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अवसाद और चिंता के इलाज में यह लाभकारी है.'
बसंत रितु सर्दी और गर्मी रितुवो के बीच मे आती हैँ.
बिजली ही बादलों में गड़गड़ाहट पैदा करती है?
यहाँ रहकर मैं अपने हृदय पर अधिकार रख सकँू -
ईदगाह जाने वालों की टोलियाँ नजर आने लगीं.
जिंदगी का कौन ठिकाना है, जो काम करना है;
पैर तप-तपा
फिर आई अंकों वाली किताबें।
चौधरी के अशुभचिंतकों की कमी न थी।
अचानक दादाजी धीरे-धीरे बोले,
काम कठिन है-माना!
मुझसे अपना रुपया भी नहीं ले सकती।
धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।
जगदीश प्रसाद बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर में रहने लगे थे ।
'यहाँ आओ, बेटा!' धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा।
मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।
तुम्हारे मन में जो आये, करो।
इन आवेश वाले परमाणुओं को आयन कहते हैं।
आनन्द साहब दादाजी के हर शब्द से सहमत थे।
वह परोसी गई दो रोटियों में से
भारीभरकम पुलिसवाले ने आगे बढ़कर कहा,
अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी तो
और उसने साफ मना कर दिया।
वह दिल के अरमान निकाल लेगा.
जिन्हें हास्य-रस के रसास्वादन का अच्छा अवसर मिला।
मीनू बड़ी होती गई।
दो डबलरोटी के टुकड़े, बिस्कुट, एक मूँगफली का पैकेट।
मैं भी पूरी तरह भीग गया था।
पिशाचिनी के समान नाव को अपने हाथों में
दोस्ती की जगह है, किंतु धर्म का पालन करना मुख्य है।
शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया.
हृदय में संकल्प और विकल्प में घोर संग्राम होने लगा।
तब मेरा मतलब सिर्फ़ उन लोगों के प्रति दयालु रहने से नहीं है
उन्होंने अपनी पत्नी को डाँट-डपट कर समझा दिया।
अब क्योंकि हर परमाणु में प्रोटोनों की संख्या और
बड़ा पागल है।'
इस फिक्र में था कि कैसे सेंध लगा पाऊँ!
उसकी बेटी अब 5 साल की हो गई थी।
मोहनदास के पिता अपने परिवार को रहने
शीत के बीच के इस मौसम को संस्कृत में हेमंत ॠतु कहते हैं।
बेचारा जानवर अभी दम भी न लेने पाया था कि फिर जोत दिया।
दबे-कुचले समुदायों को भी प्रशिक्षण दे रहा है.
देखा? अब मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई
वे एक-एक करके आए।
पास जाकर पुकारा - 'बड़कू, बड़कू!'
उसके हाथ पीले करने की सोचो और हमारे साथ चलो ।
एक मास हुआ, मैं इस नील नभ के नीचे,
वह कहते थे कि विद्या पढ़ने से नहीं आती;
वे घर के अन्दर ले जाए गए।
कर हर मैदान फ़तेह
आशाएं ...
इसके कई महीनों बाद 1944 में
पर पौ फटते ही जो नींद टूटी और
तुम अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए पेड़ों की हत्या नहीं कर सकते।
उन्हें बहुत अफसोस हो रहा था|
आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है.
वह मतवाले की तरह उठी ओर गगरे से
कुवासनाओं के भ्रम में पड़ कर मुंशी जी ने समझा था,
तो मैं ऊपर आकर तुम्हें नीचे खींच लूँगा।'
तेनालीराम में किसी बात पर नोकझोंक हो गई|
'मुक्त होना चाहते हो?'
जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी।
एक ओझा नाम निकालने के लिए बुलाया गया।
नये-नये मनसूबे सोचते; पर फिर अपने ही तर्को से काट देते।
इसी दौरान गांधी ने ब्रह्मचर्य का प्रण लिया और
मेरा पेड़ कभी भी बर्फ़ से नहीं ढकेगा।
जयपुर नगर से लगभग १२ किलोमीटर दूर
तुम मुझे भी इस गड्ढे में गाड़ दो और
उसे पास खींच लिया।
वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही.
'कोई बात ज़रूर है बिन्नी!
हम-तुम परिश्रम से थककर पालों में शरीर लपेटकर
आप मेरे दादाजी को परेशान कर रहे हैं।
शहर भर के लोगों ने यह कमाल का कोलम देखा।
रोटी खाओ और अल्लाह का नाम लो।
आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है.
कल उन्होंने मसालेदार मुरमुरे बनाए थे।
जिन्होंने अंग्रेज़ों की हुकूमत से भारत को आज़ाद कराने
हमारे घर की बिजली की तरह ही है,
विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
उससे आलोकपूर्ण हो जाए!'
लेकिन लोग हमें चैन नहीं लेने दे रहे।
उसका निर्णय करना जरूरी था।
'ठीक है,' टुल्लु ने कहा।
पंडित जी उनके साथ बड़ी उदारता से पेश आते।
शोरोगुल और हँसी मज़ाक के बगैर स्कूल कुछ भुतहा सा लग रहा था।
'बिन्दा चाचा,' धनी उनके पास बैठ गया,
दक्षिण अफ्रीका में अप्रवासी
ऐसी ठण्ड में बिना जेकेट, टोपी, दस्तानों और
वहां भी उसके रंग को लेकर उसका बहुत मजाक उड़ाया जाता
वह स्वप्नों की रंगीन संध्या,
रुपया जरुर आपका लगा, पर मैं उसका देनदार हूँ।
अब सब आसान हो गया।
ये वो बंधन है जो कभी टूट नही सकता
फिर आनन्द साहब मुझसे बोले, 'तुम अपने दादाजी की देखभाल बहुत बढ़िया ढंग से कर रहे हो|
और दिमाग को शांत करते हुए कुछ कदम पीछे खींच लें.
मैंने इतने दिनों इनकी सेवा की,
बाहर की कोठरी में मुंशी जी
बुलाकर चिमटा दे दिया.
उनके गांव के साथ-साथ आस-पास के सभी गांव वालों ने उस दिन उन्हें सम्मानित करने की योजना बनाई।