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117
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अभागिनी अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है |
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अम्बरीश से आमेर या आम्बेर बन गया |
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मैं मन ही मन मना रहा था कि अब और हंगामा न हो |
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दर्द भी तेरे काम आएगा |
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कठिन समय में उसका साथ दिया उसे कभी टूटने नहीं दिया |
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मालूम होता है अब बारिश नहीं होगी |
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विलम्ब होने से शिकार हाथ से निकल जाता |
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किरण बेदी ने प्रशांत भूषण के बयान से खुद को अलग किया |
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फिर भी बन्दूक उठाके |
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पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि |
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जानेवाले लौट पड़े |
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रुकिएरुकिए मैं चिल्लाता हुआ पेड़ की ओर दौड़ा |
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चोरु ने और ज़ोर से खींचा |
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रश्मि यादों के भंवर से बाहर आई |
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टू |
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उसने दुकानदार से पूछा |
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वह खुदा की तरफ से निकलती है |
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जीवन का कोई मोल नहीं लगा सकता |
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उसे एक नई वस्तु का पता चला |
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आख़िरकार |
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फिर भी उस उम्र में मोहनदास को |
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क्योंकि उस समय इसका विरोध करने वाला पूरे नगर में कोई भी नहीं होता |
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तभी पुलिस आ गई |
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टमाटर के जूस से ओस्टियोपोरोसिस ‘अलविदा’ |
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काश मैं भी दादाजी की तरह पेड़ पर सुरक्षित होता |
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इस चपरासी से इतना डरा मानो कि वह मुझे देख लेता |
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ज़ीरो |
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पेड़ की पतियां नई और चमकदार हैँ |
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वरिष्ठ नागरिक द्वारा पेड़ों के कटान के विरूद्ध सत्याग्रह |
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दिल पर जो बीतती थी |
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आपको हमारे बारे में किसने बताया |
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आप अपना पहचान पत्र साथ लाएँ हैं क्या |
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लाखों रुपये की तहसील और |
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फिर सबकेसब एक साथ खड़े हो जाते हैं |
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कि मुंशी चंद्रिका प्रसाद जूतों को |
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इस घटना से बेहद अपमानित |
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कठिन समय में उसका साथ दिया उसे कभी टूटने नहीं दिया |
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अब गुब्बारे को दीवार पर रखें ओर देखें कि |
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उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है |
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राजनीति की ओर रजनीकांत के बढ़ते कदम त्रिची बैठक में उमड़ी प्रशंसकों की भीड़! |
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मुन्ने राजा क्या कहने तुम्हारी बातों के |
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संघर्ष के लिए महात्मा गांधी ने |
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लम्बी गर्मियों के बाद मिट्टी भी बारिश की बूँदों की राह देखती है |
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इसी से तो ऐसी छली कपटी दगाबाज |
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मोहन दाल को एक साँस में पीकर तथा |
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पंक्तियों में कुसुमभूषण से सजी |
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उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी |
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जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों |
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झुकी हुई कमर पोपला मुँह |
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थे धन्य जवान वो आपने |
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आर्थिक व्यवस्था कभी ऐसी न थी कि वे इतना धनसंचय करते |
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तुम्हें अब खेतीबारी से क्या काम है |
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एट |
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कभीकभी मैं सोचता हूँ कि बादल क्यों गरजते हैं |
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वो एक चतुर राजनेता थे |
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पंचायत में किसकी जीत होगी |
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बाबुल प्यारे सजन सखा रे |
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जुम्मन चकित थे कि अलगू को क्या हो गया |
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चमककर वह कृपाण समुद्र का |
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न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था |
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वे सब यहीं पर मौजूद है |
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किंतु बच्चों एवं स्त्रियों के लिए निषेध है |
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हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं |
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यह देखो हिंडोला है |
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राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं |
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सिद्धेश्वरी ने चौके की ओर भागते हुए उत्तर दिया |
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तो रिश्तों में लालच हम काहे सहे |
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जब मैंने उन्हें देखा तो ये सोचा कि |
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नहीं तो पहले मुझी को विष खिला दो |
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लोग अपने घरों से बाहर निकल आए |
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हर सपना जब वो टूटा |
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कानपुर शहर से मिला हुआ |
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महाराज यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए वह स्वयं नगर के बाहर गए |
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अब मच्छरों को मारेंगे मच्छर |
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उसने अपनी बारी का इंतेज़ार किया। |
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ये बहुत डरावना और घृणास्पद है कि |
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शिविका से सहायता देकर चंपा को उसने उतारा |
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हम अपने शोध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात कर रहे हैं |
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ओणम खुशी का त्यौहार है जो केरल वासी मनाते हैं |
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पर दूर तू है अपने घर से |
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खसखस घसीटते हुए आए और |
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साफ बनियान तारतार लटक रही थी |
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हम लोग कितने व्याकुल थे |
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दोनों तरफ गरज थी |
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वनकुसुमविभूषिता चंपा शिविकारूढ़ होकर जा रही थी |
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मीनू बड़ी हो गई पर परी बनने का ख्वाब उसके दिमाग से कभी नहीं गया |
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पंडित जी ने हिसाबकिताब का समझना भी छोड़ दिया |
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क्या यह सच है |
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पर हमसे ऋण चुकाने का कोई तकाजा न |
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वे सजीवता की मूर्ति हो रहे थे |
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जो भी हो कल फिर आएगा |
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पैरों पर गिरी रेप पीड़िता विधायक बोलेपुलिस को थर्ड डिग्री की जरूरत |
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लाचार बेचारे गाड़ी पर ही लेट गये |
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ग्रामीणों का वह दल इस विषय में |
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किसी तरह बदला लेने का अवसर मिले |
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परंतु भावों को छिपा कर बोलेअलगू ही सही |
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कन्याकुमारी में केवल एक तीर्थस्थान है बल्कि |
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बलात्कार का विरोध करने पर छात्रा को ज़िंदा जलाने की कोशिश |
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टुल्लु और बुल्लु को दया आ गई |
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वह बैठ कर चरखा चला रहे थे |