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nirveda - weeping, sighing,indifference,dicouragement
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glani - guilty
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sanka - doubt (apprehension)
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asuya/irsya - jealousy (envy)
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mada - madness (intoxication)
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srama - fatigue
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alasya/alasata - laziness,sitting idle (unwililng to work)
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dainya - meekness (depression),(despair)
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cinta - contemplation (anxiety/reflection)
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moha - bewilderment,[a feeling of being perplexed and confused] (distraction)
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smrti - rememberance (recollection)
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dhriti - forbearance,indifference abstenance (equanimity)
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vrida - shame
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capalya/capalatha/capala - impudence [rude behavior that does not show respect for others] (unsteadiness)
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harsa - jubiliation,enjoyment (joy)
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avega - intense emotion (agitation/flurry)
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jadya/jadatha - invalidity,looking with steadfast gaze,unable to think properly
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garva - pride
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visada - moroseness, sad [quality of being unhappy, annoyed, and unwilling to speak or smile]
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autsukya - eagerness (impatience/longing)
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nidra - sleep (drowsiness)
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apasmara - forgetfulness (epilepsy/dementedness)
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supti/supta - deep sleep (dreaming)
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prabodha/vibodha - awakening
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amarsa - impatience of opposition
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avahittha - concealment (hiding of true feelings)
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augrya/ugrata - violence,battle (cruelity/sterness)
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mati - attention,instructing pupils (resolve)
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vyadhi - disease (sickness)
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unmada - craziness (insanity/madness)
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mriti/marana - death
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trasa - shock,fear (fright/alarm)
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vitarka - argument (doubt)
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utsuka - restless/anxious
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tarka -deliberation [long and careful consideration or discussion]
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rati - romantic
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lajja - shy
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marsa - patience
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tyaga - sacrifice
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vimochana - releif
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utsaha - hyped/enthused
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shraddhaadaya - confidence,trust
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krodha - anger
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karuna - pity,kind
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veera - royality,valour,greatness
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shanta - serene,peaceful,pleasant
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vismaya - exaggeration/wonder/surprise/pride/doubt
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bhakti - devotion
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no emotion
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स्थितःस्थितामुच्चलितःप्रयातांनिषेदुषीमासनबन्धधीरः।जलाभिलाषीजलमाददानांछायेवतांभूपतिरन्वगच्छत्
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सन्यस्तचिह्नामपिराजलक्ष्मींतेजोविशेषानुमितांदधान।आसीदनाविष्कृतदानराजिरन्तर्मदावस्थइवद्विपेन्द्रः
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लताप्रतानोद्ग्रथितैःसकेशैरधिज्यधन्वाविचचारदावम्।रक्षापदेशान्मुनिहोमधेनोर्वन्यान्विनेष्यन्निवदुष्टसत्त्वान्
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विसृष्टपार्श्वानुचरस्यतस्यपार्श्वद्रुमाःपाशभृतासमस्य।उदीरयामासुरिवोन्मदानामालोकशब्दंवयसांविरावैः
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मरुत्प्रयुक्ताश्चमरुत्सखाभंतमर्च्यमारादभिवर्तमानम्।अवाकिरन्बाललताःप्रसूनैराचारलाजैरिवपौरकन्याः
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धनुर्भृतोऽप्यस्यदयार्द्रभावमाख्यातमन्तःकरणैर्विशङ्कैः।विलोकयन्त्योवपुरापुरक्ष्णांप्रकामविस्तारफलंहरिण्यः
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सकीचकैर्मारुतपूर्णरन्ध्रैःकूजद्भिरापादितवंशकृत्यम्।शुश्रावकुञ्जेषुयशःस्वमुच्चैरुद्गीयमानंवनदेवताभिः
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पृक्तस्तुषारैर्गिरिनिर्झराणमनोकहाकम्पितपुष्पगन्धी।तमातपक्लान्तमनातपत्रमाचारपूतंपवनोनिषेवे
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शशामवृष्ट्यापिविनादवाग्निरासीद्विशेषाफलपुष्पवृद्धिः।ऊनंनसत्त्वेष्वधिकोबबाधेतस्मिन्वनंगोप्तरिगाहमाने
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संचारपूतानिदिगन्तराणिकृत्वादिनान्तेनिलयायगन्तुम्।प्रचक्रमेपल्लवरागताम्राप्रभापतंगस्यमुनेश्चधेनुः
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तांदेवतापित्रतिथिक्रियार्थामन्वग्ययौमध्यमलोकपालः।बभौचसातेनसतांमतेनश्रद्धेवसाक्षाद्विधिनोपपन्ना
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सवल्वलोत्तीर्णवराहयूथान्यावासवृक्षोन्मुखबर्हिणानि।ययौमृगाध्यासितशाद्वलानिश्यामायमानानिवनानिपश्यन्
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आपीनभारोद्वहनप्रयत्नाद्गृष्टिर्गुरुत्वाद्वपुषोनरेन्द्रः।उभावलंचक्रतुरञ्चिताभ्यांतपोवनावृत्तिपथंगताभ्याम्
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वसिष्ठधेनोरनुयायिनंतमावर्तमानंवनितावनान्तात्।पपौनिमेषालसपक्ष्मपङ्क्तिरुपोषिताभ्यामिवलोचनाभ्याम्
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पुरस्कृतावर्त्मनिपार्थिवेनप्रत्युद्गतापार्थिवधर्मपत्न्या।तदन्तरेसाविरराजधेनुर्दिनक्षपामध्यगतेवसन्ध्या
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प्रदक्षिणीकृत्यपयस्विनींतांसुदक्षिणासाक्षतपात्रहस्ता।प्रणम्यचानर्चविशालमस्याःशृङ्गान्तरंद्वारमिवार्थसिद्धेः
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वत्सोत्सुकापिस्तिमितासपर्यांप्रत्यग्रहीत्सेतिननदुतुस्तौ।भक्त्योपपन्नेषुहितद्विधानानांप्रसादचिह्नानिपुरःफलानि
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गुरोःसदारस्यनिपीड्यपादौसमाप्यसांध्यंचविधिंदिलीपः।दोहावसानेपुनरेवदोग्ध्रींभेजेभुजोच्छिन्नरिपुर्निषण्णाम्
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तामन्तिकन्यस्तबलिप्रदीपामन्वास्यगोप्तागृहिणीसहायः।क्रमेणसुप्तामनुसंविवेशसुप्तोत्थितांप्रातरनूदतिष्ठत्
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इत्थंव्रतंधारयतःप्रजार्थंसमंमहिष्यामहनीयकीर्तेः।सप्तव्यतीयुस्त्रिगुणानितस्यदिनानिदीनोद्धरणोचितस्य
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अन्येद्युरात्मानुचरस्यभावंजिज्ञासमानामुनिहोमधेनुः।गङ्गाप्रपातान्तविरूढशष्पंगौरीगुरोर्गह्वरमाविवेश
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सादुष्प्रधर्षामनसापिहिंस्रैरित्यद्रिशोभाप्रहितेक्षणेन।अलक्षिताभ्युत्पतनोनृपेणप्रसह्यसिंहःकिलतांचकर्ष
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तदीयमाक्रन्दितमार्तसाधोर्गुहानिबद्धप्रतिशब्ददीर्घम्।रश्मिष्विवादायनगेन्द्रसक्तांनिवर्तयामासनृपस्यदृष्टिम्
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सपाटलायांगवितस्थिवांसंधनुर्धरःकेसरिणंददर्श।अधित्यकायामिवधातुमय्यांलोध्रद्रुमंसानुमतःप्रफुल्लम्
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ततोमृगेन्द्रस्यमृगेन्द्रगामीवधायवध्यस्यशरंशरण्यः।जाताभिषङ्गोनृपतिर्निषङ्गादुद्धर्तुमैच्छत्प्रसभोद्धृतारिः
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वामेतरस्तस्यकरःप्रहर्तुर्नखप्रभाभूषितकङ्कपत्रे।सक्ताङ्गुलिःसायकपुङ्खएवचित्रार्पितारम्भइवावतस्थे
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बाहुप्रतिष्टम्भविवृद्धमन्युरभ्यर्णमागस्कृतमस्पृशद्भिः।राजास्वतेजोभिरदह्यतान्तर्भोगीवमन्त्रौषधिरुद्धवीर्यः
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तमार्यगृह्यंनिगृहीतधेनुर्मनुष्यवाचामनुवंशकेतुम्।विस्माययन्विस्मितमात्मवृत्तौसिंहोरुसत्त्वंनिजगादसिंहः
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कैलासगौरंवृषमारुरक्षोःपादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठम्।अवेहिमांकिंकरमष्टमूर्तेःकुम्भोदरंनामनिकुम्भमित्रम्
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अमुंपुरःपश्यसिदेवदारुंपुत्रीकृतोऽसौवृषभध्वजेन।योहेमकुम्भस्तननिःसृतानांस्कन्दस्यमातुःपयसांरसज्ञः
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कण्डूयमानेनकटंकदाचिद्वन्यद्विपेनोन्मथितात्वगस्य।अथैनमद्रेस्तनयाशुशोचसेनान्यमालीढमिवासुरास्त्रैः
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प्रत्यब्रवीच्चैनमिषुप्रयोगेतत्पूर्वभङ्गेवितथप्रयत्नः।जडीकृतस्त्र्यम्बकवीक्षणेनवज्रंमुमुक्षन्निववज्रपाणिः
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संरुद्धचेष्टस्यमृगेद्रकामंहास्यंवचस्तद्यदहंविवक्षुः।अन्तर्गतंप्राणभृतांहिवेदसर्वंभवान्भावमतोऽभिधास्ये
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अथैकधेनोरपराधचण्डाद्गुरोःकृशानुप्रतिमाद्बिभेषि।शक्योऽस्यमन्युर्भवताविनेतुंगाःकोटिशःस्पर्शयताघटोध्नीः
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कथंनुशक्योऽनुनयोमहर्षेर्विश्राणनाच्चान्यपयस्विनाम्।इमामनूनांसुरभेरवेहिरुद्रौजसातुप्रहृतंत्वयास्याम्
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किमप्यहिंस्यस्तवचेन्मतोऽहंयशःशरीरेभवमेदयालुः।एकान्तविध्वंसिषुमद्विधानंपिण्डेष्वनास्थाखलुभौतिकेषु
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तथेतिगामुक्तवतेदिलीपःसद्यःप्रतिष्टम्भविमुक्तबाहुः।सन्न्यस्तशस्त्रोहरयेस्वदेहमुपानयत्पिण्डमिवामिषस्य
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तस्मिन्क्षणेपालयितुःप्रजानामुत्पश्यतःसिंहनिपातमुग्रम्।अवाङ्मुखस्योपरिपुष्पवृष्टिःपपातविद्याधरहस्तमुक्ता
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उत्तिष्ठवत्सेत्यमृतायमानंवचोनिशम्योत्थितमुत्थितःसन्।ददर्शराजाजननीमिवस्वांगामग्रतःप्रस्रविणींनसिंहम्
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तंविस्मितंधेनुरुवाचसाधोमायांमयोद्भाव्यपरीक्षितोऽसि।ऋषिप्रभावान्मयिनान्तकोऽपिप्रभुःप्रहर्तुंकिमुतान्यहिंस्राः
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भक्त्यागुरौमय्यनुकम्पयाचप्रीतास्मितेपुत्रवरंवृणीष्व।नकेवलानांपयसांप्रसूतिमवेहिमांकामदुघांप्रसन्नाम्
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ततःसमानीयसमानितार्थीहस्तौस्वहस्तार्जितवीरशब्दः।वंशस्यकर्तारमनन्तकीर्तिंसुदक्षिणायांतनयंययाचे
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वत्सस्यहोमार्थविधेश्चशेषंगुरोरनुज्ञामधिगम्यमातः।ऊधस्यमिच्छामितवोपभोक्तुंषष्ठांशमुर्व्याइवरक्षितायाः
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इत्थंक्षितीशेनवसिष्ठधेनुर्विज्ञापिताप्रीततराबभूव।तदन्विताहैमवताच्चकुक्षेःप्रत्याययावाश्रममश्रमेण
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तस्याःप्रसन्नेन्दुमुखप्रसादंगुरुर्नृपाणांगुरवेनिवेद्य।प्रहर्षचिह्नानुमितंप्रियायैशशंसवाचापुनरुक्तमेव
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सनन्दिनीस्तन्यमनिन्दितात्मासद्वत्सलोवत्सहुतावशेषम्।पपौवसिष्ठेनकृताभ्यनुज्ञःशुभ्रंयशोमूर्तमिवातितृष्णः
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प्रदक्षिणीकृत्यहुतंहुताशमनन्तरंभर्तुररुन्धतींच।धेनुंसवत्सांचनृपःप्रतस्थेसन्मङ्गलोदग्रतरप्रभावः
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अथनयनसमुत्थंज्योतिरत्रेरिवद्यौःसुरसरिदिवतेजोवह्निनिष्ठ्यूतमैशम्।नरपतिकुलभूत्यैगर्भमाधत्तराज्ञीगुरुभिरभिनिविष्टंलोकपालानुभावैः
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नमेह्रियाशंसतिकिंचिदीप्सितंस्पृहावतीवस्तुषुकेषुमागधी|इतिस्मपृच्छत्यनुवेलमादृतःप्रियासखीरुत्तरकोसलेश्वरः
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दिनेषुगच्छत्सुनितान्तपीवरंतदीयमांनीलमुखंस्तनद्वयम्।तिरंश्रकारभ्रमरोभिलीनयोःसुजातयोःपङ्कजकोशयोःश्रियम्ट||
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कुमारभृत्याकुशलैरनुष्ठितेभिषग्भिराप्तैरथगर्भभर्मणि|पतिःप्रतीतःप्रसवोन्मुखींप्रियांददर्शकालेदिवमभ्रितामिव
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पितुःप्रयत्नात्ससमग्रसंपदःशुभैःशरीरावयवैर्दिनेदिने|पुपोषवृद्धिंहरिदश्वदीधितेरनुप्रवेशादिवबालचन्द्रमाः
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उमावृषाङ्कौशरजन्मनायथायथाजयन्तेनशचीपुरन्दरौ|तथानृपःसाचसुतेनमागधीननन्दतुस्तत्सदृशेनतत्समौ
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रथाङ्कनाम्नोरिवभावबन्धनंबभूवयत्प्रेमपरस्पराश्रयम्|विभक्तमप्येकसुतेनतत्तयोःपरस्परस्योपरिपर्यचीयत
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उवाचधात्र्याप्रथमोदितंवचोययौतदीयामवलम्ब्यचाङ्गुलिम्|अभूच्चनम्रःप्रणिपातशिक्षयापितुर्मुदंतेनततानसोऽर्भकः
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तमङ्कमारोप्यशरीरयोगजैःसुखैर्निषिञ्चन्तमिवामृतंत्वचि|उपान्तसंमीलितलोचनोनृपश्चिरात्सुतस्पर्शरसज्ञतांययौ
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अमंस्तचानेनपरार्ध्यजन्मनास्थितेरभेत्तास्थितिमन्तमन्वयम्|स्वमूर्तिभेदेनगुणाग्र्यवर्तिनापतिःप्रजानामिवसर्गमात्मनः
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सवृत्तचूलश्चलकाकपक्षकैरमात्यपुत्रैःसवयोभिरन्वितः|लिपेर्यथावद्ग्रहणेनवाङ्मयंनदीमुखेनेवसमुद्रमाविशत्
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अथोपनीतंविधिवद्विपश्चितोविनिन्युरेनंगुरवोगुरुप्रियम्|अवन्ध्ययत्नाश्चबभूवुरत्रतेक्रियाहिवस्तूपहिताप्रसीदति
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धियःसमग्रैःसगुणैरुदारधीःक्रमाच्चतस्रश्चतुरर्णवोपमाः|ततारविद्याःपवनातिपातिभिर्दिशोहरिद्भिर्हरितामिवेश्वरः
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