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[ "दूसरी पारी के हीरो", "एक सर्वे में सामने आया है कि 50 और उससे अधिक आयु के लगभग 64 प्रतिशत वरिष्ठ वित्तीय स्वतंत्रता, मानसिक शांति और स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखने के लिए रिटायरमेंट के बाद भी काम करना जारी रखना चाहते हैं। तभी तो रिटायरमेंट के बाद नीट क्वालिफाई करके कोई एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है, तो कोई एवरेस्ट फतह करके या अपना स्टार्टअप शुरू करके सोशल मीडिया पर वाहवाही पा रहा है। जज्बे से भरपूर कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी बता रही हैं स्वाति गौड़" ]
<p>दिन गए जब रिटायरमेंट की जिंदगी को प्रोडक्टिव होने की बजाय आराम से जोड़ा जाता था। आंकड़े बताते हैं कि नौकरी के बाजार में लौटने वाले सेवानिवृत्त लोगों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। 2016 में रिटायरमेंट के बाद दोबारा से कोई काम करने वालों की संख्या जहां 1 था, वहीं 2018 में 5 तक पहुंच गया। मतलब, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, स्वतंत्रता की जरूरत और समाज को वापस देने की इच्छा के साथ, बुजुर्ग अपनी सेवानिवृत्ति को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। वो इसे दूसरी पारी के रूप में देख रहे हैं। अंतरा सीनियर लिविंग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 64 प्रतिशत वरिष्ठ वित्तीय स्वतंत्रता, मानसिक शांति और स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखने के लिए रिटायरमेंट के बाद भी काम करना जारी रखना चाहते हैं। </p><p><b>शौक को बना लिया स्टार्टअप</b></p><p>‘शी हू निट्स’ (She Who Knit) फेसबुक पेज पर, अगर आप जाएं तो आपको वहां फैशनेबल ऊनी कपड़ों की एक से एक वैरायटी देखने को मिलेगी। पर शायद आपको पता न हो कि इस स्टार्टअप के पीछे युवा नहीं, बल्कि रिटायर हो चुकीं 66 वर्षीय मधु मेहरा का हाथ है। मेहरा कहती हैं, ‘मुझे बुनाई का शौक था, और इस शौक ने अब मुझे सेवानिवृत्ति के बाद व्यस्त बना दिया है। अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। कई बार मेरे स्टॉल पर आने वाले कुछ युवा आश्चर्यचकित होते हैं कि इस उद्यम के पीछे एक वरिष्ठ व्यक्ति का दिमाग है।’ </p><p>पिछले पांच वर्षों में 2,000 से अधिक उत्पादों को बुनने वाली मधु मेहरा नए जमाने के वरिष्ठ नागरिक का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जो घर से दूर होने के बजाय नई शुरुआत करने के लिए सेवानिवृत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं। </p><p><b>कुछ नया सीखने का समय</b></p><p>बंगलुरू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर सी.टी. कुरियन, लगभग दो साल पहले रिटायर हुए थे। उनकी बेटियां विदेश में थीं, लेकिन वह वहां नहीं जाना चाहते हैं। इसलिए वे अपनी पत्नी के साथ केरल के एर्नाकुलम चले गए। अब उनका कुछ समय लाइबेरी में पढ़ने में बीतता है, तो सप्ताह में दो दिन वे एक क्राफ्ट वर्कशॉप में भाग लेकर आर्टिफिशियल फूल बनाना सीखते हैं। वे कहते हैं कि यह आकर्षक और एक नई मजेदार गतिविधि है, जिसमें मुझे मजा आ रहा है।</p><p><b>एंटरप्रेन्योर बनी बर्फी वाली दादी </b></p><p>धंधे में मंदी और पैसों की तंगी का रोना रोने वाले युवाओं को 94 वर्षीय हरभजन कौर से प्रेरणा जरूर लेनी चाहिए। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि चंडीगढ़ की रहने वाली इस दादीजी ने 90 साल की उम्र में बेसन की बर्फी बनाने का बिजनेस शुरू किया था, जो आज एक ब्रांड बन चुका है। वह कहती हैं, ‘नब्बे साल की होने के बाद एक दिन मुझे यह अहसास हुआ कि मैंने पूरी जिंदगी बस यूं ही निकाल दी और एक पैसा तक नहीं कमाया। और इसी सोच ने मेरे अंदर के हुनर को बिजनेस में तब्दील करने के लिए प्रेरित किया। ’ बर्फी के साथ-साथ वे अचार और चटनी वगैरह भी बेचने लगी हैं और ये सब होता है बिना किसी दुकान के, क्योंकि वे सिर्फ ऑर्डर मिलने के बाद ही डिलीवरी करती हैं।</p><p><b>68 की उम्र में बनीं पर्वतारोही</b></p><p>उम्र 68 साल। जज्बा एवरेस्ट फतह करने का। मूल रूप से कर्नाटक की रहने वाली माला होन्नाट्टी, जो अब गुरुग्राम में रहती हैं, अपने सपने साकार करने में लगी हैं। उनका कहना है कि स्पोर्ट्स के लिए कोई उम्र नहीं होती। अगर मन में कुछ ठान लिया जाए, तो जब तक जिंदगी है उसे पूरा करते रहना चाहिए। माला ने 28 साल तक बैंकिंग सेक्टर में काम करने के बाद अपने खेल के शौक पर ध्यान देना शुरू किया, जो सामाजिक मान्यताओं के कारण युवावस्था में कहीं पीछे छूट गया था। हालांकि नौकरी करते हुए भी उन्होंने अपने शौक को जगाए रखा और मैराथन में भाग लेती रहीं। पर रिटायरमेंट के बाद जब मौका मिला, तो एवरेस्ट फतह करने निकल पड़ीं और इसमें कामयाब भी र्हुईं। वह मैराथन धावक और पर्वतारोही ही नहीं हैं, बल्कि बतौर फिटनेस व कॉरपोरेट ट्रेनर भी एक्टिव हैं। आश्चर्य तो है ही कि 68 की उम्र में, वह अपने चौथे करियर की बात कर रही हैं।</p><p><b>सत्तर साल में बनेंगे डॉक्टर</b></p><p>भारत में ऐसा पहली बार हुआ, जब कोई 64 साल की उम्र में नीट क्वालिफाई करके एमबीबीएस में एडमिशन लिया है। सुनने में बेशक ये सच न लगे, पर ओडिशा के जय किशोर प्रधान, जो सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं, ने यह कर दिखाया है। प्रधान एमबीबीएस कोर्स पूरा होने तक 70 वर्ष के हो जाएंगे। इस पर वह कहते हैं,‘उम्र मेरे लिए सिर्फ एक संख्या है। एमबीबीएस करना मेरा कोई व्यावसायिक इरादा नहीं है। मैं तब तक लोगों की सेवा करना चाहता हूं जब तक मैं जीवित हूं।’ इसी तरह पढ़ाई से जी चुराने वालों को 99 वर्षीय कार्त्यायनी अम्मा को सलाम करना चाहिए। केरल में साक्षरता मिशन में 98 फीसदी अंक लेकर शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाली ये दादी अब कम्प्यूटर सीखना चाहती हैं।</p><p><b>वो</b></p>
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[ "मन के साधे सब सधे", "कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण फिर से बढ़ा है। लोगों को डर है कि कहीं पहली जैसी स्थिति फिर से न हो जाए। लॉकडाउन का डर और भविष्य की चिंता से मन अशांत है। ऐसे समय में मन को कैसे रखें शांत, बता रही हैं हमारी विशेषज्ञ " ]
<p>म जीवन में आनंद का अनुभव केवल तभी ही कर सकते हैं, जब हमने अपने मन को नियंत्रित करना सीख लिया हो। जीवन में शांति को कायम रखना, कोई कठिन काम नहीं है। यह तो मन को शांत रखने और आगे की जिंदगी जीने की एक सहज प्रक्रिया है। पेश है शांति और आनंद की इस सहज अवस्था को प्राप्त करने के कुछ शक्तिशाली सिद्धांत-</p><p><b>क्षमा करें और आगे बढ़ें</b></p><p>यह मन की शांति के लिए सबसे शक्तिशाली तरीका है। हम अकसर उन व्यक्तियों के लिए अपने दिल के अंदर नकारात्मक भावनाओं का पोषण करते हैं, जिन्होंने हमें अपमानित किया या नुकसान पहुंचाया। ऐसा करके हम अपना ही सुख-चैन खोते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम क्षमा की कला को अपने अंदर जागृत करें। ऐसा करके हम अपने दिमाग को शांत रखने में कामयाब हो सकते हैं। याद रखें, हर किसी को अपने कर्म का परिणाम मिलता ही है। इसलिए हमें न्याय की चिंता किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए। </p><p><b>अपने काम से काम रखें</b></p><p>हम में से अधिकांश लोग अन्य लोगों के मामलों में अकसर हस्तक्षेप करके अपने लिए समस्याएं पैदा करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि किसी तरह हमने खुद को आश्वस्त किया है कि हमारा तर्क सही तर्क है, और जो लोग हमारे सोचने के तरीके के अनुरूप नहीं हैं, उनकी आलोचना की जानी चाहिए और उन्हें सही दिशा में लाया जाना चाहिए। इस प्रकार हम दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं। लेकिन हमारी ओर से इस तरह का रवैया बहुत गलत है। हमें बिना पूछे दूसरों के काम में हस्तक्षेप करने की अपनी आदत को दूर करना चाहिए। </p><p>याद रखें कोई भी दो व्यक्ति एक ही तरह से सोच या कार्य नहीं कर सकते हैं। हर कोई उसी के अनुसार कार्य करता है, जो उसके भीतर से प्रेरित होता है। यदि हम अपने विचारों को दूसरों के साथ साझा करना चाहते हैं, तो हमें इसे विनम्रता के साथ करना चाहिए, न कि दबाव बनाकर। इस तरह से हमारे पास मन की शांति होगी।</p><p><b>आप जो संभाल सकते हैं</b></p><p>अकसर हम जितनी सफलता से काम कर पाते हैं, उससे कहीं अधिक जिम्मेदारियां ले लेते हैं। जबकि हमें अपनी सीमा पता होनी चाहिए। अतिरिक्त या अनावश्यक कार्यभार चिंता और तनाव का कारण बन सकता है। हम अपने अहंकार को संतुष्ट करके मन की शांति प्राप्त नहीं कर सकते। यह हमें अधिक बेचैन और तनावग्रस्त बना देगा। इसलिए अपने विचारों को व्यवस्थित करने और अपने कार्यों को प्राथमिकता देने का प्रयास करें। जो आप हाथ में लेते हैं, उसे समय पर पूरा करें। इससे मन की शांति सुनिश्चित होगी।</p><p><b>पछतावे में न जिएं</b></p><p>जो कुछ हुआ है, उसके लिए बुरा महसूस न करें। इस तरह दिन, सप्ताह, महीने और साल इन भावनाओं में बर्बाद हो सकते हैं कि ‘मैंने ऐसा क्यों किया या मैंने ऐसा क्यों नहीं किया?’ याद रखें, आपने अपनी जागरूकता के स्तर के अनुसार जो किया, वह किया। इसलिए अफसोस और अपराधबोध में न रहें। </p><p>ध्यान रखें कि यूनिवर्स हमेशा हमारा मार्गदर्शन और सुरक्षा करने के लिए तैयार है। इसलिए अपने समय और जीवन को महत्व दें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अतीत में विफल रहे होंगे। हम आगे अपनी गलतियों को सुधार सकते हैं और अगली बार सफल हो सकते हैं। बस बैठे रहने और चिंता करने से कुछ नहीं होगा। अपनी गलतियों से सीखें, लेकिन अतीत से अटके न रहें। अफसोस न करें। सोचें, जो भी हुआ, हमारे अपने भले के लिए हुआ। <b>(हो’ओपोनोपोनो क्षमाशीलता पर </b></p><p><b>आधारित एक प्राचीन जीवन दर्शन है)</b></p><p><b>ह</b></p>
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[ "हालिया शोध से पता चला है कि जब हमारी आंखें किसी रंग से जुड़ती है, तो हमारा दिमाग अलग-अलग रसायन छोड़ता है, जो हमें शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। या यूं कहें कि रंग हमारे मूड को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं" ]
<p><b>क्या आपने </b>कभी सोचा है कि रंग हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं? कितनी आसानी से वे हमारे मूड को बदल सकते हैं, हमारी मांसपेशियों को कमजोर बना सकते हैं या हमारी नींद को कम कर सकते हैं। शोध में भी यह बात सामने आ चुकी है कि रंग एक शक्तिशाली कम्युनिकेशन टूल हैं, जो एक्शन, मूड और हमारी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।</p>
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[ "शहरीकरण ने विकास की रफ्तार भले ही तेज की हो, लेकिन जिस तरह हरे-भरे जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए, उससे पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचा है। ऐसे में कुछ लोग हैं, जो हरियाली को बचाने की कवायद में जुटे हैं। दिल्ली के पीपल बाबा भी इसकी मिसाल बन चुके हैं", "पेड़ों और पर्यावरण के प्रहरी बने पीपल बाबा" ]
<p><b>फौजी परिवार</b> में जन्म हुआ पीपल बाबा यानी स्वामी प्रेम परिवर्तन का। वैसे उनका नाम आजाद है। पिता फौज में डॉक्टर थे, ब्रिगेडियर रिटायर हुए। यह 1976 के आसपास की बात है, जब पिता की पोस्टिंग पुणे में थी और उनकी नानी साथ रहा करती थीं। वह प्रकृति प्रेमी थीं, उन्हें खेती-किसानी से जुड़ी ढेरों कहानियां सुनाया करती थीं। इस तरह महज 5-6 साल की उम्र में ही हरियाली के संस्कार मिल गए। पीपल बाबा बताते हैं , ‘मेरे जीवन में कई लोगों का प्रभाव रहा, जिनमें सबसे प्रमुख हैं मेरी नानी और मेरी टीचर मिसेज विलियम्स। मेरी टीचर श्रीलंका की थीं, उनकी पैदाइश ही जंगलों में हुई थीं और वहां उन्होंने हजारों पेड़ लगाए थे। वह इस तरह पशु-पक्षियों की आवाजें निकालतीं कि पक्षी आकर उनके पास बैठ जाते थे। वह कहती थीं कि डॉक्टर-इंजीनियर तो बहुत बन जाएंगे, लेकिन प्रकृति के बारे में कौन सोचेगा? जबकि हमारी जिंदगी जंगलों से शुरू होकर पेड़ों पर ही खत्म होती है।’</p><p>नानी और टीचर का ही प्रभाव था कि आजाद ने एक दिन नानी से 25 पैसे लिए और नर्सरी जाकर नौ पौधे ले आए। पुणे के कंटोनमेंट जोन में आज भी ये पेड़ खड़े हैं। यहां से शुरुआत हो गई। पढ़ाई में अच्छे थे, टॉपर रहे। फौजी पिता को लगता था कि कुछ करें लेकिन उनके मन में प्रकृति ही बस गई थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया। नानी ने समझाया कि टीचिंग करो, इसमें अपने मकसद के लिए समय मिल सकेगा। पीपल बाबा कहते हैं, ‘मैं अपने जीवनयापन के लिए पढ़ाता हूं। कुछ बच्चे मुझसे कोचिंग भी लेते हैं, इससे मेरा खर्च निकल आता है। जीवन में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब मैग्सैसे विजेता माइक पांडे ने मुझसे संपर्क किया। 2010 में अनसंग हीरोज नाम से एक अवॉर्ड समारोह हुआ, जहां जॉन अब्राहम के हाथों मुझे पुरस्कार मिला। मैंने ‘गिव मी ट्रीज’ के नाम से एक ट्रस्ट भी बनाया है। मैं किसी से पैसा नहीं लेता, लेकिन कृषि के सामान ले लेता हूं। स्कूल, यूनिवर्सिटी, कॉलेज के अलावा सेना, बीएसफ, सीआरपीएफ ने मुझे बहुत मदद की। मेरे दोस्तों ने भी बहुत मदद की। साथ में मैं प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चला रहा हूं। ’</p><p>स्वामी प्रेम परिवर्तन ने सबसे ज्यादा पीपल और नीम के पेड़ लगाए हैं। कोरोना दौर में भी उनका यह काम रुका नहीं, बल्कि लगभग 8 हजार नए पेड़ भी उन्होंने लगाए। दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान आदि कई जगहों पर उन्होंने पीपल, नीम, जामुन, शीशम, कचनार, बबूल, दून, बेर, अर्जुन, अनार जैसे पेड़-पौधे लगाए। </p><p><b>इंदिरा राठौर</b></p>
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[ "हरे में है संतुलन शक्ति " ]
<p>ऑफिस में काम के वक्त यदि आपको ध्यान केंद्रित करने या सचेत रहने में परेशानी हो रही है, तो बाहर टहलें या फिर अपने कार्यस्थल पर हरे रंग को बढ़ावा दें। यह रंग भावनात्मक रूप से सुखदायक है, जो ताजगी का अहसास कराता है। यह उन कमरों के लिए अच्छा है, जहां आप आराम करना चाहते हैं। इनडोर प्लांट्स और हर्ब्स गार्डन घरों में हरियाली लाने का एक शानदार तरीका साबित हो सकता है। </p>
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[ "चिंता करेगा दूर नीला या आसमानी" ]
<p>अपने व्यस्त जीवन में सुकून का अनुभव करना चाहते हैं, तो अपने आसपास नीले या आसमानी रंग को बढ़ावा दें। यह उस कमरे में अच्छी तरह से काम करेगा, जहां आप कम तनाव महसूस करने के लिए लंबे समय तक काम करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार जिन लोगों को कठिन कार्यों का सामना करना पड़ा था, उन्हें कुछ नीला देखने के बाद कम चिंता महसूस हुई, क्योंकि यह रंग आराम महसूस कराता है। </p>
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[ "निर्णय लेने में होती है परेशानी" ]
<p>अध्ययन में पीला को सबसे प्रभावशाली रंगों में से एक माना गया है। इसे अवसाद को कम करने और हंसी को प्रोत्साहित करने में सहायक माना गया है। यह मानसिक गतिविधि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और आत्मविश्वास की भावना को बढ़ावा देता है। यह आपको रचनात्मक ही नहीं बनाता, निर्णय लेने की क्षमता को भी बढ़ावा देता है। पीले रंग की कुर्सियां, डेस्क या परदे कमरे में लगाएं।</p>
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[ "वजन घटाने का एक तरीका ये भी" ]
<p>ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी द्वारा कराए गए एक शोध में दावा किया गया है कि धीरे-धीरे खाना चबाकर खाने से वजन घटता है और तेजी से खाने से ओवरवेट होने का खतरा ज्यादा रहता है। शोधकर्ता डॉ. गिब्सन कहते हैं कि जो लोग जल्दबाजी में खाना खाते हैं उनकी कमर का साइज और बॉडी मास इंडेक्स बढ़ता है।</p>
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[ "शूटिंग का आखिरी दिन मुझे पसंद नहीं: इलियाना ", "फिल्म ‘बर्फी’ से हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री करने वाली इलियाना डिक्रूज इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘द बिग बुल’ को लेकर खासा उत्साहित हैं, जिसमें उनके साथ अभिषेक बच्चन भी हैं। बेशक हिन्दी में उन्होंने कुछ ज्यादा फिल्में न की हों, मगर बॉलीवुड में आने से पहले इलियाना साउथ की सुपर स्टार बन चुकी थीं। पेश है उनसे हुई एक दिलचस्प बातचीत " ]
<p>न दिनों इलियाना डिक्रूज अलग मूड़ में हैं। फिल्मों में काम करके उन्हें बहुत अच्छा लगता है। साल भर बाद उनकी नई फिल्म रिलीज हो रही है, जिसमें उनके साथ अभिषेक बच्चन भी हैं। अपनी इस फिल्म को लेकर वह खासा उत्साहित नजर आ रही हैं। ये पूछे जाने पर कि फिल्म की शूटिंग के बाद वह सबसे ज्यादा किस चीज को याद करती हैं, तो उन्होंने कहा,‘पूछिए मत! मेरे साथ एक सबसे बड़ी बुरी बात है, मैं जिस भी फिल्म को करती हूं उसके कास्ट और क्रू के साथ इतनी जुड़ जाती हूं कि जिस दिन हमारी फिल्म की शूटिंग का आखिरी दिन होता है, उस दिन उन सबको देखकर मेरे आंखों से गंगा-जमुना बहने लगती है। मेरा बस चले, तो कभी भी किसी टीम को छोड़ कर जाऊं ही नहीं। अब तो ऐसे कई डायरेक्टर हैं, जो मुझे जानते हैं, वो तो मजा लेने के लिए कहने लगे हैं कि मैडम आज तो लास्ट डे है, तो टिशू के कितने डिब्बे लगेंगे आपको?’</p><p>अपनी पसंदीदा फिल्मों के बारे में इलियाना कहती हैं,‘मुझे लोग अलग-अलग नामों से बुलाते हैं जैसे कि ‘रेड’ की मालिनी के नाम से, तो कोई ‘बर्फी’ की श्रुति के नाम से। इतने सालों में मैंने कई नाम कमाए, लेकिन एक नाम जो मेरे दिल के सबसे करीब है, वह है ‘श्रुति’। उस नाम और काम से जुड़ी सबसे ज्यादा यादें हैं मेरे पास। इसलिए वह हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा।’ </p><p><b>ट्रोलर्स पर नहीं देतीं ध्यान</b></p><p>बॉलीवुड के ऐसे कई सेलेब्स हैं, जो अकसर ऑनलाइन ट्रोल और बॉडी शेम का शिकार होते हैं। उनमें से एक इलियाना डिक्रूज भी हैं। असल में इलियाना सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहती हैं और कई बार वह ट्रोलर्स के निशाने पर आ जाती हैं। इस पर वह कहती हैं, ‘लोगों को सेलेब्स के काम से ज्यादा, उनकी निजी जिंदगी में क्या हो रहा है, उसे जानने में दिलचस्पी रहती है। अगर उन्हें कुछ पता चल जाता है, तो वह उन्हें ट्रोल करने लगते हैं। मैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल उनके लिए करती हूं, जो मुझे प्यार करते हैं और मेरे बारे में जानना चाहते हैं। न कि उनके लिए, जो सिर्फ अपनी भड़ास निकालने के लिए किसी की तस्वीर देखते हैं। हालांकि कभी भी मुझे बहुत भद्दे कमेंट का सामना नहीं करना पड़ा है, फिर भी देखती हूं कि कैसे लोग सेलेब को बुरी बातें लिखते हैं।’ </p><p><b>सफाई पसंद इलियाना</b></p><p>इलियाना कहती हैं,‘ यूं तो मैं काफी शांत किस्म की लड़की हूं, लेकिन एक चीज है, जिससे मैं अपना गुस्सा काबू में नहीं रख पाती, और वह है गंदगी और अव्यवस्था। मैं बहुत ही अच्छी तरह से अपना सामान रखती हूं। अगर एक साल बाद भी मैं अपनी कोई चीज ढूंढ़ती हूं, तो वह उसी जगह पर मिलती है। लेकिन जब मैं ऐसे किसी इनसान से मिलती हूं या फिर देखती हूं, जो ऐसा बिल्कुल भी न हो, तो मेरा मूड खराब हो जाता है। कई बार सेट पर भी ऐसा होता है कि मेरा सामान ठीक से नहीं रखा जाता या कास्टयूम के लिए लापरवाही होती है, तो मैं उसे ठीक करती हूं और फिर अपना काम करती हूं। इसलिए जो लोग मेरे साथ रहते हैं वह समझ गए हैं और इस बात का खास ध्यान रखते हैं।’</p><p><b>मैं दिल से काम करती हूं </b></p><p>अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’ के बारे में बात करते हुए इलियाना कहती हैं, ‘मैं इसमें एक पत्रकार का किरदार निभा रही हूं। इसके लिए मुझे कई लोगों ने कहा था कि मैं कुछ होमवर्क करूं। लेकिन मैंने काफी सोचा और फैसला किया कि इसके लिए मैं दिल से उन लोगों के बारे में सोचूंगी, जिन्हें मैं सालों से जानती हूं। फिर मैंने उन्हीं लोगों की छोटी-छोटी बातें अपने किरदार में अपनाई।’</p><p>वह आगे कहती हैं,‘मैं उन कलाकारों में से नहीं हूं, जो किसी किरदार को जानने के लिए लंबी छुट्टी लेते हैं या फिर लोगों से दूर हो जाते हैं। मेरा मानना है कि हमारे किरदार लोगों के बीच से ही आते हैं और उन्हें निभाने के लिए लोगों के पास रहना बहुत जरूरी है। इसलिए मैं उनके बीच रह कर उन पर काम करती हूं,ताकि वह वास्तविक लगे।’ कोविड के समय में काम करने को लेकर वह कहती हैं,‘मेरा तो आजकल सबसे ज्यादा मूड इसी बात से खराब रहता है कि लोग मास्क अच्छे से क्यों नहीं पहन रहे। मैं हर दिन ऐसे कई लोगों को देखती हूं, जोे मास्क नाम भर के लिए लगाते हैं। ड्रेस के साथ मैचिंग मास्क फैशन के लिए नहीं, बल्कि अपनी और दूसरों की सुरक्षा के लिए पहना जाता है।’</p><p><b>नीलम कोठारी बडोनी</b></p><p><b>इ</b></p>
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[ "अभिषेक का अच्छा काम भी काम ना आया" ]
<p>‘जेल तो अब हम जाएंगे नहीं, जितना चाहे पैसा ले लो। भगवान से भी ज्यादा पैसा है हमारे पास...’ अगर सब ठीक रहता, तो शायद पहली कतार में बैठने वाले सीटीमार दर्शक इस संवाद को सुनते ही रेजगारी उछालते और अपने हीरो की अलाएं-बलाएं काले मुंह वाले की नजर कर देते। फिल्म की भव्यता बताती है कि किस तामझाम के साथ बड़े परदे के लिए ही तैयार किया था, मगर कोरोना के आगे सब धरा रह गया। मिलिए बाल कला केन्द्र में एक साधारण-सी नौकरी करने वाले हेमंत शाह (अभिषेक) से, जिसके भाई वीरेन (सोहम) को जब कुछ गुंडे मारते हैं, तो वह यह कहते हुए हीरो की तरह उनके सामने आ जाता है कि 2 हफ्ते में वह उनके 3 लाख रुपये लौटा देगा। </p><p>पार्श्व में बजते संगीत से लगता है कि हीरो है, कुछ तो करेगा ही। पर कैसे? इस सवाल पर हेमंत अपने चपरासी से कहता है- ‘आदमी अगर ऊंचाई की तरफ देख रहा हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए...।’ एक पल को ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी ऐसे शख्स की बायोपिक है, जो आजादी के चालीस वर्षों बाद देश में आर्थिक आजादी की तरक्की की राह बुन रहा है। जल्द ही इसकी पुष्टि भी हो जाती है, जह हेमंत अपनी प्रेमिका प्रिया (निकिता) से कहता है कि मैं इस शहर को आसमान तक पहुंचाऊंगा। </p><p>पर शहर को आसामान तक पहुंचाने वाली सीढ़ी तो लाखों-करोड़ों के फर्जी बीआर पर टिकी है, जिसे वेंकटेश्वर (कन्नन अरुणाचलम) और हरि (सुमित वत्स) जैसे भ्रष्ट बैंककर्मियों ने हेमंत को सहारा दिया हुआ है। </p><p>हालांकि बीएसई चेयरमैन मन्नू मालपानी (सौरभ) को खबर है कि हेमंत कैसे राणा सावंत (महेश मांजरेकर) के सहयोग से लाखों की हेराफेरी कर स्टॉकब्रोकर बनने के सपने देख रहा है। लेकिन जल्द ही हेमंत दिल्ली में सत्ता के गलियारों में बैठे एक नेता के बेटे संजीव कोहली (समीर सोनी) के संपर्क में आ जाता है, जहां से वह लंबी छलांग तो लगा लेता है, साथ ही वह रिपोर्टर मीरा राव (इलियाना) की नजरों में आ जाता है, जो उसके 565 करोड़ रुपये के घोटाले को उजागर कर देती है। यह कहानी हर्षद मेहता कांड पर आधारित है और उसी तर्ज पर इसे प्रचारित भी किया गया है, लेकिन पात्रों के नाम और घटनाक्रम बदल दिए गए हैं। दूसरा ये भी कि इस फिल्म की तुलना हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी’ से किया जाना लाजमी है, क्योंकि अभिनय और निर्देशन के लिहाज से वह एक शानदार सिरीज का दर्जा रखती है। लेकिन आप तुलना न भी करें तो ‘द बिग बुल’ चकाचौंध, तेजी, भव्यता और महत्वकांक्षा का ‘बड़ा बुलबुला’ सा लगती है, जिसमें तत्व और ताजगी के एहसास लगभग नदारद से हैं। </p><p>निर्देशक ने हर मोड़ पर हेमंत को न्यायसंगत ढंग से पेश करने की कोशिश की है। ये जताते हुए कि उसने जो किया उससे देश की तरक्की हुई। उसकी वजह से पूरे देश ने पैसा कमाया। बस उसका कसूर सिर्फ ये है कि उसने बहुत जल्दी और बहुत सारा पैसा कमाया। मीरा की पत्रकारिता का चित्रण सतही, शायद इसलिए रखा गया है कि यह दिखाया जा सके कि वह हेमंत से कहीं न कहीं प्रभावित है। जो किरदार अच्छे से उठ सकते थे जैसे हेमंत के वकील अशोक मीरचंदानी (राम) और संजीव कोहली को कम जगह दी गई है। अंकित तिवारी की आवाज में इश्क नमाजा... गीत अच्छा है। संदीप शिरोडकर का बैकग्राउंड संगीत दृश्यों में थ्रिल पैदा करता है। <b>विशाल </b></p>
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[ "सिनेमा और कोरोना इस रात की सुबह नहीं...", "कोरोना एक बार फिर बॉलीवुड को तगड़ा झटका देने जा रहा है। बीते कुछ दिनों से संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए थियेटर में रिलीज होने वाली कुछ बड़ी फिल्मों की रिलीज डेट आगे बढ़ा दी गई है। इस फैसले से बॉलीवुड पर क्या होगा असर, इसकी पड़ताल करता एक आलेख" ]
<p>रोना एक बार फिर बॉलीवुड को तगड़ा झटका देता दिख रहा है, जिसकी वजह से कई फिल्मों की रिलीज डेट आगे खिसक गई है। बीते साल करीब 8 हजार करोड़ रुपये के झटके के बाद बॉलीवुड एक बार फिर से अनिश्चितता के दौर की तरफ बढ़ता दिख रहा है। </p><p><b>ये फिल्में फिर से खिसकी आगे </b></p><p>अक्षय कुमार की ‘सूर्यवंशी’ पूरे एक साल से लटकी पड़ी है। अब कहीं जा कर रिलीज के लिए 30 अप्रैल की तारीख निश्चित की गई, लेकिन अब फिर से इसे टाल दिया गया है। इससे फिल्म इंडस्ट्री में निराशा का माहौल है, क्योंकि रोहित शेट्टी के ही शब्दों में जानें तो उनकी फिल्मों से इंडस्ट्री में पैसा आता है। वहीं कोरोना के प्रकोप के कारण सैफ अली खान की ‘बंटी और बबली 2’, राणा दग्गुबती की ‘हाथी मेरे साथी’, अमिताभ बच्चन की ‘चेहरे’, ‘नो मीन्स नो’ और राम गोपाल वर्मा की ‘डी कंपनी’ जैसी फिल्में भी आगे खिसक गई हैं। देखना है कि अगले हफ्ते आने वाली एआर रहमान द्वारा निर्मित बहुभाषीय फिल्म ‘99’ रिलीज होगी या नहीं? </p><p><b>जोखिम लेगी थलइवी?</b></p><p>एक तरफ जहां पूरी फिल्म इंडस्ट्री कोरोना की दूसरी लहर से होने वाले नुकसान को लेकर आशंकित है, वहीं कंगना का बेफिक्राना अंदाज दूसरों को परेशानी में डाल रहा है। उनकी फिल्म ‘थलइवी’ हिन्दी, तमिल व तेलुगु भाषा में 23 अप्रैल को रिलीज होनी है। कंगना का यह कहना कि वह बॉलीवुड के बाकी धुरंधरों की तरह ‘थलइवी’ को आगे नहीं खिसकाएंगी। पर उनकी चिंता 4 अप्रैल के एक ट्वीट से थोड़ी तो झलकती है, जिसमें वह कहती हैं कि एक महीने तक सिनेमाघर बंद करने से बेहतर होता कि एक हफ्ते के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगाकर संक्रमण की चेन को तोड़ा जाता। आंशिक लॉकडाउन से वायरस तो नहीं रुकेगा, लोगों के बिजनेस का नुकसान होगा।’ सूत्र बताते हैं कि अगर मेकर्स इस फिल्म को फिलहाल तमिल-तेलुगु में रिलीज करने की सोचते हैं, तो हिन्दी बेल्ट में पैदा हुआ जोश बाद में ठंडा पड़ सकता है। </p><p><b>ये भी हैं सकते में</b></p><p>अगर अप्रैल में भी कोरोना नहीं संभला, तो मई में इन फिल्मों पर तलवार लटकेगी। शायद सलमान खान यह भांप गए हैं कि ऐसे माहौल में फिल्म रिलीज करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। उन्होंने कह दिया है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’ इस साल की ईद (13 मई) के बजाए अगले साल ईद पर रिलीज हो। तो क्या सलमान के अलावा कुछ अन्य सितारे भी ऐसा ही सोच रहे हैं? क्योंकि जॉन अब्राहम की ‘सत्यमेव जयते 2’ 13 मई को और अक्षय कुमार की ‘बेलबॉटम’ 28 मई को रिलीज होनी है, जबकि रनवीर सिंह की ‘83’ 4 जून, अमिताभ बच्चन की ‘झुंड’ 18 जून को और रणबीर कपूर की ‘शमशेरा’ 25 जून को रिलीज होनी है। </p><p><b>फिल्मकारों की चिंता</b></p><p>ये तय है कि जब तक मुंबई टेरिटरी में सामान्य स्थिति बहाल नहीं होती, बड़ी फिल्मों को रिलीज नहीं किया जा सकता, क्योंकि फिल्म वितरण व प्रदर्शन के लिहाज से मुंबई सर्किट सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके तहत दादर-नगर हवेली, दमन-दीव, गोवा, मुंबई समेत महाराष्ट्र व कर्नाटक के कुछ हिस्से आते हैं। हिन्दी बेल्ट के कुल कलेक्शन का करीब 30-35 फीसदी हिस्सा इसी सर्किट से आता है। बीते 5-6 वर्षों की बात करें तो पीके, संजू, सुल्तान, तानाजी, दंगल, टाइगर जिंदा है, जैसी फिल्मों का करीब 50 फीसदी कलेक्शन, जो करीब 1300 करोड़ रुपये है, इसी टेरिटरी से आया। </p><p>जाहिर है ये समय ओटीटी के लिए किसी जश्न से कम नहीं है। ताजा रिलीज हुई ‘दि बिग बुल’ और ‘हैलो चार्ली’ इसका सबूत हैं। फिल्मकारों को ओटीटी इसलिए भी रास आ रहा है, क्योंकि इस साल सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्में 2-3 करोड़ रुपये भी नहीं बटोर पा रही हैं। <b>विशाल ठाकुर </b></p><p><b>को</b></p>
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[ "हृतिक पूरे मूड में" ]
<p><b>जो </b>काम तमिल फिल्म ‘विक्रम वेदा’ में आर. माधवन नहीं कर पाए, वो अब उसके हिंदी रीमेक में हृतिक रोशन करने जा रहे हैं। दरअसल, इस सुपरहिट फिल्म में दो मुख्य किरदार हैं- एक नायक, एक खलनायक। यह कहना मुश्किल है कि असल जिंदगी में कौन सही है, कौन गलत। मूल तमिल फिल्म में पुलिस वाले का किरदार निभाया था आर. माधवन ने। लेकिन वो एंटी हीरो वाला किरदार निभाना चाहते थे, जो विजय सेतुपति ने निभाया था। निर्देशक ने उन्हें यह किरदार निभाने को नहीं दिया, यह कहते हुए कि तुम एंटी हीरो नहीं लगते। दरअसल हृतिक के साथ भी यह दिक्कत थी। पर वो अड़ गए कि अगर गैंगस्टर वाली भूमिका उन्हें नहीं मिली, तो वो यह फिल्म करेंगे ही नहीं। </p><p>अब इस फिल्म के लिए हृतिक रोशन हड्डी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, हट्टा-कट्टा बन रहे हैं, ताकि वो पूरी शिद्दत से यह एंटी रोल निभा सके।</p>
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[ "नुसरत बरूचा क्यों खुश हैं?" ]
<p><b>बॉलीवुड </b>सितारों पर कोविड की बारिश हो रही है। जिसे देखो, वही पॉजिटिव निकल रहा है। अक्षय कुमार के बाद नुसरत को भी डर था कि उन्हें भी कोरोना हो गया है। दरअसल वो भी अक्षय के साथ ही फिल्म राम सेतु की शूटिंग कर रही थीं। लेकिन डर के अलावा उन्हें चिंता भी थी। नुसरत ने अपने आसपास देखा था कि कोरोना पॉजिटिव होने के बाद रिकवर करने में काफी वक्त लगता है। यही नहीं, नुसरत को यह भी लगता है कि उनकी इम्यूनिटी भी स्ट्रॉन्ग नहीं है। इसलिए जब उनका रिपोर्ट निगेटिव आया, तो वो बेहद खुश हो गईं। इतना कि घर में छोटी-मोटी पार्टी ही कर डाली। पर नुसरत को कौन बताए कि कोरोना का खतरा अभी गया नहीं है। खुश होने के बजाय अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान दें।</p>
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[ "नीना की किस्मत खुल गई" ]
<p>जो काम नीना गुप्ता अपनी जवानी के दिनों में नहीं कर पाईं, अब कर रही हैं। यानी बड़ी फिल्में और नामी हीरो के साथ काम। साठ की उम्र पार करने के बाद नीना को एक से एक फिल्मों में काम करने का मौका मिल रहा है। ‘बधाई हो’ में अवार्ड विनिंग रोल करने के बाद वे सबकी निगाहों में चढ़ गई हैं। खबर है कि अमिताभ बच्चन भी उनके काम से इतने प्रभावित हो गए कि अपनी आने वाली फिल्म ‘गुडबॉय’ में निर्माताओं से कहा कि वो इस फिल्म में नीना के साथ काम करना चाहते हैं। इस फिल्म को साइन करने के बाद नीना ने कहा कि उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी तमन्ना पूरी हो गई। उन्हें बिग बी की पत्नी की भूमिका निभाने का मौका मिल रहा है। </p>
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[ "पसीने को यूं दें मात" ]
<p>ब गर्मी है तो पसीना आएगा ही। कुछ लोगों के लिए ये सामान्य बात हो सकती है, मगर हर किसी के लिए नहीं। यह मौसम उन लोगों के लिए खास परेशानी का सबब बन जाता है, जिन्हें जरूरत से ज्यादा पसीना आता है। ऐसे में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मसलन, मनमाफिक कपड़े पहनने से गुरेज, पसीने की दुर्गंध, त्वचा में जलन, खुजली आदि। इस पर एमडी डॉ. नेहा यादव कहती हैं,‘कुछ हद तक पसीना आना शरीर के लिए ठीक ही है, क्योंकि यह शरीर के तापमान को कम करके उसे हानि पहुंचने से बचाता है। लेकिन पसीना हद से ज्यादा आने लगे, तो यह एक चिकित्सकीय परिस्थिति होती है, जिसे हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। अगर आपको भी यह समस्या है तो कुछ मामूली उपाय आपको राहत पहुंचा सकते हैं।’ </p><p><b>ज्यादा पसीना आने की यह है वजह</b></p><p>डॉ. नेहा कहती हैं, ‘हाइपरहाइड्रोसिस आनुवंशिक समस्या हो सकती है। इसके अलावा इसके कुछ चिकित्सकीय कारण भी होते हैं। अगर आपको कम पसीना आता रहा हो और अचानक से ज्यादा पसीना आने लगे, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए। ऐसे में आपको हृदय संबंधी समस्या, हाइपरटेंशन या मधुमेह की शिकायत हो सकती है। अचानक ज्यादा पसीना आने पर बिना देर किए चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक है। कई बार यह समस्या तब होती है, जब आप हॉर्मोनल बदलाव, थाइरॉएड, कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हृदय रोग जैसी समस्याओं की जद में हों। महिलाएं कुछ अन्य परिस्थितियों जैसे गर्भावस्था, मेनोपॉज आदि में भी ज्यादा पसीने की समस्या का सामना कर सकती हैं। स्थिति जो भी हो, अगर पसीना ज्यादा आता है, तो चिकित्सकीय परामर्श आपकी मदद कर सकता है। इसके लिए आप किसी भी फिजिशियन या फिर डर्मेटोलॉजिस्ट की सलाह ले सकती हैं।’</p><p><b>खानपान भी डालता है असर</b></p><p>हमारी भोजन की आदत भी हमारे जीवन पर प्रभाव डालती है। यानी अस्वास्थ्यकर भोजन खासतौर पर तला-भुना खाना अधिक पसीने का कारण बन सकता है। नॉनवेज अधिक खाने वाले लोगों को भी ज्यादा पसीना आने की समस्या होती है। गर्म तासीर का भोजन, ज्यादा मीठा या मसालेदार खाना भी पसीना ज्यादा आने का कारण बन सकता है। ऐसे में शरीर में पानी के स्तर को बनाए रखना जरूरी है। इस तरह के मौसम में पर्याप्त पानी पीना आवश्यक है, इसी से डिहाइड्रेशन की समस्या से बच सकती हैं। </p><p><b>बालों से आता है अधिक पसीना</b></p><p>शरीर में पसीना वहां भी अधिक आता है, जहां बाल ज्यादा होते हैं। ऐसा इसलिए कि त्वचा में बालों वाले हिस्से में नमी अधिक होती है। जाहिर है, जहां नमी अधिक होगी, वहां से पसीना भी अधिक आएगा।</p><p><b>पसीना न करे शर्मिंदा</b></p><p>अधिक पसीने के कारण कई दफा आपको असहज महसूस होता होगा। खासतौर पर जब पसीना कपड़ों के ऊपर दिखने लगे या उससे दुर्गंध आने लगे तो समस्या बढ़ जाती है। ऐसे में आप कुछ उपाय करके कुछ समय के लिए समस्या से निजात पा सकती हैं- </p><p><b>वैक्सिंग नियमित करें: </b>शेव या वैक्सिंग से पसीने को रोका नहीं जा सकता लेकिन लेकिन पसीना अधिक आने पर बाल देर तक भीगे रहते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा रहता है। वैक्सिंग से नमी कम होगी तो पसीना जल्दी सूखेगा और कपड़ों पर दाग नहीं दिखेगा। </p><p><b>स्वेट पैड का करें इस्तेमाल: </b>अगर आपको बांहों के नीचे यानी अंडरआर्म्स में पसीना अधिक आता है, तो आप स्वेट पैड का इस्तेमाल कर सकती हैं। बाजार में ये आसानी से मिल जाते हैं। इनको कपड़े में चिपका लीजिए। ये पसीने को सोख लेंगे। स्वेट पैड न हो, तो सैनेटरी पैड को बीच से काटकर दोनों बाजुओं पर चिपका सकती हैं।</p><p><b>बर्फ की सिंकाई आएगी काम: </b>कुछ बरस पहले तक मेकअप टिके रहने के लिए गर्मियों में मेकअप लगाने से पूर्व चेहरे की बर्फ से सिंकाई कर ली जाती थी। यही नुस्खा अपनाकर आप कुछ देर के लिए पसीने से बच सकती हैं। यानी आपको जिस स्थान पर पसीना अधिक आता है, वहां बर्फ से सिंकाई कर लें। इससेे कुछ देर के लिए रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं और पसीना कम आता है।</p><p><b>टेलकम पाउडर भी है काम का : </b>आप पसीने वाले स्थान पर टेलकम पाउडर से केकिंग कर सकती हैं। पाउडर न हो, तो आप बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकती हैं। ऐसा करने से कुछ देर तक के लिए आपको पसीने की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। मिंट युक्त पाउडर इस काम में आपकी अधिक मदद कर सकता है। </p><p>इसी तरह आप पसीने वाले स्थान पर नीबू का रस भी लगा सकती हैं। ऐसा करने से न सिर्फ पसीने से बच सकेंगी, बल्कि दुर्गंध से भी बचाव हो सकेगा। इसके अतिरिक्त आप रोलऑन वाले डियोडरेंट का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, जिससे पसीने के स्थान पर कोटिंग हो जाती है और दुर्गंध नहीं आती।</p>
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[ "गुस्से का गुबार न बने बवाल", "ऑफिस में अगर आपका सामना किसी गुस्सैल सहकर्मी से हो, तो कैसे करें उसका सामना, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी" ]
<p><b>हमारी </b>जिंदगी में हमारा कार्यक्षेत्र बहुत अहम होता है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि औसतन एक पेशेवर अपनी जिंदगी के नब्बे हजार घंटे या यूं कहें कि अपनी जिंदगी का चौथाई भाग अपने कार्यक्षेत्र में बिता देता है। लिहाजा, वहां का माहौल, लोग आपकी कार्यक्षमता, यहां तक कि निजी जिंदगी तक को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर जाते हैं। ऐसे में अगर आपका सामना एक गुस्सैल सहकर्मी से हो जाता है, तो यकीनन वहां काम करना मुश्किल हो सकता है। ऐसा आपके साथ न हो, इसके लिए आपको तैयारी करनी होगी, ताकि न सिर्फ आपकी पेशेवर, बल्कि व्यक्तिगत जिंदगी सहज बनी रह सके।</p><p><b>दिल पर न लें बातें</b></p><p>कार्यक्षेत्र में आपके सहकर्मी की नाक पर गुस्सा रहता है? क्या उसका गुस्सा आपकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है? जवाब ‘हां’ में है तो उसमें पूरी तरह से गलती आपके सहकर्मी की हो, जरूरी नहीं। मनोचिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं, ‘कार्यक्षेत्र में आपको यह ध्यान रखना होता है कि आपको अपने सहकर्मी की किसी भी बात को व्यक्तिगत नहीं लेना है। कार्यक्षेत्र में आपके रिश्ते व्यक्तिगत न होकर पेशेवर होते हैं। लिहाजा, उसकी बातों को दिल पर लेकर खुद को प्रभावित होने देना आपकी पेशेवर क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा देगा। बेहतर होगा कि आप व्यक्तिगत और पेशेवर रिश्ते में फर्क करना सीख लें।’</p><p><b>शांत होने पर करें चर्चा</b></p><p>डॉ. कुमार कहते हैं,‘ गुस्से में अकसर लोग ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो सुनने में गलत लगता है। पर आमतौर पर देखा जाता है कि ऐसी मनोदशा में या गुस्सैल प्रवृत्ति के शख्स की बातें पूरी तरह से गलत नहीं होती, बल्कि वह सही दिशा में और सही तथ्यों पर बात कर रहा होता है। हालांकि उसका लहजा गलत होता है। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप उसकी बात को बिंदुवार याद रखें और उसका गुस्सा शांत होने के बाद उन तमाम बिंदुओं पर चर्चा करें। ऐसा करके आप बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकती हैं।</p><p><b>गुस्से का जवाब नहीं है गुस्सा</b></p><p>कई बार जब सामने वाला गुस्से में बात कर रहा होता है, तो हम भी उसकी तर्ज पर अपना आपा खो देते हैं, और गुस्से का जवाब गुस्से में देते हैं। पर यहां हमें इस बात का खयाल रखना होगा कि गुस्से का जवाब गुस्सा नहीं होता, बल्कि आपका यह व्यवहार या प्रतिक्रिया पूरी परिस्थिति को और भी खराब कर देगी। ऐसे स्थिति में जब एक शख्स गुस्से में हो, तो बेहतर होगा कि आप शांत रहकर माहौल को गंभीर होने से बचाएं। </p>
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[ "घर की रसोई को दोबारा बनवा रही हैं या नए घर में रसोई का वुडवर्क करा रही हैं, कुछ बातों पर गौर जरूर करें। बता रही हैं पारुल ", "आपकी शानआपकी रसोई" ]
<p><b>कैसे करें रखरखाव</b></p><p>● मॉड्यूलर किचन बेहद नाजुक होते हैं, इसलिए किचन में काम करते हुए आपको भी बहुत सलीके से काम करना होगा। इसमें हर तरफ कैबिनेट्स लगे होते हैं, जो कुछ पेंच पर टिके होते हैं। इनकी फिटिंग्स कायम रहे, इसलिए इन्हें आराम से खोलें और बंद करें। इनकी सफाई के लिए भी हल्का साबुन या सूखा कपड़ा इस्तेमाल करें। समय-समय पर रैक्स और कैबिनेट्स की नियमित सफाई जरूरी है। </p><p>● चिमनी की सफाई भी हर 10-15 दिन में करें, वरना उसमें जमा गंदगी आपकी रसोई को भी गंदा करेगी। </p><p>● किचन में वुडवर्क करा रही हैं, तो सारी पॉलिशिंग एक साथ हो, अन्यथा रंग अलग-अलग भी हो सकते हैं। </p><p>र में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है रसोई। इसे अगर घर की धुरी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। अब अगर रसोई इतनी ही महत्वपूर्ण है, तो जाहिर है उसकी बनावट और डिजाइनिंग भी परफेक्ट होनी चाहिए! आइए जानें कैसे? </p><p><b>अगर चाहती हैं मरम्मत करवाना</b></p><p>पहले के समय की रसोई आपको जरूर याद होंगी या फिर शायद आज भी आपके घर में वैसी ही रसोई हो। लेकिन अब रसोई मॉड्यूलर या सेमी-मॉड्यूलर हो चुकी हैं। तो अगर आप भी रसोई को मॉड्यूलर बनाने की सोच रही हैं तो आपको सबसे पहले उसमें तीन तरह के काम करवाने होंगे-पहली तरह के काम में जरूरी तोड़-फोड़ करने के बाद स्लैब का माप बदलने जैसे काम आते हैं। फिर प्लंबिंग, जिसमें पानी के पाइप वगैरह बदलने, आरओ के लिए लाइन लगवाना आदि काम आते हैं। ये दोनों काम होने के बाद तीसरा काम होता है बिजली का। पुरानी रसोई में बिजली का एक ही प्वॉइंट होता था, लेकिन अब कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल बढ़ने के कारण एक से ज्यादा बिजली के प्वॉइंट की जरूरत होती है। </p><p><b>त्रिकोण देगा पूरी सुविधा</b></p><p>गैस, सिंक और फ्रिज, आपकी रसोई का आधे से ज्यादा काम इन्हीं तीन चीजों से होता है। इसलिए रसोई की डिजाइनिंग में सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है त्रिकोण पर। यानी इन तीनों को इस तरह रखा जाए कि त्रिकोण बने। इससे आपको काम करने में बहुत आसानी होगी। ये त्रिकोण बनाते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि पैरों की तरफ पूरी खाली जगह मिले, ताकि चलने-फिरने में आसानी हो। इस त्रिकोण के बीच में किसी तरह की अलमारी या कैबिनेट न बनाएं। </p><p><b>कैबिनेट के डिजाइन का ध्यान</b></p><p>आजकल मॉड्यूलर किचन के लिए कैबिनेट्स बने-बनाए भी मिलने लगे हैं। लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले देखें कि आपके पास रसोई का कितना और कैसा सामान है, जैसे बड़े बर्तन कितने हैं, उनके लिए एक कैबिनेट की जरूरत होगी या एक से ज्यादा। दाल, मसालों के डिब्बे रखने के लिए कितने कैबिनेट्स, क्रॉकरी, चम्मच और दूसरे सामान रखने के लिए किस तरह के कैबिनेट्स ठीक रहेंगे। पूरी प्लानिंग करके ही कैबिनेट्स का चुनाव करें। </p><p><b>थोड़ी खाली जगह भी जरूरी</b></p><p>रसोई में हर तरफ बंद अलमारियां ही होंगी, तो रसोई छोटी लगेगी, इसलिए यहां कुछ ओपन कैबिनेट्स भी रखें। इनका इस्तेमाल ऐसा सामान रखने के लिए करें, जिसकी जरूरत आपको दिन में कई बार पड़ती हो। इसका इस्तेमाल क्रॉकरी सजाने के लिए भी कर सकती हैं। </p><p>(आर्किटेक्ट आशीम भट्टाचार्य से बातचीत </p><p>पर आधारित)</p>
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[ "स्वादिष्ट हरी मूंग " ]
<p><b>सामग्री</b></p><p>● हरी मूंग- 1/2 कप, ● साबुत जीरा-1 चम्मच</p><p>● करी पत्ता-10</p><p>● कद्दूकस किया अदरक- 1 छोटा चम्मच, ● बारीक कटी मिर्च-1 चम्मच, ● हल्दी पाउडर- 1/2 चम्मच, ● नीबू का रस- 1 चम्मच, ● बारीक कटी धनिया पत्ती-2 चम्मच, ● तेल- 1 चम्मच, ● नमक-स्वादानुसार</p>
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[ "अपने घुटने संभालकर रखना!" ]
<p>ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार सिर्फ बायोलॉजिकल ही नहीं, कई तरह के सामाजिक कारणों से भी महिलाओं को घुटने से जुड़ी परेशानी होने का खतरा ज्यादा होता है। महिलाओं को घुटने से जुड़ी परेशानी होने का खतरा पुरुषों की तुलना में तीन से छह गुना ज्यादा होता है। यह बीमारी फुटबॉल, टेनिस जैसी खेल से जुड़ी महिलाओं को ज्यादा होती है।</p>
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1,616,722
[ "सामग्री" ]
<p>● मूंग दाल-1/2 कप, ● बेसन-2 चम्मच, ● दही-4 चम्मच, ● हल्दी पाउडर-1/4 चम्मच, ● हींग-1/4 चम्मच, ● सरसों-1/2 चम्मच, </p><p>● जीरा- 1/2 चम्मच, ● करी पत्ता-10, ● बारीक कटा अदरक-1 चम्मच, ● कटी मिर्च- 2, ● तेल- 1 चम्मच, </p><p>● बारीक कटी धनिया पत्ती-2 चम्मच, ● नमक-स्वादानुसार</p>
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1,616,725
[ "विधि" ]
<p>साबुत मूंग को रात भर के लिए पानी में भिगोएं। अब मूंग, 1 1/4 कप पानी और नमक कुकर में डालें। तीन सीटी आने तक पकाएं। गैस ऑफ करें और कुकर का प्रेशर अपने आप निकलने दें। एक कड़ाही में तेल गर्म करें। उसमें जीरा डालें और दस सेकंड बाद हरी मिर्च, करी पत्ता, अदरक और हल्दी पाउडर डालें। अच्छी तरह से मिलाएं और तीस सेकंड तक पकने दें। अब इसमें उबली हुई मूंग डालकर मिलाएं। पैन को ढक कर मूंग को धीमी आंच पर पांच से दस मिनट तक पकने दें। इसे नीबू के रस और धनिया पत्ती से गार्निश कर सर्व करें।</p>
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[ "विधि" ]
<p>मूंग दाल को रात भर के लिए पानी में भिगोएं और सुबह दो कप पानी के साथ कुकर में डालकर तीन सीटी आने तक पकाएं। एक बड़े बर्तन में दही, बेसन, हल्दी, हींग, नमक और एक कप पानी डालकर अच्छी तरह से फेंट लें। ध्यान रहे, मिश्रण में कोई गांठ न हो। एक पैन में तेल गर्म करें और उसमें सरसों, जीरा और करी पत्ता डालें। जब जीरा भुन जाए, तो पैन में मिर्च और अदरक डालें। कुछ सेकंड बाद दही वाले घोल और मूंग दाल को पैन में डालकर मिलाएं। जब मिश्रण में उबाल आने लगे, तो आंच धीमी करें और लगभग पांच मिनट तक सभी सामग्री को पकाएं। गैस ऑफ करें। धनिया पत्ती से गार्निश करके इसे रोटी के साथ गर्मा-गर्म सर्व करें।</p>
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1,616,730
[ "मन्नू मैडम बता रही हैं" ]
<p>● मूंग की दाल और हरी मूंग के सेवन से ऐसे हार्मोन्स सक्रिय होते हैं, जो पेट भरने का एहसास कराते हैं। यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर वजन कम करने में भी फायदेमंद है। </p><p>● मूंग पोटैशियम और आयरन से भरपूर होती है। मूंग दाल से रक्तसंचार संतुलित रहता है और मांसपेशियां भी स्वस्थ रहती हैं। </p><p>● हरी मूंग का सेवन आपने कई बार किया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हरी मूंग एक लो-ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड है। ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने के लिए विशेषज्ञ लो ग्लाइसेमिक फूड्स खाने की सलाह देते हैं। मूंग खाने से शरीर में इंसुलिन और ब्लड शुगर का स्तर संतुलित रहता है और शरीर की चर्बी कम होती है।</p><p>● मूंग का सेवन करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। मूंग दाल में काफी मात्रा में आयरन पाया जाता है। आयरन शरीर में ब्लड सेल्स को बनाने में फायदेमंद माना जाता है। नियमित रूप से हरी मूंग का सेवन करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती है। </p><p>● साबुत मूंग को अंकुरित करके नियमित रूप से खाना लाभदायक होता है। इससे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है।</p>
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[ "अरुणाचल प्रदेशजादुई एहसास की रोमांचक दुनिया" ]
<p>नई-नई जगहों पर जाने को लेकर काफी उत्साहित रहता हूं। अभी तक मैंने जितनी भी यात्राएं की हैं, उनमें से ज्यादातर अकेले ही की हैं। अरुणाचल प्रदेश के तवांग की यात्रा भी उनमें से एक थी। शानदार पहाड़ों से लेकर सुंदर मठों तक कितना कुछ है वहां! विविध वनस्पतियों से घिरी खूबसूरत वादियों से लेकर बौद्ध भिक्षुओं के अतिथि-सत्कार तक, वाकई इस प्रदेश की यात्रा हर उम्र के लोगों को एक जादुई एहसास कराती है।</p><p>असल में 2018 में, मैं अपने एक दोस्त के यहां गुवाहाटी गया हुआ था। वहीं मैंने कुछ दोस्तों से तवांग के बारे में सुना। तो वहीं से निकल पड़ा तवांग की यात्रा पर। वहां जाने के बाद पता चला कि तवांग ही नहीं, आलोंग, ईटानगर, जीरो, बोमडिला, पासीघाट जैसी जगहें भी घूमने के लिए खास हैं। </p><p><b>दिल को भा गई तवांग की खूबसूरती</b></p><p>अरुणाचल प्रदेश के सबसे पश्चिम में स्थित तवांग को जब पास से देखने का मौका मिला, तब पता चला कि पर्यटकों के बीच यह शहर इतना प्रसिद्ध क्यों है? सुबह-सुबह का समय था, जब मैं अपने गंतव्य पर पहुंचा था। सच में प्राकृतिक सुंदरता के मामले में तवांग बहुत समृद्ध शहर है। लगभग साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर मौजूद तवांग के छोटे-छोटे गांव, शांत झीलों के साथ हरे-भरे पहाड़ों को देखने का अपना एक अलग ही रोमांच है। चूंकि यह जगह बौद्ध मठ के लिए काफी प्रसिद्ध है, इसलिए मैं सबसे पहले तवांग मठ पहुंचा, जहां बौद्ध भिक्षुओं के सत्कार ने मेरा मन मोह लिया। कुछ समय मठ में बिताने और वहां के इतिहास से रूबरू होकर, जब वापसी के लिए निकला तो अचानक मेरी नजर आसमान पर पड़ी। सूरज की आखिरी किरणों का गुजरना और अनगिनत तारों से आसमान का भरना, मुझे अपने बचपन में ले गया, क्योंकि आजकल शहर की चकाचौंध में तारे नजर ही कहां आते हैं। मेरे लिए यह नजारा भी कम रोमांचक नहीं था। वैसे तो यहां आए लोग याक की सवारी, कैंपिंग, बाइक राइडिंग का मजा ले रहे थे, मगर मेरी रुचि यहां के पुलों में थी, जो बांस से बने हुए थे। फूलों की घाटी के बाद ये पुल यहां के मुख्य आकर्षण हैं, जो पर्यटकों को लुभाते हैं।</p><p><b>सेला पास के दिलकश नजारें</b></p><p>तवांग में मठ का इतिहास जानने के बाद, मैंने सेला पास जाने का निर्णय लिया। गाइड से पता चला कि यहां कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। हालांकि यहां मौजूद छोटी-छोटी झीलों और ऊंचे-ऊंचे वाटरफॉल को देखकर पता चल गया था कि ये शूटिंग स्थल क्यों बना होगा? हालांकि साल के ज्यादातर समय यह जगह बर्फ से ढकी होती है, ऐसा लगता है मानो पहाड़ों पर सफेद चादर सी बिछ गई हो। यहां करीब 101 झीलें हैं, जो बौद्ध समुदाय के लिए खास महत्व रखती हैं। </p><p><b>अरुणाचल में और क्या करें</b></p><p>दरअसल अरुणाचल प्रदेश के मुख्य आकर्षणों में प्राचीन मंदिर, मठ, झरने, ऐतिहासिक स्मारक, संग्रहालय और अभयारण्य शामिल हैं। फिर भी अगर आप एडवेंचर की तलाश में हैं, तो यहां ट्रेकिंग, राफ्टिंग, कैंपिंग और रॉक क्लाइम्बिंग जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। यहां आए पर्यटक एंगलिंग (कांटा लगा कर मछली पकड़ना) का भी लुत्फ उठाते हैं। अगर आप ट्रेकिंग में दिलचस्पी रखते हैं तो बॉम्डिला-तवांग एरिया में आपको बहुत सारे विकल्प मिल जाएंगे। मई से अक्तूबर के बीच का समय ट्रेकिंग के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा अगर वन्य जीवों को देखना चाहते हैं तो राज्य की राजधानी ईटानगर में आप वन्य जीव अभ्यारण्य के साथ-साथ गोम्पा मंदिर, ईटा फोर्ट, नामधापा नेशनल पार्क आदि की सैर कर सकते हैं। </p><p>अगर आप आदिवासियों के रहन-सहन को पास से देखना चाहते हैं तो अरुणाचल के जीरो वैली आएं। यहां के ‘अपातानी’ नाम के आदिवासी अपने फेशियल टैटू और नाक में पहनी जानी वाली नोज पिन के लिए मशहूर हैं। इनके साथ कुछ वक्त बिता सकते हैं, लेकिन यहां बिना गाइड के न जाएं।</p><p><b>मैं</b></p>
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[ "अगर आप प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर किसी ऐसी हरी-भरी वादियों की खोज में हैं, जहां सुकून के साथ-साथ रोमांचक यात्रा का भी अनुभव मिले, तो यकीन मानिए अरुणाचल प्रदेश में आपकी दिली इच्छा जरूर पूरी होगी। शानदार पहाड़ों से लेकर सुंदर मठों तक, इस प्रदेश की यात्रा हर उम्र के लोगों को एक जादुई एहसास कराती है। यहां के कुछ ऐसे ही पर्यटन स्थलों की जानकारी दे रहे हैं सारांश भारद्वाज" ]
<p><b>कला और शिल्प </b></p><p>आप अरुणाचल के तवांग आएं और यहां से कुछ खरीद कर न ले जाएं, ऐसा भला हो सकता है! यहां के बाजारों में खूबसूरत परंपरागत शिल्प को देखकर शायद ही कोई खुद को रोक पाएगा। लकड़ी से बने सामान, बुने हुए कार्पेट और बांस से बने बर्तनों की खूबसूरती देखने लायक होती हैं। थनका पेंटिंग और हाथ से बने पेपर ने मुझे खास आकर्षित किया। लकड़ी से बनी शिल्पकृति में लकड़ी का मुखौटा भी आकर्षित करते हैं। वैसे मैंने ग्रुक लकड़ी से तैयार दो कप लिए, सिर्फ सजाने के लिए, क्योंकि उस पर उकेरी गई आकृति ने मुझे बहुत लुभाया।</p><p><b>कब जाएं</b></p><p>अरुणाचल प्रदेश की यात्रा कभी भी की जा सकती है, क्योंकि यह प्रदेश हर मौसम में पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। फिर भी, यदि आप सबसे अच्छा समय देख रहे हैं, तो आपको अक्तूबर से अप्रैल के बीच यात्रा करनी चाहिए, जो सर्दियों और वसंत के महीने हैं। इन महीनों में धुंध की घाटियों, बर्फीले पहाड़ों की सुंदरता और भी ज्यादा निखरी-सी नजर आती है। साथ ही, आप कई त्योहारों का लुत्फ भी ले पाएंगे, जो अक्तूबर से अप्रैल तक होते हैं।</p>
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[ "11 अप्रैल से 17 अप्रैल 2021" ]
<p><b>पं. राघवेन्द्र शर्मा</b></p><p>जाने-माने एस्ट्रोलॉजर</p><p><b>तुला </b><b>(2३ सितंबर-2३ अक्तूूबर) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे। 13 अप्रैल से आशा-निराशा के भाव रहेंगे। धैर्यशीलता में कमी रहेगी, परंतु आय की स्थिति में सुधार होगा। मीठे खानपान में रुचि बढ़ सकती है। 14 अप्रैल से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।</p><p><b>मेष </b><b>(21 मार्च-20 अप्रैल) </b></p><p>दांपत्य सुख में वृद्धि होगी। 13 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। शैक्षिक कार्यों में सुधार और खर्चों में कमी आएगी। संतान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। नौकरी में परिवर्तन के अवसर मिल सकते हैं। 14 अप्रैल से कारोबार में व्यवधान आ सकते हैं।</p><p><b>वृश्चिक </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में धैर्यशीलता में कमी तो रहेगी, परंतु आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। 13 अप्रैल से पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। खर्चों में वृद्धि होगी। 14 अप्रैल से मन परेशान हो सकता है। आत्मविश्वास में कमी आएगी। बातचीत में संतुलित रहें।</p><p><b>वृष </b><b>(21 अप्रैल-20 मई) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में मन अशांत रहेगा। 13 अप्रैल से खर्चों में वृद्धि होगी। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। वाहन सुख में कमी आएगी। 14 अप्रैल से बातचीत में संतुलित रहें। धैर्यशीलता में कमी आएगी। सेहत का ध्यान रखें।</p><p><b>धनु </b><b>(2२ नवंबर-2१ दिसंबर) </b></p><p>मन प्रसन्न रहेगा। कला या संगीत में रुचि बढ़ सकती है। किसी मित्र के सहयोग से आय में वृद्धि हो सकती है। 13 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे। 14 अप्रैल से संतान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। </p><p><b>मिथुन </b><b>(21 मई-2१ जून) </b></p><p>13 अप्रैल से संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। नौकरी में कार्यभार में वृद्धि हो सकती है। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। आय की स्थिति में सुधार होगा।</p><p><b>मकर </b></p><p>आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे, परंतु आत्म संयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। 13 अप्रैल से रहन-सहन कष्टमय हो सकता है। नौकरी में अधिकारियों से वाद-विवाद से बचें। 14 अप्रैल से माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। </p><p><b>कर्क </b><b>(2२ जून-2३ जुलाई)</b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। 13 अप्रैल से परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती है। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। 14 अप्रैल से शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। संतान तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। चिकित्सा खर्च बढ़ सकते हैं।</p><p><b>कुंभ </b><b>(2० जनवरी-१८ फरवरी) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में पठन-पाठन में रुचि रहेगी। 13 अप्रैल के बाद नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगा। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी आएगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। चिकित्सा खर्च में वृद्धि हो सकती है। </p><p><b> सिंह </b><b>(2४ जुलाई-2२ अगस्त) </b></p><p>13 अप्रैल से आत्मविश्वास में वृद्धि होगी, परंतु कारोबार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 14 अप्रैल के बाद माता से धन की प्राप्ति हो सकती है। किसी संपत्ति से भी आय के साधन बन सकते हैं। बातचीत में संतुलित रहें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।</p><p><b>कन्या </b><b>(2३ अगस्त-2२ सितंबर) </b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। 13 अप्रैल से खर्चों में वृद्धि हो सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 14 अप्रैल से धैर्यशीलता में कमी रहेगी। वाहन सुख में कमी आएगी। पारिवारिक समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं। रहन-सहन कष्टमय रहेगा।</p><p><b>मीन </b><b>(१९ फरवरी-20 मार्च)</b></p><p>सप्ताह के प्रारंभ में धैर्यशीलता में कमी रहेगी। 13 अप्रैल से बातचीत में संतुलित रहें। परिवार में व्यर्थ के वाद विवाद से बचें। 14 अप्रैल से नौकरी में अधिकारियों से संबंधों में उतार-चढ़ाव आ सकता है। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे।</p>
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[ "वैसे तो..... " ]
<p>वैसे तो आज इंटरनेट पर मेकअप व्लॉगिंग में इंफ्लूएंसर्स की कोई कमी नहीं हैं, लेकिन इनमें चंद नाम ही मशहूर हैं। इन्हीं चंद लोगों में एक प्रसिद्ध नाम है मुंबई की अंकिता चतुर्वेदी का, जिन्हें लोग ‘कोरलिस्टा’ के नाम से ज्यादा जानते हैं। गूगल, इंस्टाग्राम, यूट्यूब या किसी भी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकिता चतुर्वेदी सर्च करने पर कोरलिस्टा का नाम सामने आ जाता है। मुंबई की अंकिता अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मेकअप और स्किन, हेयर केयर के टिप्स देती नजर आती हैं। देखा जाए तो ये काम अन्य कई इंन्फ्लूएंसर्स भी कर रहे हैं, लेकिन अंकिता ने इसमें खास पहचान बना ली। अंकिता इस क्षेत्र में बीते 10 वर्षों से हैं। सन् 2011 में उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल ‘कोरलिस्टा’ के नाम से बनाया था, जिसके बाद से अब तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंकिता के इस चैनल के 7.34 लाख सब्सक्राइबर्स हैं। सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म्स पर भी उनके फॉलोअर्स की लंबी फेहरिस्त है।</p><p><b>पहले बनना चाहती थीं इंजीनियर</b></p><p>आईआईटी जैसे बड़े संस्थान से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करना अपने आप में गर्व की बात होती है, और यह डिग्री छात्रों के करियर में एक मजबूत स्तंभ का काम करती है। लेकिन इससे इतर अंकिता ने दूसरी राह ही पकड़ ली। आईआईटी बॉम्बे से बीटेक करने वाली अंकिता को अपने पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष में ही एहसास हो गया था कि उन्हें जीवन में आगे क्या करना है। उन्हें ब्रश चलाना था, लेकिन शुरुआत में कैनवास तय नहीं हो पा रहा था। हमेशा अच्छे अंकों से पास होने वाली अंकिता एक पेपर में सिर्फ इस कारण पीछे रह गई थीं कि उन्होंने पेपर की तैयारी की जगह पेंटिंग करना पसंद किया था। इस वक्त तक वह इंजीनियर नहीं, पेंटर बनना चाहती थीं। एक समय बाद अंदर का कलाकार इंजीनियर पर भारी पड़ने लगा। यही नहीं, उन्होंने कथक की छह वर्षीय डिग्री भी प्राप्त की। लेकिन ब्रश से प्यार उन्हें ज्यादा था, इसलिए मेकअप कला में हाथों ने आजमाइश शुरू कर दी।</p><p><b>ऐसे मिली प्रेरणा</b></p><p>कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। अंकिता के मामले में आविष्कार था उनके करियर का और जरूरत थी उनकी निजी देखरेख। दरअसल, अंकिता मुंहासों से परेशान रहा करती थीं। अब ऐसे में किस-किस तरह की समस्याएं होती हैं और इसे ठीक करने के लिए कितने जतन करने होते हैं, यह हर वह व्यक्ति समझ सकता है, जिसे तैलीय त्वचा और मुंहासों जैसी समस्या हो। बस इससे जूझते और राहत के नुस्खे आजमाते अंकिता बन गईं स्किन एक्सपर्ट, और अपने अनुभवों को लोगों से साझा करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्हें बालों की देख-रेख का भी खास शौक रहा, तो अंकिता ब्यूटी एक्सपर्ट के तौर पर उभरने लगीं। </p><p>अंकिता अपने वीडियो में छोटी और जरूरी बातों का जिक्र करती हैं, जिन्हें लोग खास तौर पर पसंद करते हैं। मेकअप के आसान तरीके, स्किन और हेयर केयर के किफायती और कारगर नुस्खे इनके कंटेंट का हिस्सा होते हैं। सरल टिप्स होने के कारण ही उनकी बातें लोगों के दिल तक पहुंच बना लेती हैं। </p><p><b>स्वाति शर्मा</b></p>
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[ "नवरात्रि में पहली बार जब बनाई थी पूरी...." ]
<p>ैत्र नवरात्र शुरू होने वाला है। जब भी नवरात्रि आती है तो मुझे पूरी का एक किस्सा याद आता है, जो मुझे आज भी गुदगुदाता है। सच में वह किस्सा मेरे लिए सबसे मजेदार है। चैत्र नवरात्र का वह समय था, जब मैंने कन्याओं को खिलाने का निर्णय लिया। पारंपरिक रूप से कन्याओं को पूरी और हलवा खिलाने का रिवाज है, इसलिए मैंने भी पूरी बनाने की कोशिश की, वह भी पहली बार। लेकिन दुर्भाग्य से पूरी ऐसी बनी कि बच्चों के लिए उसे चबाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्होंने उन्हें अपनी जेब में भर लिया और उन्होंने मेरे पति से कहा कि वे उन्हें खा चुके हैं। दरअसल, तब मेरी नई-नई शादी हुई थी और मुझे नहीं पता था कि चाय और मैगी को छोड़कर कुछ भी कैसे पकाया जाता है। यहां तक कि मुझे चावल बनाना भी नहीं आता था! </p><p>शादी के बाद यह मेरा पहला नवरात्रि उत्सव था। मैंने नौ लड़कियों के लिए सामान्य नवरात्रि का प्रसाद (हलवा, पूरी और चना)पकाया। चूंकि यह प्रसाद था, इसलिए सर्व करने से पहले मैं इसका स्वाद नहीं ले सकी। तो मैं यह नहीं जान पाई कि सारी चीजें बनी कैसी थीं। मैंने नौ लड़कियों के पैर धोए और टीका लगाकर प्रसाद परोसा। मैंने उनसे पूछा कि उन्हें ये प्रसाद कैसा लगा? नन्ही लड़कियां काफी विनम्र थीं और उन्होंने मेरे चेहरे पर यह नहीं कहा कि उन्हें यह पसंद नहीं आया। लेकिन मेरे पति ने उनके भावों को अच्छी तरह से समझ लिया था। उन्होंने उनसे कहा कि अगर उन्हें खाना पसंद नहीं है, तो वे इसे खाना छोड़ सकते हैं। जैसे ही मेरे पति ने यह प्रस्ताव दिया, बच्चों ने कहा कि ठीक है और उन्होंने प्रसाद रख लिया।</p><p>फिर मैं किसी काम से रसोई में चली गई। तभी मेरे पति ने कुछ लड़कियों को अपनी जेब में पूरी भरते या उन्हें छिपाते हुए देखा, क्योंकि उन्हें चबाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। मेरे पति ने उनसे कहा कि वे चाहें तो अपने साथ खाने की प्लेट ले जा सकती हैं। बाद में जब लड़कियां चली गईं, तो मेरे पति ने मुझे सारा किस्सा बताया और वह मेरी इस मेहनत पर खूब हंसे भी। हालांकि यह सब बहुत शर्मनाक बात थी मेरे लिए, लेकिन अब यह मेरे प्रयोगों की किताब में शामिल हो गया है। मैं आज सभी प्रकार की भारतीय चपाती बनाने में समर्थ हूं और कह सकती हूं कि मैं पूरी बहुत बढ़िया बनाती हूं। </p><p><b>चै</b></p>
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[ " क्या कहते हैं आंकड़े" ]
<p>स-बाइस उम्र की एक लड़की। शायद अस्पताल में अपने किसी परिजन को दिखाने आई थी। वह जिस काउंटर पर वह जा रही थी, पहले वहां स्प्रे कर रही थी, फिर किसी से बात। यह सारा जतन कोरोना संक्रमण से बचने के लिए किया जा रहा था। संक्रमण से बचाव के लिए कुछ एहतियात हम सबके लिए जरूरी हैं, पर उस लड़की का व्यवहार सामान्य नहीं लग रहा था। देखा जाए तो महामारी की वजह से पिछला एक साल हम सबके लिए काफी उथल- पुथल वाला रहा है। हम सभी बाहरी सफाई को लेकर काफी सचेत भी हुए हैं, लेकिन मन की स्वच्छता यानी डिटॉक्स भी जरूरी है। </p><p><b>मन की स्वच्छता पर क्यों है बहस</b></p><p>इंडियन साइकाएट्री सोसाइटी के सर्वे के अनुसार कोरोना महामारी के कारण देश में मानसिक अस्वस्थता के शिकार लोगों की संख्या में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसमें कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर, लॉकडाउन से जन्मा अकेलापन, सामाजिक अलगाव, नौकरी और बिजनेस को लेकर अनिश्चितता जैसी स्थितियां कारण बनी हैं। इसकी वजह से अवसाद, चिंता, तनाव, एंग्जाइटी आदि की समस्या बढ़ी है। खराब मानसिक सेहत को लेकर आंकड़ों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह दुनिया में 15-29 आयु वर्ग में आत्महत्या या मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण बन चुका है।</p><p><b>अब अगला कदम ये हो</b></p><p>कोरोना की वजह से जो अनिश्चितता पैदा हुई है, उसे बहुत से लोगों के लिए संभालना कठिन हो रहा है, विशेषकर युवाऔर बच्चों के लिए। इस कठिन समय में मानसिक स्वच्छता या जिसे हम डिटॉक्स करना कहते हैं, युवाओं की रक्षा करने की कुंजी साबित हो सकती है। हमें अपनी मानसिक शांति के लिए माइंडफुलनेस और इमोशनल रिलीज तकनीक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए।</p><p><b>यूं करें मन की सफाई</b></p><p>डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार, हम सभी को अपनी भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कुछ आदतों को अपनाने की आवश्यकता को महसूस कर रहे हैं- </p><p>● मन के स्तर पर ठीक महसूस करने के लिए हमारी सबसे पहली जरूरत है अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना, जैसे कि सही खाना और ठीक से सोना। ये मानसिक वेलनेस की कुंजी हैं।</p><p>● भरोसा करना सीखें। अच्छी मानसिक स्वच्छता का आनंद लेने के लिए यह जरूरी है कि हम खुद को वैसे ही स्वीकार करें, जैसे हम हैं। खुद पर भरोसा रखने के साथ-साथ दूसरों पर भरोसा करना भी जरूरी है। </p><p>● नियमित व्यायाम मदद करता है, न केवल हमें शारीरिक रूप से फिट रखने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, बल्कि हमारे दिलो-दिमाग में भावनात्मक कचरे को साफ करने में भी। </p><p>● संगीत में लोगों के मूड और व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता होती है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संगीत का स्वास्थ्य के कई पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसमें स्मृति और मनोदशा से लेकर दिल की सेहत भी शामिल है।</p><p>● अपने अकेले के समय का रचनात्मक उपयोग करें। रिलैक्स करने वाले काम करें। ये समय टहलने के लिए रखें, कुकिंग करें। </p><p>● ऑफिस और घर के कामकाज में संतुलन बनाएं और नियमित अंतराल पर ब्रेक लें। ये सिर्फ शारीरिक थकान दूर करने के लिए नहीं है, बल्कि मन की आंतरिक सफाई के लिए भी जरूरी है।</p><p>● काम पर फोकस करें और व्यस्त रहें। इससे मन में बेकार की बातों को घर करने का मौका नहीं मिलेगा।</p><p><b>बतकही के हैं कई फायदे</b></p><p>अभी के हालात को देखते हुए जरूरी हो गया है कि हम अपनों के संपर्क में रहें और उनसे बातें करें। शोध भी बताते हैं कि हमारी भावनाओं को कुछ भरोसेमंद और परिपक्व व्यक्ति के साथ साझा करना हमारी मानसिक स्वच्छता बनाए रखने का एक और बहुत शक्तिशाली तरीका है। अपनी चिंता को दूर करने के लिए आप किसी प्रियजन या एक्सपर्ट से बात करें। खुद को चुनौती दें कि आप गुस्से पर काबू पा सकते हैं। ‘ऑल इज वेल’ और ‘टेक इट ईजी’ जैसे वाक्यों का इस्तेमाल करें। साथ ही तुलना, आलोचना और शिकायत करना भी बंद करें। अपने सभी विचारों, आशंकाओं और चिंताओं को अपने अंदर रखने दिमाग का बोझ बढ़ाता है, लेकिन उन्हें कागज पर लिखना मस्तिष्क और दिल को आराम करने का मौका देता है।</p><p><b>जो नई चीजें सीखी हैं, उसे जारी रखें</b></p><p>अध्ययनों से पता चला है कि नई दिनचर्या या नई चीजों को सीखना आपको मानसिक शक्ति प्रदान करेगा। तो, जो चीजें आपने पिछले साल सीखी थीं, उसे जारी रखें। खुद को अहमियत दें और नई चीजों के साथ अपनी दिनचर्या को सेट करें। पुरानी अच्छी यादों को ताजा करें। एक्सरसाइज, मेडिटेशन करें। फोन के बिना 30 मिनट की वॉकिंग पर ध्यान दें। ये मन को डिटॉक्स करने के लिए प्रभावी हैं।</p>
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[ "पुराने कपड़ों से कर रही हैं कमाल ", "पुराने कपड़ों का क्या किया जाए? यह सवाल अकसर हम सभी के जेहन में आता है। कई बार पुराने कपड़े यूं ही बेकार होकर कचरे के ढेर में चले जाते हैं। जाहिर है, इनसे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है। दिल्ली की अपसायक्लिंग आर्टिस्ट मीनाक्षी शर्मा पुराने कपड़ों की रीसाइक्लिंग करके तरह-तरह का सामान बना रही हैं " ]
<p>भी जानते हैं कि अगर बात फैशन या सामाजिकता की ना हो, तो नए कपड़ों की खरीदारी इतनी जल्दी नहीं होगी, जितना कि आजकल देखा जाता है। हम जल्दी ही पुराने कपड़ों से बोर हो जाते हैं और नए कपड़े लेते हैं। पुराने कपड़े कई बार दूसरों के काम आते हैं, लेकिन ज्यादातर ये कचरे में चले जाते हैं और इनसे हमारे पर्यावरण को नुकसान होता है। पुराने कपड़ों की रीसाइक्लिंग करें कैसे? क्या इन्हें रीयूज किया जा सकता है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब दे रही हैं मीनाक्षी शर्मा, जो अपने ब्रांड ‘यूज मी’ के जरिये पुराने कपड़ों से बैग, सजावटी वस्तुएं, पर्दे, कालीन, रग्स जैसी बहुत-सी चीजें बना रही हैं। मीनाक्षी बताती हैं, ‘मुझे लगता है कि पुरानी वस्तुओं को थोड़ी सी कलात्मकता के साथ नया बनाया जा सकता है। मैंने मर्चेंडाइजिंग एंड प्रोडक्शन का कोर्स किया है, जिसमें मैं इसी तरह के प्रोजेक्ट्स करती थी, ताकि पुराने कपड़ों से कुछ नया बना सकूं।’</p><p>मीनाक्षी ने अपने आइडियाज पर काम करने के लिए साल 2011 में घर से ही ‘यूज मी’ की शुरुआत की। उनके इस नायाब आइडिया को लोगों ने सराहा और उनका काम पिछले दस वर्षों में तेजी से बढ़ा। आज वह अपनी टीम के साथ बहुत तरह का सामान बनाती हैं, साथ ही इवेंट्स में भी इको फ्रेंड्ली सजावट करती हैं। वह कहती हैं, ‘मेरे लिए यह काम सिर्फ मेरे बिजनेस का हिस्सा नहीं है, इससे मैं कचरा प्रबंधन की तमाम समस्याओं के बारे में भी लोगों को अवगत कराना चाहती हूं। हमें आम लोगों के अलावा फैशन से जुड़े स्टोर्स व कारोबारी भी बेकार कपड़े देते हैं। जैसे किसी ने हमें डेनिम जींस दी तो इससे बैग्स, वॉल हैंगिंग्स जैसी चीजें बन जाती हैं। इसी तरह पुरानी साड़ियों, दुपट्टों से घरों के लिए खूबसूरत परदे, कालीन और रग्स बन जाते हैं।’ मीनाक्षी वेस्ट फैब्रिक से शादी, बर्थ डे पार्टी या अन्य आयोजनों के लिए सजावट का काम भी करती हैं। </p><p>उनके बनाए क्रिसमस ट्री कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। वह कहती हैं, ‘हमने अपने घरों में दादी-नानी को देखा है कि जब कपड़े पुराने हो जाते थे तो उनसे रजाई-गद्दे के खोल या तकिया गिलाफ बना दिए जाते थे। मैंने उसी आइडिया को नए ढंग से आजमाने की कोशिश की है। मीनाक्षी वर्कशॉप भी आयोजित करती हैं। उनकी बनाई शानदार चीजों को उनकी वेबसाइट यूज मी के अलावा फेसबुक और इंस्टा पेज पर भी देखा जा सकता है। </p><p><b>इंदिरा राठौर </b></p><p><b>स</b></p>
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[ "विटामिन सी वाले आहार लें" ]
<p>शरीर की गर्मी कम करने के लिए विटामिन-सी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन अच्छा रहता है। ये आपके रक्त प्रवाह और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने का काम करते हैं और शरीर की गर्मी को दूर करने में भी मदद करते हैं। विटामिन सी युक्त रोजाना सेवन करने वाले फल हैं-संतरा, अनानास, स्ट्रॉबेरी, नींबू आदि। ये स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। विटामिन सी न केवल आपकी अंदरूनी गर्मी को दूर करेगा, बल्कि आपको ऊर्जा भी देगा, जो गर्मी में आपके लिए बहुत जरूरी है। विटामिन सी आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएगा, जो गर्मी से लड़ने के लिए बेहद जरूरी है।</p><p><b>कैफीन को कम करें </b></p><p>कैफीन या अल्कोहल का अधिक सेवन आपके लिए जानलेवा हो सकता है। यह आपके रक्तचाप और हृदय गति को बढ़ाता है। ऐसे में जब शरीर में पर्याप्त रक्त परिसंचरण नहीं होता है, तो हमारा शरीर गर्म हो जाता है। इस प्रकार अपने शरीर की गर्मी को कम करने के लिए आपको अल्कोहल या चाय व कॉफी के सेवन को कम करना होगा। इसकी बजाय छाछ, नारियल पानी या बेल का शर्बत या सत्तू पिएं। </p><p><b>हाइड्रेशन का रखें खास ध्यान</b></p><p>यह शरीर की गर्मी के प्राकृतिक कारणों में से एक है। जब आपके शरीर में ठंडा होने के लिए और मेटाबॉलिज्म में सुधार करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता है, तो यह आपके शरीर की गर्मी को बढ़ाते हुए डिहाइड्रेशन की वजह बनता है। ऐसे में पानी की मात्रा का खास ध्यान दें।</p><p><b>ज्योति भारद्वाज, डाइटिशियन</b></p>
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[ "तो, मुस्कुराते क्यों नहीं हैं", "क्या हम हमेशा खुश रह सकते हैं? क्या हम वास्तव में अपने आप में खुशी महसूस कर सकते हैं? यहां खुशी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं, जो हमें यह समझने में मदद करेंगी कि इसे अपने जीवन में कैसे महसूस किया जाए" ]
<p>खुशी एक भावना है, एक परिस्थिति नहीं। हमारी खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि हमारे साथ क्या हो रहा है? यह इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे अंदर क्या हो रहा है? अगर हमें लगता है कि दूसरे हमें खुश कर सकते हैं या हम तब खुश होंगे, जब हमारे पास यह या वह होगा,तो हम गलत सोच रहे हैं। खुशी हमारे जीवन के बारे में सोचने के तरीके पर निर्भर करती है। इसका मतलब यह है कि लोग आमतौर पर उतने ही खुश होते हैं, जितना वे चाहते हैं। </p><p>खुशी की भावना का अभ्यास किया जाना चाहिए। जैसे आप अभ्यास करके कुछ करने में बेहतर होते हैं, वैसे ही खुशी के साथ भी होता है। जितना अधिक हम इसका अभ्यास करते हैं, उतना ही बेहतर हम इसे महसूस कर पाएंगे। सकारात्मक विचार हमारे भीतर सकारात्मक भाव उत्पन्न करते हैं। इसलिए अगर हम खुश महसूस करना चाहते हैं, तो हमें विचारों को सकारात्मक विचारों में बदलना चाहिए, जो खुशी की भावनाओं को बढ़ाता है। </p><p>खुश लोगों के सबसे आम लक्षण क्या हैं? यह पैसा, शोहरत या अच्छा रूप नहीं है। यह बुद्धिमत्ता या प्रतिभा भी नहीं है। यह है -वे अपनी अच्छी परिस्थितियों की गिनती करते हैं और अपने परिवार और दोस्तों को महत्व देते हैं। जीवन में आभारी होना और सामंजस्यपूर्ण व्यक्तिगत संबंध बहुत अहम हैं। </p><p>खुशी पैदा करने के लिए हमेशा आधे खाली गिलास वाली मानसिकता के बजाय आधा भरे गिलास वाली मानसिकता रखें। वर्तमान में आपके जीवन में जो चीजें गलत हो रही हैं, उन्हें गिनने के बजाय, आपके लिए क्या काम कर रहा है, उस पर ध्यान केंद्रित करें। </p><p>ज्यादातर लोग अपनी सभी पिछली असफलताओं, गलतियों, दर्द और भय को अपने साथ रखते हैं। जो हुआ उसे जाने देना सीखें, ताकि आप अपनी ऊर्जा को इस बात पर केंद्रित कर सकें कि वर्तमान में क्या चल रहा है। अतीत को बदला नहीं जा सकता है, लेकिन आपका भविष्य बदल सकता है। इस सरल विचार के साथ अपना दिन बिताएं, ‘मैं क्षमा करने को तैयार हूं।’</p><p> जिस दिन आप अपने सभी दोषों और कमजोरियों के साथ खुद से प्यार करना सीख जाएंगे, यह आपके जीवन का सबसे खुशी का दिन होगा। खुद से प्यार के अभ्यास करने का एक तरीका यह है कि आप अपने आप को याद दिलाते रहें कि आप विशेष हैं और आप निश्चित रूप से अपने हर काम में सफल होंगे। आप खुद को पसंद करें, तो खुशी खुद-ब-खुद आ जाएगी।</p><p><b>(हो’ओपोनोपोनो क्षमाशीलता पर आधारित एक प्राचीन जीवन दर्शन है)</b></p>
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[ "ये खाइए, दिल रहेगा दुरुस्त" ]
<p>एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सब्जियां, साबुत अनाज और बीन्स आदि की मात्रा को डाइट में बढ़ाना दिल की सेहत के लिए अच्छा होता है। इस तरह के खानपान से मस्तिष्क में खून की सप्लाई भी बाधित नहीं होती है। साथ ही डाइट में मैदा, पॉलिश्ड शुगर आदि की मात्रा को कम करना होगा। इस अध्ययन की रिपोर्ट अमेरिकन एके डमी ऑफ न्यूरोलॉजी की पत्रिका न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुई है। </p>
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[ "फिल्म रिलीज का प्रेशर खास होता है: अभिषेक बच्चन", "अभिषेक बच्चन को इंडस्ट्री में काम करते हुए कई साल हो गए हैं और इन सालों में उनकी कई एक फिल्में भी रिलीज हुई हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए भी उन्होंने काम किया। लेकिन आज भी अपनी फिल्म की रिलीज से पहले वह उतना ही नर्वस रहते हैं, जैसे पहली फिल्म के दौरान हुए थे। एक बातचीत में अपने फिल्मी सफर पर बात करते हुए अभिषेक ने कई दिलचस्प खुलासे किए" ]
<p>ल्म ‘रिफ्यूजी’ से अपने करियर की शानदार शुरुआत करने वाले अभिषेक बच्चन ने ‘सरकार’, ‘दस’, ‘गुरु’, ‘धूम’, ‘ब्लफ मास्टर’ जैसी कई सफल फिल्में दीं। हालांकि वे अपनी सफलता को ज्यादा दिनों तक भुना नहीं पाए। एक के बाद एक उनकी कई फिल्में परदे पर असफल रहीं, इसके बावजूद उन्होंने लोगों को अपने अभिनय से हमेशा आकर्षित किया। शायद यही वजह है कि अभिषेक लगातार फिल्में करते रहे हैं। उन्होंने अपनी असफलता को खुद पर हावी नहीं होने दिया। हालांकि आज भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले वह उतना ही नर्वस रहते हैं, जैसे कि पहली फिल्म के दौरान हुए थे। </p><p>इस पर अभिषेक कहते हैं,‘मुझे फिल्म से पहले होने वाली चर्चा नहीं, बल्कि फिल्म की रिलीज के बाद होने वाली चर्चा सुनना ज्यादा पसंद है। उससे पता चलता है कि मैंने जो मेहनत की है, वह लोगों को पसंद आई है कि नहीं।’</p><p><b>हर फिल्म को दिल से करता हूं</b></p><p>ये पूछे जाने पर कि क्या सालों बाद भी आपको अपनी फिल्म की रिलीज को लेकर दबाव रहता है? इस पर वह कहते हैं,‘क्यों नहीं, मैं एक कलाकार हूं और मैं अपनी हर फिल्म को दिल से करता हूं। इसलिए जब भी मेरी कोई फिल्म या फिर शो रिलीज होता है, तो उस पूरी रात मैं प्रेशर में रहता हूं और ये अच्छा भी है। एक कलाकार एक प्रोजेक्ट पर अपने कई महीने लगा देता है। ऐसे में उसे उससे प्यार होना लाजिमी है।’</p><p><b>तारीफ से मिलती है प्रेरणा</b></p><p>अभिषेक कहते हैं ,‘मैं उन लोगों में से हूं, जो फिल्म रिलीज के बाद सोशल मीडिया से लेकर हर उस प्लेटफॉर्म पर जाकर लोगों के कमेंट देखते हैं, जहां पर फिल्म की चर्चा होती है। अच्छा लगता है, जब लोग अभिनय और फिल्म की कहानी की तारीफ करते हैं। उससे मुझे आगे की फिल्मों में और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है।’ </p><p>पिता बिग बी के साथ काम और फिल्मों को लेकर बातचीत भी अभिषेक से हुई। इससे जुड़े सवाल पर जूनियर बच्चन कहते हैं, ‘पापा कभी अपना काम घर पर नहीं लेकर आए। कभी किसी चीज को थोपते नहीं हैं। हम घर पर फिल्मों की चर्चा नहीं करते। घर पर, वह मेरे दोस्त हैं, जिनके साथ मैं बैठ सकता हूं, स्पोर्ट्स या फिल्में देख सकता हूं। राजनीति पर चर्चा कर सकता हूं। हम आपस में बैठकर बहुत बातें करते हैं। अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।’ </p>
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[ "इश्किया हुईं तारा" ]
<p><b>सच बताइएगा</b>...क्या आप तारा सुतारिया को खबरों में मिस नहीं कर रहे। सुनते हैं कि आजकल उन्हें इश्क हो गया है और वह इन दिनों इश्क में मशगूल हैं। इश्क हुआ है कपूर खानदान से ताल्लुक रखने वाले आदर जैन से। आपको बता दें कि आदर जैन रणबीर कपूर की बुआ रीमा कपूर के छोटे बेटे हैं। पर हमारा सवाल तारा से यही है कि अगर वह अभी से ही प्यार-व्यार वगैरह के चक्कर में पड़ जाएंगी, तो उनके हाथ से करियर की बाजी अनन्या पांडे, शनाया कपूर (अनिल कपूर के छोटे भाई संजय कपूर की बेटी) जैसों के हाथ में जाते देर नहीं लगेगी। शनाया भी जल्द ही फिल्मी डेब्यू करेंगी।</p><p>अगर तारा सुतारिया सच में प्रेम-प्यार के चक्कर में पड़ गई हैं, तो उन्हें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि एक्टिंग के बाजार में आलिया क्यूट लुकिंग उनकी ही कद-काठ वाली ज्यादा दमदार हीरोइन भी पहले से मौजूद है। ऐसे में तारा अपने करियर को रूमानियत की भेंट क्यों चढ़ने दे रही हैं। वैसे हम तो यही चाहेंगे कि तारा को सब मिले, प्रेम भी और फेम भी।</p>
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[ "किस्मत नहीं, मेहनत आई है काम", "टीवी और फिल्मों में कई लोगों की किस्मत ऐसी चमकी कि वह स्टार बन गए। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने दिन-रात घंटों काम करके अपना नाम बनाया, क्योंकि किस्मत से उनका कुछ खास भला नहीं हुआ। आइए जानते हैं उनके बारे में" ]
<p><b>टीवी शो </b>‘क्यों इत्थे दिल छोड़ आए’ से घर-घर में अपने किरदार रणधीर की वजह से मशहूर हो चुके जान खान कहते हैं, ‘मेरा घर भोपाल में है और मेरे शो के बाद आलम ये है कि अब जहां भी मेरी अम्मी-अब्बू जाते हैं लोग उनके साथ फोटो लेने लगते हैं और कहते हैं कि मैं अच्छा कर रहा हूं।’ जान को अपने किरदार के कारण न सिर्फ उर्दू सीखनी पड़ी, बल्कि अपने लुक पर भी बहुत काम करना पड़ा। </p><p><b>्र्रफैंस से जुड़ा रहता हूं</b></p><p>अपने शो के बारे में जान कहते हैं, ‘अपने शो के लिए मैंने खुद को पूरी तरह से बदल दिया और मेरी मेहनत सफल भी हुई जब एक दिन अम्मी का फोन आया कि उनसे कुछ लोगों ने मेरा नंबर मांगा है। मुझे नहीं पता कि लोग क्यों कहते हैं कि वह 12-13 घंटे काम करते हैं और उनके पास न तो परिवार के लिए और न फैंस के संदेश देखने का टाइम होता है। जबकि मैं भी काम करता हूं, लेकिन उसके साथ ही मैं दिन में कई बार अपने घर भोपाल फोन कर लेता हूं। साथ ही मैं फैंस के साथ बातचीत और उनके बनाए वीडियो से लेकर हर छोटे-बड़े मीम्स भी देख लेता हूं। सच कहूं तो अच्छा लगता है कि जब लोग हमारे वीडियो बनाकर हमें भेजते हैं। उससे पता चलता है कि हम जो काम कर रहे हैं वह लोगों को पसंद आ रहा है।’</p><p>अपने से कई साल छोटी को-स्टार ग्रेसी के साथ काम करने को लेकर जान कहते हैं, ‘शो में हम दोनों को एक-दूसरे का पार्टनर दिखाया गया है, लेकिन रियल लाइफ में मैं उसे देखता हूं, तो सोचता हूं कि आजकल के बच्चे कितने स्मार्ट और होशियार हैं। तभी तो इतनी छोटी उम्र में इतने बड़े शो के साथ अपनी पढ़ाई भी कर लेते है। वरना हमें तो हमारे घर वाले बोल-बोल कर पढ़ाते थे।’ इसके अलावा टीवी और वेब शो के बारे में बात करते हुए जान कहते हैं -‘मैं हर तरह के काम के लिए तैयार रहता हूं, बशर्ते मेरे पास समय होना चाहिए।’ </p><p><b>मैं अपने हर काम में जी जान लगा देती हूं</b></p><p>लगभग 200 से भी ज्यादा ऑडिशन देकर टीवी इंडस्ट्री में जगह बनाने वाली शिवांगी खेडकर इन दिनों ‘मेंहदी है रचने वाली’ शो में पल्लवी का किरदार निभा रही हैं। एक्टिंग करियर को लेकर शिवानी कहती हैं,‘मेरे पापा मेरे हीरोइन बनने के फैसले से बिल्कुल भी खुश नहीं थे, लेकिन अब जब लोग मेरे बारे में बात करते हैं और उनसे पूछते हैं कि पल्लू आपकी बेटी है, तो वह खुश होते हैं। हालांकि अभी भी वो खुलकर कभी तारीफ नहीं करते। लेकिन अब उन्हें तसल्ली है कि बेटी अच्छा काम कर रही है।’</p><p>शिवांगी आगे कहती हैं,‘मुझे कभी भी कुछ आसानी से नहीं मिला है। जहां मेरे साथ काम करने वाले कई दोस्तों को सामने से काम का ऑफर आता है, वहीं मुझे ऑडिशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और तब जाकर मुझे सफलता मिलती है। इसलिए जब भी मुझे कोई काम मिलता है, तो मैं उसके लिए जी जान लगा देती हूं, क्योंकि मुझे पता होता है कि इसे मेरी किस्मत नहीं, बल्कि सिर्फ मेहनत बचा सकती है।’ दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम कर चुकीं शिवांगी टीवी का हिस्सा बनकर काफी खुश हैं। इस पर वह कहती हैं,‘पहले मुझे सभी को बताना पड़ता था कि मेरी फिल्म आ रही है, लेकिन अब जब से मेरा शो टीवी पर आने लगा है, तब से लोग मुझे फोन करके पूछते हैं कि अब आगे क्या होगा? क्या राघव और पल्लवी की दूरियां मिट पाएंगी... वगैरह-वगैरह।’ </p><p><b>नीलम कोठारी</b></p>
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1,522,045
[ "अपनी एक्टिंग में हर बार सुधार करता हूं" ]
<p>यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अपनी किसी फिल्म में अपनी एक्टिंग कम लगी है या उसमें सुधार की गुजांइश लगी है। इस पर उन्होंने कहा, ‘हां, ऐसी कई फिल्में हैं, जिन्हें आज देख कर मुझे लगता है कि इसमें मैं ये सीन बेहतर कर सकता था, या फिर इस डायलॉग को मैं ऐसे बोल सकता था।’ आपको बता दें कि अभिषेक इन दिनों अपनी मोस्टअवेटेड फिल्म ‘द बिग बुल’ को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। कुछ समय पहले फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है, जो लोगों को काफी पसंद भी आ रहा है। इस बारे में वह कहते हैं कि मैंने इस फिल्म पर काफी काम किया और इसके होमवर्क के लिए काफी तैयारी की। जब इसका शूट हो रहा था, तो मैं इतना उत्साहित था कि सभी मुझे हैरानी से देख रहे थे।’ </p><p><b>फुरसत ही नहीं हुई</b></p><p>लॉकडाउन के दिनों में जहां ज्यादातर सितारों ने घर पर बैठकर अपने परिवार के साथ समय बिताया, वही अभिषेक कहते हैं,‘मुझे घर पर खाली बैठने का ज्यादा समय नहीं मिल पाया, क्योंकि मेरे पास उस समय काफी काम था। एक तो मुझे अपने डिजिटल शो की रिकॉर्डिंग और प्रमोशन करना पड़ रहा था, वहीं कुछ फिल्मों पर भी बात चल रही थी। फिर जब इन सभी को मैंने खत्म किया, तो फिर मेरी फिल्मों की शूटिंग शुरू हो गई और मैं घर से निकल पड़ा। मुझे जब भी कोई पूछता है कि आपने लॉकडाउन में कौन-सा डिजिटल शो देखा, तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि मुझे उस दौरान भी काम करने का मौका मिला और मैं उससे काफी खुश भी हूं, क्योंकि मैं ज्यादा समय तक खाली नहीं बैठ सकता।’</p><p><b>अपनों को दर्द में नहीं देखा जाता</b></p><p>कोविड का डर और ऐसे में सिनेमाघर खुलने के विषय में जब अभिषेक से पूछा गया, तो उन्होंने कहा,‘बाकी जगह का मुझे पता नहीं, लेकिन कुछ दिन पहले मैं आगरा के एक सिनेमाघर में गया और मुझे ताज्जुब हुआ, जब मैंने वहां पर कोविड गाइडलाइन्स के तहत लोगों को काम करते देखा। मेरा मानना है कि जान से बढ़कर कुछ नहीं है और अगर आपको लगता है कि आप सुरक्षित नहीं है तो आपको घर पर रहना चाहिए। कुछ पल के मनोरंजन के लिए अपनी जान को मुसीबत में डालना ठीक नहीं।’</p><p>कोविड की सावधानियों और अपने निजी अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा,‘मैं उन सभी लोगों को कहना चाहता हूं, जो सोच रहे हैं कि अब कोरोना की वैक्सीन आ गई है, तो आराम से घूम-फिर सकते हैं, पर ऐसा नहीं है। मैंने अपने पूरे परिवार को कोरोना की चपेट में देखा है और मैं जानता हूं कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता जब आपके अपनों की जान खतरे में होती है। इसलिए भूल कर भी कोई भूल न करें।’</p>
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[ "मनोज बाजपेयी ने निराश नहीं किया है" ]
<p><b>फिल्म </b>की शुरुआत में ही ये साफ हो जाता है कि एसीपी अविनाश वर्मा (मनोज) को यह केस क्यों दिया जा रहा है। वह अक्खड़ है, उसे पसंद है कानून के दायरे में रहकर काम ना करना और सब्र तो उसमें बिल्कुल नहीं है। हॉलीवुड से धूल-धक्कड़ खाती हुई यहां पहुंची ‘टॉप कॉप’ की यह छवि फिल्मकारों को अकसर बचा ले जाती है। ‘डाई हार्ड’ का नायक जॉन मैक्लेन (ब्रूस विलिस) इनका मसीहा रहा है। इसलिए ज्यादातर फिल्मकार ये मानकर चलने लगे हैं कि किसी जटिल या हाई-प्रोफाइल केस में रोचकता बढ़ाने के लिए ऐसे ही ‘टॉप कॉप्स’ की छवि काम आएगी। शहर से दूर जंगलों में पूजा (बरखा) की लाश मिलती है, जो कि जस्टिस चौधरी (शिशिर) की बेटी है। लेकिन पूजा तो अपनी सहेली कविता के घर गई थी, जहां उसका पति एमएलए रवि खन्ना (अर्जुन) और एक नौकर मौजूद था। मामले की जांच अविनाश वर्मा को सौंपी गई है, जिसके पास संजना भाटिया (प्राची), राज गुप्ता (वकार शेख), अमित चौहान (साहिल) जैसे काबिल अफसर हैं। शुरुआती जांच में शक रवि पर जाता है। लेकिन अविनाश को इंतजार है कविता के होश में आने का, जो उस घटना के बाद से कोमा में है। एक निर्देशक के रूप में देवहंस का प्रयास शुरू में बांधता तो है, लेकिन धीरे-धीरे असर कम होने लगता है। उन्होंने अपनी समझ से बेशक किरदारों को कुछ अलग ढंग से गढ़ने की कोशिश की है, लेकिन सस्पेंस-थ्रिलर के लिए जो गहराई और समझ चाहिए, वो उनमें नहीं दिखती। जांच टीम का सेटअप, शैली और तौर-तरीके बुनावटी हैं, जो लुभाते नहीं हैं। एसीपी की दर्दभरी जिंदगी और भुक्खड़ इंस्पेक्टर को कब तक भुनाते रहेंगे? जस्टिस चौधरी के सामने पुलिस कमिश्नर (डेंजिल स्मिथ) का अविनाश को केस सौंपना, ऐसा लगता है मानो कोई डील चल रही है। रिजल्ट्स जो हम चाहें, तरीका वो जो तुम चाहो। पर काम कानून के दायरे में हो। और ये दायरा क्या है? जज साहब के घर में ही संदिग्धों और गवाहों की पेशी हो रही है। क्या वाकई हमारा सिस्टम ऐसे काम कर रहा है? </p><p>यही नहीं जज साहब की जवान लड़की का कत्ल हो गया है और वह अविनाश के सामने अपनी पत्नी को ये कहकर सांत्वना दे रहे हैं- इट्स ओके... आप इस सीन को दो-चार बार आगे-पीछे करके देखिए और सोचिए कि क्या ये कोई चूक हो सकती है? हालांकि मनोज बाजपेयी ने अपने अभिनय से बांधे रखा है, लेकिन महज सात दिनों में केस सुलझाने वाले जांबाज पुलिसवाले ने गोली लगने के बावजूद काम करना नहीं छोड़ा। ऐसा करके वह जॉन मैक्लेन, जो कभी थकता नहीं, की बराबरी पर आ गए हैं। अर्जुन माथुर से ज्यादा उम्मीदें थीं और प्राची का काम टॉप कॉप की परछाई से ज्यादा कुछ नहीं है। <b>विशाल ठाकुर</b></p>
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1,522,047
[ "पंख फैला रही हैं सान्या " ]
<p><b>हाल ही में </b>सान्या मल्होत्रा की फिल्म ‘पगलैट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है। उनकी बाकी फिल्मों की तरह ही, इस फिल्म के लिए भी उन्हें खूब प्रशंसा मिल रही है। कहने की जरूरत नहीं कि यह अभिनेत्री लंबी रेस का घोड़ा साबित होगी। बिल्कुल राजकुमार राव की तर्ज पर सान्या मल्होत्रा भी किसी भी किरदार में ढल जाने की कूवत रखती हैं। शायद इसीलिए तेज-तर्रार महिला किरदारों को करने और लोगों की कमियां गिनाने के लिए जानी जाती एक मशहूर एक्ट्रेस ने भी उन्हें ट्विटर पर बधाई दे डाली है। वैसे तो यह सच है कि महामारी के दौरान भी मनोरंजन के क्षेत्र में कुछेक कलाकारों की दुकान कभी बंद होती नहीं दिखी, उनमें से एक सान्या भी हैं। कीप इट अप सान्या।</p>
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1,522,048
[ "राजवीर के लिए सनी का प्यार" ]
<p>सनी देओल के छोटे बेटे राजवीर देओल जल्द ही बॉलीवुड में एंट्री करेंगे। दादा धर्मेंद्र, पापा सनी और बड़े भाई करण के बाद देओल परिवार से राजवीर की बारी है परदे पर कुछ कर दिखाने की। सनी अपने बेटे की सफलता सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यहां तक कि इस खबर को शेयर करने के बाद उन्होंने कमेंट बॉक्स डिसेबल कर दिया, शायद इसलिए कि कोई भी कमेंट उनके बेटे का आत्मविश्वास ना डिगा सके। क्या बात है! </p>
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1,522,041
[ "फिल्म: साइलेंस........ " ]
<p><b>फिल्म: </b>साइलेंस... कैन यू हियर इट? </p><p><b>निर्देशक : </b>अबन भरूचा देवहंस</p><p><b>कलाकार: </b>मनोज बाजपेयी, प्राची देसाई, अर्जुन माथुर, बरखा सिंह, डेंजिल स्मिथ, शिशिर सिन्हा, साहिल वैद</p><p><b>वेब प्लेटफॉर्म</b>: जी5 </p>
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1,522,044
[ "थिएटर और नाटकों के प्रशंसक अब जल्द ही अपना पसंदीदा नाटक घर बैठे-बैठे देख सकेंगे। एक्टर श्रेयस तलपड़े थियेटर के शौकीन लोगों के लिए एक ऐसा ओटीटी मंच लेकर आ रहे हैं", "थियेटर के शौकीन लोगों के लिए ‘नाइन रसा’" ]
<p><b>कोरोना </b>महामारी का असर सिर्फ सिनेमा घरों पर ही नहीं पड़ा, रंगमंच व परफॉर्मिंग आर्ट पर भी हुआ है। लगभग एक साल हो चुका है, लेकिन अभी भी रंगमंच की रौनक नहीं लौटी है। इसी चिंता ने श्रेयस तलपड़े को एक ऐसा ओटीटी प्लेटफॉर्म लॉन्च करने के लिए प्रेरित किया, जो रंगमंच के लिए समर्पित हो। श्रेयस नौ अप्रैल को अपना नया स्टार्टअप ‘नाइन रसा’ लॉन्च कर रहे हैं। वह अपने ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘नाइन रसा’ के बारे में कहते हैं,‘असल में ‘नाइन रसा’ रंगमंच व परफॉर्मिंग आर्ट के लिए समर्पित मंच है और मैं इसको लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित हूं। इस प्लेटफॉर्म पर आपको जितनी भी स्टेज परफॉर्मेंसेज होती हैं, वो सब देखने को मिलेंगी, यानी घर बैठे-बैठे आप रंगमंच का आनंद ले सकेंगे। एक तरह से यह फैमिली और फ्रेंडली प्लेटफॉर्म होगा, जिसे आप परिवार के साथ भी देख सकेंगे। इसमें स्टैंडअप कॉमेडी, फुल लेंथ प्ले, वन एक्ट प्ले, डांस, डाक्यूमेंट्री, कविता रिकॉल, स्टोरी रीडिंग के साथ और भी बहुत कुछ होगा।’ श्रेयस आगे कहते हैं,‘ मैं खुद भी रंगमंच से जुड़ा हुआ हूं, इसलिए उनके दर्द को समझ सकता हूं। और मैं आज जो कुछ भी हूं थिएटर की बदौलत हूं। इसलिए मैंने सोचा कि जिस थिएटर ने मुझे इतना कुछ दिया है, तो मुझे भी इसके लिए कुछ करना चाहिए। इसलिए मैंने इस प्लेटफॉर्म को लॉन्च करने के बारे में सोचा।’ फिलहाल यहां हिंदी, मराठी, गुजराती व अंग्रेजी में कंटेंट उपलब्ध होगा। बाद में और भी कुछ भाषाएं जुड़ जाएंगी। </p>
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1,522,059
[ "हर मौसम में खिलखिलाती त्वचा ", "बदलता मौसम त्वचा की देखभाल केतौर-तरीकों में भी बदलाव की मांग करता है। गर्मी के मौसम में कैसे करें त्वचा की सही देखभाल, बता रही हैं स्वाति गौड़" ]
<p>सम का बदला मिजाज अब साफ-साफ नजर आने लगा है। गर्मी ने पुरजोर तरीकेसे दस्तक दे दी है। मौसम बदलने के साथ-साथ त्वचा शुष्क से तैलीय होने लगती है, जिसकी वजह से कई महिलाएं एक्ने और रैशेज की शिकायत करने लगती हैं। इसलिए जरूरी है कि मौसम के हिसाब से ही त्वचा की देखभाल की जाए। </p><p>गर्म और नमी वाले मौसम में वाटर, क्ले और जेल बेस्ड उत्पाद से चेहरा साफ करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि क्ले और वाटर बेस्ड क्लींजर त्वचा से अतिरिक्त चिकनाई हटाकर उसे तरोताजा रखते हैं। </p><p><b>फेस सीरम का रखें खयाल</b></p><p>गर्म मौसम में फेस ऑयल्स की जगह अच्छी क्वालिटी वाले फेस सीरम इस्तेमाल किए जाने चाहिए, जो गाढ़े ना हो, ताकि त्वचा में आसानी से समा सकें । अकसर महिलाएं शिकायत करती हैं कि जो लोशन सर्दियों में उनकी त्वचा को खिला-खिला और निखरा बनाए रखता है, वही लोशन गर्मियों में उन्हें चिपचिपा लगनेे लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्मियों में हमारी त्वचा की तैलीय ग्रंथियां ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं, इसलिए गर्मियों में हल्के, पतले और वाटर बेस्ड लोशन का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि त्वचा को जरूरी पोषण तो मिले पर वह चिपचिपी महसूस ना हो। </p><p><b>स्क्रब का करें इस्तेमाल</b></p><p>हमारी त्वचा के ऊपर मृत त्वचा की परत बनती रहती है, जिसे ना हटाने पर त्वचा रूखी और बेजान लगने लगती है। इसलिए विशेषज्ञ नियमित रूप से फेस स्क्रब इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, ताकि तेल और गंदगी से बंद हो चुकी त्वचा के पोर खुल सकें और मृत त्वचा की परत हट सके। इसलिए ऐसे स्क्रब का इस्तेमाल करें जो काफी सौम्य हो और त्वचा को बिना नुकसान पहुंचाए अच्छी तरह से उसकी सफाई कर सके। </p><p><b>सनस्क्रीन की भी सुनें</b></p><p>यूं तो सनस्क्रीन का महत्व हर महिला जानती है, पर गर्मियों में अकसर महिलाएं सनस्क्रीन इस्तेमाल करना पसंद नहीं करतीं, क्योंकि इससे उन्हें चिपचिपाहट महसूस होती है। पर असल में सर्दियों से ज्यादा गर्मियों में सनस्क्रीन इस्तेमाल करने की जरूरत होती है, क्योंकि सूरज की तीखी और तेज किरणें त्वचा को झुलसा सकती हैं। इसलिए एसपीएफ 50 युक्त कोई लाइटवेट सनस्क्रीन रोजाना इस्तेमाल करें। </p><p><b>बड़े काम का फेस मिस्ट</b></p><p>मौसम चाहे कोई भी हो, महिलाओं को घर से बाहर निकलना पड़ता ही है। पर अगर झुलसा देने वाली गर्मी में घर से बाहर निकलना पड़े तो छतरी और सनग्लासेज से भी बात नहीं बनती। ऐसे में फेसमिस्ट का इस्तेमाल बेेहद सुकून देता है। बाजार में आपको तरह-तरह के फेसमिस्ट मिल जाएंगे, जिन्हें आप थकान महसूस होने पर इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर एक स्प्रे बॉटल में पानी में गुलाब जल मिलाकर अपना खुद का मिस्ट भी तैयार कर सकती हैं। फिर जब भी बाहर गर्मी की वजह से थकान महसूस हो तो अपने फेस मिस्ट को चेहरे पर इस्तेमाल कीजिए। एक पल में आप ताजगी का अहसास करेंगी। </p><p><b>जब करें मेकअप</b></p><p>गर्मियों में मेकअप करते समय हैवी फाउंडेशन का इस्तेमाल आपको खूबसूरत बनाने के बजाए असहज बना सकता है, क्योंकि नमी और पसीने की वजह सेे फाउंडेशन आपके चेहरे पर टिक नहीं पाएगा और मेहनत से किया हुआ सारा मेकअप पसीनों में ही बह जाएगा। इसलिए गर्मियों में वाटर बेस्ड और वाटरप्रूफ मेकअप उत्पाद का ही इस्तेमाल करें। </p><p><b>होंठों की देखभाल</b></p><p>गर्मी के मौसम में होंठ बहुत ज्यादा सूखने लगते हैं, जिसकी वजह से जाने-अनजानेे हम बार-बार उन्हें जीभ से गीला करने लगते हैं। यह आदत होठों को बहुत नुकसान पहुंचाती है और उनकी गुलाबी रंगत कालेपन में बदलने लगती है। इसके अलावा घटिया क्वालिटी की लिपस्टिक और लिपबाम का इस्तेमाल भी होंठों की खूबसूरती को खराब करता है। इसलिए बेहतर होगा कि होंठ सूखने पर आप उन पर हल्का सा नारियल का तेल लगा लें। इसके अलावा नीबू में थोड़ी चीनी मिलाकर हल्के हाथ से होंठों पर स्क्रब कर लें। इससे होंठों की डेड स्किन हट जाएगी और वे फिर से नर्म और मुलायम लगनेे लगेंगे। </p><p><b>फेस मास्क की अहमियत</b></p><p>त्वचा को जवां, कसी हुई और खूबसूरत बनाए रखने में अच्छे फेस मास्क की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खासतौर पर गर्मियों में तो अपनी त्वचा के अनुसार सही मास्क का इस्तेमाल और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि फेस मास्क स्क्रबिंग और फेशियल के बाद न केवल खुले हुए पोर्स को बंद करते हैं बल्कि त्वचा से अतिरिक्त चिकनाई सोखकर उसे आकर्षक भी बनाते हैं। इस लिहाज से फ्रूट पल्प मास्क, मुल्तानी मिट्टी मास्क और चंदन फेस पैक बहुत पसंद किए जाते हैं। </p><p>(डॉ. पंकज चतुर्वेदी, डर्मेटोलॉजिस्ट-मेडिलिंक्स</p><p>से बातचीत पर आधारित) </p>
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[ "गर्मी में इनसे बचकर रहना! ", "कुछ कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट्स के लिए गर्मी का मौसम ठीक नहीं होता। आने वाले समय में अपनी खूबसूरती निखारने के लिए किसी ब्यूटी ट्रीटमेंट की योजना बना रही हैं, तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें, बता रही हैं पूनम जैन" ]
<p><b>गर्मियों में </b>शादी-ब्याह और त्योहारों के चलते ब्यूटी और कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट्स की मांग बढ़ जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, मेकअप या किसी भी कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट को लेते समय मौसम का ध्यान रखना जरूरी होता है। गर्मियों में कौन से ट्रीटमेंट नहीं करवाएं, आइए जानें:</p><p><b>केमिकल पील्स</b></p><p>त्वचा से सनबर्न, दाग-धब्बे हटाने के लिए केमिकल पील्स अच्छे एक्सफॉलिएंट होते हैं। इस ट्रीटमेंट में चेहरे की जरूरत के हिसाब से कुछ केमिकल सॉल्यूशन लगाए जाते हैं। <b>क्या करें : </b>अगर केमिकल पील ट्रीटमेंट ले रही हैं तो कम से कम दो हफ्ते तक सूरज की रोशनी में समय बिताने से बचें। रोज 50 एसपीएफ का सनस्क्रीन लगाएं। अगर किसी खास मौके के लिए ट्रीटमेंट लेनी है तो कम से कम चार दिन पहले ट्रीटमेंट ले लें। ‘डीप’ केमिकल पील की जगह ‘लाइट’ केमिकल पील को चुनें। </p><p><b>लेजर हेयर रिमूवल</b></p><p>अनचाहे बालों को हटाने के लिए लेजर हेयर रिमूवल की सलाह दी जाती है। इस ट्रीटमेंट में प्रभावित हिस्से में लेजर रोशनी की तेज किरणें छोड़ी जाती हैं। त्वचा के पिग्मेंट्स इस रोशनी को सोख लेते हैं। यही तेज ऊष्मा भीतर बालों के फॉलिकल्स को नष्ट करके उन्हें आगे बढ़ने से रोक देती है। सूरज का सीधा संपर्क इस प्रक्रिया के असर को कम कर सकता है। </p><p><b>क्या करें : </b>इस समय ये ट्रीटमेंट ले ही रही हैं तो कम से कम दो हफ्ते तक सूरज की रोशनी में जाने से बचें। ट्रीटमेंट कराए हिस्से को हमेशा कवर करके ही बाहर निकलें। जल्दी-जल्दी लेजर ट्रीटमेंट लेने से बचें। यही तथ्य इस मौसम में टैटू हटवाने पर भी लागू होते हैं। </p><p><b>रेटिनॉएड्स </b></p><p>मुंहासे, मस्सा, सोरायसिस या महीन रेखाओं को दूर करने के लिए रेटिनॉएड्स ट्रीटमेंट की सलाह दी जाती है। पर इससे कुछ समय के लिए खुजली हो सकती है या त्वचा संवेदनशील हो जाती है। ऐसे में सूरज की रोशनी उसे और नुकसान पहुंचा सकती है। </p><p><b>क्या करें : </b>ट्रीटमेंट से पहले एक्सपर्ट्स की सलाह जरूर लें। ट्रीटमेंट के बाद धूप में जाने से बचें। रोज सनस्क्रीन लगाएं। त्वचा बहुत रूखी है तो मॉइस्चराइजर लगाएं। </p><p><b>लिपोसक्शन </b></p><p>अनचाही वसा हटाने के लिए यह ट्रीटमेंट ली जाती है। लिपोसक्शन के बाद मरीज को कुछ दिन तक सपोर्ट बैंडेज पहननी पड़ती है। गर्मियों में इसे पहनने में असुविधा हो सकती है। कई बार कुछ समय के लिए हल्की सूजन भी आ जाती है। आमतौर पर गर्दन के पास का हिस्सा जल्दी ठीक हो जाता है। </p><p><b>क्या करें: </b>धूप या तेज गर्मी से त्वचा पर निशान पड़ते हैं या त्वचा बहुत मुलायम है तो डॉक्टर को पहले बता दें। </p>
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[ "क्या आपको मालूम है कि घर में हम जिस तरह से अपने जूते-चप्पल रखते हैं, उसका असर हमारी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है? अपने घर में कहां और कैसे रखें जूते-चप्पल, बता रहे हैं वास्तु विशेषज्ञ पंडित पंकज शास्त्रत्त्ी " ]
<p><b>आप कहां रखती हैं </b></p><p><b>अपने जूते-चप्पल? </b></p><p><b>वास्तु </b>शास्त्रत्त् में ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनके माध्यम से घरेलू समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए कुछ वास्तु नियमों का पालन करना होगा, जिससे घर में प्रवेश होने वाली नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और आपके घर में सुख-शांति बनी रहेगी। वास्तु केइन उपायों में जूते-चप्पल को सही जगह पर रखना भी शामिल है। घर में जूते रखने के लिए एक तय स्थान चुनें। जहां पर परिवार के सभी सदस्य अपने जूते-चप्पल आसानी से पहन और उतार सकें। जिन लोगों के घर में जूते इधर-उधर बिखरे रहते हैं, वहां शनि की अशुभता का प्रभाव रहता है। शनि को पैरों का कारक माना गया है, इसलिए पैरों से संबंध रखने वाली किसी भी वस्तु को साफ-सुथरा और यथाक्रम रखना चाहिए। किसी से जूते गिफ्ट में न लें अन्यथा उसका अभाग्य आपके भाग्य का नाश कर देगा। </p><p><b>आर्थिक हानि की आशंका</b></p><p>वास्तु शास्त्रत्त् के अनुसार जिस घर में गंदगी रहती है, वहां कई प्रकार की आर्थिक हानि होती है और हमेशा पैसों की तंगी बनी रहती है। जब भी हम कहीं बाहर जाते हैं, तब हमारे जूते-चप्पलों में गंदगी लग जाती है, जिसे लेकर हम घर आ जाते हैं। काफी लोग घर में जूते-चप्पल पहनते हैं, जबकि शास्त्रों के अनुसार घर में नंगे पैर ही रहना चाहिए, क्योंकि घर में कई स्थान देवी-देवताओं से संबंधित होते हैं। उनके आसपास जूते-चप्पल लेकर जाना शुभ नहीं माना जाता। </p><p>उल्टे पड़े जूते-चप्पलों को वास्तु दोष का बड़ा कारण माना जाता है, इन्हें हमेशा सीधा ही रखना चाहिए। कभी भी जूते-चप्पल को मंदिर और रसोईघर के आस-पास नहीं रखना चाहिए। जूते-चप्पल के लिए घर की देहरी के थोड़ी दूर या आंगन में लकड़ी की छोटी अलमारी रखी जा सकती है। मान्यता है कि देहरी को जितना पवित्र रखा जाएगा, उतनी ही घर में बरकत होने के साथ लक्ष्मी का आगमन बना रहेगा। </p><p>जूते-चप्पल घर के बाहर या घर के अंदर ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां से गंदगी पूरे घर में न फैले। घर के बाहर भी जूते-चप्पलों को व्यवस्थित ढंग से ही रखा जाना चाहिए। </p>
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[ "वाह चीज कहिए जनाब!", "चीज का नाम लेते ही कैसे मुंह में पानी आने लगता है ना? अगर चीज आपको भी पसंद है तो क्यों ना इससे कुछ स्वादिष्ट डिशेज बनाई जाएं! चीज से बनने वाली कुछ रेसिपीज, बता रही हैं श्रेष्ठा दुबे" ]
<p><b>सामग्री</b></p><p>● ब्रेड-5 स्लाइस, ● चिली सॉस- 1 चम्मच, ● कद्दूकस किया चीज- 3/4 कप, ● बारीक कटी शिमला मिर्च- 1/4 कप</p><p>● टोमैटो केचअप-1 चम्मच, ● बटर-2 चम्मच</p>
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[ "आसान नहीं एटिटॺूड बदलना" ]
<p>कहते हैं वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है। पर, एक नया अध्ययन इस बात को गलत कह रहा है। एसोसिएशन ऑफ साइकोलॉजिकल साइंस के द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक हमारी भावनाओं पर आधारित कुछ एटिटॺूड जिंदगी भर एक जैसे ही रहते हैं। इससे पहले माना जाता था कि सिर्फ तथ्यों पर आधारित हमारी भावनाओं में बदलाव नहीं आता है। </p>
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[ "विधि" ]
<p>चिली चीज टोस्ट बनाने के लिए एक कटोरी में चीज, चिली सॉस, शिमला मिर्च, टोमैटो केचअप और एक चम्मच बटर डालकर अच्छी तरह से मिला दें। ब्रेड के सभी स्लाइस पर इस मिश्रण को फैला दें। नॉनस्टिक पैन को गर्म करें और उसके ऊपर हल्का सा बटर डालें। पैन के ऊपर ब्रेड स्लाइस को रखें। पैन को ढक दें और स्लाइस को धीमी आंच पर चीज के पिघलने तक पकाएं। टोस्ट को बीच से काटकर तिकोना आकार दें और मनपसंद सॉस के साथ गर्मागर्म सर्व करें।</p>
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[ "चीज डोसा" ]
<p><b>सामग्री</b></p><p>● डोसा का घोल- 1.5 कप, </p><p>● बारीक कटा प्याज- 1 , ● बारीक कटा टमाटर- 1, ● काली मिर्च पाउडर-चुटकी भर, ● कद्दूकस किया चीज-1/2 कप, </p><p>● बारीक कटी धनिया पत्ती-3 चम्मच, ● ऑरेगेना-2 चम्मच, </p><p>● तेल- आवश्यकतानुसार</p>
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[ "विधि" ]
<p>डोसा के घोल को पहले चम्मच की मदद से अच्छी तरह से मिला दें। अगर घोल फ्रिज में रखा हुआ है तो उसे सामान्य तापमान पर आने दें। डोसा तवा गर्म करें और उस पर आधा चम्मच तेल फैलाएं। आप ब्रश की मदद से भी तवे पर तेल लगा सकती हैं। जब पैन गर्म हो जाए तो आंच धीमी कर दें और एक कटोरी डोसा घोल पैन के बीच में डालकर उसे गोल आकार में फैलाएं। धीमी आंच पर डोसा को पकाएं। जब डोसा एक ओर से पकने लगे तो उसके ऊपर थोड़ा-सा प्याज और टमाटर डालें। ऑरिगैनो, काली मिर्च और धनिया पत्ती भी छिड़कें। अंत में प्याज और टमाटर के ऊपर कद्दूकस किया चीज डालें। डोसा के किनारे में तेल डालें और धीमी आंच पर पकाएं। जब चीज पिघलने लगे और डोसा का रंग सुनहरा हो जाए तो उसे दोनों ओर से फोल्ड करें और नारियल चटनी व सांबर के साथ गर्मागर्म सर्व करें।</p>
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[ " कुछ और भी बातें याद रखें" ]
<p>● वास्तुशास्त्रत्त् में बताया गया है कि कभी भी गिफ्ट में मिले हुए जूतों को नहीं पहनना चाहिए। </p><p>● शनिवार को जूते-चप्पल नहीं खरीदने चाहिए। </p><p>● शनि खराब चल रहा है तो शनिवार को शनि मंदिर में जूते-चप्पल किसी जरूरतमंद को दान करें। </p><p>● जूते-चप्पलों का चोरी होना शुभ शगुन माना जाता है। </p><p>● कमरे में बायीं ओर चप्पल उतार कर अंदर जाना चाहिए। </p><p>● जूतों के रखने का स्थान घर के प्रमुख व्यक्ति के कद का एक चौथाई यानी डेढ़फुट से ज्यादा न हो। </p><p>● सीढ़ियों के नीचे कभी भी जूते-चप्पल न रखें।</p><p>● दरवाजे के सामने या आसपास कभी भी जूते-चप्पल ना रखें। </p><p>● इसी तरह पलंग के नीचे भी कभी जूते ना रखें। </p>
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[ "मन्नू मैडम बता रही हैं" ]
<p> ● चीज को कद्दूकस करना क्या आपको भी मुश्किल भरा काम लगता है? जवाब अगर ‘हां’ है, तो अब से चीज को कद्दूकस करने से पहले 20 मिनट के लिए फ्रीजर में रख दें। ऐसा करने से कद्दूकस करते वक्त चीज चिपचिपा नहीं होगा।</p><p>● अगर आप चीज वाली कोई ग्रेवी बना रही हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि चीज सॉस को आपको एकदम धीमी आंच पर पकाना है। वरना सॉस बिल्कुल ऑयली और चिपचिपा हो जाएगा। </p><p>● चीज की कई वेरायटी हैं और उतनी ही अलग है प्रत्येक चीज की प्रकृति। मॉजरेला जैसे कुछ चीज पिघलाने केलिए ही बने होते हैं। ग्रिल्ड चीज टोस्ट जैसी रेसिपीज के लिए इसी तरह के चीज का चुनाव करें।</p><p>● कद्दूकस किए हुए चीज से गार्निश करना चाहती हैं, तो सर्व करने से ठीक पहले</p><p>तैयार डिश में डालें।</p>
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[ "डलहौजी: कुदरत के अलमस्त नजारे यहां ", "डलहौजी जाना मानो किसी परियों के कस्बे में कदम रखना है। इसके करीब ही है देवदार के पेड़ों से घिरा खज्जियार, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से भी जाना जाता है। इस हिल स्टेशन की यात्रा से जुड़े अनुभव साझा कर रही हैं प्रीति शुक्ला" ]
<p>तो हिमालय का कोई भी स्थान खूबसूरती में कम नहीं है, लेकिन इनमें से कुछेक पहाड़ के कस्बाई सौंदर्य को लेकर खास लोकप्रिय हैं। डलहौजी उनमें से एक है। मैं करीब बारह साल से दिल्ली में हूं और डलहौजी यहां से 500 से कुछ ज्यादा किलोमीटर की दूरी पर ही है, लेकिन डलहौजी जाते-जाते प्रोग्राम कई बार आधा रह जाता था। आखिरकार यहां जाने का मौका मैंने निकाल ही लिया। यहां पहुंचकर मुझे लगा कि पहाड़ी खूबसूरती, खासकर हिमाचल की कुदरती खूबसूरती को आप जितना देखें, उतना कम है। मानो कदम-कदम पर प्रकृति ने सुंदरता के एक से बढ़कर एक नमूने बिखेर दिए हों।</p><p><b>पहाड़ी कस्बे का अनूठा सौंदर्य</b></p><p>दरअसल हम निकले थे आपाधापी में। इसलिए बस डलहौजी किसी तरह पहुंचने का टारगेट बना लिया था। यहां आकर हम पूरी तरह मस्ती में आ गए थे। साफ आबोहवा, दिल्ली की चिल्ल-पौं से अलग शांत-सी शहरी गतिविधियां, पहाड़ों पर करीने से उगे देवदार के पेड़, रोमांचक मोड़ वाले पहाड़ी गोल-गोल घूमते रास्ते। रास्ते में कई स्थानीय तौर-तरीके भी आपका मन मोहते हैं। जैसे टट्टुओं पर सामान लादकर ऊपर पहाड़ी पर ले जाते स्थानीय निवासी। एक अजीब सी शांति मिलती है पहाड़ की सड़कों पर। </p><p>चूंकि यह ब्रिटिशकाल का पहाड़ी कस्बा है, इसलिए अभी भी वहां के पुराने चर्च और सड़कों के नाम ब्रिटिशकाल की ही याद दिलाते हैं। यह गर्मियों के मौसम में अंग्रेजों का प्रिय हिल स्टेशन हुआ करता था, क्योंकि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और आबोहवा अंग्रेजों को खूब रास आती थी। अब तो डलहौजी, हनीमून वाले जोड़ों, दोस्तों के झुंड, बाइक सवारों के लिए एक लोकप्रिय टूरिस्ट स्पॉट है। हमने अपना सारा सामान होटल में रखा और चाय वगैरह पीने के बाद यूं ही टहलने चल पड़े। </p><p>हमारे गाइड ने हमें दूसरे दिन सुबह तैयार रहने को कहा था। मीठी -मीठी सी सर्दी और पहाड़ी धुंध के बीच अपनी बाकी दिनचर्या भुलाकर साफ-सुथरी माल रोड पर चलते हुए हमने वहां की जिंदगी को पास से समझने की कोशिश की। सच में किसी भी पहाड़ी टाउन की शाम अंधाधुंध भाग रहे शहर की शामों से बेहद अलग होती है। मानो दिन अब सुकून से वादी की गोद में सोना चाहता हो। </p><p><b>पंचपुला का रोमांच</b></p><p>वैसे तो डलहौजी में आप यूं ही रहिए, तो भी पर्यटन का पूरा मजा आता है। लेकिन कुछ स्थल विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इन्हें देखने के लिए हर साल मार्च महीने के बाद से सैलानी आने लगते हैं। चूंकि यह छुट्टियों का समय होता है, इसलिए इस समय यहां भीड़ भी बढ़ने लगती है। जैसे पंचपुला है। दूसरे दिन हमने यहीं से शुरुआत की। यहां बर्फबारी के दिनों में बहुत खूबसूरत समां बनता है। यहीं से पचास किलो मीटर दूर सतधारा वाटरफॉल है। पंचपुला में ट्रैकिंग और दूसरे अन्य एडवेंचर एक्टिविटी भी खूब होती हैं। इसके चलते यहां पर्यटकों की खूब भीड़ देखने को मिलती है। डलहौजी में यहां रोप वे भी है। हालांकि हमें उसके चार्जेज काफी ज्यादा लगे। पर अगर आप इसका लुत्फ लेना चाहें, तो यह एक रोमांचक अनुभव होता है। एक चीज आपको यहां खूब मिलेगी, वह है चाय की दुकानें। </p><p>दरअसल, यहां का मौसम ऐसा होता है कि आपको हर बार चाय पीने की इच्छा भी होती है और इसी बहाने पहाड़ी रास्तों की थकान थोड़ी देर रुक कर उतार लेते हैं। तो, चाय पीकर हम सुस्ताने के मूड में आ गए थे कि गाइड ने हमें खजियार जाने के बारे में पूछा। इसके लिए सुभाष चौक जाना पड़ता। हम ना-नुकुर करना चाहते थे, लेकिन गाइड ने खज्जियार की इतनी तारीफ की कि हम वहां के लिए कमर कस कर तैयार हो चुके थे, पर अगली सुबह के लिए। सुभाष चौक से आपको खज्जियार के लिए हर तरह की सवारी मिल जाएगी। </p><p>गर्मियों में यह केवल 22 किलोमीटर का रास्ता होता है। हालांकि बर्फबारी के दिनों में कई बार रास्ता बदलना पड़ता है और चंबा होकर निकलना होता है। खज्जियार हम अल सुबह निकल पड़े। पूरा दिन बिताकर देर रात वापस अपने होटल पहुंचे। और पहुंचते ही हम सबने वापसी की पैकिंग भी शुरू कर दी थी। दूसरे दिन सुबह हमें दिल्ली के लिए बाई रोड निकलना था। </p><p><b>यूं</b></p>
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[ "यूट्यूब पर तकनीक के स्टार हैं शैलेंद्र", "मध्य वर्गीय परिवार से आने वाले शैलेंद्र कुमार सिंह ने कुछ साल पहले शौकिया तौर पर तकनीक पर आधारित अपना एक यूटॺूब चैनल शुरू किया था। अब उसी के माध्यम से वो लोगों को मुफ्त में ग्राफिक्स के साथ अन्य तक नीक का ज्ञान बांट रहे हैं और मशहूर हो रहे हैं" ]
<p><b>बहुत से </b>लोग अपनी मेहनत और संघर्ष के बलबूते अपने भाग्य के पहियों को अपने जुनून के साथ गति देने में कामयाब रहे हैं। 27 वर्षीय शैलेंद्र कुमार सिंह की कहानी भी कुछ इसी तरह की है, जिन्होंने ग्राफिक्स की बारीकियों को इंटरनेट से सीखा और फिर अब उसी ज्ञान को लोगों को सिखा रहे हैं। उनके वीडियो में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया से संबंधित विषयों पर कई सारे टिप्स और ट्रिक्स शामिल हैं। </p><p><b>अपने जुनून को जगाए रखा</b></p><p>छत्तीसगढ़ के एक छोटे शहर अंबिकापुर से आने वाले शैलेंद्र यूं तो एंथ्रोपोलॉजी में स्नातक हैं, मगर वह स्कूल के समय से ही ग्राफिक डिजाइनिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग और प्रमोशन तकनीक में रुचि रखने लगे थे। वह डिजिटल प्लेटफॉर्म को लेकर काफी जिज्ञासु थे, इसलिए इंटरनेट से ही कु छ न कुछ सीखते रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, क्योंकि शैलेंद्र की मां ही परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य थीं। शैलेंद्र की एक बड़ी बहन भी हैं। इस स्थिति में कुछ भी अलग करना उनके लिए मुश्किल था। कम उम्र में कठिनाइयों ने उन्हें परिपक्व बना दिया। अब शैलेंद्र का एकमात्र उद्देश्य अपने परिवार को इस न खत्म होने वाले संघर्ष से बाहर निकालना था। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वह ग्राफिक डिजाइनिंग में अपने कौशल का उपयोग खुद के लिए करेंगे। इसी जुनून से उनको अपने सपने को पूरा करने के लिए हिम्मत मिली। </p><p><b>इंटरनेट से मिली मदद</b></p><p>हालांकि फोटो एडिटिंग एक्सपर्ट के रूप में शैलेंद्र के शुरुआती वर्ष आसान नहीं थे। इसलिए उन्होंने अपने कौशल को निखारने के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत की। खुद की समझ और इंटरनेट से उन्होंने अपनी रचनात्मकता को सुधारा। इसके बाद ये अन्य लोगों को भी ग्राफिक्स आदि की जानकारी देने लगे। अपनी यात्रा पर शैलेंद्र कहते हैं, ‘एक बार जब मुझे अपने ज्ञान के बारे में विश्वास हो गया, तो मैंने अपना ज्ञान साझा करने के लिए एक FBStoreSR नाम से यूटॺब चैनल शुरू किया। इसने न केवल हर तरह से विकास में मेरी मदद की, बल्कि मुझे कमाई के रास्ते भी दिए। इसके साथ मेरी लोकप्रियता भी कई गुना बढ़ गई।’ शैलेंद्र ने बिना किसी बाहरी मार्गदर्शन के नाम और शोहरत हासिल की है। संसाधन की कमी के बावजूद, उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से सफलता का मार्ग खोज लिया है। वह कहते हैं,‘डिजिटल क्रांति के साथ छोटे शहरों के युवाओं को सफलता हासिल करने के लिए बड़े शहर में जाने की जरूरत नहीं है। अब कहीं से भी आप अपने हुनर को देश-दुनिया तक पहुंचा सकते हैं।’ <b>फीचर डेस्क</b></p><p>● सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शैलेंद्र, सोनू राजपूत के नाम से जाने जाते हैं। </p><p>● बतौर तकनीकी विशेषज्ञ (ग्राफिक डिजाइनर) और यूटॺूबर शैलेंद्र सोशल मीडिया पर बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। उनके यूटॺूब चैनल से पांच लाख से भी अधिक लोग जुड़ चुके हैं, वहीं इंस्टाग्राम पर 820 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। </p><p>● वे कई ब्रांड से भी जुड़ चुके हैं, जिससे उनकी कमाई भी हो रही है। </p><p>● यूटॺूब समेत विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तकनीक आधारित उनके ट्यूटोरियल इसलिए वायरल हो जाते हैं क्योंकि वे तकनीक की कठिन चीजों को भी आसान भाषा में समझाते हैं। मतलब सोशल मीडिया से जुड़े जटिल विषयों को सरल तरीके से समझाना शैलेंद्र की यूएसपी है।</p><p>● शैलेंद्र के सभी वीडियो में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया से संबंधित अन्य विषयों पर ढेर सारीे टिप्स और ट्रिक्स शामिल हैं। </p>
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[ "04 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021" ]
<p><b>पं. राघवेन्द्र शर्मा</b></p><p>जाने-माने एस्ट्रोलॉजर</p><p><b>मेष </b><b>(21 मार्च-20 अप्रैल) </b></p><p>आत्म संयत रहें। धैर्यशीलता को बनाए रखने का प्रयास करें। वाणी में कठोरता के प्रभाव से बचें। नौकरी में परिवर्तन के योग भी बन रहे हैं। किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन भी संभव है। खर्चों में वृद्धि होगी। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। </p><p><b>तुला </b><b>(2३ सितंबर-2३ अक्तूूबर) </b></p><p>आत्मविश्वास में कमी रहेगी। मन अशांत रहेगा। पारिवारिक जीवन कष्टमय हो सकता है। माता का साथ मिलेगा। कारोबार में अभी कठिनाइयां रहेंगी। कारोबार में परिवर्तन की भी संभावना बन रही है। किसी मित्र का सहयोग मिल सकता है। </p><p><b>वृष </b><b>(21 अप्रैल-20 मई) </b></p><p>मन अशांत रहेगा। क्रोध व आवेश के अतिरेक से बचें। परिवार का साथ मिलेगा। शैक्षिक कार्यों की स्थिति में सुधार होगा। संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। जीवनसाथी का साथ मिलेगा। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कार्यक्षेत्र में कठिनाई संभव है।</p><p><b>वृश्चिक </b></p><p>आत्मविश्वास से लबरेज तो रहेंगे, परंतु धैर्यशीलता में कमी हो सकती है। कला या संगीत में रुचि बढ़ सकती है। नौकरी में अधिकारियों से व्यर्थ वाद-विवाद से बचें। कारोबार की स्थिति में सुधार होगा। लाभ के अवसर भी मिलेंगे। सेहत का ध्यान रखें। </p><p><b>धनु </b><b>(2२ नवंबर-2१ दिसंबर) </b></p><p>आत्मविश्वास में कमी रहेगी। ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। किसी पुराने मित्र का आगमन हो सकता है। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। संतान के स्वास्थ्य का अभी ध्यान रखें। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। </p><p><b>मिथुन </b><b>(21 मई-2१ जून) </b></p><p>मानसिक शांति रहेगी, पर आत्मविश्वास में कमी रहेगी। रोजगार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। आय में कमी रहेगी। व्यर्थ के कार्यों में व्यस्तता हो सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। यात्रा खर्च बढ़ सकते हैं। </p><p><b>मकर </b></p><p>आत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परंतु मन अशांत भी रहेगा। धैर्यशीलता बनाए रखने का प्रयास करें। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं, परंतु जीवनसाथी के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। कारोबार में किसी मित्र का सहयोग मिलेगा। </p><p><b>कर्क </b><b>(2२ जून-2३ जुलाई)</b></p><p>आत्मविश्वास में कमी आएगी। संयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। कारोबार के विस्तार में किसी मित्र का सहयोग मिल सकता है। कारोबार में वृद्धि होगी। पिता से आर्थिक सहयोग मिल सकता है। सेहत का ध्यान रखें। खर्चों में वृद्धि होगी।</p><p><b>कुंभ </b><b>(2० जनवरी-१८ फरवरी) </b></p><p>मानसिक शांति तो रहेगी, परंतु आत्म विश्वास में कमी भी रहेगी। बातचीत में भी संतुलित रहें। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। पिता का साथ मिल सकता है। किसी मित्र के सहयोग से आय के अन्य स्रोत विकसित हो सकते हैं।</p><p><b> सिंह </b><b>(2४ जुलाई-2२ अगस्त) </b></p><p>मन अशांत रहेगा। क्रोध के अतिरेक से बचें। आत्मविश्वास में कमी आएगी। शैक्षिक कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं। कारोबार पर ध्यान दें। आय में कमी आ सकती है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। संपत्ति में वृद्धि हो सकती है। किसी मित्र का सहयोग मिलेगा।</p><p><b>मीन </b><b>(१९ फरवरी-20 मार्च)</b></p><p>आत्म संयत रहें। अपनी भावनाओं को वश में रखें। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। माता का सान्निध्य मिलेगा। कारोबार में विस्तार के योग बन रहे हैं। पिता से आर्थिक सहयोग मिल सकता है। आय में वृद्धि होगी। परिश्रम भी अधिक रहेगा।</p><p><b>कन्या </b><b>(2३ अगस्त-2२ सितंबर) </b></p><p>आत्मविश्वास में कमी रहेगी। मन परेशान रहेगा। अपनी भावनाओं को वश में रखें। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। वस्त्रों आदि के प्रति रुझान बढ़ सकता है। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। </p>
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[ "खबसूरत खज्जियार" ]
<p><b>खबसूरत खज्जियार</b></p><p>खज्जियार को ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है। यह एकदम हरी-भरी प्लेट जैसा एक मैदान लगता है, जिसके बीच में एक खूबसूरत झील और चारों ओर करीने से सजे देवदार के पेड़ आसमान से बातें कर रहे थे। यहां के पेड़ों के बीच-बीच से बर्फ से ढकी पर्वत की चोटियां भी आपसे अठखेलियां करेंगी। यहां से थोड़ा आगे भलनी देवी का मंदिर भी है। है तो यह करीब डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई, पर है थकाने वाली। कहते हैं कि यह डलहौजी का सबसे ऊंचा पॉइंट है। </p><p>चंबा के रूट से खजियार जाने की सोचें, तो यह एक बेहद खूबसूरत सफर होगा। रास्ते में पहाड़ी खेत और सड़क के साथ चलती रावी नदी आपको कई साल याद आती रहेगी। यहां रावी नदी के ऊपर बसे चम्बा में कई पुराने मंदिर हैं। वहां स्थित भरमौर के मंदिर और मणिमहेश झील की अपनी ही खासियत है। </p>
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[ "आमरस से जुड़ी बचपन की यादें", "गर्मी के मौसम में लोग जिस एक फल को सबसे ज्यादा खाना पसंद करते हैं वह है आम। लोग इसे कई तरीकों से खाते हैं, जैसे कभी टुकड़ों में काटकर, तो कभी इसका शेक या लस्सी बनाकर। ऐसी ही एक स्वादिष्ट डिश है आम रस, जो खास गुजरात व राजस्थान के घरों में बनाई जाती है। इस रेसिपी से जुड़ी अपनी कुछ यादें साझा कर रही हैं दीपिका नंदल" ]
<p>झे बचपन से ही आम खाना बहुत पसंद है। एक तरह से गर्मी का मतलब ही हमारे लिए आम था। दरअसल मेरे पिता जैसलमेर के एक रेगिस्तानी गांव रामगढ़ में पले-बढ़े हैं। यह सीमा के पास है, इसलिए आप हमेशा गांव की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर सेना के ट्रक देख सकते हैं। हालांकि रेगिस्तानी गांव होने की वजह से बहुत सारी चीजों की पहुंच वहां कम ही होती है। फल और सब्जियां भी वहां सीमित मात्रा में ही उपलब्ध होती थीं। मेरे दादा जी वहां किराने की दुकान चलाते थे। वैसे भी रेगिस्तानी जीवन का मतलब ही यही होता है कि आपके पास जो कुछ भी है उसी का उपयोग कीजिए। हां, मेरे दादाजी ने कई गायें पाल रखी थीं, इसलिए हम बच्चों के लिए हमेशा दूध और उसके अन्य उत्पाद उपलब्ध रहते थे। लेकिन तब फल और सब्जियां हमारे लिए एक लग्जरी आइटम हुआ करती थीं। मेरे लिए खासकर आम, क्योंकि तब आम की कुछ किस्में ही हमारे गांव तक पहुंच पाती थीं और वह भी बहुत कम समय के लिए।</p><p>मेरे पिता को जैसलमेर से कुछ आम मिलते थे (जैसा कि वहां मुख्य बाजार था), और हम सब को उसी में संतोष करना पड़ता था। घर के पांच बच्चों को रोजाना दो आमों में ही मिल बांट कर खाना होता था। वैसे तो बचपन की कुछ यादें धुंधली हो गई हैं, पर अकसर मेरे पापा बताते हैं कि कै से हम बच्चे आम को लेकर क्रेजी थे। आम का लालच देकर घर वाले हम लोगों से अपना काम भी करवा लेते थे। तब आम हमारे लिए एक खजाने की तरह था, जिसके लिए हम झगड़ भी बैठते थे। </p><p>एक आम तीन भागों में विभाजित होता था। किसी के पास छिलके वाला हिस्सा आता, तो किसी के हिस्से गुठली। इसके लिए भी हमारे बीच खूब झगड़े होते थे। हालांकि इसका तोड़ मेरी दादी ने निकाल लिया था। वो आम रस (आम के गूदे में थोड़ा पानी और चीनी मिला देती थीं) बना देती थीं, जिसे हम पूड़ी या रोटियों के साथ खाते थे। </p><p>मतलब जब भी आम का मौसम आता, हम बच्चों के लिए खाना मतलब केवल आम रस और रोटी थी। दादी ही नहीं, बाद में मेरी मां भी हमारे लिए आम रस बनाने लगी थीं और उस आम रस की हर बूंद हमारे लिए अमृत समान थी। हम सब बड़े चाव से उसे खाते थे। आम तो आज भी पसंद है, और इसकी कई सारी वैरायटी से रूबरू भी हो चुकी हूं, मगर आम रस की दीवानगी अभी भी कायम है। जैसे ही बाजार में आम आने शुरू होते हैं, किचन के मेन्यु में आम की ये डिश भी शामिल हो ही जाती है। </p><p><b>आम रस की रेसिपी</b></p><p>पके हुए आमों को धोकर साफ करें। इसके बाद एक बर्तन में इनका सारा गूदा निकालें। इसके बाद इसे ब्लेंड कर लें, ताकि यह बिल्कुल स्मूद टेक्सचर ले ले। अब इसमें जरूरत के अनुसार पिसी हुई चीनी व पानी डालें और फिर से इसे ब्लेंड करें। आखिर में आप इसमें आम के कुछ छोटे टुकड़े डाल कर सर्व कर सकते हैं। कुछ लोग फ्लेवर के लिए इसमें सौंठ का पाउडर व चुटकी भर नमक भी मिलाते हैं। </p><p><b>मु</b></p>
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[ "नकारात्मकता से खुद को दूर रखती हैं फातिमा", "आमिर खान के साथ फिल्म ‘दंगल’ से फातिमा सना शेख ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में शानदार एंट्री की थी। हालांकि उसके बाद भी उनकी कई फिल्में आई हैं, लेकिन ‘दंगल’ का मुकाबला कोई न कर सकी। पेश है बॉलीवुड में उनके करियर और उनकी फिल्मों को लेकर कुछ चटपटी बातें" ]
<p><b>फा</b></p><p>तिमा सना शेख ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी। इसके अलावा उन्होंने कई टीवी सीरियल और फिल्मों में भी काम किया है। लेकिन उनको असल पहचान मिली फिल्म ‘दंगल’ से, जिसमें उन्होंने गीता फोगाट का किरदार निभाया था, जो दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया गया था। इसके बाद वह ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’, ‘लूडो’, ‘सूरज पे मंगल भारी’ जैसी फिल्मों में भी नजर आईं। इन दिनों वह अपनी नई फिल्म ‘अजीब दास्तान्स’ को लेकर सुर्खियों में हैं। इस फिल्म के सिलसिले में हुई एक बातचीत में फातिमा ने अपनी निजी जिंदगी और अनुभवों को लेकर कई खुलासे किए।</p><p><b>विवादों से रहती हूं दूर</b></p><p>बॉलीवुड में उनके करियर और उनकी फिल्मों को लेकर फिल्मी गलियारों में कई बातें होती हैं, लेकिन वह उन पर ध्यान नहीं देती। उनका कहना है कि वह खुद को नकारात्मक चीजों से दूर रखती हैं और यही कारण है कि वह न तो किसी विवाद में पड़ती हैं और न वेबजह किसी से पंगा लेती हैं। फातिमा कहती हैं,‘हमारी जिंदगी में वैसे ही कई तरह की चीजें होती रहती हैं। ऐसे में अगर हम इस बात पर भी ध्यान देने लगे कि कौन हमारे बारे में क्या बोल रहा है या कौन क्या लिख रहा है, तो जीना दूभर हो जाएगा। कलाकार अपने किरदार के लिए महीनों तक तैयारी करते हैं। ऐसे में उन्हें बाहरी दुनिया में हो रही बातों से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।’</p><p><b>कुछ भी हो, तनाव नहीं आने देती</b></p><p>वह कहती हैं, ‘पिछले साल लॉकडाउन की वजह से मेरे कई प्रोजेक्ट पर असर पड़ा। जिसका मुझे दुख हुआ, लेकिन मैंने खुद को इस बात से तनाव में नहीं आने दिया। मैं हमेशा कोशिश करती हूं कि खुद को काम के बीच में और अच्छे ख्यालों में लगाए रखूं। ज्यादा निगेटिव चीजें न पढूं। एक कलाकार की निजी जिंदगी और उसके काम के बारे में बोलना आसान होता है। ऐसे में अगर आप अपने बारे में कोई गलत खबरें पढ़ते हैं, तो आप पूरा दिन वही सोचते रहते हैं। पिछले साल जब लॉकडाउन में मैं घर पर थी, तो मैंने सोचा कि हम फिर भी खुश किस्मत हैं कि हमारे पास पैसे हैं और परिवार है, जो हर वक्त मेरे साथ खड़ा रहता है। लेकिन उनका क्या जिनके पास कुछ भी नहीं है और न ही कोई बात करने के लिए है।’ </p><p><b>फायदा या नुकसान मायने नहीं रखता</b></p><p>लॉकडाउन के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान हुआ और कई कलाकारों ने इस बारे में बात भी की। जब फातिमा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘अभी हमें अपने फायदे और नुकसान के बारे में कम और इंसानियत के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत है। अभी मैं अपने बारे में नहीं, बल्कि उन लोगों के बारे में सोच रही हूं, जिनके पास कुछ नहीं बचा और उन्हें हमारी मदद की जरूरत है। हालांकि किसी की मदद करना और फिर उसे खबर की तरह फैलाना मुझे पसंद नहीं, क्योंकि दान देना या फिर किसी की मदद करना बहुत ही निजी बात होती है और इसे अपने तक ही रखना चाहिए।’ </p><p><b>बड़े स्टार से फर्क नहीं पड़ता </b></p><p>फातिमा उन चंद कलाकारों में से हैं, जिन्हें महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर आमिर खान तक के साथ काम करने का मौका मिला है। फिर भी वह कहती हैं,‘अच्छा है मुझे ऐसे लोगों के साथ फिल्मेंकरने का मौका मिला और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा भी। लेकिन यकीन मानिए मैंने कभी भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि मेरे साथ कौन काम कर रहा है । मुझे लगता है कि मेरा नसीब बहुत अच्छा है कि मुझे इतने बड़े स्टार के साथ काम करने का मौका मिला, वरना लोग तो उनके साथ काम करने के सपने ही देखते रह जाते हैं। जब आप उनके साथ काम करते हैं, तब आपको समझ आता है कि वह इतने बड़े स्टार क्यों हैं। कई बार जब मैं बड़े स्टार के साथ काम करती हूं, तो बच्ची बन जाती हूं। इतना बचपना दिखाती हूं कि वह भी हंस पड़ते हैं। जैसे कि जब मैं मनोज सर के साथ ‘सूरज पर मंगल भारी’ शूट करती थी, तो रोज उनका इंटरव्यू किया करती थी कि सर आपने उस फिल्म में वह किरदार कैसे किया या फिर आपने वह एक्सप्रेशन कैसे दिया। मैं उनकी हर बात पर ध्यान देती थी कि उन्होंने किस सीन को किस तरह से तैयार किया है।’ </p><p><b>नीलम कोठारी बडोनी</b></p>
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[ "अक्षय चले दोस्ती निभाने" ]
<p><b>कुछ दिनों </b>पहले करण जौहर ने ‘दोस्ताना 2’ से कार्तिक आर्यन को यह कहते हुए निकाल दिया कि उनका रवैया बेहद अनप्रोफेशनल है और वो जानबूझ कर फिल्म की शूटिंग को रोक रहे हैं। हालांकि फिल्म लगभग आधी बन चुकी है। इसके साथ ही करण ने यह घोषणा भी की, कि वे जल्द ही फिल्म को नए हीरो के साथ लॉन्च करेंगे। तुरंत ही यह खबर आने लगी कि इस फिल्म में राजकुमार राव काम कर सकते हैं। </p><p>पर अंदर खाने की खबर है कि करण ‘दोस्ताना 2’ में एक बड़े हीरो को लाना चाहते हैं, जिससे उनकी फिल्म को तगड़ा फायदा मिले। अब बात खुल रही है कि अक्षय कुमार करण से अपनी पुरानी दोस्ती की खातिर ‘दोस्ताना 2’ में काम करने को राजी हो गए हैं। यही नहीं, अक्षय कार्तिक से इसलिए भी नाराज चल रहे थे कि ‘भूल भुलैया 2’ में काम करने के लिए कार्तिक ने उनसे इजाजत नहीं मांगी। बॉलीवुड के सीनियर एक्टर जूनियर कलाकारों से यह अपेक्षा रखते हैं कि वे उनका कोई भी काम लेने से पहले एक बार बात साफ कर लें। फिलहाल तो यही लग रहा है कि कार्तिक को करण से पंगा लेना भारी पड़ गया है। आगे-आगे देखिए होता है क्या?</p>
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[ "देसी फिल्मों का ऑस्कर्स सपना ", "93वें एकेडमी अवॉर्ड (ऑस्कर्स अवॉर्ड) के नॉमिनेशंस की घोषणा पिछले महीने ही हो चुकी है। हालांकि इस बार भी इसमें किसी भारतीय फिल्म को जगह नहीं मिल पाई है। अब सवाल यह है कि आखिर क्यों भारतीय फिल्में ऑस्कर्स के लिए नामित नहीं हो पा रहीं। पेश है देसी फिल्मों के ऑस्कर्स में शामिल न हो पाने की पड़ताल करता एक आलेख" ]
<p>डिंग में ऑस्कर्स अवॉर्ड लिखा देख हो सकता है फिर से कोई भारतीय फिल्मों को कोस रहा होगा कि हम ऑस्कर्स की दौड़ में फिसड्डी क्यों हैं! इसलिए पहले ही साफ कर दूं कि ऐसा कोई इरादा नहीं है। सच मानिये, फिल्मों के प्रति भारतीयों का प्रेम संकलित करने के लिए किसी महाग्रंथ के लेखन का सा ध्येय चाहिए, जिसके आगे ऑस्कर की ट्रॉफी कुछ खास मायने नहीं रखती। और शायद बाकियों की तुलना में हम उसे गंभीरता से लेते भी नहीं हैं। यकीन न हो तो खुद से ही पूछकर देखिये कि इस साल ऑस्कर्स के लिए कौन सी फिल्में भेजी गईं? या पिछले साल कौन-सी फिल्म गई थी? या वो कौन-सी अंतिम भारतीय फिल्म थी, जिसे ऑस्कर्स में नामांकन मिला था? </p><p>जबकि फिल्मों के निर्माण में हम पूरी दुनिया में सबसे अव्वल (2 हजार से अधिक फिल्में) हैं। टिकट बिक्री में हमने हॉलीवुड को एक दशक पहले पछाड़ दिया था। दुनिया में दूसरी सबसे पुरानी फिल्म इंडस्ट्री हमारी है। ऐसे ढेरों रोचक तथ्यों के साथ एक शानदार इंफोग्राफिक तैयार हो सकता है, ये बताने के लिए भारतीय सिनेमा में हर वो बात है, जो किसी भी अन्य प्रतिष्ठित फिल्म इंडस्ट्री में देखी जाती है। इसके बावजूद हमारी फिल्में ऑस्कर्स के नामांकन तक में क्यों चूक जाती हैं? ये जानने के लिए शायद हमें ‘उसे’ बुलाना होगा। हां, वही जो यह काम करने में माहिर है। जिसके काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है। अपनी पे आ जाए तो वह अपनी भी नहीं सुनता। ठीक है, तो कहां मिलेगा वो? मीटिंग रूम से कैमरा शिफ्ट होता है दूर-दराज किसी रेगिस्तान में या बियाबान जंगल में। अंधेरी गलियां या कोई बर्फीली चोटी भी हो सकती है, जहां वो अनमने ढंग से बैठा मिलेगा। मुश्किल से मुश्किल चुनौतियों को हल करने के लिए अवतरित हीरो के लिए कुछ ऐसी सिचुएशन दिखाई जाती है। और आश्चर्यजनक रूप से समस्या हल भी हो जाती है। लेकिन विश्वास कीजिए ऑस्कर्स के लिए ऐसे किसी फंडे की हमें जरूरत नहीं है, क्योंकि... </p><p><b>चुनाव बना चुनौती</b></p><p>ऑस्कर्स के लिए कौन-सी फिल्म भेजी जाए, एक तर्कपूर्ण विषय रहा है। 1974 में एम. एस सत्थ्यू की ‘गरम हवा’ 47वें ऑस्कर अवॉर्ड्स में भेजी गई थी, जबकि 1973 में अमिताभ की ‘सौदागर’ को भेजा गया था। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब सिर्फ फिल्म का नाम देखकर चर्चा की जा सकती है कि फलां फिल्म का चुनाव सही था या गलत। मसलन, 1994 में शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ के चार साल बाद रोबोट वाले शंकर की ‘जींस’ भेजी गई। कुछ प्रशंसा प्राप्त समीक्षाओं के अलावा कोई अन्य कारण नहीं था, सिवाय इसके कि यह उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी। फिर ‘लगान’ (2001) के सफल नामांकन के बाद ‘देवदास’ (2002) भेजी गई, जो भव्यता, चमक-दमक और अप्रत्याशित सफलता के कुछ अनिवार्य से समझे जाने वाले पैमानों पर खरी उतरती थी, लेकिन नामांकन फिर भी ना पा सकी। इस बार 93वें ऑस्कर के लिए मलयालम फिल्म ‘जलिकट्टू’ को भेजा गया था, जिसे नामांकन नहीं मिला। अभी ऐसी कोई फिल्म जिसकी स्वीकृति एक स्वर में प्राप्त हो, का इंतजार लंबित है। </p><p><b>भेदभाव हावी या रणनीति में कमी</b></p><p>30वें से 93वें ऑस्कर तक ऐसे कई मौके रहे होंगे, जब महसूस हुआ होगा कि इस बार ज्यूरी आसानी से हमारी प्रविष्टि को नकार नहीं सकेगी। पर ये भी साफ नहीं है कि सत्यजीत रे की महान कृति ‘चारुलता’ (1964) को क्यों नहीं भेजा गया था या 37वें आयोजन के लिए कोई भी फिल्म क्यों नहीं गई थी। हालांकि 30वें ऑस्कर में गई महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ को पहले ही प्रयास में नामांकन मिल गया था, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह से ब्रिटिश और कुछ विदेशी समीक्षकों ने इस फिल्म पर टिप्पणी की, उससे उपहास की बू आती है। और शायद तभी से भारतीय फिल्मों को एक खास चश्मे से देखा भी जाने लगा। बावजूद इसके जापान (12 बार), इजराइल (10 बार) और मैक्सिको (8) जैसे गैर यूरोपियन देशों की फिल्मों ने इस मिथक को तोड़ते हुए कई बार नामांकन पाया है। </p><p> फिल्म भेजने और नामांकन के पूरे दौर के बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात रणनीति को लेकर रहती है, जिसमें फिल्म का प्रचार और प्रतिष्ठित गणों तक अपनी बात पहुंचाने की कला का बहुत महत्व होता है। इस कला को ‘लॉबिंग’ कहते हैं, जिसके लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। ‘लगान’ के समय में आमिर खान इस युक्ति से परिचित हो चुके थे। </p><p>इसलिए मन खट्टा करना व्यर्थ होगा। सही यही होगा कि एम्मी अवॉर्ड पुरस्कृत शेफाली शाह की वेब सिरीज ‘दिल्ली क्राइम’ जैसी बेहतरीन प्रस्तुतियों के युक्तिपूर्ण चयन पर जोर हो और खेमों के भेदभाव की परवाह किए बगैर एक सशक्त प्रचार-तंत्र तथा सॉलिड लॉबी पर जोर दिया जाए। तब तक कल होने वाले 93वें ऑस्कर्स समारोह का तड़के उठकर मजा लिया जाए। </p><p><b>विशाल ठाकुर</b></p><p><b>हे</b></p>
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[ "यामी हो गई हैं वाचाल" ]
<p><b>यामी </b>को अपने दिल की बात कहने में पूरे नौ साल लग गए। यानी यामी को हिंदी फिल्मों में काम करते हुए नौ साल हो गए। पहले चुपचुप रहने वाली यामी अब खूब बोलने लगी हैं। अपने दिल में कुछ नहीं रखतीं। उनका कहना है,‘अब मुझे पता चल गया है कि इंडस्ट्री में कैसे रहना है।’ पिछले साल ओटीटी पर उनकी फिल्म ‘गिनी वेड्स सनी’ आई थी, जिसमें उनका काम पसंद भी किया गया। अब यामी ‘भूत पोलिस’ को फाइनल टच देने में लगी हैं। फिल्म में वो सैफ अली खान और अर्जुन कपूर के साथ नजर आएंगी। यामी गौतम के साथ काम करने वाले एक शख्स की मानें तो पुलकित शर्मा के साथ ब्रेकअप करने के बाद यामी तेजी से अपने करियर पर काम कर रही हैं। अगर सब ठीक रहा, तो जल्द ही वो एक बड़े खान के साथ भी काम करती नजर आएंगी।</p>
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[ "‘तेहरवीं पर..... " ]
<p><b>‘तेहरवीं </b>पर ऐसे सवाल नहीं करते। ये तेहरवीं का खाना है और तुम्हें कचौड़ियों के स्वाद की पड़ी है? अब भला नए साल के पहले दिन कौन किसकी तेहरवीं पर जाएगा, समझो न? क्रिया करम तो हो गया, बताओ अब क्या करना है?’ रंगमंच और फिल्मों में समान रूप से सक्रिय अभिनेत्री सीमा पाहवा द्वारा निर्देशित ‘रामप्रसाद की तेहरवीं’ में ऐसे ढेरों सवाल हैं, जो किसी बुजुर्ग के देहांत के बाद परिस्थितिवश शायद हर भरे-पूरे घर-परिवार में देखने-सुनने को मिलते होंगे। रामप्रसाद भार्गव (नसीरुद्दीन) की अचानक मृत्यु की खबर सुनकर सारा परिवार लखनऊ स्थित अपने पुश्तैनी घर आ पहुंचा है। अम्मा (सुप्रिया) आने वालों को बता रही हैं कि ‘क्या हुआ था’? इस वर्णन में जब कोई बहू विघ्न डालती है, तो उनके निराशाभरे भाव ‘खा’ जाने वाले होते हैं। माने शोक की घड़ी ना होती तो तबीयत से बतातीं कि रजाई-गद्दे के लिए टेंट वाले का नंबर भी क्या उन्हीं से पूछा जाएगा? </p><p>खैर, क्रिया करम के बाद सवाल उठा कि तेहरवीं की जाए या चार दिन में सब संपन्न, क्योंकि घर के सदस्यों में से कुछ को लगता है कि न्यू ईयर पर तेहरवीं में आके कौन अपना नया साल शुरू करेगा? यूं तो घर के बड़ों में ताऊजी (राजेन्द्र गुप्ता) भी हैं, जिन पर शफ्फाक किरकिटिया रंग अब भी बरकरार है, लेकिन नोटिस लिया जाता है गर्म खून वाले मामाजी (विनीत कुमार) की बात का, जो बात-बात में कूद से पड़ते हैं। ये कहते हुए कि जब तक इस घर में जीजी (रामप्रसाद की पत्नी) है, तब तक तो मैं बोलूंगा। बड़ा बेटा गजराज (मनोज), बाकी भाइयों मनोज (निनाद) और पंकज (विनय) संग मामाजी को बाकस में कर लेता है। पर निशांत उर्फ नीटू (परमब्रत) इनमें सबसे अलग है और उसकी पत्नी सीमा (कोंकणा) को घर की महिला बिग्रेड ने ‘अलग’ समझा हुआ है। दोनों पर ‘बम्बईवाला’ होने का ठप्पा लगा है। </p><p>मोटे तौर सीमा पाहवा की इस कहानी में कोई भी परफेक्ट नहीं है। इस पारिवारिक व्यूह रचना में एक समूह हमेशा ही शिकायतों की पोटली थामे रहता है। घर की बहुओं प्रतिभा (सादिया सिद्दिकी), सुलेखा (दिव्या जगदले) और सुषमा (दीपिका अमीन) की कानाफूसी समझी जा सकती है, लेकिन घर की बड़ी बेटी रानी जीजी (अनुभा फतेहपुरा) तो बरसों से मुंह फुलाए हैं, कभी भी फट पड़ती हैं। खिलंदड़े स्वभाव के राहुल (विक्रांत) और समय (सावन टांक) के लिए ये मौका फैमिली रियूनियन से ज्यादा कुछ नहीं है। घर के दामाद प्रकाश (ब्रिजेन्द्र काला) और बसंत (श्रीकांत वर्मा) का काम हलवाई की भट्टी के पास खड़े रहना भर है। ये देखना रोचक है कि इतने सारे किरदारों के बावजूद निर्देशक ने हर कलाकार को अच्छे से जगह दी है और भावनात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं के साथ इस फैमिली ड्रामा को अच्छे से बुना है। यह एक औसत से थोड़ी बेहतर फिल्म ही कही जा सकती है, जिसके किरदारों का अस्तित्व अधपका और कुछ गुमशुदा-सा है। </p><p>गजराज अपनी मां को ‘घुन्नी’ कह जाता है और नशे में अपने भाइयों को बताता है कि उसने मां-बाबूजी को कैसे-कैसे देखा था। ये उसकी भड़ास है या कुछ और? ये सुनकर नीटू असहज हो जाता है। ये साफ नहीं है कि छोटी बेटी धानी (सारिका सिंह) अपनी मां की ‘साइड’ क्यों है और क्या वजह है कि पूरा परिवार सीमा से इतना खफा है। आखिर सीमा ने नीटू के साथ ऐसा क्या किया था। हालांकि ज्यादातर किरदारों में आकर्षण है और अभिनय भी उन्होंने दमदार किया है। किसी बड़े बुजुर्ग के चले जाने के बाद गमगीन माहौल में भी पीठ पीछे कैसी चुहलबाजी चलती रहती है, इसकी प्रस्तुति भी बांधती। बावजूद इसके हम सब जानते हैं कि मुखाग्नि देने के बाद कैसे घाट पर ही चीजें सामान्य होने लगती हैं और रिश्तेदारों की बातें देश के मौजूदा हालात की तरफ मुड़ जाती हैं। पर मनोज जो कि ‘ससुराल वालों का है’ का दंश झेल रहा है, की ससुराल से ही कोई नहीं आता, क्यों? अंत का सीन भी मुकम्मल नहीं है कि सीमा जाते-जाते क्यों रुक जाती है। ये सोचना कि सीमा, अम्माजी से कहेगी- चलो, ऐसा ना दिखाकर निर्देशक ने क्या कुछ हटके कहने की कोशिश की है? हां, ये अहसास सुकून देता है कि अंत में अम्माजी ने बिना कुछ कहे सबको जवाब दे दिया, जो शायद रामप्रसाद जाने से कुछ पल पहले सुझा गए थे। अब किसी के पास कोई वजह नहीं रह गई थी कि ये सोचे कि ‘अब अम्मा का क्या होगा?’ <b>विशाल</b></p>
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[ "दिशा पाटनी क्यों हैं दुखी?" ]
<p>सलमान खान की फिल्म ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’ में दिशा को जब हीरोइन का रोल मिला, वो इतनी खुश हुईं, जैसे कोई लॉटरी लगी हो। कुछ दिन पहले अपने एक दोस्त से दिशा ने कहा कि सलमान कभी अपनी फिल्म ओटीटी पर रिलीज नहीं होने देंगे। देख लेना, उनकी फिल्म बड़े परदे पर ही रिलीज होगी। पर अब खबर है कि सलमान फिल्म को ईद वाले दिन ओटीटी पर ही लाएंगे। इसके बाद से दिशा को बेहद सदमा पहुंचा है। उनका मानना है कि हीरोइन जब तक बड़े परदे पर नहीं दिखाई देगी, उसकी वैल्यू ही नहीं रहेगी। और यदि यह फिल्म किसी वजह से पसंद नहीं की जाती, तो उनके करियर का द एंड हो जाएगा, कम से कम सलमान के साथ तो।</p>
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[ "शादी करने का सपना देखना गलत नहीं। पर, बिना किसी सवाल-जवाब के शादी के लिए ‘हां’ कह देना कहीं से बुद्धिमानी नहीं। कौन से सवाल शादी से पहले साथी को परखने में आपकी मदद कर सकते हैं, बता रही हैं चयनिका निगम " ]
<p>क सफल शादी क्या है? एक ही इनसान के साथ बार-बार प्यार हो जाना... हां, ये बात पूरी तरह से फिल्मी है। और असल जिंदगी में ये बात पूरी तरह से फिट भी नहीं बैठती है। जिंदगी में ढेरों उतार-चढ़ाव आते हैं और इसी दौर में एक-दूसरे का हाथ थामे रखना पड़ता है। मगर इसका ये मतलब भी नहीं है कि आप सिर्फ परेशानियों के लिए ही खुद को तैयार कर लें। शादी के पहले उठाए गए कुछ खास कदम आने वाली जिंदगी में ना-नुकुर और उतार-चढ़ाव का प्रतिशत कम कर सकते हैं। ये खास कदम आप और आपके पार्टनर के बीच समझ को नए आयाम दे देते हैं। वो आपको और आप उनको बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। जब मामला अच्छी अंडरस्टैंडिंग का हो जाता है, तो फिर दिक्कतें भी कम हो जाती हैं। </p><p><b>भविष्य की पूंजी</b></p><p>एक जोड़े के तौर पर भविष्य के लिए पूंजी जोड़ना एक आम प्रक्रिया है। हर दंपति यही करता है। पर, ये धनराशि जोड़ी कैसे जाएगी, यह एक बड़ा सवाल है, क्योंकि कई बार पुरुष घर के खर्च के बाद पैसे जोड़ने में समर्थ ही नहीं होते हैं। या फिर पत्नी अपनी कमाई को अपने तक ही रखना चाहती हैं। इन्हीं परिस्थितियों के बीच पैसा कई लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाता है। इसलिए इसके बारे में शादी से पहले ही आप दोनों के बीच स्पष्टता आ जानी चाहिए। जैसे दोनों आधी-आधी सैलरी हर महीने बचाएंगे या फिर एक की सैलरी बचत खाते में जाएगी और दूसरे की सैलरी से घर के खर्च चलेंगे। इसके साथ हर महीने बचत योजनाओं में कितना निवेश किया जाना चाहिए, जैसी बातें भी पहले ही निर्धारित कर ली जानी चाहिए। इससे शादी के बाद बड़ी समस्या बनने वाला पैसा और बचत परेशानियों की लिस्ट से बाहर हो जाएंगे। </p><p><b>मी टाइम का टाइम</b></p><p>‘खुश हूं, बस अब अपने लिए समय नहीं है। बस यूं ही बालकनी में बैठ कर कॉफी पिए हुए महीनों हो गए हैं...।’ एक साल पहले शादी के बंधन में बंधी शिखा के लिए अपना वाला मी टाइम लंबे समय से आया ही नहीं है। जबकि हर इनसान को दिन के कम-से-कम कुछ मिनट तो अपने लिए मिलने ही चाहिए। ऐसा आमतौर पर महिलाओं के साथ होता है। गृहस्थी संभालते हुए वो खुद को संभालना मानो भूल ही जाती हैं। ऐसे में सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि वो ‘मी टाइम’ के कॉन्सेप्ट मानते भी हैं या नहीं। ऐसा न हो कि उन्हें ये बातें बेकार की लगती हों। आपको उन्हें बताना होगा कि दिन भर के कुछ पल आपको अपने लिए चाहिए ही। इस दौरान होने वाले कामों को हो सकता है उन्हें देखना पड़े। या कभी आप इस मी टाइम के लिए बाहर जाना चाहें तो फिर ‘बिना काम क्यों जा रही हो’ या ‘मी टाइम की क्या जरूरत है,’ जैसी बातें आपको न सुननी पड़ें। </p><p><b>खाना पकाना, नहीं चलेगा बहाना</b></p><p>भारतीय परिवारों में अभी भी किचन को महिलाओं की ही जिम्मेदारी माना जाता है। जबकि देखा जाए तो आज पति-पत्नी दोनों ही नौकरी कर रहेे हैं। ऐसे में कई दफा किचन का मुद्दा भी रिश्ते के बीच में आ जाता है। उस पर भी अगर आप शादी के बाद ज्वॉइंट फै मिली में रह रही हैं, तो जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए शादी से पहले ही इन मुद्दों पर खुलकर बातचीत कर लें। अपने होने वाले जीवनसाथी से पूछ लें कि उनकी अपेक्षा क्या है? ऐसा न हो कि वो हर हाल में सिर्फ आपके हाथ का खाना ही खाना चाहते हों। जबकि अब परिस्थितियों के हिसाब से आपके पास तो खाना बनाने वाली तो होनी ही चाहिए। ये भी हो सकता है कि आपके होने वाले पति नए जमाने की सोच रखते हों और आपके साथ किचन में हाथ बंटाने की सोचते हों। इन सभी मुद्दों पर आपको बात साफ कर लेनी होगी। </p><p><b>करियर की गाड़ी</b></p><p>महिलाओं के लिए शादी के पहले और बाद में करियर की गाड़ी को आगे बढ़ाने में काफी अंतर होता है। शादी के बाद कई ऐसी जिम्मेदारियां आ जाती हैं, जिनके साथ करियर की गाड़ी को उसी रफ्तार से चलाते रहना कठिन हो जाता है। इसलिए अपने करियर को लेकर भी बातें साफ कर लें। होने वाले पति से आपके करियर को लेकर उनकी सोच पूछ लें। ऐसा न हो वो आपसे तब ही तक करियर पर ध्यान देने की अपेक्षा करते हों, जब तक सब कुछ आसानी से हो सके। जैसे बच्चों के आने के बाद घर और ऑफिस में सामंजस्य बिठाने में दिक्कत होने पर वो आपसे नौकरी छोड़ने की अपेक्षा रखते हों। इसलिए अपने करियर के सारे निर्णय आप लेंगी या परेशानी के समय वो आपके साथ एडजस्ट करेंगे जैसी बातें अभी ही कर लेना आप दोनों के भविष्य के लिए सही रहेगा। </p><p><b>बच्चों की एंट्री</b></p><p>बच्चों की एंट्री जिंदगी में कब होगी? उनकी देखभाल के लिए क्या किया जाएगा? बस ये सारी बातें हैं, जो सात फेरों से पहले आपको अपने होने वाले पति से पूछना बहुत जरूरी है। ये बातें कितनी जरूरी हैं, ये समझने के लिए अपनी उन सहेलियों से बात कीजिए, जो मां बनने के बाद की जिम्मेदारियों के चलते अपने करियर में वापस लौट ही नहीं पाईं। पति ने भी प्रमोशन और सफलता को इग्नोर करते हुए बच्चे पर ध्यान देने की सलाह दे डाली थी। आपको भी शादी के लिए हां, बोलने से पहले बच्चे और उनकी परवरिश को लेकर अपने होने वाले जीवनसाथी से जरूरी बातें कर लेनी चाहिए। </p>
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[ "झुमके कीरुन-झुन", "ज्यादा हल्ला-हंगामे के बिना अपने लुक को निखारना है तो झुमका पहनिए। तरह-तरह के आकर्षक डिजाइन और रंग में उपलब्ध झुमका आपकी खूबसूरती में चार-चांद लगा देगा, बता रही हैं श्रेष्ठा शिवम" ]
<p><b>अपनी </b>खूबसूरती को निखारने के लिए चार-पांच तरह की एक्सेसरीज पहनने से बेहतर क्या यह नहीं है कि कोई एक ऐसी एक्सेसरीज पहनी जाए, जो इतनी शानदार हो कि किसी और चीज पर नजर ही नहीं जाए। ऐसी ही एक ज्वेलरी है झुमका। अपने पारंपरिक लुक को आप सिर्फ इस एक ज्वेलरी के बल पर निखार सकती हैं। </p><p>अब सवाल यह है कि क्या झुमका खरीदते वक्त आपको कोई खास बात ध्यान रखने की जरूरत है या फिर किसी भी डिजाइन का झुमका कोई भी पहन सकता है? जवाब है, हां। झुमका खरीदते वक्त और उसकी स्टाइलिंग करते वक्त आपको कुछ खास चीजों को ध्यान में रखने की जरूरत है ताकि आपकी खूबसूरती और भी ज्यादा निखर जाए। झुमका पहनते वक्त किन बातों का रखें ध्यान, आइए जानें:</p><p>● झुमका को वेस्टर्न कपड़ों के साथ पहनने से बचें। यह पारंपरिक भारतीय परिधान जैसे साड़ी, लहंगा-चोली या फिर सलवार-कमीज के साथ सबसे ज्यादा अच्छा लगता है।</p><p>● झुमका गले की लंबाई को निखारता है, इसलिए खरीदारी के वक्त इस बात का ध्यान रखें कि झुमके की लंबाई आपके गले की लंबाई की तुलना में बहुत कम या बहुत ज्यादा तो नहीं है। झुमका लेनेे से पहले आप अपने कान के निचले हिस्से से लेकर कंधे तक की लंबाई माप सकती हैं और फिर उसी के अनुरूप झुमका खरीदें।</p><p>● पूरी दुनिया को अपना खूबसूरत झुमका दिखाना चाहती हैं, तो बालों को खुला छोड़ने की गलती न करें। बालों की स्टाइलिंग इस तरह से करें कि वो बंधे हुए हों। आप हाई पोनीटेल बना सकती हैं या फिर बालों का जूड़ा भी बना सकती हैं।</p><p>● झुमका चेहरे की लंबाई को भी निखारते हैं। ऐसे में अपने चेहरे की लंबाई को ध्यान में रखते हुए भी झुमकेकी लंबाई चुनें। अगर आपका चेहरा छोटा है, तो बहुत लंबा झुमका पहनने से बचें। बहुत लंबा झुमका पहनने से आपका चेहरा और भी ज्यादा छोटा दिखेगा।</p><p>● झुमके के बेस का रंग हमेशा अपने चेहरे और त्वचा की रंगत को ध्यान में रखते हुए चुनें। गहरी रंगत वालों पर सुनहरा और गोरी रंगत वालों पर सिल्वर बेस वाला झुमका फबता है। जिन लोगों की रंगत ना बहुत ज्यादा गहरी है और ना ही बहुत गोरी, उन को रोज गोल्ड के बेस वाला झुमका पहनना चाहिए।</p><p>● चूंकि झुमका बहुत भारी-भरकम होता है, इसलिए इसे खरीदते वक्त एक और चीज पर ध्यान देने की जरूरत होती है। वह चीज है झुमके की तल्ली यानी जिससे हम झुमका को पीछे से सिक्योर करते हैं। ऐसा माना जाता है कि फ्रेंच हुक स्टाइल वाले झुमके बेहतर होते हैं। इन्हें पहनने पर कान के एक हिस्से पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता है और ये ज्यादा आरामदायक भी होते हैं।</p><p>● पूरे दिन झुमका पहनने की गलती नहीं करें और न ही ऑफिस झुमका पहनकर जाएं। झुमका पहनकर ऑफिस जाने से आपको अनप्रोफेशनल लुक मिलेगा। वहीं, पूरे दिन इसे पहनने से आपके कान पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। अगर आपको झुमका पहनने की आदत नहीं है, तो चेन से जुड़ा हुआ झुमका पहनें। इससे कान पर कम भार पड़ेगा।</p><p>● झुमका और स्टेटमेंट नेकलेस एक साथ नहीं पहनें। इससे आपका पूरा लुक भरा-भरा दिखेगा और अच्छा भी नहीं लगेगा।</p>
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[ "हर बच्चा अलग होता है और अलग होती हैं उसकी जरूरतें। स्पेशल बच्चे के लिए तो यह और भी अहम है। कैसे पहचानें उसकी जरूरतों को, बता रही हैं स्वाति गौड़", "आप समझती हैंअपने बच्चे की जरूरतें?" ]
<p>च्चे स्वभाव से बहुत चंचल होते हैं और एक जगह ज्यादा देर टिक कर नहीं बैठ पाते। पर कुछ बच्चे जरा अलग होते हैं। वे अपनी उम्र के हिसाब से व्यवहार नहीं कर पाते। क्या आपके आस-पास भी कोई ऐसा बच्चा हैे, जो बहुत देर तक किसी एक काम या चीज पर ध्यान केन्द्रित ना कर पाता हो या लंबे समय तक एक जगह टिक कर नहीं बैठ पाता हो? इस तरह के बच्चों को ‘स्पेशल नीड्स चिल्ड्रन’ कहा जाता है। दरअसल बहरापन या कोई अन्य शारीरिक विकलांगता तो आसानी से दिख जाती है, पर डिस्लेक्सिया, ऑटिज्म और डिस्ग्राफिया जैसी समस्याएं एकदम से नहीं दिखतीं। जिसकी वजह से ऐसे बच्चों का संपूर्ण मानसिक विकास नहीं हो पाता और सामान्य बच्चों की तुलना में वह पीछे रह जाते हैं।</p><p><b>शुरू से ही दें ध्यान </b></p><p>हालांकि हरेक बच्चे के विकास की गति अलग होती है, पर चीजें पकड़ना, नजर टिकाना, बात समझना या किसी बात पर हंसकर या रोकर अपनी प्रतक्रिया देना कुछ ऐसे मोटर स्किल्स हैं जो सभी बच्चे पहले साल के भीतर सीख जाते हैं। इसी तरह बोलना, अपने हाथ से खाना खाने की कोशिश करना, दूसरे बच्चों के साथ खेलना जैसी आदतों का विकास भी शुरुआती दो साल के भीतर हो जाता है। पर यदि बच्चा आक्रामक स्वभाव का हो और खुद को या किसी अन्य को चोट पहुंचाने लगे तो सचेत हो जाना चाहिए। ऐसे कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जिनकी मदद से पता चल सकता है कि बच्चा सामान्य है या नहीं। </p><p><b>ध्यान केन्द्रित ना कर पाना</b></p><p>यदि बच्चे का मन ज्यादा देर किसी एक काम में ना लगे तो ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि बच्चा किसी भी काम पर अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं कर पाता और ना ही निर्देशों को समझ पाता है। </p><p>कुछ बच्चे बेहद जिद्दी होते हैं और हर हाल में अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं। अकसर माता-पिता ऐसे बच्चों को ज्यादा लाडला कहकर बात टाल देते हैं, पर असल में ऐसा व्यवहार किसी समस्या की ओर इशारा भी हो सकता है। जरूरत से ज्यादा बोलना, आराम से ना खेल पाना, अपनी बारी की प्रतीक्षा ना कर पाना या दूसरों की बात बीच में काटकर अपनी बात शुरू कर देना जैसे लक्षण चेतावनी के सूचक हो सकते हैं। </p><p><b>हमउम्र बच्चों के साथ दोस्ती ना कर पाना</b></p><p>हमउम्र बच्चों को दोस्ती करने के लिए कुछ खास करने की जरूरत नहीं होती। इसलिए जहां चार बच्चे इकट्ठे हुए, वह फौरन खेलना शुरू कर देते हैं। पर स्पेशल नीड्स वाले बच्चे आसानी से दूसरे बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पाते और उनसे कटे-कटे रहते हैं। ऐसे बच्चों को चटक रंगों या ज्यादा भीड़ से भी परेशानी हो सकती है। </p><p><b>इन पर भी दें ध्यान</b></p><p>बच्चा यदि हमउम्र बच्चों की तरह बोलने या पढ़ने में सहज ना हो और कठिनाई अनुभव करे तो जरूरी है कि इसे गंभीरता से लिया जाए। यदि परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी लिखने-पढ़ने में समस्या हो तो छोटे बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसा होने पर उनमें भी समस्या होने की आशंका बढ़ जाती है। सही वाक्य बनाकर बोलने व लिखने में कठिनाई या बोल कर स्वयं को अभिव्यक्त करने में तालमेल ना होना डिस्ग्राफिया के लक्षण हो सकते हैं। (मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट प्रकृति पोद्दार-मेंटल हेल्थ एट राउंड ग्लास से बातचीत पर आधारित)</p>
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[ "विधि" ]
<p>नॉनस्टिक पैन में तेल गर्म करें और मध्यम आंच पर भिंडी को कुरकुरा होने तक फ्राई कर लें। भिंडी को टिश्यू पेपर पर निकाल लें। सर्व करने से ठीक पहले अन्य सभी सामग्री को एक बड़े बर्तन में डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। उसमें भुनी हुई भिंडी डालें। धनिया पत्ती से गार्निश कर तुरंत सर्व करें।</p><p><b>सामग्री</b></p><p>● कटी हुई भिंडी-2 कप, ● फेंटा हुआ दही- 2 कप, ● जीरा पाउडर-1/2 चम्मच, ● लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच</p><p>● काला नमक- 1/4 चम्मच, ● नमक- स्वादानुसार</p><p>● तेल-तलने के लिए, ● बारीक कटी धनिया पत्ती-1 चम्मच</p>
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[ "बेकार नहीं जातीं अच्छी आदतें" ]
<p>जो लोग बचपन में सेहतमंद खाना खाते हैं और नियमित रूप से व्यायाम करते हैं, बड़े होने पर उनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता है और उन्हें एंग्जाइटी की समस्या कम होती है। अध्ययन में पाया गया है कि बचपन में ज्यादा वसा और चीनी वाली डाइट खाने से बड़े होने पर भी वे बच्चे ऐसा ही खाना पसंद करते हैं। अध्ययन की रिपोर्ट साइकोलॉजी और बिहेवियर नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई है।</p>
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[ "विधि" ]
<p>मसाला पापड़ को आग पर सेंक लें। एक बड़े बर्तन में दही डालें और उसे अच्छी तरह से फेंट लें। दही में जीरा पाउडर, काली मिर्च पाउडर, धनिया पत्ती और काला नमक डालकर मिलाएं और कम-से-कम दो घंटे के लिए फ्रिज में रख दें। सर्व करने से ठीक पहले दही वाले मिश्रण में भुने हुए पापड़ को तोड़कर मिलाएं। धनिया पत्ती से गार्निश कर सर्व करें।</p>
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[ "सामग्री" ]
<p>● फेंटा हुआ दही-1/2 किलो, ● मसाला पापड़- 3, ● भुना हुए जीरे का पाउडर-1/2 चम्मच, ● काली मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच, ● बारीक कटी धनिया पत्ती- 5 चम्मच, ● काला नमक-स्वादानुसार</p>
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[ "मन्नू मैडम बता रही हैं" ]
<p> ● रायता बनाते समय उसमें नमक नहीं डालें, बल्कि सर्व करने से ठीक पहले उसमें नमक मिलाएं। पहले नमक डालने से उसका स्वाद बिगड़ जाता है। </p><p> ● नियमित रूप से रायते का सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता है, क्योंकि इसमें वसा और कै लोरी की मात्रा बहुत ही कम होती है। यह पेट को ठंडा रखता है और पेट में गर्मी से होने वाली समस्याओं से भी बचाता है।●</p><p>● रायते में कैल्शियम और प्रोटीन काफी मात्रा में पाया जाता है। ये दोनों चीजें हमारे शरीर केलिए बहुत आवश्यक हैं। नियमित रूप से रायते का सेवन करने से हड्डियां और दांत भी काफी मजबूत होते हैं।</p><p>● गर्मी केमौसम में रायता खाने से खाना आसानी से पच जाता है और भूख भी खूब लगती है। इसके अलावा लू से बचाने में भी रायता मदद करता है।</p>
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[ "वैसे तो अभी कोविड-19 की वजह से कहीं आना-जाना नहीं हो रहा है। मगर जब कभी हिमाचल प्रदेश के कुछ खास पर्यटक स्थलों को देखने जाएं, तो धौलाधार पर्वत शृंखला की खूबसूरती को देखना नहीं भूलिएगा। झीलों के इस शहर की सैर करा रहे हैं अंकित पाठक" ]
<p>डवेंचर के शौकीन लोग, हमेशा ऐसी जगहों की तलाश में रहते हैं, जिसमें रोमांच के साथ-साथ प्रकृति की खूबसूरती भी समाई हो। हिमाचल प्रदेश स्थित धौलाधार शृंखला भी, उन्हीं जगहों में से एक है, जो खास ट्रेकिंग के लिए मशहूर है। ट्रेकिंग के अलावा यहां झीलों और अलग-अलग वनस्पतियों को देखना भी थके मन को सुकून देता है। जब पहली बार यहां जाने की योजना बनी थी, तो मेरे साथ मेरे तीन और दोस्त भी थे। ये वही दोस्त थे, जिनके साथ मैं अकसर एडवेंचर ट्रिप पर लद्दाख जाता रहा हूं। सच कहूं तो दोस्तों के साथ एडवेंचर ट्रिप पर जाने का मजा ही कुछ और होता है। </p><p><b>क्यों खास है यह शृंखला</b></p><p>हिमाचल प्रदेश का यह स्थल पर्यटकों और बैकपैकर्स के बीच इसलिए पसंद किया जाता है कि वे यहां प्रकृति का आनंद लेते हुए ट्रेकिंग का भरपूर मजा ले सकते हैं। धौलाधार में ट्रेकिंग आपको धौलाधार पर्वतमाला से घिरे दूरदराज के गांवों के नुक्कड़ और कोनों तक ले जाता है। सच कहें तो गांव की संस्कृति से रूबरू होते हुए पहाड़ी सुरंगों और झीलों को देखना एक अलग ही रोमांच पैदा करता है। यहां विशाल देवदार के पेड़ों और धुंध व घने जंगलों से ढके मैदानों को देखना भी एक अलग ही दुनिया का एहसास कराता है।</p><p><b>झीलों के लिए भी है मशहूर</b></p><p>धौलाधार में करीब 22 झीलें हैं, जो साल के अधिकतर समय में हिमाच्छादित रहती हैं। इनमें स्थानीय निवासियों द्वारा बेहद पवित्र मानी जानी वाली सात झीलें प्रमुख हैं, जैसे नागदल, लाम दल, काली कुंड, करेरी, चंदरकोप दल, सुख दल और बांध घोड़ी दल। ऊंचाई पर जाकर इन झीलों की पूरी एक शृंखला देखने का मौका मिला। इनके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। यहां गद्दी समुदाय के लोग रहते हैं। उन्हें इन झीलों के बारे में काफी जानकारी है। गद्दी समुदाय के लोग शिव भक्ति के लिए और अपनी नाग पूजा के लिए मशहूर हैं। ये हर साल अपनी भेड़-बकरियां लेकर धौलाधार और पीर पंजाल की पर्वत शृंखलाओं से होते हुए कभी-कभी उत्तर में जांस्कर और पूर्व में गढ़वाल तक चले जाते हैं। इन ऊंचाइयों पर अपने चलने के लिए वे खुद ही पगडंडियां बनाते हैं।</p><p><b>आश्चर्यों से भरपूर यात्रा</b></p><p>इन सात झीलों का ट्रेक अपने आप में एक अभियान है और हम इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे। इसलिए गाइड के कहे अनुसार हमने झीलों के रास्ते आगे बढ़ना शुरू किया। रात के अंधेरे में झील का पानी गहरे काले नीले रंग का लग रहा था और दूर एक किनारे पर स्लेटी रंग के ग्रेनाइट पत्थर कुछ इस तरह रखे हुए थे कि वो एक नाग के खुले फन जैसे लग रहे थे। गाइड ने हमें बताया कि नागों के देवता के पास ऐसी बहुत-सी सुरंगें हैं, जो पहाड़ों में से कई जगहों से निकलती हैं। सच में, यहां की वादियों में इस प्राकृतिक बनावट को देखकर आश्चर्य भी होता है। कई आश्चर्यों से भरे दुर्गम रास्तों को पार करते हुए हम ट्रेकिंग का मजा ले रहे थे, क्योंकि हमारी मंजिल अभी और आगे थी।</p><p>यहां थोड़ा आगे बढ़ते ही धौलाधार के प्रसिद्ध ट्रेकिंग पॉइंट्स आ गए। करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाली ये चोटियां कांगड़ा घाटी में गजब की खूबसूरती पैदा करती हैं। पहाड़ की ये चोटियां घाटी से करीब 12 हजार फुट तक ऊपर जाती हैं, जो चंबा की रावी नदी और कांगड़ा की व्यास नदी के बीच जल विभाजक का काम करती है। हमने कुछ समय नागदल (पश्चिमी हिमालय में तालाब को दल कहते हैं) के किनारे भी बिताया, जहां से हिमालय के उत्तरी क्षेत्र स्थित रावी घाटी और पीर पंजाल शृंखला का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। वैसे तो किसी भी समय इस दृश्य को देखना अद्भुत होता है, पर सुबह का दृश्य कुछ खास होता है। हालांकि हमें अपनी ट्रेकिंग खराब मौसम की वजह से बीच में ही रोकनी पड़ी। अब फिर से वहां जाने का इंतजार है।</p><p><b>ए</b></p>
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[ "सपने के लिए नौकरी छोड़ना आसान न था", "अपने डांस के शौक के लिए अच्छी-खासी सैलरी वाली नौकरी छोड़ना किसी के लिए इतना आसान नहीं होता, खासकर तब, जब परिवार वाले सहमत न हों। यूटॺूब समेत इंस्टाग्राम पर लाखों फॉलोअर्स बना चुकीं मुंबई की सोनाली भदौरिया के लिए सोशल मीडिया स्टार बनने की कहानी भी कुछ रुकावटों के साथ शुरू हुई। जानिए कैसे?" ]
<p>छ लोग डांस को बतौर हॉबी तो पसंद करते हैं, लेकिन करियर के रूप वे इसे कभी नहीं देखते। यूटॺूब स्टार बनने के लिए अपनी आईटी की नौकरी छोड़ने वाली सोनाली को भी इस दौर से गुजरना पड़ा। इंस्टाग्राम पर चार लाख से ज्यादा फॉलोअर्स व यूटॺूब पर 20 लाख से ज्यादा सब्स्क्राइबर के साथ सोनाली एक युवा आइकन के रूप में उभरी हैं। </p><p>सोनाली कहती हैं,‘मैंने औपचारिक रूप से डांस कभी नहीं सीखा था। मैं हमेशा वह लड़की थी, जो टीवी के सामने खड़ी रहती थी, डांस करती थी और हर स्टेप्स को पूरा करने की कोशिश करती थी। पर कभी भी यह मेरे करियर का हिस्सा नहीं था, क्योंकि मेरे पिता एक स्थायी नौकरी चाहते थे, इसलिए मैंने कंप्यूटर साइंस में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिर नौकरी में लग गई।’ </p><p><b>ऑफिस से मिला ब्रेक</b></p><p>सोनाली कहती हैं,‘मैं एक बहुत ही साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से आती हूं, जहां माता-पिता ने एक शौक के रूप में मेरे डांस के शौक को समर्थन तो किया, लेकिन इसमें करियर बनाने के पक्ष में वे नहीं थे। मैं अपने सपनों को छिपाते हुए, जीवन में आगे बढ़ चली थी। नौकरी में लगभग एक साल तक काम करने के बाद मुझे एक डांस क्लब में शामिल होने का मौका मिला, जिसमें शामिल हो गई। और, यह मेरे सपने को सच करने की शुरुआत भर थी।’</p><p><b>सहयोगियों से मिला सपोर्ट</b></p><p>सोनाली, जिस कंपनी में कार्यरत थीं, वहां के कर्मचारियों द्वारा बनाए गए डांस क्लब, ‘क्रेजी लेग्स’ ने उन्हें मौका दिया अपने सपने को जीने के लिए। जहां वो ऑफिस के बाद अभ्यास करती थीं। और यहीं से उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं में जाने का मौका मिला। इस तरह सोनाली काफी समय तक एक दोहरी जिंदगी जीती रहीं - एक इंजीनियर और एक डांसर की जिंदगी। सोनाली कहती हैं, ‘धीरे-धीरे मैं अपने डांस के स्टेप्स को कॉपी करने से लेकर कोरियोग्राफी तक ले गई। और इससे मुझे बहुत सराहना मिली। मैं इसे और गंभीरता से लेने लगी। इसके बाद से मुझे मेरे पति का साथ मिला। हालांकि ज्यादातर लोग इसके खिलाफ थे, लेकिन पति मेरे हर फैसले में साथ खड़े रहे। जैसे-जैसे चीजें बेहतर होती गईं, मैंने चार साल काम करने के बाद अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से डांस को समर्पित हो गई।’</p><p><b>यूटॺूब से हुई शुरुआत</b></p><p>साल 2016 में दोस्तों की सलाह पर अपना एक यूटॺूब चैनल ‘लाइव टू डांस विथ सोनाली’ शुरू किया, जहां अपने डांस वीडियो को नियमित रूप से अपडेट करने लगीं। फिर 2017 में जब ‘नशे-सी-चढ़ गई...’ के गाने पर उनका वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद ‘शेप ऑफ यू’ पर एक और वीडियो बनाया गया, ये भी काफी वायरल हुआ।</p><p>सोनाली कहती हैं,‘मैं उस समय चौंक गई जब मेरे वीडियो ने मुझे एड शीरन के कॉन्सर्ट के लिए प्रतियोगिता में एक जगह दिलाई। लंदन में बड़ी संख्या में फॉलोअर्स को देखकर मैंने अपने प्रभाव को महसूस किया। उस कामयाबी के बाद से मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मुझे इतना प्यार मिला है कि इस पर विश्वास करना मुश्किल है। यह सब संभव हुआ, क्योंकि मैंने जोखिम लिया। सही समय, सही मंच और सोशल मीडिया ने मुझे ऐसा करने में मदद की।’</p><p><b>फीचर डेस्क</b></p><p><b>कु</b></p>
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[ "25 अप्रैल से 01 मई 2021" ]
<p><b>पं. राघवेन्द्र शर्मा</b></p><p>जाने-माने एस्ट्रोलॉजर</p><p><b>मेष </b><b>(21 मार्च-20 अप्रैल) </b></p><p>संयत रहें। अपनी भावनाओं को वश में रखें। माता की सेहत ध्यान रखें। परिवार का साथ मिलेगा। भागदौड़ अधिक रहेगी। किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव मिल सकता है। किसी रुके हुए धन की प्राप्ति भी हो सकती है। दिनचर्या अव्यवस्थित हो सकती है।</p><p><b>तुला </b><b>(2३ सितंबर-2३ अक्तूूबर) </b></p><p>आत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परंतु मन परेशान भी हो सकता है। अपनी भावनाओं को वश में रखें। शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे, परंतु स्थान परिवर्तन की संभावना भी बन रही है। परिवार का साथ मिलेगा। </p><p><b>वृष </b><b>(21 अप्रैल-20 मई) </b></p><p>मन परेशान रहेगा। ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। पारिवारिक समस्याओं पर ध्यान दें। बातचीत में संतुलित रहें। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं, परंतु स्थान परिवर्तन भी हो सकता है। परिवार से दूर रहना पड़ सकता है।</p><p><b>वृश्चिक </b></p><p>मानसिक शांति तो रहेगी, परंतु आत्मविश्वास में कमी भी रहेगी। बातचीत में भी संतुलित रहें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पारिवारिक जीवन कष्टमय हो सकता है। नौकरी में कोई अतिरिक्त कार्यभार मिल सकता है। परिश्रम अधिक रहेगा।</p><p><b>मिथुन </b><b>(21 मई-2१ जून) </b></p><p>आत्मविश्वास भरपूर तो रहेगा, परंतु मन अशांत भी हो सकता है। धैर्य बनाए रखने का प्रयास करें। परिवार का सहयोग मिलेगा। धर्म के प्रति श्रद्धा भाव रहेगा। नौकरी में स्थान परिवर्तन की संभावना भी बन रही है। कार्यक्षेत्र का विस्तार भी हो सकता है।</p><p><b>धनु </b><b>(2२ नवंबर-2१ दिसंबर) </b></p><p>मन अशांत रहेगा। क्रोध व आवेश के अतिरेक से बचें। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे। आय में वृद्धि होगी। स्थान परिवर्तन भी हो सकता है। कार्यक्षेत्र में भी बदलाव हो सकता है। सेहत का ध्यान रखें।</p><p><b>कर्क </b><b>(2२ जून-2३ जुलाई)</b></p><p>मन में आशा-निराशा के भाव रहेंगे। कारोबार की स्थिति संतोषजनक रहेगी, परंतु परिश्रम अधिक रहेगा। लाभ के अवसर मिलेंगे। शासन-सत्ता का सहयोग मिलेगा। शैक्षिक कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं। पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।</p><p><b>मकर </b></p><p>आलस्य की अधिकता रहेगी। धैर्यशीलता में कमी रहेगी। किसी मित्र के सहयोग से कारोबार के अवसर मिल सकते हैं। पिता का सहयोग मिलेगा। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। खर्च बढ़ेंगे। </p><p><b>कुंभ </b><b>(2० जनवरी-१८ फरवरी) </b></p><p>मन में निराशा व असंतोष रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। खर्च अधिक रहेंगे। कारोबार में परिश्रम अधिक रहेगा। आय की स्थिति में सुधार होगा। शैक्षिक कार्यों में यात्रा पर जाना हो सकता है। संचित धन में कमी आ सकती है। मित्रों का सहयोग रहेगा।</p><p><b> सिंह </b><b>(2४ जुलाई-2२ अगस्त) </b></p><p>वाणी में मधुरता रहेगी, फिर भी आत्म संयत रहें। आत्मविश्वास भरपूर रहेगा। नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन की संभावना बन रही है। परिश्रम अधिक रहेगा। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। मित्रों का सहयोग भी मिलेगा। संपत्ति से आय हो सकती है।</p><p><b>मीन </b><b>(१९ फरवरी-20 मार्च)</b></p><p>मानसिक शांति तो रहेगी, परंतु आत्म विश्वास में कमी रहेगी। शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। घर-परिवार में मांगलिक कार्य हो सकते हैं। भवन के रखरखाव और सौंदर्यीकरण पर खर्च बढ़ सकते हैं।</p><p><b>कन्या </b><b>(2३ अगस्त-2२ सितंबर) </b></p><p>‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। मन परेशान हो सकता है। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। परिवार की समस्याओं पर ध्यान दें। आय की स्थिति में सुधार तो रहेगा, परंतु खर्चों की अधिकता भी रहेगी। रहन-सहन अव्यवस्थित रह सकता है।</p>
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[ "अनजानी, पर स्वाद से भरी लहसुन की खीर ", "सब्जी में लहसुन का होना आम बात है। यहां तक कि लहसुन की चटनी और अचार भी खाते हैं। मगर लहसुन की खीर! सोच कर ही एक अजीब-से तीखेपन का एहसास होता है। जयासुधा को पहली बार ऐसा ही लगा था, लेकिन एक बार खा लेने के बाद उन्हें यह बहुत पसंद आई" ]
<p>छ साल पहले, मुझे अपनी एक दोस्त के घर एक अनोखे व्यंजन का स्वाद लेने का अवसर मिला। मैं डिश का नाम सुनकर ही हैरान थी, क्योंकि उसने जो डिश पेश की वह लहसुन की खीर थी। मैं कभी भी मिष्ठान के रूप में लहसुन की कल्पना नहीं कर सकती थी। फिर मेरी दोस्त ने मुझे नुस्खा समझाया और आश्वासन दिया कि गर्म पानी में उबालने से लहसुन का तीखापन कम हो जाता है। फिर इसे दूध, चीनी, इलायची पाउडर और केसर के साथ पकाया जाता है। लेकिन जब तक मैंने खीर का स्वाद नहीं चखा, मुझे यकीन नहीं हुआ। पहले मुझे एक चम्मच खीर दी गई चखने के लिए, जिसे खाकर मैं चकित थी, क्योंकि इसमें न तो तीखापन था और न ही लहसुन की तीव्रता थी। मैंने अपनी मां के साथ अपने अनुभव साझा किए। तो मेरी मां ने इस खीर के लाभों के बारे में बताया, क्योंकि उन्होंने खीर का सेवन अपनी प्रेग्नेंसी के बाद की डाइट के रूप में किया था।</p><p>बातों ही बातों में मुझे पता चला कि लहसुन की खीर दो अलग-अलग तरीकों से तैयार की जाती है। उत्तर में इसे लहसुन की खीर या बेनामी खीर के रूप में जाना जाता है। तमिल में इसे ‘पूंडू पायसम’ के नाम से जाना जाता है। उत्तर में पहले लहसुन की कलियों को पानी में उबाला जाता है, फिर इसे छान कर दूध में मिलाया जाता है। जबकि भारत के दक्षिणी भागों में, लहसुन की कलियों को घी में भूना जाता है और फिर इसे उबलते दूध में मिलाया जाता है। मैं दोनों विधियों को विस्तार से बताऊंगी।</p><p><b>दक्षिण में तैयार लहसुन की खीर </b></p><p>लहसुन की कलियां (छिली हुईं) 1/4 कप, दूध- 1/2 लीटर, चीनी- 3/4 कप, घी- 2 बड़े चम्मच, इलायची पाउडर -3/4 छोटा चम्मच, भुने हुए काजू।</p><p>लहसुन की कलियों को एक कड़ाही में घी गरम करके उसमें भूनें जब तक वह भूरे रंग की न हो जाए। एक अलग बर्तन में दूध लें और इसे उबालें। अब भुना हुआ लहसुन और चीनी डालें और हल्के आंच पर तब तक उबालें जब तक कि चीनी पूरी तरह से घुल न जाए। इलायची पाउडर डालें और अच्छी तरह मिलाएं। आखिर में भुने हुए काजू डालें। </p><p>दूसरा तरीका, लहसुन की कलियों को फिटकरी या सिरके में उबालें। फिर पानी से छान लें। फिर ताजा पानी भर कर इसे उबालें। दो-तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराएं। उबले लहसुन को अलग रखें। एक पैन में घी गर्म करें और उसमें दूध डालें। दूध को गाढ़ा होने तक उबालें। अब उबला हुआ लहसुन और चीनी डालें। अब इसमें इलायची पाउडर डालें और बंद करें। भुने हुए काजू से गार्निश करें और सर्व करें। </p><p><b>कु</b></p>
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[ "www.livehindustan.com", "एक क्लिक के हवालेहमारी याददाश्त", "इंटरनेट के नशे में तो हम पहले से ही थे, उस पर महामारी के दौर ने इस निर्भरता को और बढ़ा दिया है। शोध कहते हैं कि इसका असर हमारी नींद के साथ-साथ याददाश्त पर भी पड़ रहा है। उंगलियों पर हिसाब गिन लेने, कई एक फोन नंबर जुबानी याद होने, तारीखें याद रखने जैसी बातें तो खत्म ही मानिए। इंटरनेट और याददाश्त के रिश्ते पर राजीव रंजन का दिलचस्प आलेख" ]
<p>क कंपनी में बतौर कंटेंट एडिटर काम कर रहे पंकज कुमार अपने व्यस्त शिडॺूल के बावजूद मैच देखना कभी नहीं भूलते। असल में उन्हें क्रिकेट के आंकड़ों में बहुत रुचि है। सुनील गावस्कर से लेकर सचिन तेंदुलकर तक के समय के सारे क्रिकेटरों के रिकॉर्ड्स उन्हें मुंहजुबानी याद हैं। और भी कई रिकॉर्ड उन्हें याद हैं। लेकिन अगर उनसे पिछले एक-दो दशक के रिकॉर्ड के बारे में बात करें, तो वह मुस्करा कर कहते हैं,‘अब याद नहीं रख पाता। वैसे जरूरत भी क्या है? सारे रिकॉर्ड इंटरनेट पर तो उपलब्ध हैं ही।’ यह कहानी सिर्फ पंकज की नहीं, असंख्य लोगों की है, जो स्मरणशक्ति पर जोर डालने की जहमत नहीं उठाना चाहते, क्योंकि इंटरनेट है न! बस एक क्लिक से स्क्रीन पर तथ्यों का पूरा संसार चमक उठता है। </p><p>पर शायद ही आपने कभी इस ओर ध्यान दिया हो कि इस आदत से हमारी याददाश्त प्रभावित हो रही है। जर्नल मेमोरी का एक अध्ययन भी बताता है कि तकनीक पर भरोसा करना हमारे दिमाग को आलसी बना रहा है। हमारा दिमाग तेजी से याद करने की क्षमता खो रहा है, क्योंकि हम डेटा के लिए प्रौद्योगिकी पर तेजी से निर्भर हो रहे हैं। </p><p><b>दिमाग को आलसी बना रहा इंटरनेट</b></p><p>हम चीजों को याद रखने की आदत भूलते जा रहे हैं। र्कई लोगों को तो अपना फोन नंबर भी याद नहीं रहता। एक न्यूज चैनल में काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि उनसे कोई उनका मोबाइल नंबर पूछता है, तो र्कई बार उन्हें फोनबुक देखनी पड़ता है। हालांकि दिमाग पर थोड़ा जोर डालने पर याद आ जाता है, लेकिन दिमाग में झांकने से ज्यादा आसान है कि फोनबुक में झांक लिया जाए। इस तरह हम लंबे समय तक जानकारी को संग्रहित करने के लिए अपने दिमाग से ज्यादा इंटरनेट पर निर्भर हो गए हैं। </p><p>हाल के कई अध्ययनों में भी यह बात सामने आई है कि इंटरनेट का ज्यादा प्रयोग हमारी बुद्धिमत्ता और सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 1998 में रोजाना गूगल सर्च की औसतन संख्या 9,800 थी, जो 2019 में बढ़कर 5.8 अरब से अधिक हो गई। लोगों की इस पर बढ़ती निर्भरता का अंदाजा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है।</p><p><b>रचनात्मकता पर असर</b></p><p>एक शोध में तो यह भी दावा किया गया है कि इंटरनेट के अत्यधिक इस्तेमाल से कल्पनाशीलता और रचनात्मक शक्ति में कमी आती है। इससे हमारी एकाग्रता, याद रखने की प्रक्रियाओं और सामाजिक व्यवहार पर असर पड़ सकता है। यह शोध दुनिया की प्रमुख मनोविकार रिसर्च जर्नल ‘वर्ल्ड साइकाइअट्री’ में प्रकाशित हुआ था। वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के सीनियर रिसर्च फेलो जोसेफ फर्थ के अनुसार,अत्यधिक इंटरनेट का इस्तेमाल वास्तव में मस्तिष्क के र्कई कार्यों पर प्रभाव डाल सकता है। अब चूंकि हमारे पास दुनिया की अधिकांश तथ्यात्मक सूचनाएं उंगलियों पर उपलब्ध हैं। इसमें उन तरीकों को बदलने की क्षमता है, जिन तरीकों से हम अपने समाज में और मस्तिष्क में तथ्यों और ज्ञान को संग्रहीत करते हैं तथा महत्व देते हैं। </p><p>बीएलके मैक्स सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट प्रियंका कपूर कहती हैं,‘स्मार्टफोन और मोबाइल टेक्नोलॉजी से संबंधित उपकरणों को यदि विवेकपूर्ण रूप से उपयोग करें, तो यह हमारे लिए फायदेमंद ही है। लेकिन स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर एक धारणा यह भी बन रही है कि इसकी लत से यूजर्स की सोचने की क्षमता पर नकारात्मक और स्थायी प्रभाव पड़ रहा है। या यूं कहें कि डिजिटल उपकरण हमारे जीने और काम करने के तरीके को ही नहीं बदल रहे, बल्कि वे हमारे सोचने, सीखने, व्यवहार करने और याद करने के तरीके को भी बदल रहे हैं। दरअसल, जब हम फोन पर मल्टी टास्किंग करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, तो एक काम पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है और इससे हमारे दिमाग को उस जानकारी को स्मृति में बनाए रखने की अनुमति नहीं मिलती है।’</p><p><b>दिमाग का हर हिस्सा रहे सक्रिय</b></p><p>मस्तिष्क के दो हिस्से होते हैं- संज्ञानात्मक और भावनात्मक। संज्ञानात्मक हिस्सा हमें सीखने और समझने में मदद करता है। हमारा दिमाग सही और संतुलित तरीके से तभी काम करता है, जब मस्तिष्क के दोनों हिस्से क्रियाशील होते हैं। लेकिन जब हम इंटरनेट पर बेमतलब का समय गुजारते हैं, तो मस्तिष्क का संज्ञानात्मक हिस्सा सुस्त हो जाता है यानी फुरसत में आ जाता है । मतलब आप इंटरनेट व स्मार्टफोन पर जितना ज्यादा समय फालतू काम करते हुए बिताएंगे, संज्ञानात्मक हिस्सा उतना ही ज्यादा खाली रहने लगेगा। इससे धीरे-धीरे आपकी सोचने, सीखने-समझने, चीजों को तार्किक ढंग से परखने और सही निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होने लगती है।</p><p>डॉ. प्रियंका कहती हैं,‘शोधों से भी यह बात स्पष्ट है कि इंटरनेट मस्तिष्क की सामान्य गतिविधि के साथ छेड़छाड़ करता है। उदाहरण के लिए जब हम अपने स्मार्टफोन पर मल्टीटास्किंग में व्यस्त होते हैं , तो हम केवल एक नया कौशल सीखने पर आधा ध्यान केंद्रित करते हैं। इसलिए हमारी दीर्घकालिक मेमोरी में जानकारी संग्रहीत होने की संभावना कम हो जाती है।’ विशेषज्ञों ने इस समस्या को ‘डिजिटल एमेंशिया’ का नाम दिया है। </p><p>इंटरनेट के प्रयोग को लेकर किए गए एक और शोध में यह बात सामने आई है कि इसके अधिक इस्तेमाल से ‘न्यूरोकॉग्निटिव डिस्फंक्शन’ बढ़ता है। यानी तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) की संज्ञानात्मक क्रियाशीलता कम होती है, जिससे मस्तिष्क की क्षमता प्रभावित होने लगती है। इसको जितना सामान्य काम करने दिया जाए, उतना ही अच्छा होगा। </p><p><b>संतुलन बनाने के लिए ये करें</b></p><p>आपको हर फोन नंबर और तारीख को दिल से याद रखने की जरूरत नहीं है, लेकिन आपको अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने व इसे सक्रिय रखने के लिए कुछ करना चाहिए, जैसे-</p><p>● हर जगह जीपीएस का उपयोग करने के बजाय, गूगल मैप के नक्शे प्रिंट करें और गंतव्य पर पहुंचने का प्रयास करें।</p><p>● सप्ताह में कम से कम एक दिन स्क्रीन-मुक्त दिन तय करें। इस दिन कॉल करने या रिसीव करने के अलावा किसी अन्य चीज के लिए फोन का उपयोग करने से बचें। अगर लैंडलाइन है तो कॉल के लिए इसका इस्तेमाल करें।●</p><p>● फोन की कॉन्टैक्ट लिस्ट में गए बगैर किसी का नंबर डायल करने की कोशिश करें।</p><p><b>ए</b></p>
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[ "अपनी छवि को न बनने दें खुशियों में बाधा", "हम अपने बारे में जो सोचते हैं, वह छवि एक नींव है, जिस पर हम अपने व्यक्तित्व और अपने जीवन का निर्माण करते हैं। इसलिए हम कितनी भी कोशिश कर लें, अपनी आत्म-छवि से अलग परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते हैं। मगर अपनी आत्म-छवि को बदलने और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आप कुछ कदम तो उठा सकते हैं" ]
<p><b>आपकी </b>जो भी इच्छा है, वह सब पा सकते हैं। लेकिन, पहले आपको अपने अंदर की एक बड़ी रुकावट को साफ करना होगा। अपनी उस मानसिक छवि को बदलना होगा, जिसे वर्तमान में आप पकड़े हुए बैठे हैं। याद रखें कि आपकी मानसिक छवि आपके विचारों, भावनाओं और खुद के बारे में विश्वास का एक मिला-जुला रूप है। </p><p><b>बदलाव की इच्छा बनाएं</b></p><p>किसी भी बदलाव के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधा अवचेतन स्तर पर हमारी अनिच्छा है। कुछ भी बदलने के लिए, हमें खुद भी बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें प्रयास करने होंगे, और फिर यूनिवर्स हमारे प्रयास पर प्रतिक्रिया देगा। यहां रोजाना अपने आपको दोहराने के लिए एक शक्तिशाली वाक्य है, ‘मैं बदलने को तैयार हूं।’ कुछ मिनट के लिए मौन में बैठें और फिर इस कथन को मन ही मन दोहराते रहें। यह आपके मन और हृदय को सकारात्मक परिवर्तन के लिए तैयार करेगा।</p><p><b>कल्पना करें</b></p><p>इस अभ्यास को दिन में दो या तीन बार दो मिनट करें। मन में अपने आप को मुस्कुराते हुए और खुश महसूस करता देखें। अपने आप को उन अच्छी चीजों के साथ कल्पना करें, जो आप अनुभव करना चाहते हैं। अपने आप को पूरी तरह से आराम करने और रिलैक्स होने की अनुमति दें, ताकि आप महसूस कर सकें कि आप अपने अंतरतम की गहराई से क्या चाहते हैं। </p><p>जब आप कल्पना कर रहे हों, तो वास्तव में उस हिस्से को जीने की कोशिश करें। जब आप खुद को मुस्कुराते हुए देखते हैं, तो आप अपने अवचेतन मन में एक सकारात्मक संकेत भेजते हैं कि आप खुशी व प्यार के लायक हैं।</p><p><b>आत्म छवि कार्ड बनाएं</b></p><p>इस बारे में सोचें कि आप वास्तव में अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं। फिर अपने आप से पूछें, इसके बजाय आप कैसा महसूस करना चाहेंगे? कागज के एक छोटे से टुकड़े में, एक शॉर्ट नोट लिखें कि आप कैसा महसूस करना चाहते हैं, क्या हासिल करना चाहते हैं और क्या अनुभव करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए, आप महसूस कर सकते हैं कि आप अपने रिश्तों में अच्छे नहीं हैं। अब खुद से पूछें कि आप कैसा महसूस करना चाहते हैं। संभावना है कि आपको जवाब मिले कि आप हर समय भाग्यशाली महसूस करना चाहते हैं। अब कागज पर ‘भाग्यशाली’ और ‘खुशहाल रिश्ते’ शब्द लिखें। इस कागज या कार्ड को अपनी जेब में रखें। दिन में हर कुछ घंटे बाद इस कार्ड को निकालें। एक मुस्कान के साथ जोर से पढ़ें, जो शब्द आपने उस पर लिखे हैं। यह आपकी पुरानी आत्म छवि को बदलने और आपके जीवन में अधिक सुखद अनुभव लाने में बड़ी भूमिका निभाएगा।</p><p><b>(हो’ओपोनोपोनो क्षमाशीलता पर आधारित एक प्राचीन जीवन दर्शन है)</b></p>
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[ "चुनौतियां लाख सही पर हौसला कम नहीं ", "क्या शारीरिक कमी सपनों के आड़े आ सकती है? पैरा एथलीट शम्स आलम इसका जवाब ‘ना’ में देते हैं। मूल रूप से मधुबनी (बिहार) के रहने वाले शम्स ने तैराकी में कई मेडल जीते हैं, विश्व रिकॉर्ड बनाए और अभी ‘वर्ल्ड पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप’ के लिए तैयारी कर रहे हैं। उनके जज्बे के आगे हर चुनौती हार मान लेती है। आइए जानें, उनसे जुड़ी कुछ अहम बातें" ]
<p><b>बचपन </b>से ही खेलों में रुचि थी शम्स आलम की। बड़े होने पर मार्शल आर्ट को चुना और उसमें ब्लैक बेल्ट हासिल की। बहुत छोटी उम्र में ही वह बिहार से मुंबई चले गए थे, वहीं पढ़ाई की। इंजीनियरिंग की और नौकरी करने लगे। साथ में खेल भी चलते रहे। फिर जीवन में ऐसा कुछ हुआ, जिसने जिन्दगी की दिशा ही बदल दी। </p><p>बताते हैं शम्स, ‘मैं हमेशा से खेलकूद में आगे रहा। मैकेनिकल इंजीनियर था, नौकरी कर रहा था। साथ में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेता रहता था। एक दिन अचानक बाएं पैर की एक उंगली में दर्द शुरू हुआ और चलने में तकलीफ होने लगी। डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने कहा कि एक गांठ है, जिसका ऑपरेशन करना पड़ेगा, क्योंकि इसमें जान का खतरा हो सकता है। इससे कुछ समय के लिए सेंसेशन जा सकता है, लेकिन बाद में ठीक हो जाएगा। पहले ऑपरेशन के बाद भी गांठ दिखती रही, तो दोबारा ऑपरेशन करना पड़ा। इसके बाद शरीर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया।’</p><p>एक चलते-फिरते, नौकरी करने वाले खिलाड़ी के सामने ऐसी स्थिति आ जाए तो यकीनन उसकी मानसिक स्थिति गड़बड़ा सकती है। ऑपरेशन के बाद शम्स को रिहैब सेंटर में जाना पड़ा, जहां रह कर उन्होंने भावनात्मक मजबूती हासिल की। शम्स बताते हैं, ‘वह वक्त ऐसा था जब मैं डिप्रेशन में चला गया। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं बहुत मजबूत व्यक्ति हूं, खासतौर पर तब, जब मेरी जिन्दगी में कुछ भी अच्छा ना हो रहा हो, ऐसी स्थिति के आने पर घबराना स्वाभाविक था। फिर मैंने खुद को संभाला और धीरे-धीरे अपनी स्थिति को स्वीकार किया।’ यह एक बड़ा मोड़ था शम्स की जिन्दगी में, जहां उन्हें फैसला लेना था कि यहां से आगे बढ़ें या किस्मत के भरोसे बैठे रहें। उनकी अम्मी ने उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहन दिया। </p><p>वह बताते हैं, ‘मेरी मां मेरा संबल बनकर खड़ी रहीं। उन्होंने ही मुझे तैराकी शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि तैराकी बचपन के बाद दोबारा कभी नहीं की थी। लेकिन डरते हुए पानी में उतरा। यहां से मानो मेरी जिन्दगी को मकसद मिल गया। मुझे याद है कि 2018 में जब मैं एशियन गेम्स के लिए जा रहा था, तो मां बहुत बीमार थीं। मैं जाना नहीं चाहता था, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं जाऊं और देश के लिए खेलकर आऊं। इससे ज्यादा और कौन प्रेरित कर सकता है।’ अभी शम्स गुरुग्राम में रहकर स्विमिंग चैंपियनशिप के लिए तैयारी कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के कारण कुछ समय से प्रैक्टिस संभव नहीं हो पा रही है। </p><p>शम्स कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि सरकार को मेरे जैसे खिलाड़ियों के लिए सोचना चाहिए, स्विमिंग पूल खोलने चाहिए, क्योंकि मेरे लिए स्विमिंग खेल के साथ ही फिटनेस का एकमात्र जरिया है। सेंसेशन नहीं होने के कारण यूरिनरी ब्लैडर पर कंट्रोल नहीं होता, ऐसे में मुझे इन्फेक्शन भी हो गया, जोकि पिछले दस वर्षों में कभी नहीं हुआ था। स्विमिंग से मेरी बहुत सी समस्याएं दूर होती हैं।’</p><p>वह आगे कहते हैं, ‘मैं दिव्यांग भले ही हूं, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं हूं। मैं खेलता हूं, खुद कमाता-खाता हूं। सरकार और समाज दिव्यांगों के बारे में सोचें और अपना नजरिया बदलें तो हमारे जैसे खिलाड़ियों की जिन्दगी बदल सकती है। लोगों में जज्बा है, वे मेहनत कर रहे हैं। बहुत से दिव्यांग खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं, जरूरत बस इतनी है कि उन्हें थोड़ी सुविधाएं मिलें और प्रोत्साहन मिले।’</p><p><b> इंदिरा राठौर </b></p>
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[ "राहत के राज नीबू पानी में", "जैसे ही कोरोना का संक्रमण फिर से बढ़ा है, लोग इम्यूनिटी वाली चीजों का सेवन करने लगे हैं। जिसमें नीबू भी शामिल है। आइए जानें गर्मी में नीबू आपका सबसे अच्छा दोस्त क्यों होना चाहिए?" ]
<p><b>डिहाइड्रेशन की शिकायत नहीं रहेगी</b></p><p>विटामिन-सी से भरपूर नीबू सबसे आसानी से उपलब्ध एक खट्टा फल है, जिसमें कई पौष्टिक तत्व भी होते हैं, जो हमारे शरीर को पूरे मौसम में ताजा और हाइड्रेटेड रखने में मदद करते हैं। इन दिनों एक गिलास पानी के साथ नीबू का रस मिलाना आपके शरीर के लिए चमत्कारी हो सकता है। यह हाइड्रेशन के स्तर को बढ़ाने के साथ शरीर के पीएच स्तर को संतुलित रखने में मदद करता है।</p><p><b>इम्यूनिटी को मजबूत करता है</b></p><p>बढ़ती गर्मी जैसे-जैसे आपकी ऊर्जा को कम करती है, यह आपकी इम्यूनिटी को भी प्रभावित करता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। एक गिलास नीबू पानी पीने से आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती मिलती है, क्योंकि इसमें मौजूद नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट और एंटी- बैक्टीरियल गुण संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं, विशेष रूप से वायरल बुखार और कोल्ड से। </p><p><b>एनर्जी बूस्टर</b></p><p>गर्मी की वजह से अगर सुस्ती महसूस हो रही हो, तो नीबू पानी पिएं। इसमें मौजूद निगेटिव आयन मूड बूस्टर के साथ-साथ एनर्जी बूस्टर के रूप में काम करते हैं, जब वे रक्त तक पहुंचते हैं। यह आपके पाचन तंत्र के लिए भी फायदेमंद है। यह शरीर को डिटॉक्स करके आपके मेटाबॉलिज्म और पाचन को बढ़ाने में मदद करता है।</p>
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[ "नन्ही कियारा मिनटों में पढ़ लेती है किताब" ]
<p>महज दो घंटे में 36 किताबें पढ़ पाना क्या संभव है। और वह भी एक पांच साल के बच्चे के लिए। हैरान होने वाली बात तो है, लेकिन इस रिकॉर्ड को बनाया है इंडियन अमेरिकन गर्ल कियारा कौर ने। पांच साल की कियारा का नाम 105 मिनट में 36 किताबें पढ़ने की वजह से लंदन वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ है। कियारा अबू धाबी में अपने परिवार के साथ रहती हैं। उनको किताबें पढ़ने का इतना शौक है कि वह कहीं भी अपने इस शौक को पूरा करने में लग जाती हैं। फिर चाहे वह कार में बैठी हो या अपने घर में। उनकी पसंदीदा किताबों में सिंड्रेला, एलिस इन वंडरलैंड और लिटिल रेड राइडिंग हुड आदि शामिल हैं। </p>
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[ "फैशन से कोई समझौता नहीं करतीं सोनम ", "सोनम कपूर अपने फैशन और स्टाइलिस्ट कपड़ों के लिए अकसर खबरों में रहती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सोनम अपने घर में भी डिजाइनर कपड़े पहन कर घूमती हैं, और इसका खुलासा खुद एक इंटरव्यू में उन्होंने किया। सोनम ने और भी कई दिलचस्प बातें बताईं" ]
<p><b>बॉ</b></p><p>लीवुड की खूबसूरत अदाकारा सोनम कपूर फिल्मों के अलावा अपने फैशन स्टाइल को लेकर भी अकसर सुर्खियों में रहती हैं। यही नहीं वह अपने नए फोटोशूट को सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करती रहती हैं। जब सोनम से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि कोविड के समय में जब ज्यादा घूम नहीं सकते और किसी से मिल नहीं सकते, तो मैं अपने घर के गार्डन में ही पूरे मेकअप के साथ डिजाइनर कपड़े पहनकर घूमती थी। </p><p><b>फैशन से कोई समझौता नहीं</b></p><p>बकौल सोनम, ‘लॉकडाउन के दिनों में मैं देखती थी कि बाकी लोग आराम से अपने घर के कपड़े यानी पायजामा और टीशर्ट में अपना पूरा दिन काट देते थे। लेकिन मेरे घर में उल्टा ही था। मेरी सास और मैं उन दिनों में भी अच्छी स्टाइलिश ड्रेसेज पहनकर रहा करते थे। कई बार ऐसा होता था कि मुझे लगता था कि दिन में कई बार कपड़े बदलकर पहनने से धोने में भी दिक्कत होती है, क्योंकि उन दिनों घर में काम करने वाले लोग भी ज्यादा नहीं थे। फिर मैं अपनी सास को देखती थी तो मुझे ड्रेसअप होने की प्रेरणा मिलती थी। ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह और मैं पूरा दिन घर में पायजामा और टीशर्ट पहनकर रहे हों।’</p><p><b>फोन में क्या सर्च करती रहती हैं सोनम</b></p><p>सोनम के बारे में सभी कहते हैं कि उन्हें नए कलेक्शन और आजकल क्या फैशन में है... ये सबसे पहले पता होता है। इस बारे में सोनम कहती हैं,‘कई लोगों को जानकर हैरानी होती है कि मैं अपने फोन में सबसे ज्यादा सर्च यही करती हूं कि कौन से ब्रांड का नया कलेक्शन क्या है? या फिर कौन से ब्रांड ने नया क्या निकाला है, जो ट्राई किया जा सके। मैं हमेशा फैशन को लेकर अपडेट रहती हूं।’ सोनम के बारे में बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियां भी कह चुकी हैं कि बॉलीवुड में अगर कोई अभिनेत्री फैशन और नए ट्रेंड को लेकर सबसे ज्यादा गंभीर रहती है, तो वह सोनम ही है।</p><p><b>मेकअप में होती है परेशानी</b></p><p>कोविड के समय जब सोशल डिस्टेंसिंग नियम का कड़ाई से पालन हो रहा था, वो अपना मेकअप कैसे करती थीं। इस सवाल पर सोनम ने कहा,‘सच कहूं तो उस दौरान मैंने अपनी मेकअप टीम को काफी याद किया। हालांकि मैं खुद से अपना हल्का-फुल्का मेकअप कर लेती हूं, पर जब तक मेरी टीम मुझे तैयार न करे मुझे चैन नहीं मिलता था।’ सोनम इन दिनों अपने पति के साथ लंदन में हैं और उन्हें मुबंई की काफी याद सता रही है। सोनम कहती हैं, ‘मुझे घर की काफी याद आ रही है, क्योंकि मैं उन लोगों में से हूं, जो 20 दिन से ज्यादा एक शहर में नहीं रहते। इसलिए लंबे समय तक एक शहर में रहना मेरे लिए परेशानी का सबब हो जाता है।’ <b>नीलम कोठारी बडोनी</b></p><p>बकौल सोनम,‘लॉकडाउन में जहां सभी एक-दूसरे के साथ समय बिता रहे थे, वहीं मैं और आनंद साथ होकर भी साथ नहीं थे। वह सुबह से लेकर रात के दो बजे तक काम करते थे। मैं कभी-कभी आनंद को बोलती हूं कि अगर मुझे खाना पकाना नहीं आता तो तुम्हें पूरे लॉकडाउन में सिर्फ ब्रेड खाकर काम चलाना पड़ता।’</p><p><b>पापा हैं सोनम की प्रेरणा</b></p><p>डिजाइनर कपड़ों और स्टाइल के बारे में सोनम का कहना है कि भले ही लोग उन्हें फैशनस्तिा कहते हैं। लेकिन असली फैशन किंग तो उनके पिता हैं। सोनम कहती हैं,‘ऐसा कोई ब्रांड नहीं और ऐसा कोई स्टाइल नहीं, जो पापा के पास नहीं होता। यहां तक कि जब किसी फैशन मैगजीन में कोई नई चीज या ट्रेंड का जिक्र होता है, तो वह पहले से ही मेरे पापा के कमरे में होती है। कई बार तो हम उनकी चीजों को देखकर कहते हैं कि ये हमें दे दीजिए। लेकिन वो देते नहीं। पापा को खुद को अप-टू-डेट रखना पसंद है। उन्हें अच्छा लगता है जब भी वह अपना कलेक्शन देखते हैं। सिर्फ पापा ही नहीं आनंद (सोनम के पति) भी नए स्टाइल और ट्रेंड के दीवाने हैं। हमारे पूरे परिवार में आनंद के पास सबसे ट्रेंडी और स्टाइलिश जूते होते हैं और हर किसी को इंतजार होता है कि कब आनंद उन्हें तोहफे में जूते देंगे।’</p>
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[ "टाइगर श्रॉफ के घर तो जाइए" ]
<p><b>मुंबई </b>में जो भी बंदा बाहर से जाता है, उसकी ख्वाहिश होती है, अमिताभ बच्चन, सलमान खान, शाहरुख खान का घर देखने की। साथ ही वे अपने चहेते सितारों को सामने से भी देखना चाहते हैं। इसलिए बिग बी बाहर आते हैं और हाथ जोड़ कर निकल जाते हैं। किंग खान बालकनी में खड़े होकर सलाम करते हैं और सल्लू भाई बस हाथ हिलाते हैं। लंबा वक्त हो गया, किसी नए सितारे के घर के सामने भीड़ नहीं लगी। पर अब मुंबई के बाशिंदे बता रहे हैं कि एक नया सितारा है, जो कुछ ऐसी हरकतें कर रहा है, जिसकी वजह से उसकी बिल्डिंग के आगे भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। वो है टाइगर श्रॉफ। टाइगर नियम से अपने घर की बालकनी में आते हैं और बिल्डिंग के नीचे खड़े फोटोग्राफर और दर्शकों को तरह-तरह से करतब करके दिखाते हैं। अकसर वो बिना शर्ट के होते हैं। वे अपने बाय सेप्स और सिक्स पैक एब्स का पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ प्रदर्शन करते हैं और दर्शक तालियां मारते रहते हैं। इस नए फिटनेस गुरु को लगता है दर्शकों को अपनी तरफ खींचना बखूबी आता है।</p>
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[ "रिश्तों की कहानियां तो हैं पर अजीब बिल्कु ल नहीं" ]
<p><b>‘इस </b>देश के सब मर्द ढोंगी क्यों हैं?’ शादी का जोड़ा भी नहीं उतरा था लिपाक्षी (फातिमा) ने, जब चौखट पर खड़े अपने पति बबलू (जयदीप) से यह सवाल पूछा था। बबलू भी वहीं खड़े-खड़े कह गया- ‘ये शादी गठबंधन की सरकार है, जो उसकी बिना मर्जी के हुई है।’ इस एंथॉलजी की पहली कहानी शशांक खेतान निर्देशित ‘मजनूं’ की यह झलक एक पल को कुछ अलग-सी लगती है। </p><p>अगले सीन में एक सजीला नौजवान राज (अरमान रल्हन) आता है। तीन साल से बबलू की बेरुखी झेल रही लिपाक्षी के पास अब हर वजह है कि वह बेवफाई पर उतर आए। दूसरी कहानी ‘खिलौना’ में निर्देशक राज मेहता ने कोठी और कतिया के बीच संघर्ष को दर्शाया है। 200 गज की कोठियों के बीच प्रेस करने वाले सुशील (अभिषेक) को डर है कि नया नवेला सेक्रेटरी विनोद उसका ठिया हटवा देगा। मीनल (नुसरत) भी इन्हीं कोठियों में काम करती है, जो अपनी पुरानी नौकरी छोड़कर विनोद के घर काम करने लगती है। ये सोचकर कि वह उसकी कटी हुई बिजली वो फिर से जुड़वा देगा। </p><p>तीसरी कहानी ‘गीली पुच्ची’ का निर्देशन नीरज घेवाण ने किया है, जिसकी मुख्य पात्र भारती (कोंकणा), एक फैक्ट्री में भारी-भरकम मशीनों पर पुरुषों के बीच काम करती है। फैक्ट्री में एक नई लड़की प्रिया (हैदरी) के आने बाद उसकी जिंदगी का दर्द और बढ़ जाता है। वह दर्द जिसे वह दंश की तरह बरसों से झेल रही है। </p><p>चौथी कहानी ‘अनकही’ में निर्देशक कयोज ईरानी ने एक शहरी कपल नताशा (शेफाली) और रोहन के रिश्ते की जटिलताओं में फंसी उनकी बेटी समायरा पर बात की है, जो सुन नहीं सकती। एक दिन नताशा एक फोटोग्राफर (मानव) से मिलती है, जिसके बाद से उसे लगने लगता है कि शायद अब इशारों, नैनों और भावों की भाषा की खोज अब खत्म हो जाएगी। टाइटल में ‘अजीब’ जुड़ा होने से उम्मीद थी कि कुछ विरले किस्से होंगे, जो कभी देखेे न सुने होंगे। ट्रेलर से दम-सा भरता यह दावा पहली ही कहानी में हवा हो जाता है, जो अजीब कम फनी ज्यादा है। बबलू के नाम से ज्यादा वजन तो उसकी शेरवानी में दिखता है। </p><p>सच मानिए, ‘मजनूं’ क्राइम पेट्रोल का रिफाइंड वर्जन है और कुछ नहीं। ‘खिलौना’ में कुछ गहरी बातें हैं, लेकिन यह कहानी अजीब के बजाए घृणित ज्यादा लगती है। इसे चौथी कक्षा में पढ़ने वाली एक छोटी बच्ची के कृत्य से जोड़ने से छाती सी फटने लगती है। कल्पना ही सही, पर इतनी विभत्स क्यों? वैसे इसका एक गीत मेरा मन यूं ही बिखर जाए... अच्छा बन पड़ा है। </p><p>तीसरी कहानी में रिश्तों के बीच असहजता का भाव जातिगत कारणों से उभरता है। यहां निर्देशक की मेहनत और अनुभव दिखता है। भारती के रोल में कोंकणा का हर वक्त तमतमाया सा चेहरा बताता है कि झल्लाहट और पीड़ा न जाने कब से उसके साथ हैं। कलाइयों पर जैकी दादा स्टाइल में बंधा कपड़ा और जबड़े का खिंचा-खिंचा सा फ्रेम देख लगता है कि नीरज ने कसकर काम लिया है और कोंकणा ने उत्साह से कर दिखाया है। लेकिन यह कहानी न तो गैर-पारंपरिक रिश्तों की डोर को संभाल पाती है और न ही समाज में बराबरी के मुद्दे को पुरजोर ढंग से सामने ला पाती है। बस एक उलझन और ‘अजीब’ के ठप्पे के साथ सिमट सी जाती है। हालांकि इस कहानी में वास्तविक लोकेशंस और सेट साज-सज्जा भी काफी बढ़िया है। </p><p>अंतिम कहानी अपेक्षाकॄत छोटी है, लेकिन शायद सबसे ज्यादा भावुक और स्पष्ट हैै। एक पल में बहुत कुछ पा लेने और अगले ही पल सब खो देने जैसा अहसास है। ‘आपने तो आंखों से झूठ बोल दिया...’ इशारों की भाषा में मानव कौल का नताशा को यह कहना इस बेमतलब दुनिया से साक्ष्य करा देने जैसा लगता है। भावुक पलों में शेफाली शाह ये कई बार दर्शा चुकी हैं कि कलह और विरह के चरम पर आंसुओं को उनसे बेहतर शायद ही कोई और रोक पाता हो।</p><p><b>विशाल ठाकुर</b></p>
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[ "सिर्फ बॉलीवुड के कलाकरों को ही फैंस का प्यार मिलता है, ऐसा नहीं है। लोकप्रियता के मामले में टीवी कलाकार भी कम नहीं हैं। कई टीवी एक्टर अपने फैंस के किस्से अकसर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करते रहते हैं। ऐसे ही कुछ किस्से आपके लिए प्रस्तुत हैं" ]
<p>रावाहिक ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ में किशोर अशोक का किरदार निभा चुके सिद्धार्थ निगम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आज आलम ये है कि सिद्धार्थ जब भी सोशल मीडिया में कुछ पोस्ट करते हैं, तो पल भर में वह वायरल हो जाता है। फैंस का प्यार और उनसे मिल रही लाइमलाइट पर सिद्धार्थ कहते हैं, ‘यूं तो फैंस सोशल मीडिया पर संदेश भेजकर अपना प्यार दिखाते रहते हैं। लेकिन कुछ समय पहले मेरा एक फैन मुझसे मिलने मुंबई आ गया था। काफी दिक्कतों के बाद किसी तरह से उसने मेरा घर खोजा और फिर गेट पर बैठा रहा। मम्मी को जब ये बात पता चली, तो मम्मी उसे लेकर घर आई और फिर हमने उसे अपनी गाड़ी में बिठाकर रेलवे स्टेशन तक छोड़ा। उस दिन मम्मी और मेरा भाई अभिषेक भी भावुक हो गए थे, क्योंकि वो बिना किसी स्वार्थ के इतनी दूर से आया था, सिर्फ मुझसे मिलने के लिए।’</p><p>सिद्धार्थ इन दिनों अपने भाई अभिषेक के साथ ‘हीरो-गायब मोड ऑन’ में नजर आ रहे हैं। फैंस का किस्सा साझा करते हुए अभिषेक कहते हैं, ‘अभी कुछ दिनों पहले एक लड़की ने मुझे सोशल मीडिया पर एक मैसेज भेजा था कि वह उससे मिलना चाहती है। इसलिए उसे मेरा नंबर चाहिए था। मैंने उसे बहुत समझाया कि अभी कोविड में यूं किसी से भी मिलना ठीक नहीं। लेकिन वह नहीं मानी। फिर जाकर एक दिन मैंने खुद उससे लंबी बात की।’</p><p>‘इश्कबाज’ से घर-घर में मशहूर हुए कुणाल जयसिंह इन दिनों ‘क्यों उत्थे दिल छोड़ आए’ में नजर आ रहे हैं। वह कहते हैं, ‘फैंस हमें अहसास कराते हैं कि हम जो कर रहे हैं वह उनके दिल को छू रहा है। वैसे तो मुझे तोहफों का रिवाज पसंद नहीं, लेकिन एक बार मेरी एक फैन ने मेरे लिए ऐसा तोहफा भेजा कि मेरे साथ सेट पर सभी लोग हैरान हो गए थे। वह काफी महंगा था और उसने मुझे इतना भावुक कर दिया था कि मैंने खुद उसे फोन करके धन्यवाद बोला और सलाह भी दी कि आगे से वह कभी भी ऐसा न करे।’ </p><p>इन दिनों ‘हिज स्टोरी’ से खबरों में छाई प्रियामणी कहती हैं,‘पहले मुझे दक्षिण भारत के फैंस मिलते थे, क्योंकि मैं वहां की फिल्मों में ज्यादा दिखाई देती थी। लेकिन अब जब से मैंने मनोज वाजपेयी के साथ ‘फैमिली मैन’ किया है, तब से मेरा इनबॉक्स भरा रहता है। कई बार मेरे घर पर अचानक से फूल और चॉकलेट आ जाते हैं। फैंस का प्यार देखकर अच्छा लगता है, क्योंकि वह बिना किसी रिश्ते के भी हमसे इतना प्यार करते हैं।’ </p><p>पार्थ समथान को किसी पहचान की जरूरत नहीं है। उनके टीवी शो और वेब शो से उनकी इतनी फैन फालोइंग है कि शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब उन्हें कोई फैन तोहफा न भेजता हो। पार्थ इन दिनों ‘मैं हीरो बोल रहा हूं’ वेब शो के कारण चर्चा में हैं। वह कहते हैं,‘ मैं अपने फैंस को अपना परिवार मानता हूं। इसलिए जब कभी वह मुझे महंगे तोहफे भेजते हैं तो पूरे हक से मैं उन्हें समझाता भी हूं।’ </p><p><b>नीलम कोठारी </b></p><p><b>धा</b></p>
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[ "अजय भैया ने बदली चाल" ]
<p><b>अब </b>जब इंडस्ट्री की हवा ही बदल गई है, तो भला अजय देवगन अपनी चाल क्यों न बदलें? मतलब एक्शन और कॉमेडी छोड़ कर अब अजय देवगन भी करने वाले हैं पुराने वक्त की सैर और देंगे ज्ञान। बहुत सोच-समझ कर अजय ने तय किया है कि अगर इंडस्ट्री में बतौर हीरो टिके रहना है, तो अक्षय कुमार की तरह सोचना होगा। अजय के एक क्लोज फ्रेंड कहते हैं, ‘अजय देवगन आपको अलग-अलग रोल करते हुए नजर आएंगे। एक्शन कम, ज्ञान ज्यादा वाला रूल अपनाने जा रहे हैं।’ हाल ही में अजय देवगन ने सिद्धार्थ राय कपूर की फिल्म ‘गोबर’ साइन की है, इस फिल्म में वे नब्बे के दशक के एक आदर्श आदमी का किरदार निभाते नजर आएंगे, जो सिस्टम के हाथों लाचार महसूस करता है। बॉलीवुड के सिंघम यानी अजय का मानना है कि कोरोना और ओटीटी प्लेटफॉर्म की वजह से दर्शकों का रुझान बदल रहा है और उन्हें भी दर्शकों की पसंद के हिसाब से ही चलना चाहिए।</p>
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[ "श्रद्धा की शादी फिर खिसकी" ]
<p>हाल ही में श्रद्धा कजन भाई प्रियांक शर्मा की शादी में खूब मस्ती करती नजर आईं। कुछ दिनों पहले वह मालदीव में अपने बॉयफ्रेंड रोहन श्रेष्ठा के साथ भी छुट्टियां मनाती नजर आईं। तब कयास जोरों पर था कि वह रोहन के साथ अपनी शादी का वेन्यू तय करने गई हैं। वैसे तो खबर यही थी कि मई में श्रद्धा शादी करने का मन बना चुकी थीं। फिर ऐसा क्या हुआ कि उनकी शादी की खबर तक नहीं? शक की सूई फिर से एक बार डैडी शक्ति कपूर की ओर है, जो श्रद्धा की पसंद से बहुत इत्तेफाक नहीं रखते। </p>
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[ "फिल्म :..... " ]
<p><b>फिल्म : </b>अजीब दास्तान्स</p><p><b>निर्देशक: </b>शशांक खेतान, नीरज घेवाण, कयोज ईरानी, राज मेहता</p><p><b>कलाकार: </b>फातिमा सना शेख, जयदीप अहलावत, नुसरत भरूचा, अभिषेक बैनर्जी, अदिति राव हैदरी, कोंकणा सेन शर्मा, शेफाली शाह, मानव कौल, <b>वेब प्लेटफॉर्म : </b>नेटफ्लिक्स</p>
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[ "बच्चा तैयार है बड़ा होने के लिए?", "किन भाई-बहनों में लड़ाई नहीं होती? अकसर बच्चों की तकरार पर हम यह बोल देते हैं। पर अगर इस परेशानी से खुद को बचाना है, तो नए बच्चे के आने से पहले ही आपको अपने बड़े बच्चे को उसकी जिंदगी में आने वाले बदलावों के लिए तैयार करना होगा। कैसे? बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी" ]
<p>सेज कपूर की किटी पार्टी में अकसर बच्चों की ही चर्चा होती है। कम या ज्यादा, सबकी शिकायतें भी लगभग एक-सी होती हैं। शिकायत भी क्या- दोनों बच्चे आपस में ही भिड़े रहते हैं। घर में चीखा-चिल्ली मची रहती है। मारना, रोना और फिर शिकायतों की फेहरिस्त। देखा जाए तो लगभग हर घर की एक ही कहानी है। बच्चे हैं, तो झगड़ेंगे ही। पर उनकी आपसी खटास अभिभावकों के लिए चिंता का कारण भी बन सकती है। याद रखें, कुछ भी एकदम से नहीं होता। इस कड़वाहट की नींव बहुत पहले ही पड़ चुकी होती है, जिस पर शायद आपने गौर नहीं किया या फिर गुजरते वक्त के साथ नजरअंदाज कर बैठे। अगर आपके घर नया बच्चा आया है और पहले से घर में उसका बड़ा भाई या बहन है, तो आपको कुछ बातों का शुरू से ही ध्यान रखना होगा, ताकि उनके बीच का रिश्ता मीठा बने, न कि कसैला।</p><p><b>क्या है बच्चों की प्रतिद्वंद्विता</b></p><p>हाथापाई, बेकार की कहा-सुनी, एक-दूसरे का नाम बिगाड़ना, नए बच्चे से जलन महसूस करना... क्या आपके बच्चे में भी यह व्यवहार नजर आता है? अगर हां, तो यह आपके लिए गंभीर समस्या है। साइकोलॉजिस्ट डॉ. आराधना गुप्ता कहती हैं,‘जब आपके घर में दूसरा बच्चा आता है, तो इससे न सिर्फ आपकी दिनचर्या बदलती है, बल्कि आपके पहले बच्चे की जीवनशैली पर भी असर पड़ता है। यह मौका जहां एक ओर खुशी लेकर आ रहा होता है, वहीं जाने-अनजाने इससे तनाव भी बढ़ता है। बड़े बच्चे को भी संभालना होता है, वहीं छोटे बच्चे को भी ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसे में दोनों के बीच सामंजस्य न बिठा पाने के कारण एक तरह का तनाव घर में पैदा होने लगता है। जिसमें बड़ा बच्चा छोटे से जलन महसूस करने लग जाता है। कई बार माता-पिता इस व्यवहार को समझ नहीं पाते। ऐसा होना इसलिए मुमकिन है कि माता-पिता का ध्यान बंट जाता है। जब कभी बड़े बच्चे को माता-पिता के वक्त की जरूरत होती है, तब उनका पूरा ध्यान छोटे बच्चे पर होता है। असल में छोटे बच्चे के आने से अकसर बड़े बच्चे को एकदम से बड़ा समझ लिया जाता है। ऐसे में अभिभावकों को देखना होगा कि तमाम बदलावों के बीच उनका बड़ा बच्चा अकेला न रह जाए। इस समस्या से बचने में दोनों बच्चों की उम्र का फासला भी आपके लिए मददगार होता है। उनकी उम्र में न ज्यादा अंतर अच्छा होता है और न ही कम। चार साल का अंतर अच्छा होता है।’</p><p><b>पहले से करें तैयार</b></p><p>किसी भी समस्या के पहले ही समाधान की बात अजीब लगती है। पर, कुछ प्रयासों से समस्या से बचा जा सकता है। यकीनन आप उन प्रयासों पर काम करना पसंद करेंगी। </p><p>डॉ. आराधना कहती हैं,‘बच्चे के जन्म के पहले से ही बड़े बच्चे को आने वाले उसके नन्हे साथी के लिए तैयार करें। आपको उसे अहसास कराना होगा कि अब उसकी पदोन्नति हो रही है। उसे बात-बात में बताइए कि वह अब भैया या दीदी बनने वाले हैंऔर उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। और उसकी मदद के बिना आप छोटे बच्चे का ख्याल नहीं रख पाएंगी। बताएं कि छोटा बच्चा जब आएगा, तब उसकी जिंदगी में क्या-क्या बदलाव आ जाएंगे। उसे बताइए कि आने वाले समय में उसका बैडमिंटन और कैरम का पार्टनर घर में ही मिल जाएगा। साथ ही उसे आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास शुरू कीजिए, जैसे उसे खुद से दांत साफ करने, नहाने, कपड़े पहनने आदि सिखाना शुरू कीजिए। जब उसकी आप पर निर्भरता कम होगी तो उसकी आपसे उम्मीदों में भी कुछ हद तक कमी आएगी। कई बार बड़ा बच्चा आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ गलतियां करने लग जाता है । ऐसे में गुस्सा करने के बजाय उसे प्यार से समझाएं।’ </p><p><b>जिम्मेदारियों में करें शामिल</b></p><p>घर में नन्हे मेहमान के स्वागत की तैयारियों में अपने बड़े बच्चे को शामिल कीजिए। बच्चा जब घर आ जाए, तो दोनों बच्चों के बीच जुड़ाव को बढ़ाने के लिए आप अपने बड़े बच्चे को छोटे बच्चे के काम की छोटी-छोटी जिम्मेदारी दे सकती हैं। ऐसा करने से दोनों के बीच शेयरिंग- केयरिंग का रिश्ता बन जाता है।</p><p><b>बड़े बच्चे का बचपन ना छीनें</b></p><p>दोनों बच्चों के बीच तालमेल बिठाने के लिए यकीनन बड़े बच्चे को छोटे की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने देना एक अच्छा प्रयास है। पर, आपको यहां इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कहीं इस कोशिश में बड़े बच्चे के नाजुक कंधों पर जिम्मेदारी ज्यादा तो नहीं पड़ रही? डॉ. आराधना कहती हैं,‘कई बार ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जब पेरेंट्स शिकायत करते हैं कि बड़ा बच्चा पढ़ने में कमजोर हो रहा है या उसका आईक्यू कम सा नजर आने लगा है। और जब इस तरह की समस्या की तह में पहुंचा जाता है, तो मालूम पड़ता है कि घर में आए छोटे बच्चे की आधी से ज्यादा जिम्मेदारी बड़ा बच्चा उठा रहा होता है। ऐसे में आपको अपनी परवरिश के तरीके को बदलने की जरूरत है।’</p><p><b>एक को न दें सजा</b></p><p>वह छोटा है, तुम तो बड़ी हो... कई बार आप मामले को सुलाझने के लिए ऐसे अल्फाजों का इस्तेमाल करती हैं। जानकारों की मानें तो ऐसा बिल्कुल न करें। कभी भीएक बच्चे को सजा न दें। दोनों को डांट लगाएं। जब तक आपने किसी एक बच्चे की गलती अपनी आंखों से न देखी हो, तब तक किसी भी निर्णय पर पहुंच कर सजा न दें।</p><p><b>बेटा-बेटी में न करें अंतर</b></p><p>बेटा और बेटी मिलकर आपका परिवार पूरा करते हैं, पर कई बार उनके बीच दूरी सिर्फ इसलिए आ जाती है कि आपके व्यवहार में समानता नहीं रह पाती। वह भाई है, तो कर सकता है, तुम लड़की हो इसलिए नहीं कर सकती। इस तरह की सोच और बातें बालमन को झकझोर कर रख देते हैं। नतीजा, बच्चों के बीच में न चाहते हुए भी एक खाई तैयार हो जाती है। जो कई बार भीतर ही भीतर असर करती है।</p><p><b>तय करें सीमाएं</b></p><p>सीमाएं? वो भी छोटे बच्चों के लिए। जी, बिल्कुल सही पढ़ा आपने। बच्चों के लिए सीमाएं तय कीजिए जैसे बड़ा बच्चा छोटे को डांट रहा है, तो छोटा उस पर हाथ नहीं उठा सकता। बड़ा छोटे पर हाथ नहीं उठा सकता आदि। यह अनुशासन दोनों के बीच एक बेहतर रिश्ता बनाने में मददगार होगा। </p>
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[ "प्रिंट्स दिखाएंगे अपना कमाल", "समर प्रिंट्स का भी अपना अलग ट्रेंड होता है। किस प्रिंट को गर्मियों में बनाएं अपने वॉर्डरोब का हिस्सा, बता रही हैं चयनिका निगम" ]
<p><b>जिस </b>तरह रंगों को देख कर मौसम का अंदाजा लग जाता है, ठीक वैसे ही आपकी ड्रेस के प्रिंट को देखकर भी गर्मियों के फैशन का पता चल जाता है। अगर आप भी इन दिनों फै शनेबल दिखना चाहती हैं,तो सिर्फ कट और रंग पर ही ध्यान नहीं दें, बल्कि मौसम के हिसाब से कपड़ों केप्रिंट का चुनाव करें। </p><p><b>ऐसे आजमाएं प्रिंट का ट्रेंड</b></p><p>गर्मी के मौसम में प्रिंट आजमाने हैं, तो फ्यूजन प्रिंट वाली ड्रेसेज चुनें। आप पारंपरिक और आधुनिक प्रिंट का फ्यूजन भी अपना सकती हैं- जैसे जयपुर ब्लॉक मोटिफ, फ्लोरल बूटी प्रिंट, एब्स्ट्रैक्ट पाइसले प्रिंट। इनके साथ अगर हैंड वर्क का इस्तेमाल हुआ है, तो फिर कहने ही क्या! इस वक्त एक टोन से सजी ड्रेसेज को संभालकर अंदर ही रख दीजिए।</p><p><b>जब करना हो मिक्स एंड मैच</b></p><p>कई बार ऐसा होता है कि हम दो प्रिंट एक साथ पहन लेते हैं। लेकिन इस वक्त एक ही कलर फैमिली के प्रिंट पहनना सही रहता है। साथ में प्रिंट का ज्योमेट्रिकल डिजाइन एक जैसा हो ये भी ध्यान रखें जैसे त्रिकोण या फिर डॉट। इससे आपका लुक एक होते हुए भी अलग वाला फील देगा।</p><p><b>न्यूट्रल आउटफिट आएगा काम</b></p><p>हम सभी के पास कुछ न कुछ न्यूट्रल होता ही है, जैसे काली टी शर्ट, सफेद पैंट या फिर ब्राउन जींस। प्रिंट को अपनी वॉर्डरोब में शामिल करने जा रही हैं, तो सबसे पहले इन न्यूट्रल ड्रेस के साथ इन्हें पहनना शुरू करें, जैसे सफेद स्कर्ट के साथ प्रिंटेड टॉप। जब इसके साथ तरह-तरह के प्रिंट को पहनने में आप सहज हो जाएं तो फिर अपने लिए ऊपर से नीचे तक एक ही प्रिंट वाली और ड्रेस खरीद लें। अगर टॉप पर बड़े प्रिंट हैं, तो लोअर में छोटे प्रिंट चुनें। इस तरह से आपको प्रिंट का कॉम्बो मिल जाएगा और ये आपके लुक पर फबेगा भी।</p><p><b>प्रिंट के उलट एक्सेसरीज</b></p><p>प्रिंट के साथ एक्सेसरीज कैसी हो, इसको लेकर भी खास बात ध्यान रखनी होगी। हमेशा प्रिंट के उलट एक्सेसरीज का लुक चुनें। जैसे ड्रेस पर काले और सफेद रंग के प्रिंट हैं, तो एक्सेसरीज बोल्ड रंग की ही चुनें। प्लेन ड्रेस केसाथ प्रिंट वाली कोई एक्सेसरी पहनें। क्रीम ड्रेस पर डार्क नीले व लाल प्रिंट वाले पर्स लें।</p><p><b>रंगों का यह हो कॉम्बिनेशन</b></p><p><b>हरा और पीला: </b>हरे और पीले रंग के कॉम्बो वाले प्रिंट आपके लुक पर अच्छे लगेंगे। इन दोनों ही रंगों में ताजगी का अहसास होता है। </p><p><b>हल्का पीला व गुलाबी: </b>इन शेड में पेस्टल कलर वाले प्रिंट लें, तो ये ज्यादा फबेंगे।</p><p><b>लाल और नीला: </b>इन दो रंगों का कॉम्बो तो हर सीजन में अच्छा लगता ही है, मगर गर्मी में यह अलग ही नजर आता है। ये आपके लुक को जरूर निखार देंगे। </p><p>(फैशन डिजाइनर अंजलि श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)</p>
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[ "तारीफ सुनते ही खुशी से उछलना हम सब जानते हैं, पर आलोचना का सामना कैसे करें यह गुर कम लोगों को आता है। कैसे करें आलोचना का सामना, बता रही हैं शाश्वती" ]
<p><b>आप कैसे करती हैं</b></p><p><b>आलोचना का सामना</b></p><p><b>कोई </b>हमारी तारीफ करे, तो बहुत अच्छा। पर जैसे ही कोई हमारी खामियां गिनाने लगता है, हम सब नकारात्मक रवैया अपनाने लगते हैं। बहुत ज्यादा शांत स्वभाव के लोगों को भी आलोचना सहने का सलीका नहीं आता। शायद हमने सीखा ही नहीं या फिर हमें सिखाया ही नहीं गया। तभी तो जैसे ही कोई हमारे बारे में कुछ भी नकारात्मक बात कहता है, हमें ऐसा महसूस होने लगता है कि हम पर निजी तौर पर हमला किया जा रहा है। जबकि वाकई ऐसा होता नहीं है। </p><p>आलोचना का सामना करने का सलीका आपको सीखना होगा, तभी आप अपनी जिंदगी में आगे बढ़ पाएंगी, वरना एक जगह अटक जाने की आपकी संभावना ज्यादा बढ़ जाएगी। आलोचना को सकारात्मक तरीके से स्वीकार नहीं पाने का एक और नुकसान यह है कि धीरे-धीरे दोस्त, रिश्ते और यहां तक कि आपके सहकर्मी भी आपसे दूर होते चले जाएंगे। आप अपनी जिंदगी में इस स्थिति तक नहीं पहुंचना चाहती हैं, तो आलोचना का सामना करने का गुर आप सीख लें।</p><p><b>ध्यान केंद्रित करें </b></p><p>अपनी बुराई सुनते ही मूड खराब कर लेना या फिर रोने लगना समस्या का समाधान नहीं है। नकारात्मक फीडबैक से लड़ने में यह बहुत ही साधारण ट्रिक आपकी मदद कर पाएगी। मसलन, अगर आज आपके बॉस ने किसी काम को लेकर आप पर नकारात्मक टिप्पणी की है, तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप हर दिन खराब काम करती हैं। और न ही तुरंत बॉस के सामने अपनी सारी उपलब्धियां गिनाकर आपको खुद को सही साबित करने की जरूरत है। ऐसी स्थिति में किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से पहले जरा ठहरें और सोचने की कोशिश करें कि वो कौन से गुण हैं, जो आपकी पहचान हैं। आपका दिन कितना भी अच्छा या खराब क्यों न हो, आपके इन गुणों में बदलाव नहीं आने वाला है। कई बार चुपचाप दूसरों की बातों को सुन लेना चाहिए।</p><p><b>हमेशा नकारात्मक नहीं होती आलोचना</b></p><p>अगर हम आपको कहें कि आलोचना हमेशा नकारात्मक नहीं होती। वह सकारात्मक भी होती है और एक व्यक्ति के रूप में आपको आगे बढ़ने में उपयोगी साबित हो सकती है। समझ नहीं आया? कहने का मतलब यह है कि सामने वाला आपकी भलाई चाहता है और इसलिए वह आपकी उन खामियों को गिना रहा है, जहां आपको सुधार करने की जरूरत है। तो अगली दफा जब आपका कोई सहकर्मी, दोस्त या रिश्तेदार आपको कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया दे, तो यह जरूर याद रखें कि संभव है कि वह असल में आपकी भलाई चाह रहा होगा।</p><p><b>कमजोर आत्मविश्वास की निशानी</b></p><p>अगर आप आलोचना का सामना डिफेंसिव होकर करती हैं, तो इस बात की संभावना है कि आपका खुद की क्षमताओं पर विश्वास कम हो। आप अपनी आलोचना सुनकर बहुत ज्यादा गुस्से में आ जाती हों या फिर जंक फूड आदि खाकर इस तरह की आलोचना का सामना करती हों। पर, यह सब समस्या का समाधान नहीं है। इससे आपको कोई फायदा नहीं होने वाला। आपको अपने आत्मविश्वास को मजबूत बनाने की दिशा में काम करना होगा। अगर कोई आपका मजाक उड़ाए, तो उसे अनदेखा करना सीखें। आलोचना के सकारात्मक पक्षों को समझना सीखें व उसका इस्तेमाल खुद को बेहतर बनाने में करें।</p><p><b>झटपट प्रतिक्रिया देने से बचें</b></p><p>सामने वाला आपकी आलोचना करे, तो तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देने या सफाई देने से बचें। सामने वाले को विस्तार से अपनी बात रखने का मौका दें, फिर सोचें कि वह ऐसा क्यों कह रहा है। कहीं वह सही बात तो नहीं कह रहा। हर बात की प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं। ऐसे मामलों में चुप रहना ही आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। अगर आप अपनी प्रतिक्रिया देना ही चाहती हैं तो सामने वाले पर आरोप लगाने की जगह अपनी राय देते समय ‘मैं’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहें कि ऐसी मेरी राय है। इससे पता चलेगा कि आप सामने वाले के फीडबैक पर अपनी प्रतिक्रिया दे रही हैं।</p>
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[ "मसूड़ों का रक्तचाप से है कनेक्शन" ]
<p>अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की पत्रिका हाइपरटेंशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों के मसूड़ों में बहुत ज्यादा इंफेक्शन होता है, उन्हें सेहतमंद मसूड़ों वाले लोगों की तुलना में उच्च रक्तचाप की समस्या होने का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे लोगों में उच्च रक्तचाप का कोई स्पष्ट लक्षण नजर नहीं आता है, इसलिए इन लोगों को दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। </p>
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1,724,357
[ "सामग्री" ]
<p>● लेमन सोडा-700 मिली</p><p>● नीबू का रस-4 चम्मच</p><p>● बीच से कटी हरी मिर्च- 2</p><p>●</p><p>●</p><p>● चाट मसाला पाउडर-1</p><p>● काला नमक-चुटकी भर</p><p>● जीरा पाउडर- 1/2 चम्मच●</p><p>●</p><p>●</p><p>● नीबू स्लाइस-3</p><p>● पुदीना- 2 चम्मच</p><p>● आइस क्यूब-10</p>
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1,724,358
[ "विधि" ]
<p>एक जग में सबसे पहले आइस क्यूब्स डालें। अब उसमें नीबू का रस और ऊपर से लेमन सोडा डालें। इन सबको अच्छी तरह से मिलाएं। मिर्च को ग्राइंडर में चाट </p><p>मसाला और थोड़े से पानी के साथ डालें और पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को जग में डालकर मिलाएं। नीबू के टुकड़े व बारीक कटे पुदीना की पत्तियों को भी </p><p>जग में डालें और मिलाएं। लीजिए तैयार हो गया मसाला सोडा शिकंजी। अब इसे तुरंत ही सर्व करें। आप इस रेसिपी में से मिर्च को हटा भी सकती हैं।</p>
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1,724,356
[ "सामग्री" ]
<p>● फालसा-250 ग्राम, ● चीनी-स्वादानुसार, ● भुने हुए जीरा का पाउडर-1 चम्मच, ● काला नमक-2 चम्मच, ● बारीक कटा पुदीना-1 चम्मच, ● नीबू का टुकड़ा- गार्निशिंग के लिए</p>
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[ "विधि" ]
<p>फालसे को अच्छी तरह से धोकर एक बड़ी कटोरी में डालें और चम्मच की मदद से अच्छी तरह से मैश कर दें। ऐसा करने से सारे बीज अलग हो जाएंगे। बीज को चुनकर हटा दें। ग्राइंडर के जार में फालसा, काला नमक, जीरे का पाउडर, चीनी और थोड़ा-सा पानी डालकर पीस लें। अब इस मिश्रण को छान लें। दो सर्विंग गिलास में बराबर मात्रा में जूस डालें। उसमें आवश्यकतानुसार ठंडा पानी डालें। नीबू, आइस क्यबू और पुदीना पत्ती से गार्निश कर सर्व करें।</p>
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[ "मन्नू मैडम बता रही हैं" ]
<p>● गर्मी के मौसम में अकसर भरपूर मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जाती है, क्योंकि पानी का भरपूर सेवन करने से शरीर को गर्मी में हाइड्रेट रहने और गर्मी के कारण होने वाली परेशानी से बचे रहने में मदद मिलती है। अगर बहुत ज्यादा मात्रा में सादा पानी पीने में आपको परेशानी होती है, तो गर्मी के मौसम में आप तरह-तरह के शर्बत बनाकर पी सकती हैं। गर्मी के मौसमी फलों से बनने वाले ये शर्बत न के वल तेज गर्मी से होने वाले नुकसानों से आपको बचाएंगे, बल्कि गले को जरूरी तरावट भी देंगे।</p><p>● शरबत पीने से आपको तरोताजा महसूस करने में मदद मिलती है, जिससे आप फ्रेश और रिलैक्स महसूस करते हैं।</p><p>● शरीर में तरल पदार्थ की कमी को पूरा करने के लिए शरबत का सेवन करना फायदेमंद होता है।</p><p>● पेट में गैस, कब्ज, जैसी परेशानी को दूर करने के लिए शरबत पीना फायदेमंद होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शरबत में अमूमन काला नमक और जीरा पाउडर आदि का भी इस्तेमाल होता है, जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है।</p><p>● शरबत का सेवन करने से बॉडी हाइड्रेट रहती है, जिससे लू आदि लगने का खतरा कम होता है।</p>
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[ "अकेले सफर का अलग है मजा", "इको-टूरिज्म, वर्केशंस, माइंडफुल ट्रैवल यानी अकेले सफर पर चल पड़ने का चलन पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गया है। इन दिनों कोविड-19 यात्रा प्रतिबंधों के बीच, सोलो ट्रैवल को लेकर लोगों में एक नया क्रेज देखने को मिल रहा है। हालांकि अकेले सफर पर निकलने से पहले की तैयारी को जान लेना बेहतर रहेगा। बता रही हैं प्रिया" ]
<p><b>अगर आप महिला हैं</b></p><p>● कहीं भी जाने से पहले यह देख लें कि उक्त जगह महिलाओं के लिए कितना सुरक्षित है। साथ ही किसी भी होटल की बुकिंग करने से पहले उसका रिव्यू भी देखें। संभव हो तो केवल महिला आवास की जांच करें। जिस होटल में रुक रही हैं, उसकी जानकारी अपने करीबियों को जरूर दे दें।</p><p>● यदि आप अकेले हैं, तो हमेशा जरूरी सुरक्षा उपकरण या अलार्म अपने साथ रखें।</p><p>● यदि आप अकेले बाहर हैं, तो फ्रंट डेस्क को बताएं।</p><p><b>सो</b></p><p>लो ट्रैवलिंग! मतलब अकेले सैर पर जाना। न संगी-साथी, न परिवार। यह ट्रिप आपको न सिर्फ एक नया अनुभव देती है, बल्कि खुद को भी एक्सप्लोर करने का मौका देती है। यूं तो यह कोई नया चलन नहीं है, मगर सोलो ट्रिप पर जाने वालों की संख्या इन दिनों काफी बढ़ी है। ग्लोबल ट्रैवल एंड हॉस्पिटैलिटी कंपनी हिल्टन ऑनर्स की मानें तो भारत में स्थित 40 यात्रियों का इरादा ‘अकेले’ घूमने का है, अगर वे भविष्य में यात्रा की योजना बनाते हैं तो। </p><p>पिछले साल भी लॉकडाउन के दौरान यह ट्रेंड चल निकला था, जब कई युवाओं ने पहाड़ों का रुख किया था, वह भी अकेले, जिसमें ऑफिस और घूमना भी शामिल था। हालांकि यह जरूरी है कि आपकी सोलो ट्रैवलिंग सुरक्षित और समस्या रहित बनी रहे। खासतौर पर जब आप पहली बार महामारी के काल में अकेले यात्रा कर रहे हों तो। </p><p><b>सबसे पहले प्लानिंग</b></p><p>कोई भी यात्रा अच्छी होगी या बुरी, यह उस योजना से तय होता है, जिसमें आप यात्रा की जगह और समय का चुनाव करते हैं। आपको अपनी यात्रा के प्रत्येक सेकंड की योजना नहीं बनानी है, लेकिन सुनिश्चित करें कि आपके पास सभी जरूरी चीजें कागज पर नोट हों। मसलन बुकिंग, टिकट, यात्रा योजना वगैरह। आप जिस जगह पर भी जा रहे हैं, पहले उस जगह के बारे में जरूरी जानकारी जुटा लें। इंटरनेट की मदद से वहां घूमने की बेहतरीन जगहों, ट्रैवलिंग के तरीकों और खानपान के बारे में जानकारी जुटा लें, ताकि वहां जाकर आपको बार-बार किसी से पूछना नहीं पड़े। वहां के स्थानीय रीति-रिवाजों के बारे में जानना अच्छा होता है। इन दिनों ज्यादातर लोग स्थानीय अनुभवों की ओर झुक रहे हैं, जो उन्हें स्थानीय कला-संस्कृति और एडवेंचर्स यात्राओं के बारे में जानने में मदद करते हैं। इस तरह अगर आप उस जगह की पहले ही समीक्षा कर लें, तो सोलो यात्रा मजेदार हो सकती है।</p><p><b>कुछ कैश भी रखें साथ में </b></p><p>भारत की अधिकांश जगहों पर अब कार्ड स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। यदि यूपीआई भुगतान नहीं है, तो हमेशा कुछ पैसे हाथ में रखना सुरक्षित होगा। इसके अलावा कुछ लोग हैं, जो अभी भी ऑनलाइन और डिजिटल भुगतान स्वीकार नहीं करते हैं, खासकर यदि आप स्थानीय लोगों से कुछ खरीद रहे हैं तो। ऐसे में कैश रखना समझदारी है।</p><p><b>पैकिंग में रखें ध्यान</b></p><p>याद रखें, आप अकेले यात्रा कर रहे हैं और आपको अपना सामान स्वयं ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है। इसलिए हमेशा लाइट पैक करें, ताकि आप अपना सामान खुद उठा सकें। जिस जगह पर जाने की योजना है, वहां की संस्कृति और परंपराओं के बारे में भी जानें और उसी के हिसाब से कपड़े का चुनाव करें। सभी चार्जर्स की जांच कर लें। लेकिन किसी भी स्थिति में एक अतिरिक्त बैटरी और पावर बैंक साथ में रखें। इसके अलावा जरूरी डाक्यूमेंट और कुछ जरूरी दवाएं भी पैकिंग में शामिल करें। साथ ही आप कुछ सेफ्टी का सामान जैसे पेपर स्प्रे बैग में रखें। कई बार खराब सिचुएशन में ये चीजें काम आती हैं। इमरजेंसी के लिए कुछ स्नैक्स भी साथ में रखें। </p><p><b>दिन में अपने गंतव्य तक पहुंचें</b></p><p>सुबह किसी अनजान जगह पर पहुंचना ज्यादा सुरक्षित होता है। सब कुछ दिखाई देने पर न केवल आप सुरक्षित महसूस करेंगे, बल्कि आपके हॉस्टल या कमरों में बिना खोए पहुंचना भी आसान होगा, क्योंकि गूगल मैप हमेशा 100 विश्वसनीय नहीं होते हैं।</p><p><b>ऑनलाइन मैप के सहारे न रहें</b></p><p>किसी नए स्थान पर पहुंचने से पहले गूगल मैप के साथ चलना बहुत अच्छा होता है, लेकिन कभी-कभी इंटरनेट में समस्या हो सकती है और आप स्थानीय वाई-फाई पर निर्भर नहीं रह सकते। ऐसे समयों के लिए आपको हमेशा उस स्थानीय क्षेत्र का ऑफलाइन मैप भी डाउनलोड करना चाहिए, जहां की आप यात्रा कर रहे हैं। फिजिकल मैप साथ में रखना बेहतर रहता है। </p><p><b>सोलो यात्रा के अन्य सुझाव </b></p><p>● किसी भी राज्य में जाने से पहले उस जगह की अच्छी तरह से रिसर्च करें और समझें।</p><p>● नई जगह पर आप होटल का चुनाव समझदारी से करें। साथ ही होटल को बुक करने से पहले वहां के सुरक्षा संबंधी रिकॉर्ड की जांच भी कर लें। यदि आवश्यक हो, तो अपना आईडी कार्ड और एक निगेटिव पीसीआर (कोरोना) परीक्षण प्रमाण पत्र भी ले जाएं। </p><p>● महामारी संबंधी सुरक्षा उपायों को पुख्ता करने के लिए अपने साथ हैंड सैनिटाइजर, बैक्टीरियल स्प्रे, एंटी-बैक्टीरियल वाइप्स, दस्ताने और मास्क आदि भी रखें।</p><p>● चाहे आप किसी होटल, होमस्टे या निजी विला में रुक रहे हों, आवास द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना सुनिश्चित करें।</p><p>● ऐसी स्थानीय गतिविधियों और जगहों में शामिल हों, जहां सामाजिक दूरी व अन्य कोविड संबंधी नियमों का सफलतापूर्वक अभ्यास हो रहा हो। </p><p>● उबर जैसे एप में दोस्तों और परिवार को सेट करें, या व्हाट्सएप पर अपना लोके शन साझा करें, ताकि लोग जान सकें कि आप कहां हैं।</p><p>● सेफ्टी मैप वर्ल्डवाइड जैसे एप का उपयोग करें, जो सबसे सुरक्षित मार्गों की सिफारिश करता है और सबसे अच्छी जगहों पर रहने की सलाह भी देता है। यह एप आपको कम सुरक्षित क्षेत्रों से बचाने में भी मदद कर सकता है। इन बातों को ध्यान में रखकर अपनी यात्रा को मजेदार बना सकते हैं। </p>
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[ "शौक-शौक में आशीष बन गए यूट्यूब स्टार ", "जब आशीष चंचलानी ने वीडियोज बनाने शुरू किए, तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि वह इतना आगे तक आ सकेंगे। महज मनोरंजन के लिए शुरू होने वाले उनके चैनल ने आज यूट्यूब पर 2.41 करोड़ सबस्क्राइबर पार किए हैं। एक नजर आशीष के इस सफर पर" ]
<p>शीष चंचलानी का नाम तो आपने सुना ही होगा। उनका ‘आशीष चंचलानी वाइन्स’ नाम से यूट्यूब पेज है। आशीष ने शुरुआत में छोटे-छोटे मात्र कुछ सेकंड की वीडियोज बनाने शुरू किए और आज देखते ही देखते वह सेकंड मोस्ट सबस्क्राइब्ड यूट्यूब स्टार हैं। उनका यह सफर इतना आसान भी नहीं था। इस मुकाम को पाने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और इसी के बल पर उन्होंने कई लोगों के दिलों में जगह पाई।</p><p><b>इंजीनियरिंग से यूट्यूब तक</b></p><p>महाराष्ट्र के उल्हासनगर के रहने वाले आशीष चंचलानी को बचपन से ही एक्टर बनने की चाह थी। वह जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, उन्हें तभी समझ आ गया था कि यह इतना आसान नहीं है। उन्हें पता था कि हर साल लाखों लोग इस शहर में यह सपना लेकर आते हैं। मगर आशीष हार मानने वालों में से नहीं थे। पढ़ाई चलती रही और इस बीच उन्होंने टाइमपास के रूप में कुछ वीडियोज बनाना शुरू किया। तब वह ट्विटर पर मात्र 6 सेकंड के वीडियोज बनाते थे। हालांकि वह अपनी वीडियोज को लेकर खास गंभीर नहीं थे। मगर इस काम में उनको मजा आता था। आशीष ने साल 2014 में अपना पहला यूटॺूब वीडियो बनाया, जिसका शीर्षक था- ‘तू मेरे बाप कोई जानता नहीं है’, जो काफी वायरल हुआ। धीरे-धीरे उनके कुछ वीडियोज ट्विटर से फेसबुक और फिर इंस्टाग्राम और आखिर में यूट्यूब चैनल पर वायरल होने लगे। बस उन्हीं वीडियोज की बदौलत ‘आशीष चंचलानी वाइन्स’ चैनल शुरू हो गया।</p><p><b>आसान नहीं थी राह मगर</b></p><p>एक साधारण-सा लड़का, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, मगर साथ में उसे अलग-अलग विषयों पर वीडियोज बनाना भी पसंद था। जब 2014 में शॉर्ट वाइन्स बनानी शुरू की, तो कुछ लोगों को यह बेहद पसंद आई, तो कुछ ने उनकी आलोचना भी की। कुछ वीडियोज को लोग पसंद भी नहीं करते थे। शुरू-शुरू में वीडियोज खराब क्वालिटी वाले कैमरे से बने, तो वो भी एक समस्या बनी। इस दौरान ऐसा भी समय आया, जब उनके कुछ रिश्तेदारों ने उनके घर पर शिकायत की कि आशीष अपनी जिंदगी खराब कर रहे हैं। लोगों का कहना था कि इन सब में कोई भविष्य नहीं है। मगर आशीष जानते थे कि वह क्या कर रहे हैं। जो काम उन्हें पसंद है, जिसे करने में उनका दिल लगता है, वह वही कर रहे हैं। शुरुआत में तो घर वालों को भी संदेह था। लेकिन एक बार आशीष अपने परिवार के साथ घूमने गए थे। वहां किसी ने उनके साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह किया, तब उनके परिवार को भी उन पर भरोसा और गर्व हुआ। इस तरह अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव के बावजूद, आशीष ने अपनी कॉमेडी स्किट्स से दर्शकों को खुश किया और जल्द ही सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले यूट्यूबर्स में से एक बन गए। अभी कुछ समय पहले ही उनके यूट्यूब चैनल पर 2.41 सब्स्क्राइबर हुए। आशीष एक वेब शृंखला ‘क्लास ऑफ 2017’ में भी दिखाई दिए। उन्होंने अपने यूटॺूब चैनल पर फरवरी 2020 में एक लघु फिल्म ‘आखिरी सफर’ का निर्देशन भी किया। </p><p><b>बढ़ गई जिम्मेदारी</b></p><p>आशीष के नटखट और कॉमेडी अंदाज को फैंस खूब पसंद करते हैं, क्योंकि उनका कन्टेंट काफी अलग होता है। अपनी कड़ी मेहनत, फैंस का प्यार और अपनों का सहयोग पाकर आशीष आज बुलंदियों पर हैं, मगर वह आज भी सीखते रहना चाहते हैं। वह नए-नए विषयों को खोजते हैं और ऐसा कन्टेंट बनाने की कोशिश करते हैं, जिससे लोग जुड़ सकें और जो समाज पर कुछ प्रभाव डाल सके। </p><p>आशीष कहते हैं, ‘स्पाइडर मैन फिल्म में एक कोट है कि पावर के साथ जिम्मेदारी भी आती है। मेरा नाम होने के साथ-साथ यही जिम्मेदारी मुझ पर आई है। पहले मैं यूं ही, अपने मनोरंजन के लिए वीडियोज बना दिया करता था, पर अब ध्यान रखता हूं कि जो भी वीडियो बनाऊं उसका लोगों पर सकारात्मक असर पड़े। इसलिए, मैं अपने कन्टेंट को बनाने से पहले हर पहलू पर गौर करता हूं। मैं इसी तरह अपने फैंस का सपोर्ट पाने की इच्छा रखता हूं और आगे भी कड़ी मेहनत जारी रखना चाहता हूं।’ <b>ाषभ बंगवाल</b></p>
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[ "18 अप्रैल से 24 अप्रैल 2021" ]
<p><b>पं. राघवेन्द्र शर्मा</b></p><p>जाने-माने एस्ट्रोलॉजर</p><p><b>मेष </b><b>(21 मार्च-20 अप्रैल) </b></p><p>मन अशांत रहेगा। परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती है। आत्मसंयत रहें। अपनी भावनाओं को वश में रखें। माता-पिता का सान्निध्य मिलेगा। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। कार्यभार में वृद्धि होगी। स्थान परिवर्तन भी हो सकता है। आय में वृद्धि होगी। </p><p><b>तुला </b><b>(2३ सितंबर-2३ अक्तूूबर) </b></p><p>आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे, परंतु धैर्यशीलता बनाए रखने का प्रयास करें। शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। माता का साथ मिलेगा। लेखनादि बौद्धिक कार्यों में आय के साधन बन सकते हैं। मीठे खानपान में रुचि बढ़ सकती है।</p><p><b>वृष </b><b>(21 अप्रैल-20 मई) </b></p><p>किसी अज्ञात भय से परेशान हो सकते हैं। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। सेहत का ध्यान रखें। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। खर्च अधिक रहेंगे। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। कारोबार की ओर ध्यान दें। कारोबार में परिवर्तन की संभावना है।</p><p><b>वृश्चिक </b></p><p>मन अशांत रहेगा। संयत रहें। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। कारोबार पर ध्यान दें। कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। आय में कमी और खर्च अधिक की स्थिति हो सकती है। वाहन सुख में कमी आ सकती है।</p><p><b>धनु </b><b>(2२ नवंबर-2१ दिसंबर) </b></p><p>‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव रहेंगे। कुछ पुराने मित्रों से पुन संपर्क हो सकते हैं। शैक्षिक और बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती है। नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। परिश्रम अधिक रहेगा। स्थान परिवर्तन भी संभव है। </p><p><b>मिथुन </b><b>(21 मई-2१ जून) </b></p><p>संयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। कला या संगीत में रुचि बढ़ सकती है। धार्मिक कार्यों में व्यस्तता हो सकती है। वस्त्र उपहार में मिल सकते हैं। शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। किसी मित्र का आगमन हो सकता है या किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव भी मिल सकता है।</p><p><b>मकर </b></p><p>आत्मविश्वास से परिपूर्ण तो रहेंगे, परंतु आलस्य से भी बचें। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कारोबार में परिश्रम तो अधिक रहेगा, परंतु स्थिति में सुधार होगा। धन की स्थिति में सुधार होगा। कुुटुम्ब-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। </p><p><b>कर्क </b><b>(2२ जून-2३ जुलाई)</b></p><p>आत्मविश्वास में कमी आएगी। मन परेशान हो सकता है। शैक्षिक कार्यों पर ध्यान दें। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मित्रों का सहयोग मिलेगा। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। </p><p><b>कुंभ </b><b>(2० जनवरी-१८ फरवरी) </b></p><p>मन परेशान हो सकता है। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती है। ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ की मनोस्थिति हो सकती है। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। परिवार के साथ यात्रा पर जाना हो सकता है। अनियोजित खर्च बढ़ेंगे। </p><p><b> सिंह </b><b>(2४ जुलाई-2२ अगस्त) </b></p><p>मन प्रसन्न रहेगा। आत्मविश्वास भरपूर रहेगा। ‘क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा’ के मनोभाव हो सकते हैं। पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। किसी पुराने मित्र से भेंट हो सकती है। सुस्वादु खाने में रुचि बढ़ सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। </p><p><b>मीन </b><b>(१९ फरवरी-20 मार्च)</b></p><p>मन अशांत रहेगा। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। शैक्षिक कार्यों पर ध्यान दें। बातचीत में संतुलित रहें। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है। संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। कारोबार के लिए भाई-बहनों से धन की प्राप्ति हो सकती है। </p><p><b>कन्या </b><b>(2३ अगस्त-2२ सितंबर) </b></p><p>आत्मविश्वास में कमी रहेगी। आत्म संयत रहें। बातचीत में संतुलित रहें। संतान सुख में वृद्धि होगी। नौकरी में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। किसी दूसरे स्थान में जाना पड़ सकता है। आय में वृद्धि होगी, परंतु खर्चों में भी वृद्धि होगी। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। </p>
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[ "रा पहली बार खाना बनाने का अनुभव बहुत बुरा था। तब मैं 8वीं कक्षा में था। उस समय मेरी मां एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती थीं। पिताजी मां की देखभाल कर रहे थे। मां, जिस अस्पताल में भर्ती थीं, वह बंगलुरू में था, जो लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर था। इसलिए वहां से रोजाना आना-जाना इतना आसान नहीं था। इसी कारण से, मेरे पिताजी 2-3 दिनों में एक बार मुझसे मिलने आते थे। उन दिनों मुझे भूख भी खूब लगती थी। मां तो पूरे दिन मुझे तरह-तरह की चीजें खिलाया करती थीं, लेकिन अस्पताल जाने के बाद यह सब बंद हो गया था। हालांकि पड़ोसियों ने ज्यादातर समय या जब भी मुझे जरूरत होती, भोजन उपलब्ध कराया था। लेकिन हर वक्त कुछ न कुछ खाते रहने की आदत से मैं परेशान था। कभी बिस्किट, कभी नमकीन... मुंह तो चलता ही रहता था। एक दिन मैंने खुद से कुछ बनाने का फैसला किया। मां भी तो चाहती थीं कि मैं कुछ बनाना सीख लूं, ताकि अकेले में मुझे कोई परेशानी न हो। इसलिए, मैंने यह सोचा कि अब से मैं पड़ोसियों से खाना नहीं लूंगा और खुद ही कुछ बनाऊंगा।" ]
<p>चूंकि मुझे अवलक्की यानी पोहा पसंद था, इसलिए मैंने अवलक्की की एक रेसिपी बनाने का फैसला किया। इससे पहले मैं अपनी मां को दैनिक कामों में और खाना पकाने में भी मदद करता रहा था (केवल काटने वाला भाग, सही समय पर चूल्हा बंद करना, या सब्जी चलाना वगैरह)। मतलब मां से खाना पकाने की मूल रणनीति समझी थी। गोजु अवलक्की के लिए मैंने पहले प्याज व टमाटर को बारीक काटा। 2-4 हरी मिर्च भी काट कर अलग कर लीं। गोजु अवलक्की मां को बनाते देखा था, ठीक उसी प्रक्रिया को मैंने भी अपनाने की कोशिश की। हालांकि मुझे नहीं पता था कि मुझे उन सामग्रियों को किस क्रम में जोड़ना है। खैर! आप सोच सकते हैं कि इस अज्ञानता का क्या परिणाम हुआ होगा। कड़ी मेहनत के बाद अब मेरी रेसिपी तैयार थी। उस दिन मेरे पिताजी भी घर आ गए थे। आते ही उन्होंने पूछा कि क्या मैंने कुछ खाया है? तो मैंने कहा,‘मैं आपका इंतजार कर रहा था। अब खाऊंगा। मैंने आज अवलक्की बनाया है।’</p><p>मैंने उनको अपनी बनाई डिश प्लेट में सर्व की। उन्होंने देखते ही कहा कि देखने में तो यह बिल्कुल शानदार लग रहा है। पिताजी ने पहली बाइट ली और कहा,‘सुपर...। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि तुमने इसे बनाया है।’ उनकी तारीफ से मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। लेकिन कहीं न कहीं, मुझे संदेह था कि क्या यह इतना अच्छा है? मैं सोचने लगा था। तब मैंने अपनी थाली ली और मैंने उसे चखा और खाते ही पिताजी से कहा, ‘आपने इसे कैसे खाया ? यह स्वाद में बहुत बुरा है।’ </p><p>बाद में मुझे अहसास हुआ कि मैंने उस क्रम को गड़बड़ कर दिया है, जिसमें मैंने सामग्रियां डालीं। मैंने टमाटर डालने के बाद प्याज डाला। इसलिए यह बहुत बुरा था। मेरे पिताजी ने भी मुझसे कोई शिकायत नहीं की। वह खुश थे कि मैंने इसे बनाया है। यह मेरा पहली बार खाना बनाने का अनुभव था। आज भी मेरे पिताजी, मां और भाई, उस अवलक्की के लिए मेरा मजाक उड़ाते रहते हैं।</p>
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