\id EXO \ide UTF-8 \rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License \h निर्गमन \toc1 निर्गमन \toc2 निर्गमन \toc3 निर्ग. \mt निर्गमन \is लेखक \ip परम्परा के अनुसार मूसा को इस पुस्तक का लेखक माना गया है। मूसा को इस पुस्तक का परमेश्वर प्रेरित लेखक मानने के दो ठोस कारण हैं। पहला, निर्गमन की पुस्तक ही में मूसा के लेखन कार्य की चर्चा की गई है। निर्गमन 34:27 में परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी, “ये वचन लिख ले।” बाइबल के एक और संदर्भ के अनुसार परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए मूसा ने परमेश्वर के सारे निर्देश लिख लिए थे, “जितनी बातें यहोवा ने कहीं, मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए” (24:4)। अतः यह मानना तर्क-सम्मत ही है कि ये पद निर्गमन की पुस्तक में मूसा द्वारा लिखी गई बातों के संदर्भ में ही है। दूसरा, निर्गमन में वर्णित घटनाओं को मूसा ने स्वयं देखा था या उनमें वह सहभागी हुआ था। मूसा फ़िरौन के राजपरिवार में पाला गया था अतः वह लिखना-पढ़ना जानता था। \is लेखन तिथि एवं स्थान \ip लगभग 1446 - 1405 ई. पू. इस तिथि से पूर्व इस्राएल 40 वर्ष अपनी अवज्ञा के कारण जंगल में भटक रहा था। इस पुस्तक के लेखन का यह सर्व-सम्भावित समय है। \is प्रापक \ip इस पुस्तक के लक्षित पाठक निर्गमन ही के समय की पीढ़ी थी। मूसा ने यह पुस्तक सीनै समुदाय के लिए लिखी थी जिसे वह मिस्र से निकालकर लाया था (निर्ग. 17:14; 24:4; 34:27-28)। \is उद्देश्य \ip निर्गमन की पुस्तक वृत्तान्त रूप में प्रस्तुत करती है कि इस्राएल कैसे यहोवा की प्रजा बना और वाचा की शर्तों को भी दर्शाती है कि उनके अनुसार वह जाति परमेश्वर की प्रजा होकर रहे। निर्गमन की पुस्तक में विश्वासयोग्य, सर्वशक्तिमान, उद्धारक, पवित्र परमेश्वर के गुण व्यक्त हैं जो इस्राएल के साथ वाचा बाँधता है। परमेश्वर के गुण उसके नाम और काम दोनों ही से प्रगट हैं। इसमें प्रगट किया गया है कि अब्राहम को दी गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा (उत्प. 15:12-16) कैसे पूरी हुई जब परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों को मिस्र के दासत्व से मुक्त कराया। यह एक परिवार की कहानी है जो चुनी हुई एक जाति बना। (निर्ग. 2:24; 6:5; 12:37) मिस्र से निकलने वाले इब्रानियों की संख्या लगभग 20 से 30 लाख होगी। \is मूल विषय \ip छुटकारा \iot रूपरेखा \io1 1. आमुख — 1:1-2:25 \io1 2. मिस्र से इस्राएल की मुक्ति — 3:1-18:27 \io1 3. सीनै पर्वत पर वाचा दी गई — 19:1-24:18 \io1 4. परमेश्वर का राजसी तम्बू — 25:1-31:18 \io1 5. विद्रोह के परिणामस्वरूप परमेश्वर से दूर होना — 32:1-34:35 \io1 6. परमेश्वर के मिलापवाले तम्बू की स्थापना — 35:1-40:38 \c 1 \s मिस्र में इस्राएलियों की दुर्दशा \p \v 1 इस्राएल के पुत्रों के नाम, जो अपने-अपने घराने को लेकर याकूब के साथ मिस्र देश में आए, ये हैं: \v 2 रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, \v 3 इस्साकार, जबूलून, बिन्यामीन, \v 4 दान, नप्ताली, गाद और आशेर। \v 5 और यूसुफ तो मिस्र में पहले ही आ चुका था। याकूब के निज वंश में जो उत्पन्न हुए वे सब सत्तर प्राणी थे। \bdit (प्रेरि. 7:14) \bdit* \v 6 यूसुफ, और उसके सब भाई, और उस पीढ़ी के सब लोग मर मिटे। \bdit (प्रेरि. 7:15) \bdit* \v 7 परन्तु इस्राएल की सन्तान फूलने-फलने लगी; और वे अत्यन्त सामर्थी बनते चले गए; और इतना अधिक बढ़ गए कि सारा देश उनसे भर गया। \p \v 8 मिस्र में एक नया राजा गद्दी पर बैठा जो यूसुफ को नहीं जानता था। \bdit (प्रेरि. 7:17,18) \bdit* \v 9 और उसने अपनी प्रजा से कहा, “देखो, इस्राएली हम से गिनती और सामर्थ्य में अधिक बढ़ गए हैं। \v 10 इसलिए आओ, हम उनके साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करें, कहीं ऐसा न हो कि जब वे बहुत बढ़ जाएँ, और यदि युद्ध का समय आ पड़े, तो हमारे बैरियों से मिलकर हम से लड़ें और इस देश से निकल जाएँ।” \v 11 इसलिए मिस्रियों ने उन पर \it बेगारी करानेवालों\f + \fr 1.11 \fq बेगारी करानेवालों: \ft वे पदाधिकारी लोग थे, जो जन कार्यों के निरक्षक थे।\f*\it* को नियुक्त किया कि वे उन पर भार डाल-डालकर उनको दुःख दिया करें; तब उन्होंने फ़िरौन के लिये पितोम और रामसेस नामक भण्डारवाले नगरों को बनाया। \v 12 पर ज्यों-ज्यों वे उनको दुःख देते गए त्यों-त्यों वे बढ़ते और फैलते चले गए; इसलिए वे इस्राएलियों से अत्यन्त डर गए। \v 13 तो भी मिस्रियों ने इस्राएलियों से कठोरता के साथ सेवा करवाई; \v 14 और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भाँति-भाँति के काम की कठिन सेवा से दुःखी कर डाला; जिस किसी काम में वे उनसे सेवा करवाते थे उसमें वे कठोरता का व्यवहार करते थे। \p \v 15 शिप्रा और पूआ नामक दो इब्री दाइयों को मिस्र के राजा ने आज्ञा दी, \v 16 “जब तुम इब्री स्त्रियों को बच्चा उत्पन्न होने के समय \it प्रसव के पत्थरों\f + \fr 1.16 \fq प्रसव के पत्थरों: \ft दो पत्थर: इस शब्द का अर्थ है बैठने का एक विशेष आसन है, जैसा स्मारकों में दर्शाया जाता है। \f*\it* पर बैठी देखो, तब यदि बेटा हो, तो उसे मार डालना; और बेटी हो, तो जीवित रहने देना।” \v 17 परन्तु वे दाइयाँ परमेश्वर का भय मानती थीं, इसलिए मिस्र के राजा की आज्ञा न मानकर लड़कों को भी जीवित छोड़ देती थीं। \v 18 तब मिस्र के राजा ने उनको बुलवाकर पूछा, “तुम जो लड़कों को जीवित छोड़ देती हो, तो ऐसा क्यों करती हो?” \bdit (प्रेरि. 7:19) \bdit* \v 19 दाइयों ने फ़िरौन को उतर दिया, “इब्री स्त्रियाँ मिस्री स्त्रियों के समान नहीं हैं; वे ऐसी फुर्तीली हैं कि दाइयों के पहुँचने से पहले ही उनको बच्चा उत्पन्न हो जाता है।” \v 20 इसलिए परमेश्वर ने दाइयों के साथ भलाई की; और वे लोग बढ़कर बहुत सामर्थी हो गए। \v 21 इसलिए कि दाइयाँ परमेश्वर का भय मानती थीं उसने उनके \it घर बसाए\f + \fr 1.21 \fq घर बसाए: \ft उन्होंने इब्री पुरुषों से विवाह किया और इस्राएल की माता ठहरीं। \f*\it*। \v 22 तब फ़िरौन ने अपनी सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, “इब्रियों के जितने बेटे उत्पन्न हों उन सभी को तुम नील नदी में डाल देना, और सब बेटियों को जीवित रख छोड़ना।” \bdit (प्रेरि. 7:19) \bdit* \c 2 \s मूसा का जन्म \p \v 1 लेवी के घराने के एक पुरुष ने एक लेवी वंश की स्त्री को ब्याह लिया। \v 2 वह स्त्री गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यह देखकर कि यह बालक सुन्दर है, उसे तीन महीने तक छिपा रखा। \bdit (प्रेरि. 7:20, इब्रा. 11:23) \bdit* \v 3 जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिये \it सरकण्डों की एक टोकरी\f + \fr 2.3 \fq सरकण्डों की एक टोकरी: \ft मिस्री लोग सरकण्डों का प्रयोग साधारणतः हलकी और तेज नाव बनाने के लिए करते थे।\f*\it* लेकर, उस पर चिकनी मिट्टी और राल लगाकर, उसमें बालक को रखकर नील नदी के किनारे कांसों के बीच छोड़ आई। \v 4 उस बालक कि बहन दूर खड़ी रही, कि देखे इसका क्या हाल होगा। \p \v 5 तब फ़िरौन की बेटी नहाने के लिये नदी के किनारे आई; उसकी सखियाँ नदी के किनारे-किनारे टहलने लगीं; तब उसने कांसों के बीच टोकरी को देखकर अपनी दासी को उसे ले आने के लिये भेजा। \bdit (प्रेरि. 7:21) \bdit* \v 6 तब उसने उसे खोलकर देखा कि एक रोता हुआ बालक है; तब \it उसे तरस आया\f + \fr 2.6 \fq उसे तरस आया: \ft उसकी भावनाओं का ज़िक्र करने का विशेष कारण है, क्योंकि इसी के कारण उस राजकुमारी ने अपने पिता की आज्ञा के बावजूद उस बालक को बचाया और उसे गोद लिया। \f*\it* और उसने कहा, “यह तो किसी इब्री का बालक होगा।” \v 7 तब बालक की बहन ने फ़िरौन की बेटी से कहा, “क्या मैं जाकर इब्री स्त्रियों में से किसी धाई को तेरे पास बुला ले आऊँ जो तेरे लिये बालक को दूध पिलाया करे?” \v 8 फ़िरौन की बेटी ने कहा, “जा।” तब लड़की जाकर बालक की माता को बुला ले आई। \v 9 फ़िरौन की बेटी ने उससे कहा, “तू इस बालक को ले जाकर मेरे लिये दूध पिलाया कर, और मैं तुझे मजदूरी दूँगी।” तब वह स्त्री बालक को ले जाकर दूध पिलाने लगी। \v 10 जब बालक कुछ बड़ा हुआ तब वह उसे फ़िरौन की बेटी के पास ले गई, और वह उसका बेटा ठहरा; और उसने यह कहकर उसका नाम \it मूसा\f + \fr 2.10 \fq मूसा: \ft राजकुमारी ने बालक का नाम मूसा, अर्थात् “पुत्र” या “निकाला हुआ” रखा, क्योंकि उसने उसे पानी में से निकाला था। \f*\it* रखा, “मैंने इसको जल से निकाला था।” \s मूसा का मिद्यान देश को भागना \p \v 11 उन दिनों में ऐसा हुआ कि जब मूसा जवान हुआ, और बाहर अपने भाई-बन्धुओं के पास जाकर उनके दुःखों पर दृष्टि करने लगा; तब उसने देखा कि कोई मिस्री जन मेरे एक इब्री भाई को मार रहा है। \v 12 जब उसने इधर-उधर देखा कि कोई नहीं है, तब उस मिस्री को मार डाला और रेत में छिपा दिया। \p \v 13 फिर दूसरे दिन बाहर जाकर उसने देखा कि दो इब्री पुरुष आपस में मारपीट कर रहे हैं; उसने अपराधी से कहा, “तू अपने भाई को क्यों मारता है?” \v 14 उसने कहा, “किसने तुझे हम लोगों पर हाकिम और न्यायी ठहराया? जिस भाँति तूने मिस्री को घात किया क्या उसी भाँति तू मुझे भी घात करना चाहता है?” तब मूसा यह सोचकर डर गया, “निश्चय वह बात खुल गई है।” \v 15 जब फ़िरौन ने यह बात सुनी तब मूसा को घात करने की योजना की। तब मूसा फ़िरौन के सामने से भागा, और मिद्यान देश में जाकर रहने लगा; और वह वहाँ एक कुएँ के पास बैठ गया। \bdit (इब्रा. 11:27) \bdit* \p \v 16 मिद्यान के याजक की सात बेटियाँ थीं; और वे वहाँ आकर जल भरने लगीं कि कठौतों में भरकर अपने पिता की भेड़-बकरियों को पिलाएँ। \v 17 तब चरवाहे आकर उनको हटाने लगे; इस पर मूसा ने खड़े होकर उनकी सहायता की, और भेड़-बकरियों को पानी पिलाया। \v 18 जब वे अपने पिता \it रूएल\f + \fr 2.18 \fq रूएल: \ft इस नाम का अर्थ “परमेश्वर का मित्र” है। \f*\it* के पास फिर आई, तब उसने उनसे पूछा, “क्या कारण है कि आज तुम ऐसी फुर्ती से आई हो?” \v 19 उन्होंने कहा, “एक मिस्री पुरुष ने हमको चरवाहों के हाथ से छुड़ाया, और हमारे लिये बहुत जल भरकर भेड़-बकरियों को पिलाया।” \v 20 तब उसने अपनी बेटियों से पूछा, “वह पुरुष कहाँ है? तुम उसको क्यों छोड़ आई हो? उसको बुला ले आओ कि वह भोजन करे।” \v 21 और मूसा उस पुरुष के साथ रहने को प्रसन्न हुआ; उसने उसे अपनी बेटी सिप्पोरा को ब्याह दिया। \v 22 और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, तब मूसा ने यह कहकर, “मैं अन्य देश में परदेशी हूँ,” उसका नाम गेर्शोम रखा। \bdit (प्रेरि. 7:29, प्रेरि. 7:6) \bdit* \p \v 23 बहुत दिनों के बीतने पर मिस्र का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी-लम्बी साँस लेकर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दुहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुँची। \v 24 और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपनी वाचा को, जो उसने अब्राहम, और इसहाक, और याकूब के साथ बाँधी थी, स्मरण किया। \bdit (प्रेरि. 7:34) \bdit* \v 25 और परमेश्वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर \it चित्त लगाया\f + \fr 2.25 \fq चित्त लगाया: \ft इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने उनकी प्रार्थनाओं को सुनकर, विशेषकर उनके विश्वास और सन्ताप के पीछे छिपी हुई उनकी पीड़ा को देखा और उसे उन पर तरस आया। \f*\it*। \c 3 \s मूसा और जलती हुई झाड़ी \p \v 1 मूसा अपने ससुर यित्रो नामक मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियों को चराता था; और वह उन्हें जंगल की पश्चिमी ओर होरेब नामक परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। \v 2 और \it परमेश्वर के दूत\f + \fr 3.2 \fq परमेश्वर के दूत: \ft मूसा ने जो देखा वह झाड़ी में आग की लौ थी, और उसे उसमें परमेश्वर की उपस्थिति का बोध हुआ।\f*\it* ने एक कँटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उसने दृष्टि उठाकर देखा कि झाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। \bdit (मर. 12:26, लूका 20:37) \bdit* \v 3 तब मूसा ने कहा, “मैं उधर जाकर इस बड़े अचम्भे को देखूँगा कि वह झाड़ी क्यों नहीं जल जाती।” \bdit (प्रेरि. 7:30,31) \bdit* \v 4 जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने झाड़ी के बीच से उसको पुकारा, “हे मूसा, हे मूसा!” मूसा ने कहा, “क्या आज्ञा।” \v 5 उसने कहा, “इधर पास मत आ, और अपने \it पाँवों से जूतियों को उतार दे\f + \fr 3.5 \fq पाँवों से जूतियों को उतार दे: \ft अतः पवित्रस्थानों को आदर दिया जाना, परमेश्वर की आज्ञा पर निर्भर है।\f*\it*, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह \it पवित्र भूमि\f + \fr 3.5 \fq पवित्र भूमि: \ft वह भूमि परमेश्वर की उपस्थिति से पवित्र हो गई थी।\f*\it* है।” \bdit (प्रेरि. 7:33) \bdit* \v 6 फिर उसने कहा, “मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ।” तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता था अपना मुँह ढाँप लिया। \bdit (मत्ती 22:32, मर. 12:26, लूका 20:37) \bdit* \p \v 7 फिर यहोवा ने कहा, “मैंने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दुःख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैंने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैंने चित्त लगाया है; \v 8 इसलिए अब मैं उतर आया हूँ कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाऊँ, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिसमें दूध और मधु की धारा बहती है, अर्थात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के स्थान में पहुँचाऊँ। \v 9 इसलिए अब सुन, इस्राएलियों की चिल्लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्रियों का उन पर अंधेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है, \v 10 इसलिए आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए।” \bdit (प्रेरि. 7:34) \bdit* \v 11 तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं कौन हूँ जो फ़िरौन के पास जाऊँ, और इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले आऊँ?” \v 12 उसने कहा, “निश्चय मैं तेरे संग रहूँगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूँ, तेरे लिए यह चिन्ह होगा; कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे।” \bdit (प्रेरि. 7:7) \bdit* \p \v 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, “जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर उनसे यह कहूँ, ‘तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है,’ तब यदि वे मुझसे पूछें, ‘उसका क्या नाम है?’ तब मैं उनको क्या बताऊँ?” \v 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं जो हूँ सो हूँ।” फिर उसने कहा, “तू इस्राएलियों से यह कहना, ‘जिसका नाम मैं हूँ है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।’” \bdit (प्रका. 1:4,8, प्रका. 4:8, प्रका. 11:17) \bdit* \v 15 फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “तू इस्राएलियों से यह कहना, ‘तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी-पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।’ \bdit (मत्ती 22:32, मर. 12:26) \bdit* \v 16 इसलिए अब जाकर इस्राएली पुरनियों को इकट्ठा कर, और उनसे कह, ‘तुम्हारे पूर्वज अब्राहम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है कि मैंने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मिस्र में किया जाता है उस पर भी चित्त लगाया है; \v 17 और मैंने ठान लिया है कि तुम को मिस्र के दुःखों में से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी, और यबूसी लोगों के देश में ले चलूँगा, जो ऐसा देश है कि जिसमें दूध और मधु की धारा बहती है।’ \v 18 तब वे तेरी मानेंगे; और तू इस्राएली पुरनियों को संग लेकर मिस्र के राजा के पास जाकर उससे यह कहना, ‘इब्रियों के परमेश्वर, यहोवा से हम लोगों की भेंट हुई है; इसलिए अब हमको तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे कि अपने परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएँ।’ \v 19 मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम को जाने न देगा वरन् बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। \bdit (निर्ग. 5:2) \bdit* \v 20 इसलिए मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मों से जो मिस्र के बीच करूँगा उस देश को मारूँगा; और उसके पश्चात् वह तुम को जाने देगा। \v 21 तब मैं मिस्रियों से अपनी इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊँगा; और जब तुम निकलोगे तब खाली हाथ न निकलोगे। \v 22 वरन् तुम्हारी एक-एक स्त्री अपनी-अपनी पड़ोसिन, और अपने-अपने घर में रहनेवाली से सोने चाँदी के गहने, और वस्त्र माँग लेगी, और तुम उन्हें अपने बेटों और बेटियों को पहनाना; इस प्रकार तुम मिस्रियों को लूटोगे।” \c 4 \s मूसा के लिये अद्भुत चिन्ह \p \v 1 तब मूसा ने उत्तर दिया, “वे मुझ पर विश्वास न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन् कहेंगे, ‘यहोवा ने तुझको दर्शन नहीं दिया।’” \v 2 यहोवा ने उससे कहा, “तेरे हाथ में वह क्या है?” वह बोला, “\it लाठी\f + \fr 4.2 \fq लाठी: \ft यहाँ लाठी शब्द का अभिप्राय उस बड़ी लाठी से है जो उन लोगों के हाथ में होती थी जिनके पास अधिकार का पद होता था।\f*\it*।” \v 3 उसने कहा, “उसे भूमि पर डाल दे।” जब उसने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके सामने से भागा। \v 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “हाथ बढ़ाकर उसकी पूँछ पकड़ ले, ताकि वे लोग विश्वास करें कि तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर अर्थात् अब्राहम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझको दर्शन दिया है।” \v 5 जब उसने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई। \p \v 6 फिर यहोवा ने उससे यह भी कहा, “अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप।” अतः उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा, कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। \v 7 तब उसने कहा, “अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढाँप।” और उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप लिया; और जब उसने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। \v 8 तब यहोवा ने कहा, “यदि वे तेरी बात पर विश्वास न करें, और पहले चिन्ह को न मानें, तो दूसरे चिन्ह पर विश्वास करेंगे। \v 9 और यदि वे इन दोनों चिन्हों पर विश्वास न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल लेकर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लहू बन जाएगा।” \bdit (निर्ग. 7:19) \bdit* \p \v 10 मूसा ने यहोवा से कहा, “हे मेरे प्रभु, मैं \it बोलने में निपुण\f + \fr 4.10 \fq बोलने में निपुण: \ft इसका अर्थ शब्द ढूँढ़ने और उन्हें बोलने में कठिनाई का होना है। \f*\it* नहीं, न तो पहले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुँह और जीभ का भद्दा हूँ।” \v 11 यहोवा ने उससे कहा, “मनुष्य का मुँह किसने बनाया है? और मनुष्य को गूँगा, या बहरा, या देखनेवाला, या अंधा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है? \v 12 अब जा, मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखाता जाऊँगा।” \v 13 उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, कृपया तू किसी अन्य व्यक्ति को भेज।” \v 14 तब यहोवा का कोप मूसा पर भड़का और उसने कहा, “क्या तेरा भाई लेवीय \it हारून\f + \fr 4.14 \fq हारून: \ft हारून के पास बोलने की इच्छा और सामर्थ्य दोनों थी। यहाँ हारून को लेवीय कहा गया है। \f*\it* नहीं है? मुझे तो निश्चय है कि वह बोलने में निपुण है, और वह तुझ से भेंट करने के लिये निकल भी गया है, और तुझे देखकर मन में आनन्दित होगा। \v 15 इसलिए तू उसे ये बातें सिखाना; और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुम्हें करना होगा वह तुम को सिखाता जाऊँगा। \v 16 वह तेरी ओर से लोगों से बातें किया करेगा; वह तेरे लिये मुँह और तू उसके लिये परमेश्वर ठहरेगा। \v 17 और तू इस लाठी को हाथ में लिए जा, और इसी से इन चिन्हों को दिखाना।” \s मूसा का मिस्र देश लौटना \p \v 18 तब मूसा अपने ससुर यित्रो के पास लौटा और उससे कहा, “मुझे विदा कर, कि मैं मिस्र में रहनेवाले अपने भाइयों के पास जाकर देखूँ कि वे अब तक जीवित हैं या नहीं।” यित्रो ने कहा, “कुशल से जा।” \v 19 और यहोवा ने मिद्यान देश में मूसा से कहा, “मिस्र को लौट जा; क्योंकि जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं।” \bdit (मत्ती 2:20) \bdit* \v 20 तब मूसा अपनी पत्नी और बेटों को गदहे पर चढ़ाकर मिस्र देश की ओर \it परमेश्वर की उस लाठी\f + \fr 4.20 \fq परमेश्वर की उस लाठी: \ft मूसा की लाठी आश्चर्यकर्मों द्वारा पवित्र ठहरी और वह परमेश्वर की लाठी बन गई। (निर्ग. 4:2) \f*\it* को हाथ में लिये हुए लौटा। \p \v 21 और यहोवा ने मूसा से कहा, “जब तू मिस्र में पहुँचे तब सावधान हो जाना, और जो चमत्कार मैंने तेरे वश में किए हैं उन सभी को फ़िरौन को दिखलाना; परन्तु मैं उसके मन को हठीला करूँगा, और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। \bdit (रोम. 9:18) \bdit* \v 22 और तू फ़िरौन से कहना, ‘यहोवा यह कहता है, कि इस्राएल मेरा पुत्र वरन् मेरा पहिलौठा है, \v 23 और मैं जो तुझ से कह चुका हूँ, कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे; और तूने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्र वरन् तेरे पहलौठे को घात करूँगा।’” \p \v 24 तब ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। \v 25 तब सिप्पोरा ने एक तेज चकमक पत्थर लेकर अपने बेटे की खलड़ी को काट डाला, और मूसा के पाँवों पर यह कहकर फेंक दिया, “निश्चय तू \it लहू बहानेवाला मेरा पति है\f + \fr 4.25 \fq लहू बहानेवाला मेरा पति है: \ft उनके बीच विवाह के बंधन पर अब लहू बहाने के द्वारा मुहर लगी। उस विधि को पूरा करके, सिप्पोरा ने अपने पति को पुनः पा लिया; उसके बेटे के लहू के द्वारा उसने अपने पति के जीवन को खरीद लिया। \f*\it*।” \v 26 तब उसने उसको छोड़ दिया। और उसी समय खतने के कारण वह बोली, “तू लहू बहानेवाला पति है।” \s मूसा और हारून की भेंट \p \v 27 तब यहोवा ने हारून से कहा, “मूसा से भेंट करने को जंगल में जा।” और वह गया, और परमेश्वर के पर्वत पर उससे मिला और उसको चूमा। \v 28 तब मूसा ने हारून को यह बताया कि यहोवा ने क्या-क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन-कौन से चिन्ह दिखलाने की आज्ञा उसे दी है। \v 29 तब मूसा और हारून ने जाकर इस्राएलियों के सब पुरनियों को इकट्ठा किया। \v 30 और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही थीं वह सब हारून ने उन्हें सुनाई, और लोगों के सामने वे चिन्ह भी दिखलाए। \v 31 और लोगों ने उन पर विश्वास किया; और यह सुनकर कि यहोवा ने इस्राएलियों की सुधि ली और उनके दुःखों पर दृष्टि की है, उन्होंने सिर झुकाकर दण्डवत् किया। \bdit (निर्ग. 3:15,18) \bdit* \c 5 \s फ़िरौन के सामने मूसा और हारून \p \v 1 इसके पश्चात् मूसा और हारून ने जाकर फ़िरौन से कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, ‘मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे जंगल में मेरे लिये पर्व करें।’” \v 2 फ़िरौन ने कहा, “यहोवा कौन है कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियों को जाने दूँ? \it मैं यहोवा को नहीं जानता\f + \fr 5.2 \fq मैं यहोवा को नहीं जानता: \ft या तो फ़िरौन ने यहोवा का नाम नहीं सुना था, या वह उसे परमेश्वर के रूप में नहीं पहचानता था।\f*\it*, और मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूँगा।” \v 3 उन्होंने कहा, “इब्रियों के परमेश्वर ने हम से भेंट की है; इसलिए हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलिदान करें, ऐसा न हो कि वह हम में मरी फैलाए या तलवार चलवाए।” \v 4 मिस्र के राजा ने उनसे कहा, “हे मूसा, हे हारून, तुम क्यों लोगों से काम छुड़वाना चाहते हो? तुम जाकर अपने-अपने बोझ को उठाओ।” \v 5 और फ़िरौन ने कहा, “सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको उनके परिश्रम से विश्राम दिलाना चाहते हो!” \s फ़िरौन द्वारा लोगों को दण्ड \p \v 6 फ़िरौन ने उसी दिन उन परिश्रम करवानेवालों को जो उन लोगों के ऊपर थे, और उनके सरदारों को यह आज्ञा दी, \v 7 “तुम जो अब तक ईंटें बनाने के लिये लोगों को पुआल दिया करते थे वह आगे को न देना; वे आप ही जाकर अपने लिये पुआल इकट्ठा करें। \v 8 तो भी जितनी ईंटें अब तक उन्हें बनानी पड़ती थीं उतनी ही आगे को भी उनसे बनवाना, ईंटों की गिनती कुछ भी न घटाना; क्योंकि वे आलसी हैं; इस कारण वे यह कहकर चिल्लाते हैं, ‘हम जाकर अपने परमेश्वर के लिये बलिदान करें।’ \v 9 उन मनुष्यों से और भी कठिन सेवा करवाई जाए कि वे उसमें परिश्रम करते रहें और झूठी बातों पर ध्यान न लगाएँ।” \p \v 10 तब लोगों के परिश्रम करानेवालों ने और सरदारों ने बाहर जाकर उनसे कहा, “फ़िरौन इस प्रकार कहता है, ‘मैं तुम्हें पुआल नहीं दूँगा। \v 11 तुम ही जाकर जहाँ कहीं पुआल मिले वहाँ से उसको बटोरकर ले आओ; परन्तु तुम्हारा काम कुछ भी नहीं घटाया जाएगा।’” \v 12 इसलिए वे लोग सारे मिस्र देश में तितर-बितर हुए कि पुआल के बदले खूँटी बटोरें। \v 13 परिश्रम करनेवाले यह कह-कहकर उनसे जल्दी करते रहे कि जिस प्रकार तुम पुआल पाकर किया करते थे उसी प्रकार अपना प्रतिदिन का काम अब भी पूरा करो। \v 14 और इस्राएलियों में से जिन सरदारों को फ़िरौन के परिश्रम करानेवालों ने उनका अधिकारी ठहराया था, उन्होंने मार खाई, और उनसे पूछा गया, “क्या कारण है कि तुम ने अपनी ठहराई हुई ईंटों की गिनती के अनुसार पहले के समान कल और आज पूरी नहीं कराई?” \p \v 15 तब इस्राएलियों के सरदारों ने जाकर फ़िरौन की दुहाई यह कहकर दी, “तू अपने दासों से ऐसा बर्ताव क्यों करता है? \v 16 तेरे दासों को पुआल तो दिया ही नहीं जाता और वे हम से कहते रहते हैं, ‘ईंटें बनाओ, ईंटें बनाओ,’ और तेरे दासों ने भी मार खाई है; परन्तु दोष तेरे ही लोगों का है।” \v 17 फ़िरौन ने कहा, “\it तुम आलसी हो, आलसी\f + \fr 5.17 \fq तुम आलसी हो, आलसी: \ft यहाँ पुरानी मिस्री भाषा का उपयोग है जो आलस की अवमानना को दर्शाती है। आरोप आक्रामक और सीधा था। \f*\it*; इसी कारण कहते हो कि हमें यहोवा के लिये बलिदान करने को जाने दे। \v 18 अब जाकर अपना काम करो; और पुआल तुम को नहीं दिया जाएगा, परन्तु ईंटों की गिनती पूरी करनी पड़ेगी।” \v 19 जब इस्राएलियों के सरदारों ने यह बात सुनी कि उनकी ईंटों की गिनती न घटेगी, और प्रतिदिन उतना ही काम पूरा करना पड़ेगा, तब वे जान गए कि उनके संकट के दिन आ गए हैं। \v 20 जब वे फ़िरौन के सम्मुख से बाहर निकल आए तब मूसा और हारून, जो उनसे भेंट करने के लिये खड़े थे, उन्हें मिले। \v 21 और उन्होंने मूसा और हारून से कहा, “यहोवा तुम पर दृष्टि करके न्याय करे, क्योंकि तुम ने हमको फ़िरौन और उसके कर्मचारियों की दृष्टि में घृणित ठहराकर हमें घात करने के लिये उनके हाथ में तलवार दे दी है।” \s मूसा की परमेश्वर से शिकायत \p \v 22 तब मूसा ने यहोवा के पास लौटकर कहा, “हे प्रभु, तूने इस प्रजा के साथ ऐसी बुराई क्यों की? और तूने मुझे यहाँ क्यों भेजा? \v 23 जब से मैं तेरे नाम से फ़िरौन के पास बातें करने के लिये गया तब से उसने इस प्रजा के साथ बुरा ही व्यवहार किया है, और तूने अपनी प्रजा का कुछ भी छुटकारा नहीं किया।” \c 6 \p \v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तू देखेगा कि मैं फ़िरौन से क्या करूँगा; जिससे वह उनको बरबस निकालेगा, वह तो उन्हें अपने देश से बरबस निकाल देगा।” \s परमेश्वर का छुटकारे का वादा \p \v 2 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “\it मैं यहोवा हूँ\f + \fr 6.2 \fq मैं यहोवा हूँ: \ft इसका अर्थ यह प्रतीत होता है मैं यहोवा हूँ, और मैंने अपने को अब्राहम, इसहाक, और याकूब पर प्रगट किया था।\f*\it*; \v 3 मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से अब्राहम, इसहाक, और याकूब को दर्शन देता था, परन्तु यहोवा के नाम से मैं उन पर प्रगट न हुआ। \v 4 और मैंने उनके साथ अपनी वाचा दृढ़ की है, अर्थात् कनान देश जिसमें वे परदेशी होकर रहते थे, उसे उन्हें दे दूँ। \v 5 इस्राएली जिन्हें मिस्री लोग दासत्व में रखते हैं उनका कराहना भी सुनकर मैंने अपनी वाचा को स्मरण किया है। \v 6 इस कारण तू इस्राएलियों से कह, ‘मैं यहोवा हूँ, और तुम को मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकालूँगा, और उनके दासत्व से तुम को छुड़ाऊँगा, और अपनी भुजा बढ़ाकर और भारी दण्ड देकर तुम्हें छुड़ा लूँगा, \bdit (प्रेरि. 13:17) \bdit* \v 7 और मैं तुम को अपनी प्रजा बनाने के लिये अपना लूँगा, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँगा; और तुम जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकाल ले आया। \v 8 और जिस देश के देने की शपथ मैंने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से खाई थी उसी में मैं तुम्हें पहुँचाकर उसे तुम्हारा भागकर दूँगा। मैं तो यहोवा हूँ।’” \v 9 ये बातें मूसा ने इस्राएलियों को सुनाईं; परन्तु उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उसकी न सुनी। \p \v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, \v 11 “तू जाकर मिस्र के राजा फ़िरौन से कह कि इस्राएलियों को अपने \it देश में से निकल जाने दे\f + \fr 6.11 \fq देश में से निकल जाने दे: \ft मूसा अब तीन दिन की यात्रा पर जाने की अनुमति नहीं माँगता जो शायद मिस्र की सीमाओं में ही होती, बल्कि वह उस देश से निकल जाने की माँग करता है।\f*\it*।” \v 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, “देख, इस्राएलियों ने मेरी नहीं सुनी; फिर फ़िरौन मुझ भद्दे बोलनेवाले की कैसे सुनेगा?” \v 13 तब यहोवा ने मूसा और हारून को इस्राएलियों और मिस्र के राजा फ़िरौन के लिये आज्ञा इस अभिप्राय से दी कि वे इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल ले जाएँ। \s मूसा और हारून की वंशावली \p \v 14 उनके पितरों के घरानों के मुख्य पुरुष ये हैं: इस्राएल का पहिलौठा रूबेन के पुत्र: हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्मी थे; इन्हीं से रूबेन के कुल निकले। \v 15 और शिमोन के पुत्र: यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, और सोहर थे, और एक कनानी स्त्री का बेटा शाऊल भी था; इन्हीं से शिमोन के कुल निकले। \v 16 लेवी के पुत्र जिनसे उनकी वंशावली चली है, उनके नाम ये हैं: अर्थात् गेर्शोन, कहात और मरारी, और लेवी की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। \v 17 गेर्शोन के पुत्र जिनसे उनका कुल चला: लिब्नी और शिमी थे। \v 18 कहात के पुत्र: अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे, और कहात की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। \v 19 मरारी के पुत्र: महली और मूशी थे। लेवियों के कुल जिनसे उनकी वंशावली चली ये ही हैं। \v 20 अम्राम ने अपनी फूफी \it योकेबेद\f + \fr 6.20 \fq योकेबेद: \ft इस नाम का अर्थ है यहोवा की महिमा। \f*\it* को ब्याह लिया और उससे हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। \v 21 यिसहार के पुत्र: कोरह, नेपेग और जिक्री थे। \v 22 उज्जीएल के पुत्र: मीशाएल, एलसाफान और सित्री थे। \v 23 हारून ने अम्मीनादाब की बेटी, और नहशोन की बहन एलीशेबा को ब्याह लिया; और उससे नादाब, अबीहू, और ईतामार उत्पन्न हुए। \v 24 कोरह के पुत्र: अस्सीर, एलकाना और अबीआसाप थे; और इन्हीं से कोरहियों के कुल निकले। \p \v 25 हारून के पुत्र एलीआजर ने पूतीएल की एक बेटी को ब्याह लिया; और उससे पीनहास उत्पन्न हुआ। जिनसे उनका कुल चला। लेवियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरुष ये ही हैं। \v 26 हारून और मूसा वे ही हैं जिनको यहोवा ने यह आज्ञा दी: “इस्राएलियों को दल-दल करके उनके जत्थों के अनुसार मिस्र देश से निकाल ले आओ।” \v 27 ये वही मूसा और हारून हैं जिन्होंने मिस्र के राजा फ़िरौन से कहा कि हम इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले जाएँगे। \s यहोवा का मूसा को फिर से बुलाया जाना \p \v 28 जब यहोवा ने मिस्र देश में मूसा से यह बात कहीं, \v 29 “मैं तो यहोवा हूँ; इसलिए जो कुछ मैं तुम से कहूँगा वह सब मिस्र के राजा फ़िरौन से कहना।” \v 30 परन्तु मूसा ने यहोवा को उत्तर दिया, “मैं तो बोलने में भद्दा हूँ; और फ़िरौन कैसे मेरी सुनेगा?” \c 7 \p \v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “सुन, \it मैं तुझे फ़िरौन के लिये परमेश्वर सा ठहराता हूँ\f + \fr 7.1 \fq मैं तुझे .... परमेश्वर सा ठहराता हूँ: \ft यह परिच्छेद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह नबी की प्राथमिक और आवश्यक चरित्र विशेषताओं के बारे में बताता है, वह परमेश्वर की इच्छा और उद्देश्य को बतानेवाला है। \f*\it*; और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा। \v 2 जो-जो आज्ञा मैं तुझे दूँ वही तू कहना, और हारून उसे फ़िरौन से कहेगा जिससे वह इस्राएलियों को अपने देश से निकल जाने दे। \v 3 परन्तु मैं फ़िरौन के मन को कठोर कर दूँगा, और अपने चिन्ह और चमत्कार मिस्र देश में बहुत से दिखलाऊँगा। \bdit (प्रेरि. 7:36) \bdit* \v 4 तो भी फ़िरौन तुम्हारी न सुनेगा; और मैं मिस्र देश पर अपना हाथ बढ़ाकर मिस्रियों को भारी दण्ड देकर अपनी सेना अर्थात् अपनी इस्राएली प्रजा को मिस्र देश से निकाल लूँगा। \v 5 और जब मैं मिस्र पर हाथ बढ़ाकर इस्राएलियों को उनके बीच से निकालूँगा तब मिस्री जान लेंगे, कि मैं यहोवा हूँ।” \v 6 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। \v 7 तब जब मूसा और हारून फ़िरौन से बात करने लगे तब मूसा तो अस्सी वर्ष का था, और हारून तिरासी वर्ष का था। \s हारून की चमत्कारी लाठी \p \v 8 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से इस प्रकार कहा, \v 9 “जब फ़िरौन तुम से कहे, ‘अपने प्रमाण का कोई चमत्कार दिखाओ,’ तब तू हारून से कहना, ‘\it अपनी लाठी\f + \fr 7.9 \fq अपनी लाठी: \ft स्पष्ट रूप यह वह लाठी थी जिसका वर्णन (निर्ग. 4:2) में किया गया, जिसको मूसा ने इस अवसर पर अपने प्रतिनिधि के रूप में दिया था। \f*\it* को लेकर फ़िरौन के सामने डाल दे, कि वह अजगर बन जाए।’” \v 10 तब मूसा और हारून ने फ़िरौन के पास जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया; और जब हारून ने अपनी लाठी को फ़िरौन और उसके कर्मचारियों के सामने डाल दिया, तब वह अजगर बन गई। \v 11 तब फ़िरौन ने पंडितों और टोनहा करनेवालों को बुलवाया; और मिस्र के जादूगरों ने आकर अपने-अपने तंत्र-मंत्र से वैसा ही किया। \v 12 उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी को डाल दिया, और वे भी अजगर बन गई। पर हारून की लाठी उनकी लाठियों को निगल गई। \v 13 परन्तु फ़िरौन का मन और हठीला हो गया, और यहोवा के वचन के अनुसार उसने मूसा और हारून की बातों को नहीं माना। \s मिस्रियों पर दस विपत्तियाँ \p \v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “फ़िरौन का मन कठोर हो गया है और वह इस प्रजा को जाने नहीं देता। \v 15 इसलिए सवेरे के समय फ़िरौन के पास जा, वह तो जल की ओर बाहर आएगा; और जो लाठी सर्प बन गई थी, उसको हाथ में लिए हुए नील नदी के तट पर उससे भेंट करने के लिये खड़े रहना। \v 16 और उससे इस प्रकार कहना, ‘इब्रियों के परमेश्वर यहोवा ने मुझे यह कहने के लिये तेरे पास भेजा है कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे कि जिससे वे जंगल में मेरी उपासना करें; और अब तक तूने मेरा कहना नहीं माना। \v 17 यहोवा यह कहता है, इससे तू जान लेगा कि मैं ही परमेश्वर हूँ; देख, मैं अपने हाथ की लाठी को नील नदी के जल पर मारूँगा, और जल लहू बन जाएगा, \v 18 और जो मछलियाँ नील नदी में हैं वे मर जाएँगी, और नील नदी से दुर्गन्ध आने लगेगी, और मिस्रियों का जी नदी का पानी पीने के लिये न चाहेगा।’” \v 19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कह कि अपनी लाठी लेकर मिस्र देश में जितना जल है, अर्थात् उसकी नदियाँ, नहरें, झीलें, और जलकुण्ड, सब के ऊपर अपना हाथ बढ़ा कि उनका जल लहू बन जाए; और सारे मिस्र देश में काठ और पत्थर दोनों भाँति के जलपात्रों में लहू ही लहू हो जाएगा।” \bdit (प्रका. 8:8, प्रका. 11:6) \bdit* \s प्रथम विपत्ति - जल का लहू में बदलना \p \v 20 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा ही के अनुसार किया, अर्थात् उसने लाठी को उठाकर फ़िरौन और उसके कर्मचारियों के देखते नील नदी के जल पर मारा, और नदी का सब जल लहू बन गया। \v 21 और नील नदी में जो मछलियाँ थीं वे मर गई; और नदी से दुर्गन्ध आने लगी, और मिस्री लोग नदी का पानी न पी सके; और सारे मिस्र देश में लहू हो गया। \bdit (प्रका. 16:3) \bdit* \v 22 तब मिस्र के जादूगरों ने भी अपने तंत्र-मंत्रों से वैसा ही किया; तो भी फ़िरौन का मन हठीला हो गया, और यहोवा के कहने के अनुसार उसने मूसा और हारून की न मानी। \v 23 फ़िरौन ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया, और मुँह फेरकर अपने घर में चला गया। \v 24 और सब मिस्री लोग पीने के जल के लिये नील नदी के आस-पास खोदने लगे, क्योंकि वे नदी का जल नहीं पी सकते थे। \p \v 25 जब यहोवा ने नील नदी को मारा था तब से सात दिन हो चुके थे। \c 8 \s दूसरी विपत्ति - मेंढ़कों का आक्रमण \p \v 1 तब यहोवा ने फिर मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जाकर कह, ‘यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे जिससे वे मेरी उपासना करें। \v 2 परन्तु यदि उन्हें जाने न देगा तो सुन, मैं मेंढ़क भेजकर तेरे सारे देश को हानि पहुँचानेवाला हूँ। \v 3 और नील नदी मेंढ़कों से भर जाएगी, और वे तेरे भवन में, और तेरे बिछौने पर, और तेरे कर्मचारियों के घरों में, और तेरी प्रजा पर, वरन् तेरे तन्दूरों और कठौतियों में भी चढ़ जाएँगे। \v 4 और तुझ पर, और तेरी प्रजा, और तेरे कर्मचारियों, सभी पर मेंढ़क चढ़ जाएँगे।’” \p \v 5 फिर यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी, “हारून से कह दे, कि नदियों, नहरों, और झीलों के ऊपर लाठी के साथ अपना हाथ बढ़ाकर मेंढ़कों को मिस्र देश पर चढ़ा ले आए।” \v 6 तब हारून ने मिस्र के जलाशयों के ऊपर अपना हाथ बढ़ाया; और मेंढ़कों ने मिस्र देश पर चढ़कर उसे छा लिया। \v 7 और जादूगर भी अपने तंत्र-मंत्रों से उसी प्रकार मिस्र देश पर मेंढ़क चढ़ा ले आए। \p \v 8 तब फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, “यहोवा से विनती करो कि वह मेंढ़कों को मुझसे और मेरी प्रजा से दूर करे; और मैं इस्राएली लोगों को जाने दूँगा। जिससे वे यहोवा के लिये बलिदान करें।” \v 9 तब मूसा ने फ़िरौन से कहा, “इतनी बात के लिये तू मुझे आदेश दे कि अब मैं तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के निमित्त कब विनती करूँ, कि यहोवा तेरे पास से और तेरे घरों में से मेंढ़कों को दूर करे, और वे केवल नील नदी में पाए जाएँ?” \v 10 उसने कहा, “कल।” उसने कहा, “तेरे वचन के अनुसार होगा, जिससे तुझे यह ज्ञात हो जाए कि हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कोई दूसरा नहीं है। \v 11 और मेंढ़क तेरे पास से, और तेरे घरों में से, और तेरे कर्मचारियों और प्रजा के पास से दूर होकर केवल नील नदी में रहेंगे।” \v 12 तब मूसा और हारून फ़िरौन के पास से निकल गए; और मूसा ने उन मेंढ़कों के विषय यहोवा की दुहाई दी जो उसने फ़िरौन पर भेजे थे। \v 13 और यहोवा ने मूसा के कहने के अनुसार किया; और मेंढ़क घरों, आँगनों, और खेतों में मर गए। \v 14 और लोगों ने इकट्ठे करके उनके ढेर लगा दिए, और सारा देश दुर्गन्ध से भर गया। \v 15 परन्तु जब फ़िरौन ने देखा कि अब आराम मिला है तब यहोवा के कहने के अनुसार उसने फिर अपने मन को कठोर किया, और उनकी न सुनी। \s तीसरी विपत्ति - कुटकियों के झुण्ड \p \v 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून को आज्ञा दे, ‘तू अपनी लाठी बढ़ाकर \it भूमि की धूल\f + \fr 8.16 \fq भूमि की धूल: \ft इससे पहले की दो विपत्तियाँ नील नदी पर पड़ी थीं। यह विपत्ति उस भूमि पर पड़ी जिसे वे मिस्र में पूजते थे और देवताओं का पिता मानते थे।\f*\it* पर मार, जिससे वह मिस्र देश भर में कुटकियाँ बन जाएँ।’” \v 17 और उन्होंने वैसा ही किया; अर्थात् हारून ने लाठी को ले हाथ बढ़ाकर भूमि की धूल पर मारा, तब मनुष्य और पशु दोनों पर कुटकियाँ हो गईं वरन् सारे मिस्र देश में भूमि की धूल कुटकियाँ बन गईं। \v 18 तब जादूगरों ने चाहा कि अपने तंत्र-मंत्रों के बल से हम भी कुटकियाँ ले आएँ, परन्तु यह उनसे न हो सका। और मनुष्यों और पशुओं दोनों पर कुटकियाँ बनी ही रहीं। \v 19 तब जादूगरों ने फ़िरौन से कहा, “यह तो \it परमेश्वर के हाथ\f + \fr 8.19 \fq परमेश्वर के हाथ: \ft इसका यह अर्थ यह नहीं कि जादूगरों ने यहोवा को अद्भुत कार्य करनेवाले परमेश्वर के रूप में पहचाना था। सम्भव है कि उन्होंने उसका ऐसे ईश्वर के रूप में ज़िक्र किया जो उनके अपने रक्षकों का बैरी है। \f*\it* का काम है।” तो भी यहोवा के कहने के अनुसार फ़िरौन का मन कठोर होता गया, और उसने मूसा और हारून की बात न मानी। \s चौथी विपत्ति - डांसों के झुण्ड \p \v 20 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “सवेरे उठकर फ़िरौन के सामने खड़ा होना, वह तो जल की ओर आएगा, और उससे कहना, ‘यहोवा तुझ से यह कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। \v 21 यदि तू मेरी प्रजा को न जाने देगा तो सुन, मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर, और तेरे घरों में झुण्ड के झुण्ड डांस भेजूँगा; और मिस्रियों के घर और उनके रहने की भूमि भी डांसों से भर जाएगी। \v 22 उस दिन मैं गोशेन देश को जिसमें मेरी प्रजा रहती है अलग करूँगा, और उसमें डांसों के झुण्ड न होंगे; जिससे तू जान ले कि पृथ्वी के बीच मैं ही यहोवा हूँ। \v 23 और मैं अपनी प्रजा और तेरी प्रजा में अन्तर ठहराऊँगा। यह चिन्ह कल होगा।’” \v 24 और यहोवा ने वैसा ही किया, और फ़िरौन के भवन, और उसके कर्मचारियों के घरों में, और सारे मिस्र देश में डांसों के झुण्ड के झुण्ड भर गए, और डांसों के मारे वह देश नाश हुआ। \p \v 25 तब फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, “तुम जाकर \it अपने परमेश्वर के लिये\f + \fr 8.25 \fq अपने परमेश्वर के लिये: \ft अब फ़िरौन उस परमेश्वर के अस्तित्व को और उसके सामर्थ्य को स्वीकारता है, जिसके विषय वह कहता था कि नहीं जानता।\f*\it* इसी देश में बलिदान करो।” \v 26 मूसा ने कहा, “ऐसा करना उचित नहीं; क्योंकि हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मिस्रियों की घृणित वस्तु बलिदान करेंगे; और यदि हम मिस्रियों के देखते उनकी घृणित वस्तु बलिदान करें तो क्या वे हमको पथरवाह न करेंगे? \v 27 हम जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाकर अपने परमेश्वर यहोवा के लिये जैसा वह हम से कहेगा वैसा ही बलिदान करेंगे।” \v 28 फ़िरौन ने कहा, “मैं तुम को जंगल में जाने दूँगा कि तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये जंगल में बलिदान करो; केवल बहुत दूर न जाना, और मेरे लिये विनती करो।” \v 29 तब मूसा ने कहा, “सुन, मैं तेरे पास से बाहर जाकर यहोवा से विनती करूँगा कि डांसों के झुण्ड तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के पास से कल ही दूर हों; पर फ़िरौन आगे को कपट करके हमें यहोवा के लिये बलिदान करने को जाने देने के लिये मना न करे।” \v 30 अतः मूसा ने फ़िरौन के पास से बाहर जाकर यहोवा से विनती की। \v 31 और यहोवा ने मूसा के कहे के अनुसार डांसों के झुण्डों को फ़िरौन, और उसके कर्मचारियों, और उसकी प्रजा से दूर किया; यहाँ तक कि एक भी न रहा। \v 32 तब फ़िरौन ने इस बार भी अपने मन को कठोर किया, और उन लोगों को जाने न दिया। \c 9 \s पाँचवी विपत्ति - पशुओं की मृत्यु \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जाकर कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि मेरी उपासना करें। \v 2 और यदि तू उन्हें जाने न दे और अब भी पकड़े रहे, \v 3 तो सुन, तेरे जो घोड़े, गदहे, ऊँट, गाय-बैल, भेड़-बकरी आदि पशु मैदान में हैं, उन पर यहोवा का हाथ ऐसा पड़ेगा कि बहुत भारी मरी होगी। \v 4 परन्तु यहोवा इस्राएलियों के पशुओं में और मिस्रियों के पशुओं में ऐसा अन्तर करेगा कि जो इस्राएलियों के हैं उनमें से कोई भी न मरेगा।’” \v 5 फिर यहोवा ने यह कहकर एक समय ठहराया, “मैं यह काम इस देश में कल करूँगा।” \v 6 दूसरे दिन यहोवा ने ऐसा ही किया; और मिस्र के तो सब पशु मर गए, परन्तु इस्राएलियों का एक भी पशु न मरा। \v 7 और फ़िरौन ने लोगों को भेजा, पर इस्राएलियों के पशुओं में से एक भी नहीं मरा था। तो भी फ़िरौन का मन कठोर हो गया, और उसने उन लोगों को जाने न दिया। \s छठवीं विपत्ति - फफोलों और फोड़ों का निकलना \p \v 8 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “तुम दोनों \it भट्ठी में से एक-एक मुट्ठी राख\f + \fr 9.8 \fq भट्ठी में से एक-एक मुट्ठी राख: \ft यह क्रिया स्पष्ट रूप से प्रतीकात्मक थी, उस राख को आकाश की ओर उड़ाना था, और इस प्रकार मिस्र के देवताओं को चुनौती देनी थी। \f*\it* ले लो, और मूसा उसे फ़िरौन के सामने आकाश की ओर उड़ा दे। \v 9 तब वह सूक्ष्म धूल होकर सारे मिस्र देश में मनुष्यों और पशुओं दोनों पर फफोले और फोड़े बन जाएगी।” \v 10 इसलिए वे भट्ठी में की राख लेकर फ़िरौन के सामने खड़े हुए, और मूसा ने उसे आकाश की ओर उड़ा दिया, और वह मनुष्यों और पशुओं दोनों पर फफोले और फोड़े बन गई। \v 11 उन फोड़ों के कारण जादूगर मूसा के सामने खड़े न रह सके, क्योंकि वे फोड़े जैसे सब मिस्रियों के वैसे ही जादूगरों के भी निकले थे। \v 12 तब यहोवा ने फ़िरौन के मन को कठोर कर दिया, और जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था, उसने उसकी न सुनी। \bdit (रोम. 9:18) \bdit* \s सातवीं विपत्ति - ओलों की वर्षा \p \v 13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “सवेरे उठकर फ़िरौन के सामने खड़ा हो, और उससे कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। \v 14 नहीं तो अब की बार मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर सब प्रकार की विपत्तियाँ डालूँगा, जिससे तू जान ले कि सारी पृथ्वी पर मेरे तुल्य कोई दूसरा नहीं है। \v 15 मैंने तो अभी हाथ बढ़ाकर तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारा होता, और तू पृथ्वी पर से सत्यानाश हो गया होता; \v 16 परन्तु सचमुच \it मैंने इसी कारण तुझे बनाए रखा है\f + \fr 9.16 \fq मैंने इसी कारण तुझे बनाए रखा है: \ft परमेश्वर ने अपना उद्देश्य पूरा होने तक के लिए फ़िरौन जीवित और थामे रखा।\f*\it* कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊँ, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूँ। \bdit (प्रका. 9:17) \bdit* \v 17 क्या तू अब भी मेरी प्रजा के सामने अपने आपको बड़ा समझता है, और उन्हें जाने नहीं देता? \v 18 सुन, कल मैं इसी समय ऐसे भारी-भारी ओले बरसाऊँगा, कि जिनके तुल्य मिस्र की नींव पड़ने के दिन से लेकर अब तक कभी नहीं पड़े। \v 19 इसलिए अब लोगों को भेजकर अपने पशुओं को और मैदान में जो कुछ तेरा है सब को फुर्ती से आड़ में छिपा ले; नहीं तो जितने मनुष्य या पशु मैदान में रहें और घर में इकट्ठे न किए जाएँ उन पर ओले गिरेंगे, और वे मर जाएँगे।’” \v 20 इसलिए फ़िरौन के कर्मचारियों में से जो लोग यहोवा के वचन का भय मानते थे उन्होंने तो अपने-अपने सेवकों और पशुओं को घर में हाँक दिया। \v 21 पर जिन्होंने यहोवा के वचन पर मन न लगाया उन्होंने अपने सेवकों और पशुओं को मैदान में रहने दिया। \p \v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि सारे मिस्र देश के मनुष्यों, पशुओं और खेतों की सारी उपज पर ओले गिरें।” \v 23 तब मूसा ने अपनी लाठी को आकाश की ओर उठाया; और यहोवा की सामर्थ्य से मेघ गरजने और ओले बरसने लगे, और आग पृथ्वी तक आती रही। इस प्रकार यहोवा ने मिस्र देश पर ओले बरसाएँ। \v 24 जो ओले गिरते थे उनके साथ आग भी मिली हुई थी, और वे ओले इतने भारी थे कि जब से मिस्र देश बसा था तब से मिस्र भर में ऐसे ओले कभी न गिरे थे। \bdit (प्रका. 8:7, प्रका. 11:19) \bdit* \v 25 इसलिए मिस्र भर के खेतों में क्या मनुष्य, क्या पशु, जितने थे सब ओलों से मारे गए, और ओलों से खेत की सारी उपज नष्ट हो गई, और मैदान के सब वृक्ष भी टूट गए। \v 26 केवल गोशेन प्रदेश में जहाँ इस्राएली बसते थे ओले नहीं गिरे। \p \v 27 तब फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलवा भेजा और उनसे कहा, “इस बार मैंने पाप किया है; यहोवा धर्मी है, और मैं और मेरी प्रजा अधर्मी हैं। \v 28 मेघों का गरजना और ओलों का बरसना तो बहुत हो गया; अब यहोवा से विनती करो; तब मैं तुम लोगों को जाने दूँगा, और तुम न रोके जाओगे।” \v 29 मूसा ने उससे कहा, “नगर से निकलते ही मैं यहोवा की ओर हाथ फैलाऊँगा, तब बादल का गरजना बन्द हो जाएगा, और ओले फिर न गिरेंगे, इससे तू जान लेगा कि \it पृथ्वी यहोवा ही की है\f + \fr 9.29 \fq पृथ्वी यहोवा ही की है: \ft इस घोषणा का सीधा सम्बंध मिस्र के अंधविश्वास से है।\f*\it*। \v 30 तो भी मैं जानता हूँ, कि न तो तू और न तेरे कर्मचारी यहोवा परमेश्वर का भय मानेंगे।” \v 31 सन और जौ तो ओलों से मारे गए, क्योंकि जौ की बालें निकल चुकी थीं और सन में फूल लगे हुए थे। \v 32 पर गेहूँ और कठिया गेहूँ जो बढ़े न थे, इस कारण वे मारे न गए। \v 33 जब मूसा ने फ़िरौन के पास से नगर के बाहर निकलकर यहोवा की ओर हाथ फैलाए, तब बादल का गरजना और ओलों का बरसना बन्द हुआ, और फिर बहुत मेंह भूमि पर न पड़ा। \v 34 यह देखकर कि मेंह और ओलों और बादल का गरजना बन्द हो गया फ़िरौन ने अपने कर्मचारियों समेत फिर अपने मन को कठोर करके पाप किया। \v 35 इस प्रकार फ़िरौन का मन हठीला होता गया, और उसने इस्राएलियों को जाने न दिया; जैसा कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहलवाया था। \c 10 \s आठवीं विपत्ति - टिड्डियों का आक्रमण \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जा; क्योंकि मैं ही ने उसके और उसके कर्मचारियों के मन को इसलिए कठोर कर दिया है कि अपने चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊँ, \v 2 और तुम लोग अपने बेटों और पोतों से इसका वर्णन करो कि यहोवा ने मिस्रियों को कैसे उपहास में उड़ाया और अपने क्या-क्या चिन्ह उनके बीच प्रगट किए हैं; जिससे तुम यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।” \p \v 3 तब मूसा और हारून ने फ़िरौन के पास जाकर कहा, “इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि तू कब तक मेरे सामने दीन होने से संकोच करता रहेगा? मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे कि वे मेरी उपासना करें। \v 4 यदि तू मेरी प्रजा को जाने न दे तो सुन, कल मैं तेरे देश में \it टिड्डियाँ\f + \fr 10.4 \fq टिड्डियाँ: \ft मिस्र में टिड्डियों का होना इतनी सामान्य बात नहीं थी, फिर भी वह भयंकर विनाश के लिए जानी जाती थीं।\f*\it* ले आऊँगा। \v 5 और वे धरती को ऐसा छा लेंगी कि वह देख न पड़ेगी; और तुम्हारा जो कुछ ओलों से बच रहा है उसको वे चट कर जाएँगी, और तुम्हारे जितने वृक्ष मैदान में लगे हैं उनको भी वे चट कर जाएँगी, \v 6 और वे तेरे और तेरे सारे कर्मचारियों, यहाँ तक सारे मिस्रियों के घरों \it में भर जाएँगी\f + \fr 10.6 \fq में भर जाएँगी: \ft उस समय टिड्डियाँ घरों की छतों पर, आँगनों में और यहाँ तक कि घर के भीतर भी भर जाएँगीं। \f*\it*; इतनी टिड्डियाँ तेरे बापदादों ने या उनके पुरखाओं ने जब से पृथ्वी पर जन्मे तब से आज तक कभी न देखीं।” और वह मुँह फेरकर फ़िरौन के पास से बाहर गया। \p \v 7 तब फ़िरौन के कर्मचारी उससे कहने लगे, “वह जन कब तक हमारे लिये फंदा बना रहेगा? उन मनुष्यों को जाने दे कि वे अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करें; क्या तू अब तक नहीं जानता कि सारा मिस्र नाश हो गया है?” \v 8 तब मूसा और हारून फ़िरौन के पास फिर बुलवाए गए, और उसने उनसे कहा, “चले जाओ, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करो; परन्तु वे जो जानेवाले हैं, कौन-कौन हैं?” \v 9 मूसा ने कहा, “हम तो बेटों-बेटियों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों समेत वरन् बच्चों से बूढ़ों तक सब के सब जाएँगे, क्योंकि हमें यहोवा के लिये पर्व करना है।” \v 10 उसने इस प्रकार उनसे कहा, “यहोवा तुम्हारे संग रहे जबकि मैं तुम्हें बच्चों समेत जाने देता हूँ; देखो, \it तुम्हारे मन में बुराई है\f + \fr 10.10 \fq तुम्हारे मन में बुराई है: \ft तुम्हारे इरादे बुरे हैं। जितना हो सके उतना दण्ड मिले।\f*\it*। \v 11 नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तुम पुरुष ही जाकर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे।” और वे फ़िरौन के सम्मुख से निकाल दिए गए। \p \v 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मिस्र देश के ऊपर अपना हाथ बढ़ा कि टिड्डियाँ मिस्र देश पर चढ़कर भूमि का जितना अन्न आदि ओलों से बचा है सब को चट कर जाएँ।” \v 13 अतः मूसा ने अपनी लाठी को मिस्र देश के ऊपर बढ़ाया, तब यहोवा ने दिन भर और रात भर देश पर पुरवाई बहाई; और जब भोर हुआ तब उस पुरवाई में टिड्डियाँ आईं। \v 14 और टिडि्डयों ने चढ़कर मिस्र देश के सारे स्थानों में बसेरा किया, उनका दल बहुत भारी था, वरन् न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियाँ आई थीं, और न उनके पीछे ऐसी फिर आएँगी। \v 15 वे तो सारी धरती पर छा गईं, यहाँ तक कि देश में अंधकार छा गया, और उसका सारा अन्न आदि और वृक्षों के सब फल, अर्थात् जो कुछ ओलों से बचा था, सब को उन्होंने चट कर लिया; यहाँ तक कि मिस्र देश भर में न तो किसी वृक्ष पर कुछ हरियाली रह गई और न खेत में अनाज रह गया। \v 16 तब फ़िरौन ने फुर्ती से मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, “मैंने तो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का और तुम्हारा भी अपराध किया है। \v 17 इसलिए अब की बार मेरा अपराध क्षमा करो, और अपने परमेश्वर यहोवा से विनती करो कि वह केवल मेरे ऊपर से इस मृत्यु को दूर करे।” \v 18 तब मूसा ने फ़िरौन के पास से निकलकर यहोवा से विनती की। \v 19 तब यहोवा ने बहुत प्रचण्ड पश्चिमी हवा बहाकर टिड्डियों को उड़ाकर लाल समुद्र में डाल दिया, और मिस्र के किसी स्थान में एक भी टिड्डी न रह गई। \v 20 तो भी यहोवा ने फ़िरौन के मन को कठोर कर दिया, जिससे उसने इस्राएलियों को जाने न दिया। \s नौवीं विपत्ति - अंधकार \p \v 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मिस्र देश के ऊपर \it अंधकार\f + \fr 10.21 \fq अंधकार: \ft यह दण्ड विशेष रूप से मिस्रियों की धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करती है, जिनकी उपासना का मुख्य केंद्र सूर्य-देवता था। \f*\it* छा जाए, ऐसा अंधकार कि टटोला जा सके।” \v 22 तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अंधकार छाया रहा। \v 23 तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपने स्थान से उठा; परन्तु सारे इस्राएलियों के घरों में उजियाला रहा। \v 24 तब फ़िरौन ने मूसा को बुलवाकर कहा, “तुम लोग जाओ, यहोवा की उपासना करो; अपने बालकों को भी संग ले जाओ; केवल अपनी भेड़-बकरी और गाय-बैल को छोड़ जाओ।” \v 25 मूसा ने कहा, “तुझको हमारे हाथ मेलबलि और होमबलि के पशु भी देने पड़ेंगे, जिन्हें हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये चढ़ाएँ। \v 26 इसलिए हमारे पशु भी हमारे संग जाएँगे, उनका एक खुर तक न रह जाएगा, क्योंकि उन्हीं में से हमको अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना का सामान लेना होगा, और हम जब तक वहाँ न पहुँचें तब तक नहीं जानते कि क्या-क्या लेकर यहोवा की उपासना करनी होगी।” \v 27 पर यहोवा ने फ़िरौन का मन हठीला कर दिया, जिससे उसने उन्हें जाने न दिया। \v 28 तब फ़िरौन ने उससे कहा, “मेरे सामने से चला जा; और सचेत रह; मुझे अपना मुख फिर न दिखाना; क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुँह दिखलाए उसी दिन तू मारा जाएगा।” \v 29 मूसा ने कहा, “तूने ठीक कहा है; मैं तेरे मुँह को फिर कभी न देखूँगा।” \c 11 \s पहिलौठों की मृत्यु की चेतावनी \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “एक और विपत्ति मैं फ़िरौन और मिस्र देश पर डालता हूँ, उसके पश्चात् \it वह तुम लोगों को वहाँ से जाने देगा\f + \fr 11.1 \fq वह तुम लोगों को वहाँ से जाने देगा: \ft तब आखिरकार वह तुम्हें बाल-बच्चों, गाय-बैलों और सब सम्पत्ति के साथ जाने देगा। \f*\it*; और जब वह जाने देगा तब तुम सभी को निश्चय निकाल देगा। \v 2 मेरी प्रजा को मेरी यह आज्ञा सुना कि एक-एक पुरुष अपने-अपने पड़ोसी, और एक-एक स्त्री अपनी-अपनी पड़ोसिन से सोने-चाँदी के गहने माँग ले।” \v 3 तब यहोवा ने मिस्रियों को अपनी प्रजा पर दयालु किया। और इससे अधिक वह पुरुष मूसा मिस्र देश में फ़िरौन के कर्मचारियों और साधारण लोगों की दृष्टि में अति महान था। \p \v 4 फिर मूसा ने कहा, “यहोवा इस प्रकार कहता है, कि आधी रात के लगभग मैं मिस्र देश के बीच में होकर चलूँगा। \v 5 तब मिस्र में सिंहासन पर विराजनेवाले फ़िरौन से लेकर चक्की पीसनेवाली दासी तक के पहलौठे; वरन् पशुओं तक के सब पहलौठे मर जाएँगे। \v 6 और सारे मिस्र देश में बड़ा हाहाकार मचेगा, यहाँ तक कि उसके समान न तो कभी हुआ और न होगा। \v 7 पर इस्राएलियों के विरुद्ध, क्या मनुष्य क्या पशु, किसी पर कोई \it कुत्ता भी न भौंकेगा\f + \fr 11.7 \fq कुत्ता भी न भौंकेगा: \ft यह कहावत अकस्मात खतरे से स्वतंत्र रहने और हमले से बचे रहने के बारे में बताती है।\f*\it*; जिससे तुम जान लो कि मिस्रियों और इस्राएलियों में मैं यहोवा अन्तर करता हूँ। \v 8 तब तेरे ये सब कर्मचारी मेरे पास आ मुझे दण्डवत् करके यह कहेंगे, ‘अपने सब अनुचरों समेत निकल जा।’ और उसके पश्चात् मैं निकल जाऊँगा।” यह कहकर मूसा बड़े क्रोध में फ़िरौन के पास से निकल गया। \p \v 9 यहोवा ने मूसा से कह दिया था, “फ़िरौन तुम्हारी न सुनेगा; क्योंकि मेरी इच्छा है कि मिस्र देश में बहुत से चमत्कार करूँ।” \v 10 मूसा और हारून ने फ़िरौन के सामने ये सब चमत्कार किए; पर यहोवा ने फ़िरौन का मन और कठोर कर दिया, इसलिए उसने इस्राएलियों को अपने देश से जाने न दिया। \c 12 \s फसह पर्व के निर्देश \p \v 1 फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा, \v 2 “यह महीना तुम लोगों के लिये आरम्भ का ठहरे; अर्थात् वर्ष का पहला महीना यही ठहरे। \v 3 इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो, कि इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने-अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे \it एक-एक मेम्ना\f + \fr 12.3 \fq एक-एक मेम्ना: \ft इब्रानी शब्द व्यापक है; इसका अर्थ भेड़, या बकरी, नर अथवा मादा से है। \f*\it* ले रखो। \v 4 और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिये मनुष्य कम हों, तो वह अपने सबसे निकट रहनेवाले पड़ोसी के साथ प्राणियों की गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। \v 5 तुम्हारा मेम्ना \it निर्दोष\f + \fr 12.5 \fq निर्दोष: \ft यह सामान्य नियम के अनुसार है, यद्यपि इस मामले में एक विशेष कारण है, क्योंकि मेम्ना प्रत्येक घराने के पहिलौठे पुत्र के स्थान पर था।\f*\it* और पहले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से। \v 6 और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन सूर्यास्त के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें। \v 7 तब वे उसके लहू में से कुछ लेकर जिन घरों में मेम्ने को खाएँगे उनके द्वार के दोनों ओर और चौखट के सिरे पर लगाएँ। \v 8 और वे उसके माँस को उसी रात आग में भूनकर \it अख़मीरी रोटी\f + \fr 12.8 \fq अख़मीरी रोटी: \ft यह वहाँ से शीघ्र निकलने के सन्दर्भ में था; जब ख़मीर की प्रक्रिया के लिए कोई समय नहीं था।\f*\it* और \it कड़वे सागपात\f + \fr 12.8 \fq कड़वे सागपात: \ft यह इस्राएलियों द्वारा सहे दु:खों का प्रतीक था।\f*\it* के साथ खाएँ। \v 9 उसको सिर, पैर, और अंतड़ियाँ समेत आग में भूनकर खाना, कच्चा या जल में कुछ भी पकाकर न खाना। \v 10 और उसमें से कुछ सवेरे तक न रहने देना, और यदि कुछ सवेरे तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना। \v 11 और उसके खाने की यह विधि है; कि कमर बाँधे, पाँव में जूती पहने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का फसह होगा। \v 12 क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊँगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूँगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूँगा; मैं तो यहोवा हूँ। \v 13 और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्थात् मैं उस लहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊँगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगों को मारूँगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पड़ेगी और तुम नाश न होंगे। \v 14 और वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्व करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर पर्व माना जाए। \s अख़मीरी रोटी \p \v 15 “सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना, उनमें से पहले ही दिन अपने-अपने घर में से ख़मीर उठा डालना, वरन् जो पहले दिन से लेकर सातवें दिन तक कोई ख़मीरी वस्तु खाए, वह प्राणी इस्राएलियों में से नाश किया जाए। \v 16 पहले दिन एक पवित्र सभा, और सातवें दिन भी एक पवित्र सभा करना; उन दोनों दिनों में कोई काम न किया जाए; केवल जिस प्राणी का जो खाना हो उसके काम करने की आज्ञा है। \v 17 इसलिए तुम बिना ख़मीर की रोटी का पर्व मानना, क्योंकि उसी दिन मानो मैंने तुम को दल-दल करके मिस्र देश से निकाला है; इस कारण वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर माना जाए। \v 18 पहले महीने के चौदहवें दिन की साँझ से लेकर इक्कीसवें दिन की साँझ तक तुम अख़मीरी रोटी खाया करना। \v 19 सात दिन तक तुम्हारे घरों में कुछ भी ख़मीर न रहे, वरन् जो कोई किसी ख़मीरी वस्तु को खाए, चाहे वह देशी हो चाहे परदेशी, वह प्राणी इस्राएलियों की मण्डली से नाश किया जाए। \v 20 कोई ख़मीरी वस्तु न खाना; अपने सब घरों में बिना ख़मीर की रोटी खाया करना।” \s प्रथम फसह का पर्व \p \v 21 तब मूसा ने इस्राएल के सब पुरनियों को बुलाकर कहा, “तुम अपने-अपने कुल के अनुसार एक-एक मेम्ना अलग कर रखो, और फसह का पशुबलि करना। \v 22 और उसका लहू जो तसले में होगा उसमें जूफा का एक गुच्छा डुबाकर उसी तसले में के लहू से द्वार के चौखट के सिरे और दोनों ओर पर कुछ लगाना; और भोर तक तुम में से कोई घर से बाहर न निकले। \v 23 क्योंकि यहोवा देश के बीच होकर मिस्रियों को मारता जाएगा; इसलिए जहाँ-जहाँ वह चौखट के सिरे, और दोनों ओर पर उस लहू को देखेगा, वहाँ-वहाँ वह उस द्वार को छोड़ जाएगा, और नाश करनेवाले को तुम्हारे घरों में मारने के लिये न जाने देगा। \v 24 फिर तुम इस विधि को अपने और अपने वंश के लिये सदा की विधि जानकर माना करो। \v 25 जब तुम उस देश में जिसे यहोवा अपने कहने के अनुसार तुम को देगा प्रवेश करो, तब वह काम किया करना। \v 26 और जब तुम्हारे लड़के वाले तुम से पूछें, ‘इस काम से तुम्हारा क्या मतलब है?’ \v 27 तब तुम उनको यह उत्तर देना, ‘यहोवा ने जो मिस्रियों के मारने के समय मिस्र में रहनेवाले हम इस्राएलियों के घरों को छोड़कर हमारे घरों को बचाया, इसी कारण उसके फसह का यह बलिदान किया जाता है।’” तब लोगों ने सिर झुकाकर दण्डवत् किया। \p \v 28 और इस्राएलियों ने जाकर, जो आज्ञा यहोवा ने मूसा और हारून को दी थी, उसी के अनुसार किया। \s दसवीं विपत्ति - पहिलौठों की मृत्यु \p \v 29 ऐसा हुआ कि आधी रात को यहोवा ने मिस्र देश में सिंहासन पर विराजनेवाले फ़िरौन से लेकर गड्ढे में पड़े हुए बँधुए तक सब के पहिलौठों को, वरन् पशुओं तक के सब पहिलौठों को मार डाला। \v 30 और फ़िरौन रात ही को उठ बैठा, और उसके सब कर्मचारी, वरन् सारे मिस्री उठे; और मिस्र में बड़ा हाहाकार मचा, क्योंकि एक भी ऐसा घर न था जिसमें कोई मरा न हो। \v 31 तब फ़िरौन ने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, “तुम इस्राएलियों समेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ; और अपने कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो। \v 32 अपने कहने के अनुसार अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को साथ ले जाओ; और मुझे आशीर्वाद दे जाओ।” \p \v 33 और मिस्री जो कहते थे, ‘हम तो सब मर मिटे हैं,’ उन्होंने इस्राएली लोगों पर दबाव डालकर कहा, “देश से झटपट निकल जाओ।” \v 34 तब उन्होंने अपने गुँधे-गुँधाए आटे को बिना ख़मीर दिए ही कठौतियों समेत कपड़ों में बाँधकर अपने-अपने कंधे पर डाल लिया। \v 35 इस्राएलियों ने मूसा के कहने के अनुसार मिस्रियों से सोने-चाँदी के गहने और वस्त्र माँग लिए। \v 36 और यहोवा ने मिस्रियों को अपनी प्रजा के लोगों पर ऐसा दयालु किया कि उन्होंने जो-जो माँगा वह सब उनको दिया। इस प्रकार इस्राएलियों ने मिस्रियों को लूट लिया। \s इस्राएलियों का मिस्र देश छोड़ना \p \v 37 तब इस्राएली रामसेस से कूच करके सुक्कोत को चले, और बाल-बच्चों को छोड़ वे कोई छः लाख पैदल चलनेवाले पुरुष थे। \v 38 उनके साथ मिली-जुली हुई एक भीड़ गई, और भेड़-बकरी, गाय-बैल, बहुत से पशु भी साथ गए। \v 39 और जो गूँधा आटा वे मिस्र से साथ ले गए उसकी उन्होंने बिना ख़मीर दिए रोटियाँ बनाईं; क्योंकि वे मिस्र से ऐसे बरबस निकाले गए, कि उन्हें अवसर भी न मिला की मार्ग में खाने के लिये कुछ पका सके, इसी कारण वह गूँधा हुआ आटा बिना ख़मीर का था। \p \v 40 मिस्र में बसे हुए इस्राएलियों को चार सौ तीस वर्ष बीत गए थे। \v 41 और उन चार सौ तीस वर्षों के बीतने पर, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना मिस्र देश से निकल गई। \v 42 यहोवा इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया, इस कारण वह रात उसके निमित्त मानने के योग्य है; यह यहोवा की वही रात है जिसका पीढ़ी-पीढ़ी में मानना इस्राएलियों के लिये अवश्य है। \s फसह के पर्व की विधि \p \v 43 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “पर्व की विधि यह है; कि कोई परदेशी उसमें से न खाए; \v 44 पर जो किसी का मोल लिया हुआ दास हो, और तुम लोगों ने उसका खतना किया हो, वह तो उसमें से खा सकेगा। \v 45 पर परदेशी और मजदूर उसमें से न खाएँ। \v 46 उसका खाना एक ही घर में हो; अर्थात् तुम उसके माँस में से कुछ घर से बाहर न ले जाना; और बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना। \v 47 पर्व को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य है। \v 48 और यदि कोई परदेशी तुम लोगों के संग रहकर यहोवा के लिये पर्व को मानना चाहे, तो वह अपने यहाँ के सब पुरुषों का खतना कराए, तब वह समीप आकर उसको माने; और वह देशी मनुष्य के तुल्य ठहरेगा। पर कोई खतनारहित पुरुष उसमें से न खाने पाए। \v 49 उसकी व्यवस्था देशी और तुम्हारे बीच में रहनेवाले परदेशी दोनों के लिये एक ही हो।” \v 50 यह आज्ञा जो यहोवा ने मूसा और हारून को दी उसके अनुसार सारे इस्राएलियों ने किया। \v 51 और ठीक उसी दिन यहोवा इस्राएलियों को मिस्र देश से दल-दल करके निकाल ले गया। \c 13 \s पहिलौठों का अर्पण \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, \v 2 “क्या मनुष्य के क्या पशु के, इस्राएलियों में जितने अपनी-अपनी माँ के पहलौठे हों, उन्हें \it मेरे लिये पवित्र मानना\f + \fr 13.2 \fq मेरे लिये पवित्र मानना: \ft यह आज्ञा मूसा को दी सम्बोधित थी। यह परमेश्वर की उस इच्छा के विषय में बताता है कि सब पहिलौठे परमेश्वर के लिए पवित्र ठहराए जाएँ।\f*\it*; वह तो मेरा ही है।” \p \v 3 फिर मूसा ने लोगों से कहा, “इस दिन को स्मरण रखो, जिसमें तुम लोग दासत्व के घर, अर्थात् मिस्र से निकल आए हो; यहोवा तो तुम को वहाँ से अपने हाथ के बल से निकाल लाया; इसमें ख़मीरी रोटी न खाई जाए। \v 4 अबीब के महीने में आज के दिन तुम निकले हो। \v 5 इसलिए जब यहोवा तुम को कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के देश में पहुँचाएगा, जिसे देने की उसने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी, और जिसमें दूध और मधु की धारा बहती हैं, तब तुम इसी महीने में पर्व करना। \v 6 सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना, और सातवें दिन यहोवा के लिये पर्व मानना। \v 7 इन सातों दिनों में अख़मीरी रोटी खाई जाए; वरन् तुम्हारे देश भर में न ख़मीरी रोटी, न ख़मीर तुम्हारे पास देखने में आए। \v 8 और उस दिन तुम अपने-अपने पुत्रों को यह कहकर समझा देना, कि यह तो हम उसी काम के कारण करते हैं, जो यहोवा ने हमारे मिस्र से निकल आने के समय हमारे लिये किया था। \v 9 फिर यह तुम्हारे लिये तुम्हारे हाथ में एक चिन्ह होगा, और तुम्हारी आँखों के सामने स्मरण करानेवाली वस्तु ठहरे; जिससे यहोवा की व्यवस्था तुम्हारे मुँह पर रहे क्योंकि यहोवा ने तुम्हें अपने बलवन्त हाथों से मिस्र से निकाला है। \v 10 इस कारण तुम इस विधि को प्रतिवर्ष नियत समय पर माना करना। \s पहलौठे का नियम \p \v 11 “फिर जब यहोवा उस शपथ के अनुसार, जो उसने तुम्हारे पुरखाओं से और तुम से भी खाई है, तुम्हें कनानियों के देश में पहुँचाकर उसको तुम्हें दे देगा, \v 12 तब तुम में से जितने अपनी-अपनी माँ के जेठे हों उनको, और तुम्हारे पशुओं में जो ऐसे हों उनको भी यहोवा के लिये अर्पण करना; सब नर बच्चे तो यहोवा के हैं। \v 13 और गदही के हर एक पहलौठे के बदले मेम्ना देकर उसको छुड़ा लेना, और यदि तुम उसे छुड़ाना न चाहो तो उसका गला तोड़ देना। पर अपने सब पहलौठे पुत्रों को बदला देकर छुड़ा लेना। \v 14 और आगे के दिनों में जब तुम्हारे पुत्र तुम से पूछें, ‘यह क्या है?’ तो उनसे कहना, ‘यहोवा हम लोगों को दासत्व के घर से, अर्थात् मिस्र देश से अपने हाथों के बल से निकाल लाया है। \v 15 उस समय जब फ़िरौन ने कठोर होकर हमको जाने देना न चाहा, तब यहोवा ने मिस्र देश में मनुष्य से लेकर पशु तक सब के पहिलौठों को मार डाला। इसी कारण पशुओं में से तो जितने अपनी-अपनी माँ के पहलौठे नर हैं, उन्हें हम यहोवा के लिये बलि करते हैं; पर अपने सब जेठे पुत्रों को हम बदला देकर छुड़ा लेते हैं।’ \v 16 यह तुम्हारे हाथों पर एक चिन्ह-सा और तुम्हारी भौहों के बीच टीका-सा ठहरे; क्योंकि यहोवा हम लोगों को मिस्र से अपने हाथों के बल से निकाल लाया है।” \s जंगल का रास्ता \p \v 17 जब फ़िरौन ने लोगों को जाने की आज्ञा दे दी, तब यद्यपि पलिश्तियों के देश में होकर जो मार्ग जाता है वह छोटा था; तो भी परमेश्वर यह सोचकर उनको उस मार्ग से नहीं ले गया कि कहीं ऐसा न हो कि जब ये लोग लड़ाई देखें तब पछताकर मिस्र को लौट आएँ। \v 18 इसलिए परमेश्वर उनको चक्कर खिलाकर लाल समुद्र के जंगल के मार्ग से ले चला। और इस्राएली पाँति बाँधे हुए मिस्र से निकल गए। \v 19 और मूसा यूसुफ की हड्डियों को साथ लेता गया; क्योंकि यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर, ‘परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा,’ उनको इस विषय की दृढ़ शपथ खिलाई थी कि वे उसकी हड्डियों को अपने साथ यहाँ से ले जाएँगे। \v 20 फिर उन्होंने सुक्कोत से कूच करके जंगल की छोर पर \it एताम\f + \fr 13.20 \fq एताम: \ft अर्थात् तुम का मन्दिर या घर। इन नाम से विशेषकर दक्षिण मिस्र में सूर्य देवता की पूजा की जाती थी। \f*\it* में डेरा किया। \s बादल का खम्भा और आग का खम्भा \p \v 21 और यहोवा उन्हें दिन को मार्ग दिखाने के लिये बादल के खम्भे में, और रात को उजियाला देने के लिये \it आग के खम्भे\f + \fr 13.21 \fq आग के खम्भे: \ft इस चिन्ह के द्वारा परमेश्वर ने स्वयं को उनके अगुए और प्रधान के रूप में प्रगट किया।\f*\it* में होकर उनके आगे-आगे चला करता था, जिससे वे रात और दिन दोनों में चल सके। \v 22 उसने न तो बादल के खम्भे को दिन में और न आग के खम्भे को रात में लोगों के आगे से हटाया। \c 14 \s इस्राएल का लाल समुद्र पार करना \p \v 1 यहोवा ने मूसा से कहा, \v 2 “इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे लौटकर मिग्दोल और समुद्र के बीच पीहहीरोत के सम्मुख, बाल-सपोन के सामने अपने डेरे खड़े करें, उसी के सामने समुद्र के तट पर डेरे खड़े करें। \v 3 तब फ़िरौन इस्राएलियों के विषय में सोचेगा, ‘वे देश के उलझनों में फँसे हैं और जंगल में घिर गए हैं।’ \v 4 तब मैं फ़िरौन के मन को कठोर कर दूँगा, और वह उनका पीछा करेगा, तब फ़िरौन और उसकी सारी सेना के द्वारा मेरी महिमा होगी; और मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।” और उन्होंने वैसा ही किया। \p \v 5 जब मिस्र के राजा को यह समाचार मिला कि वे \it लोग भाग गए\f + \fr 14.5 \fq लोग भाग गए: \ft बदली परिस्थिति से ऐसा अनुमान लगाना स्वाभाविक था। यह उनके मिस्र से निकल आने के संकल्प को दर्शाता है। \f*\it*, तब फ़िरौन और उसके कर्मचारियों का मन उनके विरुद्ध पलट गया, और वे कहने लगे, “हमने यह क्या किया, कि इस्राएलियों को अपनी सेवकाई से छुटकारा देकर जाने दिया?” \v 6 तब उसने अपना रथ तैयार करवाया और अपनी सेना को संग लिया। \v 7 उसने छः सौ अच्छे से अच्छे रथ वरन् मिस्र के सब रथ लिए और उन सभी पर सरदार बैठाए। \v 8 और यहोवा ने मिस्र के राजा फ़िरौन के मन को कठोर कर दिया। इसलिए उसने इस्राएलियों का पीछा किया; परन्तु इस्राएली तो बेखटके निकले चले जाते थे। \v 9 पर फ़िरौन के सब घोड़ों, और रथों, और सवारों समेत मिस्री सेना ने उनका पीछा करके उनके पास, जो पीहहीरोत के पास, बाल-सपोन के सामने, समुद्र के किनारे पर डेरे डालें पड़े थे, जा पहुँची। \p \v 10 जब फ़िरौन निकट आया, तब इस्राएलियों ने आँखें उठाकर क्या देखा, कि मिस्री हमारा पीछा किए चले आ रहे हैं; और इस्राएली अत्यन्त डर गए, और चिल्लाकर यहोवा की दुहाई दी। \v 11 और वे मूसा से कहने लगे, “क्या मिस्र में कब्रें न थीं जो तू हमको वहाँ से मरने के लिये जंगल में ले आया है? तूने हम से यह क्या किया कि हमको मिस्र से निकाल लाया? \v 12 क्या हम तुझ से मिस्र में यही बात न कहते रहे, कि \it हमें रहने दे\f + \fr 14.12 \fq हमें रहने दे: \ft यद्यपि इस्राएलियों ने पहले तो मूसा के सन्देश को स्वीकार किया था, पर जब पहली परीक्षा का समय आया तो वे पूरी तरह असफल हो गए।\f*\it* कि हम मिस्रियों की सेवा करें? हमारे लिये जंगल में मरने से मिस्रियों कि सेवा करनी अच्छी थी।” \v 13 मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत, खड़े-खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिये करेगा; क्योंकि जिन मिस्रियों को तुम आज देखते हो, उनको फिर कभी न देखोगे। \v 14 यहोवा आप ही तुम्हारे लिये लड़ेगा, इसलिए तुम चुपचाप रहो।” \v 15 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू क्यों मेरी दुहाई दे रहा है? इस्राएलियों को आज्ञा दे कि यहाँ से कूच करें। \v 16 और तू अपनी लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा; तब इस्राएली समुद्र के बीच होकर स्थल ही स्थल पर चले जाएँगे। \v 17 और सुन, मैं आप मिस्रियों के मन को कठोर करता हूँ, और वे उनका पीछा करके समुद्र में घुस पड़ेंगे, तब फ़िरौन और उसकी सेना, और रथों, और सवारों के द्वारा मेरी महिमा होगी। \v 18 और जब फ़िरौन, और उसके रथों, और सवारों के द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।” \p \v 19 तब परमेश्वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे-आगे चला करता था जाकर उनके पीछे हो गया; और बादल का खम्भा उनके आगे से हटकर उनके पीछे जा ठहरा। \v 20 इस प्रकार वह मिस्रियों की सेना और इस्राएलियों की सेना के बीच में आ गया; और बादल और अंधकार तो हुआ, तो भी उससे रात को उन्हें प्रकाश मिलता रहा; और वे रात भर एक दूसरे के पास न आए। \p \v 21 तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया; और यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई। \v 22 तब इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले, और जल उनकी दाहिनी और बाईं ओर दीवार का काम देता था। \v 23 तब मिस्री, अर्थात् फ़िरौन के सब घोड़े, रथ, और सवार उनका पीछा किए हुए समुद्र के बीच में चले गए। \v 24 और रात के अन्तिम पहर में यहोवा ने बादल और आग के खम्भे में से मिस्रियों की सेना पर दृष्टि करके उन्हें घबरा दिया। \v 25 और उसने उनके रथों के पहियों को निकाल डाला, जिससे उनका चलना कठिन हो गया; तब मिस्री आपस में कहने लगे, “आओ, हम इस्राएलियों के सामने से भागें; क्योंकि यहोवा उनकी ओर से मिस्रियों के विरुद्ध युद्ध कर रहा है।” \p \v 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रथों, और सवारों पर फिर बहने लगे।” \v 27 तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया, और भोर होते-होते क्या हुआ कि समुद्र फिर ज्यों का त्यों अपने बल पर आ गया; और मिस्री उलटे भागने लगे, परन्तु यहोवा ने \it उनको समुद्र के बीच ही में झटक दिया\f + \fr 14.27 \fq उनको समुद्र के बीच ही में झटक दिया: \ft यहोवा ने उन्हें झटक दिया, उनके रथों से उन्हें समुद्र में फेंक दिया। \f*\it*। \v 28 और जल के पलटने से, जितने रथ और सवार इस्राएलियों के पीछे समुद्र में आए थे, वे सब वरन् फ़िरौन की सारी सेना उसमें डूब गई, और उसमें से एक भी न बचा। \v 29 परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले गए, और जल उनकी दाहिनी और बाईं दोनों ओर दीवार का काम देता था। \p \v 30 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को मिस्रियों के वश से इस प्रकार छुड़ाया; और इस्राएलियों ने मिस्रियों को समुद्र के तट पर मरे पड़े हुए देखा। \v 31 और यहोवा ने मिस्रियों पर जो अपना पराक्रम दिखलाता था, उसको देखकर इस्राएलियों ने यहोवा का भय माना और यहोवा की और उसके दास मूसा की भी प्रतीति की। \c 15 \s मूसा का विजयी गीत \p \v 1 तब मूसा और इस्राएलियों ने यहोवा के लिये यह गीत गाया। उन्होंने कहा, \q “मैं यहोवा का गीत गाऊँगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; \q घोड़ों समेत सवारों को उसने समुद्र में डाल दिया है। \q \v 2 \it यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है\f + \fr 15.2 \fq यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है: \ft यहाँ मूसा द्वारा चुना नाम लोगों का ध्यान उस नाम अर्थात् मैं हूँ की ओर आकर्षित करता है जिसके द्वारा प्रतिज्ञाएँ की गई थीं। \f*\it*, \q और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; \q मेरा परमेश्वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूँगा, \q (मैं उसके लिये निवास-स्थान बनाऊँगा), मेरे पूर्वजों का परमेश्वर वही है, \q मैं उसको सराहूँगा। \q \v 3 यहोवा योद्धा है; \q उसका नाम यहोवा है। \q \v 4 फ़िरौन के रथों और सेना को उसने समुद्र में डाल दिया; \q और उसके उत्तम से उत्तम रथी लाल समुद्र में डूब गए। \q \v 5 गहरे जल ने उन्हें ढाँप लिया; \q वे पत्थर के समान गहरे स्थानों में डूब गए। \q \v 6 हे यहोवा, तेरा दाहिना हाथ शक्ति में महाप्रतापी हुआ हे यहोवा, \q तेरा दाहिना हाथ शत्रु को चकनाचूर कर देता है। \q \v 7 तू अपने विरोधियों को अपने महाप्रताप से गिरा देता है; \q तू अपना कोप भड़काता, और वे भूसे के समान भस्म हो जाते हैं। \q \v 8 तेरे नथनों की साँस से जल एकत्र हो गया, \q धाराएँ ढेर के समान थम गईं; \q समुद्र के मध्य में गहरा जल जम गया। \q \v 9 शत्रु ने कहा था, \q मैं पीछा करूँगा, मैं जा पकड़ूँगा, \q मैं लूट के माल को बाँट लूँगा, \q उनसे मेरा जी भर जाएगा। \q मैं अपनी तलवार खींचते ही अपने हाथ से उनको नाश कर डालूँगा। \q \v 10 तूने अपने श्वास का पवन चलाया, \q तब समुद्र ने उनको ढाँप लिया; \q वे समुद्र में सीसे के समान डूब गए। \q \v 11 हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? \q तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी, \q और अपनी स्तुति करनेवालों के भय के योग्य, \q और आश्चर्यकर्मों का कर्ता है। \q \v 12 तूने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया, \q और पृथ्वी ने उनको निगल लिया है। \q \v 13 अपनी करुणा से तूने अपनी छुड़ाई हुई प्रजा की अगुआई की है, \q अपने बल से तू उसे अपने पवित्र निवास-स्थान को ले चला है। \q \v 14 देश-देश के लोग सुनकर काँप उठेंगे; \q पलिश्तियों के प्राणों के लाले पड़ जाएँगे। \q \v 15 एदोम के अधिपति व्याकुल होंगे; \q \it मोआब के पहलवान\f + \fr 15.15 \fq मोआब के पहलवान: \ft मोआबियों के अगुए बड़े डील-डौल और शारीरिक शक्ति वाले थे।\f*\it* थरथरा उठेंगे; \q सब कनान निवासियों के मन पिघल जाएँगे। \q \v 16 उनमें डर और घबराहट समा जाएगा; \q तेरी बाँह के प्रताप से वे पत्थर के समान अबोल होंगे, \q जब तक, हे यहोवा, तेरी प्रजा के लोग निकल न जाएँ, \q जब तक तेरी प्रजा के लोग जिनको तूने मोल लिया है पार न निकल जाएँ। \q \v 17 तू उन्हें पहुँचाकर अपने निज भागवाले पहाड़ पर बसाएगा, \q यह वही स्थान है, \q हे यहोवा जिसे तूने अपने निवास के लिये बनाया, \q और वही पवित्रस्थान है जिसे, \q हे प्रभु, तूने आप ही स्थिर किया है। \q \v 18 यहोवा सदा सर्वदा राज्य करता रहेगा।” \p \v 19 यह गीत गाने का कारण यह है, कि फ़िरौन के घोड़े रथों और सवारों समेत समुद्र के बीच में चले गए, और यहोवा उनके ऊपर समुद्र का जल लौटा ले आया; परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले गए। \s मिर्याम का विजयी गीत \p \v 20 तब हारून की बहन \it मिर्याम नाम नबिया\f + \fr 15.20 \fq मिर्याम नाम नबिया: \ft मरियम और हारून ने ईश्वरीय प्रकाशन को प्राप्त किया था। इस शब्द का प्रयोग यहाँ पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित शब्दों को बोलने के अभिप्राय से किया गया है।\f*\it* ने हाथ में डफ लिया; और सब स्त्रियाँ डफ लिए नाचती हुई उसके पीछे हो लीं। \v 21 और मिर्याम उनके साथ यह टेक गाती गई कि: \q “यहोवा का गीत गाओ, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; \q घोड़ों समेत सवारों को उसने समुद्र में डाल दिया है।” \s कड़वे पानी को मीठा बनाना \p \v 22 तब मूसा इस्राएलियों को लाल समुद्र से आगे ले गया, और वे शूर नामक जंगल में आए; और जंगल में जाते हुए तीन दिन तक पानी का सोता न मिला। \v 23 फिर मारा नामक एक स्थान पर पहुँचे, वहाँ का पानी खारा था, उसे वे न पी सके; इस कारण उस स्थान का नाम मारा पड़ा। \v 24 तब वे यह कहकर मूसा के विरुद्ध बड़बड़ाने लगे, “हम क्या पीएँ?” \v 25 तब मूसा ने यहोवा की दुहाई दी, और यहोवा ने उसे एक पौधा बता दिया, जिसे जब उसने पानी में डाला, तब वह पानी मीठा हो गया। वहीं यहोवा ने उनके लिये एक विधि और नियम बनाया, और वहीं उसने यह कहकर उनकी परीक्षा की, \v 26 “यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा का वचन तन मन से सुने, और जो उसकी दृष्टि में ठीक है वही करे, और उसकी आज्ञाओं पर कान लगाए और उसकी सब विधियों को माने, तो जितने रोग मैंने मिस्रियों पर भेजे हैं उनमें से एक भी तुझ पर न भेजूँगा; क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला यहोवा हूँ।” \p \v 27 तब वे \it एलीम\f + \fr 15.27 \fq एलीम: \ft घरंदेल की घाटी, जो हुवारा से दक्षिण की ओर दो घंटे की यात्रा पर है। \f*\it* को आए, जहाँ पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे; और वहाँ उन्होंने जल के पास डेरे खड़े किए। \c 16 \s मन्ना और बटेरें \p \v 1 फिर एलीम से कूच करके इस्राएलियों की सारी मण्डली, मिस्र देश से निकलने के बाद दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नामक जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुँची। \v 2 जंगल में इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरुद्ध बड़बड़ाने लगे। \v 3 और इस्राएली उनसे कहने लगे, “जब हम मिस्र देश में माँस की हाँड़ियों के पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम \it यहोवा के हाथ से\f + \fr 16.3 \fq यहोवा के हाथ से: \ft यह स्पष्ट रूप से मिस्र की महा विपत्तियों, विशेष रूप से अंतिम महाविपत्ति की ओर संकेत करता है, जो मिस्रियों पर पड़ी। \f*\it* मार डाले भी जाते तो उत्तम वही था; पर तुम हमको इस जंगल में इसलिए निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखा मार डालो।” \p \v 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “देखो, मैं तुम लोगों के लिये आकाश से भोजनवस्तु बरसाऊँगा; और ये लोग प्रतिदिन बाहर जाकर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इससे मैं उनकी परीक्षा करूँगा, कि ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं। \v 5 और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनों से दूना होगा, इसलिए जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें।” \v 6 तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियों से कहा, “साँझ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। \v 7 और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पड़ेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बड़बड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं कि तुम हम पर बड़बड़ाते हो?” \v 8 फिर मूसा ने कहा, “यह तब होगा जब यहोवा साँझ को तुम्हें खाने के लिये माँस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बड़बड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है।” \p \v 9 फिर मूसा ने हारून से कहा, “इस्राएलियों की सारी मण्डली को आज्ञा दे, कि यहोवा के सामने वरन् उसके समीप आए, क्योंकि उसने उनका बुड़बुड़ाना सुना है।” \v 10 और ऐसा हुआ कि जब हारून इस्राएलियों की सारी मण्डली से ऐसी ही बातें कर रहा था, कि उन्होंने जंगल की ओर दृष्टि करके देखा, और उनको यहोवा का तेज बादल में दिखलाई दिया। \v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, \v 12 “इस्राएलियों का बुड़बुड़ाना मैंने सुना है; उनसे कह दे, कि सूर्यास्त के समय तुम माँस खाओगे और भोर को तुम रोटी से तृप्त हो जाओगे; और तुम यह जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।” \v 13 तब ऐसा हुआ कि साँझ को \it बटेरें\f + \fr 16.13 \fq बटेरें: \ft ये पक्षी दक्षिण दिशा से वसन्त ऋतु में बड़ी संख्या में आते हैं यह लाल समुद्र के आस-पास सबसे अधिक पाए जाते हैं।\f*\it* आकर सारी छावनी पर बैठ गईं; और भोर को छावनी के चारों ओर ओस पड़ी। \v 14 और जब ओस सूख गई तो वे क्या देखते हैं, कि जंगल की भूमि पर छोटे-छोटे छिलके पाले के किनकों के समान पड़े हैं। \v 15 यह देखकर इस्राएली, जो न जानते थे कि यह क्या वस्तु है, वे आपस में कहने लगे यह तो मन्ना है। तब मूसा ने उनसे कहा, “यह तो वही भोजनवस्तु है जिसे यहोवा तुम्हें खाने के लिये देता है। \v 16 जो आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है, कि तुम उसमें से अपने-अपने खाने के योग्य बटोरा करना, अर्थात् अपने-अपने प्राणियों की गिनती के अनुसार, प्रति मनुष्य के पीछे एक-एक ओमेर बटोरना; जिसके डेरे में जितने हों वह उन्हीं के लिये बटोरा करे।” \v 17 और इस्राएलियों ने वैसा ही किया; और किसी ने अधिक, और किसी ने थोड़ा बटोर लिया। \v 18 जब उन्होंने उसको ओमेर से नापा, तब जिसके पास अधिक था उसके कुछ अधिक न रह गया, और जिसके पास थोड़ा था उसको कुछ घटी न हुई; क्योंकि एक-एक मनुष्य ने अपने खाने के योग्य ही बटोर लिया था। \v 19 फिर मूसा ने उनसे कहा, “कोई इसमें से कुछ सवेरे तक न रख छोड़े।” \v 20 तो भी उन्होंने मूसा की बात न मानी; इसलिए जब किसी किसी मनुष्य ने उसमें से कुछ सवेरे तक रख छोड़ा, तो उसमें कीड़े पड़ गए और वह बसाने लगा; तब मूसा उन पर क्रोधित हुआ। \v 21 वे भोर को प्रतिदिन अपने-अपने खाने के योग्य बटोर लेते थे, और जब धूप कड़ी होती थी, तब वह गल जाता था। \p \v 22 फिर ऐसा हुआ कि छठवें दिन उन्होंने दूना, अर्थात् प्रति मनुष्य के पीछे दो-दो ओमेर बटोर लिया, और मण्डली के सब प्रधानों ने आकर मूसा को बता दिया। \v 23 उसने उनसे कहा, “यह तो वही बात है जो यहोवा ने कही, क्योंकि \it कल\f + \fr 16.23 \fq कल: \ft कल अवश्य विश्राम का दिन है, इसे सब्त के दिन अर्थात् यहोवा के पवित्र दिन के रूप में माना जाए। \f*\it* पवित्र विश्राम, अर्थात् यहोवा के लिये पवित्र विश्राम होगा; इसलिए तुम्हें जो तंदूर में पकाना हो उसे पकाओ, और जो सिझाना हो उसे सिझाओ, और इसमें से जितना बचे उसे सवेरे के लिये रख छोड़ो।” \v 24 जब उन्होंने उसको मूसा की इस आज्ञा के अनुसार सवेरे तक रख छोड़ा, तब न तो वह बसाया, और न उसमें कीड़े पड़े। \v 25 तब मूसा ने कहा, “आज उसी को खाओ, क्योंकि आज यहोवा का विश्रामदिन है; इसलिए आज तुम को वह मैदान में न मिलेगा। \v 26 छः दिन तो तुम उसे बटोरा करोगे; परन्तु सातवाँ दिन तो विश्राम का दिन है, उसमें वह न मिलेगा।” \v 27 तो भी लोगों में से कोई-कोई सातवें दिन भी बटोरने के लिये बाहर गए, परन्तु उनको कुछ न मिला। \v 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्था को कब तक नहीं मानोगे? \v 29 देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्राम का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिए \it तुम अपने-अपने यहाँ बैठे\f + \fr 16.29 \fq तुम अपने-अपने यहाँ बैठे: \ft उन्हें मन्ना इकट्ठा करने के लिए अपने स्थान से दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रभु ने उन्हें यह सब्त एक आशीष और सौभाग्य के रूप में दी; यह मनुष्य के लिए बनाया गया था। \f*\it* रहना, सातवें दिन कोई अपने स्थान से बाहर न जाना।” \v 30 अतः लोगों ने सातवें दिन विश्राम किया। \p \v 31 इस्राएल के घराने ने उस वस्तु का नाम मन्ना रखा; और वह धनिया के समान श्वेत था, और उसका स्वाद मधु के बने हुए पूए का सा था। \v 32 फिर मूसा ने कहा, “यहोवा ने जो आज्ञा दी वह यह है, कि इसमें से ओमेर भर अपने वंश की पीढ़ी-पीढ़ी के लिये रख छोड़ो, जिससे वे जानें कि यहोवा हमको मिस्र देश से निकालकर जंगल में कैसी रोटी खिलाता था।” \v 33 तब मूसा ने हारून से कहा, “एक पात्र लेकर उसमें ओमेर भर लेकर उसे यहोवा के आगे रख दे, कि वह तुम्हारी पीढ़ियों के लिये रखा रहे।” \v 34 जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसी के अनुसार हारून ने उसको साक्षी के सन्दूक के आगे रख दिया, कि वह वहीं रखा रहे। \v 35 इस्राएली जब तक बसे हुए देश में न पहुँचे तब तक, अर्थात् चालीस वर्ष तक मन्ना को खाते रहे; वे जब तक कनान देश की सीमा पर नहीं पहुँचे तब तक मन्ना को खाते रहे। \v 36 एक ओमेर तो एपा का दसवाँ भाग है। \c 17 \s चट्टान से पानी निकालना \p \v 1 फिर इस्राएलियों की सारी मण्डली सीन नामक जंगल से निकल चली, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपने डेरे खड़े किए; और वहाँ उन लोगों को पीने का पानी न मिला। \v 2 इसलिए वे मूसा से वाद-विवाद करके कहने लगे, “हमें पीने का पानी दे।” मूसा ने उनसे कहा, “तुम मुझसे क्यों वाद-विवाद करते हो? और \it यहोवा की परीक्षा क्यों करते हो\f + \fr 17.2 \fq यहोवा की परीक्षा क्यों करते हो: \ft यह इस्राएलियों के इस मुख्य स्वभाव का चित्रण करता है कि जब भी ऐसे आश्चर्यकर्म हुए, जिनसे उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हुई, उससे उनमें विश्वास करने की आदत नहीं बन पाई। \f*\it*?” \v 3 फिर वहाँ लोगों को पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे, “तू हमें बाल-बच्चों और पशुओं समेत प्यासा मार डालने के लिये मिस्र से क्यों ले आया है?” \v 4 तब मूसा ने यहोवा की दुहाई दी, और कहा, “इन लोगों से मैं क्या करूँ? ये सब मुझे पथरवाह करने को तैयार हैं।” \v 5 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएल के वृद्ध लोगों में से कुछ को अपने साथ ले ले; और जिस लाठी से तूने नील नदी पर मारा था, उसे अपने हाथ में लेकर लोगों के आगे बढ़ चल। \v 6 देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूँगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उसमें से पानी निकलेगा जिससे ये लोग पीएँ।” तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगों के देखते वैसा ही किया। \v 7 और मूसा ने उस स्थान का नाम \it मस्सा\f + \fr 17.7 \fq मस्सा: \ft अर्थात् परीक्षा\f*\it* और \it मरीबा\f + \fr 17.7 \fq मरीबा: \ft अर्थात् विवाद\f*\it* रखा, क्योंकि इस्राएलियों ने वहाँ वाद-विवाद किया था, और यहोवा की परीक्षा यह कहकर की, “क्या यहोवा हमारे बीच है या नहीं?” \s अमालेकियों पर विजय \p \v 8 तब अमालेकी आकर रपीदीम में इस्राएलियों से लड़ने लगे। \v 9 तब मूसा ने \it यहोशू\f + \fr 17.9 \fq यहोशू: \ft उसका मूल नाम होशे था, यहाँ मूसा के इस महान शिष्य और उत्तराधिकारी का पहला ज़िक्र है। \f*\it* से कहा, “हमारे लिये कई एक पुरुषों को चुनकर छाँट ले, और बाहर जाकर अमालेकियों से लड़; और मैं कल परमेश्वर की लाठी हाथ में लिये हुए पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूँगा।” \v 10 मूसा की इस आज्ञा के अनुसार यहोशू अमालेकियों से लड़ने लगा; और मूसा, हारून, और \it हूर\f + \fr 17.10 \fq हूर: \ft वह परमेश्वर के तम्बू का महान कारीगर और शिल्पकार बसलेल का दादा था।\f*\it* पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए। \v 11 और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता था तब तक तो इस्राएल प्रबल होता था; परन्तु जब जब वह उसे नीचे करता तब-तब अमालेक प्रबल होता था। \v 12 और जब मूसा के हाथ भर गए, तब उन्होंने एक पत्थर लेकर मूसा के नीचे रख दिया, और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक-एक ओर में उसके हाथों को सम्भाले रहे; और उसके हाथ सूर्यास्त तक स्थिर रहे। \v 13 और यहोशू ने अनुचरों समेत अमालेकियों को तलवार के बल से हरा दिया। \p \v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “स्मरणार्थ इस बात को पुस्तक में लिख ले और यहोशू को सुना दे कि मैं आकाश के नीचे से अमालेक का स्मरण भी पूरी रीति से मिटा डालूँगा।” \v 15 तब मूसा ने एक वेदी बनाकर उसका नाम ‘\it यहोवा निस्सी\f + \fr 17.15 \fq यहोवा निस्सी: \ft स्पष्ट रूप से इसका अर्थ यह है कि यहोवा का नाम वह सच्चा ध्वज है जिसके नीचे विजय निश्चित है।\f*\it*’ रखा; \v 16 और कहा, “यहोवा ने शपथ खाई है कि यहोवा अमालेकियों से पीढ़ियों तक लड़ाई करता रहेगा।” \c 18 \s मूसा का अपने ससुर से भेंट करना \p \v 1 जब मूसा के ससुर मिद्यान के याजक यित्रो ने यह सुना, कि परमेश्वर ने मूसा और अपनी प्रजा इस्राएल के लिये क्या-क्या किया है, अर्थात् यह कि किस रीति से यहोवा इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले आया। \v 2 तब मूसा के ससुर यित्रो मूसा की पत्नी सिप्पोरा को, जो पहले अपने पिता के घर भेज दी गई थी, \v 3 और उसके दोनों बेटों को भी ले आया; इनमें से एक का नाम मूसा ने यह कहकर गेर्शोम रखा था, “मैं अन्य देश में परदेशी हुआ हूँ।” \v 4 और दूसरे का नाम उसने यह कहकर \it एलीएजेर\f + \fr 18.4 \fq एलीएजेर: \ft अर्थात् “परमेश्वर मेरा सहायक है” \f*\it* रखा, “मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरा सहायक होकर मुझे फ़िरौन की तलवार से बचाया।” \v 5 मूसा की पत्नी और पुत्रों को उसका ससुर यित्रो संग लिए मूसा के पास जंगल के उस स्थान में आया, जहाँ परमेश्वर के पर्वत के पास उसका डेरा पड़ा था। \v 6 और आकर उसने मूसा के पास यह कहला भेजा, “मैं तेरा ससुर यित्रो हूँ, और दोनों बेटों समेत तेरी पत्नी को तेरे पास ले आया हूँ।” \v 7 तब मूसा अपने ससुर से भेंट करने के लिये निकला, और उसको दण्डवत् करके चूमा; और वे परस्पर कुशलता पूछते हुए डेरे पर आ गए। \v 8 वहाँ मूसा ने अपने ससुर से वर्णन किया कि यहोवा ने इस्राएलियों के निमित्त फ़िरौन और मिस्रियों से क्या-क्या किया, और इस्राएलियों ने मार्ग में क्या-क्या कष्ट उठाया, फिर यहोवा उन्हें कैसे-कैसे छुड़ाता आया है। \v 9 तब यित्रो ने उस समस्त भलाई के कारण जो यहोवा ने इस्राएलियों के साथ की थी कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाया था, मगन होकर कहा, \v 10 “धन्य है यहोवा, जिसने तुम को फ़िरौन और मिस्रियों के वश से छुड़ाया, जिसने तुम लोगों को मिस्रियों की मुट्ठी में से छुड़ाया है। \v 11 अब मैंने जान लिया है कि यहोवा \it सब देवताओं से बड़ा\f + \fr 18.11 \fq सब देवताओं से बड़ा: \ft ये शब्द इस तथ्य को प्रगट करते हैं कि यहोवा का सामर्थ्य और तेज अतुल्य है। \f*\it* है; वरन् उस विषय में भी जिसमें उन्होंने इस्राएलियों के साथ अहंकारपूर्ण व्यवहार किया था।” \v 12 तब मूसा के ससुर यित्रो ने परमेश्वर के लिये होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और हारून इस्राएलियों के सब पुरनियों समेत मूसा के ससुर यित्रो के संग परमेश्वर के आगे भोजन करने को आया। \s मूसा को उसके ससुर की सलाह \p \v 13 दूसरे दिन मूसा लोगों का न्याय करने को बैठा, और भोर से साँझ तक लोग मूसा के आस-पास खड़े रहे। \v 14 यह देखकर कि मूसा लोगों के लिये क्या-क्या करता है, उसके ससुर ने कहा, “यह क्या काम है जो तू लोगों के लिये करता है? क्या कारण है कि तू अकेला बैठा रहता है, और लोग भोर से साँझ तक तेरे आस-पास खड़े रहते हैं?” \v 15 मूसा ने अपने ससुर से कहा, “इसका कारण यह है कि लोग मेरे पास \it परमेश्वर से पूछने\f + \fr 18.15 \fq परमेश्वर से पूछने: \ft लोग बिना संदेह किए मूसा के निर्णयों को परमेश्वर की इच्छा के रूप में ग्रहण करते थे।\f*\it* आते हैं। \v 16 जब जब उनका कोई मुकद्दमा होता है तब-तब वे मेरे पास आते हैं और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्था उन्हें समझाता हूँ।” \v 17 मूसा के ससुर ने उससे कहा, “जो काम तू करता है वह अच्छा नहीं। \v 18 और इससे तू क्या, वरन् ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय थक जाएँगे, क्योंकि यह काम तेरे लिये बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। \v 19 इसलिए अब मेरी सुन ले, मैं तुझको सम्मति देता हूँ, और परमेश्वर तेरे संग रहे। तू तो इन लोगों के लिये परमेश्वर के सम्मुख जाया कर, और इनके मुकद्दमों को परमेश्वर के पास तू पहुँचा दिया कर। \v 20 इन्हें विधि और व्यवस्था प्रगट कर करके, जिस मार्ग पर इन्हें चलना, और जो-जो काम इन्हें करना हो, वह इनको समझा दिया कर। \v 21 फिर तू इन सब लोगों में से ऐसे पुरुषों को छाँट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय माननेवाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करनेवाले हों; और उनको हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस मनुष्यों पर प्रधान नियुक्त कर दे। \v 22 और वे सब समय इन लोगों का न्याय किया करें; और सब बड़े-बड़े मुकद्दमों को तो तेरे पास ले आया करें, और छोटे-छोटे मुकद्दमों का न्याय आप ही किया करें; तब तेरा बोझ हलका होगा, क्योंकि इस बोझ को वे भी तेरे साथ उठाएँगे। \v 23 यदि तू यह उपाय करे, और परमेश्वर तुझको ऐसी आज्ञा दे, तो तू ठहर सकेगा, और ये सब लोग अपने स्थान को कुशल से पहुँच सकेंगे।” \p \v 24 अपने ससुर की यह बात मानकर मूसा ने उसके सब वचनों के अनुसार किया। \v 25 अतः उसने सब इस्राएलियों में से गुणी पुरुष चुनकर उन्हें हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास, दस-दस, लोगों के ऊपर प्रधान ठहराया। \v 26 और वे सब लोगों का न्याय करने लगे; जो मुकद्दमा कठिन होता उसे तो वे मूसा के पास ले आते थे, और सब छोटे मुकद्दमों का न्याय वे आप ही किया करते थे। \v 27 तब मूसा ने अपने ससुर को विदा किया, और उसने अपने देश का मार्ग लिया। \c 19 \s सीनै पर्वत पर यहोवा का दर्शन \p \v 1 इस्राएलियों को मिस्र देश से निकले हुए जिस दिन तीन महीने बीत चुके, उसी दिन वे सीनै के जंगल में आए। \v 2 और जब वे रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में आए, तब उन्होंने जंगल में डेरे खड़े किए; और वहीं पर्वत के आगे इस्राएलियों ने छावनी डाली। \v 3 तब मूसा पर्वत पर परमेश्वर के पास चढ़ गया, और यहोवा ने पर्वत पर से उसको पुकारकर कहा, “याकूब के घराने से ऐसा कह, और इस्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, \v 4 ‘तुम ने देखा है कि मैंने मिस्रियों से क्या-क्या किया; तुम को मानो उकाब पक्षी के पंखों पर चढ़ाकर अपने पास ले आया हूँ। \v 5 इसलिए अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा का पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। \v 6 और तुम मेरी दृष्टि में \it याजकों का राज्य\f + \fr 19.6 \fq याजकों का राज्य: \ft सामूहिक रूप से इस्राएल एक राजसी और याजकीय जाति है, इसका प्रत्येक सदस्य अपने आप में एक राजा और याजक के गुणों का समावेश रखता है। \f*\it* और पवित्र जाति ठहरोगे।’ जो बातें तुझे इस्राएलियों से कहनी हैं वे ये ही हैं।” \p \v 7 तब मूसा ने आकर लोगों के पुरनियों को बुलवाया, और ये सब बातें, जिनके कहने की आज्ञा यहोवा ने उसे दी थी, उनको समझा दीं। \v 8 और सब लोग मिलकर बोल उठे, “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” लोगों की यह बातें मूसा ने यहोवा को सुनाईं। \v 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “सुन, मैं बादल के अंधियारे में होकर तेरे पास आता हूँ, इसलिए कि जब मैं तुझ से बातें करूँ तब वे लोग सुनें, और सदा तेरा विश्वास करें।” और मूसा ने यहोवा से लोगों की बातों का वर्णन किया। \v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “लोगों के पास जा और उन्हें आज और कल \it पवित्र करना\f + \fr 19.10 \fq पवित्र करना: \ft इस आज्ञा में दैहिक शुद्धिकरण के साथ-साथ निःसंदेह आत्मिक तैयारी भी सम्मिलित थी।\f*\it*, और वे अपने वस्त्र धो लें, \v 11 और वे तीसरे दिन तक तैयार हो जाएँ; क्योंकि तीसरे दिन यहोवा सब लोगों के देखते सीनै पर्वत पर उतर आएगा। \v 12 और तू लोगों के लिये चारों ओर बाड़ा बाँध देना, और उनसे कहना, ‘तुम सचेत रहो कि पर्वत पर न चढ़ो और उसकी सीमा को भी न छूओ; और जो कोई पहाड़ को छूए वह निश्चय मार डाला जाए। \v 13 उसको कोई हाथ से न छूए, जो छूए उस पर पथराव किया जाए, या उसे तीर से छेदा जाए; चाहे पशु हो चाहे मनुष्य, वह जीवित न बचे।’ जब महाशब्द वाले नरसिंगे का शब्द देर तक सुनाई दे, तब लोग पर्वत के पास आएँ।” \p \v 14 तब मूसा ने पर्वत पर से उतरकर लोगों के पास आकर उनको पवित्र कराया; और उन्होंने अपने वस्त्र धो लिए। \v 15 और उसने लोगों से कहा, “तीसरे दिन तक तैयार हो जाओ; स्त्री के पास न जाना।” \p \v 16 जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भारी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब काँप उठे। \v 17 तब मूसा लोगों को परमेश्वर से भेंट करने के लिये छावनी से निकाल ले गया; और वे पर्वत के नीचे खड़े हुए। \v 18 और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा था, इस कारण समस्त पर्वत धुएँ से भर गया; और उसका धुआँ भट्ठे का सा उठ रहा था, और समस्त पर्वत बहुत काँप रहा था। \v 19 फिर जब नरसिंगे का शब्द बढ़ता और बहुत भारी होता गया, तब मूसा बोला, और परमेश्वर ने वाणी सुनाकर उसको उत्तर दिया। \v 20 और यहोवा सीनै पर्वत की चोटी पर उतरा; और मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर चढ़ गया। \v 21 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतरकर लोगों को चेतावनी दे, कहीं ऐसा न हो कि वे बाड़ा तोड़कर यहोवा के पास देखने को घुसें, और उनमें से बहुत नाश हो जाएँ। \v 22 और याजक जो यहोवा के समीप आया करते हैं वे भी अपने को पवित्र करें, कहीं ऐसा न हो कि यहोवा उन पर टूट पड़े।” \v 23 मूसा ने यहोवा से कहा, “वे लोग सीनै पर्वत पर नहीं चढ़ सकते; तूने तो आप हमको यह कहकर चिताया कि पर्वत के चारों और बाड़ा बाँधकर उसे पवित्र रखो।” \v 24 यहोवा ने उससे कहा, “उतर तो जा, और हारून समेत तू ऊपर आ; परन्तु याजक और साधारण लोग कहीं यहोवा के पास बाड़ा तोड़कर न चढ़ आएँ, कहीं ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पड़े।” \v 25 अतः ये बातें मूसा ने लोगों के पास उतरकर उनको सुनाईं। \c 20 \s दस आज्ञाएँ \p \v 1 तब परमेश्वर ने ये सब वचन कहे, \v 2 “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश से निकाल लाया है। \v 3 “तू \it मुझे छोड़\f + \fr 20.3 \fq मुझे छोड़: \ft इसका अर्थ था कि यहोवा के अतिरिक्त किसी और को ईश्वर न मानना। \f*\it* दूसरों को परमेश्वर करके न मानना। \v 4 “तू अपने लिये कोई \it मूर्ति\f + \fr 20.4 \fq मूर्ति: \ft पहली आज्ञा किसी भी दृश्य या अदृश्य झूठे देवता को ईश्वर करके मानने की मनाही करता है, यहाँ किसी भी तरह की मूर्ति की उपासना करने को वर्जित ठहराया गया है। \f*\it* खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल में है। \v 5 तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखनेवाला परमेश्वर हूँ, और जो मुझसे बैर रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूँ, \v 6 और जो मुझसे प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारों पर करुणा किया करता हूँ। \v 7 “तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा। \v 8 “तू \it विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना\f + \fr 20.8 \fq विश्रामदिन को .... स्मरण रखना: \ft शब्द स्मरण रखना का अभिप्राय अपने मन में रखना भी हो सकता है।\f*\it*। \v 9 छः दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम-काज करना; \v 10 परन्तु सातवाँ दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है। उसमें न तो तू किसी भाँति का काम-काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो। \v 11 क्योंकि छः दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया। \v 12 “तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिससे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसमें तू बहुत दिन तक रहने पाए। \v 13 “तू खून न करना। \v 14 “तू व्यभिचार न करना। \v 15 “तू चोरी न करना। \v 16 “तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना। \v 17 “तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की पत्नी का लालच करना, और न किसी के दास-दासी, या बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।” \s लोगों का भयभीत होना \p \v 18 और सब लोग गरजने और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धुआँ उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देखके, काँपकर दूर खड़े हो गए; \v 19 और वे मूसा से कहने लगे, “तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ।” \v 20 मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत; क्योंकि परमेश्वर इस निमित्त आया है कि तुम्हारी परीक्षा करे, और उसका भय तुम्हारे मन में बना रहे, कि तुम पाप न करो।” \v 21 और वे लोग तो दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस घोर अंधकार के समीप गया जहाँ परमेश्वर था। \s वेदी से सम्बंधित नियम \p \v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इस्राएलियों को मेरे ये वचन सुना, कि तुम लोगों ने तो आप ही देखा है कि मैंने तुम्हारे साथ आकाश से बातें की हैं। \v 23 तुम मेरे साथ किसी को सम्मिलित न करना, अर्थात् अपने लिये चाँदी या सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। \v 24 मेरे लिये मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहाँ-जहाँ मैं अपने नाम का स्मरण कराऊँ वहाँ-वहाँ मैं आकर तुम्हें आशीष दूँगा। \v 25 और यदि तुम मेरे लिये पत्थरों की वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्थरों से न बनाना; क्योंकि जहाँ तुम ने उस पर अपना हथियार लगाया वहाँ तू उसे अशुद्ध कर देगा। \v 26 और मेरी वेदी पर सीढ़ी से कभी न चढ़ना, कहीं ऐसा न हो कि तेरा तन उस पर नंगा देख पड़े।” \c 21 \s दासों से सम्बंधित नियम \p \v 1 फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे ये हैं। \v 2 “जब तुम कोई \it इब्री दास\f + \fr 21.2 \fq इब्री दास: \ft इब्री को या तो ऋण न चूका पाने की स्थिति में (लैव्य.25:39,) या चोरी करने (निर्ग.22:3), के परिणामस्वरूप दास के रूप में बेचा जा सकता था। परन्तु उसका दासत्व छः वर्ष से अधिक नहीं हो सकता था। \f*\it* मोल लो, तब वह छः वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतंत्र होकर सेंत-मेंत चला जाए। \v 3 यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साथ उसकी पत्नी भी चली जाए। \v 4 यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उससे उसके बेटे या बेटियाँ उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उस स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए। \v 5 परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, ‘मैं अपने स्वामी, और अपनी पत्नी, और बालकों से प्रेम रखता हूँ; इसलिए मैं स्वतंत्र होकर न चला जाऊँगा;’ \v 6 तो उसका स्वामी उसको परमेश्वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ या बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करें; तब वह \it सदा\f + \fr 21.6 \fq सदा: \ft सम्भवतः अगले जुबली वर्ष तक के लिए है, जब हर एक इब्री को स्वतंत्र किया जाता था।\f*\it* उसकी सेवा करता रहे। \p \v 7 “यदि कोई अपनी बेटी को दासी होने के लिये बेच डालें, तो वह दासी के समान बाहर न जाए। \v 8 यदि उसका स्वामी उसको अपनी पत्नी बनाए, और फिर उससे प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्वासघात करने के बाद उसे विदेशी लोगों के हाथ बेचने का उसको अधिकार न होगा। \v 9 यदि उसने उसे अपने बेटे को ब्याह दिया हो, तो उससे बेटी का सा व्यवहार करे। \v 10 चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तो भी वह उसका भोजन, वस्त्र, और संगति न घटाए। \v 11 और यदि वह इन तीन बातों में घटी करे, तो वह स्त्री सेंत-मेंत बिना दाम चुकाए ही चली जाए। \s हिंसा से सम्बंधित नियम \p \v 12 “जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। \v 13 यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के निमित्त मैं एक स्थान ठहराऊँगा जहाँ वह भाग जाए। \v 14 परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार डालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना। \p \v 15 “जो अपने पिता या माता को मारे-पीटे वह निश्चय मार डाला जाए। \p \v 16 “जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। \p \v 17 “जो अपने पिता या माता को श्राप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए। \p \v 18 “यदि मनुष्य झगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे, \v 19 तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पड़े रहने के समय की हानि भर दे, और उसको भला चंगा भी करा दे। \p \v 20 “यदि कोई अपने दास या दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब तो उसको निश्चय दण्ड दिया जाए। \v 21 परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है। \p \v 22 “यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गर्भवती स्त्री को ऐसी चोट पहुँचाए, कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए। \v 23 परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुँचे, तो प्राण के बदले प्राण का, \v 24 और आँख के बदले आँख का, और दाँत के बदले दाँत का, और हाथ के बदले हाथ का, और पाँव के बदले पाँव का, \v 25 और दाग के बदले दाग का, और घाव के बदले घाव का, और मार के बदले मार का दण्ड हो। \p \v 26 “जब कोई अपने दास या दासी की आँख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे स्वतंत्र करके जाने दे। \v 27 और यदि वह अपने दास या दासी को मारकर उसका दाँत तोड़ डाले, तो वह उसके दाँत के बदले उसे स्वतंत्र करके जाने दे। \s पशु नियंत्रण सम्बंधित नियम \p \v 28 “यदि बैल किसी पुरुष या स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल तो निश्चय पथरवाह करके मार डाला जाए, और उसका माँस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे। \v 29 परन्तु यदि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बाँध रखा हो, और वह किसी पुरुष या स्त्री को मार डाले, तब तो वह बैल पथरवाह किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए। \v 30 यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिये ठहराया जाए उसे उतना ही देना पड़ेगा। \v 31 चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तो भी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साथ व्यवहार किया जाए। \v 32 यदि बैल ने किसी दास या दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और वह बैल पथरवाह किया जाए। \p \v 33 “यदि कोई मनुष्य गड्ढा खोलकर या खोदकर उसको न ढाँपे, और उसमें किसी का बैल या गदहा गिर पड़े, \v 34 तो जिसका वह गड्ढा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोथ गड्ढेवाले की ठहरे। \p \v 35 “यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए, कि वह मर जाए, तो वे दोनों मनुष्य जीवित बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा-आधा बाँट लें; और लोथ को भी वैसा ही बाँटें। \v 36 यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी थी, पर उसके स्वामी ने उसे बाँध नहीं रखा, तो निश्चय यह बैल के बदले बैल भर दे, पर लोथ उसी की ठहरे। \c 22 \s चोरी से सम्बंधित नियम \p \v 1 “यदि कोई मनुष्य बैल, या भेड़, या बकरी चुराकर उसका घात करे या बेच डाले, तो वह बैल के बदले पाँच बैल, और भेड़-बकरी के बदले चार भेड़-बकरी भर दे। \v 2 यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे; \v 3 यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे; अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए। \v 4 यदि चुराया हुआ बैल, या गदहा, या भेड़ या बकरी उसके हाथ में जीवित पाई जाए, तो वह उसका दूना भर दे। \s फसल सुरक्षा से सम्बंधित नियम \p \v 5 “यदि कोई अपने पशु से किसी का खेत या दाख की बारी चराए, अर्थात् अपने पशु को ऐसा छोड़ दे कि वह पराए खेत को चर ले, तो वह अपने खेत की और अपनी दाख की बारी की उत्तम से उत्तम उपज में से उस हानि को भर दे। \p \v 6 “यदि कोई आग जलाए, और वह काँटों में लग जाए और फूलों के ढेर या अनाज या खड़ा खेत जल जाए, तो जिसने आग जलाई हो वह हानि को निश्चय भर दे। \s निजी सम्पत्ति से सम्बंधित नियम \p \v 7 “यदि कोई दूसरे को रुपये या सामग्री की धरोहर धरे, और वह उसके घर से चुराई जाए, तो यदि चोर पकड़ा जाए, तो दूना उसी को भर देना पड़ेगा। \v 8 और यदि चोर न पकड़ा जाए, तो घर का स्वामी परमेश्वर के पास लाया जाए कि निश्चय हो जाए कि उसने अपने भाई-बन्धु की सम्पत्ति पर हाथ लगाया है या नहीं। \v 9 चाहे बैल, चाहे गदहे, चाहे भेड़ या बकरी, चाहे वस्त्र, चाहे किसी प्रकार की ऐसी खोई हुई वस्तु के विषय अपराध क्यों न लगाया जाए, जिसे दो जन अपनी-अपनी कहते हों, तो दोनों का मुकद्दमा परमेश्वर के पास आए; और जिसको परमेश्वर दोषी ठहराए वह दूसरे को दूना भर दे। \p \v 10 “यदि कोई दूसरे को गदहा या बैल या भेड़-बकरी या कोई और पशु रखने के लिये सौंपे, और किसी के बिना देखे वह मर जाए, या चोट खाए, या हाँक दिया जाए, \v 11 तो उन दोनों के बीच यहोवा की शपथ खिलाई जाए, ‘मैंने इसकी सम्पत्ति पर हाथ नहीं लगाया;’ तब सम्पत्ति का स्वामी इसको सच माने, और दूसरे को उसे कुछ भी भर देना न होगा। \v 12 यदि वह सचमुच उसके यहाँ से चुराया गया हो, तो वह उसके स्वामी को उसे भर दे। \v 13 और यदि वह फाड़ डाला गया हो, तो वह फाड़े हुए को प्रमाण के लिये ले आए, तब उसे उसको भी भर देना न पड़ेगा। \p \v 14 “फिर यदि कोई दूसरे से पशु माँग लाए, और उसके स्वामी के संग न रहते उसको चोट लगे या वह मर जाए, तो वह निश्चय उसकी हानि भर दे। \v 15 यदि उसका स्वामी संग हो, तो दूसरे को उसकी हानि भरना न पड़े; और यदि वह भाड़े का हो तो उसकी हानि उसके भाड़े में आ गई। \s नैतिक और धार्मिक नियम \p \v 16 “यदि कोई पुरुष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देकर उसे ब्याह ले। \v 17 परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इन्कार करे, तो कुकर्म करनेवाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रुपये तौल दे। \p \v 18 “तू \it जादू-टोना करनेवाली\f + \fr 22.18 \fq जादू-टोना करनेवाली: \ft जादू-टोना करना यहोवा के विरुद्ध विद्रोह था, और इसके लिए मृत्युदण्ड निर्धारित था।\f*\it* को जीवित रहने न देना। \p \v 19 “जो कोई पशुगमन करे वह निश्चय मार डाला जाए। \p \v 20 “जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिये बलि करे वह सत्यानाश किया जाए। \p \v 21 “तुम परदेशी को न सताना और न उस पर अंधेर करना क्योंकि मिस्र देश में तुम भी परदेशी थे। \v 22 किसी विधवा या अनाथ बालक को दुःख न देना। \v 23 यदि तुम ऐसों को किसी प्रकार का दुःख दो, और वे कुछ भी मेरी दुहाई दें, तो मैं निश्चय उनकी दुहाई सुनूँगा; \v 24 तब मेरा क्रोध भड़केगा, और मैं तुम को तलवार से मरवाऊँगा, और तुम्हारी पत्नियाँ विधवा और तुम्हारे बालक अनाथ हो जाएँगे। \p \v 25 “यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रुपये का ऋण दे, तो उससे महाजन के समान ब्याज न लेना। \v 26 यदि तू कभी अपने भाई-बन्धु के वस्त्र को बन्धक करके रख भी ले, तो सूर्य के अस्त होने तक उसको लौटा देना; \v 27 क्योंकि वह उसका एक ही ओढ़ना है, उसकी देह का वही अकेला वस्त्र होगा; फिर वह किसे ओढ़कर सोएगा? और जब वह मेरी दुहाई देगा तब मैं उसकी सुनूँगा, क्योंकि मैं तो करुणामय हूँ। \p \v 28 “परमेश्वर को श्राप न देना, और न अपने लोगों के प्रधान को श्राप देना। \p \v 29 “अपने खेतों की उपज और फलों के रस में से कुछ \it मुझे देने में विलम्ब न करना\f + \fr 22.29 \fq मुझे देने में विलम्ब न करना: \ft उपज का पहला फल देना आरम्भ से चली आ रही रीति थी और इसका सम्बंध बलिदान चढ़ाने की आरम्भिक क्रियाओं से था।\f*\it*। अपने बेटों में से पहलौठे को मुझे देना। \v 30 वैसे ही अपनी गायों और भेड़-बकरियों के पहलौठे भी देना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माता के संग रहे, और आठवें दिन तू उसे मुझे दे देना। \p \v 31 “तुम मेरे लिये पवित्र मनुष्य बनना; इस कारण जो पशु मैदान में फाड़ा हुआ पड़ा मिले उसका माँस न खाना, उसको कुत्तों के आगे फेंक देना। \c 23 \s न्याय और निष्पक्षता \p \v 1 “झूठी बात न फैलाना। अन्यायी साक्षी होकर दुष्ट का साथ न देना। \v 2 बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरकर मुकद्दमे में न्याय बिगाड़ने को साक्षी देना; \v 3 और कंगाल के मुकद्दमे में उसका भी पक्ष न करना। \p \v 4 “यदि तेरे शत्रु का बैल या गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना। \v 5 फिर यदि तू अपने बैरी के गदहे को बोझ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिये छुड़ाने के लिये तेरा मन न चाहे, तो भी अवश्य स्वामी का साथ देकर उसे छुड़ा लेना। \p \v 6 “तेरे लोगों में से जो दरिद्र हों उसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना। \v 7 झूठे मुकद्दमे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊँगा। \v 8 घूस न लेना, क्योंकि घूस देखनेवालों को भी अंधा कर देता, और धर्मियों की बातें पलट देता है। \p \v 9 “परदेशी पर अंधेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे। \s सातवाँ वर्ष और सातवाँ दिन \p \v 10 “छः वर्ष तो अपनी भूमि में बोना और उसकी उपज इकट्ठी करना; \v 11 परन्तु सातवें वर्ष में उसको पड़ती रहने देना और वैसा ही छोड़ देना, तो तेरे भाई-बन्धुओं में के दरिद्र लोग उससे खाने पाएँ, और जो कुछ उनसे भी बचे वह जंगली पशुओं के खाने के काम में आए। और अपनी दाख और जैतून की बारियों को भी ऐसे ही करना। \v 12 छः दिन तक तो अपना काम-काज करना, और सातवें दिन विश्राम करना; कि तेरे बैल और गदहे सुस्ताएँ, और तेरी दासियों के बेटे और परदेशी भी अपना जी ठण्डा कर सके। \v 13 और जो कुछ मैंने तुम से कहा है उसमें सावधान रहना; और दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना, वरन् वे तुम्हारे मुँह से सुनाई भी न दें। \s तीन प्रमुख पर्व \p \v 14 “प्रतिवर्ष तीन बार मेरे लिये पर्व मानना। \v 15 अख़मीरी रोटी का पर्व मानना; उसमें मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना, क्योंकि उसी महीने में तुम मिस्र से निकल आए। और मुझ को कोई खाली हाथ अपना मुँह न दिखाए। \v 16 और जब तेरी बोई हुई खेती की पहली उपज तैयार हो, तब कटनी का पर्व मानना। और वर्ष के अन्त में जब तू परिश्रम के फल बटोरकर ढेर लगाए, तब बटोरन का पर्व मानना। \v 17 प्रतिवर्ष तीनों बार तेरे सब पुरुष प्रभु यहोवा को अपना मुँह दिखाएँ। \p \v 18 “मेरे बलिपशु का लहू ख़मीरी रोटी के संग न चढ़ाना, और न मेरे \it पर्व के उत्तम बलिदान\f + \fr 23.18 \fq पर्व के उत्तम बलिदान: \ft मेरे भोज का उत्तम भाग, अर्थात् फसह का मेम्ना। \f*\it* में से कुछ सवेरे तक रहने देना। \v 19 अपनी भूमि की पहली उपज का पहला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना। \s प्रतिज्ञाएँ और चेतावनी \p \v 20 “सुन, मैं एक दूत तेरे आगे-आगे भेजता हूँ जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, और जिस स्थान को मैंने तैयार किया है उसमें तुझे पहुँचाएगा। \v 21 उसके सामने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिए कि उसमें मेरा नाम रहता है। \v 22 और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूँ वह करे, तो मैं तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियों का द्रोही बनूँगा। \v 23 इस रीति मेरा दूत तेरे आगे-आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परिज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के यहाँ पहुँचाएगा, और \it मैं उनको सत्यानाश कर डालूँगा\f + \fr 23.23 \fq मैं उनको सत्यानाश कर डालूँगा: \ft कनानियों का राष्ट्रीय अस्तित्व वास्तव में “पूरी तरह से” नष्ट करना था, और उनकी मूर्तिपूजा के नामों-निशान को मिटा देना अवश्य था।\f*\it*। \v 24 उनके देवताओं को दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन् उन मूरतों को पूरी रीति से सत्यानाश कर डालना, और उन लोगों की लाटों के टुकड़े-टुकड़े कर देना। \v 25 तुम अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा। \v 26 तेरे देश में न तो किसी का गर्भ गिरेगा और न कोई बाँझ होगी; और तेरी आयु मैं पूरी करूँगा। \v 27 जितने लोगों के बीच तू जाएगा उन सभी के मन में मैं अपना भय पहले से ऐसा समवा दूँगा कि उनको व्याकुल कर दूँगा, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊँगा। \v 28 और मैं तुझ से पहले \it बर्रों\f + \fr 23.28 \fq बर्रों: \ft इस शब्द का प्रयोग यहाँ रूपक के रूप में किया गया है अर्थात् जिससे भय और निरुत्साह उत्पन्न हो।\f*\it* को भेजूँगा जो हिब्बी, कनानी, और हित्ती लोगों को तेरे सामने से भगाकर दूर कर देंगी। \v 29 मैं उनको तेरे आगे से एक ही वर्ष में तो न निकाल दूँगा, ऐसा न हो कि देश उजाड़ हो जाए, और जंगली पशु बढ़कर तुझे दुःख देने लगें। \v 30 जब तक तू फूल-फलकर देश को अपने अधिकार में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरे आगे से थोड़ा-थोड़ा करके निकालता रहूँगा। \v 31 मैं लाल समुद्र से लेकर पलिश्तियों के समुद्र तक और जंगल से लेकर फरात तक के देश को तेरे वश में कर दूँगा; मैं उस देश के निवासियों को भी तेरे वश में कर दूँगा, और तू उन्हें अपने सामने से बरबस निकालेगा। \v 32 तू न तो उनसे वाचा बाँधना और न उनके देवताओं से। \v 33 वे तेरे देश में रहने न पाएँ, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरुद्ध पाप कराएँ; क्योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिये फंदा बनेगा।” \c 24 \s यहोवा और इस्राएलियों के बीच वाचा बाँधने का वर्णन \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू, हारून, नादाब, अबीहू, और इस्राएलियों के सत्तर पुरनियों समेत यहोवा के पास ऊपर आकर दूर से दण्डवत् करना। \v 2 और केवल मूसा यहोवा के समीप आए; परन्तु वे समीप न आएँ, और दूसरे लोग उसके संग ऊपर न आएँ।” \p \v 3 तब मूसा ने लोगों के पास जाकर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, “जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातों को हम मानेंगे।” \v 4 तब मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए। और सवेरे उठकर पर्वत के नीचे एक वेदी और इस्राएल के बारहों गोत्रों के अनुसार \it बारह खम्भे\f + \fr 24.4 \fq बारह खम्भे: \ft जबकि वेदी यहोवा की उपस्थिति का प्रतीक थी, यह बारह खम्भे उन बारह गोत्रों की उपस्थिति को दर्शाते थे जिनके साथ वाचा बना रहा था।\f*\it* भी बनवाए। \v 5 तब उसने कई इस्राएली जवानों को भेजा, जिन्होंने यहोवा के लिये होमबलि और बैलों के मेलबलि चढ़ाए। \v 6 और मूसा ने आधा लहू लेकर कटोरों में रखा, और आधा वेदी पर छिड़क दिया। \v 7 तब \it वाचा की पुस्तक\f + \fr 24.7 \fq वाचा की पुस्तक: \ft इससे पहले लोगों पर लहू झिड़का जाता उन्हें वाचा की पुस्तक को सुनकर अपनी सहमति को दोहराना था। \f*\it* को लेकर लोगों को पढ़ सुनाया; उसे सुनकर उन्होंने कहा, “जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे।” \v 8 तब मूसा ने लहू को लेकर लोगों पर छिड़क दिया, और उनसे कहा, “देखो, यह उस वाचा का लहू है जिसे यहोवा ने इन सब वचनों पर तुम्हारे साथ बाँधी है।” \p \v 9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए, \v 10 और \it इस्राएल के परमेश्वर का दर्शन\f + \fr 24.10 \fq इस्राएल के परमेश्वर का दर्शन: \ft जब उन्होंने बलिदान का भोज खाया, तो यहोवा की उपस्थिति विशेष रूप में उन पर प्रगट हुई। \f*\it* किया; और उसके चरणों के तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था। \v 11 और \it उसने इस्राएलियों के प्रधानों पर हाथ न बढ़ाया\f + \fr 24.11 \fq उसने इस्राएलियों के प्रधानों पर हाथ न बढ़ाया: \ft उसने उन्हें नहीं मारा। ऐसा मानना था कि नश्वर मनुष्य परमेश्वर को देखने के बाद जीवित नहीं रह सकता।\f*\it*; तब उन्होंने परमेश्वर का दर्शन किया, और खाया पिया। \p \v 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहाँ रह; और मैं तुझे पत्थर की पटियाएँ, और अपनी लिखी हुई व्यवस्था और आज्ञा दूँगा कि तू उनको सिखाए।” \v 13 तब मूसा यहोशू नामक अपने टहलुए समेत परमेश्वर के पर्वत पर चढ़ गया। \v 14 और पुरनियों से वह यह कह गया, “जब तक हम तुम्हारे पास फिर न आएँ तब तक तुम यहीं हमारी बाट जोहते रहो; और सुनो, हारून और हूर तुम्हारे संग हैं; तो यदि किसी का मुकद्दमा हो तो उन्हीं के पास जाए।” \p \v 15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ गया, और बादल ने पर्वत को छा लिया। \v 16 तब यहोवा के तेज ने सीनै पर्वत पर निवास किया, और वह बादल उस पर छः दिन तक छाया रहा; और सातवें दिन उसने मूसा को बादल के बीच में से पुकारा। \v 17 और इस्राएलियों की दृष्टि में यहोवा का तेज पर्वत की चोटी पर प्रचण्ड आग सा देख पड़ता था। \v 18 तब मूसा बादल के बीच में प्रवेश करके पर्वत पर चढ़ गया। और मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा। \c 25 \s पवित्रस्थान के लिये भेंट \p \v 1 यहोवा ने मूसा से कहा, \v 2 “इस्राएलियों से यह कहना कि मेरे लिये भेंट लाएँ; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभी से मेरी भेंट लेना। \v 3 और जिन वस्तुओं की भेंट उनसे लेनी हैं वे ये हैं; अर्थात् सोना, चाँदी, पीतल, \v 4 नीले, बैंगनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा, बकरी का बाल, \v 5 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें, बबूल की लकड़ी, \v 6 उजियाले के लिये तेल, अभिषेक के तेल के लिये और सुगन्धित धूप के लिये सुगन्ध-द्रव्य, \v 7 एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी पत्थर, और जड़ने के लिये मणि। \v 8 और वे मेरे लिये एक पवित्रस्थान बनाएँ, कि \it मैं उनके बीच निवास करूँ\f + \fr 25.8 \fq मैं उनके बीच निवास करूँ: \ft यहाँ निवास-स्थान का उद्देश्य है जिसे निश्चित रूप से स्वयं परमेश्वर ने घोषित किया है। यही बात परमेश्वर की उपस्थिति उनके लोगों के बीच में हे, दर्शाती है।\f*\it*। \v 9 जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूँ, अर्थात् निवास-स्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना। \s साक्षीपत्र का सन्दूक \p \v 10 “बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाया जाए; उसकी लम्बाई ढाई हाथ, और चौड़ाई और ऊँचाई डेढ़-डेढ़ हाथ की हो। \v 11 और उसको शुद्ध सोने से भीतर और बाहर मढ़वाना, और सन्दूक के ऊपर चारों ओर सोने की बाड़ बनवाना। \v 12 और सोने के चार कड़े ढलवा कर उसके चारों पायों पर, एक ओर दो कड़े और दूसरी ओर भी दो कड़े लगवाना। \v 13 फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें भी सोने से मढ़वाना। \v 14 और डण्डों को सन्दूक की दोनों ओर के कड़ों में डालना जिससे उनके बल सन्दूक उठाया जाए। \v 15 वे डण्डे सन्दूक के कड़ों में लगे रहें; और \it उससे अलग न किए जाएँ\f + \fr 25.15 \fq उससे अलग न किए जाएँ: \ft यह निर्देश सम्भवतः इसलिए दिया गया कि सन्दूक को हाथों से छूआ न जाए। \f*\it*। \v 16 और जो \it साक्षीपत्र\f + \fr 25.16 \fq साक्षीपत्र: \ft दस आज्ञाओं की पत्थर पटियों को साक्षीपत्र कहा गया, और जिस सन्दूक में उन्हें रखा गया उन्हें साक्षीपत्र का सन्दूक कहा गया। \f*\it* मैं तुझे दूँगा उसे उसी सन्दूक में रखना। \p \v 17 “फिर शुद्ध सोने का एक प्रायश्चित का ढकना बनवाना; उसकी लम्बाई ढाई हाथ, और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। \v 18 और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित के ढकने के दोनों सिरों पर लगवाना। \v 19 एक करूब तो एक सिरे पर और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर लगवाना; और करूबों को और प्रायश्चित के ढकने को उसके ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनों सिरों पर लगवाना। \v 20 और उन करूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित का ढकना उनसे ढँपा रहे, और उनके मुख आमने-सामने और प्रायश्चित के ढकने की ओर रहें। \v 21 और प्रायश्चित के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूँगा उसे सन्दूक के भीतर रखना। \v 22 और मैं उसके ऊपर रहकर तुझ से मिला करूँगा; और इस्राएलियों के लिये जितनी आज्ञाएँ मुझ को तुझे देनी होंगी, उन सभी के विषय मैं प्रायश्चित के ढकने के ऊपर से और उन करूबों के बीच में से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूँगा। \s पवित्र मेज \p \v 23 “फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊँचाई डेढ़ हाथ की हो। \v 24 उसे शुद्ध सोने से मढ़वाना, और उसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। \v 25 और उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। \v 26 और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारों कोनों में लगवाना जो उसके चारों पायों में होंगे। \v 27 वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डों के घरों का काम दें कि मेज उन्हीं के बल उठाई जाए। \v 28 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज उन्हीं से उठाई जाए। \v 29 और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उण्डेलने के कटोरे, सब शुद्ध सोने के बनवाना। \v 30 और मेज पर मेरे आगे \it भेंट की रोटियाँ\f + \fr 25.30 \fq भेंट की रोटियाँ: \ft इसमें बारह बड़ी अख़मीरी रोटियाँ थीं, जो की मेज पर दो ढेरों में रखी जाती थी और हर ढेर पर लोबान का सुनहरा कटोरा होता था। इसको हर सब्त के दिन बदला जाता था। \f*\it* नित्य रखा करना। \s सोने का दीवट \p \v 31 “फिर शुद्ध सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवा कर वह दीवट, पाये और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गाँठ और फूल, सब एक ही टुकड़े के बनें; \v 32 और उसके किनारों से छः डालियाँ निकलें, तीन डालियाँ तो दीवट की एक ओर से और तीन डालियाँ उसकी दूसरी ओर से निकली हुई हों; \v 33 एक-एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन-तीन पुष्पकोष, एक-एक गाँठ, और एक-एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहों डालियों का यही आकार या रूप हो; \v 34 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपनी-अपनी गाँठ और फूल समेत हों; \v 35 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो-दो डालियों के नीचे एक-एक गाँठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकड़े के बने हुए हों। \v 36 उनकी गाँठें और डालियाँ, सब दीवट समेत एक ही टुकड़े की हों, शुद्ध सोना ढलवा कर पूरा दीवट एक ही टुकड़े का बनवाना। \v 37 और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएँ कि वे दीवट के सामने प्रकाश दें। \v 38 और उसके गुलतराश और गुलदान सब शुद्ध सोने के हों। \v 39 वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर शुद्ध सोने का बने। \v 40 और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है। \c 26 \s पवित्र तम्बू \p \v 1 “फिर \it निवास-स्थान\f + \fr 26.1 \fq निवास-स्थान: \ft स्वयं निवास-स्थान में करूबों के चित्र कढ़े हुए बटे महीन मलमल के कपड़े के परदे थे, और पवित्रस्थान तथा अति पवित्रस्थान को खड़ा करने के लिए तख्तो का ढांचा था। \f*\it* के लिये दस परदे बनवाना; इनको बटी हुई सनीवाले और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के साथ बनवाना। \v 2 एक-एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; सब परदे एक ही नाप के हों। \v 3 पाँच परदे एक दूसरे से जुड़े हुए हों; और फिर जो पाँच परदे रहेंगे वे भी एक दूसरे से जुड़े हुए हों। \v 4 और जहाँ ये दोनों परदे जोड़े जाएँ वहाँ की दोनों छोरों पर नीले-नीले फंदे लगवाना। \v 5 दोनों छोरों में पचास-पचास फंदे ऐसे लगवाना कि वे आमने-सामने हों। \v 6 और सोने के पचास अंकड़े बनवाना; और परदों के छल्लों को अंकड़ों के द्वारा एक दूसरे से ऐसा जुड़वाना कि निवास-स्थान मिलकर एक ही हो जाए। \p \v 7 “फिर निवास के ऊपर तम्बू का काम देने के लिये बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनवाना। \v 8 एक-एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; ग्यारहों परदे एक ही नाप के हों। \v 9 और पाँच परदे अलग और फिर छः परदे अलग जुड़वाना, और छठवें परदे को तम्बू के सामने मोड़कर दुहरा कर देना। \v 10 और तू पचास अंकड़े उस परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही अंकड़े दूसरी ओर के परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनवाना। \v 11 और पीतल के पचास अंकड़े बनाना, और अंकड़ों को फंदों में लगाकर तम्बू को ऐसा जुड़वाना कि वह मिलकर एक ही हो जाए। \v 12 और तम्बू के परदों का लटका हुआ भाग, अर्थात् जो आधा पट रहेगा, वह निवास की पिछली ओर लटका रहे। \v 13 और तम्बू के परदों की लम्बाई में से हाथ भर इधर, और हाथ भर उधर निवास को ढाँकने के लिये उसकी दोनों ओर पर लटका हुआ रहे। \v 14 फिर तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर सुइसों की खालों का भी एक ओढ़ना बनवाना। \p \v 15 “फिर निवास को खड़ा करने के लिये बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना। \v 16 एक-एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। \v 17 एक-एक तख्ते में एक दूसरे से जोड़ी हुई दो-दो चूलें हों; निवास के सब तख्तों को इसी भाँति से बनवाना। \v 18 और निवास के लिये जो तख्ते तू बनवाएगा उनमें से बीस तख्ते तो दक्षिण की ओर के लिये हों; \v 19 और बीसों तख्तों के नीचे चाँदी की चालीस कुर्सियाँ बनवाना, अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे उसके चूलों के लिये दो-दो कुर्सियाँ। \v 20 और निवास की दूसरी ओर, अर्थात् उत्तर की ओर बीस तख्ते बनवाना। \v 21 और उनके लिये चाँदी की चालीस कुर्सियाँ बनवाना, अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे दो-दो कुर्सियाँ हों। \v 22 और निवास की पिछली ओर, अर्थात् पश्चिम की ओर के लिए छः तख्ते बनवाना। \v 23 और पिछले भाग में निवास के कोनों के लिये दो तख्ते बनवाना; \v 24 और ये नीचे से दो-दो भाग के हों और दोनों भाग ऊपर के सिरे तक एक-एक कड़े में मिलाए जाएँ; दोनों तख्तों का यही रूप हो; ये तो दोनों कोनों के लिये हों। \v 25 और आठ तख्ते हों, और उनकी चाँदी की सोलह कुर्सियाँ हों; अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे दो-दो कुर्सियाँ हों। \p \v 26 “फिर बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनवाना, अर्थात् निवास की एक ओर के तख्तों के लिये पाँच, \v 27 और निवास की दूसरी ओर के तख्तों के लिये पाँच बेंड़े, और निवास का जो भाग पश्चिम की ओर पिछले भाग में होगा, उसके लिये पाँच बेंड़े बनवाना। \v 28 बीचवाला बेंड़ा जो तख्तों के मध्य में होगा वह तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचे। \v 29 फिर तख्तों को सोने से मढ़वाना, और उनके कड़े जो बेंड़ों के घरों का काम देंगे उन्हें भी सोने के बनवाना; और बेंड़ों को भी सोने से मढ़वाना। \v 30 और निवास को इस रीति खड़ा करना जैसा इस पर्वत पर तुझे दिखाया गया है। \s पवित्र तम्बू का भीतरी भाग \p \v 31 “फिर नीले, बैंगनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का एक बीचवाला परदा बनवाना; वह कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के साथ बने। \v 32 और उसको सोने से मढ़े हुए बबूल के चार खम्भों पर लटकाना, इनकी अंकड़ियाँ सोने की हों, और ये चाँदी की चार कुर्सियों पर खड़ी रहें। \v 33 और बीचवाले पर्दे को अंकड़ियों के नीचे लटकाकर, उसकी आड़ में साक्षीपत्र का सन्दूक भीतर ले जाना; सो वह बीचवाला परदा तुम्हारे लिये पवित्रस्थान को परमपवित्र स्थान से अलग किए रहे। \v 34 फिर परमपवित्र स्थान में साक्षीपत्र के सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित के ढकने को रखना। \v 35 और उस पर्दे के बाहर निवास के उत्तर की ओर मेज रखना; और उसके दक्षिण की ओर मेज के सामने दीवट को रखना। \s पवित्र तम्बू का मुख्य द्वार \p \v 36 “फिर तम्बू के द्वार के लिये नीले, बैंगनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का \it कढ़ाई का काम किया हुआ\f + \fr 26.36 \fq कढ़ाई का काम किया हुआ: \ft निवास-स्थान में प्रवेश करने का और आँगन के द्वार (निर्ग 27:16) का परदा एक ही सामग्री का होना चाहिए, लेकिन उन पर सुईं से कढ़ाई का काम होना चाहिए, ऐसा न हो जो करघा पर संख्या में बना हो।\f*\it* एक परदा बनवाना। \v 37 और इस पर्दे के लिये बबूल के पाँच खम्भे बनवाना, और उनको सोने से मढ़वाना; उनकी कड़ियाँ सोने की हों, और उनके लिये पीतल की पाँच कुर्सियाँ ढलवा कर बनवाना। \c 27 \s होमबलि की वेदी \p \v 1 “फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊँचाई तीन हाथ की हो। \v 2 और उसके चारों कोनों पर चार \it सींग\f + \fr 27.2 \fq सींग: \ft ये सींग ऊपर की ओर संकेत करनेवाले स्मारक थे जो या तो छोटे सींग के थे या बैल के सींग के। \f*\it* बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। \v 3 और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावड़ियां, और कटोरे, और काँटे, और अँगीठियाँ बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। \v 4 और उसके पीतल की जाली की एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना। \v 5 और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कँगनी के नीचे ऐसे लगवाना कि वह वेदी की ऊँचाई के मध्य तक पहुँचे। \v 6 और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। \v 7 और डण्डे कड़ों में डाले जाएँ, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनों ओर पर रहें। \v 8 वेदी को तख्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए। \s पवित्र तम्बू का आँगन \p \v 9 “फिर निवास के आँगन को बनवाना। उसकी दक्षिण ओर के लिये तो बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के सब पर्दों को मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक ओर पर तो इतना ही हो। \v 10 और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुर्सियाँ बनें, और खम्भों के कुण्डे और उनकी पट्टियाँ चाँदी की हों। \v 11 और उसी भाँति आँगन की उत्तर ओर की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुण्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों। \v 12 फिर आँगन की चौड़ाई में पश्चिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों। \v 13 पूरब की ओर पर आँगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। \v 14 और आँगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों। \v 15 और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। \v 16 आँगन के द्वार के लिये एक परदा बनवाना, जो नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों। \v 17 आँगन की चारों ओर के सब खम्भे चाँदी की पट्टियों से जुड़े हुए हों, उनके कुण्डे चाँदी के और खाने पीतल के हों। \v 18 आँगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊँचाई पाँच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों। \v 19 निवास के भाँति-भाँति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूँटे और आँगन के भी सब खूँटे पीतल ही के हों। \s दीपक के लिये तेल \p \v 20 “फिर तू इस्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये \it कूट के निकाला हुआ जैतून का निर्मल तेल\f + \fr 27.20 \fq कूट के निकाला हुआ जैतून का निर्मल तेल: \ft यह तेल सबसे उत्तम श्रेणी का तेल था। इसे कूटा हुआ इसलिए कहते थे, क्योंकि इस तेल को खरल या चक्की में कूटकर और पीसकर निकाला जाता था। \f*\it* ले आना, जिससे दीपक नित्य जलता रहे। \v 21 \it मिलापवाले तम्बू में\f + \fr 27.21 \fq मिलापवाले तम्बू में: \ft इसके साथ जो विचार जुड़ा है वह, यहोवा का मूसा के साथ, या याजकों के साथ या तम्बू के प्रवेश-द्वार पर इकट्ठा हुई लोगों की मण्डली के साथ मिलने से है।\f*\it*, उस बीचवाले पर्दे से बाहर जो साक्षीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट साँझ से भोर तक यहोवा के सामने सजा कर रखें। यह विधि इस्राएलियों की पीढ़ियों के लिये सदैव बनी रहेगी। \c 28 \s याजकों के पवित्र वस्त्र \p \v 1 “फिर तू इस्राएलियों में से अपने भाई हारून, और \it नादाब, अबीहू\f + \fr 28.1 \fq नादाब, अबीहू: \ft हारून के दो बड़े बेटे अपने पिता और सत्तर प्राचीनों के साथ थे जब वे पहाड़ी पर कुछ दूर तक मूसा के साथ गए।\f*\it*, एलीआजर और ईतामार नामक उसके पुत्रों को अपने समीप ले आना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। \v 2 और तू अपने भाई हारून के लिये वैभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना। \v 3 और जितनों के हृदय में बुद्धि है, जिनको मैंने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उनको तू हारून के वस्त्र बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिये पवित्र बनें। \v 4 और जो वस्त्र उन्हें बनाने होंगे वे ये हैं, अर्थात् सीनाबन्ध; और एपोद, और बागा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; ये ही पवित्र वस्त्र तेरे भाई हारून और उसके पुत्रों के लिये बनाएँ जाएँ कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। \v 5 और वे सोने और नीले और बैंगनी और लाल रंग का और सूक्ष्म सनी का कपड़ा लें। \s एपोद और पटुका \p \v 6 “वे \it एपोद\f + \fr 28.6 \fq एपोद: \ft ऐसा वस्त्र जिसे कंधों पर पहना जाता था और यह महायाजकों का पहनावों में विशेष था। \f*\it* को सोने, और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का बनाएँ, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करनेवाले के हाथ का काम हो। \v 7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनों कंधों के सिरे आपस में मिले रहें। \v 8 और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनों बिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंगनी और लाल रंगवाले और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े के हों। \v 9 फिर दो सुलैमानी मणि लेकर उन पर इस्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना, \v 10 उनके नामों में से छः तो एक मणि पर, और शेष छः नाम दूसरे मणि पर, इस्राएल के पुत्रों की उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना। \v 11 मणि गढ़नेवाले के काम के समान जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियों पर इस्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना; और उनको सोने के खानों में जड़वा देना। \v 12 और दोनों मणियों को एपोद के कंधों पर लगवाना, वे इस्राएलियों के निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्थात् हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपने दोनों कंधों पर स्मरण के लिये लगाए रहे। \p \v 13 “फिर सोने के खाने बनवाना, \v 14 और डोरियों के समान गूँथे हुए दो जंजीर शुद्ध सोने के बनवाना; और गूँथे हुए जंजीरों को उन खानों में जड़वाना। \s सीनाबन्ध या चपरास \p \v 15 “फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद के समान सोने, और नीले, बैंगनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की उसे बनवाना। \v 16 वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक-एक बिलांद की हो। \v 17 और उसमें चार पंक्ति मणि जड़ाना। पहली पंक्ति में तो माणिक्य, पद्मराग और लालड़ी हों; \v 18 दूसरी पंक्ति में मरकत, नीलमणि और हीरा; \v 19 तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकांत और नीलम; \v 20 और चौथी पंक्ति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; ये सब सोने के खानों में जड़े जाएँ। \v 21 और इस्राएल के पुत्रों के जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्थात् उनके नामों की गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहों गोत्रों में से एक-एक का नाम एक-एक मणि पर ऐसे खुदे जैसे छापा खोदा जाता है। \v 22 फिर चपरास पर डोरियों के समान गूँथे हुए शुद्ध सोने की जंजीर लगवाना; \v 23 और चपरास में सोने की दो कड़ियाँ लगवाना, और दोनों कड़ियों को चपरास के दोनों सिरों पर लगवाना। \v 24 और सोने के दोनों गूँथे जंजीरों को उन दोनों कड़ियों में जो चपरास के सिरों पर होंगी लगवाना; \v 25 और गूँथे हुए दोनों जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को दोनों खानों में जड़वा के एपोद के दोनों कंधों के बंधनों पर उसके सामने लगवाना। \v 26 फिर सोने की दो और कड़ियाँ बनवाकर चपरास के दोनों सिरों पर, उसकी उस कोर पर जो एपोद के भीतर की ओर होगी लगवाना। \v 27 फिर उनके सिवाय सोने की दो और कड़ियाँ बनवाकर एपोद के दोनों कंधों के बंधनों पर, नीचे से उनके सामने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना। \v 28 और चपरास अपनी कड़ियों के द्वारा एपोद की कड़ियों में नीले फीते से बाँधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए। \v 29 और जब जब हारून पवित्रस्थान में प्रवेश करे, तब-तब वह न्याय की चपरास पर अपने हृदय के ऊपर इस्राएलियों के नामों को लगाए रहे, जिससे यहोवा के सामने उनका स्मरण नित्य रहे। \v 30 और तू न्याय की चपरास में \it ऊरीम और तुम्मीम\f + \fr 28.30 \fq ऊरीम और तुम्मीम: \ft वे मिस्र से लाए बहुमूल्य पत्थर थे, और उनके द्वारा ईश्वरीय इच्छा प्रगट होती थी। \f*\it* को रखना, और जब जब हारून यहोवा के सामने प्रवेश करे, तब-तब वे उसके हृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्राएलियों के लिये यहोवा के न्याय को अपने हृदय के ऊपर यहोवा के सामने नित्य लगाए रहे। \s अन्य याजकीय वस्त्र \p \v 31 “फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना। \v 32 उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिये छेद हो, और उस छेद की चारों ओर बख्तर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो कि वह फटने न पाए। \v 33 और उसके नीचेवाले घेरे में चारों ओर नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनवाना, और उनके बीच-बीच चारों ओर सोने की घंटियाँ लगवाना, \v 34 अर्थात् एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचेवाले घेरे में चारों ओर ऐसा ही हो। \v 35 और हारून उस बागे को सेवा टहल करने के समय पहना करे, कि जब जब वह पवित्रस्थान के भीतर यहोवा के सामने जाए, या बाहर निकले, तब-तब उसका शब्द सुनाई दे, नहीं तो वह मर जाएगा। \p \v 36 “फिर शुद्ध सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उसमें ये अक्षर खोदे जाएँ, अर्थात् ‘यहोवा के लिये पवित्र।’ \v 37 और उसे नीले फीते से बाँधना; और वह पगड़ी के सामने के हिस्से पर रहे। \v 38 और वह हारून के माथे पर रहे, इसलिए कि इस्राएली जो कुछ पवित्र ठहराएँ, अर्थात् जितनी पवित्र वस्तुएँ भेंट में चढ़ावे उन पवित्र वस्तुओं का \it दोष हारून उठाए रहे\f + \fr 28.38 \fq दोष हारून उठाए रहे: \ft जिन पापों की यहाँ बात हो रही है उसका अर्थ उन पापों से नहीं जो किए गए, परन्तु पृथ्वी की हर बातों में परमेश्वर से अलगाव की उस अवस्था से है जो मेल-मिलाप और शुद्ध किए जाने को जरुरी बनाता है।\f*\it*, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिससे यहोवा उनसे प्रसन्न रहे। \p \v 39 “अंगरखे को सूक्ष्म सनी के कपड़े का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूक्ष्म सनी के कपड़े की बनवाना, और बेलबूटे की कढ़ाई का काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना। \v 40 “फिर हारून के पुत्रों के लिये भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियाँ बनवाना; ये वस्त्र भी वैभव और शोभा के लिये बनें। \v 41 अपने भाई हारून और उसके पुत्रों को ये ही सब वस्त्र पहनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्र करना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। \v 42 और उनके लिये सनी के कपड़े की जाँघिया बनवाना जिनसे उनका तन ढँपा रहे; वे कमर से जाँघ तक की हों; \v 43 और जब जब हारून या उसके पुत्र मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें, या पवित्रस्थान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएँ तब-तब वे उन जाँघियों को पहने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएँ। यह हारून के लिये और उसके बाद उसके वंश के लिये भी सदा की विधि ठहरे। \c 29 \s याजकपद के लिये अभिषेक \p \v 1 “उन्हें पवित्र करने को जो काम तुझे उनसे करना है कि वे मेरे लिये याजक का काम करें वह यह है: एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेढ़े लेना, \v 2 और अख़मीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अख़मीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अख़मीरी पपड़ियाँ भी लेना। ये सब गेहूँ के मैदे के बनवाना। \v 3 इनको एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनों मेढ़ों समेत समीप ले आना। \v 4 फिर हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना। \v 5 तब उन वस्त्रों को लेकर हारून को अंगरखा और एपोद का बागा पहनाना, और एपोद और चपरास बाँधना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बाँधना; \v 6 और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्र मुकुट को रखना। \v 7 तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना। \v 8 फिर उसके पुत्रों को समीप ले आकर उनको अंगरखे पहनाना, \v 9 और उसके अर्थात् हारून और उसके पुत्रों के कमर बाँधना और उनके सिर पर टोपियाँ रखना; जिससे याजक के पद पर सदा उनका हक़ रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रों का संस्कार करना। \p \v 10 “तब बछड़े को मिलापवाले तम्बू के सामने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्र बछड़े के सिर पर अपने-अपने हाथ रखें, \v 11 तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना, \v 12 और बछड़े के लहू में से कुछ लेकर अपनी उँगली से वेदी के सींगों पर लगाना, और शेष सब लहू को वेदी के पाए पर उण्डेल देना, \v 13 और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढपी रहती हैं, और जो झिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उनको और दोनों गुर्दों को उनके ऊपर की चर्बी समेत लेकर सब को वेदी पर जलाना। \v 14 परन्तु बछड़े का माँस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा। \p \v 15 “फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने-अपने हाथ रखें, \v 16 तब उस मेढ़े को बलि करना, और उसका लहू लेकर वेदी पर चारों ओर छिड़कना। \v 17 और उस मेढ़े को टुकड़े-टुकड़े काटना, और उसकी अंतड़ियों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना, \v 18 तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिये होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन होगा। \p \v 19 “फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने-अपने हाथ रखें, \v 20 तब उस मेढ़े को बलि करना, और उसके लहू में से कुछ लेकर हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर, और उनके दाहिने हाथ और दाहिने पाँव के अँगूठों पर लगाना, और लहू को वेदी पर चारों ओर छिड़क देना। \v 21 फिर वेदी पर के लहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनों में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्र भी अपने-अपने वस्त्रों समेत पवित्र हो जाएँगे। \v 22 तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उसमें से चर्बी और मोटी पूँछ को, और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की झिल्ली को, और चर्बी समेत दोनों गुर्दों को, और दाहिने पुट्ठे को लेना, \v 23 और अख़मीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उसमें से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपड़ी लेकर, \v 24 इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराकर यहोवा के आगे हिलाया जाए। \v 25 तब उन वस्तुओं को उनके हाथों से लेकर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिससे वह यहोवा के सामने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिये हवन होगा। \p \v 26 “फिर हारून के संस्कार को जो मेढ़ा होगा उसकी छाती को लेकर हिलाए जाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा। \v 27 और हारून और उसके पुत्रों के संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उसमें से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनों को पवित्र ठहराना। \v 28 और ये सदा की विधि की रीति पर इस्राएलियों की ओर से उसका और उसके पुत्रों का भाग ठहरे, क्योंकि ये उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्राएलियों की ओर से उनके मेलबलियों में से यहोवा के लिये उठाए जाने की भेंट होगी। \p \v 29 “हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिससे उन्हीं को पहने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए। \v 30 उसके पुत्रों के जो उसके स्थान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्थान में सेवा टहल करने को मिलापवाले तम्बू में पहले आए, तब उन वस्त्रों को सात दिन तक पहने रहें। \p \v 31 “फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे लेकर उसका माँस किसी पवित्रस्थान में पकाना; \v 32 तब हारून अपने पुत्रों समेत उस मेढ़े का माँस और टोकरी की रोटी, दोनों को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खाए। \v 33 जिन पदार्थों से उनका संस्कार और उन्हें पवित्र करने के लिये प्रायश्चित किया जाएगा उनको तो वे खाएँ, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्र होंगे। \v 34 यदि संस्कारवाले माँस या रोटी में से कुछ सवेरे तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्र होगा। \p \v 35 “मैंने तुझे जो-जो आज्ञा दी हैं, उन सभी के अनुसार तू हारून और उसके पुत्रों से करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना, \v 36 अर्थात् पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिये उसका अभिषेक करना। \v 37 सात दिन तक वेदी के लिये प्रायश्चित करके उसे पवित्र करना, और वेदी परमपवित्र ठहरेगी; और जो कुछ उससे छू जाएगा वह भी पवित्र हो जाएगा। \s दैनिक भेंट \p \v 38 “जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्थात् प्रतिदिन एक-एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे। \v 39 एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को साँझ के समय चढ़ाना। \v 40 और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौथाई कूटकर निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवाँ भाग मैदा, और अर्घ के लिये ही की चौथाई दाखमधु देना। \v 41 और दूसरे भेड़ के बच्चे को साँझ के समय चढ़ाना, और उसके साथ भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनों देना, जिससे वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन ठहरे। \v 42 तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्थान है जिसमें मैं तुम लोगों से इसलिए मिला करूँगा कि तुझ से बातें करूँ। \v 43 मैं इस्राएलियों से वहीं मिला करूँगा, और \it वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा\f + \fr 29.43 \fq वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा: \ft इसका अर्थ यह है कि वह स्थान जहाँ यहोवा ने अपने लोगों की मण्डली से मिलने की प्रतिज्ञा की है, वह उसके तेज से पवित्र किया जाएगा। \f*\it*। \v 44 और \it मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूँगा\f + \fr 29.44 \fq मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूँगा: \ft मिलापवाले तम्बू को और वहाँ सेवा करनेवाले याजकों को पवित्र करने का उद्देश्य यह था कि वह पूरी जाति जिसे यहोवा ने मिस्र के दासत्व के बन्धनों से स्वतंत्र किया है, अपने दैनिक जीवन में पवित्र ठहरें।\f*\it*, और हारून और उसके पुत्रों को भी पवित्र करूँगा कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। \v 45 और मैं इस्राएलियों के मध्य निवास करूँगा, और उनका परमेश्वर ठहरूँगा। \v 46 तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूँ, जो उनको मिस्र देश से इसलिए निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूँ; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूँ। \c 30 \s धूप जलाने की वेदी \p \v 1 “फिर धूप जलाने के लिये बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना। \v 2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊँचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएँ। \v 3 और वेदी के ऊपरवाले पल्ले और चारों ओर के बाजुओं और सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ना, और इसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाना। \v 4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके आमने-सामने के दोनों पल्लों पर सोने के दो-दो कड़े बनाकर इसके दोनों ओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डों के खानों का काम देंगे। \v 5 डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाकर उनको सोने से मढ़ना। \v 6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने है, अर्थात् प्रायश्चितवाले ढकने के आगे जो साक्षीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूँगा। \v 7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए, \v 8 तब साँझ के समय जब हारून दीपकों को जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के सामने तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में नित्य जलाया जाए। \v 9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना। \v 10 हारून वर्ष में एक बार इसके सींगों पर प्रायश्चित करे; और तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित के पापबलि के लहू से इस पर प्रायश्चित किया जाए; यह यहोवा के लिये परमपवित्र है।” \s प्राणों के प्रायश्चित का रुपया \p \v 11 और तब यहोवा ने मूसा से कहा, \v 12 “जब तू इस्राएलियों कि गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपने-अपने प्राणों के लिये यहोवा को प्रायश्चित दें, जिससे जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय \it कोई विपत्ति उन पर न आ पड़े\f + \fr 30.12 \fq कोई विपत्ति उन पर न आ पड़े: \ft कि उन पर आत्मिक अधिकारों की उपेक्षा करने और तिरस्कार करने का दण्ड न आ पड़े।\f*\it*। \v 13 जितने लोग गिने जाएँ वे पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल दें, (यह शेकेल बीस गेरा का होता है), यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो। \v 14 बीस वर्ष के या उससे अधिक अवस्था के जितने गिने जाएँ उनमें से एक-एक जन यहोवा की भेंट दे। \v 15 जब तुम्हारे प्राणों के प्रायश्चित के निमित्त यहोवा की भेंट अर्पित की जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उससे कम दें। \v 16 और तू इस्राएलियों से प्रायश्चित का रुपया लेकर मिलापवाले तम्बू के काम में लगाना; जिससे वह यहोवा के सम्मुख \it इस्राएलियों के स्मरणार्थ चिन्ह ठहरे\f + \fr 30.16 \fq इस्राएलियों के स्मरणार्थ चिन्ह ठहरे: \ft तम्बू में इस्तेमाल होनेवाली चाँदी प्रत्येक मनुष्य को परमेश्वर के सामने वाचा में बंधे व्यक्ति के रूप में उसकी स्थिति बताने के लिए स्मरणार्थ थी।\f*\it*, और उनके प्राणों का प्रायश्चित भी हो।” \s पीतल की हौदी \p \v 17 और यहोवा ने मूसा से कहा, \v 18 “धोने के लिये पीतल की एक हौदी और उसका पाया भी पीतल का बनाना। और उसे मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उसमें जल भर देना; \v 19 और उसमें हारून और उसके पुत्र अपने-अपने हाथ पाँव धोया करें। \v 20 जब जब वे मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें तब-तब वे हाथ पाँव जल से धोएँ, नहीं तो मर जाएँगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्थात् यहोवा के लिये हव्य जलाने को आएँ तब-तब वे हाथ पाँव धोएँ, न हो कि मर जाएँ। \v 21 यह हारून और उसके पीढ़ी-पीढ़ी के वंश के लिये सदा की विधि ठहरे।” \s अभिषेक का तेल \p \v 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, \v 23 “तू उत्तम से उत्तम सुगन्ध-द्रव्य ले, अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार पाँच सौ शेकेल अपने आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्थात् ढाई सौ शेकेल सुगन्धित दालचीनी और ढाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर, \v 24 और पाँच सौ शेकेल तज, और एक हीन जैतून का तेल लेकर \v 25 उनसे अभिषेक का पवित्र तेल, अर्थात् गंधी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्र तेल ठहरे। \v 26 और उससे मिलापवाले तम्बू का, और साक्षीपत्र के सन्दूक का, \v 27 और सारे सामान समेत मेज का, और सामान समेत दीवट का, और धूपवेदी का, \v 28 और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना। \v 29 और उनको पवित्र करना, जिससे वे परमपवित्र ठहरें; और जो कुछ उनसे छू जाएगा वह पवित्र हो जाएगा। \v 30 फिर हारून का उसके पुत्रों के साथ अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिये याजक का काम करने के लिये पवित्र करना। \v 31 और इस्राएलियों को मेरी यह आज्ञा सुनाना, ‘यह तेल तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में मेरे लिये पवित्र अभिषेक का तेल होगा। \v 32 यह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; यह पवित्र है, यह तुम्हारे लिये भी पवित्र होगा। \v 33 जो कोई इसके समान कुछ बनाए, या जो कोई इसमें से कुछ पराए कुलवाले पर लगाए, वह अपने लोगों में से नाश किया जाए।’” \s पवित्र सुगन्धित द्रव्य \p \v 34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “बोल, नखी और कुन्दरू, ये सुगन्ध-द्रव्य \it निर्मल लोबान\f + \fr 30.34 \fq निर्मल लोबान: \ft यह एक सबसे महत्त्वपूर्ण सुगन्धित द्रव्य था। मुर्र के समान, इसको बहुमूल्य इत्र के समान समझा जाता था।\f*\it* समेत ले लेना, ये सब एक तौल के हों, \v 35 और इनका धूप अर्थात् नमक मिलाकर गंधी की रीति के अनुसार शुद्ध और पवित्र सुगन्ध-द्रव्य बनवाना; \v 36 फिर उसमें से कुछ पीसकर बारीक कर डालना, तब उसमें से कुछ मिलापवाले तम्बू में साक्षीपत्र के आगे, जहाँ पर मैं तुझ से मिला करूँगा वहाँ रखना; वह तुम्हारे लिये परमपवित्र होगा। \v 37 और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपने लिये और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिये पवित्र होगा। \v 38 जो कोई सूँघने के लिये उसके समान कुछ बनाए वह अपने लोगों में से नाश किया जाए।” \c 31 \s बसलेल और ओहोलीआब \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, \v 2 “सुन, मैं ऊरी के पुत्र बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्र का है, नाम लेकर बुलाता हूँ। \v 3 और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो \it बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान\f + \fr 31.3 \fq बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान: \ft अथवा, हर बात में सही परख \f*\it*, और सब प्रकार के कार्यों की समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूँ, \v 4 जिससे वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकालकर सब भाँति की बनावट में, अर्थात् सोने, चाँदी, और पीतल में, \v 5 और जड़ने के लिये मणि काटने में, और लकड़ी पर नक्काशी का काम करे। \v 6 और सुन, मैं दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूँ; वरन् जितने बुद्धिमान हैं उन सभी के हृदय में मैं बुद्धि देता हूँ, जिससे जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैंने तुझे दी है उन सभी को वे बनाएँ; \v 7 अर्थात् मिलापवाले तम्बू, और साक्षीपत्र का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चितवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान, \v 8 और सामान सहित मेज, और सारे सामान समेत शुद्ध सोने की दीवट, और धूपवेदी, \v 9 और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी, \v 10 और काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के याजकवाले काम के \it पवित्र वस्त्र\f + \fr 31.10 \fq पवित्र वस्त्र: \ft यह महायाजक के अधिकारिक वस्त्रों की विशेषता थी।\f*\it*, और उसके पुत्रों के वस्त्र, \v 11 और अभिषेक का तेल, और पवित्रस्थान के लिये सुगन्धित धूप, इन सभी को वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएँ जो मैंने तुझे दी हैं।” \s सब्त अर्थात् विश्रामदिन \p \v 12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, \v 13 “तू इस्राएलियों से यह भी कहना, ‘निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिससे तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेवाला है। \v 14 इस कारण तुम विश्रामदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिये पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में कुछ काम-काज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए। \v 15 छः दिन तो काम-काज किया जाए, पर सातवाँ दिन पवित्र विश्राम का दिन और यहोवा के लिये पवित्र है; इसलिए जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम-काज करे वह निश्चय मार डाला जाए। \v 16 इसलिए इस्राएली विश्रामदिन को माना करें, वरन् पीढ़ी-पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें। \v 17 वह मेरे और इस्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छः दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया।’” \s पत्थर की दो तख्तियाँ \p \v 18 जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब परमेश्वर ने उसको अपनी उँगली से लिखी हुई साक्षी देनेवाली पत्थर की दोनों तख्तियाँ दीं। \c 32 \s इस्राएलियों का मूर्तिपूजा में फँसने का वर्णन \p \v 1 जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?” \v 2 हारून ने उनसे कहा, “तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियाँ हैं उन्हें उतारो, और मेरे पास ले आओ।” \v 3 तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को उतारा, और हारून के पास ले आए। \v 4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और \it एक बछड़ा ढालकर बनाया\f + \fr 32.4 \fq एक बछड़ा ढालकर बनाया: \ft लोग काफी हद तक अपने पुरखों के विश्वास को खो बैठे थे, और व्यक्तिगत अनदेखे परमेश्वर की सच्चाई नहीं जानते थे।\f*\it*, और टाँकी से गढ़ा। तब वे कहने लगे, “हे इस्राएल तेरा ईश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।” \v 5 यह देखकर हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा।” \v 6 और दूसरे दिन लोगों ने भोर को उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे। \p \v 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, वे बिगड़ गए हैं; \v 8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैंने उनको दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, ‘हे इस्राएलियों तुम्हारा ईश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है।’” \v 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं। \v 10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूँ; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊँगा।” \p \v 11 तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहकर मनाने लगा, “हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? \v 12 मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएँ, ‘वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया?’ तू अपने भड़के हुए कोप को शान्त कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुँचाने से फिर जा। \v 13 अपने दास अब्राहम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिनसे तूने अपनी ही शपथ खाकर यह कहा था, ‘मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूँगा, और यह सारा देश जिसकी मैंने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूँगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें।’” \v 14 तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उसने कहा था पछताया। \p \v 15 तब मूसा फिरकर साक्षी की दोनों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों ओर लिखा हुआ था। \v 16 और वे तख्तियाँ परमेश्वर की बनाई हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था। \p \v 17 जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उसने मूसा से कहा, “छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है।” \v 18 उसने कहा, “वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालों का है, और न हारनेवालों का, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है।” \v 19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उसने तख्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। \v 20 तब उसने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालकर फूँक दिया। और पीसकर चूर चूरकर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्राएलियों को उसे पिलवा दिया। \p \v 21 तब मूसा हारून से कहने लगा, “उन लोगों ने तुझ से क्या किया कि तूने उनको इतने बड़े पाप में फँसाया?” \v 22 हारून ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं। \v 23 और उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?’ \v 24 तब मैंने उनसे कहा, ‘जिस जिसके पास सोने के गहने हों, वे उनको उतार लाएँ;’ और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैंने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा।” \p \v 25 हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास के योग्य हुए, \v 26 उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, “जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए;” तब सारे लेवीय उसके पास इकट्ठे हुए। \v 27 उसने उनसे कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, कि अपनी-अपनी जाँघ पर तलवार लटकाकर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम-घूमकर अपने-अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों को घात करो।” \v 28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया और उस दिन तीन हजार के लगभग लोग मारे गए। \v 29 फिर मूसा ने कहा, “आज के दिन यहोवा के लिये \it अपना याजकपद का संस्कार करो\f + \fr 32.29 \fq अपना याजकपद का संस्कार करो: \ft लेवियों को यहोवा के सेवकों के रूप में निःस्वार्थ ईश्वरीय आज्ञा का पालन करने के द्वारा विशेष रूप से अपने को सिद्ध करना होता था, भले ही इसमें उन्हें अपने निकट सम्बंधियों के विरुद्ध भी क्यों न जाना पड़े।\f*\it*, वरन् अपने-अपने बेटों और भाइयों के भी विरुद्ध होकर ऐसा करो जिससे वह आज तुम को आशीष दे।” \p \v 30 दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊँगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित कर सकूँ।” \v 31 तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, “हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। \v 32 तो भी अब तू उनका पाप क्षमा कर नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे।” \v 33 यहोवा ने मूसा से कहा, “जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा। \v 34 अब तो तू जाकर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चर्चा मैंने तुझ से की थी; देख मेरा दूत तेरे आगे-आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूँगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूँगा।” \p \v 35 अतः यहोवा ने उन लोगों पर विपत्ति भेजी, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया था। \c 33 \s सीनै पर्वत से प्रस्थान की आज्ञा \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू उन लोगों को जिन्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है संग लेकर उस देश को जा, जिसके विषय मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खाकर कहा था, ‘मैं उसे तुम्हारे वंश को दूँगा।’ \v 2 और मैं तेरे आगे-आगे एक दूत को भेजूँगा और कनानी, एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को बरबस निकाल दूँगा। \v 3 तुम लोग उस देश को जाओ जिसमें दूध और मधु की धारा बहती है; परन्तु तुम हठीले हो, इस कारण मैं तुम्हारे बीच में होकर न चलूँगा, ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर डालूँ।” \p \v 4 यह बुरा समाचार सुनकर वे लोग विलाप करने लगे; और कोई अपने गहने पहने हुए न रहा। \v 5 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कह दिया था, “इस्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, ‘तुम लोग तो हठीले हो; जो मैं पल भर के लिये तुम्हारे बीच होकर चलूँ, तो तुम्हारा अन्त कर डालूँगा। इसलिए अब अपने-अपने गहने अपने अंगों से उतार दो, कि मैं जानूँ कि तुम्हारे साथ क्या करना चाहिए।’” \v 6 तब इस्राएली होरेब पर्वत से लेकर आगे को अपने गहने उतारे रहे। \s मिलापवाला तम्बू \p \v 7 मूसा तम्बू को \it छावनी से बाहर\f + \fr 33.7 \fq छावनी से बाहर: \ft जिससे लोगों को यह महसूस हो कि वे ईश्वरीय उपस्थिति द्वारा सुरक्षा के घिरे में हैं। यह तम्बू यहोवा से मिलने का स्थान था। \f*\it* वरन् दूर खड़ा कराया करता था, और उसको मिलापवाला तम्बू कहता था। और जो कोई यहोवा को ढूँढ़ता वह उस मिलापवाले तम्बू के पास जो छावनी के बाहर था निकल जाता था। \v 8 जब जब मूसा तम्बू के पास जाता, तब-तब सब लोग उठकर अपने-अपने डेरे के द्वार पर खड़े हो जाते, और जब तक मूसा उस तम्बू में प्रवेश न करता था तब तक उसकी ओर ताकते रहते थे। \v 9 जब मूसा उस तम्बू में प्रवेश करता था, तब बादल का खम्भा उतरकर तम्बू के द्वार पर ठहर जाता था, और यहोवा मूसा से बातें करने लगता था। \v 10 और सब लोग जब बादल के खम्भे को तम्बू के द्वार पर ठहरा देखते थे, तब उठकर अपने-अपने डेरे के द्वार पर से दण्डवत् करते थे। \v 11 और यहोवा मूसा से इस प्रकार आमने-सामने बातें करता था, जिस प्रकार कोई अपने भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर लौट आता था, पर यहोशू नामक एक जवान, जो नून का पुत्र और मूसा का टहलुआ था, वह तम्बू में से न निकलता था। \s मूसा को यहोवा की महिमा का दर्शन \p \v 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, “सुन तू मुझसे कहता है, ‘इन लोगों को ले चल;’ परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किसको भेजेगा। तो भी तूने कहा है, ‘तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है।’ \v 13 और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपनी गति समझा दे, जिससे जब मैं तेरा ज्ञान पाऊँ तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर इसकी भी सुधि कर कि यह जाति तेरी प्रजा है।” \v 14 यहोवा ने कहा, “मैं आप चलूँगा और तुझे विश्राम दूँगा।” \v 15 उसने उससे कहा, “यदि तू आप न चले, तो हमें यहाँ से आगे न ले जा। \v 16 यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपनी प्रजा पर है? क्या इससे नहीं कि \it तू हमारे संग-संग चले\f + \fr 33.16 \fq तू हमारे संग-संग चले: \ft केवल यही वह बात थी जो उन्हें अन्यजातियों से अलग बनाती थी।\f*\it*, जिससे मैं और तेरी प्रजा के लोग पृथ्वी भर के सब लोगों से अलग ठहरें?” \p \v 17 यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं यह काम भी जिसकी चर्चा तूने की है करूँगा; क्योंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है, और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है।” \v 18 उसने कहा, “\it मुझे अपना तेज दिखा दे\f + \fr 33.18 \fq मुझे अपना तेज दिखा दे: \ft यहोवा के विश्वासयोग्य दास ने भक्तिपूर्ण आत्मा के साथ अपने स्वामी, अपने परमेश्वर से और घनिष्ठता की विनती की।\f*\it*।” \v 19 उसने कहा, “मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी \it सारी भलाई\f + \fr 33.19 \fq सारी भलाई: \ft यहोवा ने अपनी इच्छा बताई जो उस अनुग्रह का आधार थी जिसे वह इस्राएलियों पर प्रगट करने को था।\f*\it* दिखाऊँगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूँगा, और जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूँ उसी पर अनुग्रह करूँगा, और जिस पर दया करना चाहूँ उसी पर दया करूँगा।” \v 20 फिर उसने कहा, “तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।” \v 21 फिर यहोवा ने कहा, “सुन, मेरे पास एक स्थान है, तू उस चट्टान पर खड़ा हो; \v 22 और जब तक मेरा तेज तेरे सामने होकर चलता रहे तब तक मैं तुझे चट्टान के दरार में रखूँगा, और जब तक मैं तेरे सामने होकर न निकल जाऊँ तब तक अपने हाथ से तुझे ढाँपे रहूँगा; \v 23 फिर मैं अपना हाथ उठा लूँगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा।” \c 34 \s पत्थर की दो नई तख्तियाँ \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “पहली तख्तियों के समान पत्थर की दो और तख्तियाँ गढ़ ले; तब जो वचन उन पहली तख्तियों पर लिखे थे, जिन्हें तूने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियों पर भी लिखूँगा। \v 2 और सवेरे तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे सामने खड़ा होना। \v 3 तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन् पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़-बकरी और गाय-बैल भी पर्वत के आगे चरने पाएँ।” \v 4 तब मूसा ने पहली तख्तियों के समान दो और तख्तियाँ गढ़ीं; और भोर को सवेरे उठकर अपने हाथ में पत्थर की वे दोनों तख्तियाँ लेकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया। \v 5 तब यहोवा ने बादल में उतरकर उसके संग वहाँ खड़ा होकर यहोवा नाम का प्रचार किया। \v 6 और यहोवा उसके सामने होकर यह प्रचार करता हुआ चला, “यहोवा, यहोवा, परमेश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, \v 7 हजारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप को क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन् पोतों और परपोतों को भी देनेवाला है।” \v 8 तब मूसा ने फुर्ती कर पृथ्वी की ओर झुककर दण्डवत् की। \v 9 और उसने कहा, “हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो प्रभु, हम लोगों के बीच में होकर चले, ये लोग हठीले तो हैं, तो भी हमारे अधर्म और पाप को क्षमा कर, और हमें अपना निज भाग मानकर ग्रहण कर।” \s वाचा का दोहराया जाना \p \v 10 उसने कहा, “सुन, मैं एक वाचा बाँधता हूँ। तेरे सब लोगों के सामने मैं ऐसे आश्चर्यकर्म करूँगा जैसा पृथ्वी पर और सब जातियों में कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगों से करने पर हूँ वह भययोग्य काम है। \v 11 जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूँ उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को निकालता हूँ। \v 12 इसलिए सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासियों से वाचा न बाँधना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिये फंदा ठहरे। \v 13 वरन् \it उनकी वेदियों को गिरा देना\f + \fr 34.13 \fq उनकी वेदियों को गिरा देना: \ft सम्भवतः अश्तारोत देवी का नाम था, और अशेरा उसका चिन्ह था। सम्भवतः उसका चित्रण किसी रूप में लकड़ी से बनाया जाता था। \f*\it*, उनकी लाठों को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नामक मूर्तियों को काट डालना; \v 14 क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को परमेश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला परमेश्वर है, \v 15 ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासियों से वाचा बाँधे, और वे अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिये बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का प्रसाद खाए, \v 16 और तू उनकी बेटियों को अपने बेटों के लिये लाए, और उनकी बेटियाँ जो आप अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती हैं तेरे बेटों से भी अपने देवताओं के पीछे होने को व्यभिचार करवाएँ। \p \v 17 “तुम देवताओं की मूर्तियाँ ढालकर न बना लेना। \p \v 18 “अख़मीरी रोटी का पर्व मानना। उसमें मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मिस्र से अबीब महीने में निकल आया। \v 19 हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहलौठे हों वे सब मेरे ही हैं। \v 20 और गदही के पहलौठे के बदले मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपने सब पहलौठे बेटों को बदला देकर छुड़ाना। मुझे कोई खाली हाथ अपना मुँह न दिखाए। \p \v 21 “छः दिन तो परिश्रम करना, परन्तु सातवें दिन विश्राम करना; वरन् हल जोतने और लवने के समय में भी विश्राम करना। \v 22 और तू सप्ताहों का पर्व मानना जो पहले लवे हुए गेहूँ का पर्व कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्व मानना। \v 23 वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरुष इस्राएल के परमेश्वर प्रभु यहोवा को अपने मुँह दिखाएँ। \v 24 मैं तो अन्यजातियों को तेरे आगे से निकालकर तेरी सीमाओं को बढ़ाऊँगा; और जब तू अपने परमेश्वर यहोवा को अपना मुँह दिखाने के लिये वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा। \p \v 25 “मेरे बलिदान के लहू को ख़मीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्व के बलिदान में से कुछ सवेरे तक रहने देना। \v 26 अपनी भूमि की पहली उपज का पहला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में न पकाना।” \p \v 27 और यहोवा ने मूसा से कहा, “ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बाँधता हूँ।” \v 28 मूसा तो वहाँ यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पिया। और उसने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात् दस आज्ञाएँ लिख दीं। \s मूसा का तेजस्वी चेहरा \p \v 29 जब मूसा साक्षी की दोनों तख्तियाँ हाथ में लिये हुए सीनै पर्वत से उतरा आता था तब यहोवा के साथ बातें करने के कारण \it उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं\f + \fr 34.29 \fq उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं: \ft अनन्त महिमा की चमक, यद्यपि मूसा ने उसको परिवर्तित रूप में देखा था, फिर भी वह उसके चेहरे से इतना चमक रही थी।\f*\it*। परन्तु वह यह नहीं जानता था कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं। \v 30 जब हारून और सब इस्राएलियों ने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकलती हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए। \v 31 तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानों समेत उसके पास आया, और मूसा उनसे बातें करने लगा। \v 32 इसके बाद सब इस्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएँ यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात करने के समय दी थीं, वे सब उसने उन्हें बताईं। \v 33 जब तक मूसा उनसे बात न कर चुका तब तक अपने मुँह पर ओढ़ना डाले रहा। \v 34 और जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके सामने जाता तब-तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता था; फिर बाहर आकर जो-जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्राएलियों से कह देता था। \v 35 इस्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उससे किरणें निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता था। \c 35 \s सब्त के नियम \p \v 1 मूसा ने इस्राएलियों की सारी मण्डली इकट्ठा करके उनसे कहा, “जिन कामों के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वे ये हैं। \v 2 छः दिन तो काम-काज किया जाए, परन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे लिये पवित्र और यहोवा के लिये पवित्र विश्राम का दिन ठहरे; उसमें जो कोई काम-काज करे वह मार डाला जाए; \v 3 वरन् विश्राम के दिन तुम अपने-अपने घरों में आग तक न जलाना।” \s पवित्र तम्बू के लिये भेंट \p \v 4 फिर मूसा ने इस्राएलियों की सारी मण्डली से कहा, “जिस बात की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। \v 5 तुम्हारे पास से यहोवा के लिये भेंट ली जाए, अर्थात् जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके ये वस्तुएँ ले आएँ; अर्थात् सोना, रुपा, पीतल; \v 6 नीले, बैंगनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा; बकरी का बाल, \v 7 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें; बबूल की लकड़ी, \v 8 उजियाला देने के लिये तेल, अभिषेक का तेल, और धूप के लिये सुगन्ध-द्रव्य, \v 9 फिर एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि और जड़ने के लिये मणि। \p \v 10 “तुम में से जितनों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश है वे सब आकर जिस-जिस वस्तु की आज्ञा यहोवा ने दी है वे सब बनाएँ। \v 11 अर्थात् तम्बू, और आवरण समेत निवास, और उसकी घुंडी, तख्ते, बेंड़े, खम्भे और कुर्सियाँ; \v 12 फिर डण्डों समेत सन्दूक, और प्रायश्चित का ढकना, और बीचवाला परदा; \v 13 डण्डों और सब सामान समेत मेज, और भेंट की रोटियाँ; \v 14 सामान और दीपकों समेत उजियाला देनेवाला दीवट, और उजियाला देने के लिये तेल; \v 15 डण्डों समेत धूपवेदी, अभिषेक का तेल, सुगन्धित धूप, और निवास के द्वार का परदा; \v 16 पीतल की झंझरी, डण्डों आदि सारे सामान समेत होमवेदी, पाए समेत हौदी; \v 17 खम्भों और उनकी कुर्सियों समेत आँगन के पर्दे, और आँगन के द्वार के पर्दे; \v 18 निवास और आँगन दोनों के खूँटे, और डोरियाँ; \v 19 पवित्रस्थान में सेवा टहल करने के लिये काढ़े हुए वस्त्र, और याजक का काम करने के लिये हारून याजक के \it पवित्र वस्त्र\f + \fr 35.19 \fq पवित्र वस्त्र: \ft सेवाकार्य के वस्त्र, जिसे पहनकर तम्बू में नहीं बल्कि पवित्रस्थान में सेवा की जाए।\f*\it*, और उसके पुत्रों के वस्त्र भी।” \s लोगों द्वारा भेंट लाना \p \v 20 तब इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा के सामने से लौट गई। \v 21 और जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा की भेंट ले आने लगे। \v 22 क्या स्त्री, क्या पुरुष, जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी वे सब जुगनू, नथनी, मुंदरी, और कंगन आदि सोने के गहने ले आने लगे, इस भाँति जितने मनुष्य यहोवा के लिये सोने की भेंट के देनेवाले थे वे सब उनको ले आए। \v 23 और जिस-जिस पुरुष के पास नीले, बैंगनी या लाल रंग का कपड़ा या सूक्ष्म सनी का कपड़ा, या बकरी का बाल, या लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, या सुइसों की खालें थीं वे उन्हें ले आए। \v 24 फिर जितने चाँदी, या पीतल की भेंट के देनेवाले थे वे यहोवा के लिये वैसी भेंट ले आए; और जिस जिसके पास सेवकाई के किसी काम के लिये बबूल की लकड़ी थी वे उसे ले आए। \v 25 और जितनी स्त्रियों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश था वे अपने हाथों से सूत कात-कातकर नीले, बैंगनी और लाल रंग के, और सूक्ष्म सनी के काते हुए सूत को ले आईं। \v 26 और जितनी स्त्रियों के मन में ऐसी बुद्धि का प्रकाश था उन्होंने बकरी के बाल भी काते। \v 27 और प्रधान लोग एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि, और जड़ने के लिये मणि, \v 28 और उजियाला देने और अभिषेक और धूप के सुगन्ध-द्रव्य और तेल ले आए। \v 29 जिस-जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी थी उसके लिये जो कुछ आवश्यक था, उसे वे सब पुरुष और स्त्रियाँ ले आईं, जिनके हृदय में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी। इस प्रकार इस्राएली यहोवा के लिये अपनी ही इच्छा से भेंट ले आए। \s पवित्र तम्बू का निर्माण \p \v 30 तब मूसा ने इस्राएलियों से कहा सुनो, “यहोवा ने यहूदा के गोत्रवाले बसलेल को, जो ऊरी का पुत्र और हूर का पोता है, नाम लेकर बुलाया है। \v 31 और उसने उसको परमेश्वर के आत्मा से ऐसा परिपूर्ण किया है कि सब प्रकार की बनावट के लिये उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला है, \v 32 कि वह कारीगरी की युक्तियाँ निकालकर सोने, चाँदी, और पीतल में, \v 33 और जड़ने के लिये मणि काटने में और लकड़ी पर नक्काशी करने में, वरन् बुद्धि से सब भाँति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके। \v 34 फिर यहोवा ने उसके मन में और दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब के मन में भी शिक्षा देने की शक्ति दी है। \v 35 इन दोनों के हृदय को यहोवा ने ऐसी बुद्धि से परिपूर्ण किया है, कि वे नक्काशी करने और गढ़ने और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में \it काढ़ने\f + \fr 35.35 \fq काढ़ने: \ft उसने सुईं से काम किया। उसने सुईं से या तो रंगीन धागों से या रंगीन कपड़ों के टुकड़ों से बनावट दी।\f*\it* और बुनने, वरन् सब प्रकार की बनावट में, और बुद्धि से काम निकालने में सब भाँति के काम करें। \c 36 \p \v 1 “बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमान जिनको यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो, कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रस्थान की सेवकाई के लिये सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें।” \s लोगों द्वारा पर्याप्त से अधिक देना \p \v 2 तब मूसा ने बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमानों को जिनके हृदय में यहोवा ने बुद्धि का प्रकाश दिया था, अर्थात् जिस-जिसको पास आकर काम करने का उत्साह हुआ था उन सभी को बुलवाया। \v 3 और इस्राएली जो-जो भेंट पवित्रस्थान की सेवकाई के काम और उसके बनाने के लिये ले आए थे, उन्हें उन पुरुषों ने मूसा के हाथ से ले लिया। तब भी लोग प्रति भोर को उसके पास भेंट अपनी इच्छा से लाते रहे; \v 4 और जितने बुद्धिमान पवित्रस्थान का काम करते थे वे सब अपना-अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए, \v 5 और कहने लगे, “जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिये जितना चाहिये उससे अधिक वे ले आए हैं।” \v 6 तब मूसा ने सारी छावनी में इस आज्ञा का प्रचार करवाया, “क्या पुरुष, क्या स्त्री, कोई पवित्रस्थान के लिये और भेंट न लाए।” इस प्रकार लोग और भेंट लाने से रोके गए। \v 7 क्योंकि सब काम बनाने के लिये जितना सामान आवश्यक था उतना वरन् उससे अधिक बनानेवालों के पास आ चुका था। \s निवास-स्थान का निर्माण \p \v 8 और \it काम करनेवाले जितने बुद्धिमान थे\f + \fr 36.8 \fq काम करनेवाले जितने बुद्धिमान थे: \ft और सटीक रूप से यह निपुण बुनकर का काम था। करूबों के रंगीन चित्रण का काम करघा पर किया जाना था, जिसको बनाने के लिए अलग-अलग तरह के कारीगर लगाए गए।\f*\it* उन्होंने निवास के लिये बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के, और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े के दस परदों को काढ़े हुए करूबों सहित बनाया। \v 9 एक-एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; सब परदे एक ही नाप के बने। \v 10 उसने पाँच परदे एक दूसरे से जोड़ दिए, और फिर दूसरे पाँच परदे भी एक दूसरे से जोड़ दिए। \v 11 और जहाँ ये परदे जोड़े गए वहाँ की दोनों छोरों पर उसने नीले-नीले फंदे लगाए। \v 12 उसने दोनों छोरों में पचास-पचास फंदे इस प्रकार लगाए कि वे एक दूसरे के सामने थे। \v 13 और उसने सोने की पचास अंकड़े बनाए, और उनके द्वारा परदों को एक दूसरे से ऐसा जोड़ा कि निवास मिलकर एक हो गया। \p \v 14 फिर निवास के ऊपर के तम्बू के लिये उसने बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनाए। \v 15 एक-एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; और ग्यारहों परदे एक ही नाप के थे। \v 16 इनमें से उसने पाँच परदे अलग और छः परदे अलग जोड़ दिए। \v 17 और जहाँ दोनों जोड़े गए वहाँ की छोरों में उसने पचास-पचास फंदे लगाए। \v 18 और उसने तम्बू के जोड़ने के लिये पीतल की पचास अंकड़े भी बनाए जिससे वह एक हो जाए। \v 19 और उसने तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर के लिये सुइसों की खालों का एक ओढ़ना बनाया। \p \v 20 फिर उसने निवास के लिये बबूल की लकड़ी के तख्तों को खड़े रहने के लिये बनाया। \v 21 एक-एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हुई। \v 22 एक-एक तख्ते में एक दूसरी से जोड़ी हुई दो-दो चूलें बनीं, निवास के सब तख्तों के लिये उसने इसी भाँति बनाया। \v 23 और उसने निवास के लिये तख्तों को इस रीति से बनाया कि दक्षिण की ओर बीस तख्ते लगे। \v 24 और इन बीसों तख्तो के नीचे चाँदी की चालीस कुर्सियाँ, अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे उसकी दो चूलों के लिये उसने दो कुर्सियाँ बनाईं। \v 25 और निवास की दूसरी ओर, अर्थात् उत्तर की ओर के लिये भी उसने बीस तख्ते बनाए। \v 26 और इनके लिये भी उसने चाँदी की चालीस कुर्सियाँ, अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे दो-दो कुर्सियाँ बनाईं। \v 27 और निवास की पिछली ओर, अर्थात् पश्चिम ओर के लिये उसने छः तख्ते बनाए। \v 28 और पिछले भाग में निवास के कोनों के लिये उसने दो तख्ते बनाए। \v 29 और वे नीचे से दो-दो भाग के बने, और दोनों भाग ऊपर के सिरे तक एक-एक कड़े में मिलाए गए; उसने उन दोनों तख्तों का आकार ऐसा ही बनाया। \v 30 इस प्रकार आठ तख्ते हुए, और उनकी चाँदी की सोलह कुर्सियाँ हुईं, अर्थात् एक-एक तख्ते के नीचे दो-दो कुर्सियाँ हुईं। \p \v 31 फिर उसने बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनाए, अर्थात् निवास की एक ओर के तख्तों के लिये पाँच बेंड़े, \v 32 और निवास की दूसरी ओर के तख्तों के लिये पाँच बेंड़े, और निवास का जो किनारा पश्चिम की ओर पिछले भाग में था उसके लिये भी पाँच बेंड़े, बनाए। \v 33 और उसने बीचवाले बेंड़े को तख्तों के मध्य में तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने के लिये बनाया। \v 34 और तख्तों को उसने सोने से मढ़ा, और बेंड़ों के घर को काम देनेवाले कड़ों को सोने के बनाया, और बेंड़ों को भी सोने से मढ़ा। \p \v 35 फिर उसने नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का बीचवाला परदा बनाया; वह कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के साथ बना। \v 36 और उसने उसके लिये बबूल के चार खम्भे बनाए, और उनको सोने से मढ़ा; उनकी घुंडियाँ सोने की बनीं, और उसने उनके लिये चाँदी की चार कुर्सियाँ ढालीं। \v 37 उसने तम्बू के द्वार के लिये भी नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कढ़ाई का काम किया हुआ परदा बनाया। \v 38 और उसने घुंडियों समेत उसके पाँच खम्भे भी बनाए, और उनके सिरों और जोड़ने की छड़ों को सोने से मढ़ा, और उनकी पाँच कुर्सियाँ पीतल की बनाईं। \c 37 \s वाचा का सन्दूक बनाया जाना \p \v 1 फिर बसलेल ने बबूल की लकड़ी का \it सन्दूक\f + \fr 37.1 \fq सन्दूक: \ft सन्दूक पवित्रस्थान का केंद्र था। इसमें साक्षीपत्र अर्थात् ईश्वरीय व्यवस्था की पाटियाँ, अर्थात् यहोवा और उसके लोगों के बीच वाचा के नियम थे।\f*\it* बनाया; उसकी लम्बाई ढाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ, और ऊँचाई डेढ़ हाथ की थी। \v 2 उसने उसको भीतर बाहर शुद्ध सोने से मढ़ा, और उसके चारों ओर सोने की बाड़ बनाई। \v 3 और उसके चारों पायों पर लगाने को उसने सोने के चार कड़े ढाले, दो कड़े एक ओर और दो कड़े दूसरी ओर लगे। \v 4 फिर उसने बबूल के डण्डे बनाए, और उन्हें सोने से मढ़ा, \v 5 और उनको सन्दूक के दोनों ओर के कड़ों में डाला कि उनके बल सन्दूक उठाया जाए। \v 6 फिर उसने शुद्ध सोने के प्रायश्चितवाले ढकने को बनाया; उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी। \v 7 और उसने सोना गढ़कर दो करूब प्रायश्चित के ढकने के दोनों सिरों पर बनाए; \v 8 एक करूब तो एक सिरे पर, और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर बना; उसने उनको प्रायश्चित के ढकने के साथ एक ही टुकड़े के दोनों सिरों पर बनाया। \v 9 और करूबों के पंख ऊपर से फैले हुए बने, और उन पंखों से प्रायश्चित का ढकना ढँपा हुआ बना, और उनके मुख आमने-सामने और प्रायश्चित के ढकने की ओर किए हुए बने। \s पवित्र मेज का बनाया जाना \p \v 10 फिर उसने बबूल की लकड़ी की मेज को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊँचाई डेढ़ हाथ की थी; \v 11 और उसने उसको शुद्ध सोने से मढ़ा, और उसमें चारों ओर शुद्ध सोने की एक बाड़ बनाई। \v 12 और उसने उसके लिये चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। \v 13 और उसने मेज के लिये सोने के चार कड़े ढालकर उन चारों कोनों में लगाया, जो उसके चारों पायों पर थे। \v 14 वे कड़े पटरी के पास मेज उठाने के डण्डों के खानों का काम देने को बने। \v 15 और उसने मेज उठाने के लिये डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाया, और सोने से मढ़ा। \v 16 और उसने मेज पर का सामान अर्थात् परात, धूपदान, कटोरे, और उण्डेलने के बर्तन सब शुद्ध सोने के बनाए। \s सोने की दीवट का बनाया जाना \p \v 17 फिर उसने \it शुद्ध सोना गढ़कर पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया\f + \fr 37.17 \fq शुद्ध सोना गढ़कर पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया: \ft इसका उद्देश्य सात दीवटों को सम्भालना था।\f*\it*; उसके पुष्पकोष, गाँठ, और फूल सब एक ही टुकड़े के बने। \v 18 और दीवट से निकली हुई छः डालियाँ बनीं; तीन डालियाँ तो उसकी एक ओर से और तीन डालियाँ उसकी दूसरी ओर से निकली हुई बनीं। \v 19 एक-एक डाली में बादाम के फूल के सरीखे तीन-तीन पुष्पकोष, एक-एक गाँठ, और एक-एक फूल बना; दीवट से निकली हुई, उन छहों डालियों का यही आकार हुआ। \v 20 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान अपनी-अपनी गाँठ और फूल समेत चार पुष्पकोष बने। \v 21 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो-दो डालियों के नीचे एक-एक गाँठ दीवट के साथ एक ही टुकड़े की बनी। \v 22 गाँठें और डालियाँ सब दीवट के साथ एक ही टुकड़े की बनीं; सारा दीवट गढ़े हुए शुद्ध सोने का और एक ही टुकड़े का बना। \v 23 और उसने दीवट के सातों दीपक, और गुलतराश, और गुलदान, शुद्ध सोने के बनाए। \v 24 उसने सारे सामान समेत दीवट को किक्कार भर सोने का बनाया। \s धूपवेदी का बनाया जाना \p \v 25 फिर उसने बबूल की लकड़ी की धूपवेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की थी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊँचाई दो हाथ की थी; और उसके सींग उसके साथ बिना जोड़ के बने थे \v 26 ऊपरवाले पल्लों, और चारों ओर के बाजुओं और सींगों समेत उसने उस वेदी को शुद्ध सोने से मढ़ा; और उसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई, \v 27 और उस बाड़ के नीचे उसके दोनों पल्लों पर उसने सोने के दो कड़े बनाए, जो उसके उठाने के डण्डों के खानों का काम दें। \v 28 और डण्डों को उसने बबूल की लकड़ी का बनाया, और सोने से मढ़ा। \p \v 29 और उसने अभिषेक का पवित्र तेल, और सुगन्ध-द्रव्य का धूप गंधी की रीति के अनुसार बनाया। \c 38 \s होमबलि की वेदी \p \v 1 फिर उसने बबूल की लकड़ी की होमबलि के लिये वेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई पाँच हाथ और चौड़ाई पाँच हाथ की थी; इस प्रकार से वह चौकोर बनी, और ऊँचाई तीन हाथ की थी। \v 2 और उसने उसके चारों कोनों पर उसके चार सींग बनाए, वे उसके साथ बिना जोड़ के बने; और उसने उसको पीतल से मढ़ा। \v 3 और उसने वेदी का सारा सामान, अर्थात् उसकी हाँड़ियों, फावड़ियों, कटोरों, काँटों, और करछों को बनाया। उसका सारा सामान उसने पीतल का बनाया। \v 4 और वेदी के लिये उसके चारों ओर की कँगनी के तले उसने पीतल की जाली की एक झंझरी बनाई, वह नीचे से वेदी की ऊँचाई के मध्य तक पहुँची। \v 5 और उसने पीतल की झंझरी के चारों कोनों के लिये चार कड़े ढाले, जो डण्डों के खानों का काम दें। \v 6 फिर उसने डण्डों को बबूल की लकड़ी का बनाया, और पीतल से मढ़ा। \v 7 तब उसने डण्डों को वेदी की ओर के कड़ों में वेदी के उठाने के लिये डाल दिया। वेदी को उसने तख्तों से खोखली बनाया। \s पीतल की हौदी \p \v 8 उसने हौदी और उसका पाया दोनों पीतल के बनाए, यह \it मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली महिलाओं\f + \fr 38.8 \fq मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली महिलाओं: \ft वे स्त्रियाँ जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठी होती थी और भक्त स्त्रियाँ थीं। पवित्रस्थान में इस्तेमाल करने के लिए अपने दर्पणों को देना इन स्त्रियों के लिए योग्य बलिदान था।\f*\it* के पीतल के दर्पणों के लिये बनाए गए। \s पवित्रस्थान का आँगन \p \v 9 फिर उसने आँगन बनाया; और दक्षिण की ओर के लिये आँगन के पर्दे बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के थे, और सब मिलाकर सौ हाथ लम्बे थे; \v 10 उनके लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस कुर्सियाँ बनीं; और खम्भों की घुंडियाँ और जोड़ने की छड़ें चाँदी की बनीं। \v 11 और उत्तर की ओर के लिये भी सौ हाथ लम्बे पर्दे बने; और उनके लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस ही कुर्सियाँ बनीं, और खम्भों की घुंडियाँ और जोड़ने की छड़ें चाँदी की बनीं। \v 12 और पश्चिम की ओर के लिये सब पर्दे मिलाकर पचास हाथ के थे; उनके लिए दस खम्भे, और दस ही उनकी कुर्सियाँ थीं, और खम्भों की घुंडियाँ और जोड़ने की छड़ें चाँदी की थीं। \v 13 और पूरब की ओर भी वह पचास हाथ के थे। \v 14 आँगन के द्वार के एक ओर के लिये पन्द्रह हाथ के पर्दे बने; और उनके लिये तीन खम्भे और तीन कुर्सियाँ थीं। \v 15 और आँगन के द्वार के दूसरी ओर भी वैसा ही बना था; और आँगन के दरवाजे के इधर और उधर पन्द्रह-पन्द्रह हाथ के पर्दे बने थे; और उनके लिये तीन ही तीन खम्भे, और तीन ही तीन इनकी कुर्सियाँ भी थीं। \v 16 आँगन की चारों ओर सब पर्दे सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने हुए थे। \v 17 और खम्भों की कुर्सियाँ पीतल की, और घुंडियाँ और छड़ें चाँदी की बनीं, और उनके सिरे चाँदी से मढ़े गए, और आँगन के सब खम्भे चाँदी के छड़ों से जोड़े गए थे। \v 18 आँगन के द्वार के पर्दे पर बेलबूटे का काम किया हुआ था, और वह नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का; और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने थे; और उसकी लम्बाई बीस हाथ की थी, और उसकी ऊँचाई आँगन की कनात की चौड़ाई के सामान पाँच हाथ की बनी। \v 19 और उनके लिये चार खम्भे, और खम्भों की चार ही कुर्सियाँ पीतल की बनीं, उनकी घुंडियाँ चाँदी की बनीं, और उनके सिरे चाँदी से मढ़े गए, और उनकी छड़ें चाँदी की बनीं। \v 20 और निवास और आँगन के चारों ओर के सब खूँटे पीतल के बने थे। \s धातुओं का विवरण \p \v 21 साक्षीपत्र के निवास का सामान जो लेवियों के सेवाकार्य के लिये बना; और जिसकी गिनती हारून याजक के पुत्र ईतामार के द्वारा मूसा के कहने से हुई थी, उसका वर्णन यह है। \v 22 जिस-जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसको यहूदा के गोत्रवाले बसलेल ने, जो हूर का पोता और ऊरी का पुत्र था, बना दिया। \v 23 और उसके संग दान के गोत्रवाले, अहीसामाक का पुत्र, ओहोलीआब था, जो नक्काशी करने और काढ़नेवाला और नीले, बैंगनी और लाल रंग के और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कढ़ाई करनेवाला निपुण कारीगर था। \p \v 24 पवित्रस्थान के सारे काम में जो भेंट का सोना लगा वह पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से उनतीस किक्कार, और सात सौ तीस शेकेल था। \v 25 और मण्डली के गिने हुए लोगों की भेंट की चाँदी पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से सौ किक्कार, और सत्रह सौ पचहत्तर शेकेल थी। \v 26 अर्थात् जितने बीस वर्ष के और उससे अधिक आयु के गिने गए थे, वे छः लाख तीन हजार साढ़े पाँच सौ पुरुष थे, और एक-एक जन की ओर से पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल, जो एक बेका होता है, मिला। \v 27 और वह सौ किक्कार चाँदी पवित्रस्थान और बीचवाले पर्दे दोनों की कुर्सियों के ढालने में लग गई; सौ किक्कार से सौ कुर्सियाँ बनीं, एक-एक कुर्सी एक किक्कार की बनी। \v 28 और सत्रह सौ पचहत्तर शेकेल जो बच गए उनसे खम्भों की घुंडियाँ बनाई गईं, और खम्भों की चोटियाँ मढ़ी गईं, और उनकी छड़ें भी बनाई गईं। \v 29 और भेंट का पीतल सत्तर किक्कार और दो हजार चार सौ शेकेल था; \v 30 इससे मिलापवाले तम्बू के द्वार की कुर्सियाँ, और पीतल की वेदी, पीतल की झंझरी, और वेदी का सारा सामान; \v 31 और आँगन के चारों ओर की कुर्सियाँ, और उसके द्वार की कुर्सियाँ, और निवास, और आँगन के चारों ओर के खूँटे भी बनाए गए। \c 39 \s याजकीय वस्त्र बनाना \p \v 1 फिर उन्होंने नीले, बैंगनी और लाल रंग के काढ़े हुए कपड़े पवित्रस्थान की सेवा के लिये, और हारून के लिये भी पवित्र वस्त्र बनाए; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \s एपोद बनाना \p \v 2 और उसने \it एपोद को सोने\f + \fr 39.2 \fq एपोद को सोने: \ft एपोद में कपड़े के दो टुकड़े लगे होते हैं, एक पीछे की ओर और एक आगे की ओर, जिसे कंधों की पट्टियों द्वारा जोड़ा जाता है, सूक्ष्म मलमल के कपड़े से बना एपोद न केवल याजकों के लिए बल्कि अस्थाई रूप से पवित्रस्थान में सेवा करनेवालों के लिए भी एक सम्मानीय वस्त्र था।\f*\it*, और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बनाया। \v 3 और उन्होंने सोना पीट-पीट कर उसके पत्तर बनाए, फिर पत्तरों को काट-काटकर तार बनाए, और तारों को नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े में, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कढ़ाई की बनावट से मिला दिया। \v 4 एपोद के जोड़ने को उन्होंने उसके कंधों पर के बन्धन बनाए, वह अपने दोनों सिरों से जोड़ा गया। \v 5 और उसे कसने के लिये जो काढ़ा हुआ पटुका उस पर बना, वह उसके साथ बिना जोड़ का, और उसी की बनावट के अनुसार, अर्थात् सोने और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े का, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बना; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \p \v 6 उन्होंने सुलैमानी मणि काटकर उनमें इस्राएल के पुत्रों के नाम, जैसा छापा खोदा जाता है वैसे ही खोदे, और सोने के खानों में जड़ दिए। \v 7 उसने उनको एपोद के कंधे के बन्धनों पर लगाया, जिससे इस्राएलियों के लिये स्मरण करानेवाले मणि ठहरें; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \s सीनाबन्ध बनाना \p \v 8 उसने \it चपरास\f + \fr 39.8 \fq चपरास: \ft सीनाबन्ध” के लिए इस्तेमाल हुआ इब्रानी शब्द का अर्थ केवल आभूषण प्रतीत होता है। सीनाबन्ध का सम्बंध केवल वस्त्र में उसके स्थान से है।\f*\it* को एपोद के समान सोने की, और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े की, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े में बेलबूटे का काम किया हुआ बनाया। \v 9 चपरास तो चौकोर बनी; और उन्होंने उसको दोहरा बनाया, और वह दोहरा होकर एक बित्ता लम्बा और एक बित्ता चौड़ा बना। \v 10 और उन्होंने उसमें चार पंक्तियों में मणि जड़े। पहली पंक्ति में माणिक्य, पद्मराग, और लालड़ी जड़े गए; \v 11 और दूसरी पंक्ति में मरकत, नीलमणि, और हीरा, \v 12 और तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकांत, और नीलम; \v 13 और चौथी पंक्ति में फीरोजा, सुलैमानी मणि, और यशब जड़े; ये सब अलग-अलग सोने के खानों में जड़े गए। \v 14 और ये मणि इस्राएल के पुत्रों के नामों की गिनती के अनुसार बारह थे; बारहों गोत्रों में से एक-एक का नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसा ही खोदा गया। \v 15 और उन्होंने चपरास पर डोरियों के समान गूँथे हुए शुद्ध सोने की जंजीर बनाकर लगाई; \v 16 फिर उन्होंने सोने के दो खाने, और सोने की दो कड़ियाँ बनाकर दोनों कड़ियों को चपरास के दोनों सिरों पर लगाया; \v 17 तब उन्होंने सोने की दोनों गूँथी हुई जंजीरों को चपरास के सिरों पर की दोनों कड़ियों में लगाया। \v 18 और गूँथी हुई दोनों जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को उन्होंने दोनों खानों में जड़ के, एपोद के सामने दोनों कंधों के बन्धनों पर लगाया। \v 19 और उन्होंने सोने की और दो कड़ियाँ बनाकर चपरास के दोनों सिरों पर उसकी उस कोर पर, जो एपोद के भीतरी भाग में थी, लगाई। \v 20 और उन्होंने सोने की दो और कड़ियाँ भी बनाकर एपोद के दोनों कंधों के बन्धनों पर नीचे से उसके सामने, और जोड़ के पास, एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगाई। \v 21 तब उन्होंने चपरास को उसकी कड़ियों के द्वारा एपोद की कड़ियों में नीले फीते से ऐसा बाँधा, कि वह एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर रहे, और चपरास एपोद से अलग न होने पाए; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \s अन्य याजकीय वस्त्र बनाना \p \v 22 फिर एपोद का बागा सम्पूर्ण नीले रंग का बनाया गया। \v 23 और उसकी बनावट ऐसी हुई कि उसके बीच बख्तर के छेद के समान एक छेद बना, और छेद के चारों ओर एक कोर बनी, कि वह फटने न पाए। \v 24 और उन्होंने उसके नीचेवाले घेरे में नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनाए। \v 25 और उन्होंने शुद्ध सोने की घंटियाँ भी बनाकर बागे के नीचेवाले घेरे के चारों ओर अनारों के बीचों बीच लगाई; \v 26 अर्थात् बागे के नीचेवाले घेरे के चारों ओर एक सोने की घंटी, और एक अनार फिर एक सोने की घंटी, और एक अनार लगाया गया कि उन्हें पहने हुए सेवा टहल करें; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \p \v 27 फिर उन्होंने हारून, और उसके पुत्रों के लिये बुनी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के अंगरखे, \v 28 और सूक्ष्म सनी के कपड़े की पगड़ी, और सूक्ष्म सनी के कपड़े की सुन्दर टोपियाँ, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की जाँघिया, \v 29 और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की और नीले, बैंगनी और लाल रंग की कढ़ाई का काम की हुई पगड़ी; इन सभी को जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी वैसा ही बनाया। \p \v 30 फिर उन्होंने पवित्र मुकुट की पटरी शुद्ध सोने की बनाई; और जैसे छापे में वैसे ही उसमें ये अक्षर खोदे गए, अर्थात् ‘यहोवा के लिये पवित्र।’ \v 31 और उन्होंने उसमें नीला फीता लगाया, जिससे वह ऊपर पगड़ी पर रहे, जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \s कार्यों का पूरा होना \p \v 32 इस प्रकार मिलापवाले तम्बू के निवास का सब काम समाप्त हुआ, और जिस-जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्राएलियों ने उसी के अनुसार किया। \p \v 33 तब वे निवास को मूसा के पास ले आए, अर्थात् घुंडियाँ, तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुर्सियाँ आदि सारे सामान समेत तम्बू; \v 34 और लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालों का ओढ़ना, और सुइसों की खालों का ओढ़ना, और बीच का परदा; \v 35 डण्डों सहित साक्षीपत्र का सन्दूक, और प्रायश्चित का ढकना; \v 36 सारे सामान समेत मेज, और भेंट की रोटी; \v 37 सारे सामान सहित दीवट, और उसकी सजावट के दीपक और उजियाला देने के लिये तेल; \v 38 सोने की वेदी, और अभिषेक का तेल, और सुगन्धित धूप, और तम्बू के द्वार का परदा; \v 39 पीतल की झंझरी, डण्डों और सारे सामान समेत पीतल की वेदी; और पाए समेत हौदी; \v 40 खम्भों और कुर्सियों समेत आँगन के पर्दे, और आँगन के द्वार का परदा, और डोरियाँ, और खूँटे, और मिलापवाले तम्बू के निवास की सेवा का सारा सामान; \v 41 पवित्रस्थान में सेवा टहल करने के लिये बेल बूटा काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रों के वस्त्र जिन्हें पहनकर उन्हें याजक का काम करना था। \v 42 अर्थात् जो-जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उन्हीं के अनुसार इस्राएलियों ने सब काम किया। \v 43 तब मूसा ने सारे काम का निरीक्षण करके देखा कि उन्होंने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। और मूसा ने उनको आशीर्वाद दिया। \c 40 \s मिलापवाले तम्बू स्थापित करने के निर्देश \p \v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, \v 2 “पहले महीने के पहले दिन को तू मिलापवाले तम्बू के निवास को खड़ा कर देना। \v 3 और उसमें साक्षीपत्र के सन्दूक को रखकर बीचवाले पर्दे की ओट में कर देना। \v 4 और मेज को भीतर ले जाकर जो कुछ उस पर सजाना है उसे सजा देना; तब दीवट को भीतर ले जाकर उसके दीपकों को जला देना। \v 5 और साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने सोने की वेदी को जो धूप के लिये है उसे रखना, और निवास के द्वार के पर्दे को लगा देना। \v 6 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार के सामने होमवेदी को रखना। \v 7 और मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उसमें जल भरना। \v 8 और चारों ओर के आँगन की कनात को खड़ा करना, और उस आँगन के द्वार पर पर्दे को लटका देना। \v 9 और अभिषेक का तेल लेकर निवास का और जो कुछ उसमें होगा सब कुछ का अभिषेक करना, और सारे सामान समेत उसको पवित्र करना; तब वह पवित्र ठहरेगा। \v 10 सब सामान समेत होमवेदी का अभिषेक करके उसको पवित्र करना; तब वह परमपवित्र ठहरेगी। \v 11 पाए समेत हौदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र करना। \v 12 तब हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले जाकर जल से नहलाना, \v 13 और हारून को पवित्र वस्त्र पहनाना, और उसका अभिषेक करके उसको पवित्र करना कि वह मेरे लिये याजक का काम करे। \v 14 और उसके पुत्रों को ले जाकर अंगरखे पहनाना, \v 15 और जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करे वैसे ही उनका भी अभिषेक करना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें; और उनका अभिषेक उनकी पीढ़ी-पीढ़ी के लिये उनके सदा के याजकपद का चिन्ह ठहरेगा।” \s मिलापवाले तम्बू का खड़ा किया जाना \p \v 16 और मूसा ने जो-जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी थी उसी के अनुसार किया। \v 17 और दूसरे वर्ष के पहले महीने के पहले दिन को निवास खड़ा किया गया। \v 18 मूसा ने निवास को खड़ा करवाया और उसकी कुर्सियाँ धर उसके तख्ते लगाकर उनमें बेंड़े डाले, और उसके खम्भों को खड़ा किया; \v 19 और उसने निवास के ऊपर तम्बू को फैलाया, और तम्बू के ऊपर उसने ओढ़ने को लगाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 20 और उसने साक्षीपत्र को लेकर सन्दूक में रखा, और सन्दूक में डण्डों को लगाकर उसके ऊपर प्रायश्चित के ढकने को रख दिया; \v 21 और उसने सन्दूक को निवास में पहुँचवाया, और बीचवाले पर्दे को लटकवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को उसके अन्दर किया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 22 और उसने मिलापवाले तम्बू में निवास की उत्तर की ओर बीच के पर्दे से बाहर मेज को लगवाया, \v 23 और उस पर उन ने यहोवा के सम्मुख रोटी सजा कर रखी; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 24 और उसने मिलापवाले तम्बू में मेज के सामने निवास की दक्षिण ओर पर दीवट को रखा, \v 25 और उसने दीपकों को यहोवा के सम्मुख जला दिया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 26 और उसने मिलापवाले तम्बू में बीच के पर्दे के सामने सोने की वेदी को रखा, \v 27 और उसने उस पर सुगन्धित धूप जलाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 28 और उसने निवास के द्वार पर पर्दे को लगाया। \v 29 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार पर होमबलि को रखकर उस पर होमबलि और अन्नबलि को चढ़ाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 30 और उसने मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उसमें धोने के लिये जल डाला, \v 31 और मूसा और हारून और उसके पुत्रों ने उसमें अपने-अपने हाथ पाँव धोए; \v 32 और जब जब वे मिलापवाले तम्बू में या वेदी के पास जाते थे तब-तब वे हाथ पाँव धोते थे; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। \v 33 और उसने निवास के चारों ओर और वेदी के आस-पास आँगन की कनात को खड़ा करवाया, और आँगन के द्वार के पर्दे को लटका दिया। इस प्रकार मूसा ने सब काम को पूरा किया। \s मिलापवाले तम्बू पर यहोवा की महिमा \p \v 34 तब बादल मिलापवाले तम्बू पर छा गया, और यहोवा का तेज निवास-स्थान में भर गया। \v 35 और बादल मिलापवाले तम्बू पर ठहर गया, और यहोवा का तेज निवास-स्थान में भर गया, इस कारण मूसा उसमें प्रवेश न कर सका। \v 36 इस्राएलियों की सारी यात्रा में ऐसा होता था, कि जब जब वह बादल निवास के ऊपर से उठ जाता तब-तब वे कूच करते थे। \v 37 और यदि वह न उठता, तो जिस दिन तक वह न उठता था उस दिन तक वे कूच नहीं करते थे। \v 38 इस्राएल के घराने की सारी यात्रा में दिन को तो यहोवा का बादल निवास पर, और रात को उसी बादल में आग उन सभी को दिखाई दिया करती थी।