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और इसलिए RTI एक माध्यम है Transparency की ओर जाने का, लेकिन At the same time RTI से सीख करके हमने शासन व्यवस्था में Transparency लाने की आवश्यकता है।
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और मुझे विश्वास है कि अगर गलत इरादे से कोई काम नहीं है तो कभी कोइे तकलीफ नहीं होती है, कोई दिक्कत नहीं होती है।
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सही काम सही परिणाम भी देते हैं।
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और जैसा मैंने कहा सिर्फ process नहीं।
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हमें आने वाले दिनों में product की quality पर भी ध्यान देना पड़ेगा।
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उसको भी हम किस प्रकार से सोंचे।
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ताकि हर चीज का हिसाब-किताब देना पड़े।
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क्योंकि जनता के पैसा से चलती है सरकार।
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सारे निर्माण कार्य होते हैं जनता के पैसों से होते हैं।
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और जनता सर्वपरि होती है लोकतंत्र में।
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उसके हितों की चिंता और उस व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में हम प्रयास करते रहेंगे।
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तो मैं समझता हूं कि बहुत ही उपकारक होगा।
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आज पूरा दिनभर आप लोग बैठने वाले हैं।
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मुझे विश्वास है कि इस बंधन में राज्य के भी सभी अधिकारी यहां पर आए हुए हैं।
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तो उस मंथन में से जो भी अच्छे सुझाव आएंगे वो सरकार के ध्यान में आएंगे।
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उसमें से कितना अच्छा कर सकते हैं प्रयास जरूर रहेगा, लेकिन हम चाहेंगे कि जनता जितनी ताकतवर बनती है, नागरिक जितना ताकतवर बनता है वो ताकत सचमुच में देश की ही ताकत होती है।
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उसी को हम बल दें।
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इसी एक अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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धन्यवाद।
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परम पूज्य बाबा रामदेव जी, पूज्य आचार्य जी, आदरणीय राजनाथ सिंह जी, आदरणीय वैदिक जी, श्रीमान हरिओम जी, देश के कोने-कोने से आए हुए भारत स्वाभिमान के सभी सिपाही, और मुझे बताया गया कि देश में 500 से अधिक स्थानों पर बड़ा स्क्रीन लगाकर इस भारत स्वाभिमान आंदोलन से जुड़े हुए सभी लोग बैठे हैं और इस कार्यक्रम में दूर दूर से भी शरीक हुए हैं, मैं उन सबको भी नमन करता हूं..!आजादी के बाद ये पहला चुनाव ऐसा आ रहा है कि जिसने पुरानी सारी परम्पराओं को नष्ट कर दिया है..! आम तौर पर चुनाव राजनीतिक दल लड़ते रहे हैं, उम्मिदवार लड़ते रहे हैं, लेकिन ये पहला चुनाव ऐसा है जो चुनाव अपने आप में एक जन-आंदोलन बन गया है..! चुनाव को जन-आंदोलन बनाने में पूज्य रामदेव जी की अखंड एकनिष्ठ तपश्चर्या भी है..! हरिओम जी सच कह रहे थे, उनको क्या कमी थी..! सारे मुख्यमंत्री उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे..! लेकिन वो सब कुछ छोड़कर एक मिशन को लेकर निकल पडे..! अपने लिए नहीं, भारत के स्वाभिमान के लिए..! कभी-कभी पीड़ा भी होती है कि आजादी के इतने सालों के बाद हमें ही हमारे ही देश के स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़े..? ये अजूबा है..! ये तो सहज प्राप्य होना चाहिए, स्वाभाविक प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन न जाने क्या-क्या रूकावटें रहीं, कि आज स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है..भाईयों-बहनों, आज जब हम भारत के स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाले सिपाहियों के बीच खड़े हैं तब, अपने इस कार्यक्रम के दरमियान ही इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने, भारत के इंजीनियरों ने सफलतापूर्वक जीएसएलवी डी-5 को लांच करने में सफलता पाई है।
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मैं भारत के सभी वैज्ञानिकों को, इंजीनियरों को इस सफलता दिलाने के लिए इस पवित्र मंच से बहुत बहुत बधाई देता हूं, उनको शुभकामनाएं देता हूं..! ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिसे पता चलता है कि इस देश में बहुत सामर्थ्य है..!भाईयों-बहनों, मैं निराशावादी इंसान नहीं हूं, मेरी डिक्शनरी में निराशा शब्द ही नहीं है..! और उसका कारण ये नहीं कि मुझे डिक्शनरी का ज्ञान है, इसका कारण यह है कि मैंने जिंदगी को ऐसा जिया है..! जब आजकल लोग अनाप-शनाप इलजाम लगाते हैं तो मैं भी कभी मुडकर खुद के जीवन की ओर देखता हूं, और मैं सोचता हूं कि ये देश कितना महान है, यहां के लोग कितने महान है कि जिन्होंने रेल के डिब्बे में चाय बेचने वाले बच्चे को अपने कंधे पर उठा लिया..! मित्रों, मैं निराशावादी नहीं हूं इसके पीछे एक कारण है, क्योंकि मैनें अपनी मां को अड़ोस-पड़ोस के घरों में बर्तन साफ करते, पानी भरते देखा है, उन्होने बिना निराश हुए अपने बच्चों को पालने का, संस्कारित करने का काम किया..! मैं अभी बाबा रामदेव जी से एक सवाल पूछ रहा था क्योंकि एक हिन्दी शब्द मुझे मालूम नहीं था।
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हमारे यहां गुजरात में कॉटन की खेती होती है, और जब खेत में कपास तैयार होता है तो वो गरीब परिवार उसे अपने घर ले जाते हैं और उसका छिलका उतारकर उसके अंदर से कॉटन निकालते हैं।
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गुजराती में उसे ‘काला फोलवा...’ कहते हैं, मुझे नहीं मालूम कि हिन्दी में उसे क्या कहते हैं।
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हां, मुझे शब्द मिल गया, ‘भिंडोला’, हमारे यहां उसे ‘काला’ बोलते हैं..! उसका छिलका काफी धारदार होता है, कई बार उससे खून भी निकल आता है।
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जब वो सीजन आता था, तो पूरे दिन में पचासों प्रकार की मेहनत करने के बाद हमारा पूरा परिवार बैठता था और छिलके हटाकर कॉटन बाहर निकालते थे, दूसरे दिन सुबह जाकर जमा करवाते थे, और इससे कुछ मजबूरी मिल जाती थी..! जिसने इस जीवन को जिया है, उसके जीवन में निराशा का नामोनिशान नहीं हो सकता है।
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जो इस पीड़ा और दर्द में पला है उसे औरों की पीड़ा व दर्द समझने के लिए यात्राएं नहीं करनी पड़ती, और वही पीड़ा, वही दर्द, वही संवेदना हमें कार्य करने की प्रेरणा देती है।
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हर पल मन में रहता है कि ईश्वर ने जो शरीर दिया है, जो समय दिया है, जो अवसर दिया है, उसका उपयोग भारत माता के कोटि-कोटि जनों के लिए ही होना चाहिए।
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दुखी, पीडित, दरिद्र, दलित, शोषित, वंचित उनके लिए होना चाहिए और जब जीवन में ऐसी प्रेरणा होती है तो ईश्वर रास्ते भी अपने आप सुझाता है..!मित्रों, पहले चुनाव होते थे, जोड़-तोड़ के चुनाव होते थे, परिवार को संभालने के लिए चुनाव होते थे, जाति-बिरादरी के समीकरणों को संभालने के लिए चुनाव होते थे, वोट बैंक की छाया में चुनाव होते थे..! मित्रों, ये खुशी की बात नहीं है कि आज देश में विकास के एजेंडा की चर्चा हो रही है और विकास के एजेंडा पर चुनाव लड़ने के लिए देश के राजनीतिक दलों को मजबूर किया जा रहा है और बाबा रामदेव जी का ये प्रयास उसी दिशा में एक नक्कर, मक्कम, मजबूत कदम है, यह एक शुभ संकेत है..! ठीक है भाई, आप सरकार बनाना चाहते हो, तो क्यों बनाना चाहते हो, किसके लिए बनाना चाहते हो, बनाकर क्या करना चाहते हो, जरा दुनिया को बताओ तो सही..! मैं चाहूंगा कि ये प्रयास 2014 के चुनावों तक निरंतर चलता रहना चाहिए, दबाव बढ़ाना चाहिए, सिर्फ बीजेपी पर ही नहीं बल्कि सभी दलों पर बढ़ाना चाहिए कि बहुत हुआ, 60 साल बर्बाद किए हैं अब कुछ कर दिखाओ..!भाइयों-बहनों, इसके साथ-साथ बाबा रामदेव अब राजनेताओं को भली-भांति जान गए हैं..! ये जान गए हैं कि दिन में कैसे एयरपोर्ट पर लेने आना और रात में कैसे जुल्म करना, ये भली-भांति जान गए हैं..! इसलिए, कोई कहने को तो कह दें, लेकिन उस पर भरोसा मत करना, ट्रैक रिकॉर्ड बराबर देख लेना, अगर वो ट्रैक रिकॉर्ड पर सही उतरते हैं तो भरपूर आर्शीवाद दे देना, लेकिन अगर ट्रैक रिकॉर्ड ठीक नहीं है और सिर्फ टेप रिकॉर्ड चल रहा है तो उस पर भरोसा मत करना..!भाइयों-बहनों, आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस देश में 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, जो विश्व का सबसे नौजवान देश हो और परमात्मा ने हर नौजवान को भुजा दी हो, बुद्धि और सामर्थ्य दिया हो, कुछ कर दिखाने की ललक दी हो, उसके बावजूद भी जो डेमोग्राफिक डिविडेंड एक बहुत बड़ा एसेट बन सकता था, लेकिन देश के नेतृत्व ने उस डेमोग्राफिक डिविडेंड को डेमोग्राफिक डिजास्टर में कन्वर्ट कर दिया, इससे बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता है..!नौजवान को अवसर चाहिये।
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आज चाइना के बारे में स्वामी जी एक बात बता रहे थे कि चाइना ने एक काम पर बहुत बल दिया है, और वो बल स्किल डेवलेपमेंट पर दिया गया है।
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नौजवानों को हुनर सिखाओ, अगर नौजवान के अंदर हुनर होगा तो वह अपने सामर्थ्य से जीवन जीने का रास्ता खोज लेगा।
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आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत सरकार ने बार-बार भांति-भांति प्रकार के स्किल डेवलेपमेंट के मिशन बनाए, प्रधानमंत्री तक उसके चेयरमेन बने, हर तीन महीने में लिखित रूप से उसका मूल्यांकन करना तय हुआ था, लेकिन तीन साल तक एक मीटिंग तक नहीं हुई..! क्या इसके लिए कोई एक्सट्राऑर्डिनरी विजन की जरूरत है..? काम नहीं बन सकता है क्या..?मैं ट्रैक रिकॉर्ड की बात इसलिए बताता हूं क्योंकि गुजरात ने उस दिशा में करके दिखाया है..! हम जानते हैं कि अगर देश की जीडीपी को बढ़ाना है तो हमें हमारी उत्पादन क्षमता का भरपूर उपयोग करना होगा, हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना होगा, और मित्रों, ऐसा नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता है..! हमारा देश कृषि प्रधान देश है।
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बाबा ने जिन मुद्दों को उठाया है, उन मुद्दों को अरूण जी ने और राजनाथ जी ने बहुत पॉजिटिवली बता दिया है लेकिन मैं और तरीके से उस चीज को बता रहा हूं।
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हमारा कृषि प्रधान देश है, हमारे यहां कृषि के साथ पशुपालन अंगभूत व्यवस्था है और मैं मानता हूं कि अगर हमें कृषि को सामर्थ्यवान बनाना है तो उसे तीन हिस्सों में बांटना होगा।
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एक तिहाई - रेगुलर खेती, एक तिहाई - वृक्षों की खेती, पेड़ों की खेती, और एक तिहाई - पशुपालन..! हमारे यहां दो खेतों के बीच कितनी जमीन बेकार होती है..? सभी को यह बात मालूम है, उस खेत वाला हमारे खेत में न घुस जाएं, हम उसके खेत में न जाएं, इसके लिए बीच में हम जो बाड़ बना देते हैं, तो कितनी जमीन बर्बाद करते हैं..! अगर उस किनारे पर उस किसान को पेड़ उगाने का अधिकार दिया जाए और उसे पेड़ बेचने का अधिकार दिया जाए तो इस देश को टिम्बर इम्पोर्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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आज इस कृषि प्रधान देश को टिम्बर इम्पोर्ट करना पड़ता है और फिर करंट एकांउट डेफिसिट के लिए गोल्ड पर हमला बोल देते हैं, यानि करने जैसे काम नहीं करना और न करने जैसे पहले करना..!मित्रों, 60-70 के दशक में हिंदुस्तान में गोल्ड स्मगलिंग के लिए एक बहुत बड़ा सुनहरा अवसर था, चारों ओर सोने की तस्करी, इस देश का बहुत बड़ा पेशा बन गया था, और उसी गोल्ड स्मगलिंग में से हिंदुस्तान में अंडरवर्ल्ड का नेटवर्क पैदा हुआ।
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आज भी अंडरवर्ल्ड के जो बड़े-बड़े माफिया हैं वो गोल्ड स्मगलिंग के उस काल में पैदा हुए थे।
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दिल्ली में ऐसी सरकार बैठी है कि फिर से उसने गोल्ड स्मगलिंग का उदय कर दिया है..! अभी मैं पिछले दिनों टीवी में देख रहा था, कि दक्षिण के एक राज्य में सौ किलो से ज्यादा स्मगलिंग का सोना पकड़ा गया, कितना पकड़ा गया वो तो हमें मालूम है, कितना नहीं पकड़ा गया वह नहीं मालूम है..! मित्रों, ये कुनीतियों का परिणाम है..!मैं आप सभी के साथ गुजरात का एक अनुभव शेयर करना चाहता हूं।
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हमारे राज्य में हम पशु आरोग्य मेले लगाते हैं और हजारों की तादात में लगाते हैं।
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आज भी अगर हमारे देश में मनुष्य को भी कैटरेक्ट का ऑपरेशन करवाना हो तो किसी चैरिटेबल ट्रस्ट के कार्यक्रम में जाना पड़ता है, ये स्थिति है।
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गुजरात में हम पशु का भी कैटरेक ऑपरेशन करते हैं, उसके नेत्रमणि का ऑपरेशन करते हैं, उसका डेंटल ट्रीटमेंट करते हैं..! मैने अभी कुछ डॉक्टर्स को अमेरिका भेजा था कि वह लेजर टेक्नीक से पशुओं की आंखों का ऑपरेशन करना सीखकर आएं, ताकि पशु का रक्त न बहे, उसे पीड़ा न हो..! इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे यहां मिल्क प्रोडक्शन में 86 प्रतिशत की वृद्धि हुई..! अब आप ही बताइए, इससे मेरा किसान सामर्थ्यवान हुआ या नहीं..? फर्क देखिए, उन्होने क्या किया, उन्होने सपना देखा-पिंक रिवोल्यूशन का।
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इस देश में हमने ग्रीन रिवोल्यूशन सुना है, व्हाइट रिवोल्यूशन सुना है, लेकिन दिल्ली में जो सरकार बैठी है उसने पिंक रिवोल्यूशन का कार्यक्रम शुरू किया।
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पिंक रिवोल्यूशन का मतबल क्या है..? कत्लखाने खोलो, पशुओं का कत्ल करो और मटन जिसका रंग पिंक होता है, उसको एक्सपोर्ट करो..! भाइयों-बहनों, आप मुझे बताइए कि देश के किसानों का भला पशु करेगा कि मटन करेगा..? मित्रों, फर्क यही है कि भारत जैसे गांवों में बसे देश के लिए उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं..? इसका परिणाम यह हुआ है कि कमाई करने के इरादे से पशुओं की चोरी शुरू हो गई, उनकी स्मगलिंग शुरू हो गई।
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बाबा का कहना कि देश में किसान की मिनिमम इनकम का तो प्रबंध करो, उसे भरोसा दो..! लेकिन अगर आप कत्लखाना बनाते है तो भारत सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, आपको बैंक से मिनिमम दर से पैसे मिलते हैं।
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उदाहरण के लिए, अगर आपका कत्लखाना मेरठ में है और आपको मुम्बई तक मटन भेजना है तो ट्रांसपोर्टेशन सब्सिडी भी भारत सरकार देती है..!मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम चाहें तो स्थितियां बदल सकते हैं।
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जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी, हमारे राजनाथ सिंह जी कृषि मंत्री थे तो उन्होने एक योजना शुरू की थी - ‘वाड़ी प्रोजक्ट‘।
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उस वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत ट्राईबल बेल्ट के लोगों को जिनके पास मुश्किल से एक या दो एकड़ भूमि है, जिनकी आय मात्र 10 से 12 हजार रूपए होती थी, ऐसे में वो घर कैसे चलाएगा..! उस वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत हमने गुजरात में प्रयास शुरू किया, हमारे आदिवासी किसानों को आधुनिक खेती की तरफ ले गए, पानी प्रबंधन की तरफ ले गए, सीड्स में बदवाल लाने की दिशा में ले गए, क्रॉप पैटर्न बदल दिया, इससे परिणाम यह आया कि जो किसान 12 से 15 हजार रूपया कमाता था, वह अब डेढ़ से दो लाख रूपया कमाने लगा।
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लेकिन अटल जी की सरकार गई, और इस सरकार ने वो प्रोजेक्ट बंद कर दिया..! इनको समझ नहीं है कि किसके लिए क्या काम करना है..! इसलिए मैं कहता हूं कि देश को आगे बढाने के लिए कोई मंगल ग्रह से मनुष्यों को लाने की जरूरत नहीं है, यहां जो लोग हैं वही इस देश को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं..!मित्रों, ये बात सही है कि अगर हमारे नौजवान को रोजगार न मिले, ग्रामीण विकास के लिए हम खेती पर बल न दें, तो आगे नहीं बढ़ सकता है।
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और ये बात भी सही है कि मैनुफेक्चरिंग सेक्टर में हमें अपनी ताकत दिखानी होगी।
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हमारे जो भी मिनरल्स हैं, जो रॉ मैटेरियल हैं, उसमें वैल्यू एडीशन करना चाहिए, इसमें कोई काम्प्रोमाइज नहीं होना चाहिए।
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आप आयर्न ओर बाहर भेजने के बदले स्टील बनाकर भेजेगें तो इससे देश की आय बढ़ेगी, नौजवान को रोजगार मिलेगा, लेकिन अगर आप आयर्न ओर बाहर भेजेगें और स्टील बाहर से लेंगे तो देश को बर्बाद करके रखेगें..! लेकिन अगर आयर्न ओर से स्टील बनाना है तो बिजली चाहिए, और बिजली के कारखाने बंद पड़े हैं क्योंकि कोयला नहीं मिल रहा है, कोयला नहीं मिल रहा है क्योंकि दिल्ली सरकार की कोयला पॉलिसी को पैरालिसिस हो गया है, इस प्रकार ये एक के साथ दूसरा जुड़ा हुआ है..!मित्रों, हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए, भ्रष्टाचार के कुछ क्षेत्र हैं जिनमें से एक है, मिनरल्स..! हमारे देश का सिस्टम ऐसा है कि फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व, हमारे देश में जो पहले एप्लाई करेगा, उसको हक मिलेगा, उसे पहले अलॉटमेंट होगा..! हमने गुजरात में तय किया कि हम ऐसा नहीं करेगें, हम ऑक्शन यानि नीलामी करेगें, जो ज्यादा बोली बोलेगा, सरकार के खजाने में पैसा आएगा और गरीबों का भला होगा..! आप लोग बताएं, ऑक्शन का रास्ता सही है या नहीं..? ट्रासपेरेंट तरीका है या नहीं..? हमने निर्णय लिया और भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया, कि कानूनन आप ऑक्शन नहीं कर सकते हैं..! एक सरकार है जो हिम्मत करके, ऑक्शन करके अपनी भूसम्पदा को वैल्यू एडीशन के लिए देना चाहती है और दूसरी उसे रोकना..! आज मेरे यहां इतने सीमेंट के कारखाने लगने की संभावना है लेकिन मैं लाइम स्टोन नहीं दे पा रहा हूं कयोंकि भारत सरकार मुझे ऑक्शन करने का अधिकार नहीं देती है और मैं ऑक्शन के बिना देने को तैयार नहीं हूं..!मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि जो हमारी भूसम्पदा है, उस भूसम्पदा का उपयोग भी हम राष्ट्र के विकास की धरोहर के रूप में कर सकते हैं।
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हमारे पास सब कुछ है पर हम ध्यान नहीं देते हैं..! आपको जानकर हैरानी होगी कि आज हमारे देश से बालू की भी स्मगलिंग होने लगी है, जहाज भर-भर के बालू की स्मगलिंग होना शुरू हो गया है।
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लेकिन अगर आपकी नीतियां स्पष्ट नहीं रही, तो ये संभावनाएं बढ़ती जाती हैं।
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और इसलिए, भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने की पहली शर्त होती है, स्टेट प्रोग्रेसिव पॉलिसी ड्रिवन होना चाहिए, नई नीतियां लगातार बनती चली जानी चाहिए, नीतियों के आधार पर निर्णय होने चाहिए, और निर्णयों को पारदर्शी तरीके से लागू करना चाहिए, इस प्रकार भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है।
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ये कोई ऐसी चीज नहीं है कि हो नहीं सकती..!मित्रों, टैक्सेशन..! मैं इन विचारों से कई वर्षो से अच्छी तरह परिचित हूं जो आर्थिक स्वराज को लेकर उठाएं जाते हैं।
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हमारे देश के कई राज्य हैं जो ऑक्ट्रोई बंद करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं।
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हमने कर दिया और हमारी गाड़ी चल रही है, हमारे राज्य में ऑक्ट्रोई वगैरह सब बंद हो गया..! कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि अगर इरादा हो, तो सब कुछ किया जा सकता है और इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि देश को वादे नहीं इरादे चाहिए..! भाईयों, इसलिए ये टैक्सेशन सिस्टम सामान्य मानवी के जीवन पर बोझ बनी हुई है, अफसरशाही की लगाम बढ़ती चली जाती है, समय की मांग है कि उसमें नए तरीके से देखकर रिफॉर्म लाया जाए और भारतीय जनता पार्टी गंभीरता पूर्वक इस विषय पर काम कर रही है..! अभी मेरी पार्टी के सभी नेता इस विषय के जानकार लोगों के साथ तीन-तीन घंटे तक बैठे थे।
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उन लोगों की हर बात को बारीकी से समझा, ठीक है हमें पहली नजर में कुछ समस्याएं नजर आती है, लेकिन अगर इरादा है तो आखिरकार इन समस्याओं का समाधान भी होगा और रास्ते भी खोजे जाएंगे और नई व्यवस्थाएं भी लाई जाएंगी..!भाइयों-बहनों, अगर यहीं व्यवस्थाएं चलानी हैं तो मुझे यहां आने की क्या जरूरत है, बहुत लोग हैं जो चलाएंगे..! दोस्तों, अगर हम कुछ कर नहीं पाते हैं तो जिन्दगी में पद के लिए पैदा नहीं हुए हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो जिन्दगी में कुछ करना है..! लेकिन व्यवस्थाएं ऐसी होनी चाहिए जो जिंदगी में सरलीकरण लाएं।
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एक छोटा सा उदाहरण देता हूं, ये जो अफसरशाही और लाइसेंस राज की दुनिया है, आप सभी को मालूम होगा कि हमारे देश में जो कारखाने होते हैं उनमें बॉयलर होते हैं।
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सरकार में बॉयलर इंस्पेक्शन की व्यवस्था होती है और जो व्यक्ति बॉयलर इंस्पेक्शन करने वाला होता है, वह शंहशाहों का शंहशाह होता है क्योंकि ये बहुत कम लोग होते हैं और वो कारखाने के मालिक परेशान होते हैं क्योंकि उन्हे एक नियत तारीख तक जांच का सर्टिफिकेट चाहिए, और वो कहता है कि समय नहीं है, पहले से क्यों नहीं बोला..? फिर उन दोनों के बीच जो कुछ भी होना चाहिए वह होता होगा, इसके बाद इंस्पेक्शन करने वाला उस कारखाने को सर्टिफिकेट दे देता है कि मैने बॉयलर का इंस्पेक्शन किया और यह कार्य करने योग्य है..! ऐसे ही पूरा कारोबार चलता था।
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कोई मुझे बताएं कि आप कार खरीदते हैं, आपकी कार ठीक है या नहीं, ब्रेक बराबर है या नहीं, इसका इंस्पेक्शन क्या सरकार करती है..? इसकी जांच तो आप खुद ही करते हैं कि नहीं..? आपको आपकी जिदंगी की चिंता है या नहीं..? तो बॉयलर की चिंता भी वो करेगा या नहीं करेगा..? अगर बॉयलर फटेगा तो वो मरेगा कि नहीं..? मैनें कहा कि अब सरकार इंस्पेक्शन नहीं करेगी, आप खुद इंस्पेक्शन करके सर्टिफिकेट दे दो, हम उसको स्वीकार कर लेंगे..! अफसरशाही गई के नहीं..? इसके लिए क्या करना पड़ा..? हमने कहा कि स्किल डेवलेपमेंट का कोर्स आईटीआई में चालू करो, प्राईवेट इंस्टीटयूट खोलकर बॉयलर इंस्पेक्शन का काम करें, और इस तरह हजारों लड़के बॉयलर इंस्पेक्टर बन गए, वो देखते हैं और मालिक को भी चिंता रहती है क्योंकि बिना ब्रेक की गाड़ी कोई चलाएगा क्या..? तो क्या फटने वाला बॉयलर कोई कारखाने में चलाएगा..? मित्रों, ये बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं..!भाइयों-बहनों, आप सभी ने देखा होगा कि पहले हमारे यहां बड़े-बड़े मकानों में लिफ्ट बहुत कम थी, और लिफ्ट के सरकारी इंस्पेक्टर रहते थे और अब करीब-करीब हर घर में लिफ्ट आ गई।
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अब मुझे बताइए, इतने इंस्पेक्टर कहां से लाओगे..? मैनें अपने यहां नियम किया, कि जो लोग रहते हैं, वो हर 6 महीने में अपने यहां की लिफ्टों की जांच करवा कर हमें रिपोर्ट दे दें कि हमारी लिफ्ट ठीक है, उपयोग करने योग्य है और उसका उपयोग करते चलो।
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मित्रों, हम व्यवस्थाओं को बदल सकते हैं, छोटी-छोटी चीजों के माध्यम से भी स्थितियों को बदला जा सकता है, और अगर परिवर्तन लाना है तो लाया जा सकता है..! हमारे देश में एक कानूनी व्यवस्था है कि हर तीस साल में एक बार देश की जमीन का हिसाब-किताब, लेखा-जोखा होना चाहिए।
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जमीन की लम्बाई कितनी है, चौडा़ई कितनी है, उसका मालिक कौन है, इस प्रकार के पूरे विवरण को हर तीस साल में करने का नियम है।
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आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले सौ साल से हमारे देश में ये काम नहीं हुआ है..! कई नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया, सरकारी कागजों में जो जमीन और खेत हैं उन पर नदी बहने लगी है, कहीं खेतों में पर्वत ढ़हकर नीचे आ गए हैं और खेत बचे ही नहीं है, लेकिन सरकारी कागजों पर आज भी वही जमीन है..! सौ साल से इस काम को हमारे देश में नहीं किया गया, आखिर किसान कहां जाएगा..? मैने गुजरात में बीड़ा उठाया, इन दिनों मैं ये काम कर रहा हूं और करके रहूंगा..!मित्रों, कहने का तात्पर्य ये है कि ऐसा नहीं है कि समस्याओं के समाधान नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर सरकारें आती हैं, दिन-रात अगला चुनाव जीतने में लगी रहती हैं।
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सरकारों का काम है पांच साल के समय में देश की भलाई के लिए लोगों को विश्वास में लेकर के कदम उठाना।
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भाईयों-बहनों, मैं गुजरात एक्सपीरियंस से कहता हूं कि सब कुछ संभव है..! बाबा रामदेव जी ने, स्वाभिमान आंदोलन के साथ जुड़े हुए सिपाहियों ने, भारतीय जनता पार्टी से जो अपेक्षाएं रखी हैं और नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत रूप से जो अपेक्षाएं रखी हैं, उसको हम जी-जान से पूरा करने की कोशिश करने वाले हैं..!भाइयों-बहनों, मैं मानता हूं कि हर समस्या का समस्या का समाधान हो सकता है, रास्ते खोजे जा सकते हैं और परिणाम लाया जा सकता है..! भारत बहुरत्ना वसुंधरा है, सामर्थ्यवान देश है।
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मित्रों, भाषा के विषय में, भारतीय भाषाओं का गौरव होना बहुत स्वाभावाविक बात है, और अगर हमें अपने आप पर गौरव नहीं होगा तो दुनिया की पराई चीजों से क्या गौरव कर सकते हैं..? लेकिन हम आधुनिकता के भी पक्ष में हैं, टेक्नोलॉजी के पक्ष में हैं, हम विज्ञान को प्राथमिकता देने के पक्ष में हैं, क्योंकि हमें विश्व के सामने उस सामर्थ्य के साथ खड़ा रहना है, और दुनिया जो भाषा समझें, उस भाषा में मेरे देश का बच्चा आंख से आंख मिलाकर बात करें, उसमें इतनी ताकत होनी चाहिए..! मुंडी नीचे करने का अवसर हमारे देश के बच्चों का नहीं होना चाहिए..! लेकिन अगर हमें अपनी ही भाषाओं पर गर्व नहीं होगा, स्वाभिमान नहीं होगा, तो आप दुनिया में कभी भी आंख से आंख मिलाकर बात नहीं कर सकते हैं।
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इसलिए, सबसे पहले अपने पर भरोसा होना चाहिए, अपने पर स्वाभिमान होना चाहिए, अपनी परम्पराओं पर गर्व होना चाहिए, हमारी संस्कृति, खान-पान, पहनावे, बोल-चाल हर बात का हमें गर्व होना चाहिए..! मित्रों, अगर हमें गर्व है तो रास्ते अपने आप मिल जाते हैं..!भाइयों-बहनों, मैं फिर एक बार बाबा रामदेव जी का अभिनंदन करता हूं कि उन्होने सही दिशा में, देश में सच्चे अर्थ में परिवर्तन क्या हो, नींव कैसी हो, पिलर कैसे हो, इमारत कैसी हो, इसके लिए मंथन शुरू किया है..! अगर संतो के द्वारा मंथन होता है तो अमृत निकलना निश्चित होता है, अगर निस्वार्थ भाव से मंथन होता है तो अमृत सुनिश्चित होता है..!भाइयों-बहनों, हमें दो विषयों पर बल देकर आगे बढ़ना होगा।
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5 साल बाद महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती आएगी।
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उस युग पुरूष को हम कैसा हिंदुस्तान देना चाहते हैं, उन सपनों को तय करना होगा..! वहीं 8-9 साल बाद, भारत की आजादी के 75 साल हो जाएंगे, अमृत पर्व आएगा, देश के दीवानों ने 1200 साल तक लड़ाई लड़ी और देश को आजादी मिली, उस आजादी का अमृत पर्व आने पर उन दीवानों का नाम हमारा देश कैसे लें, देश कैसे सुपुर्द करे, इसके लिए सपने सजोने होगें और एक दिव्य व भव्य भारत बनाना होगा..! हम सिर्फ भव्यता से जुड़े हुए लोग नहीं है, भारत भव्य भी हो और भारत दिव्य हो..! ये दिव्य-भव्य भारत का निर्माण करने के सपनों को लेकर हम आगे बढ़ें, इसी एक अपेक्षा के साथ, ईश्वर हमें शक्ति दें, जनता-जनार्दन हमें आर्शीवाद दें, ताकि बाबा रामदेव जैसे निस्पृही लोगों की तपस्या रंग लाए और 60 साल की कठिनाईयों से गुजरा हुआ देश संतोष, विश्वास और समृद्धि के शिखरों को पार करने वाला बनें, इसी एक कामना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद..!भारत माता की जय..!भारत माता की जय..! परम पूज्य बाबा रामदेव जी, पूज्य आचार्य जी, आदरणीय राजनाथ सिंह जी, आदरणीय वैदिक जी, श्रीमान हरिओम जी, देश के कोने-कोने से आए हुए भारत स्वाभिमान के सभी सिपाही, और मुझे बताया गया कि देश में 500 से अधिक स्थानों पर बड़ा स्क्रीन लगाकर इस भारत स्वाभिमान आंदोलन से जुड़े हुए सभी लोग बैठे हैं और इस कार्यक्रम में दूर दूर से भी शरीक हुए हैं, मैं उन सबको भी नमन करता हूं..! आजादी के बाद ये पहला चुनाव ऐसा आ रहा है कि जिसने पुरानी सारी परम्पराओं को नष्ट कर दिया है..! आम तौर पर चुनाव राजनीतिक दल लड़ते रहे हैं, उम्मिदवार लड़ते रहे हैं, लेकिन ये पहला चुनाव ऐसा है जो चुनाव अपने आप में एक जन-आंदोलन बन गया है..! चुनाव को जन-आंदोलन बनाने में पूज्य रामदेव जी की अखंड एकनिष्ठ तपश्चर्या भी है..! हरिओम जी सच कह रहे थे, उनको क्या कमी थी..! सारे मुख्यमंत्री उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे..! लेकिन वो सब कुछ छोड़कर एक मिशन को लेकर निकल पडे..! अपने लिए नहीं, भारत के स्वाभिमान के लिए..! कभी-कभी पीड़ा भी होती है कि आजादी के इतने सालों के बाद हमें ही हमारे ही देश के स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़े..? ये अजूबा है..! ये तो सहज प्राप्य होना चाहिए, स्वाभाविक प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन न जाने क्या-क्या रूकावटें रहीं, कि आज स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है.. भाईयों-बहनों, आज जब हम भारत के स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाले सिपाहियों के बीच खड़े हैं तब, अपने इस कार्यक्रम के दरमियान ही इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने, भारत के इंजीनियरों ने सफलतापूर्वक जीएसएलवी डी-5 को लांच करने में सफलता पाई है।
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मैं भारत के सभी वैज्ञानिकों को, इंजीनियरों को इस सफलता दिलाने के लिए इस पवित्र मंच से बहुत बहुत बधाई देता हूं, उनको शुभकामनाएं देता हूं..! ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिसे पता चलता है कि इस देश में बहुत सामर्थ्य है..! भाईयों-बहनों, मैं निराशावादी इंसान नहीं हूं, मेरी डिक्शनरी में निराशा शब्द ही नहीं है..! और उसका कारण ये नहीं कि मुझे डिक्शनरी का ज्ञान है, इसका कारण यह है कि मैंने जिंदगी को ऐसा जिया है..! जब आजकल लोग अनाप-शनाप इलजाम लगाते हैं तो मैं भी कभी मुडकर खुद के जीवन की ओर देखता हूं, और मैं सोचता हूं कि ये देश कितना महान है, यहां के लोग कितने महान है कि जिन्होंने रेल के डिब्बे में चाय बेचने वाले बच्चे को अपने कंधे पर उठा लिया..! मित्रों, मैं निराशावादी नहीं हूं इसके पीछे एक कारण है, क्योंकि मैनें अपनी मां को अड़ोस-पड़ोस के घरों में बर्तन साफ करते, पानी भरते देखा है, उन्होने बिना निराश हुए अपने बच्चों को पालने का, संस्कारित करने का काम किया..! मैं अभी बाबा रामदेव जी से एक सवाल पूछ रहा था क्योंकि एक हिन्दी शब्द मुझे मालूम नहीं था।
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हमारे यहां गुजरात में कॉटन की खेती होती है, और जब खेत में कपास तैयार होता है तो वो गरीब परिवार उसे अपने घर ले जाते हैं और उसका छिलका उतारकर उसके अंदर से कॉटन निकालते हैं।
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गुजराती में उसे ‘काला फोलवा...’ कहते हैं, मुझे नहीं मालूम कि हिन्दी में उसे क्या कहते हैं।
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हां, मुझे शब्द मिल गया, ‘भिंडोला’, हमारे यहां उसे ‘काला’ बोलते हैं..! उसका छिलका काफी धारदार होता है, कई बार उससे खून भी निकल आता है।
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जब वो सीजन आता था, तो पूरे दिन में पचासों प्रकार की मेहनत करने के बाद हमारा पूरा परिवार बैठता था और छिलके हटाकर कॉटन बाहर निकालते थे, दूसरे दिन सुबह जाकर जमा करवाते थे, और इससे कुछ मजबूरी मिल जाती थी..! जिसने इस जीवन को जिया है, उसके जीवन में निराशा का नामोनिशान नहीं हो सकता है।
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जो इस पीड़ा और दर्द में पला है उसे औरों की पीड़ा व दर्द समझने के लिए यात्राएं नहीं करनी पड़ती, और वही पीड़ा, वही दर्द, वही संवेदना हमें कार्य करने की प्रेरणा देती है।
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हर पल मन में रहता है कि ईश्वर ने जो शरीर दिया है, जो समय दिया है, जो अवसर दिया है, उसका उपयोग भारत माता के कोटि-कोटि जनों के लिए ही होना चाहिए।
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दुखी, पीडित, दरिद्र, दलित, शोषित, वंचित उनके लिए होना चाहिए और जब जीवन में ऐसी प्रेरणा होती है तो ईश्वर रास्ते भी अपने आप सुझाता है..! मित्रों, पहले चुनाव होते थे, जोड़-तोड़ के चुनाव होते थे, परिवार को संभालने के लिए चुनाव होते थे, जाति-बिरादरी के समीकरणों को संभालने के लिए चुनाव होते थे, वोट बैंक की छाया में चुनाव होते थे..! मित्रों, ये खुशी की बात नहीं है कि आज देश में विकास के एजेंडा की चर्चा हो रही है और विकास के एजेंडा पर चुनाव लड़ने के लिए देश के राजनीतिक दलों को मजबूर किया जा रहा है और बाबा रामदेव जी का ये प्रयास उसी दिशा में एक नक्कर, मक्कम, मजबूत कदम है, यह एक शुभ संकेत है..! ठीक है भाई, आप सरकार बनाना चाहते हो, तो क्यों बनाना चाहते हो, किसके लिए बनाना चाहते हो, बनाकर क्या करना चाहते हो, जरा दुनिया को बताओ तो सही..! मैं चाहूंगा कि ये प्रयास 2014 के चुनावों तक निरंतर चलता रहना चाहिए, दबाव बढ़ाना चाहिए, सिर्फ बीजेपी पर ही नहीं बल्कि सभी दलों पर बढ़ाना चाहिए कि बहुत हुआ, 60 साल बर्बाद किए हैं अब कुछ कर दिखाओ..! भाइयों-बहनों, इसके साथ-साथ बाबा रामदेव अब राजनेताओं को भली-भांति जान गए हैं..! ये जान गए हैं कि दिन में कैसे एयरपोर्ट पर लेने आना और रात में कैसे जुल्म करना, ये भली-भांति जान गए हैं..! इसलिए, कोई कहने को तो कह दें, लेकिन उस पर भरोसा मत करना, ट्रैक रिकॉर्ड बराबर देख लेना, अगर वो ट्रैक रिकॉर्ड पर सही उतरते हैं तो भरपूर आर्शीवाद दे देना, लेकिन अगर ट्रैक रिकॉर्ड ठीक नहीं है और सिर्फ टेप रिकॉर्ड चल रहा है तो उस पर भरोसा मत करना..! भाइयों-बहनों, आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस देश में 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, जो विश्व का सबसे नौजवान देश हो और परमात्मा ने हर नौजवान को भुजा दी हो, बुद्धि और सामर्थ्य दिया हो, कुछ कर दिखाने की ललक दी हो, उसके बावजूद भी जो डेमोग्राफिक डिविडेंड एक बहुत बड़ा एसेट बन सकता था, लेकिन देश के नेतृत्व ने उस डेमोग्राफिक डिविडेंड को डेमोग्राफिक डिजास्टर में कन्वर्ट कर दिया, इससे बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता है..! नौजवान को अवसर चाहिये।
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आज चाइना के बारे में स्वामी जी एक बात बता रहे थे कि चाइना ने एक काम पर बहुत बल दिया है, और वो बल स्किल डेवलेपमेंट पर दिया गया है।
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नौजवानों को हुनर सिखाओ, अगर नौजवान के अंदर हुनर होगा तो वह अपने सामर्थ्य से जीवन जीने का रास्ता खोज लेगा।
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आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत सरकार ने बार-बार भांति-भांति प्रकार के स्किल डेवलेपमेंट के मिशन बनाए, प्रधानमंत्री तक उसके चेयरमेन बने, हर तीन महीने में लिखित रूप से उसका मूल्यांकन करना तय हुआ था, लेकिन तीन साल तक एक मीटिंग तक नहीं हुई..! क्या इसके लिए कोई एक्सट्राऑर्डिनरी विजन की जरूरत है..? काम नहीं बन सकता है क्या..? मैं ट्रैक रिकॉर्ड की बात इसलिए बताता हूं क्योंकि गुजरात ने उस दिशा में करके दिखाया है..! हम जानते हैं कि अगर देश की जीडीपी को बढ़ाना है तो हमें हमारी उत्पादन क्षमता का भरपूर उपयोग करना होगा, हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना होगा, और मित्रों, ऐसा नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता है..! हमारा देश कृषि प्रधान देश है।
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बाबा ने जिन मुद्दों को उठाया है, उन मुद्दों को अरूण जी ने और राजनाथ जी ने बहुत पॉजिटिवली बता दिया है लेकिन मैं और तरीके से उस चीज को बता रहा हूं।
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हमारा कृषि प्रधान देश है, हमारे यहां कृषि के साथ पशुपालन अंगभूत व्यवस्था है और मैं मानता हूं कि अगर हमें कृषि को सामर्थ्यवान बनाना है तो उसे तीन हिस्सों में बांटना होगा।
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एक तिहाई - रेगुलर खेती, एक तिहाई - वृक्षों की खेती, पेड़ों की खेती, और एक तिहाई - पशुपालन..! हमारे यहां दो खेतों के बीच कितनी जमीन बेकार होती है..? सभी को यह बात मालूम है, उस खेत वाला हमारे खेत में न घुस जाएं, हम उसके खेत में न जाएं, इसके लिए बीच में हम जो बाड़ बना देते हैं, तो कितनी जमीन बर्बाद करते हैं..! अगर उस किनारे पर उस किसान को पेड़ उगाने का अधिकार दिया जाए और उसे पेड़ बेचने का अधिकार दिया जाए तो इस देश को टिम्बर इम्पोर्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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आज इस कृषि प्रधान देश को टिम्बर इम्पोर्ट करना पड़ता है और फिर करंट एकांउट डेफिसिट के लिए गोल्ड पर हमला बोल देते हैं, यानि करने जैसे काम नहीं करना और न करने जैसे पहले करना..! मित्रों, 60-70 के दशक में हिंदुस्तान में गोल्ड स्मगलिंग के लिए एक बहुत बड़ा सुनहरा अवसर था, चारों ओर सोने की तस्करी, इस देश का बहुत बड़ा पेशा बन गया था, और उसी गोल्ड स्मगलिंग में से हिंदुस्तान में अंडरवर्ल्ड का नेटवर्क पैदा हुआ।
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आज भी अंडरवर्ल्ड के जो बड़े-बड़े माफिया हैं वो गोल्ड स्मगलिंग के उस काल में पैदा हुए थे।
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दिल्ली में ऐसी सरकार बैठी है कि फिर से उसने गोल्ड स्मगलिंग का उदय कर दिया है..! अभी मैं पिछले दिनों टीवी में देख रहा था, कि दक्षिण के एक राज्य में सौ किलो से ज्यादा स्मगलिंग का सोना पकड़ा गया, कितना पकड़ा गया वो तो हमें मालूम है, कितना नहीं पकड़ा गया वह नहीं मालूम है..! मित्रों, ये कुनीतियों का परिणाम है..! मैं आप सभी के साथ गुजरात का एक अनुभव शेयर करना चाहता हूं।
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हमारे राज्य में हम पशु आरोग्य मेले लगाते हैं और हजारों की तादात में लगाते हैं।
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आज भी अगर हमारे देश में मनुष्य को भी कैटरेक्ट का ऑपरेशन करवाना हो तो किसी चैरिटेबल ट्रस्ट के कार्यक्रम में जाना पड़ता है, ये स्थिति है।
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गुजरात में हम पशु का भी कैटरेक ऑपरेशन करते हैं, उसके नेत्रमणि का ऑपरेशन करते हैं, उसका डेंटल ट्रीटमेंट करते हैं..! मैने अभी कुछ डॉक्टर्स को अमेरिका भेजा था कि वह लेजर टेक्नीक से पशुओं की आंखों का ऑपरेशन करना सीखकर आएं, ताकि पशु का रक्त न बहे, उसे पीड़ा न हो..! इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे यहां मिल्क प्रोडक्शन में 86 प्रतिशत की वृद्धि हुई..! अब आप ही बताइए, इससे मेरा किसान सामर्थ्यवान हुआ या नहीं..? फर्क देखिए, उन्होने क्या किया, उन्होने सपना देखा-पिंक रिवोल्यूशन का।
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इस देश में हमने ग्रीन रिवोल्यूशन सुना है, व्हाइट रिवोल्यूशन सुना है, लेकिन दिल्ली में जो सरकार बैठी है उसने पिंक रिवोल्यूशन का कार्यक्रम शुरू किया।
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पिंक रिवोल्यूशन का मतबल क्या है..? कत्लखाने खोलो, पशुओं का कत्ल करो और मटन जिसका रंग पिंक होता है, उसको एक्सपोर्ट करो..! भाइयों-बहनों, आप मुझे बताइए कि देश के किसानों का भला पशु करेगा कि मटन करेगा..? मित्रों, फर्क यही है कि भारत जैसे गांवों में बसे देश के लिए उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं..? इसका परिणाम यह हुआ है कि कमाई करने के इरादे से पशुओं की चोरी शुरू हो गई, उनकी स्मगलिंग शुरू हो गई।
13.700064
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बाबा का कहना कि देश में किसान की मिनिमम इनकम का तो प्रबंध करो, उसे भरोसा दो..! लेकिन अगर आप कत्लखाना बनाते है तो भारत सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, आपको बैंक से मिनिमम दर से पैसे मिलते हैं।
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उदाहरण के लिए, अगर आपका कत्लखाना मेरठ में है और आपको मुम्बई तक मटन भेजना है तो ट्रांसपोर्टेशन सब्सिडी भी भारत सरकार देती है..! मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम चाहें तो स्थितियां बदल सकते हैं।
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जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी, हमारे राजनाथ सिंह जी कृषि मंत्री थे तो उन्होने एक योजना शुरू की थी - ‘वाड़ी प्रोजक्ट‘।
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उस वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत ट्राईबल बेल्ट के लोगों को जिनके पास मुश्किल से एक या दो एकड़ भूमि है, जिनकी आय मात्र 10 से 12 हजार रूपए होती थी, ऐसे में वो घर कैसे चलाएगा..! उस वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत हमने गुजरात में प्रयास शुरू किया, हमारे आदिवासी किसानों को आधुनिक खेती की तरफ ले गए, पानी प्रबंधन की तरफ ले गए, सीड्स में बदवाल लाने की दिशा में ले गए, क्रॉप पैटर्न बदल दिया, इससे परिणाम यह आया कि जो किसान 12 से 15 हजार रूपया कमाता था, वह अब डेढ़ से दो लाख रूपया कमाने लगा।
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लेकिन अटल जी की सरकार गई, और इस सरकार ने वो प्रोजेक्ट बंद कर दिया..! इनको समझ नहीं है कि किसके लिए क्या काम करना है..! इसलिए मैं कहता हूं कि देश को आगे बढाने के लिए कोई मंगल ग्रह से मनुष्यों को लाने की जरूरत नहीं है, यहां जो लोग हैं वही इस देश को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं..! मित्रों, ये बात सही है कि अगर हमारे नौजवान को रोजगार न मिले, ग्रामीण विकास के लिए हम खेती पर बल न दें, तो आगे नहीं बढ़ सकता है।
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और ये बात भी सही है कि मैनुफेक्चरिंग सेक्टर में हमें अपनी ताकत दिखानी होगी।
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हमारे जो भी मिनरल्स हैं, जो रॉ मैटेरियल हैं, उसमें वैल्यू एडीशन करना चाहिए, इसमें कोई काम्प्रोमाइज नहीं होना चाहिए।
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आप आयर्न ओर बाहर भेजने के बदले स्टील बनाकर भेजेगें तो इससे देश की आय बढ़ेगी, नौजवान को रोजगार मिलेगा, लेकिन अगर आप आयर्न ओर बाहर भेजेगें और स्टील बाहर से लेंगे तो देश को बर्बाद करके रखेगें..! लेकिन अगर आयर्न ओर से स्टील बनाना है तो बिजली चाहिए, और बिजली के कारखाने बंद पड़े हैं क्योंकि कोयला नहीं मिल रहा है, कोयला नहीं मिल रहा है क्योंकि दिल्ली सरकार की कोयला पॉलिसी को पैरालिसिस हो गया है, इस प्रकार ये एक के साथ दूसरा जुड़ा हुआ है..! मित्रों, हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए, भ्रष्टाचार के कुछ क्षेत्र हैं जिनमें से एक है, मिनरल्स..! हमारे देश का सिस्टम ऐसा है कि फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व, हमारे देश में जो पहले एप्लाई करेगा, उसको हक मिलेगा, उसे पहले अलॉटमेंट होगा..! हमने गुजरात में तय किया कि हम ऐसा नहीं करेगें, हम ऑक्शन यानि नीलामी करेगें, जो ज्यादा बोली बोलेगा, सरकार के खजाने में पैसा आएगा और गरीबों का भला होगा..! आप लोग बताएं, ऑक्शन का रास्ता सही है या नहीं..? ट्रासपेरेंट तरीका है या नहीं..? हमने निर्णय लिया और भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया, कि कानूनन आप ऑक्शन नहीं कर सकते हैं..! एक सरकार है जो हिम्मत करके, ऑक्शन करके अपनी भूसम्पदा को वैल्यू एडीशन के लिए देना चाहती है और दूसरी उसे रोकना..! आज मेरे यहां इतने सीमेंट के कारखाने लगने की संभावना है लेकिन मैं लाइम स्टोन नहीं दे पा रहा हूं कयोंकि भारत सरकार मुझे ऑक्शन करने का अधिकार नहीं देती है और मैं ऑक्शन के बिना देने को तैयार नहीं हूं..! मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि जो हमारी भूसम्पदा है, उस भूसम्पदा का उपयोग भी हम राष्ट्र के विकास की धरोहर के रूप में कर सकते हैं।
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