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मासिक धर्म उत्सव, पहली चाँद पार्टी, या पीरियड पार्टी को भी कहा जाता है। दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय में मासिक धर्म का जश्न मनाया जाता है। इस प्रथा का पालन उत्तरी अमेरिका के विभिन्न हिस्सों, जैसे - अपाचे, ओजिब्वे और हूपा आदिवासी समुदायों में किया जाता है। पूर्वी देशों में इस प्रथा का पालन जापान और भारत में किया जाता है।
अमेरिका
2020 में, लेखिका क्रिस्टीन मिशेल कार्टर ने अमेरिका में अश्वेत समुदाय में पहली चाँद पार्टियों के जश्न के बारे में जानने की कोशिश की। द अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट के अनुसार, ज्यादातर लड़कियों को अपना पहला माहवारी 12 से 13 साल की उम्र के बीच होता है। स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों, बढ़ती स्वस्थ कठिनाइयों और तनाव के कारण काली लड़कियों के लिए माहवारी शुरू होने की उम्र थोड़ी कम है। अमेरिका की लड़कियों के लिए, पहली मून पार्टी एक रिवाज है जो युवा लड़कियों में मूल्यों, सिद्धांतों और स्वयं के बारे में ज्ञान पैदा करती है।
भारत
भारत में विभिन्न राज्य/क्षेत्र और समुदाय मासिक धर्म का जश्न मनाते हैं।
ओडिशा
ओडिशा में इस त्योहार को राजा परबा या मिथुन संक्रांति कहा जाता है। यह चार दिवसीय त्यौहार है जो लड़की के नारीत्व में परिवर्तन का जश्न मनाता है। पहले दिन को पाहिली राजा, दूसरे को मिथुन संक्रांति, तीसरे को बासी राजा और आखिरी दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि त्योहार के पहले तीन दिनों के दौरान देवी पृथ्वी भी रजस्वला होती हैं। उत्सव के दिन से पहले, जिसे सजबाजा कहा जाता है, पूरे घर को साफ किया जाता है और त्योहार के पहले तीन दिनों में मसालों को पीसने वाले पत्थर पर पीसा जाता है। जबकि सभी तैयारियां चल रही हैं, महिलाएं त्योहार के दौरान आनंद लेती हैं और नए कपड़े, आभूषण पहनती हैं और अपने पैरों पर अल्टा लगाती हैं। त्योहार के आखिरी दिन महिलाएं चक्की के पास जाती हैं और हल्दी से स्नान करती हैं। यह त्यौहार देवी भूदेवी के अनुष्ठानिक स्नान के साथ पूरा होता है।
असम
असम में, मासिक धर्म उत्सव को तोलोनी बिया/ नुआ-तुलोन/ सांती बिया कहा जाता है। असमिया में बिया शब्द का अर्थ विवाह होता है, इस प्रकार, तोलोनी बिया लड़की की पहली माहवारी के बाद की एक प्रतीकात्मक शादी है। यह समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इस उत्सव का उद्देश्य लड़की को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करना होता है। लड़की के माता-पिता और पड़ोसी उसके स्वास्थ्य की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। उत्सव के अलावा, समारोह के बाद लड़की को एकांत में रखा जाता है, और उसकी गतिविधियों और भोजन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जैसे; घूंघट के साथ घर लाया जाना, केले के अलावा कोई भोजन नहीं करना,एक कमरे तक सीमित होना, परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ कोई संपर्क नहीं रखना।
अपाचे सूर्योदय नृत्य उत्सव
सनराइज डांस समारोह एरिज़ोना और मैक्सिको क्षेत्र में अपाचे आदिवासी समुदाय द्वारा मासिक धर्म का उत्सव है। समुदाय के सदस्य और नेता इस समारोह को संपन्न करने में परिवार की सहायता करते हैं। समुदाय इस समारोह की तैयारी महीनों पहले से शुरू कर देता है। समारोह से एक दिन पहले, लड़की पसीने से नहाती है, इस बीच पुरुष रिश्तेदार और एक चिकित्सक वे वस्तुएं बनाते हैं जिनकी समारोह के दौरान आवश्यकता होगी। शाम को ये वस्तुएं लड़की को भेंट की जाती हैं।
यह समारोह चार दिनों की अवधि और आठ चरणों में होता है। इस समारोह के दौरान, लड़की पारंपरिक अपाचे पोशाक पहनती है और नृत्य करती है, जो महिला शक्ति का प्रतीक है। दोस्त और परिवार भी भाग लेते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं और लड़की को चिकित्सक और अन्य लोगों से मालिश और औपचारिक आशीर्वाद भी मिलता है।
सन्दर्भ
महिला स्वास्थ्य | 1491159 | {
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अध्यावरणी तंत्र (Integumentary system) किसी जानवर के शरीर की सबसे बाहरी परत बनाने वाले अंगों का समूह है। इसमें त्वचा और उसके उपांग शामिल हैं, जो बाहरी वातावरण और आंतरिक वातावरण के बीच एक भौतिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं जो कि जानवर के शरीर की रक्षा और रखरखाव के लिए कार्य करता है। मुख्यतः यह शरीर की बाहरी त्वचा होती है।
पूर्णांक प्रणाली में बाल, शल्क, पंख, खुर और नाखून शामिल हैं। इसके कई अतिरिक्त कार्य हैं: यह जल संतुलन बनाए रखने, गहरे ऊतकों की रक्षा करने, अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का काम कर सकता है, और यह संवेदी ग्राही के लिए लगाव स्थल है जो दर्द, संवेदना, दबाव और तापमान का पता लगाता है। | 1491185 | {
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नंदा देवी लोकजात उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदा नगर में मनाया जाता है। नंदा देवी सिद्ध पीठ कुरुड़ से यह यात्रा शुरू होती है। | 1491187 | {
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"प्रेम दान" एक भारतीय टेलीफिल्म है जो 1992 से दूरदर्शन चैनल पर प्रसारित हुई। इसमें अभिनेत्री खुशबू और अभिनेता नीतीश भारद्वाज ने सीमा और आनंद की मुख्य भूमिका निभाई।यह टेली फिल्म सच्ची प्रेम कहानी के बारे में है, जिसमें मुख्य किरदार सीमा और आनंद हैं। कहानी सीमा और आनंद के जीवन से संबंधित है और कैसे आनंद का सच्चा प्यार खुद को बलिदान और दर्द में डालता है।टेलीफिल्म सावन कुमार प्रोडक्शंस (टेलीफिल्म्स डिवीजन) द्वारा बनाई गई है और इसका निर्माण और निर्देशन सावन कुमार ने किया|
निदेशक
सावन कुमार
कास्ट
मुख्य कलाकार
खुशबू
नीतीश भारद्वाज
अभिनव चतुवेर्दी
अतिरिक्त कलाकार
राकेश बेदी
मंगल ढिल्लों
जुगनू
यूनुस परवेज़
राकेश हंस
जमूरा
मदन
वी.जी. गाडगिल
रेनू धारीवाल
डीडी नेशनल मूल प्रोग्रामिंग
1990s के दशक की भारतीय टेलीविजन फिल्म्स
भारतीय टेली फिल्म्स
संदर्भ
https://www.indianfilmhistory.com/movie/prem-daan | 1491190 | {
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रामवीर तंवर एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविद हैं, जिन्हें देश में जल संरक्षण, तालाबों के सुंदरीकरण, मृत जल निकायों को पुनर्जीवित करने और शहरी वन बनाने की दिशा में उनके कार्य के लिए जाना जाता हैं। उन्हें पोंड मैन ऑफ इंडिया अथवा पोंड मैन के नाम से भी जाना जाता हैं। वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक में लगभग 80 तालाबों की सफाई और जीर्णोद्धार का कार्य कर चुके है।
तंवर 'से अर्थ' नामक एक सामाजिक संस्था एवं 'जल चौपाल' नामक अभियान के संस्थापक हैं, जो जल निकायों के पुनरुद्धार और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए कार्यरत हैं। उन्हें गाजियाबाद नगर निगम द्वारा स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एंबेसडर और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूजल सेना का ग़ाज़ियाबाद ज़िला समन्वयक नियुक्त किया गया हैं।
प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा
रामवीर तंवर का जन्म उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर अंतर्गत डाढ़ा-डाबरा गांव में हुआ। वें अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई। वर्ष 2014 में तंवर केसीसी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की हैं। वें एक किसान परिवार से हैं।
स्नातक के बाद उनकी नौकरी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर के रूप में लग गई, और दो साल काम करने के बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक पर्यावरण और जल संरक्षण के कार्य में लग गए।
तंवर ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भूजल संरक्षण पर तीन महीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है।
कार्य
वर्ष 2015 में तंवर ने अपने साथियों व स्थानीय समुदायों के सहयोग से जल संरक्षण व जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए 'जल चौपाल' (जल पर बैठक) नामक एक अभियान की शुरुआत की। शुरुआत उन्होंने अपने गाँव डाढ़ा से की, लेकिन बाद में डबरा, कुलीपुरा, चौगानपुर, रायपुर, सिरसा, रामपुर, सलेमपुर सहित उत्तर प्रदेश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में जा-जा कर जल संरक्षण के मुद्दों पर जागरूकता फैलाई। प्रारम्भिक दिनों में तो वह केवल लोगों को जागरुक करते थे। हालांकि धीरे धीरे वह तालाबों व जल निकायों पर बसे अवैध अतिक्रमण हटाने, तालाबों का सुंदरीकरण करने और पुनर्जीवित करने में संलिप्त हो गए।
2021 आते-आते रामवीर उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, सहारनपुर, हरियाणा के पलवल, मानेसर, दिल्ली समेत करीब 40 तालाबों को पुनर्जीवित कर चुके थें। 2023 तक रामवीर तंवर ने उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली और गुजरात में तकरीबन 80 तालाबों की सफाई और जीर्णोद्धार का काम कर चुके हैं।
रामवीर तंवर ने 2018 में नौजवानों को अपने साथ जोड़ने के लिए 'सेल्फी विद पॉन्ड' नाम से एक पहल की शुरुआत की। इस पहल के अंतर्गत युवाओं ने तालाब के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू किया। तालाबों की पहचान के लिए जगह का नाम भी लिखने को कहा गया। परिणाम यह हुआ कि स्वच्छ जल निकायों और तालाबों की तस्वीरें एक प्रेरणा साबित हुईं और स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें साफ करने के लिए प्रेरित किया। इस मुहिम से विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों और संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और इंडोनेशिया के नागरिकों से भी सहयोग प्राप्त हुआ।
रामवीर तंवर ने 2020 में 'से अर्थ' नाम से एक पंजीकृत गैर सरकारी संगठन की स्थापना की। अब इसी के अंतर्गत तालाबों की सफाई का काम जारी हैं। तालाबों की सफाई के लिए लगने वाले व्यय के लिए कई बड़ी कंपनियों व संस्थाओ से जुड़े हैं, जो इस कार्य में मदद करते हैं, इनमे एचसीएल फाउंडेशन, ग्रीन यात्रा और स्लीप वेल फाउंडेशन आदि एनजीओ शामिल हैं।
इसके अलावा, रामवीर वर्तमान में जापान की मियावाकी विधि का उपयोग करके कई शहरी वनों (अर्बन फॉरेस्ट) का निर्माण कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में, रामवीर सरकार द्वारा आवंटित बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में बदलते हैं और फिर वृक्षारोपण करते हैं, जिसका उद्देश्य शहरी भूमि की संरक्षण, मृदा की गुणवत्ता की सुरक्षा, वायु प्रदूषण और भूमि प्रदूषण को कम करना है।
मन की बात
24 अक्टूबर 2021 को आकाशवाणी पर प्रसारित रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामवीर तंवर का उल्लेख करते हुए, उनके द्वारा किए जा रहे तालाबों की सफाई व संरक्षण कार्यों की सराहना की।
अप्रैल 2023 में प्रधानमंत्री के मन की बात के कार्यक्रम 100वें एपिसोड में देशभर के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से 100 लोगों को चयनित किया गया, जिसके अंतर्गत रामवीर को भी बतौर अतिथि शामिल किया गया। इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत रामवीर तंवर ने 26 अप्रैल 2023 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव कार्यक्रम में शिरकत की, जिसमें भारत के उपराष्ट्रपति, वेंकैया नायडू और गृहमंत्री अमित शाह भी लोगों से रूबरू होने के लिए उपस्थित थे। 27 अप्रैल 2023 को उन्हें कर्तव्य पथ, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री संग्रहालय का दौरा कराया गया। इसके बाद 28 अप्रैल 2023 को योग सत्र, लाल किला और राजघाट का भ्रमण कराया गया। 30 अप्रैल 2023 को रामवीर को लखनऊ स्थित राजभवन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के साथ मन की बात सुनने के लिए आमंत्रित गया था।
जल चौपाल
जल चौपाल लोगों को पानी के महत्व और समाज में पानी की कमी से संबंधित विभिन्न कारकों के बारे में जागरूक करने की एक पहल है। यह भूजल, जल निकासी, जल प्रदूषण, वर्षा जल संचयन, जल बजटिंग आदि जैसे आवश्यक विषयों पर चर्चा का आधार बन जाता है। जल चौपाल लोगों को तालाब जीर्णोद्धार कार्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सहायक उपकरण साबित हुआ है। इसकी शुरुआत रामवीर ने 2015 में की थी।
पुरस्कार एवं सम्मान
रामवीर को ताइवान से शाइनिंग वर्ल्ड प्रोटेक्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके तहत 10,000 अमेरिकी डॉलर का अनुदान भी प्रदान किया गया।
इन्हें 2019 में संयुक्त राष्ट्र और iCONGO द्वारा वैश्विक नागरिक सम्मान रेक्स कर्मवीर चक्र पुरस्कार से नवाजा गया।
सितंबर 2022 को भारत सरकार की मुहिम गार्बेज फ्री सिटी बनाने के लिए गाजियाबाद नगर निगम ने रामवीर तंवर को ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया।
मई 2022 में, तंवर को पर्यावरण, वन, और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) से वेटलैंड चैम्पियन्स 2022 पुरस्कार मिला, जिसे केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने प्रदान किया।
जुलाई 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रामवीर तंवर को जल संरक्षण पर इनके योगदान के लिए राज्य भूजल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
गाजियाबाद नगर निगम ने वर्ष 2021-2022 के लिए स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया गया है।
उन्हें जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वाटर हीरो पुरस्कार और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वेटलैंड चैंपियन पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैं।
लोकप्रिय संस्कृति में
उनकी जीवन कहानी संस्कृति मंत्रालय (भारत) की कॉमिक बुक मन की बात, खंड 4 में प्रकाशित हुई, जिसका प्रकाशन अमर चित्र कथा द्वारा जुलाई 2023 में किया गया था।
2022 में, विश्व पर्यावरण दिवस पर, नेशनल जिओग्रैफ़िक ने अपनी 'वन फॉर चेंज' पहल के तहत, रामवीर तंवर सहित उन सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लघु फिल्मों की एक श्रृंखला प्रदर्शित की, जिन्होंने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए काम किया है। जिसे डिज़्नी+ हॉटस्टार पर भी दिखाया गया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आधिकारिक जालस्थल
एबीपी के टीवी शो 'क्या बात है' पर रामवीर तंवर
Reviving ponds needs planning, team effort: India's Pond man (द इंडियन एक्सप्रेस से साक्षात्कार)
जीवित लोग
भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता
पर्यावरणविद
उत्तर प्रदेश के लोग | 1491198 | {
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व्यापार, अर्थशास्त्र या निवेश में, बाजार की तरलता एक बाजार का गुण है | इसके तहत कोई भी व्यक्ति या फर्म संपत्ति की कीमत में भारी बदलाव किये बिना किसी एसेट को आसानी से बेचा या ख़रीदा जा सकता है | दूसरी भाषा में कहा जाय तो किसी एसेट को जीतनी आसानी से बेचा जा सकता है उसे उस एसेट की तरलता कहा जाता है | हर एसेट की तरलता अलग अलग होती है | जैसे - कैश (नकदी) की तरलता सबसे अधिक होती है | कैश से आप कोई भी खरीद बिक्री बड़ी आसानी से कर सकते है |
शेयर बाज़ार के लिए तरलता बहुत ही मायने रखता है | शेयर बाज़ार में कंपनी के शेयर लिस्टेड होते है | किसी शेयर की तरलता उसके आस्क तथा बिड के अंतर पर निर्भर करता है । जिस कंपनी के शेयर में आस्क तथा बिड का अंतर जितना कम होता है उस कंपनी के शेयर में तरलता उतना ही अधिक होता है |
इन्हें भी जाने
तरलता क्या है / Liquidity Meaning Full Details In Hindi | 1491208 | {
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प्रकाश बाबा आमटे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो महाराष्ट्र से आते हैं। आमटे और उनकी पत्नी मंदाकिनी आमटे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए 2008 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले और पड़ोसी राज्य तेलंगाना और मध्य प्रदेश में माडिया गोंडों के बीच 'लोक बिरादरी प्रकल्प' चलाते हैं। नवंबर 2019 में उन्हें बिल गेट्स द्वारा आईसीएमआर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
प्रारंभिक जीवन
प्रकाश आमटे बाबा आमटे के दूसरे बेटे हैं। उन्होंने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), नागपुर से मेडिकल की डिग्री प्राप्त की, और गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), नागपुर में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात अपनी पत्नी मंदाकिनी से हुई।
कार्य
1973 में, आमटे ने हेमलकसा में लोक बिरादरी प्रकल्प की शुरुआत की, जो आदिवासी समुदायों के विकास के लिए था, जिनमें प्रमुखत: माडिया गोंड, एक आदिवासी समुदाय जो गढ़चिरौली जिले के जंगलों रहते हैं। उन्होंने बिना बिजली के तकरीबन बीस साल तक वहां रहकर आपातकालीन शल्यचिकित्सा करते रहे। इस प्रकल्प के अंतर्गत उन्होंने एक अस्पताल, लोक बिरादरी प्रकलप दवाखाना, आवासीय विद्यालय, लोक बिरादरी प्रकल्प आश्रम शाला, और घायल जानवरों के लिए एक अनाथालय की स्थापना की। यह प्रकल्प प्रतिवर्ष लगभग 40,000 व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है। डॉ. प्रकाश और उनका परिवार महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के हेमलकसा में एक बड़ी पशु संरक्षण सुविधा भी चलाते हैं जहां दुर्लभ, संरक्षित और लुप्तप्राय जानवरों की देखभाल की जाती है।
प्रकाशित साहित्य
प्रकाश बाबा आमटे ने दो आत्मकथाएँ प्रकाशित की हैं, पहला हैं, प्रकाशवत्, जो मूल रूप से मराठी में लिखी गई थीं और अब अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड़, संस्कृत और हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया हैं। इनकी दूसरी पुस्तक का नाम है, रानमित्र।
पुरस्कार
आमटे को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
2019 - बिल गेट्स द्वारा प्रस्तुत ICMR द्वारा लाइफ्टाइम यचीवमेंट अवॉर्ड।
2014 - मदर टेरेसा पुरस्कार अवॉर्ड फॉर सोशल जस्टिस।
2012 - लोकमान्य तिलक पुरस्कार।
2008 - रेमन मैगसेसे पुरस्कार।
2002 - पद्म श्री, भारत सरकार।
1995 - प्रिंसिपैलिटी ऑफ मोनैको ने प्रकाश और मंदाकिनी आमटे को सम्मानित करने के लिए एक पोस्टल डाक टिकट जारी किया।
सन्दर्भ
सन्दर्भ
मैगसेसे पुरस्कार विजेता
जीवित लोग
भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता
महाराष्ट्र के लोग
पद्मश्री प्राप्तकर्ता | 1491209 | {
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विद्याधरदेव-वर्मन चन्देल (ENG:Vidyadharadeva varman Chandel) (शासन काल श. 1003- 1035 ई.), चन्देल राजवंश से भारत के चक्रवर्तीन सम्राट थे। उन्होंने अपनी राजधानी महोबा, जेजाकभुक्ति (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से भारत के कई भूभागों पर शासन किया था।
उन्होंने कन्नौज के गजनवीद राज्यपाल, सेनापति और प्रतिहार राजपाल को मारा तथा मालवा के राजा भोज परमार और कलचुरी राजा गंगेयदेव को हरा उन्हें कैद कर अपने अधीन कर लिया। वह एक मात्र ऐसे हिंदू नरेश थे जिन्होंने 2 बार, 1019 एवं 1022 ई. में गजनी के सुलतान महमूद गजनवी को आमने सामने के युद्ध में पराजित किया। उस समय चन्देल साम्राज्य की सीमा भारत में सबसे बड़ी थी।
निजी जीवन
खजुराहो शिलालेख के अनुसार इनका जन्म हैहयवंशी क्षत्रियों के चन्देल कुल में हुआ था जो वृष्णि कुल चेदि कुल साम्राज्य का पर्यायवाची शब्द है (चन्द्रवंशी यादवों की प्रमुख शाखा)। वह अपने दादा धंगदेववर्मन के सामान वीर और कुसल शासक थे। विद्याधरदेव का विवाह राजकुमारी सत्यभामा से हुआ था।
गजनविद साम्राज्य से युद्ध
कन्नौज पर आक्रमण
1018 ईस्वी में गजनी के गजनवी सुल्तान महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया , जिसका प्रतिहार राजा राज्यपाल बिना प्रतिरोध का सामना किए शहर से भाग गया से जिससे महमूद को इसे बर्खास्त करने की अनुमति मिली और वहां तक गजनविदो के कब्जा कर लिया। अपने पिता के सुझाव पर विद्याधरदेव ने कन्नौज की प्रजा और मंदिरो को तुरकों से बचाने के लिए और कन्नौज के राजा को ये कायरता की सजा के रूप में कन्नौज पर तुरंत आक्रमण किया। हालांकि उस समय तो वहां पर प्रतिहार राजा नही अपितु केवल गजनवीद राज्यपाल और सेनापति थे। विद्याधरदेव ने उन्हे हरा सबको लगभग मार दिया। कुछ सैनिक भाग कर गजनी पहुंचे और उन्होंने महमूद को सब बताया जिसके बाद गजनवियों और चन्देलो के बीच विवाद बढ़ा। राज्यपाल, जो भाग गया था वो जब राजधानी में आया तो ये सुना की विद्याधरदेव वहां पर उसे मृत्युदंड देने को है ये सुनकर वह भाग खड़ा हुआ वहीं उसके लड़के त्रिलोचनपाल ने आत्मसमर्पण कर दिया। परंतु विद्याधरदेव ने अपने सेनापति के साथ राज्यपाल रात भर पीछा किया और उसे मार डाला। समकालीन ग्रंथ चन्देलप्रबंध अनुसार विद्याधरदेववर्मन ने राज्यपाल प्रतिहार को मारते वक्त कहा था की क्षत्रिय होकर हम क्षत्रियों पर ऐसा कायरता पूर्वक दाग लगा कैसे जी सकते हो तुम, कम से कम युद्ध भूमि में मर गए होते तो वो सौभाग्यशाली होता लेकिन तुमसे एक लुटेरे के विरुद्ध इतनी भव्य सेना होते हुए भी युद्ध तक नहीं हुआ वीरगति कौन कहे। तुम एक कुलकलंक हो! धिक्कार है तुमपर। उसको जान से मारकर विद्याधरदेव कन्नौज राजमहल में गए और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल का राज्याभिषेक कन्नौज की गद्दी पर कर उसे अपना सामंत राजा बना वापिस अपनी राजधानी महोबा लौट गए।
16 वी शताब्दी मुस्लिम इतिहासकार अली इब्न अल-अथिर के अनुसार खजुराहो के महराजा विद्याधर चन्देल ने इस कायरता की सजा के रूप में कन्नौज के राजा को मार डाला। कुछ बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने इस नाम को "नंद" के रूप में गलत तरीके से पढ़ा, जिसके आधार पर ब्रिटिश-युगविद्वानों ने कन्नौज राजा के हत्यारे की पहचान विद्याधर के पूर्ववर्ती गंड देव के रूप में की। हालाँकि, महोबा में खोजे गए एक शिलालेख से पुष्टि होती है कि विद्याधर चन्देल ने कन्नौज के शासक को हराया था और उसकी हत्या कर उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को अपना सामंत राजा बना राज्याभिषेक किया उसका।
महमूद गजनवी का प्रतिरोध
1019 ई. के असफल आक्रमण के बाद 1022 ई. में महमूद गजनी ने राजधानी कलिंजर पर पुन: हमला किया। भीषण युद्ध हुआ जिसमें महमूद की हार हुई और उसे अपनी जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण करना पड़ा। महमूद गजनी ने विद्याधरदेव से संधि की जिसमे उसने अन्य नरेशो से जीते हुए 15 किले विद्याधरदेव को दे दिया जिसके बाद विद्याधर का राज्य कश्मीर तक फेल गया और साथ में कई मूल्यवान वस्तुएं, अत्यंत सुंदर तुर्क महिलाए (मांगा भी नही था) कलिंजर भेजी। चन्देलो और गजनवियो की ये संधि 1-2 पीढ़ी तक चली। चन्देलप्रबंध अनुसार विद्याधरदेव को महमूद गजनी ने शाही जश्न में विनम्रतापूर्वक अपनी राजधानी पर मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण भी भेजा था। विद्याधरदेव ही अकेले ऐसे भारतीय सम्राट थे जिसने महमूद गजनी की महत्वाकांक्षा का सफलता पूर्वक प्रतिरोध किया था और उन्हीके कारण गजनविद साम्राज्य भारत में स्थापित नही हो पाया था।
मालवा और त्रिपुरी अभियान
राजा भोज ने अपने अभियानों के तहत ग्वालियर के कच्छपघाट वंश के राजा कितिराजा पर आक्रमण किया और कच्छपघाट चन्देलों के जागीरदार थे, हालांकि भोज ने उन्हे अपनी तरफ मिलाने की कोशिस की लेकिन उन्होंने अपने प्रिय राजा से गद्दारी करना गलत समझा और इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। तब तक चन्देल सेना आ गई और भोज को अपने पैर पीछे करने पड़े। महोबा, देबकुंड और त्रिपुरी के शिलालेख के अनुसार, 1027 ईस्वी में विद्याधर ने मालवा और त्रिपुरी की संयुक्त सेना के साथ चन्देल राज्य पर हमले की योजना बनाई। युद्ध में विद्याधारदेव वर्मन ने मालवा के परमार राजा भोज और त्रिपुरी के कल्चुरी राजा गांगेयदेव को पराजित कर उन्हे बंदी बना लिया और कलिंजर की कैदखाने में डाल दिया। ग्वालियर और महोबा के शिलालेख के अनुसार फिर भोज भोजदेव ने कालकुरी के चंद्रमा यानी गंगेय देव के साथ मिलकर एक शिष्य की तरह भय से भरे हुए युद्ध के इस गुरु, यानी विद्याधर की पूजा की, उनकी महानता का गान किया और बार बार गुहाई भी लगाई की आपके अधीन ही राजा रहेंगे तब भोज और गंगेय देव पर दया कर विद्याधर ने उन्हें रिहा कर दिया। तदांतर परमार और कलचूरी राजवंश के राजा चन्देल साम्राज्य के अधीन यानी सामंत राजा रहे, बीच बीच में हालांकि इन्होंने विद्रोह कर स्वतंत्र हुए परंतु कुछ दिनों बाद ही चन्देल शाही सेना द्वारा पराजित हो जाते थे। विद्याधरदेववर्मन के निधन के बाद चन्देल साम्राज्य की कीर्ति और शक्ति घटने लगी परन्तु उसे उसके पौत्र किर्त्तिवर्मन ने पुन प्रतिष्ठित कर लिया।
राज्यप्रतिपादन
सम्राट विद्याधर चन्देल ने खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर की स्थापना की। सम्राट विद्याधर चन्देल ने अपने परिवार के देवता शिव को समर्पित कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करके सुल्तान महमूद गजनवी, भोज और अन्य शासकों पर अपनी सफलता का जश्न मनाया। मंदिर में मंडप के एक स्तंभ पर एपिग्राफिक शिलालेखों में मंदिर के निर्माता के नाम का उल्लेख विरिम्दा के रूप में किया गया है, जिसकी व्याख्या सम्राट विद्याधर चन्देल के छद्म नाम के रूप में की जाती है। इसका निर्माण 1025 और 1050 ईस्वी के समय का है।
इन्हें भी देखें
चन्देल
भारत के शासक | 1491230 | {
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DigiKavach एक ऑनलाइन धोखाधड़ी पहचान कार्यक्रम है, जिसे भारत में ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे गूगल द्वारा भारतीय उपयोगकर्ताओं को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने के लिए लॉन्च किया गया था। और यह अध्ययन करने के लिए कि घोटालेबाज भारत में कैसे काम करते हैं, इस जानकारी के आधार पर, गूगल ने नए उभरते घोटालों का मुकाबला करने के लिए उपाय बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए सहयोग किया।
कार्यक्रम में बेईमान फिनटेक और शिकारी ऋण ऐप कंपनियों से सुरक्षा के लिए फिनटेक एसोसिएशन फॉर कंज्यूमर एम्पावरमेंट (FACE) के साथ सहयोग शामिल है। इससे पहले डिजीकवच के तहत गूगल ने भारत में डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए साइबरपीस फाउंडेशन को 4 मिलियन डॉलर दिए थे,यह भारत के गृह मंत्रालय के साथ काम करता है
कार्यान्वयन
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, साइबर अपराध हेल्पलाइन (1930) और डिजीकवाच वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों को खतरों की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए जानकारी और सहायता प्रदान करने के लिए मिलकर काम करेंगे।
संदर्भ
गूगल | 1491236 | {
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भील जनजाति - पश्चिमी और मध्य भारत की मूल निवासी - लगभग 50 अन्य भारतीय जनजातियों में से, आज तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। मूल रूप से, शिकारी और महान तीरंदाज मध्य प्रदेश के घने जंगलों में रहते हैं - वे लंबे समय से खेती कर रहे हैं और कुछ चिनाई, सड़क बनाने और अन्य शारीरिक श्रम करने के लिए बड़े शहरों में चले गए हैं।ऐसी कई परिकल्पनाएँ हैं जो भील जनजाति की उत्पत्ति का अनुमान लगाती हैं और परिणामस्वरूप इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने अब तक किसी भी सिद्धांत के सच होने की पुष्टि नहीं की है। भारतीय उपमहाद्वीप पर आर्यों के आक्रमण के समय से ही जनजाति की मूल स्थिति और सांस्कृतिक स्थितियों की खोज करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, यदि इसकी नस्लीय उत्पत्ति नहीं। हालाँकि, आधुनिक समय के करीब ऐतिहासिक ग्रंथों में भीलों का उल्लेख अधिक बार किया गया है।
कला भील समुदाय का अभिन्न अंग है। दावत और शराब के साथ गाने, नृत्य और पेंटिंग का उपयोग घटनाओं को चिह्नित करने, यादें संग्रहीत करने और निराशा और बीमारी से लड़ने के लिए किया जाता है। अनुष्ठानों, प्रतीकवाद और परंपरा से ओत-प्रोत, उनके चित्रों की समृद्ध बनावट उन्हें प्रकृति और आदिवासी जीवन से जोड़ती है जो उनकी विरासत है।इसकी कला का इतिहास भीलों जितना ही पुराना और रहस्य में छिपा हुआ है, हालाँकि पिथोरा पेंटिंग, गटलास और कोठी रिलीफ वर्क कुछ बेहतर ज्ञात कला रूप हैं। ये अनुष्ठानिक चित्र बदवाओं या विशेष रूप से नियुक्त पुरुष सदस्यों द्वारा बनाए जाते थे। हालाँकि पारंपरिक रूप अभी भी प्रचलित हैं, भील कला आज बड़े पैमाने पर कैनवास पर ऐक्रेलिक पेंटिंग के रूप में व्यक्त की जाती है। और जे. स्वामीनाथन कलाकारों को प्रोत्साहित करने और उन्हें वैश्वीकृत कला जगत के साथ एकीकृत करने में एक प्रमुख व्यक्ति थे।
कहानियों, प्रार्थनाओं, यादों और परंपराओं को सादे पृष्ठभूमि पर बहुरंगी बिंदुओं की सिम्फनी में चित्रित किया गया है। कई भील कलाकारों के लिए कला सीखने का पहला कदम बिंदुओं में महारत हासिल करने के साथ शुरू हुआ - लयबद्ध पैटर्न और रंगों में समान आकार, समान बिंदुओं को कुशलता से दोहराना। बिंदु भील कला की विशिष्ट पहचान हैं, और इनमें प्रतीकवाद की कई परतें हैं। मक्के के दानों से प्रेरित होकर - उनका मुख्य भोजन और फसल - बिंदुओं का प्रत्येक समूह अक्सर एक विशेष पूर्वज या देवता का प्रतिनिधित्व करता है।
इस महत्वपूर्ण भील परंपरा में, पिछले वर्ष मारे गए परिवार के सदस्यों की याद में फसल के खेतों में एक स्मारक पत्थर या "गटाला" बनाया जाता है। गटाला में एक आदमी को घोड़े पर सवार दिखाया गया है जिसके ऊपरी बाएँ और दाएँ भाग में सूर्य और चंद्रमा सजाए हुए हैं। बडवा (पवित्र पुजारी) तय करता है कि गटाला को किस तिथि को पवित्र किया जाएगा। फिर, परिवार के सदस्य प्रार्थना करते हैं और आत्मा से परिवार और पूरे गांव की देखभाल करने का अनुरोध करते हैं। महुआ के फूल से विशेष शराब बनाई जाती है और पांच बकरों की बलि दी जाती है। और
आज हमें मुख्यधारा में और भी भील कला देखने को मिल रही है। मिट्टी की जगह कैनवास ने ले ली है, प्राकृतिक रंगों की जगह ऐक्रेलिक पेंट ने ले ली है। जो कलाकार पहले अपने गाँव के घरों की दीवारों और फर्शों पर पेंटिंग करते थे, वे अब देश भर में और यहाँ तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाने जाते हैं।
लेकिन इस कला रूप के बारे में कुछ ऐसा है जो इतना निहित है कि माध्यम या यहां तक कि मान्यता में बदलाव से इसके चित्रण की ईमानदारी में कोई बदलाव नहीं आता है।
भीलों का प्रकृति के साथ एक मौलिक रिश्ता है जो बदलते मौसम और तत्व पूजा को महत्व देता है ताकि अच्छी फसल हो सके। यहां तक कि पेंटिंग के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री भी आम तौर पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त रंगद्रव्य, मिट्टी की दीवारों पर ब्रश के रूप में नीम की टहनियाँ, भित्तिचित्रों (मिट्टीचित्रा) का एक रूप है।
यह कौशल अनौपचारिक शिक्षा का एक हिस्सा था जो भील समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गया है। आधुनिक जीवन और प्रौद्योगिकी का भी धीरे-धीरे परिचय हुआ है | 1491278 | {
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सलातुल तस्बीह (صلاة تسبيح) को तस्बीह वाली नमाज़ के रूप में भी जाना जाता है, यह सुन्नत प्रार्थना का एक रूप है । जैसा कि नाम से पता चलता है, इस अनोखी प्रार्थना में कई बार तस्बीह पढ़ना शामिल है और ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस विशेष तरीके से प्रार्थना करते हैं उनके कई पाप माफ कर दिए जाते हैं। पैगंबर मुहम्मद (सल्ल०) ने मुसलमानों को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार यह प्रार्थना जरूर करने की सलाह दी ।
प्रक्रिया
इस अनोखी प्रार्थना में चार रकात शामिल हैं जो दो अलग-अलग सेटों में विभाजित है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह प्रार्थना किसी भी अन्य प्रार्थना से विशेष रूप से भिन्न नहीं है। एकमात्र अंतर तस्बीह को शामिल करने का है और इसे केवल महिमामंडन समाप्त करने के बाद ही पढ़ा जा सकता है जैसा कि व्यक्ति किसी अन्य प्रार्थना में करता है।
सबसे पहले नमाज़ की नियत करें । इसके बाद सना पढ़ें फिर 15 बार तस्बीह पढ़ें। ( سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلَا إِلَهَ إِلا اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ) (अर्थात् 'अल्लाह पवित्र है।', 'सभी प्रशंसाएं अल्लाह के लिए हैं।', 'अल्लाह के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है।', 'अल्लाह सबसे महान है।')) 15 बार।
सूरह फातिहा और दूसरा सूरह पढ़ें , फिर उसी तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
अब रुकू में जाएं और 3 बार 'सुब्हान रब्बि अल-अज़ीम' पढ़ें । उसके बाद तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
रुकू से खड़े होकर तस्बीह को 10 बार पढ़ें। ('समिअल्लाहु लिमन हमीदह, रब्बना लकल हम्द' के बाद)
इसके पाठ के साथ पहले सुजुद में तस्बीह को 10 बार कहें।
अब अल्लाहू अकबर कहते हुए सज्दे में चले जाएं और 3 बार 'सुब्हान रब्बि अल-आला' पढ़ने के बाद तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
सज्दे से उठने के बाद जलसा में (दोनों सज्दों के दौरान) बैठकर 10 बार तस्बीह पढ़ें।
अब दूसरे सज्दे में जाएं, दूसरे सज्दे की तस्बीह पढ़ने के बाद इस तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
चार रकअत पूरी होने तक दोहराएँ। और चौथी रकात में सज्दों के बाद अत्तहिय्यात, दूरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेर दें।
नोट: इस पूरे नमाज के दौरान इस तस्कुबीह को कुल मिलाकर 300 बार पढ़ना चाहिए।
हदीस
अब्दुल्ला इब्न अब्बास (रज़ि) ने फरमाया:
मेरे चाचा! क्या मैं आपको एक अतिया न करूं ? क्या मैं आपको एक तोहफा और हदिया पेश न करूं ? क्या मैं आपको ऐसा अम्ल न बताऊं कि जब आप इसको करेंगे तो आपको दस फायदे हासिल होंगे । यानी अल्लाह तआला आपके अगले-पिछले, पुराने-नए, गलती से और जानबूझ कर किये गए, छोटे-बड़े, छुपकर और खुल्लमखुल्ला किये हुए सारे गुनाह माफ कर देगा । वो अम्ल ये है कि आप चार रकात सलातुल तस्बीह की नमाज़ पढ़ें ।
अगर आपसे हो सके तो रोज़ाना ये नमाज़ एक मर्तबा पढ़ा करें , अगर रोज़ाना ना हो सके तो जुमा के दिन पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो महीने में एक बार पढ़ लिया करें , अगर आप ये भी ना हो सके तो साल में एक बार पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो ज़िंदगी में एक बार पढ़ लिया करें ।"
नमाज़ के फायदे
नफ़ील नमाजों में सलातुल तस्बीह की नमाज़ की बहुत ज्यादा फजीलत बयान की गई है । इस नमाज को पढ़ने से दीन-व-दुनिया की बहुत सी बरकतें हासिल होती है । गुनाह माफ हो जाते हैं और इसके पढ़ने से रोजी में बरकत पैदा होती है । किसी मुसीबत और दुशवारी के वक्त अगर इस नमाज को पढ़ कर अल्लाह से दुआ की जाए तो वह मुसीबत इस नमाज की बरकत से दूर हो जाती है ।
यह भी देखें
तहज्जुद
सन्दर्भ
बाहरी कड़ी
सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका और फजीलत *
नमाज़
इस्लाम
इस्लाम के पाँच मूल स्तंभ | 1491279 | {
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लघु वक्षच्छदिका मांसपेशी ( Pectoralis minor ) एक पतली, त्रिकोणीय मांसपेशी है, जो मानव शरीर में बृहत् वक्षच्छदिका के नीचे, छाती के ऊपरी हिस्से में स्थित होती है। यह III-V पसलियों से उत्पन्न होता है; यह अंसफलक की अंसतुंड प्रवर्ध पर निवेशित होता है। यह अभिमध्य अंसीय तंत्रिका (medial pectoral nerve) द्वारा तंत्रिकाप्रेरित होता है। इसका कार्य अंसफलक को छाती की दीवार के सामने मजबूती से पकड़कर स्थिर करना है। | 1491340 | {
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उरोस्थि या स्टर्नम (Sternum या ब्रेस्टबोन, Breastbone) छाती के मध्य भाग में स्थित एक लंबी चपटी हड्डी है। यह उपास्थि के माध्यम से पर्शुकाओं से जुड़ता है और पसली पिंजर के सामने का निर्माण करता है, इस प्रकार हृदय, फेफड़ों और प्रमुख रक्त वाहिकाओं को चोट से बचाने में मदद करता है। मोटे तौर पर नेकटाई के आकार की यह शरीर की सबसे बड़ी और सबसे लंबी चपटी हड्डियों में से एक है। इसके तीन क्षेत्र मुष्टि (manubrium), काय और Xiphoid उरोस्थि पत्रक. | 1491345 | {
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हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न एक तरह का सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न है जो मजबूत अप ट्रेंड के बाद बनता है और यह एक बेयरिश कैंडलस्टिक पैटर्न है जो मंदी का इशारा करता है और यह संकेत देता है कि अप ट्रेंड अब कमजोर हो चुका है और यहाँ से डाउन ट्रेंड चालू हो सकता है |
जब किसी कैन्डल में सिर्फ ऊपर की तरफ हल्की बॉडी होती है और उस कैंडलस्टिक के नीचे का विक/शैडो कैन्डल्स्टिक की बॉडी से दोगुनी और उससे ज्यादा होती है | ऐसी कैन्डल को हम हैंगिंग मैन कैंडल कहते हैं |
परंतु अब अगर आप यह सोच रहे हैं की ऐसा कैन्डल हैमर कैन्डल भी होता है तो मैं आपको बताना चाहूँगा हैमर कैन्डल डाउन ट्रेंड के बाद बनता है पर हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न अपट्रेंड के बाद बनता है |
हैंगिंग मैन पैटर्न एक ट्रेंड रीवर्सल पैटर्न है जो ट्रेंड के बदलने का संकेत देता है | यह पैटर्न बुलिश ट्रेंड के बाद बनता है और यह इशारा करता है कि अब शेयर का प्राइस नीचे या सकता है |
हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न का रंग
वैसे हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न में रंग का कोई खास महत्व नहीं होता है, महत्व होता है जगह का जैसे कि कहाँ पर यह पैटर्न बन रहा है | चाहे यह पैटर्न लाल रंग का बने या हरे रंग का यह पैटर्न वैसा ही परिणाम देता है बस आपको कॉन्फर्मैशन का इंतज़ार करना होता है |
शूटिंग स्टार और हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न में अंतर
इस वाले खंड में हम हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न और शूटिंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न के बीच के अंतर और समानता को समझने का प्रयास करेंगे |
अगर बात करें इन दोनों कैंडलस्टिक पैटर्न की समानता की तो इनमे बहुत सारी समानताएं है जैसे कि -
ये दोनों पैटर्न रीवर्सल पैटर्न हैं जो ट्रेंड के बदलने का संकेत देते हैं |
यह दोनों पैटर्न अपट्रेंड के बाद बनते हैं, जिससे पता चलता है कि अब प्राइस नीचे गिर सकता है |
ये दोनों के दोनों पैटर्न एक मजबूत बेयरिश कैंडलस्टिक पैटर्न है, जो मंदी की तरफ इशारा करते हैं |
और रही बात अंतर की तो सबसे बड़ा और सबसे पहला अंतर तो यह है कि ये दोनों पैटर्न दिखने में उलटे होते हैं | | 1491353 | {
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" व्यक्तिवादी पंथ और उसके परिणाम " ( ) जिसे प्रायः" गुप्त भाषण " ( ) कहा जाता है, सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की प्रथम सचिव, सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव की एक रिपोर्ट थी, जो 25 फरवरी 1956 को सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में प्रस्तुत की गयी थी। ख्रुश्चेव के भाषण में हाल ही में मरे महासचिव और प्रधान जोसेफ स्टालिन के शासन की तीव्र आलोचना थी, विशेष रूप से उन शुद्धिकरणों के संबंध में जो विशेष रूप से 1930 के दशक के अंतिम वर्षों को चिह्नित करते थे। ख्रुश्चेव ने स्टालिन पर साम्यवाद के आदर्शों के प्रति समर्थन बनाए रखने के बावजूद व्यक्तित्ववादी नेतृत्व-पंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। यह भाषण इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसी शिन बेट द्वारा पश्चिम में लीक किया गया था, जिसे यह पोलिश-यहूदी पत्रकार विक्टर ग्रेजेवस्की से प्राप्त हुआ था। | 1491403 | {
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हिंडाल गोल राज्य राजस्थान के फलोदी ज़िले का एक गांव (ग्राम पंचायत) है जो बाप तहसील के अंतर्गत आता है।
> यह गांव फलोदी से बीकानेर जाने वाली सड़क NH11 पर स्थित है, जो कि फलोदी व बाप के मध्य स्थित है इन दोनों शहरों से 15 किलोमीटर दूरी है,हिंडाल गोल से रिण व बावड़ी तक डामर रोड जाती है, यहाँ पोस्ट ऑफिस व उप स्वास्थ्य केंद्र व पशु उप स्वास्थ्य केंद्र भी है, यहां मुस्लिम समुदाय के अलावा मेघवाल,भील,व सुथार जाती के लोग भी निवास करते है यहां के लोग राजनीति के चाणक्य है,यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती,पशुपालन,ट्रक, व सोलर ठेकेदारी का है,
हिंडाल गोल जोधपुर जिले में मुस्लिम समुदाय का पॉवरफुल गांव है। मुस्लिम समुदाय में सवर्प्रथम सामाजिक धार्मिक व समाज सुधार के निर्णय इसी गांव से लिये जाते है, जो कि पूरे फलोदी जिले में मिशाल होते है व सर्व मान्य होते है | 1491419 | {
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Muje janna ki bhut pret aana Kya bimari hoti hai Kya doctor isse tikh kar skte hain | 1491456 | {
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श्री गोविन्द गुरु विश्वविद्यालय , गुजरात के गोधरा में स्थित एक राज्य विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 2015 में गुजरात सरकार के श्री गोविंद गुरु विश्वविद्यालय अधिनियम, 2015 द्वारा की गई थी और 2016 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा इसे अनुमोदित किया गया था। इस विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र पूर्वी गुजरात के पंचमहल, महिसागर, दाहोद, छोटा उदयपुर और वडोदरा जिले हैं। इसमें 122 संबद्ध कॉलेज हैं। इसका नाम सामाजिक और धार्मिक सुधारक गोविन्द गुरु के नाम पर रखा गया है।
इन्हें भी देखें
गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय, बाँसवाड़ा
गोविन्द गुरु
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
पंचमहाल ज़िला | 1491457 | {
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Chemical compound
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डाई-अमोनियम फॉस्फेट ( डीएपी ; आईयूपीएसी नाम डाई-अमोनियम हाइड्रोजन फॉस्फेट ; रासायनिक सूत्र (NH 4 ) 2 (HPO 4 ) पानी में घुलनशील अमोनियम फॉस्फेट लवणों की शृंखला में से एक है जो उर्वरक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह अमोनिया फॉस्फोरिक एसिड के साथ अभिक्रिया करने पर उत्पन्न हो सकता है।
ठोस डाई-अमोनियम फॉस्फेट निम्नलिखित अभिव्यक्ति और समीकरण के अनुसार अमोनिया का पृथक्करण दाब दिखाता है:
100 डिग्री सेल्सियस पर, डाई-अमोनियम फॉस्फेट का पृथक्करण दबाव लगभग 5 मिमी पारे के बराबर होता है।
सीएफ इंडस्ट्रीज, इंक. के डायमोनियम फॉस्फेट एमएसडीएस के अनुसार, अपघटन 70 डिग्री सेल्सियस से कम ताप से शुरू होता है: "खतरनाक अपघटन उत्पाद: कमरे के तापमान पर हवा के संपर्क में आने पर धीरे-धीरे अमोनिया खो देता है। लगभग 70 डिग्री सेल्सियस पर अमोनिया और मोनोअमोनियम फॉस्फेट में विघटित हो जाता है। 155 डिग्री सेल्सियस पर, डीएपी फॉस्फोरस ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जित करता है।"
उपयोग
डीएपी का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है। जब पौधे के भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है, तो यह अस्थायी रूप से मिट्टी के पीएच को बढ़ाता है, लेकिन लंबे समय में अमोनियम के नाइट्रीकरण पर उपचारित भूमि पहले की तुलना में अधिक अम्लीय हो जाती है। यह क्षारीय रसायनों के साथ असंगत है क्योंकि इसके अमोनियम आयन के उच्च-पीएच वातावरण में अमोनिया में परिवर्तित होने की अधिक संभावना है। घोल में औसत पीएच 7.5-8 होता है। इसका विशिष्ट सूत्रीकरण 18-46-0 (18% एन, 46% पी 2 ओ 5, 0% के 2 ओ) है।
डीएपी का उपयोग अग्निरोधी के रूप में भी किया जा सकता है। यह सामग्री के दहन तापमान को कम करता है, अधिकतम वजन घटाने की दर को कम करता है, और अवशेष या चार के उत्पादन में वृद्धि का कारण बनता है। जंगल की आग से लड़ने में यह प्रभावशाली हैं क्योंकि पायरोलिसिस तापमान को कम करने और गठित चारे की मात्रा बढ़ाने से उपलब्ध ईंधन की मात्रा कम हो जाती है और आग लगने की स्थिति पैदा हो सकती है। यह कुछ लोकप्रिय वाणिज्यिक अग्निशमन उत्पादों का सबसे बड़ा घटक है और "अग्निरोधी" सिगरेट का घटक है।
डीएपी का उपयोग वाइन बनाने और मीड बनाने में खमीर पोषक तत्व के रूप में भी किया जाता है। इसके अलावा सिगरेट के कुछ ब्रांडों में कथित तौर पर निकोटीन बढ़ाने वाले एक योज्य के रूप में; माचिस में आफ्टरग्लो को रोकने के लिए, चीनी को शुद्ध करने में; सोल्डरिंग टिन, तांबा, जस्ता और पीतल के लिए फ्लक्स के रूप में; और ऊन पर क्षार-घुलनशील और एसिड-अघुलनशील कोलाइडल रंगों की वर्षा को नियंत्रित करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
प्राकृतिक रूप से अस्तित्व
यह यौगिक प्रकृति में अत्यंत दुर्लभ खनिज फॉस्फैमाइट के रूप में पाया जाता है। संबंधित डाइहाइड्रोजन यौगिक खनिज बाइफॉस्फ़ैमाइट के रूप में होता है। दोनों गुआनो जमा (guano deposits) से संबंधित हैं।
बाहरी कडियाँ
अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक सुरक्षा कार्ड 0217
भारत डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा
सन्दर्भ
फास्फेट
अमोनियम यौगिक | 1491477 | {
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भिलट देव भील आदिवासियों के प्रमुख देवता है बड़वानी जिले मे भिलट देव जी का मेला लगता है।
भील लोकगीत
ऊँचो माळो भीलट देव डगमाळ,
टोंगल्यो बूड़न्ती ज्वार।।
काचा सूत की भीलट देव की गोफण,
मालू राणी होर्या टोवण जाई।।
हरमी-धरमी का होर्या उड़ी जाजो,
न पापी को खाजो सगळो खेत।।
संदर्भ | 1491516 | {
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सानु शर्मा () नेपाली भाषा की एक उपन्यासकार, कहानीकार, गीतकार, कवि और लेखिका हैं। उनके सात उपन्यास और एक कहानी संग्रह की पुस्तक प्रकाशित हुए हैं। उनकी कहानीयों का संग्रह एकदेश्मा को 2018 में मदन पुरस्कार पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।
प्रारंभिक जीवन
सानु शर्मा का जन्म काठमाडौं का प्रसूति गृह नामक सरकारी अस्पताल में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन का बाल्यकाल नेपाल के काठमाडौं और तराई में समान रूप से बिताया।
साहित्यिक गतिविधियाँ
सानु शर्मा ने 2003 में अपना पहला उपन्यास अर्धविराम प्रकाशित किया, और जीतको परिभाषा नामक दूसरा उपन्यास, 2010 में प्रकाशित किया। उन्होंने 2011 में अपना तीसरा उपन्यास अर्थ प्रकाशित किया।
वर्ष 2017 में, शर्मा ने अपना चौथा उपन्यास विप्लवी प्रकाशित किया; और 2018 में उन्होंने अपनी पांचवी पुस्तक और पहली कहानी संग्रह एकदेश्मा प्रकाशित की। एकदेश्मा ने अधिक पाठकों और समीक्षकों के द्वारा प्रशंसा प्राप्त की। इसके बाद, यह पुस्तक नेपाली साहित्य के लिए सबसे बड़े पुरस्कार माने जाने वाले मदन पुरस्कार के लिए नामांकित की गई।
एकदेश्मा की सफलता के बाद, शर्मा ने 2021 में अपना पांचवा उपन्यास उत्कर्ष और छठा उपन्यास फरक प्रकाशित किए। सितंबर 2023 में, उन्होंने अपनी आठवीं पुस्तक और सातवाँ उपन्यास ती सात दिन को रत्न पुस्तक भंडार से प्रकाशित किया।
सानु शर्मा उपन्यासकार और कहानीकार के साथ साथ एक गीतकार और कवि भी हैँ । उन के द्वारा रचित गीत कई संगीतकारों की संगीत में विभिन्न गायक और गायिका द्वारा गाए गए हैं । मूल रूप से नेपाली भाषा में लिखी हुई उनकी कविताएँ अंग्रेजी के साथ साथ और भाषाओं में अनूदित हो के विभिन्न जगह से प्रकाशित हुई है ।
ग्रंथ सूची
उपन्यास
अर्धविराम
जीतको परिभाषा
अर्थ
विप्लवी
उत्सर्ग
फरक
ती सात दिन
कहानी संग्रह
एकदेश्मा
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आँखा रसाउने उत्सर्ग
लेखक
उपन्यासकार
कहानीकार
नेपाली साहित्यकार
साहित्यकार
कवि
नेपाली कवि
गीतकार
जीवित लोग | 1491536 | {
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टम्टा- ताम्रपत्र शिल्पकार
परिचय
तांबे के बर्तन की कलाकृति उत्तराखंड के अल्मोडा में टम्टा समुदाय का पारंपरिक शिल्प है। बरसों पहले उत्तराखंड तांबे के अयस्कों में समृद्ध था, जिसका खनन गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों में किया जाता था। तांबा जो स्थानिय रूप से इस क्षेत्र में प्राप्त किया जाता था शुरू में राजवंशों के लिए सिक्के बनाने के लिए उपयोग किया जाता था। बाद मे इसका उपयोग हाथ से पीते गए ताम्बे के बर्तन और संगीत वाद्ययंत्रों को बनाने के लिए किया जाने लगा। खदानें बंद होने के बाद, ताम्रकार समुदाय ने पारम्परिक शिल्पों को बनाना जारी रखा और इसके कारण इस समुदाय को टम्टा नाम से जाने जाना लगा।
मूल
टम्टा शिल्प की उत्पत्ति का पता 16वीं शताब्दी इसवी में लगया जा सकता है, जब राजस्थान क्षेत्र के चंद्रवंशी कबिले पहाड़ी राज्य के चंपावत क्षेत्र में चले गए थे ।चंपावत के पारंपरिक तांबा लोहार ,जो मूल रूप से राजस्थान के थे , टम्टा को राज्य के खजाने के लिए तांबे के सिक्के डालने के लिए अल्मोड़ा के शाही दरबार में लगाया था। इसलिए 500 साल पहले टम्टा कुमाऊं में चंद राजवंशी के शाही खजाने के लिए सिक्के बनाने वाले थे । जब चन्द्र शशकों ने अपनी राजधानी को चम्पावत के अल्मोडा स्थानान्तरित किया तो औपनिवेशिक शासन के दौरन में शिल्प का और भी विकास हुआ चंद राजवंश के शासन काल के बाद,जो 1744 म घटना शुरू हुआ और 1816 में समाप्त हुआ, टम्टा ने तांबे के बर्तन और सजावट सामान बनाना शुरू कर दिया।
प्रक्रिया
ताम्बे से बने विशिष्ठ घरेलु वस्तुओं मे खाना पकाने के बर्तन और जल भण्डारण कंटेनर शामिल हैं। विशेष रूम से, ताम्बे के बर्तनों को इसके स्वस्थ लाभों के लिए भी काफी पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त , उनका उपयोग ढोल (एक ताल वाद्य) और रणसिंघा (त्योहारों और अनुष्ठानों मे उपयोग किये जाने वाला एक अस-आकर की चढ़ाई जैसा संगीत वाद्ययंत्र) बनाने के लिए किया जाता है।
तांबे के बर्तन बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कारीगर धातु की शीट पर कम्पास का उपयोग करके एक वृत्त बनता है और बाकी शीट से काट देता है
हथौड़े का उपयोग करके वह कट आउट शीट को पीट कर उपयोग करें एक अर्ध गोलाकर आकार देता है जो बार्टन का आधार बनेगा
फिर धातु को भट्टी में गर्म करके नरम किया जाता है ,जैसे शिल्पकार के लिए वास्तु बनाना आसान हो जाएगा
भट्टी से निकलने के बाद शिल्पकार द्वारा धातु को हथौड़े से आकार दिया जाता है। एक प्रसिद्ध शिल्पकार हथौड़े से टकराने वाली धातु की आवाज सुनकर बता सकता है कि वाह उचित तकनिक का प्रयोग कर रहा है या नहीं।
बार्टन से सभी घटक एक ही तरह से बनते हैं ,जब प्रतीक घटक पूरा हो जाता है तो इसे एक साथ जोड़ दिया जा,ता है और जोड़ों को दबाने के लिए भट्टी में वापस रख दिया जाता है
तांबे के बर्तन अपने लाल रंग और चमक से अलग पहचानने जाते हैं ऐसा करने के लिए तांबे के उत्पाद को साफ और पॉलिश करने के लिए इमली और रेत का उपयोग किया जाता है
पारंपरिक डिजाइन और रूपांकन
तमता तांबे के बर्तन शिल्प का केवल स्थान और धार्मिक महत्व ही नहीं होता बाल्की कांवड, लोटा, बर्तन, थाली जैसी अन्य उपयोगी वस्तुएं, जो ना केवल दैनिक उपाय के लिए होती है बाल्की इनका प्रयोग धार्मिक योजनाओं और पूजा में भी उपयोग किया जाता है।विविध प्रकार के दीपक, पूजा वस्तुएं और देवी देवताओं की मूर्तियां बनाना भी शिल्प का हिस्सा है।
तांबे के बर्तन अपने विस्तार और मनमोहक डिजाइन के लिए जाने जाते हैं जो प्रकृति, पौराणिक कथाएं और स्थानीय मान्यताओ से प्रेरणा लेते हैं।पुष्प रूपनकानो,ज्योतिमियापैटर्न और देवी देवताओं के चित्र शिल्प के आम विषय हैं। ये डिज़ाइन ना केवल सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन करते हैं बाल्की संस्कृति और धार्मिक महत्व भी रखते हैं।
चुनौतियाँ और पुनरुद्धार प्रयास
कई पारंपरिक शिल्प की तरह शिल्प को बदलती जीवन शैली, शहरीकरण और बड़े पैमाने पर उत्पत्ति विकल्प की समस्या के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।परिणामस्वरुप, हस्तनिर्मित तांबे के बर्तन की मांग कम हो चुकी है। बदलते समय विश्वासों की परिवर्तनशीलता और आर्थिक कारणों से तमता तांबे के बर्तन शिल्प को कथाइन का सामना करना पड़ा है। आधुनिकीकरण की दिशा में बदलती जीवन शैली, स्थानिय शिल्पकला की मांग में कमी, और विभिन्न उत्पादनों के निर्माण में मशीनों का उपयोग, इन सभी कारणों ने शिल्प को प्रभावित किया है।
इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए, शिल्प को बढ़ावा देने और पुनर्जीवन करने के लिए विभिन्न पहल की गई हैं।सरकारी निकाय ,गैर लाभकारी संगठन और सांस्कृतिक संस्थानों ने तमता तांबे के बार्टन की सुंदरता और मूल्य को प्रदर्शित करने के लिए कार्यशाला, प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रदर्शिनी का आयोजन किया है।इन प्रयासों का उपदेश कारीगरों और उपहारों के बीच शिल्प में नए सिरे से रुचि पैदा करना है। इस पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करने और इसका संवर्धन करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठन के द्वार काई पहलू काम किए गए हैं। कार्यशाला में शिल्पकारो का प्रशिक्षण और उत्पादन के बिक्री का माध्यम बन गए हैं ताकि शिल्प को एक बड़े दर्शक मंच तक पहुंचाया जा सके।
निष्कर्ष
टम्टा द्वार बना दिए गए तांबे के ची
जो को बढ़ावा देना न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना है बलकी सतत विकास में भी योगदान देना है।जब सामुदायिक शिल्प में संलग्न होता है, तो यह अक्सर स्थानीय रोजगार के अवसर भुगतान करता है, कारीगरों की आजीविका का समर्थन करता है और संसाधानों के जिम्मेदार उपयोग को प्रोत्साहित करता है। टम्टा कॉपर वेयर शिल्प ना केवल एक कला का रूप है बाल्की यह उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान और धरोहर का प्रतीक भी है। यह समुदय की कला, सांस्कृतिक मूल्य और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है और उनके संबंधों को जमीन से जोड़ता है।
यह शिल्प सांस्कृतिक पर्यटन की संभावना रखता है। क्षेत्र के पर्यटन तांबे के कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया का अनुभव कर सकते हैं, कारीगरों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं और प्रमाणिक टुकड़े खरीद सकते हैं। हाँ बात-चीत कारीगरों और उनके समुदाय को प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है। साथ ही पारंपरिक शिल्प के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरुकता भी बढ़ सकती है।निष्कर्षतः , टम्टा कॉपर वेयर क्राफ्ट सिर्फ एक पारम्परिक कला का स्वरुप से कई अधिक है, यह एक समुदाय की पहचान , इतिहास और रचनात्मकता का प्रतिबिम्भ है। इस शिल्प को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास न केवल सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने के लिए बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्थओं को समर्थन करने और उनके समुदाय के बीच गर्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक है। | 1491555 | {
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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र एक हिंदू स्तोत्र है। जो 21 छंदों से युक्त है,इस स्त्रोत में माँ भगवती के कार्य अथवा सर्वोच्च देवी महादेवी का एक प्रमुख पहलू और उनके स्वरूपों का वर्णन है और असुर महिषासुर का संघार के कारण भक्तो द्वारा उनका गुणगान करने के लिए इसका पाठ किया जाता है।
व्युत्पत्ति
महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का एक विशेषण है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, "राक्षस महिष का वध करने वाली",और स्तोत्र एक स्तुतिात्मक कार्य है।
विवरण
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता का श्रेय धर्मशास्त्री आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। यह भजन देवी महात्म्य पाठ पर आधारित है,जिसमें देवी दुर्गा की कई किंवदंतियों का संदर्भ दिया गया है जैसे कि महिषासुर, रक्तबीज, साथ ही चंड और मुंड का वध, साथ ही आम तौर पर उनके गुणों की प्रशंसा की गई है।
देवी महात्म्य के अनुसार, महिषासुर वध नामक पौराणिक कथा में,महिषासुर के नेतृत्व में असुरों द्वारा देवताओं को निष्कासित करने और स्वर्ग पर कब्ज़ा करने से क्रोधित होकर, देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति (सर्वोच्च त्रिमूर्ति) ने अपनी ऊर्जाओं को संयोजित किया, जिससे दुर्गा नामक देवी का रूप धारण किया। देवताओं के हथियारों और गुणों से लैस, दुर्गा ने आकार बदलने वाले महिषासुर को मार डाला, जिसने शेर, हाथी, भैंस और अंत में एक आदमी का रूप धारण किया। उन्हें देवताओं द्वारा आदिम प्राणी और वेदों की उत्पत्ति के रूप में महिमामंडित किया गया था। उनके भजनों से प्रसन्न होकर, देवी ने देवताओं को खतरे का सामना करने पर मुक्ति का वादा किया।
पाठ
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है- :
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
सन्दर्भ
शाक्त सम्प्रदाय
हिन्दू मंत्र | 1491636 | {
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भिलाली भारत में बोली जाने वाली एक भील भाषा है। इसकी तीन उपबिलियाँ हैं -भिलाली (मुख्य), रथवी तथा पर्या भिलाली। भिलाली और रथवी काफी मात्रा में परस्पर समझ में आने योग्य हैं। परया भिलाली, भिलाली (मुख्य) से अधिक दूर है, लेकिन इसे एक बोली के रूप में माना जाता है।
बाहरी कड़ियाँ
भिलाली लोकगीतों में कृषक जीवन
संदर्भ
भारत की भाषाएँ | 1491657 | {
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भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन वे आंदोलन हैं जो पुनर्जागरण के दौरान तथा बाद में भारत के किसी भाग में या पूरे देश में सामाजिक या धार्मिक सुधार के लिए चलाए गए। इनमें ब्रह्म समाज आर्य समाज, प्रार्थना समाज, सत्य-शोधक समाज, एझाबा आंदोलन, दलित आंदोलन आदि प्रमुख हैं।
पृष्ठभूमि
ज्यों ज्यों एक समाज या राष्ट्र प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है उसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी कमियों को दूर करे। सामाजिक धार्मिक कुरीतियों और रूढ़ियों को दूर करना ही राष्ट्र को विकसित और प्रगति उन्मुख बना सकता है।
ब्रिटिश काल में जब भारतीय जनमानस अंग्रजों की दासता से बेचैन होने लगा तब भारतीय बुद्धिजीवियों ने यह महसूस किया कि दासता की बेड़ियों से मुक्त होने की लड़ाई में यह आवश्यक है की हम अपने भीतर को कमजोरियों को दूर करें। खुद को सामाजिक धार्मिक दृष्टि से परिष्कृत करें ताकि अंग्रजों के विरुद्ध युद्ध में हम मजबूती से मुकाबला कर सकें।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में अठारहवीं सदी के अंतिम और उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों की एक पूरी श्रृंखला शुरू हुई जिसका काफी अहम परिणाम भारतीय स्वतंत्रता के रूप में मिला।
ब्रह्म समाज
ब्रह्म समाज आंदोलन भारतीय समाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों में अग्रगण्य स्थान रखता है। ब्रह्म समाज को उत्पत्ति १८१५ में आत्मीय सभा के रूप में हुई जो १८२८ में ब्रह्म समाज के रूप में परिवर्तित हो गई।ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय और द्वारकानाथ टैगोर थे। आगे चलकर देवेंद्रनाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन ने समाज को आगे बढ़ाया। दोनो में आपसी मतभेदों के चलते समाज में दरार आ गई और केशव चंद्र सेन ने १८६६ में भारतवर्ष ब्रह्म समाज की स्थापना की।
ब्रह्म समाज ने वेदों और उपनिषदों की महत्ता को एक बार फिर से स्थापित किया। इसने एकेश्वरवाद और आत्मा की अमरता की बात की।
ब्रह्म समाज के प्रयासों का ही परिणाम था कि सन् १८२९ में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर पाबंदी लगा दी और गैरकानूनी बना दिया। इसके अलावा समाज ने पर्दा प्रथा और बाला विवाह के खिलाफ भी समाजिक जागृति लाने का काम किया। परिणामस्वरूप जाति धर्म का भेद कम हुआ और महिलाओं की स्थिति में सुधार आए।
आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापना सन् १८७५ में तत्कालीन बॉम्बे में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी।
आर्य समाज आंदोलन हिंदू धर्म पर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के विरुद्ध एक प्रतिक्रियावादी आंदोलन था। आर्य समाज का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
आर्य समाज वैदिक परंपराओं में विश्वास करता है।यह मूर्ति पूजा,अवतारवाद, बलि, कर्मकांड, अंधविश्वास ,छुआछूत और जातिगत भेदभाव का विरोध करता है और संसार के उपकार को ही अपना उद्देश्य मानता है।
उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में आर्य समाज दो धड़ों में बंट गया। एक धड़ा पाश्चात्य शिक्षा का समर्थक था वहीं दूसरा धड़ा स्वदेशी शिक्षा का। पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में लाला लाजपत राय और लाला हंसराज जैसे सुधारक थे जिन्होंने डीएवी नाम से शिक्षण संस्थान शुरू किए। प्राच्या शिक्षा के समर्थकों में प्रमुख स्वामी श्रद्धानंद थे जिन्होंने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की थी।
आर्य समाज ने शिक्षा, समाज सुधार और राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।
स्वदेशी आंदोलन, हिंदी सेवा विशेषतः देवनागरी का विकास आर्य समाज की प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं।
रामकृष्ण मिशन
रामकृष्ण मिशन स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम पर उनके परम शिष्य विवेकानंद के द्वारा स्थापित एक संस्था है जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में सुधार लाना था।इसकी स्थापना सन् १८९७ में की गई थी।पश्चिम बंगाल के कोलकाता के समीप बेलूर में इसका मुख्यालय है।
रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य नव वेदान्त का प्रचार प्रसार करना है। यह मानव की सेवा को ही परोपकार और योग मानता है जो कि एक महत्वपूर्ण भारतीय दर्शन है।
== सत्यशोधक समाज' ==
सत्यशोधक समाज की स्थापना महात्मा ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र के पुणे में २४ सितंबर १८७३ को की थी। सत्यशोधक समाज का उद्देश्य दलित और महिला वर्ग के शैक्षणिक स्तर और और उनके समाजिक अधिकारों में सुधार लाना था। ज्योतिबा फुले की पत्नी सावित्रीबाई फुले समाज की महिला शाखा की अध्यक्ष थी।
सावित्रीबाई फुले को भारत की प्रथम शिक्षिका के तौर पर भी याद किया जाता है।
सत्यशोधक समाज की विचारधारा सार्वत्रिक अधिकारों का सिद्धांत ने गैर ब्राह्मण आंदोलन को गहराई से प्रभावित किया जिसका प्रभाव आगे के वर्षो में किसान आंदोलनों पर भी परिलक्षित हुआ।
सन् १९३० के करीब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में समाज के सदस्यों के शामिल हो जाने से समाज भंग हो गया।
प्रार्थना समाज
प्रार्थना समाज हिंदू समाज के बौद्धिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान हेतु स्थापित की गई एक संस्था थी जिसका उद्देश्य भारतीय समाज पर पाश्चात्य शिक्षा और क्रिस्चन मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव को रोकना था।
प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पांडुरंगने १८६७ में बॉम्बे में की थी। समाज के अन्य प्रमुख सदस्यों में वासुदेव नौरंगे और महादेव गोविंद रानाडे जैसे प्रमुख लोग शामिल थे।
प्रार्थना समाज सेवा और प्रार्थना को ईश्वर को पूजा मानता है ।उपनिषद और भगवद गीता समाज की शिक्षा के आधार हैं।
प्रार्थना समाज ने बाल विवाह, मूर्ति पूजा, जाति प्रथा जैसी रूढ़ियों के खिलाफ व्यापक कार्य किए। इसके प्रयासों का ही परिणाम था कि १८८२ में आर्य महिला समाज की स्थापना हुई।सन १८७५ में पंढरपुर में बाबजी नौरंगे बालकशाश्रम की स्थापना की गई।१८७८में पहला रात्रि विद्यालय खोला गया।शिक्षा के क्षेत्र में प्रार्थना समाज का योगदान सराहनीय हैं।
प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत निम्नलिखित हैं :
ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का रचयिता है।
ईश्वर की आराधना से ही इस संसार और दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा, उसमें अनन्य आस्था-प्रेम, श्रद्धा, और आस्था की भावनाओं सहित आध्यात्मिक रूप से उसकी प्रार्थना और उसका कीर्तन, ईश्वर को अच्छे लगने वाले कार्यों को करना-- यह ही ईश्वर की सच्ची आराधना है। मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करना, ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है।
ईश्वर अवतार नहीं लेता और कोई भी एक पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो, अथवा जो पूर्णतः दोष-रहित हो।
सेवा सदन
पारसी समाज सुधारकहेहरामजमलबाबारी ने सेवा सदन की स्थापना अपने साथी दयाराम गिदुमल के साथ १९०८ में की।इन्होंने बाल विवाह के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में पुरजोर आवाज उठाई।
इन्ही के प्रयासों का नतीजा था कि सहमति की उम्र कानून बना जिसने महिलाओं के लिए सहमति देने को अनिवार्य कर दिया। सेवा सदन ने शोषित और समाज से तिरस्कृत महिलाओं के देख देख में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत धर्म महामंडल
रूढ़िवादी शिक्षित हिंदुओं का अखिल भारतीय स्तर पर यह संगठन रूढ़िवादी हिंदुत्व की रक्षा के लिए प्रयासरत था जिसका उद्देश्य आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन और थियोसोफिकल सोसायटी जैसे संगठनों के प्रभावों को रोकना था।
भारत धर्म महामंडल की उत्पत्ति १९०२ में तब हुई जब सनातन धर्म सभा, धर्म महा परिषद और धर्म महामंडली जैसी संस्थाओं ने साथ आना तय किया।
इसके प्रमुख कार्यों में हिंदू शैक्षणिक संस्थानों का संचालन शामिल था।पंडित मदन मोहन मालवीय इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे।
श्री नारायण धर्म परिपालन आंदोलन
शोषित और शोषक वर्ग के टकराव से उत्पन्न एक क्षेत्रीय आंदोलन का उदाहरण है यह आंदोलन।इसकी शुरुआत श्री नारायण गुरु द्वारा केरल के एझावा समुदाय के लोगों के बीच किया गया जो कि अछूत माने जाते थे और मंदिरों में प्रवेश से वंचित रखे जाते थे।
श्री नारायण गुरु ने यह साबित किया की ईश्वर की आराधना उच्च वर्ण के लोगों का एकाधिकार नहीं था।
युवा बंगाल आंदोलन
१८२० - ३० के दशकों में बंगाल के युवाओं में एक उग्र, बुद्धिवजीवी धारा का विकास हुआ जिसे युवा बंगाल आंदोलन के नाम से जाना गया । इसकी शुरुआत कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में पढ़ाने वाले आंग्ल भारतीय हेनरी विवियन डीरोजियो ने की थी।
इसका उद्देश्य लोगों को मुक्त और विवेकपूर्ण रूप से सोचना, सत्ता से सवाल करना, स्वतंत्रता, समानता और आजादी से प्रेम करना और रूढ़ियों का विरोध करना सीखाना था।
डीरोजिओ को बंगाल में आधुनिक सभ्यता के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।
स्वाभिमान आंदोलन
स्वाभिमान आंदोलन की शुरूआत १९२० के मध्य में श्री रामास्वामी नायकर द्वारा की गई। आंदोलन का लक्ष्य ब्रह्मण धर्म और संस्कृति को नकारना था क्योंकि ब्रह्मण धर्म को वह निम्न वर्णों के शोषण का औजार मानते थे।
ब्राह्मणों की प्रभुसत्ता को चुनौती देने के लिए उन्होंने बगैर ब्राह्मण के शादी करने को बढ़ावा दिया।
स्वाभिमान आंदोलन का उख्य उद्देश्य ही जातिगत भेदभाव को दूर करना था।
मंदिर प्रवेश आंदोलन/ वायकॉम सत्याग्रह
मंदिर प्रवेश की दिशा में पहले ही नारायण गुरु और कुमारन असन जैसे लोगों ने महत्वपूर्ण काम किया था। आगे चलकर टी.के. माधवन ने ट्रावनकोर प्रशासन के समक्ष ये मुद्दा उठाया। इसी बीच ट्रावनकोर के हिस्से वायकॉम में इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया।
१९२४ में के. पी. केशव के नेतृत्व में शुरू किए वायकॉम सत्याग्रह में हिंदू मंदिरों और सड़कों को अछूतों के लिए खोलने की मांग की गई। त्रावणकोर के राजा के राज्य में अछूतों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। इसके खिलाफ यह आंदोलन शुरु हुआ।
१९३१ में पुनः केरल में मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया गया। के. केलाप्पन की प्रेरणा से सुब्रमण्यम तिरुमंबू ने १६ सत्याग्रहियों के दल का नेतृत्व किया।
अंततः १२ नवंबर १९३६ को ट्रावनकोर के महाराज ने एक घोषनापत्र जारी किया जिसके तहत सारे सरकार नियंत्रित मंदिर सारे हिन्दू के लिए खोल दिए गए।
वहाबी आंदोलन
पश्चिमी प्रभावों के प्रतिक्रियास्वरूप मुस्लिम समाज का यह आंदोलन अरब के अब्दुल वहाब की शिक्षाओं से प्रेरित था। इसने इस्लाम के सच्चे मूल्यों की तरफ लौटने का आह्वान किया।
शाह वलीउल्लाह को शिक्षाओं को आगे चलकर शाह अब्दुल अजीज और सैय्यद अहमद बरेलवी ने लोकप्रिय बनाया और उन्हें एक राजनीतिक आयाम दिया।
भारत को दारुल हर्ब ( काफिरों की भूमि) समझा जाता था और इसे दारुल इस्लाम ( इस्लाम को भूमि) के रूप में बदलने की आवश्यकता थी।
वहाबी आंदोलन ने १८५७ की क्रांति के दौरान ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को भड़काने में अहम योगदान दिया।धीरे धीरे १८७० के करीब ब्रिटिश शक्तियों ने इस आंदोलन का दमन कर दिया।
फराइजी आंदोलन
इस्लामी दीन पर जोर देने वाले इस आंदोलन की शुरूआत हाज़ी शरीयतुल्लाह ने१८१९ में की थी। इसका कार्य क्षेत्र पूर्व बंगाल था।।ढाका बारीसाल आदि इस आंदोलन के मुख्य केंद्र थे।
इसका उद्देश्य इस्लाम में घर कर गई गैर इस्लामी प्रवृतियों को दूर करना था।
१८४० के दशक में हाजी के पुत्र दादू मियां के नेतृत्व में आंदोलन ने क्रांतिकारी रुख अख्तियार कर लिया । फराइजियों ने बहुसंख्यक हिन्दू जमींदारों के शोषण के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह किए।
सन् १८६२ में दादू मियां की मौत के बाद यह सिर्फ धार्मिक आंदोलन के रूप में बचा रहा।
अहमदिया आंदोलन
अहमदिया एक इस्लामी पंथ है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है।इसकी स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने १८८९ में की थी।उदारवादी मूल्यों पर आधारित इस आंदोलन ने खुद को इस्लामिक पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा।
भारतीय मुसलमानों में पश्चिमी उदारवादी शिक्षा का प्रचार प्रसार इसका उद्देश्य था। मानवाधिकार और सहिष्णुता में उनका विश्वास था।
इसने राममोहन राय की तरह संपूर्ण मानवता के लिए सार्वत्रिक धर्म के सिद्धांत को स्वीकार किया।
अलीगढ़ आंदोलन
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत एक उदारवादी आधुनिक विचारधारा के रूप में मुस्लिम आंग्ल प्राच्य महाविद्यालय,अलीगढ़ के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के बीच हुई।
सैयद अहमद खां के विचार में- जब तक विचार की स्वतंत्रता विकसित नहीं होती, सभ्य जीवन संभव नहीं है।'' उनका मानना था कि मुसलमानों का धार्मिक और सामाजिक जीवन पाश्चात्य वैज्ञानिक ज्ञान और संस्कृति को अपनाकर ही सुधारा जा सकता है।
इसके लिए उन्होनें पश्चिमी ग्रंथों का उर्दू में अनुवाद करवाया
इसका उद्देश्य भारतीय मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का प्रचार करना, मुस्लिमों में पर्दा प्रथा, बहुपत्निक प्रथा, दासता,तलाक जैसी समाजिक कुरीतियों को दूर करना था।इनकी विचारधारा कुरान के उदारवादी व्याख्या पर आधारित थी और उन्होंने इस्लामी मूल्यों का आधुनिक मूल्यों से समंजन की कोशिश की।
अलीगढ़ आंदोलन के प्रणेता सर सैयद अहमद खान थे जिन्होंने सन् १८७५ में मुस्लिम आंग्ल प्राच्य महाविद्यालय ( परवर्ती अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की स्थापना की। शीघ्र ही अलीगढ़ मुस्लिम समुदाय के सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान का केंद्र बन गया।
इन्हें भी देखें
हिन्दू धर्मसुधार आन्दोलन
संदर्भ
भारत का इतिहास | 1491672 | {
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अंकुश अनामी भारतीय फैशन उद्यमी हैं, वह वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के संस्थापक व सीईओ के पद पर कार्यरत है। वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम विश्व स्त्तर पर फैशन डिजाइनरों का एक संगठन हैं जिसका कार्य डिजाइनरों को एक पटल पर ला कर उनकी मदद करना हैं। वर्ल्ड डिज़ाइनिंग फ़ोरम के संस्थापक और सीईओ के रूप में वह डिज़ाइन उद्योग को बदलने और दुनिया भर में महत्वाकांक्षी डिजाइनरों को प्रेरित करने में लगे हुए हैं।
जीवन परिचय
अंकुश अनामी का जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था। उनके पिता का नाम अनुराग प्रसाद अनामी व माँ का नाम स्वर्गीय अनीता अनामी हैं। अनामी का विवाह शिल्पी रानी से हुआ व दोनों के 2 बच्चे हैं जिनके नाम सुख अनामी और खुश अनामी हैं। अनामी ने अपनी स्कूली शिक्षा लखनऊ और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एम.बी.ए.) में मास्टर और इंजीनियरिंग (बी.टेक) में स्नातक की डिग्री लेकर पूरी की थी।
कैरियर
वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम की स्थापना वर्ष 2017 में अंकुश अनामी द्वारा की गयी थी। अनामी ने फोरम की स्थापना देश विदेश के डिजाइनरों के हुनर को देखते हुए उन्हें सही मंच देने के उद्देश्य से की थी। अनामी ने फोरम के बैनर से कई ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जिसमे डिजाइनरों को अपनी प्रदर्शनी दिखने का अवसर मिला, यह कार्यक्रम क्षेत्रीय प्रशासन और राज्य स्तरीय सरकार के समर्थन से किये गए थे। अंकुश अनामी ने गोवा में आयोजित हुए विश्व के फैशन डिजाइनर कॉन्क्लेव का आयोजन फोरम के बैनर द्वारा किया जिसमे फैशन डिजाइनिंग के भविष्य को आकार देने के लिए देश के 200 फैशन डिजाइनरों के साथ-साथ 30 से अधिक प्रकार के हस्तनिर्मित कपड़े और 100 से अधिक बुनकरों को आमंत्रित किया था।
फरवरी 2023 में अंकुश अनामी ने वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के बैनर से आगरा के विश्व प्रसिद्द ताज महोत्सव में भी अपनी भागीदारी दर्ज़ कराई और फोरम द्वारा डिजाइन किये गए परिधानों को पहनकर मॉडल्स ने रैंप पर प्रदर्शन किया था। आगरा में ही फोरम द्वारा आगरा युथ फेस्टिवल का आयोजन भी अनामी के सरंक्षण में हुआ जिसमे मिस यूनिवर्स नेहल चुडासमा ने शिरकत की थी।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर अंकुश अनामी
इंस्टाग्राम पर अंकुश अनामी
भारतीय उद्यमी
जीवित लोग
उद्यमी
भारत के लोग | 1491674 | {
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परिचय
खार, असमिया व्यंजनों का एक सदियों पुराना घटक है, जो संस्कृति के भीतर एक उल्लेखनीय इतिहास और विविध भूमिका रखता है। गहरे भूरे रंग और विशिष्ट कसैले गंध वाला यह तरल, पूर्वोत्तर भारत के व्यंजनों में एक सर्वोत्कृष्ट तत्व है। यह न केवल क्षेत्र के अनूठे स्वादों में योगदान देता है, बल्कि रीति-रिवाजों, रीति-रिवाजों और पारंपरिक प्रथाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऐतिहासिक महत्व
नमक का विकल्प :
ऐसे युग में जब असम के भौगोलिक अलगाव के कारण नमक दुर्लभ था, खार एक रचनात्मक विकल्प के रूप में उभरा। केवल सीमित मात्रा में नमक तक पहुंच के कारण, अमीर लोग अक्सर एकमात्र लाभार्थी होते थे। विकल्प के रूप में खार की भूमिका असमिया समाज की संसाधनशीलता और अनुकूलन क्षमता को दर्शाती है। नमक खदानों के आसपास सत्ता संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसके आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए, घटक की कहानी में जटिलता की एक परत जोड़ती है।
पाककला विरासत :
खार का संदर्भ योगिनी तंत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में पाया जा सकता है, जो इस क्षेत्र की पाककला विरासत में इसकी दीर्घकालिक उपस्थिति को उजागर करता है। आज भी, ग्रामीण बोडो परिवारों में, सब्जियों और मांस को पकाने के लिए सामान्य नमक की तुलना में तरल खार को प्राथमिकता दी जाती है। खार की शक्ति सीधे पकवान के स्वाद से जुड़ी होती है, जो असमिया व्यंजनों के अनूठे स्वाद को आकार देने में इसकी अभिन्न भूमिका को दर्शाती है।
तैयारी और उपयोग
प्राचीन तकनीक :
खार मुख्य रूप से पके भीम कोल केले के छिलके की राख से तैयार किया जाता है। इन छिलकों को धूप में सुखाकर भंडारित किया जाता है, जिससे खार उत्पादन का आधार बनता है। फिर राख को रात भर शुद्ध पानी में भिगोया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कसैले सुगंध वाला गहरा भूरा तरल निकलता है। जंगली केले की प्रजाति, मूसा बाल्बिसियाना का उपयोग, क्षेत्र की स्वदेशी सामग्री और पारंपरिक पाक विधियों को प्रदर्शित करता है।
पाककला और औषधीय अनुप्रयोग :
खार की बहुमुखी प्रतिभा रसोई से परे तक फैली हुई है। केले के पेड़ की राख से प्राप्त खार का उपयोग अपने जीवाणुरोधी और एंटीसेप्टिक गुणों के कारण खाना पकाने और सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था। सर्दी और खांसी के दौरान, शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने के लिए इसका सेवन किया जाता था और शरीर पर लगाया जाता था। इसके अलावा, पपीते की राख से बने खार का उपयोग कपड़े, बाल और कुछ बर्तनों के लिए डिटर्जेंट के रूप में किया जाता था।
सांस्कृतिक महत्व
रीति-रिवाज :
खार पाक संबंधी सीमाओं को पार कर जाता है और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ जुड़ जाता है। इसका निर्माण एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया है, जिसकी देखरेख अक्सर अनुभवी कुलपतियों द्वारा की जाती है जो इसे परिश्रम के साथ अपनाते हैं। कार्तिक और अहिन के महीने को खर उत्पादन के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है, जो मौसमी लय और परंपराओं से इसके संबंध को रेखांकित करता है।
असमिया क्षारीयता :
असमिया व्यंजनों की विशिष्ट क्षारीयता इसे अन्य भारतीय व्यंजनों से अलग करती है। खार की क्षारीय प्रकृति इस भेद के पीछे प्रेरक शक्ति है। यह विशेष गुण न केवल स्वाद में बल्कि असमिया व्यंजनों के पोषण मूल्य में भी योगदान देता है, जो क्षेत्र की पाक पहचान में खार की अभिन्न भूमिका का उदाहरण है। | 1491693 | {
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उमर यामाओका (जन्म: 7 मार्च 1880 -1959) जिन्हें मित्सुतारो यामाओका के नाम से भी जाना जाता है, एक जापानी इस्लामी और यहूदी विद्वान थे जिन्हें मक्का के पहले जापानी हज के तीर्थयात्री होने के लिए जाना जाता था।
जीवनी
यामाओका का जन्म फुकुयामा, हिरोशिमा प्रान्त, जापान में हुआ था।
यामाओका ने टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में रूसी का अध्ययन किया। वह रूस-जापान युद्ध|रुसो-जापानी युद्ध में एक सैन्य स्वयंसेवक बन गए और 1905 में विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की
1909 में, यामाओका की मुलाकात अब्दुर्रेशिद इब्राहिम से हुई। मुंबई प्रवास के दौरान इब्राहिम ने उन्हें इस्लाम अपनाने की सलाह दी। उन्होंने इस्लाम अपना लिया और उनके साथ मक्का की तीर्थयात्रा पर गए, जिससे वे मक्का जाने वाले पहले जापानी हज तीर्थयात्री बन गए। मक्का के बाद, यामाओका ने माउंट अरारत, मदीना, दमिश्क, जेरूसलम, काहिरा और इस्तांबुल का भी दौरा किया। वह 1910 में रूस के रास्ते जापान लौट आये
यामाओका ने 1912 में "अरेबियन लॉन्गिट्यूडिनल रिकॉर्ड्स" शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसे मीजी सम्राट और महारानी शोकेन से आग्रह किया गया था। उन्होंने इस्लाम के बारे में लेख भी लिखे और कुरआन के कुछ हिस्सों का अनुवाद भी किया।
1923 में, यामाओका एक साल के लिए काहिरा चले गए, फिर तीन साल के लिए इस्तांबुल चले गए, और 1927 में जापान लौट आए।
23 सितंबर 1959 को यामोका की वृद्धावस्था में मृत्यु हो गई।
इन्हें भी देखें
विश्व में इस्लाम धर्म
संदर्भ
१९५९ में निधन
1880 में जन्मे लोग
इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
लेखक
अनुवादक
टोक्यो | 1491701 | {
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हिमांशु सिंघल एक भारतीय उद्यमी, टीवी प्रेसेंटर, प्रधान संपादक, लाइव ब्रॉडकास्टर व मार्केटिंग प्रचार प्रसार विशेषज्ञ हैं। उन्हें डिजिटल मार्केटिंग, लीडरशिप, स्ट्रैटेजिक प्लानिंग, कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस, पब्लिक रिलेशंस, क्रिएटिव डायरेक्शन, कंटेंट मार्केटिंग और स्टोरीटेलिंग में दो दशकों से अधिक का अनुभव है। वह इलेक्ट्रिक वाहन, ऑटोमोबाइल, लक्ज़री, लाइव ई-कॉमर्स, डिजिटल तथा वीडियो न्यूज़ मीडिया, टेलीविज़न और शिक्षा के क्षेत्रों में टॉप मैनेजमेंट लीडर के रूप में सफलतापूर्वक काम कर चुके हैं।
जीवन परिचय
हिमांशु सिंघल का जन्म नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने रॉयल एनफील्ड, ओकिनावा, आईशर मोटर्स, सैमसंग, चेल, कोंडे नस्ट अमेरिका में लाभदायक बिज़नेस यूनिट्स का नेतृत्व करके खुद को एक उद्यमी और मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी और ब्रांड एक्सपर्ट के रूप में साबित किया है। इसके अलावा हिमांशु सिंघल नेटवर्क 18, सीएनएन, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे ग्रुप, ज़ी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट और हिंदुस्तान टाइम्स जैसी प्रतिष्ठित मीडिया कम्पनीज़ में टॉप मैनेजमेंट एग्जीक्यूटिव, पत्रकार, प्रधान संपादक, और लाइव टीवी ब्रॉडकास्टर रह चुके हैं। वह बतौर लेखक, संपादक और पत्रकार इंडिया टुडे, बिज़नेस टुडे, मेल टुडे, गोल्फ डाइजेस्ट, और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्लेटफार्म पर लिखकर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। हिमांशु की गिनती भारत के सबसे प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ टीवी प्रस्तुतकर्ताओं में से होती है। टीवी और यूट्यूब जैसे डिजिटल मंचों पर उन्हें खेल, मनोरंजन व व्यापार जगत की खबरों को प्रस्तुत करते हुए देखा जा सकता है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
यूट्यूब
इंस्टाग्राम पर हिमांशु सिंघल
ट्विटर पर हिमांशु सिंघल
भारतीय पत्रकार
नई दिल्ली के लोग
जीवित लोग
भारत के लोग
भारतीय स्तंभकार | 1491707 | {
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महिमावान मडफा क्षेत्र हिन्दू एवं जैन संस्कृति की संगम स्थली है तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थान है जो पर्वत पर स्थित है।
इतिहास
चित्रकूट के सन्निकट स्थित मड़फा पुरातनकाल से ही ऋषि-मुनियों का प्रिय तपोवन रहा है। विविध पुराणों के अनुसार यहाँ श्रृष्टि कालीन महर्षि भृगु की पुलोमा नामक पत्नी से उत्पन्न उनके पुत्र च्यवन रहा करते थे। यहीं पर विश्वामित्र का स्वर्ग की अप्सरा मेनका से सम्पर्क स्थापित हुआ था। यहाँ यह ध्यातव्य है कि विश्वामित्रों की एक पूरी वंश परम्परा है, जहाँ सभी को विश्वामित्र कहा जाता है। जिन विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को शिक्षा दी थी, वे उन विश्वामित्र के पूर्ववर्ती हैं, जिन्होंने मेनका से सम्पर्क स्थापित कर शकुन्तला को जन्म दिया था। महर्षि मांडव्य के पूर्व यहाँ कई ऋषियों द्वारा तपस्या किए जाने के उल्लेख मिलते हैं किन्तु इस तपोवन को उल्लेखनीय ख्याति मांडव्य द्वारा यहाँ कठोर ताप किए जाने के बाद मिली है।
भौगोलिक संरचना एवं स्थिति
शैल मालाओं से आवृत इस स्थान की आकृति मण्डप के सदृश है। कुछ लोग इसके नामकरण का आधार इसी आकृति को मानते हैं जबकि स्थानीय परम्परा तथा अनेक बुद्धिजीवी मंडव्य का अपभ्रंश मानते हैं। यह स्थान झाँसी मानिकपुर रेलमार्ग पर स्थित भरतकूप रेलवे स्टेशन से लगभग 15 KM तथा इसी रेलमार्ग के बदौसा रेलवे स्टेशन से बघेलाबारी होते हुए लगभग 16 KM दुरी पर स्थित मानपुर के समीपी धरातल पर विन्ध्य पर्वत माला की एक पहाड़ी पर स्थित है।
अक्षांश एवं देशान्तर
Latitude 25.126321
Longitude 80.703566
स्थान की जानकारी
मुख्य प्रवेश द्वार
मानपुर के नजदीक मडफा दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार है जहाँ से दुर्ग में जाने का मार्ग सुगम है। अन्य मार्गों में कुरहू तथा खमरिया से भी दुर्ग में जाने के मार्ग हैं जो थोडे दुर्गम हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।
सीढियां
दुर्ग पर चढ़नेके लिए लगभग 520 सीढियां हैं जो कंक्रीट द्वारा निर्मित हैं।
हांथी दरवाजा
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित दुर्ग में प्रवेश हेतु मुख्य द्वार हांथी दरवाजा है जिसमें नक्काशीदार स्तंभों के ऊपर पत्थर की कड़ी रखकर छत बनाई गई है। सुरक्षा के लिए दरवाजे के दोनों ओर तोप रखकर चलने के लिए दो बुर्ज बने हुए हैं जो वर्तमान में वहीँ नीचे गिरे हुए हैं।
पंचमुखी शिव मंदिर
हांथी दरवाजा के नजदीक मंदिर में नृत्य मुद्रा में गजासुर संहारक शिव की विलक्षण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। काली शिला पर रूपायित इस प्रतिमा में भगवन शिव कुठार, घंटा, डमरू, नरमुण्ड, परशु, धनुष, खप्पर, खेटक, बीज, पूरक आदि आयुध धारण किए हुए हैं।
चन्देलकालीन मंदिर
किले के अन्दर कुटी नमक स्थान के समीप हिन्दू धर्म से सम्बंधित दो चंदेल कालीन मंदिर प्राप्त हैं। बड़ा मंदिर एक भव्य चबूतरे पर निर्मित है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में अर्द्धमंड़प, मंडप, गर्भगृह निर्मित हैं जो वर्तमान में ध्वस्तावस्था में देखे जा सकते हैं। इसके लगभग 12 मीटर की दूरी पर लघु मंदिर ध्वस्तावस्था में है।
मांडव्य ऋषि आश्रम (कुटी)
मांडव्य ऋषि का आश्रम चन्देलकालीन मंदिरों से लगा हुआ है जिसे कुटी के नाम से जाना जाता है जिसमें भैरव-भैरवी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इनके चार हाँथ हैं । दाहिने एक हाँथ में डमरू और दुसरे में बच्चा तथा बाएँ एक हाँथ में लड्डू तथा दूसरे में कुत्ता पकड़े हैं। बड़ी-बड़ी निकले हुई आंखे, चौड़ी नासिका तथा गले में नरमुण्ड माला धारण किए हुए हैं।
स्वर्गारोहण दीघी
आश्रम में जलापूर्ति के लिए स्वर्गारोहण दीघी निर्मित है जो वर्ष भर जल से भरी रहती है, यह कुटी में जलापूर्ति का प्रमुख साधन है।
पापमोचन सरोवर
कुटी के समीप ही ढाल पर पापमोचन सरोवर है जो इस दुर्ग की जलापूर्ति में धार्मिक मान्यता के साथ-साथ बड़ा महत्व रखता है।
शिव एवं नंदी तथा चरण पादुका
पापमोचन सरोवर के समीप ही एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जिसके नजदीक रखी शिलाओं में चरणों के निशान हैं तथा एक प्राचीन तुलसी चौरा बना हुआ है। उत्तर पूर्व दिशा में आंगे बढ़ने पर शिव एवं नंदी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
जैन मंदिर
कुटी से पूर्व दिशा की ओर खमरिया द्वार की ओर लगभग 200 मीटर की दूरी पर 5 जैन मंदिरों का समूह है जिसमे 3 जैन मदिर ही देखे जा सकते हैं। भग्नावस्था में एक मंदिर पूरी तरह से देखा जा सकता है जिसमें गर्भगृह के सामने 16 नक्काशीदार स्तंभों पर आधारित मंडप दर्शनीय है। इन मंदिरों की शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो में निर्मित शैली जैसी है। इस मंदिर के गर्भगृह में महावीर स्वामी की प्रतिमा खण्डित अवस्था में प्रतिष्ठित है। देखे जा सकने वाले 2 अन्य जैन मंदिरों में गर्भ गृह उपलब्ध हैं तथा ये ध्वंश होने के कारण भग्नावस्था में पूरी तरह नहीं देखे जा सकते हैं। 5 जैन मंदिरों के गर्भगृह में मुमिनाथ, चंद्रप्रभा, महावीर, अम्बिका तथा लोकपाल की कलात्मक मूर्तियाँ हैं।
राम नाम गुफा
जैन मंदिरों के आंगे पर्वत की सीमा समाप्त होती है। संकरे रास्ते से नीचे उतरकर गुफा में राम नाम अंकित है जिसे किसी तपस्वी ने बड़ी ही कलात्मक तरीके से लिखा है।
पर्वत की वन्य सम्पदा
लाल बलुआ पत्थर की प्रचुर उपलब्धता के साथ-साथ पर्वत में वन्य सम्पदा भी आबाद है। वन्य सम्पदा में यहाँ धवा, सेज, तेंदू, खैर, रियां, ढाक तथा अन्य वनस्पतियाँ उपलब्ध है जो कांटेदार है तथा औषधीय गुणों से भरपूर हो सकती हैं।
पर्वत का प्राकृतिक सौन्दर्य
पर्वत अपनी वन्य सम्पदा के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से आबाद है पर्वत के पश्चिम में बाणगंगा नदी प्रवाहित होती है तथा नजदीक ही रसिन बांध है एवं धार्मिक एवं दर्शीय पवन तीर्थ चित्रकूट के नजदीक होने के कारण इसकी प्राकृतिक सुन्दरता और बढ़ जाती है। चारों तरफ से पर्वत चोटियों से घिरे होने के कारण यह पर्वत बड़ा ही मनोरम हो जाता है। वर्षा ऋतु में यहाँ पर्वत में मेघों को उतरते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है यह दृश्य पर्यटकों के मन को स्वतः ही आकर्षित कर लेता है। अतएव इस दर्शनीय स्थल पर जो हिन्दू एवं जैन धर्म की संगम स्थली है तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति को दिखाने वाली है में पर्यटकों को आना चाहिए जिससे यहाँ पर्यटन का विकास होगा तथा क्षेत्रीय लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।
MAHIMAVAN MARPHA KSHETR IS A TOURIST PLACE.
References | 1491713 | {
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गण्डदेववर्मन चन्देल (ENG:Gandadeva-varman Chandel) (शासन काल श. 1003- 1035 ई.), भारत के चन्देल राजवंश के एक शासक थे जिन्होंने अपनी राजधानी महोबा, जेजाकभुक्ति (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से शासन किया था। इन्होंने सुबुक्तगीन को पराजित किया था तथा त्रिपुरी के कलचुरी तथा ग्वालियर के कच्छपघात शासक इनके अधीन थे। यह चक्रवर्तीन विद्याधरदेववर्मन के पिता थे।
जानकारी के स्रोत
गण्डदेव द्वारा जारी किए गए कोई शिलालेख उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उनका नाम (गण्ड-देव-वर्मन के रूप में) उनके उत्तराधिकारियों द्वारा जारी किए गए निम्नलिखित शिलालेखों में दिखाई देता है:
महोबा शिलालेख परमर्दिदेववर्मन से बना है
मऊ मदनवर्मन का शिलालेख
अजयगढ़ कीर्तिवर्मन का शिलालेख
भोजवर्मन के शासनकाल के दौरान जारी अजयगढ़ शिलालेख
इन शिलालेखों में गण्डदेव के बारे में जो जानकारी है। उनमें अधिकतर स्तुति वर्णन होते हैं, जैसे उसे अजेय कहना, या यह कहना कि उसके पास "पृथ्वी पर एकमात्र आधिपत्य" था।
राजकाल
गण्डदेव धंगदेववर्मन के बाद चन्देल राजा बना। गण्डदेव के उत्तराधिकारी विद्याधर के बारे में उपलब्ध जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि गण्डदेव अपने विरासत में मिले क्षेत्र को बनाए रखने में कामयाब रहा। मऊ शिलालेख के अनुसार, धनगा के मुख्यमंत्री प्रभास ने अपने उत्तराधिकारी गण्डदेव के शासनकाल के दौरान पद बरकरार रखा। अजयगढ़ शिलालेखों से पता चलता है कि जाजुका नाम का एक कायस्थ गण्डदेव का एक और महत्वपूर्ण अधिकारी था।
हालाँकि, बाद में, विद्याधरदेव वर्मन की रानी सत्यभामा द्वारा जारी एक ताम्रपत्र कुंडेश्वर में खोजा गया था। यह शिलालेख 1004 ई.पू. का है, जिससे सिद्ध होता है कि विद्याधरदेव 1004 ई.पू. में पहले से ही शासन कर रहा था। इसके आधार पर, एस. के. सुलेरे ने गण्डदेव के शासन के अंत की तिथि 1002 ई. बताई।
पहले के कुछ इतिहासकारों का मानना था कि गण्डदेव ने कम से कम 1018 ई.पू. तक शासन किया था। दीक्षित ने धंगदेव की पहचान कलंजरा के राजा से की, जिसने 1008 ईस्वी में पेशावर में महमूद गजनी द्वारा पराजित हिंदू संघ में सैन्य दल का योगदान दिया था। 1018 ई. में, गजनी के महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया, जिसका राजा (संभवतः राजयपाल) शहर से भाग गया, जिससे गजनवी सेना को अधिक प्रतिरोध का सामना किए बिना इसे लूटने की अनुमति मिल गई। फ़रिश्ता (16वीं शताब्दी) जैसे बाद के मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार, खजुराहो के राजा नंददेव वर्मन ने कन्नौज के राजा को उसकी कायरता की सजा के रूप में मार डाला। कुछ ब्रिटिश-युग विद्वानों ने नंद को गण्ड की गलत वर्तनी के रूप में पहचाना। अली इब्न अल-अथिर (12वीं शताब्दी), फ़रिश्ता से पहले के एक मुस्लिम इतिहासकार, ने खजुराहो के राजा का नाम "बिदा" रखा, जो "विद्या" का एक प्रकार है (अर्थात, गण्डदेववर्मन के उत्तराधिकारी विद्याधरदेववर्मन)। बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे "नंदा" के रूप में गलत पढ़ा होगा। इसके अलावा, महोबा में मिले एक शिलालेख में कहा गया है कि विद्याधर ने कन्नौज के शासक को हराया था। इसके आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गण्डदेव का शासन 1018 ई.पू. से कुछ समय पहले समाप्त हो गया, जब उसके उत्तराधिकारी ने कन्नौज के शासक को हराया।
सन्दर्भ
ग्रंथ सूची
Chandelas of Jejakabhukti
11th-century Indian monarchs | 1491762 | {
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ब्रांडिंग पायनियर्स एक भारतीय डिजिटल मार्केटिंग कंपनी है जिसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में है। यह कंपनी ज्यादातर हेल्थकेयर पर काम करती है, कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर हैं।
इतिहास
ब्रांडिंग पायनियर्स भारतीय हेल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग कंपनी हैं इसकी स्थापना साल 2016 में कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर ने की थी। कंपनी हैल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग से जुडी हुयी है ब्रांडिंग पायनियर्स ने विश्व डॉक्टर दिवस पर "जब कोई नहीं था तब मेरे लिए कौन था" शीर्षक से एक गीत भी लॉन्च किया जो की विश्व भर के चिकित्सकों को समर्पित था।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंस्टाग्राम पर ब्रांडिंग पायनियर्स
यूट्यूब पर ब्रांडिंग पायनियर्स
भारतीय ब्रांड
भारतीय कंपनियाँ | 1491767 | {
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स्कूल फ्रेंड्स, रस्क स्टूडियो द्वारा निर्मित एक हिंदी भाषा की रोमांस कॉमेडी टेलीविजन श्रृंखला है। श्रृंखला में नविका कोटिया , आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी , अलीशा परवीन और अंश पांडे शामिल हैं। इसका प्रीमियर 23 अगस्त 2023 को अमेज़ॅन मिनीटीवी पर हुआ ।
भूमिकाएं
नविका कोटिया - स्तुति के रूप में
आदित्य गुप्ता - अनिर्बान के रूप में
मानव सोनेजी - रमन के रूप में
अलीशा परवीन - डिंपल के रूप में
अंश पांडे - मुकुंद के रूप में
निर्माण
इस श्रृंखला को रस्क स्टूडियो के द्वारा अमेजॉन मिनी टीवी पर रिलीज किया गया था। नविका कोटिया, आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी, अलीशा परवीन और अंश पांडे ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है।
संदर्भ
बाहरी कड़ियां
स्कूल फ्रेंड्स अमेजॉन मिनी टीवी पर
School Friends - IMDB पर | 1491805 | {
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महागढ़ नीमच जिले के मनासा तहसील का एक गाँव है। महागढ रामपुरा के भील शासको द्वारा शासित था।
संदर्भ | 1491827 | {
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निम्नलिखित राष्ट्र नागरिकों को छद्मवेशी कपड़े पहनने या रखने पर प्रतिबंध लगाते हैं:
अज़रबैजान
अण्टीगुआ और बारबूडा
बहामा
बारबाडोस
डोमिनिका
घाना
ग्रेनेडा
जमैका
नाइजीरिया
ओमान
फिलीपींस (केवल वर्दी)
सेंट लूसिया
सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस
सऊदी अरब
त्रिनिदाद और टोबैगो
युगांडा
जाम्बिया
ज़िम्बाब्वे
संदर्भ
देशों की सूचियाँ | 1491876 | {
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} |
एटम टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड एक भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई, भारत में है। एटम की शुरुआत २००६ में जिग्नेश शाह द्वारा स्थापित फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ ग्रुप की सहायक कंपनी के रूप में की गई थी।
कंपनी ने ऐतिहासिक रूप से मोबाइल प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भुगतान और बैंकिंग सेवाओं के वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है। एटम टेक्नोलॉजीज़ ने मोबाइल भुगतान, इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पांस आधारित भुगतान और मोबाइल-आधारित सेवा वितरण ढांचे के लिए उत्पाद और सेवाएं प्रदान की हैं।
२७ नवंबर २०१८ को टोक्यो में मुख्यालय वाले अग्रणी आईटी सेवा प्रदाता एनटीटी डेटा ने घोषणा की कि उसने एटम टेक्नोलॉजीज़ में बहुमत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक समझौता किया है।
उत्पादों
एटम टेक्नोलॉजीज़ के उत्पादों में शामिल हैं:
ऑनलाइन बैंकिंग और इंटरनेट भुगतान गेटवे (आईपीजी): एक इंटरनेट भुगतान मंच
इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस: संगठनों को फोन कॉल पर क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से भुगतान स्वीकार करने में मदद करता है
मोबाइल कंप्यूटिंग ऐप जो भुगतान सेवाओं को सक्षम बनाता है। एटम मोबाइल ऐप डेबिट और क्रेडिट कार्ड, आईएमपीएस, कैश कार्ड और नेट बैंकिंग के माध्यम से भुगतान की अनुमति देता है
भुगतान सेवाएं प्रदान करने के लिए बिक्री केंद्र, एटम इंटरनेट, इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस और मोबाइल पर अपनी सेवाओं के अलावा, ईंट और मोर्टार व्यापारी, अधिग्रहण और लेनदेन प्रसंस्करण सेवाएं प्रदान करता है।[ उद्धरण वांछित ]
सुरक्षा
कंपनी के भुगतान प्लेटफ़ॉर्म को भुगतान कार्ड उद्योग डेटा सुरक्षा मानक और भुगतान एप्लिकेशन डेटा सुरक्षा मानक प्रमाणपत्रों के लिए मान्यता दी गई है जो बैंकिंग उद्योग द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और इसलिए इसके मोबाइल भुगतान लेनदेन और कार्ड धारक डेटा के प्रसारण की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
एटम का भुगतान प्लेटफ़ॉर्म सुरक्षित वीपीएन कनेक्टिविटी का उपयोग करके लेनदेन को रूट करने के लिए उन्नत एन्क्रिप्शन मानक १२८ बिट सिफर ब्लॉक चेनिंग का उपयोग करता है। एटम किसी भी क्रेडिट कार्ड के विवरण को संग्रहीत नहीं करता है, लेकिन रूटिंग लेनदेन के लिए बैंक के भुगतान गेटवे के पास-थ्रू के रूप में कार्य करता है।
भागीदारी
एटम ने वीज़ा इंक, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी क्रेडिट कार्ड कंपनियों के अलावा प्रमुख बैंकों के साथ गठजोड़ किया है। इन बैंकों और कंपनियों के क्रेडिट कार्ड का उपयोग एटम प्लेटफॉर्म पर लेनदेन के लिए किया जा सकता है। इन भुगतान सेवाओं को प्रदान करने के लिए १,५०० से अधिक व्यापारियों ने एटम के साथ समझौता किया है।
संदर्भ
बाहरी संबंध
आधिकारिक वेबसाइट
भारत में मोबाईल बैंकिंग | 1491878 | {
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} |
कुंदा नदी मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के दक्षिण मे स्थित अम्बा नाम के गाँव से निकलती हैं। और खरगौन के उत्तर मे सिपटान नामके स्थान मे वेदा नदी से मिल जाती हैं। कुंदा नदी खरगौन के लिए एक महत्वपूर्ण नदी हैं क्योंकि इस नदी के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए किया जाता हैं। रतलाम शहर मे कुंदा नदी का पानी ही सप्लाई किया जाता हैं। कुंदा नदी में दो डैम का निर्माण किया गया हैं, इन डैम का नाम देजला देवड़ा डैम और वनिहार डैम है। कुंदा नदी दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं।
संदर्भ | 1491885 | {
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} |
माथाडीह गिरिडीह जिला का एक फ़ेमम मुस्लिम मोहल्ला है।
यह गिरिडीह स्टेडियम से 1 की. मी. पास है।
माथाडीह का पोस्ट ऑफिस चैताडीह और थाना पचंबा है।
अब माथाडीह गिरिडीह नगर परिषद का 20 न. वार्ड है।
माथाडीह फ़ेमस होने का वजह यह है कि यह एक मुस्लिम गांव है और इस गांव का अंजुमन बहुत मजबूत है जिसका नाम "अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह" है ।इस अंजुमन का मजबूती का कारन यह है कि लोन्ग टाइम इमाम क रहना, जो "बारिक हाफ़िज़" कई सालो तक रहे थे।
इस अंजुमन मे लोन्ग टाईम रहने वाला सदर "जमायत अंसारी" है।
जिसका चयन अंजुमन के "मस्जिद" के दुर दुर रहने वाले सदस्य जैसे इस्लाम अंसारी, नईम अख्तर Nayeem Akhtar, जहूर अंसारी, समीम अंसारी (बंगला के पास से) आऐ थे।
दूसरा कारन यह है कि मूहर्म मे हुए अखाड़े कमपटीस्न सबसे ज्यादा जीते जाने वाला पुरुस्कार ।
तीसरा कारन यह है कि अंजुमन के सदस्यों हर साल जल्सा करते हैं ।
झारखंड बनने से पहले गिरिडीह का सबसे बड़ा होने वाला जल्सा "अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह" ने "सी सी एल फ़ूटबोल गराउ़ड" नईम अख्तर Nayeem Akhtar के घर के पास कराया था ।
जल्से मे दूर दूर से लोग आया था ओर इस अंजुमन को जाना था ।
चौथा कारन यह है कि खेल कूद मे माथाडीह बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।
जो क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल में प्रसिद्ध रहे थे, वर्तमान मे क्रिकेट में प्रसिद्ध है।
टीम का नाम "one moon ten star" है , जिसका मतलब है "एक चाँद दस सितारे" । | 1491922 | {
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} |
रेनू कादियान भारतीय समाज सेविका हैं वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष और सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया की ट्रस्टी हैं। भगत फाउंडेशन की स्थापना वर्ष 2007 में की गयी थी तभी से भगत सिंह फाउंडेशन साइबर अपराध, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने, युवाओं को खेल और शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने और पर्यावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने पर केंद्रित है। रेनू कादियान को भगत फाउंडेशन की अध्यक्षा अगस्त 2021 में बनाया गया था।
जीवन परिचय
रेनू कादियान एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनका जन्म 8 अगस्त 1992 को हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ और इन्होने अपनी पढाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की थी। वर्तमान में वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं और वह सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया के ट्रस्टी के रूप में भी काम कर रही हैं। वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में नशे के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रेनू कादियान द्वारा नशा मुक्त हरियाणा नाम से एक अभियान भी शुरू किया गया है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंस्टाग्राम पर रेनू कादियान
1992 में जन्मे लोग
भारतीय हिन्दू
हरियाणा के लोग
भारतीय महिलाएँ
भारत में स्त्री-शिक्षा
समाज सुधारक | 1491950 | {
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"title": "रेनू कादियान (सोशल एक्टिविस्ट)",
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} |
तेलुगु देशम पार्टी के राजनीतिज्ञ
२०१९ में निधन
1947 में जन्मे लोग | 1491955 | {
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} |
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत (बीएचयू कुलगीत) यानी मधुर मनोहर अतिव सुन्दर भारतीय रसायनज्ञ और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शांति स्वरूप भटनागर द्वारा लिखी गई एक कविता है। इसे पंडित ओंकार नाथ ठाकुर ने संगीतबद्ध किया है।
यह कविता मूल रूप से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आधिकारिक विश्वविद्यालय गान के रूप में अपनाए जाने पर लोकप्रिय हुई। इसे आधिकारिक तौर पर कुलगीत के नाम से जाना जाता है। विश्वविद्यालय में यह प्रथा है कि विश्वविद्यालय के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम या उत्सव के शुरू होने से पहले इस गान को सहगान में गाया जाता है।
कविता का अंतिम छंद विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी को समर्पित है। हिंदी में विश्वविद्यालय की टैगलाइन सर्वविद्या की राजधानी , सीधे कविता की अंतिम पंक्ति से उठाया गया है, जबकि अंग्रेजी टैगलाइन कैपिटल ऑफ नॉलेज उसी का अनुवाद है।
कुलगीत ने पूरे इतिहास में अक्सर प्रशंसा अर्जित की है। कुलगीत को कला और मीडिया में भी प्रस्तुत किया गया है।
बोल
आचार संहिता
कुलगीत विश्वविद्यालय में सहगान में गाया जाता है। सम्मान स्वरूप कुलगीत के बाद ताली बजाना वर्जित है। ओंकारनाथ ठाकुर की रचना आधिकारिक धुन है। कोई आधिकारिक लंबाई निर्धारित नहीं है, लेकिन आधिकारिक रचना में आमतौर पर लगभग चार मिनट और तीस सेकंड लगते हैं।
यह देखें
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
शांति स्वरूप भटनागर
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
बी एच यू कुलगीत (यूट्यूब पर)
हिन्दी काव्य
Articles with hAudio microformats | 1491999 | {
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"title": "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत",
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} |
जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री व फिजियोथेरेपिस्ट हैं भाभीजी घर पर है में अभिनेत्री जागृति सिंह परिहार ने 12 किरदार निभाए हैं। करियर कॉलेज भोपाल में पेरा मेडिकल की छात्रा रहीं जाग्रति ने अपनी स्कूल की पढाई एम एल बी गर्ल्स स्कूल दमोह से पूरी की और बाद में वो फिजियोथेरपिस्ट की पढाई करने के लिए भोपाल जाकर बस गयीं।
जीवन परिचय
जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री हैं इनका जन्म दमोह में हुआ है। जाग्रति मिस भोपाल रहीं और मुंबई में रहते हुए उन्होंने नानावती अस्पताल में एक फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में काम किया था। जाग्रति ने भाभी जी घर पर हैं में छेदी सिंह की पत्नी गुलबिया का किरदार निभाया और बाद में उन्होंने चिड़ियाघर, हप्पू की उलटन पलटन, जीजा जी छत पर हैं समेत कई सीरियल्स में काम किया। उनके दो गाने "हार ले" और "देसी" रिलीज के साथ ही लोकप्रिय रहे हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंस्टाग्राम पर जाग्रति सिंह परिहार
हिन्दी अभिनेत्री
धारावाहिक अभिनेत्री
1991 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 1492032 | {
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"title": "जाग्रति सिंह परिहार",
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} |
बोधन दौआ उफ ठाकुर पर्जन सिंह यादव शाहगढ रियासत के राजा बखतवली शाह के सेनापति थे। जिन्होनें 1857 की क्रांति मे अपनी अलग छाप छोड़ गए। उन्हें सागर का तत्या तोपे के नाम से भी जाना जाता है वह इतने शक्तिशाली थे की वह जहा भी युद्ध करने के लिये जाते थे वह विजय प्राप्त करते थे ।
इतिहास
बोधन दौआ मध्यप्रदेश के सागर जिले की शाहगढ़ रियासत के क्रांतिकारी नायक राजा बखतबली के मुख्य सलाहकार व सेनापति थे। उन्होंने 1857 को क्रांति में गढ़ाकोटा विजय हेतु विशाल सेना का नेतृत्व किया। जब 50वीं सेना के सिपाहियों ने शस्त्र उठाये तो उन्होंने क्रांतिकारियों का साथ दिया। वे अंग्रेजों के दमन के आगे कभी नहीं झुके और देश के लिए अनवरत लड़ते रहे।
शाहगढ़ के राजा बखतवली अंग्रेजों से अपना खोया क्षेत्र गढ़ाकोटा वापस लेना चाहते थे। इस कार्य में सहयोग के लिये बखतबली ने बोधन दौआ के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। अपने आठ हजार साथियों के साथ 14 जुलाई 1857 को बोधन दौआ ने गढ़ाकोटा पर हमला किया। पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। लेकिन पुनः राजा बखतबली की सेना ने धावा बोला और अपनी धरती पर अधिकार कर लिया। गढ़ाकोटा के किले एवं थाने में अंग्रेजों द्वारा पदस्थ सरकारी कर्मचारी भाग खड़े हुए।
अब बोधन दौआ का अगला अभियान रेहली विजित करना था। दो हजार सैनिक पाँच सौ अन्य योद्धा तथा तीन तोपें लेकर उन्होंने रेहली पर कूच किया। बोधन दौआ के सामने रेहली की रक्षा के लिए तैनात लेफ्टिनेंट लासन टिक न सका, वह सागर भाग खड़ा हुआ। रेहली की जीत पर राजा बखतबली अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बोधन दौआ को रेहली किले का किलेदार नियुक्त किया।
बोधन दौआ आगे बढ़ा और उसने देवरी पर भी अपना अधिकार कर लिया। लेकिन अंग्रेज चैन से नहीं बैठे उन्होंने 11 अक्टूबर को रेहली पर अधिकार कर लिया। संकट के समय में लटकन तथा गनेश नामक राष्ट्रभक्तों ने बोधन दौआ को सहयोग दिया। बोधन के साथ रहने के अपराध में उन दोनों को 6 अप्रैल 1858 को गिरफ्तार कर लिया और तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गयी। यातनाओं के बाद भी उन्होंने जुबान नहीं खोली। इन्हीं की तरह एक अन्य साथी बदन राय ने अचलपुर में क्रांति की कमान संभाली थी। उसे भी 5 अप्रैल 1858 को फांसी दे दी गयी।
अंग्रेजों ने क्रांति को कुचलने के लिये दमन चक्र चलाया, शाहगढ़ के राजा बखतबली के गिरफ्तार हो जाने के बावजूद बोधन दौआ ने आत्मसमर्पण को नकार दिया। अंग्रेज तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं सके। अंततः बोधन दौआ को पकड़ने के लिए एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई लेकिन किसी ने सुराग नहीं लगने दिया। बोधन दौआ अज्ञातवास में चले गए और क्रांति में अपनी भूमिका निभाते रहे।
लोकगीत
“ बोधन भाई फिरत हैं दौआ ।
मारत खात फिरत अंगरेजन, काटत ककरी जौआ।।
भागे फिरत अंगरेजा बेकल, दौआ हो गए हौआ।
गढ़ा से रहली तक मारे फौज़ फिरंगी कौआ “।।
------------------------------------
ऐसे ढेरों लोकगीत आज भी बुंदेलखंड में जोगी भाट गुनगुनाए हैं यहां के जांबाज़ शूरमा बोदन सिंह दौआ के सम्मान में।
सन्दर्भ
सागर का तात्या टोपे - बोधन सिंह दौआ https://books.google.co.in/books/about/Bundelkhand_ka_itihas.html?id=DDSnDwAAQBAJ&redir_esc=y
"Jhansi Ki Rani - Mahashweta Devi - Google Books" https://books.google.co.in/books/about/Jhansi_Ki_Rani.html?id=tpSbXRsehGEC&redir_esc=y
"1857, Madhyapradeśa ke raṇabān̐kure - Sureśa Miśra - Google Books" https://books.google.co.in/books/about/1857_Madhyaprade%C5%9Ba_ke_ra%E1%B9%87ab%C4%81n%CC%90kure.html?id=JTVuAAAAMAAJ&redir_esc=y | 1492081 | {
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"title": "बोधन दौआ",
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} |
नरेंद्र कुमार, जिन्हें मुख्य रूप से नरेंद्र श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता है, ये एक भारतीय फिल्म निर्देशक हैं। इन्हें स्कूल फ्रेंड्स (2022) और कैंपस डायरीज (2023) के लिए जाना जाता है।
सन्दर्भ | 1492087 | {
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"title": "नरेंद्र श्रीवास्तव",
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} |
नविका कोटिया एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में दिखाई देती हैं। नविका स्टार प्लस के ये रिश्ता क्या कहलाता है में "चिक्की" सिंघानिया और माया खेरा की दोहरी भूमिकाएँ निभाने के लिए लोकप्रिय हैं। इन्होंने बॉलीवुड की फिल्म इंग्लिश विंग्लिश में भी अपने भाई शिवांश कोटिया के साथ श्रीदेवी की बेटी की भूमिका निभाई थी।
फिल्मोग्राफी
टेलीविजन
संगीत वीडियो
बाहरी कड़ियाँ
नविका कोटिया, बॉलीवुड हंगामा पर
नविका कोटिया, IMDb पर
सन्दर्भ | 1492096 | {
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"title": "नविका कोटिया",
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} |
आदित्य गुप्ता एक भारतीय अभिनेता हैं, जो मुख्य रूप से टेलीविजन सीरीज क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच व स्कूल फ्रेंड्स (टीवी श्रृंखला) में किए गए काम के लिए जाने जाते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच, IMDb पर
स्कूल फ्रेंड्स, IMDb पर
सन्दर्भ | 1492097 | {
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"title": "आदित्य गुप्ता",
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} |
फाइव नाइट्स एट फ्रेडीज़ () एक 2023 अमेरिकी अलौकिक डरावनी फिल्म है।
कलाकार
जोश हचरसन - माइक श्मिट
पाइपर रुबियो - एबी, माइक की छोटी बहन
एलिज़ाबेथ लैल - वैनेसा
मैथ्यू लिलार्ड - स्टीव रैगलन / विलियम एफ़टन
मैरी स्टुअर्ट मास्टर्सन - आंटी जेन
कैट कॉनर स्टर्लिंग - मैक्स
डेविड लिंड - जेफ
क्रिश्चियन स्टोक्स - हांक
जोसेफ पोलिकिन - कार्ल
लुकास ग्रांट - गैरेट, माइक का छोटा भाई
थियोडस क्रेन - जेरेमिया, माइक के सह-कामगार
आवाज़ें
केविन फोस्टर - फ्रेडी फ़ैज़बियर
जेड किंडर-मार्टिन - बोनी
जेसिका वीस - चिका
रोजर जोसेफ मैनिंग जूनियर - फॉक्सी (अमान्य)
इन्हें भी देखें
एल चावो एनिमाडो
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
2023 की फ़िल्में
अमेरिकी फ़िल्में
अंग्रेज़ी फ़िल्में | 1492111 | {
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सेल्यूकस-मौर्य युद्ध 305 और 303 ईसा पूर्व के बीच लड़ा गया था। इसकी शुरुआत तब हुई जब सेल्यूसिड साम्राज्य के सेल्यूकस निकेटर प्रथम ने मैसेडोनियन साम्राज्य के भारतीय क्षत्रप राज्यों को वापस लेने की कोशिश की, जिस युद्ध में मौर्य साम्राज्य के सम्राट सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य विजयी हुए।
युद्ध एक समझौते के साथ समाप्त हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिंधु घाटी क्षेत्र और गेडरोशिया, आर्कोसिया , आरिया (हेरात) और हिंदूकुश मौर्य साम्राज्य में मिला लिया गया, साथ ही चंद्रगुप्त ने उन क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया जो उसने चाहा था, और दोनों शक्तियों के बीच एक विवाह गठबंधन हुआ। युद्ध के बाद, मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा, और सेल्यूसिड साम्राज्य ने अपना ध्यान पश्चिम में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने की ओर लगाया।
पृष्ठभूमि
लगभग 321 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने खुद को मगध के शासक के रूप में स्थापित किया। उन्होंने गंगा के मैदान के समय के शासक नंद वंश पर विजय प्राप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने सफल गुरिल्ला युद्ध अभियानों के साथ ग्यारह वर्षों तक साम्राज्य से लड़ाई लड़ी और पाटलिपुत्र की नंदा राजधानी पर कब्जा कर लिया। इससे साम्राज्य का पतन हुआ और अंततः चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन मौर्य साम्राज्य का निर्माण हुआ।
जो अब आधुनिक अफगानिस्तान है, उसमें फारसी प्रांत, गांधार के समृद्ध साम्राज्य और सिंधु घाटी के राज्यों के साथ, सभी ने सिकंदर महान के सामने समर्पण कर दिया था और उसके साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे। जब सिकंदर की मृत्यु हो गई, तो डियाडोची के युद्ध ("उत्तराधिकारियों") ने उसके साम्राज्य को विभाजित कर दिया; चूँकि उसके सेनापति सिकंदर के साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए लड़े थे। पूर्वी क्षेत्रों में इन जनरलों में से एक, सेल्यूकस निकेटर, नियंत्रण ले रहा था और वह सिकंदर का साम्राज्य फिर से स्थापित करना चाहता था जिसे सेल्यूसिड साम्राज्य के रूप में जाना जाने लगा। रोमन इतिहासकार अप्पियन के अनुसार :
सिकंदर ने सिंधु घाटी सहित अपने क्षेत्रों के नियंत्रण के लिए क्षत्रपों को नियुक्त किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने निकानोर, फिलिप, यूडेमस और पेइथन द्वारा शासित क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसने सिंधु के किनारों तक मौर्य नियंत्रण स्थापित कर दिया। चंद्रगुप्त की जीतों ने सेल्यूकस को आश्वस्त किया कि उसे अपने पूर्वी हिस्से को सुरक्षित करने की आवश्यकता है ना की पश्चिम दिशा में जहां का सम्राट चंद्रगुप्त विशाल सेना के साथ अत्यधिक शक्तिशाली है । मैसेडोनियन क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की कोशिश में, सेल्यूकस सिंधु घाटी पर उभरते और विस्तारित मौर्य साम्राज्य के साथ संघर्ष में आ गया और बुरी तरह पराजित होने पर संधि कर ली ।
युद्ध
संघर्ष का विवरण के विषय में ग्रीक इतिहासकार अप्पियन के अनुसार :
ग्रिंगर के अनुसार, संघर्ष का विवरण संछिप्त है, लेकिन परिणाम स्पष्ट रूप से "एक निर्णायक भारतीय जीत" थी, जिसमें चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की सेना को हिंदू कुश के पार वापस खदेड़ दिया और परिणामस्वरूप आधुनिक अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान में बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। व्हीटली और हेकेल का सुझाव है कि युद्ध के बाद स्थापित मैत्रीपूर्ण मौर्य-सेल्यूसिड संबंधों का तात्पर्य है कि शत्रुता संभवतः "न तो लंबी और न ही गंभीर" थी।
नतीजे
सेल्यूकस निकेटर ने हिंदू कुश, पंजाब पश्चिमी ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। उनकी व्यवस्था के परिणामस्वरूप, सेल्यूकस को चंद्रगुप्त मौर्य से 500 युद्ध हाथी प्राप्त हुए, जिसने बाद में पश्चिम में डायडोची के युद्धों को प्रभावित किया। सेल्यूकस और चंद्रगुप्त भी एक विवाह गठबंधन के लिए सहमत हुए और सेल्यूकस की बेटी कार्नेलीया हेलेना (भारतीय पाली स्रोतों में इसका नाम बेरेनिस है) का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ। स्ट्रैबो के अनुसार, सौंपे गए क्षेत्र सिंधु की सीमा से लगे थे:जनजातियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है: सिंधु के किनारे परोपामिसाडे हैं, जिनके ऊपर परोपामिसस पर्वत है: फिर, दक्षिण की ओर, अरचोटी: फिर उसके बाद, दक्षिण की ओर, गेड्रोसेनी, अन्य जनजातियों के साथ जो इस पर कब्जा करती हैं समुद्री तट; और सिंधु इन सभी स्थानों के साथ-साथ अक्षांशीय रूप से स्थित है; और इनमें से कुछ स्थान, जो सिंधु नदी के किनारे स्थित हैं, उन पर भारतीयों का कब्ज़ा है, हालाँकि वे पहले फारसियों के थे। सिकंदर [मैसेडोन के तृतीय 'महान'] ने इन्हें एरियन से छीन लिया और अपनी खुद की बस्तियां स्थापित कीं, लेकिन सेल्यूकस निकेटर ने उन्हें अंतर्विवाह और बदले में पांच सौ हाथी प्राप्त करने की शर्तों पर सैंड्रोकोटस [चंद्रगुप्त] को दे दिया। — स्ट्रैबो 15.2.9
यूनानी और भारतीय साहित्य दोनो में विवाह का वर्णन मिलता है । भारतीय ग्रंथों में पौराणिक साहित्य में इसका एक विवरण इस प्रकार है :
शक्यासिहादुद्धसिंहः पितुरर्द्ध कृतं पदम् ॥
चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम्।
सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः।।
षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्।
पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत् ।।
(भविष्य पुराण - प्रतिसर्ग पर्व 1: अध्याय 6, श्लोक 43,44)
हिन्दी अनुवाद- शाक्य सिंह के वंशज भगवान बुद्ध हुए, जिसने अपने पिता के आधे समय तक राज्य किया। भगवान बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया चन्द्रगुप्त के वंशज बिन्दुसार हुआ अपने पिता के काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के वंशज अशोक हुए।
सेल्यूकस ने आरिया , आर्कोशिया (कांधार), परोपनिषदी (काबुल), एरिया (हेरात), जेड्रोशिया (बलूचिस्तान और पश्चिमी ईरान) के सबसे पूर्वी प्रांतों को भी आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरी ओर, उसे पूर्वी प्रांतों के अन्य क्षत्रपों ने स्वीकार कर लिया। उनकी ईरानी पत्नी अपामा ने उन्हें बैक्ट्रिया और सोग्डियाना में अपना शासन लागू करने में मदद की होगी। इसे पुरातात्विक रूप से मौर्य प्रभाव के ठोस संकेतों के रूप में पुष्ट किया जा सकता है, जैसे कि अशोक के शिलालेखों के शिलालेख, जिन्हें उदाहरण के लिए, आज के दक्षिणी अफगानिस्तान में कंधार में स्थित ।
हालांकि चंद्रगुप्त ने आरिया के साथ अन्य प्रांत भी जीते थे । प्राचीन ग्रीक इतिहासकार प्लिनी ने चंद्रगुप्त की सीमा को निर्धारित करते हुऐ लिखा:वास्तव में, अधिकांश भूगोलवेत्ता भारत को सिंधु नदी से घिरा हुआ नहीं मानते हैं, बल्कि इसमें चार क्षत्रपों गेडरोशिया, अराकोशिया, आरिया और पारोपामिसाडे, कोपेस नदी को जोड़ते हैं और इस प्रकार भारत की चरम सीमा बनाते हैं। हालाँकि, अन्य लेखकों के अनुसार, ये सभी क्षेत्र आरिया देश के अंतर्गत माने जाते हैं। — प्लिनी, प्राकृतिक इतिहास VI, 23 यह व्यवस्था पारस्परिक रूप से लाभप्रद साबित हुई। सेल्यूसिड और मौर्य साम्राज्यों के बीच की सीमा बाद की पीढ़ियों में स्थिर रही, और मैत्रीपूर्ण राजनयिक संबंध राजदूत मेगस्थनीज और चंद्रगुप्त के मध्य स्थापित हो गया। चंद्रगुप्त के युद्ध हाथियों के उपहार ने " वापसी मार्च के बोझ को कम कर दिया होगा" और उसे अपनी बड़ी सेना के आकार और लागत को उचित रूप से कम करने की अनुमति दी, क्योंकि उसकी शक्ति के लिए सभी प्रमुख खतरे अब दूर हो गए थे।
मौर्यों से प्राप्त युद्ध हाथियों के साथ, सेल्यूकस इप्सस की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वी, एंटीगोनस और उसके सहयोगियों को हराने में सक्षम था। एंटीगोनस के क्षेत्रों को अपने में जोड़कर, सेल्यूकस ने सेल्यूसिड साम्राज्य की स्थापना की, जो 64 ईसा पूर्व तक भूमध्य और मध्य पूर्व में एक महान शक्ति के रूप में कायम रहेगा।
अब अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान के क्षेत्र पर मौर्य नियंत्रण ने उत्तर-पश्चिम से बाहिरी विदेशी आक्रमण को रोकने में मदद की। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में अपने शासन का विस्तार दक्षिण की ओर दक्कन तक किया।
यह भी देखें
झेलम का प्रथम युद्ध
लेखक नोट
सन्दर्भ
प्राचीन भारत के वैदेशिक सम्बन्ध
मौर्य साम्राज्य
भारत के युद्ध
Pages with unreviewed translations | 1492126 | {
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3 जुलाई 1994 को गिनी-बिसाऊ में आम चुनाव हुए, राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरा दौर 7 अगस्त को हुआ।
आज़ादी के बाद यह पहला बहुदलीय चुनाव था, और यह भी पहली बार था कि राष्ट्रपति सीधे तौर पर चुना गया था, क्योंकि पहले यह पद किसके द्वारा चुना जाता था
संदर्भ
गिनी-बिसाऊ
सामान्य
गिनी-बिसाऊ में संसदीय चुनाव
गिनी-बिसाऊ में संसदीय चुनाव
गिनी-बिसाऊ में राष्ट्रपति चुनाव
गिनी-बिसाऊ
गिनी-बिसाऊ | 1492149 | {
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2003 गिनी-बिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था जो 14 सितंबर 2003 को गिनी-बिसाऊ में हुआ था, जिसका नेतृत्व जनरल वेरिसिमो कोर्रेया सीबरा ने मौजूदा राष्ट्रपति कुंबा इला के खिलाफ किया था।सीबरा ने अधिग्रहण के औचित्य के रूप में इला की सरकार की "अक्षमता" का उल्लेख किया, साथ ही एक स्थिर अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और अवैतनिक वेतन पर सैन्य असंतोष भी बताया।
इला ने 17 सितंबर को सार्वजनिक रूप से अपने इस्तीफे की घोषणा की और उस महीने हस्ताक्षरित एक राजनीतिक समझौते ने उन्हें पांच साल के लिए राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया।
सितंबर के अंत में व्यवसायी हेनरिक रोजा और पीआरएस महासचिव अर्तुर संहा के नेतृत्व में एक नागरिक नेतृत्व वाली संक्रमणकालीन सरकार की स्थापना की गई थी।
यह भी देखें
गिनी-बिसाऊ का इतिहास
सलौम (फ़िल्म), तख्तापलट के दौरान 2021 की फ़िल्म सेट
सन्दर्भ | 1492152 | {
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1980 गिनी-बिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था जो गिनी-बिसाऊ में हुआ था। 14 नवंबर 1980 को, प्राइम की सूची के नेतृत्व मे प्रधान मंत्री जनरल जोआओ बर्नार्डो विएरा के नेतृत्व में। इसके कारण राष्ट्रपति लुइस कैब्राल (उपनिवेशवाद-विरोधी नेता अमिलकर कैब्राल के सौतेले भाई) को पद से हटा दिया गया। जिन्होंने 1973 से इस पद पर कार्य किया, जबकि देश का स्वतंत्रता युद्ध अभी भी जारी था।
यह भी देखें
गिनी-बिसाऊ का इतिहास
केप वर्डे-गिनी-बिसाऊ संबंध | 1492155 | {
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सैन्य अशांति 1 अप्रैल 2010 को गिनी-बिसाऊ में हुई। प्रधान मंत्री कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों द्वारा घर में नजरबंद कर दिया गया, जिन्होंने सेना प्रमुख को भी हिरासत में लिया कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों ने घर में नजरबंद कर दिया, जिन्होंने सेना प्रमुख ज़मोरा इंदुता को भी हिरासत में ले लिया। गोम्स और उनकी पार्टी के समर्थकों, PAIGC ने राजधानी में प्रदर्शन करके मिलिट्री के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, बिसाऊ ; एंटोनियो इंदजई, डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ ने तब चेतावनी दी कि अगर विरोध जारी रहा तो वह गोम्स को मार डालेंगे।
संदर्भ | 1492158 | {
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} |
23 जनवरी 1963 को, गिनी और केप वर्डे (पीएआईजीसी), एक मार्क्सवादी क्रांतिकारी समूह की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी के सेनानियों ने आधिकारिक तौर पर गिनी-बिसाऊ की शुरुआत की। टिटे में तैनात पुर्तगाली सेना पर हमला करके स्वतंत्रता संग्राम। युद्ध तब समाप्त हुआ जब 1974 की कार्नेशन क्रांति के बाद पुर्तगाल ने गिनी-बिसाऊ को स्वतंत्रता दी, उसके एक साल बाद केप वर्डे को।
== सन्दर्भ ==
स्वतंत्रता संग्राम
पुर्तगाल से जुड़े युद्ध
अफ्रीका से जुड़े युद्ध
1960 के दशक के संघर्ष
1970 के दशक के संघर्ष | 1492160 | {
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अमिलकर लोप्स कैब्रल (सितंबर 21, 1924 - जनवरी 20, 1973) एक अफ़्रीकी कृषिविज्ञानी इंजीनियर, लेखक और थे राष्ट्रवादी। बाफाटा, पुर्तगाली गिनी में जन्मे, केप-वर्डेन्स के पुत्र, उनकी शिक्षा लिस्बन में हुई, जो कि पुर्तगाल की राजधानी थी, जो औपनिवेशिक थी वह शक्ति जिसने उस समय पुर्तगाली गिनी पर शासन किया था। लिस्बन में एक छात्र के रूप में, उन्होंने अफ्रीकी राष्ट्रवाद को समर्पित छात्र आंदोलनों की स्थापना की। उनके सौतेले भाई बाद में गिनी-बिसाऊ, लुइस कैब्राल राज्य के प्रमुख थे।
वह 1950 के दशक में अफ्रीका लौट आए और महाद्वीप पर स्वतंत्रता आंदोलन बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने PAIGC या पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे (पुर्तगाली: गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ़्रीकी पार्टी)। उन्होंने अगोस्टिन्हो नेटो के साथ अंगोला में एक मुक्ति पार्टी बनाने के लिए भी काम किया।
1962 की शुरुआत में, कैब्रल ने पुर्तगाली शाही ताकतों के खिलाफ एक सैन्य संघर्ष में पीएआईजीसी का नेतृत्व किया। संघर्ष का लक्ष्य पुर्तगाली गिनी और केप वर्डे दोनों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना था। संघर्ष के दौरान, पार्टी को भूमि लाभ प्राप्त हुआ और कैब्रल को गिनी-बिसाऊ में भूमि के कई पार्सल का वास्तविक नेता बना दिया गया। 1972 में, कैब्रल ने एक स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्र की तैयारी के लिए एक पीपुल्स असेंबली का गठन करना शुरू किया, लेकिन एक असंतुष्ट पूर्व सहयोगी ने जनवरी में 1973 में उनकी हत्या कर दी।
इससे पहले कि वह अपने काम का फल देख पाता। कोनाक्री में उनकी हत्या कर दी गई।
अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
कैब्रल और पीएआईजीसी का सबसे जानकारीपूर्ण और संतुलित विवरण मुस्तफा ढाडा द्वारा लिखित "वॉरियर्स एट वर्क" है।
गिनी-बिसाऊ की मुक्ति में अमिलकर कैब्रल के राजनीतिक विचार और भूमिका पर क्रिस मार्कर फिल्म, सैंस सोलेल में कुछ विस्तार से चर्चा की गई है।
==बाहरी लिंक==
==संदर्भ==
कैब्रल, एमिलकर
कैब्रल, एमिलकर
कैब्रल, एमिलकर
कैब्रल, एमिलकर
कैब्रल, एमिलकर
कैब्रल, एमिलकर | 1492163 | {
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} |
अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
यह भी देखें
केप वर्डे में इमारतों और संरचनाओं की सूची | 1492164 | {
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'पुर्तगाली गिनी जो आज है उसका नाम था गिनी-बिसाऊ 1446 से सितंबर 10, 1974 तक।
हालाँकि देश ने चार साल पहले इस क्षेत्र पर दावा किया था, पुर्तगाली खोजकर्ता नूनो ट्रिस्टाओ पश्चिम अफ्रीका के तट के आसपास रवाना हुए, लगभग 1450 में गिनी क्षेत्र तक पहुँचे, खोज करते हुए सोने, अन्य मूल्यवान वस्तुओं और दासों के स्रोत के लिए, जो पिछली आधी सदी से भूमि मार्गों के माध्यम से धीरे-धीरे यूरोप में पहुंच रहे थे।
पुर्तगाली गिनी साहेल साम्राज्य का हिस्सा था, और स्थानीय लैंडुर्ना और नौला जनजातियाँ नमक का व्यापार करती थीं और चावल उगाती थीं।
लगभग 1600 में स्थानीय जनजातियों की मदद से, पुर्तगालियों और फ्रांस, ब्रिटेन और स्वीडन सहित कई अन्य यूरोपीय शक्तियों ने एक संपन्न गुलाम की स्थापना की। पश्चिम अफ़्रीकी तट के साथ व्यापार।
यह कभी भी ज्ञात नहीं होगा कि गिनी तट के साथ दास बाजारों में कितने मानव जीवन खरीदे और बेचे गए (ज्यादातर पुर्तगालियों द्वारा; अफ्रीका से आयातित सभी दासों में से 37% ब्राजील के लिए बाध्य थे उपनिवेश), लेकिन आज यह लगभग 10 मिलियन है। कचेउ, गिनी-बिसाऊ में, एक समय के लिए अफ्रीका के सबसे बड़े दास बाजारों में से एक था।
[[1800 के दशक] के अंत में गुलामी के उन्मूलन के बाद, दास व्यापार में गंभीर गिरावट आई, हालांकि एक छोटा सा अवैध गुलामी अभियान जारी रहा। बिसाऊ, 1765 में स्थापित, पुर्तगाली गिनी कॉलोनी की राजधानी बन गई।
हालाँकि यह तट पिछली चार शताब्दियों से पुर्तगाली नियंत्रण में था, लेकिन अफ्रीका के लिए संघर्ष तक कॉलोनी के अंतर्देशीय हिस्से में कोई दिलचस्पी नहीं ली गई थी।
भूमि का एक बड़ा हिस्सा जो पहले पुर्तगाली था, फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका में खो गया था, जिसमें समृद्ध कैसमेंस नदी क्षेत्र भी शामिल था, जो कॉलोनी के लिए एक बड़ा वाणिज्यिक केंद्र था। ब्रिटेन ने बोलामा पर नियंत्रण करने की कोशिश की, जिससे एक अंतरराष्ट्रीय विवाद पैदा हो गया जो ब्रिटेन और पुर्तगाल के बीच युद्ध के करीब पहुंच गया जब तक कि यू.एस. के राष्ट्रपति यूलिसिस एस. ग्रांट ने हस्तक्षेप नहीं किया और संघर्ष को रोका नहीं। फैसला सुनाया कि बोलामा पुर्तगाल का था।
पुर्तगाली गिनी को 1879 तक केप वर्डे द्वीप कॉलोनी के हिस्से के रूप में प्रशासित किया गया था, जब इसे द्वीपों से अलग करके अपनी कॉलोनी बना लिया गया था।
20वीं सदी के मोड़ पर, पुर्तगाल ने तटीय इस्लाम की आबादी की मदद से, आंतरिक इलाकों की एनिमिस्ट जनजातियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। इससे आंतरिक और दूरस्थ दोनों द्वीपसमूहों पर नियंत्रण के लिए एक लंबा संघर्ष शुरू हुआ: ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक 1936 बीजागोस द्वीप समूह जैसे क्षेत्र पूर्ण सरकारी नियंत्रण में नहीं होंगे।
1951 में, जब पुर्तगाली सरकार ने संपूर्ण औपनिवेशिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया, तो पुर्तगाली गिनी सहित पुर्तगाल के सभी उपनिवेशों का नाम बदलकर "विदेशी प्रांत" कर दिया गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई 1956 में शुरू हुई, जब अमिलकर कैब्राल ने पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे (पुर्तगाली: अफ़्रीकी पार्टी की स्थापना की गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए), पीएआईजीसी। पीएआईजीसी 1961 तक एक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण आंदोलन था, जब इसने पूर्ण पैमाने पर पुर्तगाली के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया, जिसमें विदेशी प्रांत को स्वतंत्र घोषित किया गया और इसका नाम बदलकर गिनी-बिसाऊ कर दिया गया।
युद्ध पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ होने लगा, और 1974 में पुर्तगाल में तख्तापलट के बाद, नई सरकार ने पीएआईजीसी के साथ बातचीत शुरू कर दी। चूंकि उनके भाई अमिलकर की 1973 में हत्या कर दी गई थी, लुइस कैब्रल 10 सितंबर, 1974 को स्वतंत्रता मिलने के बाद स्वतंत्र गिनी-बिसाऊ के पहले राष्ट्रपति बने।
==यह भी देखें== | 1492166 | {
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ज़िगुइनचोर, सेनेगल, 1973 में मेंडेस की शादी में चिको मेंडेस और लुइस कैब्राल की पत्नी, विवरण
निजी जीवन
उन्होंने 1973 में ज़िगुइनचोर, सेनेगल में शादी की और अपने पीछे दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए। | 1492169 | {
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लुइस कैब्राल (7 फरवरी, 1939 - 7 जुलाई, 1978), एक बिसाऊ-गिनी राजनीतिज्ञ थे। वह देश के पहले प्रधान मंत्री थे और इस पद पर आसीन थे | 1492170 | {
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'ओस्वाल्डो मैक्सिमो विएरा (1938 - 31 मार्च 1974) बिसाऊ-गिनी स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी और गिनी-बिसाऊ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रमुख सैन्य कमांडर थे।
संदर्भ
1938 जन्म
1974 मौतें | 1492172 | {
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डोमिंगोस रामोस (बिसाऊ - मदीना डो बोए, 10 नवंबर 1966) गिनी-बिसाऊ और केप वर्डे के एक राष्ट्रीय नायक हैं, जो गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी द्वारा किए गए गुरिल्ला युद्ध के प्रारंभिक चरण के एक पौराणिक व्यक्ति हैं। (पीएआईजीसी)। ) गिनी और केप वर्डे के पूर्व विदेशी प्रांतों में पुर्तगाली शासन के खिलाफ। | 1492174 | {
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हाज़िर जवाब बीरबल एक भारतीय सिटकॉम टेलीविजन श्रृंखला है जिसका प्रीमियर 17 अगस्त 2015 को सिटकॉम अकबर बीरबल की जगह बिग मैजिक पर हुआ था। श्रृंखला का निर्माण ट्राएंगल फिल्म्स प्रोडक्शंस द्वारा किया गया है। इसमें सम्राट अकबर की भूमिका में सौरभ राज जैन और बीरबल की भूमिका में गौरव खन्ना मुख्य भूमिका में हैं।
विषय सारांश
एक मजबूत केंद्रीय चरित्र, बीरबल आज की दुनिया के साथ पहचाने जाने वाले परिवर्तन के एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो शासन के मुद्दों में परिणामों और पारदर्शिता को लक्षित करता है। वह एक मजबूत केंद्रीय चरित्र है जो लोकतांत्रिक विचारों और अधिकारों में विश्वास करता है। बीरबल अकबर के सबसे बड़े सहयोगी, आलोचक, मित्र और दार्शनिक भी हैं, जो उन्हें निर्णय लेने में प्रोत्साहित और मार्गदर्शन करते हैं।
कलाकार
मुख्य कलाकार
सम्राट अकबर के रूप में सौरभ राज जैन
बीरबल के रूप में गौरव खन्ना
नूर जी के रूप में रिम्पी दास
महम अंगा के रूप में विश्वप्रीत कौर
महम अंगा के रूप में शोमा आनंद
अधम खान (महम अंगा के पुत्र) के रूप में विकास खोकर
नकली जलपरी के रूप में ऐश्वर्या सखुजा
इब्ने के रूप में पवन सिंह
बतूता के रूप में सुमित अरोड़ा
राजा दरबान के रूप में यशकांत शर्मा
विशिष्ट व्यक्ति के रुप मे उपस्थित होना
-अनूप सोनी
मोहनलाल के रूप में अमन वर्मा (एपिसोड 40)
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आधिकारिक वेबसाइट
भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम
बिग मैजिक चैनल के कार्यक्रम | 1492208 | {
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{{Infobox person
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विशाल कोटियन एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं। उन्हें हर मुश्किल का हल अकबर बीरबल और अकबर का बल बीरबल में बीरबल की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। 2021 में उन्होंने बिग बॉस 15'' में हिस्सा लिया.
टेलीविजन
पतली परत
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1979 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 1492213 | {
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तितली स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित एक भारतीय हिंदी भाषा की रोमांटिक ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है। यह 6 जून 2023 से 27 अक्टूबर 2023 तक स्टारप्लस पर प्रसारित हुआ और डिज़्नी+हॉटस्टार पर डिजिटल रूप से स्ट्रीम हुआ। इसमें नेहा सोलंकी और अविनाश मिश्रा मुख्य भूमिका में थे।
अवलोकन
तितली एक ऐसी कहानी है जिसका लक्ष्य एक युवा फूल विक्रेता तितली और एक वकील गर्व मेहता की प्रेम कहानी के माध्यम से घरेलू हिंसा, अपमानजनक व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और क्रोध प्रबंधन के मुद्दों को उजागर करना है।
कलाकार
मुख्य
तितली मेहता (नी डेव) के रूप में नेहा सोलंकी: गर्व की पत्नी; मणिकांत और मैना की बहू; परेश और जयश्री की भतीजी; हिरल और चिंटू का चचेरा भाई। (2023)
राव्या सदवानी बाल तितली के रूप में
गर्व मेहता के रूप में अविनाश मिश्रा : तितली के पति; मणिकांत और मैना का बेटा; कोयल का पालक पुत्र और भतीजा; चीकू और मोनिका का छोटा भाई; दृष्टि का बड़ा भाई; हिरेन और अल्पा का भतीजा; धारा की चचेरी बहन (2023)
पुनरावर्ती
कोयल मणिकांत मेहता के रूप में रिंकू धवन: मणिकांत की पहली पत्नी; मैना की बड़ी बहन; चीकू, मोनिका, गर्व, दृष्टि और धारा की दत्तक मां और चाची (2023)
मणिकांत मेहता के रूप में यश टोंक : कोयल और मैना के पति; मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि के पिता; तितली के ससुर; हिरेन के बड़े भाई; अल्पा के बहनोई; धारा के चाचा (2023)
मैना मणिकांत मेहता के रूप में विवाना सिंह : मणिकांत की दूसरी पत्नी; मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि की माँ; धारा की चाची; तितली की सास (2023)
परेश दवे के रूप में सचिन पारिख: जयश्री के पति; हीरल और चिंटू के पिता; तितली के मामा (2023)
हीरल दवे के रूप में निशी सिंह: परेश और जयश्री की बेटी; चिंटू की बड़ी बहन; तितली की चचेरी बहन (2023)
मणिकांत और हिरेन के पिता के रूप में सुशील पाराशर ; गर्व, मोनिका, चीकू, धारा और दृष्टि के दादा (2023)
चिंटू दवे के रूप में देविश आहूजा: परेश और जयश्री के बेटे; हीरल का भाई; तितली की चचेरी बहन (2023)
मोनिका मेहता के रूप में राधिका छाबड़ा: मणिकांत और मैना की बड़ी बेटी; चीकू की छोटी बहन; गर्व और दृष्टि की बड़ी बहन; आदित्य की पत्नी (2023)
दृष्टि मेहता के रूप में प्रतीक्षा राय: मणिकांत और मैना की बेटी; चीकू, गर्व और मोनिका की छोटी बहन; धारा की चचेरी बहन (2023)
हिरेन मेहता के रूप में मनु मलिक: मणिकांत का छोटा भाई; अल्पा का पति; धारा के पिता; चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि के चाचा (2023)
अल्पा हिरेन मेहता के रूप में परिगाला असगांवकर: हिरेन की पत्नी; धारा की माँ; चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि की मौसी (2023)
धारा मेहता के रूप में अदिति चोपड़ा: मोनिका, गर्व, चीकू और दृष्टि की चचेरी बहन; हिरेन और अल्पा की बेटी (2023)
अथर्व "चीकू" मेहता के रूप में ईशान सिंह मन्हास : मणिकांत और मैना का बड़ा बेटा; गर्व, मोनिका और दृष्टि का भाई; धारा की चचेरी बहन (2023)
मेघा प्रसाद मेघा के रूप में: गर्व का चिकित्सक और जुनूनी प्रेमी; तितली की कॉलेज मित्र (2023)
वत्सल शेठ राहुल के रूप में: तितली की पूर्व मंगेतर (2023)
तितली की माँ के रूप में प्रीति गंधवानी (2023) (मृत)
उत्पादन
विकास
मई 2023 में, स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा घरेलू हिंसा के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए श्रृंखला की घोषणा की गई थी।
ढलाई
"तितली" के रूप में नेहा सोलंकी और "गर्व" के रूप में अविनाश मिश्रा को मुख्य भूमिका के रूप में साइन किया गया। वत्सल शेठ को शो में एक कैमियो भूमिका निभाने के लिए पुष्टि की गई थी। सेठजी के बाद यह मिश्रा और सोलंकी के बीच दूसरा सहयोग है।
फिल्माने
मुख्य फोटोग्राफी फिल्म सिटी, मुंबई में शुरू हुई, कुछ शुरुआती दृश्यों की शूटिंग अहमदाबाद में हुई। सोलंकी ने शो को प्रमोट करने के लिए इमली और अनुपमा में भी विशेष भूमिका निभाई।
यह भी देखें
स्टार प्लस द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों की सूची
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
डिज़्नी+हॉटस्टार पर टिटली
स्टार प्लस के धारावाहिक
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक | 1492220 | {
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ग्रामीण कौशल्या योजना या DDU-GKY भारत सरकार की युवा रोजगार योजना है।
अवलोकन
डीडीयू-जीकेवाई को 25 सितंबर 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और वेंकैया नायडू द्वारा लॉन्च किया गया था। डीडीयू-जीकेवाई का दृष्टिकोण " ग्रामीण गरीब युवाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और विश्व स्तर पर प्रासंगिक कार्यबल में बदलना " है। इसका लक्ष्य 15-35 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं को लक्षित करना है। डीडीयू-जीकेवाई राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का एक हिस्सा है, जिसे ग्रामीण गरीब परिवारों की आय में विविधता जोड़ने और ग्रामीण युवाओं की कैरियर आकांक्षाओं को पूरा करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ काम सौंपा गया है। करोड़ ₹ के कोष का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाना है। इस कार्यक्रम के तहत, सरकार की कौशल विकास पहल के हिस्से के रूप में छात्र के बैंक खाते में सीधे डिजिटल वाउचर के माध्यम से भुगतान किया जाएगा।
संदर्भ
भारत में सरकारी योजनाएँ | 1492256 | {
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"title": "दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना",
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मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भारत सरकार द्वारा 19 फरवरी 2015 को शुरू की गई एक योजना है योजना के तहत, सरकार किसानों को मृदा कार्ड जारी करने की योजना बना रही है, जिसमें किसानों को इनपुट के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार करने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत खेतों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और उर्वरकों की फसल-वार सिफारिशें दी जाएंगी। सभी मिट्टी के नमूनों का परीक्षण देश भर की विभिन्न मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में किया जाना है। इसके बाद विशेषज्ञ मिट्टी की ताकत और कमजोरियों (सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी) का विश्लेषण करेंगे और इससे निपटने के उपाय सुझाएंगे। परिणाम और सुझाव कार्ड में प्रदर्शित किए जाएंगे। सरकार की योजना 14 को कार्ड जारी करने की है करोड़ किसान.
योजना
इस योजना का उद्देश्य किसानों को कम लागत पर अधिक उपज प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए मिट्टी परीक्षण आधारित और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर संबंधित फसल के लिए पोषक तत्वों की उचित मात्रा के बारे में जागरूक करना है। इसमें 12 पैरामीटर शामिल हैं।
बजट
की राशि योजना के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था। 2016 में भारत का केंद्रीय बजट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने और प्रयोगशालाएँ स्थापित करने के लिए राज्यों को आवंटित किए गए हैं।
प्रदर्शन
जुलाई 2015 तक, वर्ष 2015-16 के लिए 84 लाख के लक्ष्य के मुकाबले किसानों को केवल 34 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) जारी किए गए थे। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, केरल, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में से थे, जिन्होंने तब तक इस योजना के तहत एक भी एसएचसी जारी नहीं किया था। फरवरी 2016 तक यह संख्या बढ़कर 1.12 करोड़ हो गई फरवरी 2016 तक, 104 लाख मिट्टी के नमूनों के लक्ष्य के मुकाबले, राज्यों ने 81 लाख मिट्टी के नमूनों के संग्रह की सूचना दी और 52 लाख नमूनों का परीक्षण किया। 16.05.2017 तक किसानों को 725 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जा चुके हैं।
योजनाओं
2015-16 के लिए लक्ष्य 100 लाख मिट्टी के नमूने एकत्र करना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने के लिए उनका परीक्षण करना है। 2 करोड़ कार्ड छपाई के अधीन हैं और मार्च 2016 से पहले वितरित किए जाएंगे सरकार की योजना 2017 तक 12 करोड़ मृदा कार्ड वितरित करने की है
संदर्भ
भारत में सरकारी योजनाएँ
भारत में कृषि
2015 में भारत
कृषिविज्ञान | 1492258 | {
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"title": "मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना",
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} |
महात्मा गांधी प्रवासी सुरक्षा योजना एक विशेष सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसमें पेंशन और जीवन बीमा शामिल है, जो प्रवासी जांच आवश्यक (ईसीआर) पासपोर्ट रखने वाले विदेशी भारतीय श्रमिकों के लिए प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। यह एक स्वैच्छिक योजना है जो श्रमिकों को उनकी तीन वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बनाई गई है: सेवानिवृत्ति के लिए बचत, उनकी वापसी और पुनर्वास के लिए बचत, और प्राकृतिक कारणों से मृत्यु के लिए मुफ्त जीवन बीमा कवरेज प्रदान करना।
संदर्भ
भारत में सरकारी योजनाएँ
प्रवासी भारतीय | 1492260 | {
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शाक्य राजवंश की राजकुमारी सुंदरी नंदा, जिन्हें सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है, राजा शुद्धोदन (सिद्धार्थ गौतम के पिता) और रानी महापजापति गोतमी (सिद्धार्थ गौतम की मौसी) की पुत्री थीं। सिद्धार्थ गौतम के ज्ञान-प्राप्ति के उपरांत उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय किया और कुछ समय उपरान्त एक अर्हंत बन गईं। वह बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट ध्यान की परंपरा में भिक्षुणियों के बीच अग्रणी मानी गयी है। सुन्दरी 6वीं सदी ईसा पूर्व में उत्तर भारत (बिहार और उत्तर प्रदेश) में रहती थीं।
आरम्भिक जीवन
उनके पिता राजा शुद्धोदन, जो सिद्धार्थ के पिता भी थे, और उनकी मां महाप्रजापति थीं। महाप्रजापति शुद्धोदन की दूसरी पत्नी थीं, जो उनकी पहली पत्नी रानी माया की छोटी बहन थीं। नंदा का नाम आनंद, संतोष और सुख का है. उनके माता-पिता सुंदरी के जन्मने पर विशेष रूप से आनंदित थे। उसकी सुंदरता दिन-प्रतिदिन प्रखर हो रही थी, इसलिए उन्हे बाद में "जनपद कल्याणी" के रूप में जाना जा गया। समय के साथ, उसके परिवार के कई सदस्यो (कपिलवस्तु के शाक्य वंश) ने अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर संन्यासी जीवन में प्रवृत्त होने का प्रेरणा लिया जिसमे उनके भाई नंदा और दो चचेरे भाई अनुरुद्ध और आनंद भी थे।
उसकी मां, महाप्रजापति, संघ की प्रथम बौद्ध भिक्षुणी बनी. उन्होंने बुद्ध से संघ में महिलाओं को शामिल करने की अनुमति देने के लिए प्रार्थना की थी। इसके परिणामस्वरूप, कई अन्य शाक्य स्त्रियाँ, जिसमें सिद्धार्थ की पत्नी राजकुमारी यशोधरा भी थी, बौद्ध विक्षुणी बनी। इस पर, नंदा ने भी संसार का त्याग किया, परन्तु यह कहा गया है कि वह इसे बुद्ध और धर्म में आत्म-विश्वास के लिए नहीं किया, बल्कि सिद्धार्थ के प्रति भ्रातृ-प्रेम और संबंध के भावना के कारण किया था।
संन्यास
सुंदरीनंदा का ध्यान आरम्भ में अपने सौन्दर्य पर केंद्रित था। वह दृढ़ता पूर्वक ध्यान की उच्च परम्पराओं का पालन नहीं कर रही थी, जो अन्य शाक्य राजवंश के कई सदस्यों ने अपने लौकिक जीवन को त्यागने के लिए रचे थे. बुद्ध उनकी निन्दा करेंगे, इसलिए वह बहुत समय तक उससे बचती रही।परन्तु अन्तत: उन्होने बुद्ध से सन्यास की दीक्षा ली।
बोधि
एक दिन, बुद्ध ने सभी भिक्षुणियों से व्यक्तिगत रूप में अपने शिष्य के रूप में उनकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहा, लेकिन नंदा ने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से उसे बुलवाया, और फिर वह सलज्ज और चिंत्य भाव से पहुँची। बुद्ध ने उससे बात की और उसकी सभी सकारात्मक गुणों की प्रशंसा की, ताकि नंदा उसकी बातों को इच्छुक रूप से सुने और उसमें आनंदित हो। बुद्ध की शिक्षा को उन्होंने सप्रसन्न स्वीकार कर लिया. बुद्ध की यौगिक शक्ति से सुंदरी ने देखा कि कैसे उनकी युवावस्था और सुंदरता का नाश हो रहा है. इस दृश्य का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा. नंदा को इस प्रभावी छवि को देखने के बाद, बुद्ध ने उससे इस तरह से अनित्य की धारणा को समझाया कि उसने इसकी सत्यता को पूरी तरह से समझा, और इस प्रकार निब्बान की सर्वोत्तम आनंद को प्राप्त किया।
बाद में बुद्ध ने सुंदरी नंदा को उन भिक्षुणियों में मान्यता दी जिन्होंने ध्यान की प्रथा में प्रमुख स्थान प्राप्त किया था। अर्हन्त बनाने के उपरांत इस पवित्र सुख का आनंद लेते हुए, उनको और किसी इंद्रिय सुख की आवश्यकता नहीं थी और शीघ्र ही उसने अपनी आत्मिक शांति पाई.
सन्दर्भ:
बुद्धचरित - अश्वघोष
Murcott, Susan (1991). The First Buddhist Women: Translations and Commentaries on the Therigatha. | 1492280 | {
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असम लोक सेवा आयोग एपीएससी (अंग्रेजी: Assam Public Service Commission) असम सरकार के अधीन राज्य के सभी सरकारी सरकारी विभागों में ग्रुप-ए एवं ग्रुप-बी सिविल सेवा के खाली पदों पर पात्र उम्मीदवारों का चयन करने के लिए एक राज्य भर्ती एजेंसी है, इसकी स्थापना असम सरकार के प्रावधान के अनुसार 1 अप्रैल 1937 को असम लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया। संघ लोक सेवा आयोग के संविधान द्वारा बनाई गई ये एक सरकारी संस्था है लोक सेवा आयोग से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग-XIV के अध्याय-II में दिए गए हैं। संविधान में प्रावधान राज्य सेवाओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिए आयोग की क्षमता सुनिश्चित करता है और उन्हें किसी भी क्षेत्र के प्रभाव से स्वतंत्र तरीके से अपने कर्तव्य करने की क्षमता देता है, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति असम राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है वर्तमान समय में आयोग में 1 अध्यक्ष और 6 सदस्य हैं। असम लोक सेवा आयोग का प्रथम कार्य राज्य के सरकारी विभागों (जैसे- प्रशासनिक, कृषि, पुलिस, शिक्षा, आवास, वित्त, परिवहन) में सिविल सेवा पदों पर पात्र उम्मीदवारों के लिए संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करना है।
इतिहास
असम सरकार के प्रावधान के अनुसार असम लोक सेवा आयोग १ अप्रैल १९३७ को अस्तित्व में आया था। भारतीय अधिनियम 1935 इससे पहले आयोग अध्यक्ष लंदन के एक रिटायर्ड आईसीएस अधिकारी श्री जेम्स हेज़लेट थे, 1951 में एक नया विनियमन आने तक श्री जेम्स हेज़लेट के बाद पांच और रिटायर्ड आईसीएस अधिकारियों को अलग-अलग समय के अध्यक्ष बनाया गया, भारत गणतंत्र बनने के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 318 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए असम सरकार के राज्यपाल द्वारा आयोग के नए नियम बनाए गए और ये 1 सितंबर 1951 से लागू हुए। असम लोक सेवा आयोग ने उसी वर्ष कार्यों की सीमा विनियमन को संविधान के अनुच्छेद 320 के खंड II के प्रावधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने हेतु सुनिश्चित किया गया। असम राज्य के प्रतिष्ठित शिक्षाविद् श्री कामेश्वर दास, APSC विनियम 1951 की घोषणा होने के बाद आयोग के पहले गैर आधिकारिक अध्यक्ष थे उन्होंने जुलाई 1952 तक अध्यक्ष पद का कार्यकाल संभाल।
कार्य
असम लोक सेवा आयोग अपने कर्तव्य और कार्यों का निर्वहन करने के लिए भारत के संविधान अनुच्छेद 320 के अनुसार आयोग का अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल द्वारा संबोधित कुछ नियमों और विनियमों के तहत आदेश लेने के लिए स्वतंत्र है।
राज्य सरकार की विभिन्न सेवाओं में सीधी भर्ती के लिए उम्मीदवारों का चयन करना
सरकार को सलाह देने के लिए आयोग के दायरे में सरकार के अधीन सेवारत अधिकारियों को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक केस
सरकारी विभागों के भर्ती नियमों/सेवन नियमों को लागू करने के लिए संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देना
सिविल सेवाओं में भर्ती की पद्धति के संबंध में सरकार को सलाह देना
सरकारी कर्मचारियों के संबंध में सुरक्षा और सैलरी निर्धारण से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देना
सरकारी सेवाओं के लिए इंटरव्यू/स्क्रीनिंग टेस्ट/ लिखित परीक्षा का आयोजित करना
एपीएससी भर्ती परीक्षा
एपीएससी संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा
असम सिविल सेवा (जूनियर ग्रेड)
असम पुलिस सेवा (जूनियर ग्रेड)
असम वित्त सेवा (जूनियर ग्रेड II)
आयोग के वर्तमान पदाधिकारी सूची
यह भी देखें
असम विश्वविद्यालय
असम का इतिहास
असम के लोक नृत्य
असम की चाय बागान समुदाय
असम में उच्च शिक्षा के संस्थानों की सूची
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
एपीएससी आधिकारिक वेबसाइट
असम भर्ती आधिकारिक वेबसाइट
एपीएससी भर्ती पोर्टल
भारतीय राज्यों के लोकसेवा आयोग
असम | 1492305 | {
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अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम (पूर्व नाम: फ़िरोज़ शाह कोटला ग्राउण्ड) दिल्ली का एक प्रमुख खेल का मैदान है। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। स्टेडियम का पहले नाम फ़िरोज़ शाह कोटला ग्राउण्ड था किन्तु मोदी सरकार ने इसका नाम पूर्व वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली जी केे नाम पर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया।
बाहरी कड़ियाँ
विश्व के प्रमुख खेल मैदान
क्रिकेट मैदान
भारत के प्रमुख खेल मैदान | 1492316 | {
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पशुपालन विभाग महाराष्ट्र में पशुपालन की देखभाल के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित एक विभाग है।
महाराष्ट्र में पशुपालन
महाराष्ट्र में कई किसान अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर हैं। दूध,मांस,अंडे,ऊन, उनकी खाद (गोबर) और खाल की आपूर्ति के अलावा, जानवर, मुख्य रूप से बैल, किसानों और ड्रायर्स दोनों के लिए शक्ति का प्रमुख स्रोत हैं। इस प्रकार पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वित्त वर्ष 2015-16 में इस क्षेत्र से उत्पादन का राष्ट्रीय सकल मूल्य 8,123 अरब रुपये था।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
भारत में पशुपालन | 1492412 | {
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पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) एक भारत सरकार का विभाग है। यह मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का एक सहायक विभाग है जिसे 2019 में एक नए भारतीय मंत्रालय के रूप में गठित किया गया था।डीएएचडी या पूर्ववर्ती पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी विभाग का गठन 1991 में कृषि और सहयोग विभाग के दो प्रभागों, अर्थात् पशुपालन और डेयरी विकास, को एक अलग विभाग में विलय करके किया गया था। 1997 में विभाग का मत्स्य पालन प्रभाग खाद्य प्रसंस्कृत उद्योग मंत्रालय का एक हिस्सा इसमें स्थानांतरित कर दिया गया।फरवरी 2019 में मत्स्य पालन विभाग को पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग से अलग किया गया था और यह तब से पशुपालन और डेयरी विभाग के रूप में कार्य कर रहा है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
पशुपालन और डेयरी विभाग
भारत में पशुपालन | 1492423 | {
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मत्स्यपालन मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक राज्य मंत्रालय है।
सन्दर्भ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय | 1492437 | {
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} |
कृषि मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। महाराष्ट्र राज्य में कृषि से संबंधित नियमों और विनियमों और कानूनों के निर्माण और प्रशासन के लिए सर्वोच्च निकाय है। इस मंत्रालय का नेतृत्व वर्तमान मंत्री धनंजय मुंडे कर रहे हैं।
इतिहास
अकाल आयोग (1881) की सिफ़ारिश के बाद 1883 में कृषि विभाग की स्थापना की गई। 1965-66 में फसलों की विभिन्न संकर किस्मों को तैनात किया गया जिसने हरित क्रांति की नींव रखी।
सन्दर्भ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
कृषि संगठन | 1492439 | {
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} |
खेल एवं युवा कल्याण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक राज्य मंत्रालय है।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। संजय बंसोडे महाराष्ट्र सरकार के वर्तमान खेल और युवा कल्याण मंत्री हैं।
सन्दर्भ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
महाराष्ट्र सरकार | 1492442 | {
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} |
सांस्कृतिक मामलों का मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार में एक मंत्रालय है। मंत्रालय क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। सुधीर मुंगंतीवार वर्तमान सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हैं। कैबिनेट मंत्री की सहायता राज्य मंत्री द्वारा की जाती है। 29 जून 2022 से रिक्त, टीबीडी है।
सांस्कृतिक केंद्र
मंत्रालय के पूरे महाराष्ट्र में विभिन्न सांस्कृतिक केंद्र हैं। नांदेड़ में उर्दू संस्कृति केंद्र का नाम बॉलीवुड अभिनेता दिलीप कुमार के नाम पर रखा गया है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
महाराष्ट्र सरकार
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय | 1492467 | {
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} |
शालेय शिक्षण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। यह महाराष्ट्र राज्य में शिक्षा संबंधी नीतियों को डिजाइन करने और लागू करने के लिए जिम्मेदार है।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री दीपक केसरकर करते हैं
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
महाराष्ट्र सरकार | 1492475 | {
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} |
पर्यावरण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। मंत्रालय महाराष्ट्र में पर्यावरण संबंधी मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं।
इतिहास
2020 में पर्यावरण मंत्रालय का नाम बदलकर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर दिया गया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
महाराष्ट्र सरकार | 1492486 | {
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"title": "पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (महाराष्ट्र)",
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} |
Articles with hCards
चार्ल्स हर्बर्ट बेस्ट सीसी, सीएच, सीबीई, एफआरएस, एफआरएससी, एफआरसीपी (27 फरवरी, 1899 - 31 मार्च, 1978), एक अमेरिकी-कनाडाई चिकित्सा वैज्ञानिक और इंसुलिन के सह-खोजकर्ताओं में से एक थे।
सन्दर्भ
१९७८ में निधन
1899 में जन्मे लोग | 1492492 | {
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सामाजिक न्याय मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। यह समाज के वंचित और हाशिए पर मौजूद वर्गों के कल्याण, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए जिम्मेदार है।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और सामाजिक न्याय मंत्री हैं।
इतिहास
मंत्रालय का गठन 1928 में हुआ था। कल्याण विभाग की स्थापना 1932 में हुई थी। समाज कल्याण निदेशालय 23 सितंबर 1957 को बनाया गया था।
संस्थान
मंत्रालय द्वारा समाज के वंचित वर्गों के लिए कई संस्थान शुरू किए गए हैं।
आश्रम विद्यालय
आवासीय विद्यालय
हॉस्टल
विकलांग व्यक्तियों के लिए संस्थान
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय | 1492493 | {
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दिव्यांग कल्याण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का मंत्रालय है जिसे सामाजिक न्याय मंत्रालय से अलग करके 9 जनवरी 2023 को बनाया गया था।
मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और दिव्यांग कल्याण मंत्री हैं।
सन्दर्भ
महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय | 1492502 | {
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} |
स्तनों की खुद जांच कर सकती हैं महिलाये।
डॉक्टर कहते है कि महिलाएं अपने स्तनों की खुद जांच कर सकती हैं। डॉक्टरों बताया कि महिलाओं में जागरूकता की कमी के कारण ही स्तन कैंसर के बढ़ने का एक प्रमुख कारण है। कैंसर के कुछ सामान्य से लक्षण हैं, जिनमें सीने में दर्द होना, सीने की चमड़ी में लाली आ जाना, स्तन के आसपास सूजन आना, निप्पल डिस्चार्ज, निप्पल से खून बहना, स्तन के आकार में परिवर्तन होना अथवा निप्पल का भीतर की तरफ मुड़ना स्तन के कैंसर से लक्षण हैं। यदि उक्त लक्षणों में से महिलाओं को कोई लक्षण दिखता है तो वे तुरंत डाक्टर से सलाह लें। 20 से 30 साल की उम्र तक हर तीन साल के बाद और 30 साल तक की उम्र की महिला को साल में एक बार अपने स्तन कैंसर की जांच करवानी चाहिए। उन्होंने महिलाओं को खुद ही स्तन के कैंसर का चेकअप करने की ट्रेनिग भी दी। सीनियर एसएमओ डा. रमिदर कौर ने कहा कि अगर हम लोग स्तन कैंसर के प्रति जानकार रहेंगे तो कैंसर से होने वाली मौत दर को कम कर सकते हैं। | 1492514 | {
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कपाट लाने की की उद्घोषणा 1842 में काबुल की लड़ाई के दौरान भारत में ब्रिटेन के क्षेत्रों के तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड एलेनबोरो द्वारा जारी एक आदेश था। इस आदेश में जाट सैनिकों से गजनी से उन कपाटों को वापस लाने का आदेश दिया गया था जिनके बारे में कहा जाता था कि महमूद गजनवीने लगभग 800 साल पहले गुजरात के प्रभास पाटन में सोमनाथ मंदिर के विनाश के बाद मन्दिर के कपाटों को गजनी ले गया था और उसकी मृत्यु के बाद इन्हें उसके मकबरे के दरवाजे के रूप में लगाया गया था। ये दरवाजे भारत लाये गये किन्तु बाद में पता चला कि ये सोमनाथ मन्दिर के दरवाजे नहीं थे। इस आदेश का आधार क्या था, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि न तो तुर्क-फ़ारसी स्रोत और न ही भारतीय स्रोत ऐसे किसी कपाट का उल्लेख करते हैं।
विवरण
1842 में, एलेनबरो के प्रथम अर्ल एडवर्ड लॉ ने कपाटों को लाने की अपनी उद्घोषणा जारी की। इस आदेश में उन्होंने अफगानिस्तान में स्थित सेना को गजनी होकर भारत आने तथा गजनी में महमूद की कब्र से चंदन के कपाटों को भारत वापस लाने का आदेश दिया। ऐसा माना जाता था/है कि महमूद इन्हें सोमनाथ के मन्दिर को तोड़ने के बाद गजनी ले गया था। एलेनबरो के निर्देश के तहत, जनरल विलियम नॉट ने सितंबर 1842 में गेट वहँ से निकला दिये। इन कपाटों को भारत वापस लाने के लिए 6वीं जाट लाइट इन्फैंट्री की एक पूरी सिपाही रेजिमेंट को तैनात किया गया था।
जब यह कपाट भारत आ गया तो जाँच में पता चला कि ये कपाट न तो गुजराती या भारतीय डिज़ाइन के थे, और न ही चंदन की लकड़ी के थे। बल्कि ये देवदार की लकड़ी के थे जो गज़नी की देशज लकड़ी थी। अतः ये कपाट सोमनाथ के मन्दिर के कपाट थे, यह प्रामाणित नहीं हुआ। उन्हें आगरा किले के शस्त्रागार भंडार कक्ष में रख दिया गया जहां वे आज भी पड़े हुए हैं। सन 1843 में लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में मंदिर के कपाट लाने के आदेश के मामले में एलेनबरो की भूमिका के सवाल पर बहस भी हुई थी।
संदर्भ | 1492517 | {
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"title": "कपाट लाने की उद्घोषणा",
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भारतीय नाम: दहियर, दहियल, ग्वालिन, दयाल, दहगल, काली सुई चिड़िया, श्रीवद (संस्कृत), दहियक (संस्कृत), कालकंठ (संस्कृत)।
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name): Capsychus saularis
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Muscicapidae
Genus: Capsychus
Species: Saularis
वर्ग श्रेणी: गाने वाली चिड़िया
जनसङ्ख्या: स्थिर
संरक्षण स्थिति (IUCN): सङ्कट-मुक्त
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
नीड़-काल : मार्च से जुलाई तक।
आकार : लगभग 7.5 इंच
दहियर पक्षी सामान्य रूप से भारत मे पाया जाने वाला पक्षी है। यह सुबह के समय मधुर संगीत गाता हुआ मिल जाता है। इनका रंग काला तथा सफेद होता है। पूछ को झटके के साथ ऊपर तथा नीचे करते हैं।
पहचान एवं रंग रूप: दहियर मानव आवास के निकट झाड़ी, उपवन वाटिकाओं आदि में कीड़े-मकोड़े (खोजते या किसी ऊंची शाखा पर बैठकर मधुर संगीत सुनाते देखा जा सकता है। इसके नर और मादा दोनों ही अपनी पूंछ को ऊपर उठाते हैं और एक झटके में ही नीचे गिरा देते हैं। नर का वर्ण आभायुक्त कृष्ण, अधोभाग श्वेत एवं डैने कृष्ण वर्णीय होते हैं जिन पर बड़ी श्वेत चित्तियाँ होती हैं, पूँछ लम्बी और उठी हुई होती है।
मादा का वर्ण गहन वातामी, जिस पर नीली आभा होती है। उदर का भाग किञ्चित वातामी, डैने गहन श्याव कल्छौह जिन पर दोनों ओर तनु श्वेत वर्णीय पंख बीच में होते हैं परन्तु उनमें आभा नर जितनी नहीं होती हैं। चोंच और पैर कृष्णवर्णी होते हैं।
निवास: दहियर वाटिकाओं और मैदानों की झाड़ियों में देखा जा सकता है। इसे घने जंगल और खुले स्थान प्रिय नहीं हैं और धूप-छाँव युक्त कँटीली झाड़ियाँ अधिक रुचिकर हैं। भूमि पर भी भोजन खोजना इसे प्रिय है।
भारत में इसके प्रजनन का समय मार्च से आरम्भ होकर जुलाई तक होता है। यह अपना नीड़ 2-7 मीटर की ऊँचाई पर वृक्षों और भवनों के बाहरी सुरक्षित कोटरों, अट्टालिकाओं के नीचे आदि स्थानों पर बनाती है। इनका नीड़ सुन्दर होता है जिसे बनाने के लिए ये घास, तृणमूल, पक्षियों के पंख और रेशों का उपयोग करते हैं। समय आने पर मादा इसमें 4-5 अण्डे देती है। अण्डे सुन्दर और आभायुक्त होते हैं जिनका वर्ण तनु हरित होता है एवं उन पर भूरे वर्ण की चित्तियाँ होती है। | 1492523 | {
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निर्मोहगढ़ का युद्ध 1702 में सिखों और मुगल साम्राज्य के बीच लड़ा गया था जिसमें सिख विजयी हुए थे।
पृष्ठभूमि
आनंदपुर (1700) की खूनी लड़ाई में शाही मुगल सेना हार गई। इस युद्ध में मुगल सेना की हार की खबर सुनने के बाद औरंगजेब ने स्वयं गुरु गोबिंद सिंह के खिलाफ वजीर खान के नेतृत्व में एक नई सेना भेजी। वजीर खान शिवालिक पहाड़ियों के पहाड़ी राजाओं के बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ आगे बढ़ा।
आनंदपुर के ठीक बाहर निर्मोहगढ़ में सतलुज नदी के तट पर सिखों से वज़ीर खान का युद्ध हुआ। मुगलों ने एक तरफ से गुरु पर हमला किया और पहाड़ी राजाओं ने दूसरी तरफ से उन पर हमला किया। लड़ाई पूरे दिन और रात तक भयंकर रूप से जारी रही। अंततः मुगलों और पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना समाप्त हो गई और पीछे हटने के लिए मजबूर हो गयी।
अगली सुबह, मुगलों और पहाड़ी राजा की सेना ने फिर से हमला करना शुरू कर दिया और गुरु गोबिंद सिंह ने, खुद को बहुत अधिक संख्या में पाते हुए, उस स्थान से निकलने का फैसला किया। दुश्मन सैनिकों ने उनका पीछा किया और तब गुरु जी की सेना ने फिर लड़ने का फैसला किया। इस बार मुगलों और पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना निर्णायक रूप से हार गई और दो दिनों की लड़ाई के बाद शाही मुगल सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
संदर्भ | 1492525 | {
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बलजीत गढ़ी भारत के Uttar Pradesh राज्य के Hathras district की Sadabad तहसील के Hasanpur Baru ग्राम पंचायत का एक गाँव है।
Villages in Hathras district | 1492528 | {
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हृदय शंकर सिंह उत्तर प्रदेश में मां शाकुंभरी विश्वविद्यालय के पहले कुलपति हैं।
इससे पहले प्रोफेसर एच. एस. सिंह चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए थे. वह चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में प्रति-कुलपति, परीक्षा नियंत्रक और सर छोटू राम इंजीनियरिंग कॉलेज में निदेशक रहे हैं। | 1492539 | {
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} |
पालीवाल ब्राम्हण वंश की उपशाखा है | जिसका भारतीय इतिहास में वर्णन मिलता है | ऋषि हारित मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल के गुरु थे | जिन्होंने बप्पा रावल को अजेय देह तथा धरती में गडा धन प्रदान किया | ऋषि हारित के वंशज ऋषि सरसल जी हुए | राजऋषि सरसल जी जो की मेवाड़ राज्य के राजा राणा राहप के गुरु और राजपुरोहित थे |इन्हीं के वन्शज पुरोहित हुए | | 1492557 | {
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"title": "पालीवल ब्राम्हण (पुरोहित भारद्वाज)",
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Articles with short description
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नारायणपुर बाद भारत के उत्तर प्रदेश का एक गाँव है। यह हसनपुर बारू ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। यह गांव हाथरस जिले के सादाबाद ब्लॉक में स्थित है, 2 हसनपुर बारू के उत्तर में किमी.
हाथरस ज़िले के गाँव
विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक | 1492559 | {
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} |
द कॉन्ज्यूरिंग 2 2016 की अमेरिकी अलौकिक हॉरर फिल्म है, जिसका निर्देशन जेम्स वान ने किया है। चाड हेस, केरी डब्ल्यू. हेस, जेम्स वान और डेविड लेस्ली जॉनसन ने फिल्म का पटकथा लिखा है। यह फिल्म 2013 की द कॉन्ज्यूरिंग फिल्म की अगली कड़ी, द कॉन्ज्यूरिंग श्रृंखला की दूसरी किस्त और द कॉन्ज्यूरिंग यूनिवर्स फ्रेंचाइजी की तीसरी किस्त है। पैट्रिक विल्सन और वेरा फ़ार्मिगा ने पहली फिल्म से असाधारण जांचकर्ता और लेखक एड और लोरेन वॉरेन के रूप में अपनी भूमिकाएं दोहराईं। फिल्म वॉरेन परिवार पर आधारित है, जो हॉजसन परिवार की सहायता के लिए इंग्लैंड की यात्रा करते हैं, जो 1977 में अपने एनफील्ड काउंसिल हाउस में पोल्टरजिस्ट गतिविधि का अनुभव कर रहे हैं, जिसे बाद में एनफील्ड पोल्टरजिस्ट के रूप में जाना जाने लगा।
पात्र
वेरा फ़ार्मिगा - लोरेन वॉरेन
पैट्रिक विल्सन - एड वॉरेन
मैडिसन वोल्फ - जेनेट हॉजसन
फ्रांसिस ओ'कॉनर - पैगी हॉजसन
लॉरेन एस्पोसिटो - मार्गरेट हॉजसन
बेंजामिन हाई - बिली हॉजसन
पैट्रिक मैकाले - जॉनी हॉजसन
साइमन मैकबर्नी - मौरिस ग्रोस
मारिया डॉयल कैनेडी - पैगी नॉटिंघम
साइमन डेलाने - विक नॉटिंघम
फ्रेंका पोटेंटे - अनीता ग्रेगरी
बॉब एड्रियन - बिल विल्किंस
रॉबिन एटकिन डाउन्स - शैतान की आवाज
बोनी आरोन्स - नन
जेवियर बोटेट - क्रुक्ड मैन
स्टीव कूल्टर - फादर गॉर्डन
अभी सिन्हा - हैरी व्हिटमार्क
क्रिस रॉयड्स - ग्राहम मॉरिस
स्टर्लिंग जेरिन्स - जूडी वॉरेन
डैनियल वोल्फ - केंट एलन
एनी यंग - कांस्टेबल हीप्स
इलियट जोसेफ - कांस्टेबल पीटरसन
कोरी इंग्लिश - स्केप्टिक कपलान
जोसेफ बिशारा - शैतान
शैनन कूक - ड्रयू
पुरस्कार
संदर्भ
बाहरी लिंक
2016 की फ़िल्में | 1492576 | {
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} |
माकेन्यू अराता (, , जन्म 16 नवंबर, 1996) एक जापानी-अमेरिकी अभिनेता हैं। वह जापानी माता-पिता, सोया चिबा और जापानी एक्शन फिल्म स्टार सन्नी चिबा के बेटे हैं, और उनके दो भाई-बहन हैं, एक सौतेली बहन का नाम जूरी मनसे (उनके पिता की पिछली शादी से बेटी) और एक भाई जिसका नाम गॉर्डन मैडा है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
जीवित लोग
1996 में जन्मे लोग
अमेरिकी अभिनेता | 1492586 | {
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} |
डॉ. केतन रेवनवार एक भारतीय दंत चिकित्सक हैं। वह मुंबई के खारघर में स्थित परफेक्ट32 डेंटल क्लिनिक नामक डेंटल क्लिनिक के संस्थापक और मालिक हैं। वह सामान्य दंत चिकित्सा, कॉस्मेटिक दंत चिकित्सा, ऑर्थोडॉन्टिक्स और मौखिक सर्जरी में एक मास्टर विशेषज्ञ हैं।
जीवन परिचय
डॉ. केतन रेवनवार का जन्म महाराष्ट्र के बीड़ ज़िले में पिता कोंडीराम रेवनवार और माता श्रीमती विजय कोंडीराम के घर हुआ था। डॉ. केतन रेवनवार महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से बीडीएस की डिग्री की डिग्री हासिल की थी।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंस्टाग्राम पर डॉ. केतन रेवनवार
चिकित्सा पद्धति
चिकित्सा
चिकित्सा
दंत चिकित्सा | 1492598 | {
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वास्तु महागुरु बसंत आर रासिवासिया एक प्रसिद्द वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हैं l बसंत रासिवासिया रिवाइवल वास्तु नामक संस्थान व आधुनिक संगणक मोबाइल एप्लीकेशन, रीवास्तु के संचालक हैं l उन्हें वास्तु शास्त्र में महारत हासिल है यही वजह है की वह जाति, पंथ और सामाजिक स्थिति की बाधाओं को पार करने वाली तकनीक का उपयोग करके प्राचीन विज्ञान वास्तु शास्त्र की ऊर्जा को दुनिया में फैला रहे हैं।
जीवन परिचय
बसंत आर रासिवासिया भारतीय वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ व ज्योतिषाचार्य हैं, इन्हे वास्तु महागुरु की उपाधि दी गयी है। व इनका जन्म असम के तिनसुकिया शहर में दिनांक 26 अक्टूबर 1970 को हुआ है। उन्होंने अपनी दसवीं तक की पढाई निरुपमा हाई स्कूल से पूरी की व आगे की पढाई तिनसुकिया कॉलेज से की है l रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी देवी है। बसंत रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी देवी है। बसंत रासिवासिया को भारतीय संस्कृति में योगदान के लिए मेक अर्थ ग्रीन अगेन मेगा फाउंडेशन द्वारा वास्तु महागुरु का टाइटल से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हे महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के द्वारा डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इंस्टाग्राम पर बसंत आर रासिवासिया
ज्योतिष
1970 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 1492607 | {
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KV
3TEP
इल्कल साड़ीइल्कल साड़ी
इल्कल साड़ी
एक पारंपरिक रूप है जो भारत में महिलाओं का एक आम पहनावा है। इल्कल साड़ी का नाम भारत के कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले के इलकल शहर से लिया गया है। इलकल साड़ियों को शरीर पर सूती ताने और बॉर्डर के लिए आर्ट सिल्क ताना और साड़ी के पल्लू हिस्से के लिए आर्ट सिल्क ताना का उपयोग करके बुना जाता है। कुछ मामलों में कला रेशम के स्थान पर शुद्ध रेशम का भी उपयोग किया जाता है।
ऐतिहास
इल्कल एक प्राचीन बुनाई केंद्र था जहां बुनाई आठवीं शताब्दी ईस्वी में शुरू हुई प्रतीत होती है। इन साड़ियों की वृद्धि का श्रेय बेल्लारी शहर और उसके आसपास के स्थानीय सरदारों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण को दिया जाता है। स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता ने इस साड़ी के विकास में मदद की।इल्कल शहर में लगभग 20000 लोग साड़ी-बुनाई में लगे हुए हैं।
विशिष्टता
साड़ी की विशिष्टता शरीर के ताने-बाने को पल्लू के ताने-बाने के साथ लूपों की एक श्रृंखला के साथ जोड़ना है जिसे स्थानीय रूप से टोपे टेनी तकनीक कहा जाता है।
उपरोक्त टोपे टेनी तकनीक के कारण बुनकर केवल ६गज, ८ गज, ९ गज की चाल से चल सकेगा। कोंडी तकनीक का उपयोग ३ शटल डालकर बाने के लिए किया जाता है।
पल्लाउ भाग-डिज़ाइन: "टोपे टेनी सेरागु" आम तौर पर टोपे टेनी सेरागु में 3 ठोस भाग लाल रंग में होंगे, और बीच में 2 भाग सफेद रंग में होंगे।
टोपे टेनी सेरागु को एक राज्य प्रतीक माना जाता है और त्योहार के अवसरों के दौरान इसका बहुत सम्मान किया जाता है।
पारंपरिक बॉर्डर: (i) चिक्की, (ii) गोमी, (iii) जरी और (iv) गदीदादी, और आधुनिक गायत्री इल्कल साड़ियों में अद्वितीय हैं - चौड़ाई 2.5" से 4" तक है।
सीमा रंग विशिष्टता: लाल आमतौर पर या मैरून हावी होता है।
विवरण
अगर किसी को इल्कल साड़ी की जरूरत है तो उसे हर साड़ी के लिए एक ताना-बाना तैयार करना होगा। शरीर के लिए ताना धागे अलग से तैयार किए जाते हैं। इसी प्रकार पल्लू का ताना-बाना आवश्यक गुणवत्ता के आधार पर कला रेशम या शुद्ध रेशम से अलग से तैयार किया जाता है। तीसरा, ताने का बॉर्डर भाग तैयार किया जाता है, जैसे पल्लू ताना, या तो कला रेशम या शुद्ध रेशम और पल्लू और बॉर्डर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रंग एक ही होगा।
इल्कल साड़ियों की विशिष्ट विशेषता कसुती नामक कढ़ाई के एक रूप का उपयोग है। कसुती में उपयोग किए गए डिज़ाइन पालकी, हाथी और कमल जैसे पारंपरिक पैटर्न को दर्शाते हैं जो इल्कल साड़ियों पर कढ़ाई किए गए हैं। ये साड़ियाँ आम तौर पर ९ गज लंबी होती हैं और इल्कल साड़ी के पल्लू (कंधे पर पहना जाने वाला हिस्सा) पर मंदिर के टावरों के डिज़ाइन बने होते हैं। यह पल्लू आमतौर पर सफेद पैटर्न के साथ लाल रेशम से बना होता है। पल्लू का अंतिम क्षेत्र हनीगे (कंघी), कोटि कम्मली (किले की प्राचीर), टॉपुटेन (ज्वार) और रम्पा (पर्वत श्रृंखला) जैसे विभिन्न आकृतियों के पैटर्न से बना है।साड़ी का बॉर्डर बहुत चौड़ा और लाल या मैरून रंग का होता है और गेरू रंग के पैटर्न के साथ अलग-अलग डिजाइन से बना होता है। साड़ी या तो कपास से बनी होती है, या कपास और रेशम के मिश्रण से या शुद्ध रेशम से बनी होती है। परंपरागत रूप से उपयोग किए जाने वाले रंग अनार लाल, शानदार मोर हरा और तोता हरा हैं। दुल्हन के पहनावे के लिए जो साड़ियाँ बनाई जाती हैं, वे गिरी कुमुकुम नामक एक विशेष रंग से बनी होती हैं, जो इस क्षेत्र में पुजारियों की पत्नियों द्वारा पहने जाने वाले सिन्दूर से जुड़ा होता है।
लंबाई के अनुसार बॉर्डर में बुनी गई डिज़ाइन मुख्यतः तीन प्रकार की होती है: गोमी (इल्कल दादी के नाम से अधिक प्रसिद्ध), पैरास्पेट (चिक्की पारस और डोड पारस में उप-विभाजित) गाड़ी जारी है। मुख्य बॉडी डिज़ाइन धारियों, आयत और वर्गों है।
उत्पादना
इल्कल साड़ियों की बुनाई ज्यादातर एक इनडोर गतिविधि है। यह मूलतः एक घरेलू उद्यम है जिसमें महिला सदस्यों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। हथकरघे की मदद से एक साड़ी बुनने में करीब सात दिनो का समय लगता है. इसे हम पावरलूम की मदद से भी बुन सकते हैं।
इल्कल पारंपरिक साड़ियाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के विभिन्न धागों के संयोजन से पिटलूम पर तैयार की जाती हैं।एक बुनकर को तैयारी के काम के लिए अपने अलावा दो अन्य लोगों की आवश्यकता होती है।
सन्दर्ब
इल्कल साड़ियों का संक्षिप्त इतिहास कमला रामकृष्णन द्वारा प्रदान किया गया है। "दक्षिणी विरासत"। द हिंदू का ऑनलाइन संस्करण, दिनांक 1999-06-20। 1999, द हिंदू। 1 जुलाई 2007 को मूल से संग्रहीत।
"इल्कल साड़ी की कहानी"। इकोनॉमिक टाइम्स का ऑनलाइन संस्करण, दिनांक 2002-12-12। © 2007 टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड। 12 दिसंबर 2002। 28 अगस्त 2004 को मूल से संग्रहीत। | 1492609 | {
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खान सर, बिहार के पटना जनपद के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट के अध्यापक है जिन्होंने जिनके पढ़ने के तरीके से वह विश्व विख्यात हो चुके हैं। इसी के साथ ही उनकी कोचिंग के काम फीस होने के कारण उनसे करोड़ विद्यार्थी संपूर्ण विश्व में जुड़े हैं और सस्ती और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । | 1492617 | {
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राभा सग़राई नृत्य , आसाम (भारत ) मैं कृषि एकता का प्रस्तुतीकरण है। यह मोहक नृत्य राभा जनजाति के खूबसूरत लोगों द्वारा किया जाता है जिसमें वह अपनी अपनी संस्कृति की झलक प्रदर्शित करते हैं। नृत्य में संस्कृति और कृषि परंपराओं का समागम होता है और उनके जीवन शैली की झांकी प्रस्तुत की जाती है। यह प्राकृतिक नृत्य विभिन्न मौसम चक्राें के अनुसार किया जाता है जो आगामी फसली मौसम का सूचक होता है। तदनुसार राभा लोग साथ मिलकर एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर पारंपरिक परिधानों में अपनी एकता का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य के दौरान ताल के अनुसार ढोल बजाए जाते हैं और वाद्य यंत्रों के साथ सुर मिलाए जाते हैं। मनमोहक स्वर संगति की सामूहिक ध्वनि की गूंज पूरे क्षेत्र में सुनाई पड़ती है। इन गीतों में ग्रामीण कथाओं का समावेश होता है और कृषि कार्य के साथ प्रसन्न रहने का संदेश दिया जाता है। राभा सग़राई नृत्य केवल नृत्य ही नहीं है वरन इसमें सांस्कृतिक विरासत का चित्रण भी किया जाता है जो पीढ़ियाेऺ में हस्तांतरित होता रहता है। इसमें परंपरागत मूल्य और पीढ़ियाेऺ का इतिहास प्रदर्शित होता है। इससे पता चलता है कि यह लोग धरती माता से कितनी आत्मीयता से जुड़े हुए हैं। राभा सग़राई नृत्य खुले आसमान के नीचे किया जाता है यह वे लोग हैं जो प्रत्येक मौसम में आने वाली कठिनाइयों का हर्षो उल्लास से स्वागत करते हैं और अपनी विशिष्ट संस्कृति कि आमिट छाप छोड़ते हैं।
अनुक्रम
•फसल उत्सव और प्रतीकवाद।
•लयबद्ध पैटर्न और उपकरण
•कथात्मक अभिव्यक्तियां
•एकता और सामाजिक जूड़ाव
•पारेषण परंपराएं
•साऺस्कृतिक लचीलापन और चुनौतियां
फसल उत्सव और प्रतीक वाद
राभा सग़राई नृत्य प्रकृति के मौसमीय चक्र से प्रभावित है जिसमें फसल चक्र पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस नृत्य में ईश्वर और देवताओं की महानता का आभार व्यक्त किया जाता है जो उनके कृषि संबंधित प्रयासों को सार्थकता प्रदान करते हैं।
नृत्य प्रदर्शन
राभा नृत्य के प्रकार
1. संग़राई नृत्य
राभा उत्सव का मुख्य आकर्षण संग़राई नृत्य है जो इस समारोह का दिलऔर आत्मा है। नृत्य करने वाले संगीत की स्वर लहरियों के अनुसार भाव भंगिमायै प्रस्तुत करते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करते हैं। इसमें उनकी एकता प्रदर्शित होती है।
2. बाईखू नृत्य
बाईखू नृत्य अत्यंत मनमोहक शक्ति प्रदर्शन नृत्य है। इसमें कई दैनिक क्रियाकलापों को लयबद् तरीके से निहित किया जाता है जैसे खेती,मत्स्य पालन और कला कौशल। इससे पता चलता है कि राभा लोग किस प्रकार एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं।
3. बिहू नृत्य'
बिहू नृत्य बिहू त्योहार के दौरान किया जाता है। नृत्य करने वाले रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं जो असम की जीवंत संस्कृति का प्रतीक है और सर्दियों के मौसम के बाद बसंत ऋतु के आगमन को चिन्हित करता है।
4. रंगधाली नृत्य
रंगधाली नृत्य मैं पौराणिक कथाओं का चित्रण किया जाता है और राभा के लोकगीतों का उत्साहवर्धक गायन किया जाता है। इसमें जनजाति की कलात्मक संवेदनाओं का पथ प्रदर्शन किया जाता है और पीडियोऺ से चली आ रही कथाओं का मनमोहक प्रदर्शन किया जाता है।
5. सुआल नृत्य
सुआल नृत्य मैं हाथ पैरों की भाव भंगिमाॵ से राभा जनजाति की कलात्मक शक्तियों का चित्रण किया जाता है। इस नृत्य में प्रकृति को कल से जोड़ते हुए पक्षियों और जीव जंतुओं के क्रियाकलापों को प्रदर्शित किया जाता है।
6. बागरूमबा नृत्य
बागरूमबा नृत्य मैं परंपरागत वस्त्राे से सजे धजे नर्तक,जीवन के प्रति भाव भंगिमाऺये प्रस्तुत करते हैं और लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
7. वाऺग्ला नृत्य
वाऺग्ला नृत्य मैं नर्तक एक घेरा बनाते हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए अपने पूर्वजों और देवताओं का स्तुति गान करते हैं। भूमि और दैवी शक्तियों को संयोजित करते हुए नर्तक प्रार्थना करते हैं।
राभा सग़राई नृत्य:ताल पद्धतियां तथा संगीत उपकरण
राभा सग़राई नृत्य,परंपरागत संगीत उपकरणाेऺ की ताल पर आधारित होता है।ढोल की गूंज और टाका (हाथ में पकड़ कर बजाए जाने वाला उपकरण) की धुन तथा पेपा (परंपरागत बांसुरी) की धुन का समन्वय इस नृत्य में देखा जा सकता है।
कथात्मक विवरण
नृत्य के आगे बढ़ने के साथ-साथ भाव भंगीमाओं तथा स्वर लहरियों में जनजातीय जीवन, प्रकृति की सुंदरता, बीज बोने और फसल काटने की कथाओं का वर्णन किया जाता है। नृत्य जीवंत होता जाता है जिसमें राभा समुदाय की कृषि-जीवन पद्धति,जय विजय तथा स्थानीय प्रतिबद्धता का चित्रण किया जाता है।
एकता तथा सामुदायिक प्रतिबद्धता
सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ राभा नृत्य में समुदाय के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करी जाती है। इसमें व्यावसायिक मूल्य, साऺस्कृतिक प्रतिबद्धता तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए ज्ञान का प्रचार किया जाता है। नृत्य में प्राय: कथा वाचन और अनौपचारिक विचार विमर्श शामिल हो जाता है जो इतिहास के साथ मिलकर समुदाय को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है।
मौखिक परंपराएं
राभा सग़राई नृत्य मौखिक परंपराओं से आगे बढ़ता है जिसमें बुजुर्ग पीढ़ी द्वारा युवा पीढ़ी को गीतोऺ, नृत्याेऺ, कहानियाेऺ तथा हाव भाव की शिक्षा दी जाती है जो उनकी परंपराओं को परिलक्षित करती है।
अनुकूल क्षमता तथा चुनौतियां
आधुनिक प्रभावों के कारण राभा समुदाय को अपनी संस्कृति तथा अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। राभा सग़राई नृत्य तथा राभा जीवन शैली को जीवित रखनेऺ और आगे बढ़ाने के लिए मानव विज्ञानियाैऺ तथा सांस्कृतिक उत्थानकर्ताओं द्वारा प्रयास किया जा रहे हैं।
संदर्भ | 1492651 | {
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12वीं फेल 2023 की भारतीय हिंदी भाषा की ड्रामा फिल्म है , जो विधु विनोद चोपड़ा द्वारा लिखित और निर्देशित है। फिल्म यह अनुराग पाठक के उपन्यास "ट्वेल्थ फेल" पर आधारित है। इस फिल्म में विक्रांत मैसी, मेधा शंकर, संजय बिश्नोई और हरीश खन्ना मुख्य भुमिकाओं मे हैं। यह फ़िल्म 27 अक्टूबर 2023 को रिलीज़ हुई थी फिल्म को समीक्षकों से सकारात्मक समीक्षा मिली।
कथानक
यह फिल्म मनोज कुमार शर्मा (विक्रांत मैसी) के आईपीएस अधिकारी बनने की यात्रा को दर्शाती है।
पात्र
विक्रांत मैसी - मनोज कुमार शर्मा के रूप में
मेधा शंकर
प्रियांशु चटर्जी
संजय बिश्नोई
हरीश खन्ना
विकास दिव्यकीर्ति स्वयं के रूप में
सुंदर के रूप में विजय कुमार डोगरा
उत्पादन
फिल्म निर्माण प्रक्रिया
नवंबर 2022 में, फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने अनुराग पाठक के उपन्यास ट्वेल्थ फेल की कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा की। यह फिल्म आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस अधिकारी श्रद्धा जोशी की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है।
पात्रों का चयन
विधु विनोद चोपड़ा ने नवंबर 2022 में घोषणा की कि 12वीं फेल फिल्म में विक्रांत मैसी मुख्य भूमिका निभाएंगे, यह विधु विनोद चोपड़ा का विक्रांत मैसी के साथ पहला काम होगा। प्रसिद्ध यूपीएससी कोचिंग प्रोफेसर विकास दिव्यकीर्ति फिल्म में स्वयं का ही किरदार निभाएंगे। इस फिल्म में वास्तविक जीवन के यूपीएससी की तैयारी करने वाले कई अभ्यर्थीयों को विभिन्न भूमिकाओं में चुना गया है। मैसी के अनुसार इससे फिल्म में प्रामाणिकता रहेगी।
संदर्भ
उपन्यासों पर आधारित फिल्में
भारतीय ड्रामा फ़िल्में
2023 की फ़िल्में | 1492657 | {
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नईम अख्तर माथाडीह का एक मुस्लिम युवा नेता है जो 5 माई 2019 से राजनीति कर रहे हैं।
नईम अख्तर का संकल्प "युवाओं को एक जुट करना और एक जुट हुए युवाओं को अधिकार दिलाना है " | 1492668 | {
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ताना भगत भारत के झारखंड का एक आदिवासी समुदाय है। इनका संबंध ऐतिहासिक ताना भगत आंदोलन (1914) से है।
गठन
टाना भगतों का गठन ओराँन संत जतरा भगत और तुरिया भगत ने किया था। जतरा भगत ने घोषणा की कि उन्हें एक नए संप्रदाय, ताना संप्रदाय की स्थापना के लिए दैवीय रूप से नियुक्त किया गया था, जो ओरांव समुदाय से स्पष्ट रूप से अलग था। तानों ने पाहन (उराँव पुजारियों) और महतो (धर्मनिरपेक्ष मामलों में गाँव के प्रतिनिधि) के पारंपरिक नेतृत्व का विरोध करके और आत्मा पूजा और बलिदान की प्रथाओं को अस्वीकार करके ओराँव समाज को फिर से संगठित करने की कोशिश की। अपने प्रारंभिक चरण में इसे कुरुख धर्म कहा जाता था। कुड़ुख उराँवों का मूल धर्म है।
आंदोलन
ताना भगतों ने अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों का विरोध किया और उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से पहले भी पोगा सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन) किया। उन्होंने जमींदारों, बनियों (साहुकारों), मिशनरियों, मुसलमानों और ब्रिटिश राज्य का विरोध किया। ताना भगत गांधी के अनुयायी हैं और अहिंसा में विश्वास करते हैं।
शताब्दी
ताना भगत आंदोलन के 100 वर्ष पूरे होने पर गुमला जिले के अलावा रांची, लोहरदगा, लातेहार और चतरा के ताना भगतों के साथ एक समारोह आयोजित किया गया था।
संदर्भ
भारतीय जातियाँ
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मानव सोनेजा एक भारतीय अभिनेता हैं, इनका जन्म मुंबई में हुआ था। उन्हें आनंदीबा और एमिली में जमन, काटेलाल एंड संस में फिटकारी, मेरे साईं में अली और गुजरात 11 में विक्की के रूप में किरदार निभाने के लिए जाना जाता है।
करियर
सोनेजा ने 2015 में टीवी सीरियल पलक पे झलक से डेब्यू किया था। 2017 में उन्होंने वेब-सीरीज़ लाखों में एक में हंसल साहू के रूप में अभिनय किया। 2019 में सोनेजी ने टीवी सीरीज मेरे साईं में अली और फिल्म गुजरात 11 में विक्की की भूमिका निभाई है। 2020 में उन्होंने काटेलाल एंड संस में फिटकारी के रूप में काम किया। उन्होंने 2021 में टीवी मिनी सीरीज़ दिल-ए-काउच में पटकन के रूप में अभिनय किया। 2022 में, सोनेजी ने आनंदीबा और एमिली में जमन के रूप में अभिनय किया।
फिल्मोग्राफी
सन्दर्भ
21वीं सदी के अभिनेता
भारतीय पुरुष अभिनेता | 1492690 | {
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राम सिंह धौनी (24 फरवरी सन् 1893 ई० -- 12 नवम्बर 1930 ई०) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं समाजसेवक थे। सन् 1921 ई० सर्वप्रथम उन्होंने ही “जयहिन्द” नारे का उद्घोष किया था। वे सच्चे देशभक्त, समाज सुधारक, शिक्षाशात्री, स्वाभिमानी, निर्भीक, हिंदीप्रेमी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति तथा सात्विक जीवन यापन करने वाले महान कर्मयोगी थे।
रामसिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। वे बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् 1908 ई० के जैती (सालम) से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा 5 में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें पाँच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।
सन् 1912-13 ई० के आस-पास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं० मदनमोहन मालवीय, विनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से रामसिंह के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् 1912 ई. में स्वामी सत्यदेव अल्मोड़ा आए और उन्होंने यहाँ पर ‘शुद्ध साहित्य समिति’ की स्थापना की। रामसिंह इस साहित्य समिति’ के स्थाई सदस्य बन गए। स्वामी जी के भाषणों तथा ‘शुद्ध साहित्य समिति’ के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
अब उनका समय हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ श्रेष्ठ ग्रंथों के गहन अध्ययन तथा अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन में व्यतीत होने लगा। स्वामी सत्यदेव जी द्वारा अपने निवास स्थान नारायण तेवाड़ी देवाल में खोले गए ‘ग्रीष्म स्कूल’ में भी धौनी जी का आना-जाना बना रहता था. धौनी जी ने हाईस्कूल के अपने सहपाठियों के सहयोग से एक छात्र सभा सम्मेलन’ का भी गठन किया जिसमें समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाषा की उन्नति विषयक चर्चाएं होती थीं। इन्हीं दिनों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जोशी जी से बंगला भाषा भी सीखी।
हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए धौनी इलाहाबाद (प्रयागराज) चले गए और वहां उन्होंने ‘इविन क्रिश्चियन कालेज’ में प्रवेश लिया। सन 1917 में उन्होंने एफ. ए. तथा सन् 1919 ई० में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सालम लौट आए। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बी. ए. उतीर्ण करने वाले पहले व्यक्ति वही थे।
विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक घटना-चक्र के प्रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थी। इलाहाबाद में विद्याध्ययन के दौरान 'फिलाडेलफिया’ छात्रावास में रहते हुए वे अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं पर, विभिन्न विचार-गोष्ठियों में विचार-विमर्श किया करते थे। कालेज की ‘हिन्दी साहित्य सभा’ में वे नियमित रूप से जाया करते थे। ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग’ से भी वे सम्बद्ध थे। उनका अधिकांश समय हिंदी-अंग्रेजी के समाचार-पत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विचार गोष्ठियों में भाग लेने तथा छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था।
‘होम रूल लीग’ का सदस्य बनकर वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। उनमें देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त तक उसका निर्वाह भी किया। सन् 1919 ई० में उनके बी.ए. पास करने के उपरान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम (सन् 1914-1924 ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धनता के बावजूद उसे ठुकरा दिया, जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी लगा।
सन् 1920 इ० में रामसिंह राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80 रुपये मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया। वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा ‘रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल’ में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब सन् 1921 ई० में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो वे ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने ‘युवक सभा’ की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। ‘युवक सभा' के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था। श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान ‘युवक सभा’ के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए 'छात्र सभा’ की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपय. वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया।
भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनों के जन्मदाताओं में धौनी जी का नाम प्रमुख है। सन् 1921 ई० से 1922 ई. तक उनके द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लिया, जिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठी, कुमार नारायण सिंह, युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया, गोपाल नेवटिया, श्री रामेश्वर तथा मूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
फतेहपुर में ही उन्होंने एक ‘साहित्य समिति’ की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ करते थे. कभी-कभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता ‘सफाई की सफाई’ सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। रामसिंह ने ‘साहित्य समिति’ की ओर से ‘बधु’ नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित हुईं।
राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने ने कारण ब्रिटिश सरकार ने ‘बंधु’ पत्र की सभी प्रतियां जब्त करवा कर, उसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। धौनी जी की प्रेरणा से उनके शिष्य गोपाल नेवटिया तथा युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया ने ‘श्री स्वदेश’ नामक उच्चकोटि का पत्र निकाला जिसके 26 अगस्त 1922 ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता ‘तेरी बारी है होली’ छापी गई, हालांकि उस समय धौनी जी बजांग (नेपाल) चले गए थे। इस कविता में अंग्रेजों को बंदर बताकर, उन्हें भारत से भागने को कहा गया है।
उपवन से भग बन्दर भोली, तेरी बारी है होली॥ दुबक-दुबक तू घुसि आया, चुपके-चुपके सब फल खाया ॥
ऐक्य पुष्प सब तोड़ि गिराए, पिक पक्षी अति ही झुंझलाए॥ सभी कहत अब ऐसी बोली, तेरी बारी है होली॥
रामसिंह धौनी के जीवन का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देशप्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार करना था। फतेहपुर (जयपुर) में जब यह कार्य ‘युवक सभा,’ ‘छात्र सभा’ तथा ‘साहित्य समिति’ के माध्यम से होने लगा तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा नेपाल की रियासत बजांग गए। वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बनाया। धौनी जी के अध्यापन कार्य से प्रसन्न होकर बजांग के राजा ने उन्हें एक तलवार भेंट की। बीकानेर, जयपुर तथा बजांग (नेपाल) रियासतों में देश भक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावनाओं तथा हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर, धौनी जी अल्मोड़ा चले आए।
सन् 1925 ई० से सन 1926 ई. तक रामसिंह ‘शक्ति’ के संपादक रहे। अपने थोड़े से कार्यकाल में उन्होंने देश की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं पर गंभीरतापूर्ण लेख एवं टिप्पणियां लिखीं। इन लेखों में हिंदु-मुस्लिम एकता, अछूतोद्धार, राष्ट्र संगठन, कुटीर उद्योग, राष्ट्रभाषा हिन्दी, खादीआन्दोलन, अध्यापक आन्दोलन, निःशुल्क शिक्षा, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, महात्मा गांधी तथा कांग्रेस आदि महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। ब्रिटिश सरकार की ओर से लगान बढ़ाने के लिए होने वाले बन्दोवस्त के विरोध में उन्होंने आन्दोलन चलाया। जैती (सालम) में जूनियर हाईस्कूल तथा बाँजधार में औषधालय उन्हीं के प्रयासों से खुले। अल्मोड़ा में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कार्यों को सक्रिय करने के उपरान्त धौनी बम्बई चले गए। वहाँ उन्होंने पहाड़ के लोगों को एकजुट कर "हिमालय पर्वतीय संघ” की स्थापना की। वे ‘अखिल भारतीय मारवाड़ी अग्रवाल जाती कोष’ के मंत्री भी रहे।
1930 ई० में बम्बई में चेचक फैला। लोगों की सेवा करते हुए वे चेचक की चपेट में आ गए तथा 12 नवम्बर 1930 ई० को 37 बर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया । जनवरी 1931 ई० को बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले में महान स्वतन्त्रता सेनानी विक्टर मोहन जोशी ने रामसिंह धोनी की मृत्यु पर अपने शोकोद्गार व्यक्त करते हुए कहा था-
हो, हन्त बैरी, बैरीकाल ने बरबाद हमको कर दिया।
हा देव! यह क्या हो गया, भारत का रत्न खो गया॥
निर्धनता में भी देश को निःस्वार्थ सेवा करने वाले इस महान सपूत की याद में सन् 1935 ई० में सालम में "रामसिंह धौनी आश्रम" की स्थापना हुई। यही आश्रम सालम की सन् 1942 ई० को जनक्रांति का भी केन्द्र बना।
संदर्भ
1. शक्ति’ साप्ताहिक अल्मोड़ा
2. अल्मोड़ा स्मारिका 1976
3. स्वतन्त्रता संग्राम में कुमाऊँ-गढ़वाल का योगदान-डाँ० धर्मपाल सिंह मनराल
4. श्री हरदत्त उपाध्याय द्वारा लिखित एवं संग्रहीत रामसिंह धौनी जी से सम्बद्ध विभिन्न पत्र-व्यवहारादि (श्री शेर सिंह धौनी जी के संग्रह में.
5. अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की सन् 1923 से 1927 ई० तक की कार्य सूची को फाइलें।
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