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nirveda - weeping, sighing,indifference,dicouragement
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glani - guilty
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sanka - doubt (apprehension)
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asuya/irsya - jealousy (envy)
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mada - madness (intoxication)
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srama - fatigue
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alasya/alasata - laziness,sitting idle (unwililng to work)
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dainya - meekness (depression),(despair)
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cinta - contemplation (anxiety/reflection)
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moha - bewilderment,[a feeling of being perplexed and confused] (distraction)
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smrti - rememberance (recollection)
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dhriti - forbearance,indifference abstenance (equanimity)
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vrida - shame
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capalya/capalatha/capala - impudence [rude behavior that does not show respect for others] (unsteadiness)
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harsa - jubiliation,enjoyment (joy)
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avega - intense emotion (agitation/flurry)
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jadya/jadatha - invalidity,looking with steadfast gaze,unable to think properly
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garva - pride
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visada - moroseness, sad [quality of being unhappy, annoyed, and unwilling to speak or smile]
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autsukya - eagerness (impatience/longing)
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nidra - sleep (drowsiness)
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apasmara - forgetfulness (epilepsy/dementedness)
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supti/supta - deep sleep (dreaming)
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prabodha/vibodha - awakening
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amarsa - impatience of opposition
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avahittha - concealment (hiding of true feelings)
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augrya/ugrata - violence,battle (cruelity/sterness)
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mati - attention,instructing pupils (resolve)
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vyadhi - disease (sickness)
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unmada - craziness (insanity/madness)
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mriti/marana - death
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trasa - shock,fear (fright/alarm)
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vitarka - argument (doubt)
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utsuka - restless/anxious
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tarka -deliberation [long and careful consideration or discussion]
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rati - romantic
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lajja - shy
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marsa - patience
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tyaga - sacrifice
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vimochana - releif
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utsaha - hyped/enthused
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shraddhaadaya - confidence,trust
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krodha - anger
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karuna - pity,kind
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veera - royality,valour,greatness
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shanta - serene,peaceful,pleasant
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vismaya - exaggeration/wonder/surprise/pride/doubt
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bhakti - devotion
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no emotion
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अर्घ्यमर्घ्यमितिवादिनम्नृपम्सोऽनवेक्ष्यभरताग्रजोयतः।क्षत्रकोपदहनार्चिषम्ततःसंदधेदृशमुदग्रतारकाम्
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तेनकार्मुकनिषक्तमुष्टिनाराघवोविगतभीःपुरोगतः।अङ्गुलीविवरचारिणम्शरम्कुर्वतानिजगदेयुयुत्सुना
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क्षत्रजातमपकारवैरिमेतन्निहत्यबहुशःशमम्गतः।सुप्तसर्पइवदण्डघट्टनात्रोषितोऽस्मितवविक्रमश्रवात्
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मैथिलस्यधनुरन्यपार्थिवैःत्वम्किलानमितपूर्वमक्षणोः।तन्निशम्यभवतासमर्थयेवीर्यशृङ्गमिवभग्नमात्मनः
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अन्यदाजगतिरामइत्ययम्शब्दउच्चरितएवमामगात्।व्रीडमावहतिमेससंप्रतिव्यस्तवृत्तिरुदयोन्मुखेत्वयि
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बिभ्रतोऽस्त्रमचलेऽप्यकुण्ठितम्द्वौरुपूमममतौसमागसौ।धेनुवत्सहरणाच्चहैहयस्त्वम्चकीर्तिमपहर्तुमुद्यतः
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क्षत्रियान्तकरणोऽपिविक्रमःतेनमामवतिनाजितेत्वयि।पावकस्यमहिमासगण्यतेकक्षवज्जलतिसागरेऽपियः
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विद्धिचात्तबलमोजसाहरेःऐश्वरम्धनुरभाजियत्त्वया।खातमूलमनिलोनदीरयैःपातयत्यपिमृदुस्तटद्रुमम्
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तन्मदीयमिदमायुधम्ज्ययासंगमय्यसशरम्विकृष्यताम्।तिष्ठतुप्रधनमेवमप्यहम्तुल्यबाहुतरसाजितस्त्वया
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कातरोऽसियदिवोद्गतार्चिषातर्जितःपरशुधारयामम।ज्यानिघातकठिनाङ्गुलिर्वृथाबध्यतामभययाचनाञ्जलिः
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एवमुक्तवतिभीमदर्शनेभार्गवेस्मितविकम्पिताधरः।तद्धनुर्ग्रहणमेवराघवःप्रत्यपद्यतसमर्थमुत्तरम्
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पूर्वजन्मधनुषासमागतःसोऽतिमात्रलघुदर्शनोऽभवत्।केवलोऽपिसुभगोनवाम्बुदःकिम्पुनस्त्रिदशचापलाञ्छितः
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तेनभूमिनिहितैककोटितत्कार्मुकम्चबलिनाधिरोपितम्।निष्प्रभश्चरिपुरासभूभृताम्धूमशेषइवधूमकेतनः
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तावुभावपिपरस्परस्थितौवर्धमानपरिहीनतेजसौ।पश्यतिस्मजनतादिनात्ययेपार्वणौशशिदिवाकराविव
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तम्कृपामृदुरवेक्ष्यभार्गवम्राघवःस्खलितवीर्यमात्मनि।स्वम्चसंहितममोघमाशुगम्व्याजहारहरसूनुसंनिभः
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नप्रहर्तुमलमस्मिनिर्दयम्विप्रइत्यभिभत्यपित्वयि।शंसकिम्गतिमनेनपत्रिणाहन्मिलोकमुततेमखार्जितम्
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प्रत्युवाचतमृषिर्नतत्त्वतःत्वाम्नवेद्मिपुरुषम्पुरातनम्।गाम्गतस्यतवधामवैष्णवम्कोपितोह्यसिमयादिदृक्षुणा
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भस्मसात्कृतवतःपितृद्विषःपात्रसाच्चवसुधाम्ससागराम्।आहितोजयविपर्ययोऽपिमेश्लाघ्यएवपरमेष्ठिनात्वया
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तत्गतिम्मतिमताम्वरेप्सिताम्पुण्यतीर्थगमनायरक्षमे।पीडयिष्यतिनमाम्खिलीकृतास्वर्गपद्धतिःअभोघलोलुपम्
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प्रत्यपद्यततथेतिराघवःप्राङ्मुखश्चविससर्जसायकम्।भार्गवस्यसुकृतोऽपिसोऽभवत्स्वर्गमार्गपरिघोदुरत्ययः
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राघवोऽपिचरणौतपोनिधेःक्षम्यतामितिवदन्समस्पृशत्।निर्जितेषुतरसातरस्विनाम्शत्रुषुप्रणतिरेवकीर्तये
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राजसत्वमवधूयमातृकम्पित्र्यमस्मिगमितःशमम्यदा।नन्वनिन्दितफलोममत्वयानिग्रहोऽप्ययमनुगृहीकृतः
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साधयाम्यहमविघ्नमस्तुतेदेवकार्यमुपपादयिष्यतः।ऊचिवानितिवचःसलक्ष्मणम्लक्ष्मणाग्रजमृषितिरोदधे
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तस्मिन्गतेविजयिनम्परिरभ्यरामम्स्नेहादमन्यतपितापुनरेवजातम्।तस्याभवत्क्षणशुचःपरितोषलाभःकक्षाग्निलङ्घिततरोरिववृष्टिपातः
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अथपथिगमयित्वाकॢप्तरम्योपकार्येकतिचिदवनिपालःशर्वरीःशर्वकल्पः।पुरमविशदयोध्याम्मैथिलीदर्शनीनाम्कुवलयितगवाक्षाम्लोचनैरङ्गनानाम्
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सापौरान्पौरकान्तस्यरामस्याभ्युदयश्रुतिः।प्रत्येकम्ह्रादयांचक्रेकुल्येवोद्यानपादपान्
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तयोश्चतुर्दशैकेनरामम्प्राव्राजयत्समाः।द्वितीयेनसुतस्यैच्छद्वैधव्यैकफलाम्श्रियम्
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पित्रादत्तम्रुदन्रामःप्राङ्महीम्प्रत्यपद्यत।पश्चाद्वनायगच्छेतितदाज्ञाम्मुदितोऽग्रहीत्
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श्रुत्वातथाविधम्मृत्युम्कैकेयीतनयःपितुः।मातुर्नकेवलम्स्वस्याःश्रियोऽप्यासीत्पराङ्मुखः
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तमशक्यमपाक्रष्टुम्निदेशात्स्वर्गिणःपितुः।ययाचेपादुकेपश्चात्कर्तुम्राज्याधिदेवते
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दृढभक्तिरितिज्येष्ठेराज्यतृष्णापराङ्मुखः।मातुःपापस्यभरतःप्रायश्चित्तमिवाकरोत्
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रामोऽपिसहवैदेह्यावनेवन्येनवर्तयन्।चचारसानुजःशान्तोवृद्धेक्ष्वाकुव्रतम्युवा
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बभौतमनुगच्छन्तीविदेहाधिपतेःसुता।प्रतिषिद्धापिकैकेय्यालक्ष्मीरिवगुणोन्मुखी
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तम्विनिष्पिष्यकाकुत्स्थौपुरादूषयतिस्थलीम्।गन्धेनाशुचिनाचेतिवसुधायाम्निचख्नतुः
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रावणावरजातत्रराघवम्मदनातुरा।अभिपेदेनिदाघार्ताव्यालीवमलयद्रुमम्
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ज्येष्ठाभिगमनात्पूर्वम्तेनाप्यनभिनन्दिताम्।साऽभूद्रामाश्रयाभूयोनदीवोभयकूलभाक्
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संरम्भम्मैथिलीहासःक्षणसौम्याम्निनायताम्।निवातस्तिमिताम्वेलाम्चन्द्रोदयइवोदधेः
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लक्ष्मणःप्रथमम्श्रुत्वाकोकिलामञ्जुवादिनीम्।शिवाघोरस्वनाम्पश्चाद्बुबुधेविकृतेतिताम्
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तैस्त्रयाणाम्शितैर्बाणैर्यथापूर्वविशुद्धिभिः।आयुर्देहातिगैःपीतम्रुधिरम्तुपतत्रिभिः
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तेनोत्तीर्यपथालङ्काम्रोधयामासपिङ्गलैः।द्वितीयम्हेमप्राकारम्कुर्वद्भिरिववानरैः
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रणःप्रववृतेतत्रभीमःप्लवगरक्षसाम्।दिग्विजृम्भितकाकुत्स्थपौलस्त्यजयघोषणः
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पादपाविद्धपरिघःशिलानिष्पिष्टमुद्गरः।अतिशस्त्रनखन्यासःशैलरुग्णमतंगजः
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अथरामशिरश्छेददर्शनोद्भ्रान्तचेतनाम्।सीताम्मायेतिशंसन्तीत्रिजटासमजीवयत्
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