\id GEN \ide UTF-8 \rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License \h उत्पत्ति \toc1 उत्पत्ति \toc2 उत्पत्ति \toc3 उत्प. \mt उत्पत्ति \is लेखक \ip यहूदी परम्परा और बाइबल के अन्य लेखकों के अनुसार पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकें जिन्हें पेन्टाट्यूक कहते हैं उनका लेखक मूसा है, जो इस्राएल का नबी और छुड़ानेवाला था। मिस्र के राजसी परिवार में मूसा का शिक्षण (प्रेरि. 7:22) और यहोवा (इब्री भाषा में परमेश्वर का नाम) के साथ उसका घनिष्ठ सम्बंध इस विचार का समर्थन करता है। स्वयं यीशु ने (यूह. 5:45-47) और उसके समय के फरीसियों और शास्त्रियों ने भी (मत्ती 19:7; 22:24) मूसा को इसका लेखक माना है। \is लेखन तिथि एवं स्थान \ip 1446 से 1405 ई. पू. \ip यह एक सम्भावना है कि जिस वर्ष इस्राएल ने सीनै के जंगलों में छावनी डाली थी, उस समय मूसा ने इस पुस्तक को लिखा। \is प्रापक \ip इस पुस्तक के श्रोतागण मिस्र की बंधुआई से निकलकर कनान अर्थात् प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले के आरम्भिक इस्राएली रहे होंगे। \is उद्देश्य \ip मूसा ने इस पुस्तक को अपनी इस्राएली जाति के “पारिवारिक इतिहास” को दर्शाने के लिए लिखा था। उत्पत्ति की पुस्तक लिखने में मूसा का उद्देश्य यह दर्शाना था कि इस्राएली जाति किस प्रकार मिस्र की बंधुआई में पड़ गई थी (1:8), और यह भी कि वह देश जिसमें वे प्रवेश करने जा रहे थे उनका “प्रतिज्ञात देश” क्यों था (17:8), और वह यह भी दर्शाता है कि इस्राएल के साथ जो कुछ हुआ उन सब पर परमेश्वर की प्रभुता थी, और मिस्र में उनकी बंधुआई संयोग से होनेवाली घटना नहीं बल्कि परमेश्वर की बड़ी योजना का एक भाग थी (15:13-16, 50:20), और यह दर्शाना कि अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर वही परमेश्वर है जिसने जगत की रचना की (3:15-16)। इस्राएल का परमेश्वर अनेक देवताओं में से कोई एक नहीं, बल्कि आकाश और पृथ्वी का बनानेवाला परमप्रधान सृष्टिकर्ता है। \is मूल विषय \ip आरम्भ \iot रूपरेखा \io1 1. सृष्टि की रचना — 1:1-2:25 \io1 2. मनुष्य का पाप में पतन — 3:1-24 \io1 3. आदम की पीढ़ी — 4:1-6:8 \io1 4. नूह की पीढ़ी — 6:9-11:32 \io1 5. अब्राहम का वृत्तान्त — 12:1-25:18 \io1 6. इसहाक और उसके पुत्रों का वृत्तान्त — 25:19-36:43 \io1 7. याकूब की पीढ़ी — 37:1-50:26 \c 1 \s सृष्टि का इतिहास \p \v 1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। \bdit (इब्रा. 1:10, इब्रा. 11:3) \bdit* \v 2 पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। \bdit (2 कुरि. 4:6) \bdit* \s पहला दिन—उजियाला \p \v 3 तब परमेश्वर ने कहा, “\it उजियाला हो,”\f + \fr 1.3 \fq उजियाला हो: \ft पहले दिन का कार्य उजियाले को अस्तित्व में लाना था। यहाँ स्पष्ट रूप से योजना, पिछले पद बताए गए एक दोष, अर्थात् अंधकार को दूर करना है। \f*\it* तो उजियाला हो गया। \v 4 और \it परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है\f + \fr 1.4 \fq परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है: \ft परमेश्वर अपने कार्य पर विचार करता है, और उस कार्य के उत्तमता के बोध से तृप्ति की भावना प्राप्त करता है। \f*\it*; और परमेश्वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया। \v 5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया। \s दूसरा दिन—आकाश \p \v 6 \it फिर परमेश्वर ने कहा\f + \fr 1.6 \fq फिर परमेश्वर ने कहा: \ft इससे हम यह सीखते हैं कि वह न केवल है, बल्कि ऐसा है जो अपनी इच्छा को व्यक्त कर सकता है और अपने सृजे हुओं के साथ बातचीत कर सकता है। वह न केवल अपनी सृष्टि के द्वारा प्रगट होता है बल्कि स्वयं भी अपने को प्रगट करता है। \f*\it*, “जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।” \v 7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; और वैसा ही हो गया। \v 8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया। \s तीसरा दिन—सूखी धरती और पेड़-पौधे \p \v 9 फिर परमेश्वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे,” और वैसा ही हो गया। \bdit (2 पत. 3:5) \bdit* \v 10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। \v 11 फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें,” और वैसा ही हो गया। \bdit (1 कुरि. 15:38) \bdit* \v 12 इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगें; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। \v 13 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया। \s चौथा दिन—सूरज, चाँद और तारे \p \v 14 फिर परमेश्वर ने कहा, “दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियाँ हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों; \v 15 और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” और वैसा ही हो गया। \v 16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया। \v 17 परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिए रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, \v 18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अंधियारे से अलग करें; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। \v 19 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया। \s पाँचवाँ दिन—मछलियाँ और पक्षी \p \v 20 फिर परमेश्वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।” \v 21 इसलिए परमेश्वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। \v 22 \it परमेश्वर ने यह कहकर उनको आशीष दी\f + \fr 1.22 \fq परमेश्वर ने यह कहकर उनको आशीष दी: \ft आशीष देने का अर्थ कामना करना है और यहाँ परमेश्वर के सन्दर्भ में इसका अर्थ आशीष पानेवाले के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लेना।\f*\it*, “फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।” \v 23 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया। \s छठवाँ दिन—भूमि के जीवजन्तु और मनुष्य \p \v 24 फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्पन्न हों,” और वैसा ही हो गया। \v 25 इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। \p \v 26 फिर परमेश्वर ने कहा, “हम \it मनुष्य\f + \fr 1.26 \fq मनुष्य: \ft मनुष्य नई प्रजाति है, वह विशेष रूप से इस पृथ्वी के अन्य प्रकार के जीवों से भिन्न है।\f*\it* को \it अपने स्वरूप के अनुसार\it*\f + \fr 1.26 \fq अपने स्वरूप के अनुसार: \ft अर्थात् अपनी समानता में। मनुष्य का स्वर्ग से सम्बंध है और इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी नहीं है\f* अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” \bdit (याकू. 3:9) \bdit* \v 27 तब परमेश्वर ने अपने स्वरूप में मनुष्य को रचा, अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की; नर और नारी के रूप में उसने मनुष्यों की सृष्टि की। \bdit (मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1 कुरि. 11:7, कुलु. 3:10, 1 तीमु. 2:13) \bdit* \v 28 और परमेश्वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।” \v 29 फिर परमेश्वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं; \bdit (रोम. 14:2) \bdit* \v 30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो गया। \v 31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। \bdit (1 तीमु. 4:4) \bdit* \c 2 \s सातवाँ दिन—विश्राम \p \v 1 इस तरह आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। \v 2 और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से \it सातवें दिन विश्राम किया\f + \fr 2.2 \fq सातवें दिन विश्राम किया: \ft परमेश्वर का विश्राम थकान के कारण नहीं परन्तु अपना कार्य समाप्त करने से है। वह अपनी शक्ति को फिर से प्राप्त करके तरोताजा नहीं हुआ बल्कि अपने सामने समाप्त कार्य को देखने की तृप्ति से हुआ। \f*\it*। \bdit (इब्रा. 4:4) \bdit* \v 3 और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के अपने सारे काम से विश्राम लिया। \v 4 आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया। \v 5 तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था। \v 6 लेकिन कुहरा पृथ्वी से उठता था जिससे सारी भूमि सिंच जाती थी। \s मानवजाति का आरम्भ \p \v 7 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। \bdit (1 कुरि. 15:45) \bdit* \v 8 और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगाई; और वहाँ आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया। \v 9 और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। \bdit (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14) \bdit* \p \v 10 उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे बहकर चार नदियों में बँट गई। \bdit (प्रका. 22:2) \bdit* \v 11 पहली नदी का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरे हुए है। \v 12 उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं। \v 13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। \v 14 और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है। \p \v 15 तब यहोवा \it परमेश्वर ने आदम को लेकर\f + \fr 2.15 \fq परमेश्वर ने आदम को लेकर: \ft वही सर्व-सामर्थी हाथ जिसने उसे बनाया था, उसने अब भी उसे थाम रखा था, और उसने उसे वाटिका में रखा। उसने वह वाटिका उसे विश्राम करने या उसमें वास करने के लिए दी, जो एक शान्ति और विश्रान्ति का स्थान था।\f*\it* अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रखवाली करे। \v 16 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है; \v 17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” \p \v 18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “\it आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं\f + \fr 2.18 \fq आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं: \ft परमेश्वर ने मनुष्य को समाजिक प्राणी बनाया, कि वह न केवल अपने से बड़ो के साथ बातचीत करे बल्कि समान लोगों के साथ भी करे। उसे एक साथी चाहिए था जिसके साथ वह बातचीत कर सके और परमेश्वर ने उसकी इस जरूरत की पूर्ति करने का निर्णय किया।\f*\it*; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्त होगा।” \bdit (1 कुरि. 11:9) \bdit* \v 19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। \v 20 अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके। \v 21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। \bdit (1 कुरि. 11:8) \bdit* \v 22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। \bdit (1 तीमु. 2:13) \bdit* \v 23 तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।” \v 24 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। \bdit (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31) \bdit* \v 25 आदम और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर वे लज्जित न थे। \c 3 \s पाप का आरम्भ \p \v 1 यहोवा परमेश्वर ने जितने जंगली पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, ‘तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना’?” \bdit (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2) \bdit* \v 2 स्त्री ने सर्प से कहा, “इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं; \v 3 पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।” \v 4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे \v 5 वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” \v 6 अतः \it जब स्त्री ने देखा\f + \fr 3.6 \fq जब स्त्री ने देखा: \ft स्त्री ने फल देखा और यह सम्भव था की उसने परीक्षा लेनेवाले के द्वारा बताई बातों से उत्साहित होकर उस फल को मनोहरता की आँखों से देखा। \f*\it* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। \bdit (1 तीमु. 2:14) \bdit* \v 7 तब उन दोनों की आँखें खुल गईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट बना लिये। \s पाप का परिणाम \p \v 8 तब यहोवा परमेश्वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। \v 9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, “तू कहाँ है?” \v 10 उसने कहा, “मैं तेरा शब्द वाटिका में सुनकर डर गया, \it क्योंकि मैं नंगा था\f + \fr 3.10 \fq क्योंकि मैं नंगा था: \ft इस कथन में उसके द्वारा अपने विचारों को परमेश्वर से छिपाने की स्वाभाविक प्रवृति दिखाई देती है। नंगाई का ज़िक्र है, परन्तु उस आज्ञा उल्लंघन का नहीं जिससे यह बात आई। \f*\it*; इसलिए छिप गया।” \v 11 यहोवा परमेश्वर ने कहा, “किसने तुझे बताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मैंने तुझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया है?” \v 12 आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैंने खाया।” \v 13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, “तूने यह क्या किया है?” स्त्री ने कहा, “सर्प ने मुझे बहका दिया, तब मैंने खाया।” \bdit (रोम. 7:11, 2 कुरि. 11:3, 1 तीमु. 2:14) \bdit* \p \v 14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, और सब जंगली पशुओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा; \v 15 और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” \p \v 16 फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” \bdit (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18) \bdit* \p \v 17 और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा; \bdit (इब्रा. 6:8) \bdit* \v 18 और वह तेरे लिये काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा; \v 19 और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” \p \v 20 आदम ने अपनी पत्नी का नाम \it हव्वा\f + \fr 3.20 \fq हव्वा: \ft इब्रानी भाषा में हव्वा का अर्थ है ‘जीवन’\f*\it* रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की मूलमाता वही हुई। \v 21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के वस्त्र बनाकर उनको पहना दिए। \p \v 22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे।” \bdit (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2,14,19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7) \bdit* \v 23 इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया गया था। \v 24 इसलिए \it आदम को उसने निकाल दिया\f + \fr 3.24 \fq आदम को उसने निकाल दिया: \ft यह आदम के वाटिका में से निर्वासन को न्यायिक क्रिया के रूप में दर्शाता है। वह मिट्टी में मिलने तक अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने परिश्रम के फल पर ही निर्भर रह गया\f*\it* और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली अग्निमय तलवार को भी नियुक्त कर दिया। \c 4 \s कैन द्वारा हाबिल की हत्या \p \v 1 जब आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया तब उसने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, “मैंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया है।” \v 2 फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, हाबिल तो भेड़-बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करनेवाला किसान बना। \v 3 कुछ दिनों के पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। \bdit (यहू. 1:11) \bdit* \v 4 और \it हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई\f + \fr 4.4 \fq हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई: \ft हाबिल की भेंट बाहरी रूप से अपने भाई कैन से भिन्न थी। इसमें उसकी भेड़-बकरियों के पहिलौठे शामिल थे। इनको मारकर उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई गई। अतः लहू बहाया गया, और प्राण ले लिया गया। \f*\it*; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, \bdit (इब्रा. 11:4) \bdit* \v 5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा गई। \v 6 तब यहोवा ने कैन से कहा, “तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा गई है? \v 7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी ओर होगी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी है।” \p \v 8 तब \it कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा\f + \fr 4.8 \fq कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा: \ft कुछ पांडुलिपियों के अनुसार “कैन ने अपने भाई हाबिल से कहा, ‘हम बाहर मैदान में चले।’\f*\it*; और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसकी हत्या कर दी। \v 9 तब यहोवा ने कैन से पूछा, “तेरा भाई हाबिल कहाँ है?” उसने कहा, “मालूम नहीं; क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” \v 10 उसने कहा, “तूने क्या किया है? तेरे भाई का लहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दुहाई दे रहा है! \bdit (इब्रा. 12:24) \bdit* \v 11 इसलिए अब भूमि जिसने तेरे भाई का लहू तेरे हाथ से पीने के लिये अपना मुँह खोला है, उसकी ओर से तू \it श्रापित\f + \fr 4.11 \fq श्रापित: \ft वह श्राप जो अब कैन पर आया, एक प्रकार से दण्डात्मक था, क्योंकि वह उस भूमि से आया जिसने उसके भाई का लहू पिया था। \f*\it* है। \v 12 चाहे तू भूमि पर खेती करे, तो भी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, और तू पृथ्वी पर भटकने वाला और भगोड़ा होगा।” \v 13 तब कैन ने यहोवा से कहा, “मेरा दण्ड असहनीय है। \v 14 देख, तूने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है और मैं तेरी दृष्टि की आड़ में रहूँगा और पृथ्वी पर भटकने वाला और भगोड़ा रहूँगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मेरी हत्या करेगा।” \v 15 इस कारण यहोवा ने उससे कहा, “जो कोई कैन की हत्या करेगा उससे सात गुणा बदला लिया जाएगा।” और यहोवा ने कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा न हो कि कोई उसे पाकर मार डाले। \s कैन के वंशज \p \v 16 तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया और नोद नामक देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा। \v 17 जब कैन अपनी पत्नी के पास गया तब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्म दिया; फिर कैन ने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपने पुत्र के नाम पर हनोक रखा। \v 18 हनोक से ईराद उत्पन्न हुआ, और ईराद से महूयाएल उत्पन्न हुआ और महूयाएल से मतूशाएल, और मतूशाएल से लेमेक उत्पन्न हुआ। \v 19 लेमेक ने दो स्त्रियाँ ब्याह लीं: जिनमें से एक का नाम आदा और दूसरी का सिल्ला है। \v 20 आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह उन लोगों का पिता था जो तम्बुओं में रहते थे और पशुओं का पालन करके जीवन निर्वाह करते थे। \v 21 उसके भाई का नाम यूबाल था: वह उन लोगों का पिता था जो वीणा और बाँसुरी बजाते थे। \v 22 और सिल्ला ने भी तूबल-कैन नामक एक पुत्र को जन्म दिया: वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हथियारों का गढ़नेवाला हुआ। और तूबल-कैन की बहन नामाह थी। \v 23 लेमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, \q “हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो; \q हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ: \q मैंने एक पुरुष को जो मुझे चोट लगाता था, \q अर्थात् एक जवान को जो मुझे घायल करता था, घात किया है। \q \v 24 जब कैन का बदला सात गुणा लिया जाएगा। \q तो लेमेक का सतहत्तर गुणा लिया जाएगा।” \s शेत और एनोश \p \v 25 और आदम अपनी पत्नी के पास फिर गया; और उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यह कहकर शेत रखा कि “परमेश्वर ने मेरे लिये हाबिल के बदले, जिसको कैन ने मारा था, एक और वंश प्रदान किया।” \bdit (उत्प. 5:3,4) \bdit* \v 26 और शेत के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसने उसका नाम एनोश रखा। उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे। \c 5 \s आदम की वंशावली \p \v 1 आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया। \bdit (मत्ती 1:1, 1 कुरि. 11:7) \bdit* \v 2 उसने नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन \it उनका नाम आदम रखा\f + \fr 5.2 \fq उनका नाम आदम रखा: \ft यह स्पष्ट रूप से सामान्य या सामूहिक शब्द है जो प्रजाति को दर्शाता है। सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर, जाति को नाम देता है और इसके द्वारा वह उसके चरित्र और उद्देश्य को चिन्हित करता है। \f*\it*। \bdit (मत्ती 19:4, मर. 10:6) \bdit* \v 3 जब आदम एक सौ तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने उसका नाम शेत रखा। \v 4 और शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 5 इस प्रकार आदम की कुल आयु नौ सौ तीस वर्ष की हुई, तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 6 जब शेत एक सौ पाँच वर्ष का हुआ, उससे एनोश उत्पन्न हुआ। \v 7 एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 8 इस प्रकार शेत की कुल आयु नौ सौ बारह वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 9 जब एनोश नब्बे वर्ष का हुआ, तब उसने केनान को जन्म दिया। \v 10 केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 11 इस प्रकार एनोश की कुल आयु नौ सौ पाँच वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 12 जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, तब उसने \it महललेल\f + \fr 5.12 \fq महललेल: \ft अर्थात् ‘परमेश्वर की स्तुति’\f*\it* को जन्म दिया। \v 13 महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 14 इस प्रकार केनान की कुल आयु नौ सौ दस वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने येरेद को जन्म दिया। \v 16 येरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 17 इस प्रकार महललेल की कुल आयु आठ सौ पंचानबे वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 18 जब येरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ, तब उसने हनोक को जन्म दिया। \v 19 हनोक के जन्म के पश्चात् येरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 20 इस प्रकार येरेद की कुल आयु नौ सौ बासठ वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 21 जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने मतूशेलह को जन्म दिया। \v 22 मतूशेलह के जन्म के पश्चात् \it हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा\f + \fr 5.22 \fq हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा: \ft हनोक के समय में कुछ लोगों ने सच्चे परमेश्वर को छोड़ दिया था और परमप्रधान परमेश्वर से सम्बंधित कई गलत धारणाओं में गिर गए थे। उसका परमेश्वर के साथ साथ चलना यह संकेत देता है कि अन्य लोग परमेश्वर के बिना चल रहे थे। \f*\it*, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 23 इस प्रकार हनोक की कुल आयु तीन सौ पैंसठ वर्ष की हुई। \v 24 हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया। \bdit (इब्रा. 11:5) \bdit* \p \v 25 जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, तब उसने लेमेक को जन्म दिया। \v 26 लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 27 इस प्रकार मतूशेलह की कुल आयु नौ सौ उनहत्तर वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 28 जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उससे एक पुत्र का जन्म हुआ। \v 29 उसने यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि “यहोवा ने जो पृथ्वी को श्राप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्रम में जो हम करते हैं, हमें शान्ति देगा।” \v 30 नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पाँच सौ पंचानबे वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \v 31 इस प्रकार लेमेक की कुल आयु सात सौ सतहत्तर वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \p \v 32 और नूह पाँच सौ वर्ष का हुआ; और नूह से शेम, और हाम और येपेत का जन्म हुआ। \c 6 \s परमेश्वर के बेटे और मनुष्यों की बेटियाँ \p \v 1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियाँ उत्पन्न हुईं, \v 2 तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; और उन्होंने जिस-जिसको चाहा उनसे ब्याह कर लिया। \v 3 तब यहोवा ने कहा, “मेरा आत्मा मनुष्य में सदा के लिए निवास न करेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है; उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।” \v 4 उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है। \s परमेश्वर द्वारा न्याय का फैसला \p \v 5 यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है। \bdit (भज. 53:2) \bdit* \v 6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। \v 7 तब यहोवा ने कहा, “\it मैं मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा\f + \fr 6.7 \fq मैं मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा: \ft यह वर्तमान मनुष्यजाति को मिटा देने का निर्णय था।\f*\it*; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूँगा, क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूँ।” \s परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि में नूह \p \v 8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही। \v 9 नूह की वंशावली यह है। \it नूह\f + \fr 6.9 \fq नूह: \ft यहाँ नूह का चित्रण “धर्मी” और “खरे” पुरुष के रूप में किया है। यह स्मरण रखें कि पहले ही से उस पर परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि बनी थी। \f*\it* धर्मी पुरुष और अपने समय के लोगों में खरा था; और नूह परमेश्वर ही के साथ-साथ चलता रहा। \v 10 और नूह से शेम, और हाम, और येपेत नामक, तीन पुत्र उत्पन्न हुए। \v 11 उस समय \it पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई\f + \fr 6.11 \fq पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई: \ft नूह के विपरीत, बाकी सब मानवजाति भ्रष्ट थी–पाप से पूरी तरह से विकृत। “वह उपद्रव से भर गई थी”।\f*\it* थी, और उपद्रव से भर गई थी। \v 12 और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपना-अपना चाल-चलन बिगाड़ लिया था। \p \v 13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, “सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे सामने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिए मैं उनको पृथ्वी समेत नाश कर डालूँगा। \v 14 इसलिए तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उसमें कोठरियाँ बनाना, और भीतर-बाहर उस पर राल लगाना। \v 15 इस ढंग से तू उसको बनाना: जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊँचाई तीस हाथ की हो। \v 16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और उसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक ओर एक द्वार रखना, और जहाज में पहला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। \v 17 और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जल-प्रलय करके सब प्राणियों को, जिनमें जीवन का श्वास है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूँ; और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएँगे। \v 18 परन्तु \tl तेरे संग मैं वाचा बाँधता हूँ\f + \fr 6.18 \fq तेरे संग मैं वाचा बाँधता हूँ: \ft बाइबल में यहाँ परमेश्वर और मनुष्य के बीच वाचा का पहली बार ज़िक्र आता है। वाचा दो लोगों के बीच एक गम्भीर प्रतिज्ञा है, जिसमें प्रत्येक अपने-अपने भाग को करने के लिए वचनबद्ध है। \f*\tl*; इसलिए तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। \v 19 और सब जीवित प्राणियों में से, तू एक-एक जाति के दो-दो, अर्थात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपने साथ जीवित रखना। \v 20 एक-एक जाति के पक्षी, और एक-एक जाति के पशु, और एक-एक जाति के भूमि पर रेंगनेवाले, सब में से दो-दो तेरे पास आएँगे, कि तू उनको जीवित रखे। \v 21 और भाँति-भाँति का भोजन पदार्थ जो खाया जाता है, उनको तू लेकर अपने पास इकट्ठा कर रखना; जो तेरे और उनके भोजन के लिये होगा।” \v 22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। \c 7 \s जहाज में प्रवेश करना \p \v 1 तब यहोवा ने नूह से कहा, “तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मैंने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी पाया है। \v 2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात-सात जोड़े, अर्थात् नर और मादा लेना: पर जो पशु शुद्ध नहीं हैं, उनमें से दो-दो लेना, अर्थात् नर और मादा: \v 3 और आकाश के पक्षियों में से भी, सात-सात जोड़े, अर्थात् नर और मादा लेना, कि उनका वंश बचकर सारी पृथ्वी के ऊपर बना रहे। \v 4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूँगा; और जितने प्राणी मैंने बनाये हैं उन सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूँगा।” \v 5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। \p \v 6 नूह की आयु छः सौ वर्ष की थी, जब जल-प्रलय पृथ्वी पर आया। \v 7 नूह अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जल-प्रलय से बचने के लिये जहाज में गया। \v 8 शुद्ध, और अशुद्ध दोनों प्रकार के पशुओं में से, पक्षियों, \v 9 और भूमि पर रेंगनेवालों में से भी, दो-दो, अर्थात् नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी। \v 10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। \s जल-प्रलय \p \v 11 जब नूह की आयु के छः सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्रहवाँ दिन आया; उसी दिन बड़े गहरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए। \v 12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही। \v 13 ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्र शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत, \v 14 और उनके संग एक-एक जाति के सब जंगली पशु, और एक-एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक-एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगनेवाले, और एक-एक जाति के सब उड़नेवाले पक्षी, जहाज में गए। \v 15 जितने प्राणियों में जीवन का श्वास था उनकी सब जातियों में से दो-दो नूह के पास जहाज में गए। \v 16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने जहाज का द्वार बन्द कर दिया। \p \v 17 पृथ्वी पर चालीस दिन तक जल-प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया, जिससे जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊँचा उठ गया। \v 18 जल बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर-ऊपर तैरता रहा। \v 19 जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। \v 20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए। \v 21 और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या जंगली पशु, और \it पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए\f + \fr 7.21 \fq पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए: \ft यहाँ सब के डूबकर मरने का ज़िक्र है। वे सब, जिनमें जीवन की आत्मा की श्वास थी, मर गए।\f*\it*। \v 22 जो-जो भूमि पर थे उनमें से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे। \v 23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो-जो भूमि पर थे, सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। \v 24 और जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा। \c 8 \s जल-प्रलय का अन्त \p \v 1 \it परमेश्वर ने नूह और जितने जंगली पशु और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभी की सुधि ली\f + \fr 8.1 \fq परमेश्वर ने नूह और जितने जंगली पशु और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभी की सुधि ली: \ft उसे जल से बचाने के लिए उठाएँ कदम के द्वारा परमेश्वर ने उसकी सुधि ली। इसके विषय में कई कदम उठाएँ गए।\f*\it*: और परमेश्वर ने पृथ्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा। \v 2 गहरे समुद्र के सोते और आकाश के झरोखे बंद हो गए; और उससे जो वर्षा होती थी वह भी थम गई। \v 3 और एक सौ पचास दिन के पश्चात् जल पृथ्वी पर से लगातार घटने लगा। \v 4 सातवें महीने के सत्रहवें दिन को, जहाज अरारात नामक पहाड़ पर टिक गया। \v 5 और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहले दिन को, पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई दीं। \p \v 6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपने बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर, \v 7 एक कौआ उड़ा दिया: जब तक जल पृथ्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर-उधर फिरता रहा। \v 8 फिर उसने अपने पास से एक कबूतरी को भी उड़ा दिया कि देखे कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। \v 9 उस कबूतरी को अपने पैर टेकने के लिये कोई आधार न मिला, तो वह उसके पास जहाज में लौट आई: क्योंकि सारी पृथ्वी के ऊपर जल ही जल छाया था तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास जहाज में ले लिया। \v 10 तब और सात दिन तक ठहरकर, उसने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया। \v 11 और कबूतरी साँझ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जैतून का एक नया पत्ता है; इससे नूह ने जान लिया, कि जल पृथ्वी पर घट गया है। \v 12 फिर उसने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई। \p \v 13 नूह की आयु के छः सौ एक वर्ष के पहले महीने के पहले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है। \v 14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई। \s परमेश्वर की वाचा \p \v 15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, \v 16 “तू अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ। \v 17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भाँति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं; जितने शरीरधारी जीव-जन्तु तेरे संग हैं, उन सब को अपने साथ निकाल ले आ कि पृथ्वी पर उनसे बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएँ।” \v 18 तब नूह और उसके पुत्र और पत्नी और बहुएँ, निकल आईं। \bdit (2 पत. 2:5) \bdit* \v 19 और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्षी, और जितने जीवजन्तु पृथ्वी पर चलते फिरते हैं, सब जाति-जाति करके जहाज में से निकल आए। \s नूह द्वारा होमबलि चढ़ाना \p \v 20 तब \it नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई\f + \fr 8.20 \fq नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: \ft जब नूह और उसका परिवार, परमेश्वर की विशेष दया से सूखी भूमि पर पहुँच गए, तो उन्होंने उसको विश्वास और धन्यवाद की भेंट अर्पित करके आनन्द मनाया। नूह की भेंट को परमेश्वर ने स्वीकार किया। \f*\it*; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। \v 21 इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, “मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को श्राप न दूँगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है वह बुरा ही होता है; तो भी जैसा मैंने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूँगा। \v 22 अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्डा और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएँगे।” \c 9 \s नूह और उसके पुत्रों को आशीर्वाद \p \v 1 फिर \it परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी\f + \fr 9.1 \fq परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी: \ft नूह को जल-प्रलय से बचाया गया। उसे परमेश्वर के द्वारा जीवनदान मिला। नूह ने परमेश्वर की दृष्टि में अनुग्रह पाया, और अब जब वह और उसका परिवार होमबलि अर्पित करने के द्वारा परमेश्वर के निकट आए तो उसके द्वारा कृपा पाकर वे स्वीकारे गए। \f*\it* और उनसे कहा, “फूलो-फलो और बढ़ो और पृथ्वी में भर जाओ। \v 2 तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पक्षियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। \v 3 सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसे तुम को हरे-हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसे ही तुम्हें सब कुछ देता हूँ। \bdit (उत्प. 1:29,30) \bdit* \v 4 पर माँस को प्राण समेत अर्थात् लहू समेत \it तुम न खाना\f + \fr 9.4 \fq तुम न खाना: \ft किसी पशु को खाने के लिए इस्तेमाल करने से पहले उसको मारना जरुरी है और जब तक उसकी नसों में लहू बहता है उसमें जीवन रहता है, इसलिए इससे पहले उसका माँस खाया जाए उसके प्राण लहू निकालना जरुरी है।\f*\it*। \bdit (व्यव. 12:23) \bdit* \v 5 और निश्चय मैं तुम्हारा लहू अर्थात् प्राण का बदला लूँगा: सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूँगा; मनुष्य के प्राण का बदला मैं एक-एक के भाई-बन्धु से लूँगा। \v 6 जो कोई मनुष्य का लहू बहाएगा उसका लहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है। \bdit (लैव्य. 24:17) \bdit* \v 7 और तुम तो फूलो-फलो और बढ़ो और पृथ्वी पर बहुतायत से सन्तान उत्पन्न करके उसमें भर जाओ।” \s परमेश्वर का नूह के साथ वाचा बाँधना \p \v 8 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से कहा, \v 9 “सुनो, मैं तुम्हारे साथ और तुम्हारे पश्चात् जो तुम्हारा वंश होगा, उसके साथ भी वाचा बाँधता हूँ; \v 10 और सब जीवित प्राणियों से भी जो तुम्हारे संग हैं, क्या पक्षी क्या घरेलू पशु, क्या पृथ्वी के सब जंगली पशु, पृथ्वी के जितने जीवजन्तु जहाज से निकले हैं। \v 11 और मैं तुम्हारे साथ अपनी यह वाचा बाँधता हूँ कि सब प्राणी फिर जल-प्रलय से नाश न होंगे और पृथ्वी का नाश करने के लिये फिर जल-प्रलय न होगा।” \v 12 फिर परमेश्वर ने कहा, “जो वाचा मैं तुम्हारे साथ, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सब के साथ भी युग-युग की पीढ़ियों के लिये बाँधता हूँ; उसका यह चिन्ह है: \v 13 कि मैंने बादल में अपना धनुष रखा है, वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा। \v 14 और जब मैं पृथ्वी पर बादल फैलाऊं तब बादल में धनुष दिखाई देगा। \v 15 तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के साथ बंधी है; उसको मैं स्मरण करूँगा, तब ऐसा जल-प्रलय फिर न होगा जिससे सब प्राणियों का विनाश हो। \v 16 बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देखकर यह सदा की वाचा स्मरण करूँगा, जो परमेश्वर के और पृथ्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के बीच बंधी है।” \v 17 फिर परमेश्वर ने नूह से कहा, “जो वाचा मैंने पृथ्वी भर के सब प्राणियों के साथ बाँधी है, \it उसका चिन्ह यही है\f + \fr 9.17 \fq उसका चिन्ह यही है: \ft परमेश्वर यहाँ नूह का ध्यान बादल में धनुष की ओर आकर्षित करता है, जो उस समय वास्तव में आकाश में था, और उस कुल पिता को प्रतिज्ञा का आश्वासन देता है। \f*\it*।” \s नूह और उसके पुत्र \p \v 18 नूह के जो पुत्र जहाज में से निकले, वे शेम, हाम और येपेत थे; और हाम कनान का पिता हुआ। \v 19 नूह के तीन पुत्र ये ही हैं, और इनका वंश सारी पृथ्वी पर फैल गया। \p \v 20 नूह किसानी करने लगा: और उसने दाख की बारी लगाई। \v 21 और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। \v 22 तब कनान के पिता हाम ने, अपने पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बता दिया। \v 23 तब शेम और येपेत दोनों ने कपड़ा लेकर अपने कंधों पर रखा और पीछे की ओर उलटा चलकर अपने पिता के नंगे तन को ढाँप दिया और वे अपना मुख पीछे किए हुए थे इसलिए उन्होंने अपने पिता को नंगा न देखा। \v 24 जब नूह का नशा उतर गया, तब उसने जान लिया कि उसके छोटे पुत्र ने उसके साथ क्या किया है। \q \v 25 इसलिए उसने कहा, \q “कनान श्रापित हो: \q वह अपने भाई-बन्धुओं के दासों का दास हो।” \q \v 26 फिर उसने कहा, \q “शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है, \q और कनान शेम का दास हो। \q \v 27 परमेश्वर येपेत के वंश को फैलाए; \q और वह शेम के तम्बुओं में बसे, \q और कनान उसका दास हो।” \p \v 28 जल-प्रलय के पश्चात् नूह साढ़े तीन सौ वर्ष जीवित रहा। \v 29 इस प्रकार नूह की कुल आयु साढ़े नौ सौ वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया। \c 10 \s नूह की वंशावली \p \v 1 नूह के पुत्र शेम, हाम और येपेत थे; उनके पुत्र जल-प्रलय के पश्चात् उत्पन्न हुए: उनकी वंशावली यह है। \s येपेत के वंशज \p \v 2 \it येपेत के पुत्र\f + \fr 10.2 \fq येपेत के पुत्र: \ft येपेत का नाम पहले आता है क्योंकि शायद वह सबसे बड़ा भाई था (उत्पत्ति 9:24; उत्पत्ति 10:21) और उसके वंशज बहुत थे और सब स्थानों में फैल गए थे। \f*\it*: गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक और तीरास हुए। \v 3 और गोमेर के पुत्र: अश्कनज, रीपत और तोगर्मा हुए। \v 4 और यावान के वंश में एलीशा और तर्शीश, और कित्ती, और दोदानी लोग हुए। \v 5 इनके वंश अन्यजातियों के द्वीपों के देशों में ऐसे बँट गए कि वे भिन्न-भिन्न भाषाओं, कुलों, और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए। \s हाम के वंशज \p \v 6 फिर \it हाम के पुत्र\f + \fr 10.6 \fq हाम के पुत्र: \ft हाम तीनों भाइयों में सबसे छोटा था (उत्पत्ति 9:24) और उसे यहाँ इसलिए रखा है क्योंकि सच्चे परमेश्वर से दूर होने में येपेत के साथ सहमत था।\f*\it*: कूश, मिस्र, पूत और कनान हुए। \v 7 और कूश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामाह, और सब्तका हुए। और रामाह के पुत्र शेबा और ददान हुए। \v 8 कूश के वंश में निम्रोद भी हुआ; पृथ्वी पर पहला वीर वही हुआ है। \v 9 वही यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा, इससे यह कहावत चली है; “निम्रोद के समान यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला।” \v 10 उसके राज्य का आरम्भ शिनार देश में बाबेल, एरेख, अक्कद, और कलने से हुआ। \v 11 उस देश से वह निकलकर अश्शूर को गया, और नीनवे, रहोबोतीर और कालह को, \v 12 और नीनवे और कालह के बीच जो रेसेन है, उसे भी बसाया; बड़ा नगर यही है। \v 13 मिस्र के वंश में लूदी, अनामी, लहाबी, नप्तूही, \v 14 और पत्रूसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग हुए, कसलूहियों में से तो पलिश्ती लोग निकले। \p \v 15 कनान के वंश में उसका ज्येष्ठ पुत्र सीदोन, तब हित्त, \v 16 यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी, \v 17 हिब्बी, अर्की, सीनी, \v 18 अर्वदी, समारी, और हमाती लोग भी हुए; फिर कनानियों के कुल भी फैल गए। \v 19 और कनानियों की सीमा सीदोन से लेकर गरार के मार्ग से होकर गाज़ा तक और फिर सदोम और गमोरा और अदमा और सबोयीम के मार्ग से होकर लाशा तक हुआ। \v 20 हाम के वंश में ये ही हुए; और ये भिन्न-भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों, और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए। \s शेम के वंशज \p \v 21 फिर शेम, जो सब एबेरवंशियों का मूलपुरुष हुआ, और जो येपेत का ज्येष्ठ भाई था, उसके भी पुत्र उत्पन्न हुए। \v 22 शेम के पुत्र: एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद और अराम हुए। \v 23 अराम के पुत्र: ऊस, हूल, गेतेर और मश हुए। \v 24 और अर्पक्षद ने शेलह को, और शेलह ने एबेर को जन्म दिया। \v 25 और एबेर के दो पुत्र उत्पन्न हुए, एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनों में पृथ्वी बँट गई, और उसके भाई का नाम योक्तान था। \v 26 और योक्तान ने अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, येरह, \v 27 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला, \v 28 ओबाल, अबीमाएल, शेबा, \v 29 ओपीर, हवीला, और योबाब को जन्म दिया: ये ही सब योक्तान के पुत्र हुए। \v 30 इनके रहने का स्थान मेशा से लेकर सपारा, जो पूर्व में एक पहाड़ है, उसके मार्ग तक हुआ। \v 31 शेम के पुत्र ये ही हुए; और ये भिन्न-भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए। \p \v 32 नूह के पुत्रों के घराने ये ही है: और उनकी जातियों के अनुसार उनकी वंशावलियाँ ये ही हैं; और जल-प्रलय के पश्चात् पृथ्वी भर की जातियाँ इन्हीं में से होकर बँट गईं। \c 11 \s भाषा में गड़बड़ी \p \v 1 सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली थी। \v 2 उस समय लोग पूर्व की ओर चलते-चलते \it शिनार\f + \fr 11.2 \fq शिनार: \ft बाबेल देश कई नामों से जाना जाता था, शिनार उनमें से एक है। \f*\it* देश में एक मैदान पाकर उसमें बस गए। \v 3 तब वे आपस में कहने लगे, “आओ, हम ईंटें बना-बनाकर भली भाँति आग में पकाएँ।” और उन्होंने पत्थर के स्थान पर ईंट से, और मिट्टी के गारे के स्थान में चूने से काम लिया। \v 4 फिर उन्होंने कहा, “आओ, हम एक नगर और एक मीनार बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें, ऐसा न हो कि हमको सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।” \v 5 जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब उन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया। \v 6 और यहोवा ने कहा, “मैं क्या देखता हूँ, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जो कुछ वे करने का यत्न करेंगे, उसमें से कुछ भी उनके लिये अनहोना न होगा। \v 7 इसलिए आओ, हम उतरकर उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सके।” \v 8 इस प्रकार यहोवा ने उनको वहाँ से सारी पृथ्वी के ऊपर \it फैला दिया\f + \fr 11.8 \fq फैला दिया:\ft वे एक दूसरे की भाषा को समझ नहीं पा रहे थे, उन्होंने व्यवहारिक रूप से अपने आपको एक दूसरे से अलग महसूस किया। बातचीत और कार्य में एक होना अब असंभव हो गया था।\f*\it*; और उन्होंने उस नगर का बनाना छोड़ दिया। \v 9 इस कारण उस नगर का नाम बाबेल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, वह यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया। \s शेम से तेरह तक की वंशावली \p \v 10 शेम की वंशावली यह है। जल-प्रलय के दो वर्ष पश्चात् जब शेम एक सौ वर्ष का हुआ, तब उसने अर्पक्षद को जन्म दिया। \v 11 और अर्पक्षद के जन्म के पश्चात् शेम पाँच सौ वर्ष जीवित रहा; और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 12 जब अर्पक्षद पैंतीस वर्ष का हुआ, तब उसने शेलह को जन्म दिया। \v 13 और शेलह के जन्म के पश्चात् अर्पक्षद चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 14 जब शेलह तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा एबेर का जन्म हुआ। \v 15 और एबेर के जन्म के पश्चात् शेलह चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 16 जब एबेर चौंतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा पेलेग का जन्म हुआ। \v 17 और पेलेग के जन्म के पश्चात् एबेर चार सौ तीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 18 जब पेलेग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा रू का जन्म हुआ। \v 19 और रू के जन्म के पश्चात् पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 20 जब रू बत्तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा सरूग का जन्म हुआ। \v 21 और सरूग के जन्म के पश्चात् रू दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 22 जब सरूग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा नाहोर का जन्म हुआ। \v 23 और नाहोर के जन्म के पश्चात् सरूग दो सौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा तेरह का जन्म हुआ; \v 25 और तेरह के जन्म के पश्चात् नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं। \p \v 26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए। \s तेरह की वंशावली \p \v 27 तेरह की वंशावली यह है: तेरह ने अब्राम, और नाहोर, और हारान को जन्म दिया; और हारान ने लूत को जन्म दिया। \v 28 और हारान अपने पिता के सामने ही, कसदियों के ऊर नाम नगर में, जो उसकी जन्म-भूमि थी, मर गया। \v 29 अब्राम और नाहोर दोनों ने विवाह किया। अब्राम की पत्नी का नाम सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था। यह उस हारान की बेटी थी, जो मिल्का और यिस्का दोनों का पिता था। \v 30 \it सारै तो बाँझ थी\f + \fr 11.30 \fq सारै तो बाँझ थी: \ft इस कथन से यह स्पष्ट है कि प्रवासन के समय अब्राम के विवाह को बहुत समय हो चुका था। \f*\it*; उसके सन्तान न हुई। \p \v 31 और तेरह अपना पुत्र अब्राम, और अपना पोता लूत, जो हारान का पुत्र था, और अपनी बहू सारै, जो उसके पुत्र अब्राम की पत्नी थी, इन सभी को लेकर कसदियों के ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नामक देश में पहुँचकर वहीं रहने लगा। \v 32 जब तेरह दो सौ पाँच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया। \c 12 \s अब्राम की बुलाहट \p \v 1 \it यहोवा ने अब्राम से कहा\f + \fr 12.1 \fq यहोवा ने अब्राम से कहा: \ft अब्राम की बुलाहट में आज्ञा और प्रतिज्ञा दोनों हैं।\f*\it*, “अपने देश, और अपनी जन्म-भूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा। \bdit (प्रेरि. 7:3, इब्रा. 11:8) \bdit* \v 2 और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊँगा, और तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम महान करूँगा, और तू आशीष का मूल होगा। \v 3 और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूँगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं श्राप दूँगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएँगे।” \bdit (प्रेरि. 3:25, गला. 3:8) \bdit* \p \v 4 यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला; और लूत भी उसके संग चला; और जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का था। \v 5 इस प्रकार अब्राम अपनी पत्नी सारै, और अपने भतीजे लूत को, और जो धन उन्होंने इकट्ठा किया था, और जो प्राणी उन्होंने हारान में प्राप्त किए थे, सब को लेकर कनान देश में जाने को निकल चला; और वे कनान देश में आ गए। \bdit (प्रेरि. 7:4) \bdit* \v 6 उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शेकेम में, जहाँ मोरे का बांज वृक्ष है पहुँचा। उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे। \v 7 तब यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, “यह देश मैं तेरे वंश को दूँगा।” और उसने वहाँ यहोवा के लिये, जिसने उसे दर्शन दिया था, एक वेदी बनाई। \bdit (गला. 3:16) \bdit* \v 8 फिर वहाँ से आगे बढ़कर, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्थान में खड़ा किया जिसके पश्चिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर आई है; और वहाँ भी उसने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: और यहोवा से प्रार्थना की। \v 9 और अब्राम आगे बढ़ करके दक्षिण देश की ओर चला गया। \s मिस्र देश में अब्राम \p \v 10 उस देश में अकाल पड़ा: इसलिए अब्राम मिस्र देश को चला गया कि वहाँ परदेशी होकर रहे क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा था। \v 11 फिर ऐसा हुआ कि मिस्र के निकट पहुँचकर, उसने अपनी पत्नी सारै से कहा, “सुन, मुझे मालूम है, कि तू एक सुन्दर स्त्री है; \v 12 और जब मिस्री तुझे देखेंगे, तब कहेंगे, ‘यह उसकी पत्नी है,’ इसलिए वे मुझ को तो मार डालेंगे, पर तुझको जीवित रख लेंगे। \v 13 अतः यह कहना, ‘मैं उसकी बहन हूँ,’ जिससे तेरे कारण मेरा कल्याण हो और मेरा प्राण तेरे कारण बचे।” \v 14 फिर ऐसा हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया, तब मिस्रियों ने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है। \v 15 और मिस्र के राजा फ़िरौन के हाकिमों ने उसको देखकर फ़िरौन के सामने उसकी प्रशंसा की: इसलिए \it वह स्त्री फ़िरौन के महल में पहुँचाई गई\f + \fr 12.15 \fq वह स्त्री फ़िरौन के महल में पहुँचाई गई: \ft सारै की सुन्दरता की प्रशंसा की गई, और, क्योंकि यह बताया गया था कि वह अकेली है, इसलिए उसे फ़िरौन की पत्नी होने के लिए चुना गया; जबकि उसके भाई के रूप में अब्राम को भेंट दी गईं। \f*\it*। \v 16 और फ़िरौन ने उसके कारण अब्राम की भलाई की; और उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियाँ, गदहे-गदहियाँ, और ऊँट मिले। \p \v 17 तब \it यहोवा ने फ़िरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ डाली\f + \fr 12.17 \fq यहोवा ने फ़िरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ डाली \ft ईश्वरीय हस्तक्षेप का सम्बंधित लोगों पर उचित प्रभाव पड़ा। जब फ़िरौन को दण्ड मिला, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वह स्वर्ग की दृष्टि में इस विषय में दोषी था।\f*\it*। \v 18 तब फ़िरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, “तूने मेरे साथ यह क्या किया? तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है? \v 19 तूने क्यों कहा कि वह तेरी बहन है? मैंने उसे अपनी ही पत्नी बनाने के लिये लिया; परन्तु अब अपनी पत्नी को लेकर यहाँ से चला जा।” \v 20 और फ़िरौन ने अपने आदमियों को उसके विषय में आज्ञा दी और उन्होंने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका था, विदा कर दिया। \c 13 \s अब्राम का कनान लौटना \p \v 1 तब अब्राम अपनी पत्नी, और अपनी सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिये हुए, मिस्र को छोड़कर कनान के दक्षिण देश में आया। \v 2 अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-चाँदी का बड़ा धनी था। \v 3 फिर वह दक्षिण देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्थान को पहुँचा, जहाँ पहले उसने अपना तम्बू खड़ा किया था, जो बेतेल और आई के बीच में है। \v 4 यह स्थान उस वेदी का है, जिसे उसने पहले बनाया था, और वहाँ अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्थना की। \s अब्राम और लूत का अलग होना \p \v 5 लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ चलता था, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और \it तम्बू थे\f + \fr 13.5 \fq तम्बू थे: \ft परिवारों के बारे में बताने का इब्रानी लोगों का यह एक तरीका है \f*\it*। \v 6 इसलिए उस देश में उन दोनों के लिए पर्याप्त स्थान न था कि वे इकट्ठे रहें क्योंकि उनके पास बहुत सम्पत्ति थी इसलिए वे इकट्ठे न रह सके। \v 7 सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहों में झगड़ा हुआ। उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे। \p \v 8 तब अब्राम लूत से कहने लगा, “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई-बन्धु हैं। \v 9 क्या सारा देश तेरे सामने नहीं? सो मुझसे अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा; और यदि तू दाहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊँगा।” \v 10 तब लूत ने आँख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा कि वह सब सिंची हुई है। जब तक यहोवा ने सदोम और गमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की वाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी। \v 11 सो लूत अपने लिये यरदन की सारी तराई को चुन के पूर्व की ओर चला, और वे एक दूसरे से अलग हो गये। \v 12 अब्राम तो कनान देश में रहा, पर \tl लूत उस तराई के नगरों में रहने लगा\f + \fr 13.12 \fq लूत उस तराई के नगरों में रहने लगा: \ft यह सम्भव है कि जब वह अब्राम से अलग हुआ, उस समय वह कुँवारा था, और इसलिए उसने सदोम की स्त्री से विवाह किया। यदि ऐसा है तो वह इन सब घटनाक्रम के जाल में फँस गया और अधर्मियों के साथ मिल गया।\f*\tl*; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया। \v 13 सदोम के लोग यहोवा की दृष्टि में बड़े दुष्ट और पापी थे। \s अब्राम का हेब्रोन को जाना \p \v 14 जब लूत अब्राम से अलग हो गया तब उसके पश्चात् \it यहोवा ने अब्राम से कहा\f + \fr 13.14 \fq यहोवा ने अब्राम से कहा: \ft वह मनुष्य जिसे परमेश्वर ने चुना था, वह अब्राम है और परमेश्वर उसे आशीष देता है।\f*\it*, “आँख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहाँ से उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, चारों ओर दृष्टि कर। \v 15 क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग-युग के लिये दूँगा। \bdit (प्रेरि. 7:5) \bdit* \v 16 और मैं तेरे वंश को पृथ्वी की धूल के किनकों के समान बहुत करूँगा, यहाँ तक कि जो कोई पृथ्वी की धूल के किनकों को गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा। \v 17 उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूँगा।” \v 18 इसके पश्चात् अब्राम अपना तम्बू उखाड़कर, मम्रे के बांजवृक्षों के बीच जो हेब्रोन में थे, जाकर रहने लगा, और वहाँ भी यहोवा की एक वेदी बनाई। \c 14 \s लूत का बन्दी बनाया जाना \p \v 1 शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, और एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, और गोयीम के राजा तिदाल के दिनों में ऐसा हुआ, \v 2 कि उन्होंने सदोम के राजा बेरा, और गमोरा के राजा बिर्शा, और अदमा के राजा शिनाब, और सबोयीम के राजा शेमेबेर, और बेला जो सोअर भी कहलाता है, इन राजाओं के विरुद्ध युद्ध किया। \v 3 इन पाँचों ने सिद्दीम नामक तराई में, जो खारे नदी के पास है, एका किया। \v 4 बारह वर्ष तक तो ये कदोर्लाओमेर के अधीन रहे; पर तेरहवें वर्ष में उसके विरुद्ध उठे। \v 5 चौदहवें वर्ष में कदोर्लाओमेर, और उसके संगी राजा आए, और अश्तारोत्कनम में रापाइयों को, और हाम में जूजियों को, और शावे-किर्यातैम में एमियों को, \v 6 और सेईर नामक पहाड़ में होरियों को, मारते-मारते उस एल्पारान तक जो जंगल के पास है, पहुँच गए। \v 7 वहाँ से वे लौटकर एन्मिशपात को आए, जो कादेश भी कहलाता है, और अमालेकियों के सारे देश को, और उन एमोरियों को भी जीत लिया, जो हसासोन्तामार में रहते थे। \v 8 तब सदोम, गमोरा, अदमा, सबोयीम, और बेला, जो सोअर भी कहलाता है, इनके राजा निकले, और सिद्दीम नाम तराई में, उनके साथ युद्ध के लिये पाँति बाँधी: \v 9 अर्थात् एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, इन चारों के विरुद्ध उन पाँचों ने पाँति बाँधी। \v 10 सिद्दीम नामक तराई में जहाँ लसार मिट्टी के गड्ढे ही गड्ढे थे; सदोम और गमोरा के राजा भागते-भागते उनमें गिर पड़े, और जो बचे वे पहाड़ पर भाग गए। \v 11 तब वे सदोम और गमोरा के सारे धन और भोजनवस्तुओं को लूट-लाट कर चले गए। \v 12 और अब्राम का भतीजा लूत, जो सदोम में रहता था; उसको भी धन समेत वे लेकर चले गए। \v 13 तब एक जन जो भागकर बच निकला था उसने जाकर इब्री अब्राम को समाचार दिया; अब्राम तो एमोरी मम्रे, जो एशकोल और आनेर का भाई था, उसके बांजवृक्षों के बीच में रहता था; और ये लोग अब्राम के संग वाचा बाँधे हुए थे। \s अब्राम का लूत को छुड़ाना \p \v 14 यह सुनकर कि उसका भतीजा बन्दी बना लिया गया है, अब्राम ने अपने तीन सौ अठारह प्रशिक्षित, युद्ध कौशल में निपुण दासों को लेकर जो उसके कुटुम्ब में उत्पन्न हुए थे, अस्त्र-शस्त्र धारण करके दान तक उनका पीछा किया। \v 15 और अपने दासों के अलग-अलग दल बाँधकर रात को उन पर चढ़ाई करके उनको मार लिया और होबा तक, जो दमिश्क की उत्तर की ओर है, उनका पीछा किया। \v 16 और वह सारे धन को, और अपने भतीजे लूत, और उसके धन को, और स्त्रियों को, और सब बन्दियों को, लौटा ले आया। \v 17 जब वह कदोर्लाओमेर और उसके साथी राजाओं को जीतकर लौटा आता था तब सदोम का राजा शावे नामक तराई में, जो राजा की तराई भी कहलाती है, उससे भेंट करने के लिये आया। \s अब्राम और मलिकिसिदक \p \v 18 तब शालेम \it का राजा मलिकिसिदक\f + \fr 14.18 \fq का राजा मलिकिसिदक: \ft शालेम का राजा जिसका नाम धार्मिकता का राजा था, वह रोटी और दाखमधु लाया। वह परमेश्वर और मनुष्य के बीच एक मध्यस्थ था, जो इस बात को दर्शाता है कि परमेश्वर ने अपनी दया का हाथ आगे बढ़ाया हुआ है, और मनुष्य विश्वास के हाथ से उस तक पहुँचता है। \f*\it*, जो परमप्रधान परमेश्वर का याजक था, रोटी और दाखमधु ले आया। \v 19 और उसने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, “परमप्रधान परमेश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो। \v 20 और धन्य है परमप्रधान परमेश्वर, जिसने तेरे द्रोहियों को तेरे वश में कर दिया है।” तब अब्राम ने उसको सब का दशमांश दिया। \v 21 तब सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, “प्राणियों को तो मुझे दे, और धन को अपने पास रख।” \v 22 अब्राम ने सदोम के राजा से कहा, “परमप्रधान परमेश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, \v 23 उसकी \it मैं यह शपथ खाता हूँ\f + \fr 14.23 \fq मैं यह शपथ खाता हूँ: \ft अब्राम के लिए यह गम्भीर मामला था। या तो पहले, या वहीं पर, उसने परमेश्वर के सामने यह शपथ ली कि वह सदोम की सम्पत्ति को हाथ भी नहीं लगाएगा। \f*\it*, कि जो कुछ तेरा है उसमें से न तो मैं एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूँगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ। \v 24 पर जो कुछ इन जवानों ने खा लिया है और उनका भाग जो मेरे साथ गए थे; अर्थात् आनेर, एशकोल, और मम्रे मैं नहीं लौटाऊँगा वे तो अपना-अपना भाग रख लें।” \c 15 \s अब्राम के साथ परमेश्वर की वाचा \p \v 1 इन बातों के पश्चात् यहोवा का यह वचन दर्शन में अब्राम के पास पहुँचा “हे अब्राम, मत डर; मैं तेरी ढाल और तेरा अत्यन्त बड़ा प्रतिफल हूँ।” \v 2 अब्राम ने कहा, “हे प्रभु यहोवा, मैं तो \it सन्तानहीन\f + \fr 15.2 \fq सन्तानहीन: \ft अब्राम अब भी निर्वंश और भूमिहीन है, और परमेश्वर ने इस विषय में की गई अपनी प्रतिज्ञाओं के विषय में अब तक कुछ भी करने का संकेत नहीं दिया था। \f*\it* हूँ, और मेरे घर का वारिस यह दमिश्कवासी एलीएजेर होगा, अतः तू मुझे क्या देगा?” \v 3 और अब्राम ने कहा, “मुझे तो तूने वंश नहीं दिया, और क्या देखता हूँ, कि मेरे घर में उत्पन्न हुआ एक जन मेरा वारिस होगा।” \v 4 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा, “यह तेरा वारिस न होगा, तेरा जो निज पुत्र होगा, वही तेरा वारिस होगा।” \v 5 और उसने उसको बाहर ले जाकर कहा, “आकाश की ओर दृष्टि करके तारागण को गिन, क्या तू उनको गिन सकता है?” फिर उसने उससे कहा, “तेरा वंश ऐसा ही होगा।” \bdit (रोम. 4:18) \bdit* \v 6 \it उसने यहोवा पर विश्वास किया\f + \fr 15.6 \fq उसने यहोवा पर विश्वास किया: \ft अब्राम ने यहोवा पर, उसकी प्रतिज्ञा पर विश्वास किया, जबकि वर्तमान में कुछ भी नहीं था और तर्कसंगत अवरोध उसके सामने थे। \f*\it*; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धार्मिकता गिना। \bdit (रोम. 4:3) \bdit* \p \v 7 और उसने उससे कहा, “मैं वही यहोवा हूँ जो तुझे कसदियों के ऊर नगर से बाहर ले आया, कि तुझको इस देश का अधिकार दूँ।” \v 8 उसने कहा, “हे प्रभु यहोवा मैं कैसे जानूँ कि मैं इसका अधिकारी होऊँगा?” \v 9 यहोवा ने उससे कहा, “मेरे लिये तीन वर्ष की एक बछिया, और तीन वर्ष की एक बकरी, और तीन वर्ष का एक मेढ़ा, और एक पिण्डुक और कबूतर का एक बच्चा ले।” \v 10 और इन सभी को लेकर, उसने बीच से दो टुकड़े कर दिया और टुकड़ों को आमने-सामने रखा पर चिड़ियों को उसने टुकड़े नहीं किए। \v 11 जब माँसाहारी पक्षी लोथों पर झपटे, तब अब्राम ने उन्हें उड़ा दिया। \p \v 12 जब सूर्य अस्त होने लगा, तब अब्राम को भारी नींद आई; और देखो, अत्यन्त भय और महा अंधकार ने उसे छा लिया। \v 13 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, “यह निश्चय जान कि तेरे वंश पराए देश में परदेशी होकर रहेंगे, और उस देश के लोगों के दास हो जाएँगे; और वे उनको चार सौ वर्ष तक दुःख देंगे; \v 14 फिर जिस देश के वे दास होंगे उसको मैं दण्ड दूँगा: और उसके पश्चात् वे बड़ा धन वहाँ से लेकर निकल आएँगे। \bdit (निर्ग. 12:36) \bdit* \v 15 तू तो अपने पितरों में कुशल के साथ मिल जाएगा; तुझे पूरे बुढ़ापे में मिट्टी दी जाएगी। \v 16 पर वे चौथी पीढ़ी में यहाँ फिर आएँगे: क्योंकि अब तक एमोरियों का अधर्म पूरा नहीं हुआ हैं।” \p \v 17 और ऐसा हुआ कि \it जब सूर्य अस्त हो गया\f + \fr 15.17 \fq जब सूर्य अस्त हो गया: \ft दिन ढल गया और वाचा औपचारिक रूप से अब पूरी हुई। अब्राम परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करने की चरम पर था। वह विश्वास का पिता होने की स्थिति पर पहुँच गया। \f*\it* और घोर अंधकार छा गया, तब एक अँगीठी जिसमें से धुआँ उठता था और एक जलती हुई मशाल दिखाई दी जो उन टुकड़ों के बीच में से होकर निकल गई। \v 18 उसी दिन यहोवा ने अब्राम के साथ यह वाचा बाँधी, “मिस्र के महानद से लेकर फरात नामक बड़े नद तक जितना देश है, \v 19 अर्थात्, केनियों, कनिज्जियों, कदमोनियों, \v 20 हित्तियों, परिज्जियों, रापाइयों, \v 21 एमोरियों, कनानियों, गिर्गाशियों और यबूसियों का देश, मैंने तेरे वंश को दिया है।” \c 16 \s हागार और इश्माएल \p \v 1 अब्राम की पत्नी सारै के कोई सन्तान न थी: और उसके हागार नाम की एक मिस्री दासी थी। \bdit (गला. 4:22) \bdit* \v 2 सारै ने अब्राम से कहा, “देख, यहोवा ने तो \it मेरी कोख बन्द कर रखी है\f + \fr 16.2 \fq मेरी कोख बन्द कर रखी है: \ft प्राचीनकाल के लोगों का प्रत्येक बात में परमेश्वर की इच्छा और सामर्थ्य को जानना स्वाभाविक था।\f*\it* इसलिए मैं तुझ से विनती करती हूँ कि तू मेरी दासी के पास जा; सम्भव है कि मेरा घर उसके द्वारा बस जाए।” सारै की यह बात अब्राम ने मान ली। \v 3 इसलिए जब अब्राम को कनान देश में रहते दस वर्ष बीत चुके तब उसकी स्त्री सारै ने अपनी मिस्री दासी हागार को लेकर अपने पति अब्राम को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। \v 4 वह हागार के पास गया, और वह गर्भवती हुई; जब उसने जाना कि वह गर्भवती है, तब वह अपनी स्वामिनी को अपनी दृष्टि में तुच्छ समझने लगी। \v 5 तब सारै ने अब्राम से कहा, “जो मुझ पर उपद्रव हुआ वह तेरे ही सिर पर हो। मैंने तो अपनी दासी को तेरी पत्नी कर दिया; पर जब उसने जाना कि वह गर्भवती है, तब वह मुझे तुच्छ समझने लगी, इसलिए यहोवा मेरे और तेरे बीच में न्याय करे।” \v 6 अब्राम ने सारै से कहा, “देख तेरी दासी तेरे वश में है; जैसा तुझे भला लगे वैसा ही उसके साथ कर।” तब सारै उसको दुःख देने लगी और वह उसके सामने से भाग गई। \p \v 7 तब यहोवा के दूत ने उसको जंगल में शूर के मार्ग पर जल के एक सोते के पास पाकर कहा, \v 8 “हे सारै की दासी हागार, तू कहाँ से आती और कहाँ को जाती है?” उसने कहा, “मैं अपनी स्वामिनी सारै के सामने से भाग आई हूँ।” \v 9 यहोवा के दूत ने उससे कहा, “अपनी स्वामिनी के पास लौट जा और उसके वश में रह।” \v 10 और यहोवा के दूत ने उससे कहा, “\it मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊँगा\f + \fr 16.10 \fq मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊँगा: \ft परमेश्वर ने हागार को बहुत से वंशज देने की प्रतिज्ञा की। उसने “इश्माएल” को जन्म दिया, जिसका अर्थ है परमेश्वर सुनता है। \f*\it*, यहाँ तक कि बहुतायत के कारण उसकी गिनती न हो सकेगी।” \v 11 और यहोवा के दूत ने उससे कहा, “देख तू गर्भवती है, और पुत्र जनेगी; तू उसका नाम \it इश्माएल\f + \fr 16.11 \fq इश्माएल: \ft अर्थात् ‘परमेश्वर सुनता है’\f*\it* रखना; क्योंकि यहोवा ने तेरे दुःख का हाल सुन लिया है। \v 12 और वह मनुष्य जंगली गदहे के समान होगा, उसका हाथ सब के विरुद्ध उठेगा, और सब के हाथ उसके विरुद्ध उठेंगे; और वह अपने सब भाई-बन्धुओं के मध्य में बसा रहेगा।” \v 13 तब उसने यहोवा का नाम जिसने उससे बातें की थीं, \it अत्ताएलरोई\f + \fr 16.13 \fq अत्ताएलरोई: \ft अर्थात् तू वो परमेश्वर है जो मुझे देखता है।\f*\it* रखकर कहा, “क्या मैं यहाँ भी उसको जाते हुए देखने पाई और देखने के बाद भी जीवित रही?” \v 14 इस कारण उस कुएँ का नाम बएर-लहई-रोई कुआँ पड़ा; वह तो कादेश और बेरेद के बीच में है। \p \v 15 हागार को अब्राम के द्वारा एक पुत्र हुआ; और अब्राम ने अपने पुत्र का नाम, जिसे हागार ने जन्म दिया था, इश्माएल रखा। \v 16 जब हागार ने अब्राम के द्वारा इश्माएल को जन्म दिया उस समय अब्राम छियासी वर्ष का था। \c 17 \s अब्राम और वाचा का चिन्ह \p \v 1 जब अब्राम निन्यानवे वर्ष का हो गया, तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ; मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा। \v 2 मैं तेरे साथ वाचा बाँधूँगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊँगा।” \v 3 तब \it अब्राम मुँह के बल गिरा\f + \fr 17.3 \fq अब्राम मुँह के बल गिरा: \ft यह आदरपूर्ण भक्ति का सबसे दीन स्वरूप है, जिसमें आराधक अपने घुटने और कोहनी के बल पर अपना माथा जमीन पर टिकाता है।\f*\it* और परमेश्वर उससे यह बातें करता गया, \v 4 “देख, मेरी वाचा तेरे साथ बंधी रहेगी, इसलिए तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। \v 5 इसलिए अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैंने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। \v 6 मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझको जाति-जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। \v 7 और मैं तेरे साथ, और तेरे पश्चात् पीढ़ी-पीढ़ी तक तेरे वंश के साथ भी इस आशय की युग-युग की वाचा बाँधता हूँ, कि मैं तेरा और तेरे पश्चात् तेरे वंश का भी परमेश्वर रहूँगा। \v 8 और मैं तुझको, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को भी, यह सारा कनान देश, जिसमें तू परदेशी होकर रहता है, इस रीति दूँगा कि वह युग-युग उनकी निज भूमि रहेगी, और मैं उनका परमेश्वर रहूँगा।” \p \v 9 फिर परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, “तू भी मेरे साथ बाँधी हुई वाचा का पालन करना; तू और तेरे पश्चात् तेरा वंश भी अपनी-अपनी पीढ़ी में उसका पालन करे। \v 10 मेरे साथ बाँधी हुई वाचा, जिसका पालन तुझे और तेरे पश्चात् तेरे वंश को करना पड़ेगा, वह यह है: तुम में से एक-एक पुरुष का खतना हो। \v 11 तुम अपनी-अपनी खलड़ी का खतना करा लेना: जो वाचा मेरे और तुम्हारे बीच में है, उसका यही चिन्ह होगा। \v 12 पीढ़ी-पीढ़ी में केवल तेरे वंश ही के लोग नहीं पर जो तेरे घर में उत्पन्न हुआ हों, अथवा परदेशियों को रूपा देकर मोल लिया जाए, ऐसे सब पुरुष भी जब \it आठ दिन\f + \fr 17.12 \fq आठ दिन:\ft खतना करने का दिन, आठवाँ दिन है सात सिद्धता की संख्या है। इसलिए सात दिन को सिद्धता और विशिष्टता के रूप में दिखा जाता है। \f*\it* के हों जाएँ, तब उनका खतना किया जाए। \v 13 जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अथवा तेरे रूपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; इस प्रकार मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग-युग रहेगी। \v 14 जो पुरुष खतनारहित रहे, अर्थात् जिसकी खलड़ी का खतना न हो, वह प्राणी अपने लोगों में से नाश किया जाए, क्योंकि उसने मेरे साथ बाँधी हुई वाचा को तोड़ दिया।” \s वाचा का पुत्र इसहाक \p \v 15 फिर परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, “तेरी जो पत्नी \it सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा\f + \fr 17.15 \fq सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा: \ft खतना करने का दिन, आठवाँ दिन है सात सिद्धता की संख्या है। इसलिए सात दिन को सिद्धता और विशिष्टता के रूप में दिखा जाता है। \f*\it* होगा। \v 16 मैं उसको आशीष दूँगा, और तुझको उसके द्वारा एक पुत्र दूँगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूँगा, कि वह जाति-जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य-राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।” \v 17 तब अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, और मन ही मन कहने लगा, “क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगा और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी?” \v 18 और अब्राहम ने परमेश्वर से कहा, “इश्माएल तेरी दृष्टि में बना रहे! यही बहुत है।” \v 19 तब परमेश्वर ने कहा, “निश्चय तेरी पत्नी सारा के तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा; और तू उसका नाम इसहाक रखना; और मैं उसके साथ ऐसी वाचा बाँधूँगा जो उसके पश्चात् उसके वंश के लिये युग-युग की वाचा होगी। \bdit (गला. 4:7,8) \bdit* \v 20 इश्माएल के विषय में भी मैंने तेरी सुनी है; मैं उसको भी आशीष दूँगा, और उसे फलवन्त करूँगा और अत्यन्त ही बढ़ा दूँगा; उससे बारह प्रधान उत्पन्न होंगे, और मैं उससे एक बड़ी जाति बनाऊँगा। \v 21 परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बाँधूँगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा।” \p \v 22 तब परमेश्वर ने अब्राहम से बातें करनी बन्द की और उसके पास से ऊपर चढ़ गया। \v 23 तब अब्राहम ने अपने पुत्र इश्माएल को लिया और, उसके घर में जितने उत्पन्न हुए थे, और जितने उसके रुपये से मोल लिये गए थे, अर्थात् उसके घर में जितने पुरुष थे, उन सभी को लेकर उसी दिन परमेश्वर के वचन के अनुसार उनकी खलड़ी का खतना किया। \v 24 जब अब्राहम की खलड़ी का खतना हुआ तब वह निन्यानवे वर्ष का था। \v 25 और जब उसके पुत्र इश्माएल की खलड़ी का खतना हुआ तब वह तेरह वर्ष का था। \v 26 अब्राहम और उसके पुत्र इश्माएल दोनों का खतना एक ही दिन हुआ। \v 27 और उसके घर में जितने पुरुष थे जो घर में उत्पन्न हुए, तथा जो परदेशियों के हाथ से मोल लिये गए थे, सब का खतना उसके साथ ही हुआ। \c 18 \s अब्राहम के तीन अतिथि \p \v 1 अब्राहम मम्रे के बांजवृक्षों के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था, तब यहोवा ने उसे \it दर्शन दिया\f + \fr 18.1 \fq दर्शन दिया: \ft प्रभु अब्राहम से मिलने आता है और सारा के पुत्र के जन्म का आश्वासन देता है।\f*\it*: \v 2 उसने आँख उठाकर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरुष उसके सामने खड़े हैं। जब उसने उन्हें देखा तब वह उनसे भेंट करने के लिये तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत् की और कहने लगा, \v 3 “हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं विनती करता हूँ, कि अपने दास के पास से चले न जाना। \v 4 मैं थोड़ा सा जल लाता हूँ और आप अपने पाँव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें। \v 5 फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊँ, और उससे आप अपने-अपने जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात् आगे बढ़ें क्योंकि आप अपने दास के पास इसलिए पधारे हैं।” उन्होंने कहा, “जैसा तू कहता है वैसा ही कर।” \v 6 तब अब्राहम तुरन्त तम्बू में सारा के पास गया और कहा, “तीन सआ मैदा जल्दी से गूँध, और फुलके बना।” \v 7 फिर अब्राहम गाय-बैल के झुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा लेकर अपने सेवक को दिया, और उसने जल्दी से उसको पकाया। \v 8 तब उसने दही, और दूध, और बछड़े का माँस, जो उसने पकवाया था, लेकर उनके आगे परोस दिया; और आप वृक्ष के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे। \bdit (इब्रा. 13:2) \bdit* \s सारा का हँसना \p \v 9 उन्होंने उससे पूछा, “तेरी पत्नी सारा कहाँ है?” उसने कहा, “वह तो तम्बू में है।” \v 10 उसने कहा, “मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊँगा; और तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा।” सारा तम्बू के द्वार पर जो अब्राहम के पीछे था सुन रही थी। \bdit (रोम. 9:9) \bdit* \v 11 अब्राहम और सारा दोनों बहुत बूढ़े थे; और सारा का मासिक धर्म बन्द हो गया था। \bdit (रोम. 4:9) \bdit* \v 12 इसलिए सारा मन में हँसकर कहने लगी, “मैं तो बूढ़ी हूँ, और मेरा स्वामी भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा?” \v 13 तब यहोवा ने अब्राहम से कहा, “सारा यह कहकर क्यों हँसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढ़िया हो गई हूँ, सचमुच एक पुत्र उत्पन्न होगा? \v 14 क्या यहोवा के लिये कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्थात् वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊँगा, और सारा के पुत्र उत्पन्न होगा।” \v 15 तब सारा डर के मारे यह कहकर मुकर गई, “मैं नहीं हँसी।” उसने कहा, “नहीं; तू हँसी तो थी।” \bdit (1 पत. 3:6) \bdit* \s अब्राहम का सदोम के लिये निवेदन \p \v 16 फिर वे पुरुष वहाँ से चलकर, सदोम की ओर दृष्टि की; और अब्राहम उन्हें विदा करने के लिये उनके संग-संग चला। \v 17 तब यहोवा ने कहा, “यह जो मैं करता हूँ उसे क्या अब्राहम से छिपा रखूँ? \v 18 अब्राहम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी। \bdit (प्रेरि. 3:25, रोम. 4:13, गला. 3:8) \bdit* \v 19 क्योंकि मैं जानता हूँ, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएँगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धार्मिकता और न्याय करते रहें, ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करे।” \v 20 फिर यहोवा ने कहा, “सदोम और गमोरा के विरुद्ध \it चिल्लाहट\f + \fr 18.20 \fq चिल्लाहट: \ft ईश्वरीय प्रक्रिया के हर कदम पर न्याय है। परमेश्वर पूछताछ करने और परिस्थिति अनुसार कार्य करने के लिए नीचे उतरा। वे पुरुष सन्देश सुनाकर चले गए लेकिन अब्राहम अब भी परमेश्वर के सामने खड़ा है। \f*\it* बढ़ गई है, और उनका पाप बहुत भारी हो गया है; \v 21 इसलिए मैं उतरकर देखूँगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुँची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं; और न किया हो तो मैं उसे जान लूँगा।” \bdit (प्रका. 18:5) \bdit* \p \v 22 तब वे पुरुष वहाँ से मुड़कर सदोम की ओर जाने लगे; पर अब्राहम यहोवा के आगे खड़ा रह गया। \v 23 तब अब्राहम उसके समीप जाकर कहने लगा, “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी भी नाश करेगा? \v 24 कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उसमें हों न छोड़ेगा? \v 25 इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे। क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?” \v 26 यहोवा ने कहा, “यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोड़ूँगा।” \v 27 फिर अब्राहम ने कहा, “हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूँ; तो भी मैंने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूँ। \v 28 कदाचित् उन पचास धर्मियों में पाँच घट जाएँ; तो क्या तू पाँच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा?” उसने कहा, “यदि मुझे उसमें पैंतालीस भी मिलें, तो भी उसका नाश न करूँगा।” \v 29 फिर उसने उससे यह भी कहा, “कदाचित् वहाँ चालीस मिलें।” उसने कहा, “तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा न करूँगा।” \v 30 फिर उसने कहा, “हे प्रभु, क्रोध न कर, तो मैं कुछ और कहूँ: कदाचित् वहाँ तीस मिलें।” उसने कहा, “यदि मुझे वहाँ तीस भी मिलें, तो भी ऐसा न करूँगा।” \v 31 फिर उसने कहा, “हे प्रभु, सुन, मैंने इतनी ढिठाई तो की है कि तुझ से बातें करूँ: कदाचित् उसमें बीस मिलें।” उसने कहा, “मैं बीस के कारण भी उसका नाश न करूँगा।” \v 32 फिर उसने कहा, “हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूँगा: कदाचित् उसमें दस मिलें।” उसने कहा, “तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूँगा।” \v 33 जब यहोवा अब्राहम से बातें कर चुका, तब चला गया: और अब्राहम अपने घर को लौट गया। \c 19 \s लूत के अतिथि \p \v 1 साँझ को वे \it दो दूत\f + \fr 19.1 \fq दो दूत: \ft ये वे दो पुरुष हैं जो अब्राहम को यहोवा के पास छोड़कर आए थे।\f*\it* सदोम के पास आए; और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा था। उनको देखकर वह उनसे भेंट करने के लिये उठा; और मुँह के बल झुककर दण्डवत् कर कहा; \v 2 “हे मेरे प्रभुओं, अपने दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्राम कीजिए, और अपने पाँव धोइये, फिर भोर को उठकर अपने मार्ग पर जाइए।” उन्होंने कहा, “नहीं; हम चौक ही में रात बिताएँगे।” \v 3 और उसने उनसे बहुत विनती करके उन्हें मनाया; इसलिए वे उसके साथ चलकर उसके घर में आए; और उसने उनके लिये भोजन तैयार किया, और बिना ख़मीर की रोटियाँ बनाकर उनको खिलाई। \v 4 उनके सो जाने के पहले, सदोम नगर के पुरुषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन् चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया; \v 5 और लूत को पुकारकर कहने लगे, “जो पुरुष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहाँ हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ, कि हम उनसे भोग करें।” \v 6 तब लूत उनके पास द्वार के बाहर गया, और किवाड़ को अपने पीछे बन्द करके कहा, \v 7 “हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो। \v 8 सुनो, मेरी दो बेटियाँ हैं जिन्होंने अब तक पुरुष का मुँह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊँ, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उनसे करो: पर इन पुरुषों से कुछ न करो; क्योंकि ये मेरी छत के तले आए हैं।” \v 9 उन्होंने कहा, “हट जा!” फिर वे कहने लगे, “तू एक परदेशी होकर यहाँ रहने के लिये आया पर अब न्यायी भी बन बैठा है; इसलिए अब हम उनसे भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे।” और वे उस पुरुष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिये निकट आए। \v 10 तब उन अतिथियों ने हाथ बढ़ाकर लूत को अपने पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया। \v 11 और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरुषों को जो घर के द्वार पर थे अंधा कर दिया, अतः वे द्वार को टटोलते-टटोलते थक गए। \s लूत का सदोम से बच निकलना \p \v 12 फिर उन अतिथियों ने लूत से पूछा, “यहाँ तेरा और कौन-कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियाँ, और नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभी को लेकर इस स्थान से निकल जा। \v 13 क्योंकि हम यह स्थान नाश करने पर हैं, इसलिए कि इसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यानाश करने के लिये भेज दिया है।” \v 14 तब लूत ने निकलकर अपने दामादों को, जिनके साथ उसकी बेटियों की सगाई हो गई थी, समझाकर कहा, “उठो, इस स्थान से निकल चलो; क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश करने पर है।” उसके दामाद उसका मजाक उड़ाने लगे। \bdit (लूका 17:28,29) \bdit* \p \v 15 जब पौ फटने लगी, तब दूतों ने लूत से जल्दी करने को कहा और बोले, “उठ, अपनी पत्नी और दोनों बेटियों को जो यहाँ हैं ले जा: नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा।” \v 16 पर वह विलम्ब करता रहा, इस पर उन पुरुषों ने उसका और उसकी पत्नी, और दोनों बेटियों के हाथ पकड़े; क्योंकि यहोवा की दया उस पर थी: और उसको निकालकर नगर के बाहर कर दिया। \bdit (2 पत. 2:7) \bdit* \v 17 और ऐसा हुआ कि जब उन्होंने उनको बाहर निकाला, तब उसने कहा, “अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की ओर न ताकना, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा।” \v 18 लूत ने उनसे कहा, “हे प्रभु, ऐसा न कर! \v 19 देख, तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तूने इसमें बड़ी कृपा दिखाई, कि मेरे प्राण को बचाया है; पर मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो, कि कोई विपत्ति मुझ पर आ पड़े, और मैं मर जाऊँ। \v 20 देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहाँ भाग सकता हूँ, और वह छोटा भी है। मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह नगर छोटा नहीं है? और मेरा प्राण बच जाएगा।” \v 21 उसने उससे कहा, “देख, मैंने इस विषय में भी तेरी विनती स्वीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तूने की है, उसको मैं नाश न करूँगा। \v 22 फुर्ती से वहाँ भाग जा; क्योंकि जब तक तू वहाँ न पहुँचे तब तक मैं कुछ न कर सकूँगा।” इसी कारण उस नगर का नाम \it सोअर\f + \fr 19.22 \fq सोअर: \ft अर्थात् ‘छोटा स्थान’\f*\it* पड़ा। \s सदोम और गमोरा का विनाश \p \v 23 लूत के सोअर के निकट पहुँचते ही सूर्य पृथ्वी पर उदय हुआ। \v 24 तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और गमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; \bdit (लूका 17:29) \bdit* \v 25 और उन नगरों को और सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नाश कर दिया। \v 26 लूत की पत्नी ने जो उसके पीछे थी पीछे मुड़कर देखा, और वह नमक का खम्भा बन गई। \p \v 27 भोर को अब्राहम उठकर उस स्थान को गया, जहाँ वह यहोवा के सम्मुख खड़ा था; \v 28 और सदोम, और गमोरा, और उस तराई के सारे देश की ओर आँख उठाकर क्या देखा कि उस देश में से धधकती हुई भट्ठी का सा धुआँ उठ रहा है। \v 29 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरों को, जिनमें लूत रहता था, उलट-पुलट कर नाश किया, तब \it उसने अब्राहम को याद करके\f + \fr 19.29 \fq उसने अब्राहम को याद करके: \ft अब्राहम उठकर देखता है कि जिस नगर के लिए उसने इतनी विनती की उसका क्या हुआ; और वह दूर से उस नगर से उठते धुएँ को देखता है। परमेश्वर ने अब्राहम को याद किया, जो लूत का चाचा था, और शायद उसके मन में उसकी वह विनती रही होगी, जिसके कारण परमेश्वर ने लूत को उस भयानक विनाश से बचा लिया।\f*\it* लूत को उस घटना से बचा लिया। \s लूत और उसकी पुत्रियाँ \p \v 30 लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था; इसलिए वह और उसकी दोनों बेटियाँ वहाँ एक गुफा में रहने लगे। \v 31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, “हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी भर में कोई ऐसा पुरुष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए। \v 32 इसलिए आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिलाकर, उसके साथ सोएँ, जिससे कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें।” \v 33 अतः उन्होंने उसी दिन-रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जाकर अपने पिता के पास लेट गई; पर उसने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई। \v 34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, “देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई; इसलिए आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएँ; तब तू जाकर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें।” \v 35 अतः उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, और छोटी बेटी जाकर उसके पास लेट गई; पर उसको उसके भी सोने और उठने का ज्ञान न था। \v 36 इस प्रकार से लूत की दोनों बेटियाँ अपने पिता से गर्भवती हुईं। \v 37 बड़ी एक पुत्र जनी और उसका नाम मोआब रखा; वह मोआब नामक जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ। \v 38 और छोटी भी एक पुत्र जनी, और उसका नाम बेनअम्मी रखा; वह अम्मोनवंशियों का जो आज तक है मूलपिता हुआ। \c 20 \s अब्राहम और अबीमेलेक \p \v 1 फिर अब्राहम वहाँ से निकलकर दक्षिण देश में आकर कादेश और शूर के बीच में ठहरा, और गरार में रहने लगा। \v 2 और अब्राहम अपनी पत्नी सारा के विषय में कहने लगा, “वह मेरी बहन है,” इसलिए गरार के राजा अबीमेलेक ने दूत भेजकर सारा को बुलवा लिया। \v 3 रात को परमेश्वर ने स्वप्न में अबीमेलेक के पास आकर कहा, “सुन, जिस स्त्री को तूने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है।” \v 4 परन्तु अबीमेलेक उसके पास न गया था; इसलिए उसने कहा, “हे प्रभु, क्या तू निर्दोष जाति का भी घात करेगा? \v 5 क्या उसी ने स्वयं मुझसे नहीं कहा, ‘वह मेरी बहन है?’ और उस स्त्री ने भी आप कहा, ‘वह मेरा भाई है,’ मैंने तो अपने मन की खराई और अपने व्यवहार की सच्चाई से यह काम किया।” \v 6 परमेश्वर ने उससे स्वप्न में कहा, “हाँ, मैं भी जानता हूँ कि अपने मन की खराई से तूने यह काम किया है और मैंने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरुद्ध पाप न करे; इसी कारण मैंने तुझको उसे छूने नहीं दिया। \v 7 इसलिए अब उस पुरुष की पत्नी को उसे लौटाए; क्योंकि \it वह नबी है\f + \fr 20.7 \fq वह नबी है: \ft यहाँ परमेश्वर द्वारा अब्राहम को नबी की उपाधि मिली। नबी परमेश्वर का व्यक्ता होता है जो परमेश्वर की बातों को अधिकार के साथ बोलता है।\f*\it*, और तेरे लिये प्रार्थना करेगा, और तू जीता रहेगा पर यदि तू उसको न लौटा दे तो जान रख, कि तू, और तेरे जितने लोग हैं, सब निश्चय मर जाएँगे।” \p \v 8 सवेरे अबीमेलेक ने तड़के उठकर अपने सब कर्मचारियों को बुलवाकर ये सब बातें सुनाईं; और वे लोग बहुत डर गए। \v 9 तब अबीमेलेक ने अब्राहम को बुलवाकर कहा, “तूने हम से यह क्या किया है? और मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था कि तूने मेरे और मेरे राज्य के ऊपर ऐसा बड़ा पाप डाल दिया है? तूने मेरे साथ वह काम किया है जो उचित न था।” \v 10 फिर अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, “तूने क्या समझकर ऐसा काम किया?” \v 11 अब्राहम ने कहा, “मैंने यह सोचा था कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; इसलिए ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे। \v 12 इसके अतिरिक्त सचमुच वह मेरी बहन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई। \v 13 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने मुझे अपने पिता का घर छोड़कर निकलने की आज्ञा दी, तब मैंने उससे कहा, ‘इतनी कृपा तुझे मुझ पर करनी होगी कि हम दोनों जहाँ-जहाँ जाएँ वहाँ-वहाँ तू मेरे विषय में कहना कि यह मेरा भाई है।’” \v 14 तब अबीमेलेक ने भेड़-बकरी, गाय-बैल, और दास-दासियाँ लेकर अब्राहम को दीं, और उसकी पत्नी सारा को भी उसे लौटा दिया। \v 15 और अबीमेलेक ने कहा, “देख, मेरा देश तेरे सामने है; जहाँ तुझे भाए वहाँ रह।” \v 16 और सारा से उसने कहा, “देख, मैंने तेरे भाई को रूपे के एक हजार टुकड़े दिए हैं। देख, तेरे सारे संगियों के सामने वही तेरी आँखों का परदा बनेगा, और सभी के सामने तू ठीक होगी।” \v 17 तब \it अब्राहम ने यहोवा से प्रार्थना की\f + \fr 20.17 \fq अब्राहम ने यहोवा से प्रार्थना की: \ft ये पद अबीमेलेक के लिए अब्राहम की मध्यस्थता को बताते हैं और यह कि किस प्रकार वह मरने की कगार पर था।\f*\it*, और यहोवा ने अबीमेलेक, और उसकी पत्नी, और दासियों को चंगा किया और वे जनने लगीं। \v 18 क्योंकि यहोवा ने अब्राहम की पत्नी सारा के कारण अबीमेलेक के घर की सब स्त्रियों की कोखों को पूरी रीति से बन्द कर दिया था। \c 21 \s इसहाक का जन्म \p \v 1 यहोवा ने जैसा कहा था वैसा ही \it सारा की सुधि लेकर उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया\f + \fr 21.1 \fq सारा की सुधि लेकर उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया: \ft परमेश्वर सारा के प्रति अपनी प्रतिज्ञा में विश्वासयोग्य रहा। प्रतिज्ञा के अनुसार इसहाक का जन्म हुआ।\f*\it*। \v 2 सारा अब्राहम से गर्भवती होकर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उससे ठहराया था, एक पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 3 अब्राहम ने अपने पुत्र का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ था इसहाक रखा। \bdit (मत्ती 1:2, लूका 3:34) \bdit* \v 4 और जब उसका पुत्र इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसका खतना किया। \bdit (प्रेरि. 7:8) \bdit* \v 5 जब अब्राहम का पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ तब वह एक सौ वर्ष का था। \v 6 और सारा ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित किया है; इसलिए सब सुननेवाले भी मेरे साथ प्रफुल्लित होंगे।” \v 7 फिर उसने यह भी कहा, “क्या कोई कभी अब्राहम से कह सकता था, कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी? पर देखो, मुझसे उसके बुढ़ापे में एक पुत्र उत्पन्न हुआ।” \v 8 और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया; और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन अब्राहम ने बड़ा भोज किया। \bdit (गला. 4:22, इब्रा. 11:11) \bdit* \s हागार और इश्माएल का निकाला जाना \p \v 9 तब सारा को \it मिस्री हागार का पुत्र, जो अब्राहम से उत्पन्न हुआ था, हँसी करता हुआ दिखाई पड़ा\f + \fr 21.9 \fq मिस्री हागार का पुत्र, जो अब्राहम से उत्पन्न हुआ था, हँसी करता हुआ दिखाई पड़ा: \ft इसहाक के जन्म से इश्माएल की स्थिति में बड़ा बदलाव आया। वह अब इसहाक के समान ध्यान का केंद्र नहीं रहा और इस कारण हो सकता है कुछ कड़वाहट की भावना उसमें उत्पन्न हो गई हो। अतः उसकी हँसी वास्तव में ठट्ठा था।\f*\it*। \v 10 इस कारण उसने अब्राहम से कहा, “इस दासी को पुत्र सहित निकाल दे: क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ भागी न होगा।” \bdit (गला. 4:29) \bdit* \v 11 यह बात अब्राहम को अपने पुत्र के कारण बुरी लगी। \v 12 तब परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, “उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा। \bdit (इब्रा. 11:18, रोम. 9:7) \bdit* \v 13 दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूँगा इसलिए कि वह तेरा वंश है।” \p \v 14 इसलिए अब्राहम ने सवेरे तड़के उठकर रोटी और पानी से भरी चमड़े की थैली भी हागार को दी, और उसके कंधे पर रखी, और उसके लड़के को भी उसे देकर उसको विदा किया। वह चली गई, और बेर्शेबा के जंगल में भटकने लगी। \v 15 जब थैली का जल समाप्त हो गया, तब उसने लड़के को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया। \v 16 और आप उससे तीर भर के टप्पे पर दूर जाकर उसके सामने यह सोचकर बैठ गई, “मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पड़े।” तब वह उसके सामने बैठी हुई चिल्ला चिल्लाकर रोने लगी। \v 17 \it परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी\f + \fr 21.17 \fq परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी: \ft परमेश्वर उस लड़के की पुकार सुनता है, जिसकी प्यास की तड़प अपनी माँ से अधिक थी। स्वर्गदूत को भेजा गया, जिसने साधारण शब्दों से हागार को प्रोत्साहित किया और उसे निर्देश दिया।\f*\it*; और उसके दूत ने स्वर्ग से हागार को पुकारकर कहा, “हे हागार, तुझे क्या हुआ? मत डर; क्योंकि जहाँ तेरा लड़का है वहाँ से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पड़ी है। \v 18 उठ, अपने लड़के को उठा और अपने हाथ से सम्भाल; क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊँगा।” \v 19 तब परमेश्वर ने उसकी आँखें खोल दीं, और उसको एक कुआँ दिखाई पड़ा; तब उसने जाकर थैली को जल से भरकर लड़के को पिलाया। \v 20 और परमेश्वर उस लड़के के साथ रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते-रहते धनुर्धारी बन गया। \v 21 वह पारान नामक जंगल में रहा करता था; और उसकी माता ने उसके लिये मिस्र देश से एक स्त्री मँगवाई। \s अबीमेलेक के साथ अब्राहम की वाचा \p \v 22 उन दिनों में ऐसा हुआ कि अबीमेलेक अपने सेनापति पीकोल को संग लेकर अब्राहम से कहने लगा, “जो कुछ तू करता है उसमें परमेश्वर तेरे संग रहता है; \v 23 इसलिए अब मुझसे यहाँ इस विषय में परमेश्वर की शपथ खा कि तू न तो मुझसे छल करेगा, और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करुणा मैंने तुझ पर की है, वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी, जिसमें तू रहता है, करेगा।” \v 24 अब्राहम ने कहा, “मैं शपथ खाऊँगा।” \v 25 और अब्राहम ने अबीमेलेक को एक कुएँ के विषय में जो अबीमेलेक के दासों ने बलपूर्वक ले लिया था, उलाहना दिया। \v 26 तब अबीमेलेक ने कहा, “मैं नहीं जानता कि किसने यह काम किया; और तूने भी मुझे नहीं बताया, और न मैंने आज से पहले इसके विषय में कुछ सुना।” \v 27 तब अब्राहम ने भेड़-बकरी, और गाय-बैल अबीमेलेक को दिए; और उन दोनों ने आपस में वाचा बाँधी। \v 28 अब्राहम ने सात मादा मेम्नों को अलग कर रखा। \v 29 तब अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, “इन सात बच्चियों का, जो तूने अलग कर रखी हैं, क्या प्रयोजन है?” \v 30 उसने कहा, “तू इन सात बच्चियों को इस बात की साक्षी जानकर मेरे हाथ से ले कि मैंने यह कुआँ खोदा है।” \v 31 उन दोनों ने जो उस स्थान में आपस में शपथ खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा। \v 32 जब उन्होंने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बाँधी, तब अबीमेलेक और उसका सेनापति पीकोल, उठकर पलिश्तियों के देश में लौट गए। \v 33 फिर अब्राहम ने बेर्शेबा में झाऊ का एक वृक्ष लगाया, और वहाँ यहोवा से जो सनातन परमेश्वर है, प्रार्थना की। \v 34 अब्राहम पलिश्तियों के देश में बहुत दिनों तक परदेशी होकर रहा। \c 22 \s अब्राहम की परीक्षा \p \v 1 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, \it अब्राहम से यह कहकर उसकी परीक्षा की\f + \fr 22.1 \fq अब्राहम से यह कहकर उसकी परीक्षा की: \ft परमेश्वर अपनी इच्छा के प्रति अब्राहम की पूरी आज्ञाकारिता की परीक्षा लेता है। \f*\it*, “हे अब्राहम!” उसने कहा, “देख, मैं यहाँ हूँ।” \bdit (इब्रा. 11:17) \bdit* \v 2 उसने कहा, “अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिससे तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊँगा होमबलि करके चढ़ा।” \v 3 अतः अब्राहम सवेरे तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब निकलकर उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उससे की थी। \v 4 तीसरे दिन अब्राहम ने आँखें उठाकर उस स्थान को दूर से देखा। \v 5 और उसने अपने सेवकों से कहा, “गदहे के पास यहीं ठहरे रहो; यह लड़का और मैं वहाँ तक जाकर, और दण्डवत् करके, फिर तुम्हारे पास लौट आएँगे।” \v 6 तब अब्राहम ने होमबलि की लकड़ी ले अपने पुत्र इसहाक पर लादी, और आग और छुरी को अपने हाथ में लिया; और वे दोनों एक साथ चल पड़े। \v 7 इसहाक ने अपने पिता अब्राहम से कहा, “हे मेरे पिता,” उसने कहा, “हे मेरे पुत्र, क्या बात है?” उसने कहा, “देख, आग और लकड़ी तो हैं; पर होमबलि के लिये भेड़ कहाँ है?” \v 8 अब्राहम ने कहा, “हे मेरे पुत्र, परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा।” और वे दोनों संग-संग आगे चलते गए। \p \v 9 जब वे उस स्थान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया था पहुँचे; तब अब्राहम ने वहाँ वेदी बनाकर लकड़ी को चुन-चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बाँधकर वेदी पर रखी लकड़ियों के ऊपर रख दिया। \bdit (याकू. 2:21) \bdit* \v 10 फिर अब्राहम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे। \v 11 तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकारकर कहा, “हे अब्राहम, हे अब्राहम!” उसने कहा, “देख, मैं यहाँ हूँ।” \v 12 उसने कहा, “उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उसे कुछ कर; क्योंकि तूने जो मुझसे अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इससे मैं अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है।” \v 13 तब अब्राहम ने आँखें उठाई, और क्या देखा, कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपने सींगों से एक झाड़ी में फँसा हुआ है; अतः अब्राहम ने जाकर उस मेढ़े को लिया, और अपने पुत्र के स्थान पर होमबलि करके चढ़ाया। \v 14 अब्राहम ने उस स्थान का नाम \it यहोवा यिरे\f + \fr 22.14 \fq यहोवा यिरे: \ft अर्थात् ‘परमेश्वर प्रदान करेगा।’\f*\it* रखा, इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है, “यहोवा के पहाड़ पर प्रदान किया जाएगा।” \p \v 15 फिर यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से अब्राहम को पुकारकर कहा, \v 16 “यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तूने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; \bdit (लूका 1:73,74) \bdit* \v 17 इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र तट के रेतकणों के समान अनगिनत करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; \bdit (इब्रा. 6:13,14) \bdit* \v 18 और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तूने मेरी बात मानी है।” \v 19 तब अब्राहम अपने सेवकों के पास लौट आया, और वे सब बेर्शेबा को संग-संग गए; और अब्राहम बेर्शेबा में रहने लगा। \s नाहोर के वंशज \p \v 20 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि अब्राहम को यह सन्देश मिला, “मिल्का के तेरे भाई नाहोर से सन्तान उत्पन्न हुई हैं।” \v 21 मिल्का के पुत्र तो ये हुए, अर्थात् उसका जेठा ऊस, और ऊस का भाई बूज, और कमूएल, जो अराम का पिता हुआ। \v 22 फिर केसेद, हज़ो, पिल्दाश, यिद्लाप, और बतूएल। \v 23 इन आठों को मिल्का ने अब्राहम के भाई नाहोर के द्वारा जन्म दिया। और बतूएल से रिबका उत्पन्न हुई। \v 24 फिर नाहोर के रूमा नामक एक रखैल भी थी; जिससे तेबह, गहम, तहश, और माका, उत्पन्न हुए। \c 23 \s सारा की मृत्यु और दफनाया जाना \p \v 1 सारा तो एक सौ सताईस वर्ष की आयु को पहुँची; और जब सारा की इतनी आयु हुई; \v 2 तब वह किर्यतअर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है। इसलिए अब्राहम सारा के लिये रोने-पीटने को वहाँ गया। \v 3 तब अब्राहम शव के पास से उठकर हित्तियों से कहने लगा, \v 4 “मैं तुम्हारे बीच अतिथि और परदेशी हूँ; मुझे अपने मध्य में कब्रिस्तान के लिये ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपने मृतक को गाड़कर अपनी आँख से दूर करूँ।” \v 5 हित्तियों ने अब्राहम से कहा, \v 6 “हे हमारे प्रभु, हमारी सुन; तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है। हमारी कब्रों में से जिसको तू चाहे उसमें अपने मृतक को गाड़; हम में से कोई तुझे अपनी कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपने मृतक को उसमें गाड़ने न पाए।” \v 7 तब अब्राहम उठकर खड़ा हुआ, और हित्तियों के सामने, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत् करके कहने लगा, \v 8 “यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपने मृतक को गाड़कर अपनी आँख से दूर करूँ, तो मेरी प्रार्थना है, कि \it सोहर के पुत्र एप्रोन\f + \fr 23.8 \fq सोहर के पुत्र एप्रोन: \ft अब्राहम अब सोहर के पुत्र एप्रोन से मकपेला की भूमि को खरीदने का विशेष प्रस्ताव रखता है। अब्राहम बड़ी सावधानी के साथ उस व्यक्ति के पास जाता है जिससे वह व्यवहार करना चाहता था।\f*\it* से मेरे लिये विनती करो, \v 9 कि वह अपनी मकपेलावाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम लेकर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिये मेरी निज भूमि हो जाए।” \v 10 एप्रोन तो हित्तियों के बीच वहाँ बैठा हुआ था, इसलिए जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभी के सामने उसने अब्राहम को उत्तर दिया, \v 11 “हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूँ, और उसमें जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूँ; अपने जातिभाइयों के सम्मुख मैं उसे तुझको दिए देता हूँ; अतः अपने मृतक को कब्र में रख।” \v 12 तब अब्राहम ने उस देश के निवासियों के सामने दण्डवत् किया। \v 13 और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, “यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूँ; उसे मुझसे ले ले, तब मैं अपने मुर्दे को वहाँ गाड़ूँगा।” \v 14 एप्रोन ने अब्राहम को यह उत्तर दिया, \v 15 “हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; उस भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है? अपने मुर्दे को कब्र में रख।” \v 16 अब्राहम ने एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उसने हित्तियों के सुनते हुए कहा था, अर्थात् चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियों में चलते थे। \p \v 17 इस प्रकार एप्रोन की भूमि, जो मम्रे के सम्मुख की मकपेला में थी, वह गुफा समेत, और उन सब वृक्षों समेत भी जो उसमें और उसके चारों ओर सीमा पर थे, \v 18 जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभी के सामने अब्राहम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई। \v 19 इसके पश्चात् अब्राहम ने अपनी पत्नी सारा को उस मकपेलावाली भूमि की गुफा में जो मम्रे के अर्थात् हेब्रोन के सामने कनान देश में है, मिट्टी दी। \v 20 इस प्रकार वह भूमि गुफा समेत, जो उसमें थी, हित्तियों की ओर से कब्रिस्तान के लिये अब्राहम के अधिकार में पूरी रीति से आ गई। \c 24 \s इसहाक के विवाह का वर्णन \p \v 1 अब्राहम अब वृद्ध हो गया था और उसकी आयु बहुत थी और यहोवा ने सब बातों में उसको आशीष दी थी। \v 2 अब्राहम ने \it अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था\f + \fr 24.2 \fq अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था: \ft अब्राहम ने अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था, यह शपथ दिलाता है कि वह उसके कुटुम्बियों में से उसके पुत्र इसहाक के लिए एक पत्नी लाएगा। \f*\it*, कहा, “अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रख; \v 3 और मुझसे आकाश और पृथ्वी के \it परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपथ खा\f + \fr 24.3 \fq परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपथ खा: \ft याचना “आकाश और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा” के रूप में परमेश्वर से है। वह सब का सृष्टिकर्ता है, और इस तरह स्वर्ग और पृथ्वी को रचनेवाला है।\f*\it*, कि तू मेरे पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से, जिनके बीच मैं रहता हूँ, किसी को न ले आएगा। \v 4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियों के पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिये एक पत्नी ले आएगा।” \v 5 दास ने उससे कहा, “कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहाँ से तू आया है ले जाना पड़ेगा?” \v 6 अब्राहम ने उससे कहा, “चौकस रह, मेरे पुत्र को वहाँ कभी न ले जाना।” \v 7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिसने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्म-भूमि से ले आकर मुझसे शपथ खाकर कहा कि “मैं यह देश तेरे वंश को दूँगा; वही अपना दूत तेरे आगे-आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिये वहाँ से एक स्त्री ले आए। \v 8 और यदि वह स्त्री तेरे साथ आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपथ से छूट जाएगा; पर मेरे पुत्र को वहाँ न ले जाना।” \v 9 तब उस दास ने अपने स्वामी अब्राहम की जाँघ के नीचे अपना हाथ रखकर उससे इस विषय की शपथ खाई। \p \v 10 तब वह दास अपने स्वामी के ऊँटों में से दस ऊँट छाँटकर उसके सब उत्तम-उत्तम पदार्थों में से कुछ कुछ लेकर चला; और अरम्नहरैम में नाहोर के नगर के पास पहुँचा। \v 11 और उसने ऊँटों को नगर के बाहर एक कुएँ के पास बैठाया। वह संध्या का समय था, जिस समय स्त्रियाँ जल भरने के लिये निकलती हैं। \v 12 वह कहने लगा, “हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी अब्राहम पर करुणा कर। \v 13 देख, मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूँ; और नगरवासियों की बेटियाँ जल भरने के लिये निकली आती हैं \v 14 इसलिए ऐसा होने दे कि जिस कन्या से मैं कहूँ, ‘अपना घड़ा मेरी ओर झुका, कि मैं पीऊँ,’ और वह कहे, ‘ले, पी ले, बाद में मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ यह वही हो जिसे तूने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर करुणा की है।” \p \v 15 और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा था कि रिबका, जो अब्राहम के भाई नाहोर के जन्माये मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी थी, वह कंधे पर घड़ा लिये हुए आई। \v 16 वह अति सुन्दर, और कुमारी थी, और किसी पुरुष का मुँह न देखा था। वह कुएँ में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भरकर फिर ऊपर आई। \v 17 तब वह दास उससे भेंट करने को दौड़ा, और कहा, “अपने घड़े में से थोड़ा पानी मुझे पिला दे।” \v 18 उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, ले, पी ले,” और उसने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिये-लिये उसको पानी पिला दिया। \v 19 जब वह उसको पिला चुकी, तब कहा, “मैं तेरे ऊँटों के लिये भी तब तक पानी भर-भर लाऊँगी, जब तक वे पी न चुकें।” \v 20 तब वह फुर्ती से अपने घड़े का जल हौद में उण्डेलकर फिर कुएँ पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊँटों के लिये पानी भर दिया। \v 21 और वह पुरुष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साथ ताकता हुआ यह सोचता था कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सफल किया है कि नहीं। \p \v 22 जब ऊँट पी चुके, तब उस पुरुष ने आधा तोला सोने का एक नत्थ निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथों में पहना दिए; \v 23 और पूछा, “तू किसकी बेटी है? यह मुझ को बता। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिये स्थान है?” \v 24 उसने उत्तर दिया, “मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ।” \v 25 फिर उसने उससे कहा, “हमारे यहाँ पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिये स्थान भी है।” \v 26 तब \it उस पुरुष ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा\f + \fr 24.26 \fq उस पुरुष ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा: \ft सिर और शरीर को एक साथ झुकाना उस बूढ़े सेवक का परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए बड़े आभार को दर्शाता है।\f*\it*, \v 27 “धन्य है मेरे स्वामी अब्राहम का परमेश्वर यहोवा, जिसने अपनी करुणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया: यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई-बन्धुओं के घर पर पहुँचा दिया है।” \p \v 28 तब उस कन्या ने दौड़कर अपनी माता को इस घटना का सारा हाल बता दिया। \v 29 तब लाबान जो रिबका का भाई था, बाहर कुएँ के निकट उस पुरुष के पास दौड़ा गया। \v 30 और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नत्थ और अपनी बहन रिबका के हाथों में वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी कि उस पुरुष ने मुझसे ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरुष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊँटों के पास खड़ा है। \v 31 उसने कहा, “हे यहोवा की ओर से धन्य पुरुष भीतर आ तू क्यों बाहर खड़ा है? मैंने घर को, और ऊँटों के लिये भी स्थान तैयार किया है।” \v 32 इस पर वह पुरुष घर में गया; और लाबान ने ऊँटों की काठियाँ खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके और उसके साथियों के पाँव धोने को जल दिया। \v 33 तब अब्राहम के दास के आगे जलपान के लिये कुछ रखा गया; पर उसने कहा “मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूँ, तब तक कुछ न खाऊँगा।” लाबान ने कहा, “कह दे।” \p \v 34 तब उसने कहा, “मैं तो अब्राहम का दास हूँ। \v 35 यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; इसलिए वह महान पुरुष हो गया है; और उसने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियाँ, ऊँट और गदहे दिए हैं। \v 36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ है; और उस पुत्र को अब्राहम ने अपना सब कुछ दे दिया है। \v 37 मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई है, कि ‘मैं उसके पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिनके देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊँगा। \v 38 मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगों के पास जाकर उसके पुत्र के लिये एक स्त्री ले आऊँगा।’ \v 39 तब मैंने अपने स्वामी से कहा, ‘कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए।’ \v 40 तब उसने मुझसे कहा, ‘यहोवा, जिसके सामने मैं चलता आया हूँ, वह तेरे संग अपने दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सफल करेगा; और तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिये एक स्त्री ले आ सकेगा। \v 41 तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुँचेगा; और यदि वे तुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी शपथ से छूटेगा।’ \v 42 इसलिए मैं आज उस कुएँ के निकट आकर कहने लगा, ‘हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सफल करता हो; \v 43 तो देख मैं जल के इस कुएँ के निकट खड़ा हूँ; और ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिये आए, और मैं उससे कहूँ, “अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला,” \v 44 और वह मुझसे कहे, “पी ले, और मैं तेरे ऊँटों के पीने के लिये भी पानी भर दूँगी,” वह वही स्त्री हो जिसको तूने मेरे स्वामी के पुत्र के लिये ठहराया है।’ \v 45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा था, कि देख रिबका कंधे पर घड़ा लिये हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरकर भरने लगी। मैंने उससे कहा, ‘मुझे पानी पिला दे।’ \v 46 और उसने जल्दी से अपने घड़े को कंधे पर से उतार के कहा, ‘ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ इस प्रकार मैंने पी लिया, और उसने ऊँटों को भी पिला दिया। \v 47 तब मैंने उससे पूछा, ‘तू किसकी बेटी है?’ और उसने कहा, ‘मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ,’ तब मैंने उसकी नाक में वह नत्थ, और उसके हाथों में वे कंगन पहना दिए। \v 48 फिर मैंने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपने स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुँचाया कि मैं अपने स्वामी के पुत्र के लिये उसके कुटुम्बी की पुत्री को ले जाऊँ। \v 49 इसलिए अब, यदि तुम मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझसे कहो; और यदि नहीं चाहते हो; तो भी मुझसे कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, या बाईं ओर फिर जाऊँ।” \p \v 50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “यह बात यहोवा की ओर से हुई है; इसलिए हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा। \v 51 देख, रिबका तेरे सामने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए।” \v 52 उनकी यह बात सुनकर, अब्राहम के दास ने भूमि पर गिरकर यहोवा को दण्डवत् किया। \v 53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए; और उसके भाई और माता को भी उसने अनमोल-अनमोल वस्तुएँ दीं। \v 54 तब उसने अपने संगी जनों समेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई। उसने तड़के उठकर कहा, “मुझ को अपने स्वामी के पास जाने के लिये विदा करो।” \v 55 रिबका के भाई और माता ने कहा, “कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्थात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चली जाएगी।” \v 56 उसने उनसे कहा, “यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सफल किया है; इसलिए तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपने स्वामी के पास जाऊँ।” \v 57 उन्होंने कहा, “हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है।” \v 58 और उन्होंने रिबका को बुलाकर उससे पूछा, “क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी?” उसने कहा, “हाँ मैं जाऊँगी।” \v 59 तब उन्होंने अपनी बहन रिबका, और उसकी दाई और अब्राहम के दास, और उसके साथी सभी को विदा किया। \v 60 और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद देकर कहा, “हे हमारी बहन, तू हजारों लाखों की आदिमाता हो, और तेरा वंश अपने बैरियों के नगरों का अधिकारी हो।” \v 61 तब रिबका अपनी सहेलियों समेत चली; और ऊँट पर चढ़कर उस पुरुष के पीछे हो ली। इस प्रकार वह दास रिबका को साथ लेकर चल दिया। \p \v 62 इसहाक जो दक्षिण देश में रहता था, लहैरोई नामक कुएँ से होकर चला आता था। \v 63 साँझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था; और उसने आँखें उठाकर क्या देखा, कि ऊँट चले आ रहे हैं। \v 64 रिबका ने भी आँखें उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊँट पर से उतर पड़ी। \v 65 तब उसने दास से पूछा, “जो पुरुष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, वह कौन है?” दास ने कहा, “वह तो मेरा स्वामी है।” तब रिबका ने घूँघट लेकर अपने मुँह को ढाँप लिया। \v 66 दास ने इसहाक से अपने साथ हुई घटना का वर्णन किया। \v 67 तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया। इस प्रकार इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति प्राप्त हुई। \c 25 \s अब्राहम के अन्य वंशज \p \v 1 तब अब्राहम ने एक पत्नी ब्याह ली जिसका नाम कतूरा था। \v 2 उससे जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक, और शूह उत्पन्न हुए। \v 3 योक्षान से शेबा और ददान उत्पन्न हुए; और ददान के वंश में अश्शूरी, लतूशी, और लुम्मी लोग हुए। \v 4 मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा, और एल्दा हुए, ये सब कतूरा की सन्तान हुए। \v 5 \it इसहाक को तो अब्राहम ने अपना सब कुछ दिया\f + \fr 25.5 \fq इसहाक को तो अब्राहम ने अपना सब कुछ दिया: \ft अब्राहम ने इसहाक को अपना वारिस बनाया (उत्प. 24:36)। अपने जीते जी उसने अपनी रखैलियों के पुत्रों को कुछ कुछ भाग देकर पूर्व देश की ओर भेज दिया। \f*\it*। \v 6 पर अपनी रखैलियों के पुत्रों को, कुछ कुछ देकर अपने जीते जी अपने पुत्र इसहाक के पास से पूर्व देश में भेज दिया। \s अब्राहम की मृत्यु \p \v 7 अब्राहम की सारी आयु एक सौ पचहत्तर वर्ष की हुई। \v 8 अब्राहम का दीर्घायु होने के कारण अर्थात् पूरे बुढ़ापे की अवस्था में प्राण छूट गया; और वह अपने लोगों में जा मिला। \v 9 उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने, हित्ती सोहर के पुत्र एप्रोन की मम्रे के सम्मुखवाली भूमि में, जो मकपेला की गुफा थी, उसमें उसको मिट्टी दी; \v 10 अर्थात् जो भूमि अब्राहम ने हित्तियों से मोल ली थी; उसी में अब्राहम, और उसकी पत्नी सारा, दोनों को मिट्टी दी गई। \v 11 अब्राहम के मरने के पश्चात् \it परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को जो लहैरोई नामक कुएँ के पास रहता था, आशीष दी\f + \fr 25.11 \fq परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को जो लहैरोई नामक कुएँ के पास रहता था, आशीष दी: \ft यह पद बताता है कि परमेश्वर की वह आशीष जिसे अब्राहम ने अपनी मृत्यु तक पाया था, अब उसके पुत्र इसहाक को प्राप्त हुई हैं जो लहैरोई में रहता है।\f*\it*। \s इश्माएल की वंशावली \p \v 12 अब्राहम का पुत्र इश्माएल जो सारा की मिस्री दासी हागार से उत्पन्न हुआ था, उसकी यह वंशावली है। \v 13 इश्माएल के पुत्रों के नाम और वंशावली यह है: अर्थात् इश्माएल का जेठा पुत्र नबायोत, फिर केदार, अदबएल, मिबसाम, \v 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, \v 15 हदद, तेमा, यतूर, नापीश, और केदमा। \v 16 इश्माएल के पुत्र ये ही हुए, और इन्हीं के नामों के अनुसार इनके गाँवों, और छावनियों के नाम भी पड़े; और ये ही बारह अपने-अपने कुल के प्रधान हुए। \v 17 इश्माएल की सारी आयु एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई; तब उसके प्राण छूट गए, और वह अपने लोगों में जा मिला। \v 18 और उसके वंश हवीला से शूर तक, जो मिस्र के सम्मुख अश्शूर के मार्ग में है, बस गए; और उनका भाग उनके सब भाई-बन्धुओं के सम्मुख पड़ा। \s याकूब और एसाव का जन्म \p \v 19 अब्राहम के पुत्र इसहाक की वंशावली यह है: अब्राहम से इसहाक उत्पन्न हुआ; \v 20 और इसहाक ने चालीस वर्ष का होकर रिबका को, जो पद्दनराम के वासी, अरामी बतूएल की बेटी, और अरामी लाबान की बहन थी, ब्याह लिया। \v 21 इसहाक की पत्नी तो बाँझ थी, इसलिए उसने उसके निमित्त यहोवा से विनती की; और यहोवा ने उसकी विनती सुनी, इस प्रकार उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई। \v 22 लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपटकर \it एक दूसरे को मारने लगे\f + \fr 25.22 \fq एक दूसरे को मारने लगे: \ft रिबका के गर्भ में दो बेटे थे, जो दो जातियों के मूलपिता होंगे, और जिनकी प्रवृति और गंतव्य अलग-अलग होंगे। प्रकृति का क्रम उलट जाएगा, जो बड़ा है वह छोटे की सेवा करेगा। गर्भ में उनका संघर्ष उनके भविष्य के इतिहास की भूमिका थी।\f*\it*। तब उसने कहा, “मेरी जो ऐसी ही दशा रहेगी तो मैं कैसे जीवित रहूँगी?” और वह यहोवा की इच्छा पूछने को गई। \q \v 23 तब यहोवा ने उससे कहा, \q “तेरे गर्भ में दो जातियाँ हैं, \q और तेरी कोख से निकलते ही दो \q राज्य के लोग अलग-अलग होंगे, \q और एक राज्य के लोग दूसरे से \q अधिक सामर्थी होंगे और बड़ा \q बेटा छोटे के अधीन होगा।” \p \v 24 जब उसके पुत्र उत्पन्न होने का समय आया, तब क्या प्रगट हुआ, कि उसके गर्भ में जुड़वे बालक हैं। \v 25 पहला जो उत्पन्न हुआ वह लाल निकला, और उसका सारा शरीर कम्बल के समान रोममय था; इसलिए उसका नाम एसाव रखा गया। \v 26 पीछे उसका भाई अपने हाथ से एसाव की एड़ी पकड़े हुए उत्पन्न हुआ; और उसका नाम याकूब रखा गया। जब रिबका ने उनको जन्म दिया तब इसहाक साठ वर्ष का था। \s एसाव द्वारा पहलौठे का अधिकार बेचना \p \v 27 फिर वे लड़के बढ़ने लगे और एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य था, और तम्बुओं में रहा करता था। \v 28 इसहाक एसाव के अहेर का माँस खाया करता था, इसलिए वह उससे प्रीति रखता था; पर रिबका याकूब से प्रीति रखती थी। \p \v 29 एक दिन याकूब भोजन के लिये कुछ दाल पका रहा था; और एसाव मैदान से थका हुआ आया। \v 30 तब एसाव ने याकूब से कहा, “वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं थका हूँ।” इसी कारण उसका नाम एदोम भी पड़ा। \v 31 याकूब ने कहा, “अपना \it पहलौठे का अधिकार\f + \fr 25.31 \fq पहलौठे का अधिकार: \ft याकूब पहिलौठे के अधिकार को खरीदने के लिए तैयार था, क्योंकि वह सबसे शान्तिपूर्ण ऐसा तरीका था जिससे वह उस श्रेष्ठता को पा सकता था जो उसके लिए ठहराई गई थी। इसलिए उसने अपने इस प्रस्ताव में सावधानी और बुद्धिमानी से काम लिया।\f*\it* आज मेरे हाथ बेच दे।” \v 32 एसाव ने कहा, “देख, मैं तो अभी मरने पर हूँ इसलिए पहलौठे के अधिकार से मेरा क्या लाभ होगा?” \v 33 याकूब ने कहा, “मुझसे अभी शपथ खा,” अतः उसने उससे शपथ खाई, और अपना पहलौठे का अधिकार याकूब के हाथ बेच डाला। \v 34 इस पर याकूब ने एसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उसने खाया पिया, तब उठकर चला गया। इस प्रकार एसाव ने अपना पहलौठे का अधिकार तुच्छ जाना। \c 26 \s इसहाक का वृत्तान्त \p \v 1 उस देश में अकाल पड़ा, वह उस पहले अकाल से अलग था जो अब्राहम के दिनों में पड़ा था। इसलिए इसहाक गरार को पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। \v 2 वहाँ \it यहोवा ने उसको दर्शन देकर\f + \fr 26.2 \fq यहोवा ने उसको दर्शन देकर: \ft इसहाक अब उत्तराधिकारी था और इस प्रकार प्रतिज्ञा का वारिस भी था। अतः परमेश्वर उसके साथ बातचीत करता है, और उस कठिन परिस्थिति में उसके साथ रहने की प्रतिज्ञा करता है। \f*\it* कहा, “मिस्र में मत जा; जो देश मैं तुझे बताऊँ उसी में रह। \v 3 तू इसी देश में रह, और मैं तेरे संग रहूँगा, और तुझे आशीष दूँगा; और ये सब देश मैं तुझको, और तेरे वंश को दूँगा; और जो शपथ मैंने तेरे पिता अब्राहम से खाई थी, उसे मैं पूरी करूँगा। \v 4 और मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान करूँगा; और मैं तेरे वंश को ये सब देश दूँगा, और पृथ्वी की सारी जातियाँ तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी। \bdit (उत्प. 15:5) \bdit* \v 5 क्योंकि अब्राहम ने मेरी मानी, और जो मैंने उसे सौंपा था उसको और मेरी आज्ञाओं, विधियों और व्यवस्था का पालन किया।” \v 6 इसलिए इसहाक गरार में रह गया। \s इसहाक की चालाकी \p \v 7 जब उस स्थान के लोगों ने उसकी पत्नी के विषय में पूछा, तब उसने यह सोचकर कि यदि मैं उसको अपनी पत्नी कहूँ, तो यहाँ के लोग रिबका के कारण \it जो परम सुन्दरी है\f + \fr 26.7 \fq जो परम सुन्दरी है: \ft इसहाक नाटक करता है कि रिबका उसकी बहन है, क्योंकि उस स्थान के लोग उसकी सुन्दरता से मोहित थे। इसलिए उसे लगता है कि यदि उसने यह बताया कि वह उसकी पत्नी है तो उसकी जान को खतरा है। \f*\it* मुझ को मार डालेंगे, उत्तर दिया, “वह तो मेरी बहन है।” \v 8 जब उसको वहाँ रहते बहुत दिन बीत गए, तब एक दिन पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक ने खिड़की में से झाँककर क्या देखा कि इसहाक अपनी पत्नी रिबका के साथ क्रीड़ा कर रहा है। \v 9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवाकर कहा, “वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तूने क्यों उसको अपनी बहन कहा?” इसहाक ने उत्तर दिया, “मैंने सोचा था, कि ऐसा न हो कि उसके कारण मेरी मृत्यु हो।” \v 10 अबीमेलेक ने कहा, “तूने हम से यह क्या किया? ऐसे तो प्रजा में से कोई तेरी पत्नी के साथ सहज से कुकर्म कर सकता, और तू हमको पाप में फँसाता।” \v 11 इसलिए अबीमेलेक ने अपनी सारी प्रजा को आज्ञा दी, “जो कोई उस पुरुष को या उस स्त्री को छूएगा, वह निश्चय मार डाला जाएगा।” \s इसहाक का महान बनना \p \v 12 फिर इसहाक ने उस देश में जोता बोया, और उसी वर्ष में \it सौ गुणा फल पाया\f + \fr 26.12 \fq सौ गुणा फल पाया: \ft सौ गुणा दुर्लभ था और केवल अति बहुतायत की उपज की स्थिति में ही इसे देखा जा सकता था। यहोवा ने “इसहाक को आशीष दी”। पराए देशवासी की भेड़-बकरियों, गाय-बैलों के झुण्ड और दास दासियों में वृद्धि को देखकर वहाँ के निवासी उससे डाह करने लगे।\f*\it*; और यहोवा ने उसको आशीष दी, \v 13 और वह बढ़ा और उसकी उन्नति होती चली गई, यहाँ तक कि वह बहुत धनी पुरुष हो गया। \v 14 जब उसके भेड़-बकरी, गाय-बैल, और बहुत से दास-दासियाँ हुईं, तब पलिश्ती उससे डाह करने लगे। \s कुओं के लिये झगड़ा \p \v 15 इसलिए जितने कुओं को उसके पिता अब्राहम के दासों ने अब्राहम के जीते जी खोदा था, उनको पलिश्तियों ने मिट्टी से भर दिया। \v 16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, “हमारे पास से चला जा; क्योंकि तू हम से बहुत सामर्थी हो गया है।” \v 17 अतः इसहाक वहाँ से चला गया, और गरार की घाटी में अपना तम्बू खड़ा करके वहाँ रहने लगा। \v 18 तब जो कुएँ उसके पिता अब्राहम के दिनों में खोदे गए थे, और अब्राहम के मरने के पीछे पलिश्तियों ने भर दिए थे, उनको इसहाक ने फिर से खुदवाया; और उनके वे ही नाम रखे, जो उसके पिता ने रखे थे। \v 19 फिर इसहाक के दासों को घाटी में खोदते-खोदते बहते जल का एक सोता मिला। \v 20 तब गरार के चरवाहों ने इसहाक के चरवाहों से झगड़ा किया, और कहा, “यह जल हमारा है।” इसलिए उसने उस कुएँ का नाम एसेक रखा; क्योंकि वे उससे झगड़े थे। \v 21 फिर उन्होंने दूसरा कुआँ खोदा; और उन्होंने उसके लिये भी झगड़ा किया, इसलिए उसने उसका नाम सित्ना रखा। \v 22 तब उसने वहाँ से निकलकर एक और कुआँ खुदवाया; और उसके लिये उन्होंने झगड़ा न किया; इसलिए उसने उसका नाम यह कहकर रहोबोत रखा, “अब तो यहोवा ने हमारे लिये बहुत स्थान दिया है, और हम इस देश में फूले-फलेंगे।” \s परमेश्वर का इसहाक को दर्शन \p \v 23 वहाँ से वह बेर्शेबा को गया। \v 24 और उसी दिन यहोवा ने रात को उसे दर्शन देकर कहा, “मैं तेरे पिता अब्राहम का परमेश्वर हूँ; मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और अपने दास अब्राहम के कारण तुझे आशीष दूँगा, और तेरा वंश बढ़ाऊँगा।” \v 25 तब उसने वहाँ एक वेदी बनाई, और यहोवा से प्रार्थना की, और अपना तम्बू वहीं खड़ा किया; और वहाँ इसहाक के दासों ने एक कुआँ खोदा। \s अबीमेलेक के साथ वाचा \p \v 26 तब अबीमेलेक अपने सलाहकार अहुज्जत, और अपने सेनापति पीकोल को संग लेकर, गरार से उसके पास गया। \v 27 इसहाक ने उनसे कहा, “तुम ने मुझसे बैर करके अपने बीच से निकाल दिया था, अब मेरे पास क्यों आए हो?” \v 28 उन्होंने कहा, “हमने तो प्रत्यक्ष देखा है, कि यहोवा तेरे साथ रहता है; इसलिए हमने सोचा, कि तू तो यहोवा की ओर से धन्य है, अतः हमारे तेरे बीच में शपथ खाई जाए, और हम तुझ से इस विषय की वाचा बन्धाएँ; \v 29 कि जैसे हमने तुझे नहीं छुआ, वरन् तेरे साथ केवल भलाई ही की है, और तुझको कुशल क्षेम से विदा किया, उसके अनुसार तू भी हम से कोई बुराई न करेगा।” \v 30 तब उसने उनको भोज दिया, और उन्होंने खाया-पिया। \v 31 सवेरे उन सभी ने तड़के उठकर आपस में शपथ खाई; तब इसहाक ने उनको विदा किया, और वे कुशल क्षेम से उसके पास से चले गए। \v 32 उसी दिन इसहाक के दासों ने आकर अपने उस खोदे हुए कुएँ का वृत्तान्त सुनाकर कहा, “हमको जल का एक सोता मिला है।” \v 33 तब उसने उसका नाम शिबा रखा; इसी कारण उस नगर का नाम आज तक बेर्शेबा पड़ा है। \s एसाव की पत्नियाँ \p \v 34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उसने हित्ती बेरी की बेटी यहूदीत, और हित्ती एलोन की बेटी बासमत को ब्याह लिया; \v 35 और इन स्त्रियों के कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ। \c 27 \s इसहाक का एसाव को आशीर्वाद देने की योजना \p \v 1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुंधली पड़ गईं कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र एसाव को बुलाकर कहा, “हे मेरे पुत्र,” उसने कहा, “क्या आज्ञा।” \v 2 उसने कहा, “सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा \v 3 इसलिए अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिये अहेर कर ले आ। \v 4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भरकर आशीर्वाद दूँ।” \v 5 तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा था, तब \it रिबका\f + \fr 27.5 \fq रिबका: \ft वह एसाव की बजाय याकूब को आशीषें दिलवाने की योजना बनाती है। याकूब के लिए उन आशीषों को प्राप्त करने के लिए जिन्हें उसने अपने मन में बैठा रखा था, वह भावनावश यह कदम उठाने को मजबूर हो जाती है, बिना कुछ सोचे या समझे कि जो वह कर रही है सही है या नहीं। \f*\it* सुन रही थी। \s याकूब द्वारा आशीर्वाद चुराने की योजना \p \v 6 इसलिए उसने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुन, मैंने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना है, \v 7 ‘तू मेरे लिये अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहले आशीर्वाद दूँ।’ \v 8 इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, \v 9 कि बकरियों के पास जाकर बकरियों के दो अच्छे-अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उनके माँस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊँगी। \v 10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहले तुझको आशीर्वाद दे।” \v 11 याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, “सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआर पुरुष है, और मैं रोमहीन पुरुष हूँ। \v 12 कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूँगा; और आशीष के बदले श्राप ही कमाऊँगा।” \v 13 उसकी माता ने उससे कहा, “हे मेरे, पुत्र, श्राप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ।” \v 14 तब याकूब जाकर उनको अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। \v 15 तब रिबका ने अपने पहलौठे पुत्र एसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपने छोटे पुत्र याकूब को पहना दिए। \v 16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया। \v 17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी। \p \v 18 तब वह अपने पिता के पास गया, और कहा, “हे मेरे पिता,” उसने कहा, “क्या बात है? हे मेरे पुत्र, तू कौन है?” \v 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ। मैंने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; इसलिए उठ और बैठकर मेरे अहेर के माँस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे।” \v 20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया?” उसने यह उत्तर दिया, “तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे सामने कर दिया।” \v 21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, “हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूँ, कि तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है या नहीं।” \v 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोलकर कहा, “बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं।” \v 23 और उसने उसको नहीं पहचाना, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। अतः उसने उसको आशीर्वाद दिया। \v 24 और उसने पूछा, “क्या तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है?” उसने कहा, “हाँ मैं हूँ।” \s याकूब को आशीर्वाद मिलना \p \v 25 तब उसने कहा, “भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्र के अहेर के माँस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूँ।” तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया। \v 26 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, “हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम।” \v 27 उसने निकट जाकर उसको चूमा। और उसने उसके वस्त्रों का सुगन्ध पाकर उसको वह आशीर्वाद दिया, \q “देख, मेरे पुत्र की सुगन्ध जो \q ऐसे खेत की सी है जिस पर यहोवा \q ने आशीष दी हो; \q \v 28 परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, \q और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, \q और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे; \q \v 29 राज्य-राज्य के लोग तेरे अधीन हों, \q और देश-देश के लोग तुझे दण्डवत् करें; \q तू अपने भाइयों का स्वामी हो, \q और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत् करें। \q जो तुझे श्राप दें वे आप ही श्रापित हों, \q और जो तुझे आशीर्वाद दें वे आशीष पाएँ।” \s आशीर्वाद के लिये एसाव का निवेदन \p \v 30 जैसे ही यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के सामने से निकला ही था, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुँचा। \v 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने पिता के पास ले आया, और उसने कहा, “हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्र के अहेर का माँस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।” \v 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, “तू कौन है?” उसने कहा, “मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ।” \v 33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर काँपते हुए कहा, “फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैंने तेरे आने से पहले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? वरन् \it उसको आशीष लगी भी रहेगी\f + \fr 27.33 \fq उसको आशीष लगी भी रहेगी: \ft वह जानता था कि माता-पिता की आशीषें, माता-पिता के झुकाव से नहीं बल्कि परमेश्वर के आत्मा से उसकी इच्छानुसार निकलती है और इसलिए जब वे दे दी गईं तो उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता।\f*\it*।” \v 34 अपने पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊँचे और दुःख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे!” \v 35 उसने कहा, “तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेकर चला गया।” \v 36 उसने कहा, “क्या उसका नाम \it याकूब\f + \fr 27.36 \fq याकूब: \ft अर्थात् वह एड़ी पकड़ता है, इस नाम का दूसरा अर्थ है: वह धोखा देता है या धोखा देनेवाला\f*\it* यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था; और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है।” फिर उसने कहा, “क्या तूने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?” \v 37 इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, “सुन, मैंने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है। इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूँ?” \v 38 एसाव ने अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे।” यह कहकर एसाव फूट फूटकर रोया। \v 39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, \q “सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि से दूर हो, \q और ऊपर से आकाश की ओस उस पर न पड़े। \q \v 40 तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, \q और अपने भाई के अधीन तो होए; \q पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, \q तब उसके जूए को अपने कंधे पर से तोड़ फेंके।” \bdit (इब्रा. 11:20) \bdit* \s याकूब का एसाव के डर से भागना \p \v 41 एसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; और उसने सोचा, “मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूँगा।” \v 42 जब रिबका को अपने पहलौठे पुत्र एसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, “सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन में धीरज रखे हुए है। \v 43 इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा; \v 44 और थोड़े दिन तक, अर्थात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना। \v 45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तूने उससे किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से वंचित होना पड़े?” \p \v 46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, “हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूँ; इसलिए यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियाँ हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?” \c 28 \s याकूब का लाबान के पास भेजा जाना \p \v 1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, “तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। \v 2 पद्दनराम में अपने नाना बतूएल के घर जाकर वहाँ अपने मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। \v 3 सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुझे आशीष दे, और फलवन्त करके बढ़ाए, और तू राज्य-राज्य की मण्डली का मूल हो। \v 4 वह तुझे और तेरे वंश को भी अब्राहम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिसमें तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने अब्राहम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए।” \v 5 तब इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई था। \s एसाव का इश्माएल की बेटी महलत से ब्याह \p \v 6 जब एसाव को पता चला कि इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, “तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना,” \v 7 और याकूब माता-पिता की मानकर पद्दनराम को चल दिया। \v 8 तब एसाव यह सब देखकर और यह भी सोचकर कि कनानी लड़कियाँ मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, \v 9 अब्राहम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहन थी, ब्याह कर अपनी पत्नियों में मिला लिया। \s बेतेल में याकूब का स्वप्न \p \v 10 याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला। \v 11 और उसने किसी स्थान में पहुँचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; इसलिए उसने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्थान में सो गया। \v 12 तब उसने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुँचा है; और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते-उतरते हैं। \v 13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, “मैं यहोवा, तेरे दादा अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूँ; जिस भूमि पर तू लेटा है, उसे मैं तुझको और तेरे वंश को दूँगा। \v 14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा, और पश्चिम, पूरब, उत्तर, दक्षिण, चारों ओर फैलता जाएगा: और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएँगे। \v 15 और सुन, मैं तेरे संग रहूँगा, और जहाँ कहीं तू जाए वहाँ तेरी रक्षा करूँगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊँगा: मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूँ तब तक तुझको न छोड़ूँगा।” \bdit (यशा. 41:10) \bdit* \v 16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा, “निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था।” \v 17 और भय खाकर उसने कहा, “यह स्थान क्या ही भयानक है! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन् यह स्वर्ग का फाटक ही होगा।” \p \v 18 भोर को याकूब उठा, और अपने तकिये का पत्थर लेकर उसका \it खम्भा\f + \fr 28.18 \fq खम्भा: \ft वह खम्भा उस घटना का स्मारक था तेल डालना, परमेश्वर के लिए पवित्र करने की क्रिया थी जो वहाँ प्रगट हुआ था। उसने उस स्थान का नाम बेतेल रखा, जिसका अर्थ है “परमेश्वर का घर”। \f*\it* खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया। \v 19 और उसने उस स्थान का नाम \it बेतेल\f + \fr 28.19 \fq बेतेल: \ft अर्थात् ‘परमेश्वर का घर’\f*\it* रखा; पर उस नगर का नाम पहले लूज था। \v 20 याकूब ने यह मन्नत मानी, “\it यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर\f + \fr 28.20 \fq यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर: \ft यह कोई शर्त नहीं थी जिसके आधार पर याकूब परमेश्वर को ग्रहण करेगा। यह केवल एक पुकार थी, ईश्वरीय आश्वासन को प्राप्त करने के प्रति धन्यवाद, “मैं तेरे संग रहूँगा”।\f*\it* इस यात्रा में मेरी रक्षा करे, और मुझे खाने के लिये रोटी, और पहनने के लिये कपड़ा दे, \v 21 और मैं अपने पिता के घर में कुशल क्षेम से लौट आऊँ; तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। \v 22 और यह पत्थर, जिसका मैंने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा: और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूँगा।” \c 29 \s याकूब का राहेल से मिलना \p \v 1 फिर याकूब ने अपना मार्ग लिया, और पूर्वियों के देश में आया। \v 2 और उसने दृष्टि करके क्या देखा, कि मैदान में एक कुआँ है, और उसके पास भेड़-बकरियों के तीन झुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्थर उस कुएँ के मुँह पर धरा रहता था, जिसमें से झुण्डों को जल पिलाया जाता था, वह भारी था। \v 3 और जब सब झुण्ड वहाँ इकट्ठे हो जाते तब चरवाहे उस पत्थर को कुएँ के मुँह पर से लुढ़काकर भेड़-बकरियों को पानी पिलाते, और फिर पत्थर को कुएँ के मुँह पर ज्यों का त्यों रख देते थे। \v 4 अतः याकूब ने चरवाहों से पूछा, “हे मेरे भाइयों, तुम कहाँ के हो?” उन्होंने कहा, “हम हारान के हैं।” \v 5 तब उसने उनसे पूछा, “क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, हम उसे जानते हैं।” \v 6 फिर उसने उनसे पूछा, “क्या वह कुशल से है?” उन्होंने कहा, “हाँ, कुशल से है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़-बकरियों को लिये हुए चली आती है।” \v 7 उसने कहा, “देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं; इसलिए भेड़-बकरियों को जल पिलाकर फिर ले जाकर चराओ।” \v 8 उन्होंने कहा, “हम अभी ऐसा नहीं कर सकते, जब सब झुण्ड इकट्ठे होते हैं तब पत्थर कुएँ के मुँह से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़-बकरियों को पानी पिलाते हैं।” \p \v 9 उनकी यह बातचीत हो रही थी, कि राहेल जो पशु चराया करती थी, अपने पिता की भेड़-बकरियों को लिये हुए आ गई। \v 10 अपने मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़-बकरियों को भी देखकर याकूब ने निकट जाकर कुएँ के मुँह पर से पत्थर को लुढ़काकर अपने मामा लाबान की भेड़-बकरियों को पानी पिलाया। \v 11 तब याकूब ने राहेल को चूमा, और ऊँचे स्वर से रोया। \v 12 और याकूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूँ, अर्थात् रिबका का पुत्र हूँ। तब उसने दौड़कर अपने पिता से कह दिया। \v 13 अपने भांजे याकूब का समाचार पाते ही लाबान उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपने घर ले आया। और याकूब ने लाबान से अपना सब वृत्तान्त वर्णन किया। \v 14 तब लाबान ने याकूब से कहा, “तू तो सचमुच मेरी हड्डी और माँस है।” और याकूब एक महीना भर उसके साथ रहा। \p \v 15 तब लाबान ने याकूब से कहा, “भाई-बन्धु होने के कारण तुझ से मुफ्त सेवा कराना मेरे लिए उचित नहीं है; इसलिए कह मैं तुझे सेवा के बदले क्या दूँ?” \v 16 लाबान की दो बेटियाँ थी, जिनमें से बड़ी का नाम लिआ और छोटी का राहेल था। \v 17 लिआ के तो धुन्धली आँखें थीं, पर राहेल रूपवती और सुन्दर थी। \s याकूब का राहेल के लिये सात वर्ष की सेवा \p \v 18 इसलिए याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता था, कहा, “मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिये सात वर्ष तेरी सेवा करूँगा।” \v 19 लाबान ने कहा, “उसे पराए पुरुष को देने से तुझको देना उत्तम होगा; इसलिए मेरे पास रह।” \v 20 अतः याकूब ने राहेल के लिये सात वर्ष सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण थोड़े ही दिनों के बराबर जान पड़े। \s छल से राहेल की जगह लिआ का दिया जाना \p \v 21 तब याकूब ने लाबान से कहा, “मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊँगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है।” \v 22 अतः लाबान ने उस स्थान के सब मनुष्यों को बुलाकर इकट्ठा किया, और \it एक भोज दिया\f + \fr 29.22 \fq एक भोज दिया: \ft याकूब की लिआ: से धोखे से शादी करा दी गई, और फिर सात वर्ष और सेवा करके वह राहेल को भी प्राप्त कर लेता है।\f*\it*। \v 23 साँझ के समय वह अपनी बेटी लिआ को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया। \v 24 लाबान ने अपनी बेटी लिआ को उसकी दासी होने के लिये अपनी दासी जिल्पा दी। \v 25 भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, इसलिए उसने लाबान से कहा, “यह तूने मुझसे क्या किया है? मैंने तेरे साथ रहकर जो तेरी सेवा की, तो क्या राहेल के लिये नहीं की? फिर तूने मुझसे क्यों ऐसा छल किया है?” \v 26 लाबान ने कहा, “हमारे यहाँ ऐसी रीति नहीं, कि बड़ी बेटी से पहले दूसरी का विवाह कर दें। \s याकूब को राहेल का भी दिया जाना \p \v 27 “इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिये मिलेगी जो तू मेरे साथ रहकर और सात वर्ष तक करेगा।” \v 28 याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपनी बेटी राहेल भी दी, कि वह उसकी पत्नी हो। \v 29 लाबान ने अपनी बेटी राहेल की दासी होने के लिये अपनी दासी बिल्हा को दिया। \v 30 तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ से अधिक उसी पर हुई, और उसने लाबान के साथ रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की। \s याकूब की सन्तान \p \v 31 जब \it यहोवा ने देखा कि लिआ अप्रिय हुई\f + \fr 29.31 \fq यहोवा ने देखा कि लिआ अप्रिय हुई: \ft अप्रिय हुई परमेश्वर की आँखें दुखियारों पर लगी रहती है, वह उसको सन्तान देकर उसके पति के प्यार की कमी की भरपाई करता है; जबकि राहेल बाँझ थी।\f*\it*, तब उसने उसकी कोख खोली, पर राहेल बाँझ रही। \v 32 अतः लिआ गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, “यहोवा ने मेरे दुःख पर दृष्टि की है, अब मेरा पति मुझसे प्रीति रखेगा।” \v 33 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; तब उसने यह कहा, “यह सुनकर कि मैं अप्रिय हूँ यहोवा ने मुझे यह भी पुत्र दिया।” इसलिए उसने उसका नाम शिमोन रखा। \v 34 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, “अब की बार तो मेरा पति मुझसे मिल जाएगा, क्योंकि उससे मेरे तीन पुत्र उत्पन्न हुए।” इसलिए उसका नाम लेवी रखा गया। \v 35 और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, “अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूँगी।” इसलिए उसने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द हो गई। \bdit (मत्ती 1:2) \bdit* \c 30 \p \v 1 जब राहेल ने देखा कि याकूब के लिये मुझसे कोई सन्तान नहीं होती, तब वह अपनी बहन से डाह करने लगी और याकूब से कहा, “मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊँगी।” \v 2 तब याकूब ने राहेल से क्रोधित होकर कहा, “क्या मैं परमेश्वर हूँ? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है।” \v 3 राहेल ने कहा, “अच्छा, मेरी दासी बिल्हा हाजिर है; उसी के पास जा, वह मेरे घुटनों पर जनेगी, और उसके द्वारा मेरा भी घर बसेगा।” \v 4 तब उसने उसे अपनी दासी बिल्हा को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो; और याकूब उसके पास गया। \v 5 और बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब से उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 6 तब राहेल ने कहा, “परमेश्वर ने मेरा न्याय चुकाया और मेरी सुनकर मुझे एक पुत्र दिया।” इसलिए उसने उसका नाम दान रखा। \v 7 राहेल की दासी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब से एक पुत्र और उत्पन्न हुआ। \v 8 तब राहेल ने कहा, “मैंने अपनी बहन के साथ बड़े बल से लिपटकर मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई।” अतः उसने उसका नाम नप्ताली रखा। \p \v 9 जब लिआ ने देखा कि मैं जनने से रहित हो गई हूँ, तब उसने अपनी दासी जिल्पा को लेकर याकूब की पत्नी होने के लिये दे दिया। \v 10 और लिआ की दासी जिल्पा के भी याकूब से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 11 तब लिआ ने कहा, “अहो भाग्य!” इसलिए उसने उसका नाम गाद रखा। \v 12 फिर लिआ की दासी जिल्पा के याकूब से एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 13 तब लिआ ने कहा, “मैं धन्य हूँ; निश्चय स्त्रियाँ मुझे धन्य कहेंगी।” इसलिए उसने उसका नाम आशेर रखा। \p \v 14 गेहूँ की कटनी के दिनों में रूबेन को मैदान में \it दूदाफल\f + \fr 30.14 \fq दूदाफल: \ft दूदाफल को “प्रेम फल” भी कहा जाता है, यह स्वाद में मीठा और सुगन्ध देता है, और माना जाता है कि इसके खाने से यौन इच्छाएँ उत्तेजित होती है और महिलाओं को गर्भवती होने में मदद करता है।\f*\it* मिले, और वह उनको अपनी माता लिआ के पास ले गया, तब राहेल ने लिआ से कहा, “अपने पुत्र के दूदाफलों में से कुछ मुझे दे।” \v 15 उसने उससे कहा, “तूने जो मेरे पति को ले लिया है क्या छोटी बात है? अब क्या तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी लेना चाहती है?” राहेल ने कहा, “अच्छा, तेरे पुत्र के दूदाफलों के बदले वह आज रात को तेरे संग सोएगा।” \v 16 साँझ को जब याकूब मैदान से आ रहा था, तब लिआ उससे भेंट करने को निकली, और कहा, “तुझे मेरे ही पास आना होगा, क्योंकि मैंने अपने पुत्र के दूदाफल देकर तुझे सचमुच मोल लिया।” तब वह उस रात को उसी के संग सोया। \v 17 तब परमेश्वर ने लिआ की सुनी, और वह गर्भवती हुई और याकूब से उसके पाँचवाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 18 तब लिआ ने कहा, “मैंने जो अपने पति को अपनी दासी दी, इसलिए परमेश्वर ने मुझे मेरी मजदूरी दी है।” इसलिए उसने उसका नाम इस्साकार रखा। \v 19 लिआ फिर गर्भवती हुई और याकूब से उसके छठवाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। \v 20 तब लिआ ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे अच्छा दान दिया है; अब की बार मेरा पति मेरे संग बना रहेगा, क्योंकि मेरे उससे छः पुत्र उत्पन्न हो चुके हैं।” इसलिए उसने उसका नाम जबूलून रखा। \v 21 तत्पश्चात् उसके एक बेटी भी हुई, और उसने उसका नाम दीना रखा। \v 22 \it परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली\f + \fr 30.22 \fq परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली: \ft परमेश्वर ने राहेल की ऐसे समय में सुधि ली जो उसके लिए उचित था, जब उसने उसे निर्भर रहने और धैर्य रखने का पाठ पढ़ा दिया। \f*\it*, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली। \v 23 इसलिए वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; तब उसने कहा, “परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है।” \v 24 इसलिए उसने यह कहकर उसका नाम यूसुफ रखा, “परमेश्वर मुझे एक पुत्र और भी देगा।” \s याकूब का लाबान के साथ समझौता \p \v 25 जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, “मुझे विदा कर कि मैं अपने देश और स्थान को जाऊँ। \v 26 मेरी स्त्रियाँ और मेरे बच्चे, जिनके लिये मैंने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे कि मैं चला जाऊँ; तू तो जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की है।” \v 27 लाबान ने उससे कहा, “यदि तेरी दृष्टि में मैंने अनुग्रह पाया है, तो यहीं रह जा; क्योंकि मैंने अनुभव से जान लिया है कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है।” \v 28 फिर उसने कहा, “तू ठीक बता कि मैं तुझको क्या दूँ, और मैं उसे दूँगा।” \v 29 उसने उससे कहा, “तू जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे। \v 30 मेरे आने से पहले वे कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे आशीष दी है। पर मैं अपने घर का काम कब करने पाऊँगा?” \v 31 उसने फिर कहा, “मैं तुझे क्या दूँ?” याकूब ने कहा, “तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिये एक काम करे, तो मैं फिर तेरी भेड़-बकरियों को चराऊँगा, और उनकी रक्षा करूँगा। \v 32 मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियों के बीच होकर निकलूँगा, और जो भेड़ या बकरी चित्तीवाली या चितकबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चितकबरी और चित्तीवाली हो, उन्हें मैं अलग कर रखूँगा; और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी। \v 33 और जब आगे को मेरी मजदूरी की चर्चा तेरे सामने चले, तब धर्म की यही साक्षी होगी; अर्थात् बकरियों में से जो कोई न चित्तीवाली न चितकबरी हो, और भेड़ों में से जो कोई काली न हो, यदि मेरे पास निकलें, तो चोरी की ठहरेंगी।” \v 34 तब लाबान ने कहा, “तेरे कहने के अनुसार हो।” \v 35 अतः उसने उसी दिन सब धारीवाले और चितकबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चितकबरी बकरियों को, अर्थात् जिनमें कुछ उजलापन था, उनको और सब काली भेड़ों को भी अलग करके अपने पुत्रों के हाथ सौंप दिया। \v 36 और उसने अपने और याकूब के बीच में तीन दिन के मार्ग का अन्तर ठहराया; और याकूब लाबान की भेड़-बकरियों को चराने लगा। \p \v 37 तब याकूब ने चिनार, और बादाम, और अर्मोन वृक्षों की हरी-हरी छड़ियाँ लेकर, उनके छिलके कहीं-कहीं छील के, उन्हें धारीदार बना दिया, ऐसी कि उन छड़ियों की सफेदी दिखाई देने लगी। \v 38 और तब छीली हुई छड़ियों को भेड़-बकरियों के सामने उनके पानी पीने के कठौतों में खड़ा किया; और जब वे पानी पीने के लिये आई तब गाभिन हो गईं। \v 39 छड़ियों के सामने गाभिन होकर, भेड़-बकरियाँ धारीवाले, चित्तीवाले और चितकबरे बच्चे जनीं। \v 40 तब याकूब ने भेड़ों के बच्चों को अलग-अलग किया, और लाबान की भेड़-बकरियों के मुँह को चित्तीवाले और सब काले बच्चों की ओर कर दिया; और अपने झुण्डों को उनसे अलग रखा, और लाबान की भेड़-बकरियों से मिलने न दिया। \v 41 और जब जब बलवन्त भेड़-बकरियाँ गाभिन होती थीं, तब-तब याकूब उन छड़ियों को कठौतों में उनके सामने रख देता था; जिससे वे छड़ियों को देखती हुई गाभिन हो जाएँ। \v 42 पर जब निर्बल भेड़-बकरियाँ गाभिन होती थी, तब वह उन्हें उनके आगे नहीं रखता था। इससे निर्बल-निर्बल लाबान की रहीं, और बलवन्त-बलवन्त याकूब की हो गईं। \v 43 इस प्रकार वह पुरुष अत्यन्त धनाढ्य हो गया, और उसके बहुत सी भेड़-बकरियाँ, और दासियाँ और दास और ऊँट और गदहे हो गए। \c 31 \s याकूब का लाबान के पास से भागना \p \v 1 फिर \it लाबान के पुत्रों\f + \fr 31.1 \fq लाबान के पुत्रों: \ft परिस्थितियाँ ऐसी घटीं कि याकूब को अपनी पत्नियों को वहाँ से निकल जाने के लिए कहना पड़ा। उसकी धन-समृद्धि के कारण लाबान के पुत्र उसके बारे में बुरा कहने लगे और ईर्ष्या करने लगे। स्वयं लाबान भी दूर-दूर रहने लगा था।\f*\it* की ये बातें याकूब के सुनने में आईं, “याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है।” \v 2 और याकूब ने लाबान के चेहरे पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है। \v 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, “अपने पितरों के देश और अपनी जन्म-भूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूँगा।” \v 4 तब याकूब ने राहेल और लिआ को, मैदान में अपनी भेड़-बकरियों के पास बुलवाकर कहा, \v 5 “तुम्हारे पिता के चेहरे से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहले के समान अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है। \v 6 और तुम भी जानती हो, कि मैंने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है। \v 7 फिर भी तुम्हारे पिता ने मुझसे छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया। \v 8 जब उसने कहा, ‘चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे,’ तब सब भेड़-बकरियाँ चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उसने कहा, ‘धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे,’ तब सब भेड़-बकरियाँ धारीवाले जनने लगीं। \v 9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए। \v 10 भेड़-बकरियों के गाभिन होने के समय मैंने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं। \v 11 तब परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझसे कहा, ‘हे याकूब,’ मैंने कहा, ‘क्या आज्ञा।’ \v 12 उसने कहा, ‘आँखें उठाकर उन सब बकरों को जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, वह मैंने देखा है। \v 13 मैं उस बेतेल का परमेश्वर हूँ, जहाँ तूने एक खम्भे पर तेल डाल दिया था और मेरी मन्नत मानी थी। अब चल, इस देश से निकलकर अपनी जन्म-भूमि को लौट जा।’” \p \v 14 तब \it राहेल और लिआ\f + \fr 31.14 \fq राहेल और लिआ: \ft उसकी पत्नियाँ अपने पिता के स्वार्थपूर्ण रवैये पर अपने पति के विचारों से सहमत थीं, और वे उसके साथ वहाँ से चले जाने को तैयार हो गईं।\f*\it* ने उससे कहा, “क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग या अंश बचा है? \v 15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराए न ठहरीं? देख, उसने हमको तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है। \v 16 इसलिए परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, वह हमारा, और हमारे बच्चों का है; अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है, वही कर।” \p \v 17 तब याकूब ने अपने बच्चों और स्त्रियों को ऊँटों पर चढ़ाया; \v 18 और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढ्य हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया। \v 19 लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था, और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई। \v 20 अतः याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूँ। \v 21 वह अपना सब कुछ लेकर भागा, और महानद के पार उतरकर अपना मुँह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया। \s लाबान द्वारा याकूब का पीछा करना \p \v 22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला कि याकूब भाग गया है। \v 23 इसलिए उसने अपने भाइयों को साथ लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। \v 24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में अरामी लाबान के पास आकर कहा, “सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।” \v 25 और लाबान याकूब के पास पहुँच गया। याकूब अपना तम्बू गिलाद नामक पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था; और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया। \v 26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, “तूने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाई गई हों? \v 27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझसे बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता? \v 28 तूने तो मुझे अपने बेटे-बेटियों को चूमने तक न दिया? तूने मूर्खता की है। \v 29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझसे बीती हुई रात में कहा, ‘सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।’ \v 30 भला, अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?” \v 31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, “मैं यह सोचकर डर गया था कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझसे छीन न ले। \v 32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, वह जीवित न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, उसे भाई-बन्धुओं के सामने पहचानकर ले ले।” क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है। \p \v 33 यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ और दोनों दासियों के तम्बुओं में गया; और कुछ न मिला। तब लिआ के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया। \v 34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊँट की काठी में रखकर उन पर बैठी थी। लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया। \v 35 राहेल ने अपने पिता से कहा, “हे मेरे प्रभु; इससे अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे सामने नहीं उठी; क्योंकि मैं मासिक धर्म से हूँ।” अतः उसके ढूँढ़-ढाँढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले। \p \v 36 तब याकूब क्रोधित होकर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, “मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तूने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है? \v 37 तूने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, तो तुझको अपने घर की सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहाँ अपने और मेरे भाइयों के सामने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें। \v 38 इन बीस वर्षों से मैं तेरे पास रहा; इनमें न तो तेरी भेड़-बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ों का माँस मैंने कभी खाया। \v 39 जिसे जंगली जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि मैं ही उठाता था; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था। \v 40 मेरी तो यह दशा थी कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नींद मेरी आँखों से भाग जाती थी। \v 41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहा; चौदह वर्ष तो मैंने तेरी दोनों बेटियों के लिये, और छः वर्ष तेरी भेड़-बकरियों के लिये सेवा की; और तूने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला। \v 42 मेरे पिता का परमेश्वर अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे खाली हाथ जाने देता। मेरे दुःख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे डाँटा।” \s याकूब और लाबान के बीच समझौता \p \v 43 लाबान ने याकूब से कहा, “ये बेटियाँ तो मेरी ही हैं, और ये पुत्र भी मेरे ही हैं, और ये भेड़-बकरियाँ भी मेरे ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है वह सब मेरा ही है परन्तु अब मैं अपनी इन बेटियों और इनकी सन्तान से क्या कर सकता हूँ? \v 44 अब आ, मैं और तू दोनों आपस में वाचा बाँधें, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरी रहे।” \v 45 तब याकूब ने एक पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया। \v 46 तब याकूब ने अपने भाई-बन्धुओं से कहा, “पत्थर इकट्ठा करो,” यह सुनकर उन्होंने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया। \v 47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो जैगर सहादुथा, पर याकूब ने गिलियाद रखा। \v 48 लाबान ने कहा, “यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा।” इस कारण उसका नाम गिलियाद रखा गया, \v 49 और मिस्पा भी; क्योंकि उसने कहा, “जब हम एक दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देख-भाल करता रहे। \v 50 यदि तू मेरी बेटियों को दुःख दे, या उनके सिवाय और स्त्रियाँ ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा।” \v 51 फिर लाबान ने याकूब से कहा, “इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैंने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है। \v 52 यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लाँघकर तेरे पास जाऊँगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लाँघकर मेरे पास आएगा। \v 53 अब्राहम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, वही हम दोनों के बीच न्याय करे।” तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था। \v 54 और याकूब ने उस पहाड़ पर बलि चढ़ाया, और अपने भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, तब उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई। \v 55 भोर को लाबान उठा, और अपने बेटे-बेटियों को चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया। \c 32 \s एसाव से मिलने की याकूब की तैयारी \p \v 1 याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले। \v 2 उनको देखते ही याकूब ने कहा, “यह तो परमेश्वर का दल है।” इसलिए उसने उस स्थान का नाम महनैम रखा। \p \v 3 तब याकूब ने सेईर देश में, अर्थात् एदोम देश में, अपने भाई एसाव के पास अपने आगे दूत भेज दिए। \v 4 और उसने उन्हें यह आज्ञा दी, “मेरे प्रभु एसाव से यह कहना; कि \it तेरा दास\f + \fr 32.4 \fq तेरा दास: \ft पहले किए कार्यों क्षतिपूर्ति के लिए याकूब बड़ी दीनता और आदर के साथ अपने बड़े भाई से मिलता है, जहाँ वह अपने को “तेरा दास” और एसाव को “मेरे प्रभु” कहकर सम्बोधित करता है। वह उसे अपने सम्पत्ति के बारे में बताता है ताकि उसे पता चले कि वह उससे कुछ नहीं चाहता। \f*\it* याकूब तुझ से यह कहता है, कि मैं लाबान के यहाँ परदेशी होकर अब तक रहा; \v 5 और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियाँ, और दास-दासियाँ हैं और मैंने अपने प्रभु के पास इसलिए सन्देश भेजा है कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।” \p \v 6 वे दूत याकूब के पास लौटकर कहने लगे, “हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरुष संग लिये हुए चला आता है।” \v 7 तब याकूब बहुत डर गया, और संकट में पड़ा: और यह सोचकर, अपने साथियों के, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, और ऊँटों के भी अलग-अलग दो दल कर लिये, \v 8 कि यदि एसाव आकर पहले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भागकर बच जाएगा। \p \v 9 फिर याकूब ने कहा, “हे यहोवा, हे मेरे दादा अब्राहम के परमेश्वर, हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर, तूने तो मुझसे कहा था कि अपने देश और जन्म-भूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूँगा: \v 10 तूने जो-जो काम अपनी करुणा और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, कि मैं जो अपनी छड़ी ही लेकर इस यरदन नदी के पार उतर आया, और अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे-ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूँ। \v 11 मेरी विनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा मैं तो उससे डरता हूँ, कहीं ऐसा न हो कि वह आकर मुझे और माँ समेत लड़कों को भी मार डाले। \v 12 तूने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूँगा, और तेरे वंश को समुद्र के रेतकणों के समान बहुत करूँगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जा सकते।” \p \v 13 उसने उस दिन की रात वहीं बिताई; और जो कुछ उसके पास था उसमें से अपने भाई एसाव की भेंट के लिये छाँट छाँटकर निकाला; \v 14 अर्थात् दो सौ बकरियाँ, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े, \v 15 और बच्चों समेत दूध देनेवाली तीस ऊँटनियाँ, और चालीस गायें, और दस बैल, और बीस गदहियाँ और उनके दस बच्चे। \v 16 इनको उसने झुण्ड-झुण्ड करके, अपने दासों को सौंपकर उनसे कहा, “मेरे आगे बढ़ जाओ; और झुण्डों के बीच-बीच में अन्तर रखो।” \v 17 फिर उसने अगले झुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, “जब मेरा भाई एसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, ‘तू किसका दास है, और कहाँ जाता है, और ये जो तेरे आगे-आगे हैं, वे किसके हैं?’ \v 18 तब कहना, ‘यह तेरे दास याकूब के हैं। हे मेरे प्रभु एसाव, ये भेंट के लिये तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे-पीछे आ रहा है।’” \v 19 और उसने दूसरे और तीसरे रखवालों को भी, वरन् उन सभी को जो झुण्डों के पीछे-पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी कि जब एसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उससे कहना। \v 20 और यह भी कहना, “तेरा दास याकूब हमारे पीछे-पीछे आ रहा है।” क्योंकि उसने यह सोचा कि यह भेंट जो मेरे आगे-आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूँगा; हो सकता है वह मुझसे प्रसन्न हो जाए। \v 21 इसलिए वह भेंट याकूब से पहले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा। \s याकूब का मल्लयुद्ध \p \v 22 उसी रात को वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों दासियों, और ग्यारहों लड़कों को संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया। \v 23 उसने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया, वरन् अपना सब कुछ पार उतार दिया। \v 24 और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरुष आकर पौ फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा। \v 25 जब उसने देखा कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जाँघ की नस को छुआ; और याकूब की जाँघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई। \v 26 तब उसने कहा, “मुझे जाने दे, क्योंकि भोर होनेवाला है।” याकूब ने कहा, “जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूँगा।” \v 27 और उसने याकूब से पूछा, “\it तेरा नाम क्या है\f + \fr 32.27 \fq तेरा नाम क्या है: \ft उसने उसे पहले के स्वयं अर्थात् याकूब को स्मरण कराया, जो स्वयं पर निर्भर और स्वार्थी था। परन्तु अब वह अपाहिज है, दूसरे पर निर्भर है, और दूसरे से सब के लिए और अपने लिए आशीष माँग रहा है। \f*\it*?” उसने कहा, “याकूब।” \v 28 उसने कहा, “तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु \it इस्राएल\f + \fr 32.28 \fq इस्राएल: \ft अर्थात् ‘वह परमेश्वर के साथ लड़ा’\f*\it* होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है।” \v 29 याकूब ने कहा, “मैं विनती करता हूँ, मुझे अपना नाम बता।” उसने कहा, “तू मेरा नाम क्यों पूछता है?” तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया। \v 30 तब याकूब ने यह कहकर उस स्थान का नाम \it पनीएल\f + \fr 32.30 \fq पनीएल: \ft अर्थात् परमेश्वर का मुख। यह नाम दिए जाने का कारण इस पद में दिया हुआ है, “परमेश्वर को आमने-सामने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।”\f*\it* रखा; “परमेश्वर को आमने-सामने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।” \v 31 पनूएल के पास से चलते-चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जाँघ से लँगड़ाता था। \v 32 इस्राएली जो पशुओं की जाँघ की जोड़वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है कि उस पुरुष ने याकूब की जाँघ के जोड़ में जंघानस को छुआ था। \c 33 \s याकूब का एसाव से मिलना \p \v 1 और याकूब ने आँखें उठाकर यह देखा, कि एसाव चार सौ पुरुष संग लिये हुए चला आता है। तब उसने बच्चों को अलग-अलग बाँटकर लिआ और राहेल और दोनों दासियों को सौंप दिया। \v 2 और उसने सब के आगे लड़कों समेत दासियों को उसके पीछे लड़कों समेत लिआ को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, \v 3 और आप उन सब के आगे बढ़ा और सात बार \it भूमि पर गिरकर दण्डवत् की\f + \fr 33.3 \fq भूमि पर गिरकर दण्डवत् की: \ft पास आने पर याकूब ने गिरकर सात बार दण्डवत् किया, जो अपने बड़े भाई के प्रति उसके पूर्ण समर्पण का प्रतीक था। एक जंगल के शिकारी एसाव का हृदय इससे पिघल गया और वह उस पर अपने अपार स्नेह को प्रगट करता है, जिसे याकूब भी करता है। \f*\it*, और अपने भाई के पास पहुँचा। \v 4 तब एसाव उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा; फिर वे दोनों रो पड़े। \v 5 तब उसने आँखें उठाकर स्त्रियों और बच्चों को देखा; और पूछा, “ये जो तेरे साथ हैं वे कौन हैं?” उसने कहा, “ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है।” \v 6 तब लड़कों समेत दासियों ने निकट आकर दण्डवत् किया। \v 7 फिर लड़कों समेत लिआ निकट आई, और उन्होंने भी दण्डवत् किया; अन्त में यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् किया। \v 8 तब उसने पूछा, “तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है?” उसने कहा, “यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।” \v 9 एसाव ने कहा, “हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है वह तेरा ही रहे।” \v 10 याकूब ने कहा, “नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर: क्योंकि मैंने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझसे प्रसन्न हुआ है। \v 11 इसलिए यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर; क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है।” जब उसने उससे बहुत आग्रह किया, तब उसने भेंट को ग्रहण किया। \p \v 12 फिर एसाव ने कहा, “आ, हम बढ़ चलें: और मैं तेरे आगे-आगे चलूँगा।” \v 13 याकूब ने कहा, “हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियाँ और गायें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हाँके जाएँ, तो सब के सब मर जाएँगे। \v 14 इसलिए मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और बच्चों की गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुँचूँगा।” \v 15 एसाव ने कहा, “तो अपने साथियों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊँ।” उसने कहा, “यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।” \v 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। \v 17 परन्तु याकूब वहाँ से निकलकर \it सुक्कोत\f + \fr 33.17 \fq सुक्कोत: \ft जो यरदन के पूर्व और यब्बोक के दक्षिण में है।\f*\it* को गया, और वहाँ अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोंपड़े बनाए। इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा। \s याकूब का कनान आना \p \v 18 और याकूब जो पद्दनराम से आया था, उसने कनान देश के शेकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुँचकर नगर के सामने डेरे खड़े किए। \v 19 और भूमि के जिस खण्ड पर उसने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शेकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया। \bdit (यूह. 4:5, प्रेरि. 7:16) \bdit* \v 20 और वहाँ उसने एक वेदी बनाकर उसका नाम \it एल-एलोहे-इस्राएल\f + \fr 33.20 \fq एल-एलोहे-इस्राएल: \ft अर्थात् परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर शक्तिशाली है\f*\it* रखा। \c 34 \s दीना को भ्रष्ट किया जाना \p \v 1 एक दिन लिआ की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई थी, उस देश की लड़कियों से भेंट करने को निकली। \v 2 तब उस देश के प्रधान हिब्बी हमोर के पुत्र शेकेम ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साथ कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला। \v 3 तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उसने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उससे प्रेम करने लगा। \v 4 अतः शेकेम ने अपने पिता हमोर से कहा, “मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिये दिला दे।” \v 5 और याकूब ने सुना कि शेकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है, पर उसके पुत्र उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, इसलिए वह उनके आने तक चुप रहा। \v 6 तब शेकेम का पिता हमोर निकलकर याकूब से बातचीत करने के लिये उसके पास गया। \v 7 याकूब के पुत्र यह सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित होकर आए; क्योंकि शेकेम ने याकूब की बेटी के साथ कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया था, जिसका करना अनुचित था। \v 8 हमोर ने उन सबसे कहा, “मेरे पुत्र शेकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, इसलिए उसे उसकी पत्नी होने के लिये उसको दे दो। \v 9 और हमारे साथ ब्याह किया करो; अपनी बेटियाँ हमको दिया करो, और हमारी बेटियों को आप लिया करो। \v 10 और हमारे संग बसे रहो; और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इसमें रहकर लेन-देन करो, और इसकी भूमि को अपने लिये ले लो।” \v 11 और शेकेम ने भी दीना के पिता और भाइयों से कहा, “यदि मुझ पर तुम लोगों की अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझसे कहो, वह मैं दूँगा। \v 12 तुम मुझसे कितना ही मूल्य या बदला क्यों न माँगो, तो भी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूँगा; परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिये मुझे दो।” \p \v 13 तब यह सोचकर कि शेकेम ने हमारी बहन दीना को अशुद्ध किया है, \it याकूब के पुत्रों ने शेकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया\f + \fr 34.13 \fq याकूब के पुत्रों ने....छल के साथ यह उत्तर दिया: \ft जो “नहीं होना चाहिए था” और जिसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता उस अपराध की क्रोध-अग्नि से वे जल रहे थे। फिर भी वे परमशक्ति की उपस्थिति में हैं और इस कारण, वे छल का सहारा लेते हैं। \f*\it*, \v 14 “हम ऐसा काम नहीं कर सकते कि किसी खतनारहित पुरुष को अपनी बहन दें; क्योंकि इससे हमारी नामधराई होगी। \v 15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे कि हमारे समान तुम में से हर एक पुरुष का खतना किया जाए। \v 16 तब हम अपनी बेटियाँ तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियाँ ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएँगे। \v 17 पर यदि तुम हमारी बात न मानकर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेकर यहाँ से चले जाएँगे।” \p \v 18 उसकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शेकेम प्रसन्न हुए। \v 19 और वह जवान जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उसने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था। \v 20 इसलिए हमोर और उसका पुत्र शेकेम अपने नगर के फाटक के निकट जाकर नगरवासियों को यह समझाने लगे; \v 21 “वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; अतः उन्हें इस देश में रहकर लेन-देन करने दो; देखो, यह देश उनके लिये भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियों को ब्याह लें, और अपनी बेटियों को उन्हें दिया करें। \v 22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं कि उनके समान हमारे सब पुरुषों का भी खतना किया जाए। \v 23 क्या उनकी भेड़-बकरियाँ, और गाय-बैल वरन् उनके सारे पशु और धन-सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना ही करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे।” \v 24 इसलिए जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभी ने हमोर की और उसके पुत्र शेकेम की बात मानी; और हर एक पुरुष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे। \p \v 25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पड़े थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रों ने, जो दीना के भाई थे, अपनी-अपनी तलवार ले उस नगर में निधड़क घुसकर सब पुरुषों को घात किया। \v 26 हमोर और उसके पुत्र शेकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शेकेम के घर से निकाल ले गए। \v 27 याकूब के पुत्रों ने घात कर डालने पर भी चढ़कर नगर को इसलिए लूट लिया कि उसमें उनकी बहन अशुद्ध की गई थी। \v 28 उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन था ले लिया। \v 29 उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियों को भी हर ले गए, वरन् घर-घर में जो कुछ था, उसको भी उन्होंने लूट लिया। \v 30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, “तुम ने जो इस देश के निवासी कनानियों और परिज्जियों के मन में मेरे प्रति घृणा उत्पन्न कराई है, इससे \it तुम ने मुझे संकट में डाला है\f + \fr 34.30 \fq तुम ने मुझे संकट में डाला है: \ft याकूब के सब पुत्रों ने मिलकर नगर को लूट लिया था। उन्होंने उनके सब पशुओं और धन को ले लिया और उनकी पत्नियों और बाल-बच्चों को बन्दी बना लिया। याकूब इस हिंसात्मक कार्य से बहुत परेशान था, जो उसकी नीति और उसकी दयालुता के विपरीत था।\f*\it*, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े ही लोग हैं, इसलिए अब वे इकट्ठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, तो मैं अपने घराने समेत सत्यानाश हो जाऊँगा।” \v 31 उन्होंने कहा, “क्या वह हमारी बहन के साथ वेश्या के समान बर्ताव करे?” \c 35 \s याकूब का बेतेल वापस आना \p \v 1 तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, “यहाँ से निकलकर बेतेल को जा, और वहीं रह; और वहाँ परमेश्वर के लिये वेदी बना, जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपने भाई एसाव के डर से भागा जाता था।” \v 2 तब याकूब ने अपने घराने से, और उन सबसे भी जो उसके संग थे, कहा, “तुम्हारे बीच में जो \it पराए देवता\f + \fr 35.2 \fq पराए देवता: \ft जो पराए लोगों या परदेश के देवता थे। इनमें वे देवता भी थे जिन्हें राहेल ने छिपाकर रखे थे। \f*\it* हैं, उन्हें निकाल फेंको; और अपने-अपने को शुद्ध करो, और अपने वस्त्र बदल डालो; \v 3 और आओ, हम यहाँ से निकलकर बेतेल को जाएँ; वहाँ \it मैं परमेश्वर के लिये एक वेदी बनाऊँगा\f + \fr 35.3 \fq मैं परमेश्वर के लिये एक वेदी बनाऊँगा: \ft जब वह दुविधा में और संकट में था तो परमेश्वर उसकी सहायता के लिए आता है। वह उसे उस स्थान का स्मरण कराता है जहाँ वह पहले प्रगट हुआ था और उसे वहाँ एक वेदी बनाने का निर्देश देता है।\f*\it*, जिसने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता था, उसमें मेरे संग रहा।” \v 4 इसलिए जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानों में थे, उन सभी को उन्होंने याकूब को दिया; और उसने उनको उस बांज वृक्ष के नीचे, जो शेकेम के पास है, गाड़ दिया। \p \v 5 तब उन्होंने कूच किया; और उनके चारों ओर के नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने याकूब के पुत्रों का पीछा न किया। \v 6 याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है। \v 7 वहाँ उसने एक वेदी बनाई, और उस स्थान का नाम \it एलबेतेल\f + \fr 35.7 \fq एलबेतेल: \ft अर्थात् ‘बेतेल का परमेश्वर’\f*\it* रखा; क्योंकि जब वह अपने भाई के डर से भागा जाता था तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ था। \v 8 और रिबका की दूध पिलानेहारी दाई दबोरा मर गई, और बेतेल के बांज वृक्ष के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस बांज वृक्ष का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया। \p \v 9 फिर याकूब के पद्दनराम से आने के पश्चात् परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी। \v 10 और परमेश्वर ने उससे कहा, “अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, \it तू इस्राएल कहलाएगा\f + \fr 35.10 \fq तू इस्राएल कहलाएगा: \ft नया नाम दिया जाना समुचित रूप से आत्मिक जीवन के नए किए जाने को व्यक्त करता है।\f*\it*।” इस प्रकार उसने उसका नाम इस्राएल रखा। \v 11 फिर परमेश्वर ने उससे कहा, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। तू फूले-फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन् जातियों की एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। \v 12 और जो देश मैंने अब्राहम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूँ, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूँगा।” \v 13 तब परमेश्वर उस स्थान में, जहाँ उसने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया। \v 14 और जिस स्थान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहाँ याकूब ने पत्थर का एक खम्भा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया। \v 15 जहाँ परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्थान का नाम उसने बेतेल रखा। \s राहेल की मृत्यु \p \v 16 फिर उन्होंने बेतेल से कूच किया; और एप्राता थोड़ी ही दूर रह गया था कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा उठने लगी। \v 17 जब उसको बड़ी-बड़ी पीड़ा उठती थी तब दाई ने उससे कहा, “मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा।” \v 18 तब ऐसा हुआ कि वह मर गई, और प्राण निकलते-निकलते उसने उस बेटे का नाम बेनोनी रखा; पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा। \v 19 और राहेल मर गई, और एप्राता, अर्थात् बैतलहम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई। \v 20 और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वह खम्भा आज तक बना है। \v 21 फिर इस्राएल ने कूच किया, और \it एदेर\f + \fr 35.21 \fq एदेर: \ft झुण्ड का गुम्मट सम्भवतः रखवाली के लिए एक मीनार थी जहाँ से चरवाहे रात को अपने झुण्ड की चौकसी करते होंगे। यह बैतलहम के दक्षिण से एक या अधिक मील की दूरी पर था।\f*\it* नामक गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया। \s याकूब के पुत्र \p \v 22 जब इस्राएल उस देश में बसा था, तब एक दिन ऐसा हुआ कि रूबेन ने जाकर अपने पिता की रखैली बिल्हा के साथ कुकर्म किया; और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई। याकूब के बारह पुत्र हुए। \v 23 उनमें से लिआ के पुत्र ये थे; अर्थात् याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून। \v 24 और राहेल के पुत्र ये थे; अर्थात् यूसुफ, और बिन्यामीन। \v 25 और राहेल की दासी बिल्हा के पुत्र ये थे; अर्थात् दान, और नप्ताली। \v 26 और लिआ की दासी जिल्पा के पुत्र ये थे: अर्थात् गाद, और आशेर। याकूब के ये ही पुत्र हुए, जो उससे पद्दनराम में उत्पन्न हुए। \s इसहाक की मृत्यु \p \v 27 और याकूब मम्रे में, जो किर्यतअर्बा, अर्थात् हेब्रोन है, जहाँ अब्राहम और इसहाक परदेशी होकर रहे थे, अपने पिता इसहाक के पास आया। \bdit (इब्रा. 11:9) \bdit* \v 28 इसहाक की आयु एक सौ अस्सी वर्ष की हुई। \v 29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का होकर अपने लोगों में जा मिला; और उसके पुत्र एसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी। \c 36 \s एसाव की वंशावली \p \v 1 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसकी यह वंशावली है। \v 2 एसाव ने तो कनानी लड़कियाँ ब्याह लीं; अर्थात् हित्ती एलोन की बेटी आदा को, और ओहोलीबामा को जो अना की बेटी, और हिब्बी सिबोन की नातिन थी। \v 3 फिर उसने इश्माएल की बेटी बासमत को भी, जो नबायोत की बहन थी, ब्याह लिया। \v 4 आदा ने तो एसाव के द्वारा एलीपज को, और बासमत ने रूएल को जन्म दिया। \v 5 और ओहोलीबामा ने यूश, और यालाम, और कोरह को उत्पन्न किया, एसाव के ये ही पुत्र कनान देश में उत्पन्न हुए। \p \v 6 एसाव अपनी पत्नियों, और बेटे-बेटियों, और घर के सब प्राणियों, और अपनी भेड़-बकरी, और गाय-बैल आदि सब पशुओं, निदान अपनी सारी सम्पत्ति को, जो उसने कनान देश में संचय किया था, लेकर अपने भाई याकूब के पास से दूसरे देश को चला गया। \v 7 क्योंकि \it उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई थी\f + \fr 36.7 \fq उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई थी: \ft इसहाक ने एसाव को पर्याप्त मात्रा में पशु और सम्पत्ति दी थी ताकि वह अलग से जीवन निर्वाह कर सके। एसाव का भाग और वह जो इसहाक ने याकूब के लिए रख छोड़ा था इतना अधिक हो गया कि चरागाह के लिए दूसरा स्थान देखना पड़ा।\f*\it*, कि वे इकट्ठे न रह सके; और पशुओं की बहुतायत के कारण उस देश में, जहाँ वे परदेशी होकर रहते थे, वे समा न सके। \v 8 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, सेईर नामक पहाड़ी देश में रहने लगा। \v 9 सेईर नामक पहाड़ी देश में रहनेवाले एदोमियों के मूलपुरुष एसाव की वंशावली यह है \v 10 एसाव के पुत्रों के नाम ये हैं; अर्थात् एसाव की पत्नी आदा का पुत्र एलीपज, और उसी एसाव की पत्नी बासमत का पुत्र रूएल। \v 11 और एलीपज के ये पुत्र हुए; अर्थात् तेमान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज। \v 12 एसाव के पुत्र एलीपज के तिम्ना नामक एक रखैल थी, जिसने एलीपज के द्वारा अमालेक को जन्म दिया: एसाव की पत्नी आदा के वंश में ये ही हुए। \v 13 रूएल के ये पुत्र हुए; अर्थात् नहत, जेरह, शम्मा, और मिज्जा एसाव की पत्नी बासमत के वंश में ये ही हुए। \v 14 ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी, और सिबोन की नातिन और अना की बेटी थी, उसके ये पुत्र हुए: अर्थात् उसने एसाव के द्वारा यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। \s एदोम के अधिपति \p \v 15 एसाववंशियों के अधिपति ये हुए: अर्थात् एसाव के जेठे एलीपज के वंश में से तेमान अधिपति, ओमार अधिपति, सपो अधिपति, कनज अधिपति, \v 16 कोरह अधिपति, गाताम अधिपति, अमालेक अधिपति एलीपज वंशियों में से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए: और ये ही आदा के वंश में हुए। \v 17 एसाव के पुत्र रूएल के वंश में ये हुए; अर्थात् नहत अधिपति, जेरह अधिपति, शम्मा अधिपति, मिज्जा अधिपति रूएलवंशियों में से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए; और ये ही एसाव की पत्नी बासमत के वंश में हुए। \v 18 एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के वंश में ये हुए; अर्थात् यूश अधिपति, यालाम अधिपति, कोरह अधिपति, अना की बेटी ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी थी उसके वंश में ये ही हुए। \v 19 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसके वंश ये ही हैं, और उनके अधिपति भी ये ही हुए। \s सेईर की वंशावली \p \v 20 सेईर जो होरी नामक जाति का था, उसके ये पुत्र उस देश में पहले से रहते थे; अर्थात् लोतान, शोबाल, सिबोन, अना, \v 21 दीशोन, एसेर, और दीशान: एदोम देश में सेईर के ये ही होरी जातिवाले अधिपति हुए। \v 22 लोतान के पुत्र, होरी, और हेमाम हुए; और लोतान की बहन तिम्ना थी। \v 23 शोबाल के ये पुत्र हुए: अर्थात् आल्वान, मानहत, एबाल, शपो, और ओनाम। \v 24 और सीदोन के ये पुत्र हुए: अय्या, और अना; यह वही अना है जिसको जंगल में अपने पिता सिबोन के गदहों को चराते-चराते गरम पानी के झरने मिले। \v 25 और अना के दीशोन नामक पुत्र हुआ, और उसी अना के ओहोलीबामा नामक बेटी हुई। \v 26 दीशोन के ये पुत्र हुए: हेमदान, एशबान, यित्रान, और करान। \v 27 एसेर के ये पुत्र हुए: बिल्हान, जावान, और अकान। \v 28 दीशान के ये पुत्र हुए: ऊस, और अरान। \v 29 होरियों के अधिपति ये हुए: लोतान अधिपति, शोबाल अधिपति, सिबोन अधिपति, अना अधिपति, \v 30 दीशोन अधिपति, एसेर अधिपति, दीशान अधिपति; सेईर देश में होरी जातिवाले ये ही अधिपति हुए। \s एदोम के राजा \p \v 31 फिर जब इस्राएलियों पर किसी राजा ने राज्य न किया था, तब भी एदोम के देश में ये राजा हुए; \v 32 बोर के पुत्र बेला ने एदोम में राज्य किया, और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा है। \v 33 बेला के मरने पर, बोस्रानिवासी जेरह का पुत्र योबाब उसके स्थान पर राजा हुआ। \v 34 योबाब के मरने पर, तेमानियों के देश का निवासी हूशाम उसके स्थान पर राजा हुआ। \v 35 फिर हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्र हदद उसके स्थान पर राजा हुआ यह वही है जिसने मिद्यानियों को मोआब के देश में मार लिया, और उसकी राजधानी का नाम अबीत है। \v 36 हदद के मरने पर, मस्रेकावासी सम्ला उसके स्थान पर राजा हुआ। \v 37 फिर सम्ला के मरने पर, शाऊल जो महानद के तटवाले रहोबोत नगर का था, वह उसके स्थान पर राजा हुआ। \v 38 शाऊल के मरने पर, अकबोर का पुत्र बाल्हानान उसके स्थान पर राजा हुआ। \v 39 अकबोर के पुत्र बाल्हानान के मरने पर, हदर उसके स्थान पर राजा हुआ और उसकी राजधानी का नाम पाऊ है; और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल है, जो मेज़ाहाब की नातिन और मत्रेद की बेटी थी। \p \v 40 फिर एसाववंशियों के अधिपतियों के कुलों, और स्थानों के अनुसार उनके नाम ये हैं तिम्ना अधिपति, अल्वा अधिपति, यतेत अधिपति, \v 41 ओहोलीबामा अधिपति, एला अधिपति, पीनोन अधिपति, \v 42 कनज अधिपति, तेमान अधिपति, मिबसार अधिपति, \v 43 मग्दीएल अधिपति, ईराम अधिपति एदोमवंशियों ने जो देश अपना कर लिया था, उसके निवास-स्थानों में उनके ये ही अधिपति हुए; और एदोमी जाति का मूलपुरुष एसाव है। \c 37 \s यूसुफ और उसके भाई \p \v 1 याकूब तो कनान देश में रहता था, जहाँ उसका पिता परदेशी होकर रहा था। \v 2 और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है: यूसुफ सत्रह वर्ष का होकर अपने भाइयों के संग भेड़-बकरियों को चराता था; और वह लड़का अपने पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रों के संग रहा करता था; और उनकी बुराइयों का समाचार अपने पिता के पास पहुँचाया करता था। \v 3 और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़कर यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था: और उसने उसके लिये रंग-बिरंगा अंगरखा बनवाया। \v 4 परन्तु जब उसके भाइयों ने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उससे बैर करने लगे और उसके साथ ठीक से बात भी नहीं करते थे। \s यूसुफ का स्वप्न \p \v 5 \it यूसुफ ने एक स्वप्न देखा\f + \fr 37.5 \fq यूसुफ ने एक स्वप्न देखा: \ft यूसुफ के सपनों ने उसके भाइयों के मन में द्वेष को उत्पन्न कर दिया। अपने स्वप्नों के विषय में अपने भाइयों को स्पष्ट रूप से बताना, उसकी निष्छल आत्मा को दर्शाती है। \f*\it*, और अपने भाइयों से उसका वर्णन किया; तब वे उससे और भी द्वेष करने लगे। \v 6 उसने उनसे कहा, “जो स्वप्न मैंने देखा है, उसे सुनो \v 7 हम लोग खेत में पूले बाँध रहे हैं, और क्या देखता हूँ कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत् किया।” \v 8 तब उसके भाइयों ने उससे कहा, “क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा? या क्या सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा?” इसलिए वे उसके स्वप्नों और उसकी बातों के कारण उससे और भी अधिक बैर करने लगे। \v 9 फिर उसने एक और स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका भी यह वर्णन किया, “सुनो, मैंने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत् कर रहे हैं।” \v 10 यह स्वप्न का उसने अपने पिता, और भाइयों से वर्णन किया; तब उसके पिता ने उसको डाँटकर कहा, “यह कैसा स्वप्न है जो तूने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जाकर तेरे आगे भूमि पर गिरकर दण्डवत् करेंगे?” \v 11 उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा। \p \v 12 उसके भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराने के लिये शेकेम को गए। \v 13 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “तेरे भाई तो शेकेम ही में भेड़-बकरी चरा रहे होंगे, इसलिए जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूँ।” उसने उससे कहा, “जो आज्ञा मैं हाजिर हूँ।” \v 14 उसने उससे कहा, “जा, अपने भाइयों और भेड़-बकरियों का हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ।” अतः उसने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शेकेम में आया। \v 15 और किसी मनुष्य ने उसको मैदान में इधर-उधर भटकते हुए पाकर उससे पूछा, “तू क्या ढूँढ़ता है?” \v 16 उसने कहा, “मैं तो अपने भाइयों को ढूँढ़ता हूँ कृपा कर मुझे बता कि वे भेड़-बकरियों को कहाँ चरा रहे हैं?” \v 17 उस मनुष्य ने कहा, “वे तो यहाँ से चले गए हैं; और मैंने उनको यह कहते सुना, ‘आओ, हम दोतान को चलें।’” इसलिए यूसुफ अपने भाइयों के पीछे चला, और उन्हें दोतान में पाया। \s यूसुफ का दासत्व के लिये बेचा जाना \p \v 18 जैसे ही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहले ही उसे मार डालने की युक्ति की। \v 19 और वे आपस में कहने लगे, “देखो, वह स्वप्न देखनेवाला आ रहा है। \v 20 इसलिए आओ, हम उसको घात करके किसी गड्ढे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई जंगली पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा।” \v 21 यह सुनकर रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, “हम उसको प्राण से तो न मारें।” \v 22 फिर रूबेन ने उनसे कहा, “लहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड्ढे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ।” वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुँचाना चाहता था। \v 23 इसलिए ऐसा हुआ कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुँचा तब उन्होंने उसका रंग-बिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहने हुए था, उतार लिया। \v 24 और यूसुफ को उठाकर गड्ढे में डाल दिया। वह गड्ढा सूखा था और उसमें कुछ जल न था। \p \v 25 तब वे रोटी खाने को बैठ गए; और आँखें उठाकर क्या देखा कि इश्माएलियों का एक दल ऊँटों पर सुगन्ध-द्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। \v 26 तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, “अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा? \v 27 आओ, हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाए, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी ही हड्डी और माँस है।” और उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। \v 28 तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुँचे। अतः यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड्ढे में से खींचकर बाहर निकाला, और इश्माएलियों के हाथ चाँदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया; और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए। \bdit (प्रेरि. 7:9) \bdit* \v 29 रूबेन ने गड्ढे पर लौटकर क्या देखा कि यूसुफ गड्ढे में नहीं है; इसलिए उसने अपने वस्त्र फाड़े, \v 30 और अपने भाइयों के पास लौटकर कहने लगा, “लड़का तो नहीं है; अब मैं किधर जाऊँ?” \v 31 तब उन्होंने \it यूसुफ का अंगरखा\f + \fr 37.31 \fq यूसुफ का अंगरखा: \ft उसके भाई अपना अपराध छिपाने की युक्ति बनाने लगे; और यूसुफ को मिस्र में बेच दिया। “यूसुफ फाड़ डाला गया” उस खून से सने अंगरखे को देखकर याकूब को तुरन्त निश्चय हो गया कि यूसुफ को कोई जंगली जानवर खा गया है।\f*\it* लिया, और एक बकरे को मारकर उसके लहू में उसे डुबा दिया। \v 32 और उन्होंने उस रंगबिरंगे अंगरखे को अपने पिता के पास भेजकर यह सन्देश दिया; “यह हमको मिला है, अतः देखकर पहचान ले कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं।” \v 33 उसने उसको पहचान लिया, और कहा, “हाँ यह मेरे ही पुत्र का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; निःसन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है।” \v 34 तब याकूब ने अपने वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपने पुत्र के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा। \v 35 और उसके सब बेटे-बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, “मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊँगा।” इस प्रकार उसका पिता उसके लिये रोता ही रहा। \v 36 इस बीच मिद्यानियों ने यूसुफ को मिस्र में ले जाकर पोतीपर नामक, फ़िरौन के एक हाकिम, और अंगरक्षकों के प्रधान, के हाथ बेच डाला। \c 38 \s यहूदा और तामार \p \v 1 उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ कि यहूदा अपने भाइयों के पास से चला गया, और हीरा नामक एक अदुल्लामवासी पुरुष के पास डेरा किया। \v 2 वहाँ यहूदा ने शूआ नामक एक कनानी पुरुष की बेटी को देखा; और उससे विवाह करके उसके पास गया। \v 3 वह गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यहूदा ने उसका नाम एर रखा। \v 4 और वह फिर गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र और उत्पन्न हुआ; और उसका नाम ओनान रखा गया। \v 5 फिर उसके एक पुत्र और उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शेला रखा गया; और जिस समय इसका जन्म हुआ उस समय यहूदा कजीब में रहता था। \v 6 और यहूदा ने तामार नामक एक स्त्री से अपने जेठे एर का विवाह कर दिया। \v 7 परन्तु यहूदा का वह जेठा एर यहोवा के लेखे में दुष्ट था, इसलिए यहोवा ने उसको मार डाला। \v 8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, “अपनी भौजाई के पास जा, और उसके साथ देवर का धर्म पूरा करके अपने भाई के लिये सन्तान उत्पन्न कर।” \v 9 ओनान तो जानता था कि सन्तान मेरी न ठहरेगी; इसलिए ऐसा हुआ कि जब वह अपनी भौजाई के पास गया, तब उसने भूमि पर वीर्य गिराकर नाश किया, जिससे ऐसा न हो कि उसके भाई के नाम से वंश चले। \v 10 यह काम जो उसने किया उससे यहोवा अप्रसन्न हुआ और उसने उसको भी मार डाला। \v 11 तब यहूदा ने इस डर के मारे कि कहीं ऐसा न हो कि अपने भाइयों के समान शेला भी मरे, अपनी बहू तामार से कहा, “जब तक मेरा पुत्र शेला सयाना न हो जाए तब तक अपने पिता के घर में विधवा ही बैठी रह।” इसलिए तामार अपने पिता के घर में जाकर रहने लगी। \p \v 12 बहुत समय के बीतने पर यहूदा की पत्नी जो शूआ की बेटी थी, वह मर गई; फिर यहूदा शोक के दिन बीतने पर अपने मित्र हीरा अदुल्लामवासी समेत अपनी भेड़-बकरियों का ऊन कतरनेवालों के पास तिम्नाह को गया। \v 13 और तामार को यह समाचार मिला, “तेरा ससुर अपनी भेड़-बकरियों का ऊन कतराने के लिये तिम्नाह को जा रहा है।” \v 14 तब उसने यह सोचकर कि शेला सयाना तो हो गया पर मैं उसकी स्त्री नहीं होने पाई; अपना विधवापन का पहरावा उतारा और घूँघट डालकर अपने को ढाँप लिया, और एनैम नगर के फाटक के पास, जो तिम्नाह के मार्ग में है, जा बैठी। \v 15 जब यहूदा ने उसको देखा, उसने उसको वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुँह ढाँपे हुए थी। \v 16 वह मार्ग से उसकी ओर फिरा, और उससे कहने लगा, “मुझे अपने पास आने दे,” (क्योंकि उसे यह मालूम न था कि वह उसकी बहू है।) और वह कहने लगी, “यदि मैं तुझे अपने पास आने दूँ, तो तू मुझे क्या देगा?” \v 17 उसने कहा, “मैं अपनी बकरियों में से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूँगा।” तब उसने कहा, “भला उसके भेजने तक क्या तू हमारे पास कुछ रेहन रख जाएगा?” \v 18 उसने पूछा, “मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊँ?” उसने कहा, “अपनी मुहर, और बाजूबन्द, और अपने हाथ की छड़ी।” तब उसने उसको वे वस्तुएँ दे दीं, और उसके पास गया, और वह उससे गर्भवती हुई। \v 19 तब वह उठकर चली गई, और अपना घूँघट उतारकर अपना विधवापन का पहरावा फिर पहन लिया। \p \v 20 तब यहूदा ने बकरी का बच्चा अपने मित्र उस अदुल्लामवासी के हाथ भेज दिया कि वह रेहन रखी हुई वस्तुएँ उस स्त्री के हाथ से छुड़ा ले आए; पर वह स्त्री उसको न मिली। \v 21 तब उसने वहाँ के लोगों से पूछा, “वह देवदासी जो एनैम में मार्ग की एक ओर बैठी थी, कहाँ है?” उन्होंने कहा, “यहाँ तो कोई देवदासी न थी।” \v 22 इसलिए उसने यहूदा के पास लौटकर कहा, “मुझे वह नहीं मिली; और उस स्थान के लोगों ने कहा, ‘यहाँ तो कोई देवदासी न थी।’” \v 23 तब यहूदा ने कहा, “अच्छा, वह बन्धक उसी के पास रहने दे, नहीं तो हम लोग तुच्छ गिने जाएँगे; देख, मैंने बकरी का यह बच्चा भेज दिया था, पर वह तुझे नहीं मिली।” \p \v 24 लगभग तीन महीने के बाद यहूदा को यह समाचार मिला, “तेरी बहू तामार ने व्यभिचार किया है; वरन् वह व्यभिचार से गर्भवती भी हो गई है।” तब यहूदा ने कहा, “उसको बाहर ले आओ कि वह जलाई जाए।” \v 25 जब उसे बाहर निकाला जा रहा था, तब उसने, अपने ससुर के पास यह कहला भेजा, “जिस पुरुष की ये वस्तुएँ हैं, उसी से मैं गर्भवती हूँ,” फिर उसने यह भी कहलाया, “पहचान तो सही कि यह मुहर, और बाजूबन्द, और छड़ी किसकी हैं।” \v 26 यहूदा ने उन्हें पहचानकर कहा, “\it वह तो मुझसे कम दोषी है\f + \fr 38.26 \fq वह तो मुझसे कम दोषी है: \ft इस विषय में तामार यहूदा की तुलना में कम दोषी थी। क्योंकि यहूदा ने वासना में बहकर व्यभिचार किया था और उसके द्वारा अपने पुत्र शेला से तामार का विवाह नहीं कराने के कारण तामार ने ऐसा किया था। \f*\it*; क्योंकि मैंने उसका अपने पुत्र शेला से विवाह न किया।” और उसने उससे फिर कभी प्रसंग न किया। \p \v 27 जब उसके जनने का समय आया, तब यह जान पड़ा कि उसके गर्भ में जुड़वे बच्चे हैं। \v 28 और जब वह जनने लगी तब एक बालक का हाथ बाहर आया, और दाई ने लाल सूत लेकर उसके हाथ में यह कहते हुए बाँध दिया, “पहले यही उत्पन्न हुआ।” \v 29 जब उसने हाथ समेट लिया, तब उसका भाई उत्पन्न हो गया। तब उस दाई ने कहा, “तू क्यों बरबस निकल आया है?” इसलिए उसका नाम पेरेस रखा गया। \v 30 पीछे उसका भाई जिसके हाथ में लाल सूत बन्धा था उत्पन्न हुआ, और उसका नाम जेरह रखा गया। \c 39 \s पोतीपर के घर यूसुफ \p \v 1 जब यूसुफ मिस्र में पहुँचाया गया, तब पोतीपर नामक एक मिस्री ने, जो फ़िरौन का हाकिम, और अंगरक्षकों का प्रधान था, उसको इश्माएलियों के हाथ से जो उसे वहाँ ले गए थे, मोल लिया। \v 2 यूसुफ अपने मिस्री स्वामी के घर में रहता था, और \it यहोवा उसके संग था; इसलिए वह सफल पुरुष हो गया\f + \fr 39.2 \fq यहोवा उसके संग था; इसलिए वह सफल पुरुष हो गया: \ft यूसुफ घरेलू नौकर था। “और उसके स्वामी ने देखा।” वह सफलता जो यूसुफ के कार्यों में प्रगट होती थी इतनी प्रभावशाली थीं कि दर्शाती थी कि परमेश्वर यहोवा उसके साथ है। \f*\it*। \bdit (प्रेरि. 7:9) \bdit* \v 3 और यूसुफ के स्वामी ने देखा, कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है। \bdit (प्रेरि. 7:9) \bdit* \v 4 तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई, और वह उसकी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया गया; फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बनाकर अपना सब कुछ उसके हाथ में सौंप दिया। \v 5 जब से उसने उसको अपने घर का और अपनी सारी सम्पत्ति का अधिकारी बनाया, तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में, क्या मैदान में, उसका जो कुछ था, सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। \v 6 इसलिए उसने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहाँ तक छोड़ दिया कि अपने खाने की रोटी को छोड़, वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। \p यूसुफ सुन्दर और रूपवान था। \v 7 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ, कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आँख लगाई और कहा, “मेरे साथ सो।” \v 8 पर उसने अस्वीकार करते हुए अपने स्वामी की पत्नी से कहा, “सुन, जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता, और उसने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौंप दिया है। \v 9 इस घर में मुझसे बड़ा कोई नहीं; और उसने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझसे कुछ नहीं रख छोड़ा; इसलिए भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्यों बनूँ?” \v 10 और ऐसा हुआ कि वह प्रतिदिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उसने उसकी न मानी कि उसके पास लेटे या उसके संग रहे। \v 11 एक दिन क्या हुआ कि यूसुफ अपना काम-काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था। \v 12 तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, “मेरे साथ सो,” पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। \v 13 यह देखकर कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, \v 14 उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, “देखो, वह एक \it इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है\f + \fr 39.14 \fq इब्री मनुष्य को....हमारे पास ले आया है: \ft उसकी निराशा ने अब उसे झूठ बोलने पर मजबूर किया जिससे वह अपने कार्य छिपा सके और बदला ले सके। \f*\it*। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था और मैं ऊँचे स्वर से चिल्ला उठी। \v 15 और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।” \v 16 और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही। \v 17 तब उसने उससे इस प्रकार की बातें कहीं, “वह इब्री दास जिसको तू हमारे पास ले आया है, वह मुझसे हँसी करने के लिये मेरे पास आया था; \v 18 और जब मैं ऊँचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया।” \v 19 अपनी पत्नी की ये बातें सुनकर कि तेरे दास ने मुझसे ऐसा-ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। \s यूसुफ का बन्दीगृह में डाला जाना \p \v 20 और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहाँ राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया; अतः वह उस बन्दीगृह में रहा। \v 21 पर यहोवा यूसुफ के संग-संग रहा, और उस पर करुणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। \v 22 इसलिए बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्दियों को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौंप दिया; और जो-जो काम वे वहाँ करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता था। \v 23 यूसुफ के वश में जो कुछ था उसमें से बन्दीगृह के दरोगा को कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती थी; क्योंकि \it यहोवा यूसुफ के साथ था; और जो कुछ वह करता था, यहोवा उसको उसमें सफलता देता था\f + \fr 39.23 \fq यहोवा यूसुफ के साथ था .... सफलता देता था: \ft यहोवा ने उसे बन्दी अवस्था में नहीं त्यागा। उसने उसे जेल के दरोगा की कृपादृष्टि दी। उस दरोगा ने उस पर वही भरोसा किया जो उसके पहले स्वामी ने उस पर किया था।\f*\it*। \c 40 \s यूसुफ द्वारा स्वप्नों की व्याख्या \p \v 1 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ, कि मिस्र के राजा के पिलानेहारे और पकानेहारे ने अपने स्वामी के विरुद्ध कुछ अपराध किया। \v 2 तब फ़िरौन ने अपने उन दोनों हाकिमों, अर्थात् पिलानेहारों के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान पर क्रोधित होकर \v 3 उन्हें कैद कराके, अंगरक्षकों के प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहाँ यूसुफ बन्दी था, डलवा दिया। \v 4 तब अंगरक्षकों के प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौंपा, और वह उनकी सेवा-टहल करने लगा; अतः वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे। \v 5 मिस्र के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा, जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनों ने एक ही रात में, अपने-अपने \it होनहार के अनुसार, स्वप्न देखा\f + \fr 40.5 \fq होनहार के अनुसार, स्वप्न देखा: \ft इन बन्दियों के स्वप्न, “अपने भविष्य में होनेवाली घटना के अनुसार” भविष्य में होनेवाली स्थिति के बारे में बताते थे।\f*\it*। \v 6 सवेरे जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर उसने जो दृष्टि की, तो क्या देखता है, कि वे उदास हैं। \v 7 इसलिए उसने फ़िरौन के उन हाकिमों से, जो उसके साथ उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, “आज तुम्हारे मुँह क्यों उदास हैं?” \v 8 उन्होंने उससे कहा, “हम दोनों ने स्वप्न देखा है, और उनके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं।” यूसुफ ने उनसे कहा, “क्या स्वप्नों का फल कहना परमेश्वर का काम नहीं है? मुझे अपना-अपना स्वप्न बताओ।” \p \v 9 तब पिलानेहारों का प्रधान अपना स्वप्न यूसुफ को यह बताने लगा: “मैंने स्वप्न में देखा, कि मेरे सामने एक दाखलता है; \v 10 और उस दाखलता में तीन डालियाँ हैं; और उसमें मानो कलियाँ लगीं हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छों में दाख लगकर पक गई। \v 11 और फ़िरौन का कटोरा मेरे हाथ में था; और मैंने उन दाखों को लेकर फ़िरौन के कटोरे में निचोड़ा और कटोरे को फ़िरौन के हाथ में दिया।” \v 12 यूसुफ ने उससे कहा, “इसका फल यह है: तीन डालियों का अर्थ तीन दिन हैं \v 13 इसलिए अब से तीन दिन के भीतर फ़िरौन तेरा सिर ऊँचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले के समान फ़िरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा। \v 14 अतः जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके फ़िरौन से मेरी चर्चा चलाना, और इस घर से मुझे छुड़वा देना। \v 15 क्योंकि सचमुच इब्रानियों के देश से मुझे चुराकर लाया गया हैं, और यहाँ भी मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊँ।” \p \v 16 यह देखकर कि उसके स्वप्न का फल अच्छा निकला, पकानेहारों के प्रधान ने यूसुफ से कहा, “मैंने भी स्वप्न देखा है, वह यह है: मैंने देखा कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियाँ है \v 17 और ऊपर की टोकरी में फ़िरौन के लिये सब प्रकार की पकी पकाई वस्तुएँ हैं; और पक्षी मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं।” \v 18 यूसुफ ने कहा, “इसका फल यह है: तीन टोकरियों का अर्थ तीन दिन है। \v 19 अब से तीन दिन के भीतर फ़िरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृक्ष पर टंगवा देगा, और पक्षी तेरे माँस को नोच-नोच कर खाएँगे।” \p \v 20 और तीसरे दिन फ़िरौन का जन्मदिन था, उसने अपने सब कर्मचारियों को भोज दिया, और उनमें से पिलानेहारों के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान दोनों को बन्दीगृह से निकलवाया। \v 21 पिलानेहारों के प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फ़िरौन के हाथ में कटोरा देने लगा। \v 22 पर पकानेहारों के प्रधान को उसने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वप्नों का फल उनसे कहा था। \v 23 फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण न रखा; परन्तु \it उसे भूल गया\f + \fr 40.23 \fq उसे भूल गया: \ft पिलानेहारे ने यूसुफ को स्मरण नहीं रखा। इस संसार में ऐसा अक्सर होता है। परन्तु एक जो स्वर्ग में है, वह उसे नहीं भूला। उसने उसे उचित समय में छुड़ाया। \f*\it*। \c 41 \s फ़िरौन का स्वप्न \p \v 1 पूरे दो वर्ष के बीतने पर फ़िरौन ने यह स्वप्न देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है। \v 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी-मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। \v 3 और, क्या देखा कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकलीं; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुईं। \v 4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी-मोटी गायों को खा गईं। तब फ़िरौन जाग उठा। \v 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा कि एक डंठल में से सात मोटी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं। \v 6 और, क्या देखा कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुर्झाई हुई निकलीं। \v 7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फ़िरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। \v 8 भोर को फ़िरौन का \it मन व्याकुल हुआ\f + \fr 41.8 \fq मन व्याकुल हुआ: \ft बंदीगृह में उन अधिकारियों के समान, वह इस एहसास से छुटकारा नहीं पा सका कि इन दोनों स्वप्न का सम्बंध भविष्य की किसी घटना से है।\f*\it*; और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पंडितों को बुलवा भेजा; और उनको अपने स्वप्न बताए; पर उनमें से कोई भी उनका फल फ़िरौन को न बता सका। \s यूसुफ द्वारा फ़िरौन के स्वप्नों की व्याख्या \p \v 9 तब पिलानेहारों का प्रधान फ़िरौन से बोल उठा, “मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: \v 10 जब फ़िरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके अंगरक्षकों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था; \v 11 तब हम दोनों ने एक ही रात में, अपने-अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; \v 12 और वहाँ हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो अंगरक्षकों के प्रधान का दास था; अतः हमने उसको बताया, और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक-एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया। \v 13 और जैसा-जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया।” \p \v 14 तब फ़िरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फ़िरौन के सामने आया। \v 15 फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “मैंने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैंने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।” \v 16 यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “\it मैं तो कुछ नहीं जानता\f + \fr 41.16 \fq मैं तो कुछ नहीं जानता \ft मैं नहीं पर परमेश्वर उत्तर देगा। यूसुफ जैसा करता था उसने अपने वरदान का श्रेय परमेश्वर को दिया, ताकि फ़िरौन को इसका लाभ मिले।\f*\it*: परमेश्वर ही फ़िरौन के लिये शुभ वचन देगा।” \v 17 फिर फ़िरौन यूसुफ से कहने लगा, “मैंने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूँ। \v 18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर-सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। \v 19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मैंने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं। \v 20 इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी-मोटी गायों को खा लिया। \v 21 और जब वे उनको खा गईं तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहले के समान जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। \v 22 फिर मैंने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठल में सात अच्छी-अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। \v 23 फिर क्या देखता हूँ, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी-छूछी और पतली और पुरवाई से मुर्झाई हुई निकलीं। \v 24 और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी-अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैंने ज्योतिषियों को बताया, पर इसका समझानेवाला कोई नहीं मिला।” \p \v 25 तब यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “फ़िरौन का स्वप्न एक ही है, \it परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसको उसने फ़िरौन पर प्रगट किया है\f + \fr 41.25 \fq परमेश्वर जो काम करना .... किया है: \ft यूसुफ अब स्वप्न का अर्थ बताता है और उस आपात स्थिति में क्या करना चाहिए उसकी सलाह देता है। “परमेश्वर जो काम करना चाहता है। \f*\it*। \v 26 वे सात अच्छी-अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी-अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। \v 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुर्झाई हुई बालें निकालीं, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। \v 28 यह वही बात है जो मैं फ़िरौन से कह चुका हूँ, कि परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसे उसने फ़िरौन को दिखाया है। \v 29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। \v 30 उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आएँगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जाएँगे; और अकाल से देश का नाश होगा। \v 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। \v 32 और फ़िरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। \v 33 इसलिए अब फ़िरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरुष को ढूँढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। \v 34 फ़िरौन यह करे कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे। \v 35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर-नगर में भण्डार घर भोजन के लिये, फ़िरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें। \v 36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएँगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिससे देश उस अकाल से सत्यानाश न हो जाए।” \s यूसुफ का प्रधानमंत्री बनाया जाना \p \v 37 यह बात फ़िरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी। \v 38 इसलिए फ़िरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, “क्या हमको ऐसा पुरुष, जैसा यह है, जिसमें परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है?” \v 39 फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान नहीं; \v 40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूँगा।” \bdit (प्रेरि. 7:10) \bdit* \v 41 फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “सुन, \it मैं तुझको मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूँ\f + \fr 41.41 \fq मैं तुझको मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूँ: \ft फ़िरौन यूसुफ की सलाह मान लेता है और उसे ऐसे समझदार और बुद्धिमान पुरुष के रूप में चुनता है जिसमें परमेश्वर का आत्मा है। वह इस बात को स्वीकारता है कि यूसुफ को जो वरदान प्राप्त है वह परमेश्वर से है।\f*\it*।” \v 42 तब फ़िरौन ने अपने हाथ से मुहर वाली अंगूठी निकालकर यूसुफ के हाथ में पहना दी; और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्र पहनवा दिए, और उसके गले में सोने की माला डाल दी; \v 43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे-आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत् करो और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधानमंत्री ठहराया। \v 44 फिर फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “फ़िरौन तो मैं हूँ, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पाँव न हिलाएगा।” \v 45 फ़िरौन ने यूसुफ का नाम सापनत-पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा। \p \v 46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फ़िरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। वह फ़िरौन के सम्मुख से निकलकर सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा। \v 47 सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही। \v 48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएँ, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। \v 49 इस प्रकार यूसुफ ने अन्न को समुद्र की रेत के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि-राशि गिनके रखा, यहाँ तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गईं। \p \v 50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। \v 51 और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहकर मनश्शे रखा, कि ‘परमेश्वर ने मुझसे मेरा सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।’ \v 52 दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि ‘मुझे दुःख भोगने के देश में परमेश्वर ने फलवन्त किया है।’ \p \v 53 और मिस्र देश के सुकाल के सात वर्ष समाप्त हो गए। \v 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था। \bdit (प्रेरि. 7:11) \bdit* \v 55 जब मिस्र का सारा देश भूखे मरने लगा; तब प्रजा फ़िरौन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी माँगने लगी; और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, “यूसुफ के पास जाओ; और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।” \bdit (प्रेरि. 7:11, यूह. 2:5) \bdit* \v 56 इसलिए जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में अकाल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल-खोलकर मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा। \v 57 इसलिए सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था। \c 42 \s याकूब का अपने पुत्रों को मिस्र भेजना \p \v 1 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उसने अपने पुत्रों से कहा, “तुम एक दूसरे का मुँह क्यों देख रहे हो।” \v 2 फिर उसने कहा, “मैंने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिए तुम लोग वहाँ जाकर हमारे लिये अन्न मोल ले आओ, जिससे हम न मरें, वरन् जीवित रहें।” \bdit (प्रेरि. 7:12) \bdit* \v 3 अतः यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिये मिस्र को गए। \v 4 पर यूसुफ के भाई \it बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयों के साथ न भेजा\f + \fr 42.4 \fq बिन्यामीन को याकूब ने .... न भेजा: \ft बिन्यामीन जो सबसे छोटा था, उसे उसके पिता ने रोक लिया; इसलिए नहीं कि वह लड़कपन में था परन्तु इसलिए कि वह अपने पिता के बुढ़ापे की सन्तान था और राहेल का एकमात्र बेटा था जो अब उसके पास था। \f*\it* कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े। \v 5 इस प्रकार जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साथ इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल था। \bdit (प्रेरि. 7:11) \bdit* \p \v 6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिकारी था, और उस देश के सब लोगों के हाथ वही अन्न बेचता था; इसलिए जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुँह के बल गिरकर उसको दण्डवत् किया। \v 7 उनको देखकर यूसुफ ने पहचान तो लिया, परन्तु उनके सामने भोला बनकर कठोरता के साथ उनसे पूछा, “तुम कहाँ से आते हो?” उन्होंने कहा, “हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिये आए हैं।” \v 8 यूसुफ ने अपने भाइयों को पहचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहचाना। \v 9 तब यूसुफ अपने उन स्वप्नों को स्मरण करके जो उसने उनके विषय में देखे थे, उनसे कहने लगा, “तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिये आए हो।” \v 10 उन्होंने उससे कहा, “नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिये आए हैं। \v 11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं।” \v 12 उसने उनसे कहा, “नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो।” \v 13 उन्होंने कहा, “हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरुष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा।” \v 14 तब यूसुफ ने उनसे कहा, “मैंने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो; \v 15 अतः इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फ़िरौन के जीवन की शपथ, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहाँ न आए तब तक तुम यहाँ से न निकलने पाओगे। \v 16 इसलिए अपने में से एक को भेज दो कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्दी रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएँगी कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फ़िरौन के जीवन की शपथ तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे।” \v 17 तब उसने उनको तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा। \p \v 18 तीसरे दिन यूसुफ ने उनसे कहा, “एक काम करो तब जीवित रहोगे; \it क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूँ\f + \fr 42.18 \fq क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूँ: \ft मिस्र में परमेश्वर अब अनजान नहीं था। परन्तु यह उसके भाइयों के लिए चकित और आशा में भर देनेवाली बात थी कि वहाँ का प्रधानमंत्री उसी महान परमेश्वर का सेवक है जिसको वे और उनके पूर्वज जानते और आराधना करते थे।\f*\it*; \v 19 यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयों में से एक जन इस बन्दीगृह में बँधुआ रहे; और तुम अपने घरवालों की भूख मिटाने के लिये अन्न ले जाओ। \v 20 और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे।” तब उन्होंने वैसा ही किया। \v 21 उन्होंने आपस में कहा, “निःसन्देह हम अपने भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उसने हम से गिड़गिड़ाकर विनती की, तब भी हमने यह देखकर, कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पड़े हैं।” \v 22 रूबेन ने उनसे कहा, “क्या मैंने तुम से न कहा था कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना। देखो, अब उसके लहू का बदला लिया जाता है।” \v 23 यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती थी; इससे उनको मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है। \v 24 तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उनसे बातचीत करके उनमें से शिमोन को छाँट निकाला और उनके सामने उसे बन्दी बना लिया। \s याकूब के पुत्रों का कनान लौटना \p \v 25 तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक-एक जन के बोरे में उसके रुपये को भी रख दो, फिर उनको मार्ग के लिये भोजनवस्तु दो। अतः उनके साथ ऐसा ही किया गया। \v 26 तब वे अपना अन्न अपने गदहों पर लादकर वहाँ से चल दिए। \v 27 सराय में जब एक ने अपने गदहे को चारा देने के लिये अपना बोरा खोला, तब उसका रुपया बोरे के मुँह पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा। \v 28 तब उसने अपने भाइयों से कहा, “मेरा रुपया तो लौटा दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है,” तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की ओर भय से ताकने लगे, और बोले, “परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है?” \p \v 29 तब वे कनान देश में अपने पिता याकूब के पास आए, और अपना सारा वृत्तान्त उसे इस प्रकार वर्णन किया: \v 30 “जो पुरुष उस देश का स्वामी है, उसने हम से कठोरता के साथ बातें की, और हमको देश के भेदिए कहा। \v 31 तब हमने उससे कहा, ‘हम सीधे लोग हैं, भेदिए नहीं। \v 32 हम बारह भाई एक ही पिता के पुत्र हैं, एक तो जाता रहा, परन्तु छोटा इस समय कनान देश में हमारे पिता के पास है।’ \v 33 तब उस पुरुष ने, जो उस देश का स्वामी है, हम से कहा, ‘इससे मालूम हो जाएगा कि तुम सीधे मनुष्य हो; तुम अपने में से एक को मेरे पास छोड़कर अपने घरवालों की भूख मिटाने के लिये कुछ ले जाओ, \v 34 और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। तब मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम भेदिए नहीं, सीधे लोग हो। फिर मैं तुम्हारे भाई को तुम्हें सौंप दूँगा, और तुम इस देश में लेन-देन कर सकोगे।’” \p \v 35 यह कहकर वे अपने-अपने बोरे से अन्न निकालने लगे, तब, क्या देखा, कि एक-एक जन के रुपये की थैली उसी के बोरे में रखी है। तब रुपये की थैलियों को देखकर वे और उनका पिता बहुत डर गए। \v 36 तब उनके पिता याकूब ने उनसे कहा, “मुझ को तुम ने निर्वंश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो। ये सब विपत्तियाँ मेरे ऊपर आ पड़ी हैं।” \v 37 रूबेन ने अपने पिता से कहा, “यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊँ, तो मेरे दोनों पुत्रों को मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुँचा दूँगा।” \v 38 उसने कहा, “मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया है, और वह अब अकेला रह गया है: इसलिए जिस मार्ग से तुम जाओगे, उसमें यदि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उतर जाऊँगा।” \c 43 \s बिन्यामीन के साथ मिस्र देश जाना \p \v 1 कनान देश में अकाल और भी भयंकर होता गया। \v 2 जब वह अन्न जो वे मिस्र से ले आए थे, समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उनसे कहा, “फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ।” \v 3 तब यहूदा ने उससे कहा, “उस पुरुष ने हमको चेतावनी देकर कहा, ‘यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे।’ \v 4 इसलिए यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिये भोजनवस्तु मोल ले आएँगे; \v 5 परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएँगे, क्योंकि उस पुरुष ने हम से कहा, ‘यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे।’” \v 6 तब इस्राएल ने कहा, “तुम ने उस पुरुष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्यों मुझसे बुरा बर्ताव किया?” \v 7 उन्होंने कहा, “जब उस पुरुष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियों की स्थिति के विषय में इस रीति पूछा, ‘क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है?’ तब हमने इन प्रश्नों के अनुसार उससे वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, ‘अपने भाई को यहाँ ले आओ।’” \v 8 फिर यहूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, “उस लड़के को मेरे संग भेज दे, कि हम चले जाएँ; इससे हम, और तू, और हमारे बाल-बच्चे मरने न पाएँगे, वरन् जीवित रहेंगे। \v 9 मैं उसका जामिन होता हूँ; मेरे ही हाथ से तू उसको वापस लेना। यदि मैं उसको तेरे पास पहुँचाकर सामने न खड़ा कर दूँ, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूँगा। \v 10 यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तक दूसरी बार लौट आते।” \p \v 11 तब उनके पिता इस्राएल ने उनसे कहा, “यदि सचमुच ऐसी ही बात है, तो यह करो; इस देश की उत्तम-उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपने बोरों में उस पुरुष के लिये भेंट ले जाओ: जैसे थोड़ा सा बलसान, और थोड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध-द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम। \v 12 फिर अपने-अपने साथ दूना रुपया ले जाओ; और जो रुपया तुम्हारे बोरों के मुँह पर रखकर लौटा दिया गया था, उसको भी लेते जाओ; कदाचित् यह भूल से हुआ हो। \v 13 अपने भाई को भी संग लेकर उस पुरुष के पास फिर जाओ, \v 14 और सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस पुरुष को तुम पर दयालु करेगा, जिससे कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे: और यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो।” \v 15 तब उन मनुष्यों ने वह भेंट, और दूना रुपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए और मिस्र में पहुँचकर यूसुफ के सामने खड़े हुए। \s भाइयों का यूसुफ के घर पहुँचाना \p \v 16 उनके साथ \it बिन्यामीन को देखकर यूसुफ\f + \fr 43.16 \fq बिन्यामीन को देखकर यूसुफ: \ft यह यूसुफ के लिए अवर्णनीय राहत थी, जिसे यह डर था कि उसका वह सगा भाई, जो पिता का प्रिय था, कहीं वह भी उन भाइयों की ईर्ष्या और सताव का शिकार न बन जाए। \f*\it* ने अपने घर के अधिकारी से कहा, “उन मनुष्यों को घर में पहुँचा दो, और पशु मारकर भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे।” \v 17 तब वह अधिकारी पुरुष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरुषों को यूसुफ के घर में ले गया। \v 18 जब वे यूसुफ के घर को पहुँचाए गए तब वे आपस में डरकर कहने लगे, “जो रुपया पहली बार हमारे बोरों में लौटा दिया गया था, उसी के कारण हम भीतर पहुँचाए गए हैं; जिससे कि वह पुरुष हम पर टूट पड़े, और हमें वश में करके अपने दास बनाए, और हमारे गदहों को भी छीन ले।” \v 19 तब वे यूसुफ के घर के अधिकारी के निकट जाकर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे, \v 20 “हे हमारे प्रभु, जब हम पहली बार अन्न मोल लेने को आए थे, \v 21 तब हमने सराय में पहुँचकर अपने बोरों को खोला, तो क्या देखा, कि एक-एक जन का पूरा-पूरा रुपया उसके बोरे के मुँह पर रखा है; इसलिए हम उसको अपने साथ फिर लेते आए हैं। \v 22 और दूसरा रुपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिये लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रुपया हमारे बोरों में किसने रख दिया था।” \v 23 उसने कहा, “तुम्हारा कुशल हो, मत डरो: तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरों में धन दिया होगा, तुम्हारा रुपया तो मुझ को मिल गया था।” फिर उसने शिमोन को निकालकर उनके संग कर दिया। \v 24 तब उस जन ने उन मनुष्यों को यूसुफ के घर में ले जाकर जल दिया, तब उन्होंने अपने पाँवों को धोया; फिर उसने उनके गदहों के लिये चारा दिया। \v 25 तब यह सुनकर, कि आज हमको यहीं भोजन करना होगा, उन्होंने यूसुफ के आने के समय तक, अर्थात् दोपहर तक, उस भेंट को इकट्ठा कर रखा। \v 26 जब यूसुफ घर आया तब वे उस भेंट को, जो उनके हाथ में थी, उसके सम्मुख घर में ले गए, और भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत् किया। \v 27 उसने उनका कुशल पूछा और कहा, “क्या तुम्हारा बूढ़ा पिता, जिसकी तुम ने चर्चा की थी, कुशल से है? क्या वह अब तक जीवित है?” \v 28 उन्होंने कहा, “हाँ तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है।” तब उन्होंने सिर झुकाकर फिर दण्डवत् किया। \v 29 तब उसने आँखें उठाकर और अपने सगे भाई बिन्यामीन को देखकर पूछा, “क्या तुम्हारा वह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझसे की थी, यही है?” फिर उसने कहा, “हे मेरे पुत्र, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करे।” \v 30 तब अपने भाई के स्नेह से मन भर आने के कारण और यह सोचकर कि मैं कहाँ जाकर रोऊँ, यूसुफ तुरन्त अपनी कोठरी में गया, और वहाँ रो पड़ा। \v 31 फिर अपना मुँह धोकर निकल आया, और अपने को शान्त कर कहा, “भोजन परोसो।” \v 32 तब उन्होंने उसके लिये तो अलग, और भाइयों के लिये भी अलग, और जो मिस्री उसके संग खाते थे, उनके लिये भी अलग, भोजन परोसा; इसलिए कि मिस्री इब्रियों के साथ भोजन नहीं कर सकते, वरन् मिस्री ऐसा करना घृणा समझते थे। \v 33 सो यूसुफ के भाई उसके सामने, बड़े-बड़े पहले, और छोटे-छोटे पीछे, अपनी-अपनी अवस्था के अनुसार, क्रम से बैठाए गए; यह देख वे विस्मित होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। \v 34 तब यूसुफ अपने सामने से भोजन-वस्तुएँ उठा-उठाकर उनके पास भेजने लगा, और बिन्यामीन को अपने भाइयों से पाँचगुना भोजनवस्तु मिली। और उन्होंने \it उसके संग मनमाना खाया पिया\f + \fr 43.34 \fq उसके संग मनमाना खाया पिया: \ft उन्होंने मनमाना खाया पिया कि आनन्द मना सके क्योंकि जिस प्रकार की कृपा उन पर हो रही उससे वे अपनी चिंताओं से मुक्त हो गए थे।\f*\it*। \c 44 \s यूसुफ द्वारा भाइयों की परीक्षा \p \v 1 तब उसने अपने घर के अधिकारी को आज्ञा दी, “इन मनुष्यों के बोरों में जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक-एक जन के रुपये को उसके बोरे के मुँह पर रख दे। \v 2 और मेरा चाँदी का कटोरा छोटे भाई के बोरे के मुँह पर उसके अन्न के रुपये के साथ रख दे।” यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उसने किया। \v 3 सवेरे भोर होते ही वे मनुष्य अपने गदहों समेत विदा किए गए। \v 4 वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे कि यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, “उन मनुष्यों का पीछा कर, और उनको पाकर उनसे कह, ‘तुम ने भलाई के बदले बुराई क्यों की है? \v 5 क्या यह वह वस्तु नहीं जिसमें मेरा स्वामी पीता है, और जिससे वह शकुन भी विचारा करता है? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया।’” \p \v 6 तब उसने उन्हें जा पकड़ा, और ऐसी ही बातें उनसे कहीं। \v 7 उन्होंने उससे कहा, “हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्यों कहता है? ऐसा काम करना तेरे दासों से दूर रहे। \v 8 देख जो रुपया हमारे बोरों के मुँह पर निकला था, जब हमने उसको कनान देश से ले आकर तुझे लौटा दिया, तब भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चाँदी या सोने की वस्तु कैसे चुरा सकते हैं? \v 9 तेरे दासों में से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपने उस प्रभु के दास हो जाएँ।” \v 10 उसने कहा, “तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले वह मेरा दास होगा; और तुम लोग निर्दोषी ठहरोगे।” \v 11 इस पर वे जल्दी से अपने-अपने बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे। \v 12 तब वह ढूँढ़ने लगा, और बडे़ के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की: और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला। \v 13 तब \it उन्होंने अपने-अपने वस्त्र फाड़े\f + \fr 44.13 \fq उन्होंने अपने-अपने वस्त्र फाड़े: \ft यह ऐसे दुःख का प्रतीक था जिसका कोई समाधान नहीं।\f*\it*, और अपना-अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए। \v 14 जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुँचे, और यूसुफ वहीं था, तब वे उसके सामने भूमि पर गिरे। \v 15 यूसुफ ने उनसे कहा, “तुम लोगों ने यह कैसा काम किया है? क्या तुम न जानते थे कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है?” \v 16 यहूदा ने कहा, “हम लोग अपने प्रभु से क्या कहें? हम क्या कहकर अपने को निर्दोषी ठहराएँ? परमेश्वर ने तेरे दासों के अधर्म को पकड़ लिया है। हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपने प्रभु के दास ही हैं।” \v 17 उसने कहा, “ऐसा करना मुझसे दूर रहे, जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपने पिता के पास कुशल क्षेम से चले जाओ।” \s बिन्यामीन के लिये यहूदा का निवेदन \p \v 18 तब यहूदा उसके पास जाकर कहने लगा, “हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपने प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; क्योंकि तू तो फ़िरौन के तुल्य हैं। \v 19 मेरे प्रभु ने अपने दासों से पूछा था, ‘क्या तुम्हारे पिता या भाई हैं?’ \v 20 और हमने अपने प्रभु से कहा, ‘हाँ, हमारा बूढ़ा पिता है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिए वह अब अपनी माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उससे स्नेह रखता है।’ \v 21 तब तूने अपने दासों से कहा था, ‘उसको मेरे पास ले आओ, जिससे मैं उसको देखूँ।’ \v 22 तब हमने अपने प्रभु से कहा था, ‘वह लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा।’ \v 23 और तूने अपने दासों से कहा, ‘यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे।’ \v 24 इसलिए जब हम अपने पिता तेरे दास के पास गए, तब हमने उससे अपने प्रभु की बातें कहीं। \v 25 तब हमारे पिता ने कहा, ‘फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ।’ \v 26 हमने कहा, ‘हम नहीं जा सकते, हाँ, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएँगे; क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो हम उस पुरुष के सम्मुख न जाने पाएँगे।’ \v 27 तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, ‘तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्र उत्पन्न हुए। \v 28 और उनमें से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैंने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा; और तब से मैं उसका मुँह न देख पाया। \v 29 अतः यदि तुम इसको भी मेरी आँख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पड़े, तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उतर जाऊँगा।’ \v 30 इसलिए जब मैं अपने पिता तेरे दास के पास पहुँचूँ, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है, \v 31 इस कारण, यह देखकर कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासों के कारण तेरा दास हमारा पिता, जो बुढ़ापे की अवस्था में है, शोक के साथ अधोलोक में उतर जाएगा। \v 32 फिर तेरा दास अपने पिता के यहाँ यह कहकर इस लड़के का जामिन हुआ है, ‘यदि मैं इसको तेरे पास न पहुँचा दूँ, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूँगा।’ \v 33 इसलिए अब \it तेरा दास इस लड़के के बदले\f + \fr 44.33 \fq तेरा दास इस लड़के के बदले: \ft यहूदा ने नम्र होकर दीनता से यह प्रार्थना की। अपने बूढ़े पिता को टूटे मन लिए पिस-पिस कर मरते देखने की बजाय उसने शान्ति और दृढ़ता से अपना घर, परिवार, और जन्म अधिकार त्याग देना उचित समझा।\f*\it* अपने प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपने भाइयों के संग जाने दिया जाए। \v 34 क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं कैसे अपने पिता के पास जा सकूँगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दुःख पड़ेगा वह मुझे देखना पड़े।” \c 45 \s यूसुफ का स्वयं को प्रगट करना \p \v 1 तब यूसुफ उन सब के सामने, जो उसके आस-पास खड़े थे, अपने को और रोक न सका; और पुकारकर कहा, “मेरे आस-पास से सब लोगों को बाहर कर दो।” भाइयों के सामने \it अपने को प्रगट करने के समय\f + \fr 45.1 \fq अपने को प्रगट करने के समय: \ft यूसुफ अब अपने भाइयों को यह विस्मित कर देनेवाला तथ्य बताता है कि उनका खोया हुआ भाई वही है। वह अपने को रोक नहीं पाया।\f*\it* यूसुफ के संग और कोई न रहा। \v 2 तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा; और मिस्रियों ने सुना, और फ़िरौन के घर के लोगों को भी इसका समाचार मिला। \v 3 तब यूसुफ अपने भाइयों से कहने लगा, “मैं यूसुफ हूँ, क्या मेरा पिता अब तक जीवित है?” इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके सामने घबरा गए थे। \v 4 फिर यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मेरे निकट आओ।” यह सुनकर वे निकट गए। फिर उसने कहा, “मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ, जिसको तुम ने मिस्र आनेवालों के हाथ बेच डाला था। \bdit (प्रेरि. 7:9) \bdit* \v 5 अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहाँ बेच डाला, इससे उदास मत हो; क्योंकि \it परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे तुम्हारे आगे भेज दिया है\f + \fr 45.5 \fq परमेश्वर ने .... मुझे तुम्हारे आगे भेज दिया है: \ft वह यह बताता है कि यह परमेश्वर की योजना थी कि उनके प्राण बचाए जाएँ। अतः वे नहीं बल्कि परमेश्वर उन्हें अपनी दया में मिस्र में लाया ताकि उनके प्राण बच जाएँ।\f*\it*। \bdit (प्रेरि. 7:15) \bdit* \v 6 क्योंकि अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है; और अब पाँच वर्ष और ऐसे ही होंगे कि उनमें न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा। \bdit (प्रेरि. 7:15) \bdit* \v 7 इसलिए परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसलिए भेजा कि तुम पृथ्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणों के बचने से तुम्हारा वंश बढ़े। \v 8 इस रीति अब मुझ को यहाँ पर भेजनेवाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा; और उसी ने मुझे फ़िरौन का पिता सा, और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मिस्र देश का प्रभु ठहरा दिया है। \v 9 अतः शीघ्र मेरे पिता के पास जाकर कहो, ‘तेरा पुत्र यूसुफ इस प्रकार कहता है, कि परमेश्वर ने मुझे सारे मिस्र का स्वामी ठहराया है; इसलिए तू मेरे पास बिना विलम्ब किए चला आ। \bdit (प्रेरि. 7:14) \bdit* \v 10 और तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू, बेटे, पोतों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, और अपने सब कुछ समेत मेरे निकट रहेगा। \v 11 और अकाल के जो पाँच वर्ष और होंगे, उनमें मैं वहीं तेरा पालन-पोषण करूँगा; ऐसा न हो कि तू, और तेरा घराना, वरन् जितने तेरे हैं, वे भूखे मरें।’ \bdit (प्रेरि. 7:14) \bdit* \v 12 और तुम अपनी आँखों से देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपनी आँखों से देखता है कि जो हम से बातें कर रहा है वह यूसुफ है। \v 13 तुम मेरे सब वैभव का, जो मिस्र में है और जो कुछ तुम ने देखा है, उस सब का मेरे पिता से वर्णन करना; और तुरन्त मेरे पिता को यहाँ ले आना।” \v 14 और वह अपने भाई बिन्यामीन के गले से लिपटकर रोया; और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपटकर रोया। \v 15 वह अपने सब भाइयों को चूमकर रोया और इसके पश्चात् उसके भाई उससे बातें करने लगे। \p \v 16 इस बात का समाचार कि यूसुफ के भाई आए हैं, फ़िरौन के भवन तक पहुँच गया, और इससे फ़िरौन और उसके कर्मचारी प्रसन्न हुए। \bdit (प्रेरि. 7:13) \bdit* \v 17 इसलिए फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “अपने भाइयों से कह कि एक काम करो: अपने पशुओं को लादकर कनान देश में चले जाओ। \v 18 और अपने पिता और अपने-अपने घर के लोगों को लेकर मेरे पास आओ; और मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम्हें दूँगा, और तुम्हें देश के उत्तम से उत्तम पदार्थ खाने को मिलेंगे। \bdit (प्रेरि. 7:14) \bdit* \v 19 और तुझे आज्ञा मिली है, ‘तुम एक काम करो कि मिस्र देश से अपने बाल-बच्चों और स्त्रियों के लिये गाड़ियाँ ले जाओ, और अपने पिता को ले आओ। \bdit (प्रेरि. 7:14) \bdit* \v 20 और अपनी सामग्री की चिन्ता न करना; क्योंकि सारे मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह तुम्हारा है।’” \p \v 21 इस्राएल के पुत्रों ने वैसा ही किया; और यूसुफ ने फ़िरौन की आज्ञा के अनुसार उन्हें गाड़ियाँ दी, और मार्ग के लिये भोजन-सामग्री भी दी। \v 22 उनमें से एक-एक जन को तो उसने एक-एक जोड़ा वस्त्र भी दिया; और बिन्यामीन को तीन सौ रूपे के टुकड़े और पाँच जोड़े वस्त्र दिए। \v 23 अपने पिता के पास उसने जो भेजा वह यह है, अर्थात् मिस्र की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिये भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियाँ। \v 24 तब उसने अपने भाइयों को विदा किया, और वे चल दिए; और उसने उनसे कहा, “मार्ग में कहीं झगड़ा न करना।” \v 25 मिस्र से चलकर वे कनान देश में अपने पिता याकूब के पास पहुँचे। \v 26 और उससे यह वर्णन किया, “यूसुफ अब तक जीवित है, और सारे मिस्र देश पर प्रभुता वही करता है।” पर \it उसने उन पर विश्वास न किया, और वह अपने आपे में न रहा\f + \fr 45.26 \fq उसने उन पर विश्वास न किया, और वह अपने आपे में न रहा: \ft यह समाचार उसके लिए इतना अच्छा था कि वह उस पर तुरन्त विश्वास नहीं कर सका। परन्तु यूसुफ द्वारा कही बातों को, जिन्हें उन्होंने उसे बताया, और उन गाड़ियों को देखकर जो उसने भेजी थीं, उसे आखिरकार निश्चय हो गया कि यह अवश्य सच ही है।\f*\it*। \v 27 तब उन्होंने अपने पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उसने उनसे कहीं थीं, कह दीं; जब उसने उन गाड़ियों को देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिये भेजी थीं, तब उसका चित्त स्थिर हो गया। \v 28 और इस्राएल ने कहा, “बस, मेरा पुत्र यूसुफ अब तक जीवित है; मैं अपनी मृत्यु से पहले जाकर उसको देखूँगा।” \c 46 \s याकूब का मिस्र के लिये जाना \p \v 1 तब इस्राएल अपना सब कुछ लेकर बेर्शेबा को गया, और वहाँ अपने पिता इसहाक के परमेश्वर को बलिदान चढ़ाया। \v 2 तब परमेश्वर ने इस्राएल से रात को दर्शन में कहा, “हे याकूब हे याकूब।” उसने कहा, “क्या आज्ञा।” \v 3 उसने कहा, “मैं परमेश्वर तेरे पिता का परमेश्वर हूँ, तू मिस्र में जाने से \it मत डर\f + \fr 46.3 \fq मत डर: \ft इसका यह अर्थ है कि यह परमेश्वर की इच्छा में है कि वह मिस्र को जाए, और यह कि वहाँ वह सुरक्षित रहेगा।\f*\it*; क्योंकि मैं तुझ से वहाँ एक बड़ी जाति बनाऊँगा। \v 4 मैं तेरे संग-संग मिस्र को चलता हूँ; और मैं तुझे वहाँ से फिर निश्चय ले आऊँगा; और यूसुफ अपने हाथ से तेरी आँखों को बन्द करेगा।” \v 5 तब याकूब बेर्शेबा से चला; और इस्राएल के पुत्र अपने पिता याकूब, और अपने बाल-बच्चों, और स्त्रियों को उन गाड़ियों पर, जो फ़िरौन ने उनके ले आने को भेजी थीं, चढ़ाकर चल पड़े। \v 6 वे अपनी भेड़-बकरी, गाय-बैल, और कनान देश में अपने इकट्ठा किए हुए सारे धन को लेकर मिस्र में आए। \v 7 और याकूब अपने बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों, अर्थात् अपने वंश भर को अपने संग मिस्र में ले आया। \s याकूब का परिवार \p \v 8 याकूब के साथ जो इस्राएली, अर्थात् उसके बेटे, पोते, आदि मिस्र में आए, उनके नाम ये हैं याकूब का जेठा रूबेन था। \v 9 और रूबेन के पुत्र हनोक, पल्लू, हेस्रोन, और कर्मी थे। \v 10 शिमोन के पुत्र, यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर, और एक कनानी स्त्री से जन्मा हुआ शाऊल भी था। \v 11 लेवी के पुत्र गेर्शोन, कहात, और मरारी थे। \v 12 यहूदा के एर, ओनान, शेला, पेरेस, और जेरह नामक पुत्र हुए तो थे; पर एर और ओनान कनान देश में मर गए थे; और पेरेस के पुत्र, हेस्रोन और हामूल थे। \v 13 इस्साकार के पुत्र, तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन थे। \v 14 जबूलून के पुत्र, सेरेद, एलोन, और यहलेल थे। \v 15 लिआ के पुत्र जो याकूब से पद्दनराम में उत्पन्न हुए थे, उनके बेटे पोते ये ही थे, और इनसे अधिक उसने उसके साथ एक बेटी दीना को भी जन्म दिया। यहाँ तक तो याकूब के सब वंशवाले तैंतीस प्राणी हुए। \p \v 16 फिर गाद के पुत्र, सपोन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी, और अरेली थे। \v 17 आशेर के पुत्र, यिम्ना, यिश्वा, यिश्वी, और बरीआ थे, और उनकी बहन सेरह थी; और बरीआ के पुत्र, हेबेर और मल्कीएल थे। \v 18 जिल्पा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी लिआ को दिया था, उसके बेटे पोते आदि ये ही थे; और उसके द्वारा याकूब के सोलह प्राणी उत्पन्न हुए। \p \v 19 फिर याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे। \v 20 और मिस्र देश में ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से यूसुफ के ये पुत्र उत्पन्न हुए, अर्थात् मनश्शे और एप्रैम। \v 21 बिन्यामीन के पुत्र, बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम, और अर्द थे। \v 22 राहेल के पुत्र जो याकूब से उत्पन्न हुए उनके ये ही पुत्र थे; उसके ये सब बेटे-पोते चौदह प्राणी हुए। \p \v 23 फिर दान का पुत्र हूशीम था। \v 24 नप्ताली के पुत्र, यहसेल, गूनी, येसेर, और शिल्लेम थे। \v 25 बिल्हा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी राहेल को दिया, उसके बेटे पोते ये ही हैं; उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए। \p \v 26 याकूब के निज वंश के जो प्राणी मिस्र में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए। \v 27 और यूसुफ के पुत्र, जो मिस्र में उससे उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे; इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मिस्र में आए सो सब मिलकर सत्तर हुए। \s याकूब का मिस्र पहुँचना \p \v 28 फिर उसने यहूदा को अपने आगे यूसुफ के पास भेज दिया कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए। \v 29 तब यूसुफ अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उससे भेंट करके उसके गले से लिपटा, और कुछ देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा। \v 30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “मैं अब मरने से भी प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुँह देख लिया।” \v 31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के घराने से कहा, “मैं जाकर फ़िरौन को यह समाचार दूँगा, ‘मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं; \v 32 और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिए वे अपनी भेड़-बकरी, गाय-बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं।’ \v 33 जब फ़िरौन तुम को बुलाकर पूछे, ‘तुम्हारा उद्यम क्या है?’ \v 34 तब यह कहना, ‘तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन् हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे।’ इससे तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि \it सब चरवाहों से मिस्री लोग घृणा करते हैं\f + \fr 46.34 \fq सब चरवाहों से मिस्री लोग घृणा करते हैं: \ft मिस्रियों की मूर्तिपूजा और अंधविश्वास की प्रथाएं सच्चे परमेश्वर के आराधकों के लिए घृणित थी और मिस्र में प्रत्येक चरवाहे को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था।\f*\it*।” \c 47 \s फ़िरौन द्वारा याकूब का स्वागत \p \v 1 तब यूसुफ ने फ़िरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, “मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं।” \v 2 फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच जन लेकर फ़िरौन के सामने खड़े कर दिए। \v 3 फ़िरौन ने उसके भाइयों से पूछा, “तुम्हारा उद्यम क्या है?” उन्होंने फ़िरौन से कहा, “तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे।” \v 4 फिर उन्होंने फ़िरौन से कहा, “हम इस देश में परदेशी की भाँति रहने के लिये आए हैं; क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासों को भेड़-बकरियों के लिये चारा न रहा; इसलिए अपने दासों को गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे।” \v 5 तब फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, \v 6 और मिस्र देश तेरे सामने पड़ा है; इस देश का जो सबसे अच्छा भाग हो, उसमें अपने पिता और भाइयों को बसा दे; अर्थात् वे गोशेन देश में ही रहें; और यदि तू जानता हो, कि उनमें से परिश्रमी पुरुष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिकारी ठहरा दे।” \v 7 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को ले आकर फ़िरौन के सम्मुख खड़ा किया; और याकूब ने फ़िरौन को आशीर्वाद दिया। \v 8 तब फ़िरौन ने याकूब से पूछा, “तेरी आयु कितने दिन की हुई है?” \v 9 याकूब ने फ़िरौन से कहा, “मैं तो एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बिता चुका हूँ; मेरे जीवन के दिन थोड़े और दुःख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ।” \v 10 और याकूब फ़िरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया। \v 11 तब यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को बसा दिया, और फ़िरौन की आज्ञा के अनुसार मिस्र देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्थात् रामसेस नामक प्रदेश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया। \v 12 और यूसुफ अपने पिता का, और अपने भाइयों का, और पिता के सारे घराने का, एक-एक के बाल-बच्चों की गिनती के अनुसार, भोजन दिला-दिलाकर उनका पालन-पोषण करने लगा। \s अकाल के समय यूसुफ का प्रबन्ध \p \v 13 उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी था, और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनों देश नाश हो गए। \v 14 और जितना रुपया मिस्र और कनान देश में था, सब को यूसुफ ने उस अन्न के बदले, जो उनके निवासी मोल लेते थे इकट्ठा करके फ़िरौन के भवन में पहुँचा दिया। \v 15 जब मिस्र और कनान देश का रुपया समाप्त हो गया, तब सब मिस्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, “हमको भोजनवस्तु दे, क्या हम रुपये के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएँ?” \v 16 यूसुफ ने कहा, “यदि रुपये न हों तो अपने पशु दे दो, और मैं उनके बदले तुम्हें खाने को दूँगा।” \v 17 तब वे अपने पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों और गदहों के बदले खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं के बदले भोजन देकर उनका पालन-पोषण करता रहा। \v 18 वह वर्ष तो बीत गया; तब अगले वर्ष में उन्होंने उसके पास आकर कहा, “हम अपने प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रुपया समाप्त हो गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिए अब हमारे प्रभु के सामने हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा। \v 19 हम तेरे देखते क्यों मरें, और हमारी भूमि क्यों उजड़ जाए? हमको और हमारी भूमि को भोजनवस्तु के बदले मोल ले, कि हम अपनी भूमि समेत फ़िरौन के दास हो और हमको बीज दे, कि हम मरने न पाएँ, वरन् जीवित रहें, और भूमि न उजड़े।” \p \v 20 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि को फ़िरौन के लिये मोल लिया; क्योंकि उस भयंकर अकाल के पड़ने से मिस्रियों को अपना-अपना खेत बेच डालना पड़ा। इस प्रकार सारी भूमि फ़िरौन की हो गई। \v 21 और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मिस्र देश में जो प्रजा रहती थी, उसको उसने नगरों में लाकर बसा दिया। \v 22 पर याजकों की भूमि तो उसने न मोल ली; क्योंकि याजकों के लिये फ़िरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त था, और नित्य जो भोजन फ़िरौन उनको देता था वही वे खाते थे; इस कारण उनको अपनी भूमि बेचनी न पड़ी। \v 23 तब यूसुफ ने प्रजा के लोगों से कहा, “सुनो, \it मैंने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फ़िरौन के लिये मोल लिया है\f + \fr 47.23 \fq मैंने .... मोल लिया है: \ft उसने उनके लिए भूमि खरीदी, और इस प्रकार उन्हें एक प्रकार से फ़िरौन के सेवकों के रूप में समझा जा सकता था।\f*\it*; देखो, तुम्हारे लिये यहाँ बीज है, इसे भूमि में बोओ। \v 24 और जो कुछ उपजे उसका पंचमांश फ़िरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे कि तुम उसे अपने खेतों में बोओ, और अपने-अपने बाल-बच्चों और घर के अन्य लोगों समेत खाया करो।” \v 25 उन्होंने कहा, “तूने हमको बचा लिया है; हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि हम पर बनी रहे, और हम फ़िरौन के दास होकर रहेंगे।” \v 26 इस प्रकार यूसुफ ने मिस्र की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है कि पंचमांश फ़िरौन को मिला करे; केवल याजकों ही की भूमि फ़िरौन की नहीं हुई। \s इस्राएल का गोशेन प्रदेश में बसना \p \v 27 इस्राएली मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगे; और \it वहाँ की भूमि उनके वश में थी\f + \fr 47.27 \fq वहाँ की भूमि उनके वश में थी: \ft वे गोशेन की भूमि के स्वामी या किराएदार हो गए। इस्राएलियों को प्रजा के रूप में समझा गया और उन्हें स्वतंत्र लोगों के समान पूरे अधिकार थे।\f*\it*, और फूले-फले, और अत्यन्त बढ़ गए। \v 28 मिस्र देश में याकूब सत्रह वर्ष जीवित रहा इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई। \p \v 29 जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उसने अपने पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, “यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जाँघ के तले रखकर शपथ खा, कि तू मेरे साथ कृपा और सच्चाई का यह काम करेगा, कि \it मुझे मिस्र में मिट्टी न देगा\f + \fr 47.29 \fq मुझे मिस्र में मिट्टी न देगा: \ft वह यूसुफ से शपथ लेता है कि वह उसकी मृतक देह को प्रतिज्ञा किए हुए देश में ले जाकर मिट्टी दे। \f*\it*। \v 30 जब मैं अपने बापदादों के संग सो जाऊँगा, तब तू मुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कब्रिस्तान में रखेगा।” तब यूसुफ ने कहा, “मैं तेरे वचन के अनुसार करूँगा।” \v 31 फिर उसने कहा, “मुझसे शपथ खा।” अतः उसने उससे शपथ खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की। \bdit (इब्रा. 11:21) \bdit* \c 48 \s याकूब द्वारा यूसुफ के पुत्रों को आशीर्वाद \p \v 1 इन बातों के पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, “सुन, तेरा पिता बीमार है।” तब वह मनश्शे और एप्रैम नामक अपने दोनों पुत्रों को संग लेकर उसके पास चला। \v 2 किसी ने याकूब को बता दिया, “तेरा पुत्र यूसुफ तेरे पास आ रहा है,” तब इस्राएल अपने को सम्भालकर खाट पर बैठ गया। \v 3 और याकूब ने यूसुफ से कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी, \v 4 और कहा, ‘सुन, मैं तुझे फलवन्त करके बढ़ाऊँगा, और तुझे राज्य-राज्य की मण्डली का मूल बनाऊँगा, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दूँगा, जिससे कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे।’ \v 5 और अब तेरे दोनों पुत्र, जो मिस्र में मेरे आने से पहले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्थात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। \v 6 और उनके पश्चात् तेरे जो सन्तान उत्पन्न हो, वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बँटवारे के समय वे अपने भाइयों ही के वंश में गिने जाएँगे। \v 7 जब मैं पद्दान से आता था, तब एप्राता पहुँचने से थोड़ी ही दूर पहले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे सामने मर गई; और मैंने उसे वहीं, अर्थात् एप्राता जो बैतलहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी।” \p \v 8 तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्र देख पड़े, और उसने पूछा, “ये कौन हैं?” \v 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “ये मेरे पुत्र हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहाँ दिए हैं।” उसने कहा, “उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूँ।” \v 10 इस्राएल की आँखें बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई थीं, यहाँ तक कि उसे कम सूझता था। तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया; और उसने उन्हें चूमकर गले लगा लिया। \v 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “मुझे आशा न थी, कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊँगा: परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है।” \v 12 तब यूसुफ ने उन्हें अपने पिता के घुटनों के बीच से हटाकर और अपने मुँह के बल भूमि पर गिरकर दण्डवत् की। \v 13 तब यूसुफ ने उन दोनों को लेकर, अर्थात् एप्रैम को अपने दाहिने हाथ से, कि वह इस्राएल के बाएँ हाथ पड़े, और मनश्शे को अपने बाएँ हाथ से, कि इस्राएल के दाहिने हाथ पड़े, उन्हें उसके पास ले गया। \v 14 तब इस्राएल ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर एप्रैम के सिर पर जो छोटा था, और अपना बायाँ हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया; उसने तो जान बूझकर ऐसा किया; नहीं तो जेठा मनश्शे ही था। \v 15 फिर उसने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, “परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है; \bdit (इब्रा. 11:21) \bdit* \v 16 और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशीष दे; और ये मेरे और मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक के कहलाएँ; और पृथ्वी में बहुतायत से बढ़ें।” \bdit (इब्रा. 11:21) \bdit* \p \v 17 जब यूसुफ ने देखा कि मेरे पिता ने अपना दाहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी; इसलिए उसने अपने पिता का हाथ इस मनसा से पकड़ लिया, कि एप्रैम के सिर पर से उठाकर मनश्शे के सिर पर रख दे। \v 18 और यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “हे पिता, ऐसा नहीं; क्योंकि जेठा यही है; अपना दाहिना हाथ इसके सिर पर रख।” \v 19 उसके पिता ने कहा, “नहीं, सुन, हे मेरे पुत्र, मैं इस बात को भली भाँति जानता हूँ यद्यपि इससे भी मनुष्यों की एक मण्डली उत्पन्न होगी, और यह भी महान हो जाएगा, तो भी इसका छोटा भाई इससे अधिक महान हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियाँ निकलेंगी।” \v 20 फिर उसने उसी दिन यह कहकर उनको आशीर्वाद दिया, “इस्राएली लोग तेरा नाम ले लेकर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, ‘परमेश्वर तुझे एप्रैम और मनश्शे के समान बना दे,’” और उसने मनश्शे से पहले एप्रैम का नाम लिया। \v 21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “देख, मैं तो मरने पर हूँ परन्तु परमेश्वर तुम लोगों के संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरों के देश में फिर पहुँचा देगा। \v 22 और मैं तुझको तेरे भाइयों से अधिक \it भूमि का एक भाग देता हूँ\f + \fr 48.22 \fq भूमि का एक भाग देता हूँ: \ft अपनी मृत्यु के समय याकूब अपनी भावी पीढ़ी की प्रतिज्ञात देश में वापसी का आश्वासन देता है और यूसुफ को उसके भाइयों से अधिक भूमि का एक भाग देता है, जिसके लिए वह कहता है कि मैंने इसे एमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और धनुष के बल से ले लिया है।\f*\it*, जिसको मैंने एमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और धनुष के बल से ले लिया है।” \bdit (यूह. 4:5) \bdit* \c 49 \s याकूब की भविष्यद्वाणी \p \v 1 फिर याकूब ने अपने पुत्रों को यह कहकर बुलाया, “इकट्ठे हो जाओ, मैं तुम को बताऊँगा, कि अन्त के दिनों में तुम पर क्या-क्या बीतेगा। \v 2 हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे होकर सुनो, अपने पिता इस्राएल की ओर कान लगाओ। \q \v 3 “हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल, और मेरे पौरूष का पहला फल है; \q प्रतिष्ठा का उत्तम भाग, और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही है। \q \v 4 तू जो जल के समान उबलनेवाला है, इसलिए दूसरों से श्रेष्ठ न ठहरेगा; \q क्योंकि तू अपने पिता की खाट पर चढ़ा, \q तब तूने उसको अशुद्ध किया; \q वह मेरे बिछौने पर चढ़ गया। \q \v 5 शिमोन और लेवी तो भाई-भाई हैं, \q उनकी तलवारें उपद्रव के हथियार हैं। \q \v 6 हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, \q हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; \q क्योंकि उन्होंने कोप से मनुष्यों को घात किया, \q और अपनी ही इच्छा पर चलकर बैलों को पंगु बनाया। \q \v 7 धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था; \q और उनके रोष को, जो निर्दय था; \q मैं उन्हें याकूब में अलग-अलग \q और इस्राएल में तितर-बितर कर दूँगा। \q \v 8 हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे, \q तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पड़ेगा; \q तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत् करेंगे। \q \v 9 \it यहूदा\f + \fr 49.9 \fq यहूदा: \ft शारीरिक शक्ति में यहूदा की तुलना जंगल के राजा, सिंह से की जाती है।\f*\it* सिंह का बच्चा है। \q हे मेरे पुत्र, तू अहेर करके गुफा में गया है \q वह सिंह अथवा सिंहनी के समान दबकर बैठ गया; \q फिर कौन उसको छेड़ेगा। \bdit (प्रका. 5:5) \bdit* \q \v 10 जब तक शीलो न आए \q तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, \q न उसके वंश से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा; \q और राज्य-राज्य के लोग \it उसके अधीन\f + \fr 49.10 \fq उसके अधीन: \ft न केवल इस्राएल की सन्तान, बल्कि आदम की सब सन्तान अंत में शान्ति के राजकुमार को दण्डवत करेंगी। यह स्त्री का वंश है जो उस सर्प के सिर को कुचलेगा, यह अब्राहम का वंशज होगा।\f*\it* हो जाएँगे। \bdit (यूह. 11:52) \bdit* \q \v 11 वह अपने जवान गदहे को दाखलता में, \q और अपनी गदही के बच्चे को उत्तम \q जाति की दाखलता में बाँधा करेगा; \bdit (प्रका. 7:14, प्रका. 22:14) \bdit* \q उसने अपने वस्त्र दाखमधु में, \q और अपना पहरावा दाखों के रस में धोया है। \q \v 12 उसकी आँखें दाखमधु से चमकीली \q और उसके दाँत दूध से श्वेत होंगे। \q \v 13 जबूलून समुद्र तट पर निवास करेगा, \q वह जहाजों के लिये बन्दरगाह का काम देगा, \q और उसका परला भाग सीदोन के निकट पहुँचेगा \q \v 14 इस्साकार एक बड़ा और बलवन्त गदहा है, \q जो पशुओं के बाड़ों के बीच में दबका रहता है। \q \v 15 उसने एक विश्रामस्थान देखकर, कि अच्छा है, \q और एक देश, कि मनोहर है, \q अपने कंधे को बोझ उठाने के लिये झुकाया, \q और बेगारी में दास का सा काम करने लगा। \q \v 16 दान इस्राएल का एक गोत्र होकर अपने \q जातिभाइयों का न्याय करेगा। \q \v 17 दान मार्ग में का एक साँप, \q और रास्ते में का एक नाग होगा, \q जो घोड़े की नली को डसता है, \q जिससे उसका सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है। \q \v 18 हे यहोवा, मैं तुझी से उद्धार पाने की बाट जोहता आया हूँ। \q \v 19 गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; \q पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा। \q \v 20 आशेर से जो अन्न उत्पन्न होगा वह उत्तम होगा, \q और वह राजा के योग्य स्वादिष्ट भोजन दिया करेगा। \q \v 21 नप्ताली एक छूटी हुई हिरनी है; \q वह सुन्दर बातें बोलता है। \q \v 22 यूसुफ बलवन्त लता की एक शाखा है, \q वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की एक शाखा है; \q उसकी डालियाँ दीवार पर से चढ़कर फैल जाती हैं। \q \v 23 धनुर्धारियों ने उसको खेदित किया, \q और उस पर तीर मारे, \q और उसके पीछे पड़े हैं। \q \v 24 पर उसका धनुष दृढ़ रहा, \q और उसकी बाँह और हाथ याकूब के \q उसी शक्तिमान परमेश्वर के हाथों के द्वारा फुर्तीले हुए, \q जिसके पास से वह चरवाहा आएगा, \q जो इस्राएल की चट्टान भी ठहरेगा। \q \v 25 यह तेरे पिता के उस परमेश्वर का काम है, \q जो तेरी सहायता करेगा, \q उस सर्वशक्तिमान का जो तुझे \q ऊपर से आकाश में की आशीषें, \q और नीचे से गहरे जल में की आशीषें, \q और स्तनों, और गर्भ की आशीषें देगा। \q \v 26 तेरे पिता के आशीर्वाद \q मेरे पितरों के आशीर्वादों से अधिक बढ़ गए हैं \q और सनातन पहाड़ियों की मनचाही वस्तुओं \q के समान बने रहेंगे वे यूसुफ के सिर पर, \q जो अपने भाइयों से अलग किया गया था, \q उसी के सिर के मुकुट पर फूले फलेंगे। \q \v 27 बिन्यामीन फाड़नेवाला भेड़िया है, \q सवेरे तो वह अहेर भक्षण करेगा, \q और साँझ को लूट बाँट लेगा।”” \p \v 28 इस्राएल के बारहों गोत्र ये ही हैं और उनके पिता ने जिस-जिस वचन से उनको आशीर्वाद दिया, वे ये ही हैं; एक-एक को उसके आशीर्वाद के अनुसार उसने आशीर्वाद दिया। \s याकूब को मिट्टी देने सम्बंधी आज्ञा \p \v 29 तब उसने यह कहकर उनको आज्ञा दी, “मैं अपने लोगों के साथ मिलने पर हूँ: इसलिए \it मुझे हित्ती एप्रोन की भूमिवाली गुफा में मेरे बापदादों के साथ मिट्टी देना\f + \fr 49.29 \fq मुझे .... मेरे बापदादों के साथ मिट्टी देना: \ft अब्राहम और सारा, इसहाक और रिबका, और लिआ के साथ। मरते समय वह यह आज्ञा अपने बारह पुत्रों को देता है, जैसे उसने यह शपथ यूसुफ से ली थी।\f*\it*, \bdit (प्रेरि. 7:16) \bdit* \v 30 अर्थात् उसी गुफा में जो कनान देश में मम्रे के सामने वाली मकपेला की भूमि में है; उस भूमि को अब्राहम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसलिए मोल लिया था, कि वह कब्रिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो। \v 31 वहाँ अब्राहम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई थी; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैंने लिआ को भी मिट्टी दी। \v 32 वह भूमि और उसमें की गुफा हित्तियों के हाथ से मोल ली गई।” \v 33 याकूब जब अपने पुत्रों को यह आज्ञा दे चुका, तब अपने पाँव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपने लोगों में जा मिला। \bdit (प्रेरि. 7:15) \bdit* \c 50 \s याकूब की मृत्यु \p \v 1 तब यूसुफ अपने पिता के मुँह पर गिरकर रोया और उसे चूमा। \v 2 और यूसुफ ने उन वैद्यों को, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी कि उसके पिता के शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे; तब वैद्यों ने इस्राएल के शव में सुगन्ध-द्रव्य भर दिए। \v 3 और उसके चालीस दिन पूरे हुए, क्योंकि जिनके शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे जाते हैं, उनको इतने ही दिन पूरे लगते है; और मिस्री लोग उसके लिये सत्तर दिन तक विलाप करते रहे। \p \v 4 जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फ़िरौन के घराने के लोगों से कहने लगा, “यदि तुम्हारे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह विनती फ़िरौन को सुनाओ, \v 5 मेरे पिता ने यह कहकर, ‘देख मैं मरने पर हूँ,’ मुझे यह शपथ खिलाई, ‘जो कब्र मैंने अपने लिये कनान देश में खुदवाई है उसी में तू मुझे मिट्टी देगा।’ इसलिए अब मुझे वहाँ जाकर अपने पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊँगा।” \v 6 तब फ़िरौन ने कहा, “जाकर अपने पिता की खिलाई हुई शपथ के अनुसार उनको मिट्टी दे।” \p \v 7 इसलिए यूसुफ अपने पिता को मिट्टी देने के लिये चला, और फ़िरौन के सब कर्मचारी, अर्थात् उसके भवन के पुरनिये, और मिस्र देश के सब पुरनिये उसके संग चले। \v 8 और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपने बाल-बच्चों, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों को गोशेन देश में छोड़ गए। \v 9 और उसके संग रथ और सवार गए, इस प्रकार भीड़ बहुत भारी हो गई। \v 10 जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है, पहुँचे, तब वहाँ अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपने पिता के लिये सात दिन का विलाप कराया। \v 11 आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियों ने कहा, “यह तो मिस्रियों का कोई भारी विलाप होगा।” इसी कारण उस स्थान का नाम \it आबेलमिस्रैम\f + \fr 50.11 \fq आबेलमिस्रैम: \ft अर्थात् ‘मिस्र के विलाप’\f*\it* पड़ा, और वह यरदन के पार है। \s याकूब के शव को मकपेला में गाड़ा जाना \p \v 12 इस्राएल के पुत्रों ने ठीक वही काम किया जिसकी उसने उनको आज्ञा दी थी: \v 13 अर्थात् उन्होंने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के सामने हैं, मिट्टी दी; जिसको अब्राहम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसलिए मोल लिया था, कि वह कब्रिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो। \p \v 14 अपने पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपने भाइयों और उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिये उसके संग गए थे, मिस्र लौट आया। \s भाइयों को आश्वासन देना \p \v 15 जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, “कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पडे़, और जितनी बुराई हमने उससे की थी सब का पूरा बदला हम से ले।” \v 16 इसलिए उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, “तेरे पिता ने मरने से पहले हमें यह आज्ञा दी थी, \v 17 ‘तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम विनती करते हैं, कि तू अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा कर; हमने तुझ से बुराई की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर।’” उनकी ये बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा। \v 18 और उसके भाई आप भी जाकर उसके सामने गिर पड़े, और कहा, “देख, \it हम तेरे दास हैं\f + \fr 50.18 \fq हम तेरे दास हैं: \ft इसमें कोई संदेह नहीं कि जब यूसुफ के भाई उसके सामने गिरकर क्षमा माँगने लगे तब उसने उन्हें बुलवाया था। यूसुफ ने उनके भय को दूर किया। क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूँ?: कि मैं व्यवस्था अपने हाथों में लेकर बदला लूँ।\f*\it*।” \v 19 यूसुफ ने उनसे कहा, “मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूँ? \v 20 यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिससे वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं। \v 21 इसलिए अब मत डरो: मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन-पोषण करता रहूँगा।” इस प्रकार उसने उनको समझा-बुझाकर शान्ति दी। \s यूसुफ की मृत्यु \p \v 22 यूसुफ अपने पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा। \v 23 और यूसुफ एप्रैम के परपोतों तक को देखने पाया और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न हुए और यूसुफ ने उन्हें गोद में लिया। \v 24 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु \it परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा\f + \fr 50.24 \fq परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा: \ft यूसुफ ने इस्राएल की सन्तानों के वापस प्रतिज्ञा किए हुए देश में जाने पर अपना अटूट भरोसा प्रगट किया। परमेश्वर निश्चय सुधि लेगा।: यूसुफ की देह पर सुगन्धित द्रव्य लगाए गए और उसे इस सन्दूक में रखा गया, और इस प्रकार उसकी सन्तानों ने उसे रखा। देह को इस प्रकार रखना मिस्र में अनहोना नहीं था।\f*\it*, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाई थी।” \bdit (इब्रा. 11:22) \bdit* \v 25 फिर यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपथ खिलाई, “हम तेरी हड्डियों को यहाँ से उस देश में ले जाएँगे।” \bdit (इब्रा. 11:22) \bdit* \v 26 इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया: और उसकी शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे गए, और वह शव मिस्र में एक शवपेटी में रखा गया।