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चेहरे पर इस की आँखें बहुत अजीब थीं।
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जैसे उस का सारा चेहरा अपना हो और आँखें किसी दूसरे की जो चेहरे पर पपोटों के पीछे महसूर कर दी गईं।
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इस की छोटी नोकदार ठोढ़ी, पिचके लबों और चौड़े चौड़े किलों के ऊपर दो बड़ी बड़ी गहिरी स्याह आँखें अजीब सी लगती थीं।
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पूरा चेहरा एक चालाक ज़हीन, शातिर, ख़ुद-ग़रज़ और कमीने आदमी का था &
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ऐसा चेहरा जो पैंतीस बरस बाद अक्सर उन इन्सानों के हाँ मिलता है जो नौजवान होते ही ग़लत धंदों में पड़ जाएं।
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इसी लिए मुझे उस की आँखों से बड़ी दिलचस्पी पैदा हो गई।
4Narrative
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मालूम नहीं कहाँ से चुराई थीं
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ज़ालिम ने ये आँखें! मैं इस की दुकान पर अपनी क़मीस सिलवाने गया था।
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कोलूओन में इस की कपड़ों की बहुत बड़ी दुकान थी।
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बाहर तख़्ता लगा था: यहां जोड़ा चौबीस घंटे में तैयार किया जाता है।
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तख़्ते ने मुझे दुकान के अंदर जाने पर माइल किया।
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एक तो ये थी, दूसरी वजह उस का नाम था जो तख़्ते पर बड़े बड़े हुरूफ़ में लिखा था:
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परोप्राइटर बी. डी. इसरानी। वो बी. डी. इसरानी था और मैं जी. डी. इसरानी! नामों की मुमासिलत ने भी मुझे इस दुकान के अंदर जाने पर मजबूर कर दिया।
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वो उम्दा कपड़े पहने, मुँह में लंबा सिगार दाबे, हाथों में हीरे की दो अँगूठीयां पहने बढ़िया तंबाकू का ख़ुशगुवार धुआँ छोड़ते अपनी कुशादा दुकान में इधर उधर घूम रहा था।
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पहले तो उसने मेरा कोई ख़्याल नहीं किया।
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लेकिन आर्डर लेते वक़्त जब उसने मेरा नाम मालूम किया, तो ख़ुशी से चौंक पड़ा हम दोनों सिंधी थे और एक ही ज़ात वाले& और ये हांगकांग था, वतन से इस क़दर दूर! चंद मिनटों में हम एक दूसरे से घुल मिल गए जैसे बरसों के दोस्त हूँ।
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उसने मुझे रात के खाने पे अपने घर आने की दावत दी जो मैंने फ़ौरन क़बूल कर ली।
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फिर मैंने अपनी एक तकलीफ़ भी इस से बयान की।
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मैं कैंथ होटल में ठहरा था।
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बॉम्बे ऑब्ज़र्वर के नुमाइंदे की हैसियत से हांगकांग आया था।
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ये सस्ता किस्म का होटल था।
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एक रोज़ रात को दो बजे के क़रीब में लौटा, तो मालूम हुआ, होटल के आठ दस कमरों में एक साथ चोरी हो गई है।
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बदक़िस्मती से उनमें मेरा कमरा भी शामिल था।
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मेरे दोनों सूटकेस चोरी हो गए और टाइपराइटर भी। पुलिस तहक़ीक़ात कर रही थी, करेगी और करती रहेगी।
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मगर मुझे दो दिन बाद बंबई लौटना था।
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ऑब्ज़र्वर के ऐडीटर ने फ़ौरन वापिस आने के लिए तार दिया था।
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हांगकांग में मेरा काम ख़त्म हो चुका था।
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अब मुझे बंबई पहुंच कर वहां से फ़ौरन नैरुबी जाना था।
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मुझे कुछ रक़म चाहिए।
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मैंने बी. डी. इसरानी से कहा मगर में अब उस के इव्ज़ सिर्फ अपना चैक पेश कर सकता हूँ।
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वो भी हिन्दोस्तान के बैंक का। कितनी रक़म चाहिए?
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उसने पूछा।
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पाँच सौ रुपये। ज़रूर। बी.डी. इसरानी ने इतमीनान का सांस लिया।
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मेरे साथ चलो।
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मैं अभी बैंक से अपनी गारंटी पर आपका चैक कैश किराए देता हूँ।
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या ख़ुद रक़म दे दूँगा।
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यहां हम सिंधीयों का अपना एक बैंक है।
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दी सिंधी मरकनटाइल बैंक पाँच मंज़िला इमारत में वाक़्य था।
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बी. डी. इसरानी ने मुझे बताया कि बैंक की इमारत का मालिक वही है।
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ग्यारह हज़ार रुपये किराया हर महीने आता है।
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वो बैंक का डायरेक्टर भी है।
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पाँच सौ रुपय दिलवा कर उसने मुझसे कहा शाम के ठीक छे बजे मेरी दुकान पर आजाना। घर जाने से पहले थोड़ा सा घूम फिर लेंगे।
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मैं शाम के ठीक छे बजे उस की दुकान पर पहुंच गया।
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वो पहले ही से मेरी राह देख रहा था।
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दुकान के मुलाज़िमों को हिदायत देकर मेरे साथ बाहर निकला।
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दुकान के बाहर बादामी रंग की एक मर्सिडीज़ खड़ी थी।
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हम इस में बैठ गए। वो मोटर बहुत तेज़ चला रहा था।
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मगर गाड़ी के ब्रेक बहुत उम्दा थे।
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इस का चेहरा छोटा मगर जिस्म बहुत मज़बूत था।
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खासतौर पर उस के हाथ बड़े मज़बूत और बालों से भरे दिखाई देते।
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ख़ूबसूरत जोड़े के अंदर उस का जिस्म ज़रूर किसी बिन मांस या गोरीला का रहा होगा।
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वो राह चलते चलते सीटी बजाता।
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किसी ख़ूबसूरत चीनी लड़की के क़रीब जा कर अपनी तेज़ मोटर एक दम धीमी कर के इस से चीनी ज़बान में कुछ कहता और फिर हंसकर आगे चल देता।
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इस के लब-ओ-लहजे से मालूम होता था कि नाशाइस्ता फ़िक़रे किस रहा है।
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किसी चीनी लड़की से पिट्टे नहीं अब तक?
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मैंने पूछा।
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यहां किस में हिम्मत है जो इसरानी को पीटे।
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ये गली मेरी है।
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तुम्हारी कैसे है?
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इस गली के सब ग़ुंडों को मैं जानता हूँ।
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यहां मेरे दो जुआख़ाने चलते हैं, देखोगे?
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देख लेंगे।
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सामने क्राकरी की दुकान, पिछवाड़े जुआख़ाना! दोनों के दरमयान जाये हाजत का एक लंबा कमरा जिनके अंदर दो उधेड़ उम्र के चीनी छोटे छोटे तोलीए लिए खड़े थे।
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वो इसरानी को तो पहचानते ही थे, इसलिए मुझे जुआख़ाने जाते हुए किसी दिक़्क़त का सामना नहीं करना पड़ा।
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मगर दूसरे ग्राहकों के लिए कोड वर्ड था।
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इस जुआख़ाने में वही जा सकता था जिसे वो खु़फ़ीया लफ़्ज़ मालूम होता वर्ना बस हाजत दूर करे और वापिस हो जाये।
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मैं हर काम बड़े स्टाइल से करता हूँ।
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बी. डी. इसरानी ने मुझे अपना जुआख़ाना दिखाते हुए कहा।
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उम्दा सजे हुए दस कमरे, दुबैज़ बे-आवाज़ ग़ालीचे, ख़ामोश मौअदिब बैरे, नाज़ुक इंदाम चीनी लड़कीयां जाम पेश करती हुईं और अमीर गाहक।
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यहां हाई क्लास जुआ चलता है।
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सिर्फ गन्ने चुने गाहक यहां आते हैं।
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रोज़ रात को ढाई तीन हज़ार डालर मुझे यहां से मिलता है।
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बाहर क्राकरी की दुकान भी अच्छी चलती है।
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बहुत ख़ूबसूरत जगह है।
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मैंने इस से कहा। यहां तो ख़लीफ़ा हारून रशीद की तरह ताली बजाने को जी चाहता है।
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कौन ख़लीफ़ा?
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उसने हैरत से मेरी तरफ़ देखकर पूछा।
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इस की आँखें मुझे उस वक़्त बड़ी मासूम और भोली सी मालूम हुईं।
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कुछ नहीं! मैंने बात टालते हुए कहा।
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बंबई में मेरा एक दोस्त है।
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वो मुझे उस वक़्त याद आ गया।
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जब वो कोई अच्छी जगह देखे तो ताली पीटने लगता है।
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क्या बचपना है! उसने मुझसे कहा और लंबा सिगार अपने मुँह में लेकर उस का ख़ुशगवार धुआँ मेरे मुँह पर फेंकने लगा। जुआ खेलोगे?
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उसने पूछा। नहीं! मैंने जवाब दिया।
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वो मुझे लिए बाहर आ गया।
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दूसरा जुआख़ाना दिखा के वो मुझे टी हॉक स्टरीट में ले गया।
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वहां भी सब लोग उसे जानते थे।
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उनके चेहरों से लगता था जैसे इस से डरते भी हूँ।
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यहां मेरा एक चंडूख़ाना है।
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इसरानी ने मुझसे कहा। क्या अभी तक इधर चण्डू ख़ाने मौजूद हैं?
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मैंने इस से पूछा। हांगकांग में तो हैं।
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उधर सुना है नहीं रहे।
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इसरानी ने मुँह से अपना सिगार निकाल उधर ( चीन ) की तरफ़ इशारा किया।
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चण्डू ख़ाने की फ़िज़ा मुझे बड़ी भली मालूम हुई।
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अच्छा इंतिज़ाम था।
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हशतपहलू चीनी शम्अ-दान, हर पहलू पर रंगदार झालरें लटकती हुईं
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छोटे छोटे पियालों में अन्वा-ओ-इक़साम की मुनश्शियात और तिर्छे पपोटों वाली हसीनाएं जो नशा ला सकती थीं।
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ये चंडूख़ाना भी हशतपहलू था।
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हर कमरा एक मर्कज़ी हाल में निकलता जिसमें चंद चीनी साज़िंदे बैठे थे और एक चीनी रक़ासा ठुमक ठुमक कर नाच रही थी।
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मीकाओ से मँगाई है।
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