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34
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पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि | 34 |
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पंच के पद पर बैठ कर न कोई किसी का दोस्त होता है | 34 |
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न दुश्मन न्याय के सिवा उसे और | 34 |
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कुछ नहीं सूझता आज मुझे विश्वास हो गया कि | 34 |
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पंच की जबान से खुदा बोलता है | 34 |
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अलगू रोने लगे | 34 |
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इस पानी से दोनों के दिलों का मैल धुल गया | 34 |
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मित्रता की मुरझायी हुई लता फिर हरी हो गयी | 34 |
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जहाँ मन भय से मुक्त हो और मस्तक सम्मान से उठा हो | 34 |
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जहाँ ज्ञान स्वतन्त्र हो | 34 |
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जहाँ विचार सच्चाई की गहराई से उपजतें हों | 34 |
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जहाँ अथक प्रयास अपनी बाहें पूर्णता की ओर बढातें हो | 34 |
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उस स्वतंत्रता के स्वर्ग में हे परमपिता | 34 |
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मेरे देश को जागृत कर दें | 34 |
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा | 34 |
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हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा | 34 |
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समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा | 34 |
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वह संतरी हमारा वह पासबाँ हमारा | 34 |
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गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ | 34 |
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गुल्शन है जिनके दम से रश्कएजनाँ हमारा | 34 |
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उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा | 34 |
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मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना | 34 |
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा | 34 |
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हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा | 34 |