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int64
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किसी धार्मिक स्थान पर सामूहिक रूप से इकट्ठा होना ही भक्तों की श्रेणी मे गिना जाता है। नरसिंह महेता चैतन्य महाप्रभु आण्डाल धर्म धार्मिक शब्दावली
57
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अधिकतर शब्दकोशों में शब्दों के उच्चारण के लिये भी व्यवस्था होती है, जैसे - अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि में, देवनागरी में या आडियो संचिका के रूप में। कुछ शब्दकोशों में चित्रों का सहारा भी लिया जाता है। अलग-अलग कार्य-क्षेत्रों के लिये अलग-अलग शब्दकोश हो सकते हैं; जैसे - विज्ञान शब्दकोश, चिकित्सा शब्दकोश, विधिक (कानूनी) शब्दकोश, गणित का शब्दकोश आदि।
182
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कोश में शब्दों को इकट्ठा किया जाता है। इतिहास
256
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निघण्टु पर महर्षि यास्क की व्याख्या निरुक्त संसार का पहला शब्दार्थ कोश (डिक्शनरी) एवं विश्वकोश (ऐनसाइक्लोपीडिया) है। इस महान शृंखला की सशक्त कड़ी है छठी या सातवीं सदी में लिखा अमर सिंह कृत नामलिंगानुशासन या त्रिकाण्ड जिसे सारा संसार 'अमरकोश' के नाम से जानता है। अमरकोश को विश्व का सर्वप्रथम समान्तर कोश (थेसेरस) कहा जा सकता है।
138
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यह शायद ईसा पूर्व सातवीं सदी की रचना है। ईसा से तीसरी सदी पहले की चीनी भाषा का कोश है 'ईर्या'।
65
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वैब्स्टर के बाद अंग्रेजी कोशों के संशोधन और नए कोशों के प्रकाशन का व्यवसाय तेजी से बढ़ने लगा। आधुनिक कोश की विधाएँ
324
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सामान्य रूप से उसकी दो मोटी-मोटी विधाएँ कही जा सकती हैं - (1) शब्दकोश और (2) ज्ञानकोश। शब्दकोश के स्वरूप का बहुमुखी प्रवाह निरंतर प्रौढ़ता की ओर बढ़ता लक्षित होता रहा है। आज की कोशविद्या का विकसित स्वरूप भाषा विज्ञान, व्याकरणशास्त्र, साहित्य, अर्थविज्ञान, शब्दप्रयोगीय, ऐतिहासिक विकास, सन्दर्भसापेक्ष अर्थविकास और नाना शास्त्रों तथा विज्ञानों में प्रयुक्त विशिष्ट अर्थों के बौद्धिक और जागरूक शब्दार्थ संकलन का पुंजीकृत परिणाम है। शब्दकोश
45
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उसमें शब्दों के सही उच्चारण का संकेत-चिह्नों से विशुद्ध और परिनिष्ठित बोध भी कराया है। योरप के उन्नत और समृद्ध देशों की प्रायः सभी भाषाओं में विकासित स्तर की कोशविद्या के आधार पर उत्कृष्ट, विशाल, प्रामाणिक और सम्पन्न कोशों का निर्माण हो चुका है और उन दोशों में कोशनिर्माण के लिये ऐसे स्थायी संस्थान प्रतिष्ठापित किए जा चुके हैं जिनमें अबाध गति से सर्वदा कार्य चलता रहता है। लब्धप्रतिष्ठा और बडे़-बडे़ विद्वानों का सहयोग तो उन संस्थानों को मिलता ही है, जागरूक जनता भी सहयोग देती है। अंग्रेजी डिक्शनरी तथा अन्य भाषाओं में निर्मित कोशकारों के रचना-विधान-मूलक वैशिष्टयों का अध्ययन करने से अद्यतन कोशों में निम्ननिर्दिष्ट बातों का अनुयोग आवश्यक लगता है—
95
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परन्तु वह पद्धति संस्कृत के कोशों में जिनका निर्माण पश्चिमी विद्वानों के प्रयास से आरम्भ हुआ था, सैकड़ो वर्ष पूर्व से प्रचलित हो गई थी। पर आज भी, नव्य या आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोश उस स्तर तक नहीं पहुँच पाए हैं जहाँ तक आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी अथवा रूसी, अमेरिकन, जर्मन, इताली, फ़्रांसीसी आदि भाषाओं के उत्कृष्ट और अत्यन्त विकसित कोश पहुँच चुके हैं।
454
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इनमें मुख्य रूप से भाषावैज्ञानिक अनुशीलन और शोध के परिणामस्वरूप उपलब्ध सामग्री का नियोजन किया गया है। ऐसे तुलनात्मक कोश भी आज बन चुके हैं जिनमें प्राचीन भाषाओं की तुलना मिलती है। ऐसे भी कोश प्रकाशित हैं जिनमें एक से अधिक मूल परिवार की अनेक भाषाओं के शब्दों का तुलनात्मक परिशीलन किया गया है। शब्दकोशों के नाना रूप
206
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व्याकरण महाभाष्य की भी एक एक ऐसी शब्दानुक्रमणिका प्रकाशित है। परन्तु इनमें अर्थ न होने के कारण यहाँ उनका विवेचन नहीं किया जा रहा है।
525
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अंग्रेजी आदि भाषाओं में बुक ऑफ़ नालेज, डिक्शनरी आव जनरल नालेज आदि शीर्षकों के अन्तर्गत नाना प्रकार के छोटे बडे विश्वकोश अथवा ज्ञानकोश बने हैं और आज भी निरन्तर प्रकाशित एवं विकसित होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं इन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ रिलीजन ऐण्ड एथिक्स आदि विषयविशेष से संबंद्ध विश्वकोशों की संख्या भी बहुत ही बडी है। अंग्रेजी भाषा के माध्यम से निर्मित अनेक सामान्य विश्वकोश और विशष विश्वकोश भी आज उपलब्ध हैं।
524
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निरन्तर इनके संशोधित, संवर्धित तथा परिष्कृत संस्करण निकलते रहते हैं। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के दो परिशिष्ट ग्रन्थ भी हैं जो प्रकाशित होते रहते हैं और जो नूतन संस्करण की सामग्री के रूप में सातत्य भाव से संकलित होते रहते हैं। इंग्लैंड में इन्साइक्लोपीडिया के पहले से ही ज्ञानकोशात्मक कोशों के नाना रूप बनने लगे थे। ज्ञानकोशों के नाना प्रकार
127
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हम इस प्रसंग को यहीं समाप्त करते हैं और शब्दार्थकोश से संबंद्ध प्रकृत विषय की चर्चा पर लौट आते हैं। आधुनिक कोशविद्या : तुलनात्मक दृष्टि
241
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ये कोश मुख्यतः हिंदी के ही थे। पाश्चात्य विद्वानों के इन कोशों में हिंदी को हिंदुस्तानी कहने का कदाचित् यह कारण है कि हिंदुस्तान भारत का नाम माना गया और वहाँ की भाषा हिंदुस्तानी कही गई। कोशविद्या के इन पाश्चात्य पंडितों की दृष्टि में हिंदी का ही पर्याय हिंदुस्तानी था और वही सामान्य रूप में हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा थी।
527
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भारत और पश्चिम दोनों ही स्थानों में शब्दों के सकलन में वर्गपद्धति का कोई न कोई रूप मिल जाता है। पर आगे चलकर नव्य कोशों का पूर्वोंक्त प्राचीन और मध्यकालीन कोशों से जो सर्वप्रथम और प्रमुखतम भेदक वैशिष्टय प्रकट हुआ वह था - 'वर्णमालाक्रमानुसारी शब्दयोजना' की पद्धति।
296
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इन सबके आधार पर उत्तम कोटि के आधुनिक कोशों की विशिष्टताओं का आकलन करते हुए कहा जा सकता है कि:
221
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इसमें उद्वरणों का उपयोग दोनों ही बातों (शब्दप्रयोग और अर्थविकास) की प्रमाणिकता सिद्ध करते हैं।
252
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पूर्व तंत्रों या ग्रंथों का समाहार करते हुए यदाकदा इतना भी कह देना उसके लिये बहुधा पर्याप्त हो जाता था। पर आधुनिक कोशों में ऐसे शब्दों के संबंध में जिनका साहित्य व्यवहार में प्रयोग नहीं मिलता, यह बताना भी आवश्यक हो जाता है कि अमुक शब्द या अर्थ कोशीय मात्र हैं।
111
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अन्य रूप पारिभाषिक शब्दकोश, विषयकोश, चरितकोश, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल रहै हैं। (घ) आधुनिक शब्दकोशों मे अर्थ की स्पष्टता के लिये चित्र, रेखा-चित्र, मानचित्र आदि का उपयोग भी किया जाता है।
71
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कोशविज्ञान की नूतन रचानाप्रक्रिया आज के युग में भाषाविज्ञान के नाना अंगों से बहुत ही प्रभावित हो गई है।
526
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इनके बिमा गृहीत शब्दों का महत्व कम हो जाता है और उनसे भ्रमसृष्टि की संभावना बढ़ती है। विविध प्रकार के शब्दकोश
318
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वे कागज पर मुद्रित नहीं हैं बल्कि किसी विशिष्ट फाइल-फॉर्मट में हैं और किसी 'डिक्शनरी सॉफ्टवेयर' के द्वारा प्रयोक्ता को शब्दार्थ ढूढने में मदद करते हैं। इनमें कुछ ऐसी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं जो परम्परागत शब्दकोशों में सम्भव ही नहीं है; जैसे शब्द का उच्चारण ध्वनि के माध्यम से देना आदि। शब्दकोशों के कुछ प्रकार ये हैं- सामान्य शब्दकोश विशिष्ट शब्दकोश - गणित, विज्ञान, विधि, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि के शब्दकोश पारिभाषिक शब्दकोश - इनमें किसी क्षेत्र (विषय) के प्रमुख शब्दों के संक्षिप्त और मुख्य अर्थ दिए गए होते हैं।
43
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बाहरी कड़ियाँ
404
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) भाषा शब्दकोश
193
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पूरे गान में ५ पद हैं। गीत के बोल बंगाली और देवनागरी लिप्यन्तरण के साथ आधिकारिक हिन्दी संस्करण
346
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जनगणमन:जनगण के मन/सारे लोगों के मन; अधिनायक:शासक; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य-विधाता(भाग्य निर्धारक) अर्थात् भगवान</small>जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्यविधाता हैं !पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगविंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
42
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तव:आपकी ही/तेरी ही; जयगाथा:वजयगाथा(विजयों की कहानियां) सब तेरे पवित्र नाम पर जाग उठने हैं, सब तेरी पवित्र आशीर्वाद पाने की अभिलाशा रखते हैंऔर सब तेरे ही जयगाथाओं का गान करते हैं जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। जनगणमंगलदायक:जनगण के मंगल-दाता/जनगण को सौभाग्य दालाने वाले; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य विधाताजय हे जय हे:विजय हो, विजय हो; जय जय जय जय हे:सदा सर्वदा विजय हो
75
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जिन अवसरों पर इसका पूर्ण संस्‍करण या संक्षिप्‍त संस्‍करण चलाया जाए, उनकी जानकारी इन अनुदेशों में उपयुक्‍त स्‍थानों पर दी गई है। मूल कविता के पांचों पद जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
260
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390
null
जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता! जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। राष्ट्रगान संबंधित नियम व विधियाँ राष्‍ट्र गान बजाना राष्ट्रगान बजाने के नियमों के आनुसार: राष्‍ट्रगान का पूर्ण संस्‍करण निम्‍नलिखित अवसरों पर बजाया जाएगा: नागरिक और सैन्‍य अधिष्‍ठापन;
228
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राष्‍ट्रपति या संबंधित राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों के अंदर राज्‍यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर को विशेष अवसरों पर राष्‍ट्र गान के साथ राष्‍ट्रीय सलामी - सलामी शस्‍त्र प्रस्‍तुत किया जाता है); परेड के दौरान - चाहे उपरोक्‍त में संदर्भित विशिष्‍ट अतिथि उपस्थित हों या नहीं; औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों और सरकार द्वारा आयोजित अन्‍य कार्यक्रमों में राष्‍ट्रपति के आगमन पर और सामूहिक कार्यक्रमों में तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के अवसर पर ; ऑल इंडिया रेडियो पर राष्‍ट्रपति के राष्‍ट्र को संबोधन से तत्‍काल पूर्व और उसके पश्‍चात;
27
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नौसेना के रंगों को फहराने के लिए।
141
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उदाहरण के लिए जब राष्‍ट्र गान बजाने से पहले एक विशेष प्रकार की धूमधाम की ध्‍वनि निकाली जाए या जब राष्‍ट्र गान के साथ सलामती की शुभकामनाएँ भेजी जाएँ या जब राष्‍ट्र गान गार्ड ऑफ ऑनर द्वारा दी जाने वाली राष्‍ट्रीय सलामी का भाग हो। मार्चिंग ड्रिल के सन्दर्भ में रोल की अवधि धीमे मार्च में सात कदम होगी। यह रोल धीरे से आरम्भ होगा, ध्‍वनि के तेज स्‍तर तक जितना अधिक संभव हो ऊँचा उठेगा और तब धीरे से मूल कोमलता तक कम हो जाएगा, किन्‍तु सातवीं बीट तक सुनाई देने योग्‍य बना रहेगा। तब राष्‍ट्र गान आरम्भ करने से पहले एक बीट का विश्राम लिया जाएगा।
173
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आम तौर पर राष्‍ट्र गान प्रधानमंत्री के लिए नहीं बजाया जाएगा जबकि ऐसा विशेष अवसर हो सकते हैं जब इसे बजाया जाए। राष्‍ट्र गान को सामूहिक रूप से गाना राष्‍ट्र गान का पूर्ण संस्‍करण निम्‍नलिखित अवसरों पर सामूहिक गान के साथ बजाया जाएगा:
121
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(इसकी व्‍यवस्‍था एक कॉयर या पर्याप्‍त आकार के, उपयुक्‍त रूप से स्‍थापित तरीके से की जा सकती है, जिसे बैंड आदि के साथ इसके गाने का समन्‍वय करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसमें पर्याप्‍त सार्वजनिक श्रव्‍य प्रणाली होगी ताकि कॉयर के साथ मिलकर विभिन्‍न अवसरों पर जनसमूह गा सके); सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में राष्‍ट्रपति के आगमन के अवसर पर (परंतु औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों और सामूहिक कार्यक्रमों के अलावा) और इन कार्यक्रमों से उनके विदा होने के तत्‍काल पहले।
72
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राष्‍ट्र गान उन अवसरों पर गाया जाए, जो पूरी तरह से समारोह के रूप में न हो, तथापि इनका कुछ महत्‍व हो, जिसमें मंत्रियों आदि की उपस्थिति शामिल है। इन अवसरों पर राष्‍ट्र गान को गाने के साथ (संगीत वाद्यों के साथ या इनके बिना) सामूहिक रूप से गायन वांछित होता है।
64
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विद्यालय के प्राधिकारियों को राष्‍ट्र गान के गायन को लोकप्रिय बनाने के लिए अपने कार्यक्रमों में पर्याप्‍त प्रावधान करने चाहिए तथा उन्‍हें छात्रों के बीच राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रति सम्‍मान की भावना को प्रोत्‍साहन देना चाहिए। सामान्‍य
251
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जैसा कि राष्‍ट्र ध्‍वज को फहराने के मामले में होता है, यह लोगों की अच्‍छी भावना के लिए छोड दिया गया है कि वे राष्‍ट्र गान को गाते या बजाते समय किसी अनुचित गतिविधि में संलग्‍न नहीं हों। विवाद
267
null
सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
301
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इस गीत को गाने में ६५ सेकेंड (१ मिनट और ५ सेकेंड) का समय लगता है।
189
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गीत
201
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संस्कृत मूल गीत हिन्दी अनुवाद
376
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ओ माता! पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शान्त, कटाई की फसलों के साथ गहरी, माता! उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
267
null
रचना की पृष्ठभूमि सन् १८७०-८० के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने सम्भवत: १८७६ में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बाँग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वन्दे मातरम्’। शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे।
48
null
यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने
107
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उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक संन्यासी विद्रोही गाता है। गीत का मुखड़ा विशुद्ध संस्कृत में इस प्रकार है: "वन्दे मातरम् ! सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्, शस्य श्यामलाम् मातरम्।" मुखड़े के बाद वाला पद भी संस्कृत में ही है: "शुभ्र ज्योत्स्नां पुलकित यमिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम् ; सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्, सुखदां वरदां मातरम्।" किन्तु उपन्यास में इस गीत के आगे जो पद लिखे गये थे वे उपन्यास की मूल भाषा अर्थात् बाँग्ला में ही थे। बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है। यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूरा हुआ।कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में ही लिखी थी।
163
null
पाँच साल बाद यानी सन् १९०१ में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। सन् १९०५ के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया।
263
null
अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही थे। सन् १९०७ में मैडम भीखाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में "वन्दे मातरम्" ही लिखा हुआ था। आर्य प्रिन्टिंग प्रेस, लाहौर तथा भारतीय प्रेस, देहरादून से सन् १९२९ में प्रकाशित काकोरी के शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की प्रतिबन्धित पुस्तक "क्रान्ति गीतांजलि" में पहला गीत "मातृ-वन्दना" वन्दे मातरम् ही था जिसमें उन्होंने केवल इस गीत के दो ही पद दिये थे और उसके बाद इस गीत की प्रशस्ति में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक स्वरचित उर्दू गजल दी थी जो उस कालखण्ड के असंख्य अनाम हुतात्माओं की आवाज को अभिव्यक्ति देती है। ब्रिटिश काल में प्रतिबन्धित यह पुस्तक अब सुसम्पादित होकर पुस्तकालयों में उपलब्ध है।
123
null
इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।
528
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(भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, २४-१-१९५०) विवाद
363
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लोगों का कहना है कि- इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में भारत की माँ के रूप में वन्दना की गयी है; यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है विविध
124
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अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
439
null
राष्ट्रीय गान देशभक्ति के गीत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक भारत के नारे
272
null
ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बाँटे गये हैं। भारत के राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेश 28 राज्यों की पूरी सूची : 8 केंद्र शासित प्रदेशों की पूरी सूची : Jammu and Kashmir has 42,241 km2 of area administered by India and 78,114 km2 of area controlled by Pakistan under Azad Kashmir and Gilgit-Baltistan, which is claimed by India as part of Jammu and Kashmir. Additionally, it has 5,180 km2 of area controlled by the People's Republic of China under Trans-Karakoram Tract, which is also claimed by India as part of Jammu and Kashmir.
45
null
१९५६ से पूर्व
86
null
इस अवधि के दौरान, भारत के क्षेत्रों में या तो ब्रिटिशों का शासन था या उन पर स्थानीय राजाओं का नियंत्रण था। १९४७ में स्वतन्त्रता के बाद इन विभागों को संरक्षित किया गया और पंजाब तथा बंगाल के प्रांतों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। नए राष्ट्र के लिए पहली चुनौती थी राजसी राज्यों का संघों में विलय।
273
null
१९५६ के बाद भारत में जिस प्रकार पूर्व में फ़्रांसीसी और पुर्तगाली उपनिवेशों को गणराज्य में समाहित किया गया था, वैसे ही १९६२ में पांडिचेरी, दादरा, नगर हवेली, गोआ, दमन और दियू को संघ राज्य बनाया गया।
222
null
दो केन्द्र शासित प्रदेशों दिल्ली और पाण्डिचेरी (जो बाद में पुदुचेरी कहा गया) को विधानसभा सदस्यों का अधिकार दिया गया और अब वे छोटे राज्यों के रूप में गिने जाते हैं।
528
null
बृहस्पतिवार पर गुरु का राज चलता है। शुक्रवार पर शुक्र का राज चलता है। शनिवार पर शनि का राज चलता है।
328
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जैसे- चन्द्रमा दिमाग और गुरु धार्मिक कार्यकलाप का कारक होता है। इस वार में इनसे सम्बन्धित कार्य करना व्यक्ति के पक्ष में जाता है। सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं। जैसे-
215
null
सात दिनों की योजना यहूदियों, बेबिलोनियों एवं दक्षिण अमेरिका के इंका लोगों में थी।
308
null
ओल्ड टेस्टामेण्ट में आया है कि ईश्वर ने छः दिनों तक सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम करके उसे आशीष देकर पवित्र बनाया। - जेनेसिरा1, एक्सोडस2 एवं डेउटेरोनामी3 में ईश्वर ने यहूदियों कोसात दिनों के वृत्त के उद्भव एवं विकास का वर्णन 'एफ. एच. कोल्सन' के ग्रन्थ 'दी वीक'4 में उल्लिखित है।
79
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उसमें आया है कि ग्रहीय सप्ताह (जिसमें दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर आधारित हैं) का उद्भव मिस्र में हुआ। डियो ने 'रोमन हिस्ट्री'5 में यह स्पष्ट किया है कि सप्ताह का उद्गम यूनान में न होकर मिस्र में हुआ और वह भी प्राचीन नहीं है बल्कि हाल का है। रोमन केलैंण्डर में सम्राट कोंस्टेंटाईन ने ईसा के क़रीब तीन सौ वर्ष के बाद सात दिनों वाले सप्ताह को निश्चत किया और उन्हें नक्षत्रों के नाम दिये - सप्ताह के पहले दिन को 'सूर्य का नाम' दिया गया है।
102
null
छठे दिन को शुक्र दिया गया है। सातवें दिन को शनि का नाम दिया गया है। आज भी रोमन संस्कृति से प्रभावित देशों में इन्हीं नामों का प्रयोग होता है। टीका टिप्पणी और संदर्भ 1 ↑ जेनेसिरा 2|1-3 2 ↑ एक्सोडस 20|8-11,23|12-14 3 ↑ डेउटेरोनामी 5|12-15 4 ↑ एफ. एच. कोल्सन के ग्रन्थ 'दी वीक' कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस, 1926 5 ↑ रोमन हिस्ट्री जिल्द 3, पृ0 129, 131
86
null
चैत्र मास की पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत्र माह से माना जाता है।
108
null
इसी दिन आर्य समाज (१८७५) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (१९२५) की स्थापना हुई थी। प्रमुख पर्व वर्ष प्रतिपदा या युगादि या 'गुड़ी पड़वा' चैत्र नवरात्रि रामनवमी हनुमान जयन्ती (चैत्र पूर्णिमा को) गणगौर सन्दर्भ इन्हें भी देखें वर्ष प्रतिपदा नवरात्रि भारतीय पञ्चाङ्ग
149
null
विभिन्न संस्कृतियों में मासों के नाम अलग-अलग हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष के बारह मासों के नाम ये हैं- चैत्र नक्षत्र चित्रा में पूर्णिमा होने के कारण वैशाख विशाखा में होने के ज्येष्ठ ज्येष्ठा में आषाढ पूर्वाषाढ़ में श्रावण श्रवणा में भाद्रपद पूर्वभाद्रपद में आश्विन अश्विनी में कार्तिक कृतिका में अग्रहायण या मार्गशीर्ष मृगशिरा में पौष पुष्य में माघ मघा में फाल्गुन उत्तराफाल्गुनी में ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसार ग्रेगरी कालदर्शक के अनुसार अंग्रेजी भाषा में वर्ष के बारह महीनों के नाम ये हैं-
90
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यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा ३.०, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. १०६४६ को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं।
191
null
इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है। यूनिकोड क्या है? यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफ़ॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो।
212
null
उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिये अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिये भी, सभी अक्षरों, विरामचिह्नों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
188
null
(2) यह वर्णों (कैरेक्टर्स) को एक कोड देता है, न कि ग्लिफ (glyph) को।
366
null
अरबी, फारसी, उर्दू आदि को एक ही खण्ड में रखा गया है।
285
null
इन लिपियों को लिखने/पढ़ने के लिए इनपुट मैथड एडिटर और फॉण्ट-फाइलें आवश्यक हैं। यूनिकोड का महत्व एवं लाभ एक ही दस्तावेज में अनेकों भाषाओं के अक्षर लिखे जा सकते हैं। अक्षरों को केवल एक निश्चित तरीके से संस्कारित करने की आवश्यकता पड़ती है। जिससे विकास-व्यय एवं अन्य व्यय कम लगते हैं।
184
null
देवनागरी यूनिकोड देवनागरी यूनिकोड की परास (रेंज) 0900 से 097F तक है। (दोनो संख्याएँ षोडषाधारी हैं)
338
null
इस परास (रेंज) में बहुत से ऐसे वर्णों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में व्यवहृत नहीं होते। किन्तु मराठी, सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढँग से लिखने के लिये आवश्यक हैं।
87
null
उदाहरण के लिये ज़ को ' ज ' के बाद नुक्ता (़) टाइप करके भी लिखा जा सकता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम
174
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इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिये खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं। UTF-8, UTF-16 तथा UTF-32
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UTF-8, UTF-16 और UTF-32.
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किन्तु बहुत से संकेत होंगे जिनमें आरम्भिक शून्य नहीं होंगे और उन्हें निरूपित करने के लिये चार बाइट ही लगेंगे।
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जो UTF-8 में 2 बाइट लेतीं थी यूटीएफ-16 में भी दो ही लेंगी। किन्तु पहले जो संकेतादि 3 बाइट या चार बाइट में निरूपित होते थे यूटीएफ-16 में 32 बिट = ४
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UTF-16 और UTF-32 के पक्ष में अच्छाई यह है कि अब कम्प्यूटरों का हार्डवेयर 32 बिट या 64 बिट का हो गया है। इस कारण UTF-8 की फाइलों को 'प्रोसेस' करने में UTF-16, UTF-32 वाली फाइलों की अपेक्षा अधिक समय लगेगा।
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जो कि यूनिकोड नहीं है, तो फ़ॉण्ट परिवर्तक प्रोग्रामों का प्रयोग करके उसे यूनिकोड में बदला जा सकता है। विस्तृत जानकारी के लिये देखें - 'फॉण्ट परिवर्तक'
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भूमंडलीकरण में आईटी का योगदान है यूनिकोड यूनिकोड-सक्षम उत्पादों की सूची - आपरेटिंग सिस्टम, ब्राउजर, प्रोग्रामिंग की भाषायें, एवं अन्य अनेक उत्पाद FAQ about Unicode for Indic Scripts and Languages
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org images of all 98,884 graphical unicode characters (German/English, full text search) Tim Bray's Characters vs Bytes explains how the different encodings work. Unicode (good introduction) हिन्दी एवं देवनागरी के लिए यूनिकोडोत्तर दौर की चुनौती अलग और बड़ी हैं (बालेन्दु शर्मा दाधीच) The Significance of Unicode हिंदी में यह क्रांति न आती यदि यूनिकोड न होता! (अगस्त २०१५ ; बालेन्दु शर्मा दाधीच) यूनिकोड उपकरण तथा फॉण्ट Krutidev to Unicode Font Converter - कृतिदेव-010 से यूनिकोड एवं चाणक्य फॉण्ट परिवर्तक
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अभिनेता उमर शरीफ़ को सज़ा -- जाने माने अभिनेता उमर शरीफ़ को फ़्राँस की एक अदालत ने मारपीट के आरोप में सज़ा सुनाई है। उन्हें एक महीने की सस्पेंडेड जेल की सज़ा के साथ-साथ ग्यारह सौ पाउंड का जुर्माना भी लगाया गया है। 'अंतरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी' --
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नए परमाणु हथियारों पर चर्चा --
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इसमें अगले चरण के अत्याधुनिक परमाणु हथियारों पर विचार होने की संभावना है। अगस्त 2003
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भारत में द्विभाषी वक्ताओं की संख्या 31.49 करोड़ है, जो 2011 में जनसंख्या का 26% है। हिन्द-आर्य भाषाएँ पालि, प्राकृत, मारवाड़ी/मेवाड़ी, अपभ्रंश, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, सिंधी, कश्मीरी, मैथिली, भोजपुरी, नेपाली, मराठी, डोगरी, कुरमाली, नागपुरी, कोंकणी, गुजराती, बंगाली, ओड़िआ, असमिया, गुजरी द्रविड़ भाषाएँ तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तुलू, गोंडी, कुड़ुख ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ संथाली, हो, मुंडारी, खासी, भूमिज तिब्बती-बर्मी भाषाएँ नेपाल भाषा, मणिपुरी, खासी, मिज़ो, आओ, म्हार, नागा
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मान्यता प्राप्त भाषाएं
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2011 की जनगणना के अनुसार, 43.63% भारतीय लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित कर दिया है। भाषा डेटा 26 जून 2018 को जारी किया गया था। भिली / भिलोदी 1.04 करोड़ वक्ताओं के साथ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली गैर अनुसूचित भाषा थी, इसके बाद गोंडी 29 लाख वक्ताओं के साथ थीं। भारत की जनगणना २०११ में भारत की आबादी का 96.71% 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक अपनी मातृभाषा के रूप में बोलता है।
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भारतीय भाषा कोश (२१ भारतीय भाषाओं का एकल कोश)
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इसके अलावा सूरीनाम, फिजी इत्यादि। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।
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हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। इतिहास
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जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे।
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बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ।
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हालांकि भारत विरोधी विद्वानों ने कई प्रयासों के बावजूद यहां तक कि भ्रामक प्रमाणो के आधार पर भी अपने विचार को सिद्ध नहीं कर पाए। निरुक्त भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार: हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
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चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।
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जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दु धर्म नहीं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है।
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जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।
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