भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस), साही (हिस्ट्रिक्स इंडिका), नेवला (हर्पेस्टेस एसपी.), गंधबिलाव (विवरा एसपी.) आदि शामिल है; और, यह राष्ट्रीय उद्यान पक्षियों में समृद्ध है तथा महत्त्वपूर्ण प्रजातियों जैसे कि कलिज तीतर (लोफुरा ल्यूकोमेलानोस), ग्रेट इंडियन पाइड हॉर्नबिल (बुसेरोस बाइकोर्निस), कॉमन हॉर्नबिल (बुसेरोस बाइकोर्निस), मोर तितर (पॉलीप्लेक्ट्रॉन बाइलकारटम), क्रेस्टेड सर्पेट ईगल (स्पिलोर्निस चीला), आदि को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करता है। क्षेत्र के सरीसृपों में सांपो, छिपकलियों और कछुओं की कई प्रजातियां शामिल है; और, इस राष्ट्रीय उद्यान में संकटापन्न और लुप्तप्राय वनस्पति और जीवजंतु प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनका यहां रक्षण, परिरक्षण होता हैं और उन्हें आश्रय मिलता है इनमें साइट्रस इंडिका, नेपेंथेस खासिअना, पैफियोपेडिलम वेनुस्टम, बिंटुरॉन्ग, हूलॉक गिब्बन, लमचित्ता, गौर, पिग-टेल्ड मैकाक, स्टंप - टेल्ड मैकाक, एशियाई हाथी, तेंदुआ, बृहत गिलहरी आदि शामिल हैं; और, नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान के चारों ओर के क्षेत्र को, जिसका विस्तार और सीमाएं इस अधिसूचना के पैराग्राफ 1 में विनिर्दिष्ट हैं, पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय और जैव-विविधता की दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदी जोन के रूप में सुरक्षित और संरक्षित करना तथा उक्त पारिस्थितिकी संवेदी जोन में उद्योगों या उद्योगों की श्रेणियों को और उनके प्रचालन तथा प्रसंस्करण को प्रतिषिद्ध करना आवश्यक है; अतः अब, केन्द्रीय सरकार, पर्यावरण (संरक्षण) नियमावली, 1986 के नियम 5 के उपनियम (3) के साथ पठित पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) (जिसे इस अधिसूचना में इसके पश्चात् पर्यावरण अधिनियम कहा गया है) की उपधारा (1) तथा धारा 3 की उपधारा (2) के खंड (v) और खंड (xiv) एवं उपधारा (3) के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मेघालय राज्य के पूर्व गारो हिल्स, पश्चिम गारो हिल्स और दक्षिण गारो हिल्स जिले में नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान की सीमा के चारों ओर 0.272 किलोमीटर से 6.976 किलोमीटर तक विस्तारित क्षेत्र को नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान पारिस्थितिकी संवेदी जोन (जिसे इसमें इसके पश्चात् पारिस्थितिकी संवेदी जोन कहा गया है) के रूप में अधिसूचित करती है, जिसका विवरण निम्नानुसार है, अर्थात् :1. पारिस्थितिकी संवेदी जोन का विस्तार और सीमा.-(1) पारिस्थितिकी संवेदी जोन का विस्तार नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान की सीमा के चारों ओर 0.272 किलोमीटर से 6.976 किलोमीटर तक विस्तृत है और पारिस्थितिकी संवेदी जोन का क्षेत्रफल 224 वर्ग किलोमीटर होगा। नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान और इसके पारिस्थितिकी संवेदी जोन की सीमा का विवरण अनुलग्नक-I के रुप में संलग्न है। सीमा रण और अक्षांश और देशांतर के साथ पारिस्थितिकी संवेदी मानचित्र अनुलग्नक-II के रूप में संलग्न है। सीमांकित हुए नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान का नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान और पारिस्थितिकी संवेदी जोन की सीमा के भू-निर्देशांकों की सूचियां अनुलग्नक -III की सारणी क और सारणी ख में दी गई हैं। मुख्य बिंदुओं के भू-निर्देशांकों के साथ पारिस्थितिकी संवेदी जोन के अंतर्गत आने वाले ग्रामों की सूची अनुलग्लक-IV के रुप में संलग्न है। 2. पारिस्थितिकी संवेदी जोन के लिए आंचलिक महायोजना.- (1) राज्य सरकार, द्वारा पारिस्थितिकी संवेदी जोन के प्रयोजन के लिए, राजपत्र में अंतिम अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर, स्थानीय व्यक्तियों के परामर्श से और इस अधिसूचना में दिए गए अनुबंधों का पालन करते हुए, राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदनार्थ एक आंचलिक महायोजना बनाई जायेगी।
04006ec29c6db9e0bbab7f55bcb717fe3d9d07e4
web
हलाकू (बायें), खलीफा अल-मुस्तसिम को भूख से मारने के लिये उसके खजाने में कैद करते हुए मांगके खान की मृत्यु के समय (१२५९ ई में) मंगोल साम्राज्य मंगोल साम्राज्य 13 वीं और 14 वीं शताब्दियों के दौरान एक विशाल साम्राज्य था। इस साम्राज्य का आरम्भ चंगेज खान द्वारा मंगोलिया के घूमन्तू जनजातियों के एकीकरण से हुआ। मध्य एशिया में शुरू यह राज्य अंततः पूर्व में यूरोप से लेकर पश्चिम में जापान के सागर तक और उत्तर में साइबेरिया से लेकर दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप तक फैल गया। आमतौर पर इसे दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा सन्निहित साम्राज्य माना जाना जाता है। अपने शीर्ष पर यह 6000 मील (9700 किमी) तक फैला था और 33,000,000 वर्ग कि॰मी॰ (12,741,000 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता था। इस समय पृथ्वी के कुल भू क्षेत्रफल का 22% हिस्सा इसके कब्ज़े में था और इसकी आबादी 100 करोड़ थी। मंगोल शासक पहले बौद्ध थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे तुर्कों के सम्पर्क में आकर उन्होंने इस्लाम को अपना लिया। . 28 संबंधोंः चग़ताई ख़ानत, चंगेज़ ख़ान, चीनी भाषा, तुर्क, तुर्की भाषा परिवार, बगदाद का युद्ध (१२५८), बौद्ध धर्म, भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया, मंगोल, मंगोल भाषा, मंगोलिया, मुग़ल साम्राज्य, मोंगके ख़ान, युआन राजवंश, यूरोप, साम्राज्य, साइबेरिया, जापान सागर, ईरानी भाषा परिवार, ईसाई धर्म, ख़ान (उपाधि), गुयुक ख़ान, ओगताई ख़ान, इस्लाम, कुबलई ख़ान, अब्बासी ख़िलाफ़त, उस्मानी साम्राज्य। चंगेज़ खान १२२७ में चंगेज खान का साम्राज्य चंगेज खान का मंदिर चंगेज़ ख़ान (मंगोलियाईः Чингис Хаан, चिंगिस खान, सन् 1162 - 18 अगस्त, 1227) एक मंगोल ख़ान (शासक) था जिसने मंगोल साम्राज्य के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई। वह अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए प्रसिद्ध हुआ। इससे पहले किसी भी यायावर जाति (यायावर जाति के लोग भेड़ बकरियां पालते जिन्हें गड़रिया कहा जाता है।) के व्यक्ति ने इतनी विजय यात्रा नहीं की थी। वह पूर्वोत्तर एशिया के कई घुमंतू जनजातियों को एकजुट करके सत्ता में आया। साम्राज्य की स्थापना के बाद और "चंगेज खान" की घोषणा करने के बाद, मंगोल आक्रमणों को शुरू किया गया, जिसने अधिकांश यूरेशिया पर विजय प्राप्त की। अपने जीवनकाल में शुरू किए गए अभियान क़रा खितई, काकेशस और ख्वारज़्मियान, पश्चिमी ज़िया और जीन राजवंशों के खिलाफ, शामिल हैं। मंगोल साम्राज्य ने मध्य एशिया और चीन के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर कब्जा कर लिया। चंगेज खान की मृत्यु से पहले, उसने ओगदेई खान को अपन उत्तराधिकारी बनाया और अपने बेटों और पोते के बीच अपने साम्राज्य को खानतों में बांट दिया। पश्चिमी जिया को हराने के बाद 1227 में उसका निधन हो गया। वह मंगोलिया में किसी न किसी कब्र में दफनाया गया था।उसके वंशजो ने आधुनिक युग में चीन, कोरिया, काकेशस, मध्य एशिया, और पूर्वी यूरोप और दक्षिण पश्चिम एशिया के महत्वपूर्ण हिस्से में विजय प्राप्त करने वाले राज्यों को जीतने या बनाने के लिए अधिकांश यूरेशिया में मंगोल साम्राज्य का विस्तार किया। इन आक्रमणों में से कई स्थानों पर स्थानीय आबादी के बड़े पैमाने पर लगातार हत्यायेँ की। नतीजतन, चंगेज खान और उसके साम्राज्य का स्थानीय इतिहास में एक भयावय प्रतिष्ठा है। अपनी सैन्य उपलब्धियों से परे, चंगेज खान ने मंगोल साम्राज्य को अन्य तरीकों से भी उन्नत किया। उसने मंगोल साम्राज्य की लेखन प्रणाली के रूप में उईघुर लिपि को अपनाने की घोषणा की। उसने मंगोल साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया, और पूर्वोत्तर एशिया की अन्य जनजातियों को एकजुट किया। वर्तमान मंगोलियाई लोग उसे मंगोलिया के 'संस्थापक पिता' के रूप में जानते हैं। यद्यपि अपने अभियानों की क्रूरता के लिए चंगेज़ खान को जाना जाता है और कई लोगों द्वारा एक नरसंहार शासक होने के लिए माना जाता है परंतु चंगेज खान को सिल्क रोड को एक एकत्रीय राजनीतिक वातावरण के रूप में लाने का श्रेय दिया जाता रहा है। यह रेशम मार्ग पूर्वोत्तर एशिया से मुस्लिम दक्षिण पश्चिम एशिया और ईसाई यूरोप में संचार और व्यापार लायी, इस तरह सभी तीन सांस्कृतिक क्षेत्रों के क्षितिज का विस्तार हुआ। . चीनी भाषा (अंग्रेजीः Chinese; 汉语/漢語, पिनयिनः Hànyǔ; 华语/華語, Huáyǔ; या 中文 हुआ-यू, Zhōngwén श़ोंग-वॅन) चीन देश की मुख्य भाषा और राजभाषा है। यह संसार में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह चीन एवं पूर्वी एशिया के कुछ देशों में बोली जाती है। चीनी भाषा चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार में आती है और वास्तव में कई भाषाओं और बोलियों का समूह है। मानकीकृत चीनी असल में एक 'मन्दारिन' नामक भाषा है। इसमें एकाक्षरी शब्द या शब्द भाग ही होते हैं और ये चीनी भावचित्र में लिखी जाती है (परम्परागत चीनी लिपि या सरलीकृत चीनी लिपि में)। चीनी एक सुरभेदी भाषा है। . तुर्क का अर्थ इनमें से कुछ हो सकता है -. विश्व के देश (गाढ़े नीले रंग में) और प्रदेश (हलके नीले रंग में) जहाँ तुर्की भाषाओँ को सरकारी मान्यता प्राप्त है सन् 735 के लगभग तराशे गए एक ओरख़ोन शिलालेख का हिस्सा यूरेशिया में तुर्की भाषाओँ का फैलाव तुर्की भाषाएँ पैंतीस से भी अधिक भाषाओँ का एक भाषा-परिवार है। तुर्की भाषाएँ पूर्वी यूरोप और भूमध्य सागर से लेकर साईबेरिया और पश्चिमी चीन तक बोली जाती हैं। कुछ भाषावैज्ञानिक इन्हें अल्ताई भाषा परिवार की एक शाखा मानते हैं। विश्व में लगभग 16.5 से 18 करोड़ लोग तुर्की भाषाएँ अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं और अगर सभी तुर्की भाषाओँ को बोल सकने वालों की गणना की जाए तो क़रीब 25 करोड़ लोग इन्हें बोल सकते हैं। सब से अधिक बोली जाने वाली तुर्की भाषा का नाम भी तुर्की है, हालाँकि कभी-कभी इसे अनातोल्वी भी कहा जाता है (क्योंकि यह अनातोलिया में बोली जाती है)। . बगदाद का युद्ध (१२५८) हलाकु ख़ान के नायकत्व में मंगोल सेनाओं ने २९ जनवरी से १० फरवरी तक अब्बासी ख़िलाफ़त की राजधानी बगदाद को घेरे रखा और अन्ततः इस पर अधिकार करके खलीफा की हत्या कर दी। मंगोल फ़ौज ने पिछले 13 दिन से बग़दाद को घेरे में ले रखा था. बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैंः हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। . भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक मानचित्र भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक उपमहाद्वीप है। इस उपमहाद्वीप को दक्षिण एशिया भी कहा जाता है भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग भारतीय प्रस्तर (या भारतीय प्लेट) पर स्थित है, हालाँकि इस के कुछ भाग इस प्रस्तर से हटकर यूरेशियाई प्रस्तर पर भी स्थित हैं। . मध्य एशिया एशिया के महाद्वीप का मध्य भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्तेपी वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई।Encyclopædia Iranica, "CENTRAL ASIA: The Islamic period up to the Mongols", C. Edmund Bosworth: "In early Islamic times Persians tended to identify all the lands to the northeast of Khorasan and lying beyond the Oxus with the region of Turan, which in the Shahnama of Ferdowsi is regarded as the land allotted to Fereydun's son Tur. चंगेज़ ख़ान एक पारम्परिक मंगोल घर, जिसे यर्त कहते हैं मंगोल मध्य एशिया और पूर्वी एशिया में रहने वाली एक जाति है, जिसका विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस जाति को मुग़ल के नाम से जाना जाता था, जिस से मुग़ल राजवंश का नाम भी पड़ा। आधुनिक युग में मंगोल लोग मंगोलिया, चीन और रूस में वास करते हैं। विश्व भर में लगभग १ करोड़ मंगोल लोग हैं। शुरु-शुरु में यह जाति अर्गुन नदी के पूर्व के इलाकों में रहा करती थी, बाद में वह वाह्य ख़िन्गन पर्वत शृंखला और अल्ताई पर्वत शृंखला के बीच स्थित मंगोलिया पठार के आर-पार फैल गई। मंगोल जाति के लोग ख़ानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे और शिकार, तीरंदाजी व घुड़सवारी में बहुत कुशल थे। १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके मुखिया तेमूचीन ने तमाम मंगोल कबीलों को एक किया। . मंगोल भाषा बोलने वाले क्षेत्र मंगोल भाषा अलताइक भाषाकुल की तथा योगात्मक बनावट की भाषा है। यह मुख्यतः अनतंत्र मंगोल, भीतरी मंगोल के स्वतंत्र प्रदेश, बुरयात (Buriyad) मंगोल राज्य में बोली जाती है। इन क्षेत्रों के अरिरिक्त इसके बोलनेवाले मंचूरिया, चीन के कुछ क्षेत्र और तिब्बत तथा अफगानिस्तान आदि में भी पाए जाते हैं। अनुमान है कि इन सब क्षेत्रों में मंगोल भाषा बोलनेवालों की संख्या कोई 40 लाख होगी। इन विशाल क्षेत्रों में रहनेवाले मंगोल जाति के सब लोगों के द्वारा स्वीकृत कोई एक आदर्श भाषा नहीं है। परंतु तथाकथित मंगोलिया के अंदर जनतंत्र मंगोल की हलहा (Khalkha) बोली धीरे-धीरे आदर्श भाषा का पद ग्रहण कर रही है। स्वयं मंगोलिया के लोग भी इस हलहा बोली को परिष्कृत बोली मानते हैं और इसी बोली के निकट भविष्य में आदर्श भाषा बनने की संभावना है। प्राचीन काल में मंगोल लिपि में लिखी जानेवाली साहित्यिक मंगोल पढ़े-लिखे लोगों में आदर्श भाषा मानी जाती थी। परंतु अब यह मंगोल लिपि जनतंत्र मंगोलिया द्वारा त्याग दी गई है और इसकी जगह रूसी लिपि से बनाई गई नई मंगोल लिपि स्वीकार की गई है। इस प्रकार अब मंगोल लिपि में लिखी जानेवाली साहित्यिक भाषा कम और नव मंगोल लिपि में लिखी जानेवाली हलहा बोली अधिक मान्य समझी जाने लगी है। . मंगोलिया (मंगोलियनः Монгол улс) पूर्व और मध्य एशिया में एक भूमि से घिरा (लेंडलॉक) देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में रूस, दक्षिण, पूर्वी और पश्चिमी में चीन से मिलती हैं। हालांकि, मंगोलिया की सीमा कज़ाख़िस्तान से नहीं मिलती, लेकिन इसकी सबसे पश्चिमी छोर कज़ाख़िस्तान के पूर्वी सिरे से केवल 24 मील (38 किमी) दूर है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर उलान बाटोर है, जहां देश की लगभग 38% जनसंख्या निवास करती है। मंगोलिया में संसदीय गणतंत्र है। . मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसीः, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्कीः बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। . यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद. राज्य जहां कई जातियां रहती हैं, जो क्षेत्र में विशाल है और जहां सम्राट के पास समस्त अधिकार हैं, साम्राज्य कहलाता है। यह एक राजनैतिक क्षेत्र है जो किसी एक राजा (जैसे मुग़ल साम्राज्य) अथवा कुछ मुख्य-पतियों (जैसे मराठा साम्राज्य) द्वारा साझेदारी में संभाला जाता है। साम्राज्य छोटे समय के अंतराल में भी हो सकता है परन्तु अधिकाँश वह पीढ़ी दर पीढ़ी कई दशकों या सदियों तक चलता है। भारत का सबसे बडा साम्राज्य सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य था, जिसकी सिमा 50,00,000 वर्ग किमी में श्रेत्र था। इसे देखिए - भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची . साइबेरिया का नक़्शा (गाढ़े लाल रंग में साइबेरिया नाम का संघी राज्य है, लेकिन लाल और नारंगी रंग वाले सारे इलाक़े साइबेरिया का हिस्सा माने जाते हैं गर्मी के मौसम में दक्षिणी साइबेरिया में जगह-जगह पर झीलें और हरियाली नज़र आती है याकुत्स्क शहर में 17वी शताब्दी में बना एक रूसी सैनिक-गृह साइबेरिया (रूसीः Сибирь, सिबिर) एक विशाल और विस्तृत भूक्षेत्र है जिसमें लगभग समूचा उत्तर एशिया समाया हुआ है। यह रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। सन् 1991 तक यह सोवियत संघ का भाग हुआ करता था। साइबेरिया का क्षेत्रफल 131 लाख वर्ग किमी है। तुलना के लिए पूरे भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है, यानि साइबेरिया भारत से क़रीब चार गुना है। फिर भी साइबेरिया का मौसम और भूस्थिति इतनी सख़्त है के यहाँ केवल 4 करोड़ लोग रहते हैं, जो 2011 में केवल उड़ीसा राज्य की आबादी थी। यूरेशिया का अधिकतर स्टॅप (मैदानी घासवाला) इलाक़ा साइबेरिया में आता है। साइबेरिया पश्चिम में यूराल पहाड़ों से शुरू होकर पूर्व में प्रशांत महासागर तक और उत्तर में उत्तरध्रुवीय महासागर (आर्कटिक महासागर) तक फैला हुआ है। दक्षिण में इसकी सीमाएँ क़ाज़ाक़स्तान, मंगोलिया और चीन से लगती हैं। . जापान सागर जापान सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर का एक समुद्री अंश है। यह समुद्र जापान के द्वीपसमूह, रूस के साख़ालिन द्वीप और एशिया के महाद्वीप के मुख्य भूभाग के बीच स्थित है। इसके इर्द-गिर्द जापान, रूस, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया आते हैं। क्योंकि कुछ स्थानों को छोड़कर यह क़रीब-क़रीब पूरी तरह ज़मीन से घिरा हुआ है, इसलिए इसमें भी भूमध्य सागर की तरह महासागर के ज्वार-भाटा की बड़ी लहरें नहीं आती। अन्य सागरों की तुलना में जापान सागर के पानी में मिश्रित ऑक्सिजन की तादाद अधिक है जिस से यहाँ मछलियों की भरमार है।, Great Soviet Encyclopedia (in Russian) जापान सागर का क्षेत्रफल ९,७८,००० वर्ग किमी है और इसकी सब से अधिक गहराई सतह से ३,७४२ मीटर (१२,२७६ फ़ुट) नीचे तक पहुँचती है। इसके इर्द गिर्द ७,६०० किमी के तट हैं, जिसमें से लगभग आधा रूस की धरती पर पड़ता है। नीचे समुद्र के फ़र्श पर तीन बड़ी द्रोणियाँ हैंः उत्तर में "जापान द्रोणी", दक्षिण-पश्चिम में "त्सुशिमा द्रोणी" और दक्षिण-पूर्व में "यामातो द्रोणी"। जापान द्रोणी सबसे गहरा क्षेत्र है और यहाँ का फ़र्श प्राचीन ज्वालामुखीय पत्थर से बना हुआ है। माना जाता है कि पिछले हिमयुग की चरम स्थिति में जब समुद्र की सतह वर्तमान युग से नीचे थी तो जापान एशिया के मुख्य भाग से धरती द्वारा जुड़ा हुआ था। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि उस समय जापान सागर आधुनिक कैस्पियन सागर की भाँती एक ज़मीन से घिरा हुआ बंद समुद्र था। . ईरानी भाषाओँ का वृक्ष, जिसमें उसकी उपशाखाएँ दिखाई गई हैं आधुनिक ईरानी भाषाओँ का फैलाव ईरानी भाषाएँ हिन्द-ईरानी भाषा परिवार की एक उपशाखा हैं। ध्यान रहे कि हिन्द-ईरानी भाषाएँ स्वयं हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की एक उपशाखा हैं। आधुनिक युग में विश्व में लगभग १५-२० करोड़ लोग किसी ईरानी भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं और ऍथ़नॉलॉग भाषाकोष में सन् २०११ तक ८७ ईरानी भाषाएँ दर्ज थीं।, Gernot Windfuhr, Routledge, 2009, ISBN 978-0-7007-1131-4, Raymond Gordon, Jr. "'ईद्भास/क्रॉस"' - यह ईसाई धर्म का निशान है ईसाई धर्म (अन्य प्रचलित नामःमसीही धर्म व क्रिश्चियन धर्म) एक इब्राहीमीChristianity's status as monotheistic is affirmed in, amongst other sources, the Catholic Encyclopedia (article ""); William F. Albright, From the Stone Age to Christianity; H. Richard Niebuhr; About.com,; Kirsch, God Against the Gods; Woodhead, An Introduction to Christianity; The Columbia Electronic Encyclopedia; The New Dictionary of Cultural Literacy,; New Dictionary of Theology,, pp. ख़ान (उपाधि) ओगदाई ख़ान, चंग़ेज़ ख़ान का तीसरा पुत्र ख़ान या ख़ाँ (मंगोलः хан, फ़ारसीः, तुर्कीः Kağan) मूल रूप से एक अल्ताई उपाधि है तो शासकों और अत्यंत शक्तिशाली सिपहसालारों को दी जाती थी। यह समय के साथ तुर्की-मंगोल क़बीलों द्वारा पूरे मध्य एशिया में इस्तेमाल होने लगी। जब इस क्षेत्र के सैन्य बलों ने भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, अफ़्ग़ानिस्तान और अन्य क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर के अपने साम्राज्य बनाने शुरू किये तो इसका प्रयोग इन क्षेत्रों की कई भाषाओँ में आ गया, जैसे कि हिन्दी-उर्दू, फ़ारसी, पश्तो, इत्यादि। इसका एक और रूप 'ख़ागान' है जिसका अर्थ है 'ख़ानों का ख़ान' या 'ख़ान-ए-ख़ाना', जो भारत में कभी प्रचलित नहीं हुआ। इसके बराबरी की स्त्रियों की उपाधियाँ ख़ानम और ख़ातून हैं।, Elena Vladimirovna Boĭkova, R. B. Rybakov, Otto Harrassowitz Verlag, 2006, ISBN 978-3-447-05416-4 . इस्लाम (अरबीः الإسلام) एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं। . अपने चरम पर अब्बासियों का क्षेत्र (हरे रंग में, गाढ़े हरे रंग वाले क्षेत्र उनके द्वारा जल्दी ही खोए गए) अब्बासी (अरबीः, अल-अब्बासियून; अंग्रेज़ीः Abbasids) वंश के शासक इस्लाम के ख़लीफ़ा थे जो सन् 750 के बाद से 1257 तक इस्लाम के धार्मिक प्रमुख और इस्लामी साम्राज्य के शासक रहे। इनके पूर्वज मुहम्मद से संबंधित थे इसलिए इनको सुन्नियों के साथ साथ शिया विचारधारा के मुसलमानों का भी बहुत सहयोग मिला जिसमें ईरान तथा ख़ोरासान तथा शाम की जनता शामिल थी। इस जनसहयोग की बदौलत उन्होंने उमय्यदों को हरा दिया और ख़लीफ़ा बनाए गए। उन्होंने उमय्यदों के विपरीत साम्राज्य में ईरानी तत्वों को समावेश किया और उनके काल में इस्लामी विज्ञान, कला तथा ज्योतिष में काफ़ी नए विकास हुए। सन् 762 में उन्होंने बग़दाद की स्थापना की जहाँ ईरानी सासानी निर्माण कला तथा अरबी संस्कृति से मिश्रित एक राजधानी का विकास हुआ। यद्यपि 10वीं सदी में उनकी वंशानुगत शासन की परम्परा टूट गई पर ख़िलाफ़त बनी रही। इस परंपरा टूटने के कारण शिया इस्लाम में इस्माइली तथा बारहवारी सम्प्रदायों का जन्म हुआ जो इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में मुहम्मद साहब के विभिन्न वंशजों का समर्थन करते थे। उनके काल में इस्लाम भारत में भी फैल गया लेकिन 1257 में उस समय अमुस्लिम रहे मंगोलों के आक्रमण से बग़दाद नष्ट हो गया। . उस्मानी सलतनत (१२९९ - १९२३) (या उस्मानी साम्राज्य या तुर्क साम्राज्य, उर्दू में सल्तनत-ए-उस्मानिया, उस्मानी तुर्कीयाईःدَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه देव्लेत-इ-आलीय्ये-इ-ऑस्मानिय्ये) १२९९ में पश्चिमोत्तर अनातोलिया में स्थापित एक तुर्क राज्य था। महमद द्वितीय द्वारा १४९३ में क़ुस्तुंतुनिया जीतने के बाद यह एक साम्राज्य में बदल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में १९१९ में पराजित होने पर इसका विभाजन करके इस पर अधिकार कर लिया गया। स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद २९ अक्तुबर सन् १९२३ में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है। उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के हिस्सों में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था। इसने १४५३ में क़ुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्ताम्बुल) को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही। इस्ताम्बुल पर इसकी जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था। .
e3762f25e4e04a5ccb559e677e430f7a907d3a2b
web
पं. राजेंद्र वर्मन ने सितार वादन की कला को घरानों की परम्परा से बाहर निकालकर नई पीढ़ी की पौध विकसित करने की दिशा में सार्थक प्रयत्न किया है। सवा पांच की ताल के उन्नायक राजेंद्र वर्मन वर्तमान समय के बेहतरीन, संवेदनशील और रचनात्मक कलाकार हैं, जो उनके रागों के गायन में प्रदर्शित होता है। आप अपनी शुद्धता एवं व्यवस्थित विकास और राग की शांति के लिए जाने जाते हैं। हिंदी विवेक को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने संगीत खासकर सितार की बारीकियों और संगीत के भविष्य को लेकर लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस साक्षात्कार के सम्पादित अंशः अपने बचपन और परिवार के विषय में कुछ बताएं? मेरा जन्म राजस्थान के एक संगीत घराने में जोधपुर में हुआ था। मेरे पिताजी 'नाद रत्न' आचार्य देवेंद्र वर्मन संगीत के बड़े विद्वान और गायक थे। संगीत के दो तकनीकी भाग होते हैं, परफार्मेंस(प्रदर्शन) और शास्त्र। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मेरे पिताजी के पास दोनों का विशद् ज्ञान था, जिसे मुझे सीखने का मौका मिला। गहन शिक्षा के लिए मुझे योग्य गुरु की तलाश थी। उसी समय इंदौर घराने के सितार वादक पद्मभूषण उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खान जी का जोधपुर में कार्यक्रम हुआ। उन्हें सुनते ही मुझे लगा कि इनसे बेहतर गुरु मुझे कोई और नहीं मिल सकता। आप सितार वादन के क्षेत्र में ही क्यों आए, किसी और विधा में क्यों नहीं? दरअसल, मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं गायन सीखूं। मैंने उसकी शिक्षा भी ली। साथ ही, तबला सीखा क्योंकि गायन के साथ ही साथ आपको किसी एक वाद्य का वादन आना आवश्यक है। इन सारी कवायदों के बावजूद सितार मुझे ज्यादा आकर्षित कर रहा था। उसे सुनते ही मन के तार झंकृत हो उठते थे। इसे आप दैवीय संयोग मानिए या कुछ और, हमेशा लगता था कि मुझे यही सीखना चाहिए। संयोग से मुझे बेहतरीन गुरु भी मिल गए। खां साहब ने मुझे मुंबई आने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि घर की माली हलात ऐसी नहीं थी कि पिताजी मेरा मुंबई में रहने का खर्चा उठा सकते। सितार वाद्य की क्या विशेषता होती है और यह सर्वश्रेष्ठ वाद्य क्यों माना जाता है? सितार एक पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्यों की तीनों विशेषताएं होती हैं। तंत्री या तारों के अलावा इसमें घुड़च, तरब के तार तथा सारिकाएं होती हैं। यह भारतीय तंत्री वाद्यों का सर्वाधिक विकसित रूप है। सामान्यतः सितार में 18, 19, 20 या 21 तार हो सकते हैं। इनमें से छह या सात बजने वाले तार हैं जो घुमावदार, उभरे हुए फ्रेट्स पर चलते हैं, और शेष सहानुभूति तार (तारब, जिसे तारिफ या तारफदार के रूप में भी जाना जाता है) हैं जो फ्रेट्स के नीचे चलते हैं और बजाए गए तारों के साथ सहानुभूति में गूंजते हैं। इन स्ट्रिंग्स का उपयोग आम तौर पर एक प्रस्तुति की शुरुआत में राग के मूड को सेट करने के लिए किया जाता है। फ्रेट्स, जिन्हें परदा या थाट के रूप में जाना जाता है, फाइन-ट्यूनिंग की अनुमति देते हैं। बजने वाले तार वाद्य यंत्र के सिर पर या उसके पास ट्यूनिंग खूंटे तक चलते हैं, जबकि सहानुभूति तार, जो कि विभिन्न लम्बाई के होते हैं, फ्रेटबोर्ड में छोटे छेद से गुजरते हैं ताकि छोटे ट्यूनिंग खूंटे से जुड़ सकें जो उपकरण की गर्दन के नीचे चलते हैं। सितार में दो पुल होते हैं। बड़ा पुल (बड़ा गोरा) बजाने के लिए और ड्रोन तार और छोटा पुल (छोटा गोरा) सहानुभूति तारों के लिए। यह खासियत इसे अन्य वाद्यों से अलग बनाती है। आप स्वयं को किस घराने से सम्बद्ध मानते हैं और उस घराने की क्या खूबी है? मेरा घराना वही है, जो मेरे उस्ताद का है। इंदौर घराना। अपने पिताजी के बाद मैंने अपने गुरु अब्दुल हलीम जाफर खां साहब से ही सीखा। उनके प्रशिक्षण के कारण ही बहुत ही कम समय में सितार के 'जफरखानी बाज' की पेचीदगियों को समझ पाया था। मेरा सौभाग्य है कि मेरे गुरु मुझे अपने सबसे बेहतर शिष्यों में स्थान देते थे। इंदौर घराने की मूल विशेषता क्या है? किसी भी घराने के बनने और प्रतिष्ठित होने के पीछे उसके मुखिया के काम और विशेष उपलब्धियां काम करती हैं। उस व्यक्ति ने किस-किस को सिखाया और उसके सिखाए शिष्यों ने आगे चलकर कितनी प्रगति की और नाम कमाया, इन सारी चीजों को मिलाने से घराना बनता है। मेरे गुरु का सितार वादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में नाम था। अगर सितार की बात करें तो इसके लिए तीन घराने ज्यादा प्रसिद्ध रहे। पं. रविशंकर का मैहर घराना, उस्ताद विलायत अली खां साहब का इटावा घराना और हमारा इंदौर घराना। इन तीनों घरानों ने इस विधा में काफी काम किया। इसीलिए इन सब का सितार वादन के क्षेत्र में काफी नाम रहा। अब तक आपने कितने शिष्यों को सितार वादन की शिक्षा दी हैं? पूरी तरह से गिनती तो नहीं की परंतु तीन सौ से ऊपर ही संख्या बैठेगी। मैं लगभग 50 सालों से सितार बजाने के साथ ही साथ लोगों को सिखा भी रहा हूं क्योंकि मुंबई शहर में जीविकोपार्जन का अन्य कोई बेहतर विकल्प मेरे सामने न था। सिखाने का एक बड़ा कारण था कि मैं जोधपुर से ठीकठाक सितार वादन सीखकर आया था। मेरे पिताजी की इच्छा थी कि मैं लोगों को सितार की शिक्षा दूं। उनकी इस इच्छा का मान हो गया। परंतु मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं बिना फीस लिए सिखाऊं। वह मैंने नहीं किया। पहला प्रश्न आजीविका का था। दूसरी बात, मुफ्त में सीखने वाले लोग उस विद्या की कद्र नहीं करते। कोई बहुत ज्यादा गरीब है तो ठीक है पर जो दे सकता है उसे देना चाहिए। मुंबई फिल्मों की नगरी है। क्या उस क्षेत्र में भी आपने हाथ आजमाया? मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि शुरुआती दौर से ही मुझे फिल्मों में सितार वादन का कार्य मिलता रहा। मैंने सुर संगम, देस परदेस, अंगूर, दिल है कि मानता नहीं, रॉकी, हीरो समेत लगभग 250 से अधिक फिल्मों के लिए कार्य किया। 90 के दशक में कई सारे मित्रों ने जोर देना शुरू किया कि मुझे संगीत देना ही चाहिए क्योंकि मैं धुनें बना लेता था। उस दौर में दूरदर्शन पर 13-13 एपिसोड के धारावाहिक बनते थे। मैंने एक धारावाहिक 'रात की पुकार' में संगीत दिया। उसके बाद एक कारवां सा चल पड़ा। 'दिल से संगीत तक' कार्यक्रम किया और बहुत सारे जिंगल्स भी किए। पर मेरा मन हमेशा सितार में ज्यादा रमा। भारतीय संस्कृति के वैश्विक विस्तार में संगीत का कितना योगदान रहा? सर्वाधिक रहा। भारतीय संगीत आत्मिक संगीत होता है। इसका सम्बंध आत्मा के साथ होता है। जबकि पश्चिमी संगीत के साथ ऐसा नहीं है। वहां एक व्यक्ति धुन बनाता है और बाकी लोग उसे बजाते हैं। भारतीय संगीत के साथ ऐसा नहीं है। यहां पर पुरानी धुनों या ताल को विस्तार देने की भरपूर गुंजाइश होती है तथा समय के साथ उसे नवीन स्वरूप मिलता रहा है। वहां का संगीत बंधा हुआ है। मेरे गुरु कहा करते थे कि, मुझसे आप सीखते ही हैं। दूसरों को सुनते हैं। इन सब के अलावा अपना स्वयं का मस्तिष्क भी लगाइए। यहां के संगीत में पीढ़ी दर पीढ़ी काफी मेहनत की गई है, इसलिए भारतीय संगीत के प्रति पूरी दुनिया भागती है। आपको जानकर खुशी होगी कि सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक बजने और सुने जाने वाला भारतीय संगीत है। विश्व का शायद ही कोई बड़ा शहर हो जहां सितार सीखने वाले न हों। गायन हो, वादन हो या नृत्य। दुनियाभर से लोग सीखने के लिए आते हैं। भारतीय संगीत को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान किसका मानते हैं? इस मामले में सबसे बड़ा योगदान पं. रविशंकर का रहा। शायद ईश्वर ने उन्हें इसी काम के लिए पृथ्वी पर भेजा था कि, तुम सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संगीत का प्रचार-प्रसार करो। वे चाहते तो अकेले कार्यक्रम कर सकते थे लेकिन उन्होंने दूसरों को खूब मौके दिए। बीटल्स ग्रुप के जॉन लेनन रविशंकर जी से सितार सीखने के लिए बनारस आए थे। आप लोगों की पीढ़ी मेहनती थी। वर्तमान पीढ़ी फटाफट चीजें पाना चाहती है। उनके लिए क्या कहना चाहेंगे? साधना समय मांगती है। आप उससे भाग नहीं सकते। यदि आपको बीए की पढ़ाई करनी है तो उतने साल परिश्रम करना ही पड़ेगा। यही नियम संगीत पर भी लागू होता है। यदि आप परिश्रम नहीं करते हैं तो आपको उस स्तर का ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। अर्थात् पहले की अपेक्षा शास्त्रीय संगीत का स्तर गिरा है? मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। पहले के लोग मेहनत करना चाहते थे। वर्तमान पीढ़ी उतनी मेहनती नहीं है। एक और कारण रहा। पहले संगीतज्ञ राजपरिवारों से संरक्षण पाते थे। उन्हें केवल रियाज करना रहता था। उनके जीवन यापन की जिम्मेदारी उस राजपरिवार के जिम्मे होती थी। जब आप कमाने लगते हैं तो रियाज पीछ छूटने लगता है। इसका असर फिल्मों पर भी पड़ा है। 40 से लेकर 70 के दशक तक का समय गोल्डेन पीरियड कहा जाता है। मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूं जिन्होंने उस दौर को देखा है। साथ ही, अपने समय के लगभग सभी बड़े और गुनी जनों के साथ संगत की। मुझे फिल्म संगीत के गोल्डेन पीरियड के संगीतकारों के साथ काम करने का भी सौभाग्य मिला। कोई ऐसा संगीतकार जिसके साथ काम करने में सबसे ज्यादा आनंद आया हो? हर संगीतकार का अलहदा अंदाज होता है। अगर शास्त्रीय संगीत की बात करें तो मदन मोहन लाजवाब थे। इसलिए उनका संगीत दिल के बहुत ज्यादा करीब रहा। परंतु उसी का और थोड़ा सुधरा रूप जयदेव जी का था। वे बहुत ही अच्छे इंसान थे, और उतना ही उम्दा उनका संगीत रहा। उसके बाद रवींद्र जैन और शंकर-जयकिशन आए। वह दौर ही बेहतरीन संगीत का था। गाने सुनकर पता चल जाता था कि इसमें संगीत ओ. पी. नैयर का है, या एस.डी. बर्मन का। आज वह मधुरता और विशिष्टता गायब हो गई है। सभी ए.आर. रहमान के चेले हो गए हैं। एक ही लय में गा रहे हैं। सुरों की ऊंचाई-गहराई, आलाप इत्यादि पर किसी का ध्यान ही नहीं है। सब ऊंचे सुर में चिल्ला रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता की पचासवीं वर्षगांठ पर आपने 50 घंटे का कार्यक्रम किया था। इतना वृहद कार्यक्रम किस प्रकार स्वरूप पा सका? स्वतंत्रता की पचासवीं वर्षगांठ पर जगह-जगह बड़े कलाकारों के कार्यक्रम हो रहे थे। मेरे मन में आया कि एक कार्यक्रम नवोदित और कम प्रसिद्ध कलाकारों का भी होना चाहिए। साथ ही, राष्ट्र को ट्रिब्यूट देने के तौर पर 50 घंटों का होना चाहिए। नए के नाम पर सुनने वाले नहीं आएंगे, इसलिए उनके साथ एक बड़ा आर्टिस्ट भी रखा। हॉल वाले तैयार नहीं हो रहे थे, उतनेे लम्बे कार्यक्रम के लिए। किसी तरह खार के शारदा विद्यामंदिर के संचालक तैयार हो गए। विद्यालय होने के कारण हमारे इतने सारे कलाकारों के लिए ग्रीन रूम की समस्या हल हो गई। मेरे एक आईपीएस मित्र ने पुलिस स्टेशन से परमीशन दिलवाने में मदद कर दी। हमारी मंशा थी कि देश के हर घराने और वाद्य के धुरंधर इसका हिस्सा बनें। कार्यक्रम के सफल आयोजन के पश्चात् महाराष्ट्र के तात्कालीन संस्कृति मंत्री ने हमारी पूरी टीम को मंत्रालय में बुलाकर सम्मानित किया था। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड से सम्पर्क साधने की कोशिश नहीं की? किया था, लेकिन हमारी नियमावली उनसे मैच नहीं खा रही थी। वे चाहते थे कि प्रत्येक 8 घंटों के बाद पंद्रह मिनट का अंतराल हो। डॉक्टरों की टीम, एम्ब्युलेंस समेत बहुत सारी बाते थीं। जबकि हमें था कि एक बार जोत जल गई तो रुकनी नहीं चाहिए। फिर भी उनकी ओर से हमें प्रशस्ति पत्र मिला कि पूरी दुनिया में इस तरह का कोई कार्यक्रम पहले नहीं हुआ था। कोविड के दौरान भी हमने ऑनलाइन कार्यक्रम किए। हमें कार्यक्रम करते हुए 45 साल हो गए। पिछले 8 सालों में मोदी जी ने भारतीय संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने की दिशा में गम्भीर प्रयत्न किए हैं। संगीत के क्षेत्र में कितनी प्रगति हुई? यह सही है कि भारतीय संस्कृति के विस्तार के सार्थक प्रयत्न हो रहे हैं लेकिन अफसोस है कि संगीत के क्षेत्र में कोई व्यापक कार्य नहीं हुआ है। नेहरू पूरे विश्व में संगीतकारों को लेकर जाते थे। इंदिरा गांधी ने भी काफी प्रोत्साहन दिया। आखिरी बार राष्ट्रीय स्तर पर 'अपना उत्सव' का आयोजन 1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व में हुआ था। हमारी वर्तमान सरकार से अपेक्षा है कि संगीत को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम होने चाहिए ताकि भारतीय संस्कृति की इस शाखा के विस्तार को और बल मिले। सितार बजाते समय सबसे ज्यादा आनंदित कब होते हैं? साक्षात्कार के दौरान यह प्रश्न मुझे हमेशा पूछा जाता है कि, आपको पूरे विश्व में सितार बजाने में सबसे ज्यादा आनंद कहां आता है? मेरा जवाब होता है, जब मैं अपने घर पर बंद कमरे में रियाज कर रहा होता हूं। उस समय की एकाग्रता और अनुभूति ही किसी कलाकार की कला को सार्थक बनाने की दिशा में सार्थक कदमताल करती है। इसका व्यापक प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। संगीत के भविष्य को लेकर आप कितने आशान्वित हैं? पिछले एक-डेढ़ दशकों में शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत, दोनों ने गति पकड़नी शुरू कर दी है। टीवी पर तमाम संगीत प्रतियोगिताएं आयोजित होने लगी हैं, जिनमें देश के कोने-कोने से प्रतिभाशाली प्रतियोगी सामने आ रहे हैं। पहले घराने होने की वजह से जो प्रतिभा सिमटी थी, उसका भी विस्तार हो रहा है। तमाम तालों और रागों को लेकर प्रयोग हो रहे हैं। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों से जुड़े प्रबुद्ध लोगों का झुकाव भी संगीत की ओर बढ़ रहा है। संगीत की खासियत है कि इसके स्वरों का आंदोलन हमारे दिल के आंदोलन से मिल जाता है। हमारी रीढ़ की में 22 लड़ियां होती हैं। सारे सुरों की संख्या भी 22 ही है। दक्षिण के पांच राज्यों और बंगाल में संगीत की बड़ी समृद्ध परम्परा रही है, बाकी राज्यों में नहीं। ऐसा क्यों? इसका सर्व प्रमुख कारण वहां की शासन परम्परा रही। उन राज्यों में राजघरानों ने संगीत के विकास को प्राथमिकता दी। जबकि बाकी जगहों पर उतने बढ़िया ढंग से नहीं हो पाया। उन राज्यों में आम लोगों के बीच संगीत को प्रोत्साहित करने का कार्य किया जाता था। राज परिवार या बड़े उद्योगपति महफिलें आयोजित करवाते थे, जहां नए लोगों को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता था। उत्तर भारत के ज्यादातर विद्यालयों में संगीत की शिक्षा ही नहीं मिलती। 6 दशकों के संगीत के प्रवास का सिंहावलोकन करने पर संगीत के क्षेत्र की कोई उपलब्धि जो बाकी रह गई हो, या कोई विशेष ताल जिसे आपने विकसित किया हो? संगीत अथाह सागर है। एक व्यक्ति कुछ बूंदें ही पी सकता है। पिछले 60-65 सालों से यमन बजा रहा हूं लेकिन अभी भी स्वयं को पूर्ण पारंगत नहीं कह सकता। वैसे मैंने एक प्रयोग किया जो सफल रहा। राग के क्षेत्र में काफी प्रयोग हुए पर ताल के क्षेत्र में ऐसा नहीं हो पाया था। पहले माना जाता था कि तालों में घटाव-बढ़ाव की गुंजाइश नहीं। पं. रविशंकर ने आधा ताल जोड़ने का कार्य किया। जैसे, 10 की ताल से साढ़े 10 की ताल। मैंने उस कार्य को आगे बढ़ाया और सवा 5 की ताल विकसित की। काफी बड़े सितारवादक मुझसे यह नया अनुसंधान सीखने के लिए आते हैं और प्रशंसा करते हैं।
dc3b1dec97c5dd72b246103f9443606a7b5a6285
web
प्रश्न-1. एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया, चीन की बेल्ड एंड रोल पहल का विरोध किया। चीन के राष्ट्रपति ने शीत युद्ध के खिलाफ आगाह किया, पुतिन ने सशस्त्र विद्रोह का मुद्दा उठाया, पाकिस्तान ने आतंकवाद को 'कई सिर वाला राक्षस' बताया। इस सबको कैसे देखते हैं आप? साथ ही ईरान को इस संगठन का सदस्य बनाने से क्या लाभ होगा? उत्तर- यह अच्छी बात रही कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के नेताओं ने आतंकवाद के किसी भी कृत्य को "आपराधिक, अनुचित" करार देते हुए राजनीतिक एवं भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवादियों एवं चरमपंथी समूहों के इस्तेमाल को "अस्वीकार्य" बताया। एससीओ देशों ने अपने-अपने राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप ऐसे आतंकवादियों, अलगाववादियों और चरमपंथी समूहों की समान सूची तैयार करने के लिए साझा सिद्धांत विकसित करने पर सहमति व्यक्त की, जिनकी गतिविधियां सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित है। भारत की अध्यक्षता में डिजिटल माध्यम से आयोजित इस बैठक के समापन पर एक साझा बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के वित्त पोषण के माध्यमों को रोकने, आतंकी भर्ती से जुड़ी गतिविधियों को बंद करने और सीमापार आतंकवादियों की आवाजाही पर लगाम लगाने के साथ आतंक के छिपे स्वरूपों और आतंकवादियों की पनाहगाहों को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाएंगे। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के सभी स्वरूपों की कड़े शब्दों में निंदा करने को प्रतिबद्ध हैं, चाहे यह किसी के द्वारा और किसी उद्देश्य के लिए होता हो। साझा बयान में कहा गया है कि आतंकवाद को किसी धर्म, सभ्यता, राष्ट्रीयता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ आदि मौजूद थे। शिखर बैठक में अलग से 'दिल्ली घोषणापत्र' जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि एससीओ के सदस्य देश आतंकवाद के प्रसार से निपटने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने को प्रतिबद्ध हैं। इसमें डिजिटल परिवर्तन पर भी एक घोषणापत्र जारी किया गया। इस बैठक के दौरान भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी 'बेल्ट एंड रोड' परियोजना (बीआरआई) का एक बार फिर समर्थन करने से इंकार कर दिया। इसी के साथ वह इस परियोजना का समर्थन नहीं करने वाला शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का एकमात्र देश बन गया। भारत की मेजबानी में वर्चुअल माध्यम से आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन के अंत में जारी घोषणा में कहा गया कि रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने बीआरआई के प्रति अपना समर्थन दोहराया है। घोषणा के मुताबिक, "चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करते हुए कजाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज्बेकिस्तान गणराज्य ने संयुक्त रूप से इस परियोजना को लागू करने के लिए जारी काम पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई के निर्माण को जोड़ने का प्रयास भी शामिल है। " इसमें कहा गया है, "इन देशों ने इच्छुक सदस्य देशों द्वारा आपसी समझौतों के तहत राष्ट्रीय मुद्राओं की हिस्सेदारी में क्रमिक वृद्धि के रोडमैप को लागू करने के पक्ष में बात की। " घोषणा के अनुसार, सदस्य राज्यों ने 'इच्छुक सदस्य देशों' द्वारा अपनाई गई एससीओ आर्थिक विकास रणनीति 2030 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और डिजिटल अर्थव्यवस्था, उच्च प्रौद्योगिकी एवं सड़क तथा रेल परिवहन के लिए मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मार्गों के आधुनिकीकरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परियोजनाओं को गति देना महत्वपूर्ण माना। शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पर्क को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ऐसे प्रयास करते समय एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों, विशेष रूप से सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना आवश्यक है। अमेरिका के साथ चीन के तनाव भरे संबंधों के बीच शी ने कहा, "हमें अपने आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप और किसी भी बहाने से किसी भी देश द्वारा प्रदर्शन को उकसावे को दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिए। हमारे विकास का भविष्य मजबूती से हमारे ही हाथों में होना चाहिए। " उन्होंने बहुपक्षीयता को बरकरार रखने और वैश्विक प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने के महत्व को रेखांकित किया। शी ने क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा एससीओ देशों के बीच आदान प्रदान एवं लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ाने के लिए प्रयास करने पर भी जोर दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि चीन बातचीत और परामर्श के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे को बढ़ावा देने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) को लागू करने के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने को तैयार है। शी ने यह भी कहा, "हमें अपने कानून प्रवर्तन और सुरक्षा सहयोग के लिए तंत्र को मजबूत करने तथा डिजिटल, जैविक और बाहरी अंतरिक्ष सुरक्षा सहित गैर-पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने के लिए तेजी से आगे बढ़ना चाहिए। " तालिबान शासित अफगानिस्तान पर शी ने कहा कि एससीओ देशों को अफगानिस्तान के पड़ोसियों के बीच समन्वय और सहयोग के तंत्र जैसे मंच का उपयोग जारी रखना चाहिए। शी ने कहा, "हमें रणनीतिक संचार और समन्वय को बढ़ाना चाहिए, बातचीत के माध्यम से मतभेदों को दूर करना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को सहयोग से बदलना चाहिए। हमें वास्तव में एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करना चाहिए तथा विकास और कायाकल्प के लिए एक-दूसरे के प्रयासों का दृढ़ता से समर्थन करना चाहिए। " शी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कुछ बिंदुओं पर तीन साल से अधिक समय से आमने-सामने हैं। भारत ने चीन को यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी, दोनों देशों के बीच संबंध आगे नहीं बढ़ सकते। सरकारी 'शिन्हुआ' समाचार एजेंसी के अनुसार, शी ने एससीओ सदस्य देशों से देशों को जोड़ने एवं सम्पर्क बढ़ाने के लिए अरबों डालर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना के तहत विभिन्न देशों की विकास रणनीति एवं क्षेत्रीय सहयोग पहल के जरिये उच्च गुणवत्तापूर्ण सहयोग की वकालत की। राष्ट्रपति शी ने 2013 में सत्ता में आने के बाद बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की शुरूआत की थी। इसका मकसद भूमि और समुद्र मार्ग के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ना है। बीआरआई के तहत ही 60 अरब डालर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की शुरूआत की गई है। भारत ने इस पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। इसके अलावा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद के "कई सिर वाले राक्षस" से पूरी ताकत और दृढ़ता के साथ लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने इसे कूटनीतिक फायदे के लिए हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करने के खिलाफ भी आगाह किया। भारत द्वारा आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में भी बात की। प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा, "आतंकवाद और उग्रवाद के कई सिर वाले राक्षस से-चाहे वह व्यक्तियों, समाज या राज्यों द्वारा प्रायोजित हो- पूरी ताकत और दृढ़ विश्वास के साथ लड़ना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में कूटनीतिक मुद्दे के लिए इसे एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने के किसी भी प्रलोभन से बचना चाहिए। " शरीफ ने कहा, "राज्य प्रायोजित आतंकवाद समेत सभी तरह के आतंकवाद की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। चाहे कारण या बहाना कुछ भी हो, निर्दोष लोगों की हत्या का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। " उन्होंने कहा कि आतंकवाद के संकट से लड़ने में पाकिस्तान द्वारा किए गए बलिदानों की कोई तुलना नहीं है, लेकिन यह अभी भी इस क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है और शांति तथा स्थिरता के लिए "गंभीर बाधा" है। प्रधानमंत्री शरीफ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भी किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि "घरेलू राजनीतिक एजेंडे के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से दिखाने के चलन को रोका जाना चाहिए। " शरीफ ने कश्मीर मुद्दे को भी उठाने की कोशिश की और लंबित विवादों के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की तीन बुराइयों के बारे में भी बात की और एससीओ देशों से इन बुराइयों का मुकाबला करने के लिए अपनी राष्ट्रीय और सामूहिक क्षमता, दोनों के साथ ठोस और तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया। उन्होंने संपर्क के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक परिभाषित विशेषता बन गई है। उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के बारे में कहा कि यह क्षेत्र में संपर्क और समृद्धि के लिए "गेम चेंजर" हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, "पाकिस्तान जिस जगह स्थित है, वह एक प्राकृतिक सेतु के रूप में कार्य करता है, जो यूरोप और मध्य एशिया को चीन, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया से जोड़ता है। " उन्होंने कहा कि सीपीईसी के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्र, क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सुविधाजनक माध्यम के रूप में भी काम कर सकते हैं। सीपीईसी के तहत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ा जाना है। यह चीन की कई अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की प्रमुख परियोजना है। भारत ने सीपीईसी पर चीन के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजर रहा है। शरीफ ने यह भी कहा कि "जलवायु-प्रेरित आपदा हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है" और इससे निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता और प्रतिक्रिया की जरूरत है। उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान में आई बाढ़ का भी जिक्र किया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को 30 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। उन्होंने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए गरीबों की मदद करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबी उन्मूलन एससीओ देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब हैं। उन्होंने कहा कि युद्धों और अन्य संबंधित मुद्दों के कारण वस्तुओं की कीमत में वृद्धि पर एससीओ देशों को कदम उठाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता साझा उद्देश्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को भी किसी भी आतंकवादी संगठन द्वारा अपने क्षेत्र के इस्तेमाल को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा की गई थी। वर्ष 2017 में भारत के साथ पाकिस्तान इसका स्थायी सदस्य बन गया। इसे भी पढ़ेंः Prabhasakshi Exclusive: Xi Jinping ने Putin को Ukraine पर परमाणु हमला करने से क्यों रोक दिया? हाल ही में वैग्नर ग्रुप' के प्रमुख येवगेनी प्रीगोझिन और उनके लड़ाकों ने रूस के खिलाफ विद्रोह करते हुए मॉस्को की तरफ कूच किया था। हालांकि, उन्होंने अचानक क्रेमलिन के साथ समझौते के बाद निर्वासन में जाने और पीछे हटने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद दो दशकों से अधिक समय से सत्तारूढ़ पुतिन के नेतृत्व पर भी सवाल उठे थे। एससीओ की बैठक में पुतिन ने कहा, "इस अवसर पर मैं एससीओ के अपने सहयोगी देशों के सदस्यों को संवैधानिक व्यवस्था, जानमाल और नागरिकों की सुरक्षा करने में रूसी नेतृत्व का समर्थन करने के लिए धन्यवाद देता हूं। " उन्होंने कहा कि सभी एससीओ सदस्य देशों के साथ निर्यात लेनदेन में रूस की राष्ट्रीय मुद्रा की हिस्सेदारी वर्ष 2022 में 40 प्रतिशत से अधिक रही। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि एससीओ 'सही अर्थो में न्यायपूर्ण' और 'बहुध्रुवीय' विश्व व्यवस्था' सृजित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। रईसी ने कहा कि पिछले दशकों के अनुभव पर भरोसा करते हुए अब यह काफी स्पष्ट हो गया है कि सैन्यीकरण के साथ जो चीज पश्चिमी प्रभुत्व प्रणाली का आधार रही है, वह है डॉलर का प्रभुत्व। उन्होंने कहा कि इसलिए एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को आकार देने के किसी भी प्रयास के लिए अंतर-क्षेत्रीय संबंधों में प्रभुत्व के इस साधन को हटाने की आवश्यकता है। उन्होंने शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि ईरान के समूह में शामिल होने से ऐतिहासिक लाभ होंगे। प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? हाल ही में रूसी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को जो फोन किया था उसके क्या मायने हैं? उत्तर- युद्ध के ताजा हालात को देखें तो रूस बढ़त बनाता दिख रहा है क्योंकि यूक्रेन को पश्चिमी देशों के आश्वासन के बावजूद हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल पा रही है। इसलिए यूक्रेन की तरफ से पलटवार लगभग स्थिर हो गया है। जहां तक इस तरह की खबर है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को परमाणु हथियारों का उपयोग करने से रोका तो इस बात की संभावना काफी हद तक है क्योंकि पुतिन आजकल जिनपिंग की बात काफी मान रहे हैं। इस युद्ध में चीन जिस तरह खुलकर रूस का साथ दे रहा है उसको देखते हुए पुतिन इस स्थिति में नहीं हैं कि चीन के किसी अनुरोध को पूरी तरह खारिज कर सकें। इसके अलावा शी जिनपिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति का मसीहा साबित करना चाहते हैं इसलिए आजकल वह वैश्विक मामलों में विवाद की स्थिति को सुलझाने में सहयोग की पेशकश कर रहे हैं। अभी की संभावना देखें तो परमाणु युद्ध का खतरा तो नजर नहीं आ रहा है लेकिन यह जरूर दिख रहा है कि न्यूक्लियर रेडियेशन के जरिये यूक्रेन को तबाह किया जा सकता है। हालांकि रूस इस तरह का कोई कदम उठायेगा इसकी संभावना ज्यादा नहीं लगती है। रूस का तो आरोप है कि यूक्रेन खुद पर न्यूक्लियर रेडियेशन हमला करवा सकता है ताकि रूस पर आरोप लगाया जा सके। रूस का कहना है कि यूक्रेन युद्ध अपने हाथ से निकलते देख कोई आत्मघाती कदम उठा सकता है। रूस यूक्रेन का 25 प्रतिशत से ज्यादा भाग अपने कब्जे में ले चुका है और यूक्रेन उसमें से बहुत कम इलाका अब तक वापस ले पाया है। दूसरा वैगनर ग्रुप की बगावत पर काबू पाने के बाद अब पुतिन सारे कदम फूंक फूंक कर रख रहे हैं। जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच हुई फोन वार्ता की बात है तो आपको बता दें कि रूसी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर "सार्थक" बातचीत की तथा द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच यूक्रेन संघर्ष पर भी चर्चा हुई। दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर बातचीत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के डिजिटल शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले हुई। इससे एक दिन पहले, रूस के सुरक्षा परिषद सचिव निकोलाई पेत्रुशेव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों और रूस में नवीनतम सुरक्षा घटनाक्रम पर चर्चा हुई थी। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मोदी और पुतिन ने द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति की समीक्षा की और आपसी हित के क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों नेता संपर्क में बने रहने तथा दोनों देशों के बीच विशेष एवं विशिष्ट रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के प्रयास जारी रखने पर सहमत हुए। यह उल्लेख करते हुए कि फोन कॉल भारतीय पक्ष की ओर से की गई, क्रेमलिन प्रेस सेवा ने कहा, "बातचीत का स्वरूप सार्थक एवं रचनात्मक रहा। नेताओं ने रूस और भारत के बीच विशिष्ट रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए आपसी प्रतिबद्धता दोहराई और संपर्क जारी रखने पर सहमति व्यक्त की। " नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की और विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाओं को जारी रखने के महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि रूस और भारत के बीच व्यापार 2022 में काफी बढ़ गया, और यह सिलसिला 2023 की पहली तिमाही में भी जारी रहा। क्रेमलिन ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी को कूटनीति के माध्यम से संघर्ष को सुलझाने से यूक्रेन के स्पष्ट इनकार के बारे में सूचित किया। रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने रूसी राष्ट्रपति कार्यालय क्रेमलिन के बयान के हवाले से कहा, "दोनों नेताओं ने यूक्रेन से संबंधित स्थिति पर चर्चा की। रूसी राष्ट्रपति ने विशेष सैन्य अभियान क्षेत्र में वर्तमान स्थिति का जिक्र किया, जो संघर्ष को हल करने के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक कदम उठाने से कीव के स्पष्ट इनकार की ओर इशारा करता है। " विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति का अपना आह्वान दोहराया। हम आपको याद दिला दें कि भारत ने अभी तक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है और वह कहता रहा है कि संकट को कूटनीति एवं बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। क्रेमलिन के बयान में यह भी कहा गया कि मोदी ने पुतिन को अपनी हालिया अमेरिका यात्रा और राष्ट्रपति जो. बाइडन के साथ बातचीत के बारे में बताया। क्रेमलिन ने कहा, 'नरेन्द्र मोदी ने उन्हें (पुतिन को) अपने अंतरराष्ट्रीय संपर्कों के बारे में बताया, जिसमें उनकी हालिया वाशिंगटन यात्रा भी शामिल है। ' दोनों नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और जी20 के भीतर अपने देशों के सहयोग पर भी चर्चा की। क्रेमलिन के बयान में यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते वैगनर समूह द्वारा कुछ समय के लिए किए गए सशस्त्र विद्रोह के संबंध में रूसी नेतृत्व द्वारा उठाए गए कदमों के प्रति समर्थन व्यक्त किया। इसमें कहा गया, "24 जून के घटनाक्रम के संबंध में, नरेन्द्र मोदी ने कानून और व्यवस्था की रक्षा करने तथा देश में स्थिरता और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूसी अधिकारियों की ठोस कार्रवाई के प्रति समर्थन व्यक्त किया। " येवगेनी प्रिगोझिन और उनके वैगनर समूह द्वारा किया गया विद्रोह राष्ट्रपति पुतिन के लिए उनके दो दशकों से अधिक के शासन में सबसे गंभीर चुनौती बन सकता था। इस घटनाक्रम से पुतिन के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो गए। वैगनर समूह ने रोस्तोव-ऑन-डॉन शहर पर कब्ज़ा कर लिया था। विद्रोह तब समाप्त हुआ जब प्रिगोझिन ने मॉस्को की तरफ बढ़ रहे अपने सैनिकों को वापस लौटने का आदेश दिया। प्रश्न-3. इजराइल और फिलस्तीन एक बार फिर मरने मारने पर आमादा हैं। इस बार के संघर्ष को कैसे देखते हैं आप? उत्तर- इजराइल और फिलस्तीन के बीच विवाद आरम्भकाल से ही रहा है। इजराइल की शुरू से ही रणनीति रही है कि हर हमले का तगड़ा जवाब देकर ही दुश्मन को सबक सिखाया जा सकता है। अभी की जो स्थिति है वह कोई अलग नहीं है। इन दोनों देशों के बीच इस तरह का विवाद चलता ही रहेगा। ना फिलस्तीन अपनी हरकतों से बाज आयेगा और ना ही इजराइल सबक सिखाने का अवसर छोड़ेगा। इस संघर्ष के बने रहने का एक कारण यह भी है कि कुछ ताकतें हैं जोकि इजराइल की तरक्की और उसकी अमेरिका से घनिष्ठता से जलती हैं इसलिए वह इजराइल को नुकसान पहुँचाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। प्रश्न-4. फ्रांस में जो बवाल हुआ, वह विश्व के अन्य देशों के लिए क्या संदेश है? उत्तर- फ्रांस में जो कुछ हुआ उसकी विश्व में किसी ने कल्पना नहीं की होगी। एक खूबसूरत और समृद्ध देश को जिस तरह आग के हवाले किया गया वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। फ्रांस में हिंसा और आगजनी की जो खबरें आ रही हैं उससे पूरी दुनिया हैरान है। हाल ही में यहां पेंशन सुधारों के विरोध में लंबे समय तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे और कुछ दिनों पहले ही शांति हुई थी। लेकिन अब एक नाबालिग लड़के के खिलाफ पुलिस की निर्मम कार्रवाई ने लोगों को उद्वेलित कर दिया है जिससे वह सड़कों पर उतर कर हंगामा कर रहे हैं। लेकिन इस हंगामे ने दुनिया को इस बात के लिए सतर्क कर दिया है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में रिफ्यूजियों को अपने यहां बसने देना चाहिए? क्या शरणार्थियों को ज्यादा अधिकार और सुविधाएं दी जानी चाहिए? फ्रांस में बाहर से आकर बसे लोगों ने जिस तरह देश में हंगामा किया वह पूरी दुनिया के लिए बड़ा संदेश है। फ्रांस में कुछ लोगों ने मारे गये युवक के परिजनों के लिए चंदा इकट्ठा किया मगर उससे ज्यादा राशि उन लोगों ने एकत्रित कर ली जिन्होंने कानून तोड़ने वाले युवक को गोली मारने वाले पुलिसकर्मी के परिजनों की सहायता के लिए अभियान चलाया था। यह संकेत है कि फ्रांस की जनता कानून का शासन चाहती है। इसके अलावा जिस तरह फ्रांस की आम जनता ने हंगामा करने वालों का विरोध सड़कों पर उतर कर किया उससे यह भी प्रदर्शित हुआ कि देश के मूल निवासी एकजुट हैं। प्रश्न-5. कनाडा और अमेरिका में जिस तरह खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ रही हैं, खालिस्तान फ्रीडम रैली निकाली जा रही है। भारतीय दूतावासों, मिशनों को निशाना बनाया जा रहा है। उसे कैसे देखते हैं आप? उत्तर- कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन में जो लोग खालिस्तान समर्थकों को पाल पोस रहे हैं उन्हें समझना होगा कि यह लोग भारत का तो कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे अपितु ये लोग एक दिन उस देश को ही नुकसान पहुँचाने में जरूरत सफल हो जायेंगे। जहां तक इस मुद्दे पर भारत का रुख है तो सरकार ने कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों में खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों एवं हिंसा भड़काने की घटनाओं को 'अस्वीकार्य' करार देते हुए कहा है कि दूसरे देशों में राजनयिकों, अपने मिशन की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और मेजबान देश से वियना संधि के अनुरूप दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा, "भारतीय राजनयिकों, मिशन के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले पोस्टर अस्वीकार्य हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है और हमने संबंधित देशों के समक्ष इस विषय को उठाया है। " उन्होंने कहा, "हमारी अपेक्षा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आतंकवादी, चरमपंथी तत्वों को कोई स्थान नहीं दिया जाए। " बागची ने कहा कि राजनयिकों, वाणिज्य दूतावासों, उच्चायोगों को लेकर पोस्टर लगाने का मुद्दा काफी गंभीर है, जिनमें हिंसा के लिए उकसाने, धमकी देने की बात की गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया से बात की गई है, कुछ जगहों से तत्काल कार्रवाई की सूचना मिली है और कुछ स्थानों को लेकर अपेक्षा है कि कार्रवाई की जायेगी। बागची ने कहा कि अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले की घटना को भी वहां के प्रशासन के समक्ष उठाया गया और वहां से उच्च स्तर पर प्रतिक्रिया आई है तथा ऐसे कृत्य को उन्होंने आपराधिक बताया है। कुछ दिन पहले ही भारत ने नयी दिल्ली में कनाडा के उच्चायुक्त को तलब किया था और कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर एक 'डिमार्शे' (आपत्ति जताने वाला पत्र) जारी किया था। समझा जाता है कि भारत ने कनाडा के अधिकारियों से आठ जून को कनाडा में भारतीय मिशन के बाहर खालिस्तान समर्थक समूहों के विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर उचित कदम उठाने को भी कहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नहीं है बल्कि इनके नाम पर ही आतंकवादी तत्वों, अलगाववादी तत्वों को मौका मिल रहा है। उन्होंने कहा, "हम जानना चाहते हैं कि देशों ने क्या कार्रवाई की या क्या कार्रवाई की जा रही है क्योंकि पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। " बागची ने कहा, "हम ऐसे हमलों या धमकियों को काफी गंभीरता से लेते हैं और जो भी कार्रवाई जरूरी है, हम करते रहेंगे। " उन्होंने कहा कि हमारा दूतावास ऐसी घटनाओं पर नजर बनाए हुए है और स्थानीय प्रशासन के सम्पर्क में है। प्रवक्ता ने कहा कि मेजबान देश से वियना संधि के अनुरूप दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है। भारत ने सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर खालिस्तान समर्थकों के हमले का मामला भी अमेरिका के साथ उठाया है। यह कुछ महीनों के भीतर सैन फ्रांसिस्को में राजनयिक मिशन पर हमले की ऐसी दूसरी घटना है। खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने 19 मार्च को सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला कर तोड़फोड़ की थी। खालिस्तान समर्थकों ने दो जुलाई को एक वीडियो ट्विटर पर साझा किया, जिसमें सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में कुछ लोगों को आगजनी की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है। पिछले महीने, ब्रैम्पटन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी एक झांकी निकाले जाने की घटना के दृश्य सोशल मीडिया पर आने के बाद भारत ने कनाडा को चेतावनी देते हुए कहा था कि द्विपक्षीय संबंधों के लिए यह ठीक नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "स्पष्ट रूप से हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वोट बैंक की राजनीति के अलावा कोई ऐसा क्यों करेगा। " इसी सप्ताह सोमवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि 'चरमपंथी, अतिवादी' खालिस्तानी सोच भारत या अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया जैसे सहयोगी देशों के लिए ठीक नहीं है। इसके अलावा, कनाडा ने सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे पोस्टरों में भारतीय अधिकारियों का नाम होने पर भारत को उसके राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया है और खालिस्तान की एक रैली से पहले प्रसारित हो रही "प्रचारात्मक सामग्री" को "अस्वीकार्य" बताया है। कनाडा की विदेश मंत्री मिलानी जॉली का यह बयान तब आया है जब एक दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने कनाडा, ब्रिटेन तथा अमेरिका जैसे अपने साझेदार देशों को "चरमपंथी खालिस्तानी विचारधारा" को तवज्जो न देने के लिए कहा है क्योंकि यह उनके रिश्तों के लिए "सही नहीं" है। राजनयिकों की सुरक्षा के लिए कनाडा की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए जॉली ने वियना संधि के प्रति देश के अनुपालन का उल्लेख किया।
4aa56d53f5a0cfa9d340770e5f768880b412325d
web
राम वर्मा की एक और किताब आई है. इसके पहले उनकी जो किताब आई थी उसने हरियाणा की स्थापना से लेकर ओम प्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्री बनने तक के काल की कहानी को निस्पृह भाव से लिख दिया था. उसको कई बार पढ़ा. बंसी लाल ,देवी लाल और भजन लाल के साथ एक आई ए एस अफसर के रूप में काम करने के अपने अनुभव को उन्होंने कथावाचक के रूप में लिखा था उससे हरियाणा की राजनीति की बारीकियां समझने में बहुत मदद मिली थी. उनकी अपनी यादें हैं उस किताब में लेकिन वह हरियाणा के समकालीन इतिहास की एक बानगी भी है. अंग्रेज़ी गद्य की खूबसूरत क्षमताओं को उनकी सभी किताबों में देखा जा सकता है. शायद इतनी अच्छी अंग्रेज़ी इसलिए लिखते हैं कि उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में उन दौर में एम ए किया था जब उस महान शिक्षा संस्था का स्वर्ण युग था. अब उनकी यादों की एक नई किताब आयी है जिसमें उन्होंने अपने परिवार के बारे में लिखा है. गिल्ली डंडा टू गोल्फ (Gilli danda to Golf) एक ऐसी किताब है जो इंसानी क्षमताओं का आइना है. समाज के सबसे गरीब तबके में रहने वाला एक लड़का किस तरह से आई ए एस बनकर हरियाणा का मुख्य सचिव बनता है ,वह इस किताब में दर्ज है. एक दृढप्रतिज्ञ मां किस तरह से अपने बच्चों के भविष्य को दिशा देती है ,वह इस किताब का स्थाई भाव है. Gilli danda to Golf हरियाणा के मुख्य सचिव रह चुके आईएएस अफसर ,राम वर्मा के बचपन से लेकर आज तक की यादों पर एक विहंगम दृष्टि की किताब है. एक ऐसी किताब, जिसको हर उस बच्चे के मातापिता को पढ़ना चाहिए जिसके पास अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के साधन न हों. राजस्थान के सीकर जिले के एक छोटे से कस्बे में ईंट और पत्थर का काम करने वालों के परिवार में जन्मे राम वर्मा ने किस तरह से अपने बचपन की मुश्किलें तय कीं, किस तरह अपने आस पास के माहौल में रहते हुए बड़े सपने देखे , किस तरह से आसपास के संपन्न लोगों के तानों को नज़रंदाज़ किया वह सब इस करीब 350 पृष्ठों की किताब की कहानी है. किताब का पहला अध्याय उनकी मां के बारे में है. उनकी मां, राम प्यारी की शादी करीब १५ साल की उम्र में सीकर के श्री माधोपुर के राम चन्द्र से हो गयी थी. उन दिनों श्री माधोपुर जयपुर रियासत का हिस्सा था. शादी के कुछ दिन बाद ही उनकी मां के पहले पति की मृत्यु हो गयी. उन दिनों उनके समुदाय में रिवाज़ था कि अगर किसी विवाहित व्यक्ति की मृत्यु हो जाय तो उसके भाई से उसकी पत्नी को ब्याह दिया जाता था. लेकिन स्व राम चन्द्र का कोई भाई नहीं था. आसपास भी उस उम्र की रेंज में कोई नहीं अविवाहित नवयुवक नहीं था. खानदान के बुजर्गों ने पड़ोस के एक अन्य गाँव से अपनी बिरादरी के एक १८ साल के व्यक्ति के परिवार से संपर्क किया और उनके साथ उस बाल विधवा का विवाह कर दिया गया. उनका नाम भूरामल था लेकिन शादी के बाद उनको राम चन्द्र नाम दे दिया गया. भूरामल अब राम चन्द्र हो गए थे लेकिन वे राजगीरी का काम नहीं जानते थे. बाद में उन्होंने काम सीखा और राजगीरी का काम करने लगे. यह १९३० के बाद का भारत है. महात्मा गांधी का आन्दोलन चल रहा था लेकिन श्री माधोपुर में किसी को उसकी जानकारी नहीं थी. राम वर्मा की मां की मुसीबतों की कहानी तब से शुरू हुई जब वे बीस साल की भी नहीं हुयी थी. उनके गर्भधारण ,गर्भपात ,बच्चे की मृत्यु की मुसीबतें आती रहीं लेकिन उनमें हिम्मत इतनी थी कि कभी हार नहीं मानी. उनके पति करीब आठ महीने इंदौर या किसी अन्य शहर में रहते थे. वहां ईंट गारे के काम से उनको कमाई होती थी. चार महीने के लिए गाँव आते थे. दो रूपये रोज़ की मजदूरी पर काम करते थे ,एक रूपये खर्च करते और एक रूपए बचाकर अपने परिवार के लिए रखते थे. उनकी मां ने एक बेटी और और दो बेटों को जन्म दिया. सबसे छोटे बेटे का नाम राम सहाय रखा गया जो बाद में राम वर्मा के नाम से जाने गए. राम सहाय नाम के एक ठेकेदार भी थोडा संपन्न व्यक्ति थे. शायद उनके ही नाम से प्रभावित होकर यह नाम दिया गया था. राम वर्मा के पिताजी तो ज़्यादातर बाहर ही रहते थे. उनकी माँ ही बच्चों की सब कुछ थीं. इंदौर की कमाई से एक गाय खरीदी गयी और उसकी सेवा में उनकी मां लगी रहती थीं. खेत तो था नहीं. किसी से कुछ खेत किराए पर लिया गया और गाय के लिये चारा उसमें उगाया जाता था. वे रोज़ सुबह खेत पर जाती थीं और शाम को लौटते हुए सर पर चारे का बोझ लादकर लाती थीं. फसल की कटाई के समय उनके पति भी आ जाते थे. कभी कभी भारी बारिश में फसल तबाह हो जाती थी लेकिन उनकी मां कहती थीं कि कोई बात नहीं , हमारा नुकसान हो गया तो हो गया लेकिन बारिश ज़मीन के लिए तो अच्छी है. इसी माहौल में उन्होंने अपने तीनों बच्चों को पाला पोसा और उनको स्वास्थय वर्धक खाना खिलाकर तैयार किया. छः साल की उम्र में बालक राम सहाय के पिताजी उनको लेकर नाम लिखाने के लिए स्कूल गए. उनकी उम्र छः से भी कम थी लेकिन नाम लिखने वाले शिक्षक ने सात साल से अधिक लिख दिया. उनके भाई भागीरथ पहले से ही स्कूल में थे. गरीब का बेटा जब उच्च शिक्षा का लक्ष्य रखता है तो आसपास के लोगों को कितनी परेशानी होती है उसका भी ज़िक्र किताब में है. एक बार राम सहाय ठेकेदार ने उनकी माँ से कहा कि लड़कों को काम सिखाइए , पढाई लिखाई का कोई फ़ायदा नहीं है. जब माँ ने कहा कि जितना पढ़ना चाहेंगे उतना पढ़ लेने देते हैं , फिर काम भी कर लेगें. राम सहाय ठेकेदार ने कहा कि पढ़कर कौन कलेक्टर होने जा रहे हैं. विधि की लिखनी का अनुमान उस वक़्त किसी को नहीं था क्योंकि इस बातचीत के दस साल बाद ही बालक राम सहाय आई ए एस में चुन लिए गए और उसके दस साल बाद हरियाणा में भिवानी के कलेक्टर भी हो गए. राजमिस्त्री के परिवार के होने को उन दिनों कमतर माना जाता था इसलिए उन्होंने अपनी जाति को छुपाये ही रखा. कभी अपने को कायस्थ कह दिया तो कभी कुछ और लेकिन कमल यह है कि आज इस किताब में अपनी उन कमजोरियों का भी ठीक से उल्लेख किया गया है. नाम के साथ वर्मा जुड़ने की कहानी भी दिलचस्प है. अपनी ज़िंदगी संवारने वालों में उन्होंने अपनी मां के अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के के मेहरोत्रा को बहुत ही आदर से याद किया है. प्रो के के मेहरोत्रा एक ऐतिहासिक शिक्षक रहे हैं. उर्दू के बहुत बड़े शायर रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी ' से बौद्धिक बातचीत का ज़िक्र अविस्मरणीय है. आज के पचास से भी अधिक साल पहले उनके एक कार्यक्रम मे फ़िराक ने समलैंगिक संबंधों का महिमा मंडान कर दिया था , नतीजा यह हुआ कि इन लोगों का आयोजम संगठन ही टूट का शिकार हो गया. इलाहाबाद में जब राम सहाय वर्मा अपने मित्र राम प्यारे राय के साथ निराला जी के यहाँ गए और वहां से भगाए गए वह भी लिखा है. जोधपुर में प्रो वी वी जॉन को भी सम्मान से याद किया गया है. जयपुर से बी ए पास करने एक बाद इलाहाबाद जाने की घटना का बहुत ही बढ़िया चित्रण है. अपने बड़े भाई भागीरथ और उनकी पत्नी को राम वर्मा बहुत ही सम्मान की नज़र से देखते थे. दर असल श्री माधोपुर छूटने के बाद जयपुर या अलवर में उनके भाई का क्वार्टर ही उनके परिवार का घर था. माँ के सम्मान का ही जलवा है कि जिस लडकी से उनकी शादी उनकी माँ ने तय कर दी थी उसी से शादी किया ,हालांकि आई ए एस में चुन लिए जाने के बाद बड़े बड़े पैसे और सामाजिक रुतबे वाले उनके यहाँ अपनी बच्च्चियों की शादी करना चाहते थे. अपनी यादों को लिखने वाले ज्यादातर लोग जीवन में सफल हो जाने के बाद पुरानी बातों को बहुत संवारकर लिखते हैं लेकिन राम वर्मा की गिल्ली डंडा से गोल्फ के हर वाक्य में इमानदारी की खुशबू है. अपनी बच्चियों ,वंदना ज्योत्सना और उपासना के जन्म से लेकर आज तक के उनके जीवन के बारे में राम वर्मा ने जो लिखा है वह अंग्रेज़ी के बेहतरीन गद्य का उदहारण है. जब संजय गांधी परिवार नियोजन कार्यक्रम ज़ोरों पर था, ' दो या तीन बच्चे , होते हैं घर में अच्छे 'का नारा लग रहा था तो वे भिवानी के डिप्टी कमिश्नर थे. उनकी पत्नी की बड़ी इच्छा थी कि एक बेटा भी हो जाय लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा देकर उनको बुलंदी के उस मुकाम पर पंहुचा दिया जहां बिरले ही पंहुचते हैं. श्री माधोपुर के एक मोहल्ले में गिल्ली डंडा खेलने वाले बच्चे की पंचकुला के गोल्फ कोर्स तक की यात्रा का जो वर्णन इस किताब में हैं वह अद्वितीय है. (डिस्कलेमरःये लेखक के निजी विचार हैं)
f6d1d18a5ad93163ba9d8d1957ae5afa6bd76b9bcbdc42105a6815e43b889356
pdf
इस कार्रवाई में नायक निहाल सिंह ने प्रशंसनीय साहस, दृढ़ निश्चय और उच्चकोटि की कर्तव्य निष्ठा का परिचय दिया। 160. 2743291 नायक शामू भोसले पैराशूट रेजिमेंट ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि - 11 दिसम्बर 1971 ) 11 दिसम्बर, 1971 को नायक शामू भोसल को पूर्वी क्षेत्र में एक रक्षित चौकी पर अधिकार करने का आदेश दिया गया था। उनके सैक्शन के मोर्चे पर पहुंचते ही शत्रु का एक दल चौकी की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दिया । हमारे सैनिकों ने शत्रु के दल पर जब गोलाबारी की, तो शत्रु के लगभग 45 सैनिक नायक भोसले से करीब 15 गज की दूरी पर अपनी गाड़ियों से कूद पड़े और उन्होंने उनके मोर्चे पर आक्रमण कर दिया । अपनी जान की तनिक परवाह न करते हुए उन्होंने अपनी हल्की मशीनगन में शत्रु पर गोलाबारी करके उसके 15 सैनिक मार दिये और बाकी सैनिकों को भगदड़ में पीछे हटना पड़ा । बाद में शत्रु न जबरदस्त जवाबी हमला किया, लेकिन नायक शामू भोसले ने अपने जवानों को इतना जोश दिलाया कि शत्रु का हमला विफल कर दिया गया । इस कार्रवाई के दौरान नायक शामू भोसले ने उच्चकोटि के व्यावसायिक कौशल और नेतृत्व का परिचय दिया । 161 2645231 नायक सरदार खां ग्रनेडियर्स दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध क्रिया के दौरान नायक सरदार खां पूर्वी क्षेत्र में तैनात ग्रेनेडियर्स की एक बटालियन में सेक्शन कमाण्डर थे । इस बटालियन की एक कम्पनी को एक ऐसे इलाके पर अधिकार करने का काम सौंपा गया, जहां दुश्मन भारी तादाद में था। लक्ष्य पर पहुंचने पर इस कम्पनी पर वो बैंकरों से घनी और सही गोलाबारी होने लगी तो नायक सरदार खां अपनी निजी सुरक्षा की परवाह न करके एक बंकर की तरफ लपके और अपनी स्टेन गन से गोली दाग कर उन्होंने दुश्मन के वो सैनिक मार दिये । वे फिर दूसरे अंकर तक रेंग कर पहुंचे और उन्होंने ग्रेनेड फेंक कर दुश्मन की गन को शान्त कर दिया । इस कार्रवाई में नायक सरदार खां ने उच्चकोटि की वीरता, दृढ़ निश्चय और कर्त्तव्य निष्ठा का परिचय दिया। 162 2550753 नायक भास्करन मंद्राम रेजिमेंट ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि -- 12 दिसम्बर 1971) 12 दिसम्बर, 1971 की रात को फिरोजपुर क्षेत्र के एक इलाके में उनकी प्लाट्न जब उस चौकी पर हमला कर रही थी, जो दुश्मन क अधिकार में थी तो नायक भास्करन ने देखा कि दुश्मन की एक मझोली मशीनगन हमारे प्रकार में अड़चन डाल रही है। उन्होंने तुरन्त मशीनगन बंकर पर हमले के लिये अपने संक्शन का नेतृत्व किया। दुश्मन की एक हल्की मशीनगन की गोलाबारी में उनके संक्शन को एक ही जगह पर [PART 1-SEC. J इसके बावजूद नायक भास्करन पात्रु की भारी गोलावारी में नीचे मे रेंग कर आगे बढ़े और उन्होंने एक हथगोला उछाल कर शत्रु की हल्की मशीनगन को तबाह कर दिया। इसके तुरन्त बाद वे मझोली मशीनगन की तरफ लपके और उसे भी शान्त कर दिया। दुश्मन उनकी हरकत से पूरी तरह घबरा गया और चौकी छोड़ कर भाग गया । इस कार्रवाई में नायक भास्करन ने उच्चकोटि की वीरता, दृढ निश्चय और नेतृत्व का परिचय दिया। 163. 3963905 लांस नायक मेघराज सिंह जम्मू और कश्मीर राइफल्स लांस नायक मेघराज सिंह, जम्मू और कश्मीर गइफल्स की एक बटालियन की प्लादून में हल्की मशीनगन टुकड़ी के कमाण्डर थे। यह प्लाटन, पूर्वी क्षेत्र के एक रक्षित इलाके में मोर्चा सम्भाले हुए थे। इस रक्षित इलाके पर अधिकार करने के लिये दुश्मन ने भारी और लगातार सोपखाने की गोलाबारी के साथ तीन बार जबरदस्त हमले किये । हर बार, तोपखाने और छोटे हथियारों की भारी गोलाबारी के बावजूद लांस नायक मेघराज सिंह अपनी हल्की मशीनगन लेकर खाई से बाहर निकल आये और बगल में मोर्खा लेकर उन्होंने प्रहार सैन्य दलों पर कारगर गोलीबारी की, जिसके कारण दुश्मन का प्रहार विफल कर दिया गया । आद्योपान्त, लांस नायक मेघराज सिंह ने उच्चकोटि के साहस, पहलशक्ति और दूढ़ निश्चय का परिचय दिया। 164. 3357370 लांस नायक हरभजन सिंह सिख रेजिमेंट लांस नायक हरभजन सिंह उस कम्पनी के नेतृत्व करन वाले सैक्शन के सेक्शन कमाण्डर थे जिसे पूर्वी क्षेत्र के एक स्थान में दुश्मन के मोर्चों के करीब पहुंचने का कार्य सौंपा गया था। जब उनकी कम्पनी दुश्मन के मोर्चे से केवल 300 गज की दूरी पर रह गई तो उन पर दुश्मन ने छोटे हथियारों में मही और घनी गोलाबारी शुरू कर दी। उन्होंने अपने सैक्शन को इस तरह तैनात किया कि वह दुश्मन के मोर्चों पर छाया रहा। हल्की मशीनगने खुद चलाते हुए लांस नायक हरभजन सिंह बराबर आगे बढ़ रहे थे। इसी समय दुश्मन की मशीनगन की गोली उन्हें लगी। इसके बाबजूद से आगे की तरफ रेंगते रहे और उन्होंने एक अच्छा मोर्चा लेकर दुश्मन के पिल बाक्स को नष्ट कर दिया। इसके बाद अपने धावों की तनिक परवाह किये बिना उन्होंने अपने संक्शन को तैनात किया और यह देखा कि उनके जयान पूरी तरह गड्ढ़ों में छिप गये हैं । इस कार्रवाई में लांस नामक हरभजन सिंह ने उच्चकोटि के वीरता, नेतृत्व और दृढ़ निश्चय का परिचय दिया। 165. 1275280 लांस नायक श्रीपति मिह आर्टिलरी रेजिमेंट ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि 12 दिसम्बर 1971 ) लांस नायक श्रीपति सिंह पश्चिमी क्षेत्र में एक रेडार संस्थापन के बचाव के लिये तैनात वायु रक्षा टुकड़ी की रेडार यूनिट के कमांण्ड र थे । 4 दिसम्बर, 1971 को शत्रु ने एफ PART I-~- SEC. 1] वायुयान द्वारा इस संस्थापन पर हमला कर दिया । लांस नायक श्रीपति सिंह ने अपने रेडार मैट पर हमला करने वाले शके वायुयान पर अपना रहार ट्रैकर देख कर लगाये रखा और इस प्रकार जीवट और दूढ़ता का परिचय दिया। गम्भीर रूप से घायल हो जाने के बावजूद भी वे शत्र के वायान का उस समय तक पीला करते रहे जब तक कि इसे मार नहीं गिराया गया । इस कार्रवाई के दौरान लांस नायक श्रीपति सिंह ने उच्चकोटि की वीरता निश्चय और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया। 166. 4244322 लांस नायक चन्द्रकेत प्रसाद बिहार रेजिमेंट ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि - 16 दिसम्बर 1971 ) दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध की गई मंत्रियाओं के दौरान लांस नायक चन्द्रकेत प्रसाद यादव पूर्वी क्षेत्र में तैनात बिहार रेजिमेंट की एक बटालियन की राकेट लांचर टुकड़ी के कमाण्डर थे । 16 दिसम्बर, 1971 को लगभग 12.15 बजे दुश्मन के एक कान्वाय ने बटालियन द्वारा सड़क पर लगाई गई मकावट को हटाने की कोशिश की । इस कान्वाय में गोलाबारूद से लदी लगभग 10 लारियां थी और इनके अनुरक्षण के लिये एक लारी पर मझोली मशीन गर्न लगी हुई थी और दो शैफी टैक थे । दुश्मन के एक टैंक ने कम्पनी और बटालियन के हैडक्वार्टरों पर गोलीबारी की । लांसनायक यादव ने उस टंक को तबाह करने का जिम्मा खुद लिया जो हमारे सैनिकों को हताहत कर रहा था । वे टैंक के 10 गज पाम तक पहुंच गये और राकेट लांचर से दुश्मन के टेक को नष्ट कर दिया । लांस नायक चन्द्रकेत प्रसाद यादव ने उच्चकोटि की वीरता और निश्चय का परिचय दिया । 167. 4042984 लांस नायक गवर सिंह नेगी गढ़वाल राइफल्स ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि - 17 दिसम्बर 1971 ) 16 / 17 दिसम्बर, 1971 की रात को गढ़वाल राइफल्स की एक बटालियन को पश्चिमी क्षेत्र में दुश्मन के इलाकों पर छापा मारने का आदेश दिया गया था। लक्ष्य की ओर बढ़ते समय जब हमारी बटालियन एक सुरंग क्षेत्र के बीच से गुजर रही थी कि अचानक दो कार्मिक-रोधी सुरंगे फट गई। इसके धमाके से दुश्मन चौकला हो गया और अपने तोपखाने और छोटे हथियारों से हमारे सैन्यदल पर भारी गोलीबारी करने लगा । लांस नायक गवर सिह नेगी छापा मारने वाली सबसे अगली टोली का नेतृत्व कर रहे थे। जब उनकी टोली दुश्मन की बंकर से 100 गज दूर रह गई तो शत्रु ने मझौली मशीनगन से गोलीबारी करना शुरू कर दिया। लांस नायक गवर सिंह नेगी, एक जवान को साथ लेकर दुश्मन के बंकर की ओर रंग कर गये और उसमें ग्रेनेड फेंका। इसके बाद उन्होंने चौकी पर धावा बोल दिया और दुश्मन के दो जवान मार दिये तथा उसकी मशीनगन को अपनी छापामार टोली के लिये ले आये । इस कार्रवाई में, लांस नायक गवर सिंह नेगी ने उच्चकोटि की वीरता, दृढ निश्चय और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया। 5 -201 GI / 72 168. 2959144 लांस नायक विशेश्वर सिंह राजपूत रेजीमेंट ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि - 13 दिसम्बर 1971) 13 दिसम्बर, 1971 को राजपुत रो जिमेंट की एक बटालियन को पूर्वी क्षेत्र में दुश्मन के एक टिकाने पर अधिकार करने के आदेश दिये गये थे । दुश्मन के बगली मशीनगन बंकर से धनी और सही गोलीबारी की वजह से एक कम्पनी का हमला एक गया । स नायक विशेश्वर सिंह कम्पनी के एक संक्शन कमाण्डर थे । उन्ह दुश्मन की मशीनगन को बेअसर करने का कार्य सौपा गया था । ये दुश्मन के धनी गोलीबारी के बावजूद एक बंकर तक रोग वार गये और बंकर में हथगोला फेंका और गन को शान्त कर दिया। इसके पश्चात वे एक दूसरे बंकर की तरफ गये परन्तु इसी बीच उनकी जांष में मशीनगन की गोली लगी और वे गम्भीर रूप से घायल हो गये । बिना झिसके से आगे बढ़ते रहे और उन्होंने दूसरे बंकर को भी बेअसर करने में सफलता पार्ट। जब वे अपनी कम्पनी को लौट रहे थे, उन्होंने अपने एक जवान की सुरंग क्षेत्र में घायल अवस्था में पड़ देखा। अपनी सुरक्षा की तनिक परवाह किये बिना वे सुरंगक्षेत्र में घुस गये और उन्होंने अपने साथी को उठा लिया। जब वे घायल जवान को लेकर लौट रहे थे, उनका पैर एक सूरंग पर पड़ गया और पैर उड़ गया । इस कार्रवाई में लांस नायक विशेश्वर सिंह ने उच्चकोटि की वीरता, दृढ़ निश्चय और कर्त्तव्य निष्ठा का परिचय दिया । 169. 9408833 राइफलमैन धन बहादुर राय गोरखा ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि - 7 दिसम्बर 1971 ) 7 दिसम्बर 1971 को पश्चिमी क्षेत्र में एक इलाके में कार्रवाई करने वाले हमारे सैनिकों पर शत्रु के हवाई जहाजों ने भारी हमला किया । हर उड़ान में शव ने 6 से 8 तक हवाई जहाजों का प्रयोग किया और हमारी सैनिकों पर गोलीयां बरसाई और बमवारी की । इस तरह के एक हवाई हमले के दौरान ग्रहफलमैन धन बहादुर राय अपनी खाई से बाहर निकल आये और अपनी हल्की मशीनगन मे शत्रु के हवाई जहाज पर गोलीबारी की और एक मिग हवाई जहाज को मार गिराया। इस तरह उनकी वजह से दुश्मत्त का एक विमान चालक पकड़ा गया । इस कार्रवाई में, राइफलमैन धन बहादुर राय ने उच्चकोटि की वीरता और व्यावसायिक कौशल का परिचय दिया। 170 10385 60 सवार जय सिंह 9वी हार्स ( पुरस्कार की प्रभावी तिथि- 4 दिसम्बर 1971 ) सवार जय सिंह, 4 दिसम्बर, 1971 को छम्ब क्षेत्र में तैनात रेजिमेंट हैडक्वार्टर के टैंक गनर थे। उनके ट्रैक पर दुश्मन ने लगभग रीटेक स्वक्वाड्रन की मदद से हमला कर दिया। भारी गोलाबारी के वावजूद ये अपनी गन से अचुक गोलीबारी करते रहे और उन्होंने दुश्मन के 7 टी-59 टैंक और 1 रिकायललैस गन नष्ट कर दी । 5 दिसम्बर, 1971 की उन्होंने दुबारा दुश्मन पर गोले वरसाये और उसके दो टैंक ऑर सीन रिफायनलेस गर्ने नष्ट कर दी। इन्हो
cef8c5151e846c5d5449d96f32169cd0821f6890
web
अरुण गोविल (Arun Govil) एक अभिनेता और निर्माता हैं. उन्होंने हिंदी, भोजपुरी, ब्रज भाषा, उड़िया और तेलुगु फिल्मों में अभिनय किया है. उन्हें रामानंद सागर की हिट टेलीविजन सीरीज 'रामायण' में भगवान राम की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है (Arun Govil as Ram in Ramayan). उन्होंने प्रशांत नंदा की फिल्म पहेली (1977) से बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की (Arun Govil Debut in Movies). उनकी फिल्मों में सावन को आने दो (1979), की सांच को आंच नहीं (1979) में कास्ट होने के बाद उन्होंने स्टारडम की ओर कदम बढ़ाया. उन्होंने रामानंद सागर की विक्रम और बेताल (1985) से छोटे पर्दे पर अपनी शुरुआत की. फिर उन्होंने सागर की टीवी धारावाहिक रामायण (1986) में भगवान राम का किरदार निभाय, जिसके लिए उन्होंने 1988 में एक प्रमुख भूमिका श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अपट्रॉन पुरस्कार जीता. उन्होंने सागर की लव कुश और पद्मल्या टेलीफिल्म्स लिमिटेड की जय वीर हनुमान में राम के रूप में अपनी भूमिका दोहराई. विश्वामित्र, हरिश्चंद्र में भी भूमिका निभाई थी. यूगो साको की इंडो-जापानी एनिमेशन फिल्म रामायणः द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम (1992) में राम के रूप में अपनी आवाज दी थी. उन्होंने वी. मधुसूदन राव की लव कुश (1997) में लक्ष्मण की भूमिका भी निभाई (Arun Govil Career). अरुण गोविल का जन्म 12 जनवरी 1952 को मेरठ, उत्तर प्रदेश में हुआ था (Arun Govil Age). अरुण के पिता श्री चंद्र प्रकाश गोविल एक सरकारी अधिकारी थे (Arun Govil Father). अरुण के छह भाई और दो बहनें हैं (Arun Govil Siblings). उनके बड़े भाई विजय गोविल की शादी तबस्सुम से हुई है, जो एक पूर्व बाल अभिनेत्री और दूरदर्शन पर आने वाले फूल खिले हैं गुलशन गुलशन की मेजबानी की थीं. उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की (Arun Govil Education). अरुण गोविल ने अभिनेत्री श्रीलेखा से शादी की (Arun Govil Wife) है और उनके दो बच्चे हैं (Arun Govil Children). फिल्म को हिट कराने के लिए आदिपुरुष के मेकर्स ने थियेटर्स में एक सीट हनुमान जी के लिए रिजर्व रखी. अरुण गोविल ने बताया कि मेकर्स ने ये फैसला क्यों लिया? ओम राउत के निर्देशन में बनी फिल्म आदिपुरुष का जब से टीज़र जारी किया गया है, तब से विवादों में घिरी हुई है. उनके लुक से लेकर डायलॉग और वीएफएक्स तक, फिल्म को हर तरफ से नकारात्मक समीक्षा मिली है. तमाम विवाद के बीच, रामानंद सागर की रामायण में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल ने आजतक के साथ खास बातचीत में आदिपुरुष पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि फिल्म में संवेदनशीलता की कमी है. देखें पूरा इंटरव्यू. अरुण गोविल ने 1987 में आए टीवी शो 'रामायण' में राम की भूमिका निभाकर देशभर में पहचान बनाई थी. आज भी उन्हें राम के नाम से ही जाना जाता है. ऐसे में आज तक से बातचीत के दौरान अरुण गोविल से पूछा गया कि फिल्म 'आदिपुरुष' के विरोध को वह किस तरह देखते हैं? आदिपुरुष में प्रभास ने श्रीराम का किरदार निभाया है, और उन्हें बहुत तारीफ मिल रही है. आलम ये कि कई थिएटर में राघव को देखकर भक्त दर्शकों ने हाथ जोड़ लिए. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भारत में फिल्मों में पहली बार राम का किरदार किसने निभाया था. उस शख्स की दिलचस्प कहानी है. प्रभास और कृति सेनन स्टारर 'आदिपुरुष' कुछ ही दिन में स्क्रीन पर रिलीज होने जा रही है. फिल्म के दोनों ट्रेलर बहुत पसंद गए हैं. डायरेक्टर ओम राउत ने राम कथा को जो विजन दिया है वो बहुत ग्रैंड है. लेकिन इससे कई साल पहले जब 'रामायण' सीरियल स्क्रीन पर आया था, तो उसका संसार जनता के लिए अद्भुत था. तबसे अबतक बहुत कुछ बदल चुका है. दीपिका चिखलिया के लिए सीता के किरदार को आत्मसात कर पाना बहुत मुश्किलों से भरा था. हालांकि आज उन्हें दीपिका के नाम से कम सीता के रोल के लिए ज्यादा पहचाना जाता है. अपने किरदार की तैयारी और उन दिनों की शूटिंग एक्सपीरियंस वो हमसे शेयर करती हैं. प्रसिद्ध कलाकार अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया दरभंगा पहुंचे. यहां उनका स्वागत विधायक संजय सरावगी ने किया. दोनों कलाकारों को देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी और पूरा इलाका जय श्रीराम के नारो से गूंजने लगा. अरुण गोविल ने कहा कि मिथिला में आकर बहुत अच्छा लगता है. इससे भी बड़ी बात यह है कि यह माता सीता की धरती है. 'जुबली' की कहानी हिंदी सिनेमा के गोल्डन एरा के साथ-साथ बंटवारे के मंजर को बयां करती है. सीरीज आपको पुराने दौर की मनमोहक दुनिया में ले जाती है. अगर सिनेमा से प्यार से है और गोल्डन एरा की यादों में गोते लगाने चाहते हैं, 'जुबली' आपके लिए है. इन 36 सालों में आए फर्क की बात करते हुए दीपिका ने कई बातें शेयर की. दीपिका ने बताया कि कैसे अब दोनों के बीच वैसी धार्मिक वाली केमिस्ट्री नहीं है. अब मुस्कुराने के अलावा दीपिका और अरुण ऑनस्क्रीन लड़ते भी हैं, गुस्सा भी करते हैं. फिल्म के बारे में बात करते हुए दीपिका ने कहा कि- ये एक कोर्टरूम ड्रामा है. एंटेरटेनमेंट की दुनिया में इन दिनों काफी कुछ चल रहा है. बीजेपी नेता चित्रा वाघ ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर-एक्ट्रेस उर्फी जावेद पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाया है. वहीं अशनीर ग्रोवर का कहना है कि वह इस बार शार्क टैंक इंडिया का दूसरा सीजन फॉलो नहीं कर रहे हैं. जगद्गुरु रामभद्राचार्य के एक सत्संग में अरुण गोविल पहुंचे थे. यहां अरुण गोविल आते हैं और रामभद्राचार्य के पैर छूते हैं. तभी रामभद्राचार्य उन्हें अपने सीने से लगा लेते हैं. कुछ सेकेंड्स के लिए उन्होंने अरुण गोविल को गले से लगाए रखा. रामभद्राचार्य इस दौरान रोने लगे, वे काफी भावुक नजर आए. जगद्गुरु ने अरुण को संवाद सुनाने को कहा. इंडस्ट्री की मशहूर अदाकारा तबस्सुम की शादी अरुण गोविल के बड़े भाई विजय गोविल से हुई थी. एक्ट्रेस का होशांग गोविल नामक बेटा भी है. इस वक्त तबस्सुम के परिवार पर क्या बीत रही होगी. इस बारे में कुछ भी कहना आसान नहीं है. वहीं अब भाभी तबस्सुम के निधन पर अरुण गोविल ने दुख जताया है. अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया झलक दिखला जा डांस बेस्ड रिएलिटी शो पर स्पेशल गेस्ट के तौर पर शामिल हुए. दिवाली के मौके पर दोनों को गेस्ट ऑफ ऑनर बन लोगों को पति-पत्नी का महत्व समझाते दिखाई दिए. यूजर्स कमेंट कर अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. झलक दिखला जा 10 का नया प्रोमो शेयर किया गया है. दिवाली के शुभ अवसर पर दीपिका और अरुण गोविल डांस रियलिटी शो के गेस्ट बनकर आ रहे हैं. झलक दिखला जा पर अरुण गोविल को रावण का वध करते भी देखा जाएगा. प्रोमो में रामायण के दोनों कलाकार सीरियल के सीन को रीक्रिएट करते नजर आए. आदिपुरुष के टीजर पर अरुण गोविल का रिएरक्शन सामने आया है. वो कहते हैं, रामायण और महाभारत जैसे जितने भी ग्रंथ और शास्त्र हैं, ये हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर है. ये हमारी संस्कृति है, जड़ है. सारी मानव सभ्यता के लिये एक नीव सामान है. ना नींव को हिला सकते हैं और ना ही जड़ को. रामायण में अरुण गोविल ने राम का किरदार 35 साल पहले निभाया था. तब भी एक्टर को लोग पूजते थे और आज भी. पिछले दिनों एयरपोर्ट पर एक महिला ने एक्टर के पैर छुए थे. इस पर अरुण गोविल ने कहा- ये उन भक्तों के मन में आता है कि इस आदमी के पांव छूने हैं, मेरा क्या रिएक्शन होना चाहिए? रामायण में अरुण गोविल ने प्रभु राम का किरदार निभाया ही नहीं, बल्कि उसे जिया भी है. शो में राम का रोल अदा करते हुए देख लोग उन्हें सच का भगवान समझने लगे थे. फैंस के बीच अरुण गोविल का जलवा आज भी कायम है. इसलिये एयरपोर्ट पर उन्हें देखकर एक महिला इमोशनल हो गई और पैर छुए.
8a3128238f3024866b2b834dc928e9b0edc72c74989c2033b935adc8aac306db
pdf
(निचली तरफ) से आये थे। और उर्वा, दोनों राहों से आते थे (कभी इस से और कभी उस से) और उर्वा अक्सर समय कुदा की तरफ (निचले हिस्सा) से दाख़िल होते थे। और यह सम्त (रुख) उन की मन्ज़िल से ज़्यादा क़रीब था । 1869: - आइशा रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मक्का में दाख़िल होते तो उस की बालाई जानिब से तशरीफ़ लाते (उसी रास्ते में मक्का का मशहूर (कब्रस्तान है और उस तरफ से आने में आप को आसानी थी। और वापसी के लिये) निचले हिस्से की तरफ से निकलते थे (और यही राह है जिस में आज कल "जरवल" का स्थान आता है) फाइदाः- आने जाने में राह बदलने में यह हिकमत होगी कि क़ियामत के दिन ज़्यादा से ज़्यादा रास्ते गवाही देंगे, जैसे औद वग़ैरह में) । बाब बैतुल्लाह को देख कर हाथ बुलन्द करना । } 1870 :- जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि· से पूछा गया कि आदमी बैतुल्लाह को देख कर हाथ उठाए (या नहीं) उन्होंने कहाः मैं ने यहूदियों के अलावा किसी को ऐसा करते हुये नहीं देखा (वह लोग बैतुल मुक़द्दस को देख कर हाथ उठाते हैं) और हम ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज्ज किया था तो आप ने ऐसा नहीं किया था । फाइदा :- हाथ उठाने के संबन्ध में समस्त रिवायतें हद दर्जा जओफ़ हैं, इसलिये हाथ उठाना सहीह नहीं है। 1871 :- अबू हुरैरा रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मक्का में दाखिल हुये तो बैतुल्लाह का तवाफ़ किया और मुक़ामे- इब्राहीम के पीछे दो रक्अत पढ़ीं, यानी फुत्ह मक्का वाले दिन । 1872 :- अबू हुरैरा रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाये और मक्का में प्रवेश किया, फिर हजरे-अस्वद के पास जा कर उसे बोसा दिया, फिर बैतुल्लाह का तवाफ़ किया, फिर सफा की तरफ आये और उस से ऊपर चढ़ गये जहाँ से बैतुल्लाह शरीफ़ नज़र आ रहा था, फिर आप ने अपने दोनों हाथों को उठा लिया और अल्लाह का ज़िक्र और दुआ करते रहे जितना अल्लह ने चाहा। उस समय अन्सार आप के साथ थे। हदीस के रावी हाशिम ने कहाः कि आप ने दुआ फरमायी, अल्लाह की हम्द की और जो चाहा दुआ की। फाइदाः- सफा - मर्वा पर चढ़ कर बैतुल्लाह की तरफ मुँह कर के हाथ उठा कर दुआ करना सुन्नत है। यह हाथ उठाना बैतुल्लाह को देख कर नहीं, बल्कि दुआ के लिये है। बाब {हजरे-अस्वद को बोसा देना । } 1873 : - उमर रज़ि• से रिवायत है कि वह हजरे अस्वद के पास आये और उस को चूमा, फिर कहाः मैं जानता हूँ कि तू केवल एक पत्थर है, न नफा दे सकता है और न नुक्सान पहुँचा सकता है। अगर मैं ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बोसा लेते न देखा होता तो मैं तुम्हारा बोसा न लेता। बाब बैतुल्लाह के कोनों को हाथ लगाने का बयान । } 1874 :- इब्ने उमर रज़ि० सेरिवायत है कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा कि आप बैतुल्लाह के केवल दो यमानी उर्कान ही को हाथ लगाते थे। 1875 : - इब्ने उमर रजि० को आइशा रज़ि० का यह बयान बताया गया कि हिज्र का कुछ हिस्सा बैतुल्लाह में से है, तो उन्होंने कहाः अल्लाह की कसम ! मेरा ख़याल है कि आइशा रज़ि· ने अगर यह बात नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुनी है तो मैं समझता हूँ कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी शामी अर्कान को छूना केवल इसलिये तर्क फ़रमाया था कि यह बैतुल्लाह की अस्ल बुनियादों पर नहीं है । और लोग भी हिज्र (हतीम) के बाहर से इसी कारण तवाफ़ करते हैं। फाइदा :- अगर हिज्र और हतीम के अन्दर की तरफ से तवाफ़ किया जाये तो पूरे बैतुल्लाह का तवाफ न होगा। इसलिये उस का तवाफ़ बाहर से करना ज़रूरी है। 1876 :- इब्ने उमर रज़ि· से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तवाफ़ के किसी चक्कर में भी रुकने यमानी और हजरे अस्वद का इस्तेलाम करना ( छूना) नहीं छोड़ते थे। इमाम नाफे ने कहा कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि· भी ऐसे ही किया करते थे । फाइदा :- हजरे अस्वद को चूमना, या हाथ लगा कर चूमना, या छड़ी से छू कर उसे चूमना चाहिये, या मज़ीद परेशानी में केवल हाथ का इशारा ही काफी हो जाता है। मगर रुकने यमानी को केवल हाथ लगाना सुन्नत है, ने कि हाथ चूमना । बाब { तवाफ़ वाजिब का बयान । } 1877 :- इब्ने अब्बास रज़ि· से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अन्तिम हज्ज में ऊँट पर सवार हो कर तवाफ़ किया । आप अपनी छड़ी से हज़रे अस्वद को छूते थे। 1878 :- अबू तुफ़ैल (आमिर बिन वासला) रज़ि० बयान करते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा आप अपनी सवारी पर सवार होकर बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहे थे। मुहममद बिन राफे ने मज़ीद कहाः फिर आप सफा-मर्वा की तरफ तशरीफ ले गये और अपनी सवारी पर उन के दर्मियान सात चक्कर लगाए । 1880 :- जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि ने बयान किया कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अन्तिम हज्ज में अपनी सवारी पर सवार होकर बैतुल्लाह का तवाफ़ किया और सफ़ा-मर्वा की दौड़ लगाई ताकि लोग आप को देख लें और आप उन से ऊँचे रहें और वह आप से (मसइल) पूछ सकें। क्योंकि लोगों ने आप को घेर रखा था। 1881 : - इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व नम मक्का तशरीफ़ लाये तो आप की तबीअत कुछ ख़राब थी, चुनान्चे आप ने अपनी सवारी पर (सवार होकर ) तवाफ़ किया। आप जब भी हजरे अस्वद के पास आते तो अपनी छड़ी से उस को छूते । फिर जब अपने तवाफ़ से निबट गये तो अपनी ऊँटनी को बैठा दिया और दो रक्अत नमाज़ अदा की। 1882 :- उम्मे सलमा रज़ि० से रिवायत है उन्होंने बयान किया कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहाः मेरी तबीअत ख़राब है। आप ने फरमायाः सवारी पर बैठ कर लोगों के पीछे तवाफ़ कर लो। उन्होंने बयान किया कि मैंने तवाफ़ कर लिया और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस समय बैतुल्लाह के पहलू में नमाज़ पढ़ा रहे थे और आप सूरः तूर की किरात फरमा रहे थे। बाब {तवाफ़ में चादर बदलना । } 1883 : - याला बिन उमय्या ने बयान किया कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस हाल में तवाफ़ किया कि आप इज़तिबाअ किये हुये थे । और चादर हरे रन्ग की थी। फाइदा :- तवाफ़ शुरु करते हुये अपने ऊपर की चादर को दायें बग़ल के नीचे से निकाल कर बाँए कन्धे पर डाल लेना "इज़तिबाअ" कहलाता है । यह अमल केवल तवाफ़े कुद्दूम में साबित है। 1884 : - इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आप के सहाबा ने जिईराना के स्थान से ( एहराम बाँध कर) उम्रा किया तो बैतुल्लाह में उन्होंने रमल किया और अपनी चादरों को अपनी बग़लों के नीचे से बाँए कन्धों पर डाल दिया। फाइदाः- "जिईराना" ताइफ़ की तरफ से मीक़ात का स्थान है। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह उम्रा सन 8 हि० में किया था । बाब {तवाफ़ में रमल का बयान । } 1885 :- अबू तुफैल रज़ि० बयान करते हैं कि मैंने इब्ने अब्बास रजि० से कहाः आप की कौम का है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैतुल्लाह में रमल किया था, और यह कि यह रमल करना सुन्नत है । यह सुन कर वह बोलेः उन्होंने सच कहा है और कुछ ग़लत । मैंने कहाः (क्या मतलब ?) क्या सच कहा और क्या ग़लत? फरमायाः यह तो सच है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रम्ल किया था, मगर सुन्नत कहना ग़लत है। मामला यह है कि कुरैश ने हुदैबिया के ज़माने में कहा था कि मुहम्मद ( नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उन के सहाबा को छोड़ दो, वह खुद ही जानवरों की मौत मर जोयंगे (जैसे कि ऊँट की नाक में कीड़े पड़ जाते हैं और फिर वह मर जाता है) फिर जब उन्होंने आप से सुलह कर ली कि यह लोग अगले वर्ष आयें और मक्का में तीन दिन ठहरें। जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाये तो मुश्रिक लोग अकआन पर्वत की ओर (से देख रहे) थे। तब आप ने अपने सहाबा से फरमायाः बैतुल्लाह के चारों तरफ तीन चक्कर रम्ल करो (यानी कन्धे हिला कर आहिस्ता-आहिस्ता दौड़ो) और यह कोई सुन्नत नहीं है। मैंने कहाः आप की क़ौम का ख़याल है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सफा और मर्वा के दर्मियान दौड़ ऊँट पर सवार होकर लगाई थी और यह भी सुन्नत है। उन्होंने कहाः सच कहा है और कुछ ग़लत भी है। मैंने कहाः क्या सच है और क्या ग़लत? फ़रमायाः सच यह है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सफा और मर्वा की सओ ऊँट पर की थी, मगर यह सुन्नत हो ग़लत है। अस्ल में लोगों को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दूर न किया जाता था और न हटाया जाता था (जबकि वह आप पर टूटे पड़ रहे थे) तो आप ने ऊँट पर सवार होकर सओ की ताकि वह आप की बात सुन सकें, और उन के हाथ आप तक न पहुँच पायें । फाइदाः- रमल को सुन्नत न कहना दुरुस्त नहीं । सुन्नत है लेकिन वाजिब सुन्नत नहीं बल्कि मुस्तहब है। छूट जाये जो हज्ज में कोई फर्क नहीं आयेगा। फिर यह अमल वक़्ती नहीं आज भी जारी है। 1886; - . इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का में तश्रीफ़ लाये जबकि उन लोगों को यसरिब (मदीना) के बुख़ार ने कमज़ोर कर दिया था तो मुश्रिकों ने कहाः तुम्हारे पास एक ऐसी कौम आ रही है जिसे बुख़ार ने निढाल कर दिया है और उन्हें इस से बड़ी तक्लीफ पहुँची है। अल्लाह पाक ने मुश्रिकों की इस बात से जो उन्होंने कही अपने नबी को सूचित कर दिया, पस आप ने उन्हें आदेश किया कि तीन चक्करों में रमल करें और रुक्ने यमानी और हजरे अस्वद के दर्मियान आम रफ़्तार से चलें । तो जब उन्होंने रम्ल करते देखा (कि बड़ी फुती से तवाफ़ कर रहे हैं) तो कहने लगेः इन्हीं लोगों के बारे में तुम कहते हो कि उन को बुख़ार ने कमज़ोर कर दिया है, यह तो हम से अधिक ताकत वाले हैं। इब्ने अब्बास रज़ि· ने कहा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा पर मेहरबानी करते हुये तवाफ़ के सभी चक्करों में रमल का आदेश नहीं दिया। 1887 :- अस्लम अदवी ने बयान किया कि मैंने उमर बिन ख़त्ताब रज़ि० को फरमाते सुना कि आज यह कन्धे हिला हिला कर दौड़ना और उन का नन्गा करना क्यों है ? (अब इस की कोई आवश्यक्ता तो नहीं है) हालाँकि अल्लाह पाक ने इस्लाम को क़वी और मज़बूत बना दिया है और कुफ़ व काफ़िर को यहाँ से निकाल बाहर किया है। इस के बावजूद हम यह काम (रम्ल करना) नहीं छोड़ सकते जो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय काल में किया करते थे । फाइदाः- नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय में कुछ काम वक्ती तौर पर किये गये हों लेकिन हमें भी उन का करना अनिवार्य है चाहे सबब मौजूद हो या न हो। 1888: - आइशा रजि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः बैतुल्लाह का तवाफ़ सफा मर्वा के दर्मियान सओ और शैतान को कन्करियाँ मारना, यह सब अल्लाह की याद को काइम करने के लिये हैं । 1889 : - इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी
78f4b19050de7fb317805f4338475ca4e6ead6851b33062b561a8a1467e7785b
pdf
पाश्चात्य आलोचकों की दृष्टि में वैदिक धर्म के भीतर अनेक वस्तुएँ ऐसी जो भारोपीय धर्म के अविभाज्य अङ्ग और विशिष्टतायें थीं, तथा अनेक बातें हैं जो ईरानी धर्म से भी समता रखती हैं, क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में भारतीय आर्य यूरोपीय आर्यों के साथ भारत के बाहर किसी विशिष्ट स्थान में एक साथ निवास करते थे। इस मूल स्थान के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मत- भिन्नता है । मैक्समूलर के मत में आर्यों की यह आदिभूमि एशिया के मध्य में कहीं पर थी; श्रोदर तथा मेयर के मत में यूरोप और एशिया की सीमा पर तथा बेण्डर के मत में भाषागत साम्य के प्रामाण्य पर 'लिथुएनिया' के समीपस्थ प्रदेश में विद्यमान थी । सर्वाधिक नवीनतम मत डा० गाइल्स का है जिसके अनुसार आर्यों का मूल देश आस्ट्रिया-हङ्गरी में कहीं पर था । आर्य लोगों ने अपने मौलिक धर्म के विविध वैशिष्ट्यों को लेते हुए भारत में नवीन धर्म की स्थापना की। ईरान में भी वे पारसीकों के साथ बहुत दिनों तक रहते थे। फलतः ईरानी धर्म की भी कुछ बातें वैदिक धर्म में मिलती हैं। भारोपीय धर्म की मुख्य बातें जो वैदिक धर्म में उपलब्ध होती हैं, ये हैं :४८१ ( १ ) देव द्युतिमान प्राणी हैं। प्राचीन आर्य भाषाओं में देव-द्योतक समस्त शब्द प्रकाशनार्थक दिव धातु से निष्पन्न हैं । ( २ ) आदिम पिता द्यौः तथा आदिम माता पृथ्वी मानी जाती है। इसीलिये वैदिक द्यौस्पितर = ग्रीक जुएस पेटर = लैटिन जुपिटर; द्यावापृथ्वी ही मानवों के माता-पिता हैं। वरुण की उपासना इसी काल से सम्बद्ध है ( वरुण = ग्रीक यूरेनस ) । (३) अधिकतर उपास्य देवता दो थे - अग्नि तथा उषस । इन दोनों के द्योतक शब्द सर्वत्र समान हैं । अग्नि लैटिन इग्-निस = लिथुएनियन उग्निस = रूसी ओगोन । उषस् = = ग्रीक एआस = लैटिन अरोरा । ( ४ ) ऊर्ध्वलोक के निवासी इन देवों की आराधना हविष्य की आहुति से की जाती थी । ( ५ ) मरणानन्तर जीव की सत्ता में लोगों का दृढ़ विश्वास प्रतीत होता है, क्योंकि भाषागत प्रामाण्य इसका साधक है। आत्मन् = प्राचीन जर्मन आतुम् = जर्मन आतेम् । ( ६ ) भारोपीय देशों में, विशेषतः रूस, लिथुएनिया, ग्रीस, रोम तथा भारतवर्ष में सर्वत्र पितृपूजा एक मान्य धार्मिक संस्था थी । परलोक-गत पितरों का नाम प्रायः सर्वत्र एक समान उपलब्ध होता है। वैदिक पितर्, ग्रीक दिव्य पितृव्य (मूल ग्रीक का हिन्दी अनुवाद), लैटिन दि पेरेन्टीज ( दिव्य पितर ), रूसी दिव्य पितामह एक ही भावना के समर्थक पद हैं और इसीलिए इन देशों में हमारे 'श्राद्ध' के समान ही आदर सत्कार सूचक विधि-विधानों का अनुष्ठान आज भी मिलता है । भारत-पारसीक युग - इस युग के धार्मिक संस्थानों का साम्य उपलब्ध होता है - ( १ ) देवों तथा पितरों की उपासना अबाध गति से ही प्रचलित नहीं थी, प्रत्युत वह विशेष लोकप्रिय भी बन गई थी । भारतीयों तथा पारसीकों के धार्मिक भाव एक समान हैं। पितरों को अवेस्ता में 'फ्रवसी' शब्द के द्वारा अभिहित करते हैं। सोम ( अवस्ता 'हओम' ) के द्वारा देवों की पूजा की जाती थी । यम वैवस्वत ( अवस्ता यिम विवन्त ) इस भूतल के प्रथम पार्थिव है जिन्होंने सोम याग का अनुष्ठान किया था, तथा मृत्यु पाकर परलोक का मार्ग बनाने वाले और स्वर्ग में निवास करने वाले प्रथम मानव हैं ( द्रष्टव्य ऋ १० । १४।१ ) । दोनों के उपास्य देवता एक ही हैं ( वेद भग = अ० भग; वे अर्यमन् एरयमन् ) । बोघाजकोई स्थान में उपलब्ध वरुण, इन्द्र, मित्र तथा नासत्यौ को डा० ओल्डनवर्ग जरथुष्ट्र के द्वारा धर्म-सुधार से पूर्व ईरानी देवता मानते हैं, जब वरुण की प्रधानता थी । पीछे वरुण के स्थान पर 'अहुर मज्दा' को स्थान मिला, तथा अन्य देव अमुरों में परिणत किये गए । ( २ ) ऋत्विज संस्था का उदय - जरथुष्ट्र के द्वारा संस्कृत समाज का प्रधानतम पुरुष था अथवन् = वैदिक अथर्वन्, अर्थात् ऋत्विज । यह समाज भी चार वर्णों में विभक्त था । इओम याग के लिए आठ ऋत्विजों की आवश्यकता होती थी । पत्नी की सहायता से प्रातःकाल अग्नि में होम करना नियम था । 'हओम' के रस को छानने के लिए सोने या चाँदी के वर्तनों का उपयोग किया जाता था । ( ३ ) संघर्ष की कल्पना - जगत् में दो तत्त्व जागरूक माने जाते थे, जो सर्वदा संघर्ष किया करते थे। इनमें से एक है ईश्वर का सत् रूप ( स्तेन्तोमैन्यु ) और दूसरा है असत् रूप ( अंग्रो मैन्यु ) । इनमें सन्तत विरोध तथा संघर्ष इम जगत् में होता है और अन्त में सत् की विजय असत् पर, भलाई की विजय बुराई पर, ज्योति की विजय तम पर होती है और जगत् का मङ्गल सम्पन्न होता है । वैदिक धर्म में इन्द्र वृत्र युद्ध का भो यही रहस्य है। दानव वृत्र पर इन्द्र देव का आक्रमण तथा विजय इसी संघर्ष का द्योतक तथ्य है । ( ४ ) नियम तथा सुव्यवस्था की कल्पना - वैदिक ऋत के समान ही अवेस्ता में 'अश' की कल्पना है । यह भावना पारसियों में भी बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थी, क्योंकि यह 'तेल-एल-अमन' के शिलालेख में ( १४०० १. देखिए डा० तारापुरवाला की 'दि रिलीजन आफ जरथुष्ट्र' नामक पुस्तक ( पृष्ठ ४८-५८), थिलोसोफिकल सोसायटी, भड्यार, १९२६ । ईस्वी पूर्व ) 'अर्त' शब्दधारी नाम मिलते हैं और यह 'अर्त' भी 'अष' का ही प्राचीन द्योतक माना जाता है । ऋत की त्रिविध - आर्थिक, सामाजिक तथा - नैतिक-भावना के समान ही 'अश' की धारणा है। अश की स्तुति में 'यस्न' का कथन है कि जगत् में एक ही पन्थ है और वह है अश का पन्थ; इसके अतिरिक्त अन्य समस्त पन्थ झूठे हैं :अएवो पन्ताओ यो अशहे, वीस्पे अन्यएसां अपन्ताम् । ( ४ ) नैतिक देव की कल्पना - अवेस्ता के सर्वश्रेष्ठ देवता 'अहुर मन्दा ' वैदिक देवता वरुण ( असुरो वरुणः ) ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि दोनों ही ( असुर = असुप्राण; अत एव प्राणदायक, जीवनप्रदाता) उपाधि धारण करते हैं, तथा दोनों 'मित्र' के ओर अविभाज्य रूप से संश्लिष्ट हैं । वेद में 'मित्रावरुणौ' द्वन्द्वदेवता के रूप में गृहीत हैं और उसी प्रकार अवस्ता में अहुरमज्दा का सम्बन्ध 'मिथ' के साथ विद्यमान हैं । इस प्रकार वैदिक धर्म की अनेक मान्य कल्पनायें तथा मान्यतायें भारोपीय धर्म और भारत - ईरानी धर्म के साथ आश्चर्यमय साम्य रखती हैं। हमारी दृष्टि में भारतीयों ने जब इन विभिन्न देशों में अपने उपनिवेश स्थापित किये, तत्र उन देशों में अपने धार्मिक अनुष्ठानों का भी प्रचुर प्रचार किया। इस साम्य का यही रहस्य प्रतीत होता है । देवता का स्वरूप प्रकृति की विचित्र लीलायें मानवमात्र के विषय हैं । इस पृथ्वीतल पर जन्म ग्रहण के समय से वह प्राकृतिक दृश्यों द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ पाता है। प्रातःकाल प्राचीदिशा में कमनीय किरणों को छिटका कर भूतल को काञ्चन- रञ्जित बनानेवाच अग्निपुञ्जमय सूर्यबिम्ब तथा सायंकाल में रजत-रश्मियों को बिखेर कर जगत्-, मण्डल को शीतलता के समुद्र में गोता लगानेवाले सुधाकर का बिम्ब किस मनुष्य के हृदय में कौतुकमय विस्मय उत्पन्न नहीं करते ? वर्षाकालीन नील गगनमण्डल में काले-काले विचित्र बलाहकों की दौड़, उनके पारस्परिक संघर्ष से उत्पन्न कौंधनेवाली बिजुली की लपक तथा कर्ण-कुहरों को बधिर बना देनेवाले गर्जन की गड़गड़ाहट आदि प्राकृतिक दृश्य मनुष्य मात्र के हृदय पर एक विचित्र प्रभाव जमाये विना नहीं रह सकते ? वैदिक आर्यों ने इन प्राकृतिक लीलाओं को सुगमतया समझाने के लिए भिन्न-भिन्न देवताओं की कल्पना की है। यह विश्व । भिन्न भिन्न देवताओं का कोड़ानिकेतन है। वैदिक आर्यों का विश्वास है कि इन्हीं समस्त कार्य संचालित होता है तथा भिन्नभिन्न प्राकृतिक घटनायें उनके ही कारण सम्पन्न होती हैं। पाश्चात्य वैदिक विद्वानों की वैदिक देवताओं के विषय में यही धारणा है कि वे भौतिक जगत् के प्राकृतिक दृश्यों के अधिष्ठाता हैं । भौतिक घटनाओं की उपपत्ति के - लिए उन्हें देवता मान लिया गया है । ऋग्वेद के आदिम काल में बहुल देवताओं की सत्ता मानी जाती थी । जिसे वे पालीथीजम ( बहुदेववाद ) की संज्ञा देते हैं। कालान्तर में जब वैदिक आर्यों का मानसिक विकास हुआ, तब उन्होंने इन बहु देवताओं के अधिपति या प्रधान रूप मे एक देवता-विशेष की कल्पना की । इसी का नाम है- मानोथीजम ( एकेश्वरवाद ) । अतः बहुदेवतावाद के बहुत काल पीछे एकदेववाद का जन्म हुआ और उसके भी अवान्तरकाल में सर्वेश्वरवाद (पैन्थीजम ) की कल्पना की गई। सर्वेश्वरवाद का सूचक पुरुषसूक्त दशम मण्डल का ९० वाँ सूक्त है, जो पाश्चात्य गणना के हिसाब से दशतयी के मण्डलों में सबसे अधिक अर्वाचीन है । वैदिक धर्म की एक विशिष्टता ध्यान देने योग्य है । मन्त्रों के द्वारा की जाती है, वही देवता स्तुतिकाल में जगत् का स्रष्टा तथा संसार का सर्वाधिक उपकारी माना जाता है । स्तावक सूत्रों में वही सब देवताओं में महान् तथा सर्वापेक्षया महत्त्वशाली माना गया है। अन्य देवगण उसी वरुण से उत्पन्न होते हैं तथा उसके रहकर अपने निश्चित कार्य का निर्वाह करते हैं । इन्द्र स्तुतिकाल में सबसे भेष्ट देव माने जाते हैं तथा इतर देवताओं का उद्गम उन्हीं से सम्पन्न होता है । अन्य देवताओं के विषय में भी यही तथ्य मिलता है । यह विशिष्टता वैदिक देवों के विषय में ही पूर्णतया उपलब्ध होती है। मैक्समूलर के अनुसार अति प्राचीन धर्मों का यह एक विशिष्ट प्रकार है। इसकी संज्ञा उनके अनुसार 'हैनोथीजम' या 'केनोथीजम' है । पश्चिमी विद्वानों की सम्मति में वैदिक देवतावाद की उत्पत्ति तथा विकास का यही संक्षिप्त क्रम है, परन्तु हमारी यह दृढ़ धारणा है कि वैदिक धर्म का यह विकासक्रम नितान्त निराधार है । बेद में अद्वैततत्त्व यास्क के अनुसार इस जगत् के मूल में एक ही महत्त्वशालिनी शक्ति विद्यमान है, जो निरतिशय ऐश्वर्यशालिनी होने के कारण 'ईश्वर' कहलाती है । वह एक, अद्वितीय है। उसी एक देवता की बहुत रूपों से स्तुति की जाती है - माहाभाग्याद् देवताया एक एव आत्मा बहुधा स्तूयते । एकस्यात्मनोऽन्ये देवाः प्रत्यङ्गानि भवन्ति ॥ (७/४/८/९ ) अतः यास्क की सम्मति में देवतागण एक ही देवता की भिन्न-भिन्न शक्तियों के प्रतीक हैं। बृहदेवता निरुक्त के कथन का अनुमोदन करती है । सर्वव्यापी सर्वात्मक ब्रह्मसत्ता का निरूपण करना ही ऋग्वेद का प्रधान लक्ष्य है । यही 'कारणसत्ता' कार्यवर्गों में अनुप्रविष्ट होकर सर्वत्र भिन्न-भिन्न आकारों से परिलक्षित हो रही है। प्रकृति की कार्यावली के मूल में एक ही सत्ता है, एक ही नियन्ता है, एक ही देवता वर्तमान है; अन्य सकल देवता इसी मूलभूत सत्ता के विकासमात्र हैं । इस महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त का प्रतिपादन भिन्न-भिन्न प्रकारों से वैदिक ऋषियों ने किया है। ऐतरेय आरण्यक ने स्पष्ट शब्दों में प्रतिपादित किया है कि "एक ही महती सत्ता की उपासना ऋग्वेदी लोग 'उक्थ' में किया करते हैं, उसी को यजुर्वेदी लोग याशिक अग्नि के रूप में उपासना किया करते हैं तथा सामवेदी लोग 'महाव्रत' नामक याग में उसी की उपासना करते हैं।" शंकराचार्य ने १/१/२५ सूत्र के भाग्य में इस मन्त्र का उल्लेख किया है । ऋग्वेद का भी प्रमाण इस विषय में नितान्त सुस्पष्ट है । देवतागण को ऋग्वेद में 'असुर' कहा गया है' । 'असुर' का अर्थ है असुविशिष्ट अथवा प्राणशक्ति सम्पन्न । इन्द्र, वरुण, सविता, उषा आदि देवता असुर हैं । देवताओं को बल-स्वरूप कहा गया है । देवतागण अविनश्वर शक्तिमात्र हैं। वे आतस्थिवांसः ( स्थिर रहनेवाले ), अनन्तासः ( अनन्त ), अजिरासः, विश्वतस्परि ( ५j४७।२ ) कहे गये हैं। वे विश्व के समस्त प्राणियों को व्याकर स्थित रहते हैं। उनके लिए 'सत्य', 'ध्रुव', 'नित्य' प्रभृति शब्दों का प्रयोग किया गया उपलब्ध होता है। इतना ही नहीं, एक समस्त सूक्त ( ऋ० ३/५५ ) मे देवताओं का 'असुरत्व' एक ही माना गया है। 'असुरत्व' का अर्थ है बल या सामर्थ्य । देवताओं के भीतर विद्यमान सामर्थ्य एक ही है, १. बृहदेवता - अध्याय १, श्लोक ६१-६५ । २. एतं ह्येव बहूचा महत्युक्थे मीमांसन्त एतमग्नाबध्वर्यव एवं महाव्रते छन्दोगाः- ऐतरेय आरण्यक - ३।२।३। १२ । ३. तद् देवस्य सवितुः असुरस्य प्रचेतसः - (४/५३19 ) । ( पर्जन्यः ) असुरः पिता नः - ( ५१८३।६) । मह बिष्णोः ( ईन्द्रस्य ) असुरस्य नामा - ( ३।३८।४) ।
daa3570605bf5a017251ca00513735f0dbe8de447f537a244fe46166d9cd79be
pdf
अपूपैः पायसैर्दुग्धैः सुश्रीतैः सितसंयुतैः । कदलीपनसाद्यैश्च फलैर्मधुभिरेव च नैवेद्यैः प्रीणयेद् देवीं नृत्यगीतादिभिस्तथा । एकरात्रं त्रिरात्रं च पञ्चरात्रं तु सप्त वा ॥३॥ नवरात्रं तथा पक्षं मासं पूर्णादिकं तु वा । वर्ष वा फाल्गुनान्तं वा स्यात् समस्तार्तिनाशनम् ॥४॥ ग्रहाणां प्रातिकूल्येषु दीर्घरोगेषु वैकृते । देवतानामथोत्पाते त्रिविधे त्वभिचारके ॥५॥ दारिद्र्ये विजयप्राप्त्यां दुर्भिक्षे शत्रुपीडने । कृच्छ्रेष्वन्येषु घोरेषु पूजैषा सर्वकामदा ॥६॥ पीठे वा सुसमे कृत्वा वेदिकामण्डपे तु वा । कृत्वैतत् प्रोक्तरूपं च प्रोक्तद्रव्यैस्तथार्चयेत् ॥७॥ नमेरुचम्पक अशोकपुंनागबकुलाम्बुजैः । मल्लिकामालती जातीशतपत्रोत्पलादिभिः ॥८॥ सुगन्धिभिस्तथान्यैश्च पूजयेत् पूर्णमानसः । एतद्विद्या भक्त्युपास्तियुतानन्यांश्च पूजयेत् ॥९॥ अथान्यदपि देवेशि चक्रमद्भुतदर्शनम् । योन्यर्णवाख्यं वनितागर्वपर्वतवज्रकम् ॥१०॥ षड्विंशांगुलमानेन कृत्वा योनिं समे तले । तत्र द्वौंगुलमानेषु सूत्राण्येकादशार्पयेत् ॥११॥ तेनात्र योन्यो जायन्ते त्रिकोणानि शतात्परम् । चत्वारिंशच्च चत्वारि तेषु मन्त्राक्षराणि तु ॥ १२ ॥ प्रादक्षिण्यप्रवेशेन विलिखेत्तु निरन्तरम् । मध्येऽवशिष्टनवके नववर्गसमन्विते ॥१३॥ नाथान् नव लिखेत् पश्चात् साध्याख्यां कर्मसंयुतात् । सर्वत्र विलिखेद्भूमौ भूय आवर्तनेन तु ॥१४॥ अर्धरात्रै तु तां साध्यां स्मरन्मदनवह्निना । दह्यमानां हृतस्वान्तां मस्तकस्थापिताञ्जलिम् ॥१५॥ विकीर्णकेशीमालोललोचन अरुणारुणाम् । वायुप्रेङ्खत्पता कास्थपटोपमकलेवराम् ॥१६॥ विवेकविधुरां मत्तां मानलज्जाभयातिगाम् । चिन्तयन्नचयेच्चक्रं मध्ये देवीं दिगम्बराम् ॥१७॥ जपादाडिमबन्धूककिंशुकाद्यैः समर्चयेत् । अन्यैः सुगन्धिशेफालिकुसुमाद्यैः सुगन्धिभिः ॥१८॥ त्रिसप्तरात्रादायाति प्रोक्तरूपा मदाकुला । यावच्छरीरपातं सा छायेवानपगामिनी ॥ १९ ॥ ॥ भगमालिनी प्रयोगः ॥ सारांश - प्रारंभ में श्लोक १ से ८ तक कामना फल दिया गया है। भगमालिनी का मूल मन्त्र - ऐं भगभुगे भागिनि...... मे वशमानय स्त्रीं ह्र ब्लें ह्रीं । यह मन्त्र एक सौ पैंतीस अक्षर का है। यन्त्र रचना के लिये प्रथम त्रिकोण बनाये फिर षट्कोण बनाकर चार वृत्त बनाये । वृतों के मध्य में ३ वीथिकाऐं (गलीयाँ) बनेगी। त्रिकोण मध्य में ह्रीं मन्त्र के साथ साध्य (अथवा देवता) का नाम लिखें । त्रिकोण के तीनों कोणों में ऐं, भ, ग, ये तीन अक्षर लिखे। षट्कोणों में भु, गे, भ, गि, नी, भ ये छः अक्षर लिखें । पश्चात् वृत्तों की प्रथम वीथिका में दशम अक्षर गो लिखे, फिर दरि भगमाले.......ब्लें ह्रीं ये शेष १२५ वर्ण लिखकर यन्त्र पूरा करें । ॥ भगमालिनी नित्या प्रयोगः ॥ दूसरी विथिका में अं आं.....कं खं.......लं क्षं मातृका वर्ण लिखें। तीसरी वीथिका में अः आः.....कः खः.....लः क्षः इस तरह विसर्ग युत पूरी मातृका लिखें। यदि वीथिका में पूरा मंत्र नही लिखें तथा प्रथम वीथिका मे केवल १० अक्षर लिखें तो १३ यन्त्र बनेंगे । तथा मन्त्र के ५ वर्ण शेष रहेंगे। इन ५ वर्णों के साथ ज झ ठवस (अमृत पंचक) और लिखें तो १४ वे यन्त्र के लिये १० अक्षर प्राप्त हो जायेंगे। पहले की तरह यन्त्र बनायें, वृत्त बनायें। अमृत पंचक ( ज झ ठ व स ) के प्रत्येक वर्ण के साथ १२ स्वर (ॠ, ॠ, लूं, लूंं से हीन) मातृका संयोग करें तो १२×५ = ६० अक्षर प्राप्त होते हैं । यदि विसर्ग युत स्वर ( अ : आ..... ) लिखते हैं तो भी ६० अक्षर होते है। बिन्दु, विसर्ग युत पूरा मंत्र ( ज झ ठव स ) प्रत्येक वर्ण के साथ करने से ६०+६० = १२० अक्षर होते हैं । १६ स्वरो से मन्त्र के प्रत्येक अक्षर के साथ विसर्ग युत होने से १६x५ = ८० तथा बिन्दु युक्त स्वरों से के संयोग से १६x५ = ८० अक्षर का मन्त्र बनता है। स्वरों के बिन्दु युक्त एवं विसर्ग युत पंचाक्षर वर्णों के संयोग से ८०+८० = १६० वर्णाक्षर हुये । १४ वें यन्त्र में वृत्तों की प्रथम विथिका में शेष ५ वर्ण (य, स्त्रीं, ह्र, ब्लूं ह्रीं ) एवं ज, झ, ठ, व, स ये १० अक्षर लिखें । दूसरी विथिका में १२० वर्णाक्षर लिखें तथा तीसरी वीथिका में १६० वर्णाक्षर लिखें । इस तरह यह प्रथम प्रकार के यंत्रो की रचना हुई । अन्य रचना के अनुसार त्रिकोण, वृत्त, अष्टदल के बाद दो वृत्त बनायें। त्रिकोण मध्य मे ह्रीं मन्त्र के साथ साध्य ( देव या व्यक्ति, अथवा भगमालिनी) लिखें। त्रिकोण के अन्दर ३ व बाहर ३ अक्षर मन्त्र के प्रारम्भ के लिखें। पश्चात् अष्टदल में ८ वर्ण (सातवें से १४ वे अक्षर तक) लिखें। पश्चात् वीथिका में मातृका वर्ण लिखें। वृत्त के बाहर मन्त्र के १५ वें अक्षर से शेष अक्षर लिखकर ज, झ, ठ, व, स ये ५ वर्ण लिखकर वेटन करे । भगमालिनी के मन्त्र के वर्गों की संख्या १३५ एवं भगमालिनी के अलावा शेष १४ नित्याओं के वर्णों की संख्या १६१ है। कुल २९६ वर्ण होते हैं । १६० पूर्व वर्णाक्षर मिलाने से ४५६ वर्ण होते हैं। पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण में २० - २० रेखायें खींचने से ३६१ कोष्ठक बनेंगे। बाहरी कोष्ठक से अन्दर की ओर ईशान दिशा से प्रारंभ कर सभी नित्याओं के २९६ मन्त्र वर्ण लिखें। शेष ६५ कोष्ठक बचते है। शेष में पूर्वादि दिशाओं के ४-४ कोष्ठक छोड़ने पर शेष ४९ कोष्ठक बचते हैं। उनके मध्य में बाहर से अन्दर की ओर १४ दल कमल बनायें उसके नीचे दो वृत्त बनायें। उसके मध्य में त्रिकोण बनायें। त्रिकोण में ह्रीं के साथ साध्य का नाम लिखें। यन्त्र मध्य में भगमालिनी का पूजन, १४ कमल दल में शेष १४ नित्याओं की पूजा करें (नित्यक्लिन्ना से विचित्रा, कामेश्वरी तक ) । यन्त्र के बाहर चार द्वार युक्त भूपुर बनायें। उसमें ब्राह्मी, माहेश्वरी, पश्चिम द्वार के दोनों ओर, कौमारी एवं वैष्णवी उत्तर द्वार के दोनों ओर, वाराही, ऐन्द्री पूर्वद्वार के दोनों ओर, चामुण्डा, महाकाली दक्षिण द्वार के दोनों ओर पूजा करे । भूपुर के वायुकोण में वायव्यै नमः, ईशान में ईशान्यै नमः अग्निकोण में अग्नये नमः, नैऋत्य में नैऋत्यै नमः, से पूजन करें। फलश्रुति शेष लोक १ से १९ तक है । ॥ इति भगमालिनी प्रयोगः ॥ ॥ ३. अथ नित्यक्लिन्ना नित्या प्रयोगः ॥ मंत्र- ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे स्वाहा । ऋषिन्यास से विनियोग मंत्र बना लेवे । ऋषिन्यास - शिरसि ब्रह्मणे ऋषये नमः । मुखे विराज छंदसे नमः । हृदये श्री नित्याक्लिन्नानित्यायै देवतायै नमः । गुह्ये ह्रीं बीजाय नमः । पादयोः स्वाहा शक्तयै नमः । नाभौ न्ने कीलकाय नमः । सर्वाभीष्टसिद्धये विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । षडङ्गन्यास - ह्रीं हृदयाय नमः । नित्य शिरसे स्वाहा । क्लिन्ने शिखायै वषट् । मद कवचाय हुं । द्रवे नेत्रत्रयाय वौषट् । स्वाहा अस्त्राय फट् । वर्णन्यास - हृदये ह्रीं नमः । दक्षनेत्रे निं नमः । वामनेत्रे त्यं नमः । दक्षश्रोत्रे क्लिं नमः । वामे वामश्रोत्रे न्नें नमः । दक्षिणनासायां मं नमः । वामनासे दं नमः । त्वचि द्रं नमः । लिङ्गे वें नमः । गुदे स्वां नमः । पादयो हां नमः । । अरुणस्त्रग्विलेपां तां चारु स्मेरमुखाम्बुजान् ॥ धर्माम्बुमौक्तिकैः । विराजमानां मुकुटलसदर्धेन्दु शेखराम् ॥ चतुर्भिर्बाहुभिः पाशमंकुशं पान पात्रकम् । अभयं बिभ्रतीं पद्ममध्यासीनां मदालसाम् ॥ ॥ यंत्रपूजनम् ।। स्वर्णादिपट्ट पर कुंकुमादि से दो शिवा वाला एक चतुरस्त्र बनाये उसके पूर्व पश्चिम में दो द्वार बनाये। मध्य में त्रिकोण बनाकर ऊपर अष्टदल बनाये । त्रिकोण का मुंह नीचे होवे। १. मध्य में देवी के षडङ्गो की हृदयादि न्यास मंत्रों से पूजा करे। देवी के पृष्ठभाग में प्रकाशनंदादि गुरुपंक्ति त्रय का पूजन करे। २. त्रिकोण में ह्रीं श्रीं क्षोभिणी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ह्रीं श्रीं मोहिनी पा. । ह्रीं श्रीं लोला पा. । ३. चतुरस्त्र में देवी अग्रभाग के द्वार के दक्षिण में - ॐ ह्रीं श्रीं मदाबिलापा पादुकां पूजयामि नमः । उत्तरे- ॐ ह्रीं श्रीं मङ्गला पा । ४. अष्टदले- ॐ ह्रीं श्रीं मन्मथार्ता पादुका पू. तर्पयामि नमः । मनस्विनी पा। मोहा पा.। आमोदा पा । मानमयी पा. । माया पा. । मन्दा पा । मनोवती पा.। पश्चात् सर्वविधपूजन प्रयोग करे। गायत्री मन्त्र - नित्यक्लिन्नायै विद्महे नित्यमदद्रवायै धीमहि तन्नो नित्या प्रचोदयात् ॥ ॥ अथ कादीक्रमानुसार नित्यक्लिन्ना प्रयोगविधिः ॥ (श्रीतन्त्रराजे) विद्यायाः साधनं सम्यक्समीहितफलप्रदम् । शृणु देवी प्रवक्ष्यामि प्रयोगार्हो यतो भवेत् ॥१॥ जितेन्द्रियो हविष्याशी त्रिसन्ध्यार्वारतो भवेत् । प्राग्वल्लक्षं तद्दशांशं कुर्याद्धोमं च तर्पणम् ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ मधूकपुष्पैर्मध्वक्तै र्बकुलोत्थैरथापि । चन्द्रचन्दनकस्तूरी तो विद्याप्रयोगार्हो नित्यार्चानिरतस्तथा । सहस्त्रजापी तद्भक्तः कुर्यादुक्तं नचान्यथा पद्मं रक्तैस्त्रिमध्वक्तैर्हो माल्लक्ष्मीमवाप्नुयात् । तथैव कैरवै रक्तैरङ्गनास्तु वशं नयेत् ॥५॥ समानरूपवत्सायाः शुक्लायाः गोः पयःप्लुतैः । मल्लिकामालतीजाती- शतपर्त्रर्हुतैर्भवेत् ॥६॥ कीर्तिविद्याधनारोग्य - सौभाग्य विजयादिकम् । आरग्वधप्रसूनैस्तु क्षौद्राक्तैर्हवनाद्भवेत् ॥७॥ स्वर्णाप्तिः तम्भनं शत्रोः नृपादीनां क्रुधोऽपि च । आज्याक्तैः करवीरोत्थैः प्रसूनैररुणर्हुतैः ॥८॥ रक्ताम्बराणि जनिताभूपामात्यवशं तथा । भूषावाहनवाणिज्य सिद्धयश्चास्य वाञ्छिताः ॥९॥ लवणैः सर्षपैगौरैरितरैर्वाथ होमतः । तत्तैलाक्तैर्निशामध्ये त्वानयेद्वाञ्छितां वधूम् ॥१०॥ तैलाक्तैर्जुहुयात् कृष्णादरपुष्पैर्निशान्तरा । मासादरातिस्तीव्रार्तिर्ज्वरेण भवति ध्रुवम् ॥११॥ आरुष्करघृताभ्यक्तैस्तद्वीजैर्निशि होमतः । शत्रोर्दहे व्रणानि स्युर्दुःसाध्यानि चिकित्सकैः ॥१२॥ भल्लातकतैलम् तद्वीजैर्भल्लातकबीजैः ॥ तैरेव दलिताङ्गस्तु रिपुर्याति यमालयम् । तथा तत्तैलसंसिक्तै र्बीजैरङ्कोलकैरपि ॥१३॥ मरिचैः सर्षपाज्याक्तैर्निशि हौमात्तुः मासतः । वाञ्छितां वनितां कामज्वरार्तामानयेद् ध्रुवम् ॥१४॥ सप्तरात्रं हुतेर्निशि । धैर्यमानकुलैर्नित्यं दुष्प्रापामानयेद्वधूम् ॥ १५ ॥ मरिचैः सर्षपोपेतैः अन्नज्यैर्जुहुयान्नित्यं शतमष्टोत्तरं तु वा शतमष्टोत्तरं तु वा । तेनान्नपूर्णो भवने भोक्ता च भवति प्रिये ॥ १६ ॥ शालीभिराज्ययुक्ताभि र्होमाच्छालीमवाप्नुयात् । मुद्गैर्मुद्गं घृतेराज्यमिष्टैरिष्टं हुतर्भवेत् सार्ध्यक्षवृक्षसम्भूत पिष्टपादरजः कृताम् । राजीमरिचलोणोत्थां पुत्तलीं जुहुयान्निशि ॥ १८ ॥ प्रपदाभ्यां च जङ्घाभ्यां जानुभ्यामूरुयुग्मतः । नाभेरधस्ताद्धृदयाद्भिन्नेना शिरसा च सुतीक्ष्णेन छित्त्वा शस्त्रैण वै क्रमात् । एवं द्वादशधा होमान्नरनारीनराधिपाः ॥ २० ॥ वश्या भवन्ति सप्ताहाज्वरार्ताश्चास्य वाञ्छया । प्रयान्ति निधनं चास्य वाञ्छयानन्ययोगतः ॥ २१ ॥ अत्र साध्यनक्षत्रसम्भूतपिष्ट साध्यपादरजो धूली राजीमरिचलवणैरेभिः पञ्चद्रव्यैरेकैकपुत्तलिका प्राक्प्रयोगोक्तप्रकारेण कृतप्राणप्रतिष्ठा। प्रपदाध्यां १ जङ्घाभ्यां २ जानुभ्यां ३ ऊरुयुग्मतः ४ नाभेरधस्तात् ५ हृदयान्नाभिपर्यन्तं ६ कण्ठतो हृत्पर्यन्त ७ शिरः ८, एवमाहुत्यष्टकम् ॥ तथापिष्टेन गुडयुक्तेन मरिचैर्जीरकैर्युतम् । कृत्वा पुत्तलिकां साध्यनामयुक्तामथो हृदि ॥२२॥
3a6578bf3f20f579a238641be7a40b4aea4254ba
web
('खिचड़ी विप्लव देखा हमने' का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1979 में हुआ था। उसी साल बड़े पुत्र शोभाकांत के साथ नागार्जुन का पहली बार हापुड़ आगमन हुआ। बाद के सालों में हापुड़ उनका महत्वपूर्ण पड़ाव बना। तकरीबन दो हफ्ते बाद कई बार इससे भी अधिक, उनका दूसरे पड़ाव के लिए प्रस्थान होता। इस संस्मरणात्मक आलेख में उनके कृतित्व या विराट व्यक्तित्व को समेटने का किंचिंत भी प्रयास नहीं है। यह सिर्फ कोठार में बंद खण्डित स्मृतियों का कोलाज भर है - झिर्रियों से आती रोशनी की तरह।) सच बतलाओ, नागवार तो नहीं लगती है? घिन तो नहीं आती है? जीने की रेलिंग से टिका बूढ़ा देर तक कुछ इंतज़ार सा करता खड़ा रहता है, फिर अपने छोटे से कमरे में जो जीने की मुकटी का एक हिस्सा है, वापिस लौट जाता है। चारपाई पर बिखरी किताबों और पत्रिकाओं की उठक-पटक करता है, फिर इनसे ऊब पुनः रेलिंग से टिक नीचे बरामदे की और देखने लगता है जहाँ गृहिणी झल्लाहट भरी डाँट-डपट के साथ दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ उलझी है। हमें नाश्ता कब मिलेगा", बूढ़े का धैर्य जवाब दे चुका है। हम भी तो बच्चे हैं... बूढ़े और बच्चों को भूख एक समान सताती है," गुस्से से भरा बूढ़ा पुनः अपने कमरे में वापिस लौट जाता है। जून की तपती दोपहरी। बूढ़ा घर के लॉन में अंजीर के पेड़ के नीचे खड़ा पके हुए अंजीरों की गिनती करने के साथ कौतूहल से पेड़ के ऊपर-नीचे भागती दौड़ती गिलहरियों को कौतुक से देख रहा है। गेट के खडख़ड़ाने का स्वर उसके आनंद में विघ्न पहुंचाता है। गले में झोला लटकाये आगंतुक को अनदेखा-अनसुना करता फिर से अपने खेल में रम जाता है। आंगतुक के प्रति खीज से भरा बूढ़ा धीरे-धीरे सीढिय़ाँ चढऩे लगता है। बूढ़े की ओर विस्मय से सबसे अधिक माँ देखती है। माँ ने कभी उसे नहाने की कौन कहे दाँत साफ करते भी नहीं देखा, फिर भी उसके हाथ में प्रायः जयमाला होती है और रहस्यमयी मुस्कान के साथ उसके कनके फेरता रहता है। बूढ़े का इस घर के वर्ष 1978-79 से आना प्रारंभ हुआ है। अब कोई बरस ऐसा नहीं जब माह-पखवाड़े का आतिथ्य इस घर को उपलब्ध न होता हो। आने में विलम्ब होता है तो सबसे अधिक पूछताछ और व्यग्रता माँ ही दिखाती है। मेरा रोम-रोम आनंद से सराबोर है। सुबह के भ्रमण पर रेल की पटरियों के पार खेत की मेढ़ पर चल रहा था कि कुहासे में मेढ़ के ऊपर घुटनों के बल झुके एक ग्रामीण की तल्लीनता ने बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लिया। मेरी आहट से वह किलका, 'अरे... देखो, इतना अनोखा कीड़ा पहले कभी देखा है!' उसके एकांतिक सुख का एक भागीदार और बना। मुश्किल से अँगूठे के आकार जितना... इन्द्रधनुषी आभा बिखेरता... ऊपरी सिरा टार्च की तरह झिड़प-झिड़प प्रकाश फैलाता जलता-बुझता। ग्रामीण ने सतर्कता से उस नन्हे कीड़े को आम के सूखे पत्ते पर उठाया और फिर धान के छोटे-छोटे पौधों के बीच छोड़ दिया... इस डर से कहीं वहाँ से गुज़रते किसी के पैर असावधानी से उसे आहत न कर दे। मेरा मन इस सुख का विस्तार करने को अकुला रहा है। सबसे उपयुक्त पात्र वही बूढ़ा है जो बरामदे में बैठा अखबार की सुर्खियों पर नजर टिकाये मेरे लौटने की प्रतीक्षा कर रहा है। वह देहाती ऊँचे मन और हृदय का कवि मना रहा होगा। ... हम एक ओछी कविता या कहानी रचकर अपने को तीसमारखाँ समझते हैं। एक बात गाँठ बाँध लो अशोक बाबू... एक किसान जो अपने खेत की श्रम से मेढ़ बनाता है और अच्छी उपज़ को शिशु की तरह संभालता-संवारता है, एक बढ़ई जो निर्दोष मेज-कुर्सी बनाता है या कोई जुलाहा जो धागों में रंग भरता है वह बड़े से बड़े कवि या कहानीकार से बालिश्त भर भी कम नहीं... हम मन में अपनी महानता के कितने मुगालते पाले रहे।" व्यंग्य, तंज और हास्य मिश्रित चिरपरिचित शैली से इतर गंभीर स्वर में बूढ़े ने मुझे समझाया। रात्रि में शयन से पहले बूढ़ा नई आयी पत्रिकाओं और तीन-चार किताबों को चुनकर अपने कमरे में लौटता है। टार्च, ट्रांजिस्ट और थर्मस में गरम पानी अन्य ज़रूरी वस्तुएँ हैं जो हमेशा उसके कमरे में मौजूद रहती हैं। इसी गरम पानी की बदौलत अपने दमे को काबू पाकर रखा है,"बूढ़ा थर्मस की ओर इशारा करता है और पत्रिकाओं के पुलिन्दे के साथ थामी पुस्तकों को दुलार से सहलाता है, नींद न आने पर टार्च की रोशनी में इन्हें उलटता-पलटता इनकी सूँघ लेता रहता हूँ।" ट्रांजिस्टर की सूईं अक्सर बी.बी.सी. से प्रसारित हिन्दी समाचार वाचन को तलाशती-खंगोलती रहती है। अशोक डियर, आशा है- सपरिवार ठीक-ठाक हो। मैं जून-जुलाई (दो महीने) तो इधर ही रहूंगा। किताबें तो छप चुकी होंगी। क्या उन्हें अगस्त में प्रकाशित" करोगे? या, जुलाई में? मैं 15 अगस्त के बाद ही दिल्ली पहुँच पाऊंगा। पत्र इसी प्रकार एक ही लिफाफे के अन्दर तुम भी डालना। शोभाकांत को हर हाल में हापुड़ जमना ही है - मुझे यह प्रस्ताव बेहद पसंद आया। इस प्रस्ताव को 15 अगस्त तक अमल में आ ही जाना है... शोभाकांत 22 तक रायपुर-विदिशा से लौट आएंगे, फिर तुमसे मिलेंगे। दो कमरों वाला मकान खोज लेना... मैं भी अगस्त के अंत तक काम पर बैठ ही जाना चाहता हूँ, 22-5-84 जहरीखाल (पौड़ी गढ़वाल) प्रियवर अशोक, यहाँ 7 को पहुँचे। शोभाकांत बदरीधाम गए हुए हैं। 25 तक लौटेगा। 30 तक दिल्ली पहुंचेगा। हम लगभग 10 अगस्त तक इधर हैं। जून, 20 के बाद 15 रोज के लिए भीतरी हिम-लोक में प्रवेश करेंगे और उधर से ही, ऊपर-ऊपर, रानीखेत-नैनीताल होकर लौट आएंगे 5 जुलाई तक। वर्षा की प्रतीक्षा इधर भी है। पहाड़ों में 'अग्नि-लीला' देख रहे हैं। वाचस् का कालेज यों तो 40 रोज 'विन्टर' में बन्द रहता है, मगर गर्मियों में भी 20 रोज की छुट्टियाँ देता है - 15 जून से 5 जुलाई तक। अमर उजाला, जनसत्ता रोज देखता हूं। आप क्या नैनीताल जाने वाले हो? बूढ़ा इस समय बन्दर बना दोनों छोटे बच्चे चिंकू-मिंकू के हाथ अपनी दाढ़ी पकड़ाते खिलवाड़ कर रहा है - इस दाढ़ी में एक सुरंग का रास्ता है जो एक तालाब के पास ले जाता है। उसमें ढेर सारी मछलियाँ हैं - हिल्सा, झिंगा और भी उनकी बहुत सी सहेलियाँ हैं... वहाँ चाँद, तारे, परियाँ और न जाने क्या-क्या है... बच्चों के साथ खेलते देर हो चली है और अब मन उकताने लगा है - 'सुनो... अब इस सुरंग से एक लंगूर महाशय निकलने वाले हैं... जल्दी से दादी के पास चले जाओ। बच्चे उसका कहा मानते हैं। वह अपने तिलस्मी लबादे की जेब से चश्मा बाहर निकालता है और 'जनसत्ता' के पन्नों में खो जाता है। इस समय उसे कोई व्यवधान पसंद नहीं। साथ चलूँ?" मेरे मुँह से निकलता है। क्या मैं इस घर में कैदी हूँ? अकेला आ-जा नहीं सकता?" कहता बूढ़ा बाहर निकल गया है। मैं अनुमान लगाता रहता हूँ - कहाँ गये होंगे। नफ़ीस आफ़रीदी या प्रभात के घर या शहर का चक्कर लगाने। दो बज रहे हैं और मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कोई आधे घण्टे बाद प्रफ्फुलित बूढ़ा बाबू रिक्शेवाले के साथ नमूदार होते हैं। बाबा भोजन तैयार है," माँ कहती है। हमारा हो गया", कहता बूढ़ा अपने कमरे की सीढिय़ाँ चढऩे लगता है। बाबू के चेहरे पर बूढ़े के स्नेह-दुलार की अनोखी खुशबू मेरे नथुनों में भी प्रवेश करने लगी है। सुदर्शन नारंग के घर छोटी सी बैठकी। बूढ़े के इर्द-गिर्द शहर के सात-आठ रचनाकर्मी बैठे हैं। नफ़ीस अफ़रीदी की उन कविताओं को सुनने के लिए जो उसने मित्रों के नाम लिखी हैं। दो-तीन कविताओं के पाठ के बाद अब वह प्रभात मित्तल के ऊपर लिखी कविता का वाचन प्रारम्भ करते हैं। व्यंग्य और तंज से भरे व्यक्तिगत प्रहार से भरी कविता सुनते हुए प्रभात पहले असहज होते हैं, फिर उनका चेहरा आवेश से तमतमा जाता है, मैं तुम्हें अपना मित्र मानता ही नहीं फिर कैसे मुझ पर कविता लिख सकते हो," कहकर प्रभात तमतमाते हुए कमरे से बाहर निकल लिए। तुम मानते होंगे लेकिन मैं तो तुम्हें अपना मित्र मानता हूँ," हकलाते हुए नफ़ीस सिर्फ इतना कह पाता है। कुछ देर चुप्पी छायी रहती है। किसी को कुछ नहीं सूझ रहा। तभी बूढ़ा नफ़ीस की पीठ थपथपाता हुआ हँसता है, हम तो लिखेंगे... ठसके से लिखेंगे। कोई रुठता है तो हमारे ठेंगे से।" वातावरण को सामान्य होने में अधिक वक्त नहीं लगा। प्रभात की मायूसी दूर हुई। पिछले कुछ दिन से बूढ़े की व्यग्रता बढ़ गयी है। झल्लाहट भी। मौन की अवधि दीर्घ। लगता है कि मन ही मन कुछ पक रहा है। पोस्ट आफिस जाओ तो मेरे लिए दो अन्तर्देशीय लेते आना"। इससे अधिक कोई संवाद नहीं। सुबह उठते ही दोनों अंतरर्देशीय मुझे थमाये, इन्हें आज ही पोस्ट कर देना।" मैंने सरसरी निगाह से पतों पर नजर मारी। किन्हीं बौद्ध भिक्षुओं और मठों के नाम लिखे गये थे। पता - कोलम्बो, श्रीलंका। पिछले दिनों छाया अनमना लुप्त। चेहरा प्रफ्फुलता और उर्जा से भरपूर। ...जानते हो बौद्धधर्म इस मायने में विलक्षण है कि इसे जब चाहो स्वीकार लो और जब चाहो त्याग दो। कोई प्रतिबंध नहीं। मठों में ठहरने से निवास और भोजन से चिंतामुक्त। ...अशोक बाबू इस बार तुम भी साथ चलने का प्रोग्राम बना लो। समुद्री जहाज से चलेंगे - अधिक खर्चा नहीं। सर्दियों की शीत लहर। गुप्प अंधेरा। स्ट्रीट लाइट भी बंद। पिछले दो घण्टे से शहर की बत्ती गुली। प्रभात के घर बैठे समय का आभास नहीं हुआ। घर लौटने में देरी हुई। जैसे ही गेट खोला टार्च ही रोशनी सीधे मेरी आँखों में कौंधी। बूढ़ा बरामदे में बैठा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। मुझे देरी हो गयी," मैंने अपराध-बोध से कहा। मुझे अनसुना करता बूढ़ा लान में छितरायी कुर्सियों के एक-एक कर उठाते हुए बरामदे में लाने लगा। कल वाचस्पति आयेंगे - जहरी खाल (पौढ़ी गढ़वाल) से। उनके साथ कुछ दिनों के लिए पहाड़ों पर भ्रमण। वह मुदित भाव से उनकी प्रतीक्षा की तैयारी में जुट गए हैं। वाचस्पति की धर्मपत्नी शकुंतला (बूढ़े के लिए शकुन) के लिए कोई उपहार लेना है। अफ़रोज़ शाहीन (नफ़ीस आफ़रीदी की पत्नी) का चयन उन्होंने अपनी सहायता के लिए किया है। बूढ़ा फिलहाल वाचस्पति परिवार की चर्चा में उलझे हैं - 'शकुन मूलरूप से थाईलैण्ड की है। मुझे जानने की जिज्ञासा थी कि उसने वाचस्पति से विवाह के लिए इतनी सहजता से अनुमति कैसे दे दी जबकि वाचस्पति पहले से दो पुत्रों के पिता हैं - जानते हो मेरे सवाल के उत्तर में उसने क्या कहा - 'मैं बचपन से ही भरे-पूरे परिवार का सपना देखती थी। हमें इतनी आसानी से भरा-पूरा परिवार उपलब्ध हो रहा है तो खुशी का ठिकाना न रहा। बूढ़ा देर तक उस क्षण का स्मरण करता विस्मित और आनंद से भरा रहा। सामने बैठे बूढे ने ठीक बशीर की तरह खंखारते हुए उच्छवास भरी। देह जब बुढ़ाने लगती है और हाथ-पैर की गति शिथिल तो मन की गति छलाँगें भरती कभी बचपन तो कभी तरुणाई की ओर दौड़ लगाती है। वर्तमान हाथ से फिसता जान पड़ता हैं - बूढ़ा हँसा। आजकल वह कभी तिब्बत-श्रीलंका यात्रा पर तो कभी अपने गाँव (तरौनी, दरभंगा) के पोखरो, की लाल मुँह वाली रेहू, सुरमई छिलकों वाली पोठी कद्वलिया या चुल्हाई कँटीले कण्ठों वाले भूरा-बजरा टेंगरा के साथ किल्लौन करने लगता है। उस क्षण का स्मरण करते हुए बूढ़े की आँखें मुझे नम होती प्रतीत हुई। बूढ़ा मुदित भाव से हँसता रहा। आज वह अपनी सहधर्मिणी यानी अपराजिता देवी के बारे में बतिया रहे हैं - 'तुम्हारे इस बराम्दे में बैठे हुए साइकिल टुनटुनाते सजे-धजे, शोर मचाते, खिलखलाते स्कूल-कॉलेज जाते देखना बहुत अच्छा लगता है। ऐसे ही तरुणाई में अमृतसर के घर की ऊपरी बालकनी से उन्हें तकना बहुत आनंदप्रद होता था। मन में विचार आया जैसी अनुभूति हमें होती है अपराजिता को भी इन स्वस्थ-सुन्दर किशोरों को देखकर होगी। आवाज लगा उसे वहां बुलाया वह रसोई छोड़ भागी-भागी आयी। उसे बालकनी में बैठने और सड़क से गुज़रते उन किशोरों का देखने को कहा। वह अचकचायी कुछ देर बैठी रही फिर फुक्का मारती भीतर चली गयी। उससे वजह पूछी तो उसी तरह रोती बोली, 'उस दिन गाँव में चाची के बहकावे में बिना कुछ बूझे थप्पड़ जड़ दिया था अब परदेस में मुझ पर कलंक लगा छोड़ देना चाहते हो।' मैं अवाक् उसे देखता रह गया। उसका इशारा उस घटना की ओर था जब दो साल बाद गाँव लौटा था और घर में प्रवेश से पहले चाची ने मुझे पकड़ लिया था - 'सुनो रे! कुछ पता भी है तुम्हें, तुम्हारे पीछे बहुरिया पोखर पर नहाने जाती है अैर जिस-तिस को बेहयारे से अपने अंग दिखाती है।' मैंने क्रोध में बिना कुछ जाने घर में घुसते ही मुँह पर दो तमाचे जड़ दिए थे। उस दिन का स्मरण कर बूढ़े की आँखें आर्द्र हो आईं। वर्ष 1986 में उनका पूर्व निर्धारित कार्यक्रम स्थगित हुआ। पता चला वह गम्भीर बीमारी से ग्रस्त दरभंगा के सरकारी अस्पताल में भर्ती हो गया है। दो वर्ष के अन्तराल बाद जब आगमन हुआ तो शिथिल और ढलके प्रतीत हुए। गरम पाजामे का नाड़ा भी कई बार खुला रह जाता। बावजूद इसके हास-परिहास और कथन में व्यंग्य-वक्रोक्ति में कोई न्यूनता नहीं। 'अस्पताल से जैसे ही सूचना प्रस्तारित हुई कि उन्हें ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत होगी तो पूरा अस्पताल यह देख अचम्भित कि देखते-देखते छात्रों की अपना 'रक्तदान' करने की कतार लग गई। हमने डॉक्टर से पूछा - 'क्या हमें इतना ख़ून चढ़ाया जाएगा?' डाक्टर बोला - 'आपके शरीर में 'ब्लज प्लाज्मा' चढ़ाया जाएगा।' 'ब्लज प्लाजमा यह क्या होता है।' हमने डॉक्टर से पूछा तो उसने हमें समझाया - 'जैसे दूध पर मलाई आती है। इसे आप ख़ून की मलाई समझिए, कहने के साथ बूढ़ा खुलकर हँसा। दूसरों की जुबानी बूढ़े की चन्द दास्तानें : दिल्ली के रफ़ी मार्ग स्थित आई.एन.ए. बिल्डिंग में 'आनन्द बाज़ार पत्रिका' का गेस्ट हाउस। अक्षय उपाध्याय सुरेन्द्र प्रताप सिंह के साथ आए थे। उनके साथ सुरापान करते कब बूढ़े का ज़िक्र चला आया, इसका स्मरण नहीं। प्रीतीश नंदी के हवाले से सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि प्रीतीश मछुआरों की बस्ती के पास प्रातः भ्रमण पर निकले तो सामने से आते बूढ़े को, जिसने गमछा सिर पर लपेटा हुआ था, देख उन्हें परिचित चेहरे का भ्रम हुआ। जब उन्होंने उसे आवाज लगाई तो नजदीक आ उसका हाथ पकड़ उन्हें डपट दिया - 'यहाँ से तुरन्त फूटो। मैं यहाँ गूँगा बनकर रह रहा हूँ।' बाद में उन्हें पता चला कि उन दिनों वह 'वरुण के बेटे' लिखने की तैयारी कर रहे थे। वर्ष 1983 उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत भारती' के समारोह में, जिसका संचालन शिवमंगल सिंह सुमन कर रहे थे, एक ही मंच पर 'इन्दुजी, इन्दुजी क्या हुआ आपको' और 'आओ रानी, हम ढोएँगे पालकी' जैसी व्यक्ति सत्ता विरोधी कविताओं का सर्जक और श्रीमती इन्दिरा गांधी उपस्थित थे। पहली पंक्ति में मौजूद शोभाकांत विस्मित थे कि जब कभी बाबा की और श्रीमती गाँधी की निगाहें परस्पर मिलतीं तो दोनों एक दूसरे की ओर देखते, मुस्कराते। अमरीक नारंग (सुदर्शन नारंग के बड़े भाई) आज भी उस घटना का, जो प्रारम्भिक वर्षों में उनके लिए आनन्दप्रद रही, स्मरण करते हैं। आपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिक्ख अंगरक्षकों द्वारा श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या और फिर सिक्खों के नरसंहार के बाद उग्रवाद की लोमहर्षक वारदातों की कड़ी में कश्मीरी गेट अन्तर्राज्यीय बस अड्डे पर 'ट्राजिस्टर बम काण्ड' में अनेक बेगुनाह मारे गए थे। सी. बी.आई. की जाँच पड़ताल का कोई सूत्र न जाने कैसे अमरीक भाई से जा जुड़ा। सम्भवतः उनका सिक्ख होना प्रमुख कारण रहा होगा। सी. बी. आई. की टीम चार-पाँच घण्टे की सघन पूछताछ कर वापिस लौट गई और शहर में भाँति-भाँति की अफ़वाहें विस्तार पाने लगीं। सी.बी.आई. की टीम एक हफ़्ते बाद फिर आ धमकी। इस बार अधिक दल-बल के साथ, सम्भवतः गिरफ्तारी की पूरी तैयारी के साथ। उनकी फ़ैक्ट्री की तलाशी हुई। अमरीक भाई लाख कहें कि उनका फैक्ट्री संचालन और शहर की सामाजिक गतिविधियों के अलावा अन्य किसी बात से सरोकार नहीं। सी.बी.आई. दल का मुखिया कुछ सुनने-मानने को तैयार नहीं। पता नहीं कैसे अमरीक भाई को कुछ सूझा और वह उस डायरी को उठा लाए जिसमें बूढ़े ने उनकी फैक्ट्री में उनका आतिथ्य ग्रहण करने के बाद उनके अनुरोध पर चन्द पंक्तियाँ लिख दी थीं, जिनका लब्बेलुबाब कुछ-कुछ यह था कि अमरीक नारंग बेहद कर्मठ और श्रमशील व्यक्ति हैं, जो देश के उत्पादन और उसके निर्माण में अपना सहयोग कर रहे हैं। यह कोई संयोग था या चमत्कार। सम्भवतः सी.बी.आई. के उस अधिकारी का सम्बन्ध बिहार से रहा होगा अथवा वह काक रसिक और नागार्जुन का प्रशंसक रहा होगा। उसके चेहरे के कठोर भाव सामान्य हो गए। उसने अमरीक भाई से नागार्जुन के बारे में कुछ और दर्याफ़्त की और अमरीक भाई बढ़-चढ़ कर उनसे अपने घनिष्ट सम्बन्धों का ब्यौरा देते रहे। इसके बाद सी.बी.आई. फिर उन्हें परेशान करने नहीं आई। यह सदाशयता मेरे शहर के प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नहीं दिखा सके, जो बूढ़े की असीम लोकप्रियता और कवि-छवि से प्रभावित दोपहर के भोजन के लिए अपने निवास आग्रहपूर्वक लिवा ले गए। संध्या को बाबा के साथ वापिस लौटे तो चेहरा खिंचा हुआ - क्लान और व्यथित। हुआ कुछ यूँ कि भोजन के उपरान्त जब उनकी किशोरी बेटी पानी का लोटा लिए बाबा के शयनकक्ष में आई तो न जाने उसे देख उन्हें 'मेघदूत' की यक्षिणी को बोध हुआ या हिमाच्छित उन्नत रजत शिखरों का, उन्होंने उसके उन कोमल अंगों को सहला-दुलरा दिया, जो उस किशोरी और पिता के लिए वर्जित और निंदनीय था। प्रिय बान्धवी मेरी ! मैं हूँ रजनीश का वृद्ध प्रपितामह ! वर्ष 1998 में इस कालजयी जनकवि का देहावसान हुआ। विगत बाइस साल में शहर के साथ इस घर का भी भूगोल पूर्णतया परिवर्तित हो गया है। लॉन की जगह एक नई दुमंज़िला इमारत ने ले ली हैं। अमरूद व अंजीर के पेड़ काल-कलवित हो चुके हैं और किल्लौल करती गिलहरियाँ लुप्त । सड़क ऊँची होने के साथ बरामदे की तीन सीढ़ियाँ जमींदोज़ हो गई है और वह बरामदा जहाँ कुर्सी पर बैठा बूढ़ा सड़क की आवाजाही कौतुक से देखता करता था, शीशे के दरवाज़े से ढका तलघर बन गया है, जहाँ की हवा ठहरी और घुटन भरी है। शहर कोलाहल से भरा है। सड़क पार करने का भय घर के पिछवाड़े पंजाबी कॉलोनी के पार्क की ओर ले जाता है जहाँ यदा-कदा रमेश पानवाले से मुलाक़ात हो जाती है, जो उम्र के आठवें दशक में प्रवेश कर गया हैं। दूकान उसके बेटे ने सम्हाल ली है। पास ठहरकर वह पिछली सदी के आठवें दशक के उन दिनों में ले जाता है, जब उसकी दूकान के इर्द-गिर्द देर तक सात-आठ प्राणियों की वह अजब मण्डली जुटा करती थी, जिसके ठहाकों, बहसों और लड़ाई झगड़ों से सड़क गुँजायमान रहती थी। इस मण्डली से गिरा वह लामानुमा बूढ़ा भी आ उपस्थित होता है जिसे युवाओं से घिरे हँसी-ठिठौली करते गुज़रते नागरिक कौतुक से देखा करते थे। मण्डली पूरी तरह छितरा चुकी है। प्रभात मित्तल, विजय भूषण आर्य, अमितेश्वर, सुदर्शन नारंग*, अफ़रोज़ शाहीन दिवंगत हो चुके हैं। शेष कुछ उम्र और बीमारियों से लाचार-बेचार अपने-अपने घोंसलों में सिमटकर रह गए हैं। शहर शोर-शराबे से भरा है और उनके हृदय में सन्नाटा बसा है। उन दिनों का बाबू रिक्शावाला अपनी उम्र के तीसरे दशक को पारकर उम्र के सातवें दशक में प्रवेश करने के बावजूद पूरी तरह मुस्तैद गली के मुहाने पर खड़ा सवारियों की प्रतीक्षा करता है, गो कि शहर मयूरी के हुड़दंग से घिरा है। गाहे-बगाहे जब उसकी रिक्शा में सवारी करता हूँ, जाने-अनजाने वह बूढ़ा भी साथ आकर बैठ जाता है। भात-माछ के लिए अपने घर ले गया था। वह दिन अमूल्य धरोहर की तरह उसकी स्मृति में आज भी सुरक्षित है। - अप्रतिम कथाकार और यायावर। पिछले दिनों उनकी कहानियों का समग्र आया है। हापुड़ में रहते हैं।
db50143cd871b8d8a2336c6a78b7e9c4b14c9a09
web
"मिस्टर ग्रीन!" "मिस्टर ग्रीन!" लकडियो को रंदे से छीलने की आवाज आ रही है! छीलन जमीन पर गिरती जाती और हर बार लकड़ी की चमड़ी और चिकनी और गोरी होती चली जाती है! कुछ ही देर में कॉफिन बनाने वाले ने कॉफिन तैयार कर ली थी! इस गाँव मे चर्च के पास कॉफिन बनाने वाली उसकी एक मात्र दुकान थी! छोटा सा गाँव है इसलिये कभी कभार ही उसे कॉफिन के खरीददार मिलते, इस लिए उसे लगता कि एक कॉफिन का स्टॉक ही उसके लिए काफी है! उसे मालूम भी नही था कि अगला खरीददार उसे कब मिलने वाला है! रात काफी हो चली थी सोने से पहले कॉफिन बनाने वाला अपनी रात की शराब की आखिरी किश्त हलक से नीचे उतरता है और भीतर कमरें में आकर सो जाता है! नींद खुलते ही उसकी नजर जब घड़ी पर पड़ती तो देखा के सुबह के नौ बजे चुके थे! अपनी आंखें मींचते वह उठा और हर रोज की तरह शराब के सेवन से ही अपने दिन की शुरआत की! बाहर बरामदे में आकर देखा, जहाँ वह कॉफिन बनाता था वहाँ उसे किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी! वो कॉफिन जिसे वो देर रात बनाकर सोया था वो गायब थी! उसने घर भीतर एक कर दिए उसे ढूँढने में पर कॉफिन कहीं नहीं दिखी! बाहर सड़क पर काम कर रहे एक सफाई वाले से उसने पूँछा- "कल रात मैंने एक कॉफिन बनाई थी पर आज वो गायब है तुमने कहीं देखी क्या!" जवाब मिला- "कैसी बातें करते हो चाचा! भला कॉफिन का मैं क्या करूँ। हां ,इस पगला से पूछो ये पेड़ों से खूब बात करता है शायद इसे बताकर कहीं गयी हो! क्यों रे पगला बेवड़ा चाचा की कॉफिन कहीं देखी तूने?" वो सफाई कर्मी कॉफिन बनाने वाले और उस पागल दोनों का ही मजाक उड़ाते हुए बोला! आधे कपड़ो में किसी अंग्रेज की तरह लाल मुंह वाला वह पागल अपने दस दाँत दिखाते हुए बस मुस्कुरा दिया! 'भला वो पागल क्या जानेगा?" कहकर कॉफिन बनाने वाले के दिमाग मेम जाने क्या सूझा वो अपना फटा कोट पहनकर कब्रिस्तान की ओर चल पड़ा! छोटा सा गाँव था, उसे वहाँ कितने कब्र थे मुँह जबानी याद थे! पर आज जैसे उसे एक कब्र नई दिख रही थी! जिसके क्रॉस पर उसे "मिस्टर ग्रीन" नाम लिखा दिख रहा था! "हो न हो किसी ने मेरा ही बनाया कॉफिन चुराया है!" ये शक उसके दिमाग में घर कर गया! "पर इस नाम का कोई भी व्यक्ति तो गाँव में नहीं है!"वह खुद से बात करते हुए बोला! वहाँ से कॉफिन बनाने वाला सीधे चर्च गया पर पादरी वहाँ नही थे! उसे लगा कि शायद गाँव के लोग ही उसे कुछ जानकारी दे पायें! गाँव के सरपंच जो इस वक़्त पंचायत में बैठे कुछ पंचो के साथ किसी मुद्दे पर बात कर रहे थे, उनके पास पहुचकर कॉफिन बनाने वाला बोला! "सरपंच जी गांव में किसी की मौत हुई है क्या?" "मौत नहीं तो! पर क्यूँ?" सरपंच जी कॉफिन बनाने वाले के चेहरे को देखते हुये बोले! क्योंकि कब्रिस्तान में एक नई कब्र बनी है जिस पर मिस्टर ग्रीन लिखा हुआ है। पर इस नाम का कोई भी व्यक्ति हमारे गांव में तो नहीं है? "कोई पड़ोस के गाँव का होगा! इतना परेशान क्यूँ होते हो?" सरपंच जी कहकर फिर से सामने रखी कागज पर कलम चलाने लगे! "सरपंच जी बात वो नहीं है दरसअल कल रात ही मैने एक कॉफिन तैयार की थी वो गायब है!" "अच्छा! कॉफिन बनाई भी थी तुमने या नहीं ? या फिर शराब के नशे में तुमने किसी को बेच दी होगी और तुम्हे याद नही होगा! नसेड़ी भी तो ठहरे तुम एक नंबर के!" उनमे से एक पंच ने जवाब दिया! "ओ कॉफिन बनाने वाले, अभी और भी मुद्दे हैं जिनके बारे में मुझे सोचना है! तुम ये कॉफिन की बात भूल जाओ, हां दारू के लिए अगर कुछ पैसे कम पड़ रहे हो तो बताओ!" कहकर सरपंच जी ने पचास का नोट उसकी तरफ बढ़ाया! कॉफिन बनाने वाले ने उस नोट को जेब मे रख लिया! और दबी आवाज में बोला "सरपंच जी बात वो नहीं है पर अचानक कॉफिन ही क्यों गायब हुई जबकि गाँव में कभी कोई और चीज चोरी नहीं होती! क्यों न एक बार वो नई बनी कब्र खोदी....!" "क्या पागल हो गए हो तुम?" सरपंच गुस्से में उसे बीच मे रोकता हुआ बोला! चल भाग यहाँ से! कॉफिन बनाने वाला वहाँ से वापस चला गया! रास्ते में उसने उस पचास रुपये की शराब खरीदी, और उसके दो घूँट पीकर बोतल कोट की जेब मे डाल ली! "उफ़्फ़ क्या मैं इतना शराब पीने लगा हूँ कि मुझे याद नहीं कि मैंने कॉफिन बनाई या नहीं या फिर किसी को बेच दी? खैर जो भी हो पर अब उसके पास कोई नई कॉफिन नहीं बची थी इसलिए उसे कम से कम एक कॉफिन तो तैयार रखनी थी! वह फिर से जंगल जाकर लकड़िया काट लाता है! और दो दिन के भीतर ही वह उन लकड़ियों को कॉफिन का रूप दे देता है!और एक बार फिर अगली सुबह उसकी बनाई कॉफिन फिर गायब हो जाती है! कॉफिन बनाने वाला कब्रिस्तान का रुख करता है जहाँ उसे आज फिर एक नई कब्र दिखती है!और जिस के क्रॉस पर फिर से मिस्टर ग्रीन ही लिखा होता है! कॉफिन बनाने वाला चर्च जाता है जहाँ पादरी से मिलकर उन्हें सारी कहानी सुनाता है!पादरी उसके साथ कब्रिस्तान आते हैं जहाँ दो कब्रो पर मिस्टर ग्रीन लिखा होता है! उन्हें भी हैरानी होती है कि ऐसे किसी मुर्दे को यहाँ दफनाने की क्रियाविधि तो नही हुईं! "मैंने ये बात सरपंच जी को बताई थी फादर पर उन्होंने मेरी बात नही मानी!" कॉफिन बनाने वाले ने कहा! "एक काम करते हैं सरपंच जी को बुलाते हैं!"पादरी ने कहा! थोड़ी ही देर में सरपंच पंचो के साथ कब्रिस्तान आ पहुँचे थे!. "सरपंच जी कल फिर मेरी बनाई हुई कॉफिन चोरी हो गयी!और आज फिर एक और कब्र मिस्टर ग्रीन के नाम की!" "हम्म... पर फादर गांव में किसी भी व्यक्ति की मौत नही हुई है, कोई पड़ोस के गांव से तो नहीं मरा?" सरपंच जी पादरी की ओर देखते हुए बोले! "मुझे तो ऐसी कोई खबर नहीं और न ही किसी को दफनाने की क्रियाविधि मैंने कराई है!" पादरी ने जवाब दिया! "फिर क्या ये लाशें खुद ब खुद दफन हो गयीं ?क्यों न हम पुलिस को बुलायें?" कॉफिन बनाने वाला बोला! "पागलों के जैसी बातें मत करो कॉफिन बनाने वाले! पोलिस के आने पर सबसे ज्यादा दिक्कत हम लोगो को ही होनी है! क्योंकि और किसी को इसकी खबर नहीं! गड़े रहने दो इन लाशों कों यही जबतक कोई कुछ पूछ ताछ करने नहीं आता?" सरपंच जी कॉफिन बनाने वाले पर झिड़कते हुये बोले! "पर यहाँ लाश ही गड़ी है ये कोई कैसे मान ले सरपंचजी! कुछ और भी तो हो सकता है?क्यों न एक बार हम इन कब्रों को खोदकर देखें?" कॉफिन बनाने वाले ने कहा! "ए बेवड़े कैसी बात कर रहा है?" वहाँ मजूद एक पंच ने कहा! "ठीक कह रहा है ये हमें कब्र खोद कर देखना चाहिये!" पादरी ने कहा! "ठीक है फादर अगर आप कहते हैं तो! लेकिन अभी नही रात में! और ये बात हम आठ लोगों को ही मालूम होनी चाहिए बस!" सरपंच जी ने कहा! सब इस बात पर राजी हुए और चले गये! आधी रात को सभी एक-एक करके उस कब्रिस्तान में जमा हुये! "ए बेवड़े ये फावड़ा ले और खोद!" सरपंच जी ने कॉफिन बनाने वाले से कहा! "कैसी बात कर रहे हो सरपंच जी! मैंने गले तक शराब पी रखी है! मैं वहाँ बैठता हूं आप लोग खोदिये, जब कॉफिन दिखने लगे तो बताइयेगा मुझे तो बस ये देखना है कि वो कॉफिन मेरा ही है या नही!" कहकर कॉफिन बनाने वाला दूर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया! सरपंच और उनके साथ मौजूद लोगों ने कब्र खोदना शुरू किया और दोनों ही ताबूत थोड़ी देर में कब्र खोद कर निकाल लिए गये! "अरे ये तो मेरे ही बनाये कॉफिन है! फादर देखिए मैंने ही बनाया था इन्हें!" कॉफिन बनाने वाला नशे की हालत में बोला! " सरपंच जी कॉफिन खोलिये!" पादरी सरपंच की ओर देखते हुए बोले! दोनों कॉफिन खोले गये पर उनमें जो लाशें थी वो पहचाने जाने के काबिल नही थी! हाथ-पैर, सर-धड़ सबकुछ अलग कटा रखा था! सरपंच जी फादर की ओर देखते हैं और बोले- "फादर ये लाशें तो नहीं पहचानी जा सकतीं !" "तो क्या पुलिस को बुलायें ?" कॉफिन बनाने वाले ने कहा! "नहीं ये मर्डर है और हमारे गाँव के कब्रिस्तान में दफ्न हैं! पुलिस हमें ही परेशान करेगी! और कॉफिन बनाने वाले मत भूल के ये कॉफिन तेरे ही हैं! इसलिए फादर मुझे लगता है जब तक कोई नहीं पूछता हमें ये कॉफिन ऐसे ही दफन रहने देना चाहिये!" पादरी कुछ देर सोचने के बाद बोले- "आप ठीक कहते हैं सरपंच जी!अब इन लाशो का जिक्र कोई भी नहीं करेगा! सरपंच जी इन लाशों को पहले की ही तरह दफना दीजिये!" दोनों लाशों को दफ्न कर के सभी वहाँ से चले गये! गांव में इन लाशो का जिक्र किसी और से न हुआ! कॉफिन बनाने वाले ने एक और कॉफिन बना ली और अब वो कॉफिन को एक बंद ताले वाले कमरे में रखता था! आज रात फिर कॉफिन बनाने वाले ने खूब शराब पी और सो गया! रात को दरवाजे पर हो रही दस्तक ने उसकी नींद खोल दी! नशे की हालत में लड़खड़ाते वह दरवाजे की ओर बढ़ा! दरवाजा खोल कर देखा तो सामने पगला अपने दोनों हाथ पीछे किये हुए खड़ा था! "अरे पगला तू ? इस वक़्त? देख खाने के लिए तो मेरे पास तो कुछ नहीं बचा! हा कुछ पीना हो तो आजा मैं भी तेरे साथ थोड़ा सा पी लूँगा!" कहकर कॉफिन बनाने वाला मुड़कर लड़खड़ाते हुये वापस अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा! तभी जैसे उस पर एक बिजली सी गिरी हो। दर्द में वो अपनी पूरी ताकत से चीखा! और अपने बायें हाथ से अपने दाये हाथ की बाँह पर हाथ रखता है! पर दाया हाथ तो कटकर ज़मीन पर गिरा था। और कटे बाँह से खून की धार जमीन पर गिर रही थी। पीछे मुड़कर देखा तो पगला अपने हाथों में कुल्हाड़ी लिए हुए खड़ा था। और इससे पहले की कॉफिन बनाने वाला कुछ कहता अगली कुल्हाड़ी से उसके बायें हाथ पर वार करता है और बायें हाथ का भी वही हश्र! कॉफिन बनाने वाला जमीन पर गिर गया! बेहोशी से पहले कॉफिन बनाने वाले के कानों पर जो बात सुनाई दे रही थी वो थी "अब पता चला के पेड़ो को भी कितना दर्द होता होगा!कभी महसूस किया है? मैंने किया है वो मुझसे बात करते हैं ! अपना दर्द मुझे बताते हैं !कब्रिस्तान में दफन वो लाश जानता है किसकी है? पास के गाँव मे व्यक्ति जो की बढ़ई का काम करता था! और दूसरी एक औरत थी जो जलाने वाली लकड़िया बेचा करती थी! तुम सब निर्दोष, जीवित पेड़ पौधों को काटते हो! इसलिए तुम्हारी भी वही दशा होगी! और मैं करूँगा!" कहकर पगला जोर से चिल्लाता है और कुल्हाड़ी के अगले वार से कॉफिन बनाने वाले की छाती लहू लुहान कर देता है! लाश के कई टुकड़े करके उसे एक बोरी में भरकर उसे बगल के कमरे में रखे कॉफिन में रख देता है! और बाहर उसी सफाई वाले को आवाज देता है! दोनों उस कॉफिन को ले जाकर कब्रिस्तान में दफना देते है! और उस कब्र के क्रॉस पर लिखा होता है! "मिस्टर ग्रीन!"
28712472a932e734dd76acb6af58afe2a60f4aaa
web
'मैं हिमाचल के बहुत छोटे से शहर से आता था और कभी नहीं सोचा था कि अध्यक्ष बनूंगा. लेकिन बना, ये बीजेपी में ही संभव है. जिस पार्टी में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाउ ठाकरे, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अमित शाह अध्यक्ष रहे. जो काम उन्होंने छोड़ा, उसे आगे बढ़ाने का हम पर जिम्मा है. ' 2. अमित शाह से कितना अलग है कार्यकाल? 'मैं यूपी का प्रभारी था. हमारे काम करने का जो तरीका है, कभी भी दिमाग में नहीं आता कि अमित शाह जी क्या करते. क्योंकि वो तो साथ ही हैं. एक फोन ही तो करना है और यही तो पूछना है कि हम इस स्थिति में क्या करना चाहिए. हमें सबका साथ मिलता है. प्रधानमंत्री भी रूचि लेते हैं. राजनीतिक दृष्टि से उनका पार्टिसिपेशन रहता है. मुझे व्यू पॉइंट को कहने में कोई दिक्कत भी नहीं होती है. हमें उनकी बात को हमेशा लेकर के साथ चलना होता है. ये कोई उधार नहीं लेना है. ये हमारा ही है. नेताओं में कुछ आ जाती है कि मुझे ये करना है तो समस्या आ जाती है. लेकिन मोदीजी के नेतृत्व में तय है कि हम सबको ये करना है. . . तो कोई दिक्कत नहीं होती. ' 'राजनीति में रणनीति पर्दे का विषय होता है. लेकिन मैं कहना चाहता हूं बीजेपी हर पल, हर समय एक योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ती है. इसलिए बाकी लोग चुनाव तब लड़ेंगे जब कोड ऑफ कंडक्ट लगेगा. हम हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं. मैं कहना नहीं चाहता लेकिन जो लोग अभी कर रहे हैं, हम लोग पहले ही कर चुके हैं. इसलिए चुनाव की बारी आती है, तो वो लोग उन बातों पर लगते हैं, तो मुझे हंसी आती है. हम चुनाव की तैयारी अभी से नहीं कर रहे हैं, बहुत पहले से शुरू हो गया है. तौर-तरीके, हमारी कमजोरी क्या है, कहां हमें सुधार करना है. ये सब पर बात कर चुके हैं. ' 'इस घटना को हम चुनाव की दृष्टि से न देखें, मानवता की दृष्टि से देखें. ये दुखदाई घटना है. कानून अपना काम कर रहा है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. हमने एसआईटी घटित की है. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. हम इसे करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. लेकिन एक नया तरीका डेवलप हो रहा है विरोध का. उसके बारे में भी सोचना चाहिए. कई घटनाएं हो रही हैं. राह चलते अटैक हो जाता है. नेताओं का घिराव करना. डेमोक्रेटिक प्रोसेस में हमें उस सिस्टम को कहां तक ले जाना है, ये भी सोचना है. लेकिन कोई भी कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है. उसके साथ भी न्याय होगा. ' '11 दौर की बातचीत हुई. अभी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसको सस्पेंड करो, हमने सस्पेंड कर दिया. जब हम बात करने को तैयार हैं. हम आपके प्रोविजन को सस्पेंड करके बात करने को तैयार हैं. आप घोड़े को पानी के पास तक ले जा सकते हैं लेकिन उसे पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. बीजेपी इस तरीके से जमीन पर हिलाई नहीं जा सकती. जमीन पर भारत की जनता मुंह तोड़ जवाब देती है. हम आज भी बातचीत के लिए तैयार हैं. आपकी कुर्सी चली गई, इसलिए आप हल्ला करना शुरू करो, तो ये पीड़ा निकल रही है. हम तो बूथ पर काम करने वाले लोग हैं. कौन जानबूझकर गड़बड़ कर रहा है और कौन गलती से गड़बड़ कर रहा है, ये पता है. एमएसपी थी, है और रहेगी और हम एमएसपी पर खरीदारी जारी रखेंगे. ' 'मैं कहना चाहता हूं डेमोक्रेटिक प्रोसेस में इस तरह नहीं होता. पेशेंस जरूरी है कि विपक्ष में काम करने की. जिसे पेशेंस नहीं, वो विपक्ष में काम कर ही नहीं सकता. जो इन्होंने रास्ते लिए हैं न ये 70 के दशक के रास्ते हैं. आज दुनिया बहुत आगे बढ़ गई है. ये पब्लिक है सब जानती है. इसे बताने की जरूरत नहीं है. इससे पूछ लेना अक्लमंदी है. वो जानती है कि कहां एक्टिंग हो रही है. 15 मिनट के लिए चले गए, दो फोटो ले लिए. प्रेस को दे दिया. इससे बदलाव नहीं आता है. इससे लोग मजबूत नहीं होते हैं, ये उन्हें समझना चाहिए. ' 'ये फैसले आइसोलेशन में नहीं होते हैं. ये फैसले एक विषय को लेकर नहीं होते हैं. सारी चीजों का एक विचार करने के बाद होता है. एक सिद्धांत होता है पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को मौका दे. हमने तो तीन स्टेट में चार सीएम बदल दिए. जाने वाला कहता है कि मैं धन्यवाद हूं कि पार्टी ने मुझे मौका दिया और छोटा भाई संभालेगा. ये हमारे संस्कार हैं. कांग्रेस ने एक ही राज्य में कोशिश की थी, वहां जो हाल हुआ वो आप जानते ही हैं. ' 'हमारी शब्दावली है इनको मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी है और इसका मतलब है कि ये अभी जिम्मेदारी मेरे पास है और समय आने पर किसी और को देना है. नए लोगों को चांस देना है. एक्सपेरिमेंट करना है. 30 उपचुनाव हो रहे हैं, हमने कहीं भी किसी परिवार के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि उन्होंने काम नहीं किया है. पार्टी के हित में त्याग करना होगा और वो करते हैं. हमारे यहां इस तरह के एक्सपेरिमेंट होते रहते हैं. ' 'अमरिंद सिंह अभी कांग्रेस में है. वो आहत हैं. ऐसा सुनने में आया है कि उनकी इज्जत नहीं रखी गई. उनके साथ जैसा व्यवहार होना चाहिए था, वो नहीं हुआ. वो कांग्रेस में हैं. उनको अपना रास्ता चुनना है. ' क्या कैप्टन बीजेपी में आएंगे और उनके आने से बीजेपी को पंजाब में बढ़त मिलेगी? इसके जवाब में उन्होंने कहा, 'हायपोथेटिकल हो जाएगा जवाब देना. बीजेपी को इन सारी परिस्थिति में भी पंजाब में बढ़ने का स्कोप दिखता है और अपने बल पर दिखता है. ' 'मैं यूपी का प्रभारी था. सपा और बसपा मिलकर लड़ी, सब कहते थे बुरा हाल हो जाएगा. मैं कहता था दिल थामकर बैठो, चुनाव के नतीजे देखना एकतरफा फैसला आएगा. वो साथ लड़ें, अलग लड़ें. लड़ने वाले की ताकत ये होनी चाहिए कि हमें जीतना है. हम दूसरों के भरोसे राजनीति नहीं करते. हमें अपनी ताकत पर भरोसा है. आपके मुद्दे हैं कुर्सी पर आना. हमारे मुद्दे हैं कुर्सी के माध्यम से देश के लिए काम करना. हम भरोसा रखते हैं. हम परिवर्तन के एजेंट है. हम कुर्सी पर बैठने नहीं आए हैं. हम सत्ता का सुख भोगने नहीं आए हैं. सत्ता का उपयोग करने आए हैं. ' '21वीं सदी में पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में राज्य प्रायोजित आतंक फैल रहा है. अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए अलोकतांत्रिक रास्ते अपनाए जा रहे हैं. 2500 घर तबाह कर दिए गए. 80 हजार लोगों को घर छोड़ना पड़ा है. 191 होम शेल्टर बीजेपी चला रही है. 10 करोड़ से ज्यादा डैमेज हुआ है. 191 से ज्यादा सेक्शुअल एब्यूज हैं. 53 मर्डर केस हैं. 12000 केस रजिस्टर्ड हैं. मानवाधिकार का जीता जागता चुनौती है. हमें विश्वास है कि ये लड़ाई हम डेमोक्रेटिक तरीके से ही लड़ सकते हैं. कानून के माध्यम से हमें जीत हासिल होगी. ' 'ये प्रजातंत्र का देश है. कोई किसी को नहीं रोक सकता. वो जरूर एक्टिव हों. हम रोकने वाले कौन होते हैं. लेकिन मैं ये जरूर चाहूंगा कि पॉलिटिकल पार्टी के रूप में और उसकी नेता के रूप में आत्मनिरीक्षण जरूर करें कि आप जो कर रहे हैं उससे समाज का कितना भला हो रहा है, आपकी पार्टी का कितना भला हो रहा है. ' 'लोग आपको छोड़कर क्यों जा रहे हैं? कभी आपने इसका आत्मनिरीक्षण किया. जिन लोगों ने अपनी जिंदगी के 6-6 दशक, 5-5 दशक, 4-4 दशक पार्टी के लिए लगा दिए, वो आपको गुडबाय कहकर चल जाते हैं, आपने कभी सोचने की कोशिश की. अपने घर में झांके. आत्मनिरीक्षण करें. ' 'ये ग्लैमर और शो से राजनीति नहीं होती, ये 21वीं सदी का भारत है, ये ऐसे नहीं चलेगा. ये मुद्दों पर चलेगा और जो लोग मेहनत के साथ खड़े होना चाहते हैं, गरीब के साथ खड़े होना चाहते हैं, उसके साथ भारत आगे चलेगा. ' 'ठीक बात नहीं है. हम लोगों भी ध्यान रखने की जरूरत है. पार्टी की तरफ से और सरकार की तरफ से हम कोई भी ऐसी गतिविधि नहीं करते हैं जो कानून व्यवस्था को हाथ में ले. जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ योगी सरकार कार्रवाई करेगी. '
5bc54719e33b29fc04b39504a481dbcffb56335e7139ebdd86c2155e9bab9ece
pdf
सच तो यह है कि जायसी की प्रेरणा मूल रूप से आध्यात्मिक होने पर भी उसमें जन-मन-रजन के अनेक गुण हैं और वह एक ही साथ मृत्य और अमृत्य, पृथ्वौ और स्वर्ग को छूती है, उसका कथा-पक्ष लोक-रजन की समस्त प्रवृत्तियों से पुष्ट है । उसका अध्यात्म पक्ष एक ही साथ वेदात, योग और सूफी मतवादों को स्पर्श करता है। मध्ययुग से दर्शन, धर्म, काव्य और लोकरजन के बीच की भित्तियाँ गिर गई थी। जो लोक-रजन था, वही काव्य का उच्चाति-उच्च उन्मेष बन गया और उसी में धर्म और दर्शन के बड़े-बड़े तत्त्य, बड़े-बड़े सिद्धात समाविष्ट हुये। रामचरितमानस, सूरसागर और पद्मावत इस दर्शनधर्म-काव्य-लोकरजन के तीन सुन्दर योगायोग हैं । जायसी के सम्बन्ध में जो कहा गया है, वही थोड़ा-बहुत अन्य सूफी कवियों के सम्बन्ध में कहा जा सकता है । सभी कवि मुसलमान थे और सभी फ़ारसी की मसनवी शैली से प्रभावित । सब ने वी भाषा में ही अपना सन्देश जनता तक पहुँचाया और लोक-जीवन में चलती हुई प्रेम-कथाओं को इस सन्देश का माध्यम बनाया। यह दूसरी बात है कि सबका काव्य उतनी प्रौढता प्राप्त नहीं करता जितनो जायसी के काव्य ने प्राप्त की, न उसे उतनी लोकप्रियता ही मिली । यद्यपि सब कवि मूलतः सूफी अध्यात्म भावना से प्रभावित थे, परन्तु कथा मे शिव, पार्वती, नारद और योगी अवश्य ही नायक विरक्त जोगी के रूप में ही सामने उपस्थित किया जाता है । यही नहीं, पूर्ववर्ती सूफी ग्रन्थों का प्रभाब परिवर्ती सूफी ग्रन्थों पर प्रकार से पड़ा है। चित्रावली सरोवर के गहरे जल में छिप जाती है। सस्त्रियाँ उसे ढूँढती हैं । यहाँ चित्रावली ईश्वर का प्रतीक है और यह खोज साधारण खोज नहीं है - सरवर ढूंढ़ि सबै पचि रहीं । चित्रिनि खोज न गवा कहीं ।। निकसी तोर भई बैरागी । घरे ध्यान सब बिनवै लागीं ॥ गुप्त तोहि पापहि का जानी। परगट मह जो रहै छपानी ।। चतुरानन पढ़ चारौ वेदू । रहा खोजि पै पाव न भेदू । हम अंधी जेहि आपन सूझ । भेद तुम्हार कहाँ लौ बूझा ॥ कौन सो ठॉउ जहाँ तुम नाहीं । हम चख जोति न देखहि काहीं ।। पावै खोज तुम्हार सो, जेहि दिखरावहु पंथ । कहा होइ जोगी भए, औ बहु पढ़े गरंथ' ।। औ जायसी के 'पद्मावत' का प्रभाव स्पष्ट है । जायसी के पद्मावत मे पद्माबती का हार सरोवर मे खो गया था और कवि ने उसके सम्बन्ध में इसी तरह रहस्यमय उक्तियाँ कही थीं। विरह वर्णन में तो यह प्रभाव और भी स्पष्ट हो जाता है। जायसी का नागमती का विरह वर्णन पद्मावत का सबसे उत्कृष्ट ग्रन्थ है । वह लगभग स्वतंत्र काव्य हैःऔर उसकी प्रसिद्धि के कोने-कोने में हो गई थी। जो मार्मिकता, जो पर-व्यंजना, जो अनुभूतिपूर्ण काव्योषमेयता नागमती के विरह-वर्णन में है वह सूर के विरह काव्य को छोड़ कर कहाँ मिलेगी । परिवर्ती सूफी काव्य पर उसका प्रभाव पड़ना आश्चर्य की बात नही । 'चित्रावलो' का कवि लिखता है - ऋतु बसव नौतन बन फूला । जहाँ तह मौरं कुसुम-रग भूला । आहि कहाँ सो भँवर हमारा । जेहि विनु वसत बसन्त उजारा ॥ रात बरनपुनि देखि न जाई । मानहुँ दवा दहॅू दिसि लाई ।। रतिपति-दुरद ऋतुपती चली । कानन-देह आइ दलमली ।। अन्य परिवर्ती काव्यों पर यह प्रभाव और भी अधिक है। परन्तु कालान्तर मे व्यापक प्रेम-भावना के प्रसार की बात दबती गई और सूफियों ने इस्लामी प्रचारकों से अपना नाता जोड़ लिया । जायसी मे इस्लामी मतवाद और इस्लाम धर्म का है, परन्तु 'अनुराग बांसुरी' ( १७६४ ई० ) में कवि स्पष्ट रूप से मूर्ति-वाद की निन्दा करता हैयह बाँसुरी सुनै जो कोई । हिरदय-स्रोत खुला जेहि होई ॥ निसरत नाद बारुनी साथा । सुनि सुधि-चेत रहै केहि हाथा ।। • सुनतै जो यह सबद मनोहर । होत अचेत कृष्ण मुरलोधर ॥ यह मुहम्मदी जन की बोली । जायँ कद न बातैं घोलीं ॥ बहुत देवता को चित हुरै । बहु मूरति औंधी होइ परै ॥ बहुत देवहरा ढाहि गिरावै । संखनाद की रीति मिटावै ॥ जहॅ इस्लामी मुख सों निसरी बात । तहाँ सकल सुख मंगल, कष्ट नसात ॥ इस कट्टरता के समावेश से ध्यात्म और काव्य-रस की हानि - श्यक बात थो । फलतः परिवर्ती सूफी काव्य हमें उतना नहीं छूता जितना जायसी का काव्य । रीति-काव्य के नाम से हिन्दी काव्य की वह साहित्यिक धारा प्रसिद्ध है जिसके अग्रगण्य कवि केशवदास, विहारी और देव है । जैसा कि विद्वानों ने कहा है, यह नाम उस काव्य के लिए पूर्णतः उपयुक्त नहीं है जो केशव के समय से बनना शुरू हुआ और जिसकी धारा रूप से धुल (१८५०) तक चलती रही । परन्तु उपयुक्त न होने पर भी नाम चल पड़ा है, और इसलिये उसका प्रयोग करना आवश्यक होता है। कुछ अन्य नामों की ओर भी सुझाव हुआ है जैसे कला-प्रधान-काव्य, शृङ्गार-मूलक-काव्य, परतु कला-शृङ्गार और रीति-अन्थों का अनुकरण रीतिकाल या उत्तरमध्ययुग के काव्य ( १६०० - १८५० ) की कविता की केवल कुछ रूढ़ियाँ थीं। अन्य रूढ़ियाँ और विशेषताएँ भी इतनी ही महत्व - पूर्ण हैं। रीतिकाव्य की मूल भावना शृङ्गार है । पुरुष-स्त्री के प्रकृत प्रेम के का वर्णन, उनके यौवन - विकास, केलि - विलास, हास-परिहास, संयोगवियोग इस काव्य के विषय हैं । हम देखते हैं शृङ्गार की भावना ने हिन्दी के प्रारंभिक काल में ही हमारे साहित्य में प्रवेश कर लिया था । इस भावना को हम राजपूत चारणों की वीर-कथाओं के केन्द्र में उपस्थित पाते हैं । रासो के इतने सभी युद्धों का कारण स्त्री का सौन्दर्य है, आल्हा ऊदल की लड़ाइयों में वीररस पूर्वराग से ही परिचालित है, समाप्ति भी परिचय ग्रन्थि में होती है । नरपति नाल्ह का वीसलदेव रासो तो नाम मात्र को वीर-काव्य है। उसमें नग्न प्रेम के वर्णन और राजमती के वियोग-चित्रण के सिवा कवि का क्या उद्देश्य हो सकता है ? उसे भी वीर-कथा काव्य मानने की परिपाटी भर पड गई है जो इतिहास में चली आ रही है। इसी प्रकार हम सिद्ध कवियो की साधनाओं के पीछे रति-भाव का विकृत रूप पाते हैं । इन्द्रिय-जन्य विकारो को साधना का मार्ग बनाया जा रहा है। जयदेव के काव्य गीतगोविन्दम् मे पहली बार कृष्ण और शृङ्गार का पूर्ण संयोग होता है, साथ ही मधुर भाव की भक्ति का जन्म होता है। उन्होने कहायदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासु कलासु कुतूहलम् । मधुर कोमलकांत पदावली श्रगु तदा जयदेव सरस्वतीम् ।। यहाँ स्पष्ट ही कवि के तीन उद्देश्य है१ - हरिस्मरण । २ -- विलास - कल्ला कुतूहल । ३ - - श्रुति- मधुर-काव्य ( कोमलकान्त पदावली ) । जयदेव ने अपने प्रबन्ध के सम्बन्ध मे लिखा है - - श्री वासुदेव रतिकेलि कथा समेतकेत करोति जयदेव कविः प्रबन्धम् । जयदेव ने अपने प्रबन्ध-काव्य मगलाचरण श्लोक को ब्रह्मवैवर्त पुराण के राधा-कृष्ण के प्रथम दर्शन की कथा पर खडा किया है --- नेघे मेदुरमम्बरं बनभुवः श्यामास्तभाल दुर्भनैक्त भोरुहयं त्वमेव तदियं राधे गृहं प्रापय । इत्यं नन्दनिदेश तश्चलितयोः प्रत्युवकुञ्ज द्रुम राधा-माधव योजयंति यमुनाकूले रहः केलयः ।। यहाँ जयदेव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ये माघव ( कृष्ण ) परमपुरुष ही हैं और इन्हीं के अवतार है - - 'दशाकृति कृत कृष्णाय तुभ्य नमः ।' 'केशवधृत दर्शावध रूप जय जगदीश हरे ।' यह स्पष्ट है कि · गीत-गोविन्दम् की रचना तक कृष्ण परब्रह्म दशावतारो मूल पुरुप हो गये थे। भागवत में उनका गोपियों ( जीवात्माओं) से केलि - विलास रूपक-रूप मे वर्णित था । ब्रह्मवैवर्त पुराण मे मूल प्रकृति राधा ने गोपियो का स्थान ले लिया । जयदेव ने इस अवतारी। भाव के साथ काम-कलाविद् राधा-कृष्ण का भाव भी गुम्फित कर दिया। उन्होने राधा-कृष्ण के मान, दूती, अभिसार और निकुञ्ज - केलि एवं रास की विस्तृत चित्रपटी तैयार की । जयदेव की कविता का प्रभाव विद्यापति परं पडा । उनके कृणकाव्य का आधार ही रसशास्त्र है । यदि विद्यापति के कृष्ण-काव्य से राधा-कृष्ण के नाम हटा लिये जायें तो कुछ थोड़े से पंदों को छोडकर उनके सारे साहित्य अध्यात्म का आवरण उतर जाता है। यहीं बात सूफी कवियों के सम्बन्ध मे भी पूर्णतयः चरितार्थ है । कृष्णकाव्य के इतर कवियों की मनोवृत्ति के विषय में तो कोई सन्देह नही । मधुर भक्ति में लौकिक प्रेम को ही ईश्वरोन्मुख किया जा रहा है। नन्ददास और रसखान इसके उदाहरण हैं। श्रोगे चलकर मुग़लकालीन विलासिता का प्रभाव भी कृष्ण-काव्य पर चढ़ा और वह एकदम लोक-जीवन की भित्ति पर उतर आया । इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दी के आादि काल से शृङ्गार रस का निरूपण होता चला आ रहा है । परन्तु उस पर वीरता और का है । धारा प्रच्छन्न रूप से चल रही है। बाद को अपने युग की विलासिता और संस्कृत के उत्तरकालीन काव्यों और आचार्यों के प्रभाव के कारण जल ऊपर आ गया है और धारा साफ़ दिखलाई देती है । १६वीं शताब्दी के ५० वर्ष वीतते-वीतते उसने । केशवदास जैसे कवि को जन्म दे दिया है। अब उसके स्तत्व में संदेह ही नहीं रहा। शृङ्गार रस (रोति ) की रचनाओं का एक दूसरा पहलू भी है । इन रचनाओं का सूत्रपात अधिकतर संस्कृत रीति- प्राचार्यों के रस, अलकार, या ध्वनि सम्बन्धी सूत्रों को पकड़ कर हुआ है अथवा इस युग के कवियों को एक विशेष प्रेरणा यह भी रही है कि वे रीतिशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ लिखें और उदाहरण में अपने ही पद ( कवित्तसवैये) रचे । इन कवियों में ऊंचा पाडित्य न था, ऊंचा अध्ययन भी न था, न मौलिक तर्कशक्ति ही थी । हाँ, कवि-प्रतिभा कम न थी । फल यह हुआ कि एक बडा साहित्य तैयार हो गया जिसके एक दोहे में लक्षण और कवित्त और सवैये में उसका उदाहरण रहता । उदाहरण सदैव लक्षण पर पूरा उतरे, यह बात भी नहीं। कभी-कभी वे लक्षण एक हा ठहरते हैं, कभी लक्षण ही स्पष्ट और ग़लत हैं, परतु उदाहरण सदैव उच्च कोटि के होते हैं। वास्तव में प्राचार्यत्व का दम भरनेवाले रीतिकालीन कवि उच्च प्रतिभा सम्पन्न कविमात्र थे । इन रचनाओं की परम्परा में हमें सबसे पहले कृपाराम मिलते हैं, जिन्होंने १६वीं शतों के पूर्वाद्ध' में 'हिततरगिणीं' की रचना की, यद्यपि प० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल जैसे विद्वानों का अनुमान है कि यह ग्रन्थ बिहारी सतसई के बाद की रचना है ( देखिये कोपोत्सव स्मारक ग्रन्थ में उनका 'केशवदास' पर लेख ) । परतु असल में यह परपरा १६ वीं शताब्दी के में ही अथवा उसके कुछ पहले जाती है क्योंकि कृपाराम ने अपने पूर्ववर्ती कवियों के नाम लिये हैं । इनके समसामयिक गोप कवि और मोहनलाल मिश्र के प्राप्त ग्रन्थो रामभूपण और लकार चंद्रिका (गोप) और शृङ्गारसागर ( मोहनलाल मिश्र) का उल्लेख करना भी अनुचित न होगा । इन अप्राप्य ग्रन्थों के बाद हमें केशवदास के बड़े भाई पं० बलभद्र मिश्र का "नखशिख" सम्बन्धी ग्रन्थ मिलता है। रोतिग्रन्थों का एक दूसरा स्रोत भी हमारे पास है - वह है कृष्णभक्तिकाव्य की व्याख्या मे लिखे अन्थ । सूरदास की साहित्य-लहरी में नायिका-भेदरकारों का ही निरूपण है, यद्यपि उसमें न सब नायिका ही मिलेगी, न सब अलंकार ही । उनके शिष्य और "अष्टछाप" के कवि नन्ददास ने रसमंजरी' सम्बन्धी नायिका भेद का ग्रन्थ लिखा और उनके अन्य ग्रन्थो पर भी रस विवेचन और शृङ्गार रस सम्बन्धी प्राचीन मान्यताओं की पूरी छाप है । उसी समय अकबर के दरबार में रहीम ने ' बरवै नायिकाभेद" लिखा और तुलसी के ग्रन्थो पर भी उनके रस-शास्त्र के अध्ययन की पूरी छाप है । इन सब कवियों की दृष्टि 'रस' पर ही अधिक गई थी, वे सब उच्च-रसकोटि के कवि थे । परन्तु हिन्दी काव्य ससार में जिस रीति कवि की ओर हमारी दृष्टि सब से पहले जाती है, वे महान कवि केशवदास ही हैं । रीतिकाल के कवियों में वे हैं। केशव ने 'रामचंद्रिका' में रामकथा लिखी, परन्तु उसमें भक्ति-भावना नहीं है, पाडित्य प्रकाशन ने उनकी कविताओ को ऊहापोहात्मक कर दिया है। उसमें वासना का भी गहरा पुट है। उनकी दो रचनाएं वीर-प्रशस्ति हैं--- वीसलदेव चरित और रतन वावनी - परन्तु इससे वे वीरकाव्य के कवि नहीं हो जाते । हमें उनकी रचना की मूल प्रवृत्ति देखनी है । वास्तव में केशवदास ने अपने समय की सभी धारा को बल दिया है, परन्तु वे प्रतिनिधित्व रीति-काव्य-धारा का ही कर सके हैं। उनकी रीति सम्बन्धी दो पुस्तके हैं - - रसिकप्रिया ( शृङ्गार रस सम्वन्धी) और कविप्रिया (कविज्ञान और सम्बन्धी) । यही पुस्तके हमारे सामने उनके प्रकृत रूप को रखती हैं। केशव भक्तिकाल और रीतिकाल की सधि पर खडे हैं, इसलिए हम उन्हें भक्ति विषयक कथानक पर लिखते भो देखते हैं (रामचद्रिका - १६०१ ), परन्तु उनके पाडित्य और उनकी रीति-कालीन प्रवृत्ति ने भक्ति का गला घोट दिया है। वे मौलिकता के पीछे पड़ गये हैं । कथानक में मौलिकता है, छन्द पद पर बदले हैं, अधिकाश छन्द अलंकारों के उदाहरण जान पड़ने और इन सब मे ग्रबन्धात्मकता ऐसे खो जाती है कि ग्रन्थ गोरखधंधा रह जाता है। केशव की महत्ता यह है कि उन्होंने पहली वार हिन्दी साहित्य की संस्कृत साहित्य के सभी काव्यागां का परिचय करा दिया । जैसा हम ऊपर वता चुके हैं, रस और अलंकार अन्थों का प्रकाशन १५४१ ई० ( हिततरगिणी - कृपाराम ) ( से ही हो गया था। परन्तु ये प्रयत्न संस्कृत साहित्य-शास्त्र से बहुत से अधिक प्रभावित नहीं थे, न उस समय इस प्रकार की कोई परिपाटी खड़ी हुई जैसा वाद में हुआ । इनमें से किसी ने काव्य-शास्त्र का पूरा परिचय भी नहीं कराया था। अधिकाश कवि प्राचार्य रसवादी थे । केशवदास ने भामह, उद्भट औौर दंडी जैसे प्राचीन ग्राचार्यों का अनुसरण किया जो रस, रीति आदि को अलंकार मान लेते थे । उनकी प्रकृति तो स्वयम् चमत्कार - प्रिय थी और इसी से उन्होंने संस्कृत साहित्य की ऐसी पुस्तकों को अपनाया जो साहित्य शास्त्र के विकास की दृष्टि से बहुत पीछे पड गईं थीं। कदाचित् केशव की इसी अति प्राचीनवादिता के कारण हो उनके बाद रीतिग्रन्थ रचने की परिपाटी नहीं पड़ी - सब लोग उन प्राचीन ग्रन्थो से परिचित न थे । परिपाटी श्रावी शताब्दी के वाद चली और उसने परवर्ती ग्राचार्यों का प्राश्रय लिया। लकार ग्रन्थो का प्रणवन चन्द्रालोक और कुवलयानन्द के अनुसरण में हुआ और काव्य के रूप में रसको प्रधान मानने वाले ग्रन्था "काव्य-प्रकाश" और "साहित्य-दर्पण" को आधार गया । रीति-ग्रन्थ- प्रणयन की यह खण्ड परम्परा चितामणि त्रिपाठी से प्रारम्भ होती है, जिन्होंने १६४३ ई० के लगभग काव्य- विवेक, कविकुल-कल्पतरु,
92f824d1ed67a266ab2400f8f73b41e75cd9cbada10d5d73f19b5d7e0e76b7a7
pdf
इन्द्रियाँ शरीरके कान, नाक आदि अंगोंका नाम नहीं है। उन गोलकोंमें जो शक्ति है उसीको इन्द्रिय कहते हैं। इन पाँच ज्ञानेन्द्रियोंकी सहायता करनेवाली पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ (लिंग और योनि) । इन दसों इन्द्रियों में रसना (ज्ञानेन्द्रिय) और वाणी (कर्मेन्द्रिय) दोनोंका स्थान एक जीभ ही है। कर्मेन्द्रियोंकी अपेक्षा ज्ञानेन्द्रियाँ श्रेष्ठ और सूक्ष्म हैं । ज्ञानेन्द्रियोंका निग्रह करनेसे कर्मेन्द्रियोंका दमन आप ही हो जाता है। इन्द्रियाँ निरन्तर मनको विषयोंमें लगाती रहती हैं, पाँचोंमेंसे किसी एक भी इन्द्रियके विषयमें आसक्त होनेसे ही बड़ा अनर्थ हो जाता है, तब जो लोग इन पाँचोंके विषयमें आसक्त हैं उन अविवेकियोंके पतनमें तो शंका ही क्या है ? एक-एक विषयकी आसक्तिसे किस प्रकार नाश होता है इसका पता इस प्रचलित दृष्टान्तसे लग सकता है - एक एक इन्द्रियबिषय लोलुप मीन मरत तुरंत अनाथ सम भृंग कुरंग शब्द - हरिणको वीणाका सुर बहुत प्यारा लगता है। व्याधलोग जंगलमें जाकर बड़े मीठे सुरोंमें वीणा बजाते हैं। वीणाकी सुरीली तान सुनते ही हरिण चारों ओरसे आकर उसके आस-पास खड़े हो जाते हैं और सब कुछ भूलकर उसीमें तन्मय हो जाते हैं । इस अवस्थामें पारधी उन्हें मार डालता है । यह एक कर्ण - इन्द्रियके विषयमें आसक्त होनेका फल है। स्पर्श - हाथियों को पकड़नेवाले लोग गहरे गड्ढेके ऊपर बाँसका कमजोर मचान रखकर उसपर मिट्टी बिछा देते हैं और उसपर एक कागजकी हथिनी खड़ी कर देते हैं। हाथी काम-मदसे मतवाला होकर उसे स्पर्श करनेको दौड़ता है। मचानपर आते ही उसके भारी बोझसे मचान टूट जाती है और हाथी तुरंत गड्ढे में गिर पड़ता है। तब लोहेकी मजबूत जंजीरसे लोग उसे बाँध लेते हैं । वनमें निर्भय विचरनेवाला बलवान् गजराज एक स्पर्श - इन्द्रियके विषयमें आसक्त होनेके कारण सहजहीमें अनाथकी तरह बँध जाता है। रूप - दीपककी ज्योतिको देखकर पतंग मोहित हो जाता है। हजारों पतंग दीपककी लौमें पड़कर जल रहे हैं, इस बातको वह देखता है; परंतु रूपकी आसक्ति उसे दीपककी तरफ जबरदस्ती खींच लाती है। बेचारा दीपकमें जलकर प्राण खो देता है । रस - मछली जीभके स्वादके कारण जलसे बिछुड़कर मरती है। मछली पकड़नेवाले लोग बंसी- काँटेमें मांसका टुकड़ा या आँटेकी गोली लगा देते हैं। मछली उसका रस चखनेके लिये मतवाली - सी होकर दौड़ती है और पास आकर ज्यों ही काँटेपर मुँह मारती है त्यों ही मछली पकड़नेवाला रस्सीका झटका देता है, जिससे काँटा तुरंत ही मछलीके मुखमें बिंध जाता है और इस तरह वह मर जाती है । गन्ध - भ्रमर सुगन्धका बड़ा लोभी होता है। वह कमलके अंदर जाकर बैठ जाता है और उसकी सुगन्धमें आसक्त होकर सारी सुध-बुध भूल जाता है। सूर्य अस्त होनेपर जब कमलका मुख बंद हो जाता है, भ्रमर उसीके अंदर कैद हो जाता है। जो भ्रमर मजबूत- मजबूत काठमें छेद कर सकता है, वही सुगन्धकी आसक्तिसे कमलके कोमल पत्तोंको काटकर बाहर निकलनेमें समर्थ नहीं होता । रातको हाथी आकर कमलको उखाड़ लेता है। हाथीके दाँतोंमें कमलके साथ-साथ भ्रमर भी पिस जाता है। यह दशा एक नासिकाके विषयमें आसक्त होनेपर होती है। तब फिर क्या किया जाय ? इन्द्रियोंका तो काम ही विषयोंको ग्रहण करना है। जबतक इन्द्रियाँ हैं तबतक यह कार्य बराबर चलता है। आँखें रूप ही देखती हैं। कानोंमें शब्द आते ही हैं । नाकसे गन्धका ग्रहण होना नहीं रुकता । कहीं भी खड़े या बैठे रहो, किसी चीजका स्पर्श होता ही है। कुछ भी खायँ, जीभको स्वादका पता लगता ही है । इन्द्रियोंका नाश तो हो नहीं सकता, यदि हठवश नाश किया जाय तो जीवन बिताने में बड़ी कठिनाई होती है, एक भी इन्द्रियका अभाव बड़ा दुःखदायी होता है। अंधे, बहरे और गूँगे मनुष्यको कितनी अड़चन होती है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसका उत्तर यह है कि इन्द्रियोंके नाशकी आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता तो उनके बने रहनेकी ही है। ईश्वरने दया करके इन्द्रियाँ हमारे सुभीते और लाभके लिये ही हमें दी हैं। संयमपूर्वक उनका सदुपयोग करनेसे ही यथार्थ लाभ हो सकता है । यह हमारी ही भूल है कि हम विषयासक्तिसे उनका दुरुपयोग कर बार-बार कष्ट उठाते हैं। किस इन्द्रियकी क्यों आवश्यकता है, किससे कौन-सा कार्य नहीं करना चाहिये और कौन-सा करना चाहिये; इस विषयकी जानकारीके लिये कुछ विचार किया जाता है। कानआवश्यकता - कानसे ही शब्दका ज्ञान होता है । बहरा मनुष्य अच्छी बातें, महात्मा पुरुषोंके उपदेश और व्यवहारकी आवश्यक बातें नहीं सुन सकता, जिससे उसकी लौकिक और पारलौकिक उन्नतिमें बड़ी बाधा आती है। चोर-डकैत या पशु-पक्षीकी आहट सुनकर उनसे बचना भी कान होनेसे ही सम्भव है। क्या नहीं करना चाहिये - अपनी बड़ाई न सुने, (इससे अहंकार बढ़ता है) दूसरोंकी निन्दा न सुने, ( इससे घृणा, द्वेष, क्रोध और वैर आदि दोष अपने मनमें पैदा होते हैं, दूसरोंके पापके संस्कार मनपर जमते हैं ) । परचर्चा - फालतू बात न सुने, (इससे समय नष्ट होता है, निन्दा - स्तुतिको जगह रहती है, अपने मुँहसे झूठे शब्द निकल सकते हैं और घरका काम बिगड़ता है) । ईश्वर, देवता, गुरु, संत और शास्त्रोंकी निन्दा न सुने, (इससे अश्रद्धा होती है, अविश्वास बढ़ता है, नास्तिकता आती है, पाप लगता है, साधन बिगड़ता है) । वेश्याओंके गायन, अश्लील गीत, शृंगाररसकी गंदी कविता, धमाल, नाटकों और खेलोंके बुरे गायन, स्त्री- सम्बन्धी बातें, गंदे नाटक, उपन्यासादि न सुनें, ( इनसे मनमें विकार होता है; ब्रह्मचर्यका नाश होता है, मनकी चंचलता बढ़ती है, विलासिता आती है, धनका नाश होता है; व्यभिचारकी सम्भावना हो जाती है; भगवान्, धर्म, देश और जाति तथा कुटुम्बकी सेवाके कार्योंसे मन हट जाता है) । अपनेसे द्वेष रखनेवालेकी चर्चा न सुनें, (इससे वैर बढ़ता है) दूसरोंके भोगोंकी बातें न सुनें, (इससे लोभ बढ़ता है) । क्या करना चाहिये - व्यवहार - बर्तावकी अच्छी बातें सुनना, भगवान्का नाम, गुण और उनकी लीला कथाएँ सुनना; सत्संगमें भक्ति, ज्ञान-वैराग्य, सदाचार - सद्व्यवहारकी बातें सुनना; अपने दोष और दूसरोंके अनुकरण करनेयोग्य गुण सुनना; ईश्वरभक्ति, त्याग, वीरता और देश - भक्तिके सुन्दर गायन सुनना; महात्मा पुरुषोंका उपदेश सुनना और सद्गुरुसे परमात्माका गूढ़ तत्त्व सुनना आदि । स्मरण रखना चाहिये कि वेदान्त और भक्तिमें पहला साधन श्रवण ही है । त्वक् ( चमड़ी ) - आवश्यकता-गरम, ठण्डे, कड़े, कोमल पदार्थों की पहचान इसीसे होती है। यह इन्द्रिय न हो तो पहचाननेकी शक्तिके अभावसे मनुष्यका आगमें जलना, पानीमें गलना, काँटोंसे छिद जाना और कीड़े-मकोड़ोंसे काटा जाना बहुत आसान होता है । इसके बिना संसारमें काम चलना बड़ा कठिन होता है। क्या नहीं करना चाहिये - पर- स्त्रीका स्पर्श पुरुष और पराये पुरुषका स्पर्श स्त्री न करे, (इससे कामोद्दीपन होता है, व्यभिचार बढ़ता है)। कोमल गद्दे, तकिये, बिछौने, गलीचे आदिका सेवन भरसक न करे, (इससे आरामतलबी और आसक्ति बढ़ती है, अकर्मण्यता आती है) रेशमी, विदेशी या मिलके बने हुए वस्त्र न पहने (रेशम लाख जीवोंकी हिंसासे बनता है, विदेशी वस्त्रोंके सेवनसे देशका धर्म, धन और जीवन नाश हो रहा है। गरीबोंके मुँहका टुकड़ा छिनता है, पवित्रता नाश होती है, मिलोंके कपड़ोंसे भी पवित्रताका नाश और गरीबोंकी हानि होती है। महीन वस्त्रोंसे लज्जा जाती है, खर्च बढ़ता है, बाबूगिरी आती है) । यह इन्द्रिय बड़ी प्रबल है। बहुत से भाई-बहिन पाप समझकर विदेशी महीन वस्त्र इसीलिये पहनते हैं कि उनकी चमड़ीको मोटा वस्त्र सुहाता नहीं। स्पर्श-सुखकी इच्छा बड़े-बड़े लोगोंको पथभ्रष्ट कर देती है। रावणके विशाल साम्राज्य और बड़े कुलके सर्वनाशमें यही इन्द्रिय एक प्रधान कारण मानी जाती है। नहुषका इन्द्रपदसे पतन इसी इन्द्रियके कारण हुआ। अनेक बड़े-बड़े युद्धोंमें यही इन्द्रिय कारण थी, मुसलमानोंका पतन प्रायः इसी इन्द्रियकी विशेष लोलुपताके कारण हुआ । और भी अनेक उदाहरण हैं। स्त्रीके लिये पुरुषका और पुरुषके लिये स्त्रीका अंग-स्पर्श मोहसे बड़ा सुखदायी मालूम हुआ करता है; परन्तु धर्म और स्वास्थ्यरूपी सुन्दर नगरको उजाड़नेके लिये यह स्पर्शसुख एक भयंकर शत्रु है। क्या करना चाहिये - शीत- उष्ण और कंकड़-पत्थर आदिसे यथायोग्य बचना, कर्तव्यकी दृष्टिसे पुरुषके लिये अपनी विवाहिता स्त्रीका और स्त्रीके लिये विवाहित पतिका धर्मयुक्त मर्यादित स्पर्श करना, भगवान्की मूर्ति और संत, माता, पिता, गुरु आदिके चरणस्पर्श करना, श्रीगंगाजलका स्पर्श करना, गरीब, दीन-दुःखियोंकी सेवाके लिये उनके अंगोंका स्पर्श करना और शुद्ध मोटे वस्त्र पहनना आदि । आवश्यकता - आँख न हो तो परस्परमें लोग भिड़ जायँ, राह चलना कठिन हो जाय, गड्ढोंमें गिर जायँ, पत्थरोंसे टकरा जायँ, दीवालोंसे टकरा जायँ; संसारका प्रायः कोई काम ठीक सम्पन्न न हो, संत-महात्मा और भगवान्की मूर्तियोंके दर्शन न हों, प्रकृतिके पदार्थ कुछ भी देखनेको न मिलें। शास्त्रोंका - सद्ग्रन्थोंका अवलोकन होना असम्भव हो जाय; इन्हीं सब जीवनके आवश्यक कार्योंके लिये नेत्र- इन्द्रियकी बड़ी आवश्यकता है। क्या नहीं करना चाहिये- स्त्रियाँ पुरुषोंके और पुरुष स्त्रियोंके रूपको बुरी दृष्टिसे न देखें । जहाँतक हो सके, परपुरुष और पर- स्त्रीके अंग देखनेकी चेष्टा ही न की जानी चाहिये, (इससे कामोद्दीपन होकर ब्रह्मचर्यका नाश होता है ) बुरे नाटक, सिनेमा, खेल, तमाशे, नाच-रंग न देखे, (इससे व्यर्थ धन खर्च होता है, मनमें बुरे भाव पैदा होते हैं, कुसंगकी आदत पड़ती है, ब्रह्मचर्यका नाश होता है ।) मनको लुभानेवाले पदार्थ और घटनाएँ न देखें। गंदी चेष्टाएँ कदापि न देखें। ( महामुनि सौभरि मछलियोंकी कामक्रीड़ा देखकर ही प्रपंचमें फँसे थे। ब्राह्मणकुमार अजामिल क्षणभरके कामप्रसंगको देखकर ही महापापी बन गया था ।) परायी नयन- लुभावनी चीजें न देखें, (इससे मनमें कामना उत्पन्न होती है, लोभ बढ़ता है, जलन और दुःख होता है।) किसीकी चमकीली-भड़कीली पोशाक, टेढ़े-मेढ़े बाल और टेढ़ी चाल लोलुपतासे न देखें (इससे मोह पैदा होकर पतनका कारण होता है । बुरे भाव बहुत जल्दी ग्रहण किये जाते हैं) । क्या करना चाहिये - भगवान्, भक्त और संतोंका दर्शन करना, भगवल्लीलाओंका देखना, सत्शास्त्रों और सत्स्थानोंका देखना। भक्ति, प्रेम, वैराग्य और वीरता उत्पन्न करनेवाले चित्रोंका देखना, मार्ग देखकर चलना, यथायोग्य व्यवहारके लिये जगत्के पदार्थोंका अलोलुप दृष्टिसे निरीक्षण करना । जीभ - ज्ञानेन्द्रियके नातेआवश्यकता - इससे खट्टे, कड़वे, रूखे पदार्थोंका पता लगता है, यह न हो तो खाद्य पदार्थोंके स्वादसे उनके गुणका पता न लगे, मनुष्य मीठा - ही - मीठा या नमक- ही - नमक खाकर बहुत जल्दी मर जाये । कर्मेन्द्रियके नातेमनुष्यके लिये सबसे प्रधान साधन वाणी है। वाणीसे ही मनुष्यका पता लगता है। प्रायः वाणी ही मनुष्यको ऊँचानीचा, गुणी- दुर्गुणी, साधु-नीच और भला-बुरा साबित करती है। वाणीका कार्य जीभसे होता है, अतः इसकी बड़ी आवश्यकता है। ज्ञानेन्द्रियकी हैसियतसे क्या नहीं करना चाहिये - खट्टे मीठे, चरपरे पदार्थोंके स्वादमें नहीं फँसना चाहिये (इससे चटोरपन बढ़ता है, चटोरोंकी बड़ी दुर्गति होती है) । बहुत से लोग इसी कारण धर्मभ्रष्ट और दुःखी होते हैं। धर्म और स्वास्थ्यको भुलाकर चाहे जहाँ, चाहे सो खाना, पीना इसी इन्द्रियके कारण होता है। रोगी मनुष्य इसी इन्द्रियकी आसक्तिके कारण वैद्यकी आज्ञाके विरुद्ध कुपथ्य कर मृत्युको बुला लेते हैं। इसी इन्द्रियके कारण देवताओंतकके लिये बनी हुई रसोई भी पहले जूँठी कर दी जाती है। चटोरपनसे चोरीकी आदत पड़ती है। मीठा खानेकी आसक्तिसे मधुमेह और कृमिकी बीमारी, नमकीन तथा खट्टेकी आसक्तिसे वीर्यक्षयकी बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। बासी, तीखे, सड़े हुए (बड़े-अचार आदि) पदार्थोंकी आसक्तिसे तरह-तरहकी बीमारियाँ होती हैं और तामसिकता बढ़ती है। मद्य, मांस, डॉक्टरी दवाएँ और अपवित्र पदार्थोंका खान-पान न करे (इससे धर्म, धन, स्वास्थ्य, बुद्धि सबका नाश होता है।) चोरी, अन्यायका अपवित्र अन्न न खाय ( इससे बुद्धि बिगड़ती है। महाराज भीष्मतककी बुद्धि बिगड़ गयी थी । तमोगुणी बुद्धिसे तमोगुणी कार्य होते हैं और इससे उसका पतन हो जाता है) । कर्मेन्द्रियकी हैसियतसेकड़वा न बोले, ( इससे दूसरोंकी आत्माको बड़ा दुःख पहुँचता है, वैर बढ़ता है।) किसीकी निन्दा या चुगली न करे, (इससे दूसरोंके पापोंका हिस्सा मिलता है। घृणा, द्वेष, वैर, क्रोध, हिंसा आदि दोष पैदा होते हैं। पराया और अपना नुकसान होता है। मामले-मुकद्दमे लग जाते हैं और पापोंके चित्र हृदयपर अंकित होते हैं ।) अपनी बड़ाई न करें, (इससे पुण्यका नाश होता है।) खुशामदपसंदगी आती है। अपना दान और परोपकार प्रकट न करे, (इससे उस पुण्यका नाश होता है। महाराज ययाति अपने दान-पुण्यका कथन अपने मुँहसे करनेके कारण ही पुण्योंके नाश होनेसे स्वर्गसे गिरा दिये गये थे।) किसीकी खुशामद न करे, (इससे झूठ बोलनेकी और चापलूस बननेकी आदत पड़ जाती है, तेज घट जाता है।) परचर्चा या फालतू बातें न करे, (इससे समय नष्ट होता है। झूठे शब्द निकलने लगते हैं। व्यर्थ निन्दास्तुति होती है। अनावश्यक संस्कार मनपर जमते हैं, पराये छिद्र देखनेकी आदत पड़ जाती है।) मिथ्या न बोले, (इससे प्रायः समस्त धर्मोंका नाश होता है, विश्वास चला जाता है, वाणीका तेज घट जाता है।) ताना न मारे, आक्षेप न करे, किसीकी अंगहीनता या कर्महीनताका दोष बताकर अर्थात् तू अन्धा है, बहरा है, कोढ़ी है, पापी है, तू राँड है आदि शब्दोंसे सम्बोधन न करे, ( इससे सुननेवालेके चित्तमें बड़ा दुःख होता है ।) अपशब्द न बोले, अश्लील न बोले, शृंगारके गाने न गावे, कामोद्दीपक शब्द न बोले, (इससे वीर्यनाश होकर अधःपतन होता है।) किसीसे अपने लिये कुछ भी न माँगे, (इससे तेज घटता है। माँगनेवाला लोगोंकी दृष्टिसे गिर जाता है, मानका नाश होता है।) हरि, गुरु, शास्त्र, संत, माता-पिता, गुरु- जनोंकी दोषचर्चा न करे ( इससे अश्रद्धा, अविश्वास, धृष्टता और उच्छृंखलता बढ़ती है) । ज्ञानेन्द्रियकी हैसियतसेक्या करना चाहिये - वस्तुओंके गुण-दोष पहचानकर जो वस्तु धर्म और स्वास्थ्यके अनुकूल हो तथा आयु, सत्त्व, बल, आरोग्यता, सुख और प्रीति आदिको बढ़ानेवाली हो, सात्त्विक हो, जिसके सेवनसे बुद्धि सात्त्विक हो सके ऐसी वस्तु सेवन करे। भगवान्के प्रसादका भोग लगावे, गंगाजल आदि पान करे-भगवान्का चरणामृत ले । कर्मेन्द्रियकी हैसियतसेसत्य, मीठे, हितकारी, उद्वेग न करनेवाले, सीधे और प्यारे वचन बोले, नम्रतासे बोले, भगवान्का नाम, गुण, जप-कीर्तन करे, अपने दोष और दूसरोंके अनुकरणीय गुणोंको प्रकट करे तथा थोड़ा बोले । ऐसी बातें कहे जिनसे दूसरोंके चित्तमें प्रसन्नता हो, सुनने और माननेमें सुख पहुँचे, इहलोक और परलोकमें कल्याण हो । नासिका - आवश्यकता - नासिका गन्धके लिये है । यह न हो तो मनुष्य गंदी जगह रहकर और गंदी वस्तुओंका सेवनकर बीमार हो जाय। अच्छे पुरुषोंको और देवताओंको गन्दी वस्तुएँ प्रदान कर उनके अपमानका कारण बने । इन्हीं सब अभावोंकी पूर्तिके लिये नाककी आवश्यकता है । क्या नहीं करना चाहिये- अतर, फुलेल, एसेंस, सेंट आदिकी गन्धमें आसक्त न होवे, ( इससे विलासिता बढ़ती है । बुरी आदतें पड़ती हैं, धन और धर्म जाता है। उस सुगन्धको पाकर दूसरे लोगोंकी भी वैसी ही इच्छा होती है। पैसे नहीं होनेसे
97d1b9487e2e74a05a395c116a59735ff5a1f97c078df81932e0c8bfeaeaa8d3
pdf
रामायण से पता चलता है कि खेती बडी भारी कला समझी जाती थी, क्योंकि उस समय वेदों के साथ-साथ शिक्षा का मुख्य विषय खेती और व्यापार था । श्रीरामचन्द्रजी भरतजी से पूछते है कि " तुम किसानों और गोपालों के साथ अच्छा बर्ताव रखते हो या नहीं।" खेती इतने जोरों से होती थी कि अयोध्याजी किसानों से भरी हुई थी । धान की उपज बहुतायत से दिखाई गई है। राजा इस बात का गर्व करता है कि उसका राज्य अन्न-धन से भरा हुआ है। गाँवों वर्णनों मे यह कहा गया है कि वे चारों ओर जुती हुई धरती से घिरे हैं ।' हर गाँव मे ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र और हर पेशेवाले जिनकी जीवन मे सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है, जैसे नाई, धोबी, दर्जी, कहार, चमार, बढई, लुहार, सुनार, ग्वाले, गडरिये आदि होते थे। गाँव का सरदार या मुखिया भी कोई होता था, और पञ्चायतों से हर गाँव अपना स्वाधीन वन्दोबस्त किया करता था । रक्षा के तिलमापा अणुप्रियङ्गवो गोधूमाश्च मसूराश्च खल्वाश्च खलकुलाञ्चेति । वृहदारण्यकोपनिषत् अ० ६ । व्रा ३। म १३ "दस तरह के ग्रामीण अन्न होते है -- धान, (चावल) जो, तिल, उडद, अणु, ( साँवा - कगनी, मसूर, खल्व, कुल्था, गेहूँ ।" व्रोहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मुद्गाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियगवश्च मे ऽणवञ्च मे व्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाञ्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ।१८।१२। इस मन्त्र का अर्थ स्पष्ट है । १ अयोध्याकाड सर्ग ६८, वालकाड सर्ग ५, अयोध्याकाड, ३५१४, अयोध्याकाड सर्ग ६२ । लिए राजा को उसका उचित कर उगाहकर मुखिया दिया करता था, और उसके बदले राजा बाहरी वैरियों से गाँवों की रक्षा करता था, फिर चाहे वह बैरी मनुष्य हो, कृमि, कोट, पतंग हो, रोग, दोप अकाश, सूखा, पानी की बाढ़, आग, टीडी आदि कुछ भी हो । राजा दसवे भाग से लेकर छटे भाग तक कर लेकर भी राष्ट्र की रक्षा नही कर सकता था, तो उसे प्रजा का चौथाई पाप लगता था । किसान को त्रेता और द्वापर मे खेती की आजकल की सी साधारण विपत्तियाँ झेलनी पड़ती थीं। चूहे, घूस, छछूंदरे वीज खा जाती थीं, चिडियाँ आदि अंकुरों को नष्ट कर देते थे । अत्यत सूखा या बहुत पानी से फसले वरबाद हो जातीं थी । अच्छी फसलों के लिए उस समय भी भाति - भाति के उपाय करने पडते थे । परन्तु खेती को जवकभी हानि पहुँचने की सम्भावना होती थी राजा रक्षा का उपाय करने का जिम्मेदार था । और जवकभी दुर्भिक्ष पडता था राजा के ही पाप से पड़ता था। राजा रोमपाद के राज मे उन्ही के पाप से काल पड़ा बताया जाता है। राजा का कर्त्तव्य था कि दुर्भिक्ष निवारण के सारे उपाय जाने और करे । १ आदायबलिपड्भाग यो राष्ट्र नाभिरक्षति । प्रतिगृह्णाति तत्पाप चतुर्थाशन भूमिप ।। २ वालकाड, मर्ग १, अयोध्याकाड, सर्ग १००, वालकाड, सर्ग "एतस्मिन्नेव काळेतु रोमपाद प्रतापवान् ।। अगेषु प्रथितो राजा भविष्यति महाबल । तस्य व्यतिक्रमाद्राजो भविष्यति सुदारुणा, । अनावृष्टि सुधोरा वै सर्वलोकभयावहा ।। इत्यादि । व्यतिक्रमात्तुराजोचितधर्मविलोपनादिति तिलकव्याख्या । इस युग मे भी गोशालाये बहुत उत्तम प्रकार से रक्खी जाती थीं । इस युग मे घोप पल्लियॉ' अर्थात् ग्वालों के गाँव के गाँव थे और ग्वाले बहुत सुखी और धनी थे और दूध, मक्खन, घी आदि लिए प्रसिद्ध थे । द्वापर के अन्त मे नन्दगाँव, गोकुल, वरसाना और वृन्दावन तक गोपालों के गाँव थे और कंस जैसे अत्याचारी और लुटेरे के राज मे भी मथुरा के पास इन गाँवों मे दूध, दही की नदी बहती थी । और नन्द और वृषभान जैसे बड़े अमीर ग्वाले रहते थे । इस समय मे भी कुम्हार, लुहार, ग्वाले, ज्योतिषी, बढई, धीवर, नाई, धोवी, विनकार, सुराकार ( कलवार ), इपुकार ( तीर बनानेवाले ), चमडा सिम्झानेवाले घोड़े, के रोजगारी, चित्रकार, पत्थर गढनेवाले, मूर्ति बनानेवाले, रथ बनानेवाले, टोकरी बनानेवाले, रस्सी वनानेवाले, रङ्गरेज, सुनार, धातु निकालनेवाले नियारिये, सूखी मछली वेचनेवाले, सुईकार, जौहरी, अस्त्रकार, नकली ढात बनानेवाले, दाँत के वैद्य, इतर बेचनेवाले, माली, थवई, जूते बनानेवाले, धनुप बनानेवाले, औषध बनानेवाले और रासायनिक आदि की चर्चा इस समय के ग्रन्थों मे आई है । १ तैत्तिरीय ब्राह्मण, काण्ड १ । प्र० ४ । अ० ९ । ख० २ ॥ से मालूम होता है कि गाये तीन वार चरने को भेजी जाती थी और उनकी अच्छी सेवा होती थी । तथाहि "त्रिपु कालेषु पशव तृणभक्षणार्थ सञ्चरन्ति । तत्तन्मध्यकाले तु रोमन्थ कुर्वन्तो वर्त्तन्ते । इति ।" अर्थ स्पष्ट है । २ शुक्ल यजुर्वेद अध्याय १६ और ३०, रामायण अयोध्या काड सर्ग १००, बालकॉड, सर्ग ५ । हम वेद के मन्त्रो का उदाहरण नही देते क्यो कि सारा अध्याय ही उदाहरणीय है । अत पाठक किसी भी मन्त्र को कपड़े की बिनाई की कला भी अपनी हद को पहुंच चुकी थी। सोने और चाँदी के काम के कपड़े, जरी के काम के पीताम्बर आदि भी बनते थे । जिनमे जगह-जगह पर रत्न और नगीने टके हुए थे । ब्राह्मण लोग कौशेय वस्त्र पहनते थे और तपस्वी छाल के बने कपड़े पहनते थे। रंगाई भी अच्छी होती थी। रुई के मैल को उड़ाने के लिए इस युग मे एक यन्त्र काम मे आता था । ऊन के रेशम के बड़े अच्छे-अच्छे प्रकार के महीन और रंगीन और चमकीले कपड़े बनते और बरते जाते थे । उठाकर देख सकते है । तथा बालकाण्ड का सारा सर्ग ही यहाँ पठन योग्य है। १ "कौशेयानि च वस्त्राणि यावत्तुष्यति वै द्विज " इत्यादि अयोध्याकाड अ० ३२ । ग्लोक १६ । "भूषणानि महार्हाणि वरवस्त्राणि यानि च " अयोध्याकाण्ड ३० । ४४ "मुन्दर काण्ड का नवॉ सर्ग ही द्रप्टव्य है । पाठक देख सकते हैं । "माहर्पोत्फुल्लनयना पाण्डुरक्षौमवासिनीम्" इत्यादि अयोध्याकाड ७ । ७ "जातरूपमयैर्मुख्यैरगद कुण्डलं शुभं । सहेमसूत्रैर्मणिभी केयूरैर्वलयैरपि । इत्यादि अयोध्याकाड ३२ ।५ "दान्तकाञ्चनचित्रागर्वैद्यश्च वरासनँ । महार्हास्तरणोपेतैरुपपन्न महाधनं । इत्यादि सुन्दरकाड १० । २ " शैक्मेषु च विशालेषु भाजनेष्वप्यभक्षितान् । ददर्श कपिशार्दुलो मयूरान् कुक्कुटॉस्तथा । सुन्दरकाड ११ ।१५ ऐसा जान पड़ता है कि पेशेवालों की पंचायते भी उस समय अवश्य थी । जो पंचायत का सभापति होता 'श्रेष्ठ' कहलाता था । ' खेती के काम मे स्त्रियों का भी भाग था। खेती का काम इतना पवित्र समझा जाता था कि उसके लिए यज्ञ करने में स्त्री पुरुप दोनों शामिल होते थे ।' जहाँ पुरुप अन्न उपजाता था वहाँ किसान की स्त्री अन्न के काम को पूरा करती थी। उसके स्वादिष्ट भोजन तैयार करती थी । अन्नपूर्णा देवी का आदर्श पालन करती थी । भारत के जगलों से लाक्षा आदि रंगने की सामग्री किसान लोग इकट्ठी करके काम मे लाते थे और इसका व्यापार इतना वढा चढा "ता रत्नवसनोपेता गोष्ठागारावत सिकाम् । यन्त्रागारस्तनीमृद्धा प्रमदामिव भूपिताम् । सुन्दरकाड ३ । १८ १ अथर्व वेद, १।९।३, शतपथ ब्राह्मण, १३।७।१।१, ऐतरेय ब्राह्मण, १३।३९/३, ४।२५।८-९, ७११८१८, छान्दोग्य उपनिषद्, ५१२१६, कौपीतकी उपनिषद ४१२०, २६ ४११५, बृहदारण्यकोपनिपद ११४।१२। २ येनेन्द्राय समभर, पयास्युत्तमेन ब्रह्मणा जातवेद । तेन त्वम इहवर्धयेम सजाताना श्रैष्ठ्य आधेह्येनम् ।। अथर्व १ । ९ । ३ अग्ने । जिस भन्त्र से तू देवताओ को उत्तम अन्न प्राप्त कराता है उमी मन्त्र से इम पुरुष को " "श्रेष्ठ" पद का अधिकारी बना । " श्रेष्ठो राजाधिपति समाज्यैष्ठयें श्रेष्ठ्य राज्यमाधिपत्य गमयत्वहमेवेद सर्वमसानीति" । छान्दोग्य अध्याय ५ खण्ड ६० । मत्र का अर्थ स्पष्ट है । "श्रय स्वाराज्य पर्येति" ४१२०, "भूतानि श्रैष्ठयाय युज्यन्ते" २॥६ "इद श्रैष्ठ्याय यम्यते" ४।१५ कौपीतकी ब्राह्मणोपनिषत् ॥ अर्थ स्पष्ट है । "श्रेयास हिसित्वेति" १।४।१२ वृहदारण्यकोपनिषत् । था कि भारत से बाहर के देशों में भी रंग की सामग्री विकने को जाया करती थी । गाँव में अन्न, पशु, आदि से बदलकर और जरूरत की चीजे लेने की चाल तब भी थी जैसी कि आज अन्न से बदल कर लेने की चाल बाकी है। बदलने की यह रीति उस समय इसलिए प्रचलित न थी कि उस समय सिक्कों का चलन न था । सिक्कों का तो उस समय सतजुग से प्रचार चला आया था । हिरण्यपिण्ड निष्क, शतमान, सुवर्ण इत्यादि सोने के सिक्के थे । कृष्णाल, एक छोटा सिक्का था, जिसमे एक रत्ती सोना होता था । १ बात यह है कि उस समय गौए सस्ती थीं और उनके पालने का खर्च बहुत नहीं था। गौओं की संतान सहज ही वढती थी और उत्तम से उत्तम पोषक भोजन घी, दूध, दही कौडियों के मोल था । अनाज देश मे ही खर्च होता था । रेल की क्राचियों मे लद-लदकर कराँची के बंदरगाह से बाहर नहीं जाता था । इस तरह किसान लोग धनी और सुखी थे और व्यवहार व्यापार मे सच्ची अदला-बदली से काम लेते थे। उस समय धन और सम्पत्ति का सच्चा अर्थ समझा जाता था। पर जो भारीभारी व्यापारी या साहु महाजन थे वे सोने, चाँदी, मोती, मूंगे और रत्नों को इकट्ठा करते थे । राजा और राज कर्मचारी भी अमीर होते थे, जिनके पास सोने, चादी और रत्नों के सामान बहुत होते थे । परंतु ऐसे लोग भारी संख्या मे न थे । भारी संख्या किसानों की ही थी । सोना, चांदी, रत्न, टंक, वंग, सीसा, लोहा, ताँबा, रथ, घोडे, गाय, पशु, नाव, घर, उपजाऊ खेत, दास-दासी इत्यादि इस युग मे धन, सम्पत्ति की वस्तुयें समझी जाती थीं । जहाँ कहीं ब्राह्मणों के दान पाने की चर्चा है वहाँसे पता लगता है कि उस समय धन कितना था और किस तरह वॅट जाता था । राजा जनक ने साधारण दान मे एक-एक बार हजार-हजार गौए, बीस-बीस हजार अशर्फियाँ विद्वान् ब्राह्मणों को दी है । एक जगह वर्णन है कि एक भक्त ने ८५ हजार सफेद घोड़े, दस हजार हाथी और अस्सी हजार गहनों से सजी दासियाँ यज्ञ करनेवाले ब्राह्मण को दीं । इसी युग के सिलसिले मे महाभारत का समय भी आता है । यह द्वापर का अंत और कलियुग के आरंभ मे पडता है । महाभारत के समय मे हिन्दुस्तान के जो राज्य थे उन सबकी राज्य व्यवस्थाओं मे खेती, व्यापार और उद्योग के बढ़ाने की ओर सरकार की पूरी दृष्टि थी । इस विषय के लिए एक अलग राजविभाग था। सभा पर्व मे नारद ने और बातों के अलावा राजा युधिष्ठिर से यह भी पूछा है कि रोजगार मे सब लोगों के अच्छी तरह से लग जाने पर लोगों का सुख बढ़ता है। इसलिए तेरे राज मे रोजगारवाले विभाग में अच्छे लोग रक्खे गये है न ?" इस अवसर पर रोजगार के अर्थ मे वार्ता शब्द आया है । वार्ता या वृत्ति मे, वैश्यों या किसानों के सभी धन्धे समझे जाते है। श्रीमद्भगवद्गीता मे, जो महाभारत का ही एक अंश १ छान्दोग्योपनिषद ४११७७, ५।१३।१७ और १९, ७१२४ शतपथ ब्राह्मण ३।४८, तैत्तरीय उपनिषद १९५११२, बृहदारण्यकोपनिषद ३।३१।१, शतपथ ब्राह्मण २१६।३९, ४२११११,४३४६, तैत्तिरीय ब्राह्मण ३११२५, ११-१२ है, भगवान् कृष्ण ने कहा है कि खेती, बनिज और गोपालन ये तीनों धन्धे स्वभाव से ही वैश्यों के लिए है। खेती मे वह सब कारवार शामिल है जो खेती की उपज से सम्बन्ध रखते है । और गोरक्षा मे पशुपालन का सारा कारबार शामिल है। इसी तरह वनिज मे सब तरह का लेनदेन और साहूकारी शामिल है इन सबका नाम उस समय वार्ता था, और आजकल अर्थशास्त्र है। २. द्वापर का अन्त महाभारत काल मे व्यवहार और उद्योग-धन्धों पर लिखते हुएश्री० चिन्तामणि विनायक वैद्य ने अपने अपूर्व ग्रंथ 'महाभारत - मीमांसा' में खेती और बागीचे के सम्बन्ध मे जो कुछ लिखा है वह हिन्दी में ही है इसलिए यहाँ हम उसे ज्यों का त्यों दे देते हैः"महाभारत काल में "आजकल की तरह लोगो का मुख्य धन्धा खेती हो था और आजकल इस धन्धे का जितना उत्कर्ष हो चुका है, कम-से-कम उतना तो महाभारत काल में भी हो चुका था । आजकल जितने प्रकार के अनाज उत्पन्न किये जाते है वे सब उस समय भी उत्पन्न किये जाते थे । खेती की रीति आजकल की तरह थी । वर्षा के अभाव के समय बडे-बडे तालाब बनाकर लोगो को पानी देना सरकार का आवश्यक कर्तव्य समझा जाता था । नारद ने युधिष्ठिर से प्रश्न १ कक्चित्स्वनुष्ठिता तात वार्ता ते साधुभिजनै । वार्ताया समिते नून लोकोय सुखमेधते ॥ -~महाभारत, सभापर्व उस समय में विद्या के चार विभाग थे । त्रयी, दडनीति, वार्ता और आन्वीक्षिकी । त्रयी, वेद को कहते थे । दड नीति, धर्मशास्त्र था । और आन्वीक्षिकी, मोक्ष शास्त्र या वेदात या । वार्ता, अर्थशास्त्र था । किया है कि 'तेरे राज्य में खेती वर्षा पर तो अवलबित नही है न ? तूने अपने राज्य में योग्य स्थानो पर तालाब बनाये है न ?" यह बतलाने को आवश्यकता नहीं कि पानी दिये हुए खेतो की फसल विशेष महत्व की होती थी । उस जमाने में ऊख, नीलि ( नील ) और अन्य वनस्पतियो के रगो की पैदावार भी सीचे हुए खेतो में की जाती थी । ( बाहर के इतिहासो से अनुमान होता है कि उस समय अफीम की उत्पत्ति और खेती नही होती रही होगी। ) उस समय बडे-बडे पेडो के बागीचे लगाने की ओर विशेष प्रवृत्ति थी और खासकर ऐसे बागीचो में आम के पेड लगाये जाते थे । जान पडता है कि उस समय थोडे अर्थात् पाँच वर्षों के समय में आम्म्र वृक्ष में फल लगा लेने को कला मालूम था । यह उदाहरण एक स्थान पर द्रोण पर्व में दिया गया है । 'फल लगे हुए पाँच वर्ष के आम के बागीचे को जैसे भग्न करें। इस उपना से आजकल के छोटे-छोटे कलमी आम के बागीचो की कल्पना होती है । यह स्वाभाविक बात है कि महाभारत में खेती के सम्बन्ध में थोडा ही उल्लेख हुआ है। इसके आधार पर जो बाते मालूम हो सकती है वे उपर दी गई है । x x किसानो को सरकार की ओर से बीज मिलता था, और चार महीनो की जीविका के लिए अनाज उसे मिलता था, जिसे आवश्यकता होती थी। किसानो को सरकार अथवा साहूकार से जो ऋण दिया जाता था, उसका ब्याज फी सैकडे एक रुपये से अधिक नही होता था। खेती के बाद दूसरा महत्व का धंधा गोरक्षा का था । जगलो में गाय चरानें के खुले साधन रहने के कारण यह धंधा खूब चलता था। चारण लोगो को बैलो की बडी आवश्यकता होती थी, क्योंकि उस जमाने में माल लाने १ चूतारामो यथाभग्न पचवर्प फलोपग । लेजाने का सब काम बैलो से होता था। गाय के दूध-दही की भी बडी आवश्यकता रहती थी । इसके सिवा गाय के सम्बन्ध में पूज्य बुद्धि रहने के कारण सब लोग उन्हे अपने घर में भी अवश्य पालते थे । जब विराट राजा के पास सहदेव ततिपाल नामक ग्वाला बनकर गया था, तब उसने अपने ज्ञान का वर्णन किया था । उससे मालूम होता है कि महाभारत काल में जानवरों के बारे में बहुत कुछ ज्ञान रहा होगा । अजाविक अर्थात् बकरो भेडो का भी बड़ा प्रतिपालन होता था। "जाबालि" शब्द "अजापाल" से बना । उस समय हाथी और घोडो के सम्बन्ध की विद्या को भी लोग अच्छी तरह जानते थे। जब नकुल विराट राजा के पास ग्रथिक नाम का चाबुक-सवार बनकर गया था तब उसने अपने ज्ञान का वर्णन किया था। उसने कहा "मै घोडो का लक्षण, उन्हे सिखलाना, बुरे घोडो का दोष दूर करना और रोगी घोडो की दवा करना जानता हूँ ।" महाभारत में भरवशास्त्र अर्थात् शालिहोत्र का उल्लेख है । अश्व और गज के सम्बन्ध में महाभारत-काल में कोई ग्रंथ अवश्य रहा होगा । नारद का प्रश्न है कि "तू गजसूत्र, अश्वसूत्र, रथसूत्र इत्यादि का अभ्यास करता है न भालूम होता है कि प्राचीन काल में बैल, घोडे और हाथी के सम्बन्ध में बहुत अभ्यास हो चुका था और उनकी रोगचिकित्सा का भी ज्ञान बहुत बढाचढा था । १ क्षिप्र च गावो बहुला भवति । न तासु रोगो भवतीह कश्चन ।। २ अश्वाना प्रकृति वेद्भि विनय चापि सर्वश । दुष्टाना प्रतिपत्ति च कृत्स्न च विचिकित्सितम् ॥ त्रिप्रसृतमद शुष्मी षष्ठिवर्षी मतगराट् ॥३॥ म-भा सभापर्व, अ० १५१ महाभारत - मीमासा मे ऊपर की लिखी बातों से यह जाहिर है कि द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभवाले समय मे गाँव के रहनेवाले किसान सुखी और धनी थे । उनकी दशा आजकल कीसीन थी। उनके पास अन्न-धन की बहुतायत थी । वे अपना उपजाया खाते और अपना बनाया पहनते थे। बकरा, भेड़, आग और धरती बेचने की चीजे नहीं थी । जान पड़ता है कि उस समय तक खेतों के रेहन और बय करने की प्रथा नहीं चली थी। इस रीति का आरम्भ चन्द्रगुप्र के समय से ज्ञान पड़ता है। उस समय भी यह अधिकार सबको नहीं मिला था। मुसलमानों के समय मे रेहन और वय करने की रीति जोरों से चल पड़ी, और सवत् १८४४ में तो कम्पनी सरकार ने नियम बना दिया, कि कानूनगो के यहाँ रजिस्ट्री कराके जमोदार अपनी जमीन रेहन या वय करा सकता है । साठवे वर्ष मे हाथी का पूर्ण विकास अर्थात् यौवन होता है और उस समय उसके तीन स्थानो से मद टपकता है । कानो के पीछे, गडस्थलो से और गुह्य देश मे । महाभारत के जमाने की यह जानकारी महत्वपूर्ण है । इससे विदित होता है कि उस समय हाथी के सम्बन्ध का ज्ञान किंतना पूर्ण था। १ अजोऽग्निवंरुणो मेष सूर्य्योऽश्व पृथिवी विराट् । धेनुर्यज्ञश्च सोमञ्च न विक्रेया कथञ्चन । - -महाभारत कलजुग का प्रवेश १. बौद्धकाल कलजुग के आरम्भ के हजार-डेढ हजार बरस तक वही दशा समझनी चाहिए जो महाभात के आधार पर मीमासा मे दी गई है । आज से लगभग ढाई हजार वरस पहले भगवान बुद्ध का समय था । गाँव के सम्बन्ध मे बुद्धमत के ग्रंथों में से बहुत सी बाते निकाली जा सकती है। उनसे यह पता चलता है कि भारत का समाज उस काल मे भी देहाती ही था । किसान लोग अपने-अपने खेत के मालिक थे और गाँव के किसानों की एक जाति सी बनी हुई थी । अलगायी हुई भारी-भारी रियासते, जमींदारियाँ या ताल्लुके न थे । एक जातक मे लिखा है कि जब राजा विदेह ने संसार छोडकर सन्यास ले लिया तो उन्होंने सात योजनों की अपनी राजधानी मिथिला छोडी और सोलह हजार गाँव का अपना राज छोडा । इससे पता चलता है कि सोलह हजार गाँववाले राज्य के भीतर मिथिला नामका एक ही शहर था। उस समय गाँवों के मुकाबले शहर संख्या इतनी थोडी थी कि अगर हम एक लाख गाँवों के पीछे सात शहरों का औसत मानले और यह भी मानले कि आज कल की तरह सारे भारत मे सात लाख से ज्यादा गाँव नहीं थे तो सारे भारत मे उस समय शहरों की कुल गिनती, पचास से अधिक नहीं ठहरती ।
425be8baa9ddd9738b442891e008964070d411bb59e0c195c81f1fc8fa635368
pdf
१६ वीं शताब्दीमें भारतमें राष्ट्रीयताकी एक लहर दौड़ गई थी। और तज्जन्य प्रभावको संवर्धन तथा उसको स्थायित्व देने के लिए एक महासभाका भी जन्म हुआ । इस संगठन में पाश्चात्य विद्या पारंगत भारतीय विद्वान ही पहले पहल सम्मिलित हुए, जो अपने राष्ट्रका निर्माण और समाजका सुधार करना चाहते थे । उनमें प्रायः अपनी उच्चताका न तो मिथ्या दम्भ था, न पश्चिमके प्रति घृणा थी और न पश्चिमके अन्धानुकरणकी मनोवृत्ति । वैसे इस प्रकारकी उदार विचारधारा राजाराम मोहनराय के समयमें उत्पन्न हुई थी । रामकृष्ण परमहंस भी धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रोंमें उदार विचारोंवाले थे । ब्रह्म समाजके ही समान बम्बईमें प्रार्थना समाजका जन्म हुआ जिसके प्रशंसकोंमें रामकृष्ण भण्डारकर, महादेव गोविन्द रानाडे और गोपाल कृष्ण गोखले प्रभृत्ति लोग थे जिन्होंने आगे चलकर भारत सेवक संघ बनाया । इस प्रकार १६ वीं शताब्दीके भारतीय समाजमें हम दो प्रकारके वर्ग पाते हैं । पहला जो उग्र स्वभावका था जो पाश्चात्य शिक्षा, धर्म, दर्शन और संस्कृतिको हीन मानता था और दूसरा जो भारतीय समाजको न तो प्रकारण ऊँचा और न पाश्चात्य समाजको नीचा मानता था बल्कि बुद्धिके द्वारा पूर्व और पश्चिमकी विचारधाराओंका अध्ययन करता हुआ अपने सामाजिक उत्थानका मार्ग प्रशस्त करना चाहता था । पहला वर्ग उन लोगोंका था जो किसी समय अपने में लघुताकी मनोवृत्ति अपना चुके थे और अब उसकी प्रतिक्रिया के कारण ठीक उल्टी दिशामें चलने लगे थे । दूसरा वर्ग उन लोगोंका था जो पाश्चात्य सम्पर्कसे विचलित नहीं हुए थे तथा जहाँ जो उचित विचार था उसको उन्होंने अपना लिया था । इस दूसरे वर्गने अपने रहन सहन, राजनीतिक तथा सामाजिक दर्शनकी अनेक कमियोंको ईमानदारीके साथ स्वीकार किया और इसलिए उसने पश्चिमके ज्ञानसे लाभ उठाना चाहा । परन्तु कुछ भी हो एक बात दोनों वर्गों मार्केकी है। वह यह कि दोनों प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे भारतीय समाजकी अनेक कमियों और कुरीतियोंको समझ गये थे । इसीलिए पहले वर्गने भी चाहे वह पश्चिमके प्रति उग्र विचारोंवाला ही क्यों न हो उन सामाजिक दोषोंको दूर करना चाहा, जिनके कारण पाश्चात्य धर्म और विचारोंका भारतमें क्षिप्रतासे प्रचार हो रहा था । भारतीय समाजपर पाश्चात्य विचारधाराका जो प्रभाव पड़ा उसकी चौथी तथा अन्तिम स्थिति भारतीय और पाश्चात्य संस्कृतियोंका समीकरण है । और इसी समीकरणका परिणाम आजका भारतीय समाज है । परिवर्तनकी इस दशाका प्रारम्भ, हम देख चुके हैं, १९ वीं शताब्दीमें ही हुआ परन्तु उसके प्रत्यक्ष परिणाम २० वीं शताब्दी के दूसरे चरणसे परिलक्षित हुए। महात्मा गांधी इस युगके सर्वाधिक प्रभावशाली पुरुष हुए जिन्होंने अपने ऊपर पाश्चात्य विचार धाराके ऋणको स्पष्टतः स्वीकार किया । ऊपर हमने पाश्चात्य प्रभावकी विभिन्न दशाओंको देखनेका प्रयत्न किया है जिनसे चलकर आजका हमारा समाज बना है। आजका भारतीय समाज पाश्चात्य विचारधारा और संस्कृतिमें ही ढला है । समाजके जिस बड़े वर्गमें अभी शिक्षाका प्रसार नहीं हुआ है वहाँ भी अंग्रेजी शिक्षाका और समयके प्रभावसे आश्चर्यजनक सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि समाजके एक बड़े भागकी आत्मा अब भी भारतीय है परन्तु पाश्चात्य चिन्ताने हमारे रहन-सहन और जीवनकी मान्यताओंको बदल दिया है । अलगसे भी देख सकते हैं । हम यहाँ भारतीय प्रभावोंको यह कहना शायद अनुचित न होगा कि भारतमें राष्ट्रीयताकी विचारधारा पश्चिमकी ही देन है जो अंग्रेजी शिक्षाके द्वारा यहाँ आई । निस्संदेह राष्ट्रीयता शब्दसे हम प्राचीन कालमें अपरिचित न थे । इसके स्तवनमें अनेक सुन्दर वैदिक मंत्रोंकी रचना भी हुई थी तथापि वर्तमान युगमें भारतीय राष्ट्रीयताका उदय अंग्रेजी शासन और शिक्षाके कारण हुआ । हम इस युगमें वेदोंसे राष्ट्रीयताका भाव कम ले सके किन्तु जान स्टुअर्ट मिलके विचारोंने शिक्षित भारतीयोंको अधिक प्रभावित किया । इन विचारोंके ही प्रभावसे भारत में स्वाधीनता प्राप्तिका आन्दोलन शुरू हुआ । अंग्रेज़ी शिक्षाके कारण बर्क, मैकाले, पेन और मैज़िनी, गैरीवाल्डी भारतीय विद्यार्थियोंके निकट आ गये जिनके विचारोंका प्रभाव उनपर पड़ना स्वाभाविक था । आगे चलकर इंगलैण्ड और योरपके राजनीतिक दर्शकोंने भारतके राष्ट्रीय आंदोलन विचारोंका आधार प्रदान किया । इस प्रभावको आंदोलन के पहले उभार में अनेक भारतीयोंने साभार स्वीकार भी किया । दादाभाई नौरोज़ीने १८६७ ई० में ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन के सम्मुख कहा - 'देशी लोग अब इसको जानने और इसका अनुभव करने लगे हैं कि मनुष्य-मनुष्यके बीच न्याय किसको कहते हैं .......विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्थामें इस बातके प्रमाण हैं कि लोगोंका कितना बुद्धि प्रकाश हो रहा है ।.... लोग सर्वोच्च राजनीतिक दशा, जो किसी भी राष्ट्रकी आकांक्षा हो सकती है, का पाठ सीख रहे हैं । इसी प्रकार गोखलेने कहा - 'शान्तिका फल विधि और व्यवस्थाका संस्थापन, पाश्चात्य शिक्षा और भाषण स्वतन्त्रता और फलतः उदार संस्थाओंका समुचित सम्मान अंग्रेज़ी शासनके लाभ हैं । १६ वीं शताब्दीके योरपमें राष्ट्रीयता और प्रजातन्त्रवादी विचार विकसित हो रहे थे और वही भारत भी आये । २० वीं शताब्दी में रस्किन और टॉल्सटॉय आदिने भारतीयों को प्रभावित किया । भारतीयोंकी राजनीतिक चेतना पश्चिमके दर्शनका प्रत्यक्ष फल है । अंग्रेजी शिक्षाने हमारे वैधानिक विचारोंपर भी प्रभाव डाला । देश में जो नयी न्याय प्रणाली स्थापित की गई, उसका आधार पूर्णतः पाश्चात्य था । पश्चिमी न्यायदर्शन के सहारे आजके क़ानून बने । वैयक्तिक कानूनोंपर भी प्रभाव पड़ा । प्रारम्भमें तो स्मृतियोंमें लिखित कानूनोंका सुधार धीरे-धीरे हुआ परन्तु बादमें हिन्दू और मुसलमान कानून बहुत कुछ बदल गये । कानूनी संशोधन असाधारण महत्वके थे । विवाह, सम्पत्ति और उसका बँटवारा इत्यादिकी नीव बिल्कुल नये सिरे से पड़ी । हिन्दू कोड ऐक्ट जिसके भावी प्रभावसे प्रायः सभी परिचित हैं, इसका उदाहरण है । पश्चिमके सम्पर्कसे भारतीयोंकी चिन्तन प्रणाली बदली । स्वतन्त्रता, समानता, नागरिक अधिकार, राज्य व्यवस्था और राजनीतिक दर्शन इत्यादि के विषयमें भारतीय व्यक्ति संसारके अन्य व्यक्तियोंके समान सोचने लगा जिसका फल यह निकला कि भारतीय राष्ट्र संसारके अन्य राष्ट्रोंके निकट प्राया । भारतीयोंका बौद्धिक पुनर्जागरण पाश्चात्य चिन्तनका सबसे महत्वपूर्ण फल है । इस युगके महानतम व्यक्ति गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर और नेहरू इसी जागरणके प्रतिनिधि हैं । भारतीय समाज पर अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य विचार-धारा का प्रभाव यहाँ यह भी कहना अत्युक्ति न होगी कि भारतीयोंका पाश्चात्य जगत्से सम्बन्ध न जुड़ता, तो सम्भवतः आज भारतमें विज्ञान शब्दसे ही हम परिचित न होते । भारत सदा पश्चिमका इसलिए ऋणी रहेगा कि वर्तमान युगमें पश्चिमने उसको विज्ञानकी शिक्षा दी । एक बार उस सत्यको जानकर भारतीय इस क्षेत्रमें चुप न बैठे । जगदीश चन्द्रबोस, पी० सी० राय, सी० वी० रमन और आजकल के अनेक भारतीय वैज्ञानिकों की गवेषणाने संसारके ज्ञानका संवर्धन किया है । मशीनोंसे पहले हम अपरिचित थे और इसलिये डरते थे किन्तु वैज्ञानिक शिक्षाने मशीनोंके प्रति हमारे विचारोंको बदल दिया । आज भारतीय समाज बड़ी तेज़ीके साथ अपनी पुरानी कृषक संस्कृतिका त्यांग करता हुआ पाश्चात्य मशीनोंकी संस्कृतिमें प्रविष्ट हो रहा है । इस नवप्रवेशके फल अच्छे हों या बुरे यह प्रश्न यहाँ विचारणीय नहीं है परन्तु इतना अवश्य है कि भारत अब योरप - जैसा दिखलाई पड़ने लगा है। रेल, तार, डाक, बिजली, रेडियो, हवाईजहाज़ तथा अन्याय आविष्कारोंने हमारे प्राचीन विश्वासोंकी जड़को जिस प्रकार हिला दिया है, उसका उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैं । पाश्चात्य विचारोंने वस्तुतः वर्त्तमान भारतीय समाजकी काया को बदल दिया है । इनका एक प्रमुख प्रभाव धर्मके ऊपर पड़ा । पहले तो धर्म अन्धविश्वास आदि के साथसे अलग हुआ और फिर उसका सामाजिक महत्व समाप्त हो गया । मानवसमाजको एकसूत्रमें बाँधनेके लिए आजकल धर्म बिल्कुल असमर्थ है। यदि ऐसा होता, तो आजकी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिकी दशा न जाने क्या होती । भारतके हिन्दू, मुसलमान, ईसाई तथा अन्यान्य धर्मावलम्बी और उनके पारस्परिक सहयोगका आधार धर्म कभी नहीं हो सकता । समानता और बन्धुत्वकी भावनाने सभी धर्मोकी तात्विक एकताकी ओर लोगोंको अधिक उन्मुख किया । तत्वतः सभी धर्म एक हैं । बहुतोंके लिए तो धर्म व्यक्तिगत पसन्दकी चीज़ बन गई । परन्तु ऐसे लोग समाज-विरोधी नहीं माने जाते । योगिराट् अरविन्दमें धर्मके दूसरे पहलूका विकास हुआ । इस युग में यदि किसी नये धर्मका जन्म हुआ तो वह मानव धर्म है, जो सार्वदेशिक और सार्वभौम है । आज संसारके किसी कोने में जो कुछ होता है, उसका हमारे जीवनपर सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारा सामाजिक दर्शन समाजवाद, और साम्यवादके सिद्धांतोंसे अनुप्राणित हो रहा है। और यह कौन नहीं मानेगा कि ये सभी वाद पश्चिममें उपजे हैं ? यदि पाश्चात्य विचारोंका भारतीय समाजपर एक अन्य प्रभाव देखना है तो आधुनिक भारतीय साहित्यका अध्ययन करना पड़ेगा। और यदि यह सत्य है कि साहित्य समाजका दर्पण है, तो यह भी सत्य है कि हमारा शिक्षित वर्ग न केवल पाश्चात्य शिक्षा या विचारों से प्रभावित है प्रत्युत बहुत कुछ उनके अनुकूल ढल चुका है । भारतीय साहित्यको ठीक समझना आजकल तब तक सम्भव नहीं है, जब तक कोई पाश्चात्य साहित्यको न जानता हो । बंगालीमें यह प्रभाव सबसे पहिले परिलक्षित हुआ और फिर उसके माध्यम से यह प्रभाव हिन्दी में आया । पश्चिमकी नयी-नयी मनोवैज्ञानिक खोजोंको आप इस साहित्यमें पायेंगे । साहित्यके पात्रोंका समझना उनके जटिल जीवनके समझने के समान ही कठिन है । काव्यमें नये-नये प्रयोग आलोचनाके नये नये सिद्धान्त, निबन्ध प्रादिका विकास पाश्चात्य साहित्यके अध्ययनका परिणाम है 1 ये सब परिवर्तन तो हमारे जीवन दर्शन में हुए हैं । कुछ प्रभाव अपने मूर्त रूपमें देख पड़ते हैं । भारतीयोंका रहन-सहन अब दूसरा होने लगा है । पाश्चात्य वेश-भूषा, प्रसाधन और शिष्टाचारके नियमोंको हम लोगोंने अपना लिया है और उनको अपनाकर हम लज्जा या ग्लानिका अनुभव नहीं करते। भारतीय नगरोंमें स्थान-स्थानपर योरपकीसी दूकानें खुलती जा रही हैं । होटल, रेस्तराँ तथा अन्य ऐसे ही स्थान बिलकुल योरपीय हैं । जाति-पाँतिका इनमें भेद नहीं है । शिक्षा संस्था अब कुर्सियोंपर बैठकर पढ़ाई होती है और गुरुकुलकी शिक्षा प्रणाली कुछ स्थानों तक ही एक नये रूपमें सीमित है । स्त्री स्वातन्त्र्यका भाव भी इस युगमें पश्चिमी विचारोंका प्रभाव है, जहाँ स्त्रियोंको पुरुषोंके समान ही अधिकार प्राप्त हैं । आधुनिक भारतीय नारी मध्यकालीन नारीसे बिल्कुल भिन्न हैं और यदि समाजका इसी प्रकारसे परिवर्तन होता गया ( जो अवश्य होगा ) तो रीतिकालकी किसी नायिकाका हमें अन्दाज़ तक न मिलेगा । पाश्चात्य शिक्षा और चिन्ताका भारतीय समाजपर प्रभाव सर्वांगीण है । वह केवल शिक्षित समाज तक ही सीमित नहीं है, सुदूर गाँव में जहाँ अशिक्षित, निर्धन अन्धविश्वासी और पिछड़ी हुई मानवताका वास है, वहाँ भी पाश्चात्य सभ्यता की किरणें पहुँच रही हैं। क्योंकि वहाँके युवक नगरोंमें आकर अंग्रेजी प्रणालीसे शिक्षित होते हैं । आते हैं वे दूसरा रूप लेकर और जाते हैं बदलकर । हमारी लोक-भाषाओं में भी यह पाश्चात्य प्रभाव परिलक्षित है । अंग्रेज़ों शताब्दियोंके सम्पर्कमें उनमें अनेक नये शब्द भर दिए हैं जिनसे विचारोंको व्यक्त करनेमें लोगोंको सुविधा होती है । परन्तु आवश्यक नहीं है कि उपर्युक्त सभी परिणाम शुभ ही हों । जहाँ एक ओर भारतीय समाज पाश्चात्य विचारोंसे परिचित होकर अत्यधिक प्रगतिशील हुआ है वहाँ पाश्चात्य समाजके अनेक दोष भी उसमें आ गये । जिन अनेक मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और आर्थिक समस्या के कारण योरपके व्यक्तिका जीवन प्रशान्त और जटिल हो गया है, उनसे आजका भारतीय छूटा नहीं है । पश्चिमकी व्यावसायिक बुद्धि, मानवीय सुखोंके साधनोंका केन्द्रीकरण इत्यादि सभी भारतमें भी प्रवेश पा गये हैं । अंग्रेजी शिक्षाका आगमन देशमें उन परिस्थितियोंके बीच हुआ, जिन्होंने भारतीयोंकी सर्जनात्मक शक्तिका ह्रास कर दिया क्योंकि शिक्षा आजीविका दिलानेका साधन बन गई । प्रारम्भ में जब पढ़ने-लिखनेका कम मात्रामें काम था तब लोगोंको पढ़-लिखकर बेकार नहीं बैठना पड़ता था परन्तु शिक्षाकी प्रगति जिस वेगसे हुई, शिक्षित व्यक्तियोंकी आजीविका के लिए काम उतना न बढ़ा । अतः उक्त शिक्षाने आज देशके शिक्षित नवयुवकोंमें बेकारीकी विषम स्थितिको पैदा कर दिया है । हमारी उक्त पाश्चात्य शिक्षाप्रणाली में प्रारम्भसे लेकर अन्त तक विद्यार्थियोंको शारीरिक श्रमसे दूर रक्खा जाता है । फलतः सुशिक्षित व्यक्ति सिवा कार्यालय अथवा पाठशालाके अन्यत्र जीविकोपार्जनके लिए सर्वथा अनुपयुक्त है। शिक्षामें संतुलनका अभाव ही इस आर्थिक समस्याका रहस्य है ।: सांकृतिक दृष्टिसे उक्त शिक्षा के परिणामस्वरूप समाजमें मध्यवर्गका विकास हुआ है जो सामाजिक क्रांतियोंका अग्रदूत है; परन्तु पाश्चात्य शिक्षासे उत्पन्न सामाजिक अथवा आर्थिक समस्या आजका कोई व्यक्ति बच नहीं सकता । विभिन्न राष्ट्रोंके परस्पर निकट आ जानेके कारण नवीन समस्याएँ अवश्य उत्पन्न होती भारतीय समाज पर अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य विचारधारा का प्रभाव २०३ भारतीय समाज जो पिछली कुछ शताब्दियोंमें दूसरोंसे अलग रह रहा था उसके लिए नवीन अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएँ बड़ी जटिल मालूम पड़ रही हैं । परन्तु वह जटिलता केवल भारतीयोंके लिए नहीं है बल्कि समूचे संसारके लिए उतनी ही नयी हैं, जितनी भारतके लिए । भारत और पश्चिमके सम्बन्ध वस्तुतः अच्छे ही रहे हैं । आजके युग में कोई जाति, समाज या राष्ट्र अकेला नहीं रह सकता । विश्वके अन्य राष्ट्रोंके साथ मिलकर रहना पड़ेगा । यह मिलन यदि आकस्मिक होगा तो आपसमें भ्रम और नासमझदारीके उत्पन्न होनेकी पूरी सम्भावना है । अतः अच्छा यही होगा कि लोग पहलेसे ही एक-दूसरेको समझे रहे । इस दृष्टिसे यह कहा जा सकता है कि पश्चिमके साथ भारतीयोंका सम्पर्क पारस्परिक सहयोगकी भावनाको बल देनेवाला हुआ है । पश्चिमसे अब डरनेकी कोई बात नहीं है । योरपीय भाषाओं के ज्ञानसे और योरपीय समाजके सम्पर्कसे अब हम वहाँके लोगोंको अच्छी तरह समझ गये हैं। उनकी दुर्बलताओं और गुणोंसे पूर्णतः अवगत हैं । इसलिए इधर कुछ वर्षोंसे जिस नवीन भारतीय समाज और संस्कृतिका विकास हो रहा है, वह हमारी परम्पराओंके अनुकूल तथा भारतीयोंके स्वभाव और आकांक्षाओं का वहन करनेवाला है । इधर हमारे समाजका परिष्कार हो रहा है । पश्चिमकी उन सभी बातोंको आत्मसात् करके जिनसे मानव समाज सुखी और सम्पन्न हो सकता है भारतीय पुनः अपने प्राचीन साहित्य, दर्शन, अपनी प्राचीन कलाओं तथा आदर्शांसे अनुप्राणित होने लगे हैं। इससे एक सर्वथा नवीन भारतीयका जन्म हो रहा है जो पूर्व और पश्चिमके सत्य, शिव और सुन्दरका प्रतीक है। संसार ऐसे व्यक्तिको शीघ्र ही देखने की प्रतीक्षामें है । यह सम्भवतः पश्चिमकी भारतको अन्तिम देन है ।
62787cacfe48633f5946530a940dac64018e019386efff06dabc465c412999da
pdf
उपमान, उनकी उत्प्रेक्षाएँ, उनके रूपक सभी जीवन के हृश्यपक्ष के साथ संयुक्त होकर जगत् का मांसल चित्र प्रस्तुत करने वाले है । कृष्ण-भक्ति-काव्य का सौन्दर्य ब्रज के भक्ति सम्प्रदायों के कवियों में जितनी पूर्णता के साथ दृष्टिगत होता है उतना अन्य कवियों में नहीं है । गोस्वामी हितहरिवंश, व्यास, ध्रुवदास, श्रीभट्ट, स्वामी हरिदास, भगवत रसिक, सह्चरि सुख, हरिव्यासदेव आदि कवियों को वर्णन सामग्री इतनी समृद्ध है कि उसका अध्ययन भक्ति काव्य के अध्ययन में बड़ा सहायक सिद्ध होगा। लेखक ने प्रसिद्ध कवियों तक अपना अध्ययन सीमित रखा है अतः उपर्युक्त कवियों के काव्य-सौन्दर्य का पर्यवेक्षरण नहीं हो सका। राम काव्य के अध्ययन में तुलसी और केशव को प्रतिनिधि कवि के रूप में स्थान दिया गया है । तुलसी के विशाल साहित्य से विपुल वर्णन-सामग्री एकत्र कर उसका सौन्दर्य सामने लाया गया है । लेखक ने तुलसी के वैवको ध्यान में रखकर सौन्दर्य के जो चित्र चयन किये है उनमें मानस और विनयपत्रिका का ही प्राधान्य है। केशवदास के अध्ययन में लेखक ने संस्कृत ग्रन्थों की छाया का आतिशय्य प्रदर्शित करके केशव के चमत्कार को एक तरह से समाप्त सा कर दिया है। केशव की प्राय. सभो सुन्दर सूक्तियों के पीछे संस्कृत छाया का संघान जहाँ एक ओर लेखक के अध्ययन का द्योतक है वहाँ दूसरी ओर केशव की पांडित्यपूर्ण अपहरण प्रवृत्ति का भी परिचय देता है । केशव की वर्णन-सामग्री में सामाजिक जीवन की गहरी छाप है । उनको वर्णनसामग्री उनके अपने चारों ओर के वातावरण से एकत्र को हुई भोग्य सामग्री है । रीतिकालीन काव्य को लेखक ने 'शृंगार काव्य का अभिधान देकर उसके स्वरूप का श्राख्यान शृगार की निम्न भावना के आधार पर किया है । इस काल के समस्त काव्य को निर्जीव कह देना भी लेखक की दृष्टि से अनुपयुक्त नहीं है। उनके मत में इस काव्य में शृंगार न होकर शृगार - रसाभास मात्र है। प्रेम, प्रीति या स्नेह के नाम पर नग्न कामाचार को लहरें हो इस काव्य का प्रारण है। कामुकता का यह काव्य क्षणिक जीवन को सुख संचय में बहलाने का जब बार-बार प्रयास करता है तब उस मद्यप का सहसा स्मरण हो श्राता है जो अपने हताश एवं परवश अस्तित्व को रंगीनी से चमकाकर वास्तविकता को भूलने में प्रयत्नशील हो । x x इस विलासी काव्य में जीवन को श्राद्यन्त प्रभावित करने की शक्ति नहीं थी इसलिए इसका प्रायने विखरे बिखरे बुदबुदों के रूप में ही हुआ।" लेखक ने इस युग के काव्य को अवसादपूर्ण विलास का जर्जर काव्य मानकर ही उसका मूल्यांकन किया है । लेखक की नैतिक भावना इतनी प्रबुद्ध प्रतीत होती है कि वह काव्य-सौन्दर्य विधायक कला का मूल्यांकन भी नैतिकता के मापदण्ड से ही करना उचित समझता है । तटस्य कला-समीक्षक के लिए नैतिकता का यह आरोप कला-समीक्षा में कहाँ तक समीचीन है इसका विश्लेषण न करते हुए में इतना ही कहना चाहता हूँ कि लेखक को भावना कुछ भी हो किन्तु उन्होंने ग्रगले पृष्ठो में जिस समृद्ध वर्णन-सामग्री का चयन किया है वह काव्य-सौन्दर्य और कला - समीक्षा दोनों दृष्टियों से अनुपम है। बिहारी की समृद्ध वर्णन-सामग्री को पढ़कर पाठक विस्मय विमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता । नागर और ग्राम्य चित्रो का जो हिदी काव्य और उसका सौदर्य चित्र लेखक में प्रस्तुत किया है वह सवथा नूतन है। घनाद की वशन-राामग्री में भा माघर चमत्कार की अनुपम छटा दृष्टिगत होती है। क्षेत्र में हिन्दी काव्य और उसका सौदय" प्रत्य के प्रतिपाद्य विषय का परि वय देने के बाद में इस प्रध्ययन को उपादेयता के सम्बन्ध में दो शब्द बहतर इस भूमिका को समाप्त करता है । इस ग्रन्थ के निर्माण से विगत छह सौ वर्षको हिदी काव्यधारा के उस का वोध होता है जावस्त योजना अथवा वणन सामग्री द्वारा अध्यक्षका अभिन्न हुई है। लेखक ने केनेवर को ध्यान में रखपर केवल प्रतिनिधि कवियों के काव्य-मौन्दर पर ही विचार किया है किन्तु इस कारण काय सौ की समग्रता में कोई न्यूनना नहीं पाई। इसी प्रणाली पर यदि अप्रस्तुत योजना के पूरक पवन नलावा भी अध्ययन किया जाय तो हिंदी वाव्य या समस्त सौदय (क्लापप) उघाटित हो सक्गा । इस ग्रत्यको पद मेरी यह घारणा और अधिक पुष्ट हुई है कि हिन्दी वाव्य की वर्णन-सामग्री के प्राधार पर काव्यसोन्याहा बाघ नहीं होना वरन् हिन्दी भाषी प्रदा की तत्कालीन विविध परिस्थि नियों का भी चित्र आकार ग्रहण करता है। प्रस्तुत प्राथ में लखन ने जिस सामग्री का गवषणात्मक प्रगोलन किया है वह सम्मानिसम ब्रह्मविचार से लेकर स्थूलनम दनित्र जीवन की मोटी माटी घटनाग्रा मौर वस्तुमा को मूतमन्त करने में समय है। सौदय का एक पक्ष (वमन-सामग्री) जब इतना समद्ध और परिपुष्ट है तब उसके सभी पक्षों का उद्घाटन तो निश्चय ही सोय की निरविनय वभव सामग्री सामने लाने में समय होगा । डा० धोकान अनका विवेचनात्मक इतिहास और हिंदी काव्य के सौन्दय का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर हिन्दी माहित्य जगन में पना विशिष्ट स्थान बना दिया है। वे स्वाचिक के रूप में माहित्यिक जात में प्रवेश कर रहे है । उतिभा में नवा मे की मौलिकता के साथ स्वमन को व्यक्त करने का निर्माता है उनको में कृतित्व का निपुणता के साथ मध्ययन को गम्भीरता है । हिली जगत के समय इस वध को प्रस्तुत करत समय मुझे पूर्ण विश्वास है कि विद्वसमाज में इस ग्राथ वई सम्मान प्राप्त होगा मोर भविष्य में डा० भोपाजी को लेखनी से और भो प्रयरन हिन्दी जगत को उपमध होगे । -विजयेन्द्र स्नातक रोडर हिन्दी विभाग विली विश्वविद्यालय अपनी ओर से 'हिन्दी-अलंकार- साहित्य' की भूमिका में मैं लिख चुका हूँ कि 'थ्योरी एण्ड प्रैक्टिस श्रॉफ अलंकार्स इन हिन्दी' विषय पर लिखा हुआ मेरा थीसिस आगरा विश्वविद्यालय में 'हिन्दी साहित्य में अलंकार' नाम से पी-एच० डी० उपाधि के लिए स्वीकृत हुआ; थोसिस के दो भाग थे जिनको ५-६ वर्ष बाद परिवर्द्धन परिशोधन के अनन्तर 'हिन्दी-अलंकार-साहित्य' और 'हिन्दी काव्य और उसका सौन्दर्य' नाम से अधिकारी विद्वानों के समक्ष उपस्थित कर रहा हूँ । 'हिन्दी - अलंकार - साहित्य' वैज्ञानिक अध्ययन था, इसलिए पर्याप्त परिवर्तन हो जाने पर भी उसकी टाइप की हुई प्रति में प्रकाशित रूप का पूर्वाभास सहज ही मिल जाता था; परन्तु प्रस्तुत प्रयत्न साहित्यिक अनुशीलन है, अतः लेखक के व्यक्तित्व के साथ-साथ इसके नवीन रूप में समुचित परिवर्तन आ गया है । साहित्य वस्तुपरक उतना नही जितना कि व्यक्तिपरका, इसलिए साहित्यिक कृति लेखक के व्यक्तित्व से अनिवार्यतः अंकित होती रहती है । मूल कृति में रासो-काव्यों से वर्तमान काव्य तक की ग्रालंकारिक सामग्री का अध्ययन था, इसलिए सन् १९५१ तक इसको 'हिन्दी साहित्य की प्रालंकारिक प्रवृत्तियां' नाम से प्रकाशित करने का मेरा विचार था । ( जिसका संकेत 'आलोचना की थोर, प्रथम संस्करण, पृष्ठ १५, कुटनोट में दिया गया था ) । पीछे यह सोचकर कि 'आलंकारिक सामग्रो' और 'लकारिक प्रवृत्तियों' पदों से अधिकतर पाठक 'अलंकार - शैली' का अर्थ लेकर यह समझ बैठते हैं कि इस कृति में भिन्न-भिन्न कवियों द्वारा प्रयुक्त अलंकार छोटे गये होगे, मैने प्रकाशन से कुछ दिन पूर्व इस पुस्तक को नया नाम दे दिया है। प्रस्तुत रूप में इसका क्षेत्र 'वीर-काव्य' से 'शृंगार-काव्य' तक ही है, आधुनिक काव्य पर किसी विश्वविद्यालय में स्वतन्त्र अनुसन्धान हो रहा है उसके स्वीकृत और प्रकाशित होने पर प्रस्तुत प्रयत्न आद्यन्त पूर्ण हो जायगा । यह स्वीकार करते हुए कि साहित्य कवि और समाज के समानान्तर रूप का प्रतिबिम्वक है, इस ग्रन्थ में मेरा प्रयत्न कवियों के व्यक्तित्व के सूक्ष्म अनुशीलन का रहा है, और मैने स्पष्टतर स्थूल प्रस्तुत सूत्रों का अनुगमन न करके कवि के व्यक्तित्व को समझने के लिए सूक्ष्म एवं घूगिल प्रस्तुत योजना का सहारा लिया श्र है । कवि के अनन्त अवचेतन में परिस्थिति की प्रतिच्छाया वनकर जो नीहारराशि व्याप्त रहती है वह अलोकसामान्य होने के कारण चर्म-चक्षुओं से ग्राह्य न हो सके, परन्तु सहृदयों की भावन-प्रक्रिया के लिए वह अस्पृश्य नहीं है । निर्भय होकर राज-पथ पर कवि के साथ विचरण करने के कारण समाज में ख्याति प्राप्त करनेवाले
55cbd3dbbd65ca2f2f8c56a4017f9bfda0f6f92697e082f8360556ef145797f3
pdf
राज्य को एक सावयवी अथवा जीवधारी मानते हैं। उनके अनुसार राज्य मे वही गुण एव लक्षण पाये जाते हैं जो एक जीवित शरीरधारी मे पाय जाते हैं। इस पद्धति के अन्तर्गत राज्य के विभिन्न अगो कार्यों तथा प्रवृत्तियों की व्याख्या ऐसे ही की गई है जैसे मानो वह स्वय एक जीवधारी हो । हरबर्ट स्पेम्सर ने इस पद्धति का व्यापक प्रयोग किया है। उसने राज्य और मानव शरीर में एकरूपता बताई है। यह पद्धति भी एक स्वतन्त्र पद्धति न होकर केवल एक दृष्टिकोण मात्र हो है। इस पद्धति का सबसे बड़ा दोप यह है कि राज्य और जीवधारी में पूर्ण एकरूपता दर्शाना उचित नहीं है। दोनों में केवल उपरी समानता हो सकती है और इस समानता के आधार पर सही निष्कर्ष नही निकाले जा सकते । राजनीति विज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से उपरोक्त सभी पद्धतियो को परम्परागत पद्धतियों की सज्ञा दी जाती है क्योंकि बीसवी शताब्दी में दो नई अध्ययन पद्धतियो ना विकास हुआ है जिन्ह आधुनिक पद्धतियाँ कहा जाता । ये हैंआनुभविक वैज्ञानिक पद्धति एव व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग । इन दोनो पद्धतियो का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है । आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति (Fmprical Scientific Metbod) शासन के प्रति हमारा दृष्टिकोण अधिकाधिक वैज्ञानिक होता जा रहा है, इस कारण राजनीति विज्ञान में आनुभविक वैज्ञानिक पद्धति का अधिक प्रयोग होने लगा है। इस पद्धति के अन्तर्गत मानव सस्थाओं तथा कार्यकलापो का इस प्रकार अध्ययन किया जाता है कि जिससे कुछ मौलिक राजनीतिक सिद्धान्तो की खोज की आ सके। इस पद्धति में अवलोकन और प्रयोग के द्वारा जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, साख्यिको तथ्यो द्वारा उनको जाँच की जा सकती है और फिर उनकी सीमा निर्धारित की जाती है। इस दृष्टि से हम इस पद्धति को पर्यवेक्षण अथवा अवलोवन प्रयोग एवं सास्यिको पद्धतियों का मिश्रण भी वह सकते हैं। अब इसे सरकार और प्रशासन के अध्ययन के लिए एक आवश्यक एव उपयोगी प्रणाली माना जाता P यदि हम वैज्ञानिक पद्धति की व्याख्या परें तो हम यह कह सकत है कि वैज्ञानिक पद्धति से तात्पर्य उस पद्धति स है जो तथ्यों को व्यवस्थित रूप में एकत्रित करती है, जो कार्य तथा कारण के बीच पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करती है तथा जो सामान्य नियमो को खोज निकालने का प्रयत्न करती है । शेपर्ड के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति के चार मुख्य लक्षण हैं- ( 1 ) तथ्यों को एकत्रित तथा क्रमबद्ध करना, (2) उनसे कार्य तथा कारण के बीच सम्बन्ध स्थापित करके सामान्यीकरण करना, (3) पूर्वकथन अथवा भविष्यवाणी करने की क्षमता तथा (4) निष्कर्षों को जाँच की सम्भावना । वैज्ञानिक पद्धति के लिए यह भी आवश्यक है कि अध्ययनकर्ता का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ और निरपेक्ष हो । उसके अध्ययन पर उसके व्यक्तित्व तथा दृष्टिकोण वा कोई प्रभाव न पड़े। इस तरह वैज्ञानिक पद्धति में निश्चयात्मकता, सामान्यता, वस्तुनिष्ठता, पूर्वकनीयता एक उसके निष्क्य मे सत्यापनीयता की विशेषता पाई जाती है । आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं -- (1) अवलोकन अथवा पर्यवेक्षण के आधार पर तथ्यों का संग्रह (2) तथ्यो वा वर्गीकरण (3) जाँच या अनुसन्धान, (4) सामान्यीकरण, ( 5 ) सत्यापन । (5) इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में विज्ञान का एक प्रमुख लक्षण मूल्य निरपेक्ष (Value free) दृष्टिकोण हो गया है। अत आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति ने मूल्यों को कोई स्थान नहीं दिया जाता है । यद्यपि व्यवहार में मूल्यों की धारणा को शोध से पृथक रखना सम्भव नहीं है क्योंकि ऐसा करने से शोधकार्य रूपहीन और खोखला हो जायेगा । राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग - राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने का श्रेय ग्राम वालास, चार्ल्स मेरियम, लासवेल, केटलिन, बालं डायस (Deutch), राबर्ट डहल Dahl) आदि आधुनिक विद्वानों को है। अमरीका में राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए वर्तमान समय म जिन नये-नये तरीको अथवा पद्धतियों को अपनाया जा रहा है, उनमें से कुछ प्रमुख पद्धतियाँ इस प्रकार है- सर्वेक्षण पद्धति (Survey Method), केस पद्धति (Case Method), साक्षात्कार पद्धति ( Interview Method) प्रश्नावलो पद्धति (Questionnaire Method), जनमत मतदान पद्धति ( Pablic Opinion Poll) तथा साख्यिको पद्धति (Statistical Method) इत्यादि । सर्वेक्षण पद्धति के अन्तर्गत किसी क्षेत्र के बारे में अपने अध्ययन से सम्बन्धित विषय पर तथ्य एकत्रित किये जाते हैं। केस पद्धति के अन्तर्गत अध्ययन की एक बहुत छोटी इकाई होती है परन्तु उस इकाई के प्रत्येक पक्ष का गहरा और विस्तृत अध्ययन किया जाता है। साक्षात्कार पद्धति के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया जाता है। प्रश्नावली पद्धति के अन्तगत अध्ययनक्र्ता कुछ प्रश्न तैयार करता है और सम्बन्धित क्षेत्र के व्यक्तियों से उनका उत्तर देने को कहा जाता है । जनमत मतदान पद्धति का प्रयोग किसी समस्या पर जनता के विचार जानने के लिए किया जाता है तथा साख्यिकी पद्धति म तथ्यो अथवा आकडा के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। वर्तमान समय में राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत सिद्धान्तो का निर्माण करते समय प्रतिरूपों ( Models) का भी प्रयोग किया जाता है। सिद्धान्तों के निर्माण के सम्बन्ध में एक और नये दृष्टिकोण का विकास हुआ है जिसे सरचना एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण (Structural and Functional Approach) का नाम दिया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग से व्यावहारिक कठिनाइयाँ राजनीति विज्ञान मे वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग यद्यरि दिनो दिन बढ़ता जा रहा है परन्तु फिर भी इस पद्धति को अपनाने के मार्ग मे कुछ कठिनाइयाँ हैं जो अप्रैलिखित हैं वालास ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजनीति मे मानव स्वभाव' (Human Nature में in Politics ) मे राजनीतिक कार्यकलापों के अध्ययन में संस्थाओं के स्थान पर मानव एव मानव समूह के मनोविज्ञान के अध्ययन का समयंत किया। सन् 1908 मे ही अमेरिका मे आर्थर बेण्टले ने अपनी पुस्तक 'सरकार को प्रक्रिया' (The Process of Government) मे समूहों के हित तथा उसको त्रियाओं के अध्ययन पर जोर दिया। व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग के विकास में अमेरिका के प्रसिद्ध विचारक चार्ल्स मेरियम का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्हें व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग का बौद्धिक पिता माना जाता है। मेरियम शिकागो विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर थे। उनके नेतृत्व मे यह विश्ववि ालय व्यवहारवादी अध्ययन का प्रमुख वेन्द्र बन गया । सन् 1925 में मेरियम ने New Aspects of Politics नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने राजनीति विज्ञान के अध्ययन में तीन बातो का प्रबल समर्थन किया - (1) राजनीतिक प्रक्रिया पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव, (11) राजनीति विज्ञान मे अन्तर्शास्त्रीय (Inter-sciences) अध्ययन तथा (111) राजनीतिक अध्ययन मे तथ्यात्मक परिमाणन (Factual quantification ) । इस तरह चार्ल्स मेरियम को व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग का प्रवर्तक कहा जाता है। आगे चलकर हेराल्ड लासवैल, डेविड ट्रमैन, हरबर्ट साइमन, एलमाण्ड आदि विचारको ने भी व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग के विकास मे काफी योगदान दिया है। इन सब विचारको के विचार सामूहिक रूप से शिकागो सम्प्रदाय कहलाते हैं। व्यवहारवादी अध्ययन के विकास में अमेरिकी सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद ( Social Science Research Council) ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ अमरीकी संस्थानो, जैसे रॉकफेलर प्रतिष्ठान, फोर्ड प्रतिष्ठान आदि ने भी आर्थिक सहायता देकर व्यवहारवादी अध्ययन को व्यापक बनाने में काफी योगदान दिया है। इसे अब प्राय सभी प्रमुख राजनीतिक विचारक अपना चुके हैं। इस कारण व्यवहारवादी दृष्टिकोण अथवा उपागम (Approach ) सर्वव्यापक हो गया है । व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग का अर्थ एवं स्वरूप व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग को पूर्ण व्याख्या करना सम्भव नही है क्योकि इसके अर्थ के सम्बन्ध में काफी विचारकों का दृष्टिकोण समान नही है। विभिन्न विचारको ने इसे एक प्रवृत्ति, दृष्टिकोण अथवा प्रक्रिया के रूप में माना है। रॉबर्ट डहल (Robert A Dabl) ने व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग को एक मनोभाव (Mood) का नाम दिया है। राजनीति में इस अध्ययन मार्ग को इसके विकास की प्रारम्भिक अवस्था मे परम्परावाद के विरुद्ध एक विरोध अथवा असन्तोष ( Protest ) माना गया था। उस समय यही इसका अर्थ और यही इसका स्वरूप था। जैसा कि रॉबर्ट डहल का मत है कि "व्यवहार परम्परागत राजनीति विज्ञान को उपलब्धियों के प्रति असन्तोष को को एक तीव्र भावना है। इसका उद्देश्य राजनीति विज्ञान को अधिव वैज्ञानिक बनाना है ।"1 किर्क पेट्रिक (Kirk Patrick) ने भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किये है। उसके अनुसार "राजनीति में व्यहारवादी अध्ययन एक ऐसे छत्र के समान था जिसके नीचे उन सभी राजनीतिज्ञो ने शरण सी जो परम्परावादी अध्ययन से असन्तुष्ट हो गये थे ।"३ डेविड टू मॅन (David Truman ) के अनुसार व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग का तात्पर्य दो बातो से है ( 1 ) अनुसन्धान क्रमबद्ध होना चाहिए, तथा (2) आनुभविक पद्धतियों के अपनाने पर प्रमुख जोर दिया जाना चाहिए 13 वस्तुत व्यवहारवादी अध्ययन मार्ग कोई सिद्धान्त न होकर राजनीतिक तथ्यो का विश्लेषण करने वाली एक पद्धति है। यह मुख्य रूप से मानव तथा मानव समूहों के राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धिन है। इसका उद्देश्य राजनीतिक अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक बनाना है। यह अनुभवात्मक (empirical) तथा क्रियात्मक है और इसमे व्यक्तिगत मूल्यो दृष्टिकोणो तथा कल्पनाओ आदि के लिए कोई स्थान नही है । यद्यपि व्यवहारवाद के समर्थको का यह विचार है कि राजनीतिक विज्ञान का प्रत्येक क्षेत्र व्यवहारवादी अध्ययन के अन्तर्गत आ सकता है परन्तु मतदानध्यवहार, छोटे-छोटे समूह एवं सगठन, राजनीतिक प्रणालियाँ, नीति निर्धारण आदि का अध्ययन इसके लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है। व्यवहारवादी अध्ययन का मुख्य क्षेत्र राजनीतिक व्यक्तित्व का अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा राजनीतिक व्यवहार के बीच सम्बन्ध स्थापित करना है। यह उन सभी प्रभावों का अध्ययन करता है जो मनुष्य को राजनीतिक भूमिका (Political role) को प्रभावित करते हैं । व्यवहारवादी इस दृष्टि से परम्परावादियो से भिन्न हैं कि वे राजनीति विज्ञान को दार्शनिक सोमाओ मे बाँधने के लिए तैयार नहीं है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि व्यवहारवादी अध्ययन आदर्श पर जोर नहीं देता, बल्कि राजनीतिक घटनाओं का यथार्थ रूप मे वर्णन तथा अध्ययन करता है। दूसरे व्यवहारवादी राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग पर अधिक जोर देते हैं । Robert A Dahl The Behavioural Approach ta Political Science in Contemporary Political Thought, edited by A Gould and V V Thursby, pp 118-119 The Impact of Behavioural Approach on the Traditional Political Science, ed by Ball and Lauth p 77. 3 David Truman The implications of Political Behaviour Research' in Social Science Research Council Items, December 1951, PP 37.39 राज० मूल तत्त्व, 4
6326684144a83ff80af46a6fc00a2b9f0ae29d5bbb41a3aa9ebabc7b584994d8
pdf
भारत की जन-जातिमा परिवार से भावि-मानव बला। मोमन बेस्टरमाईतीनों विस है परन्तु दोनों के परिणाम मिन-मित है । आजकल के मानव-नास्त्री 'परिवार' की उत्पत्तिमा विकास के प्रदन को अधिक महत्व नहीं देते। वे इतनाम से हो जाते है कि ि माबिवासी समाज में ऐसा रूप नहीं दिखाई देता जिसमें परिवार की किसी-न-किसी बम में सलाम विद्यमान होया की माहिषात जनजातियों की मौजदू को कम-जातियों को हमसे भी पुराना मानहा है। इस तक में परिवार की रिसी-किसी रूप में सता मौजूर है। भारत में कार पhिer मातरम बिरहोर बहुत पुरानी बन-जातियाँ ह~-इम भी बरवार की सत्ता पायी जाती है। 'परिवार' का मापार मस्कील-एपनाएं (Drives urges) ह 'स्वाभाविष प्रवृत्तियाँ' तथा 'सहज स्वभाव' (Instincts ) ह 'अति-त्रोवन' (Survival) की है इसलिए अब से मनुष्य का मध्य से सम्पर्क हुमा अब से ममध्य कोयतब परिवार को यह कमा रही है। effere की after fमन भिन्न माविकभी मनुष्य बतीत करता था की दृषि करन कया कमी पगा माजकारवान चलाने का है इन सब के कारण 'परिवार' के संपठन इसकी - रचना म भेड़ जाता रहा है और आज भी जा रहा है परन्तु 'परिवार' सा वा और में बता रहेगा। (अ) माथिक-परिवार-सिटन का विचार (ECONOMIC FAMILY ) परिवार की उत्पत्ति के विषय में (Linton ) पर विचार यह है कि परिवार पुदवसमा स्त्री की की पूर्ति का एक किशारमश सावन है। यह समझना कि विकास की एक सीधी रेस में परिवार की संस्था विकत हुआ है। दिन मंदिन तथा अम्प विकासबारी तो यही बहते ह कि अनिश्चित अवस्था से विकास निवित जगत्वा की तरफ कर रहा है, विविता से एकतर की तरफ जा रहा है इसी कारण स्त्री के मनश्चित चाहि सम्बन्ध के विकसित होते-होते नि रेवत सम्बन्ध पैदा हुए। टिम इस बात को नहीं मानता। मानव जातियों के इतिहास में सबह सामाजिठों का एक सर विकास नहीं हुआ, म परिवार का सबब एकता विकास हुआ है। सामाजिद संरवायूँ मनुष्य की मसाओ एमाओं को पूरा करने के प्रति किये गये प्रवर्ती कारा है। परिवार भी मनुष्य की किसी इर को पूरा करन का नाम समाज के प्रवरपरवाम है। वह कौन-अनुष्य रे है जिने परिवार की पूरा करती है ? वह इडा आदि' हाय होता है स्त्री में है है। इसी समस्या कैसे हल हो ? माबिक-समस्या का यही अर्म नहीं है कि जब पैसा बीकन समी उसे माफि परिभाषा का रूप दिया जा सके। नादि-काम का मानव बब कल-मूल एकत्रित करने के लिए बंपल में बाता था तब भी बहू बाबिक-समस्या को लेकर ही घर से निकला था। अपनी अपने बच्चे को कि समस्या को हल करने के लिए परिवार की संस्था की बम्म मिला। इस संस्था में नहीं माता को प्रधान माना गया कहीं पिता को प्रदान माता या कहीं एक ढंग से यह संस्था बनी कहीं दूसरे डंप से, सब बगह इस संस्था का विकास स्वतंत्र रूप से हम एक-साब भी हम हो तो कोई माझ्चय नहीं परन्तु विकासबारियों के कहने के अनुसार किसी एक निश्चित रेखा में-एक-दिशा-विकास' (Unihnear evolution) नहीं हुमा । परिवार के प्रकार (Forums of the Family) 'परिवार' के अनक प्रकार है जिनमें से बहुतों का बबन तो हम ऊपर कर परन्तु इन तथा इनके अतिरिक्त परिवार के अन्य वर्षों को एक जगह ये देने से विषय अधिक स्पष्ट हो जायना इसलिए हम यहाँ 'परिवार' के प्रकारों की संकिप्त सूची दे रहे ह (क) मातृसत्ताक तथा पितृसत्ताक परिवार ( Matriarchal and Patriarchal farmily) यह भेद परिवार में माता या पिता की की वृद्धि से किया जाता है। सवाल परिवार 'मातृ-ता' तथा पितृ प्रमान परिवार पित-सत्ताक' कहते है । इन बीनों के दृष्टान्त हम ऊपर दे जाये है। (ब) मातृ-बंधी तथा पितृ-बंधी परिवार (Matrillneal and Patrilineal family ) यह मेर परिवार में माता से या पिता से बंझपरम्परा चलने को दृष्टि से किया जाता है। मातृ-प्रचात परिवार में जा के तथा पिलु प्रवाल परिवार में पिता के नाम से बंश-परम्परा चलती है। (4) मातृ-स्थानी तथा पितृ-स्वानी परिवार (Matrilocal and Patrilocal family) -यह भेर माता के घर या पिता के घर रहने की दृष्टि से किया गया है। मातृ अमान परिवार में माता के net for-Here aftere में पिता के घर बच्चे रहते है। (Matronymic and (ब) मातृ-नामी तथा पितृ-मामी परिवार Patronymic family) बी परिवार मातृ-पान है वे मातृ-मानी और बो पितृ-प्रधान है पितृ-मामी क्योंकि बाहों से परिवार का नाम मातृसत्ताक माणु-गंधी मातृ-स्वामी तथा मातृ-मामी एवं सत्ताक पितृ-बंशी पिस्वामी तथा वितु-नामी एक ही तरह के दो वर्गीकरणों के नाम है। भारत की जनजाति तथा परिवार (८) मानविर तथा सहयोगी परिवार (Consanguineous and Conjugal family ) जिस परिवार में एक ही पर के व्यक्तिर रुपतेह के 'समाज-दमिर' तथा जिसमें एक हो दधिर के नहीं अपितु मित्र इमिर के बनते हैं। वे सहयोगी परिवार बहलाने है। 'समानन्धर परिवार' में दधिर की समानता पर बल दिया जाता है विवाह पर नहीं 'महबोयी-परिवार' में विवाह बन्धन पर बल दिया जाता है, दधिर की नमानता पर नहीं। यही कारण है कि 'समान-शविर-परिवार सुप्रजनन शास्त्र को दृष्टि से उचित न होने पर भी परिवार की स्थिरता को बजार सहयोगी परिवार सुप्रजननास्थ की वृद्धि से उचित होने पर भी परिवार की स्थिरता की नहीं र पाते। एक खून का व्यक्ति परिवार छोड़ कर कहाँ बामवा, मिस इमिर का व्यक्ति तो परिवार छोड़ कर कही भी झारी कर सकता है। (५) समस्तवमा मूल परिवार (Joint and Immediate or Nuclear family) जिस परिवार में एक ही बंदा के सब माई मिल कर ऐसे है कीड़े को है जो माह बीतबका कन्चन होता है सब वह 'संयुक्त समाजसमें पति-परमी सदा सस्तान-बस इतन ही जन होते हैं बह 'मूल-परिवार रहलाता है। (10)तृत परिवार (Joint and Extended family) संवकर-परिवार में एक ही बंदा के सब माई बढ़ के मोए साथ रहते हैं राज की व्यवस्था में ऐसा समय नहीं रहा। एसौ हाल में एक के बाई-भतीजे अपना-अपना राममान करते है कभी नहीं रहते, पूर्व की हा ए बे दूसरे के साथ सामाजिर सम्बन्ध में ये रहते हैं। इसे विस्तृत परिवार कहा जाता है। इस विस्तृत परिवार में बाबा साया, बाबी-सायी उनके सह सदियो एक तरह से जब परिवार बहुत केल जाता है सब उसे विरत परिवार रहू दिया जाता है। (ब) बहु का परिवार (Polyandrous family) -fxस परिवार में एक बरनी के जनक पति होनेह यह 'हा' वा परिवार बहा जाता है। देहरादून के जनकार इलाके में जाना जाति के इस प्रकार के परिवार है। इस प्रचार के परिवारों पर बचन हम विवाह महरम में र (स) बहुजाता का परिवार (Polygynous family) --for परिवार में एक पनि बह बहु-भाता' का परिवार बहर जाता है। इन जशा का परिवार मुसलमानों में है। भी एमे परिवार है अब ये मानून बनने के कारण यह मया अवैधानिक हो गई है। इसी वर्षा हम विवाह । (डा) एवं डिवादी परिवार (Morogamous family }--एव पुर एकदम प्रहार कर परिवार है। आ भारत की बन-जातियाँ तथा मस्याएँ पार्क आदि तक Are झास्त्रियों का कहना है कि आदिकाल से यही परिवार बला मा रहा है। इस प्रकार के विवाह की चर्चा भी विवाह के प्रकरण में की जाययो । ५ परिवार को विशेषताएँ (Characteristics of the family) हमने देखा कि 'परिवार' की उत्पत्ति कैसे हुई, उसके मुख्य मुख्य प्रकार क्या है ? अब अगला प्रश्न यह है कि 'परिवार' की क्या-क्या बिताएँ है उसके क्या गुरु है जिनके कारण 'परिवार' एक संपठन एक संस्था के बम में समाज में मारिकाल से बना हुमा है। 'परिवार' की विशेषताएं (क) सार्वभौमिकता (Universality ) --~-रैडक्लिफ ब्राजन (Radcliffe Brown) का कथन है कि 'परिवार' एक सार्च-म संस्था है। हर देश का में यह किसी न किसी रूप में पाया जाता है यहाँ तक कि पशुओं तक में प्राथमिक रूप में परिवार मिलता है। अन्य जितने भी सामाजिक उनमें इस प्रकार की नहीं मिलती। 'विवाह' की सार्व के विषय में मौर्यन (Morgan) ने सम्मेह प्रकट किया है। मौत के कवमानु सार 'परिवार' का विकास उस काळ से हुवा है बब 'परिवार' का मस्तित्व नहीं था जिस समय विवाह का भी कोई बचन हो नहीं था, 'संकरता' (Promiscmty) थी। 'संकरता' का विचार विकासवादी विचार है, और क्योंकि विकास में जनता से एकता नविता सेता की तरपति है इसलिए परिवार के क्षेत्र में विकास की वृद्धि से अनिश्चित जत् संकर' अवस्था से fafter aeer का विकास हुजा-यह माना जाता है। मन के इस कम का समास्टर्म (Jacobs and Stern) पूर्व अपने ड किया है। इन लोगों का कहना है कि जहां परिवार में जन या संकरता को बढ़ाता है, वहीं यहाँ अतिरिक्त नहीं है। में मारि-कल में उसयों के समय के समयच्छु बजता का व्यवहार किया जा १ स्त्रियों को अल-बदल लिया जाता वा तमियों को अभी बाती बीं परन्तु यह तो आज भी सम्प-समाज के कई लोग कर डालते हैं। बारिवाती बन-जातियों में इस प्रकार के व्यवहार को देख कर वह नहीं कहा जा सकता कि किती समय उनमें परिवार की संस्था नहीं पर इतना ही कहा जा सकता है कि परिवार की संस्था होते हुए भी जीवन का रस लेने की उनकी कामना किसी से कम नहीं है। मसल में बैता हम पहले कह जाते है मानव के 'मति-जीवन' (Survival) के लिए 'वरिवार का होना आवश्यक था। परिवार' न होता तो बच्चा ते बचत स्त्री को कौन संभालता को भी अपने संपर्क में कौन सहारा देता। बयोंकि मनुष्य के जीवन के लिए 'परिवार' बाबस्व इसलिए मनुष्य की Refeat की Hrenा का प्रदम मfeoकार 'वार'
8187d4851fd56a4a4eff5194db112c6a03bce2a3
web
A subscription to JoVE is required to view this content. You will only be able to see the first 2 minutes. The JoVE video player is compatible with HTML5 and Adobe Flash. Older browsers that do not support HTML5 and the H.264 video codec will still use a Flash-based video player. We recommend downloading the newest version of Flash here, but we support all versions 10 and above. If that doesn't help, please let us know. Please note that all translations are automatically generated. यह पेपर चूहों में कैंसर रिसेक्शन सर्जरी के दौरान कुल अंतःशिरा संज्ञाहरण (टीआईवीए) मॉडलिंग के लिए एक विधि का वर्णन करता है। लक्ष्य कैंसर के रोगियों के लिए संज्ञाहरण वितरण की प्रमुख विशेषताओं को दोहराना है। विधि इस बात की जांच की अनुमति देती है कि एनेस्थेटिक तकनीक रिसेक्शन सर्जरी के बाद कैंसर पुनरावृत्ति को कैसे प्रभावित करती है। यह नया प्रोटोकॉल प्रोपोफोल एनेस्थीसिया का उपयोग करके चूहों में सर्जिकल संज्ञाहरण का वर्णन करता है। विधि रोग के माउस मॉडल में प्रोपोफोल संज्ञाहरण में अनुसंधान को सक्षम बनाती है। प्रोटोकॉल कुल अंतःशिरा संज्ञाहरण के मूल्यांकन की अनुमति देता है और वाष्पशील संज्ञाहरण के उपयोग से बचता है। प्रोटोकॉल का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जा सकता है कि प्रोपोफोल एनेस्थीसिया रोग से संबंधित परिणामों को कैसे प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, यहां हम ट्यूमर को हटाने के लिए सर्जरी के बाद लघु और दीर्घकालिक कैंसर के परिणामों का मूल्यांकन करते हैं। शुरू करने के लिए, कल्चर 66 सीएल 4 मिराई स्तन कैंसर कोशिकाएं जो अल्फा एमईएम माध्यम में जुगनू लूसिफेरस को व्यक्त करने के लिए स्थिर रूप से ट्रांसड्यूस होती हैं जिसमें 10% एफबीएस और 200 मिलीमोलर ग्लूटामाइन होते हैं। कोशिकाओं को 37 डिग्री सेल्सियस लेकिन 5% कार्बन डाइऑक्साइड पर इनक्यूबेट करें। उपसंस्कृति कोशिकाएं हैं जब कोशिकाएं लगभग 80% कंफ्लुएंसी तक पहुंच जाती हैं। जब कोशिकाएं ईडीटीए समाधान में दो मिलीलीटर ड्रिप के साथ लघुगणकीय विकास चरण में होती हैं, तो अनुयायी कोशिकाओं को उठाएं और हेमोसाइटोमीटर का उपयोग करके कोशिकाओं की गणना करें। फिर पीबीएस में कोशिकाओं को पतला करें और पतला सेल निलंबन को बर्फ पर रखें जब तक कि माउस इंजेक्शन के लिए तैयार न हो जाए। एक बार जब माउस पूरी तरह से एनेस्थेटाइज हो जाता है, तो इंजेक्शन साइट तैयार करने के लिए एकल-उपयोग अल्कोहल स्वैब के साथ चौथे बाएं स्तन वसा पैड क्षेत्र को पोंछ दें। कैंसर सेल निलंबन के साथ बाँझ 27 गेज हाइपोडर्मिक सुई से जुड़े 25 माइक्रोलीटर हैमिल्टन सिरिंज को भरें। त्वचा को उठाने और सुरक्षित करने के लिए बल का उपयोग करें। निप्पल से लगभग एक मिलीमीटर पर चौथे बाएं स्तन वसा पैड में पांचवीं कोशिकाओं और पीबीएस के 20 माइक्रोलीटर को एक बार इंजेक्ट करें। यदि कोशिकाओं को लूसिफेरस के साथ टैग किया जाता है, तो 30 गेज हाइपोडर्मिक सुई के साथ 0.5 मिलीलीटर इंसुलिन सिरिंज का उपयोग करके एनेस्थेटाइज्ड माउस की पार्श्व पूंछ नस में डी-लूसिफेरिन के 100 माइक्रोलीटर इंजेक्ट करें। इंजेक्शन के दो मिनट बाद माउस को बायोलुमिनेसेंस इमेजिंग सिस्टम में रखें, जिसमें स्तन वसा पैड का सामना किया जाता है और 10 सेकंड के लिए छवि को कैप्चर किया जाता है। इमेजिंग के बाद, माउस को साफ पिंजरे में रखें और इसे संज्ञाहरण से ठीक होने दें। कैलिपर का उपयोग करके प्राथमिक ट्यूमर के विकास की निगरानी करें। ट्यूमर की मात्रा की गणना करें और ट्यूमर को ठीक करें जब प्राथमिक ट्यूमर 80 से 90 क्यूबिक मिलीमीटर की मात्रा तक पहुंच जाता है। 30 गेज एक मिलीलीटर इंसुलिन सिरिंज के साथ स्वचालित सिरिंज पंप स्थापित करें जिसमें दो प्रतिशत प्रोपोफोल फॉर्मूलेशन होता है। तीन प्रतिशत सेवोफ्लुरेन या आइसोफ्लुरेन के साथ एक प्रेरण कक्ष में संज्ञाहरण को प्रेरित करें। फिर एनेस्थेटाइज्ड माउस को 37 डिग्री सेल्सियस पर हीटिंग पैड में स्थानांतरित करें और नाक शंकु का उपयोग करके दो से तीन प्रतिशत सेवोफ्लुरेन या आइसोफ्लुरेन के साथ संज्ञाहरण बनाए रखें। पेडल रिफ्लेक्स के नुकसान और प्रति मिनट 100 सांस से कम श्वसन दर द्वारा प्रदर्शित संज्ञाहरण की स्थिर गहराई को बनाए रखने के लिए अंतःशिरा प्रवेशनी के दौरान आवश्यक सेवोफ्लुरेन के वितरण को समायोजित करें। कॉर्निया को सूखने से रोकने के लिए आंखों पर जलीय स्नेहक लागू करें, और फिर 0.05 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम ब्यूप्रेनोर्फिन को चमड़े के नीचे इंजेक्ट करें। प्रोपोफोल आधारित कुल अंतःशिरा संज्ञाहरण देने के लिए, बाँझ पॉलीयुरेथेन कैथेटर से जुड़ी बाँझ 30 गेज हाइपोडर्मिक सुई का उपयोग करके पार्श्व पूंछ नस को कैनुलाट करें। कैथेटर में रक्त फ्लैशबैक द्वारा सही प्लेसमेंट की पुष्टि करें। कुल अंतःशिरा संज्ञाहरण शुरू करने के लिए एक मिनट में 27 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम के प्रारंभिक बोलस के रूप में दो प्रतिशत प्रोपोफोल का प्रबंधन करें। सेवोफ्लुरेन प्रशासन को बंद करें। सर्जरी के दौरान स्थिर संज्ञाहरण गहराई बनाए रखने के लिए 2.2 से 4.0 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम प्रति मिनट की दर से प्रोपोफोल इन्फ्यूजन बनाए रखें। पेट क्षेत्र को शेव करें और पोविडोन-आयोडीन समाधान के साथ सर्जिकल क्षेत्र को कीटाणुरहित करें। बाएं चौथे स्तन वसा पैड में ट्यूमर से एक सेंटीमीटर चीरा कम करें। ट्यूमर और बाएं इंगुइनल लिम्फ नोड को विच्छेदित करने के लिए बल और कैंची का उपयोग करें। यदि लूसिफेरस-टैग ट्यूमर कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है तो पार्श्व पूंछ की नस में डी-लूसिफेरिन इंजेक्ट किया जाता है जैसा कि दिखाया गया है और स्पष्ट मार्जिन प्राप्त करने के लिए 60 सेकंड के लिए छवियों को कैप्चर करता है। यदि एक अवशिष्ट ट्यूमर की पहचान की जाती है, तो स्तन वसा पैड से अतिरिक्त ऊतक को निकालें। एक बार सर्जिकल साइट पर हेमोस्टेसिस प्राप्त हो जाने के बाद, 5-0 नायलॉन सीवन का उपयोग करके त्वचा को बंद करें। घाव को पोविडोन-आयोडीन समाधान से पोंछें। सर्जरी के पूरा होने पर, संज्ञाहरण को रोकें और माउस को हीटिंग पैड पर एक साफ पिंजरे में रखें ताकि इसे संज्ञाहरण से ठीक होने की अनुमति मिल सके। माउस को हर 15 मिनट में मॉनिटर करें जब तक कि माउस सामान्य सतर्कता पर वापस न आ जाए। फिर सर्जरी के बाद 48 घंटे के लिए हर 12 घंटे में एनाल्जेसिया की निगरानी करें और प्रदान करें। प्राथमिक ट्यूमर पुनरावृत्ति या दूर पुनरावृत्ति मूल्यांकन के लिए, प्रति सप्ताह एक बार चूहों की निगरानी करें, बायोलुमिनेसेंस इमेजिंग सिस्टम का उपयोग करके सर्जरी के बाद सप्ताह शुरू करें। बायोलुमिनेसेंस इमेजिंग का उपयोग प्राथमिक ट्यूमर के शोधन के बाद फेफड़ों में दूर के ट्यूमर पुनरावृत्ति की पहचान करने के लिए किया गया था। इस मॉडल का उपयोग पेरीओपरेटिव अवधि के दौरान होने वाली घटनाओं का आकलन करने के लिए किया जा सकता है। प्रोपोफोल के तहत कैंसर सर्जरी के 24 घंटे बाद, परिसंचारी प्लाज्मा साइटोकिन्स का मूल्यांकन किया गया। पार्श्व पूंछ की नस को तेजी से कैनुलेट करने और सेवोफ्लुरेन एक्सपोजर अवधि को कम करने के लिए आवश्यक अभ्यास। सेवोफ्लुरेन को धीरे-धीरे डाउन-टाइटेट किया जाना चाहिए क्योंकि प्रोपोफोल बोलस को ओवर-सेडेशन को रोकने के लिए प्रशासित किया जाता है। इस विधि का उपयोग कार्डियक सर्जरी या गंभीर बीमारी, जैसे सेप्सिस के माउस मॉडल में प्रोपोफोल संज्ञाहरण के प्रभाव की जांच करने के लिए किया जा सकता है।
703e0ba9638850ade187e8a82709784c92c02e95
web
एक विभाजन के साथ कमरे ज़ोनिंग -एक आम डिजाइन स्वागत। यह समाधान एक निजी कमरे को व्यवस्थित करने के लिए एक छोटे से कमरे में भी अनुमति देता है। अब विभाजन के विभिन्न रूपों का उपयोग करें। वे आकार, आकार, डिजाइन में भिन्न हैं। एक कमरे में सबसे लोकप्रिय जोनिंगअपार्टमेंट। यहां एक कमरे के लिए रहने की जगह, बेडरूम और अध्ययन को एक साथ सुसज्जित करने की तत्काल आवश्यकता है। साथ ही, विभाजन के साथ कमरे को ज़ोन करने का विचार अपार्टमेंट स्टूडियो में प्रासंगिक है। यह मुख्य रूप से असीमित स्थान की इच्छा के कारण है, हालांकि, व्यक्तिगत क्षेत्रों के साथ। इस लेख में, हम रहने की जगह ज़ोनिंग के सबसे आम तरीकों से परिचित होंगे। कमरे में जोनों को कमरे में विभाजित करना शुरू करने से पहले, आपको यह जानना होगा कि विभाजन दो प्रकार के हैंः जोनों में विभाजित कमरे की असली तस्वीरें लेख में पाई जा सकती हैं। विभाजन का सही उपयोग करने के लिएजोन में कक्ष अलग करने के लिए, आप खाते में न केवल उनके आकार और डिजाइन, लेकिन यह भी कार्यक्षमता और उद्देश्य रखना चाहिए। यह विशेषज्ञों से निपटने के लिए सबसे अच्छा है। इस विधि को कम से कम महंगा माना जाता है। ज़ोनिंग के लिए, केवल संकीर्ण फर्नीचर उपयुक्त है। यह रैक, अलमारियाँ, अलमारियों, और कभी-कभी यहां तक कि असबाबवाला फर्नीचर भी हो सकता है। इस भूमिका के निकटतम कोठरी। इसकी उच्च ऊंचाई के कारण, यह एक सतत विभाजन के कार्यों को करने में सक्षम है, जबकि चीजों के लिए भंडारण स्थान के रूप में कार्य करता है। अपने हाथों से विभाजन की मदद से कमरे को ज़ोन करना बहुत आसान हैः कैबिनेट किसी भी सुविधाजनक स्थान पर स्थापित है। इस डिजाइन के लिए दोनों तरफ एक प्रस्तुत करने योग्य उपस्थिति के लिए, इस मुद्दे पर निर्माता के साथ पहले से चर्चा करना संभव है (यह किसी व्यक्तिगत आदेश में कोई समस्या नहीं है)। छोटे कमरे के लिए उन मॉडलों को खरीदने की सिफारिश की जाती है जिनके दरवाजे में दर्पण कोटिंग होती है। स्लाइड रैक, स्लाइडिंग दरवाजा वार्डरोब के विपरीत,एक असंतुलित सेप्टम बनाओ। इस तरह के डिज़ाइनों के लिए धन्यवाद, प्रकाश कमरे के बहुत दूर भाग में आसानी से प्रवेश कर सकता है। नीचे एक अंधेरे pedestal के साथ उत्कृष्ट मॉडल। सामान्य जगह को और अधिक कठिन बनाये बिना वह आवश्यक अलगाव देगी। कमरे से एक विभाजन के साथ ज़ोनिंगकपड़े - सबसे आसान तरीका। यह डिजाइन शास्त्रीय अंदरूनी और आधुनिक दोनों के लिए बिल्कुल सही है। बाद के संस्करणों में एक आयताकार आकार के भारोत्तोलन एजेंट के साथ घने कपड़े का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। यह इसे एक फॉर्म देगा या इसके विपरीत, इसे सीधा करेगा। इस प्रकार के विभाजन को स्वयं स्थापित करने में कोई समस्या नहीं है। कॉर्निस को छत पर संलग्न करने के लिए पर्याप्त है। क्लासिकिज्म, प्रोवेंस, देश जैसे कुछ शैलियों में, आप चुनौतियों, फ्रिंज, रफल्स, ब्रश के साथ सुरुचिपूर्ण शैलियों का उपयोग कर सकते हैं। यह जगह से बाहर नहीं है कि एक भेड़ का बच्चा होगा। एक विभाजन के साथ कमरे को ज़ोन करना (यहां फोटो देखें) के कई फायदे हैंः पर्दे से विभाजन पूरी तरह से छोटे में फिट होगाकमरा, उदाहरण के लिए, नींद के क्षेत्र को सुसंगत रूप से अलग करना। वे न केवल आंखों से अंतरिक्ष छुपाएंगे, बल्कि इंटीरियर को अधिक आरामदायक और गर्म बना देंगे। सजावटी स्क्रीन का निर्विवाद लाभगतिशीलता है। इसे किसी अन्य स्थान पर ले जाया जा सकता है या पूरी तरह से फोल्ड और हटाया जा सकता है। कई लोग गलती से सोचते हैं कि इस तरह की ज़ोनिंग केवल शास्त्रीय अंदरूनी के लिए उपयुक्त है। वर्तमान में, वे विभिन्न प्रकार के मॉडल तैयार करते हैं जो पूरी तरह से किसी भी शैलियों में फिट होते हैं। ओरिएंटल रूपों के साथ एक स्क्रीन विभाजन के साथ कमरे को ज़ोनिंग जातीय दिशा के लिए एक उत्कृष्ट समाधान होगा। कांच या दर्पण आवेषण के साथ उच्च तकनीक धातु संरचनाओं के लिए उपयुक्त हैं। स्क्रीन का एक अन्य लाभ कार्यक्षमता है। जब आप इसे स्वयं बनाते हैं, तो आप विभिन्न उपकरणों के साथ आ सकते हैं, उदाहरण के लिए, जेब, तटस्थ, अलमारियों। यह समाधान कई छोटी वस्तुओं को समायोजित करेगा। यह टीवी, एक कंघी, एक फोन, और अधिक से एक रिमोट हो सकता है। जो लोग इस जोनिंग विधि को चुनते हैं उनके लिए एकमात्र कार्य सही डिजाइन चुनना है, धन्यवाद, जिसके लिए स्क्रीन सामान्य इंटीरियर के लिए एक सुंदर जोड़ होगी। बड़े कमरे में बड़े तत्वों की आवश्यकता होती है,इसलिए मूल ज़ोनिंग विधि - कॉलम का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। इस प्रकार को स्थिर अलगाव को संदर्भित किया जाता है, इसलिए आपको उन्हें इंस्टॉल करना शुरू करने से पहले सावधानी से सोचने की आवश्यकता है। छोटे कमरों में इस तरह के डिजाइन की सिफारिश नहीं की जाती है, क्योंकि उनकी उपस्थिति की शक्ति और भव्यता छुपा सकती है और एक जगह इतनी छोटी हो सकती है। कॉलम के विभाजन के साथ कमरे को ज़ोनिंग करने के फायदे और नुकसान हैं। आइए उन्हें अधिक विस्तार से देखें। मेहराब के लिए, सबकुछ यहां बहुत आसान है। वे छोटे और बड़े कमरे दोनों में इस्तेमाल किया जा सकता है। फॉर्म और डिज़ाइन व्यक्तिगत रूप से चुने जाते हैं, जो अंतरिक्ष की बाहरी धारणा को मूल रूप से बदलते हैं। दरवाजे बहरे या गिलास के साथ उठाया जा सकता है। यदि तीन या अधिक फ्लैप्स स्थापित हैं, तो विभिन्न मॉडलों का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। उदाहरण के लिए, उद्घाटन की चौड़ाई आपको सजावटी आवेषण के साथ चार दरवाजे, फिर दो (किनारों पर) - बहरा, और बाकी (केंद्रीय) स्थापित करने की अनुमति देती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्लास वस्तुओं के माध्यम से चमकता नहीं है, आप विशेष प्रसंस्करण के साथ उत्पादों का चयन कर सकते हैंः मैट, figured, रंगीन या उत्कीर्ण। स्लाइडिंग दरवाजे का लाभः एक विभाजन के साथ कमरे ज़ोनिंगअक्सर एक सशर्त भूमिका निभाता है। इस विधि का उपयोग करके, वे एक दृश्य अलगाव प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, और स्पष्ट रूप से चित्रित सीमाएं नहीं। सबसे आम delimiters में से एक फायरप्लेस है। बड़े मॉडल का समय, जिसके लिए एक चिमनी और अतिरिक्त नींव को मजबूत करने की आवश्यकता है, पास हो गया है। उन्हें कॉम्पैक्ट फायरप्लेस द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जो केंद्रीय हीटिंग की बजाय सजावट के रूप में काम करते थे। कमरे को क्षेत्र में विभाजित करने के लिएफायरप्लेस का उपयोग करके, आपको सही मॉडल चुनना होगा। इस उद्देश्य के लिए, फाल्श पैनल या विद्युत उपकरण उपयुक्त हैं। वे विश्वासयोग्य रूप से एक जीवित आग का अनुकरण करते हैं, इसलिए जाहिर है कि पूरी तरह से पूर्ण अग्निशामक से अलग नहीं है। उनकी एकमात्र कमी गंध की कमी और लकड़ी की क्रैकिंग की आवाज है। एम्बेडेड मॉडल ज़ोनिंग के लिए उपयुक्त हैं। वे आमतौर पर प्लास्टरबोर्ड से पूर्व-निर्मित संरचना में घुड़सवार होते हैं। और उसके बाद उचित सामग्री के साथ सजाने के लिए। वर्तमान में आवासीय परिसर में, ईंटआंतरिक विभाजन व्यावहारिक रूप से उपयोग करने के लिए बंद कर दिया। उनके कार्यों ने पूरी तरह से drywall बदल दिया। साथ ही, अन्य भवन सामग्री की तुलना में इसमें बड़ी संख्या में फायदे हैं। हालांकि, इस तरह के विभाजन के बारे में बात करते समय, किसी को कमियों के बारे में चुप नहीं रहना चाहिए। उनमें से बहुत कम हैंः इंटीरियर में एक पेड़ एक क्लासिक है। इस सजावट का उपयोग सभी स्टाइलिस्ट दिशाओं में किया जा सकता है। सेप्टम की सतह की देखभाल करना बहुत आसान है, यह एक नम कपड़े से इसे पोंछने के लिए पर्याप्त है। यदि समय के साथ, उपस्थिति इसकी अपील खो देगी, तो आप इसे पेंट और वार्निश की मदद से अपडेट कर सकते हैं।
eb38201cf937db4fd9562723a65d406528702bdf71cb6471e1bd920d84b1e5e2
pdf
काउंटर / 193 तसवीर के आगे आंखें बन्द किए हनुमान चालीसा दोहराते मुनुआं के बापू... "हनुमान विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।" कहां हुए मुमति के संगी। जब से सुमति आई, भगवान ही क्या, संगी-साथी भी दुश्मन बन बैठे, इससे तो अच्छी कुमति ही थी, पर उसी को रास नही आई थी वह जिन्दगी । कभी-कभी उसे लगता कि मनुआं के बापू की मौत की जिम्मेदार वह स्वयं है। उसने हो लड़-झगड़, रो-पीटकर उनकी पुरानी जिन्दगी को बदला था। कितनी शान्ति मिली थी उसे । जीवन की जैसे समस्त इच्छाएं पूरी हो गई थी । दहशत से मुक्ति मिली थी। पहले तो दिन-रात मनुआं के बापू से डरती रहती, ऊपर से हर समय दुश्मनों का डर, पुलिस का डर, चारों ओर डर-ही- डर... गौने पर जब वह आई थी, तो कुछ दिन ही सही-सलामत कटे थे। पर धीरेधीरे वह सब समझ गई थी और समझने के साथ ही आतंक समा गया था मन में । लखन रात-रात भर गायब रहता। कभी-कभी कई दिन बाद आता। जब आता, तो शराब और गोश्त के बिना कौर तक न तोड़ता। उसे मालूम पड गया था कि लखन चोरी-चकारी से लेकर राहजनो तक करता है। जब कभी भी वह इसका विरोध करती, तो गालियां खाती। पर वह विरोध करती गई और समझती रही। मुनुआं के पेट में पड़ते ही उसकी दहशत कई गुना बढ़ गई थी । वह लखन से कहती, "देखो, तुम जे काम छोड़ देओ, जा खतरा की जिन्दगी मे कहा धरी ऐ । हम मेहनत की रूखी-सुखी खाय लिंगे, पर चैन की नीद तो सोइंगे। कलकू बच्चा होयगौ, कहा सोचेंगौ कि हमारे बापू बदमाश ए, और मान लेओ काऊ दिना पुलिस पकड़लै गई, तो हम कहां दर-दर की ठोकरें खागे ।" " पुलिस से चौ डरत ए मूरख । पुलिस अपनौ कछू नाय कर सकत । जब तक कस्बा मे पंडिजी जिन्दा ऐ, पुलिस से डरन की नैकऊ जरूरत नांय । पूरौ थानो पंडिजी की घर और पडिजी को घर पुलिस को थानों । पंडिजी के जरिया दरोगा निरौ पैसा कमाता ऐ, मेरे सब ऊंच-नीच काम को हिस्सा पुलिस और पंडिजी ऊ तौलेत ऐन, पर तू जे बातें नांय समझेंगी।" लखन गर्व से कहता । मुनुआं के होते-होते लखन में काफी परिवर्तन आ गया था। कभी-कभी वह काफी उदासी से कहता, "तू सही कहत ऐ, जे खतरा, किल्लत और अपमान की जिन्दगी ऐ, पर छोड़नौ भौत मुश्किल ऐ । मान लेओ, सब छोड़ऊ दऊं, तो पुलिस और पंडिजी नांप छोड़ने दिगे। दौनन की आमदनी पै फरक पड़ेगो । पंडिजी तो जान के दुश्मन बन जाइंगे। उनके निरे गलत कामन में मैं सग रहौ हू । उनै पोल खुल जान को डर पैदा है जायगौ, और पुलिस को तो पचासियो झूठी गवाही में मैं गवाह रहौ हू । देख, एकदम तौ जा लेन से अलग है नाय पाउंगो, पर धीरे-धीरे मैं सब छोड़ दूंगौ। अपने गलत कामन की परछाई मनुआ पै नांय पड़न दुगो ।" 194 / प्रतिनिधि हिन्दी कहानियां 1985 सघन राचमुच धीरे-धीरे सब कामों से अलग हो गया था। गांव में ही जमीन बटाई पर लेकर मेती करने लगा था। करने से पंडितजी पं बहुत बुलावे आए, पर सन ने कस्बा जाना हो छोड़ दिया था। उसके गंगो-साथी उसके दुश्मन हो गए, पर गांव के लोग उसके इस परिवर्तन से बहुत गुण थे और उसे तो जैसे मन-मांगी मुराद मिल गई थी । यह मुनुआं को बाहों में भरे दिन-भर पहस्ती रहती । शेत पर रोटी ले जाते समय तो जैसे उसके पंग निकल आते। मेहनत में हूवे लखन को देखकर उसकी कसी कसी खिल जाती। महुआ की मोठी छाव में बैठकर लखन को घाना खिलाती और मनुओं को सोने से लगाए भविष्य के सुनहरे सपने बुनती। सघन भी मुगुम को गोदी में लेकर उछालता और अपनी थकान मिटाता । लखन के पसीने से सुगन्ध आती, मेहनत और लगन की सुगन्ध । कैसे सुख से दिन बीत रहे थे ! "सुख भरे दिनों के पंप लग जाते हैं। मालूम हो नहीं पड़ते, कब उड़ जाते है, पर दुध का एक पल भी पहाड़ हो जाता है," उसने सोचा और एक गहरी सांस भर के हाट को निहारा। यासी चहल-पहल थी। सूरज सिर पर सवार था । धूप की मार से उसकी आंखें चिलमिला रही थीं । मुनुआं की कुनमुनाहट सुनकर उसने धोती के पहने से उसे ढंका और फिर "टोकरी लो, टोकरी" की भरो-सी आवाज मुंह से निकाली। "आज एकउ गाहक नाय पर अबै तो टेम बाकी ऐ ।" वह हौले से बड़वडाई । आज का दिन उसे बहुत बड़ा लग रहा था। ऐसा हो बड़ा वह दिन लगा था। जिस दिन सुबह-सुबह पंडितजी उसके घर आए थे और लखन से बहुत देर घुसुरपुसुर करने के बाद लखन को कस्बे ले गए थे। जाते-जाते लयन कह् गया था, "तू चिन्ता मत करियो । मैं गओ और आओ। एक जरूरी काम ऐ ।" उसके मन को चैन नहीं पड़ रहा था। वह रोकना भी चाहती थी, पर जब तक वह कुछ कह पाती, लखन चला गया था। पूरे दिन उसके मन में अनजानी आशंकाएं उठती रही। बार-बार वह दरवाजे तक आकर देख जाती, पर निराश लौट आती। रहमराम करके दिन काट, शाम के झुटपुटे मे लखन ने घर में कदम रखा, तो उसकी जान में जान आई। पर लखन का बदहवाश परेशान-सा चेहरा देखकर कुछ भी नही पूछ पाई। खाना भी लखन ढंग से नहीं खा पाया था। "चो परेशान ओ इतने ? पडिजी चौं आए हैं," बहुत देर बाद उसने डरतेडरते पूछा था। पर लखन चुप हो रहा था । बहुत देर गुमसुम रहने के बाद लखन के मुंह से बोल फूटे, "देख, मैंने पैलेई कई ही कि मैं बदमासी छोड़ऊ दऊं, तक पंडिजी और पुलिस नाय छोड़न देगी। बोई बात भई, जाको डर हो । ऊपर स बदमासन कूं खतम करने के आडर आए हैं। नए दरोगा कूं एक आदमी चाहिए काउंटर ( एनकाउंटर) के लइ ।" माउंटर / 195 "काउंटर का होत ऐ?" यह पूछ बैठी । "काउंटर..." यह पोहंमोहंसा, "काउंटर मे होत ऐ बदमासन से पुलिस को मुठभेड़ और या मुठभेड़ में फाऊ बदमास का मारी जानी। पर हकीकत में..." यह फिर यो गया था यहीं। कुछ देर बाद बोला, "नए दरोगा कू तरक्को चाहिए, सो पंडिजी से एक आदमी मांगो ऐ, फाउंटर के सद । जाई से पडिजी मोए सं गए ऐ. मौसे के रए कि एक आदमी को काउंटर कराओ।" "घी बिना मुठभेड़ के ?" "हां, सब ऐगेई चलत ऐ, तू नॉय समझेगी ।" "दरोगा जी के इलाके में बदमास नांय मिले का ।" "बदमास इलाके के सारे छोटे-बड़े बदमास भई पडिजो के बैठका मे बैठे हैं । दरोगाजी ऊभई ऐ, पर बदमासकूं मार के कौन हाइट मोल लें। ऊपर से आमदनी पऊ घोट पहुंचाय, सो फाळ सोधे-सच्चे आदमी कू मारनी चाहत ऐ, जासै कोई बहन-सुनन यारो नांव मिले। मैंनेऊं साफ मने कर दयो कि अब मैं जाझंझट में नाय पहुंगो जैसे-तैसे जा झंझट से बाहर निकर पायो हूं। भौत कही-सुनी भई, पंहिजो और दरोगाजी ने मोंए धमकीक दई कि तुमने जे काम नाय करवाओ, तो तुमें काऊं पैस मे बन्द कर दिगे। मैंने कई--कर देयो, पर अब मैं जे बदमासी के काम नाय करूंगी । भौत देर तक मौए रोके रखो। भां पं सराव और मुरगा की दावत उड़ रई। में उनके संग सामिल नाय भयौ, वो तो आनई नांय दे रये। पर ऊ बहानी बनाय के निकर आयो । पर तू चिन्ता छोड़ । आ मेरे पास आ, जे सब ऊंच-नीच तो लगी रहत ऐ ।" सधन ने जैसे स्वयं को समझाया । उसका मन अन्दर ही अन्दर बैठने-सा लगा था । कोई गोला-सा पेट मे घूमने लगा था । लयन उसे बांहों में समेटे हुए भी कहीं और था । "का सोच रए ओ ?* "कछू ना ?" वह सरासर झूठ बोल के अपने विचारों के उलझाव में उलझ गया। "गुन मोए फरार होनो पहुँगो," थोड़ी देर बाद यह फिर बोला "मोए जे लगत ऐ कि पंडिजी मेरोई काउंटर करानी चाहत ऐ । अब मैं उनके काळ काम को नाम रहो ना, और में पंडिजी के भौत से राज जानत हूं। उनै डर है कि कऊं में पोलपट्टी नांय खोल देकं । सुनो, ऐ पढिजी चुनाव में खड़े होन की सोच रए हैं। मेरे पयाल से आज पंडिजी मोंए दरोगा जी कू दिखान ले गये। जासै दरोगाजी मोंए ढंग से पंचान लँ ।" "तुम तो बोई डर रऐ औ ।" डर के बावजूद उसने हिम्मत बंधाई । "तू नई समझेगी जे बातें में सवेरे ई चलो जाउंगी । और सुन तूऊ मेरे संग घल । जे इलाका ई छोड़ दें । कऊं मेहनत मंजूरी करकं पेट पाल लिंगे। इन भेड़ियन से तो दूर रहेंगे।" 196 / प्रतिनिधि हिन्दी कहानियाँ 1985 अभी ये बातें चल ही रही थीं कि दरवाजे पर जीप रुकी। "ले आय गई पुलिस ।" जब तक वह उठकर भाग पाता, आंगन में लघ-पध सिपाही कूद पड़े और लखन को पकड़ के ले गए। वह रोती-चीखती रही। गांवभर मे जगार हो गई थी । भोर होते-होते गांव-भर में चर्चा फैल गई कि लखन का 'काउटर' हो गया। सब कुछ स्वप्न जैसा घटित हो गया। गांव-भर में आक्रोश फैल गया था, पर कोई कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। वह कस्बे के बाजार मे भी रोती-चीखती रही । लोग उससे सहानुभूति दरसाने से भी डर रहे थे । पुलिस और पंडितजी के खिलाफ बोलने का साहस किसी में भी नहीं था। उसे तो लखन की लाश देखने को नहीं मिली थी। लाश तक नोंचकर खा गए पुलिस और उसके दलाल । बहुत दिनों तक वह इस उस के पास भागती रही, पर परिणाम शून्य । तभी गांव मे चुनाव की चर्चा गरमाने लगी । इक्का-दुक्का जीपें गांव में आने लगी थी। गांव वालो ने इस बार बोट मांगने वालो से यही शर्त रखी कि जो भी लखन के अपराधियों को सजा दिलवाएगा, पूरे गांव के बोट, उसी को जायेंगे । यह बात हवा में फैलकर प्रत्याशियों के कानों में भी पड़ी। अब रोज ही जोपें आने लगी । सभी दलों के सदस्य यह पूरा आश्वासन देते कि वे अपराधियों को सजा दिलवायेंगे, पर इस झूठी दिलासा से किसी का मन नहीं भरता था । यह बात प्रत्याशियो और उनके दल के लोगों की समझ में भी आ रही थी। तभी एक दल के प्रत्याशी ने उस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए । वे उसे तथा गांव के दसबीस लोगो को लेकर एस० एस० पी० डी० एस० पी० आदि से मिले । उन्हे समस्त स्थितियों से अवगत कराया। प्रशासन की ओर से इस मामले की जांच का पूरा आश्वासन भी दिया गया। उस दल के लोग नित्य हो गाव में आते और लखन के एनकाउंटर की आग में लकड़िया डाल, गांव वालो की आग को सुलगाए रखते । सार्वजनिक भाषणो मे भी लखन के एनकाउंटर को खूब उछाला गया। खूब सहानुभूति जमा की गई। गांव के लोगो को तथा उसे भी भरोसा आ गया था कि उस दल के लोग सचमुच उनके साथ हैं और इस अन्याय का बदला दिलवायेंगे । गांव वालो ने एक मत से यह तय कर लिया कि वोट उसी दल के सदस्य को देगे और हुआ भी यही पूरे गांव का शत-प्रतिशत वोट उसी दल के सदस्य को पड़ा। इस आशा के साथ कि अब शीघ्र ही लखन के अपराधियों को सजा मिलेगी । पर गरीब की आशा भैंसे की आंत के समान लम्बी होती जाती है । चुनाव परिणाम घोषित हो गए। उनका प्रत्याशी जीत गया था। गाँव-भर में खुशिया मनाई गई थी। उसको भी कही लगा था कि अब लखन के हत्यारे अपनी करनी का फल भोगेगे, पर प्रतीक्षा पहाड़-सी बनती गई । चुनाव जीतने के बाद गाव वालो ने तथा उसने रोज ही प्रतीक्षा की कि नेताजी गांव में आयेंगे, पर
b49acc83ec02ab5a38e013a3284793c19ccb75a473ec588617c57df476eef530
pdf
प्रतिहत होय के सूर्य कूं प्राप्त होवै हैं । यह दृष्टविरुद्ध है । काहे तैं सूर्य की किरणा सकल नेत्ररश्मि का प्रतिघातक हैं । तिन का पराभव करके प्रतिहत नेत्ररश्मि सूर्य मंडल कुं प्राप्त होवै हैं । यह दृष्टविरुद्ध हि है । किंच साक्षात् चंद्रदर्शन तैं नेत्र मै शीतलता दृष्ट है। बिंव प्रतिबिंब के अभेद पक्ष मै चंद्र के प्रतिबिंब का दर्शन होवै तिस काल मै बी चंद्रबिंब तैं नेत्र का संबंध विद्यमान है । यातें शीतलता मानी चाहिये । सो बी दृष्ट विरुद्ध है । काहे तैं अधोमुख हुवा पुरुष जलाशयादिकन मै चंद्र प्रतिबिंव कं निरंतर देखै तिस काल मै नेत्र मै शीतलता दृष्ट नहि । किंच जलसंबंध तैं नेत्ररश्मि का प्रतिघात माने शिलादि संबंध सै तौ अवश्य मान्या चाहिये । प्रतिहत नेत्ररश्मि का नयनगोलकादिकन सै संबंध मान्या चाहिये । संबंध सै तिन का प्रत्यक्ष बी मान्या चाहिये । सों बी दृष्टविरुद्ध है। काहे तैं शिलादिकन सै नेत्र के संबंध काल मै नयनगोलकादिकन का प्रत्यक्ष दृष्ट नहि । जो दोप तैं प्रत्यक्ष का प्रतिबंध कहें तो संभव नहि । काहे तैं शुक्ति रजतादि भ्रम होवै तहां दोप तैं विशेष अंश के ज्ञान का हि प्रतिबंध दृष्ट है। सामान्य अंश के ज्ञान का प्रतिबंध दृष्ट नहि । यार्ते शिलादि संबंध काल मै सामान्य मुखत्वादिरूप तैं हि स्त्रमुख का साक्षात्कार हुवा चाहिये । इस रीति सै बिंब प्रतिबिंब का अभेदवाद दृष्ट विरुद्ध है । मिथ्या प्रतिबिंध की उपपत्ति पक्ष मै किंचित् वी दृष्ट विरोध होवै नहि । तथा हि-जो या पक्ष मै पूर्व अक्लृप्त की कल्पनारूप गौरव कहा द्रव्यगत महत्व औ उद्भूतरूप द्रव्य के चाक्षुप प्रत्यक्ष मै हि कारण प्रसिद्ध हैं। खाश्रयद्रव्य के प्रतिबिंबाध्यास मै हेतु प्रसिद्ध नहि । तामै तिन कूं हेतु मानना अक्लृप्त कल्पना है । तैसे कुड्यादिक इंद्रिय संबंध के विघटन द्वारा हि घटादिप्रत्यक्ष के प्रतिबंधक प्रसिद्ध हैं । साक्षात् प्रतिबंधक प्रसिद्ध नहि । प्रतिबिंबाध्यास की उत्पत्ति मै तिन कूं साक्षात् प्रतिबंधक मानना बी अप्रसिद्ध की हि कल्पना है । सो संभवै नहि । काहे तैं अंतर सुखादि प्रत्यक्ष की हेतुता हि मन मै प्रसिद्ध है । बाह्यपदार्थ के प्रत्यक्ष की हेतुता प्रसिद्ध नहि। परंतु फल बल तैं आकाश गोचर प्रत्यक्ष की हेतुता बी माने हैं। तैसे द्रव्यगत मह त्वादिक यद्यपि खाश्रयगोचर साक्षात्कार के हि कारण प्रसिद्ध हैं । स्वाश्रयद्रव्य के प्रतिबिंबाध्यास मै कारण प्रसिद्ध नहि । तथापि जा द्रव्य मै महत्व औ उद्भूतरूप होवें चाक्षुप प्रतिबिंब बी ताका हि दृष्ट है । अन्य का नहि । यातैं फल बल तैं स्वाश्रय द्रव्य के प्रतिबिंब मै थी कारण मानै अप्रसिद्ध दोष नहि। औ खाकार वृत्ति से स्वकी हि अपरोक्षता प्रसिद्ध है। अन्याकार वृत्ति सै अन्य परोक्षता प्रसिद्ध नहि। परंतु फल बल तैं हि आलोक कार चाक्षुपवृत्ति से आकाश की बी अपरोक्षता माने हैं। तैसे कुड्यादिक यद्यपि व्यवहित वस्तु के साक्षात्कार मै इंद्रिय संबंध के विघटन द्वारा हि प्रतिबंधक प्रसिद्ध हैं । काहे तैं जैसे त्वगिद्रिय विषयकं प्रात होय के हि घटादि विषय के प्रत्यक्ष का हेतु दृष्ट है । तैसे नेत्रादिक बी स्वविषय कूं प्राप्त होय के हि ताके साक्षात्कार के हेतु माने चाहिये । औ विषय सै इंद्रिय का संबंध हि प्राप्ति है । यात व्यवहित वस्तु के साक्षात्कार मै संबंध विघटन द्वारा हि कुड्यादिक प्रतिबंधक सिद्ध होवै हैं । याहि तैं प्रतिविवाभ्यास की उत्पत्ति मै कुड्यादिक साक्षात् प्रतिबंधक माने घटादि प्रत्यक्ष मै बी साक्षात् प्रतिबंधक होने तैं इंद्रिय संबंध मात्र मै कारणता का लोप होवैगा । यह कहना बी संभवै नहि । इस रीति सै व्यवहित वस्तु के प्रत्यक्ष मै संबंध विघटन द्वारा कुड्यादिक प्रतिबंधक प्रसिद्ध हैं । तैसे प्रति विवाध्यास की उत्पत्ति मै बी संबंध विघटन द्वारा हि प्रतिबंधक माने व्यवहित का बी प्रतिबिंव हुवा चाहिये । काहे तैं मिथ्या प्रतिबिंव की उत्पत्तिपक्ष मै इंद्रिय संबंध हेतु नहि माने हैं । याहि तैं कुड्यादिक संबंध विघटन द्वारा प्रतिबंधक कहने बी नहि संभवै हैं । साक्षात् बी प्रतिबंधक नहि माने व्यवहित का बी प्रतिबिंब अवश्य हुवा चाहिये । औ अव्यवहित पदार्थ का हि प्रतिदृष्ट है । व्यवहित का दृष्ट नहि । यातें फल बल तैं व्यवहित वस्तु के प्रति बिंबाध्यास मै कुड्यादिक साक्षात् प्रतिबंधक मानै बी अप्रसिद्धि दोष नहि । इस रीति से मिथ्या प्रतिबिंव की उत्पत्ति मै बिंबरूप द्रव्यगत अव्यवहितत्व, महत्व, उद्भूतरूप हेतु हैं । यात प्रत नेत्ररश्मि का बिंब से संबंध नहि माने व्यवहित पदार्थ का, तैसे परमाणु औ वायु का बी चाक्षुष प्रतिबिंब भ्रम हुवा चाहिये । यह कहना बी नहि संभव है । उलटा प्रतिहत नेत्ररश्मि का बिंब तैं संबंध माने हि व्यवहितादिकन का प्रतिबिंब हुना चाहिये । तथा हि - साक्षात् सूर्य के दर्शन वास्ते ताके सन्मुख नेत्र का प्रक्षेप होवै है । प्रतिबिंबरूप सूर्य के दर्शन वास्ते नेत्रप्रक्षेप की अपेक्षा नहि । किंतु अधोमुख हुवा पुरुष जल कूं देखै तब तासै प्रतिहत नेत्र की रश्मि ऊपरि जाय के आकाशस्थ सूर्य कूं विषय करे हैं । औ अपने पार्श्वस्थ पुरुष के दर्शन वास्ते नेत्र का तिर्यक् प्रक्षेप होवै है । दर्पण मै खमुख के प्रतिबिंब कूं देखे तिस काल मै पार्श्वस्थ पुरुष के प्रतिबिंब की बी प्रतीति होवै है । तामै क्षेत्र के तिर्यक् प्रक्षेप की अपेक्षा नहि । किंतु दर्पण तैं प्रतिहत नेत्ररश्मि हि पार्श्वस्थ पुरुष कूं विषय करे हैं। औ बिंब का प्रत्यक्ष हि प्रतिबिंब का प्रत्यक्ष है । यार्ते नेत्र के तिर्यक् प्रक्षेप विना हि पार्श्वस्थ पुरुष के प्रतिबिंव की प्रतीति संभवै है । इस रीति से जहां होवै तहां हि प्रतिहत नेत्ररश्मि का गमन माने हैं। सन्मुख प्रतिहत नेत्ररश्मि का पुनः शरीर के अंतर हि हावै यह नियम नहि माने हैं। या पृष्ठभाग सै माहत पदार्थ का बी ताके सन्मुख नेत्र प्रक्षेप विना हि प्रतिहत नेत्ररश्मि के संबंध तैं दर्पणादिकन मै अवश्य प्रतिबिंव भ्रम हुवा चाहिये । औ मलिन दर्पण मै गौर मुख का श्याम प्रतिबिंब होवै तहां प्रतिबिंव के चाक्षुप प्रत्यक्ष मै मुखगत गौररूप का उपयोग तो कहना संभवै नहि । किंतु आरोपित पीतरूप विशिष्ट शंख का चाक्षुप प्रत्यक्ष होवै है । तैसे आरोपित श्यामरूप विशिष्ट हि चिंब मुख का चाक्षुप प्रतिबिंव भ्रम कहना होवैगा। तैसे दर्पणगत श्यामता विशिष्ट वायु आदिकन का वी चाक्षुप प्रतिबिंध भ्रम हुवा चाहिये। काहे तैं आरोपित नीलताविशिष्ट नीरूप ची आकाश का चाक्षुप प्रत्यक्ष माने हैं। तैसे आरोपित श्यामताविशिष्ट नीरूप वायु आदिकन का वी चाक्षुप प्रतिबिंब भ्रम संभवै है । इस रीति से प्रतिहत नेत्ररश्मि का बिंब तैं संबंध माने पृष्ठभाग से व्यवहित पदार्थ का तैसे नीरूप वायु आदिकन का बी चाक्षुप प्रतिबिंध भ्रम हुवा चाहिये। और जो प्रतिहत नेत्र का वि संबंध नहि मानने मै दोप कहा । इंद्रिय के संबंध विना पदार्थ का अनुभव होवै नहि । यात कल्पित प्रतिबिंब के सजातीय मुखादिक हैं। तिन का पूर्व अनुभव के अभाव तैं अभ्यास के कारण संस्कार का असंभव होवैगा। सो बी नहि संभव है । काहे ते पुरुष सामान्य के अनु. भव तैं संस्कार होवै तासै हि पूर्व अननुभूत पुरुष का बी स्वप्न मै अभ्यास होवे है । तैसे मुख सामान्य के अनुभव. जन्य संस्कार तैं हि दर्पण मै मुख विशेष का प्रति बिंबाध्यास संभवै है । प्रतिहत नेत्ररश्मि का बिंब तैं संबंध मानना निष्फल है। परंतु इतना भेद है - खप्न मै शुभाशुभ का हेतु अदृष्ट है। तासै पुरुष विशेष का अभ्यास होवै है । प्रतिबिंबाध्यास स्थल मै मुखविशेष के प्रतिबिंधाध्यास मै बिंब उपाधि का संबंध हेतु है । यार्तें पुरुष सामान्य के अनुभवजन्य संस्कार तैं स्वप्न मै अनियत हि पुरुष का अध्यास होवै है । तैसे मुखसामान्य के अनु भव तैं संस्कार होवै तासै प्रति बिंबाध्यास माने चैत्रमुख औ दर्पण के संबंध तैं अनियत हि मुख का प्रति विचाध्यास हुवा चाहिये । नियम तैं चैत्रमुख का हि प्रति चिंबाध्यास नहि हुवा चाहिये । यह शंका संभवै नहि । और जो पूर्व शंकावादी ने कहा है । स्वरूप से प्रतिबिंब मिथ्या माने ब्रह्म का प्रतिबिंव जीव बी मिथ्या हि मानना होवैगा । या ब्रह्मभावापचिरूप मोक्ष का हि अभाव होवैगा । सो बी संभवै नहि । काहे तैं त्रिविध जीववाद मै यद्यपि प्रति बिवरूप जीव मिथ्या है । तथापि देह द्वयावच्छिन्न कूटस्थ चेतनरूप पारमार्थिक जीव सत्य है । ताका ब्रह्मभावापत्तिरूप मोक्ष संभवै है । यार्ते विंव र्ते भिन्न प्रति} रूप से मिथ्या है । यह पक्ष निर्दोष है । इस रीति सै विंध से भिन्न प्रतिबिंब मिथ्या सिद्ध हुवा, औ कोई ग्रंथकार तौ बिंब से भिन्न प्रतिबिंब कं छायारूप मान के सत्य कहे हैं। सो असंगत है। काहे तैं शरीरादिकन तैं आलोक के निरोध तैं छाया होवै है । सो अंधकाररूप होने तैं ताका नियम तैं नीलरूप हि होवै है । रूपांतर होवै नहि । औ प्रतिबिंब का रूप नील हि होवै यह नियम. नहि । किंतु श्वेत पदार्थ का प्रतिबिंब श्वेत हि होवै है । रक्त का रक्त हि होवै है । पीत पदार्थ का पीत हि प्रतिबिंब होवै है । नील का नील हि होवै है। औ नेत्रांदिकन की छाया हि होवै नहि । तिन के प्रतिबिंब कूं तौ छायारूप कहना सर्वथा असंगत है । यात बी प्रतिबिंब कूं छायारूपता कथन असंगत है । और जो अंधकार की न्याई प्रतिबिंब कं द्रव्यांतर रूप मान के सत्य सिद्ध करे हैं सो बी असंगत है । काहे तैं शुक्ति रजत की न्याईं प्रतिबिंब का वाघ होवै है यातैं सत्यसिद्ध होवै नहि । किंच प्रतिबिंब मै रूप परिमाण प्रत्यङ् मुखवादिक धर्म प्रतीत होवै हैं । ताकूं द्रव्यांतररूप मान के तामै रूपादिक नहि माने द्रव्यांतररूप मानना निष्फल होवैगा । प्रतिबिंध मै रूपादिक माने ताकूं सत्य कहना संभवै नहि । काहे तैं एक हि अल्प परिमाणवाले दर्पण मै महत् परिमाणवाले अनेक मुखन के अनेक प्रतिबिंब युगपत् असंकीर्ण प्रतीत होवै हैं । तात्पर्य यह एक बी विशाल दर्पण मै तो अनेक प्रतिबिंध असंकीर्ण स्थित होय सके हैं। अल्प परिमाणवाले अनेक दर्पण होवें तहां बी एक एक दर्पण मै एक एक प्रतिबिंत्र की असंकीर्ण स्थिति संभव है। अल्प परिमाणवाले एक दर्पण मै बी क्रम तैं अनेक प्रतिबिंध असंकीर्ण स्थित होय सके हैं । परंतु अल्प परिमाणवाले एक दर्पण मैं महत् परिमाणवाले अनेक प्रतिबिंब युगपत् असंकीर्ण स्थित होय सर्कै नहि । औ मिथ्या प्रतिबिंब पक्ष मै तौ ग्रह दोष नहि। काहे तैं खप्न मै खल्पनाडिदेश मै महत् परिमाणवाले अनेक मिथ्या गज रथादिक युगपत् असंकीर्ण प्रतीत होवै हैं । तैसे अल्प परिमाणवाले दर्पण मै बी विशाल अनेक प्रतिबिंबन की युगपत् प्रतीति संभत्रै । औ पूर्व की न्याई अधिकृत हि दर्पण मै निम्नोन्नत अनेकविध अवयववाले सत्य द्रव्यांतररूप प्रतिबिंब की उत्पत्ति कहना सर्वथा विरुद्ध है । किंच एक हि दर्पण मै सित रक्त पीतादि अनेकविध वर्णादि युक्त अनेक प्रतिबिंब प्रतीत होवै हैं । तिन की उत्पत्ति मै दर्पण के मध्य ताके संनिहित तिस प्रकार का कारण प्रतीत होवै नहि । तात्पर्य यह दर्पण के समान वर्णवाले हि· प्रतिबिंच होवें तब तौ दर्पण मै तादृश वर्ण युक्त कारण का संभव बी होवै । परंतु दर्पण के रूप तैं विलक्षण नाना रूपवाले प्रतिबिंध प्रतीत होवै हैं । औ बिंवरूप मुखादिकन मै तौ यद्यपि सित पीत रक्तादि अनेकविध वर्णादिक हैं वी परंतु कार्यदेश मै कारण चाहिये । कार्य प्रतिबिंब दर्पण के अंतर ताके पृष्ठ. भाग मै संनिहित प्रतीत होत्रै हैं । तिन का कारण बी तहां हि हुवा चाहिये। मुखादिक बिंब तिन के अग्रभाग मै बाह्य प्रतीत होवै हैं । या निमित्त तौ संभवैं बी हैं। परंतु उपा दान संभवै नहि । यातें सामग्री के अभाव तैं बी सत्य द्रव्यांतररूप प्रतिबिंत्र की उत्पत्ति कहना संभवै नहिं । इस रीति से युक्ति विरोध तैं औ प्रमाण के अभाव तैं बी विंब से भिन्न प्रतिबिंब सत्यत्ववाद असंगत है । मिथ्या प्रतिबिंव पक्ष हि समीचीन है। इस रीति से अद्वैत विद्याकार विद्यारण्यस्वामी आदिकन के तात्पर्य निरूपण मै प्रतिचिंच कूं स्वरूप सै मिथ्या सिद्ध करे हैं। परंतु बिंब प्रतिबिंब के अभेदपक्ष मै जो दोप कहे हैं विं प्रतिबिंध का भेद प्रतीत होवै है । तिन मै द्विवादिक प्रतीत होवै हैं । अभेदपक्ष मै ताका विरोध होवैगा । सो दोप संभवै नहि । काहे तैं जैसे नेत्रदोष तैं एक हि चन्द्रमा मै भेद सहित द्विवादिकन का भ्रम होवै है । तैसे बिंध उपाधि की संनिधिरूप दोष तैं मुखादिक चिंत्र मै भेदसहित द्विवादिंकन की प्रतीति भ्रमरूप संभवै है । याहि तैं सादृश्य प्रतीति बी भ्रमरूप हि है । तासै श्री बिंब सै भिन्न प्रतिबिंवस्वरूप सै मिथ्या सिद्ध होवै नहि या 'दर्पणे ममं मुखं भाति' इत्यादि अभेदव्यवहार कूं गौण कहना संभवै नहि किंतु मुख्य हि मान्या चाहिये । जो प्रतिबिंब गोचर वालप्रवृत्ति आदिकन तैं भेदव्यवहार कूं मुख्य सिद्ध किया सो वी नहि संभव है। काहे तैं विंब मै दर्पणादिस्थल भ्रम तैं हि बालप्रवृत्ति आदिक संभवै हैं । यातैं परीक्षक प्रवृत्ति की अन्यथासिद्धि पूर्व कहि है। तैसे बालप्रवृत्ति आदिक बी अन्यथा हि सिद्ध होय सके हैं । तिन सैं बी भेदव्यवहार मुख्य सिद्ध होय सके नहि । उलटा अभेद गोचर अनुभव पूर्व अनेक कहे हैं। और लाघव तैं बी अभेद्रव्यवहार हि मुख्य सिद्ध होवै है । किंच मुखादिक बिंब तैं प्रतिबिंब का भेद भ्रम होवै है । स्वभाव सै तिन का सदा अभेद है । तैसे जीव ब्रह्म का भेद भ्रम सिद्ध है । तिन का अभेद स्वाभाविक है । इस रीति से लौकिक विच प्रतिबिंध का अभेद मानै वैदिक जीव ब्रह्म के अभेद मै अनुकूल युक्ति मिले है । औ प्रतिबिंच जीव का हि ब्रह्म सै अभेद संभव हुये तासै भिन्न पारमार्थिक जीव का अंगीकार गौरवग्रस्त है । यार्ते बी विंध प्रतिबिंब का अभेद स्वाभाविक हि मान्या चाहिये । एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥ यथाह्ययंज्योतिरात्माविवस्वान्नयोभिन्नाबहुधैकोऽनुगच्छन् । उपाधिना क्रियते भेदरूपो देवः क्षेत्रेष्वेवमजोऽयमात्मा ॥ इत्यादि श्रुतिवाक्यन का बी चित्र प्रतिबिंव के अभेद ( ३७३ ) मैहि तात्पर्य है। काहे तैं साभाव से एक हि चंद्रादिकन मै नानाल औपाधिक है । तैसे चेतन आत्मा स्वभाव से एक है । तामै औपाधिक नानात्व है। यह श्रुतिवाक्यन का अर्थ सिद्ध होवै है । सो विंध प्रतिबिंध के भेदपक्ष मै संभवै नहि । काहे तैं भेदपक्ष मै बिंब एक है । प्रतिबिंब नाना है । यह सिद्ध होवै है । एक मै हि औपाधिक नानात्व सिद्ध होवै नहि । बिंब प्रति विंव के अभेदपक्ष मै एक मै औपाधिक नानात्व स्पष्ट हि सिद्ध होवे है । या कारण तैं हि भामति निबंधादिकन मै बहुत स्थान मै यह कहा है - यद्यपि जीव ईश्वर का वास्तव सै अभेद हि है । तथापि लौकिक बिंब प्रतिबिंव की न्याई कल्पितभेद होने तैं तिन के धर्मन की व्यवस्था संभवै है । यातैं अभेदपक्ष हि समीचीन है। विद्यारण्य स्वामी आदिकन ने बिंध प्रतिबिंब का भेद मान के स्वरूप सै मिथ्या प्रतिबिंध की उत्पत्ति कहि है । सो मंद अधिकारी के वास्ते कहि है। काहे तैं धर्मी के भेदस्थल मै हि विरुद्ध धर्मन का असंकर लोक मै प्रसिद्ध है। धर्मी के अभेदस्थल मै प्रसिद्ध नहि । या कर्तृत्व भोक्तृत्वादि संसार का आश्रय मिथ्या चिदाभास है। सत् चित् आनंद. रूप आत्मा असंग होने तैं ताका आश्रय नहि । या प्रक्रिया तैं मंद अधिकारी कुं अनायास तैं बोध होवै है। तैसे ब्रह्म का प्रतिबिंब होने तैं आत्मा स्वर्भाव सै तौ ब्रह्म( ३७४ ) रूप हि है । अंतःकरण के संबंध तैं तामै संसार है । या प्रक्रिया तैं होवै नहि । यातैं अनायास तैं मंद कृं बोध होवै या अभिप्राय तैं पंचदशी आदिक ग्रंथन मै धार्मभेद की सिद्धि वास्ते मिथ्या प्रतिबिंव की उत्पत्ति कहि है। यातें विरोध नहि। और जो कहा सूर्य की किरणा सकल नेत्ररश्मि का प्रतिघातक हैं। जल तैं प्रतिहत नेत्ररश्मि तिन का पराभव करके तिन के अंतर्गत सूर्यमंडल कूं प्राप्त होवै हैं । यह कहना दृष्ट विरुद्ध है । सो बी संभवै नहि । काहे तैं जैसे स्वभाव सै सूर्य की किरणा तृणादिकन का दाह नहि करे हैं । सूर्यकांतमणि तैं प्रतिहत हुयी करे हैं। तैसे स्वभाव सै तौ नेत्र की रश्मि सूर्यकिरणा का पराभव नहि करे हैं। परंतु जलादि उपाधि तैं प्रतिहत हुयी करे हैं। यह दृष्ट के अनुसार कल्पना संभवै है । यातैं विरोध नहि । और जो कहा चंद्रप्रतिबिंब के दर्शनकाल मै वी मै चंद्रमा से नेत्र का संबंध विद्यमान है । यातैं नेत्र शीतलता हुयी चाहिये । सो बी नहि संभवै है । काहे तैं चंद्रमा के संबंध र्ते नेत्र मै शीतलता मानै तब प्रतिबिंब दर्शनकाल मै वी शीतलता हुयी चाहिये । परंतु चंद्रकिरणा के निरंतर संबंध तैं नेत्र मै शीतलता माने हैं चंद्र. चंद्रसंबंध तैं नहि माने हैं। औ अधोमुख हुवा पुरुप प्रतिबिंव कूं देखै तिसकाल मै ताके नेत्र सै चंद्रकिरणा का निरंतर संबंध है नहि । यार्तें प्रतिबिंब दर्शनकाल मै ( ३७५ ) शीतलता की आपत्ति नहि। और जो कहा जल संबंध तैं नेत्ररश्मि का प्रतिघात माने शीलादि संबंध से तौ अवश्य मान्या चाहिये । प्रतिहत नेत्ररश्मि तैं संबंध द्वारा नयनगोलकादिकन का साक्षात्कार हुवा चाहिये । सो वी संभवै नहि । काहे तैं दृष्ट के अनुसार कल्पना हुयी चाहिये । जलादिक स्वच्छ उपाधि मै प्रतिबिंध दृष्ट है। शिलादिकन मै दृष्ट नहि । यातै प्रतिबिंव के योग्य स्वच्छ द्रव्य तें हि नेत्ररश्मि का प्रतिघात होवै है । मलिन शिलादिकन तैं होवै नहि । इस रीति सै दृष्ट के अनुसार पदार्थ का स्वभाव मानने मै दोप नहि। और जो कहा जहां चिंत्र होवै तहां हि प्रतिहत नेत्ररश्मि का गमन माने पृष्ठभाग तैं व्यवहित पदार्थ का वी प्रतिहत नेत्ररश्मि के संबंध तैं प्रतिबिंब भ्रम हुवा चाहिये । सो बी नहि संभव है। काहे तैं प्रति हत नेत्ररश्मि की विदेश मै प्राप्ति होवै है । या पक्ष मैवी विंध प्राप्ति मै व्यवधान का अंभाव चाहिये । अधो-' मुख पुरुष जल मै सूर्य के प्रतिबिंब कूं देखै तहां व्यव धान का अभाव विद्यमान है । यातें जल तैं प्रतिहत नेत्ररश्मि कूं सूर्य की प्राप्ति संभवै है । दर्पण मै ऋजुनेत्र से स्वप्रतिबिंब की न्याईं पार्श्वस्थ पुरुष के प्रतिबिंव कूं बी देखे है। तहां वी व्यवधान का अभाव विद्यमान है। यार्तें दर्पण तैं प्रतिहत नेत्ररश्मि कूं पार्श्वस्थ पुरुष की प्राप्ति वी संभव है। परंतु पृष्ठभाग तैं व्यवहित वस्तु की प्राप्ति मै शरीर औ ताके अवयव हि व्यवधान हैं। यातें दर्पण । तैं प्रतिहत नेत्ररश्मि ताकूं प्राप्त होवैं नहि । याहि तैं ताके प्रतिबिंव भ्रम की बी आपत्ति नहि। और जो कहा द्रव्य के चाक्षुप प्रत्यक्ष मै द्रव्यगत हि उद्भूतरूप कारण होवै यह नियम नहि । काहे तैं कल्पित पीतरूप विशिष्ट शंख का चाक्षुप प्रत्यक्ष माने हैं। आरोपित नीलरूप विशिष्ट आकाश का चाक्षुष प्रत्यक्ष माने हैं। मलिन दर्पण मै गौरमुख के श्याम प्रतिबिंब का चाक्षुप प्रत्यक्ष होवै है। तहां कहूं. बी आश्रयगत उद्भूतरूप कारण नहि । तैसे कल्पितरूप विशिष्ट नीरूप वायु आदिकन का वी चाक्षुप प्रतिबिंब भ्रम हुवा चाहिये । काहे तैं द्रव्य के चाक्षुष प्रतिबिंब भ्रम मै द्रव्यगत महत्व कारण है । तैसे द्रव्यगत हि उद्भूतरूप वी कारण होवै तब तौ नीरूप का चाक्षुप प्रतिबिंव भ्रम नहि बी संभवै । परंतु गौरमुख का श्याम 'चाक्षुप प्रतिबिंब भ्रम होवै । तामै मुखगत गौररूप कारण नहि । किंतु मुख दर्पण की संनिधि तैं दर्पणगत श्यामरूप का मुख मै आरोप होवै है। आरोपित श्यामरूप विशिष्ट मुख का चाक्षुप प्रतिबिंब भ्रम होवै है। वैसे कल्पितरूप विशिष्ट नीरूप द्रव्य का वी चाक्षुष प्रतिबिंध भ्रम हुवा चाहिये । सो ची संभवै नहि । काहे तैं कल्पित पीतादि रूप विशिष्ट शंखादिकंन का चाक्षुप प्रत्यक्ष उपाध्याय माने हैं। प्राचीन आचार्य तिन का साक्षिरूप प्रत्यक्ष
eb770d418e9976829206364e1c34a53ffe1a9576
web
"गोथिक 2" रोल-प्लेइंग गेम का क्लासिक है। विशाल पम्पिंग अवसर, एक खुली विशाल दुनिया, चीजों की अविश्वसनीय मात्रा, हथियार और दुश्मन, मूल युद्ध प्रणाली - इसने इस शैली को शैली के प्रशंसकों के लिए अविस्मरणीय बना दिया, आरपीजी को एक नए स्तर पर उठाया। यह "गॉथिक" से था कि भूमिका-खेल के खेल के कई रचनाकारों ने काम करना शुरू कर दिया, जब उन्होंने अपनी उत्कृष्ट कृति परियोजनाएं बनाईं। स्वाभाविक रूप से, यह कल्पना करना मुश्किल है कि इस गेम के लिए कोई भी संशोधन नहीं करता है। सबसे सफल में से एक "डार्क सागा" बन गया, जिसने गेम में विभिन्न प्रकार की सामग्री को जोड़ा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक नई अविश्वसनीय संख्या है जो आप जा सकते हैं, अपने चरित्र के समानांतर पंप कर सकते हैं, नए क्षेत्रों की खोज कर सकते हैं, वस्तुओं और धन इकट्ठा कर सकते हैं। इन सभी gamers बहुत खेल "गॉथिक 2: द डार्क सागा" याद किया जाता है। इस आलेख में जोड़े गए क्वेस्ट के सबसे दिलचस्प का मार्ग वर्णित किया जाएगा। यह सबसे सरल क्वेस्ट में से एक है, लेकिन वहआपको "गॉथिक 2: द डार्क सागा" गेम के जीवों की दुनिया में डुबकी देता है। कार्य के मार्ग में इस तथ्य को शामिल किया जाएगा कि आपको जंगल में पशुओं को मारने, ट्रॉफी निकालने की आवश्यकता होगी। स्वाभाविक रूप से, आप किसी भी जानवरों के लिए उपयुक्त नहीं होंगे - आपको दुर्लभ नमूने, जैसे क्रूर या ओरेग्रेव की खोज करने की आवश्यकता होगी। उन्हें ढूंढें आसान नहीं होगा, क्योंकि वे केवल कुछ स्थानों पर रहते हैं। लेकिन यदि आप थोड़ा समय बिताते हैं, तो आप आसानी से सभी ट्राफियां प्राप्त कर सकते हैं - कोई भी आपको प्रतिबंधित नहीं करता है, इसलिए आप खेल खेलना जारी रख सकते हैं, और इस प्रक्रिया में ऐसा हो सकता है कि आपको सही जानवर मिल जाए। जब आप शिकारी को लाते हैं जिसने आपको यह कार्य दिया है, तो सभी आवश्यक ट्रॉफी, आपको एक प्रभावशाली मात्रा का अनुभव मिलेगा, साथ ही साथ हजारों सिक्के भी मिलेगा। लेकिन यहां एक बात जानना महत्वपूर्ण है - शिकारी के बारे में तुरंत मत भूलना। यदि आप कार्य पूरा होने के एक दिन बाद आते हैं, तो आपको प्रबलित कवच प्राप्त होगा। खेल में "गॉथिक 2: द डार्क सागा" मार्ग आपको अक्सर आश्चर्य दिखाएगा, इसलिए आपको इससे अधिक लाभ उठाने के लिए सब कुछ दोबारा जांचना होगा। पिछली खोज में लगभग कोई कहानी नहीं हैघटक - आप केवल तथ्य यह है कि शिकारी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए जा रहा है की सूचना दी, तो वह ट्राफियां चाहता था। काफी खेल में कुछ अन्वेषण कर रहे हैं "स्पीड 2 के लिए की आवश्यकता हैः डार्क सागा", गुजर उन्हें अनुभव, धन और उपयोगी चीजें इकट्ठा करने के लिए केवल जरूरत है। लेकिन काम है "कीमियागर और दानव" एक अलग श्रेणी को संदर्भित करता - यहाँ आप एक पूरा इतिहास खोजने के लिए और इसमें भाग लेने के लिए सक्षम हो जाएगा। इस खोज का सार यह है कि एल्केमिस्ट, जिसे आपने खेल की साजिश में मदद की, उसे अपने मृतक कामरेड की भावना से बाधित किया गया, जिसने असफल कीमिया प्रयोग किया। तदनुसार, आत्मा का निपटान किया जाना चाहिए, लेकिन यह केवल एक विशेष तरीके से किया जा सकता है - रात में, ब्लेड की मदद से, जहर से घिरा हुआ। तो आपको किसी भी ब्लेड को पाने की ज़रूरत है जो उपयोग करने के लिए दयालु नहीं होगी, साथ ही दास स्लैग की तलाश में जायेगी, जिससे औषधि की जाएगी। इसे पीने के बाद, आप दानव देख सकते हैं और इसके साथ बातचीत कर सकते हैं - दुश्मन को हराने और एक संक्षिप्त संघर्ष के बाद अपना पुरस्कार प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा। यह अंश समाप्त होती है। "गोथिक 2: द डार्क सागा", आप अब तक ऐसे ही एक काम की तुलना में अधिक की पेशकश ताकि समय खेल में खर्च किया, यह बहुत मनोरंजक होगा। अगर आपने सोचा था कि पिछली खोज थीरोमांचक, तो यह काम आपके लिए एक असली खुशी होगी - बस उसके मार्ग को देखें। "गोथिक 2: द डार्क सागा" तथ्य की अन्य संशोधनों के बीच बाहर खड़ा है कि वास्तव में, मतलब एक सम्मोहक कहानी बताएं, और आप परिणाम को प्रभावित करने के घटनाक्रम में सीधे भाग लेने की अनुमति अच्छी तरह से निर्धारित अन्वेषण देखते हैं कि। विशेष रूप से इस कार्य के संबंध में, यह आपको साजिश पर रस्सी और सुई की आवश्यकता के लिए नेतृत्व करेगा। आपको हार्ट से संपर्क करने की ज़रूरत है, जो आपको अपनी डायरी ढूंढने पर सामग्री देने के लिए सहमत है। यह पता चला, डायरी सुंदर प्रभावशाली गार्ड, जो लड़ाई में आप को दूर नहीं कर सकते हैं पहरा, आश्रय orcs में है। इसलिए, हमें अन्य विकल्पों की तलाश करनी है। उदाहरण के लिए, चोरी। आप तिजोरी की कुंजी चोरी विस्प करने के लिए कह करने की जरूरत है, लेकिन वह केवल इस बात से सहमत अगर आप Orc-गार्ड का ध्यान भंग होगा। आपको उसके साथ लड़ाई शुरू करने की ज़रूरत है, जिसके दौरान आपको सिर पर कुल्हाड़ी मिल जाएगी। विस्प काम के अपने हिस्से के साथ सामना करने में सक्षम नहीं है, लेकिन इस के लिए वह तुम्हें चोरी की मूल बातें सिखाना होगा, और आप कुंजी और डायरी में ही प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा। हालांकि, अगर आप गार्ड zelenomordym फोन, लड़ाई और अधिक गंभीर हो जाएगा, और विस्प कुंजी चोरी कर सकते हैं, लेकिन आप चोरी के कौशल नहीं मिलेगा। खेल में "स्पीड 2 के लिए की आवश्यकता हैः डार्क सागा" सभी खोज पूरी करके, आप या कि चुनाव की आवश्यकता होती है तो यहां तक कि सबसे सरल कार्य कम से कम निर्णय लेने के मामले में मुश्किल हो सकता है कि होगा। यह एक और दिलचस्प खोज है जिसमें आपसफल होने के लिए निर्णायक कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी। खेल में "गॉथिक 2: द डार्क सागा" सभी क्वेस्टों के पारित होने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होगी, इसलिए हमेशा गंभीर उपलब्धियों के लिए तैयार रहें। इस मामले में, जो आपको सुझाव देगा कि आप उस गुफाओं के लिए गुफा में जाएंगे जहां उन्होंने वहां छुपाया था। वह आपके साथ पैसे साझा करने के लिए सहमत है - वह खजाना नहीं ले सकता है, क्योंकि राक्षस गुफा में शुरू हो गए हैं। उसके साथ जाओ, सभी राक्षसों को मार डालो, लेकिन यहां अप्रत्याशित आता है - चालाक आपको अपना हिस्सा देने से इंकार कर देता है और सब कुछ खुद लेना चाहता है। उसे एक सबक सिखाना जरूरी है, लेकिन मारने के लिए नहीं - उसके बाद आप छाती से उसकी सारी सामग्री और उसके सभी सामान निकाल सकते हैं। यहां सबसे मजेदार बात यह है कि इस खोज को पूरा करने के बाद आप शहर में जो पा सकते हैं। इसके अलावा, आप उसे एक क्रॉसबो फायरिंग से सीख सकते हैं, उसी पैसे के साथ अपने सबक के लिए भुगतान कर सकते हैं। खेल "गॉथिक 2: द डार्क सागा" में क्वेस्ट अक्सर अनन्य होंगे - आप उन पात्रों के साथ संवाद करना जारी रख सकेंगे जिन्होंने आपकी मदद की, और कई मामलों में, इस तरह के सहयोग से लाभ प्राप्त होता है। शायद आप कैसे ध्यान देते हैंविषम खेल "गोथिक 2: द डार्क सागा" मार्ग में है। Orc, पलादीन शिविर और इतने पर - अन्वेषण के विभिन्न गुटों से संबंधित विभिन्न पात्रों द्वारा आयोजित की जाती हैं। यदि आप वर्तमान में Orc शिविर में काम कर रहे हैं, तो आप कलाकृतियों, जो वहाँ व्यापारी द्वारा बेचा जाता है में रुचि हो सकती - उन सभी को जादुई और दुर्लभ हैं, हां, तो उन्हें खरीदने के लिए आप बहुत सारा पैसा की आवश्यकता होगी। आप पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं, तो आप जहां वह इन सभी वस्तुओं के ले जाता है के बारे में डीलर पूछ सकते हैं। वह आपको भंडार के बारे में बताएगा, जो शक्तिशाली जादू द्वारा संरक्षित है। शिविर और लूटने पाँच जनरलों जो जादुई संकेत रखा के एक दौरे पर जाने - हालांकि, यह आप बंद हो जाएगा संभावना नहीं है। स्टोर पर जाएं और सही क्रम में हो और वस्तुओं की काफी एक प्रभावशाली राशि प्राप्त करने के लिए प्लेटों को सक्रिय करें। लेकिन यही सब कुछ नहीं है - आप गुफा जहां काम दास, वहाँ पढ़ने, प्रार्थना और एक अन्य शक्तिशाली कुल्हाड़ी पाने के लिए दो किताबें हैं करने के लिए जा सकते हैं। अक्सर आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपखेल "गॉथिक 2: द डार्क सागा" मार्ग में प्रस्तुत करता है। ओआरसी खान, जिसमें आपने पिछले मिशन का दौरा किया था, आपको अब इसकी आवश्यकता होगी। तथ्य यह है कि निचले स्तर पर बहुत सारे राक्षस हैं जो काम में हस्तक्षेप करते हैं, इसलिए आपको गंभीर लड़ाई के लिए तैयार होने के लिए वहां जाना होगा। सौभाग्य से, आप गार्ड और यहां तक कि गुलामों द्वारा मदद की जाएगी। आखिरी राक्षस नष्ट होने के बाद, आप उस ओआरसी को रिपोर्ट करने में सक्षम होंगे जिसने आपको कार्य दिया है, कि खानों को साफ कर दिया गया है और वे फिर से काम करना शुरू कर सकते हैं। खेल में जारी रखने का समय "गोथिक 2: डार्क सागा "शिविर समुद्री डाकुओं गुजर -। यह एक और गुट है जो आप उन के बीच में सबसे दिलचस्प कार्य करने, पुराने समुद्री डाकू, जो लंबे समय मृत आप धँसा जहाज यात्रा करने के लिए होगा किया गया है से अभिशाप को दूर करने वहाँ सभी खजाने एकत्र करने का कार्य है की जरूरत है .. गुफाओं के माध्यम से चलना और उसके बाद एक कंकाल समुद्री डाकू, जो आप चार कब्र चीजों से निर्माण बता देंगे, उन पर रखा और उसे और सभी कंकाल, समुद्री डाकुओं को मारने, शाप को वापस ले लिया साथ मिलते हैं। अलग-अलग क्वेस्ट के समूह का जिक्र करना उचित हैयह परियोजना खेल में "गॉथिक 2: द डार्क सागा" क्वेस्ट "एरिना ओर्क्स", "वाक", "एरिना" और इसी तरह बहुत समान है। इसमें इस तथ्य को शामिल किया गया है कि आपको पूरी दुनिया के मैदानों में झगड़े आयोजित करने की आवश्यकता है, प्रतिभागियों के लिए साइन अप करें और चैंपियन का खिताब पाने के लिए अन्य बोलीदाताओं के साथ लड़ें। यह आपको मशहूर बना देगा, और बहुत सारा पैसा और मूल्यवान पुरस्कार भी लाएगा।
a48e2f33cf2e9f7a660d285d73603650e80c8e6fa0d33d89bd8cacb5bd1e0524
pdf
गेव द्वारा कै खुसरो की खोज करने के पूर्व उसने गेव को राजकुमार कै खुसरों की खोज में भेज कर फुरामर्ज को तूरान के पराजित भाग का संरक्षक नियुक्त कर दिया । इन * कार्यों से छुट्टी पाकर वह सब लूट का धन, घोड़ा, हाथी, नौकर चाकर तथा अन्य बहुमूल्य वस्तुऐं लेकर कैकाऊस के सम्मुख पहुँचा । कैकाऊस सब समाचार सुन कर तथा धन इत्यादि देख कर अतीव प्रसन्न हुआ । रुस्तम के चले जाने के पश्चात् गेव भी अपने घोड़े शब्देश पर चढ़ कर कै खुसरो की खोज में अकेला ही चल पड़ा। पहिले उसने चीन की नदी की ओर प्रस्थान किया। राह चलते प्रत्येक सवार से वह कै खुसरो का पता पूछता पर कोई भी उसे संतोप-प्रद उत्तर न देता । पता न मालूम होते पर वह उस अश्वारोही का बच कर डालता, क्योंकि । उसे भय था कि कहीं कोई जाकर तूरान के शासक से इस मर्म को प्रकर न करदे । वह कै खुसरों की खेज में इतना तन्मय था कि उसे अपने भोजन तथा नींद तक की याद न आता थी । गेव के प्रस्थान के पश्चात् उसके पिता गोदर्ज ने स्वप्न देखा कि गेच कैखुसरो की खोज में अकेला ही मारा-मारा फिरता है। जब सवेरे उसकी आँख खुली तो उसने कुछ विश्वास पात्र व्यक्तियों को उसके पास भेजा कि वह उसके साथ दिन-रात रह कर कै खुसरो को खोज करें । वह लोग चल तो दिये पर रोव की भाँति वह भी भटकते ही रहे और उन्हें उसका कुछ भी पता नहीं मिला करते क्या, गोदुर्ज की आज्ञा से विवश थे 1 योंही खेाजते खोजते एक दिन गेव को कुछ अश्वारोही दिखाई पड़े । जब वह निकट आये तो उन्होंने गेद से पूछा "तुम कौन हो और इस निर्जन स्थान में कैसे या निकले ।" गेव ने उत्तर दिया "मैं एक आखेट के पीछे-पीछे यहाँ आ निवला और अब लौटने का मार्ग भूल कर नहीं भटक रहा हूँ।" इसके पश्चात् गेव ने फिर उनसे तुर्की भाषा में ही जाने का विचार रखते हैं ?" उन लोगों ने कहा "हम अफरासियान के सैनिक हैं और कै खुसरो के पास जा रहे हैं ।" यह सुन कर गेव उनके साथ हो लिया । चलते-चलते रात हो गई, अतः एक स्थान पर उन लोगों ने अपना डेरा डाला गेव कई दिन का थक्का था, पढ़ते ही गाढी निद्रा में निमन्न हो गया। जब वह सो गया तो वन-यश्वारोहियों को कुछ शंका हुई और वे साचने लगे कि यह कोई ईरानी न हो, जो हम लोगों को छल रहा । अतएव वह सब उसको सोता छोड़ कर चल दिये । दूसरे दिन प्रातःकाल जब रोब सो कर उठा तो उन श्रश्वारोहियों में किसी का चिन्ह तक नहीं दिखाई पड़ा । विवस हो वह उसी पत्ते पर जिसे कि उसने उन लोगों से पूछा था, चल दिया । अन्ततः चलते-चलते वह एक सोते के निकट जा पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक सुन्दर युवक जिसको देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि वह कोई राजकुमार है, उसी सोने के किनारे मदिरा पात्र अपने हाथ में लिये बैठा है । यह देख कर वह आगे बढ़ा और निकट पहुँच कर अभिवादन करते हुए पूछा 'हे राजकुमार ! क्या मैं यह जान सकता हैं कि आप ही सियावश के पुत्र के खुसरी ?" उसके इस प्रश्न को सुन कर कै खुसरो ने हँस कर कहा "हाँ" और फिर कहा "मुझे विश्वास है कि तुम ही गोदर्ज के पुत्र सेव हो ।" उसकी इस बात को सुन कर गेव घोड़े से उतर पड़ा और उसके सम्मुख जाकर अपने शिर को अभिवादन के रूप में का दिया। श्राश्चर्य चकत हो उसने पूछा "राजकुमार ! श्रापने मुझे पहिचान कैसे लिया ?' उसने उत्तर दिया "मेरे पिता के राजभवन में समस्त पहलवानों के चित्र अंकित हैं और मेरी माता ने मुझे सब के नाम से परिचित करा दिया है। अब यदि रुस्तम, तोस तथा गोदवर्ज़ भी आये तो पल भर में मैं उनको पहिचान सकता हूँ ।" जब गेव ने यह बात सुनी तो उसका कौतूहल शांत हो गया । थोड़ी देर बैठने के पश्चात् कै खुसरो ने फिर गेव से पूछा "भला गेव द्वारा कै खुसरों की खोज तुमतो बताओ कि तुमने मुझे किस प्रकार पहिचान लिया ।" गेव ले उत्तर दिया "हे राजकुमार, आपका सुन्दर मुख तथा तेजस्वी रूप स्वयं ही आपके राजवंशी होने का सजीव प्रमाण है और इन्हीं चिन्हों से मैंने आपको पहिचाना । अब यदि मेरी को क्षमा करें और अपनी भुजा को नग्न करके दिखा दे तो पुष्ट प्रमाण का अभाव न रहे । कैखुसरो ने उसकी इस प्रार्थना को स्वीकार कर तुरन्त अपनी भुजा खोल दी। जब गेव ने भुजा पर अपेक्षित काला चिह्न देखा तो गद्गद् हो गया और अपना मस्तक पृथ्वी पर टेक दिया। प्राचीन काल में प्रत्येक राज-वश का एक चिह्न होता था जो कि उसकी सन्तान की भुजा पर अंकित रहता था और यह वही चिह्न था जिसको देखने के लिये गेव इतना उत्सुक था । शिष्टाचार के पश्चात् गेव ने राजकुमार को घोड़े पर सवार कराया और फ़िरिंगियश के पास चल दिया। वहाँ पहुँच कर उसने ईरान तथा तूशन के युद्ध का सारा वृत्तान्त उन लोगों से कहा । यह समाचार सुन कर फिसिंगयश ने कहा, "अब तुम लोगों की भलाई इसी में है कि तुरन्त तूरान छाड़ कर ईरान के लिये प्रस्थान करो ।" उसने गेव से कहा, "यहीं निकट में एक अश्वसाला है। तुम वहाँ से जाकर एक तेज़ घोड़ा ले आओ।" गेव ने तुरन्त उसकी श्राशा का पालन किया और दो अच्छे घोड़े लेकर फरिंगियश के सम्मुख उपस्थित हुआ। वे तीनों उन्हीं घोड़ों के पर सवार होकर ईरान की ओर चल दिये । इधर पीरान के गुप्तचरों ने जब उस अश्वारोही को अपने स्थान पर न पाया तो सीधे कैखुसरो के कारागृह की ओर गया। जब वहाँ पहुँच कर ● उन लोगों ने देखा कि कैखुसरो भी नहीं है तो सोधे पीरान के पास पहुँचे और उस अश्वारोही तथा कैखुसरो के निकल भागने का वृत्तान्त आद्योपान्त कह सुनाया। उसने कैखुसरो की रक्षा कार अपने सिर लिया हुआ था, अतः अपने हृदय में बहुत डरा और इसी सोभ तथा क्रोध में उसने गुलबाद को गेव, कै खुसरो तथा फिरिंगियश की खोज में सेना सहित भेज दिया । गुलबाद उससे विदा होकर कै खुसरो की खोज में निकले । चलतेचलते गुलबाद उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ यह तीनों विश्राम के हेतु सो रहे थे । ज्योंही यह लोग उनके निकट पहुँचे कि गेव की नीद टूट गई । उसने जब इन लोगों को देखा तो तुरन्त अपनी तलवार तथा गदा लेकर इन लोगों से जुट गया । गेव इतनी वीरता से लड़ा कि अकेले हो गुलबाद की समस्त सेना को धराशायी कर दिया। गुलबाद ने जो यह देखा तो प्राण लेकर भागा और पीरान के पास पहुँच कर सब वृत्तान्त कह सुनाया । गुलबाद तथा उसके संगियों को परास्त करके गेव कैखुसरो के निकट आया और उसे जगा कर उससे सब समाचार कह सुनाया। कैखुसरो, ने कहा, "फिर तुमने मुझे क्यो नहीं जगाया और अकेले ही युद्ध क्यों करते रहे ।" यह सुन कर मेव ने बड़ी नम्रता के साथ कहा, "राजकुमार आप के प्रताप की छाया ही सर्वदा हम लोगों की सहायता करती और उसी के बल पर हम लोग आपके शत्रुओं का दमन करते हैं ।" यह कह कर उसन, जैसा कुछ भोजन जुटा सका उन लोगों को खिलाया और उस स्थान को छोड़ कर अपनी यात्रा फिर आरम्भ कर दी । इधर गुलबाद के पहुंचने तथा सब समाचार सुनने पर पीशन के क्रोध की सीमा न रही । वह तुरन्त असंख्य सैनिक लेकर शेव तथा अपने बन्दियों के लिये चल दिया और इस वेग से चला कि दो-दो दिवस की यात्रा एक ही दिन में पूरी करता था । श्रन्ततः वह गेव के पड़ाव के निकट जा पहुँचा । उस समय फिरिंगियश के अतिरिक्त और सब गाढ़ निद्रा में निमग्न थे। उसने जब दूर से सेना को आते देखा तो यह अनुमान कर लिया कि गुलवाद के पराजित होने का समाचार पाकर श्रीराम स्वयं ही आ रहा है। उसने गेव तथा कैब्रुसरो को जगा ऋतएव दिया और पौरान के आगमन की सूचना दे दी। यह सुनकर कै. ने कहा "माता अब क्या भय है । इस समय तो हम भी दी है।" व जे जब यह सुना तो कहने लगा "राजकुमार जब तक मेरे शरीर में रक्त तथा रक्त में नाम मात्र को भी जीवन शेष है, तब तक आप को युद्ध में जाने को कोई आवश्यकता नहीं । मैं अकेला ही उनसे युद्ध करूँगा ।" कैखुसरो ने कहा "ऐ वीर यह तो ठीक है परन्तु तनक तुम वह तो सोचा कि पीरान की इतनी बड़ी सेना से तुम अकेले किस प्रकार लड़ सकोगे । मेरी इच्छा है कि मैं तुम्हारी सहायता करूँ" गेव ने कहा, "हे राजकुमार, प्रथम तो तुम को युद्ध का कुछ अनुभव नहीं, अतएव चिन्ता इस बात की है कि कहीं तुम को कोई बाव न लग जाय । दूसरे यह कि मैं भी रुस्तम की भांति युद्ध में किसी की सहायता नहीं लेखा । ने इस विष्य में कई बार मेरी परीला ली और प्रत्येक बार उत्तीर्ण होने पर उसने प्रसन्न हो कर अपनी पुत्री का हाथ मेरे हाथ में दिया था ।" मुझे निश्चिन्त होकर युद्ध करने दें और किसी ऊँचे स्थान पर चढ़ कर देखें कि मैं कैसा युद्ध करता हूँ । "राजकुमार विवश होकर गेव के प्रस्ताव से सहमत हो गया और गेव अकेला ही हुआ । इधर तूरान की ओर से पशन नामक योद्धा अपना भाला मचाता हुए रांगण में उतरा और आते ही बोला 'गेवतु ईरान से कर राजकुमार का चुरा कर भागना चाहता है। याद रख कि आज तू जीवित कदापि नहीं लौट सकता ।" इतना कह कर उसने अपनी गदा का प्रहार के शिर पर किया । गदा के श्राधात से उसके शिर से रक्त की धारा यह चली परन्तु धन्य वीर गेव कि ऐसी करारी चोट खाकर भी अपने घोड़े पर अदल और अचल बैठा रहा और प्रतिरोध में उसने अपने भाले के इस वेग से चलाया कि वह पशन की हड्डियों को तोड़ता हुआ कलेजे में जा घुसा और रक्त की धार बह चली। पशन इस सांघातिक चोट को न सह सका और तुरन्त घोड़े के नीचे जा गिरा । पशन के धराशायी होते ही पौरान अपना घोड़ा कुदा कर राभूमि में आ पहुँचा और कहने लगा - "श्रो गेव, तूने अब तक तूरान की सेना के साथ युद्ध किया है परन्तु अब तू संभल जा । देख तेरा काल तेरे शिर पर आ गया है । तेरे कवच को चूर-चूर कर अब तुझे कफन पहनाऊँगा (221 यह सुन कर गेव ने उत्तर दिया- "अरे कायर, तू किस से बातें कर रहा । मैं वही गेव हूँ जो तेरी दानों पत्नियों को चीन से ल गया था । उस समय क्या किया था तू ने ! रुस्तम के अतिरिक्त इस संसार में और कोई वीर नहीं है जो मुझ से युद्ध कर सके ।" इस बात से पौरान के भावभंगियाँ विकृत हो गयीं और वह भीत हो गया। फिर भी प्रकाशम रूप में कहने लगा 'जा मैंने तुझे मुक्त कर दिया। अब तू चुपचाप चला जा" पौरान की इस भय संयुक्त क्षमा की बात सुन कर गेव ने कहा "तू ने तो मुझे मुक्त कर दिया पर मैं तो तुझे मुक्त नहीं कर सकता । तुके बन्दी रूप में ईरान ले जाऊँगा ।" इतना कह कर उसने अपना घोड़ा बढ़ाया । पीरान ने जो यह यह देखा तो रण-भूमि से भागा। परन्तु गेव कब छोड़ने वाला था । उसने तुरन्त अपनी नागपाश फेंक कर उसका गला जकड़ लिया और लगा अपनी ओर खींचने । तूरानियों ने जो अपने सेनापति को इस प्रकार विपद-मस्त देखा तो तुरन्त मेव पर फट पड़ी और लगी बाण, तलवार तथा गदा की वर्षा करने । परन्तु ईश्वर जाने कि गेन का शरीर था कि वज्र कि उसको इस आक्रमण तथा प्रहार का नाममात्र भी घाव न लगा । इस अवसर पर गेव का युद्ध अवश्य दर्शनीय था । वह एक हाथ से पीरान को अपनी ओर खींचता था और दूसरे से अपनी गदा द्वारा शत्रुओं का कचूमर निकाल रहा था। मारते तथा मार खाते हुये वह पीरान को खींच कर कैखुसरों के निकट ले गया और कमन्द उसके हाथ में देकर स्वयं फिर शत्रुओं में जा घुसा। कहाँ तक कहें कोई भी योद्धा उसका सामना न कर सका और सब के सब भाग खड़े हुये । तरानियों को भगा कर वह फिर राजकुमार के पास आया और पीरान के बध की श्राज्ञा माँगी 1. पर कैखुसरो तथा फिरिंगियश ने सियावश की मृत्यु से लेकर अपने भागने तक की कथा कह सुनाई और कहा, "यह सर्वदा से हम लोगों का शुभचिन्तक रहा है अतएव इसको प्राण-दान देना उचित है ।" फिरिवियश तथा कैब्रुसरो की यह बात कर्ण-गोचर होते ही गेव बोला, "राजकुमार जैने यह शपथ खाई है कि मैं पृथ्वी को पीरान के रक्त से रंजित करूंगा ।" जब राजकुमार को जैव की शपथ का भान हुआ तो उसने कहा, "अच्छा तुम अपने खञ्जर से इसके कान में छेद कर दो । इस भाँति जब इसका रक्त पृथ्वी पर टपकेगा तो तुम्हारी भी शपथ पूर्ण हो जायगी और इसको भी प्राण-दान मिल जायगा । गेव ने राजकुमार के कथनानुसार श्राचरण किया और कर्मा छेद कर पैशन को बत-मुक्त कर दिया । गेव के हाथ से छुटकारा पाते पीशन अफरालियाब के पास चला गया । पीरान जब अमिया के पास पहुँचा तो उसने अपनी पराजय, बन्धन तथा मुक्ति का सारा वृत्तान्त कड सुनाया । अफरामियाज यह सम्पूर्ण वृत्तात सुन कर अत्यन्त खिन हुआ और उसी समय प्रत्येक सीमा रक्षक को इस प्राशय को आज्ञा भेजी कि अमुक वेपधारी दो पुरुष और एक स्त्री को जहाँ कहीं पाश्री मार डालो और स्वयं एक बहुत बड़ी से लेकर इन तीनों की खोज में बल दिया। पौरान को जीवनदान देने तथा उसके चले जाने के पश्चात इन तीनों ने भी अपना रास्त लिया । चलते-चलते ये लोग जेहें नदी के तट पर पहुंचे। उस समय जेड़ें बाढ़ पर थी। कैखुसरो तथा फिरिंगियश को थोड़ी दूर पर छोड़ गेव घाट के संरक्षक के पास पहुँचा और पार जाने को उससे नाव माँगी । मुखिया ने गेव से श्राज्ञा-पत्र माँगा, परन्तु गेव द्वारा यह जान कर कि उनका आज्ञा-पत्र खो गया है कहा, "फिर तो मैं तुमको पार उतारने में विवश हूँ। परन्तु फिर क्षण भर ठहर कर बोला, "यदि वह काला घोड़ा मुझे दे दो तो मैं तुम्हें पार करा दूँ ।" गेव ने कहा यह घोड़ा तो राजकुमार का है और मेरा इस पर कोई अधिकार नहीं है। यह सुन कर वह फिर बोला "अच्छा यदि तुम घोड़ा न देकर बाँदी को ही मुझे दे दो। तो भी मैं तुम्हारा कार्य कर हूँ ।" गेव ने कहा
0bc30c2e1bee13a52ae15304eff9d53693f1b45a
web
सारे विश्व की औरतों के पुरुष व्यवस्था के कारण दुःख के सामांतर कारण हैं सिर्फ़ परिस्थितियां भिन्न हैं. इसी बात को प्रमाणित करने में लगी थीं सुप्रसिद्ध लेखिका रमणिका गुप्ता जी ने रमणिका फ़ाउंडेशन परियोजना के तहत कहानी श्रंखला से. उन्होंने बहुत कठिन व्रत का संकल्प किया था -चालीस भाषाओ की स्त्री विमर्श की लेखिकाओ ने जो औरत के जीवन के दर्द को इंगित किया है उसे वह अनुवादित करके हिन्दी में प्रकाशित करके एक दस्तावेज तैयार कर रही थीं कि पुरुष व्यवस्था की आँखें उस दर्द को देख पाये व इसको बदलने की कोशिश करे जो आरंभ तो हो चुकी है. हिन्दी के तीन खंड प्रकाशित हो चुके हैं. अन्य भाषाओं के "हाशिये उलांघती औरत 'के हिन्दी अनुवाद में गुजराती लेखिकाओ की कहानियों के अनुवाद ने मुझे किंचित अश्चर्य चकित कर दिया है क्योंकि इसमे गुजराती औरत की वह तस्वीर दिखाई नहीं दे रही जो मैं सन् 1976 से गुजरात में रहने के कारण देखती आ रही हूँ. इस खंड में आदरणीय रमणिका जी, अर्चना जी, किरण जी व प्रज्ञा जी ने इन गुजराती कहानियों का विश्लेषण व प्रबुद्ध आंकलन कर ही दिया है. मैं क्योंकि यूपी से आकर यहाँ बसी हूँ व अपनी स्वतंत्र पत्रकारिता के कारण मैंने जो गुज्रराती विशिष्ट महिलाये देखी हैं व अब तो मेरी पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है "वदोदरा नी नार "तो मैं उन्हें ध्यान में रखते हुए अपने विचार इन कहानियों के विषय में सामने रख्नना चाह्ती हूँ. तब मैं आगरा में 'धर्मयुग'में कुन्दनिका कापड़िया की कहानियों व उपन्यास के हिंदी अनुवाद पढ़ती थी. मेरे मस्तिष्क में उंनकी कहानी "न्याय 'एक अमिट छाप छोड़ गई थी या कहिये गुजरात से निकला एक नारीवादी संदेश था कि औरत क्योंकि घर में अपनी उर्जा खर्च करती है तो पुरुष की कमाई के आधे हिस्से पर उसका ह्क बनता है. आज इतने बरस गुज़र जाने के बाद भी ये लड़़ाई औरत जीत नहीं पाई है हालाँकि 'न्याय 'की नायिका जब घर छोड़ती है तो पति की कमाई में से आधा पैसा लेकर बाहर निकलती है व कानून भी यही कहता है. गुजरात की कुछ पूर्व की एक तस्वीर दिखाती हूँ. उस सभाग्रह में अहमदाबाद दूरदर्शन गिरनार का एक कार्यक्रम था " बेटी बचाओ ". देश के सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले नगर में दर्शकों से एक सवाल पूछा गया कि स्त्री पुरुष बराबर हैं क्या ? विश्वास मानिये खचाखच भरे हॉल में सन्नाटा छा गया. सिर्फ़ दस पन्द्रह हाथ उठे होंगे. मुझे भी इस अंक के दिल्ली में विमोचन के समय किसी का वक्तव्य ' युद्धरत आम आदमी' में पढ़कर आश्चर्य हुआ था कि गुजराती कहानियों में वह नारी चेतना नहीं है. जो चेतना गुजराती औरत के जीवन के हिस्से का अंश है. गुजरात की स्त्री धर्म हो या समाज सेवा या संगीत व न्रत्य कला ये, राष्ट्रीय स्तर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बना चुकी है. मैं स्त्रियों को बड़े बड़े अपने बूते पर कार्यालय स्थापित किए हुए देख चुकी हूँ. कुछ महिला मंडल स्त्री संस्थाओ के करोड़ों के टर्नओवर देख चुकी हूँ. तो पता नहीं क्यो विश्व के दायरे फलांगती स्त्री प्रगति साहित्य में क्यों नहीं बड़े परचम लहरा पाई है?. इस संग्रह में वह भव्य व विशिष्ट गुजराती महिला गायब है जो समाज के एक हिस्से [उदाहरण लें तो अनेक ग्रामों की सह्कारी महिला दूध देरी को संचालित करती महिला या किसी के घर में घुस आए साँप को पकड़ने जा सकती है बतौर समाज सेवा] को प्रभावित करती है. मैं इस बात से ये परिणाम निकाल रही हूँ कि गुजरात में भी औरत की स्थिति लगभग वही है जो अन्य प्रदेशों में है क्योंकि लेखिका सुधा अरोड़ा ने एक स्त्री संस्थाओं के सम्मेलन में शामिल होने के बाद कहा था कि गुजरात से सबसे अधिक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी. प्रथम अखिल भारतीय महिला परिषद की स्थापना पूना में सन् 1927में हुई थी जिसमे वड़ोदरा में महारानी चिमनाबाई भी सम्मिलित हुई थी. उन्होंने वड़ोदरा यानि गुजरात में सन् 1928 में अखिल भारतीय महिला परिषद की स्थापना की थी. इसका ही प्रभाव है कि यहाँ अनेक स्त्री संस्थाये काम कर रही है. पुरुष व्यवस्था से लड़ती, भिड़ती कभी सफ़ल होती, कभी विफ़ल होती एन. जी. ओ'ज़ की भूमिका है -जो इन अंकों में शामिल नहीं है. हाँ, और प्रदेशों के मुकाबले कुछ अधिक प्रगतिशील परिवार हैं जो अपनी बेटियों को मौका दे रहे हैं. हिंदी -खंड -२ में मेरी कहानी 'रिले रेस 'इसी विषय पर है, हो सकता है मैं इन नारी संस्थाओं के बतौर पत्रकार सम्पर्क में रहीं हूँ ये भी एक कारण हो। आपको जानकर आश्चर्य होगा बहुत से कार्यालय अपने यहाँ उत्तर भारत की लड़कियों को काम देना पसंद करते हैं क्योंकि वे मेहनती होती हैं. हर इमारत में एक आम औरत माता की चौकी बिठाने में व भजन मंडली में व्यस्त रह्ती है. इसलिए भी 'पिंजरे की मैंना '[सरोज पाथक], 'दुविधा'[भारती र. दवे]नई सुबह [सुहास ओझा], 'दहलीज़ से '[निर्झरी मेह्ता], चालीस प्लस आथ [चंदाबेन श्रीमाली] 'हुकुम की रानी '[जसुमती परमार ], मंगल सूत्र [बिन्दु भट्ट], उल्ते फेरे [भारती राने], 'देवता आदमी '[जयश्री जोशी], 'मैं अहिलया '[रीता त्रिवेदी], न्याय [कुंदनिका कापदिया ], 'न्यूज़ रूम '[पन्ना त्रिवेदी] नहीं मैं नौकरी नहीं करूंगी '[ज्योति थानकी], 'नाम रसिक मेहता'[वर्शा अदालजा] यानी कहानियाँ दाम्पत्य जीवन पर आधारित है. यहाँ के समाज में तलाक यानि कि' छुट्टा छेड़ा 'होना एक सहज बात है, वही बात नब्बे प्रतिशत कहानियों में चित्रित है. इस अंक का सबसे बड़ा द्वन्द है कि औरत अपनी माँ के घर में 'पराया धन' होती है व ससुराल में दूसरे घर की बेटी. इन दोनों के बीच उसका जीवन झूलता रहता है. हिन्दी भाषी प्रदेशों की तरह आम लड़की पोस्ट गेजुएशन करने को बाध्य नहीं है क्योंकि मध्यम श्रेणी के रोजगार यहाँ उपलब्ध हैं. शायद ये भी एक कारण हो सकता है बहुत जुझारू औरतें बहुत बड़े मानदंड स्थापित कर रही है, सृजन से ना जुड़कर. मैं जो कहना चाह रही हूँ वह अब स्पष्ट है क्यों रमणिका जी की आवाज़ पर सारे देश के कोने कोने की स्त्री वो कथायें हिंदी में अनुवादित करके तमाम दूसरी औरतो को प्रोत्साहित कर रही है कि देखो !हाशिये सही बात के लिए ऎसे उलांघे जाते हैं. 'पिंजरे की मैना " यानि कोठी में धान 'शैली की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ कहानी है. डॉ. नीरा देसाई [जिनके प्रयासो से विश्वविद्ध्यालय में नारी शोध केन्द्र की स्थापना हुई थी ] ने सन 1952 में शोध करके ये पाया था कि घर स्त्री के लिए पिंजरे जैसे है, उसी बात की तस्दीक करती है ये कहानी. एक स्त्री किस तरह पति के अनैतिक समबंधो को ढोने, के लिये मजबूर की जाती है तब एक पिंजरे से निकल कर अस्पताल में हिस्टीरिया की मरीज़ हो दूसरे पिंजरे में उसे कैद कर दिया जाता है. इन्ही सोने के पिंजरों में मन प्राण तड़फड़ाने के कारण औरत निरंतर हाशिये उलांघ रही है. शैली की दृष्टि से दूसरे नम्बर पर कहानी आती है "नाम नयना रसिक मेहता "जिसमे सच में हाशिये उलांघती स्त्री दृढ़प्रतिज्ञ है कि अपराधी चाहे पति हो या सास क़ानून की नज़र से बच नहीं पाये, चाहे ये निर्णय उसे कँटीले रास्ते तक ले जाए. इसमे तो स्त्री शादी के सात साल बाद विद्रोह करती है लेकिन समाज का सच ये है कि सालों साल वह मुंह बंद करके हर ज़ुल्म बर्दाश्त करती है कि शायद उसकी स्थिति सुधर जाए. अपनी संतानों का मुंह देखते हुए जिये जाती है. कोई कह सकता है कि घरेलु हिंसा अधिनियम -2006 बन गया है लेकिन भारत के समाज का स्त्री पर शिकंजा तो एसा कसा है कि कुछ जज तक फरियाद सुनने को तैयार नहीं होते. वे कहते है, 'जो स्त्री अपने पति के साथ नहीं रहना चाह्ती उसे कोर्ट से धकके देकर बाहर निकाल दो. " मैं ये गुजरात की घटना ही बता रही हूँ . यही भय औरत को आतंकित किए रहता है जो पति के किसी दूसरी औरत के प्रेम में पड़ जाने पर भी औलाद के कारण उसे छोड़ने की बात नहीं सोच पाती., चुप समझौता करती जाती है लेकिन वह प्रेमिका अपने प्रेमी की जालसाजी को सूँघकर यानि कि वह दो औरतों के साथ का मज़ा लेना चाह रहा है, उसे छोड़ देने का साहस करती है. 'दुविधा 'आज की इस बात को बखूबी रेखांकित करती है कि 'वर्क प्लेस 'पर स्त्री पुरुषों की मुलाकात होती है, कभी सम्बन्ध बन जाते है तो सोचना औरत को है कि वह सबकी व खासकर अपनी भलाई के विषय में सोचकर कदम उठाये. 'खड़ी फ़सल -सन् 1047 से पहले ' में सुहास ओझा की 'नई सुबह 'में जैसे खूबसूरती से चित्रण है दुनिया के कारोबार में व्यस्त दुनिया की नजर उस औरत पर नहीं पड़ी है जिसके बलबूते इस सृष्टि का संचालन हो रहा है. वह् पुरुष सता के पीछे मुड़ी तुड़ी निढाल पड़ी है. ये वाक्य मैंने चुने हैं सुहास ओझा की कहानी "नई सुबह 'से ---------' यही भाव लगभग हर पुरुष के चेहरे पर दिखाई देता है--- माथा अभिमान से ऊँचा --दबे हुए होठों पर दृढ़ता ---स्थिर आँखों में निडरता --- ----यही है पुरुष सत्ता का चेहरा एक ग्रीस योद्धा की मूर्ति की मानिंद. 'लेकिन हठी रमणिका जी इसी कहानी की जानकी की मानसिकता की तरह इस मूर्ति के पीछॆ ढीली ढाली पड़ी स्त्री छवि को सामने ले आने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है उस योद्धा के पीछॆ छिपी निढाल औरत की मूर्ति को एक अदना सी सेविका जानकी झाड़पोंछ कर सामने रख देती है जो बात मालिक को कतई पसंद नहीं आती. चालीस भाषाओं की रचनाकारों को प्रेरित कर रही है कब तक वे पीछॆ अपनी भूमिका छिपाये पड़ी रहेंगी --- ज़रा हाशिये उलांघ कर तो दिखाये. ' नई पौध ' की दो कहानियाँ मेरे ख़्याल से बहुत सशक्त प्रतीक कहनिया है. मुबीना जी कुरैशी ने 'कल्पना के सपने 'में वह जो भी दरवाज़ा खोलती है उसे पुरुष सत्ता का चेहरा दिखे देता है लेकिन हाशिये उलाघते हुए पुरुष सत्ता की ताश की चालों में अपना दरवाज़ा खोल लिया है. इस संग्रह की अलग हटकर बहुत सांकेतिक भाषा में नारी चेतना की बात करती हैं, ये खूबसूरत दो कहानियाँ, ज़रूरत है उसे सामने लाने की. जयश्री जोशी की 'देवता आदमी' कम से कम भारत के उन अधिकांश देवता पतियों की, सो कोल्ड 'थोरो जेंटलमैंन 'की पोल खोलती है जिनसे पत्नियों को किस किस तरह का अत्याचार सहना पड़ता है. कितनी हैं जो हशिया उलांघ पाती हैं ? हिमांशी शैलत से बहुत उम्मीदे थी किंतु उन्होंने व सम्पादिका ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी जो उनकी कहानी 'जस-का-तस'को चुन लिया क्योंकि यहाँ हाशिये उलांघने का अर्थ है पुरुष सत्ता की लक्ष्मण रेखाओ के पार जाना जहाँ पर स्त्री का शोषण हो रहा है लेकिन ये तो माँ की देहरी बद्ल जाने की कहानी है. यामिनी गौरांग व्यास 'जीवनदान 'में स्त्री जीवन को बहुमूल्य साबित करने का प्रयास किया गया है. निर्झरी मेहता की कहानी 'दहलीज़ से 'मेरे लिए सुखद आश्चर्य है क्योंकि वड़ोदरा के अरविंद आश्रम के लोन में या 'अभिव्यक्ति 'में अस्मिता की गोष्ठियों का हमारा लम्बा साथ रहा है. उन्हें मैं एक अच्छी कवयित्री के रुप में जानती हूँ इसलिए मुझे उनकी इस परिपक्व कहानी ने प्रभावित किया है व चौंकाया भीं है. . ये भीं एक प्रतीक कथा ही है कि जब भीं कोई स्त्री देह पर वार करता है तो समाज को उस स्त्री की मर्मान्तक पीड़ा रह्ती, वह उसी के जीवन में शूल बिछाने का काम करता चलता है. इसमें स्त्रियों की हिस्सेदारी भीं बढ़ चढ़ कर होती है. गुजराती समाज बहुत प्रगतिशील है, इस भ्रम को ये कहानी तोड़ती है. यदि ऎसा ना होता तो यहाँ भी इतनी स्त्री संस्थाये काम ना कर रही होती. ये तीन चार मिनट का आघात था. रेप में पन्द्रह बीस मिनट के आघात पर भीं स्त्री सहानुभूति कहाँ पाती है.? एक लड़की का प्रतिरोध बलात्कारी पर आतंक बनकर टूट पड़ता है हास्यदा पंड्या की कहानी 'दरी 'में. ये महीन बुनावट से रची बहुत सशक्त रचना है. शायद ये संदेश देती है कि समाज जब साथ नहीं देता तो स्त्री क्यो ना अपने फैसले करे ? तभी बिन्दु भट्ट की 'मंगल सूत्र 'की नायिका भारती राणे की नायिका के साथ 'उलटे फेरें 'लेती नजर आती हैं. 'शमिक आप क्या कहेंगे ?"में इला आरब मेहता ने एक कामकाजी स्त्री के द्वंद को बखूबी रचा है जो अपने बॉस से परेशान है. वह् कश्मकश में है कि अपने पति को ये बात बताये या ना बताये. अंत में एक सशक्त स्त्री की तरह निर्णय लेती है कि वह् अपनी समस्या स्वयं हल करेगी. ये कहानी पति पत्नी संबंधों की एक गिरह को खोलती है कि किस तरह एक पति नौकरी जाने के डर से पत्नी को ग़लत राय दे सकता है, निर्णय तो स्वयं ही लेना चाहिये. 'जसुमति परमार की ऐसी ही है 'हुकुम की रानी ' जो पति के ग़लत हुकुम का प्रतिरोध करना जानती है. वही 'न्यूज रूम "की नायिका का अपने अत्याचारी पति का कत्ल दिल दहला देता है. हालाँकि ये कोई नई घटना नहीं है और ना ही हाशिये उलांघना ऐसी प्रेरणा देने का पक्षधर है. पन्ना त्रिवेदी की ये कहानी नई पौध जैसी भाषा की ताजगी लिए हुए है. एक आम धारणा है कि पुरुश स्त्री को उसके यौवन के परिप्रेक्ष्य में देखता है. उस पर रौब ग़ालिब करता रहता है कि ' जो साठा, वो पाठा '. चंदाबेन श्री माली की कहानी "चालीस प्लस आठ 'में स्त्री उम्र के, इस दृष्टिकोण के हाशिये उलांघती नजर आती है जैसा कि आजकल लेख पड़ने को मिल रहे हैं साठ वर्ष की उम्र में चटख रंग कपड़े क्यों ना पहने जाए ? एक आम औरत हमेशा समय का रोना रोती है कि उसे अपने लिए समय नहीं मिलता लेकिन जो हाशिये उलांघ रही है उसके लिए इस कहानी से कुछ वाक्य ले रही हूँ, "समय को चुरा चुराकर उसने खूब पढ़ लिख कर, चिंतन मनन करके अपनी जीवन बेल को सींचा है -ज़िदगी को खुशहाल और सुखद बनाया है -दिल में आकाश छूने की तमन्ना है ". यही प्रेरणा रमणिका जी की प्रेरणा से हर कोने व हर भाषा की स्त्री अपनी कलम से दे रही है. 'ज्योति थांनकी की 'मैं नौकरी नहीं करूँगी 'व स्मिता के. पारिख की 'मेरी दुलारी 'की नायिकाये नौकरी नहीं करना चाहती-ये कोई गलत बात नहीं है भारत में अनेक महिलाये अपने बच्चो को पालपोस कर किसी व्यवसाय को अपनाती है लेकिन जो कुछ ना करना चाहे उनके लिए प्रेरणादायक है चंदाबेन के उपरोक्त शब्द. 'दरी '[हस्यदा पंड्या] की लड़की अपने बलात्कार का प्रयास करने वाले व पिता के हत्यारे से अच्छी तरह बदला लेती है. गुजरात की महिला पुलिस सेल का कहना है कि गुजरात में कुछ लड़कियों की ये प्रवृत्ति है कि वे दोस्ती किसी से करतीं हैं शादी किसी से. शादी होते ही तलाक माँगने लगती है, "खुराकी [भरणपोषण]लेवी छे ". छुट्टा छेड़ा'व 'खुराकी लेवी छे 'ये यहाँ प्रचलित शब्द हैं. ये हाशिये उलांघती औरत बिलकुल जड़ से गायब है गुजराती कहानियों में. मैं ये बात अपनी एक बात से प्रमाणित भी कर रही हूँ मैंने नौवें दशक के आरम्भ में' फ्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट'[मैंत्रीकरार] पर भी 'धर्मयुग' के लिए सर्वे किया था. ये तय है कि अहमदाबाद के वकीलों ने ये रास्ता ढूंढ़ा था कि एक पुरुष एक औरत को अपने पास सिर्फ़ 100 रुपये के स्टैंप पेपर पर मित्रता का करार करके अपने घर में रख सकता है लेकिन उसकी और कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी. जब बच्चे पैदा हो गए तो औरतो ने भरण पोषण के लिए शोर मचाया तब ये सरकार ने बैन कर दिया गया. अब पुरुषों का पक्ष सुनिये, उन्होंने ये बताया था कि स्त्री अपनी मर्ज़ी से हमारे पास रहने आती थी लेकिन एक दो वर्ष बाद हम से 2-3 लाख रूपया वसूलना चाहती थी. तो हमने ये रास्ता खोजा कि हम प्रमाणित कर सकें कि वह् अपनी मर्ज़ी से हमार साथ रह रही है. तो कहाँ है वह्गुजरात की हाशिये उलांघती औरत जो आठवें दशक के अंत में या उससे पहले से बिना शादी किए लिव इन रिलेशनशिप में रह्ती चली आ रही है ? [' नई पौध ' की दो कहानियाँ मेरे ख़्याल से बहुत सशक्त प्रतीक कहनिया है. 'न्यूज रूम'[पन्ना त्रिवेदी ]. लेखिका ने बखूबी चित्रित किया है कि किस तरह से अमानुशिक पुरुष हिंसा करने पर मजबूर कर देते हैं. किन यातनाओं से गुजरती है औरत जब ये किसी हिंसा का निर्णय लेती है. नायिका अपने पति के शिकंजे से तंग आकर उसकी हत्या कर देती है बहुत अच्छी तरह बुनी गई है ये कहानियाँ लेकिन पन्ना त्रिवेदी की नायिका की तरह हाशिये उलांघने के लिए ये मिशन नहीं है जबकि हम देखते हैं समाज में ये सब हो रहा है. मुबीना जी कुरैशी ने 'कल्पना के सपने 'में वह जो भी दरवाज़ा खोलती है उसे पुरुष सत्ता का चेहरा दिखे देता है लेकिन हाशिये उलाघते हुए पुरुष सत्ता की ताश की चालों में अपना दरवाज़ा खोल लिया है. इस संग्रह की अलग हटकर बहुत सांकेतिक भाषा में नारी चेतना की बात करती हैं, ये खूबसूरत दो कहानियाँ, ज़रूरत है उसे सामने लाने की. औरत कैसी यातना से गुज़र कर कोई' ब्रूटल' प्रतिक्रिया करती है ये ताज़ातरीन ईरान की रेहाना ज़ब्बारी के वक्तव्य से जाना जा सकता है जिसे एक खुफिया एजेंट के कत्ल के इल्ज़ाम में फाँसी लगी थी. उनके अपने माता पिता को लिखे अन्तिम पत्र की पंक्तियों का ये सार हैं जिनसे औरत होने की सजा की तकलीफों की चीखे उफनी पड़ रही है, "यदि मैंने उसे नहीं मारा होता तो पुलिस को कही मेरी लाश पड़ी मिलती. और पुलिस तुम्हे मेरी लाश को पहचानने के लिए लाती और तुम्हे मालुम होता कि कत्ल से पहले मेरा बलात्कार भी हुआ था. मेरा कातिल कभी भी पकड़ा नहीं जाता. "दुनिया भर के संगठन रेहाना को बचा नहीं पाये. उसने अपने लिए इंसाफ के लिए इसी तरह हाशिया लांघा. अपने पत्र में अपना हौसले का इज़हार किया कि वह् खुदा की अदालत में बलात्कारी, जज, पुलिस --सब पर मुकदमा चलायेगी. स्त्रियों की अधिकतर हत्या की जाती है जिसे आत्महत्या का रुप दिया जाता है या उन्हें आत्महत्या करने को मजबूर किया जाता है. सब प्रदेशों में दहेज की समस्या तो है लेकिन यहाँ इसका सबसे बड़ा कारण है विवाहेतर सम्बन्ध. इन वर्षो में प्रगति ये हुई है कि इस त्रिकोण में एक की हत्या कर दी जाती है. तो ये समस्या भी इस अंक में नहीं नजर आती. गुजरात कॉरपोरेट्स का हब है, तो वो एज़ेक्यूटिव औरत नजर नहीं आती जो पुरुषशासित दुनिया के हाशिये उलांघ रही है. गुजरात एक धन दौलत व त्योहारो की श्रंखला में रंगारंग मे आकंठ डूबा राज्य है. होटल में खाने व घूमने का यहाँ बहुत रिवाज है. पर्यटन स्थलों पर सबसे अधिक गुजराती या बंगाली नजर आते है. लेखन एक नितांत की साधना है, शायद इसी जीवन शैली के कारण यहाँ की बहुत सी स्त्रियां वह साधना नहीं कर पा रही. शायद यही कारण है कि 'नई पौध' में सिर्फ़ दो कहानीकारो की दखलअदाज़ी है. मेरे ये परिणाम सिर्फ़ इस अंक को देखकर है ना कि समस्त गुजराती स्त्री साहित्य के बारे में. महिला दिवस ८ मार्च सन २०१८ में जूही मेले में भाग लेने का मौका मिला था तो वहां गुजराती लेखिकाओं के वक्तव्य को सुनकर थोड़ी ग़लतफ़हमी टूटी थी कि गुजराती महिलायें भी विविध विषयों पर लिख रहीं हैं लेकिन फिर भी तेज़ तर्रार, उन्मुक्त गुजरात की स्त्री अभी भी गुजराती साहित्य में कुछ गायब है।
921ac9f11285060fd946f6bb7f0a39a31eb78ef426c3859713f1b582be7d36ae
pdf
हूँ। मुझे उनसे हर्ष या शोक नहीं होता। स्फटिक रत्न के समान निर्मल असंख्य प्रदेशों में समय समय पर सब कुछ भास होता है। प्रदेश स्थिर और एक रूप हैं - यह सब विचारना पार्थिवी धारणा है। ग्ने धारणा के लिए नाभि मे सोलह पंखुड़ियो वाले कमल की कल्पना करना और कमल की कणिका मे 'अ' यंत्र स्थापित करना चाहिए । कमल की प्रत्येक पखुडी मे क्रमशः आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ लृ ऌ ए ऐ ओ औ १६ स्वरों को स्थापित करके उस कमल मे एकाग्र चित्त में लीन हो जाना चाहिए । यहाँ तक कि कमल के सिवा और किसी वस्तु का स्मरण तक न रहे। फिर हृदय में आठ पँखुड़ियों वाले कमल की कल्पना करके प्रत्येक पॅखुड़ी मे क्रमशः ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय, इन आठ कर्मों का एक-एक पॅखुडी में स्थापन करना चाहिए । इस कमल का मुख इस प्रकार नीचे रखना चाहिए कि जिससे उक्त सोलह पखुडियो वाले कमल पर यह कमल अधोमुख होकर भूलता रहे । फिर सोलह पॅखुड़ियों वाले कमल में स्थापित 'अहं' के 'ई' वाले रेफ विन्दु से धूम्रशिखा निकलने की कल्पना करके धीरे-धीरे उसमे से अग्निकरण और बाद में ज्वालाओं के निकलने की कल्पना करनी चाहिए । इन ज्वालाओं से हृदयान्तगत अष्टकर्मा की पखुड़ियों वाला कर्म-कमल जल रहा है और महामंत्र 'अहं' के ध्यान से उत्पन्न हुई अग्नि के द्वारा श्रष्ट कर्मों की पंखुड़ियो वाला कमल जल कर भस्म हो रहा है - यह भावना करनी चाहिए । फिर, शरीर के बाहर त्रिकोण के रूप मे जलता हुआ अग्नि का समूह मनमे लाना चाहिए और उस अग्नि-समूह तथा शरीर में महामंत्र के ध्यान से उत्पन्न हुई अग्निज्वालाश्रो से देह और अष्ट कर्मों का कमल, दोनो जलकर भस्म हो रहे है - यह कल्पना करके शान्त हो जाना चाहिए । यही वारणा का स्वरूप है। तीसरी वायवी धारणा का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए - तीनों भुवनों के विस्तार को पूर्ण करने वाली प्रचंड वायु है, आग्नेयी धार से शरीर और कर्म की जो भस्म हो गई है, उसको यह वायु उड़ा देती है, और फिर वायु शान्त हो जाती है। वारुणी धारणा का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए - अमृत के समान वर्षा करने वाली मेघमाला से पूर्ण आकाश, आकाश से होने वाली जल-वृष्टि, वायु से उड़ गई देह तथा कर्म की भस्म - राख को शान्त कर देती और वो डालती है, अन्त में वरुणमडल शान्त हो जाता है - यह् चाकणी धारणा है । अन्तिम तत्त्वभू धारणा यह है - मेरी आत्मा, नातो धातुओं से रहित पूर्णचन्द्रकान्त के समान निर्मल, सर्वज्ञ के समान हं, सिहासन पर बैठे, सव कर्मों का नाश करने वाले, शरीर के अन्तरस्थ निराकार आत्मा का स्मरण कर रहा हूँ। यह तत्त्वभू धारणा है जो समस्त कर्मों का नाश करती है, आत्मा को परमात्मस्वरूप ब्रह्मस्वरूप चनाती हैं। यह पॉच धारणाएँ भी वैदिक मतानुसार योग के पाँच तत्त्वों की वारणाओं की तरह आत्मा को 'अहं ब्रह्मास्मि' का माक्षात्कार कराती है । पिण्डस्थ ध्यान करने वाला अपने को औदारिक, वैकिय, हारिक, तैजस और कारण आदि पांचा प्रकार के शरीरो से पृथक् समझता है और इस से देहादि अह्नों के कार्यों में आत्मा अहं तथा ममत्व के परिणाम से नहीं बँधता । वह योग्य पदार्थों की इच्छाओं में भी नहीं बँधता और न अनेक जीवो को दु ख देने के लिये प्रेरित होता है। कर्म के योग से वस्त्र के समान शरीर तो मिलते हैं और छूटते हैं तथापि वह इस से जरा भी हर्पित या शोकान्त्रित नहीं होता । पिंडन्थ ध्यान वाला योगी प्रारब्ध कर्मों के योग से अनेक कार्य करता हुआ भी आत्मा के स्वरूप में ध्यान रखता है। शरीरस्थ शरीर से भिन्न है, ऐसा निश्चयात्मकज्ञान होने पर, वाह्य सयोगों में रहते हुए भी बह उन में फँसते नहीं है । आत्म प्रदेश में लगा हुआ मन निर्विकल्प हो जाता है और आत्मा की शक्तियाँ विकिसित होने लगती हैं । वचनसिद्धि और सकल्पसिद्धि सरल हो जाती है । जो लोग आत्मा के असंख्यात प्रदेशो का ध्यान करते है परन्तु जगत् का उपकार करने की प्रशस्त इच्छा रखते हैं, वे तीर्थकरादि पढ़ को प्राप्त कर लेते हैं और जो उपकार करने की इच्छा को भी त्याग कर पिंडस्थ ध्यान करते है, वे मूककेवली होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त करते हैं। शरीर के किसी भी भाग में आत्मा के प्रदेशो का ध्यान हो सकता है। नाभिचक्र मे ध्यान करने से कायव्यूह का ज्ञान होता है, यानी शरीर की नाड़ियों और उनके कार्यों का ज्ञान होता है और मन में संकल्प विकल्पो का विलय भी हो जाता है । कंठकूप में ध्यान करने से क्षुधा तृषा का शमन होता और वाणी भलीभाँति प्रकट होने लगती है । कूर्म नाड़ी में ध्यान करने से स्थिरता बढ़ती और चचलता नष्ट होती है । ब्रह्मरन्ध्र मे ध्यान करने से सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते हैं, पापो का नाश होता और धर्म श्रद्धा बढ़ती है । हृदय में ध्यान करने से हृदय-शुद्धि होती है, ज्ञान का भास होता जाता है सत्य की प्रतीति होती और दूसरे के हृदय को पढ़ा जा सकता है। मनोवर्गरणा में ध्यान करने से, मनोवर्गरणा के साथ लेश्या के सम्बन्ध का ज्ञान होता । और इसमें विशेषसयम करने से मन पर्यवज्ञान प्रकट होता है। इसी प्रकार कान, नाक, आँख, जीभ और स्पर्शेन्द्रिय में ध्यान करने से, उन उन इन्द्रियों की शक्तियों का विकास होता है । कायबल, वारणीबल और मनोवल में ध्यान करने से, उनके बल बढ़ते हैं । मस्तक मे ध्यान करने से मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओ की पुष्टि होती है और तर्कशक्ति अधिकाधिक विकसित होती है इस प्रकार स्त्र पिड यानी अपने शरीर के किसी भी अंग मे पिडस्थ ध्यान किया जा सकता है, और उससे शारीरिक तथा आध्यात्मिक लाभ होते हैं। परन्तु ब्रह्मरन्ध्र मे आत्म प्रदेशों का ध्यान करना ही सर्वश्रेष्ठ है । जिस समय ब्रह्मरन्ध्र मंत् के असंख्य प्रदेशो का ध्यान किया जाता है उस समय श्वासोच्छ्वास की गति मन्द पड़ जाती है। आत्मा के असंख्य प्रदेशो मे तन्मयता आ जाने से श्वासोच्छ्वास की गति बिल्कुल धीमी हो जाती और आनन्द ही आनन्द भास होने लगता है, आत्मा की अनन्त शक्तियों का अनुभव होता है, सब जीवो पर समतारूपी अमृत मेघवृष्टि होने लगती है, उस समय ऐसा मालूम होने लगता है कि सर्वदा उसी में रहा जाय, तो बड़ा अच्छा यह अवस्था क्षयोपशम भाव मे देर नहीं रह पाती, तो भी पुन. पिडस्थ ध्यान करके यह अवस्था प्राप्त करने के लिए ध्यानी लोग प्रयत्न करते हैं और फिर वही आनन्द प्राप्त कर लेते हैं । अन्य छाझस्थिक कार्यों मे लगकर, वे उपाधि की विकल्प अवस्था का अनुभव करते है, पर उसमे उन्हे आनन्द नही मिलता, इसलिए किसी भी प्रकार फिर ध्यान में प्रविष्ट होते हैं । इस सहज सुख की अवस्था का अनुभव होने पर, बाह्य सुध की सब प्रकार की अभिलाषाएँ दूर हो जाती हैं । ( २ ) पदस्थ ध्येय मे अनेक प्रकार से ध्यान किया जाता है, उनमें से कुछ प्रकार ग्रन्थकार ने यहाँ प्रकट किये हैं । चित्त को स्थिर करके अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पाँच पढ़ो का ध्यान करना 'पदस्थ ध्येय का ध्यान' कहा जाता है। दूसरा प्रकार यह है कि नाभि प्रदेश मे सोलह पँखु - ड़ियो के कमल की कल्पना करके उसमे 'अ' से 'अ' तक सोलह स्वरो को स्थापित कर क्रमश. उनका ध्यान करना । तीसरा प्रकार यह है कि हृदय-कमल मे चौवीस पॅखुड़ियो वाले कमल की कल्पना करक 'क' से 'म' तक के अक्षर क्रमशः चौबीमो पॅखुड़ियो मे स्थापित करना और 'म' को कमल की कणिका में स्थापित करके प्रत्येक पढ़ का क्रमश ध्यान करना चाहिए । चौथा प्रकार यह है कि मुख मे आठ पँखुड़ियो वाले कमल की कल्पना करके उसमें 'य' से 'ह' तक के अक्षर स्थापित करना और उसका ध्यान करना चाहिए । इसी प्रकार 'ॐ' कार का, 'आई' मंत्र का, ॐ ह्री श्री अईं नम.' आदि मंत्र तथा अन्य मंत्रों का भी ध्यान किया जा सकता है। इस प्रकार और पदो का ध्यान करता हुआ योगी चित्त की चंचलता का शमन कर देता ओर श्रुतज्ञान का परिणामी हो जाता है । पदस्थ ध्यान का सावक, निमित्त ज्ञान को भी प्राप्त कर सकता हैं, तो भी सच्चा योगी पदस्थ ध्येय के आल से किये हुए ध्यान के द्वारा, आत्मा को निर्मल करने वाले शुक्ल ध्यान मे ही गति करने के लिए उद्योगशील रहता है । ( ३ ) समवसरण मे बैठे तीर्थकर भगवान् का स्वरूप 'रूपस्थ ध्येय' है और उसमे ध्यान करना, ध्यान का तीसरा प्रकार है । भगवान् की शान्त अवस्था का चित्त में अव धारण करना, उनके मस्तक मे से प्रकट होने वाली तेज धाराओ को चित्त प्रदेश मे झेलना, उनके अनन्त गुणो का स्मरण करना और वैसे ही गुण हमारी आत्मा मे प्रच्छन्न रूप से विद्यमान इनको प्रकट करने का ध्यान करना इसी प्रकार का ध्यान है । आठ कर्म रूपी हैं और मेरी आत्मा अनादिकाल से उनसे सम्बद्ध रही है। रूप में स्थित मेरी आत्मा वास्तव में रूप से अलग है, सिद्ध के समान अनन्त गुणमय है - आदि भावना करना, रूपस्थ ध्येय का ध्यान है। इस ध्यान में ऐसे विचार करना चाहिए कि मेरी आत्मा गुणों से पचपरमेष्ठिरूप है और इन गुणो को प्रकट करना मेरा प्रयत्न है; तथा ज्ञान, दर्शन और चारित्र्य गुणों से मेरी आत्मा दीप्तिमान् है, द मे ही परमात्म-अवस्था स्थित है, परन्तु ध्यान के बिना वह प्रकट नहीं होती, इसलिए रूपस्थ ध्येय मे ध्यान करने की योजना है। इससे संकल्प-विकल्पवाली चित्तावस्था का निरोध होता है, मोह की तरंगे आप ही आप शान्त हो जाती हैं, अनेक शक्तियाँ प्रकट होती हैं और मन की निर्मलता सहज ही साध्य हो जाती है । ( ४ ) रूप सेती - काररहित, ज्ञानानन्द-स्वरूप, निरंजन सिद्ध परमात्मा का प्राश्रय ग्रहण करके उनके साथ, शक्ति की अपेक्षा सिद्ध के समान सत्ता वाली अपनी आत्मा का, चित्त में एकत्व धारण करना रूपातीत ध्येय का ध्यान समझना चाहिए । पिडस्थ, पदस्थ ओर रूपस्थ ध्येय का अवलम्वन करके मुमुक्षु योगी को रूपातीत ध्येय पर पहुँचना और स्थूल से सूक्ष्म आत्मा तक पहुॅचते हुए आत्मा के गुरण पर्यायों की शुद्धता का चितन करना चाहिए । आत्मा का उपयोग एक ही जगह रखना और मन को बाहर न जाने देना चाहिए। ऐसा करने से रूपातीत ध्येय मे प्रवेश होगा और अहर्निश उसका अभ्यास करने से रूपातीत ध्येय में ध्यान स्थिर हो जायगा । रूपातीत ध्यान के जिज्ञासु को द्रव्यानुयोग तथा अध्यात्म शास्त्रों का ज्ञान भली भाँति प्राप्त करना चाहिए, कारण कि इसके बिना जड़ चेतन की भिन्नता का ध्यान भली भाँति चित्त में नही रहता । चारो ध्यानो मे रूपातीत ध्यान सर्वोपरि है। इस ध्यान का करने वाला योगी, कर्म रूपी ईंधन को जलाकर भस्म कर देता है और वह अपनी शक्ति को प्रकट करने में समर्थ वन
603de99e748f91aaa71a54ae71e6edd916a1a7041c9231a55b2d4f1daa372f41
pdf
अज्ञान के कारण जीव की दृष्टि वर्तमान जन्म तक ही सीमित रहती है। वास्तव में हर जीव के करोड़ों जन्म बीत चुके होते हैं। आत्मज्ञान पाकर कर्मबंध को न तोडे तो उसे और जन्म लेना पड़ता है। पुण्य के फल से प्राणी को मानव जन्म मिला। यह मोक्षधाम के सोपान जैसा है। फिर भी वह आत्मज्ञान प्राप्त न कर, भोग विलास में डूबा रहे तो समझना चाहिए कि वह सचमुच अभागा है। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि भगवान श्रीकृष्ण के कहे अनुसार अपने पूर्व जन्मों का स्मरण करे, उन यमयातनाओं और गर्भनरक की याद करे। फिर वह उनसे मुक्ति पाने का प्रण करे। माता के गर्भ में जब जीव रहता है तब अपने सातवें मास की अवस्था में एक पल भर के लिए वह दिव्यदृष्टि पाता है। अपने जन्मों की याद करके वह डर जाता है। भगवान की शरण की मांग करता है। वादा करता है कि जन्मराहित्य के लिए इस जीवन में प्रयास करूंगा। परन्तु गर्भ से बाहर निकलने के बाद सब कुछ भूल जाता है। यह उचित नहीं है । अतः जीव को चाहिए कि वह भगवान की शरण में जावे और इसी जन्म में बन्धनों से मुक्ति पावे । जो मनुष्य तरक्की चाहता है उसे पूर्वजन्म को भूलना नहीं चाहिए । भगवान श्रीकृष्णने अर्जुन को पूर्व जन्मों का स्मरण कराया। अर्जुन की तरह हर मनुष्य कई जन्म ले चुका है। अतः मनुष्य का कर्तव्य है कि वह उनका स्मरण करे, आत्मानुभूति पावे, भव बंधन सब तोड दे और जन्म राहित्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करे। ६. अजोऽपि सहन्याच्या भूतानामीश्वरोऽपि सन् । प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यातममायया ॥ शब्दार्थ - ( अहम = मैं) अजः आपि सन् = जन्म रहित होकर भी । अव्ययात्मा = नाश रहित स्वरूप का होकर भी । भूतानाम् = प्राणियों का । ईश्वरः आपिसन् ईश्वर होकर भी। स्वाम् = अपनी । प्रकृतिम् = प्रकृति को । अधिष्ठाय अधीन करके। आत्म मायया = अपनी माया शक्ति से। संभवामि = प्रकट होता भावार्थ - मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृतिको अधीन करके अपनी योगमायासे प्रकट होता हूँ। व्याख्या - पिछले श्लोक में श्रीकृष्ण भगवानने कहा कि मेरे भी कई जन्म बीत गये। इससे संदेह हो सकता है कि क्या भगवान भी सभी जीवों की तरह जन्म और कर्म के वशीभूत हैं ? इसका उत्तर तुरन्तु इस श्लोक में दिया गया है। ईश्वर का जन्म अलग है। सामान्य प्राणियों का जन्म अलग है। जीव प्रकृति के अधीन होकर कर्म के अनुसार जन्म लेरहे हैं। यहाँ ईश्वर के तीन लक्षण बताये गये हैं। (१) जन्मरहित (२) नाश रहित (३) प्राणि जगत् का नियामक । इस तरह स्वयं जन्मरहित होकर भी वह अपनी स्वशक्ति से लोकहित के लिए अवतार ले रहा है। इस अवतार तत्व से पता लगता है कि ईश्वर की प्राणियों के प्रति कितनी करुणा है। धर्म के उद्धार के प्रति उनके दिल में कितनी उत्सुकता है। इन वाक्यों से स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण केवल वसुदेव के पुत्र ही नहीं बल्कि परमात्मा हैं। जगत् के नियामक हैं। प्रश्न - भगवान कैसा है ? उत्तर - (१) जन्म रहित है। (२) नाश रहित है। (३) जगत् के नियामक हैं। प्रश्न - ऐसे जन्मरहित ईश्वर फिर क्यों जन्म लेते हैं ? उत्तर - प्रकृति को वश में कर लोकहित के लिए ही ईश्वर जन्म लेते हैं। वे अज्ञानियों की तरह कर्मबद्ध नहीं हैं । सम्बन्ध - भगवान् दो श्लोकोंमें अपने अवतारके अवसर, हेतु और उद्देश्य बतलाते हैं - ७. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजम्यहम् ॥ शब्दार्थ - भारत = हे अर्जुन । यदा यदा = जब जब धर्मस्य = धर्म की । ग्लानि = हानि। अधर्मस्य = अधर्म की । अभ्युत्थानम् = वृद्धि भवति = होती है। तदा = तब । आत्मानम् = अपना । अहम = मैं। सृजामि = सृजन करता हूँ। भावार्थ - हे भारत ! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूपको रचता हूँ अर्थात् साकाररूपसे लोगोंके सम्मुख प्रकट होता हूँ। व्याख्या - भगवान के इन वाक्यों से स्पष्ट है कि धर्म कितना महान है। 'धर्मो रक्षति रक्षितः' के अनुसार धर्माचरण ही मनुष्य की रक्षा कर सकता है। जीव को शांति एवं शाश्वत सुख वही प्रदान करता है। इसीलिए भगवानने धर्म की रक्षा का प्रण किया। इससे धर्म की महानता स्पष्ट होती है। भगवान के संदेश से ज्ञात होता है कि अधर्म की वृद्धि को भगवान बर्दास्त नहीं कर सकते । अतः लोकहित को चाहनेवाले सभी का कर्तव्य है कि वे धर्म की रक्षा एवं अधर्म के नाश के लिए कमर कसें । तभी वे ईश्वर के कहे अनुसार चलने में समर्थ होंगे और अपने जन्म को धन्य बनाएंगे। प्रश्न- भगवान कब अवतरित होते हैं ? उत्तर- धर्म का जब ह्रास होता है, अधर्म का उत्थान होता है तब भगवान अवतरित होते हैं। शब्दार्थ- साधूनां = साधु संतों की परित्राणाय = रक्षा के लिए। दुष्कृताम् = दुष्टों के । विनाशाय च = विनाश के लिए । धर्म संस्थापनार्थाय = धर्म की स्थापना के लिए। युगे युगे = हर युग में । संभवामि = प्रकट होरहा हूँ। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे । भावार्थ - साधु पुरुषों का उद्धार करनेके लिये, पाप-कर्म करनेवालोंका विनाश करनेके लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करनेके लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ। व्याख्या सन्मार्ग पर चलनेवालों, सच्चरित्र जनों तथा साधु संतों की भगवान रक्षा करते हैं। जो भगवान से रक्षा चाहते हैं उनमें योग्यता होनी चाहिए। वह योग्यता जात-पांत, कुल गोत्र, वर्ग-वर्ण तथा धर्म-कर्म से संबंधित नहीं है । वह साधुता से संबंधित है। सन्मार्गगामी सभी, भगवान से रक्षा पाते हैं। भगवानने कहा कि ऐसे साधु संतों की रक्षा के लिए ही अवतरित होता हूँ। फिर उन्हेने कहा कि दुष्टों के नाश के लिए जन्म लेता हूँ। अतः लोगों को चाहिए कि वे दुष्कर्मों तथा पाप कार्यों से दूर रहें। सन्मार्ग पर चलें। लोकहित में लगे रहें । भगवान के अवतार का तीसरा लक्ष्य है धर्म की स्थापना । धर्म की रक्षा करने का प्रण भगवानने किया। अतः भगवान की इच्छा के अनुसार हर व्यक्ति चले और अपने जीवन को सार्थक बनाये, यही हमारी सलाह है। यहाँ 'साधु' कहा गया। साधु का मतलब सन्यासी या बैरागी नहीं है। साधु का मतलब है अच्छा या भला। अच्छे बर्ताववाले सब साधु ही हैं। वे गृहस्थ भी हो सकते हैं। ब्रह्मचारी भी हो सकते हैं । 'युगे युगे' का मतलब युग में एक बार अवतरित होना नहीं है। उसका मतलब है कभी कभी याने आवश्यकता पड़ने पर । इस श्लोक में त्राणाय के बदले परित्राणाय, नाशाय के बदले विनाशाय, स्थापनार्थाय के बदले संस्थापनार्थाय कहा गया। यह उल्लेखनीय प्रयोग है। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि भगवान दयालु हैं तो दुष्टों को दण्ड क्यों देते हैं ? दया करनी हैन? वास्तव में दुष्टों को दण्ड देना भी उनपर अनुग्रह करना ही है। भगवान दण्ड दें तो दुष्टों के पाप धुल जाएंगे। अपराधियों को दण्ड न तो समाज में उनकी संख्या बढ़ जाएगी। अत्याचार बढ जाएंगे। सारा समाज खतरे में पड़ जाएगा। शरीर में फोडा हो तो उसका आपरेषन कर उसे हटा देना शरीर की रक्षा के लिए आवश्यक है। इसी प्रकार समाज की रक्षा एवं भलाई के लिए दुष्टों तथा अपराधियों को दण्ड देना बहुत जरूरी है। सम्बन्ध - इस प्रकार भगवान अपने दिव्य जन्मोंके अवसर, हेतु और उद्देश्यका वर्णन करके अब उन जन्मोंकी और उनमें किये जानेवाले कर्मोंकी दिव्यताको तत्त्वसे जाननेका फल बतलाते हैं - जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥ शब्दार्थ- अर्जुन = हे अर्जुन ! यः = जो । एवम् = इस तरह मे = मेरे । दिव्यम् दिव्य । जन्म च = जन्म को । कर्म च = कार्यों को । तत्वतः = यथार्थ रूप से। वेत्ति : = जानता है। सः = वह । देहम् = शरीर को । त्यक्त्वा = छोड कर । पुनः फिर से । जन्म = जन्म । न एति = नहीं पाता। माम् = मुझको । एति = पाता है। भावार्थ - हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं- इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्मको प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है। व्याख्या - "ब्रह्मविद्ब्रह्मैव भवति" यह उपनिषद्वाक्य है। इसका अर्थ है कि ब्रह्म को जाननेवाला ब्रह्म ही होता है। भगवान के दिव्य जन्म और कर्मों का जो यथार्थरूप से जानता है वह भक्ति से परिपूरित होकर उसी में लीन रहता है। भगवान के स्वरूप को अच्छी तरह जानना 'साधना' है। भगवान में लीन होना 'साध्य' है। साधना और साध्य के बारे में इस श्लोक में कहा गया है। परन्तु 'तत्वतः' कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि भगवान के तत्व को अनुभव के द्वारा समझना चाहिए। भाषणों के द्वारा कोई ईश्वर तत्व जान नहीं सकता। 'दिव्यम्' कहा गया। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान के जन्म, कर्म एवं उनकी लीलाएँ प्रकृतिजन्य नहीं हैं। क्यों कि प्रकृति भगवान के वश में है, अतः उनकी लीलाएँ सामान्य जनों की लीलाएँ जैसी नहीं होती। भगवानने कहा कि भगवान का तत्व जाननेवाला पुनर्जन्म नहीं पाता, तुरन्तु फिर कहा कि 'मुझे ही प्राप्त करेगा। इससे ज्ञात होता है कि जन्म राहित्यवाला पद शून्य नहीं है, वह सच्चिदानन्दघनवाले आत्मस्वरूप की ही स्थिति है। "देह त्याग कर मुझे प्राप्त करेगा" इस वाक्य का अर्थ यह नहीं है कि देह को त्यागने के बाद ही मोक्ष प्राप्त करेगा। वास्तविक बात यह है कि जिस क्षण जीव भगवान का तत्व अच्छी तरह जानता है उसी क्षण वह मोक्ष पाता है। यहाँ देहान्तर चर्चा का उल्लेख हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि देह त्यागने के बाद मुक्त पुरुष फिर देह नहीं पाता। प्रश्न - भगवान का सायुज्य कौन पासकते हैं? उत्तर - भगवान के अप्राकृत जन्म, कर्म एवं तत्व को जो मनुष्य अच्छी तरह समझता है, जानता है वह भगवान का सायुज्य पाता है। १०. वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः । बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्धावमागताः ॥ शब्दार्थ - वीतराग भयक्रोधाः = अनुराग, भय, क्रोध को जो छोड़ चुके हैं। मन्मयाः = मुझ ही में जिनका चित्त लगा हुआ है। माम् = मुझे। उपाश्रिताः जो आश्रित हैं। (ऐसे) बहवः = अनेक । ज्ञान तपसा = ज्ञान तप से । पूताः पवित्र बन कर । मद्भावम = मेरे स्वरूप को । आगताः = प्राप्त कर चुके हैं। भावार्थ - पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझमें अनन्यप्रेमपूर्वक स्थित रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहनेवाले बहुत से भक्त उपर्युक्त ज्ञानरूप तपसे पवित्र होकर मेरे स्वरूपको प्राप्त हो चुके हैं। व्याख्या - ज्ञानयोग शीर्षक इस अध्याय में गीताचार्य तप, यज्ञ, अग्नि, नाव, तथा खड्ग आदि विविध रूपों में ज्ञान का वर्णन किया। संसार में अनेक तप हैं। परन्तु ज्ञान का तप सर्वोपरि है। क्योंकि जिस तरह शरीर के मैल को जल धोदेता है उसी तरह जन्म जन्म से अर्जित पाप एवं वासनाओं के मैल को ज्ञान का तप धोदेता है। चित्त को शुद्ध बनाता है। (इसीलिए 'पूताः' शब्द का प्रयोग किया गया है)। मोक्ष की प्राप्ति के लिए चित्त की निर्मलता अत्यंत आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि ज्ञान-तप माने क्या है ? इस श्लोक में कहा गया कि (१) जहाँ राग, क्रोध और भय न हों (२) जहाँ जीव भगवन्मय रहता हो (३) जहाँ जीव भगवान के आश्रित होकर रहता हो वहाँ ज्ञान-तप रहता है। फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे ज्ञान-तप प्रयोजन क्या हैं ? प्रयोजन हैं (१) चित्त की शुद्धि (२) परमात्मा के स्वरूप की प्रप्ति । "वीतराग भयक्रोधाः" - ज्ञान - तप की प्रथम साधना है राग, भय एवं क्रोध का त्याग । यह दुष्टत्रय साधना के लिए बडे अवरोध हैं। इसलिए इन तीन दुर्गुणों को दूर करना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि कैसे दूर किया जाय ? भगवान बताते हैं कि "मन्मयाः मामुपाश्रिताः" अर्थात् निरंतर भगवान का चिंतन और भगवान का आश्रय लेने से दुष्टत्रय दूर होते हैं। ये दोनों एक दूसरे के सहायक हैं। अतः एक ही समय दोनों को अमल में लाना चाहिए। "बहवः" कहा गया है। इससे स्पष्ट होता है कि पहले इस तरह अमल करने से कई साधक ब्रह्मसायुज्य पा चुके हैं। अतः मुमुक्षुओं को चाहिए कि वे ये साधानाएँ करें और मोक्ष प्राप्त करें। इस श्लोक के द्वारा निम्न लिखित बातें स्पष्ट की गयी । (१) भगवत्स्वरूप पाने के लिए चित्त की निर्मलता आवश्यक है। (२) हृदय की निर्मलता की प्राप्ति के लिए ज्ञान-तप आवश्यक है। (३) ज्ञान-तप का मतलब है - (१) काम, क्रोध एवं भय का त्याग । (२) भगवान में तल्लीनता । (३) भगवान का आश्रय पाना । प्रश्न- हृदय की शुद्धि किससे होती है ? उत्तर - तप से (इसका विवरण ऊपर दिया गया ) । ११. ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥
0b21233ee34bdce4772d4f9d7e2730f4a4313d2c0a26b251e716763e3519673c
pdf
विकास हुआ है और इसका संबंध उत्तर की अपेक्षा द्रविड़ जाति एवं संस्कृति से अधिक रहा है। यहाँ के राजाओं ने अनेक ऐसे भव्य मंदिर निर्माण करवाये हैं, जिनमें से कुछ तो संसार की अद्भुत इमारतों में से है । कहना न होगा कि उत्तर की भौति दक्षिण भारत मुसलमान विजेताओं द्वारा उतना आकांत नहीं हुआ, अतएव वहां की वास्तुकला अबतक रक्षित रह पाई है । इस परिस्थिति विशेष के कारण दक्षिण की वास्तुशैली का इतिहास कलाकृतियों में क्रमबद्ध रूप में सुरक्षित है। इस शैली का आरंभ ईस्वी सन के छठी शताब्दी में हुआ था, जो अबतक प्रचलित है । कहना न होगा कि दक्षिण की वास्तुकला अधिकांशतः प्रादेशिक शासकों को क्षेत्र - छाया में हुआ है, अतएव उस के आधार पर ऐतिहासिक एवं स्थानीय विशेषताओं को दृष्टिकोण में रखते हुये परमेश्वरीलाल गुप्त ने शासक वंशो के आधार पर विविध शैलियों में बाटा है, जो क्रमशः पल्लव, चोल, पांड्य, चालुक्य, विजय नगर और मथुरा आदि हैं । दक्षिण भारत का अधिकांश भाग दीर्घ काल तक विदेशी आतंक से सर्वथा मुक्त रहा है, जिसके कारण भारतीय कला एवं संस्कृति का विकास वहाँ निर्बाध रूप से हो पाया है । सांस्कृतिक दृष्टिसे इन समस्त वास्तु कृतियों को चालुक्य और द्रविड़ नामक दो बड़े समूहों में बाँट सकते है । द्रविड़ शैली के मंदिर म्हैसूर, हैदराबाद और उड़ीसा के किनारे के पास तथा देश के बिलकुल दक्षिण भाग में फैले हुये है, और चालुक्य शैली के इन प्रदेशों को छोड़ कर शेष समस्त दक्षिण में पल्लव राजाओं द्वारा आरंभ कालीन प्रस्तर विद्ध मंदीर अपने विविध आकारों प्रकारों में अर्काट तथा त्रिचनापल्ली के जिलों के किलमविलगई, मल्लरम, दलवानुर, महेन्द्रवाड़ी, मंगलराजपुरम्, मैरवोण, पृथामंगलम्, महावल्लीपुरम् तथा त्रिचनापल्ली नगर आदि में पाये जाते हैं । इन में अधिकांश के निर्माण का श्रेय तामिल सभ्यता में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले शासक महेन्द्रवर्मन् (६०० - ६२५ इस्वी) के हैं और उसी नाम पर पल्लव-मंदिरों की शैली को 'महेंद्र शैली' भी कहा जाता है। इन मंदिरों की सामान्य विशेषतायें, वर्गाकार गर्भगृह में लिंग की स्थापना, उसके सामने मोटे वर्गाकार स्तंभों से युक्त बरामदा सादे या पहलूदार टोड़े, गोल ढले हुये कारनीस सादी दीवाल, बीच बीच में नरमुण्ड मुक्त आराला ताख आदि हैं। कहीं कहीं बौद्ध शैली के बाढ़ ( रेलिंग ) भी पाये जाते हैं। इस शैली का विकसित रूप महावल्लीपुरम् और मम्मलपुरम् के संस्थापक नरसिंह वर्मन् । ६२५-६५० ईस्वी ) द्वारा निर्मित वास्तु में मिलता है। सातवीं शती में चट्टानों को काटकर बनाये हुये त्रिमूर्ति, वाराह, दुर्गा और पंच-पांडव के मंदिर भी इन प्रदेशों में प्राप्त होते हैं । पल्लव शैली का पूर्णतया विकसित रूप कांचीपुरम् के सुप्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर ( ७०० ईस्वी ) में देखने को मिलता है। चारों और स्तंभों से घिरे हुये इस मंदिर में रथ सदृश छोटे छोटे कमरे बने हुये हैं। सातवीं और आठवीं शताब्दियों में चालुक्य राजाओं द्वारा बनाये गये एलोरा के लयण-मंदिरों में से रावण की खाई, घुमर लेण तथा रामेश्वर प्रमुख है। मैसूर और कनाड़ी प्रदेशों के प्राचीन सुंदर मंदिर अधिकतर मुसलमान आक्रमकों तथा पश्चात् कालीन मुस्लिम शासकों द्वारा नष्ट किये जा चुके हैं। इनमें से जो सुरक्षित बचे हैं उनमें गड़ग का सोमेश्वर मंदिर, इतभी काबड़ा मंदिर, मुक्तेश्वर का चंदरमपुरम् मंदिर, कुरूवत्ती का मल्लिकार्जुन का मंदिर ( तुंमभद्रा के दक्षिणी तट पर ) गालगानाथ परमेश्वरीलाल गुप्त - भारतीय वास्तुकला, पृष्ठ ११८, वही पृष्ठ ११९. का गालगंश्वर मंदिर, तथा हालवीद का केदारेश्वर का मंदिर आदि चालुक्य शैली के भव्यतम उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त सन् १००० ईस्वी से लेकर १३०० ईस्वी तक के तीन सौ वर्षों में मंसूर के हायसाल पाल राजाओं ने अनेक मंदिर बनवाये । मैसूर, हैदराबाद तथा बिलकुल दक्षिण भाग में असंख्य द्रविड़ मंदिर फैले हुये हैं, जिनका अलग अलग विवरण देना प्रस्तुत पुस्तक के लघु कलेवर में स्थानाभाव के कारण अनुपयुक्त होगा, परंतु यह उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती पृष्ठों में द्रविड़ शैली की जिन विशेषताओं पर विचार किया है, वे सभी विशेषतायें इन मंदिरों में मिलती हैं। कहना न होगा कि भारतीय धर्मसाधना के विविध संप्रदायों के अनुसार तत्संबंधीं मंदिरों में अलग अलग देवताओं की प्रतिष्ठा होती रही है, तथापि वास्तुकला की दृष्टि से उनमें प्रादेशिक विशेषता की एकरूपता है । चौदहवीं शताब्दी इस्वी से लेकर सोलहवीं शताब्दी ईस्वी तक के लगभग दो सौ वर्षों में प्रतिष्ठित रहने वाले विजय नगर साम्राज्य के शासकों के काल में मंदिरों के अतिरिक्त दक्षिण में अनेक सभागृह, पुस्तकालय तथा राजभवन निर्मित हुये, जिनमें से बहमनी साम्राज्य के विजेता सुल्तानों द्वारा सन १५६५ ईस्वी के ताली-कोट के युद्ध में नष्ट भ्रष्ट कर दिये गये । पूर्ववत पृष्ठों में भारतीय वास्तुकला का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है उसके आधार पर दो महत्वपूर्ण तथ्य स्वभावतः सामने आ जाते हैं । १. जहाँ तक हिंदु वास्तु निर्माण की बात है वहाँ उसकी निमिति में देश के शासक तथा देश की जनता-दोनो का हाथ रहा है । २. दूसरे आगे चलकर जब देश मुस्लिम विजेताओं के अधिकार आया तो यहाँ की जनता की सांस्कृतिक प्रेरणा मंदिरों तथा धार्मिक डॉ. पी. के. आचार्य " भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता आधारभूत कलायें' पृष्ठ २१५. संस्थानों का निर्माण कर वास्तुकला के क्षेत्र में निरंतर योग दान करती आई है । अति प्राचीन काल से लेकर आज तक के हिंदू वास्तु - निर्माण के पूर्ववर्ती विवरण के पश्चात् अब मुस्लिम वास्तुकला पर भी संक्षेप में विचार कर लेना आवश्यक होगा । मुस्लिम वास्तु :ईस्वी सन की तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभिक भाग से हमारे देश का संबंध एक नये प्रकार के शासन के साथ स्थापित हुआ, जो देश की दृष्टि से विदेशी, धर्म की दृष्टि से इतर धर्म को मानने वाले तथा स्वधर्म पर एकान्त निष्ठा रखते थे । इस नवागत शासन काल में बदलने वाली हमारे देश की राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों पर विचार करना प्रस्तुत पुस्तक का प्रतिपाद्य नहीं है । यहाँ हम उसके केवल उतने अंश पर विचार करेंगें जो वास्तु कला से संबंधित है । कहना न होगा कि गुलाम-वंशीय शासन के रूप में सर्वे प्रथम मुस्लिम राज्य की स्थापना दिल्ली के आस पास उत्तर भारत के छोटे से भाग में हुई थी तथा देश का शेष भाग छोटे मोटे स्वदेशी राज्यों में बंटा हुआ था। इसके अतिरिक्त उस काल से लेकर लगभग सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक उत्तर भारत अनेक मुस्लिम वंगों के उत्थान- पतन के दृश्य देखता आ रहा था । ऐसी अस्थायी परिस्थितियों के बीच शासक-वर्ग के लोग, जब कि स्वयं अपने अस्तित्व की रक्षा में संघर्ष रत हों के द्वारा वास्तु निर्माण की ओर ध्यान दिया जाना असंभव ही था। दूसरे इस्लाम धर्म मूर्ति-पूजा का कट्टर विरोधी था । अकबर के पूर्ववर्ती अधिकांश मुस्लिम सुल्तानों का दृष्टिकोण मूर्ति पूजा के संस्थान मंदिरों की प्रतिष्ठा के स्थान पर उनके तोड़ने फोड़ने का ही था। अतएब इस काल में परंपरागत मंदिर-वास्त का निरबाध निर्माण होना अथवा उसे प्रोत्साहन मिलना तो दूर की बात थी, अपितु प्राचीन वास्तु बड़े बड़े भवन तथा मंदिर नष्ट-भ्रष्ट हो किए गए । भारत की पांच कलाएँ उपर्युक्त परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप इस्लामी शासन प्रारंभिक ढाई सौ वर्षों तक के काल के अंतर्गत मंदिर-वास्तु प्रायः नहीं के बराबर मिलता है । परन्तु कालान्तर में दो विशाल संस्कृतियों के सम्मिलन के द्वारा इस कला को नया मोड़ मिला इसमें संदेह नहीं । मृत्यु के पश्चात प्रतिष्ठित पुरूषों अथवा सत-फकीरों की यादगार मकबरे इत्यादि बनवाना मुस्लिम समाज में प्रचलित रहा है। इसके अतिरिक्त शासकों की भवन निर्माण - प्रियता भी इस क्षेत्र में सहायक बनी और उन्होंने अनेक अद्भुत इमारते, मस्जिदें, इमामबाड़े, मकबरे तथा किले बनवाये । डॉ. भगवत शरण उपाध्याय के मतानुसार मुसलमान सुल्तान गजब के निर्माता थे । १ इन्होंने जो वास्तु-निर्माण करवाया, उसके बनवाने में " खास हाथ हिन्दू शिल्पियों का था । इस देश में मुसलमानों की विशेष कर कला के क्षेत्र में तो कोई अभी अपनी परंपरा न थी, इससे उन्हें हिन्दू कारीगरों पर ही निर्भर करना पड़ा । इसी से शुरू की मुस्लिम इमारतें अधिकाधिक हिन्दू प्रभाव में आईं और उनके आकार-प्रकार अधिकाधिक हिन्दू-मंदिरों के भवनों के से हो गये ।" मुस्लिम वास्तु निर्माण के क्षेत्र में प्रथम मुसलमान सुल्तान कुतुबुद्दोन ऐबक द्वारा बनवाई हुई कुतुबमीनार का सबसे पहले उल्लेख किया जा सकता है। दिल्ली स्थित पृथ्वीराज चौहान के राजमहल को तोड़कर उसके मलवे द्वारा इस मीनार के बनवाने का कार्य आरंभ किया गया था और उसकी मृत्यु के पश्चात इस अधूरे कार्य की पूर्ति उसके उत्तराधिकारी सुल्तान अल्तमश द्वारा हुई। यह उल्लेखनीय है कि इसमें हिन्दू-प्रभाव झलकने के साथ साथ उसके पूर्ववर्ती चिन्ह भी स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं, परन्तु निर्माण की विशालता एवं भव्यता के कारण इसको १] डॉ. भगवतशरण उपाध्याय : सांस्कृतिक भारत, १४ वा अध्याय, पृष्ठ १८३ शीर्षकः कला २ वहीं पृष्ठ १८४, शीर्षक वहीं.
c6e7f5bc653fe6aca22c97347afa620132a7ff05
pdf
एक संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित इससे अफगानिस्तान बांग्लादेश और बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों के अवैध प्रवासी ले सकेंगे भारतीय नागरिकता दो उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में आये फैसले पर पुनर्विचार की सभी याचिकाएं खारिज की तीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज कानपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चौदह दिसम्बर को प्रस्तावित दौरे के मद्देनजर तैयारियों का लिया जायजा और चार प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी शहरी और ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर प्रत्येक रविवार को अनिवार्य रूप से आरोग्य मेला आयोजित करने के दिये निर्देश नागरिकता संशोधन विधेयक दो हज़ार उन्नीस संसद में पारित हो गया है राज्य सभा ने कल रात इस विधेयक को मंजूरी दे दी विधेयक के समर्थन में एक सौ पच्चीस और विरोध में एक सौ पाँच सदस्यों के मत पड़े सदन ने विधेयक को मंजूरी देते समय विपक्षी दलों के संशोधनों को खारिज कर दिया यह विधेयक लोक सभा में सोमवार को पारित हुआ था लोकसभा में तीन सौ ग्यारह सदस्यों ने इस के पक्ष में और अस्सी सदस्यों ने विरोध में मतदान किया था राज्य सभा में विधेयक के बारे में बोलते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह कानून उन लोगों के जीवन में नई रोशनी लाएगा जिनपर पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अत्याचार हो रहा है हम कोई एक धर्म को नहीं दे रहे हैं हम एक तीन देशों की माइनॉरटी को ले रहे हैं और सभी की सभी माइनॉरटी को ले रहे हैं एक क्लास को ले रहे हैं और उसमें भी वो क्लास को जो धार्मिक प्रताडना से प्रताडित है इसलिए रिजनेबल क्लीसिफिकेशन के आधार पर ये संसद को कानून बनाने का अधिकार है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नागरिकता संशोधन विधेयक राज्य सभा में पारित होने पर प्रसन्न्ता व्यक्त की है उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए ऐतिहासिक दिन है और देश के करूणा तथा भाईचारे के मूल्यों का प्रतीक है प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा कि यह विधेयक उन लोगों के कष्ट दूर करेगा जो वर्षों से अत्याचार का सामना कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नागरिकता संशोधन विधेयक दो हज़ार उन्नीस पारित होने को भारत के बहुलवाद पर संकुचित विचारधारा की जीत कहा उन्होंने एक बयान में भारतीय जनता पार्टी के ध्रुवीकरण एजेंडा के खिलाफ संघर्ष जारी रखने की कांग्रेस की प्रतिबद्धता व्यक्त की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नागरिकता संशोधन विधेयक के संसद में पारित होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को बधाई दी है विधेयक के पारित होने पर प्रदेश में खुशी का माहौल है लोगों का कहना है कि यह विधेयक धार्मिक प्रताड़ना पीड़ित शरणार्थियों को राहत देगा मुजफ्फरनगर निवासी विकास बालियान ने बताया नागरिक संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो चुका है और बनने वाला है कानून बनने के बाद अफगानिस्तार बांग्लादेश पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के शिकार जो हिन्दू सिख पारसी ईसासी समुदाय के लोग जो भारत आए हुए है उन्हें भारत की नागरिता मिल सकेगी उधर पीलीभीत में बांग्लादेश से आकर बसे हजारों शरणार्थियों को इस विधेयक के पारित होने के बाद नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है पीलीभीत अब ये कानून निवासी अशोक राजा ने बताया हम सभी भारतीयों के लिये यह बड़े गर्व की बात है खुशी की बात है भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल पास कर यह हमारे बहुत से शरणार्थी जो बंगाल से आये हुए थे उन्हें भारत की नागरिकता प्राप्त हुई है पीलीभीत में बावन हजार बंगाली समाज के लोग जिन्हें आज तक नागरिकता प्रदान नहीं की गई थी वह भारत के नागरिक नहीं माने जाते थे लेकिन आज उनमें एक उत्साह एक उमंग की लहर दौड़ गई हैं उनहें खुशी है कि हम लोग भी आज भारत के नागरिक बन गये है यह मोदी सरकार की देन है वहीं प्रतापगढ़ के महेश कुमार गुप्ता ने बताया लोकसभा में नागरिक संशोधन विधेयक के पारित हो जाने से देश के उन सभी हिन्दू शरणार्थियों को राहत मिलेगी जो एक विदेशी की भांति देश में रह रहे थे उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार की सभी याचिकाएं खारिज कर दी है प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपने चम्बर में इन याचिकाओं पर विचार किया और इन्हें निराधार पाया इसके साथ ही इन याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई की संभावना भी खत्म हो गई इस पीठ में न्यायामूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ न्यायामूर्ति अशोक भूषण न्यायामूर्ति एसए नजीर और न्यायामूर्ति संजीव खन्ना शामिल थे न्यायालय ने सिर्फ उन्हीं चार पक्षों की याचिकाओं पर विचार किया जो आरंभ में इस मुकदमे में पक्षकार थे थे इस मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिए कुल अट्ठारह याचिकाएं दायर की गई थीं इनमें नौ मुकदमे से संबंधित पक्षकारों की थीं जबकि नौ अन्य पक्षों की थीं बक यह समाचार आप आकाशवाणी लखनऊ से सुन रहे हैं ताज़ा समाचार जानने के लिये आप हमारी वेबसाइट न्यूज़ ऑन ए0आई0आर0 डॉट एन0आई0सी0 डॉट ए आईएन पर लॉगिन कर सकते हैं प्रादेशिक समाचारों के इस बुलेटिन में आपका फिर से स्वागत है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चौदह दिसम्बर को प्रस्तावित कानपुर दौरे के मद्देनजर आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर में कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण किया इस दौरान उन्होंने गंगा नदी का निरीक्षण कर नमामि गंगा मिशन के तहत हुए कार्यो की प्रगति का जायजा लिया मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से नमामि गंगे परियोजना के अन्तर्गत जो कार्य हुए है उससे आज गंगा का पानी आचमन लायक हो गया है मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि प्रधानमंत्री स्वयं इसकी समीक्षा करने कानपुर आ रहे हैं मां गंगा की निर्मलता को लेकर के आदरणीय प्रधानमंत्री जो नरेन्द्र मोदी जी नमामि गंगे अभियान को आगे बढ़ाया शीशामऊ नाला यह एशिया का सबसे बड़ा सीवर नाला था और एक सौ बीस वर्षों से कानपुर शहर का पूरा सीवर गंगाजी में इसी नाले से गिरता था प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा प्रारम्भ किये गये नमामि गंगे मिशन के कारण यह शीशामऊ नाला पूरी तरह टेप हुआ है यहां का पूरा सीवर एसटीपी में टेप डायवर्ड किया गया है इस नाले में एक भी बूंद सीवर अब गंगाजी में नहीं गिर रहा हैं ऐसे दर्जनों नाले टेप किये गये है और नमामि गंगे परियोजना को सफलतापूर्वक इसी प्रकार से आग बढ़ाया जा रहा है प्रधानमंत्री चौदह दिसम्बर को राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक में शामिल होने के लिये कानपुर आ रहे हैं प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी शहरी एवं ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों पर प्रत्येक रविवार को अनिवार्य रूप से आरोग्य मेला आयोजित किये जाने के निर्देश दिये हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिये ठोस कार्य योजना बना कर इसे शीघ्र लागू करने के लिये कहा है मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग इसके लिये नोडल विभाग होगा चिकित्सा शिक्षा और आयुष विभाग भी इसमें शामिल होंगे इन आरोग्य मेलों में डॉक्टरों की टीम उपलब्ध रहेगी और साथ ही एक सौ आठ और एक सौ दो एम्बलेंस सेवाओं की भी सुविधा होगी मुख्यमंत्री कल अपने आवास पर चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रस्तुतीकरण अवसर पर कार्यो की समीक्षा कर रहे थे उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना आयुष्मान भारत के तहत अधिक से अधिक लोगों को कवर किया जायेगा मुख्यमंत्री ने गोल्डेन कार्ड के वितरण में शीघ्रता बरतते हुए इसके संबंध में कैम्प आयोजित कर कार्य करने के भी निर्देश दिये मुख्यमंत्री ने प्रत्येक अस्पताल में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराये जाने के निर्देश देते हुए कहा कि एक्सरे अल्ट्रा साउंड तथा अन्य उपकरण को दुरूस्त रखा जाये बहराइच में कल रात हुई एक सड़क दुर्घटना में छह लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गये यह दुर्घटना बहराइचनानापारा रोड पर गौरा धनोली गांव के पास तेज रफ्तार ट्रक और कार में आमनेसामने टक्कर में हुई घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है यह सभी लोग बहराइच जिले के निवासी थे और एक शादी समारोह में जा रहे थे जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस पर प्रभावी नियंत्रण के लिये प्रदेश में चलाये गये दस्तक अभियान के गोरखपुर माडल को हेल्थकेयर एक्सीलेंस अवार्ड दिया गया है नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय हेल्थकेयर इनोवेशन समिट में कल प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जय प्रताप सिंह ने यह अवार्ड प्राप्त किया इंसेफ्लाइटिस पर रोकथाम के लिये पिछले दिनों राज्य में लखनऊ सहित अट्ठारह जिलों में दस्तक अभियान चलाया गया था जिसमें खासतौर पर उत्कृष्ट कार्य के लिये गोरखपुर में संचालित दस्तक अभियान के माडल की सराहना की गई उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद ने सेकेण्ड्री मुंशी मौलवी सीनियर सेकेण्ड्री आलिम कामिल एवं फाजिल परीक्षा वर्ष दो हज़ार बीस के परीक्षा शुल्क जमा करने की तिथि तेरह दिसम्बर तक तथा ऑन लाइन परीक्षा आवेदन करने की तिथि सोलह दिसम्बर तक बढ़ा दी है यह जानकारी उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार आर0पी0 सिंह ने दी उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड ने एक मुश्त समाधान योजना को मार्च दो हज़ार बीस तक के लिये बढ़ा दिया गया है सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा ने बताया कि बकायेदार किसानों को राहत पहुंचाने के लिये यह अवधि बढ़ाई गई है समाप्त
381eabb8b49a68b2183caca93e67842d67b7c60f27b6ee3a46fd7f1db58bdb28
pdf
रोकथाम हेतु जिला स्तर पर नियुक्त किया गया था ? (ख) प्रश्नांश (क) में महामारी की रोकथाम हेतु नियुक्त किए गए डॉक्टरों/स्वास्थ्यकर्मियों की क्या सेवा समाप्त की जा रही है? यदि हाँ, तो सेवा समाप्त किए जाने का कारण बतावे यदि नहीं तो नियुक्त किए गए इन कर्मचारियों को क्या शासन द्वारा संविदा नियुक्ति/नियमित किया जावेगा? यदि हाँ, तो समय-सीमा बतावें । (ग) कोविड19 की रोकथाम हेतु नियुक्त किए गए इन स्वास्थ्यकर्मियों को संविदा / स्थाई नियुक्ति दिये जाने संबंधी शासन द्वारा क्या कोई नियम निर्धारित किए गए है? यदि हाँ, तो नियम की प्रति उपलब्ध करावें । लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) संचालनालय स्वास्थ्य सेवायें के पत्र क्रमांक/आईडीएसपी/2020/288 भोपाल दिनांक 25.03.2020 के द्वारा कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतु जिला कलेक्टर को अस्थाई मानव संसाधन नियोजित करने हेतु अधिकार प्रत्यायोजित किये गये थे। पत्र के अनुसरण में जिलों द्वारा 2403 स्वास्थ्यकर्मी एवं 897 डॉक्टर नियोजित किये गये थे। (ख) जी नहीं, अपितु कोविड-19 केस के घटते क्रम को देखते हुये एवं अधिकांश मरीजों के होम आइसोलेशन में रहने तथा अस्थाई बनाये गये कोविड केयर सेंटर बंद होने से अस्थाई पैरामेडिकल स्टॉफ की आवश्यकता नहीं होने से आवश्यक पैरामेडिकल स्टॉफ को कोविड- 19 महामारी नियंत्रण के अंतर्गत विभिन्न मापदण्डों के आधार पर समय-समय पर पत्रों के माध्यम से जिलों में कार्य करने की अनुमति दी जाती रही। जी नहीं। विभाग के पत्र क्रमांक/आईडीएसपी/2020/288 भोपाल दिनांक 25.03.2020 के अनुसार "यह सेवाएं निश्चित समयावधि 03 माह के लिए ली जा रही है जिसे आवश्यकता होने पर बढ़ाया / घटाया जा सकेगा। अतः निर्धारित अवधि पश्चात् आदेश स्वतः समाप्त माना जावेगा।" अतः नियमतीकरण तथा संविदा पर रखने का वर्तमान में कोई प्रस्ताव नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है । (ग) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। स्वीकृत ग्रामीण पेयजल योजना [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी] 16. ( क्र. 2029 ) श्री रामचन्द्र दांगी : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) राजगढ़ जिले की ब्यावरा विधानसभा में बागपुरा मोहनपुरा कुशलपुरा ग्रामीण पेयजल योजना कब स्वीकृत की गई थी व इसके कार्य पूर्ण होने की समय-सीमा क्या थी? (ख) जब से कार्य प्रारंभ हुआ उस दिनांक से आज तक पेयजल की क्या व्यवस्था गांव में है वह कौन सा विभाग देख रहा है ठेकेदार द्वारा सामग्री का पूर्ण भुगतान प्राप्त कर लिया गया यदि हाँ, तो कितना भुगतान प्राप्त किया जानकारी उपलब्ध कराएं। (ग) उक्त कार्य में क्या सिविल कार्य नहीं किया जा रहा है? क्या कारण रहा उक्त ग्रामों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा कार्य करना बंद कर दिया क्या यह नियम में है यदि हाँ, तो अवगत कराएं। (घ) उक्त ग्रामों में पेयजल हेतु वैकल्पिक व्यवस्था करने हेतु शासन द्वारा क्या कार्य योजना है यदि हाँ, तो पेयजल कब तक व कैसे उपलब्ध होगा यदि नहीं तो ग्रामीण जन बिना पानी के कैसे रहेंगे ? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) राजगढ़ जिले के ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र में बांकपुराकुशलपुरा एवं मोहनपुरा समूह जलप्रदाय योजना क्रमशः दिनांक 07.02.2017 एवं 16.08.2017 को स्वीकृत हुई थी एवं कार्य पूर्ण होने की समय-सीमा 24 माह थी । (ख) विधानसभा क्षेत्र ब्यावरा में वर्तमान पेयजल व्यवस्था की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। उक्त व्यवस्था लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग देख रहा है। बांकपुरा-कुशलपुरा एवं मोहनपुरा समूह नलजल योजना में विभिन्न सामग्री हेतु क्रमशः रूपये 66 करोड़ एवं रूपये 150 करोड़ का भुगतान ठेकेदार को किया गया है। (ग) बांकपुरा-कुशलपुरा एवं मोहनपुरा समूह योजना में सिविल कार्य किया जा रहा है। जी नहीं, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा ग्रामों में पूर्व से विद्यमान पेयजल व्यवस्था के समस्त आवश्यक कार्य किये जा रहे हैं, शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता है । (घ) बांकपुरा-कुशलपुरा एवं मोहनपुरा समूह योजनाओं के कार्य पूर्ण होने पर इन योजनाओं से नियमित जलप्रदाय किया जा सकेगा। विभाग द्वारा प्रश्नाधीन ग्रामों में पूर्व से स्थापित पेयजल योजनाओं, हैण्डपंप के माध्यम से जलप्रदाय के कार्य किये जा रहे हैं एवं 19 रेट्रोफिटिंग की योजनाएं भी स्वीकृत की गई हैं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। परिशिष्ट - "नौ" फर्जी प्रमाण पत्र पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति की जांच 17. ( क्र. 2084 ) डॉ. गोविन्द सिंह : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भिण्ड जिले के विकासखण्ड लहार के अंतर्गत आंगनवाड़ी केन्द्र रावतपुरा खुर्द की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती सुनिता पत्नी मुरारीलाल तिवारी की शैक्षणिक योग्यता (माध्यमिक शाला कक्षा 8) का फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्ति प्राप्त करने के संबंध में कलेक्टर भिण्ड के न्यायालयीन प्रकरण क्र. 26/2019-20 /अं० आंगनवाड़ी में पारित आदेश दिनांक 13.03.2020 के तहत सेवा से पृथक कर दिया था ? (ख) यदि हाँ, तो उक्त प्रश्नांश के परिप्रेक्ष्य में क्या श्रीमती सुनीता तिवारी द्वारा आंगनवाड़ी का पद प्राप्त करने के लिए कक्षा 8 पास की फर्जी अंकसूची जनता इंटर कॉलेज अकनीवा जिला जालौन (उ.प्र.) से प्राप्त करने के संबंध में पुलिस थाना दवोह जिला भिण्ड द्वारा भा.द.सं. की धारा 420, 465, 467, 468, 471 एवं 261 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया था? (ग) यदि हाँ, तो क्या आयुक्त चम्बल संभाग मुरैना ने सेवानिवृत्ति के पूर्व तथ्यों की जाँच किए बिना ही आरोपी श्रीमती सुनीता तिवारी पत्नी मुरारीलाल तिवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को पुनः सेवा में लिए जाने के आदेश जारी कर दिए हैं? (घ) यदि हाँ, तो क्या इस समूचे प्रकरण की उच्च स्तरीय जाँच कराकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती सुनीता तिवारी को सेवा से पृथक किया जाएगा? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं तो क्यों? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी हाँ। (ख) जी हाँ। (ग) आयुक्त चम्बल संभाग मुरैना द्वारा पारित निर्णय दिनांक 24/11/2020 के द्वारा न्यायालय कलेक्टर भिण्ड के आदेश दिनांक 13/03/2020 एवं परियोजना अधिकारी लहार जिला भिण्ड के आदेश क्र. / आईसीडीएस / स्थापना-2/2019/402-403 लहार, दिनांक 24/08/2019 विधि सम्मत न होने से अपास्त किये जाने के कारण परियोजना अधिकारी लहार जिला भिण्ड के आदेश क्र./एबावि/आ.वा./स्था./2020-21/477478 दिनांक 29/12/2020 द्वारा पुनः सेवा में लेकर आंगनवाड़ी केन्द्र रावतपुरा खुर्द में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के पद पर पुनः पदस्थ किया गया । (घ) प्रश्नांश (ग) अनुसार जानकारी होने से शेष का प्रश्न ही नहीं । पर्यटन स्थलों के विकास हेतु संचालित योजनायें [पर्यटन] परिशिष्ट - "दस" 18. ( क्र. 2305 ) श्री रामपाल सिंह : क्या पर्यटन मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) रायसेन जिले के किस-किस स्थान पर कौन-कौन से पर्यटन स्थल / एतिहासिक धरोहर है, उनके विकास के लिए राज्य सरकार तथा भारत सरकार की कौन-कौन सी योजनायें संचालित है? (ख) रायसेन जिले में पर्यटन स्थलों के विकास, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु 1 जनवरी 19 से फरवरी 2021 तक की अवधि में रायसेन जिले में किस किस योजना में किन-किन स्थलों पर क्या-क्या कार्य करवाये गये पूर्ण विवरण दें। (ग) प्रश्नांश (ख) के कार्यों हेतु राज्य शासन द्वारा भारत सरकार को किन-किन योजनाओं में कौन-कौन से प्रस्ताव कब-कब भिजवाये तथा उनपर आज दिनांक तक क्या-क्या कार्यवाही हुई पूर्ण विवरण दें? (घ) विभाग के अधिकारियों द्वारा भारत सरकार से राशि स्वीकृत करवाने के संबंध में क्या-क्या कार्यवाही तथा प्रयास किये गये पूर्ण विवरण दें। पर्यटन मंत्री ( सुश्री उषा ठाकुर ) : (क) रायसेन जिले में सांची स्तूप, उदयगिरी एवं भीम बैठका में शैलचित्र / गुफायें, भोजपुर मंदिर, आशापुरी, सतधारा, मुरलखुर्द एवं सोनारी व रायसेन दुर्ग आदि पर्यटन स्थल/ऐतिहासिक धरोहर है, जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार । वर्तमान में कोई योजना संचालित नहीं है । (ख) बुद्धिस्ट सर्किट के अंतर्गत कार्य कराये गये हैं। जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार । (ग) प्रश्नांश 'ख' के संबंध में रायसेन जिले में बुद्धिस्ट सर्किट से संबंधित प्रस्ताव पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार को दिनांक 08-09-2016 को प्रेषित किया गया है। पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बुद्धिस्ट सर्किट के स्वीकृति आदेश क्रं 5 (16)/2016-SD दिनांक 19-9-2016 द्वारा राशि रू. 99.77 करोड़ स्वीकृत की गई। पुनरीक्षित स्वीकृति दिनांक 3-6-2020 जिसकी राशि रू. 87.82 करोड़ प्रदान की गई। जिसमें रायसेन जिले के बुद्धिस्ट स्थलों की जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार । (घ) पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार को स्वदेश दर्शन योजनान्तर्गत बुद्धिस्ट सर्किट का प्रस्ताव एवं डी. पी. आर. प्रेषित किया गया तथा निर्देशानुसार उनमें आवश्यक सुधार कर योजना स्वीकृत कराई गई। विधायक निधि से स्वीकृत राशि का प्रदाय [ योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी] 3 19. ( क्र. 2414 ) श्री प्रियव्रत सिंह : क्या वित्त मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या खिलचीपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत नगर माचलपुर, विकासखण्ड जीरापुर, जिला राजगढ़ में दिनांक 18.10.2019 को विधायक निधि से स्वीकृत कार्य सामुदायिक भवन निर्माण (विद्याधाम कॉलोनी के पास ) राशि 15 लाख रूपये की प्रशासकीय स्वीकृत जारी की गई थी, जिसकी क्रियान्वयन एजेंसी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा राजगढ़ को बनाया गया था ? यदि हाँ, तो क्या इसकी राशि जारी की गई ? यदि हाँ, तो कब तक की गई, कार्यलीन आदेश का क्रमांक / दिनांक बताएं। यदि नहीं, तो क्यों नहीं की गई? इसमें कौन अधिकारी / कर्मचारी दोषी हैं? इनके खिलाफ क्या कार्यवाही की जा रही है? (ख) उक्त राशि को योजना एवं सांख्यिकी विभाग के वी.सी.ओ. से ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के बी.सी.ओ. में राशि डालने में विलंब के क्या कारण है? यह राशि कब तक संबंधित विभाग के बी.सी.ओ. में डाल दी जाएगी ? (ग) वित्तीय वर्ष 2019-20 में विधायक निधि अंतर्गत राशि 12,07,320 रूपये एवं विधायक स्वेच्छानुदान अंतर्गत राशि रूपये 1 लाख का बजट अप्राप्त है, उपरोक्त स्वीकृत राशि का बजट कब तक प्राप्त हो जाएगा? वित्त मंत्री ( श्री जगदीश देवड़ा ) : (क) जी हाँ। जिला योजना एवं सांख्यिकी कार्यालय द्वारा लिपिकीय त्रुटि से ई-मेल पता सही नहीं लिखने के कारण जारी नहीं हो सकी। इस त्रुटि के लिये संबंधित कर्मचारी दोषी है। संबंधित को भविष्य के लिये कड़ी चेतावनी दी गई है। (ख) प्रकरण विशेष में मुख्यतः लिपिकीय त्रुटि से विलम्ब हुआ है। अब क्रियान्वयन एजेन्सी को राशि जारी कर दिये जाने से शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। बी.सी.ओ. से बी.सी.ओ. को राशि ट्रांस्फर में समय लगने के कारण भी प्रकरणों में विलंब परिलक्षित हुआ है। स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिनांक 24.02.2021 से सरल प्रक्रिया बनाई गई है। (ग) जी हाँ । राशि आवंटित कर दी गई है। कुपोषण की रोकथाम हेतु राशि का आवंटन 20. ( क्र. 2496 ) श्री लखन घनघोरिया : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला जबलपुर में कुपोषण की रोकथाम और इससे जुड़ी बीमारियों का इलाज तथा गर्भवती महिलाओं से संबंधित राज्य व केन्द्र सरकार शासन द्वारा संचालित किन-किन योजनान्तर्गत कितनी-कितनी राशि आवंटित की गई एवं कितनी-कितनी राशि व्यय हुई ? किन-किन योजनाओं के प्रचार-प्रसार मुद्रण सामग्री की खरीदी, जागरूकता अभियान, दस्तक अभियान व शिविरों आदि के आयोजन पर कितनी-कितनी राशि व्यय हुई? बतलावें। वर्ष 2018-19 से 2020-21 तक जानकारी दें। (ख) प्रश्नांश (क) में जागरूकता अभियान व शिविरों का आयोजन कब से कब तक कितने दिवसीय कहां-कहां पर आयोजित किये गये। इनमें किन-किन अधिकारियों ने कब-कब भाग लिया। किन-किन शिविरों में कितने-कितने बच्चों व गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। इनमें से 0 से लेकर 5 वर्ष तक की आयु के कितने-कितने बच्चे कम वजन, अतिकम वजन के तथा कितने-कितने बच्चे गंभीर व अतिकुषोपित पाये गये। कितने बच्चों व महिलाओं को कितनी-कितनी राशि की दवाईयां व पौष्टिक पोषण आहार का वितरण किया गया? शिविरों के आयोजन पर किन-किन कार्यों पर कितनी-कितनी राशि व्यय हुई। इसका सत्यापन कब और किसने किया? बतलावें। विकासखण्डवार जानकारी दें। (ग) प्रश्नांश (क) में अतिकुपोषित चिंहित कितने-कितने बच्चों को उपचार हेतु किन-किन एन. आर. सी. में भर्ती कराया गया ? इनमें से कितने बच्चों का फालोअप किया गया? कितने बच्चों के वजन में वृद्धि हुई। कितने बच्चें पूर्ण स्वस्थ्य हुए एवं कितने बच्चों की मृत्यु हुई ? बतलावें । मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) कुपोषण की रोकथाम और इससे जुड़ी बीमारियों का इलाज तथा गर्भवती महिलाओं से संबंधित संचालित योजना, वर्ष 2018-19 से 2020-21 तक आवंटन राशि एवं व्यय राशि योजनावार पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "क" अनुसार है। (ख) प्रश्नांश (क) में जागरूकता व शिविरों के आयोजन किये जाने का दिनांक स्थान एवं भाग लेने वाले अधिकारी की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ख ( 1 ), ख ( 2 ) एवं ख ( 3 ) अनुसार है। ऐसे शिविरों का आयोजन नहीं किया गया है जिसमें बच्चों व गर्भवती महिला का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया हो। आंगनवाड़ी केन्द्रों में प्रत्येक माह वजन अभियान का आयोजन किया जाता है, जिसमें से 0 से लेकर 5 वर्ष तक के बच्चों का वजन लिया जाता है। वजन आयोजन के दौरान कम वजन, अतिकम वजन तथा गंभीर व अति कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया जाता है, जिसकी जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ग" अनुसार है। जिले में स्नेह शिविर का आयोजन वर्ष 2018-19 में किया गया है। जिसमें बच्चों और महिलाओं पर व्यय की गयी दवाइयाँ, पौष्टिक आहार, अन्य व्यय सत्यापनकर्ता अधिकारी की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "घ" पर विकासखण्डवार है। (ग) अति कुपोषित चिन्हित बच्चों के उपचार हेतु एन. आर. सी. में भर्ती कराना, फालोअप कराना, बच्चों के वजन में वृद्धि, पूर्ण स्वस्थ्य हुए तथा बच्चों की मृत्यु से संबंधित जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - "ड" अनुसार है। सूचना प्रकाशन विभाग अंतर्गत अधिमान्य पत्रकार [जनसंपर्क] 21. ( क्र. 2540 ) श्री अनिरुध्द (माधव) मारू : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मध्य प्रदेश शासन सूचना प्रकाशन विभाग द्वारा किन-किन पत्रकारों को राज्य एवं राज्य के अलावा अधिमान्यता दी गयी है ? जिलेवार सूची उपलब्ध कराएं। (ख) अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार किन-किन समाचार पत्र एवं किन-किन टीवी चैनल, संस्था के लिए कार्यरत है? (ग) सूचना प्रकाशन विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त समाचार पत्रों एवं टीवी चैनलों को वर्ष 2019, 2020 एवं 2021 में कितनी राशि के विज्ञापन दिये गये ? संस्था अनुसार विज्ञापन की राशि एवं भुगतान की राशि बतायें। (घ) सूचना प्रकाशन के अधीन म.प्र. माध्यम कितने प्रिंटर्स पंजीकृत है? सूची सहित बताए। (ड.) म.प्र. माध्यम में पंजीकृत प्रिंटर्स को वर्ष 2018, 2019, 2020 में कितनी राशि का भुगतान किया गया एवं इसमें किन-किन विभागों का कार्य करवाया गया ? सूचीवार बताएं। मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) एवं (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - एक अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - दो अनुसार है। (घ) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - तीन अनुसार है। (ड.) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - चार अनुसार है। कर्मचारियों के वेतन निर्धारण उपरांत अधिक भुगतान की वसूली 22. ( क्र. 2541 ) श्री अनिरुध्द (माधव) मारूः क्या वित्त मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) नीमच जिले में कर्मचारियों के वेतन निर्धारण अनुमोदन उपरांत अधिक भुगतान की वसूली से वर्ष 2019 से प्रश्न दिनांक तक कितनी राशि शासन के खजाने में जमा की गई? (ख) क्या जिले में पेंशन कार्यालयों में अधिक भुगतान की वसूली के सम्बन्ध में आपत्तियां लगाई जाती है और फिर वसूली न करते हुए निराकरण कर दिया जाता है? (ग) क्या पेंशनरों से उपादान / पेंशन भुगतान के आदेश के नाम पर चक्कर लगवाए जाते हैं और उनका भुगतान समय से नहीं होता? उनकी समय-सीमा क्या है? (घ) नीमच जिले में पेंशन कार्यालयों में नियमित कर्मचारियों के वेतन निर्धारण अनुमोदन के वर्ष 2019 से प्रश्न दिनांक तक कितने प्रकरण लंबित है किस अवधि के है उनकी विभागवार जानकारी दें? वित्त मंत्री ( श्री जगदीश देवड़ा ) : (क) वर्ष 2019 से प्रश्न दिनांक तक शासन के खजाने में राशि रूपये 1,27,51,808/- जमा की गई है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - अ अनुसार है। (ख) शासन द्वारा पदोन्नति / समयमान वेतनमान / वारिष्ठ वेतनमान आदि के जारी आदेशों के अनुसार कार्यालय द्वारा सक्षम अनुमोदन कराये बिना भुगतान के कारण अधिक भुगतान की स्थिति निर्मित होने पर पूर्ति हेतु प्रकरण विभाग को लौटाया जाता है। पूर्ति होने के पश्चात् ही प्रकरण का निराकरण किया जाता है। (ग) जी नहीं । उपादान / पेंशन भुगतान आई. एफ.एम.आई.एस. से ऑनलाईन किया जाता है। शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (घ) नीमच जिला पेंशन कार्यालय में नियमित कर्मचारियों के वेतन निर्धारण अनुमोदन के वर्ष 2019 से प्रश्न दिनांक तक पुनरीक्षित वेतनमान निर्धारण / उन्नयन / समयमान वेतनमान के 18 प्रकरण लंबित है। जिनके निराकरण की कार्यवाही प्रचलन में है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - ब अनुसार है। पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ [वित्त] 23. ( क्र. 2664 ) श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल : क्या वित्त मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. में जनवरी 2005 के पश्चात से प्रश्न दिनांक तक शासन द्वारा जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भर्ती की गई है? इन्हें पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ कब तक मिल जाएगा? वित्त मंत्री ( श्री जगदीश देवड़ा ) : (क) म.प्र. में जनवरी, 2005 के पश्चात् से प्रश्न दिनांक तक शासन द्वारा भर्ती अधिकारियों एवं कर्मचारियों को (नवीन अंशदायी पेंशन योजना) राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की है। अतः शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। मंदिर की जमीनों पर कब्जा 24. ( क्र. 2739 ) श्री महेश परमार : क्या पर्यटन मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या राज्य सरकार हिंदू सनातन धर्म के प्रतीक आगर रोड स्थित राधाकृष्ण मंदिर कि रिक्त भूमि को शासकीय धन्वन्तरी आयुर्वेद एवं चिकित्सा महाविद्यालय के लिए 2.34 करोड़ रुपए में खरीदा जा रहा है? यदि हाँ, तो यह हिंदू मंदिरों कि ज़मीनों को हड़पनें का षड्यंत्र नहीं है? यदि नहीं है तो, उसी क्षेत्र में इंदौर टेक्सटाइल से लेकर हीरामील तक ताकायमी जमीन शासकीय जमीन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है उसके उपरांत भी हिंदू सनातन धर्म के प्रतीक मंदिरों कि जमीन क्यों छीनी जा रही है? (ख) क्या राज्य सरकार हिंदू मंदिरों की जमीन लेकर अपनी ज़मीनों को महंगे भाव में बेचकर मुनाफा नहीं कमाना चाहती है ? अगर ऐसा नहीं है तो, उक्त प्रयोजन के लिए हिंदू धर्म के मंदिरों की ही ज़मीनें क्यों? (ग) उक्त योजना का पुनः भूमि परिवर्तन कर उपलब्ध शासकीय भूमि पर महाविद्यालय निर्माण क्यों नहीं किया जा रहा है? कारण प्रस्तुत करें। पर्यटन मंत्री ( सुश्री उषा ठाकुर ) : (क) शासकीय स्वशासी धन्वन्तरी आयुर्वेद एवं चिकित्सा महाविद्यालय उज्जैन के विस्तार हेतु आपसी सहमति क्रय निति के अर्जन प्रस्ताव के आधार पर महाविद्यालय के पक्ष में एक हेक्टेयर भूमि वर्तमान बाजार मूल्य से दो गुने मूल्य पर 2,64,08,000/- में अर्जन किया गया तथा उक्त राशि महाविद्यालय द्वारा राधाकृष्ण मंदिर के खाते में जमा कराई गई। जी नहीं उक्त भूमि शासकीय धन्वन्तरी आयुर्वेद एवं चिकित्सा महाविद्यालय के विस्तारीकरण हेतु महाविद्यालय की सीमा से लगी होने के कारण महाविद्यालय के पक्ष में अर्जित की गई। शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) जी नहीं। प्रश्नांश "क" अनुसार। (ग) जी नहीं। प्रश्नांश "क" अनुसार सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश पर कार्यवाही 25. ( क्र. 2885 ) श्री नारायण सिंह पट्टा : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि म.प्र. शासन सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय के पत्र क्रमांक 354/2176/2019/3एफ, भोपाल दिनांक 09 मार्च 2020 के द्वारा माननीय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में दिनांक 08 फरवरी 2020 की बैठक में लिए निर्णय के बिंदु क्रमांक 4 में दिए गए निर्देश के संबंध में विभागों को नियम संशोधन करने एवं पदोन्नति/क्रमोन्नति संबंधी कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया गया था, उपरोक्त के संदर्भ में कितने विभागों द्वारा कार्यवाही की गई है? जिन विभागों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है तो उन विभागों को पुनः कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया जाऐगा? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : जी हाँ। शेषांश की जानकारी एकत्रित की जा रही है। गैर व्यवसायिक वाहनों का विभाग में अटैचमेंट [लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण] 26. ( क्र. 2911 ) श्री दिलीप सिंह परिहार : क्या लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) वर्ष 2018-19 से 2020-21 की अवधि में प्रदेश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत अटैच / उपयोग किये जाने वाले वाहनों के व्यवसायिक उपयोग के संबंध में शासन द्वारा कोई दिशा निर्देश जारी कर रखें हैं या स्थानीय स्तर पर निविदा आमंत्रित कर वाहनों की दर निर्धारित कर वाहनों का व्यवसायिक रुप से अटैच/उपयोग किये जाने का प्रावधान है। (ख) प्रश्नाधीन अवधि में नीमच जिला चिकित्सालय द्वारा व्यवसायिक रुप से अटैच/उपयोग किये वाहन क्रमांक क्रमशः एम.पी.- 44 सी.ए.-6423, 6884, 4223, 5983, 5058, 6176, 5099, 4806, 1275, 9913, 5048, 7296, 7545, 8975, 8605 को कितनी-कितनी राशि का भुगतान किया गया ? (ग) प्रश्नांश (ख) में भुगतान की गई राशि क्या गैर व्यवसायिक वाहनों को की गई है ? यदि हाँ, तो इससे शासन को कितनी राशि की हानि हुई है तथा इसकी किस प्रकार से वसूली की जावेगी । (घ) नियम विरुद्ध अटैच/उपयोग किये जाने वाले वाहनों के संबंध में कौन उत्तरदायी हैं तथा उसके विरुद्ध क्या कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही की जावेगी ? यदि नहीं तो कारण बतायें। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) जी हाँ, दिशा निर्देशों की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है । (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है। (ग) जी हाँ। जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा इन वाहनों की खुली ई-निविदा की न्यूनतम दर पर अनुबंध वाहनों का उपयोग किया गया क्योंकि इस क्षेत्र में व्यवसायिक वाहनों की अनु उपलब्धता होने से गैर व्यवसायिक वाहनों का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारू रूप से संचालित करने के लिए किया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) प्रश्नांश ( ग ) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। इंदिरा सागर परियोजना की मुख्य नहरों का निर्माण [नर्मदा घाटी विकास] 27. ( क्र. 3020 ) श्री सचिन सुभाषचन्द्र यादव : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) नर्मदा घाटी विकास विभाग विधानसभा क्षेत्र कसरावद में इंदिरा सागर परियोजना की मुख्य नहर की आर.डी. 118.600 किमी पर स्केप तथा सी. आर. का निर्माण एवं कठोरा उद्वहन सिंचाई परियोजना अंतर्गत जेकवेल माकड़खेड़ा से कसरावद रोड ओझरा तक 13.53 कि.मी. रोड का सुधार कार्य प्राक्कलन राशि रूपये 233.84 लाख एवं इलेक्ट्रिक ग्रिड की फैंसिंग तथा कांक्रीट बीम मरम्मत कार्य प्राक्कलन राशि रू. 2.45 लाख की स्वीकृति जारी की गई है यदि हाँ, तो कब कार्यवाहीवार प्रश्न दिनांक तक की अद्यतन स्थिति में जानकारी दें ? ( ख ) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में प्रश्नकर्ता के पत्र क्रमांक 629 दिनांक 22/2/19163 दिनांक 22/2/20 एवं 2046 दिनांक 21/8/19 के तारतम्य में क्या कार्यवाही की गई? नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पत्र क्रमांक 1696/450/53/10/19 दिनांक 23/9/19 के तत्संबंध में प्रश्न दिनांक तक उक्त कार्यों की स्वीकृति आदेश जारी किए गए हैं यदि हाँ, तो बतायें नहीं तो स्पष्ट कारण सहित जानकारी दें? (ग) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के अति महत्वपूर्ण कार्यों को पूर्ण किए जाने हेतु स्थानवार किस-किस अधिकारी/कर्मचारी द्वारा सर्वे कर पालन प्रतिवेदन की प्रस्तुति दिनांक के साथ-साथ दिनांक तक की गई कार्यवाही की अद्यतन स्थिति सहित जानकारी दें? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) स्केप तथा सी.आर. का निर्माण कार्य पीपरी उद्वहन माइक्रो सिंचाई योजना के अंतर्गत प्रारंभ हो चुका है। जी नहीं । प्रश्नांकित कार्यों का प्रावधान पूर्व में प्राप्त प्रशासकीय स्वीकृति में सम्मिलित नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ग) उत्तरांश (क) एवं (ख) अनुसार । परिशिष्ट - "ग्यारह" किसानों को पानी उपलब्ध कराया जाना [ नर्मदा घाटी विकास] 28. ( क्र. 3021 ) श्री सचिन सुभाषचन्द्र यादव : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधानसभा क्षेत्र कसरावद में किसानों को पानी उपलब्ध कराने एवं भीकनगांव में वेदा नदी के कृषकों को अपर वेदा बांध के ग्राम नेमित तह. भीकनगांव के कमाण्ड क्षेत्र से जोड़ने के संबंध में नर्मदा घाटी को प्रश्नकर्ता द्वारा प्राप्त पत्र क्रमाक 303 / दिनांक 1/2/19 628/दिनांक 22/02/19 एवं इसी अवधि में अन्य माध्यमों से प्राप्त पत्रों के तारतम्य में प्रश्न दिनांक तक क्या कार्यवाही की गई कार्यवाहीवार जानकारी दें? (ख) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में विभागीय स्तर पर क्या-क्या निर्देश/स्वीकृति/आदेश जारी कब-कब किए गये। हाँ तो बताएं यदि नहीं तो क्यों, कारणों का उल्लेख करें? (ग) उक्त किसानों को पानी उपलब्ध कराये जाने के लिए क्या शासन प्रतिबद्ध नहीं है हाँ, तो कब तक किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए उपरोक्तानुसार कार्यवाही पूर्ण कर किसानों को पानी उपलब्ध करा दिया जावेगा? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) पत्र क्रमांक 303 पीपरी माईक्रो उद्वहन सिंचाई योजना से संबंधित है। इससे कुल 7000 हेक्टेयर में से कसरावद विधानसभा क्षेत्र के 11 ग्रामों में 1861 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। योजना का निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुका है। पत्र क्रमांक 628 दिनांक 22/02/2019 अपरबेदा परियोजना से संबंधित है। अपरबेदा जलाशय से कसरावद विधानसभा क्षेत्र में सिंचाई किया जाना तकनीकी रूप से संभव नहीं है। (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ग) विभिन्न परियोजनाओं से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। निर्माणाधीन परियोजनाओं से भी सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराया जाना लक्षित है। परिशिष्ट - "बारह" आर्थिक अपराध अनुसंधान के लंबित प्रकरणों की जानकारी 29. ( क्र. 3155 ) श्री कुणाल चौधरी : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने 01 जनवरी 2015 के बाद से प्रश्न दिनांक तक कितने प्रकरण किन लोगों के खिलाफ दर्ज किये गये हैं? कितने मामलों में पी.ई. दर्ज की है? दर्ज मामलों में कितने मामले दवितीय श्रेणी और उससे ऊपर के अधिकारियों पर दर्ज हैं? प्रकरण वार जानकारी दी जायें। (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार दर्ज कितने मामलों में चालान प्रस्तुत कर दिया गया है? कितने मामलों में चालान प्रस्तुत करने की कार्यवाही लंबित है? लंबित प्रकरणों की जानकारी बतायें। (ग) ई-टेंडरिंग घोटाले में कितने प्रकरण किन-किन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किये हैं? प्रकरणवार जानकारी देवें । (घ) ई. ओ. डब्ल्यू. में भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड में 2013 में खरीदी ए. सी. बसों की खरीदी से जुड़ी कितनी शिकायतें लंबित हैं? उन पर अब तक ब्यूरो ने क्या कार्यवाही की है? मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) से (घ) जानकारी एकत्रित की जा रही हैं। आयुष्मान भारत योजना अंतर्गत पंजीकृत अस्पताल 30. ( क्र. 3195 ) सुश्री चंद्रभागा किराड़े : क्या लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म. प्र. में आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत कुल कितने शासकीय एवं निजी अस्पताल पंजीकृत हैं, जिलेवार सूची देवें । (ख) प्रश्नांश (क) की सूची अनुसार किस अस्पताल में किन-किन बीमारियों के उपचार की सुविधा प्रश्न दिनांक तक कि स्थिति में है, अस्पतालवार, बीमारीवार सूची देवें । (ग) आयुष्मान भारत योजना में मरीज के एप्रूवल के लिए भेजी जाने वाली जांचों में व्यय कि गई राशि स्वीकृति उपरान्त संबंधित अस्पताल को भुगतान कि जाती है या मरीज के खाते में डाली जाती है। (घ) शासकीय अस्पतालों में आयुष्मान भारत योजना अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्य सरकार के द्वारा गंभीर ऑपरेशन एवं एक्सीडेन्टल केसेस में उपचार के लिए क्या कोई पृथक से राशि प्रदान कि गई है, हाँ या नहीं, यदि हाँ, तो राशि के व्यय संबंधी विगत एक वर्ष का विवरण उपलब्ध करावें। (इ.) जिला चिकित्सालय बड़वानी में गंभीर ऑपरेशन एवं एक्सीडेन्टल केसेस में मरीज के उपचार एवं ऑपरेशन के लिए क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध है और क्या-क्या नहीं है, बीमारीवार बताएं एवं जो सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, उसके लिए विभाग क्या कार्यवाही करेगा। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) मध्यप्रदेश में आयुष्मान भारत "निरामयम" योजनान्तर्गत सम्बद्ध शासकीय एवं निजी चिकित्सालयों की सूची पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है । (ख) आयुष्मान भारत "निरामयम" मध्यप्रदेश योजनान्तर्गत चिकित्सालयों को विभिन्न विषय विशेषज्ञताओं के अन्तर्गत नियमानुसार सम्बद्ध किया जाता है। उक्त विषय विशेषज्ञताओं के अन्तर्गत उपलब्ध पैकेजेस के माध्यम से भर्ती मरीजों का उपचार योजनान्तर्गत किया जाता है। सम्बद्ध चिकित्सालयों की सूची विषय विशेषज्ञता सहित जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) आयुष्मान भारत "निरामयम" योजनान्तर्गत भर्ती मरीजों के उपचार (दवाईयां, जांचें, कन्ज्यूमेवल्स इत्यादि) पर होने वाले व्यय का भुगतान नियत पैकेज राशि अनुसार सम्बद्ध निजी चिकित्सालयों के खाते में ऑनलाईन किया जाता है। योजनान्तर्गत मरीजों के खाते में राशि के भुगतान का कोई प्रावधान नहीं है। (घ) आयुष्मान भारत "निरामयम" योजनान्तर्गत विभिन्न प्रकार के गंभीर ऑपरेशन एवं एक्सीडेन्टल केसेस के उपचार हेतु सम्बद्ध चिकित्सालय उपलब्ध पैकेज का उपयोग कर नियत पैकेज राशि अनुसार भुगतान प्राप्त कर सकते हैं। शासकीय चिकित्सालयों को गंभीर ऑपरेशन एवं एक्सीडेन्टल केसेस के उपचार लिये कोई पृथक से राशि प्रदान नहीं की जाती है। (ड.) 1. जिला चिकित्सालय बड़वानी में गंभीर ऑपरेशन से संबंधित उपचार हेतु मुख्य ऑपरेशन थियेटर में पिडियाट्रीक, सर्किट बीथिग बेग, हाईड्रोलिक टेबल मल्टी पारामानिटर की कमी है तथा शेष सुविधायें उपलब्ध है। 2. जिला चिकित्सालय बड़वानी में एक्सीडेन्ट की स्थिति में मरीजों के हड्डी से संबंधित ऑपरेशन हेतु हड्डी विभाग के ऑपरेशन थियेटर में इम्प्लान्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा शेष सुविधायें उपलब्ध है। 3. जिला चिकित्सालय बड़वानी में बिन्दु क्रमांक 1 व 2 के अतिक्ति ब्लड बैंक विशेषज्ञ ऑनकॉल उपलब्ध रहते हैं एवं 108 एम्बूलेंस की सेवायें निःशुल्क उपलब्ध हैं परन्तु सीटी स्कैन एवं एमआरआई की सुविधा उपलब्ध नहीं है। जो सुविधाएं नहीं है उन्हें यथासंभव शीघ्र उपलब्ध कराया जावेगा। कोविड-19 महामारी में नियुक्त कर्मचारियों को बिना सूचना के सेवा समाप्ति [लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ] 31. ( क्र. 3207 ) श्री महेन्द्र हार्डिया : क्या लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या कोविड- 19 महामारी के कारण विभाग में/जिले में नर्सिंग स्टॉफ, सपोर्ट स्टॉफ एवं अन्य स्टॉफ की भर्ती अस्थाई मानदेय के आधार पर की गई थी ? (ख) यदि हाँ, तो क्या बिना कोई पूर्व सूचना के इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई? क्या इन कर्मचारियों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना कोविड- 19 महामारी में काम किया तो क्या विभाग का यह दायित्व नहीं था कि इन कर्मचारियों को एक माह पूर्व नोटिस दिया जावें ताकि वे अपने रोजगार की व्यवस्था कर सकें। (ग) क्या इन कर्मचारियों ने कोरोना मरीज के सीधे संपर्क में कार्य किया? यदि हाँ, तो क्या इन कर्मचारियों को कोरोना टीका लगाया गया ? यदि नहीं तो क्यों ? (घ) क्या विभाग में इनके निरंतर सेवाएं बने रहने की व्यवस्था की जा सकती है? यदि नहीं तो क्यों? लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) जी हाँ । (ख) जी नहीं, समस्त जिला कलेक्टरों को कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतु पत्र क्रमांक / आई.डी.एस.पी/ 2020/288 दिनांक 25.03.2020 द्वारा आवश्यक मानव संसाधन सुनिश्चित करने हेतु अधिकार प्रत्यायोजित किये गये थे। उक्त पत्र में स्पष्ट उल्लेख था कि यह सेवाएं एक निश्चित समयावधि 03 माह के लिए ली जा रही है जिसे आवश्यकता होने पर बढ़ाया/घटाया जा सकेगा। अतः निर्धारित अवधि पश्चात् आदेश स्वतः समाप्त माना जावेगा। इस आशय से संबंधित जिलों में अस्थाई मानव संसाधन को पूर्व से ही नियुक्ति के समय अवगत कराया गया था। (ग) जी हाँ, भारत सरकार द्वारा प्रदाय गाइड लाइन अनुसार समस्त शासकीय एवं अशासकीय हेल्थ वर्करों को भारत सरकार के पोर्टल पर जो पंजीकृत थे उन्हें कोविड-19 वैक्सीन का टीका संस्थाओं में उपस्थित होने पर निःशुल्क दिया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (घ) जी नहीं। विभाग के पत्र क्रमांक/आईडीएसपी/2020/288 भोपाल दिनांक 25.03.2020 के अनुसार यह यह सेवाएं निश्चित समयावधि 03 माह के लिए ली जा रही है जिसे आवश्यकता होने पर बढ़ाया/घटाया जा सकेगा। अतः निर्धारित अवधि पश्चात् आदेश स्वतः समाप्त माना जावेगा। अतः नियमतीकरण तथा संविदा पर रखने का वर्तमान में कोई प्रस्ताव नहीं है। मुख्यमंत्री उद्यमी योजनाएं [ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम] 32. ( क्र. 3271 ) श्री पी.सी. शर्मा, श्री संजय उइके, श्री कुणाल चौधरी : क्या सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सरकार द्वारा मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और मुख्यमंत्री कृषक उद्यमी योजना बंद कर दी गई है? यदि हाँ, तो किस दिनांक से ये योजनाएं बंद की गई हैं ? ( ख ) इन योजनाओं में कितने उद्यमियों ने कर्ज लिया था तथा योजनाओं को बंद करने के बाद कितने युवा उद्यमियों की कितनी राशि की सब्सिडी रोक दी गई है? (ग) सरकार द्वारा सब्सिडी रोकने के कारण कितने उद्यमी बैंकों द्वारा डिफाल्टर हो चुके हैं? (घ) इन योजनाओं के अंतर्गत कर्ज लेकर रोजगार करने वाले उद्यमियों के रोजगार बंद होने और उनके डिफाल्टर होने के लिए कौन उत्तरदायी है ? सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री ( श्री ओमप्रकाश सखलेचा ) : (क) जी नहीं। दिनांक 18/12/2020 पश्चात ऋण वितरण की कार्यवाही स्थगित की गई है । (ख) वित्तीय वर्ष 2020-21 में इन योजनाओं का संचालन नहीं किया गया, इसलिये इस वर्ष आवेदन लेकर किसी भी उद्यमियों को कोई कर्ज नहीं दिया गया था। अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) किसी भी युवा उद्यमी की सब्सिडी राशि रोके जाने के आदेश शासन द्वारा नहीं दिये गये हैं, अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) प्रश्नांश (ग) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। कोरोना महामारी के लिये केन्द्र से प्राप्त राशि 33. ( क्र. 3276 ) श्री पी.सी. शर्मा : क्या लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कोरोना महामारी से निपटने के लिए 31 जनवरी 2021 तक प्रदेश सरकार को केन्द्र सरकार से अलग-अलग तारीखों में किस-किस मद में कितनी-कितनी राशि प्राप्त हुई है? (ख) 31 जनवरी 2021 तक उपरोक्त में से किस-किस मद में कितनी-कितनी राशि खर्च की गई है? (ग) क्या सरकार ने कोरोना के लिए लगाए जाने वाले वैक्सीन के दो डोज के लिए कोई शुल्क निर्धारित किया है यदि हाँ, तो वह कितना है? (घ) क्या सरकार सभी प्रदेश वासियों को कोरोना के लिए लगाए जाने वाले वैक्सीन के दो डोज निःशुल्क उपलब्ध कराने पर विचार करेगी ? (ड.) भोपाल स्थित पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में को-वैक्सीन के थर्ड फेस ट्रायल के अंतर्गत कितने लोगों को वैक्सीन लगाई गई? (च) क्या यह शिकायत मिली है इन लोगों को यह नहीं बताया गया है कि उन पर को-वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है न ही उन्हें नियमानुसार डायरी दी गई और न ही हेल्थ फालोअप किया गया? (छ) क्या यह सच है कि को-वैक्सीन के थर्ड फेस ट्रायल में शामिल दीपक मरावी की मृत्यु पीपुलस मेडिकल कॉलेज की लापरवाही के कारण है? लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "अ"अनुसार है । (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। (ग) जी नहीं। (घ) वर्तमान में प्रदेश के समस्त हेल्थ केयर वर्कर्स एवं फ्रंट लाईन वर्कर्स को कोविड-19 वैक्सीन के दो डोज निःशुल्क उपलब्ध कराये जा रहे हैं। आगामी कार्यवाही भारत शासन से प्राप्त दिशा-निर्देशों के अनुरूप की जावेगी। (ड.) भोपाल स्थिति पीपुल्स ऑफ मेडिकल साईंस एण्ड रिसर्च सेंटर को-वैक्सीन के थर्ड फेज ट्रायल के अन्तर्गत कुल 1724 व्यक्तियों को प्रथम डोज एवं 1422 व्यक्तियों को वैक्सीन की द्वितीय डोज लगाई गई। (च) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (छ) जी नहीं । परिशिष्ट - "तेरह " चौरई विधानसभा में प्रोटोकाल उल्लंघन 34. ( क्र. 3297 ) चौधरी सुजीत मेर सिंह : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या चौरई विधानसभा के कार्यक्रमों में प्रश्नकर्ता व क्षेत्रीय सांसद को आमंत्रित न कर प्रोटोकाल का उल्लंघन किया जा रहा है, क्यों? (ख) दि. 01.06.2020 से 06.05.2021 तक चौरई विधानसभा में हुए समस्त भूमिपूजन एवं लोकार्पण कार्यक्रमों के आमंत्रण पत्र की प्रमाणित प्रति देवें। इसी तरह समस्त शिलालेखों की फोटो भी उपलब्ध करावें । (ग) क्या कारण है कि इनमें प्रोटोकाल का उल्लंघन किया गया? ऐसा करने वाले अधिकारियों के नाम, पदनाम देकर बतावें कि शासन ने उन पर अब तक क्या कार्यवाही की ? (घ) यदि कार्यवाही नहीं की गई तो प्रकरणवार कब तक की जाएगी?
90cf25f73a115d0d48196d29a849a3f3768450a75851179d6eb36acf20e709fe
pdf
खाद्य मंत्री ( श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ) : (क) रबी विपणन वर्ष 2019-20 में समर्थन मूल्य पर गेहूं उपार्जन हेतु शिवपुरी जिले में 95 उपार्जन केन्द्र बनाए गए थे। ई-उपार्जन पोर्टल पर जिले के 69,594 किसानों द्वारा समर्थन मूल्य पर गेहूं विक्रय हेतु पंजीयन कराया गया था, जिसमें से 26,713 किसानों द्वारा गेहूं का विक्रय उपार्जन केन्द्रों पर किया गया। (ख) शिवपुरी जिले में ग्राम गुरूकुदवाया के किसानों को समर्थन मूल्य पर गेहूं विक्रय करने हेतु सेवा सहकारी संस्था, पिपरौदा ऊवारी-राजपुरा केन्द्र-2 पर मैप किया गया था। (ग) रबी विपणन वर्ष 2019-20 में जारी उपार्जन नीति के अनुसार उपार्जन केन्द्र के स्थल चयन के संबंध में प्रावधान इस प्रकार किए गए हैं- सामान्यतः उपार्जन केन्द्र गोदाम परिसर पर खोले जाएंगे। केन्द्र पर पूर्ण पंचायत ही टैग की जाएगी। एक उपार्जन केन्द्र पर यथासम्भव 200 से 750 तक किसान संलग्न किए जाएंगे। साथ ही, किसी भी उपार्जन केन्द्र पर 5000 मे.टन से अधिक मात्रा का उपार्जन नहीं किया जाएगा तथा यथासम्भव सम्बद्ध ग्राम पंचायतों के केन्द्र बिन्दु में उपार्जन केन्द्र होगा जिससे किसानों को अपनी उपज विक्रय करने हेतु लगभग 25 कि.मी. से अधिक दूरी तय न करना पड़े। (घ) जी हाँ। ग्राम गुरूकुदवाया के किसानों द्वारा समर्थन `मूल्य पर गेहूं विक्रय करने हेतु उपार्जन केन्द्र ग्राम आकाझिरी से संलग्न करने की मांग की गई थी किन्तु, केन्द्र पर निर्धारित संख्या तक किसानों को मैप किए जाने के कारण ग्राम गुरूकुदवाया के किसानों को उपार्जन केन्द्र आकाझिरी से मैप नहीं किया जा सका है। नल-जल योजनाएं [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी] 80. ( क्र. 1222 ) श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया : क्या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में कुल कितनी नल-जल योजनायें संचालित हैं? उनमें से कितनी नज-जल योजनाएं चालू हैं? (ख) शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में कितनी नल-जल योजनाएं बंद हैं? उन्हें कब तक चालू किया जायेगा? (ग) ग्रामीण अंचलों में संचालित ऐसी कितनी नल-जल योजनाएं हैं? जिनके बोर का जल स्तर नीचे चले जाने से बंद हो गये हैं? ऐसे स्थलों पर नल-जल योजना को चालू किये जाने हेतु विभाग द्वारा क्या कार्यवाही की जा रही है? (घ) आगामी ग्रीष्म काल में पेयजल संकट और बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल उपलब्ध कराने हेतु विभाग द्वारा क्या व्यवस्था की जायेगी? लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ( श्री सुखदेव पांसे ) : (क) 17 नल-जल योजनाएं। 15 नलजल योजनाएं चालू हैं। (ख) 02 नल-जल योजनाएं। बंद योजनाओं को चालू करने का दायित्व संबंधित ग्राम पंचायतों का है, स्त्रोत विकसित करने का दायित्व विभाग का है। निश्चित समयावधि नहीं बताई जा सकती। (ग) वर्तमान में एक भी नहीं, शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता है। (घ) ग्रीष्मकाल में पेयजल उपलब्ध करवाने हेतु विभागीय कार्य योजना के अंतर्गत आवश्यकता अनुसार नवीन नलकूपों का खनन, जलस्तर नीचे जाने से बंद हैण्डपंपों में राइजर पाईप बढ़ाने एवं सिंगलफेस मोटरपंप स्थापित करने एवं नलकूपों में हाइड्रो फ्रैक्चरिंग के कार्य करवाये जाते हैं। आंगनवाड़ी केन्द्र 81. ( क्र. 1223 ) श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या शिवपुरी नगर में 128 आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित हैं? यदि हाँ, तो वहां क्या 13 समूह भोजन वितरण कर रहे हैं। (ख) यदि हाँ, तो विगत दो वर्षों में विभाग द्वारा इन्हें कितनी राशि का भुगतान किया गया? (ग) क्या एक स्व-सहायता समूह को दो या उससे अधिक आंगनवाड़ियों में भोजन प्रदान देने का प्रावधान है। (घ) यदि नहीं, तो इन समूहों को एक से अधिक आंगनवाड़ी में भोजन का कार्य क्यों दिया गया? (ड.) क्या शिवपुरी नगर में इन 13 समूहों के अलावा अन्य समूहों के आवेदन विभाग में प्राप्त हुए थे? यदि हाँ, तो उन्हें भोजन प्रदाय का कार्य क्यों दिया गया? महिला एवं बाल विकास मंत्री ( श्रीमती इमरती देवी ) : (क) जी हाँ । शिवपुरी नगर में 126 आंगनवाड़ी केन्द्र एवं 02 उप आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित है। शिवपुरी नगर के इन आंगनवाड़ी केन्द्रों पर 05 महिला स्व-सहायता समूह एवं 08 महिला मण्डल भोजन वितरण का कार्य कर रहे हैं। (ख) विगत 02 वर्षों में विभाग द्वारा 05 स्व-सहायता समूह एवं 08 महिला मण्डलों को राशि रू. 2,12,71,675/- (राशि दो करोड़ बारह लाख इकहत्तर हजार छः सौ पचहत्तर मात्र) का भुगतान किया गया है। (ग) जी हाँ। विभाग के पत्र क्र. 2103/2830/2018/50-2/ए.एन. दिनांक 12.09.18 के माध्यम से प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में संचालित आंगनवाड़ी उप आंगनवाड़ी केन्द्रों में 03 से 06 वर्ष तक के बच्चों को पूरक पोषण आहार प्रदाय के संबंध में जारी निर्देश अनुसार शहरी क्षेत्रों में दो या दो से अधिक आंगनवाड़ी केन्द्रों पर एक स्थानीय संस्था को पूरक पोषण आहार प्रदाय कार्य देने के प्रावधान हैं। (घ) (ग) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ड.) जी हाँ। वर्ष 2016-17 में 15 महिला स्व-सहायता समूहों / महिला मण्डल के आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से कलेक्टर शिवपुरी द्वारा गठित समिति की अनुशंसा के आधार पर 08 महिला स्व-सहायता समूह/महिला मण्डल को शिवपुरी नगर में संचालित आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पूरक पोषण आहार प्रदाय का कार्य दिया गया है तथा शेष 07 महिला स्व-सहायता समूह महिला मण्डल के संबंध में समिति द्वारा प्रतिकूल टीप अंकित किए जाने के कारण पूरक पोषण आहार प्रदाय का कार्य नहीं दिया गया है। इस प्रकार शिवपुरी नगर में संचालित आंगनवाड़ी केन्द्रों पर पूरक पोषण आहार का प्रदाय पूर्व से कार्यरत 05 महिला स्व-सहायता समूह/महिला मण्डल सहित कुल 13 महिला स्व-सहायता समूह / महिला मण्डल द्वारा किया जा रहा है। विस्तृत जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। परिशिष्ट - "उन्नीस" बुरहानपुर जिले के ग्राम पंचायत एमागिर्द में निर्मित पानी की टंकी [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी] 82. ( क्र. 1228 ) ठाकुर सुरेन्द्र नवल सिंह : क्या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बुरहानपुर जिले के ग्राम पंचायत एमागिर्द के आजाद नगर में मीठा मौला के पास निर्मित पानी की टंकी का निर्माण कार्य किस सन् में, कितनी लागत से, किस योजना के माध्यम से पूर्ण किया गया? (ख) उक्त निर्माण कार्य किस दिनांक को पूर्ण हुआ? साथ ही पूर्ण होने के पश्चात् आज दिनांक तक टंकी से ग्रामवासियों को पानी वितरण क्यों नहीं किया जा रहा है? क्या टंकी के निर्माण कार्य की गुणवत्ता में खामियां हैं या अन्य किसी कारण से आज दिनांक तक पानी का वितरण नहीं किया गया? यदि खामियां हैं तो उन दोषियों के विरूद्ध क्या कार्यवाही का जावेगी? (ग) कब तक उक्त पानी की टंकी से ग्रामवासियों को पानी वितरण प्रारंभ कर दिया जावेगा? लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री (श्री सुखदेव पांसे ) : (क) वर्ष 2013-14 में रूपये 20.15 लाख लागत से नलजल योजना मद में निर्माण किया था। (ख) एवं (ग) दिनांक 15.03.2018। वर्तमान में टंकी के माध्यम से ग्राम में पेयजल प्रदाय किया जा रहा है। शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता है। खाद्यान खरीदी केन्द्र की स्थापना 83. ( क्र. 1258 ) श्री संजय सत्येन्द्र पाठक : क्या खाद्य मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कटनी जिला एवं विधानसभा क्षेत्र विजयराघवगढ़ में कितने नवीन खरीदी केन्द्र प्रस्तावित किए गए हैं? (ख) क्या पूर्व से कॉटी में संचालित खरीदी केन्द्र बंद कर दिया गया है? जिससे किसानों को कृषि उपज विक्रय करने में पन्द्रह से बीस किलोमीटर दूरस्थ आना-जाना पड़ता है? विक्रय करने जिन्स को लेकर जाने में साधन नहीं मिल पाते जिसके कारण परेशानी का सामना करना पड़ता है? (ग) विक्रय केन्द्र कॉटी को बंद करने का कारण क्या बतलाया गया है? उसकी प्रति उपलब्ध कराई जाये। (घ) कॉटी विक्रय केन्द्र के भौगोलिक दृष्टि से लगे हुये 18 ग्राम हैं, उन ग्रामों के किसान अतिरिक्त भाड़ा देकर जिन्स की विक्रय करते है? जिससे उन्हें लाभ की बजाय हानि हो रही है? क्या इस विक्रय केन्द्र को फिर से प्रारंभ करने का आदेश देगें? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो क्यों? खाद्य मंत्री ( श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ) : (क) खरीफ विपणन वर्ष 2019-20 में समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन हेतु जिला कटनी-04 एवं विधानसभा क्षेत्र विजयराघवगढ़ में 01 नवीन खरीदी केन्द्र प्रस्तावित किए गए हैं। (ख) जी नहीं। पूर्व वर्ष में कांटी में स्वतंत्र खरीदी केन्द्र संचालित नहीं था। खरीफ विपणन वर्ष 2019-20 में कांटी में धान खरीदी हेतु उपार्जन केन्द्र स्थापित किया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) प्रश्नांश (ख) के उत्तर के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) ग्राम कांटी में उपार्जन केन्द्र स्थापित करने के कारण किसानों को अपनी उपज विक्रय करने के लिए अतिरिक्त भाड़ा भुगतान आवश्यकता नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। नल-जल प्रदाय योजना [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी] 84. ( क्र. 1259 ) श्री संजय सत्येन्द्र पाठक : क्या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या डी.एम.एफ. योजना (खनिज मद) से वर्ष 2017-18 से प्रश्न दिनांक तक विधान सभा क्षेत्र विजयराघवगढ़ में नल-जल प्रदाय योजना हेतु किन-किन ग्रामों में योजना स्वीकृत की गई एवं कितने ग्रामों में कार्य प्रारंभ किया गया? कितने जल प्रदाय योजना का कार्य प्रगति पर है एवं कितनी जल प्रदाय योजनाओं कार्य प्रारंभ नहीं हुआ? (ख) क्या स्वीकृत कार्य योजनाओं के कार्य पूर्ण कर गांव की पेयजल समस्या का तत्काल निराकरण किया जायेगा? नहीं तो क्यों? कार्य में हो रहे विलम्ब के लिए कौन-कौन अधिकारी उत्तरदायी हैं? नाम एवं पदनाम का उल्लेख करें। दोषियों के विरूद्ध क्या कार्यवाही की जायेगी? लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ( श्री सुखदेव पांसे ) : (क) 07 ग्रामों में योजनाएं स्वीकृत, सभी योजनाओं के कार्य अप्रारंभ हैं। शेष जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है । (ख) जी हाँ, निविदाएं आमंत्रित की गई हैं। उपरोक्तानुसार किसी अधिकारी के दोषी होने का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। परिशिष्ट - "बीस" सांस्कृतिक, धार्मिक एवं अन्य आयोजन [संस्कृति] 85. ( क्र. 1268 ) श्री फुन्देलाल सिंह मार्को : क्या चिकित्सा शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला अनूपपुर में संस्कृति विभाग द्वारा विगत पाँच वर्षों में कुल कितने सांस्कृतिक, धार्मिक एवं अन्य आयोजन / महोत्सव आयोजन किये गये? विधान सभा क्षेत्रवार आयोजन दिनांक, आयोजन का नाम, स्थान तथा व्यय की गई राशि सहित जानकारी उपलब्ध करावें। (ख) क्या पुष्पराजगढ़ विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत माँ नर्मदा की उद्गम स्थली, अमरकंटक में विगत वर्षों से महाशिवरात्रि के पर्व पर नर्मदा जयंती के अवसर पर नर्मदा महोत्सव का आयोजन विभाग द्वारा कराया गया? यदि हाँ, तो इस महोत्सव पर किस कार्य हेतु कितना व्यय किया गया? विगत तीन वित्तीय वर्ष की जानकारी उपलब्ध करावें। (ग) आगामी वर्ष में इस महोत्सव को कराये जाने हेतु शासन द्वारा क्या कोई कार्य योजना तैयार की गई है? यदि हाँ, तो आगामी महोत्सव हेतु किस-किस विभाग द्वारा क्या-क्या आयोजन किये जायेंगे? क्या कलेक्टर, अनूपपुर के अर्द्धशासकीय पत्र क्रमांक 5111 दिनांक 15.10.2019 के माध्यम से विभाग के अपर मुख्य सचिव को इस आयोजन हेतु बजट आवंटन की मांग की गई थी? यदि हाँ, तो प्रस्तावित राशि कब तक आवंटित कर दी जावेगी? चिकित्सा शिक्षा मंत्री (डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ ) : (क) संस्कृति विभाग द्वारा विगत 05 वर्षों में जिला अनूपपुर में कुल 07 सांस्कृतिक/धार्मिक एवं अन्य आयोजन/महोत्सव आयोजित किये गये हैं. जिन पर कुल व्यय राशि रू. 23,23,307.00 लाख हुआ है. विस्तृत विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार. (ख) जी नहीं. शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता. (ग) यह योजना है कि साहित्यिक/सांस्कृतिक कार्यक्रमों में यथोचित समयानुकूल सहयोग प्रदान किया जा सकता है. वर्ष 2020 में इस महोत्सव के संबंध में जिला कलेक्टर, अनूपपुर से प्राप्त प्रस्ताव का परीक्षण किया जा रहा है. भूमिहीन व्यक्तियों के नाम फसलों का उपार्जन 86. ( क्र. 1271 ) श्री राकेश गिरि : क्या खाद्य मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) टीकमगढ़ जिले के विकासखण्ड टीकमगढ़ के अन्तर्गत प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति मबई, लार, दरगुवां उपार्जन केन्द्रों में वर्ष 2019-20 में कितने कृषकों का कितना अनाज (चना, मसूर, सरसो, गेहूँ) उपार्जन हेतु पंजीकृत हुआ? (ख) क्या उक्त केन्द्रों पर दर्ज रकवा से अधिक तथा भूमिहीन व्यक्तियों के नाम फसलों का उपार्जन किया गया है? यदि हाँ, तो अनाधिकृत/अनुचित उपार्जन पंजीकृत करने के लिये कौन-कौन जिम्मेदार है, इनके विरूद्ध कया कार्यवाही कब तक की जावेगी तथा सुनियोजित रूप से आहरित शासकीय राशि कब तक वसूल की जावेगी? खाद्य मंत्री ( श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ) : (क) रबी विपणन वर्ष 2019-20 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति मबई, लार में पंजीकृत किसान एवं पंजीयन में उल्लेखित रकबे अनुसार उपज की मात्रा की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, दरगुंवा द्वारा किसान पंजीयन नहीं किया गया है। (ख) उक्त केन्द्रों पर ई19 दिसम्बर 2019] उपार्जन पोर्टल पर दर्ज भू-रकबे से अधिक एवं भूमि किसानों से फसल का उपार्जन नहीं किया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। परिशिष्ट- "इक्कीस" फर्जी तरीके से भूमि की अदला बदली [राजस्व] 87. ( क्र. 1272 ) श्री राकेश गिरि : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जिला टीकमगढ़ की तहसील टीकमगढ़ अंतर्गत ग्राम सापौन खास में राजस्व प्रकरण क्रमांक 61/अ-19 (4)/95-96 आदेश दिनांक 24/08/1996, द्वारा भूमि खसरा नम्बर 1495 में से अंश रकवा 2.000 हेक्टेयर का पट्टा अरूण पुत्री बृजलाल सोनी के नाम पर प्रदान किया गया था? यदि हाँ, तो किस अधिकारी/कर्मचारी द्वारा पट्टा जारी किया गया था? पट्टा जारी करने में पात्रता की शर्तों का उल्लंघन तो नहीं किया गया एवं पट्टा के वैध/अवैध होने की जानकारी उपलब्ध करायें। (ख) क्या प्रश्नांश (क) में वर्णित भूमि की अदला बदली ग्राम नचनवारा की शासकीय भूमि खसरा नम्बर 235,237 रकवा क्रमांक 0.781 व 3.140 में से 1.219 कुल 2.000 है का प्रकरण क्रमांक 204/बी-121/95-96 दिनांक 24/07/1996 को प्रारंभ किया गया था, तो क्या पट्टा जारी होने के पूर्व प्रत्याशा में ही भूमि की अदला बदली का प्रकरण चालू कर दिया गया जो कि पूर्व योजना के तहत फर्जी कार्यवाही की गई है? यदि हाँ, तो उक्त कूट रचना में कौन-कौन अधिकारी कर्मचारी दोषी हैं? उन पर अभी तक क्या कार्यवाही की गई? यदि नहीं, तो कब तक जांच कर कार्यवाही की जावेगी? (ग) क्या ग्राम नचनवारा की भूमि खसरा नम्बर 233,234 को हथियाने के लिये तत्कालीन सरपंच मोहन सिंह ठाकुर ने प्रस्ताव क्रमांक 3 दिनांक 12/06/1996 की स्वयं कूटरचना कर नायब तहसीलदार टीकमगढ़ के न्यायालय में पेश किया था, जिसके आधार पर प्रकरण क्रमांक 46/अः 59/95-96 आदेश दिनांक 28/06/1996 से अदला बदली स्वीकृत की गई थी? प्रस्ताव क्रमांक 3 दिनांक 12/06/1996 के संबंध में जांच कब तक की जावेगी? यदि उक्त प्रस्ताव कूटरचित पाया जाता है तो दोषियों के विरूद्ध कब तक कार्यवाही की जावेगी? (घ) प्रश्नांश (क), (ख), (ग) में कूटरचित फर्जी दस्तावेज तैयार करने में दोषियों के विरूद्ध क्या कार्यवाही की गई है? यदि तथ्य सही है तो पात्रता शर्तों सहित प्रतिवेदन उपलब्ध करायें। राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : क) जी हाँ, सक्षम प्राधिकृत अधिकारी द्वारा पट्टा जारी किया गया था, पट्टा जारी करने वाले अधिकारी एवं पट्टा के वैध / अवैध होने के संबंध में विस्तृत जांच हेतु डिप्टी कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है । (ख) जी हाँ, पट्टा जारी होने के पूर्व दिनांक 24.07.1996 को अदला बदली हेतु प्रकरण क्रमांक 204/बी-121/1995-96 दर्ज हो गया था परन्तु खसरा नंबर 1495 के अंश रकवा 2.000 हेक्टेयर का पट्टा अरुण पुत्री बृजलाल सोनी के पट्टा का प्रकरण क्रमांक 61/अ-19-4/95-96 दिनांक 01.08.1996 को दर्ज हुआ एवं अंतिम आदेश 24.08.1996 को पारित किया गया। प्रकरण की विस्तृत जांच अपेक्षित है। (ग) प्रकरण की विस्तृत जांच अपेक्षित है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है । (घ) प्रश्नांश (ग) के उत्तर के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। काबिज लोगों को पट्टे का प्रदाय [राजस्व] 88. ( क्र. 1278 ) श्री विजयपाल सिंह : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) होशंगाबाद जिले के विधान सभा क्षेत्र सोहागपुर में कितने ग्रामों में बड़े झाड़ की जमीन आरक्षित है? ग्रामवार एवं रकबे की जानकारी देवें। (ख) क्या राजस्व एवं वन विभाग में बड़े झाड़ के नाम से जमीन दर्ज है और विगत 100 वर्षों से उक्त जमीन पर लोग खेती का कार्य करते आ रहे हैं, जिस पर पेड़ नहीं लगे हैं, उन्हें पट्टे नहीं मिल पाये हैं, जिसके कारण उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है? इन लोगों को उक्त जमीन के पट्टे कब तक दिये जायेंगे? (ग) शासन द्वारा विगत कई वर्षों से बड़े झाड़ की जमीन पर काबिज लोगों को पट्टे दिये जाने हेतु क्या कार्यवाही की जा रही है? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) होशंगाबाद जिले के विधान सभा क्षेत्र सोहागपुर के तहसील सोहागपुर अन्तर्गत 22 ग्रामों में एवं तहसील इटारसी अन्तर्गत 10 ग्रामों में तथा तहसील बाबई अन्तर्गत 22 ग्रामों में बड़े झाड़ का जंगल मद में जमीन राजस्व अभिलेख में दर्ज है ग्रामवार एवं रकबे की जानकारी संलग्न परिशिष्ट पर है। (ख) जी हाँ। राजस्व विभाग अन्तर्गत राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। बड़े झाड़ के जंगल मद की भूमि पर पट्टे नहीं बांटे गए। वन विभाग में बड़े झाड़ के नाम से जमीन दर्ज नहीं है। वन क्षेत्र में स्थित वनग्रामों के ग्रामीणों को पूर्व में वन अधिकार पट्टे प्रदाय किये जा चुके हैं। (ग) वन की परिभाषा अंतर्गत आने वाली भूमि पर वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वन अधिकार पट्टा दिये जाने की कार्यवाही की जाती है। परिशिष्ट- "बाईस" जांच प्रतिवेदन पर कार्यवाही 89. ( क्र. 1290 ) श्री राजेश कुमार प्रजापति : क्या खाद्य मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रश्नकर्ता के प्रश्न क्रमांक 3549, दिनांक 24/07/2019 को उत्तर दिया गया था कि प्रकरण के संबंध में मूल दस्तावेज एवं नस्ती का परीक्षण करने हेतु कलेक्टर को लिखा गया है तो कब किसके द्वारा कलेक्टर को लिखा गया था? क्या कलेक्टर द्वारा उक्त प्रकरण के मूल दस्तावेज एवं नस्ती का परीक्षण कर कार्यवाही को पूर्ण कर लिया गया है? यदि हाँ, तो उक्त प्रकरण से संबंधित सम्पूर्ण नस्ती की प्रति उपलब्ध करायें। यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें। (ख) क्या श्री प्रेम गुप्ता द्वारा प्रश्न क्रमांक 3549 दिनांक 24/07/2019 के संबंध में खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण संचालनालय भोपाल को सूचना का अधिकार आवेदन रजिस्टर्ड डॉक द्वारा भेजा गया था? (ग) प्रश्नांश (ग) के अनुसार यदि हाँ, तो क्या उक्त व्यक्ति को उक्त विभाग द्वारा जानकारी प्रदाय कर दी गयी है? यदि हाँ, तो कब? यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें। खाद्य मंत्री ( श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ) : (क) से (ग) जानकारी एकत्रित की जा रही है। पोषण आहार वितरण की विकेन्द्रीकृत नीति 90. ( क्र. 1302 ) श्री भूपेन्द्र सिंह : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या प्रदेश की आंगनवाड़ियों में पोषण आहार वितरण को लेकर सरकार द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में दाखिल पुनरीक्षण याचिका 21 नवम्बर 2019 को वापिस ले ली गई है? (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार यदि हाँ, तो प्रदेश में स्व-सहायता समूहों के माध्यम से पोषण आहार वितरण की विकेन्द्रीकृत नीति क्या बनाई गई है? नई व्यवस्था के तहत कब से पोषण आहार वितरण प्रारंभ कर दिया जायेगा? महिला एवं बाल विकास मंत्री ( श्रीमती इमरती देवी ) : (क) जी हाँ, मा. उच्च न्यायालय जबलपुर में प्रचलित RP 1145/17 दिनांक 21.11.19 को वापस हो गई है। (ख) मंत्री परिषद् के निर्णयानुसार प्रदेश के आंगनवाड़ी केन्द्रों में 06 माह से 03 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं एवं 11-14 वर्ष तक की शाला त्यागी किशोरी बालिकाओं हेतु पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अन्तर्गत संचालित म.प्र.राज्य ग्रामीण आजीविका फोरम के तहत गठित महिला स्व सहायता समूहों के परिसंघों द्वारा, प्रदेश के 07 चिन्हित स्थानों क्रमशः देवास, धार, होंशगाबाद, सागर, मण्डला, रीवा एवं शिवपुरी में स्थापित किए जा रहे पोषण आहार संयंत्रों के माध्यम से पूरक पोषण आहार (टेकहोम राशन) का प्रदाय करने की नीति है। माह मार्च 2019 से आजीविका मिशन द्वारा स्थापित संयंत्रों में से क्रमबद्ध रूप से क्रमशः देवास, धार, होशंगाबाद, सागर एवं मण्डला जिलों में स्थापित संयंत्रो से टेकहोम राशन का उत्पादन एवं वितरण प्रारम्भ कर दिया गया हैं। नियम विरूद्ध सामग्री क्रय करने वालों पर कार्यवाही [चिकित्सा शिक्षा] 91. ( क्र. 1309 ) श्री संजय शुक्ला : क्या चिकित्सा शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय एवं मेडिकल कॉलेज इन्दौर में भण्डार क्रय नियमों के अंतर्गत पिछले 05 वर्षों में क्या-क्या सामग्री क्रय की गई? लोकल पर्चेसिंग एवं जे. एम. पोर्टल के माध्यम से क्रय की गई सामग्रियों का भण्डारण/स्टॉक रिकार्ड किस-किस के द्वारा कब-कब रखा गया? (ख) पूर्व अतारांकित प्रश्न क्र. 1599 दिनांक 17/07/19 के अनुसार लोकल पर्चेसिंग भण्डार क्रय नियमों के माध्यम से कैंसर चिकित्सालय, चाचा नेहरू चिकित्सालय, मानसिक चिकित्सालय इन्दौर में क्या-क्या पर्चेसिंग की गई? 05 वर्षों में किन-किन फर्मों के द्वारा सामग्री सप्लाई की गई? भुगतान आदि की जानकारी उपलब्ध करावें। (ग) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के संदर्भ में सामग्री क्रय का भुगतान किस-किस दिनांक को किया गया? किस-किस फर्म को कितनी राशि दी गई? भुगतान की स्वीकृति किन के द्वारा की गई? (घ) पूर्व अ.ता. प्रश्न क्र. 1599 दिनांक 17/07/2019 (घ) के संदर्भ में नियमों के विपरीत सामग्री क्रय करने वाले कौन-कौन अधिकारी/कर्मचारी हैं? उनके नाम स्पष्ट करें। उनके विरूद्ध क्या जांच की जा रही है? जांच कब तक पूर्ण की जायेगी व दोषियों पर क्या कार्यवाही की जायेगी? जांच की समय-सीमा बतायें। चिकित्सा शिक्षा मंत्री ( डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ ) : (क) महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय इन्दौर की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 01 अनुसार है। चिकित्सा महाविद्यालय में लोकल पर्चेस नहीं की जाती है। जे.एम. पोर्टल के माध्यम से क्रय की गई साम्रगी का भण्डारण/स्टॉक रिकार्ड महाविद्यालय के क्रय विभाग एवं भण्डार शाखा एवं उपयोगकर्ता द्वारा साम्रगी का रिकार्ड रखा जाता है। (ख) कैंसर चिकित्सालय की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 02 अनुसार है। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 03 अनुसार है। मानसिक चिकित्सालय इन्दौर की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 04 अनुसार है। (ग) महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय की साम्रगी क्रय भुगतान की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 01 अनुसार है। कैंसर चिकित्सालय के कार्यकर्ता अधिकारी अधीक्षक है। शेष जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 05 अनुसार है। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 03 अनुसार है। मानसिक चिकित्सालय की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 04 अनुसार है। (घ) भण्डार क्रय नियमों के विपरीत साम्रगी क्रय करने के संबंध में सात अधिकारी/कर्मचारियों के विरूद्ध आरोप पत्र जारी किये गये थे, जिनके नाम 1. डॉ. रामगुलाम राजदान 2. डॉ. सिद्धार्थ गौतम 3. डॉ. जे. के. वर्मा 4. श्री संजय उपाध्याय 5. श्री शैलेष राठौर 6. श्री राजेश व्यास 7. श्री घनश्याम पवार। जी हाँ। जांच उपरांत कार्यवाही की जावेगी। समयसीमा बताया जाना संभव नहीं है। बालाघाट जिले में संचालित समूह नल-जल योजना [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी] 92. ( क्र. 1311 ) श्री रामकिशोर कावरे : क्या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बालाघाट जिले में समूह नल-जल योजना से कितने गाँव तक पानी प्रदाय किया जा रहा है? सूची प्रदाय करें। कितने ग्राम में पानी प्रदाय नहीं कर पा रहे हैं? कारण सहित जानकारी देवें। (ख) जल समिति बालाघाट जिले के समूह नलजल योजना में कितने बने? ग्रामवार जानकारी देवें। क्या जल समिति कार्यरत है? ग्रामवार जानकारी देवें। यदि कार्यरत नहीं है तो कारण सहित बतावें। (ग) जल समिति बनाने का कार्य किसे दिया गया था? क्या निविदा शर्तों का पालन किया गया? यदि नहीं, तो क्या कार्यवाही की? (घ) क्या जल समिति कागज में बताकर जल समिति के कार्य को पूर्ण बताकर राशि भुगतान कर लिया गया? यदि हाँ, तो दोषी कौन है? वर्तमान में स्थल का निरीक्षण कर जल समिति की जांच करेंगे? यदि हाँ, तो कब तक? बतावें । लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ( श्री सुखदेव पांसे ) : (क) समूह नल-जल योजनाओं में सम्मिलित सभी 182 ग्रामों में, जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-1 अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है। (ग) म.प्र. जल निगम द्वारा क्रियान्वित 04 समूह जलप्रदाय योजनाओं में मेसर्स अनुपमा एजुकेशन सोसायटी सतना (एन.जी.ओ.) को दिया गया था, विभाग द्वारा क्रियान्वित लालबर्रा समूह जलप्रदाय योजना अंतर्गत मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत के द्वारा ग्राम सभा में अनुमोदन पश्चात समितियों का गठन किया गया था। जी हाँ, शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (घ) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। कृषकों की भूमि का अधिग्रहण [राजस्व] 93. ( क्र. 1313 ) श्री मनोज चावला : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) रतलाम जिले से निकल रही मुंबई-दिल्ली 8 लाइन एक्सप्रेस-वे में कुल कितने कृषकों की कितने हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई है? कृषक, गाँव, खसरा नंबर तथा रकवा सहित सूची उपलब्ध करावें तथा बतावें कि भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 के अनुसार किस-किस कृषक को कितना मुआवजा दे दिया गया है या दिया जावेगा? (ख) क्या अधिकार अधिनियम 2013 के अनुसार कलेक्टर गाइड-लाइन से मात्र 2 गुना मुआवजा दिया जा रहा है जबकि आसपास के राज्यों में 4 से 6 गुना मुआवजा दिया जा रहा है? क्या शासन अधिनियम में संशोधन कर 6 गुना मुआवजा देगी? अधिनियम की प्रति देवें। (ग) प्रश्नांश (क) में उल्लेखित जमीन पर मुआवजे में 12% ब्याज किस-किस दिनांक से देय हैं तथा मुआवजे के विरोध में उच्च न्यायालय इंदौर में कितने परिवाद दायर किए गए हैं? उनके क्रमांक तथा दिनाँक बतावें। (घ) क्या पूर्व सरकार ने सड़कों के निर्माण में लगे ठेकेदारों को लाभ देने के लिए अधिनियम में दोगुना मुआवजा तय किया था? शासन किसानों को 6 गुना मुआवजा दिलाने के लिए कोई कदम उठाएगा? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) मुम्बई-दिल्ली 8-लेन एक्सप्रेस-वे में रतलाम जिले के अन्तर्गत कुल 58 ग्रामों की भूमि प्रभावित हो रही है। ग्राम के नाम, कृषकों की संख्या तथा अधिगृहित किये जाने वाला क्षेत्रफल की विस्तृत जानकारी जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - 1 अनुसार है। भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 के अन्तर्गत पारित किये गये अवार्ड की छायाप्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है। पारित किये गये अवार्ड के विरूद्ध वर्तमान तक 50 ग्रामों के कुल 1371 कृषकों को 8, 66, 45, 055 रुपये का भुगतान किया जा चुका है। शेष कृषकों को भुगतान की प्रक्रिया जारी है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-3 अनुसार है। (ख) अधिनियम के प्रावधानों तथा राज्य शासन द्वारा निर्धारित कारक के आधार पर मुआवजा भुगतान किया जा रहा है। अधिनियम की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) एवं (घ) जानकारी एकत्रित की जा रही है। मुआवजा वितरण एवं पुनर्वास कार्य में लापरवाही [राजस्व] 94. ( क्र. 1314 ) श्रीमती रामबाई गोविंद सिंह : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) सीतानगर बांध जिला दमोह के डूब क्षेत्र में डूब रही सैड़ारा तिन्दुआ समिति के सदस्यों को भूमि को मुआवजा वितरण सूची में क्यों शामिल नहीं किया गया है? (ख) इस समिति के सदस्यों कि जमीन डूब जाने के उपरांत शासन ने इन परिवारों के पुनर्वास की क्या योजना बनाई है? (ग) यदि इन्हें मुआवजा और इनके पुनर्वास के कार्य में लापरवाही हुई है तो क्या दोषी अधिकारियों पर कोई कार्यवाही की गई है? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) सीतानगर मध्यम सिंचाई परियोजना में रा.प्र. क्रमांक 05अ-82 वर्ष 2017-18 में भू-अर्जन हेतु अवार्ड पारित करने की प्रक्रिया प्रचलन में है। (ख) एवं (ग) अंतिम निर्णय पारित न होने के कारण प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। जिला भिण्ड अंतर्गत हैण्डपंप एवं नल-जल योजनाओं की स्थिति [लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी 95. ( क्र. 1333 ) श्री संजीव सिंह : क्या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्न दिनांक की स्थिति में विधान सभा क्षेत्र भिण्ड में कितने हैण्डपंप स्थापित हैं? कितने चालू एवं कितने बंद एवं कितने स्थाई बंद है? कितनी नल-जल योजनाएं संचालित हैं? योजनावार बताएं। कितनी चालू कितनी बंद है? कितनी योजनाएं निर्माणाधीन है? बंद का कारण सहित बताएं। (ख) क्या स्थाई बंद हैण्डपंप के स्थान पर नीवन हैण्डपंप खनन किया जाएगा तथा निर्माणाधीन योजनाएं कब तक पूर्ण की जाकर जल प्रदाय चालू कर दिया जायेगा? लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ( श्री सुखदेव पांसे ) : (क) 3280 हैण्डपंप स्थापित, 3141 चालू, 12 हैण्डपंप साधारण खराबी से एवं 127 हैण्डपंप स्थायी रूप से बंद हैं। 39 नल-जल योजनाएं संचालित हैं, जिसमें से 19 चालू एवं 20 योजनाएं बंद हैं, जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। 02 योजनाएं निर्माणाधीन हैं। (ख) निर्धारित मापदण्ड 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से कम जल प्रदाय होने पर वित्तीय संयोजन के अनुसार नवीन नलकूप खनन कर हैण्डपंप स्थापना का प्रावधान है। दिनांक 31.03.2020 तक पूर्ण किया जाना लक्षित है। परिशिष्ट - "तेईस" एन.आर.आई. कोटे में भर्ती अभ्यर्थियों की जांच [चिकित्सा शिक्षा] 96. ( क्र. 1349 ) श्री कुणाल चौधरी : क्या चिकित्सा शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्नकर्ता के प्रश्न क्र.3358 दिनांक 24 जुलाई 2019 के संदर्भ में बतावें कि एन.आर.आई. कोटे में प्रवेश विद्यार्थी की पात्रता की जांच शासन द्वारा किस-किस वर्ष में की गई? यदि नहीं, तो बतावें कि इस संदर्भ मा. सर्वोच्च न्यायालय के प्रकरण क्र. 4060/2007 के निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया गया कि निजी महाविद्यालय से योग्य एवं पात्र विद्यार्थी चयनित हैं, यह देखना शासन का दायित्व है। (ख) प्रश्नकर्ता के प्रश्न क्र. 3358 के खण्ड (ग) के उत्तर के संदर्भ में बतायें
ae47a0a1971e1322f61363d39e30678e669a631d050fafb399a8f27de4beac80
pdf
पुरुष इस द्रष्टा को मारता है ) इत्यादि । इस प्रकार के स्वप्नदर्शनों से अचिरजीवित्व आवेदित, सूचित होता है, यह श्रुति सुनाती है । स्वप्नाध्याय ग्रन्थ को जाननेवाले कहते हैं कि ( स्वप्न में हाथी पर चढना आदि धन्य पुण्यमय शुभ ) है और गदहा पर चढ़कर गमनादि अधन्य है । मन्त्र, देवता, द्रव्यविशेष निमित्तक, मन्त्रादिजन्य कोई स्वप्न सत्यार्थ के गन्ध ( सम्बन्ध ) वाले होते है, ऐसा कोई मानते है । इससे स्वप्न सत्य है । इस प्रकार इस मूत्र से पूर्वपक्ष होने पर इसी से निराकरण है कि सूचक होने से उस द्वारा सूच्यमान सूचित वस्तु को सत्यत्व वहाँ भी होता है कि जैसे मिथ्या शुक्ति रूप्य के दर्शन से सत्य हर्प होता, मिथ्यारज्जु सर्प के दर्शन से सत्य भय होता है । परन्तु वाधित होने से स्त्री- दर्शनादि को मिथ्यात्व होता ही है, इससे श्रुति आदि से सूचक मात्र सिद्ध होता है । सत्य नही सिद्ध होता है यह अभिप्राय है । इससे स्वप्न को मायामात्रत्व उपपन्न हुआ। जो यह कहा है कि ( श्रुति स्वप्न की सृष्टि को कहती है ) वहाँ इस प्रकार स्वप्नसृष्टि को मायामात्र सिद्ध होने पर उस सुप्त के स्रष्टृत्वादि वचन भाक्त ( गौण ) व्याख्यान के योग्य है । जैसे कहा जाता है कि लांगल ( हल ) गौ आदि का उद्वहन ( धारण, जीवन ) करता है, वहाँ कृषि द्वारा गो आदि के जीवन की निमित्तमात्रता से हल इस प्रकार जीवनकर्ता कहा जाता है । हल प्रत्यक्ष ही गो आदि का उद्वहन नही करता है । इसी प्रकार अदृष्ट द्वारा निमित्त मात्रता से मुप्तपुरुप रथादि को रचता है । वही कर्ता है इस प्रकार कहा जाता है, सुप्तपुरुप प्रत्यक्ष ही रथादि को नहीं रचता है। परन्तु रथादि के प्रतिभान ( प्रतीति ) निमित्तक हर्पभयादि के दर्शन से उन हर्षादिकों के निमित्तस्वरूप पुण्य-पाप के कर्तृत्व द्वारा इस स्वप्नद्रष्टा के निमित्तत्व को कहना चाहिए । अपि च जागरिते विपयेन्द्रियसंयोगादादित्यादिज्योतिर्व्यतिकराञ्चात्मनः स्वयंज्योतिष्ट्वं दुर्विवेचनमिति तद्विवचनाय स्वप्न उपन्यस्तः, यत्र यदि रथादिसृष्टिवचनं श्रुत्या नीयेत तदा स्वयंज्योतिष्ट्वं न निर्णीतं स्यात् । तस्माद्रथाद्यभाववचनं श्रुत्या रथादिसृष्टिवचनं तु भक्त्येति व्याख्येयम् । एतेन निर्माणश्रवणं व्याख्यातम् । यदप्युक्तम् - 'प्राज्ञमेनं निर्मातारमामनन्ति' इति । तदप्यसत् । श्रुत्यन्तरे 'स्वयं विहत्य स्वयं निर्माय स्वेन भासा स्वन ज्योतिपा प्रस्वपिति' ( वृ० ४ । ३ १९ ) इति जीवव्यापारश्रवणात् । इहापि य एप सुप्तेपु जागति' ( क० ५१८ ) इति प्रसिद्धानुवादाज्जीव एवायं कामानां निर्माता संकीर्त्यते । तस्य तु वाक्यशेषेण तदेव शुक्रं तद्ब्रह्मेति जीवभावं व्यावर्त्य प्रगृह्यभाव उपदिश्यते 'तत्त्वमसि' ( छा० ६१९ ४ ) इत्यादिवदिति न ब्रह्मप्रकरणं विरुध्यते । न चास्माभिः स्वप्नेऽपि प्राज्ञव्यवहारः प्रतिपिध्यते तस्य सर्वेश्वरत्वा - त्सर्वास्वप्यवस्थास्वधिष्ठातृत्वोपपत्तेः । पारमार्थिकस्तु नायं संध्याश्रयः सर्गो वियदादिसर्गवदित्येतावत्प्रतिपाद्यते । नच वियदादिसर्गस्याप्यात्यन्तिकं सत्यत्व७०४ मस्ति, प्रतिपादित हि 'तदनन्यत्वमारम्भणशब्दादिभ्य' ( क्र० स० २११११४ ) भायामात्रत्वम् । प्रातु ब्रह्मात्मत्वनाद्वयदादिलपत्रो व्यवस्थिनस्पो भवति । मव्याश्रयस्तु प्रपञ्च प्रतिदिन वाध्यत इति, जनो वैशेषिकमिद मध्यम्य मायामात्रत्वमुदितम् ॥ ४ ॥ दूसरी बात है कि जागरित वार मे, विषय इन्द्रियों के मयोग की वर्तमानना में और आदित्यादिस्य ज्योतियों के व्यतिर ( समिश्रण ) से आत्मा की स्वय ज्योति - स्वतावा निवचन दुख है, इस जासय से उस आत्मा को स्वयज्योति स्वस्पता का निवेचन के लिए श्रुति मे स्वप्न उपन्यस्त ( वर्णित ) हुआ है । वहाँ यदि सृष्टि आदि का वोधन वचन त्या । श्रुतिक तात्पर्य का विषय म्पम ) जागरित तुल्य नमझा जायगा, स्वीकृत होगा तो आत्मा को स्वयं ज्याति स्वरुपता नहीं निर्णात हारी । ज्योति जाग्रत् के समान ही स्वप्न भी हो जायगा, इससे ग्यादि का अभाव वचन श्रुति से तात्पयविषय मुल्य वृत्ति से है। स्थादि सृष्टि का बोधर वचन नविन गोणी वृत्ति से है इस प्रकार व्याख्यान करना चाहिए। इस भारत रूप में ही निर्माण बुति भी व्याख्यान हो गई । जो यह मो कहा था कि इस स्वप्ननिर्माना का भुनिया प्राज्ञी है ) वह भी कथन जस जिसमे दूसरी श्रुति में ( स्वयं अपने जाद को निहत्य निश्चट करके स्वय वामनामय देह का निर्माण करके अपने मनोवृतिप्राय से और निजननन्य रूप से स्वप्न का अनुभव करता है ) इस प्रकार जीव के व्यापार के श्रवण म प्राज्ञ स्वप्न का निर्माता नहीं है। इस वठ श्रुति मे मी ( जो यह इन्द्रियों के सोने पर जागता है ) इस प्रसिद्ध के अनुवाद से काभी का निर्माता से यह जीव से कहा जाता है । ( वही शुद्ध है वही ब्रह्म है ) इस वाक्य के द्वारा ता उसी के जीवभाव को निवृत्त करके प्रभाव का उपदेश दिया जाता है। वह उपदे ( तत्त्वममि ) इत्यादि के समान है, इससे ब्रह्म प्रकरण-विरुद्ध नहीं होता है । स्वप्न मे भी प्राज्ञ के व्यवहार ( व्यापार ) वा प्रतिषेध हम नहीं करते हैं, क्योकि सर्वेश्वर से सभी अवस्थाओं में मान के अधिष्ठातृत्व की सिद्धि से उसका निषेध नहीं हो सकता है। परन्तु सध्यप आश्रम वाला सर्ग ( ससार सृष्टि ) आकाश आदि के मर्ग के समान पारमार्थिक नहीं है। इतना ही प्रतिपादन किया जाना है। वियदादि सगँ वा भी आत्यन्ति ( भुम्य ) सत्यत्व नहीं है। जिससे ( तदनन्यत्वम् ) इत्यादि सूत्र म समन्न प्रपन्च ( मसार ) वा मायामायत्व प्रतिपादित हो चुका है। परन्तु ब्रह्मास्त्व दर्शन में पूर्वकाल में जावास जादि म्प प्रपञ्च व्यवस्थित स्वम्पवाला ( बाध रहित ) रहता है और सध्यम्प आयल प्रपन्च प्रतिदिन बाधित होता है, इसमें विशेष रूप से यह सव्य की मायामानना ही गई है ॥ ४ ॥ पराभिध्यानात्त, तिरोहित ततो ह्यस्य यन्धविपर्ययौ ।। ५ ।। अथापि स्यात्परस्यैव नावात्मनोयो जीवोजनेरिव विस्फुलिङ्ग तत्रैव मनि यथाग्निविस्फुलियो समाने दहनप्रकाशनशती भवत एव जीवश्वरपादः २ ] योरपि जानैश्वर्यशक्ती, ततश्च जीवस्य जानैश्वर्यवशात्सांकल्पिकी स्वप्ने रथादिसृष्टिर्भविष्यतीति । अत्रोच्यते । सत्यपि जीवेश्वरयोरंशांशिभावे प्रत्यक्षमेव जीवस्त्रेश्वर विपरीतवर्मत्वम् । किं पुनर्जीवस्येश्वरसमानधर्मत्वं नास्त्येव । न नास्त्येव ( १ ) । विद्यमानमपि तत्तिरोहितम विद्यादिव्यवधानात् । तत्पुनस्तिरोहितं सत्परमेश्वरमभिव्यायतो यतमानस्य जन्तोर्विधूतध्वान्तस्य तिमिरतिरस्कृतेव दृक्शक्तिरौपच त्रीर्यादीश्वरप्रसादात्संसिद्धस्य कस्यचिदेवाविर्भवति न स्वभावत एव सर्वेषां जन्तूनाम् । कुतः ? ततो हीश्वराद्धतोरस्य जीवस्य बन्धमोक्षौ भवतः । ईश्वरस्वरूपापरिज्ञानाद्वन्धस्तत्स्वरूपपरिज्ञानात्तु मोक्षः । तथा च श्रुतिः - जात्वा देव सर्वपाशापहानिः क्षीणैः क्लेशैर्जन्ममृत्युप्रहाणिः । तस्याभिध्यानात्तृतीयं देहभेदे विश्वैश्वर्य केवल आप्तकामः ।। ( वे० १११११) इत्येवमाद्या ॥ ५ ॥ पूर्व कथित रीति से स्वप्न के मायामय सिद्ध होने पर भी यदि शंका हो कि परमात्मा ही का उपाधिपरिच्छिन्न अंग जीव अग्नि का अंश विस्फुलिङ्ग के समान है। यहाँ ऐसा होने पर जैसे अग्नि और विस्फुलिङ्ग में दहन और प्रकाशन शक्ति ( जलाने और प्रकाशने का सामर्थ्य ) तुल्य रहती है । उसी प्रकार जीव और ईश्वर में भी ज्ञान शक्ति और ऐश्वर्य शक्ति तुल्य होगी । जिससे जीव के ज्ञान ऐश्वर्य ( ईश्वरत्ता ) के वश ( वलशक्ति ) से स्वप्न से स्थादि को सांकल्पिकी ( सकल्पजन्य ) सृष्टि सत्य ही होगी, जैसे कि ईश्वर से संकल्प से सत्य सृष्टि होती है । यहाँ उत्तर कहा जाता है कि जीव और ईश्वर को अश ओर अंशी भाव ( अंग्रांशी रूपता ) के रहते भी जीव को ईश्वर से विपरीतधर्मवत्त्व ( असत्य संकल्पत्वादि ) प्रत्यक्ष ही है। इससे जीव के संकल्प से सृष्टि नही हो सकती है । शंका होती है कि विरुद्ध धर्म, वाला होने से क्या जीव को ईश्वर के तुल्य धर्मवत्त्व सर्वथा नही है । उत्तर है कि सर्वथा ईश्वर के तुल्य धर्मवत्त्व नहीं है, यह बात तो नही है, ईश्वर के तुल्य धर्मवत्त्व है भी, परन्तु वह विद्यमान ( वर्तमान ) भी तुल्य धर्मवत्त्व, अविद्या आदि रूप व्यवधान ( परदा ) से तिरोहित ( आच्छादित ) है । ( तिरोहित होता हुआ भी वह समान धर्मवत्त्व, परमेश्वर का ध्यान करने वाले संयमादि यत्न करने वाले विनाशित ध्वान्त ( मोह, पाप ) वाले संसिद्ध ( शुद्ध अणिमादि युक्त ) किसी प्राणी को ईश्वर की कृपा से वह तिरोहित जानैश्वर्यशक्ति आविर्भूत ( प्रकट ) होती है, जैसे कि तिमिर ( नेत्ररोग ) से तिरस्कृत ( आच्छादित ) दृष्टिशक्ति ओपधि के बल से प्रकट होती है । स्वभाव से ही सब प्राणियों को ज्ञानैश्वर्य-शक्ति नही प्रकट हो सकती है । क्योकि उस ईश्वररूप हेतु से ही इस जीव के वन्ध-मोक्ष होते हैं । ईश्वर के स्वरूप के अपरिज्ञान ( अविद्या ) से बन्ध होता है । ईश्वर स्वरूप के परिज्ञान ( अनुभव ) से मोक्ष होता है और इसी प्रकार श्रुति कहती है कि ( दिव्यात्मा को जान कर स्थिर ज्ञानी के सब अन्धनो की निवृत्ति होती है, क्षीण हुए क्लेशो द्वारा जन्म-मरण की निवृत्ति होती है। उस देव के ध्यान से प्रारब्ध भोग के अन्त में इस देह् के भेदन ( नाग ) होने पर वह ध्याना मार्ग दो से मिन तृतोय विश्वैश्वयं ( सम्पूर्ण ऐश्वयं ) स्वम्प परमात्मा का अनुभव करके अविद्यामय प्रपन्च मे रहित केवर आलकाम पूर्णानन्दम्वरूप हो जाता है। इस सूत्र का यह भी स्थूलायें हो मक्ता है कि ( तदेव शुव तद्ब्रह्म ) इस श्रुति में कथित जीव वा निज स्वरूप पर ( अनात्म वस्तु ) के ध्यान ( चिन्तन ) से जाग्रत् मे तथा स्वप्न में तिरोहित रहता है, तथा ज्ञानेश्वर्यादि सामय्यं तिरोहित रहता है। इसी से इसको निजम्वरूप में भी और स्वप्न में मो मिय्यादि वन्ध और मोक्ष भी भासता है, ऐसे अन्य भो मायामय प्रतिमास होता है इत्यादि ॥ ५ ॥ देहयोगाद्वा सोऽपि ॥ ६॥ कम्मात्पुनर्जीव परमात्माश एवं मस्तिरस्कृतज्ञानेश्वर्यो भवति, युक्त तु ज्ञानेश्वर्ययोरतिरस्कृतत्व विस्फुलिङ्गस्येव दहनप्रकाशनयोरिति । उच्यते मत्यमेवैनन्, सोऽपि तु जीवम्य ज्ञानैश्वर्यंतिरोभावो देहयोगाहेहेन्द्रियमनोबुद्धिविषयवेदनादियोगाद्भवति । अस्ति चात्रोपमा यथाग्नेर्दहन प्रकाशनसम्पन्नम्याप्यरणिगतस्य दहनप्रकाशने तिरोहिते भवतो यथा वा भम्मच्छलस्य, एवमविद्याप्रत्युपस्थापितनामस्पकृतदेहाद्युपाधियोगात्तदविवेकभ्रमकृनो जीवम्य ज्ञानेश्वर्यतिरोभाव । वाशब्दो जीवश्वरयोरन्यत्वाशङ्काव्यावृत्त्यर्थ । नन्वन्य एव जीव ईश्वरादस्तु तिरस्कृतज्ञानेश्वर्यत्वात्कि देहयोगकल्पनया । नेत्युच्यते, नान्यत्व जीवस्येश्वरादुपपद्यते 'सेय देवतेक्षत' ( छा० ६१३१२ ) इत्युपक्रम्य 'अनेन जीवेनारमनाउनुप्र विश्य ( छा० ६३श२ ) इत्यात्मशव्देन, जीवपरामशत् । 'तत्सत्यं म आत्मा तत्त्वममि इवेनकेतो (छा० ६९१४) इति च जीवायोपदिशनीश्वरात्मत्वम् अतोऽनन्य एवेश्वरा जीव मन् देहयोगात्तिरोहितज्ञानेश्वयों भवति, अतश्च न साकल्पिकी जीवस्य म्वप्ने स्थादिसृष्टिघंटते । यदि च साकल्पिको स्वप्ने स्थादिसृष्टि स्यान्नैवानिष्ट कश्चित्स्वप्न पश्येत् । नहि कश्चिदनिष्ट सकल्पयते । यत्पुनेत- जागरितदेवश्रुति स्वप्नम्य मन्यन्व स्थापयनीति - इनि, न तत्माम्यवचन सत्यत्वाभिप्राय स्वयज्योतिष्ठविरोधात् । श्रुत्यैव च स्वप्ने रयाद्यभावस्य दर्शितत्वात् जागरितप्रभववासनानिमित त्वातु स्वप्नम्य तत्तुल्यनिर्भामत्वाभिप्राय तन् । तम्मादुपपन्न स्वप्नम्य मायामात्रत्वम् ॥ ६॥ फिर शका होती है कि परमात्मा का अश ही होता हुआ जीव तिरस्कृत ज्ञान और ऐश्वयं वाला किस हेतु से होता है, इसके ज्ञान और ऐदवयं को तो निरस्कार रहिन होना उचित है, जैसे विम्फुलिङ्ग के दहन और प्रकाशन अतिरस्कृत रहते हैं, ऐसे जीव को ज्ञान और ऐश्वर्य होना चाहिये । उत्तर कहा जाता है कि अग्नि के दहन - प्रकाशन के समान सत्यतिरस्कार के अयोग्य यह ज्ञान और ऐश्वर्य है यह कथन सत्य है, तो भी जीव के ज्ञान और ऐश्वर्य का वह प्रसिद्ध तिरोभाव भी देह के योग से होता है । अर्थात् सूत्रगत देह शब्द के उपलक्षण होने से देह, इन्द्रिय, मन, वृद्धि, विषय, वेदना, आदि के योग से ज्ञान और ऐश्वयं तिरस्कृत होते है। इस विद्यमान के तिरस्कार में उपमा ( दृष्टान्त ) है कि जैसे दहन - प्रकाशन से सम्पन्न ( युक्त ) भी काष्ठगत अग्नि के दहन - प्रकाशन व्यापार तिरोहित होते हैं, अथवा जैसे भस्म से आच्छादित के प्रकाशनादि तिरोहित होते हैं । इसी प्रकार अविद्या से प्रत्युपस्थापित ( साधित ) नाम और रूप से कृत देहादि रूप उपाधि के योग से उसके अविवेक और भ्रमकृत जीव के ज्ञानैश्वर्य का तिरोभाव है । सूत्रगत वा शब्द जीव और ईश्वर के भेद की आशंका की निवृत्ति के लिए है । शंका होती है कि तिरस्कृत ज्ञानेश्वयं वाला होने से ईश्वर से अन्य ही जीव हो सकता है। देहादियोग की कल्पना का क्या फल है । उत्तर है कि ईश्वर से अन्य जीव नहीं हो सकता है, जिससे जीव का ईश्वर से अन्यत्व उपपन्न नही होता है सो ( यह देवता ने विचार किया ) ऐसा आरम्भ करके ( इस जीवात्मा रूप से प्रवेश करके ) इस प्रकार आत्म शब्द से जीव के परामर्श से ईश्वरस्वरूप जीव है । और ( वह ब्रह्म सत्य है वह आत्मा है हे श्वेतकेतो ! तुम वही हो ) इस प्रकार जीव के प्रति ईश्वरात्मता का उपदेश श्रुति करती हैं, इससे ईश्वर से अनन्य होता हुआ भी जीव देह के योग से तिरोहित जानैश्चर्य वाला होता है, अतः स्वप्न में जीव के संकल्प से जन्य स्थादि की सृष्टि नहीं संघटित होती है। यदि जीव के संकल्प से जन्य स्वप्न में स्थादि की सृष्टि हो, तो स्वप्न मे कोई अनिष्ट नहीं देखे, जिससे कोई अनिष्ट का संकल्प नहीं करता है । जो यह कहा था कि जागरित देशविपयक श्रुति स्वप्न के सत्यत्व का स्थापन करती है, वहाँ कहा जाता है कि स्वयं ज्योतिःस्वरूपत्व के साथ विरोध से वह जाग्रत् के साथ स्वप्न को तुल्यता का वचन स्वप्न की सत्यता के अभिप्राय से नहीं है । श्रुति से ही स्वप्न में स्थादि के अभाव के दर्शितत्व से उक्त अभिप्राय का अभाव सिद्ध होता है । जागरित अवस्था में उत्पन्न वासना से निर्मित होने से स्वप्न को जागरिततुल्य निर्मामत्व के अभिप्राय से वह वचन है, जिससे स्वप्न को मायामयत्व उपपन्न हुआ। स्थूलार्थ हो सकता है कि अथवा जो वाह्यविरागादिमात्र से अनात्मा का ध्यान वाह्यवस्तु का चिन्तन नहीं करता है, सो भी अविवेक से देह के साथ तादात्म्य का अभिमान करता है, इससे भी वन्ध-मोक्ष भासतें हैं इत्यादि ॥ ६ ॥ तदभावाधिकरण ( २ ) नाडीपुरीतद्ब्रह्मणि विकल्प्यन्ते सुषुप्तये । समुच्चितानि वैकार्थ्याद्विकल्प्यन्ते यवादिवत् ॥१॥ समुच्चितानि नाडीभिरुपसृत्य पुरीतति । हृत्स्ये ब्रह्मणि यात्येक्यं विकल्पे त्वष्टदोषता ॥२॥ सुपुति का हेतु रूप से उस नाडी आदि के श्रवण से उन नादिया में, और आत्मा मे समुच्चितरूप वतमान मे पूर्यास्त स्वप्न वा अभावस्य मुति होती है । ममय है कि श्रुति म सुपुति के लिए सुने गय स्थानम्प नाटी, पुरी और ब्रह्म त्रिकल्पित होते हैं, अर्थात् कमो नाटी, कभी पुरीत, कभी ब्रह्म मुपति का स्थान होता है, अथवा तीनो मिल कर सम काल में सुषुप्ति का स्थान होते हैं। पूर्वप है कि जैसे, ग्रीहिमियंजन, यवैर्वा यजेत, प्रोति से याग करे, जथवा यव से याग परे, इन दोनों बचना में एक याग के लिये प्रोहि और यव का विधान होता है, वहाँ एकायना एक्प्रयोजनना से विकल्प होता कभी व्रीहि के पुरोडाग द्वारा यज्ञ होता है, तो कमी यव से पुरोडाश द्वारा होना है। इसी प्रकार यहाँ भी एक मुषुप्ति के लिए श्रुति मे नाडो, पुरीत और ब्रह्म स्थानम्प से कहे गय हैं, इससे जीव कभी नाडी में, कभी पुरीतत् में, कभी ब्रह्म मे सोधेगा ।। सिद्धान्त है कि तीनो स्थान विकसित नहीं है, किन्तु समुच्चित ( मिलित ) ह, सोना सम काल में मुप्ति के हेतु है, जिससे नाडियों द्वारा गमन करके पुरीत के मध्य मे हृदयस्थ ब्रह्म में जीव सुषुप्ति काल में एकता को प्राप्त करना है, इससे तीनो समुच्चित स्थान हो जाते है। विकल्प मानने पर अटदोपता की प्राप्ति होगी। भाव है कि विर मानने पर तीनों प्रकार के वाक्या को स्वतन्त्र प्रमाणरूप मानना होगा। वहीं एकवचन वे अनुसार स्थान को मानने के काल में अन्य वचन के अनुसार प्राप्त स्थान का निषेध नहीं कर सकते है, क्योंकि वह भी शास्त्र में प्राप्त है, किन्तु उस समय,' दूसरे बचन मे प्रास प्रमाणना की त्यागना होगा, और अप्राप्त अप्रमाणता का स्वीकार करके उसके अनुसार स्थान का स्वीकार नहीं करना होगा। इसी प्रकार उस दूसरे वचन के अनुसार शयन होने पर उस वाक्य को व्यक्तप्रमाणता का फिर स्वीकार करना होगा और गृहीन अप्रमाणता को त्यागना होगा, द्वितीय वाक्य के समान ये हो चारों दोप प्रथम वाक्य मे भो प्राप्त होने से अष्ट दोपता होती है सो अन्यत्र प्रसिद्ध है, इससे समुच्चय युक्त है ॥ १-२ ॥ तदभावो नाडोषु तच्छृतेरात्मनि च ॥ ७ ॥ स्वप्नावस्था परीक्षिता सुपुप्तानस्थेदानी परीक्ष्यते । तत्रेता सुषुप्तिविपया श्रुनयां भवन्ति । क्वचिच्यते- 'तद्यत्रतत्सुत समस्त नप्रसन स्वप्न न विजानात्यानु ना नादीपु सृष्ती भवति' ( छा० ८।६।३ ) इति । जन्यन तु नाडोरेवानुक्रम्य श्रूयते- 'ताभि प्रत्यवमृष्य पुरीनति येते' ( वृ० २११११९ ) इति । तथान्यत्र नाडीरेवानुकम्प 'नामु तदा भवति यदा सुप्त स्वप्न न कचन पञ्यत्ययास्मिन्त्राग एवंकवा भवति' (कपी०१२) इति । तथान्यन 'मना माम्य तदा सपन्नो भवति स्वनपीतो भवति' (छा०६८ ) इति । तथा 'प्राज्ञेनात्मना सम्परिप्क्ती न बाह्य किंचन वेद नान्तरम्' (० २१ ) इति च । तत्र सशय - किमेनानि नाड्यादीनि परम्परनिरपेक्षाणि भिन्नानि सुषुप्ति
bc15b3221397d2d66c53bd80c6c3e798ef6af32f
web
ऋषि सुनक जब से ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बने हैं, भारत में लिबरल और सेक्युलर गिरोह का एक तबका ज्ञान बाँटने और नसीहतें देने पर फिर से उतर आया है। कॉन्ग्रेस को मुस्लिम प्रधानमंत्री चाहिए तो असदुद्दीन ओवैसी को एक हिजाबी महिला को प्रधानमंत्री के रूप में देखना है। जिस देश की सर्वोच्च पद पर एक जनजातीय समाज की महिला हैं, उस देश में इस तरह का प्रपंच चलाने वालों को इतिहास में भी झाँकना चाहिए। क्योंकि वर्तमान में तो सबको दिख रहा है कि जहाँ भारत में मुस्लिम कट्टरपंथी 'सर तन से जुदा' का नारा लगा रहे हैं और हत्याएँ भी कर रहे हैं, वहीं ब्रिटेन में रह रहे हिन्दू या भारतीय समाज के लोग वहाँ की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। ब्रिटेन में आज 8 लाख से भी अधिक हिन्दू हैं, जिनमें 70% अकेले गुजरात से हैं। इसके बाद पंजाब (15%) का नंबर आता है। आज UK में 190 से भी अधिक मंदिर हैं और वहाँ के सामाजिक कार्यों में भी ये रुचि लेते हैं। ब्रिटेन में ईसाइयों और मुस्लिमों के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या हिन्दुओं की ही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीय नागरिकों ने ब्रिटेन का रुख किया गया। भारतीय नागरिकों को ब्रिटेन ने अपनी सेना में रखा था, यहाँ की महिलाओं को ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने घर में बच्चों के देखभाल के लिए रखा था। इससे पहले दादाभाई नैरोजी (1825-1917) जैसे विद्वान भी हुए, जो 20वीं सदी शुरू होने से पहले ही ब्रिटेन में सांसद के पद पर पहुँचे। बाद में वो कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 2002 के बाद से ब्रिटेन जाने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियरों में से दो तिहाई भारत से ही जा रहे हैं। अगर ब्रिटिश इंडियंस की बात करें तो जहाँ ये ब्रिटेन में 2% ही हैं, लेकिन वहाँ के डॉक्टरों में से 12% इसी समुदाय से हैं। चूँकि वहाँ रह रहे भारतीयों में से 85% हिन्दू ही हैं, इसीलिए स्वाभाविक है कि इनमें हिन्दुओं की जनसंख्या ज्यादा होगी। वहाँ के व्यापार का 4. 4% हिस्सा हिन्दुओं के पास है और वो 51,000 लोगों को नौकरी देते हैं। भारत में मुस्लिमों की बात करें तो स्थिति इसके एकदम उलट है। यहाँ अरब से इस्लामी आक्रांता आए, सूफी आए। एक ने तलवार के दम पर और एक ने चमत्कार के दम पर धर्मांतरण किया। भारत के अधिकतर मुस्लिम धर्मांतरित मुस्लिम हैं, जिनके पूर्वज पहले हिन्दू ही हुआ करते थे। लेकिन, कालांतर में ये अपने अरबी समाज से ज्यादा कट्टर होते चले गए। इसका एक परिणाम हमें देश का विभाजन और 20 लाख मौतों के रूप में देखने को मिला। इसका परिणाम हमें जम्मू कश्मीर में देखने को मिला। इसका परिणाम हमें PFI जैसे संगठन के रूप में देखने को मिला, जो हजारों मुस्लिमों की भर्ती कर के भारत सरकार से युद्ध छेड़ने की तैयारी में था। 1926 में स्वामी श्रद्धानंद से लेकर 2022 में कन्हैया लाल तेली की हत्या तक, इस्लामी कट्टरपंथियों का रुख वही रहा है। और पीछे जाएँ तो अर्जन सिंह और तेग बहादुर जैस सिख गुरुओं की हत्याएँ याद आएँगी। भारतवर्ष पर अपने पहले ही आक्रमण में इस्लामी आक्रांताओं ने राजा दाहिर का सिर काट कर खलीफा को उपहार के रूप में भेजा था। भारतीय ब्रिटेन में ऐसे नहीं घुसे थे। जब ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ 'कारोबार' करने आई थी, तब यहाँ वो कई भारतीयों को अपने साथ ले जाती थी। जहाज से ब्रिटेन जाने वाले ये भारतीय वहाँ से लौटने में अक्षम होते थे, इसीलिए उनमें से कई वहीं बस गए। भारतीय महिलाओं को बच्चों की देखभाल के लिए ब्रिटिश अधिकारी हायर करते थे (आया, नैनी, अम्मा इत्यादि) और यहाँ कार्यकाल पूरा हो जाने पर कइयों को अपने साथ ले जाते थे। नौकरों को लेकर भी ऐसा ही था। भारत में तो मुस्लिम भी आक्रांता बन कर आए थे और ब्रिटिश भी बाद में कारोबारी से आक्रांता बन गए। लेकिन, आज ब्रिटेन हो या अरब, भारतीय हर जगह अपना परचम लहरा रहे हैं और वहाँ की अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं। भारतीयों को अंग्रेजों ने अपने जहाजों और बंदरगाहों पर काम करने के लिए हायर किया था। यही कारण है कि ब्रिटेन के पोर्ट टाउन्स में ही सबसे पहले के ब्रिटिश इंडियंस मिलेंगे। 19वीं सदी खत्म होते-होते 40,000 भारतीय छात्र, राजनयिक, कारोबारी, विद्वान, सैनिक और जहाज पर काम करने वाले लोग यूके में बस चुके थे। सन् 1931 के आँकड़े बताते हैं कि उस समय ब्रिटेन में 2000 भारतीय छात्र थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में कामगारों की भारी कमी थी, ऐसे में उन्होंने रेलवे में भारत के मजदूरों और कर्मचारियों को हायर करना शुरू कर दिया। उन्हें यहाँ इस क्षेत्र में काम का अनुभव भी था। नॉर्थ-वेस्ट यूके में टेक्सटाइल सेक्टर में गुजरातियों का दबदबा बढ़ता चला गया। जब 'नेशनल हेल्थ सर्विस' का गठन हुआ तो यहाँ से कई मेडिकल प्रोफेशनल वहाँ गए। केन्या, युगांडा और ज़ांज़ीबार से निकाले जाने के कारण 1960-70 के दशक में ईस्ट अफ्रीका में रह रहे कई भारतीय ब्रिटेन पहुँचे। इस तरह भारतीयों ने काम के लिए ब्रिटेन या किसी भी जगह को को केंद्र बनाया, आक्रमण या धर्मांतरण के लिए नहीं। आज कोरोना काल में ब्रिटेन में भारत के मंदिरों ने समाजसेवा और जागरूकता फैलाने का जो कार्य किया है, उसकी सराहना वहाँ के लोग भी करते हैं। यहाँ के मस्जिदों ने कोरोना काल में क्या किया, इसकी एक मिसाल दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के अड्डे से पता चल जाता है। किस तरह जमातियों ने देश के अलग-अलग जगहों पर छिप कर कोरोना फैलाया और उन मुस्लिम बहुल इलाकों में जाने वाले पुलिसकर्मियों एवं मसिकल प्रोफेशनल्स पर हमले हुए, इसकी कई ख़बरें आपको मिल जाएँगी। जहाँ तक ऋषि सुनक की बात है, उनके पूर्वज भी ब्रिटेन आक्रमण या धर्मांतरण के लिए नहीं गए थे। जहाँ उनके पिता एक जनरल फिजिसियन थे, उनकी माँ सॉउथम्पटन में एक फार्मेसी चलाती थीं। पंजाबी मूल के उनके ग्रैंडपेरेंट्स 1960 के दशक में ईस्ट अफ्रीका से इंग्लैंड गए थे। विंचेस्टर ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ाई करने वाले ऋषि सुनक शाकाहारी हैं, बीफ नहीं खाते हैं और शराब का सेवन भी नहीं करते हैं। उनके कामकाज वाली टेबल पर एक भगवान श्रीकृष्ण की छोटी सी प्रतिमा होती है। वो ब्रिटेन को अपना घर मानते हैं, लेकिन कहते हैं कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें भारत की हैं। उनके दादा ने 'वैदिक सोसाइटी हिन्दू मंदिर' की स्थापना की, जहाँ वो अक्सर जाते हैं। सांसद बनने के बाद उन्होंने भगवद्गीता पर शपथ ली। बतौर वित्त मंत्री No 11, Downing Street स्थित उनके सरकारी आवास में दीवाली के कार्यक्रम हुआ करते थे। उन्हें घर में रंगोली बनाते हुए और दीये जलाते हुए भी 2020 में देखा गया था। उनका कहना है कि जीवन में परिवार का बड़ा महत्व है और बच्चों में परिवार ही संस्कार देता है, ये उन्होंने काफी पहले ही सीख लिया था। उन्होंने मंदिर में जाकर अपने परिवार द्वारा खाना बनाने और भोजन लोगों में बाँटने की बात भी कही थी। जो लोग भारत में मुस्लिम प्रधानमंत्री की बात करते हैं, क्या वो नहीं जानते कि ये एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और यहाँ प्रधानमंत्री चुना जाता है, नियुक्त नहीं किया जाता। जिस हिजाब के कारण कर्नाटक में हिंसा हुई, उस हिजाब को पहनने वाली प्रधानमंत्री आखिर किसी को क्यों चाहिए? आक्रांताओं को अपना 'बाप' मानने वालों को देश क्यों स्वीकार करे? औरंगजेब और टीपू सुल्तान जैसों की इबादत करने वाले ये तो बताएँ कि क्या ब्रिटेन में बसे भारतीय वहाँ के दुश्मनों के गुण गाते हैं? भारत में मुस्लिम आक्रांता और धर्मांतरण कराने वाले बन के आए और सैकड़ों वर्षों तक राज़ किया, फिर भी आज उन्हें सब्सिडी मिलती है। यहाँ तक कि हज भी वो सरकारी पैसे से करते रहे हैं। जब इस्लामी आक्रांताओं का राज़ था, हिन्दुओं को 'जजिया' टैक्स देना होता था। अपना तीर्थ घूमने के लिए भी टैक्स देना होता था। उनके 30,000 मंदिर ध्वस्त कर दिए गए। ब्रिटेन में भारतीयों ने चर्च ध्वस्त किए? टैक्स वसूला? सब्सिडी लिया? नहीं। वो वहाँ की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे। जो लोग मुस्लिम प्रधानमंत्री की बात कर रहे हैं, वो पहले कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री की बात करें। मक्का-मदीना में गैर-मुस्लिमों की एंट्री की बात करें। पंजाब में हिन्दू मुख्यमंत्री की बात करें। क्या इन्होंने कभी अरब देशों में हिन्दू शासक की वकालत की है? इन्हें हिजाबी पीएम तो चाहिए, लेकिन कोई मुस्लिम लड़की तिलक लगा ले तो ये उसे 'मुर्तद' बताते हुए शिर्क करने का आरोप लगाते हैं, इनसे ये बर्दाश्त नहीं होता। ब्रिटिश भारतीय समुदाय को लेकर ये भसड़ आपने कभी सुनी है? जहाँ तक भारत की बात है, खुद सोनिया गाँधी का इटली में जन्म हुआ था और वो 10 वर्षों तक रिमोट कंट्रोल से सत्ता चलाती रहीं। इस दौरान अल्पसंख्यक सिख समाज के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे। भारत में ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन, और अब्दुल कलाम के रूप में 3 मुस्लिम राष्ट्रपति हुए। ज्ञानी जैन सिंह राष्ट्रपति बने, जो सिख समाज के थे। सोनिया गाँधी रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय से हैं। ऐसे में भारत को ज्ञान की ज़रूरत ही नहीं है। भारत में पारसी समुदाय से भी 3 मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। यहाँ सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि जब बात अल्पसंख्यक की होती है तो सिर्फ मुस्लिमों की ही क्यों? सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदी प्रधानमंत्री की बात क्यों नहीं करते ये लोग? क्योंकि मुस्लिम आज मेजोरिटी हैं, माइनॉरिटी नहीं। जितनी यूके की पूरी जनसंख्या है, उससे तीन गुना ज्यादा तो भारत में सिर्फ मुस्लिम हैं। ऐसे में उनके तुष्टिकरण के लिए ऐसा किया जाता है। अब मुस्लिम प्रधानमंत्री का रट्टा मारने वाले ही बताएँ कि जब इस पर पर उन्हें मुस्लिम ही चाहिए तो वो बाकी के दिनों में सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार क्यों बने रहते हैं?
8a9fabf734066fc540cce5f85dc2cdd8ad935e91259004cf925b94f8de4fee88
pdf
परिणामो के आधार पर सर जेम्स जीन्स (Jeans) ने अपना सिद्धात बनाया, जिसका विवरण नीचे दिया जाता है । जोन्स का सिद्धांत - जोन्स ने न्यूटन की तरह यह माना कि आरंभ में द्रव्य बहुत दूर तक, प्राय अनत दूर तक, सम रूप से, फैला हुआ था। जोन्स ने गणित द्वारा यह सोज की कि इस प्रकार विसरे द्रव्य से यदि पिंड बनेंगे तो वितन वडे चड़े और कितनी दूर-दूर पर जीन्स ने पहले इसकी गणना की कि यदि ऐसे माध्यम में लहरें उठें तो उनकी लहर लवाई क्या होगी, लहरें कितनी वडी रहेंगी तो द्रव्य वही सिमट जायगा, वही फट जायगा ; द्रव्य वा घनत्व क्या रहा होगा, तापत्रम क्या रहा होगा, इत्यादि । हवल ( Hubble ) की गणनाओ से यह ज्ञात हूं कि यदि अतरिक्ष वे सब तारो और नीहारिवाओ का द्रव्य पीस कर इस प्रकार बिखेर दिया जाय कि सब जगह घनत्व बरावर हो जाय तो प्रति घन इच १ ग्राम (लगभग १ मागा) वा १० वी भाग द्रव्य होगा । १०" का अर्थ है कि १ की दाहिनी ओर ३२ शून्य लिखे जायें। दूसरे शब्दो में १००० घन गज में लगभग एक अणु द्रव्य होगा । ऐसे द्रव्य पर गणित लगाने से यह परिणाम निकलता है कि जब द्रव्य घनीभूत होगा तो तारो से वही भारी (वरोड, दस करोड गुना भारी ) पिड बनेंगे । इसलिए अनुमान किया जाता है कि आरंभ में तारे न बने होगें, नोहारिकाएँ बनी होगी। नीहारिकाओं के विकास पर पहले विचार किया जा चुका है, इसलिए वे बातें यहाँ दुहराई न जायेंगी । नीहारिकाओ के फोटोग्राफी में गोल और प्राय गोल से लेकर चिपटी गोलाभ तथा धारदार मध्यरेखा वाली नीहारिकाएं सभी मिलती है। केंद्रीय गोल या गोलाभ भाग को घरे हुए जो पदार्थ रहता हूँ उसको मोटाई बहुत कम प्रतीत होती है । इन सब बातों से विश्वास दृढ हो जाता है कि जीन्स की कल्पना के अनुसार हो नीहारिकाओ का जन्म हुआ है। जोन्स का कहना है कि जैसे हमारे वायुमंडल में पवन बहा करता हूँ, उसी प्रकार हमारे सर्वत्र विखरे प्रारंभिक द्रव्य में भी वही धीरे, कही प्रचड वेग से पवन बहता रहा होगा, उसमें आँधी आती रही होगी, ववडर उठते रहे होगे । इसी से पृथक् पृथक् नीहारिकाओं में चक्कर किसी में कम क्सिो में अधिक उत्पन्न होगया होगा । तारो की उत्पत्ति - जोन्स ने अनुमान किया हूं कि वेग बढने पर नोहारिकाओं से जो द्रव्य छटका होगा उसका घनत्व प्राथमिक द्रव्य के घनत्व से १० अरब गुना अधिक रहा होगा, और इसलिए लह्रौ के तरग-दध्य पहले की अपक्षा छोर्ट रहे होगें। गणना से पता चलता है कि ऐसे पदार्थ से जो पिंड बने होगे उनका द्रव्यमान तारो के द्रव्यमान के बराबर रहा होगा। इसलिए अब ज्योतिषियो को धारणा है कि तारे सपिल नीहारिकाओ को भुजाओं में उत्पन्न होते है । वास्तविक नीहारिकाओं की भुजाओं में तारो का पाया जाना इस बात का समर्थन करता है । तारायुग्मों को उत्पत्ति - तारों क जन्म तन तो लाप्लास और जोन्स क सिद्धान्तो में विशेष अंतर नही हूँ । जीन्म ने गणित में अधिक सहायता ली है, लाप्लासने कई बातो को केवल पा पराष्ट्री आश्रित छोट दिया था। परतु सूर्य ने ग्रहों की उत्पति से हुई इन पर जीन्ग मा मत सर्वथा विभिन्न हूँ । जीन्स या महता हूं वि जन्म के बाद तारा सचित होता चला जाता है और जब तक उपकेंद्र तरीके समान धना नहीं हो जाता, तब तर छोटे हो जाने के अतिरिक्त उसमें बोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। यदि कुछ पदार्थ छटा भी हूँ तो यह पनीभूत नहीं हो पाता, टोप पैसे से जैसे रवट के गुब्बारे पर गंगोमूत नहीं होती। घनीभूत होने के लिये बहुत प्रथ्य माहिए। तभी आवषंण-शति इतनी हो पाती है गंगकी प्रसरणशको दरा राजे । जब तारे या पनत्व तरी यो समान हो जाता है रान उसमें वे गव विकार उत्पन्न होते है जो घरों में हो गड़ते हैं। जीन्स में गणित के अनुसार यदि तरल पागलपंड धीरे-धीरे नाचने लगतीपट आहति गोलाभ हो जायगी, अर्थात् पिट नारगी की तरह कुछ चिपटा हो जायगा । नाही करेगा चिपटापन उतना ही बड़ेगा, परंतु जब छोटा अक्ष मध्यरेखा के व्याग का मन्तवादशाश हो जायगा (अर्थात् उगना ७/१२ हो जायगा) तो पिड उसके बाद अधिचिपटा नहीं होगा। इमरे बदरे पिड अडावार होने लगेगा। इसकी आवृति यह हो जायगी जिसे गणित में तीन अराम उयो वाला दीर्घवृनाभ (एप्लिॉयट) कहते है । वेग और बढ़ने पर पिड यो लवाई बढ़ती जायगी, यहाँ तक कि लवा अश सब से छोटे ना हो जायगा । इस अवस्था में पिड में हल मचने लगती है। बीच से थोडा हट कर पिंड में बमर-गी बन जाती है, जिससे पिङ तुवामा लगने लगता हूँ। कभी एन सिरा बढ़ना हूँ, क्यो दूमरा, और इन मन आन्दोलनों का परिणाम यह होता है वि पिंड दो सडो में टूट जाता है। विश्याम किया जाता है कि युग्मतारे इसी प्रकार उत्पन्न हुए है। जीन्स ने गणित से सिद्ध किया है वि गैनीय पिढ इस रीति से दो खडा में नही विभक्त हो सकता, केवल तरल पिंड में ही ऐसा विकास हो सकता हूँ । जी० एच० डाविन (Darwin) ने सिद्ध किया है कि विभक्त होने के बाद प्रत्येव पिंड में दूसरे के कारण ज्वार-भाटाएँ उत्पन्न होगी, जिनके कारण ऊर्जा (एनर्जी) का हास होगा और पिडो के बीच की दूरी बगे। विकिरण के कारण सापेक्षवाद के अनुसार पिडो का द्रव्यमान भी घटता है और जीन्स ने सिद्ध किया है कि इस कारण से भी पिंड अधिव दूर होते जायेंगे । फिर, जब-जब कोई दूसरा तारा किसी युग्मतारे के पास से होकर निकल जाता है, तव तव युग्मतारे के सदस्यों की परस्पर दूरी बुद्ध बढ़ जाती है । इस प्रकार धीरे-धीरे उनके बीच में उतनी दूरी उत्पन हो जाती है जितनी बहुधा देखने में आती है । ग्रहों की उत्पति-नीहारिकाओ और तारों की उत्पत्ति पर तो हम विचार कर चुके, अब देखना चाहिए कि ग्रह कैसे उत्पन हुए होगे । ग्रहो की उत्पत्ति न तो प्राथमित्र नीहारिका से हुई होगी, न सूर्य के दो भागों में सहित होने से । नीहारिका से ग्रहो की उत्पत्ति हुई होती तो प्रहु बहुत बड़े होते वस्तुत वे तारे होते । यदि वे सूर्य के खड़ित होने से उत्पन्न हुए होते तो ये सूर्य से बहुत छोटे न होते । युग्मतारो में बडा तारा छोटे के धौगुना तक हो देखने में आया है, परतु सूर्य तो वृहस्पति से १००० गुना अधिक भारी है, बुध से ८० लास गुना भारी हैं। इस लिए ग्रहो की उत्पत्ति किसी दूसरी रीति से हुई होगी। इसके समर्थन में यह भी याद रखने योग्य है कि हमारा सूर्य अपनी धुरी पर बहुत कम वेग से नाचता है । ग्रहो में भी आवेग (मोमॅटम) कम है। इसलिए कोई लक्षण नहीं दिखाई पडता वि ग्रह पूर्वोक्त रीति से सूर्य के खडित होते पर बने है । जीन्त वा विश्वास है कि किसी समय कोई अन्य तारा हमारे सूर्य के पास से होता हुआ निकल गया । उसी के आकर्षण से कुछ द्रव्य, जैसा नीचे विस्तार से समझाया जायगा, सूर्य से नुच गया। इसी द्रव्य से ग्रह बने । ज्वार-भाटा सिद्धात - सूर्य कई अरब वर्षों से अतरिक्ष में चल रहा है। अन्य तारे भी चलते ही रहते हैं। इसलिए असभव नहीं जान पड़ता कि अत्यंत प्राचीन काल में कभी कोई दूसरातारा सूर्य के पास होता हुआ निकल गया हो। जिस प्रकार पृथ्वी के निकट होने के कारण घद्रमा पृथ्वी पर ज्वार-भाटा उत्पन्न करता है, उसी प्रकार इस बाहरी तारे ने सूर्य पर ज्वारभाटा इत्पन किया होग। उस समय हमारे सूर्य के पास पृथ्वी आदि ग्रह न रहे होगे। यदि तारा सूर्य की निज्या (अर्धव्यास) की तिगुनी से अधिक दूरी पर से हो कर निकलता, तो ज्वार-भाटा से उठा पदार्थ फिर बैठ जाता, परंतु वह सूर्य के अधिक निकट से होकर गया होगा। गणित बताता है कि ऐसी अवस्था में ज्वार-भाटा के कारण उठा पदार्थ छटक कर पृथक् हो गया होगा । जीन्स का कहना है कि इसी प्रकार छटके पदार्थ से ग्रह उत्पन्न हुए है। इसका समर्थन इस बात से होता है कि गणित के अनुसार छटवा पदार्थ जब सिमटेगा तब लगभग उतने ही बडे पिंड बनेंगे जितने बड़े ग्रह वस्तुत है। उपग्रहो की उत्पत्ति भी इसी प्रकार हुई होगी, क्योकि ग्रहो के बनते हो उन में सूर्य के कारण ज्वार-भाटा उठा होगा और कुछ पदार्थ छटका होगा। परंतु उपग्रहो के भी उपग्रह इसलिए न बन पाये होगे कि उपग्रहो में द्रव्य कम हूं, वे शीघ्र ठढे हो गये होगे । केवल इतना ही नही हुआ कि ग्रह और उपग्रह बने । अवश्य ही कुछ द्रव्य चूर्ण के रूप में बिसरा रह गया । वह सव द्रव्य धीरे धीरे किसी न किसी ग्रह में जा गिरा। इसका परिणाम गणितानुसार यह होता है कि दीर्घवृत्त में चलने वाले ग्रह प्राय वृत्ताकार मार्गों में चलने लगते है। वर्तमान ग्रह सभी लगभग वृत्ता में हो चलते हैं । पदार्थ आ गिरने के कारण ग्रहो के मार्ग कुछ अधिक बडे भी हो गये होग। समय पावर प्राय सभी पदार्थ ग्रह में या सूर्य में जा गिरा होगा और अतरिक्ष स्वच्छ हो गया होगा। सूर्य के पास अब भी कुछ धूलि-सी है, जो सूर्य के प्रकाश से दीप्तिमान होने के कारण राशिचक्र - प्रकाश (जोडाइऐक्ल लाइट) के रूप में हमें दिखाई पड़ती है । सभव है यह उसी पदार्थ का अवशेष हो जिससे ग्रह बने है । इस पर भी विचार किया गया है कि हमारे मौर जगत् की आयु क्या होगो । जफरीज ( Jeffreys ) ने हिसाब लगाया है कि मोटे हिमाब से ग्रहों को वतमान परिस्थिति में आने में ७ अरब वर्ष लगा होगा। हम पहने देख चुके हैं कि पृथ्वी की आयु भूगम विज्ञान के आधार पर लगभग २ अरव वर्षं है । इसलिए दोना एक दूसरमा समर्थन करते हैं । परंतु अन्य वई बातें
44b00b25ed0bc7f5df22376926bfd76dee432ebc
web
लैटिन अमेरिका में फुटबॉल सामूहिक पहचान का एक बुनियादी प्रतीक बना हुआ है। फुटबॉल खेलने का अंदाज़, अपने होने का तरीका है जो हरेक समुदाय की अनोखी बनावट को उजागर करता है और उसके अनोखेपन के अधिकार की तस्दीक करता है। इस महाद्वीप का हर देश फुटबॉल खेलने के अपने अलग-अलग अंदाज के लिए जाना जाता है। प्रख्यात लैटिन अमेरिकी लेखक एदुआर्दो गालियानो ने इस महाद्वीप के फुटबॉल के बारे में कहा था " मुझे बताओ कि तुम कैसे खेलते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा की तुम कौन हो।" लैटिन अमेरिका में फुटबॉल एक कला में तब्दील हो चुका है। इस कला को ब्राजील के पेले और अर्जेंटीना के डिएगो माराडोना ने जो ऊंचाई प्रदान की उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती। लेकिन विभिन्न देशों की कलात्मक पहचान को फुटबॉल में आई नई तब्दीलियां बदल रही हैं। फुटबॉल के खेल में कला के बजाए जैसा की गालियानो ने कहा था "यह खेल एक तमाशा हो गया है। यह तमाशा दुनिया का सबसे मुनाफादेह कारोबार बन गया है, जिसका ताना-बाना खेल को मुमकिन बनाने के लिए नहीं बल्कि इसमें रुकावट पैदा करने के लिए बना है। पेशेवर खेल की तकनीकी नौकरशाही ने बिजली जैसी तेजी और क्रूर ताकत को फुटबॉल पर थोपने में कामयाबी हासिल की है, एक ऐसा फुटबॉल जो खुशियों को नकारता है, कल्पनाओं को हत्या करता है और जुर्रत करने वालों को गैरकानूनी ठहराता है।" लेकिन माराडोना फुटबॉल में खुशी, कल्पना और जुर्रत करने की संभावना के प्रतीक पुरुष बन चुके थे। फुटबॉल के खेल से लेकर राजनीति विचारों तक में जुर्रत करने की हिमाकत का नाम है माराडोना। एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने फीफा में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर आवाज उठाया और फीफा को ' माफिया' तक कहने की जुर्रत दिखाई। उन्होंने फुटबॉल खिलाड़ियों का यूनियन बनाने के लिए अथक संघर्ष किया। नब्बे के दशक में माराडोना ने अन्य प्रमुख सितारों के साथ मिलकर " इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल फुटबॉल प्लेयर्स " की स्थापना की ताकि इन खिलाड़ियों के अधिकारों की रक्षा हो सके। सन 2000 में माराडोना की आत्मकथा प्रकाशित हुई जिसका नाम "आई एम डियागो" था। माराडोना फुटबॉल के मैदानों की तरह राजनीति में भी वामपंथी राजनीति के खुले समर्थक थे। यह महज संयोग ही कहा जायगा कि जिस दिन यानी 25 नवम्बर को डिएगो माराडोना की मृत्यु हुई उसके ठीक चार वर्ष पूर्व क्यूबा के क्रांतिकारी नेता व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो की मृत्यु हो गयी थी। माराडोना फिडल कास्त्रो को अपना दूसरा पिता (second father) मानते थे। फिदेल को वह अपना पिता इसलिए भी मानते थे क्योंकि उन्हें दूसरा जीवन क्यूबा में मिला। जब ड्रग्स और अल्कोहल की लत पड़ जाने के कारण उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था ऐसे वक्त में फिदेल ने हस्तक्षेप कर उनका क्यूबा में इलाज करवाया। परिणामस्वरूप धीरे- धीरे उनके स्वास्थ्य में सुधार होता गया। इसी वजह से फिदेल के निधन पर मारोडोना दुख प्रकट करते हुए कहा " वे मेरे लिए पिता के समान थे। उन्होंने अपने क्यूबा का दरवाजा मेरे लिए तब खोल दिया था जब अर्जेंटीना उसे बन्द कर रहा था।" खेल की दुनिया को नज़दीक से जानने वाले लोग ये मानते हैं कि ग़रीब घर से आने वाले माराडोना जैसे मशहूर खिलाड़ियों को नशे की और ले जाने में एक ख़ास तरह गैंग और नेटवर्क भी ऑपरेट करता है। कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का इसी वजह से असमय सितारा डूब चुका है। माराडोना पहली बार फिदेल से 1987 में फुटबाल विश्व कप विजय के एक साल बाद मिले थे। उस वक्त वे अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर थे। उनकी यह मुलाकात एक आत्मीय रिश्ते में बदल गयी और यह रिश्ता उस समय और गहरा हो गया जब वे साल 2000 में लंबे समय तक नशा मुक्ति केन्द्र में रहे जहां उनका इलाज चला। वे दिल की बीमारी और कोकीन की लत के कारण लगभग मरने के कागार पर पहुंच गये थे। तब फिदेल और क्यूबा ने उन्हें इस तकलीफ से निजात दिलायी, यह चार साल का लंबा समय था जिसमें फिदेल उनकी सहायता के लिए आगे आये। क्यूबा ने उनके लिए तब दरवाजे खोले जब उनके अपने देश के अस्पतालों के दरवाजे उनके लिए बंद हो गये थे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि माराडोना की मृत्यु उनके क्लिनिक में हो जाए। जब 25 नवंबर 2016 को फिदेल इस दुनिया से चले गये तो माराडोना बुरी तरह टूट गये और उन्होंने स्वयं स्वीकारा की वे अपने पिता की मौत के बाद दूसरी बार इतना अधिक टूटे थे कि उनके खुद के आंसूओं पर उनका बस नहीं रहा था। माराडोना के फिदेल के प्रति प्रेम को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु से उनकी मुलाकात से समझा जा सकता है। जब माराडोना 2008 में भारत आए तो उन्हें देखने के लिए पूरा कलकत्ता उमड़ पड़ा। जगह-जगह उन के कटआउट लगाए गए। संयोग से उनके स्वागत समारोह में ज्योति बसु उनके साथ मंच साझा नहीं कर पाए तो माराडोना ने उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की और कहा " फिदेल आपको अपना नजदीकी मानते हैं। मैं फिदेल के प्रति काफी सम्मान रखता हूँ। इस लिहाज से मैं आपके प्रति भी मैं वैसी ही निकटता महसूस करता हूँ।" फिदेल कास्त्रो और चे-ग्वेरा दोनों द्वारा दुनिया को बदलने के लिए संघर्ष मारोडोना को आकर्षित करती थी। इन दो महान क्रांतिकारियों का टैटू माराडोना के हाथ और पैर पर अंकित था। चेग्वेरा तो माराडोना के हमवतन भी थे। चेग्वेरा के अर्जेंटीना से क्यूबा जाकर फिदेल कास्त्रो के साथ मिलकर क्रान्ति सम्पन्न करने और फिर बोलीविया में अकेले ही उनका रोमांचकारी अभियान और शहादत पूरे लैटिन अमेरिकी महादेश में लोकाख्यान का दर्जा पा चुका है। इन दोनों क्रांतिकारियों के प्रति सम्मान का कारण था कि ये दोनों अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करते थे। माराडोना जितने बड़े फुटबाल खिलाड़ी से उतने ही बड़े व प्रबल अमेरिकी साम्राज्यवाद के आलोचक भी थे। अमेरिकी साम्राज्यवाद के संबन्ध में माराडोना ने चावेज के साथ एक टेलीविजन साक्षात्कार के दौरान कहा था " वे अमेरिका से बेइन्तहा नफरत करते हैं और अमेरिका से आना वाला कुछ भी उन्हें मंजूर नहीं है। और मैं इसे पूरी ताकत से नफरत करता हूं।" माराडोना ने जार्ज बुश के दूसरी बार चुने जाने पर उनकी सार्वजनिक रूप से आलोचना की और बुश को एक 'फ्रॉड 'और 'मियामी का एक आतंकी माफिया' तक कह डाला था। माराडोना ने दुनिया भर की और विशेषकर लैटिन अमेरिका की वामरुझानों वाली प्रगतिशील और समाजवादी सरकारों का खुले रूप में समर्थन किया करते थे। फिलीस्तीन के मुद्दे पर समर्थन करते हुए उन्होंने कहा " मैं अपने हृदय से फिलीस्तीन के साथ हूँ। " साथ में यह भी जोड़ा " मैं फिलीस्तीनी जनता के हितों के रक्षक हूँ। मैं उनका सम्मान करता हूँ, उनके प्रति सहानुभति रखता हूं। मैं बिना डरे फिलीस्तीन के साथ खड़ा हूँ।" चे और फिदेल के अतिरिक्त लैटिन अमेरीका के प्रगतिशील राष्ट्रपति जिसमें वेनेजुएला के ह्यूगो चावेज और बोलीविया के इवो मोरालेस के काफी निकटवर्ती मित्र थे। चावेज के संबन्ध में उन्होंने कहा था" मैं ह्यूगो चावेज पर यकीन करता हूँ। मैं चाविस्ता हूँ। मेरे दृष्टिकोण से, चावेज और फिदेल, जो भी करते हैं वो सर्वोत्तम होता है।" माराडोना वामपंथी राजनीति के प्रति खुलकर अपनी प्रतिबद्धता का इजहार करते रहे थे। माराडोना कहा करते " हमें खरीदा नहीं जा सकता क्योंकि हम वामपन्थी हैं। हम वामपन्थी हैं अपने पैरों में, हम वामपंथी हैं अपने हाथों से, हम अपने दिमाग से वामपंथी हैं। इसे लोगों को जानना चाहिए। हम सच कहते हैं और समानता की चाहत रखते हैं। हम नहीं चाहते कि यांकी ( अमेरिका) का झंडा हमारे ऊपर थोपा जाए।" माराडोना का जन्म अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स की झुग्गी बस्ती में एक कारखाना मजदूर के घर में पैदा हुआ था । 30 अक्टूबर 1960 को अर्जेन्टीना की गरीब मजदूर बस्ती में जन्मे आठ भाई बहनों में पांचवे डिएगो माराडोना को बचपन से ही फुटबाल से बेहद लगाव था। उन्होंने स्थानीय लीग में 15 वर्ष की उम्र में खेलना शुरू किया परंतु किसी तरह वे 1978 की विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा बनने से रह गये थे और 1982 में बीमारी के कारण विश्व कप नहीं खेल सके थे। परंतु 1984 तक उन्होंने वापसी की और नापोली टीम ने उन्हें अपना हिस्सा बनाने के लिए 7.5 मिलियन डॉलर का उस समय एक रिकॉर्ड कान्ट्रेक्ट किया। अपने कौशल से माराडोना ने नापोली को दो बार इटली की खिताब विजेता टीम बना डाला। माराडोना और नापोली के रिश्ते को उनके प्रतिद्वंदी भी याद करते हैं। नापोली दक्षिणी इटली का पिछड़ा इलाका है, लेकिन नापोली की पूरी पहचान माराडोना के इर्द-गिर्द है। इस क्लब से जब माराडोना जुड़े तो इसका प्रभाव बहुत ही व्यापक था। यहां के लोगों की सफलता और उम्मीद को जगाने में माराडोना की अहम भूमिका थी। माराडोना ने 491 मैचों में कुल 259 गोल दागे थे । अपने देश अर्जेंटीना के लिए उन्होंने 91 मैच खेले जिसमें 34 गोल दागे। हमेशा 10 नम्बर की जर्सी पहनने के कारण माराडोना " EI 10" के नाम से चर्चित थे। अर्जेंटीना को 1986 में पश्चिम जर्मनी की सशक्त टीम को हराकर विश्व फुटबाल कप में विजेता बनाया। इस पूरे टूर्नामेंट में वह मात्र दो गोल ही कर पाए। एक इंग्लैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल विवादित गोल जिसे "हैंड आफ गाड' के नाम से विश्वप्रसिद्ध है जबकि दूसरा फाइनल में पश्चिम जर्मनी के खिलाफ। इस प्रकार वह दुनिया के फुटबाल प्रेमियों के एक प्रेरणाश्रोत बने। दुनिया में बहुत सारे लोग यह भी मानते हैं कि वह अबतक दुनिया में सबसे श्रेष्ठ फुटहाल खिलाड़ी है। दुनिया भर के उनके चाहने वालों ने उन्हें 2000 का फीफा शताब्दी ऑवार्ड सर्वाधिक वोट के साथ दिलवाया और इस ऑवार्ड के लिए की गयी वोटिंग में महान पेले के बाद माराडोना दूसरे स्थान पर थे। पेले या माराडोनाः कौन बड़ा खिलाड़ी? आखिर पेले और माराडोना में कौन ज्यादा बड़ा खिलाड़ी था। इसे लेकर दोनों के मध्य एक अंदरूनी प्रतियोगिता चला करती थी। यह एक ऐसी प्रतिद्वंद्विता थी जिसमें फीफा ने पक्ष लेने से इनकार कर दिया था। 20 वीं सदी के सबसे महान खिलाड़ी पेले को विशेषज्ञों ने, तो माराडोना को, ऑनलाइन वोटिंग के माध्यम से आम जनता ने चुना। तीन बार के विश्वकप विजेता पेले के संबन्ध में विचार व्यक्त हुए एक इंटरव्यू में माराडोना ने कहा " आखिर कुल 1281 गोल किसके ख़िलाफ़ बनाये ? किसके विरुद्ध आपने गोल किये? अपने घर के आंगन और उसके पीछे के भतीजों के विरुद्ध?" लेकिन इस प्रतियोगिता के पीछे एक दूसरे के प्रति प्रशंसा भी थी। जब माराडोना की मृत्यु हुई तो 80 वर्षीय पेले ने कहा " मैंने अपना प्रिय मित्र खो दिया और दुनिया ने एक लीजेंड को " साथ में यह भी कहा " मैं उम्मीद करता हूँ कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमदोनों आसमान में फुटबॉल खेलेंगे।" गालियानो ने फुटबॉल में अनोखपन को समाप्त कर एक खास किस्म के फुटबॉल ( कला की जगह ताकत व क्रूरता) को थोपने की कोशिश के खतरे के संबन्ध में आगाह किया था " अनेक बरसों से फुटबॉल अलग-अलग अंदाज में खेला जाता रहा है, हरेक इंसान की शख्सीयत की अनोखी अभिव्यक्ति और इस फर्क को, अलग-अलग खासियतों को बचाकर रखना मुझे पहले के किसी दौर के मुकाबले आज ज्यादा जरूरी मालूम होता है। यह फुटबॉल में और बाकी सभी चीजों में थोपी गई हमशक़्ली का वक्त है। " डिएगो माराडोना फुटबॉल के साथ साथ खेल के साथ राजनीति में इस 'थोपी गई हमशक्ली' के प्रतिपक्ष की तरह खड़े नजर आते हैं। इसलिए दुनिया भर के न सिर्फ खेलप्रेमियों बल्कि दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिशों में लोगों को ये एहसास हुआ कि उन्होंने अपना एक हमदर्द खो दिया है। (अनीश अंकुर, पटना स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।
c697fb4074092fe0898f0e82c694b754d2b614e982ff4cf6b5ba25df7d767578
pdf
Stat, Res: Re: AGRAHAYANA 28, 1902 (SAKA) Dleapses of Payment of Bonite (4cmdi.). Ord. and Payment of Bonus (2nd Amdt.) Bill mitting to the verdict of the highest judiciary of this country. That is what is important. In the Statement of Objects and Reasons you have said this: "The trade union organisations as also the employers' organisations had been urging that the questions with regard to the payment of bonus should be settled and there must be stability in matters of minimum bonus, maximum bonus and the formula for calculation of bonus." Now may I ask you, is there any stability at all, so far as your policies are concerned? In 1905 you came out with a Payment of Bonus Act. In September, 1975 you came out with the Bonus Ordinance depriving the employers and workers of their right to bonus. With the deepening of the economic crisis can you assure us that in the next 2 or 3 years, with all these Jimitations, with all the lacuna and the detects in the Bill, you will continue to pay bonus to the workers and employees as per the provisions of thi Bill? Can you guarantee us on this point? Then only I can say that there is some stability. But the past experience which we have got has shown to us that you do not at all hesitate to throw away your own legislations into the waste-paper basket and treat them as scrape paper. The Trade Union Organisations in this country have come to stay. Don't pooh-pooh the working class. The very system which you have created has given birth to the working class. If you deprive the working class of their legitimate dues they will take up cudgels against you and fight for their rights. With these words I conclude my speech. Thank you. श्री मनोर बम भक्त (अंडमान और निको बार द्वीपसमूह ) : सभापति महोदय, पेमेन्ट भाफ बोनस बिल पर हो रही चर्चा में मैंने अपने से पूर्व बोलने वाले सम्मानित सदस्य की बातों को बड़े गौर से सुना। मुझे भाश्वर्य लगा इस बात से कि मंत्री महोदय ने जिस तरीके से समझाने की कोशिश की उसको उन्होंने नहीं समझा और उन्होंने इस पार्लियामेंट को समझ लिया कि यह कोई ट्रेड यूनियन की जनरल बौडी की मीटिंग है ऐसा समझ कर उन्होंने अपनी बात कही । एक बात हमको इस मामले पर विचार करते वक्त ध्यान में रखनी होगी कि केन्द्र में भाज जो सरकार बनी हुई है, यह मेहनती मजदूर वर्ग के लोगों की भलाई करने के लिये वचनबद्ध है इसलिए हम लोगों का हर कदम जिस तरीके से और जैसे भी हम उठाते है, वह भ्राम मजदूर वर्ग की भलाई को देखते हुए किस तरीके से उनकी हालत का सुधार किया जाये, उठाया जाता है । अभी-अभी जो सन्मानित सदस्य ने बताया, उनको लगा कि यह विधेयक बंगाल को स्थिति को देखकर बनाया गया और सारे भारत के लिये बनाया है, यह उचित नहीं है क्योंकि जब इस देश का पार्लियामेंट है, हमको पिग-मैलियन प्वाइन्ट से लेकर काश्मीर तक सारी जगहों की वकिंग क्लास की जो हालत है, उसको देखते हुए, ग्राम जनता को हम क्या दे सकते है, कितना इस देश का भंडार उसको संभाल सकता है, यह सब देखकर हमको काम करना होगा । इसलिए मैं मंत्री महोदया को यह कहना चाहता था कि उन्होंने बहुत अच्छा कदम उठाया है । मैं उनके इस बिल का समर्थन करने के लिये उठा हूं । इस बिल की जो दिशा है, उससे मजदूर वर्ग के लोगों का सारे देश में भला हुआ है। यह उनकी भलाई करेगा और वर्किंग क्लास को भागे ले जाने में सहायक होगा। मैं यह नहीं बोलता हूं कि इससे सारा मामला खत्म हो गया, मजदूरों की समस्या खत्म हो गई, जो वह चाहते है, Stat Rea Re: Disapp. DECEMBER 19, 1980 of Payment of Bonus (Amdt.) Ord. and Payment of Bonus (2nd Amdt.) Bill [श्री मनोरंजन भक्त] वह सब उनको मिल जायेगा लेकिन यह अभी शुरुआत है, और अबर बिरोधी पक्ष सहयोग देगा तो इससे भागे और भी बहुत लाभ हो सकता है। मैं एक बहुत दूरदराज इलाके अंडमान निकोबार से प्राता हूं। वहां पर हमारा फारेस्ट डिपार्टमेंट खुद एक सा-मिल चला रहा है, उस फारेस्ट डिपार्टमेंट को कमशयल डिपार्टमेंट डिक्लेयर किया गया है, लाभ-नुकसान साथ चलता है। जो लोग उस सा-मिल में काम करते हैं, वह इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट सेतो तल्लुक रखते हैं, लेकिन बोनस के वक्त उनको बोला जाता है कि बोनस नहीं मिलेगा । हर राज्य में एक इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड है, लेकिन हमारे यहां इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड नहीं है, वहां इलैक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट है जो कि खुद ही इलैक्ट्रिसिटी का काम करता है। वहां के वर्कस क लिए बोनस की कोई बात नहीं है। इसी तरह हमारे यहां स्टेट ट्रांस्पोर्ट है, उसका भी कार्पोरेशन नहीं है। उस ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट के वर्कर्स को भी बोनस नहीं मिलता है । इसलिये मैं सुझाव देना चाहता हूं कि जो भी बोनस वर्ग की बात हमने जा रहे हैं वह सबको मिलना चाहिये। वह किसी विशेष वर्ग के लिये नहीं होना चाहिये, बल्कि उससे कोई वर्ग छूटना नहीं चाहिये इसलिए जैसा अभी भाई० एन० टी० यू० सी० ने प्रस्ताव पास किया है, आप जानते है कि वह शुरू से ही मजदूर वर्ग की भलाई करने में लगा है, इस देश में वह मजदूरों का एक केन्द्रीय संगठन है और भाज भी देश में सबसे बड़ा संगठन है, उसको मजदूरों ने अपना विश्वास दिया है । उस बाई० एन० टी०यू० सी० ने अपने प्रस्तान में कहा कि यह बोनस सब को मिलना चाहिये । मैं भी यही कहूंगा कि अगर आप बोनस देते हैं तो सब को दीजिये, बराबर दीजिये अगर नहीं देते है तो कोई बात नहीं लेकिन बराबर के हिसाब से होना चाहिये । एक बक्त में जरूर दोहराना चाहूंगा क्योंकि विरोधी दल हमेशा ही बोनस को लेकर हर साल में कम से कम 6 महीने बोनस के झगड़े को लेकर समय लगा देता है, उस झगड़े में 6 महीने चले जाते है, प्रोडक्शन पर उसका असर पड़ता है, इंडस्ट्रीज में जो काम होता है, उस पर उसका प्रभाव पड़ता है, मैं कहता अगर भ्राप कहते है कि 20 परसेंट जो मैक्सीमम है, वह दीजिये तो ठीक है दीजिये उसको उठाकर अनलिमिटेड कर दीजिये, इसका मतलब है. कि 100 परसैट अगर कोई जबर्दस्ती कर, प्रैशर डाले भगर यही ग्राप करना चाहते हैं तो क्यों नहीं आप वोनस की बजाय अच्छी वेज पालिसी लेते हैं ? वेजेज के लिये क्यों नहीं बातें करते हैं, बोनस को लेकर क्यों लड़ाई करते हैं? आप वेज पालिसी के लिये बोलिये कि इस वेज में नहीं चलता है, मीड बेस्डवेज होना चाहिये, उसको लेकर झगड़ा कीजिये, उस को लेकर मजदूर वर्ग का जो परमानेन्ट बेनेफिट होता है, उसको उठाइये आप इस बोनस के झगड़े को लेकर राजनीतिक फायदा उठाने के लिये यह काम क्यों करते हैं ? PROF. MADHU DANDAVATE: (Rajapur) : Mr. Chairman, I have carefully listened to the speech of our colleague whɔ has given a disapproval motion and also to the speech of our Labour Minister, Shrimati Ram Dulari Sinha. I am rather surprised that our friend, Shri Jatiya, and others have given a disapproval motion. I think, probably they gave it as a ritual not realising that if we disapprove this Bill, in that case whatever limited
5e241c3051dbde8dd583e346e8a00589e924551c
web
Nord 2 में कुछ हल्के अपग्रेड करने के बाद नए OnePlus Nord 2T 5G में लगभग सबकुछ उपलब्ध हो जाता है। वनप्लस का पहला 'T' मॉडल कोई ब्रैंड न्यू फोन नहीं है, लेकिन इसमें बेसिक्स अच्छे हो गए हैं जैसे- एक अच्छा मिडरेंज प्रोसेसर, एक अपग्रेडेड फास्ट चार्जिंग सिस्टम, एक क्वालिटी डिस्प्ले और क्षमतावान प्राइमरी कैमरा जिसमें OIS का सपोर्ट भी मिल जाता है। बल्कि यूं कहें, इसमें वो सब कुछ है जो किसी यूजर को थोड़े कम पैसों यानी 28,999 रुपये की शुरुआती कीमत में चाहिए होता है। (Review), जो इससे भी कम कीमत में इसी तरह के हार्डवेयर ऑफर करता है। तो फिर Nord 2T 5G कैसे अपने सेग्मेंट में मुकाबला करता है और क्या ये एक परफेक्ट मिडरेंजर स्मार्टफोन है? मैंने कुछ हफ्ते इस फोन को इस्तेमाल किया और यहां पर मैं बता रहा हूं कि मुझे इस बारे में क्या लगता है। अपने 8GB RAM और 128GB स्टोरेज वेरिएंट के साथ 28,999 रुपये से शुरू होता है और 12GB RAM व 256GB स्टोरेज के साथ 33,999 रुपये तक जाता है। फोन ग्रीनिश जेड फॉग और ग्रे शेडो फिनिश में आता है। मुझे रिव्यू के लिए इसका 12GB का ग्रे शेडो वेरिएंट मिला। OnePlus Nord 2T 5G के डिजाइन में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं दिखता है, खासकर इसलिए क्योंकि यह फोन का 'T' वर्जन है, जिससे उम्मीद की जाती है कि यह केवल हार्डवेयर में कुछ हल्के बदलावों के साथ आएगा। फिर भी, इसमें डिजाइन के अंदर कुछ डिटेल्स बदले गए हैं जो कि रियर में ही ज्यादा दिखते हैं। कैमरा मॉड्यूल में अब दो सर्कुलर कटआउट दिखते हैं। एक में प्राइमरी कैमरा है और दूसरा अल्ट्रावाइड और मोनोक्रोम कैमरा के लिए दिया गया है। फोन का ले-आउट साफ सुथरा दिखता है लेकिन मॉड्यूल फोन की बॉडी से हल्का सा ज्यादा बाहर निकला हुआ है। इससे फोन समतल जगह पर रख देने पर डगमगाता है। में हटा दिया गया था। डिस्प्ले में हल्के कर्व्ड किनारे हैं और यह पूरी तरह से फ्लैट नहीं है। यह अच्छा ग्रिप एक्सपीरयंस देता है। सेल्फी कैमरा के लिए इसमें एक होलपंच दिया गया है। फिंगरप्रिंट स्कैनर भी डिस्प्ले में दिया गया है जो भरोसेमंद है। डिस्प्ले में Corning Gorilla Glass 5 का प्रोटेक्शन है, जिस पर फिंगरप्रिंट आसानी से पड़ जाते हैं, लेकिन जल्दी से साफ भी किए जा सकते हैं। मुझे इसकी डिस्प्ले का मोटा बेजल पसंद नहीं आया। यह बाकी तीनों साइड्स को देखते हुए काफी मोटा सा लगता है। OnePlus Nord 2T 5G में MediaTek Dimensity 1300 प्रोसेसर दिया गया है। पिछले मॉडल में Dimensity 1200-AI SoC दिया गया था। इस मॉडल के साथ यही एक मेन अपग्रेड है। फोन में LPDDR4X RAM और UFS 3. 1 स्टोरेज दी गई है। इसमें डुअल सिम ट्रे है जिसमें दो 5G नैनो सिम लगाई जा सकती हैं। कम्युनिकेशन के लिए इसमें Wi-Fi 6, Bluetooth 5. 2, NFC का सपोर्ट है। फोन में 4,500mAh बैटरी और 80W फास्ट चार्जिंग का सपोर्ट है। ध्यान रहे कि Nord 2 में 65W फास्ट चार्जिंग दी गई थी। फोन में कोई IP रेटिंग नहीं मिलती, जबकि यह फीचर मिडरेंज में अब आम हो गया है। फोन Android 12 बेस्ड OxygenOS 12. 1 पर चलता है। सॉफ्टवेयर वनप्लस जैसा ही है लेकिन अबकी बार मैंने एक अजीब चूक इसमें देखी कि, इसमें लाइव वॉलपेपर नहीं दिए गए हैं, केवल स्टेबल वॉलपेपर मिलते हैं। सपोर्ट के लिए कंपनी दो बड़े एंड्रॉयड अपडेट और तीन साल के सिक्योरिटी अपडेट का वादा करती है जो कि एक मिड रेंज डिवाइस के लिए अच्छी बात है। OnePlus ने अपनी परंपरा को जारी रखते हुए कम से कम ब्लॉटवेयर वाला स्मार्टफोन पेश किया है। थर्ड पार्टी एप्स में मुझे इसमें केवल Netflix मिला। मुझे अनचाहे नोटिफिकेशन नहीं मिले। बाकी का सॉफ्टवेयर कस्टमाइज करने लायक है। थीम इंजन वॉलपेपर के कलर्स को अपने आप पिक कर लेता है और उसे विजेट्स और कीबोर्ड पर अप्लाई कर देता है। लेकिन वही कलर सिस्टम के एक्सेंट कलर पर एप्लाई नहीं होता, इसे पर्सनलाइजेशन मेन्यु से मैन्युअली अप्लाई करना पड़ता है। से कम थे जिसने AnTuTu पर 7,29,331 और Geekbench के सिंगल और मल्टी कोर टेस्ट में क्रमशः 983 और 3,074 पॉइंट्स का स्कोर किया था। फोन की गेमिंग परफॉर्मेंस अच्छी है और खेलते समय फोन ज्यादा गर्म नहीं होता। मैंने इसमें Call of Duty: Mobile और Asphalt 9: Legends को खेलकर देखा। दोनों ही गेम्स डिफॉल्ट सेटिंग्स में स्मूदली चले। ग्राफिक सेटिंग्स को मैक्सिमम करने पर भी परफॉर्मेंस में कोई कमी नहीं दिखी। फास्ट पेस टाइटल खेलते समय भी डिस्प्ले का 180Hz का रिफ्रेश रेट पर्याप्त रहा। फोन में 6. 43 इंच का AMOLED पैनल है जिसका रिफ्रेश रेट 90Hz है। कंपनी का कहना है कि यह HDR10+ सर्टिफाइड है। डिफॉल्ट विविड कलर सेटिंग पर डिस्प्ले सैचुरेटेड कलर्स पैदा करता है। नैचरल मोड पर कलर्स रियल दिखते हैं। आउटडोर में डिस्प्ले सही मात्रा में चमकता है लेकिन इसका एम्बियंट लाइट सेंसर इनडोर में आने पर ब्राइटनेस को कुछ ज्यादा ही डिम कर देता है और मुझे अंदर आने के बाद ब्राइटनेस को बार में जाकर ऊपर करना पड़ता था। इसका HDR10+ सर्टिफिकेशन ज्यादा काम का नहीं लगा। Netflix जैसे ऐप्स में डिस्प्ले एचडीआर रेटेड डिटेक्ट नहीं हुआ। YouTube पर एचडीआर कंटेंट देखते समय कलर बैंडिंग महसूस हो रही थी। SD कंटेंट शार्प दिखा और ब्लैक काफी डीप दिख रहे थे। स्टीरिओ स्पीकर्स का साउंड अच्छा रहा लेकिन हाई वॉल्यूम पर आवाज हल्की फट रही थी। OnePlus Nord 2T 5G की बैटरी लाइफ अच्छी है। साधारण इस्तेमाल में फोन दो दिन आराम से निकाल देता है जिसमें कुछ गेमिंग भी शामिल है। हैवी यूसेज में 2 घंटे की गेमिंग और आधे घंटे के कैमरा यूज के साथ फोन डेढ़ दिन चल जाता है। एचडी वीडियो लूप टेस्ट में फोन 22 घंटे 55 मिनट चला जो कि काफी प्रभावित करने वाला है। इसके साथ आने वाले चार्जर के साथ फोन 0 से 55 प्रतिशत 15 मिनट में चार्ज हो गया और 30 मिनट में पूरी तरह से चार्ज हो गया। OnePlus Nord 2T 5G में तीन रियर कैमरा दिए गए हैं। इसमें 50 मेगापिक्सल का Sony IMX766 प्राइमरी सेंसर है जिसमें OIS का सपोर्ट है। साथ में 8 मेगापिक्सल का अल्ट्रावाइड कैमरा और 2 मेगापिक्सल का मोनोक्रोम कैमरा है। सेल्फी के लिए फोन में 32 मेगापिक्सल का कैमरा मिलता है। कैमरा इंटरफेस हाल ही के वनप्लस फोन्स के जैसा ही है। कुछ ऑप्शन एलिप्सिस बटन में मिनी स्लाइड आउट मेन्यु में छुपा दिए गए हैं। यह वैसा ही है जैसा हाल ही में लॉन्च हुए Oppo और Realme डिवाइसेज में मिलता है। डे-लाइट में लिए गए फोटो शार्प और क्लियर थे जिनमें डाइनेमिक रेंज अच्छी थी, लेकिन डार्क एरिया में डिटेल्स कुछ कम मिलीं। कलर्स सटीक दिखे लेकिन ये मेरे द्वारा सेट की गई कलर प्रोफाइल पर निर्भर था कि कलर कैसे दिख रहे हैं। विविड में सेट करने पर ये ओवरसैचुरेटेड दिख रहे थे। इसका 2X डिजिटल जूम काफी चौंका देता है, जिसने पर्याप्त रोशनी में काफी क्लियर शॉट लिए। अल्ट्रवाइड कैमरा कम डिटेल्स के साथ फोटो लेता है। अधिक चमकीले स्थानों पर फोटो में किनारों पर पर्पल छटा दिख रही थी। प्राइमरी कैमरा एक डेडिकेटेड मैक्रो कैमरा की जगह नहीं ले सकता है, फिर भी मैंने कुछ दूरी पर से प्राइमरी कैमरा के साथ फूलों के अच्छे क्लोज शॉट्स लिए जो काफी शार्प दिख रहे थे। सेल्फी में शार्पनेस कुछ ज्यादा दिख रही थी लेकिन कुल मिलाकर डाइनेमिक रेंज अच्छी थी। सेल्फी में पोर्ट्रेट शॉट्स में एज डिटेक्शन अच्छा था, लेकिन डाइनेमिक रेंज लिमिटिड थी और बैकग्राउंड ओवरएक्सपोज हो रहा था। लो- लाइट में अल्ट्रा वाइड कैमरा इस्तेमाल करने लायक फोटो लेता है। प्राइमरी कैमरा भी शार्प फोटो लेता है जिसमें डिटेल और डाइनेमिक रेंज अच्छी रही। बहुत ज्यादा कम रोशनी में ही मुझे इसका डेडिकेटेड नाइट मोड इस्तेमाल करना पड़ा। इसके बारे में मैं इतना ही कहूंगा कि फोन की लो लाइट परफॉर्मेंस हमेशा प्रभावित करने वाली नहीं मिली। नाइट मोड में इसने इमेज को बेहतर डाइनेमिक रेंज और कम नॉइज के साथ कैप्चर किया लेकिन शार्पनेस कुछ ज्यादा हो गई। मैंने Realme 9 Pro+ 5G में इससे ज्यादा अच्छी लो-लाइट कैमरा परफॉर्मेंस देखी है। फोन 1080p वीडियो 30fps पर रिकॉर्ड करता है जिसमें हल्की सॉफ्टनेस थी लेकिन स्टेबलाइजेशन कमाल की मिली। 60fps के 1080p वीडियो में कम डिटेल्स मिलीं। 4K में वीडियो रिकॉर्ड करते समय 30fps पर बेस्ट रिजल्ट मिले। वहीं, लो-लाइट में वीडियो रिकॉर्डिंग करते समय 4K में बेस्ट रिजल्ट मिले। लो-लाइट में 1080p फुटेज सॉफ्ट दिखी और चलते समय शेक भी हो रही थी। जैसे स्मार्टफोन इस प्राइस पर ज्यादा फीचर्स जैसे वायरलेस चार्जिंग और IP53 रेटिंग दे रहे हैं। अगर आप Nord 2T 5G के अलावा दूसरे ऑप्शन देख रहे हैं तो iQoo और Realme जैसे ब्रैंड्स हैं जो ज्यादा वैल्यू फॉर मनी स्मार्टफोन दे रहे हैं। iQoo Neo 6 में पावरफुल Snapdragon 870 SoC है, 120Hz AMOLED डिस्प्ले है और 4,700mAh बैटरी है। यह 29,999 रुपये में आता है। Realme 9 Pro+ 5G में Dimensity 920 SoC है, समान प्राइमरी कैमरा, एक मैक्रो कैमरा और समान 90Hz AMOLED पैनल है लेकिन यह 6GB वेरिएंट के साथ 24,999 रुपये से शुरू होता है।
f55bfb428712764f3c8d8e16fdb35b10c09c61ab
web
Domestic Workers Strike Pune History: 16 जून 2011 को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के "कन्वेंशन 189" पारित हुआ था और उसी आधार पर इस दिन को अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. लेकिन इस अधिवेशन के 11 साल गुजर जाने के बाद भी भारत में राष्ट्रीय स्तर पर घरेलू कामगारों को लेकर कोई कानून नहीं बना है. आज भी घरेलू कामगार सम्मानजनक कार्य स्थिति एवं ट्रेड-यूनियन अधिकार की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे है. इस अवसर पर आज हम महाराष्ट्र के पुणे शहर की घरेलू कामगार बहनों की कहानी आपके साथ साँझा करना चाहते है, जिन्होंने 1980 में न सिर्फ अपने अधिकारों को लेकर हड़ताल की, बल्कि संगठित संघर्ष के जरिये उन्होंने वहां, कई जगह, घरेलु कामगारों के लिए सवेतनिक छुट्टी, वेतन मे वृद्धि, बोनस और ग्रेजुटी के अधिकारों को भी हासिल किया. 1980 में पुणे शहर (महाराष्ट्र) में घरेलू कामगारों की एक हड़ताल हुई। इसमें शमिल होने वालों में अधिकांश महिलाएं थीं। बीमार होने की स्थिति में सवेतनिक छुट्टी, और वेतन मे वृद्धि की मांग के साथ यह आन्दोलन शुरू हुआ और यहीं से "पुणे शहर मोलकर्णी (घरेलू कामगार) संगठन" का गठन हुआ। इसके बाद नियोक्ताओं के साथ लंबी बातचीत हुई जिसके परिणामस्वरूप शहर में इस संघ की महत्वपूर्ण जीत हुई और व्यक्तिकेन्द्रित कार्यसंबंधों को पेशेवर, संविदात्मक कार्यसंबंधों में बदल दिया गया। यह शायद देश में पहली बार हुआ था, जब घरेलू कामगारों ने हड़ताल कर दी थी और एक शहर-व्यापी संगठन बनाया था। सन 1980, फरवरी महीने का एक दिन। खंडारेबाई नाम की एक घरेलू कामगार,, जो पुणे शहर की करवे रोड पर एक घर में काम करती थी, अचानक बीमार पड़ गई और छुट्टी पर चली गई। जब वह काम पर वापस आई, तो उसे पता चला कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। जब उसने इस बारे में पूछताछ की तो उसे मालकिन ने बताया कि उसने चार दिन की छुट्टी बोलकर वो छह दिन तक काम पर नहीं आई थी। इसलिए उन्होंने उसकी जगह किसी अन्य घरेलू कामगार को काम पर रख लिया। खंडारेबाई ने इस बारे में अन्य घरेलू कामगारों, जैसे पद्माताई सुतार और सुभद्राताई कंडारे से बातचीत की। तीनों ने फैसला लिया कि वें इस बारें में इलाके की सभी घरेलू कामगारों से चर्चा करेंगे। खंडारेबाई के साथ हुए बर्ताव को देखकर अन्य घरेलू कामगारों को काफी गुस्सा आया, क्योंकि उनका अनुभव भी खंडारेबाई जैसा ही रहा था। मजदूरों के समूह ने सबसे पहले उस महिला को घेरा, जिसने खंडारेबाई की जगह ली थी और सभी ने उसे काफी खरी-खोटी सुनाई। वे उसे दुसरों के दुखों का फ़ायदा उठाने वाली के रूप में देख रहे थे। इस समूह की एकमात्र जीवित महिला "कंदारे" घटना को याद करते हुए बताती हैंः पड़ोस में एक मोलकर्णी [खंडारेबाई] काम करती थी। अगले घर की एक और मोलकर्णी ने उसका काम ले लिया। फिर हमने उससे पूछा, "तुमने उसका काम क्यों ले लिया?" उसने बड़ी रुखाई से जवाब देते हुए कहा कि, "इससे तुम्हें क्या दिक्कत है?" उसके इस वर्ताव पर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उससे कहा कि वह अभद्र भाषा का प्रयोग न करे। मैंने कहा, "तुमने उसका काम लिया, अब उसे उसका काम वापस दे दो और वह घर छोड़ दो।" पर उसने कहा कि वह घर नहीं छोड़ेगी और वहीं काम करती रहेगी। फिर हम उससे लड़े। मैंने उसे एक हाथ से पकड़ा और काफी मारा। उसके बाद हम बाहर आए और वाड़ा के गेट पर शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की। वहां एक व्यक्ति ने कहा कि घटना घर के अंदर हुई और इसलिए कोई शिकायत दर्ज नहीं की जायगी। इसके बाद हम सभी परिसर से बाहर आ गए। एक तरफ कई अन्य मोलकर्णियां खड़ी थीं, उन्होंने हमसे पूछा, "क्या हुआ?" हमने उन्हें बताया कि एक दूसरी मोलकर्णी ने हमारी सहेली का काम ले लिया है और हमारा उससे झगड़ा हुआ। तभी हमने विरोध में एक जुलूस निकालने का फैसला लिया, और हमारे साथ कुछ अन्य लोग भी शामिल हो गए। फिर हम चर्चा करने लगे कि आगे क्या करना है? हम सभी फिर वहां गए जहां खंडारेबाई काम करती थी। घर की मालकिन से हमने खंडारेबाई को नौकरी वापस देने की अपील की। लेकिन जब हमारी अपील को नही सुना गया, तो हम सब वहां से बाहर निकल आए और रास्ते में मिलने वाली सभी घरेलू कामगारों को घटना के बारे में बताया। यह भी बताया कि हम सब हड़ताल पर हैं। देखते ही देखते एक घंटे के भीतर करवे रोड की तक़रीबन 150 महिलाओं ने अचानक काम बंद कर दिया। यह काम से बर्खास्तगी के खिलाफ एक स्वतःस्फूर्त हड़ताल थी। पुणे शहर में घरेलू कामगारों की हड़ताल और संगठन के बारे में बताने वाली यह महिला - कंदारे अब तक़रीबन 60 साल की हो गई है और अभी भी घरेलू कामगार के रुप में काम करती हैं। कंदारे जी पुणे शहर मोलकर्णी संगठन के सबसे पुराने स्थायी सदस्यों में से एक है। इस संगठन को इसी हड़ताल के परिणामस्वरूप बनाया गया था। इस बीच, खंडारेबाई का निधन हो गया। पहली नजर में ऐसा लगता है कि बर्खास्तगी की एक ही घटना के जवाब में महिलाएं हड़ताल पर चली गईं थी। लेकिन अगर इसको ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि घरेलू कामगारों का यह क्षेत्र लम्बे समय से उपेक्षित रहा है। किरण मोगे, जो अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एडवा) से संबंधित एक नारीवादी कार्यकर्त्ता एवं पुणे के घरेलू कामगारों के अधिकारों को लेकर मुखर रही हैं, उन्होंने हड़ताल के सामाजिक और आर्थिक संदर्भ पर चर्चा करते हुए बताया हैं किः "मुझे लगता है कि इस "स्वतःस्फूर्त हड़ताल" को उस समय के आर्थिक संकट के सन्दर्भों में देखा जाना चाहिए । वे (घरेलू कामगार) खुद को बहुत शोषित महसूस कर रहीं थीं, और हालांकि उन्होंने इस मुद्दे को सीधे कम वेतन से नहीं जोड़ा, लेकिन उन्हें लगने लगा था कि उनकी मजदूरी उनके अपने जीवन को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है ... उसी से यह चेतना पैदा हुआ।" बढ़ती महंगाई के बावजूद वर्षों से मजदूरी में खास वृद्धि नहीं हुई थी और श्रमिकों को सवेतनिक छुट्टी का कोई अधिकार नहीं था। मजदूरों ने महसूस किया कि उनके साथ बहुत अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा है। इसके बावजूद कि इन महिलाओं को राजनीतिक संगठन का कोई पूर्व अनुभव नहीं था, उन्होंने खुद की ताकत को पहचाना और हड़ताल करने का फैसला किया। उस समय पुणे के औद्योगिक कर्मचारियों ने भी ऐसी हड़ताल कई बार की हुई थी, उनको देखते हुए इन महिलाओं को पता था कि हड़ताल के परिणामस्वरूप वेतन में वृद्धि हो सकती है। लेकिन उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि आंदोलन कैसे करना है या हड़ताल के तौर पर आगे कैसे बढ़ना है? इसे कब तक जारी रखना होगा, एवं इसके क्या परिणाम होंगे ? वे जानती थीं कि न केवल कारखाने के कर्मचारी बल्कि डॉक्टर, नर्स, अधिकारी और अन्य भी अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल करते हैं, जुलूस निकलतें हैं. जब उनका जुलूस लक्ष्यहीन रूप से आगे बढ़ रहा था, तब वे महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ अन्य हिस्सों में सक्रिय लाल निशान पार्टी से जुड़े एक यूनियन कार्यकर्ता भालचंद्र केरकर से मिलीं। कंदारे के शब्दों में, "हम चलते रहे और फिर हम केरकर से मिले। उन्होंने हमको रोका और पूछा कि क्या हुआ? हमने उन्हें घटना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हम चिंता न करें और काम पर वापस न जाएं। फिर हमारा ग्रुप प्रभात रोड, और फिर कर्वे रोड गया, और फिर हमने एक बैठक की। कुछ समय बाद भोसलेताई और उनके दोस्त भी हमारे साथ हो गए। इसके बाद, हमने हर दिन अपना विरोध और जुलूस शुरू किया ... इस तरह यह सब शुरू हुआ।" पुणे शहर मोलकर्णी संगठन और श्रमिक महिला मोर्चा की वर्तमान महासचिव एवं वकील मेधा थत्ते ने याद करते हुए बताया - कैसे हड़ताली घरेलू कामगारों को एक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई। "पहली हड़ताल के बाद हमने इसपर चर्चा की और महसूस किया कि ऐसे तो यह आंदोलन नहीं चलेगा, हमें पहले कुछ ठोस मांगें रखनी पड़ेगी। हड़ताल इसलिए हुई क्योंकि खंडारेबाई को काम से निकाल दिया गया था, मजदूरी बहुत कम थीः यह सब आंदोलन के लिए पर्याप्त कारण है। लेकिन सवाल यह था कि नियोक्ताओं तक कैसे पहुंचा जाए? हमने महसूस किया कि हमें यह तय करने के लिए नियमित रूप से मिलना चाहिए और चर्चा करनी चाहिए कि हम क्या चाहतें है, हमारी मांगें क्या हैं? और हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? बात यह भी थी कि अगर हम नियमित रूप से मिलते हैं, तो इसका मतलब हैं कि हम एक संगठन के रुप में हैं। जब हमने खुद से पूछा कि क्या हमें खुद को संगठित करना चाहिए, तो हम सभी लोग सहमत हो गए। लाल निशान पार्टी की भागीदारी के साथ, स्थानीय निर्वाचित प्रशासक के घर पर हर शाम सैकड़ों घरेलू कामगारों की बैठकें आयोजित होती थीं। मजदूर बहनों ने शारीरिक श्रम के तनाव, अपर्याप्त मजदूरी, काम से निकाले जाने, अवैतनिक मजदूरी के कष्ट, जीवन यापन की बढ़ती लागत से उत्पन्न होने वाली परेशानी और घरेलू कठिनाइया आदि के बारें में अपने अनुभवों को साझा करना शुरू कर दिया। ऐसी ही एक कहानी एक घरेलू कामगार की थी जो लगभग पच्चीस वर्षों से एक वकील के परिवार में काम कर रही थी। वकील एक छात्र से एक विवाहित व्यक्ति, फिर एक पिता और अंत में दादा बन गया। लेकिन इस पूरी अवधि में घरेलू कामगार महिला का वेतन 10 रुपये से 12 रुपये प्रति माह ही रहा। इन बैठकों में भाग लेने वाले कई महिलाएं बहुत बूढी थीं और लम्बें समय से दूसरों के घरों में काम कर रही थी और उनके पास जीवन में और कोई विकल्प नहीं था और वे बहुत कम वेतन के बावजूद अपनी नौकरी पर लम्बे समय से बनीं ही थीं। कईयों ने बासी भोजन दिए जाने की बात बताई, मानों मकान मालिक ऐहसान कर रहा हैं। साथ ही नियमित रूप से मिलने वाले अपमान के बारें में भी बात होतीं थीं। कई घरेलू कामगार महिलाओं ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि किसी -किसी घर में काम करते वक्त अगर एक भी शीशे का ग्लास टूट जाता है तो उन्हें बहुत बुरे तरीके से डांटा और प्रताड़ित किया जाता था। मजदूरों को छुट्टी कर लेनें पर उस दिन के लिए भुगतान नहीं मिलता था। यानी कोई बीमारी की हालत में या किसी इमरजेंसी की हालत में काम पर नहीं जा पाए तो उस दिन की तनख्वाह महीने में काट के दी जाती थी। बहुत सी महिलाये जो घरेलु कामगार के रूप में काम करती थी, या तो विधवा थी या फिर ऐसी महिलाये थी जिनके पति उन्हें अपने हाल पर छोड़ गए थे। कुछ महिलाये ऐसी भी थी जिनके वेतन से पूरा परिवार चल रहा था और उनके पति भी उनके वेतन पर निर्भर थे। यह महिलाये झोपड़पट्टी में रह रही थी, जहाँ न तो बिजली थी और न ही पानी। इन महिलाओं को अपने घर के भीतर और बाहर, दोनों जगह काम करना पड़ता था। ऐसे में बहुत सी महिलाओ की बेटियां भी उनके साथ काम पर आने लगी। गरीबी की हालत में होने का मतलब यह भी था कि अगर घरेलु कामगार अपनी मांगो के लिए किसी हड़ताल पर जाते भी है, तो वह हड़ताल छोटी और सफल होनी चाहिए, क्यूंकि आस पास के माहौल से यह स्पष्ट था कि उनकी जगह अन्य कामगार रखने में मालिक/ मालकिन को ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा । कुछ इलाके ऐसे भी थे जहाँ महिलाओ ने २० दिन तक जोश में हड़ताल करी, जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं करी गयी। आखिर में इन महिलाओ को काम पर दुबारा बुलाया गया और इनकी नयी और ज़्यादा वेतन की मांग को पूरा किया गया। यह अद्द्भुत था क्यूंकि भारत में मालिक/ मालकिन और कामगार के बीच का रिश्ता इस प्रकार है कि मालिक/ मालकिन झुकने को तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि से देखा जाए तो घरेलु काम ऐसा काम है जो मालिक/ मालकिन खुद नहीं करना चाहते और न ही इस काम को इज़्ज़तदार मानते है। मालिक -मालकिन खुद बाहर काम करने जाते है और उनके बच्चे स्कूल जाते है। इस संघर्ष की पीड़ा और परेशानी के दौरान मजदूरों के गीत भी पैदा हुएं, जो आक्रोश और विद्रोह की भावना से भरे हुए थे। ऐसे ही एक गीत थाः आओ रे हीरा, आओ रे मीरा। जवाब दो हमारे सवालों का, ओ इंदिरा की सरकार। ओ वेणुबाई, क्यों हो तुम इतनी परेशान? आओ हमारे साथ, उठाये मिलकर हम आवाज़! इस संघर्ष और विरोध की खबर पुणे और मुंबई के सकाळ , केसरी और प्रभात जैसे मशहूर अखबारों में भी देखने को मिली । इन खबरों के बारें में बात करते हुए किरण मोगे ने कहा, " घरेलु कामगार समाज का वो हिस्सा है जिन पर आम तौर पर मीडिया का ध्यान नहीं जाता । इसलिए जब महिलाएं सार्वजनीक रूप से हड़ताल पर चली गयी, तो मीडिया में भी एक उत्सुकता पैदा हुईं। अचानक ही वो महिलाये जिनको कभी कामगार माना ही नहीं जाता था, सड़को पर आ गयी और अपने काम, अधिकारों और हक़ की बात करने लगी।" इन् महिलाओ ने खुद को "मोलकर्णी" बोलना शुरू कर दिया। पुणे शहर के अन्य इलाको के घरेलु कामगार - जैसे की मीरा सोसाइटी , नारायण पेठ , सहकारनगर , शिवाजीनगर और गुलटेकडी के कामगार, उन्होंने भी तय किया कि वें भी हड़ताल पर जाएंगी। किसी ने उन्हें हड़ताल करने के लिए नहीं कहा था, करवे रोड पर हुई हड़ताल और संघर्ष के बारे में सुनकर उन्होंने खुद ही यह तय किया था। इस दौरान केवल दो मांगे थी, बीमार पड़ने पर छुट्टी और वेतन में वृद्धि । लेकिन जब पुणे शहर मोलकर्णी संघठन बना तो रोज़ाना चर्चा और विचार विमर्श करने से महिला कामगारों की समझ भी बढ़ती गयी। इस हड़ताल के बाद उनको अंदाजा लग गया कि श्रम क़ानून नहीं होने से उन्हें मालिक के दया पर ही निर्भर होना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने मांगों की एक सूची और एक वेतन का ढांचा भी प्रस्तावित किया। वेतन का ढांचा प्रस्तुत करते समय गौर किया गया कि वेतन हर घर से एक समान नहीं मिलता। हर घर की आर्थिक स्थिति, घर में कितने लोग रहते है, काम का बोझ कितना रहता है , इनको भी हिसाब में लिया गया और इन सबके मद्देनजर एक वेतन का ढांचा बनाया गया। संगठन की तरफ से समय-समय पर जो मांगे रखी गयी, वें थी : वेतन में तुरंत वृद्धि, दिवाली का बोनस -जो कि एक महीने के वेतन के बराबर होगा, हर महीने में वेतन का 15 फीसदी भविष्य निधि (प्रोविडेंट फण्ड ) के लियें योगदान देना, सवेतन बीमारी की छुट्टी देना, महीने में दो छुट्टी देना और अगर मालिक-मालकिन शहर से बाहर है तो कामगार का वेतन न काटना। इस प्रस्ताव को पर्ची के रूप में छापा गया और सभी घरों में बांटा गया। मालिकों ने वेतन वृद्धि की मांग को माना, लेकिन उसके बदले ज़्यादा काम की मांग की। लेकिन घरेलु कामगार भी पीछे नहीं हटें, और उन्होंने कहा कि अब अतिरिक्त काम करवाने पर पैसा भी एक्स्ट्रा लगेगा। 1980 की हड़ताल और पुणे शहर मोलकर्णी संगठन की स्थापना के बाद, पुणे में दो और घरेलू कामगार संगठनों की स्थापना की गई। एक अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ द्वारा बनाई गई और इसे पुणे जिला घरमगार संगठन कहा जाता था, जबकि दूसरे को बाबा आढाव ने बनाया जिसे मोलकर्णी पंचायत कहा जाता था। इन वर्षों में तीनों संगठनों ने कई मौकों पर अलग अलग मुद्दों पर संयुक्त रूप से काम किया है। इस हड़ताल के बाद 1984 से 1996 तक शहर के विभिन्न इलाकों में कई और हड़तालें हुईं, जिनमें से ज्यादातर वेतन वृद्धि के लिए थीं। 1995 के आंदोलन में पुणे के नए हिस्सों जैसे दपड़ी, औंध, पिंपरी, कोथरुड, सालुंके विहार, खड़की, की घरेलु कामगार भी शामिल थी। इन सामूहिक कार्रवाइयों के माध्यम से कई सुधार हासिल किये गए। महिला कामगारों ने अपने वेतन और कार्य-शर्तों पर बातचीत की। सवेतन साप्ताहिक अवकाश का मिलना एक महत्वपूर्ण जीत थी। वेतन संशोधन एक रेट कार्ड के माध्यम से लागू किया गया । इस रेट कार्ड के जरिये बर्तन साफ करने, फर्श पर झाडू लगाने, कपड़े धोने आदि अलग अलग कामों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित किया गया । रेट निर्धारित करते समय मालिक परिवार का आकार, सदस्यों का संख्या, घर कितना बड़ा हैं - इत्यादि पहलुओं को भी हिसाब में लिया गया। इन दरों को अब हर चार साल में संशोधित किया जाता है। वार्षिक बोनस, सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी आदि अन्य लाभ भी निर्धारित किए जाते हैं और संगठनों के माध्यम से स्थानीय बैंकों में "भविष्य निधि" एकत्र की जाती है। पुणे में घरेलू कामगार अब प्रति माह दो सवेतन अवकाश लेने के हकदार हैं। नियोक्ताओं से भी अपेक्षा की जाती है कि वे अगर कभी बदली मजदुर को काम पर लगाते हैं तो उन्हें भुगतान भी अलग से करना होगा। चोरी के झूठे आरोप, बर्तन टूटने पर मजदूरी काटना - ये सब चीजें भी कम हो गई है। कामगार संगठनों के कार्यवाही एवं महिला कामगारों की हिस्सेदारी से ही यह सब मुमकिन हुआ हैं। लेकिन इस संघर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि थी - मजदूरों में एकता की भावना विकसित कर पाना । मजदूर बहनों ने महसूस किया कि एक-दूसरे के काम छीनने की कोशिश करना सभी कामगार साथियों के लिए हानिकारक है। अब जब मालिक किसी नयी घरेलु कामगार को काम में लगाता हैं तो वो नयी कामगार पहली वाली कामगार से ज्यादा वेतन की मांग करती है। पिछली कामगार से बातचीत किये बिना कोई कामगार किसी भी घर में काम स्वीकार नहीं करती है। नियोक्ता नए घरेलू कामगारों को नियुक्त करने का प्रयास जारी रखते हैं, लेकिन संगठित घरेलू कामगारों के एकता ने इन कोशिशों को निरस्त किया है। अक्सर राजनीतिक कार्यकर्त्ता ही इन घरेलू कामगार संगठनों का नेतृत्व प्रदान करती हैं। लेकिन फिर भी यह एकदम स्पष्ट है कि घरेलू कामगार बहनों के सक्रिय समर्थन ने ही इन संगठनों को जीवित रखा हुआ हैं । संगठन के स्थानीय नेतृत्वकारी सदस्य स्वयं ही घरेलू कामगार हैं और वें अलग अलग घरों में अपना काम पूरा करने के बाद स्वेच्छा से संगठन में काम करती हैं। अधिकांश शाम उन्हें संगठन के कार्यालयों में देखा जा सकता हैं । ये स्थानीय नेता बैठकें आयोजित करती हैं, सहकर्मियों के साथ मांगों पर चर्चा करती हैं, संगठन के निर्णयों के बारे में अन्य सदस्यों को सूचित करती हैं, सदस्यों की राय पूछती हैं, अन्य इलाकों में बैठकों में भाग लेती हैं। वे व्यक्तिगत मामलों में सदस्यों का मार्गदर्शन भी करती हैं और उनके बीच वाली प्रतिद्वंद्विता को सुलझाती हैं। वे सदस्यों के साथ पुलिस स्टेशन जाती हैं और नियोक्ताओं द्वारा शारीरिक हमले के मामलों की रिपोर्ट करती हैं और अपने संगठन के सदस्यों की ओर से नियोक्ताओं के साथ बातचीत भी करती हैं। स्वयं घरेलू कामगार होने के कारण, उन्हें उन समस्याओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, जो उन्हें संभालने में बहुत प्रभावी साबित होती हैं। यह लेख, लोकेश द्वारा लिखित "मेकिंग द पर्सनल पॉलिटिकलः द फर्स्ट डोमेस्टिक वर्कर्स स्ट्राइक इन पुणे, महाराष्ट्र" शीर्षक निबंध का संक्षिप्त एवं अनुवादित रूप हैं। मूल लेख "टुवर्ड्स ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ डोमेस्टिक एंड केयर गिविंग वर्कर्स" शीर्षक पुस्तक में प्रकाशित हुई थी।
64f321748808fc3e476a44af5e4132be4a6051ef
web
मिन्स्क समझौतों के दूसरे दौर के बाद डोनबास में शत्रुता के सक्रिय चरण के पूरा होने ने विरोधी पक्षों को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया। अब, रक्षात्मक और आक्रामक समस्याओं के बजाय, उन्हें अपने नियंत्रण में क्षेत्र में जीवन को बेहतर बनाने के बीच, काफी नियमित मुद्दों को हल करने की आवश्यकता थी। इसके अलावा, यह डोनेट्स्क विद्रोहियों और यूक्रेन के लिए विशिष्ट था। यद्यपि, निश्चित रूप से, शत्रुता को फिर से शुरू करने का खतरा हर समय बना रहता है, संपर्क की रेखा से भारी हथियारों की वापसी के बावजूद। अंत में, उन्हें हमेशा जल्द से जल्द वापस लौटाया जा सकता है। लेकिन चूंकि मुख्य विरोधाभासों का समाधान नहीं किया गया है, यूक्रेनी पक्ष और विद्रोही दोनों निस्संदेह एक-दूसरे के इरादों पर संदेह करते हैं। इसलिए पाउडर को सूखा ही रखें। इसके अलावा, समय-समय पर वे दुश्मन के आक्रामक इरादों के बारे में बयान देते हैं - सैनिकों और उपकरणों की एकाग्रता के बारे में। लेकिन एक ही समय में, प्रक्रिया में सभी स्थानीय प्रतिभागियों को समझ में आता है कि आंतरिक यूक्रेनी संघर्ष के विकास के इस स्तर पर, यूक्रेन में और विद्रोही डोनबास में, सबसे जुझारू बयानों के बावजूद, सवाल आखिरकार दूसरे स्तर पर चला गया। यहाँ, बहुत पहले से ही युद्धरत यूक्रेनी पार्टियों पर निर्भर नहीं है, यहाँ रूस और यूरोपीय शक्तियाँ और संयुक्त राज्य अमेरिका एक दूसरे से सहमत हैं। उत्तरार्द्ध आज या तो यूक्रेन का समर्थन करते हैं या इसे नियंत्रित करते हैं, मूल्यांकन की बारीकियां प्रत्येक की व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर करती हैं। दरअसल, स्थिति का विरोधाभास इस तथ्य में है कि आज यूक्रेन के भविष्य पर पश्चिम और रूस के बीच एक ही बातचीत है, जिसकी अनुपस्थिति मास्को में घटनाओं के दौरान मास्को में बोली गई थी। रूसी पक्ष ने अक्सर इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित किया कि यह यूक्रेन के साथ बातचीत नहीं कर रहा था, इसकी राय को ध्यान में नहीं रखा गया था, जो सामान्य रूप से इस तरह के एक दुखद परिणाम का कारण बना। हालांकि पश्चिम में वे कह सकते हैं कि उनकी राय पर ध्यान नहीं दिया गया जब पूर्व राष्ट्रपति विक्टर Yanukovych ने अप्रत्याशित रूप से यूरोप के साथ एक संघ समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जो कि मैदान का कारण था। लेकिन अब यह सब इतना महत्वपूर्ण नहीं है। तब यूक्रेनी क्षेत्र में महान शक्तियों के हितों का संघर्ष था, जिसमें हर कोई, सबसे अधिक संभावना, जीतने की उम्मीद करता था, अन्य चीजों के बीच, इस्तेमाल किया, लड़ने की निषिद्ध विधियों, लेकिन अंत में कोई भी विशेष रूप से कुछ भी नहीं जीता था। संघर्ष के सक्रिय चरण की समाप्ति के बाद, रूस और पश्चिम को अब सीधे युद्ध और शांति के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, वे जितना हो सके अपनी प्रोटेक्ट करने में मदद करते हैं। स्वाभाविक रूप से, प्रत्येक पक्ष के पैमाने और रणनीतिक लक्ष्यों में अलग-अलग कार्य होते हैं। पश्चिम को 40 मिलियन के तहत आबादी वाले राज्य का आर्थिक रूप से समर्थन करने की आवश्यकता है, और एक ही समय में धक्का, और संभवतः बल, इसके नेतृत्व में सबसे गंभीर संरचनात्मक सुधार करने के लिए इतिहास स्वतंत्र यूक्रेन। उसी समय, आज पश्चिम से आर्थिक सहायता सीधे कीव में किए गए सुधारों पर सीधे निर्भर करती है। बदले में, रूस को चार से छह मिलियन लोगों की आबादी के साथ डोनेट्स्क और लुगांस्क में विद्रोही क्षेत्रों के साथ क्या करना है, इस सवाल को हल करने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों के प्रबंधन की एक प्रणाली का निर्माण और उनके आर्थिक समर्थन की समस्याओं को हल करना भी आवश्यक है। एक तरफ, यह पूरे यूक्रेन की आर्थिक स्थिति को बनाए रखने के लिए पश्चिम की तुलना में मास्को से काफी कम धन की आवश्यकता है, लेकिन दूसरी ओर, रूस के पास कम धनराशि है, और वे सभी वर्तमान जटिल स्थिति में हैं। निश्चित रूप से डोनेट्स्क और लुगांस्क स्वघोषित गणराज्यों को शामिल करने की आवश्यकता रूस के लिए एक गंभीर चुनौती है। लेकिन रूस और पश्चिम दोनों में, एक आम सिरदर्द उनके प्रोटीज को उनके रैंक में आदेश डालने और नियंत्रणीयता बहाल करने से जुड़ा हुआ है। लुगांस्क और डोनेट्स्क में, यह सरल तरीके से हल किया गया था, स्वतंत्र क्षेत्र कमांडरों को रूस के लिए छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, उनमें से सबसे कट्टरपंथी को गिरफ्तार किया गया था। इधर, अधिकारियों ने केंद्रीयकरण करने की मांग की। क्या इसे रूस का प्रभाव माना जा सकता है या यह स्थानीय अधिकारियों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन तथ्य यह है। यूक्रेन के विद्रोही पूर्व में, एक केंद्रीय शक्ति ऊर्ध्वाधर रूसी मॉडल के अनुसार बनाई गई है, जो डोनेट्स्क और लुगांस्क "मखनोविस्ट्स" को एक आम हर में लाने में लगी हुई है। यूक्रेन में, सब कुछ अधिक जटिल है। यहां मैदान के बाद की सत्ता काफी विकेंद्रीकृत है। स्थानीय मखन्नोववादियों के अलावा, पूर्व, कानूनी क्षेत्र में लड़ने वाले स्वयंसेवक बटालियन, अभी भी प्रभाव के कुछ अन्य केंद्र हैं, उदाहरण के लिए, स्थानीय कुलीन वर्ग, राजनीतिक दलों और आंदोलनों, जिनमें बहुत कट्टरपंथी भी शामिल हैं, सक्रिय हैं। स्वाभाविक रूप से, वे सभी कीव में अधिकारियों पर दबाव डालते हैं। इसके अलावा, यह दबाव कभी-कभी बहुत गंभीर चरित्र ले लेता है। लेकिन किसी भी मामले में, यूक्रेन में अधिकारियों, साथ ही उसके द्वारा फाड़े गए क्षेत्रों में विद्रोहियों को, एक महत्वपूर्ण शर्त को पूरा करना था - हिंसा पर राज्य के एकाधिकार को बहाल करने का प्रयास करना। इसी समय, यूक्रेनी अधिकारियों की कार्रवाइयाँ और उनके सामने आने वाली कठिनाइयाँ, स्पष्ट कारणों से, बाहर से बहुत अधिक दिखाई देती हैं। फिर भी, एक खुली सूचना का वातावरण और प्रक्रिया में कई सक्रिय भागीदार। डोनबास में, सभी को चुपचाप बनाया गया था या गिरफ्तार भी किया गया था। यहाँ सब कुछ इस तरह के संघर्षों के विकास के प्रसिद्ध तर्क के अनुसार हुआ। उदाहरण के लिए, ताजिकिस्तान में, 1990 की शुरुआत के स्थानीय गृह युद्ध में लड़ाई के सक्रिय चरण की समाप्ति के बाद, प्रभावशाली क्षेत्र कमांडरों सांगक सफारोव और फैज़ुली सैदोव अस्पष्ट परिस्थितियों में मारे गए थे। क्योंकि युद्ध के बाद, किसी को भी आपराधिक अतीत वाले क्रूर कमांडरों की जरूरत नहीं रह जाती है। उसी समय, उस समय कीव में भी इसी तरह के आंकड़ों के साथ कहानियां थीं। यह कट्टरपंथी राष्ट्रवादी साशा व्हाइट की कहानी को याद करने के लिए पर्याप्त है, जिसे पुलिस की कार्रवाई के दौरान हिरासत में रहने के दौरान मैदान की जीत के तुरंत बाद मार दिया गया था। लेकिन यह चरित्र पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो गया और सत्ता को बदनाम कर दिया, और उसने प्रत्यक्ष उन्मूलन का जोखिम उठाया। और यद्यपि डोनबास में सक्रिय शत्रुता की अवधि बड़ी संख्या में स्वयंसेवक बटालियनों और उनके क्रूर कमांडरों के उभरने के कारण हुई, वे आम तौर पर राज्य संस्थानों में एकीकृत करने में सक्षम थे। बटालियनों को आंशिक रूप से भंग कर दिया गया था, आंशिक रूप से सेना और पुलिस में शामिल किया गया था। अंतिम राष्ट्रवादी दिमित्री यरोश के नेतृत्व में सही क्षेत्र के तथाकथित कोर थे। 2015 के वसंत में, उन्हें एक अलग ब्रिगेड के रूप में सेना में शामिल किया गया था। यह स्पष्ट है कि यह समस्या का समाधान नहीं है, लेकिन फिर भी इसके लिए पहला दृष्टिकोण है। लेकिन कीव में केंद्रीय अधिकारियों की मुख्य समस्याएं प्रसिद्ध यूक्रेनी कुलीन वर्ग के साथ पैदा हुईं और एक ही समय में निप्रॉपेट्रोस क्षेत्र के गवर्नर, इगोर कोलेमोइस्की। राज्य कंपनी "उक्रांफ्टा" के कारण उनके बीच संघर्ष उत्पन्न हुआ, जो कि कोलोमोकी के नियंत्रण में था। जब कीव ने कंपनी के प्रबंधन को खारिज कर दिया, तो डेनेप्रोपेट्रोवस्क गवर्नर के करीब, बाद के लोगों ने बलपूर्वक उस पर नियंत्रण के नुकसान को रोकने की कोशिश की। इस तथ्य के कारण इस कहानी का बहुत महत्व था कि कोलोमिस्की शायद यूक्रेन का सबसे प्रभावशाली कुलीन वर्ग है। उन्होंने 2014 की पहली छमाही में उस निप्रॉपेट्रोस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थक अलगाववादियों का विरोध किया। उनके निपटान में विभिन्न स्वयंसेवक प्रारूप थे, जो 2015 की शुरुआत तक एक छोटी निजी सेना थी। यही है, अपने लोगों और नियंत्रण में पूरे क्षेत्र के साथ कोलोमिस्की वास्तव में यूक्रेन के भीतर एक मिनी-राज्य का प्रतिनिधित्व करता था। सामान्य रूप से यूक्रेन, पिछले 20 वर्षों का प्रदर्शन था कि कैसे कमजोर राज्य संस्थानों के साथ, कुलीन वर्ग प्रमुख शक्ति बन जाते हैं। इसके अलावा, लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कुलीन वर्गों के लिए अतिरिक्त अवसर पैदा करती हैं। वे पार्टियों, समाचार पत्रों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। एक हद तक यह लोकतंत्र भी है। यद्यपि यह क्लासिक आधुनिक पश्चिमी लोकतंत्र से मिलता जुलता नहीं है। इसके बजाय, अभिजात (कुलीन वर्ग) गणराज्यों के साथ समानताएं खींचना संभव है, उदाहरण के लिए, मध्ययुगीन इटली। यह तब होता है जब कई अमीर परिवार, वफादार ग्राहकों के समूह, तथाकथित ग्राहकों की मदद से गणतंत्र का प्रबंधन करते हैं। यदि इस तरह के कुलीन परिवार सहमत हैं, तो वे सत्ता में एक दूसरे को प्रतिस्थापित करते हैं, उदाहरण के लिए, यह वेनिस गणराज्य में मामला था। यदि उनके बीच संबंध जटिल है, तो उनके ग्राहक सड़कों पर संबंध का पता लगाते हैं। दरअसल, यूक्रेनी कुलीन वर्ग अपने संगठन में एक समान लोकतांत्रिक गणराज्य के लिए कुछ कर रहे थे। सिद्धांत रूप में, पूर्व यूएसएसआर के रिक्त स्थान में, कोई भी कुलीन वर्ग ऐसा कुछ चाहता है। यहाँ आप उन्हीं रूसी कुलीन वर्ग के खोरदार्कोवस्की को याद कर सकते हैं, जिन्होंने अपने पतन की पूर्व संध्या पर राज्य ड्यूमा में कुछ राजनीतिक दलों को सीधे प्रभावित किया था। इसलिए कोलोमिस्की, सबसे अधिक संभावना है, का मानना था कि यूक्रेन के पूर्व में यूक्रेनी राज्यवाद की रक्षा में उनकी भूमिका उन्हें भविष्य की राज्य प्रणाली में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करेगी। इसके अलावा, वह संपत्ति के पुनर्वितरण और राज्य तंत्र में लाभकारी पदों से कुछ लाभांश पर भरोसा कर सकता है, जो पहले पूर्व राष्ट्रपति Yanukovych के अपमानित डोनेट्स्क कबीले के प्रतिनिधियों के थे। यूक्रेनी राज्य के विकास के पूर्व तर्क के दृष्टिकोण से, यह काफी स्वाभाविक था। विजेता को सब कुछ मिलना था। इसके अलावा, राष्ट्रपति अंततः एक और कुलीन बन गए - पेट्रो पोरोशेंको और, तदनुसार, कोलेमोइस्की उनके साथ प्रभाव के क्षेत्रों को साझा करने पर भरोसा कर सकते थे। उनके दृष्टिकोण से, Nafta में प्रबंधन का प्रतिस्थापन अन्य कुलीन वर्गों के पक्ष में संपत्ति का पुनर्वितरण है, वही पोरोशेंको, इसलिए सशस्त्र लोगों के उपयोग के साथ तंत्रिका प्रतिक्रिया। यह संभव है कि अगर यूक्रेन ऐसी स्थिति में नहीं होता, जो उसके लिए पर्याप्त रूप से नया होता। देश पूरी व्यवस्था में सुधार कर रहा है। और इस सुधार को गंभीर बाहरी प्रभाव के तहत किया जाता है। इसी समय, यह स्पष्ट है कि पश्चिम में वे नहीं चाहेंगे कि वर्ष की 2005 की स्थिति यूक्रेन में दोहराई जाए, जब स्थानीय "नारंगी क्रांति" के बाद समर्थक पश्चिमी राजनेताओं (तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर Yushchenko और प्रधान मंत्री यूलिया Tymoshenko) के बीच संघर्ष हुआ था। संपत्ति वितरण के लिए। वास्तव में, यही कारण है कि Tymoshenko, मैदान के बाद, यूक्रेन में राजनीतिक जीवन का पसंदीदा होना बंद हो गया है। इसलिए, Kolomoisky और पोरोशेंको के बीच विवाद में, अंतिम लाभ कीव में केंद्रीय अधिकारियों के पक्ष में था। यद्यपि कोलमोमिस्की ने अपना प्रभाव निप्रॉपेट्रोसट्रैक क्षेत्र में बनाए रखा, क्योंकि उनके पूर्व डिप्टी ओलेनिक स्थानीय प्रशासन में बने रहे। फिर भी, राष्ट्रपति पोरोशेंको ने हासिल किया है। हालांकि यूक्रेन के राजनीतिक जीवन में कुलीन वर्गों की भविष्य की भूमिका का सवाल अभी भी खुला है। उनके पास अभी भी गंभीर धन, प्रभावशाली मानव संसाधन, व्यावहारिक रूप से निजी सेनाएं हैं, और सामान्य अनिश्चितता और राज्य संस्थानों की कमजोरी की स्थिति में, यह आमतौर पर देश में कुलीन वर्गों के प्रभाव को सुनिश्चित करने और अपनी तरह से संघर्ष करने के लिए महत्वपूर्ण शर्त है। फिर भी, पोरोशेंको, कुछ हद तक, एक कुलीन वर्ग। तो मुख्य सवाल यह हैः क्या यूक्रेन अभी भी अंत में राज्य संस्थानों का गठन करने में सक्षम होगा? सोवियत काल का समापन? यह वास्तव में एक बहुत बड़ा सवाल है, और यूक्रेनी कुलीन लोगों को इस बारे में खुद पर यकीन नहीं है। इसलिए सबसे निर्णायक तरीके से सोवियत अतीत के साथ संबंध तोड़ने की इच्छा। अप्रैल 9 पर, यूक्रेन के वर्खोव्ना राडा ने डी-कम्युनिकेशन पर एक बहुत ही सख्त कानून अपनाया, जिसने यूक्रेन में कम्युनिस्ट और राष्ट्रीय समाजवादी शासकों को अपराधी के रूप में निंदा की, उनके आपराधिक स्वभाव के सार्वजनिक निषेध और साथ ही साथ उनके प्रतीकों के उपयोग और प्रचार पर रोक लगा दी। इसके अलावा, सभी सोवियत अभिलेखागार को प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया और यूक्रेन के लिए लड़ने वाले सभी लोगों को वैध बनाया, जिनमें यूक्रेनी राष्ट्रवादियों (ओयूएन) और यूक्रेनी विद्रोही सेना (यूपीए) के संगठन शामिल हैं। यह स्पष्ट है कि यूक्रेनी कानून का मुख्य उद्देश्य ठीक सोवियत संघ और उसका प्रतीकवाद था। बड़े पैमाने पर क्योंकि आधुनिक रूस ने यूएसएसआर को अपने प्रतीकों में से एक बना दिया है। यही है, नया कानून यूक्रेन और रूस के बीच वैश्विक टकराव का एक निरंतरता है। वर्तमान यूक्रेनी संभ्रांत लोगों ने रूस और उसके इतिहास के साथ उन्हें एकजुट करने वाली हर बात को नकार दिया। इसलिए, सभी जो सोवियत संघ के साथ लड़े, उसके नायक बन गए। जाहिर है, Verkhovna Rada के कर्तव्य जिन्होंने कानून को अपनाया है, इस प्रकार रूस के प्रभाव और यूक्रेन में इसका समर्थन करने वाले सभी लोगों को बहाल करना असंभव बना रहे हैं। उनका मानना है कि यह रूस और यूक्रेन के बीच एक तरह का "बर्लिन की दीवार" बनाने के लिए पश्चिम के पक्ष में एक सभ्य विकल्प बनाने का एक निश्चित तरीका है। इसके अलावा, यूक्रेनी deputies अंततः उन राजनीतिक ताकतों को हाशिए पर रखना चाहते हैं जो सोवियत अतीत पर समाज के एक हिस्से की उदासीनता पर भरोसा करते हैं और रूस की ओर उन्मुख हैं, और उनके लिए सत्ता में वापस आना असंभव बना देता है। संभवतः, इस तरह के कट्टरपंथी कदम नए संस्थानों को बनाने के नियमित काम की तुलना में एक सरल समाधान प्रतीत होते हैं - सबसे पहले, कानूनी प्रणाली और एक अधिक कुशल राज्य प्रशासन तंत्र। लेकिन किसी भी क्रांतिकारी कार्रवाई की तरह, कानून बहुत कच्चा था, इसके आवेदन के परिणाम अप्रत्याशित थे। उदाहरण के लिए, अप्रैल 9 के बाद यह स्पष्ट नहीं था कि सोवियत काल के सैन्य पुरस्कारों का क्या किया जाए, क्योंकि वे भी सोवियत प्रतीकों की श्रेणी में आते थे। एक अन्य समस्या 1991 से पहले जारी किए गए डिप्लोमा और प्रमाण पत्र के साथ थी, क्योंकि वे सोवियत प्रतीकों को भी दर्शाते हैं। इसके अलावा, मकबरे, स्मारक, गिरे हुए सैनिक, संग्रहालय प्रदर्शनी, संग्रहकर्ताओं के संग्रह भी हैं। इसलिए, अप्रैल 23 Verkhovna Rada ने कानून में बदलाव किए। अब इसकी कार्रवाई उपरोक्त सभी वर्णों पर लागू नहीं होती है। एक और समस्या शहरों और कस्बों के नामकरण की थी, जिनमें से कई यूक्रेन में सोवियत नामों को सहन करते हैं, एक ही Dneprodzerzhinsk। लेकिन यह सब उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि उन सभी लोगों का कानूनीकरण जो सोवियत अधिकारियों के साथ लड़े थे। उनमें केवल वैचारिक राष्ट्रवादी ही नहीं थे, जिन्हें यूएसएसआर के साथ संघर्ष से विख्यात किया गया था, और नाज़ी जर्मनी के साथ एक ही चरण में, जर्मन स्टैफ़न्स में वही स्टीफ़न बांदेरा बैठे थे। फिर भी, यूक्रेन में काफी लोगों ने पुलिस संरचनाओं में सेवा की, जिसमें एकाग्रता शिविरों का संरक्षण भी शामिल था। स्वाभाविक रूप से, यह कई पूर्व सोवियत नागरिकों से बहुत नकारात्मक प्रतिक्रिया का कारण बनता है। कुछ हद तक, यह रूसी प्रचार में मदद करता है, जो इस विचार पर आधारित है कि "जून्टा" और "नाजिस" कीव में सत्ता में आए थे। एक बहुत ही दिलचस्प चर्चा यूक्रेनी साइटों में से एक पर थी। यहां एक लेखक ने रूस से आए उन लोगों के बारे में पूरी जानकारी एकत्र की, जो नाज़ियों की तरफ से लड़े थे। वे काफी हद तक निकले, जाने-माने व्लासोवाइट्स के अलावा कोसैक एसएस वाहिनी, एसएस गार्ड बटालियन भी थे। इसके अलावा, एक प्रभावशाली हिस्सा तथाकथित "हाइविस" थे, युद्ध के पूर्व सोवियत कैदी, जो स्वेच्छा से जर्मन इकाइयों के हिस्से के रूप में लड़े थे। अलग-अलग समय में उत्तरार्द्ध में, लगभग आधा मिलियन लोग थे। इस आधार पर, लेखक ने निष्कर्ष निकाला कि, Ukrainians पर द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए, रूस अपनी ऐतिहासिक समस्याओं को नहीं देखना चाहता था। इसके अलावा, रूस में वे अपने एसएस के बारे में सामान्य रूप से भूल गए हैं आधुनिक समाज के लिए, यह निश्चित रूप से इतिहास में एक काला पृष्ठ है। इसलिए, Ukrainians के लिए यह अधिक कठिन है, उनकी आलोचना करना आसान है और उनके लिए पिछले इतिहास की सभी परिस्थितियों को समझाना अधिक कठिन है। इसके अलावा, स्टालिन के तहत सोवियत शासन की सभी कठोरता और नाजी जर्मनी के साथ सामान्य विशेषताओं की उपस्थिति के साथ, उनके पास एक महत्वपूर्ण अंतर है। फिर भी, यूएसएसआर में एक जातीयता की श्रेष्ठता और अवांछनीय जातीय समूहों के विनाश की कोई वैचारिक अवधारणा नहीं थी। जबकि सोवियत संघ मूल रूप से अंतरराष्ट्रीय रहा और दमन के दौरान, इसका संबंध "पीड़ितों और जल्लादों" से था। इसलिए, रूस और यूएसएसआर के लिए आधुनिक Ukrainians की सभी शत्रुता के लिए, एक कानून के साथ इतिहास से सोवियत पृष्ठ को मिटाना बहुत मुश्किल होगा। खासकर जब से राष्ट्रपति पोरोशेंको ने अप्रैल के अंत में इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, उन्हें एक कठिन निर्णय का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन आज यूक्रेन के लिए सबसे बड़ी समस्या राजनीतिक हत्याओं की लहर है। भागने वाले राष्ट्रपति यानुकोविच टीम के पूर्व सदस्य मारे जा रहे हैं। हालांकि, सबसे बड़ी प्रतिध्वनि कीव बौद्धिक ओले बुज़िन की हत्या थी, जो नए यूक्रेनी अधिकारियों के प्रति अपने महत्वपूर्ण रवैये के लिए जाने जाते थे और रूस के लिए सहानुभूति रखते थे। इस हत्या के संबंध में बहुत सारे संस्करण थे। कुछ का मानना था कि वह अपने रूसी समर्थक विचारों के लिए मारा गया था और यह यूक्रेनी कट्टरपंथियों द्वारा किया गया था। दूसरों का मानना था कि, इसके विपरीत, वह रूसी समर्थक कट्टरपंथियों द्वारा मारा गया था, जो इस तरह यूक्रेन में स्थिति को अस्थिर करना चाहता था। जो भी हो, समाज में अस्थिरता, आक्रामकता की स्थिति प्रसिद्ध लोगों, विशेष रूप से पत्रकारों, लेखकों और प्रचारकों के लिए बेहद खतरनाक है। क्योंकि उनकी हत्या एक प्रतिध्वनि का कारण बनती है और राजनेताओं के विपरीत कोई भी उनकी रक्षा नहीं करता है। खतरनाक समय में एल्डरबेरी शिकार हो गया। सामान्य तौर पर, यूक्रेन और रूस के बीच टकराव, हालांकि यह "हॉट एक्ससेर्बेशन चरण" पारित कर चुका है, नई दिशाओं में जारी है। उनमें से एक ट्रांसनिस्ट्रिया का अपरिचित क्षेत्र था। वास्तव में, यह मोल्दोवा और यूक्रेन की सीमाओं पर एक समर्थक रूसी एन्क्लेव है। यहां, 1990s की शुरुआत में मोल्दोवन-ट्रांसडाइनेस्ट्रियन संघर्ष के समय से, रूसी सैन्य बेस स्थित है। इसके अलावा, गज़प्रॉम मुफ्त गैस के साथ ट्रांसनिस्ट्रिया की आपूर्ति करता है, जो हालांकि, मोल्दोवा के ऋण के लेखांकन में जाता है। उत्तरार्द्ध इसे पहचानता है, लेकिन भुगतान नहीं करता है। खैर, और अंत में, मास्को ने सीधे ट्रांसनिस्ट्रिया को वित्तीय सहायता प्रदान की। रूस के साथ यूक्रेन के टकराव के बीच में, पहले क्रीमिया की वजह से, फिर डॉनबेस के कारण, कीव में कई लोगों को डर था कि मास्को ओडेसा के रूप में पूरे काले सागर तट पर कब्जा करना चाहता है। इस प्रकार, यह भूमि गलियारे के मुद्दे को क्रीमिया और आगे ट्रांसनिस्ट्रिया में हल कर सकता है। लेकिन रूसी अधिकारी अब तक नहीं गए थे, आशंकाएं व्यर्थ हो गईं, लेकिन ट्रांसनिस्ट्रिया ने खुद को एक मुश्किल स्थिति में पाया। स्वाभाविक रूप से, यूक्रेनी अधिकारियों को अपनी पश्चिमी सीमाओं के पास रूसी एन्क्लेव पर संदेह है। पश्चिमी दिशा से हड़ताल का डर होने पर उन्होंने सीमा को मजबूत करने के उपाय किए। लेकिन ट्रांसनिस्ट्रिया के लिए अधिक गंभीर परिणाम इसकी वास्तविक नाकाबंदी थे। पिछले बीस वर्षों के लिए, ट्रांसनिस्ट्रिया यूक्रेन के साथ अच्छे संबंधों और निर्यात-आयात संचालन के लिए मोल्दोवन दस्तावेजों के उपयोग के माध्यम से जीवित है। अब कीव मोल्दोवन रीति-रिवाजों को शुरू करने का मुद्दा उठा रहा है, और यूक्रेनियन ने भी विनिर्मित वस्तुओं के आयात को ट्रांसनिस्ट्रिया तक सीमित कर दिया है। मोल्दोवा, बदले में, ट्रांसनिस्ट्रिया के उद्यमों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करता है, जो सीमा शुल्क और करों के भुगतान के संबंध में मोल्दोवा में पंजीकृत हैं। इसके अलावा, सैन्य उम्र के रूसी नागरिकों को यूक्रेन के क्षेत्र में प्रवेश से वंचित किया जाता है, और ट्रांसनिस्ट्रिया में 200 की कुल आबादी के हजार में से हजारों 750 हैं। यदि हम याद करते हैं कि डोनेट्स्क में विद्रोहियों की सुरक्षा सेवा के आयोजकों में से एक ट्रांसनिस्टीरियन जनरल एंथुफीव था, तो कीव की चिंताओं को काफी समझा जा सकता है। ट्रांसनिस्ट्रिया के लिए कठिनाई इस तथ्य के कारण पैदा हुई कि रूस ने इस वर्ष 100 मिलियन डॉलर आवंटित करने से इनकार कर दिया। नतीजतन, ट्रांसनिस्ट्रिया एक तीव्र कमी का सामना कर रहा था। गैर-मान्यता प्राप्त गणराज्य में आर्थिक स्थिति तेजी से बिगड़ गई है, आबादी का असंतोष बढ़ने लगा है। जाहिर है, यूक्रेन की शत्रुता के साथ, ट्रांसनिस्ट्रिया की स्थिति अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है। यह कहना मुश्किल है कि कब तक गैर-मान्यता प्राप्त गणतंत्र नाकाबंदी की स्थितियों में बाहर रहने में सक्षम होगा। लेकिन इसके साथ ही, मोल्दोवा में काउंटरप्ले के संचालन के लिए रूस की अपनी संभावनाएं हैं। गागुज़ स्वायत्तता के प्रमुख के लिए चुनावों में, समर्थक रूसी राजनीतिज्ञ इरीना व्लाच ने जीत हासिल की। 2014 में हुए चुनावों में, समर्थक रूसी सेनाओं ने अच्छी तरह से गठबंधन किया हो सकता है, अगर चुनाव की पूर्व संध्या पर लोकप्रिय राजनेता रेनाटो उसैटी को समाप्त नहीं किया गया था। और, अंत में, मोल्दोवा में सबसे गंभीर बैंकिंग घोटाला, जहां एक्सएनयूएमएक्स बिलियन डॉलर गायब हो गया, मदद नहीं कर सका, लेकिन सत्ता में पार्टियों के समर्थक पश्चिमी गठबंधन की लोकप्रियता को प्रभावित किया। यह एक विरोधाभास है, लेकिन मॉस्को के लिए, सत्ता के अपने केंद्रीकरण के साथ, उदार प्रणाली उन देशों में अधिक लाभदायक हो जाती है, जहां रूस रुचि रखता है। तब मास्को के पास रूसी समर्थक नागरिकों की क्षमता का उपयोग करने का अवसर होगा, और वास्तव में मोल्दोवा जैसे देशों के घरेलू राजनीतिक क्षेत्र पर अपने खेल का संचालन करने का मौका होगा। किसी भी मामले में, हम लंबे समय तक रूस और यूक्रेन के बीच बड़े पैमाने पर टकराव को देखेंगे। लेकिन यह पहले से ही स्पष्ट है कि, सबसे अधिक संभावना है, कोई सैन्य संघर्ष नहीं होगा, लेकिन राज्य संरचना और विकास के परिणामों के मॉडल के बीच एक प्रतियोगिता होगी। यहाँ दांव यूक्रेन और पूरे सोवियत संघ के बाद के अंतरिक्ष के लिए बेहद ऊँचे हैं। - लेखकः - मूल स्रोतः
424bc5796a2751a5f25546da28b980416fb949ffb934a6fa24725fca0d345820
pdf
एक बार किसी टी.वी. चैनल ने 'अर्धसत्य' में दिखाया कि मैहर माता मंदिर में कोई अज्ञात व्यक्ति या देव पूजा करने आता है। प्रातः जब मंदिर के द्वार खुलते हैं तो पत्र, पुष्प, जल को देखकर इस विश्वास को बल मिलता है। पुजारी एवं आस-पास में पूछताछ से टी.वी. ऐंकरों को पता चलता है कि यहाँ आल्हा पूजा करने आता है। आल्हा सामान्य जन से अधिक लंबा है । वह वीर वेश में आता है, परंतु किसी-किसी भाग्यवान को ही दिखाई पड़ता है उसके आने से पहले जोर की आँधी चलती है । चैनल के द्वारा दिखाया गया सत्य आधा है या पूरा, यह तो अलग प्रश्न है, परंतु मेरे पास बैठी पोती संस्कृति एवं प्रकृति, धेवती वत्सला और वंशिका, धेवते तेजस्वी और त्वरित; सभी ने मुझसे प्रश्न कर दिया, "यह आल्हा कौन है, क्या यह देवता है या मनुष्य ? इसके बारे में जानकारी कराइए । " मैंने बताया कि "मेरे पिताजी आल्हा की पुस्तक गा-गाकर सारे लोगों को सुनाया करते थे। मैंने भी अपनी माता, चाची, भाभी आदि को आल्हा पढ़कर सुनाई है। अब तो मैं इतना ही बता सकता हूँ कि आल्हा-ऊदल दो वीर राजकुमार थे, जो महोबा के रहनेवाले थे।" कुछ पंक्तियाँ याद आई - बड़े लड़इया महोबेवाले इनकी मार सही ना जाय, एक को मारे दो मर जाएँ, मरै तीसरा दहशत खाय। बच्चों की जिज्ञासा और बढ़ गई । कैसे अनुपम वीर थे । एक को मारने पर तीन मर जाते थे। उनके युद्ध का क्या कारण था, वे किससे लड़ते थे, क्यों लड़ते थे? सच तो यह है कि बचपन में पढ़ी आल्हा की कथा अब मैं भी भूल चुका था, परंतु इतना ध्यान में था कि वे पुस्तकें मेरठ के 'मटरूमल अत्तार' प्रकाशन से छपी थीं। किसी मित्र को भेजकर पता किया तो ज्ञात हुआ कि वह प्रकाशन बंद हो चुका है, फिर अग्रवाल प्रकाशन, खारी बावली, दिल्ली से एक पुस्तक प्राप्त हुई। दोनों पुस्तकें आल्हा छंद या वीर छंद में ही हैं। भाषा भी बुंदेलखंडी है । बारहवीं पास वत्सला भी उससे पूरा अर्थ नहीं निकाल पाई। तब मैंने विचार किया कि ऐसी महान् शौर्य गाथा लुप्त न हो जाए, इसका संक्षिप्त रूपांतर खड़ी बोली प्रचलित गद्य में किया जाना चाहिए। आनेवाली पीढ़ी को भी आल्हा ऊदल की वीरगाथा की जानकारी प्राप्त हो सके । अतः मैंने यह पावन कार्य स्वयं किया । आशा करता हूँ कि पुस्तक पाठकों को पसंद आएगी तथा आल्हा-ऊदल की वीरगाथा की सही जानकारी आगामी पीढ़ी तक पहुँचाएगी । सर्वे भवन्तु सुखिनः! - आचार्य मायाराम पतंग महाभारत से नाता कवि जगनिक रचित 'परिमाल रासो' में वर्णित आल्हा-ऊदल की इस वीरगाथा को प्रत्यक्ष युद्ध-वर्णन के रूप में लिखा गया है। बारहवीं शताब्दी में हुए वावन (52) गढ़ के युद्धों का इसमें प्रत्यक्ष वर्णन है। स्वयं कवि जगनिक ने इन वीरों को महाभारत काल के पांडवों-कौरवों का पुनर्जन्म माना है। बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में इनकी कथाएँ गाँव-गाँव गाई जाती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में तो आल्हा को 'रामचरित मानस' से भी अधिक लोकप्रियता प्राप्त है। गाँवों में फाल्गुन के दिनों में होली पर ढोल-नगाड़ों के साथ होली गाने की परंपरा है तो सावन में मोहल्ले- मोहल्ले आल्हा गानेवाले रंग जमाते हैं। महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए; कौरव हार गए, बल्कि समाप्त ही हो गए। अर्जुन ने एक भी कौरव नहीं मारा; सभी सौ भाई भीम ने ही मारे । युधिष्ठिर तो लड़े, पर किसी महत्त्वपूर्ण वीर को नहीं मार सके। अतः पांडवों ने श्रीकृष्ण से कहा, "भगवन्! युद्ध तो हम आपकी कृपा से ही जीत गए, परंतु हमारी युद्ध की प्यास तृप्त नहीं हुई। लड़ने की प्रबल इच्छा मन में बची रह गई । " भगवान् बोले, "तुम्हारी यह इच्छा कलियुग में पुनः योद्धा - जीवन देकर पूर्ण कर देता हूँ।" भगवान् श्रीकृष्ण अपने भक्तों के मन में उपजे अहंकार को कभी नहीं रहने देते । अहंकार मिटाने के लिए कोई-न-कोई लीला रच देते हैं। उन्होंने सोचा, कलियुग में उन्हें लड़ने का पूरा अवसर देता हूँ और हारने का भी अनुभव करवाता हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से कलियुग में इन पाँचों पांडवों ने जन्म लिया। पिछले जन्म की युद्ध की प्यास को तृप्त करने के लिए प्रभु ने युद्ध का बार-बार अवसर दिया । युधिष्ठिरजी आल्हा बने, भीम ने ऊदल का जन्म लिया। अर्जुन ब्रह्मानंद बने, नकुल लाखन तथा सहदेव वीर मलखान कहलाए । कौरवराज दुर्योधन दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान कहलाए । दुःशासन का नाम धाँधू हुआ । राजा कर्ण ताहर कहलाए । द्रोणाचार्य इस जन्म में चौंडा ब्राह्मण बने। इस प्रकार एक बार पुनः इन्हें युद्ध की प्यास बुझाने का अवसर दिया गया। सबने वीरता दिखाई, परंतु सब नष्ट हो गए। फिर भी विधिवत् बताता हूँ कि कहानी कब, कैसे आगे बढ़ी? चंदेल वंश में परिमाल का जन्म चंदेली नगर में चंद्रवंशी राजा चंद्रब्रह्म राज्य किया करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे। स्वयं चंद्र देवता ने उन्हें पारसमणि प्रदान की थी । पारसमणि लोहे को सोना बनाने में सक्ष्म होती है। राज चंद्रब्रह्म पारसमणि से सोना बनाकर प्रजा का कल्याण करते थे। उन्होंने अनेक यज्ञ करके प्रजा का प्रेम और यश प्राप्त किया । बहुत से राजाओं को जीतकर अपने राज्य का विस्तार भी किया । तोमरवंशी क्षत्रिय चिंतामणि उनके मंत्री थे। चंद्रब्रह्म के वंश में ही सूर्यब्रह्म हुए, जिन्होंने सूर्यकुंड बनवाया । इसी वंश में कीर्तिब्रह्म हुए, जिन्होंने कीर्ति सागर झील बनवाई। इन्हीं कीर्तिब्रह्म के पुत्र परिमाल हुए। राजा परिमाल ने भी यज्ञ किए तथा ब्राह्मणों को पर्याप्त दान दिया। कालांतर में अपने गुरु अमरनाथ के आदेश पर अपनी तलवार को सागर में धोकर फिर कभी शस्त्र न उठाने की शपथ ली। कुछ विरोधी राजा सिर उठाने लगे। तब राजा के दो सेनापति ही युद्ध का संचालन कुशलतापूर्वक किया करते थे। राजा परिमाल के विवाह की भी एक अलग कहानी है । महोबे में माल्यवंत नामक राजा का राज था। उन्हीं का एक नाम वासुदेव भी था । उनके दो पुत्र थे - माहिल और भूपति; एक अत्यंत रूपवती कन्या थी, जिसका नाम था मल्हना। महोबे पर युवा परिमाल ने आक्रमण किया। अपने पराक्रम से विजय प्राप्त की । राजा माल्यवंत ने अपनी पुत्री मल्हना का विवाह राजा परिमाल से कर दिया तथा अपना राज्य वापस ले लिया । मल्हना चंदेली की रानी बन गई। सुंदरी मल्हना को राजा परिमाल बहुत प्रेम करते थे। उसकी हर बात मानी जाती थी । मल्हना को चंदेरी का महल रुचिकर नहीं लगा। उसने इच्छा व्यक्त की कि वह अपने महोबा के महल में ही रहना चाहती है। अतः परिमाल ने अपने ससुर और सालों को महोबे से उरई के महल में जाने का आदेश दिया। परिमाल और रानी मल्हना महोबा में आ गए। मल्हना के भाई माहिल को यह व्यवहार भीतर तक घायल कर गया । रिश्तेदार और ऊपर से मृदुभाषी दिखाई देनेवाला माहिल भीतर से परिमाल की प्रसिद्धि से जलने लगा। माहिल ने अनुज भूपति को जगनेरी का किला दे दिया और माहिल स्वयं उरई में राज करने लगा। प्रगट में माहिल और भूपति राजा परिमाल की अनुमति से ही सब कार्य करते थे, परंतु माहिल भीतर से सदैव बहन के परिवार से ईर्ष्या रखता था। राजा परिमाल जान गए थे कि माहिल का चुगली करने का स्वभाव है, अतः वे माहिल की बातों पर अधिक ध्यान नहीं देते थे । माहिल अवसर पाकर अहित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता था। भूपति को जगनेरी दुर्ग का राजा बनाया था, अतः उसका नाम 'जगनिक' भी पड़ गया । जगनिक वीर तो था ही, कवि भी था। वह युद्ध में साथ रहकर अपनी कविता से सैनिकों का उत्साहवर्धन करता था । राजा परिमाल तथा आल्हा-ऊदल की वीरता का मूल वर्णन 'परिमाल रासो' में मिलता है। आल्हा-ऊदल का जन्म गुरु के आदेश पर राजा परिमाल ने युद्ध करना छोड़ दिया था, तो भी कोई राजा उनका बाल-बाँका नहीं कर सकता था। उनके पास जस्सराज और बच्छराज नामक के दो योद्धा थे । इनके पराक्रम से परिमाल के राज्य की पूर्ण सुरक्षा होती थी। एक बार मांडौगढ़ के राजकुमार करिया राय गढ़गंगा पर स्नान करने गए। उन दिनों गढ़ मुक्तेश्वर के गंगास्नान मेले में स्नानार्थी राजाओं के शिविर लगा करते थे। वहीं सब प्रकार के सामान भी बिकने के लिए लाए जाते थे। एक महीने तक बड़ा आकर्षक बाजार लगा रहता था । राजा करिया राय मेले में नौलखा हार (हीरों का जड़ा) खोज रहे थे, जो उन्हें अपनी बहन को उपहारस्वरूप देना था । हार बिकने ही नहीं आया था, तो मिला भी नहीं। हार तो नहीं मिला, पर करिया राय को माहिल मिल गया । माहिल ने कहा, "हार तो मिल जाएगा, परंतु खरीद नहीं सकते, लूटना पड़ेगा।" करिया राय के पूछने पर माहिल ने बताया, "मेरी बहन मल्हना के पास असली हीरों का नौलखा हार है। तुम्हारी हिम्मत है तो महोबा जाकर लूट लो । " करिया राय माहिल के उकसावे में आ गया और हार लूटने के लिए महोबा पहुँच गया, लेकिन महोबा में जस्सराज, बच्छराज, ताल्हन सैयद ने उसे युद्ध में बुरी तरह परास्त कर भगा दिया। कुछ दिन बाद ताल्हन सैयद किसी काम से काशी गए थे। माहिल ने फिर चुगली खाई । उसने करिया राय को जाकर बताया कि अब अवसर है। महोबे जाकर नौलखा हार लूट लो । करिया राय ने मौके पर मिली सूचना का पूरा लाभ उठाया। उसने आधी रात को छापा मारा । जस्सराज और बच्छराज दोनों वीरों को सोते हुए ही पकड़ लिया। दिवला रानी के गले से नौलखा हार झपट लिया । अनेक स्वर्ण आभूषण, पचसावत नामक हाथी तथा पपीहा नामक घोड़ा आदि लूटकर मांडौगढ़ लौट गया । जस्सराज और बच्छराज दोनों भाइयों की वीरता के कारण ही परिमाल राजा पर कोई आक्रमण नहीं करता था । उनको बंदी बनाकर करिया राय ने उन्हें बहुत कष्ट दिए । माहिल की सलाह पर दोनों के सिर काटकर बड़ के पेड़ पर लटका दिए, जिसकी सूचना लोगों ने राजा परिमाल तक पहुँचाई। जस्सराज के पुत्रों को परिमाल अपने ही महल में ले आए। उनकी रानी ने उन बच्चों का पालन-पोषण किया । जस्सराज और बच्छराज को तो परिमाल वन से लाए थे। वे वनवासी थे, अतः बाद में उनका गोत्र ही 'बनाफर राय' प्रसिद्ध हुआ। आल्हा-ऊदल ही जस्सराज के पुत्र थे, जिनका पालन-पोषण परिमाल राजा की रानी मल्हना ने किया था। पात्रों का संक्षिप्त परिचय आल्हा खंड की कथा में जिन-जिन का नाम तथा वर्णन आएगा, उन पात्रों का संक्षिप्त परिचय देने से पाठकों को सरलता से कहानी समझ में आती रहेगी। अभी तक यह बताया गया है कि आल्हा-ऊदल जस्सराज के पुत्र थे । उनको करिया राय (मांडौगढ़ का राजा) ने धोखे से पकड़कर मरवा दिया। माहिल राजा परिमाल का साला था, अतः आल्हा का मामा था । माहिल मन का दुष्ट, ईर्ष्यालु तथा चुगलखोर था । उसे महोबा से निकालकर उरई भेज दिया गया था। अतः वह ऊपर से खुश दिखाई देता था, पर अपने बहनोई तथा भानजों से बदला लेने का कोई अवसर चूकता नहीं था। अपनी ही बहन के नौलखा हार की लूट माहिल ने करवाई थी। पृथ्वीराज की जन्म कथा पृथ्वीराज भारतीय इतिहास का प्रसिद्ध पात्र है, परंतु उसके जन्म की कथा इतिहास के छात्रों के लिए भी अज्ञात है। साहित्य भी ऐतिहासिक शोध के लिए एक प्रमुख स्रोत होता है । 'पृथ्वीराज रासो', 'परिमाल रासो' तथा 'बलभद्र विलास' नामक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर (दिल्ली) के राजा अनंगपाल तोमर का राजा कामध्वज से युद्ध हुआ। अजमेर के राजा सोमेश्वर ने राजा अनंगपाल की सहायता की । तब अनंगपाल ने अपनी पुत्री इंद्रावती का विवाह राजा सोमेश्वर से करके उनका एहसान चुकाया । रानी इंद्रावती का ही एक नाम कमला भी था। एक बार इंद्रावती अपने मायके (दिल्ली) आई । ज्ञात हुआ कि वह गर्भवती है। अनंगपाल ने पंडित चंदनलालजी से गर्भस्थ शिशु का भविष्य जानना चाहा। यों तो जन्म के समय एवं नक्षत्र से ही भविष्य बताया जा सकता है, परंतु जन्म होने के समय की गणना करके भी अनुमान लगाया जा सकता है। पंडितजी ने बताया कि 'जातक बहुत बलशाली होगा । प्रतापी राजा बनेगा। आपके हस्तिनापुर का राजा भी यही बनेगा।' जब कुटुंब के अन्य जनों को यह ज्ञात हुआ तो उन लोगों ने साजिश रची। रानी इंद्रावती को बताया गया - "तुम्हारे प्रतापी पुत्र होनेवाला है, परंतु यदि मायके में बनी रही तो गर्भ गिरने की संभावना है, अतः तुम परिवार और सैनिक साथ लेकर तीर्थाटन पर चली जाओ।" इंद्रावती ने अपने पिता की बात का भरोसा किया और तीर्थाटन को चली गई। जिनको साजिश की जिम्मेदारी दी गई थी, उन लोगों ने एक रात को सोती हुई इंद्रावती को कुएँ में फेंक दिया और लौटकर यह खबर फैला दी कि इंद्रावती की मृत्यु हो गई। इंद्रावती की जब नींद खुली और वह चीखी -चिल्लाई, तब वन में रहनेवाले एक साधु ने उसे कुएँ से बाहर निकाला। इंद्रावती ने अपने पिता अनंगपाल तथा पति सोमेश्वर का परिचय दिया। योगी अश्वत्थामा ने रानी को पतिगृह या पितृगृह जाने की इच्छा पूछी तो इंद्रावती ने कहा, "महाराज! आपने मुझे जीवन दान दिया है। अब आप ही मेरी रक्षा करें। मैं कहीं और नहीं जाना चाहती।" योगी संन्यासी तो स्वभाव से ही परोपकारी होते हैं। इंद्रावती की प्रार्थना स्वीकृत हुई। पृथ्वीराज का जन्म संवत् 1132 में वन में ही हुआ । अश्वत्थामा संन्यासी ने ही पृथ्वीराज का नामकरण तथा पालन-पोषण किया । गुरु बनकर धनुष-बाण चलाने सिखाए तथा अच्छे संस्कार भी दिए । एक दिन शिकार की खोज में राजा सोमेश्वर उसी जंगल में आ निकले। वहाँ एक बालक को वन में विचरण करते देखकर चकित हुए । बालक से परिचय पूछा तो उसने माता का नाम कमला बताया, परंतु पिता का नाम नहीं बताया। उसने कहा, "मैं और मेरी माता एक ऋषि के आश्रम में रहते हैं। आप मिलना चाहें तो मेरे साथ चलें।" राजा सोमेश्वर के मन में बालक के प्रति मोह उमड़ रहा था । वे बालक पृथ्वीराज के साथ ऋषि अश्वत्थामा के आश्रम में पहुँच गए। राजा ने प्रथम अपना परिचय दिया और यह भी बताया, "मेरी रानी इंद्रावती अपने मायके से तीर्थाटन के लिए गई थी। मार्ग में उसकी मृत्यु हो गई। वह गर्भवती थी । यदि उसके भी पुत्र होता तो इतना ही बड़ा होता।" इतना कहकर राजा रुआँसा हो गया। रानी इंद्रावती भी पति को पहचान चुकी थी, उसकी गाथा सुनकर वह भी रो पड़ी। तब अश्वत्थामा मुनि ने बताया कि रानी के साथ साजिश रची गई थी। उसे जीवित ही कुएँ में फेंक दिया गया था। जो उसे मारना चाहते थे, परमात्मा ने उसे बचाने के लिए मुझे भेज दिया। किसी को मारने की इच्छा रखनेवाले स्वयं मर जाते हैं, परंतु जिसे ईश्वर बचाना चाहे, उसे कोई नहीं मार सकता । ऋषि ने अपनी आँखों देखी एक घटना सुनाई । एक कबूतर - कबूतरी पेड़ की डाल पर मौज से बैठे थे। तभी एक शिकारी की निगाह उनपर पड़ी। उसने अपने धनुष-बाण उठाए । वह निशाना साधनेवाला था, तभी ऊपर से एक बाज उन्हें झपटने के लिए मँडराने लगा । बाज कबूतरों को अपना भोजन बनाना चाहता था । कबूतरों ने सोचा, अब तो ईश्वर ही बचा सकता है । यहाँ से उड़े तो बाज झपट्टा मारेगा । इधर कुआँ, उधर खाई। बचने की राह नहीं दिखाई देती। तभी पेड़ की जड़ से सर्प निकला और शिकारी को डस लिया । शिकारी का निशाना हिला और बाण बाज को जाकर लगा। बाज धरती पर आ गिरा । तब तक शिकारी भी धरती पर लोट-पोट हो चुका था । कबूतर का जोड़ा उड़ गया। मारने आए शिकारी और बाज दोनों मर गए । कथा सुनकर सोमेश्वर मुनि की बात समझ गए कि सबकुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता है । मुनि ने इंद्रावती और पृथ्वीराज को सोमेश्वर के साथ विदा कर दिया । पृथ्वीराज अजमेर का राजकुमार बन गया। पृथ्वीराज का दिल्ली का राजा बनना पृथ्वीराज की कहानी हमारा लक्ष्य नहीं है, परंतु वह अजमेर से दिल्ली कैसे आया तथा पंडित चंदन लाल की भविष्यवाणी कैसे पूर्ण हुई, यह बताना आवश्यक है। अतः प्रसंगवश जान लीजिए। एक बार गजनी का बादशाह भारत पर आक्रमण करने आ गया। उसने अटक नदी के पार डेरा डाल दिया और राजा अनंगपाल को संदेश भेज दिया कि वे लड़ना चाहते हैं या बिना लड़े ही मुझे अपना राज्य सौंप देंगे। राजा अनंगपाल ने सभासदों से चर्चा की। निर्णय लिया गया कि वे अपने नाती पृथ्वीराज को बुलवा लें । उसे यहाँ कुछ दिनों के लिए राजा बना दें, फिर गजनी के बादशाह से युद्ध करने जाएँ । पृथ्वीराज को बुलाया गया। उस समय वह सोलह वर्ष का नवयुवक था। अनंगपाल का प्रस्ताव उन्होंने मान तो लिया, परंतु शर्त रख दी कि आपके परिवारजन तथा सभा के दरबारी सब मुझे राजा स्वीकार करें। आप भी लौटकर आएँ तो मुझसे अनुमति लें । शर्त स्वीकार कर ली गई । इस तरह पृथ्वीराज दिल्ली के शासक बन गए । राजा अनंगपाल युद्ध करने चले गए। पृथ्वीराज के विवाह उस काल में विवाह बिना युद्ध के नहीं होते थे। पृथ्वीराज ने गुजरात के राजा भोलाराम की पुत्री इच्छा कुमारी से विवाह किया। फिर दाहिनी नामक सुंदरी (जो चंडपुडार की कन्या थी) से विवाह किया। इसके पश्चात् पद्मसेन की पुत्री पद्मावती से विवाह किया । हर विवाह - युद्ध में अन्य राजाओं के साथ हुआ । हाँ, राजा माहिल की बहन अगया से बिना युद्ध के विवाह हुआ । वह रूपवती ही नहीं, बुद्धिमती भी थी । सब पर उसी का शासन चलता था। उसकी बेटी का नाम बेला था । ऐसा माना जाता है कि बेला ही द्रौपदी का अवतार थी । मुख्य विवाह संयोगिता से हुआ। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी । पृथ्वीराज इतनी पत्नियों के रहते हुए भी संयोजिता को युद्ध से अपहरण करके ले आए। इसी कारण भीषण युद्ध में दोनों ओर के अनेक योद्धा मारे गए। जयचंद और पृथ्वीराज की शत्रुता बढ़ी । जयचंद्र जाकर शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी से मिल गया । पृथ्वीराज को हरवाने और मरवाने में जयचंद ने सहायता की । साधारण प्रेम और वैर के कारण से देश यवनों मुसलमानों के अधीन हो गया। हिंदुस्तान का गौरवमय इतिहास राजाओं की आपसी लड़ाई ही गुलामी का कारण बना। आल्हा का परिचय जस्सराज ही दस्सराज कहलाता था । वनवासी होने के कारण उन्हें 'बनाफर' कहकर भी पुकारा जाता था। जस्सराज का विवाह देव कुँवर से हुआ था । उसी की प्रथम संतान होने पर राजा परिमाल ने पंडितों को बुलाकर उसका नामकरण करवाया तथा भविष्य पूछा । पंडितों ने कहा कि बालक सिंह लग्न में जनमा है। सिंह के समान निर्भय वीर होगा। वीरता एवं धर्मपालन में सबसे उत्तम होगा, अतः इसका नाम 'आल्हा' रहेगा । राजा परिमाल ने प्रसन्न होकर पंडितों को दक्षिणा और पुरस्कार दिए। आल्हा का विवाह नैनागढ़ के राजा नेपाल सिंह की सुंदर कन्या सुलक्षणा के साथ हुआ था, जिसका एक नाम 'मछला' भी था। आल्हा ने अनेक युद्ध किए, परंतु कभी हार का मुँह नहीं देखा । आल्हा को युधिष्ठिर का अवतार माना जाता है। आल्हा ने कभी अधर्म तथा अन्याय नहीं किया। ऊदल वीर दस्सराज और देव कुँवरि का दूसरा पुत्र था ऊदल । राजा परिमाल ने इसके लिए भी पंडित बुलवाकर भविष्य पुछवाया। वह महान् वीर होगा, यह जानकर राजा प्रसन्न हुआ, परंतु माँ देव कुँवरि ऊदल के जन्म से दुःखी थी। चूँकि उसके जन्म से पहले ही दस्सराज और बच्छराज को करिया राय चुराकर ले गया था और उनके सिर काटकर वटवृक्ष पर टाँग दिए थे। इस तरह ऊदल का जन्म पिता की मृत्यु के पश्चात् हुआ था, तभी वह इसका जन्म अशुभ मान रही थी। इस बालक को उसने अपनी दासी को पालने के लिए दे दिया था, क्योंकि वह उस बालक को देखना नहीं चाहती थी। दासी ने ऊदल को ले जाकर महारानी मल्हना को सौंप दिया। रानी ने ही बड़े प्रेम से आल्हा, ऊदल दोनों का पालन-पोषण किया । ऊदल को भीम का अवतार माना जाता है। उसमें भी शारीरिक बल सैकड़ों हाथियों के बराबर बताया गया है। ऊदल भी युद्धों में केवल जीतने के लिए जनमा था। ब्रह्मानंद का जन्म राजा परिमाल की रानी मल्हना के गर्भ से भी एक पुत्र का जन्म हुआ। अधेड़ अवस्था में पुत्र जन्म से राजा का प्रसन्न होना स्वाभाविक था। राजकुमार के जन्म से पूरे महोबा में ही प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। ज्योतिषियों ने बताया कि मेष लग्न में सूर्योदय के समय रोहिणी नक्षत्र में तथा वृष राशि में जनमा यह बालक अत्यंत तेजस्वी होगा। इसी अक्षय तृतीया के दिन ऋषि परशुराम का भी जन्म हुआ था। अरिष्ट ग्रह पूछने पर ज्योतिषी बोले, "संसार में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसके सब ग्रह श्रेष्ठ हों। एक-आध नेष्ट ग्रह तो हो ही जाता है।" उन्होंने बताया कि स्त्री पक्ष नहीं है । स्त्री के कारण ही इसका प्राणांत भी हो सकता है। बालक का नाम ब्रह्मानंद रखा गया। इसे वेदज्ञ पंडितों ने अर्जुन का अवतार माना है। पृथ्वीराज की पुत्री बेला कुँवरि से इसका विवाह होना तय हुआ था। पृथ्वीराज के सब वीर मिलकर भी ब्रह्मानंद को नहीं हरा सके, तब माहिल ने अपनी दुष्टता का परिचय दिया और पृथ्वीराज को बचपन में प्राप्त अश्वत्थामा मुनि के दिए उस अर्ध-चंद्राकार बाण की याद दिलाई, जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था । वही तीर ब्रह्मानंद की मृत्यु का कारण बना । इस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान् ने अर्जुन को पृथ्वीराज रूपी दुर्योधन के द्वारा युद्ध में मरवाकर दोनों की पिछले जन्म की युद्ध - पिपासा को तृप्त किया। लाखन राठौर कन्नौज के राजा वीरवर जयचंद्र का अनुज रतिभानु भी महान् वीर था । युद्ध में उसका कौशल देखते ही बनता था। उसी का सुपुत्र विशाल नेत्रों तथा सुंदर मुखवाला हुआ । लाखों में एक होने के कारण उसका नाम 'लाखन' रखा गया। बूँदी शहर के राजा गंगाधर राव की राजकुमारी कुसुमा से इनका विवाह हुआ था। उसकी मृत्यु पृथ्वीराज के बाणों से हुई। लाखन को नकुल का अवतार माना जाता है। मलखान का जन्म जस्सराज के भाई बच्छराज की रानी तिलका ने बच्छराज की मृत्यु के पश्चात् मलखान को जन्म दिया। राजा परिमाल ने पंडितों से पूछा तो ज्ञात हुआ कि यह बालक भी सिंह लग्न में उत्पन्न हुआ है। सिंह के समान निर्भय तथा वीर होने की तो भविष्यवाणी थी ही, एक विशेष बात और थी कि इसके पाँव में पद्म का चिह्न है । यह किसी अन्य के शस्त्रों से नहीं मरेगा। जब इसके पाँव का पद्म फटेगा, तभी इसकी मृत्यु होगी। यह बालक देवी का सच्चा भक्त होगा तथा देवी से वरदान भी प्राप्त करेगा । वास्तव में मलखान बड़ा वीर और देवीभक्त हुआ । मलखान को सहदेव का अवतार माना जाता है । ढेवा का परिचय महोबा के राज पुरोहित चिंतामणि का पुत्र देव कर्ण ही 'ढेवा' नाम से जाना जाता था। रानी मल्हना इसे बहुत स्नेह करती थी। इसकी ऊदल से गहरी मित्रता थी । एक बार ढेवा ने युद्धभूमि में मूर्च्छित पड़े पृथ्वीराज की रक्षा की थी । धाँधू का परिचय दस्सराज की पत्नी देवकुँवरि ने ही इस शिशु को जन्म दिया था, परंतु यह अभुक्त मूल नक्षत्र में जनमा था। पंडितों ने बताया था कि इसका मुख देखकर पिता जीवित नहीं रहेगा । यह अपने ही वंशवालों से युद्ध करेगा। ऐसा सुनकर राजा परिमाल ने इस बालक को एक दासी (धाय) को दे दिया । उसे नगर के बाहर एक मंदिर में रहने और बालक को पालने-पोसने का आदेश दिया। एक बार वह धाय गंगास्नान के कार्तिक मेले में गई । वहाँ पृथ्वीराज ने इस तेजस्वी बालक को देखा तो अपने गुप्तचरों से शिशु को चुराकर मँगवा लिया । पृथ्वीराज के भाई कान्ह कुमार के कोई संतान नहीं थी। उसने प्रार्थना करके यह बालक पृथ्वीराज से माँग लिया। बालक का पालन-पोषण राजघराने में होने लगा। उसका नाम 'देवपाल' रखा गया। बालक मोटा-ताजा और मस्त था, अतः उसको प्यार से 'धाँधू' कहा जाने लगा। धाय ने महोबा जाकर बालक के चोरी होने का समाचार दिया । परिवार को संतोष हुआ । बाद में परिमाल राजा को यह ज्ञात भी हो गया कि कान्ह कुमार ने एक बालक को गोद लिया है, वह बालक हमारा ही है। अतः उसके अशुभ होने का भय भी समाप्त हो गया । कुँवरि चंद्रावलि महोबा के महाराज परिमाल की महारानी मल्हना ने एक पुत्री को भी जन्म दिया, जिसका नाम चंद्रावलि रखा गया। अपनी माता मल्हना से भी अधिक सुंदर इस कन्या की ख्याति सुगंध के समान चारों ओर फैल गई। अभी सोलह वर्ष की भी नहीं हुई थी कि बौरीगढ़ के राजा वीर सिंह ने महोबा को घेर लिया। दूत के हाथ संदेश भिजवाया कि महोबा को तहस-नहस होने से बचाना चाहते हो तो अपनी पुत्री चंद्रावलि का विवाह राजा वीरसिंह के साथ कर दो। राजा परिमाल ने अपनी पत्नी मल्हना से सलाह ली । मल्हना सुंदर ही नहीं, बुद्धिमती भी थी। उसने कहा, "राजन! आपने तो शस्त्र उठाना छोड़ दिया । हमारे वीर जस्सराज, बच्छराज को सोते में अपहरण करके मौत के घाट उतार दिया। सैयद ताल्हन वाराणसी में जाकर बस गए । आल्हा-ऊदल अभी छोटे हैं तो युद्ध करेगा कौन? भलाई इसी में है कि वीरसिंह से बेटी चंद्रावलि का विवाह कर दिया जाए । विवाह तो किसी-न-किसी से करना ही होगा। तब राजा परिमाल ने संदेश भिजवाया कि विवाह तो चंद्रावलि का आपके साथ ही करेंगे, परंतु युद्ध से नहीं, प्रेम से करेंगे। आप वापस जाओ। हम तिलक (सगाई) लेकर सम्मान सहित आपके यहाँ आएँगे। तिथि, वार शुभमुहूर्त निश्चित कर देंगे, तब आप सादर बरात लेकर हमारे द्वार पधारें । हम वैदिक विधि से विवाह करेंगे। चंद्रावलि को आदर तथा प्रेम से अपनी रानी बनाइएगा । " समय पर धूमधाम से चंद्रावलि और वीर शाह का विवाह बिना युद्ध के ही संपन्न हुआ। चंद्रावलि का पुत्र जगनिक हुआ, जिसे बाद में माहिल के भाई भौपतिवाला जगनेरी का राज्य दे दिया गया। जगनिक वीर और सुंदर तो था ही, कवि भी था। जगनिक कवि ने ही 'परिमाल रासो' नाम से काव्य लिखा, जो आल्हा खंड का मूल ग्रंथ है । तत्कालीन राज समाज राजा हर्षवर्धन के पश्चात् भारत में एकछत्र राज किसी सम्राट् का नहीं रहा । छोटी-छोटी रियासतें बन गई। सभी ने अपनी राजधानियाँ बना लीं। अपने-अपने गढ़ (किले) बना लिये। एक-दूसरे के शादी - संबंध और उत्सवों में सभी आते-जाते थे। बात बारहवीं शताब्दी की है। दिल्ली में राजा अनंगपाल का शासन था। उनकी एक पुत्री कन्नौज में ब्याही थी तथा दूसरी अजमेर में । अजमेर में पृथ्वीराज तथा कन्नौज के राजा जयचंद के अनंगपाल नाना लगते थे। अनंगपाल के पुत्र नहीं हुआ था। उन्होंने पृथ्वीराज को गोद ले लिया और दिल्ली का युवराज बना दिया। इसीलिए जयचंद और पृथ्वीराज में वैमनस्य हो गया। जस्सराज और बच्छराज की मृत्यु के पश्चात् सिरसा पर पृथ्वीराज ने कब्जा कर लिया। बच्छराज के वीर पुत्र मलखान ने युद्ध जीतकर सिरसागढ़ वापस छीन लिया। कुछ घायल वीरों सहित पृथ्वीराज एक उद्यान में ठहरे । माली ने विरोध किया तो एक घायल सैनिक ने माली का सिर काट डाला। परिमाल ने आल्हा-ऊदल को बुलाया । उन्होंने राजा को समझाया कि घायलों पर हमें वार नहीं करना चाहिए, परंतु मामा माहिल ने अपनी आदत के अनुसार राजा को भड़काया तथा उनकी चुगली की । आल्हा ने ऊदल को जाने के लिए कह दिया । ऊदल ने जाकर पृथ्वीराज के उन घायल सैनिकों को मार दिया। पृथ्वीराज को दिल्ली में समाचार मिला कि घायल सैनिक मार दिए गए। चुगलखोर माहिल ने इधर तो परिमाल को भड़काकर सैनिक मरवाए थे, उधर दिल्ली पहुँचकर पृथ्वीराज को राजा परिमाल के विरुद्ध भड़काया । ऐसी घटनाओं से सभी राजा एक-दूसरे के शत्रु बन गए। उनमें देशभक्ति की जगह अपनी राजगद्दी का लोभ और स्वार्थ बढ़ता गया । इसी आपसी फूट का लाभ उठाकर मुसलिम आक्रमणकारियों ने बार-बार आक्रमण किए। पहले लूटपाट की, फिर यहीं बसकर स्थायी लूट में लग गए। ऐसे महान् वीर योद्धाओं के होते हुए आपसी फूट के कारण हिंदुस्तान बारह सौ वर्ष गुलाम रहा। आज भी हिंदू यदि आपसी कलह छोड़कर संगठित हो जाएँ तो विश्व में अपनी प्रतिभा का प्रभाव स्थापित कर सकते हैं । परिमाल राय का विवाह चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी सिरसागढ़ थी। किले का नाम कालिंजर था। चंद्रवंशी क्षत्रिय अब चंदेले कहलाते थे। उनकी राजधानी को चंदेरी भी कहा जाता था। चंदेले राजा कीर्ति राय का प्रतापी पुत्र था परिमाल राय। यह बारहवीं शताब्दी की घटना है। उन दिनों महोबा में राजा वासुदेव का शासन था । उनके दो पुत्र थे - माहिल और भोपति । तीन पुत्रियाँ थीं - मल्हना, दिवला और तिलका । मल्हना अनुपम सुंदरी थी । उसके अंग-अंग में तेज और सौंदर्य था। सिंह के समान कटि और हंस के समान चाल । उसके विशाल और चंचल नयनों के मृग समान होने से मल्हना को मृगनयनी कहा जाता था। वासुदेव राजा का ही एक नाम माल्यवंत भी था । वासुदेव की अनिंद्य सुंदरी पुत्री मल्हना की चर्चा चंदेले राजकुमार परिमाल देव राय के कानों तक पहुँची । देखे बिना सुनने मात्र से ही उसने निश्चय कर लिया कि मल्हना को ही अपनी रानी बनाऊँगा । राजा परिमाल का विद्वान् मंत्री था पंडित चिंतामणि । मंत्री को बुलाकर परिमाल राय ने पूछा, "पंडितजी! अपना पंचांग देखिए और शोध करके ऐसा मुहूर्त निकालिए कि हमारी मंशा सफल हो जाए। " पंडित चिंतामणि ने श्रेष्ठ मुहूर्त निकाला और बरात सजाने को कहा। उन दिनों क्षत्रियों की बरात वीरों की सेना होती थी । अतः सेना को तैयार होने का आदेश दे दिया गया । तोपें तैयार कर ली गई । रथ भी सजाए गए। हाथियों पर हौदे सजाए गए। ऊँटों पर बीकानेरी झूलें डाल दी गईं। घोड़ों पर जीन और लगाम कसी गई । जो-जो बहादुर जिस सवारी के लिए निश्चित थे, वे अपनी-अपनी सवारी पर चढ़ गए। एक दाँतवाले हाथी अलग तथा दो दाँतवाले हाथी अलग सजाए गए। घोड़ों की तो अलग सेना ही सज गई। कुछ तुर्की घोड़े थे, कुछ काबुली - कंधारी । कुछ घोड़े रश्की, मुश्की, सब्जा, सुर्खा घोड़े और कुछ नकुला नसल के घोड़े सजाए गए। काठियावाड़ी घोड़ों की तो तुलना ही नहीं थी। उन पर मखमलवाली जीन सजाई गई थी। मारवाड़ के सजीले ऊँट, अरबी ऊँट तथा करहल के ऊँट तैयार किए गए, जिन पर चंदन की बनी काठी और काठी पर गद्दे सजाए गए। चंदेले राजा परिमाल के आदेश पर सारी तोपें तुरंत साफ करवाई गई। उनके साथ गोला-बारूद के छकड़े भी लाद दिए गए। सभी सैनिकों को आदेश दिया गया कि अपने-अपने काम के अनुसार अपना लिबास (वर्दी) पहनकर शीघ्र तैयार हो जाओ। लाल कमीज के साथ चुस्त पायजामा पहन लो । छाती पर बख्तर (बुलैट पूरफ जैकट, । जो धड़ पर पहनी जाती है) बाँध लो । उस पर झालरदार कोट डालो, जिसमें छप्पन छुरियाँ तथा गुजराती कटार टाँगी जाती हैं। दोनों तरफ दो पिस्तौलें टाँग लो और दाहिनी ओर तलवार लटका लो । सिर पर टोप (हैल्मेट) पहन लो, जिस पर गोली लगे तो भी असर न कर पाए । चंदेली सेना के जवानों ने सब गहनों और हथियारों सहित स्वयं को सजाकर तैयार कर लिया। इसके पश्चात् वीर राजा परिमाल के मंत्री नवल चौहान ने हाथ उठाकर सभी जवानों को संबोधित किया - "हे वीर क्षत्रियो ! ध्यान से मेरी बात सुनो। जिनको अपनी पत्नियों से बहुत प्यार हो या जिसकी पत्नी अभी मायके से विदा होकर आई है, वे सब अपने हथियार वापस रख दें, परंतु जिन्हें अपनी मर्यादा प्यारी है, वे युद्ध में हमारे साथ चलें । उनको हम दुगुनी पगार ( तनख्वाह ) देंगे। वे रणभूमि में खुलकर अपने शस्त्रों का प्रदर्शन कर वीरता दिखाएँ।" इसके पश्चात् सैनिक समवेत स्वर में बोले, "हे नवल चौहान! हम राजा के मन- प्राण से साथ हैं। जहाँ राजा परिमाल का पसीना गिरेगा, हम अपना खून बहा देंगे । अगर हमारे सिर भी कटकर धरती पर गिर जाएँगे तो भी बिना सिर का धड़ खड़े होकर तलवार चलाएगा ।" इतनी बात सुनकर मुंशी नवल चौहान राजा परिमाल के पास गए और
e2d83e1d41d7437ddca22fb21ad67b183c5b864b81374a5e15a1dceecc4d26d9
pdf
"लशुन गुज्जनञ्चैव पलाण्ड कवकानि च । अवक्ष्याणि द्विजातीनराममेध्यप्रभवाणि च ॥ १ ( मनु ५/५ ) तहसुल गाजर और प्यान आदि डिजातियों है। इस कोषको टोकाले जिया है, "हे नातीनाममणि द्विजातिवर्ण शुद्रपदावार्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन्हों तोनों वर्षों के लिये पलाण्ड, अक्षय विशेष निषिद्ध है, किन्तु शूद्र के लिये नहीं है। समो धर्मशाखोंने डिजातियों को प्याज और लहसुन खाने से मना किया है । मजुमें दूसरी जगह लिखा है, कि दिन यदि जान बूझ कर पवाण्ड, भक्षण करे, तो वह प्रतित होता है । पलाण्ड - भनक पतित प्रायश्चित्त करके विशुद्ध हो सकता है "लडुन जग्ना पतेत् द्विजः । * ( मनुं ५/१९ ) यह तरकारी या मांसके मसालेके काम में माता है। यह बहुत अधिक पुष्ट माना जाता है । इसको गन्ध बहुत उग्र और अप्रिय होता है जिसके कारण इसका अधिक व्यवहार करनेवालाक मुद और कभी कभी शरीरया ने भो विकट दुगन्ध निकलती है एक दिन प्याज खाने से दूसरे दिन में भी उसको गन्ध पाई जाती है । फारक्रय और अकेलिन ( Fourcroy और yauquelin ) नामक दो डाकरांने प्याजवे एक प्रकारका तल. निर्यात निकला जो घोत्र हो उड़ गया । ऋिमित्रा विद्याको सहायता से उन्होंने उसका विश्लेषण करके देखा कि इसमें गन्धक, शुत्रपदार्थ ( Albumen), चीनी, गोंदको तरहका लतीला पदार्थ, फस्फरिक एसिड, साइ टआब-लाइम मोर लिगनिन् पदार्थ मिते हुए हैं। मदिराको तरह प्याज के रस में भी फेन आ जाता है। लहसुनके तेलके जैसा इसके तेलमें भी आलिलमल. फाइड ( Allyl-sulphide ) है और दोनों हो प्रायः समानयुग विशिष्ट है। प्याजके मूस ना कन्द कटु श्राखादयुक्त रोज निकबता है जो उत्तेजक वा माना गया है । यह मूत्रोत्पादक और श्लेमानिःसारक औषधरूप में भी व्यवहृत होता है । ज्वर, उदरी, श्लेषमा ( Catarrh ) और वाण्ठश्वास (Chronic Bronchitis ), वायुशूल और रक्तपित्तरोग अचाचर इसका प्रयोग किया जात हो तो यह वर्मप्रदाइक और जला कर रेमैथे जुरुटिषका काम करता है। कांवर जोमत यह और तिता है तथा उदरामान रोग में विशेष उप द्वारा है 1 इसको तो सपदि विषात सरीस्टव नजदोक या नहीं सकते । मतान्तर से इसका गुण कामोद्दोपक और वायुनाशक है। कच्चा प्याज खाने से र और मूल अधिक परिमाण में निकलता है। जहां बिच्छ पदिने काटा हो, वहाँ प्याजको रस लगा देने से ज्वाता निवृत हो जाती है। प्याजके भीतरका गूदा अग्नि में उत्तप्त करके कान के भोतर देनेवे कर्णशूल आरोग्य हो जाता है। कभी कभी प्याजको चर कर उनका गरम रस कान में डालने से वेदना जानी रहती हैं । कन्द शिवा इसके वीजसे एक प्रकारका निर्मल वर्ण होन तेल निक लता है जो नाना ओषत्रों में काम आता है। मूर्च्छागत और गुल्मवायुरोग ( Fainting anl hysterical fits ) में यह उग्रगन्ध 'स्मोलि सल्ट का काम करती है । इसने अन्त्रस्थ पेशियों को किया बलवान् रहता है और कभी भी उसका अवसाद नहीं होता । पाण्डु रोग, अर्थ, गुदभ्रश और अलक रोग ( Hy.lrophobia ) यह अधिक व्यवहुत होता है। इनका व्यवहार करनेने जड़ें या (जड़ो) दूर होती है और चय कायरोग में सर्दो होने नहीं पातो । सामान्य सनं प्याजके काढ़ और गलजतरोग में सिरके के साथ इसका प्रयोग करनेने उपकार दिखाई देता है प्याज के रस और सरसों के तेजको एक साथ मिला कर शरीर में लगाने से गेठियावातरोग आरोग्य होता है । नोआखालो प्रदेश में जब विसूचिकाोगका प्रकोप देखा जाता है, तब छोटे छोटे बच्चो के गजेमें प्याजको माला पहना देते हैं अथवा दरवाजे पर उसे लटका देते है । उनका विश्वास है कि प्याजमें ऐसा गुण है कि वह लेगको आने नहीं देता। यथार्थ में प्याज दुर्गारक है। वायुमें दुगन्धजनित भस्वास्थ्यकर गुण लोग आदि मक्रामक रोगको उत्पत्तिका कारण और शरीरका पलाराड-- पलाने हानिकारक है। एकमात्र ध्याज हो ऐसी दूषित वायुको विशुद्ध कर सकता है। प्याज खानेसे भूख बढ़ती है । सिरके के साथ पका कर इसे खाने से पाण्ड, सहा और प्रजो रोगमें विशेष उपकार होता है ! पागल कुत्ते के काटनेसे क्षतस्थान पर ताजे प्याजका रस लगा देना चाहिए । आाभ्यन्तरिक प्रयोगसे भो क्षतके प्रतिशोध आरोग्य हो जानेको सम्भावना है । डा० एल् केमिरण साइबने लिखा है, कि बङ्गालो लोग प्याज खाते हैं, इस कारण उनके शोताहरोग नहीं होता। प्याजका रस ४ से ८ औंस तक दो श्रौंस चीनी के साथ मिला कर रक्तक्षरणशील अगरोगोको खिलानेसे अति शीघ्र फायदा दिखाई देता है। सबेरे और शाम को एक एक प्याज करके कालो मिर्च के साथ खाने से मलेरियावटित ज्वर आरोग्य होता है। प्याजका मुंह काट कर उस पर जला हुआ चूना लगा कर वृश्चिकक्षत स्थान पर घिन देने से ज्वाला बहुत कुछ दब जाती है । डाकर वे रेणके मत से कच्चा प्याज नोंद लाता है। सूर्च्छारोग में इसका रस उत्कष्ट उत्तेजक औषध है। मूर्च्छा के समय वह रम रोगों को नाकमें लगाना होता है। किसी एक बरतन में यदि कुछ प्याजको बन्द करके जहां गोबर जमा किया जाता है वहां जमोनके नीचे चार मास तक गाड़ कर रख दे, तो प्याजको कामो दोपक शक्ति बढ़ती है । आमाश्य वा आमरक्तरोग में प्याजका अधिक प्रयोग होते देखा जाता है। एक ग्रेन अफोमको प्याज के भोतर भर कर उत्तन चारयुक्त अग्नि में बाधा सिद्ध करके रोगोको खिलाने से कठिन आमदतका उपथम होता है। तीन प्याजकन्दको मुट्ठी भर इमलो की पत्तियों के साथ रोगोको खिलाने से वह विरेचक औषधका काम करता है। प्याजको चूर कर उसका ताजा इस प्रर्काघात वा सरदी गरमोसे पोड़ित रोगोके शरीर में अच्छी तरह लगाने से भारो उपकार होता है। प्रायः देखा जाता है, कि उत्तर भारतवासी ग्रोष्मकालमें अपनो अपनो सन्तानको उत्तप्त वायु ( ल ह ) से बचाने के लिये गले प्याज बांध देते हैं, श्रामाशय में तेज वृद्धि करनेके लिये साधारणतः प्याज बालकोंको खिलाया जाता है । हिन्दूशास्त्र में प्याजको अशुद्ध बतलाया है, इस कारण धर्म प्राण हिन्दूमात्र हो प्याज स्पर्श नहीं करते । मुमलमान और यूरोपीयगण बिना प्याजके तरकारी आदि बनाते ही नहीं। निम्नश्रेणोके हिन्दूगय व्यव नादिकेत अथवा रोटोके साथ कच्चा प्याज खाते हैं । साइबोरियां राज्य में एक जातिका पताण्ड, उत्पन्न होता है जिसका नाम है Stone leek or rock onion -Allium fisteulosum । यूरोप में सभो समय प्याज नहीं मिलता, इस कारण व्यञ्जनादि में यही दिया जाता है । हिमालय पर्वतजात पलाण्ड (A leptophyllam) घर्मकारक और साधारण प्याज से भाल होता है । परू (A. Porum, अरबी-किराय) नामक पलाण्डु पूर्व राज्य से यूरोप खण्ड में लाया गया था 1 फरोयाके समय इजिष्ट्रवासिगण 'परु' वपन करते थे। लिनि लिखित ग्रन्थ पढ़नेसे जाना जाता है, कि सम्राट् नेरोने पहले पहल इस वोजका यूरोपजगत् में प्रचार किया । वेल्सवासिगण सौक्सनोंको पराजयके उपलक्ष में छठीं शताब्दीसे इस जातिके प्याजका चिह्न धारण करते रहे हैं। जंगली प्याज ( A. Rubellium ) उत्तरपश्चिम-हिमालयखण्ड पर लाहोर तक विस्तृत स्थानमें उत्पन्न होता है। इसको पत्तियोंका दल मोटा होता है। इसका कन्द कच्चा और सिझा कर खाया जाता है। स्थान विशेषसे इसके और भो दो नाम सुने जाते हैं, बरनो प्याज और चिरि प्याजोः मोजे सके समय इजिप्टमें प्याजकी खेतो होतो थो। हिरोदोतसने ४१३ ई० सन्के पहले जित शिलालिविका उल्लेख किया है उसमें लिखा है कि, 'इजिप्टके विरामिड निर्माण कार्य में जो सब मजदूर काम करते थे, उन्होंने ४२८८०० पोण्डका प्याज खाया था।' पलाद ( स० पुस्खो० ) पल मांस अत्तोति [अद-भक्षणे (कर्मण्यण । पा ३।२।१ ) इति । १ राक्षस । (लि० ) २ मांसभक्षक । पलादन (स० पु०स्त्रो०) पल' माम अत्तोति पल-भदुब्यु । १ राक्षस ( त्रि० ) २ सांसमजणगौल। पसान (५०) महो या चारजना जो जानवरों पीठ पर लादने या चढ़ने के लिये कमा जाता है। पैजानना ( हि● क्रि० ) १ घोड़ आदि पर पलान कसना, गही या चारजामा कसना या बांधना । २ चढ़ाई को तैयारी करना, धावा करने के लिये तैयार होना । पलानी (स्त्रिो० ) १ छप्पर । २ पानके आकार का एक गहना जिसे स्त्रियां पर पजे के ऊपर पहनती हैं । पचान ( स ० क्लो० ) पल' मांस तेन सह पक्कमन्त्र, मध्य पदलोपि कर्मधारयः । मांसादियुक्ता सिद्ध अन्न, चावल और मांस से मेल से बना हुआ भोजन, पुनाव । पाकराजेखर में इसको पाकप्रणाली इस प्रकार लिखी है. काम मांस १ शराव, घृत मांसका चौथाई भाग, दार चोनो ३ मांगा, लवङ्ग ३ माया, इलाय वो ३ सागा, तण्डु, १ शराव, मिर्च २ तोला, तेजपत्र १ तोला, क्रुङ्गम १ माशा, अदरक २ तोला, लव ए ६ तोला, धनिया २ तोला, द्राचा ( शरावका पादाई पहले कागमांतको सूक्ष्म रूप से चूर्ण करके शुष्क प्रवे पाक करने से बाद दूसरे बरतन में तेजपत्र बिछा दे और तब ऊपर से थोड़ा अखण्ड गवद्रथ डाल दे। चावलको जलमें अर्द्धसिद्ध करके उसका मांड पमा ले और उसमें थोड़ा गन्धद्रय मिला कर इस अईसिद्ध तण्डुलका मांस के ऊपर अच्छो तरह सजा कर रख दे । इस प्रकार दीवा तोन वार सजा कर रखना होता है। पोछे इसके ऊपर बचा हुआ घो छिड़क दे और दो दण्ड तक आंच देते रहे । ऐसा करने से वह भलीभांति सिद्ध हो जायगा । मांस यदि न दिया जाय, तो उसके बदले में मछलो, फतु मूलादि भो दे सकते हैं। इसमें गन्धद्रव्य तो दधि ते साथ मिला कर देना होता है । पलाप ( म ० ० ) पल' मांस प्राप्यते प्राप्यते वाहुत्यन अत्र, पाप घञ । १ कण्ठपायक । २ हस्तिकपोल, हाथोका कपोल, कनपटी आदि । पलाश ( स ० स्त्री॰ ) नेत्राञ्जन । पलामू-विहार और उड़ीसा के छोटानागपुर उपविभागका एक जिला। यह बता० २३ २० से २४ ३८ उ० और देशा० ८३' २० से ८४५८ मध्य अवस्थित है। भूपरिमाप ४८१४ वर्ममोल है। इसके उत्तर में शाहाबाद और गया; पूर्व में गया, हजारीबाग और रांची, दक्षिण में रांची और सुरगुजा राज्य तथा पश्चिम में युक्त प्रदेश के सरगुजा और मिरापुर जिता है। इस जिलेका अधिकांश पर्वतमालाने घिरा सोननदो जिलेके उत्तरांवमें बह गई है। यहां के जङ्गल में बाघ, चीता, सम्बर, जयसार, नोलगाय और जङ्गलो कुत्ते पाये जाते हैं । यहांका तापपरिमाण ७४° से ८४ और वार्षिक वृष्टिात ४८ इञ्च है । पलामू जिलेका इतिहास १६०३ ई०के पहले नहीं मिलता। उस समय चेरोव शने राक्सत राजपूत को भगा कर अपना आधिपत्य जमा लिया। प्रायः २०० वर्ष तक राज्य किया । इन मेदनीराय थे जिन्होंने १६५८ से १६७२ ६० तक शासन किया । इन्होंने अपना राज्य गया, हजारोबाग और सुरगुजा तक फैला लिया था। यहां जो दुर्ग हैं, उनमेंसे एक इन्होंका बनवाया हुआ है। दूसरे दुगक नोत्रे इन लड़के ने डालो थो, पर वे इसे पूरा करन सके । उम समय मुसलमानोंने कई बार पलामू पर चढ़ाई को और राजाको कर देने के लिये बाध्य किया । दूसरे वर्ष दाऊद खांने यहां दुर्ग पर अधिकार जमा हो लिया। १७२२ ई० में राज रजिरा मारे गये और उनके छोटे लड़के राजनिहामन पर प्रतिष्ठित हुए । तदनन्तर जयण राय उन्हें सिहासनयत कर आप गद्दी पर बैठ गये। कुछ वर्ष बाद जयजगणराय गोलो के आघात मे पञ्चत्वको प्राप्त हुए और उनके परिवारवर्ग प्रागा ले कर मेगरा भागे। यहां उन्होंने उद वन्तरराम नामक एक कानूनगोके यहां आश्रय लिया उदवन्त १००० ई० में मृ राजा पोते गोपालरायको गमेण्ट एजेण्ट कप्तान कामकके पास पटना ले गये और सारा हाल कह सुनाया। इस पर कलानने राजाको सेनाको अच्छी तरह परास्त कर पलामूके उचित उत्त राधिकारी गोपालरायको सिंहासन पर बिठाया । किन्तु दुर्भाग्यवश दो वर्ष पोछे गोपालरायने मानूनगोको हत्या में दुष्टोंका साथ दिया और इस अपराध में उन्हें कठिन कारावास की सजा हुई । १७८४ ई० को पटने में उनको मृत्यु हुई। इसी समय बसन्तराय भी जो उनके कारावास के समय गद्दी पर बैठे थे, कराल काल के गाल में पतित हुए । तदनन्तर १८१३ ईमें चुगमनराय राज सिहासन पर अधिरूढ़ हुए। इस समय पनाम जिले
5d4a99726bc83f550fa471b43f81b2c308a981cb
web
समय के साथ-साथ हर चीज ने आधुनिक रूप लिया है, लेकिन फिर भी कई चीजें हैं जो प्राचीन काल से आज तक भी मानव जीवन में वही महत्व रखती हैं। दुनिया के कई अलग-अलग हिस्सों से अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियां विकसित हुई, जिनमें से कुछ आज भी हमारी जीवनशैली काफी महत्व रखती है। आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी की तरह ही सोवा रिग्पा भी ऐसी प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में से एक है, जिसका प्रभाव आज भी कायम है। सोवा रिग्पा तिब्बत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसे भी दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में गिना जाता है, जो आज भी पूरी तरह से सक्रिय है। सोवा रिग्पा प्रमुख रूप से चार चिकित्सीय तंत्रों (rGyudbZhi) पर आधारित है। सोवा रिग्पा को आमची के नाम से भी जाना जाता है और कई वेस्टर्न देशों में इसे टिब्बटन मेडिसिन सिस्टम (tibetan medicine system) के नाम से भी जाना जाता है। यह चिकित्सा प्रणाली न सिर्फ शारीरिक रोगों का निवारण करती है, बल्कि मानसिक कई गंभीर मानसिक समस्याओं को दूर करती है। वहीं सोवा रिग्पा के बारे में यह भी मान्यताएं हैं कि इसकी मदद से कई लाइलाज बीमारियों का जड़ से इलाज किया जा सकता है। हालांकि, अभी इस बारे में आधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं मिल पाई है और वर्तमान में भी इसकी क्षमता को साइड इफेक्ट्स की जांच करने के लिए टेस्ट किए जा रहे है। सोवा रिग्पा को आमची (या आमचि) और तिब्बत चिकित्सा प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। यह सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में से एक है और वर्तमान में भी इसका उपयोग भारत के तिब्बत, भूटान, चीन और भारत के कई हिस्सों में किया जाता है। सोवा रिग्पा में रोगों का इलाज आमतौर पर इसके पांच तत्वों सा (sa), चू (chu), मे (me), लंग (lung) और नम-खा (nam-kha) पर आधारित है। इस चिकित्सा प्रणाली में रोगों का इलाज उसकी नैदानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद किया जाता है और इस प्रक्रिया के दौरान रोग के कारण व प्रकार का पता लगाया जाता है और साथ परिणाम के अनुसार ही इलाज किया जाता है। सोवा रिग्पा की जड़ें प्राचीन तिब्बत, भूटान, मंगोलिया, नेपाल और चीन व भारत के कुछ हिमालयी हिस्सों से जुड़े मिलते हैं। हालांकि, इसका जन्म कब और किस जगह पर हुआ है इस बारे में सटीक जानकारी अभी तक मिल नहीं पाई है। लेकिन कुछ जानकारों के अनुसार यह लगभग 2500 साल पुरानी सभ्यता है और 8वीं शताब्दी के आसपास इसका हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलन होने लगा था। इसके जन्म स्थान की बात करें तो, कुछ अध्ययनकर्ता मानते हैं कि इसका जन्म भारत के हिमालयी क्षेत्र में हुआ, तो कुछ इसका जन्म चीन से जुड़ा मानते हैं। वहीं कुछ अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि सोवा रिग्पा का जन्म तिब्बत में ही हुआ था। इंटरनेट पर मिली जानकारियों के अनुसार तिब्बत के युथोग योंटेन गोंपो (Yuthog Yonten Gonpo) को सोवा रिग्पा के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। सोवा रिग्पा वैसे तो अपने आप में खुद एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है और यह अपने ही सिद्धातों पर काम करती है। लेकिन देखा गया है कि इसके ज्यादातर सिद्धांत और अभ्यास आयुर्वेद से मेल खाते हैं। तिब्बत में आयुर्वेद का प्रभाव सबसे पहले तीसरी शताब्दी में देखा गया था, लेकिन बौद्ध धर्म के प्रभाव को देखते हुए आयुर्वेद का ज्यादा प्रचलन सातवीं शताब्दी में हो पाया था। तिब्बत में बौद्ध धर्म के कारण भारतीय कला, संस्कृति और चिकित्सा साहित्य का प्रचलन उन्नीसवीं शताब्दी तक रहा। सोवा रिग्पा प्रमुख रूप से जंग-वा-न्गा और न्गेपा-सुम के सिद्धांतों पर आधारित है। जंग-वा-न्गा को संस्कृत में पंचमहाभूत और न्गेपा-सुम को त्रिदोष के नाम से जाना जाता है। सोवा रिग्पा के सिद्धांतों के अनुसार ब्रह्मांड की सभी जीवित और निर्जीव चीजें जंग-वा-न्गा के पांच तत्वों यानी सा, चू, मे, लंग और नम-खा (Sa, Chu, Me, Lung and Nam-kha) से मिलकर बने हैं। संस्कृत में सा, चू, मे, लंग और नम-खा का मतलब पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश है। इन सिद्धांतों के आधार पर ही सोवा रिग्पा के फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी और फार्मोकोलॉजी स्थापित की जाती है। अर्थात इन सिद्धांतों के माध्यम से ही रोग की जांच, इलाज और औषधियों का चयन किया जाता है। इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के अनुसार अगर किसी व्यक्ति के शरीर में इन पांचों तत्वों में से किसी एक का भी संतुलन खराब (कम या ज्यादा) हो गया है, तो ऐसे में बीमारी विकसित होती है। - मारक दवा (एंटीडोट) सोवा रिग्पा में ऐसे नुस्खे तैयार किए गए हैं, जिनकी मदद से व्यक्ति घर पर ही अपनी समस्याओं का इलाज कर सकता है। इसके कई नुस्खे विशेष रूप से ऐसी सामग्री और विधियों के देखकर तैयार किए गए हैं, जिन्हें आसानी से घर पर ही तैयार किया जा सकता है। विशेष रूप से सांस संबंधी बीमारियों का घर पर इलाज करने के लिए सोवा रिग्पा चिकित्सा पद्धति की मदद ली जाती है। भारतीय रसोई में ऐसे लगभग सभी प्रकार की सामग्री पाई जाती है, जिनका इस्तेमाल सोवा रिग्पा में सांस संबंधी बीमारियों समेत कई स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने की दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। हालांकि, सोवा रिग्पा के घरेलू नुस्खों पर समय-समय पर कुछ अध्ययन भी चलते हैं, जिनमें कुछ परिणाम सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक भी पाए गए हैं। सोवा रिग्पा भले ही विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक हो, लेकिन इसके रोग निदान की कार्य-शैली शुरुआत से ही प्रभावी रही है। सोवा रिग्पा चिकित्सा प्रणाली में रोग का पता लगाने और उसके लिए उचित इलाज का चयन करने के लिए जिन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, उनका इस्तेमाल वर्तमान में भी कई मेडिसिन सिस्टम में किया जाता है। इसमें मरीज की वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति का आकलन करते हुए उसकी जीभ, नाड़ी और मल-मूत्र की जांच की जाती है। सोवा रिग्पा में में रोग का उपचार भी काफी हद तक एलोपैथी की तरह रोग निदान पर निर्भर करता है। रोग के निदान के अनुसार ही इलाज डिजाइन किया जाता है, जिसमें जीवनशैली में बदलाव (आदतें व परहेज), प्राकृतिक औषधीय दवाएं और थेरेपी आदि शामिल हैं। सोवा रिग्पा में इस्तेमाल की जाने वाली ऐसी कई थेरेपी हैं, जिनका इस्तेमाल आज भी काफी प्रभावी है। इनमें थेरेपी में आमतौर पर कून्ये मसाज, एक्यूपंक्चर, मॉक्सिबस्चिन, कंप्रैस (सिकाई), औषधि स्नान और अन्य कई थेरेपी शामिल हैं। इसके अलावा सोवा रिग्पा में आध्यात्मिक उपचार तकनीकें भी शामिल हैं, जिनमें योगासन, मंत्र उच्चारण, श्वसन प्रक्रियाएं और ध्यान लगाना (मेडिटेशन) आदि का भी अभ्यास किया जाता है, जो शरीर का संतुलन बनाए रखने और मन व दिमाग को शांति देने का काम करती हैं। सोवा रिग्पा के दौरान किसी बीमारी का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाले दवाएं व आहार भी इस चिकित्सा पद्धति के पांच तत्वों पर आधारित होती है। शरीर में ये तत्व न्गेपा-सुम (त्रिदोष) लुस-सुंग-दुन (सप्त धातु) और द्री-मा-सुम (त्रिमाला) के रूप में मौजूद हैं। सोवा रिग्पा में उपयोग की जाने वाली दवाएं व सिरप प्रमुख रूप से रो-दुग (शस्त-रस), नुस-पा (वीर्य), योन्तन (गुण) और ज्हू-जेस (विपाक) के रूप में होती हैं। सोवा रिग्पा का यह उपचार सिद्धांत दर्शाता है, कि चिकित्सक अपने ज्ञान और कौशल के आधार पर इन तत्वों का उपयोग करके हुए या इन्हें ध्यान में रखते हुए रोग निवारण करेगा। सोवा रिग्पा चिकित्सा प्रणाली से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि सोवा रिग्पा पूरी तरह से प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और शरीर अनुकूलित प्रक्रियाओं पर आधारित है और शरीर पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम के अनुसार सोवा रिग्पा, आयुर्वेद और सिद्ध जैसी चिकित्सा पद्धतियों में कई ऐसी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो रक्त के सामान्य संतुलन को बिगाड़ सकता है। हालांकि, अभी तक इस बात की भी पुष्टि नहीं की गई है, कि सोवा रिग्पा चिकित्सा लेने से स्वास्थ्य पर कौन से विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। इस चिकित्सा प्रणाली से क्या संभावित साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, इस बारे में अध्ययन किए जा रहे हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्रों से सोवा रिग्पा का इतिहास जुड़ा है। आज भी भारत में ऐसी कई जगह पाई जाती हैं, जहां पर सोवा रिग्पा की प्राचीन जड़ें मिलती हैं। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में भारत में सोवा रिग्पा का महत्व काफी बढ़ा है। भारत के कई हिस्सों में शैक्षणिक संस्थानों, चिकित्सालयों, अस्पतालों और फार्मेसियों में आधुनिक और पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए इसे अपनाया जाने लगा है। धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) और लद्दाख में सोवा रिग्पा के संस्थानों का मुख्य केंद्र हैं। दरअसल, भारत में आश्रय लेने के बाद दलाई लामा जहां उन्होंने इस तिब्बती चिकित्सा पद्धति के संस्थान की स्थापना की। धर्मशाला में तिब्बती चिकित्सा परिषद है, जो सोवा-रिग्पा के चिकित्सा अभ्यास को विनियमित करता है और इस पद्थति से जुड़ी अन्य कार्य प्रक्रियाओं को देखता है। हालांकि, भारत की तरह चीन को भी सोवा रिग्पा पर आधिकारिक रूप से अपना हक जताते हुए देखा गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 50 से 60 फीसद लोग आज भी अपनी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं और बीमारियों के लिए इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली पर निर्भर हैं। कुछ सोवा रिग्पा संस्थानों से जुड़े चिकित्सकों और अभ्यायसकर्ताओं के अनुसार, यह (सोवा रिग्पा) कई स्वास्थ्य समस्याओं का जड़ से इलाज करने की क्षमता रखती है। वहीं कुछ रिपोर्ट्स में के अनुसार सोवा-रिग्पा की मदद से लाइलाज बीमारियों का इलाज भी किया जा सकता है। हालांकि, अभी तक इस बारे में आधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं मिली है और इस पर अभी भी रिसर्च चल रहे हैं।