पौधों में परिसंचरण तंत्र का अर्थ है-किसी पौधे के द्वारा अवशोषित या निर्मित पदार्थों का पौधे के अन्य सभी हिस्सों तक पहुंचाना। पौधों में जल और खनिजों को उसके अन्य हिस्सों में तक पहुंचाने की जरूरत पड़ती है। पौधों को पत्तियों में बने भोजन को भी पौधे के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने की जरूरत पड़ती है। पौधे शाखायुक्त होते हैं, ताकि उन्हें प्रकाशसंश्लेषण हेतु कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन प्रसरण के माध्यम से हवा से सीधे मिल सकें। पौधों को, प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया के माध्यम से भोजन निर्मित करने के लिए पानी की और प्रोटीन के निर्माण के लिए खनिजों की जरूरत पड़ती है। इसलिए, पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से जल और खनिज को अवशोषित करते हैं और पौधे के तने, पत्तियों, फूलों आदि अन्य हिस्सों में इसे पहुंचाते हैं। जाइलम ऊतक के दो प्रकार के तत्वों अर्थात जाइलम वाहिकाओं और वाहिनिकाओं से होकर ही जल एवं खनिजों को पौधों की जड़ों से उसकी पत्तियों तक पहुंचाया जाता है। जाइलम वाहिकाएँ एक लंबी नली होती हैं, जो अंतिम सिरों पर जुड़ी हुई मृत कोशिकाओं से मिलकर बनी होती हैं। ये एक निर्जीव नली होती है, जो पौधे की जड़ों से होती हुई प्रत्येक तने और पत्ती तक जाती है। कोशिकाओं की अंतिम सिरे टूटे हुए होते हैं, ताकि एक खुली हुई नली बन सके। जाइलम वाहिकाओं मेंसाइटोप्लाज्म या नाभिक नहीं होता और वाहिकाओं की दीवारें सेल्यूलोज या लिग्निन से बनी होती हैं। जल और खनिजों के परिसंचरण के अतिरिक्त जाइलम वाहिकाएँ तने को मजबूती प्रदान कर उसे ऊपर की ओर बनाए रखती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लिग्निन बहुत सख्त और मजबूत होता है। लकड़ी लिग्निन युक्त जाइलम वाहिकाओं से ही बनती है। जाइलम वाहिकाओं की कोशिका भित्ति में गड्ढे होते हैं, जहां लिग्निन जमा नहीं हो पाता। या तो जाइलम वाहिकाएँ या फिर जाइलम वाहिकाएँ और वाहिनिकाएँ दोनों, पुष्पीय पौधों में जल का परिसंचरण करती हैं। बिना पुष्प वाले पौधों में वाहिनिकाएँ ही एक मात्र ऐसे ऊतक होते हैं, जो जल का परिसंचरण करते है। वाहिनिकाएँ मृत कोशिकाएं होती हैं,और इसकी भित्ति लिग्निन युक्त होती हैं और इसमें खुले हुए सिरे नहीं पाये जाते हैं। ये लंबी, पतली और तंतु के आकार वाली कोशिकाएं होती हैं। इनमें गड्ढ़े पाये जाते हैं जिनके जरिए ही एक वाहिनिका से दूसरे वाहिनिका में पानी का परिसंचरण होता है। सभी पौधों में वाहिनिकाएँ पायी जाती हैं। ==एक पौधे में जल और खनिजों परिसंचरण प्रक्रिया को समझने से पहलेनिम्नलिखित महत्वपूर्ण शब्दों काअर्थ जानना आवश्यक है== पौधे के जड़ की कोशिकाओं की बाहरी परत को बाह्यत्वचा कहते हैं। बाह्यत्वचाकी मोटाई एक कोशिका के बराबर होती है। किसी पौधे के संवहन ऊतकों के आसपास उपस्थित कोशिकाओं की परत अंतःत्वचाकहलाती है। यह कोर्टेक्स की सबसे भीतरी परत होती है। यह जड़ में बाह्यत्वचाऔर अंतःत्वचा के बीच में पाया जाने वाला हिस्सा होता है।जड़ीय/रूट जाइलमः यह जड़ों में उपस्थित जाइलम ऊतक है, जोकि जड़ के केंद्र में उपस्थित होता है।बाह्यत्वचा, रूट कोर्टेक्स और अंतःत्वचा जड़ों के रोम और रूट जाइलम के बीच स्थित होते हैं। इसलिए, जड़ों के रोम द्वारा मिट्टी से अवशोषित जल सबसे पहले बाह्यत्वचा, रुट कोर्टेक्स और अंतःत्वचा से होकर गुजरता है और फिर अंत में रूट जाइलम में पहुंचता है।इसके अलावा, मिट्टी में खनिज भी पाये जाते हैं। पौधे मिट्टी से इन खनिजों को अकार्बनिक, जैसे-नाइट्रेट और फॉस्फेट, के रूप में लेते हैं। मिट्टी से मिलने वाले खनिज जल में घुलकर जलीय घोल बनाते हैं। इसलिए जब जल जड़ों से पत्तियों तक ले जाया जाता है,तो खनिज भी पानी में घुल जाते हैं और वे भी जल के साथ पत्तियों तक पहुंच जाते हैं। जड़ों के रोम मिट्टी से खनिज घुले जल को अवशोषित कर लेते हैं। जड़ों के रोम मिट्टी के कणों के बीच मौजूद जल की परत के साथ सीधे संपर्क में होता है। खनिज युक्त जल जड़ों के रोम में जाता है और परासरण की प्रक्रिया के माध्यम से कोशिकाओं से होता हुआ बाह्यत्वचा, रुट कोर्टेक्स और अंतःत्वचा और रूट जाइलम में पहुंचता है।पौधे के जड़ की जाइलम वाहिकाएँ तने की जाइलम वाहिकाओं से जुड़ी होती है। इसलिए जड़ की जाइलम वाहिकाओं से जल तने की जाइलम वाहिकाओं में जाता है और फिर पौधे के डंठल से होते हुए पौधे की पत्तियों तक पहुंचता है। प्रकाशसंश्लेषण क्रिया में पौधे सिर्फ एक से दो प्रतिशत पानी का ही प्रयोग करते हैं, बाकी जल जलवाष्प के रूप में वायु में शामिल हो जाता है।जाइलम वाहिकाएँ जल अवशोषितकरती हैंपौधे के शीर्ष पर दबाव कम रहता है, जबकि पौधे के निचले हिस्से में दबाव अधिक होता है। पौधे के शीर्ष पर दबाव के कम होने की वजह वाष्पोत्सर्जन है। चूंकि पौधे के शीर्ष पर दबाव कम होता है, इसलिए जल जाइलम वाहिकाओं से पौधे की पत्तियों में संचरित होता है।पौधे की पत्तियों से होने वाला वाष्पीकरण ‘वाष्पोत्सर्जन’ कहलाता है। पौधे की पत्तियों पर छोटे–छोटे छिद्र होते हैं, जिन्हें ‘स्टोमेटा’ कहते हैं। इसके माध्यम से ही जल वाष्प बन कर वायु में चला जाता है। यह जाइलम वाहिकाओं के शीर्ष का दबाव कम कर देता है और पानी उसमें संचरित होता है।भोजन और अन्य पदार्थों का परिवहनप्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया में एक पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाला भोजन उसके अन्य हिस्सों जैसे तनों, जडों, शाखाओं आदि में पहुंचाया जाता है। ये भोजन एक प्रकार की नली के जरिए पौधों के अलग–अलग हिस्सों में पहुंचता है, ये नली ‘फ्लोएम’ कहलाती है। पौधे की पत्तियों से भोजन का पौधे के अन्य हिस्सों में भेजा जाना ‘स्थानान्तरण’ कहलाता है। पत्तियों द्वारा बनाया जाने वाला भोजन सरल शर्करा के रूप में होता है। फ्लोएम पौधे के सभी हिस्सों में मौजूद होता है।फ्लोएम में चालनी नलिकाएँ पायी जाती हैंफ्लोएम एक लंबी नली होती है। कई जीवित कोशिकाएं अंतिम सिरों पर एक दूसरे से जुड़कर इनका निर्माण करती हैं। फ्लोएम की जीवित कोशिकाएं ‘चालनी नलिकाएँ’ कहलाती हैं। फ्लोएम में कोशिकाओं की अंतिम भित्ति पर चालनी पट्टियाँ पायी जाती हैं, जिनमें छोटे–छोटे छिद्र बने होते हैं। इन्हीं छिद्रों से होकर फ्लोएम नलिका के सहारे भोजन संचरित होता है। चालनी नलिकाओं में साइटोप्लाज्म तो होता है, लेकिन कोई केंद्रक नहीं होता है। प्रत्येक चालनी नलिका कोशिका के साथ एक और कोशिका पायी जाती है, जिसमें केंद्रक और कई अन्य कोशिकांग उपस्थित होते हैं। चालनी नलिकाओं की कोशिका भित्ति में सेल्यूलोज होता है, लेकिन लिग्निन नहीं पाया जाता है। ==पौधों में भोजन के परिसंचरण कीप्रक्रिया==एटीपी से मिली ऊर्जा का प्रयोग कर पौधों की पत्तियों में बना भोजन फ्लोएम ऊतक की चालनी नलिकाओं में प्रवेश करता है। उसके बाद परासरण की प्रक्रिया द्वारा शर्करा युक्त जल चालनी नलिका में प्रवेश करता है। इससे फ्लोएम ऊतक में दबाव बढ़ता है। फ्लोएम ऊतक में बना उच्च दबाव पौधे के निम्न दबाव वाले अन्य सभी हिस्सों में भोजन पहुंचाने का काम करता है। इस प्रकार फ्लोएम ऊतक के माध्यम से पौधे के सभी हिस्सों में भोजन पहुंचाया जाता है।