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0c38e66fa | आपातकालीन प्रबंधन एक अंतःविषयक क्षेत्र का सामान्य नाम है जो किसी संगठन की महत्वपूर्ण आस्तियों की आपदा या विपत्ति उत्पन्न करने वाले खतरनाक जोखिमों से रक्षा करने और सुनियोजित
जीवनकाल में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए प्रयुक्त सामरिक संगठनात्मक प्रबंधन प्रक्रियाओं से संबंधित है।[1] आस्तियां सजीव, निर्जीव, सांस्कृतिक या आर्थिक के रूप में वर्गीकृत हैं। खतरों को प्राकृतिक या मानव-निर्मित कारणों के द्वारा वर्गीकृत किया जाता है। प्रक्रियाओं की पहचान के उद्देश्य से संपूर्ण सामरिक प्रबंधन की प्रक्रिया को चार क्षेत्रों में बांटा गया है। ये चार क्षेत्र सामान्य रूप से जोखिम न्यूनीकरण, खतरे का सामना करने के लिए संसाधनों को तैयार करने, खतरे की वजह से हुए वास्तविक नुकसान का उत्तर देने और आगे के नुकसान को सीमित करने (जैसे आपातकालीन निकासी, संगरोध, जन परिशोधन आदि) और यथासंभव खतरे की घटना से यथापू्र्व स्थिति में लौटने से संबंधित हैं। क्षेत्र सार्वजनिक और निजी दोनों में होता है, प्रक्रिया एक सी सांझी होती है लेकिन ध्यान केंद्र विभिन्न होते हैं। आपातकालीन प्रबंधन प्रक्रिया एक नीतिगत प्रक्रिया न होकर एक रणनीतिक प्रक्रिया है अतः यह आमतौर पर संगठन में कार्यकारी स्तर तक ही सीमित रहती है। सामान्य रूप से इसकी कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक संगठन के सभी भाग एक सांझे लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, यह सलाहकार के रूप में या कार्यों के समन्वय के लिए कार्य करता है। प्रभावी आपात प्रबंधन संगठन के सभी स्तरों पर आपातकालीन योजनाओं के संपूर्ण एकीकरण और इस समझ पर निर्भर करता है कि संगठन के निम्नतम स्तर आपात स्थिति के प्रबंधन और ऊपरी स्तर से अतिरिक्त संसाधन और सहायता प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार हैं।
कार्यक्रम का संचालन करने वाले संगठन के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को सामान्य रूप से एक आपातकालीन प्रबंधक या क्षेत्र में प्रयुक्त शब्द से व्युत्पन्न पर आधारित (अर्थात् व्यापार निरंतरता प्रबंधक) कहा जाता है।
इस परिभाषा के अंतर्गत शामिल क्षेत्र हैं:
सिविल डिफ़ेंस (शीत युद्ध के दौरान परमाणु हमले से सुरक्षा के लिए संयुक्त राज्य द्वारा प्रयुक्त)
नागरिक सुरक्षा (यूरोपीय संघ द्वारा व्यापक रूप से प्रयुक्त)
संकट प्रबंधन (नागरिक जनसंख्या की तत्काल जरूरतों को संतुष्ट करने के उपायों की अपेक्षा राजनैतिक और सुरक्षा आयाम पर जोर देता है।)[2]
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (आपात स्थिति चक्र के क्षति को कम करने और तत्परता पहलुओं पर केंद्रित.) (नीचे तत्परता को देखें)
होमलैंड सिक्योरिटी (आतंकवाद की रोकथाम पर ध्यान देते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रयुक्त.)
व्यापार निरंतरता और व्यापार निरंतरता योजना (उधोन्मुख निरंतर आय सुनिश्चित करने पर केंद्रित.))
सरकार की निरंतरता
चरण और व्यावसायिक गतिविधियां
प्रबंधन की प्रकृति स्थानीय आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। फ्रेड कनी जैसे कुछ आपदा राहत विशेषज्ञों ने उल्लेख किया है कि एक तरह से एकमात्र असली आपदा आर्थिक होती है।[3] कनी जैसे विशेषज्ञों ने बहुत पहले नोट किया कि आपातकालीन प्रबंधन चक्र में बुनियादी ढांचे, सार्वजनिक जागरूकता और यहाँ तक कि मानव न्याय के मुद्दों पर दीर्घकालिक काम को शामिल करना चाहिए।
आपातकालीन प्रबंधन की प्रक्रिया के चार चरण हैं: न्यूनीकरण, तत्परता, प्रतिक्रिया और उबरना.
हाल ही में होमलैंड सिक्योरिटी विभाग और फ़ेमा ने EM के प्रतिमान के भाग के रूप में "समुत्थान" और "रोकथाम" शब्दों को अपनाया है। दूसरे शब्द को PKEMA 2006 ने अक्टूबर 2006 में अधिनियम के द्वारा कानून के रूप में लागू किया और 31 मार्च 2007 से प्रभावी बनाया है। दोनों शब्दों की परिभाषाएं अलग चरणों के रूप में सरलता से उपयुक्त नहीं होती है। परिभाषा के अनुसार रोकथाम 100% शमन है।[4] समुत्थान चार चरणों के लक्ष्य का वर्णन करता है: दुर्भाग्य से आसानी से उबरने या परिवर्तन से ताल-मेल बिठाने की क्षमता[5]
न्यूनीकरण
खतरों को आपदाओं में पूरी तरह विकसित होने से रोकने या घटित होने की स्थिति में आपदाओं के प्रभाव को कम करने का प्रयास न्यूनीकरण कार्रवाई है। न्यूनीकरण चरण अन्य चरणों से भिन्न है क्योंकि यह जोखिम को कम करने या नष्ट करने के लिए दीर्घकालीन उपायों पर केंद्रित होता है।[1] आपदा घटित होने का बाद लागू करने पर, न्यूनीकरण रणनीतियों के कार्यान्वयन को उबरने की प्रक्रिया का हिस्सा माना जा सकता है।[1] न्यूनीकरण उपाय संरचनात्मक या गैर-संरचनात्मक हो सकते हैं। संरचनात्मक उपाय बाढ़ बांधों की तरह तकनीकी समाधान का उपयोग करते हैं। गैर-संरचनात्मक उपायों में शामिल हैं कानून, भूमि-उपयोग योजना (अर्थात् पार्क जैसी गैर-ज़रूरी भूमि को बाढ़ क्षेत्रों के रूप में इस्तेमाल किए जाने के लिए नामोद्दिष्ट करना) और बीमा.[6] खतरों के प्रभाव को कम करने के लिए न्यूनीकरण सबसे अधिक लागत प्रभावी तरीका है लेकिन यह हमेशा उपयुक्त नहीं होता। न्यूनीकरण में शामिल हैं निकासी के संबंध में विनियमों की व्यवस्था करना,
विनियमों (जैसे अनिवार्य निकासी) के पालन का विरोध करने वालों के खिलाफ़ प्रतिबंध लगाना और जनता को संभावित जोखिमों की जानकारी देना.[7] कुछ संरचनात्मक न्यूनीकरण उपायों से पारिस्थितिकीतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
न्यूनीकरण की पूर्ववर्ती गतिविधि जोखिम की पहचान है। भौतिक जोखिम मूल्यांकन खतरों की पहचान और मूल्यांकन की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।[1] खतरा-विशेष जोखिम (
R
h
{\displaystyle R_{h}}
) किसी विशिष्ट खतरे की संभावना और प्रभाव के स्तर दोनों को जोड़ता है। निम्न समीकरण के अनुसार खतरा और उस खतरे से जनसंख्या की अरक्षितता को गुणा करने से जोखिम तबाही मॉडलिंग पैदा होती है। जितना उच्च जोखिम उतना अधिक ज़रूरी है कि खतरा विशिष्ट अरक्षितताएं न्यूनीकरण और तत्परता के प्रयासों से लक्षित हैं। हालांकि, अरक्षितता नहीं तो खतरा नहीं उदाहरण के लिए निर्जन रेगिस्तान में घटनेवाला भूकंप.
R
h
=
H
×
V
h
{\displaystyle \mathbf {R_{h}} =\mathbf {H} \times \mathbf {V_{h}} \,}
तत्परता
प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवादी कृत्यों और अन्य मानव निर्मित आपदाओं की रोकथाम और इनसे सुरक्षा, प्रत्युत्तर, उबरने और प्रभावों को कम करने के लिए प्रभावी समन्वय और क्षमताओं में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए योजना, आयोजन, प्रशिक्षण, लैस करना, अभ्यास, मूल्यांकन और सुधार गतिविधियों का सतत चक्र तत्परता है।[8]
तत्परता चरण में, आपात प्रबंधक जोखिम के प्रबंधन और उसका सामना करने के लिए कार्रवाई की योजना बनाते हैं और इस तरह की योजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक क्षमताओं का निर्माण करने के लिए ज़रूरी कार्रवाई करते हैं। आम तत्परता उपायों में शामिल हैं:
आसानी से समझ में आने वाली शब्दावली और तरीकों वाली संप्रेषण योजना.
सामुदायिक आपात प्रत्युत्तर टीमों जैसे बड़े पैमाने के मानव संसाधनों सहित आपात सेवाओं का उचित रखरखाव और प्रशिक्षण.
आपातकालीन आश्रय और निकासी योजना के साथ जनसंख्या को आपातकालीन चेतावनी देने संबंधी विधियों का विकास और अभ्यास.
एकत्रीकरण, सूची और आपदा आपूर्ति और उपकरणों को बनाए रखना[9]
नागरिक आबादी में से प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के संगठनों का विकास करना। बड़े पैमाने पर आपातकाल में पेशेवर कार्यकर्ता तेजी से अभिभूत हो जाते हैं इसलिए प्रशिक्षित, संगठित, ज़िम्मेदार स्वयंसेवक अत्यंत मूल्यवान होते हैं। कम्युनिटी एमरजेंसी रिस्पांस टीम और रेड क्रॉस जैसे संगठन प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के तैयार स्रोत हैं। रेड क्रॉस की आपातकालीन प्रबंधन प्रणाली को कैलिफ़ोर्निया और फ़ेडरल एमरजेंसी मेनेजमेंट एजेंसी प्रबंधन (फ़ेमा) दोनों से उच्च रेटिंग मिली है।
किसी एक घटना से होने वाली प्रत्याशित मौतों या घायलों की संख्या का अध्ययन, हताहत भविष्यवाणी तत्परता का एक अन्य पहलू है। इससे योजनाकारों को अनुमान हो जाता है कि किसी विशेष प्रकार की घटना के प्रत्युत्तर में क्या क्या संसाधन तैयार होने चाहिए।
योजना चरण में आपातकालीन प्रबंधकों को लचीला और व्यापक होना चाहिए - वे अपने संबंधित क्षेत्रों में सावधानी से जोखिम और अरक्षितता को पहचानें और समर्थन के अपरंपरागत व असामान्य साधन नियोजित करें। नगर निगम, या निजी - क्षेत्र के अनुसार आपातकालीन सेवाओं को कम किया जा सकता है या भारी कर लगाया जा सकता है। गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदत्त वांछित संसाधन जैसे कि स्थानीय जिला स्कूल बसों द्वारा विस्थापित गृहस्वामियों का परिवहन, अग्नि विभागों और बचाव दस्तों के बीच आपसी सहयोगी समझौतों द्वारा बाढ़ पीड़ितों की निकासी निष्पादित करना, की पहचान योजना चरणों में ही की जानी चाहिए और नियमित रूप से इनके साथ अभ्यास किया जाना चाहिए।
प्रतिक्रिया
प्रतिक्रिया चरण में आपदा क्षेत्र में आवश्यक आपातकालीन सेवाओं और पहले उत्तर देने वाले का जुगाड़ करना शामिल है। इसमें अग्निशामक, पुलिस और एम्बुलेंस दल जैसी पहले स्तर की घोर आपातकालीन सेवाओं को शामिल करने की संभावना है। सैन्य अभियान के तौर पर किए जाने पर इसे आपदा राहत अभियान (DRO) कहा जाता है और यह बिना लड़ाई के निकासी अभियान का अनुवर्ती हो सकता है। इन्हें विशेषज्ञ बचाव दल जैसी अनेक गौण आपातकालीन सेवाओं का समर्थन मिल सकता है।
एक अच्छी तरह से दोहरायी गयी आपातकालीन योजना को तत्परता चरण के भाग के रूप में विकसित करने से बचाव का कुशल समन्वयन होता है।
आवश्यकता पड़ने पर खोज और बचाव को प्रयास की प्रारम्भिक अवस्था में ही शुरू किया जा सकता है। घायलों के जख्म, बाहरी तापमान, पीड़ितों को हवा और पानी की सुलभता के दृष्टिगत आपदा के अधिकांश शिकार संघात के बाद 72 घंटे के भीतर मर जाएंगे.[10]
किसी भी संगीन आपदा - प्राकृतिक या आतंकवादी जनित - के लिए संगठनात्मक प्रतिक्रिया मौजूदा आपातकालीन प्रबंधन संगठनात्मक प्रणालियों और प्रक्रियाओं: फ़ेडरल रिस्पांस प्लान (FRP) और इंसीडेंस कमांड सिस्टम (आईसीएस) पर आधारित होता है। इन प्रणालियों को एकीकृत कमान (UC) और आपसी सहायता (एमए) के सिद्धांतों के माध्यम से सशक्त किया जाता है।
किसी भी आपदा का जवाब देने के लिए अनुशासन (संरचना, सिद्धांत, प्रक्रिया) और चपलता (रचनात्मकता, आशुरचना, अनुकूलनशीलता) दोनों की जरूरत होती है।[11] पहले उत्तरदाता के नियंत्रण से परे बढ़ने वाले प्रयासों का शीघ्रता से समन्वय और प्रबंधन करने के लिए उच्च कामकाजी नेतृत्व टीम को शामिल करने और बनाने की आवश्यकता, एक अनुशासित, पारस्परिक प्रतिक्रिया वाले योजनाओं के सेट को बनाने और लागू करने के लिए एक नेता और उसके दल की आवश्यकता को इंगित करती है। इससे टीम समन्वित, अनुशासित प्रतिक्रियाओं के साथ आगे बढ़ सकती है जो कमोबेश सही हों और नई जानकारी व बदलती परिस्थितियों के अनुसार ढल सकें.[12]
उबरना
उबरने वाले चरण का उद्देश्य प्रभावित क्षेत्र को यथापूर्व स्थिति में बहाल करना है। इसका लक्ष्य प्रतिक्रिया चरण से भिन्न है, उबरने के प्रयास उन मुद्दों और निर्णयों से संबंधित हैं जो तत्काल आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद किए जाने चाहिए। [1] उबरने के प्रयास मुख्य रूप से नष्ट संपत्ति, पुनर्रोजगार और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे की मरम्मत संबंधी कार्य हैं।[1] समुदाय और बुनियादी ढांचे में आपदा पूर्व निहित जोखिम को कम करने के उद्देश्य से "वापस बेहतर बनाने" के प्रयास किए जाने चाहिए। अन्यथा अलोकप्रिय न्यूनीकरण उपायों के कार्यान्वयन के लिए 'अल्पकालीन अवसर'[13] का लाभ उठाना, उबरने के प्रभावी प्रयासों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आपदा की स्मृति ताज़ा रहने पर प्रभावित क्षेत्र के नागरिकों द्वारा अधिक न्यूनीकरण परिवर्तनों को स्वीकार किए जाने की अधिक संभावना है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में, नेशनल रिस्पांस प्लान दर्शाता है कि कैसे 2002 के होमलैंड सिक्योरिटी अधिनियम द्वारा प्रावधान किए गए संसाधनों का उपयोग उबरने के प्रयासों में किया जाएगा.[1] अमेरिका में उबरने के प्रयासों में अत्याधिक तकनीकी और वित्तीय सहायता अधिकतर संघीय सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।[1]
चरण और व्यक्तिगत गतिविधियां
न्यूनीकरण
अनावश्यक जोखिम की जानकारी और उससे परहेज ही मुख्य रूप से व्यक्तिगत न्यूनीकरण है। निजी/पारिवारिक स्वास्थ्य और निजी संपत्ति को संभव जोखिम का मूल्यांकन इसमें शामिल है।
न्यूनीकरण का एक उदाहरण यह होगा कि खतरे वाली जगह जैसे बाढ़ वाले मैदान, अवतलन या भूस्खलन वाले क्षेत्रों में संपत्ति न खरीदना. हो सकता है कि घटित होने तक घर के मालिक को संपत्ति को होने वाले खतरे के बारे में पता न हो। हालांकि, जोखिम की पहचान और मूल्यांकन सर्वेक्षण के लिए विशेषज्ञों को काम पर रखा जा सकता है। प्रमुख रूप से अवगत जोखिम के लिए बीमा खरीदना एक आम उपाय है।
भूकंप प्रवण क्षेत्रों में निजी संरचनात्मक न्यूनीकरण में शामिल हैं किसी संपत्ति में प्राकृतिक गैस की आपूर्ति को तुरन्त बंद करने के लिए एक भूकंप वाल्व लगाना, संपत्ति में पुराने भूकंपीय उपकरणों के स्थान पर नए लगाना और घरेलू भूकंपीय सुरक्षा बढ़ाने के लिए इमारत के अंदर के सामान की रक्षा करना। सामान की रक्षा में फ़र्नीचर, रेफ्रिजरेटर, पानी के हीटर और भंजनीय सामान को
दीवारों पर लगाने के अलावा कैबिनेट में और सिटकनियां लगवाना शामिल हो सकता है। बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में दक्षिणी एशिया की तरह मकान खंभे /बांसों पर बनाए जा सकते हैं। जिन क्षेत्रों में बिजली लंबे समय तक गुल रहती है वहां जनरेटर का लगाया जाना इष्टतम संरचनात्मक न्यूनीकरण का उदाहरण होगा। तूफ़ान तहखाने और भूमिगत आश्रय का निर्माण ऐसे ही और उदाहरण है।
आपदाओं के प्रभाव को सीमित करने के लिए किए गए संरचनात्मक और गैर संरचनात्मक उपाय न्यूनीकरण के तहत आते हैं।
संरचनात्मक न्यूनीकरण: -
इसमें विशेष रूप से इसे आपदा-प्रतिरोधी बनाने के लिए भवन का उचित अभिन्यास शामिल है।
गैर संरचनात्मक न्यूनीकरण: -
इसमें भवन की संरचना में सुधार के अलावा अन्य उपाय शामिल है।
तत्परता
तत्परता का उद्देश्य आपदा को रोकना है जबकि व्यक्तिगत तत्परता आपदा घटित होने पर उपकरण और प्रक्रियाओं की तैयारी अर्थात् योजना पर केंद्रित है। आश्रयों के निर्माण, चेतावनी उपकरणों की स्थापना, समर्थक जीवन-रेखा सेवाओं (जैसे बिजली, पानी, सीवेज) के निर्माण और निकासी योजनाओं के पूर्वाभ्यास सहित तत्परता उपायों के कई रूप हो सकते हैं। दो सरल उपाय आवश्यकतानुसार घटना से निपटने या निकासी में मदद कर सकते हैं। निकासी के लिए, एक आपदा आपूर्ति किट तैयार की जा सकती है और आश्रय उद्देश्यों के लिए आपूर्ति का भंडार बनाया जा सकता है। अधिकारी उत्तरजीविता किट जैसे "72 -घंटे की किट" तैयार करने की अक्सर वकालत करते हैं। इस किट में भोजन, दवाइयां, टॉर्च, मोमबत्तियां और धन हो सकते हैं। इसके अलावा, मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखने की भी सिफ़ारिश की जाती है।
प्रतिक्रिया
किसी आपातकाल का प्रतिक्रिया चरण खोज और बचाव से शुरू हो सकता है लेकिन सभी मामलों में ध्यान जल्दी से प्रभावित आबादी की बुनियादी मानवीय ज़रूरतें
पूरा करने की ओर पलट जाएगा. यह सहायता राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संगठनों द्वारा प्रदान की जा सकती है। आपदा सहायता का प्रभावी समन्वयन अक्सर महत्वपूर्ण होता है, खासकर जब अनेक संगठन जवाब दें और स्थानीय आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी (LEMA) की क्षमता ज़रूरत से परे या आपदा के कारण कम हो गई हो।
निजी स्तर पर प्रतिक्रिया किसी जगह पर आश्रय या निकासी का रूप ले सकती है। जगह-में-आश्रय परिदृश्य में, एक परिवार को उनके ही घर में किसी भी रूप में बाहरी समर्थन के बिना कई दिनों तक रहने के लिए तैयार किया जाएगा. निकासी में, एक परिवार ऑटोमोबाइल या परिवहन के अन्य साधन द्वारा क्षेत्र छोड़ देता है और जितना सामान ले जा सकता है संभवतः. आश्रय के लिए एक तम्बू सहित, अपने साथ ले लेता है। अगर यांत्रिक परिवहन उपलब्ध नहीं है तो पैदल निकासी में आम तौर पर कम से कम तीन दिन की आपूर्ति और बारिश-प्रतिरोधी बिस्तर होगा, तिरपाल और कंबल तो अवश्य ही होंगे।
उबरना
मनुष्य के जीवन को तत्काल खतरा कम हो जाने पर उबरने का चरण शुरू होता है। पुनर्निर्माण के दौरान संपत्ति का स्थान या निर्माण सामग्री पर विचार करने की सिफ़ारिश की जाती है।
सबसे चरम गृह कारावास परिदृश्यों में शामिल हैं युद्ध, अकाल और महामारी, और यह एक साल या अधिक के लिए हो सकता है। तब घर के भीतर ही उबरना होगा। इन घटनाओं के योजनाकार आमतौर पर थोक में खाद्य पदार्थ, उचित भंडारण और तैयारी के उपकरण खरीदते हैं और सामान्य जीवन की तरह खाना खाते हैं। विटामिन की गोलियाँ, गेहूं, सेम, सूखे दूध, मक्का और खाना पकाने का तेल से एक साधारण संतुलित आहार तैयार किया जा सकता है।[14] जब भी संभव हो सब्जियां, फल, मसाले और मांस, तैयार और ताज़ा दोनों ही शामिल करने चाहिए।
एक पेशे के रूप में
आपातकालीन प्रबंधकों को विविध क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जाता है जिससे उन्हें पूरे आपातकालीन जीवन-चक्र में सहायता मिलती है। पेशेवर आपातकालीन प्रबंधक सरकारी और सामुदायिक तैयारियों (अभियान की निरंतरता/ सरकारी योजना की निरंतरता), या निजी व्यापार तत्परता (व्यापार निरंतरता प्रबंधन योजना) पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। प्रशिक्षण स्थानीय, राज्य, संघीय और निजी संगठनों द्वारा प्रदान किया जाता है और इसमें सार्वजनिक सूचना और मीडिया संबंधों से लेकर उच्च स्तर की घटना होने पर आदेश देने और रणनीतिक कौशल जैसे आतंकवाद बम विस्फोट स्थल का अध्ययन या एक आपात स्थिति के दृश्य को नियंत्रित करना, तक शामिल होता है।
अतीत में, आपातकालीन प्रबंधन के क्षेत्र में सेना या प्रथम रिस्पॉन्डर की पृष्ठभूमि वाले लोगों की भरमार रही है। वर्तमान में, इस क्षेत्र में अधिक विविध जनसंख्या है अनेक विशेषज्ञ सेना या प्रथम रिस्पॉन्डर इतिहास से इतर विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि से हैं। आपातकालीन प्रबंधन या इससे संबंधित क्षेत्र में स्नातकपूर्व और स्नातक डिग्री प्राप्त करने वालों के लिए शिक्षा के अवसर बढ़ रहे हैं। अमेरिका के 180 से अधिक स्कूलों में आपात प्रबंधन से संबंधित कार्यक्रम हैं लेकिन विशिष्ट रूप से आपात प्रबंधन में डॉक्टरेट का एक ही कार्यक्रम है।[15]
जैसे जैसे आपात प्रबंधन समुदाय द्वारा विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में, उच्च पेशेवर मानकों की आवश्यकता को मान्यता दी जाने लगी है, और प्रमाणित व्यापार निरंतरता प्रोफ़ेशनल (CBCP) जैसे व्यावसायिक प्रमाणपत्र आम बनते जा रहे हैं।
आपातकालीन प्रबंधन के सिद्धांत
2007 में फ़ेमा आपातकालीन प्रबंधन उच्च शिक्षा परियोजना के डॉ॰ वेन ब्लोन्शॉ ने आपात प्रबंधन के सिद्धांतों पर विचार करने के लिए फ़ेमा आपातकालीन प्रबंधन संस्थान के अधीक्षक, डॉ॰ कोरतेज़ लॉरेंस के निर्देशन में आपात प्रबंधन वृत्तिकों और शिक्षाविदों का एक कार्यदल बुलाया। यह परियोजना इस बोध से प्रेरित हुई कि "आपातकालीन प्रबंधन के सिद्धांतों" पर असंख्य किताबें, लेख और निबन्ध उपलब्ध तो हैं लेकिन साहित्य की इतनी विशाल सारणी में इन सिद्धांतों की सर्वमान्य परिभाषा कहीं नहीं है। समूह आठ सिद्धांतों पर सहमत हुआ जो आपातकालीन प्रबंधन के सिद्धांत के विकास के लिए एक मार्गदर्शी के तौर पर प्रयुक्त होंगे। नीचे दिया गया सारांश इन आठ सिद्धांतों की सूची है और प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।
सिद्धांत: आपातकालीन प्रबंधन होना चाहिए:
व्यापक - आपातकालीन प्रबंधक आपदाओं से संबंधित सभी खतरों, सभी चरणों, सभी हितधारकों और सब प्रभावों पर विचार करते हैं और ध्यान में रखते हैं।
प्रगतिशील - आपातकालीन प्रबंधक भावी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाते हैं और आपदा-प्रतिरोधी और आपदा-समुत्थान समुदायों के निर्माण के लिए निवारक और तत्परता उपाय करते हैं।
जोखिम उन्मुख - प्राथमिकताओं और संसाधनों के समनुदेशन में आपातकालीन प्रबंधक उपयुक्त जोखिम प्रबंधन के सिद्धांतों (खतरे की पहचान, जोखिम विश्लेषण और प्रभाव विश्लेषण) का उपयोग करते हैं।
एकीकृत - आपातकालीन प्रबंधक सरकार के सभी स्तरों और एक समुदाय के सभी तत्वों के बीच में प्रयास की एकता सुनिश्चित करते हैं।
सहयोगी - आपातकालीन प्रबंधक व्यक्तियों और संगठनों के बीच व्यापक और सत्यनिष्ठ संबंध बनाते हैं ताकि विश्वास, एक टीम के वातावरण, आम सहमति और संप्रेषण को प्रोत्साहन मिले।
समन्वित - एक आम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपातकालीन प्रबंधक सभी सम्बद्ध हितधारकों की गतिविधियों को समकालिक बनाते हैं।
लचीला - आपदा चुनौतियों को हल करने में आपातकालीन प्रबंधक रचनात्मक और नवीन उपायों का उपयोग करते हैं।
पेशेवर - आपातकालीन प्रबंधक शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुभव, नैतिक आचरण, सार्वजनिक नेतृत्व और सतत सुधार पर आधारित विज्ञान और ज्ञान-आधारित उपाय को महत्व देते हैं।
इन सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन पर उपलब्ध है।
उपकरण
हाल के वर्षों में आपातकालीन प्रबंधन की निरंतरता की विशेषता के परिणामस्वरूप आपातकालीन प्रबंधन सूचना सिस्टम (EMIS) की नई अवधारणा ने जन्म लिया है। आपातकालीन प्रबंधन हितधारकों के बीच निरंतरता और अन्तरसंक्रियता के लिए, सरकारी और गैर सरकारी भागीदारी के सभी स्तरों पर आपात योजना को एकीकृत करने वाली संरचना प्रदान करके और आपात स्थितियों के सभी चार चरणों के लिए सभी संबंधित संसाधनों (मानव और अन्य संसाधनों सहित) का उपयोग करके EMIS आपातकालीन प्रबंधन प्रक्रिया का समर्थन करता है। स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में, अस्पताल HICS (अस्पताल हादसा कमान प्रणाली) का उपयोग करते हैं जो प्रत्येक प्रभाग के लिए ज़िम्मेदारियों के सेट के साथ स्पष्ट रूप से परिभाषित कमान श्रृंखला में संरचना और संगठन प्रदान करती है।
अन्य व्यवसायों के भीतर
क्षेत्र की परिपक्वता के साथ साथ आपात प्रबंधन (आपदा तत्परता) के वृत्तिक विविध पृष्ठभूमि से आने लगे हैं। स्मृति संस्थानों (जैसे संग्रहालय, ऐतिहासिक समाज, पुस्तकालय और अभिलेखागार) के पेशेवर सांस्कृतिक विरासत - अपने संग्रह में रखी वस्तुओं और रिकॉर्ड के संरक्षण के प्रति समर्पित हैं। 2001 में सितंबर 11 के हमलों, 2005 के तूफ़ान और कोलोन अभिलेखागार के पतन के बाद आई उच्च जागरूकता के परिणामस्वरूप यह इन क्षेत्रों के भीतर तेजी से बढ़ता प्रमुख घटक है।
बहुमूल्य अभिलेखों की सफल पुनः प्राप्ति के अवसर बढ़ाने के लिए, एक सुस्थापित और अच्छी तरह से परीक्षित योजना विकसित किया जाना चाहिए। योजना बहुत जटिल नहीं होनी चाहिए बल्कि प्रतिक्रिया और बहाली में सहायता करने के लिए
सादगी पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। सादगी के एक उदाहरण के रूप में, प्रतिक्रिया और बहाली चरण में कर्मचारियों को उसी तरह के कार्य करने चाहिए जो वे सामान्य परिस्थितियों में करते हैं। इसमें न्यूनीकरण रणनीतियों जैसे संस्था में छिड़काव यंत्रों की स्थापना, को भी शामिल करना चाहिए। इस कार्य के लिए अनुभवी अध्यक्ष के नेतृत्व वाली सुगठित समिति के सहयोग की आवश्यकता होती है।[16] जोखिम को कम करने और अधिकतम पुनः प्राप्ति के लिए व्यक्तियों को प्रचलित उपकरणों और संसाधनों की अद्यतन जानकारी देने के लिए पेशेवर संगठन नियमित कार्यशालाएं और वार्षिक सम्मेलनों में ध्यान सत्र आयोजित करते हैं।
उपकरण
आपदा तैयारी और बहाली योजनाओं में पेशेवरों की सहायता के लिए पेशेवर एसोसिएशन और सांस्कृतिक विरासत संस्थाओं के संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप कई विभिन्न प्रकार के उपकरणों का विकास हुआ है। कई मामलों में, ये उपकरण बाहरी उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके अतिरिक्त मौजूदा संगठनों द्वारा रचित योजना नमूने भी अक्सर वेबसाइटों पर उपलब्ध होते हैं जो आपदा योजना तैयार करने वाली या एक मौजूदा योजना को अद्यतन कर रही किसी भी समिति या समूह के लिए सहायक हो सकते हैं। जबकि प्रत्येक संगठन को अपनी विशेष ज़रूरतों को पूरा करने वाली योजना और उपकरण बनाने की ज़रूरत होगी फिर भी ऐसे उपकरणों के कुछ उदाहरण हैं जो संभवतः योजना प्रक्रिया में
उपयोगी प्रारंभिक बिंदुओं का प्रतिनिधित्व करे. इन्हें बाह्य कड़ियां अनुभाग में शामिल किया गया है।
2009 में, आपदाओं से प्रभावित आबादी के आकलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी अमेरिका ने वेब-आधारित एक उपकरण बनाया। के नाम से विख्यात यह उपकरण विश्व के सभी देशों में 1km2 के रेज़्युलेशन में जनसंख्या को वितरित करने के लिए ओक रिज राष्ट्रीय प्रयोगशाला द्वारा विकसित Landscan आबादी डेटा का उपयोग करता है। आबादी की अतिसंवेदनशीलता और या भोजन की असुरक्षा के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए
यूएसएड की FEWS NET परियोजना द्वारा प्रयुक्त पॉपुलेशन एक्सप्लोरर का आपातकालीन विश्लेषण और प्रतिक्रिया कार्रवाई में व्यापक प्रयोग बढ़ता जा रहा है, इसमें मध्य अमेरिका में बाढ़ और प्रशांत महासागर में 2009 में सुनामी घटना से प्रभावित आबादी का आकलन भी शामिल है।
2007 में, आपातकालीन प्रतिक्रिया में भाग लेने पर विचार कर रहे पशु चिकित्सकों के लिए एक जांचसूची अमेरिकन वेटरनरी मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित हुई थी, इसमें सवालों के दो खंड थे जो आपात स्थिति में सहायता करने से पहले किसी पेशेवर को स्वयं से पूछने थे:
भागीदारी के लिए निरपेक्ष अपेक्षाएं: क्या मैंने भाग के लिए चुना है?, क्या मैंने आईसीएस प्रशिक्षण लिया है?, क्या मैंने अन्य आवश्यक पृष्ठभूमि पाठ्यक्रम लिए हैं?, क्या मैंने अपने तैनाती के अभ्यास की तैयारी कर ली है?, क्या मैंने अपने परिवार के साथ व्यवस्था कर ली है?
घटना भागीदारी:? क्या मुझे भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है?, क्या मेरे कौशल मिशन के लिए उपयुक्त हैं?, क्या मैं कौशल को ताज़ा करने या आवश्यक नए कौशल पाने के लिए यथासमय प्रशिक्षण ले सकता हूं? क्या यह एक स्वतः-सहायता मिशन है? क्या अपने स्वयं के समर्थन के लिए मेरे पास तीन से पांच दिनों तक की आवश्यक आपूर्ति है?
जबकि यह लिखा हुआ है कि यह पशु चिकित्सकों के लिए है लेकिन किसी भी आपात स्थिति में
सहायता करने से पहले हर पेशेवर को इस सूची पर गौर करना चाहिए। [17]
अंतर्राष्ट्रीय संगठन
आपातकालीन प्रबंधकों की अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन
आपातकालीन प्रबंधकों की अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन (IAEM) आपात स्थिति और आपदाओं के दौरान जान और माल की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्यों को समर्पित
लाभ रहित शैक्षिक संगठन है। IAEM का उद्देश्य जानकारी, नेटवर्किंग और पेशेवर अवसर प्रदान करके अपने सदस्यों की सेवा करना और आपातकालीन प्रबंधन पेशे को उन्नत बनाना है।
इस समय दुनिया भर में इसकी सात परिषदें है:, , , , , और
व्यवसाय की ओर से IAEM निम्नलिखित प्रोग्राम का भी प्रबंधन करती है:
(CEM)
वायु सेना की आपातकालीन प्रबंधन एसोसिएशन (www.af-em.org और www.3e9x1.com), सदस्यता के द्वारा IAEM से अस्पष्ट रूप से संबद्ध है और यह अमेरिकी वायु सेना आपातकालीन प्रबंधकों को आपातकालीन प्रबंधन की जानकारी और नेटवर्किंग प्रदान करती है।
रेड क्रॉस/रेड क्रेसन्ट
आपात स्थिति का जवाब देने में राष्ट्रीय रेड क्रॉस/रेड क्रेसन्ट सोसायटी ने अक्सर निर्णायक भूमिका निभायी है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय रेड क्रॉस या रेड क्रेसन्ट सोसायटी द्वारा अनुरोध किए जाने पर रेड क्रॉस और रेड क्रेसन्ट सोसायटी की इंटरनेशनल फ़ेडरेशन (IFRC, या "द फ़ेडरेशन") प्रभावित देश को मूल्यांकन टीमें (अर्थात )
तैनात कर सकते हैं। आवश्यकता का मूल्यांकन करने के बाद प्रभावित देश या क्षेत्र में तैनात की जा सकती हैं। वे आपातकालीन प्रबंधन ढांचे के प्रतिक्रिया घटक के विशेषज्ञ हैं।
संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्रसंयुक्त राष्ट्र/0} तंत्र में आपातकालीन प्रतिक्रिया की ज़िम्मेदारी प्रभावित देश में रेज़िडेंट समन्वयक की है। हालांकि प्रभावित देश के अनुरोध पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया का समन्वयन व्यावहारिक तौर पर, संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वयन कार्यालय (संयुक्त राष्ट्र-OCHA) द्वारा संयुक्त राष्ट्र आपदा आकलन और समन्वयन (UNDAC) टीम तैनात करके किया जाता है।
विश्व बैंक
1980 के बाद से, विश्व बैंक ने आपदा प्रबंधन से संबंधित अमेरिकी $40 बिलियन से अधिक की राशि के 500 से अधिक प्रचालनों को मंज़ूरी दी है। इनमें शामिल हैं आपदा के बाद पुनर्निर्माण परियोजनाएं, साथ ही अर्जेन्टीना, बांग्लादेश, कोलंबिया, हैती, भारत, मेक्सिको, तुर्की और वियतनाम जैसे कुछेक देशों में आपदा प्रभावों
की रोकथाम और न्यूनीकरण के उद्देश्य वाले घटकों की परियोजनाएं.[18]
दावानल की रोकथाम के उपाय, जैसे कि पूर्व चेतावनी उपाय और किसानों को हतोत्साहित करना कि वे कृषिभूमि के लिए जंगल को न जलाएं जिससे दावानल शुरू होती है, तूफ़ान के आगमन की पूर्व चेतावनी प्रणाली, बाढ़ की रोकथाम के तंत्र, ग्रामीण क्षेत्रों में तटीय सुरक्षा और टेरसिंग से लेकर उत्पादन के अनुकूलन तक और भूकंप के अनुकूल निर्माण, रोकथाम और न्यूनीकरण परियोजनाओं के सामान्य केंद्रबिंदु हैं।[19]
प्रोवेन्शन कंसोर्टियम के संरक्षण में विश्व बैंक ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के साथ एक संयुक्त उद्यम प्राकृतिक आपदा के आकर्षण-केंद्रों का विश्वव्यापी जोखिम विश्लेषण की स्थापना की है।[20]
जून 2006 में विश्व बैंक ने विकास में आपदा जोखिम न्यूनीकरण को मुख्य धारा से जोड़कर आपदा हानि को कम करने के लिए हयोगो फ़्रेमवर्क ऑफ़ एक्शन के समर्थन में अन्य दाताओं के साथ एक दीर्घकालिक साझेदारी, आपदा न्यूनीकरण और बहाली (GFDRR) के लिए विश्वव्यापी सुविधा की स्थापना की। यह सुविधा उन विकास परियोजनाओं और कार्यक्रमों के वित्तपोषण में विकासशील देशों की मदद करती है जो आपदा रोकथाम और आपातकालीन तत्परता के लिए स्थानीय क्षमता बढ़ाने के लिए हों.[21]
यूरोपीय संघ
2001 के बाद से यूरोपीय संघ ने नागरिक सुरक्षा के लिए सामुदायिक प्रक्रिया को अपनाया है जिसने वैश्विक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है। प्रमुख आपात स्थितियां जिनके लिए तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता हो, घटित होने पर नागरिक सुरक्षा सहायता उपायों को सुसाध्य बनाना इस प्रक्रिया की मुख्य भूमिका है। यह उन परिस्थितियों के लिए भी लागू होती है जहां ऐसी प्रमुख आपात स्थितियों का आसन्न खतरा हो सकता है।
इस प्रक्रिया का मूल निगरानी और सूचना केन्द्र है। यह यूरोपीय आयोग के मानवीय सहायता एवं नागरिक सुरक्षा के महानिदेशालय का हिस्सा है और दिन में 24 घंटे सुलभ है। यह देशों को एक मंच उपलब्ध करवाता है, भाग लेने वाली सभी सरकारों को एक जगह सुलभ नागरिक सुरक्षा के साधनों का केंद्र है। एक बड़ी आपदा से प्रभावित संघ के अंदर या बाहर का कोई भी देश के MIC के माध्यम से सहायता के लिए अपील कर सकता है। यह भाग लेने वाली सरकारों, प्रभावित देश और भेजे गए क्षेत्रीय विशेषज्ञों के बीच मुख्यालय स्तर पर संचार केन्द्र के रूप में कार्य करता है। यह चल रही आपात स्थिति की वास्तविक स्थिति पर उपयोगी और अद्यतन जानकारी भी प्रदान करता है।[22]
अंतर्राष्ट्रीय बहाली मंच
अंतर्राष्ट्रीय बहाली मंच (IRP) की स्थापना जनवरी 2005 में कोबे, हयोगे, जापान में आपदा न्यूनीकरण (WCDR) पर विश्व सम्मेलन में की गई थी। आपदा न्यूनीकरण प्रणाली (ISDR) के लिए अंतर्राष्ट्रीय नीति के एक विषयगत मंच के रूप में, IRP हयोगे फ़्रेमवर्क फ़ॉर एक्शन (HFA) 2005-2015 के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है: आपदा के प्रति राष्ट्रों और समुदायों के समुत्थान का निर्माण, एक दशक के लिए आपदा जोखिम कम करने के लिए WCDR में 168 सरकारों द्वारा अपनाई गई एक वैश्विक योजना.
आपदा के बाद बहाली में आए अंतराल और बाधाओं को पहचानना और समुत्थान बहाली के लिए उपकरणों, संसाधनों और क्षमता के विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना IRP की महत्वपूर्ण भूमिका है। IRP का उद्देश्य अच्छी बहाली प्रक्रिया के लिए ज्ञान का अंतर्राष्ट्रीय स्रोत बनना है।
राष्ट्रीय संगठन
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में आपातकालीन प्रबंधन ऑस्ट्रेलिया (EMA) आपात स्थिति प्रबंधन के लिए मुख्य संघीय समन्वय और सलाहकार निकाय है। पांच राज्यों और दो प्रदेशों की अपनी अपनी राज्य आपातकालीन सेवा है। आपातकालीन फ़ोन सेवा राज्य पुलिस, अग्निशमन और एम्बुलेंस सेवाओं से संपर्क करने के लिए
एक राष्ट्रीय 000 आपातकालीन टेलीफोन नंबर प्रदान करता है। राज्य और संघीय सहयोग के लिए व्यवस्था है।
कनाडा
कनाडा सार्वजनिक सुरक्षा कनाडा की राष्ट्रीय आपात प्रबंधन एजेंसी है। प्रत्येक प्रांत से अपेक्षित है कि आपात स्थिति से निपटने के लिए कानून बनाए और साथ ही अपनी स्वयं की आपातकालीन प्रबंधन एजेंसियों की स्थापना करे जिन्हें आमतौर पर "आपातकालीन उपाय संगठन" (ईएमओ) कहा जाता है और जो नगर निगम और संघीय स्तर से प्राथमिक संपर्क के रूप कार्य करती हैं।
कनाडा जन सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा और कनाडावासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले संघीय संगठनों के प्रयासों का समन्वयन और समर्थन करती है। वे सरकार के अन्य स्तरों, पहले रिस्पॉन्डर्स, सामुदायिक समूहों, निजी क्षेत्र (महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के ऑपरेटर) और अन्य राष्ट्रों के साथ भी काम करती हैं।
पीएस की शक्तियां, कर्त्तव्य और कार्य परिभाषित करने वाले जन सुरक्षा और आपातकालीन तत्परता अधिनियम के माध्यम से कनाडा जन सुरक्षा का काम नीतियों और कानून की व्यापक रेंज पर आधारित है। अन्य अधिनियम सुधार, आपातकालीन प्रबंधन, कानून प्रवर्तन और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए विशिष्ट हैं।
जर्मनी
जर्मनी में जर्मन Katastrophenschutz (आपदा राहत) और Zivilschutz (नागरिक सुरक्षा) कार्यक्रम संघीय सरकार के नियंत्रणाधीन हैं। जर्मन अग्नि विभाग की स्थानीय इकाइयां और Technisches Hilfswerk (तकनीकी राहत के लिए संघीय एजेंसी,Thw) इन कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। जर्मन सशस्त्र बल (बुंडेसवेह्) जर्मन संघीय पुलिस और 16 राज्य पुलिस बल (Länderpolizei) सभी को आपदा राहत अभियानों के लिए तैनात किया गया है। जर्मन रेड क्रॉस के अलावा Johanniter-Unfallhilfe, सेंट जॉन एम्बुलेंस का जर्मन पर्याय, Malteser-Hilfsdienst, Arbeiter-Samariter-Bund, और अन्य निजी संगठनों द्वारा मानवीय सहायता सुलभ करायी जाती है जो बड़े पैमाने पर आपात स्थिति से निपटने के लिए सक्षम सबसे बड़ा राहत संगठन है। 2006 की स्थिति के अनुसार बॉन विश्वविद्यालय में एक संयुक्त पाठ्यक्रम है जिसके बाद
"आपदा रोकथाम और जोखिम संचालन में मास्टर" डिग्री ली जा सकती है।[23]
भारत
भारत में आपातकाल प्रबंधन की भूमिका गृह मंत्रालय के अधीनस्थ सरकारी एजेंसी
भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कंधों पर आती है।
हाल के वर्षों में महत्व में बदलाव आया है, प्रतिक्रिया और उबरने से रणनीतिक जोखिम प्रबंधन और न्यूनीकरण तथा सरकारी केंद्रित दृष्टिकोण से विकेन्द्रीकृत समुदाय की भागीदारी की ओर. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एक आंतरिक एजेंसी का समर्थन करता है जो आपात प्रबंधन की प्रक्रिया में भू वैज्ञानिकों के शैक्षणिक ज्ञान और विशेषज्ञता को शामिल कर अनुसंधान को सुसाध्य बनाती है।
हाल ही में भारत सरकार ने सार्वजनिक / निजी भागीदारी का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह का
गठन किया है। यह मुख्य रूप से भारत-आधारित एक बड़ी कंप्यूटर कंपनी द्वारा वित्त पोषित है और इसका उद्देश्य आपदाओं के रूप में वर्णित घटनाओं के अलावा आपात स्थितियों के प्रति समुदायों की सामान्य प्रतिक्रिया में सुधार लाना है। प्रथम रिस्पॉन्डर्स के लिए आपात प्रबंधन प्रशिक्षण (भारत में पहली बार), एकल आपातकालीन टेलीफोन नंबर की रचना और ईएमएस स्टाफ़ के लिए मानक, उपकरण और प्रशिक्षण की स्थापना का प्रावधान समूह के शुरुआती कुछेक प्रयासों में शामिल हैं। वर्तमान में यह तीन राज्यों में प्रचालित है, हालांकि इसे राष्ट्रव्यापी प्रभावी समूह बनाने के प्रयास जारी हैं।
नीदरलैंड्स
नीदरलैंड्स में राष्ट्रीय स्तर पर आपातकालीन तत्परता और आपात प्रबंधन के लिए आंतरिक और साम्राज्य संबंधों का मंत्रालय उत्तरदायी है और यह राष्ट्रीय संकट केन्द्र (एनसीसी) का संचालन करता है। देश 25 सुरक्षा क्षेत्रों (veiligheidsregio) में विभाजित है। प्रत्येक सुरक्षा क्षेत्र तीन सेवाओं: पुलिस, अग्नि और एम्बुलेंस से लैस है। सभी क्षेत्र समन्वित क्षेत्रीय घटना प्रबंधन प्रणाली के अनुसार संचालित होते हैं। रक्षा मंत्रालय, जलमंडल, Rijkswaterstaat आदि जैसी अन्य सेवाएं
आपात प्रबंधन की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं।
न्यूज़ीलैंड
न्यूज़ीलैंड में आपातकालीन स्थिति की प्रकृति या जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रम के आधार पर आपातकालीन प्रबंधन का दायित्व स्थानीय से राष्ट्रीय रूप धारण करता है। एक गंभीर तूफ़ान का सामना एक क्षेत्र विशेष के भीतर किया जा सकता है जबकि राष्ट्रीय सार्वजनिक शिक्षा अभियान केंद्र सरकार द्वारा ही निर्देशित किया जाएगा. प्रत्येक क्षेत्र के भीतर स्थानीय सरकारें 16 सिविल डिफ़ेन्स एमरजेंसी मैनेजमैंट ग्रुपों (CDEMGs) में एकीकृत हैं। प्रत्येक CDEMG का उत्तरदायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि स्थानीय आपातकालीन प्रबंधन यथासंभव सशक्त हो। चूंकि आपात स्थिति में स्थानीय बंदोबस्त कम पड़ जाते हैं, पहले से मौजूद परस्पर-समर्थित बंदोबस्त सक्रिय कर दिए जाते हैं। जैसाकि निश्चित है, नागरी रक्षा एवं आपातकाल प्रबंधन मंत्रालय (MCDEM) द्वारा संचालित राष्ट्रीय संकट प्रबंधन केंद्र (NCMC) के माध्यम से प्रतिक्रिया के समन्वयन का प्राधिकार केन्द्र सरकार के पास है। विनियमन इन संरचनाओं को परिभाषित करते हैं[24] और लगभग अमेरिकी फ़ेडरल आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी के नेशनल रिस्पांस फ़्रेमवर्क के समतुल्य द गाइड टू द नेशनल सिविल डिफ़ेन्स एमरजेंसी प्लान 2006 में इनका बेहतर वर्णन है।
पारिभाषिक शब्दावली
आपातकालीन प्रबंधन के लिए न्यूज़ीलैंड अंग्रेज़ी-भाषी शेष विश्व के लिए अद्वितीय शब्दावली का उपयोग करता है।
4Rs शब्द का इस्तेमाल स्थानीय रूप से आपात प्रबंधन चक्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है। न्यूज़ीलैंड में चार चरणों को निम्न रूप से जाना जाता है:[25]
कम करना = न्यूनीकरण
तैयारी = तत्परता
प्रतिक्रिया
उबरना
आपातकालीन प्रबंधन का प्रयोग स्थानीय स्तर पर शायद ही कभी किया जाता है, कई सरकारी प्रकाशन नागरी रक्षा शब्द का प्रयोग करते हैं।[26] उदाहरण के लिए, केंद्र सरकार की आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी की ज़िम्मेदारी नागरी रक्षा मंत्री MCDEM पर है।
सिविल डिफ़ेन्स एमरजेंसी मैनेजमैंट अपने आप में एक शब्द है। अक्सर CDEM के रूप में संक्षिप्त, इसे कानून द्वारा आपदाओं से होने वाले नुकसान को रोकने वाले ज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है।[27]
आधिकारिक प्रकाशनों में आपदा बहुत कम आता है। न्यूज़ीलैंड के संदर्भ में आपातकाल और घटना शब्द आमतौर पर तब इस्तेमाल होते हैं जब सामान्य तौर पर आपदाओं के बारे में बात हो रही हो.[28] जब किसी आपात स्थिति की आधिकारिक प्रतिक्रिया होती है तो उसका ज़िक्र करते समय घटना शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, प्रकाशन "कैंटरबरी शो घटना 2002" का उल्लेख करते हैं।[29]
रूस
रूस में आपातकालीन परिस्थिति मंत्रालय (EMERCOM) अग्नि शमन, नागरी रक्षा, बचाव और खोज में कार्यरत है जिसमें प्राकृतिक और मानव-रचित आपदाओं के बाद बचाव सेवाएं भी शामिल हैं।
युनाइटेड किंगडम
2000 में यूके ईंधन विरोध, उसी वर्ष गंभीर बाढ़ और 2001 यूनाइटेड किंगडम पैर-और-मुंह संकट के बाद यूनाइटेड किंगडम ने आपात प्रबंधन की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसके परिणामस्वरूप सिविल आकस्मिकता अधिनियम 2004 (सीसीए) की रचना हुई जिसने कुछ संगठनों को रिस्पॉन्डर 1 और 2 के रूप में परिभाषित किया। कानून के तहत आपातकालीन तत्परता और प्रतिक्रिया के संबंध में इन रिस्पॉन्डर्स को उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं। सीसीए का प्रबंधन क्षेत्रीय समुत्थान मंच के माध्यम से और स्थानीय प्राधिकरण स्तर पर सिविल आकस्मिकता सचिवालय द्वारा किया जाता है।
आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण का आयोजन आम तौर पर किसी भी प्रतिक्रिया में शामिल संगठनों द्वारा स्थानीय स्तर पर किया जाता है। इसे आपातकालीन योजना कॉलेज में व्यावसायिक पाठ्यक्रम के माध्यम से समेकित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त डिप्लोमा, पूर्वस्नातक और स्नातकोत्तर अर्हता देश भर में प्राप्त की जा सकती है - इस प्रकार का पहला पाठ्यक्रम 1994 में कोवेन्ट्री विश्वविद्यालय द्वारा चलाया गया था। सरकार, मीडिया और वाणिज्यिक क्षेत्रों के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान कर रहा, 1996 में स्थापित आपातकालीन प्रबंधन संस्थान धर्माथ है।
आपातकालीन योजना सोसायटी आपातकालीन योजनाकारों की व्यावसायिक सोसायटी है।[30]
ब्रिटेन के सबसे बड़े में से एक आपातकालीन अभ्यास 20 मई 2007 को बेलफ़ास्ट के पास उत्तरी आयरलैंड में किया गया जिसमें बेलफ़ास्ट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में एक विमान दुर्घटना लैंडिंग का परिदृश्य शामिल था। पांच अस्पतालों और तीन हवाई अड्डों के कर्मचारियों ने इस ड्रिल में भाग लिया और लगभग 150 अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया।[31]
संयुक्त राज्य अमेरिका
होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) के तहत संघीय आपात प्रबंधन एजेंसी (फ़ेमा) आपात प्रबंधन के लिए अग्रणी एजेंसी है। जोखिम मूल्यांकन प्रक्रिया में फ़ेमा द्वारा विकसित HAZUS सॉफ़्टवेयर पैकेज देश में प्रमुख है। अमेरिका और उसके क्षेत्र आपात प्रबंधन प्रयोजनों के लिए फ़ेमा के दस क्षेत्रों में से एक के अधीन आते हैं। आदिवासी, राज्य, काउंटी और स्थानीय सरकारें आपातकालीन प्रबंधन कार्यक्रम/विभाग विकसित करते हैं और प्रत्येक क्षेत्र के भीतर पदानुक्रम रूप से कार्य करते हैं। आपात स्थिति समीपवर्ती अधिकार-क्षेत्र के साथ आपसी सहायता समझौतों का उपयोग करते हुए यथासंभव स्थानीय स्तर पर संभाली जाती है। अगर आपात स्थिति आतंकवाद से संबंधित है या फिर "राष्ट्रीय महत्व की घटना" घोषित हो जाए, होमलैंड सिक्योरिटी के सचिव नेशनल रिस्पांस फ़्रेमवर्क (एनआरएफ़) आरंभ कर देंगे। इस योजना के तहत स्थानीय, काउंटी, राज्य या आदिवासी संस्थाओं के साथ मिलकर संघीय संसाधन की भागीदारी को संभव बनाया जाएगा. नेशनल इंसिडेंट मैनेजमैंट सिस्टम (एन आई एम एस) का उपयोग करते हुए यथासंभव
निम्नतर स्तर पर प्रबंधन को संभाला जाता रहेगा.
सिटीज़न कॉर्प्स स्थानीय रूप से प्रशासित और राष्ट्रीय स्तर पर DHS द्वारा समन्वित स्वयंसेवक सेवा कार्यक्रम का संगठन है जो सार्वजनिक शिक्षा, प्रशिक्षण और पहुँच के माध्यम से
जनता को आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए तैयार करता है। सिटीज़न कॉर्प्स का आपदा तत्परता और बुनियादी आपदा प्रतिक्रिया सिखाने पर केंद्रित एक कार्यक्रम कम्युनिटी एमरजेंसी रिस्पांस टीम है। जब आपदा के कारण पारंपरिक आपातकालीन सेवाएं शिथिल पड़ जाती हैं तब इन स्वयंसेवी टीमों का उपयोग आपातकालीन सहायता प्रदान करने के लिए किया जाता है।
अमेरिकी कांग्रेस ने प्रशांत एशिया क्षेत्र में आपदा तत्परता और सामाजिक समुत्थान को बढ़ावा देने के लिए मुख्य एजेंसी के रूप में आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता (COE) में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की। घरेलू, विदेशी और अंतर्राष्ट्रीय योग्यता और क्षमता विकसित करने के लिए COE अपने जनादेश के भाग के रूप में आपदा तत्परता, परिणाम प्रबंधन और स्वास्थ्य सुरक्षा में शिक्षा और प्रशिक्षण को सुकर बनाता है।
इन्हें भी देखें
ब्रिटिश मानवतावादी एजेंसियों का संघ
आपदा जवाबदेही परियोजना (डीएपी)
अंतर्राष्ट्रीय आपदा आपातकालीन सेवा (इ डी इ एस)
नेटहोप
पूरक प्राकृतिक आपदा संरक्षण
जल सुरक्षा और आपातकालीन तत्परता
= सन्दर्भ =
इसे भी पढ़ें
आपातकालीन प्रबंधन का अंतर्राष्ट्रीय जर्नल, ISSN (इलेक्ट्रानिक) ISSN (लेख), इंडरसाइंस प्रकाशक
ISSN, बीप्रेस
(इलेक्ट्रानिक) ISSN (लेख), आपातकालीन प्रबंधन ऑस्ट्रेलिया
, स्वचालित आपदा प्रबंधन उपकरण विकसित करने वाले विश्वविद्यालयों का संघ
बाहरी कड़ियाँ
द एमरजेंसी रिस्पांस एंड सैल्वेज़ व्हील टूल
-विद्वानों के लिए जून 2008 में वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित घटना का वीडियो, प्रस्तुतियां और सारांश
राष्ट्रीय अकादमियों द्वारा आयोजित आपदा गोलमेज़ कार्यशाला
- ब्रिटेन सरकार की सार्वजनिक जानकारी की साइट
व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय संस्थान
आपात स्थिति प्रबंधन के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उपयोग को समर्पित
स्टेट ऑफ़ अमेरिकाज़ क्लेक्शन्स पर 2005 की रिपोर्ट.
. आपातकालीन प्रबंधकों के लिए ऑनलाइन संसाधन.
.
श्रेणी:आपातकालीन प्रबंधन
श्रेणी:आपदा तत्परता
श्रेणी:व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य | कनाडा की राष्ट्रीय आपात प्रबंधन एजेंसी का क्या नाम है? | कनाडा सार्वजनिक सुरक्षा | 26,884 | hindi |
6030ff496 | २६ अक्टूबर २०१५ को, १४:४५ पर (०९:०९ यूटीसी), हिंदू कुश के क्षेत्र में,[1] एक 7.5 परिमाण के भूकंप ने दक्षिण एशिया को प्रभावित किया।[2] मुख्य भूकंप के 40 मिनट बाद 4.8 परिमाण के पश्चात्वर्ती आघात ने फिर से प्रभावित किया;[3][4] 4.1 परिमाण या उससे अधिक के तेरह और अधिक झटकों ने 29 अक्टूबर की सुबह को प्रभावित किया।[5] मुख्य भूकंप 210 किलोमीटर की गहराई पर हुआ।[6]
5 नवम्बर तक, यह अनुमान लगाया गया था कि कम से कम 398 लोगों की मौत हो गयी हैं, ज्यादातर पाकिस्तान में।[7][8][9][10] भूकंप के झटके अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, ताजिकिस्तान, और किर्गिस्तान में महसूस किए गए।[10][11][12][13] भूकंप के झटके भारतीय शहरों नई दिल्ली, श्रीनगर, अमृतसर[14], चंडीगढ़ लखनऊ आदि[15] और चीन के जनपदों झिंजियांग, आक़्सू, ख़ोतान तक महसूस किए गए जिनकी सूचना अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भी दिया गया।[16][17] कंपन नेपालियों की राजधानी काठमांडू में भी महसूस किया गया, जहां लोगों ने शुरू में सोचा कि यह अप्रैल 2015 में आए भूकंप के कई मायनों आवर्ती झटकों में से एक था।
दैनिक पाकिस्तानी "द नेशन" ने सूचित किया कि यह भूकंप पाकिस्तान में 210 किलोमीटर पर होने वाला सबसे बड़ा भूकंप है।[18]
पृष्ठभूमि
दक्षिण एशिया के पहाड़, टेक्टोनिक प्लेटों की टक्कर से ऊपर ढकेले जाने के कारण, विनाशकारी भूकंप से ग्रस्त हैं।[19] अप्रैल 2015 में एक भूकंप, जो नेपाल के 80 वर्षो में सबसे भीषण भूकंप था, जिसमे 9,000 से अधिक लोग मारे गए। 2005 में कश्मीरी क्षेत्र में केंद्रित एक भूकंप में हजारों मारे गये थे।
पिछली बार उसी क्षेत्र में समान परिमाण वाला 7.6 Mw का भूकंप ठीक दस वर्ष पहले अक्टूबर, 2005 में आया था जिसके परिणामस्वरूप 87,351 लोगों की मृत्यु हुई, 75,266 घायल हुए, 2.8 मिलियन (28 लाख) लोग विस्थापित हुए और 250,000 मवेशी मारे गए थे। इस भूकंप और 2005 में आए भूकंप के बीच उल्लेखनीय अंतर भूकंपीय गतिविधि की गहराई का है। इस भूकंप में 212.5 किमी की गहराई थी, जबकि 2005 में आए भूकंप में केवल 15 किमी की ही गहराई थी।[20]
भूकंप
भूकंप 26 अक्टूबर 2015 को लगभग 212.5 किलोमीटर की गहराई पर 14:45 (09:09 यूटीसी) में हुआ था, फ़ैज़ाबाद, अफगानिस्तान के दक्षिण पूर्व में लगभग 82 किमी की अपने उपरिकेंद्र के साथ। संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण (यूएसजीएस) ने भूकंप की तीव्रता शुरू में 7.7 पर मापी फिर 7.6 पर इसे नीचे संशोधित किया और बाद में 7.5 किया।
हालांकि पाकिस्तान के मौसम विभाग ने कहा है कि भूकंप का परिमाण 8.1 था। यूएसजीएस के अनुसार, भूकंप का केंद्र चित्राल से 67 किलोमीटर था।[21][22]
परिणाम
भूकंप से पाकिस्तान में कम से कम 279 लोगों की मौत हो गई,[9] और 115 अफगानिस्तान में जहां 5 जलालाबाद में मारे गए थे और तख़ार में एक विद्यालय ढह जाने के बाद भगदड़ में 12 छात्र मारे गये।[7][23] पाकिस्तान में भूकंप के झटके कई प्रमुख शहरों में महसूस किये गये। कम से कम 194 घायलों को स्वात के एक अस्पताल में और 100 से अधिक को पेशावर के एक अस्पताल में लाया गया। पाकिस्तान के गिलगित-बल्तिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में व्यापक क्षति हुई थी। ख़ैबर पख़्तूनख़्वा से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शांगला, निचला दीर, उपरी दीर, स्वात और चित्राल शामिल हैं।[24]
भारत में, दिल्ली मेट्रो के प्रवक्ता ने कहा, "भूकंप के समय चारों ओर पटरियों पर चल रही 190 ट्रेनों को बंद कर दिया गया था।" पाकिस्तान में काराकोरम राजमार्ग बंद कर दिया गया था।[25]
उच्च आवाज यातायात के कारण मोबाइल फोन सेवाओं को कई घंटे के लिए बंद किया गया था।[4]
बचाव और राहत
— पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सभी संघीय, नागरिक, सैनिक और प्रांतीय एजेंसियों को निर्देश को एक तत्काल चेतावनी की घोषणा की और पाकिस्तान के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी संसाधनों को तैयार किया। इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस के अनुसार, आर्मी स्टाफ के मुख्यमंत्री जनरल राहील शरीफ के आदेश का इंतजार किए बिना, जहां प्रभावित लोगों को मदद आवश्यक थी वहां सेना के जवानों को पहुँचने के लिए निर्देशित किया।[26][22]
— अफगानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने आपदा की प्रतिक्रिया करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की एक आपात बैठक बुलाई।[27]
— भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ से संपर्क किया और मदद की पेशकश की।[10] [28]
— संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों पाकिस्तानी और अफगान राहत कार्यों की सहायता के लिए तैयारी कर रहे हैं।[29]
हाल ही में आए भूकंप के अध्ययन
हाल के अध्ययन में, भूवैज्ञानिकों का दावा है कि भूमंडलीय ऊष्मीकरण में वृद्धि, हल ही में हुई भूकंपीय गतिविधि के कारणों में से एक है। इन अध्ययनों के अनुसार ग्लेशियरों के पिघलने और बढते समुद्र के जल स्तर से पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों पर दबाव का संतुलन अस्तव्यस्त है और इस प्रकार भूकंप की तीव्रता आवृत्ति में वृद्धि के कारण हैं। यही कारण है कि हिमालय हाल के वर्षों में भूकंप से ग्रस्त हो रहे हैं।[30]
इन्हें भी देखें
2015 नेपाल भूकम्प
सन्दर्भ
श्रेणी:पाकिस्तान में भूकम्प
श्रेणी:अफ़ग़ानिस्तान में भूकम्प
श्रेणी:2015_में_आपदाएँ | हिन्दू कुश भूकंप की गहराई कितनी है? | 210 किलोमीटर | 325 | hindi |
ae61ff38a | हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान (अंग्रेज़ी: हरीशचंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद में स्थित एक अनुसंधान संस्थान है।[1] इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ हरीशचन्द्र के नाम पर रखा गया है। यह एक स्वायत्त संस्थान है, जिसका वित्तपोषण परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरका द्वारा किया जाता है। यहां विभिन्न संकायों के ३० के लगभग सदस्य हैं। इस संस्थान में गणित एवं सैद्धांतिक भौतिकी पर अनुसंधान के विशेष प्रबंध हैं।
इसकी स्थापना १९६६ में बी.एस. मेहता न्यास, कोलकाता द्वारा वित्तदान के द्वारा हुई थी। इसका पूर्व नाम अक्टूबर २००१ तक मेहता अनुसंधान संस्थान था। वर्तमान निदेशक श्री. अमिताव रायचौधरी हैं।
इतिहास
१० अक्टूबर २००० तक यह संस्थान मेहता गणित एवं गणितीय भौतिकी अनुसन्धान संस्थान के नाम से जाना जाता था। ११ अक्टूबर २००० को इसका नाम बदल कर स्वर्गीय प्रोफ़ेसर हरीश चन्द्र के नाम पर हरीश चन्द्र अनुसन्धान संस्थान रख दिया गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लब्ध प्रतिष्ठित गणितज्ञ डॉ॰ वी. एन. प्रसाद ने इस संस्थान के लिये एक बडी अभिदान राशि और कुछ जगह जुटाने के एक कठिन कार्य को पूरा करने का प्रयास किया। बी० एस० मेहता न्यास कलकत्ता, ने सहायता की जिससे इस संस्थान का इलाहाबाद से अपनी शैशव अवस्था से काम शुरु कर सकना निश्चित हुआ। डॉ॰ प्रसाद का जनवरी 1966 में देहांत हो गया और उसके बाद इसकी बागडोर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उनके शागिर्द डॉ॰ एस० आर० सिन्हा ने संभाली। इस संस्थान के प्रथम निर्देशक के रूप मे पद-भार ग्रहण करने के लिये राजस्थान विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उप-कुलपति और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रोफ़ेसर पी० एल० भटनागर को आमंत्रित किय गया। अपने कार्य-काल में उन्होने इस संस्थान को एक नया जीवन दिया और देश के विख्यात गणितज्ञों के बीच एक अमिट छाप छोडी। यद्यपि, प्रोफ़ेसर भटनागर अधिक समय तक जीवित नहीं रह सके और अक्टूबर 1976 में उन्की मृत्यु के बाद संस्थान के उत्तरदायित्व का भार एक बार पुन: डॉ॰ सिन्हा के कंधों पर आ गया।
जनवरी 1983 में बम्बई विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर और गणित एवं सांख्यिकी विभाग के अध्यक्ष, प्रोफ़ेसर एस० एस० श्रीखडें, ने इस संस्थान के अगले निर्देशक के रूप मेम कार्य-भार संभाला। इनके ही कार्य-काल में परमाणु ऊर्जा विभाग के साथ चल रही बातचीत एक निर्णायक मोड पर पहुंची और परमाणु ऊर्जा विभाग ने इस संस्थान के भविष्य के बारे में अध्ययन करने के लिये पुनरीक्षा समिति का गठन किया।
इस संस्थान के इलाहाबाद से बाहर जाने की संभावनाएं अंततः खत्म कर दी गयीं और जून 1985 में, उत्तर प्रदेश के तत्कलीन मुख्यमन्त्री ने इस मामले में दखल कर मुफ़्त में पर्याप्त भू-खण्ड उपलब्ध कराने के लिये सहमति दी। परमाणु ऊर्जा विभाग ने आवर्तक और अनावर्तक दोनो तरह के व्यय को पूरा करने के लिये वित्तीय सहायता का वादा किया। प्रो॰ श्रीखंडे सन 1986 में सेवा-निवृत्त हो गये। संस्थान के लिये ज़मीन हासिल करने के प्रयास जारी रहे और अंततः जनवरी 1992 में इलाहाबाद में झूंसी नामक स्थान पर लगभग 66 एकड ज़मीन प्राप्त कर ली गयी। प्रो॰ एच० एस० मणि ने जनवरी 1992 में इस संस्थान के नये निर्देशक के रूप में कार्य-भार संभाला और उनके आने से संस्थान की अकादमिक और अन्य गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला।
पुस्तकालय
इस संस्थान का पुस्तकालय इस क्षेत्र के सबसे सुसज्जित साधन-संपन्न पुस्तकालयों में से एक है। यह संस्थान के अकादमिक और अनुसन्धान कार्यक्रमों को अनिवार्य सहायता कराता आ रहा है। यह पुस्तकालय हमेशा की तरह पूरे वर्ष 360 दिन सुबह 8 बजे से लेकर 2 बजे तक खुला रहता है। रविवार और राजपत्रित अवकाश के दिनों यह पुस्तकालय सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। 1 अप्रैल 2001 से लेकर 31 मार्च 2002 तक की अवधि के दौरान 531 पुस्तकों और 1122 जिल्द-बन्द जर्नलों के खण्डों सहित कुल 1653 खण्ड इस पुस्तकालय में वर्तमान में 205 जर्नल मंगाय जा रहे है। यहाँ से ऑन लाइन द्वारा कई एसे जर्नलों तक पहुंचा जा सकता है जिनका यह पूर्व क्रेता रह है। यह पुस्तकालय मैथसाइनैट का भी पूर्व क्रेता रह है। पिछ्ले वर्ष हम पुस्तकालय में भी इलैक्ट्रानिक्स साधनों को बढाने के प्रयास करते रहे है। समीक्षाधीन वर्ष के दौरान हमने आंतर्राष्ट्रीय शोध केन्द्रो और सोसायटियों के लब्ध- प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा दिये गये विशिष्ट व्याख्यानों के 21 विडियो कैसेट मंगाए है। इन्हें पुस्तकालय की श्रव्य-दृश्य इकाइयों में देखा जा सकते है। इसी प्रकार की जानकारी सीडी रोम और डिस्कीटों पर भी उपलब्ध है। हमारी योजना इस तरह की सामग्री को संबर्धित करने की है ताकी इसका इस्तेमाल हमारे शिक्षण और शोध कार्यक्रमों के स्म्पूरक के रूप में किय जा सके। इस पुस्तकालय मे सभी विशेषताओं से युक्त लाइब्रेरी सौफ़्ट्वेयर पैकेज का इस्तेमाल किय जा रह है जिसे इस संस्थान के कार्यालय स्वचलन परियोजना के एक भाग के रूप में यहीं पर विकसित किय गय था। इस सफ़्ट्वेयर में एच०टी०एम०एल० इंटरफ़ेस है जिससे यह इंटरनेट के साथ-साथ इंटरनेट प्रयोक्ताओं के लिये भी सुलभ है। इसके एकीकृत वातावरण में सूची बनाने, आवधिक पत्रिकाओ का अधिग्रहण करने और प्रचालन के मौड्यूलों की सुविधा है। जो पुस्तकालय के लगभग सभी कार्यो को संचालित करते है। ऑन लाइन संसाधनों की मदद से कोई भी प्रयोक्ता किसी भी ज़रूरत के लिये ऑन लाइन पूर्व क्रय किये जर्नलों तक पहुंचने के अलावा पुस्तकालय के डेटा बेस की पूछताछ भी कर सकता है। यह पुस्तकालय फ़ोटो कापी और डाक प्रभार लेकर संस्थान के बाहर के व्यक्तियों को ज़रूरत पडने पर दस्तावेज सुपुर्दगी सेवा (ज़िराक्स प्रतियां) भी लगातार प्रदान करता रहा है।
पाठ्यक्रम
एच० आर० आई० संस्था में सर्वोच्च उपाधि के पाठ्यक्रम है। यहाँ छात्रों को पी० एच० डी० की सुविधा है। यह उपाधि इलाहाबाद विश्व विधालय द्वारा मान्यता प्राप्त है। यहाँ JEST टेस्ट एंव साक्षात्कार द्वारा चुने गये अभ्यार्थीयों को ही स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया। एक वर्ष की कठिन पाठ्यक्रम को करने के बाद ही शोध कार्य प्रारम्भ कर पाता है जो कि 4 से 5 वर्ष तक जारी रहता है। चुने गये अभ्यार्थियों को ही जूनियर रिर्सच फेलोशिप (JRF's) और होस्टल की सुविधा प्रदान की जाती है।
इस संस्था में भौतिकी एंव गणित दोनों में अतिथि विधार्थी पाठ्यक्रम चल रहें है। गणित पाठ्यक्रम अधिक तर ग्रीष्मकाल में आयोजित किये जाते है, जबकि भौतिकी पाठ्यक्रम विधार्थी एंव अध्यापकों की आपसी सुविधानुसार आयोजित किये जाते है।
पी.एचडी
यहाँ पी० एच० डी० गणित एंव भौतिकी (सैध्दातिक भौतिकी और ब्रह्मान्डिकी-भौतिकी) हेतु आवेदन पत्र अत्यधिक उच्च स्तरिय अकदमिक रिकार्ड वाले अध्यापकों द्वारा मान्यता प्राप्त ही स्वीकार है। अभ्यार्थी (JEST's) तथा साक्षात्कार द्वारा ही चुने जाते है।
अतिथि विधार्थी पाठ्यक्रम
भौतिकी
संस्थान में अतिथि विधार्थी पाठ्यक्रम चलता है। जिसकी योग्यता है विज्ञान स्नातकोत्तर, प्रौद्योगिकी स्नातक एवं विज्ञान स्नातक- अंतिम वर्ष। चुने हुये विधार्थी भौतिकी क्षेत्र में अपने अध्यापकों या पोस्ट डाक्टोरल फेलों के निर्देशन में कार्य करते है। अपने प्रोजेक्ट के अन्त में विधाथियों के लिये सेमीनार का प्रवाधान है। जिन भागीदारों का कार्य सबसे अच्छा होता है उन्हें आगे पी० एच० डी० के लिए चुना जा सकता है। चुनने का आधार विधार्थी का अकादमिक रिकार्ड तथा रिकमेन्डेशन लैटर है। अतिथि विधार्थियों पूरे वर्ष में अपनी सुविधानुसार कम से कम चार हफ्ते तक यहाँ रुक सकते है। चुने हुए विधार्थीयों को Rs. 3000.00 प्रत्येक माह स्टाइपेन्ड तथा द्वितीय श्रेणी शयनयान का किराया दिया जाता है तथा होस्टल में रहने की सुविधा दी जाती है।
गणित
यहाँ प्रत्येक ग्रीष्मकाल में वीजिटिंग स्टूडेन्ट समर प्रोग्राम (V.S.S.P.) अन्डरग्रेजुएट (B.Sc.,M.Sc.) के विधार्थियों चलाए जाते है। इस पाठ्यक्रम के लिये चुने गये विधार्थियों के गणित के क्षेत्र में 4 -7 हफ्ते तक कुछ विषेश लेक्चर्स का आयोजन किया जाता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
हरीश चंद्र
बाहरी कड़ियाँ
- हिन्दी में
- हिन्दी में (पुराना जालघर)
श्रेणी:उत्तर प्रदेश के शिक्षण संस्थान
श्रेणी:१९६६ की स्थापनाएं
श्रेणी:भारत में अनुसंधान संस्थान
श्रेणी:भौतिकी संस्थान
श्रेणी:गणित संस्थान
श्रेणी:होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान
श्रेणी:इलाहाबाद
श्रेणी:उत्तर प्रदेश के संगठन | हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान की स्थापना किस वर्ष में हुई थी? | 1966 | 1,159 | hindi |
8a0a4e9df | क्रिया योग की साधना करने वालों के द्वारा इसे एक प्राचीन योग पद्धति के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसे आधुनिक समय में महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिरी महाशय के द्वारा 1861 के आसपास पुनर्जीवित किया गया और परमहंस योगानन्द की पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी (एक योगी की आत्मकथा) के माध्यम से जन सामान्य में प्रसारित हुआ।[1] इस पद्धति में प्राणायाम के कई स्तर होते है जो ऐसी तकनीकों पर आधारित होते हैं जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को तेज़ करना[1] और प्रशान्ति और ईश्वर के साथ जुड़ाव की एक परम स्थिति को उत्पन्न करना होता है।[2] इस प्रकार क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है।[3]
परमहंस योगानन्द के अनुसार क्रियायोग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन से रहित तथा ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपान्तरित होकर मस्तिष्क और मेरूदण्ड के चक्रों को नवशक्ति से पुनः पूरित कर देते है।[4] प्रत्यक्छ प्राणशक्तिके द्वारा मन को नियन्त्रित करनेवाला क्रियायोग अनन्त तक पहुँचने के लिये सबसे सरल प्रभावकारी और अत्यन्त वैज्ञानिक मार्ग है। बैलगाड़ी के समान धीमी और अनिश्चित गति वाले धार्मिक मार्गों की तुलना में क्रियायोग द्वारा ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग को विमान मार्ग कहना उचित होगा। क्रियायोग की प्रक्रिया का आगे विश्लेषण करते हुये वे कहते हैं कि मनुष्य की श्वशन गति और उसकी चेतना की भिन्न भिन्न स्थिति के बीत गणितानुसारी सम्बन्ध होने के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। मन की एकाग्रता धीमे श्वसन पर निर्भर है। तेज या विषम श्वास भय, काम क्रोध आदि हानिकर भावावेगों की अवस्था का सहचर है।[5]
क्रिया योग का अभ्यास
जैसा की लाहिरी महाशय द्वारा सिखाया गया, क्रिया योग पारंपरिक रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से ही सीखा जाता है।[6][7] उन्होंने स्मरण किया कि, क्रिया योग में उनकी दीक्षा के बाद, "बाबाजी ने मुझे उन प्राचीन कठोर नियमों में निर्देशित किया जो गुरु से शिष्य को संचारित योग कला को नियंत्रित करते हैं।"[8]
जैसा की योगानन्द द्वारा क्रिया योग को वर्णित किया गया है, "एक क्रिया योगी अपनी जीवन उर्जा को मानसिक रूप से नियंत्रित कर सकता है ताकि वह रीढ़ की हड्डी के छः केंद्रों के इर्द-गिर्द ऊपर या नीचे की ओर घूमती रहे (मस्तिष्क, गर्भाशय ग्रीवा, पृष्ठीय, कमर, त्रिक और गुदास्थि संबंधी स्नायुजाल) जो राशि चक्रों के बारह नक्षत्रीय संकेतों, प्रतीकात्मक लौकिक मनुष्य, के अनुरूप हैं। मनुष्य के संवेदनशील रीढ़ की हड्डी के इर्द-गिर्द उर्जा के डेढ़ मिनट का चक्कर उसके विकास में तीव्र प्रगति कर सकता है; जैसे आधे मिनट का क्रिया योग एक वर्ष के प्राकृतिक आध्यात्मिक विकास के एक वर्ष के बराबर होता है।"[9]
स्वामी सत्यानन्द के क्रिया उद्धरण में लिखा है, "क्रिया साधना को ऐसा माना जा सकता है कि जैसे यह "आत्मा में रहने की पद्धति" की साधना है"।[10]
इतिहास
योगानन्द जी के अनुसार, प्राचीन भारत में क्रिया योग भली भांति जाना जाता था, लेकिन अंत में यह खो गया, जिसका कारण था पुरोहित गोपनीयता और मनुष्य की उदासीनता।[11] योगानन्द जी का कहना है कि भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में क्रिया योग को संदर्भित किया है:
बाह्यगामी श्वासों में अंतरगामी श्वाशों को समर्पित कर और अंतरगामी श्वासों में बाह्यगामी श्वासों को समर्पित कर, एक योगी इन दोनों श्वासों को तटस्त करता है; ऐसा करके वह अपनी जीवन शक्ति को अपने ह्रदय से निकाल कर अपने नियंत्रण में ले लेता है।[12]
योगानन्द जी ने यह भी कहा कि भगवान कृष्ण क्रिया योग का जिक्र करते हैं जब "भगवान कृष्ण यह बताते है कि उन्होंने ही अपने पूर्व अवतार में अविनाशी योग की जानकारी एक प्राचीन प्रबुद्ध, वैवस्वत को दी जिन्होंने इसे महान व्यवस्थापक मनु को संप्रेषित किया। इसके बाद उन्होंने, यह ज्ञान भारत के सूर्य वंशी साम्राज्य के जनक इक्ष्वाकु को प्रदान किया।"[13] योगानन्द का कहना है कि पतंजलि का इशारा योग क्रिया की ओर ही था जब उन्होंने लिखा "क्रिया योग शारीरिक अनुशासन, मानसिक नियंत्रण और ॐ पर ध्यान केंद्रित करने से निर्मित है।"[14] और फिर जब वह कहते हैं, "उस प्रणायाम के जरिए मुक्ति प्राप्त की जा सकती है जो प्रश्वसन और अवसान के क्रम को तोड़ कर प्राप्त की जाती है।"[15] श्री युक्तेशवर गिरि के एक शिष्य, श्री शैलेंद्र बीजॉय दासगुप्ता ने लिखा है कि, "क्रिया के साथ कई विधियां जुडी हुई हैं जो प्रमाणित तौर पर गीता, योग सूत्र, तन्त्र शास्त्र और योग की संकल्पना से ली गयी हैं।"[16]
नवीनतम इतिहास
लाहिरी महाशय के महावतार बाबाजी से 1861 में क्रिया योग की दीक्षा प्राप्त करने की कहानी का व्याख्यान एक योगी की आत्मकथा में किया गया है।[17] योगानन्द ने लिखा है कि उस बैठक में, महावतार बाबाजी ने लाहिरी महाशय से कहा कि, "यह क्रिया योग जिसे मैं इस उन्नीसवीं सदी में तुम्हारे जरिए इस दुनिया को दे रहा हूं, यह उसी विज्ञान का पुनः प्रवर्तन है जो भगवान कृष्ण ने सदियों पहले अर्जुन को दिया; और बाद में यह पतंजलि और ईसा मसीह, सेंट जॉन, सेंट पॉल और अन्य शिष्यों को ज्ञात हुआ।" योगानन्द जी ने यह भी लिखा कि बाबाजी और ईसा मसीह एक दूसरे से एक निरंतर समागम में रहते थे और दोनों ने साथ, "इस युग के लिए मुक्ति की एक आध्यात्मिक तकनीक की योजना बनाई।"[1][18]
लाहिरी महाशय के माध्यम से, क्रिया योग जल्द ही भारत भर में फैल गया। लाहिरी महाशय के शिष्य स्वामी श्री युक्तेशवर गिरि के शिष्य योगानन्द जी ने, 20वीं शताब्दी के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में क्रिया योग का प्रसार किया।[19]
लाहिरी महाशय के शिष्यों में शामिल थे उनके अपने कनिष्ठ पुत्र श्री तीनकोरी लाहिरी, स्वामी श्री युक्तेशवर गिरी, श्री पंचानन भट्टाचार्य, स्वामी प्रणवानन्द, स्वामी केबलानन्द, स्वामी केशबानन्द और भुपेंद्रनाथ सान्याल (सान्याल महाशय)।[20]
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
श्रेणी:क्रिया
श्रेणी:योग शैलियां
श्रेणी:योग
श्रेणी:ध्यान
श्रेणी:अद्वैत दार्शनिक
श्रेणी:गूगल परियोजना | क्रिया योग किस वर्ष में स्थापित हुआ था? | 1861 | 166 | hindi |
187813eeb | फ़ख़रुद्दीन अली अहमद (3 मई 1905 - 11 फरवरी 1977) भारत के पांचवे राष्ट्रपति थे। वे 24 अगस्त 1974 से लेकर 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे.
फ़ख़रुद्दीन अहमद के दादा खालिलुद्दिन अली अहमद असम के कचारीघाट (गोलाघाट के पास) से थे।[1] अहमद का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता कर्नल ज़लनूर अली थे। उनकी मां दिल्ली के लोहारी के नवाब की बेटी थीं।[2]
अहमद को गोंडा जिल ले के सरकारी हाई-स्कूल और दिल्ली सरकारी हाई-स्कूल में शिक्षित किया गया। उच्च शिक्षा के लिए वे 1923 में इंग्लैंड गए, जहां उन्होंनें सेंट कैथरीन कॉलेज, कैम्ब्रिज में अध्ययन किया। 1928 में उन्होंने लाहौर उच्च न्यायालय में कानूनी अभ्यास आरंभ किया।[2]
1925 में नेहरू से इंग्लैन्ड में मुलाकात के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1974 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गान्धी ने अहमद को राष्ट्रपति पद के लिए चुना और वे भारत के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति बन गए। इन्दिरा गान्धी के कहने पर उन्होंने 1975 में अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया और आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी.
1977 में हृदयगति रुक जाने से अहमद का कार्यालय में निधन हो गया।
सूत्र
श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन
श्रेणी:भारत के राष्ट्रपति
श्रेणी:1905 में जन्मे लोग
श्रेणी:१९७७ में निधन | फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु कब हुई थी | 11 फरवरी 1977 | 34 | hindi |
e0403a678 | सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (12 जुलाई 1917 – 4 सितम्बर 2006) एक भारतीय राजनेता थे। वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे। प्यार से लोग उन्हें छोटे साहब कहते थे। वे भारत के स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ,सांसद, शिक्षामंत्री , जेपी आंदोलन के स्तम्भ तथा बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं।[1]उन्हें 10 वर्षों तक लगातार केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय समिति में एशिया का प्रतिनिधित्व किया|
व्यक्तिगत जीवन
सत्येंद्र बाबू का प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन इलाहाबाद में श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के सानिध्य में बीता और शास्त्री जी के सहजता का उनपर व्यापक प्रभाव पड़ा|छोटे साहब के[2] रूप में प्रसिद्ध स्व सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा वैशाली की पहली महिला सांसद थी तथा 1980 में जनता पार्टी व 1984 में कांग्रेस पार्टी से सांसद बनी थी। अस्सी व नब्बे के दशक में किशोरी सिन्हा ने [3] महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की थी।
राजनीतिक जीवन
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के बाद देश की आज़ादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम वज़नदार हो चुका था। उन्होंने छठे और सातवें दशक में बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभायी और उनके राजनीतिक समर्थन से बिहार[4] के मुख्यमंत्री बने पंडित बिनोदानंद झा ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से विशेष आग्रह करके उन्हें केंद्र से बिहार राज्य लाये एवं मंत्रिमडल में दूसरा स्थान दिया, वस्तुतः उन दिनों उनको बिहार का 'डिफैक्टो' सीएम माना जाता था। 1963 में कामराज योजना के बाद छोटे साहेब द्वारा बिहार में श्री के. बी. सहाय को मुख्यमंत्री पद पर स्थापित करने का राजनितिक निर्णय बिहार की राजनीती के मास्टर स्ट्रोक के रूप में माना जाता है । सत्येन्द्र बाबू 1961 में बिहार के शिक्षा मंत्री, कृषि और स्थानीय प्रशासन मंत्री बने जो उप मुख्यमंत्री के हैसियत में थे। उन्होंने राजनीति के लिए मानवीय अनुभूतियों को तिलांजलि दे दी, शिक्षा मंत्री के रूप में शैक्षणिक सुधार किया, साथ ही मगध विश्वविद्यालय की स्थापना की।औरंगाबाद[5]संसदीय क्षेत्र के सांसद के रूप में उन्होंने १९७२ में महत्वपूर्ण उत्तरी कोयल परियोजना नहर का शिलान्यास किया था|
वे देश में अपनी सैद्धांतिक राजनीति के लिए चर्चित थे। सत्येन्द्र बाबू ने बिहार के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई। अपने छह दशक के राजनीतिक जीवन में छोटे साहब ने कई मील के पत्थर स्थापित किए। युवाओं और छात्रों को राजनीति में आने के लिए मोटिवेट किया। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के प्रोत्साहन पर आपातकाल आन्दोलन से नितीश कुमार, नरेन्द्र सिंह, रामजतन सिन्हा, लालू प्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान और सुबोधकान्त सहाय जैसे तात्कालीन युवा नेता निकले। इन्होंने वर्ष 1988 में ऐतिहासिक पटना तारामंडल की आधारशिला रखी, साथ ही अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में बिहार के नवीनगर में सुपर थर्मल पावर परियोजना की सिफारिश की।
सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के जीवन को समेटते हुये सत्येन्द्र नारायण सिन्हा स्मृति ग्रंथ समिति द्वारा एक पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इस पुस्तक में सत्येंद्र नारायण से संबंधित दुर्लभ चित्रों के संग्रह भी हैं और कई महत्वपूर्ण लोगों द्वारा उन पर लिखे गये आलेख भी।
स्व. सत्येन्द्र नारायण सिन्हा बिहार की राजनीति के स्तंभ और युवा पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे। छात्र आंदोलन एवं जयप्रकाश आंदोलन के समय से ही स्व. सत्येन्द्र बाबू का मार्गदर्शन और स्नेह मुझे मिलता रहा। -- नीतीश कुमार
इस पुस्तक में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, बिहार के तत्कालीन राज्यपाल देबानन्द कुंवर, उड़ीसा के तत्कालीन राज्यपाल मुरलीधर चंद्रकांत भंडारी, पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल नारायणन, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली की पूर्व मुख्य मंत्री शीला दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान,केरल राज्य के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार, प्रभु चावला समेत कई अन्य गणमान्य लोगों के द्वारा छोटे साहब पर लिखे गये आलेख और शुभ संदेश हैं।
स्मृति श्रद्धांजलि
पटना के प्रतिष्ठित चिल्ड्रेन पार्क, श्रीकृष्णापुरी का नामकरण स्वतंत्रता सेनानी एवं अविभाजित बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा[6] के नाम से अब सत्येन्द्र नारायण सिन्हा पार्क श्रीकृष्णापुरी किया गया हैं और उनकी जयंती पे आयोजित राजकीय जयंती समारोह पर पार्क में उनकी आदमकद प्रतिमा का राज्यपाल राम नाथ कोविन्द और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनावरण किया। औरंगाबाद शहर के दानी बिगहा में बन [7] रहे शहर के पहले पार्क का [8] नामकरण पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा उर्फ छोटे साहब के नाम पर करने का निर्णय लिया गया हैं और पार्क में छोटे साहब की आदमकद प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया है।
राजनीतिक पद
एस.एन. सिन्हा ने अपने राजनीतिक जीवन में निम्न पदों पर कार्य किया:
1946-1960: सदस्य सीनेट और सिंडिकेट, पटना विश्वविद्यालय
1948: सचिव, बिहार गांधी नेशनल मेमोरियल फंड की प्रांतीय समिति
1950: सदस्य, अंतरिम संसद
1950-52: वित्त समिति सदस्य
1952: प्रथम लोकसभा के लिए निर्वाचित
1956-58: प्राक्कलन समिति सदस्य
1957: दूसरी लोकसभा के लिए पुनः निर्वाचित
1958-1960: सदस्य सीनेट और सिंडिकेट, बिहार विश्वविद्यालय
1961-1963: सदस्य, बिहार विधान सभा
1961-1962: शिक्षामंत्री, बिहार
1961-1962: स्थानीय स्व सरकार मंत्री (अतिरिक्त प्रभार), बिहार
1963: काबुल के लिए सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के नेता
1962-1963: शिक्षामंत्री, बिहार
1962-1963: स्थानीय स्व सरकार मंत्री (अतिरिक्त प्रभार), बिहार
1963-1967: सदस्य, बिहार विधान सभा
1963-1967: शिक्षामंत्री, बिहार
1963-1967: स्थानीय स्व सरकार मंत्री (अतिरिक्त प्रभार), बिहार
1963-1967: कृषि मंत्री (अतिरिक्त प्रभार), बिहार
1967-1969: सदस्य, बिहार विधान सभा
1969-74: अध्यक्ष, कांग्रेस, बिहार
1971: पाचवी लोकसभा के लिए पुनः निर्वाचित
1976: सदस्य, पूर्व सोवियत संघ के लिए भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल
1977-80: अध्यक्ष, जनता पार्टी, बिहार
1977: लोकसभा करने के लिए पुनः निर्वाचित
1977: सदस्य, सांसदों के लिए मानव अधिकारों के उल्लंघन पर विशेष समिति
1977-1988: अध्यक्ष (केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री स्तर), सांसदों के लिए मानव अधिकारों के उल्लंघन पर अंतरराष्टीय विशेष समिति
1977: नेता, भारतीय अंतर संसदीय परिषद, कैनबरा के वसंत बैठक करने के लिए संसदीय प्रतिनिधिमंडल
1978: नेता, भारतीय अंतर संसदीय परिषद, लिस्बन के वसंत बैठक करने के लिए संसदीय प्रतिनिधिमंडल
1977-1979: अध्यक्ष, प्राक्कलन समिति, लोकसभा
1980: सातवीं लोक सभा के लिए पुनः निर्वाचित
1982-83: सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति सदस्य
1984: आठवीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित
1985-1986: सदस्य प्राक्कलन समिति, लोकसभा
1989-1990: सदस्य, बिहार विधान परिषद
1989-1990: मुख्यमंत्री, बिहार
बाहरी कड़ियाँ
श्रेणी:बिहार के मुख्यमंत्री
श्रेणी:1917 में जन्मे लोग
श्रेणी:२००६ में निधन
श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
श्रेणी:इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र | सत्येन्द्र नारायण सिन्हा की पत्नी का नाम क्या था? | किशोरी सिन्हा | 672 | hindi |
52a99da94 | डैन्यूब नदी (अंग्रेज़ी: Danube, जर्मन: Donau) मध्य यूरोप में बहने वाली एक नदी है। यह जर्मनी के काले वन के पहाड़ों में स्थित दोनाउएशिंगन कस्बे के पास शुरु होती और और फिर दक्षिण-पूर्व को बहती है। अपनी २,८७२ किमी (१,७८५ मील) की लम्बाई में यह चार मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों की राजधानियों से गुज़रती है और फिर युक्रेन और रोमानिया में एक डेल्टा (नदीमुख) बनाकर कृष्ण सागर में मिल जाती है। डैन्यूब दस देशों से गुज़रती है या उनकी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर स्थित है - जर्मनी, ऑस्ट्रिया, स्लोवेकिया, हंगरी, क्रोएशिया, सर्बिया, बुल्गारिया, मोल्दोवा, युक्रेन और रोमानिया। प्राचीन काल में कुछ अरसे के लिए यह रोमन साम्राज्य की सरहद होने के लिए भी प्रसिद्ध है। वोल्गा नदी के बाद डैन्यूब यूरोप की दूसरी सबसे लम्बी नदी है।[1]
झलकियाँ
सर्बिया और रोमानिया की सरहद पर 'लौह द्वार' नामक तंग क्षेत्र से गुज़रती हुई
क्रोएशिया में
हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में
बुल्गारिया में सर्दियों में
इन्हें भी देखें
कृष्ण सागर
काला वन
वोल्गा नदी
सन्दर्भ
श्रेणी:यूरोप की नदियाँ
श्रेणी:कृष्ण सागर | डैन्यूब नदी किस महाद्वीप में बहने वाली एक नदी है? | मध्य यूरोप | 46 | hindi |
ca0eff4b8 | Main Page
जस्टिस लीग २०१७ की एक अमेरिकी सुपरहीरो फ़िल्म है, जो कि डीसी कॉमिक्स की इसी नाम की सुपरहीरो टीम पर आधारित है। चार्ल्स रोवेन, डेबोराह स्नायडर, जॉन बर्ग और जॉफ जोंस द्वारा निर्मित इस फ़िल्म को वार्नर ब्रदर्स पिक्चर्स द्वारा वितरित किया गया है। यह डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स (डीसीईयू) की पांचवीं फ़िल्म है, और २०१६ की बैटमैन वर्सेज सुपरमैन की घटनाओं के आगे की कथा कहती है।[4][5][6] फिल्म का निर्देशन ज़ैक स्नायडर ने किया है, क्रिस टेर्रियो और जोस व्हीडन ने टेर्रियो और स्नाइडर की लिखी कहानी पर इसकी पटकथा लिखी है, और इसमें कई कलाकारों ने अभिनय किया है, जिनमें बेन एफ्लेक, हेनरी कैविल, गैल गैडट, एज्रा मिलर, जेसन मोमोआ, रे फिशर, एमी एडम्स, जेरेमी आयरन्स, डायने लेन, कॉनी नील्सन, और जे॰ के॰ सिमन्स शामिल हैं। जस्टिस लीग में पृथ्वी को स्टैपनवुल्फ (कियरिन हाइन्ड्स) और अधिअसुरों की उसकी सेना के विनाशकारी खतरे से बचाने के लिए सुपरमैन (कैविल) की स्मृति में एक सुपरहीरो टीम का निर्माण होता है, जिसमें बैटमैन (एफ्लेक), वंडर वूमन (गैडट), फ्लैश (मिलर), एक्वामैन (मोमोआ), और सायबॉर्ग (फिशर) शामिल हैं।
फिल्म की घोषणा अक्टूबर २०१४ में हुई थी, और स्नाइडर निर्देशक के रूप में, जबकि टेर्रियो पटकथा लेखक के रूप में सबसे पहले फ़िल्म से जुड़े थे। शुरू में इसे जस्टिस लीग पार्ट वन का शीर्षक दिया गया था, और २०१९ में इसका दूसरा भाग प्रस्तावित था, परन्तु दूसरी फिल्म को एफ्लेक अभिनीत एक एकल बैटमैन फिल्म को समायोजित करने के लिए अनिश्चित काल तक आगे बढ़ा दिया गया। फिल्म की प्रिंसिपल फोटोग्राफी अप्रैल २०१६ में शुरू हुई और अक्टूबर २०१६ में समाप्त हो गई। स्नाइडर ने इसके बाद जोस विडन को उन दृश्यों को लिखने का काम दिया, जिन्हे रीशूट के दौरान फिल्माया जाना था; हालांकि, अपनी बेटी की मृत्यु के बाद मई २०१७ में स्नाइडर ने यह परियोजना छोड़ दी। विडन को फिर पोस्ट-प्रोडक्शन के बाकी हिस्सों की देखरेख करने की जिम्मेदारी दी गई, जिसके बाद उन्होंने अपने लिखे सभी अतिरिक्त दृश्यों को स्वयं निर्देशित किया। स्नाइडर को फिल्म के लिए एकमात्र निर्देशक श्रेय मिला, जबकि विडन को पटकथा लेखन का श्रेय मिला। जस्टिस लीग का प्रीमियर २६ अक्टूबर २०१७ को बीजिंग में हुआ था, और १७ नवंबर २०१७ को इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में 2डी, 3डी और आईमैक्स में जारी किया गया था।
३०० मिलियन डॉलर के अनुमानित बजट पर बनी जस्टिस लीग अब तक की सबसे महंगी फिल्मों में से एक है। बॉक्स ऑफिस पर इसका प्रदर्शन खराब रहा, और अपने बड़े बजट के मुकाबले यह दुनिया भर में मात्र ६५७ मिलियन डॉलर की कमाई कर पाई, जो डीसीईयू की सभी फ़िल्मों में न्यूनतम है। ६५० मिलियन डॉलर के अनुमानित ब्रेक-इवेंट पॉइंट के मुकाबले,[7] इस फिल्म ने स्टूडियो को ६० मिलियन डॉलर का अनुमान घाटा लगाया।[8] इसे आलोचकों से मिश्रित समीक्षा मिली; एक ओर इसके एक्शन दृश्यों, दृश्य प्रभावों, और अभिनय (विशेष रूप से गैडट और मिलर) की सराहना की गई, जबकि दूसरी ओर इसकी कहानी, लेखन, गति, खलनायक और सीजीआई के अत्यधिक उपयोग की खुलकर आलोचना भी की गई। फिल्म के लहज़े पर भी मिश्रित टिप्पणियां हुई, कुछ समीक्षकों ने पिछली डीसी फिल्मों की तुलना में इसके हल्के लहज़े की सराहना की, जबकि अन्य समीक्षकों ने इसे असंगत पाया।[9][10]
कथानक
हजारों वर्ष पहले, स्टैपनवुल्फ और उसके अधिअसुरों ने अधिसंदूकों के तीन टुकड़ों की संयुक्त ऊर्जा के माध्यम से पृथ्वी पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया। उस समय उसे मानव जाति, ग्रीन लैंटर्ण, अमेज़न वासी, अटलांटिस वासी और ओलंपियन देवताओं की एक एकीकृत सेना ने पराजित कर दिया। स्टैपनवुल्फ और उसकी सेना को खदेड़ने के बाद, उन्होंने अधिसंदूक के तीन अलग-अलग टुकड़े किए, और उन्हें क्रमषः मनुष्यों, अमेज़न वासियों और अटलांटिस वासियों को सौंप दिया। वर्तमान में, मानव जाति सुपरमैन की मृत्य पर शोकग्रस्त है, जिसकी मृत्यु ने अधिसंदूकों को पुनः सक्रिय कर दिया है। स्टैपनवुल्फ भी अपने मालिक, डार्कसीड का भरोसा प्राप्त करने के प्रयास में पृथ्वी पर लौटता है। स्टैपनवुल्फ का लक्ष्य इन तीनों अधिसंदूकों को मिलाकर ऐसी ऊर्जा उत्पन्न करना है, जो पृथ्वी की पारिस्थितिकता को नष्ट करउसे स्टैपनवुल्फ के ग्रह जैसी वीरान बना देगी।
स्टैपनवुल्फ थेमिस्कीरा से पहला अधिसंदूक प्राप्त करता है, जिसके बाद अमेज़न की महारानी हिप्पोपोलीटा तुरंत अपनी बेटी डायना को स्टेपपेनवॉल्फ की वापसी की सूचना देती है। डायना ब्रूस वेन से सम्पर्क करती है, और फिर वे अन्य महामानवों को एकजुट करने के प्रयास में जुट जाते हैं; वेन आर्थर करी और बैरी एलन के पास जाता है, जबकि डायना विक्टर स्टोन का पता लगाने की कोशिश करती है। वेन करी को मनाने में विफल रहता है, लेकिन एलन को टीम में जोड़ने में सफल रहता है। डायना भी स्टोन को टीम में शामिल होने के लिए मनाने में विफल रहती है, लेकिन वह अपने स्तर पर घटनास्थलों की खोज करने और खतरे का पता लगाने में उनकी सहायता करने के लिए सहमत हो जाता है। बाद में स्टोन टीम से जुड़ जाता है, जब स्टैपनवुल्फ मानव जाति वाले अधिसंदूक का पता जानने जे लिए उसके पिता सिलास और स्टार लैब्स के अन्य कर्मचारियों का अपहरण कर लेता है।
स्टैपनवुल्फ इसके बाद अगला अधिसंदूक प्राप्त करने के लिए अटलांटिस पर हमला करता है, जिससे करी भी प्रभावित होता है। इधर टीम को पुलिस आयुक्त जेम्स गॉर्डन से सूचना मिलती है कि स्टैपनवुल्फ ने अपहरण किये लोगों को गोथम हार्बर के आधार तले छुपा रखा है। यद्यपि समूह सभी कर्मचारियों को बचा लेता है, लेकिन युद्ध के दौरान वहां आई बाढ़ में टीम फंस जाती है और फिर करी ऐन वक्त पर आकर बाढ़ के पानी को तब तक रोक कर रखता है, जब तक सभी बचकर निकल नहीं जाते। समूह के विश्लेषण के लिए स्टोन आखिरी अधिसंदूक को ले आता है, जिसे उसने छुपा कर रखा था। स्टोन उन्हें बताता है कि उसके पिता ने एक दुर्घटना में मर जाने के बाद इस अधिसंदूक की सहायता से ही उसके शरीर का पुनर्निर्माण किया था, जिससे उसे दोबारा जिंदगी मिली। यह सुनकर वेन ने अधिसंदूक से सुपरमैन को पुनर्जीवित करने का फैसला किया, ताकि न केवल स्टैपनवुल्फ से लड़ने में मदद हो, बल्कि मानव जाति को एक नई आशा की किरण प्रदान की जा सके। डायना और करी इसके विरुद्ध होते हैं, लेकिन वेन एक गुप्त हथियार के बारे में बताकर उन्हें आश्वस्त कर देता है।
क्लार्क केंट के शरीर को अधिसंदूक के साथ क्रिप्टोनियन जहाज के उत्पत्ति कक्ष के अम्नीओटिक द्रव में डाला जाता है और जो सक्रिय होकर सुपरमैन को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित करता है। हालांकि, सुपरमैन की यादें वापस नहीं आती, और स्टोन की एक गलतीके कारण वह टीम पर हमला किया। सुपरमैन द्वारा लगभग मारे जाने की कगार पर पहंचा बैटमैन अपने गुप्त हथियार को निकालता है: लोइस लेन। सुपरमैन शांत हो जाता है, और लेन को लेकर स्मालविले में अपने परिवारिक घर में चला जाता है, जहां वह अपनी यादों को ठीक करने का प्रयास करता है। इसी बीच स्टैपनवुल्फ आकर आखिरी अधिसंदूक भी ले लेता है। सुपरमैन के बिना ही पांचों नायक रूस के एक गांव जाते हैं, जहां स्टैपनवुल्फ एक बार फिर अधिसंदूकों को एकजुट कर पृथ्वी का पुनर्निर्माण करने की कोशिश में लगा होता है। एलन वहां फंसे लोगों को सुरक्षित बचाने के कार्य में लग जाता है, और बाकी टीम अधिअसुरों से युद्ध करते हुए स्टैपनवुल्फ तक पहुंचती है, हालांकि वे अधिसंदूकों को अलग करने के लिए स्टोन की सहायता करने में असमर्थ सिद्ध होते हैं। तभी सुपरमैन वहां आता है, और एलन को शहर को खाली करने में, और साथ ही साथ अधिसंदूकों को अलग करने में स्टोन की सहायता करता है। टीम स्टैपनवुल्फ को हरा देती है, जो टेलीपोर्ट होने से पहले भयग्रस्त होकर अपने ही अधिअसुरों का शिकार हो जाता है।
इस युद्ध के बाद, ब्रूस और डायना टीम सदस्यों के लिए संचालन-कक्ष स्थापित करते हैं। डायना एक नायक के रूप में सार्वजनिक स्पॉटलाइट में वापस कदम रखती है; बैरी अपने पिता की इच्छानुसार सेंट्रल सिटी के पुलिस विभाग में नौकरी में लग जाता है; विक्टर स्टार लैब्स में अपने पिता के साथ अपनी क्षमताओं का पता लगाने और बढ़ाने की खोज जारी रखता है; आर्थर अटलांटिस लौट जाता है; और सुपरमैन रिपोर्टर क्लार्क केंट के रूप में फिर से एक नया जीवन शुरू करता है। पोस्ट-क्रेडिट दृश्य में, लेक्स लूदर आर्खम असायलम से भाग निकलता है और स्लेड विल्सन के साथ अपनी एक अलग लीग बनाने की योजना बनता है।
पात्र
बेन एफ्लेक – ब्रूस वेन / बैटमैन
एक अमीर सोशलाइट, और वेन एंटरप्राइजेज के मालिक। वह विभिन्न उपकरणों और हथियारों से लैस एक उच्च प्रशिक्षित सुपरहीरो के रूप में आपराधिक अंडरवर्ल्ड से गोथम शहर की रक्षा के लिए खुद को समर्पित करता है।[11][12]
हेनरी कैविल – क्लार्क केंट / सुपरमैन
जस्टिस लीग का एक सदस्य, और टीम के निर्माण के लिए एक प्रेरणा भी। वह एक क्रिप्टोनियन उत्तरजीवी है, और मेट्रोपोलिस में स्थित डेली प्लेनेट समाचारपत्र में एक पत्रकार है।[13][14]
गैल गैडट – डायना प्रिंस / वंडर वूमन
प्राचीन वस्तुओं की एक डीलर, वेन की मित्र, और एक अमर अमेज़ॅनियन योद्धा, जो हिप्पोपोलीटा और ज़्यूस की पुत्री है, और थेमिस्कीरा की राजकुमारी भी।
एज्रा मिलर – बैरी एलन / द फ़्लैश
सेंट्रल सिटी यूनिवर्सिटी का एक छात्र, जो स्पीड फोर्स में टैप करने की अपनी क्षमता के कारण अतिमानवी गति से चल सकता है।
जेसन मोमोआ – आर्थर करी / एक्वामैन
अटलांटिस के जलमग्न राष्ट्र के सिंहासन का उत्तराधिकारी।.[15] उसकी सभी शक्तियों, जलीय क्षमताओं और शारीरिक विशेषताओं का मूल उसके अटलांटियन शरीर में है।
रे फिशर – विक्टर स्टोन / सायबॉर्ग
एक पूर्व कॉलेज एथलीट, जो एक कार दुर्घटना के बाद साइबरनेटिक रूप से पुनर्निर्मित हुआ, जिससे वह अब एक प्रतिक्रियाशील, तकनीकी-कार्बनिक में परिवर्तित हो गया है।[16]
एमी एडम्स – लोइस लेन
डेली प्लैनेट की एक पुरस्कार विजेता पत्रकार, जो केंट की प्रेमिका है।[17]
जेरेमी आयरन्स – अल्फ्रेड पैनीवर्थ
वेन का नौकर, जो उसकी सुरक्षा का प्रमुख और सबसे विश्वासपात्र है।[18]
डायने लेन – मार्था केंट
क्लार्क की गोद लेने वाली मां।[17]
कॉनी नील्सन – हिप्पोपोलीटा
डायना की मां और थेमिस्कीरा की रानी।[17]
जे॰ के॰ सिमन्स – जेम्स गॉर्डन
गोथम सिटी पुलिस विभाग के आयुक्त, और बैटमैन के करीबी सहयोगी।[17]
कियरिन हाइन्ड्स – स्टैपनवुल्फ
अपोकलीप्स से एक विदेशी सैन्य अधिकारी जो अधिअसुरों की एक सेना की अगुवाई करता है, और पृथ्वी पर अधिसंदूकों के तीन टुकड़ों की तलाश में है।[19][20]
उपरोक्त पात्रों के अतिरिक्त फिटनेस मॉडल सर्गी कॉन्स्टेंस, स्टंटमैन निक मैककिनलेस और एमएमए फाइटर औरोर लॉजरल क्रमशः ओलंपियन देवता ज़्यूस, एरीस और आर्टेमिस की भूमिकाओं में दिखे।[21][22] हालांकि अंत में मैककिनलेस के चेहरे को डेविड थ्यूलिस के चेहरे से बदल दिया गया, और थ्यूलिस को ही एरीस की भूमिका का श्रेय मिला।[21] रॉबिन राइट ने एक फ्लैशबैक दृश्य में एंटीप के रूप में अपनी भूमिका को दोहराया। एम्बर हेर्ड अटलांटियन मेरा के रूप में दिखी।[17] एक दृश्य में, जब स्टैपनवुल्फ पृथ्वी पर पहली बार आक्रमण करता है, जूलियन लुईस जोन्स मनुष्यों के एक प्राचीन राजा के रूप में, जबकि फ्रांसिस मैगे अटलांटिस के एक प्राचीन राजा के रूप में नज़र आये।[23][24]
जो मोर्टन ने सिलास स्टोन, विक्टर स्टोन के पिता और स्टार लैब्स के प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका को दोहराया, जबकि बिली क्रूडअप हेनरी एलन, बैरी एलन के पिता के रूप में दिखाई दिए। जो माँगनेल्लो और जैसी आयसेनबर्ग भी क्रमशः स्लेड विल्सन / डेथस्ट्रोक और लेक्स लूथर के रूप में एक पोस्ट-क्रेडिट दृश्य में दिखाई दिए।[25] माइकल मैकलेहटन आतंकवादियों के एक समूह के नेता के रूप में प्रकट होते हैं जो फिल्म की शुरुआत में वंडर वूमन के साथ संघर्ष करते हैं,[26] जबकि होल्ट मैककॉलनी बिना श्रेय के एक चोर के रूप में नजर आते हैं।[27] क्रिस्टोफर रीव की सुपरमैन में जिमी ओल्सन की भूमिका निभाने वाले मार्क मैकक्लर भी एक पुलिस अधिकारी के रूप में विशेष उपस्थिति में दिखे।[28]
फिल्म की शुरुआत में एक अज्ञात ग्रीन लैंटर्न दिखाई देता है, जिसे सीजीआई के उपयोग से बनाया गया था, और एक अज्ञात अभिनेता द्वारा चित्रित किया गया। विलेम डाफ़ो और कियर्स क्लेमन्स ने क्रमशः नुइडिज़ वल्को और आईरिस वेस्ट की भूमिका निभाई थी, हालांकि उनकी भूमिकाओं को अंतिम फिल्म से काट दिया गया।[29][30] इसके अतिरिक्त, फिल्म की शुरुआत में किलोवोग और तोमर-रे के साथ भी एक पोस्ट-क्रेडिट दृश्य शूट किया गया था, जिसे बाद में हटा दिया गया।[31]
निर्माण
विकास
फरवरी २००७ में यह घोषणा की गई थी कि वार्नर ब्रदर्स ने मिशेल और कियरन मुलरोनी को जस्टिस लीग पर आधारित एक फिल्म के लिए एक पटकथा लिखने का काम सौंपा गया था।[32] यह खबर ठीक उस समय आई, जब जोस विडन की लम्बे समय से निर्माणाधीन वंडर वूमन और डेविड एस॰ गोयर की लिखी द फ्लैश रद्द कर दी गई थी।[33][34] मिशेल और किरणन मुलरोनी ने जून २००७ में जस्टिस लीग:मोर्टल नामक अपनी पटकथा को वार्नर ब्रदर्स के सामने प्रस्तुत किया,[35] जहां इसे सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई,[36] और फिर स्टूडियो ने २००७-०८ राइटर्स गिल्ड ऑफ अमेरिका की स्ट्राइक से पहले फिल्मांकन शुरू करने की उम्मीद में तत्काल तेजी से उत्पादन करने का निश्चय किया।[37] वार्नर ब्रदर्स सुपरमैन रिटर्न्स की अगली कड़ी बनाने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि वे उसके बॉक्स ऑफिस परिणाम से निराश थे। जस्टिस लीग:मोर्टल में सुपरमैन की भूमिका निभाने के लिए ब्रैंडन रूथ से संपर्क नहीं किया गया,[38] और न ही बैटमैन की भूमिका के लिए क्रिश्चियन बेल से।[39] वार्नर ब्रदर्स का उद्देश्य जस्टिस लीग:मोर्टल से एक नई फिल्म फ़्रैंचाइज़ी की शुरुआत करने का था, जो आगे अलग-अलग सीक्वल और स्पिन-ऑफ के माध्यम से बढ़े।[40] द डार्क नाइट के फिल्मांकन के कुछ ही समय बाद,[41] बेल ने एक साक्षात्कार में कहा कि "यह बेहतर होगा अगर यह हमारी बैटमैन की कहानी को आगे न बढाये," और महसूस किया कि द डार्क नाईट राइजेस के बाद इस फिल्म को रिलीज करना वार्नर ब्रदर्स के लिए अधिक श्रेयस्कर होगा।[39] जेसन रीटमैन को सर्वप्रथम जस्टिस लीग को निर्देशित करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि वह खुद को एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता मानते थे, और बड़े बजट की सुपरहीरो फिल्मों से बाहर रहना पसंद करते थे।[42] इसके बाद सितंबर २००७ में जॉर्ज मिलर को निर्देशक ने रूप में चुना गया।[37] फ़िल्म के निर्माता बैरी ऑस्बॉर्न थे, और इसका बजट $२२० मिलियन तय किया गया था।[43]
अगले महीने, लगभग ४० कलाकारों ने, जिनमें जोसेफ क्रॉस, माइकल अंगारानो, मैक्स थेरियट, मिन्का केली, एड्रियन पाल्की और स्कॉट पोर्टर जैसे नाम भी शामिल थे, फिल्म में सुपरहीरो भूमिकाओं के लिए ऑडिशन दिया था। मिलर की इच्छा फिल्म में युवा अभिनेताओं को लेने की थी, क्योंकि वह चाहते थे कि ये सभी फिल्मों के दौरान अपनी भूमिकाओं के अनुरूप ही "बढ़ें"।[41] ऑडिशन पूरे हो जाने के बाद डी जे कोत्रोना को सुपरमैन की भूमिका के लिए चुना गया,[40] जबकि आर्मी हैमर को बैटमैन के लिए।[44] आंशिक वार्ताओं के बाद जेसिका बेल ने वंडर वूमन की भूमिका निभाने से इंकार कर दिया।[45] वंडर वूमन के चरित्र के लिए उनके बाद मैरी एलिजाबेथ विनस्टेड, टेरेसा पामर और शैनिन सोसामोन से भी बात हुई,[46] और आखिरकार, मेगन गैले को वंडर वूमन के रूप में चुना गया,[47] जबकि पामर को तालिया-अल-घुल की भूमिका में लिया गया, जिसे मिलर के अनुसार, रूसी उच्चारण के साथ संवाद बोलने थे।[48] जस्टिस लीग: मोर्टल में ग्रीन लैंटर्न के पारम्परिक हाल जॉर्डन चरित्र की बजाय जॉन स्टीवर्ट को दिखाया जाना था, जिसकी भूमिका अभिनेता कोलंबस शॉर्ट को दी गई थी।[49] हिप हॉप रिकॉर्डिंग कलाकार और रैपर कॉमन को एक अज्ञात भूमिका दी गयी थी,[50] जबकि एडम ब्रॉडी को बैरी एलन / फ्लैश के रूप में,[51] और जे बैरुशल को मुख्य खलनायक, मैक्सवेल लॉर्ड के रूप में चुना गया था।[52] मिलर के पुराने सहयोगी ह्यूग केज़-बायर्न को भी एक अज्ञात भूमिका में डाला गया था, और उनके मार्शियन मैनहंटर की भूमिका में होने की अफवाह थी। फिल्म रद्द होने के बाद सैंटियागो कैबरेरा को अंततः एक्वामैन के रूप में खुलासा किया गया।[53] नवंबर २००७ में उनकी असामयिक मौत से पहले मैरीट एलन को मूल पोशाक डिजाइनर के रूप में काम पर रखा गया था,[54] और फिर वेता कार्यशाला द्वारा उनकी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया जाना था।[55]
हालांकि, लेखकों की हड़ताल उसी महीने शुरू हो गयी, और इससे फिल्म का निर्माण पूर्णतः रुक गया। वार्नर ब्रदर्स को सभी कलाकारों के साथ हुए अनुबंधों को निरस्त करना पड़ा,[56] लेकिन हड़ताल समाप्त होने पर फरवरी २००८ में फिल्म का विकास एक बार फिर पटरी पर लौट आया था। वार्नर ब्रदर्स और मिलर तुरंत फिल्मांकन शुरू करना चाहते थे,[57] लेकिन फिर भी फिल्म का निर्माण अगले तीन महीने तक स्थगित कर दिया गया।[40] मूल रूप से, अधिकांश जस्टिस लीग:मोर्टल के अधिकांश हिस्से का फिल्मांकन सिडनी में फॉक्स स्टूडियो ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित था,[43] जबकि बाकी की फिल्म भी पास के अन्य स्थानों पर ही फिल्मायी जानी थी।[58][35] ऑस्ट्रेलियाई फिल्म आयोग ने भी कई पत्रों के चयन में भूमिका निभाई थी, और उन्ही के अनुरोध पर जॉर्ज मिलर ने गैले, पामर और केयस-ब्रायन को चुना था, जो सभी ऑस्ट्रेलियाई मूल के थे। फिल्म का पूरा निर्माण दल ऑस्ट्रेलियाई लोगों से बना था, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने वार्नर ब्रदर्स को ४० प्रतिशत कर छूट देने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि फिल्म में पर्याप्त ऑस्ट्रेलियाई कलाकारों को नहीं लिया गया था।[43][59] इससे निराश मिलर ने एक बयान भी जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि "अपनी आलसी सोच के कारण ही ऑस्ट्रेलियाई फिल्म उद्योग ने जीवन भर में एक बार प्राप्त होने वाला यह अवसर खराब कर दिया। वे लाखों डॉलर के निवेश को वापस कर रहे हैं, जिसे कि शेष दुनिया गले लगाने के लिए आतुर है।"[60] इसके बाद फिल्मांकन के लिए कनाडा में वैंकूवर फिल्म स्टूडियो को चयनित किया गया। फिल्मांकन जुलाई २००८ में शुरू होना था, क्योंकि वार्नर ब्रदर्स को अभी भी विश्वास था कि वे २००९ की गर्मियों में रिलीज करने के लिए फिल्म का निर्माण समय पर पूरा कर सकते थे।[61][62]
निर्माण में लगातार हो रही देरियों, और जुलाई २००८ में रिलीज़ हुई द डार्क नाइट की सफलता को देखते हुए,[63] वार्नर ब्रदर्स ने निश्चय किया कि वे अब जस्टिस लीग से पहले मुख्य नायकों पर आधारित व्यक्तिगत फिल्में बनाएंगे, और निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन को अपनी डार्क नाइट त्रयी पूरी करने देंगे। डीसी एंटरटेनमेंट के रचनात्मक मामलों के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ग्रेगरी नोवेक ने कहा, "हम एक जस्टिस लीग फिल्म तो ज़रूर बनाएंगे, चाहे वह अभी बने या १० साल बाद। लेकिन हम इसे तब तक नहीं करने वाले, जब तक कि हम और वार्नर वाले, दोनों को ही यह सही न लगे।"[64] अभिनेता एडम ब्रॉडी ने मजाक करते हुए ये भी कहा कि "वे [वार्नर ब्रदर्स] पूरे ब्रह्मांड को बैटमैन के अलग अलग प्रारूपों से भर नहीं देना चाहते थे।"[65] वार्नर ब्रदर्स ने एक एकल ग्रीन लैंटर्न फिल्म को विकसित करना शुरू किया, जिसे २०११ में जारी होने पर समीक्षकीय और वित्तीय असफलता हाथ लगी। इसी बीच, द फ्लैश तथा वंडर वूमन पर आधारित फिल्मों पर भी काम शुरू हुआ, जबकि नोलन द्वारा निर्मित और बैटमैन बिगिन्स के पटकथा लेखक डेविड एस॰ गोयर द्वारा लिखित मैन ऑफ स्टील नामक सुपरमैन की रीबूट फ़िल्म का फिल्मांकन २०११ में शुरू कर दिया गया। अक्टूबर २०१२ में सुपरमैन के अधिकारों के लिए जो शस्टर की संपत्ति पर अपनी कानूनी जीत के बाद, वार्नर ब्रदर्स ने घोषणा की कि वह अब जस्टिस लीग फिल्म के साथ आगे बढ़ने की योजना बना रहे हैं।[66] मैन ऑफ स्टील को फिल्माने के कुछ ही समय बाद, वार्नर ब्रदर्स ने विल बील को जस्टिस लीग पर आधारित एक नई फिल्म के लिए पटकथा लिखने का काम दिया।[67] वार्नर ब्रदर्स के अध्यक्ष जेफ रॉबिनोव ने समझाया कि मैन ऑफ स्टील "से स्पष्ट हो जाएगा कि आगे की फिल्मों को किस तरह रखा जाएगा। इसलिए, यह निश्चित रूप से हमारा पहला कदम है।"[68] फिल्म में डीसी यूनिवर्स में अन्य सुपरहीरो के अस्तित्व के संदर्भ शामिल थे,[69] और इसने ही डीसी कॉमिक्स पात्रों के साझा काल्पनिक ब्रह्मांड के लिए मंच तैयार किया।[70] गोयर ने कहा कि भविष्य की फिल्मों में अगर ग्रीन लैंटर्न दिखाई देगा, तो वह २०११ की फिल्म से जुड़े हुए चरित्र का एक रीबूट संस्करण होगा।[71]
जून २०१३ में मैन ऑफ स्टील के रिलीज होते ही, गोयर को इसकी अगली कड़ी के साथ-साथ एक नई जस्टिस लीग लिखने का काम सौंप दिया गया, जबकि बील के तैयार ड्राफ्ट को रद्द कर दिया गया।[72] बाद में, मैन ऑफ स्टील की अगली कड़ी को बैटमैन वर्सेस सुपरमैन : डॉन ऑफ जस्टिस नाम दिया गया, जिसमें हेनरी कैविल सुपरमैन के रूप में, बेन एफ्लेक बैटमैन के रूप में, गैल गैडट वंडर वूमन, एज्रा मिलर द फ्लैश, जेसन मोमोआ एक्वामैन के रूप में, और रे फिशर विक्टर स्टोन / सायबॉर्ग के रूप में नजर आए। नई फिल्मों का ब्रह्मांड द डार्क नाइट त्रयी पर नोलन और गोयर के काम से अलग है, हालांकि नोलन अभी भी बैटमैन वर्सेज सुपरमैन के कार्यकारी निर्माता के रूप में शामिल थे।[73] अप्रैल २०१४ में, यह घोषणा की गई थी कि ज़ैक स्नायडर गोयर की जस्टिस लीग पटकथा को निर्देशित करेंगे।[74] वार्नर ब्रदर्स ने बैटमैन वी सुपरमैन: डॉन ऑफ जस्टिस के पुनर्लेखन से प्रभावित होने के बाद, अगले जुलाई में जस्टिस लीग को फिर से लिखने के लिए क्रिस टेर्रियो को कथित तौर पर कहा था।[75] १५ अक्टूबर २०१४ को, वार्नर ब्रदर्स ने घोषणा की कि फिल्म दो भागों में रिलीज होगी, इसका भाग एक १७ नवंबर २०१७ को, और भाग दो १४ जून २०१९ को जारी होगा। स्नायडर दोनों फिल्मों को निर्देशित करने के लिए तैयार थे।[76] जुलाई २०१५ की शुरुआत में, ईडब्ल्यू ने खुलासा किया कि जस्टिस लीग भाग एक की लिपि टेर्रियो द्वारा पूरी कर ली गई थी।[77] जैक स्नाइडर ने कहा कि फिल्म जैक किर्बी द्वारा रचित न्यू गॉड्स कॉमिक श्रृंखला से प्रेरित होगी।[78] हालांकि जस्टिस लीग को शुरुआत में दो भागों की एक फ़िल्म के रूप में घोषित किया गया था, जिसके दूसरे भाग को दो साल बाद रिलीज होना था, स्नाइडर ने जून २०१६ में कहा था कि वे दो अलग-अलग फिल्में होंगी, और एक फिल्म दो हिस्सों में विभाजित नहीं होगी, दोनों की कहानियां अलग अलग होंगी।[79][80]
पात्र चयन
अप्रैल २०१४ में, रे फिशर को विक्टर स्टोन / सायबॉर्ग के रूप में चुना गया था।[81][82] हेनरी कैविल, बेन एफ्लेक, गैल गैडट, डायने लेन और एमी एडम्स ने भी बैटमैन वर्सेज सुपरमैन से अपनी भूमिकाओं को दोहराया।[76][83] अक्टूबर २०१४ में, जेसन मोमोआ को आर्थर करी / एक्वामैन के रूप में चुना गया।[84][85] २० अक्टूबर २०१४ को मोमोआ ने कॉमिकबुक.कॉम को बताया कि जस्टिस लीग उनकी एकल फिल्म से पहले रिलीज होगी, और वह उसे ही फिल्मा रहे हैं।[86] १३ जनवरी २०१६ को द हॉलीवुड रिपोर्टर ने घोषणा की कि एम्बर हेर्ड से फिल्म में एक्वामैन की प्रेमिका मेरा की भूमिका निभाने की बातचीत चल रही थी।[87] मार्च २०१६ में, निर्माता चार्ल्स रोवेन ने कहा कि ग्रीन लैंटर्न जस्टिस लीग पार्ट टू से पहले किसी भी फिल्म में दिखाई नहीं देगा।[88] मार्च में ही, द हॉलीवुड रिपोर्टर ने घोषणा की कि जे॰ के॰ सिमन्स को कमिश्नर जेम्स गॉर्डन के रूप में शामिल किया गया है,[89] और हेर्ड के मेरा निभाने की भी पुष्टि हुई थी।[90] एडम्स ने भी यह पुष्टि की कि वह जस्टिस लीग में लोइस लेन की अपनी भूमिका दोहराएंगी।[91][92]
अप्रैल २०१६ तक, विलियम डफो को एक अज्ञात भूमिका में डाला गया था,[93] जो बाद में नुइदीस वल्को की निकली,[94] जबकि कैविल ने पुष्टि की कि वह दोनों जस्टिस लीग फिल्मों के लिए वापस आ रहे हैं।[95] मई २०१६ में, जेरेमी आइरन्स ने पुष्टि की कि वह अल्फ्रेड पेनीवर्थ के रूप में दिखाई देंगे।[18] उसी महीने, जेसी ईसेनबर्ग ने कहा कि वह लेक्स लूथर के रूप में अपनी भूमिका दोहराएंगे, और जून २०१६ में, शॉर्टलिस्ट पत्रिका के साथ एक साक्षात्कार में उनकी वापसी की पुष्टि हुई।[96][97] जुलाई २०१६ में, जूलियन लुईस जोन्स को एक अज्ञात भूमिका में डाला गया था, जो बाद में अटलांटिस के एक प्राचीन राजा की निकली।[23] डीसीईयू में पेरी व्हाइट को चित्रित करने वाले लॉरेंस फिशबर्न ने कहा कि उन्होंने समय की अनुपलब्धता के कारण फिल्म में अपनी भूमिका को दोबारा करने से इंकार कर दिया।[98] अप्रैल २०१७ में, माइकल मैकलेहटन ने खुलासा किया कि जस्टिस लीग में उन्होंने भी एक भूमिका निभाई है।[26]
फिल्मांकन
फ़िल्म की प्रिंसिपल फोटोग्राफी ११ अप्रैल २०१६ को वार्नर ब्रदर्स स्टूडियोज, लेवेस्डेन के साथ-साथ लंदन और स्कॉटलैंड के आसपास के विभिन्न स्थानों पर शुरू हुई। शिकागो, इलिनॉय, लॉस एंजिल्स और आइसलैंड के वेस्टफॉर्ड्स में स्थित डूपाविक में अतिरिक्त फिल्मांकन हुआ।[99][93][100][101] समय उपलब्ध न होने के कारण स्नाइडर के साथ लंबे समय तक काम कर चुके छायांकनकार लैरी फोंग को फैबियन वाग्नेर से बदल दिया गया।[101] एफ़लेक ने कार्यकारी निर्माता के रूप में भी कार्य किया।[102] मई २०१६ में, यह खुलासा किया गया था कि जैफ जॉन्स और जॉन बर्ग जस्टिस लीग फिल्मों के निर्माता होंगे, और साथ ही डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स के प्रभारी भी; एक फैसला, जो कि बैटमैन वर्सेस सुपरमैन : डॉन ऑफ जस्टिस को मिले नकारात्मक परिणामों के कारण लिया गया था।[103] उसी महीने, आइरन्स ने कहा कि बैटमैन वर्सेज सुपरमैन: डॉन ऑफ जस्टिस के थिएटरिकल संस्करण की तुलना में जस्टिस लीग की कहानी अधिक रैखिक और सरल होगी।[104] जॉन्स ने ३ जून २०१६ को पुष्टि की कि फिल्म का शीर्षक जस्टिस लीग है,[105] और बाद में कहा कि यह फिल्म पिछली डीसीईयू फिल्मों की तुलना में अधिक आशावादी होगी।[106] अक्टूबर २०१६ में जस्टिस लीग का फिल्मांकन समाप्त हो गया।[107][108][109]
पोस्ट-प्रोडक्शन
मई २०१७ में फिल्म के पोस्ट-प्रोडक्शन के दौरान अपनी बेटी की मृत्यु से उबरने के लिए स्नाइडर फिल्म छोड़कर चले गए। जोस व्हीडन, जिन्हें स्नाइडर ने पहले कुछ अतिरिक्त दृश्यों को फिर से लिखने का काम दिया था, ने स्नाइडर के स्थान पर पोस्ट-प्रोडक्शन कर्तव्यों को संभाला।[110] जुलाई २०१७ में, यह घोषणा की गई थी कि फिल्म लंदन और लॉस एंजिल्स में दो महीने के रीशूट के दौर से गुज़र रही थी, जिसमें वार्नर ब्रदर्स ने २५ मिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च किये थे।[111], और इससे फ़िल्म का बजट बढ़कर ३०० मिलियन डॉलर तक पहुँच गया था।[112] कैविल उस समय मिशन: इम्पॉसिबल - फॉलआउट की शूटिंग कर रहे थे, जिसके चरित्र के लिए उन्होंने मूंछें उगायी थी, और फिल्मांकन पूरा होने तक वह उन्हें बनाये रखने के लिए अनुबंधित थे। शुरुआत में तो फॉलआउट के निर्देशक, क्रिस्टोफर मैकक्वेरी ने जस्टिस लीग के निर्माता को $३ मिलियन के हर्जाने के भुगतान पर कैविल की मूंछें कटवाने की इजाजत दे दी थी, परन्तु बाद में पैरामाउंट पिक्चर्स के अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।[113] इसी कारण से जस्टिस लीग की वीएफएक्स टीम को पोस्ट-प्रोडक्शन में मूंछों को डिजिटल रूप से हटाने के लिए विशेष दृश्य प्रभावों का प्रयोग करना पड़ा।[114] जोस व्हीडन को क्रिस टेर्रियो के साथ फिल्म की पटकथा लेखन का श्रेय मिला,[115] जबकि निर्देशन का श्रेय केवल स्नाइडर को ही दिया गया।[116]
वार्नर ब्रदर्स के सीईओ, केविन तुजीहारा ने फ़िल्म की लम्बाई को दो घंटे से कम रखने का आदेश दिया था।[112][117][118] फ़िल्म को पोस्ट प्रोडक्शन काल में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था, परन्तु फिर भी कम्पनी फिल्म की रिलीज में देरी नहीं करना चाहती थी, ताकि एटी एंड टी के साथ इसके विलय से पहले-पहले अधिकारी अपने बोनस प्राप्त कर सकें।[119][120] फरवरी २०१८ में यह खबरें आयी कि स्नाइडर फ़िल्म से खुद बहार नहीं हुए, वरन् उन्हें जस्टिस लीग के निर्देशक कर्तव्यों से निकाल दिया गया था, क्योंकि, कोलाइडर के मैट गोल्डबर्ग के अनुसार, उनके संस्करण को "अवांछनीय" समझा गया था। इस विषय पर लिखते हुए गोल्डबर्ग ने टिप्पणी की थी कि "मैंने पिछले साल भी अलग-अलग स्रोतों से इसी तरह की चीजें सुनीं, मैंने यह भी सुना कि स्नाइडर का फिल्म का अपूर्ण संस्करण 'अवांछनीय' था (एक शब्द जिसने मुझे काफी प्रभावित किया, क्योंकि यह दुर्लभ है कि आप दो अलग-अलग स्रोतों को एक ही विशेषण प्रयोग करते सुनें)। अगर यह सच भी है, तो भी कहानी केवल इतनी सी ही नहीं हो सकती है, क्योंकि रीशूट, पुनर्लेखन इत्यादि के माध्यम से ऐसी किसी भी कमी को ठीक किया जा सकता है।"[121][122] इसके विपरीत, डीसी कॉमिक बुक कलाकार जिम ली के अनुसार, स्नाइडर को निकाला नहीं गया था। कैलगरी कॉमिक एंड एंटरटेनमेंट एक्सपो में बोलते हुए ली ने कहा कि जहां तक वे जानते थे, "उन्हें (स्नाइडर को) बिलकुल नहीं निकाला गया था" और "वह एक परिवारिक मामले के कारण फ़िल्म से पीछे हट गए थे।"[123]
संगीत
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मार्च २०१६ में, हांस ज़िमर, जिन्होंने मैन ऑफ स्टील और बैटमैन वर्सेस सुपरमैन : डॉन ऑफ जस्टिस के लिए स्कोर तैयार किया था, ने कहा कि उन्होंने आधिकारिक तौर पर "सुपरहीरो फिल्मों" से सेवानिवृत्ति ले ली है। ज़िमर की इस घोषणा के बाद जंकी एक्सएल, जिन्होंने ज़िमर के साथ साथ बैटमैन वर्सेस सुपरमैन के साउंडट्रैक को लिखा था, को फिल्म के लिए संगीत रचना का काम सौंपा गया। लेकिन जून २०१७ में विवादित रूप से उनकी जगह डैनी एल्फमैन को लेने की घोषणा कर दी गई थी। एल्फमैन इससे पहले बैटमैन, बैटमैन रिटर्न्स और बैटमैन: द एनिमेटेड सीरीज़ जैसी फिल्मों में संगीत दे चुके थे।
एल्फमैन ने फिल्म में १९८९ की फिल्म बैटमैन से बैटमैन थीम संगीत का इस्तेमाल किया। इसके अतिरिक्त, फिल्म के एक दृश्य में जॉन विलियम्स की सुपरमैन थीम का भी इस्तेमाल किया गया था। इन थीमों के अलावा फिल्म में सिएरिड द्वारा रचित लियोनार्ड कोहेन के गीत "एवरीबॉडी नोस" का एक कवर संस्करण, द व्हाइट स्ट्रिप्स के "आईकी थंप" और गैरी क्लार्क जूनियर और जंकी एक्सएल द्वारा बनाया गया द बीटल्स के प्रसिद्ध गीत "कम टुगेदर" का एक कवर भी शामिल किया गया। वॉटरटावर म्यूजिक ने १० दिसंबर २०१७ को डिजिटल प्रारूप में फिल्म की साउंडट्रैक एल्बम को जारी किया। ८ दिसंबर को यह अन्य प्रारूपों में जारी हुई।
रिलीज़
२६ अक्टूबर २०१७ को बीजिंग में जस्टिस लीग का विश्व प्रीमियर आयोजित किया था, और फिर १७ नवंबर २०१७ को साधारण, ३डी और आईमैक्स प्रारूपों में इसे दुनिया भर के सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका में फिल्म को ४,०५१ सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था।
जस्टिस लीग को १३ फरवरी २०१८ को डिजिटल डाउनलोड पर रिलीज़ किया गया था, और फिर १३ मार्च २०१८ को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ब्लू-रे डिस्क, ब्लू-रे ३डी, ४के अल्ट्रा-एचडी ब्लू-रे और डीवीडी पर रिलीज़ कर दिया गया। ब्लू-रे में 'द रिटर्न ऑफ सुपरमैन' नामक दो दृश्य भी सम्मिलित किए गए, जो सिनेमाघरों में नहीं दर्शाए गए थे। अपनी बॉक्स ऑफिस कमाई के अलावा, इस फिल्म ने अपनी डीवीडी और ब्लू-रे बिक्री से ४६ मिलियन डॉलर अतिरिक्त भी कमाए।
परिणाम
बॉक्स ऑफिस
जस्टिस लीग ने ३०० मिलियन डॉलर के अपने बजट के मुकाबले संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में २२९ मिलियन डॉलर और अन्य क्षेत्रों में ४२८.९ मिलियन डॉलर की कमाई की, जिससे इसकी वैश्विक कमाई ६५७.९ मिलियन डॉलर रही। अपने प्रदर्शन के प्रथम दिन इसने दुनिया भर में २७८.८ मिलियन डॉलर का व्यापर किया था, जो उस समय २४वां सबसे बड़ा था। ७५० मिलियन डॉलर के अनुमानित ब्रेक-इवेंट पॉइंट के मुकाबले, स्टूडियो को फिल्म से अनुमानित ६० मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
समीक्षाएं
जस्टिस लीग को अपने एक्शन दृश्यों और कलाकारों के अभिनय (मुख्य रूप से गैडट और मिलर) के लिए प्रशंसा मिली, लेकिन लेखन, गति और सीजीआई के साथ-साथ कथानक, और खलनायक (जिसे अविकसित माना गया) के लिए आलोचनाऐं भी मिली। समीक्षा एग्रीगेटर वेबसाइट रोटेन तोमाटोएस पर, फिल्म को ५.३/१० की औसत रेटिंग के साथ ३१३ समीक्षाओं के आधार पर ४०% की स्वीकृति मिली। वेबसाइट पर समीक्षकों की आमराय थी कि: "जस्टिस लीग कई डीसी फिल्मों से बेहतर है, लेकिन इसकी एकल बाध्यता अस्पष्ट सौंदर्य, पतली पात्रों और अराजक कार्रवाई को छोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं है जो फ्रैंचाइजी को कुचलने के लिए जारी है।" मेटाक्रिटिक, जो भारित औसत का उपयोग करता है, ने ५२ आलोचकों के आधार पर फिल्म को १०० में से ४५ का स्कोर दिया, जो "मिश्रित या औसत समीक्षा" दर्शाता है। सिनेमास्कोर द्वारा मतदान किए गए दर्शकों ने फिल्म को "बी+" का औसत ग्रेड दिया, जबकि पोस्टट्रैक ने फिल्म निर्माताओं ने ८५% समग्र सकारात्मक स्कोर (५ सितारों में से ४ औसत) और ६९% "निश्चित अनुशंसा" दिया।
शिकागो सन-टाइम्स के रिचर्ड रोपर ने फ़िल्म को ४ सितारों में से ३.५ अंक दिए, और कलाकारों की (विशेष रूप से गोडट की) प्रशंसा करते हुए कहा, "यह एक बैंड-को-एक-साथ-जोड़ने-वाली उतपत्ति कथा है, जो बहुत मजे और ऊर्जा के साथ निष्पादित की गई है।" वैरायटी के ओवेन ग्लेबर्मन ने फिल्म को सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और लिखा, "जस्टिस लीग... प्रत्येक फ्रेम में, बैटमैन बनाम सुपरमैन के पापों को सही करने के लिए बनाई गई है। यह सिर्फ एक अनुक्रम नहीं है- यह फ्रेंचाइजी तपस्या का एक अधिनियम है। फिल्म... कहीं भी कठिन या भयानक नहीं है। यह हल्की, साफ और सरल है (कभी-कभी बहुत ज्यादा सरल), रेजीरी रिपर्टी और लड़ाकू युगल के साथ जो बहुत लंबे समय तक नहीं चल रहा है।"
नामांकन तथा पुरस्कार
इनके अतिरिक्त, जस्टिस लीग को एक और डीसीईयू फिल्म, वंडर वूमन के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ दृश्य प्रभावों के लिए ९०वें अकादमी पुरस्कार के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में संक्षिप्त रूप से सूचीबद्ध किया गया था।[133][134]
सन्दर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
at Rotten Tomatoes
श्रेणी:अंग्रेज़ी फ़िल्में
श्रेणी:डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स की फ़िल्में
श्रेणी:अमेरिकी फ़िल्में
श्रेणी:सुपरमैन की फ़िल्में
श्रेणी:बैटमैन की फ़िल्में | अमेरिकी सुपरहीरो फ़िल्म 'जस्टिस लीग' के निर्देशक कौन थे? | ज़ैक स्नायडर | 405 | hindi |
2e7eca9e8 | नंदवंश प्राचीन भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महान न्यायी अथवा नाई राजवंश था। जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया।
नंदवंश की स्थापना प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद[1] ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांग गई। यह साम्राज्य वस्तुतः स्वतंत्र राज्यों या सामंतों का शिथिल संघ ना होकर बल्कि किसी शक्तिशाली राजा बल के सम्मुख नतमस्तक होते थे। ये एक एकराट की छत्रछाया में एक अखंड राजतंत्र था, जिसके पास अपार सैन्यबल, धनबल और जनबल था। चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद ने निकटवर्ती सभी राजवंशो को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की एवं केंद्रीय शासन की व्यवस्था लागू की। इसीलिए सम्राट महापदम नंद को<b data-parsoid='{"dsr":[1098,1131,3,3]}'>केंद्रीय शासन पद्धति का जनक[2] कहा जाता है। यह स्मरण योग्य बात है कि नंदवंश के राजा अपने उत्तराधिकारियों और भावी पीढ़ियों को दान में क्या दे गए ? स्मिथ के शब्दों में कहें तो "उन्होंने 66 परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वह आपसी उखाड़ पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों सौंप दे।"[3] नि:संदेह नंदो के उत्थान को भारतीय राजनीति के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है।
ऐतिहासिक प्रमाण
नंदो को समस्त भारतीय एवं विदेशी साक्ष्य तत्कालीन महत्वपूर्ण अनभिजात नाई/न्यायी/नापित जाति का प्रमाणित करते हैं।[4]
चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद का इतिहास उड़ीसा में उदयगिरि पर्वत माला से दक्षिणी भाग में एक प्राकृतिक गुफा है, इसे हाथी गुफा कहा जाता है उसमें प्राप्त पाली भाषा से मिलती-जुलती प्राकृत भाषा और ब्रम्ही लिपि के 17 पंक्तियों में लिखे अभिलेख से प्राप्त होता है जिसके पंक्ति 6 और 12 में नंदराज के बारे में कलिंग के राजा खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराया माना जाता है। इस हाथी गुफा अभिलेख को ईसा पूर्व पहली सदी का माना गया है।
महाराष्ट्र में निजामाबाद जिले के पश्चिम में कुछ दूर पर "नौ नंद देहरा"( नांदेड़ वर्तमान में) नामक नगर स्थित है। इससे यह पता चलता है कि अश्मक वंश की प्राचीन भूमि भी नौ नंदो के राज्य के क्षेत्र में आ गई थी।
कथासरित्सागर में एक स्थान पर अयोध्या में नंद के शिविर (कटक) का प्रसंग आया है।
मैसूर के कई अभिलेखों के अनुसार कुंतलो पर नंदो का शासन था जिसमें बंबई प्रेसिडेंसी का दक्षिणी भाग तथा हैदराबाद राज्य का निकटतम क्षेत्र और मैसूर राज्य सम्मिलित था।
बौद्ध ग्रंथ महाबोधीवंशम एवं अंगुत्तर निकाय में नंदवंश के अत्यधिक प्रमाण है।
वायु पुराण की कुछ पांडुलिपियों के अनुसार नंद वंश के प्रथम राजा ने 28 वर्ष तक राज किया और उसके बाद उनके पुत्रों ने 12 वर्ष तक राज्य किया।
महावंश के अनुसार नंदू ने 28 वर्ष तक शासन किया और उनके पुत्रों ने 22 वर्ष तक शासन किया।
नंद वंश की महानता का विशद विवेचन महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाकाव्य
"महानंद" में किया गया था इसकी पुष्टि सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा रचित महाकाव्य "कृष्ण चरित्र" के प्रारंभिक तीन श्लोको से होती है। मगर उक्त महाकाव्य का विवरण मात्र ही शेष है।
बृहत्कथा के अनुसार नंदो के शासनकाल में पाटलिपुत्र में सरस्वती एवं लक्ष्मी दोनों का ही वास था।
सातवीं सदी के महान विश्व विख्यात चीनी यात्री हुएनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंदराजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के कीमती पत्थर थे।"
जैन ग्रंथों में लिखा है कि समुद्र तक समूचा देश नंद के मंत्री ने अपने अधीन कर लिया था-
समुद्र वसनां शेभ्य:है आस मुदमपि श्रिय:।
उपाय हस्तेैरा कृष्य:तत:शोडकृत नंदसात।।
परिचय
इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ?) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नापित का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्याय(नाई) क्षत्रिय वर्ण के थे।
नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती है
जैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की दो रानियों थी (1)रानी अवंतिका और (2)रानीमुरा और दोनों महारानियां ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानियों के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैं
पुराणों में महापद्मनंद के दस पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं। वहाँ उनके नाम मिलते हैं
(1) गंगन पाल, (2) पंडुक, (3) पंडुगति, (4) भूतपाल, (5) राष्ट्रपाल, (6) गोविषाणक, (7) दशसिद्धक, (8) कैवर्त और (9) धननन्द, (10) चन्द नन्द (चन्द्रगुप्त मौर्य)
चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द वंश के सस्थाषक चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद (नाई ) के (10)वे पुत्र थे जिनका वास्तविक नाम चंद्रनन्द था जिनकी मा (मुरा) एक
ब्राह्रमण परिवार से थी महापद्मनंद के बाद उनके पुत्र धननन्द राजा हुए जिनके डर से सिकन्दर भी भाग गया था। धननन्द ने मंत्री चाणक्य (विष्णुगुप्त) को पीटकर सभा से इसलिये बाहर निकाला दिया चाणक्य धननन्द से पहले सिंहासन पर बैठ गये थे ।
चाणक्य ने धननन्द के सौतेले भाई चन्द्रनन्द को भड़काकर धननन्द को धोखे से चन्द्रनन्द से मरवाकर चन्द्रनन्द क्रो राजा बनाया और चन्द्रनन्द क्रो चन्द्रगुप्त मौर्य नाम दिया । (चन्द्र नन्द के नाम से 'नन्द' हटाकर आपने नाम विष्णुगुप्त का 'गुप्त' जोडा और चंद्रनन्द की माँ का नाम मुरा के बदले मौर्य जोडा )
पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित महापद्म के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किंतु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नहीं। पुराणों में उन सबका राज्यकाल 100 वर्षों तक बताया गया है - 88 वर्षों तक महापद्मनंद का और 12 वर्षों तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षों तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षों तक ही राज्य करें, यह बुद्धिग्राह्य नहीं प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदों का राज्यकाल 40 वर्षों का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते हैं। तदनुसार नवनंदों ने लगभग 364 ई. पू. से 324 ई. पू. तक शासन किया। इतना निश्चित है कि उनमें अंतिम राजा अग्रमस् (औग्रसैन्य (?) अर्थात् उग्रसेन का पुत्र) सिकंदर के आक्रमण के समय मगधा (प्रसाई-प्राची) का सम्राट् था, जिसकी विशाल और शक्तिशाली सेनाओं के भय से यूनानी सिपाहियों ने पोरस से हुए युद्ध के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। प्लूटार्क कहता है कि चंद्रगुप्त (सैंड्राकोट्टस) मौर्य ने सिकंदर से मिलकर उसकी नीचकुलोत्पत्ति और जनता में अप्रियता की बात कही थी। संभव है, धननंद को उखाड़ फेंकने के लिए चंद्रगुप्त ने उस विदेशी आक्रमणकारी के उपयोग का भी प्रयत्न किया हो। "महावंशटीका" से ज्ञात होता है कि अंतिम नंद कठोर शासक तथा लोभी और कृपण स्वभाव का व्यक्ति था। संभवत: इस लोभी प्रकृति के कारण ही उसे धननंद कहा गया। उसने चाणक्य का अपमान भी किया था। इसकी पुष्टि मुद्राराक्षस नाटक से होती है, जिससे ज्ञात होता है कि चाणक्य अपने पद से हटा दिया गया था। अपमानित होकर उसने नंद साम्राज्य के उन्मूलन की शपथ ली और राजकुमार चंद्रगुप्त मौर्य के सहयोग से उसे उस कार्य में सफलता मिली। उन दोनों ने उस कार्य के लिए पंजाब के क्षेत्रों से एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें संभवत: कुछ विदेशी तत्व और लुटेरे व्यक्ति भी शामिल थे। यह भी ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने धननंद को उखाड़ फेंकने में पर्वतक (पोरस) से भी संधि की थी। उसने मगध पर दो आक्रमण किए, यह सही प्रतीत होता है, परंतु "दिव्यावदान" की यह अनुश्रुति कि पहले उसने सीधे मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर ही धावा बोल दिया तथा असफल होकर उसे और चाणक्य को अपने प्राण बचाने के लिए वेष बनाकर भागना पड़ा, सही नहीं प्रतीत होती। उन दोनों के बीच संभवत: 324 ई. पू. में युद्ध हुआ, जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त ने मौर्यवंश का प्रारंभ किया।
सैन्य शक्ति
नंदो का साम्राज्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संपन्नता एवं सैन्य संगठन का चरम बिंदु था। इनकी विशालतम सुसंगठित सेना में 200000 पैदल, 80000 अश्वारोही, 8000 संग्राम रथ, 6000 हाथी थे। जिसकी सहायता से सम्राट महापद्मनंद ने उत्तर पश्चिम, दक्षिण पूर्व दिशा में बहुत बड़ी सैनिक विजय प्राप्त की और उस समय के लगभग सभी आस पड़ोस के साम्राज्यो का अंत कर के उन का नामोनिशान मिटा दिया। इसी कारण इन्हें पुराणों में सर्वक्षत्रांतक अथवा दूसरा परशुराम कहा गया है।
कर्टियस के अनुसार महापद्म की सेना में 20,000 घुड़सवार दो लाख पैदल 2000 रथ एवं 3000 हाथी थे।
डायोडोरस के अनुसार नंद शासन के पास 4000 हाथी थे, जबकि प्लूटार्क ने 80000 अश्र्वरोही, 7200000 की पैदल सेना 8000 घोड़ा वाला रथ और 6000 हाथी की सेना थी।
विश्व विजेता सिकंदर ने भारत पर आक्रमण के समय सम्राट घनानंद की विशालतम सेना देख कर के हौसला पस्त हो गया । इतनी विशालतम शक्ति के सामने सिकंदर जैसे महान विश्व विजेता ने भी नतमस्तक होकर वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझी।
नंदो की विजय
सम्राट महापद्मनंद ने तत्कालीन भारत की विस्तृत सभी 16 महाजनपदों काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल,चेदि,वत्स,अंक, मगध, अवनीत, कुरु, पांचाल, गंधार कंबोज,शूरसेन ,अश्मक, एवं कलिंग को जीतकर एवं सुसंगठित कर प्रथम बार सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नीव डाली तथा आगे आने वाली पीढ़ी के शासकों को शासन करने की उत्कृष्ट पद्धति सिखलाई जिसका प्रभाव आधुनिक शासन पद्धति में भी दिखाई पड़ता है। इसीलिए
चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक कहा जाता है।
शासन प्रबंध
अपार धन दौलत
नंदो का राजकोष धन से भरा रहता था, जिसमें 99 करोड़ की अपार स्वर्ण मुद्राएं थी ।इनकी आर्थिक संपन्नता का मुख्य कारण सुव्यवस्थित लाभों उन्मुखी विदेशी एवं आंतरिक व्यापार था।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंद राजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के बहुमूल्य कीमती पत्थर थे"।
नंद वंश के उत्तराधिकारी
1.पंडुक अथवा सहलिन (बंगाल का सेन वंश) नंदराज महापद्मनंद के जेष्ट पुत्र पंडुक जिनको पुराणों में सहल्य अथवा सहलिन कहा गया है ।नंदराज के शासनकाल में उत्तर बिहार में स्थित वैशाली के कुमार थे ।तथा उनकी मृत्यु के बाद भी उनके वंशज मगध साम्राज्य के प्रशासक के रूप में रहकर शासन करते रहे। इन के वंशज आगे चलकर पूरब दक्षिण की ओर बंगाल चले गए हो और अपने पूर्वज चक्रवर्ती सम्राट महापदम नंद के नाम पर सेन नामांतरण कर शासन करने लगे हो और उसी कुल से बंगाल के आज सूर्य राजा वीरसेन हुई जो मथुरा सुकेत स्थल एवं मंडी के सेन वंश के जनक बन गए जो 330 ईसवी पूर्व से 1290 ईस्वी पूर्व तक शासन किए।
2.पंडू गति अथवा सुकल्प (अयोध्या का देव वंश) आनंद राज के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति तथा पुराणों में संकल्प कहा गया है ।कथासरित्सागर के अनुसार अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां संकल्प एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे तथा कौशल को अवध राज्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई अवध राज्य आणि वह राज्य जहां किसी भी प्रकार की हिंसा या बलि पूजा नहीं होती हो जबकि इसके पूर्व यहां पूजा में पशुबलि अनिवार्य होने का विवरण प्राचीन ग्रंथों में मिलता है जिस को पूर्णतया समाप्त कराया और यही कारण है कि उन्हें सुकल्प तक कहा गया है यानी अच्छा रहने योग्य स्थान बनाने वाला इन्हीं के उत्तराधिकारी 185 ईस्वी पूर्व के बाद मूल्य वायु देव देव के रूप में हुए जिनके सिक्के अल्मोड़ा के पास से प्राप्त हुए हैं
3.भूत पाल अथवा भूत नंदी (विदिशा का नंदी वंश) चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के तृतीय पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार अथवा प्रकाशक थे।नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे। विदिशा के यह शासक कालांतर में पद्मावती एवं मथुरा के भी शासक रहे तथा बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार की इतिहासकारों ने भूतनंदी के शासनकाल को 150 वर्ष पूर्व से मानते हैं।
4.राष्ट्रपाल (महाराष्ट्र का सातवाहन कलिंग का मेघ वाहन वंश) महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज के चौथे पुत्र राष्ट्रपाल थे। राष्ट्रपाल के कुशल प्रशासक एवं प्रतापी होने से इस राज्य का नाम राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा यह गोदावरी नदी के उत्तर तट पर पैठन अथवा प्रतिष्ठान नामक नगर को अपनी राजधानी बनाई थी। राष्ट्रपाल द्वारा ही मैसूर के क्षेत्र, अश्मक राज्य एवं महाराष्ट्र के राज्यों की देखभाल प्रशासक के रूप में की जाती थी जिसकी केंद्रीय व्यवस्था नंदराज महापद्मनंद के हाथों में रहती थी।
राष्ट्रपाल के पुत्र ही सातवाहन एवं मेघवाल थे ।जो बाद में पूर्वी घाट उड़ीसा क्षेत्र पश्चिमी घाट महाराष्ट्र क्षेत्र के अलग-अलग शासक बन गए। ब्राहमणी ग्रंथों पुराणों में इन्हें आंध्र भृत्य कहा गया है।
5.गोविशाणक(उत्तराखंड का कुलिंद वंश) महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक थे। नंदराज ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था। महापद्मनंद द्वारा गोविशाणक को प्रशासक बनाते समय एक नए नगर को बसाया गया था ।वहां उसके लिए किला भी बनवाया गया। इसका नामकरण गोविशाणक नगर रखा गया।उनके उत्तराधिकारी क्रमशः विश्वदेव,धन मुहूर्त,वृहतपाल,विश्व शिवदत्त,हरिदत्त, शिवपाल,चेतेश्वर,भानु रावण,हुई जो लगभग 232 ईसवी पूर्व से 290 ईसवी तक शासन किया।
6. दस सिद्धक चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक थे। नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक मे थी जहां दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया। किंतु इनके पिता महा नंदिवर्धन के नाम पर नंदराज द्वारा बताए गए सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी इन्होंने अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम विंध क्षेत्र में अपनी शक्ति का संवर्धन किया इसलिए उन्हें विंध्य शक्ति भी कहा गया। जिन्होंने 250 ईसवी पूर्व से 510 ईसवी तक शासन किया।
7. कैवर्त नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है ।यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे। अन्य पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक ना होकर बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे ।तथा सम्राट महापद्मनंद जहां कहीं भी जाते थे, मुख्य अंगरक्षक के रूप में उनके साथ साथ रहते थे प्रथम पत्नी से उत्पन्न दोनों छोटे पुत्र कैवर्त और घनानंद तथा दूसरी पत्नी पुरा से उत्पन्न चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त तीनों पुत्र नंद राज के पास पाटलिपुत्र की राजधानी में रहकर उनके कार्यों में सहयोग करते थे। जिसमें चंद्रगुप्त सबसे छोटा व कम उम्र का था। कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही विषयुक्त भोजन करने से हो गई जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।
8. सम्राट घनानंद</b>सम्राट महापद्मनंद की प्रथम पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था। घनानंद जब युवराज था तब आनेको शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन करा दिया। नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना। नंदराज एवं भाई कैवर्त की मृत्यु के बाद यह बहादुर योद्धा शोकग्रस्त रहने लगा। फिर भी इसकी बहादुरी की चर्चा से कोई भी इसके साम्राज्य की तरफ आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका। विश्वविजेता सिकंदर ने भी नंद साम्राज्य की सैन्यशक्ति एवं समृद्धि देख कर ही भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की और वापस यूनान लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी। सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की सैनिक मदद से इनका सौतेला भाई चंद्रगुप्त 322 ईसवी पूर्व में मगध की सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई किया जिससे युद्ध के दौरान घनानंद की मृत्यु हो गई और मगध की सत्ता चंद्रगुप्त को प्राप्त हुई।
9. चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त सम्राट महापदमनंद की मुरा नामक दूसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र का नाम चंद्रगुप्त चंद्रनंद था। जिसे मौर्य वंश का संस्थापक कहा गया है मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को नंद की संतान तथा विष्णु पुराण में चंद्रगुप्त को नंदवंशी राजा कहा गया है।
सारांश
३४४ ई. पू. में सम्राट महापद्यनन्द ने नन्द वंश की स्थापना की। सम्राट महापदम नंद को भारत का प्रथम ऐतिहासिक चक्रवर्ती सम्राट होने का गौरव प्राप्त है। सम्राट महापदम नंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है । पुराणों में इन्हें महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है। यह नाई जाति से थे![5]
सम्राट महापद्म को एकराट, सर्व क्षत्रान्तक, एक छत्र पृथ्वी का राजा,भार्गव आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द। सम्राट घनानंद के शासन काल में भारत पर सिकन्दर आक्रमण द्वारा किया गया। लेकिन मगध के सम्राट धनानंद की विशाल सेना के आगे सिकंदर नतमस्तक हो गया और लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी।
सम्राट महापद्मनन्द पहले शासक थे जिन्होंने गंगा घाटी की सीमाओं का अतिक्रमण कर विन्ध्य पर्वत के दक्षिण तक विजय पताका लहराई थी.[6]
नन्द वंश के समय मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया।
व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के मित्र थे।
वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए।
शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे।
सन्दर्भ ग्रन्थ
नीलकंठ शास्त्री (संपादित): एज ऑव दि नंदज़ ऐंड मौर्यज़;
एज ऑव इंपीरियल यूनिटी (भारतीय विद्याभवन, बंबई); कैब्रिज हिस्ट्री ऑव इंडिया
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
(गूगल पुस्तक ; लेखक - नीलकान्त शास्त्री)
श्रेणी:बिहार का इतिहास
श्रेणी:बिहार के राजवंश
श्रेणी:भारत का इतिहास
श्रेणी:राजवंश
श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास
श्रेणी:भारत के राजवंश | नंद वंश का संस्थापक कौन था? | सम्राट महापद्यनन्द | 15,605 | hindi |
26f356026 | स्वामी निगमानन्द परमहंस (18 अगस्त 1880 - 29 नवम्बर 1935) भारत के एक महान सन्यासी ब सदगुरु थे।[1] उनके शिश्य लोगं उन्हें आदरपूर्वक श्री श्री ठाकुर बुलाते हैं। ऐसा माना जाता है की स्वामी निगमानंद ने तंत्र, ज्ञान, योग और प्रेम(भक्ति) जैशे चतुर्विध साधना में सिद्धि प्राप्त की थी, साथ साथ में कठिन समाधी जैसे निर्विकल्प समाधी का भी अनुभूति लाभ किया था। उनके इन साधना अनुभूति से बे पांच प्रसिध ग्रन्थ यथा ब्रह्मचर्य साधन, योगिगुरु, ज्ञानीगुरु, तांत्रिकगुरु और प्रेमिकगुरु बंगला भाषा में प्रणयन किये थे।[2]
उन्होंने असाम बंगीय सारस्वत मठ जोरहट जिला[3][4] और नीलाचल सारस्वत संघ पूरी जिला में स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है।[5][6]
उन्होने सारे साधना मात्र तिन साल में (1902-1905) समाप्त कर लिया था और परमहंस श्रीमद स्वामी निगमानंद सारस्वती देव के नाम से विख्यात हुए।
जीवन
बाल्य जीवन
स्वामी निगमानन्द का जन्म तत्कालीन नदिया जिला (अब बंगलादेश का मेहरपुर जिला) के कुतबपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[1] उनके बचपन का नाम नलिनीकांत था।[2] उनके पिता भुबन मोहन भट्टाचार्य एक सरल अध्यात्मिक ब्यक्ति के नाम से सुपरिचित थे। बचपन में ही उनकी मां, माणिक्य सुंदरी, का स्वर्गबास हुआ था।
सांसारिक जीवन
सत्रह बर्ष की आयु में हलिसहर निबसी स्वर्गीय बैद्यनाथ मुखोपाधाय की जेष्ठ कन्या एकादस वर्षीय सुधांशुबाला के साथ नलिनीकांत का बिबाह सम्पर्न हुआ।[1] इस बिच नलिनीकांत ने सर्भे स्कूल का पाठक्रम पूरा करके ओबरसिअर की नौकरी की। [1] उनके बाद उन्होंने दीनाजपुर जमीदारी के अंतर्गत नारायणपुर में नौकरी शुरु की। एक दिन साम को नारायणपुर कचहरी में कार्यरत रहते समय सुधादेवी (उनकी पत्नी) की छायामूर्ति देखकर बह चौंक उठे। कुछ देर बाद बह मूर्ति गायब हो गई।[1] बाद में गांब पहंच कर पता चला कि सुधादेवी इस संसार में नही रहीं। इस घटना से उनमे परलोग के प्रति बिश्वास पैदा हुआ क़ी मृत्यु के साथ परलोग का घनिष्ठ संबंध है। इस मृत्यु और परलोग तत्त्व को जानने केलिए उन्होंने मद्रास स्थित थिओसफि संप्रदाय में शामिल हो कर बह बिद्या सीखी।[1] बह दिबंगत सुधांशुबाला को प्रत्यक्ष रूप में देखना चाहते थे। इसलिए मीडियम के भीतर उनकी आत्मा को लाकर आत्मा के प्रत्यक्ष दर्शन ना होनेसे नलिनीकांत तृप्त नहीं हो पाये। अभ्यास करते समय उन्हें पता चला कि हिन्दू योगियों की कृपा से उन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान की प्राप्ति होगी। इसलिए नलिनीकांत मद्रास से लौटकर हिन्दूयोगियों की खोज में लग गये।
साधक जीवन
तंत्र साधना
एक दिन रात को नलिनीकांत ने देखा, उनकी शय्या के पास एक ज्योतिर्मय महापुरुष खड़े होकर कह रहे हें - "बत्स ! अपना यह मंत्र ग्रहण करो"। इतना कहकर उन्होंने नलिनीकांत को बिल्वपत्र पर लिखित एकाख्यर मंत्र प्रदान किया और उसके बाद पलभर में ही गायब हो गये। उसके बाद नलिनीकांत काफी खोज की, फिर भी कोई भी उन्हें उस मंत्र का रहस्य नहीं समझा पाया। उस समय बहुत ही निरुत्चायहित होकर नलिनीकांत ने आत्म हत्या करने का संकल्प किया और उसके बाद बह नींद में सो गये। तत्पश्यात एक बृद्ध ब्राहमण ने स्वप्न में कहा, बेटा, तुम्हारे गुरु तारापीठ के बामाक्षेपा हें।
एक दिन रात को नलिनीकांत ने देखा, उनकी शय्या के पास एक ज्योतिर्मय महापुरुष खड़े होकर कह रहे हें - बत्स ! अपना यह मंत्र ग्रहण करो। इतना कहकर उन्होंने नलिनीकांत को बिल्वपत्र पर लिखित एकाख्यर मंत्र प्रदान किया और उसके बाद पलभर में ही गायब हो गये। उसके बाद नलिनीकांत काफी खोज की, फिर भी कोई भी उन्हें उस मंत्र का रहस्य नहीं समझा पाया। उस समय बहुत ही नीरू उत्चाया निरुत्चायहित होकर नलिनीकांत ने आत्म हत्या करने का संकल्प किया और उसके बाद बह नींद में सो गये। तत्पश्यात एक बृद्ध ब्राहमण ने स्वप्न में कहा, बेटा, तुम्हारे गुरु तारापीठ के बामाखेपा हें।
नलिनीकांत बीरभूम जिले के तारापीठ में साधू बामाक्षेपा के पास पहुंचे।[2] सिद्ध महात्मा बामाक्षेपा ने उन्हें मंत्र की साधन प्रणाली सिखाने का बचन दिया। उनकी कृपा से नलिनीकांत ने देबी तारा को सुधांसूबाला की मूर्ति में दर्शन किया और देवी के साथ बर्तालाप किया। देवी के बार बार दर्शन पाकर भी नलिनीकांत उन्हें स्पर्श करने में असमर्थ रहे। इसका तत्व जानने के लिए बह तंत्रिक्गुरु बामाक्षेपा के उपदेशानुसार संन्यासी गुरु के खोज करने लगे।
ज्ञान साधना
गुरु की खोज करते करते उन्होंने भारत के अनेक स्थानों का भ्रमण किया और अंत में पुष्कर तीर्थ में स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती के दर्शन पाकर बह उनके चरनाश्रित हुए |[2] सच्चिदानंद के दर्शन करते ही नलिनीकांत जान पाये की जिन महात्मा ने उन्हें स्वप्न में मंत्र दान किया था, बे ही यही सच्चिदानंद स्वामी है। नलिनीकांत गुरु के पास रहकर उनके आदेश से अनेक श्रमसाध्य कार्य किये। उनकी सेवा से संतुस्ट होकर गुरुदेव ने उन्हें सन्यास की दिक्ष्या दे कर उनका नाम निगमानंद रखा।
योग साधना
सन्यास लेने के बाद तत्व की उपलब्धि के लिए उन्होंने गुरु के आदेश पर चारधामों का भम्रण किया।[7] परन्तु जिस तत्व की उन्होंने उपलब्धि की, उस तत्व की अंतर में उपलब्धि के लिये बे ज्ञानी गुरु के आदेश से उनसे विदा ले कर योगी गुरु की खोज में निकल पड़े। योगी गुरु की खोज के समय, एक दिन बनों के रमणीय दृश्य को देखकर बह इतने मोहित ओ गये कि दिन ढल जाने कि बाद भी उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि शाम हो चुकी है। फलतः उन्हाने बस्ती में न लौटकर एक पेड़ के कोटर में रात बिताई | रात बीत जाने का बाद परिब्राजक निगमानंद ने पेड़ के नीचे एक दीर्घकाय तेजस्बी साधू के दर्शन किये और उनके इशारे पर उनका अनुसरण किया। बाद में उस साधुने निगमानंद को अपना परिचय दिया और उन्हें योग शिख्या देने का बचन देकर उन्हें अपनी कुटिया में ठहराया। उस साधू के आश्रम में रहकर स्वामी निगमानंद ने योगसाधन के कौशल सीखे और उनके आदेश से बह योग साधना के लिय लोकालय में लौटे। उनके उन योग शिख्यादाता गुरु का नाम उदासिनाचार्य सुमेरुदास महाराज है।[2][3]
निर्विकल्प समाधि की प्राप्ति
निगमानंद हठ योग की साधना के लिए पावना जिला के हरिपुर गांव में रहने लगे। साधना में अनेक बिघ्न पैदा होने के कारण निगमानंद कामाख्या चलें गये और पहेले सविकल्प समाधि प्राप्त की। उसके बाद कामाख्या पहाड़ में निर्विकल्प समाधि प्राप्त की। ऐसा माना जाता हे, निगमानंद निर्विकल्प समाधि में निमग्न होकर में गुरु हूँ - यह स्वरुप-ज्ञान लेकर पुनः बापस आये थे। लेखक दुर्गा चरण महान्ति ने लिखा "में कौन हूँ" यह जानने केलिए स्वामी निगमानंद संसार को त्याग कर बैरागी बने थे और "में गुरु हूँ", यह भाव लेकर वह संसार में लौट आये।
भाव साधना
पूर्णज्ञानी, यह अभिमान ले कर निगमानंद काशी में पहुंचे। बहां पर माँ अर्णपुर्न्ना (काशी नगरी की इष्ट देवी) ने उनके भीतर अपूर्णता-बोध का जागरण कर दिया और कहा, तुमने ब्रहमज्ञान प्राप्त किया हे सही, परन्तु अबर ब्रहमज्ञान, या प्रेम-भक्ति के पथ में जो भगबत ज्ञान है, तुम्हें प्राप्ति नहीं हुई। इसलिए तुम पूर्ण नहीं हो । तत्पचात श्री निगमानंद देव प्रेम शिद्धा गौरीदेवी की कृपा से अबर ब्रहम ज्ञान प्राप्त कर चरम सिद्धि में पहुंचे। प्रेम सिद्धि के बाद स्वामी निगमानंद देव की इष्ट देवी तारा उन्हें प्रतख्य दर्शन देकर कहा तुम्ही सार्वभौम गुरु हो; जगत बासी तुम्हारी संतान है। तुम लोकलय में जाकर अपने शिष्य भक्त को स्वरुप ज्ञान दो। तारादेवी के बाक्य से निगमानंद ने अपने को पूर्ण समझा।
परमहंस पद से अलंकृत
इस बिच बह गुरुदेव को दर्शन के लिए कुम्भ मेले में पहुंचे। बहां उन्होंने सब से पहले अपने गुरु सच्चिदानंद देव को प्रणाम करने के बाद जगदगुरु शंकराचार्य को प्रणाम किया। दुसरे साधुओने उस पर आपति जताई। स्वामी निगमानंद ने उसका सही उत्तर देकर जगदगुरु को संतुष्ट किया।
जब उन्होंने जगदगुरु शंकराचार्य के कुछ सुचिंतित प्रश्नों के सही उत्तर दिये, तो जगदगुरु ने उनके गुरु सच्चिदानंद को निर्देश दिया की उन्हें परमहंस की उपाधि से अलंकृत करें। साधुमंडली की श्रद्धा पूर्ण सम्मति से गुरु सच्चिदानंद देव ने स्वामी निगमानंद को परमहंस की उपाधि दी। उनका पूरा नाम इसी प्रकार से रहा परिब्राजकाचार्य परमहंस श्री मद स्वामी निगमानंद सरस्वती देव।[8]
कर्म
देश बासियों का मनोभाव बदल कर उन्हें प्रवृति से निवृति मार्ग में लौटाने के लिए श्री निगमानंद ने योगी गुरु, ज्ञानी गुरु, ब्रहमचर्य साधन, तांत्रिक गुरु और प्रेमिक गुरु आदि ग्रंथो का प्रणयन किया और सनातन धर्म के मुख पत्र के रूप में आर्य दर्पण नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।[2] उसके अतिरिक्त सत शिख्या के बिश्तार और सनातन धर्म के उद्देश्य से साल 1912 में जोरहट स्तित (असम) कोकिलामुख में शांति आश्रम (सारस्वत मठ) की प्रतिष्टा की और संघ, सम्मलेन का अनुष्ठान किया।[1] संघ और सम्मलेन के माध्यम से आदर्श गृहस्थ समाज का गठन, संघ शक्ति की प्रतिष्टा और भाव बिनिमय कराकर जगत बासियों की सेवा करना ही उनका उद्देश्य था। नारायण के ज्ञान से जिव सेवा करने का उपदेश देकर श्री निगमानंद ने शिष्य-भक्तों और जनसाधारण को उदबुद्ध किया। इस प्रकार बहुत ही कम समय के भीतर बंगाल, बिहार, असम और ब्रहमदेश के कुछ खेत्रों में उपनी भावधारा का ब्यापक प्रचार पर उन्होंने असम स्तित मठ छोड़ दिया और बे जीवन के शेष भाग को पुरीधाम में निर्जन बास में (नीलाचल कुटीर में) बिताने लगे। उन्होंने ओडिशा के भक्तों को संघबद्ध करने के उद्देश्य में उपने शुभ जन्मदिन साल 1934 की श्रावण पूर्णिमा को नीलाचल सारस्वत संघ की स्तापना करके उपनी आध्यात्मिक भावधारा का प्रचार करने का निर्देश दिया। आदर्श गृहस्थ जीवन यापन करके संघ शक्ति की प्रतिष्टा करने के साथ साथ उन्होंने शिष्य भक्तों को भाव बिनिमय करने का उपदेश दिया।
दर्शन
इष्ट और गुरु अभिर्ण व एक है
स्वामी निगमानंद ने कहा, इष्ट-देव के स्थान पर उपने गुरुदेव को ध्यान कर सकते हो इसीलिए इष्ट और गुरु अभिर्ण व एक है।
शंकर की मत्त और महाप्रभु गौरांग की पथ
जगदगुरु शंकर की मत्त (ज्ञान) और महाप्रभु गौरांग देव की पथ (प्रेम) यह आदर्श अपनाने केलिए शिष्य भक्तों को आदेश दिया है।
शिक्षा
जिन्होंने निर्विकल्प समाधि से उत्तीर्ण होकर बापस इस संसार को आये, उन्हें सदगुरु कहा जाता है। केवल वे ही दुसरों पर कृपा करने में समर्थ है।
जो गुरु महापुरुष त्रिगुणमयी माया को पार कर आत्मस्वरूप में प्रतिष्टित रहकर जीव उधार करते हें, वे ही सदगुरु है।
प्रेम भक्ति ही पृथ्वी की श्रेष्ट शक्ति है। इसलिए श्रीगुरु देव के चरणों का आश्रय लेकर भगवत चर्चा करने केलिय शास्त्रों का नीरेश है।
भक्ति समस्त धर्मों का मूल है। भक्ति मार्ग पर चलने से आखरी में ज्ञान की प्राप्ति होती है।
श्री गुरु देव ही मुक्ति दाता और गुरुसेवा ही शिष्यों का एकमात्र परमधर्म है।
सनातन धर्म में सदगुरु और इस्टदेवता अभिन्न है।
सदगुरु अवतार नहीं है, वे युग धर्म के पदर्शित मत और पथ पर शिषों को संचालित करते है।
सदगुरु के निर्देशानुसार कर्म करना ही कर्म योग है।
मनुष्य जीवन का लख्य आनंद की प्राप्ति है, भगवत प्राप्ति होने पर ही उस आनंद की प्राप्ति होती है।
कलियुग में संघ शक्ति ही श्रेष्ट है
महासमाधि
इस तरह पूरीधाम में अवस्थान करके समय वे सामान्य अस्वस्थता के कारण कलकता चले गये। उसके बाद 29 नवम्बर 1935 अग्रहायण शुक्ल चतुर्थी तिथि को उस महानगरी में एक निर्जन कमरे में महासमाधि ली।
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श्रेणी:लेखक | स्वामी निगमानन्द परमहंस के तन्त्र गुरु कौन थे? | बामाक्षेपा | 2,691 | hindi |
31179f1bb | भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के रचयिता हैं। इनके जीवनकाल के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है किन्तु इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है।
भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि रचित नाट्यशास्त्र से परिचय था। इनका 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है। इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धान्त की चर्चा तथा इसके प्रसिद्द सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है। इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है।
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियो को काव्य शास्त्र का उपदेश दिया।
विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफी क्षेपक बताते हैं।
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श्रेणी:संस्कृत आचार्य | नित्यशास्त्र किसने लिखा है? | भरत मुनि | 0 | hindi |
0d35dc007 | अग्नि पंचम (अग्नि-५) भारत की अन्तरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने विकसित किया है। यह अत्याधुनिक तकनीक से बनी 17 मीटर लंबी और दो मीटर चौड़ी अग्नि-५ मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस होकर 1 टन पेलोड ले जाने में सक्षम है। 5 हजार किलोमीटर तक के दायरे में इस्तेमाल की जाने वाली इस मिसाइल में तीन चरणों का प्रोपल्शन सिस्टम लगाया गया है। इसे हैदराबाद की प्रगत (उन्नत) प्रणाली प्रयोगशाला (Advanced Systems Laboratory) ने तैयार किया है।
इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत है MIRV तकनीक यानी एकाधिक स्वतंत्र रूप से लक्षित करने योग्य पुनः प्रवेश वाहन (Multiple Independently targetable Re -entry Vehicle), इस तकनीक की मदद से इस मिसाइल से एक साथ कई जगहों पर वार किया जा सकता है, एक साथ कई जगहों पर गोले दागे जा सकते हैं, यहां तक कि अलग-अलग देशों के ठिकानों पर एक साथ हमले किए जा सकते हैं।
अग्नि 5 मिसाइल का इस्तेमाल बेहद आसान है। इसे रेल सड़क हो या हवा, कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के किसी भी कोने में इसे तैनात कर सकते हैं जबकि किसी भी प्लेटफॉर्म से युद्ध के दौरान इसकी मदद ली जा सकती हैं। यही नहीं अग्नि पांच के लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस की वजह से इस मिसाइल को कहीं भी बड़ी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे हम अपने दुश्मन के करीब पहुंच सकते हैं। अग्नि 5 मिसाइल की कामयाबी से भारतीय सेना की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि न सिर्फ इसकी मारक क्षमता 5 हजार किलोमीटर है, बल्कि ये परमाणु हथियारों को भी ले जाने में सक्षम है।
अग्नि-5 भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय यानी इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल है। अग्नी-5 के बाद भारत की गिनती उन 5 देशों में हो गई है जिनके पास है इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल यानी आईसीबीएम है। भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ने इंटर-कॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल की ताकत हासिल की है.
ये करीब 10 साल का फासला है जब भारत की ताकत अग्नि-1 मिसाइल से अब अग्नि 5 मिसाइल तक पहुंची है। 2002 में सफल परीक्षण की रेखा पार करने वाली अग्नि-1 मिसाइल- मध्यम रेंज की बालिस्टिक मिसाइल थी। इसकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर थी और इससे 1000 किलो तक के परमाणु हथियार ढोए जा सकते थे। फिर आई अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 मिसाइलें. ये तीनों इंटरमीडिएट रेंज बालिस्टिक मिसाइलें हैं। इनकी मारक क्षमता 2000 से 3500 किलोमीटर है। और अब भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ परीक्षण करने जा रहा है अग्नि-5 मिसाइल का। 3 जून 2018 को प्रातः 9 बजकर 48 मिनट पर किया गया। [13]
जहां तक भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय बालिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 की खूबियों का सवाल है। तो ये करीब एक टन का पे-लोड ले जाने में सक्षम होगा। खुद अग्नि-5 मिसाइल का वजन करीब 50 टन है। अग्नि-5 की लंबाई 17 मीटर और चौड़ाई 2 मीटर है। अग्नि-5 सॉलिड फ्यूल की 3 चरणों वाली मिसाइल है। आज जब ओडिशा तट के व्हीलर आईलैंड से भारत की पहली इंटर कॉन्टिनेन्टल बालिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया जाएगा तो डीआरडीओ के प्रमुख डॉ॰ वी. के. सारस्वत समेत तमाम आला मिसाइल वैज्ञानिक मौजूद रहेंगे.
अग्नि-5 में RING LASER GYROSCOPE यानि RLG तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। भारत में ही बनी इस तकनीक की खासियत ये हैं कि ये निशाना बेहद सटीक लगाती है।
अगर सबकुछ ठीक से हुआ तो अग्नि-5 को 2014 से भारतीय सेना में शामिल कर दिया जाएगा। यही नहीं चीनी मिसाइल डोंगफेंग 31A को अग्नि-5 से कड़ी टक्कर मिलेगी क्योंकि अग्नि-5 की रेंज में चीन का सबसे उत्तरी शहर हार्बिन भी आता है जो चीन के डर की सबसे बड़ी वजह है।
प्रमुख विशिष्टियाँ
(1) अग्नि 5 से भारत इंटरकॉन्टिनेंटल बलिस्टिक मिसाइल (ICBM) क्लब में शामिल हो जाएगा। अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन पहले से ही इस तरह की मिसाइलों से लैस हैं।
(2) अग्नि-5 मिसाइल का निशाना गजब का है। यह 20 मिनट में पांच हजार किलोमीटर की दूरी तय कर लेगी और डेढ़ मीटर के टारगेट पर निशाना लगा लेगी।
(3) अग्नि-5 से भारत की सामरिक रणनीति में बड़ा बदलाव आएगा। इस मिसाइल से अमेरिका को छोड़कर पूरा एशिया, अफ्रीका और यूरोप भारत के दायरे में होगा।
(4) यह मिसाइल एक बार छूटी तो रोकी नहीं जा सकेगी। यह गोली से भी तेज चलेगी और 1000 किलो का न्यूक्लियर हथियार ले जा सकेगी।
(5) यह भारत की सबसे लंबी दूरी की मारक मिसाइल होगी। वॉरहेड पर एक टन तक का परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम।
(6) अग्नि-5 से भारत की एक मिसाइल से कई न्यूक्लियर वॉरहेड छोड़ने की तकनीक की परख होगी।
(7) अग्नि 5 मिसाइल की तकनीक छोटे सैटेलाइट छोड़ने में इस्तेमाल हो सकेगी। यही नहीं यह दुश्मनों के सेटेलाइट को नष्ट करने में भी इस्तेमाल हो सकेगी।
(8)-इसे केवल प्रधानमंत्री के आदेश के बाद ही छोड़ा जाएगा। भारत इसे 'शान्ति शस्त्र' (वेपन ऑफ पीस) कह रहा है।
(9) 17 मीटर ऊंची इस मिसाइल में गजब की टेक्नीक का इस्तेमाल किया गया है। यह मिसाइल तीन स्टेज में मार करेगी। पहला रॉकेट इंजन इसे 40 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाएगा। दूसरे स्टेज में यह 150 किलोमीटर तक जाएगी। तीसरे स्टेज में यह 300 किलोमीटर तक जाएगी। कुल मिलाकर यह 800 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचेगी।
(10) भारत के पास अभी तक सबसे अधिक दूर तक मार करने वाली मिसाइल अग्नि 4 है। यह साढ़े तीन हजार किलोमीटर तक मार करती है। अग्नि 5 पांच हजार किलोमीटर तक मार करेगी।
बाहरी कड़ियाँ
(नईदुनिया)
सन्दर्भ
श्रेणी:भारतीय सेना
श्रेणी:प्रक्षेपास्त्र
श्रेणी:अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपण प्रक्षेपास्त्र
श्रेणी:भारत के प्रक्षेपास्त्र | अग्नि पंचम(५) मिसाइल की लम्बाई कितने मीटर है? | 17 | 155 | hindi |
7f997884d | जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर () (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५)[1] तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था।[2] अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।[3][4][5] सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।[1] अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था।[6] बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की।[1] उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने।[7]
अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था।[8] अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था।[9][10] अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये।[9][11]
अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा।[12] उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया।[12] अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये।[13][14][15] अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था।[16] उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया।[9][17]
इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया।[18][19]
जीवन परिचय
नाम
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे।[20] किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है।
आरंभिक जीवन
अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा।[4][21] बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था।[1]
हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था।[22] किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका। उसका काफी समय आखेट, दौड़ व द्वंद्व, कुश्ती आदि में बीता, तथा शिक्षा में उसकी रुचि नहीं रही। जब तक अकबर आठ वर्ष का हुआ, जन्म से लेकर अब तक उसके सभी वर्ष भारी अस्थिरता में निकले थे जिसके कारण उसकी शिक्षा-दीक्षा का सही प्रबंध नहीं हो पाया था। अब हुमायूं का ध्यान इस ओर भी गया। लगभग नवम्बर, +--9-9 में उसने अकबर की शिक्षा प्रारंभ करने के लिए काबुल में एक आयोजन किया। किंतु ऐन मौके पर अकबर के खो जाने पर वह समारोह दूसरे दिन सम्पन्न हुआ। मुल्ला जादा मुल्ला असमुद्दीन अब्राहीम को अकबर का शिक्षक नियुक्त किया गया। मगर मुल्ला असमुद्दीन अक्षम सिद्ध हुए। तब यह कार्य पहले मौलाना बामजीद को सौंपा गया, मगर जब उन्हें भी सफलता नहीं मिली तो मौलाना अब्दुल कादिर को यह काम सौंपा गया। मगर कोई भी शिक्षक अकबर को शिक्षित करने में सफल न हुआ। असल में, पढ़ने-लिखने में अकबर की रुचि नहीं थी, उसकी रुचि कबूतर बाजी, घुड़सवारी और कुत्ते पालने में अधिक थी।[1] किन्तु ज्ञानोपार्जन में उसकी रुचि सदा से ही थी। कहा जाता है, कि जब वह सोने जाता था, एक व्यक्ति उसे कुछ पढ़ कर सुनाता रह्ता था।[23] समय के साथ अकबर एक परिपक्व और समझदार शासक के रूप में उभरा, जिसे कला, स्थापत्य, संगीत और साहित्य में गहरी रुचि रहीं।
राजतिलक
शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह के उत्तराधिकार के विवादों से उत्पन्न अराजकता का लाभ उठा कर हुमायूँ ने १५५५ में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। इसमें उसकी सेना में एक अच्छा भाग फारसी सहयोगी ताहमस्प प्रथम का रहा। इसके कुछ माह बाद ही ४८ वर्ष की आयु में ही हुमायूँ का आकस्मिक निधन अपने पुस्तकालय की सीढ़ी से भारी नशे की हालात में गिरने के कारण हो गया।[24][25] तब अकबर के संरक्षक बैरम खां ने साम्राज्य के हित में इस मृत्यु को कुछ समय के लिये छुपाये रखा और अकबर को उत्तराधिकार हेतु तैयार किया। १४ फ़रवरी, १५५६ को अकबर का राजतिलक हुआ। ये सब मुगल साम्राज्य से दिल्ली की गद्दी पर अधिकार की वापसी के लिये सिकंदर शाह सूरी से चल रहे युद्ध के दौरान ही हुआ। १३ वर्षीय अकबर का कलनौर, पंजाब में सुनहरे वस्त्र तथा एक गहरे रंग की पगड़ी में एक नवनिर्मित मंच पर राजतिलक हुआ। ये मंच आज भी बना हुआ है।[26][27] उसे फारसी भाषा में सम्राट के लिये शब्द शहंशाह से पुकारा गया। वयस्क होने तक उसका राज्य बैरम खां के संरक्षण में चला।[28][29]
राज्य का विस्तार
खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन् १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन् १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। इसके साथ ही अनेक समस्याएं भी सिर उठाये खड़ी थीं। १५६३ में शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश, १५६४-६५ के बीच उज़बेक विद्रोह और १५६६-६७ में मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह भी था, किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई।[30] इसी बीच १५६६ में महाम अंका नामक उसकी धाय के बनवाये मदरसे (वर्तमान पुराने किले परिसर में) से शहर लौटते हुए अकबर पर तीर से एक जानलेवा हमला हुआ, जिसे अकबर ने अपनी फुर्ती से बचा लिया, हालांकि उसकी बांह में गहरा घाव हुआ। इस घटना के बाद अकबर की प्रशसन शैली में कुछ बदलाव आया जिसके तहत उसने शासन की पूर्ण बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके फौरन बाद ही हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा।
दिल्ली की सत्ता-बदल
दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबर के लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।
सत्ता की वापसी
दिल्ली की पराजय का समाचार जब अकबर को मिला तो उसने तुरन्त ही बैरम खान से परामर्श कर के दिल्ली की तरफ़ कूच करने का इरादा बना लिया। अकबर के सलाहकारो ने उसे काबुल की शरण में जाने की सलाह दी। अकबर और हेमु की सेना के बीच पानीपत मे युद्ध हुआ। यह युद्ध पानीपत का द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। संख्या में कम होते हुए भी अकबर ने इस युद्ध मे विजय प्राप्त की। इस विजय से अकबर को १५०० हाथी मिले जो मनकोट के हमले में सिकंदर शाह सूरी के विरुद्ध काम आए। सिकंदर शाह सूरी ने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर ने उसे प्राणदान दे दिया।
चहुँओर विस्तार
दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया। अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो; इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य के मध्य में थी। कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारण था। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ। सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला।
प्रशासन
सन् १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को निकाल बाहर किया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे - शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। सन् १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया - इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। धार्मिक सहिष्णुता का उसने अनोखा परिचय दिया - हिन्दू तीर्थ स्थानों पर लगा कर जज़िया हटा लिया गया (सन् १५६३)। इससे पूरे राज्यवासियों को अनुभव हो गया कि वह एक परिवर्तित नीति अपनाने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त उसने जबर्दस्ती युद्धबंदियो का धर्म बदलवाना भी बंद करवा दिया।
मुद्रा
अकबर ने अपने शासनकाल में ताँबें, चाँदी एवं सोनें की मुद्राएँ प्रचलित की। इन मुद्राओं के पृष्ठ भाग में सुंदर इस्लामिक छपाई हुआ करती थी। अकबर ने अपने काल की मुद्राओ में कई बदलाव किए। उसने एक खुली टकसाल व्यवस्था की शुरुआत की जिसके अन्दर कोई भी व्यक्ति अगर टकसाल शुल्क देने मे सक्षम था तो वह किसी दूसरी मुद्रा अथवा सोने से अकबर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकता था। अकबर चाहता था कि उसके पूरे साम्राज्य में समान मुद्रा चले।[31]
राजधानी स्थानांतरण
पानीपत का द्वितीय युद्ध होने के बाद हेमू को मारकर दिल्ली पर अकबर ने पुनः अधिकार किया। इसके बाद उसने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश(वर्तमान बुढ़हानपुर, महाराष्ट्र का भाग) को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में प्रशासन संभालने हेतु एक-एक राज्यपाल नियुक्त किया। उसे राज संभालने के लिये दिल्ली कई स्थानों से दूर लगा और ये प्रतीत हुआ कि इससे प्रशासन में समस्या आ सकती है, अतः उसने निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए[32] जो साम्राज्य के लगभग मध्य में थी। एक पुराने बसे ग्राम सीकरी पर अकबर ने नया शहर बनवाया जिसे अपनी जीत यानि फतह की खुशी में फतेहाबाद या फतेहपुर नाम दिया गया। जल्दी ही इसे पूरे वर्तमान नाम फतेहपुर सीकरी से बुलाया जाने लगा। यहां के अधिकांश निर्माण उन १४ वर्षों के ही हैं, जिनमें अकबर ने यहां निवास किया। शहर में शाही उद्यान, आरामगाहें, सामंतों व दरबारियों के लिये आवास तथा बच्चों के लिये मदरसे बनवाये गए। ब्लेयर और ब्लूम के अनुसार शहर के अंदर इमारतें दो प्रमुख प्रकार की हैं- सेवा इमारतें, जैसे कारवांसेरी, टकसाल, निर्माणियां, बड़ा बाज़ार (चहर सूक) जहां दक्षिण-पश्चिम/उत्तर पूर्व अक्ष के लम्बवत निर्माण हुए हैं और दूसरा शाही भाग, जिसमें भारत की सबसे बड़ी सामूहिक मस्जिद है, साथ ही आवासीय तथा प्रशासकीय इमारते हैं जिसे दौलतखाना कहते हैं। ये पहाड़ी से कुछ कोण पर स्थित हैं तथा किबला के साथ एक कोण बनाती हैं।[33]
किन्तु ये निर्णय सही सिद्ध नहीं हुआ और कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। इसके पीछे पानी की कमी प्रमुख कारण था। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार की रचना की जो पूरे साम्राज्य में घूमता रहता था और इस प्रकार साम्राज्य के सभी स्थानों पर उचित ध्यान देना संभव हुआ। बाद में उसने सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी भाग के लिए लाहौर को राजधानी बनाया। मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में राजधानी वापस आगरा बनायी और अंत तक यहीं से शासन संभाला।[30]
आगरा शहर का नया नाम दिया गया अकबराबाद जो साम्राज्य की सबसे बड़ा शहर बना। शहर का मुख्य भाग यमुना नदी के पश्चिमी तट पर बसा था। यहां बरसात के पानी की निकासी की अच्छी नालियां-नालों से परिपूर्ण व्यवस्था बनायी गई। लोधी साम्राज्य द्वारा बनवायी गई गारे-मिट्टी से बनी नगर की पुरानी चारदीवारी को तोड़कर १५६५ में नयी बलुआ पत्थर की दीवार बनवायी गई। अंग्रेज़ इतिहासकार युगल ब्लेयर एवं ब्लूम के अनुसार इस लाल दीवार के कारण ही इसका नाम लाल किला पड़ा। वे आगे लिखते हैं कि यह किला पिछले किले के नक्शे पर ही कुछ अर्धवृत्ताकार बना था। शहर की ओर से इसे एक दोहरी सुरक्षा दीवार घेरे है, जिसके बाहर गहरी खाई बनी है। इस दोहरी दीवार में उत्तर में दिल्ली गेट व दक्षिण में अमर सिंह द्वार बने हैं। ये दोनों द्वार अपने धनुषाकार मेहराब-रूपी आलों व बुर्जों तथा लाल व सफ़ेद संगमर्मर पर नीली ग्लेज़्ड टाइलों द्वारा अलंकरण से ही पहचाने जाते हैं। वर्तमान किला अकबर के पौत्र शाहजहां द्वारा बनवाया हुआ है। इसमें दक्षिणी ओर जहांगीरी महल और अकबर महल हैं।[33]
नीतियां
विवाह संबंध
आंबेर के कछवाहा राजपूत राज भारमल ने अकबर के दरबार में अपने राज्य संभालने के कुछ समय बाद ही प्रवेश पाया था। इन्होंने अपनी राजकुमारी हरखा बाई का विवाह अकबर से करवाना स्वीकार किया।[34][35] विवाहोपरांत मुस्लिम बनी और मरियम-उज़-ज़मानी कहलायी। उसे राजपूत परिवार ने सदा के लिये त्याग दिया और विवाह के बाद वो कभी आमेर वापस नहीं गयी। उसे विवाह के बाद आगरा या दिल्ली में कोई महत्त्वपूर्ण स्थान भी नहीं मिला था, बल्कि भरतपुर जिले का एक छोटा सा गांव मिला था।[36] उसकी मृत्यु १६२३ में हुई थी। उसके पुत्र जहांगीर द्वारा उसके सम्मान में लाहौर में एक मस्जिद बनवायी गई थी।[37] भारमल को अकबर के दरबार में ऊंचा स्थान मिला था और उसके बाद उसके पुत्र भगवंत दास और पौत्र मानसिंह भी दरबार के ऊंचे सामंत बने रहे।[38]
हिन्दू राजकुमारियों को मुस्लिम राजाओं से विवाह में संबंध बनाने के प्रकरण अकबर के समय से पूर्व काफी हुए थे, किन्तु अधिकांश विवाहों के बाद दोनों परिवारों के आपसी संबंध अच्छे नहीं रहे और न ही राजकुमारियां कभी वापस लौट कर घर आयीं।[38][39] हालांकि अकबर ने इस मामले को पिछले प्रकरणों से अलग रूप दिया, जहां उन रानियों के भाइयों या पिताओं को पुत्रियों या बहनों के विवाहोपरांत अकबर के मुस्लिम ससुराल वालों जैसा ही सम्मान मिला करता था, सिवाय उनके संग खाना खाने और प्रार्थना करने के। उन राजपूतों को अकबर के दरबार में अच्छे स्थान मिले थे। सभी ने उन्हें वैसे ही अपनाया था सिवाय कुछ रूढ़िवादी परिवारों को छोड़कर, जिन्होंने इसे अपमान के रूप में देखा था।[39]
अन्य राजपूर रजवाड़ों ने भी अकबर के संग वैवाहिक संबंध बनाये थे, किन्तु विवाह संबंध बनाने की कोई शर्त नहीं थी। दो प्रमुख राजपूत वंश, मेवाड़ के शिशोदिया और रणथंभौर के हाढ़ा वंश इन संबंधों से सदा ही हटते रहे। अकबर के एक प्रसिद्ध दरबारी राजा मानसिंह ने अकबर की ओर से एक हाढ़ा राजा सुर्जन हाढ़ा के पास एक संबंध प्रस्ताव भी लेकर गये, जिसे सुर्जन सिंह ने इस शर्त पर स्वीकार्य किया कि वे अपनी किसी पुत्री का विवाह अकबर के संग नहीं करेंगे। अन्ततः कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुए किन्तु सुर्जन को गढ़-कटंग का अधिभार सौंप कर सम्मानित किया गया।[38] अन्य कई राजपूत सामंतों को भी अपने राजाओं का पुत्रियों को मुगलों को विवाह के नाम पर देना अच्छा नहीं लगता था। गढ़ सिवान के राठौर कल्याणदास ने मोटा राजा राव उदयसिंह और जहांगीर को मारने की धमकी भी दी थी, क्योंकि उदयसिंह ने अपनी पुत्री जगत गोसाई का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर से करने का निश्चय किया था। अकबर ने ये ज्ञान होने पर शाही फौजों को कल्याणदास पर आक्रमण हेतु भेज दिया। कल्याणदास उस सेना के संग युद्ध में काम आया और उसकी स्त्रियों ने जौहर कर लिया।[40]
इन संबंधों का राजनीतिक प्रभाव महत्त्वपूर्ण था। हालांकि कुछ राजपूत स्त्रियों ने अकबर के हरम में प्रवेश लेने पर इस्लाम स्वीकार किया, फिर भी उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी, साथ ही उनके सगे-संबंधियों को जो हिन्दू ही थे; दरबार में उच्च-स्थान भी मिले थे। इनके द्वारा जनसाधारण की ध्वनि अकबर के दरबार तक पहुंचा करती थी।[38] दरबार के हिन्दू और मुस्लिम दरबारियों के बीच संपर्क बढ़ने से आपसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ और दोनों धर्मों में संभाव की प्रगति हुई। इससे अगली पीढ़ी में दोनों रक्तों का संगम था जिसने दोनों संप्रदायों के बीच सौहार्द को भी बढ़ावा दिया। परिणामस्वरूप राजपूत मुगलों के सर्वाधिक शक्तिशाली सहायक बने, राजपूत सैन्याधिकारियों ने मुगल सेना में रहकर अनेक युद्ध किये तथा जीते। इनमें गुजरात का १५७२ का अभियान भी था।[41] अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति ने शाही प्रशासन में सभी के लिये नौकरियों और रोजगार के अवसर खोल दिये थे। इसके कारण प्रशासन और भी दृढ़ होता चला गया।[42]
कामुकता
तत्कालीन समाज में वेश्यावृति को सम्राट का संरक्षण प्रदान था। उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे बहुत सी स्त्रियाँ थीं। इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक अपहृत करवा कर वहां रखा हुआ था। उस समय में सती प्रथा भी जोरों पर थी। तब कहा जाता है कि अकबर के कुछ लोग जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे सम्राट की आज्ञा बताते तथा उस स्त्री को हरम में डाल दिया जाता था। हालांकि इस प्रकरण को दरबारी इतिहासकारों ने कुछ इस ढंग से कहा है कि इस प्रकार बादशाह सलामत ने सती प्रथा का विरोध किया व उन अबला स्त्रियों को संरक्षण दिया। अपनी जीवनी में अकबर ने स्वयं लिखा है– यदि मुझे पहले ही यह बुधिमत्ता जागृत हो जाती तो मैं अपनी सल्तनत की किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता।[43] इस बात से यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि वह सुन्दरियों का अपहरण करवाता था। इसके अलावा अपहरण न करवाने वाली बात की निरर्थकता भी इस तथ्य से ज्ञात होती है कि न तो अकबर के समय में और न ही उसके उतराधिकारियो के समय में हरम बंद हुई थी।
आईने अकबरी के अनुसार अब्दुल कादिर बदायूंनी कहते हैं कि बेगमें, कुलीन, दरबारियो की पत्नियां अथवा अन्य स्त्रियां जब कभी बादशाह की सेवा में पेश होने की इच्छा करती हैं तो उन्हें पहले अपने इच्छा की सूचना देकर उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है; जिन्हें यदि योग्य समझा जाता है तो हरम में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।[44][45] अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था।[46]। गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के दौरान वीरांगना ने अनुभव किया कि उसे मारने की नहीं वरन बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो उसने वहीं आत्महत्या कर ली।[45] तब अकबर ने उसकी बहन और पुत्रबधू को बलपूर्वक अपने हरम में डाल दिया। अकबर ने यह प्रथा भी चलाई थी कि उसके पराजित शत्रु अपने परिवार एवं परिचारिका वर्ग में से चुनी हुई महिलायें उसके हरम में भेजे।[45]
पुर्तगालियों से संबंध
१५५६ में अकबर के गद्दी लेने के समय, पुर्तगालियों ने महाद्वीप के पश्चिमी तट पर बहुत से दुर्ग व निर्माणियाँ (फैक्ट्रियाँ) लगा ली थीं और बड़े स्तर पर उस क्षेत्र में नौवहन और सागरीय व्यापार नियंत्रित करने लगे थे। इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं।[47] मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे।[48] १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा संधि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।[49] १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे।[50]
तुर्कों से संबंध
१५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुंचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ।[51] १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा।[52][53] तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। पुर्तगालियों से इस बारे में योजना बनाने हेतु एक मुगल दूत गोआ में अक्तूबर १५८४ से स्थायी रूप से तैनात किया गया। १५८७ में एक पुर्तगाली टुकड़ी ने यमन पर आक्रमण भी किया किन्तु तुर्क नौसेना द्वारा हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद मुगल-पुर्तगाली गठबंधन को भी धक्का पहुंचा क्योंकि मुगल जागीरदारों द्वारा जंज़ीरा में पुर्तगालियों पर लगातार दबाव डाला जा रहा था।[54]
धर्म
अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं संप्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बदती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये।
हिन्दू धर्म पर प्रभाव
हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा,[55] हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था।[56] इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था।[57]
अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अंतराल बाद वापस लगा दिए गए।[58] अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था[59] इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद[60] किया गया।[61] अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले[62] उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था।[63]
ज्वालामुखी मंदिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।
इतिहासकार दशरथ शर्मा बताते हैं, कि हम अकबर को उसके दरबार के इतिहास और वर्णनों जैसे अकबरनामा, आदि के अनुसार महान कहते हैं।[64] यदि कोई अन्य उल्लेखनीय कार्यों की ओर देखे, जैसे दलपत विलास, तब स्पष्ट हो जाएगा कि अकबर अपने हिन्दू सामंतों से कितना अभद्र व्यवहार किया करता था।[65] अकबर के नवरत्न राजा मानसिंह द्वारा विश्वनाथ मंदिर के निर्माण को अकबर की अनुमति के बाद किए जाने के कारण हिन्दुओं ने उस मंदिर में जाने का बहिष्कार कर दिया। कारण साफ था, कि राजा मानसिंह के परिवार के अकबर से वैवाहिक संबंध थे।[66] अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए।[67]
अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ[68] और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था।[69]
हिंदु धर्म से लगाव
बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये संप्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया।
सुलह-ए-कुल
दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में[70] एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे।[71] इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया।[72][73] कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था।[74] अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"।[75] दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे।[76]
यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति,[77] जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे।
अकबर के नवरत्न
निरक्षर होते हुई भी अकबर को कलाकारों एवं बुद्धिजीवियो से विशेष प्रेम था। उसके इसी प्रेम के कारण अकबर के दरबार में नौ (९) अति गुणवान दरबारी थे जिन्हें अकबर के नवरत्न के नाम से भी जाना जाता है।[78][79]
अबुल फजल (१५५१ - १६०२) ने अकबर के काल को कलमबद्ध किया था। उसने अकबरनामा की भी रचना की थी। इसने ही आइन-ए-अकबरी भी रचा था।
फैजी (१५४७ - १५९५) अबुल फजल का भाई था। वह फारसी में कविता करता था। राजा अकबर ने उसे अपने बेटे के गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त किया था।
मिंया तानसेन अकबर के दरबार में गायक थे। वह कविता भी लिखा करते थे।
राजा बीरबल (१५२८ - १५८३) दरबार के विदूषक और अकबर के सलाहकार थे। ये परम बुद्धिमान कहे जाते हैं। इनके अकबर के संग किस्से आज भी कहे जाते हैं।
राजा टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे। इन्होंने विश्व की प्रथम भूमि लेखा जोखा एवं मापन प्रणाली तैयार की थी।
राजा मान सिंह आम्बेर (जयपुर) के कच्छवाहा राजपूत राजा थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। इनकी बुआ जोधाबाई अकबर की पटरानी थी।
अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना एक कवि थे और अकबर के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे।
फकीर अजिओं-दिन अकबर के सलाहकार थे।
मुल्लाह दो पिअज़ा अकबर के सलाहकार थे।
फिल्म एवं साहित्य में
अकबर का व्यक्तित्व बहुचर्चित रहा है। इसलिए भारतीय साहित्य एवं सिनेमा ने अकबर से प्रेरित कई पात्र रचे गए हैं।
२००८ में आशुतोष गोवरिकर निर्देशित फिल्म जोधा अकबर में अकबर एवं उनकी पत्नी की कहानी को दर्शाया गया है। अकबर एवं जोधा बाई का पात्र क्रमशः ऋतिक रोशन एवं ऐश्वर्या राय ने निभाया है।
१९६० में बनी फिल्म मुग़ल-ए-आज़म भारतीय सिनेमा की एक लोकप्रिय फिल्म है। इसमें अकबर का पात्र पृथ्वीराज कपूर ने निभाया था। इस फिल्म में अकबर के पुत्र सलीम की प्रेम कथा और उस कारण से पिता पुत्र में पैदा हुए द्वंद को दर्शाया गया है। सलीम की भूमिका दिलीप कुमार एवं अनारकली की भूमिका मधुबाला ने निभायी थी।
१९९० में जी टीवी ने अकबर-बीरबल नाम से एक धारावाहिक प्रसारित किया था जिसमे अकबर का पात्र हिंदी अभिनेता विक्रम गोखले ने निभाया था।
नब्बे के दशक में संजय खान कृत धारावाहिक अकबर दी ग्रेट दूरदर्शन पर प्रदर्शित किया गया था।
प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार सलमान रुशदी के उपन्यास दी एन्चैन्ट्रेस ऑफ़ फ्लोरेंस (अंग्रेज़ी:The Enchantress of Florence) में अकबर एक मुख्य पात्र है।[80]
मुग़ल सम्राटों का कालक्रम
इन्हें भी देखें
मुगल-ए-आज़म (1960 फ़िल्म)
जोधा अकबर (2008 फ़िल्म)
अकबर का मकबरा
अकबर के नवरत्न
अकबरनामा
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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अकबर के उत्थान की कहानी
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श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | मुगल सम्राट अकबर की मृत्यु किस वर्ष में हुई थी? | २७ अक्तूबर, १६०५ | 46 | hindi |
ee569fe45 | अमेरिका में जन्मीं अभिनेत्री तथा फैशन डिज़ाइनर जिन्हें आधिकारिक तौर पर लिज़ारे के रूप में जाना जाता हैं, उनके बारे में जानने के लिए लिज़ारे मैककॉय-मिसिक देखें।
लीजा रे (बंगाली: লিসা রায়), जन्म 4 अप्रैल 1972, एक कैनेडियन अभिनेत्री तथा पूर्व फैशन मॉडल हैं।[1] 23 जून 2009 को उनका डाइग्नोसिस करने पर उन्हें मल्टीपल मायेलोमा से ग्रस्त पाया गया और 2 जुलाई 2009 को उनके उपचार का पहला उपक्रम शुरू किया गया।[2]
प्रारंभिक जीवन
लीसा रे का जन्म टोरंटो, ओंटारियो, कनाडा में एक बंगाली भारतीय पिता और एक पोलिश माता के यहां हुआ और वह टोरंटो के एक उपनगर एटोबिकोक में बड़ी हुई.[3] उन्होंने चार उच्च-विद्यालयों में पांच वर्षों की पढ़ाई में अकादमिक तौर पर अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया। उन्होंने तीन अलग-अलग उच्च-विद्यालयों: एटोबिकोक कॉलेजिएट इंस्टिट्यूट, रिचव्यू कॉलेजिएट इंस्टिट्यूट और सिल्वरथॉर्न कॉलेजिएट इंस्टिट्यूट में पढ़ाई की।[4]
वह अपनी नानी से पोलिश भाषा में बात करती थीं तथा अपने चलचित्र-प्रेमी पिता के साथ फेडरिको फेलिनी और सत्यजित राय के फिल्म देखा करती थीं।[3] भारत में एक पारिवारिक अवकाश के दौरान एक भीड़ में एक एजेंट के द्वारा रे को देखा गया था। उस समय वह 16 साल की थीं तथा उसी समय उन्होंने मॉडलिंग भी शुरू की थी।[3]
जीवन-वृत्ति
लीसा रे पहली बार लोगों को तब ध्यानाकर्षित किया जब वह बॉम्बे डाइंग के एक विज्ञापन में दिखाई दीं जिसमें वह करन कपूर की विपरीत भूमिका में हाई-कट वाली काले रंग की तैराकी-पोशाक[2] पहनी हुई थीं।[5] इसके बाद, वह पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय जाने के उद्देश्य से कनाडा लौटीं, लेकिन एक सड़क हादसे ने उनकी योजनाओं पर पानी फेर दिया क्योंकि इस दुर्घटना में उनकी मां घायल हो गई थीं। जिसके परिणामस्वरूप वह भारत लौट आईं। यहां वह ग्लैड रैग्स के कवर पेज पर लाल रंग की बेवाच -शैली वाली एक तैराकी-पोशाक पहनी हुई दिखाई दीं। इस सनसनी के कारण उन्हें और ज्यादा पत्रिकाओं के कवर पेज पर देखा जाने लगा और वह स्पोक्सपर्सन के डील में भी नज़र आने लगी और अंत में उसने अपने स्वयं के शो-व्यवसाय के कार्यक्रम के मेज़बान के रूप में काम भी किया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक जनमत सर्वेक्षण ने उन्हें "सहस्राब्दी की नौवीं सर्वाधिक सुन्दर महिला" का नाम दिया। वह इस शीर्ष-दस में एकमात्र मॉडल थीं।[4]
1994 में उन्होंने नेताजी नामक एक तमिल फिल्म से अपनी पहली सिनेमाई शुरुआत की, जिसमें उनके विपरीत अभिनेता सरत कुमार थे। इसमें वह एक संक्षिप्त भूमिका में दिखाई दी। जिसे अनदेखा कर दिया गया। अनगिनत भूमिकाओं के बाद,[6] 2001 में कसूर फिल्म के साथ उन्होंने बॉलीवुड में अपना पहला कदम रखा जिसमें उनके विपरीत अभिनेता आफताब शिवदासानी थे।[5] बाद में उनकी ध्वनि को दिव्या दत्ता की ध्वनि से डब कर दिया गया क्योंकि वह हिंदी नहीं बोल पाती थीं।[7] उस फिल्म में उन्होंने जो काम किया उस पर दीपा मेहता की नज़र पड़ी जिन्होंने 2002 में बॉलीवुड/हॉलीवुड में रूमानी भारतीय-कैनेडियन हुड़दंगिन के किरदार के लिए रे को अभिनीत किया।[3] 2005 में, उन्होंने पुनः मेहता के साथ ऑस्कर-मनोनीत फिल्म वाटर में काम किया। इसमें उन्होंने अपनी पंक्तियों को हिंदी में ही कहा यद्यपि फिल्म को अंतिम रूप देने के समय उनकी ध्वनि को डब कर दिया गया।[7] उसके बाद से उन्होंने कनाडा, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका की फिल्मों में ही काम किया है।
हाल ही में निभाई गई भूमिकाओं में, ऑल हैट में खेत में काम करने वाली एक लड़की, ए स्टोंस थ्रो में विद्यालय की एक अध्यापिका, द वर्ल्ड अनसीन में 50 के दशक की रंगभेद वाली दक्षिण अफ्रीका की एक गृहिणी और शमीम सैरिफ द्वारा निर्देशित एवं हास्यपूर्ण ढंग से शीर्षित "आइ कांट थिंक स्ट्रेट" में एक ईसाई-अरब समलैंगिक स्त्री की भूमिका शामिल हैं।
2007 में, उन्होंने किल किल फास्टर फास्टर के चलचित्रण को पूरा किया जो जोएल रोज़ द्वारा इसी नाम से लिखे गए तथा समीक्षात्मक रूप से सराहनीय उपन्यास से प्रेरित एक समकालीन फिल्म नॉइर है।
1996 में वह नुसरत फ़तेह अली खान की प्रसिद्द गीत "आफ़रीं आफ़रीं" में दिखाई दीं।
लीसा रे को हेलो नामक पत्रिका के कैनेडियन संस्करण में देश के '50 सर्वाधिक सुंदर लोगों' में से एक के रूप में प्रर्दशित किया गया है।
व्यक्तिगत जीवन
लीसा रे अपने पुराने साथी तथा अति सफल फैशन फोटोग्राफर पाओलो ज़ैम्बाल्डी के साथ रह रही हैं। 23 जून 2009 को उनका डाइग्नोसिस करने पर उन्हें मल्टीपल मायेलोमा से ग्रस्त पाया गया जो कि प्लाज़्मा कोशिकाओं के रूप में ज्ञात सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का एक कैंसर है जो एंटीबॉडी (रोग-प्रतिकारक क्षमता) का उत्पादन करते हैं। यह एक दुर्लभ और लाइलाज बीमारी है।[8][9]
अवार्ड्स
2002 टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र समारोह में भविष्य का समर्थित सितारा,[10]
टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा सहस्राब्दी की शीर्ष-दस सर्वाधिक सुंदर भारतीय महिला
वैंकूवर क्रिटिक्स सर्कल द्वारा वाटर के लिए कैनेडियन फिल्म की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब जीता (संदर्भ: imdb.com, ग्लो पत्रिका, दिसम्बर 2007).
चलचित्र-सूची
इन्हें भी देखें
ऐंड्रिता रे
जेनिफ़र लॉरेंस
केट विंसलेट
केट अप्टन
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
at IMDb
जॉर्ज स्ट्रॉमबॉलोपॉलस के साथ द आवर पर
श्रेणी:1972 में जन्मे लोग
श्रेणी:कैनेडियन फिल्म अभिनेता
श्रेणी:हिन्दी अभिनेत्री
श्रेणी:भारतीय महिला मॉडल
श्रेणी:भारतीय-कैनेडियंस
श्रेणी:पोलिश मूल के कैनेडियंस
श्रेणी:जीवित लोग
श्रेणी:एटोबिकोक के लोग
श्रेणी:मॉडल
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